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आचाय चतुरसेन शा ी का ज म 26 अग त 1891 म उ र दे श के बुलंदशहर के पास

चंदोख नामक गांव म आ था। सकंदराबाद म कूल क पढ़ाई ख म करने के बाद


उ ह ने सं कृत कालेज, जयपुर म दा खला लया और वह उ ह ने 1915 म आयुवद म
‘आयुवदाचाय’ और सं कृत म ‘शा ी’ क उपा ध ा त क । आयुवदाचाय क एक अ य
उपा ध उ ह ने आयुवद व ापीठ से भी ा त क । फर 1917 म लाहौर म डी.ए.वी
कॉलेज म आयुवद के व र ोफेसर बने। उसके बाद वे द ली म बस गए और आयुवद
च क सा क अपनी ड पसरी खोली। 1918 म उनक पहली पु तक दय क परख
का शत ई और उसके बाद पु तक लखने का सल सला बराबर चलता रहा। अपने
जीवन म उ ह ने अनेक ऐ तहा सक और सामा जक उप यास, कहा नय क रचना करने
के साथ आयुवद पर आधा रत वा य और यौन संबंधी कई पु तक लख । 2 फरवरी,
1960 म 68 वष क उ म ब वध तभा के धनी लेखक का दे हांत हो गया, ले कन
उनक रचनाएं आज भी पाठक म ब त लोक य ह।
काम-कला के भेद

आचाय चतुरसेन
ISBN: 978-93-5064-221-4
थम राजपाल सं करण: 2014 © आचाय चतुरसेन
KAAM-KALA KE BHED (Health & Fitness)
by Acharya Chatursen

राजपाल ए ड स ज़
1590, मदरसा रोड, क मीरी गेट- द ली-110006
फोनः 011-23869812, 23865483, फै सः 011-23867791
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भू मका

पु ष और य के एकाक जीवन तीत करने के म स ा ततः व ।ँ मेरी खुली


स म त है क पृ वी पर कोई ी और पु ष मृ युपय त एकाक न रहे। पर तु म पर पर
सुखी-तृ त आ या यत रहने के लए ी-पु ष का आ या मक काम-स ब ध चाहता ँ,
जो केवल एक- सरे के लए अ धका धक याग म सी मत है। ऐसे ही पर पर के लए
अ धका धक याग को म ेम कहता ँ। पर तु यह ी-पु ष का अ धका धक सहवास
जहाँ दोन को परम जीवन दान करता है, वहाँ केवल अवै ा नक शारी रक सहवास
सा ात् मृ यु लाता है।
इस वषय म व ान ब त-सी मह वपूण बात बता सकता है। लोग इस वषय पर
व तार से कुछ कहना-सुनना अ ील समझते ह। पर तु व ान कभी भी अ ील नह
है, खासकर काम-स ब धी व ान, जसे बड़े-से-बड़े पु ष ने आ मापण कया है और
जो पृ वी पर, जीवन म सबसे अ धक मू यवान और मह वपूण एवं पेचीदा है। यह वह
वषय है क जसका जीवन से सबसे अ धक नकट स ब ध है। इसके वषय म अनाड़ी
रहकर ाण को खतरे म डालना कभी भी बु मानी क बात नह कही जा सकती।
यौवन के भात म ी पु ष के लए पृ वी क सबसे अ धक आकषक व तु है,
पर तु जीवन क पहरी ढलने के बाद एवं सं या क बेला म वह पु ष के लए एक
आव यक व तु हो जाती है। परमे र क इस अ तम दे न का अ धका धक आन दलाभ
वे ही उठा सकते ह जो काम-कला के भेद के ाता ह। पर तु वहार म 99 तशत
पु ष इस वषय म अ ानी होते ह और वे जीवन म नह जान पाते क नारी से वह लभ
रस कैसे ा त कया जा सकता है, जसके बल पर महान् से महान् वीर ने जगत् को जय
करने क साम य ा त क थी।
इस स ब ध म पा ा य तथा पूव य काम-शा य ने अनेक खोजपूण और
मह वपूण थ लखे ह। उनसे ब त-सी मह वपूण बात का सार लेकर तथा अपने
अनुभव और वचार का सहारा लेकर हमने इस पु तक को लखा है। य प यह पु तक
इस वषय क पूरी पु तक नह है, फर भी इसे जानने और समझने यो य इतनी बात आ
गई ह जतनी ह द क कसी सरी पु तक म अभी तक नह का शत । हम आशा
है क इससे ब त गृह थ को लाभ होगा।
इस पु तक म कुछ ब कुल नए स ा त और वचार कट कए गये ह, जनका
मू य बार बार मनन करने और ग भीरता से वचार करने पर मालूम होगा। एक बात म
प कह दे ना चाहता ँ क यह थ नवयुवक के लए कदा चत् उतना उपयोगी सा बत
न हो जतना ौढ़ सद्-गृह थ के लए। वे इससे जतना लाभ उठाएँगे उतना ही मेरा
प र म सफल होगा।

लालबाग़,
शाहदरा, द ली
—चतुरसेन

नर और नारी
ेम और काम
मु सहवास
गु ते य और बीजकोष
वा य और कामवासना
कामके क सफाई
मा सक धम
बराबर क जोड़ी
ववाह
स भोग क तैयारी
कामो पन
कौमायभंग
आसन
स भोग
स भोग म बाधाएँ
स भोग के बाद
संयम और स भोग
नर और नारी

य हऔरतो चीज़
साफ-साफ समझा जा सकता है क जो कुछ पु ष है वह ी नह । अथात् ी
है और पु ष और चीज़ है। कट री त से हम दे खते ह क ी का चेहरा
कोमल और दाढ़ -मूँछ से र हत है और पु ष का चेहरा कठोर और दाढ़ -मूँछ से भरा
आ। एक का शरीर नाजक, आवाज़ महीन और अंग- यंग छोटे ह। सरे का शरीर
मज़बूत, आवाज़ ग भीर और शरीर डील-डौल वाला है। इसम आ यजनक बात यह है
क पु ष जहाँ ी के उपयु गुण कोमलता, नज़ाकत और नस-नस क नमी को पस द
करते ह, उसके व याँ खूब कठोर अंग वाले, बड़ी और मोट ह ी वाले, भरपूर
तेज वी और वीर पु ष को पस द करती ह। यह वपरीत त व क पस द दोन , ी और
पु ष म केवल शारी रक वषय ही म नह है, युत मन और वभाव तक म पाई जाती
है। याँ ायः सल ज और संकोचशील पस द क जाती ह और पु ष नभय, साहसी
और न संकोच। एक पु ष चाहे जतना वीर, ढ़, साहसी और नभय हो, अ य त
कोमल, भावुक, सल ज और नाजक ी को पस द करेगा। इस भाँ त अ य त
ल जावती और कोमलांगी ी खूब दाढ़ -मूँछ से यु चेहरा, बाल से भरा व ः थल
और ब ल भुजद ड पर लोट-पोट होती है।
इस वपरीत आकां ा म एक ाकृत कारण है। ी म जस व तु का अभाव है वह
उसके लए वाभा वक री त से ही लाला यत है। और पु ष म जस चीज़ का अभाव है
वह भी उसके लए वैसा ही लाला यत है। पु ष यह समझते ह क वे य पर मो हत
होते ह, पर तु भली-भाँ त दे खा जाय तो याँ पु ष क अपे ा अ धक मूढ़भाव से
पु ष पर मरती ह। दोन को दोन क उ कट यास है। ी य द पु ष के लए वा द
मठाई है तो पु ष ी के लए जीवन-मूल है। जब हम हज़ार -लाख अबोध भी
बा लका को क ची उ म हठात माता, पता, भाई और पैतृक घर बार छोड़कर प त
के घर जाते दे खते ह, तब कस जा के बल पर वह अपना सब कुछ भूलकर प त, केवल
प त म रम जाती है? और ववाह के बाद प त-चचा को छोड़ सरी चचा ही ायः उसे
नह सुहाती है। काली-कलूट , बली, सु त लड़क चार दन प त का पश पाकर कुछ-
क -कुछ हो जाती है। उसका रंग नखर जाता है और उ लास के मारे वह धरती पर पैर
नह टे कती।
पु ष कस भाँ त य पर पतंगे के समान टू ट पड़ते ह, यह बात या याँ नह
जानत ? फर भी वे पु ष पर य ऐसे रीझती ह? असं य याँ लोक-लाज, धन-
स प को यागकर पु ष, केवल पु ष को लेकर द न- नया क आँख और कान से
र रहने लगी ह। दो ही दन म उनक आँख भाई, पता और माता को कम पहचानने
लगती ह। सफ पु ष, वही कठोर पु ष, उनक म सबसे अ धक य, सबसे अ धक
घ न , सबसे अ धक आव यक तीत होता है।
इसम एक रह य है। जैसे कठोरता को कोमलता य है, उसी भाँ त कोमलता को
कठोरता य है। दोन दोन क खुराक ह। दोन दोन पर अवल बत ह। ी मू तमती
कोमलता है और पु ष मू तमान कठोरता।
दय और म त क, ये दो अंग शरीर क जीवनी श के के ह। दय म
भावुकता, ल जा, दया और परोपकार क भावना तथा क णा आ द क तरंग उठा
करती ह और म त क म वीरता, साहस, ान और धैय क लहर उ प होती रहती ह।
वभाव से ही म त क क श याँ पु ष म और दय क श याँ य म वशेष प
से रहती ह। यह कहा जा सकता है क ाणी जगत् म ी दय है और पु ष म त क।
दोन दोन पर नभर करते ह। दोन पार प रक श य के व नमय और सहयोग से ही
जीवनी श क धारा को के त रखते ह। जैसे दय के बना म त क और म त क
के बना दय शरीर को जी वत नह रख सकता, उसी भाँ त समाज म ी के बना पु ष
और पु ष के बना ी क गुज़र नह हो सकती। दोन अपने म अपूण ह। वे पर पर
मलकर पूण होते ह।
व ुत्- व ान म दो धाराएँ होती ह: एक ऋण, सरी धन। दोन धाराएँ पर पर
वरो धनी ह। एक अपकषण करती है, सरी आकषण। जब दोन छू जाती ह, व ुत्-
धारा कट हो जाती है। सरी से ी को सूय-त वयु और पु ष को च -
त वयु माना गया है। जैसे सूय अपनी श से जगत् के रस का आकषण करता है
उसी कार च मा पृ वी पर सुधा-वषण करता है। यही वै ा नक कारण है क ी का
रज, जो सौय गुण-यु है, पु ष के वीय को जो च गुण-यु है, आकषण करके अपने
अ दर धारण करता है।
म आगे चलकर बताऊँगा क ी और पु ष के लगभेद क वा त वकता केवल इसी
या के लए, सफ इसी एक या के सुभीते यु , सफ इसी एक या के लए
वाभा वक उपयोगी नमाण क गई है। जो ी-पु ष एक- सरे को यह वाद
अ धका धक मा ा म आदान- दान कर सकते ह, उनक ेम थयाँ इतनी बल होती ह
क लोकलाज, वैभव, लोभ, राजपाट, अ धकार, कोई भी उ ह परा त नह कर सकता।
वह जगत् क सव प र चाहना क व तु है। इसम कोई कृ मता नह है। यह सखाई नह
जाती। यह सवथा वाभा वक और ई र- द है। इसम एक पर परा का वाह न हत
है। स तान-उ पादन का यही के है। एक के बाद सरा जीव अन त काल तक उ प
होता रहे, संसार अन त काल तक ऐसा ही वा हत रहे, आलोक और आन द क धारा
को अन त जीव वचरण करते रह, लय और सृ म भेद बना रहे—इसी से कृ त का
यह सबसे बड़ा साद माना गया है। ेम और वाद का सव म अंश इस या के अ दर
न हत है। ी और पु ष दोन पर गूढ़ वाद और ेम का असा य अ धकार है। यही
कारण है क ी और पु ष दोन इतने यासे ह। कुछ लोग समझते ह क ी-पु ष क
इस पार प रक यास म प-स दय का वशेष हाथ है। पर यार और वाद का प कुछ
उपकरण हो सकता है। मु य व तु तो उपयु दो नैस गक व तु का दान- तदान है।
इस कार ी-पु ष दोन आपस म पृथक्-पृथक् अपूण ह, और एक होकर पूण
होते ह। ी-शरीर म जो ता य वक सत होता है, जसके ारा वह ीभाव को ा त
होती है, वही पु ष- प म पृथक् होकर फर मलता है। वचा रये तो, वीय- ब के साथ
एक क टाणु के ु प म पु ष गभाशय म गया, वहाँ वह धीरे-धीरे प रव तत होकर
और समय पर पूण होकर ी-शरीर से पृथक् आ। उसका वकास चलता ही रहा,
बालक रहा, वह युवा आ और फर वैसी ही एक ी हठात् कह से आकर उससे मली।
वह उस ी म फर वीय प म व आ और ी-पु ष दोन ने एक प अ भ
होकर फर ज म लया। यह वाह अन त से अन त तक चलता ही रहा और चलता ही
रहेगा।
ेम और काम

ह मारे मन म आ मा को वभोर करने वाली कुछ भावनाएँ उठती ह, वही ेम है। य द


हम ेम क स ची अनुभू त करने लगगे तो भौ तक जीवन से ब त र हो जाएंगे।
ेमानुभू त म मनु य के नजी जीवन का एक अद्भुत नाटक आर भ हो जाता है।
मानवीय वकास का इ तहास काम- वकास से ार भ होता है। ब चे कामवासना के
वकास से र हत होते ह, यह उनका सौभा य ही है। य क उनके न हे-से कोमल दय
और कोमल अंग उसके वेग और च डता को सहन नह कर सकते। वे येक व तु को
कौतूहल से दे खते ह और सब कुछ नया पाते ह। ब च के शरीर के येक अवयव इतने
नाजक और उ ेजनापूण होते ह क उनका कोई भी अंग आसानी से उ े जत कया जा
सकता है, इसी कारण कट म बड़े आदमी क अपे ा ब च क इ याँ अ धक उ े जत
हो जाती ह। बड़ी उ म लोग स ा त के वचार से काम-वासना को छपाते ह। पर तु
ब चे को इसक परवाह नह । उसक आँख नभय, आ मा शु और दय भी तर हत है।
फर भी उसम छ कामवासना तो है ही। य द यह भाई-बहन और सरे ल गक
सहवास से र हत पैदा होता तो उसक कामवासना उ चत आयु ही म उ े जत होती।
पर तु ऐसा नह होता है। बालक को प रवार म उ प होना, पलना और सब कार के
ी-पु ष के साथ रहना पड़ता है जससे प र थ त और आयु क भ ता के कारण
बालक को समय से पूव ही काम क अनुभू त हो जाती है। खास बात यह है क वह
वभाव से ही भ लगी के त आक षत होता है। येक बालक कामवासना से
प रपूण संसार म रहता है और उसे कामवासना म ह सा लेने का अ धकार है। वह य द
लड़का है तो जानता है क वह मद बनेगा और वह ब हन पर मद क भाँ त कूमत
रखता है। और लड़ कयाँ समझती ह क वे ी बनगी। वे बाल बनाती ह, सगार करती
ह। माता- पता भी अ पकाल ही से उनके रहन-सहन म प रवतन डाल दे ते ह। और यह
उनके लए भ -ल गकता के एक पाठ के समान है। पर तु इसी समय म काम-स ब धी
कुचे ाएँ क जाती ह। लड़के साहसी और तेज़ तथा लड़ कयाँ चंचल होती ह। वे दोन
मोहक ढं ग से खेलते तथा हरकत करते ह। जब वे कुछ बड़े हो जाते ह, तो उनक इ छाएँ
बढ़ती जाती ह। उनम कोई उ े य नह होता, पर वह आकषक अव य होता है। यही
समय है जब क उनक र ा क जा सकती है। पर तु य द उनम काम-स ब धी आकषण
बढ़ जाता है। तब उ ह रोकना क ठन हो जाता है। बालक अपने पौ ष के ार भ म अपने
लए हा नकारक नह होते, इसी कार लड़ कयाँ भी। पर तु य द कोई आदमी जो
कामवासना से अ धा हो, वह इन प व ब च को न करने म सबसे अ धक खतरनाक
सा बत हो सकता है।
छोटे ब चे भोले और अनजान होते ह। इससे वे भ लगी होने पर ेम करते ए
तथा ेम पर गव करते ए पर पर दो त बने रहते ह तथा ल गक स ब ध नह रखते। पर
य द वे ब त अ धक घ न हो जाएँ, पर पर चु बन या आ लगन करने लग तो फर
उनक वासना समय से थम उ े जत हो सकती है और यह वा तव म आग के साथ
खेलने के समान खतरनाक है।
क पना क जए क एक ब चा एक आदमी के स ब ध म ऐसी बात कहता है जो
खु लमखु ला नह कही जा सकत । शायद वह अपने अ यापक के बाबत ही ऐसी बात
कहे तो मानना पड़ेगा क वह स चा है और यह नई अनुभू त, उसक गढ़ ई नह है और
उसे अप व कया गया है। कुछ ब चे आगे चलकर चालाक और धूत बन जाते ह और वे
क पना से भी ऐसे आरोप करने लगते ह, य क उनक ऐसी बात को जब खास
ग भीरता से सुना जाता है तो वे समझते ह क वे कोई मह वपूण बात कह रहे ह। वा तव
म ब चे के भीतर मदानगी तो है पर वह सु त है। वह समय से कुछ थम ही ऐसी बात
से भड़क उठती है। पर तु ब चा य द असमय म ही कामो ेजना का अनुभव करने लगे तो
उसे यह ान हो जाता है क गु ते याँ ही काम-के ह और उसका यान उनक तरफ
जाता है तथा वह उनके वषय म सोचने लगता है। यह वा तव म खतरे का घ टा है
जसक तरफ माता- पता तथा अ यापक को पूरा खबरदार रहना चा हए। य द कोई
ब चा पूरी तौर पर त त है तो वह एकाएक बुराई क तरफ़ नह गरेगा। भले ही समय
पर कामवासना उसे क दे । ब चा अ छ और बुरी दोन ही बात को हण करने क
श रखता है। अगर ब चे क ठ क स भाल रखी जाए, तो वह दन खेलने और पढ़ने म
खच करेगा और रात को आराम करेगा। अपने-आप ही उसका यान सरी बात क
तरफ नह जाएगा। ब च के च र थर नह होते, इस लए य द उनके साथ अ छा
वहार कया जाए तो य द उनम बुरी सोहबत से काम-स ब धी कुछ अनुभू त भी हो गई
होगी तो भी वह र क जा सकती है। आव यकता इस बात क है क माता- पता यह
चे ा कर क वह अ धक आयु तक ब चा ही बना रहे और उसक वृ याँ सोती ही रह।
वृ याँ एक बार जा त होने के बाद फर दबाई नह जा सकत और ऐसे ब चे फलने-
फूलने से पहले ही न हो जाते ह।
अब ेम क कोमल अनुभू त पर वचार करना चा हए, जो बालक के दय म यथे
होता है। इसी च पर उसका जीवन अ सर होता है। ये भावनाएँ भाँ त-भाँ त क होती
ह। कभी कारण मले होते ह, पर तु उनम सै ा तक व भ ता होती है। ार भ म वह
शु ाचारी होता है, पीछे उसक मनोभावनाएँ वक सत होती ह।
अगर आप स यता क सव चता क ेणी पर वचार कर, उन लोग म, जहाँ ब चे
पशु के समान जीवन तीत करने वाल के बीच म पलते ह या उन क ब म पैदा होते
ह जो नीच वातावरण से प रपूण ह, वहाँ से ब चे अपनी ाहक श य के कारण, य -
य बड़े होते रहते ह, बुराइय को हण करते जाते ह। य द काम-स ब धी चे ाएँ भी
ब चे से न छपाई जाएँ तो उनका उस पर कुछ भी असर न हो। वह उ ह अ य साधारण
काम ही समझे और चूँ क यह काम उससे छपाया जाता है, इस लए वह बा लग होने पर
उ ेजना अनुभव करने लगता है, तथा ह त-संचालन करना सीख लेता है या कसी
लड़क के साथ कामवासना पूण करने लगता है और उससे वह ेम करने लगता है।
काम- वकास का यह ाथ मक माग है। पर तु अब, जब क समाज अ य त स य हो गया
है और ब चे पशु क तरह नह रहते, युत वे आधु नक उ त तरीक से श ा पाते
ह, वे उनके ज़ रये से ही काम-वासना के वशु और वाभा वक वकास तक प ँच
सकते ह। काम-स ब धी येक व तु य प उनसे य नपूवक छपाई जाती है। पर तु इस
स ब ध म उनक उ सुकता बढ़ती ही जाती है। ेम क ये भावनाएँ ब च के दय म
थम कामर हत होती ह। पर पीछे कामपू रत हो जाती ह। माता ब च को न केवल
आराम प ँचाती है, क तु भौ तक प से पालन भी करती है। वह भोजन कराती, शरीर
को साफ रखती है और इ य को साफ रखती है, इसी कारण माता का ेम सबसे
नराला है। पर तु बड़ा होने पर ब चा य - य वतं होता जाता है उसे माता क
ज़ रत नह रहती। अ त म वह जीवन-यु के लए युवा होकर तैयार हो जाता है, और
माता के ेम क जगह ी का ेम उसके दय म उ प हो जाता है। ायः इस आयु म
वह एक अकेलापन अनुभव करने लगता है और ी के ेम क कोमल अनुभू त का
अभाव उसे अनुभव होने लगता है। साथ ही उसक कामवासना जाग उठती है तथा
बा यभाव न हो जाता है। अ ततः मातृ- ेम का वह भाव काम- ेम म बदलकर नया
प धारण कर लेता है और जब वे युवक-युवती होकर थम बार ववा हत होते तथा
एक- सरे से आह्लाद पाते ह, पर पर आ लगन करने म या चु बन करने म आन द
अनुभव करते ह, फर वही आन द उस समय चरम सीमा को प ँच जाता है जब क
कामवासना क पू त अ य त उ े जत अव था म पूण करते ह।
जब ही भ ल गक एक- सरे को दे खते ह, संकेत करते, छपकर ेमचे ा करते, भट
दे ते या पर पर पश करते ह तो उ ह एक चम का रक अनुभव होता है। आर भ म इसम
वाथ अ धक नह होता पर तु धीरे-धीरे वासना अंकु रत होने लगती है। इन सब चे ा
का उ े य पर पर एक- सरे के नकट आने का है। इस काम म लड़ना, क दे ना, मान
करना, चु बन करना आ द खास भावशाली होते ह। शरीर म सबसे कोमल अंग ओ
है। उसका चु बन पर पर पश का थम सुख है। पर नवीन आयु म ी-पु ष आगे क
बात नह सोचते और सदा एका त का अनुभव करते ह।
यान दे ने क बात यह है क अ य त कोमल भाव जो सरे से कसी पर आता है,
अ धक श शाली होता है। ेमी का ास, ने क यो त, शरीर क ऊ मा, सभी कुछ
खास भावशाली होती ह। दोन क म दोन अ धक सु दर तीत होने लगते ह और
एक- सरे म आकषण का अनुभव करते ह। यह उनके नवीन संसार म ा त कर दे ती
है। एक जवान लड़का या लड़क जब भौ तक प म अपनी इ छा को मू तमती पाते
ह तो नए ही संसार म आते ह ओर दोन अ य त आन द और स ता से मलते ह। उ ह
उनका नया संसार आ यजनक तीत होता है। इस कार वे आन दानुभू त करते ए
कामवासना क च ड पहरी म प ँच जाते ह। वे सदा एक- सरे के लए सोचते ह,
एक- सरे के लए स चे रहना चाहते ह, उनक श याँ और आकां ाएँ एक म के त
हो जाती ह,उनका दय धड़कने लगता है। पर यह कसी भय या उ े ग के कारण नह ,
सफ भ व य के सुख को याद करके।
ेम को ाणीशा - वशारद ने भी खास तौर पर वक सत कया है। ेम का उदय
वचार से होता है। सब लोग काम-स ब धी वकास के साथ दल क धड़कन म बढ़ती
ई श और उ णता का अनुभव करने लगते ह। पर तु ेम को संयम म रखने क बड़ी
ही आव यकता है। शरीर य भी एक मह वपूण य के समान है। मशीन से उतना ही
माल तैयार हो सकता है जतना उसम बनाने क श होती है। ेमो ेजना म शरीर क
श से बाहर काम न करना चा हए। भौ तक ेम और मान सक ेम म या अ तर है
इस पर यहाँ वचारना चा हए। क पना क जए, एक बालक जसके लए सब-कुछ नया
और अद्भुत है, वह येक भौ तक अनुभू त से उ े जत हो जाता है। पर तु य - य वह
बड़ा होता जाता है, वह साहसी और वीर होता जाता है पर तु ल जा और ेम क भावना
उसम वैसी ही कोमल बनी रहती है। पर ेम के साथ कामोदय होने पर र म और
ना ड़य म एक ती उ ेजना का अनुभव भी उसे होने लगता है। इससे यह कट होता है
क कामवासना का र क धम नय पर या भाव पड़ता है। आन द क अनुभू त से
ेम मलकर एक मान सक काय बनकर अ य त आन द द हो जाता है। पर तु उ चको ट
के ाणी चाहे वे कैसे भी भ जातीय ह , उनम एक इ य होती है जसम र का दबाव
हद दज तक प ँच जाता है। पु ष म यह लगे य और ी म यो न है। बचपन म
अक मात् इन अंग को छू जाने से उनम र का भाव बढ़ जाता है। कल जो ब चा था,
आज वह बड़ा आदमी हो गया, यह कृ त का क र मा है, जवान होने पर उसे ेम के पर
उग आते ह, जो उसे जीवन म कह -का-कह ले उड़ते ह।
ब च को जो उ ेजना होती है, उसक अपे ा युवा पु ष क उ ेजना कुछ सरे ही
ढं ग क होती है। उ ेजना होने पर ास तथा र के वाह म अ तर पड़ जाता है। इसी
कार लड़ कय के गु त अंग म एक कार क खाज होने लगती है तथा धम नय का
जाल भड़क जाता है। वासना शांत होने पर वह उ ेजना वाभा वक हालत म आ जाती
है। सफ ज़रा-सी थकावट-सी अनुभव होने लगती है, पर तु फर वैसी ही उ ेजना होने
लगती है। ातःकाल के समय र वाह गु ते य म वेग से होता है। य द हम सोचने
लगते ह तो म त क म र ा भसरण अ धक होने लगता है। इसी कार जब-जब हम
जस- जस काम को करते ह, र का वाह तेज़ हो जाता है। रात को जब हम सोते ह
तब वह फर शा त हो जाता है। यह बात अ य त मह वपूण है क र ा भसरण जीवन म
ब मू य है। इसी कारण बड़ी उ म नपुंसकता—क ज़, बवासीर आ द रोग हो जाते ह।
ये रोग ज द ही र कए जा सकते ह। ठ डे पानी का इलाज, ातःकाल का मण और
खाने-पीने क व था तथा ठ क-ठ क औषध से फर ये रोग र हो जाते ह।
कामो ेजना छोट जा त के ा णय म, जनका म त क छोटा होता है, ती नह होती।
जतनी अ धक म त क क बड़ी श होगी उतना ही उ ेजन अ धक होगा। मनु य
अपने अ त व को कायम रखने के लए म त क से ब त काम लेता है। इस कारण
संसार म सम त ा णय से अ धक मनु य का म त क बलवान् होता है। इसी से उसक
कामवासना भी संसार के सब ा णय से अ धक है। चाय, कॉफ , कोको, शराब आ द
इसी लए य तीत होती ह क ये नायुम डल को, जो म त क से संचा लत है—
उ ेजना दे ती है और इनसे जो र ा भसरण बढ़ जाता है तो उससे उ ेजना और आन द
क ा त होती है। म त क को आराम क ज़ रत है, पे शय को प र म क । रा को
उ ेजना होने से र ा भसरण बढ़ जाता है, फर कामवेग-शमन होने पर पूण शा त ा त
हो जाती है। जब ऐसा होता है तब उससे इतना आराम मलता है क मन आन द से भर
जाता है। इस लए कामो ेजना जीवन के सब काम से अ धक मह वपूण है। यह जतनी
अ धक होगी उतना ही म त क वक सत होगा। यही कारण है क नता त नामद
अ य त बुरी समझी जाती है, और हजड़े दया के पा समझे जाते ह। साधारण
प र थ त म बड़ी आयु होने पर कामश कम हो जाती है। कभी-कभी म त क क
नस कट जाने से मरग़ी या मूछा हो जाती है, या लकवे का आ मण हो जाता है या कोई
नायु टू ट जाता है, तब भी ऐसा हो जाता है— य क र के अ भसरण का वाह ब द
हो जाता है, जो अ य त ःखदायी होता है। पु ष व क यह श जो रात के समय
अ य त आन द द है, जीवन क सबसे मह वपूण व तु है।
जहाँ तक स भव हो समय से पूव कामवासना को न भड़काना चा हए। अपनी श
को सं चत करना चा हए जससे ठ क समय पर शारी रक और मान सक श याँ पूण
श और वकास को ा त कर सक। साथ ही कामवासना खूब प रपूण हो जाए। जब
खूब कामवासना भड़कने लगे तो सम झए क संसार क ब मू य म ण आपने ा त कर
ली।
नवयुव तयाँ युवक क अपे ा कामावेश को अ धक अनुभव करती ह। वे न कसी से
कुछ कह सकती ह, न उ ह कोई सलाह सहायता दे सकता है। वे ायः गलत रा ते पर
चली जाती ह। खूब भली-भाँ त दे खना चा हए क लड़ कयाँ त त और -पु ह;
इस आयु म लौह (आयरन) का सेवन र क कमी को ठ क कर सकता है। पर तु इसका
सेवन उ म च क सक से कराना चा हए।
य - य यौवन क वृ होती जाती है, कामश वाभा वक री त से बढ़ती जाती
है। वाभा वक प से इसका नवारण नह कया जा सकता भले ही उसक तरफ यान
दया जाए या नह । चाहे जतना भी हमारा यान सरी तरफ बंटा आ हो और चाहे
जतनी भी तता हमम हो, कामवासना उतने ही वेग से आ खड़ी होती है। य द हम
ार भ से ही काम-स ब धी व ान से अवगत ह तो काम-वेग पर हमारा आ धप य हो
सकता है।
य - य बड़ी आयु म शरीर वक ण होता है, य - य र का दौरा बढ़ता जाता है,
जो हम उ े जत कर दे ता है। बीच म कुछ शा त होती है और पीछे फर वैसी ही उ ेजना
हो उठती है। अ त म होता यह है क कुछ लोग के साथ शु म और कुछ के साथ बाद
म ऐसा ही होता है क कामे छा, जो थम अ त आन द द होती है अ त म ःखद और
भार प हो उठती है। मनु य क आकां ा तब यही होती है क इस क कर इ छा से हम
मु हो जाएँ। शारी रक आव यकताएँ अ नवाय ह। यह वह संघष है जसम बार बार हम
पड़ना पड़ता है। कभी-कभी खूब काम का बोझ होने पर भी हम ववश हो जाते ह।
खासकर रा के समय म, जब क आराम का समय होता है, हम उस समय कसी काम
मश नह खच करते और हमारी सारी श उस एका त रा म कामवेग से यु
करने म जुट जाती है। यह यु हम चुपचाप करना पड़ता है और कभी-कभी बड़ी
क ठनाई उठानी पड़ती है।
ह त या बालकपन है, उसम हमारे ेम क भावना का कुछ भी वकास नह होता।
वे यागमन वा य और त ा के लए बड़े खतरे क चीज़ है। ऐसी हालत म काम-श ु
को दमन करने का या माग है? इस नदय श ु का इलाज ी है जो हमसे ब त र है।
ऐसी दशा म कृ त सहायता करती है और वीयपात व म हो जाता है। वह वयं भी
कसी अंश म वही आन द और शा त दे ता है। पर तु हमारे लए यही यथे नह है।
हमारी इ छा तो यह है क पूण प से जा त अव था म पूण कामवेग के आन द को
सावधानी से ा त कर। इसके लए हम एक आदश साथी चा हए—पर तु सब भाँ त
यो य साथी क ा त कर लेना ब त क ठन है। अयो य जोड़ के मल जाने से कतनी
द कत उठानी पड़ती ह, यह संसार पर कट है। पर तु जब हम स चा साथी इस आन द
के दान- तदान का मल जाता है, तो हम अपना सब कुछ उसे स प दे ते ह। और यह
हमारे लए अ त आन द और सौभा य क व तु है। उससे मलकर हम संसार म एक घर
बनाते ह। हम वीर और साहसी बनते ह और कत परायण होते ह, आ मब लदान
सीखते ह। इन सबका मूल कारण कामवासना है। भूख हम वाथ बनाती है, पर ेम हम
उदार और भावुक बनाता है।
उन लोग को महामूख समझना चा हए जो यह समझते ह क हम सब कुछ जानते
ह। वैवा हक स ब ध म खास तौर पर ब त लोग यह समझते ह क इस वषय म हम कुछ
भी सीखना-समझना नह है और कृ त हम सब कुछ सखा दे गी। पर ऐसे मनु य
वैवा हक जीवन के म यभाग म प ँचने से पहले ही ःखी, नराश और चड़ चड़े हो जाते
ह। वे यही समझते रहे क सब ठ क-ठ क चल रहा है, पर तु जो स चे प रवतन भौ तक
और शारी रक थे, उनसे वे अ ात रहे। ब त थोड़े लोग चतुर होते ह और अपने को इस
वषय म ब त जानकार समझते ह, पर तु स ची बात तो यह है क वे अपने जोड़े के
अनुकूल वृ करने म भी असमथ होते ह।
छोटे जानवर म स भोग एक कार का आ मण-सा होता है, जो ोधपूण होता है।
आप एक सीधे-सादे मुग को एकाएक ु होकर मुग पर आ मण करते दे ख सकते ह।
नीच और जंगली जा तय म भी ेम क कोमल भावनाएँ दख नह पात । वे स भोग
करके तृ त हो जाते ह। पर तु ी के लए यह अ य त ःख द है य क उसे उ े जत
होने, तृ त होने और ख लत होने को समय चा हए। तभी उसे शा त मल सकती है।
पुरातन श ाचार और शील याँ ावहा रक जीवन म ही कट करती ह, पर तु
कामयु म वे शील संकोच सबको एक ओर उतार धरती ह। और तब वे य द पूण तृ त
नह होत तो ु और भीषण हो जाती ह। ऐसी याँ बड़ी उ म ही बदला लेती ह।
तब वे आसानी से उ े जत हो जाती ह और प त को आन द- दान करने म कुछ भी
सहायता नह प ँचात । यूरोप क याँ पूण तृ त न होने पर ‘करेज़ा’ प त से लाभ
उठाती ह। जसका वणन हम अ य करगे। अनेक प त जनक याँ स भोग म भाग न
लेकर सारा ब ध उ ह पर छोड़ दे ती ह उनके लए करेज़ा नहायत लाभदायक है। कुछ
य को पूण समय दे ने पर भी वे आन द ा त नह कर सकत । जो लड़ कयाँ अ धक
उ े जत होने वाली होती ह, उ ह सबसे अ धक बहकाए जाने और खतरे म पड़ने का
अ दे शा होता है, वे पु ष से डरने लगती ह। आगे वे या तो वे या हो जाती ह या
आ मघात करती ह। ऐसी लड़ कय के माता- पता को उ ह काम स ब धी आव यक
बात बता दे नी चा हएँ और उ ह वासना तषेध क श ा दे नी चा हए। नामद या ठं डा
आदमी, जो स भोग के यो य नह है, उसे जो नराशा होती है वह इस लए नह क वह
कामे छा का आन द ा त नह कर सकता, उसे तो ःख इस बात का होता है क वह
अपनी ी क इ छा पू त नह कर सकता। ठ क इसी कार ी भी प त क तृ त
करना चाहती है। इसी कार दोन इस काय म पर पर सहायता करते ह। इसी से ेमोदय
होता है। पर तु वह तभी होता है जब दोन के दय म ेम क आग जल रही हो। पर तु
कह -कह यह भावना कम होते-होते ब कुल कम हो जाती है। य द प त कमज़ोर हो तो
वपरीत र त म ी चाहे जतना समय ले सकती है, और आन द क इ छत अव था को
प ँच सकती है। यह बात प त के लए कुछ क ठन नह है क ऐसी हालत म अपने
वीयपात को रोक रखे। वपरीत र त म साधारण र त से यह भेद है क पु ष क गु ते य
एक व च थ त म हो जाती है, और ठ क तरीके पर उसके अ भाग म घषण नह
होता। ी के लगभग पूण उ े जत होने पर फर वह साधारण तौर पर स भोग को पूण
कर दे ता है। वा तव म य द प त ब कुल नामद है, तो भी ी को इसम आन द आ
सकता है, यह भावना क ी-पु ष दोन एक ही समय म ख लत ह , कभी-कभी होती
है और उससे कुछ खास प रवतन नह होता। आम तौर पर कहा जाता है क य द पु ष
को प नी क इ छा का पूरा याल है, तो उसे तभी उसके साथ स भोग करना चा हए जब
क वह उसे इसके लए तैयार पावे, जो क उसक बात और भाव से कट हो जाता है।
येक के शरीर म उ ेजना के होते ह, जहाँ वह गुदगुद अनुभव करता है।
उसके छू ने से कामवेग उदय होता है पर तु कभी-कभी इ ह थल के छू ने से काम-शमन
भी हो जाता है। ये थल—चूतड़, ह ठ, तना , क ठ, जीभ और गु ते य ह। काटना,
चूमना, यार करना, चाटना, चूसना आ द उ े जत करने वाली बात ह। सुग ध और ग ध
से जो मोहकता पैदा होती है वह गहरा असर करती है, य क ग धे य का कामे य से
नकट स ब ध है। जानवर सूँघकर ही मादा क इ छा मालूम करते ह। पर अ त अनुभव
छू ने से ही मालूम होता है। खराब आदत के य पर तेज़ खुशबू और तेज़ रंग का
बड़ा भाव पड़ता है। उ च को ट के य पर शु - व छ कपड़ और सू फ़याना
सुग ध का अ छा असर पड़ता है।
अब हम एक और क ठनाई क चचा करगे, जो शा त क बाधक है। मनु य क
गत आदत मान सक ही अ धक भ - भ होती ह, शारी रक नह । फर भी वे
पर पर आराम दे ने क चे ा करते ह। कोई ग भीर होता है, कोई हँसमुख, कोई भावुक
और कोई सनक । कोई-कोई आदमी गंदे और अपराधी होते ह। कुछ लोग ऐसे भी ह जो
जब तक साथी को कोई क नह दे लेते, आराम नह पाते। कह -कह थोड़ा पश भी
परेशान कर दे ता है, कभी उसका असर ही नह होता। ये सब भ ताएँ आदत, आयु,
कृ त आ द पर नभर ह। ये प रवतन होते रहते ह। शराब पीने से मनु य कतना
उ े जत हो जाता है! उस हालत म सर से सहयोग करना कैसा क ठन है जब क अपने
पर भी काबू नह रहता! म त क बेकाबू रहता है, तब सफ भाव और उ ेजना ही कट
क जा सकती है। इससे पार प रक ेम के रह य को समझ सकते ह क य कोई
कसी खास को ही ेम करने लगता है। कभी दो आपस म दे र तक
नकट रहने से ेम करने लगते ह, कभी-कभी एकदम ही ेमोदय हो जाता है। पर जो ेम
धीरे-धीरे होता है वह चर थायी रहता है। आज के स य पु ष पाश्चा य जीवन म
चरकाल तक ेमी रहने पर ववा हत होना यादा पस द करते ह, और उनका काम-
सहवास एक- सरे के लए अ धक से अ धक आन द द बन जाता है। बाद म स भोग
थकाने वाला तीत होता है, पर तु उससे आन द और यौवन क फू त ा त क जाती
है। य द बड़ी आयु म मनु य सहवास से र हत हो जाए तो वह अपने को और थ कत
समझने लगता है। मान सक उ ेजना और आन द के लए जस व तु क ज़ रत है, वह
कामान द है। बड़ी आयु म ी-पु ष को पर पर एक- सरे के भाव को समझना,
भावना क तुलना करना, पर पर ेम और व ासवधक है।
मु सहवास

क◌ु छअसदशक पूव तक तुक म कसी म हला के वषय म कुछ जानना एक कार से
भव था। कभी-कभी यूरो पयन डा टर को खलीफ़ा के हरम म जाने क
आव यकता पड़ती थी। इ ह ने पद के चम कारपूण वणन कए ह। बग़दाद के ार भक
काल म पद क बड़ी था थी। एक बार एक ईसाई डा टर को उसक च क सा के
उपल य म तीन सु दरी दा सयाँ खलीफ़ा ने द थ पर डा टर ने यह कहकर उ ह वा पस
कर दया क वह ईसाई है और अपनी प नी के सवा सरी ी को छू भी नह सकता।
इससे खलीफ़ा ने स होकर उसके लए हरम म आना-जाना मु कर दया था। आम
तौर पर जो डा टर हरम म ी रो गणी को दे खने जाता था तो यादा-से- यादा उसक
ज़बान को दे ख सकता था, बाक तमाम शरीर छपा दया जाता था। तुक़ म आम तौर पर
डा टर से पूछा जाता था क रो गणी ग भणी है या नह और उसके पेट म लड़का है क
लड़क ।
मूसा क पहली पु तक म लखा है क ार भ म ी-पु ष दोन न न थे और पर पर
लजाते नह थे, पर पाप ने उनम ल जा उ प कर द , और उ ह ने जाना क वे न न ह।
फर उ ह ने प े सी-सीकर अपने अंग को ढक लया। वली हसन कहता है—हीदन और
अरब म लोग म कपड़े पहनना बुरा समझा जाता था। ी शोक के समय अपनी छाती
और मुँह को खोलती तथा कपड़े फाड़ डालती थी, या प वाहक लोग जब बुरी खबर लाते
थे तो वह कपड़े फाड़ डालती थी। माताएँ जब अपने ब च पर कुछ भाव डालना
चाहती थ , तब भी अपने कपड़े फाड़ डालती थ । जो आदमी बदला नह ले सकते थे, वे
अपने कपड़े फाड़कर अपना ोध पकट करते थे, या सर नंगा कर लेते थे। मुह मद
साहेब से पहले लोग नंगे होकर क़ बे म जाया करते थे। पीछे मुह मद साहेब ने एक
आयत के ज़ रये उ ह कपड़े पहनने को ववश कया था। याँ खास तौर पर बुका
पहनकर नकलने के लए ववश क गई थ । पद क आव यकता नज़र लगने के भय के
कारण ाचीन अरब म थी। याँ ही नह , पु ष भी नज़र लगने से बचने के लए य द वे
अ धक सु दर होते थे, तो पद से अपना मुँह छपाये रहते थे। डक हम कहता है क पद
का उपयोग जा के भाव को र रखने के उ े य से भी होता था। पीछे मुसलमान म
पदा धा मक कानून बन गया था। ऐ लस का कहना है—अ का क औरत ल जा के
कारण अपने चेहरे हाथ से ढक लया करती थ । तुक याँ चेहरे को ढकना ही लाज-
नवारण क चीज़ समझती थ । तुक क वे याएँ मुँह पर का पदा बना र कए ही अपने
को का मय के अपण करके पयकशा यनी होती थ । मु लम धम कहता है क जन
य क शाद न ई हो या जन य को ब चा न आ हो, वे बुका छोड़ सकती ह।
पर वे अपने गहने अव य छपा रख। ब च और गुलाम से मु लम य को पदा करने
क ज़ रत नह । पर वे ज़ेवर उनसे भी अव य छपाय। गडामर क याँ अपने कपड़
पर उतनी ही चमड़े क पे टयाँ पहनती थ जतना अ धक उ ह ने सहवास कया हो और
जनके पास जतनी यादा पे टयाँ होती थ उतनी ही वे त त समझी जाती थ ।
म यकाल म जमन लोग ब कुल नंगे होकर पलँग पर सोते तथा बेपद होकर नंगे नान-
गृह म नहाते थे। जापान म अब भी नानागार म नंगा नहाया जाता है। म लका योडोरा
छठ शता द म अ सर ब कुल नंगी सावज नक थान म जाती थी, यह साधारणतया
एक जां घया पहनती थी। एक यूरो पयन ने ता बूल के बाज़ार क बाबत लखा है क
उसने एक फ़क़ र को ब कुल नंगे घूमते दे खा जसक ओर तुक का कुछ भी यान न
था। उसके नंगे रहने का यह कारण था क उसने उस इ य से अ धक पाप कए थे
इससे उसे कोई रोक नह सकता था। जंगली जा त के लोग ल जा के कारण गु तांग को
नह छपाते। यूहेव रज के आदमी बड़ी सावधानी से अपनी गु ते य को छपाकर
रखते थे। उ ह भय था क इसे दे खना दे खने वाले और दखाने वाले को अशुभ है। वह
उस पर कसी चीज़ क प चढ़ा लेते थे। उससे वह अंग दो फुट तक ल बा और ब त
मोटा दखने लगता था, फर उसे एक खास क म क पेट म रखकर लए फरते थे।
पर तु अ डकोष खुले रहते थे।
मुह मद साहेब ने अपनी पैग़ बरी के पाँचव साल म पद पर ज़ोर दया था। उ ह ने
ी-पु ष का भचार जो उनके मु मलने से होता था, रोकने के लए पद क था
चलाई थी। इ ह ने बार बार पद पर ज़ोर दया है। वे कहते ह क अपने क मती र न को
छपाकर रखो। जुवाया पाशा ईसाईय का मज़ाक उड़ाते ए कहता है क वे अपनी
औरत को जनक छा तयाँ और पीठ नंगी रहती ह, पहले तो बॉल वगैरा म गैर आद मय
के साथ नाचने को भेज दे ते ह, पीछे जब उनके च र बगड़ते ह तो खून-ख़राबा करते ह।
चीन, हीलस और रोम म य प कुमा रय क इ ज़त क जाती थी, पर तु उनके
साथ लोग अ सर स भोग कर लेते थे। वधवा या ऐसी ी के साथ जो अपनी मा लक
हो आमतौर पर स भोग कर लया जाता था। पर ववाह के लए कुमारी क याय ही पस द
क जाती थ । पर ऐसी कुमा रकाएँ मलना लभ होता था, जनका कौमाय भंग न आ
हो। ह ू ओर ईरा नय म वधू का कुमारी होना ला ज़मी था। इन दोन जा तय के काम-
स ब धी कानून एक-से ह। ईरा नय म बना प नी वाला आदमी तर कृत समझा जाता
था। ईरान म यह नयम था क य द कोई आदमी कसी ी को गभवती करके भाग जाय
तो वह ी उसे मार डालती थी। कसी कुमारी के साथ भचार करते ए य द कोई
आदमी पकड़ा जाय तो उसे क या के बाप को 50 पये दे ने पड़ते थे और वह लड़क
उसक ी हो जाती थी; तब वह उसे तलाक नह दे सकता था। अगर कसी लड़क क
सगाई हो गई हो और वह कह कसी के ारा अपहरण क गई हो, पर वह च लाती न
हो, तो उन दोन को प थर से मार दे ते थे। अलबा नया म यह रवाज था क य द कोई
लड़क कसी से शाद नह करना चाहती थी, और माता- पता ज़बरद ती शाद कर दे ते
थे, तो वह पादरी के पास चली जाती थी और पादरी से कहती थी क वह मद क भाँ त
रहना चाहती है। पादरी एक सावज नक समारोह म उसे मद घो षत करता, मद नाम दे ता
और मद के कपड़े पहनाता था ओर फर वह मद क भाँ त रहती थी। पर य द वह
गभवती हो जाती थी, तो उसका द ड मृ यु था। तुक म ईसाईय म यह रवाज था क जब
शाद के लए चच जाने का समय होता था तो वधू ज़ोर से च लाती थी, फर उसका
हा आकर उसे ले जाता। बलकान, कु तु तु नया और ए शया माइनर म ज सी और
आरमी नय स का एक नाच खूब पस द कया जाता था। एक जगह आग जलाई जाती
थी, उसके चार तरफ जवान लड़के लड़ कयाँ खूब गाढ़ा लगन करके नाचते थे। वे उ ह
छाती से दबाते, उनके पैर पर पैर रखकर खड़े हो जाते, दाँत से उ ह काटते और उनके
नेकलेस तोड़ डालते थे। इस नाच म गभव तय को इजाज़त नह द जाती थी। साइमन
लोग जब अपने खेत के काम से नपट जाते ह, फर खूब गाते, नाचते और वासना पू त
करते ह। ी-पु ष खूब फूल से सज-सजकर और युवक शराब पी-पीकर चाँदनी रात म
नाचते ओर नैशो सव मनाते ह। ये फ़सली नाच कहाते ह, जो धा मक भावना से कए
जाते ह। ये ठ क भारतवष क होली के समान ह, जब क खेत कट चुके होते ह, चाँदनी
रात म लोग फाग मनाते ह। जयूरी और ले वक लोग म ाचीनकाल म काम-स ब धी
दावत होती थ । 16 व शता द के शु तक नद के कनारे वे दावत आ करती थ और
उ ह यौहार माना जाता था। बाद म ये चच के ारा रोक द गई थ । इन दावत म खूब
मु सहवास होता था। ए थो नयन म 18 व सद के आ खर तक यह रवाज था क वे
कसी पुराने चच के नकट आग जलाकर इक े होते थे। उनके साथ औरत नंगी होकर
नाचती थ । पर जवान लड़ कयाँ े मय के साथ झा ड़य म चली जाती थ । यह डांस
अब भी प रव तत प म होता है और आग पर नाचने वाले नंगे पैर चलते ह। ए लस का
कहना है क ऋतु के कारण मनु य के अंग म जो प रवतन होता है, उसी से शरीर म
काम-स ब धी आकां ाएँ पैदा हो जाती ह। खास तौर पर वस त ऋतु म काम-वासना
उ त होती है। ी म के ार भ म काम-वासना ब त बढ़ जाती है। इसी कारण ाचीन
काल म ये नैशो सव आ करते थे। कुक कहता है—ए क मो लोग म स दय क रात म
काम वासना कम हो जाती है। पर सूय दय होते ही लोग काम वासना से तड़पने लगते ह।
वस त ऋतु संसार भर म नैशो सव के लए उपयु समय है।
यूनान, रोम और भारत म, उ री तथा द णी अमे रका म वस त ऋतु ेम क ऋतु
है, और अमे रका म फसल के कटने का समय। यू टे न म लड़ कयाँ युवक से
सावधानी से बचाई जाती ह। पर तु एक खास दन ढोल बजाकर शाम के व संकेत
दया जाता है और फर उ ह े मय के साथ झा ड़य म जाकर मु सहवास करने का
अ धकार दया जाता है। पी के मु क म पुराने ज़माने म एक ख़ास क म का फल जब
पक जाता है, तब 15 दन उपवास करके एक दावत का ब दोब त कया जाता है, जो 6
दन और 6 रात तक रहती है। इसम ी और मद नंगे होकर बाग म इक े होते और
पहा ड़य पर दौड़ लगाते ह तथा येक आदमी एक औरत को पकड़ लेता है और उनका
मु सहवास होता है। डानसन बंगाल क एक खेती करने वाली जा त क एक दावत या
मेले का ज़ करता है। वहाँ ी और पु ष को खुली छु होती है। उसे माघपव कहते
ह। अ य अवसर पर वे ब त सुशील होते ह पर इस अवसर पर वे पशु हो जाते ह और
मु सहवास करते ह। म यकाल म एक दन मूख दन मनाया जाता था। वहाँ भ े नाच
चच म होते थे। अ य त पाश वक इ छाएं बढ़ जाती थ । ाचीन रोमन लोग म भी ऐसा
ही होता था। मनहाड कहता है क ाचीन यूरोप म गम और बस त म जो दावत होती
थ , वे काम-वासना से प रपूण रहती थ और वे दावत यौहार के तौर पर मनाई जाती
थ । ऐसे यौहार के दन को से ट जा स का दन कहा जाता है। भारत म भी ीकृ ण क
रासलीलाएँ ऐसी ही वासनामय थ जनम चीरहरण से लेकर ेम और मु सहवास के
सब भाव ह जनका वणन गीत गो व द म साफ तौर पर कया गया है।
वे यावृ मु सहवास का एक सामा जक प है। वे यावृ संसार म अ य त
ाचीन काल से पाई जाती है। ह के वग क अ सराएँ और मुसलमान क वग क
र द वे याएँ ह। अ सरा का अथ पवती होता है। कुछ अ सरा क वेद मं ने
ा या भी क है। वेद म 7 अ सराएँ मु य मानी गई ह। पुराण म अ सरा क
करामात क कहा नयाँ भरी पड़ी ह। बाण ने ‘काद बरी’ म उनके 14 कुल बयान कए ह,
और यही वायु पुराण म भी लखा है। वा मीक रामायण म लखा है क जब राम के
बनवास के काल म भरत भार ाज मु न के आ म म गये तो उनके स कार के लए चुनी
ई अनेक अ सराएँ नाचने-गाने के लए मँगाई थी। जनके स दय क बाबत यही लखा
गया है क उ ह दे खकर आदमी पागल हो जाते थे, वे ऐसी थ । उनके प और नाच-गान
को सुनकर अयो यावासी कहने लगे थे क भाई अयो या म या रखा है और द डकवन
म जाकर हम या करगे? भरत खुश रह और राम भी सुखी रह, हम तो यह मजे म ह।
मुसलमानी धम- थ म र का खूब बढ़ा-चढ़ा कर वणन है। ‘कुरान शरीफ़’ म उ ह
‘प व वधू’ कहा गया है। उनक उपमा मोती और लाल से द गई है और उनके स दय
का खूब उ ेजक वणन कया गया है। अं ेज़ी, अरबी और फारसी सा ह य म प रय का
ब त-सा वणन मलता है। ये अलौ कक सु द रयाँ ह और अपने े मय को उठाकर अपने
घर ले जाती ह। सह रजनी च र म मनु य और प रय के ेम क बड़ी-बड़ी रोचक
कहा नयाँ ह। फ़ारसी और अरबी थ म उनका थान कोहेक़ाफ़ बताया गया है।
आधु नक अं ेज़ी सा ह य म भी इनक बड़ी चचा है। उसम कहा गया है क वा तव म
उनक एक जा त है। इसके माण म कई उदाहरण भी दए गये ह। पाठक समझ सकते
ह क अ सरा, परी और र म कतनी समता है। तीन वग य सु द रयाँ ह, जो नाच-गाने
म बड़ी कुशल ह। अब यह दे खना है क इनम और वे या म कतनी समता है। क द-
पुराण म वे या को अ सरा क स तान बताया गया है, और या व य मृ त के
ट काकार मता राकार ने इस बात का उ लेख कया है। अ भनय दपण जो नाट् यकला
का लभ सं कृत थ है, उसम वे या को अ भने ी लखा है। वह वे या के गुण-दोष
लखता है क जसके ने फूल क भाँ त पीले ह , सर के बाल थोड़े ह , अधर मोटे ह ,
तन ल बे ह , कुबड़ी हो, ब त मोट या ब त बली हो, जो ब त ल बी या ठगनी हो,
जसका वर मीठा न हो वह वे या होने के यो य नह है। फुत ली, शरीर को आसानी से
घुमा सकने वाली, सुडौल, बु मती, कटा वाली, क ठन-से-क ठन काम को आसानी से
कर डालने वाली, आ म व ास, मधुर भाषण, नृ य और गीत म पटु वे या होनी चा हए।
वा सयायन मु न 64 कला म वीण वे या को पस द करते ह। डा. व सन साहेब
लखते ह क ‘वे या को हम वह ी न समझनी चा हए, जसने सब कम-ब धन तोड़
दए ह अथवा सामा जक तब ध को कुचल डाला हो, पर तु ऐसी ी समझना चा हए
जो असाधारण तौर पर पली हो, जससे वह समाज म ववा हत क भाँ त वेश न कर
सके और जसके लए समाज का दरवाज़ा— य क उ ह ने पु ष के साथ सहवास
करने क शारी रक और मान सक श ा ऐसे ढं ग से पाई है जससे साधारण याँ वं चत
रहती ह—अपनी ल जा क ब ल दे ने पर खुलता है।
एक और यूरो पयन व ान् का कहना है क— ाचीन काल म ह समाज म
वे याएँ यूनान क हटोरा के समान होती थ । वे श का तथा चतुर होती थ । इससे वे
ववा हता और अ ववा हता य से अ धक यो य सहच रयाँ गनी जाती थ । वे समाज
का एक अंग समझी जाती थ और उनका सदै व स मान होता था। ऋ वेद के सरे म डल
के तीसरे सू के छठे म म ‘पेश’ श द आया है, जसका अथ नाचते समय क पोशाक
है। महामहोपा याय पं. गौरीशंकर ओझा का मत है क ‘ पशवाज’ इसी का अप ंश है।
इसी कार ऋ वेद के पहले म डल के 92 व सू के चौथे म म ‘पेशां स’ श द आया
है जसका अथ आथर ए. मैकडानल ने नाच के व क भड़क ली पोशाक कया है।
उपयु म का अथ करते ए सायण ने लखा है-‘जैसे नाचने वाली सब दशनीय प
को अपने शरीर पर धारण करती है। शु ल यजुवद के 30 व अ याय के 9 व म म
‘ न कृ य पेश करी’ पद आया है जसके अनुवाद म फल साहेब कहते ह, ‘उस ी
क नयु जो ेम के जा का ध धा करती है।’ ी वामी दयान द सर वती भी
‘पेश करी’ का अथ ‘ ृंगार’ वशेष से प करने हारी भचा रणी ी करते ह। ा ण
थ म अ सरा क बड़ी-बड़ी कथाएँ ह। शतपथ ा ण के 3-2 - 4-6 म नाचने-गाने
वाली वे या क काफ चचा है।
कुलाणव त और गु त साधन त म भी उसका खूब उ लेख है। बौ थ भी
वे या क म हमा से खाली नह । ीप त ने बु के महल का वणन करते ए लखा
क वहाँ गाने वाली ऐसी वे याएँ रहती थ , जनके ने खले कमल के समान थे, क ट
ीण थी। उनके नत ब भारी थे और वे पग वता थ । जब वे वैरागी हो उदास रहने लगे,
तो उनके पता ने उनका मनोरंजन करने के लए अनेक वे याएँ भेजी थ । जैन थ और
सं कृत सा ह य म भी वे या क भारी चचा है। भास के द र शशुपालवध महाका
म, वशाखाद के मु ारा स म, शू क के मृ छक टक म वे या क काफ चचा है।
सारे संसार के इ तहास म बड़ी बड़ी सुयो य वे या क चचा क गई है। क द
पुराण के ा ण ख ड म पगला वे या क चचा है, वह उ जैन क एक वे या थी,
जसका ेमी म दर नामक एक ा ण था। क द पुराण म कमलावती का ख़ूब बढ़ा-
चढ़ा वणन है। राज तरं गणी म पौ वधन नगर क कमला वे या का च ण है, जसका
ेम का मीर महाराज जयापीड़ से था। राजतरं गनी म हँसी और नागलता नामक डोम क
दो लड़ कय का वणन है, जन पर का मीर का राजा च वमा मो हत था। उसके महल
म वे रा नय से ऊँचे सहासन पर बैठती थ । कनल टाड ने च ौड़ क एक वे या वीरा
का वणन कया है। जो उदय सह महाराजा क रखैल थी, जसने राजा के लए
जरहब तर पहनकर यु कया था। हमीर रासो म च कला पातर का वणन है, जसने
सु तान अलाउ न का अपमान कया था। मेलकम साहब ने बाज बहा र क या
पवती का ब त ही बढ़ा-चढ़ा कर वणन कया है। वीणराय ओरछा के राजा क वे या
थी, जसे अकबर ने बुलाया था। भारत क ही भाँ त यूरोप म भी स वे याएँ ई ह।
पेन क टे लया-डी-अरागोना अ तीय सु दरी, व षी और बड़ी भारी कव य ी थी।
उसक बड़ी त ा थी और लोरस के ड् यूक ने उसे पीले रंग के बुक तथा माल रखने
से, जो कानूनन वे या को रखना पड़ता था, बरी कर दया था। बैरोनीका को इटली
के स नगर वे नस क रहने वाली अपूव सु दरी थी। वह भी परम व षी और
कव य ी थी। वह कई भाषा क प डता थी। एक बार ांस के बादशाह आठव हैनरी
भी उससे मलने उसके घर आये थे और उसने बादशाह को अपनी एक क वता क
पु तक सम पत क थी। न जन ड. ले लोस भी ऐसी ही स वे या थी। इसी कार
अ य जा त और दे श म भी वे या के ऐसे ही उदाहरण मलते ह।
इस वे यावृ को रोकने क चे ा समय-समय पर ब त पुराने जमाने से सभी दे श म
क गई, पर तु सफलता नह मली। यूनान के बादशाह सोलन ने वे या के लए नगर
के बाहर वे या-भवन बनाये थे। उ ह एक खास पोशाक पहननी पड़ती थी। उ ह धा मक
व धय म भाग लेने क आ ा नह थी। जब फ़ा रस ने यूनान को वजय कया तो उ ह ने
वे यावृ को रोकने के बड़े-बड़े क़ानून बनाये। वे यालय पर पु लस क नगरानी रखी
गई, साधारण अपराध पर भी उ ह भारी-भारी द ड दए गये। पर तु वे यावृ बढ़ती ही
गई और बड़े-बड़े खानदान क याँ छपकर वे यावृ करने लग । धीरे-धीरे उनक
एक अलग जमात बन गई और उनका रसूख इतना बढ़ गया क कानून भी उनका कुछ न
बगाड़ सका। अ त म वे यावृ पर टै स दे ने को छोड़ कोई तब ध न रहा। वे यावृ
यहाँ तक बढ़ क को र थ म, जो यूनान का एक बड़ा नगर था, एक म दर बनवाया गया
जसक पुजा रन वे याएँ रखी ग । इस म दर म दे वी क पूजा के साथ-साथ वे या-वृ
भी खु लम-खु ला होने लगी। रोमन लोग ने भी वे यागा मय के त खूब कानून बनाये।
वे या के सामा जक अ धकार छ न लए गये थे। ये कानून खूब कड़े होते गये, पर तु
अ त म रोम का यहाँ तक पतन आ क खुद रोमन स ाट ज ट नयन ने योडोरा नामक
वे या से शाद कर उसे स ा ी बना दया। जब यूरोप म ईसाइय का दौर आ, तो
वे या को दया क से दे खा गया और उ ह उ त करने क भी चे ा क गई। पोप
इ ोसट ने वे या से ववाह करना शुभकम बताया। नव गरैगरी ने म दया क वे
कसी वे या को गरजे म जाने से न रोक। वे या से ववाह करने पर भी ज़ोर दया
गया। ाचीन काल म ल दन क एक गली-क -गली ही वे या क थी जो 16 व सद
के ार भ तक रही। ांस म वे या को एक खास ब ला पहनना पड़ता था। वे न
जवाहरात पहन सकती थ , न शहर के ख़ास-ख़ास ह स म जा सकती थ । फर भी
सावज नक वे या-भवन क वहाँ कमी न थी। इन भवन क आमदनी यु न सपै लट
और यू नव सट आपस म बाँट लेती थ । नव लुई ने इन वे यालय को ब द कर दया, पर
दो साल बाद ही वह म वा पस ले लया गया। जमनी म भी अन गनत वे यालय थे, पर
उनम ववा हत पु ष, पादरी और य द नह जाने पाते थे। वे र ववार तथा सरे प व
दन म ब द रहते थे। तेरहव शता द म े ड रक तीय ने वे या के लए कई क़ानून
बनाये थे। वे अ छे घरान क य से नह मल सकती थ , न उनके साथ नानागार म
वे नहा सकती थ । उन दन वे याय अ त थ स कार क साम ी मानी जाती थ । कौ ट य
के अथशा से पता लगता है क उसके काल म भारतवष म वे या पर बला कार करने
वाले को भ - भ द ड भोगने पड़ते थे। जो वे या मेहनतनामा लेकर सहवास से
इनकार कर दे , या कसी पु ष को मार डाले या अपनी आमदनी ग णका य को न
बतावे, आपस का नाम छपाये, तो उसे भ - भ द ड भोगने पड़ते थे, जो ाणद ड
तक होते थे। मु लम रा यकाल म फौज के लए छाव नय के पास वे यालय खोलने क
व था क गई थी। फर भी जहाँ वे या का ऐसा घ न स ब ध रहा है। संसार क
सब जा तय ने वे यावृ रोकने क चे ा क है, पर सफल नह । वे या का नाम
र ज टरी करने क था सबसे थम से टलुईसे म, जो अमे रका का स नगर है,
चलाई गई थी। पर इससे कोई लाभ न आ। यूयाक म डा. पारखसू ने आ दोलन करके
वे या को उनके घर से नकाल दया और सब वे या-भवन ब द कर दए गये। पर तु
इससे भी वे यावृ न क । ांस म भी ऐसी ही चे ा क गई, पर कोई नतीजा नह
आ। सट लुई ने यह आ ा नकाल द थी क उनक धन-स प छ नकर उनके मकान
गरा दए जाएँ, पर वे यावृ क नह । इसके बाद इटली म यह उपाय काम म लाया
गया क वे या के लए नगर का एक पृथक् भाग चुन दया गया ओर पु लस क चौक
का पूरा ब दोब त कर दया गया, पर वह इलाका शी ही चोर और बदमाश का अ ा
बन गया तथा उस के म रहने वाल का गुजारा होना मु कल हो गया और वे याएँ वहाँ
से छप- छपकर नकल भाग , तथा नगर के सरे भाग म वे यावृ करती पकड़ी ग ।
जापान म वे यावृ को न र होने वाली बुराई समझा गया है और वहाँ वे यावृ का
सारा ब ध गवनमट के हाथ म है। टो कयो म गवनमट ने वे या के लए बड़े-बड़े
सु दर महल बनवा दए है। जो यो षवारा कहाते ह। जापान क जलवायु म दस वष क
लड़ कयाँ पूरी युवती हो जाती ह और उ ह वे यावृ का लाइसस मल जाता है। उनक
आमदनी का एक भाग गवनमट ले लेती है। ल दन के बाहरी भाग म वे या-भवन ह। वहाँ
लोग कैब या रेलवे ारा प ँच जाते ह।
ांस म येक वे या को अपना नाम वयं र ज टर कराना पड़ता था। वहाँ दो कार
के वे या-भवन होते थे। एक ऐसे जहाँ वे याएँ रहती भी थ और वे यावृ भी करती थ ।
सरे जहाँ सफ वृ के लए जाती थ । इन वे या को स ताह म एक बार अ पताल म
जाकर वयं अपना मुआइना कराना पड़ता था और ज ह आतशक आ द क कोई
बीमारी होती थी, उ ह अपना इलाज कराना पड़ता था। इन कानून को तोड़ने से एक
साल तक क सज़ा मलती थी।
जमनी म वे यावृ करना ब कुल मना था। जो याँ यह काम करती थ , वे
एकदम पु लस क नगरानी म रहती थ । उ ह स ताह म एक बार डा टरी मुआइना
कराना पड़ता था। ये खास ग लय म और खास घर म ही रह सकती थ , वे 25 वष से
कम आयु क लड़ कय को अपने यहाँ नह रख सकती थ । उनके लड़के जब पढ़ने यो य
हो जाते तो उ ह वे अपने घर म नह रख सकती थ । वे कसी क म का शोर या झगड़ा
नह कर सकती थ । न नगर के खास भाग म जा सकती थ , उ ह अनेक टै स दे ने पड़ते
थे। इन कानून को तोड़ने से 5 साल तक क सज़ा द जा सकती थी।
वट् ज़रलड म भ - भ ा त म पृथक्-पृथक् कानून ह। कह तो कोई रोक-टोक
ही नह है और कह उ ह इस काम के लए कठोर द ड दया जाता है।
ेट टे न म वे यावृ पस द नह क जाती। अं ेज़ी कानून म वे यावृ को जनता
क शा त का बाधक कहा गया है। वे या के व अनेक कानून बने ह। वे या का
ज़बद ती मुआइना कया जाता है। इस स ब ध म भारतवष म भी कई तब ध और
कानून ह।
तातार म वे याएँ अपने भवन म रहती ह। वहाँ जाने वाल से थम ही फ स ले ली
जाती है। फर वह कुछ घ ट उनका आन द लूट सकते ह। वे नाच-गान और सहवास का
आन द लूट सकते ह। वहाँ जाने क कसी को मनाही नह है।
चीन म वे यावृ को ावहा रक से संग ठत कया गया है। वहाँ न इसे घृ णत
समझा जाता है और न ल जा पद। वहाँ छोट -छोट ब चयाँ वे यावृ के लए बेच द
जाती ह। उ ह बचपन से ही वे यावृ क तालीम द जाती है। वधवा- ववाह वहाँ घृ णत
समझा जाता है, अतः वे वे याएँ हो सकती ह। उनक मृ यु अफ म या आतशक से होती
है।
इस कार सारे संसार क वे याएँ मु सहवास का वधान-यु मा यम बनी ई ह।
यूरोप और अमे रका म गोरी लड़ कय का ापार संग ठत और ापक तर पर
चलता है। यूरोप और अमे रका से तवष हज़ार लड़ कयाँ पूव दशा म प ँचाई
जाती ह। चीन, जावा, सुमा ा, मलय प, बो नयो और फ लपाइ स म इन ापा रय के
बड़े-बड़े डपो ह। जनम अमे रका, जमनी, ांस, इं लड और स से भगाई ई
लड़ कयाँ हज़ार क सं या म तवष प ँचाई जाती ह और उनसे लाख पया कमाया
जाता है। लड़ कय के ये एजे ट ‘ प प’ कहाते ह। इ ह ने नयाभर म अपने ापार के
जाल फैला रखे ह। ये लोग भोली-भाली असहाय लड़ कय को फुसलाने-बहलाने के बड़े-
बड़े हथक डे जानते ह। पूव दे श म गोरी लड़ कय क कमी और अ धक माँग होने से
तथा उ ह यहाँ प ँचाने के अ धक साधन होने से पूव दे श म उनके अन गनत अ े ह।
इस ापार का खास ार पोटसईद म है। पोटसईद सु द रय के ापार का सबसे बड़ा
के है जहाँ से हज़ार सु द रयाँ, पूव दे श के भ - भ भाग म प ँचाई जाती ह।
अकेले म म ही तवष भारी सं या म ये लड़ कयाँ प ँचाई जाती ह। का हरा,
एले ज़े या और पोटसईद म ऐसे-ऐसे गु त घर का भ डाफोड़ हो चुका है, जनम न
जाने कतनी सु द रय के जीवन के सौदे हो चुके ह। म म ीस क सु द रय क बड़ी
माँग है। कैरो ीस क भागी ई सु द रय का सबसे बड़ा अ ा है जहाँ तवष संसारभर
के या ी आकर उनके व व यात यौवन के माधुय का वाद चखते ह, जसका मन
उ म कर दे ने वाला वणन वे पु तक और उप यास म पढ़ चुके होते ह। ब त चे ा
करने पर भी म का यह अ ा वैसा ही कायम है। पोटसईद पर य ही कोई जहाज
प ँचता है, दजन पथ दशक वहाँ जा प ँचते ह, जो अपनी ल छे दार बात से या य के
मन को तुर त चंचल कर दे ते ह य क वे या ी रात- दन कै बन म पड़े-पड़े काम-भावना
के यासे हो जाते ह।
ये गाइड बात करते-करते पूछगे, ‘ य महाशय, या आप सु दर त वीर दे खना
पस द नह करगे?’ और वे उ र क ती ा कए बना तुर त कई दजन सु द रय क
नंगी त वीर एक-एक करके आपके सामने उप थत कर दे ते ह। वे सफ त वीर ही नह
होत , ये सभी सु द रयाँ जी वत कुछ ही फ़ासले पर गु त मकान म या ी के आ त य को
तैयार रहती ह। या ी आव यकता और आवेश म आकर तुर त साथ चल दे ता है, गाइड
उसे एक ख डहर जैसे मकान के सामने ले जाकर ार खटखटाता है। खट से ार खुल
जाता है। और भीतर क सजावट और जगमगाहट दे खकर या ी क आँख च धया जाती
ह। खूब ठाठ से सजा धजा मकान और उसम जीती-जागती प रयाँ। या य के पास
प ँचते ही बारह-चौदह लड़ कयाँ वैसी ही लगभग नंगी, प और यौवन से छलकती दे ह
लए मु कान बखेरती, आँख से तीर बरसाती सामने आ खड़ी होती ह। हँसकर सलाम
करती ह। इसी समय बग़ल के कमरे से संगीत और नृ य का उ मादकारी वाह उठ खड़ा
होता है। ये सब सु द रयाँ जो इस भाँ त से जतना पया पैदा करती ह, उनम से ब त
कम उ ह मलता है; अ धकांश प प क तजोरी म जमा होता है। वे तो सफ भरण-
पोषण के लए ही कुछ ले पाती ह। चूँ क ये सब वे याएँ होती ई भी कानूनन वे या नही
होत , इससे उनक थ त सदै व खतरे म होती है और इसी से वे प प के वशीभूत होती
ह। और उ ह उ ह के संकेत पर हँसना, बोलना, नाचना और आ म-समपण करना पड़ता
है। अब आप आइये— सगापुर, हांगकांग और शंघाई। इनम सभी शहर के अ के
संचालक अमे रकन लोग ह ज ह ने इस ापार म अतुल धन-स प एक क है।
हांगकांग क गज ट तथा उसके आस-पास के सभी गली-कूचे इन अ से भरपूर थे।
इन अ म तवष हज़ार नई-नवेली का म नयाँ आती रहती ह और जब तक उनका
प यौवन नचुड़ नह जाता प प उनसे ध धा चलाते ह। बाद म वहाँ से नकाल द
जाती ह और ब धा त त रोड पर चली जाती ह, जहाँ खानगी वे या के कम से कम
तीन सौ अ े ह। हांगकांग और शंघाई म सीधे यूयाक और सेन ां स को से लड़ कयाँ
मँगाई जाती थ । इस वसाय म अमे रकन ले डय का भी ब त भारी हाथ रहता है। इ ह
‘ भसुस’ कहते ह। इनक अपनी सांके तक भाषा है। जब कसी अ े म कुछ नई
कुमा रय क ज़ रत पड़ती है तो वे अपने अमे रका थत एजे ट को उसी भाषा म तार
दे ती ह। ये एजे ट भारी-भारी तन वाह पर सभी बड़े-बड़े शहर म रहते ह। तार पाते ही
वे झटपट माँग पूरी करने म जुट जाते ह। थयेटर म, सनेमा म तथा होटल म ये
एजे ट बड़े ठाठ से बड़े आद मय के समान पोशाक धारण करके जा डटते ह और अपने
को आला खानदान का रईस द शत करते ह और इस बात क चे ा करते ह क
सु द रयाँ उनक ओर आक षत हो जाएँ। अतः यह धू सफल होते ह। वे अपने को
कुँवारा बताते ह; वे कसी कुमारी से प र चत होते ही उसके लए पानी क भाँ त पया
बहाने लगते ह और उस संसार से अप र चत भोली-भाली बा लका पर उनका जा काम
कर जाता है; खासकर काम-काज क खोज म आने वाली दे हाती लड़ कयाँ इनके चंगुल
म ज द फँस जाती ह।
ये प प अनेक कार क धूतता भी करते ह। एक प प ने एक बार एक प म
थयेटर क पनी का व ापन दया क उसे कुछ अ भने य क आव यकता है। व ापन
नकलते ही सैकड़ युव तयाँ इंटर ू के लए आ ग । उनम से उसने ब ढ़या सु द रय को
चुन लया। जब सब बात तय हो ग और कॉ े ट हो गए, तो उसने बताया क उसक
क पनी र दे श म टू र करने को जायगी। पहले तो लड़ कयाँ झझक , पर अ त म डरा,
फुसला कर राजी कर ली ग । उनका अ त म या कया गया यह आसानी से समझा जा
सकता है।
शंघाई म जो इस कार क उड़ाई ई लड़ कय के अ े ह, उ ह हरम कहते ह। एक-
एक हरम म 20-20, 30-30 लड़ कयाँ रखी जाती ह। इन हरम म जहाँ एक बार लड़क
प ंचा द गई, फर उसका पता लग जाना कसी भी कार स भव नह है। कोई लड़क
वहाँ से भाग नकलने का भी साहस नह कर सकती। य द कोई ऐसा करे तो सम झये क
उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। कुछ दन ाहक क तृ त करने और खूब पया
कमा लेने के बाद अ े क माल कन उ ह वयं ही नकाल बाहर कर दे ती है और नई
च ड़य पर चारा फका जाता है। इन लड़ कय को इन अ म अफ म और शराब का
ऐसा च का डाल दया जाता है क फर वे सड़क पर खड़ी होकर पैस-े पैसे म अपने
शरीर को बेचती फरती ह। काट् स रोड पर ऐसी ही कुछ लड़ कय के अ े ह जो
ची नय के हाथ म ह और जनक सं या यु से थम 300 से ऊपर थी। एक-एक अ े
म 30-40 लड़ कयाँ रहती ह। यहाँ क फ स ब त मामूली है और यहाँ अ धकांश गरीब
चीनी लोग आते ह। ये अ े और ये गली कूचे ऐसे भयानक ह क दन-दहाड़े रोज वहाँ
खून-खराबा होता रहता है।
मलय ट भी इनम से एक है, जहाँ पाँच सौ से अ धक ऐसे अ े ह। इनम कुछ इतने
स और पुराने हो गये ह क उनक ‘गुड वल’ के कारण खूब दाम उठते ह। ऐसा ही
एक अ ा एक मसुस ने 22 हज़ार डालर म खरीदा था। इस ट के कोठ पर दन के
तीसरे पहर से याँ आ बैठती ह, और आधी रात तक वे ाहक क ती ा म बैठ
रहती ह। वे इतनी बेशम होती ह क सड़क पर चलते मनु य को तपाक से Come in
here Please(कृपया अंदर आइये) कहकर बुला लेती ह। इस ट म चीन, इं लड,
ांस, स और आ े लया आ द अनेक दे श क युव तयाँ भरी पड़ी ह। एक बार जब
जमनी के युवराज पूव के मण को आए थे तो उ ह भी मलय ट घुमाने का ब ध
कया गया था। अमे रका और यूरोप के प म हमेशा युव तय के खो जाने क जो खबर
छपती रहती ह, ये रम णयाँ ायः मलय ट म पाई जा सकती ह। एक अं ेज़ लेखक
का कहना है क लोक सेवा का त धारण करने वाली कतनी ही स टस भी जब यहाँ
प ँचा द जाती ह, तो थयेटर और होटल म काम करने वाली बेचारी अ प का
बा लका से तो त तारोड और मलय ट के बदनाम मकान पटे पड़े रहना कोई
आ य क बात नह है।
इन प प का ब त अ छा संगठन है। सगापुर ही म यु से थम 80 प प रहते थे।
वहाँ उनका एक लब था, जहाँ इक े होकर वे अपने ापार व नमय क बातचीत करते
थे। रोज़गार कैसे बढ़ाया जाय, पु लस को कैसे चकमा दया जाय, आफ़त म फँसे कसी
प प क कैसे सहायता क जाय, इन बात पर इन लब म वचार होता था। शराब के
दौर चलते थे और इस कार पु लस के पंज से वे बचे रहते थे।
गोरी लड़ कयाँ यूरोप ही के सरे दे श म कस कार बेची जाती थ । इसके कुछ
मनोरंजक वणन भी हम पाठक को यहाँ दे ते ह— पटरचेनी एक ऐसा था, जो गु त
अपराध का पता लगाने म बड़ा ही उ ताद था। उसके एक व त जासूस ने बताया था
क च मोर को के एक कहवाखाने म उसने 1 दजन गोरी लड़ कय को बकते दे खा,
जनम 5 अं ेज़ लड़ कयाँ थ । कोई भी लड़क 5 क (करीब 3 पये) से अ धक म
नह बेची गई थी। ऐसी लड़ कयाँ मागलीज के रा ते उ री अ का के अनेक शहर म
भेजी जाती थ ।
डवानशायर क एक लड़क , जो कसी बड़े प रवार क थी, नौकरी क तलाश म
ल दन आई। उसे संयोग से कसी घर म कुछ काम मल गया। दे खने म वह बड़ी सु दर
और आकषक थी। पर उसे नाचने का भी शौक था। दो महीने तक उस घर म नौकरी
करने के बाद उसने एक एजे ट के यहाँ अपना नाम दज कराया और थयेटर तथा फ म
म काम ढूँ ढने लगी। एक दन शाम को वह घूमने के लए बाहर गई और एक कहवाखाना
म प ँची। वहाँ एक ी से कुछ बातचीत ई। उस ी ने लड़क का प रचय एक
से कराया। उसने व ास दलाया क अं ेज़ लड़ कय के लए ांस म ब त-सा काम
मल सकता है। उस ने उस अं ेज़ युवती से यह भी कहा क वह तूल के पास एक
थयेटर म उसे काम दला दे गा।
अं ेज़ एजे ट के परामश क अवहेलना करके उस लड़क ने यह ताव वीकार
कर लया। तूलो प ँचने पर ब दरगाह के पास एक कहवाखाने म उसे ायः नंगी होकर
नाचना पड़ा। इसके बाद वह एजे ट उस लड़क को ट् यू नस ले गया। ट् यू नस म उसे
ऐसे-ऐसे ःखद अनुभव ए, जनका वणन नह कया जा सकता। बाद को वह एजे ट
च पु लस ारा गर तार कर लया गया। बाद म यह पता चला क वह दो-तीन और
लड़ कय को जहाज के म लाह को भाड़े पर दया करता था।
ये एजे ट ांस म टश, जमन, नाव या वीडन क लड़ कय के थये कल दल
के आगमन क ती ा करते रहते ह। जब दल आता है और थयेटर का न त समय
समा त होने को होता है, तो एजे ट उस दल क कसी लड़क को चुनकर उसके पास
प ँचता है, और उसे मासलीज़ म अ भनय करने का एक नया काम दे ने का लोभन दे ता
है और कहता है क तु ह ब त ब ढ़या-ब ढ़या व मलगे। लड़क को भी तुर त अपने
दे श लौट जाने के बजाय यह अ छा मालूम होता है क वह और थान म भी अ भनय
करने का अवसर हण कर धन उपा जत करे। फलतः वह इक़रारनामे पर ह ता र कर
दे ती है।
जब वह मासलीज़ म प ँचती है, तो दे खती है क वहाँ उसका अ भनय कराने के
लए जस रंगमंच का बंध कया गया है, वह आकषक नह है। पहले ही स ताह म उसे
बतलाया जाता है क घाटा हो रहा है। फर दशन ब द कर दया जाता है। पहले का
कमाया आ धन धीरे-धीरे खच हो जाता है। उसम इतनी बु नह है क वह तावास म
जाकर अपने दे श को लौटने के लए आव यक सहायता ा त करे।
जब लड़क नराश होने लगती है, तो एजे ट फर उसके पास प ँचता है और
मायाचना करता है। साथ ही व ास दलाता है क मेरे साथ अ जी रया या ट् यू नस म
चलो तो सचमुच ही बड़े भारी पैमाने पर दशन क योजना क जाय। वह स होकर
वहाँ जाने को तैयार हो जाती है। वहाँ प ँचने पर फर वह कसी भ े और साधारण-से
तमाशे म ले जाई जाती है। लड़क के साथ घृ णत वहार कया जाता है और इसे इतना
तंग कया जाता है क वह अ त म जो कुछ कहा जाता है करने को तैयार हो जाती है।
अ त म वह च मोर को के कसी शेख के हाथ बेच द जाती है। शेख अं ेज़
लड़ कय का बड़ा ेमी होता है और उ ह पाने के लए उ चत मू य भी दे ने को तैयार
रहता है। लड़क को पता चलता है क यह शेख उन शेख से भ है, जनका च र -
च ण डो फ वैले टनो ने अपने उप यास म कया है। जस शेख के यहाँ वह जाती है,
वह बूढ़ा, रोगी ओर च र हीन सा बत होता है। यही नह , वह दे खती है क शेख ने औरत
का रेवड़ भर रखा है।
वे स क एक लड़क पर जो बीती, उनक कहानी इस कार है—वह ार भ म
ल दन क एक कान म भत क गई। उसे नौकरी मली और एक तमाशे के साथ वह
ांस प ँची। कसी च ब दरगाह म दशन समा त होने के बाद एक दावत का
आयोजन कया गया। दावत म उसे शराब पला द गई और वह बेहोश हो गई। जब उसे
होश आया तो उसने दे खा क वह एक ट मर पर कुछ अ य लड़ कय के साथ या ा कर
रही है। वह ट मर पोली क ओर जा रहा था।
पोली म उतरने के बाद उसे तथा अ य लड़ कय को समझाया गया क उनसे जो
कुछ कहा जाय, उसे वीकार कर ल, थ का हठ न कर। इस कार कई महीने तक
वे स क उस लड़क को घृ णत जीवन तीत करना पड़ा। अ त म सौभा य से एक
ट मर का क तान उसक ओर आक षत आ और वह उसे अपने साथ ांस लेता गया।
जो लड़ कयाँ शेख के हाथ बेची जाती ह, उ ह ब त बुरा अनुभव होता है। उ ह
ववाह करने को बा य कया जाता है। एक दो महीने म ही अपने इस ववा हत जीवन से
वे ऊब जाती ह। अ त म शेख उस लड़क को फर आधा दाम वा पस लेकर एजे ट को दे
दे ता है। इसके बाद वह कहवाखान म अपना जीवन तीत करती ह।
लंकाशायर नगर क एक लड़क क कहानी भी ऐसी ही है। लड़क क उ 23 वष
क थी। वह एक थये कल क पनी म काम करने के लए वैध तरीके से इं लड से पे रस
के लए रवाना ई। पे रस म न द काय के समा त होने पर उसने एक सरे इकरारनामे
पर द तखत कया और मासलीज़ जाने को तैयार हो गई। वहाँ जस रंगमंच पर उसको
अपनी कला का दशन करना था, उसका काय म दो स ताह म ही समा त हो गया और
फर वह लोभन दए जाने पर ट् यू नस जाने को तैयार हो गई।
टयू नस प ँचने पर उसे बतलाया गया क वहाँ पर दशन करने क जो व था
सोची गई थी, वह नह हो सक है, ले कन फै स जाने पर काम मल सकता है। नदान
वह फै स प ँचाई गई। वहाँ दो दन बाद कुछ बदमाश ने उस पर हमला कर दया और
उसे एक स ताह तक ब द बनाकर रखा। अ त म वह एक शेख़ के साथ ववाह करने पर
बा य हो गई। एक महीने तक शेख के साथ रहने के बाद वह फर एक एजे ट के सुपुद
कर द गई। इसके बाद समु -तट के कनारे थत नगर के कहवाखान म वह साल-भर
तक भटकती रही। अ त म वह फै स म एक कहवाखाने म भीषण रोग से पी ड़त होकर
वह मर गई। अपनी मृ यु के चार दन पहले उसने पटर चेनी के मुख बर को अपनी राम-
कहानी सुनाई थी।
इन गोरी लड़ कय के इस ापार को रोकने के लए ‘लीग ऑफ़ नेश स’ ने सन्
1933 म एक Advisory Committee कायम क थी। इस कमेट क अमे रकन
सद या मस ेस एवाट ने एक ल बा खरीता पेश करके इस वषय क मह ा और
सावज नक आव यकता कट करते ए, पूरी जाँच करने के लए लीग से अनुरोध कया
था और ‘अमे रकन यूरो ऑफ सोशल हाइजीन’ ने 75 हज़ार डालर क रक़म इस काम
के लए ख़च करना वीकार कर लया था। अ त म लीग के समाज सुधार वभाग ने
वशेष क एक कमेट बनाकर इस वषय म काम शु कर दया था। इस कमेट क
जाँच-पड़ताल से पता चला क प मी यूरोप से म य और द णी अमे रका को ब त
लड़ कयाँ और याँ जाया करती ह। अतः अमे रका के उ ह दे श क जाँच क गई जो
बढ़ते-बढ़ते के य और उ री अमे रका, भूम य सागर के कनारे के दे श ओर बा टक
तथा उ री सागर के दे श तक प ँच गई। 20 मु क के 112 शहर और ज़ल क जाँच
क गई। इस काम म लगे ए दलाल , एजे ट , भु भोगी जनो आ द कोई 6 हज़ार
य क गवाही ली गई। अ त म कमेट के साहसी सद य ने उन भयानक अ म
वयं जा-जाकर अनेक गोपनीय और रोमांचकारी बात का पता लगाया। ाजील,
भांडी व डयो और ूना से रीज़ तथा मे सको म ऐसी लड़ कय के भारी-भारी भचार
के अ े पाये गये। वट् ज़रलड, बे जयम, नीदरलै ड, डैन जग और अले ज़े या म
बेशुमार नाबा लग वदे शी गोरी लड़ कयाँ भचार के लए बेची ई पाई ग । लीग क
जाँच कमेट के एक सद य से लड़ कय के एक ापारी ने बातचीत क थी। उसने उ ह
बताया—“मै सको म म……..इस काम म बड़ा उ ताद है, वह हर साल यूरोप के तीन
चार च कर लगाता है और ताज़ा से ताज़ा माल लाता है। उ वे क एक मसेज ने, जो
क कुटनी का ध धा करती थ बताया क योरोप के एक होटल म 33 लड़ कयाँ काम
करती थ । धीरे-धीरे ये सब द णी अमे रका चली आ । और अब खूब पया कमा रही
ह। यहाँ ऐसी कुमा रय के यौवन पर फदा होकर एक ही रात म हज़ार पये उलीचने
वाले उ लू अमीर क कमी नह है। ाजील के एक चकले क संचा लका ने कहा क
य द मेरे पास साठ कमरे भी ह तो भी म रोज़ाना आने वाली लड़ कय क ज़ रत को
पूरा नह कर सकती। द ण अमे रका के एक थयेटर म हर रात को गु त प से
भचार करनेवाली 100-200 लड़ कयाँ ाहक क तलाश म प ँच जाती ह ज ह
थयेटर वाले पास दे दे ते ह, य क वे जानते ह क इ ह क वजह से वहाँ दशक
अ धक आते ह। एक लब क बात कही गई है, जहाँ ना ता-पानी और नाचने गाने का
ब ध है। इसम जो लड़ कयाँ नौकर ह। उनका यही काम है क वे अ त थय का
मनोरंजन कर, उनके साथ नाच, गले म बाह डालकर ेमालाप कर, उ ह शराब पला-
पलाकर होटल के बल बढ़ाव। आधी रात को होटल जब ब द हो जाता है तो लड़ कयाँ
उन छै ल क अंकशा यनी बन जाती ह और जो खाली रहती ह उ ह मा लक लोग डाँट
बताते ह तथा नकाल दे ने क धमक दे ते ह य क वे जानते ह क इ ह के जाल म
फँसकर ाहक अ धक आते ह।
एक बार अखबार म छपा क एक अमे रकन लड़ाकू जहाज़ दो हज़ार फौजी
सपा हय को लेकर पनामा प ँचा है। र- र के चकले वाले झट दौड़कर पनामा प ँच
गये। बाज़ार ओर ग लयाँ इन फ़ौ जय से भर गई थ और इन दलाल क झो लयाँ भी
खूब भर । जब जब पनामा से काई जहाज गुज़रता है ऐसा ही होता है। ये अ े वाले ऐसे
मौक पर कुछ महीन म ही 4-5 हज़ार डालर कमा लेते ह। फौज का कह प ँच जाना
ही इस बात का संकेत है क वहाँ य क भारी आव यकता पड़ेगी। बस ये दलाल
दे श-दे श से सु द रयाँ जुटाते और जैसे उनसे पैसा छ नते बने, छ नते ह। इ ह फौ जय क
तन वाह मलने क तारीख का पता रहता है और वे उससे पूरा लाभ उठाते ह। कुछ
समय पहले तो यहाँ तक होता था क द णी अमे रका म सेना के जाने पर वहाँ क
यू न सपै ल टय के चेयरमैन या मेयर यु -म ी को सूचना दे ते थे क हम इतनी
युव तय का बंदोब त अमुक थान पर कर सकते ह। वह पड़ाव डाल दया जाय।
एक बार जेनेवा म जमना टक के खेल दखाने वाली एक क पनी आई। कसरत
दखाने वाली सभी कम सन लड़ कयाँ थ , जो नाममा को कपड़े पहने ई थी। उनक
सुडौल दे ह, उभरा आ यौवन, गोरा रंग और गाल क गुलाबी तथा चपलता और अदा ने
दशक को उ म कर दया। वे भाँ त-भाँ त के बहान से अपने अंग के व उघाड़ लेत ,
जससे खूब ता लयाँ बजत । खेल के बाद वे सभी युव तयाँ कसी न कसी युवक के
बा पाश म दखाई दे ने लग । उ ह ने एक-एक रात के सौ-सौ और दो-दो सौ डालर वसूल
कए। जनम से आधी रकम क पनी के मा लक के ह से क थी। मै सको के तायाजूना
शहर म, जो अमे रका क सरहद के पास है, साल म कई दफे घुड़दौड़ होती है, जसे
रे सग सीज़न कहते ह। इसम भाग लेने को लाख अमे रकन आते ह और इस अवसर पर
ये औरत के दलाल यहाँ से मालामाल होकर लौटते ह। सैर-सपाटे के लए जो या ी दे श-
वदे श घूमने नकलते ह, ऐसी लड़ कय के सबसे दलच प ाहक होते ह। वे ायः राजा,
रईस, उमराव होते ह और पानी क तरह पैसा बहाते ह। उनके लए ये दलाल अ छे -से-
अ छा माल जुटाते ह। मै सको, ई ज ट, एल जयस, ट् यू नस इस काम के के है।
बे जयम के एक कैफे का हाल वणन कया गया है। यहाँ शराब क खूब ब होती है,
होटल क प रयाँ खूब उड़ेल-उड़ेल कर ाहक को शराब पलाती ह। वे वयं भी शराब
पीती ह और ाहक के गले म हाथ डाल-डालकर उ ह बार-बार पलाती ह। इस कार
होटल का बल बढ़ता ही जाता है। ीस के तीन सराय क जाँच क गई। यहाँ छोटे दज
के आदमी ठहरा करते ह। उनम घ टया दज क शराब सु द रय ारा ढाल-ढालकर
पलाई जाती ह शराब क ब म उनका कमीशन होता है इस लए वे अ धक-से-अ धक
शराब ाहक को पलाने के लए व वध हावभाव करती ह ओर भचार भी कराती ह।
ांस क लड़ कय के वषय म एक दलाल ने कहा था—ये लड़ कयाँ ज़रा भी समझदार
नह होत । वभाव और सूरत क बड़ी मीठ होती ह। वे ेम के नाम पर सव व यौछावर
कर दे ती ह। उ ह यार चा हए, अ छे -अ छे कपड़े चा हए, फर चाहे उ ह दमड़ी भी न
द जये। ये लड़ कयाँ छोटे -छोटे क़ बे से आई ई अछू ती कली क भाँ त होती ह। इ ह
ढूँ ढ लेना मु कल नह है। मने एक बेबी आ टन मोटर ले रखी है। इस पर रोज़ शाम को
घूमने नकलता ँ और रोज़ दो-एक नई-नवे लय का मज़ा लूटता ँ। होटल म जाओ या
बाल म म, बस नाचते-नाचते उसे बगल म दबाये कह ले जाओ। थयेटर और मन को
उ े जत करने वाले काम उ ह पस द ह। वे तुर त ही फैशन और ट म-टाम से रहना सीख
लेती ह और आमोद- मोद क जगह म ले जाया जाना इ ह ब त पस द होता है। वहाँ वे
खूब खुश रहती ह। गाने-बजाने तथा च कारी करने वाली लड़ कयाँ ब त ज द फँसती
ह। हम लोग ऐसी ही टो लयाँ बना लेते ह और दे श-दे श घूमते ह और उनसे काफ़ पैसा
पैदा करते ह।
एक दलाल का ववरण ऐसा मला क उसने एक परम सु दरी लड़क को, जसक
अव था 17 साल क थी, फँसाकर उससे नकली नाम और पासपोट क मदद से याह
कर लया। बाद म वदे श जाने के बहाने उसे लेकर जहाज पर चढ़ा। जहाज पर उसने
तीन-चार रईस से उस युवती का प रचय करा दया और ऊँच-नीच समझाकर उनसे उसे
भचार करने को राजी कर लया। इस कार उसने डेढ़ मास क या ा म 3 हज़ार
डालर कमाये। यूरोप म 21 वष क लड़क बा लग समझी जाती है, पर व थ और सु दर
लड़ कयाँ 17-18 वष क आयु म ही बा लग बताकर उड़ा ले जाई जाती ह य क इसी
उ म लड़ कयाँ अ धक आसानी से बहकाई जा सकती ह। कभी-कभी ब त ही छोट
उ क लड़ कयाँ भी चुराकर ले जाई जाती ह।
मै सको म एक लब का हाल एक महाशय ने लखा है, जसक माल कन एक
अमे रकन म हला थी। वह लखता है क मेरे प ँचते ही मसेज़ ने मु कराकर कहा—मेरे
पास एक अ य त सु दर छोट -सी गु ड़या है, जसे तुम ब त पस द करोगे। वह झट से
भीतर जाकर एक 13-14 साल क कशोरी को ले आई। वह खूब गोरी, शरीर से गठ ली,
भोली ओर लचीली थी। उसक माँ अं ेज़ और बाप ह तानी था। मसेज़ ने बताया क
उसके पीछे दो हज़ार पये खच कए ह। लड़क हरी स क का साया पहने थी और
उसने बाल के जूड़े म पेन का ब ढ़या कंघा ख सा आ था। उसने उसका एक रात का
दाम 150 डालर बताया। उसने बताया क मुझे इसका एक-एक बार का सौ-सौ डालर
मलेगा। अगले रेस के सीजन म जब यूयाक के बड़े आदमी यहाँ आवगे, यह यूट मुझे
मालामाल कर दे गी।
ल बन क एक कुटनी ने कहा क यहाँ उ क कोई कैद नह है। म दो छोक रयाँ
बारह-बारह साल क लाई थी ओर 6-7 साल से वे कमा रही ह। आधी आमदनी उनके
माँ-बाप लेते ह।
एक महाशय बयान करते ह क म एक म के साथ जमनी के एक शानदार होटल म
गया। धीरे-धीरे वहाँ झु ड-क -झु ड सु द रय के ठट आने लगे। उनके दाँत सु दर, बाल
चकने और चमक ले ह ठ, और गाल रंगे ए तथा व उ ेजक थे। उस दन सै नक क
तन वाह बंटने का दन था। दे खते-ही-दे खते सै नक क भीड़ लग गई। हँसी- द लगी
होने लगी। फर थोड़ी-थोड़ी दे र म एक-एक जोड़ी उठ कर होटल के ऊपर पंचमहले म
बने ाइवेट कमरे म जाने लगी। म के ारा मालूम आ क आज ही इन सै नक क
आधी तन वाह इन सु द रय क जेब म चली जाएगी, ऊपर के ये सब कमरे इसी काम
के लए रज़व ह। जनका काफ कराया ठा जाता है। वहाँ ये लड़ कयाँ शराब पीकर
भचार कराती, नंगी त वीर खचवाती और संयु अव था म त वीर खचवाती ह।
उ ह ने ऐसे कई फोटो मँगाकर मुझे दखाये भी। अब एक तुक उदाहरण सु नए। एक
दलाल एक यूरो पयन सु दरी को कह से उड़ाकर लाया। तुक ापारी ने उसे 20 प ड
दए। इतनी ही रकम उसके र ज े शन पर खच ई। मकान मा लक ने 100 प ड के
स के पर उसक सही ले ली जसम 3 मास म याज स हत वापस चुका दे ने का वादा
लखा था। अब उसे एक कपड़े के सौदागर क कान पर ले गये। वहाँ उसके लए
भड़क ले कपड़े ने दाम पर खरीदे गये। वहाँ उसे 100 प ड का एक का और लखना
पड़ा। यह सब कज़ा च वृ याज क दर से कुछ-का-कुछ हो गया। और वह लड़क
पाप कमाई कमाते-कमाते हार गई, पर कज़ा न चुका सक । जनेवा क एक लड़क ने
ःख के साथ बयान दया था क मेरा इरादा यहाँ ठहरने का न था, सफ कज़ के कारण
ठहरना पड़ा। मुझे यहाँ तीन साल हो गए। मने रात- दन कज़ा चुकाने क को शश क ,
मेरा वा य भी न हो गया। मेरा अनुमान है क जुलाई तक म कज़ा चुका ँ गी और उस
दन परमे र को ध यवाद ँ गी और फर कभी भूलकर भी इस जीवन म न आऊँगी।
अरज टाइना गवनमे ट का कहना है क इटली, ांस और पोलड क य के मारे
हमारा नाक म दम है। ये लोग पेन, डच, जमन और बे जयम ब दरगाह से जहाज म
सवार होते ह। इटा लयन लड़ कयाँ ायः ांस के ब दरगाह से और ांसीसी ायः
ल बन से सफर करती है। एटलां टक के कनारे करो ा ओर सेटे डर नामक कुछ छोटे -
छोटे ब दरगाह ह, जहाँ बना कसी खास, जाँच-पड़ताल के या ी आसानी से चढ़-उतर
सकते ह। जरनो वज के अ धका रय का कहना है क मा नया से नकट पूव य दे श म
काफ औरत भेजी जाती ह। उनका कहना है क मने बीस बार हज़ार क तान को झूठे
पासपोट उन औरत को दे ते दे खा है, जो इन दलाल के साथ वदे श को जाती ह।
ये लोग आधी रात के समय चुपचाप छोट -छोट नाव ारा न दय और खा ड़य को
पार करते ह। कभी-कभी छोटे -छोटे अ नबोट के क तान उनसे मल जाते ह। दस महीने
के अ दर-अ दर एक क तान ने ऐसे 200 आद मय को आधी रात के बाद उस पार
उतारा था। बड़े-बड़े जहाज पर भी बना पासपोट और टकट लोग लुक- छपकर
लड़ कय को ले जाते ह। ांसीसी सु द रयाँ तो बराबर म म जाती ही रहती ह। वे
म लाह क सहायता से जहाज म चढ़ जाती ह और वे उ ह कोयल क कोठरी म,
टोर म म या और कसी ऐसी ही जगह म छपा दे ते ह। ये लोग इतने बद मज़ाज ओर
लड़ाकू होते ह क क तान लोग उनसे झगड़ा मोल नह लेना चाहते। इन य म से ये
लोग रा ते म भचार भी करते ह और पैसा भी वसूलते ह। ायः अले ज़े या म ये
लड़ कयाँ उतर जाती ह। वहाँ से मोटर ारा जहाँ जाना होता है, चली जाती ह।
अले ज़े या म जहाज कई दन तक ठहरता है। ठ क कनारे पर जेट बनी ई है,
इस लए रात म जहाज छोड़ने म उ ह कोई द कत नह तीत होती। इस कार हज़ार
याँ सरे दे श से आ जाती ह। इन बड़े-बड़े जहाज पर दलाल के वेतन-भोगी आदमी
उनक नगरानी करते रहते ह। ब त से लोग ायः उनके प क बानगी चखते ह और
उ ह मदद दे ते ह। दलाल से घूस पाते ह वह अलग। ये दलाल के आदमी ायः तीसरे
दज म सफर करते ह। जस ऋतु म या ी ब त आते ह उसम यूरो पयन लड़ कयाँ
अल जयस, ू नस और ई ज ट क ओर एले ज़े या के रा ते पर ले जाई जाती ह।
कभी-कभी वे पोटसईद पर भी उतरती ह या वेराउथ म उतरकर ई ज ट को खु क के
रा ते आती ह। मा नया, पोलड और ीस से लेवे ट को भी लड़ कयाँ ले जाई जाती ह।
य प तुक क र स ह, फर भी कु तुनतु नया म गोरी लड़ कयाँ प ँचती ही ह।
अमे रका के प मी ांत म चीन क छोट -छोट लड़ कय क बड़ी क होती है।
भारतीय म दर म दे वदा सय क तो हम चचा कर ही चुके ह, यूरोप म भी
दे वदा सय का कभी बड़ा भारी दौर-दौरा था और यह भी मु सहवास का एक कार
था, जसे धा मक प दे दया गया था। ायः पाँच हज़ार वष पूव बै बलोन म यह था
वच प म थी क ववाह के बाद थम अवसर पर प नी अपने प त के साथ न सोती
थी। उसे म दर म जाकर कसी अ य मनु य से सहवास करना पड़ता था। जब तक उसे
कोई आदमी न मले, वह म दर म ही रहती थी। कई नव ववा हताएँ कु पा होने के
कारण बरस म दर म रहने को बा य होती थ । य क उ ह कोई ेमी मलना अ य त
क ठन होता था। धम यह कहता था क एक रात ेमी के साथ काटकर घर आओ। कई
दे श म नववधू पहली रात पुरो हत के साथ काटती थी। यूनान के को र थ नगर के वषय
म स भूगोल वद् ाबो ने गव के साथ लखा है—“अ ोडाइट का मं दर इतना संप
है क इसम एक हज़ार से भी अ धक ‘दे वदा सयाँ’ ह। ये इस दे वालय म ना रय और
पु ष ारा अ पत क गई ह। इन वे या के लोभन से नगर क आबाद खूब बढ़ गई
है और फलतः समृ उ त पर है।” टे सालोस का पु जेनोफोन वचन दे ता है क
ओल पक खेल म मेरी जीत होगी तो हे दे वी! म तु हारे म दर म दे वदा सयाँ चढ़ाऊँगा।
स यूनानी क व प डार दे वदा सय के गीत गाता है। एक लेखक कहता है क
—“वाह, या चहल-पहल है! इस म दर म दे वदा सय क धूम है। ये परदे सय से खूब
पया कमाती ह और म दर का य चलाती ह।” ये दे वदा सयाँ यूनान म सव थ ।
रोमन लोग म यह था च लत थी। ससली के ए र स पवत पर वीन एर चीना के
दे वालय म ब त दे वदा सयाँ थ । व यात रोमन लेखक ओ बड लखता है—“दे व-दे वय
को स करने के लए दे वदा सयाँ उ सव मनाती थ ।” टै सटस भी दे वदा सय का
उ लेख करता है।
यूरोप क स यता और सं कृ त इन दो दे श से ही आई है। यूनानी सा ह य के
वशेष जान मरे का मत था क यूरोप अभी सं कृ त के उस तर तक नह प ँचा है
जस पर यूनान था। इस हालत म यह वाभा वक था क दे वदासी- था का चार ईसाई
यूरोप म भी हो। जनता ने ईसाई धम हण करने पर भी अपने ‘आन दो सव’ न छोड़े।
च लेखक ुफूर लखता है—“आर भ म जो ईसाई ए, उनम भले-बुरे सब लोग थे।
इस लए उस समय आव यक हो गया था क दे वदासी- था चलाई जाय। कई ईसाई संघ
ने इसका चलन कया। संगीत, नृ य और म दरा के साथ कामो सव मनाये जाते थे। यहाँ
तक क हमारे सै े मे ट म भी ऐसे लोभन के अवसर रखे गये थे। बालक को द त
करने के अवसर पर याँ पूणतया न न हो जाती थ । ाथना के समय ी तथा पु ष
पर पर मुख का चु बन करते थे। उ सव और जलस म युव तयाँ ऐसे ताबीज पहनत
और मू तयाँ लटकाये रहती थ क उनसे दशक का कामो पन हो। थाल म अ य त
अश्लील तथा जघ य आकार क मठाइयाँ फरायी जाती थ । यह बात सट जान
सो टोमुस ने पोप इ ोसे ट थम को लखी थ ।” इस उदाहरण से पाठक समझगे क
यूरोप म ईसव सन् के आर भ म दे वदासी- था का पूरा ज़ोर था। जमन लेखक पॉल
इं लश लखता है—“य प सं यास धम म इसको अ य त न दनीय बताया गया था, पर
उसम धम के नाम पर अपनी कामवासना च रताथ करने के अनेक ढं ग च लत थे।”
ईसाई धम का यह घोर पतन दे खकर अं ेज़ लेखक हेनरी हालसाल ने लखा है क
—“रोमन सा ा य ने उजड़ते समय अपने गुण के साथ पाप भी ईसाई यूरोप को स प
दए।” यूरोप के अ धकारयुग म (Dark Age) ईसाइय म यौन-स ब ध का वही प था,
जो पशु म पाया जाता है। राचार बेरोकटोक खुले खजाने चलता था। धमगु और
पुरो हत भी उससे बचे न थे। व ान का मत है क यह से ट पाल क इस श ा का
प रणाम है क—“पु ष का ेय तो इसम है क वह ी को न छु वे।” जहाँ लोग कृ त-
व अनुशासन फैलाना चाहते ह वहाँ उसका उ टा भाव पड़ता है। ईसा मसीह ने
ववाह को उ चत बताया था, पर उसके चेले उसे भी पाप समझने लगे। प रणाम यह आ
क सारा ईसाई समाज मुँह से तो ववाह को कम बताने लगा, पर कायतः रात- दन
मदनो सव म म त रहने लगा। पुरो हत इस मद म अपने अनुया यय से भी अ धक आगे
बढ़ गये। दे वदा सयाँ तो म दर म रहती थ , पर पादरी अपनी सेवा के लए जन
नौकरा नय को रखते थे उनसे अपनी वासना तृ त करने लगे। 1278 म ल दन म एक
‘धमसभा’ ई थी। आक बशप जान इसके वतक थे। उसम ताव पास कया गया था
क—“धमगु क कामा न उनक त ा को न करती है, वशेषतः जब रखैल से
उनक स तान उ प होने लगती है। इस लए हम ताव करते ह क इ ह, खासकर उ च
पद पर त त पाद रय को अपनी रखैल और उनसे होने वाली स तान के लए अपने
वसीयतनामे म स प न छोड़नी चा हए। ऐसी जायदाद गरजे को मलनी चा हए।” कुछ
धमगु ऐसे थे जो अख ड चारी रहने के प म लड़ते थे। इ ह ने पोप को भी स म त
द क च लत राचार का अ त करने के लए इस वषय पर कड़ाई क जाये। पर जैसे
ही कामुक पुरो हत को इसक सूचना मली, उ ह ने इन पर हमला कया और प थर से
इ ह मार डालने क चे ा क । इस पर इं लड, ांस और जमनी म तहलका मच गया।
पोप और शु ाचा रय क एक न चली। अ त म यह न य आ क—“पुरो हत से कहा
जा सकता है क तुम रखैल मत रखो, पर य से कोई नह कह सकता क तुम
पुरो हत को मत रखो।” हाइन रख फान यु श ने सबके कान कतरे। उसने सं या सन
को घर मे रख लया ओर बगीचे म प रय क मह फल जमा द । उसको गव इस बात का
था क उसने बाइस महीन म चौदह पु पैदा कए ह। जमन इ तहास वेवल लखता है।
“उ कट राचार तो प र ाजक गु ारा फैला। न बे सकड़ा पादरी नाम के चारी
थे, क तु वा तव म अपनी कामवासना के दास थे। वे ाकृ तक और अ ाकृ तक उपाय
से वासना च रताथ करते थे। सं या सय और सं या स नय के मठ रासलीला क भू म
बने ए थे। बाहर समाज म जो पाप दं डनीय थे इनक द वार के भीतर वे रात- दन होते
थे। ूण-ह या तो साधारण बात थी। जज वयं इस भचार म नम न थे, तब कौन
द ड दे ता?”लोग इन ‘धमा मा पाद रय ’ से उतना ही घबराते थे जतना शैतान से। जहाँ
कोई पुरो हत बना ‘दे वदासी’ के आया क समाज म भय फैल गया। सब समझ जाते थे
क अब इस थान म ब -बे टय क पत न रहेगी। एक समय का टे स म एक बशप
बना ‘दे वदासी’ के आया। उसे दे खते ही वहाँ ास फैल गया। लोग ने उसे घेरा और
नवेदन कया क आप ‘दे वदासी’ रख ल। पर यह कामुक दे वदा सय से तृ त हो चुका
था। उसने अपनी नधनता का बहाना कया। वहाँ के नवा सय ने कहा—“अ छा हम
आपको दे वदासी खाते म अलग टै स दगे।” इस कार वह ‘दे वदासी’ रखने को बा य
कया गया। इन ‘धमा मा का खाका चासर, बोक शय आ द ने खूब ख चा है।
लेमान सस के नकोलस ने प हव सद म लखा था—“आजकल जो मनु य काम
नही करना चाहता और आन द लूटने क फ म रहता है, तो वह त काल पुरो हत बन
जाता है और चकल तथा शराबखान म पड़ा रहता है। वहाँ इनका काम है—खाना, पीना
और मौज उड़ाना। शराब म म त होकर ये ई र को गा लयाँ दे ते थे। और तब तक वहाँ से
हटते नह थे जब तक बेहोशी क हालत म उ ह वे याय गरजे नह प ँचा दे ती थ ।”
जमन लेखक समर ने इनका स व तार वणन कया है। वह कहता है—“केवल
पुरो हत ही नह , सवसाधारण और वशेषकर सरकारी कमचारी वहाँ ‘मौज क घड़ी’
बताते थे।” ये मठ वे यालय-मा थे। सरा जमन ऐ तहा सक गाइलर फान कैसरबग
लखता है—“मुझे यह न य करना क ठन हो रहा है क क या को सं या सय के मठ म
भेजना अ छा है या चकले म य क मठ म वह वे या तो है ही ले कन साथ ही त त
रहती है।” 1484 ई. म बशप गाइ बुस फान का टे ल ने पोप को रपोट भेजी थी
—“सेफ लगन के मठ म मुझे सब ‘ चा र णयाँ गभवती मल ।” मा रया ोन मठ को
तोड़ा गया तो चोर कमर म ब च के सर, उनके धड़, आ द अंग गड़े मले। यौनशा
वच ण इस अ धाधु ध च र ता का कारण यह बताते ह क सोलह-सोलह वष क
लड़ कय को ज़बद ती इन मठ म ब द कर दया जाता था।
गु ते य और बीजकोष

◌ी -पुऔरषबीजकोष
क काम- ड़ा और सहवास के आन द का मूल आधार गु ते य
है। इस लए उ ह इन अद्भुत अवयव क बारी कय को जान
लेना ब त लाभदायक है।
बीजकोष ही गभ म लड़क या लड़के का नमाण करता है। गभ धारण के दो-तीन
मास बाद य ही गभ- प ड का नमाण होता है, बीजकोष का एक प बन जाता है;
और फर उसी के भाव से लड़के या लड़क का शरीर बनता है। ज म लेने के बाद भी ये
बीजकोष भ लग को प व तत करते रहते ह। यौवनोदय पर इ ह के ारा य के
नत ब, तन और अ य ी-अंग पु होते ह तथा मद के दाढ़ मूँछ आ द। अगर ी या
पु ष दोन म से कसी के शरीर से अंग पूण होने से थम ये बीजकोष काटकर नकाल
लए जाएँ, तो उनके शरीर क बनावट म अ तर पड़ जाएगा, य क बीजकोष के ारा
जो अ तः ाव होता है, उसी से ी व तथा पु ष व एवं कामश क भावना क पु
होती है।
जाँच करने से मालूम होता है क बीजकोष से दो कार का ाव होता है। एक
अंतः ाव जो म त क और पृ वंश के म जा-त तु को कामपू रत रखता है, तथा र
म मलकर कामवासना को उ प करता है। सरा ब हः ाव, जससे ी-बीज और पु-ँ
बीज तैयार होता है। अ तः ाव क ती ता के आधार पर ही कामवासना क ती ता
नभर है। यह ाव मन के अधीन नह , अतः कामवासना पर इसका कोई भाव नह है।
वासना क या समा त होने पर ही उस वासना का कुछ पा तर या नय ण हो
सकता है। ी या पु ष के बीजकोष का पूण काय ार भ होना ही यौवनागम क
सूचना है। ी को उस समय रज- ा त होती है, पर पु ष का कोई खास च नह कट
होता है। लड़क जब ज मती है, तब पाँवव या छठे दन उसके गु तांग से कुछ र ाव
होता है, और तन म गाँठ पैदा ई तीत होती है। ऐसा अनुमान कया जाता है क पेट
म रहते ए माता का अ तः ाव लड़क के शरीर म जाता है। यही कारण है क लड़क
का बीजकोष, जो ज मकाल म बड़ा होता है, पीछे छोटा हो जाता है। इस काल म उसके
बीजकोष म कई लाख बीज थमाव था म होते ह। इनम ब तेरे सूख जाते ह और यौवन-
आगमन के समय ब त कम रह जाते ह। फर यौवनकाल म एक-एक करके ये बीज
पकते जाते ह तथा आयु क वृ के अनुसार बीज क बची श उनक कमी होने से
तथा पकने क या से मा सक ाव भी ब द हो जाता है। मा सक ाव ब द होने का
समय पतीस से चालीस वष तक रहता है। इस तरह लाख बीज म से कुछ ही पकते ह
शेष सब सूख जाते ह। पु ष म रेत खलन क श आने पर भी रेत खलन अ नवाय है।
पर तु यौवनोदय का काल पु ष म तथा य म भी अ य ल ण से कट हो जाता है।
इस आयु म ी-पु ष क बगल और जनने य पर बाल उग आते ह। इन थान पर
बाल उग आना ी-पु ष के यौवनोदय का प का च है। फर भी वीयक ट पु ष के
शरीर म अठारह वष क आयु से कम म उ प नह होते। हाँ जो बाल गु तांग पर जमते
ह, उनक आकृ त म भेद होता है। य म इन बाल क रेखा ना भ के नीचे क ओर
झुक होती है तथा पु ष म ऊपर को होकर ना भ को छू जाती है। अठारह-बीस वष क
आयु म ी-शरीर क वृ सीमा को ा त हो जाती है। उनके शरीर म चब बढ़ जाती है
और इसी से नत ब और तन भारी हो जाते ह और उनका आकार पु ष से भ दखने
लगता है। पर तु पु ष का वकास आगे भी जारी रहता है। हाँ, जब यौवनोदय होता है,
तो सबसे थम हाथ-पैर क वृ अ धक तथा धड़ क वृ अपे ाकृत कम होती है।
न य इसका कारण बीजकोष ही है। पर तु धड़ क अपे ा हाथ-पैर का ब त अ धक
बढ़ना नपुंसकता का ल ण है। आम तौर पर य के सर क ऊँचाई पु ष क अपे ा
अ धक और गदन क कम होती है। इसी तरह य का धड़ पु ष क अपे ा बड़ा और
हाथ-पाँव छोटे होते ह। ऊँचाई य द समान भी हो तो भी ना भ से जनने य के ऊपर क
ह ी तक का अंतर य म अ धक होता है। पु ष क अपे ा य के सर का घेरा
और वज़न कम होता है, पर तु शरीर के अनुपात म पु ष से अ धक होता है। य के
र म लाल अणु कम और ास पु ष क अपे ा अ धक ग त वाला है। यौवनोदय का
एक च आवाज़ का अ तर है। पर तु यह पु ष म ही अ धक होता है।
अब एक माक क बात यह है क यौवनागम के समय जो आकषण भ लगी
ा णय म पर पर होता है, वह मनु य ाणी म केवल शारी रक न होकर उसम मान सक
भाव भी अ धक होता है। शारी रक सहवास-सुख के साथ ही ाणानु ीणन अथवा
ेमोदय, जस पर ाणो सग तक के उदाहरण दे खे गये ह, मानव को अ य ा णय से
पृथक् करता है। इस बात के माण मल चुके ह क ेमो सग क भावना से इ य-
वासना क तृ त पृथक् है। ी-पु ष म यह णय ार भक जीवन म गौण होता है और
ऐ यता मुख, पर ौढ़ाव था म ऐ यता गौण हो जाती है, णय मुख हो जाता है।
णय के ऐसे उदाहरण कुछ पशु-प य म भी मलते ह, पर तु उनका वा त वक कारण
अभी तक समझा नह गया है। मनु य म ी-पु ष के बीच पर पर जो णय बीज ार भ
म भ ल गक होने के कारण काम- च ता के मा यम से उ प होता है, वह सव प र
मनो वकार हो जाता है। जस कार कामवासना मनो वकार नह है, उसी कार णय
शु मनो वकार है। पर तु कामवासना और णय दोन का जब जीवनत व से एक करण
होता है तो एक आ यजनक सुख, सौरभ, कोमलता, भावुकता, क व व, उ सग और न
जाने या- या रसराग ज म लेते ह। और मनु य के जीवन का यह अंग एक भावपूण
क व व का के हो जाता है। मनु येतर ा णय म यह सहज ान से होता है। सारस,
चकवा आ द प य म भ ल गक आकषण क वशेषताएँ स ह। य प हम उ ह
सहजमूलक ही कहते ह, पर तु वा तव म उनका कारण अ ात है? फर भी यह इ य
और शरीर वकार म भ एक व तु तो है ही।
अब हम गु तांग का वणन करना चाहते ह। ी-पु ष के गु तांग सवथा पर पर
वपरीत है। उनका कुछ भाग गु त और कुछ कट है। पु ष का श और अ डकोष
कट है और य क यो न और महाभगो । यह अंग ी-पु ष दोन म पेट के नचले
भाग से जुड़ा है और दोन भ ल गक इ य का मलन-संघषण ही समागम है।
वीयपात उसक समा त है। पु ष के श का जो भाग गु त है वह मल ार क ओर बढ़
गया है। शा ताव था म कट भाग नीचे क ओर लटकता रहता है, पर कामो ेजना म
इसम वेग से र भर जाने से यह खड़ा और कड़ा हो जाता है। तब उसका य और
अ य भाग एक सीधी रेखा म आ जाता है। ऐसी हालत म उसके पेट के ऊपर के भाग
क तरफ एक लघुकोण बन जाता है। श के नीचे के ह से म मू नाली है और श -
मु ड म उसका मुख है। श -मु ड नीचे क तरफ का खाल से बँधा सा है। इससे श
क उ े जत अव था म चमड़ी नीचे को खच जाती है तथा मु ड-भाग कुछ उघड़ जाता
है। बचपन म मु ड-भाग वचा से सदा ढका रहता है। बाद म चम क अपे ा श क
अ धक वृ होने से यह भाग कुछ खुला हो जाता है। पर यह वचा कभी-कभी बड़ी और
कभी-कभी छोट होती है। कभी उसका मुख इतना छोटा होता है क वह पीछे हट नह
सकती ओर उसे काटने क ज रत आ पड़ती है। य द ओर मुसलमान लोग मज़हबी
वचार से उसे काट डालते ह। च लोग उसे ज़रा सौ दय के ढं ग पर तरछा काटते ह।
श का आकार ायः भ होता है, फर भी उसका अनुमान 6, 9, 12 अंगुल मा ा है।
कभी-कभी ब त छोटे और बड़े श दे खे गये ह। पर वे अपवाद ह। श के अगले भाग
क वचा म चब वाली कुछ थयाँ होती ह, जनम से नय मत प म ाव होता रहता
है जससे वचा कोमल रहती है। पु ष बालक के बीजकोष गभाव था म 6-7 मास तक
पेट ही म गु त रहते ह। सातव या आठव मास म नीचे लटक आते ह, और वृषण म लटके
रहते ह। कभी-कभी जब वे नीचे नह उतरते तो लड़के क जगह लड़क का म होता है।
हाथी के बीजकोष ज म-भर पेट म ही रहते ह। इनका आकार अ डे के समान है। छू ने म
वे कठोर ह। वीय उ पादक ना लय से भरे रहने पर वे कड़े और खाली रहने पर नम तीत
होते ह। वृ ाव था म वे ढ ले पड़ जाते ह। श के समान इनका आकार भी सब पु ष
म समान नह होता, पर तु आम तौर पर वे दो तोला वज़न म होते ह। बीजकोष म एक
खास कार क छोट -छोट ना लयाँ होती ह जनम वीय-ज तु उ प होते ह। इनके बीच-
बीच अ य भाग म बीजकोष का अ तः ाव होता है। यह र म मलकर वा य क
उ त करता है तथा कामो ेजना दे ता है। बीज ज तु पैदा होने पर वीय-न लका म से
वीयकोष म जाकर इक े हो जाते ह। वाम और द ण दोन पा म वीयकोष होते ह
और दोन म अनुमानतः एक च मच वीय रह सकता है। यह कामो पन होता है तो उससे
वीयकोष के जी वत नायु म एक हलचल उ प हो जाती है जसके भीतर एक त वीय
मू माग ारा वेग से बाहर आता है। पर तु उसके वेग से बाहर नकलने से पहले उसम
कई भ - भ थय का ाव मल जाता है। इनम एक खास थ शु ाशय थ है।
इसे अं ेज़ी म ‘ ो टे ट लै ड’ कहते ह। यह मू शय के नीचे, मलाशय के आगे और
जघना थ से पीछे कुछ री पर होती है। इस प ड म से ही मू माग जाता है। शु म
इसका आकार छोटा होता है, पर आयु बढ़ने पर वह बड़ा होकर 50 वष क आयु तक
वैसा ही रहता है। उसका आकार ायः दो इंच लंबा, एक इंच चौड़ा और एक इंच मोटा
होता है। वृ ाव था म इसका आकार कम हो जाता है, पर जब कभी कभी बढ़ जाता है
तो पेशाब कने क बीमारी हो जाती है। इस थ म अनेक पे शयाँ होती ह, जनसे
चकना, सफेद और लब लबा ाव नकलता है। कामो ेजना के समय वीय बाहर आता
है, तब यह ाव भी उससे मल जाता है यह एक च मच के लगभग होता है। इसी के
संसग से वीय आसानी से नकल जाता है। इसी थ के समान और भी कुछ थयाँ
होती ह, जनका ाव वीय के साथ मल जाता है। उनम दो थयाँ मू माग से लगी ई
होती ह। उनसे एक व छ पारदशक ाव इ य के उ े जत होते ही होने लगता है और
इससे न ध होकर ही वीय मू माग से नकलने के यो य होता है। इस तरह सहवास म
जो वीय बाहर आता है उसम वीय ज तु के साथ-साथ अ य ाव भी मले रहते ह। ये
म ण पहले ही से तैयार नह होते, केवल वीय यु त के समय ही उसम मलते ह। इससे
प होता है क वीय का शरीर म कोई उपयोग नह है। और कृ म सहवास क री त से
वीयपात होने पर ही वीय-क ट भी बाहर आ सकते ह, अ य री त पर नह । कामो पन ही
उसका एकमा माग है। य द यह रेत-ज तु बढ़कर शरीर म रह जायगे तो सरदद और
सरी शरीर-पीड़ा होने लगेगी। य द समागम नह तो व ाव था म ये ज तु बाहर नकल
आते ह। पर तु कसी भी प म उनका शरीर म शोषण होना स भव नह है। इसी से
चय क उपयो गता नह रह जाती जतनी बखान क जाती है।
ी के गु तांग क बनावट और भी पेचीदा है। कट म यो न-मुख और महाभगो
ही द खता है। म यभगो के भीतर लघुभगो होता है और उसके बीच म एक खड़ी दरार
होती है। वही यो न-भाग का ार है। इस ार के भीतर एक पदा होता है। उसम एक छे द
होता है, उसी म से मा सक ाव बाहर आता है। वह थम समागम के समय फटता है।
भारत म यही कौमाय-भंग का ल ण माना जाता है। पर तु कभी-कभी यह पदा अ य
कारण से भी फट जाया करता है और कभी कभी आपरेशन क ज़ रत पड़ती है।
ऋतु ाव म भी यह बाधक होता है। नववधू को कुमारी स करने के लए इस पद के
फटने से आने वाले र म माल भगोकर, या वह चादर जो इसके र से खराब हो
जाती है, सँभालकर रखते ह जो सरासर गलत है। यो नमाग के ऊपर ही मू माग है।
मू छ से लगभग एक इंच के अंतर पर यो न लग नाम का एक पै शक उ थानशील अंग
है। इसको भगनासा भी कहते ह। यह पु ष क गु ते य से मलती-सी है। क ह - क ह
य के यह एक इंच तक बड़ी दे खी जाती है। यो नमाग गभाशय के साथ चार ओर से
जुड़ा है। गभाशय के ऊपर के सरे से दो ना लयाँ बीजकोष तक जाती ह। बीजकोष म से
तमास एक रजोगोल प व होकर बाहर नकलता है, इस नली म होकर गभाशय म
चला जाता है। इस रजोगोल का पु ष-वीय के ज तु से मेल होने पर ही गभ थत होता
है। य द दोन का मलाप न आ तो राजोगोल गर जाता है। वै ा नक का अनुमान है क
कभी-कभी आठ दन तक यो नमाग म वीयक ट जी वत पड़े रहते ह और गभाशय म
घुसकर रजोगोल के साथ मल जाते ह। य द दोन बीज नह मल पाते तो गभ थापना
नह होती। स भोग के समय पु ष उ पन के साथ जब वेग से वीय फकता है और ी
क काम-तृ त होने पर गभाशय का मुँह कमल क भाँ त खल जाता है, तब वीय के
साथ वीयक ट गभाशय म चले जाते ह और रजोगोल से संयु हो जाते ह, अतः गभ क
थापना हो जाती है। पर तु मरण रहे क यह रजोगोल एक मास म एक ही प रप व
होता है, और इसका समय रजोदशन के बाद दस-प ह दन तक ही है। अतः इन दन से
अलग जो सहवास होगा उस म गभ क स भावना नह होगी। ऋतु ाव से कुछ पहले
एक बीजकोष कुछ फूलता है य क वही उसम रजोगोल के पकने का समय है। एक बार
बाय ओर और सरी बार दा हनी ओर का बीजकोष पकता है। फर वह बीजवाहक
न लका ारा गभाशय म आता है। यह न लका दोन ओर गभाशय से नकलकर उसी
ओर के बीजकोष से जुड़ जाती है। नली का यह सरा खुला रहता है और उसका आकार
फनेल जैसा रहता है। जधर रजोगोल पकता है वह से बीजकोष फोड़कर बाहर नकल
आता है और नली क भीतरी ग त के कारण गभाशय म धकेल दया जाता है।
ायः वीयक ट और रजोगोल का संयोग उपयु नली म होता है। बाद म वह संयु
गोल गभाशय म आता है और वह उसक वृ होती है। गभाशय के चार ओर जगह
खाली रहती है, पर पेट क ओर कम तथा पीछे क तरफ यादा होती है। हाँ, गभाशय के
भीतर ब त ही कम जगह होती है। मा सक धम के पूव के स ताह म गभाशय फूलता है
और उसका आकार ना हो जाता है, पर ाव समा त हो जाने पर वह कम हो जाता है।
अगले स ताह म वह फर फूलता है। गभाशय का वजन ायः चार तोला होता है। उसके
आगे के भाग म मू ाशय और पीछे के भाग म मलाशय होता है। अतः मलाशय या
मू ाशय भरे रहते ह तब उसके दबाब से गभाशय का थान कुछ बदल जाता है।
यो नमाग भी मल माग और मू माग के बीच म होकर जाता है। इसक ल बाई लगभग
चार इंच होती है, पर सबक समान नह होती। समागम के समय वह ल बाई कुछ बढ़
जाती है य क यह सरणशील अंग है। आव यकता पड़ने पर गभाशय के पास यह चार
इंच चौड़ा हो सकता है। पु ष क जनने य के समान ही ी के गु तांग म भी कुछ
ऐसी थयाँ ह जनम से समागम के समय एक कार का ाव नकलता है। एक थ
वाटो लन है। इसका पु ष क कौषर यो नमाग नामक थ से कुछ सा य है। इसी से
यो न म एक कार का गीलापन और चकनाहट हो जाती है। जससे समागम के संघषण
का क ी को नह होता। य द ाव न हो तो यो न म पु षे य के वेश म भी द कत
पड़े। इस ाव म एक कार क गंध होती है। कभी-कभी यो न क बनावट वकृत होती
है और उसी के अनुसार ी क कृ त पर भी असर होता है।
तन से ी क जनने य का गहरा स ब ध है। भ - भ य के तन का
आकार भी भ - भ होता है। कुछ य के तन घुटन तक लटकते दे खे गये ह। ायः
दायाँ-बायाँ तन एक-सा नह होता। थम वे कठोर होते ह, पर गभ-धारण से श थल हो
जाते ह। मा सक ाव ब द हो जाता है, तब तन सकुड़ जाते ह। पर तु इसी समय ायः
य का मेद बढ़ जाता है। गभधारण होने के पाँचव मास तन का आकार बढ़ने लगता
है, पीछे कम होता और सव के समय फर बढ़ जाता है। ब चे के ध पीने के समय वह
तगुना हो जाता है। ग भणी ी क चूचक काली हो जाती है। पु ष के शरीर म भी तन
के च होते ह, पर वे प रव धत नह होते।
वीय एक तरह का तरल पदाथ है, वाद म आँसू क भाँ त वह नमक न है। न वह
पेशाब क तरह तरल है, न पाखाने क तरह क ठन। इसम जी वत और मृत क ट रहते ह
और कई ग टय का रस होता है। यह पारदश होता है। रंग उसका ध और पानी के
बीच का होता है, गंध कुछ बुरी होती है। वीयपात होना मलमू क भाँ त ज़ दगी के लए
अ नवाय नह है। अगर पेशाब-पाखाना न आवे तो आदमी मर सकता है, पर वीय न
नकलने से आदमी मर नह सकता।
वा य और कामवासना

व◌ा य और कामवासना के बीच जो स ब ध है, इस पर ब त कम लोग ने


वचार कया है। पर तु एक वै ा नक लेखक का कत है क वह वै ा नक
कोण से येक बात को प करे।
मनु य के शरीर म तीन याशील के ह, उनका पर पर स ब ध है। एक पर कोई
भी वषैला भाव होने से सरे पर वैसा ही होता है। र के दबाव के आधार पर मू का
बनना कम या अ धक होता है। र का दबाव या मू क वृ कृ म री त से भी हो
जाती है। इस काम के लए तारपीन का तेल और म उपयोगी है। यह बात तो कट है
क जतना मू साफ होगा उतना ही शु होगा और उसका भाव वीय क उ मता पर
होगा। र के दबाव पर ही वीयपात क मा ा नभर है।
कामवेग को थर रखने म उ म पाचन-श अ य त मह वपूण है। व ान येक
बात को प कर दे ता है, वह चाहे उ म हो या खराब। य - य आयु बड़ी होती जाए,
वाभा वक प म हम अपनी आँत क सफाई पर पूरा यान दे ना चा हए। य द आयु क
वृ के साथ क ज़ न बढ़े तो न य र , वीय, और मू तीन शु ओर नीरोग रहगे।
य द कुछ काल तक क ज़ रहने लगेगा, तो न य र अशु होने लगेगा। क ज़ कैसे र
कया जा सकता है, इसे हम न य जान लेना चा हए। क ज़ को र करने के लए हम
आँत के षण को जानना चा हए जो रहन-सहन क भूल के कारण हमसे हो जाती ह।
क ज़ होने से हम सफ र क अशु ही नह भोगनी पड़ती, साथ ही हमारी पाचन
श भी कम हो जाती है। पीठ क ओर जो ब त सी माँसपे शयाँ ह वे चरकाल तक
न े रहती ह, पर तु य द ये माँसपे शयां ठ क से अपना काय कर तो हम क ज़ क
क ठनाई से बच सकते ह। इस काम के लए भली-भाँ त ायाम करना आव यक है।
पु तक के अ त म हम कुछ ऐसे अ यास बताएँग,े जो इस काय म ब त सहायता दगे।
इसी कार जैसे आंत का पूरी श शाली होना और क ज़ न रहने दे ना अ य त
आव यक है। उसी कार मू -के को या न गुद का भी शु रहना अ य त आव यक
है। ब चे को मू क हाजत होने पर हाथ-पैर मारते दे खकर हम समझ सकते ह क सारी
जीवन-श उस हाजत के लए उ े जत है।
जब वह व ही म पेशाब कर दे ता है तो एकाएक शा त हो जाता है। य द मू अपने
तमाम वष को लेकर शरीर से बाहर नह जाता है तो वह र म मलकर शरीर को
न तेज और रोगपूण करेगा और उसका खराब असर उसक काम-के क श पर
पड़ेगा।
कुछ लोग क ऐसी ा त धारण होती है क कामवासना युवाव था के लए
हा नकारक है। ाचीन काल म यह याल था क ी को मा सक ारा जो र आता है
उससे उसका खून साफ हो जाता है। पर तु वा तव म बात कुछ और है। इसम स दे ह नह
क षत मादा बाहर नकल जाता है, पर तु शरीर व ान क से इसम कुछ और
बात है। युवती लड़ कय म कामवासना को सहन करने क श र ाव से ही उ प
होती है। युवक म अचानक ही दो ल ण कट हो जाते ह। ायः युवागण पर पर
चचा कया करते ह क अक मात् व दोष हो जाना उनके लए अ य त हा नकारक बात
है और वे इससे बचने के लए वे यागमन के खतरे भी उठा लेते ह। वे समझते ह क जब
वीयपात होता है तो य न वे या ारा कया जाय! पर यह उनक भूल है। इसम कोई
शक नह क इस कार वीयपात होना अ छा नह है, पर य द वह कभी-कभी होता है तो
इसम उनका वा य ही सुधरता है और उससे हा न नह होती।
जब हम अ य त प र म कर तो पसीना आने से ब त-सी ग दगी नकलकर शरीर के
सारे व को षत कर दे ती है। और उ ह शु करना पड़ता है। सद के दन मे य द
नान नह कया जा सकता, तो भी सूखे अंगोछे से शरीर को प छना ही पड़ेगा। कपड़े भी
बदलने पड़ते ह, इसी भाँ त व दोष होने पर व बदले जा सकते ह और उससे बचने के
लए वे यागमन करना अपने जीवन को और प व ता को खतरे म डालना एवं सवथा
हा नकारक है। मरण रहना चा हए क य द सोते ए पूरी उ ेजना होकर व दोष हो
जाता है; तो समझना चा हए क हमारे अ दर पूरी मदानगी है। और कृ त हमारी मदद
करती है। यह कृत अव था उस समय तक रहेगी, जब तक क ी संसग के अवसर न
आएँ। इस कार के वीयपात के साथ तरल ए यूमैन आ द मले होते ह; उनका बाहर
नकल जाना लाभदायक है। येक वह व तु जसम जीवन है, वह हम मैला करती है।
य द हम कसी फल को काटगे तो भी हम हाथ को साफ करने क आव यकता होगी।
इस लए काम-स ब धी मामल म व म वीयपात होने पर अशु का यादा वचार न
करना चा हए, हाँ—उठने पर शरीर को शु कर लेना चा हए। गंद होना बुरा नह , गंदा
रहना बुरा है।
अब इस बात पर वचारना है क उ ेजना कैसी होती है, जो कामवासना म ब त
मह वपूण है। यह उसी समय होगी जब उ चत मा ा म कामके म र का जमाव होगा
या सरे थानीय नायुम डल म उ ेजना हो जाए। ये दोन कारण पर पर सहायक ह।
पेशाब और वीय म जो पार प रक स ब ध ह, जब उनम एक खास समता उ प होती है,
तभी र का जमाव काम-के म होता है। उ ेजना के समय मू यागने से उ ेजना
शा त हो जाती है। ब च को जब वे मू यागना चाहते ह तो उ ह भी उ ेजना हो जाती
है। इसी कार बड़ी उ म भी होता है। वीयपात क या बल कावट के साथ ट कर
खाती है। गाढ़ा वीय जो नकलता है, वह दोन न लय ारा धकेला जाकर बाहर आता
है। र का जमाव ही इसम उसे मदद दे ता है। इस काम म आकां ा क वृ होने से तेज़
उ ेजना होती है। वीय- खलन र के वाह का पूरा भाव रखता है। कामवासना होते
ही चेहरा लाल हो जाता है। य के लए यह बात खराब है क उ ह बार-बार उ ेजना
हो। पु ष तो वीयपात के बाद उससे फा रग हो जाते ह पर ी को गभ धारण करना
पड़ता है।
शरीर का नमाण करने क श हमारे र -सेल म है। जैसे छोट -छोट ट से
मकान बनते ह, उसी कार सेल के ारा हमारा शरीर बनता और र के भाव के साथ
जीवन-श सारे शरीर को मलती है। इससे सेल से पा थव त व मल जाते ह ओर
इसका वाह कामवासना पर ही नभर है। र के वाह म जो कमी- यादती होती रहती
है, उसी पर हमारे वा य क थरता नभर है। र के वाह म ज द -ज द प रवतन
होते रहना वा य के लए अ य त लाभदायक है। र म जो अनेक जा त के टशू आ द
होते ह, वे भी कम हो जाते ह। शरीर क मा लश कराने से र का दबाव बढ़ता है और
उससे र क उ मता बढ़ती है। यह सफ़ आराम क व तु नह है, वा तव म जीवन म
ब त ही सहायक है। इससे शरीर के अंग गोल, सुडौल और लचीले तथा भीतरी अंग
सु व थत होते ह।
काम-स ब धी उ ेजना शरीर म एक आग जलाती है और इस आग से क ड़े-मकोड़े
भी उ म होकर सजीव हो जाते ह। जब हम कसी के गुलाबी गाल को दे खते ह, तो हम
स ता और उ ेजना होती है, य क इससे र क उ मता का स ब ध है। जतना ही
हमारा र उ े जत होगा, उतना ही हमारा वा य उ म होगा और र उ ेजना का
उ म कार कामो ेजना ही है।
कामके क सफाई

प्र कसेृ बाहर


त का यह नयम है क शरीर क थय से जो ाव होते ह, वे जब तक शरीर
नह आते शु रहते ह, अथात् सड़ते नह । पर बाहर नकलने पर बाहर
के ज तु मल जाने से वे सड़ने लगते ह। ी के यो न-माग म कुछ ऐसे ाव बराबर बने
रहते ह, जससे वहाँ सड़न नह पैदा हो सकती। फर भी यो न-माग को धोकर साफ़
रखना ज़ री है। खास बात यह है क जहाँ तक गभाशय का मुँह है, वहाँ तक तो बाहरी
सफाई क इतनी ज़ रत नह रहती, पर यो न-माग म सफाई क अव य ज़ रत होती है।
यो न क सफाई के लए आधा सेर साधारण गुनगुने पानी म एक च मच लाइसोल का
योग करना अ छा है। लाइसोल से दो सौ गुना पानी रहना चा हए। इसी तरह पु ष को
भी लगे य क सफाई ठ क रखनी चा हए। इससे वह ब त सी बीमा रय से बचा
रहेगा। लड़ कय को मा सक धम के बाद इसी कार यो न-माग धोना चा हए। इस कार
सँभाल करने से उ ह ब त लाभ ा त होगा और आगे चलकर वे य क बुरी
बीमा रय से बची रहगी। आजकल क स यता और नाग रक जीवन म एक- सरे के
संसग से बचना असंभव नह है। ायः होटल म, रेल के सफर म एक सरे को छू ना
पड़ता है। अ सर पु ष- ी सरे क धोती साड़ी पहन लेते ह। एक ही पाखाने म भ -
भ आद मय को जाना पड़ता है। इसके सवा पु ष ायः बाहरी य से गु त स ब ध
रख सकते ह और वहाँ से बुरी बीमा रय के रोग ज तु लाकर प नी के शरीर म व करा
दे ते ह। इन सब बात को यान म रखकर य को अपनी यो न क सफाई का पूरा-पूरा
यान रखना परम आव यक है। और इसी कार पु ष को भी जो क अपनी वंश-
पर परा को शु बनाए रखना चाहते ह।
ववा हत ी-पु ष म से य द कसी को कोई ग द बीमारी लग जाए, तो उनका यह
कत हो जाता है क वे पर पर अलग रह और य द स भव न हो, तो फर स तान
सीमारोध के योग काम म लाएँ, जससे आने वाली स तान पर उस भयानक रोग का
असर न होने पाए। यह भी बात याद रखने क है क बचपन से ही बालक को अपने
गु तांग को साफ करने क आदत डाल दे नी चा हए और इसम लाज न करनी चा हए।
मा सक धम

म◌ा और
सक धम य के यौवन-आगमन का च है। बारह वष क आयु से ऊपर
पचास साल क आयु तक य को यो न-माग ारा गभाशय से एक
कार का वकृत र नय मत समय पर गभाव था को छोड़कर नकलता है। आम तौर
से इसका ठ क समय 28 दन का है। ले कन सब य म ऋतु ाव का काल एक ही
समय नह रहता। येक ी का ऋतु ाव का भ - भ समय रहता है। 28 दन का
अ तर औसत से है, पर तु यह अ तर कभी-कभी 25 और 32 दनो का हो सकता
है। ले कन 21 दन से कम ओर 35 दन से यादा अ तर होना बीमारी का ल ण है।
मा सक धम पर खाने, पीने, रहन, सहन, मान सक उ ेजना और अतृ त कामवासना का
गहरा भाव पड़ता है। लड़ कय को जब पहले पहल ाव होता है, तो एकाएक उनके
शरीर म प रवतन होने लगता है। वे ल बी हो जाती ह, नत ब और तन बड़े हो जाते ह।
गु ते य के ऊपर और बगल म बाल उगने लगते ह। नायु-म डल अ धक संचालनशील
हो जाता है। इस समय उनक मनोवृ बदलने लगती है। और उनम कामे छा पैदा हो
जाती है, साथ ही गभाशय और बीजकोष क वृ भी होने लगती है, ले कन असल बात
यह है क गभाशय और कोष क वृ होने पर ही ऋतु ाव होता है। ब धा शु -शु म
इन दन म लड़ कय क त ती खराब हो जाती है। ह घर म संकोचवश इस
वषय क कोई श ा उ ह नह द जाती और वे ायः इस स ब ध म अ ानी ही रहती है।
इस लए य ही एकाएक पहली बार मा सक ाव होता है, वे घबरा जाती ह और कुछ
ऐसी हरकत कर बैठती ह क उनका वा य खराब होने का अंदेशा हो जाता है। माता-
पता तथा अ भभावक को चा हए क वे इस वषय म लड़ कय को आव यक हदायत
द। मा सक धम क उ कई बात पर नभर है। दे शकाल और प र थ त का इस पर
खास भाव पड़ता है। गम मु क म लड़ कयाँ दस और बारह साल क उ म मा सक
धम से हो जाती ह। ठं डे दे श म रहने वाली लड़ कय का 15 से 18 वष क उ तक तथा
समु के कनारे रहने वाली लड़ कय का ज द ाव होता हे। पहाड़ म रहने वा लय का
दे र म, शहर म रहने वा लय का ज द और गाँव मे रहने वा लय का दे र म। जन
लड़ कय को पु कर खुराक खाने को नह मलती उनका भी दे र म होता है। वंश का
भाव भी इस पर होता है। कभी-कभी इस वषय म असाधारण उदाहरण पाये जाते ह।
साढ़े पाँच वष क उ म लड़क को मा सक ाव होते ओर गभ धारण करते दे खा गया है
और पतीस वष क उ तक भी मा सक ाव न होने के उदाहरण ह।
सौ म से सफ बीस या प ह लड़ कयाँ ऐसी मलगी क ज ह मा सक धम के समय
कसी तरह का क न हो। ायः य को थोड़ी ब त गड़बड़ी होती रहती है। अ सर
मसाना फूलकर स त हो जाता है, बार-बार पेशाब करने क इ छा होती है, थोड़ा
कामो पन रहता है, यो न-माग म दाह रहता है, तन फूल जाते ह और उनम दद होने
लगता है, बदन म थकावट और दद रहता है, जी नह लगता है। मन म घबराहट और
उदासी रहती है, चेहरा सूख जाता या मुझा जाता है, पेट म मीठे मरोड़ उठते ह। कमर म
दद रहता है, कभी-कभी न द नह आती है, आवाज़ भराई हो जाती है, मज़ाज म
चड़ चड़ाहट आ जाती है, घृणा-श बढ़ जाती है, खाने म अ च होती है, बदन
अलसाया रहता है। शु म ाव कम रहता है, उसका रंग लाल नह रहता और उसम एक
कार क ग ध रहती है। सरे और तीसरे दन तेज ाव होता है। अ सर सरे दन ब त
यादा होता है और पाँचव दन कम हो जाता है। आ खर म पीला-सा पानी नकलकर
ब द हो जाता है। साधारणतया ऋतुकाल म करीब दो छटाँक तक ऋतु ाव होता है।
ले कन दौड़-धूप से, कामो े जत होने से, नशा खाने से, गरम चीज़ खाने से, गरम पानी म
बैठने से, यह ाव यादा होता है। ठ ड लगने से, रंज- फ से या बदन म खून कम होने
से कम नकलता है। मा सक धम का ठ क समय चार या पाँच दन है, ले कन 24 घंटे से
कम और 8 दन से यादा हो तो उसे रोग समझना चा हए।
मा सक ाव के समय म सौ म से अ सी य को क होता है, ले कन यह क
कसी खास रोग का ल ण नह है, य द इन दन म अंग क सफ़ाई और हवा का बचाव,
इन दो बात पर यान दया जाए तो याँ ब त से क से बच सकती ह। भारतवष क
तरह अ य दे श म भी इन दन याँ ब त ग द रहती ह। आम तौर पर यह याल
कया जाता है क इन दन म ग दा रहना ही मुना सब है। स भव है क याँ प त के
समागम से बचने के लए ग द रहती ह । ले कन चाहे जस कारण से भी रह, यह ब त
हा नकारक है। सबसे भयानक बात तो यह है क यो न-माग म जो कपड़ा काम म लाया
जाता है, वह ायः ग दा और मैला होता है और उसम ब त से रोग-ज तु एक त होते ह
और उ ह यो न-माग ारा गभाशय तक प ँचने का पूरा मौक़ा मल जाता है और उससे
सैकड़ रोग पैदा हो जाते ह। यान म रखने क बात यह है क यो न-माग म कुदरती तौर
पर एक कार का ख ा रस बहता रहता है, जो ब त ज़बरद त क टाणुनाशक है। कृ त
ने इसे इसी लए उ प कया है क यो न-माग म रोग-ज तु न बढ़ने द। पर तु मा सक
काल म र का वाह जारी रहने पर वह रस कम हो जाता है। इस लए इस समय पर
अगर यो न-माग क सफाई न रखी गई और ब त शु और साफ़ चीथड़ा काम म न
लाया गया तो न य उन य को दर का रोग हो जाएगा, जो उनके भा य का सबसे
बड़ा ल ण होगा य क इसका कोई इलाज नह है। यह आव यक है क इन दन म
यो न-माग को रोज़ाना दोन व गुनगुने पानी से धोना चा हए। अगर ऐसा न कया
जाएगा तो यो न-माग म र क गाँठ पड़ जाएँगी और उनके सड़ जाने से यो न-माग
ग धत हो जाएगा और उसम रोग-ज तु पैदा हो जाएँग।े
यो न को धोने के लए हमेशा साफ़ कपड़े के टु कड़े या ई गरम पानी म भगोकर
काम म ली जा सकती है। ले कन बाद म काम म लाकर उ ह फक दे ना चा हए। पंज क
सफाई ब त मु कल है, इस लए उसे काम म न लेना ही ठ क है। इस बात का यान
रखना चा हए क पानी ब त गम न हो, इस पानी म रोग-ज तु नाशक कोई दवा डालने
क ज़ रत नह ।
इस समय काम म लाने के लए बाज़ार म सेनेटरी टॉवेल मलते ह। उनसे ब त
सु वधा रहती है। अगर इनका मलना संभव न हो तो साफ ई क घड़ी बनाकर उस पर
साफ चीथड़े लपेटकर काम म लाये जा सकते ह। ये कपड़े दन म दो बार अव य बदलने
चा हए। जब ाव ब द हो जाए तो शरीर और यो न-माग को अ छ कार साफ़ करना
चा हए। इन दन नद वगैरा म नान नह करना च हए, अगर क ज़ हो तो जुलाब ले लेना
चा हए। अगर कसी भी कारण से ी इन दन म कोई ऐसी दवा खा रही हो, जसम
लोहे का म ण (आयरन) हो तो ऋतुकाल के समय म उसे ब द कर दे ना चा हए।
कृ त क यह बड़ी व च बात है क जैसे ी का मा सक धम के समय खून
नकलता है, उस तरह अ य ा णय के शरीर म से नह नकलता। सरे जानवर क
मादाएँ सफ ऋतुकाल के समय म ही गभवती होती ह और उ ह दन म उ ह समागम
क इ छा होती है। उसी ग ध को सूँघकर नर को उ पन होता है और उससे सहवास
करता है। ऋतु- ा त के समय से ी के बीजकोष ओर गभाशय म एक वकार पैदा
होना शु होता है। उसका एक च है जो अ ाइस दन म पूरा होता है, पर तु गभ रह
जाने पर ब चा पैदा होने तक यह च ब द हो जाता है। बीजकोष से दो कार के
अ तः ाव होते ह, जो र म मलकर कामवासना पैदा करते ह। रजोगोल जो बीजकोष
म पक रहा है, वह मा सक ाव होने के पहले दन से लेकर तेरहव या चौदहव दन तक
कसी भी दन बीजकोष के पद को फाड़कर और पककर बीजकोष-न लका म होकर
गभाशय म जा प ँचता है। अब गभाशय म य द पहले से वीयक ट हा ज़र न होवे, अथवा
उसके प ँचने पर उसे वीय का समागम न मला हो, तो वह गर जाता है। रजोगोल जब
बीजकोष से बाहर नकल आता है तो उसके ऊपर का खेल कुछ दन तक वैसा ही बना
रहता है। उसम भी एक कार का अ तः ाव होता है। पर तु जो अ तः ाव बीजकोष से
होता है, उससे तो यो न-माग, गभाशय और तन पु होते ह, और रजोगोल के फटे ए
खोल से जो अ तः ाव होता है, उससे गभाशय के भीतर एक कार क जाली बनती है।
अगर गभ रह जाए तो वह जाली वह चपट जाती है। पर तु यह जाली तभी बनती है जब
बीजकोष का अ तः ाव गभाशय को ठ क थ त म रखे। अगर गभ धारण न आ तो
वह खोल सूख जाता है। सरा ाव धीरे-धीरे कम होकर ब द हो जाता है और पहले
ाव का फर ज़ोर बँध जाता है, जससे फर अगले महीने म ऋतुधम होता है। अगर गभ
रह गया हो तो वह खोल भी नौ महीने तक बना रहता है। और उसका ाव भी जारी
रहता है, पर तु पहले ाव का ज़ोर होने पर सव होता है। इस तरह पहला ाव जो क
बीजकोष से होता है, वह ी क जनने य के लए लाभदायक है और सरा ाव गभ
के लए उपयोगी है। ले कन चूँ क दोन ाव पर पर वरोधी ह, इस लए अगर बीजकोष
का ाव बल आ तो गभ नह रहेगा। गभ रहने पर अगर बीजकोष से ाव का
इंजे शन दे दया जाये तो गभ गर जाएगा। और अगर बीजकोष काट के नकाल दया
जाए और बीजकोष का काम ब द हो जाए तो यो न-माग, गभाशय और तन सूख
जाएँग।े और अगर अ तः ाव का फर इंजे शन कया जाये तो फर पहली हालत म आ
जाएँग।े इससे यह नतीजा नकलता है क गभ-धारण क ज मेदारी रजोगोल के खोल से
नकले ए अ तः ाव के ऊपर नभर है, जसका समय रजोदशन के पहले दन से तेरहव
दन तक है।
बराबर क जोड़ी

हि◌ ज म-कमु डली


ाचीन काल से रवाज़ चला आता है क ववाह के समय वर-वधू क
लेकर यो त षय को दखाई जाती है और वे कई कार क
बात उँग लय पर गणना करके दे खते ह। गणरा शच मलाते और दोन क कु डली
एक- सरे के अनुकूल है क नह और उनका ववाह होना चा हए या नह , यह नणय
करते ह। इस ाचीन प रपाट म कोई ावहा रक त य भी है या नह , यह नह कहा जा
सकता। पर तु म यह कहना चाहता ँ क ववाह से पहले वर-वधू क जोड़ी बराबर क है
या नह , इसक वै ा नक जाँच अव य कर डालनी आव यक है।
यह प है क स भोग ही ववाह का उ े य है। ववाह होने पर ी-पु ष का
पार प रक स भोग वैध मान लया जाता है। पर तु कसके साथ समागम होने से पूण
आन द क तृ त होगी, यह जानना ववाह के थम ब त ज़ री है। हम जानते ह क सौ
म से एक भी जोड़ा स भोग स ब धी समानता क बात पर ववाह के समय वचार नह
करता। स भोग क बात ही अ ील और घृणा पद समझी जाती है। प रणाम यह होता है
क ववाह एक धोखे क ट मा णत हो जाता है और ववाह के बाद या तो ज द ही
प त-प नी म व छे द हो जाता है या कलह के बीज जमते ह या दोन म से कोई एक या
दोन ही पर-पु ष और पर- ी के भचार म फँसते ह। समय और सु वधा उनसे यह
सब काम कराती है। हम ऐसी अनेक य क ःख-गाथाएँ मालूम ह क उनम जतनी
स भोग क इ छा और साम य है, उससे ब त अ धक उनके प त उनके साथ करते ह
और इससे वे अपार क पाती एवं असा य रोग क शकार बनती ह। कुछ पु ष त दन
एक बार से अ धक स भोग करना चाहते ह और ी को प त क इ छा से ववश
होकर दासी बनने को छोड़ सरा उपाय नह रह जाता। और य द वह झगड़ा करती है तो
प त अ य प तता य से स भोग स ब ध था पत कर लेता है जो ी के लए एक नए
लेश का कारण होता है। प त जब बलात् ी से उसक इ छा और आव यकता क
परवाह कए बना स भोग करता है तो ी का स भोग सुख न हो जाता है, और वह
वकट रोग का घर बन जाती है। ऐसी हालत म दोन म चाहे कतना ही ेम हो, उसम
वर का बीज उग आता है, और उनम वह गहरी एकता, जसक दोन के लए बड़ी
आव यकता थी, नह हो पाती। य द पु ष बु मान् है, युवा है, नवीन ववाह आ है और
अपनी प नी से स चा ेम करता है तो अ यास से वह कम स भोग करने क चे ा करेगा
और अपने शरीर को काबू म रखेगा। पर ऐसा ब त कम होता है। इसका कारण यह है
क च ड कामवासना के समय पु ष को ी का स चा सहयोग नह मलता, य क
उसे स भोग म आन द नह आता। उ टे क और वर होती है इससे पु ष का स भोग
अपूण और नरान द रह जाता है। इसका प रणाम यही होता है क पु ष स भोग ुधा
ऐसी हालत म ायः भड़क ई रहती है और उसम अप र मत कामवासना के ही ल ण
द ख पड़ते ह। बड़ी उ म या न 35 या 40 वष क आयु म य द पु ष क कामवासना
ब त च ड तीत हो, तो यह भी स भव हो सकता है क उसक कुछ थयाँ बढ़ गई
ह और उ ह के कारण उसे यह काम-रोग हो गया हो। आम तौर पर लोग इन थय के
भाव का ान नह रखते। पर तु ये थयाँ, ज ह ो टे टक लै ड् स कहते ह, उनके
बढ़ जाने से पु ष क कामवासना ऐसी बढ़ जाती है क वह पागल-सा हो जाता है। और
अ त म यह मू स ब धी घातक रोग उ प करता है। ये थयाँ जनने य के मूल म
होती ह और साधारणतया इनम से वे रस नकलते ह, जनसे रण बनता है। साठ वष
क अव था म य द एकाएक पु ष कामुक हो उठे तो अव य समझना चा हए क यह
उह थय क करामात है और उसे कसी उ म श य च क सक क सहायता
मलनी चा हए। याद रखना चा हए क इन थय का उपचार शु म आसानी से हो
जाता है। अ धक बढ़ जाने पर फर वह ब त क ठन हो जाता है। ऐसी हालत म वासना
को धीमा करने वाली दवाइयाँ खाना ठ क नह है, य क ऐसी दवाइयाँ सफ काम-के
पर ही नह युत सारे शरीर पर शै थ य का भाव डालती ह। अं ेज़ी दवा ‘ ोमाइड’
का योग इस काम के लए ायः कया जाता है। जेल म कै दय को भी वह इसी उ े य
से द जाती है, पर वह सारे ही नायुम डल पर बुरा भाव रखती है। ऐसी ही कुछ औषध
दे सी भी ह। पर वे ऐसी नह ह जो केवल पु ष व क अ धकता को ही कम कर, वे सम त
शरीर को भी न तेज करती ह।
कुछ लोग का याल है क प र म से शरीर को थका डालने से स भोग श कम
हो जाती है, इस लए कुछ लोग ायाम ारा शरीर को थकाते ह। पर धूप और खुली हवा
म प र म करने से हमेशा ही मैथुन-श बढ़े गी। अ धक स भोग के प रणाम से बचने
का एक ही माग है क व धवत् स पूण स भोग का अ यास डाला जाए।
पु ष क ही भाँ त य को भी कभी-कभी अ धक वासना का वार उमड़ता है।
अ य त ाचीनकाल से ऐसी ी से पु ष डरते रहे ह। ‘अ त’ क बात को एक तरफ
रखा जाए, तो भी यह तो कहा जा सकता है क ववाह के दन य - य बीतते ह, पु ष
ने जो कुछ ी को माँगना सखाया है, उसे वह अ धका धक माँगने लगती है और दन-
पर- दन पु ष म वह दे ने क श कम हो जाती है। स भोग क भूख भी एक कृत भूख
है। य द बार-बार स भोग करने पर भी ी क तृ त न हो तो वह अस तु और रोगी
रहने लगेगी। जन य को नायुपीड़ा हो, बदहज़मी हो, न द कम आती हो, चड़ चड़ी
ह , तो यह प है क उनको जतना स भोग मलना चा हए उतना उ ह नह मलता।
ी और पु ष दोन म ही इस अतृ त के लए ह तमैथुन क आदत पड़ जाती ह, या वे
दोन अ ाकृ तक स भोग करते ह जनका वणन हमने अ य कया है। धीरे-धीरे शरीर
को उन त या क आदत पड़ जाती है और फर वे चाहे ी ह या पु ष, असली
स भोग के काम के नह रहते। जन ी और पु ष को यह आदत पड़ जाती है वे एक-
सरे के त उदासीन हो जाते ह और उनम ठ क स भोग-श का अभाव हो जाता है।
कुछ य क बल वासना ज म से ही होती है। जन य म पु षसुलभ गुण और
पु ष म ीसुलभ गुण अ धक रहते ह, वे अपने शरीर क बनावट के कारण वभाव से
ही ऐसी च रखते ह। ऐसे पु ष अ य पु ष से और ी अ य ी से अ ाकृ तक
स भोग करते ह और ववाह के बाद भी उनक यह आदत छू टती नह । ी य द सरी
ी के साथ उ ेजना क बढ़ ई अव था म यो नघषण करती है, तो यह प है क वे
वीय और ग टय का रस पर पर नह दे सकत , जससे स भोग स पूण होता है। प त
के ारा स भोग, आ लगन, चु बन और ेम के अ त र उसे यही चीज़ अल य मलती
है, जससे स भोग म पूणता और तृ त आती है य क इसक उसके शरीर म कमी रहती
है। पर इन अ वाभा वक संघषण के सवा बाहरी उ ेजना के कम हो जाने के, उसे
और कुछ नह मलता और इससे उसे कुछ भी लाभ नह होता, य क पु ष-स भोग म
पु ष क इ य के ी क यो न म व होकर वीय और थय के रस का रण
करना, ज ह ी क यो न चूस लेती है और जो उसक गहरी एकता और तृ त के लए
महामू यवान है, ी-स भोग का परम लाभ है। स डा टर मेरी टो स ने इस रस के
मह व और उपयो गता पर ब त कुछ लखा है और उनका कहना है क ये रस ी के
शरीर को पु करने म ब त मू यवान् ह। उनम स म त है क य द कसी ी को स भोग
म तृ त नह मलती और वह स भोग क भूखी रहती है, तो उसे रासाय नक तौर पर
तैयार कए गए पु ष- थय के रस का नचोड़ खाना चा हए जो अब अ छे कै म ट
लोग बेचने लगे ह। उनका कहना है क क पना करो, हमने पानी म कोई तरकारी उबाली
और उस पानी को फक दया, इससे हमने वे सब ख नज लवण न कर दए, जो तरकारी
म थे। इससे समझ ली जए क य द हमारे शरीर म फा फोरस और लोहे के म ण क
कमी पड़ गई तो वही म ण हम भोजन के तौर पर खा सकते ह। भोजन क ना लयाँ
इनको ल या मेद क धारा म प ँचा दे ती ह। इस कार वे उन अनेक पे शय म जा
प ँचते ह, जनको इन रासाय नक अणु क ज़ रत है। खासकर ऐसी याँ, जनक
प त से तृ त नह होती या जो कसी कारण से प त-सहवास से वं चत रहती ह, इन
थय के नचोड़ का सेवन करके तृ त और शा त का अनुभव कर सकती ह। हम
अ य ये योग लखगे। इस स ब ध म आ मदमन और संयम का उपदे श दे ना ब कुल
ही अ ासं गक है, य क जस ी क जनने याँ रासाय नक अणु क भूखी ह, उसे
आ म-संयम का उपदे श दे ना थ है। उसके लए वै ा नक री त से तैयार इन ग टय के
सत चुपचाप नगल जाना, उनक सबसे बड़ी सहायता है।
प त कस दज तक नपुंसक है—इसका ान य को ववाह के ब त बाद तक
नह होता। पीछे अपूण सहवास से जब उ ह अनेक नाय वक रोग होते ह तब वे उन
बात का अनुभव करती ह। ऐसी हालत म प त-प नी दोन को ही अपनी उपयु
च क सा करानी चा हए। इसक उ म च क सा उपयु ं थय का नचोड़ है। एक
बात और है, स ची नपुंसकता, जसम शु क ट क कमी होती है, और चीज़ है। पर
कभी-कभी अ य कारण से भी स भोग श क पु ष म कमी हो जाती है। जैसे पाचन-
श क गड़बड़ी, चोट या अ य ऐसी ही सरी हालत म। इ ह दोष को पहले र करना
चा हए। रीढ़ क ह ी पर चोट लग जाने से ायः पु ष स भोग के अयो य हो जाते ह।
भय से, गहरे प र म से और स भोग वरोधी भावनाओ से भी मनु य कृ म प से
नपुंसक हो जाता है। आम तौर पर यह व ास क स भोग से कमजोरी पैदा होती है,
मनु य को अध-नपुंसक बना दे ता है। यु से लौटे ए पु ष अंग-भंग होने के कारण ओर
अ व थत जीवन रखने के कारण ायः स भोग के अयो य हो जाते ह। वा तव म ान-
त तु पर अ धक दबाव पड़ना भी चोट के समान ही हा नकारक भाव वाला होता है।
इन सभी वकार म नराश होने क बात नह , और धीरे-धीरे इन सभी बात म आराम हो
सकता है। हाँ प त क इस अव था म ी को उसके त सहानुभू त, ेम और स ह णुता
दखाने क आव यकता है, य क मान सक या का इस पर बड़ा भारी असर
पड़ता है। य द ी के तान के भय से पु ष को इस बात क च ता हो जाए क मुझे
मैथुन म सफलता ा त हो, तो उसका भाव भी एक कारगर चोट से कम नह होगा।
इस लए ऐसी अव था म जब तक पूरा वा य लौट न आवे, दोन को स भोग से
यथास भव र रहना ही चा हए। और जब बारा स ची स भोग श उसम उ प होगी,
तो फर न केवल काम वासना, युत उसके शरीर म सम त जीवनश ही नवीन और
फू त के प म द ख पड़ेगी। कुछ लोग नवयौवन के समय ह तमैथुन या अ य
अ ाकृ तक या करने से प रप व आयु म बल हो जाते ह। कभी-कभी तो अध-
नपुंसक तक हो जाते ह। और उनक यह अ वाभा वक आदत उनके वैवा हक जीवन के
सुखी स भोग म एक द वार बनकर खड़ी हो जाती है, य क य द इ य क उ ेजना
को हाथ से या अ य कसी री त से उ प करने क आदत हो जाती है, तो स भोग क
वाभा वक री त म ब त अ तर पड़ जाता है। इसके सवा उनक जनने य टे ढ़ और
सकुड़ी ई हो जाती है। चाहे जो भी हो, पर तु य द प त अपनी ी से स चा ेम रखे
और स भोग या म वह ठ क न हो तो उसे अव य ःख होगा और अपनी हालत
सुधारने के लए येक स भव उपाय करेगा। पर तु इन सब बात म उसे प नी क
सहानुभू त और भ - भ आसन के उपयोग से बड़ी सहायता मलेगी। मु य बात यह
है क स भोग के लए लग क उ ेजना क बड़ी आव यकता है, और कसी कार के
भय या संकोच के कारण र क ना ड़य म संकोच होने से यह उ ेजना पूरे तौर पर नह
हो सकती। इस लए स भोग के लए स च ता और नभयता दोन ही ब त ज़ री ह।
अब हम एक सरे कार के पु ष क चचा भी करगे। मेरा अ भ ाय उन पु ष से है
जो 25, 30 या 40 तक संयम और चय से रहे ह, स भोग और ी जा त क तरफ से
उ ह घृणा और वर दला द गई है, पर तु नैस गक कारण से उ ह खूब व दोष होते
रहे ह और उनका वकास ब त कुछ मारा गया है। अब, जब वे ववाह करते ह तो
एकाएक ेमास हो जाते ह, पर तु अपने-आप को अ नपुंसक पाते ह। वे ी का
पश करते ही इतना उ े जत हो जाते ह क तुर त ही उनका वीयपात हो जाता है, और वे
स चे स भोग के लायक नह रहते। न प नी का स तोष कर सकते ह न अपना। ऐसे
लोग को आगे के अ तम अ याय म हम जो उपचार बतायगे वे उ ह काम म लेने चा हएँ।
वे नीरोग हो जाएँगे और उनको स तान भी हो जाएगी। पर तु एक बात का हमेशा यान
रखना चा हए क पु ष अपने स ची स भोग-श को कम न समझने लगे। जसक
स भोग-श ठ क है, उ ह उसके बढ़ाने के फेर म न पड़ना चा हए। कभी-कभी नह
सदै व ही य द ऐसा हो क यो न म लग के व होते ही कुछ सैक ड म पु ष का रेत-
खलन हो जाए और यह उसका वभाव हो जाए तो बेशक यह एक कार क नपुंसकता
ही है। अनेक खूब मोटे -ताजे ह े -क े लोग म भी ऐसी शकायत दे खी गई है। कभी-कभी
ऐसे भी उदाहरण दे खे गये ह क लग उ ेजना तो दे र तक कायम रहती है, पर उसम से
रेत ाव क श न हो जाती है। ऐसे ायः सभी रोगी यह समझते ह क द घकाल तक
चय रखने से यह रोग र हो जायेगा, पर यह म है। संयम या दे र से स भोग करना
कई बात म फायदा कर सकता है पर शी पतन म नह । मेरी टो स शी पतन के लए
यह उपाय बताती है क ऐसे आदमी को उस रात या अगली रात को फर स भोग करना
चा हए। इसम उन लोग के सवा, ज ह ने ह तमैथुन से ब त खराबी उ प कर ली है,
अ य लोग को लाभ होगा और ऐसा करने से वे वाभा वक स भोग का आन द ा त कर
सकते ह। शी पतन का एक कारण लग के अ भाग पर फैली ई एक झ ली भी है जो
ब त कोमल और ब त सचेतन है। यह भी शी पतन का कारण हो सकती है। य द यह
खाल शु और कड़ी कर द जाए तो इससे कुछ लाभ हो सकता है। य द खाल के पीछे
उलटकर लगे य के अ भाग को साबुन और ठ डे पानी से रोज धो लया जाय तो
वशेष लाभ होगा।
कुछ याँ वभाव से ठ डी होती ह, और कुछ व ाम न मलने से ठ डी हो जाती
ह। पशु-प य म ऐसी मादा का मलना ब त कम संभव है, जो वाभ वक प म
कामश -र हत या बाँझ ह । वा तव म ऐसे पु ष ब त अ धक ह जो इस बात क
परवाह नह करते क स भोग म ी उनक सं गनी और ह सेदार है। वे तो ायः उ ह
घर क दासी और ब चे पैदा करने क मशीन समझते ह। याँ कुछ ल जा के कारण,
और कुछ उ ह ऐसी ही श ा द जाती है क वे यह कट नह होने दे त क स भोग म
उ ह कुछ आन द आ रहा है। इसके सवा स भोग एक शम का ग दा-सा काम है और उसे
य का य कर डालना चा हए—यही उनक भावना होती है। इसका प रणाम यह होता
है क स भोगकाल म उनक त याएँ धीमी या अधूरी रहती ह। और स चे स भोग के
फु टत प को उ प ही नह होने दे ती ह, और वे तथा उनके प त स भोग के स चे
सुख से वं चत रह जाते ह। हम कुछ ऐसे उदाहरण मलते रहते ह क ववाह के बाद प नी
को स भोग के लए राजी करना क ठन हो जाता है। याँ ायः चु बन और आ लगन से
भड़क उठती ह और प त युवक और अधैयवान होते ह, ायः लड़ बैठते या मारपीट कर
बैठते ह। इस तरह उनका दा प य जीवन ार भ म ही कटु हो जाता है। कुछ ऐसे धैयवान
प त होते ह जो धीरे-धीरे ेम और स ह णुता से ी को आ लगन, चु बन और स भोग के
लए राज़ी कर लेते ह। पर तु अ त तक कुछ याँ वर कट करती रहती ह। कुछ
य क यो न क बनावट ऐसी होती है जनम यो ननासा का वकास ही नह होता या
उसम कुछ ऐसे रेशे चपटे रहते ह क स भोग क उ ेजना के यो य संचेतनता उनम होती
ही नह है। ऐसी य को वयं तो कामवासना होती ही नह , युत वे प त क उस
च ड वासना क क पना भी नह कर सकत , जो उनम होती है। वे हमेशा समागम से
घृणा करत , पीहर म रहत और प तय से व े ष करती ह।
पर तु ऐसी याँ ब त कम होती ह। अ धकतर तो साधारण कारण के र होने पर
ठ क हो जाने यो य होती ह और स भोग-सुख का अनुभव ले सकती ह। पर तु इस काम
म प त को ही अ य त सावधानी और चतुराई से काम लेने क आव यकता है। य द उसने
ऐसा न कया या उसी के अंग मे कोई दोष आ तो चु बन, आ लगन से फर कुछ लाभ
होने क आशा नह । ऐसी हालत म प नी को कोई पौ क औषध दे नी चा हए, या
ग टय के सत का म ण। जनक चचा हम आगे करगे। पर तु प त को उससे स चा
ेम दखाने और मृ वहार करने क भी बड़ी आव यकता है। अगर प त काम-
व था का ाता है तो प नी का ठ डा मन पघल जाने म दे र नह लगती, य क
वा तव म ऐसी ठ डी ी जसके अंग म काम का बीज है ही नह ब त कम होती ह,
हज़ार -लाख म एक। भगनासा या भग लगी ही सम त काम के के उ पन का थान
है। भग लगी के पश से ही उसम उ ेजना का भाव हो जाता है और ी म च ड
कामो ेजना उ प हो जाती है। पर तु कई य म यह अंग अपु और कई म ब कुल
ही नह होता। आसन क व भ ता भी इस काम म सहायता करती है। अनजान लोग
जो इस काम को नह जानते, एक ही आसन से स भोग करते ह। यह बड़ी भूल है। य द
भग लग छोटा है तो सरे आसन से, जससे उसम काफ रगड़ लग सके, स भोग करने
म सफलता मलेगी। अ भ ाय यह है क पु ष- लग के साथ भग लग का स भोगकाल म
यथे संघष होना चा हए। कुछ याँ ऐसी भी होती ह जो गभाशय के मूल ार पर लग
क चोट खाकर म ती का अनुभव करती ह; सफ भग लग के मदन से उ ह म ती नह
मलती। इस कार ी-शरीर म ये दो थान भग लग और गभाशय क गदन, म ती
उ प करने के के ह और इन दोन थान क रगड़ से उ प म ती भ प और गुण
वाली होती है। पर अ धक याँ ऐसी होती ह जनम यो न लग के पश होते ही म ती
आ जाती है। य द प त स भोग या म चतुर, धैयवान् और अपने को काबू म रखने
वाला है तथा स भोग-काल म प नय के गभाशय क गदन म लग क चोट से उ ेजना
पैदा कर सकता है तो वह खूब ठ डी ी को भी काम- व ल बना सकता है। कुछ ऐसी
औषध भी ह जो ी क यो न के चैत य त तु को उ े जत करती ह। उनक चचा हम
आगे करगे। कुछ य क भगनासा ब त बड़ी होती है और वे अ धक उ े जत रहती
ह। याँ ायः ल जा का अ भनय कया करती ह पर तु कुछ सचमुच लजाती याँ
भी होती ह। इन य का भग लग न य ही अ वक सत होता है और वे ठं डी प नयाँ
मा णत ह गी। ऐसी याँ यह कहती ह क स भोग स तान के लए करना चा हए। वे
स भोग के सुख और लाभ से वं चत रहती ह। इस लए गभ के लए आव यक स भोग
तो वे जैस-े तैसे कर लेने दे ती ह, पर तु अ य स भोग म वे वर और व ोह के भाव
कट करती ह और य द प त हठ करता है, तो वे नज व-सी पड़ जाती ह। ऐसी हालत म
प त को चढ़ने या ोध करने क जगह बारीक से सही कारण ढूँ ढना चा हए और उस
कमी को जो प नी म है पूरा करना चा हए। अगर भग लग का वकास पूरा नह है तो उसे
थय के रस के सेवन से पूरा करना चा हए। अ सर ब चा पैदा होने के बाद अ धक
र नकल जाने से य म ठ डापन उ प हो जाता है। एनी मया रोग म खून क कमी
हो जाती है, अथवा कसी भयानक रोग के बाद भी ऐसा हो जाता है। दर का रोग भी
ी को ठ डा बनाता है। सूजाक क बीमारी से भी ी ठं डी हो जाती है। दर के कारण
याँ ायः बल हो जाया करती ह। उनक तबीयत म लन सी ई रहती है। उनक
जनने य को एक कार का जुकाम सा हो जाता है, जससे चाहे जब बेरंग सा ाव
होता रहता है। ठ क वैसे ही जैसा जुकाम होने पर नाक से नकलता है। ब त याँ डू श
लया करती ह, डू श से यह रोग घटता नह बढ़ता है। अ धक डू श दे ने से भी याँ
स भोग से अ च करने लग जाती ह। वा तव म जन अंग को कभी छे ड़ना ही न चा हए,
उ ह नर तर पचकारी से छे ड़ते रहना ठ क नह है। दर के लए उपचार हम अ य
लखगे। कभी-कभी प त को शी पतन क बीमारी हो और लग वेश होते ही रेतपात हो
जाए, तो ऐसा कई बार होने से ी के मन म घृणा के वचार आते ह और वह स भोग से
वर हो जाती है और एक कार से ठ डी ी हो जाती है। ववाह के बाद तुर त ही
ार भक स भोग म जब प त शी रत होता है और ी म म ती उ प होना तो र,
अभी उसम काम-वासना जागने भी नह पाती, तब वह एक कार से अशा त, अतृ त,
चड़ चड़ी हो जाती है और ायः उसे ह ट रया का रोग हो जाता है। उसे न तो काम-
शा का ान है, न धैय। इससे वह केवल वर और अपमान के सवा सरे भाव मन
म रख ही नह सकती। उसका मन सचेत ओर शी वाहक होता है। शी ही उसके मन म
से प त का ेम-रस सूख जाता है। वा तव म इनम से ब त कम रोगी ऐसे ह गे, ज ह
साधारण उपचार से आराम न हो जाए। इन उपचार क ा या हम आगे एक अ याय
म करगे।
आगे के अ याय म हम बताएँगे क बीजकोष के अ तः ाव के आधार पर शरीर म
काम-वासना चैत य होती है। अ तः ाव क इस व था और शरीर पर उनके भाव का
थोड़ा वणन हम यहाँ करगे। हमने बताया है क बीजकोष और थाइराइड थय के रस
से कामो ेजना मलती है। य द कसी ी के थाइराइड के काम म कमी पड़ जाएगी, तो
उसके शरीर क ऊँचाई कम हो जाएगी। गाल फूले ए ह गे और ज़रा-सी बात पर लाल
हो जाएँग।े तन बढ़ जावगे। पेट भी यादा बढ़ जाएगा। शरीर मोटा हो जाएगा। कभी-
कभी ऐसा होता है क शरीर मोटा नह होता, सफ ठगनापन रह जाता है। ताना ब त
छोटे और कभी-कभी ब कुल नह होते। पेशाब का रंग गहरा होता है। अगर ठगनापन
ब त ही हो तो सम झए क उनका बीजकोष ठ क-ठ क काम नह करता। न ऋतु ाव
ठ क होता है; वह ब त कम होता है। ऐसी य के हाथ, पैर , पड लय और कभी-
कभी छाती पर अ धक बाल उग आते ह। नाड़ी क ग त म द हो जाती है, ठ ड अ धक
सताती है। बु भी उनक म द होती है। ऐसी लड़ कयाँ ज द बड़ी द खने लगती ह।
कभी-कभी वे एकदम बली हो जाती ह, उनम ब त म द कामवासना होती है और उ ह
सहवास पस द ही नह होता। पर तु कभी-कभी थाइराइड के काय का अ तरेक भी होता
है। यह ब धा आयु क वृ के समय होता है। पर कभी-कभी ऋतु ाव के ब द होने के
समय या कुछ बाद भी होता है। य द 13-14 वष क अव था म थाइराइड के ाव का
अ तरेक आ, तो ये ल ण द ख पड़ते ह; ज़रा सी चोट लगने पर गाल लाल हो जाते ह,
नाड़ी क ग त तेज़ हो जाती है, छाती म धड़कन पैदा हो जाती है, ऊँचाई अ धक हो जाती
है, ऋतु ाव अ नय मत और कम होता है, गम अ धक ापती है और पसीना अ धक
आने लगता है, पेशाब का रंग फ का पड़ जाता है। जन य का थाइराइड थय के
ाव का अ तरेक होता है, उनम बीजकोष के काम म कमी आ जाती है। इसी से वे म द
काम होती है पर तु ब त कम। थाइराइड थय क या का भाव ह य के वकास
पर पड़ता है। अगर उनका काम धीमा होता है तो ी ठगनी हो जाएगी। य द अ धक
आ तो हाड़ तथा हाथ-पैर ल बे हो जाएँगे और डील-डौल बढ़ जाएगा। पर तु य द
बीजकोष का काम ठ क है, तो थाइराइड थय का काम भी ठ क रहेगा। तब ी का
कद म यम रहता है। बीजकोष के काम म कमी होने पर उसके च 14-15 वष क उ
म द ख पड़ते ह। थाइराइड थ के रस क कमी से पेट, तन और कभी-कभी दोन अंग
मोटे हो जाते ह। गाल फूले ए और लाल होते ह। चेहरे पर और हाथ पर पु ष जैसे रोम
होते ह। कामवासना म द होती है। जवानी म वे सु दर मालूम दे ती ह, पर तु बीस साल क
उ बीतने पर उनक त ती खराब होने लगती है। दय क , गुद क और म जा-त तु
क बीमा रयाँ सताया करती ह। अगर बीज कोष का काम अ धक आ तो उनके कद क
बढ़वार क जाती है। ऐसी याँ अ सर बल रहती ह। उनके गाल सपाट रहते ह और
कुछ फ के भी रहते ह। तन छोटे और कड़े रहते ह और उनके आगे क घु डी बड़ी होती
है। बदन म रोम नह होते। पेट सपाट होता है। उनक काम वासना तेज़ होती है, अगर
काम-वासना पूरी न हो तो वे बीमार हो जाती ह। ऐसी याँ भचा रणी होती ह।
जन य म थाइराइड ओर बीजकोष का काम ठ क-ठ क नह है, वे ठगनी,
ककश, , चंचल और ोधी होती ह। काम-वासना और ेम उनम कम होता है। तन
का अगला ह सा छोटा और बैठा आ होता है। उ ढलने पर वे मोट हो जाती ह और
ग ठया या मधुमेह क बीमारी हो जाती है। सफ बीजकोष क कमी से वे ल बी होती ह।
अगर गाल लाल और फूले ए ह तो थाइराइड के काम म अ तरेक होगा। ऐसी य का
वभाव खराब और तेज़ तथा कामवासना म द होगी, अगर बीजकोष का काम कम आ
तो दाढ़ -मूँछ क जगह कोहनी से कलाई तक और जाँघ म बाल अ धक ह गे। उनका
वभाव खराब और कामवासना म द होगी और वे रोगी ह गी। जन य म थाइराइड
थयाँ अ धक बढ़ जाती ह, तो कंठ के नीचे का ह सा फूल जाता है—जहाँ क वह
थ होती है। ऐसी य का वभाव ब त खराब और तेज़ होता है, कामवासना मंद
होती है। थाइराइड और बीजकोष के काम म अगर कमी ई तो तन और पेट मोटा हो
जाता है। अगर वह ठगनी तो उनका वभाव खराब होगा। अगर ल बी ई तो उनका
वभाव उदासीन और कामवासना म द होगी। अगर तना बढ़े ए ह गे तो कामवासना
ती और य द छोटे ह गे तो कामवासना म द होगी।
मा सक ाव का दे र से होना और कम समय तक रहना और साथ ही कम ाव
होना, इन दन म पेट दद और तकलीफ से होना, ऐसी ी का वभाव खराब और
कामवासना कम होती है। अगर थाइराइड के काम म अ धकता हो और बीजकोष के
काम म कमी हो तो अ सर वह ी तीखे वभाव क होगी और उसक भ के बीच म
खड़ी रेखा पड़ेगी, बड़ी उ म उसका वभाव और भी खराब होगा।
पु ष के शरीर म भी इन दोन थय का अ तः ाव होगा। अगर बीजकोष के
काम म कमी होगी तो प ह साल क उ होने पर भी उनम ीपन दखेगा, गाल क
रंगत गुलाबी होगी, शरीर क कां त उ म, सुडौल शरीर और ब च क सी आवाज़ होगी।
अठारह वष क उ तक दाढ़ -मूँछ नह नकलेगी। उनम धीरज और तेज वता नह
होगी, वे लड़ कय से मलने जुलने ओर खेलने म यादा स रहगे। जने य ओर
बीजकोष ब त छोटे रह जावगे। उनम कामवासना ब कुल नह होगी। य द बीजकोश
क यह कमी प ह सोलह साल के बाद शु ई तो दाढ़ और मूँछ जतनी आ गई ह गी
उससे आगे नह बढ़गी। आवाज़ अगर पहले से बदल गई है, तो वैसे ही बनी रहेगी। उसके
कद क ल बाई खानदान से कुछ बड़ी हो जायेगी। और बीजकोष कुछ छोटे हो जावगे।
अगर बीजकोष के काम म कुछ यादती ई तो वे बले-पतले और हाथ-पैर बड़े हो
जायगे। बीजकोष उनके शरीर क अपे ा बड़े ह गे, और उनक लगे य भी मामूली से
कुछ बड़ी होगी। उनक कामवासना भी तेज़ होगी और वे ज द तृ त नह ह गे। ये लोग
अपराधी कृ त के होते ह और कामो ेजना के मौके पर खून तक कर बैठते ह। अमे रका
म ऐसे अपरा धय के बीजकोष नकाल डालते ह। बीजकोष के काम क कमी होने पर
आदमी का क़द आनुवां शक कद क अपे ा बढ़ जाता है। काम-श मामूली होती है।
ऐसे लोग का सर छोटा तथा क धे और जाँघ कम चौड़े होते ह, गाल फूले ए और
वभाव तमोगुणी होता है। आवाज़ ब च क भाँ त होती है। बीजकोष के काम के बढ़
जाने पर आवाज़ भारी हो जाती है। पेट बड़ा होना भी कामश क कमी कट करता
है। अगर बीस वष होने पर भी लड़क क दाढ़ न नकले तो न य जानना चा हए क
बीजकोष क कमी है। अगर आदमी के मज़ाज म तेज़ी हो और भँव म दो खड़ी लक र
पड़ तो भी बीजकोष क कमी जानना चा हए। पेट और शरीर का थूल हो जाना
थाइराइड और बीजकोष दोन क कमी का कारण है।
ववाह

वि◌ वाह का श दाथ है-खास स ब ध। भारतीय सा ह य म यह श द पुराना होने पर


भी अ य त पुराना नह है य क वेद म ववाह श द नह मलता है। ढ़ अथ
म ववाह का अथ है ी-पु ष का जीवन-भर अथवा ज म ज मा तर के लए एक- सरे
के लए अनुब धत होना। ह धमानुशासन क से ी एक बार ववा हत होकर
जीवन भर प त से व छे द नह कर सकती। यही नह , प त के मरने पर भी वह उसी क
वधवा रहेगी और यह व ास रखेगी क जब उसक मृ यु होगी तो वग या प त-लोक म
उसे वही प त मलेगा। ज मज मा तर से वही पु ष उसका प त होता आया है और
भ व य म भी वही होगा। यही ह प नी का धा मक कोण है। और प त मृत हो या
जी वत, ी वा द ा हो या ववा हता, हर हालत म उसे मन, वचन और कम से उसी प त
के त सवथा अनुब धत, अनु ा तत एवं आ मा पत रहना होगा। ववाह के बाद प त
का ी पर असा य अ धकार है।
फर भी पु ष प नी क भाँ त ी के त अनुब धत नह । ह धमानुब धन म
प त एक या अनेक इसी कार से पूणानुब धत प नयाँ रखते ए भी सवथा वतं प
से अ य वैध या अवैध अन गनत प नयाँ बना प नी क वीकृ त के रख सकता है, यहाँ
तक क वह वे या और भचा रणी ी से मु सहवास भी कर सकता है।
यहाँ उठता है क वा तव म ी-पु ष का यह अनुब धत स ब ध कृ त और
सामा जक आव यकता क से या है। सबसे थम हम ाकृ तक कोण से
दे खते ह क सहवास होते ही ी के शरीर म गभ-धारण क स भावना हो जाती है। शरीर
संगठन क से ी का शरीर ऐसा है क गभ धारण, शशुपालन, गभर ा आ द के
नैस गक कारण से न वह मु सहवास के यो य रहती है न वाधीनता से रहने के, न वह
कोई क ठन और साह सक काय पु षो चत कर पाती है। उसक सारी क सारी श याँ
गभधारण और शशुपालन म लग जाती ह। मान सक वकास क से भी य क
मनोरचना पु ष क मनोरचना के वपरीत है, जसका वणन हम पछले अ याय म कर
चुके ह। इसी मनोरचना के कारण शशुपालन के तथा ाह थ व था के उपयु ही
उसके वभाव का नमाण आ है। वे उन मशीन क तरह ब चे नह पैदा करत जो मल
म पं ब लगी रहती ह। उनक कोमल भावुक कृ त संगानुसार पु ष को भी, जब-
जब उनम ी क आकां ा उदय होती है; कोमल और भावुक बना दे ती है। इस कार
इसम स दे ह नह रह जाता क उनका नमाण दो भ - भ योजन के लए ही उपयु
है। और दोन एक- सरे के बना अधूरे ह। वे दोन संयु ह इस लए ववाह क प रपाट
न मत क गई है। दोन के संयु होकर अनुब धत होने से ही य द दोन के वात य
क मयादा म र ा हो सके तो वे एक- सरे के वकास म सहायक हो सकते ह।
इसम स दे ह ही नह क दोन का काय े पृथक् है और दोन अपने-अपने काय े
म वतं ह। चूँ क दोन के काय े का वाथ संयु है इस लए पर पर एक- सरे के
काय े म एक- सरे क दोन सहायता कर और इस कार अपने-अपने े म
वत रहते ए एक- सरे से पूणतया संयु हो जाएँ।
पु ष अपने वभाव के कारण य पर अपना भु व था पत करने क सदा चे ा
करता है और वाभा वक ग त के अनुसार ी भी पु ष के भु व को अपने ऊपर न
लदने दे ने के लए यथासा य चे ा करती है। ाचीन ढ़वाद और गुलामी के दन अब
लद गए; अब वाधीनता, सहयोग और साहचय का समय आया। इस कारण इस नवीन
युग म भी ी और पु ष का यह संघष एक भावशाली असर रखता है।
यहाँ म एक उदाहरण दे ना चाहता ँ क अ सर ी-पु ष म इस साधारण बात पर
झगड़ा उठ खड़ा होता है क प रवार का काम कैसे चलाया जाय। प नी यह वीकार
करना चाहती है क उसका प त हो शयार और चतुर है, मगर वह इस बात को वीकार
कर ले तो फर उसे उसक बात भी माननी पड़ेगी। वह ब धा अपनी सहे लय म उसके
भोलेपन, पालतूपन और वशीकरण क चचा कया करती है और इसम अ यु से काम
लेती है। घर-गृह थी का बड़ा मह वपूण भाग प नी के हाथ म है। स तान, व था,
भोजन और धन का य, यह सब ी के हाथ म है। इसी से कुछ बु मान कहते ह क
य को नह , पु ष को वत होने का उ ोग करना चा हए। एक ी ने अपने प त
के लए बड़ी शान से लखा था क वह हो शयार, व ान, क तवान् और ीम त,
नी तवान् और प व भी है,पर मेरे लए तो वह मूख, अ ानी, द र , तु छ और भ है।
जो कहती ँ वह मान लेता है।
ब धा प रजन के त या कत ह, इस स ब ध म जब-जब प त-प नी म ववाद
छड़ता है, तो प नी प त से अपनी बात मनवाना चाहती है और प त को प र थ त से
सवथा अ ानी मा णत करती है। प त य द उसके महा ान पर ज़रा भी एतराज़ करता
है तो वह रो-धोकर, ठकर उसे राज़ी करती है।
यह सब उसी मनोवृ का प है, य क प नी भय खाती है क य ही म प त क
अपे ा कम समझदार होना वीकार क ँ गी, मुझे उसके आ ाधीन होना पड़ेगा।
फर भी, पु ष चाहे कतना ही भेड़ बन जाए, वह गृह थी के बोझ का दा य व तो
ी पर ही रखेगा। ब चा तो दोन का ही है। य द वह कसी कपड़े पर ट कर दे तो वह
प नी ही का काम होगा क उसे साफ करे। कपड़े फट जाने या बटन टू ट जाने पर भी
उसी का कत होगा क वह उसे ठ क कर दे । पु ष कभी नह वचारेगा क वह उसे
सहायता दे और उसका सहयोग करे। वा तव म ी कमजोर है और उसके येक काम
म सहायता दे ना पु ष का कत होना चा हए।
त ववे ा मल ने बल युव तय का साधन लेकर ी-पु ष क इस भ ता से
इ कार कया है और उ ह समान माना है तथा यूरोप ी- वात य म उनका अनुगामी भी
है—पर युव तयाँ और बु वाद स य क उपे ा नह कर सकता।
आजकल ी- वात य का युग है। अतः ववाह के समय प नी- नवाचन नह , प त-
नवाचन होता है। ी मा म प त पर वजय पाने के वचार बढ़ते जाते ह, दो श द म
कहा जा सकता है क आधु नक सु श त पु ष जहाँ यह चाहता है क कैसे य को
समाज म ऊँचा थान दया जाए, वहाँ आधु नक स य ी चाहती है क कैसे पु ष को
ज़ेर कया जाए। पर पर क बातचीत म य क चचा का मु य वषय यही होता है क
उनके प त कहाँ तक उनके पालतू ह। सीधे ह, वश म ह, उनक बात म दखल नह दे त।े
ायः याँ प त क सु दरता क उतनी परवाह नह करत । वे मजबूत, खुश मज़ाज,
अमीर और शाहखच प त को पस द करती ह। सु दर प त से याँ इस लए भी घबराती
ह क उस पर अ य य के मो हत हो उठने का भय रहता है तथा वे य का भी
तर कार करती ह। प त कमाऊ हो, चाहे श त न हो, याँ यही चाहती ह। श त
नख प त का वे खूब तर कार करती ह। हाँ, सु श त प नी प त पर खूब रोब गाँठ
लेती है। एक मा सक प म, ‘प त कैसा हो’ इस वषय पर व ान के लेख माँगे गये थे,
उनम से तीन यहाँ दए जाते ह, जो पढ़ने यो य ह:
“म प त से कुछ नह चाहती, म जतना ँ उतना ही मुझे मल जाए! प त यारा हो,
उसम व ास, सहानुभू त और उदारता होनी आव यक है। पर वह मद हो। शरीर और
मन से ढ़ और आ मसंयमी, दे खने म सश और सुडौल। सु दर न हो तो न सही, पर
उसके मुँह पर पु ष व क छाप होनी चा हए। ब च म पता जँचे, मन साफ, भावुक और
स दय हो तो और भी अ छा है। आराम से जीवन- नवाह करने यो य कमा सके। वह
चाहे धनी न हो पर उसम काम करने क श और उ साह अव य होना चा हए। य द म
उसके साथ काम क ँ तो मुझे वह भ न मालूम हो। वह येक काम म, चाहे वह भला
हो या बुरा, अव य मददगार रहे। उसक व ा-बु मुझसे कम न हो, उसका शील
वभाव अ छा हो, य क म नह चाहती क कोई नालायक आदमी मेरे ब च का बाप
बने। वह बौ क और नै तक से मेरा सहचर हो; मेरे सव व का मा लक हो और म
यथाश उसक इ छा पूण क ँ ; पर मुझे यह न य हो जाना चा हए क उसके साथ
मेरा जीवन सुख से कट जाएगा। म सवगुण स प प त क हस नह करती, पर तु उ च
येय पर आमरण काम करने वाला प त मुझे चा हए; जससे उस पर मुझे ा हो और
म उससे ेम क ँ । वह मेरे ही समान मेरे दोन ब च से ेम करे।”
“प त सु दर ही हो आव यक नह है। हाँ, उसके चेहरे पर पु ष व हो। ववा हत
द प त का येय, हता हत और मत एक होता है, यह बात उसे जान लेनी चा हए क
बाल-ब च का यान रखना उसके लए भी ज़ री है। उसका अ ययन वशाल, ान
अपार, दय का मय, ग भीर और वभाव सहनशील होना चा हए। साथ ही उसके
वभाव म वनोद क मा ा भी होनी चा हए और उसका बताव नय मत एवं स चा होना
चा हए। य द वह आ मसंयमी भी हो तो वह सबसे अ छा प त है। वह फज़ूलखच न हो,
गृह थी के खच को चला सकने यो य वह कमा भी सके और ी- वात य का हामी
हो।”
“वह नरोग हो। सु दर हो चाहे न हो, पर चेहरे पर मदानगी क चमक अव य हो।
उसका शरीर मजबूत और सुडौल हो, चेहरा स , पर अ भमानी न हो। सफाई से रहे;
अपनी ी क वह त ा करे। एकप नी ती हो। यह न समझे क ी ब चे पैदा करने
क मशीन है। वह अपनी प नी का स दय और जवानी कायम रखने क चे ा करे। वह
अपने सभी अ धकार प नी से माँग सकता है पर उसी क इ छानुसार वह उसे ज़ रत के
मुता बक खच भी दे ता रहे, और शाबासी भी।”
यहाँ हम एक और ग भीर बात कह दे ना चाहते ह—य द कोई प त-प नी यह समझे
क हम लोग पर पर न ल ेम करते ह इस लए हमारा दा प य जीवन सुखमय होना
चा हए, तो यह सरासर उनक भूल है। दा प य जीवन को सुखी और सफल बनाने के
लए प त-प नी के बीच ेम का होना ही काफ नह है। सफल और सुखी दा प य जीवन
बनाने के लए उ ह यथे बु , अ यवसाय, साहस और कड़े प र म क आव यकता
है। सच बात तो अपने-आप ही सुखमय और सफल नह हो जाता, न भगवान ही इस
मामले म कोई द त दाज़ी दे सकते ह। जैसे मनु य प र म और यान से व वध व ाएँ
सीखकर उनम पारंगत हो जाता है, वैसे ही दा प य जीवन को सुखी और सफल बनाने के
लए उसे ब त कुछ व ा, बु , साहस और धैय खच करना पड़ेगा और काफ
आ म याग करना पड़ेगा। जस ववाह म ी-पु ष बल कामास या उ म
भावुकता के जोर पर घसीटे जाकर टकरा गये ह, उसक अपे ा उस दा प य जीवन के
अ धक सुखी और सफल होने क स भावना है जसम सामा जक और गत
सु वधाएँ वचारकर ववाह कया गया है। इं लड के यात ी मयर डज़राइली ने एक
बार कहा था क जन म ने ेम के वशीभूत होकर ववाह कए थे, वे सब या तो अपनी
प नय को लेकर मारपीट करते ह या उनको तलाक दे नी पड़ी है; उनका कहना है क
ेम के वशीभूत होकर ववाह करना बड़ा घातक है।
धानम ी के इस व म एक ग भीर ावहा रक ान है। जो युवक-युव तयाँ
एक- सरे पर आस होकर, ववेकशू य होकर ववाह कर डालते ह वे एक- सरे से
इतना अ धक सुख और आन द पाने क आशा लगा बैठते ह ज ह कोई ाणी पूरा कर
ही नह सकता।
ायः पु ष य क अपे ा अ धक आशावाद होते ह और ववाह के बाद बड़े-बड़े
स ज़बाग दे खने क क पना करते ह। जब कोई युवक अ य त ेमास होकर कसी
लड़क से ववाह करता है तो वा त वक लड़क से नह वरन् एक का प नक दे वी से
ववाह करता है, जसका वणन बाहर से भीतर तक क व वमय हो। पर तु ववाह के बाद
यूँ ही उसे पता लगता है क जससे उसने याह कया है वह वा तव म एक लड़क मा
है जो सु दरी और मृ वहा रणी होने पर भी उस आदश से ब त नीचे है, वह तब गहरी
नराशा म घर जाता है। इसम कोई स दे ह नह है क ववाह म वासना के आवेश का
बड़ा भारी मह व है, पर तु मूल म ववाह एक ापार है जसम मोल, भाव, लाभ का
ख, वहार-चातुय, रद शता, बु म ा, धैय, स ह णुता तथा नयादारी के भारी
अनुभव क हद दज क आव यकता है। ापार चलाने के लए पूँजी सबसे धान व तु
है, इस लए ववाह- ापार म तन-मन-धन लगा दे ना तथा दोन को एक- सरे का स चे
मन से भ बने रहना परम आव यक है। पु ष याह से थम ायः यह सीख चुके होते
ह क धन कैसे कमाया जा सकता है, य क दा प य जीवन म प त का काम धन कमाना
और ी का काम धन खच करना है। दोन य द अपने-अपने काम म द ह गे तभी
जीवन सुखी और स तु होगा।
ववा हत जीवन को सुखी रखने के लए घर के वातावरण का बड़ा भारी मह व है।
ी य द ठ क समय पर शरीर और म त क दोन को चैत य रखकर घर क मशीनरी को
ग तशील रख सकने क साम य नह रखती तो घर का वातावरण कभी भी सुखी और
शा त नह रह सकता। ठ क समय पर सब काम करना, ठ क थान पर सब व तु को
व थत रखना, ठ क आव यकता होने पर उ चत काम करना, ठ क य से ठ क
वहार रखना, ये चार रह य ह ज ह जो ी जान जाएगी, उसका दा प य जीवन सुखी
और स तु हो जाएगा। ी-पु ष को पर पर सुखी रखने के लए एक और व तु अ धक
मह वपूण है—वह है, पर पर अकपट और स चे रहना।
जान र कन जो इं लड का महान् लेखक आ है, उसने ी के स ब ध म ब त-से
मह वपूण वचार कट कए ह। उसने कृ त और मानव जा त के भीतरी सौ दय क
स ची अनुभू त क थी और नारी व को श के शखर पर प ँचाने के लए ब त-कुछ
लखा था। सबसे थम यह व ान् लेखक इस बात पर वचार करता है क समाज म ी
का थान या है, और अ धकार या ह तथा या होने चा हएँ? वह कहता है क
सामा जक सुख-शा त के लए इ ह चीज़ क आव यकता थी और इ ह क सबसे
अ धक अवहेलना क गई है। पु ष क श रचना मक, र ा मक और अ युदया मक
है। वह क ा, ा, अ वेषक और र क है। उसक बु चतन और आ व कार के लए
है और उसका ष उ साह कर काय करने तथा यु म वजयी होने के लए है।
पर तु नारी क श शासन के लए है, यु के लए नह । उसम आ व कार और रचना
क साम य नह है। युत मधुर शासन- ब ध और नमाण के लए है। वह व तु के
उ चत त व, गुण, अ धकार और थान क परख कर सकती है। उसका महान् काय
शंसा एवं अ भन दन है। वह कसी ववाद म स म लत नह होती, पर तु तयो गता के
वजेता का अकाट् य नणय करती है। अपने कत और थान के लहाज से वह सारी
आप य से तथा लोभन से बची रहती है। पु ष को संसार से उ मु े म खतर
ओर परी ा का सामना करना ही होगा। अतएव उसके लए असफलता, अपराध और
अ नवाय चूक वाभा वक ही है। यह ब धा आहत, व जत, पथ होगा और क ठन
अ य त बनेगा, पर तु ी क इन सबसे र ा करेगा। ी के ारा शा सत गृह म कोई
आप , कोई लोभन, कोई चूक अथवा दोष का कारण नह आ सकता, जब तक वह
वयं उसका आ ान न करे। घर वा तव म शा त और शरण का थान है। वह न केवल
हा नय से युत भय और स दे ह से भी बचाता है; और जो ऐसा नह है वह घर नह है।
वह एक ऐसा प व म दर है जसम प त-प नी के नेहपूण वागत के अ धका रय
के अ त र कोई भी वेश नह कर सकता। यह न य है क जहाँ कोई स ची प नी घर
म आ गई तो स पूण घर उसके चार ओर रहता है और उसी को के बना लेता है। यही
नारी क असल श , अ धकार और थान है, पर तु उसे नबलता और भूल-चूक से
र हत होना चा हए। चूँ क शासन करना है, इस लए उसे शा त, अ वकाय, सा वी,
अथक, अ ा त, बु मती अव य रहना चा हए। आ मो त के लए नह , आ मो सग के
लए। अपने को प त से ऊँची रहने के लए नह ब क अपने थान से युत न होने के
लए। उसम नेहहीन संक णता न होनी चा हए। नर तर प रवतनीय सेवा क वन ता
और शीलता कायम रहनी चा हए।
इन तमाम यो यता को ा त करने के लए सबसे थम उसे पूण व थ, युवा,
सु दर और व छ एवं हँसमुख रहना चा हए। उसे ायाम और श ण का अ यास
हमेशा जारी रखना चा हए, य क सौ दय के सव च सं कार और वकास याशीलता,
फू त एवं कोमल श के वैभव बना नह हो सकते। सु दर बनने का सबसे सरल और
सबसे गु त उपाय है, सदा स रहना। कशोराव था म वभाव पर एक भी दबाव, नेह
और या का एक भी नरोध उसके चेहरे पर न य ही अ मट प से अं कत हो
जाएगा। य द उसके दय म ता है तो उसके नयन क आभा और पु यमय भ ह से
मोहकता छन जाएगी। शरीर- वा य और सौ दय के बाद उसे इस कार ान और
वचार दे ने चा हएँ, जनसे उसक सहज बु और नेह- वृ ढ़ और सं कृत हो सके।
उसे श ा ऐसी ही दे नी चा हए क वह प त के काम और संघष को समझ सके और
उसम सहायता दे सके। उ चत तो यह है क यह श ा ान के प म नह युत अनुभव
के प म द जानी चा हए। यह आव यक नह क वह अनेक भाषा क प डता हो।
आव यक यह है क अप र चत पर क णा दखाये और अ त थ को वाणी-माधुय से
दयंगम करे यह उसके गौरव और मू य के लए मह वपूण नह क उसे कसी व ान
का ान हो। पर उसे कृ त के नयम क सु दरता, स चे वचार क यथाथता और अथ
को समझना चा हए। उसे इ तहास के महान् ान क आव यकता नह है; उसे
आव यकता है क अपने जातीय इ तहास म अपने स पूण व से व हो। उसे
इ तहास क क ण प र थ तय तथा नाटक य प रवतन के स ब ध का नरी ण करना
चा हए और इ तहास के जस भाग म वह साँस ले रही है उस ओर उसक सहानुभू त का
सार होना चा हए। उसे क पना और अ यास करना चा हए क उसक से र रहने
पर भी स ची आप य का सामना य द उसे करना पड़ता तो उसका कैसा आचरण
होता। अपने ब च और प त के णक क के नवारण के स ब ध म वह जतनी
च तातुर रहती है, उतनी उसे ब धुहीन एवं आ यहीन य के त रहना चा हए।
यही व - ेम है, और व - ेम ही नारी जीवन क साथकता है। उसे व शा त का
सा ा य था पत करना चा हए। याद रहे, संसार के येक यु , येक अ याय के लए
याँ उ रदायी ह। उ ेजन दे ने के कारण नह , न रोकने के कारण। पु ष वभावतः
लड़ाकू है, वह साधारण कारण पर ही लड़ बैठेगा। यह य का काम है क वह अथाह
बु म ा और त परता एवं साहस से उस पर शासन करे और उसे लड़ने से रोके। नया
का कोई ःख, कोई अ याय ऐसा नह है जसका दोष य के सर नह थोपा गया है।
पु ष कोमल से कोमल व तु को यु म कुचल सकते ह। वे सहानुभू त म बल ह। और
आ ा म संकु चत, पर तु याँ वेदना क गहराई का अनुभव कर सकती ह और घाव को
ठ क करने का उपाय खोज सकती ह। नारी के कोमल कर- पश और मधुर चतवन से
यह संसार वग बन सकता है।
स भोग क तैयारी

स जनने
भोग म पूण कामो ेजना और ेम का पूण उ े क होना चा हए; वह वा तव म
य का णक संघष ही नह है। ऐसी हालत म स भोग के तीन दज ह गे—
भू मका, व तु और समा त। तीन दज का प रपूण वकास कया जायगा तभी स भोग
स पूण होगा, नह तो नह । भू मका म दशन, च तन, स भाषण, आ लगन, चु बन,
पीड़न, उद्बोधन याएँ मु य ह। ी-पु ष पर पर यदशन करने से मन म कामांकुर
क उ प करते ह। इसके लए दोन को पर पर के दशन से मो हत करने के लए साफ,
सुग धत, उ वल, सु च-व क, फैशनेबल और य के पस द के रंग और काट के
व धारण करना, चेहरा, आँख, नाक, मुख साफ और सुवा सत रखना, बाल को सजा
आ रखना, और बार बार भ - भ काल म वेशभूषा म प रवतन करना चा हए। इससे
पर पर के दशन से कामो े क होकर स भोग क इ छा होती है। फर ी या पु ष
काम च तन करता है। उसके म त क म भ लगी के साथ स भोग क वासना जाग
जाती है। र के भाव म प रवतन हो जाता है। बीजकोष से अ धक अ तः ाव होकर
र म म त होने लगता है। इससे तीन भाव कट होते ह—म द, म य और ती ।
म दभाव म म द मु कान होती है, पर पर दशन होने पर भी और परो म भी, म द
मु कान आप ही हो जाती है। म य भाव म होने पर रोमांच और ती होने पर गम ास
चलना और अंग गरम होना, ये ल ण हो जाते ह। अब इसके बाद स भाषण क बारी
आती है। कामुक स भाषण वासना-भू मका का एक धान अंग है। कभी-कभी जब पश
नह हो सकता तो स भाषण होता है। यह स भाषण कभी मूक भाषा म संकेत ारा और
कभी वाणी ारा संकेत से भी होता है। वा यायन कहते ह क ी सामने बैठे य क
ओर नह दे खे और य को दे खे तो वयं ल जत होवे; कसी बहाने से अपने सु दर अंग
को दखावे, सरे यान म लगे, छु पे ए, र गये ए नायक को दे खने पर हँसती ई,
अ -सी बात कहे; य के स मुख दे र तक ठहरे; य हो दखाने के लए सरे से मुँह
बना-बनाकर बात करे, जो कुछ दे खे उसे दे खकर ही हँसने लगे और बहाना न हो तो दे र
करने के लए कोई क सा छे ड़ बैठे; गोद के ब चे को छाती से लगा ले; स खय को रोक-
रोककर खेल-तमाशे करे। वा यायन ने जो 64 कला का वणन कया है; वह उ ह
स भोग क भू मका ही मानता है। बौ भ ु प ी अपने अल य ंथ ‘नागर सव व’ म
कामभू मका के 16 भाव गनते ह—हेला, व छ त, व यौक, कल क चत, व म,
लीला, वलास हाव, व ेप, वकृत, मद, मोहा यत, कुह म त, मु धता, तपन ओर ल लत।
ी हठात् चु बन करे, बना पु ष के कहे आ लगन करे, श या पर कंपायमान जंघा
को य क जंघा पर लगावे और काम ड़ा स ब धी अनेक भाव कट करे, यह हेला
कहाता है। प त से नाराज़ होकर, गहने उतारकर, ृंगार याग, ठ जाने को व छ त
कहा है। प त ी के लए कोई पस द लायक चीज़ लावे और वह उसे अ भमान से
अनादरपूवक याग दे तथा वामी पर हाथ भी चला दे , यह व यौक चे ा है। वास से
आए वामी को दे ख हष से फूली न समाकर हष द्गार करे, कभी आँसू रोवे, कभी ब त
हँसने क चे ा करे, यह कल क चत कहलाता है। ोध करना, मु काना, फूल माँगना,
फर फक दे ना, फर उठाकर ृंगार करना, सखी के साथ सो रहना, अकारण इधर-उधर
करना, यह व म कहाता है। प त के जैसी नकल करना लीला कहाता है। प त के पास
जाकर कभी हँसना, कभी ोध करना, कभी मुँह बनाना, अजब चाल चलना, यह वलास
कहाता है, हँसी के मारे क- ककर बोलना, ने के कटा चलाना, हा दक ेम कट
करना तथा वामी के अनुकूल आचरण करना हाव कहाता है। अनया चत दशा म आवेश
मय होकर व वध वकार कट करना व ेप है। जान-बूझकर प त के त अवा य
कहना वकार है। बात करते-करते ी अँगड़ाई ले और कान खुजावे उसे मोहा यत कहते
ह। र तकाल म बाल और तन छू ने पर आन द ा त होने पर भी जो ी बहाने से ःख
कट करे, उसे कुह म त कहते ह। कामो माद म अ ानता क बात करना मु धता कहाता
है। समय पर प त के न आने पर सखी के आगे रोना और अपने भा य क न दा करना
तपन कहाता है। भ , आँख, हाथ, पैर आ द को मोहक ढं ग से प रचा लत करने को
ल लत कहते ह। ब धा इन भाव का उदय कामावेश म ी से होता है। अ ानवश पु ष
इन भेद को नह जानते और ायः लड़ पड़ते ह और इसम वष घुल जाता है। अतः
जानना चा हए क इन भाव को ठ क-ठ क समझकर उनके अनुकूल यु से चे ा करनी
चा हए और अ य त सावधानी से वपरीत भाव को अनुकूल बनाना चा हए।
कामकला म संकेत का खास मह व है। भ ु प ी कहते ह क जो नायक
संकेतहीन है। उसे उ म ना यका सूखे ए फूल क माला क भाँ त याग दे ती है। वे
कहते ह क पु ष सरे काय म चाहे कतना भी चतुर और हो शयार हो, पर य द उसे
कामकला म ी का ध कार सहना आ तो उसका मरण है। संकेत क ा या करते
ए प ी कहते ह—व भाषा, अंगभंगी, पोटली, व , पु प और पान ये संकेत के भेद
ह। पु ष म फल का, ी म फूल का, कुल म अंकुर का, ा ण म अनार का, यम
कटहल का, वै य म केले का, शू म आम का, राजपु म तीया के च का और राजा
म मेघ का संकेत जानना चा हए। हीनकुल म काला फूल, साम त-पु म सरोवर, युवा म
म या का, बालक म अप व का और वृ म प व का संकेत समझना चा हए। ा णी
म कु द के फूल का, राजपु ी म चमेली का, वै यापु ी म जूही का और शू क पु ी म
कुमुद फूल का संकेत समझना चा हए। व ण पु ी म कमल का, म ी क पु ी म
नीलो पल का, कामी पु ष म भ रे का और का मनी म आम क मंजरी का संकेत होता
है। बुलाने म अंकुश का, मना करने म द वार का, रात के लए ढके ए च मा का और
दन के लए सूय का संकेत है। पहले पहर के लए प का, चौथे के लए महाप का
संकेत है। पाँचव महीने के लए राम का, छठे के लए वराम का, सातव के लए वर
और आठव के लए यूष का संकेत है।
यह आ श द-संकेत। अंक-संकेत इस कार ह। कुशल और कुछ कहने म कान
को छू ने का, का मत अव था म बाल के पश का, ेम कट करने म व ः थल का
हाथ से करना। समय का म यमा उँगली को तजनी पर चढ़ाना, अवसर आने पर
अंज ल बाँधना, बुलाने म अंज ल को उ टा कर लेना, पूव दशा के संकेत के लए अंगूठा,
द ण के लए तजनी, प म के लए म यमा, और उ र के लए अना मका। क न ा के
मूल से आर भ कर अंगूठे क अध रेखा तक येक उँ लय म 3-3 रेखा करके 15
त थय का। शु ल प म बाय हाथ म रेखा करना और कृ ण प म दा हने हाथ म। अब
पोटली-संकेत सु नए। ेम क सूचना म सुग धत चीज़, सुपारी, क था। अ त नेह म
छोट इलायची, जायफल और ल ग। ेम-भंग क सूचना म मूँगा, ब त दन के संगम मे
दो मूँग,े काम वर म कड़वी व तु, स ः सहवास के संकेत म मुन का का संकेत होता है।
शरीर-समपण म कपास, जीव-समपण म जीरा, भय संकेत म भलावा, अभय-संकेत म
हरड़। मोम क ट कया बनाकर उस पर पाँच उँगली के च बनाकर लाल सूत से बाँध दे
वह पोटली कहाती है। पोटली का अथ है, मदन ड़ा। संकेत म मोम, अनुराग के लए
लाल धागा, काम त के संकेत म नाखून का च , यह पोटली-संकेत है। व -संकेत म
उ म व फाड़कर दखाने म वयोगा न म बुरी हालत होने का च है। उ कट ेम क
सूचना म पीला व , मलने म सूत के साथ ब धन, एक के नेह म एक व , दो के नेह
म दो व । अब ता बूल-संकेत सु नए। पान के बीड़े पाँच कार के होते ह। एक बीच क
नस और सू से र हत ाका प, सरा अंकुश के आकार का, तीसरा म य म बाण के
आकार का, चौथा पलंग के आकार का और पाँचवाँ चौकोन। नेह के आ ध य म पहला,
आहरण म सरा, मदन- था म तकोना, स भोग सँकेत म पलँग के आकार का और
अनवसर के संकेत म चौकोर बीड़ा दे ना। ेम के अभाव म बना सुपारी का बीड़ा दे ना।
वयोग के संकेत म उ टा लगाकर काले धागे के साथ, संयोग के संकेत मं एक पान को
सरे म अटकाकर लाल धागे बाँधकर दे । याग के संकेत म पान को बीच -बीच फाड़
काले धागे से बाँधकर और ाणा तक अव था म लाल धागे से पान के बीडे़ को सीकर
दे ना चा हए। अ य त ेम के संकेत म पान को टु कड़े-टु कड़े कर जोड़ दे ने, बीच म केसर
से पूरा कर दे न,े बाहर च दन लगा दे ने से दे ना चा हए। फूल के संकेत म वराग म गे आ,
अनुराग म लाल, नेह के अभाव म काले धागे से गुँथी माला दे नी चा हए।
कामुक स भाषण से पश के बना भी जनने य से स ब ध रखने वाली थय से
एक कार का ाव होने लगता है। इसी ाव से सहवास- या आन द द होती तथा
पूण ेजना होती है। वा यायन इस स ब ध म कहता है क मनु य अपने म के साथ
पु पमाला से अलंकृत सुवा सत र तगृह म जाय। पहले खुशामद से ी को स करे।
ी के दा हनी ओर बैठे, उसके केश और व छु ए। पूव क चचा के साथ प रहास और
ेम वचन से उसे अनुकूल बनावे। दो अथ वाली अ ील द लगी करे, चतुराई क बात
छे ड़े, नाच-गान का संग उप थत करे। जब वह इ छायु हो जाए तब पान-इ दे कर
म को वदा करे और एका त होने पर आ लगन, चु बन करे। वा यायन कहता है क
आ लगन, चु बन, नख छे द, दशनछे द, स भोग, सी कार, वपरीत और मुख-मैथुन ये
आठ स भोग के भेद ह। इन आठ म येक के आठ-आठ भेद ह। इस तरह सब मलकर
64 होते ह। इ ह को कला कहते ह। जो इ ह जानता है, वह नाग रक है।
आ लगन के अनेक भेद ह। जैसे वृ से लताएँ लपट रहती ह, उस तरह ी के
लपटने से लतावे त आ लगन होता है। ी य द प त के एक चरण पर चरण रख दोन
बांह से प त का आ लगन करे तो यह स मुख आ लगन कहाता है। ी य द अधीर
होकर चु बन के लए वृ पर चढ़ने क तरह चे ा करे तो वह वृ ा ध ढ़ आ लगन
कहाता है। उठते ए प त को आ लगन करने को उप हन कहते ह। ी को चलते- फरते
भीड़ म छू -भर दे ना पृ क आ लगन कहाता है। य द पु ष ी को द वार के सहारे दबावे
तो वह पी ड़त आ लगन होता है। श या पर पर पर गाढ़ा लगन करके चुपचाप पड़ जाय
तो वह तलत ल आ लगन होता है। दोन तन को अ छ तरह पकड़कर जो आ लगन
होता है वह कुचोपगूढ़ तथा इसी म जाँघ को दबा डालने से उ पगूढ़ आ लगन होता है।
भीड़ म पर पर को रगड़ते ए चल दे ना उ आ लगन कहाता है। मुख पर मुख, आँख
पर आँख और ललाट पर ललाट रखकर जो संघषण होता है वह लाला टक आ लगन
होता है।
चु बन पर ब त-सा सा ह य पा ा य व ान ने लखा है, और उसके अनेक भेद
व णत कए ह। पर सभी काम-वै ा नक क राय है क चु बन म जीभ का उपयोग ही
मुख है। तना और ठ अ य त उ पनशील ह। चु बन म जीभ के बाद दांत का भी
मह व है। माक क बात यह है क दाँत के उपयोग क वृ य म अ धक होती है
और इससे उ ह अ धक उ पन मलता है। पर तु हमेशा मरण रखना चा हए क खास
अव था को छोड़कर कोमल भाव से दबाने से ही अ धक उ पन होता है। काम-
शा य ने चु बन के अनेक भेद बताये ह। ी के यो न-अंकुर को हाथ से सहलाते ए
छाती और ना भ को पी ड़त करते ए जो चु बन होगा, वह वपी ड़त चु बन है। दाँत सर
घुमाकर ी के ललाट और अधर म चु बन करे तो वह मत चु बन है, और य द सर
उठा-उठाकर ने और कपोल म चु बन करे तो उ ला मतक चु बन होता है। ना भ,
कपोल और तन य म फड़कते ए अधर से चु बन करने पर फु रत चु बन होता है।
अधर और ओ मलाकर तथा दय, जंघा और उ चु बन करने से सहंतो चु बन होता
है। मुँह को तरछा करके गले म कपाल और कुच चु बन करने से वैकृतक चु बन होता है।
अ छ तरह मुँह को झुकाकर कपोल तथा सवाग म चु बन करने से नतअ ड चु बन होता
है। वा यायन ने ललाट, ज फ, कपोल, नयन, छाती, तन, नीचे का ह ठ, और जीभ
चु बन के थान कहे ह। लाट दे श के लोग जाँघ क सं ध बगल और ना भ के नीचे के
दे श का भी चु बन लेते ह। जीभ को सूई के आकार क करके ी के मुँह म दे कर
अथवा उसे फैलाकर इधर-उधर घुमाना और ी को चूसने दे ना ज ा का मह वपूण
चु बन है। उस चूषण के भी अनेक भेद हो जाते ह। वा यायन चु बन म दाव लगाने क
व ध बताता है, अथात् दोन म से कौन कसका ह ठ चूम ले या पकड़ ले। य द ी हार
जाय तो ससकारी लेती हाथ पटके, प त को ध का दे कर र कर दे , आप बारा काट ले,
फरकर बैठ जाय और कहे क बाजी लगाओ, और फर हार जाए तो शोर मचा दे । फर
अचानक धोखा दे कर प त के अधर दाँत म दबाकर हँसती ई अपनी वजय क घोषणा
कर दे , प त को धमकावे क छु ड़ाओगे तो काट लूँगी। ताने मारे, फर बाजी लगाने को
कहे, नाचे और आँख चलावे, इसी कार नाखून से, थप कय से चोट प ँचाने और
काटने क भी कला और भेद ह। वा यायन एक धोखे के चु बन क व ध बताता है क
प त के पैर दबाती ई ी न द का बहाना करके अपना सर प त क जाँघ पर रख दे
और फर चूम ले, इससे रस वृ होती है। इसी कार और भी राग-वृ के उपाय कहे
ह। प ी कहता है क पृथक्-पृथक् ऋतु म पृथक्-पृथक् जा त क ी भोगनी चा हए।
16 वष तक ी क बाला सं ा है, तीस तक त णी, पचास तक ौढ़ा और इससे ऊपर
वृ ा। ी म और शरद् म बाला, हेम त और श शर म त णी, वस त और वषा म ौढ़ा
ी भोगने यो य है। ी के बगल और गु त थान म बाल न होने चा हए तथा मुख पर
तल होना चा हए। बैठने म बाला का, सोने म त णी का और उठने म ौढ़ा का स कार
करना चा हए। पु ष को ना भ, दय और क ठ दे श म ास-धारण करके कामवशी होने
का अ यास करना चा हए। चु बन के बहाने से अपनी साँस ी को पलानी चा हए, पर
वयं उसक साँस न पीना चा हए। जब सी कार आर भ हो, यो न फड़कने लगे, तब
कामकला-कुशल पु ष स भोग को आर भ करे। इस कार ी का उ पन करके जो
पु ष ी को तृ त करता है, ी उसक दासी हो जाती है। प ी कहता है, जंघा, उ ,
ना भ, कु , कुच य, हथेली, गला, ललाट, नयन, कान, म तक एवं सवाग म त थ म
से काम का उदय होता है। शु लप म बाय पाँव के अँगूठे से काम का अरोहरण होता है
और कृ णप म सर से नीचे तक मशः अवरोहण। कृ णप म अंगु मूल से मशः
केशपय त काम स ा त होता है और उसी शु लप म सर से मशः चरण के अ भाग
तक काम उतरकर चला जाता है। प ी कहते ह क ी क यो न म स भोगे छा करने
वाली चौबीस ना ड़याँ ह। उनका नगम- थान मदन छम कहाता है। इसे ही भगनासा
कहते ह। इसे उँग लय से मसलना चा हए। बाला को उँग लय से और ौढ़ा को उँग लय
और लग दोन से रगड़ना चा हए। दो नाड़ी मुख म, दो आँख म, एक हलक म, ये चार
उ ेजक ना ड़याँ ह। एक नाड़ी अंगु मूल म है जो पैर के अँगूठे के नाखून से उ े जत
होती है। कान, जाँघ, पसली, पीठ का नीचे का भाग, म तक, इनम नखाघात से कामो े क
होता है। सती, असती, सुभगा, भगा, पु ी, ह णी, ये छह महानाड़ी जनने य म ह
जो स भोगे छा को जागृत करती ह। वामभाग म सती, द ण म असती, छ के बीच
बाय-दाय, वामपा म थोड़े अ तर पर सुभगा और भगा नाड़ी है। यो न के ब त भीतर
पु ी और द ण म ह णी नाड़ी है। सती के संचालन से असती कु पत होती है तथा
असती के संचालन से सती सदा स तु रहती है। सुभगा-संचालन से सुभगा यद शनी
होती है, भगा के संचालन से ी भगा होती है तथा वण, वरंग, बल और वृ हो
जाती है। पु ी के संचालन से ी युवती होती है और ह ी के संचालन से ी के क या
होती है। पु ी तथा ह ी के संचालन से नपुंसक स तान होती है। सती कुच-मदन से,
असती बगल सहलाने से, सुभगा ओ -चु बन से, भगा कमर सहलाने से, पु ी मुख-
चूषण से और ह ी चूतड़ सहलाने से ोभ को ा त होती है। खास-खास दे श क
याँ खास-खास चे ा से उ े जत होती ह। म यदे श क याँ कोमल र त पस द
करती ह। व ख और उ जैन क याँ भी ऐसी ही होती ह पर वे भाँ त-भाँ त के आसन
को पस द करती ह। मालवे क याँ और अहीर याँ आ लगन, चु बन, नख, द त,
त, और अधर चूसना पस द करती ह तथा स भोग म ज़ोर क चोट को पस द करती ह।
स ध, सतलुज, उड़ीसा क याँ मुख-मैथुन करती ह। प मी समु के कनारे क
याँ ती वेग पस द करती ह; ऐसी ही कौशल दे श क याँ होती ह। आं क याँ
कोमल स भोग य और मुख-मैथुन करने वाली होती ह। महारा क याँ 64 कला म
वीण तथा अ ील वा य को पस द करने वाली तथा वेग का गमन पस द करती ह।
पटना क याँ भी ऐसी होती ह। क कण दे श- दे श क याँ समवेग सहन कर लेती
ह। क मीर क याँ सुग ध क बड़ी शौक न होती ह। पंजाबी याँ आघात चाहती ह।
लंका क याँ अनेक र तकला म चतुर होती ह। स धु दे श क याँ पशु के समान
स भोग से खुश होती ह। भुवन क याँ कृ म चे ाएँ पस द करती ह। नेपाल,
काम प तथा चीन क याँ आघात, मदन, नख त, द त त, या अ तसंचालन म
नः पृह होती ह। द ण दे श के गुलाम ी के मुँह म जीभ दे कर चूसने को ब त मह व
दे ते ह। बालकल जा त म पु ष य को उ े जत करने के लए उ ह खूब चढ़ाते ह फर
गा लयाँ खाते और पटते ह। सहवास के समय वे उनके तन और अंग को दाँत से त-
व त कर डालते ह। इस कार के घाव को वे याँ अपने प त के ेम का च
समझकर गव करती ह और गीत म उनका बखान करती ह।
ी शरीर म तना और भगनासा ये दो उ ेजना के के ह। पु ष क म
सम त तन-अंग उ ेजक है पर तु ी के लए अ भाग का मृ मसलना। दोन का एक
साथ मदन अ य त उ ेजक है।
जब पु ष इन बात क परवा न करके केवल अपनी ही वासना तृ त करते ह तब ी
अ -उ े जत रह जाती है, जससे दोन का ेम-आकषण कम हो जाता तथा ी म
अनेक रोग घर कर लेते ह। पर तु य द दोन क काम-तृ त होती है तो दोन को परम
सुख ा त होता है। आम तौर पर थम स भोग म पु ष ज द ख लत हो जाता है, फर
उ रो र दे र होने लगती है। पर तु ी का नयम इसके वपरीत है। शु म उसे दे र से
स तोष होता है, पीछे ज द -ज द स तोष होने लगता है। कभी कभी अ य त चे ा करने
पर भी कामो े क ठ क-ठ क नह होता और यो नरस ा त नह होता। तब वेसलीन या
कोई चब काम म ली जाती है। पर ये सब चीज़ साफ़ नह हो सकत , बाद म सड़ जाती
ह। इससे य द बाहरी कसी पदाथ क यो न को गीला करने के लए आव यकता पड़े तो
इसके लए सव म चीज़ मुखरस है, पर इसका उपयोग हाथ से नह चु बन ारा होना
चा हए। पर तु शत यह है क गु ते य अ य त साफ और शु हो।
कुछ काम-शा य का मत है क थम वेश सदै व ही सुखद नह है। य प
वा यायन ार भ म अ य त कोमलता और धैय क सलाह दे ता है। पर तु सरवे नयन
लोग इस द कत क परवाह नह करते। वे अपनी और ी क गु ते य म ीस क
चकनाई लगा दे ते ह। अ य दे श म भी एक कार का तेल काम म लाया जाता है।
सर वयन लोग इस काम के लए मछली क चब यादा पस द करते ह। उन लोग का
एक आम च लत गीत है जसका मतलब है क हे परमे र, मुझे ल बे हाथ-पैर दे ,
जनके ारा म गहरे समु म जाऊँ और ‘ पक’ नामक मछली को पकडू ँ और उसका तेल
नकालूँ जससे ी क यो न के मुख को चकना क ँ । ाचीन काल म सहवास
अ व छता का भी काम समझा जाता था। हीरोडोट कहता था क बेनोलो नया म ी
पु ष सहवास के बाद ब ल दे ते और सुबह नान करते थे। असी नयन लोग यह समझते ह
क सहवास करने से इतने अप व हो गए, जैसे मुदा छू लया हो। य द लोग सूया त
तक दोन अंग को अप व मानते थे। ले ल ड क नववधू थम सहवास के बाद दो
महीने तक अपना मुँह कसी को नह दखाती, न प त को सहवास करने दे ती है। पर तु
ऐ लस ने लखा है क टाटे नवासी ववाह के इन गवाह क उप थ त म थम सहवास
करते ह। अरब क सु बा जा त वाले नवद प तय को आठ दन तक अकेला छोड़ दे ते ह,
और उनको नह छू ते य क वे अशु समझे जाते ह। जब द प त सबके सामने आते ह
तो अलग रहते ह और दोन साथ नह रहते। अलबी नया म नवद प त का सबके सामने
कट मलना ल जाजनक समझा जाता है और वे गु त प से सबक नज़र बचाकर
मलते ह, जब तक क पहला ब चा नह हो जाता। मु लम धम सहवास के बाद नमाज़
पढ़ने क आ ा नह दे ता, पर तु या ा आ द म थोड़ी रयायत करता है। उसम भी वह रेत
से हाथ और मुँह रगड़ने क हदायत करता है। मुसलमान म रमज़ान के दन म रात के
व ी से सहवास करने क पु ष को आ ा है। पर तु हज करने वाल को सहवास क
आ ा नह है। ह क उ च जा त म स भोग के बाद अपने को अप व आ समझा
जाता है। एक प डत जी को हमने दे खा था जो उस समय कान पर जनेऊ चढ़ा लया
करते थे।
कामो पन

प◌ु रानाी-पु षढ़वाद यह है क सफ गभ पादन ही के लए सहवास करना चा हए;


का स ब ध सफ स तानो प के लए ही होता है। इस लए ी-
पु ष को ऋतुकाला भगामी होना चा हए। संसार के सभी नी तवान् पु ष तथा धम थ
ने इस पर ज़ोर दया है। ह धमशा , ऋ ष दयान द, महा मा टा टाय और महा मा
गांधी इस स ब ध म ी-पु ष को खूब ही कड़ाई से बाँधना चाहते ह। पर तु यह बात
याद रखने क है क सहवास का सफ नी त या धम ही का नह है, वह वा य
का, व ान का और जीवन के ाकृ तक वकास का भी है। इन तमाम बात पर
ग भीरता से वचार कर म उपयु नी तवान् और धमाचाय के वपरीत अपनी यह राय
कायम रखता ँ क सहवास का मु य उ े य सफ गभाधान या स तानो प ही नह है,
युत व भ लगीय असाधारण आन द ा त भी है। जनसे न केवल वा य और
जीवन को ही उ त मलती है, युत आ मक फु लता भी ा त होती है। सहवास
स ब धी मामल म तब ध करने का य द कसी को अ धकार है तो सफ च क सक
को, जो एकमा इसी कारण से ी-पु ष के सहवास पर तब ध लगा सकता है या
उसे सी मत कर सकता है क जब वह दे खे क उससे ी या पु ष के वा य पर खतरा
है। और यह बात तो सवथा ही नमूल है क सहवास हर हालत म वा य के लए
हा नकर है।
आधु नक जग यात डा टर ने काम- व ान स ब धी कुछ मह वपूण बात का
पता लगाया है। उ ह मालूम आ क उ माद या ह ट रया के ी रो गय को कुछ-न-
कुछ गभाशय स ब धी शकायत है और भली-भाँ त अनुसंधान करने पर उ ह मालूम
आ क काम-स ब धी वकार को दबाकर रखने से ही यह रोग उ प होता है और
पु ष क अपे ा य पर इसका आ मण अ धक होता है क वे पु ष क अपे ा
अ धक कोमल ओर भावुक ह और कामवेग उनम ब त है और ब धा प व आयु होने से
थम भी ये वकार प र थ तवश उ प हो जाते ह और ज ह य को अ धकतः
हठात् दबाना पड़ता है।
सामा जक दशा कुछ ऐसी है क इस कार के काम-स ब धी वकार को और
उनक मृ तय को दबाकर भुला दे ने क वृ का अ यास करना पड़ता है और कुछ
लोग म वृ बढ़ जाती है। ऐसी प र थ त होने पर जब कामवासना का अंकुर उठता है
तब कसी भी समीप थ बालक-बा लका के बीच कामुक अनुर उ प हो जाती है,
और ब धा समाज के वपरीत होने के कारण उसे दबाकर रखना पड़ता है। पर ब धा यह
समझते ए भी क वह उस अनुर को दबा सका है, अपने को भुलावे म रखता है। पर
उसके वहार, बोल-चाल, लेखन और रहन-सहन म वह वासना कभी-कभी कट हो
जाती है, य क आ त रक कामवासना जागृत रहती है। बचपन म कामवासना सारे
शरीर म फैली रहती है, क तु आयु प व होने पर जनने य म के त होती है या फर
कसी भी बा लका या कसी भी समवय क बालक के त या बालक का बा लका के
त आक षत हो उठना ब कुल वाभा वक है। पर तु वह कामास या तो नै तकता-
व होती है या प र थ त के, इससे दबा द जाती है और रोग पैदा हो जाता है।
युव तयाँ ायः अपने पता के समान प-गुणयु वर और युवक माता के अनु प
वधू को पस द करते ह, भाई बहन के अनु प नह । य प वे माता- पता क अपे ा
उसक आयु के अ धक नकट ह। पु ी पता के त और पु माता के त ज मभर
आक षत रहता है। तो, मने यह कहना चाहा क स तान के वा स य और प व ेम के
बीच भी एक नैस गक वासना है, पर तु यौवनागमन के समय जब वासना गु ते य म
के त हो जाती है तब अनेक अनु चत और न ष आकषण अंकु रत होते और वे
बलपूवक दबाये जाते ह। उ माद और ह ट रया के रोग इ ह कारण से उ प होते ह।
कभी-कभी उ म ाव था म उनके वचार कट हो जाया करते ह। ह ट रया के केस म
कई बार ऐसा दे खा गया है क याँ जतनी स य और सुशील होती ह, दौरे होने पर
उतनी ही वीभ स और अ ील हो जाती ह। पागलखाने म पु ष के वाड म कोई
उ े जत पु ष इतना अ ील नह बकता जतनी याँ। और इसका कारण यह है क
पु ष को अपनी वासना-शा त के लए कुछ कृ म साधन ा त हो जाते ह, पर य
को नह । उ ह उस वृ को दबा दे ने के लए ब त सी मान सक श खच करनी पड़ती
है।
नी त-शा ी धमाचाय मनो न ह और संयम पर चाहे जतना ज़ोर डाल और उसक
उपयो गता क चाहे जतनी भी शंसा कर, पर तु बलात् मनो न ह के षत प रणाम से
छु टकारा मल नह सकता। स चा संयम और यथाथ मनो नयम को पालन करने क
श वरले मनु य म होती है, सवसाधारण म उसका चार भयानक रोग और शरीर
वकार का ज मदाता है। म अ य त न यपूवक कह सकता ँ क ऐसे लोग जो इस
कार के मनो न ह का पाख ड करते ह, ायः राचारी मा णत होते ह। बौ का
पतन उनके उ कट संयम-स ब धी नयम से आ। ईसाई पाद रय म जो बड़े प व गने
जाते थे, वे अ तशय जघ य राचारी मा णत ए और ईसाईय के प व थान
वे यालय से भी गये बीते हो गये। इसके वपरीत सीधा-सादा गृह थ जो अपनी प नी म
अनुर है और जसने कभी संयम के वषय म कुछ भी नह वचारा है, जब प त-प नी
को वाभा वक कामोदय होता है, दोन सहवास का आन द लूटते ह, एक प व जीवी
और शा त ाणी है और कसी भी अथ म उसे राचारी नह कहा जा सकता।
म घोषणा कया चाहता ँ क कामवासना एक च ड श है और उसे उपदे श
और कृ म उपाय से बलपूवक दबाना उतना ही भयानक है जतना क वैसे उपाय से
वासना को च रताथ करना। इस लए इसका एक ही स चा और सुगम माग है क उसक
तृ त का नैस गक वाह सहज प म उपयोग म लाया जाये।
साधारणतया कामवासना को लोग वाभा वक वृ अथवा दे ह वभाव समझते ह,
पर वा तव म यह बात नह है। शरीर म कुछ ऐसी भ - भ थयाँ ह जनम व भ
कार के उ प होते रहते ह और सदै व जा त जीवनी श उनका संचालन करती
है। वे खास सू म ना लय ारा र के साथ मल जाते ह। इन ाव का मनु य
के वभाव पर ब त ही मह वपूण भाव पड़ता है। इन पे शय ारा दो कार का
पैदा होता है। एक वह जो खास ना लय ारा बाहर नकल जाता है। बाहर नकलने वाले
इस व को ब हः ाव कहते ह।, यही अ तः ाव र म मलकर कामवासना पैदा करता
है। इस कार के ाव को अ धक मा ा म बहाने वाली थयाँ बीजकोष भी ह, इनका
ब हः ाव पुँबीज और ीबीज है। जो अ तः ाव र के साथ मलकर कामवासना पैदा
करता है, वही शरीर क पु षाकृ त और ी-आकृ त के च ह को उदय करता है, उसी
के भाव से पु ष क दाढ़ -मूँछ और य के तन और नत ब क वृ होती है। इ ह
के आधार पर पु ष और ी के वभाव का भी नमाण होता है। बीजकोष क थय
म इस कार का अ तः ाव इतना मह वपूण है क य द एक मुग के बीजकोष क वे
इ याँ नकाल द जाएँ तो उसके पुंस व के च चोट आ द धीरे-धीरे गायब होने लगती
ह। जन पु ष के शरीर म या य के शरीर म थयाँ यथे ाव नह उ प करत ,
वे नपुंसक हो जाते ह और उनक दाढ़ -मूँछ या तन- नत ब आ द क बाढ़ क जाती है।
यहाँ तक दे खा गया है क दो मुग को उनक बीजकोष थयाँ नकालकर उ ह एक
पजरे म मुग के साथ शा तपूवक रखा जा सकता है, जो उनके झगड़ालू वभाव के
सवथा वपरीत है। ये मुग एक साथ कभी बना लड़े मुग के पास रह नह सकते, पर तु
इन बीजकोष के न होने से उनका वह वभाव भी बदल जाता है। इस वै ा नक
अनुसंधान के आधार पर हम कह सकते ह क वभाव वा तव म एक रासाय नक
प रणाम है और इसका मूल उ म अ तः ाव पेशी म पैदा होता है। शरीर म ऐसी अनेक
थयाँ ह, जो इन ाव को उ प करती ह। उनम से य द कसी एक का काम सु त हो
तो उसका सरी पे शय पर भी आ यजनक भाव पड़ता है और उससे दे ह- वभाव ही
बदल जाता है। अब इस कुदरती वै ा नक शरीर नमाण क बारीक को न जानकर थोथे
नी त के उपदे श ारा सब कसी को संयम का उपदे श दे कर और उनके वभाव और
शरीर नमाण के तकूल उ ह बलात् संयम के लए ववश करके उन पर घातक भाव
डालना कभी भी याय-मूलक नह कहा जा सकता। जानना चा हए क मन शरीर से भ
नह है। वा तव म वह शरीर के गुणधम का ही प रणाम है। पेशी के ाव के कारण
कामवासना के बल हो उठने पर उसे बड़े संयम के लए ववश करना वर-पी ड़त
आदमी को ठ डा कर दे ने के समान घातक है।
आ या मक कोण से आ मा शरीर से एक पृथक् स ा है और वह शरीर और मन
पर नय ण करने क श रखती है, पर तु स ा तवाद को छोड़कर वहार म
उसक कोई उपयो गता नह है। न व ान ही उसके अ त व से कोई लाभ उठा सकता है
और न उसके अभाव से व ान का कोई काम अटकता है। अब कसी शारी रक काम क
बल इ छा को मसोस डालना वा तव म आ मा का नह , मन का ही काम है। वह इ छा
जतनी द य होगी, मन को दमन करने म उतना ही य होना पड़ेगा य क मन क ग त
तो इ य क इ छा क पू त क ओर है। मन क श आनुवं शक होती है। पूव के
वचार-सं कार से वह भा वत रहती है और पूवानुभव का उस पर भु व रहता है। ऐसी
दशा म कसी भी इ य क वषये छा य द बल होती है तो अ य इ छाएँ मृ त से
ओझल हो जाती ह। इसके अलावा पूवानुभव क मृ त उस ए क इ छा पर के त
रहती है। अब शरीर इस नैस गक उ े ग को जो पराका ा पर प ँच चुका है, दबाना न य
ही शरीर क जीवनश के वपरीत एक भयानक ध का दे ना है। जससे वह श
छ - भ हो सकती है।
मनु य का एक व च वभाव है क वह कसी क कामवासना अपने से अ धक
दे खता है तो उसे कामी, और कम दे खता है तो नपुंसक समझता है। वह सफ अपने को
ठ क समझता है। पर तु जनक कामवासना म द है वे अकारण ही अपने को मनो न ही,
इ यजयी कहकर अपनी शेखी बघारते ह। पर सच पूछा जाय तो उनके शरीर क ु ट
है, कुछ तारीफ के यो य बात नह ।
तब, यह नणय आ क बीजकोष के अ तः ाव के र के साथ म ण होने पर जो
मनः थ त पैदा होती है, वही कामवासना है। ी और पु ष के शरीर के प रप व होने
पर जब शारी रक अ तर पड़ता है और कामवासना क उ प होती है, तब उसके बल
हो जाने पर आनुवं शक सं कार के अनुसार भ लगी के साथ सहवास क इ छा उ प
होती है और कभी-कभी यह इ छा इतनी उ कट हो जाती है क सारी जीवनी श उसी
म के त हो जाती है। इसम स दे ह नह क इस अव था का धान कारण बीजकोष ही
है। पर तु कामवासना का सवथा उ म सफ बीजकोष ही नह , म त क और पृ -
म जात तु भी ह। इन दोन थान म भी कामवासना स ब धी के ह और इन सबके
संयोग तथा सहयोग से जो मान सक प र थ त उ प होती है, उससे कभी-कभी
कामवासना च ड हो जाती है। आम तौर पर य म यौवनागम के समय कामवासना
उतनी च ड नह होती। उनक वासना क बलता ायः तीस से चालीस वष क आयु
तक होती है। इसम बा सामा जक प र थ त का बड़ा हाथ होता है। कुछ ऐसे भी
उदाहरण होते ह क समागम के समय तक या गभधारण के बाद तक भी कुछ य म
कामवासना नह उदय होती। कुछ लोग का कहना है क ी म कामवासना पु ष से
आठ गुनी है, पर तु ग भीर ववेचन से दे खा गया है क म द कामना पु ष क अपे ा
य म ही अ धक पाई जाती है। हो सकता है क इसका कारण सामा जक दबाव हो,
पर तु इस स ब ध म एक मह वपूण बात यह है क पु ष क कामवासना उनक
जनने य म के भूत होती है पर तु ी के सारे शरीर म फैली रहती है। इसके सवा
याँ त ण कामांकु रता रहती ह, पर तु पु ष-दशन और पश से वह ठ डी हो जाती
ह। इसके वपरीत पु ष त ण शा त रहता है, ी-दशन और पशन से वह उ े जत
होता है। इसी लए काम व ा नय ने इस बात पर ज़ोर दया है क बा र त के ारा
सहवास से थम ी को काम व ल कर दे ना चा हए, तब र त सहवास करना चा हए।
एक बात और है क ऋतुकाल के समय म य म कामे छा बल हो जाती है, पु ष म
ऐसी कोई बात नह है। फर भी कभी-कभी प ह और बीस तशत य म
कामवासना होती ही नह , या नाममा को होती है।
अब हम एक सरी मह वपूण बात कहना चाहते ह, वह यह क कामवासना के
उ पन होने म सरी ाने याँ भी सहायक होती ह। इनम जीभ और नाक दो ाने याँ
मुख ह। ायः जीभ और नाक का काय इस वषय म स म लत होता है। तनपायी
जीव म नाक का ब त मह व है। कु ा, भसा, घोड़ा और सरे जीव नाक से मादा क
यो न-ग ध सूँघकर या जीभ से चाटकर कामो े जत होते ह। ी-पु ष के शरीर म, चाहे
वे कतने ही साफ रह और कृ म सुग ध योग म लाय, एक अद य नैस गक ग ध रहती
है। वह ग ध कामो पन से अ धक बल हो उठती है। इसी ग ध से कु ा अपने मा लक
को पहचान लेता है। यही ग ध मनु य के ासो छ ्वास और पसीने म भी होती है।
पर तु यह उस ग ध से पृथक् है जो कसी रोग के कारण सड़ी ई पसीने से, या सड़े
दाँत के कारण मुँह से, या ग दे व पहनने से आती है। बगल म खास थय के कारण
वहाँ यह ग ध अ धक होती है और चाहे कतनी भी सफाई य न रखी जाय वह मट
नह सकती। कभी-कभी यह अ य भी होती है, पर कामो ेजना होने पर य तीत
होने लगती है, उ पन म मदद दे ती है। य के ऋतु-दशनकाल म एक सरे ही कार
क ग ध होती है जो वा तव म घृ णत होती है, पर कुछ लोग को इसी से उ पन होता
है। ी पु ष के गु तांग म अ य समय म एक वशेष ग ध आती है और सामा यतः वह
एक- सरे को आक षत करने वाली होती है। इ य क उ ेजना होने पर यह य लगने
लगती है और अ धक उ ेजना पैदा करती है। यह ग ध एक वशेष कार के सू म
क टाणु के ारा होती है। उसी से उ पन होने पर आनुषं गक थ ारा ब हः ाव
होकर उस ग ध म मल जाता है और उ पन म सहायता प ँचाता है। वीय म एक गंध
है। यह ग ध पृथक्-पृथक् येक पु ष के वीय म होती है। पर वह पु ष के लए
घृणाकारक और य के लए आकषक होती है। पर तु याँ उसी पु ष के वीय क
ग ध से उ े जत होती ह जो इ ह य हो। कुछ वै ा नक का कहना है क सहवास म
रेत- खलन के बाद ायः 15 मनट से एक घ टे तक ी के ासो छ ्वास म ऐसी ग ध
आने लगती है, जो ब त बारीक से जाँची जा सकती है। माक क बात यह है क वह
ग ध शु म य नह होती, उ ेजन के बाद य लगने लगती है। समागम के समय
पान, इलायची, क तूरी, इ , सट आ द का उपयोग ार भ म इस ग ध क अ यता को
र करना ही है। इससे उ ेजना के ार भ म जो पर पर क ग ध से अ य भाव उ प
होने क आशंका है, उससे बचाव हो सकता है और आगे उ ेजना म मदद मलती है।
इस कृ म ग ध य म से कुछ का भाव ी पर और कुछ का पु ष पर अ धक
पड़ता है, यह बात चतुर पु ष के जानने यो य है। क तूरी का भाव ी पर अनुकूल
होता है, य क वह एक वशेष कार के नर ह रण के जनने य के पास क एक थ
है और उसके मद से म त होकर हर णयाँ उसके पास सहवास कराने आती ह। इसी से
याँ इस ग ध पर अ धक मो हत होती ह। पर तु पु ष के लए क तूरी क ग ध कभी-
कभी अस हो जाती है। पर तु साबुन, इ , पाउडर आ द म ह क मा ा म इसका
उपयोग करना सहज हो जाता है। मरण रखने क बात है क ायः अ ल पदाथ के
योग से शरीर क ाकृत ग ध दब जाती है और आलकली से नी हो जाती है। लेवे डर
से यह ग ध तुर त दब जाती है, पर तु क तूरी चूँ क शरीर-ग ध है, इससे वह क तूरी से
तेज़ हो जाती है। अगर साबुन म क तूरी का म ण होगा तो उससे दे ह गंध क ती ता
बढ़े गी, चाहे जतना भी शरीर को साफ कया जाये। पर तु लेवे डर, आलकली, क आ,
बादाम आ द से वह दब जायगी। इस भाँ त कामो ेजना के संग म व वध ग ध का
अ य त मह व है। चमेली क ग ध, च पा क ग ध और अ य ेत पु प क ग ध य
को तथा गुलाब आ द रंगीन पु प क गंध पु ष को य है। उसी भाँ त याँ पु ष को
उ वल- ेत प रधान म दे खना य समझती ह। और पु ष य को रंग- बरंगे
प रधान म। पा ा य दे श म पु ष नैशो सव म काला प रधान रखते ह पर कफ़, कॉलर,
कमीज़ सफ़ेद रखते ह और उस ेत रंग को अ धक उ वल रखने को ही काला रंग चुना
गया है। यही बात श द से भी स ब ध रखती है। जो पु ष अ य त कामुक होते ह और
अ त सहवास करते ह उनक ाणे य बेकार हो जाती है। पसीने क ग ध से
कामो ेजना होने के अनेक उदाहरण ह। हेनरी तीसरे के समय के नवरे के राजा ओर
मारगेरेट क सगाई के समय राजा ने अक मात् मे रया के माल से मुँह प छ लया
जसम उसके पसीने क ग ध थी और उससे वह इतना कामो े जत हो गया क उसे
कना अस भव हो गया, य प मे रया सरे क हन थी। इसी कार चौथे हेनरी ने
एक बार ज ील के तर माल से अपने पलक प छे थे, इसी पर वह उस सु दरी पर मर
मटा। वै ा नक ने कहा क ाणे य से कामे य का सीधा स ब ध है। ी-पु ष क
जनने य पर बफ रखकर नाक का र बहना रोका जा सकता है। अनेक ी पु ष
को अ य धक कामो ेजना होने पर उनक नाक से खून जारी हो गया है।
कामो पन म संगीत और मृ वा का भी ब त भाव है। यह भाव पु ष क
अपे ा य पर अ धक पड़ता है। आम तौर से कहा भी यह जाता है क संगीत य
क कला है। ायः वे या के यहाँ पु ष जाकर संगीत वण करते ह और समझते ह
क इससे उनका कामो े क होता है, पर यह उनका म है। वे या को पास बैठाने,
उनसे पान लेन,े बात करने आ द का सुख उ ह उ े जत कर सकता है, संगीत नह ।
संगीत से ही ी उ ेजना अनुभव करती है। और इसी से कहा जा सकता है क
संगीतकला म कभी भी याँ पु ष के समान नह हो सकत । ऐ लस हैवलॉक कहते ह
क गायन ारा अव य ही याँ नैश यक उ ेजन पाती ह। खासकर नाटक य गायन उन
पर अ धक भाव रखते ह। कुछ याँ वीभ स गायन यादा पस द करती ह। कोरस के
गान से भी याँ उ े जत होती ह। डार वन भी यही मत रखता है क संगीत क वर-
लहरी ी को ेम-मो हत करती है। बा लका शशु अव था म बालक से अ धक संगीत
क ओर झुकती है।
कामो ेजना के दो वभाग कए जा सकते ह—एक तो सहवास क इ छा, सरी
उसक प रतृ त। ये दोन बात ही भ लगी ी-पु ष म एक साथ होनी चा हए।
कामो ेजना का मूल कारण बीजकोष का अ तः ाव है, यह कहा जा चुका है। उसी से
म त क क नायु-के ावली आ दो लत होती है, पर तु लगे य का ढ़ करण और
वीयपतन रीढ़ क ह य के अधीन है। त त आदमी का म त क और रीढ़ क
ह य के अधीन है। त त आदमी का म त क और रीढ़ क ह य का म यभाग
सदै व संग ठत प से काम करता है। वीयपात के समय वासना अपने ती तम आवेग क
पराका ा को प ँच जाती है। काम-सहवास म ायः अंधकार होता है, फर भी
कामवासना म का भी उपयोग जीभ, नाक और कान के बाद म है। पु ष ी का
मुख, तन और नत ब को दे खकर कम या यादा उ े जत होता है; और याँ धीर,
वीर सीधा, मजबूत ह ी वाला पु ष दे खकर कामवासना का उ पन करती ह। अब रह
गई पश या वचा। पश-श सारे शरीर क चमड़ी म ा त ज़ र है पर एक समान
नह । भ - भ अंग से भ - भ प रमाण म पश ेजना है। उँगली, ह ठ ओर
ज ा म सवा धक पशश है और वह सबसे यादा कामस ा को उ ाम करती है।
ह ठ कसी भी छे द का ा त भाग, कान और गदन का कुछ भाग, जाँघ, और रान, य
के तन , खासकर तन क घु डय म अ धक उ ेजक श है। फर भी पश से
उ ेजन कतनी मा ा म हो, इसका नभर मनोदशा पर अवल बत है। मन क अनुकूलता
म उ ेजन शी और ब त होता है। य द ी-पु ष व थ ह तो पर पर आ लगन से ही
दोन म कामो ेजना उ प हो जाती है। कभी- कभी छोटे -छोटे ब च को शरीर को
सहलाने क आदत पड़ जाती है, नवयुव तय और पु ष म भी यह आदत होती है। एक
28 वष क युवती का कहना है क बचपन से ही सहलवाने म मुझे ब त सुख ा त होता
है , 10-12 साल क उ से ही मुझे इसका च का पड़ गया था। म अपनी छोट बहन से
टाँग सहलवाया करती थी। ववाह के पूव ायः युव तयाँ छाती और बगल को छू ने से
चमक उठती ह, पर ववा हत होने पर उ ह इन अंग के सहलाने म अ धक सुख मलता है
और उसी से उनम कामो ेजन होता है।
ये शरीर- या से स ब धत बात, अब मनोदशा पर भी वचारना चा हए।
कभी-कभी भय, च ता और उ े ग से भी कामो ेजना होती है और शोकावेग म भी। म
आ द मादक भी ानत तु को उ े जत करते ह। मादक के अलावा केसर,
क तूरी, दालचीनी, अदरक, मच, पपरमट, मांस-रस, अ डे, याज़, लहसुन, अ नास,
ज़दालु आ द कामो ेजक ह। चाय, कॉफ , सगरेट आ द भी उ ेजक ह। ताड़ना,
आघात, नख त का भी उ ेजना पर व च भाव पड़ता है। वशेष अंग को ताड़ने-
पीड़ने या आघात करने से ी व ल होती है। अफ म और म अ प मा ा म ही
उ ेजन करते ह, अ धक म नह । आधु नक वै ा नक ने पता लगाया है क वीय और
चेतना का अ ध ान म त क म फा फोरस होता है। इससे कामो ेजना म फा फोरस
अ य त मह वपूण चीज़ है। बल मनु य इसका सेवन करे तो उसे भूख लगे, वजन बढ़े
और वा य सुधरे। यह अँ ेज़ी दवाख़ान म पृथक् भी बकता है। पर तु अ ड , फल
और अ य पदाथ म भी पाया जाता है। कामो ेजक दवाइय का भाव ब त-कुछ
व ास के आधार पर भी होता है, जनक चचा हम आगे चलकर करगे।
नंगे शरीर या च दे खने से कामो पन होता है। कसी को खास कार क ग ध ही
से कामो पन होता है। शरीर के पश से, रगड़ से भी कामो पन हो जाता है। सहवास-
स ब धी वाता सुनने और पढ़ने से कामो पन होता है। कुछ ी-पु ष तो ऐसे होते ह क
उनक कामतृ त कसी अंग वशेष के दशन या पशमा से ही हो जाती है। ऐसे लोग म
अव य कुछ-न-कुछ मान सक वकार होता है। ब त लोग य के जूते सं ह कया
करते ह। कुछ य के बाल से कामो ेजना का अनुभव करते ह। कुछ लोग य क
चोली या माल या सरे व जो उनके हाथ लग चुरा ले जाते ह, उसी से उ ह उ पन
हो जाता है। ऐसे लोग वकृत वभावी होते ह और ायः वाभा वक समागम क अपे ा
नह करते; इ ह व तु से उनक तृ त हो जाती है। कुछ पु ष अंग-भंग वाली, काली-
कलूट , ब त मोट या ब त पतली य को पस द करते ह और उ ह से उनक
कामो ेजना होती है। ांस के एक त ववे ा क ेयसी कानी थी, अतः उसक अ भ च
हमेशा कानी य क तरफ वशेष होती थी। वह आदमी काम व ान का भी भारी
प डत था। पु ष क भाँ त याँ भी कभी-कभी एक वशेष कार के पु ष को
पस द करती ह। कुछ दे श म ढ़याँ खास तौर पर बन गई ह। उ ह के आधार पर उन
दे श म याँ सु दर मानी जाती ह। अतः उसी का प नक स दय को दे ख कर लोग म
कामो पन होता है। चीन म छोटे और लुंजे पैर जो सदै व ढके रहते ह, कामो ेजना क
व तु माने जाते ह। चीनी य के पैर य न से ढके रहगे, चाहे तन भले ही खुले रह।
पहले य के गाउन पैर तक खचड़ते थे। अतः पैर को कामो ेजना का च मानते
थे, पर आजकल जब गाउन ऊँचे हो गये ह तो य क पड लय को दे खकर लोग को
उ ेजन होती है। कुछ लोग य को अपनी गु ते याँ खोलकर दखाने म ही
कामो ेजना का अनुभव करते ह और इस अमल म जेल जाने पर भी उनक आदत नह
छू टती। ये लोग एक खास कार के नपुंसक होते ह और जब उनक यह लहर हट जाती
है, वे ब कुल शांत होते ह। आयुवद म कई कार के नपुंसक का और भी ज़
है। ी का आकार, शरीर क सुडौलुता और रंग से भी उ ेजना होती है। ी क बड़ी
काली आँख और चमकते ए बाल हमेशा पु ष क वासना को उ े जत करते ह। ी का
नखरा आ रंग पु ष म ेमोदय करता है, साँवला रंग कामो ेजक है। कपड़ के रंग से
भी उ ेजना होती है। दपण म त ब ब पड़ने से भी उ ेजना मलती है। वा तव म
वषय-वासना भूख के समान है, जो इन बात से जागृत हो उठती है।
क मीर के राजा वै यद क आ ा से कोक प डत ने र त रह य थ क रचना क
थी, उसका कुछ भाग हम यहाँ दे ते ह।

तकूल रमणी को अनुकूल करना, अनुकूल को ेमी-अनुरागी बनाना और अनुर
से र त-आन द क ा त यही कामशा का योजन है। ढलवाँ छ जे पर गरती ई
तरल जल-धारा के समान इस वाही संसार म जो सार पदाथ (कामान द) है और स पूण
श द, पश, प, रस, ग धा द वषय वासना समूह जसके आ त है, ान द के
समान उस महान आन द को कोई म द बु , सू म कामकला क व च ता को न
जानने वाला कोई मूख कस कार से ा त कर सकता है?

जा त (प नी, मृगी आ द), वभाव(इनम से येक जा त क ी का पृथक्-पृथक्
वभाव होता है), गुण (बाला, त णी, ौढ़ा आ द के भ - भ गुण होते ह), दे शजचे ा
(बंग, गुजर आ द भ - भ दे श क य क चे ाएँ सुरतकाल म भ - भ कार
क होती ह) धमचे ा (धम-स ब धी आचार- वहार या बा य-ता या द ज य वशेष
शारी रक धम और उससे उ प ई चे ाएँ-हरकत), भाव ( वषयवासना म वृ ), इं गत
(लीला, कटा ा द इशारेबाज़ी)—इन सबको न जानने वाला र त व ा से मूढ़, सु दरी
रम णय का यौवन ा त करके भी कुछ आन द नह उठा सकता। ना रयल का फल हाथ
लग जाने पर भी ब दर उसका या करता है?

सर के बाल (जूड़े) को पकड़ना, म तक और आँख को चूमना, होठ को दाँत और
होठ से दबाना, चूमना, गाल को खूब चूमना, क ा और गले म नाखून से चुटक भरना,
तन को हाथ से खूब दबाना, मदन करना, छाती म ह के-ह के मु के मारना और ना भ
पर खुले हाथ क चपत लगाना। जघन थल ( नत ब ) और मरम दर, इन सब पर खूब
च - व च हाथ फेरना और घुटना, एड़ी और नखा द अंग को अपने इ ह अंग से
रगड़ना, मदन करना। इस कार से च कला के ानपूवक जो कामुक लोग अपनी यारी
का आ लगन करते ह वे च करण से पश क ई च का त म ण क भाँ त आन द-
सागर म नान करते ह।

कामदे व के पास पाँच बाण ह, जनके नाम ह अकार, इकार, उकार, एकार, और
ओकार। म से इनके ल य ह— दय, कुच, नयन, म तक और गु थान। इन मम
थान पर नयन- प धनुष को तान कर प बाण न ेप करे तो उनके भाव से
सु द रय के जलद न स श कामजल के ब टपकने लगते ह।
प नी, च णी, शं खनी और ह तनी ये चार कार क युव तयाँ होती ह। इनम से
प नी सव म है। इसके प ात् उ रो र हीन ह अथात् प नी क अपे ा च णी
हीन है, इससे शं खनी और उससे ह तनी हीन है।
प नी के ल ण—कमल के समान कोमलांगी, जसके सुरत-जल म खले ए
कमल के समान गंध आती हो, शरीर म से द सुग ध आती हो, च कत हरणी के
समान आँख, ने के ा त भाग सुख ह और जसके नद ष सु दर तन ीफल क
शोभा को लजाते ह । तल के फूल के समान ना सका, सदा दे व, गु और ा ण क
पूजा-अचना म ा रखने वाली, कमलपु प के समान सु दर का त, च पे के फूल के
समान गौरवण और खले ए कमल पु प के समान जसका मनोज-म दर हो। जो पतले
शरीर क हो, राजहं सनी क भां त म द-म द लीलापूवक (नज़ाकत के साथ) चलती हो,
जसके उदर म वली पड़ती हो, जसक हंस क तरह मृ वाणी हो, सु दर वेशभूषा से
रहने वाली, उ म, प व , थोड़ा और ह का भोजन करने वाली, मा ननी ल जाशील, ेत
फूलो क रंगत, सु दर व पहनने क च रखने वाली, ऐसी ी प नी कहलाती है।
च णी के ल ण—मनोहर ग त से चलने वाली, शरीर से न ब त बड़ी न छोट ,
शरीर पतला, तन और जघन थल वशाल ह , काकजंघा (काक के मधु के समान
जसक जंघाएँ ह ), ह ठ कुछ मोटे , र तजल म मधु के समान ग ध आती हो, तीन
रेखा वाला गला, चकोर के समान जसका वचन- वभाग हो, जो ल लत कला
(गाना, बजाना, त वीर आ द बनाना) म नपुण हो, इसका मर-म दर गोल, उभरा आ
और भीतर से कोमल हो, र तजल अ धक नकले और रोम कम ह , चंचल वभाव क ,
चपल वाली, बा स भोग-रत (आ लगन, चु बना द से स होने वाली), मधुर और
थोड़ा खाने वाली, और भाँ त-भाँ त के च - व च गहने-कपड़े पस द करने वाली, ऐसी
ी च णी कहलाती है।
शं खनी के ल ण—पतली- बली हो या भरे ए शरीर क , शरीर ल बा हो, उँग लयाँ
और म य शरीर भी ल बा हो, लाल फूल और लाल रंग के कपड़े पस द करे, ोधी शरीर
पर नीली नस चमकती ह , शरीर के नीचे का भाग ल बा हो, मर-म दर पर रोमावली हो
और र त-जल ारग ध हो। सं योग म नख- च अ धक करे, शी तृ त होने वाली, र त
काल म मर-जल क बूँद गर, शरीर कुछ गम मालूम हो, न ब त कम न अ य धक खाने
वाली, ायः प कृ त क , चुगलखोर, म लन च क और जसका गधे के समान वर
हो, ऐसी ी शं खनी कहलाती है।
ह तनी के ल ण—ह तनी नारी क चाल भ , कद ऊँचा, चेहरा, उँग लयाँ और
टाँग मोट , गदन छोट और मोट और बाल भूरे होते ह। यह ी शरीर से खूब मोट -ताजी
और ू र वभाव क होती है। इसके मर-जल म और स पूण शरीर म से हाथी के मद
क -सी ग ध आती है। गुना भोजन करे और कडु वे कसैले पदाथ अ धक खाए, नल ज,
ह ठ ब त मोटे , नीचे का ह ठ लटकता आ, सं योग म क ठनता से काबू म आवे, यो न
अ य त गहरी और उस पर ब त बाल ह , गद्गद वर से (हकलाती ई) बोलने वाली,
ऐसी ी ह तनी कहलाती है।

तीया, चतुथ , पंचमी, ष ी, ादशी, दशमी और अ मी, इन त थय म सुरत से
च णी स होती है; एवं नवमी, पंचदशी, चतुदशी और स तमी, इनम ह तनी और
शेष त थय ( तपदा, तृतीया, एकादशी और योदशी) म शं खनी स और तृ त होती
है। प नी को प ासन से भोग करते ह, शं खनी को वेणुदा रत से, ह तनी को उसके
दोन पैर क धे पर रख कर और च णी को नागरासन से रमण करते ह। च णी नारी
को भोगान द के लए रा के थम पहर म, ह तनी को आधी रात म या दन दोपहर म
उपयोग करे। शं खनी ी रा के तीसरे पहर म आन दत होती है और प नी नारी से
रा के चतुथ पहर म रमण करे।

य क सब जा तय म समान प च कला नाड़ी होती है। उसी म काम का
वकास है। वह त त थ को च मा के साथ-साथ भ - भ अंग म आता है। शु ल
प क तपदा 1 त थ को युव तय के बाएँ पैर के अंगूठे म कामदे व का नवास होता
है। वहाँ से वह येक त थ को वामांग म होकर ऊपर इस म से चढ़ता है:-2 पैर म, 3
एड़ी म, 4 घुटने म, 5 जघन थली म, 6 ना भ म, 7 सीने म, 8 कुच म, 9 क ा-भाग म,
10 क ठ म, 11 कपोल म, 12 ह ठ म, 13 आँख म, 14 म तक (पेशानी) म और 15
सर म। फर पू णमा के बाद तपद् से द णांग म होकर उ टे म से नीचे उतरता है।

सर, छाती, बायाँ हाथ, दा हना हाथ, दोन तन, दोन रान, ना भ, गु दे श, ललाट,
पेट और कमर इन थान म हमेशा कामदे व रहता है। इनके सवाय, क ा, ेणी और
भुज, ये तीन थान शा मल करके कुल सोलह थान कामदे व के नवास बतलाए ह। इन
सोलह थान म कृ ण तपद् से लेकर कामदे व ऊपर से नीचे उतरता है और शु ल
तपद् (पड़वा) से लेकर म से नीचे से ऊपर को चढ़ता है। इस लए मृगनयनी य के
इन अंग म काम-कला के ब नागर लोग यो त- फु लग (अ न क चनगारी) या
काश-के के समान कामदे व क सोलह मा ा का च तन करते ह।
तपद् म—रमणी को अ छ तरह से कसकर गले से लगाकर, म तक और गाल
का चु बन करके, होठ को दाँत से दबाकर, कमर और पा पर हाथ फेरकर रोमां चत
करके, नत ब पर सू म नख लगाकर (नाखून से दबाकर), हाथ फेरते ए, दबाकर,
ससकारी भरते ए रमण करते ह।
तीया म—छाती से लगाकर सुख लेता आ, ने और गाल को चूमता आ, दोन
तन को दबाकर पा भाग म नख च करता आ, होठ को चूमता आ, क भाग म
नखांक करता आ खूब कसकर आ लगन करता आ ी को व ा वत करे।
तृतीया म—कसकर छाती से लगाकर रोमां चत कर दे और कंधे और पा भाग म
नख च करे। गले म हाथ डालकर दाँत से ह ठ को दबाता आ मृ चु बन करे और
छा तय पर नख च करे। इस कार से नागर ी को व ल कर दे ता है।
चतुथ म—आ लगन करता आ छा तय को खूब और अ छ तरह से दबाए और
होठ को दाँत से दबाकर रान पर चुटक भरे। इसी कार कंध पर और क ा भाग म
नाखून से बार बार चुटक भरे ऐसा करते ए र सक लोग कमलनयनी का म नय के
शरीर म कामान द के नझर वाह म ड़ा करते ह।
पंचमी म—बाएँ हाथ से केश के जूड़े को कसके पकड़े और होठ को दाँत से
दबाकर छा तय पर धीरे-धीरे ड़ापूवक हाथ फेरे जससे ी रोमां चत हो जाय, कुच
का चु बन भी करे।
ष ी म—आ लगन से अ छ तरह कसके ( जससे शरीर म शरीर घुस जाय, बराबर
हो जाय) होठ को दाँत से दबाये तथा ना भ-तल पर और रान पर मदम त होकर
नाखून से चुटक भरे।
स तमी म—गाढ़ आ लगन करके होठ का चु बन करे, गदन, छाती और गाल पर
नाखून से चुटक भरे और मदन थल का मदन करे ऐसा करने से ी कोमल भाव को
ा त होती है।
अ मी म— ी को गले से लगाकर ना भ पर बार बार नख च ह करे और होठ को
दाँत से दबावे। कुच पर हाथ फेरकर रोमां चत कर दे और चु बन भी करे।
नवमी म—ना भ के नीचे बार-बार खूब हाथ फेरे, दाँत से होठ को दबावे, छा तय
को मसले, मदनालय को अ छ तरह मदन करे और दोन पा म नख च करे।
दशमी म—ललाट का चु बन करे, गदन म नख च करे और कमर, दोन छा तय ,
सीने और पीठ पर बायाँ हाथ फेरे। इस तरह करते ए नागर लोग य के कामदे व को
जागृत कर दे ते ह।
एकादशी म— ी को अ छ तरह गले से लगाकर गदन म नख च करे और होठ
को दबाकर चूस,े छाती पर ह क -ह क मु कयाँ मारे और मदनागार को मसलता आ
उसक मु ा भंग कर दे । इस कार से का मनी को वत करते ह।
ादशी म—कसकर छाती से लगाकर गाल और आँख का बार-बार चु बन करे,
आँख खुली रखता ससकारी भरे और होठ को दाँत से दबाये।
योदशी म—गाल का चु बन करे, ससकारी भरता आ कुच पर हाथ फेरे, ी के
केश को पकड़कर उसक गदन पर मसले। इस कार करता आ कामी ी को शी
व ा वत करता है।
चतुदशी म—का मनी क आँख का चु बन करे, क ा भाग म नख च करे और
मर-म दर म बार बार कौतुहल द हाथ फेरकर नारी-शरीर म ड़ा करे।
अमाव या और पू णमा म—क ध पर फुत ले हाथ से नख च करे और मर-म दर
और तन पर आन द द हाथ फेरता आ का मनी को व ल कर दे ।
कौमायभंग

क◌ु छआन दस द काम-शा य क


नह है। भारत म
राय है क कुमारी के साथ थम सहवास कुछ
ायः लड़ कय को स भोग का अवसर ववाह के
बाद सुहागरात के दन आता है, पर तु पा ा य जा तय म जहाँ ी-पु ष का मु
स मलन होता रहता है, ायः कुमा रकाएँ ववाह से पूव भी सहवास का अनुभव ा त
कर चुक होती ह।
कौमाय भंग के अवसर पर सहवास-स ब धी दो बाधाएँ पु ष के सामने आती ह।
एक मान सक और सरी शारी रक। ये बाधाएँ अ धकांश म कृत होती ह और ायः
मनु येतर ा णय म भी पाई जाती ह। यह दे खा जाता है क अनुभवी मादा भी ार भ म
नर से र भागने का अ भनय करती है पर वह सफ नर को उ े जत करने के लए
अ भनय-मा ही होता है, पर तु कौमाय भंग का अवसर इन सबसे पृथक् है। उसम भय
और ल जा क मा ा वाभा वक होती है। पर तु यह भय और ल जा दोन ही बाधाएँ
कुछ अ न कारी नह ह, इस अवसर पर सफ पु ष क चतुराई क आव यकता है।
लड़ कय को चूँ क सहवास का थम अनुभव नह होता, सरे यो न के मुख पर जो पदा
होता है वह य द कभी-कभी फटा नह होता तो इस समय फटता है और उससे थोड़ा क
ी को होता है। पर तु यह पदा उस समय तक हो ही, या उसी समय फटे , यह आव यक
नह । कभी-कभी तो अ य कारण से सहवास से थम ही फट जाता है और कभी-कभी
सहवास से भी नह फटता और ऑपरेशन करने क ज़ रत पड़ती है। ह तान म इस
पद का फटना ही कौमाय भंग का च समझा जाता है और जो चादर आ द उसम खराब
हो जाती है उसका दशन कया जाता है। वा यायन का इस स ब ध म कहना है क
जब प त को कुमारी के साथ रा म एका त म नकट रहने का अवसर मले तो उससे
कम-से-कम तीन रात तक स भोग न करे, पर तु अपनी खुश मज़ाजी, वाक्चातुय और
ेम- दशन और कोमल चे ा से कुमारी के मन म ेम, वासना, नभयता और
कामौ सु य उ प करे। येक वहार और चे ा से क या को अपने अनुकूल बनाये,
उसे अनुकूल करके ही चे ाएँ करे। उ ड वहार या अ य आचरण न करे।
वा यायन कहता है क तीन रात भू म म शयन करे और चय से रहे। ार, लवण
का भोजन न करे। सात दन तक मंगल व न के साथ ृंगार- नान आ द करते रह, साथ
भोजन कर। दशनीय थान या पदाथ को दे खने जाय। सब स ब धी इनका आदर कर।
रात को एका त शयनागार म क या का स कार करे। मीठ -मीठ बात से ेम पैदा करे।
बला कार से आ लगन आ द कुछ न करे। याँ फूल के समान कोमल होती ह, इससे
उनसे अ त कोमल वहार कर, नह तो वे स भोग से े ष करने लगगी। जस यु से
नववधू के च म ेम पैदा हो, वही काम करे। उसे जब जतना आ लगन य हो तब
उतना ही करे, अ धक नह । आ लगन ना भ से ऊपर के अंग का कर, नीचे के अंग का
नह । यह काय अँधेरे म करे। नवयुवती ल जा के कारण काश म काम-चे ा को
सहन नह कर सकती है। जब वह आ लगन सहने लगे तब मुँह से मुँह म पान दे । न ले तो
बहला-फुसलाकर, मीठ बात करके जैसे बने पान लेने पर राजी कर ले। पान दे ते समय
नम चु बन ले, जससे दाँत न गड़ न श द हो। चु बन के समय उससे कुछ करे,
जसके जवाब के लए बार-बार हठ करे। वह पहले चुप रहेगी, फर सर हलाकर
अ भ ाय कट करेगी, पर मुँह से कुछ न बोलेगी। मुखरा क याएँ, अपनी स खय को
बीच म डालकर प तय से बात करती ह, नीचा मुख करके हँसती ह और सखी से ायः
ववाद करती ह। प रचय बढ़ने पर वह प त के माँगने पर पान, च दन, फूल आ द लाकर
दे गी। प त इस कार के आदे श दे , जब वह ये काम कर रही हो वह मौका पा उसके तन
को छू दे , रोकने पर हँसकर कहे अब ऐसी गलती न होगी, इस बार माफ कर दे । पर फर
उसका आ लगन करे, हाथ ख चकर पास बैठा ले, अपने हाथ को सारे पेट पर फेर गोद म
लटा ले। बीच-बीच म यह कहकर डरा दे , कह दे क तेरे होठ पर दाँत के नशान कर
ँ गा, तन पर नाखून के च कर ँ गा, सखी से सब बात कह ँ गा। सरी-तीसरी रात
को उसके सम त अंग पर हाथ फेरे और सम त चु बन यो य अंग का चु बन करे।
जंघा पर हाथ रखकर ऊपर नीचे फरावे और म से जंघा क जड़ तक ले आवे,
वह रोके तो कह दे इसम या हज है। फर चु बन आ द से तंग करे। बीच म ठहर जाये।
जब ी सह ले तब गु त अंग का पश करे, साड़ी खोल दे , कपड़ा हटा दे , जाँघ को
नंगा कर दे और यो न दे श पर हाथ फेरे। बीच-बीच म कामो े क क बात कहता जाय।
पूव काल के मनोरथ कह दे । भ व य के स ब ध म उ साह और आशाजनक बात कहे।
समय अनुकूल दे ख सावधानी से स भोग शु करे और जहाँ तक स भव हो उसे खी न
होने दे ।
ार भ के तीन दन म क या के मन म प त क कसी भी चे ा से वर हो गई तो
उसके मन म सदा के लए घृणा के भाव उ प हो जायगे। पहले मान सक बाधा को
अ य त यो यता से र करना चा हए, इसके बाद शारी रक बाधा का उठता है। इसम
सव थम यो नमाग का परदा ही है, जो थम समागम म कभी-कभी एक बड़ी बाधा का
प धारण कर लेता है। जब तक ी से मान सक स म त न मले यानी ी पु ष से र
हटने के य न को ब द कर पु ष के दय से लगने क अपनी उ क ठा न कट करे और
अपने शरीर को उसके काबू म ब कुल न कर दे , तब तक समागम क या का आर भ
ही न करना चा हए। पद क बाधा को र करने के लए पद क बनावट को समझना
ब त ज़ री है। इस पद म जो छे द होता है, वह ऊपर क तरफ या न पेट क तरफ होता
है। इससे य द पु ष क लगे य ऊपर से ही उस पर ज़ोर डालेगी तो वह छ फटकर
लगे य का रा ता साफ कर दे गा। ऐसी थ त म ी भयभीत होने क अपे ा आगे को
ध का मारे तो पदा एकाएक फट जाएगा और क कम होगा और र भी कम
नकलेगा। पर तु य द र ज द ब द न हो तो ी को चुपचाप पैर फैला कर लेट जाना
चा हए और र को प छना न चा हए। यह घाव आप ही अ छा हो जाता है। पर य द उस
दन पदा न फटे तो एकाध दन के लए सहवास थ गत कर दे ना चा हए। पर तु य द
फर सहवास करने पर भी न फटे तो आपरेशन करा लेना चा हए, बस फर बाधा न
रहेगी। मरण रहे क थम वेश के समय पद क झंझट से इ य का उ पन पहले ही
ब त हो चुका होता है तथा काफ रगड़ लग चुक होती है, इस लए त काल ही वीय-
ख लत हो जाएगा और ी क कामपू त न होगी। वा तव म इस समय ी को
कामपू त क चे ा ही न करनी चा हए। इस समय तो उसके घाव का अ छा हो जाना ही
यादा आव यक है। इस लए इस समय जतना कम घषण हो उतना ही अ छा है। इस
समय ी क वाभा वक ल जा का बड़ा मान करना चा हए, उसे ब कुल नंगी करने क
ज़द न करनी चा हए। यान म रखने यो य बात यह है क इस समय चूँ क ी म पूण
उ पन नह होता अतः ी क यो न म आ ता क कमी रहती है, इस लए वेसलीन या
चमेली का तेल काम म लाया जा सकता है। ी-पु ष को कामो पन करने के लए इस
काल म दोन को नमक दे ना ब द करके तेल का भोजन दया जाता है, जसे तेलबान
चढ़ाना कहते ह। पर तु ायः ववाहकाल के बाद ही ी-समागम का अवसर नह होता,
इससे अब यह सफ एक ढ़ क चाल हो गई है। पु ष को थम सहवास के समय
याल रखना चा हए क उसका थान इस समय श क का होता है। उसे ब त धैय और
चतुराई से काम लेना चा हए और अपने को काबू म रखना चा हए। ी के दय पर अ त
कोमल भाव अं कत करने चा हए और जब तक घाव पूरा न भर जाए, कम-से-कम घषण
करना चा हए। अपनी येक चे ा ऐसी करनी चा हए क जसक मृ त-मा ा से ही ी
आन दा तरेक से वभोर हो जाए।
आसन

स वभोगध कोको आसन


अंग व यास क व भ ता से अ धक प रपूण और आन द द बनाने क
कहते ह। जो लोग स भोग को एक ल जाजनक एवं अप व और
नी तहीन काम समझते ह, वे आसन के वशद करण को पस द नह करगे। पर तु वा तव
म स भोग ी और पु ष के जीवन क अ य त मह वपूण या है और इसम कला और
व ान दोन ही क बड़ी बारीक से उपयो गता है। जो इस बात के मानने वाले ह, वे
आसन के स ब ध म उपे ा नह कर सकते। वा यायन का कहना है क क या को
इस स ब ध म उसक ववा हत चतुर सखी जानकारी करा दे और इसी भाँ त पु ष भी
इस वषय म अनाड़ी न रहे। आधु नक काम-शा य का यह मत है क आसन का
उपयोग कामवासना क तृ त के ही नह वरन् समागम म वल णता लाने, अ धक-से-
अ धक स भोग-सुख अनुभव करने और वा य र ा क से समागम से होने वाली
हा नय से बचने के लए तथा गभ-धारण म इ छानुसार प रणाम लाने म आसन का
उपयोग अ य त मह वपूण है। मरण रखना चा हए क स भोग का करण हा य या
वनोद का करण नह है, युत यह अ य त ग भीर और समा ध क अव था तक
प ँचने का करण है। स चा आ मक आन दानुभव या तो वही योगी कर सकता है
जसने प रपूण समा ध का अ यास कर लया, या वह भोगी जो प रपूण सहवास का
अ धप त हो गया। हा य, ड़ा, वनोद और इधर-उधर क बात स भोग का च ड
वकास होने पर आप ही गायब हो जाती ह और ी-पु ष दोन ही दे ह से वमु होकर
केवल आन द म डू ब जाते ह। उनक सम त चेतन-श उसी के पर एक भूत हो जाती
है, और पृ वी क कोई भी श या लोभन उ ह उस आन दानुभव से वर नह कर
सकती। ाचीन आचाय ने आसन के अनेक भेद गनाये ह, पर तु गनती का कोई मह व
नह है। आसन का उ े य सफ यही है, जो ऊपर कहा गया है और उसी भावना से
आसन का उपयोग होना चा हए।
यह बात न त है क ी-पु ष दोन क कामपू त एक साथ होने से गभाधान क
अ धक स भावना रहती है। इसके साथ ही यह भी स ा त है क गभाशय के जतने
नकट वीयपात होगा, उतना ही गभधारण स भव होगा, तीसरी बात यह है क पु ष का
लग गभाशय के मूल ार तक प ँचकर जब आघात करेगा तभी ी को पूण सहवास-
सुख ा त हो सकता है, नह तो नह । साथ ही वीय जतनी अ धक दे र तक यो न-माग म
रहेगा उतनी ही गभधारण क स भावना रहेगी। इस लए गभाधान के लए ऐसे आसन
क आव यकता है, जनम ी-पु ष का पर पर अ धका धक सं भाव हो और
वीयपात के बाद भी वे आराम से कुछ काल तक संयु पड़े रह। स भोग के आन द म दो
बात मु य ह, यह हमने पछले अ याय म बताया है। एक शारी रक, सरा आ मक।
अगर ी या पु ष म से एक वजनी, मोटा, ठगना है और सरा पतला-
बला और ल बा या अगर ी क यो न और पु ष क लगे य ठ क बराबर नाप-तोल
क नह ह, तो इस वपरीताव था म आन दो म करने क श य द कसी म है तो वह
आसन म ही है। पर तु यह तो सफ शारी रक नु स ए, कसी ी या पु ष क मनोवृ
ही भ कार ही होती है और वे अपने लए भ कार के आसन चुनते ह। हाँ, पशु
म भी भ - भ आसन च लत ह। अनेक ाणी अपने ही तरीके से स भोग करते ह।
उनक शरीर-चे ा और ग त दोन ही म भ ता दे खी जा सकती है। मनु य ने अनेक
आसन तो पशु-प य के ये भ - भ प दे खकर ही चुने ह। फर भी सब आसन के
दो मुख भेद कए जा सकते ह। एक वे जनम ी-पु ष का मुँह आमने-सामने होता है
और सरे वे जनम ी क पीठ पु ष क ओर होती है। पशु म ायः पछला आसन
ही काम म लाया जा सकता है, पर तु वा तव म मनु य क इ य क बनावट के
अनुकूल पहले कार के ही आसन ह। इसम यह लाभ है क ी- तन तथा अ य काम-
के का उ पीड़न तथा चु बन साथ-ही-साथ होता रहता है। जससे कामवासना के
उ पन और तृ त म मान सक सहायता मलती है, जसक पशु को ब कुल
आव यकता नह होती। यहाँ हम वा यायन और भ ु प ी के बताए ए आसन म
से कुछ मुख आसन का वणन करगे।
वा यायन कहते ह क य द ी मृगी हो और पु ष द घ लगी हो तो ी को अपनी
जाँघ फैला दे नी चा हएँ, जससे वेश सरलता से हो और ी को क न हो। य द ी
ह तनी हो और पु ष लघु लगी हो तो ी अपनी जाँघ भ च ले। य द समरत ह तो जाँघ
सुकोड़ने-फैलाने क कुछ ज़ रत नह है। स भोग के समय जब लग वेश हो जाये तब
जाँघ से पु ष को पकड़ ले। मृगी ी तीन कार से यो न को वक सत करे। (1)
नत ब के नीचे त कया लगाकर और जाँघ को ऊँचा उठाकर, इससे यो न पु प क भाँ त
खल जाएगी तब पु ष स मुख से लग वेश करे। (2) जाँघ को चौड़ा करके और खूब
ऊँचा उठाकर जससे यो न फैलकर चोड़ी हो जाए, तब पु ष तरछे लग को वेश करे।
(3) पु ष बगल म ी को सुलाकर उसक जाँघ खोलकर उठा ले और अपने पा के
म य म गोड़ को दबा ले और उसी हालत म वेश करे। ज़रा अ यास से यह आसन स
होगा, इसम अ धक आन द- ा त होती है। इस व ध से कतने भी बड़े लग वाला पु ष
होगा, आसानी से स भोग कर सकेगा। ी बड़ी यो न वाली और पु ष छोटे लग वाला
होगा तो ी को यो न-संकोच करना होगा। यह संकोचन चार कार का है। (1)
स पुटक, जब अपनी दोन जंघा को मलाकर पर पर जोड़ ल, चाहे च लेट कर,
चाहे बगल क करवट से। य द बगल से करना हो तो पु ष को दा हनी ओर रहना चा हए।
(2) स भोग के समय य द ी खूब ज़ोर से अपनी जंघा को दबा ले तो यह पी ड़तक
कहलाता है। (3) य द ी अपनी जाँघ को लपेट ले तो यह वे तक कहाता है। (4) ी
यो न के संकोचन का ऐसा अ यास कर ले क लग को जकड़कर पकड़ ले और बाहर
नकलने ही न दे तो वह वाड़ वक कहाता है। आ दे श क य म यह वशेषता पाई
जाती है। एक व ध यह है क पु ष ी क टाँग को अपने क ध पर रखकर यो न को
कुछ वक सत कर दे , इसे जृ भतक कहते ह। इसी हालत म ी य द जाँघ को सकोड़
ले तो उसे पी ड़तक कहते ह। य द ी एक टाँग को चारपाई पर और एक को पु ष के
पा म या क धे पर रखे तो वह उ पीड़क कहाता है। ऊपर लेटे ए प त के क धे पर एक
टाँग रखे और सरी को पलँग पर पड़ी रहने दे , फर पड़ी ई को क धे पर रख क धे
वाली को गरा दे तो यह वेणुदार तक आसन आ। एक टाँग पु ष के सर पर और सरी
शैया पर, फर शैया वाली सर पर और सर वाली शैया पर, ऐसा बार-बार करने को
शलाच तक आसन कहते ह। अपनी जाँघ को सकोड़कर अपनी ही व त थान म
करना, यह काकटक आसन आ। ऊँची उठाई ई जाँघ को अदल-बदलकर दबाए, यह
पी ड़तक है। ी बाँए पाँव को दाई जाँघ के ऊपर क जड़ म करे, इस तरह प ासन का
आसन बनता है। ी-पु ष आ लगन करके स भोग कर, कुछ समय म ी पछली ओर
घूम जाये और पु ष का लग बाहर न होने दे , आ लगन भी वैसा ही रहे, इसे परावृ
आसन कहते ह। पानी म भी कुछ आसन अ य त उ म री त से हो सकते ह। ये सब
साधारण आसन ह। अब वपरीत आसन का वणन करते ह। ी या पु ष कोई भीत का
सहारा लेकर खड़े होकर स भोग करे उसे थत रत कहते ह। भीत के सहारे खड़े होने पर
उसके क ठ म ी अपनी दोन भुजा को डालकर प त के हाथ के बनाए पजरे पर
बैठकर अपनी जाँघ को प त के नत ब म व करे और भीत पर अपने चरण को
मार-मारकर झूले क भाँ त झूले और पु ष लग को अपनी यो न म व कर ले। यह
अ वल बत रत कहाता है। ी धरती पर पशु क भाँ त अधोमुखी खड़ी हो और पु ष
उससे वृष के समान स भोग करे, तो यह धेनुक आसन कहाता है। इसी कार भ - भ
कार के पशु जो चे ा करते ह। वह-वह चे ा करने से भ - भ रस उ प होता है।
हमने ार भ म बताया क आसन का उपयोग ी-पु ष को पर पर अ धका धक
स भोग-सुख ा त कराता है। सबसे सीधा सरल आसन यह होता है क ी च लेट
जाय, जाँघ सीधी फैला दे और घुटने समेट ले, पु ष ऊपर आ जाय पर बोझ ी पर न
डाले क तु घुटन और कुह नय के बल पर वज़न साधे रहे; उसके पैर और जाँघ ी क
दोन जाँघ के बीच म रह, घुटने और कुहनी ब तर पर। इस आसन म गभधारण क
अ धक स भावना होती है और यही आसन आम तौर पर च लत भी है तथा वाभा वक
भी है। पर तु ी ग भणी हो या पु षे य छोट हो तब यह आसन सुखकर नह होता।
उस अव था म यह आसन अ धक उ म है क उपयु आसन से यो न म लग वेश हो
जाने पर ी अपने पैर सीधे फैलावे जससे उसके पैर पु ष के पैर के बीच म आ जाएँ।
अगर पु ष-इ य तो छोट नह है, सफ पूरा-पूरा उ थान नह आ है, तो इस आसन से
अ धक लाभ होगा और पूरा उ थान हो जायेगा। य द इस आसन म ी एक छोटा
त कया चूतड़ के नीचे लगा ले तो आसन अ धक उ पक हो जायेगा। पीछे इसी आसन
को हमने उ फु लक आसन के नाम से लखा है।
पु ष य द थका आ या बल हो और ी क वासना च ड हो तो पु षायत नाम
का आसन अ य त कारगर होता है। इसक व ध यह है क एक बछौने पर पु ष च
लेट जाय और अपने पैर कुछ सकोड़ ले। आव यकता हो तो कमर के नीचे एक त कया
भी रख ले। ी उसके दोन तरफ जाँघ फैलाकर ऊपर बैठकर इ य- वेश कर ले और
पु ष क भाँ त घषण करे। इसके लए पु ष भी घषण म कुछ योग दे । ी के घषण क
री त यह है क वह नीचे बैठती ई कुछ पीछे हटे , और ऊपर उठती ई आगे बढ़े ।
अ यास से यह कला आ जायेगी। इस आसन म दोन का अ य त उ पन होता है तथा
पु ष का त भन भी अ धक होता है। ग भणी यह योग न करे। पलँग क अपे ा ज़मीन
पर यह आसन सुखद होगा।
वा यायन कहते ह क स भोग एक वकट यु है। इसम हार के थान क धे, सर,
तना तर, पीठ, जाँघ और पा ह। इनम संभोग काल म चोट मारे। चोट मारने से ी
सी कार करती है तथा आन द व ल होती है। यह चोट घूँसे से, चपत से, चुटक काटने
से, और थपथपाने से होनी चा हए। ी के बल और कोमलता तथा कामवेग को दे खकर
बु मान् काम ड़ा-कुशल आदमी उपयु री त से इन हार का उपयोग करे।
काम-तृ त होने पर ी का शरीर ढ ला पड़ जाता है। वह आँख म च लेती है, ल जा
जाती रहती है, अपने गु भाग को पु ष के गु भाग से अ य त मला दे ती है; हाथ को
कँपाती है, पसीने आ जाते ह, काटती है, उठने नह दे ती, पैर मारती है तथा पु ष को
जीतने क इ छा करती है। स भोग-काल म जो पु ष ध के मारता है, उसके वा यायन
दस भेद करता है। पहले वे सामा य री त से अपनी इ य को व करके मलाते ह,
उसे उपसृ तत कहते ह। कभी-कभी पु ष हाथ से लग पकड़कर यो न म घुमाता है, इसे
म थन कहते ह। ी क जाँघ को नीचा कर चोट मारने को ल कहते ह। चूतड़ के नीचे
त कया आ द रखकर ज़ोर से ध का मारने को अपमदन कहते ह। र हटकर ज़ोर से
अपने चूतड़ को गराकर चोट मारने को नघात कहते ह। यो न म एक ही ओर को
लगातार चोट लगाने को वराहघात कहते ह। कभी इधर और कभी उधर चोट मारने को
वृषाघात कहते ह। व लग को बाहर न नकालकर भीतर-ही-भीतर 2-3 चोट ज़ोर क
लगाने को चटक वलास कहते ह, यह स भोग क समा त पर होता है।
स भोग

स महभोगव क ी-पु
तीन मुख
ष के
याएँ ह: सी कार, वलास और उपसग। पर तु स भोग का
वभाव, शरीर क बनावट और गु ते य क बनावट पर
अ धक नभर है। गु ते य क माप-तौल के हसाब से तीन कार के पु ष होते ह। (1)
शश— जनक इ य 6 अंगुल क , (2) वृष— जनक 8 अंगुल क । (3) अ जनक
इ य 14 अंगुल क होती है। इसी हसाब से याँ भी मृगी, बड़वा और ह तनी नाम से
तीन जा त क होती ह। पु षे य क नाप ल बाई-मोटाई से है। ी क गहराई-चौड़ाई
से। बराबर नाप के इ य वाल का स भोग सम तीन कार का आ। वषय अदल-
बदलकर 6 कार का आ। इसका योग इस कार आ। 1—शश-मृ गी। 2—वृष-
बड़वा। 3—अ -ह तनी, ये तीन स भोग ए। शश का बड़वा या ह तनी के साथ। वृष
का मृगी और ह तनी के साथ। अ का मृगी और बड़वा के साथ। ये 6 वषम रत ए।
वषम स भोग के भी दो भेद ह, उ च रत और नीच रत। अ का बड़वा से और वृष का
मृगी से उ च स भोग आ। ह तनी का शश से नीच रत है। इसम सम स भोग ही
आन द द है। वषम म नरान द या क होता है। इस तरह नौ कार के स भोग
वा यायन और भ ु प ी ने वणन कए ह। स भोग म म दवेग, म यवेग और च डवेग
भेद से 3 कार के ह। जसका वीय कम हो, उ ेजना कम हो, ी के नखद त हार को
पस द करे, वह म दवेग है। म यवेग और च डवेग भी इसी कार जानना चा हए। जैसे
पु ष का म दवेग आ द होते ह उसी कार ी के भी। इस कार वेगभेद से भी स भोग
के 9 कार ए। काल भेद से भी शी , म य, चरकाल के हसाब से 9 कार के स भोग
ए जानना। इस तरह कुल मलाकर स भोग के 27 भेद ह। स भोग के वषय म एक
मह वपूण उठता है क इसम ी-पु ष का आन द समान है या नह । ाचीन कुछ
आचाय कहते ह क नह । ी-पु ष के स भोगान द म एक बड़ा भेद तो यह है क ी
को स भोग के ार भ म उ कट आन द आता है, पर तु पु ष को वीय- रण म आन द
आता है। ी क कामे छा कु हार के चाक के समान है, जसक चाल शु म धीमी,
फर तेज, और बाद म अ य त च ड हो जाती है, पर तु घूमने क या जारी ही रहती
है। धातु य होने पर अलग होने क इ छा हो जाती है। अ भ ाय यह है क पु ष को
स भोगा त म और य को स पूण काल म आन द मलता है। पर तु वे म दवेगी पु ष
को पस द नह करत । कारण उनक यो न म जो मीठ खाज उ प होती है उसको
मटाने से ही उनक तृ त होती है। इससे जो च डवेगी पु ष होते ह, ायः याँ उ ह
अ धक पस द करती ह। पर तु यु से वषम स भोग को स पूण आन द द बनाया जा
सकता है। यु से स भोग म रस, र त, ी त-भाव, राग, वेग और समा त ठ क तौर पर
स प क जा सकती है। वा यायन कहते ह क ी त चार कार से उ प होती है—
अ यास से, वचार से, मरण से और वषय से।
हमने पहले कहा है क इस या म पु ष का मुख भाग होता है, पर तु य को
भी उसम सहायक होना चा हए। य द वे इस समय अचेतन क तरह गरी रह तो उसम
दोन क हा न है। पु षे य के ी क यो न म वेश होने पर दोन के घषण से
उ रो र उ पन बढ़ता है। वीयपात होने पर पु ष क तृ त हो जाती है। उसी समय या
उससे कुछ सेक ड बाद या पहले ी क तृ त होने पर ही वह समागम सफल कहा जा
सकता है। पर तु यह सफलता कतनी ही बात पर नभर है। थम तो सहवास क पूरी-
पूरी तैयारी होना ज़ री है, फर यो न-माग क और इ य क समान नाप-तौल, उपयु
घषण, यह सब आन दवधन म सहायक है। य द ी-यो नमाग श थल भी हो तो भी
उ ेजना से वह कम हो जायेगा, इससे ी का उ पन पु ष के ही लाभ के लए है। ी-
पु ष जब दोन का अ य त उ पन होगा तभी यो नमाग तथा जघन के नायु का
ऐ छक या अनै छक ग त से र त या होने पर अ धक सुखकर हो सकेगा। ायः ी-
पु ष काम ड़ा से अन भ रहने के कारण थम समागम म ही ब त-सी गड़बड़ी कर
डालते ह। ऐसी दशा म पु ष को ही सावधान रहना चा हए। पु ष समागम को बढ़ा नह
सकता; हाँ, अनुभवी याँ घटा-बढ़ा सकती ह। इस लए समागम-काल दोन क इ छा
पर नभर है। वीयपात का भाव ी के म त क पर प ँचने म एक से क ड भी नह
लगता। यो न- लग और यो नमाग को भी पश ान होता है, पर वह भ कार का होता
है। समागम के समय यो न- लग और लगे य इन दोन का ही घषण होता है, पर य द
यो न लग ऊपर क ओर अ धक हटा आ हो तो उसका पश नह हो पाता, पर तु इसका
घषण य द न भी हो तो भी कामतृ त क या म कोई बाधा नह प ँचती। इस कमी
क पू त आसन से करनी पड़ती है। वीय खलन एक बार जहाँ होने को आ, वह फर
नह रोका जा सकता, उसके रोकने के सब य न थ ह। वीय- खलन के साथ ही पु ष
क कामचे ा भी शा त हो जाती है, पर ी क काम-तृ त के बाद भी उ पन अव था
शमन नह होती, उसम कुछ दे र लगती है। हाँ, पु ष के वीयपात से उसम मदद अव य
मलती है। जो याँ अ य त उ े जत होती ह, उनक तृ त पु ष के खलन के पहले
कई बार हो चुकती है। कोई-कोई ी तो वीय- पश से ही तृ त हो जाती है, पर कोई-कोई
पु ष के अ तम ध के से ही तृ त होती है। आम तौर पर पु ष य क कामतृ त के
नयम को नह जानते। उनके साथ समागम करने से याँ पागल-सी हो जाती ह,
उनका वा य खराब हो जाता है और दमाग कमज़ोर हो जाता है। ऐसी अव था म
याँ ायः वस भोग करती ह। ईसाई धमगु ने भी उ ह इसक आ ा द है। यान
करने यो य बात यह है क कामपू त के समय ी क यो न से कोई वीय क जा त क
चीज़ नह नकलती, हाँ, ी के गभाशय म इससे एक कार क ग त अव य उ प होती
है। गभाशय का मुँह कई बार खुलता और ब द होता है और वीय-ज तु को भीतर ले
जाकर ब द हो जाता है। पर यह ी के उ पन होने पर ही स भव है अथात् ी क
कामपू त होने पर ही गभधारण कर सकती है।
प ी कहते ह क ी को प त के लए ऐसा आचरण करना चा हए- नान कर,
बाल सँवार, फ़ैशनेबल ृंगार कर, ज़रा-ज़रा अंग दखाती, कभी छपाती, कुछ डरती,
कुछ लजाती, कुछ मु काती सी वामी के नकट आवे। जब प त उसका हाथ पकड़कर
ख चे तो डरकर अंग-संकोच करे, पर पीछे अपने प त को अपण कर दे । प त जन अंग
को दे खना चाहे दे खने दे , छू ना चाहे तो छू ने दे , नख त और द त त करना चाहे वह
करने दे ; पहले उन अंग को र हटा ले, पीछे उ े ग के साथ समपण कर दे । मदन करने
पर श द करे, द ताघात पर था के साथ ंकार करे, नख त तथा गाल और तन पर
आघात होने पर सी कार करे। पसीने से तरबतर होकर, शा त होकर म द-म द कराहती
ई श्वास- श्वास ख चे, रोमांच हो, इससे सुरतव न होता है। ‘मुझे इतना न सताओ’
ऐसा ग द क ठ से कहे, मौका दे खकर तकूलता, अनुराग, ौढ़ता और लाचारी या मान
कट करे। आवेग होने पर या आवेग बढ़ने पर, धीरता, वजय-भंग, अ ीलता आ द का
वहार करे। जब सुरत हो जाए तो मु ध हो श थल हो जाए, आँख ब द कर ले तो पु ष
उस पर मु ध होता है।
कुछ लोग कृ म री त से समागम के समय को बढ़ाना चाहते ह। पर तु यह सवथा
थ है। वा तव म इससे कोई लाभ नह है। स भोग के पहले, स भोग क तैयारी म चाहे
जतना भी समय लगा दया जाए, वह तो सरी बात है, पर स भोग ार भ होने पर यह
स भव और उ चत नह है। कुछ काम-शा य क राय है क इ य- वेश करके पु ष
को अपना यान इधर-उधर करके चुप पड़ा रहना चा हए, जससे वीयपात म दे र हो।
यूनानी प त यह है क स भोग के समय गुदा और लगे य के बीच क वीयवा हनी
नाड़ी को पैर क एड़ी अथवा हाथ से दबा दे ने से वीय लौट जाता है और स भोग म दे र
लगती है। पर वा तव म य द पु ष म दकाम नह है, तो यह काय अव य ही उसक
म जा-त तु पर बुरा भाव डालगे और स चे आन द और उ साह म बाधा पड़ेगी। यह
एक साधारण बात है क चाहे ी हो या पु ष, जब तक उनक जनने य पूण वृ को
ा त नह कर लेती, उसम समागम क इ छा नह उ प होती। समागम स भव भी नह
होता। य द ी क वृ अधूरी होती है तो उसके आन द म कमी रह जाती है। ी-
पु ष क गु ते याँ य द सम तो भी आन द म कमी रहेगी। ऐसी अव था म यु से
भ आसन के ारा ी-पु ष आन दलाभ कर सकते ह।
सहवास म पूणान द करने के लए छोट यो न और ढ़ लग क आव यकता है।
पुराने लोग का कहना है क जन य के पैर छोटे ह गे उ ह क यो न छोट होगी,
और पु ष क जतनी नाक बड़ी होगी उतना ही बड़ा उसका लग होगा। म म य
के तीन वभाग उसक यो न के माप के आधार पर कए गए ह। थम वह जसके थम
स भोग म आसानी से पदा फट जाए और ब त थोड़ा र उसम से नकले और एक
ल बी दरार बन जाए। सरी वह, जसका पदा ब कुल ब द हो, पर आसानी से साधारण
ध के से अंगूर क तरह फट जाए। तीसरी जा त क ी का पदा ब त मोटा और बड़ा
होता है तथा बड़ी क ठनाई से फटता है, र भी अ धक नकलता है। ये याँ ायः
सरी य या पु ष से अंगुली से पदा तुड़वाती ह, और उनक यो न क आकृ त खराब
हो जाती है। बोसी नया के एक पादरी ने जसक ी ने उस पर यह इ ज़ाम लगाया था
क वह इगलामबाज है तो पादरी ने अपनी ी के गु तांग के वषय म कहा था क उसम
एक ब ख और दो जमन ब लयाँ जा सकती ह। बालकन जा त क याँ यो न को
संकु चत करने के लए बचपन से ही फटकरी का योग करती ह। पो पया, जो रोम के
मश र बादशाह नीरो क बीवी थी और जसके पहले 5-6 प त रह चुके थे, क गु त
पु तक से पता चलता है क यो न को कुमारी क भाँ त संकु चत रखने के लए एक
योग काम म लाया जाता था क म म थोड़ा Benzoete मलाकर एक कार का ध
का-सा व बना लेते थे उससे यो न-माग धोते थे। बाद म उसे साफ फलालेन से सुखा
लया जाता था। वा यायन ऋ ष ने यो न-संकोच के अनेक योग दए ह अ य आचाय
ने भी ऐसे योग दए ह ज ह हम अ य लखगे।
जस कार याँ यो न को सदै व संकु चत रखने के लए सचे रहती ह, उसी कार
पु ष अपनी इ य को ढ़ और बड़ी बनाना पस द करता है। अरब लोग म इसी
अ भ ाय से ाचीन काल से ऐसी था है क वे बचपन से ही पेशाब करने के बाद प थर
या रेत से लगे य को रगड़ते थे।
यौवनाव था म युवक और युवती के शरीर म जो आ यजनक वकास और प रवतन
द ख पड़ते ह उनका एकमा कारण थय का अ तः ाव है। कपूर क ं थयां श के
मूल के समीप दोन ओर होती ह। जब काम-भाव अ त बल प म होता है, तब
श ना लका ारा इस थ से ाव होने लगता है। यह ाव ब कुल वाभा वक है।
पर तु कुछ अ ानी लोग इसे शु समझकर इसे एक कार का रोग समझने लगते ह। यह
व ब कुल सफेद होता है और अ डे क सफेद से ब त कुछ मलता-जुलता होता है।
इसी कार ो टे ट थ का कामवासना से घ न स ब ध है। जब कामो ेजना होती है,
तब वीय के साथ मलकर इस थ का रस बाहर नकलता है। शु -कोष से ाव
लगातार होता रहता है। इसका काम वासना से सीधा स पक नह है। हाँ, जब-जब
स भोग के समय वीय श ना लका ारा याग कया जाता है, तब यह बाहर नकल
जाता है। स भोग के समय जो वीय- याग कया जाता है उसम तीन थय के ाव का
स म ण होता है-अ डकोष क थय के ाव का, शु -कोष क थय का तथा
ो टे ट थ का ाव। इन सम त थय के यथावत् काय करने पर ही पु ष के शरीर
म ओज और वीय का उ पादन होता है। इनके अ तः ाव से शरीर बलवान, तेज वी, पु
और श शाली बनता है। यूरोप क अनेक रसायनशाला म जो अ वेषण कए गए ह,
उनसे यह मा णत हो चुका है क पु ष के अ ड और ी क ड ब थयाँ एक ऐसा
उ प करते ह, जो र के साथ मलकर शरीर के येक भाग म वा हत होता है,
और वह युवक-युवती के शरीर के वकास म आ यजनक जा का-सा भाव डालता है।
पु ष के वीय-कोष से दो कार क नायु- णा लयाँ मलती ह। एक नायु- णाली
मे -द ड क ओर जाती है, जसके ारा म त क को जनने य क दशा का ान होता
है, और सरी नायु णाली अ य सरे कार क वृ य क सूचना दे ती है। अतः जब
शु -कोष पर आ त रक या बा दबाव पड़ता है, तो नायुम डल म उ ेजना पैदा हो
जाती है। मे दं ड म यह नायुम डल थत है। शु कोष म दबाव या तो उनके अ य धक
शु व भर जाने से होता है अथवा शु कोष पर मलाशय या मू ाशय के भरे रहने के
कारण दबाव से उ ेजना हो जाती है। जब पु ष पीठ के बल सो रहा हो तब इस कार
क उ ेजना का अनुभव वाभा वक बात है। ी-शरीर से ड ब- थयाँ और पु ष
शरीर से अ ड नकाल दए जाएँ, फर उनके सामने कामो ेजक व तुएँ उप थत क
जाएँ, तो वे कदा प कामो ेजना का अनुभव नह कर सकगे। वही अ प समय अ य धक
श द समय है, जब स भोग के समय उ प व ुत् के संघषण और आकषण ारा
जीवनदा यनी श याँ और व जनने य से वलग होते ह। यह ऐसा समय है जसे
कृ त दे वी ने मान सक श य को उ े जत करने और उनको याशीलता दान करने
के लए सबसे उ म बनाया है।
स भोग का सबसे उ कृ और आ मक उ े य है-प त-प नी क अ तरा मा म
आ या मकता, मानव- ेम और परोपकार तथा उदा भावना का वकास। यथाथ म
काम-सेवन का वा त वक सुख तीन भाव पर नभर है-(1) स भोग, स तानो प ,
जनने य तथा काम-स ब धी सम या के त आदशा मक भाव। (2) मनु य जा त
का उ रदा य व। (3) सहचर या सहचरी के लए ा, उ च भाव और उसके हत क
कामना। दा प य आन द क ा त के लए दा प य ेम सबसे वांछनीय है। दा प य ेम
के बना ववाह वफल होता है। द प तय म पर पर कलह, स ब ध- व छे द, गु त
भचार, वे यावृ , नारी-अपहरण, अ ाकृ तक स ब ध इ या द अनेक प रणाम,
दा प य ेम के अभाव म दे खने म आते ह। प व दा प य ेम का सबसे अ धक सुखद
और जीवन द प रणाम तो यह होता है क प त और प नी एकप नी त और एकप त त
का पूरी तरह पालन करते ह। प त-प नी के इस धा मक और सामा जक नयम के
उ लंघन करने म उनक भचार- वृ अ धक उ रदा यनी होती है। जन द प तय
का जीवन काम- से पूणतया सुखी है और वे पर पर स तु ह तो वे अपने जीवन म
एकप नी त या एकप त त को भंग करने क क पना नह कर सकते।
स भोग के लए काम- व ान वे ा ने यही वधान कया है क स भोग सा ता हक,
मा सक, पा क कया जाए। प त या प नी रोगी अव था म है, तो वाभा वक प से
संयम का पालन करना चा हए। प नी के रजोदशन (मा सक धम) के समय तो प त को
उसके शरीर का काम-भाव से पश तक भी नह करना चा हए। प नी को भी इस समय
अ त संयम से सदाचार का पालन करना उ चत है। इस समय प नी क कामवासना अ त
ती होती है, इस लए मा सक धम के समय जहाँ तक हो सके, प त-प नी को पर पर
शारी रक पश और आ लगन से बचना चा हए। रज वला ी के साथ सहवास करने से
जनने य स ब धी भयंकर रोग हो जाने क पूरी स भावना रहती है। प नी के गभ-काल
के समय भी प त को संयम का पालन अ नवाय प से करना चा हए। गभाव था म मैथुन
करने से प नी के वा य को हा न ही नह प ँचती, युत ब तेरे अवसर पर उसे जीवन
से हाथ धोने पड़ते ह और भावी स त त का जीवन भी खतरे म रहता है।
स भोग म बाधाएँ

स ह।भोगये मबाधाएँ
कुछ बाधाएँ आ जाया करती ह, जो थोड़ी ब त यु से टाली जा सकती
कभी-कभी तो शु म उठ खड़ी होती ह और कभी-कभी कुछ दन
बाद पैदा हो जाती ह जससे स भोग- या न सफ नरान दमय हो जाती है, युत
कभी-कभी क कर भी हो जाती है। पर यादातर ऐसी ही याँ अ धक ह जो ार भ से
ही बाधा का शकार बनती ह। ायः ऐसी ी को जब तक थम सव न हो जाए,
समाग़म म कोई आन द ही नह आता। सव के बाद उसक बाधाएँ र हो जाती ह।
पर तु कुछ याँ थम सव के बाद भी उसी थ त म रहती ह। ऐसे मामले खास तौर
पर तब होते ह, जब कसी कार के दबाव के कारण ऐसे ी-पु ष म स ब ध होता है
जो पर पर ेम न करते ह । इन बाधा म य क मनोवृ धान है। थम समागम
म पु ष ने अ धक कड़ाई या उ डता का वहार य द कया तो भी ी पर इसका बुरा
भाव होता है। यो नमाग ब त छोटा हो और लग ब त बड़ा हो अथवा यो नमाग या
यो नमुख टे ढ़ा हो, तो भी स भोग म बाधाएँ आती ह। पीछे जो बाधाएँ हो जाती ह, वे
आक मा तक ह जैसे यो नमाग म सूजन या घाव का उ प हो जाना आ द या उसके
बगल म कोई रसौली या फोड़ा उ प हो जाना। यह सारे दोष लगभग साधारण श य-
या से र कए जा सकते ह, पर तु गु ते य क वषमता का टे ढ़ा अटक जाता
है। सव से थम कभी-कभी यो नमाग असहनशील होता है, अथात् पश को सह नह
सकता और उसके मुँह पर के गोल नायु के संकोचन के कारण दद पैदा होने क
शकायत बनी रहती है। ऐसी शकायत ायः मजबूत शरीर क य म रहती है। इन
य के म जात तु अ धक संवेदनशील होते ह और उन पर काबू न रखने के कारण
उनका अ य त संकोच हो जाने से ध के से दद हो जाता है। कुमा रय के थम समागम
के समय जब परदा फटता है तो वहाँ एक ज म हो जाता है। वह पूरी तौर पर पुर नह
पाता क फर स भोग करना पड़ता है, इससे ज म फर असहनशील हो जाता है और
ज़रा-सा पश भी उसके लए अस हो जाता है।
सव-काल के समय होने वाले ज म के बने रहने पर भी यही दशा होती है।
आतशक रोग का यो न म भाव हो या दाद, ए ज़मा या कोई रोग हो या भग दर का
रोग हो, तो भी स भोग ी के लए क कर हो जाता है। अ न छापूवक बला कार से
यो न-माग के नायु संकु चत हो जाने से यो न क सहनशीलता कम हो जाती है और
कामो पन नह होता। पु ष के त े ष-भाव रखने पर उसके छू ते ही ी के सम त
नायु सकुड़ जाते ह, इससे वह पश सहन नह कर सकती। इन कारण को य द र न
कया जाए तो ब याभाव पैदा होता है और पर पर ी-पु ष म े ष-भावना उ प
होती है। समागम म य द क हो और कोई कारण तीत न हो तो गम जल म कमर और
जाँघ डु बाकर बैठना अ छा है। पु ष क लगे य म भी ऐसे दोष होते ह जनसे स भोग
क कर हो जाता है। य द इ य टे ढ़ या उसम पदा ठ क तौर से उलटता न हो, तो
स भोग म बाधा आती है। चमड़ी कटवाई जा सकती है, और इ य भी सीधी क जा
सकती है, जसका योग हम अ य लखगे।
स भोग के बाद

स वाले
भोग क समा त के बाद का ण अ य त मह वपूण है। वीयपात होते ही शु होने
समय का भाव प त-प नी के गृह थ जीवन पर ब त पड़ता है। पर तु इस
बात को आमतौर पर लोग नह जानते। सहवास के बाद ही ी-पु ष क , खासकर
पु ष क उ ेजना न हो जाती है और दोन त काल अलग-अलग होकर उठ खडे़ होते
ह। उनके मन म ये भाव होते ह, मानो वे कोई कुकम कर चुके होते ह या कोई ग दा काम
कर चुके होते ह। उनके मन थकान और ला न से भरे होते ह। स भोग के बाद एक ऐसी
उदासी उनम पैदा हो जाती है जो कभी-कभी दे र तक चलती रहती है। कुछ दन बाद
इसका प रणाम यह होता है क प त-प नी का ेम-स ब ध ढ ला हो जाता है और दोन
म वह आकषण नह रहता जो उनम ार भ म होता है। इसका कारण यह है क ी-
पु ष दोन ही काम-वासना के अधीन होकर स भोग करते ह; उनम ेमावेश ब त कम
होता है। इसी से उ ेजना न होने पर पु ष क च पलट जाती है और उ ह कुछ घन
भी मालूम होने लगती है और वे समझते ह क वे कुछ लुटा बैठै ह। इस भावना से ी-
पु ष क ग भीर ेम-भावना म क ड़ा लग जाता है। ी के स मान म भी कमी आ जाती
है। आमतौर पर यह सुना जाता है क ववाह के बाद ी-पु ष म पर पर वह आकषण
और ेम-भावना नह रही जो शु म थी, अ यथा पु ष उस ी क उपे ा करके अ य
क ओर आक षत आ है या वे यागामी हो जाता है। गृह थ जीवन म थर ेम, ी-
पु ष क भीतरी एकता, पर पर हष क द त, ये चीज़ ह क जसे ा त हो जाती ह
उसका मानव जीवन ध य हो जाता है। और म यह कहना चाहता ँ क इस अनमोल
खजाने क चाबी स भोग के बाद का वहार है जसका शरीर, मन और आ मा से सीधा
स ब ध है। वा तव म स भोग के ार भ म जतनी तैया रयाँ आव यक ह और स भोग
का ार भ जतना मह वपूण है उतनी ही उसक समा त भी मह वपूण है। साधारण तौर
पर वीयपात होते ही पु ष समझ लेते ह क स भोग समा त हो चुका और वे झटपट
अलग हो जाते ह। उनक लगे याँ भी सकुड़कर छोट हो जाती ह। पर तु ऐसे प त
सरे दन सुबह चड़ चड़े, उदास ओर च तत हो जाते ह और उनम कसी को अपनी
ओर आक षत करने क यो यता नह रह जाती। वह सु त, ढ ला और नराश-सा प नी से
ेमपूवक कुछ कहे बना ही अपने काम पर चला जाता है।
उ चत यह है क स भोग के बाद ी-पु ष को एकाएक अलग न हो जाना चा हए।
पु ष को अपनी कोहनी और क धे का सहारा लेकर धीरे से त कए पर सर टे क दे ना
चा हए। ी-पु ष दोन को इस थ त म लेटना चा हए क उनके गाल पर पर छु ए रह
और वे खुली तौर पर साँस ले सक। छाती के नीचे प े आराम से ी के प के साथ लगे
रह। लग यो न म लगा रहे। यो न म वीय भरा रहे। य प लग सकुड़ जाएगा पर यो न
के ह ठ से वह पकड़ा आ-सा रहेगा, इसी हालत म दोन को एक न द लेनी चा हए।
इससे उनम एक गहरी एकता का अनुभव होगा और एक सू म आन द और श क
ा त होगी और अ नवचनीय शा त मलेगी। इस काल म दोन गु ते य म एक कार
क सू म अदला-बदली होगी, य क स भोगकाल म जो पु ष-वीय उसके साथ व वध
ग टय के ाव यो न म गरे ह और अभी तक वह भरे ए ह और जनका गुण ार
होता है, इनम ब त सी अमू य चीज़ होती ह, ज ह ी क यो न के चैत य त तु सोखते
ह। उसी कार पु ष लग के अ भाग क चैत यशील खाल जो इन ाव म डू बी रहती
है, इन ाव को सोख लेती है। इस कार ी-पु ष दोन ही को इन ाव के गु ते य
ारा सोखे जाने पर फायदा होता है। दोन म उ साह, उमंग और ेम का काश बढ़ता
तीत होता है, और चाहे जतनी अ धक आयु होने पर भी दोन म ेम और आकषण के
भाव थर बने रहते ह; चड़ चड़ापन, गु सा, और उदासी पु ष म नह पैदा होती। यह
एक ऐसा मह वपूण नयम है क इसका पालन कर लया जाए तो प त-प नी स ब ध
अ धक थायी और सुखी हो जाए। व ान ने भी अब यह सा बत कर दया क पु ष क
भाँ त, स भोग के बाद ी भी कुछ ऐसे मह वपूण ार खास-खास ग टय से ा रत
करती है, जो ार गुणवाले होते ह और ज ह पु ष क जनने य के आगे क झ ली
सोख लेती है; इससे पु ष के म त क पर ऐसा उ म असर पड़ता है क उस पर एक
गहरी शा त और स तोष तथा ी के त त मयता का भाव छा जाता है। मैथुन से ी-
पु ष दोन को जीवन-श मलती है। स पूण स भोग वही है, जसका ार भ, म य
और समा त तीन ही प रपूण ह, जनम उ ेजन या और शा तपूण वेग है।
इस ग भीर शारी रक एकता से ही गाह य का स चा व प उ प होता है और
इसी से सभी आ या मक सुख और भौ तक सुभीते उ प होते ह। स तान का पालन-
पोषण माता ही का नह , युत पता का भी काम है। जन माता- पता को पर पर
उ कट ेम के कारण यह व ास होता है क उसक स तान उनक त न ध एवं उ ह
क आ मा का अवतार है, उ ह स तान से माता- पता के मान सक और आ या मक
वकास म सहायता मलती है और इसी से गाह य वातावरण थायी हो जाता है। फर
कभी-कभी चाहे चर रोग या कारण से प त-प नी स भोग से वं चत हो जाएँ तो भी उनके
गाढ़े अनुराग म कमी नह आ सकती। हमने पीछे कहा है क ी पु ष म से येक को
येक क आव यकता है; यह आव यकता जोड़ीदार म क है। वह ऐसा होना चा हए
जो येक दन-पर- दन एक- सरे के अ त व म गहरा और गहरा ही घुसता चला जाए
और वे दो न कहलाकर एक जोड़ा बन जाए, जनके दो शरीर और एक आ मा हो।
दो आ मा का यह मलाप जस दे श म सावज नक प म होगा वह रा न य ढ़
होगा। य क भीतरी एकता का रा क अंतः संगठन श पर बड़ा भाव पड़ता
है। मानवीय ेम क यही खूबी है क वह आज म प त-प नी को एकता के सू म बाँधता
है। यौवन क उ ाम लहर पर प त-प नी क यह ेम-कथाएँ औप या सक माधुय क
एक-से-एक ब ढ़या मू तयाँ उ प करती ह—जीवन के ार भ म उ लास और कोमल
भावना को ज म दे ती है। वृ ाव था म गहरी शा त और आ या मक तृ त दे ती है।
हमारे कहने का मतलब यह है क ऊपर इस अ याय म जो शीषक दया है, वही
एकप नी त क कुँजी है, जसका समाज और स यता म ास होता चला जाता है।
व ान अब स भोग-स ब धी पार प रक तृ त म सहायता दे ने को तैयार और शरीर
शा इस स ब ध म ब त कुछ कर सकने क ओर संकेत करता है। इसका बड़ा भारी
मू य है और मनु य को उससे वं चत न रहना चा हए। उ ह जान लेना चा हए क स भोग
सामा जक और शारी रक से भी उतना ही आव यक है जतना स तानो प के लए
ही करना चा हए।
डा. थाटन, जो अमे रका के एक काफ अनुभवी डा टर रहे ह और ज ह ने
ववा हत द प तय का काफ अनुभव ा त कया है, कहते ह क सगभाव था म
सहवास करने से बालक के अंग वकृत होने का पूरा भय है, साथ ही उनक जनने य
को भी हा न प ँचने का अ दे शा है। वह कहता है क अमया दत सहवास के कारण ी
के ानत तु नबल हो जाते ह, शरीर रोग का घर हो जाता है, वभाव चड़ चड़ा हो जाता
है और फर वह बालक क स हाल नह कर सकती। अगर वह प रवार गरीब वग का
आ तो उनक पूरी स हाल, पोषण और सेवा अस भव हो जाती है और बालक को कई
रोग हो जाते ह तथा बड़े होने पर वे कुकृ य का शकार हो जाते ह। उ चवग पु ष
स तान-सीमाब ध के लए कृ त उपाय को काम म लाते ह। और उससे उ ह रोगी,
अनी तवान् और क भोगी होना पड़ता है। अ तशय स भोग के कारण पु ष जजर हो
जाता है और पचास वष क आयु होने तक उसम सब सांसा रक काम करने क श का
य हो जाता है। ी-पु ष दोन ही म अ त र सहवास से पर पर वर आ जाती है।
गभाव था म स भोग से य द गभ का ार भ है तो गभ यु त का भय है और य द गभ
प रप व है तो गभ थ शशु को उ माद रोग तक क उ प हो सकती है। इन कारण से
उ डा टर का कहना है क पु ष को उ चत है क ी क इ छा के बना सहवास न
करना चा हए और एक ब तर पर ी-पु ष को सोना भी न चा हए।
इ ह डा टर को एक बार एक ी ने प लखा था और उसका उ र डा टर ने उसे
दया था। उन दोन प का सार मह वपूण होने के कारण हम यहाँ पर दे ते ह—
“आपने लखा है क अ तशय वषय-कामना ही हमारे रोग का मूल कारण है। पर तु
महापु ष म भी बल वषय-कामना होती है। क तु इसक वा त वक आव यकता
कतनी है और क पत कतनी तथा सफ आदत पड़ जाने पर कतनी और बढ़ जाती है,
इस पर वचार करने क ज़ रत है। े ल का शकार करने के लए तीन वष तक के लए
समु म जाने वाले म लाह के शरीर पर जो एक ल बे अस तक ी से जुदा रहते ह,
इसका या असर पड़ता है—यह जानने यो य बात है। आप गभाधान को कृ म री तय
से रोकने को पस द नह करते। पर गभपात या अ ववा हत क स तानो प क अपे ा
ये साधन सुगम और कम हा नकारक ह। आप संयम पर ज़ोर दे ते ह, पर सावज नक
संयम या श य है? सश और उ म वा य वाले पु ष या द घकाल तक संय मत
रह सकते ह…?”
प ो र म डा टर ने लखा है—“भोजन के बाद सामा य दो बात चाहता है
—(1) सहवास-सुख और (2) पु षाथ अथात् उ ोग। दोन का पर पर भाव है। अगर
पु ष पूणायु ा त होने से थम ही अ धक सहवास म फँस जाए तो उसम से पु षाथ क
भावना न हो जाएगी, अथवा प रप वायु म ववाह के बाद य द सहवास कया जाएगा
तो पु षाथ क श म द पड़ जाएगी। त त और वीयव त लोग से सहवास-सुख
भोगने क इ छा पूण होती है, पर तु य द वे कसी पु षाथ म जुट जाएं और पु षाथ—
कामना उनम बल हो जाए तो सहवास क कामना कम हो जाएगी। इसके बाद वह
पु ष कसी येय क ा त म अपनी सम श तथा लगन लगा दे तो सहवास क
वासना चरकाल तक के लए म द पड़ जाएगी। अब अगर वह पु ष स ह थ बन जाए
और यथावसर प त-प नी कामवासना से पी ड़त हो सहवास-सुख भोग और उससे गभ
रहकर स तान- ा त हो जाए तो फर प त-प नी दोन के सर पर स तान के लालन-
पालन क च ता और काय म का भार आ पड़ता है तथा और भी स तान होने लगती
है। इससे दोन क ही सहवास इ छा म द पड़ जाती है। ऐसी अव था म दोन को खूब
शारी रक प र म करना चा हए और ी-पु ष को एक बछौने पर न सोना चा हए। े ल
मछली के शकार पर भी द घकाल तक समु म जाने वाले मा झय को कड़ी मेहनत
करनी पड़ती है। इनसे उनम कामवासना जा त होने के ब त कम अवसर ह। पर तु
लौटने पर वे शू य म त क हो जाएँ तो संयम नह रख सकते और वे च ड वेग से
कामवासना म लग जाते ह। कृ म साधन का वपरीत असर शरीर और नी त दोन पर
ही पड़ता है। कृ म साधन से गभ होना रोक दया जाता है, फर ी-पु ष का मु
सहवास होता है, पु ष ी से स तु हो जाता है और उसक वासना म द पड़ जाती है।
पर ी इस भय से क वह सरी य क ओर आक षत न हो उसे अपना गुलाम बनाये
रखने के लए उसे कृ म ी त से उ े जत करती है और दे र तक गभाधान का वरोध
करते रहने से उनक वषये छा बल हो जाती है और शी ही पु ष नव य हो जाता है।
इस नव यता को रोकने के लए वह अनेक हा या पद उ ोग करता है और अ त म प त-
प नी म तर कार के भाव उ प हो जाते ह। इसके सवा य के कोमल म जा
त तु पर उसका बुरा असर तो पड़ता ही है, ायः ी का जीवन भी फ का हो जाता
है।” अ त म डा टर यह सार दे ता है क ी-पु ष को अ त सहवास के प रणाम से
बचने के लए कृ म संतान-सीमारोध के उपाय ारा नह , युत सहवासे छा से
पु षाथ छा म बदलने से सफलता मलेगी और वह सवथा हा न-र हत होगी।
संयम और स भोग

स◌ं यम या चय हर हालत म लाभदायक है और स भोग हर हालत म एक न


काम है,यह वचार आम तौर पर सवसाधारण म फैला द खता है। हमने खूब
अ छ तरह बता दया है क कामवासना शु शारी रक उ े ग है, मान सक नह । इस लए
संयम इस स ब ध म अ धक उपयोगी सा बत नह हो सकता। केवल गभाधान के लए ही
स भोग करना चा हए यह बात भी नरथक और अ वहाय है। अगर संयम या चय
का यह अथ लगाया जाए क सफ ी-पु ष सहवास ही नह ब क, ह तमैथुन और
स भोग के जतने कार हो सकते ह, वे सब तथा सम त काम-स ब धी वचार, भावनाएँ
तक रोकना ही संयम या चय है तो वह केवल स पूण नपुंसक लोग के ही लए
स भव है। सारे संसार के य त, स यासी, मठधारी, भ ,ु और स त लोग जो धा मक या
नै तक अनुब धन के कारण संयम या चय धारण करने को ववश रहे, परी ण के
बाद वे सब वस भोगी मा णत ए ह। वै ा नक ने यह भी पता लगाया है क संयम-
साधना म मान सक और शारी रक श का भरपूर ास होता है और उसम से मनु य क
त णाई का उ लास न होकर मनु य लान और न तेज हो जाता है। ायः लोग
ायाम ारा शरीर को थकाकर संयम रखने क चे ा करते ह। थकावट से थोड़ी वासना
कम हो जाती है। पर साथ ही शारी रक और मान सक श भी कम हो जाती है। पर तु
य ही ायाम से शरीर व थ होगा तो कामवासना भी ढ़ होगी। इस वाभा वक
वासना को दबा रखने क चे ा म कुछ लोग सारा जीवन ही खच कर दे ते ह। हमने
नवयुवक के कुछ उदाहरण लए ह। जनका शरीर पूण व थ होने के कारण समय पर
कामवासना का वाह उनके शरीर म बहा, पर तु नै तक और धा मक एवं सामा जक
कारण से उ ह ने स भोग और सरे कारण से वीयपात न होने दया इससे उ ह जतनी
हा न ई और एक कार से वे जैसे अ व त हो गए, यह हमने दे खा।
यह कहना क चय से कसी हालत म कोई हा न नह है, सरासर अवै ा नक है।
बाल- चय के पालन करने के य न म ब त-सी मान सक और शारी रक श खच
होती है तथा उसम से ता य के उ लास का वेग न हो जाता है। जससे मनु य लान
और न तेज हो जाता है। यह एक बड़ा पेचीदा सवाल है क ववा हत या अ ववा हत
ी-को य द कसी कारण से कामे छा होने पर उसक पू त म बाधा होती है तो वे
स भोग कर या नह और य द कर तो कैसे? क पना क जए एक पु ष काम वेग म है
और उसक प नी बीमार या ग भणी एवं अ य कसी कारण से ऐसी हालत म है क
उसके साथ प त सहवास नह कर सकता, अब आरो यता के वधान क से वह या
करे? वस भोग करे जो हा नकारक है या वे यास भोग करे जो खतरनाक है, या पर-
ीगमन करे जो अनी त है? इस का व ान एक ही जवाब दे गा, वह यह क कृत
स भोग कसी भी ी से करे। और वह य द समाज-ब धन और नी त ब धन म बँधने क
परवाह नह करता तो आसानी से वे या या कसी ी से स भोग कर सकता है। पर तु
क ठनाई तो तब आती है जब ऐसी ही ी हो और उसे स भोग क आव यकता हो, तब?
डा टर मा रस तो साफ तौर पर कहते ह क य द समागम से रोगी के अ छा होने क
आशा हो और डा टर सामा जक या धा मक कारण से स भोग क आ ा न दे तो वह
डा टर-पद के यो य नह है। यही डा. लेडर का कथन है। वे कहते ह क डा टर नी त का
र क नह वरन् वा य का र क है। अब एक ऐसी ी के लए जसका प त नपुंसक,
रोगी या अ य कसी कारण से स भोग-श से हीन हो और उस ी को स भोग क
आव यकता हो तो या करे? नी त, धम सबको यागकर पर-पु ष सहवास करे या
भयानक रोग क शकार होकर ाण दे ?
वासना कम करने के लए ोमाइड या अ य शामक दवाइयाँ काम म लाई जाती ह,
पर इनसे न सफ काम-वासना युत शरीर क सम त याएँ मंद पड़ जाती ह। जो
वा तव म शरीर के लए एक जो खम क बात है। इन चीज़ के लगातार लेने से शरीर क
फू त न हो जाती है। भारतवष म करोड़ वधवाएँ अ य प आयु से इस भयानक
वप का मुकाबला करती ह। यौवन उदय होने के पहले से वृ ाव था तक उ ह च ड
कामवासना को दमन करने का अश य काम करना पड़ता है; उनम अनेक अन गनत
रोग तथा सन म फँसकर और वकार त होकर असमय म ाण याग करती ह।
कुछ लोग ायाम से संयम क चे ा करते ह, पर मरण रहे क यह भी स भव नह
है। ायाम से वा य ढ़ होगा और उसी के साथ कामवासना भी बल होगी।
वाभा वक कामवासना को दाब रखना ऐसा भयानक य न है क जो कोई इस य न म
आगे बढ़ने क मूखता करेगा, उसे शरीर और मन क सारी श उसी के दबाने म ही न
हो जाएगी।
हमारे पास ऐसे अनेक माण ह क नवयुवक को अ वाभा वक प से काम वकार
को दबाने से अनेक असा य रोग तथा अ ाकृत चे ा का शकार होना पड़ा। क ज़,
धातुदौब य, सरदद, मरगी, म दबु , र - वकार, उ माद आ द रोग बलात् चय-
धारण के माण ह। ायः ऐसे युवक फर पढ़ नह सकते और अकारण उदास रहने लगते
ह। उनके मज़ाज चड़ चड़े हो जाते ह तथा ता उनके वभाव म उ प हो जाती है।
ऐसे युवक का य द तुर त ववाह कर दया जाए तो उ ह आशातीत लाभ होता है। यही
हाल लड़ कय और युव तय का भी है।
एक लड़क नहायत खुश मज़ाज और त त थी। उसका ववाह एक चालीस
साल के प क उ के आदमी के साथ आ, जसक स भोग श शी ही श थल हो
गई ओर वह पूणतया उस ी को स तु न कर सकता था। वह ी चड़ चड़े वभाव क
हो गई, खासकर ऋतुकाल के अवसर पर उसके मन क हालत ब त खराब हो जाया
करती थी और य ही वह स भोग करती क ठ क हो जाती थी, पर तु प त के अश
होने से दन-पर- दन उसक हालत खराब होती गई। उसके म जात तु बगड़ गए और
अ त म वह ह ट रया क शकार हो गई।
सारांश यह है क जब तक शरीर क पूण वृ नह होती तभी तक चय से लाभ
होता है, पर इसके बाद चय सवसाधारण के पालन क चीज़ नह । हमने बताया क
कैथो लक स दाय के ईसाईय के हठात् चय-पालन के उदाहरण कतने असफल ह।
उनम से ब त को अपनी जनने याँ तक काट डालनी पड़ी ह। लूथर का कहना है क
भूख- यास क तरह मनु य को कामवासना भी होती है और वह त ती क एक
नशानी है। ाचीन व ान का यह वचार था क य द वीय शरीर के बाहर न नकाल
दया जाय तो वह र म मलकर शरीर के तेज को बढ़ाता है, पर आधु नक व ान ने यह
सा बत कर दया है क यह स ा त गलत और अस भव है। वा तव म वीय अगर शरीर
म रह जाएगा तो वह मलमू के साथ मलकर शरीर से बाहर हो जायगा और उससे
मनु य को कुछ भी लाभ नह प ँचेगा। डा. लाक का कहना है क यह क पना ब कुल
थोथी है। और इसके कहने वाले या तो मूख ह या बदमाश। हाँ, जनक कामवासना म द
होगी उ ह भले ही चय से क न हो, पर तु उ साही पु ष को अव य ही उससे क
होगा तथा हा न भी होगी। ब धा दे खा जाता है क अ धक दन तक चय रखने के
बाद अ त र स भोग कया जाता है तब कामवासना अस हो उठती है और उसी म
उसका अ त भी हो जाता है। एक व ान जो स सा ह यक थे तीस वष क आयु
तक चारी रहे। इसके बाद उ ह ने ववाह कया फर उ ह ने इतना सहवास कया क
उनक त ती खराब हो गई, न द कम आने लगी, र का दबाब इतना बढ़ गया और
वे ज द ही मर गए। ब धा दे खा गया है क ऐसे नवयुवक जनम चय-धारण क च
तो हो गई, पर वासना को दमन करने म असमथ रहे ह व दोष के शकार हो जाते ह।
हाथ-पाँव जलना, न द न आना, क ज़ रहना या द त लगना, बीजकोष म दद होना,
व दोष या ः व यह हठात् चय धारण करने के ल ण ह। कुछ ऐसे उदाहरण दए
जाते ह जो चय म रहने के कारण अ य त व थ और बलवान रहे ह।
कुछ लोग का याल है क य म काम-वासना क अपे ा स तान- ा त क
इ छा अ धक बल होती है। पर तु यह वचार ठ क नह है। लूथर का कहना है क
य को अ -जल क अथवा न द क जतनी ज़ रत है उतनी ही स भोग क भी है।
पर तु सामा जक ब धन के कारण य क कामवासना पर अ धक दबाव रहता है।
शु म चय से य को वैसा क नह होता जैसा क पु ष को होता है। पर आगे
चलकर उन पर भी वैसा ही असर पड़ता है। इस काल म य द उ ह स भोग- ा त न ई
तो जो भी आदमी उनके सामने आए उसी के त उनका काम जागृत हो जाता है और
य द उ ह वासनातृ त का समय नह मलता तो वे पागल हो जाती ह। इस लए जब तक
त ती ठ क है, शरीर म काफ वीय उ प होता है, तब तक चाहे जस कारण से भी
वीय रोकने क चे ा करना थ है। वह कसी-न- कसी री त से अव य नकल जाता है।
डा. रॉ ब सन कहते ह क एक ी जसक आयु 36 वष क थी, उसे कामो माद आ
था, वह लगातार काम स ब धी अ ील बात एक जुबान से दन-रात बका करती थी।
कुछ लोग कहते ह क नाटक- सनेमा दे खने से, उप यास पढ़ने से और काम-स ब धी
बात सुनने से युवक-युव तय म कामवासना भड़क उठती है। उ ह इन चीज़ क छू त से
बचा रखना स भव नह है। अगर आप कसी लड़के या लड़क को बाहरी वातावरण से
बचाकर रख, उसे ी-पु ष का भेद भी न बताया जाय, तो भी समय पर उसम ती
कामे छा उ प होगी ही। चय के उपदे ा युवक को नंगे पैर चलने, ठ डी ज़मीन पर
खड़ा रहने, ायाम करने, त त पर या ज़मीन पर सोने के आदे श दे ते ह; पर तु हमने
खूब यान से दे खा है क इन सबका उ टा ही प रणाम आ है। खासकर ायाम से र
का वेग अ छा होने से काम-वासना और भी बढ़ जाती है। हाँ, पहलवान लोग ायः
नपुंसक हो जाते ह य क वे भयानक री त से कसकर बीजकोष तथा गु ते य को
बाँध रखते ह। जहाँ तक हमने खोज क है ऐसे ब त कम आदमी मलते ह ज ह ने पूण
व थ होने पर भी 10 या 20 वष तक चय पूण प से धारण कया हो और उनक
त ती पूण प से कायम रही हो।
यह बात अ वीकार नह क जा सकती क कुछ प र थ तयाँ ह जब क साल भर या
6 महीने के लए अथवा ज मभर तक के लए चय रखना लाभदायक हो सकता है,
पर वह खास-खास हालात म खास-खास रो गय के लए, न क पूण व थ बलवान
लोग के लए आम नयम बन जाना चा हए। इसके नणय का अ धकार नी त के
उपदे शक एवं धम-गु को नह है, युत च क सक को है। वग ा त, मु या
धमलाभ के लए चय क आव यकता नह है। युत चय क आव यकता
वा यलाभ के लए है। इस लए य द च क सक का यह मत है क चय से लाभ
होगा तो जतनी अव ध तक वह कहे चय धारण करना चा हए और य द वह यह राय
दे क चय धारण करना उसके वा य के लए खतरनाक है तो उसे नःशंक चय
भंग कर डालना चा हए। हम यह ढ़तापूवक कहते ह क ह तमैथुन और अ ाकृ तक
स भोग चय के कारण ही फैलते ह। जो लोग समाज और नी त के भय से चय
धारण करते ह पर तु कामवेग सहन नह कर सकते, वे वस भोग म डू ब जाते ह। इसके
सवा नपुंसक होने का मूल कारण भी चय का हठात् पालन करना है। अ धक
समागम करने से भी नपुंसकता पैदा हो जाती है पर इतनी भयानकता से नह जतनी
चय से। बड़ी आयु म स भोगे छा होने पर भी ववश होकर ज ह चय धारण
करना पड़ता है, उनके ो टे ड ले ड फूल जाते ह, उ ह बार-बार पेशाब आने लगता है।
बीजकोष सूज जाते ह। उनम दद होने लगता है, पीठ म दद उठता है, तथा बदह मी और
मलावरोध होता है। मुँह और पीठ पर फु सयाँ हो जाती ह, मरणश और न द न हो
जाती है। और ऐसे लोग से सच पूछा जाय तो कोई दवा फायदा नह करती। ब लन के
डा टर इवान वाक का कहना है क शरीर- व ान क बात आमतौर पर सब लोग नह
जानते। लोग आ मा के स ब ध म बड़ी-बड़ी बात सुनते रहते ह, इससे शरीर क अपे ा
आ मा क भलाई क ओर लोग क अ धक जाती है और इसी लए चय पालन
करने क चे ा म अपने शरीर को न कर डालते ह, यहाँ तक क नव ववा हता प नी तक
को याग दे ते ह। उ ह यह व ास हो जाता है क स भोग करना पाप है। इस लए हमारा
कथन यह है क 15-16 वष तक ी और 18-20 वष तक पु ष चय धारण कर तो
अ छा है। चय-पालन क स भावना चय धारण करने से थम ही है, बाद म वह
क ठन हो जाती है। हाँ य द कसी को गम , सुजाक, कोढ़ या ऐसी ही कोई छू त क
बीमारी हो तो उ ह जनन रोकने के लए चय रखना चा हए और य द यह स भव न हो
तो उ ह नपुंसक बना दे ना चा हए।
बलात् चय से ायः व दोष अ धक होने लगता है। बीजकोष वीयवा हनी नाड़ी
और उनके आस-पास दद रहने लगता है तथा काम स ब धी भावनाएँ अ धक उ े जत हो
जाती ह, ऐसा आदमी ायः ख रहता है। म या क पना करता तथा स भोग क पू त
का यान करता और काम-स ब धी वकार से घरा रहता है, उसम काम करने क श
कम हो जाती है। ब लन के डा. मट का कहना है क शरीर क कसी भी ाकृत- कृ त
को दबा रखने से कृ त क हा न होती है। भूख- यास क भाँ त ही कामवासना है और
उसक तृ त का कृत उपाय है सहवास। कसी भी इ य का उपयोग न करने वे वह
नबल हो जाती है, इसी कार चय रखने से नपुंसकता आती है।
बलात् चय का बोझ य पर लादना और भी भयानक है। उनम सफ
कामवासना ही बल नह होती, स तान क भी लालसा रहती है। इस लए पु ष क
अपे ा उनक हालत यादा खराब हो जाती है। ह ट रया इसका अ नवाय प रणाम है।
ऐसी याँ सम-स भोग करने लगती ह, इसके उ ह अवसर भी काफ मल जाते ह।
वयना के डॉ टर व हेम ेकेल का कहना है क भूख और कामवासना दोन का शरीर
पर समान अ धकार है। कुछ लोग कुछ समय तक उपवास रख सकते ह, इससे यह
कहना क मनु य के लए भोजन क आव यकता ही नह है मूखता है। स भोग से वं चत
रहने वाली ी कैसे सूख जाती है और सम-स भोग का लाभ पाने वाली उसी आयु क
ी कैसी तेज वनी दखाई पड़ती है, यह दे खने से बलात् चय का मू य समझ म आ
जाता है। खास बात यान म रखने यो य यह है क लजीली याँ यादा कामुक आ
करती ह य क लाज और वनय यह कामवासना से ही पैदा होती है। हम न यपूवक
इस प र थ त पर प ँचते ह क पूण चय का पालन कोई नह कर सकता। कुछ लोग
रोग के भय से ह तमैथुन करते ह और याँ गभधारण के भय से चय का पालन
करती ह एवं चय का उपदे श दे ने वाले या तो पाख डी होते ह या नपुंसक, या
अ ववा हत या वयोवृ । स तानो प कम करने के लए जो लोग चय का पालन
करते ह, उनम ायः याँ चड़ चड़े वभाव क हो जाती ह और पु ष गु त भचारी।
एक बात यह कही जा सकती है क येक बार सहवास करने म कुछ-न-कुछ श खच
होती है। पर तु काम-ध धे करने, चलने, फरने, प र म करने, सभी म तो श खच
होती है। उसक पू त शरीर वाभा वक री त से कर लेता है। जनम ठ क-ठ क काम-
वासना है वे ही कुछ काम कर सकते ह, नपुंसक लोग नह । जनक कामवासना बल
होती है और जो इसका यथा नयम पालन करते ह वे ही अ धक द घजीवी होते ह, नपुंसक
नह । स भोग से वं चत ी पु ष भी नह । वीय को शरीर म एक त करना स भव नह
है। य द वह खा रज होता रहता है, तभी उसके बनने क या ठ क-ठ क होती रहती है।
वयना के डा टर ो. ायड का कथन है क कामवासना क श का कुछ अंश सरे
काम म भी खच कया जा सकता है। पर वह पूरी तौर पर सरे काम म नह लाई जा
सकती। कामवासना स तानो प त के लए ही नह है, वरन् एक वशेष सुख के लए है।
छोटे -छोटे ब च म भी कामवासना होती है और वे इसका सुख अनुभव करते ह। ोफेसर
ायड ने अपनी पु तक म बड़ी ग भीरता से इस बात को तपा दत कया है क
कामवासना का मनु य क उ त और अवन त पर कैसा भाव पड़ता है। ो. ायड
नायु-रोग के व - व यात च क सक ह। उ ह ने ह ट रया और उ माद के रो गय का
मनन करके पता लगाया क उनका कुछ-न-कुछ स ब ध गभाशय से होना चा हए।
उ ह ने समझा क यह रोग मनो वकार के दबाने से ी-पु ष दोन को होता है,पर य
क नस कोमल होने से वकार के दबाने म अ धक श य करनी पड़ती है। उ ह ने
यह भी पता लगाया क कामवासना युवाव था होने से थम ही पैदा हो जाती है। वह एक
च ड श है और उसे दबा कर रखने से वह सौ माग से फूट नकल सकती है।
अब दो बात जो सबसे अ धक मह वपूण ह, इस करण म जानने यो य ह। एक यह
क व ान चाहे जो कुछ भी कहे, समाज और नी त क एक स ा है। मनु य मशीन नह
है, जी वत ाणी है, और उसम बु , स यता और रद शता है। अतः वह केवल व ान
और कृ त के आदे श का पालन करता ही जाय तो सामा जक जीवन कैसा बनेगा?
अनेक ी-पु ष प त-प नी होने पर भी अनेक कारण से एक- सरे को सहवास-सुख
दे ने म असमथ ह। एक च क सक क है सयत से य द हम यह दे खगे क सहवास से
वं चत होने से उनके रोगी होने क स भावना है तो हम यह स म त दे ने को बा य ह क वे
स ब ध व छे द कर द और अ य ी-पु ष से सहवास कर, पर इस वै ा नक स म त पर
आचरण करने के लए समाज ने ी-पु ष को वाधीन नह छोड़ा है। क पना क जए
क तीन-चार ब च के उ प होने के बाद एक त त कुल क ी वधवा हो जाती है।
ब च क माता होने के साथ ही वह प त क स प क अ धका रणी हो जाती है। अब
य द उसे कामवासना सताती है तो वह या करे? च क सक क है सयत से हम कहगे
क वह स भोग करे नह तो नायु रोग क शकार होगी। पर तु या उसक मयादा,
त ा, मातृ व, गौरव यह सब कायम रह सकता है? ऐसी वषम और खदाई थ त
संसार म करोड़ ी-पु ष क हो जाती है। इसी कार पु ष य द अधेड़ाव था म वधुर
हो जाता है तो वह या करे? य द व थ है और उसम कामवासना भी है, उसके वेग का
मुकाबला भी नह कर सकता। ज द बूढ़ा होकर मर सकता है या चररोगी हो सकता है।
उसे भी च क सक के कहने से समाज स भोग क सु वधा नह दे सकता। अतः व ान
चाहे जो भी कहे, समाज के स ब ध पर मनु य को अपने को सदा ब ल दे नी होगी, जैसा
क उसे सदा से ब ल होना पड़ा है। इसी कार सरा उन ी-पु ष का है ज ह
यथे छ स भोग क सु वधा है। तब या प त-प नी को नबाध प से स भोग करना
चा हए? वासना को वशीभूत रखने से ेम-भावना अ त य हो जाती है। इस स ब ध म
जो शारी रक संघष है उसक बात छोड़कर मान सक वकार म जो काम-स ब धी संघष
नर तर बड़ी उ तक भी होता रहता है, वह नायुम डल क अशा त को उ प करता
है और कभी-कभी उसके दबाने म असमथ होना पड़ता है। वा तव म यह अ त क ठन है।
पर तु इसी पर हमारे जीवन के सुख या ःख का दारोमदार है। कभी-कभी मनु य क
कामवासना का भाव इतना बढ़ जाता है क वह पशु भावना तक प ँच जाता है।
जतना ही मनु य कामवासना पर नय ण रखेगा उतना ही उसके दा प य जीवन म
माधुय क वृ होगी। अतः ववा हत ी-पु ष को कामवासना का स चा सुख भोगने
के लए स भोग को प र मत, उ चत और व थत प म ही काम म लाना चा हए।

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