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आचाय चतुरसेन
ISBN: 978-93-5064-221-4
थम राजपाल सं करण: 2014 © आचाय चतुरसेन
KAAM-KALA KE BHED (Health & Fitness)
by Acharya Chatursen
राजपाल ए ड स ज़
1590, मदरसा रोड, क मीरी गेट- द ली-110006
फोनः 011-23869812, 23865483, फै सः 011-23867791
website: www.rajpalpublishing.com
e-mail: sales@rajpalpublishing.com
भू मका
लालबाग़,
शाहदरा, द ली
—चतुरसेन
म
नर और नारी
ेम और काम
मु सहवास
गु ते य और बीजकोष
वा य और कामवासना
कामके क सफाई
मा सक धम
बराबर क जोड़ी
ववाह
स भोग क तैयारी
कामो पन
कौमायभंग
आसन
स भोग
स भोग म बाधाएँ
स भोग के बाद
संयम और स भोग
नर और नारी
य हऔरतो चीज़
साफ-साफ समझा जा सकता है क जो कुछ पु ष है वह ी नह । अथात् ी
है और पु ष और चीज़ है। कट री त से हम दे खते ह क ी का चेहरा
कोमल और दाढ़ -मूँछ से र हत है और पु ष का चेहरा कठोर और दाढ़ -मूँछ से भरा
आ। एक का शरीर नाजक, आवाज़ महीन और अंग- यंग छोटे ह। सरे का शरीर
मज़बूत, आवाज़ ग भीर और शरीर डील-डौल वाला है। इसम आ यजनक बात यह है
क पु ष जहाँ ी के उपयु गुण कोमलता, नज़ाकत और नस-नस क नमी को पस द
करते ह, उसके व याँ खूब कठोर अंग वाले, बड़ी और मोट ह ी वाले, भरपूर
तेज वी और वीर पु ष को पस द करती ह। यह वपरीत त व क पस द दोन , ी और
पु ष म केवल शारी रक वषय ही म नह है, युत मन और वभाव तक म पाई जाती
है। याँ ायः सल ज और संकोचशील पस द क जाती ह और पु ष नभय, साहसी
और न संकोच। एक पु ष चाहे जतना वीर, ढ़, साहसी और नभय हो, अ य त
कोमल, भावुक, सल ज और नाजक ी को पस द करेगा। इस भाँ त अ य त
ल जावती और कोमलांगी ी खूब दाढ़ -मूँछ से यु चेहरा, बाल से भरा व ः थल
और ब ल भुजद ड पर लोट-पोट होती है।
इस वपरीत आकां ा म एक ाकृत कारण है। ी म जस व तु का अभाव है वह
उसके लए वाभा वक री त से ही लाला यत है। और पु ष म जस चीज़ का अभाव है
वह भी उसके लए वैसा ही लाला यत है। पु ष यह समझते ह क वे य पर मो हत
होते ह, पर तु भली-भाँ त दे खा जाय तो याँ पु ष क अपे ा अ धक मूढ़भाव से
पु ष पर मरती ह। दोन को दोन क उ कट यास है। ी य द पु ष के लए वा द
मठाई है तो पु ष ी के लए जीवन-मूल है। जब हम हज़ार -लाख अबोध भी
बा लका को क ची उ म हठात माता, पता, भाई और पैतृक घर बार छोड़कर प त
के घर जाते दे खते ह, तब कस जा के बल पर वह अपना सब कुछ भूलकर प त, केवल
प त म रम जाती है? और ववाह के बाद प त-चचा को छोड़ सरी चचा ही ायः उसे
नह सुहाती है। काली-कलूट , बली, सु त लड़क चार दन प त का पश पाकर कुछ-
क -कुछ हो जाती है। उसका रंग नखर जाता है और उ लास के मारे वह धरती पर पैर
नह टे कती।
पु ष कस भाँ त य पर पतंगे के समान टू ट पड़ते ह, यह बात या याँ नह
जानत ? फर भी वे पु ष पर य ऐसे रीझती ह? असं य याँ लोक-लाज, धन-
स प को यागकर पु ष, केवल पु ष को लेकर द न- नया क आँख और कान से
र रहने लगी ह। दो ही दन म उनक आँख भाई, पता और माता को कम पहचानने
लगती ह। सफ पु ष, वही कठोर पु ष, उनक म सबसे अ धक य, सबसे अ धक
घ न , सबसे अ धक आव यक तीत होता है।
इसम एक रह य है। जैसे कठोरता को कोमलता य है, उसी भाँ त कोमलता को
कठोरता य है। दोन दोन क खुराक ह। दोन दोन पर अवल बत ह। ी मू तमती
कोमलता है और पु ष मू तमान कठोरता।
दय और म त क, ये दो अंग शरीर क जीवनी श के के ह। दय म
भावुकता, ल जा, दया और परोपकार क भावना तथा क णा आ द क तरंग उठा
करती ह और म त क म वीरता, साहस, ान और धैय क लहर उ प होती रहती ह।
वभाव से ही म त क क श याँ पु ष म और दय क श याँ य म वशेष प
से रहती ह। यह कहा जा सकता है क ाणी जगत् म ी दय है और पु ष म त क।
दोन दोन पर नभर करते ह। दोन पार प रक श य के व नमय और सहयोग से ही
जीवनी श क धारा को के त रखते ह। जैसे दय के बना म त क और म त क
के बना दय शरीर को जी वत नह रख सकता, उसी भाँ त समाज म ी के बना पु ष
और पु ष के बना ी क गुज़र नह हो सकती। दोन अपने म अपूण ह। वे पर पर
मलकर पूण होते ह।
व ुत्- व ान म दो धाराएँ होती ह: एक ऋण, सरी धन। दोन धाराएँ पर पर
वरो धनी ह। एक अपकषण करती है, सरी आकषण। जब दोन छू जाती ह, व ुत्-
धारा कट हो जाती है। सरी से ी को सूय-त वयु और पु ष को च -
त वयु माना गया है। जैसे सूय अपनी श से जगत् के रस का आकषण करता है
उसी कार च मा पृ वी पर सुधा-वषण करता है। यही वै ा नक कारण है क ी का
रज, जो सौय गुण-यु है, पु ष के वीय को जो च गुण-यु है, आकषण करके अपने
अ दर धारण करता है।
म आगे चलकर बताऊँगा क ी और पु ष के लगभेद क वा त वकता केवल इसी
या के लए, सफ इसी एक या के सुभीते यु , सफ इसी एक या के लए
वाभा वक उपयोगी नमाण क गई है। जो ी-पु ष एक- सरे को यह वाद
अ धका धक मा ा म आदान- दान कर सकते ह, उनक ेम थयाँ इतनी बल होती ह
क लोकलाज, वैभव, लोभ, राजपाट, अ धकार, कोई भी उ ह परा त नह कर सकता।
वह जगत् क सव प र चाहना क व तु है। इसम कोई कृ मता नह है। यह सखाई नह
जाती। यह सवथा वाभा वक और ई र- द है। इसम एक पर परा का वाह न हत
है। स तान-उ पादन का यही के है। एक के बाद सरा जीव अन त काल तक उ प
होता रहे, संसार अन त काल तक ऐसा ही वा हत रहे, आलोक और आन द क धारा
को अन त जीव वचरण करते रह, लय और सृ म भेद बना रहे—इसी से कृ त का
यह सबसे बड़ा साद माना गया है। ेम और वाद का सव म अंश इस या के अ दर
न हत है। ी और पु ष दोन पर गूढ़ वाद और ेम का असा य अ धकार है। यही
कारण है क ी और पु ष दोन इतने यासे ह। कुछ लोग समझते ह क ी-पु ष क
इस पार प रक यास म प-स दय का वशेष हाथ है। पर यार और वाद का प कुछ
उपकरण हो सकता है। मु य व तु तो उपयु दो नैस गक व तु का दान- तदान है।
इस कार ी-पु ष दोन आपस म पृथक्-पृथक् अपूण ह, और एक होकर पूण
होते ह। ी-शरीर म जो ता य वक सत होता है, जसके ारा वह ीभाव को ा त
होती है, वही पु ष- प म पृथक् होकर फर मलता है। वचा रये तो, वीय- ब के साथ
एक क टाणु के ु प म पु ष गभाशय म गया, वहाँ वह धीरे-धीरे प रव तत होकर
और समय पर पूण होकर ी-शरीर से पृथक् आ। उसका वकास चलता ही रहा,
बालक रहा, वह युवा आ और फर वैसी ही एक ी हठात् कह से आकर उससे मली।
वह उस ी म फर वीय प म व आ और ी-पु ष दोन ने एक प अ भ
होकर फर ज म लया। यह वाह अन त से अन त तक चलता ही रहा और चलता ही
रहेगा।
ेम और काम
क◌ु छअसदशक पूव तक तुक म कसी म हला के वषय म कुछ जानना एक कार से
भव था। कभी-कभी यूरो पयन डा टर को खलीफ़ा के हरम म जाने क
आव यकता पड़ती थी। इ ह ने पद के चम कारपूण वणन कए ह। बग़दाद के ार भक
काल म पद क बड़ी था थी। एक बार एक ईसाई डा टर को उसक च क सा के
उपल य म तीन सु दरी दा सयाँ खलीफ़ा ने द थ पर डा टर ने यह कहकर उ ह वा पस
कर दया क वह ईसाई है और अपनी प नी के सवा सरी ी को छू भी नह सकता।
इससे खलीफ़ा ने स होकर उसके लए हरम म आना-जाना मु कर दया था। आम
तौर पर जो डा टर हरम म ी रो गणी को दे खने जाता था तो यादा-से- यादा उसक
ज़बान को दे ख सकता था, बाक तमाम शरीर छपा दया जाता था। तुक़ म आम तौर पर
डा टर से पूछा जाता था क रो गणी ग भणी है या नह और उसके पेट म लड़का है क
लड़क ।
मूसा क पहली पु तक म लखा है क ार भ म ी-पु ष दोन न न थे और पर पर
लजाते नह थे, पर पाप ने उनम ल जा उ प कर द , और उ ह ने जाना क वे न न ह।
फर उ ह ने प े सी-सीकर अपने अंग को ढक लया। वली हसन कहता है—हीदन और
अरब म लोग म कपड़े पहनना बुरा समझा जाता था। ी शोक के समय अपनी छाती
और मुँह को खोलती तथा कपड़े फाड़ डालती थी, या प वाहक लोग जब बुरी खबर लाते
थे तो वह कपड़े फाड़ डालती थी। माताएँ जब अपने ब च पर कुछ भाव डालना
चाहती थ , तब भी अपने कपड़े फाड़ डालती थ । जो आदमी बदला नह ले सकते थे, वे
अपने कपड़े फाड़कर अपना ोध पकट करते थे, या सर नंगा कर लेते थे। मुह मद
साहेब से पहले लोग नंगे होकर क़ बे म जाया करते थे। पीछे मुह मद साहेब ने एक
आयत के ज़ रये उ ह कपड़े पहनने को ववश कया था। याँ खास तौर पर बुका
पहनकर नकलने के लए ववश क गई थ । पद क आव यकता नज़र लगने के भय के
कारण ाचीन अरब म थी। याँ ही नह , पु ष भी नज़र लगने से बचने के लए य द वे
अ धक सु दर होते थे, तो पद से अपना मुँह छपाये रहते थे। डक हम कहता है क पद
का उपयोग जा के भाव को र रखने के उ े य से भी होता था। पीछे मुसलमान म
पदा धा मक कानून बन गया था। ऐ लस का कहना है—अ का क औरत ल जा के
कारण अपने चेहरे हाथ से ढक लया करती थ । तुक याँ चेहरे को ढकना ही लाज-
नवारण क चीज़ समझती थ । तुक क वे याएँ मुँह पर का पदा बना र कए ही अपने
को का मय के अपण करके पयकशा यनी होती थ । मु लम धम कहता है क जन
य क शाद न ई हो या जन य को ब चा न आ हो, वे बुका छोड़ सकती ह।
पर वे अपने गहने अव य छपा रख। ब च और गुलाम से मु लम य को पदा करने
क ज़ रत नह । पर वे ज़ेवर उनसे भी अव य छपाय। गडामर क याँ अपने कपड़
पर उतनी ही चमड़े क पे टयाँ पहनती थ जतना अ धक उ ह ने सहवास कया हो और
जनके पास जतनी यादा पे टयाँ होती थ उतनी ही वे त त समझी जाती थ ।
म यकाल म जमन लोग ब कुल नंगे होकर पलँग पर सोते तथा बेपद होकर नंगे नान-
गृह म नहाते थे। जापान म अब भी नानागार म नंगा नहाया जाता है। म लका योडोरा
छठ शता द म अ सर ब कुल नंगी सावज नक थान म जाती थी, यह साधारणतया
एक जां घया पहनती थी। एक यूरो पयन ने ता बूल के बाज़ार क बाबत लखा है क
उसने एक फ़क़ र को ब कुल नंगे घूमते दे खा जसक ओर तुक का कुछ भी यान न
था। उसके नंगे रहने का यह कारण था क उसने उस इ य से अ धक पाप कए थे
इससे उसे कोई रोक नह सकता था। जंगली जा त के लोग ल जा के कारण गु तांग को
नह छपाते। यूहेव रज के आदमी बड़ी सावधानी से अपनी गु ते य को छपाकर
रखते थे। उ ह भय था क इसे दे खना दे खने वाले और दखाने वाले को अशुभ है। वह
उस पर कसी चीज़ क प चढ़ा लेते थे। उससे वह अंग दो फुट तक ल बा और ब त
मोटा दखने लगता था, फर उसे एक खास क म क पेट म रखकर लए फरते थे।
पर तु अ डकोष खुले रहते थे।
मुह मद साहेब ने अपनी पैग़ बरी के पाँचव साल म पद पर ज़ोर दया था। उ ह ने
ी-पु ष का भचार जो उनके मु मलने से होता था, रोकने के लए पद क था
चलाई थी। इ ह ने बार बार पद पर ज़ोर दया है। वे कहते ह क अपने क मती र न को
छपाकर रखो। जुवाया पाशा ईसाईय का मज़ाक उड़ाते ए कहता है क वे अपनी
औरत को जनक छा तयाँ और पीठ नंगी रहती ह, पहले तो बॉल वगैरा म गैर आद मय
के साथ नाचने को भेज दे ते ह, पीछे जब उनके च र बगड़ते ह तो खून-ख़राबा करते ह।
चीन, हीलस और रोम म य प कुमा रय क इ ज़त क जाती थी, पर तु उनके
साथ लोग अ सर स भोग कर लेते थे। वधवा या ऐसी ी के साथ जो अपनी मा लक
हो आमतौर पर स भोग कर लया जाता था। पर ववाह के लए कुमारी क याय ही पस द
क जाती थ । पर ऐसी कुमा रकाएँ मलना लभ होता था, जनका कौमाय भंग न आ
हो। ह ू ओर ईरा नय म वधू का कुमारी होना ला ज़मी था। इन दोन जा तय के काम-
स ब धी कानून एक-से ह। ईरा नय म बना प नी वाला आदमी तर कृत समझा जाता
था। ईरान म यह नयम था क य द कोई आदमी कसी ी को गभवती करके भाग जाय
तो वह ी उसे मार डालती थी। कसी कुमारी के साथ भचार करते ए य द कोई
आदमी पकड़ा जाय तो उसे क या के बाप को 50 पये दे ने पड़ते थे और वह लड़क
उसक ी हो जाती थी; तब वह उसे तलाक नह दे सकता था। अगर कसी लड़क क
सगाई हो गई हो और वह कह कसी के ारा अपहरण क गई हो, पर वह च लाती न
हो, तो उन दोन को प थर से मार दे ते थे। अलबा नया म यह रवाज था क य द कोई
लड़क कसी से शाद नह करना चाहती थी, और माता- पता ज़बरद ती शाद कर दे ते
थे, तो वह पादरी के पास चली जाती थी और पादरी से कहती थी क वह मद क भाँ त
रहना चाहती है। पादरी एक सावज नक समारोह म उसे मद घो षत करता, मद नाम दे ता
और मद के कपड़े पहनाता था ओर फर वह मद क भाँ त रहती थी। पर य द वह
गभवती हो जाती थी, तो उसका द ड मृ यु था। तुक म ईसाईय म यह रवाज था क जब
शाद के लए चच जाने का समय होता था तो वधू ज़ोर से च लाती थी, फर उसका
हा आकर उसे ले जाता। बलकान, कु तु तु नया और ए शया माइनर म ज सी और
आरमी नय स का एक नाच खूब पस द कया जाता था। एक जगह आग जलाई जाती
थी, उसके चार तरफ जवान लड़के लड़ कयाँ खूब गाढ़ा लगन करके नाचते थे। वे उ ह
छाती से दबाते, उनके पैर पर पैर रखकर खड़े हो जाते, दाँत से उ ह काटते और उनके
नेकलेस तोड़ डालते थे। इस नाच म गभव तय को इजाज़त नह द जाती थी। साइमन
लोग जब अपने खेत के काम से नपट जाते ह, फर खूब गाते, नाचते और वासना पू त
करते ह। ी-पु ष खूब फूल से सज-सजकर और युवक शराब पी-पीकर चाँदनी रात म
नाचते ओर नैशो सव मनाते ह। ये फ़सली नाच कहाते ह, जो धा मक भावना से कए
जाते ह। ये ठ क भारतवष क होली के समान ह, जब क खेत कट चुके होते ह, चाँदनी
रात म लोग फाग मनाते ह। जयूरी और ले वक लोग म ाचीनकाल म काम-स ब धी
दावत होती थ । 16 व शता द के शु तक नद के कनारे वे दावत आ करती थ और
उ ह यौहार माना जाता था। बाद म ये चच के ारा रोक द गई थ । इन दावत म खूब
मु सहवास होता था। ए थो नयन म 18 व सद के आ खर तक यह रवाज था क वे
कसी पुराने चच के नकट आग जलाकर इक े होते थे। उनके साथ औरत नंगी होकर
नाचती थ । पर जवान लड़ कयाँ े मय के साथ झा ड़य म चली जाती थ । यह डांस
अब भी प रव तत प म होता है और आग पर नाचने वाले नंगे पैर चलते ह। ए लस का
कहना है क ऋतु के कारण मनु य के अंग म जो प रवतन होता है, उसी से शरीर म
काम-स ब धी आकां ाएँ पैदा हो जाती ह। खास तौर पर वस त ऋतु म काम-वासना
उ त होती है। ी म के ार भ म काम-वासना ब त बढ़ जाती है। इसी कारण ाचीन
काल म ये नैशो सव आ करते थे। कुक कहता है—ए क मो लोग म स दय क रात म
काम वासना कम हो जाती है। पर सूय दय होते ही लोग काम वासना से तड़पने लगते ह।
वस त ऋतु संसार भर म नैशो सव के लए उपयु समय है।
यूनान, रोम और भारत म, उ री तथा द णी अमे रका म वस त ऋतु ेम क ऋतु
है, और अमे रका म फसल के कटने का समय। यू टे न म लड़ कयाँ युवक से
सावधानी से बचाई जाती ह। पर तु एक खास दन ढोल बजाकर शाम के व संकेत
दया जाता है और फर उ ह े मय के साथ झा ड़य म जाकर मु सहवास करने का
अ धकार दया जाता है। पी के मु क म पुराने ज़माने म एक ख़ास क म का फल जब
पक जाता है, तब 15 दन उपवास करके एक दावत का ब दोब त कया जाता है, जो 6
दन और 6 रात तक रहती है। इसम ी और मद नंगे होकर बाग म इक े होते और
पहा ड़य पर दौड़ लगाते ह तथा येक आदमी एक औरत को पकड़ लेता है और उनका
मु सहवास होता है। डानसन बंगाल क एक खेती करने वाली जा त क एक दावत या
मेले का ज़ करता है। वहाँ ी और पु ष को खुली छु होती है। उसे माघपव कहते
ह। अ य अवसर पर वे ब त सुशील होते ह पर इस अवसर पर वे पशु हो जाते ह और
मु सहवास करते ह। म यकाल म एक दन मूख दन मनाया जाता था। वहाँ भ े नाच
चच म होते थे। अ य त पाश वक इ छाएं बढ़ जाती थ । ाचीन रोमन लोग म भी ऐसा
ही होता था। मनहाड कहता है क ाचीन यूरोप म गम और बस त म जो दावत होती
थ , वे काम-वासना से प रपूण रहती थ और वे दावत यौहार के तौर पर मनाई जाती
थ । ऐसे यौहार के दन को से ट जा स का दन कहा जाता है। भारत म भी ीकृ ण क
रासलीलाएँ ऐसी ही वासनामय थ जनम चीरहरण से लेकर ेम और मु सहवास के
सब भाव ह जनका वणन गीत गो व द म साफ तौर पर कया गया है।
वे यावृ मु सहवास का एक सामा जक प है। वे यावृ संसार म अ य त
ाचीन काल से पाई जाती है। ह के वग क अ सराएँ और मुसलमान क वग क
र द वे याएँ ह। अ सरा का अथ पवती होता है। कुछ अ सरा क वेद मं ने
ा या भी क है। वेद म 7 अ सराएँ मु य मानी गई ह। पुराण म अ सरा क
करामात क कहा नयाँ भरी पड़ी ह। बाण ने ‘काद बरी’ म उनके 14 कुल बयान कए ह,
और यही वायु पुराण म भी लखा है। वा मीक रामायण म लखा है क जब राम के
बनवास के काल म भरत भार ाज मु न के आ म म गये तो उनके स कार के लए चुनी
ई अनेक अ सराएँ नाचने-गाने के लए मँगाई थी। जनके स दय क बाबत यही लखा
गया है क उ ह दे खकर आदमी पागल हो जाते थे, वे ऐसी थ । उनके प और नाच-गान
को सुनकर अयो यावासी कहने लगे थे क भाई अयो या म या रखा है और द डकवन
म जाकर हम या करगे? भरत खुश रह और राम भी सुखी रह, हम तो यह मजे म ह।
मुसलमानी धम- थ म र का खूब बढ़ा-चढ़ा कर वणन है। ‘कुरान शरीफ़’ म उ ह
‘प व वधू’ कहा गया है। उनक उपमा मोती और लाल से द गई है और उनके स दय
का खूब उ ेजक वणन कया गया है। अं ेज़ी, अरबी और फारसी सा ह य म प रय का
ब त-सा वणन मलता है। ये अलौ कक सु द रयाँ ह और अपने े मय को उठाकर अपने
घर ले जाती ह। सह रजनी च र म मनु य और प रय के ेम क बड़ी-बड़ी रोचक
कहा नयाँ ह। फ़ारसी और अरबी थ म उनका थान कोहेक़ाफ़ बताया गया है।
आधु नक अं ेज़ी सा ह य म भी इनक बड़ी चचा है। उसम कहा गया है क वा तव म
उनक एक जा त है। इसके माण म कई उदाहरण भी दए गये ह। पाठक समझ सकते
ह क अ सरा, परी और र म कतनी समता है। तीन वग य सु द रयाँ ह, जो नाच-गाने
म बड़ी कुशल ह। अब यह दे खना है क इनम और वे या म कतनी समता है। क द-
पुराण म वे या को अ सरा क स तान बताया गया है, और या व य मृ त के
ट काकार मता राकार ने इस बात का उ लेख कया है। अ भनय दपण जो नाट् यकला
का लभ सं कृत थ है, उसम वे या को अ भने ी लखा है। वह वे या के गुण-दोष
लखता है क जसके ने फूल क भाँ त पीले ह , सर के बाल थोड़े ह , अधर मोटे ह ,
तन ल बे ह , कुबड़ी हो, ब त मोट या ब त बली हो, जो ब त ल बी या ठगनी हो,
जसका वर मीठा न हो वह वे या होने के यो य नह है। फुत ली, शरीर को आसानी से
घुमा सकने वाली, सुडौल, बु मती, कटा वाली, क ठन-से-क ठन काम को आसानी से
कर डालने वाली, आ म व ास, मधुर भाषण, नृ य और गीत म पटु वे या होनी चा हए।
वा सयायन मु न 64 कला म वीण वे या को पस द करते ह। डा. व सन साहेब
लखते ह क ‘वे या को हम वह ी न समझनी चा हए, जसने सब कम-ब धन तोड़
दए ह अथवा सामा जक तब ध को कुचल डाला हो, पर तु ऐसी ी समझना चा हए
जो असाधारण तौर पर पली हो, जससे वह समाज म ववा हत क भाँ त वेश न कर
सके और जसके लए समाज का दरवाज़ा— य क उ ह ने पु ष के साथ सहवास
करने क शारी रक और मान सक श ा ऐसे ढं ग से पाई है जससे साधारण याँ वं चत
रहती ह—अपनी ल जा क ब ल दे ने पर खुलता है।
एक और यूरो पयन व ान् का कहना है क— ाचीन काल म ह समाज म
वे याएँ यूनान क हटोरा के समान होती थ । वे श का तथा चतुर होती थ । इससे वे
ववा हता और अ ववा हता य से अ धक यो य सहच रयाँ गनी जाती थ । वे समाज
का एक अंग समझी जाती थ और उनका सदै व स मान होता था। ऋ वेद के सरे म डल
के तीसरे सू के छठे म म ‘पेश’ श द आया है, जसका अथ नाचते समय क पोशाक
है। महामहोपा याय पं. गौरीशंकर ओझा का मत है क ‘ पशवाज’ इसी का अप ंश है।
इसी कार ऋ वेद के पहले म डल के 92 व सू के चौथे म म ‘पेशां स’ श द आया
है जसका अथ आथर ए. मैकडानल ने नाच के व क भड़क ली पोशाक कया है।
उपयु म का अथ करते ए सायण ने लखा है-‘जैसे नाचने वाली सब दशनीय प
को अपने शरीर पर धारण करती है। शु ल यजुवद के 30 व अ याय के 9 व म म
‘ न कृ य पेश करी’ पद आया है जसके अनुवाद म फल साहेब कहते ह, ‘उस ी
क नयु जो ेम के जा का ध धा करती है।’ ी वामी दयान द सर वती भी
‘पेश करी’ का अथ ‘ ृंगार’ वशेष से प करने हारी भचा रणी ी करते ह। ा ण
थ म अ सरा क बड़ी-बड़ी कथाएँ ह। शतपथ ा ण के 3-2 - 4-6 म नाचने-गाने
वाली वे या क काफ चचा है।
कुलाणव त और गु त साधन त म भी उसका खूब उ लेख है। बौ थ भी
वे या क म हमा से खाली नह । ीप त ने बु के महल का वणन करते ए लखा
क वहाँ गाने वाली ऐसी वे याएँ रहती थ , जनके ने खले कमल के समान थे, क ट
ीण थी। उनके नत ब भारी थे और वे पग वता थ । जब वे वैरागी हो उदास रहने लगे,
तो उनके पता ने उनका मनोरंजन करने के लए अनेक वे याएँ भेजी थ । जैन थ और
सं कृत सा ह य म भी वे या क भारी चचा है। भास के द र शशुपालवध महाका
म, वशाखाद के मु ारा स म, शू क के मृ छक टक म वे या क काफ चचा है।
सारे संसार के इ तहास म बड़ी बड़ी सुयो य वे या क चचा क गई है। क द
पुराण के ा ण ख ड म पगला वे या क चचा है, वह उ जैन क एक वे या थी,
जसका ेमी म दर नामक एक ा ण था। क द पुराण म कमलावती का ख़ूब बढ़ा-
चढ़ा वणन है। राज तरं गणी म पौ वधन नगर क कमला वे या का च ण है, जसका
ेम का मीर महाराज जयापीड़ से था। राजतरं गनी म हँसी और नागलता नामक डोम क
दो लड़ कय का वणन है, जन पर का मीर का राजा च वमा मो हत था। उसके महल
म वे रा नय से ऊँचे सहासन पर बैठती थ । कनल टाड ने च ौड़ क एक वे या वीरा
का वणन कया है। जो उदय सह महाराजा क रखैल थी, जसने राजा के लए
जरहब तर पहनकर यु कया था। हमीर रासो म च कला पातर का वणन है, जसने
सु तान अलाउ न का अपमान कया था। मेलकम साहब ने बाज बहा र क या
पवती का ब त ही बढ़ा-चढ़ा कर वणन कया है। वीणराय ओरछा के राजा क वे या
थी, जसे अकबर ने बुलाया था। भारत क ही भाँ त यूरोप म भी स वे याएँ ई ह।
पेन क टे लया-डी-अरागोना अ तीय सु दरी, व षी और बड़ी भारी कव य ी थी।
उसक बड़ी त ा थी और लोरस के ड् यूक ने उसे पीले रंग के बुक तथा माल रखने
से, जो कानूनन वे या को रखना पड़ता था, बरी कर दया था। बैरोनीका को इटली
के स नगर वे नस क रहने वाली अपूव सु दरी थी। वह भी परम व षी और
कव य ी थी। वह कई भाषा क प डता थी। एक बार ांस के बादशाह आठव हैनरी
भी उससे मलने उसके घर आये थे और उसने बादशाह को अपनी एक क वता क
पु तक सम पत क थी। न जन ड. ले लोस भी ऐसी ही स वे या थी। इसी कार
अ य जा त और दे श म भी वे या के ऐसे ही उदाहरण मलते ह।
इस वे यावृ को रोकने क चे ा समय-समय पर ब त पुराने जमाने से सभी दे श म
क गई, पर तु सफलता नह मली। यूनान के बादशाह सोलन ने वे या के लए नगर
के बाहर वे या-भवन बनाये थे। उ ह एक खास पोशाक पहननी पड़ती थी। उ ह धा मक
व धय म भाग लेने क आ ा नह थी। जब फ़ा रस ने यूनान को वजय कया तो उ ह ने
वे यावृ को रोकने के बड़े-बड़े क़ानून बनाये। वे यालय पर पु लस क नगरानी रखी
गई, साधारण अपराध पर भी उ ह भारी-भारी द ड दए गये। पर तु वे यावृ बढ़ती ही
गई और बड़े-बड़े खानदान क याँ छपकर वे यावृ करने लग । धीरे-धीरे उनक
एक अलग जमात बन गई और उनका रसूख इतना बढ़ गया क कानून भी उनका कुछ न
बगाड़ सका। अ त म वे यावृ पर टै स दे ने को छोड़ कोई तब ध न रहा। वे यावृ
यहाँ तक बढ़ क को र थ म, जो यूनान का एक बड़ा नगर था, एक म दर बनवाया गया
जसक पुजा रन वे याएँ रखी ग । इस म दर म दे वी क पूजा के साथ-साथ वे या-वृ
भी खु लम-खु ला होने लगी। रोमन लोग ने भी वे यागा मय के त खूब कानून बनाये।
वे या के सामा जक अ धकार छ न लए गये थे। ये कानून खूब कड़े होते गये, पर तु
अ त म रोम का यहाँ तक पतन आ क खुद रोमन स ाट ज ट नयन ने योडोरा नामक
वे या से शाद कर उसे स ा ी बना दया। जब यूरोप म ईसाइय का दौर आ, तो
वे या को दया क से दे खा गया और उ ह उ त करने क भी चे ा क गई। पोप
इ ोसट ने वे या से ववाह करना शुभकम बताया। नव गरैगरी ने म दया क वे
कसी वे या को गरजे म जाने से न रोक। वे या से ववाह करने पर भी ज़ोर दया
गया। ाचीन काल म ल दन क एक गली-क -गली ही वे या क थी जो 16 व सद
के ार भ तक रही। ांस म वे या को एक खास ब ला पहनना पड़ता था। वे न
जवाहरात पहन सकती थ , न शहर के ख़ास-ख़ास ह स म जा सकती थ । फर भी
सावज नक वे या-भवन क वहाँ कमी न थी। इन भवन क आमदनी यु न सपै लट
और यू नव सट आपस म बाँट लेती थ । नव लुई ने इन वे यालय को ब द कर दया, पर
दो साल बाद ही वह म वा पस ले लया गया। जमनी म भी अन गनत वे यालय थे, पर
उनम ववा हत पु ष, पादरी और य द नह जाने पाते थे। वे र ववार तथा सरे प व
दन म ब द रहते थे। तेरहव शता द म े ड रक तीय ने वे या के लए कई क़ानून
बनाये थे। वे अ छे घरान क य से नह मल सकती थ , न उनके साथ नानागार म
वे नहा सकती थ । उन दन वे याय अ त थ स कार क साम ी मानी जाती थ । कौ ट य
के अथशा से पता लगता है क उसके काल म भारतवष म वे या पर बला कार करने
वाले को भ - भ द ड भोगने पड़ते थे। जो वे या मेहनतनामा लेकर सहवास से
इनकार कर दे , या कसी पु ष को मार डाले या अपनी आमदनी ग णका य को न
बतावे, आपस का नाम छपाये, तो उसे भ - भ द ड भोगने पड़ते थे, जो ाणद ड
तक होते थे। मु लम रा यकाल म फौज के लए छाव नय के पास वे यालय खोलने क
व था क गई थी। फर भी जहाँ वे या का ऐसा घ न स ब ध रहा है। संसार क
सब जा तय ने वे यावृ रोकने क चे ा क है, पर सफल नह । वे या का नाम
र ज टरी करने क था सबसे थम से टलुईसे म, जो अमे रका का स नगर है,
चलाई गई थी। पर इससे कोई लाभ न आ। यूयाक म डा. पारखसू ने आ दोलन करके
वे या को उनके घर से नकाल दया और सब वे या-भवन ब द कर दए गये। पर तु
इससे भी वे यावृ न क । ांस म भी ऐसी ही चे ा क गई, पर कोई नतीजा नह
आ। सट लुई ने यह आ ा नकाल द थी क उनक धन-स प छ नकर उनके मकान
गरा दए जाएँ, पर वे यावृ क नह । इसके बाद इटली म यह उपाय काम म लाया
गया क वे या के लए नगर का एक पृथक् भाग चुन दया गया ओर पु लस क चौक
का पूरा ब दोब त कर दया गया, पर वह इलाका शी ही चोर और बदमाश का अ ा
बन गया तथा उस के म रहने वाल का गुजारा होना मु कल हो गया और वे याएँ वहाँ
से छप- छपकर नकल भाग , तथा नगर के सरे भाग म वे यावृ करती पकड़ी ग ।
जापान म वे यावृ को न र होने वाली बुराई समझा गया है और वहाँ वे यावृ का
सारा ब ध गवनमट के हाथ म है। टो कयो म गवनमट ने वे या के लए बड़े-बड़े
सु दर महल बनवा दए है। जो यो षवारा कहाते ह। जापान क जलवायु म दस वष क
लड़ कयाँ पूरी युवती हो जाती ह और उ ह वे यावृ का लाइसस मल जाता है। उनक
आमदनी का एक भाग गवनमट ले लेती है। ल दन के बाहरी भाग म वे या-भवन ह। वहाँ
लोग कैब या रेलवे ारा प ँच जाते ह।
ांस म येक वे या को अपना नाम वयं र ज टर कराना पड़ता था। वहाँ दो कार
के वे या-भवन होते थे। एक ऐसे जहाँ वे याएँ रहती भी थ और वे यावृ भी करती थ ।
सरे जहाँ सफ वृ के लए जाती थ । इन वे या को स ताह म एक बार अ पताल म
जाकर वयं अपना मुआइना कराना पड़ता था और ज ह आतशक आ द क कोई
बीमारी होती थी, उ ह अपना इलाज कराना पड़ता था। इन कानून को तोड़ने से एक
साल तक क सज़ा मलती थी।
जमनी म वे यावृ करना ब कुल मना था। जो याँ यह काम करती थ , वे
एकदम पु लस क नगरानी म रहती थ । उ ह स ताह म एक बार डा टरी मुआइना
कराना पड़ता था। ये खास ग लय म और खास घर म ही रह सकती थ , वे 25 वष से
कम आयु क लड़ कय को अपने यहाँ नह रख सकती थ । उनके लड़के जब पढ़ने यो य
हो जाते तो उ ह वे अपने घर म नह रख सकती थ । वे कसी क म का शोर या झगड़ा
नह कर सकती थ । न नगर के खास भाग म जा सकती थ , उ ह अनेक टै स दे ने पड़ते
थे। इन कानून को तोड़ने से 5 साल तक क सज़ा द जा सकती थी।
वट् ज़रलड म भ - भ ा त म पृथक्-पृथक् कानून ह। कह तो कोई रोक-टोक
ही नह है और कह उ ह इस काम के लए कठोर द ड दया जाता है।
ेट टे न म वे यावृ पस द नह क जाती। अं ेज़ी कानून म वे यावृ को जनता
क शा त का बाधक कहा गया है। वे या के व अनेक कानून बने ह। वे या का
ज़बद ती मुआइना कया जाता है। इस स ब ध म भारतवष म भी कई तब ध और
कानून ह।
तातार म वे याएँ अपने भवन म रहती ह। वहाँ जाने वाल से थम ही फ स ले ली
जाती है। फर वह कुछ घ ट उनका आन द लूट सकते ह। वे नाच-गान और सहवास का
आन द लूट सकते ह। वहाँ जाने क कसी को मनाही नह है।
चीन म वे यावृ को ावहा रक से संग ठत कया गया है। वहाँ न इसे घृ णत
समझा जाता है और न ल जा पद। वहाँ छोट -छोट ब चयाँ वे यावृ के लए बेच द
जाती ह। उ ह बचपन से ही वे यावृ क तालीम द जाती है। वधवा- ववाह वहाँ घृ णत
समझा जाता है, अतः वे वे याएँ हो सकती ह। उनक मृ यु अफ म या आतशक से होती
है।
इस कार सारे संसार क वे याएँ मु सहवास का वधान-यु मा यम बनी ई ह।
यूरोप और अमे रका म गोरी लड़ कय का ापार संग ठत और ापक तर पर
चलता है। यूरोप और अमे रका से तवष हज़ार लड़ कयाँ पूव दशा म प ँचाई
जाती ह। चीन, जावा, सुमा ा, मलय प, बो नयो और फ लपाइ स म इन ापा रय के
बड़े-बड़े डपो ह। जनम अमे रका, जमनी, ांस, इं लड और स से भगाई ई
लड़ कयाँ हज़ार क सं या म तवष प ँचाई जाती ह और उनसे लाख पया कमाया
जाता है। लड़ कय के ये एजे ट ‘ प प’ कहाते ह। इ ह ने नयाभर म अपने ापार के
जाल फैला रखे ह। ये लोग भोली-भाली असहाय लड़ कय को फुसलाने-बहलाने के बड़े-
बड़े हथक डे जानते ह। पूव दे श म गोरी लड़ कय क कमी और अ धक माँग होने से
तथा उ ह यहाँ प ँचाने के अ धक साधन होने से पूव दे श म उनके अन गनत अ े ह।
इस ापार का खास ार पोटसईद म है। पोटसईद सु द रय के ापार का सबसे बड़ा
के है जहाँ से हज़ार सु द रयाँ, पूव दे श के भ - भ भाग म प ँचाई जाती ह।
अकेले म म ही तवष भारी सं या म ये लड़ कयाँ प ँचाई जाती ह। का हरा,
एले ज़े या और पोटसईद म ऐसे-ऐसे गु त घर का भ डाफोड़ हो चुका है, जनम न
जाने कतनी सु द रय के जीवन के सौदे हो चुके ह। म म ीस क सु द रय क बड़ी
माँग है। कैरो ीस क भागी ई सु द रय का सबसे बड़ा अ ा है जहाँ तवष संसारभर
के या ी आकर उनके व व यात यौवन के माधुय का वाद चखते ह, जसका मन
उ म कर दे ने वाला वणन वे पु तक और उप यास म पढ़ चुके होते ह। ब त चे ा
करने पर भी म का यह अ ा वैसा ही कायम है। पोटसईद पर य ही कोई जहाज
प ँचता है, दजन पथ दशक वहाँ जा प ँचते ह, जो अपनी ल छे दार बात से या य के
मन को तुर त चंचल कर दे ते ह य क वे या ी रात- दन कै बन म पड़े-पड़े काम-भावना
के यासे हो जाते ह।
ये गाइड बात करते-करते पूछगे, ‘ य महाशय, या आप सु दर त वीर दे खना
पस द नह करगे?’ और वे उ र क ती ा कए बना तुर त कई दजन सु द रय क
नंगी त वीर एक-एक करके आपके सामने उप थत कर दे ते ह। वे सफ त वीर ही नह
होत , ये सभी सु द रयाँ जी वत कुछ ही फ़ासले पर गु त मकान म या ी के आ त य को
तैयार रहती ह। या ी आव यकता और आवेश म आकर तुर त साथ चल दे ता है, गाइड
उसे एक ख डहर जैसे मकान के सामने ले जाकर ार खटखटाता है। खट से ार खुल
जाता है। और भीतर क सजावट और जगमगाहट दे खकर या ी क आँख च धया जाती
ह। खूब ठाठ से सजा धजा मकान और उसम जीती-जागती प रयाँ। या य के पास
प ँचते ही बारह-चौदह लड़ कयाँ वैसी ही लगभग नंगी, प और यौवन से छलकती दे ह
लए मु कान बखेरती, आँख से तीर बरसाती सामने आ खड़ी होती ह। हँसकर सलाम
करती ह। इसी समय बग़ल के कमरे से संगीत और नृ य का उ मादकारी वाह उठ खड़ा
होता है। ये सब सु द रयाँ जो इस भाँ त से जतना पया पैदा करती ह, उनम से ब त
कम उ ह मलता है; अ धकांश प प क तजोरी म जमा होता है। वे तो सफ भरण-
पोषण के लए ही कुछ ले पाती ह। चूँ क ये सब वे याएँ होती ई भी कानूनन वे या नही
होत , इससे उनक थ त सदै व खतरे म होती है और इसी से वे प प के वशीभूत होती
ह। और उ ह उ ह के संकेत पर हँसना, बोलना, नाचना और आ म-समपण करना पड़ता
है। अब आप आइये— सगापुर, हांगकांग और शंघाई। इनम सभी शहर के अ के
संचालक अमे रकन लोग ह ज ह ने इस ापार म अतुल धन-स प एक क है।
हांगकांग क गज ट तथा उसके आस-पास के सभी गली-कूचे इन अ से भरपूर थे।
इन अ म तवष हज़ार नई-नवेली का म नयाँ आती रहती ह और जब तक उनका
प यौवन नचुड़ नह जाता प प उनसे ध धा चलाते ह। बाद म वहाँ से नकाल द
जाती ह और ब धा त त रोड पर चली जाती ह, जहाँ खानगी वे या के कम से कम
तीन सौ अ े ह। हांगकांग और शंघाई म सीधे यूयाक और सेन ां स को से लड़ कयाँ
मँगाई जाती थ । इस वसाय म अमे रकन ले डय का भी ब त भारी हाथ रहता है। इ ह
‘ भसुस’ कहते ह। इनक अपनी सांके तक भाषा है। जब कसी अ े म कुछ नई
कुमा रय क ज़ रत पड़ती है तो वे अपने अमे रका थत एजे ट को उसी भाषा म तार
दे ती ह। ये एजे ट भारी-भारी तन वाह पर सभी बड़े-बड़े शहर म रहते ह। तार पाते ही
वे झटपट माँग पूरी करने म जुट जाते ह। थयेटर म, सनेमा म तथा होटल म ये
एजे ट बड़े ठाठ से बड़े आद मय के समान पोशाक धारण करके जा डटते ह और अपने
को आला खानदान का रईस द शत करते ह और इस बात क चे ा करते ह क
सु द रयाँ उनक ओर आक षत हो जाएँ। अतः यह धू सफल होते ह। वे अपने को
कुँवारा बताते ह; वे कसी कुमारी से प र चत होते ही उसके लए पानी क भाँ त पया
बहाने लगते ह और उस संसार से अप र चत भोली-भाली बा लका पर उनका जा काम
कर जाता है; खासकर काम-काज क खोज म आने वाली दे हाती लड़ कयाँ इनके चंगुल
म ज द फँस जाती ह।
ये प प अनेक कार क धूतता भी करते ह। एक प प ने एक बार एक प म
थयेटर क पनी का व ापन दया क उसे कुछ अ भने य क आव यकता है। व ापन
नकलते ही सैकड़ युव तयाँ इंटर ू के लए आ ग । उनम से उसने ब ढ़या सु द रय को
चुन लया। जब सब बात तय हो ग और कॉ े ट हो गए, तो उसने बताया क उसक
क पनी र दे श म टू र करने को जायगी। पहले तो लड़ कयाँ झझक , पर अ त म डरा,
फुसला कर राजी कर ली ग । उनका अ त म या कया गया यह आसानी से समझा जा
सकता है।
शंघाई म जो इस कार क उड़ाई ई लड़ कय के अ े ह, उ ह हरम कहते ह। एक-
एक हरम म 20-20, 30-30 लड़ कयाँ रखी जाती ह। इन हरम म जहाँ एक बार लड़क
प ंचा द गई, फर उसका पता लग जाना कसी भी कार स भव नह है। कोई लड़क
वहाँ से भाग नकलने का भी साहस नह कर सकती। य द कोई ऐसा करे तो सम झये क
उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। कुछ दन ाहक क तृ त करने और खूब पया
कमा लेने के बाद अ े क माल कन उ ह वयं ही नकाल बाहर कर दे ती है और नई
च ड़य पर चारा फका जाता है। इन लड़ कय को इन अ म अफ म और शराब का
ऐसा च का डाल दया जाता है क फर वे सड़क पर खड़ी होकर पैस-े पैसे म अपने
शरीर को बेचती फरती ह। काट् स रोड पर ऐसी ही कुछ लड़ कय के अ े ह जो
ची नय के हाथ म ह और जनक सं या यु से थम 300 से ऊपर थी। एक-एक अ े
म 30-40 लड़ कयाँ रहती ह। यहाँ क फ स ब त मामूली है और यहाँ अ धकांश गरीब
चीनी लोग आते ह। ये अ े और ये गली कूचे ऐसे भयानक ह क दन-दहाड़े रोज वहाँ
खून-खराबा होता रहता है।
मलय ट भी इनम से एक है, जहाँ पाँच सौ से अ धक ऐसे अ े ह। इनम कुछ इतने
स और पुराने हो गये ह क उनक ‘गुड वल’ के कारण खूब दाम उठते ह। ऐसा ही
एक अ ा एक मसुस ने 22 हज़ार डालर म खरीदा था। इस ट के कोठ पर दन के
तीसरे पहर से याँ आ बैठती ह, और आधी रात तक वे ाहक क ती ा म बैठ
रहती ह। वे इतनी बेशम होती ह क सड़क पर चलते मनु य को तपाक से Come in
here Please(कृपया अंदर आइये) कहकर बुला लेती ह। इस ट म चीन, इं लड,
ांस, स और आ े लया आ द अनेक दे श क युव तयाँ भरी पड़ी ह। एक बार जब
जमनी के युवराज पूव के मण को आए थे तो उ ह भी मलय ट घुमाने का ब ध
कया गया था। अमे रका और यूरोप के प म हमेशा युव तय के खो जाने क जो खबर
छपती रहती ह, ये रम णयाँ ायः मलय ट म पाई जा सकती ह। एक अं ेज़ लेखक
का कहना है क लोक सेवा का त धारण करने वाली कतनी ही स टस भी जब यहाँ
प ँचा द जाती ह, तो थयेटर और होटल म काम करने वाली बेचारी अ प का
बा लका से तो त तारोड और मलय ट के बदनाम मकान पटे पड़े रहना कोई
आ य क बात नह है।
इन प प का ब त अ छा संगठन है। सगापुर ही म यु से थम 80 प प रहते थे।
वहाँ उनका एक लब था, जहाँ इक े होकर वे अपने ापार व नमय क बातचीत करते
थे। रोज़गार कैसे बढ़ाया जाय, पु लस को कैसे चकमा दया जाय, आफ़त म फँसे कसी
प प क कैसे सहायता क जाय, इन बात पर इन लब म वचार होता था। शराब के
दौर चलते थे और इस कार पु लस के पंज से वे बचे रहते थे।
गोरी लड़ कयाँ यूरोप ही के सरे दे श म कस कार बेची जाती थ । इसके कुछ
मनोरंजक वणन भी हम पाठक को यहाँ दे ते ह— पटरचेनी एक ऐसा था, जो गु त
अपराध का पता लगाने म बड़ा ही उ ताद था। उसके एक व त जासूस ने बताया था
क च मोर को के एक कहवाखाने म उसने 1 दजन गोरी लड़ कय को बकते दे खा,
जनम 5 अं ेज़ लड़ कयाँ थ । कोई भी लड़क 5 क (करीब 3 पये) से अ धक म
नह बेची गई थी। ऐसी लड़ कयाँ मागलीज के रा ते उ री अ का के अनेक शहर म
भेजी जाती थ ।
डवानशायर क एक लड़क , जो कसी बड़े प रवार क थी, नौकरी क तलाश म
ल दन आई। उसे संयोग से कसी घर म कुछ काम मल गया। दे खने म वह बड़ी सु दर
और आकषक थी। पर उसे नाचने का भी शौक था। दो महीने तक उस घर म नौकरी
करने के बाद उसने एक एजे ट के यहाँ अपना नाम दज कराया और थयेटर तथा फ म
म काम ढूँ ढने लगी। एक दन शाम को वह घूमने के लए बाहर गई और एक कहवाखाना
म प ँची। वहाँ एक ी से कुछ बातचीत ई। उस ी ने लड़क का प रचय एक
से कराया। उसने व ास दलाया क अं ेज़ लड़ कय के लए ांस म ब त-सा काम
मल सकता है। उस ने उस अं ेज़ युवती से यह भी कहा क वह तूल के पास एक
थयेटर म उसे काम दला दे गा।
अं ेज़ एजे ट के परामश क अवहेलना करके उस लड़क ने यह ताव वीकार
कर लया। तूलो प ँचने पर ब दरगाह के पास एक कहवाखाने म उसे ायः नंगी होकर
नाचना पड़ा। इसके बाद वह एजे ट उस लड़क को ट् यू नस ले गया। ट् यू नस म उसे
ऐसे-ऐसे ःखद अनुभव ए, जनका वणन नह कया जा सकता। बाद को वह एजे ट
च पु लस ारा गर तार कर लया गया। बाद म यह पता चला क वह दो-तीन और
लड़ कय को जहाज के म लाह को भाड़े पर दया करता था।
ये एजे ट ांस म टश, जमन, नाव या वीडन क लड़ कय के थये कल दल
के आगमन क ती ा करते रहते ह। जब दल आता है और थयेटर का न त समय
समा त होने को होता है, तो एजे ट उस दल क कसी लड़क को चुनकर उसके पास
प ँचता है, और उसे मासलीज़ म अ भनय करने का एक नया काम दे ने का लोभन दे ता
है और कहता है क तु ह ब त ब ढ़या-ब ढ़या व मलगे। लड़क को भी तुर त अपने
दे श लौट जाने के बजाय यह अ छा मालूम होता है क वह और थान म भी अ भनय
करने का अवसर हण कर धन उपा जत करे। फलतः वह इक़रारनामे पर ह ता र कर
दे ती है।
जब वह मासलीज़ म प ँचती है, तो दे खती है क वहाँ उसका अ भनय कराने के
लए जस रंगमंच का बंध कया गया है, वह आकषक नह है। पहले ही स ताह म उसे
बतलाया जाता है क घाटा हो रहा है। फर दशन ब द कर दया जाता है। पहले का
कमाया आ धन धीरे-धीरे खच हो जाता है। उसम इतनी बु नह है क वह तावास म
जाकर अपने दे श को लौटने के लए आव यक सहायता ा त करे।
जब लड़क नराश होने लगती है, तो एजे ट फर उसके पास प ँचता है और
मायाचना करता है। साथ ही व ास दलाता है क मेरे साथ अ जी रया या ट् यू नस म
चलो तो सचमुच ही बड़े भारी पैमाने पर दशन क योजना क जाय। वह स होकर
वहाँ जाने को तैयार हो जाती है। वहाँ प ँचने पर फर वह कसी भ े और साधारण-से
तमाशे म ले जाई जाती है। लड़क के साथ घृ णत वहार कया जाता है और इसे इतना
तंग कया जाता है क वह अ त म जो कुछ कहा जाता है करने को तैयार हो जाती है।
अ त म वह च मोर को के कसी शेख के हाथ बेच द जाती है। शेख अं ेज़
लड़ कय का बड़ा ेमी होता है और उ ह पाने के लए उ चत मू य भी दे ने को तैयार
रहता है। लड़क को पता चलता है क यह शेख उन शेख से भ है, जनका च र -
च ण डो फ वैले टनो ने अपने उप यास म कया है। जस शेख के यहाँ वह जाती है,
वह बूढ़ा, रोगी ओर च र हीन सा बत होता है। यही नह , वह दे खती है क शेख ने औरत
का रेवड़ भर रखा है।
वे स क एक लड़क पर जो बीती, उनक कहानी इस कार है—वह ार भ म
ल दन क एक कान म भत क गई। उसे नौकरी मली और एक तमाशे के साथ वह
ांस प ँची। कसी च ब दरगाह म दशन समा त होने के बाद एक दावत का
आयोजन कया गया। दावत म उसे शराब पला द गई और वह बेहोश हो गई। जब उसे
होश आया तो उसने दे खा क वह एक ट मर पर कुछ अ य लड़ कय के साथ या ा कर
रही है। वह ट मर पोली क ओर जा रहा था।
पोली म उतरने के बाद उसे तथा अ य लड़ कय को समझाया गया क उनसे जो
कुछ कहा जाय, उसे वीकार कर ल, थ का हठ न कर। इस कार कई महीने तक
वे स क उस लड़क को घृ णत जीवन तीत करना पड़ा। अ त म सौभा य से एक
ट मर का क तान उसक ओर आक षत आ और वह उसे अपने साथ ांस लेता गया।
जो लड़ कयाँ शेख के हाथ बेची जाती ह, उ ह ब त बुरा अनुभव होता है। उ ह
ववाह करने को बा य कया जाता है। एक दो महीने म ही अपने इस ववा हत जीवन से
वे ऊब जाती ह। अ त म शेख उस लड़क को फर आधा दाम वा पस लेकर एजे ट को दे
दे ता है। इसके बाद वह कहवाखान म अपना जीवन तीत करती ह।
लंकाशायर नगर क एक लड़क क कहानी भी ऐसी ही है। लड़क क उ 23 वष
क थी। वह एक थये कल क पनी म काम करने के लए वैध तरीके से इं लड से पे रस
के लए रवाना ई। पे रस म न द काय के समा त होने पर उसने एक सरे इकरारनामे
पर द तखत कया और मासलीज़ जाने को तैयार हो गई। वहाँ जस रंगमंच पर उसको
अपनी कला का दशन करना था, उसका काय म दो स ताह म ही समा त हो गया और
फर वह लोभन दए जाने पर ट् यू नस जाने को तैयार हो गई।
टयू नस प ँचने पर उसे बतलाया गया क वहाँ पर दशन करने क जो व था
सोची गई थी, वह नह हो सक है, ले कन फै स जाने पर काम मल सकता है। नदान
वह फै स प ँचाई गई। वहाँ दो दन बाद कुछ बदमाश ने उस पर हमला कर दया और
उसे एक स ताह तक ब द बनाकर रखा। अ त म वह एक शेख़ के साथ ववाह करने पर
बा य हो गई। एक महीने तक शेख के साथ रहने के बाद वह फर एक एजे ट के सुपुद
कर द गई। इसके बाद समु -तट के कनारे थत नगर के कहवाखान म वह साल-भर
तक भटकती रही। अ त म वह फै स म एक कहवाखाने म भीषण रोग से पी ड़त होकर
वह मर गई। अपनी मृ यु के चार दन पहले उसने पटर चेनी के मुख बर को अपनी राम-
कहानी सुनाई थी।
इन गोरी लड़ कय के इस ापार को रोकने के लए ‘लीग ऑफ़ नेश स’ ने सन्
1933 म एक Advisory Committee कायम क थी। इस कमेट क अमे रकन
सद या मस ेस एवाट ने एक ल बा खरीता पेश करके इस वषय क मह ा और
सावज नक आव यकता कट करते ए, पूरी जाँच करने के लए लीग से अनुरोध कया
था और ‘अमे रकन यूरो ऑफ सोशल हाइजीन’ ने 75 हज़ार डालर क रक़म इस काम
के लए ख़च करना वीकार कर लया था। अ त म लीग के समाज सुधार वभाग ने
वशेष क एक कमेट बनाकर इस वषय म काम शु कर दया था। इस कमेट क
जाँच-पड़ताल से पता चला क प मी यूरोप से म य और द णी अमे रका को ब त
लड़ कयाँ और याँ जाया करती ह। अतः अमे रका के उ ह दे श क जाँच क गई जो
बढ़ते-बढ़ते के य और उ री अमे रका, भूम य सागर के कनारे के दे श ओर बा टक
तथा उ री सागर के दे श तक प ँच गई। 20 मु क के 112 शहर और ज़ल क जाँच
क गई। इस काम म लगे ए दलाल , एजे ट , भु भोगी जनो आ द कोई 6 हज़ार
य क गवाही ली गई। अ त म कमेट के साहसी सद य ने उन भयानक अ म
वयं जा-जाकर अनेक गोपनीय और रोमांचकारी बात का पता लगाया। ाजील,
भांडी व डयो और ूना से रीज़ तथा मे सको म ऐसी लड़ कय के भारी-भारी भचार
के अ े पाये गये। वट् ज़रलड, बे जयम, नीदरलै ड, डैन जग और अले ज़े या म
बेशुमार नाबा लग वदे शी गोरी लड़ कयाँ भचार के लए बेची ई पाई ग । लीग क
जाँच कमेट के एक सद य से लड़ कय के एक ापारी ने बातचीत क थी। उसने उ ह
बताया—“मै सको म म……..इस काम म बड़ा उ ताद है, वह हर साल यूरोप के तीन
चार च कर लगाता है और ताज़ा से ताज़ा माल लाता है। उ वे क एक मसेज ने, जो
क कुटनी का ध धा करती थ बताया क योरोप के एक होटल म 33 लड़ कयाँ काम
करती थ । धीरे-धीरे ये सब द णी अमे रका चली आ । और अब खूब पया कमा रही
ह। यहाँ ऐसी कुमा रय के यौवन पर फदा होकर एक ही रात म हज़ार पये उलीचने
वाले उ लू अमीर क कमी नह है। ाजील के एक चकले क संचा लका ने कहा क
य द मेरे पास साठ कमरे भी ह तो भी म रोज़ाना आने वाली लड़ कय क ज़ रत को
पूरा नह कर सकती। द ण अमे रका के एक थयेटर म हर रात को गु त प से
भचार करनेवाली 100-200 लड़ कयाँ ाहक क तलाश म प ँच जाती ह ज ह
थयेटर वाले पास दे दे ते ह, य क वे जानते ह क इ ह क वजह से वहाँ दशक
अ धक आते ह। एक लब क बात कही गई है, जहाँ ना ता-पानी और नाचने गाने का
ब ध है। इसम जो लड़ कयाँ नौकर ह। उनका यही काम है क वे अ त थय का
मनोरंजन कर, उनके साथ नाच, गले म बाह डालकर ेमालाप कर, उ ह शराब पला-
पलाकर होटल के बल बढ़ाव। आधी रात को होटल जब ब द हो जाता है तो लड़ कयाँ
उन छै ल क अंकशा यनी बन जाती ह और जो खाली रहती ह उ ह मा लक लोग डाँट
बताते ह तथा नकाल दे ने क धमक दे ते ह य क वे जानते ह क इ ह के जाल म
फँसकर ाहक अ धक आते ह।
एक बार अखबार म छपा क एक अमे रकन लड़ाकू जहाज़ दो हज़ार फौजी
सपा हय को लेकर पनामा प ँचा है। र- र के चकले वाले झट दौड़कर पनामा प ँच
गये। बाज़ार ओर ग लयाँ इन फ़ौ जय से भर गई थ और इन दलाल क झो लयाँ भी
खूब भर । जब जब पनामा से काई जहाज गुज़रता है ऐसा ही होता है। ये अ े वाले ऐसे
मौक पर कुछ महीन म ही 4-5 हज़ार डालर कमा लेते ह। फौज का कह प ँच जाना
ही इस बात का संकेत है क वहाँ य क भारी आव यकता पड़ेगी। बस ये दलाल
दे श-दे श से सु द रयाँ जुटाते और जैसे उनसे पैसा छ नते बने, छ नते ह। इ ह फौ जय क
तन वाह मलने क तारीख का पता रहता है और वे उससे पूरा लाभ उठाते ह। कुछ
समय पहले तो यहाँ तक होता था क द णी अमे रका म सेना के जाने पर वहाँ क
यू न सपै ल टय के चेयरमैन या मेयर यु -म ी को सूचना दे ते थे क हम इतनी
युव तय का बंदोब त अमुक थान पर कर सकते ह। वह पड़ाव डाल दया जाय।
एक बार जेनेवा म जमना टक के खेल दखाने वाली एक क पनी आई। कसरत
दखाने वाली सभी कम सन लड़ कयाँ थ , जो नाममा को कपड़े पहने ई थी। उनक
सुडौल दे ह, उभरा आ यौवन, गोरा रंग और गाल क गुलाबी तथा चपलता और अदा ने
दशक को उ म कर दया। वे भाँ त-भाँ त के बहान से अपने अंग के व उघाड़ लेत ,
जससे खूब ता लयाँ बजत । खेल के बाद वे सभी युव तयाँ कसी न कसी युवक के
बा पाश म दखाई दे ने लग । उ ह ने एक-एक रात के सौ-सौ और दो-दो सौ डालर वसूल
कए। जनम से आधी रकम क पनी के मा लक के ह से क थी। मै सको के तायाजूना
शहर म, जो अमे रका क सरहद के पास है, साल म कई दफे घुड़दौड़ होती है, जसे
रे सग सीज़न कहते ह। इसम भाग लेने को लाख अमे रकन आते ह और इस अवसर पर
ये औरत के दलाल यहाँ से मालामाल होकर लौटते ह। सैर-सपाटे के लए जो या ी दे श-
वदे श घूमने नकलते ह, ऐसी लड़ कय के सबसे दलच प ाहक होते ह। वे ायः राजा,
रईस, उमराव होते ह और पानी क तरह पैसा बहाते ह। उनके लए ये दलाल अ छे -से-
अ छा माल जुटाते ह। मै सको, ई ज ट, एल जयस, ट् यू नस इस काम के के है।
बे जयम के एक कैफे का हाल वणन कया गया है। यहाँ शराब क खूब ब होती है,
होटल क प रयाँ खूब उड़ेल-उड़ेल कर ाहक को शराब पलाती ह। वे वयं भी शराब
पीती ह और ाहक के गले म हाथ डाल-डालकर उ ह बार-बार पलाती ह। इस कार
होटल का बल बढ़ता ही जाता है। ीस के तीन सराय क जाँच क गई। यहाँ छोटे दज
के आदमी ठहरा करते ह। उनम घ टया दज क शराब सु द रय ारा ढाल-ढालकर
पलाई जाती ह शराब क ब म उनका कमीशन होता है इस लए वे अ धक-से-अ धक
शराब ाहक को पलाने के लए व वध हावभाव करती ह ओर भचार भी कराती ह।
ांस क लड़ कय के वषय म एक दलाल ने कहा था—ये लड़ कयाँ ज़रा भी समझदार
नह होत । वभाव और सूरत क बड़ी मीठ होती ह। वे ेम के नाम पर सव व यौछावर
कर दे ती ह। उ ह यार चा हए, अ छे -अ छे कपड़े चा हए, फर चाहे उ ह दमड़ी भी न
द जये। ये लड़ कयाँ छोटे -छोटे क़ बे से आई ई अछू ती कली क भाँ त होती ह। इ ह
ढूँ ढ लेना मु कल नह है। मने एक बेबी आ टन मोटर ले रखी है। इस पर रोज़ शाम को
घूमने नकलता ँ और रोज़ दो-एक नई-नवे लय का मज़ा लूटता ँ। होटल म जाओ या
बाल म म, बस नाचते-नाचते उसे बगल म दबाये कह ले जाओ। थयेटर और मन को
उ े जत करने वाले काम उ ह पस द ह। वे तुर त ही फैशन और ट म-टाम से रहना सीख
लेती ह और आमोद- मोद क जगह म ले जाया जाना इ ह ब त पस द होता है। वहाँ वे
खूब खुश रहती ह। गाने-बजाने तथा च कारी करने वाली लड़ कयाँ ब त ज द फँसती
ह। हम लोग ऐसी ही टो लयाँ बना लेते ह और दे श-दे श घूमते ह और उनसे काफ़ पैसा
पैदा करते ह।
एक दलाल का ववरण ऐसा मला क उसने एक परम सु दरी लड़क को, जसक
अव था 17 साल क थी, फँसाकर उससे नकली नाम और पासपोट क मदद से याह
कर लया। बाद म वदे श जाने के बहाने उसे लेकर जहाज पर चढ़ा। जहाज पर उसने
तीन-चार रईस से उस युवती का प रचय करा दया और ऊँच-नीच समझाकर उनसे उसे
भचार करने को राजी कर लया। इस कार उसने डेढ़ मास क या ा म 3 हज़ार
डालर कमाये। यूरोप म 21 वष क लड़क बा लग समझी जाती है, पर व थ और सु दर
लड़ कयाँ 17-18 वष क आयु म ही बा लग बताकर उड़ा ले जाई जाती ह य क इसी
उ म लड़ कयाँ अ धक आसानी से बहकाई जा सकती ह। कभी-कभी ब त ही छोट
उ क लड़ कयाँ भी चुराकर ले जाई जाती ह।
मै सको म एक लब का हाल एक महाशय ने लखा है, जसक माल कन एक
अमे रकन म हला थी। वह लखता है क मेरे प ँचते ही मसेज़ ने मु कराकर कहा—मेरे
पास एक अ य त सु दर छोट -सी गु ड़या है, जसे तुम ब त पस द करोगे। वह झट से
भीतर जाकर एक 13-14 साल क कशोरी को ले आई। वह खूब गोरी, शरीर से गठ ली,
भोली ओर लचीली थी। उसक माँ अं ेज़ और बाप ह तानी था। मसेज़ ने बताया क
उसके पीछे दो हज़ार पये खच कए ह। लड़क हरी स क का साया पहने थी और
उसने बाल के जूड़े म पेन का ब ढ़या कंघा ख सा आ था। उसने उसका एक रात का
दाम 150 डालर बताया। उसने बताया क मुझे इसका एक-एक बार का सौ-सौ डालर
मलेगा। अगले रेस के सीजन म जब यूयाक के बड़े आदमी यहाँ आवगे, यह यूट मुझे
मालामाल कर दे गी।
ल बन क एक कुटनी ने कहा क यहाँ उ क कोई कैद नह है। म दो छोक रयाँ
बारह-बारह साल क लाई थी ओर 6-7 साल से वे कमा रही ह। आधी आमदनी उनके
माँ-बाप लेते ह।
एक महाशय बयान करते ह क म एक म के साथ जमनी के एक शानदार होटल म
गया। धीरे-धीरे वहाँ झु ड-क -झु ड सु द रय के ठट आने लगे। उनके दाँत सु दर, बाल
चकने और चमक ले ह ठ, और गाल रंगे ए तथा व उ ेजक थे। उस दन सै नक क
तन वाह बंटने का दन था। दे खते-ही-दे खते सै नक क भीड़ लग गई। हँसी- द लगी
होने लगी। फर थोड़ी-थोड़ी दे र म एक-एक जोड़ी उठ कर होटल के ऊपर पंचमहले म
बने ाइवेट कमरे म जाने लगी। म के ारा मालूम आ क आज ही इन सै नक क
आधी तन वाह इन सु द रय क जेब म चली जाएगी, ऊपर के ये सब कमरे इसी काम
के लए रज़व ह। जनका काफ कराया ठा जाता है। वहाँ ये लड़ कयाँ शराब पीकर
भचार कराती, नंगी त वीर खचवाती और संयु अव था म त वीर खचवाती ह।
उ ह ने ऐसे कई फोटो मँगाकर मुझे दखाये भी। अब एक तुक उदाहरण सु नए। एक
दलाल एक यूरो पयन सु दरी को कह से उड़ाकर लाया। तुक ापारी ने उसे 20 प ड
दए। इतनी ही रकम उसके र ज े शन पर खच ई। मकान मा लक ने 100 प ड के
स के पर उसक सही ले ली जसम 3 मास म याज स हत वापस चुका दे ने का वादा
लखा था। अब उसे एक कपड़े के सौदागर क कान पर ले गये। वहाँ उसके लए
भड़क ले कपड़े ने दाम पर खरीदे गये। वहाँ उसे 100 प ड का एक का और लखना
पड़ा। यह सब कज़ा च वृ याज क दर से कुछ-का-कुछ हो गया। और वह लड़क
पाप कमाई कमाते-कमाते हार गई, पर कज़ा न चुका सक । जनेवा क एक लड़क ने
ःख के साथ बयान दया था क मेरा इरादा यहाँ ठहरने का न था, सफ कज़ के कारण
ठहरना पड़ा। मुझे यहाँ तीन साल हो गए। मने रात- दन कज़ा चुकाने क को शश क ,
मेरा वा य भी न हो गया। मेरा अनुमान है क जुलाई तक म कज़ा चुका ँ गी और उस
दन परमे र को ध यवाद ँ गी और फर कभी भूलकर भी इस जीवन म न आऊँगी।
अरज टाइना गवनमे ट का कहना है क इटली, ांस और पोलड क य के मारे
हमारा नाक म दम है। ये लोग पेन, डच, जमन और बे जयम ब दरगाह से जहाज म
सवार होते ह। इटा लयन लड़ कयाँ ायः ांस के ब दरगाह से और ांसीसी ायः
ल बन से सफर करती है। एटलां टक के कनारे करो ा ओर सेटे डर नामक कुछ छोटे -
छोटे ब दरगाह ह, जहाँ बना कसी खास, जाँच-पड़ताल के या ी आसानी से चढ़-उतर
सकते ह। जरनो वज के अ धका रय का कहना है क मा नया से नकट पूव य दे श म
काफ औरत भेजी जाती ह। उनका कहना है क मने बीस बार हज़ार क तान को झूठे
पासपोट उन औरत को दे ते दे खा है, जो इन दलाल के साथ वदे श को जाती ह।
ये लोग आधी रात के समय चुपचाप छोट -छोट नाव ारा न दय और खा ड़य को
पार करते ह। कभी-कभी छोटे -छोटे अ नबोट के क तान उनसे मल जाते ह। दस महीने
के अ दर-अ दर एक क तान ने ऐसे 200 आद मय को आधी रात के बाद उस पार
उतारा था। बड़े-बड़े जहाज पर भी बना पासपोट और टकट लोग लुक- छपकर
लड़ कय को ले जाते ह। ांसीसी सु द रयाँ तो बराबर म म जाती ही रहती ह। वे
म लाह क सहायता से जहाज म चढ़ जाती ह और वे उ ह कोयल क कोठरी म,
टोर म म या और कसी ऐसी ही जगह म छपा दे ते ह। ये लोग इतने बद मज़ाज ओर
लड़ाकू होते ह क क तान लोग उनसे झगड़ा मोल नह लेना चाहते। इन य म से ये
लोग रा ते म भचार भी करते ह और पैसा भी वसूलते ह। ायः अले ज़े या म ये
लड़ कयाँ उतर जाती ह। वहाँ से मोटर ारा जहाँ जाना होता है, चली जाती ह।
अले ज़े या म जहाज कई दन तक ठहरता है। ठ क कनारे पर जेट बनी ई है,
इस लए रात म जहाज छोड़ने म उ ह कोई द कत नह तीत होती। इस कार हज़ार
याँ सरे दे श से आ जाती ह। इन बड़े-बड़े जहाज पर दलाल के वेतन-भोगी आदमी
उनक नगरानी करते रहते ह। ब त से लोग ायः उनके प क बानगी चखते ह और
उ ह मदद दे ते ह। दलाल से घूस पाते ह वह अलग। ये दलाल के आदमी ायः तीसरे
दज म सफर करते ह। जस ऋतु म या ी ब त आते ह उसम यूरो पयन लड़ कयाँ
अल जयस, ू नस और ई ज ट क ओर एले ज़े या के रा ते पर ले जाई जाती ह।
कभी-कभी वे पोटसईद पर भी उतरती ह या वेराउथ म उतरकर ई ज ट को खु क के
रा ते आती ह। मा नया, पोलड और ीस से लेवे ट को भी लड़ कयाँ ले जाई जाती ह।
य प तुक क र स ह, फर भी कु तुनतु नया म गोरी लड़ कयाँ प ँचती ही ह।
अमे रका के प मी ांत म चीन क छोट -छोट लड़ कय क बड़ी क होती है।
भारतीय म दर म दे वदा सय क तो हम चचा कर ही चुके ह, यूरोप म भी
दे वदा सय का कभी बड़ा भारी दौर-दौरा था और यह भी मु सहवास का एक कार
था, जसे धा मक प दे दया गया था। ायः पाँच हज़ार वष पूव बै बलोन म यह था
वच प म थी क ववाह के बाद थम अवसर पर प नी अपने प त के साथ न सोती
थी। उसे म दर म जाकर कसी अ य मनु य से सहवास करना पड़ता था। जब तक उसे
कोई आदमी न मले, वह म दर म ही रहती थी। कई नव ववा हताएँ कु पा होने के
कारण बरस म दर म रहने को बा य होती थ । य क उ ह कोई ेमी मलना अ य त
क ठन होता था। धम यह कहता था क एक रात ेमी के साथ काटकर घर आओ। कई
दे श म नववधू पहली रात पुरो हत के साथ काटती थी। यूनान के को र थ नगर के वषय
म स भूगोल वद् ाबो ने गव के साथ लखा है—“अ ोडाइट का मं दर इतना संप
है क इसम एक हज़ार से भी अ धक ‘दे वदा सयाँ’ ह। ये इस दे वालय म ना रय और
पु ष ारा अ पत क गई ह। इन वे या के लोभन से नगर क आबाद खूब बढ़ गई
है और फलतः समृ उ त पर है।” टे सालोस का पु जेनोफोन वचन दे ता है क
ओल पक खेल म मेरी जीत होगी तो हे दे वी! म तु हारे म दर म दे वदा सयाँ चढ़ाऊँगा।
स यूनानी क व प डार दे वदा सय के गीत गाता है। एक लेखक कहता है क
—“वाह, या चहल-पहल है! इस म दर म दे वदा सय क धूम है। ये परदे सय से खूब
पया कमाती ह और म दर का य चलाती ह।” ये दे वदा सयाँ यूनान म सव थ ।
रोमन लोग म यह था च लत थी। ससली के ए र स पवत पर वीन एर चीना के
दे वालय म ब त दे वदा सयाँ थ । व यात रोमन लेखक ओ बड लखता है—“दे व-दे वय
को स करने के लए दे वदा सयाँ उ सव मनाती थ ।” टै सटस भी दे वदा सय का
उ लेख करता है।
यूरोप क स यता और सं कृ त इन दो दे श से ही आई है। यूनानी सा ह य के
वशेष जान मरे का मत था क यूरोप अभी सं कृ त के उस तर तक नह प ँचा है
जस पर यूनान था। इस हालत म यह वाभा वक था क दे वदासी- था का चार ईसाई
यूरोप म भी हो। जनता ने ईसाई धम हण करने पर भी अपने ‘आन दो सव’ न छोड़े।
च लेखक ुफूर लखता है—“आर भ म जो ईसाई ए, उनम भले-बुरे सब लोग थे।
इस लए उस समय आव यक हो गया था क दे वदासी- था चलाई जाय। कई ईसाई संघ
ने इसका चलन कया। संगीत, नृ य और म दरा के साथ कामो सव मनाये जाते थे। यहाँ
तक क हमारे सै े मे ट म भी ऐसे लोभन के अवसर रखे गये थे। बालक को द त
करने के अवसर पर याँ पूणतया न न हो जाती थ । ाथना के समय ी तथा पु ष
पर पर मुख का चु बन करते थे। उ सव और जलस म युव तयाँ ऐसे ताबीज पहनत
और मू तयाँ लटकाये रहती थ क उनसे दशक का कामो पन हो। थाल म अ य त
अश्लील तथा जघ य आकार क मठाइयाँ फरायी जाती थ । यह बात सट जान
सो टोमुस ने पोप इ ोसे ट थम को लखी थ ।” इस उदाहरण से पाठक समझगे क
यूरोप म ईसव सन् के आर भ म दे वदासी- था का पूरा ज़ोर था। जमन लेखक पॉल
इं लश लखता है—“य प सं यास धम म इसको अ य त न दनीय बताया गया था, पर
उसम धम के नाम पर अपनी कामवासना च रताथ करने के अनेक ढं ग च लत थे।”
ईसाई धम का यह घोर पतन दे खकर अं ेज़ लेखक हेनरी हालसाल ने लखा है क
—“रोमन सा ा य ने उजड़ते समय अपने गुण के साथ पाप भी ईसाई यूरोप को स प
दए।” यूरोप के अ धकारयुग म (Dark Age) ईसाइय म यौन-स ब ध का वही प था,
जो पशु म पाया जाता है। राचार बेरोकटोक खुले खजाने चलता था। धमगु और
पुरो हत भी उससे बचे न थे। व ान का मत है क यह से ट पाल क इस श ा का
प रणाम है क—“पु ष का ेय तो इसम है क वह ी को न छु वे।” जहाँ लोग कृ त-
व अनुशासन फैलाना चाहते ह वहाँ उसका उ टा भाव पड़ता है। ईसा मसीह ने
ववाह को उ चत बताया था, पर उसके चेले उसे भी पाप समझने लगे। प रणाम यह आ
क सारा ईसाई समाज मुँह से तो ववाह को कम बताने लगा, पर कायतः रात- दन
मदनो सव म म त रहने लगा। पुरो हत इस मद म अपने अनुया यय से भी अ धक आगे
बढ़ गये। दे वदा सयाँ तो म दर म रहती थ , पर पादरी अपनी सेवा के लए जन
नौकरा नय को रखते थे उनसे अपनी वासना तृ त करने लगे। 1278 म ल दन म एक
‘धमसभा’ ई थी। आक बशप जान इसके वतक थे। उसम ताव पास कया गया था
क—“धमगु क कामा न उनक त ा को न करती है, वशेषतः जब रखैल से
उनक स तान उ प होने लगती है। इस लए हम ताव करते ह क इ ह, खासकर उ च
पद पर त त पाद रय को अपनी रखैल और उनसे होने वाली स तान के लए अपने
वसीयतनामे म स प न छोड़नी चा हए। ऐसी जायदाद गरजे को मलनी चा हए।” कुछ
धमगु ऐसे थे जो अख ड चारी रहने के प म लड़ते थे। इ ह ने पोप को भी स म त
द क च लत राचार का अ त करने के लए इस वषय पर कड़ाई क जाये। पर जैसे
ही कामुक पुरो हत को इसक सूचना मली, उ ह ने इन पर हमला कया और प थर से
इ ह मार डालने क चे ा क । इस पर इं लड, ांस और जमनी म तहलका मच गया।
पोप और शु ाचा रय क एक न चली। अ त म यह न य आ क—“पुरो हत से कहा
जा सकता है क तुम रखैल मत रखो, पर य से कोई नह कह सकता क तुम
पुरो हत को मत रखो।” हाइन रख फान यु श ने सबके कान कतरे। उसने सं या सन
को घर मे रख लया ओर बगीचे म प रय क मह फल जमा द । उसको गव इस बात का
था क उसने बाइस महीन म चौदह पु पैदा कए ह। जमन इ तहास वेवल लखता है।
“उ कट राचार तो प र ाजक गु ारा फैला। न बे सकड़ा पादरी नाम के चारी
थे, क तु वा तव म अपनी कामवासना के दास थे। वे ाकृ तक और अ ाकृ तक उपाय
से वासना च रताथ करते थे। सं या सय और सं या स नय के मठ रासलीला क भू म
बने ए थे। बाहर समाज म जो पाप दं डनीय थे इनक द वार के भीतर वे रात- दन होते
थे। ूण-ह या तो साधारण बात थी। जज वयं इस भचार म नम न थे, तब कौन
द ड दे ता?”लोग इन ‘धमा मा पाद रय ’ से उतना ही घबराते थे जतना शैतान से। जहाँ
कोई पुरो हत बना ‘दे वदासी’ के आया क समाज म भय फैल गया। सब समझ जाते थे
क अब इस थान म ब -बे टय क पत न रहेगी। एक समय का टे स म एक बशप
बना ‘दे वदासी’ के आया। उसे दे खते ही वहाँ ास फैल गया। लोग ने उसे घेरा और
नवेदन कया क आप ‘दे वदासी’ रख ल। पर यह कामुक दे वदा सय से तृ त हो चुका
था। उसने अपनी नधनता का बहाना कया। वहाँ के नवा सय ने कहा—“अ छा हम
आपको दे वदासी खाते म अलग टै स दगे।” इस कार वह ‘दे वदासी’ रखने को बा य
कया गया। इन ‘धमा मा का खाका चासर, बोक शय आ द ने खूब ख चा है।
लेमान सस के नकोलस ने प हव सद म लखा था—“आजकल जो मनु य काम
नही करना चाहता और आन द लूटने क फ म रहता है, तो वह त काल पुरो हत बन
जाता है और चकल तथा शराबखान म पड़ा रहता है। वहाँ इनका काम है—खाना, पीना
और मौज उड़ाना। शराब म म त होकर ये ई र को गा लयाँ दे ते थे। और तब तक वहाँ से
हटते नह थे जब तक बेहोशी क हालत म उ ह वे याय गरजे नह प ँचा दे ती थ ।”
जमन लेखक समर ने इनका स व तार वणन कया है। वह कहता है—“केवल
पुरो हत ही नह , सवसाधारण और वशेषकर सरकारी कमचारी वहाँ ‘मौज क घड़ी’
बताते थे।” ये मठ वे यालय-मा थे। सरा जमन ऐ तहा सक गाइलर फान कैसरबग
लखता है—“मुझे यह न य करना क ठन हो रहा है क क या को सं या सय के मठ म
भेजना अ छा है या चकले म य क मठ म वह वे या तो है ही ले कन साथ ही त त
रहती है।” 1484 ई. म बशप गाइ बुस फान का टे ल ने पोप को रपोट भेजी थी
—“सेफ लगन के मठ म मुझे सब ‘ चा र णयाँ गभवती मल ।” मा रया ोन मठ को
तोड़ा गया तो चोर कमर म ब च के सर, उनके धड़, आ द अंग गड़े मले। यौनशा
वच ण इस अ धाधु ध च र ता का कारण यह बताते ह क सोलह-सोलह वष क
लड़ कय को ज़बद ती इन मठ म ब द कर दया जाता था।
गु ते य और बीजकोष
◌ी -पुऔरषबीजकोष
क काम- ड़ा और सहवास के आन द का मूल आधार गु ते य
है। इस लए उ ह इन अद्भुत अवयव क बारी कय को जान
लेना ब त लाभदायक है।
बीजकोष ही गभ म लड़क या लड़के का नमाण करता है। गभ धारण के दो-तीन
मास बाद य ही गभ- प ड का नमाण होता है, बीजकोष का एक प बन जाता है;
और फर उसी के भाव से लड़के या लड़क का शरीर बनता है। ज म लेने के बाद भी ये
बीजकोष भ लग को प व तत करते रहते ह। यौवनोदय पर इ ह के ारा य के
नत ब, तन और अ य ी-अंग पु होते ह तथा मद के दाढ़ मूँछ आ द। अगर ी या
पु ष दोन म से कसी के शरीर से अंग पूण होने से थम ये बीजकोष काटकर नकाल
लए जाएँ, तो उनके शरीर क बनावट म अ तर पड़ जाएगा, य क बीजकोष के ारा
जो अ तः ाव होता है, उसी से ी व तथा पु ष व एवं कामश क भावना क पु
होती है।
जाँच करने से मालूम होता है क बीजकोष से दो कार का ाव होता है। एक
अंतः ाव जो म त क और पृ वंश के म जा-त तु को कामपू रत रखता है, तथा र
म मलकर कामवासना को उ प करता है। सरा ब हः ाव, जससे ी-बीज और पु-ँ
बीज तैयार होता है। अ तः ाव क ती ता के आधार पर ही कामवासना क ती ता
नभर है। यह ाव मन के अधीन नह , अतः कामवासना पर इसका कोई भाव नह है।
वासना क या समा त होने पर ही उस वासना का कुछ पा तर या नय ण हो
सकता है। ी या पु ष के बीजकोष का पूण काय ार भ होना ही यौवनागम क
सूचना है। ी को उस समय रज- ा त होती है, पर पु ष का कोई खास च नह कट
होता है। लड़क जब ज मती है, तब पाँवव या छठे दन उसके गु तांग से कुछ र ाव
होता है, और तन म गाँठ पैदा ई तीत होती है। ऐसा अनुमान कया जाता है क पेट
म रहते ए माता का अ तः ाव लड़क के शरीर म जाता है। यही कारण है क लड़क
का बीजकोष, जो ज मकाल म बड़ा होता है, पीछे छोटा हो जाता है। इस काल म उसके
बीजकोष म कई लाख बीज थमाव था म होते ह। इनम ब तेरे सूख जाते ह और यौवन-
आगमन के समय ब त कम रह जाते ह। फर यौवनकाल म एक-एक करके ये बीज
पकते जाते ह तथा आयु क वृ के अनुसार बीज क बची श उनक कमी होने से
तथा पकने क या से मा सक ाव भी ब द हो जाता है। मा सक ाव ब द होने का
समय पतीस से चालीस वष तक रहता है। इस तरह लाख बीज म से कुछ ही पकते ह
शेष सब सूख जाते ह। पु ष म रेत खलन क श आने पर भी रेत खलन अ नवाय है।
पर तु यौवनोदय का काल पु ष म तथा य म भी अ य ल ण से कट हो जाता है।
इस आयु म ी-पु ष क बगल और जनने य पर बाल उग आते ह। इन थान पर
बाल उग आना ी-पु ष के यौवनोदय का प का च है। फर भी वीयक ट पु ष के
शरीर म अठारह वष क आयु से कम म उ प नह होते। हाँ जो बाल गु तांग पर जमते
ह, उनक आकृ त म भेद होता है। य म इन बाल क रेखा ना भ के नीचे क ओर
झुक होती है तथा पु ष म ऊपर को होकर ना भ को छू जाती है। अठारह-बीस वष क
आयु म ी-शरीर क वृ सीमा को ा त हो जाती है। उनके शरीर म चब बढ़ जाती है
और इसी से नत ब और तन भारी हो जाते ह और उनका आकार पु ष से भ दखने
लगता है। पर तु पु ष का वकास आगे भी जारी रहता है। हाँ, जब यौवनोदय होता है,
तो सबसे थम हाथ-पैर क वृ अ धक तथा धड़ क वृ अपे ाकृत कम होती है।
न य इसका कारण बीजकोष ही है। पर तु धड़ क अपे ा हाथ-पैर का ब त अ धक
बढ़ना नपुंसकता का ल ण है। आम तौर पर य के सर क ऊँचाई पु ष क अपे ा
अ धक और गदन क कम होती है। इसी तरह य का धड़ पु ष क अपे ा बड़ा और
हाथ-पाँव छोटे होते ह। ऊँचाई य द समान भी हो तो भी ना भ से जनने य के ऊपर क
ह ी तक का अंतर य म अ धक होता है। पु ष क अपे ा य के सर का घेरा
और वज़न कम होता है, पर तु शरीर के अनुपात म पु ष से अ धक होता है। य के
र म लाल अणु कम और ास पु ष क अपे ा अ धक ग त वाला है। यौवनोदय का
एक च आवाज़ का अ तर है। पर तु यह पु ष म ही अ धक होता है।
अब एक माक क बात यह है क यौवनागम के समय जो आकषण भ लगी
ा णय म पर पर होता है, वह मनु य ाणी म केवल शारी रक न होकर उसम मान सक
भाव भी अ धक होता है। शारी रक सहवास-सुख के साथ ही ाणानु ीणन अथवा
ेमोदय, जस पर ाणो सग तक के उदाहरण दे खे गये ह, मानव को अ य ा णय से
पृथक् करता है। इस बात के माण मल चुके ह क ेमो सग क भावना से इ य-
वासना क तृ त पृथक् है। ी-पु ष म यह णय ार भक जीवन म गौण होता है और
ऐ यता मुख, पर ौढ़ाव था म ऐ यता गौण हो जाती है, णय मुख हो जाता है।
णय के ऐसे उदाहरण कुछ पशु-प य म भी मलते ह, पर तु उनका वा त वक कारण
अभी तक समझा नह गया है। मनु य म ी-पु ष के बीच पर पर जो णय बीज ार भ
म भ ल गक होने के कारण काम- च ता के मा यम से उ प होता है, वह सव प र
मनो वकार हो जाता है। जस कार कामवासना मनो वकार नह है, उसी कार णय
शु मनो वकार है। पर तु कामवासना और णय दोन का जब जीवनत व से एक करण
होता है तो एक आ यजनक सुख, सौरभ, कोमलता, भावुकता, क व व, उ सग और न
जाने या- या रसराग ज म लेते ह। और मनु य के जीवन का यह अंग एक भावपूण
क व व का के हो जाता है। मनु येतर ा णय म यह सहज ान से होता है। सारस,
चकवा आ द प य म भ ल गक आकषण क वशेषताएँ स ह। य प हम उ ह
सहजमूलक ही कहते ह, पर तु वा तव म उनका कारण अ ात है? फर भी यह इ य
और शरीर वकार म भ एक व तु तो है ही।
अब हम गु तांग का वणन करना चाहते ह। ी-पु ष के गु तांग सवथा पर पर
वपरीत है। उनका कुछ भाग गु त और कुछ कट है। पु ष का श और अ डकोष
कट है और य क यो न और महाभगो । यह अंग ी-पु ष दोन म पेट के नचले
भाग से जुड़ा है और दोन भ ल गक इ य का मलन-संघषण ही समागम है।
वीयपात उसक समा त है। पु ष के श का जो भाग गु त है वह मल ार क ओर बढ़
गया है। शा ताव था म कट भाग नीचे क ओर लटकता रहता है, पर कामो ेजना म
इसम वेग से र भर जाने से यह खड़ा और कड़ा हो जाता है। तब उसका य और
अ य भाग एक सीधी रेखा म आ जाता है। ऐसी हालत म उसके पेट के ऊपर के भाग
क तरफ एक लघुकोण बन जाता है। श के नीचे के ह से म मू नाली है और श -
मु ड म उसका मुख है। श -मु ड नीचे क तरफ का खाल से बँधा सा है। इससे श
क उ े जत अव था म चमड़ी नीचे को खच जाती है तथा मु ड-भाग कुछ उघड़ जाता
है। बचपन म मु ड-भाग वचा से सदा ढका रहता है। बाद म चम क अपे ा श क
अ धक वृ होने से यह भाग कुछ खुला हो जाता है। पर यह वचा कभी-कभी बड़ी और
कभी-कभी छोट होती है। कभी उसका मुख इतना छोटा होता है क वह पीछे हट नह
सकती ओर उसे काटने क ज रत आ पड़ती है। य द ओर मुसलमान लोग मज़हबी
वचार से उसे काट डालते ह। च लोग उसे ज़रा सौ दय के ढं ग पर तरछा काटते ह।
श का आकार ायः भ होता है, फर भी उसका अनुमान 6, 9, 12 अंगुल मा ा है।
कभी-कभी ब त छोटे और बड़े श दे खे गये ह। पर वे अपवाद ह। श के अगले भाग
क वचा म चब वाली कुछ थयाँ होती ह, जनम से नय मत प म ाव होता रहता
है जससे वचा कोमल रहती है। पु ष बालक के बीजकोष गभाव था म 6-7 मास तक
पेट ही म गु त रहते ह। सातव या आठव मास म नीचे लटक आते ह, और वृषण म लटके
रहते ह। कभी-कभी जब वे नीचे नह उतरते तो लड़के क जगह लड़क का म होता है।
हाथी के बीजकोष ज म-भर पेट म ही रहते ह। इनका आकार अ डे के समान है। छू ने म
वे कठोर ह। वीय उ पादक ना लय से भरे रहने पर वे कड़े और खाली रहने पर नम तीत
होते ह। वृ ाव था म वे ढ ले पड़ जाते ह। श के समान इनका आकार भी सब पु ष
म समान नह होता, पर तु आम तौर पर वे दो तोला वज़न म होते ह। बीजकोष म एक
खास कार क छोट -छोट ना लयाँ होती ह जनम वीय-ज तु उ प होते ह। इनके बीच-
बीच अ य भाग म बीजकोष का अ तः ाव होता है। यह र म मलकर वा य क
उ त करता है तथा कामो ेजना दे ता है। बीज ज तु पैदा होने पर वीय-न लका म से
वीयकोष म जाकर इक े हो जाते ह। वाम और द ण दोन पा म वीयकोष होते ह
और दोन म अनुमानतः एक च मच वीय रह सकता है। यह कामो पन होता है तो उससे
वीयकोष के जी वत नायु म एक हलचल उ प हो जाती है जसके भीतर एक त वीय
मू माग ारा वेग से बाहर आता है। पर तु उसके वेग से बाहर नकलने से पहले उसम
कई भ - भ थय का ाव मल जाता है। इनम एक खास थ शु ाशय थ है।
इसे अं ेज़ी म ‘ ो टे ट लै ड’ कहते ह। यह मू शय के नीचे, मलाशय के आगे और
जघना थ से पीछे कुछ री पर होती है। इस प ड म से ही मू माग जाता है। शु म
इसका आकार छोटा होता है, पर आयु बढ़ने पर वह बड़ा होकर 50 वष क आयु तक
वैसा ही रहता है। उसका आकार ायः दो इंच लंबा, एक इंच चौड़ा और एक इंच मोटा
होता है। वृ ाव था म इसका आकार कम हो जाता है, पर जब कभी कभी बढ़ जाता है
तो पेशाब कने क बीमारी हो जाती है। इस थ म अनेक पे शयाँ होती ह, जनसे
चकना, सफेद और लब लबा ाव नकलता है। कामो ेजना के समय वीय बाहर आता
है, तब यह ाव भी उससे मल जाता है यह एक च मच के लगभग होता है। इसी के
संसग से वीय आसानी से नकल जाता है। इसी थ के समान और भी कुछ थयाँ
होती ह, जनका ाव वीय के साथ मल जाता है। उनम दो थयाँ मू माग से लगी ई
होती ह। उनसे एक व छ पारदशक ाव इ य के उ े जत होते ही होने लगता है और
इससे न ध होकर ही वीय मू माग से नकलने के यो य होता है। इस तरह सहवास म
जो वीय बाहर आता है उसम वीय ज तु के साथ-साथ अ य ाव भी मले रहते ह। ये
म ण पहले ही से तैयार नह होते, केवल वीय यु त के समय ही उसम मलते ह। इससे
प होता है क वीय का शरीर म कोई उपयोग नह है। और कृ म सहवास क री त से
वीयपात होने पर ही वीय-क ट भी बाहर आ सकते ह, अ य री त पर नह । कामो पन ही
उसका एकमा माग है। य द यह रेत-ज तु बढ़कर शरीर म रह जायगे तो सरदद और
सरी शरीर-पीड़ा होने लगेगी। य द समागम नह तो व ाव था म ये ज तु बाहर नकल
आते ह। पर तु कसी भी प म उनका शरीर म शोषण होना स भव नह है। इसी से
चय क उपयो गता नह रह जाती जतनी बखान क जाती है।
ी के गु तांग क बनावट और भी पेचीदा है। कट म यो न-मुख और महाभगो
ही द खता है। म यभगो के भीतर लघुभगो होता है और उसके बीच म एक खड़ी दरार
होती है। वही यो न-भाग का ार है। इस ार के भीतर एक पदा होता है। उसम एक छे द
होता है, उसी म से मा सक ाव बाहर आता है। वह थम समागम के समय फटता है।
भारत म यही कौमाय-भंग का ल ण माना जाता है। पर तु कभी-कभी यह पदा अ य
कारण से भी फट जाया करता है और कभी कभी आपरेशन क ज़ रत पड़ती है।
ऋतु ाव म भी यह बाधक होता है। नववधू को कुमारी स करने के लए इस पद के
फटने से आने वाले र म माल भगोकर, या वह चादर जो इसके र से खराब हो
जाती है, सँभालकर रखते ह जो सरासर गलत है। यो नमाग के ऊपर ही मू माग है।
मू छ से लगभग एक इंच के अंतर पर यो न लग नाम का एक पै शक उ थानशील अंग
है। इसको भगनासा भी कहते ह। यह पु ष क गु ते य से मलती-सी है। क ह - क ह
य के यह एक इंच तक बड़ी दे खी जाती है। यो नमाग गभाशय के साथ चार ओर से
जुड़ा है। गभाशय के ऊपर के सरे से दो ना लयाँ बीजकोष तक जाती ह। बीजकोष म से
तमास एक रजोगोल प व होकर बाहर नकलता है, इस नली म होकर गभाशय म
चला जाता है। इस रजोगोल का पु ष-वीय के ज तु से मेल होने पर ही गभ थत होता
है। य द दोन का मलाप न आ तो राजोगोल गर जाता है। वै ा नक का अनुमान है क
कभी-कभी आठ दन तक यो नमाग म वीयक ट जी वत पड़े रहते ह और गभाशय म
घुसकर रजोगोल के साथ मल जाते ह। य द दोन बीज नह मल पाते तो गभ थापना
नह होती। स भोग के समय पु ष उ पन के साथ जब वेग से वीय फकता है और ी
क काम-तृ त होने पर गभाशय का मुँह कमल क भाँ त खल जाता है, तब वीय के
साथ वीयक ट गभाशय म चले जाते ह और रजोगोल से संयु हो जाते ह, अतः गभ क
थापना हो जाती है। पर तु मरण रहे क यह रजोगोल एक मास म एक ही प रप व
होता है, और इसका समय रजोदशन के बाद दस-प ह दन तक ही है। अतः इन दन से
अलग जो सहवास होगा उस म गभ क स भावना नह होगी। ऋतु ाव से कुछ पहले
एक बीजकोष कुछ फूलता है य क वही उसम रजोगोल के पकने का समय है। एक बार
बाय ओर और सरी बार दा हनी ओर का बीजकोष पकता है। फर वह बीजवाहक
न लका ारा गभाशय म आता है। यह न लका दोन ओर गभाशय से नकलकर उसी
ओर के बीजकोष से जुड़ जाती है। नली का यह सरा खुला रहता है और उसका आकार
फनेल जैसा रहता है। जधर रजोगोल पकता है वह से बीजकोष फोड़कर बाहर नकल
आता है और नली क भीतरी ग त के कारण गभाशय म धकेल दया जाता है।
ायः वीयक ट और रजोगोल का संयोग उपयु नली म होता है। बाद म वह संयु
गोल गभाशय म आता है और वह उसक वृ होती है। गभाशय के चार ओर जगह
खाली रहती है, पर पेट क ओर कम तथा पीछे क तरफ यादा होती है। हाँ, गभाशय के
भीतर ब त ही कम जगह होती है। मा सक धम के पूव के स ताह म गभाशय फूलता है
और उसका आकार ना हो जाता है, पर ाव समा त हो जाने पर वह कम हो जाता है।
अगले स ताह म वह फर फूलता है। गभाशय का वजन ायः चार तोला होता है। उसके
आगे के भाग म मू ाशय और पीछे के भाग म मलाशय होता है। अतः मलाशय या
मू ाशय भरे रहते ह तब उसके दबाब से गभाशय का थान कुछ बदल जाता है।
यो नमाग भी मल माग और मू माग के बीच म होकर जाता है। इसक ल बाई लगभग
चार इंच होती है, पर सबक समान नह होती। समागम के समय वह ल बाई कुछ बढ़
जाती है य क यह सरणशील अंग है। आव यकता पड़ने पर गभाशय के पास यह चार
इंच चौड़ा हो सकता है। पु ष क जनने य के समान ही ी के गु तांग म भी कुछ
ऐसी थयाँ ह जनम से समागम के समय एक कार का ाव नकलता है। एक थ
वाटो लन है। इसका पु ष क कौषर यो नमाग नामक थ से कुछ सा य है। इसी से
यो न म एक कार का गीलापन और चकनाहट हो जाती है। जससे समागम के संघषण
का क ी को नह होता। य द ाव न हो तो यो न म पु षे य के वेश म भी द कत
पड़े। इस ाव म एक कार क गंध होती है। कभी-कभी यो न क बनावट वकृत होती
है और उसी के अनुसार ी क कृ त पर भी असर होता है।
तन से ी क जनने य का गहरा स ब ध है। भ - भ य के तन का
आकार भी भ - भ होता है। कुछ य के तन घुटन तक लटकते दे खे गये ह। ायः
दायाँ-बायाँ तन एक-सा नह होता। थम वे कठोर होते ह, पर गभ-धारण से श थल हो
जाते ह। मा सक ाव ब द हो जाता है, तब तन सकुड़ जाते ह। पर तु इसी समय ायः
य का मेद बढ़ जाता है। गभधारण होने के पाँचव मास तन का आकार बढ़ने लगता
है, पीछे कम होता और सव के समय फर बढ़ जाता है। ब चे के ध पीने के समय वह
तगुना हो जाता है। ग भणी ी क चूचक काली हो जाती है। पु ष के शरीर म भी तन
के च होते ह, पर वे प रव धत नह होते।
वीय एक तरह का तरल पदाथ है, वाद म आँसू क भाँ त वह नमक न है। न वह
पेशाब क तरह तरल है, न पाखाने क तरह क ठन। इसम जी वत और मृत क ट रहते ह
और कई ग टय का रस होता है। यह पारदश होता है। रंग उसका ध और पानी के
बीच का होता है, गंध कुछ बुरी होती है। वीयपात होना मलमू क भाँ त ज़ दगी के लए
अ नवाय नह है। अगर पेशाब-पाखाना न आवे तो आदमी मर सकता है, पर वीय न
नकलने से आदमी मर नह सकता।
वा य और कामवासना
म◌ा और
सक धम य के यौवन-आगमन का च है। बारह वष क आयु से ऊपर
पचास साल क आयु तक य को यो न-माग ारा गभाशय से एक
कार का वकृत र नय मत समय पर गभाव था को छोड़कर नकलता है। आम तौर
से इसका ठ क समय 28 दन का है। ले कन सब य म ऋतु ाव का काल एक ही
समय नह रहता। येक ी का ऋतु ाव का भ - भ समय रहता है। 28 दन का
अ तर औसत से है, पर तु यह अ तर कभी-कभी 25 और 32 दनो का हो सकता
है। ले कन 21 दन से कम ओर 35 दन से यादा अ तर होना बीमारी का ल ण है।
मा सक धम पर खाने, पीने, रहन, सहन, मान सक उ ेजना और अतृ त कामवासना का
गहरा भाव पड़ता है। लड़ कय को जब पहले पहल ाव होता है, तो एकाएक उनके
शरीर म प रवतन होने लगता है। वे ल बी हो जाती ह, नत ब और तन बड़े हो जाते ह।
गु ते य के ऊपर और बगल म बाल उगने लगते ह। नायु-म डल अ धक संचालनशील
हो जाता है। इस समय उनक मनोवृ बदलने लगती है। और उनम कामे छा पैदा हो
जाती है, साथ ही गभाशय और बीजकोष क वृ भी होने लगती है, ले कन असल बात
यह है क गभाशय और कोष क वृ होने पर ही ऋतु ाव होता है। ब धा शु -शु म
इन दन म लड़ कय क त ती खराब हो जाती है। ह घर म संकोचवश इस
वषय क कोई श ा उ ह नह द जाती और वे ायः इस स ब ध म अ ानी ही रहती है।
इस लए य ही एकाएक पहली बार मा सक ाव होता है, वे घबरा जाती ह और कुछ
ऐसी हरकत कर बैठती ह क उनका वा य खराब होने का अंदेशा हो जाता है। माता-
पता तथा अ भभावक को चा हए क वे इस वषय म लड़ कय को आव यक हदायत
द। मा सक धम क उ कई बात पर नभर है। दे शकाल और प र थ त का इस पर
खास भाव पड़ता है। गम मु क म लड़ कयाँ दस और बारह साल क उ म मा सक
धम से हो जाती ह। ठं डे दे श म रहने वाली लड़ कय का 15 से 18 वष क उ तक तथा
समु के कनारे रहने वाली लड़ कय का ज द ाव होता हे। पहाड़ म रहने वा लय का
दे र म, शहर म रहने वा लय का ज द और गाँव मे रहने वा लय का दे र म। जन
लड़ कय को पु कर खुराक खाने को नह मलती उनका भी दे र म होता है। वंश का
भाव भी इस पर होता है। कभी-कभी इस वषय म असाधारण उदाहरण पाये जाते ह।
साढ़े पाँच वष क उ म लड़क को मा सक ाव होते ओर गभ धारण करते दे खा गया है
और पतीस वष क उ तक भी मा सक ाव न होने के उदाहरण ह।
सौ म से सफ बीस या प ह लड़ कयाँ ऐसी मलगी क ज ह मा सक धम के समय
कसी तरह का क न हो। ायः य को थोड़ी ब त गड़बड़ी होती रहती है। अ सर
मसाना फूलकर स त हो जाता है, बार-बार पेशाब करने क इ छा होती है, थोड़ा
कामो पन रहता है, यो न-माग म दाह रहता है, तन फूल जाते ह और उनम दद होने
लगता है, बदन म थकावट और दद रहता है, जी नह लगता है। मन म घबराहट और
उदासी रहती है, चेहरा सूख जाता या मुझा जाता है, पेट म मीठे मरोड़ उठते ह। कमर म
दद रहता है, कभी-कभी न द नह आती है, आवाज़ भराई हो जाती है, मज़ाज म
चड़ चड़ाहट आ जाती है, घृणा-श बढ़ जाती है, खाने म अ च होती है, बदन
अलसाया रहता है। शु म ाव कम रहता है, उसका रंग लाल नह रहता और उसम एक
कार क ग ध रहती है। सरे और तीसरे दन तेज ाव होता है। अ सर सरे दन ब त
यादा होता है और पाँचव दन कम हो जाता है। आ खर म पीला-सा पानी नकलकर
ब द हो जाता है। साधारणतया ऋतुकाल म करीब दो छटाँक तक ऋतु ाव होता है।
ले कन दौड़-धूप से, कामो े जत होने से, नशा खाने से, गरम चीज़ खाने से, गरम पानी म
बैठने से, यह ाव यादा होता है। ठ ड लगने से, रंज- फ से या बदन म खून कम होने
से कम नकलता है। मा सक धम का ठ क समय चार या पाँच दन है, ले कन 24 घंटे से
कम और 8 दन से यादा हो तो उसे रोग समझना चा हए।
मा सक ाव के समय म सौ म से अ सी य को क होता है, ले कन यह क
कसी खास रोग का ल ण नह है, य द इन दन म अंग क सफ़ाई और हवा का बचाव,
इन दो बात पर यान दया जाए तो याँ ब त से क से बच सकती ह। भारतवष क
तरह अ य दे श म भी इन दन याँ ब त ग द रहती ह। आम तौर पर यह याल
कया जाता है क इन दन म ग दा रहना ही मुना सब है। स भव है क याँ प त के
समागम से बचने के लए ग द रहती ह । ले कन चाहे जस कारण से भी रह, यह ब त
हा नकारक है। सबसे भयानक बात तो यह है क यो न-माग म जो कपड़ा काम म लाया
जाता है, वह ायः ग दा और मैला होता है और उसम ब त से रोग-ज तु एक त होते ह
और उ ह यो न-माग ारा गभाशय तक प ँचने का पूरा मौक़ा मल जाता है और उससे
सैकड़ रोग पैदा हो जाते ह। यान म रखने क बात यह है क यो न-माग म कुदरती तौर
पर एक कार का ख ा रस बहता रहता है, जो ब त ज़बरद त क टाणुनाशक है। कृ त
ने इसे इसी लए उ प कया है क यो न-माग म रोग-ज तु न बढ़ने द। पर तु मा सक
काल म र का वाह जारी रहने पर वह रस कम हो जाता है। इस लए इस समय पर
अगर यो न-माग क सफाई न रखी गई और ब त शु और साफ़ चीथड़ा काम म न
लाया गया तो न य उन य को दर का रोग हो जाएगा, जो उनके भा य का सबसे
बड़ा ल ण होगा य क इसका कोई इलाज नह है। यह आव यक है क इन दन म
यो न-माग को रोज़ाना दोन व गुनगुने पानी से धोना चा हए। अगर ऐसा न कया
जाएगा तो यो न-माग म र क गाँठ पड़ जाएँगी और उनके सड़ जाने से यो न-माग
ग धत हो जाएगा और उसम रोग-ज तु पैदा हो जाएँग।े
यो न को धोने के लए हमेशा साफ़ कपड़े के टु कड़े या ई गरम पानी म भगोकर
काम म ली जा सकती है। ले कन बाद म काम म लाकर उ ह फक दे ना चा हए। पंज क
सफाई ब त मु कल है, इस लए उसे काम म न लेना ही ठ क है। इस बात का यान
रखना चा हए क पानी ब त गम न हो, इस पानी म रोग-ज तु नाशक कोई दवा डालने
क ज़ रत नह ।
इस समय काम म लाने के लए बाज़ार म सेनेटरी टॉवेल मलते ह। उनसे ब त
सु वधा रहती है। अगर इनका मलना संभव न हो तो साफ ई क घड़ी बनाकर उस पर
साफ चीथड़े लपेटकर काम म लाये जा सकते ह। ये कपड़े दन म दो बार अव य बदलने
चा हए। जब ाव ब द हो जाए तो शरीर और यो न-माग को अ छ कार साफ़ करना
चा हए। इन दन नद वगैरा म नान नह करना च हए, अगर क ज़ हो तो जुलाब ले लेना
चा हए। अगर कसी भी कारण से ी इन दन म कोई ऐसी दवा खा रही हो, जसम
लोहे का म ण (आयरन) हो तो ऋतुकाल के समय म उसे ब द कर दे ना चा हए।
कृ त क यह बड़ी व च बात है क जैसे ी का मा सक धम के समय खून
नकलता है, उस तरह अ य ा णय के शरीर म से नह नकलता। सरे जानवर क
मादाएँ सफ ऋतुकाल के समय म ही गभवती होती ह और उ ह दन म उ ह समागम
क इ छा होती है। उसी ग ध को सूँघकर नर को उ पन होता है और उससे सहवास
करता है। ऋतु- ा त के समय से ी के बीजकोष ओर गभाशय म एक वकार पैदा
होना शु होता है। उसका एक च है जो अ ाइस दन म पूरा होता है, पर तु गभ रह
जाने पर ब चा पैदा होने तक यह च ब द हो जाता है। बीजकोष से दो कार के
अ तः ाव होते ह, जो र म मलकर कामवासना पैदा करते ह। रजोगोल जो बीजकोष
म पक रहा है, वह मा सक ाव होने के पहले दन से लेकर तेरहव या चौदहव दन तक
कसी भी दन बीजकोष के पद को फाड़कर और पककर बीजकोष-न लका म होकर
गभाशय म जा प ँचता है। अब गभाशय म य द पहले से वीयक ट हा ज़र न होवे, अथवा
उसके प ँचने पर उसे वीय का समागम न मला हो, तो वह गर जाता है। रजोगोल जब
बीजकोष से बाहर नकल आता है तो उसके ऊपर का खेल कुछ दन तक वैसा ही बना
रहता है। उसम भी एक कार का अ तः ाव होता है। पर तु जो अ तः ाव बीजकोष से
होता है, उससे तो यो न-माग, गभाशय और तन पु होते ह, और रजोगोल के फटे ए
खोल से जो अ तः ाव होता है, उससे गभाशय के भीतर एक कार क जाली बनती है।
अगर गभ रह जाए तो वह जाली वह चपट जाती है। पर तु यह जाली तभी बनती है जब
बीजकोष का अ तः ाव गभाशय को ठ क थ त म रखे। अगर गभ धारण न आ तो
वह खोल सूख जाता है। सरा ाव धीरे-धीरे कम होकर ब द हो जाता है और पहले
ाव का फर ज़ोर बँध जाता है, जससे फर अगले महीने म ऋतुधम होता है। अगर गभ
रह गया हो तो वह खोल भी नौ महीने तक बना रहता है। और उसका ाव भी जारी
रहता है, पर तु पहले ाव का ज़ोर होने पर सव होता है। इस तरह पहला ाव जो क
बीजकोष से होता है, वह ी क जनने य के लए लाभदायक है और सरा ाव गभ
के लए उपयोगी है। ले कन चूँ क दोन ाव पर पर वरोधी ह, इस लए अगर बीजकोष
का ाव बल आ तो गभ नह रहेगा। गभ रहने पर अगर बीजकोष से ाव का
इंजे शन दे दया जाये तो गभ गर जाएगा। और अगर बीजकोष काट के नकाल दया
जाए और बीजकोष का काम ब द हो जाए तो यो न-माग, गभाशय और तन सूख
जाएँग।े और अगर अ तः ाव का फर इंजे शन कया जाये तो फर पहली हालत म आ
जाएँग।े इससे यह नतीजा नकलता है क गभ-धारण क ज मेदारी रजोगोल के खोल से
नकले ए अ तः ाव के ऊपर नभर है, जसका समय रजोदशन के पहले दन से तेरहव
दन तक है।
बराबर क जोड़ी
स जनने
भोग म पूण कामो ेजना और ेम का पूण उ े क होना चा हए; वह वा तव म
य का णक संघष ही नह है। ऐसी हालत म स भोग के तीन दज ह गे—
भू मका, व तु और समा त। तीन दज का प रपूण वकास कया जायगा तभी स भोग
स पूण होगा, नह तो नह । भू मका म दशन, च तन, स भाषण, आ लगन, चु बन,
पीड़न, उद्बोधन याएँ मु य ह। ी-पु ष पर पर यदशन करने से मन म कामांकुर
क उ प करते ह। इसके लए दोन को पर पर के दशन से मो हत करने के लए साफ,
सुग धत, उ वल, सु च-व क, फैशनेबल और य के पस द के रंग और काट के
व धारण करना, चेहरा, आँख, नाक, मुख साफ और सुवा सत रखना, बाल को सजा
आ रखना, और बार बार भ - भ काल म वेशभूषा म प रवतन करना चा हए। इससे
पर पर के दशन से कामो े क होकर स भोग क इ छा होती है। फर ी या पु ष
काम च तन करता है। उसके म त क म भ लगी के साथ स भोग क वासना जाग
जाती है। र के भाव म प रवतन हो जाता है। बीजकोष से अ धक अ तः ाव होकर
र म म त होने लगता है। इससे तीन भाव कट होते ह—म द, म य और ती ।
म दभाव म म द मु कान होती है, पर पर दशन होने पर भी और परो म भी, म द
मु कान आप ही हो जाती है। म य भाव म होने पर रोमांच और ती होने पर गम ास
चलना और अंग गरम होना, ये ल ण हो जाते ह। अब इसके बाद स भाषण क बारी
आती है। कामुक स भाषण वासना-भू मका का एक धान अंग है। कभी-कभी जब पश
नह हो सकता तो स भाषण होता है। यह स भाषण कभी मूक भाषा म संकेत ारा और
कभी वाणी ारा संकेत से भी होता है। वा यायन कहते ह क ी सामने बैठे य क
ओर नह दे खे और य को दे खे तो वयं ल जत होवे; कसी बहाने से अपने सु दर अंग
को दखावे, सरे यान म लगे, छु पे ए, र गये ए नायक को दे खने पर हँसती ई,
अ -सी बात कहे; य के स मुख दे र तक ठहरे; य हो दखाने के लए सरे से मुँह
बना-बनाकर बात करे, जो कुछ दे खे उसे दे खकर ही हँसने लगे और बहाना न हो तो दे र
करने के लए कोई क सा छे ड़ बैठे; गोद के ब चे को छाती से लगा ले; स खय को रोक-
रोककर खेल-तमाशे करे। वा यायन ने जो 64 कला का वणन कया है; वह उ ह
स भोग क भू मका ही मानता है। बौ भ ु प ी अपने अल य ंथ ‘नागर सव व’ म
कामभू मका के 16 भाव गनते ह—हेला, व छ त, व यौक, कल क चत, व म,
लीला, वलास हाव, व ेप, वकृत, मद, मोहा यत, कुह म त, मु धता, तपन ओर ल लत।
ी हठात् चु बन करे, बना पु ष के कहे आ लगन करे, श या पर कंपायमान जंघा
को य क जंघा पर लगावे और काम ड़ा स ब धी अनेक भाव कट करे, यह हेला
कहाता है। प त से नाराज़ होकर, गहने उतारकर, ृंगार याग, ठ जाने को व छ त
कहा है। प त ी के लए कोई पस द लायक चीज़ लावे और वह उसे अ भमान से
अनादरपूवक याग दे तथा वामी पर हाथ भी चला दे , यह व यौक चे ा है। वास से
आए वामी को दे ख हष से फूली न समाकर हष द्गार करे, कभी आँसू रोवे, कभी ब त
हँसने क चे ा करे, यह कल क चत कहलाता है। ोध करना, मु काना, फूल माँगना,
फर फक दे ना, फर उठाकर ृंगार करना, सखी के साथ सो रहना, अकारण इधर-उधर
करना, यह व म कहाता है। प त के जैसी नकल करना लीला कहाता है। प त के पास
जाकर कभी हँसना, कभी ोध करना, कभी मुँह बनाना, अजब चाल चलना, यह वलास
कहाता है, हँसी के मारे क- ककर बोलना, ने के कटा चलाना, हा दक ेम कट
करना तथा वामी के अनुकूल आचरण करना हाव कहाता है। अनया चत दशा म आवेश
मय होकर व वध वकार कट करना व ेप है। जान-बूझकर प त के त अवा य
कहना वकार है। बात करते-करते ी अँगड़ाई ले और कान खुजावे उसे मोहा यत कहते
ह। र तकाल म बाल और तन छू ने पर आन द ा त होने पर भी जो ी बहाने से ःख
कट करे, उसे कुह म त कहते ह। कामो माद म अ ानता क बात करना मु धता कहाता
है। समय पर प त के न आने पर सखी के आगे रोना और अपने भा य क न दा करना
तपन कहाता है। भ , आँख, हाथ, पैर आ द को मोहक ढं ग से प रचा लत करने को
ल लत कहते ह। ब धा इन भाव का उदय कामावेश म ी से होता है। अ ानवश पु ष
इन भेद को नह जानते और ायः लड़ पड़ते ह और इसम वष घुल जाता है। अतः
जानना चा हए क इन भाव को ठ क-ठ क समझकर उनके अनुकूल यु से चे ा करनी
चा हए और अ य त सावधानी से वपरीत भाव को अनुकूल बनाना चा हए।
कामकला म संकेत का खास मह व है। भ ु प ी कहते ह क जो नायक
संकेतहीन है। उसे उ म ना यका सूखे ए फूल क माला क भाँ त याग दे ती है। वे
कहते ह क पु ष सरे काय म चाहे कतना भी चतुर और हो शयार हो, पर य द उसे
कामकला म ी का ध कार सहना आ तो उसका मरण है। संकेत क ा या करते
ए प ी कहते ह—व भाषा, अंगभंगी, पोटली, व , पु प और पान ये संकेत के भेद
ह। पु ष म फल का, ी म फूल का, कुल म अंकुर का, ा ण म अनार का, यम
कटहल का, वै य म केले का, शू म आम का, राजपु म तीया के च का और राजा
म मेघ का संकेत जानना चा हए। हीनकुल म काला फूल, साम त-पु म सरोवर, युवा म
म या का, बालक म अप व का और वृ म प व का संकेत समझना चा हए। ा णी
म कु द के फूल का, राजपु ी म चमेली का, वै यापु ी म जूही का और शू क पु ी म
कुमुद फूल का संकेत समझना चा हए। व ण पु ी म कमल का, म ी क पु ी म
नीलो पल का, कामी पु ष म भ रे का और का मनी म आम क मंजरी का संकेत होता
है। बुलाने म अंकुश का, मना करने म द वार का, रात के लए ढके ए च मा का और
दन के लए सूय का संकेत है। पहले पहर के लए प का, चौथे के लए महाप का
संकेत है। पाँचव महीने के लए राम का, छठे के लए वराम का, सातव के लए वर
और आठव के लए यूष का संकेत है।
यह आ श द-संकेत। अंक-संकेत इस कार ह। कुशल और कुछ कहने म कान
को छू ने का, का मत अव था म बाल के पश का, ेम कट करने म व ः थल का
हाथ से करना। समय का म यमा उँगली को तजनी पर चढ़ाना, अवसर आने पर
अंज ल बाँधना, बुलाने म अंज ल को उ टा कर लेना, पूव दशा के संकेत के लए अंगूठा,
द ण के लए तजनी, प म के लए म यमा, और उ र के लए अना मका। क न ा के
मूल से आर भ कर अंगूठे क अध रेखा तक येक उँ लय म 3-3 रेखा करके 15
त थय का। शु ल प म बाय हाथ म रेखा करना और कृ ण प म दा हने हाथ म। अब
पोटली-संकेत सु नए। ेम क सूचना म सुग धत चीज़, सुपारी, क था। अ त नेह म
छोट इलायची, जायफल और ल ग। ेम-भंग क सूचना म मूँगा, ब त दन के संगम मे
दो मूँग,े काम वर म कड़वी व तु, स ः सहवास के संकेत म मुन का का संकेत होता है।
शरीर-समपण म कपास, जीव-समपण म जीरा, भय संकेत म भलावा, अभय-संकेत म
हरड़। मोम क ट कया बनाकर उस पर पाँच उँगली के च बनाकर लाल सूत से बाँध दे
वह पोटली कहाती है। पोटली का अथ है, मदन ड़ा। संकेत म मोम, अनुराग के लए
लाल धागा, काम त के संकेत म नाखून का च , यह पोटली-संकेत है। व -संकेत म
उ म व फाड़कर दखाने म वयोगा न म बुरी हालत होने का च है। उ कट ेम क
सूचना म पीला व , मलने म सूत के साथ ब धन, एक के नेह म एक व , दो के नेह
म दो व । अब ता बूल-संकेत सु नए। पान के बीड़े पाँच कार के होते ह। एक बीच क
नस और सू से र हत ाका प, सरा अंकुश के आकार का, तीसरा म य म बाण के
आकार का, चौथा पलंग के आकार का और पाँचवाँ चौकोन। नेह के आ ध य म पहला,
आहरण म सरा, मदन- था म तकोना, स भोग सँकेत म पलँग के आकार का और
अनवसर के संकेत म चौकोर बीड़ा दे ना। ेम के अभाव म बना सुपारी का बीड़ा दे ना।
वयोग के संकेत म उ टा लगाकर काले धागे के साथ, संयोग के संकेत मं एक पान को
सरे म अटकाकर लाल धागे बाँधकर दे । याग के संकेत म पान को बीच -बीच फाड़
काले धागे से बाँधकर और ाणा तक अव था म लाल धागे से पान के बीडे़ को सीकर
दे ना चा हए। अ य त ेम के संकेत म पान को टु कड़े-टु कड़े कर जोड़ दे ने, बीच म केसर
से पूरा कर दे न,े बाहर च दन लगा दे ने से दे ना चा हए। फूल के संकेत म वराग म गे आ,
अनुराग म लाल, नेह के अभाव म काले धागे से गुँथी माला दे नी चा हए।
कामुक स भाषण से पश के बना भी जनने य से स ब ध रखने वाली थय से
एक कार का ाव होने लगता है। इसी ाव से सहवास- या आन द द होती तथा
पूण ेजना होती है। वा यायन इस स ब ध म कहता है क मनु य अपने म के साथ
पु पमाला से अलंकृत सुवा सत र तगृह म जाय। पहले खुशामद से ी को स करे।
ी के दा हनी ओर बैठे, उसके केश और व छु ए। पूव क चचा के साथ प रहास और
ेम वचन से उसे अनुकूल बनावे। दो अथ वाली अ ील द लगी करे, चतुराई क बात
छे ड़े, नाच-गान का संग उप थत करे। जब वह इ छायु हो जाए तब पान-इ दे कर
म को वदा करे और एका त होने पर आ लगन, चु बन करे। वा यायन कहता है क
आ लगन, चु बन, नख छे द, दशनछे द, स भोग, सी कार, वपरीत और मुख-मैथुन ये
आठ स भोग के भेद ह। इन आठ म येक के आठ-आठ भेद ह। इस तरह सब मलकर
64 होते ह। इ ह को कला कहते ह। जो इ ह जानता है, वह नाग रक है।
आ लगन के अनेक भेद ह। जैसे वृ से लताएँ लपट रहती ह, उस तरह ी के
लपटने से लतावे त आ लगन होता है। ी य द प त के एक चरण पर चरण रख दोन
बांह से प त का आ लगन करे तो यह स मुख आ लगन कहाता है। ी य द अधीर
होकर चु बन के लए वृ पर चढ़ने क तरह चे ा करे तो वह वृ ा ध ढ़ आ लगन
कहाता है। उठते ए प त को आ लगन करने को उप हन कहते ह। ी को चलते- फरते
भीड़ म छू -भर दे ना पृ क आ लगन कहाता है। य द पु ष ी को द वार के सहारे दबावे
तो वह पी ड़त आ लगन होता है। श या पर पर पर गाढ़ा लगन करके चुपचाप पड़ जाय
तो वह तलत ल आ लगन होता है। दोन तन को अ छ तरह पकड़कर जो आ लगन
होता है वह कुचोपगूढ़ तथा इसी म जाँघ को दबा डालने से उ पगूढ़ आ लगन होता है।
भीड़ म पर पर को रगड़ते ए चल दे ना उ आ लगन कहाता है। मुख पर मुख, आँख
पर आँख और ललाट पर ललाट रखकर जो संघषण होता है वह लाला टक आ लगन
होता है।
चु बन पर ब त-सा सा ह य पा ा य व ान ने लखा है, और उसके अनेक भेद
व णत कए ह। पर सभी काम-वै ा नक क राय है क चु बन म जीभ का उपयोग ही
मुख है। तना और ठ अ य त उ पनशील ह। चु बन म जीभ के बाद दांत का भी
मह व है। माक क बात यह है क दाँत के उपयोग क वृ य म अ धक होती है
और इससे उ ह अ धक उ पन मलता है। पर तु हमेशा मरण रखना चा हए क खास
अव था को छोड़कर कोमल भाव से दबाने से ही अ धक उ पन होता है। काम-
शा य ने चु बन के अनेक भेद बताये ह। ी के यो न-अंकुर को हाथ से सहलाते ए
छाती और ना भ को पी ड़त करते ए जो चु बन होगा, वह वपी ड़त चु बन है। दाँत सर
घुमाकर ी के ललाट और अधर म चु बन करे तो वह मत चु बन है, और य द सर
उठा-उठाकर ने और कपोल म चु बन करे तो उ ला मतक चु बन होता है। ना भ,
कपोल और तन य म फड़कते ए अधर से चु बन करने पर फु रत चु बन होता है।
अधर और ओ मलाकर तथा दय, जंघा और उ चु बन करने से सहंतो चु बन होता
है। मुँह को तरछा करके गले म कपाल और कुच चु बन करने से वैकृतक चु बन होता है।
अ छ तरह मुँह को झुकाकर कपोल तथा सवाग म चु बन करने से नतअ ड चु बन होता
है। वा यायन ने ललाट, ज फ, कपोल, नयन, छाती, तन, नीचे का ह ठ, और जीभ
चु बन के थान कहे ह। लाट दे श के लोग जाँघ क सं ध बगल और ना भ के नीचे के
दे श का भी चु बन लेते ह। जीभ को सूई के आकार क करके ी के मुँह म दे कर
अथवा उसे फैलाकर इधर-उधर घुमाना और ी को चूसने दे ना ज ा का मह वपूण
चु बन है। उस चूषण के भी अनेक भेद हो जाते ह। वा यायन चु बन म दाव लगाने क
व ध बताता है, अथात् दोन म से कौन कसका ह ठ चूम ले या पकड़ ले। य द ी हार
जाय तो ससकारी लेती हाथ पटके, प त को ध का दे कर र कर दे , आप बारा काट ले,
फरकर बैठ जाय और कहे क बाजी लगाओ, और फर हार जाए तो शोर मचा दे । फर
अचानक धोखा दे कर प त के अधर दाँत म दबाकर हँसती ई अपनी वजय क घोषणा
कर दे , प त को धमकावे क छु ड़ाओगे तो काट लूँगी। ताने मारे, फर बाजी लगाने को
कहे, नाचे और आँख चलावे, इसी कार नाखून से, थप कय से चोट प ँचाने और
काटने क भी कला और भेद ह। वा यायन एक धोखे के चु बन क व ध बताता है क
प त के पैर दबाती ई ी न द का बहाना करके अपना सर प त क जाँघ पर रख दे
और फर चूम ले, इससे रस वृ होती है। इसी कार और भी राग-वृ के उपाय कहे
ह। प ी कहता है क पृथक्-पृथक् ऋतु म पृथक्-पृथक् जा त क ी भोगनी चा हए।
16 वष तक ी क बाला सं ा है, तीस तक त णी, पचास तक ौढ़ा और इससे ऊपर
वृ ा। ी म और शरद् म बाला, हेम त और श शर म त णी, वस त और वषा म ौढ़ा
ी भोगने यो य है। ी के बगल और गु त थान म बाल न होने चा हए तथा मुख पर
तल होना चा हए। बैठने म बाला का, सोने म त णी का और उठने म ौढ़ा का स कार
करना चा हए। पु ष को ना भ, दय और क ठ दे श म ास-धारण करके कामवशी होने
का अ यास करना चा हए। चु बन के बहाने से अपनी साँस ी को पलानी चा हए, पर
वयं उसक साँस न पीना चा हए। जब सी कार आर भ हो, यो न फड़कने लगे, तब
कामकला-कुशल पु ष स भोग को आर भ करे। इस कार ी का उ पन करके जो
पु ष ी को तृ त करता है, ी उसक दासी हो जाती है। प ी कहता है, जंघा, उ ,
ना भ, कु , कुच य, हथेली, गला, ललाट, नयन, कान, म तक एवं सवाग म त थ म
से काम का उदय होता है। शु लप म बाय पाँव के अँगूठे से काम का अरोहरण होता है
और कृ णप म सर से नीचे तक मशः अवरोहण। कृ णप म अंगु मूल से मशः
केशपय त काम स ा त होता है और उसी शु लप म सर से मशः चरण के अ भाग
तक काम उतरकर चला जाता है। प ी कहते ह क ी क यो न म स भोगे छा करने
वाली चौबीस ना ड़याँ ह। उनका नगम- थान मदन छम कहाता है। इसे ही भगनासा
कहते ह। इसे उँग लय से मसलना चा हए। बाला को उँग लय से और ौढ़ा को उँग लय
और लग दोन से रगड़ना चा हए। दो नाड़ी मुख म, दो आँख म, एक हलक म, ये चार
उ ेजक ना ड़याँ ह। एक नाड़ी अंगु मूल म है जो पैर के अँगूठे के नाखून से उ े जत
होती है। कान, जाँघ, पसली, पीठ का नीचे का भाग, म तक, इनम नखाघात से कामो े क
होता है। सती, असती, सुभगा, भगा, पु ी, ह णी, ये छह महानाड़ी जनने य म ह
जो स भोगे छा को जागृत करती ह। वामभाग म सती, द ण म असती, छ के बीच
बाय-दाय, वामपा म थोड़े अ तर पर सुभगा और भगा नाड़ी है। यो न के ब त भीतर
पु ी और द ण म ह णी नाड़ी है। सती के संचालन से असती कु पत होती है तथा
असती के संचालन से सती सदा स तु रहती है। सुभगा-संचालन से सुभगा यद शनी
होती है, भगा के संचालन से ी भगा होती है तथा वण, वरंग, बल और वृ हो
जाती है। पु ी के संचालन से ी युवती होती है और ह ी के संचालन से ी के क या
होती है। पु ी तथा ह ी के संचालन से नपुंसक स तान होती है। सती कुच-मदन से,
असती बगल सहलाने से, सुभगा ओ -चु बन से, भगा कमर सहलाने से, पु ी मुख-
चूषण से और ह ी चूतड़ सहलाने से ोभ को ा त होती है। खास-खास दे श क
याँ खास-खास चे ा से उ े जत होती ह। म यदे श क याँ कोमल र त पस द
करती ह। व ख और उ जैन क याँ भी ऐसी ही होती ह पर वे भाँ त-भाँ त के आसन
को पस द करती ह। मालवे क याँ और अहीर याँ आ लगन, चु बन, नख, द त,
त, और अधर चूसना पस द करती ह तथा स भोग म ज़ोर क चोट को पस द करती ह।
स ध, सतलुज, उड़ीसा क याँ मुख-मैथुन करती ह। प मी समु के कनारे क
याँ ती वेग पस द करती ह; ऐसी ही कौशल दे श क याँ होती ह। आं क याँ
कोमल स भोग य और मुख-मैथुन करने वाली होती ह। महारा क याँ 64 कला म
वीण तथा अ ील वा य को पस द करने वाली तथा वेग का गमन पस द करती ह।
पटना क याँ भी ऐसी होती ह। क कण दे श- दे श क याँ समवेग सहन कर लेती
ह। क मीर क याँ सुग ध क बड़ी शौक न होती ह। पंजाबी याँ आघात चाहती ह।
लंका क याँ अनेक र तकला म चतुर होती ह। स धु दे श क याँ पशु के समान
स भोग से खुश होती ह। भुवन क याँ कृ म चे ाएँ पस द करती ह। नेपाल,
काम प तथा चीन क याँ आघात, मदन, नख त, द त त, या अ तसंचालन म
नः पृह होती ह। द ण दे श के गुलाम ी के मुँह म जीभ दे कर चूसने को ब त मह व
दे ते ह। बालकल जा त म पु ष य को उ े जत करने के लए उ ह खूब चढ़ाते ह फर
गा लयाँ खाते और पटते ह। सहवास के समय वे उनके तन और अंग को दाँत से त-
व त कर डालते ह। इस कार के घाव को वे याँ अपने प त के ेम का च
समझकर गव करती ह और गीत म उनका बखान करती ह।
ी शरीर म तना और भगनासा ये दो उ ेजना के के ह। पु ष क म
सम त तन-अंग उ ेजक है पर तु ी के लए अ भाग का मृ मसलना। दोन का एक
साथ मदन अ य त उ ेजक है।
जब पु ष इन बात क परवा न करके केवल अपनी ही वासना तृ त करते ह तब ी
अ -उ े जत रह जाती है, जससे दोन का ेम-आकषण कम हो जाता तथा ी म
अनेक रोग घर कर लेते ह। पर तु य द दोन क काम-तृ त होती है तो दोन को परम
सुख ा त होता है। आम तौर पर थम स भोग म पु ष ज द ख लत हो जाता है, फर
उ रो र दे र होने लगती है। पर तु ी का नयम इसके वपरीत है। शु म उसे दे र से
स तोष होता है, पीछे ज द -ज द स तोष होने लगता है। कभी कभी अ य त चे ा करने
पर भी कामो े क ठ क-ठ क नह होता और यो नरस ा त नह होता। तब वेसलीन या
कोई चब काम म ली जाती है। पर ये सब चीज़ साफ़ नह हो सकत , बाद म सड़ जाती
ह। इससे य द बाहरी कसी पदाथ क यो न को गीला करने के लए आव यकता पड़े तो
इसके लए सव म चीज़ मुखरस है, पर इसका उपयोग हाथ से नह चु बन ारा होना
चा हए। पर तु शत यह है क गु ते य अ य त साफ और शु हो।
कुछ काम-शा य का मत है क थम वेश सदै व ही सुखद नह है। य प
वा यायन ार भ म अ य त कोमलता और धैय क सलाह दे ता है। पर तु सरवे नयन
लोग इस द कत क परवाह नह करते। वे अपनी और ी क गु ते य म ीस क
चकनाई लगा दे ते ह। अ य दे श म भी एक कार का तेल काम म लाया जाता है।
सर वयन लोग इस काम के लए मछली क चब यादा पस द करते ह। उन लोग का
एक आम च लत गीत है जसका मतलब है क हे परमे र, मुझे ल बे हाथ-पैर दे ,
जनके ारा म गहरे समु म जाऊँ और ‘ पक’ नामक मछली को पकडू ँ और उसका तेल
नकालूँ जससे ी क यो न के मुख को चकना क ँ । ाचीन काल म सहवास
अ व छता का भी काम समझा जाता था। हीरोडोट कहता था क बेनोलो नया म ी
पु ष सहवास के बाद ब ल दे ते और सुबह नान करते थे। असी नयन लोग यह समझते ह
क सहवास करने से इतने अप व हो गए, जैसे मुदा छू लया हो। य द लोग सूया त
तक दोन अंग को अप व मानते थे। ले ल ड क नववधू थम सहवास के बाद दो
महीने तक अपना मुँह कसी को नह दखाती, न प त को सहवास करने दे ती है। पर तु
ऐ लस ने लखा है क टाटे नवासी ववाह के इन गवाह क उप थ त म थम सहवास
करते ह। अरब क सु बा जा त वाले नवद प तय को आठ दन तक अकेला छोड़ दे ते ह,
और उनको नह छू ते य क वे अशु समझे जाते ह। जब द प त सबके सामने आते ह
तो अलग रहते ह और दोन साथ नह रहते। अलबी नया म नवद प त का सबके सामने
कट मलना ल जाजनक समझा जाता है और वे गु त प से सबक नज़र बचाकर
मलते ह, जब तक क पहला ब चा नह हो जाता। मु लम धम सहवास के बाद नमाज़
पढ़ने क आ ा नह दे ता, पर तु या ा आ द म थोड़ी रयायत करता है। उसम भी वह रेत
से हाथ और मुँह रगड़ने क हदायत करता है। मुसलमान म रमज़ान के दन म रात के
व ी से सहवास करने क पु ष को आ ा है। पर तु हज करने वाल को सहवास क
आ ा नह है। ह क उ च जा त म स भोग के बाद अपने को अप व आ समझा
जाता है। एक प डत जी को हमने दे खा था जो उस समय कान पर जनेऊ चढ़ा लया
करते थे।
कामो पन
स महभोगव क ी-पु
तीन मुख
ष के
याएँ ह: सी कार, वलास और उपसग। पर तु स भोग का
वभाव, शरीर क बनावट और गु ते य क बनावट पर
अ धक नभर है। गु ते य क माप-तौल के हसाब से तीन कार के पु ष होते ह। (1)
शश— जनक इ य 6 अंगुल क , (2) वृष— जनक 8 अंगुल क । (3) अ जनक
इ य 14 अंगुल क होती है। इसी हसाब से याँ भी मृगी, बड़वा और ह तनी नाम से
तीन जा त क होती ह। पु षे य क नाप ल बाई-मोटाई से है। ी क गहराई-चौड़ाई
से। बराबर नाप के इ य वाल का स भोग सम तीन कार का आ। वषय अदल-
बदलकर 6 कार का आ। इसका योग इस कार आ। 1—शश-मृ गी। 2—वृष-
बड़वा। 3—अ -ह तनी, ये तीन स भोग ए। शश का बड़वा या ह तनी के साथ। वृष
का मृगी और ह तनी के साथ। अ का मृगी और बड़वा के साथ। ये 6 वषम रत ए।
वषम स भोग के भी दो भेद ह, उ च रत और नीच रत। अ का बड़वा से और वृष का
मृगी से उ च स भोग आ। ह तनी का शश से नीच रत है। इसम सम स भोग ही
आन द द है। वषम म नरान द या क होता है। इस तरह नौ कार के स भोग
वा यायन और भ ु प ी ने वणन कए ह। स भोग म म दवेग, म यवेग और च डवेग
भेद से 3 कार के ह। जसका वीय कम हो, उ ेजना कम हो, ी के नखद त हार को
पस द करे, वह म दवेग है। म यवेग और च डवेग भी इसी कार जानना चा हए। जैसे
पु ष का म दवेग आ द होते ह उसी कार ी के भी। इस कार वेगभेद से भी स भोग
के 9 कार ए। काल भेद से भी शी , म य, चरकाल के हसाब से 9 कार के स भोग
ए जानना। इस तरह कुल मलाकर स भोग के 27 भेद ह। स भोग के वषय म एक
मह वपूण उठता है क इसम ी-पु ष का आन द समान है या नह । ाचीन कुछ
आचाय कहते ह क नह । ी-पु ष के स भोगान द म एक बड़ा भेद तो यह है क ी
को स भोग के ार भ म उ कट आन द आता है, पर तु पु ष को वीय- रण म आन द
आता है। ी क कामे छा कु हार के चाक के समान है, जसक चाल शु म धीमी,
फर तेज, और बाद म अ य त च ड हो जाती है, पर तु घूमने क या जारी ही रहती
है। धातु य होने पर अलग होने क इ छा हो जाती है। अ भ ाय यह है क पु ष को
स भोगा त म और य को स पूण काल म आन द मलता है। पर तु वे म दवेगी पु ष
को पस द नह करत । कारण उनक यो न म जो मीठ खाज उ प होती है उसको
मटाने से ही उनक तृ त होती है। इससे जो च डवेगी पु ष होते ह, ायः याँ उ ह
अ धक पस द करती ह। पर तु यु से वषम स भोग को स पूण आन द द बनाया जा
सकता है। यु से स भोग म रस, र त, ी त-भाव, राग, वेग और समा त ठ क तौर पर
स प क जा सकती है। वा यायन कहते ह क ी त चार कार से उ प होती है—
अ यास से, वचार से, मरण से और वषय से।
हमने पहले कहा है क इस या म पु ष का मुख भाग होता है, पर तु य को
भी उसम सहायक होना चा हए। य द वे इस समय अचेतन क तरह गरी रह तो उसम
दोन क हा न है। पु षे य के ी क यो न म वेश होने पर दोन के घषण से
उ रो र उ पन बढ़ता है। वीयपात होने पर पु ष क तृ त हो जाती है। उसी समय या
उससे कुछ सेक ड बाद या पहले ी क तृ त होने पर ही वह समागम सफल कहा जा
सकता है। पर तु यह सफलता कतनी ही बात पर नभर है। थम तो सहवास क पूरी-
पूरी तैयारी होना ज़ री है, फर यो न-माग क और इ य क समान नाप-तौल, उपयु
घषण, यह सब आन दवधन म सहायक है। य द ी-यो नमाग श थल भी हो तो भी
उ ेजना से वह कम हो जायेगा, इससे ी का उ पन पु ष के ही लाभ के लए है। ी-
पु ष जब दोन का अ य त उ पन होगा तभी यो नमाग तथा जघन के नायु का
ऐ छक या अनै छक ग त से र त या होने पर अ धक सुखकर हो सकेगा। ायः ी-
पु ष काम ड़ा से अन भ रहने के कारण थम समागम म ही ब त-सी गड़बड़ी कर
डालते ह। ऐसी दशा म पु ष को ही सावधान रहना चा हए। पु ष समागम को बढ़ा नह
सकता; हाँ, अनुभवी याँ घटा-बढ़ा सकती ह। इस लए समागम-काल दोन क इ छा
पर नभर है। वीयपात का भाव ी के म त क पर प ँचने म एक से क ड भी नह
लगता। यो न- लग और यो नमाग को भी पश ान होता है, पर वह भ कार का होता
है। समागम के समय यो न- लग और लगे य इन दोन का ही घषण होता है, पर य द
यो न लग ऊपर क ओर अ धक हटा आ हो तो उसका पश नह हो पाता, पर तु इसका
घषण य द न भी हो तो भी कामतृ त क या म कोई बाधा नह प ँचती। इस कमी
क पू त आसन से करनी पड़ती है। वीय खलन एक बार जहाँ होने को आ, वह फर
नह रोका जा सकता, उसके रोकने के सब य न थ ह। वीय- खलन के साथ ही पु ष
क कामचे ा भी शा त हो जाती है, पर ी क काम-तृ त के बाद भी उ पन अव था
शमन नह होती, उसम कुछ दे र लगती है। हाँ, पु ष के वीयपात से उसम मदद अव य
मलती है। जो याँ अ य त उ े जत होती ह, उनक तृ त पु ष के खलन के पहले
कई बार हो चुकती है। कोई-कोई ी तो वीय- पश से ही तृ त हो जाती है, पर कोई-कोई
पु ष के अ तम ध के से ही तृ त होती है। आम तौर पर पु ष य क कामतृ त के
नयम को नह जानते। उनके साथ समागम करने से याँ पागल-सी हो जाती ह,
उनका वा य खराब हो जाता है और दमाग कमज़ोर हो जाता है। ऐसी अव था म
याँ ायः वस भोग करती ह। ईसाई धमगु ने भी उ ह इसक आ ा द है। यान
करने यो य बात यह है क कामपू त के समय ी क यो न से कोई वीय क जा त क
चीज़ नह नकलती, हाँ, ी के गभाशय म इससे एक कार क ग त अव य उ प होती
है। गभाशय का मुँह कई बार खुलता और ब द होता है और वीय-ज तु को भीतर ले
जाकर ब द हो जाता है। पर यह ी के उ पन होने पर ही स भव है अथात् ी क
कामपू त होने पर ही गभधारण कर सकती है।
प ी कहते ह क ी को प त के लए ऐसा आचरण करना चा हए- नान कर,
बाल सँवार, फ़ैशनेबल ृंगार कर, ज़रा-ज़रा अंग दखाती, कभी छपाती, कुछ डरती,
कुछ लजाती, कुछ मु काती सी वामी के नकट आवे। जब प त उसका हाथ पकड़कर
ख चे तो डरकर अंग-संकोच करे, पर पीछे अपने प त को अपण कर दे । प त जन अंग
को दे खना चाहे दे खने दे , छू ना चाहे तो छू ने दे , नख त और द त त करना चाहे वह
करने दे ; पहले उन अंग को र हटा ले, पीछे उ े ग के साथ समपण कर दे । मदन करने
पर श द करे, द ताघात पर था के साथ ंकार करे, नख त तथा गाल और तन पर
आघात होने पर सी कार करे। पसीने से तरबतर होकर, शा त होकर म द-म द कराहती
ई श्वास- श्वास ख चे, रोमांच हो, इससे सुरतव न होता है। ‘मुझे इतना न सताओ’
ऐसा ग द क ठ से कहे, मौका दे खकर तकूलता, अनुराग, ौढ़ता और लाचारी या मान
कट करे। आवेग होने पर या आवेग बढ़ने पर, धीरता, वजय-भंग, अ ीलता आ द का
वहार करे। जब सुरत हो जाए तो मु ध हो श थल हो जाए, आँख ब द कर ले तो पु ष
उस पर मु ध होता है।
कुछ लोग कृ म री त से समागम के समय को बढ़ाना चाहते ह। पर तु यह सवथा
थ है। वा तव म इससे कोई लाभ नह है। स भोग के पहले, स भोग क तैयारी म चाहे
जतना भी समय लगा दया जाए, वह तो सरी बात है, पर स भोग ार भ होने पर यह
स भव और उ चत नह है। कुछ काम-शा य क राय है क इ य- वेश करके पु ष
को अपना यान इधर-उधर करके चुप पड़ा रहना चा हए, जससे वीयपात म दे र हो।
यूनानी प त यह है क स भोग के समय गुदा और लगे य के बीच क वीयवा हनी
नाड़ी को पैर क एड़ी अथवा हाथ से दबा दे ने से वीय लौट जाता है और स भोग म दे र
लगती है। पर वा तव म य द पु ष म दकाम नह है, तो यह काय अव य ही उसक
म जा-त तु पर बुरा भाव डालगे और स चे आन द और उ साह म बाधा पड़ेगी। यह
एक साधारण बात है क चाहे ी हो या पु ष, जब तक उनक जनने य पूण वृ को
ा त नह कर लेती, उसम समागम क इ छा नह उ प होती। समागम स भव भी नह
होता। य द ी क वृ अधूरी होती है तो उसके आन द म कमी रह जाती है। ी-
पु ष क गु ते याँ य द सम तो भी आन द म कमी रहेगी। ऐसी अव था म यु से
भ आसन के ारा ी-पु ष आन दलाभ कर सकते ह।
सहवास म पूणान द करने के लए छोट यो न और ढ़ लग क आव यकता है।
पुराने लोग का कहना है क जन य के पैर छोटे ह गे उ ह क यो न छोट होगी,
और पु ष क जतनी नाक बड़ी होगी उतना ही बड़ा उसका लग होगा। म म य
के तीन वभाग उसक यो न के माप के आधार पर कए गए ह। थम वह जसके थम
स भोग म आसानी से पदा फट जाए और ब त थोड़ा र उसम से नकले और एक
ल बी दरार बन जाए। सरी वह, जसका पदा ब कुल ब द हो, पर आसानी से साधारण
ध के से अंगूर क तरह फट जाए। तीसरी जा त क ी का पदा ब त मोटा और बड़ा
होता है तथा बड़ी क ठनाई से फटता है, र भी अ धक नकलता है। ये याँ ायः
सरी य या पु ष से अंगुली से पदा तुड़वाती ह, और उनक यो न क आकृ त खराब
हो जाती है। बोसी नया के एक पादरी ने जसक ी ने उस पर यह इ ज़ाम लगाया था
क वह इगलामबाज है तो पादरी ने अपनी ी के गु तांग के वषय म कहा था क उसम
एक ब ख और दो जमन ब लयाँ जा सकती ह। बालकन जा त क याँ यो न को
संकु चत करने के लए बचपन से ही फटकरी का योग करती ह। पो पया, जो रोम के
मश र बादशाह नीरो क बीवी थी और जसके पहले 5-6 प त रह चुके थे, क गु त
पु तक से पता चलता है क यो न को कुमारी क भाँ त संकु चत रखने के लए एक
योग काम म लाया जाता था क म म थोड़ा Benzoete मलाकर एक कार का ध
का-सा व बना लेते थे उससे यो न-माग धोते थे। बाद म उसे साफ फलालेन से सुखा
लया जाता था। वा यायन ऋ ष ने यो न-संकोच के अनेक योग दए ह अ य आचाय
ने भी ऐसे योग दए ह ज ह हम अ य लखगे।
जस कार याँ यो न को सदै व संकु चत रखने के लए सचे रहती ह, उसी कार
पु ष अपनी इ य को ढ़ और बड़ी बनाना पस द करता है। अरब लोग म इसी
अ भ ाय से ाचीन काल से ऐसी था है क वे बचपन से ही पेशाब करने के बाद प थर
या रेत से लगे य को रगड़ते थे।
यौवनाव था म युवक और युवती के शरीर म जो आ यजनक वकास और प रवतन
द ख पड़ते ह उनका एकमा कारण थय का अ तः ाव है। कपूर क ं थयां श के
मूल के समीप दोन ओर होती ह। जब काम-भाव अ त बल प म होता है, तब
श ना लका ारा इस थ से ाव होने लगता है। यह ाव ब कुल वाभा वक है।
पर तु कुछ अ ानी लोग इसे शु समझकर इसे एक कार का रोग समझने लगते ह। यह
व ब कुल सफेद होता है और अ डे क सफेद से ब त कुछ मलता-जुलता होता है।
इसी कार ो टे ट थ का कामवासना से घ न स ब ध है। जब कामो ेजना होती है,
तब वीय के साथ मलकर इस थ का रस बाहर नकलता है। शु -कोष से ाव
लगातार होता रहता है। इसका काम वासना से सीधा स पक नह है। हाँ, जब-जब
स भोग के समय वीय श ना लका ारा याग कया जाता है, तब यह बाहर नकल
जाता है। स भोग के समय जो वीय- याग कया जाता है उसम तीन थय के ाव का
स म ण होता है-अ डकोष क थय के ाव का, शु -कोष क थय का तथा
ो टे ट थ का ाव। इन सम त थय के यथावत् काय करने पर ही पु ष के शरीर
म ओज और वीय का उ पादन होता है। इनके अ तः ाव से शरीर बलवान, तेज वी, पु
और श शाली बनता है। यूरोप क अनेक रसायनशाला म जो अ वेषण कए गए ह,
उनसे यह मा णत हो चुका है क पु ष के अ ड और ी क ड ब थयाँ एक ऐसा
उ प करते ह, जो र के साथ मलकर शरीर के येक भाग म वा हत होता है,
और वह युवक-युवती के शरीर के वकास म आ यजनक जा का-सा भाव डालता है।
पु ष के वीय-कोष से दो कार क नायु- णा लयाँ मलती ह। एक नायु- णाली
मे -द ड क ओर जाती है, जसके ारा म त क को जनने य क दशा का ान होता
है, और सरी नायु णाली अ य सरे कार क वृ य क सूचना दे ती है। अतः जब
शु -कोष पर आ त रक या बा दबाव पड़ता है, तो नायुम डल म उ ेजना पैदा हो
जाती है। मे दं ड म यह नायुम डल थत है। शु कोष म दबाव या तो उनके अ य धक
शु व भर जाने से होता है अथवा शु कोष पर मलाशय या मू ाशय के भरे रहने के
कारण दबाव से उ ेजना हो जाती है। जब पु ष पीठ के बल सो रहा हो तब इस कार
क उ ेजना का अनुभव वाभा वक बात है। ी-शरीर से ड ब- थयाँ और पु ष
शरीर से अ ड नकाल दए जाएँ, फर उनके सामने कामो ेजक व तुएँ उप थत क
जाएँ, तो वे कदा प कामो ेजना का अनुभव नह कर सकगे। वही अ प समय अ य धक
श द समय है, जब स भोग के समय उ प व ुत् के संघषण और आकषण ारा
जीवनदा यनी श याँ और व जनने य से वलग होते ह। यह ऐसा समय है जसे
कृ त दे वी ने मान सक श य को उ े जत करने और उनको याशीलता दान करने
के लए सबसे उ म बनाया है।
स भोग का सबसे उ कृ और आ मक उ े य है-प त-प नी क अ तरा मा म
आ या मकता, मानव- ेम और परोपकार तथा उदा भावना का वकास। यथाथ म
काम-सेवन का वा त वक सुख तीन भाव पर नभर है-(1) स भोग, स तानो प ,
जनने य तथा काम-स ब धी सम या के त आदशा मक भाव। (2) मनु य जा त
का उ रदा य व। (3) सहचर या सहचरी के लए ा, उ च भाव और उसके हत क
कामना। दा प य आन द क ा त के लए दा प य ेम सबसे वांछनीय है। दा प य ेम
के बना ववाह वफल होता है। द प तय म पर पर कलह, स ब ध- व छे द, गु त
भचार, वे यावृ , नारी-अपहरण, अ ाकृ तक स ब ध इ या द अनेक प रणाम,
दा प य ेम के अभाव म दे खने म आते ह। प व दा प य ेम का सबसे अ धक सुखद
और जीवन द प रणाम तो यह होता है क प त और प नी एकप नी त और एकप त त
का पूरी तरह पालन करते ह। प त-प नी के इस धा मक और सामा जक नयम के
उ लंघन करने म उनक भचार- वृ अ धक उ रदा यनी होती है। जन द प तय
का जीवन काम- से पूणतया सुखी है और वे पर पर स तु ह तो वे अपने जीवन म
एकप नी त या एकप त त को भंग करने क क पना नह कर सकते।
स भोग के लए काम- व ान वे ा ने यही वधान कया है क स भोग सा ता हक,
मा सक, पा क कया जाए। प त या प नी रोगी अव था म है, तो वाभा वक प से
संयम का पालन करना चा हए। प नी के रजोदशन (मा सक धम) के समय तो प त को
उसके शरीर का काम-भाव से पश तक भी नह करना चा हए। प नी को भी इस समय
अ त संयम से सदाचार का पालन करना उ चत है। इस समय प नी क कामवासना अ त
ती होती है, इस लए मा सक धम के समय जहाँ तक हो सके, प त-प नी को पर पर
शारी रक पश और आ लगन से बचना चा हए। रज वला ी के साथ सहवास करने से
जनने य स ब धी भयंकर रोग हो जाने क पूरी स भावना रहती है। प नी के गभ-काल
के समय भी प त को संयम का पालन अ नवाय प से करना चा हए। गभाव था म मैथुन
करने से प नी के वा य को हा न ही नह प ँचती, युत ब तेरे अवसर पर उसे जीवन
से हाथ धोने पड़ते ह और भावी स त त का जीवन भी खतरे म रहता है।
स भोग म बाधाएँ
स ह।भोगये मबाधाएँ
कुछ बाधाएँ आ जाया करती ह, जो थोड़ी ब त यु से टाली जा सकती
कभी-कभी तो शु म उठ खड़ी होती ह और कभी-कभी कुछ दन
बाद पैदा हो जाती ह जससे स भोग- या न सफ नरान दमय हो जाती है, युत
कभी-कभी क कर भी हो जाती है। पर यादातर ऐसी ही याँ अ धक ह जो ार भ से
ही बाधा का शकार बनती ह। ायः ऐसी ी को जब तक थम सव न हो जाए,
समाग़म म कोई आन द ही नह आता। सव के बाद उसक बाधाएँ र हो जाती ह।
पर तु कुछ याँ थम सव के बाद भी उसी थ त म रहती ह। ऐसे मामले खास तौर
पर तब होते ह, जब कसी कार के दबाव के कारण ऐसे ी-पु ष म स ब ध होता है
जो पर पर ेम न करते ह । इन बाधा म य क मनोवृ धान है। थम समागम
म पु ष ने अ धक कड़ाई या उ डता का वहार य द कया तो भी ी पर इसका बुरा
भाव होता है। यो नमाग ब त छोटा हो और लग ब त बड़ा हो अथवा यो नमाग या
यो नमुख टे ढ़ा हो, तो भी स भोग म बाधाएँ आती ह। पीछे जो बाधाएँ हो जाती ह, वे
आक मा तक ह जैसे यो नमाग म सूजन या घाव का उ प हो जाना आ द या उसके
बगल म कोई रसौली या फोड़ा उ प हो जाना। यह सारे दोष लगभग साधारण श य-
या से र कए जा सकते ह, पर तु गु ते य क वषमता का टे ढ़ा अटक जाता
है। सव से थम कभी-कभी यो नमाग असहनशील होता है, अथात् पश को सह नह
सकता और उसके मुँह पर के गोल नायु के संकोचन के कारण दद पैदा होने क
शकायत बनी रहती है। ऐसी शकायत ायः मजबूत शरीर क य म रहती है। इन
य के म जात तु अ धक संवेदनशील होते ह और उन पर काबू न रखने के कारण
उनका अ य त संकोच हो जाने से ध के से दद हो जाता है। कुमा रय के थम समागम
के समय जब परदा फटता है तो वहाँ एक ज म हो जाता है। वह पूरी तौर पर पुर नह
पाता क फर स भोग करना पड़ता है, इससे ज म फर असहनशील हो जाता है और
ज़रा-सा पश भी उसके लए अस हो जाता है।
सव-काल के समय होने वाले ज म के बने रहने पर भी यही दशा होती है।
आतशक रोग का यो न म भाव हो या दाद, ए ज़मा या कोई रोग हो या भग दर का
रोग हो, तो भी स भोग ी के लए क कर हो जाता है। अ न छापूवक बला कार से
यो न-माग के नायु संकु चत हो जाने से यो न क सहनशीलता कम हो जाती है और
कामो पन नह होता। पु ष के त े ष-भाव रखने पर उसके छू ते ही ी के सम त
नायु सकुड़ जाते ह, इससे वह पश सहन नह कर सकती। इन कारण को य द र न
कया जाए तो ब याभाव पैदा होता है और पर पर ी-पु ष म े ष-भावना उ प
होती है। समागम म य द क हो और कोई कारण तीत न हो तो गम जल म कमर और
जाँघ डु बाकर बैठना अ छा है। पु ष क लगे य म भी ऐसे दोष होते ह जनसे स भोग
क कर हो जाता है। य द इ य टे ढ़ या उसम पदा ठ क तौर से उलटता न हो, तो
स भोग म बाधा आती है। चमड़ी कटवाई जा सकती है, और इ य भी सीधी क जा
सकती है, जसका योग हम अ य लखगे।
स भोग के बाद
स वाले
भोग क समा त के बाद का ण अ य त मह वपूण है। वीयपात होते ही शु होने
समय का भाव प त-प नी के गृह थ जीवन पर ब त पड़ता है। पर तु इस
बात को आमतौर पर लोग नह जानते। सहवास के बाद ही ी-पु ष क , खासकर
पु ष क उ ेजना न हो जाती है और दोन त काल अलग-अलग होकर उठ खडे़ होते
ह। उनके मन म ये भाव होते ह, मानो वे कोई कुकम कर चुके होते ह या कोई ग दा काम
कर चुके होते ह। उनके मन थकान और ला न से भरे होते ह। स भोग के बाद एक ऐसी
उदासी उनम पैदा हो जाती है जो कभी-कभी दे र तक चलती रहती है। कुछ दन बाद
इसका प रणाम यह होता है क प त-प नी का ेम-स ब ध ढ ला हो जाता है और दोन
म वह आकषण नह रहता जो उनम ार भ म होता है। इसका कारण यह है क ी-
पु ष दोन ही काम-वासना के अधीन होकर स भोग करते ह; उनम ेमावेश ब त कम
होता है। इसी से उ ेजना न होने पर पु ष क च पलट जाती है और उ ह कुछ घन
भी मालूम होने लगती है और वे समझते ह क वे कुछ लुटा बैठै ह। इस भावना से ी-
पु ष क ग भीर ेम-भावना म क ड़ा लग जाता है। ी के स मान म भी कमी आ जाती
है। आमतौर पर यह सुना जाता है क ववाह के बाद ी-पु ष म पर पर वह आकषण
और ेम-भावना नह रही जो शु म थी, अ यथा पु ष उस ी क उपे ा करके अ य
क ओर आक षत आ है या वे यागामी हो जाता है। गृह थ जीवन म थर ेम, ी-
पु ष क भीतरी एकता, पर पर हष क द त, ये चीज़ ह क जसे ा त हो जाती ह
उसका मानव जीवन ध य हो जाता है। और म यह कहना चाहता ँ क इस अनमोल
खजाने क चाबी स भोग के बाद का वहार है जसका शरीर, मन और आ मा से सीधा
स ब ध है। वा तव म स भोग के ार भ म जतनी तैया रयाँ आव यक ह और स भोग
का ार भ जतना मह वपूण है उतनी ही उसक समा त भी मह वपूण है। साधारण तौर
पर वीयपात होते ही पु ष समझ लेते ह क स भोग समा त हो चुका और वे झटपट
अलग हो जाते ह। उनक लगे याँ भी सकुड़कर छोट हो जाती ह। पर तु ऐसे प त
सरे दन सुबह चड़ चड़े, उदास ओर च तत हो जाते ह और उनम कसी को अपनी
ओर आक षत करने क यो यता नह रह जाती। वह सु त, ढ ला और नराश-सा प नी से
ेमपूवक कुछ कहे बना ही अपने काम पर चला जाता है।
उ चत यह है क स भोग के बाद ी-पु ष को एकाएक अलग न हो जाना चा हए।
पु ष को अपनी कोहनी और क धे का सहारा लेकर धीरे से त कए पर सर टे क दे ना
चा हए। ी-पु ष दोन को इस थ त म लेटना चा हए क उनके गाल पर पर छु ए रह
और वे खुली तौर पर साँस ले सक। छाती के नीचे प े आराम से ी के प के साथ लगे
रह। लग यो न म लगा रहे। यो न म वीय भरा रहे। य प लग सकुड़ जाएगा पर यो न
के ह ठ से वह पकड़ा आ-सा रहेगा, इसी हालत म दोन को एक न द लेनी चा हए।
इससे उनम एक गहरी एकता का अनुभव होगा और एक सू म आन द और श क
ा त होगी और अ नवचनीय शा त मलेगी। इस काल म दोन गु ते य म एक कार
क सू म अदला-बदली होगी, य क स भोगकाल म जो पु ष-वीय उसके साथ व वध
ग टय के ाव यो न म गरे ह और अभी तक वह भरे ए ह और जनका गुण ार
होता है, इनम ब त सी अमू य चीज़ होती ह, ज ह ी क यो न के चैत य त तु सोखते
ह। उसी कार पु ष लग के अ भाग क चैत यशील खाल जो इन ाव म डू बी रहती
है, इन ाव को सोख लेती है। इस कार ी-पु ष दोन ही को इन ाव के गु ते य
ारा सोखे जाने पर फायदा होता है। दोन म उ साह, उमंग और ेम का काश बढ़ता
तीत होता है, और चाहे जतनी अ धक आयु होने पर भी दोन म ेम और आकषण के
भाव थर बने रहते ह; चड़ चड़ापन, गु सा, और उदासी पु ष म नह पैदा होती। यह
एक ऐसा मह वपूण नयम है क इसका पालन कर लया जाए तो प त-प नी स ब ध
अ धक थायी और सुखी हो जाए। व ान ने भी अब यह सा बत कर दया क पु ष क
भाँ त, स भोग के बाद ी भी कुछ ऐसे मह वपूण ार खास-खास ग टय से ा रत
करती है, जो ार गुणवाले होते ह और ज ह पु ष क जनने य के आगे क झ ली
सोख लेती है; इससे पु ष के म त क पर ऐसा उ म असर पड़ता है क उस पर एक
गहरी शा त और स तोष तथा ी के त त मयता का भाव छा जाता है। मैथुन से ी-
पु ष दोन को जीवन-श मलती है। स पूण स भोग वही है, जसका ार भ, म य
और समा त तीन ही प रपूण ह, जनम उ ेजन या और शा तपूण वेग है।
इस ग भीर शारी रक एकता से ही गाह य का स चा व प उ प होता है और
इसी से सभी आ या मक सुख और भौ तक सुभीते उ प होते ह। स तान का पालन-
पोषण माता ही का नह , युत पता का भी काम है। जन माता- पता को पर पर
उ कट ेम के कारण यह व ास होता है क उसक स तान उनक त न ध एवं उ ह
क आ मा का अवतार है, उ ह स तान से माता- पता के मान सक और आ या मक
वकास म सहायता मलती है और इसी से गाह य वातावरण थायी हो जाता है। फर
कभी-कभी चाहे चर रोग या कारण से प त-प नी स भोग से वं चत हो जाएँ तो भी उनके
गाढ़े अनुराग म कमी नह आ सकती। हमने पीछे कहा है क ी पु ष म से येक को
येक क आव यकता है; यह आव यकता जोड़ीदार म क है। वह ऐसा होना चा हए
जो येक दन-पर- दन एक- सरे के अ त व म गहरा और गहरा ही घुसता चला जाए
और वे दो न कहलाकर एक जोड़ा बन जाए, जनके दो शरीर और एक आ मा हो।
दो आ मा का यह मलाप जस दे श म सावज नक प म होगा वह रा न य ढ़
होगा। य क भीतरी एकता का रा क अंतः संगठन श पर बड़ा भाव पड़ता
है। मानवीय ेम क यही खूबी है क वह आज म प त-प नी को एकता के सू म बाँधता
है। यौवन क उ ाम लहर पर प त-प नी क यह ेम-कथाएँ औप या सक माधुय क
एक-से-एक ब ढ़या मू तयाँ उ प करती ह—जीवन के ार भ म उ लास और कोमल
भावना को ज म दे ती है। वृ ाव था म गहरी शा त और आ या मक तृ त दे ती है।
हमारे कहने का मतलब यह है क ऊपर इस अ याय म जो शीषक दया है, वही
एकप नी त क कुँजी है, जसका समाज और स यता म ास होता चला जाता है।
व ान अब स भोग-स ब धी पार प रक तृ त म सहायता दे ने को तैयार और शरीर
शा इस स ब ध म ब त कुछ कर सकने क ओर संकेत करता है। इसका बड़ा भारी
मू य है और मनु य को उससे वं चत न रहना चा हए। उ ह जान लेना चा हए क स भोग
सामा जक और शारी रक से भी उतना ही आव यक है जतना स तानो प के लए
ही करना चा हए।
डा. थाटन, जो अमे रका के एक काफ अनुभवी डा टर रहे ह और ज ह ने
ववा हत द प तय का काफ अनुभव ा त कया है, कहते ह क सगभाव था म
सहवास करने से बालक के अंग वकृत होने का पूरा भय है, साथ ही उनक जनने य
को भी हा न प ँचने का अ दे शा है। वह कहता है क अमया दत सहवास के कारण ी
के ानत तु नबल हो जाते ह, शरीर रोग का घर हो जाता है, वभाव चड़ चड़ा हो जाता
है और फर वह बालक क स हाल नह कर सकती। अगर वह प रवार गरीब वग का
आ तो उनक पूरी स हाल, पोषण और सेवा अस भव हो जाती है और बालक को कई
रोग हो जाते ह तथा बड़े होने पर वे कुकृ य का शकार हो जाते ह। उ चवग पु ष
स तान-सीमाब ध के लए कृ त उपाय को काम म लाते ह। और उससे उ ह रोगी,
अनी तवान् और क भोगी होना पड़ता है। अ तशय स भोग के कारण पु ष जजर हो
जाता है और पचास वष क आयु होने तक उसम सब सांसा रक काम करने क श का
य हो जाता है। ी-पु ष दोन ही म अ त र सहवास से पर पर वर आ जाती है।
गभाव था म स भोग से य द गभ का ार भ है तो गभ यु त का भय है और य द गभ
प रप व है तो गभ थ शशु को उ माद रोग तक क उ प हो सकती है। इन कारण से
उ डा टर का कहना है क पु ष को उ चत है क ी क इ छा के बना सहवास न
करना चा हए और एक ब तर पर ी-पु ष को सोना भी न चा हए।
इ ह डा टर को एक बार एक ी ने प लखा था और उसका उ र डा टर ने उसे
दया था। उन दोन प का सार मह वपूण होने के कारण हम यहाँ पर दे ते ह—
“आपने लखा है क अ तशय वषय-कामना ही हमारे रोग का मूल कारण है। पर तु
महापु ष म भी बल वषय-कामना होती है। क तु इसक वा त वक आव यकता
कतनी है और क पत कतनी तथा सफ आदत पड़ जाने पर कतनी और बढ़ जाती है,
इस पर वचार करने क ज़ रत है। े ल का शकार करने के लए तीन वष तक के लए
समु म जाने वाले म लाह के शरीर पर जो एक ल बे अस तक ी से जुदा रहते ह,
इसका या असर पड़ता है—यह जानने यो य बात है। आप गभाधान को कृ म री तय
से रोकने को पस द नह करते। पर गभपात या अ ववा हत क स तानो प क अपे ा
ये साधन सुगम और कम हा नकारक ह। आप संयम पर ज़ोर दे ते ह, पर सावज नक
संयम या श य है? सश और उ म वा य वाले पु ष या द घकाल तक संय मत
रह सकते ह…?”
प ो र म डा टर ने लखा है—“भोजन के बाद सामा य दो बात चाहता है
—(1) सहवास-सुख और (2) पु षाथ अथात् उ ोग। दोन का पर पर भाव है। अगर
पु ष पूणायु ा त होने से थम ही अ धक सहवास म फँस जाए तो उसम से पु षाथ क
भावना न हो जाएगी, अथवा प रप वायु म ववाह के बाद य द सहवास कया जाएगा
तो पु षाथ क श म द पड़ जाएगी। त त और वीयव त लोग से सहवास-सुख
भोगने क इ छा पूण होती है, पर तु य द वे कसी पु षाथ म जुट जाएं और पु षाथ—
कामना उनम बल हो जाए तो सहवास क कामना कम हो जाएगी। इसके बाद वह
पु ष कसी येय क ा त म अपनी सम श तथा लगन लगा दे तो सहवास क
वासना चरकाल तक के लए म द पड़ जाएगी। अब अगर वह पु ष स ह थ बन जाए
और यथावसर प त-प नी कामवासना से पी ड़त हो सहवास-सुख भोग और उससे गभ
रहकर स तान- ा त हो जाए तो फर प त-प नी दोन के सर पर स तान के लालन-
पालन क च ता और काय म का भार आ पड़ता है तथा और भी स तान होने लगती
है। इससे दोन क ही सहवास इ छा म द पड़ जाती है। ऐसी अव था म दोन को खूब
शारी रक प र म करना चा हए और ी-पु ष को एक बछौने पर न सोना चा हए। े ल
मछली के शकार पर भी द घकाल तक समु म जाने वाले मा झय को कड़ी मेहनत
करनी पड़ती है। इनसे उनम कामवासना जा त होने के ब त कम अवसर ह। पर तु
लौटने पर वे शू य म त क हो जाएँ तो संयम नह रख सकते और वे च ड वेग से
कामवासना म लग जाते ह। कृ म साधन का वपरीत असर शरीर और नी त दोन पर
ही पड़ता है। कृ म साधन से गभ होना रोक दया जाता है, फर ी-पु ष का मु
सहवास होता है, पु ष ी से स तु हो जाता है और उसक वासना म द पड़ जाती है।
पर ी इस भय से क वह सरी य क ओर आक षत न हो उसे अपना गुलाम बनाये
रखने के लए उसे कृ म ी त से उ े जत करती है और दे र तक गभाधान का वरोध
करते रहने से उनक वषये छा बल हो जाती है और शी ही पु ष नव य हो जाता है।
इस नव यता को रोकने के लए वह अनेक हा या पद उ ोग करता है और अ त म प त-
प नी म तर कार के भाव उ प हो जाते ह। इसके सवा य के कोमल म जा
त तु पर उसका बुरा असर तो पड़ता ही है, ायः ी का जीवन भी फ का हो जाता
है।” अ त म डा टर यह सार दे ता है क ी-पु ष को अ त सहवास के प रणाम से
बचने के लए कृ म संतान-सीमारोध के उपाय ारा नह , युत सहवासे छा से
पु षाथ छा म बदलने से सफलता मलेगी और वह सवथा हा न-र हत होगी।
संयम और स भोग