Professional Documents
Culture Documents
2
आगे बढ़ो,
सय
ू दय का हुआ है !
घट
ु ने जमा कर, सीना अड़ा कर
उसके रथ को क चड़ से उबारो!
य क हम सब
सरू ज के अंश ह।
- एंजेलो सके लय
3
लोक - वय
का तक और गोपेश को
अ मत नेह से
4
भू मका
( थम सं करण से)
5
बहुमख
ु ी याशीलता, ाचय
ु , चरजा त चर- नमाणशील क पना, सतत
िज ासा और पयवे ण, दे श-काल या यग
ु -स य के त सतकता,
परं परा ान, मौ लकता, आ म व वास और-हाँ, - एक गहर वनय। भारती
म ये सभी व यमान ह; अनप
ु ात इनका जी नयस म भी समान नह ं होता।
और भारती म एक चीज और भी है जो तभा के साथ ज र तौर पर नह ं
आती - हा य।
सबसे पहल बात है उसका गठन। बहुत सीधी, बहुत साद , परु ाने ढं ग क -
बहुत परु ाने, जैसा आप बचपन से जानते ह - अलफलैला वाला ढं ग, पंचतं
वाला ढं ग, बोकैि छयो वाला ढं ग, िजसम रोज क सागोई क मज लस
जट
ु ती है , फर कहानी म से कहानी नकलती है । ऊपर तौर पर दे खए तो
यह ढं ग उस जमाने का है जब सब काम फुरसत और इ मीनान से होते थे;
और कहानी भी आराम से और मजे ले कर कह जाती थी। पर या भारती
को वैसी कहानी वैसे कहना अभी ट है ? नह ,ं यह सीधापन और परु ानापन
इसी लए है क आपम भारती क बात के त एक खल
ु ापन पैदा हो जाए;
बात वह फुरसत का व त काटने या दल बहलाने वाल नह ं है , दय को
6
कचोटने, बु ध को झँझोड़ कर रख दे नेवाल है । मौ लकता अभत
ू पव
ू , पण
ू
ंख
ृ ला- वह न नएपन म नह ,ं परु ाने म नई जान डालने म भी है (और कभी
परु ानी जान को नई काया दे ने म भी); और भारती ने इस ऊपर से परु ाने जान
पड़नेवाले ढं ग का भी बलकुल नया और हंद म अनठ
ू ा उपयोग कया है ।
और वह केवल योग-कौतक
ु के लए नह ,ं बि क इस लए क वह जो कहना
चाहते ह उसके लए यह उपयु त ढं ग है ।
वह च सद
ंु र, ी तकर या सख
ु द नह ं है ; य क उस समाज का जीवन
वैसा नह ं है और भारती ने च को यथाश य स चा उतारना चाहा है । पर
वह असद
ंु र या अ ी त कर भी नह ,ं य क वह मत
ृ नह ं है , न म ृ यप
ु ज
ू कह
7
है । उसम दो चीज ह जो उसे इस खतरे से उबारती ह - और इनम से एक भी
काफ होती है : एक तो उसका हा य, भले ह वह व और कभी कु टल या
व प
ू भी हो; दस
ू रे एक अद य और न ठामयी आशा। वा तव म जीवन के
त यह अ डग आ था ह सरू ज का सातवाँ घोड़ा है , 'जो हमार पलक म
भ व य के सपने और वतमान के नवीन आकलन भेजता है ता क हम वह
रा ता बना सक िजस पर हो कर भ व य का घोड़ा आएगा।' इस व तु का
इतना सद
ंु र नवाह, उसके गंभीरतर ता पय का इस साहसपण
ू और
ईमानदार ढं ग से वीकार, और उस वीकृ त म भी उससे न हार कर उठने
का न चय - ये सब 'सरू ज का सातवाँ घोड़ा' को एक मह वपण
ू कृ त बनाते
ह।
'पर कोई-न-कोई चीज ऐसी है िजसने हमेशा अँधेरे को चीर कर आगे बढ़ने,
समाज- यव था को बदलने और मानवता के सहज मू य को पन
ु : था पत
करने क ताकत और ेरणा द है । चाहे उसे आ मा कह लो, चाहे कुछ और।
और व वास,साहस, स य के त न ठा, उस काशवाह आ मा को उसी
तरह आगे ले चलते ह जैसे सात घोड़े सय
ू को आगे बढ़ा ले चलते ह।' ये
पु तक के कथा-नायक और मख
ु पा मा णक मु ला के श द ह। कसी
उि त के न म से एक पा के साथ लेखक को संपण
ू प से एका म करने
क च लत मख
ू ता म नह ं क ँ गा, पर इस उि त म बोलने वाला वह
व वास वयं भारती का भी व वास है , ऐसा मझ
ु े लगता है ; और वह
व वास हम सबम अटूट रहे , ऐसी मेर कामना है ।
8
9
नवेदन
'गन
ु ाह का दे वता' के बाद यह मेर दस
ू र कथा-कृ त है । दोन कृ तय म
काल- म का अंतर पड़ने के अलावा उन बंदओ
ु ं म भी अंतर आ गया है िजन
पर हो कर मने सम या का व लेषण कया है ।
10
हँसा जा सकता है । फर उसक क मय क ओर इशारा करने पर वे खीज
उठते ह, वह और भी हा यापद और दयनीय है ।
इसके बावजद
ू मेर आ था कभी भी मा सवाद म कम नह ं हुई और न मने
अपनी जनता के द:ु ख-दद से मँह
ु फेरा है । धीरे -धीरे अपने ि टकोण म
अ धका धक सामािजकता वक सत करने क ओर म ईमानदार से उ मख
ु
रहा हूँ और रहूँगा। और उसी ि ट से जहाँ मझ
ु े मा सवाद श दजाल के पीछे
भी असंतोष, अहं वाद और गट
ु बंद द ख पड़ी है उसक ओर साहस से प ट
नदश करना म अ नवाय समझता हूँ य क ये त व हमारे जीवन और
हमार सं कृ त क व थ ग त म खतरे पैदा करते ह। म जानता हूँ क जो
मा सवाद अपने यि त व म सामािजक तथा मा सवाद क पहल शत
ऑ जेि ट वट वक सत कर चक
ु े ह, वे मेर बात समझगे और इतना मेरे
संतोष के लए यथे ट है ।
11
कर सीखता चल रहा हूँ और सीख-सीख कर लखता चल रहा हूँ। जो कुछ
लखता हूँ उसम सामािजक उ दे य अव य है पर वह वांत:सख
ु ाय भी है ।
यह अव य है क मेरे ' व' म आप सभी सि म लत ह, आप सभी का
सख
ु -द:ु ख, वेदना-उ लास मेरा अपना है : वा तव म वह कोई बहुत बड़ी
कहानी है जो हम सब के मा यम से य त हो रह है । केवल उसी का एक
अंश मेर कलम से उतर आया है । इसी लए इसम जो कुछ ेय कर है वह
आप सभी का ह है ; जो कुछ कमजो रयाँ ह कृ त म, वह मेर अपनी समझी
जाएँ।
23 फरवर , 1952
12
उपो घात
एक जमाना था जब वे हमारे मह
ु ले के मशहूर यि त थे। वह ं पैदा हुए, बड़े
हुए, वह ं शोहरत पाई और वह ं से लापता हो गए। हमारा मह
ु ला काफ बड़ा
है , कई ह स म बँटा हुआ है और वे उस ह से के नवासी थे जो सबसे
यादा रं गीन और रह यमय है और िजसक नई और परु ानी पीढ़ दोन के
बारे म अजब-अजब-सी कंवदं तयाँ मशहूर ह।
13
और भाभी का तबादला हो गया था और वे परू े घर म अकेले रहते थे। इतनी
सां कृ तक वाधीनता तथा इतनी क यु न म एक साथ उनके घर म थी
क य य प हम लोग उनके घर से बहुत दरू रहते थे, ले कन वह ं सबका
अ डा जमा करता था। हम सब उ ह गु वत मानते थे और उनका भी हम
सब पर न छल गाढ़ नेह था। वे नौकर करते ह या पढ़ते ह, नौकर
करते ह तो कहाँ, पढ़ते ह तो या पढ़ते ह - यह भी हम लोग कभी नह ं जान
पाए। उनके कमरे म कताब का नाम- नशान भी नह ं था। हाँ, कुछ
अजब-अजब चीज वहाँ थीं जो अमम
ू न दस
ू रे लोग के कमर म नह ं पाई
जातीं। मसलन द वार पर एक परु ाने काले े म म एक फोटो जड़ा टँ गा था :
'खाओ, बदन बनाओ!' एक ताख म एक काल बट का बड़ा-सा सद
ंु र चाकू
रखा था, एक कोने म एक घोड़े क परु ानी नाल पड़ी थी और इसी तरह क
कतनी ह अजीबोगर ब चीज वहाँ थीं िजनका औ च य हम लोग कभी नह ं
समझ पाते थे। इनके साथ ह साथ हम यादा दलच पी िजस बात म थी,
वह यह क जाड़ म मँग
ू फ लयाँ और गर मय म खरबज
ू े वहाँ हमेशा मौजद
ू
रहते थे और उसका वाभा वक प रणाम यह था क हम लोग भी हमेशा वहाँ
मौजद
ू रहते थे।
अगर काफ फुरसत हो, परू ा घर अपने अ धकार म हो, चार म बैठे ह , तो
नि चत है क घम
ू - फर कर वाता राजनी त पर आ टकेगी और जब
राजनी त म दलच पी ख म होने लगेगी तो गो ठ क वाता ' ेम' पर आ
टकेगी। कम-से-कम म यवग म तो इन दो वषय के अलावा तीसरा वषय
नह ं होता। मा णक मु ला का दखल िजतना राजनी त म था उतना ह ेम
म था, ले कन जहाँ तक सा हि यक वाता का न था वे ेम को तरजीह
दया करते थे।
14
ेम के वषय म बात करते समय वे कभी-कभी कहावत को अजब पम
पेश कया करते थे और उनम से न जाने य एक कहावत अभी तक मेरे
दमाग म च पाँ है , हालाँ क उसका सह मतलब न म तब समझा था न अब!
अ सर ेम के वषय म अपने कड़वे-मीठे अनभ
ु व से हम लोग का
ानवधन करने के बाद खरबज
ू ा काटते हुए कहते थे, ' यारे बंधओ
ु ! कहावत
म चाहे जो कुछ हो, ेम म खरबज
ू ा चाहे चाकू पर गरे चाहे चाकू खरबज
ू े पर,
नक
ु सान हमेशा चाकू का होता है । अत: िजसका यि त व चाकू क तरह
तेज और पैना हो, उसे हर हालत म उस उलझन से बचना चा हए।' ऐसी
अ य कहावत थीं जो याद आने पर बाद म लखग
ूँ ा।
जब हम लोग पछ
ू ते थे क यह कैसे संभव है क कहा नयाँ ेम पर लखी
जाएँ पर उनका भाव क याणकार हो, तब वे कहते थे क यह तो चम कार
है तु हारे मा णक मु ला म जो अ य कसी कहानीकार म है ह नह ।ं
15
कहा नय क टे कनीक के बारे म उनका सबसे पहला स धांत था क
आधु नक कहानी म आ द, म य या अंत, तीन म से कोई-न-कोई त व
अव य छूट जाता है । ऐसा नह ं होना चा हए। उनका कहना था क कहानी
वह पण
ू है िजसम आ द म आ द हो, म य म म य हो और अंत म अंत हो।
इनक या या वे य करते थे : कहानी का आ द वह है िजसके पहले कुछ न
हो। बाद म म य हो, म य वह है िजसके पहले आ द हो बाद म अंत हो। अंत
उसे कहते ह िजसके पहले म य हो बाद म र द क टोकर हो।
16
स ध हो गए ह क उनक कहानी म कथानक चाहे लँ गड़ाता हो, पा चाहे
पल पले ह , ले कन सामािजक तथा राजनी तक न कष अ भत
ु होते ह।
मेर दस
ू र शंका कथाव तु क ेम संबध
ं ी अ नवायता के वषय म थी। म
अ सर सोचता था क िजंदगी म अ धक-से-अ धक दस बरस ऐसे होते ह
जब हम ेम करते ह। उन दस बरस म खाना-पीना, आ थक संघष,
सामािजक जीवन, पढ़ाई- लखाई, घम
ू ना- फरना, सनेमा और सा ता हक
प , म -गो ठ इन सब से िजतना समय बचता है , उतने म हम ेम करते
ह। फर इतना मह व उसे य दया जाए? सैर-सपाटा, खोज, शकार,
यायाम, मोटर चलाना, रोजी-रोजगार, ताँगेवाले, इ केवाले और प के
संपादक, सैकड़ वषय ह िजन पर कहा नयाँ लखी जा सकती ह, फर
आ खर ेम पर ह य लखी जाएँ?
जब मने मा णक मु ला से यह पछ
ू ा तो सहसा वे भावक
ु हो गए और बोले,
'तु ह बां ला आती है ?' मने कहा, 'नह ं, य ?' तो गहर साँस ले कर बोले,
'टै गोर का नाम तो सन
ु ा ह होगा! उ ह ने लखा है , 'आमार माझारे जो आछे
से गो कोनो वर हणी नार !' अथात मेरे मन के अंदर जो बसा है वह कोई
वर हणी नार है । और वह वर हणी नार अपनी कथा कहा करती है -
बार-बार तरह-तरह से।' और फर अपने मत क या या करते हुए बोले क
वर हणी ना रयाँ भी कई भाँ त क होती ह - अनढ़
ू ा वर हणी, ऊढ़ा
वर हणी, मु धा वर हणी, ौढ़ा वर हणी आ द -आ द, तथा वरह भी कई
कार के होते ह - बा य-प रि थ तज य, आंत रक-मन:ि थ तज य
इ या द। इन सब पर कहा नयाँ लखी जा सकती ह; और मा णक मु ला का
17
चम कार यह था क जैसे बाजीगर मँह
ु से आम नकाल दे ता है वैसे ह वे इन
कहा नय से सामािजक क याण के न कष नकाल दे ने म समथ थे।
हाँ, आप मझ
ु े इसके लए मा करगे क इनक शैल म बोलचाल के लहजे
क धानता है और मेर आदत के मत
ु ा बक उनक भाषा मानी,
च ा मक, इं धनष
ु और फूल से सजी हुई नह ं है । इसका मु य कारण यह
है क ये कहा नयाँ मा णक मु ला क ह, म तो केवल तत
ु कता हूँ, अत:
जैसे उनसे सन
ु ी थीं उ ह यथासंभव वैसे ह तत
ु करने का यास कर रहा
हूँ।
18
पहल दोपहर
(नमक क अदायगी)
अथात जमन
ु ा का नमक मा णक ने कैसे अदा कया
नयमानस
ु ार पहले उ ह ने कहानी का शीषक बताया : 'नमक क अदायगी'।
इस शीषक पर उप यास-स ाट ेमचंद के 'नमक का दारोगा' का काफ
भाव मालम
ू पड़ता था पर कथाव तु सवथा मौ लक थी। कहानी इस कार
थी -
19
मा णक मु ला के घर के बगल म एक परु ानी कोठ थी िजसके पीछे छोटा
अहाता था। अहाते म एक गाय रहती थी, कोठ म एक लड़क । लड़क का
नाम जमन
ु ा था, गाय का नाम मालम
ू नह ।ं गाय बढ़
ू थी, रं ग लाल था, सींग
नक
ु ले थे। लड़क क उ पं ह साल क थी, रं ग गेहुँआ था (ब ढ़या पंजाबी
गेहूँ) और वभाव मीठा, हँसमख
ु और म त। मा णक, िजनक उ सफ
दस बरस क थी, उसे जमु नयाँ कह कर भागा करते थे और वह बड़ी होने के
नाते जब कभी मा णक को पकड़ पाती थी तो इनके दोन कान उमेठती और
मौके-बेमौके चट
ु क काट कर इनका सारा बदन लाल कर दे ती। मा णक
मु ला न तार क कोई राह न पा कर चीखते थे, माफ माँगते थे और भाग
जाते थे।
ले कन जमन
ु ा के दो काम मा णक मु ला के सपद
ु थे। इलाहाबाद से
नकलनेवाल िजतनी स ते क म क ेम-कहा नय क प काएँ होती थीं
वे जमन
ु ा उ ह ं से मँगवाती थी और शहर के कसी भी सनेमाघर म अगर
नई तसवीर आई तो उसक गाने क कताब भी मा णक को खर द लानी
पड़ती थी। इस तरह जमन
ु ा का घरे लू पु तकालय दन दन बढ़ता जा रहा
था।
20
त ना और जमन
ु ा म बहुत पटती थी, त ना जमन
ु ा क बरादर का भी था,
हालाँ क कुछ नीचे गोत का था और सबसे बड़ी बात यह थी क महे सर दलाल
से सारा मह
ु ला डरता था। महे सर बहुत ह झगड़ाल,ू घमंडी और लंपट था,
त ना उतना ह सीधा, वन और स च र ; और सारा मह
ु ला उसक
तार फ करता था।
और बेचार जमन
ु ा त ना से बातचीत टूट जाने के बाद खब
ू रोई, खब
ू रोई।
फर आँसू प छे , फर सनेमा के नए गीत याद कए। और इस तरह से
होते-होते एक दन बीस क उ को भी पार कर गई। और मा णक का यह
हाल क य - य जमन
ु ा बढ़ती जाए य - य वह इधर-उधर दब
ु ल -मोट
होती जाए और ऐसी क मा णक को भल भी लगे और बरु भी। ले कन एक
उसक बरु आदत पड़ गई थी क चाहे मा णक मु ला उसे चढ़ाएँ या न
चढ़ाएँ वह उ ह कोने-अतरे म पाते ह इस तरह दबोचती थी क मा णक
मु ला का दम घट
ु ने लगता था और इसी लए मा णक मु ला उसक छाँह से
कतराते थे।
21
ले कन क मत क मार दे खए क उसी समय मह
ु ले म धम क लहर चल
पड़ी और तमाम औरत िजनक लड़ कयाँ अन याह रह गई थीं, िजनके प त
हाथ से बेहाथ हुए जा रहे थे, िजनके लड़के लड़ाई म चले गए थे, िजनके दे वर
बक गए थे, िजन पर कज हो गया था; सभी ने भगवान क शरण ल और
क तन शु हो गए और कं ठयाँ ल जाने लगीं। मा णक क भाभी ने भी
हनम
ु ान-चौतरावाले मचार से कंठ ल और नयम से दोन व त भोग
लगाने लगीं। और सब
ु ह-शाम पहल ट क गऊ माता के नाम सकने लगीं।
घर म गऊ थी नह ं अत: कोठ क बढ़
ू गाय को वह ट क दोन व त
खलाई जाती थी। दोपहर को तो मा णक कूल चले जाते थे, दन का व त
रहता था अत: भाभी खद
ु चादर ओढ़ कर गाय को रोट खला आती थीं पर
रात को मा णक मु ला को ह जाना पड़ता था।
22
रहना चा हए और उसे पीठ नह ं दखलानी चा हए वरना उसी समय आदमी
का ाणांत हो जाता है ।
ले कन जमन
ु ा ने कान नह ं उमेठे। कहा, 'चलो आओ।' मा णक मु ला बेबस
थे। चप
ु चाप चले गए और बैठ गए। अब मा णक भी चप
ु और जमन
ु ा भी
चप
ु । मा णक जमन
ु ा को दे ख, जमन
ु ा मा णक को दे खे और गाय उन दोन
को दे खे। थोड़ी दे र बाद मा णक ने घबरा कर कहा, 'हम जाने दो जमन
ु ा!'
जमन
ु ा ने कहा, 'बैठो, बात करो मा णक। बड़ा मन घबराता है ।'
23
'अभी कौन रात बीत गई है । बैठो!' कान पकड़ कर जमन
ु ा बोल । मा णक ने
घबरा कर कहा, 'नींद नह ं लग रह है , भख
ू लग रह है ।'
'भख
ू लग रह है ! अ छा, जाना मत! म अभी आई।' कह जमन
ु ा फौरन
पछवाड़े के सहन म से हो कर अंदर चल गई। मा णक क समझ म नह ं
आया क आज जमन
ु ा एकाएक इतनी दयावान य हो रह है , क इतने म
जमन
ु ा लौट आई और आँचल के नीचे से दो-चार पए
ु नकालते हुए बोल , 'लो
खाओ। आज तो माँ भागवत क कथा सन
ु ने गई ह।' और जमन
ु ा उसी तरह
मा णक को अपनी तरफ खींच कर पए
ु खलाने लगी।
एक ह पआ
ु खाने के बाद मा णक मु ला उठने लगे तो जमन
ु ा बोल , 'और
खाओ।' तो मा णक मु ला ने उसे बताया क उ ह मीठे पए
ु अ छे नह ं
लगते, उ ह बेसन के नमक न पए
ु अ छे लगते ह।
दस
ू रे दन मा णक मु ला ने चलने क को शश क , य क उ ह जाने म डर
भी लगता था और वे जाना भी चाहते थे। और न जाने कौन-सी चीज थी जो
अंदर-ह -अंदर उनसे कहती थी, 'मा णक! यह बहुत बरु बात है । जमन
ु ा
अ छ लड़क नह !ं ' और उनके ह अंदर कोई दस
ू र चीज थी जो कहती थी,
24
'चलो मा णक! तु हारा या बगड़ता है । चलो दे ख तो या है ?' और इन
दोन से बड़ी चीज थी नमक न बेसन का पआ
ु िजसके लए नासमझ मा णक
मु ला अपना लोक-परलोक दोन बगाड़ने के लए तैयार थे।
उस दन मा णक मु ला गए तो जमन
ु ा ने धानी रं ग क वाइल क साड़ी
पहनी थी, अरगंडी क पतल लाउज पहनी थी, दो चो टयाँ क थीं, माथे पर
चमकती हुई बंद लगाई थी। मा णक अकसर दे खते थे क जब लड़ कयाँ
कूल जाती थीं तो ऐसे सज-धज कर जाती थीं, घर म तो मैल धोती पहन
कर फश पर बैठ कर बात कया करती थीं, इस लए उ ह बड़ा ता जब
ु हुआ।
बोले, 'जमन
ु ा, या अभी कूल से लौट रह हो?'
' कूल? कूल जाना तो माँ ने चार साल से छुड़ा दया। घर म बैठ -बैठ या
तो कहा नयाँ पढ़ती हूँ या फर सोती हूँ।' मा णक मु ला क समझ म नह ं
आया क जब दन-भर सोना ह है तो इस सज-धज क या ज रत है ।
मा णक मु ला आ चय से मँह
ु खोले दे खते रहे क जमन
ु ा बोल , 'आँख
फाड़-फाड़ कर या दे ख रहे हो! असल जरमनी क अरगंडी है । चाचा कलक े
से लाये थे, याह के लए रखी थी। ये दे खो छोटे -छोटे फूल भी बने ह।'
मा णक मु ला जब गाय को ट क खला चक
ु े तो जमन
ु ा ने बेसन के
नमक न पए
ु नकाले। मगर कहा, 'पहले बैठ जाओ तब खलाएँगे।' मा णक
चप
ु चाप चलने लगे। जमन
ु ा ने छोट -सी बैटर जला द पर मा णक मारे डर
25
के काँप रहे थे। उ ह हर ण यह लगता था क भस
ू े म से अब साँप नकला,
अब ब छू नकला, अब काँतर नकल । ँ धते गले से बोले, 'हम खाएँगे
नह ।ं हम जाने दो।'
जमन
ु ा बोल , 'कैथे क चटनी भी है ।' अब मा णक मु ला मजबरू हो गए।
कैथा उ ह वशेष य था। अंत म साँप- ब छू के भय का नरोध करके
कसी तरह वे बैठ गए। फर वह आलम क जमन
ु ा को मा णक चप
ु चाप दे ख
और मा णक को जमन
ु ा और गाय इन दोन को। जमन
ु ा बोल , 'कुछ बात
करो, मा णक।' जमन
ु ा चाहती थी मा णक कुछ उसके कपड़े के बारे म बात
करे , पर जब मा णक नह ं समझे तो वह खद
ु बोल , 'मा णक, यह कपड़ा
अ छा है ?' 'बहुत अ छा है जमन
ु ा!' मा णक बोले। 'पर दे खो, त ना है न,
वह अपना त ना। उसी के साथ जब बातचीत चल रह थी तभी चाचा
कलक े से ये सब कपड़े लाए थे। पाँच सौ पए के कपड़े थे। पंचम ब नया से
एक सेट गरवी रख के कपड़े लाये थे, फर बात टूट गई। अभी तो म उसी के
यहाँ गई थी। अकेले मन घबराता है । ले कन अब तो त ना बात भी नह ं
करता। इसी लए कपड़े भी बदले थे।'
26
ने वर बदल दया और बोल , 'ले कन फर त ना ने मझ
ु े आसा म य
रखा? मा णक, अब न मझ
ु े खाना अ छा लगता है न पीना। कूल जाना छूट
गया। दन-भर रोते-रोते बीतता है । हाँ, मा णक।' और उसके बाद वह
चप
ु चाप बैठ गई। मा णक बोले, 'त ना बहुत डरपोक था। उसने बड़ी गलती
क !' तो जमन
ु ा बोल , 'द ु नया म यह होता आया है !' और उदाहरण व प
उसने कई कहा नयाँ सन
ु ा जो उसने पढ़ थीं या च पट पर दे खी थीं।
मा णक उठे तो जमन
ु ा ने पछ
ू ा क 'रोज आओगे न!' मा णक ने आना-कानी
क तो जमन
ु ा बोल , 'दे खो मा णक, तम
ु ने नमक खाया है और नमक खा कर
जो अदा नह ं करता उस पर बहुत पाप पड़ता है य क ऊपर भगवान दे खता
है और सब बह म दज करता है ।' मा णक ववश हो गए और उ ह रोज
जाना पड़ा और जमन
ु ा उ ह बठा कर रोज त ना क बात करती रह ।
27
'अजब बात हुई। असल म इन लोग को समझना बड़ा मिु कल है । जमन
ु ा
चप
ु चाप मेर ओर दे खती रह और फर रोने लगी। बोल , 'म बहुत खराब
लड़क हूँ। मेरा मन घबराता था इसी लए तम
ु से बात करने आती हूँ, पर म
तु हारा नक
ु सान नह ं चाहती। अब म नह ं आया क ँ गी।' ले कन दस
ू रे दन
जब म गया तो दे खा, फर जमन
ु ा मौजद
ू है ।'
28
फर भी काश ने पछ
ू ा, 'ले कन इससे यह कहाँ सा बत हुआ क ेम-भावना
क नींव आ थक संबध
ं पर है और वग-संघष उसे भा वत करता है ।'
29
अन याय
30
याम क बात सन
ु कर हम लोग का जी भर आया और धीरे -धीरे हम लोग
सो गए।
31
दस
ू र दोपहर
घोड़े क नाल
(अथात कस कार घोड़े क नाल सौभा य का ल ण स ध हुई?)
दस
ू रे दन खा-पी कर हम लोग फर उस बैठक म एक हुए और हम लोग
के साथ याम भी आया। जब हम लोग ने मा णक मु ला को बताया क
याम जमन
ु ा क कहानी को सन
ु कर रोने लगा था तो याम झप कर बोला,
'म कहाँ रो रहा था?' मा णक मु ला हँसे और बोले क 'हमार िजंदगी म
जरा-सी पत उखाड़ कर दे खो तो हर तरफ इतनी गंदगी और क चड़ छपा
हुआ है क सचमच
ु उस पर रोना आता है । ले कन यारे बंधओ
ु , म तो इतना
रो चक
ु ा हूँ क अब आँख म आँसू आता ह नह ,ं अत: लाचार हो कर हँसना
पड़ता है । एक बात और है - जो लोग भावक
ु होते ह और सफ रोते ह, वे
रो-धो कर रह जाते ह, पर जो लोग हँसना सीख लेते ह वे कभी-कभी
हँसते-हँसते उस िजंदगी को बदल भी डालते ह।'
फर खरबज
ू ा काटते हुए बोले, 'हटाओ जी इन बात को। लो आज जौनपरु
खरबज
ू े ह। इनक महक तो दे खो। गल
ु ाब मात है । या है याम? य मँह
ु
लटकाए बैठे हो? अजी मँह
ु लटकाने से या होता है ! म अभी तु ह बताऊँगा
क जमन
ु ा का ववाह कैसे हुआ?'
हम लोग तो यह सन
ु ना ह चाहते थे अत: एक वर म बोल उठे , 'हाँ-हाँ, आज
जमन
ु ा के ववाह क कहानी रहे ।' पर मा णक मु ला बोले, 'नह ं, पहले
खरबज
ू े के छलके बाहर फक आओ।' जब हम लोग ने कमरा साफ कर दया
32
तो मा णक मु ला ने सबको आराम से बैठ जाने का आदे श दया, ताख पर
से घोड़े क परु ानी नाल उठा लाए और उसे हाथ म ले कर ऊपर उठा कर बोले,
'यह या है ?'
जब बहुत दन तक जमन
ु ा क शाद नह ं तय हो पाई और नराश हो कर
उसक माँ पज
ू ा-पाठ करने लगीं और पता बक म ओवरटाइम करने लगे तो
एक दन अक मात उनके घर दरू क एक र तेदार रामो बीबी आ और
उ ह ने बीज छ लते हुए कहा, 'हरे राम-राम! ब टया क बाढ़ तो दे खो। जैसन
नाम तैसन करनी। भाद क जमन
ु ा अस फाट पड़त है ।' और फर झक
ु कर
माँ के कान म धीमे से बोल ,ं 'ए कर बयाह-उआह कहूँ नाह ं तय कयो?' जब
माँ ने बताया क बरादर वाले दहे ज बहुत माँग रहे ह, कह ं जात-परजात म
दे दे ने से तो अ छा है क माँ-बेट गले से र सी बाँध कर कुएँ म गर पड़ तो
रामो बीबी फौरन तमक कर बोल ,ं 'ऐ हे ! कैसी कुभाखा िज या से नकालत
हो जमन
ु ा क अ मा! कहत कु छौ नाह ं लगत! और कुएँ म गर तु हारे
द ु मन, कुएँ म गर अड़ोस-पड़ोसवाले, कुएँ म गर त ना और महे सर
33
दलाल, दस
ू रे का सख
ु दे ख के िजनके हया फाटत ह।' बहरहाल हुआ यह क
रामो बीबी ने फौरन अपनी कुरती म से अपने भतीजे क कंु डल नकाल कर
द और कहा, 'बखत पड़े पर आद मयै आदमी के काम आवत है । जो हारे गाढ़े
कबौ काम न आवै ऊ आदमी के प म जनावर है । अब ई हमार भतीजा है ।
घर का अकेला, न सास न ससरु , न ननद न िजठानी, कौनो कचाइन नाह ं
है घर म। नाना ओके नाम जागीर लख गए ह। घर म घोड़ा है , ताँगा है ।
परु ाना नामी खानदान है । लड़क रानी-महारानी अस बल सहै ।'
जब शाम को जमन
ु ा क माँ ने यह खबर बाप को द तो उसने सामने से थाल
खसका द और कहा, 'उसक दो बी वयाँ मर चक
ु ह। तेहाजू है लड़का।
मझ
ु से चार-पाँच बरस छोटा होगा।'
जब जमन
ु ा के वारे बारात चढ़ तो मा णक मु ला ने दे खा और उ ह ने उस
पु ता द वार का जो वणन दया उससे हम लोग लोट-पोट हो गए। जमन
ु ा ने
उसे दे खा तो बहुत रोई, जेवर चढ़ा तो बहुत खश
ु हुई, चलने लगी तो यह
आलम था क आँख से आँसू नह ं थमते थे और दय म उमंग नह ं थमती
थीं।
34
जब जमन
ु ा लौट कर मैके आई तो सभी स खय के यहाँ गई। अंग-अंग पर
जेवर लदा था, रोम-रोम पल
ु कत था और प त क तार फ करते जबान नह ं
थकती थी। 'अर क मो, वो तो इतने सीधे ह क जरा-सी तीन-पाँच नह ं
जानते। ऐ, जैसे छोटे -से ब चे ह । पहल दोन के मैकेवाले सार जायदाद
लट
ू ले गए, नह ं तो धन फटा पड़ता था। मने कहा अब तु हारे साले-साल
आवगे तो बाहर ह से वदा क ँ गी, तम
ु दे खते रहना। तो बोले, 'तम
ु घर क
माल कन हो। सब
ु ह-शाम दाल-रोट दे दो बस, मझ
ु े या करना है ।' चौबीस
घंटा मँह
ु दे खते रहते ह। जरा-सी कह ं गई - बस सन
ु ती हो, ओ जी सन
ु ती हो,
अजी कहाँ गई! मेर तो नाक म दम है क मो! मह
ु ला-पड़ोसवाले दे ख-दे ख
कर जलते ह। मने कहा, िजतना जलोगे उतना जलाऊँगी। म भी तब दरवाजा
खोलती हूँ जब धप
ू सर पर चढ़ आती है । और खयाल इतना रखते ह क म
आई तो ढाई सौ पए जबरद ती ं क म रख दए। कहा, हमार कसम है जो
इसे न ले जाओ।'
ले कन जमन
ु ा को ज द ह ससरु ाल लौट जाना पड़ा, य क एक दन उसके
बाप बहुत परे शान हालत म रात को आठ बजे बक से लौटे और बताया क
हसाब म एक सौ स ाईस पया तेरह आने क कमी पड़ गई है , अगर कल
सब
ु ह जाते ह उ ह ने जमा न कर दया तो हरासत म ले लए जाएँगे। यह
सन
ु ते ह घर म सयापा छा गया और जमन
ु ा ने झट ं क से नोट क ग डी
नकाल कर छ पर म ख स द और जब माँ ने कहा, 'बेट उधार दे दो!' तो
ताल माँ के हाथ म दे कर बोल , 'दे ख लो न, संदक
ू म दो-चार दअ
ु ि नयाँ
पड़ी ह गी।' ले कन जमन
ु ा ने सोचा आज बला टल गई तो टल गई, आ खर
बकरे क माँ कब तक खैर मनाएगी। इतना तो पहले लट
ु गया है , अब अगर
35
जमन
ु ा भी माँ-बाप पर लट
ु ा दे तो अपने बाल-ब च के लए या बचाएगी?
अरे माँ-बाप कै दन के ह? उसे सहारा तो उसके ब चे ह दगे न!
अ त।ु जमन
ु ा अपने भावी बाल-ब च का खयाल करके अपनी ससरु ाल चल
गई और सख
ु से रहने लगी। सच पछ
ू ो तो यह ं जमन
ु ा क कहानी का खा मा
होता है ।
असल म जमन
ु ा के प त तहाजू यानी पु ता द वार, पर उनम और जमन
ु ा
म उतना ह अंतर था िजतना पल तर उखड़ी हुई परु ानी द वार और लपे-पत
ु े
तल
ु सी के चौतरे म। इधर-उधर के लोग इधर-उधर क बात करते थे पर
जमन
ु ा तन-मन से प त-परायणा थी। प त भी जहाँ उसके गहने-कपड़े का
यान रखते थे वह ं उसे भजनामत
ृ , गंगा-माहा य, गट
ु का रामायण आ द
ंथ-र न ला कर दया करते थे। और वह भी उसम 'उ म के अस बस मन
36
माह 'ं आ द पढ़ कर लाभाि वत हुआ करती थी। होते-होते यह हुआ क धम
का बीज उसके मन म जड़ पकड़ गया और भजन-क तन, कथा-स संग म
उसका चत रम गया और ऐसा रमा क सब
ु ह-शाम, दोपहर-रात वह द वानी
घम
ू ती रहे । रोज उसके यहाँ साध-ु संत का भोजन होता रहे और साध-ु संत भी
ऐसे तप वी और पवान क म तक से काश फूटता था।
जमन
ु ा इस अनु ठान के लए त काल राजी हो गई। ले कन इतनी सब
ु ह
कसके साथ जाए! जमन
ु ा ने प त (जमींदार साहब) से कहा क वे साथ चला
कर पर वे ठहरे बढ़
ू े आदमी, सब
ु ह जरा-सी ठं डी हवा लगते ह उ ह खाँसी का
दौरा आ जाता था। अंत म यह तय हुआ क रामधन ताँगेवाला शाम को
ज द छु ट लया करे गा और सब
ु ह चार बजे आ कर ताँगा जोत दया
करे गा।
जमन
ु ा न य नयम से नहाने जाने लगी। का तक म काफ सद पड़ने
लगती है और घाट से मं दर तक उसे केवल एक पतल रे शमी धोती पहन
37
कर फूल चढ़ाने जाना पड़ता था। वह थर-थर थर-थर काँपती थी। एक दन
मारे सद के उसके हाथ-पैर सु न पड़ गए। और वह वह ं ठं डी बालू पर बैठ
गई और यह कहा क रामधन अगर उसे समच
ू ी उठा कर ताँगे पर न बैठा
दे ता तो वह वह ं बैठ -बैठ ठं ड से गल जाती।
ले कन जमन
ु ा को यह वीकार नह ं हुआ य क पता नह ं चं - हण कब
पड़े। रामधन ने बताया क चं - हण दो-तीन दन बाद ह है । ले कन
क ठनाई यह है क नाल अभी नया लगवाया है , वह तीन दन के अंदर कैसे
घसेगा और नया कुछ भाव नह ं रखता।
'माल कन, एक ह जग
ु त है ।'
' या?'
38
'ताँगा रोज कम-से-कम बारह मील चले। ले कन मा लक कह ं जाते नह ।ं
अकेले मझ
ु े ताँगा ले नह ं जाने दगे। आप चल तो ठ क रहे ।'
' य नह ं सरकार! आप सब
ु ह जरा और ज द दो-ढाई बजे नकल चल!
गंगापार प क सड़क है , बारह मील घम
ु ा कर ठ क टाइम पर हािजर कर
दया क ँ गा। तीन दन क ह तो बात है ।'
जमन
ु ा राजी हो गई और तीन दन तक रोज ताँगा गंगापार चला जाया
करता था। रामधन का अंदाज ठ क नकला और तीसरे दन चं - हण के
समय नाल उतरवा कर अँगठ
ू बनवाई गई और अँगठ
ू का ताप दे खए क
जमींदार साहब के यहाँ नौबत बजने लगी और नस ने परू े एक सौ पए क
ब शीश ल ।
जमींदार बेचारे व ृ ध हो चक
ु े थे और उ ह बहुत क ट था, वा रस भी हो चक
ु ा
था अत: भगवान ने उ ह अपने दरबार म बल
ु ा दया। जमन
ु ा प त के बछोह
म धाड़ मार-मार कर रोई, चड़
ू ी-कंगन फोड़ डाले, खाना-पीना छोड़ दया। अंत
म पड़ो सय ने समझाया क छोटा ब चा है , उसका मँह
ु दे खना चा हए। जो
होना था सो हो गया। काल बल है । उस पर कसका बस चलता है ! पड़ो सय
के बहुत समझाने पर जमन
ु ा ने आँसू प छे । घर-बार सँभाला। इतनी बड़ी
कोठ थी, अकेले रहना एक वधवा म हला के लए अनु चत था, अत: उसने
रामधन को एक कोठर द और प व ता से जीवन यतीत करने लगी।
39
जमन
ु ा क कहानी ख म हो चक
ु थी। ले कन हम लोग क शंका थी क
मा णक मु ला को यह घसी नाल कहाँ से मल , उसक तो अँगठ
ू बन चक
ु
थी। पछ
ू ने पर मालम
ू हुआ क एक दन कह ं रे ल सफर म मा णक मु ला को
रामधन मला। स क का कुरता, पान का ड बा, बड़े ठाठ थे उसके! मा णक
मु ला को दे खते ह उसने अपने भा योदय क सार कथा सन
ु ाई और कहा
क सचमच
ु घोड़े क नाल म बड़ी तासीर होती है । और फर उसने एक नाल
मा णक मु ला के पास भेज द थी, य य प उ ह ने उसक अँगठ
ू न बनवा
कर उसे हफाजत से रख लया।
कहानी सन
ु ा कर मा णक मु ला याम क ओर दे ख कर बोले, 'दे खा याम,
भगवान जो कुछ करता है भले के लए करता है । आ खर जमन
ु ा को कतना
सख
ु मला। तम
ु यथ म दख
ु ी हो रहे थे? य ?'
40
इस तरह मा णक मु ला क दस
ू र न कषवाद कहानी समा त हुई।
41
अन याय
जमन
ु ा क जीवन-गाथा समा त हो चक
ु थी और हम लोग को उसके जीवन
का ऐसा सख
ु द समाधान दे ख कर बहुत संतोष हुआ। ऐसा लगा क जैसे सभी
रस क प रण त शांत या नवद म होती है , वैसे ह उस अभा गन के जीवन
के सारे संघष और पीड़ा क प रण त मात ृ व से ला वत, शांत, न कंप
द प शखा के समान काशमान, प व , न कलंक वैध य म हुई।
काश : यह तो मा णक मु ला क खब
ू ी है । अगर जरा-सा सचेत हो कर
उनक बात तम
ु समझते नह ं गए तो फौरन तु हारे हाथ से त व नकल
42
जाएगा, हलका-फुलका भस
ू ा हाथ आएगा। अब यह बताओ क कहानी सन
ु
कर या भावना उठ तु हारे मन म? तम
ु बताओ!
काश : (सक
ु रात क -सी टोन म) ले कन यह बताओ क िजंदगी म
अ धकांश ना यकाएँ जमन
ु ा-जैसी मलती ह या राधा और सध
ु ा और गेसू
और सन
ु ीता और दे वसेना-जैसी?
43
को आधा इंच क तो सच
ू ना दे दे ता है और नीचे के अथाह पानी क खबर नह ं
दे ता तो वह राहगीर को धोखा दे ता है या नह ?
ं
म : य नह ?
ं
याम : और या?
म:
44
सभी क नींव हल गई ह। अनै तकता छाई हुई है । पर सब उस ओर से आँख
मँद
ू े ह। असल म परू िजंदगी क यव था बदलनी होगी!
याम : मझ
ु े नींद आ रह है ।
45
(जमींदार) उसका उ धार करने म असफल रहे ; अंत म मकवग (रामधन)
ने उसको नई दशा सझ
ु ाई!
(यव नका-पतन)
46
तीसर दोपहर
(शीषक मा णक मु ला ने नह ं बताया)
हम लोग सब
ु ह सो कर उठे तो दे खा क रात ह रात सहसा हवा बलकुल क
गई है और इतनी उमस है क सब
ु ह पाँच बजे भी हम लोग पसीने से तर थे।
हम लोग उठ कर खब
ू नहाए मगर उमस इतनी भयानक थी क कोई भी
साधन काम न आया। पता नह ं ऐसी उमस इस शहर के बाहर भी कह ं होती
है या नह ;ं पर यहाँ तो िजस दन ऐसी उमस होती है उस दन सभी काम क
जाते ह। सरकार द तर म लक काम नह ं कर पाते, सप
ु रंटडट बड़े बाबओ
ु ं
को डाँटते ह, बड़े बाबू छोटे बाबओ
ु ं पर खीज उतारते ह, छोटे बाबू चपरा सय
से बदला नकालते ह और चपरासी गा लयाँ दे ते हुए पानी पलानेवाल से,
भि तय से और मा लय से उलझ जाते ह; दक
ु ानदार माल न बेच कर
ाहक को खसका दे ते ह और र शावाले इतना कराया माँगते ह क
सवा रयाँ परे शान हो कर र शा न कर। और इन तमाम सामािजक
उथल-पथ
ु ल के पीछे कोई ऐ तहा सक वं वा मक ग त का स धांत न हो
कर केवल तापमान रहता है - टपरे चर, उमस, एक-सौ बारह डगर
फा रनहाइट!
ले कन इस उमस के बावजद
ू मा णक मु ला क कहा नयाँ सन
ु ने का लोभ
हम लोग से छूट नह ं पाता था अत: हम सबके-सब नयत समय पर वह ं
इक ठा हुए और मलने पर सबम यह अ भवादन हुआ - 'आज बहुत उमस
है !'
47
सफ काश जब आया और उससे सबने कहा क आज बहुत उमस है तो
फलसफा छाँटते हुए अफलातन
ू क तरह मँह
ु बना कर बोला (मेर इस
झ लाहट-भर ट पणी के लए मा करगे य क पछल रात उसने
मा सवाद के सवाल पर मझ
ु े नीचा दखाया था और स चे संक ण
मा सवा दय क तरह से झ ला उठा था और मने तय कर लया था क वह
सह बात भी करे गा तो म उसका वरोध क ँ गा), बहरहाल काश बोला,
'भाईजी, उमस हम सभी क िजंदगी म छाई हुई है , उसके सामने तो यह कुछ
नह ं है । हम सभी न नम य ेणी के लोग क िजंदगी म हवा का एक
ताजा झ का नह ।ं चाहे दम घट
ु जाए पर प ा नह ं हलता, धप
ू िजसे रोशनी
दे ना चा हए हम बरु तरह झल
ु सा रह है और समझ म नह ं आता क या
कर। कसी-न- कसी तरह नई और ताजी हवा के झ के चलने चा हए। चाहे लू
के ह झ के य न ह ।'
काश क इस मख
ू ता-भर बात पर कोई कुछ नह ं बोला। (मेरे झठ
ू के लए
मा कर य क मा णक ने इस बात क जोर से ताईद क थी, पर मने कह
दया न क म अंदर-ह -अंदर चढ़ गया हूँ!)
48
ह हमारे अंदर उदार और ऊँचे सपने ख म हो जाते ह और एक अजब-सी जड़
मू छना हम पर छा जाती है ।'
49
लोग यथ के वाद- ववाद से ऊब गए थे अत: मा णक मु ला ने कहानी
सन
ु ानी शु क -
50
पापी थे सो रह गए। ब च का मँह
ु दे ख कर कुछ नह ं करते वरना हर वार
जा कर बाबा काल कमल वाले के भंडार म दोन जन
ू भोजन करते और
लोक-परलोक सध
ु ारते।
ले कन मह
ु ले-भर क बड़ी-बढ़
ू औरत कोई ऐसी सश
ु ील क या न जट
ु ा पा
जो ब च का भरण-पोषण कर सके, अंत म मजबरू हो कर महे सर दलाल
एक औरत को सेवा-टहल और ब च के भरण-पोषण के लए ले आए।
51
जाते थे। कूल से लौट कर आने पर उ ह फर शाम के लए लकड़ी चीरनी
पड़ती थी, बरु ादे क अँगीठ भरनी पड़ती थी, द या-ब ी करनी पड़ती थी,
बआ
ु (उस औरत को सब ब चे बआ
ु कहा कर यह महे सर दलाल का हु म
था) का बदन भी अकसर दबाना पड़ता था य क बेचार काम करते-करते
थक जाती थी और तब त ना चबत
ू रे के सामने लगी हुई यू न सपै लट क
लालटे न के मंद-मधरु काश म कूल का काम कया करते थे। घर म
लालटे न एक ह थी और वह बआ
ु के कमरे म जलती-बझ
ु ती रहती थी।
52
इन हालत म जमन
ु ा क माँ ने त ना को बहुत सहारा दया। उनके यहाँ
पज
ू ा-पाठ अ सर होता रहता था और उसम वे पाँच बंदर और पाँच वाँर
क याओं को खलाया करती थीं। बंदर म त ना और क याओं म उनक
बहन को आमं ण मलता था और जाते समय बआ
ु साफ-साफ कह दे ती थीं
क दस
ू र के घर जा कर नद द क तरह नह ं खाना चा हए, आधी पू ड़याँ
बचा कर ले आनी चा हए। वे लोग यह करते और चँ ू क पड़
ू ी खाने से मेदा
खराब हो जाता है अत: बेचार बआ
ु पू ड़याँ अपने लए रख कर रोट ब च
को खला दे तीं।
जमन
ु ा क माँ से बात छपी नह ं रह , य क अपनी उ म वे भी जमन
ु ाह
रह ह गी - और उ ह ने बल
ु ा कर जमन
ु ा को बहुत समझाया और कहा क
त ना वैसे बहुत अ छा लड़का है पर नीच गोत का है और अपने खानदान म
अभी तक अपने से ऊँचे गोत म ह याह हुआ है । पर जब जमन
ु ा बहुत रोई
और उसने तीन दन खाना नह ं खाया तो उसक माँ ने आधे पर तोड़ कर
53
लेने का नणय कया यानी उ ह ने कहा क अगर त ना घर-जमाई बनना
पसंद करे तो इस ताव पर गौर कया जा सकता है ।
54
कभी इधर का ख भी न कया हालाँ क उधर दे खते ह उनक आँख म आँसू
छलक जाते थे और लगता था जैसे गले म कोई चीज फँस रह हो, सीने म
कोई सज
ू ा चला रहा हो। धीरे -धीरे त ना का मन भी पढ़ने से उचट गया और
वे एफ.ए. के पहले साल म ह फेल हो गए।
महे सर दलाल ने उ ह फर खब
ू मारा, उनक मँझल बहन खश
ु हो कर अपने
लज
ंु -पज
ंु पैर पटकने लगी, और हालाँ क त ना खब
ू रोए और दबी जबान
इसका वरोध भी कया, पर महे सर दलाल ने उनका पढ़ना- लखना छुड़ा कर
उ ह आर.एम.एस. म भरती करा दया और वे टे शन पर डाक का काम
करने लगे। उसी समय महे सर दलाल क नगाह म एक लड़क
55
उसक सहायता और र ा के खयाल से त ना को इंटरमी डएट पास बता कर
महे सर दलाल ने उसक लड़क से त ना क बात प क कर ल मगर इस
शत के साथ क शाद तब होगी जब महे सर दलाल अपनी लड़क को नबटा
लगे और तब तक लड़क पढ़े गी नह ।ं
बआ
ु ने इसका वरोध कया, और नतीजा यह हुआ क महे सर दलाल ने
साफ-साफ कह दया क उसके घर म रहने से मह
ु ले म चार तरफ चार
आदमी चार तरह क बात करते ह। महे सर दलाल ठहरे इ जतदार आदमी,
उ ह बेटे-बे टय का याह नबटाना है और वे यह ढोल कब तक अपने गले
बाँधे रहगे। अंत म हुआ यह क बआ
ु जैसे हँसती, इठलाती हुई आई थीं वैसे
ह रोती-कलपती अपनी गठर -मठ
ु र बाँध कर चल ग और बाद म मालम
ू
हुआ क त ना क माँ के तमाम जेवर और कपड़े जो बहन क शाद के लए
रखे हुए थे, गायब ह।
56
दोपहर को ए.आर.पी. म काम करते थे, रात को आर.एम.एस. म और
नतीजा यह हुआ क उनक आँख धँस ग , पीठ झक
ु गई, रं ग झल
ु स गया
और आँख के आगे काले ध बे उड़ने लगे।
उ ह ं दन मह
ु ले म एक अजब क घटना हुई। िजस साबन
ु वाल लड़क का
नाम महे सर दलाल के साथ लया जाता था वह एक दन मर हुई पाई गई।
57
उसक लाश भी गायब कर द गई और महे सर दलाल पु लस के डर के मारे
जा कर सम धयाने म रहने लगे।
58
ताँगा है , खल
ु आबोहवा है , आ कर कुछ दन रहो, तंद ु ती सँभल जाएगी,
पर बेचारे त ना! नै तकता और ईमानदार बड़ी चीज होती है ।
59
उनका तन ह डी का ढाँचा-भर रह गया था। चलते हुए आप नजद क से
पस लय क खड़बड़ाहट तक सन
ु सकते थे। कसी तरह ह मत बाँध कर
गए। अफसर लोग चढ़े हुए थे। मेल े न पर रात क यट
ू लगा द और वह
भी ऐन होल के दन। रं ग म भीगते हुए भी थर-थर काँपते हुए टे शन गए।
सारा बदन जल रहा था। काम तो सा थय ने मल कर कर दया, वे चप
ु चाप
पड़े रहे । ड बे म अंदर सीलन थी। बदन टूट रहा था, नस ढ ल पड़ गई थीं।
सब
ु ह हुई। टूंडला आया। थोड़ी-थोड़ी धप
ू नकल आई थी। वे जा कर दरवाजे
के पास खड़े हो गए। गाड़ी चल द । पाँव थर-थर काँप रहे थे, सहसा इंजन के
पानी क टं क क झल
ू ती हुई बा ट इनक कनपट म लगी और फर इ ह
होश नह ं रहा।
आँख खल
ु तो टूंडला के रे लवे अ पताल म थे। दोन पाँव नह ं थे। आस-पास
कोई नह ं था, बेहद दद था। खन
ू इतना नकल चक
ु ा था क आँख से कुछ
ठ क दखाई नह ं पड़ता था। सोचा, कसी को बल
ु ाव तो मँह
ु से जमन
ु ा का
नाम नकला, फर अपने ब चे का, फर बापू (महे सर) का और फर चप
ु हो
गए।
लोग ने बहुत पछ
ू ा, ' कसे तार दे द, या कया जाए?' पर वे कुछ नह ं बोले।
सफ मरने के पहले उ ह ने अपनी दोन कट टाँग दे खने क इ छा कट क
और वे लाई ग तो ठ क से दे ख नह ं सकते थे, अत: बार-बार उ ह छूते थे,
दबाते थे, उठाने क को शश करते थे, और हाथ खींच लेते थे और थर-थर
काँपने लगते थे।
60
पता नह ं मझ
ु े कैसा लगा क म न कष सन
ु ने क ती ा कए बना
चप
ु चाप उठ कर चला आया।
61
अन याय
62
फाटक पर पाँव क जाते ह। फाटक खल
ु जाते ह। त ना फाइल उठा कर
अंदर चले जाते ह। दोन पाँव बाहर छूट जाते ह। ब तइ
ु या क कट हुई पँछ
ू
क तरह छटपटाते ह।
63
चौथी दोपहर
(मालवा क यव
ु रानी दे वसेना क कहानी)
64
बात छे ड़ दगे। यह मा णक ने भी कया। जब मने उनसे कहा क मेरा मन
बहुत उदास है तो वे हँसे और मने जब कहा क कल रात के सपने ने मेरे मन
पर बहुत असर डाला है तो वे और भी हँसे और बोले, 'उस सपने से तो दो ह
बात मालम
ू होती ह।'
65
तड़पाती रहती है । वह अँधेरे से समझौता कर ले पर उसे चैन कभी नह ं
मलती।' म उनक बात से पण
ू तया सहमत था पर लख चाहे थोड़ा-बहुत लँ ,ू
मझ
ु े उन दन अ छ हंद बोलने का इतना अ यास नह ं था अत: उनक
उदासी से सहम त कट करने के लए म चप
ु चाप मँह
ु लटकाए बैठा रहा था।
बलकुल उ ह ं क तरह मँह
ु लटकाए हुए बादल क ओर दे खता रहा और
नीचे पाँव झल
ु ाता रहा। मा णक मु ला कहते गए - 'अब यह ेम क बात
लो। यह सच है क ेम आ थक ि थ तय से अनश
ु ा सत होता है , ले कन
मने जो जोश म कह दया था क ेम आ थक नभरता का ह दस
ू रा नाम है ,
यह केवल आं शक स य है । इसे कोई अ वीकार नह ं कर सकता क यार -
'यहाँ मा णक मु ला क गए और मेर ओर दे ख कर बोले, ' मा करना,
तु हार अ य त शैल म कहूँ तो इससे कोई इनकार नह ं कर सकता क
यार आ मा क गहराइय म सोये हुए स दय के संगीत को जगा दे ता है ,
हमम अजब-सी प व ता, नै तक न ठा और काश भर दे ता है आ द-आ द।
ले कन...'
66
म बदल सके। नतीजा यह होता है क थोड़े दन बाद यह सब मन से उसी
तरह गायब हो जाता है जैसे बादल क छाँह। आ खर हम हवा म तो नह ं
रहते ह और जो भी भावना हमारे सामािजक जीवन क खाद नह ं बन पाती,
िजंदगी उसे झाड़-झंखाड़ क तरह उखाड़ फकती है ।'
इतने म मा णक मु ला खद
ु हम लोग के मन क बात समझ गए और
सहसा अपने दवा व न क द ु नया से लौटते हुए फ क हँसी हँस कर बोले,
'आज म तम
ु लोग को एक ऐसी लड़क क कहानी सन
ु ाऊँगा, जो ऐसे बादल
के दन मझ
ु े बार-बार याद आ जाती है । अजब थी वह लड़क !'
67
उ ह ने कहानी ारं भ क : (कहानी कहने के पहले मझ
ु से बोले, 'शैल म
तु हार झलक आ जाए तो मा करना।')
खड़क पर झल
ू ते हुए जाजट के हवा से भी ह के परद को चम
ू ते हुए शाम
के सरू ज क उदास पील करण ने झाँक कर उस लड़क को दे खा जो त कए
म मँह
ु छपाए ससक रह थी। उसक खी अलक खारे आँसू से धल
ु े गाल
को छू कर सहर उठती थीं। चंपे क क लय -सी उसक लंबी पतल
कला मक उँ ग लयाँ, सस कय -से काँप-काँप उठनेवाला उसका सोनजह
ु -सा
तन, उसके गल
ु ाब क सख
ू ी पाँखु रय -से होठ, और कमरे का उदास
वातावरण; पता नह ं कौन-सा वह दद था िजसक उदास उँ ग लयाँ रह-रह कर
उसके यि त व के मण
ृ ाल-तंतओ
ु ं के संगीत को झकझोर रह थीं।
68
'आँधी आनेवाल है बेट ! चलो खाना खा लो!' माँ ने दरवाजे पर से कहा।
लड़क कुछ नह ं बोल , सफ सर हला दया। माँ कुछ नह ं बोल , इसरार भी
नह ं कया। माँ क अकेल लड़क थी, घर-भर म माँ और बेट ह थीं, बेट
समझो तो बेटा समझो तो! बेट क बात काटने क ह मत कसी म नह ं
थी। माँ थोड़ी दे र चप
ु चाप खड़ी रह , चल गई। लड़क सन
ू ी-सन
ू ी आँख से
चप
ु चाप जामन
ु ी रं ग के घरते हुए बादल को दे खती रह और उन पर धधकते
हुए गल
ु ाब को और उन पर घरती हुई आँधी को।
शाम ने धध
ुँ लके का सरु मई दप
ु टा ओढ़ लया। वह चप
ु चाप वह ं बैठ रह ,
बेले क बनी हुई कला- तमा क तरह, नगाह म रह-रह कर नर गस,
उदास और लजील नर गस झम
ू जाती थी।
'कुछ नह !ं ' लड़क ने हँसने का यास करते हुए कहा, मगर आँख डबडबा
आ और वह मा णक मु ला के पाँव के पास बैठ गई।
मा णक ने उसके बद
ंु म उलझी एक सख
ू ी लट को सल
ु झाते हुए कहा, 'तो
नह ं बताओगी?'
69
'नह ं, अब तक तो नह ं छपाती थी, आज से छपाने लगी हो!'
'तो बताओ!'
70
हुए टकट आँधी क वजह से तमाम कमरे म घायल तत लय के जोड़े क
तरह इधर-उधर उड़ कर द वार से टकरा रहे थे।
71
मा णक ने धीरे -से उसी के आँचल से उसके आँसू प छ दए। बोले, 'जाओ,
मँह
ु धो आओ! चलो!' लल मँह
ु धो कर आ गई। मा णक बैठे हुए रे डयो क
सई
ु इस तरह घम
ु ा रहे थे क कभी झम से द ल बज उठता था, कभी
लखनऊ क दो-एक अ फुट संगीतलहर सन
ु ाई पड़ जाती थी, कभी नागपरु ,
कभी कलक ा, (इलाहाबाद म सौभा य से तब तक रे डयो टे शन था ह
नह !ं ) लल चप
ु चाप बैठ रह , फर उठ कर उसने रे डयो ऑफ कर दया
और आकुल आ ह-भरे वर म बोल , 'मा णक, कुछ बात करो! मन बहुत
घबरा रहा है ।'
'उहूँक!'
जमन
ु ा के िज पर मा णक को हँसी आ गई और फर आ ह से, बेहद दल
ु ार
और बेहद नशे से लल क ओर दे खते हुए बोले, ' लल , तम
ु ने कंदगु त
खतम कर डाल !'
72
'हाँ।'
'कैसी लगी!'
73
एक तेज झ का आया और खड़क के पास खड़ी लल बौछार से भीग गई,
और भ ह से, माथे से बँद
ू प छती हुई हट तो मा णक बोले, ' लल वह ं खड़ी
रहो, खड़क के पास, हाँ बलकुल ऐसे ह । बँद
ू मत प छो। और लल , यह
एक लट तु हार भीग कर झल
ू आई है कतनी अ छ लग रह है !'
लल कभी चप
ु चाप लजाती हुई खड़क के बाहर, कभी लजाती हुई अंदर
मा णक क ओर दे खती हुई बौछार म खड़ी रह । जब बज लयाँ चमकतीं तो
ऐसा लगता जैसे काश के झरने म काँपता हुआ नील कमल। पहले माथा
भीगा - लल ने पछ
ू ा, 'हट!' मा णक बोले, 'नह ं!' माथे से पानी गरदन पर
आया, बँद
ू उसके गले म पड़ी सन
ु हल मटरमाला को चम
ू ती हुई नीचे उतरने
लगीं, वह सहर उठ । 'सरद लग रह है ?' मा णक ने पछ
ू ा। एक अजब-से
अ हड़ आ म-समपण के वर म लल बोल , 'नह ं, सरद नह ं लग रह है !
ले कन तम
ु बड़े पागल हो!'
74
लालसा-भर नगाह, उनींदे आँसओ
ु ं से आ छा दत जैसे पानी क बौछार म
धध
ुँ ल द खने वाल नील झील...'
सब
ु ह लल जागी - ले कन नह ,ं जागी नह ं - लल को रात-भर नींद आई
नह ं थी। उसे पता नह ं कब माँ ने खाने के लए जगाया, उसने कब मना कर
दया, कब और कसने उसे पलँ ग पर लटाया - उसे सफ इतना याद है क
रात-भर वह पता नह ं कसके पाँव पर सर रख कर रोती रह । त कया
आँसओ
ु ं से भीग गया था, आँख सज
ू आई थीं।
क मो सब
ु ह ह आ गई थी। आज लल को जेवर पहनाया जानेवाला था,
शाम को सात बजे लोग आनेवाले थे, सास तो थी ह नह ,ं ससरु आनेवाले थे
और क मो, जो लल क घ न ट म थी, पर उस घर को सजाने का परू ा
भार था और लल थी क क मो के कंधे पर सर रख कर इस तरह
बलखती थी क कुछ पछ
ू ो मत!
75
क मो बड़ी यथाथवा दनी, बड़ी ह अभावक
ु लड़क थी। उसने इतनी
सहे लय क शा दयाँ होते दे खी थीं। पर लल क तरह बना बात के
बलख- बलख कर रोते कसी को नह ं दे खा था। जब वदा होने लगे तो उस
समय तो रोना ठ क है , वरना चार बड़ी-बू ढ़याँ कहने लगती ह क दे खो!
आजकल क लड़ कयाँ हया-शरम धो के पी गई ह। कैसी ऊँट-सी गरदन
उठाए ससरु ाल चल जा रह ह। अरे हम लोग थे क रोते-रोते भोर हो गई थी
और जब हाथ-पाँव पकड़ के भैया ने डोल म ढकेल दया तो बैठे थे। एक ये
ह! आ द।
76
बीच म घास उग आई थी और बा रश के बाद घास म लाल ह र क तरह
जगमगाती हुई बीरबहू टयाँ रग रह थीं। दोन स खयाँ वह ं बैठ ग - एक
बीरबहूट रह-रह कर उस जंग खाए हुए लोहे क लाइन को पार करने क
को शश कर रह थी और बार-बार फसल कर गर जाती थी। लल थोड़ी दे र
उसे दे खती रह और फर बहुत उदास हो कर क मो से बोल , 'क मो रानी!
अब उस पंजरे से न तार नह ं होगा, कहाँ ये घम
ू ना- फरना, कहाँ तम
ु ।'
क मो जो एक घास क डंठल चबा रह थी, तमक कर बोल , 'दे खो ल ल
घोड़ी! मेरे सामने ये अँसआ
ु ढरकाने से कोई फायदा नह ।ं समझीं! हम ये सब
चोचला अ छा नह ं लगता। द ु नया क सब लड़ कयाँ तो पैदा होके याह
करती ह, एक तम
ु अनोखी पैदा हुई हो या? और याह के पहले सभी ये
कहती ह, याह के बाद भल
ू भी जाओगी क क मो कंब त कस खेत क
मल
ू थी!'
77
पाँच बजे जब दोन घर लौट ं तो उनक खल खलाहट से मह
ु ला हल उठा
और लल को बहुत कस कर भख
ू लग आई थी।
दन-भर घम
ू ने से लल को इतनी जोर क भख
ू लग आई थी क आते ह
उसने माँ से ना ता माँगा और जब अपने आप अलमार से नकालने लगी तो
माँ ने टोका क खद
ु खा जाएगी तो तेरे ससरु या खाएँगे तो हँस के बोल ,
'अरे उ ह म बचा-खच
ु ा अपने हाथ से खला दँ ग
ू ी। पहले चख तो लँ ,ू नह ं
बदनामी हो बाद म!' इतने म मालम
ू हुआ वे लोग आ गए तो झट से वह
ना ता आधा छोड़ कर अंदर गई। क मो ने उसे साड़ी पहनाई, उसे
सजाया-सँवारा ले कन उसे भख
ू इतनी लगी थी क उन लोग के सामने जाने
के पहले वह फर बैठ गई और खाने लगी, यहाँ तक क क मो ने जबरद ती
उसके सामने से त तर हटा ल और उसे खींच ले गई।
दन-भर खल
ु हवा म घम
ू ने से और पेट भर कर खाने से सब
ु ह लल के चेहरे
पर जो उदासी छाई थी वह बलकुल गायब हो गई थी और उन लोग को
लड़क बहुत पसंद आई और पछले दन शाम को उसके जीवन म जो
जलजला शु हुआ था वह दस
ू रे दन शाम को शांत हो गया।
78
'ले कन मा णक मु ला!' ओंकार ने पछ
ू ा, 'यह आपने नह ं बताया क लड़क
को आप कैसे जानते थे, य जानते थे, कौन थी यह लड़क ?'
79
पाँचवीं दोपहर
(काले बट का चाकू)
सहसा मने पछ
ू ा, 'इस घटना ने तो आपके मन पर बहुत गहरा भाव डाला
होगा?'
80
का कहना है क छोट -से-छोट और बड़ी-से-बड़ी, कोई घटना ऐसी नह ं जो
आदमी के अंतमन पर गहर छाप न छोड़ जाए।'
'कम-से-कम अगर मेरे जीवन म ऐसा हो, तो मेर तो सार िजंदगी बलकुल
म थल हो जाए। शायद द ु नया क कोई चीज मेरे मन म कभी रस का
संचार न कर सके।' मने कहा।
81
तो - ' काश ने बात काट कर कहा, 'ये कहा नयाँ जो तम
ु कहते हो बलकुल
सीधे-सादे ववरण क भाँ त होती ह। उनम कुछ कथा श प, कुछ काट-छाँट,
कुछ टे कनीक भी तो होना चा हए!'
मने अवसर का लाभ उठाते हुए फौरन वह काले बटवाला चाकू ताख पर से
उठाया और बीच म रखते हुए कहा, 'अ छा इसको स ी क कहानी का
क - बंद ु बनाइए!'
82
उँ ग लयाँ आवेश से काँप रह ह, एक चेहरा जो आवेश से आर त है , थोड़ी
नराशा से नीला है और थोड़े डर से ववण है ! यह म ृ त- च है स ी का जब
वह अं तम बार मझ
ु े मल थी और म आँख उठा कर उसक ओर दे ख भी
नह ं सका था। उसके हाथ म यह चाकू था।'
83
और वहाँ कसी गाँव के ने तनाबद
ू हो जाने के बाद यह तीन-चार बरस क
लड़क उसे रोती हुई मल थी िजसे वह उठा लाया और पालने-पोसने लगा
था। बहुत दन तक वह लड़क उधर ह रह , और अंत म उसका एक हाथ
कट जाने के बाद उसे पशन मल गई और वह आ कर यह ं रहने लगा। एक
हाथ कट जाने से वह अपना पु तैनी पेशा तो नह ं कर सकता था, ले कन
उसने यहाँ आ कर साबन
ु साजी शु कर द थी और चमन ठाकुर का प हया
छाप साबन
ु न सफ मह
ु ले म, वरन चौक तक क दक
ु ान पर बेचा जाता
था। चँ ू क उसका एक हाथ कटा हुआ था, अत: सोलह-स ह साल क अ नं य
सद
ंु र स ी साबन
ु जमाती थी, उसके टुकड़े उसी काले बट के चाकू से काटती
थी, उ ह दक
ु ानदार के यहाँ पहुँचाती थी और हर पखवारे के अंत म जा कर
उसका दाम वसल
ू कर लाती थी। हर दक
ु ानदार उसके सर पर बँधे रं ग- बरं गे
माल, उसके बलच
ू ी कुरते, उसके चौड़े गरारे क ओर एक दबी नगाह
डालता और दस
ू रे साबन
ु के बजाय प हया छाप साबन
ु दक
ु ान पर रखता,
ाहक से उसक सफा रश करता और उसक यह तम ना रहती क कैसे
स ी को पखवारे के अंत म यादा-से- यादा कलदार दे सके।
84
कुछ पढ़ा- लखा था वह भल
ू चक
ु े थे, स ी ने थोड़ा पढ़ा था पर यह हसाब
काफ ज टल था। उधर मा णक मु ला दह ले कर घर जा रहे थे क दोन को
हसाब पर झगड़ते दे खा। स ी सर झटकती थी तो उसके कान के दोन बद
ंु े
चमक उठते थे और हँसती थी तो मोती-से दाँत चमक जाते थे, मड़
ु ती थी तो
कंचन-सा बदन झलमला उठता था और सर झक
ु ाती थी तो ना गन-सी
अलक झल
ू जाती थीं। अब अगर मा णक मु ला के कदम धरती से चपक
ह गए तो इसम मा णक मु ला का कौन कसरू ?
इतने म चमन ठाकुर बोले, 'जै राम जी क भइया!' और उनके कटे हुए दाएँ
हाथ ने जंु बश खाई और फर लटक गया। स ी हँस कर बोल , 'लो जरा
हसाब जोड़ दो मा णक बाब!ू ' और मा णक बाबू भाभी के लए दह ले जाना
भल
ू कर इतनी दे र तक हसाब लगाते रहे क भाभी ने खब
ू डाँटा। ले कन उस
दन से अ सर उनके िज मे स ी का हसाब जोड़ना आता रहा और
ग णतशा म एकाएक उनक जैसी दलच पी बढ़ गई, उसे दे ख कर
ता जब
ु होता था।
85
सलाख काटती जाती और मा णक को दनभर का सारा द:ु ख-सख
ु बताती
जाती। कस ब नए ने बेईमानी क , कसने सबसे यादा साबन
ु बेचा, कहाँ
कराने क नई दक
ु ान खल
ु है , वगैरह।
86
दन मा णक मु ला का मन पढ़ने म भी लगने लगा, काम करने म भी, और
उनका वजन भी बढ़ गया और उ ह भख
ू भी खल
ु कर लगने लगी, वे कॉलेज
के खेल म भी ह सा लेने लगे।
87
वे स ी को व वास दलाते थे क ये, तु हारे णय का व न मेरे दय म
पल रहा है और सदा पलता रहे गा। कभी-कभी वे बहुत याकुल हो कर
लखते थे िजसका भावाथ होता था क मेघ क छाया म तो अब मझ
ु से
त ृ षत नह ं रहा जाता, आ द-आ द। सारांश यह क वे जो कुछ स ी से नह ं
कह पाते थे उसे गीत म बाँध डालते थे पर जब कभी स ी के सामने उ ह ने
उसे गन
ु गन
ु ाने का यास कया तो स ी हँसते-हँसते लोट-पोट हो गई और
बोल , तम
ु ने ब ना सन
ु ा है ? साँझी सन
ु ी है ? और तब वह मह
ु ले म गाए
जानेवाले गीत इतनी दद-भर आवाज म गाती थी क मा णक मु ला
भाव वभोर हो उठते थे और अपने गीत उ ह कृ म और श दाडंबरपण
ू
लगने लगते थे। ऐसी थी स ी, सदै व नकट, सदै व दरू , अपने म एक वतं
स ा, िजसके साथ मा णक मु ला के मन को संतोष भी मलता था और
आकुलता भी।
88
अपना कटा हाथ हला कर इ ह सलाम करता, हँसता और पीठ पीछे इ ह
बहुत खन
ू ी नगाह से दे ख कर दाँत पीसता और पैर पटक कर हु के के अंगारे
कुरे दता। स ी मा णक के खाने-पीने, कपड़े-ल े, रहन-सहन म बहुत
दलच पी लेती और बाद म अपनी अड़ो सन-पड़ो सन से बतलाती क
मा णक बारहव दरजे म पढ़ रहे ह और इसके बाद बड़े लाट के द तर म इ ह
नौकर मल जाएगी और हमेशा मा णक को याद दलाती रहती थी क पढ़ने
म ढलाई मत करना।
89
ध का लगा। उस दन शाम को उनसे खाना नह ं खाया गया और यह सोच
कर उनक आँख म आँसू भी आ गए क यह िजंदगी इतनी गंद और वकृत
य है ।
स ी के चेहरे पर थोड़ी खश
ु ी उस दन आई िजस दन उसे मालम
ू हुआ क
मा णक बारहवाँ दरजा पास हो गए ह। उसने उस दन मह न बाद पहल बार
चमन ठाकुर से जा कर दो पए माँगे, एक क मठाई मँगाई और दस
ू रे के
फूल-बताशे चंडी के चौतरे पर चढ़ा आई। पर उस दन मा णक आए ह नह ।ं
िजस दन मा णक आए उस दन उसे यह जान कर बड़ी नराशा हुई क
मा णक नौकर नह ं करगे, बि क पढ़गे, हालाँ क भैया-भाभी ने साफ मना
कर दया है क अब जमाना बरु ा है और वे मा णक का खचा नह ं उठा
सकते। स ी क राय भैया-भाभी के साथ थी; य क वह अपनी आँख से
मा णक को बड़े लाट के द तर म दे खना चाहती थी, पर जब उसने मा णक
क इ छा पढ़ने क दे खी तो कहा, 'उदास मत होओ। अगर म यह ं रह तो म
दँ ग
ू ी तु ह पए। अगर नह ं रह तो दे खा जाएगा।'
मा णक मु ला ने घबरा कर पछ
ू ा क 'कहाँ जाओगी तम
ु ?' तो स ी ने एक
और बात बताई िजससे मा णक त ध रह गए।
90
महे सर दलाल, यानी जमन
ु ावाले त ना का पता, अ सर आया करता था
और चँ ू क दलाल होने के नाते उसक सन
ु ार और सराफ से काफ
जान-पहचान थी अत: वह गलट के कड़े और पायल पर पॉ लश करा कर
और चाँद के गहन पर नकल सन
ु हरा पानी चढ़वा कर लाता था और स ी
को दे ने क को शश करता था। जब मा णक मु ला ने पछ
ू ा क चमन ठाकुर
कुछ नह ं कहते तो बोल क रोजगार तो पहले ह चौपट हो चक
ु ा है , चमन
गाँजा और दा खब
ू पीता है । महे सर दलाल उसे रोज नए नोट ला कर दे ते ह।
रोज उसे अपने साथ ले जाते ह। रात को वह पए हुए आता है और ऐसी बात
बकता है क स ी अपना दरवाजा अंदर से बंद कर लेती है और रात-भर डर
के मारे उसे नींद नह ं आती। इतना कह कर वह रो पड़ी और बोल , सवा
मा णक के उसका अपना कोई नह ं है और मा णक भी उसे कोई रा ता नह ं
बताते।
91
मा णक का मन बहुत आकुल रहा। कई बार उ ह ने चाहा क स ी क ओर
जाएँ पर सच बात है क नशेबाज चमन का या ठकाना, एक ह हाथ है पर
सपाह का हाथ ठहरा।
92
उ ह ं दन भाभी और मा णक के बीच अ सर झगड़ा हुआ करता था य क
भाभी-भइया साफ कह चक
ु े थे क मा णक को अब कह ं नौकर कर लेनी
चा हए। पढ़ने क कोई ज रत नह ।ं पर मा णक पढ़ना चाहते थे। भाभी ने
एक दन जब बहुत जल -कट सन
ु ाई तो मा णक उदास हो कर एक बाग म
जा कर बरगद के नीचे बच पर बैठ गए और सोचने लगे क या करना
चा हए।
मा णक के पछ
ू ने पर उसने बताया क कल रात को चमन ठाकुर के साथ
महे सर दलाल आया। दोन बड़ी रात तक बैठ कर शराब पीते रहे । सहसा
महे सर से बहुत-से पय क थैल ले कर चमन उठ कर बाहर चला गया और
महे सर आ कर स ी से ऐसी बात करने लगा िजसे सन
ु कर स ी का
तन-बदन सल
ु गने लगा और स ी बाहर के दरवाजे क ओर बढ़ तो दे खा
चमन उसे बाहर से बंद करके चला गया है । स ी ने फौरन अपना चाकू
नकाला और महे सर दलाल को एक ध का दया तो महे सर दलाल लढ
ु क
गए। एक तो बढ़
ू े दस
ू रे शराब म चरू और स ी जो चाकू ले कर उनक गरदन
पर चढ़ बैठ तो उनका सारा नशा काफूर हो गया और बोले, 'मार डाल मझ
ु ,े
म उफ न क ँ गा। म तझ
ु पर हाथ न उठाऊँगा। ले कन मने नकद पाँच सौ
पया दया है । म बाल-ब चेदार आदमी मर जाऊँगा।' और उसके बाद
हच कयाँ भर-भर कर रोने लगा और फर उसने वह कागज दखाया िजस
93
पर चमन ठाकुर ने पाँच सौ पर उसके साथ स ी को भेजने क शत क थी
और महे सर रोने लगा और स ी के जैसे कसी ने ाण खींच लए ह । महे सर
के हाथ-पाँव फूल गए। फर महे सर दलाल ने समझाया क अब तो कानन
ू ी
कारवाई हो गई है । फर महे सर दलाल सख
ु से रखेगा वगैरह-वगैरह - पर
स ी जड़ मरु दे -सी पड़ी रह । उसे याद नह ं महे सर ने या कहा, उसे याद
नह ं या हुआ।
स ी चप
ु चाप नीची नगाह कए नख से धरती खोदती रह और फर
मा णक क ओर दे ख कर बोल , 'महे सर ने आज यह अँगठ
ू द है ।' मा णक
ने हाथ म ले कर दे खा तो मस
ु कराने का यास करती हुई बोल , 'असल है ।'
मा णक चप
ु हो रहे । स ी ने थोड़ी दे र बाद पछ
ू ा क मा णक उदास य ह तो
मा णक ने बताया क भाभी से पढ़ाई के बारे म चख-चख हो गई है तो स ी
ने अँगठ
ू नकाल कर फौरन मा णक के हाथ म रख द और कहा क इससे
वह फ स जमा कर दे । आगे क बात स ी के हाथ म छोड़ दे । मा णक ने इसे
नह ं वीकार कया तो ण-भर स ी चप
ु रह फर सहसा बोल , 'म समझ
गई। अब तम
ु मझ
ु से कुछ नह ं लोगे। पर बताओ म या क ँ ? मझ
ु े कोई भी
तो नह ं बताता। म तु हारे पाँव पड़ती हूँ। मझ
ु े कोई रा ता बताओ? कोई
रा ता - तम
ु जो कहोगे - म हर तरह से तैयार हूँ।' और सचमच
ु स ी जो अब
तक प थर क तरह न ाण बैठ थी पाँव पकड़ कर फूट-फूट कर रो पड़ी।
मा णक घबरा कर उठे पर उसने पाँव पर सर रख दया और इतना रोई
इतना रोई क कुछ पछ
ू ो मत। पर मा णक ने कहा क अब उ ह दे र हो रह
है । तो वह चप
ु चाप उठ और चल गई।
94
एक बार फर वह मल और मा णक उस दन भी उदास थे य क जल
ु ाई
आ गई थी और उनके दा खले का कुछ न चय ह नह ं हो पा रहा था। स ी
ने बहुत इसरार करके मा णक को पए दए ता क उनका काम न के और
फर बहुत बलख- बलख कर रोई और कहा क उसक िजंदगी नरक हो गई
है । उसे कोई राह नह ं बताता। मा णक मु ला ने सां वना का एक श द भी
नह ं कहा, तो वह चप
ु हो गई और पछ
ू ने लगी क मा णक को उसक बात
बरु तो नह ं लगतीं य क मा णक के अलावा और कोई नह ं है िजससे वह
अपना द:ु ख कह सके। और मा णक से न जाने य वह कोई बात नह ं छपा
पाती है और उनसे कह दे ने पर उसका मन ह का हो जाता है और उसे लगता
है क कम-से-कम एक आदमी ऐसा है िजसके आगे उसक आ मा न पाप
और अकलष
ु है ।
95
के पाँव पर गर पड़ी और बोल , ' कसी तरह चमन ठाकुर से छूट कर आई हूँ।
अब डूब म ँ गी पर वहाँ नह ं लौटूँगी। तम
ु कह ं ले चलो! कह !ं म काम
क ँ गी। मजदरू कर लँ ग
ू ी। तु हारे भरोसे चल आई हूँ।'
स ी उनसे पछ
ू ती रह , 'कहाँ चलोगे? कहाँ ठहरोगे? कहाँ नौकर दलाओगे?
म अकेल नह ं रहूँगी!' इतने म एक हाथ म लाठ लए महे सर और एक म
लालटे न लए चमन ठाकुर आ पहुँचे ओर पीछे -पीछे भइया और भाभी। स ी
दे खते ह ना गन क तरह उछल कर कोने म चपक गई और ण-भर म ह
ि थ त समझ कर चाकू खोल कर मा णक क ओर लपक , 'दगाबाज!
कमीना!' पर भइया ने फौरन मा णक को खींच लया, महे सर ने स ी को
दबोचा और भाभी चीख कर भागीं।
96
उसके बाद कमरे म भयानक य रहा। स ी काबू म ह न आती थी, पर जब
चमन ठाकुर ने अपने एक ह फौजी हाथ से पटरा उठा कर स ी को मारा तो
वह बेहोश हो कर गर पड़ी। इसी अव था म स ी का चाकू वह ं छूट गया
और उसके गहन का बैग भी पता नह ं कहाँ गया। मा णक का अनम
ु ान था
क भाभी ने उसे सरु ा के खयाल से ले जा कर अपने संदक
ू म रख लया
था।
दस
ू रे दन चमन ठाकुर के घर पर काफ जमाव था य क घर खल
ु ा पड़ा था,
सामान बखरा पड़ा था, और चमन ठाकुर तथा स ी दोन गायब थे और
बहुत सब
ु ह उठ कर जो बू ढ़याँ गंगा नहाने जाती ह उनका कहना था क एक
ताँगा इधर से गया था िजस पर कुछ सामान लदा था, चमन ठाकुर बैठा था
और आगे क सीट पर सफेद चादर से ढका कोई सो रहा था जैसे लाश हो।
97
छठ दोपहर
( मागत)
पछल दोपहर से आगे
स ी क म ृ यु ने मा णक मु ला के क चे भावक
ु क व- दय पर बहुत गहर
छाप छोड़ी थी और नतीजा यह हुआ था क उनक कृ तय म म ृ यु क
त व न बार-बार सन
ु ाई पड़ती थी।
98
अ सर चाय-घर म जा कर बैठा करते थे। चाय-घर क चहल-पहल म
थोड़ा-सा मन बहल जाया करता है ।
99
ि थत क भाँ त हो गई िजसे सख
ु -द:ु ख, म -श ,ु काश- त मर,
सच-झठ
ू म कोई भेद नह ं मालम
ू पड़ता, जो समय और दशा के बंधन से
छुटकारा पा कर प ृ वी पर ब ध जीव के बीच म जीव मु त आ माओं क
भाँ त वचरण करते ह। सामािजक जीवन उ ह बार-बार अपने शकंजे म
कसने का यास करता था पर वे ेम के अलावा सभी चीज को न सार
समझते थे चाहे वह आ थक न हो, या राजनी तक आंदोलन, मो तहार
का अकाल हो, या को रया क लड़ाई, शां त क अपील हो या सां कृ तक
वाधीनता का घोषणा-प । केवल ेम स य है , ेम जो रस है , रस जो मï
है - (रसो वै स: - दे खए बह
ृ दार यक -)।
100
था क म भी च क उठता था और दस
ू रे भी च क उठते थे। िजनसे म अ सर
अपने को ह व वास दलाया करता था क म जी वत हूँ, याशील हूँ। जैसे
- कह कुछ और रहा हूँ, कहते-कहते कर कुछ और गया। इसे संक ण मनवाले
लोग झठ
ू बोलना या धोखा दे ना भी कह सकते ह। पर यह सब केवल दस
ू र
को च काना मा था, अपनी घबराहट से ऊब कर। तीखी बात करना, हर
मा यता को उखाड़ फकने क को शश करना, यह सब मेरे मन क उस व ृ
से े रत थीं जो मेरे अंदर क जड़ता और खोखलेपन का प रणाम थीं।'
ले कन जब हम लोग ने पछ
ू ा क इसम आ खर उ ह संतोष या मलता था
तो वे बोले, 'म महसस
ू करता था क म अ य लोग से कुछ अलग हूँ, मेरा
यि त व अनोखा है , अ वतीय है और समाज मझ
ु े समझ नह ं सकता।
साधारण लोग अ यंत साधारण ह, मेर तभा के तर से बहुत नीचे ह, म
उ ह िजस तरह चाहूँ बहका सकता हूँ। मझ
ु म अपने यि त व के त एक
अनाव यक मोह, उसक वकृ तय को भी तभा का तेज समझने का म
और अपनी असामािजकता को भी अपनी ईमानदार समझने का
अनाव यक दं भ आ गया था। धीरे -धीरे म अपने ह को इतना यार करने
लगा क मेरे मन के चार ओर ऊँची-ऊँची द वाल खड़ी हो ग और म वयं
अपने अहं कार म बंद हो गया, पर इसका नशा मझ
ु पर इतना तीखा था क
म कभी अपनी असल ि थ त पहचान नह ं पाया।'
'वा तव म एक दन बड़ी व च प रि थ त म यह रह य मझ
ु पर खल
ु ा क
स ी जी वत है और अब उसके मन म मेरे लए ेम के थान पर गहर घण
ृ ा
101
है । इसका पता लगते ह मने स ी क म ृ यु को ले कर जो यथ का
ताना-बाना अपने यि त व के चार ओर बन
ु रखा था वह छ न- भ न हो
गया और म फर एक व थ साधारण यि त क तरह हो गया।'
यह दे ख कर क स ी जी वत है और बाल-ब च स हत स न है , मा णक के
मन क सार नराशा जाती रह और उ ह नया जीवन मल गया और कुछ
दन बाद ह आर.एम.एस. म त ना क जगह खाल हुई तो क वता-कहानी
छोड़ कर उ ह ने नौकर भी कर ल और सख
ु से रहने लगे। (जैसे मा णक
मु ला के अ छे दन लौटे वैसे राम करे सबके लौट।) इसी के कुछ दन बाद
102
हम लोग क मा णक मु ला से घ न ठ म ता हो गई और उनके यहाँ हम
लोग का अ डा जमने लगा था।
103
अन याय
नीचे धरती पर महे सर दलाल एक गाड़ी खींचते हुए आते ह। गाड़ी चमन
ठाकुर क भीख माँगने वाल गाड़ी है । उसम छोटे -छोटे ब चे बैठे ह। जमन
ु ा
का ब चा, त ना का ब चा, स ी का ब चा। चमन ठाकुर का एक कटा हुआ
हाथ अंधे अजगर क तरह आता है । ब च क गरदन म लपट जाता है ,
मरोड़ने लगता है । उनका गला घट
ु ता है ।
इं धनष
ु के दोन यासे होठ और नजद क आ जाते ह।
104
त ना के दोन कटे हुए पैर रा स क तरह झम
ू ते हुए आते ह। उनम नई
लोहे क नाल जड़ी ह। ब चे उनसे कुचल जाते ह। हर घास - दरू -दरू तक
बरसात से साइ कल से कुचल हुई बीरबहू टयाँ फैल ह। र त सख
ू कर गाढ़ा
काला हो गया है । इं धनष
ु क छाया तमाम पहाड़ और मैदान पर तरछ हो
कर पड़ती है ।
105
सातवीं दोपहर
(सरू ज का सातवाँ घोड़ा)
जब मने पछ
ू ा क यह या बला है तो और लोग अधीर हो उठे और बोले, यह
सब म बाद म पछ
ू लँ ू और मा णक मु ला से कहानी सन
ु ाने का इसरार करने
लगे।
मा णक मु ला ने आगे कहानी सन
ु ाने से इनकार कया और बोले, एक
अ वि छ न म म इतनी ेम-कहा नयाँ बहुत काफ ह, सच तो यह क
106
उ ह ने इतने लोग के जीवन को ले कर एक परू ा उप यास ह सन
ु ा डाला है ।
सफ उसका प कहा नय का रखा ता क हर दोपहर को हम लोग क
दलच पी बद तरू बनी रहे और हम लोग ऊब न। वरना सच पछ
ू ो तो यह
उप यास ह था और इस ढं ग से सन
ु ाया गया था क जो लोग सख
ु ांत
उप यास के ेमी ह वे जमन
ु ा के सख
ु द वैध य से स न ह , वग म त ना
और जमन
ु ा के मलन पर स न ह , लल के ववाह से स न ह , और
स ी के चाकू से मा णक मु ला क जान बच जाने पर स न ह , और जो
लोग दख
ु ांत के ेमी ह वे स ी के भखार जीवन पर द:ु खी ह , त ना क रे ल
दघ
ु टना पर द:ु खी ह , लल और मा णक मु ला के अनंत वरह पर द:ु खी
ह । साथ ह मा णक मु ला ने हम लोग को यह भी समझाया क य य प
इ ह ेम-कहा नयाँ कहा गया है पर वा तव म ये 'ने त- ेम' कहा नयाँ ह
अथात जैसे उप नषद म यह म नह ं है , ने त-ने त कह कर म के
व प का न पण कया गया है उसी तरह उन कहा नय म 'यह ेम नह ं
था, यह भी ेम नह ं था, यह भी ेम नह ं था', कह कर ेम क या या और
सामािजक जीवन म उसके थान का न पण कया गया था। 'सामािजक
जीवन' का उ चारण करते हुए मा णक मु ला ने फर कंधे हला कर मझ
ु े
सचेत कया और बोले, तम
ु बहुत सपन के आद हो और तु ह यह बात
गरह म बाँध लेनी चा हए क जो ेम समाज क ग त और यि त के
वकास का सहायक नह ं बन सकता वह नरथक है । यह स य है । इसके
अलावा ेम के बारे म कहा नय म जो कुछ कहा गया है , क वताओं म जो
कुछ लखा गया है , प काओं म जो छापा गया है , वह सब रं गीन झठ
ू है और
कुछ नह ।ं फर उ ह ने यह भी बताया क उ ह ने सबसे पहले ेम-कहा नयाँ
इसी लए सन
ु ा क यह मानी व म हम लोग के दमाग पर ऐसी बरु
तरह छाया हुआ है क इसके सवा हम लोग कुछ भी सन
ु ने के लए तैयार न
107
होते। (बाद म उ ह ने अ य बहुत से कथा प म उप यास सन
ु ाए िज ह य द
अवकाश मला तो लखग
ूँ ा, पहले इस बीच म मा णक मु ला क त या
इन कहा नय पर जान लँ ।ू )
अंत म मने फर पछ
ू ा क सरू ज के सात घोड़ से उनका या ता पय था और
सपने सरू ज के सातव घोड़े से कैसे संब ध ह तो वे बड़ी गंभीरता से बोले क,
दे खो ये कहा नयाँ वा तव म ेम नह ं वरन उस िजंदगी का च ण करती ह
िजसे आज का न न-म यवग जी रहा है । उसम ेम से कह ं यादा
मह वपण
ू हो गया है आज का आ थक संघष, नै तक व ंख
ृ लता, इसी लए
इतना अनाचार, नराशा, कटुता और अँधेरा म यवग पर छा गया है । पर
कोई-न-कोई ऐसी चीज है िजसने हम हमेशा अँधेरा चीर कर आगे बढ़ने,
समाज- यव था को बदलने और मानवता के सहज मू य को पन
ु : था पत
करने क ताकत और ेरणा द है । चाहे उसे आ मा कह लो चाहे कुछ और।
और व वास, साहस,स य के त न ठा उस काशवाह आ मा को उसी
तरह आगे ले चलते ह जैसे सात घोड़े सय
ू को आगे बढ़ा ले चलते ह। कहा भी
गया है , 'सय
ू आ मा जगत त थष
ु च।'
108
तो वा तव म सय
ू के रथ को आगे बढ़ना ह है । हुआ यह क हमारे
वग- वग लत, अनै तक, ट और अँधेरे जीवन क ग लय म चलने से सय
ू
का रथ काफ टूट-फूट गया है और बेचारे घोड़ क तो यह हालत है क कसी
क दम
ु कट गई है तो कसी का पैर उखड़ गया है , तो कोई सख
ू कर ठठर हो
गया है , तो कसी के खरु घायल हो गए ह। अब बचा है सफ एक घोड़ा
िजसके पंख अब भी सा बत ह, जो सीना ताने, गरदन उठाये आगे चल रहा
है । वह घोड़ा है भ व य का घोड़ा, त ना, जमन
ु ा और स ी के न ह न पाप
ब च का घोड़ा; िजनक िजंदगी हमार िजंदगी से यादा अमन-चैन क
होगी, यादा प व ता क होगी, उसम यादा काश होगा, यादा अमत
ृ
होगा। वह सातवाँ घोड़ा हमार पलक म भ व य के सपने और वतमान के
नवीन आकलन भेजता है ता क हम वह रा ता बना सक िजन पर हो कर
भ व य का घोड़ा आएगा; इ तहास के वे नए प ने लख सक िजन पर
अ वमेध का दि वजयी घोड़ा दौड़ेगा। मा णक मु ला ने यह भी बताया क
य य प बाक छह घोड़े दब
ु ल, र तह न और वकलांग ह पर सातवाँ घोड़ा
तेज वी और शौयवान है और हम अपना यान और अपनी आ था उसी पर
रखनी चा हए।
109
अंत म म यह भी प ट कर दे ना चाहता हूँ क इस लघु उप यास क
वषय-व तु म जो कुछ भी भलाई-बरु ाई हो उसका िज मा मझ
ु पर नह ं
मा णक मु ला पर ह है । मने सफ अपने ढं ग से वह कथा आपके सामने
तत
ु कर द है । अब आप मा णक मु ला और उनक कथाकृ त के बारे म
अपनी राय बनाने के लए वतं ह।
+ इत +
110