You are on page 1of 110

1

2
आगे बढ़ो,

सय
ू दय का हुआ है !

सरू ज को मु त करो ता क संसार म काश हो,

दे खो उसके रथ का च क चड़ म फँस गया है

आगे बढ़ो सा थयो!

सरू ज के लए यह संभव नह ं क वो अकेले उ दत हो सके

घट
ु ने जमा कर, सीना अड़ा कर

उसके रथ को क चड़ से उबारो!

दे खो, हम सब उसको सहारा दे रहे ह

य क हम सब

सरू ज के अंश ह।

- एंजेलो सके लय

3
लोक - वय

का तक और गोपेश को

अ मत नेह से

4
भू मका

( थम सं करण से)

लेखक को दो चीज से बचना चा हए : एक तो भू मकाएँ लखने से, दस


ू रे
अपने समवत लेखक के बारे म अपना मत कट करने से। यहाँ म ये दोन
भल
ू करने जा रहा हूँ; पर इसम मझ
ु े जरा भी झझक नह ं है , खेद क तो बात
ह या। म मानता हूँ; क धमवीर भारती हंद क उन उठती हुई तभाओं
म से ह िजन पर हंद का भ व य नभर करता है और िज ह दे ख कर हम
कह सकते ह क हंद उस अँ धयारे अंतराल को पार कर चक
ु है जो इतने
दन से मानो अंतह न द ख पड़ता था।

तभाएँ और भी ह, कृ त व और का भी उ ले य है । पर उनसे धमवीर जी


म एक वशेषता है । केवल एक अ छे , प र मी, रोचक लेखक ह नह ं ह; वे
नई पौध के सबसे मौ लक लेखक भी ह। मेरे नकट यह बहुत बड़ी वशेषता
है , और इसी क दाद दे ने के लए मने यहाँ वे दोन भल
ू करना वीकार कया
है िजनम से एक से तो म सदा बचता आया हूँ; हाँ, दस
ू र से बचने क
को शश नह ं क य क अपने बहुत-से समकाल न के अ यास के तकूल
म अपने समकाल न क रचनाएँ पढ़ता हूँ तो उनके बारे म कुछ मत कट
करना बु धमानी न हो तो अ वाभा वक तो नह ं है ।

भारती जी नयस नह ं ह : कसी को जी नयस कह दे ना उसक तभा को


बहुत भार वशेषण दे कर उड़ा दे ना ह है । जी नयस या है , यह हम जानते
ह नह ।ं ल ण को ह जानते ह : अथक म-साम य और अ यवसाय,

5
बहुमख
ु ी याशीलता, ाचय
ु , चरजा त चर- नमाणशील क पना, सतत
िज ासा और पयवे ण, दे श-काल या यग
ु -स य के त सतकता,
परं परा ान, मौ लकता, आ म व वास और-हाँ, - एक गहर वनय। भारती
म ये सभी व यमान ह; अनप
ु ात इनका जी नयस म भी समान नह ं होता।
और भारती म एक चीज और भी है जो तभा के साथ ज र तौर पर नह ं
आती - हा य।

ये सब बात जो म रहा हूँ, इ ह वह पाठक समझेगा िजसने भारती क अ य


रचनाएँ भी पढ़ ह, जैसे क मने पढ़ ह। िजसने वे नह ं पढ़ ं, वह सोच सकता
है क इस तरह क साधारण बात कहने से या लाभ िजनक कसौट तत

साम ी से न हो सके? और उसका सोचना ठ क होगा : थाल -पल
ु ाक याय
कह ं लगता है तो मौ लक तभा क परख म, उसक छाप छोट -सी अलग
कृ त पर भी प ट होती है ; और 'सरू ज का सातवाँ घोड़ा' पर भी धमवीर क
वश ट तभा क छाप है ।

सबसे पहल बात है उसका गठन। बहुत सीधी, बहुत साद , परु ाने ढं ग क -
बहुत परु ाने, जैसा आप बचपन से जानते ह - अलफलैला वाला ढं ग, पंचतं
वाला ढं ग, बोकैि छयो वाला ढं ग, िजसम रोज क सागोई क मज लस
जट
ु ती है , फर कहानी म से कहानी नकलती है । ऊपर तौर पर दे खए तो
यह ढं ग उस जमाने का है जब सब काम फुरसत और इ मीनान से होते थे;
और कहानी भी आराम से और मजे ले कर कह जाती थी। पर या भारती
को वैसी कहानी वैसे कहना अभी ट है ? नह ,ं यह सीधापन और परु ानापन
इसी लए है क आपम भारती क बात के त एक खल
ु ापन पैदा हो जाए;
बात वह फुरसत का व त काटने या दल बहलाने वाल नह ं है , दय को

6
कचोटने, बु ध को झँझोड़ कर रख दे नेवाल है । मौ लकता अभत
ू पव
ू , पण

ंख
ृ ला- वह न नएपन म नह ,ं परु ाने म नई जान डालने म भी है (और कभी
परु ानी जान को नई काया दे ने म भी); और भारती ने इस ऊपर से परु ाने जान
पड़नेवाले ढं ग का भी बलकुल नया और हंद म अनठ
ू ा उपयोग कया है ।
और वह केवल योग-कौतक
ु के लए नह ,ं बि क इस लए क वह जो कहना
चाहते ह उसके लए यह उपयु त ढं ग है ।

'सरू ज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी म अनेक कहा नयाँ नह ,ं अनेक


कहा नय म एक कहानी है । वह एक परू े समाज का च और आलोचन है ;
और जैसे उस समाज क अनंत शि तयाँ पर पर-संब ध, पर पर आ त
और पर पर संभत
ू ह, वैसे ह उसक कहा नयाँ भी। ाचीन च म जैसे एक
ह फलक पर पर पर कई घटनाओं का च ण करके उसक वणना मकता
को संपण
ू बनाया जाता है , उसम एक घटना- च क ि थरता के बदले एक
घटना म क वाहमयता लायी जाती है , उसी कार इस समाज- च म
एक ह व तु को कई तर पर, कई लोग से और कई काल म दे खने और
दशाने का य न कया गया है , िजससे उसम दे श और काल दोन का सार
त बं बत हो सके। लंबाई और चौड़ाई के दो आयाम के फलक म गहराई
का तीसरा आयाम छाँह वारा दखाया जाता है ; समाज- च म दे श के तीन
आयाम के अ त र त काल के भी आयाम आव यक होते ह और उ ह दशाने
के लए च कार को अ य उपाय ढूँढ़ना आव यक होता है ।

वह च सद
ंु र, ी तकर या सख
ु द नह ं है ; य क उस समाज का जीवन
वैसा नह ं है और भारती ने च को यथाश य स चा उतारना चाहा है । पर
वह असद
ंु र या अ ी त कर भी नह ,ं य क वह मत
ृ नह ं है , न म ृ यप
ु ज
ू कह

7
है । उसम दो चीज ह जो उसे इस खतरे से उबारती ह - और इनम से एक भी
काफ होती है : एक तो उसका हा य, भले ह वह व और कभी कु टल या
व प
ू भी हो; दस
ू रे एक अद य और न ठामयी आशा। वा तव म जीवन के
त यह अ डग आ था ह सरू ज का सातवाँ घोड़ा है , 'जो हमार पलक म
भ व य के सपने और वतमान के नवीन आकलन भेजता है ता क हम वह
रा ता बना सक िजस पर हो कर भ व य का घोड़ा आएगा।' इस व तु का
इतना सद
ंु र नवाह, उसके गंभीरतर ता पय का इस साहसपण
ू और
ईमानदार ढं ग से वीकार, और उस वीकृ त म भी उससे न हार कर उठने
का न चय - ये सब 'सरू ज का सातवाँ घोड़ा' को एक मह वपण
ू कृ त बनाते
ह।

'पर कोई-न-कोई चीज ऐसी है िजसने हमेशा अँधेरे को चीर कर आगे बढ़ने,
समाज- यव था को बदलने और मानवता के सहज मू य को पन
ु : था पत
करने क ताकत और ेरणा द है । चाहे उसे आ मा कह लो, चाहे कुछ और।
और व वास,साहस, स य के त न ठा, उस काशवाह आ मा को उसी
तरह आगे ले चलते ह जैसे सात घोड़े सय
ू को आगे बढ़ा ले चलते ह।' ये
पु तक के कथा-नायक और मख
ु पा मा णक मु ला के श द ह। कसी
उि त के न म से एक पा के साथ लेखक को संपण
ू प से एका म करने
क च लत मख
ू ता म नह ं क ँ गा, पर इस उि त म बोलने वाला वह
व वास वयं भारती का भी व वास है , ऐसा मझ
ु े लगता है ; और वह
व वास हम सबम अटूट रहे , ऐसी मेर कामना है ।

वसंत पंचमी, व. सं. 2008 -


अ ेय

8
9
नवेदन

'गन
ु ाह का दे वता' के बाद यह मेर दस
ू र कथा-कृ त है । दोन कृ तय म
काल- म का अंतर पड़ने के अलावा उन बंदओ
ु ं म भी अंतर आ गया है िजन
पर हो कर मने सम या का व लेषण कया है ।

कथा-शैल भी कुछ अनोखे ढं ग क है , जो है तो वा तव म परु ानी ह , पर


इतनी परु ानी क आज के पाठक को थोड़ी नई या अप र चत-सी लग सकती
है । बहुत छोटे -से चौखटे म काफ लंबा घटना- म और काफ व तत
ृ े
का च ण करने क ववशता के कारण यह ढं ग अपनाना पड़ा है ।

मेरा ि टकोण इन कथाओं म प ट है ; कंतु इनम आए हुए मा सवाद के


िज के कारण थोड़ा-सा ववाद कसी े से उठाया जा सकता है । जो लोग
स य क ओर से आँख मँद
ू कर अपने प को गलत या सह ढं ग से चा रत
करने को समालोचना समझते ह, उनसे मझ
ु े कुछ नह ं कहना है , य क
सा ह य क ग त म उनका कोई रचना मक मह व म मानता ह नह ;ं हाँ,
िजसम थोड़ी-सी समझदार , सहानभ
ु ू त और प रहास- व ृ है उनसे मझ
ु े
एक प ट बात कहनी है :

पछले तीन-चार वष म मा सवाद के अ ययन से मझ


ु े िजतनी शां त,
िजतना बल और िजतनी आशा मल है , हंद क मा सवाद समी ा और
चंतना से उतनी ह नराशा और असंतोष। अपने समाज, अपनी
जन-सं कृ त और उसक परं पराओं से वे नतांत अन भ रहे ह। अत: उनके
न कष ऐसे ह रहे ह क उन पर या तो रोया जा सकता है या दल खोल कर

10
हँसा जा सकता है । फर उसक क मय क ओर इशारा करने पर वे खीज
उठते ह, वह और भी हा यापद और दयनीय है ।

इसके बावजद
ू मेर आ था कभी भी मा सवाद म कम नह ं हुई और न मने
अपनी जनता के द:ु ख-दद से मँह
ु फेरा है । धीरे -धीरे अपने ि टकोण म
अ धका धक सामािजकता वक सत करने क ओर म ईमानदार से उ मख

रहा हूँ और रहूँगा। और उसी ि ट से जहाँ मझ
ु े मा सवाद श दजाल के पीछे
भी असंतोष, अहं वाद और गट
ु बंद द ख पड़ी है उसक ओर साहस से प ट
नदश करना म अ नवाय समझता हूँ य क ये त व हमारे जीवन और
हमार सं कृ त क व थ ग त म खतरे पैदा करते ह। म जानता हूँ क जो
मा सवाद अपने यि त व म सामािजक तथा मा सवाद क पहल शत
ऑ जेि ट वट वक सत कर चक
ु े ह, वे मेर बात समझगे और इतना मेरे
संतोष के लए यथे ट है ।

इसक भू मका ी अ ेय ने लखनी वीकार कर ल , इसके लए म उनका


कतना आभार हूँ यह श द म य त नह ं कया जा सकता। वे मेरे अंतर
क आ था और ईमानदार को पहचानते ह और आज के यग
ु म कसी भी
लेखक को इससे अ धक या चा हए! उ ह ने इसक शैल तथा वषय-व तु
के मम को जैसे तत
ु कया है , वह केवल उ ह ं के लए संभव था। मेरे त
उ ह ने जो कुछ अनश
ु स
ं ा मक वा य लखे ह, पता नह ं म उनके यो य हूँ या
नह ,ं पर म उ ह नेह आशीवाद के प म सर झक
ु ा कर हण करता हूँ
और चाहता हूँ क अपने को उनके यो य स ध कर सकँू । अपने पाठक से
मझ
ु े अ सर बड़े अनोखे ओर बड़े नेहपण
ू प मलते रहे ह। मेरे लए वे
मू यवान न धयाँ ह। उनसे म एक बात कहना चाहता हूँ - म लख- लख

11
कर सीखता चल रहा हूँ और सीख-सीख कर लखता चल रहा हूँ। जो कुछ
लखता हूँ उसम सामािजक उ दे य अव य है पर वह वांत:सख
ु ाय भी है ।
यह अव य है क मेरे ' व' म आप सभी सि म लत ह, आप सभी का
सख
ु -द:ु ख, वेदना-उ लास मेरा अपना है : वा तव म वह कोई बहुत बड़ी
कहानी है जो हम सब के मा यम से य त हो रह है । केवल उसी का एक
अंश मेर कलम से उतर आया है । इसी लए इसम जो कुछ ेय कर है वह
आप सभी का ह है ; जो कुछ कमजो रयाँ ह कृ त म, वह मेर अपनी समझी
जाएँ।

शवरा धमवीर भारती

23 फरवर , 1952

12
उपो घात

इसके पहले क म आपके सामने मा णक मु ला क अ भत


ु न कषवाद
ेम-कहा नय के प म लखा गया यह 'सरू ज का सातवाँ घोड़ा' नामक
उप यास तत
ु क ँ , यह अ छा होगा क पहले आप यह जान ल क
मा णक मु ला कौन थे, वे हम लोग को कहाँ मले, कैसे उनक
ेम-कहा नयाँ हम लोग के सामने आ , ेम के वषय म उनक धारणाएँ
और अनभ
ु व या थे, तथा कहानी क टे कनीक के बारे म उनक मौ लक
उ भावनाएँ या थीं।

'थीं' का योग म इस लए कर रहा हूँ क मझ


ु े यह नह ं मालम
ू क आजकल
वे कहाँ ह, या कर रहे ह, अब कभी उनसे मल
ु ाकात होगी या नह ;ं और
अगर सचमच
ु वे लापता हो गए तो कह ं उनके साथ उनक ये अ भत

कहा नयाँ भी लापता न हो जाएँ इस लए म इ ह आपके सामने पेश कए
दे ता हूँ।

एक जमाना था जब वे हमारे मह
ु ले के मशहूर यि त थे। वह ं पैदा हुए, बड़े
हुए, वह ं शोहरत पाई और वह ं से लापता हो गए। हमारा मह
ु ला काफ बड़ा
है , कई ह स म बँटा हुआ है और वे उस ह से के नवासी थे जो सबसे
यादा रं गीन और रह यमय है और िजसक नई और परु ानी पीढ़ दोन के
बारे म अजब-अजब-सी कंवदं तयाँ मशहूर ह।

मु ला उनका उपनाम नह ,ं जा त थी। क मीर थे। कई पु त से उनका


प रवार यहाँ बसा हुआ था, वे अपने भाई और भाभी के साथ रहते थे। भाई

13
और भाभी का तबादला हो गया था और वे परू े घर म अकेले रहते थे। इतनी
सां कृ तक वाधीनता तथा इतनी क यु न म एक साथ उनके घर म थी
क य य प हम लोग उनके घर से बहुत दरू रहते थे, ले कन वह ं सबका
अ डा जमा करता था। हम सब उ ह गु वत मानते थे और उनका भी हम
सब पर न छल गाढ़ नेह था। वे नौकर करते ह या पढ़ते ह, नौकर
करते ह तो कहाँ, पढ़ते ह तो या पढ़ते ह - यह भी हम लोग कभी नह ं जान
पाए। उनके कमरे म कताब का नाम- नशान भी नह ं था। हाँ, कुछ
अजब-अजब चीज वहाँ थीं जो अमम
ू न दस
ू रे लोग के कमर म नह ं पाई
जातीं। मसलन द वार पर एक परु ाने काले े म म एक फोटो जड़ा टँ गा था :
'खाओ, बदन बनाओ!' एक ताख म एक काल बट का बड़ा-सा सद
ंु र चाकू
रखा था, एक कोने म एक घोड़े क परु ानी नाल पड़ी थी और इसी तरह क
कतनी ह अजीबोगर ब चीज वहाँ थीं िजनका औ च य हम लोग कभी नह ं
समझ पाते थे। इनके साथ ह साथ हम यादा दलच पी िजस बात म थी,
वह यह क जाड़ म मँग
ू फ लयाँ और गर मय म खरबज
ू े वहाँ हमेशा मौजद

रहते थे और उसका वाभा वक प रणाम यह था क हम लोग भी हमेशा वहाँ
मौजद
ू रहते थे।

अगर काफ फुरसत हो, परू ा घर अपने अ धकार म हो, चार म बैठे ह , तो
नि चत है क घम
ू - फर कर वाता राजनी त पर आ टकेगी और जब
राजनी त म दलच पी ख म होने लगेगी तो गो ठ क वाता ' ेम' पर आ
टकेगी। कम-से-कम म यवग म तो इन दो वषय के अलावा तीसरा वषय
नह ं होता। मा णक मु ला का दखल िजतना राजनी त म था उतना ह ेम
म था, ले कन जहाँ तक सा हि यक वाता का न था वे ेम को तरजीह
दया करते थे।

14
ेम के वषय म बात करते समय वे कभी-कभी कहावत को अजब पम
पेश कया करते थे और उनम से न जाने य एक कहावत अभी तक मेरे
दमाग म च पाँ है , हालाँ क उसका सह मतलब न म तब समझा था न अब!
अ सर ेम के वषय म अपने कड़वे-मीठे अनभ
ु व से हम लोग का
ानवधन करने के बाद खरबज
ू ा काटते हुए कहते थे, ' यारे बंधओ
ु ! कहावत
म चाहे जो कुछ हो, ेम म खरबज
ू ा चाहे चाकू पर गरे चाहे चाकू खरबज
ू े पर,
नक
ु सान हमेशा चाकू का होता है । अत: िजसका यि त व चाकू क तरह
तेज और पैना हो, उसे हर हालत म उस उलझन से बचना चा हए।' ऐसी
अ य कहावत थीं जो याद आने पर बाद म लखग
ूँ ा।

ले कन जहाँ तक कहा नय का न था, उनक नि चत धारणा थी क


कहा नय क तमाम न ल म ेम कहा नयाँ ह सबसे सफल सा बत होती
ह, अत: कहा नय म रोमांस का अंश ज र होना चा हए। ले कन साथ ह हम
अपनी ि ट संकु चत नह ं कर लेनी चा हए और कुछ ऐसा चम कार करना
चा हए क वे समाज के लए क याणकार अव य ह ।

जब हम लोग पछ
ू ते थे क यह कैसे संभव है क कहा नयाँ ेम पर लखी
जाएँ पर उनका भाव क याणकार हो, तब वे कहते थे क यह तो चम कार
है तु हारे मा णक मु ला म जो अ य कसी कहानीकार म है ह नह ।ं

य य प उ ह ने उस समय तक एक भी कहानी लखी नह ं थी, फर भी


कहा नय के वषय म उनका वशाल अ ययन था (कम-से-कम हम लोग
को ऐसा ह लगता था) और उनका कहानी-कला पर पण
ू अ धकार था।

15
कहा नय क टे कनीक के बारे म उनका सबसे पहला स धांत था क
आधु नक कहानी म आ द, म य या अंत, तीन म से कोई-न-कोई त व
अव य छूट जाता है । ऐसा नह ं होना चा हए। उनका कहना था क कहानी
वह पण
ू है िजसम आ द म आ द हो, म य म म य हो और अंत म अंत हो।
इनक या या वे य करते थे : कहानी का आ द वह है िजसके पहले कुछ न
हो। बाद म म य हो, म य वह है िजसके पहले आ द हो बाद म अंत हो। अंत
उसे कहते ह िजसके पहले म य हो बाद म र द क टोकर हो।

कहा नय क टे कनीक के बारे म उनका दस


ू रा स धांत यह था क कहा नयाँ
चाहे छायावाद ह या ग तवाद , ऐ तहा सक ह या अनै तहा सक,
ु लमल गी, कंतु उनसे कोई-न-कोई न कष अव य
समाजवाद ह या मस
नकलना चा हए। वह न कष समाज के लए क याणकार होना चा हए
ऐसा उनका नि चत मत था और इस लए य य प उ ह ने जीवन भर कोई
कहानी नह ं लखी पर वे अपने को कथा-सा ह य म न कषवाद का वतक
मानते थे। कथा- श प क परू णाल वे इस कार बताते थे :

कुछ पा लो, और एक न कष पहले से सोच लो, जैसे... यानी जो भी


न कष नकालना हो, फर अपने पा पर इतना अ धकार रखो, इतना
शासन रखो क वे अपने-आप ेम के च म उलझ जाएँ और अंत म वे उसी
न कष पर पहुँच जो तम
ु ने पहले से तय कर रखा है ।

मेरे मन म अ सर इन बात पर शंकाएँ भी उठती थीं, पर न कषवाद के


वषय म उ ह ने मझ
ु े बताया क हंद म बहुत-से कहानीकार इसी लए

16
स ध हो गए ह क उनक कहानी म कथानक चाहे लँ गड़ाता हो, पा चाहे
पल पले ह , ले कन सामािजक तथा राजनी तक न कष अ भत
ु होते ह।

मेर दस
ू र शंका कथाव तु क ेम संबध
ं ी अ नवायता के वषय म थी। म
अ सर सोचता था क िजंदगी म अ धक-से-अ धक दस बरस ऐसे होते ह
जब हम ेम करते ह। उन दस बरस म खाना-पीना, आ थक संघष,
सामािजक जीवन, पढ़ाई- लखाई, घम
ू ना- फरना, सनेमा और सा ता हक
प , म -गो ठ इन सब से िजतना समय बचता है , उतने म हम ेम करते
ह। फर इतना मह व उसे य दया जाए? सैर-सपाटा, खोज, शकार,
यायाम, मोटर चलाना, रोजी-रोजगार, ताँगेवाले, इ केवाले और प के
संपादक, सैकड़ वषय ह िजन पर कहा नयाँ लखी जा सकती ह, फर
आ खर ेम पर ह य लखी जाएँ?

जब मने मा णक मु ला से यह पछ
ू ा तो सहसा वे भावक
ु हो गए और बोले,
'तु ह बां ला आती है ?' मने कहा, 'नह ं, य ?' तो गहर साँस ले कर बोले,
'टै गोर का नाम तो सन
ु ा ह होगा! उ ह ने लखा है , 'आमार माझारे जो आछे
से गो कोनो वर हणी नार !' अथात मेरे मन के अंदर जो बसा है वह कोई
वर हणी नार है । और वह वर हणी नार अपनी कथा कहा करती है -
बार-बार तरह-तरह से।' और फर अपने मत क या या करते हुए बोले क
वर हणी ना रयाँ भी कई भाँ त क होती ह - अनढ़
ू ा वर हणी, ऊढ़ा
वर हणी, मु धा वर हणी, ौढ़ा वर हणी आ द -आ द, तथा वरह भी कई
कार के होते ह - बा य-प रि थ तज य, आंत रक-मन:ि थ तज य
इ या द। इन सब पर कहा नयाँ लखी जा सकती ह; और मा णक मु ला का

17
चम कार यह था क जैसे बाजीगर मँह
ु से आम नकाल दे ता है वैसे ह वे इन
कहा नय से सामािजक क याण के न कष नकाल दे ने म समथ थे।

हालाँ क मा णक मु ला के बारे म काश का मत था क 'यार, हो न हो


मा णक मु ला के बारे म भी हंद के अ य कहानीकार क तरह नार के
लए कुछ 'ऑबसेशन' है !' पर यह वह कभी मा णक मु ला के सामने कहने
का साहस नह ं करता था क वे उसका सह -सह जवाब दे सक और जहाँ तक
मेरा सवाल है , म आज तक उनके बारे म सह फैसला नह ं कर पाया हूँ।
इसी लए म ये कहा नयाँ य -क - य आपके सामने तत
ु कए दे ता हूँ;
ता क आप वयं नणय कर ल। इसका नाम 'सरू ज का सातवाँ घोड़ा' य
रखा गया इसका प ट करण भी अंत म मने कर दया है ।

हाँ, आप मझ
ु े इसके लए मा करगे क इनक शैल म बोलचाल के लहजे
क धानता है और मेर आदत के मत
ु ा बक उनक भाषा मानी,
च ा मक, इं धनष
ु और फूल से सजी हुई नह ं है । इसका मु य कारण यह
है क ये कहा नयाँ मा णक मु ला क ह, म तो केवल तत
ु कता हूँ, अत:
जैसे उनसे सन
ु ी थीं उ ह यथासंभव वैसे ह तत
ु करने का यास कर रहा
हूँ।

18
पहल दोपहर
(नमक क अदायगी)

अथात जमन
ु ा का नमक मा णक ने कैसे अदा कया

उ ह ने सबसे पहल कहानी एक दन गरमी क दोपहर म सन


ु ाई थी जब हम
लोग लू के डर से कमरा चार ओर से बंद करके, सर के नीचे भीगी तौ लया
रखे चप
ु चाप लेटे थे। काश और ओंकार ताश के प े बाँट रहे थे और म
अपनी आदत के मत
ु ा बक कोई कताब पढ़ने क को शश कर रहा था।
मा णक ने मेर कताब छ न कर फक द और बज
ु ग
ु ाना लहजे म कहा, 'यह
लड़का बलकुल नक मा नकलेगा। मेरे कमरे म बैठ कर दस
ू र क
कहा नयाँ पढ़ता है । छ:, बोल कतनी कहा नयाँ सन
ु ेगा।' सभी उठ बैठे और
मा णक मु ला से कहानी सन
ु ाने का आ ह करने लगे। अंत म मा णक
मु ला ने एक कहानी सन
ु ाई िजसम उनके कथनानस
ु ार उ ह ने इसका
व लेषण कया था क ेम नामक भावना कोई रह यमय, आ याि मक या
सवथा वैयि तक भावना न हो कर वा तव म एक सवथा मानवीय
सामािजक भावना है , अत: समाज- यव था से अनश
ु ा सत होती है और
उसक नींव आ थक-संगठन और वग-संबध
ं पर था पत है ।

नयमानस
ु ार पहले उ ह ने कहानी का शीषक बताया : 'नमक क अदायगी'।
इस शीषक पर उप यास-स ाट ेमचंद के 'नमक का दारोगा' का काफ
भाव मालम
ू पड़ता था पर कथाव तु सवथा मौ लक थी। कहानी इस कार
थी -

19
मा णक मु ला के घर के बगल म एक परु ानी कोठ थी िजसके पीछे छोटा
अहाता था। अहाते म एक गाय रहती थी, कोठ म एक लड़क । लड़क का
नाम जमन
ु ा था, गाय का नाम मालम
ू नह ।ं गाय बढ़
ू थी, रं ग लाल था, सींग
नक
ु ले थे। लड़क क उ पं ह साल क थी, रं ग गेहुँआ था (ब ढ़या पंजाबी
गेहूँ) और वभाव मीठा, हँसमख
ु और म त। मा णक, िजनक उ सफ
दस बरस क थी, उसे जमु नयाँ कह कर भागा करते थे और वह बड़ी होने के
नाते जब कभी मा णक को पकड़ पाती थी तो इनके दोन कान उमेठती और
मौके-बेमौके चट
ु क काट कर इनका सारा बदन लाल कर दे ती। मा णक
मु ला न तार क कोई राह न पा कर चीखते थे, माफ माँगते थे और भाग
जाते थे।

ले कन जमन
ु ा के दो काम मा णक मु ला के सपद
ु थे। इलाहाबाद से
नकलनेवाल िजतनी स ते क म क ेम-कहा नय क प काएँ होती थीं
वे जमन
ु ा उ ह ं से मँगवाती थी और शहर के कसी भी सनेमाघर म अगर
नई तसवीर आई तो उसक गाने क कताब भी मा णक को खर द लानी
पड़ती थी। इस तरह जमन
ु ा का घरे लू पु तकालय दन दन बढ़ता जा रहा
था।

समय बीतते कतनी दे र लगती है । कहा नयाँ पढ़ते-पढ़ते और सनेमा के


गीत याद करते-करते जमन
ु ा बीस बरस क हो गई और मा णक पं ह बरस
के, और भगवान क माया दे खो क जमन
ु ा का याह ह कह ं तय नह ं हुआ।
वैसे बात चल । पास ह रहनेवाले महे सर दलाल के लड़के त ना के बारे म
सारा मह
ु ला कहा करता था क जमन
ु ा का याह इसी से होगा, य क

20
त ना और जमन
ु ा म बहुत पटती थी, त ना जमन
ु ा क बरादर का भी था,
हालाँ क कुछ नीचे गोत का था और सबसे बड़ी बात यह थी क महे सर दलाल
से सारा मह
ु ला डरता था। महे सर बहुत ह झगड़ाल,ू घमंडी और लंपट था,
त ना उतना ह सीधा, वन और स च र ; और सारा मह
ु ला उसक
तार फ करता था।

ले कन जैसा पहले कहा जा चक


ु ा है क त ना थोड़े नीच गोत का था, और
जमन
ु ा का खानदान सार बरादर म खरे और ऊँचे होने के लए यात था,
अत: जमन
ु ा क माँ क राय नह ं पड़ी। चँ ू क जमन
ु ा के पता बक म साधारण
लक मा थे और तन वाह से या आता-जाता था, तीज- यौहार,
मड़
ू न-दे वकाज म हर साल जमा रकम खच करनी पड़ती थी अत: जैसा हर
म यम ेणी के कुटुंब म पछल लड़ाई म हुआ है , बहुत ज द सारा जमा
पया खच हो गया और शाद के लए कानी कौड़ी नह ं बची।

और बेचार जमन
ु ा त ना से बातचीत टूट जाने के बाद खब
ू रोई, खब
ू रोई।
फर आँसू प छे , फर सनेमा के नए गीत याद कए। और इस तरह से
होते-होते एक दन बीस क उ को भी पार कर गई। और मा णक का यह
हाल क य - य जमन
ु ा बढ़ती जाए य - य वह इधर-उधर दब
ु ल -मोट
होती जाए और ऐसी क मा णक को भल भी लगे और बरु भी। ले कन एक
उसक बरु आदत पड़ गई थी क चाहे मा णक मु ला उसे चढ़ाएँ या न
चढ़ाएँ वह उ ह कोने-अतरे म पाते ह इस तरह दबोचती थी क मा णक
मु ला का दम घट
ु ने लगता था और इसी लए मा णक मु ला उसक छाँह से
कतराते थे।

21
ले कन क मत क मार दे खए क उसी समय मह
ु ले म धम क लहर चल
पड़ी और तमाम औरत िजनक लड़ कयाँ अन याह रह गई थीं, िजनके प त
हाथ से बेहाथ हुए जा रहे थे, िजनके लड़के लड़ाई म चले गए थे, िजनके दे वर
बक गए थे, िजन पर कज हो गया था; सभी ने भगवान क शरण ल और
क तन शु हो गए और कं ठयाँ ल जाने लगीं। मा णक क भाभी ने भी
हनम
ु ान-चौतरावाले मचार से कंठ ल और नयम से दोन व त भोग
लगाने लगीं। और सब
ु ह-शाम पहल ट क गऊ माता के नाम सकने लगीं।
घर म गऊ थी नह ं अत: कोठ क बढ़
ू गाय को वह ट क दोन व त
खलाई जाती थी। दोपहर को तो मा णक कूल चले जाते थे, दन का व त
रहता था अत: भाभी खद
ु चादर ओढ़ कर गाय को रोट खला आती थीं पर
रात को मा णक मु ला को ह जाना पड़ता था।

गाय के अहाते के पास जाते हुए मा णक मु ला क ह काँपती थी। जमन


ु ा
का कान खींचना उ ह अ छा नह ं लगता था (और अ छा भी लगता था!)
अत: डर के मारे राम का नाम लेते हुए खश
ु ी-खश
ु ी वे गैया के अहाते क ओर
जाया करते थे।

एक दन ऐसा हुआ क मा णक मु ला के यहाँ मेहमान आए और खाने-पीने


म यादा रात बीत गई। मा णक सो गए तो उनक भाभी ने उ ह जगा कर
ट क द और कहा, 'गैया को दे आओ।' मा णक ने काफ बहानेबाजी क
ले कन उनक एक न चल । अंत म आँख मलते-मलते अहाते के पास पहुँचे
तो या दे खते ह क गाय के पास भस
ू ेवाल कोठर के दरवाजे पर कोई छाया
बलकुल कफन-जैसे सफेद कपड़े पहने खड़ी है । इनका कलेजा मँह
ु को आने
लगा, पर इ ह ने सन
ु रखा था क भत
ू - ेत के आगे आदमी को ह मत बाँधे

22
रहना चा हए और उसे पीठ नह ं दखलानी चा हए वरना उसी समय आदमी
का ाणांत हो जाता है ।

मा णक मु ला सीना ताने और काँपते हुए पाँव को सँभाले हुए आगे बढ़ते


गए और वह औरत वहाँ से अ य हो गई। उ ह ने बार-बार आँख मल कर
दे खा, वहाँ कोई नह ं था। उ ह ने संतोष क साँस ल , गाय को ट क द और
लौट चले। इतने म उ ह लगा क कोई उनका नाम ले कर पक
ु ार रहा है ।
मा णक मु ला भल -भाँ त जानते थे क भत
ू - ेत मह
ु ले भर के लड़क का
नाम जानते ह, अत: उ ह ने कना सरु त नह ं समझा। ले कन आवाज
नजद क आती गई और सहसा कसी ने पीछे से आ कर मा णक मु ला का
कालर पकड़ लया। मा णक मु ला गला फाड़ कर चीखने ह वाले थे कसी
ने उनके मँह
ु पर हाथ रख दया। वे पश पहचानते थे। जमन
ु ा!

ले कन जमन
ु ा ने कान नह ं उमेठे। कहा, 'चलो आओ।' मा णक मु ला बेबस
थे। चप
ु चाप चले गए और बैठ गए। अब मा णक भी चप
ु और जमन
ु ा भी
चप
ु । मा णक जमन
ु ा को दे ख, जमन
ु ा मा णक को दे खे और गाय उन दोन
को दे खे। थोड़ी दे र बाद मा णक ने घबरा कर कहा, 'हम जाने दो जमन
ु ा!'
जमन
ु ा ने कहा, 'बैठो, बात करो मा णक। बड़ा मन घबराता है ।'

मा णक फर बैठ गए। अब बात कर तो या कर? उनक लास म उन दन


भग
ू ोल म वेज नहर, इ तहास म स ाट जलालु द न अकबर, हंद म
'इ या द क आ मकथा' और अंगरे जी म 'रे ड राइ डंग हुड' पढ़ाई जा रह थी,
पर जमन
ु ा से इसक बात या कर! थोड़ी दे र बाद मा णक ऊब कर बोले, 'हम
जाने दो जमन
ु ा, नींद लग रह है ।'

23
'अभी कौन रात बीत गई है । बैठो!' कान पकड़ कर जमन
ु ा बोल । मा णक ने
घबरा कर कहा, 'नींद नह ं लग रह है , भख
ू लग रह है ।'

'भख
ू लग रह है ! अ छा, जाना मत! म अभी आई।' कह जमन
ु ा फौरन
पछवाड़े के सहन म से हो कर अंदर चल गई। मा णक क समझ म नह ं
आया क आज जमन
ु ा एकाएक इतनी दयावान य हो रह है , क इतने म
जमन
ु ा लौट आई और आँचल के नीचे से दो-चार पए
ु नकालते हुए बोल , 'लो
खाओ। आज तो माँ भागवत क कथा सन
ु ने गई ह।' और जमन
ु ा उसी तरह
मा णक को अपनी तरफ खींच कर पए
ु खलाने लगी।

एक ह पआ
ु खाने के बाद मा णक मु ला उठने लगे तो जमन
ु ा बोल , 'और
खाओ।' तो मा णक मु ला ने उसे बताया क उ ह मीठे पए
ु अ छे नह ं
लगते, उ ह बेसन के नमक न पए
ु अ छे लगते ह।

'अ छा कल तु हारे लए बेसन के नमक न पए


ु बना रखग
ूँ ी। कल आओगे?
कथा तो सात रोज तक होगी।' मा णक ने संतोष क साँस ल । उठ खड़े हुए।
लौट कर आए तो भाभी सो रह थीं। मा णक मु ला चप
ु चाप गऊमाता का
यान करते हुए सो गए।

दस
ू रे दन मा णक मु ला ने चलने क को शश क , य क उ ह जाने म डर
भी लगता था और वे जाना भी चाहते थे। और न जाने कौन-सी चीज थी जो
अंदर-ह -अंदर उनसे कहती थी, 'मा णक! यह बहुत बरु बात है । जमन
ु ा
अ छ लड़क नह !ं ' और उनके ह अंदर कोई दस
ू र चीज थी जो कहती थी,

24
'चलो मा णक! तु हारा या बगड़ता है । चलो दे ख तो या है ?' और इन
दोन से बड़ी चीज थी नमक न बेसन का पआ
ु िजसके लए नासमझ मा णक
मु ला अपना लोक-परलोक दोन बगाड़ने के लए तैयार थे।

उस दन मा णक मु ला गए तो जमन
ु ा ने धानी रं ग क वाइल क साड़ी
पहनी थी, अरगंडी क पतल लाउज पहनी थी, दो चो टयाँ क थीं, माथे पर
चमकती हुई बंद लगाई थी। मा णक अकसर दे खते थे क जब लड़ कयाँ
कूल जाती थीं तो ऐसे सज-धज कर जाती थीं, घर म तो मैल धोती पहन
कर फश पर बैठ कर बात कया करती थीं, इस लए उ ह बड़ा ता जब
ु हुआ।
बोले, 'जमन
ु ा, या अभी कूल से लौट रह हो?'

' कूल? कूल जाना तो माँ ने चार साल से छुड़ा दया। घर म बैठ -बैठ या
तो कहा नयाँ पढ़ती हूँ या फर सोती हूँ।' मा णक मु ला क समझ म नह ं
आया क जब दन-भर सोना ह है तो इस सज-धज क या ज रत है ।
मा णक मु ला आ चय से मँह
ु खोले दे खते रहे क जमन
ु ा बोल , 'आँख
फाड़-फाड़ कर या दे ख रहे हो! असल जरमनी क अरगंडी है । चाचा कलक े
से लाये थे, याह के लए रखी थी। ये दे खो छोटे -छोटे फूल भी बने ह।'

मा णक मु ला को बहुत आ चय हुआ उस अरगंडी को छू कर जो कलक े से


आई थी, असल जरमनी क थी और िजस पर छोटे -छोटे फूल बने थे।

मा णक मु ला जब गाय को ट क खला चक
ु े तो जमन
ु ा ने बेसन के
नमक न पए
ु नकाले। मगर कहा, 'पहले बैठ जाओ तब खलाएँगे।' मा णक
चप
ु चाप चलने लगे। जमन
ु ा ने छोट -सी बैटर जला द पर मा णक मारे डर

25
के काँप रहे थे। उ ह हर ण यह लगता था क भस
ू े म से अब साँप नकला,
अब ब छू नकला, अब काँतर नकल । ँ धते गले से बोले, 'हम खाएँगे
नह ।ं हम जाने दो।'

जमन
ु ा बोल , 'कैथे क चटनी भी है ।' अब मा णक मु ला मजबरू हो गए।
कैथा उ ह वशेष य था। अंत म साँप- ब छू के भय का नरोध करके
कसी तरह वे बैठ गए। फर वह आलम क जमन
ु ा को मा णक चप
ु चाप दे ख
और मा णक को जमन
ु ा और गाय इन दोन को। जमन
ु ा बोल , 'कुछ बात
करो, मा णक।' जमन
ु ा चाहती थी मा णक कुछ उसके कपड़े के बारे म बात
करे , पर जब मा णक नह ं समझे तो वह खद
ु बोल , 'मा णक, यह कपड़ा
अ छा है ?' 'बहुत अ छा है जमन
ु ा!' मा णक बोले। 'पर दे खो, त ना है न,
वह अपना त ना। उसी के साथ जब बातचीत चल रह थी तभी चाचा
कलक े से ये सब कपड़े लाए थे। पाँच सौ पए के कपड़े थे। पंचम ब नया से
एक सेट गरवी रख के कपड़े लाये थे, फर बात टूट गई। अभी तो म उसी के
यहाँ गई थी। अकेले मन घबराता है । ले कन अब तो त ना बात भी नह ं
करता। इसी लए कपड़े भी बदले थे।'

'बात य टूट गई जमन


ु ा?'

'अरे त ना बहुत डरपोक है । मने तो माँ को राजी कर लया था पर त ना को


महे सर दलाल ने बहुत डाँटा। तब से त ना डर गया और अब तो त ना ठ क
से बोलता भी नह ।ं ' मा णक ने कुछ जवाब नह ं दया तो फर जमन
ु ा बोल ,
'असल म त ना बरु ा नह ं है पर महे सर बहुत कमीना आदमी है और जब से
त ना क माँ मर गई तब से त ना बहुत दख
ु ी रहता है ।' फर सहसा जमन
ु ा

26
ने वर बदल दया और बोल , 'ले कन फर त ना ने मझ
ु े आसा म य
रखा? मा णक, अब न मझ
ु े खाना अ छा लगता है न पीना। कूल जाना छूट
गया। दन-भर रोते-रोते बीतता है । हाँ, मा णक।' और उसके बाद वह
चप
ु चाप बैठ गई। मा णक बोले, 'त ना बहुत डरपोक था। उसने बड़ी गलती
क !' तो जमन
ु ा बोल , 'द ु नया म यह होता आया है !' और उदाहरण व प
उसने कई कहा नयाँ सन
ु ा जो उसने पढ़ थीं या च पट पर दे खी थीं।

मा णक उठे तो जमन
ु ा ने पछ
ू ा क 'रोज आओगे न!' मा णक ने आना-कानी
क तो जमन
ु ा बोल , 'दे खो मा णक, तम
ु ने नमक खाया है और नमक खा कर
जो अदा नह ं करता उस पर बहुत पाप पड़ता है य क ऊपर भगवान दे खता
है और सब बह म दज करता है ।' मा णक ववश हो गए और उ ह रोज
जाना पड़ा और जमन
ु ा उ ह बठा कर रोज त ना क बात करती रह ।

' फर या हुआ!' जब हम लोग ने पछ


ू ा तो मा णक बोले, 'एक दन वह
त ना क बात करते-करते मेरे कंधे पर सर रख कर खब
ू रोई, खब
ू रोई और
चप
ु हुई तो आँसू प छे और एकाएक मझ
ु से वैसी बात करने लगी जैसी
कहा नय म लखी होती ह। मझ
ु े बड़ा बरु ा लगा और सोचा अब कभी उधर
नह ं जाऊँगा, पर मने नमक खाया था और ऊपर भगवान सब दे खता है । हाँ,
यह ज र था क जमन
ु ा के रोने पर म चाहता था क उसे अपने कूल क
बात बताऊँ, अपनी कताब क बात बता कर उसका मन बहलाऊँ। पर वह
आँसू प छ कर कहा नय -जैसी बात करने लगी। यहाँ तक क एक दन मेरे
मँह
ु से भी वैसी ह बात नकल ग ।'

' फर या हुआ?' हम लोग ने पछ


ू ा।

27
'अजब बात हुई। असल म इन लोग को समझना बड़ा मिु कल है । जमन
ु ा
चप
ु चाप मेर ओर दे खती रह और फर रोने लगी। बोल , 'म बहुत खराब
लड़क हूँ। मेरा मन घबराता था इसी लए तम
ु से बात करने आती हूँ, पर म
तु हारा नक
ु सान नह ं चाहती। अब म नह ं आया क ँ गी।' ले कन दस
ू रे दन
जब म गया तो दे खा, फर जमन
ु ा मौजद
ू है ।'

फर मा णक मु ला को रोज जाना पड़ा। एक दन, दो दन, तीन दन, चार


दन, पाँच दन - यहाँ तक क हम लोग ने ऊब कर पछ
ू ा क अंत म या
हुआ तो मा णक मु ला बोले, 'कुछ नह ,ं होता या? जब म जाता तो मझ
ु े
लगता कोई कह रहा है मा णक उधर मत जाओ यह बहुत खराब रा ता है ,
पर म जानता था क मेरा कुछ बस नह ं है । और धीरे -धीरे मने दे खा क न म
वहाँ जाए बना रह सकता था न जमन
ु ा आए बना।'

'हाँ, यह तो ठ क है पर इसका अंत या हुआ?'

'अंत या हुआ?' मा णक मु ला ने ताने के वर म कहा, 'तब तो तम


ु लोग
खब
ू नाम कमाओगे। अरे या ेम-कहा नय के दो-चार अंत होते ह। एक ह
तो अंत होता है - ना यका का ववाह हो गया, मा णक मँह
ु ताकते रह गए।
अब इसी को चाहे िजतने ढं ग से कह लो।'

बहरहाल इतनी दलच प कहानी का इतना साधारण अंत हम लोग को


पसंद नह ं आया।

28
फर भी काश ने पछ
ू ा, 'ले कन इससे यह कहाँ सा बत हुआ क ेम-भावना
क नींव आ थक संबध
ं पर है और वग-संघष उसे भा वत करता है ।'

' य ? यह तो बलकुल प ट है ।' मा णक मु ला ने कहा, 'अगर हरे क के घर


म गाय होती तो यह ि थ त कैसे पैदा होती? संप क वषमता ह इस ेम
का मल
ू कारण है । न उनके घर गाय होती, न म उनके वहाँ जाता, न नमक
खाता, न नमक अदा करना पड़ता।'

'ले कन फर इससे सामािजक क याण के लए या न कष नकला?' हम


लोग ने पछ
ू ा।

' बना न कष के म कुछ नह ं कहता म ो! इससे यह न कष नकला क


हर घर म एक गाय होनी चा हए िजसम रा का पशध
ु न भी बढ़े , संतान का
वा य भी बने। पड़ो सय का भी उपकार हो और भारत म फर से दध
ू -घी
क न दयाँ बह।'

य य प हम लोग आ थक आधारवाले स धांत से सहमत नह ं थे पर यह


न कष हम सब को पसंद आया और हम लोग ने त ा क क बड़े होने
पर एक-एक गाय अव य पालगे।

इस कार मा णक मु ला क थम न कषवाद ेम-कहानी समा त हुई।

29
अन याय

इस कहानी ने वा तव म हम लोग को भा वत कया था। गरमी के दन


थे। मह
ु ले के िजस ह से म हम लोग रहते उधर छत बहुत तपती थीं, अत:
हम सभी लोग हक म जी के चबत
ू रे पर सोया करते थे।

रात को जब हम लोग लेटे तो नींद नह ं आ रह थी और रह-रह कर जमन


ु ा
क कहानी हम लोग के दमाग म घम
ू जाती थी और कभी कलक े क
अरगंडी और कभी बेसन के पए
ु क याद करके हम लोग हँस रहे थे।

इतने म याम भी हाथ म एक बँसखट लए और बगल म दर -त कया दबाए


हुए आया। वह दोपहर क मज लस म शा मल नह ं था अत: हम लोग को
हँसते दे ख उ सक
ु ता हुई और उसने पछ
ू ा क मा णक मु ला ने कौन-सी
कहानी हम लोग को बताई है । जब हम लोग ने जमन
ु ा क कहानी उसे
बताई तो आ चय से दे खा गया क बजाय हँसने के वह उदास हो गया। हम
लोग ने एक वर से पछ
ू ा क 'कहो याम, इस कहानी को सन
ु कर दख
ु ी
य हो गए? या तम
ु जमन
ु ा को जानते थे?' तो याम ँ धे हुए गले से
बोला, 'नह ं, म जमन
ु ा को नह ं जानता, ले कन आज न बे तशत लड़ कयाँ
जमन
ु ा क प रि थ त म ह। वे बेचार या कर! त ना से उसक शाद हो
नह ं पाई, उसके बाप दहे ज जट
ु ा नह ं पाए, श ा और मन-बहलाव के नाम
पर उसे मल ं 'मीठ कहा नयाँ', 'स ची कहा नयाँ', 'रसभर कहा नयाँ' तो
बेचार और कर ह या सकती थी। यह तो रोने क बात है , इसम हँसने क
या बात! दस
ू रे पर हँसना नह ं चा हए। हर घर म म ट के चू हे होते ह',
आ द-आ द।

30
याम क बात सन
ु कर हम लोग का जी भर आया और धीरे -धीरे हम लोग
सो गए।

31
दस
ू र दोपहर
घोड़े क नाल
(अथात कस कार घोड़े क नाल सौभा य का ल ण स ध हुई?)

दस
ू रे दन खा-पी कर हम लोग फर उस बैठक म एक हुए और हम लोग
के साथ याम भी आया। जब हम लोग ने मा णक मु ला को बताया क
याम जमन
ु ा क कहानी को सन
ु कर रोने लगा था तो याम झप कर बोला,
'म कहाँ रो रहा था?' मा णक मु ला हँसे और बोले क 'हमार िजंदगी म
जरा-सी पत उखाड़ कर दे खो तो हर तरफ इतनी गंदगी और क चड़ छपा
हुआ है क सचमच
ु उस पर रोना आता है । ले कन यारे बंधओ
ु , म तो इतना
रो चक
ु ा हूँ क अब आँख म आँसू आता ह नह ,ं अत: लाचार हो कर हँसना
पड़ता है । एक बात और है - जो लोग भावक
ु होते ह और सफ रोते ह, वे
रो-धो कर रह जाते ह, पर जो लोग हँसना सीख लेते ह वे कभी-कभी
हँसते-हँसते उस िजंदगी को बदल भी डालते ह।'

फर खरबज
ू ा काटते हुए बोले, 'हटाओ जी इन बात को। लो आज जौनपरु
खरबज
ू े ह। इनक महक तो दे खो। गल
ु ाब मात है । या है याम? य मँह

लटकाए बैठे हो? अजी मँह
ु लटकाने से या होता है ! म अभी तु ह बताऊँगा
क जमन
ु ा का ववाह कैसे हुआ?'

हम लोग तो यह सन
ु ना ह चाहते थे अत: एक वर म बोल उठे , 'हाँ-हाँ, आज
जमन
ु ा के ववाह क कहानी रहे ।' पर मा णक मु ला बोले, 'नह ं, पहले
खरबज
ू े के छलके बाहर फक आओ।' जब हम लोग ने कमरा साफ कर दया

32
तो मा णक मु ला ने सबको आराम से बैठ जाने का आदे श दया, ताख पर
से घोड़े क परु ानी नाल उठा लाए और उसे हाथ म ले कर ऊपर उठा कर बोले,
'यह या है ?'

'घोड़े क नाल।' हम लोग ने एक वर म उ र दया।

'ठ क!' मा णक मु ला ने जादग


ू र क तरह नाल को आ चयजनक तेजी से
उँ गल पर नचाते हुए कहा, 'यह नाल जमन
ु ा के वैवा हक जीवन का एक
मह वपण
ू म ृ त- च न है । तम
ु लोग पछ
ू ोगे, कैसे? वह म परू े व तार म
बताता हूँ।'

और मा णक मु ला ने व तार म जो बताया वह सं ेप म इस कार है :

जब बहुत दन तक जमन
ु ा क शाद नह ं तय हो पाई और नराश हो कर
उसक माँ पज
ू ा-पाठ करने लगीं और पता बक म ओवरटाइम करने लगे तो
एक दन अक मात उनके घर दरू क एक र तेदार रामो बीबी आ और
उ ह ने बीज छ लते हुए कहा, 'हरे राम-राम! ब टया क बाढ़ तो दे खो। जैसन
नाम तैसन करनी। भाद क जमन
ु ा अस फाट पड़त है ।' और फर झक
ु कर
माँ के कान म धीमे से बोल ,ं 'ए कर बयाह-उआह कहूँ नाह ं तय कयो?' जब
माँ ने बताया क बरादर वाले दहे ज बहुत माँग रहे ह, कह ं जात-परजात म
दे दे ने से तो अ छा है क माँ-बेट गले से र सी बाँध कर कुएँ म गर पड़ तो
रामो बीबी फौरन तमक कर बोल ,ं 'ऐ हे ! कैसी कुभाखा िज या से नकालत
हो जमन
ु ा क अ मा! कहत कु छौ नाह ं लगत! और कुएँ म गर तु हारे
द ु मन, कुएँ म गर अड़ोस-पड़ोसवाले, कुएँ म गर त ना और महे सर

33
दलाल, दस
ू रे का सख
ु दे ख के िजनके हया फाटत ह।' बहरहाल हुआ यह क
रामो बीबी ने फौरन अपनी कुरती म से अपने भतीजे क कंु डल नकाल कर
द और कहा, 'बखत पड़े पर आद मयै आदमी के काम आवत है । जो हारे गाढ़े
कबौ काम न आवै ऊ आदमी के प म जनावर है । अब ई हमार भतीजा है ।
घर का अकेला, न सास न ससरु , न ननद न िजठानी, कौनो कचाइन नाह ं
है घर म। नाना ओके नाम जागीर लख गए ह। घर म घोड़ा है , ताँगा है ।
परु ाना नामी खानदान है । लड़क रानी-महारानी अस बल सहै ।'

जब शाम को जमन
ु ा क माँ ने यह खबर बाप को द तो उसने सामने से थाल
खसका द और कहा, 'उसक दो बी वयाँ मर चक
ु ह। तेहाजू है लड़का।
मझ
ु से चार-पाँच बरस छोटा होगा।'

'थाल काहे खसका द ? न खाओ मेर बला से। य नह ं ढूँढ़ के लाते? जब


लड़क क उमर मेरे बराबर हो रह है तो लड़का कहाँ से यारह साल का मल
जाएगा।' इस बात को ले कर प त और प नी म बहुत कहा-सन
ु ी हुई। अंत म
जब प नी पान बना कर ले गई और प त को समझा कर कहा, 'लड़का
तहाजू है तो या हुआ। मरद और द वार - िजतना पानी खाते ह उतना
पु ता होते ह।'

जब जमन
ु ा के वारे बारात चढ़ तो मा णक मु ला ने दे खा और उ ह ने उस
पु ता द वार का जो वणन दया उससे हम लोग लोट-पोट हो गए। जमन
ु ा ने
उसे दे खा तो बहुत रोई, जेवर चढ़ा तो बहुत खश
ु हुई, चलने लगी तो यह
आलम था क आँख से आँसू नह ं थमते थे और दय म उमंग नह ं थमती
थीं।

34
जब जमन
ु ा लौट कर मैके आई तो सभी स खय के यहाँ गई। अंग-अंग पर
जेवर लदा था, रोम-रोम पल
ु कत था और प त क तार फ करते जबान नह ं
थकती थी। 'अर क मो, वो तो इतने सीधे ह क जरा-सी तीन-पाँच नह ं
जानते। ऐ, जैसे छोटे -से ब चे ह । पहल दोन के मैकेवाले सार जायदाद
लट
ू ले गए, नह ं तो धन फटा पड़ता था। मने कहा अब तु हारे साले-साल
आवगे तो बाहर ह से वदा क ँ गी, तम
ु दे खते रहना। तो बोले, 'तम
ु घर क
माल कन हो। सब
ु ह-शाम दाल-रोट दे दो बस, मझ
ु े या करना है ।' चौबीस
घंटा मँह
ु दे खते रहते ह। जरा-सी कह ं गई - बस सन
ु ती हो, ओ जी सन
ु ती हो,
अजी कहाँ गई! मेर तो नाक म दम है क मो! मह
ु ला-पड़ोसवाले दे ख-दे ख
कर जलते ह। मने कहा, िजतना जलोगे उतना जलाऊँगी। म भी तब दरवाजा
खोलती हूँ जब धप
ू सर पर चढ़ आती है । और खयाल इतना रखते ह क म
आई तो ढाई सौ पए जबरद ती ं क म रख दए। कहा, हमार कसम है जो
इसे न ले जाओ।'

ले कन जमन
ु ा को ज द ह ससरु ाल लौट जाना पड़ा, य क एक दन उसके
बाप बहुत परे शान हालत म रात को आठ बजे बक से लौटे और बताया क
हसाब म एक सौ स ाईस पया तेरह आने क कमी पड़ गई है , अगर कल
सब
ु ह जाते ह उ ह ने जमा न कर दया तो हरासत म ले लए जाएँगे। यह
सन
ु ते ह घर म सयापा छा गया और जमन
ु ा ने झट ं क से नोट क ग डी
नकाल कर छ पर म ख स द और जब माँ ने कहा, 'बेट उधार दे दो!' तो
ताल माँ के हाथ म दे कर बोल , 'दे ख लो न, संदक
ू म दो-चार दअ
ु ि नयाँ
पड़ी ह गी।' ले कन जमन
ु ा ने सोचा आज बला टल गई तो टल गई, आ खर
बकरे क माँ कब तक खैर मनाएगी। इतना तो पहले लट
ु गया है , अब अगर

35
जमन
ु ा भी माँ-बाप पर लट
ु ा दे तो अपने बाल-ब च के लए या बचाएगी?
अरे माँ-बाप कै दन के ह? उसे सहारा तो उसके ब चे ह दगे न!

यहाँ पर मा णक मु ला कहानी कहते-कहते क गए और हम लोग क ओर


दे ख कर बोले, ' यारे म ो! हमेशा याद रखो क नार पहले माँ होती है तब
और कुछ! इसका ज म ह इस लए होता है क वह माँ बने। सिृ ट का म
आगे बढ़ावे। यह उसक महानता है । तम
ु ने दे खा क जमन
ु ा के मन म पहले
अपने ब च का खयाल आया।'

अ त।ु जमन
ु ा अपने भावी बाल-ब च का खयाल करके अपनी ससरु ाल चल
गई और सख
ु से रहने लगी। सच पछ
ू ो तो यह ं जमन
ु ा क कहानी का खा मा
होता है ।

'ले कन आपने तो घोड़े क नाल दखाई थी। इसका तो िज आया ह नह ?


ं '

'ओह! मने सोचा दे खूँ तम


ु लोग कतने यान से सन
ु रहे हो।' और तब
उ ह ने उस नाल क घटना भी बताई।

असल म जमन
ु ा के प त तहाजू यानी पु ता द वार, पर उनम और जमन
ु ा
म उतना ह अंतर था िजतना पल तर उखड़ी हुई परु ानी द वार और लपे-पत
ु े
तल
ु सी के चौतरे म। इधर-उधर के लोग इधर-उधर क बात करते थे पर
जमन
ु ा तन-मन से प त-परायणा थी। प त भी जहाँ उसके गहने-कपड़े का
यान रखते थे वह ं उसे भजनामत
ृ , गंगा-माहा य, गट
ु का रामायण आ द
ंथ-र न ला कर दया करते थे। और वह भी उसम 'उ म के अस बस मन

36
माह 'ं आ द पढ़ कर लाभाि वत हुआ करती थी। होते-होते यह हुआ क धम
का बीज उसके मन म जड़ पकड़ गया और भजन-क तन, कथा-स संग म
उसका चत रम गया और ऐसा रमा क सब
ु ह-शाम, दोपहर-रात वह द वानी
घम
ू ती रहे । रोज उसके यहाँ साध-ु संत का भोजन होता रहे और साध-ु संत भी
ऐसे तप वी और पवान क म तक से काश फूटता था।

वैसे उसक भि त बहुत न काम थी कंतु जब साध-ु संत उसे आशीवाद द


क 'संतानवती भव' तो वह उदास हो जाया करे । उसके प त उसे बहुत
समझाया करते थे, 'अजी यह तो भगवान क माया है इसम उदास य होती
हो?' ले कन संतान क चंता उ ह भी थी य क इतनी बड़ी जागीर के
जमींदार का वा रस कोई नह ं था। अंत म एक दन वे और जमन
ु ा दोन एक
यो तषी के यहाँ गए िजसने जमन
ु ा को बताया क उसे का तक-भर सब
ु ह
गंगा नहा कर चंडी दे वी को पीले फूल और ा मण को चना, जौ और सोने
का दान करना चा हए।

जमन
ु ा इस अनु ठान के लए त काल राजी हो गई। ले कन इतनी सब
ु ह
कसके साथ जाए! जमन
ु ा ने प त (जमींदार साहब) से कहा क वे साथ चला
कर पर वे ठहरे बढ़
ू े आदमी, सब
ु ह जरा-सी ठं डी हवा लगते ह उ ह खाँसी का
दौरा आ जाता था। अंत म यह तय हुआ क रामधन ताँगेवाला शाम को
ज द छु ट लया करे गा और सब
ु ह चार बजे आ कर ताँगा जोत दया
करे गा।

जमन
ु ा न य नयम से नहाने जाने लगी। का तक म काफ सद पड़ने
लगती है और घाट से मं दर तक उसे केवल एक पतल रे शमी धोती पहन

37
कर फूल चढ़ाने जाना पड़ता था। वह थर-थर थर-थर काँपती थी। एक दन
मारे सद के उसके हाथ-पैर सु न पड़ गए। और वह वह ं ठं डी बालू पर बैठ
गई और यह कहा क रामधन अगर उसे समच
ू ी उठा कर ताँगे पर न बैठा
दे ता तो वह वह ं बैठ -बैठ ठं ड से गल जाती।

अंत म रामधन से न दे खा गया। उसने एक दन कहा, 'बहूजी, आप काहे


जान दे य पर उता हौ। ऐसन त प या तो गौरा माइयो न क रन होइह।
बड़े-बड़े जोतसी का कहा कर लयो अब एक गर ब मनई का भी कहा कै लेव!'
जमन
ु ा के पछ
ू ने पर उसने बताया, िजस घोड़े के माथे पर सफेद तलक हो,
उसके अगले बाएँ पैर क घसी हुई नाल चं - हण के समय अपने हाथ से
नकाल कर उसक अँगठ
ू बनवा कर पहन ले तो सभी कामनाएँ परू हो
जाती ह।

ले कन जमन
ु ा को यह वीकार नह ं हुआ य क पता नह ं चं - हण कब
पड़े। रामधन ने बताया क चं - हण दो-तीन दन बाद ह है । ले कन
क ठनाई यह है क नाल अभी नया लगवाया है , वह तीन दन के अंदर कैसे
घसेगा और नया कुछ भाव नह ं रखता।

'तो फर या हो, रामधन? तु ह ं कोई जग


ु त बताओ!'

'माल कन, एक ह जग
ु त है ।'

' या?'

38
'ताँगा रोज कम-से-कम बारह मील चले। ले कन मा लक कह ं जाते नह ।ं
अकेले मझ
ु े ताँगा ले नह ं जाने दगे। आप चल तो ठ क रहे ।'

'ले कन हम बारह मील कहाँ जाएँगे?'

' य नह ं सरकार! आप सब
ु ह जरा और ज द दो-ढाई बजे नकल चल!
गंगापार प क सड़क है , बारह मील घम
ु ा कर ठ क टाइम पर हािजर कर
दया क ँ गा। तीन दन क ह तो बात है ।'

जमन
ु ा राजी हो गई और तीन दन तक रोज ताँगा गंगापार चला जाया
करता था। रामधन का अंदाज ठ क नकला और तीसरे दन चं - हण के
समय नाल उतरवा कर अँगठ
ू बनवाई गई और अँगठ
ू का ताप दे खए क
जमींदार साहब के यहाँ नौबत बजने लगी और नस ने परू े एक सौ पए क
ब शीश ल ।

जमींदार बेचारे व ृ ध हो चक
ु े थे और उ ह बहुत क ट था, वा रस भी हो चक
ु ा
था अत: भगवान ने उ ह अपने दरबार म बल
ु ा दया। जमन
ु ा प त के बछोह
म धाड़ मार-मार कर रोई, चड़
ू ी-कंगन फोड़ डाले, खाना-पीना छोड़ दया। अंत
म पड़ो सय ने समझाया क छोटा ब चा है , उसका मँह
ु दे खना चा हए। जो
होना था सो हो गया। काल बल है । उस पर कसका बस चलता है ! पड़ो सय
के बहुत समझाने पर जमन
ु ा ने आँसू प छे । घर-बार सँभाला। इतनी बड़ी
कोठ थी, अकेले रहना एक वधवा म हला के लए अनु चत था, अत: उसने
रामधन को एक कोठर द और प व ता से जीवन यतीत करने लगी।

39
जमन
ु ा क कहानी ख म हो चक
ु थी। ले कन हम लोग क शंका थी क
मा णक मु ला को यह घसी नाल कहाँ से मल , उसक तो अँगठ
ू बन चक

थी। पछ
ू ने पर मालम
ू हुआ क एक दन कह ं रे ल सफर म मा णक मु ला को
रामधन मला। स क का कुरता, पान का ड बा, बड़े ठाठ थे उसके! मा णक
मु ला को दे खते ह उसने अपने भा योदय क सार कथा सन
ु ाई और कहा
क सचमच
ु घोड़े क नाल म बड़ी तासीर होती है । और फर उसने एक नाल
मा णक मु ला के पास भेज द थी, य य प उ ह ने उसक अँगठ
ू न बनवा
कर उसे हफाजत से रख लया।

कहानी सन
ु ा कर मा णक मु ला याम क ओर दे ख कर बोले, 'दे खा याम,
भगवान जो कुछ करता है भले के लए करता है । आ खर जमन
ु ा को कतना
सख
ु मला। तम
ु यथ म दख
ु ी हो रहे थे? य ?'

याम ने स न हो कर वीकार कया क वह यथ म दख


ु ी हो रहा था। अंत
म मा णक मु ला बोले, 'ले कन अब बताओ इससे न कष या नकला?'

हम लोग म से जब कोई नह ं बता सका तो उ ह ने बताया, इससे यह


न कष नकला क द ु नया का कोई भी म बरु ा नह ।ं कसी भी काम को
नीची नगाह से नह ं दे खना चा हए चाहे वह ताँगा हाँकना ह य न हो?

हम सब को इस कहानी का यह न कष बहुत अ छा लगा और हम सभी ने


शपथ ल क कभी कसी कार के ईमानदार के म को नीची नगाह से न
दे खगे चाहे वह कुछ भी य न हो।

40
इस तरह मा णक मु ला क दस
ू र न कषवाद कहानी समा त हुई।

41
अन याय

जमन
ु ा क जीवन-गाथा समा त हो चक
ु थी और हम लोग को उसके जीवन
का ऐसा सख
ु द समाधान दे ख कर बहुत संतोष हुआ। ऐसा लगा क जैसे सभी
रस क प रण त शांत या नवद म होती है , वैसे ह उस अभा गन के जीवन
के सारे संघष और पीड़ा क प रण त मात ृ व से ला वत, शांत, न कंप
द प शखा के समान काशमान, प व , न कलंक वैध य म हुई।

रात को जब हम लोग हक म जी के चबत


ू रे पर अपनी-अपनी खाट और
ब तरा ले कर एक हुए तो जमन
ु ा क जीवन-गाथा हम सब के मि त क
पर छाई हुई थी और उसको ले कर जो बातचीत तथा वाद- ववाद हुआ उसका
नाटक य ववरण इस कार है :

म : (खाट पर बैठ कर, त कए को उठा कर गोद म रखते हुए) भई कहानी


बहुत अ छ रह ।

ओंकार : (ज हाई लेते हुए) रह होगी।

काश : (करवट बदल कर) ले कन तम


ु लोग ने उसका अथ भी समझा?

याम : (उ साह से) य , उसम कौन क ठन भाषा थी?

काश : यह तो मा णक मु ला क खब
ू ी है । अगर जरा-सा सचेत हो कर
उनक बात तम
ु समझते नह ं गए तो फौरन तु हारे हाथ से त व नकल

42
जाएगा, हलका-फुलका भस
ू ा हाथ आएगा। अब यह बताओ क कहानी सन

कर या भावना उठ तु हारे मन म? तम
ु बताओ!

म : (यह समझ कर क ऐसे अवसर पर थोड़ी आलोचना करना व व ा का


प रचायक है ) भई, मेरे तो यह समझ म नह ं आया क मा णक मु ला ने
जमन
ु ा-जैसी ना यका क कहानी य कह ? शकंु तला-जैसी भोल -भाल या
राधा-जैसी प व ना यका उठाते, या बड़े आधु नक बनते ह तो सन
ु ीता-जैसी
साहसी ना यका उठाते या दे वसेना, शेखर क शशी-वशी तमाम टाइप मल
सकते थे।

काश : (सक
ु रात क -सी टोन म) ले कन यह बताओ क िजंदगी म
अ धकांश ना यकाएँ जमन
ु ा-जैसी मलती ह या राधा और सध
ु ा और गेसू
और सन
ु ीता और दे वसेना-जैसी?

म : (चालाक से अपने को बचाते हुए) पता नह !ं मेरा ना यकाओं के बारे म


कोई अनभ
ु व नह ।ं यह तो आप ह बता सकते ह।

याम : भाई, हमारे चार ओर दभ


ु ा य से न बे तशत लोग तो जमन
ु ा और
रामधन क तरह के होते ह, पर इससे या! कहानीकार को शवम का च ण
करना चा हए।

काश : यह तो ठ क है । पर अगर कसी जमी हुई झील पर आधा इंच बरफ


और नीचे अथाह पानी और वह ं एक गाइड खड़ा है जो उस पर से आनेवाल

43
को आधा इंच क तो सच
ू ना दे दे ता है और नीचे के अथाह पानी क खबर नह ं
दे ता तो वह राहगीर को धोखा दे ता है या नह ?

म : य नह ?

काश : और अगर वे राहगीर बरफ टूटने पर पानी म डूब जाएँ तो इसका


पाप गाइड पर पड़ेगा न!

याम : और या?

काश : बस, मा णक मु ला भी तु हारा यान उस अथाह पानी क ओर


दला रहे ह जहाँ मौत है , अँधेरा है , क चड़ है , गंदगी है । या तो दस
ू रा रा ता
बनाओ नह ं तो डूब जाओ। ले कन आधा इंच ऊपर जमी बरफ कुछ काम न
दे गी। एक ओर नए लोग का यह रोमानी ि टकोण, यह भावक
ु ता, दस
ू र
ओर बढ़
ू का यह थोथा आदश और झठ
ू अवै ा नक मयादा सफ आधी इंच
बरफ है , िजसने पानी क खख
ूँ ार गहराई को छपा रखा है ।

म:

ओंकार : (ऊब जाते ह, सोचते ह कब यह ले चर बंद हो।)

काश : (उ साह से कहता जाता है ) जमन


ु ा न न-म यवग क भयानक
सम या है । आ थक नींव खोखल है । उसक वजह से ववाह, प रवार, ेम -

44
सभी क नींव हल गई ह। अनै तकता छाई हुई है । पर सब उस ओर से आँख
मँद
ू े ह। असल म परू िजंदगी क यव था बदलनी होगी!

म : (ऊब कर ज हाई लेता हूँ।)

काश : य ? नींद आ रह है तु ह? मने कै बार तम


ु से कहा क कुछ
पढ़ो- लखो। सफ उप यास पढ़ते रहते हो। गंभीर चीज पढ़ो। समाज का
ढाँचा, उसक ग त, उसम अथ, नै तकता, सा ह य का थान...

म : (बात काट कर) मने या पढ़ा नह ?


ं तु ह ं ने पढ़ा है ? (यह दे ख कर क
काश क व व ा का रोब लोग पर जम रहा है , म य पीछे रहूँ) म भी
इसक मा सवाद या या दे सकता हूँ -

काश : या? या या या दे सकते हो?

म : (अकड़ कर) मा सवाद !

ओंकार : अरे यार रहने भी दो!

याम : मझ
ु े नींद आ रह है ।

म : दे खए, असल म इसक मा सवाद या या इस तरह हो सकती है ।


जमन
ु ा मानवता का तीक है , म यवग (मा णक मु ला) तथा सामंतवग

45
(जमींदार) उसका उ धार करने म असफल रहे ; अंत म मकवग (रामधन)
ने उसको नई दशा सझ
ु ाई!

काश : या? ( ण-भर त ध। फर माथा ठ क कर) बेचारा मा सवाद भी


ऐसा अभागा नकला क तमाम द ु नया म जीत के झंडे गाड़ आया और
हंद ु तान म आ कर इसे बड़े-बड़े राहु स गए। तम
ु ह या, उसे ऐसे-ऐसे
या याकार यहाँ मले ह क वह भी अपनी क मत को रोता होगा। (जोर
से हँसता है , म अपनी हँसी उड़ते दे ख कर उदास हो जाता हूँ।)

हक म जी क प नी : (नेप य से) म कहती हूँ यह चबत


ू रा है या स जी मंडी।
िजसे दे खो खाट उठाए चला आ रहा है । आधी रात तक चख-चख चख-चख!
कल से सबको नकालो यहाँ से।

हक मजी : (नेप य से काँपती हुई बढ़


ू आवाज) अरे ब चे ह। हँस-बोल लेने
दे । तेरे अपने ब चे नह ं ह फर दस
ू र को य खाने दौड़ती है ... (हम सब पर
सकता छा जाता है । म बहुत उदास हो कर लेट जाता हूँ। नीम पर से नींद क
प रयाँ उतरती ह, पलक पर छम-छम छम-छम न ृ य कर)।

(यव नका-पतन)

46
तीसर दोपहर
(शीषक मा णक मु ला ने नह ं बताया)

हम लोग सब
ु ह सो कर उठे तो दे खा क रात ह रात सहसा हवा बलकुल क
गई है और इतनी उमस है क सब
ु ह पाँच बजे भी हम लोग पसीने से तर थे।
हम लोग उठ कर खब
ू नहाए मगर उमस इतनी भयानक थी क कोई भी
साधन काम न आया। पता नह ं ऐसी उमस इस शहर के बाहर भी कह ं होती
है या नह ;ं पर यहाँ तो िजस दन ऐसी उमस होती है उस दन सभी काम क
जाते ह। सरकार द तर म लक काम नह ं कर पाते, सप
ु रंटडट बड़े बाबओ
ु ं
को डाँटते ह, बड़े बाबू छोटे बाबओ
ु ं पर खीज उतारते ह, छोटे बाबू चपरा सय
से बदला नकालते ह और चपरासी गा लयाँ दे ते हुए पानी पलानेवाल से,
भि तय से और मा लय से उलझ जाते ह; दक
ु ानदार माल न बेच कर
ाहक को खसका दे ते ह और र शावाले इतना कराया माँगते ह क
सवा रयाँ परे शान हो कर र शा न कर। और इन तमाम सामािजक
उथल-पथ
ु ल के पीछे कोई ऐ तहा सक वं वा मक ग त का स धांत न हो
कर केवल तापमान रहता है - टपरे चर, उमस, एक-सौ बारह डगर
फा रनहाइट!

ले कन इस उमस के बावजद
ू मा णक मु ला क कहा नयाँ सन
ु ने का लोभ
हम लोग से छूट नह ं पाता था अत: हम सबके-सब नयत समय पर वह ं
इक ठा हुए और मलने पर सबम यह अ भवादन हुआ - 'आज बहुत उमस
है !'

'हाँ जी, बहुत उमस है ; ओफ-फोह!'

47
सफ काश जब आया और उससे सबने कहा क आज बहुत उमस है तो
फलसफा छाँटते हुए अफलातन
ू क तरह मँह
ु बना कर बोला (मेर इस
झ लाहट-भर ट पणी के लए मा करगे य क पछल रात उसने
मा सवाद के सवाल पर मझ
ु े नीचा दखाया था और स चे संक ण
मा सवा दय क तरह से झ ला उठा था और मने तय कर लया था क वह
सह बात भी करे गा तो म उसका वरोध क ँ गा), बहरहाल काश बोला,
'भाईजी, उमस हम सभी क िजंदगी म छाई हुई है , उसके सामने तो यह कुछ
नह ं है । हम सभी न नम य ेणी के लोग क िजंदगी म हवा का एक
ताजा झ का नह ।ं चाहे दम घट
ु जाए पर प ा नह ं हलता, धप
ू िजसे रोशनी
दे ना चा हए हम बरु तरह झल
ु सा रह है और समझ म नह ं आता क या
कर। कसी-न- कसी तरह नई और ताजी हवा के झ के चलने चा हए। चाहे लू
के ह झ के य न ह ।'

काश क इस मख
ू ता-भर बात पर कोई कुछ नह ं बोला। (मेरे झठ
ू के लए
मा कर य क मा णक ने इस बात क जोर से ताईद क थी, पर मने कह
दया न क म अंदर-ह -अंदर चढ़ गया हूँ!)

खैर, तो मा णक मु ला बोले क, 'जब म ेम पर आ थक भाव क बात


करता हूँ तो मेरा मतलब यह रहता है क वा तव म आ थक ढाँचा हमारे मन
पर इतना अजब-सा भाव डालता है क मन क सार भावनाएँ उससे
वाधीन नह ं हो पातीं और हम-जैसे लोग जो न उ चवग के ह, न न नवग
के, उनके यहाँ ढ़याँ, परं पराएँ, मयादाएँ भी ऐसी परु ानी और वषा त ह क
कुल मला कर हम सभी पर ऐसा भाव पड़ता है क हम यं -मा रह जाते

48
ह हमारे अंदर उदार और ऊँचे सपने ख म हो जाते ह और एक अजब-सी जड़
मू छना हम पर छा जाती है ।'

काश ने जब इसका समथन कया तो मने इनका वरोध कया और कहा,


'ले कन यि त को तो हर हालत म ईमानदार बना रहना चा हए। यह नह ं
क टूटता-फूटता चला जाए।'

तो मा णक मु ला बोले, 'यह सच है , पर जब परू यव था म बेईमानी है तो


एक यि त क ईमानदार इसी म है क वह एक यव था वारा लाद गई
सार नै तक वकृ त को भी अ वीकार करे और उसके वारा आरो पत सार
झठ
ू मयादाओं को भी, य क दोन एक ह स के के दो पहलू होते ह।
ले कन हम यह व ोह नह ं कर पाते, अत: नतीजा यह होता है क जमन
ु ाक
तरह हर प रि थ त म समझौता करते जाते ह।

'ले कन सभी तो जमन


ु ा नह ं होते?' मने फर कहा।

'हाँ, ले कन जो इस नै तक वकृ त से अपने को अलग रख कर भी इस


तमाम यव था के व ध नह ं लड़ते, उनक मयादाशीलता सफ प र कृत
कायरता होती है । सं कार का अंधानस
ु रण! और ऐसे लोग भले आदमी
कहलाए जाते ह, उनक तार फ भी होती है , पर उनक िजंदगी बेहद क ण
और भयानक हो जाती है और सबसे बड़ा द:ु ख यह है क वे भी अपने जीवन
का यह पहलू नह ं समझते और बैल क तरह च कर लगाते चले जाते ह।
मसलन म तु ह त ना क कहानी सन
ु ाऊँ? त ना क याद है न? वह महे सर
दलाल का लड़का!'

49
लोग यथ के वाद- ववाद से ऊब गए थे अत: मा णक मु ला ने कहानी
सन
ु ानी शु क -

अक मात ओंकार ने रोक कर कहा, 'इस कहानी का शीषक?' मा णक मु ला


इस याघात से झ ला उठे और बोले, 'हटाओ जी, म या कसी प का को
कहानी भेज रहा हूँ क शीषक के झगड़े म पड़ूँ। तम
ु लोग कहानी सन
ु ने आए
हो या शीषक सन
ु ने? या म उन कहानी-लेखक म से हूँ जो आकषक
वषय-व तु के अभाव म आकषक शीषक दे कर प म संपादक और
पाठक को यान खींचा करते ह!'

यह दे ख कर क मा णक मु ला ओंकार को डाँट रहे ह, हम लोग ने भी


ओंकार को डाँटना शु कर दया। यहाँ तक क जब मा णक मु ला ने हम
लोग को डाँटा तो हम लोग चप
ु हुए और उ ह ने अपनी कहानी ारं भ क -

त ना के कोई भाई नह ं था। पर तीन बहन थीं। उनम से जो सबसे छोट थी


उसी को ज म दे ने के बाद उसक माँ गोलोक चल गई थी। रह गए पताजी
जो दलाल थे। चँ ू क ब चे छोटे थे, उनक दे ख-भाल करनेवाला कोई नह ं था,
अत: त ना के पता महे सर दलाल ने अपनी यह इ छा जा हर क क कसी
भले घर क कोई दबी-ढँ क सश
ु ील क या मल जाए तो ब च का
पालन-पोषण हो जाए, वरना अब उ ह या बढ़
ु ापे म कोई औरत का शौक
चढ़ा है ? राम राम! ऐसी बात सोचना भी नह ं चा हए। उ ह तो सफ ब च
क फ है वरना अब तो बचे-खच
ु े दन राम के भजन म और गंगा- नान म
काट दे ने ह। रह त ना क माँ, सो तो दे वी थी, वग चल गई; महे सर दलाल

50
पापी थे सो रह गए। ब च का मँह
ु दे ख कर कुछ नह ं करते वरना हर वार
जा कर बाबा काल कमल वाले के भंडार म दोन जन
ू भोजन करते और
लोक-परलोक सध
ु ारते।

ले कन मह
ु ले-भर क बड़ी-बढ़
ू औरत कोई ऐसी सश
ु ील क या न जट
ु ा पा
जो ब च का भरण-पोषण कर सके, अंत म मजबरू हो कर महे सर दलाल
एक औरत को सेवा-टहल और ब च के भरण-पोषण के लए ले आए।

उस औरत ने आते ह पहले महे सर दलाल के आराम क सार यव था क ।


उनका पलँ ग, ब तर, हु का- चलम ठ क कया, उसके बाद तीन लड़ कय
के च र और मयादा क कड़ी जाँच क और अंत म त ना क फजल
ू खच
रोकने क परू को शश करने लगी। बहरहाल उसने तमाम बखरती हुई
गह
ृ थी को बड़ी सावधानी से सँभाल लया। अब उसम अगर त ना और
उनक तीन बहन को कुछ क ट हुआ तो इसके लए कोई या करे ?

त ना क बड़ी बहन घर का काम-काज, झाड़ू-बह


ु ार, चौका-बरतन कया
करती थी; मँझल बहन िजसके दोन पाँव क ह डयाँ बचपन से ह खराब
हो गई थीं, या तो कोने म बैठे रहती थी या आँगन-भर म घसल- घसल कर
सभी भाई-बहन को गा लयाँ दे ती रहती थी; सबसे छोट बहन पंचम ब नया
के यहाँ से तंबाकू, चीनी, ह द , म ट का तेल और मंडी से अदरक, नींब,ू
हर मच, आलू और मल
ू वगैरह लाने म य त रहती थी। त ना सब
ु ह उठ
कर पानी से सारा घर धोते थे, बाँस म झाड़ू बाँध कर घर-भर का जाला
प छते थे, हु का भरते थे, इतने म कूल का व त हो जाता था। ले कन
खाना इतनी ज द कहाँ से बन सकता था, अत: बना खाए ह कूल चले

51
जाते थे। कूल से लौट कर आने पर उ ह फर शाम के लए लकड़ी चीरनी
पड़ती थी, बरु ादे क अँगीठ भरनी पड़ती थी, द या-ब ी करनी पड़ती थी,
बआ
ु (उस औरत को सब ब चे बआ
ु कहा कर यह महे सर दलाल का हु म
था) का बदन भी अकसर दबाना पड़ता था य क बेचार काम करते-करते
थक जाती थी और तब त ना चबत
ू रे के सामने लगी हुई यू न सपै लट क
लालटे न के मंद-मधरु काश म कूल का काम कया करते थे। घर म
लालटे न एक ह थी और वह बआ
ु के कमरे म जलती-बझ
ु ती रहती थी।

त ना का दल कमजोर था। अत: त ना अ सर माँ क याद करके रोया


करते थे और उ ह रोते दे ख कर बड़ी और छोट बहन भी रोने लगती थी और
मँझल अपने दोन टूटे पैर पटक कर उ ह गा लयाँ दे ने लगती थी और दस
ू रे
दन वह बआ
ु से या बाप से शकायत कर दे ती थी और बआ
ु माथे म आलता
बंद लगाते हुए रोती हुई कहती थीं, 'इन कंब त को मेरा खाना-पीना,
उठना-बैठना, पहनना-ओढ़ना अ छा नह ं लगता। पानी पी-पी कर कोसते
रहते ह। आ खर कौन तकल फ है इ ह! बड़े-बड़े नवाब के लड़के ऐसे नह ं
रहते जैसे त ना बाबू बु ला बना के, पाट पार के, छै ल- चक नय क तरह
घम
ू ते ह।' और उसके बाद महे सर दलाल को प रवार क मयादा कायम रखने
के लए त ना को बहुत मारना पड़ता था, यहाँ तक क त ना क पीठ म
नील उभर आती थी और बख
ु ार चढ़ आता था और दोन बहन डर के मारे
उनके पास जा नह ं पातीं और मँझल बहन मारे खश
ु ी के आँगन-भर म
घसलती फरती थी और छोट बहन से कहती थी, 'खब
ू मार पड़ी। अरे अभी
या? राम चाह तो एक दन पैर टूटगे, कोई मँह
ु म दाना डालनेवाला नह ं रह
जाएगा। अर चल, आज मेर चोट तो कर दे ! आज खब
ू मार पड़ी है त ना
को।'

52
इन हालत म जमन
ु ा क माँ ने त ना को बहुत सहारा दया। उनके यहाँ
पज
ू ा-पाठ अ सर होता रहता था और उसम वे पाँच बंदर और पाँच वाँर
क याओं को खलाया करती थीं। बंदर म त ना और क याओं म उनक
बहन को आमं ण मलता था और जाते समय बआ
ु साफ-साफ कह दे ती थीं
क दस
ू र के घर जा कर नद द क तरह नह ं खाना चा हए, आधी पू ड़याँ
बचा कर ले आनी चा हए। वे लोग यह करते और चँ ू क पड़
ू ी खाने से मेदा
खराब हो जाता है अत: बेचार बआ
ु पू ड़याँ अपने लए रख कर रोट ब च
को खला दे तीं।

त ना को अ सर कसी-न- कसी बहाने जमन


ु ा बल
ु ा लेती थी और अपने
सामने त ना को बठा कर खाना खलाती थी। त ना खाते जाते और रोते
जाते य क य य प जमन
ु ा उनसे छोट थी पर पता नह ं य उसे दे खते ह
त ना को अपनी माँ क याद आ जाती थी और त ना को रोते दे ख कर
जमन
ु ा के मन म भी ममता उमड़ पड़ती और जमन
ु ा घंट बैठ कर उनसे
सख
ु -द:ु ख क बात करती रहती। होते-होते यह हो गया क त ना के लए
कोई था तो जमन
ु ा थी और जमन
ु ा को चौबीस घंटा अगर कसी क चंता थी
तो त ना क । अब इसी को आप ेम कह ल या कुछ और!

जमन
ु ा क माँ से बात छपी नह ं रह , य क अपनी उ म वे भी जमन
ु ाह
रह ह गी - और उ ह ने बल
ु ा कर जमन
ु ा को बहुत समझाया और कहा क
त ना वैसे बहुत अ छा लड़का है पर नीच गोत का है और अपने खानदान म
अभी तक अपने से ऊँचे गोत म ह याह हुआ है । पर जब जमन
ु ा बहुत रोई
और उसने तीन दन खाना नह ं खाया तो उसक माँ ने आधे पर तोड़ कर

53
लेने का नणय कया यानी उ ह ने कहा क अगर त ना घर-जमाई बनना
पसंद करे तो इस ताव पर गौर कया जा सकता है ।

पर जैसा पहले कहा जा चक


ु ा है क त ना थे ईमानदार आदमी और उ ह ने
साफ कह दया क पता, कुछ भी हो, आ खरकार पता ह। उनक सेवा
करना उनका धम है । वे घर-जमाई जैसी बात कभी नह ं सोच सकते। इस पर
जमन
ु ा के घर म काफ सं ाम मचा पर अंत म जीत जमन
ु ा क माँ क रह
क जब दहे ज होगा तब याह करगे, नह ं लड़क वाँर रहे गी। रा ता नह ं
सझ
ू ग
े ा तो लड़क पीपल से याह दगे पर नीचे गोतवाल को नह ं दगे।

जब यह बात महे सर दलाल तक पहुँची तो उनका खन


ू उबल उठा और
उ ह ने पछ
ू ा - कहाँ है त ना? मालम
ू हुआ मैच दे खने गया है तो उ ह ने
चीख मार कर कहा ता क जमन
ु ा के घर तक सन
ु ाई दे - 'आने दो आज
हरामजादे को। खाल न उधेड़ द तो नाम नह ।ं लकड़ी के ठूँठ को साड़ी पहना
कर नौबत बजवा कर ले आऊँगा पर उनके यहाँ म लड़के का याह क ँ गा
िजनके यहाँ...?' और उसके बाद उनके यहाँ का जो वणन महे सर दलाल ने
कया उसे जाने ह द िजए। बहरहाल बआ
ु ने तीन दन तक खाना नह ं दया
और महे सर ने इतना मारा क मँह
ु से खन
ू नकल आया और तीसरे दन
भख
ू से याकुल त ना छत पर गए तो जमन
ु ा क माँ ने उ ह दे खते ह झट
से खड़क बंद कर ल । जमन
ु ा छ जे पर धोती सख
ु ा रह थी, ण-भर
इनक ओर दे खती रह फर चप
ु चाप बना धोती सख
ु ाए नीचे उतर गई।
त ना चप
ु चाप थोड़ी दे र उदास खड़े रहे फर आँख म आँसू भरे नीचे उतर
आए और समझ गए क उनका जमन
ु ा पर जो भी अ धकार था वह ख म हो
गया। और जैसा कहा जा चक
ु ा है क वे ईमानदार आदमी थे अत: उ ह ने

54
कभी इधर का ख भी न कया हालाँ क उधर दे खते ह उनक आँख म आँसू
छलक जाते थे और लगता था जैसे गले म कोई चीज फँस रह हो, सीने म
कोई सज
ू ा चला रहा हो। धीरे -धीरे त ना का मन भी पढ़ने से उचट गया और
वे एफ.ए. के पहले साल म ह फेल हो गए।

महे सर दलाल ने उ ह फर खब
ू मारा, उनक मँझल बहन खश
ु हो कर अपने
लज
ंु -पज
ंु पैर पटकने लगी, और हालाँ क त ना खब
ू रोए और दबी जबान
इसका वरोध भी कया, पर महे सर दलाल ने उनका पढ़ना- लखना छुड़ा कर
उ ह आर.एम.एस. म भरती करा दया और वे टे शन पर डाक का काम
करने लगे। उसी समय महे सर दलाल क नगाह म एक लड़क

(यहाँ पर म यह साफ-साफ कह दँ ू क या तो कहानी क वषय-व तु के


कारण हो, या उस दन क सव ासी उमस के कारण, ले कन उस दन
मा णक मु ला क कथा-शैल म वह चटपटापन नह ं था जो पछल दो
कहा नय म था। अजब ढं ग से नीरस शैल म वे ववरण दे ते चले जा रहे थे
और हम लोग भी कसी तरह यान लगाने क को शश कर रहे थे। उमस
बहुत थी। कहानी म भी, कमरे म भी।)

खैर, तो उसी समय महे सर दलाल क नगाह म एक लड़क आई िजसके


बाप मर चक
ु े थे। माँ क अकेल संतान थी। माँ क उ चाहे कुछ रह हो पर
दे ख कर यह कहना क ठन था, माँ-बेट म कौन उ नीस है कौन बीस।
क ठनाई एक थी, लड़क इंटर के इ तहान म बैठ रह थी हालाँ क उ म
त ना से बहुत छोट थी। ले कन मस
ु ीबत यह थी क उस पवती वधवा के
पास जमीन-जायदाद काफ थी। न कोई दे वर था, न कोई लड़का। अत:

55
उसक सहायता और र ा के खयाल से त ना को इंटरमी डएट पास बता कर
महे सर दलाल ने उसक लड़क से त ना क बात प क कर ल मगर इस
शत के साथ क शाद तब होगी जब महे सर दलाल अपनी लड़क को नबटा
लगे और तब तक लड़क पढ़े गी नह ।ं

चँ ू क लड़क क ओर से भी सारा इंतजाम महे सर दलाल को करना था अत:


वे यारह-बारह बजे रात तक लौट पाते थे और कभी-कभी रात को भी वह ं
रह जाना पड़ता था य क लड़ाई चल रह थी और लैक-आउट रहता था,
लड़क का घर उसी मह
ु ले क एक दस
ू र ब ती म था िजसम दोन तरफ
फाटक लगे थे, जो लैकआउट म नौ बजते ह बंद हो जाते थे।

बआ
ु ने इसका वरोध कया, और नतीजा यह हुआ क महे सर दलाल ने
साफ-साफ कह दया क उसके घर म रहने से मह
ु ले म चार तरफ चार
आदमी चार तरह क बात करते ह। महे सर दलाल ठहरे इ जतदार आदमी,
उ ह बेटे-बे टय का याह नबटाना है और वे यह ढोल कब तक अपने गले
बाँधे रहगे। अंत म हुआ यह क बआ
ु जैसे हँसती, इठलाती हुई आई थीं वैसे
ह रोती-कलपती अपनी गठर -मठ
ु र बाँध कर चल ग और बाद म मालम

हुआ क त ना क माँ के तमाम जेवर और कपड़े जो बहन क शाद के लए
रखे हुए थे, गायब ह।

इसने त ना पर एक भयानक भार लाद दया। महे सर दलाल का उन दन


अजब हाल था। मह
ु ले म यह अफवाह फैल हुई थी क महे सर दलाल जो
कुछ करते ह वह एक साबन
ु बेचनेवाल लड़क को दे आते ह। त ना को घर
का भी सारा खच चलाना पड़ता था, याह क तैयार भी करनी पड़ती थी,

56
दोपहर को ए.आर.पी. म काम करते थे, रात को आर.एम.एस. म और
नतीजा यह हुआ क उनक आँख धँस ग , पीठ झक
ु गई, रं ग झल
ु स गया
और आँख के आगे काले ध बे उड़ने लगे।

जैसे-तैसे करके बहन क शाद नबट । शाद म जमन


ु ा आई थी पर त ना से
बोल नह ।ं एक दालान म दोन मले तो चप
ु चाप बैठे रहे । जमन
ु ा नाखन
ू से
फश खोदती रह , त ना तनके से दाँत खोदते रहे । य जमन
ु ा बहुत सद
ंु र
नकल आई थी और गज
ु राती जड़
ू ा बाँधने लगी थी, ले कन यह कहा जा चक
ु ा
है क त ना ईमानदार आदमी थे। त ना का फलदान चढ़ा तो वह और भी
सजधज के आई और उसने त ना से एक सवाल पछ
ू ा, 'भाभी या बहुत
सद
ंु र ह त ना?' 'हाँ!' त ना ने सहज भाव से बतला दया तो ँ धते गले से
बोल , 'मझ
ु से भी!' त ना कुछ नह ं बोले, घबरा कर बाहर चले आए और
सब
ु ह के लए लकड़ी चीरने लगे।

त ना क शाद के बाद जमन


ु ा ने भाभी से काफ हे ल-मेल बढ़ा लया। रोज
सब
ु ह-शाम आती, त ना से बात भी न करती। दन-भर भाभी के पास बैठ
रहती। भाभी बहुत पढ़ - लखी थी, त ना से भी यादा और थोड़ी घमंडी भी
थी। बहुत ज द मैके चल गई तो एक दन जमन
ु ा आई और त ना से
ऐसी-ऐसी बात करने लगी जैसी उसने कभी नह ं क थीं तो त ना ने उसके
पाँव छू कर उसे समझाया क जमन
ु ा, तम
ु कैसी बात करती हो? तो जमन
ु ा
कुछ दे र रोती रह और फर फुफकारती हुई चल गई।

उ ह ं दन मह
ु ले म एक अजब क घटना हुई। िजस साबन
ु वाल लड़क का
नाम महे सर दलाल के साथ लया जाता था वह एक दन मर हुई पाई गई।

57
उसक लाश भी गायब कर द गई और महे सर दलाल पु लस के डर के मारे
जा कर सम धयाने म रहने लगे।

त ना क िजंदगी अजब-सी थी। प नी यादा पढ़ थी, यादा धनी घर क


थी, यादा पवती थी, हमेशा ताने दया करती थी, मँझल बहन
घसल- घसल कर गा लयाँ दे ती रहती थी, 'राम करे दोन पाँव म क ड़े पड़!'
अफसर ने उनको नक मा करार दया था और उ ह ऐसी यट
ू दे द थी क
ह ते म चार दन और चार रात रे ल के सफर म बीतती थीं और बाक दन
हे ड वाटर म डाँट खाते-खाते। उनक फाइल म बहुत शकायत लख गई थीं।
उ ह ं दन उनके यहाँ यू नयन बनी और वे ईमानदार होने के नाते उससे
अलग रहे , नतीजा यह हुआ क अफसर भी नाराज और साथी भी।

इसी बीच म जमन


ु ा का याह हो गया, महे सर दलाल गज
ु र गए, पहला ब चा
होने म प नी मरते-मरते बची और बचने के बाद वह त ना से गंद छपकल
से भी यादा नफरत करने लगी। छोट बहन याह के का बल हो गई और
त ना सफ इतना कर पाए क सख
ू कर काँटा हो गए, कनप टय के बाल
सफेद हो गए, झक
ु कर चलने लगे, दल का दौरा पड़ने लगा, आँख से पानी
आने लगा और मेदा इतना कमजोर हो गया क एक कौर भी हजम नह ं
होता था।

डाक ले जाते हुए एक बार रे ल म नीमसार जाती हुई तीथया णी जमन


ु ा
मल । साथ म रामधन था। जमन
ु ा बड़ी ममता से पास आ कर बैठ गई,
उसके ब चे ने मामा को णाम कया। जमन
ु ा ने दोन को खाना दया। कौर
तोड़ते हुए त ना क आँख म आँसू आ गए। जमन
ु ा ने कहा भी क कोठ है ,

58
ताँगा है , खल
ु आबोहवा है , आ कर कुछ दन रहो, तंद ु ती सँभल जाएगी,
पर बेचारे त ना! नै तकता और ईमानदार बड़ी चीज होती है ।

ले कन उस सफर से जो त ना लौटे तो फर पड़ ह गए। मह न बख


ु ार
आया। रोग के बारे म डॉ टर क मु त लफ राय थी। कोई ह डी का बख
ु ार
बताता था, तो कोई खन
ू क कमी, तो कोई ट .बी. भी बता रहा था। घर का
यह हाल क एक पैसा पास नह ,ं प नी का सारा जेवर ले कर सास अपने घर
चल गई, छोट बहन रोया करे , मँझल घसल- घसल कर कहे , 'अभी या,
अभी तो क ड़े पड़गे!' सफ यू नयन के कुछ लोग आ कर अ छ -भल सलाह
दे जाते थे - साफ हवा म रखो, फल का रस दो, ब तर रोज बदल दे ना
चा हए और बेचारे करते ह या!

होते-होते जब नौबत यहाँ तक पहुँची क उ ह द तर से खा रज कर दया


गया, घर म फाके होने लगे तो उनक सास आ कर अपनी लड़क को लवा
ले गई और बोल , जब कमर म बत
ू ा नह ं था तो भाँवर य फरायी थीं और
फर यू नयन-फू नयन के गंड
ु े आवारे आ कर घर म हुड़दं गा मचाते रहते ह।
त ना क बहन उनके सामने चाहे नकल चाहे नाच-गाएँ, उनक लड़क यह
पेशा नह ं कर सकती।

इधर यू नयन उनक नौकर के लए लड़ रह थी और जब वे बहाल हो गए


तो लोग ने सलाह द , दो ह ते के लए चले जाएँ, बाक लोग उनका काम
करा दया करगे और उसके बाद फर छु ट ले लगे।

59
उनका तन ह डी का ढाँचा-भर रह गया था। चलते हुए आप नजद क से
पस लय क खड़बड़ाहट तक सन
ु सकते थे। कसी तरह ह मत बाँध कर
गए। अफसर लोग चढ़े हुए थे। मेल े न पर रात क यट
ू लगा द और वह
भी ऐन होल के दन। रं ग म भीगते हुए भी थर-थर काँपते हुए टे शन गए।
सारा बदन जल रहा था। काम तो सा थय ने मल कर कर दया, वे चप
ु चाप
पड़े रहे । ड बे म अंदर सीलन थी। बदन टूट रहा था, नस ढ ल पड़ गई थीं।
सब
ु ह हुई। टूंडला आया। थोड़ी-थोड़ी धप
ू नकल आई थी। वे जा कर दरवाजे
के पास खड़े हो गए। गाड़ी चल द । पाँव थर-थर काँप रहे थे, सहसा इंजन के
पानी क टं क क झल
ू ती हुई बा ट इनक कनपट म लगी और फर इ ह
होश नह ं रहा।

आँख खल
ु तो टूंडला के रे लवे अ पताल म थे। दोन पाँव नह ं थे। आस-पास
कोई नह ं था, बेहद दद था। खन
ू इतना नकल चक
ु ा था क आँख से कुछ
ठ क दखाई नह ं पड़ता था। सोचा, कसी को बल
ु ाव तो मँह
ु से जमन
ु ा का
नाम नकला, फर अपने ब चे का, फर बापू (महे सर) का और फर चप
ु हो
गए।

लोग ने बहुत पछ
ू ा, ' कसे तार दे द, या कया जाए?' पर वे कुछ नह ं बोले।
सफ मरने के पहले उ ह ने अपनी दोन कट टाँग दे खने क इ छा कट क
और वे लाई ग तो ठ क से दे ख नह ं सकते थे, अत: बार-बार उ ह छूते थे,
दबाते थे, उठाने क को शश करते थे, और हाथ खींच लेते थे और थर-थर
काँपने लगते थे।

60
पता नह ं मझ
ु े कैसा लगा क म न कष सन
ु ने क ती ा कए बना
चप
ु चाप उठ कर चला आया।

61
अन याय

बेहद उमस! मन क गहर से गहर पत म एक अजब-सी बेचन


ै ी। नींद आ भी
रह है और नह ं भी आ रह । नीम क डा लयाँ खामोश ह। बजल के काश
म उनक छायाएँ मकान , खपरै ल , बारज और ग लय म सहमी खड़ी ह।

मेरे अधसु त मन म असंब ध व न- वचार का सल सला।

वग का फाटक। प, रे खा, रं ग, आकार कुछ नह ं जैसा अनम


ु ान कर ल।
अ तयथाथवाद क वताएँ िजनका अथ कुछ नह ं जैसा अनम
ु ान कर ल।
फाटक पर रामधन बाहर बैठा है । अंदर जमन
ु ा वेतवसना, शांत, गंभीर।
उसक व ंख
ृ ल वासना, उसका वैध य, परु इन के प पर पड़ी ओस क
तरह बखर चक
ु ा है , वह वैसी ह है जैसी त ना को थम बार मल थी।

फाटक पर घोड़े क नाल जड़ी ह। एक, दो, असं य! दरू धध


ुँ ले तज से एक
पतला धए
ु ँ क रे खा-सा रा ता चला आ रहा है । उस पर कोई दो चीज रग रह
ह। रा ता रह-रह कर काँप उठता है , जैसे तार का पल
ु ।

बादल म एक टाच जल उठती है । राह पर त ना चले आ रहे ह। आगे-आगे


त ना, कटे पाँव से घसलते हुए, पीछे -पीछे उनक दो कट टाँग लड़खड़ाती
चल आ रह है । टाँग पर आर.एम.एस. के रिज टर लदे ह।

62
फाटक पर पाँव क जाते ह। फाटक खल
ु जाते ह। त ना फाइल उठा कर
अंदर चले जाते ह। दोन पाँव बाहर छूट जाते ह। ब तइ
ु या क कट हुई पँछ

क तरह छटपटाते ह।

कोई ब चा रो रहा है । वह त ना का ब चा है । दबे हुए वर : यू नयन,


एस.एम.आर., एम.आर.एस., आर.एम.एस., यू नयन। दोन कटे पाँव वापस
चल पड़ते ह, धए
ु ँ का रा ता तार के पल
ु क तरह काँपता है ।

दरू कसी टे शन से कोई डाकगाड़ी छूटती है ।…

63
चौथी दोपहर
(मालवा क यव
ु रानी दे वसेना क कहानी)

आँख लग जाने के थोड़ी दे र बाद सहसा उमस चीरते हुए हवा का एक झ का


आया और फर तो इतने तेज झकोरे आने लगे क नीम क शाख झम
ू उठ ।ं
थोड़ी दे र म तार का एक काला परदा छा गया। हवाएँ अपने साथ बादल ले
आई थीं। सब
ु ह हम लोग बहुत दे र तक सोए य क हवा चल रह थी और
धप
ू का कोई सवाल नह ं था।

पता नह ं दे र तक सोने का नतीजा हो या बादल का, य क का लदास ने भी


कहा है -'र या ण वी य मधरु ां च...' पर मेरा मन बहुत उदास-सा था और म
लेट कर कोई कताब पढ़ने लगा, शायद ' कंदगु त' िजसम अंत म ना यका
दे वसेना राग वहाग म 'आह वेदना मल वदाई' गाती है और घट
ु ने टे क कर
वदा माँगती है - इस जीवन के दे वता और उस ज म के ा य मा! और
उसके बाद अनंत वरह के साथ परदा गर जाता है ।

उसको पढ़ने से मेरा मन और भी उदास हो गया और मने सोचा चलो


मा णक मु ला के यहाँ ह चला जाए। म पहुँचा तो दे खा क मा णक मु ला
चप
ु चाप बैठे खड़क क राह बादल क ओर दे ख रहे ह और कुरसी से
लटकाए हुए दोन पाँव धीरे -धीरे हला रहे ह। म समझ गया क मा णक
मु ला के मन म कोई बहुत परु ानी यथा जाग गई है य क ये ल ण उसी
बीमार के होते ह। ऐसी हालत म साधारणतया मा णक-जैसे लोग क दो
त याएँ होती ह। अगर कोई उनसे भावक
ु ता क बात करे तो वे फौरन
उसक ख ल उड़ाएँगे, पर जब वह चप
ु हो जाएगा तो धीरे -धीरे खद
ु वैसी ह

64
बात छे ड़ दगे। यह मा णक ने भी कया। जब मने उनसे कहा क मेरा मन
बहुत उदास है तो वे हँसे और मने जब कहा क कल रात के सपने ने मेरे मन
पर बहुत असर डाला है तो वे और भी हँसे और बोले, 'उस सपने से तो दो ह
बात मालम
ू होती ह।'

' या?' मने पछ


ू ा।

'पहल तो यह क तु हारा हाजमा ठ क नह ं है , दस


ू रे यह क तम
ु ने डांटे क
' डवाइना कामे डया' पढ़ है िजसम नायक को वग म ना यका मलती है
और उसे ई वर के संहासन तक ले जाती है ।' जब मने झप कर यह वीकार
कया क दोन बात बलकुल सच ह तो फर वे चप
ु हो गए और उसी तरह
खड़क क राह बादल क ओर दे ख कर पाँव हलाने लगे। थोड़ी दे र बाद
बोले, 'पता नह ं तम
ु लोग को कैसा लगता है , मझ
ु े तो बादल को दे ख कर
वैसा लगता है जैसे उस घर को दे ख कर लगता है िजसम हमने अपना
हँसी-खश
ु ी से बचपन बताया हो और िजसे छोड़ कर हम पता नह ं कहाँ-कहाँ
घम
ू े ह और भल
ू कर फर उसी मकान के सामने बरस बाद आ पहुँचे ह ।'
जब मने वीकार कया क मेरे मन म भी यह भावना होती है तो और भी
उ साह म भर कर बोले, 'दे खो, अगर िजंदगी म फूल न होते, बादल न होते,
प व ता न होती, काश न होता, सफ अँधेरा होता, क चड़ होता, गंदगी
होती तो कतना अ छा होता! हम सब उसम क ड़े क तरह बल बलाते और
मर जाते, कभी अंत:करण म कसी तरह क छटपटाहट न होती। ले कन
बड़ा अभागा होता है वह दन िजस दन हमार आ मा प व ता क एक
झलक पा लेती है , रोशनी का एक कण पा लेती है य क उसके बाद स दय
तक अँधेरे म कैद रहने पर भी रोशनी क यास उसम मर नह ं पाती, उसे

65
तड़पाती रहती है । वह अँधेरे से समझौता कर ले पर उसे चैन कभी नह ं
मलती।' म उनक बात से पण
ू तया सहमत था पर लख चाहे थोड़ा-बहुत लँ ,ू
मझ
ु े उन दन अ छ हंद बोलने का इतना अ यास नह ं था अत: उनक
उदासी से सहम त कट करने के लए म चप
ु चाप मँह
ु लटकाए बैठा रहा था।
बलकुल उ ह ं क तरह मँह
ु लटकाए हुए बादल क ओर दे खता रहा और
नीचे पाँव झल
ु ाता रहा। मा णक मु ला कहते गए - 'अब यह ेम क बात
लो। यह सच है क ेम आ थक ि थ तय से अनश
ु ा सत होता है , ले कन
मने जो जोश म कह दया था क ेम आ थक नभरता का ह दस
ू रा नाम है ,
यह केवल आं शक स य है । इसे कोई अ वीकार नह ं कर सकता क यार -
'यहाँ मा णक मु ला क गए और मेर ओर दे ख कर बोले, ' मा करना,
तु हार अ य त शैल म कहूँ तो इससे कोई इनकार नह ं कर सकता क
यार आ मा क गहराइय म सोये हुए स दय के संगीत को जगा दे ता है ,
हमम अजब-सी प व ता, नै तक न ठा और काश भर दे ता है आ द-आ द।
ले कन...'

'ले कन या?' मने पछ


ू ा।

'ले कन हम सब परं पराओं, सामािजक प रि थ तय , झठ


ू े बंधन म इस तरह
कसे हुए ह क उसे सामािजक तर हण नह ं करा पाते, उसके लए संघष
नह ं कर पाते और बाद म अपनी कायरता और ववशताओं पर सन
ु हरा पानी
फेर कर उसे चमकाने क को शश करते रहते ह। इस मानी ेम का मह व
है , पर मस
ु ीबत यह है क वह क चे मन का यार होता है , उसम सपने,
इं धनष
ु और फूल तो काफ मकदार म होते ह पर वह साहस और
प रप वता नह ं होती जो इन सपन और फूल को व थ सामािजक संबध

66
म बदल सके। नतीजा यह होता है क थोड़े दन बाद यह सब मन से उसी
तरह गायब हो जाता है जैसे बादल क छाँह। आ खर हम हवा म तो नह ं
रहते ह और जो भी भावना हमारे सामािजक जीवन क खाद नह ं बन पाती,
िजंदगी उसे झाड़-झंखाड़ क तरह उखाड़ फकती है ।'

ओंकार, याम और काश भी तब तक आ गए थे। और हम सब लोग


मन-ह -मन इंतजार कर रहे थे क मा णक मु ला कब अपनी कहानी शु
कर, पर उनक खोई-सी मन:ि थ त दे ख कर हम लोग क ह मत नह ं पड़
रह थी।

इतने म मा णक मु ला खद
ु हम लोग के मन क बात समझ गए और
सहसा अपने दवा व न क द ु नया से लौटते हुए फ क हँसी हँस कर बोले,
'आज म तम
ु लोग को एक ऐसी लड़क क कहानी सन
ु ाऊँगा, जो ऐसे बादल
के दन मझ
ु े बार-बार याद आ जाती है । अजब थी वह लड़क !'

इसके बाद मा णक मु ला ने जब कहानी ारं भ क तभी मने टोका और


उनको याद दलाई क उनक कहानी म समय का व तार इतना सीमाह न
था क घटनाओं का म बहुत तेजी से चलता गया और वे ववरण म इतनी
तेजी से चले क वैयि तक मनो व लेषण और मन:ि थ त न पण पर ठ क
से यान नह ं दे पाए। मा णक मु ला ने पछल कहानी क इस कमी को
वीकार कया, ले कन लगता है अंदर-अंदर उ ह कुछ लगा य क उ ह ने
चढ़ कर बहुत कड़वे वर म कहा, 'अ छा लो, आज क कहानी का
घटनाकाल केवल चौबीस घंटे म ह सी मत रहे गा - 29 जल
ु ाई, सन 19...को
सायंकाल छह बजे से 30 जल
ु ाई सायंकाल छह बजे तक, और उसके बाद

67
उ ह ने कहानी ारं भ क : (कहानी कहने के पहले मझ
ु से बोले, 'शैल म
तु हार झलक आ जाए तो मा करना।')

खड़क पर झल
ू ते हुए जाजट के हवा से भी ह के परद को चम
ू ते हुए शाम
के सरू ज क उदास पील करण ने झाँक कर उस लड़क को दे खा जो त कए
म मँह
ु छपाए ससक रह थी। उसक खी अलक खारे आँसू से धल
ु े गाल
को छू कर सहर उठती थीं। चंपे क क लय -सी उसक लंबी पतल
कला मक उँ ग लयाँ, सस कय -से काँप-काँप उठनेवाला उसका सोनजह
ु -सा
तन, उसके गल
ु ाब क सख
ू ी पाँखु रय -से होठ, और कमरे का उदास
वातावरण; पता नह ं कौन-सा वह दद था िजसक उदास उँ ग लयाँ रह-रह कर
उसके यि त व के मण
ृ ाल-तंतओ
ु ं के संगीत को झकझोर रह थीं।

थोड़ी दे र बाद वह उठ । उसक आँख के नीचे एक हलक फालसाई छाँह थी


जो सज
ू आई थी। उसक चाल हं स क थी, पर ऐसे हं स क जो मानसरोवर से
न जाने कतने दन के लए वदा ले रहा हो। उसने एक गहर साँस ल और
लगा जैसे हवाओं म केसर के डोरे बखर गए ह । वह उठ और खड़क के
पास जा कर बैठ गई। हवाओं से जाजट के परदे उठ कर उसे गद
ु गद
ु ा जाते थे,
कभी कान के पास, कभी होठ के पास, कभी... खैर!

बाहर सरू ज क आखर करण नीम और पीपल के शखर पर सन


ु हल
उदासी बखेर रह थीं। तज के पास एक गहर जामन
ु ी पत जमी थी,
िजस पर गल
ु ाब बखरे हुए थे और उसके बाद ह क पील आँधी क आभा
लहरा रह थी।

68
'आँधी आनेवाल है बेट ! चलो खाना खा लो!' माँ ने दरवाजे पर से कहा।
लड़क कुछ नह ं बोल , सफ सर हला दया। माँ कुछ नह ं बोल , इसरार भी
नह ं कया। माँ क अकेल लड़क थी, घर-भर म माँ और बेट ह थीं, बेट
समझो तो बेटा समझो तो! बेट क बात काटने क ह मत कसी म नह ं
थी। माँ थोड़ी दे र चप
ु चाप खड़ी रह , चल गई। लड़क सन
ू ी-सन
ू ी आँख से
चप
ु चाप जामन
ु ी रं ग के घरते हुए बादल को दे खती रह और उन पर धधकते
हुए गल
ु ाब को और उन पर घरती हुई आँधी को।

शाम ने धध
ुँ लके का सरु मई दप
ु टा ओढ़ लया। वह चप
ु चाप वह ं बैठ रह ,
बेले क बनी हुई कला- तमा क तरह, नगाह म रह-रह कर नर गस,
उदास और लजील नर गस झम
ू जाती थी।

'क हए जनाब!' मा णक ने वेश कया तो वह उठ और चप


ु चाप लाइट ऑन
कर द । मा णक मु ला ने उसक ख न मन:ि थ त, उसका अ ु स त मौन
दे खा तो क गए और गंभीर हो कर बोले, ' या हुआ? लल ! लल !'

'कुछ नह !ं ' लड़क ने हँसने का यास करते हुए कहा, मगर आँख डबडबा
आ और वह मा णक मु ला के पाँव के पास बैठ गई।

मा णक ने उसके बद
ंु म उलझी एक सख
ू ी लट को सल
ु झाते हुए कहा, 'तो
नह ं बताओगी?'

'हम कभी छपाते ह तम


ु से कोई बात!'

69
'नह ं, अब तक तो नह ं छपाती थी, आज से छपाने लगी हो!'

'नह ं, कोई बात नह ।ं सच मानो!' लड़क ने, िजसका नाम ल ला था लल


नाम से पक
ु ार जाती थी, मा णक क कमीज के काँच के बटन खोलते और
बंद करते हुए कहा।

'अ छा मत बताओ! हम भी अब तु ह कुछ नह ं बताएँगे।' मा णक ने उठने


का उप म करते हुए कहा।

'तो चले कहाँ -' वह मा णक के कंधे पर झक


ु गई - 'बताती तो हूँ।'

'तो बताओ!'

लल थोड़ा झप गई और फर उसने मा णक क हथेल अपनी सज


ू ी पलक
पर रख कर कहा, 'हुआ ऐसा क आज दे वदास दे खने गए थे। क मो भी साथ
थी। खैर, उसक समझ म आई नह ।ं मझ
ु े पता नह ं कैसा लगने लगा।
मा णक, या होगा, बताओ? अभी तो एक दन तम
ु नह ं आते हो तो न
खाना अ छा लगता है , न पढ़ना। फर मह न -मह न तु ह नह ं दे ख पाएँगे।
सच, वैसे चाहे िजतना हँसते रहो, बोलते रहो, पर जहाँ इस बात का यान
आया क मन को जैसे पाला मार जाता है ।'

मा णक कुछ नह ं बोले। उनक आँख म एक क ण यथा झलक आई और


चप
ु चाप बैठे रहे । आँधी आ गई थी और मेज के नीचे सनेमा के दो आधे फटे

70
हुए टकट आँधी क वजह से तमाम कमरे म घायल तत लय के जोड़े क
तरह इधर-उधर उड़ कर द वार से टकरा रहे थे।

मा णक के पाँव पर टप से एक गरम आँसू चू पड़ा तो उ ह ने च क कर दे खा


लल क पलक म आँसू छलक रहे थे। उ ह ने हाथ पकड़ कर लल को पास
खींच लया और उसे सामने बठा कर, उसके दो न हे उजले कबत
ू र जैसे
पाँव पर उँ गल से धा रयाँ खींचते हुए बोले, ' छ:! यह सब रोना-धोना हमार
लल को शोभा नह ं दे ता। यह सब कमजोर है , मन का मोह और कुछ नह ।ं
तम
ु जानती हो क मेरे मन म कभी तु हारे लए मोह नह ं रहा, तु हारे मन
म मेरे लए कभी अ धकार क भावना नह ं रह । अगर हम दोन जीवन म
एक दस
ू रे के नकट आए भी तो इस लए क हमार अधरू आ माएँ एक दस
ू रे
को पण
ू बनाएँ, एक दस
ू रे को बल द, काश द, ेरणा द। और द ु नया क
कोई भी ताकत कभी हमसे हमार इस प व ता को छ न नह ं सकती। म
जानता हूँ क तमाम जीवन म जहाँ कह ं भी रहूँगा, िजन प रि थ तय म भी
रहूँगा, तु हारा यार मझ
ु े बल दे ता रहे गा फर तम
ु म इतनी अि थरता य
आ रह है ? इसका मतलब यह है क पता नह ं मझ
ु म कौन-सी कमी है क
तु ह वह आ था नह ं दे पा रहा हूँ!'

लल ने आँसू डूबी नगाह उठा और कायरता से मा णक क ओर दे खा


िजसका अथ था - 'ऐसा न कहो, मेरे जीवन म, मेरे यि त व म जो कुछ है
तु हारा ह तो दया हुआ है ।' पर लल ने यह श द से नह ं कहा, नगाह से
कह दया।

71
मा णक ने धीरे -से उसी के आँचल से उसके आँसू प छ दए। बोले, 'जाओ,
मँह
ु धो आओ! चलो!' लल मँह
ु धो कर आ गई। मा णक बैठे हुए रे डयो क
सई
ु इस तरह घम
ु ा रहे थे क कभी झम से द ल बज उठता था, कभी
लखनऊ क दो-एक अ फुट संगीतलहर सन
ु ाई पड़ जाती थी, कभी नागपरु ,
कभी कलक ा, (इलाहाबाद म सौभा य से तब तक रे डयो टे शन था ह
नह !ं ) लल चप
ु चाप बैठ रह , फर उठ कर उसने रे डयो ऑफ कर दया
और आकुल आ ह-भरे वर म बोल , 'मा णक, कुछ बात करो! मन बहुत
घबरा रहा है ।'

मा णक हँसे और बोले, 'अ छा आओ बात कर, पर हमार लल िजतनी


अ छ बात कर लेती है , उतनी म थोड़े ह कर पाता हूँ। ले कन खैर! तो
तु हार क मो क समझ म तसवीर नह ं आई!'

'उहूँक!'

'क मो बड़ी कंु दजेहन है , ले कन को शश हमेशा यह करती है क सब काम


म टाँग अड़ाए।'

'तु हार जमन


ु ा से तो अ छ ह है !'

जमन
ु ा के िज पर मा णक को हँसी आ गई और फर आ ह से, बेहद दल
ु ार
और बेहद नशे से लल क ओर दे खते हुए बोले, ' लल , तम
ु ने कंदगु त
खतम कर डाल !'

72
'हाँ।'

'कैसी लगी!'

लल ने सर हला कर बताया क बहुत अ छ लगी। मा णक ने धीरे से


लल का हाथ अपने हाथ म ले लया और उसक रे खाओं पर अपने काँपते
हुए हाथ को रख कर बोले, 'म चाहता हूँ मेर लल उतनी ह प व , उतनी ह
सू म, उतनी ह ढ़ बने िजतनी दे वसेना थी। तो लल वैसी ह बनेगी न!'

कसी मानवोप र, दे वताओं के संगीत से मु ध, भोल हरणी क तरह लल


ने एक ण मा णक क ओर दे खा और उनक हथे लय म मँह
ु छपा लया।

'वाह! उधर दे खो लल !' मा णक ने दोन हाथ से लल का मँह


ु कमल के
फूल क तरह उठाते हुए कहा। बाहर गल क बजल पता नह ं य जल
नह ं रह थी, ले कन रह-रह कर बजनी रं ग क बज लयाँ चमक जाती थीं
और लंबी पतल गल , दोन ओर के प के मकान, उनके खाल चबत
ू रे , बंद
खड़ कयाँ, सन
ू े बारजे, उदास छत, उन बजनी बज लय म जाने कैसे जाद ू
के-से, रह यमय-से लग रहे थे। बजल चमकते ह अँधेरा चीर कर वे
खड़क से द ख पड़ते, और फर सहसा अंधकार म वल न हो जाते और उस
बीच के एक ण म उनक द वार पर तड़पती हुई बजल क बजनी रोशनी
लपलपाती रहती, बारज क कोर से पानी क धार गरती रहतीं, खंभे और
बजल के तार काँपते रहते और हवाओं म बँद
ू क झालर लहराती रहतीं।
सारा वातावरण जैसे बजल के एक ीण आघात से काँप रहा था, डोल रहा
था।

73
एक तेज झ का आया और खड़क के पास खड़ी लल बौछार से भीग गई,
और भ ह से, माथे से बँद
ू प छती हुई हट तो मा णक बोले, ' लल वह ं खड़ी
रहो, खड़क के पास, हाँ बलकुल ऐसे ह । बँद
ू मत प छो। और लल , यह
एक लट तु हार भीग कर झल
ू आई है कतनी अ छ लग रह है !'

लल कभी चप
ु चाप लजाती हुई खड़क के बाहर, कभी लजाती हुई अंदर
मा णक क ओर दे खती हुई बौछार म खड़ी रह । जब बज लयाँ चमकतीं तो
ऐसा लगता जैसे काश के झरने म काँपता हुआ नील कमल। पहले माथा
भीगा - लल ने पछ
ू ा, 'हट!' मा णक बोले, 'नह ं!' माथे से पानी गरदन पर
आया, बँद
ू उसके गले म पड़ी सन
ु हल मटरमाला को चम
ू ती हुई नीचे उतरने
लगीं, वह सहर उठ । 'सरद लग रह है ?' मा णक ने पछ
ू ा। एक अजब-से
अ हड़ आ म-समपण के वर म लल बोल , 'नह ं, सरद नह ं लग रह है !
ले कन तम
ु बड़े पागल हो!'

'हूँ तो नह ,ं कभी-कभी हो जाता हूँ! लल , एक अँ ेजी क क वता है - 'ए


लल गल नॉट मेड फॉर दस व डस पेन!' एक फूल-सी लड़क जो इस
द ु नया के द:ु ख-दद के लए नह ं बनी। लल यह क व तु ह जानता था
या? ' लल ' - तु हारा नाम तक लख दया है ।'

'हूँ! हम तो ज र जानता था। तु ह भी एक नई बात रोज सझ


ू ती रहती है ।'

'नह ं! दे खो उसने यहाँ तक तो लखा है - 'एंड लां गंग आइज हाफ वे ड वद


लंबरस ट यस, लाइक लए
ू ट वाटस सोन ू म स, ऑफ रे न' -

74
लालसा-भर नगाह, उनींदे आँसओ
ु ं से आ छा दत जैसे पानी क बौछार म
धध
ुँ ल द खने वाल नील झील...'

सहसा तड़प कर दरू कह ं बजल गर और लल च क कर भागी और


बदहवास मा णक के पास आ गर । दो पल तक बजल क दल दहला
दे नेवाल आवाज गँज
ू ती रह और लल सहमी हुई गौरै या क तरह मा णक
क बाँह के घेरे म खड़ी रह । फर उसने आँख खोल ं, और झक
ु कर मा णक
के पाँव पर दो गरम ह ठ रख दए। मा णक क आँख म आँसू आ गए।
बाहर बा रश धीमी पड़ गई थी। सफ छ ज से, खपरै ल से टप-टप कर बँद

चू रह थीं। ह के-ह के बादल अँधेरे म उड़े जा रहे थे।

सब
ु ह लल जागी - ले कन नह ,ं जागी नह ं - लल को रात-भर नींद आई
नह ं थी। उसे पता नह ं कब माँ ने खाने के लए जगाया, उसने कब मना कर
दया, कब और कसने उसे पलँ ग पर लटाया - उसे सफ इतना याद है क
रात-भर वह पता नह ं कसके पाँव पर सर रख कर रोती रह । त कया
आँसओ
ु ं से भीग गया था, आँख सज
ू आई थीं।

क मो सब
ु ह ह आ गई थी। आज लल को जेवर पहनाया जानेवाला था,
शाम को सात बजे लोग आनेवाले थे, सास तो थी ह नह ,ं ससरु आनेवाले थे
और क मो, जो लल क घ न ट म थी, पर उस घर को सजाने का परू ा
भार था और लल थी क क मो के कंधे पर सर रख कर इस तरह
बलखती थी क कुछ पछ
ू ो मत!

75
क मो बड़ी यथाथवा दनी, बड़ी ह अभावक
ु लड़क थी। उसने इतनी
सहे लय क शा दयाँ होते दे खी थीं। पर लल क तरह बना बात के
बलख- बलख कर रोते कसी को नह ं दे खा था। जब वदा होने लगे तो उस
समय तो रोना ठ क है , वरना चार बड़ी-बू ढ़याँ कहने लगती ह क दे खो!
आजकल क लड़ कयाँ हया-शरम धो के पी गई ह। कैसी ऊँट-सी गरदन
उठाए ससरु ाल चल जा रह ह। अरे हम लोग थे क रोते-रोते भोर हो गई थी
और जब हाथ-पाँव पकड़ के भैया ने डोल म ढकेल दया तो बैठे थे। एक ये
ह! आ द।

ले कन इस तरह रोने से या फायदा और वह भी तब जब माँ या और लोग


सामने न ह । सामने रोए तो एक बात भी है ! बहरहाल क मो बगड़ती रह
और लल के आँसू थमते ह न थे।

क मो ने काम बहुत ज द ह नबटा लया ले कन वह घर म कह आई थी


क अब दन-भर वह ं रहे गी। क मो ठहर घम
ू ने- फरनेवाल कामकाजी
लड़क । उसे खयाल आया क उसे एलनगंज जाना है , वहाँ से अपनी कढ़ाई
क कताब वगैरह वापस लानी ह, और फर उसे एक ण चैन नह ं पड़ा।
उसने लल क माँ से पछ
ू ा, ज द से लल को मार-पीट कर जबरद ती
तैयार कया और दोन स खयाँ चल पड़ीं।

बादल छाए हुए थे और बहुत ह सह


ु ावना मौसम था। सडक़ पर जगह-जगह
पानी जमा था, िजनम च ड़याँ नहा रह थीं। एलनगंज म अपना काम
नबटा कर दोन पैदल टहलने चल द ।ं थोड़ी ह दरू आगे बाँध था, िजसके
नीचे से एक परु ानी रे ल क लाइन गई थी जो अब बंद पड़ी थी। लाइन के

76
बीच म घास उग आई थी और बा रश के बाद घास म लाल ह र क तरह
जगमगाती हुई बीरबहू टयाँ रग रह थीं। दोन स खयाँ वह ं बैठ ग - एक
बीरबहूट रह-रह कर उस जंग खाए हुए लोहे क लाइन को पार करने क
को शश कर रह थी और बार-बार फसल कर गर जाती थी। लल थोड़ी दे र
उसे दे खती रह और फर बहुत उदास हो कर क मो से बोल , 'क मो रानी!
अब उस पंजरे से न तार नह ं होगा, कहाँ ये घम
ू ना- फरना, कहाँ तम
ु ।'
क मो जो एक घास क डंठल चबा रह थी, तमक कर बोल , 'दे खो ल ल
घोड़ी! मेरे सामने ये अँसआ
ु ढरकाने से कोई फायदा नह ।ं समझीं! हम ये सब
चोचला अ छा नह ं लगता। द ु नया क सब लड़ कयाँ तो पैदा होके याह
करती ह, एक तम
ु अनोखी पैदा हुई हो या? और याह के पहले सभी ये
कहती ह, याह के बाद भल
ू भी जाओगी क क मो कंब त कस खेत क
मल
ू थी!'

लल कुछ नह ं बोल , ख सयानी-सी हँसी हँस द । दोन स खयाँ आगे चल ं।


धीरे -धीरे लल बीरबहू टयाँ बटोरने लगी। सहसा क मो ने उसे एक झाड़ी के
पास पड़ी साँप क कचल
ु दखाई, फर दोन एक बहुत बड़े अम द के बाग के
पास आ और दो-तीन बरसाती अम द तोड़ कर खाए जो काफ बकठे थे,
और अंत म परु ानी क और खेत म से होती हुई वे एक बहुत बड़े-से पोखरे
के पास आ जहाँ धो बय के प थर लगे हुए थे। कचल
ु , बीरबहूट , अम द
और ह रयाल ने लल के मन को एक अजीब-सी राहत द और रो-रो कर
थके हुए उसके मन ने उ लास क एक करवट ल । उसने च पल उतार द
और भीगी हुई घास पर टहलने लगी। थोड़ी दे र म लल बलकुल दस
ू र ह
लल थी, हँसी क तरं ग पर धप
ू क तरह जगमगाने वाल , और शाम को

77
पाँच बजे जब दोन घर लौट ं तो उनक खल खलाहट से मह
ु ला हल उठा
और लल को बहुत कस कर भख
ू लग आई थी।

दन-भर घम
ू ने से लल को इतनी जोर क भख
ू लग आई थी क आते ह
उसने माँ से ना ता माँगा और जब अपने आप अलमार से नकालने लगी तो
माँ ने टोका क खद
ु खा जाएगी तो तेरे ससरु या खाएँगे तो हँस के बोल ,
'अरे उ ह म बचा-खच
ु ा अपने हाथ से खला दँ ग
ू ी। पहले चख तो लँ ,ू नह ं
बदनामी हो बाद म!' इतने म मालम
ू हुआ वे लोग आ गए तो झट से वह
ना ता आधा छोड़ कर अंदर गई। क मो ने उसे साड़ी पहनाई, उसे
सजाया-सँवारा ले कन उसे भख
ू इतनी लगी थी क उन लोग के सामने जाने
के पहले वह फर बैठ गई और खाने लगी, यहाँ तक क क मो ने जबरद ती
उसके सामने से त तर हटा ल और उसे खींच ले गई।

दन-भर खल
ु हवा म घम
ू ने से और पेट भर कर खाने से सब
ु ह लल के चेहरे
पर जो उदासी छाई थी वह बलकुल गायब हो गई थी और उन लोग को
लड़क बहुत पसंद आई और पछले दन शाम को उसके जीवन म जो
जलजला शु हुआ था वह दस
ू रे दन शाम को शांत हो गया।

इतना कह कर मा णक मु ला बोले, 'और यारे बंधओ


ु ! दे खा तम
ु लोग ने!
खल
ु हवा म घम
ू ने और सय
ू ा त के पहले खाना खाने से सभी शार रक और
मान सक या धयाँ शांत हो जाती ह अत: इससे या न कष नकला?'

'खाओ, बदन बनाओ!' हम लोग ने उनके कमरे म टँ गे फोटो क ओर दे खते


हुए एक वर म कहा।

78
'ले कन मा णक मु ला!' ओंकार ने पछ
ू ा, 'यह आपने नह ं बताया क लड़क
को आप कैसे जानते थे, य जानते थे, कौन थी यह लड़क ?'

'अ छा! आप लोग चाहते ह क म कहानी का घटनाकाल भी चौबीस घंटे रखूँ


और उसम आपको सारा महाभारत और इनसाइ लोपी डया भी सन
ु ाऊँ! म
कैसे जानता था इससे आपको या मतलब? हाँ, यह म आपको बता दँ ू क
यह ल ला वह लड़क थी िजसका याह त ना से हुआ था और उस दन शाम
को महे सर दलाल उसे दे खने आनेवाले थे!'

79
पाँचवीं दोपहर
(काले बट का चाकू)

अगले दन दोपहर को जब हम सब लोग मले तो एक अजब-सी मन:ि थ त


थी हम लोग क । हम सब इस रं गीन मानी ेम के त अपना मोह तोड़
नह ं पाते थे, और दस
ू र ओर उस पर हँसी भी आती थी, तीसर ओर एक
अजब-सी ला न थी अपने मन म क हम सब, और हम सबके ये
कशोराव था के सपने कतने न सार होते ह और इन सभी भावनाओं का
संघष हम एक अजीब-सी झप और झँझ
ु लाहट - बि क उसे ख सयाहट
कहना बेहतर होगा - क ि थ त म छोड़ गया था। ले कन मा णक मु ला
बलकुल न वं व भाव से स न च हम लोग से हँस-हँस कर बात करते
जा रहे थे और आलमार तथा मेज पर से धल
ू झाड़ते जा रहे थे जो रात को
आँधी के कारण जम जाती है , और ऐसा लगता था क जैसे आदमी परु ाने
फटे हुए मोज को कूड़े पर फक दे ता है उसी तरह अपने उस सारे मानी म
को, सार ममता छोड़ कर फक दया है और उधर मड़
ु कर दे खने का भी मोह
नह ं रखा।

सहसा मने पछ
ू ा, 'इस घटना ने तो आपके मन पर बहुत गहरा भाव डाला
होगा?'

मेरे इस न से उनके चेहरे पर दो-चार बहुत क ण रे खाएँ उभर आ ले कन


उ ह ने बड़ी चतरु ता से अपनी मन:ि थ त छपाते हुए कहा, 'मनोवै ा नक

80
का कहना है क छोट -से-छोट और बड़ी-से-बड़ी, कोई घटना ऐसी नह ं जो
आदमी के अंतमन पर गहर छाप न छोड़ जाए।'

'कम-से-कम अगर मेरे जीवन म ऐसा हो, तो मेर तो सार िजंदगी बलकुल
म थल हो जाए। शायद द ु नया क कोई चीज मेरे मन म कभी रस का
संचार न कर सके।' मने कहा।

मा णक मु ला मेर ओर दे ख कर हँसे और बोले, 'इसके यह मतलब ह क


तम
ु ने अभी न तो िजंदगी दे खी है और न अभी अ छे उप यास ह पढ़े ह।
यादातर ऐसा ह हुआ है , और ऐसा ह सन
ु ा गया है म वर, क इस कार
क न फल उपासना के बाद फर िजंदगी म कोई दस
ू र लड़क आती है जो
बौ धक, नै तक तथा आ थक ि ट से न नतर तर क होती है पर
िजसम अ धक ईमानदार , अ धक च र , अ धक वफादार और अ धक बल
होता है । मसलन शरत चटज के दे वदास मख
ु ज को ह ले लो। पारो के बाद
उ ह चं ा मल । इसी तरह के अ य कतने ह उदाहरण दए जा सकते ह।
मा णक मु ला को या तम
ु कम समझते हो? मा णक मु ला ने लल के
बाद गांधार क तरह अपनी आँख पर जीवन भर के लए प ट बाँध लेने क
कसम खा ल । ले कन अ छा होता क प ट ह बाँध लेता य क लल के
बाद स ी का आकषण मेरे लए शभ
ु नह ं हुआ और न उसके ह लए।
ले कन वह बलकुल दस
ू र धातु क थी, जमन
ु ा से भी अलग और लल से
भी अलग। बड़ी व च है उसक कहानी भी...'

'ले कन मु ला भाई! एक बात म कहूँगा, अगर तम


ु बरु ा न मानो

81
तो - ' काश ने बात काट कर कहा, 'ये कहा नयाँ जो तम
ु कहते हो बलकुल
सीधे-सादे ववरण क भाँ त होती ह। उनम कुछ कथा श प, कुछ काट-छाँट,
कुछ टे कनीक भी तो होना चा हए!'

'टे कनीक! हाँ टे कनीक पर यादा जोर वह दे ता है जो कह -ं न-कह ं


अप रप व होता है , जो अ यास कर रहा है , िजसे उ चत मा यम नह ं मल
पाया। ले कन फर भी टे कनीक पर यान दे ना बहुत व थ व ृ है बशत
वह अनप
ु ात से अ धक न हो जाए। जहाँ तक मेरा सवाल है मझ
ु े तो कहानी
कहने के ि टकोण से लाबेयर और मोपासा बहुत अ छे लगते ह य क
उनम पाठक को अपने जाद ू म बाँध लेने क ताकत है , वैसे उनके बाद चेखव
कहानी के े म वच यि त रहा है और म उसका लोहा मानता हूँ।
चेखव ने एक बार कसी म हला से कहा था, 'कहानी कहना क ठन बात नह ं
है । आप कोई चीज मेरे सामने रख द, यह शीशे का गलास, यह ऐश- े और
कह क म इस पर कहानी कहूँ। थोड़ी दे र म मेर क पना जागत
ृ हो जाएगी
और उससे संब ध कतने लोग के जीवन मझ
ु े याद आ जाएँगे और वह चीज
कहानी का सद
ंु र वषय बन जाएगी।'

मने अवसर का लाभ उठाते हुए फौरन वह काले बटवाला चाकू ताख पर से
उठाया और बीच म रखते हुए कहा, 'अ छा इसको स ी क कहानी का
क - बंद ु बनाइए!'

'बनाइए!' मा णक मु ला गंभीर हो कर बोले, 'यह तो उसक कहानी का


क - बंद ु है ह ! जब म यह चाकू दे खता हूँ तो क पना करता हूँ - इसके काले
बट पर बहुत सद
ंु र फूल क पाँखु रय जैसे गल
ु ाबी नाखन
ू वाल लंबी पतल

82
उँ ग लयाँ आवेश से काँप रह ह, एक चेहरा जो आवेश से आर त है , थोड़ी
नराशा से नीला है और थोड़े डर से ववण है ! यह म ृ त- च है स ी का जब
वह अं तम बार मझ
ु े मल थी और म आँख उठा कर उसक ओर दे ख भी
नह ं सका था। उसके हाथ म यह चाकू था।'

उसके बाद उ ह ने स ी क जो कहानी बताई, उसे टे कनीक न नबाह कर म


सं ेप म बताए दे ता हूँ :

मा णक मु ला का कहना था क वह लड़क अ छ नह ं कह जा सकती थी


य क उसके रहन-सहन म एक अजब-सी वला सता झलकती थी,
चाल-ढाल भी बहुत उ द त करनेवाल थी, वह हर आने-जानेवाले,
प र चत-अप र चत से बोलने-ब तयाने के लए उ सक
ु रहती थी, गल म
चलते-चलते गन
ु गन
ु ाती रहती थी और अकारण ह लोग क ओर दे ख कर
मस
ु करा दया करती थी।

ले कन मा णक मु ला का कहना था क वह लड़क बरु भी नह ं कह जा


सकती थी य क उसके बारे म कोई वैसी अफवाह नह ं थी और सभी लोग
अ छ तरह जानते थे क अगर कोई उसक तरफ ऐसी-वैसी नगाह से
दे खता तो वह आँख नकाल सकती है । उसक कमर म एक काले बट का
चाकू हमेशा रहा करता था।

लोग का यह कहना था क उसका चाचा, िजसके साथ वह रहती थी, र ते


म उसका कोई नह ं है , वह असल म फतेहपरु के पास के कसी गाँव का नाई
है जो सफरमैना प टन म भरती हो कर वेटा बलू च तान क ओर गया था

83
और वहाँ कसी गाँव के ने तनाबद
ू हो जाने के बाद यह तीन-चार बरस क
लड़क उसे रोती हुई मल थी िजसे वह उठा लाया और पालने-पोसने लगा
था। बहुत दन तक वह लड़क उधर ह रह , और अंत म उसका एक हाथ
कट जाने के बाद उसे पशन मल गई और वह आ कर यह ं रहने लगा। एक
हाथ कट जाने से वह अपना पु तैनी पेशा तो नह ं कर सकता था, ले कन
उसने यहाँ आ कर साबन
ु साजी शु कर द थी और चमन ठाकुर का प हया
छाप साबन
ु न सफ मह
ु ले म, वरन चौक तक क दक
ु ान पर बेचा जाता
था। चँ ू क उसका एक हाथ कटा हुआ था, अत: सोलह-स ह साल क अ नं य
सद
ंु र स ी साबन
ु जमाती थी, उसके टुकड़े उसी काले बट के चाकू से काटती
थी, उ ह दक
ु ानदार के यहाँ पहुँचाती थी और हर पखवारे के अंत म जा कर
उसका दाम वसल
ू कर लाती थी। हर दक
ु ानदार उसके सर पर बँधे रं ग- बरं गे
माल, उसके बलच
ू ी कुरते, उसके चौड़े गरारे क ओर एक दबी नगाह
डालता और दस
ू रे साबन
ु के बजाय प हया छाप साबन
ु दक
ु ान पर रखता,
ाहक से उसक सफा रश करता और उसक यह तम ना रहती क कैसे
स ी को पखवारे के अंत म यादा-से- यादा कलदार दे सके।

चमन ठाकुर कारखाने के बाहर खाट डाल कर ना रयल का हु का पीते रहते


थे और स ी अंदर काम करती थी। म ने स ी के बदन म एक ऐसा गठन,
चेहरे पर एक ऐसा तेज, बात म एक ऐसा अद य आ म व वास पैदा कर
दया था क जब उसे मा णक मु ला ने दे खा तो उनके मन म लल का
अभाव बहुत हद तक भर गया और स ी के यि त व से मं -मु ध हो गए।

स ी से उनक भट अजब ढं ग से हुई। कारखाने के बाहर चमन और स ी


मल कर गंगा महाजन के यहाँ का दे ना-पावना जोड़ रहे थे। चमन ने जो

84
कुछ पढ़ा- लखा था वह भल
ू चक
ु े थे, स ी ने थोड़ा पढ़ा था पर यह हसाब
काफ ज टल था। उधर मा णक मु ला दह ले कर घर जा रहे थे क दोन को
हसाब पर झगड़ते दे खा। स ी सर झटकती थी तो उसके कान के दोन बद
ंु े
चमक उठते थे और हँसती थी तो मोती-से दाँत चमक जाते थे, मड़
ु ती थी तो
कंचन-सा बदन झलमला उठता था और सर झक
ु ाती थी तो ना गन-सी
अलक झल
ू जाती थीं। अब अगर मा णक मु ला के कदम धरती से चपक
ह गए तो इसम मा णक मु ला का कौन कसरू ?

इतने म चमन ठाकुर बोले, 'जै राम जी क भइया!' और उनके कटे हुए दाएँ
हाथ ने जंु बश खाई और फर लटक गया। स ी हँस कर बोल , 'लो जरा
हसाब जोड़ दो मा णक बाब!ू ' और मा णक बाबू भाभी के लए दह ले जाना
भल
ू कर इतनी दे र तक हसाब लगाते रहे क भाभी ने खब
ू डाँटा। ले कन उस
दन से अ सर उनके िज मे स ी का हसाब जोड़ना आता रहा और
ग णतशा म एकाएक उनक जैसी दलच पी बढ़ गई, उसे दे ख कर
ता जब
ु होता था।

मा णक मु ला क गनती पता नह ं य स ी अपने म म करने लगी।


एक ऐसा म िजस पर पण
ू व वास कया जा सकता है । एक ऐसा म
िजसे सभी साबन
ु के नु खे न संदेह बताए जा सकते थे। िजसके बारे म परू ा
भरोसा था क वह साबन
ु के नु ख को दस
ू र कंपनीवाल को नह ं बता दे गा।
िजस पर सारा हसाब छोड़ा जा सकता था, िजससे यह भी सलाह ल जा
सकती थी क हरधन टोस को माल उधार दया जा सकता है या नह ।ं
मा णक के आते ह स ी सारा काम छोड़ कर उठ आती, दर बछा दे ती, जमे
हुए साबन
ु के थाल ले आती और कमर से काला चाकू नकाल कर साबन
ु क

85
सलाख काटती जाती और मा णक को दनभर का सारा द:ु ख-सख
ु बताती
जाती। कस ब नए ने बेईमानी क , कसने सबसे यादा साबन
ु बेचा, कहाँ
कराने क नई दक
ु ान खल
ु है , वगैरह।

मा णक मु ला उसके पास बैठ कर एक अजब-सी बात महसस


ू करते थे। इस
मेहनत करनेवाल वाधीन लड़क के यि त व म कुछ ऐसा था जो न
पढ़ - लखी भावक
ु लल म था और न अनपढ़ द मत मनवाल जमन
ु ाम
था। इसम सहज व थ ममता थी जो हमदद चाहती थी, हमदद दे ती थी।
िजसक म ता का अथ था एक दस
ू रे के द:ु ख-सख
ु , म और उ लास म
हाथ बँटाना। उसम कह ं से कोई गाँठ, कोई उलझन, कोई भय, कोई दमन,
कोई कमजोर नह ं थी, कोई बंधन नह ं था। उसका मन खल
ु धप
ू क तरह
व छ था। अगर उसे लल क तरह थोड़ी श ा भी मल होती तो सोने म
सह
ु ागा होता। मगर फर भी उसम जो कुछ था वह मा णक मु ला को
आकाश के सपन म वहार करने क ेरणा नह ं दे ता था, न उ ह वकृ तय
क अँधेर खाइय म गराता था। वह उ ह धरती पर सहज मानवीय भावना
से जीने क ेरणा दे ती थी। वह कुछ ऐसी भावनाएँ जगाती थी जो ऐसी ह
कोई म सं गनी जगा सकती थी जो वाधीन हो, जो साहसी हो, जो
म यवग क मयादाओं के शीश के पीछे सजी हुई गु ड़या क तरह बेजान
और खोखल न हो। जो सज
ृ न और म म सामािजक जीवन म उ चत भाग
लेती हो, अपना उ चत दे य दे ती हो।

मेरा यह मतलब नह ं क मा णक मु ला उसके पास बैठ कर यह सब चंतन


कया करते थे। नह ,ं यह सब तो उस प रि थ त का मेरा अपना व लेषण
है , वैसे मा णक मु ला को तो वह केवल बहुत अ छ लगती थी और उन

86
दन मा णक मु ला का मन पढ़ने म भी लगने लगा, काम करने म भी, और
उनका वजन भी बढ़ गया और उ ह भख
ू भी खल
ु कर लगने लगी, वे कॉलेज
के खेल म भी ह सा लेने लगे।

मा णक मु ला ने जरा झपते हुए यह भी वीकार कया क उनके मन म


स ी के लए बहुत आकषण जाग गया था और अ सर स ी क
हाथी-दाँत-सी गरदन को चम
ू ते हुए उसके लंबे झल
ू ते बद
ंु को दे ख कर उनके
होठ काँपने लगते थे, और माथे क नस म गरम खन
ू जोर से सरू ज का
सातवाँ घोड़ाने लगता था। पर सार म ता के बावजद
ू कभी स ी के यवहार
म उसे जमन
ु ा-सी कोई बात नह ं दखाई पड़ी। मा णक क नगाह जब उसके
झल
ू ते हुए बद
ंु पर पड़ती और उनका माथा गरम हो जाता, तभी उनक
नगाह स ी क कमर से झल
ू ते हुए चाकू पर भी पड़ती और माथा फर ठं डा
हो जाता, य क स ी उ ह बता चक
ु थी क एक बार एक ब नए ने साबन

क सलाख रखवाते हुए कहा, 'साबन
ु तो या म साबन
ु वाल को भी दक
ु ान
पर रख लँ 'ू तो स ी ने फौरन चाकू खोल कर कहा, 'मझ
ु े अपनी दक
ु ान पर
रख और ये चाकू अपनी छाती म रख कमीने!' तो सेठ ने स ी के पाँव छू कर
कसम खाई क वह तो मजाक कर रहा था, वरना वह तो अपनी पहल ह
सेठानी नह ं रख पाया। वह दरबान के साथ चल गई अब भला स ी को या
रखेगा!

इसी घटना को याद कर मा णक मु ला कभी कुछ नह ं कहते थे, पर


मन-ह -मन एक अ य त क ण उदासी उनक आ मा पर छा गई थी और
उन दन वे कुछ क वताएँ भी लखने लगे थे जो बहुत क ण वरहगीत होती
थीं िजनम क पना कर लेते थे क स ी उनसे दरू कह ं चल गई है और फर

87
वे स ी को व वास दलाते थे क ये, तु हारे णय का व न मेरे दय म
पल रहा है और सदा पलता रहे गा। कभी-कभी वे बहुत याकुल हो कर
लखते थे िजसका भावाथ होता था क मेघ क छाया म तो अब मझ
ु से
त ृ षत नह ं रहा जाता, आ द-आ द। सारांश यह क वे जो कुछ स ी से नह ं
कह पाते थे उसे गीत म बाँध डालते थे पर जब कभी स ी के सामने उ ह ने
उसे गन
ु गन
ु ाने का यास कया तो स ी हँसते-हँसते लोट-पोट हो गई और
बोल , तम
ु ने ब ना सन
ु ा है ? साँझी सन
ु ी है ? और तब वह मह
ु ले म गाए
जानेवाले गीत इतनी दद-भर आवाज म गाती थी क मा णक मु ला
भाव वभोर हो उठते थे और अपने गीत उ ह कृ म और श दाडंबरपण

लगने लगते थे। ऐसी थी स ी, सदै व नकट, सदै व दरू , अपने म एक वतं
स ा, िजसके साथ मा णक मु ला के मन को संतोष भी मलता था और
आकुलता भी।

कभी-कभी वे सोचते थे क अपनी भावनाओं को प के मा यम से लख


डाल और वे कभी-कभी प लखते भी थे बहुत लंबे-लंबे और बहुत मधरु ,
यहाँ तक क अगर वे बचे होते तो उनक गणना नेपो लयन और सीजर के
ेम-प के साथ क जाती, मगर जब उसम 'आ मा क यो त' - 'चाँद क
राजकुमार ' आ द वे लख चक
ु ते तो उ ह खयाल आता क यह भाषा तो
बेचार स ी समझती नह ,ं और जो भाषा उसक समझ म आती थी उसका
यवहार करने पर कमर म लटकनेवाले काले चाकू क तसवीर दमाग म आ
जाती थी। अत: उ ह ने वे सब खत फाड़ डाले।

उसी बीच म स ी क ममता मा णक के त दन-दन


ू ी रात-चौगन
ु ी बढ़ती
गई और जब-जब मा णक मु ला कह ं जाते, बाहर बैठा हुआ चमन ठाकुर

88
अपना कटा हाथ हला कर इ ह सलाम करता, हँसता और पीठ पीछे इ ह
बहुत खन
ू ी नगाह से दे ख कर दाँत पीसता और पैर पटक कर हु के के अंगारे
कुरे दता। स ी मा णक के खाने-पीने, कपड़े-ल े, रहन-सहन म बहुत
दलच पी लेती और बाद म अपनी अड़ो सन-पड़ो सन से बतलाती क
मा णक बारहव दरजे म पढ़ रहे ह और इसके बाद बड़े लाट के द तर म इ ह
नौकर मल जाएगी और हमेशा मा णक को याद दलाती रहती थी क पढ़ने
म ढलाई मत करना।

पर एक बात अ सर मा णक दे खते थे क स ी अब कुछ उदास-सी रहने


लगी है और कोई ऐसी बात है जो यह मा णक से छपाती है । मा णक ने
बहुत पछ
ू ा पर उसने नह ं बताया। पर वह अ सर चमन ठाकुर को झड़क
दे ती थी, राह म उसक चलम पड़ी रहती थी तो उसे ठोकर मार दे ती थी, खद

कभी हसाब न करके उसके सामने कापी और वसल
ू के पए फक दे ती थी।
चमन ठाकुर ने एक दन मा णक से कहा क म अगर इसे न ला कर
पालता-पोसता तो इसे चील और ग ध नोच-नोच कर खा गए होते और यह
जब मा णक ने स ी से कहा तो वह बोल , 'चील और ग ध खा गए होते तो
वह अ छा होता बजाय इसके क यह रा स उसे नोचे खाए!' मा णक ने
सशं कत हो कर पछ
ू ा तो वह बहुत झ ला कर बोल , 'यह मेरा चाचा बनता
है । इसी लए पाल-पोस कर बड़ा कया था। इसक नगाह म खोट आ गया है ।
पर म डरती नह ।ं यह चाकू मेरे पास हमेशा रहता है ।' और उसके बाद
उ ह ने स ी को पहल बार रोते दे खा और वह अनाथ, मेहनती और
नरा त लड़क फूट-फूट कर रोई और उ ह कई घटनाएँ बतायीं। यह बात
सन
ु कर मा णक मु ला को अपने कान पर यक न नह ं हुआ पर वे बहुत
य थत हुए और यह जान कर क ऐसा भी हो सकता है उनके मन पर बहुत

89
ध का लगा। उस दन शाम को उनसे खाना नह ं खाया गया और यह सोच
कर उनक आँख म आँसू भी आ गए क यह िजंदगी इतनी गंद और वकृत
य है ।

उसके बाद उ ह ने दे खा क स ी और चमन ठाकुर म कटुता बढ़ती ह गई,


साबन
ु का रोजगार भी ठं डा होता गया और अ सर मा णक के जाने पर स ी
रोती हुई मलती और चमन ठाकुर चीखते-गरजते हुए मलते। वे रटायड
सो जर थे अत: कहते थे - शट
ू कर दँ ग
ू ा तझ
ु ।े संगीन से दो टुकड़े कर दँ ग
ू ा।
तन
ू े समझा या है ? आ द-आ द।

स ी के चेहरे पर थोड़ी खश
ु ी उस दन आई िजस दन उसे मालम
ू हुआ क
मा णक बारहवाँ दरजा पास हो गए ह। उसने उस दन मह न बाद पहल बार
चमन ठाकुर से जा कर दो पए माँगे, एक क मठाई मँगाई और दस
ू रे के
फूल-बताशे चंडी के चौतरे पर चढ़ा आई। पर उस दन मा णक आए ह नह ।ं
िजस दन मा णक आए उस दन उसे यह जान कर बड़ी नराशा हुई क
मा णक नौकर नह ं करगे, बि क पढ़गे, हालाँ क भैया-भाभी ने साफ मना
कर दया है क अब जमाना बरु ा है और वे मा णक का खचा नह ं उठा
सकते। स ी क राय भैया-भाभी के साथ थी; य क वह अपनी आँख से
मा णक को बड़े लाट के द तर म दे खना चाहती थी, पर जब उसने मा णक
क इ छा पढ़ने क दे खी तो कहा, 'उदास मत होओ। अगर म यह ं रह तो म
दँ ग
ू ी तु ह पए। अगर नह ं रह तो दे खा जाएगा।'

मा णक मु ला ने घबरा कर पछ
ू ा क 'कहाँ जाओगी तम
ु ?' तो स ी ने एक
और बात बताई िजससे मा णक त ध रह गए।

90
महे सर दलाल, यानी जमन
ु ावाले त ना का पता, अ सर आया करता था
और चँ ू क दलाल होने के नाते उसक सन
ु ार और सराफ से काफ
जान-पहचान थी अत: वह गलट के कड़े और पायल पर पॉ लश करा कर
और चाँद के गहन पर नकल सन
ु हरा पानी चढ़वा कर लाता था और स ी
को दे ने क को शश करता था। जब मा णक मु ला ने पछ
ू ा क चमन ठाकुर
कुछ नह ं कहते तो बोल क रोजगार तो पहले ह चौपट हो चक
ु ा है , चमन
गाँजा और दा खब
ू पीता है । महे सर दलाल उसे रोज नए नोट ला कर दे ते ह।
रोज उसे अपने साथ ले जाते ह। रात को वह पए हुए आता है और ऐसी बात
बकता है क स ी अपना दरवाजा अंदर से बंद कर लेती है और रात-भर डर
के मारे उसे नींद नह ं आती। इतना कह कर वह रो पड़ी और बोल , सवा
मा णक के उसका अपना कोई नह ं है और मा णक भी उसे कोई रा ता नह ं
बताते।

मा णक उस दन बहुत ह य थत हुए और उस दन उ ह ने एक बहुत ह


क ण क वता लखी और उसे ले कर कसी थानीय प म दे ने ह जा रहे थे
क रा ते म स ी मल । वह बहुत घबराई हुई थी और रोते-रोते उसक आँख
सज
ू आई थीं। उसने मा णक को रोक कर कहा, 'तम
ु मेरे यहाँ मत आना।
चमन ठाकुर तु हारा क ल करने पर उता है । चौबीस घंटे नशे म धत
ु रहता
है । तु ह मेर माँग क कसम है । तम
ु फकर न करना। मेरे पास चाकू रहता
है और फर कोई मौका पड़ा तो तम
ु तो हो ह । जानते हो, वह बढ़
ू ा पोपला
महे सरा मझ
ु से याह करने को कह रहा है !'

91
मा णक का मन बहुत आकुल रहा। कई बार उ ह ने चाहा क स ी क ओर
जाएँ पर सच बात है क नशेबाज चमन का या ठकाना, एक ह हाथ है पर
सपाह का हाथ ठहरा।

इस बीच म एक बात और हुई। यह सारा क सा मा णक मु ला के नाम के


साथ बहुत नमक- मच के साथ फैल गया और मह
ु ले क कई बू ढ़य ने आ
कर बीजा छ लते हुए मा णक क भाभी को कहानी बताई और ताक द क क
उसका याह कर दे ना चा हए, कई ने तो अपने नातेदार क सद
ंु र सश
ु ील
लड़ कयाँ तक बता । भाभी ने थोड़ी अपनी तरफ से भी जोड़ कर भइया से
परू ा क सा बताया और भइया ने दस
ू रे दन मा णक को बल
ु ा कर समझाया
क उ ह मा णक पर परू ा व वास है , ले कन मा णक अब ब चे नह ं ह, उ ह
द ु नया को दे ख कर चलना चा हए। इन छोटे लोग को मँह
ु लगाने से कोई
फायदा नह ।ं ये सब बहुत गंदे और कमीने क म के होते ह। मा णक के
खानदान का इतना नाम है । मा णक अपने भइया के नेह पर बहुत रोए और
उ ह ने वायदा कया क अब वे इन लोग से नह ं घल
ु े- मलगे।

दो-तीन बार स ी आई पर मा णक मु ला अपने घर से बाहर नह ं नकले


और कहला दया क नह ं ह। मा णक अ सर जमन
ु ा के यहाँ जाया करते थे
और एक दन जमन
ु ा के दरवाजे पर स ी मल । मा णक कुछ नह ं बोले तो
स ी रो कर बोल , 'नसीब ठ गया तो तम
ु ने भी साथ छोड़ दया। या
गलती हो गई मझ
ु से?' मा णक ने घबरा कर चार ओर दे खा। भइया के
द तर से लौटने का व त हो गया था। स ी उनक घबराहट समझ गई,
ण-भर उनक ओर बड़ी अजब नगाह से दे खती रह फर बोल , 'घबराओ
न मा णक! हम जा रहे ह।' और आँसू प छ कर धीरे -धीरे चल गई।

92
उ ह ं दन भाभी और मा णक के बीच अ सर झगड़ा हुआ करता था य क
भाभी-भइया साफ कह चक
ु े थे क मा णक को अब कह ं नौकर कर लेनी
चा हए। पढ़ने क कोई ज रत नह ।ं पर मा णक पढ़ना चाहते थे। भाभी ने
एक दन जब बहुत जल -कट सन
ु ाई तो मा णक उदास हो कर एक बाग म
जा कर बरगद के नीचे बच पर बैठ गए और सोचने लगे क या करना
चा हए।

थोड़ी दे र बाद उ ह कसी ने पक


ु ारा तो दे खा सामने स ी। बलकुल शांत,
मरु दे क तरह सफेद चेहरा, भावह न जड़ आँख, आई और आ कर पाँव के
पास जमीन पर बैठ गई और बोल , 'आ खर जो सब चाहते थे वह हो गया।'

मा णक के पछ
ू ने पर उसने बताया क कल रात को चमन ठाकुर के साथ
महे सर दलाल आया। दोन बड़ी रात तक बैठ कर शराब पीते रहे । सहसा
महे सर से बहुत-से पय क थैल ले कर चमन उठ कर बाहर चला गया और
महे सर आ कर स ी से ऐसी बात करने लगा िजसे सन
ु कर स ी का
तन-बदन सल
ु गने लगा और स ी बाहर के दरवाजे क ओर बढ़ तो दे खा
चमन उसे बाहर से बंद करके चला गया है । स ी ने फौरन अपना चाकू
नकाला और महे सर दलाल को एक ध का दया तो महे सर दलाल लढ
ु क
गए। एक तो बढ़
ू े दस
ू रे शराब म चरू और स ी जो चाकू ले कर उनक गरदन
पर चढ़ बैठ तो उनका सारा नशा काफूर हो गया और बोले, 'मार डाल मझ
ु ,े
म उफ न क ँ गा। म तझ
ु पर हाथ न उठाऊँगा। ले कन मने नकद पाँच सौ
पया दया है । म बाल-ब चेदार आदमी मर जाऊँगा।' और उसके बाद
हच कयाँ भर-भर कर रोने लगा और फर उसने वह कागज दखाया िजस

93
पर चमन ठाकुर ने पाँच सौ पर उसके साथ स ी को भेजने क शत क थी
और महे सर रोने लगा और स ी के जैसे कसी ने ाण खींच लए ह । महे सर
के हाथ-पाँव फूल गए। फर महे सर दलाल ने समझाया क अब तो कानन
ू ी
कारवाई हो गई है । फर महे सर दलाल सख
ु से रखेगा वगैरह-वगैरह - पर
स ी जड़ मरु दे -सी पड़ी रह । उसे याद नह ं महे सर ने या कहा, उसे याद
नह ं या हुआ।

स ी चप
ु चाप नीची नगाह कए नख से धरती खोदती रह और फर
मा णक क ओर दे ख कर बोल , 'महे सर ने आज यह अँगठ
ू द है ।' मा णक
ने हाथ म ले कर दे खा तो मस
ु कराने का यास करती हुई बोल , 'असल है ।'
मा णक चप
ु हो रहे । स ी ने थोड़ी दे र बाद पछ
ू ा क मा णक उदास य ह तो
मा णक ने बताया क भाभी से पढ़ाई के बारे म चख-चख हो गई है तो स ी
ने अँगठ
ू नकाल कर फौरन मा णक के हाथ म रख द और कहा क इससे
वह फ स जमा कर दे । आगे क बात स ी के हाथ म छोड़ दे । मा णक ने इसे
नह ं वीकार कया तो ण-भर स ी चप
ु रह फर सहसा बोल , 'म समझ
गई। अब तम
ु मझ
ु से कुछ नह ं लोगे। पर बताओ म या क ँ ? मझ
ु े कोई भी
तो नह ं बताता। म तु हारे पाँव पड़ती हूँ। मझ
ु े कोई रा ता बताओ? कोई
रा ता - तम
ु जो कहोगे - म हर तरह से तैयार हूँ।' और सचमच
ु स ी जो अब
तक प थर क तरह न ाण बैठ थी पाँव पकड़ कर फूट-फूट कर रो पड़ी।
मा णक घबरा कर उठे पर उसने पाँव पर सर रख दया और इतना रोई
इतना रोई क कुछ पछ
ू ो मत। पर मा णक ने कहा क अब उ ह दे र हो रह
है । तो वह चप
ु चाप उठ और चल गई।

94
एक बार फर वह मल और मा णक उस दन भी उदास थे य क जल
ु ाई
आ गई थी और उनके दा खले का कुछ न चय ह नह ं हो पा रहा था। स ी
ने बहुत इसरार करके मा णक को पए दए ता क उनका काम न के और
फर बहुत बलख- बलख कर रोई और कहा क उसक िजंदगी नरक हो गई
है । उसे कोई राह नह ं बताता। मा णक मु ला ने सां वना का एक श द भी
नह ं कहा, तो वह चप
ु हो गई और पछ
ू ने लगी क मा णक को उसक बात
बरु तो नह ं लगतीं य क मा णक के अलावा और कोई नह ं है िजससे वह
अपना द:ु ख कह सके। और मा णक से न जाने य वह कोई बात नह ं छपा
पाती है और उनसे कह दे ने पर उसका मन ह का हो जाता है और उसे लगता
है क कम-से-कम एक आदमी ऐसा है िजसके आगे उसक आ मा न पाप
और अकलष
ु है ।

मा णक के सामने कोई रा ता नह ं था और सच तो यह है क भइया का


कहना भी उ ह ठ क लगता था क मा णक का और इन लोग का या
मक
ु ाबला, दोन क सोसायट अलग, मयादा अलग, पर मा णक मु ला स ी
से कुछ कह भी नह ं पाते थे य क उ ह पढ़ाई भी जार रखनी थी, और इसी
अंत वं व के कारण उनके गीत म गहन नराशा और कटुता आती जा रह
थी।

और फर एक रात एक अजब-सी घटना हुई। मा णक मु ला सो रहे थे क


सहसा कसी ने उ ह जगाया और उ ह ने आँख खोल तो सामने दे खा स ी!
उसके हाथ म चाकू था, उसक लंबी-पतल गल
ु ाबी उँ ग लय म चाकू काँप
रहा था, चेहरा आवेश से आर त, नराशा से नीला, डर से ववण। उसक
बगल म एक छोटा-सा बैग था िजसम गहने और पए भरे थे। स ी मा णक

95
के पाँव पर गर पड़ी और बोल , ' कसी तरह चमन ठाकुर से छूट कर आई हूँ।
अब डूब म ँ गी पर वहाँ नह ं लौटूँगी। तम
ु कह ं ले चलो! कह !ं म काम
क ँ गी। मजदरू कर लँ ग
ू ी। तु हारे भरोसे चल आई हूँ।'

मा णक का यह हाल क ऊपर क साँस ऊपर और नीचे क साँस नीचे।


क वता-उ वता तो ठ क है पर यह इ लत मा णक कहाँ पालते! और फर
भइया ठहरे भइया और भाभी उनसे सात कदम आगे। मा णक क सार
क मत बड़े पतले तागे पर झल
ू रह थी। पर आ खर दमाग मा णक मु ला
का ठहरा। खेल ह तो गया। फौरन बोले, 'अ छा बैठो स ी! म अभी चलँ ग
ू ा।
तु हारे साथ चलँ ग
ू ा।' और इधर पहुँचे भइया के पास। चप
ु चाप दो वा य म
सार ि थ त बता द । भइया बोले, 'उसे बठाओ, म चमन को बल
ु ा लाऊँ।'
मा णक गए और स ी िजतना इसरार करे ज द नकल चलने को क कह ं
महे सर दलाल या चमन ह न आ पहुँचे उतना मा णक कसी-न- कसी बहाने
टालते जाएँ और जब स ी ने चाकू चमका कर कहा क 'अगर नह ं चलोगे तो
आज या तो मेर जान जाएगी या और कसी क ' तो मा णक का रोम-रोम
थरा उठा और मन-ह -मन मा णक भइया को मरण करने लगे।

स ी उनसे पछ
ू ती रह , 'कहाँ चलोगे? कहाँ ठहरोगे? कहाँ नौकर दलाओगे?
म अकेल नह ं रहूँगी!' इतने म एक हाथ म लाठ लए महे सर और एक म
लालटे न लए चमन ठाकुर आ पहुँचे ओर पीछे -पीछे भइया और भाभी। स ी
दे खते ह ना गन क तरह उछल कर कोने म चपक गई और ण-भर म ह
ि थ त समझ कर चाकू खोल कर मा णक क ओर लपक , 'दगाबाज!
कमीना!' पर भइया ने फौरन मा णक को खींच लया, महे सर ने स ी को
दबोचा और भाभी चीख कर भागीं।

96
उसके बाद कमरे म भयानक य रहा। स ी काबू म ह न आती थी, पर जब
चमन ठाकुर ने अपने एक ह फौजी हाथ से पटरा उठा कर स ी को मारा तो
वह बेहोश हो कर गर पड़ी। इसी अव था म स ी का चाकू वह ं छूट गया
और उसके गहन का बैग भी पता नह ं कहाँ गया। मा णक का अनम
ु ान था
क भाभी ने उसे सरु ा के खयाल से ले जा कर अपने संदक
ू म रख लया
था।

बेहोश स ी को भइया और महे सर उठा कर उसके घर पहुँचा आए और


मा णक मु ला डर के मारे भइया के कमरे म सोए।

दस
ू रे दन चमन ठाकुर के घर पर काफ जमाव था य क घर खल
ु ा पड़ा था,
सामान बखरा पड़ा था, और चमन ठाकुर तथा स ी दोन गायब थे और
बहुत सब
ु ह उठ कर जो बू ढ़याँ गंगा नहाने जाती ह उनका कहना था क एक
ताँगा इधर से गया था िजस पर कुछ सामान लदा था, चमन ठाकुर बैठा था
और आगे क सीट पर सफेद चादर से ढका कोई सो रहा था जैसे लाश हो।

लोग का कहना था क चमन और महे सर ने मल कर रात को स ी का गला


घ ट दया।

97
छठ दोपहर
( मागत)
पछल दोपहर से आगे

स ी क म ृ यु ने मा णक मु ला के क चे भावक
ु क व- दय पर बहुत गहर
छाप छोड़ी थी और नतीजा यह हुआ था क उनक कृ तय म म ृ यु क
त व न बार-बार सन
ु ाई पड़ती थी।

इसी बीच म उनके भइया का तबादला हो गया और भाभी उनके साथ चल


ग और घर मा णक क दे ख-भाल म छोड़ दया गया। मा णक को अकेले
घर म बहुत डर लगता था और अ सर लगता था क जैसे वे कंकाल के
सन
ु सान घर म छोड़ दए गए ह । उ ह पढ़ने का शौक था पर अब पढ़ने म
उनका च भी नह ं लगता था उनक जेब भी भइया के जाने से बलकुल
खाल हो गई थी और वे कोई ऐसी नौकर ढूँढ़ रहे थे िजसम वे नौकर के
साथ-साथ पढ़ाई भी कायम रख सक, इन सभी प रि थ तय ने मल कर
उनके दय पर गहर छाप छोड़ी थी और पता नह ं कस रह यमय
आ याि मक कारण से वे अपने को स ी क म ृ यु का िज मेदार समझने
लगे थे। उनके मन क धीरे -धीरे यह हालत हो गई क उ ह मह
ु ला छोड़ कर
ऐसी जगह अ छ लगने लगीं जैसे - दरू कह ं पर सन
ु सान पीपल तले क
छाँह, भयानक उजाड़ क गाह, परु ाने मरघट, ट ले और ख ड आ द। उ ह
चाँदनी म कफन दखाई दे ने लगे और धप
ू म ेयसी क चता क वालाएँ।

तब तक हम लोग क मा णक मु ला से इतनी घ न ठता नह ं हुई थी अत:


इस कार क बैठक नह ं जमती थीं और दन-भर भटकने के बाद मा णक

98
अ सर चाय-घर म जा कर बैठा करते थे। चाय-घर क चहल-पहल म
थोड़ा-सा मन बहल जाया करता है ।

(ले कन यह म बता दँ ू क मा णक मु ला का यह खयाल बलकुल गलत था


क स ी क म ृ यु हो गई है , स ी सफ बेहोश हो गई थी और उसी हालत म
चमन ठाकुर उसे ताँगे पर ले गए थे य क बदनामी के डर से महे सर दलाल
नह ं चाहते थे क वे लोग एक ण भी मह
ु ले म रह। पर स ी कहाँ थी
इसका पता बाद म मा णक को लगा।)

इधर मा णक ने यह न चय कर लया था क य द उसक वजह से स ी का


जीवन न ट हुआ तो वे भी हर तरह से अपना जीवन न ट करके ह मानगे
जैसे शरत के दे वदास आ द ने कया था और इस लए जीवन न ट करने के
िजतने भी साधन थे, उ ह वे काम म ला रहे थे। उनका वा य बरु तरह
गर गया था, उनका वभाव बहुत असामािजक, उ छृंखल और आ मघाती
हो गया था, पर उ ह पण
ू संतोष था य क वे स ी क म ृ यु का ायि चत
कर रहे थे। उनक आ मा को, उनके यि त व को और उनक तभा को
पातक लगा हुआ था और पातक क अव था म और हो ह या सकता है ।

अ सर उनके म ने उ ह समझाया क आदमी म जीवन के त अद य


आ था होनी चा हए। म ृ यु से इस तरह का मोह तो केवल कायरता और
व तता के ल ण ह, उनक राह मड़
ु नी चा हए पर फर वे सोचते क
अपने कत य-पथ से वच लत हो रहे ह। और उनका कत य तो म ृ यप
ु थ पर
अद य साहस से अ सर होते रहना है । ऐसा वचार आते ह वे फर कछुए
क तरह अपने को समेट कर अंतमख
ु हो जाते। धीरे -धीरे उनक ि थ त उस

99
ि थत क भाँ त हो गई िजसे सख
ु -द:ु ख, म -श ,ु काश- त मर,
सच-झठ
ू म कोई भेद नह ं मालम
ू पड़ता, जो समय और दशा के बंधन से
छुटकारा पा कर प ृ वी पर ब ध जीव के बीच म जीव मु त आ माओं क
भाँ त वचरण करते ह। सामािजक जीवन उ ह बार-बार अपने शकंजे म
कसने का यास करता था पर वे ेम के अलावा सभी चीज को न सार
समझते थे चाहे वह आ थक न हो, या राजनी तक आंदोलन, मो तहार
का अकाल हो, या को रया क लड़ाई, शां त क अपील हो या सां कृ तक
वाधीनता का घोषणा-प । केवल ेम स य है , ेम जो रस है , रस जो मï
है - (रसो वै स: - दे खए बह
ृ दार यक -)।

और इस वयं- वीकृत मरण ि थ त से यह हुआ क उनके गीत म बेहद


क णा, दद और नराशा आ गई और चँ ू क इस पीढ़ के हर यि त के दय
म कह -ं न-कह ं मा णक मु ला और दे वदास दोन का अंश है अत: लोग
झम
ू -झम
ू उठते थे। य य प वे सब-के-सब यादा चतरु थे, म ृ य-ु गीत क
शंसा करने के बाद अपने-अपने काम म लग जाते थे पर मा णक मु ला
ज र ऐसा अनभ
ु व करते थे जैसे यह उजड़े हुए चकोर के टूटे हुए पंख ह जो
चाँद के पास पहुँचते-पहुँचते टूट गए और गर रहे ह, और हवा के हर ह के
झ के के आघात से पथ- वच लत हो जाते ह। सच तो यह है क इनक न
कोई दशा है , न पथ, न ल य, न यास और न कोई ग त य क पतन
को, नीचे गरने को ग त तो नह ं कहते!

इसी समय मा णक मु ला से मने पछ


ू ा क आ खर इस प रि थ त से कभी
आपका मन नह ं ऊबता था? वे बोले (श द मेरे ह, ता पय उनका) क -
ऊबता य नह ं था? अ सर म ऊब जाता था तो कुछ ऐसे-ऐसे करतब करता

100
था क म भी च क उठता था और दस
ू रे भी च क उठते थे। िजनसे म अ सर
अपने को ह व वास दलाया करता था क म जी वत हूँ, याशील हूँ। जैसे
- कह कुछ और रहा हूँ, कहते-कहते कर कुछ और गया। इसे संक ण मनवाले
लोग झठ
ू बोलना या धोखा दे ना भी कह सकते ह। पर यह सब केवल दस
ू र
को च काना मा था, अपनी घबराहट से ऊब कर। तीखी बात करना, हर
मा यता को उखाड़ फकने क को शश करना, यह सब मेरे मन क उस व ृ
से े रत थीं जो मेरे अंदर क जड़ता और खोखलेपन का प रणाम थीं।'

ले कन जब हम लोग ने पछ
ू ा क इसम आ खर उ ह संतोष या मलता था
तो वे बोले, 'म महसस
ू करता था क म अ य लोग से कुछ अलग हूँ, मेरा
यि त व अनोखा है , अ वतीय है और समाज मझ
ु े समझ नह ं सकता।
साधारण लोग अ यंत साधारण ह, मेर तभा के तर से बहुत नीचे ह, म
उ ह िजस तरह चाहूँ बहका सकता हूँ। मझ
ु म अपने यि त व के त एक
अनाव यक मोह, उसक वकृ तय को भी तभा का तेज समझने का म
और अपनी असामािजकता को भी अपनी ईमानदार समझने का
अनाव यक दं भ आ गया था। धीरे -धीरे म अपने ह को इतना यार करने
लगा क मेरे मन के चार ओर ऊँची-ऊँची द वाल खड़ी हो ग और म वयं
अपने अहं कार म बंद हो गया, पर इसका नशा मझ
ु पर इतना तीखा था क
म कभी अपनी असल ि थ त पहचान नह ं पाया।'

'तो आप इस मन:ि थ त से कैसे मु त हुए?'

'वा तव म एक दन बड़ी व च प रि थ त म यह रह य मझ
ु पर खल
ु ा क
स ी जी वत है और अब उसके मन म मेरे लए ेम के थान पर गहर घण
ृ ा

101
है । इसका पता लगते ह मने स ी क म ृ यु को ले कर जो यथ का
ताना-बाना अपने यि त व के चार ओर बन
ु रखा था वह छ न- भ न हो
गया और म फर एक व थ साधारण यि त क तरह हो गया।'

उसके बाद उ ह ने वह घटना बताई :

िजन चाय-घर म वे जाते थे उनके चार ओर अ सर भखार घम


ू ा करते थे।
वे चाय पी कर बाहर नकलते क भखार उ ह घेर लया करते।

एक दन उ ह ने एक नए भखार को दे खा। एक छोट -सी लकड़ी क गाड़ी


म वह बैठा था। उसका एक हाथ कटा था और एक औरत गोद म एक
भनकता हुआ ब चा लए गाड़ी खींचती चलती आ रह थी। वह आ कर
मा णक के पास खड़ी हो गई और पीले-पीले दाँत नकाल कर कुछ कहा क
मा णक ने आ चय से दे खा क वह भखार तो है चमन ठाकुर और यह स ी
है । मा णक को नजद क से दे खते ह स ी च क कर दो कदम पीछे हट गई,
फौरन उसका हाथ कमर पर गया - शायद चाकू क तलाश म, पर चाकू न पा
कर उसने फर याला उठाया और खन
ू क यासी ि ट से मा णक क ओर
दे खती हुई आगे बढ़ गई।

यह दे ख कर क स ी जी वत है और बाल-ब च स हत स न है , मा णक के
मन क सार नराशा जाती रह और उ ह नया जीवन मल गया और कुछ
दन बाद ह आर.एम.एस. म त ना क जगह खाल हुई तो क वता-कहानी
छोड़ कर उ ह ने नौकर भी कर ल और सख
ु से रहने लगे। (जैसे मा णक
मु ला के अ छे दन लौटे वैसे राम करे सबके लौट।) इसी के कुछ दन बाद

102
हम लोग क मा णक मु ला से घ न ठ म ता हो गई और उनके यहाँ हम
लोग का अ डा जमने लगा था।

103
अन याय

य य प मेरा हाजमा भी द ु त है और मने डा टे क डवाइना कामे डया भी


नह ं पढ़ है फर भी म एक सपना दे ख रहा हूँ।

चमनी से नकलने वाले धए


ु ँ क तरह एक सतरं गा इं धनष
ु धीरे -धीरे उग
रहा है । आकाश के बीच -बीच आ कर वह इं धनष
ु टँ ग गया है ।

एक जलता हुआ होठ, काँपता हुआ - दा ओर से इं धनष


ु क ओर खसक
रहा है ।

दा ओर मा णक का होठ, बा ओर ल ला का। खसकते- खसकते इं धनष



के नजद क आ कर दोन क जाते ह।

नीचे धरती पर महे सर दलाल एक गाड़ी खींचते हुए आते ह। गाड़ी चमन
ठाकुर क भीख माँगने वाल गाड़ी है । उसम छोटे -छोटे ब चे बैठे ह। जमन
ु ा
का ब चा, त ना का ब चा, स ी का ब चा। चमन ठाकुर का एक कटा हुआ
हाथ अंधे अजगर क तरह आता है । ब च क गरदन म लपट जाता है ,
मरोड़ने लगता है । उनका गला घट
ु ता है ।

इं धनष
ु के दोन यासे होठ और नजद क आ जाते ह।

104
त ना के दोन कटे हुए पैर रा स क तरह झम
ू ते हुए आते ह। उनम नई
लोहे क नाल जड़ी ह। ब चे उनसे कुचल जाते ह। हर घास - दरू -दरू तक
बरसात से साइ कल से कुचल हुई बीरबहू टयाँ फैल ह। र त सख
ू कर गाढ़ा
काला हो गया है । इं धनष
ु क छाया तमाम पहाड़ और मैदान पर तरछ हो
कर पड़ती है ।

माताएँ ससकती ह! जमन


ु ा, लल , स ी।

दोन होठ इं धनष


ु के और समीप खसकने लगते ह - और समीप - और
समीप।

एक काला चाकू इं धनष


ु को र से क तरह काट दे ता है । दोन होठ गो त के
मरु दा लोथड़ क तरह गर पड़ते ह।

चील... चील... चील... ट डय क तरह अन गनत चील!

105
सातवीं दोपहर
(सरू ज का सातवाँ घोड़ा)

अथात वह जो सपने भेजता है !

अगले दन म गया और मा णक मु ला से बताया क मने यह सपना दे खा


तो वे झ ला गए : 'दे खा है तो म या क ँ ? जब दे खो तब 'सपना दे खा है ,
सपना दे खा है !' अरे कौन शेर, चीता दे खा है क गाते- फरते हो!' जब म चप

हो गया तो मा णक मु ला उठ कर मेरे पास आए और सां वना-भरे श द म
बोले, 'ऐसे सपने तम
ु अ सर दे खते हो?' मने कहा, 'हाँ' तो बोले, 'इसका
मतलब है क कृ त ने तु ह वशेष काय के लए चन
ु ा है ! यथाथ िजंदगी के
बहुत-से पहलओ
ु ं को, बहुत-सी चीज के आंत रक संबध
ं को और उनके
मह व को तम
ु सपन म एक ऐसे बंद ु से खड़े हो कर दे खोगे जहाँ से दस
ू रे
नह ं दे ख पाएँगे और फर अपने सपन को सरल भाषा म तम
ु सबके सामने
रखोगे। समझे?' मने सर हलाया क हाँ म समझ गया तो वे फर बोले,
'और जानते हो ये सपने सरू ज के सातव घोड़े के भेजे हुए ह!'

जब मने पछ
ू ा क यह या बला है तो और लोग अधीर हो उठे और बोले, यह
सब म बाद म पछ
ू लँ ू और मा णक मु ला से कहानी सन
ु ाने का इसरार करने
लगे।

मा णक मु ला ने आगे कहानी सन
ु ाने से इनकार कया और बोले, एक
अ वि छ न म म इतनी ेम-कहा नयाँ बहुत काफ ह, सच तो यह क

106
उ ह ने इतने लोग के जीवन को ले कर एक परू ा उप यास ह सन
ु ा डाला है ।
सफ उसका प कहा नय का रखा ता क हर दोपहर को हम लोग क
दलच पी बद तरू बनी रहे और हम लोग ऊब न। वरना सच पछ
ू ो तो यह
उप यास ह था और इस ढं ग से सन
ु ाया गया था क जो लोग सख
ु ांत
उप यास के ेमी ह वे जमन
ु ा के सख
ु द वैध य से स न ह , वग म त ना
और जमन
ु ा के मलन पर स न ह , लल के ववाह से स न ह , और
स ी के चाकू से मा णक मु ला क जान बच जाने पर स न ह , और जो
लोग दख
ु ांत के ेमी ह वे स ी के भखार जीवन पर द:ु खी ह , त ना क रे ल
दघ
ु टना पर द:ु खी ह , लल और मा णक मु ला के अनंत वरह पर द:ु खी
ह । साथ ह मा णक मु ला ने हम लोग को यह भी समझाया क य य प
इ ह ेम-कहा नयाँ कहा गया है पर वा तव म ये 'ने त- ेम' कहा नयाँ ह
अथात जैसे उप नषद म यह म नह ं है , ने त-ने त कह कर म के
व प का न पण कया गया है उसी तरह उन कहा नय म 'यह ेम नह ं
था, यह भी ेम नह ं था, यह भी ेम नह ं था', कह कर ेम क या या और
सामािजक जीवन म उसके थान का न पण कया गया था। 'सामािजक
जीवन' का उ चारण करते हुए मा णक मु ला ने फर कंधे हला कर मझ
ु े
सचेत कया और बोले, तम
ु बहुत सपन के आद हो और तु ह यह बात
गरह म बाँध लेनी चा हए क जो ेम समाज क ग त और यि त के
वकास का सहायक नह ं बन सकता वह नरथक है । यह स य है । इसके
अलावा ेम के बारे म कहा नय म जो कुछ कहा गया है , क वताओं म जो
कुछ लखा गया है , प काओं म जो छापा गया है , वह सब रं गीन झठ
ू है और
कुछ नह ।ं फर उ ह ने यह भी बताया क उ ह ने सबसे पहले ेम-कहा नयाँ
इसी लए सन
ु ा क यह मानी व म हम लोग के दमाग पर ऐसी बरु
तरह छाया हुआ है क इसके सवा हम लोग कुछ भी सन
ु ने के लए तैयार न

107
होते। (बाद म उ ह ने अ य बहुत से कथा प म उप यास सन
ु ाए िज ह य द
अवकाश मला तो लखग
ूँ ा, पहले इस बीच म मा णक मु ला क त या
इन कहा नय पर जान लँ ।ू )

कथा- म के बारे म प ट करण दे ते हुए उ ह ने कहा क सात दोपहर तक


चलनेवाला यह म बहुत कुछ धा मक पाठ-च के समान है िजनम एक
कसी संत के वचन या धम- ंथ का एक स ताह तक पारायण होता है और
रोज उ ह ने हम लोग को एक कहानी सन
ु ाई और अंत म न कष बाँटा
(य य प इसम आं शक स य था य क कहा नय म उ ह ने न कष
बतलाया ह नह !ं ) मा णक-कथाच म दन क सं या सात रखने का
कारण भी शायद बहुत-कुछ सरू ज के सात घोड़ पर आधा रत था।

अंत म मने फर पछ
ू ा क सरू ज के सात घोड़ से उनका या ता पय था और
सपने सरू ज के सातव घोड़े से कैसे संब ध ह तो वे बड़ी गंभीरता से बोले क,
दे खो ये कहा नयाँ वा तव म ेम नह ं वरन उस िजंदगी का च ण करती ह
िजसे आज का न न-म यवग जी रहा है । उसम ेम से कह ं यादा
मह वपण
ू हो गया है आज का आ थक संघष, नै तक व ंख
ृ लता, इसी लए
इतना अनाचार, नराशा, कटुता और अँधेरा म यवग पर छा गया है । पर
कोई-न-कोई ऐसी चीज है िजसने हम हमेशा अँधेरा चीर कर आगे बढ़ने,
समाज- यव था को बदलने और मानवता के सहज मू य को पन
ु : था पत
करने क ताकत और ेरणा द है । चाहे उसे आ मा कह लो चाहे कुछ और।
और व वास, साहस,स य के त न ठा उस काशवाह आ मा को उसी
तरह आगे ले चलते ह जैसे सात घोड़े सय
ू को आगे बढ़ा ले चलते ह। कहा भी
गया है , 'सय
ू आ मा जगत त थष
ु च।'

108
तो वा तव म सय
ू के रथ को आगे बढ़ना ह है । हुआ यह क हमारे
वग- वग लत, अनै तक, ट और अँधेरे जीवन क ग लय म चलने से सय

का रथ काफ टूट-फूट गया है और बेचारे घोड़ क तो यह हालत है क कसी
क दम
ु कट गई है तो कसी का पैर उखड़ गया है , तो कोई सख
ू कर ठठर हो
गया है , तो कसी के खरु घायल हो गए ह। अब बचा है सफ एक घोड़ा
िजसके पंख अब भी सा बत ह, जो सीना ताने, गरदन उठाये आगे चल रहा
है । वह घोड़ा है भ व य का घोड़ा, त ना, जमन
ु ा और स ी के न ह न पाप
ब च का घोड़ा; िजनक िजंदगी हमार िजंदगी से यादा अमन-चैन क
होगी, यादा प व ता क होगी, उसम यादा काश होगा, यादा अमत

होगा। वह सातवाँ घोड़ा हमार पलक म भ व य के सपने और वतमान के
नवीन आकलन भेजता है ता क हम वह रा ता बना सक िजन पर हो कर
भ व य का घोड़ा आएगा; इ तहास के वे नए प ने लख सक िजन पर
अ वमेध का दि वजयी घोड़ा दौड़ेगा। मा णक मु ला ने यह भी बताया क
य य प बाक छह घोड़े दब
ु ल, र तह न और वकलांग ह पर सातवाँ घोड़ा
तेज वी और शौयवान है और हम अपना यान और अपनी आ था उसी पर
रखनी चा हए।

मा णक मु ला ने इसी बात को यान म रखते हुए मा णक-कथाच क इस


थम ंख
ृ ला का नाम 'सरू ज का सातवाँ घोड़ा' रखा था। संभव है यह नाम
आपको पसंद न आवे इसी लए मने यह कबल
ू कर लया क यह मेरा दया
हुआ नह ं है ।

109
अंत म म यह भी प ट कर दे ना चाहता हूँ क इस लघु उप यास क
वषय-व तु म जो कुछ भी भलाई-बरु ाई हो उसका िज मा मझ
ु पर नह ं
मा णक मु ला पर ह है । मने सफ अपने ढं ग से वह कथा आपके सामने
तत
ु कर द है । अब आप मा णक मु ला और उनक कथाकृ त के बारे म
अपनी राय बनाने के लए वतं ह।

+ इत +

110

You might also like