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शि दायी िवचार

Shaktidayee Vichar
by
Swami Vivekananda

वामी िववेकान द
अनुवादक
ी कृ णलाल ‘हंस’

978-1-61301-242-0
2014
ई- काशकः
भारतीय सािह य सं ह
http://pustak.org
व य
वामी िववेकान द कृत‘शि दायी िवचार’का
ई-सं करण पाठक के स मुख रखते हम बड़ी स नता हो रही है। इस पु तक म वामीजी के
उन चुने हए स ा य एवं िवचार का सं ह है, जो उ ह ने िविभ िवषय पर कट िकये थे। ये
िवचार केवल िकसी यि के िलए ही लाभदायक नह , वरन्, सम त रा क उ नित के िलए
भी िवशेष िहतकर ह।
ये िवचार बड़े ही फूितदायक, शि शाली तथा यथाथ मनु य व के िनमाण के िनिम
अि तीय पथ दशक ह। उन लोग के िलए, जो भारतवष के आ याि मक, रा ीय एवं सां कृितक
पुन थान के इ छुक ह, ये िवचार िवशेष लाभदायक ह गे।
ी कृ णलाल‘हंस’सािह यर न के हम सभी बड़े आभारी ह िज ह ने इस पु तक को मौिलक
अं ेजी थ से सफलतापवू क अनुवािदत िकया है। हम िव ास है िक वामीजी क इस पु तक
से िह दी जनता का िवशेष िहत होगा।
अनु म
िव ास और शि
ेम और िन: वाथता
ई र औऱ धम
भारत
फुट
िव ास और शि
तुम भु क स तान, अमर आन द के िह सेदार, पिव औऱ पण ू हो। ऐ
प ृ वीिनवासी ई र व प भाइयो! तुम भला पापी? मनु य को पापी कहना ही
पाप है; यह कथन मानव व प पर एक लांछन है। ऐ िसह , आओ और अपने
तई ं भेड़-बकरी होने का का म दूर कर दो। तुम अमर आ मा,शु -बु -मु -
वभाव, शा त और मंगलमय हो। तुम उसके गुलाम नह ।
जो अपने आपम िव ास नह करता, वह नाि तक है। ाचीन धम ने कहा है,
वह नाि तक है जो ई र म िव ास नह करता। नया धम कहता है, वह
नाि तक है जो अपने आप म िव ास नह करता।
िव ास, िव ास, अपने आप म िव ास, ई र म िव ास यही महानता का
रह य है। यिद तुम पुराण के तैतीस करोड़ देवताओं और िवदेिशय ारा
बतलाये हए सब देवताओं म भी िव ास करते हो, पर यिद अपने आप म
िव ास नह करते, तो तु हारी मुि नह हो सकती। अपने आप म िव ास
करो, उस पर ि थर रहो औऱ शि शाली बनो।
सफलता ा करने के िलए जबरद त सतत य न और जबरद त इ छा
रखो। य नशील याि कहता है, “म समु पी जाऊँगा, मेरी इ छा से पवत
टुकड़े टुकड़े हो जाएँ गे।” इस कार क शि औऱ इ छा रखो, कड़ा प र म
करो, तुम अपने उ े य को िनि त पा जाओगे।
यह एक बड़ी सचाई है; शि ही जीवन औऱ कमजोरी ही म ृ यु है। शि -
परम सुख है, अजर अमर जीवन है। कमजोरी - कभी न हटनेवाला बोझ औऱ
य णा है; कमजोरी ही म ृ यु है।
संसार को बस कुछ सौ साहसी ी-पु ष क आव यकता है। उस साहस का
अ यास करो, िजसम सचाई जानने क िह मत है, िजसम जीवन के स य को
बतलाने क िह मत है, जो म ृ यु से नह काँपता, म ृ यु का वागत करता है,
और मनु य को बतलाता है िक वह अमर आ मा है, सम त िव म कोई
उसका हनन नह कर सकता। तब तुम वत हो जाओगे।
कम करना बहत अ छा है, पर वह िवचार से आता है....,इसिलए अपने
मि त क को उ च िवचार और उ चतम आदश से भर लो, उ ह रात-िदन
अपने सामने रखो; उ ह म से महान् काय का ज म होगा।
संसार क ू रता और पाप क बात मत करो। इसी बात पर खेद करो िक तुम
अभी भी ू रता देखने को िववश हो। इसी का तुमको दु:ख होना चािहए िक
तुम सब ओर केवल पाप देखने के िलए बा य हो। यिद तुम संसार क
सहायता करना आव यक समझते हो, तो उसक िन दा मत करो। उसे औऱ
अिधक कमजोर मत बनाओ। पाप, दु:ख आिद सब या है? कुछ भी नह , वे
कमजोरी के ही प रणाम ह। इस कार के उपदेश से संसार िदन- ितिदन
अिधकािधक कमजोर बनाया जा रहा है।
बा यकाल से ही उनके मि त क म िनि त, ढ़ औऱ सहायक िवचार को
वेश करने दो। अपने आपको इन िवचार के ित उ मु रखो, न िक
कमजोर तथा अकम य बनानेवाले िवचार के ित।
असफलता क िच ता मत करो; वे िबलकुल वाभािवक है, वे असफलताएँ
जीवन के सौ दय ह। उनके िबना जीवन या होता? जीवन म यिद संघष न
रहे , तो जीिवत रहना ही यथ है- इसी संघष म है जीवन का का य। संघष
और ुिटय क परवाह मत करो। मैने िकसी गाय को झठ ू बोलते नह सुना,
पर वह केवल गाय है, मनु य कभी नह । इसिलए इन असफलताओं पर यान
मत दो, ये छोटी िफसलन ह। आदश को सामने रखकर हजार बार आगे बढ़ने
का य न करो। यिद तुम हजार बार भी असफल होते हो, तो एक बार िफर
य न करो।
िव क सम त शि याँ हमारी ह। हमने अपने हाथ अपनी आँख पर रख
िलये ह और िच लाते ह िक सब ओर अँधेरा है। जान लो िक हमारे चार ओऱ
अँधेरा नह है, अपने हाथ अलग करो, तु ह काश िदखाई देने लगेगा, जो
पहले भी था। अँधेरा कभी नह था, कमजोरी कभी नह थी। हम सब मख ू ह जो
िच लाते ह िक हम कमजोर ह, अपिव ह।
कमजोरी का इलाज कमजोरी का िवचार करना नह , पर शि का िवचार
करना है। मनु य को शि क िश ा दो, जो पहले से ही उनम है।
अपने आपम िव ास रखने का आदश ही हमारा सब से पड़ा सहायक है। सभी
े म यिद अपने आप म िव ास करना हम िसखाया जाता औऱ उसका
अ यास कराया जाता, तो मुझे िव ास है िक हमारी बुराइय तथा दु:ख का
बहत बड़ा भाग आज तक िमट गया होता।
यिद मानवजाित के आज तक के इितहास म महान् पु ष और ि य के
जीवन म सब से बड़ी वतक शि कोई है, तो वह आ मािव ास ही है। ज म
से ही यह िव ास रहने के कारण िक वे महान् होने के िलए ही पैदा हए ह, वे
महान् बने।
मनु य को, वह िजतना नीचे जाता है जाने दो; एक समय ऐसा अव य
आएगा, जब वह ऊपर उठने का सहारा पाएगा और अपने आप म िव ास
करना सीखेगा। पर हमारे िलए यही अ छा है िक हम इसे पहले से ही जान ल।
अपने आप म िव ास करना सीखने के िलए हम इस कार के कटु अनुभव
य कर?
हम देख सकते ह िक एक तथा दूसरे मनु य के बीच अ तर होने का कारण
उसका अपने आप म िव ास होना और न होना ही है। होने से सब कुछ हो
सकता है। मने अपने जीवन म इसका अनुभव िकया है, अब भी कर रहा हँ
औऱ जैसे जैसे म बड़ा होता-जा रहा हँ, मेरा िव ास और भी ढ़ होता जा रहा
है।
या तुम जानते हो, तु हारे भीतर अभी भी िकतना तेज, िकतनी शि याँ
िछपी हई ह? या कोई वै ािनक भी इ ह जान सका है? मनु य का ज म हए
लाख वष हो गये, पर अभी तक उसक असीम शि का केवल एक अ य त
ु भाग ही अिभ य हआ है। इसिलए तु ह यह न कहना चािहए िक तुम
शि हीन हो। तुम या जान िक ऊपर िदखाई देनेवाले पतन क ओट म
शि क िकतनी स भावनाएँ है? जो शि तुमम है, उसके बहत ही कम
भाग को तुम जानते हो। तु हारे पीछे अन त शि और शाि त का सागर है।
‘जड़’ यिद शि शाली है, तो ‘िवचार’ सवशि मान है। इस िवचार को अपने
जीवन म उतारो और अपने आपको सवशि मान, मिहमाि वत और
गौरवस प न अनुभव करो। ई र करे , तु हारे मि त क म िकसी कुसं कार
को थान न िमले। ई र करे , हम ज म से ही कुसं कार डालनेवाले
वातावरण म न रह और कमजोर तथा बुराई के िवचार से बच।
तुम अपने जीवाणुकोष (Amoeba) क अव था से लेकर इस मनु य-शरीर
तक क अव था का िनरी ण करो; यह सब िकसने िकया?- तु हारी अपनी
इ छाशि ने। यह इ छाशि सवशि मान है, या यह तुम अ वीकार कर
सकते हो? जो तु ह यहाँ तक लायी, वही अब भी तु ह औऱ ऊँचे पर ले जा
सकती है। तु हे केवल च र वान होने और अपनी इ छाशि को अिधक
बलवती बनाने क ही आव यकता है।
उपिनषद म यिद एक ऐसा श द है, जो ब वेग से अ ान-रािश के ऊपर
पितत होता है, उसे िबलकुल उड़ा देता है, तो वह है ‘अभी:’-िनभयता। संसार
को यिद िकसी एक धम क िश ा देनी चािहए, तो वह है ‘िनभ कता’। यह
स य है िक इस ऐिहक जगत म, अथवा आ याि मक जगत् म भय ही पतन
तथा पाप का कारण है। भय से ही दु:ख होता है, यही म ृ यु का कारण है तथा
इसी के कारण सारी बुराई तथा पाप होता है।
अपने नायु शि शाली बनाओ। हम लोहे क मांसपेिशयाँ औऱ फौलाद के
नायु चाहते ह। हम बहत रो चुके - अब और अिधक न रोओ, वरन् अपने पैर
पर खड़े होओ और मनु य बनो।
सब से पहले हमारे त ण को मजबत ू बनना चािहए। धम इसके बाद क व तु
है। मेरे त ण िम ! शि शाली बनो, मेरी तु ह यही सलाह है। तुम गीता के
अ ययन क अपे ा फुटबाल के ारा ही वग के अिधक समीप पहँच सकोगे।
ये कुछ कड़े श द ह, पर मै उ ह कहना चाहता हँ, य िक मै तु ह यार
करता हँ। मै जानता हँ िक काँटा कहाँ चुभता है। मुझे इसका कुछ अनुभव है।
तु हारे नायु और मांसेपिशयाँ अिधक मजबत ू होने पर तुम गीता अिधक
अ छी तरह समझ सकोगे। तुम, अपने शरीर म शि शाली र वािहत होने
पर, ीकृ ण के तेज वी गुण और उनक अपार शि को अिधक समझ
सकोगे। जब तु हारा शरीर मजबत ू ी से तु हारे पैर पर खडा रहे गा और तुम
अपने को ‘मनु य’ अनुभव करोगे, तब तुम उपिनषद् औऱ आ मा क महानता
को अिधक अ छा समझ सकोगे।
‘मनु य’ - केवल ‘मनु य’ ही हम चािहए, िफर हरएक व तु हम ा हो
जाएगी। हम चािहए केवल ढ़ तेज वी, आ मिव ासी त ण - ठीक ठीक
स चे दयवाले युवक। यिद सौ भी ऐसे यि हम िमल जाएँ , तो संसार
आ दोिलत हो उठे गा - उसमे िवशाल प रवतन हो जाएगा।
इ छाशि ही सब से अिधक बलवती है। इसके सामने हर एक व तु झुक
सकती है, य िक वह ई र और वयं ई र से ही आती है; पिव औऱ ढ़
इ छाशि सवशि मान है। या तुम इसम िव ास करते हो?
हाँ, म जैसे-जैसे बड़ा होता जाता हँ वैसे ही वैसे मुझे सब कुछ ‘मनु य व’ म ही
िनिहत मालम ू पड़ता है। यह मेरी नयी िश ा है। बुराई भी करो, तो ‘मनु य’
क तरह। यिद आव यक ही हो, तो िनदयी भी बनो, पर उ च तर पर।

े  और िन: वाथता

िन: वाथता अिधक लाभदायक है, िक तु लोग म उसका अ यास करने का
धैय नह है।
उ च थान पर खड़े होकर और हाथ म कुछ पैसे लेकर यह न कहो-“ऐ
िभखारी, आओ यह लो।” पर तु इस बात के िलए उपकार मानो िक तु हारे
सामने वह गरीब है, िजसे दान देकर तुम अपने आप क सहायता कर सकते
हो। पानेवाले का सौभा य नह , पर वा तव म देनेवाले का सौभा य है। उसका
आभार मानो िक उसने तु ह संसार म अपनी उदारता औऱ दया कट करने
का अवसर िदया और इस कार तुम शु औऱ पण ू बन सके।
दूसर क भलाई करने का अनवरत य न करते हए हम अपने आपको भल ू
जाने का य न करते ह। यह अपने आपको भल ू जाना एक ऐसा बड़ा सबक
है, िजसे हम अपने जीवन म सीखना है। मनु य मख ू ता से यह सोचने लगता
है िक वह अपने को सुखी बना सकता है, पर वष के संघष के प ात् अ त म
वह कह समझ पाता है िक स चा सुख वाथ के नाश म है और उसे अपने
आपके अित र अ य कोई सुखी नह बना सकता।
वाथ ही अनैितकता और वाथहीनता ही नैितकता है।
मरण रखो, परू ा जीवन देने के िलए ही है। कृित देने के िलए िववश करे गी;
इसीिलए अपनी खुशी से ही दो....। तुम सं ह करने के िलये ही जीवन धारण
करते हो। मु ी-बँधे हाथ से तुम बटोरना चाहते हो, पर कृित तु हारी गदन
दबाती है और तु हारे हाथ खुल जाते ह। तु हारी इ छा हो या न हो, तु ह देना
ही पड़ता है। जैसे ही तुम कहते हो, ‘म नह दँूगा’, एक घँस ू ा पडता है और
तु ह चोट लगती है। ऐसा कोई भी नह है, िजसे अ त म सब कुछ यागना न
पड़े ।
शु बनना औऱ दूसर क भलाई करना ही सब उपासनाओं का सार है। जो
गरीब , िनबल और पीिडत म िशव को देखता है, वही वा तव म िशव का
उपासक है; पर यिद वह केवल मिू त म ही िशव को देखता है, तो यह उसक
उपासना का आर भ मा है।
िन: वाथता ही धम क कसौटी है। जो िजतना अिधक िन: वाथ है, वह उतना
ही अिधक आ याि मक औऱ िशव के समीप है.....। और वह यिद वाथ है, तो
उसने चाहे सभी मि दर म दशन िकये ह , चाहे सभी तीथ का मण िकया
हो, चाहे वह रँ गे हए चीते के समान हो, िफर भी वह िशव से बहत दूर है।
ेम – केवल ेम का ही म चार करता हँ, औऱ मेरे उपदेश वेदा त क समता
और आ मा क िव यापकता - इ ह स य पर िति त ह।
पहले रोटी औऱ िफर धम। सब बेचारे द र ी भख ू मर रहे ह, तब हम उनम
यथ ही धम को ठूँसते ह। िकसी भी मतवाद से भख ू क वाला शा त नह हो
सकती....। तुम लाख िस ा त क चचा करो, करोड़ स दाय खड़े कर
लो, पर जब तक तु हारे पास संवेदनशील दय नह है, जब तक तुम उन
गरीब के िलए वेद क िश ा के अनु प तड़प नह उठते, जब तक उ ह
अपने शरीर का ही अंग नह समझते, जब तक यह अनुभव नह करते िक
तुम औऱ वे-द र और धनी, स त और पापी-सभी उस एक असीम पण ू के,
िजसे तुम कहते हो, अंश ह, तब तक तु हारी धम-चचा यथ है।
दुिखय के दु:ख का अनुभव करो और उनक सहायता करने को आगे बढ़ो,
भगवान् तु ह सफलता दगे ही। मने अपने दय म इस भार को औऱ मि त क
म इस िवचार को रखकर बारह वष तक मण िकया। म तथाकिथत बड़े औऱ
धनवान यि य के दरवाज पर गया। वेदना-भरा दय लेकर और संसार
का आधा भाग पार कर, सहायता ा करने के िलए म इस देश (अमरीका) म
आया। ई र महान् है। जानता हँ, वह मेरी सहायता करे गा। म इस भख ू डम
शीत से या भख ू से भले ही मर जाऊँ, पर हे त णो, म तु हारे िलए एक
बसीयत छोड़ जाता हँ; और वह है यह सहानुभिू त – गरीब , अ ािनय , और
दु:िखय क सेवा के िलए ाणपण से चे ा।
मनु य अ पायु है और संसार क सब व तुएँ वथ ृ ा तथा णभंगुर ह, पर वे ही
जीिवत ह, जो दूसर के िलए जीते ह; शेष सब तो जीिवत क अपे मत ृ ही
अिधक ह।
म उस धम और ई र म िव ास नह करता, जो िवधवा के आँसू प छने या
अनाथ को रोटी देने म असमथ है।
हे व स, ेम कभी िवफल नह होता; आज कल या युग के प ात कभी न
कभी स य क िवजय िन य होगी। ेम िवजय ा करे गा। या तुम अपने
सािथय से ेम करते हो?
तु ह ई र को ढूँढ़ने कहाँ जाना है? या गरीब, दु:खी और िनबल ई र नह
है? पहले उ ह क पज ू ा य नह करते? तुम गंगा के िकनारे खड़े होकर
कुआँ य खोदते हो?
ेम क सवशि म ा पर िव ास करो।...... या तुमम ेम है? तुम
सवशि मान हो। या तुम पण ू त: िन: वाथ हो? यिद हाँ, तो तुम अजेय हो।
च र ही सव फलदायक है।
मेरा दय भावनाओं से इतना भरा हआ है िक म उ ह य करने म असमथ
हँ, तुम उसे जानते हो, तुम उसक क पना कर सकते हो। जब तक लाख
यि भख ू े और अ ानी ह, तब तक है म उस येक यि को कृत न
समझता हँ, जो उनके बल पर िशि त बना, पर आज उनक ओर यान तक
नह देता। म उन मन य को हतभा य कहता हँ, जो अपने ऐ य का वथ ृ ा गव
करते ह और िज ह ने गरीब को, पददिलत को पीसकर धन एक िकया है
पर जो बीस करोड़ यि य के िलए कुछ भी नह करते, जो भख ू े जंगली
मनु य क तरह जीवन िबता रहे ह। भाइयो, हम गरीब ह, नग य ह, पर ऐसे
ही यि सदैव परमा मा के साधन- व प रहे ह।
मुझे मुि या भि क परवाह नह है, म सैकडो-हजार नरक म ही य न
जाऊँ, वस त क तरह मौन दूसर क सेवा करना ही मेरा धम है।
म म ृ युपय त अनवरत काय करता रहँगा औऱ म ृ यु के प ात भी म दुिनया
क भलाई के िलए काय क ँ गा। अस य क अपे ा स य अन त गुना अिधक
भावशाली है; उसी कार अ छाई भी बुराई से। यिद ये गुण तुमम िव मान ह,
तो उनका भाव आप ही आप कट होगा।
िवकास ही जीवन औऱ संकोच ही म ृ यु है। ेम ही िवकास और वाथपरता
संकोच है। इसिलए ेम ही जीवन का मल ू म है। ेम करनेवाला ही जीता है
और वाथ मरता रहता है। इसिलए ेम ेम ही के िलए करो; य िक एकमा
ेम ही जीवन का ठीक वैसा ही आधार है, जैसा िक जीने के िलए ास लेना।
िन: वाथ ेम, िन: वाथ काय आिद का यही रह य है।
संसार को कौन काश देगा? अतीत का आधार याग ही था औऱ भिव य म
भी वही रहे गा। प ृ वी के वीरतम औऱ महानतम पु ष को दूसर क - सब क
भलाई के िलए अपनी बिल देनी पड़े गी। अन त ेम और अपार दयालुता-
स प न सैकड़ बु क आव यकता है।
म पुन: पुन: ज म धारण क ँ औऱ हजार मुसीबत सहता रहँ, िजससे म उस
परमा मा को पज ू सकँ ू , जो सदा ही वतमान है, िजस अकेले म म सवदा
िव ास रखता हँ, जो सम त जीव का समि व प है और जो दु के प
म, पीिड़त के प म तथा सब जाितय , सब वग के गरीब म कट हआ है।
वही मेरा िवशेष आरा य है।
हमारा सव े काय तभी होगा, हमारा सव े भाव तभी पड़े गा, जब हमम
‘अहं-भाव’ लेशमा भी न रहे गा।
आज संसार के सब धम ाणहीन एवं प रहास क व तु हो गये ह। आज जगत्
का स चा अभाव है च र । संसार को उनक आव यकता है िजनका जीवन
उ कट ेम तथा िन: वाथपरता से पण ू है। वह ेम येक श द को व वत्
शि दान करे गा।
े तम जीवन का पण ू काश है आ म याग, न िक आ मािभमान।
जहाँ यथाथ धम है, वह बलतम आ मबिलदान है। अपने िलए कुछ मत चाहो,
दूसर के िलए ही सब कुछ करो-यही है ई र म तु हारे जीवन क ि थित,
गित तथा ाि ।
ई र औऱ धम
येक जीव ही अ य है। बा एवं अ त: कृित, दोन का िनयमन
कर, इस अ तिनिहत – व प को अिभ य करना ही जीवन का येय
है। कम, भि , योग या ान के ारा, इनम से िकसी एक के ारा, या एक
से अिधक के ारा, या सब के सि मलन के ारा, यह येय ा कर लो और
मु हो जाओ। यही धम का सव व है। मतमता तर, िविध या अनु ान,
थ, मि दर–ये सब गौण ह।
यिद ई र है, तो हम उसे देखना चािहए; अ यथा उन पर िव ास न करना ही
अ छा है। ढ गी बनने क अपे ा प प से नाि तक बनना अ छा है।
अ यास अ याव यक है। तुम ितिदन घ ट बैठकर मेरा उपदेश सुनते, रहो,
पर यिद तुम उसका अ यास नह करते, तो एक पग भी आगे नह बढ़ सकते।
यह सब तो अ यास पर ही िनभर है। जब तक हम इन बात का अनुभव नह
करते, तब तक इ ह नह समझ सकते। हम इ ह देखना और अनुभव करना
पड़े गा। िस ा त औऱ उनक या याओं को केवल सुनने से कुछ न होगा।
एक िवचार ले लो उसी एक िवचार के अनुसार अपने जीवन को बनाओ; उसी
को सोचो, उसी का व न देखो और उसी पर अवलि बत रहो। अपने
मि त क, मांसपेिशय , नायुओ ं और शरीर के येक भाग को उसी िवचार से
ओत ोत होने दो और दूसरे सब िवचार को अपने से दूर रखो। यही सफलता
का रा ता है औऱ यही वह माग है, िजसने महान् धािमक पु ष का िनमाण
िकया है।
ये महामानव असामा य नह थे; वे तु हारे औऱ हमारे समान ही मनु य थे। पर
वे महान् योगी थे। उ ह ने यही ा ी ि थित ा कर ली थी; हम औऱ तुम भी
इसे ा कर सकते ह। वे कोई िनशेष यि नह थे। एक मनु य का उस
ि थित म पहँचना ही इस बात का माण है िक उसक ाि येक मनु य के
िलए स भव है। स भव ही नह , बि क येक मनु य अ त म उस ि थित को
ा करे गा ही, और यही है धम।
ई र मुि व प है, कृित का िनय ता है। तुम उसे मानने से इ कार नह
कर सकते। नह , य िक तुम वत ता के भाव के िबना न कोई काय कर
सकते हो, न जी सकते हो।
कोई भी जीवन असफल नह हो सकता; संसार म असफल कही जानेवाली
कोई व तु है ही नह । सैकड़ बार मनु य को चोट पहँच सकती है, हजार बार
वह पछाड़ खा सकता है, पर अ त म वह यही अनुभव करे गा िक वह वयं ही
ई र है।
धम मतवाद या बैि क तक म नह है, वरन् आ मा क व पता को
जान लेना, त ूप हो जाना - उसका सा ा कार, यही धम है।
ईसा के इन श द को मरण रखो-“माँगो, वह तु ह िमलेगा; खटखटाओ और
वह तु हारे िलए खुल जाएगा।”ये श द पण ू प से स य ह, न आलंका रक ह,
न का पिनक।
बा कृित पर िवजय ा करना बहत अ छी और बहत बड़ी बात है, पर
अ त: कृित को जीत लेना इससे भी बडी बात है……। अपने भीतर
के‘मनु य’को वश म कर लो, मानव-मन के सू म काय के रह य को समझ
लो और उसके आ यजनक गु भेद को अ छी तरह जान लो- ये बात धम के
साथ अ छे भाव से स ब ह।
जीवन और म ृ यु म, सुख और दु:ख म ई र समान प से िव मान है।
सम त िव ई र से पण ू ह। अपने ने खोलो और उसे देखो।
ई र क पज ू ा करना अ तिनिहत आ मा क ही उपासना है।
धम क य अनुभिू त हो सकती है या तुम इसके िलए तैयार हो? यिद हाँ,
तो तुम उसे अव य ा कर सकते हो, और तभी तुम यथाथ धािमक ह गे। जब
तक तुम इसका य अनुभव नह कर लेते, तुमम और नाि तक म कोई
अ तर नह । नाि तक ईमानदार है, पर वह मनु य जो कहता है िक वह धम म
िव ास रखता है, पर कभी उसे य करने का य न नह करता,
ईमानदार नह है।
म अभी तक के सभी धम को वीकार करता हँ औऱ उन सब क पज ू ा करता
हँ, म उनम से येक के साथ ई र क उपासना करता हँ: वे वयं चाहे
िकसी भी प म उपासना करते ह । म मुसलमान क मसिजद म जाऊँगा, मै
ईसाइय के िगरजा म ास के सामने घुटने टेककर ाथना क ँ गा, मै बौ -
मि दर म जाकर बु और उनक िश ा क शरण लँग ू ा। जंगल म जाकर
िह दुओ ं के साथ यान क ँ गा, जो दय थ योित व प परमा मा को
य करने म लगे हए ह।
यह धम उसके ारा ा िकया जाता है, िजसे हम भारत म‘योग’या ‘एक व’
कहते ह। यह योग कमयोगी के िलए मनु य औऱ मनु य जाित के एक व के
प म, राजयोगी के िलए जीव तथा के एक व के प म, भ के िलए
ेम व प भगवान् तथा उसके वयं के एक व के प म और ानयोगी के
िलए बह व म एक व के प कट होता है। यही है योग का अथ।
अब यह है िक या वा तव म धम का कोई उपयोग है? हाँ, वह मनु य
को अमर बना देता है, उसने मनु य के िनकट उसके यथाथ व प को
कािशत िकया है और वह मनु य को ई र बनाएगा। यह है धम क
उपयोिगता। मानव समाज से धम पथ ृ क् कर लो, तो या रह जाएगा? कुछ
नह , केवल पशुओ ं का समहू ।
तु हारी सहायता कौन करे गा? तुम वयं ही िव के सहायता- व प हो। इस
िव क कौनसी व तु तु हारी सहायता कर सकती है। तु हारी सहायता
करनेवाला मनु य, ई र या ेता मा कहाँ है? तु ह कौन परािजत कर सकता
है? तुम वयं ही िव ा भगवान् हो, तुम िकससे सहायता लोगे? सहायता
और कह से नह , पर अपने आप से ही िमली है और िमलेगी। अपनी अ ानता
क ि थित म तुमने िजतनी ाथना क औऱ उसका तु ह जो उ र िमला, तुम
समझते रहे िक वह उ र िकसी अ य यि ने िदया है, पर वा तव म तु ह
ने अनजाने उन ाथनाओं का उ र िदया है।
थ के अ ययन से कभी कभी हम म म पड़ जाते ह िक उनसे हम
आ याि मक सहायता िमलती है; पर यिद हम अपने ऊपर उन थ के
अ ययन से पड़नेवाले भाव का िव े षण कर, तो ात होगा िक अिधक से
अिधक हमारी बुि पर ही उसका भाव पडा है, न िक हमारे अ तरा मा पर।
आ याि मक िवकास के िलए ेरक-शि के प म थ का अ ययन
अपया है, य िक य िप हमम से ाय: सभी आ याि मक िवषय पर अ य त
आ यजनक भाषण दे सकते ह, पर जब य काय तथा वा तिवक
आ याि मक जीवन िबताने क बात आती है, तब अपने को बुरी तरह अयो य
पाते ह। आ याि मक जागिृ त के िलए िन गु से ेरक-शि ा होनी
चािहए।
एकमा ई र, आ मा औऱ आ याि मकता ही स य ह- शि - व प ह।
केवल उ ह का आ य लो।
संसार म अनेक धम ह, य िप उनक उपासना के िनयम िभ ह, तथािप वे
वा तव म एक ही ह।
यान ही मह वपण ू बात है। यान लगाओ। यान सब से बड़ी बात है।
आ याि मक जीवन क ाि के िलए े तम-िनकटतम उपाय है। हमारे
दैिनक जीवन म यही एक ण है, जब हम सांसा रकता से पथ ृ क् रह पाते ह;
इसी ण म आ मा अपने आप म ही लीन रहती है, अ य सब िवचार से मु
रहती है-यही है आ मा का आ यजनक भाव।
जो अपने आपको ई र को समिपत कर देते ह, वे तथाकिथत किमय क
अपे ा संसार का अिधक िहत करते ह। िजस यि ने अपने को पण ू त: शु
कर िलया है, वह उपदेशक के समहू क अपे ा अिधक सफलतापवू क काय
करता है। िच शुि औऱ मौन से ही श द म शि आती है।
हम आज िजस बात को जानने क आव यकता है वह है ई र- हम उसे सव
देख औऱ अनुभव कर सकते ह।
‘भोजन, भोजन’ िच लाने औऱ उसे खाने तथा ‘पानी, पानी’ कहने और उसे
पीने म बहत अ तर है। इसी कार केवल ‘ई र, ई र’ रटने से हम उसका
अनुभव करने क आशा नह कर सकते। हम उसके िलए य न करना
चािहए, साधना करनी चािहए।
बुराईय के बीच भी कहो-‘मेरे भु, मेरे ि यतम।’ म ृ यु क य णा म भी
कहो-‘मेरे भु, मेरे ि यतम।’ संसार क सम त िवपि य म भी कहो-‘मेरे
भु, मेरे ि यतम! तू यहाँ है, म तुझे देखता हँ। तू मेरे साथ है, म तुझे अनुभव
करता हँ म तेरा हँ, मुझे सहारा दे। म संसार का नह , पर केवल तेरा हँ, तू
मुझे मत याग।’ हीर क खान को छोड़कर काँच क मिणय के पीछे मत
दौड़ो। यह जीवन एक अमू य सुयोग है। या तुम सांस रक सुख क खोज
करते हो?- भु ही सम त सुख के ोत ह। उसी उ चतम को खोजो, उसी को
अपना ल य बनाओ और तुम अव य उसे ा करोगे।
भारत
सम त संसार हमारी मातभ ृ िम का महान् ऋणी है। िकसी भी देश को ले
लीिजए, इस जगत् म एक भी जाित ऐसी नह है, िजसका संसार उतना ऋणी
हो, िजतना िक वह यहाँ के धैयशील औऱ िवन िह दुओ ं का है।
अनेक के िलए भारतीय िवचार, भारतीय रीित- रवाज, भारतीय दशन,
भारतीय सािह य थम ि म ही घण ृ ा पद तीत होते ह, पर यिद वे सतत
य न कर, पढ़ तथा इन िवचार म िनिहत महान् त व से प रिचत हो जाएँ ,
तो प रणाम व प उनम से िन यानबे ितशत आन द से िवभोर होकर उन
पर मु ध हो जाएँ गे।
पर जैसे जैसे म बड़ा होता हँ, म इन ाचीन भारतीय सं थाओं को अिधक
अ छी तरह समझता जा रहा हँ। एक समय था, जब म सोचता था िक उनम से
अनेक सं थाएँ िन पयोगी और यथ ह, पर जैसे जैसे म बडा होता जा रहा हँ,
मुझे इनक िन दा करने म अिधकािधक संकोच मालम ू पड़ता है, य िक
इनम से येक, शताि दय के अनुभव का साकार व प है।
मेरी बात पर िव ास क िजए। दूसरे देश म धम क केवल चचा ही होती है,
पर ऐसे धािमक पु ष, िज ह ने धम को अपने जीवन म प रणत िकया है, जो
वयं साधक ह, केवल भारत म ही ह।
मने कहा िक अभी भी हमारे पास कुछ ऐसी बात ह, िजनक िश ा हम संसार
को दे सकते ह। यही कारण है िक सैकड़ वष तक अ याचार को सहने,
लगभग हजार वष तक िवदेशी शासन म रहने औऱ िवदेिशय ारा पीिड़त
होने पर भी यह देश आज तक जीिवत रहा है। उसके अभी भी अि त व म रहने
का कारण यही है िक वह सदैव और अभी भी ई र का आ य िलये हए है,
तथा धम एवं आ याि मकता के अमू य भ डार का अनुसरण करता आया है।
हमारे इस देश म अभी भी धम और आ याि मकता िव मान है, जो मानो ऐसे
ोत ह, िज ह अबाध गित से बढ़ते हए सम त िव को अपनी बाढ़ से
आ लािवत कर पा ा य तथा अ य देश को नवजीवन तथा नवशि दान
करनी होगी। राजनीितक मह वाकां ाओं और सामािजक कपट के कारण ये
सब देश आज अधमत ृ हो गये है, पतन क चरम सीमा पर पहँच चुके ह, उनम
अराजकता छा गयी है।
पर यान रखो, यिद तुम इस आ याि मकता का याग कर दोगे और इसे एक
ओर रखकर पि म क जड़वादपण ू स यता के पीछे दौड़ोगे, तो प रणाम यह
होगा िक तीन पीिढय म तुम एक मत ृ जाित बन जाओगे; य िक इससे रा
क रीढ़ टूट जाएगी, रा क वह न व िजस पर इसका िनमाण हआ है, नीचे
धँस जाएगी और इसका फल सवागीण िवनाश होगा।
भौितक शि का य के यरू ोप, यिद आज अपनी ि थित म प रवतन
करने म सतक नह होता, यिद वह अपना आदश नह बदलता औऱ अपने
जीवन को आ याि मकता पर आधा रत नह करता, तो पचास वष के भीतर
वह न - होकर धल ू म िमल जाएगा औऱ इस ि थित म इसे बचानेवाला
यिद कोई है तो वह है उपिनषद का धम।
हमारे घम डी रईस-पवू ज हमारे देश क सवसाधारण जनता को अपने पैर से
तब तक कुचलते रहे , जब तक िक वे िन सहाय नह हो गये जब तक िक वे
बेचारे गरीब ाय: वह तक भल ू नह गये िक वे मनु य ह। वे शताि दय तक
केवल लकडी काटने और पानी भरने को इस तरह िववश िकये गये िक
उनका िव ास हो गया िक वे गुलाम के प म ही ज मे हए ह, लकडी काटने
औऱ पानी भरने के िलए ही पैदा हए ह।
उपिनषद के स य तु हारे सामने ह। उ ह वीकार करो, उनके अनुसार
अपना जीवन बनाओ, और इसी से शी ही भारत का उ ार होगा।
या तु ह खेद होता है? या तु ह इस बात पर कभी खेद होता है िक
देवताओं औऱ ऋिषय के लाख वंशज आज पशुवत् हो गये ह? या तु ह इस
बात पर दु:ख होता है िक लाख मनु य आज भख ू क वाला से तड़प रहे ह
और सिदय से तड़पते रहे ह? या तुम अनुभव करते हो िक अ ानता सघन
मेघ क तरह इस देश पर छा गयी है? या इससे तुम छटपटाते हो? या
इससे तु हारी न द उचट जाती है? या यह भावना मानो तु हारी िशराओं म से
बहती हई, तु हारे दय क धड़कन के साथ एक प होती हई तु हारे र म
िभद गयी है? या इसने तु ह लगभग पागल सा बना िदया है? सवनाश के
दु:ख क इस भावना से या तुम बेचन ै हो?और या इससे तुम अपने नाम,
यश, ी-ब चे, स पि औऱ यहाँ तक िक अपने शरीर क सुध-बुध भल ू गये
हो? या तु ह ऐसा हआ है? - देशभ होने क यही है थम सीढ़ी केवल
थम सीढ़ी।
आओ, मनु य बनो। अपनी संक णता से बाहर आओ और अपना ि कोण
यापक बनाओ। देखो, दूसरे देश िकस तरह आगे बढ़ रहे ह। या तुम मनु य
से ेम करते हो? या तुम अपने देश को यार करते हो? तो आओ, हम
उ चतर तथा े तर व तुओ ं के िलए ाणपण से य न करे । पीछे मत देखो;
यिद तुम अपने ि यतम तथा िनकटतम स बि धय को भी रोते देखो तो भी
नह । पीछे मत देखो, आगे बढो।
भारत के ित पण ू ेम, देशभि औऱ पवू ज के ित पण ू स मान रखते हए
भी म यह सोचे िबना नह रह सकता िक हम अभी बहतसी बात दूसरे देश से
सीखनी ह। हम भारतेतर देश के िबना कुछ नह कर सकते, यह हमारी
मखू ता थी िक हमने सोचा, हम कर सकगे, औऱ प रणाम यह हआ िक हम
लगभग एक हजार वष क दासता द ड़ के प म वीकार करनी पड़ी। हमने
बाहर जाकर दूसरे देश से अपने देश क बात क तुलना नह क और जो
सब काय हो रहे ह, उन पर यान नह िदया- यही भारत के पतन का एक
धान कारण है। हम इसका द ड पा चुके, अब हम यही और आगे न कर।
दि ण भारत के ये कुछ ाचीन मि दर और गुजरात के सोमनाथ के समान
अ य मि दर आपको सैकड़ पु तक क अपे ा कह अिधक चुर ान
दान करगे तथा जातीय इितहास क भीतरी बात समझने के िलए सू म
ि दगे। देखो, इन मि दर पर िकस कार सैकड़ आ मण और सैकड़
पुन ार के िच िव मान ह। इन मि दर का भ नावशेष म से सदैव उ ार
होता रहा और वे हमेशा क तरह नये औऱ सु ढ़ बने रहे । यही है हमारे रा ीय
जीवन- वाह का व प।
आगामी पचास वष के िलए हमारा केवल एक ही िवचार-के होगा- औऱ वह
है हमारी महान् मातभृ िू म भारत। दूसरे सब यथ के देवताओं को उस समय
तक के िलए हमारे मन से लु हो जाने दो। हमारा भारत, हमारा रा –केवल
यही एक देवता है जो जाग रहा है, िजसके हर जगह हाथ ह, हर जगह पैर ह,
हर जगह कान ह- जो सब व तुओ ं म या है। दूसरे सब देवता सो रहे ह। हम
य इन यथ के देवताओं के पीछे दौड, और उस देवता क - उस िवराट् क –
पजू ा य न कर, िजसे हम अपने चार ओर देख रहे ह? जब हम उसक पज ू ा
कर लगे, तभी हम सभी देवताओं क पज ू ा करने यो य बनगे।
देश क आ याि मक और लौिकक िश ा पर हमारा अिधकार अव य हो। या
तु हारे यान म यह बात आयी?....तु ह इस समय जो िश ा िमल रही है,
उसम कुछ अ छाइयाँ अव य ह, पर उसम एक भयंकर दोष है िजससे ये सब
अ छी बात दब गयी ह। सब से पहली बात यह है िक उसम मनु य बनाने क
शि नह है, वह िश ा िनता त अभावा मक है। अभावा मक िश ा म ृ यु से
भी बुरी है।
भारत को छोड़ने के पहले मने उससे यार िकया, औऱ अब तो उसक धिू ल भी
मेरे िलए पिव हो गयी है, उसक हवा भी मेरे िलए पावन हो गयी है। वह अब
एक पिव भिू म है, या ा का थान है, पिव तीथ े है।
यिद तुम अं ेज या अमे रकन के बराबर होना चाहते हो, तो तु ह उनको
िश ा देनी पडे गी और साथ ही साथ िश ा हण भी करनी पड़े गी, और
तु हारे पास अभी भी बहतसी ऐसी बात ह जो तुम भिव य म सैकड़ वष तक
संसार को िसखा सकते हो। यह काय तु ह करना ही होगा।
भारत का पतन इसिलए नह हआ िक हमारे ाचीन िनयम औऱ रीित- रवाज
खराब थे, वरन् इसिलए िक उनका जो उिचत ल य है, उस पर पहँचने के िलए
िजन अनुकूल वातावरण एवं साधन क आव यकता थी, उनका िनमाण नह
होने िदया गया।
जब आपको ऐसे लोग िमलगे, जो देश के िलए अपना सव व बिलदान करने
को तैयार ह और जो दय के स चे ह-जब ऐसे लोग उ प न ह गे, तभी भारत
येक ि से महान् होगा। मनु य ही तो देश के भा यिवधाता ह।
मेरी राय म सवसाधारण जनता क उपे ा ही एक बड़ा रा ीय पाप है और
वही एक कारण है, िजससे हमारा पतन हआ। िकतना भी राजकारण उस
समय तक उपयोगी नह हो सकता जब तक िक भारतीय जनता िफर से
अ छी तरह सुिशि त न हो जाए, उसे अ छा भोजन िफर न ा हो औऱ
उसक अ छी देखभाल न हो।
धािमक भावना को िबना ठे स पहँचाये जनता क उ नित - यही येयवा य
अपने सामने रखो।
िश ा, िश ा केवल िश ा। यरू ोप के अनेक शहर का मण करते समय वहाँ
के गरीब के भी आराम औऱ िश ा का जब मने िनरी ण िकया, तो उसने मेरे
देश के गरीब क ि थित क याद जगा दी औऱ मेरी आँख से आँसू िगर पड़े ।
इस अ तर का कारण या है? उ र िमला, ‘िश ा’। िश ा के ारा उनम
आ मिव ास उ प हआ औऱ आ मिव ास के ारा मल ू वाभािवक भाव
उनम जागतृ हो रहा है। मेरे जीवन क केवल एक मह वाकां ा यह है िक म
एक ऐसी सं था एवं काय णाली का संचालन क ँ , जो येक घर तक े
िवचार ले जा सके और िफर ी तथा पु ष अपने भा य का िनणय कर ल। वे
जान ल िक उनके पवू ज तथा दूसरे देश ने जीवन के अ य त मह वपण ू
पर या सोचा है। िवशेषकर वे देख िक दूसरे लोग अब या कर रहे ह,
और िफर वे िनणय कर। हमारा काम रासायिनक य को एक साथ रखना
है, रवे बनाने का काय कृित अपने िनयम के अनुसार करे गी ही।
भिव य म या होनेवाला है यह म नह देखता, औऱ न मुझे देखने क परवाह
ही है। पर िजस कार अपने सामने म जीवन य प से देख रहा हँ, उस
कार अपने मन ु के स मुख मुझे एक य प प से िदखाई दे रहा है
और वह है - मेरी यह ाचीन मातभ ृ िू म िफर से जग गयी है, वह िसंहासन पर
बैठी है, उसम नवशि का संचार हआ है, औऱ वह पहले से अिधक
गौरवाि वत हो गयी है। संसार के स मुख शाि त एवं क याण क मंगलमय
वाणी से उसके गौरव क घोषणा करो।
फुट
िश ा िविवध जानका रय का ढे र नह है, जो तु हारे मि त क म ठूँस िदया
गया है और जो आ मसात हए िबना वहाँ आज म पडा रहकर गड़बड़ मचाया
करता है। हम उन िवचार क अनुभिू त कर लेने क आव यकता है, जो
जीवन-िनमाण, ‘मनु य’िनमाण तथा च र -िनमाण म सहायक ह । यिद आप
केवल पाँच ही परखे हए िवचार आ मसात् कर उनके अनुसार अपने जीवन
औऱ च र का िनमाण कर लेते ह, तो आप परू े थालय को क ठ थ
करनेवाले क अपे ा अिधक िशि त ह।
जब तक स यता नाम से पहचानी जानेवाली बीमारी अि त व म है, तब तक
द र ता अव य रहे गी औऱ इसिलए उसके दूर करने क आव यकता भी बनी
रहे गी।
‘शाइला स’ अथात् िनदयी महाजन के अ याचार के कारण पा ा य देश
कराह रहे ह और पुरोिहत के अ याचार के कारण ा य।
सारा पि म एक वालामुखी के मुख पर बैठा है, जो कल ही फूट सकता है
और टूक-टूक हो जा सकता है।
एिशया ने स यता क न व डाली, यरू ोप ने पु ष का िवकास िकया औऱ
अमे रका ि य तथा सवसाधारण जनता का िवकास कर रहा है।
येक यि , येक रा को महान् होने के िलए िन निलिखत तीन बात
क आव यकता है-
अ छाई क शि य पर ढ़ िव ास,
ई या और स देह का अभाव,
उन सभी क सहायता करना, जो अ छे बनने तथा अ छा काय करने का
य न करते ह।
अपने भाइय का नेत ृ व करने का नह , वरन् उनक सेवा करने का य न
करो। नेता बनने क इस ू र उ म ता ने बड़े बड़े जहाज को इस जीवन पी
समु म डुबो िदया है।
हमारे वभाव म संगठन का सवथा अभाव है, पर इसे हम अपने वभाव म
लाना है। इसका महान् रह य है ई या का अभाव। अपने भाइय के मत से
सहमत होने को सदैव तैयार रहो और हमेशा समझौता करने का य न करो।
यही है संगठन का परू ा रह य।
म तुम सब से यही चाहता हँ िक तुम आ म ित ा, दलबंदी औऱ ई या को
सदा के िलए छोड़ दो। तु ह प ृ वी-माता क तरह सहनशील होना चािहए। यिद
तुम ये गुण ा कर सको, तो संसार तु हारे पैर पर लोटेगा।
ि य क ि थित म सुधार हए िबना संसार के क याण क कोई स भावना
नह है। एक प ी का केवल एक ही पंख के सहारे उड़ सकना अस भव है।
ि य म अव य ही यह मता होनी चािहए िक वे अपनी सम याएँ अपने ढं ग
से हल कर सक। उनका यह काय न कोई दूसरा कर सकता है, और न िकसी
दूसरे को करना ही चािहए। हमारी भारतीय मिहलाएँ संसार क िक ह भी
अ य मिहलाओं क तरह यह काय करने के यो य ह।
म जानता हँ िक वह जाित िजसने सीता को ज म िदया – यह चाहे उनका
व न ही य न हो – ि य के िलए वह स मान रखती है, जो प ृ वीतल पर
अतुलनीय है।
जब येक बात म सफलता िनि त रहती है, तब मख ू भी अपनी शंसा पाने
के िलए उठ खड़ा हो जाता है और कायर भी वीर क सी विृ धारण कर लेते
ह, पर स चा वीर िबना एक श द मँुह से बोले काय करता जाता है। एक बु
का आिवभाव होने से पहले न जाने िकतने बु हो चुके ह।
पि मी रा ने रा ीय जीवन का जो आ यजनक ढाँचा तैयार िकया है, उसे
च र के ढ़ त भ का ही आधार है, और हम जब तक ऐसे त भ का
िनमाण नह कर लेते, तब तक हमारा िकसी भी शि के िव आवाज
उठाना यथ है।
काम इस कार करते रहो, मानो परू ा काय तुमम से येक पर िनभर है।
पचास शताि दयाँ तु हारी ओर ताक रही है, भारत का भिव य तुम पर
अवलि बत है। काय करते रहो।
जो दूसर का सहारा ढूँढ़ता है, वह स य व प भगवान् क सेवा नह कर
सकता।
म एक ऐसे नये मानव-समाज का संगठन करना चाहता हँ जो ई र पर दय
से िव ास रखता है और जो संसार क कोई परवाह नह करता।
उपहास, िवरोध औऱ िफर वीकृित - येक काय को इन तीन अव थाओं म
से गुजरना पड़ता है। जो यि अपने समय ने आगे क बात सोचता है, उसके
स ब ध म लोग क गलत धारणा होना िनि त है।
जीवन संघष तथा िनराशाओं का अिवराम वाह है.....। जीवन का रह य भोग
म नह , पर अनुभवजिनत िश ा म है। पर खेद है, जब हम वा तव म सीखने
लगते ह, तभी हम इस संसार से चल बसना पड़ता है।
भलाई का माग संसार म सब से अिधक ऊबड़-खाबड़ तथा किठनाइय से पण ू
है। इस माग से चलनेवाल क सफलता आ यजनक है, पर िगर पड़ना कोई
आ यजनक नह । हजार ठोकरे खाते हम च र को ढ़ बनाना है। जीवन
और म ृ यु, शुभ औऱ अशुभ, ान औऱ अ ान का यह िम ण ही माया अथवा
जगत्- पंच कहलाता है। तुम इस जाल के भीतर अन त काल तक सुख
ढूँढ़ते रहो। तु ह उसम सुख के साथ बहत दु:ख तथा अशुभ भी िमलेगा। यह
कहना िक म केवल शुभ ही लँग ू ा, अशुभ नह , िनरा लड़कपन है-यह अस भव
है।
यिद िदल म लगा हो, तो एक महामख ू भी िकसी काम को पण ू कर सकता है।
पर बुि मान मनु य वह है, जो येक काय को अपनी िच के काय म
प रणत कर सकता है। कोई भी काम छोटा नह है।
केवल वे ही काय करते ह, िजनका िव ास है िक य काय े म काय
आर भ करते ही सहायता अव य िमलेगी।
ढ़ संक प कर लो िक तुम िकसी दूसरे को नह कोसोगे,िकसी दूसरे को
दोष नह दोगे, पर तुम‘मनु य’बन जाओ, खड़े होओ और अपने आपको दोष
दो, वयं क ओर ही यान दो, - यही जीवन का पहला पाठ है, यह स ची
बात है।
यान रखो, संघष ही इस जीवन म सब से बड़ा लाभ है। इसी म से हम
गुजरना पड़ता है – यिद वग का कोई रा ता है, तो वह नरक होकर जाता
है। नरक से वग - यही सदैव का माग है। जब जीवा मा प रि थित से लड़ता
है औऱ उसक म ृ यु होती है, जब माग म हजार बार उसक म ृ यु होने पर भी
वह िनडर होकर बार बार संघष करता हआ आगे बढ़ता है, तभी वह महान्
शि शाली बन जाता है औऱ उस आदश पर हँसता है िजसके िलए उसने संघष
िकया था य िक वह देखता है िक वह उस आदश से कह े है। म - मेरी
आ मा वयं ही – अि तम ल य – व प है, औऱ कोई नह । इस संसार म
ऐसी कौन सी व तु है िजसक तुलना मेरी आ मा के साथ क जा सके।

।। समा ।।

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