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आत्म-ग्लानि पै दा हो जाने पर मनु ष्य अपने आपको पापी, दुष्ट समझकर धिक्कारता रहता
है । वह सामाजिक जीवन में उत्तर कर कोई काम करने में एक प्रकार का भय और घबराहट
सी महसूस करता है । अब जो आत्म-ग्लानि के आधिक्य से दबा हुआ है चाहे कितना ही
योग्य, अनु भवी, जानकार क्यों न हो, वह प्रगति के पथ पर आगे न बढ़ सकेगा क्योंकि जो
आगे कदम रखने से पूर्व ही अपने आपको पापी मान बै ठा है , दस ू रों के साथ चार आँ खें करने
की जिसमें हिम्मत नहीं है , सं कोच, शं कायें , भय जिसे कुछ करने नहीं दे ते, ऐसा व्यक्ति किसी
भी क्षे तर् में सफल हो सके यह सम्भव नहीं। अत्यधिक पश्चाताप अथवा आत्म-ग्लानि के
कारण हम कई बार बिना अपराध के भी अपने आपको अपराधी मान बै ठते हैं । कभी बचपन
में या किशोरावस्था में कोई भूल हो बै ठी हो, कोई बु री आदत पड़ गई हो, कोई बु रा काम बन
पड़ा हो उसे जीवन भर रटते रहना अपने को कोसते रहना, स्वयं को बु रा समझ बै ठना
सचमु च ऐसी ही भूल है । ऐसी स्थिति में रास्ते में , बाजार में चलते हुए भी मनु ष्य यह
अनु भव करने लगता है कि दस ू रे लोग उसकी बु राइयों को दे ख रहे है और उसे बु रा समझ रहे
हैं । इस भय के कारण वह दस ू रों से नीची निगाह रखता है । कुछ बोलने से पूर्व हड़बड़ा जाता
है ।
इस तरह के लोग जीवन भर आत्म-ग्लानि में डूबे रहते है । उनके जीवन की महत्वपूर्ण
सम्भावनायें नष्ट हो जाती हैं । उसकी महत्वाकां क्षायें , आशा, अभिलाषायें , उमं गें असमय ही
मु रझा जाती हैं । ऐसे होनहार, प्रतिभावान, जीवट सम्पन्न यु वकों की सं ख्या कम नहीं है
जो आत्म-ग्लानि के शिकार होकर अपने जीवन को नष्ट कर ले ते हैं । किसी सामान्य-सी
भूल को बहुत महत्व दे कर जीवन भर लज्जा, शोक में डूबे रहकर अपराधी की तरह मानसिक
परे शानी में डूबे रहते हैं । अपनी अबोध अवस्था में या अज्ञानवश किये गये किसी पाप पर
जीवन भर पश्चाताप करते रहते हैं , दुःखी बने रहते हैं ।
आप से जो कुछ बु राई हो चु की उसे भूल जाइये । मै न्सफील्ड ने कहा है - “आप इसे अपनी
जिं दगी का नियम बना लें कि बीती हुई बातों को भूल जाएँ गे, कभी पश्चाताप न करें गे ।
बिगड़ी हुई बातों को याद करना कीचड़ से सने रहने के समान है ।” भूतकाल में हमसे जो
कुछ भी बु राई हो गई हो उसे “बीती ताहि बिसार दे ” के अनु सार भु लाने में ही कल्याण है ।
आत्म-ग्लानि को बढ़ने न दें , अन्यथा यह एक ऐसी मानसिक दुर्बलता के रूप में जम जायगी
जो कुछ भी न करने दे गी। कोई भी बु राई क्यों न हो गई हो उसे अनावश्यक तूल न दीजिए।
कीचड़ में गिर पड़ने पर उठकर उसे धो ले ना ही श्रेयष्कर है । कीचड़ में पड़े रहने का
पश्चाताप करने में लग जाना, उसी का रोना रोते रहना ठीक नहीं। पूर्णतः पाक-साफ, दध ू
का धु ला हुआ कोई नहीं होता। भूलें, बु राइयाँ , पाप बन जाना मनु ष्य की स्वाभाविक
कमजोरी है । प्रत्ये क मनु ष्य पै दा होने से मरने तक कोई न कोई बु रा काम कर ही बै ठता है ।
गिर कर उठने में , बु राई से भलाई की ओर आगे बढ़ने में ही मनु ष्य की श्रेष्ठता है । अपने
पापों पर पश्चाताप कर आत्मग्लानि में न डूबें। याद रखिये प्रत्ये क बहुत से दस ू रे व्यक्ति
भी इन्हीं बु राइयों के मार्ग से गु जरे हैं और जीवन में बहुत आगे बढ़े हैं ।
दुनिया से भागने में या एकान्त की शरण ले ने से भी काम नहीं चले गा। सामाजिक जीवन में
खु लकर भाग ले ने पर ही आत्म-ग्लानि की भावना से पीछा छुड़ाया जा सकता है । किन्हीं
सभा-समितियों में जाने , बोलने , गाने -बजाने , खे लने -कू दने के अवसर मिलें तो उनका बे धड़क
होकर उपयोग करना चाहिए। कदाचित प्रारम्भ में कई बार हँ सी भी हो तो उससे न घबरा
कर सदै व ऐसे अवसरों की तलाश में रहना चाहिए और अपना अभ्यास जारी रखना
चाहिए। आप दे खेंगे कि एक दिन आप में लोगों को प्रभावित करने की महत्वपूर्ण क्षमता
पै दा हो जाएगी, जिसकी सम्भावना ही प्रारम्भ में झें प जाने या घबरा जाने से नष्ट हो
सकती है ।
अपने शरीर को सदा स्वस्थ और तरो-ताजा रखें । इससे मस्तिष्क भी स्वस्थ रहे गा। और आप
अनावश्यक सोच विचार, पश्चाताप से बचे रहें गे । कमजोर, बीमार जीर्ण रोगी व्यक्तियों में
आत्म-ग्लानि की भावना अधिक होती है , उन्हें अपने आप से असन्तोष एवं घृ णा रहती है ।
इसका कारण उनका मनः सं स्थान दुर्बल हो जाना है । प्रकृति की गोद में , खु ले वातावरण में ,
खु ले आकाश की छाया में खूब घूमें, सं सार के सौंदर्य एवं सरलता पर विचार करके प्रसन्न
होते रहें ।
लज्जा, भय, सं कोच को दरू करें , पु राने पापों को भूल जायें । मन में आत्म-विश्वास, साहस
की भावनाओं को जगायें , आत्म-ग्लानि से बचने के लिए। स्मरण रहे कि इससे मनु ष्य की
मौलिक शक्तियों और क्षमताओं का बहुत ज्यादा ह्रास होता है अतः सफल जीवन के लिए
आत्म-ग्लानि से बचें ।