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MANUSHYTA
MANUSHYTA
मूलभाव - इस किवता म� मनु� के कुछ िवशेष ल�णों को रे खां िकत िकया गया है | संसार के अ� प्रिणयों की तुलना म�
मनु� म� चेतना-श�� की प्रबलता होती है| इन मानवीय अनुभूितयों के कारण ही वह दू सरों के प्रित संवेिदत होता है | मानव
एक सामािजक प्राणी है| इसिलए वह अपना ही नहीं, दू सरों का भी खयाल रखता है | यह मनु� का मूल �भाव है िक वह
जो भी काय� करता है, उसम� दू सरों का भी लाभ होता है , वह दू सरों की सहायता से काय� करता है | वही मनु � महान
कहलाएगा जो अपने से पहले दू सरों की भलाई की िचंता करता हो| ऐसा मनु� ही इस संसार म� अमर हो जाता है | उसकी
मृ�ु सुमृ�ु हो जाती है|
�ा�ा1 -: किव कहता है िक हम� यह जान लेना चािहए िक मृ�ु का होना िनि�त है , हम� मृ�ु से नहीं डरना चािहए। किव
कहता है िक हम� कुछ ऐसा करना चािहए िक लोग हम� मरने के बाद भी याद रखे। जो मनु� दू सरों के िलए कुछ भी ना कर
सक�, उनका जीना और मरना दोनों बेकार है । मर कर भी वह मनु� कभी नहीं मरता जो अपने िलए नहीं दू सरों के िलए
जीता है , �ोंिक अपने िलए तो जानवर भी जीते ह� । किव के अनुसार मनु� वही है जो दू सरे मनु�ों के िलए मरे अथा� त जो
मनु� दू सरों की िचंता करे वही असली मनु� कहलाता है ।
�ा�ा 2 -: किव कहता है िक जो मनु� अपने पूरे जीवन म� दू सरों की िचंता करता है उस महान ��� की कथा का गुण
गान सर�ती अथा�त पु�कों म� िकया जाता है। पूरी धरती उस महान ��� की आभारी रहती है । उस ��� की बातचीत
हमेशा जीिवत ��� की तरह की जाती है और पूरी सृि� उसकी पूजा करती है । किव कहता है िक जो ��� पुरे संसार को
अख� भाव और भाईचारे की भावना म� बाँ धता है वह ��� सही मायने म� मनु� कहलाने यो� होता है ।
�ा�ा 4 -: किव कहता है िक मनु�ों के मन म� दया व क�णा(सहानुभूित) का भाव होना चािहए ,यही सबसे बड़ा धन है ।
िजससे पुरी दु िनया को अपने वश म� िकया जा सकता है| �यं ई�र भी ऐसे लोगों के साथ रहते ह� । इसका सबसे बड़ा
उदाहरण महा�ा बु� ह� िजनसे लोगों का दु ः ख नहीं दे खा गया तो वे लोक क�ाण के िलए दु िनया के िनयमों के िव�� चले
गए। इसके िलए �ा पूरा संसार उनके सामने नहीं झुकता अथा� त उनके दया भाव व परोपकार के कारण आज भी उनको
याद िकया जाता है और उनकी पूजा की जाती है । महान उस को कहा जाता है जो परोपकार करता है वही मनु� ,मनु�
कहलाता है जो मनु�ों के िलए जीता है और मरता है ।
�ा�ा 5 -: किव कहता है िक भूल कर भी कभी संपि� या यश पर घमंड नहीं करना चािहए। इस बात पर कभी गव� नहीं
करना चािहए िक हमारे साथ हमारे अपनों का साथ है �ोंिक किव कहता है िक यहाँ कौन सा ��� अनाथ है ,उस ई�र
का साथ सब के साथ है। वह ब�त दयावान है उसका हाथ सबके ऊपर रहता है । किव कहता है िक वह ��� भा�हीन है
जो इस प्रकार का उतावलापन रखता है �ोंिक मनु� वही ��� कहलाता है जो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर सोचता
है।
6.अनंत अंत�र� म�------------------------मनु� के िलए मरे |
�ा�ा 6 -: किव कहता है िक उस कभी न समा� होने वाले आकाश म� असं � दे वता खड़े ह� , जो परोपकारी व दयालु
मनु�ों का सामने से खड़े होकर अपनी भुजाओं को फैलाकर �ागत करते ह� । इसिलए दू सरों का सहारा बनो और सभी को
साथ म� लेकर आगे बढ़ो। किव कहता है िक सभी कलं क रिहत हो कर दे वताओं की गोद म� बैठो अथा� त यिद कोई बुरा काम
नहीं करोगे तो दे वता तु �े अपनी गोद म� ले ल�गे। अपने मतलब के िलए नहीं जीना चािहए अपना और दू सरों का क�ाण व
उ�ार करना चािहए �ोंिक इस मरणशील संसार म� मनु� वही है जो मनु�ों का क�ाण करे व परोपकार करे ।
�ा�ा 8 -: किव कहता है िक मनु�ों को अपनी इ�ा से चुने �ए माग� म� ख़ुशी ख़ुशी चलना चािहए,रा�े म� कोई भी संकट
या बाधाएं आये, उ�� हटाते चले जाना चािहए। मनु�ों को यह �ान रखना चािहए िक आपसी समझ न िबगड़े और भेद भाव
न बड़े । िबना िकसी तक� िवतक� के सभी को एक साथ ले कर आगे बढ़ना चािहए तभी यह संभव होगा िक मनु� दू सरों की
उ�ित और क�ाण के साथ अपनी समृ�� भी कायम करे |
प्र�ो�र:
उ�र : जो ��� प्राणी मात्र से प्रेम की भावना रखता है तथा िजसका जीवन परोपकार और मनु�ता की से वा म� �तीत
होता है वही ��� उदार कहलाता है |
3. किव ने दधीिच, कण� आिद महान ���यों का उदाहरण दे कर मनु�ता के िलए �ा संदेश िदया है?
उ�र : किव ने दधीिच ,कण� आिद महान ���यों का उदाहरण दे कर मनु� को उदार होने तथा परोपकारी होने का संदेश
िदया है इस नाशवान शरीर के प्रित मोह को �ागते �ए आव�कता पड़ने पर मानवता के क�ाण के िलए प्राणों का
बिलदान करने से भी पीछे नहीं हटना चािहए|
4. किव ने िकन पं��यों म� यह �� िकया है िक हम� गव� रिहत जीवन �तीत करना चािहए?
उ�र : किव ने िन� पं��यों �ारा इस भाव को �� करना चाहता है-
उ�र : इस पं�� का संबंध भाईचारे की भावना से है किव वसुधैव कुटुं बकम की भावना पर बल दे रहा है| मनु� मात्र बं धु
है का अथ� है िक प्र�ेक मनु� एक दू सरे से आ�ीय �र�े से जुड़ा �आ है | वह �र�ा मानवता का है ,बंधु� का है | पुराणों
,शा�ों और अनेक पिवत्र ग्रंथों म� हम सबका पूव�ज ई�र को बताया गया है हम उसी के अंश है अथा� त हम सब एक ही िपता
की संतान ह� , इस नाते हम सब एक दू सरे के बंधु अथा� त भाई ही �ए | तो हम� तो एक दू सरे की मदद करनी चािहए |कम�
के कारण शरीर के भेद तो हो सकते ह� परं तु मूल �प से हम एक ही है |
उ�र : ��� को मानव सेवा करते �ए संपूण� िव� म� शां ित और भाईचारे की भावना का प्रसार करते �ए जीवन �तीत
करना चािहए | अपने ���गत �ाथ� को �ाग कर दू सरों के िहत का िचंतन करना चािहए| धन संपि� को लेकर कभी भी
अहंकार नहीं करना चािहए| जो दू सरों की सहायता करते ह� ई�र हमेशा उनके सहायक होते ह� | किठनाइयों का सामना
करते �ए उिचत माग� की ओर बढ़ना चािहए|