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मनुष्यता

मनुष्यता की पाठ व्याख्या

विचार लो कक मर्तयय हो न मृर्तयु से डरो कभी,


मरो, परं तु यों मरो कक याद जो करें सभी।
हुई न यों सुमर्तृ यु तो िृथा मरे , िृथा जजए,
मारा नहीं िही कक जो जजया न आपके ललए।
िही पशु- प्रिृलत है कक आप आप ही चरे ,
िही मनुष्य है कक जो मनुष्य के ललए मरे ।।
शब्दाथय
मर्तयय – मृर्तयु
यों – ऐसे
िृथा – बेकार
प्रिृलन – प्रिृलत
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि बताना चाहता है कक मनुष्यों को कैसा जीिन जीना चाकहए।
व्याख्या -: कवि कहता है कक हमें यह जान लेना चाकहए कक मृर्तयु का होना लनजित है , हमें मृर्तयु से
नहीं डरना चाकहए। कवि कहता है कक हमें कुछ ऐसा करना चाकहए कक लोग हमें मरने के बाद भी याद
रखे। जो मनुष्य दस
ू रों के ललए कुछ भी ना कर सकें, उनका जीना और मरना दोनों बेकार है । मर कर
भी िह मनुष्य कभी नहीं मरता जो अपने ललए नहीं दस
ू रों के ललए जीता है , क्योंकक अपने ललए तो
जानिर भी जीते हैं । कवि के अनुसार मनुष्य िही है जो दस
ू रे मनुष्यों के ललए मरे अथायत जो मनुष्य
दस
ू रों की लचंता करे िही असली मनुष्य कहलाता है ।

उसी उदार की कथा सरस्िती बखानती,


उसी उदार से धरा कृ ताथय भाि मानती।
उसी उदार की सदा सजीि कीलतय कूजती;
तथा उसी उदार को समस्त सृवि पूजती।
अखंड आर्तम भाि जो असीम विश्व में भरे ,
िही मनुष्य है कक जो मनुष्य के ललए मरे ।।

शब्दाथय
उदार – महान ,श्रेष्ठ
बखानती – गुण गान करना
धरा – धरती
कृ तघ्न – ऋणी , आभारी
सजीि – जीवित
कूजती – करना
अखण्ड – जजसके टु कडे न ककए जा सकें
असीम – पूरा
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि बताना चाहता है कक जो मनुष्य दस
ू रों के ललए जीते हैं उनका गुणगान
युगों – युगों तक ककया जाता है ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक जो मनुष्य अपने पूरे जीिन में दस
ू रों की लचंता करता है उस महान
व्यवि की कथा का गुण गान सरस्िती अथायत पुस्तकों में ककया जाता है । पूरी धरती उस महान व्यवि
की आभारी रहती है । उस व्यवि की बातचीत हमेशा जीवित व्यवि की तरह की जाती है और पूरी सृवि
उसकी पूजा करती है । कवि कहता है कक जो व्यवि पुरे संसार को अखण्ड भाि और भाईचारे की
भािना में बााँधता है िह व्यवि सही मायने में मनुष्य कहलाने योग्य होता है ।

क्षुधातय रं लतदे ि ने कदया करस्थ थाल भी,


तथा दधीलच ने कदया पराथय अजस्थजाल भी।
उशीनर जक्षतीश ने स्िमांस दान भी ककया,
सहर्य िीर कणय ने शरीर-चमय भी कदया।
अलनर्तय दे ह के ललए अनाकद जीि क्या डरे ?
िही मनुष्य है कक जो मनुष्य के ललए मरे ।।

शब्दाथय
क्षुधातय – भूख से परे शान
करस्थ – हाथ की
पराथय – पूरा
अजस्थजाल – हजडडयों का समूह
उशीनर जक्षतीश – उशीनर दे श के राजा लशवब
सहर्य – खुशी से
शरीर चमय – शरीर का किच
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि ने महान पुरुर्ों के उदाहरण कदए हैं जजनकी महानता के कारण उन्हें याद
ककया जाता है ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक पौराजणक कथाएं ऐसे व्यविओं के उदाहरणों से भरी पडी हैं जजन्होंने
अपना पूरा जीिन दस
ू रों के ललए र्तयाग कदया जजस कारण उन्हें आज तक याद ककया जाता है । भूख से
परे शान रलतदे ि ने अपने हाथ की आखरी थाली भी दान कर दी थी और महवर्य दधीलच ने तो अपने
पूरे शरीर की हजडडयााँ िज्र बनाने के ललए दान कर दी थी। उशीनर दे श के राजा लशवब ने कबूतर की
जान बचाने के ललए अपना पूरा मांस दान कर कदया था। िीर कणय ने अपनी खुशी से अपने शरीर का
किच दान कर कदया था। कवि कहना चाहता है कक मनुष्य इस नश्वर शरीर के ललए क्यों डरता है
क्योंकक मनुष्य िही कहलाता है जो दस
ू रों के ललए अपने आप को र्तयाग दे ता है ।

सहानुभूलत चाकहए, महाविभूलत है यही;


िशीकृ ता सदै ि है बनी हुई स्ियं मही।
विरुद्धभाि बुद्ध का दया-प्रिाह में बहा,
विनीत लोकिगय क्या न सामने झुका रहा ?
अहा ! िही उदार है परोपकार जो करे ,
िही मनुष्य है कक जो मनुष्य के ललए मरे ।।

शब्दाथय
सहानुभूलत – दया,करुणा
महाविभूलत – सब से बडी सम्पलत
िशीकृ ता – िश में करने िाला
मही – ईश्वर
विरुद्धिाद – जखलाफ होना
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि ने महार्तमा बुद्ध का उदाहरण दे ते हुए दया ,करुणा को सबसे बडा धन
बताया है ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक मनुष्यों के मन में दया ि करुणा का भाि होना चाकहए ,यही सबसे बडा
धन है । स्ियं ईश्वर भी ऐसे लोगों के साथ रहते हैं । इसका सबसे बडा उदाहरण महार्तमा बुद्ध हैं जजनसे
लोगों का दुःु ख नहीं दे खा गया तो िे लोक कल्याण के ललए दलु नया के लनयमों के विरुद्ध चले गए।
इसके ललए क्या पूरा संसार उनके सामने नहीं झुकता अथायत उनके दया भाि ि परोपकार के कारण
आज भी उनको याद ककया जाता है और उनकी पूजा की जाती है । महान उस को कहा जाता है जो
परोपकार करता है िही मनुष्य ,मनुष्य कहलाता है जो मनुष्यों के ललए जीता है और मरता है ।
रहो न भूल के कभी मदांघ तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गिय लचत्त में।
अनाथ कौन है यहााँ ? विलोकनाथ साथ हैं ,
दयालु दीन बन्धु के बडे विशाल हाथ हैं ।
अतीि भाग्यहीन है अधीर भाि जो करे ,
िही मनुष्य है कक जो मनुष्य के ललए मरे ।।

शब्दाथय
मदांघ – घमण्ड
तुच्छ – बेकार
सनाथ – जजसके पास अपनों का साथ हो
अनाथ – जजसका कोई न हो
लचत्त – मन में
विलोकनाथ – ईश्वर
दीनबंधु – ईश्वर
अधीर – उतािलापन
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि कहता है कक सम्पलत पर कभी घमण्ड नहीं करना चाकहए और ककसी को
अनाथ नहीं समझना चाकहए क्योंकक ईश्वर सबके साथ हैं ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक भूल कर भी कभी संपवत्त या यश पर घमंड नहीं करना चाकहए। इस बात
पर कभी गिय नहीं करना चाकहए कक हमारे साथ हमारे अपनों का साथ है क्योंकक कवि कहता है कक
यहााँ कौन सा व्यवि अनाथ है ,उस ईश्वर का साथ सब के साथ है । िह बहुत दयािान है उसका हाथ
सबके ऊपर रहता है । कवि कहता है कक िह व्यवि भाग्यहीन है जो इस प्रकार का उतािलापन रखता
है क्योंकक मनुष्य िही व्यवि कहलाता है जो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर सोचता है ।

अनंत अंतररक्ष में अनंत दे ि हैं खडे ,


समक्ष ही स्िबाहु जो बढा रहे बडे -बडे ।
परस्परािलंब से उठो तथा बढो सभी,
अभी अमर्तयय-अंक में अपंक हो चढो सभी।
रहो न यां कक एक से न काम और का सरे ,
िही मनुष्य है कक जो मनुष्य के ललए मरे ।।
शब्दाथय
अनंत – जजसका कोई अंत न हो
अंतररक्ष – आकाश
समक्ष – सामने
परस्परािलंब – एक दस
ू रे का सहारा
अमर्तयय -अंक — दे िता की गोद
अपंक – कलंक रकहत
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि कहता है कक कलंक रकहत रहने ि दस
ू रों का सहारा बनने िाले मिर्यों का
दे िता भी स्िागत करते हैं ।

व्याख्या -: कवि कहता है कक उस कभी न समाप्त होने िाले आकाश में असंख्य दे िता खडे हैं , जो
परोपकारी ि दयालु मनुष्यों का सामने से खडे होकर अपनी भुजाओं को फैलाकर स्िागत करते हैं ।
इसललए दस
ू रों का सहारा बनो और सभी को साथ में लेकर आगे बडो। कवि कहता है कक सभी कलंक
रकहत हो कर दे िताओं की गोद में बैठो अथायत यकद कोई बुरा काम नहीं करोगे तो दे िता तुम्हे अपनी
गोद में ले लेंगे। अपने मतलब के ललए नहीं जीना चाकहए अपना और दस
ू रों का कल्याण ि उद्धार
करना चाकहए क्योंकक इस मरणशील संसार में मनुष्य िही है जो मनुष्यों का कल्याण करे ि परोपकार
करे ।
‘मनुष्य मािा बन्धु हैं ’ यही बडा वििेक है ,
पुराणपुरुर् स्ियंभू वपता प्रलसद्ध एक है ।
फलानुसार कमय के अिश्य बाह्य भेद हैं ,
परं तु अंतरै क्य में प्रमाणभूत िेद हैं ।
अनथय है कक बन्धु ही न बन्धु की व्यथा हरे ,
िही मनुष्य है कक जो मनुष्य के ललए मरे ।।
शब्दाथय
बन्धु – भाई बंधु
वििेक – समझ
स्ियंभू – परमार्तमा,स्ियं उर्तपन्न होने िाला
अंतरै क्य – आर्तमा की एकत, अंतुःकरण की एकता
प्रमाणभूत – साक्षी
व्यथा – दुःु ख,कि
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि कहता है कक हम सब एक ईश्वर की संतान हैं । अतुः हम सभी मनुष्य एक
– दस
ू रे के भाई – बन्धु हैं ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक प्रर्तयेक मनुष्य एक दस
ू रे के भाई – बन्धु हैं ।यह सबसे बडी समझ है ।
पुराणों में जजसे स्ियं उर्तपन्न पुरुर् मना गया है , िह परमार्तमा या ईश्वर हम सभी का वपता है , अथायत
सभी मनुष्य उस एक ईश्वर की संतान हैं । बाहरी कारणों के फल अनुसार प्रर्तयेक मनुष्य के कमय भले
ही अलग अलग हों परन्तु हमारे िेद इस बात के साक्षी है कक सभी की आर्तमा एक है । कवि कहता है
कक यकद भाई ही भाई के दुःु ख ि किों का नाश नहीं करे गा तो उसका जीना व्यथय है क्योंकक मनुष्य
िही कहलाता है जो बुरे समय में दस
ू रे मनुष्यों के काम आता है ।
चलो अभीि मागय में सहर्य खेलते हुए,

विपवत्त,विघ्न जो पडें उन्हें ढकेलते हुए।


घटे न हे लमेल हााँ, बढे न लभन्नता कभी,
अतकय एक पंथ के सतकय पंथ हों सभी।
तभी समथय भाि है कक तारता हुआ तरे ,
िही मनुष्य है कक जो मनुष्य के ललए मरे ।।

अभीि – इजच्छत
मागय – रास्ता
सहर्य -अपनी खुशी से
विपवत्त,विघ्न – संकट ,बाधाएाँ
अतकय – तकय से परे
सतकय – सािधान यािी
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि कहता है कक यकद हम खुशी से ,सारे किों को हटते हुए ,भेदभाि रकहत
रहें गे तभी संभि है की समाज की उन्नलत होगी।
व्याख्या -: कवि कहता है कक मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मागय में खुशी खुशी चलना
चाकहए,रास्ते में कोई भी संकट या बाधाएं आये, उन्हें हटाते चले जाना चाकहए। मनुष्यों को यह ध्यान
रखना चाकहए कक आपसी समझ न वबगडे और भेद भाि न बडे । वबना ककसी तकय वितकय के सभी को
एक साथ ले कर आगे बढना चाकहए तभी यह संभि होगा कक मनुष्य दस
ू रों की उन्नलत और कल्याण
के साथ अपनी समृवद्ध भी कायम करे

प्रश्न 1 – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने क्यों कहा है कक हमें मृर्तयु से नहीं डरना चाकहए?
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने कहा है कक मृर्तयु से नहीं डरना चाकहए क्योंकक मृर्तयु तो लनजित
है इसे कोई भी टाल नहीं सकता। जजसने इस धरती पर जन्म ललया है उसे एक न एक कदन मरना ही
है ।

प्रश्न 2 – कैसे मनुष्यों का जीना और मरना दोनों बेकार है और क्यों?


उत्तर – जो मनुष्य दस
ू रों के ललए कुछ भी ना कर सकें, उनका जीना और मरना दोनों बेकार है । िह
मनुष्य मर कर भी कभी नहीं मरता जो अपने ललए नहीं दस
ू रों के ललए जीता है , क्योंकक अपने ललए तो
जानिर भी जीते हैं । कवि के अनुसार मनुष्य िही है जो दस
ू रे मनुष्यों के ललए मरे अथायत जो मनुष्य
दस
ू रों की लचंता करे िही असली मनुष्य कहलाता है ।

प्रश्न 3 – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर असली या सच्चा मनुष्य कौन है ?


उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर असली मनुष्य िही है जो दस
ू रों के ललए जीना ि मरना सीख
ले। मनुष्य िही कहलाता है जो दस
ू रों की लचंता करे । सच्चा मनुष्य िही है जो र्तयाग का भाि जान ले।
अतुः हमें दस
ू रों का परोपकार ि कल्याण करना चाकहए। सभी मनुष्य भाई – बंधु हैं और मनुष्य िही है
जो दुःु ख में दस
ू रे मनुष्यों के काम आये।
जो मनुष्य आपसी समझ को बनाये रखता है और भेदभाि को बढािा नहीं दे ता , ऐसी सोच िाला
मनुष्य ही अपना और दस
ू रों का कल्याण और उद्धार कर सकता है । कहने का तार्तपयय यह है कक जो
अपने स्िाथय के ललए नहीं बजल्क सभी के कल्याण के ललए सोचता है िही मनुष्य सच्चा मनुष्य
कहलाता है ।
प्रश्न 4 – मनुष्य को उदार क्यों बनना चाकहए?
उत्तर – मनुष्य को सदा उदार बनना चाकहए क्योंकक उदार मनुष्यों का हर जगह गुण गान होता है ।
उदार व्यवि हर जगह सम्मान पाता है । पूरी धरती उस महान व्यवि की आभारी रहती है । उस व्यवि
की बातचीत उसके मरने के बाद भी हमेशा जीवित व्यवि की तरह की जाती है और पूरी सृवि उसकी
पूजा करती है ।
प्रश्न 5 – पुराणों में ककन लोगों के उदाहरण हैं ?
उत्तर – पुराणों में उन लोगों के बहुत उदाहरण हैं । जजन्होंने अपना पूरा जीिन दस
ू रों के ललए र्तयाग कदया
जजस कारण उन्हें आज तक याद ककया जाता है । भूख से परे शान रलतदे ि ने अपने हाथ की आखरी
थाली भी दान कर दी थी और महवर्य दधीलच ने तो अपने पूरे शरीर की हजडडयााँ िज्र बनाने के ललए
दान कर दी थी। उशीनर दे श के राजा लशवब ने कबूतर की जान बचाने के ललए अपना पूरा मांस दान
कर कदया था। िीर कणय ने अपनी खुशी से अपने शरीर का किच दान कर कदया था।
प्रश्न 6 – मनुष्यों के मन में कैसे भाि होने चाकहए?
उत्तर – मनुष्यों के मन में दया ि करुणा का भाि होना चाकहए ,यही सबसे बडा धन है । स्ियं ईश्वर भी
ऐसे लोगों के साथ रहते हैं । इसका सबसे बडा उदाहरण महार्तमा बुद्ध हैं जजनसे लोगों का दुःु ख नहीं
दे खा गया तो िे लोक कल्याण के ललए दलु नया के लनयमों के विरुद्ध चले गए। इसके ललए क्या पूरा
संसार उनके सामने नहीं झुकता अथायत उनके दया भाि ि परोपकार के कारण आज भी उनको याद
ककया जाता है और उनकी पूजा की जाती है ।
प्रश्न 7 – कवि के अनुसार कभी संपवत्त या यश पर घमंड क्यों नहीं करना चाकहए?
उत्तर – कवि के अनुसार भूल कर भी कभी संपवत्त या यश पर घमंड नहीं करना चाकहए। इस बात पर
कभी गिय नहीं करना चाकहए कक हमारे साथ हमारे अपनों का साथ है क्योंकक कवि कहता है कक इस
धरती और कोई भी व्यवि अनाथ नहीं है ,उस ईश्वर का साथ सब के साथ है । िह बहुत दयािान है
और उसका हाथ सबके ऊपर रहता है ।
कवि के अनुसार िह व्यवि भाग्यहीन है जो इस प्रकार का उतािलापन रखता है क्योंकक मनुष्य िही
व्यवि कहलाता है जो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर सोचता है । क्योंकक हम सब उस एक ईश्वर की
संतान हैं । हमें भेदभाि से ऊपर उठ कर सोचना चाकहए।
प्रश्न 8 – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर समझाइए कक दे िता कैसे मनुष्यों का स्िागत करते हैं ?
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर उस कभी न समाप्त होने िाले आकाश में असंख्य दे िता खडे
हैं , जो परोपकारी ि दयालु मनुष्यों का सामने से खडे होकर अपनी भुजाओं को फैलाकर स्िागत करते
हैं । इसललए कविता में बताया गया है कक दस
ू रों का सहारा बनो और सभी को साथ में लेकर आगे
बडो।
कवि कहता है कक सभी कलंक रकहत हो कर दे िताओं की गोद में बैठो अथायत यकद कोई बुरा काम नहीं
करोगे तो दे िता तुम्हे अपनी गोद में ले लेंगे। अपने मतलब के ललए नहीं जीना चाकहए अपना और
दस
ू रों का कल्याण ि उद्धार करना चाकहए क्योंकक इस मरणशील संसार में मनुष्य िही है जो मनुष्यों
का कल्याण करे ि परोपकार करे ।
प्रश्न 9 – सुमर्तृ यु ककसे कहते हैं ?
उत्तर – मानि जीिन तभी साथयक होता है जब िह दस
ू रों के काम आये और ऐसे इं सान की मृर्तयु को
भी सुमर्तृ यु माना जाता है जो मानिता की राह में परोपकार करते हुए आती है । ऐसे मनुष्य को भी
लोग उसकी मृर्तयु के पिात श्रद्धा से याद करते हैं ।
प्रश्न 10 – इस कविता में महापुरुर्ों जैसे कणय, दधीलच, लशवबने मनुष्यता को क्या सन्दे श कदया है ?
उत्तर – दधीलच, कणय, सीबी आकद महान व्यविओं ने ‘मनुष्यता ‘ के ललए यह सन्दे श कदया है कक
परोपकार करने िाला ही असली मनुष्य कहलाने योग्य होता है । मानिता की रक्षा के ललए दधीलच ने
अपने शरीर की सारी अजस्थयां दान कर दी थी, कणय ने अपनी जान की परिाह ककये वबना अपना किच
दे कदया था जजस कारण उन्हें आज तक याद ककया जाता है । कवि इन उदाहरणों के द्वारा यह समझाना
चाहता है कक परोपकार ही सच्ची मनुष्यता है ।
प्रश्न 11 – यह कविता व्यवि को ककस प्रकार जीिन जीने की प्रेरणा दे ता है ?
उत्तर – हमें दस
ू रों के ललए कुछ ऐसे काम करने चाकहए कक मरने के बाद भी लोग हमें याद रखें। इं सान
को आपसी भाईचारे से काम करना चाकहए। मानि जीिन तभी साथयक होता है जब िह दस
ू रों के काम
आए।
प्रश्न 12 – इस कविता का क्या सन्दे श है ?
उत्तर – इस कविता के माध्यम से कवि हमें मानिता, सद्भािना, भाईचारा, उदारता, करुणा और एकता का
सन्दे श दे ते हैं । कवि कहना चाहते हैं की हर मनुष्य पूरे संसार में अपनेपन की अनुभूलत करें । िह
जरूरतमंदों के ललए बडे से बडा र्तयाग करने में भी पीछे न हटे । उनके ललए करुणा का भाि जगाये| िह
अलभमान, अधीरता और लालच का र्तयाग करें । एक दस
ू रे का साथ दे कर दे िर्ति को प्राप्त करें ।
िह सुख का जीिन जजए और मेलजोल बढाने का प्रयास करें । कवि ने प्रेरणा लेने के ललए रलतदे ि,
दधीलच, सीबी, कणय और कई महानुभािों के उदाहरण दे कर उनके अतुल्य र्तयाग के बारे में बताया है ।
और हमें भी र्तयाग और परोपकार के ललए प्रेररत ककया है ।
प्रश्न 13 – “हमें गियरकहत जीिन जीना चाकहए” मनुष्यता कविता के आधार पर कवि द्वारा कदए गए
तकों से स्पि कीजजए।
उत्तर – मनुष्यता कविता में कवि ने गियरकहत जीिन जीने की बात कही है और इसके ललए कवि ने
कई तकय कदए हैं । कवि के अनुसार पहला तकय अर्तयलधक धनिान होने पर भी मनुष्य को कभी घमंड
नहीं करना चाकहए। दस
ू रा तकय यह कदया है कक मनुष्य को कभी अपने सनाथ होने पर गिय नहीं करना
चाकहए। क्योंकक इस धरती पर कोई भी अनाथ और दररद्र नहीं है । िह ईश्वर सम्पूणय सृवि के नाथ तथा
संरक्षक हैं । िे अपने अपार साधनों से सबकी रक्षा और पालन करने में समथय हैं ।
प्रश्न 14- दधीलच, रं लतदे ि और राजा लशवब द्वारा ककए गए मानि कल्याण कायों का उल्लेख कीजजए?
उत्तर – पौराजणक कथाएं ऐसे व्यविओं के उदाहरणों से भरी पडी हैं जजन्होंने अपना पूरा जीिन दस
ू रों के
सुख और मानि कल्याण ललए र्तयाग कदया , जजस कारण उन्हें आज तक याद ककया जाता है । स्ियं
भूख से परे शान ही होने पर भी रलतदे ि ने अपने हाथ की आखरी थाली भी भूखे लभक्षुक को दान कर
दी थी और महवर्य दधीलच ने तो अपने पूरे शरीर की हजडडयााँ दे िताओं को िज्र बनाने के ललए दान कर
दी थी , ताकक िे असुरों पर विजय प्राप्त कर सकें। इसी प्रकार उशीनर दे श के राजा लशवब ने भी कबूतर
की जान बचाने के ललए अपना पूरा मांस चील को दान कर कदया था , ताकक उसकी भूख शांत हो सके
और िह कबूतर को न मारे ।
प्रश्न 15 – मनुष्यता कविता के आधार पर मानि जालत के ललए सबसे बडा अनथय क्या है और क्यों?
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के अनुसार मानि जालत के ललए सबसे बडा अनथय एक भाई का दस
ू रे भाई
को कि में दे खते हुए भी उसकी मदद न करना है । क्योंकक सभी मनुष्य आपस में भाई – भाई हैं । इस
सबसे बडा प्रमाण यह है कक सबको जन्म दे ने िाला ईश्वर एक है । पुराणों में भी इस बात के प्रमाण हैं
कक सृवि का रचनाकार िही एक है । इतना जानने के बाद भी कोई मनुष्य दस
ू रे मनुष्य की अथायत ्
अपने भाई की मदद न करे और उसकी दुःु ख – िेदना को दरू न करे तो िह सबसे बडा अनथय हैं । ऐसा
करके मनुष्य अपनी मनुष्यता को कलंककत करता है ।
प्रश्न 16 – कवि द्वारा कविता में राजा रलतदे ि, उशीनर राजा लशवब आकद महानुभािों के उल्लेख से क्या
तार्तपयय है और इनके द्वारा ककए गए कायों से आपको क्या प्रेरणा लमलती है ?
उत्तर – कवि ने हमें प्रेरणा दे ने के ललए रलतदे ि, उशीनर राजा लशवब , कणय और कई महानुभािों के
उदाहरण दे कर उनके अतुल्य र्तयाग के बारे में बताया है । इस कविता के माध्यम से कवि हमें
मानिता , सद्भािना , भाईचारा , उदारता , करुणा और एकता का सन्दे श दे रहे हैं । इस कविता से हमें
प्रेरणा लमलती है कक हर मनुष्य को पूरे संसार में अपनेपन की अनुभूलत करनी चाकहए। हमें जरूरतमंदों
के ललए बडे से बडा र्तयाग करने में भी पीछे नहीं हटना चाकहए। हमें अलभमान , अधीरता और लालच
का र्तयाग करना चाकहए। हमें सुख का जीिन जीना चाकहए और मेलजोल बढाने का प्रयास करना
चाकहए।
प्रश्न 17 – मनुष्यता कविता में कवि ने अलभि मागय ककसे कहा है और क्यों?
उत्तर – मनुष्यता कविता में कवि ने अलभि मागय एक दस
ू रे की बाधाओं को दरू करके आगे बढने को
कहा है । मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मागय में खुशी खुशी चलना चाकहए ,रास्ते में कोई भी
संकट या बाधाएं आये , उन्हें हटाते चले जाना चाकहए। मनुष्यों को यह ध्यान रखना चाकहए कक आपसी
समझ न वबगडे और भेद भाि न बडे । वबना ककसी तकय – वितकय के सभी को एक साथ ले कर आगे
बढना चाकहए तभी यह संभि होगा कक मनुष्य दस
ू रों की उन्नलत और कल्याण के साथ अपनी समृवद्ध
भी कायम करे क्योंकक मनुष्य िही कहलाता है जो अपने से पहले दस
ू रों के किों की लचंता करता है ।
प्रश्न 18 – मनुष्यता कविता में दी गई लसख को आप आधुलनक समय में ककतना महर्तपूणय मानते हैं ?
उत्तर – मनुष्यता कविता हमें सच्चा मनुष्य बनने की राह कदखाती है । मनुष्य को इस कविता द्वारा
सभी मनुष्यों के अपना भाई मानने , उनकी भलाई करने और एकता बनाकर रखने की सीख दी गई
है । कविता के अनुसार सच्चा मनुष्य िही है जो सभी को अपना समझते हुए दस
ू रों की भलाई के ललए
ही जीता और मरता है । िह दस
ू रों के साथ उदारता से रहता है और मानिीय एकता को दृढ करने के
ललए प्रयासरत रहता है । िह खुद उन्नलत के पथ पर चलकर दस
ू रों को भी आगे बढने की प्रेरणा दे ता
है । आधुलनक समय में इस कविता की प्रासंलगकता और भी बढ जाती है क्योंकक आज दलु नया में
स्िाथयिवृ त्त, अहं कार, लोभ, ईष्याय, छल-कपट आकद बढ रहा है जजससे मनुष्य – मनुष्य में दरू ी बढ रही है ।

प्रश्न 19. ‘विचार लो कक मर्तयय हो’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है ? इसे सुमर्तृ यु कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर कवि ने मनुष्य से मर्तयय होने की बात इसललए कही है क्योंकक-

 मानि शरीर नश्वर है । इस संसार में जजसका भी जन्म हुआ उसे एक न एक कदन अिश्य मरना
है ।
 मनुष्य चाहकर भी अपनी मृर्तयु को नहीं टाल सकता है ।

मनुष्य अच्छे -अच्छे कमय करके और दस


ू रों के प्रलत सहानुभूलत कदखाते हुए परोपकार करके अपनी मृर्तयु
को सुमर्तृ यु बना सकता है ।

प्रश्न 20. कवि ककसके जीने और मरने को एक समान बताता है ?


उत्तर- इस नश्वर संसार में हजारों-लाखों लोग प्रलतकदन मरते हैं । इनकी मृर्तयु को लोग थोडे ही कदन बाद
भूल जाते हैं । ये लोग अपने स्िाथय को पूरा करने के ललए ही जीते हैं । उन्हें दस
ू रों के दख
ु -पीडा से कुछ
लेना-दे ना नहीं होता है । दस
ू रों के बारे में न सोचने के कारण ऐसे लोगों की मृर्तयु से कुछ लेना-दे ना
नहीं होता है । आर्तमकेंकद्रत होकर अपनी स्िाथय कहत-साधना में लगे रहने िालों के जीने और मरने को
एक समान बताया है ।
प्रश्न 21. “अखंड आर्तमभाि भरने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर- अखंड आर्तमभाि भरने के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कक लोग एक-दस
ू रे से िैमनस्य,
ईष्र्या, द्वे र् आकद भाि न रखें और सारी दलु नया के लोगों के साथ एकता अखंडता बनाए रखने हे तु सभी
को अपना भाई मानें। प्रायुः लोग जालत-धमय, भार्ा क्षेििाद, संप्रदाय आकद की संकीणयता में फाँसकर
मनुष्य को भाई समझना तो दरू मनुष्य भी नहीं समझते हैं । कवि इसी संकीणयता का र्तयाग करने और
सभी के साथ आर्तमीयता बनाने की बात कर रहा है ।

प्रश्न 22. मनुष्य ककसी अन्य को अनाथ समझने की भूल कब कर बैठता है ?


उत्तर- यह मनुष्य की स्िाभाविक प्रिृवत्त है कक धन आते ही उसके मन में घमंड का भाि आ जाता है ।
िह अहं कार पूणय बातें और आचरण करने लगता है । धन दे खकर कुछ लोग उसकी चाटु काररता करने
लगते हैं । ऐसे में िह धनिान व्यवि खुद को बलशाली समझने लगता है । धन और बल का मेल होते
ही िह अनैलतक आचरण पर उतर आता है । िह दस
ू रों को अपने से कमजोर और अनाथ समझने
लगता है ।

प्रश्न 23. हमें ककसी को अनाथ क्यों नहीं समझना चाकहए?


उत्तर- हमें ककसी को इसललए अनाथ नहीं समझना चाकहए क्योंकक जजस ईश्वर से शवि और बल पाकर
हम स्ियं को सनाथ समझते हुए दस
ू रों को अनाथ समझते हैं िही ईश्वर दस
ू रों की मदद के ललए भी
तैयार रहता है । उसके लंबे हाथ मदद के ललए सदै ि आगे बढे रहते हैं । िह अपनी अपार शवि से सदा
दस
ू रों की मदद के ललए तैयार रहता है , इसललए हमें दस
ू रों को अनाथ नहीं समझना चाकहए।

प्रश्न 24 .उशीनर कौन थे? उनके परोपकार का िणयन कीजजए।


उत्तर- उशीनर गांधार के राजा थे। उन्हें लशवि के नाम से भी जाना जाता है । एक बार जब िे बैठे थे
तभी एक कबूतर बाज से भयभीत होकर लशवि की गोद में आ दब
ु का। इसी बीच बाज लशवि के पास
आकर अपना लशकार िापस मााँगने लगा। जब राजा ने कबूतर को िापस दे ने से मना ककया तो उसने
राजा से कबूतर के िजन के बराबर मााँस मााँगा। राजा ने इसे सहर्य स्िीकार कर ललया। एक कबूतर पर
दया करने के कारण राजा प्रलसद्ध हो गए।

प्रश्न 25. कवि ने महाविभूलत ककसे कहा है और क्यों?


उत्तर- कवि ने मनुष्य की सहनशीलता को महाविभूलत कहा है । इसका कारण यह है कक सहानुभूलत के
कारण मनुष्य दस
ू रों के दख
ु की अनुभूलत करता है और उसे परोपकार करने की प्रेरणा लमलती है । यकद
मनुष्य के भीतर सहानुभूलत न हो तो कोई व्यवि चाहे सुखी रहे या दख
ु ी िह उदासीन रहे गा और िह
परोपकार करने की सोच भी नहीं सकता है ।
प्रश्न 26. अपने ललए जीने िाला कभी मरता नहीं’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर- ‘अपने ललए जीने िाला कभी नहीं मरता’ कवि ने ऐसा इसललए कहा है क्योंकक जो व्यवि
परोपकार करते हैं , दस
ू रों की भलाई में लगे रहते हैं तथा अपने-पराए का भेद ककए वबना दस
ू रों के काम
आते हैं , ऐसे व्यवि अपने कायों के माध्यम से अमर हो जाते हैं । ऐसे लोग मरकर भी दस
ू रों की चचाय
में रहते हैं । ऐसा लगता है कक िे अब भी जीवित हैं ।

प्रश्न 27. कवि ने सफलता पाने के ललए मनुष्य को ककस तरह प्रयास करने के ललए कहा है ?
उत्तर- कवि ने सफलता पाने के ललए मनुष्य को प्रोर्तसाकहत करते हुए कहा है कक मनुष्य तुम अपने
लक्ष्य की ओर कदम बढाओ। तुम्हारी सहायता के ललए अनेक दे िता रूपी मनुष्य खडे हैं । इसके अलािा
तुम परस्पर एक-दस
ू रे की मदद करते हुए उठो और सभी को साथ लेकर बढते चलो। इससे कोई
मंजजल यो लक्ष्य प्राप्त करना ककठन नहीं रह जाएगा।

प्रश्न 28. ‘रहो न यों कक एक से न काम और का सरे ’ के माध्यम से कवि क्या सीख दे ना चाहता है ?
उत्तर- रहो न यों कक एक से न काम और का सरे ’ के माध्यम से कवि मनुष्य को यह सीख दे ना
चाहता है कक हे मनुष्य! तुम इस तरह से स्िाथऔ और आर्तमकेंकद्रत बन मत जजयो कक दस
ू रों के सुख-
दख
ु से कोई लेना-दे ना ही न रह जाए और तुम संिेदनहीनता की पराकाष्ठा छू लो। कवि चाहता है कक
मनुष्य को एक-दस
ू रे को सहारा दे ना चाकहए, मदद करनी चाकहए ताकक उसका रुका काम भी बन जाए।
िह चाहता है कक सभी परोपकारी बन जाएाँ।

प्रश्न 29. ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य के ककस कृ र्तय को अनथय कहा है और क्यों ?
उत्तर- ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य को यह बताने का प्रयास ककया है कक सभी मनुष्य आपस
में ई ई हैं । इस सबसे बडा प्रमाण यह है कक सबको जन्म दे ने िाला ईश्वर एक है । पुराणों में भी इस
बात के प्रमाण हैं कक सृवि का रचनाकार िही एक है । िह सारे जगत का अजन्मा वपता है । कफर
मनुष्य-मनुष्य में थोडा-बहुत जो भेद है । िह उसके अपने कमों के कारण है परं तु एक ही ईश्वर या
आर्तमा का अंश उनमें समाए होने के कारण सभी एक हैं । इतना जानने के बाद भी कोई मनुष्य दस
ू रे
मनुष्य की अथायत ् अपने भाई की मदद न करे और उसकी व्यथा दरू न करे तो िह सबसे बडे अनथय
हैं । इसका कारण यह है कक ऐसा न करके मनुष्य अपनी मनुष्यता को कलंककत करता है ।

प्रश्न 30. ‘मनुष्यता’ कविता की ितयमान में प्रासंलगकता स्पि कीजजए।


उत्तर- मनुष्यता कविता हमें सच्चा मनुष्य बनने की राह कदखाती है । मनुष्य को इस कविता द्वारा सभी
मनुष्यों के अपना भाई मानने, उनकी भलाई करने और एकता बनाकर रखने की सीख दी गई है ।
कविता के अनुसार सच्चा मनुष्य िही है जो सभी को अपना समझते हुए दस
ू रों की भलाई के ललए ही
जीता और मरता है । िह दस
ू रों के साथ उदारता से रहता है और मानिीय एकता को दृढ करने के ललए
प्रयासरत रहता है । िह खुद उन्नलत के पथ पर चलकर दस
ू रों को भी आगे बढने की प्रेरणा दे ता है ।
ितयमान में इस कविता की प्रासंलगकता और भी बढ जाती है क्योंकक आज दलु नया में स्िाथयिवृ त्त,
अहं कार, लोभ, ईष्याय, छल-कपट आकद बढ रहा है जजससे मनुष्य-मनुष्य में दरू ी बढ रही है ।

प्रश्न 31. ‘मनुष्यता’ कविता में िजणयत उशीनर, दधीलच और कणय के उन कायों का उल्लेख कीजजए
जजससे िे मनुष्य को मनुष्यता की राह कदखा गए।
उत्तर- ‘मनुष्यता’ कविता में िजणयत उशीनर, दधीलच और कणय द्वारा ककए गए कायय इस प्रकार हैं -
उशीनर – इन्हें राजा लशवि के नाम से भी जाना जाता है । राजा उशीनर ने अपनी शरण में आए एक
कबूतर की रक्षा के ललए अपने शरीर से उसके िजन के बराबर मााँस बाज को दे कदया। इस तरह
दयालुता का अनुकरणीय कायय ककया।

दधीलच – महवर्य दधीलच ने दानिों को पराजजत करने के ललए अपने शरीर की हडडयााँ दान दे दीं जजनसे
बज्र बनाकर दानिों को युद्ध में हराया गया और मानिता की रक्षा की गई।

कणय – कणय अर्तयंत दानी िीर एिं साहसी योद्धा था। उसने ब्राह्मण िे शधारी श्रीकृ ष्ण और इं द्र को अपना
किच-कुंडल दान दे कदया। यह दान बाद में उसके ललए जानलेिा लसद्ध हुआ।
इस प्रकार उि महापुरुर्ों ने अनूठे कायय करके मानिता की रक्षा की और र्तयाग एिं परोपकार करके
मनुष्य को मनुष्यता की राह कदखाई।

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