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Manushyataueueuejejenwbwsb W
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शब्दाथय
उदार – महान ,श्रेष्ठ
बखानती – गुण गान करना
धरा – धरती
कृ तघ्न – ऋणी , आभारी
सजीि – जीवित
कूजती – करना
अखण्ड – जजसके टु कडे न ककए जा सकें
असीम – पूरा
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि बताना चाहता है कक जो मनुष्य दस
ू रों के ललए जीते हैं उनका गुणगान
युगों – युगों तक ककया जाता है ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक जो मनुष्य अपने पूरे जीिन में दस
ू रों की लचंता करता है उस महान
व्यवि की कथा का गुण गान सरस्िती अथायत पुस्तकों में ककया जाता है । पूरी धरती उस महान व्यवि
की आभारी रहती है । उस व्यवि की बातचीत हमेशा जीवित व्यवि की तरह की जाती है और पूरी सृवि
उसकी पूजा करती है । कवि कहता है कक जो व्यवि पुरे संसार को अखण्ड भाि और भाईचारे की
भािना में बााँधता है िह व्यवि सही मायने में मनुष्य कहलाने योग्य होता है ।
शब्दाथय
क्षुधातय – भूख से परे शान
करस्थ – हाथ की
पराथय – पूरा
अजस्थजाल – हजडडयों का समूह
उशीनर जक्षतीश – उशीनर दे श के राजा लशवब
सहर्य – खुशी से
शरीर चमय – शरीर का किच
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि ने महान पुरुर्ों के उदाहरण कदए हैं जजनकी महानता के कारण उन्हें याद
ककया जाता है ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक पौराजणक कथाएं ऐसे व्यविओं के उदाहरणों से भरी पडी हैं जजन्होंने
अपना पूरा जीिन दस
ू रों के ललए र्तयाग कदया जजस कारण उन्हें आज तक याद ककया जाता है । भूख से
परे शान रलतदे ि ने अपने हाथ की आखरी थाली भी दान कर दी थी और महवर्य दधीलच ने तो अपने
पूरे शरीर की हजडडयााँ िज्र बनाने के ललए दान कर दी थी। उशीनर दे श के राजा लशवब ने कबूतर की
जान बचाने के ललए अपना पूरा मांस दान कर कदया था। िीर कणय ने अपनी खुशी से अपने शरीर का
किच दान कर कदया था। कवि कहना चाहता है कक मनुष्य इस नश्वर शरीर के ललए क्यों डरता है
क्योंकक मनुष्य िही कहलाता है जो दस
ू रों के ललए अपने आप को र्तयाग दे ता है ।
शब्दाथय
सहानुभूलत – दया,करुणा
महाविभूलत – सब से बडी सम्पलत
िशीकृ ता – िश में करने िाला
मही – ईश्वर
विरुद्धिाद – जखलाफ होना
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि ने महार्तमा बुद्ध का उदाहरण दे ते हुए दया ,करुणा को सबसे बडा धन
बताया है ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक मनुष्यों के मन में दया ि करुणा का भाि होना चाकहए ,यही सबसे बडा
धन है । स्ियं ईश्वर भी ऐसे लोगों के साथ रहते हैं । इसका सबसे बडा उदाहरण महार्तमा बुद्ध हैं जजनसे
लोगों का दुःु ख नहीं दे खा गया तो िे लोक कल्याण के ललए दलु नया के लनयमों के विरुद्ध चले गए।
इसके ललए क्या पूरा संसार उनके सामने नहीं झुकता अथायत उनके दया भाि ि परोपकार के कारण
आज भी उनको याद ककया जाता है और उनकी पूजा की जाती है । महान उस को कहा जाता है जो
परोपकार करता है िही मनुष्य ,मनुष्य कहलाता है जो मनुष्यों के ललए जीता है और मरता है ।
रहो न भूल के कभी मदांघ तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गिय लचत्त में।
अनाथ कौन है यहााँ ? विलोकनाथ साथ हैं ,
दयालु दीन बन्धु के बडे विशाल हाथ हैं ।
अतीि भाग्यहीन है अधीर भाि जो करे ,
िही मनुष्य है कक जो मनुष्य के ललए मरे ।।
शब्दाथय
मदांघ – घमण्ड
तुच्छ – बेकार
सनाथ – जजसके पास अपनों का साथ हो
अनाथ – जजसका कोई न हो
लचत्त – मन में
विलोकनाथ – ईश्वर
दीनबंधु – ईश्वर
अधीर – उतािलापन
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि कहता है कक सम्पलत पर कभी घमण्ड नहीं करना चाकहए और ककसी को
अनाथ नहीं समझना चाकहए क्योंकक ईश्वर सबके साथ हैं ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक भूल कर भी कभी संपवत्त या यश पर घमंड नहीं करना चाकहए। इस बात
पर कभी गिय नहीं करना चाकहए कक हमारे साथ हमारे अपनों का साथ है क्योंकक कवि कहता है कक
यहााँ कौन सा व्यवि अनाथ है ,उस ईश्वर का साथ सब के साथ है । िह बहुत दयािान है उसका हाथ
सबके ऊपर रहता है । कवि कहता है कक िह व्यवि भाग्यहीन है जो इस प्रकार का उतािलापन रखता
है क्योंकक मनुष्य िही व्यवि कहलाता है जो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर सोचता है ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक उस कभी न समाप्त होने िाले आकाश में असंख्य दे िता खडे हैं , जो
परोपकारी ि दयालु मनुष्यों का सामने से खडे होकर अपनी भुजाओं को फैलाकर स्िागत करते हैं ।
इसललए दस
ू रों का सहारा बनो और सभी को साथ में लेकर आगे बडो। कवि कहता है कक सभी कलंक
रकहत हो कर दे िताओं की गोद में बैठो अथायत यकद कोई बुरा काम नहीं करोगे तो दे िता तुम्हे अपनी
गोद में ले लेंगे। अपने मतलब के ललए नहीं जीना चाकहए अपना और दस
ू रों का कल्याण ि उद्धार
करना चाकहए क्योंकक इस मरणशील संसार में मनुष्य िही है जो मनुष्यों का कल्याण करे ि परोपकार
करे ।
‘मनुष्य मािा बन्धु हैं ’ यही बडा वििेक है ,
पुराणपुरुर् स्ियंभू वपता प्रलसद्ध एक है ।
फलानुसार कमय के अिश्य बाह्य भेद हैं ,
परं तु अंतरै क्य में प्रमाणभूत िेद हैं ।
अनथय है कक बन्धु ही न बन्धु की व्यथा हरे ,
िही मनुष्य है कक जो मनुष्य के ललए मरे ।।
शब्दाथय
बन्धु – भाई बंधु
वििेक – समझ
स्ियंभू – परमार्तमा,स्ियं उर्तपन्न होने िाला
अंतरै क्य – आर्तमा की एकत, अंतुःकरण की एकता
प्रमाणभूत – साक्षी
व्यथा – दुःु ख,कि
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि कहता है कक हम सब एक ईश्वर की संतान हैं । अतुः हम सभी मनुष्य एक
– दस
ू रे के भाई – बन्धु हैं ।
व्याख्या -: कवि कहता है कक प्रर्तयेक मनुष्य एक दस
ू रे के भाई – बन्धु हैं ।यह सबसे बडी समझ है ।
पुराणों में जजसे स्ियं उर्तपन्न पुरुर् मना गया है , िह परमार्तमा या ईश्वर हम सभी का वपता है , अथायत
सभी मनुष्य उस एक ईश्वर की संतान हैं । बाहरी कारणों के फल अनुसार प्रर्तयेक मनुष्य के कमय भले
ही अलग अलग हों परन्तु हमारे िेद इस बात के साक्षी है कक सभी की आर्तमा एक है । कवि कहता है
कक यकद भाई ही भाई के दुःु ख ि किों का नाश नहीं करे गा तो उसका जीना व्यथय है क्योंकक मनुष्य
िही कहलाता है जो बुरे समय में दस
ू रे मनुष्यों के काम आता है ।
चलो अभीि मागय में सहर्य खेलते हुए,
अभीि – इजच्छत
मागय – रास्ता
सहर्य -अपनी खुशी से
विपवत्त,विघ्न – संकट ,बाधाएाँ
अतकय – तकय से परे
सतकय – सािधान यािी
प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पशय भाग -2 ‘ से ली गई है । इसके कवि मैलथलीशरण
गुप्त हैं । इन पंविओं में कवि कहता है कक यकद हम खुशी से ,सारे किों को हटते हुए ,भेदभाि रकहत
रहें गे तभी संभि है की समाज की उन्नलत होगी।
व्याख्या -: कवि कहता है कक मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मागय में खुशी खुशी चलना
चाकहए,रास्ते में कोई भी संकट या बाधाएं आये, उन्हें हटाते चले जाना चाकहए। मनुष्यों को यह ध्यान
रखना चाकहए कक आपसी समझ न वबगडे और भेद भाि न बडे । वबना ककसी तकय वितकय के सभी को
एक साथ ले कर आगे बढना चाकहए तभी यह संभि होगा कक मनुष्य दस
ू रों की उन्नलत और कल्याण
के साथ अपनी समृवद्ध भी कायम करे
प्रश्न 1 – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने क्यों कहा है कक हमें मृर्तयु से नहीं डरना चाकहए?
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने कहा है कक मृर्तयु से नहीं डरना चाकहए क्योंकक मृर्तयु तो लनजित
है इसे कोई भी टाल नहीं सकता। जजसने इस धरती पर जन्म ललया है उसे एक न एक कदन मरना ही
है ।
प्रश्न 19. ‘विचार लो कक मर्तयय हो’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है ? इसे सुमर्तृ यु कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर कवि ने मनुष्य से मर्तयय होने की बात इसललए कही है क्योंकक-
मानि शरीर नश्वर है । इस संसार में जजसका भी जन्म हुआ उसे एक न एक कदन अिश्य मरना
है ।
मनुष्य चाहकर भी अपनी मृर्तयु को नहीं टाल सकता है ।
प्रश्न 27. कवि ने सफलता पाने के ललए मनुष्य को ककस तरह प्रयास करने के ललए कहा है ?
उत्तर- कवि ने सफलता पाने के ललए मनुष्य को प्रोर्तसाकहत करते हुए कहा है कक मनुष्य तुम अपने
लक्ष्य की ओर कदम बढाओ। तुम्हारी सहायता के ललए अनेक दे िता रूपी मनुष्य खडे हैं । इसके अलािा
तुम परस्पर एक-दस
ू रे की मदद करते हुए उठो और सभी को साथ लेकर बढते चलो। इससे कोई
मंजजल यो लक्ष्य प्राप्त करना ककठन नहीं रह जाएगा।
प्रश्न 28. ‘रहो न यों कक एक से न काम और का सरे ’ के माध्यम से कवि क्या सीख दे ना चाहता है ?
उत्तर- रहो न यों कक एक से न काम और का सरे ’ के माध्यम से कवि मनुष्य को यह सीख दे ना
चाहता है कक हे मनुष्य! तुम इस तरह से स्िाथऔ और आर्तमकेंकद्रत बन मत जजयो कक दस
ू रों के सुख-
दख
ु से कोई लेना-दे ना ही न रह जाए और तुम संिेदनहीनता की पराकाष्ठा छू लो। कवि चाहता है कक
मनुष्य को एक-दस
ू रे को सहारा दे ना चाकहए, मदद करनी चाकहए ताकक उसका रुका काम भी बन जाए।
िह चाहता है कक सभी परोपकारी बन जाएाँ।
प्रश्न 29. ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य के ककस कृ र्तय को अनथय कहा है और क्यों ?
उत्तर- ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य को यह बताने का प्रयास ककया है कक सभी मनुष्य आपस
में ई ई हैं । इस सबसे बडा प्रमाण यह है कक सबको जन्म दे ने िाला ईश्वर एक है । पुराणों में भी इस
बात के प्रमाण हैं कक सृवि का रचनाकार िही एक है । िह सारे जगत का अजन्मा वपता है । कफर
मनुष्य-मनुष्य में थोडा-बहुत जो भेद है । िह उसके अपने कमों के कारण है परं तु एक ही ईश्वर या
आर्तमा का अंश उनमें समाए होने के कारण सभी एक हैं । इतना जानने के बाद भी कोई मनुष्य दस
ू रे
मनुष्य की अथायत ् अपने भाई की मदद न करे और उसकी व्यथा दरू न करे तो िह सबसे बडे अनथय
हैं । इसका कारण यह है कक ऐसा न करके मनुष्य अपनी मनुष्यता को कलंककत करता है ।
प्रश्न 31. ‘मनुष्यता’ कविता में िजणयत उशीनर, दधीलच और कणय के उन कायों का उल्लेख कीजजए
जजससे िे मनुष्य को मनुष्यता की राह कदखा गए।
उत्तर- ‘मनुष्यता’ कविता में िजणयत उशीनर, दधीलच और कणय द्वारा ककए गए कायय इस प्रकार हैं -
उशीनर – इन्हें राजा लशवि के नाम से भी जाना जाता है । राजा उशीनर ने अपनी शरण में आए एक
कबूतर की रक्षा के ललए अपने शरीर से उसके िजन के बराबर मााँस बाज को दे कदया। इस तरह
दयालुता का अनुकरणीय कायय ककया।
दधीलच – महवर्य दधीलच ने दानिों को पराजजत करने के ललए अपने शरीर की हडडयााँ दान दे दीं जजनसे
बज्र बनाकर दानिों को युद्ध में हराया गया और मानिता की रक्षा की गई।
कणय – कणय अर्तयंत दानी िीर एिं साहसी योद्धा था। उसने ब्राह्मण िे शधारी श्रीकृ ष्ण और इं द्र को अपना
किच-कुंडल दान दे कदया। यह दान बाद में उसके ललए जानलेिा लसद्ध हुआ।
इस प्रकार उि महापुरुर्ों ने अनूठे कायय करके मानिता की रक्षा की और र्तयाग एिं परोपकार करके
मनुष्य को मनुष्यता की राह कदखाई।