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RAMAKRISHNA MATH

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मेरी क्रान्तिकारी योजना से (1)-स्वामी वववेकानतद

मेरे ममत्रों मेरा ववचार है कक मैं भारि में कुछ ऐसे मिक्षा संस्थान स्थाविि करूँ जहाूँ हमारे नवयुवक
अिने िास्त्रों के ज्ञान में मिन्क्षि होकर भारि िथा भारि के बाहर अिने धमम का प्रचार कर सकें। मनुष्य,
केवल मनुष्य भर चाकहए। बाकी सबकुछ अिने आि हो जायेगा । आवश्यकिा है वीयमवान ् िेजस्वी श्रद्धा
सम्ितन और दृढववश्वासी मनष्किट युवकों की। ऐसे सौ ममल जायें िो संसार का कायाकल्ि हो जाय।
इच्छािवि संसार में सबसे अमधक बलविी है । उसके सामने दमु नया की कोई चीज नहीं ठहर सकिी,
क्योंकक वह भगवान ्- साक्षाि ् भगवान ् से आिी है । वविुद्ध और दृढ़ इच्छािवि सवमिविमान ् है । क्या िुम
इसमें ववश्वास नहीं करिे ? सबके समक्ष अिने महान सत्यों का प्रचार करो, संसार इनकी प्रिीक्षा कर रहा
है । सैकडों वर्षों से लोगों को मनुष्य की हीनावस्था का ही ज्ञान कराया गया है । उनसे कहा गया है कक वे
कुछ नहीं हैं । संसार भर में सवमत्र सवमसाधारण से कहा गया है कक िुमलोग मनुष्य ही नहीं हो। ििान्ददयों
से इसप्रकार डराये जाने के कारण वे बेचारे सचमुच ही करीब-करीब ििुत्व को प्राप्त हो गये हैं । उतहें कभी
आत्मित्व के ववर्षय में सुनने का मौका नहीं कदया गया। अब उनको आत्मित्व सुनने दो कक उनमें से
नीच से भी नीच में आत्मा ववराजमान है - वह आत्मा जो न कभी मरिी है , न जतम लेिी है , न्जसे न
िलवार काट सकिी है ,न आग जला सकिी है और न हवा सुखा सकिी है ,जो अमर है , अनाकद और
अनति है , जो िुद्धस्वरि, सवमिविमान ् और सवमव्यािी है ।

नैनं मछतदन्ति िस्त्रान्ण नैनं दहमि िावकः.।

न चैनं क्लेदयतत्यािो न िोर्षयमि मारुिः।।

उतहें अिने में ववश्वास करने दो। आन्खर अंग्रेजों में और िुममें ककसमलए इिना अंिर है ? उतहें अिने
धमम अिने किमव्य आकद के ववर्षय में कहने दो। िर मुझे अंिर मालूम हो गया है । अंिर यही है कक अंग्रेज
अिने ऊिर ववश्वास करिा है , और िुम नहीं। जब वह सोचिा है कक मैं अंग्रज
े हूूँ, िो वह उस ववश्वास के
बलिर जो चाहिा है वही कर सकिा है । इस ववश्वास के आधार िर उसके अंदर मछिा हुआ ईश्वर भाव जाग
उठिा है । और िब वह,उसकी जो भी इच्छा होिी है , वही कर सकने में समथम होिा है । इसके वविरीि लोग
िुमसे कहिे आये हैं कक िुम कुछ भी नहीं हो, िुम कुछ भी नहीं कर सकिे, और फलस्वरि आज िुम
अकममण्य हो गये हो। अिएव आज हम जो चाहिे हैं वह है -बल, अिने में अटू ट ववश्वास।

हमलोग िविहीन हो गये है । इसीमलए गुप्तववद्या और रहस्य ववद्या-इन रोमांचक वस्िुओं ने धीरे - धीरे
हममें घर कर मलया है । भले ही उनमें अनेक सत्य हों, िर उतहोंने लगभग हमें नष्ट कर डाला है । अिने
स्नायु बलवान बनाओ। आज हमें न्जसकी आवश्यकिा है , वह है - लोहे के िुट्ठे अथामि ् मांििेमियाूँ और
फौलाद के स्नायु; हमलोग बहुि कदन रो चुके। अब रोने की आवश्यकिा नहीं। अब अिने िैरों िर खडे हो

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जाओ और मदम बनो । हमें ऐसे धमम की आवश्यकिा है , न्जससे हम मनुष्य बन सकें। हमें ऐसे मसद्धातिों
की जररि है न्जससे हम मनुष्य हो सकें। हमें ऐसी सवाांगसम्ितन मिक्षा चाकहए जो हमें मनुष्य बना सके।
और यह रही सत्य की कसौटी- जो भी िुमको िारीररक, मानमसक और आध्यान्त्मक दृवष्ट से दब
ु ल
म बनाये
उसे जहर की भाूँमि त्याग दो उसमें जीवनी-िवि नहीं है , वह कभी सत्य नहीं हो सकिा। सत्य िो बलप्रद
है , वह िववत्रिा है , वह ज्ञानस्वरि है । सत्य िो वह है जो िवि दे , जो हृदय के अंधकार को दरू कर दे ,
जो हृदय में स्फूमिम भर दे ।

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