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नेट-ब्यूरो
पाठ्यक्रम
चौदह (चतुददश) विद्यास्थान (प्राचीन भारत में वशक्षा की १४ शाखाएँ ) - पुराण, न्याय, मीमाां सा,
धमदशास्त्र, छह-िेदाां ग (वशक्षा, व्याकरण, वनरुक्त, छन्द, ज्योवतष, कल्प) और चार िेद- ऋग्वेद,
यजुिेद, सामिेद और अथिदिेद) उन के विषय एिं सामान्य वििरण|
धमद, अथद और समाज पर भारतीय उपदे श, भगिद्गीता, अथदशास्त्र, गुरुकुल प्रणाली, तथा नालांदा,
तक्षवशला, विक्रमवशला आवद की जानकारी
इस इकाई में अपेवक्षत है (अ) विषय का पररचय; (ब) ग्रांथ, लेखक और उनका योगदान।
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प्राचीन भारतीय गुरुकुल प्रणाली: नालांदा, तक्षवशला, विक्रमवशला, िलभी, ओदन्तपुरी, वमवथला, काां ची,
नावदया, पुष्पवगरर, नागाजुदनकोांडा, शारदापीठ (काश्मीर), उज्जैन, जगद्दल और सोमपुर।
तकदशास्त्र: प्रमाण-प्रत्यक्ष, अनुमन, उपमान, शब्द, अथाद पवत्त और अनुपलस्ति | प्रमाता, प्रमाण, प्रमेय
और प्रमा- स्वातः प्रमण्य और परतः प्रमाण्य | शब्दशस्तक्तयाँ - अवभधा, लक्षणा, व्यञ्जना, तात्पयद |
हे तुलक्षण और हे त्वभास लक्षण- कारण और भ्ाां वत |
धमद: महाभारत, मनुस्मृवत, िैशेवषक सूत्र आवद विवभन्न ग्रांथोां से पररभाषाएां और अथद | काम्य, वनत्य,
वनवषद्ध, नैवमवत्तक, प्रायवित और उपासना | अथद पुरुषाथद में “अथद ” शब्द का अथद - मूल और व्युत्पवत्त
तीथदयात्रा, त्यौहार, सप्तपुरी, बारह ज्योवतवलिंग के विषय में सामावजक दृविकोण और भारत की एकता
एिां अखण्डता के वलए इन का महत्त्व |
रामायण: राम के गुण-जैसा िाल्मीवक रामायण में िवणदत है | राज्य प्रशासन से सम्बांवधत “कस्तच्चत् सगद ”
सगद का अध्ययन और अथद का वििरण |
महाभारत: महाभारत की समीक्षा एक ज्ञान के भांडार के रूप में | विदु रनीवत और राज धमद पर
महाभारत के महत्वपूणद उपदे श |
अथदशास्त्र: अथदशास्त्र का महत्व और अथदशास्त्र में िवणदत विषयोां का सामान्य पररचय। योगक्षेम
(राजनीवत-नीवत के कल्याणकारी उपाय), सप्ताां ग (राज्य के सात अांग), षद् गुण (राज्य के छह उपाय),
राजधमद (राजा का कतदव्य), राजमांडल (राजाओां का मांडल), और धमद जैसे आधुवनक राज्य वशल्प की
साां स्कृवतक नीांि (आदे श), अथदशास्त्र में जो मूल वचन्तन है उस पर अध्ययन |
समाज एिां नागररक: भारतीय ज्ञान प्रणाली के विविध ग्रांथोां में सभी के कल्याण के वलए बताए गए
उपाय, स्वस्थिृत्त की अिधारणा।
भारतीय भाषाएां और सावहत्य: भारतीय भाषाएां और उनकी उच्चारण प्रणाली | सांस्कृत भाषा और
भारतीय भाषाओां से सांस्कृत का सांबांध | सावहस्तत्यक रचनाओां, छन्द आवद के वलए सांस्कृत सावहत्य का
भारतीय भाषाओां पर प्रभाि | भारतीय भाषाओां की सावहस्तत्यक कृवतयाँ और विश्व भाषाओां में उनके
प्रथम, प्रधान एिां प्रवतवित अनुिाद एिां अनुिादक |
इकाई ३: ज्योनतश्शास्त्र
समय के मान: िेद में समय के विभाजन: िषद , महीने और वदन, तैवत्तरीय-ब्राह्मण में 13 महीनोां के
नाम,12 अधदमाहोां के नाम, चांद्र िषद के 354 वदन, महीने और अवधकमास, सामान्य समय गणना, समय
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की गणना के तरीके, चाां द्र-वदिस, सौर-वदिस, सौर-िषद , चांद्र-सौर-िषद , सािनवदन, शक से कवल, शक
से जोवियन िषद, विक्रम-सांित से कवल, कोल्रम िषद से कवल।
भारतीय कैलेंडर प्रणाली: पांचाां ग: पांचाां ग के पाां च तत्व, सांगणना नक्षत्र, वतवथ, योग, करण और िर।
सूयद-नक्षत्र, सौर वदनदवशदका (कैलेंडर), विक्रम-सांित और शावलिाहन-सांित - रािरीय कैलेंडर (रािरीय
वदनदवशदका)।
वसद्धान्त ग्रांथोां में िर्णणत ग्रहोां की स्तस्थवत (आयदभटीय): अहगदण की गणना, महायुग में ग्रहोां की
पररक्रमण सांख्या, ग्रहोां की मध्यम-स्तस्थवत, मांदसांस्कार, शीघ्रसांस्कार, स्फुटग्रह, आयदभट से नीलकांठ
(अधद -हे वलओसेंवटर क मॉडल) तक ग्रहोां के मॉडल का विकास, अयनाां श वनधाद ररत करने के वलए विवभन्न
तरीके ।
करण और िाक्य ग्रांथोां से ग्रहोां की स्तस्थवत: कराणकुतू हल, ग्रहलाघि आवद कराण ग्रांथोां में वदए गए
सरलीकृत प्रवक्रयाओां से ग्रहोां की स्तस्थवत प्राप्त करना, िररुवच और माधि के चांद्रिाक्य और उनके
वलए िाक्य-सांस्कार प्रवक्रया िाक्य प्रणाली का उपयोग करके सूयद और चांद्रमा के स्तस्थवतयाँ प्राप्त
करना, मासिाक्योां, सांक्राां वत-िाक्योां और नक्षत्र-िाक्योां का महत्व।
भारत में वचवकत्सा ज्ञान की लोक और शास्त्रीय धाराएां | लोक और जनजातीय वचवकत्सा - ८०००
पौधे, घरे लू उपचार, प्राथवमक स्वास्थ्य दे खभाल, हड्डी की स्थापना, पारां पररक जन्म पररचारक, विष
उपचारक।
आयुिेद: ऐवतहावसक विकास और महत्वपूणद घटनाये , व्यस्तक्तत्व, पाठ स्रोत, क्षेत्रीय परां पराएां |
वचवकत्सा ज्ञान के वनमाद ण और मान्यता के वलए आयुिेद में प्रमाणोां का अनुप्रयोग | मुख्य विशेषताएां -
प्रकृवत केंवद्रत दृविकोण, व्यस्तक्त केंवद्रत दृविकोण, आवध-व्यावध वचवकत्सा, पौधे, पशु और खवनज स्रोतोां
के औषध-कोष, बहु-घटक सूत्रीकरण और खुराक के रूप, उपचार के वलए बहुआयामी दृविकोण -
जीिनशैली, आहार और दिा, स्वस्थ दीघद आयु |
आयुिेद की मूलभूत अिधारणाएां - दोष धातु मल वसद्धाां त, स्वास्थ्य की पररभाषा (स्वस्थ), दै वनक
वदनचयाद (वदनचयाद ), मौसमी वदनचयाद (ऋतुचयाद ), सद् िृवत्त (अच्छे आचरण)| रोगोां की पररभाषा और
िगीकरण - आवधदै विक, आध्यास्तत्मका, आवधभौवतक, एिां अन्य िगीकरण | आयुिेद में उपचार का
दायरा और िगीकरण | आयुिेद की आठ क्लीवनकल विशेषताएां | भारत और दु वनया में आयुिेद की
ितदमान स्तस्थवत |
वसद्ध: ऐवतहावसक विकास और महत्वपूणद घटनाये , व्यस्तक्तत्व, पाठ्य स्रोत | मूलभूत अिधारणाएां –
वत्रदोष | नाड़ी परीक्षा, ममद विद्या उपचार, िनस्पवत धातु सूत्रीकरण | स्वास्थ्य और रोग की अिधारणा,
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वनिारक वचवकत्सा | रोगोां के प्रबांधन के वलए दृविकोण | भारत और विश्व में वसद्ध वचवकत्सा पद्धवत की
ितदमान स्तस्थवत |
योग: ऐवतहावसक विकास और और महत्वपूणद घटनाये , व्यस्तक्तत्व, पाठ्य स्रोत| योग की पररभाषा,
स्वास्थ्य और कल्याण के वलए वचवकत्सा के रूप में योग |अिाां ग योग: आसन, प्राणायाम और ध्यान के
स्वास्थ्य लाभ | शरीर को शुद्ध करने की योवगक विवधयाँ | आधुवनक दु वनया में वचवकत्सा के रूप में
योग का अनुप्रयोग |
वसांधु घाटी सभ्यता : शहरी वनयोजन - धौलिीरा, वहां दू मांवदर िािुकला - नागर, द्रविड़ और िेसर शैली
के मांवदरोां की प्रारां वभक अिधारणाएां |
भारत की प्राचीन और मध्यकालीन सांरचनाओां का सांवक्षप्त ज्ञान: बुद्ध और जैन मांवदर - उदयवगरर -
साां ची - सारनाथ - नालांदा, चट्टान और गुफा मांवदर- एलीफेंटा- जागेश्वरी - अजांता और एलोरा,
वहमालयी मांवदर- केदारनाथ-तुांगमठ-जगेश्वर- बालेश्वर |
प्राचीन और मध्यकालीन मांवदर: मुांडेश्वरी दे िी मांवदर- दशाितार विष्णु मांवदर, दे िगढ़ - खजुराहो मांवदर-
वलांगराज मांवदर, भुिनेश्वर- टे राकोटा मांवदर, विष्णुपुर- बादामी के मांवदर, ऐहोल (चालुक्य मांवदर) -
काां ची और महाबलीपुरम मांवदर- चोल मांवदर, सूयद मांवदर -कोणाकद, मोढे रा, कटारमल (अल्मोड़ा) और
मातिंड (अनांतनाग)
शुल्बसूत्रोां में ज्यावमवत: शुल्बसूत्र ग्रांथोां में वदए गए करणी (सडद ) के वलए अवभव्यस्तक्त, लांब समविभाजक
प्राप्त करने की विवधयाँ , लांबित विभाजक का वनमाद ण: जीिा-मोडने विवध, बोधयान की िगद बनाने की
विवध, बोधायन-पायथागॉररयन प्रमेय |
दशमलि स्थानीय मान प्रणाली: िेदोां में सांख्याएँ , कोवट से महा-आघ, अक्षौवहणी और अन्य नावमत
अांक, सांख्याओां की तीन अलग-अलग प्रणावलयाँ : आयदभटीय, भूतसांख्या तथा कटपयावद प्रणावलयाँ |
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आयदभटीय में अांकगवणत और वत्रकोणवमवत तथा इसके आगे का विकास: िगदमूल और घन-मूल,
आयदभट की ज्या-तावलका (साइन-टे बल), तांत्रसांग्रह में इसका सांशोधन, ज्या और कोवटज्या के वलए
माधिश्ृांखला, करणपद्धवत से ज्या मान प्राप्त् करने के विवभन्न तरीके |
ब्रह्मगुप्त: धनसांख्या, ऋणसां ख्या और शून्य का गवणत, रै स्तखक और विघात समीकरणोां का समाधान,
चक्रीय चतुभुदज |
कुट्टक-प्रवक्रया तथा वनरां तर-अांश: आयदभट और ब्रह्मगुप्त िारा कुट्टक विवध, िल्रुपसांहार और वनरां तर
अांश, िल्रुपसांहार विवध I और II करणपद्धवत से, दृक्करण ग्रन्थ में वनकटतम-पूणािं क-वनरां तर-अांश |
साां ख्य पातांजल प्रणाली: प्रकृवत –मूल घटक एिां उनके अन्तः वक्रयाएँ , ऊजाद का सांरक्षण एिां ऊजाद का
रूपान्तरण, कायोत्पादन उद्भािना का वसद्धाां त, साहचयद का वसद्धाां त, ऊजाद का वनिारण एिां
भण्डारण, ऊजाद तथा द्रव्यमान का क्षय एिां उनका अिस्थारवहत प्रकृवत में सस्तिलन, पदाथद का
उद्भि, मूलभूत परमाणु इकाई का उद्भि, रासायवनक विश्लेषण एिां सांश्लेषण, तत्व एिां परमाणु |
प्राचीन भारत के आयुविदज्ञान में रसायन विज्ञान: भूत की भौवतक विशेषताएां , महाभूत, वमश्ण, पदाथो
की विशेषताएां , रासायवनक योग में आणविक गुणोां का वनमाद ण, रां गोां का गुणधमद , भार तथा क्षमता का
मापन, सूक्ष्म दृश्य का आकार |
िेदान्त के दृविकोण से पदाथद के विवभन्न रूपोां का उद्भि | बौद्धोां एिां जैनोां का परमाणु वसद्धाां त |
न्याय िैशेवषक रासायवनक वसद्धाां त: परमाणु सांयोजनोां का वसद्धाां त, रासायवनक सांयोजन सम एिां विषम
भौवतक यौवगक, गवतशील सांपकद का वसद्धाां त (वििम्भ), रासायवनक वक्रया एिां ऊष्मा, िाचस्पवत: का
तीन अक्ष (वि-भौवतक यौवगकोां के अियिोां का सवचत्र वनरूपण), आणविक गवत की अिधारणा
(पररस्पांद) |
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धातुकमद विरासत: अथदशास्त्र - सोने, चाां दी एिां अन्य धातुओां का िणदन करने िाला प्रथम ग्रांथ, प्राचीन
और मध्ययुगीन काल में भारतीय ग्रांथोां में िवणदत सोना, चाां दी, ताां बा, लोहा, वटन, पारा, सीसा और जिा
का प्रसांस्करण, रसाणदि एिां रसरत्नसमुच्चय में िवणदत जिा आसिन |
भारतीय रसायन शास्त्र में अम्ल एिां क्षार की अिधारणाएँ : काबदवनक अम्ल (फल,िनस्पवत आधाररत),
पौधा-भस्म आधाररत क्षार से लेकर मध्ययुगीन काल के खवनज अम्ल काल तक |
कृवषशास्त्र, िृक्षायुिेद: ऐवतहावसक विकास और महत्वपूणद घटनाये , व्यस्तक्तत्व, पाठ स्रोत - उपिन
विनोद, कृवषपराशर, बृहत सांवहता, कृवष गीता | मनोरां जन उद्यान, प्राचीन भारत में कृवष, पौधोां के
रोग और उनका प्रबांधन, कीट वनयांत्रण, पौधोां के वलए खाद, प्ाां ट ग्रास्तटांग तकनीक |
पवित्र िन: पवित्र पौधे लगाने का फल- तुलसी, चन्दन, शमी, अकद, पलाश, खवदर, दे िदारु, सुपारी,
नाररयल,केले आवद | सामावजक िावनकी के बारे में -िृक्षारोपण से फल- जैसे वक प्रवसद्ध ग्रन्थोां में
बताया गया है । नीम, आम, दु धारु-िृक्ष-कटहल,अश्वत्थ, औदुम्बर(गूलर), पाकड़
(Ficus lacor),
िटिृक्ष (बगरद-Banyan tree) ; इमली, कावबड,वबल्व,चन्दन,अशोक, आां िला, पुन्नाग, वशांशपा,
सप्तपणद , सप्तरां गी |आयुिेदीय औषवध िृक्ष एिां पौधे - अजुदन,चन्दन, शमी, अकद, पलाश, खवदर,
दे िदारु,कुटज, सपदगन्धा, हडजोड, इां गुदी, सप्तरां गी, विषमुवि,उशीर-घास,घृतकुमारी का सामान्य
वििरण
इकाई ९: कला
भरत मुवन के नाट्यशास्त्र तथा अवभनय दपदण का पररचय, निरस का िणदन, आठ भारतीय शास्त्रीय
नृत्य विधाओां का पररचय - भरतनाट्यम, मोवहनीअट्टम, कथाकली, कुवचपुड़ी, कथक, ओवडसी,
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मणीपुरी एिां सावत्रय| भारतीय नृत्य एिां भारतीय वचत्रकला पर गीत-गोविन्द, रामायण तथा महाभारत
का प्रभाि (मधुबनी, पटवचत्र, फड़, काां गरा) |
भारतीय शास्त्रीय सांगीत का िगीकरण: वहन्दु िानी एिां कनाद टक, भारतीय शास्त्रीय सांगीत की प्रमुख
गायन विधाएां (ध्रुपद, ख्याल और तराना) कनाद टक सांगीत (िणिं एिां कृवत) ताल एिां लय विधा का
सिेक्षण
भारत की लोककला, आवदिासी तथा आधुवनक कला विधाओां का पररचय। लोक, आवदिासी,
पारां पररक, अनुिावनक प्रदशदनोां तथा अवभनय की सामावजक-आवथदक पृिभूवम का अध्ययन - नृत्य,
सांगीत, कहानीकला एिां मांचकला
क्षेत्रीय मांचकला अवभनय का पररचय- कुडीअट्टम, यक्षगान, छऊ, जत्रा, लैहारोबा, थेय्यम,
अांवकयनात, पाां डिानी, वचांदू भागित, भाां ड, जानना और अन्य। पारां पररक ग्रांथोां को कला विधाओां पर
प्रभाि)
भारतीय कठपुतली नृत्य का िगीकरण - कठपुतली, तोलू बोिालता, रािण छाया, तोलपािकुत्तु ,
पांचतांत्र का कठपुतली नृत्य कला पर प्रभाि
यूनेस्को की आई.सी.एच. सूची में प्रवतवनवधत्व करने िाले भारतीय कला विधाओां तथा साां स्कृवतक
त्यौहारोां का िणदन तथा नामाां कन प्रवक्रया का महत्व।
कटपयावद में मेलाकाताद राग नामपद्धवत का अनुप्रयोग; कनाद टक सांगीत में विकासक्रम के चरण का
पररचय: चतुदिंण्दी से आधुवनक सांगीत सहगान पद्धवत तक की यात्रा।
पविमी दु वनया में भारतीय ज्ञान परां परा (IKS) का प्रभाि (मध्य एवशया और यूरोप): प्राचीन यूरोपीय
भाषाओां और उनकी पौरावणक कथाओां पर सांस्कृत का प्रभाि | प्राचीन ग्रीस के विचारकोां पर भारतीय
दशदन का प्रभाि: थेल्स,हे रास्तक्लतुस, पाइथागोरस, सुकरात, प्ेटो, प्ोवटनस, वनयो-प्ैटोवनज्म आवद।
रोमन साम्राज्य और अन्य प्राचीन सभ्यताओां के साथ व्यापार | मेसोपोटावमया, सुमेररया, कासाइट् स,
फारस, यजीदी आवद में साां स्कृवतक प्रभाि।
पूिी दु वनया में भारतीय ज्ञान परां परा का प्रभाि (दवक्षण पूिद एवशया): भारतीय सांस्कृवत से प्रभावित
विवभन्न साम्राज्य: मातरम का साम्राज्य, मूवतद पूजक साम्राज्य (849-1297 सीई) (बमाद ), खमेर साम्राज्य
(802-1463 सीई), सेबू के राजनते , अयुत्या साम्राज्य युग (1350-1767), श्ी विजय साम्राज्य (650 -
1377 सीई) आवद।
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भारतीय मांवदरोां और िािुकला का प्रभाि: अांकोर (कांबोवडया), पुरा बेसावकह (बाली, इां डोनेवशया),
प्रांबनन (इां डोनेवशया), बाटू गुफाएां (सेलांगोर, मलेवशया), िैट फाउ (चांपासक, लाओस), श्ी
िीरमकावलयाममान (वसांगापुर) में बेयोन मांवदर ), मररअिन मांवदर (वियतनाम) आवद।
दवक्षण पूिद एवशया के वचत्रोां, रां गमांच और नृत्य पर रामायण और महाभारत का प्रभाि
वहां दू दे िताओां का प्रभाि: ब्रह्म, विष्णु, वशि, सरस्िती,, गणेश, राम, गरुड़, नाग आवद।
श्ीलांका और अफ्रीका से सांपकद : कपड़ा, प्रौद्योवगकी और व्यापार: श्ीलांका में बौद्ध धमद , श्ीलांका में
चोल का प्रभाि, सावहत्य, जातक कहावनयाां , अफ्रीका और भारतीय िस्त्र, अफ्रीका में स्टोन कािदसद,
सोकोटर ा िीप से वशलालेख। कांबोवडया सांस्कृत वशलालेख
आधुवनक पविमी विचारकोां पर भारतीय ज्ञान परां परा का प्रभाि : इमसदन, स्तिटमैन और थोरो,
वक्रस्टोफर ईशरिुड, एल्डस हक्सले, जोसेफ कैंपबेल, एलन िाट् स, विवलयम समरसेट मौघम।
विवलयम जेम्स, बीटल्स समूह , जॉजद है ररसन, तुरीयसांगीतानांद। वनकोलस टे स्ला, डे विड बोहम,
इरविन श्ोवडां गर,कालद सगन, वफ्रटजॉफ कैप्रा, लैरी वब्रवलयांट, रामदास, डै वनयल गोलेमैन, पैवटर क
गेडेस, डे वनस िाइट, वलयोनाडद ब्लूमफील्ड, स्टीि जॉब्स, माकद जुकरबगद, आथदर शोपेनहािर आवद |
फवडद नेंड डी सौसुरे, नोम चोम्स्स्की आवद।
विश्व पर योग का प्रभाि: पविम पर प्रभाि छोड़ने िाले दाशदवनक –स्वामी वििेकानांद ,परमहां स
योगानांद ,श्ी अरवबांद ,महवषद महे श योगी ,आचायद रजनीश ,जे .कृष्णमूवतद ,स्वामी
वशिानांद,बी.के.एस.आयांगर ,श्ी कृष्णामचारी | विविध क्षेत्रो पर योग का प्रभाि-१८ िी ां शताब्दी से
पविमी कला,सांस्कृवत और वफल्म पर प्रभाि ,पविमी सावहत्य पर प्रभाि |
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