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96 04 22 1 36 38
96 04 22 1 36 38
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GE-04
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
संसाधन भू गोल
इकाई सं. इकाई पृ ठ सं .
इकाई - 1 : संसाधन भू गोल : कृ त, वषय- े , मह व तथा अ ययन 7—22
के उपागम
इकाई - 2 : संसाधन : अवधारणाएँ, वग करण, का यक स ा त तथा 23—65
मू यांकन
इकाई - 3 : ाकृ तक संसाधन : मृदा, जल 66—92
इकाई - 4 : जै वक संसाधन : वन प त एवं पशु 93—119
इकाई - 5 : ख नज संसाधन 120—138
इकाई - 6 : पर परागत ऊजा संसाधन 139—162
इकाई - 7 : गैर-पर परागत ऊजा संसाधन 163—175
इकाई - 8 : वैि वक ऊजा संकट तथा नयं ण 176—188
इकाई - 9 : मानव संसाधन : जनसं या-वृ 189—206
इकाई –10 : मानव संसाधन : वैि वक जनसं या व यास तथा घन व 207—226
त प
इकाई -11 : जनसं या- संसाधन स ब ध 227—244
इकाई -12 : मानव संसाधन वकास सूचकांक 245—260
इकाई -13 : संसाधन उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान 261—277
इकाई -14 : संसाधन उपयोग : प रवहन एवं यापार 278—305
इकाई -15 : व व के संसाधन दे श 306—329
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पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खुला व व व यालय कोटा (राज॰)
पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार ,
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा
4
प रचया मक
भू गोल क नूतन वृि तय म इसका यावहा रकता क ओर झु काव भी है । फलत: इसके
अ ययन क प र ध म ऐसे वषय आए ह जो सीधे कृ त-मानव- वकास के कोण के
पार प रक स ब ध का व लेषण करते ह । संसाधन भू गोल भी उनम एक है । वकास
सभी कार के दे श का अ भ ट है और वकास म संसाधन क आधारभू त भू मका होती है
। मानव क याण के व वध आयाम के अ ययन क ओर अ सर भू गोल क इस शाखा के
अ तगत संसाधन का े ीय वतरण, उनके गुण का व लेषण, उनका अनुकूलतम
उपभोग के लए नयतन, उपभोग क याओं तथा त ज नत सम याओं का अ ययन
कया जाता है । अ तु वकास के लए नयोजन तथा पयावरण संर ण के लए यह बहु त
मह वपूण वषय बन गया है । इसी प रपे य म इस पु तक क रचना क गई है ।
यह उ लेख करना समीचीन है क अब भी लोग म म है क केवल भौ तक त व ह
संसाधन ह, पर तु वा त वकता यह है क मानव ह सबसे बड़ा संसाधन है । जब तक
मानव ाकृ तक त व क उपयो गता क अनुभू त नह ं कर ले और उनका अपनी
आव यकता पू त म उपयोग न कर सके तब तक वे ाकृ तक त व नि य पदाथ होते है
। इस कारण ाकृ तक संसाधन के साथ मानव संसाधन को इस पु तक म समा हत कया
गया है । साथ ह संसाधन के उपभाग से उ प होने वाल पयावरणीय, आ थक तथा
सामािजक सम याओं को भी सि म लत कया गया है । इस तरह यह केवल संसाधन क
व लेषण करने वाल एकांगी पु तक ह नह ं है, बि क मानव-पयावरण अ त याज नत
संसाधन के सम आयाम को इसम रखा गया है ।
संसाधन क व वधता को इस पु तक के 15 इकाइय म समा हत कया गया है । इन
संसाधन क व श टताओं के कारण इनका व लेषण उनक द ता वाले अलग-अलग
व वान वारा कया गया है । इसका आर भ संसाधन भूगोल के व प क ववेचना से
कया गया है । संसाधन क अवधारणाओं और उनके ल ण-वणन पर अगला अ याय
केि त है िजसम संसाधन- वषयक ग या मक वचार क या या क गई है । वैसे तो
सभी संसाधन एक तं के प म काम करते ह, फर भी म ी और जल संसाधन इनको
आधार दान करते ह । इनके शा वत ा य व प क ववेचना अ याय चार म क गई
है । आधु नक औ यो गक समाज के आधार ख नज एवं ऊजा के ोत ह । इनके भंडार,
वतरण, उ पादन एवं उपभोग क ववेचना पर अगले तीन अ याय केि त ह । ऊजा के
ोत क अन यकरणीय न शेष गुण के कारण अज ऊजा ोत क मह ता को यान म
रख कर इनक स भावना क चचा पर एक अलग अ याय है । साथ ह व भ न भाग म
आए ऊजा संकट क व तार ववेचना क गई है । अगले चार अ याय म मानव संसाधन
के व भ न आयाम -सं या, वृ तथा मता क ववेचना है । इसम मानव संसाधन एंव
मानव वकास को गहराई से दे खा गया है । संसाधन दोहन से जु डी पयावरणीय सम याओं
के व प तथा उनके लए स भा वत नदान पर भी वचार कया गया है । प रवहन त
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क भी आनुसां गक चचा क गई है । संसाधन के ल ण के आधार पर ादे शीकरण
अि तम अ याय क वषय-साम ी है ।
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इकाई 1 : संसाधन भू गोल : कृ त, वषय- े एवं
मह व तथा अ ययन के उपागम (Nature,
Scope and Significance of Resource
Geography, Approaches to the Study
of Resources Geography)
इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 संसाधन भू गोल का वकास
1.3 संसाधन भू गोल क प रभाषा एवं कृ त
1.4 संसाधन भू गोल का मह व
1.5 संसाधन भू गोल का वषय - े
1.5.1 ाकृ तक संसाधन और उनके उपयोग का अ ययन
1.5.2 मानवीय संसाधन और उनक वशेषताओं का अ ययन
1.5.3 संसाधन संर ण एवं नयोजन का अ ययन
1.5.4 संसाधन मू यांकन - सव ण एवं मान च ण क व धय का अ ययन
1.5.5 संसाधन भू गोल क अ य वषय से स ब ता का अ ययन
1.6 संसाधन भू गोल के अ ययन उपागम
1.6.1 मब उपागम
1.6.2 ादे शक उपागम
1.7 सारांश
1.8 श दावल
1.9 स दभ थ
1.10 बोध न के उ तर
1.11 अ यासाथ न
1.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के प चात ् आप समझ सकगे : -
संसाधन भू गोल के वकास, उसक प रभाषा, कृ त तथा मह व
संसाधन भू गोल के वषय- े
ाकृ तक तथा मानवीय संसाधन के दोहन, उपयोग और वशेषताओं को समझाकर
दोन म अ तर
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संसाधन के संर ण तथा संध ृत वकास के स ा त
संसाधन के मू यांकन क सव ण एवं मान च ण व धयाँ
संसाधन भू गोल क अ य वषय से स ब ता
संसाधन भू गोल के अ ययन उपागम या व धय को समझाना ।
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ाकृ तक दशाओं - जल, म ी, ख नज, जीव-ज तु एवं पौध - का ह उ लेख कया। मानव
अ भ यंजनाओं म मनु य क आ थक आव यकताओं, यवसाय एवं संसाधन का न पण
कया गया।
काला तर म भू-म डल के सम व लेषण तथा अ ययन हे तु भू गोल क दोन ह शाखाओं
का वशाखन हु आ। 19वीं शता द के उ तरा म मानव भूगोल के अ तगत आ थक भू गोल
का वकास हु आ। आ थक भू गोल व भ न दे श म पृ वी -तल के संसाधन तथा मानव क
आ थक याओं और उनक अ यो य या का अ ययन एवं या या करता है।
मानव भू गोल के अ ययन म 'वातावरणवाद' क व वध वचारधाराओं का वशेष मह व है।
' न चयवाद' तथा 'स भववाद' क वचारधाराओं म पृ वी तथा मानव के स ब ध क चचा
क गई है, फलत: संसाधन तथा उनके उपयोग का मह व भी बढ़ा। बीसवीं शता द के
पूवा म काल सावर, हाटशोन, मफ , जो स आ द भि त व वान ने आ थक भू गोल
स ब धी नूतन वचार तपा दत कए िजनम ाकृ तक संसाधन व उनके उपयोग, कृ ष,
उ खनन, व नमाण उ योग तथा संसाधन संर ण को के य थान दया गया।
भू गोल म वशेषीकरण क वृि त के फल व प नई शाखाओं का वकास स भव हु आ।
शनै:-शनै: भू गोल क उपशाखाओं के वत अ ययन पर अ धका धक बल दया जाने
लगा। जमनी म आ थक भू गोल तथा टे न व अमे रका म चजम, हाईट, बेक, ि मथ
आ द व वान ने वा णि यक भू गोल का वकास कया।
वतीय व व यु के प चात ् भू गोल म मानव संसाधन को अ धक मह व दे ते हु ए
ाकृ तक संसाधन के अनुकू लतम योग पर बल दया जाने लगा। मानवीय ग त के लए
संसाधन के आंकलन तथा उनके उपयोग को मह व दया जाने लगा य क कसी- भी
रा क आ थक ग त के लए संसाधन परमाव यक ह। यां क कु शलता एवं ौ यो गक
के वकास के कारण प रवहन साधन क वृ ; व वध संसाधन के उ पादन, उपयोग एवं
संर ण; तथा औ योगीकरण से स बि धत सम याओं के अ ययन एवं अनुसंधान म
मश: वृ जार रह । फलत: संसाधन भू गोल का उ तरो तर वकास होता गया।
बोध न-1
1. सं साधन भू गोल का वकास कस म मे हु आ ?
............................................................... ..............................
............................................................... ..............................
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अ ययन कया जाता है। अ तु संसाधन भू गोल को इस कार प रभा षत कया जा सकता
है - 'संसाधन भू गोल पृ वी तल पर मानव स हत सम त संसाधन क वशेषताओं, े ीय
व भ नताओं, था नक वतरण तथा उपयोग त प एवं कारक का व ान है।' वा तव
म संसाधन भू गोल, भू गोलन क वह शाखा है िजसम संसाधन के मू यांकन उनके वतरण
एवं नयतन, उनको भा वत करने वाले कारक तथा संसाधन- योग के भाव का
अ ययन कया जाता है। इसके अ तगत मानव वारा ाकृ तक संसाधन क खोज तथा
स बि धत ान के वकास का अ ययन कया जाता है।
शफ ने भू गोल क इस शाखा को प रभा षत करते हु ए कहा है क 'संसाधन भू गोल क
स ब ध ाकृ तक स पदा के उस मा ा मक एवं े ीय सव ण से है जो कसी रा के
अथ यव था क प त तथा संगठन के प र े य म संसाधन के उपयोग क ि थ त के
व लेषण एवं मान च ण के लए कया जाता है। काय थ के अनुसार 'संसाधन के
आकलन, उनके उपयोग वकास के लए नयोजन तथा संर ण का अ ययन ह संसाधन
भू गोल है।
आ थक भू गोल तथा संसाधन भू गोल क समान वषय-व तु को दे खकर कभी-कभी दोन का
अ तर प ट नह ं हो पाता। यह स य है क दोन के बीच कोई कठोर वभाजन रे खा नह ं
खींची जा सकती। उदाहरणाथ, शि त के संसाधन के प म कोयले का अ ययन संसाधन
तथा आ थक भू गोल दोन म ह कया जाता है, क तु संसाधन भू गोल म कोयले के
उ पादन तथा व भ न उपयोग का अ ययन अपे त है जब क कोयले के योग से ा त
उपयो गता तथा इससे न मत उपयोगी पदाथ का मानव वग के बीच वतरण तथा
व नमय आ थक भू गोल क वषय-व तु है। इससे प ट है क संसाधन भू गोल वा तव म
आ थक भू गोल का एक प मा है। दूसरे श द म, आ थक भू गोल का अ ययन े
संसाधन भू गोल के अ ययन े से कह ं अ धक व तृत है।
आ थक भू गोल म सभी कार के संसाधन तथा उनके उपयोग जैसे - कृ ष, उ योग,
यातायात, वा ण य, व वध सेवाकाय आ द - का अ ययन कया जाता है। इनम से येक
क वषय-व तु पृथक् तथा उ ह भा वत करने वाले त व व कारक एवं उनके
अ तस ब ध भी भ न ह।
आ थक तथा संसाधन भू गोल म मु य अ तर यह है क आ थक भू गोल म उ पादन,
व नमय तथा उपभोग स ब धी सम त याएँ सि म लत ह जब क संसाधन भू गोल केवल
उ पादन से स बि धत मानवीय याओं तक सी मत है। उ पादन के अ तगत ाथ मक
उ योग, जैसे - वनोपज सं ह का ठ दोहन, आखेट, म यो पादन, पशु चारण, कृ ष आ द
तथा वतीयक उ योग, जैसे - खनन व व तु- नमाण उ योग - सि म लत ह। ये सभी
संसाधन भू गोल क वषय-व तु ह। तृतीयक उ योग जैसे - यापार एवं प रवहन तथा
चतुथक यवसाय, जैसे - उ च सेवाएँ, योजना, ब धन आ द - व नमय एवं उपभोग से
स बि धत ह तथा ये सभी आ थक भू गोल क वषय-व तु ह।
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संसाधन का अ ययन भू गोल के अलावा कई अ य वषय म कया जाता है। इनम
अथशा , भू गभशा , वन प तशा , मृ तका व ान आ द मु य ह। पर तु इन
वै ा नक एवं भू गोल वद के अ ययन म मौ लक अ तर है। यह अ तर अ ययन के
ि टकोण एवं उपागम म है। भू गोल व भ न संसाधन क ि थ त, वतरण, उनके
पार प रक स ब ध और उनसे बनने वाले भू य का अ ययन करता है। इस तरह केवल
भू गोल सभी संसाधन को पर पर अ तस बि धत एक तं के प म दे खता है। उसका
ि टकोण सम (Holistic) होता है। अ य व ान एक-एक संसाधन को अलग- अलग
अ ययन करते ह।
बोध न- 2
1. सं साधन भू गोल को कै से प रभा षत कया गया है ?
........................................................................................... ..
............................................................... ........................
2. आ थक भू गोल और सं साधन भू गोल म या मु य अ तर है ?
........................................................................................... ..
.................................................................... ...................
3. धन के उ पादन , व नमय , वतरण व उपभोग का अ ययन आ थक भू गोल
म कया जाता है या सं साधन भू गोल म ?
........................................................................................... ..
............................................................. ..........................
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े भी ह जहाँ साम रक मह व के ख नज क खोज के लए भूभाग का सव ण जार है।
ीनलै ड वीप म साम रक ख नज क चु रता के कारण अमे रका एवं स उस पर
अपना आ धप य जमाना चाहते ह। इसी कार द णी-पि चमी ए शया आज भी ख नज
तेल भ डार के कारण पू ज
ं ीवाद एवं सा यवाद शि तय क चपेट म जकड़ा हु आ है। कई
दे श को ख नज तेल क ाि त के लए कु वैत एवं बहर न जैसे छोटे दे श पर नभर रहना
पड़ता है। भारत का म य -पूव ए शया के दे श से केवल ख नज तेल ाि त के कारण ह
राजनी तक स ब ध ह।
संसाधन भू गोल का अ ययन हम दो मु य सम याओं के समाधान के लए करते ह।
थम, कसी- भी दे श क आ त रक बढ़ती हु ई जनसं या क मांग के लए संसाधन क
पू त कस तरह से हो िजससे क बढ़ती हु ई असं य आव यकताओं क संतु ि ट हो सके
तथा मानव का जीवन तर ऊँचा हो सके। बढ़ती हु ई जनसं या के स दभ म सी मत
साधन क यूनता का न उठना वाभा वक है। पृ वीतल पर तवष 78 लाख
जनसं या बढ़ रह है िजसके कारण पा रि थ तक एवं पा रि थ तक - म का स तु लन
बगड़ता जा रहा है। वतीय, संसाधन भू गोल का मह व इस लए भी है क इसका
अ ययन हम यह बताता है क कस कार से हम अपने ाकृ तक संसाधन का नयोजन
रा य ि ट से कर आने वाल पी ढ़य को पा रि थ तक संकट से बचा सकते ह। यह
न वभ न े के मनु य के वै ा नक एवं तकनीक ान पर नभर करता है क वे
कस कार से ाकृ तक संसाधन के उपयोग व संर ण क व धयाँ लागू करते ह। वैसे
कोई-भी ऐसा दे श या े नह ं है जहाँ कु छ-न-कु छ संसाधन न भरे पड़े ह क तु संसाधन
क उपयो गता एवं उनके संर ण क व धयाँ राजनी तक नी तय पर नभर करती ह।
इस कार संसाधन भू गोल का मह व न केवल राजनी त , अथशाि य व
नयोजनकताओं को है बि क येक स य एवं सामािजक ाणी को भी है िजसक
अथ यव था पर इसका भाव पड़ता है। इसके अ त र त संसाधन भू गोल का ान
न न ल खत े म भी उपयोगी है -
संसाधन के उ पादन का ान : उ पादन का वा त वक ान हम केवल संसाधन भू गोल
से ह होता है। व व के व भ न े म क चे माल के मु य ोत कहाँ ह ? यह जानना
आव यक है। यह जानकर पा चा य दे श ने उप नवेशवाद का सार कया और
औप नवे शक दे श के संसाधन का दोहन कर अपने आ थक-तं को ढ़ कया।
शि त के साधन का ान : संसाधन भू गोल वा तव म शि त के साधन एवं उ पादन के
वतरण को प ट करता है। शि त के कौन-से साधन कस े म पया त मा ा म
उपल ध हो सकते ह ? उनका तु लना मक ान संसाधन भूगोल ह कराता है।
उ योग क थापना का ान : उ योग क ं थापना के लए क चे माल व ख नज
पदाथ का व तृत ान होना आव यक है। वक सत रा को इसक वशेष आव यकता
होती है। जैसे - स म संसाधन क उ पि त एवं वतरण पर सबसे अ धक मह व व बल
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दया गया है। राजनी त एवं वशेष के अ त र त उ योगप तय एवं यापा रय को भी
संसाधन का ान उपयोगी है।
यातायात व तार का ान : आधु नक व व म अ तरा य यापार क बढ़ती वृि त के
कारण प रवहन साधन के ान का मह व बढ़ गया है। क चे माल को औ यो गक े
तक पहु ँ चाने तथा व न मत माल को उपभो ता े तक पहु ँ चाने म यातायात के सु गम व
ती साधन का मह व न ववाद प से है जो हम केवल संसाधन भू गोल के अ ययन से
ा त होता है।
वकास तर का ान : आ थक प रवतन के तेजी से बदलते हु ए वतमान प र य म हम
ाकृ तक व मानवीय संसाधन के तकसंगत मू यांकन से ह व व के व भ न दे श के
सामािजक -आ थक वकास तर का ान ा त कर सकते ह। इसी आधार पर आज
व व को अ प वक सत, अ वक सत या वकासशील तथा वक सत रा क े णय म
रखा जाता है। संसाधन क यूनता अथवा पया तता के आधार पर वतमान व व म
न न ल खत तीन कार के संसाधन वकास दे श दे खने को मलते ह
1. संसाधन वकास क सी मत स भावनाओं वाले दे श जैसे - ु वीय े व उ ण
म थल य े ।
2. संसाधन के अ प वकास के दे श जैसे - म य अ ांशीय वन, उ णक टबंधीय वन व
घास के मैदान, तथा
3. उ च तर य वकास के दे श जैसे - वृह नमाण उ योग दे श, भूम यसागर य दे श
तथा कु छ ए शयाई ग तशील दे श।
बोध न-3
1. सं साधन भू गोल के अ ययन का या मह व है ?
............................................................ .........................
............................................................ .............................
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च - 1.1 : संसाधन भू गोल का वषय- े
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दोन ह ि थ तयाँ उस दे श के संसाधन के समु चत दोहन म बाधा व प ह। इनका
अ ययन व व को जनसं या-संसाधन दे श म बांटकर कया जाता है जैसे - संसाधन
वकास क सी मत स भावना वाले दे श, अ प वकास अथवा उ च वकास के दे श आ द।
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(ii) मानवीय संसाधन के सव ण एवं मान च ण वारा िजसम जनसं या के मा ा मक व
गुणा मक घटक सि म लत कए जाते ह। पयावरणीय घटक म मु खतया वाकृ तक त व,
जलवायु, जल, म ी, पा रि थ तक य त व, भू- उपयोग आ द तथा मानवीय घटक म
जनसं या के मा ा मक व गुणा मक घटक के सव ण व मान च ण काय आते ह। इन
सव ण म उ े यानुसार व भ न मापक का चयन करते हु ए ारि भक, अ - व तृत या
व तृत हवाई एवं धरातल य सव ण स प न कए जाते ह िजनके आधार पर संसाधन के
नयोजन हे तु उ े यपरक मान च (thematic maps) बनाए जाते ह। वतमान समय म
वातावरण के येक कारक के वत एवं पृथक् सव ण व मान च ण क अपे ा अ धक
कौशल व उ तम बोध समाकलन वारा अ धकतर उ े यपरक मान च ह बनाए जाते ह।
ऐसे उपागम को भू म-तं उपागम (land system approach) क सं ा द गई है। इन
सभी सव ण व मान च ण व धय क ववेचना इकाई- 2 म तु त क गई है।
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1. सं साधन भू गोल का वषय- े कन- कन अं ग के अ तगत समझाया जा
सकता है ?
............................................................................................ .
............................................................................................ .
2. सं साधन सं र ण से या आशय है ?
............................................................................................ .
............................................................................................ .
3. सं साधन नयोजन के तीन अ भ न अं ग कौन-कौन-से ह ?
.............. .............................................................................. .
............................................................................................ .
4. सं साधन के मू यां क न क कौन-कौन -सी व धयाँ ह ?
............................................................................................ .
............................................................................................ .
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1.6.2 ादे शक उपागम (Regional Approach)
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3. नमाण या कृ ष दे श के सं साधन का भू- आ थक अ ययन करने के लए
कौन-सा उपागम अ धक ासं गक है ?
............................................................ ..........................
............................................................ ..........................
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ल ण क सम पता पर वचार कया जाता है जब क कम पल ी उपागम म स बि धत
े म स पा दत सम त काय क अ यो य या से ज य काया मक एक पता पर ।
व तु त: दोन उपागम पर पर पूरक ह ।
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काया मक दे श (Functional Regions) : ऐसे दे श िजनके सम त े फल म
एक-समान संसाधन एवं एक-समान संसाधन उपयोग मलता है जैसे - व नमाण या
कृ ष दे श।
ादे शक उपागम (Regional Approaches) : कसी दे श के भौगो लक त य का
स पूण अ ययन उस े को कु छ दे श म बांटकर येक दे श का अलग-अलग
अ ययन करना।
1.10 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. काया मकता, उपयो गता, पया तता, सामी य और अ भग यता।
2. िज मरमैन।
बोध न- 1
1. ार भ म भू गोल क दो मु ख शाखाएँ - भौ तक भू गोल और मानव भू गोल
वक सत हु । तदन तर मानव भू गोल क एक मु य शाखा के प म आ थक
भू गोल का वकास हु आ। वषय वशेषीकरण क वृि त के कारण काला तर म
आ थक भू गोल क एक उपशाखा के प म संसाधन भू गोल का वकास हु आ।
बोध न- 2
1. संसाधन भू गोल पृ वी -तल पर मानव स हत सम त संसाधन क वशेषताओं,
े ीय व भ नताओं, था नक वतरण व उपयोग त प का व ान है।
2. आ थक भू गोल म उ पादन, व नमय तथा उपभोग स ब धी सम त मानवीय
याएँ सि म लत ह जब क संसाधन भू गोल केवल उ पादन स ब धी याओं
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तक ह सी मत है। वाभा वकत: आ थक भू गोल का वषय- े संसाधन भू गोल
क अपे ा अ धक यापक है।
3. संसाधन भू गोल म।
बोध न- 3
1. वतमान भू-आ थक सम याओं के नवारण तथा संसाधन के संर ण व संध ृत
वकास हे तु ।
बोध न- 4
1. पाँच मु ख अंग के अ तगत - (i) ाकृ तक संसाधन और उनका उपयोग, (ii)
मानवीय संसाधन और उनक वशेषताएँ, (iii) संसाधन संर ण व नयोजन, (iv)
संसाधन मू यांकन - सव ण एवं मान च ण, और (v) संसाधन भू गोल क अ य
वषय से स ब ता।
2. संसाधन का ववेकपूण , सु नयोिजत, वै ा नक - व धस मत एवं समि वत
मू यांकन, दोहन, वकास और सदुपयोग।
3. संसाधन मू यांकन, संर ण और सदुपयोग।
4. सव ण, मान च ण और मापन।
बोध न - 5
1. दो उपागम - मब और ादे शक। ादे शक उपागम के पुन : दो भेद - पा मक
और कम पल ी।
2. पा मक ादे शक उपागम।
3. कम पल ी ादे शक उपागम।
1.11 अ यासाथ न
1. संसाधन भू गोल के अ ययन के मु य उ े य या ह ?
2. संसाधन क अवधारणा प ट क िजए।
3. संसाधन भू गोल का वकास म रे खां कत क िजए।
4. संसाधन भू गोल क प रभाषा एवं कृ त प ट क िजए।
5. संसाधन भू गोल के अ ययन का मह व न पत क िजए ।
6. संसाधन भू गोल के वषय- े क व तृत ववेचना क िजए ।
7. संसाधन भू गोल के अ ययन के उपागम को उनक ासं गकता के स दभ म सोदाहरण
समझाइए ।
22
इकाई 2: संसाधन: अवधारणाएँ, वग करण, का यक
स ा त तथा मू यांकन (Resource -
Concepts, Classification, Functional
Theory and Evaluation)
इकाई क परे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 संसाधन क संक पनाएँ
2.2.1 संसाधन क थै तक संक पना
2.2.2 संसाधन क काया मक संक पना
2.2.3 तरोधी व तट थ त व के साथ संसाधन के अि त व क संक पना
2.2.4 टॉक, संसाधन, आर त भ डार एवं संभा वत संसाधन क संक पना
2.2.5 संसाधन क पया तता क संक पना
2.2.6 संसाधन क यूनता क संक पना
2.2.7 संसाधन क अ भग यता क संक पना
2.2.8 संसाधन के सामी य क संक पना
2.2.9 संसाधन क प रवतनशील संक पना
2.2.10 संसाधन के संर ण क संक पना
2.2.11 संसाधन के संध ृत वकास क संक पना
2.3 संसाधन का वग करण
2.3.1 उपल धता सात य के आधार पर
2.3.2 उ पि त के आधार पर
2.3.3 उ े य के आधार पर
2.3.4 पा रि थक के आधार पर
2.3.5 न यकरणीयता तथा ाि त के आधार पर
2.3.6 संसाधन का साम यीकृ त वग करण
2.4 संसाधन का मू यांकन - सव ण तथा मान च ण
2.4.1 पयावरण घटक का सव ण तथा मान च ण
2.4.2 मानवीय घटक का सव ण तथा मान च
2.4.3 संसाधन सव ण क योजना तथा उपयोग
2.5 सारांश
2.6 श दावल
23
2.7 स दभ थ
2.8 बोध न के उ तर
2.9 अ यासाथ न
2.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने पर आप समझ सकेग क : -
संसाधन क व भ न संक पनाओं के प ट करण वारा संसाधन के वषय म या त
ां तय का नवारण करना,
संसाधन क अ ययन म यु त व भ न श दावल / वा यावल के उ चत अथ तथा
न हताथ का ान कराना,
संसाधन क अ भनव व सवमा य संक पनाओं जैसे - काया मक संक पना, संसाधन
संर ण व संध ृत वकास क संक पना आ द - के वषय म यापक समझ पैदा करना,
संसाधन क यूनता व पया तता स ब धी संक पनाओं के वषय म पू ज
ं ीवाद व
सा यवाद वचार क सोच प ट करना,
संसाधन संर ण व संध ृत वकास स ब धी संक पनाओं के मा यम से संसाधन के
नयोिजत, ववेकपूण उपयोग के मह व को तपा दत कर संसाधन के सदुपयोग के
त जनचेतना जागृत करना,
व भ न आधार पर संसाधन का सोदाहरण वग करण तु त कर जै वक व अजै वक
संसाधन के अ तर तथा इन दोन क पर पर स ब ता व अ यो या ता क कृ त
का ान कराना,
संसाधन मू यांकन क व भ न सव ण व मान च ण व धय से प र चत कराना,
तथा
संसाधन के ववेकपूण उपयोग के त े रत कर मानव क याण म सहभा गता
बढ़ाना।
24
वे कभी ि थर या नि चत नह ं होते। उनके उपयो गता गुण म अ भवृ कर उनके
प रमाण म व तार सदै व स भव है। यह काया मक संक पना संसाधन के वा त वक
व प को समझाती है।
संसाधन का दोहन व संर ण पर पर पूरक ह। सी मतता, वरलता, अनुपल धता, मू य
वृ आ द अनेक ऐसे कारण ह िजनसे संसाधन का संर ण आव यक है। यहाँ समझना
होगा क या संसाधन का अ योग संर ण है ? नह ,ं संसाधन का ववेकपूण व संतु लत
उपयोग ह संर ण है। पयावरण क गुणव ता म उ नयन संर ण क मू ल भावना है।
अत: संर ण का अथ संक ण न होकर यापक है। आंकलन, मू यांकन, सू चीकरण,
वै ा नक दोहन, संतु लत योग व संध ृत वकास संसाधन संर ण के मू लाधार ह।
संसाधन के वग करण के अनेक आधार ह जैसे - उनक कृ त (भौ तक, जै वक, मानवीय
या सां कृ तक), उपल धता, वतरण एवं बार बारता, योग, न यकरणीयता, वा म व
इ या द। उदाहरण वारा इनका बोध उपादे य है।
संसाधन के मू यांकन हे तु ाकृ तक एवं मानवीय संसाधन के व भ न घटक के सव ण
व मान च ण क आधु नक व धय का ान भी अपे त है।
25
मैकनाल (Mcnall) के अनुसार ाकृ तक संसाधन वे संसाधन ह जो कृ त वारा दान
कए जाते ह तथा मानव के लए उपयोगी होते ह।
Natural resources may be defined as “those resources which are
provided by nature and which are useful to man.”
जे स फशर (Jams Fisher) के श द म संसाधन वह कोई-भी व तु है जो मानवीय
आव यकताओं और इ छाओं क पू त करती है।
Resources are “anything that can be used to satisfy a need or
desire.”
ि मथ एवं फ ल स (Smith and phillips) के मत म मौ लक प से संसाधन
वातावरण क वे याएँ ह जो मानव के उपयोग म आती ह।
“Fundamentally resources are merely environment functioning in the
service of man.”
एक अ य प रभाषा के अनुसार संसाधन मानव वारा आंक लत तथा भरोसा कया हु आ
कसी पदाथ का वह गुण , मता, काय या सं या है जो मानव क प रस पि त बन
जाता है ( च -1)। क ह ं नि चत उ े य क पू त के लए जो भी साधन या उपाय काम
म लाए जाते ह, वे संसाधन कहलाते ह। इनम वयं मानव वारा अवसर का लाभ उठाने
क मता तथा वयं को क ठनाइय से बाहर नकालने क मता भी सि म लत है।
कोई-भी व तु, पदाथ या त व तभी संसाधन कहलाता है जब उसम मनु य क
आव यकताओं क पू त तथा काय स करने या लाभ दान करने क मता न हत हो।
इस ि ट से वयं मानव भी एक संसाधन है बि क यह कहना अ धक उपयु त होगा क
सम त संसाधन म मानव सव प र है। मानव वारा उपयोग म जाए जाने वाले सभी त व
- भू म, म ी, वन प त, जल, ज तु, ख नज आ द - संसाधन कहलाते ह।
संसाधन मानव क आव यकताओं क स पूणत: अथवा अंशत: पू त करते ह तथा मानव
क याण करते ह। इस कार मानव तथा संसाधन पर पर स बि धत व अ यो या त ह।
य य प ये त व तभी साथक होते ह जब मू यवान और उपयोगी बन जाए, उसे संसाधन
कहा जाता है।
27
1. भू म डल के सम त पदाथ को सं साधन बनने के लए उनम कौन-कौन-सी
ला णक वशे ष ताएँ होनी चा हए ?
............................................................ ...........................
.................................................................. .....................
2. ' सं साधन होते नह ं वे बनते ह ?' यह यु ि त कस व वान ने द ?
............................................................ ...........................
...................................................................... .................
संसाधन क मु ख संक पनाएँ न नानुसार ह -
28
वकास के साथ संसाधन का आकलन, दोहन और उपभोग म प रवतन इसका
माण है। इसी लए िजमरमैन ने कहा है क 'संसाधन होते नह ,ं बनते ह।'
29
काया मक गुण या काया मकता सवा धक मह व रखती है। काया मकता के मह व को
न न कार प ट कया जा सकता है-
1. य द कसी भौ तक पदाथ म काया मकता को जोड़ दया जाए तो वह संसाधन बन
जाता है जैसे - कोयला, लोहा, जल व युत उ पादन के लए योग क जा रह न दयाँ
आ द।
2. य द क ह ं अभौ तक त व म काया मकता को जोड़ दया जाए तो वह भी संसाधन
बन जाते ह जैसे - तकनीक द ता, श ा, आ थक योजनाएँ आ द।
3. य द कसी संसाधन म से काया मकता को घटा दया जाए तो वह भी अनुपयु त
संसाधन रह जाता है जैसे - कसी कृ ष भू म का वह भाग जो मृदा अपरदन के कारण
अनु पादक हो जाता है।
संसाधन ग या मक : पृ वी ह का स पूण पदाथ नि चत प से ि थर और नयत है।
पर तु इस स पूण पदाथ का कु छ भाग जो मानवीय संसाधन से स बि धत है, सदै व
प रवतनशील रहता है। एक व तु तभी संसाधन बन सकती है जब क वह मानवीय इ छाओं
को संतु ट करने के लए काय मता ा त कर लेती है। संसार के उदासीन त व ने अपनी
काया मक मता को मानव यास वारा ा त कया है और वे संसाधन बन गए ह। जैव
भौ तक पयावरण के त व तब तक तट थ पदाथ होते ह जब तक क मनु य उनक
उपादे यता क अनुभू त न कर ले, उनक आव यकता पू त क मता का मू यांकन न कर
ले तथा उनके उपयोग के साधन वक सत न कर ले। ये तीन दशाएं प रवतनशील ह
अ तु संसाधन प रवतनशील है। पर तु य द कोई व तु मानव क आव यकता पू त के लए
काय नह ं करती तब यह संसाधन नह ं मानी जाती बि क वह एक उदासीन त व ह
रहे गी।
इस संसाधन सं या और काया मकता म मानवीय ान और मता के साथ-साथ वृ
या व तार होता रहता है। वा तव म व भ न पदाथ के बारे म अपने ान म वृ करके
मानव ने उदासीन त व को लगातार एक के बाद दूसरे संसाधन म प रव तत कर दया है
तथा संसाधन भ डार का व तार कर लया है। जब मानव ने ऊजा के प म कोयले के
योग के बारे म ान ा त कया तब उसके संसाधन म व तार हु आ। येक आ व कार
और खोज ने मानव के संसाधन म व तार कया है। पूवकाल म नद का जल ाकृ तक
प रवहन के मा यम के प म एक संसाधन था। त प चात ् मानव को कृ ष के लए जल
क आव यकता हु ई तब उसने नद जल से संचाई करना ार भ कया। उसके बाद मानव
ने वा हत जल से ऊजा उ प न करने के स ब ध म सीखा, उसने नद पर बांध बनाकर
जल का व युत उ पादन के लए योग कया। य द नद के पूव काल के काय क इससे
तुलना क जाए तो नद के संसाधन के प म काय करने म कई गुना वृ हो गई है।
इस कार संसाधन व तार मानवीय इ छाओं और यो यताओं से स बि धत है। कोयला
50 वष पहले क तु लना म आज कह ं अ धक उपयोगी और आव यकताओं क पू त करने
म स म है। अत: संसाधन म मानवीय ान और तकनीक द ता म वृ के साथ -साथ
व तार होता जाता है।
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संसाधन के अ तरे क और अनु चत योग से इनम संकु चन भी हु आ है। हम अपने ख नज-
न ेप का योग करके उ ह समा त करते जा रहे ह। संयु त रा य अमे रका म 10
करोड़ एकड़ भू म अनु चत योग के कारण कृ ष के लए पूणत: बेकार हो चु क है। वन
के अ धाधु ध काटे जाने के कारण संसार के बहु त-से भाग म कृ ष भू म संसाधन म भार
कमी हु ई है। संसाधन म जब भी संकु चन होता है तब तरोध (resistances) म व तार
होता है। तरोध से ता पय संसाधन के योग म कृ त वारा उ प न क जाने वाल
बाधाओं से है, जैसे- बंजर भू म, अनु पादक म ी, वनाशकार बाढ़, भू क प, बीमा रयाँ
आ द। व भ न दे श म यु से भी संसाधन का संकु चन होता है। इस कार संसाधन म
ग तकता पाई जाती है। ये नि चत या ि थर नह ं है। वे मानवीय अ भवृि त अथात ् मानव
क इ छाओं और यो यताओं के अनुसार व ता रत एवं संकु चत होते रहते ह। इस लए
संसाधन ग तक होते ह।
इस कार संसाधन का का यक स ा त यह प ट करता है क पदाथ से उपयो गता का
सृजन करना ह संसाधन कहलाता है और य द उपयो गता का सृजन नह ं होता तो उसे
संसाधन क ेणी म सि म लत नह ं कर सकते। कसी पदाथ को संसाधन क े णी म
सि म लत करने के लए उसक का यक मता (functional ability) मह वपूण थान
रखती है। मानव संसाधन के तकनीक तथा सां कृ तक प रवतन के फल व प आ थक
वकास म प रवतन होता रहता है जैसे - वन के काटे जाने पर या खान से खनन के
उपरा त उनके व प म प रवतन मु य थान रखता है।
संसाधन मानवकृ त : कृ त का कोई पदाथ केवल उसी समय संसाधन बनता है जब वह
कसी मानवीय आव यकता को पूरा करने क मता ा त कर लेता है। उदाहरणाथ,
पृ वी -तल पर बहने वाल न दय के जल म व युत उ पादन का गुण तो सदै व से ह
व यमान रहा है पर तु जब मानव ने कसी जल पात से गरती हु ई धारा से कोई
टरबाइन चलाकर उससे जल व युत उ प न क तभी उस जलधारा को एक संसाधन का
प मला।
इसी कार पृ वी के गभ म कोयला, पे ोल और ाकृ तक गैस के भ डार करोड़ वष से
व यमान रहे ह पर तु जब मनु य ने इन ाकृ तक पदाथ का योग धन के प म
करना आर भ कया केवल तब ह इनको आ थक संसाधन माना गया। ताँबा, लोहा,
ज ता, सोना आ द ख नज लाख वष तक मनु य से अ ात रहे । वे पृ वी तल पर
व यमान अव य थे पर तु वे मनु य क कसी-भी आव यकता क पू त नह ं करते थे,
अत: वे उस काल म संसाधन नह ं थे। पर तु जब मानव ने इ ह काया मक मता दान
क और इ ह ने मानव क आव यकताओं को पूरा करना ार भ कर दया तब ये संसाधन
बन गए। भू म, म ी, वन, ज तु आ द संसाधन के वकास क भी यह ि थ त रह है।
ये सभी भौ तक पदाथ करोड़ वष से पृ वी -तल पर ि थत रहे ह पर तु ये संसाधन तब ह
बन पाए जब मनु य ने इनका योग करके अपनी आव यकताओं को पूरा करना शु
31
कया। इस कार उपयु त ववेचन से प ट हो जाता है क 'संसाधन होते नह ं बि क
उनका नमाण कया जाता है।' वे मानव यास से बनते ह।
कृ त का कोई त व जैसे - भू म या म ी कस सीमा तक संसाधन बन पाता है यह बात
केवल भौ तक गुण - थलाकृ त, उवरता, गहराई आ द - पर ह नभर नह ं करती वरन ्
मानवीय गुण , आव यकताओं, ान, तकनीक आ द पर भी नभर करती है । सं ेपत:
कृ त के कसी त व का संसाधन बन जाने का काय उस े क कृ त, मानव और
सं कृ त तीन क पार प रक याओं पर आधा रत रहता है।
काया मक संक पना को भा वत करने वाले त व
ात य है क कृ त संसाधन क जननी तभी कह जा सकती है जब कृ त द त
पदाथ क काया मकता बढ़े िजसे न न ल खत त व भा वत करते ह -
मनु य क आव यकताएं : मनु य अपनी आव यकताओं से े रत होकर कृ त का दोहन
करता है। उदाहरण के लए, गृह नमाण के लए उसने कृ त से प थर का खनन कया,
धन के लए वन को काटकर लकड़ी ा त क , ऊजा के लए न दय पर बांध बनाकर
जल व युत पैदा क और संचाई के लए न दय से नहर नकाल ।ं यह या अना द
काल से चल आ रह है।
आ व कार : ाथ मक अव था म आ व कार के अभाव म कृ त का अ धक दोहन स भव
नह ं था। जैसे-जैसे आ व कार बढ़ते गए ाकृ तक पदाथ का दोहन भी बढ़ता गया।
कु शलता : संसाधन क काया मक संक पना का तपादन तभी स भव है जब कसी
पदाथ को उपयोग करने क कु शलता समाज म हो। उदाहरण के लए, नेपाल या भू टान म
अपार ाकृ तक स पि त भर पड़ी है क तु ये दे श कु शल तकनीक के अभाव म अपने
ाकृ तक संसाधन का समु चत उपयोग नह ं कर सके। अब ऐसे दे श वदे श से तकनीक
सहायता के प म पू ज
ं ी और कु शल म का आयात कर रहे ह।
मनु य : मनु य म ाकृ तक स पदा को काया मक प दान करने क अपार मता है।
एक कु शल एवं तकनीक स प न रा ह ाकृ तक स पदा का उपयोग करके उसे
काया मक प दान कर सकता है। इस ि ट से िजन दे श म अ प जनसं या क
सम या है वे दे श संसाधन के साथ काया मक स ब ध था पत नह ं कर सकते। दूसर
ओर अमे रका, इं लै ड आ द तकनीक स प न दे श ने अपने दे श के संसाधन से घ न ठ
काया मक स ब ध था पत कए ह।
सां कृ तक वकास : जो दे श वै ा नक और तकनीक उ न त म अ गामी ह उनम
ाकृ तक पदाथ का समु चत उपयोग कया गया है। उदाहरण के लए, जापान एक ऐसा
दे श है िजसने ाकृ तक स पदा का पूण उपयोग करके संसाधन से काया मक स ब ध
था पत कए है पर तु भारत जैसे दे श अपनी अपार भू म व जनसं या के बावजू द कु शल
तकनीक के अभाव म संसाधन से काया मक स ब ध था पत नह ं कर पाए ह।
जलवायु : अनुकू ल जलवायु एक ओर जहाँ ाकृ तक स पदा को संसाधन के प म
वक सत करने म सहायक होती है (जैसे क भू म यरे खीय दे श म) वह ं दूसर ओर
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ीनलै ड और आक टक जैसे ठ डी एवं कठोर जलवायु वाले दे श म मनु य का ाकृ तक
स पदा से काया मक स ब ध नह ं जु ड़ पाया है।
इस कार संसाधन क काया मक संक पना केवल उपयो गता मलने पर ह याशील हो
सकती है, अ यथा नह ं। इसको याशील करने म मनु य एवं कृ त दोन का ह
समायोजन अपे त है।
33
अ छ पड़ौस नी त, पू ज
ं ी एवं म क उपल धता, घरे लू एवं वदे शी बाजार, आधु नक
तकनीक का ान आ द।
संसार क सभी भौ तक व अभौ तक व तु एँ इन तीन े णय अथात ् संसाधन, तरोध
तथा उदासीन त व के अ तगत आती ह। मानव इ तहास के ारि भक काल म संसाधन
कम थे तथा तरोधक एवं उदासीन त व अ धक। मानव ने अपनी तकनीक द ता से
उदासीन त व तथा कु छ तरोध को भी संसाधन म बदल दया। कसी-भी उ नत रा
म उदासीन त व तथा तरोध क अपे ा संसाधन अ धक होते ह जब क पछडे समाज
म संसाधन क अपे ा तरोध व उदासीन त व अ धक होते ह।
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उनक मा ा अपे ाकृ त अ धक एवं सु र त हो तथा उनके खनन से मानवीय
आव यकताओं क पू त हो सके। इस त य को हम संसाधन क पया तता क संक पना
से समझ सकते ह। उदाहरणाथ, उ तर भारत क सदावा हनी न दय म जल क अपार
मा ा होने से उन पर कई योजनाएँ कायाि वत ह और इसी लए वे संसाधन क ेणी म
आती ह। इसके वपर त पि चमी राज थान के जल संसाधन अपनी यूनता के कारण
संसाधन क ं को ट म सि म लत नह ं हो सकते। संसाधन क पया तता क संक पना
वा तव म वै ा नक उ न त एवं तकनीक ान पर नभर करती है।
कु छ पू ज
ं ीवाद वचारक संसाधन क यूनता म व वास करते ह। उनका मत है क
ाकृ तक संसाधन अ य त सी मत ह तथा जनसं या क वतमान ती वृ दर के चलते
नकट भ व य म शी ह इनक कमी हो जाएगी। फल व प व व को पा रि थ तक
संकट और आ थक क ट उठाने पड़गे। स अथशा ी मा थस क मा यता थी क
संसाधन ग णतीय अनुपात म बढ़ते ह जब क जनसं या या मतीय अनुपात म। इसका
दु प रणाम भ व य म संसाधन क यूनता के प म ि टगोचर होगा।
ात य है क संसाधन क पया तता वषयक संक पना ने जब ाकृ तक संसाधन के
अ त-दोहन पर बढ़-चढ़कर बल दया तब त या व प संसाधन क यूनता वषयक
संक पना बलवती हु ई और उसने संसाधन के संर ण व संध ृत वकास क नई संक पना
को ज म दया।
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अ डमान वीप समू ह के औज जा त के लोग कोई-भी आ थक या नह ं करते और
मानव समाज म न ह उनका कोई व श ट योगदान है, इस लए मानवीय ेणी म होते हु ए
भी वे संसाधन क को ट म नह ं आते। इसी ि ट से हम कह सकते ह क पूव हमालय
के पे ो लयम े तो संसाधन क को ट म आते ह क तु पि चमी हमालय के पे ो लयम
भ डार को हम संसाधन नह ं कह सकते य क वे मानवीय उपयो गता एवं सामी य से
परे ह।
36
4. वा त वक कमी क अवधारणा : आधु नक युग तथा भ व य म ाकृ तक संसाधन
क उ तरो तर कमी आक जा रह है।
वा तव म ये अव थाएं मानव क तकनीक मता और आ थक वकास क अ भ यि त
ह। वे सभी भौ तक त व जो आज है; आ दकाल से पयावरण म मौजू द ह। पर तु मानव
के पास तब उनके उपयोग का ान नह ं था। इसका कारण ान एवं तकनीक क कमी
थी। अत: उस काल म संसाधन क सापे कमी थी। बाद म नि य पदाथ के
पा तरण क ौ यो गक का वकास हु आ और इसके लए सामािजक संगठन भी बने।
फलत: दुलभता आ ध य म बदल गई, य य प ाकृ तक पयावरण वह था। औ यो गक
वकास के साथ संसाधन क मांग बहु त तेजी से बढ़ । तकनीक वकास के कारण उनक
उपल धता तो बढ़ , फर भी मांग क सापे म कमी महसू स होती रह । ौ यो गक के
असी मत वकास क सु वधा का उपयोग करके िजस ढं ग तथा िजतनी मा ा म संसाधन
का दोहन हो रहा है, उसके जैव-भौ तक पयावरण का इतना अवनयन एवं दूषण हो रहा है
क अब संसाधन क सापे और वा त वक दोन कार क कमी हो सकती है। संसाधन
क यह ग या मकता मानव क सं कृ त एवं ि टकोण का प रणाम है। इस तरह संसाधन
एक सां कृ तक अवधारणा है।
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अमे रक अ ययन समू ह के अनुसार संर ण ाकृ तक संसाधन के योग से समाज म
वतमान तथा भ व य म अ धकतम लाभ क गार ट का यास है। संर ण का आशय
संसाधन का उपभोग ब द करना नह ं है अ पतु उस यव था से है िजसके वारा वतमान
संसाधन को अ धका धक समय तक उपयोग कया जा सके। दूसरे श द म, संर ण का
आशय संसाधन के ववेकपूण उपयोग से है। मैकनॉल के अनुसार संर ण क तीन मु ख
वशेषताएँ ह - (i) संर ण एक बचत या है, (ii) संर ण से आशय संसाधन क
बबाद रोकने से है, और (iii) संर ण से आशय संसाधन के ववेकपूण उपयोग से है।
वष 1968 म पे रस म जैवम डल के संसाधन के संर ण एवं ववेकपूण उपयोग के
वै ा नक आधार पर वशेष का थम अ त: सरकार अ धवेशन हु आ िजसम मु य
वचार ब दु यह था क उ पादन म ती वकास के प रवतन से पृ वी ह का जैवम डल
यापक प से दू षत हो रहा है। ठोस, तरल और गैसीय अप श ट पदाथ क मा ा
संसाधन के योग क मा ा के अनुपात म बढ़ती जा रह है और यह अप श ट पदाथ,
िजसका कृ त शोषण नह ं करती, एक त होकर वातावरण को दू षत कर रहा है। कृ त
संर ण म वा य पहलु ओं का मह व नर तर बढता जा रहा है िजसके अ तगत जल
और वायु दूषण को दूर करना आव यक है। वै ा नक ने वातावरण के पण का काय
ार भ कर दया है िजसके अ तगत यापक प से जैवम डल का पा तरण करके
मनु य के जीवनयापन के लए इ टतम दशाएँ उपल ध कराने का यास कया जा रहा है।
संर ण के ल य : कृ त के संर ण का मु ख ल य यह है क मानव समाज और कृ त
के अ त: स ब ध म कारण-और- भाव क पहचान क जाए। इसके साथ ह मानव क
याओं के हा नकारक प रणाम के नवारण के लए व भ न उपाय को अपनाना भी एक
ल य है, य य प यह एक क ठन ल य है। सं ेप म, कृ त-संर ण के ल य को न न
कार से रखा जा सकता है-
1. पयावरण दूषण को रोकना िजससे मानव वा य क सु र ा क जा सके,
2. ाकृ तक संसाधन के ववेकपूण उपयोग का वकास करना ता क वे द घकाल तक
ा त होते रह, तथा
3. नि चत े म कु छ हा नकारक आ थक याओं को रोकना।
ात य है क वतमान समय म 'संर ण' श द का योग संक ण अथ म नह ं कया जाना
चा हए बि क वातावरण क गुणव ता म सु धार के यापक अथ म समझना चा हए।
कृ त दोहन एवं कृ त संर ण : कु छ पा चा य अथशा ी यह व वास करते ह क
जैवम डल के दूषण और उसक अवन त को ज मदर के ढ़तापूवक नय ण,
औ यो गक मताओं के अवनमन, कु छ के प रवहन साधन के वलोपन आ द उपाय
वारा रोका जा सकता है पर तु यह अस भव है क मानव के इ तहास और वकास के
पथ को रोका जाए। भ व य म भी उ योग का वकास जार रहे गा, ख नज का खनन
बढ़े गा और ऊजा के उपयोग म वृ होती रहे गी। तकनीक ग त को रोकना उ चत उपाय
नह ं है बि क कृ त को संर त करके उसका उपयोग कया जाना चा हए। कृ त का
38
संर ण और इसका दोहन पर पर वरोधी नह ं है बि क ये दोन अ तस बि धत ह। कृ त
का संर ण अव य कया जाना चा हए ता क उसका दोहन कया जा सके।
इस कार सामािजक वकास हे तु कए गए उ पादन म दो सम याएँ आती ह - (i)
ाकृ तक संसाधन का संर ण एवं पुन पादन , तथा (ii) उनका ववेकपूण उपयोग। इन
दोन सम याओं को एक-साथ रखकर कृ त का ववेकपूण उपयोग अपे त है। कृ त के
ववेकपूण उपयोग के कु छ मू ल स ा त न न कार ह -
1. ाकृ तक संसाधन का योग वातावरण क दशाओं के अनु प कया जाना चा हए,
2. क हं ाकृ तक संसाधन के योग से वातावरण के अ य त व को त नह ं पहु ँ चनी
चा हए,
3. न यकरणीय संसाधन का योग इस कार कया जाना चा हए क उनका पुन पादन
स भव हो सके तथा
4. अन यकरणीय संसाधन (ख नज धन, धातु पदाथ आ द) का योग वै ा नक ढं ग से
आव यकतानुसार रख यापक प से कया जाना चा हए ता क उनके न ेप का
भ व य म ल बे समय तक उपयोग स भव हो सके।
संसाधन का वकास एवं संर ण क वृि तयाँ : संसाधन का नवीकरण तु र त यान दे ने
का वषय है। मनु य अपने तकनीक ान तथा बौ क शि तय से कृ त क
अथ यव था को संतु लत रख सकता है। व तु त: भू म, वन, जल तथा पशु संसाधन
पर पर स बि धत व अ यो या त ह। कसी-भी संर ण क काय णाल इसी सै ाि तक
स य के अनु प होनी चा हए। आव यकता इस बात क है क नवीकरण-यो य संसाधन से
स बि धत एक ऐसा नवीन उपागम अपनाया जाए िजसम अनेक अ तस बि धत तकनीक
का सामंज य हो। व व क अथ यव थाएँ ती ग त से वक सत हो रह ह, साथ ह वे
अनेक सम याओं से त भी ह। इस प र े य म संसाधन को उ नत करने तथा संवारने
क महती आव यकता है। व तु त: संर ण मानव जा त के लए एक अ नवाय आव यकता
है। सभी वक सत तथा वकासशील दे श म संर ण प त क न ववाद आव यकता है।
इस स दभ म यह सावभौम स य है क ाकृ तक संसाधन का योग इस तर तक कया
जाना चा हए िजससे अ धका धक मनु य का क याण हो सके तथा अ धका धक समय तक
संसाधन क पू त होती रहे । दूसरे श द म, संर ण क तकनीक के योग से यह संतु लन
ा त कया जा सकता है िजसे 'ि थर े ' (sustained field) कहा जाता है। इसका
अ भ ाय यह है क कसी नि चत समय म िजतने संसाधन का हम उपयोग करते ह
उतनी ह आपू त भी होती रहनी चा हए ।
संर ण के ि टकोण : संर ण का अथ यि त तथा समय के साथ प रवतनशील है ।
सामा यत: यह श द संसाधन क कमी से स बि धत है। आर भ म संर ण को कु छ
वशेष ि टकोण से जोड़ा गया। पहला ि टकोण प रगणना तथा सव ण के वारा
संसाधन क सीमाएँ नधा रत करने के स ब ध म था। दूसरा ि टकोण संसाधन ाि त
क सीमाएँ समा त करने तथा उ पादन को टालने क धारणा से स बि धत था। तीसरा
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ि टकोण यथास भव संसाधन क नरथकता को कम करने के सतत यास तथा
बहु योग के ो साहन क आव यकता से स बि धत था। चौथा ि टकोण संर णा मक
पर पराओं से स बि धत रहा है जो क वकास क ती ग त के कारण होने वाले
संसाधन के वनाश से कृ त क सु र ा करता है। इन सभी स ा त म संसाधन के
संर ण म उनके भौ तक, आ थक तथा गुणा मक मह व पर बल दया गया है ।
मानव और संसाधन के अ तस ब ध का एक अ य नवीनतम सू ीकरण भी है जो
संर णा मक वचार से स बि धत तो है क तु इसके वकास का ेय भू गोलवेताओं क
अपे ा जीववै ा नक को है। जीववै ा नक ने पा रि थ तक उपागम के मा यम से
संसाधन के संर ण क आव यकता पर बल दया। यह उपागम ाकृ तक व व को
अ तस बि धत प त के समूह म प रव तत सा य क ि थ त म दे खता है िजसम
मनु य एक अस तु लनकार त व के प म ि टगोचर होता है। इससे अनेक ज टलताएँ
पैदा होती ह। इन ज टलताओं का अ ययन बहु-छाँट, णाल - व लेषण व धतं आद
संसाधन क सम याओं को सु लझाने वाल व धय का अ ययन ह वतमान म अभी ट है।
संसाधन संर ण एवं प रर ण : संसाधन संर ण (conservation) से ता पय ाकृ तक
संसाधन को भ व य म उपयोग के लए सु र त करना है। इसके वपर त प रर ण
(preservation) का अथ कसी वतमान संसाधन का मानव वारा उपयोग न कए जाने
से है। संसाधन संर ण आ दोलन 19वीं सद के उ तरा म आर भ हु आ था जो अब
वतमान पीढ़ का उ तरदा य व बन गया है। संसाधन संर ण का अथ संसाधन को बचाए
रखकर उ ह जीवा म म प रव तत करना कदा प नह ं है। प रर ण क आव यकता तब
होती है जब कसी संसाधन का अि त व संकट म होता है, जैसे कसी पौधे या ज तु के
अि त व के लए कया गया ब धन उसका प रर ण कहलाएगा ।
संर ण के कार : संर ण के मु ख चार कार न नानुसार ह –
1. जा त संर ण (Species conservation) : इसके अ तगत जैव जा तय
(िजनका अि त व संकट म है) का संर ण सि म लत है। काले हरण, गर संह आ द
दुलभ जीव का संर ण इसी ेणी म आता है,
2. नवा य संर ण (Habitat conservation) : नवा य संर ण का अथ कसी
पा रि थ तक तं को संर त करना है। मनु य क आ थक याओं से ाय: जीव-
ज तु ओं के आवास थल म अवांछनीय प रवतन हो जाते ह तथा उनका आवास
थल संकट त हो जाता है। इस ि थ त म आवास थल का संर ण आव यक हो
जाता है।
3. भू-उपयोग संर ण (Land use conversation) : भू म के व वध उपयोग म
त प ा बढ़ती है अतएव भू म उपयोग म सांमज य बनाए रखने क आव यकता
होती है। उदाहरणाथ, कसी नगर के एक-ह भाग म अ धका धक आवास के नमाण
को रोकने के लए नगर के चतु दक अ य आवासीय े बना दए जाते ह। इस
यव था से नगर का समु चत भू-उपयोग स भव होता है।
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4. सृजना मक संर ण (Creative conversation) : मनु य वारा न मत भू य
जैसे - बांध, व य वहार, गमनागमन के माग आ द - का संर ण इसके अ तगत
आता है। संसाधन संर ण क दशा म नए संसाधन तथा संसाधन के वैकि पक
उपाय क खोज भी हो रह है। अब मानवीय याकलाप इस कार होने चा हए
िजससे उसके प रवेश क गुणव ता का हास यूनतम हो। इसके लए उप ह य णाल ,
सु दरू संवेदन तकनीक तथा हवाई छाया च ण का योग बढ़ गया है। संसाधन संव न
आज सबसे मह वपूण प बन गया है। मानव वह न े म संसाधन क स भा यता
क खोज क जा रह है। अ टाक टका महा वीप स ब धी खोज इसका माण है।
मनु य अ त र के त भी सचेत है। पृ वी ह पर जनसं या के व तार क
सीमाओं को यान म रखते हु ए अ त र म अ य ह पर मानवीय नवास क
स भावनाओं क खोज जार है। ये सभी उपाय संसाधन के सृजना मक संर ण क
दशा म अ सर ह।
ाकृ तक संसाधन के संर ण के लए नयोजन : य द वतमान क भां त संसाधन का
अ धाधु ध दोहन एवं असावधानीपूवक योग कया जाता रहा तो शी ह मानव क
उ न त एवं मानव जीवनयापन तर क स प नता को बनाए रखना अस भव हो जाएगा।
जैसा क व दत है संर ण का अथ द घकाल न लगातार उ पादन क पू त के लए
ाकृ तक संसाधन का ववेकपूण योग, उनका प रर ण एवं न यकरणीय संसाधन के
पुन पादन से है। अत: ाकृ तक संसाधन के इस कार से संर ण हे तु नयोजन
अ याव यक उपाय है। इस नयोजन के अ तगत मु यत: न न पहलु ओं पर वचार
अपे त है -
1. सव थम कसी े या दे श या रा को ाथ मक इकाई के प म माना जाना
चा हए। इस े के संसाधन-आधार को ात करना आव यक है िजसके लए व भ न
कार के ात एवं स भा वत संसाधन क मा ा, गुण , वशेषताओं आ द के बारे म
जानकार ा त क जानी चा हए। इस काय के लए वातावरण के व भ न त व के
पार प रक अ तस ब ध के स ा त को यान म रखना ज र है िजसके अनुसार
वातावरण के कसी एक त व का दोहन दूसरे त व को भी भा वत करता है।
2. दे श म िजन संसाधन क मा ा सी मत है या जो संसाधन यशील अथात ्
अन यकरणीय है उनका स पूणत: वै ा नक ढं ग से दोहन एवं मह वपूण आव यक
काय के लए ह योग कया जाना चा हए।
3. दे श के ऐसे संसाधन के वकास के लए य न कए जाने चा हए िजनक
उ पादकता म वृ या व तार कया जाना स भव हो। उदाहरणाथ, मृदा संसाधन को
अ छे खाद एवं उवरक के योग तथा स यावतन वारा द घकाल तक अ धक उ पादक
बनाए रखा जा सकता है। इसके अलावा कम उपयु त या न न को ट के संसाधन का
भी तकनीक वकास से मह वपूण उपयोग स भव है। उदाहरणाथ, बे समर म से
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इ पात नमाण के लए कभी यथ समझे जाने वाले न न ेणी के लौह-अय क का
भी लौह- नमाण म योग कया जाना अब स भव हो सका है।
4. दे श के उन संसाधन को जो मानव क त काल न आ थक आव यकताओं क पू त
क ि ट से वतमान म कम उपयोगी ह , न ट नह ं करना चा हए य क भव य म
उनका तकनीक वकास से भावी आ थक दशाओं के अ तगत अ धक कु शल उपयोग
स भव हो सकता है।
5. सी मत मा ा म पाए जाने वाले अ याव यक संसाधन क उपल धता को बनाए रखने
के लए यह ज र है क व ान एवं तकनीक के वकास से उनके वक प अथात ्
त थानी संसाधन का पता लगाया जाए। य द वैकि पक संसाधन न यकरणीय हो तो
अ धक लाभ द रहता है।
6. दे श क जनसं या म वृ के कारण एक ओर जहाँ आ थक आव यकताओं म वृ
हो रह है वह ं दूसर ओर व ान एवं तकनीक के वकास के फल व प वैकि पक
नए संसाधन क नर तर खोज हो रह है। इन दोन के समयानुसार प रव तत या
ग या मक अ तस ब ध क जानकार ा त करने के लए दे श के संसाधन-आधार
का यौरा तवष तैयार कया जाना चा हए िजससे संसाधन क मांग एवं आपू त क
यूनता अथवा पया तता का ान हो सके और इन सम याओं को हल करने के
आव यक उपाय कए जा सक।
7. संसाधन-सि म का स तु लत एवं बहू ेशीय उपयोग कया जाना चा हए िजससे
उनक कम-से-कम मा ा का योग करके अ धक-से-अ धक उपयो गता ा त क जा
सके।
8. कसी भी े के संसाधन स तु लत प से वत रत नह ं होते। इससे कु छ भाग म
संसाधन का अ य धक दोहन हो जाता है। ऐसे भाग के संसाधन का तु र त
पुन पादन और वकास कया जाना चा हए। इसके वपर त कु छ भाग के संसाधन
का कम वकास हो पाता है। यह अ पदोहन भी इतना ह हा नकारक है िजतना क
अ तदोहन। इससे मानव के जीवनयापन तर म े ीय अ तर उ प न हो जाता है जो
समाज म अस तोष को बढ़ाता है। अत: ऐसे े म संसाधन के समान प से
संतु लत दोहन पर जोर दया जाना चा हए िजससे भौगो लक प से स तु लत
ादे शक वकास हो सके।
9. कसी-भी रा के ाकृ तक संसाधन के संर ण- नयोजन के लए यह आव यक है क
वहाँ के नवा सय को उनके ववेकपूण उपयोग के स ब ध म श त एवं श त
कया जाए। वहाँ क मानव-शि त के बौ क वकास के लए उ चत सु वधाएँ जु टाई
जाएँ ता क रा व उसके नाग रक का समु चत आ थक, सामािजक एवं सां कृ तक
वकास हो सके।
10. संसाधन के संर ण- नयोजन के लए रा वारा आव यक नयम बनाए जाने चा हए
िजनके पालन एवं या वयन के लए शास नक यव था से व भ न संगठन का
वकास कया जा सके।
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न कष प म कहा जा सकता है क ाकृ तक वातावरण मे उपल ध संसाधन को
बहु मू य स पि त समझकर उनका इस कार सदुपयोग एवं भ व य के लए संर ण कया
जाना चा हए क वह कसी दे श एवं उसक वतमान एवं भावी पी ढ़य के लए अ धकतम
लाभदायक स हो सके। इसी कार लु त ाय: संसाधन का प रर ण भी आव यक है
ता क उनके अि त व क सुर ा हो सके।
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Strategy) म सन ् 1980 म कया गया ले कन यह व तारपूवक सन ् 1987 म
पयावरण एवं वकास पर व व आयोग (World Commission on Environment
and Development - WCED) वारा चा रत कया गया। इस आयोग के तवेदन
Our Common Future िजसे टलै ड तवेदन (Brudtland Report) के नाम से भी
जानते ह, म सव थम इसे यवि थत प म प रभा षत कया गया। इसके अनुसार भावी
पीढ़ क अपनी आव यकताओं को पूरा करने क मता म ास कए बना वतमान पीढ़
क आव यकताओं को पूरा करना ह संध ृत वकास है।
संध ृतता या पोषणीयता के लए एकल प रभाषा वभ न वषय से वचार को लेकर
वक सत क गई है िजनम अथशा से ‘धीमा वकास या वकास नह 'ं (Slow Growth
or No Growth), समाजशा से व ध क समालोचना (Critique of Technology)
तथा पयावरणीय अ ययन से स वकास (Ecodevelopment), संसाधन-पयावरण
(Resource-Environmental Links) आ द मु ख ह। इनके आधार पर संध ृत वकास
क प रभाषा का व भ न ि टकोण से व तार हु आ। वतमान मे संध ृत वकास के अनेक
समानाथ प रभाषी श द का योग च लत है िजनम पोषणीयता (Sustainability),
पोषणीय वृ (Sustainable Growth), पोषणीय आ थक वकास (Sustainable
Economic Development) मु ख ह। ऑ े लया म इसे पा रि थ तक य पोषणीय
वकास (Ecologically Sustainable Development- ESD) कहा गया है। भारत म
पोषणीय वकास, जीवनधारणीय वकास, टकाऊ वकास, द घकाल न वकास, सदाबहार
वकास आ द को संध ृत वकास के समानाथ प म योग कया गया है।
वष 1987 म यू े न के चरनो बल परमाणु वपदा के बाद पयावरण एवं वकास के व व
आयोग ने लंदन म एक तवेदन तु त कया िजसे टलै ड तवेदन (Brudtland
Report) के नाम से जाना जाता है। इसके मु ख ो हरलेम टलै ड (Gro Horlem
Brudtland) ने शी ह इस श दावल म प रवतन कया तथा 'संध ृत ' श द को अपनाया
जो ' वकास क सीमा' को तपा दत करता है। टलै ड ने वकास क सीमा को प ट
करते हु ए बताया क इस सीमा का अथ नग य वकास नह ं है वरन ् वतमान तकनीक क
ि थ त तथा सामािजक संगठन वारा पयावरणीय संसाधन के उपयोग तथा मानवीय
ग त व धय के भाव को सहन करने क जैवम डल क मता म ि थत सीमा पर बल
दे ना है। ल बे समय से यह मा यता रह है क पृ वी तथा इसके नवा सय का भ व य
कृ त के अनुर ण एवं संचय क मानवीय मताओं पर आधा रत है। कृ त द त
जीवन नवहन यव था को बचाने म मानवीय मताओं म कमी आते ह पयावरण
असंतु लत हो जाता है। इस वषय म संध ृत वकास से स बि धत कु छ मह वपूण संग ह
- (i) सभी न यकरणीय संसाधन का पूण उपयोग संध ृत है, (ii) पृ वी पर जीवन क
व वधता संर त है, तथा (iii) ाकृ तक पयावरणीय तं का हास कम हो गया है ।
संध ृत वकास क मा यता है क उपयु त व ध एवं सामािजक यव था वारा
पा रि थ तक तं से यथे ठ संसाधन क ाि त हो सकती है। यह ऐसा वकास नह ं जो
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पयावरण म व यमान संसाधन के उपयोग पर नय ण रखे जैसी क पयावरण संर ण
क मा यता है। व तु त: यह पयावरण संर ण से हटकर संसाधन के दोहन पर अंकु श न
लगाकर उनक अ भवृ पर बल दे ता है िजसके प रणाम व प मानव एवं पयावरण के
म य एक ऐसी प रवतनशील यव था का उ व होता है जो संसाधन के वदोहन,
ौ यो गक वकास तथा सं थागत प रवतन के वारा मानव समाज क वतमान एवं भावी
आव यकताओं के म य सामंज य था पत को मह व दे ता है। इस कार संध ृत वकास
न न ल खत स ांत पर आधा रत है -
1. सामु दा यक जीवन क दे खभाल रख स मान करना,
2. मानवजीवन क गुणव ता म सु धार करना,
3. पृ वी क सहन मता (vitality) एवं व वधता का संर ण करना,
4. अन यकरणीय संसाधन क गुणव ता हास को रोकना,
5. पृ वी क नवहन मता (carrying capacity) को बनाए रखना,
6. यि तगत ि टकोण एवं नयम म प रवतन करना,
7. स म समुदाय वारा अपने पयावरण क दे खभाल करना,
8. सम वकास तथा संर ण के लए रा य आधार तैयार करना, तथा
9. व व यापी गठब धन का नमाण करना।
इस कार संध ृत वकास पयावरण के ऐसे सकारा मक संर ण पर बल दे ता है िजसम
पयावरण के जै वक तथा अजै वक घटक के र ण, अनुर ण , पुन थापन , द घका लक
दोहन एवं अ भवृ को सम प म मह व दान कया गया है। संध ृत वकास म
न नां कत मु े समा हत ह -
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स पोषक पुनरावृि त स भव है। उदाहरणाथ, वन को एक े से काटे जाने के
बाद उ ह नए े म पुन : उ पा दत कया जा सकता है। व य ा णय क सं या
म वृ क जा सकती है। इसके अ य उदाहरण ह - सौर ऊजा, पवन, जल, मृदा ,
कृ ष उ पाद तथा मानव संसाधन।
2. अन यकरणीय संसाधन (Non-Renewable Resources) : संसाधन के
सतत उपयोग क ेणी म ऐसे संसाधन िजनका एक बार दोहन करने के उपरा त
उनक पुन : पू त संभव नह ं है। इनक मा ा सी मत होती है तथा नमाण अव ध
भी ल बी होती है। अत: इस ेणी के संसाधन का दोहन ती ग त से करने पर
ये समा त हो जाते ह। भू गभ म व यमान ख नज संसाधन इसी ेणी के
अ तगत ह। कोयले का दोहन एक-ह बार कया जा सकता है जब क इसके
नमाण म करोड़ वष लगते ह। ख नज तेल, ाकृ तक गैस, लौह- अय क, ताँबा,
बॉ साइट, यूरे नयम , थो रयम आ द संसाधन भी समा य ह।
3. च य संसाधन (Recyclable Resources) : पृ वी पर कु छ ऐसे संसाधन
पाए जाते ह िजनका बार-बार योग कया जा सकता है। जल संसाधन को
व भ न समय म व भ न प म यु त कया जाता है। इसी कार लोहा भी
वभ न प म उपयोग म आता है।
2.3.2 उ पि त के आधार पर
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अनेक प म प रव तत कया है। यह प रवतन ऐसे थान पर नह ं होता जहाँ मानव
ने कृ त के साथ समायोजन कर लया है, जैसे क ीनलै ड और अ टाक टका म ।
2. जै वक संसाधन (Biotic Resources) : जैवम डल म ि थत अपने नि चत
जीवनच वाले संसाधन जैव संसाधन कहलाते ह। वन, व य ाणी, पशु, प ी,
वन प त तथा अ य सू म जीव जैव संसाधन के उदाहरण ह। जीवा म के
काया तरण के प रणाम व प उ प न होने के कारण कोयला तथा ख नज तेल को भी
जै वक संसाधन कहते ह। इनम से कु छ का नवीनीकरण स भव है (जैसे वन प त
वग) जब क कु छ नवीनीकरण के यो य नह ं ह (जैसे ख नज तेल)। इन संसाधन को
मानवीय याओं ने भा वत कया है। ऐसे संसाधन क मा ा म कमी या वृ भी
क जा सकती है। पशु पालन, म यपालन, वृ ारोपण आ द काय से जै वक संसाधन
को बढ़ाया जा सकता है जब क वनो मू लन तथा संकटाप न जीव का आखेट करके
इनम कमी भी लाई जा सकती है। जै वक संसाधन के दोहन म तकनीक ान तथा
उपयोग- व ध का भाव पड़ता है। ये चल संसाधन माने जाते ह। जै वक संसाधन के
वतरण म भौ तक घटक क मु ख भू मका रहती है। उदाहरण के लए,
उ णक टब धीय आ जलवायु म सघन वन प त मलती है जब क टु ा े म
इसका अभाव पाया जाता है।
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जीव क सं या म कमी या वृ भी कर सकता है। इस कार अजै वक और जै वक
संसाधन का आधार (पृ वी ) एक होते हु ए भी इनम अनेक भ नताएँ मलती ह।
2.3.3 उ े य के आधार पर
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(iii) पशु एवं जीव-ज तु - पशु ओं एवं जीव-ज तुओं से मु ख एवं गौण उपज ा त
होती ह। मु ग पालन, मधुम खीपालन, म यपालन आ द इसी ेणी म आते
ह।
2.3.4 पा रि थ तक के आधार पर
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कोई सम या का प नह ं लेता ले कन जनसं या बढ़ने पर आव यकताओं क आपू त
घटने लगती है और वयं मानव संसाधन भी सम या बन जाता है।
मानव एक स य ाणी के प म पृ वी -तल पर व यमान संसाधन एवं ाकृ तक
प रवेश का उपभोग करते हु ए उसके साथ समायोजन करता है। इस स पूण या म
वह अपनी बौ क मता के अनुसार कृ त द त त व म से े ठ का चयन करता
है। वह अपनी आव यकताओं क पू त के लए पृ वी -तल का पा तर भी करता है।
संसाधन उपयोग क ि ट से मानव क के य ि थ त है तथा वह ाकृ तक प रवेश
को नर तर पा त रत कर उसके अनु प अनुकू लन करता है। ाकृ तक घटक के
पा तरण क कृ त एवं दर मनु य के बौ क, आ थक एवं सामािजक वकास पर
नभर करती है।
3. सां कृ तक संसाधन (Cultural Resources) : संसाधन का तीसरा प है
तकनीक एवं सं कृ त। अपने ल य क पू त म सहायक होने के लए मानव िजन
साधन (devices) को उ प न करता है उसके सम प को सं कृ त कहते ह।
तकनीक इ ह के अंग ह। संसाधन क उपल धता, न यता एवं दोहन सभी तकनीक
पर नभर होता है। इसके साथ ह पू ज
ं ी का एक ण एवं सं थाओं क थापना भी
मानव करता है। मानव क आव यकताओं और मताओं के साथ ह संसाधन का
व तार एवं संकुचन होता है। जोबलर का संसाधन का इ तहास इसका अ छा टांत
है।
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3. न यकरणीयता के आधार पर सं साधन का या वग करण कया गया है ?
............................................................................................
............................................................ ...........................
4. पा रि थ तक के आधार पर सं साधन का या वग करण कया गया है ?
............................................................ ............................
............................................................ ............................
5. न न ल खत सं साधन का एक-एक उदाहरण द िजए- अ यशील , यशील ,
न यकरणीय , अन यकरणीय , प रर णीय , अप रर णीय , पु न: यो य , पु न:
अ यो य , सवसु लभ, सामा य सु ल भ, वरल , एकल , वै भ व और गु त।
............................................................ ...........................
............................................................ ...........................
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तीन अव थाओं वाले इस उपागम क आलोचना करते हु ए तीन अ य उपागम ता वत
कए गए ह। इनम एक माँस वारा ता वत पा रि थ तक पर आधा रत ''समकाल न
का यक स ब ध'' (Contemporary functional relationship) है। इस पर आधा रत
सव ण क व ध वक सत नह ं हो पाई। डै वसन वारा ता वत दूसरा उपागम आ थक
है िजसम प हले वांि छत भू म उपयोग का चयन कया जाय फर उसके लए उपयु त
दशाएं ढू ढ़ जाय। यह भी यवहार म नह ं आ पाया।
संसाधन का मू यांकन उ ह दो मु ख वग म बांटकर कया जा सकता है -
1. ाकृ तक संसाधन के सव ण एवं मान च ण वारा िजसम मु खतया पयावरणीय
घटक सि म लत कए जाते ह, तथा
2. मानवीय संसाधन के सव ण एवं मान च ण वारा िजसम जनसं या के मा ा मक व
गुणा मक घटक सि म लत कए जाते ह।
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1. अ तरा य संगठन िजनम संयु त रा खा य एवं कृ ष संगठन (Food and
Agricultural Organisation - FAO) मु ख है,
2. पि चमी दे श के ऐसे वै ा नक संगठन जो अ वक सत दे श म उनक मांग पर
संसाधन सव ण करते ह जैसे - टे न के वदे शी सव ण नदे शालय का भू-संसाधन
वभाग,
3. रा य संगठन जैसे - ऑ े लया के रा म डल य वै ा नक तथा औ यो गक शोध
संगठन का भू-शोध एवं ादे शक सव ण वभाग, तथा
4. कृ ष, संचाई तथा भू- वकास के व भ न अवयव म कायरत परामशदाता यावसा यक
संघ जैसे - इं लै ड का हॅ ि टं ग टै ि नकल स वसेज ल मटे ड आ द।
वाकृ तक सव ण : कृ ष तथा अ भयाि क े म भू-आयोजन स ब धी नणय भू य
वशेषताओं के आधार पर लए जाते ह। वाकृ तक सव ण म े म अवलो कत सम त
य के अ भलेख उनक उ पि त, आयु तथा व तार के अनुसार होते ह। भ न- भ न
आकृ तय को धरातल य मान च पर पर परागत च न क सहायता से मापक के अनुसार
दशाया जाता है। वाकृ तक मान च ण म जन नक तथा कालानु मक वग करण अपनाने
से वतरण, उ पि त तथा आयु के व वध व प का ाकृ त ान हो जाता है। वाकृ तक
मान च म इस हे तु ाय: रं ग का योग कया जाता है। वाकृ तक मान च
समो चरे खाओं के प रकलन से कु छ आका रक य (morphometric) सू चना भी दान
करते ह। वाकृ तक व प के अ त र त ऐसे मान च आ थक एवं सामािजक संसाधन
के दोहन से स बि धत सूचनाएँ भी दान करते ह।
जलवायु तथा जल सव ण : जलवायु सव ण म मौसम-वै ा नक मेघावरण के दै नक
तथा मौसमी प रवतन , वायुग त , ताप म, आ ता तथा तू फान के उ पि त के , उनके
वास माग , उनक गहनता, अव ध आ द के स ब ध म वशु सांि यक ा त करते ह।
जल व ान अ ययन म मु खतया तीन अवयव - आ ता, भू जल तथा धरातल य जल
संसाधन - को सि म लत कया जाता है। इन अ ययन से बाढ़ एवं सू खे से होने वाल
स भा वत त का अनुमान लगाया जाता है। साथ ह घरे लू उपयोग व संचाई के लए
जलापू त तथा शु क दे श म भू जल लवणता स ब धी अ ययन भी कए जाते ह। जल
सव ण मान च व तृत सव ण पर आधा रत होते ह। ये मू लत: व लेषणा मक कृ त
के होते ह िजनक सहायता से कु छ वशेष अवयव - भू मगत जल-तल, अपवाह, स रता
दूषण, न दय के जनन कार आ द - से स बि धत उ े यपूण मान च बनाए जा सकते
है। इन मान च म जला ध य तथा जलाभाव के े का प रसीमन भी कया जाता है।
मा ा मक सांि यक का अभाव इन मान च मे अव य रहता है अत: आव यक सांि यक
का पृथक् से सं हण अ नवाय हो जाता है।
म ी सव ण : म ी सव ण दो कार के होते ह - अ भयाि क य और कृ षीय। म ी
मान च म वृहत ् भू म- मता वग उनके उपवग के साथ दशाए जाते ह। व तृत म ी
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सव ण के लए 1:15000 तथा ारि भक म ी सव ण के लए 1:40000 मापक पर
बने वायु-फोटो उपयु त होते ह। य द वायु-फोटो उपल ध न ह तो ारि भक सव ण के
लए 1:63360 अथवा 1:50000 और व तृत म ी सव ण के लए 115840 मापक
पर बने धरातल-प क का उपयोग कया जा सकता है। कृ ष भू म के लए 1:7920
अथवा 1:3960 मापक पर बने भू कर मान च (cadastral maps) का उपयोग वांछनीय
है।
नद घाट प रयोजनाओं म अपवाह- े के जलाशय म अवसाद- न ेप को कम करने तथा
बांध को द घायु बनाने के लए म ी सव ण आव यक ह। म ी सव ण म भू गभ के
मू ल शैल , म ी के रं ग, गहराई, वन प त आ द पर भी ट प णयाँ लखी जाती ह। म ी
तदश सामा यत: 30 सेमी गहराई से लए जाते ह। मानक संचाई- म ी सव ण म
गहराई के अनुसार pH, लवण मा ा तथा कणीय बनावट को भी मापा जाता है। संचाई-
म ी सव ण ाय: दो बार कए जाते ह - संचाई से पूव और उसके प चात ्। संचाई-पूव
इस लए ता क म ी क कृ त के अनुसार संचाई क यव था क जा सके तथा संचाई-
प चात ् इस लए ता क संचाई के भाव का मू यांकन कया जा सके। उ पि तमू लक म ी-
कार के मान च उ े यानुसार 1:10000 अथवा 1:25000 या 1:100000 मापक पर
बनाए जाते ह। ात य है क म ी सव ण क ज टल कृ त के कारण वां छत वै ा नक
तर पर े वशेष के म ी सव ण काय भू गोलवेता के लए ाय: क ठन ह होते ह।
पा रि थ तक सव ण: अनेक आधु नक वै ा नक अवधारणाएँ मू लत: पा रि थ तक
(ecology) से ह यु प न ह। पा रि थ तक सव ण मे मु य प से वान प तक
अ ययन सि म लत कए जाते ह। वन प त को पयावरणीय दशाओं क स पूणता क
अ भ यि त के प म माना जाता है। वन - सूची अथवा का ठ संसाधन के मू यांकन
तथा चरागाह के सव ण वान प तक अ ययन के अ भ न अवयव ह। पशु-पा रि थ तक
सव ण म क ट-जीवन से स बि धत (जैसे - सी-सी म खी उ पादन) अ ययन सि म लत
कए जाते ह।
भू-उपयोग सव ण : भू-उपयोग मान च ण अ धकतर वायु-फोटो नवचन पर आधा रत
होता है। ऐसे मान च उपल ध भू ग भक, वाकृ तक, जल य, जलवाय वक तथा भू-
वान प तक सांि यक के आधार पर बनाए जाते ह। इन मान च के मू य, तर तथा
प रशु मु ख प से स ब वषय-मान च तथा सांि यक क उपलि ध, मू य तथा
प रशु पर नभर करते ह। व तृत भू-उपयोग सव ण कृ ष के भौगो लक ा प-वग करण
(typology) के उ तम आधार बनते ह। भू-उपयोग स ब धी अ धकांश अमे रक , टश,
ांसीसी, जमन, ि वस, इतालवी, पुतगाल , सो वयत तथा भारतीय अ ययन लघु े के
सव ण पर आधा रत ह तथा व भ न व धय का योग कए जाने के कारण ये पर पर
तु लनीय नह ं ह। भू गोलवेता डडले टा प के नदशन म स प न टे न का भू-उपयोग
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सव ण The Land of Britain – Its Use and Misuse व व म सवा धक व तृत
भू-उपयोग सव ण समझा जाता है ।
भू-उपयोग. मान च म सांि यक का दशन चार व धय वारा कया जाता है - (i) भू-
उपयोग का कार अ तरा य भू गोल संगठन के भू-उपयोग आयोग वारा नधा रत रं ग
के वारा, (ii) भू-उपयोग का वा म व स पि त क सीमाओं वारा ( क तु मान च के
मापक व उ चत आधार - मान च के अभाव म ाम के लघु खेत क सीमाओं का
दशाना स भव नह )ं , (iii) भू-उपयोग प तय को याम च न वारा, तथा (iv) भू-
उपयोग क दशाओं को भू-उपयोग के मु य कार म रं गीन े णय क सहायता से।
ात य है क य े ीय अवलोकनो का दशन भू-उपयोग मान च म केवल सी मत
मा ा म ह कया जाता है। इसी कार इन मान च म ामीण अथ यव था क
उ पादकता तथा गहनता का दशन भी ाय: छोड़ दया जाता है य क ये ऐसे अवयव ह
जो काल तथा थान के अनुसार प रव तत होते रहते ह।
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पया त आधार-मान च क ाि त के लए कु छ दशाओं म ारि भक धरातल य सव ण
आव यक होते ह। यह काय अ धकतर फोटो म त व धय वारा स प न कया जाता है।
संसाधन सव ण क थमाव था म नए तथा उ तम को ट के वायु-फोटु ओं का उपयोग
कया जाता है।
भौगो लक व धय का मह वपूण उपयोग वकास दे श के भू-संसाधन सव ण म कया
जा सकता है। ये सव ण वकासशील दे श के ामीण े क सांि यक के सं ह तथा
ा कलन के लए कए जाते ह। इन सव ण म संग ृह त सांि यक का उपयोग ाय: कृ ष
े क सम याओं के समाधान म कया जाता है।
अ धकांश आधु नक भू-संसाधन सव ण समाक लत ढं ग से ह स प न कए जाते ह।
उदाहरणाथ, सन ् 1961-64 म चल के समाक लत सव ण (Proyecto Aerofoto
Grameteric) म भू-उपयोग, भू-आकृ त व ान, म ी, संचाई, वन, मौसम व ान, कृ ष
क टब धन, यो पादन, प रवहन तथा भू-श यता वग करण के सव ण सि म लत थे।
कसी दे श वशेष के संसाधन के वकास के लए अ म योजना बनाने के लए उस दे श
के संसाधन सव ण कए जाते ह। ादे शक कृ त क यापा रक, राजनी तक, आ थक
तथा सामािजक सम याओं से स बि धत व श ट नी त- नधारण के लए रा य संसाधन
क सू चनाएँ आव यक होती ह।
संसाधन सव ण को तीन भाग म बांटा जा सकता है -
1. अ दश योजनाओं के लए यापक ती गामी ारि भक सव ण,
2. संसाधन आयोजन के लए ारि भक सव ण, तथा
3. संसाधन वकास के लए व तृत ारि भक सव ण।
यापक ती गामी ारि भक सव ण अ धकतर वतीयक सांि यक , व वध ोत से
उपल ध मान च तथा म ी, वन प त, जल, भू-उपयोग, जलवायु सू चकांक आ द क
शोध सांि यक पर आधा रत होते ह। ऐसे सव ण म 1:50000 मापक पर न मत फोटो
मोजेक संसाधन व लेषण के लए अ त लाभदायक ह। े अनुसंधान के लए फोटो
मोजेक आधार-मान च का काय करते ह।
िजन े म यापक ती गामी ारि भक सव ण कए जा चु के ह वहाँ वायु सव ण पर
आधा रत ारि भक सव ण काय स प न करना सु गम है। वायु सव ण पर आधा रत
ारि भक सव ण म भू म, म ी, जल, वन प त, पशु तथा मानव जनसं या के
सामािजक एवं आ थक त व का गहनतर अ ययन कया जाता है। ऐसे सव ण के लए
1:30000 अथवा 1:23000 मापक के वायु - फोटो धरातल य प का व तृत फोटो
व लेषण, े सव ण, योगशाला व लेषण तथा तवेदन तैयार करने के लए तवष
10,000 वग कमी का े सव ण के लए आदश े है।
संग ृह त सांि यक का समाकलन अनेक व धय से कया जा सकता है। बहु धा व भ न
वषय के वशेष वारा स प न सव ण म उ चत सम वय न होने के कारण ह
व भ न संसाधन म अ तस ब ध था पत नह ं हो पाता है। जब कसी दे श का सव ण
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वभ न वषय के वशेष वारा कया जाता है तो उसे ‘ ै तज समाकलन'
(horizontal integration) कहते ह। समाकलन का वतीय उपागम 'ऊ वाधर
समाकलन' (vertical integration) कहलाता है िजसम एक े म केवल एक-ह
वशेष वभ न ाकृ तक संसाधन का मू यांकन तथा प रणाम का नवचन करता है।
वा तव म एक ह वशेष सम त वषय के ान से प र चत नह ं होता और ऐसी ि थ त
म वह एक त य पर अ धक व अ य त य पर अपे ाकृ त कम यान दे पाता है। इसी
त य को यान म रखते हु ए आजकल 'बहु दक् समाकलन' (cross integration) पर
जोर दया जाता है िजसम व भ न वषय के वशेष संयु त प से ै तज व ऊ वाधर
दोन समाकलन तर पर काय करते ह।
संसाधन सव ण क दो बात - वायु-फोटो नवचन तथा मान च ण - भू गोलवेताओं से
स बि धत ह। आधु नक सव ण म वायु-फोटो ाफ का उपयोग अनेक कारण से कया
जाता है। थम, उपयु त मान च - वशेषत: वकासशील दे श के ामीण े के - वृहत ्
मापक पर उपल ध नह ं है। वतीय, सव ण के अनेक त व जैसे - भू-उपयोग, भू आकृ त
व ान, संचाई, म ी आ द – के लए व मतीय फोटो नवचन तथा े काय से
मान च त इकाई े का शी एवं वशु प रसीमन कया जा सकता है। तृतीय , वायु-
फोटो ाफ उ डयन का उपयोग िजससे वां छत मापक पर वायु-फोटु ओं को खींचा जाता है।
भू-संसाधन सव ण म सव ण के उ े य तथा सम याओं से स बि धत अनेक मा य
मापक तथा प रचालन तर का उपयोग कया जाता है। व भ न प रचालन तर पर
वायु-फोटो ाफ के व भ न मापक तथा अि तम मान च के उप थापन के लए व भ न
मापक क आव यकता रहती है। कृ ष वकास स ब धी सम याओं के समाधान म तीन
कार के मापक तर - ारि भक, अ - व तृत तथा व तृत - का उपयोग कया जा
सकता है।
वायु-फोटो पर आधा रत सव ण म 1:30000 से कम मापक फोटु ओं का उपयोग कया
जाता है। इन सव ण म अ धकतर 1:50000 मापक का उपयोग कया जाता है। फोटो-
मोजेक का नमाण 1:100000 मापक पर कया जाता है क तु दशन मान च म
ारि भक प रणाम को 1:50000 मापक पर दशाया जाता है। इसके अ त र त मू य,
समय तथा अ ययन उ े य को यान म रखकर अि तम दशन म मापक का चयन
कया जाता है। ारि भक सव ण तर पर े काय कम-से-कम कया जाता है। इस
समय े मान च ण के लए े के व श ट थल के सव ण, फोटो- नवचन कं ु िजय के
नमाण तथा मान च ण आ यान के वकास स ब धी काय अ धक कए जाते ह। इस
तर पर कोई मह वपूण े ीय जाँच काय नह ं कया जाता। ारि भक सव ण का
उपयोग उन े के चयन म कया जाता है जो व तृत अनुसंधान के लए उपयोगी होते
ह। उदाहरणाथ, द णी पेरा वे क गुलो योजना के सव ण म म ी, भू-उपयोग, वन
वकास तथा 65,000 वग कमी सड़क का ारि भक मान च ण पूरा कया गया।
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वायु-फोटु ओं पर आधा रत अ - व तृत सव ण म 1:12000 तथा 1:20000 मापक के
फोटु ओं का उपयोग कया जाता है। अ - व तृत सव ण के अि तम मान च के मापक
सव ण के उ े य , पूवा यास तथा अ य कारक पर नभर ह। चल ायोजना म वायु-
फोटु ओं, फोटो-मोजेक तथा अि तम अ ध च म 1:20000 मापक का उपयोग कया गया
है।
अ - व तृत सव ण म एक है टर तक के े का प रसीमन कया जाता है। इस तर
पर े मान च ण के लए फोटो- नवचन काय म के आर भ म फोटो- नवचन कं ु िजय के
नमाण एवं आ यान के वकास म तथा सव ण के समय फोटो- नवचन एवं मान च त
े क तदश े ीय जाँच स ब धी दोन अव थाओं म े ा ययन आव यक ह।
अ - व तृत सव ण अनेक आयोजन नणय के लए सू चना दान करता है। इस तर का
सव ण एक आधारभू त सू ची तु त करता है जो आयोजक को वतमान ि थ त तथा
आयोिजत प रवतन ार भ होने के ब दु के बारे म ान दान करती है। इस तर पर
संग ृह त सांि यक तथा सूचना से ादे शक तथा रा य ायोजनाओं एवं काय म के
स ब ध म नणय लए जा सकते ह। इस सांि यक से ऐसे थान का ान हो जाता है
जहाँ व तृत अ ययन क आव यकता है ।
वातावरण के येक कारक के वत तथा पृथक् सव ण वारा य य प वातावरण
स ब धी सूचनाएँ ा त क जा सकती ह तथा प अ धक कौशल तथा उ तम बोध
समाकलन वारा ह ा त कया जा सकता है। यह काय पयावरण स ब धी सू चना के
सं हण मे संल न व भ न वशेष वारा संतोष द ढं ग से स प न कया जा सकता है।
इसके लए सव थम सम पयावरण का सव ण व मान च ण आव यक है, यि तगत
कारक का नवचन बाद म कया जा सकता है। यह उपागम भू म-तं उपागम (Land
system approach) कहलाता है। भू म-तं सव ण क तीन अव थाएँ होती ह -
1. थमाव था वायु-फोटो नवचन क है िजसे े काय से पहले पूरा कया जाता है।
इस अव था म वायु-फोटु ओं पर े क वशेषताओं तथा उनके आवृि त ा प क
पहचान तथा प रसीमन के काय कए जाते ह। इस काय के लए वायु-फोटु ओं पर
य ि टगोचर थलाकृ तय पर वन प त कारक का उपयोग मानद ड के प म
कया जाता है। इस अव था म े के व श ट भू- ा प का अ भ ान एवं
मान च ण मु य काय है।
2. वतीयाव था म थमाव था क अ थाई मान च ण इकाइय का उपयोग े सव ण
के आधार के प म कया जाता है। े मण का आयोजन इस ढं ग से कया जाता
है क न न भू-उपयोग स भावनाओं वाले पवतीय े को छोड़कर स भवत: येक
अ भ ेय इकाई का नर ण कया जा सके। इस ढं ग मे े सव ण के लए उपल ध
सी मत समय का कु शल उपयोग स भव है। े ावलोकन के दो भाग ह - थम,
पारगमन अवलोकन अथात ् मण कए गए े का सतत अ भलेखन, तथा वतीय,
नि चत अव थान पर व तृत थल वणन।
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3. तृतीय अि तमाव था म े सांि यक का व लेषण कया जाता है और उससे ा त
न कष से मू ल फोटो- नवचन म सु धार कए जाते ह। इसके प चात ् येक भू म-तं
के व तृत वणन का संकलन कया जाता है।
बोध न-4
1. सं साधन का मू यां क न कै से कया जाता है ?
............................................................................. ..........
............................................................ ...........................
2. ाकृ तक सं साधन के सव ण म कौन-कौन-से सव ण सि म लत कए
जाते ह ?
............................................................ ..........................
............................................................................................
3. मानवीय सं साधन के सव ण म जनसं या के कौन-कौन-से घटक को
सि म लत कया जाता है ?
............................................................ ...........................
............................................................ ..................... ......
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(vi) संसाधन का संतु लत व बहु े यीय योग, (vii) अ तदोहन से बचाव, (viii) भावी
कानून वारा संर ण इ या द। संध ृत वकास क संक पना संसाधन के द घाव धक
समाक लत वकास से स बि धत है।
संसाधन के वग करण के बहु वध आधार ह जैसे - (i) सामा य (भौ तक व जै वक), (ii)
उपल धता (अ यशील व यशील), (iii) वतरण एवं बार बारता (सवसुलभ , सामा य
सु लभ, वरल व एकल), (iv) योग (अ यु त , अ योजनीय, वभव, गु त), (v)
न यकरणीयता (अनवीकरणीय, पुननवीकरणीय , पुनच य), (vi) अ धकार े ( यि तगत,
रा य व वैि वक), (vii) मानवीय उपयोग (भो य पदाथ, क चे माल, शि त के साधन
आ द), और (viii) उ पि त ( ाकृ तक, मानवीय व सां कृ तक) आ द।
संसाधन के मू यांकन हे तु ाकृ तक एवं मानवीय संसाधन के व भ न घटक के सव ण
व मान च ण क व धय का ान उपादे य है। वतमान समय म इसके लए अ धकतर
हवाई सव ण से ा त वायु-फोटो नवचन, सु दरू -संवेदन तकनीक तथा एकल त व क
अपे ा समाक लत सव ण तकनीक का अ धक योग कया जाने लगा है। समाक लत
सव ण म भू म -तं उपागम सवा धक च लत है।
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जै वक संसाधन (Biotic Resources) : कृ त द त चल उपहार जैसे - वन प त,
जीव -ज तु आ द जो प रि थ तय के अनुसार घटते-बढ़ते रहते ह।
अ यु त संसाधन (Unused Resources) : ऐसे संसाधन जो दुगम दे श म ि थत
होने, न न गुणव ता के होने या अ य कसी-भी कारण से योग म नह ं लाए जा
सकते।
योजनीय संसाधन (Unusable Resource) : ऐसे संसाधन िजनके गुण एवं योग
के वषय म मनु य अन भ हो।
अ यशील संसाधन (Inexhaustible Resources) : कभी समा त न होने वाले
संसाधन।
पा रि थ तक कारक (Ecological Factors) : पयावरणीय कारक जो पादप तथा
ाणी जगत को भा वत करते ह जैसे - उ चावचन, जलवायु, म ी, जलाशय आ द।
पा रि थ तक तं (Ecosystem) : कसी पयावरण म सम त जै वक एवं अजै वक
कारक क पार प रक अ त या तथा उनके समाकलन से उ प न तं ।
ु न (Ecological Equilibrium) : कसी पा रि थ तक तं
पा रि थ तक संतल म वह
थाई दशा जब येक त व के उ पादन तथा उपभोग म ाय: संतु लन पाया जाता है।
पोषणीय या संध ृत वकास (Sustainable Development) : संसाधन का ऐसा
ववेकपूण उपयोग िजसम उनके द घाव धक दोहन क स भावनाएँ न हत ह ता क
भावी पीढ़ क आव यकताएँ पूर क जा सके।
2.8 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. काया मकता, उपयो गता, पया तता, सामी य और अ भग यता।
2. िज मरमैन।
बोध न- 2
1. ग या मक।
2. कृ त, मानवीय आव यकताएँ, आ व कार, कौशल, मानवीय सं कृ त आ द।
3. उपयो गता और काया मकता।
4. पृ वी के भौ तक तथा जै वक वग क ऊजा और यमान का स पूण योग टॉक है।
5. आर त भ डार संसाधन का वह उपभाग है जो वतमान तकनीक , आ थक और
सामािजक दशाओं के अ तगत अनुपल ध है क तु भ व य म तकनीक के वकास
होने पर वक सत कया जा सकता है।
6. पया तता वषयक संक पना - कृ त म पदाथ के वपुल भ डार है जो न य नई
तकनीक के वकास से संसाधन बनते रहते ह इस लए भ व य म संसाधन क कोई
कमी नह ं आएगी।
यूनता वषयक संक पना - ाकृ तक संसाधन सी मत ह और जनसं या क वतमान
ती वृ -दर के चलते नकट भ व य म शी ह इनक कमी महसूस क जाने
लगेगी।
7. भावी पीढ़ के हत को नुकसान पहु ँ चाए बना वतमान समाज क आव यकताओं क
पू त कर पाना संध ृत वकास है। यह पयावरण के द घाव धक उपयोग एवं अ भवृ से
स बि धत अवधारणा है।
बोध न- 3
1. सवसुलभ , सामा य सु लभ, ' वरल और एकल।
2. अ यु त , अ योजनीय, वभव और गु त।
3. अनवीकरणीय, पुननवीकरणीय पुन : च य और अ यशील।
4.
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5. सू य काश, जीवा म धन, पादप, व य जीवन, वन, ख नज, ह रे -जवाहरात, कोयला,
वायुम डल य गैस, कृ ष भू म, यूरे नयम , ायोलाइट, वशाल जल रा शयाँ, अठारहवीं
सद तक ख नज तेल।
बोध न- 4
1. सव ण एवं मान च ण वारा
2. ाकृ तक सव ण, जलवायु तथा जल सव ण, म ी सव ण, पा रि थ तक सव ण,
एवं भू उपयोग सव ण।
3. कुल जनसं या, उसका वतरण, घन व, आयु वग, लंग संरचना, कायशील जनसं या,
अि त व, श ा, द ता, म आ द।
2.9 अ यासाथ न
1. संसाधन क आधारभू त संक पनाओं क समी ा क िजए तथा संसाधन ोत के प म
मानव. सं कृ त एवं कृ त के अ तस ब ध क या या क िजए।
2. अ भनव भौगो लक सा ह य म संसाधन क काया मक संक पना का आलोचना मक
पर ण क िजए। इस संक पना को भा वत करने वाले त व का प ट करण क िजए।
3. संसाधन क पया तता एवं यूनता वषयक संक पनाओं क या या क िजए।
4. संसाधन ग या मक ह अथवा थै तक ? सकारण प ट क िजए।
5. संसाधन का साधार एवं सोदाहरण वग करण क िजए और उनक अ यो या ता प ट
क िजए।
6. ाकृ तक संसाधन से या आशय है ? भौ तक एवं जै वक संसाधन का तु लना मक
अ ययन तु त क िजए।
7. मानव संसाधन से या ता पय है ? मानव संसाधन के समु चत उपयोग म आ थक
वकास तथा उ तरो तर सां कृ तक व तकनीक प रवतन क या भू मका है ?
उपयु त टांत के मा यम से पुि ट क िजए।
8. वतमान शता द म सां कृ तक व तकनीक वकास के संदभ म ाकृ तक संसाधन के
प रवतनशील मह व को समझाइए।
9. सां कृ तक संसाधन से े है ? इनका अ ययन
या अ भ त य आव यक है ?
10. संसाधन के संर ण क या आव यकता है ? संसाधन संर ण क या संक पना
है? संर ण नयोजन स ा त क ववेचना क िजए।
11. संध ृत वकास से या अ भ ाय है ? इसके मु ख स ा त क ववेचना क िजए।
12. ाकृ तक संसाधन के मू यांकन म यु त सव ण एवं मान च ण व धय क सं ेप
म ववेचना क िजए।
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इकाई 3 : ाकृ तक संसाधन : मृदा जल Natural
Resources: Natural Water
इकाई क परे खा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 ाकृ तक संसाधन अथ एवं प रभाषा
3.3 ाकृ तक संसाधन-मृदा
3.3.1 मृदा संसाधन का मह व
3.3.2 म ी के मु य घटक
3.3.3 मृदा क उ प त
3.3.4 म ी के भौ तक-रसाय नक गुण
3.3.5 मृदा प र छे दका
3.3.6 म ी का वग करण एवं वतरण
3.3.7 मृदा संसाधन का उपयोग
3.3.8 मृदा संसाधन का संर ण
3.4 जल संसाधन मह व
3.4.1 जल संसाधन का वतरण
3.4.2 जल संसाधन का उपभोग
3.4.3 संसाधन क सम याएं
3.4.4 जल संसाधन का संर ण
3.5 सारांश
3.6 श दावल
3.7 स दभ थ
3.8 बोध न के उ तर
3.9 अ यासाथ न
3.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप :
ाकृ तक संसाधन का अथ, मह व बता सकगे।
मृदा संसाधन क उ पि त एवं मृदा प र छे दका को समझ सकगे।
संसार म मृदा एवं जल के वतरण क जानकार ा त कर सकगे।
संसार म मृदा एवं जल के उपभोग पर ववेचना कर सकगे।
मृदा एवं जल संर ण क आव यकता पर चचा कर सकेग।
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3.1 तावना (Introduction)
इस इकाई म हम आपको ाकृ तक संसाधन - मृदा एवं जल के व भ न पहलु ओं को
बताएंगे। इकाई के आर भ म हम बताएंगे क संसार म ाकृ तक संसाधन-मृदा का अथ
एवं मह व या है ? इसका वतरण कहाँ-कहाँ पाया जाता है तथा इस का उपयोग कस-
कस े म हो रहा है। मृदा के उपयोग / उपभोग से उ प न सम याओं के कारण इसका
संर ण आव यक है क चचा क गई है।
जल के उपयोग के मह व को बताया गया है तथा वतरण क जानकार दान क गई ह।
संसार एवं भारत के स दभ म वतमान म जल संकट को दे खते हु ए इसका संर ण एवं
मह व को प ट कया गया है।
67
तथा जैव-पदाथ सवा धक मह वपूण है। म ी मानव को सबसे मू लभू त संसाधन है।
ह टंगटन स हत सभी व वान ने म ी को ाकृ तक वातावरण का धान त व माना है।
डा. बैनेट के श द म ''धरातल पर मलने वाले असंग ठत पदाथ क ऐसी परत जो जल
च ान व वन प त अंश के संयोग से बनती है म ी कहलाती है''
सामा य प म मृदा का नमाण मू ल च ान के वघटन तथा अपघटन वारा होता है िजसे
समय के साथ व भ न कार क जलवायु भा वत करती है।
रमन म (1917) मृदा क प रभाषा न न कार द है ''मृदा पृ वी क सबसे ऊपर
अप यत ठोस पपड़ी क परत है, जो च ान के टू टने व रासाय नक प रवतन से बने
छोटे -छोटे कण और उस पर रहने और उपयोग करने वाले पादप व ज तु अवशेष से बनी
है।''
इन प रभाषाओं से प ट है क म ी पृ वी के नमाण म लगे पदाथ से बनी होती है
तथा इसम सतत ् भौ तक रासाय नक एवं जै वक याएं पलती रहती है िजससे इसके गुण
म प रवतन होता रहता है।
3.3.2 म ी के मु य घटक
म ी तीन - ठोस, तरल तथा गैस - प म पास जाने वाले पदाथ से मल कर बनी होती
है। इनम ख नज (अजै वक) तथा जै वक पदाथ, जल एवं वायु मु य ह। म ी के वजन म
लगभग 90% ख नज होते ह। ये ख नज या तो भू पपट से ा त होते ह अथवा अपर दत
पदाथ के जमाव से ा त होते ह। म ी म जैव पदाथ यूमस तथा असं य सू म जीव
के प म होते ह। म ी के र म जल एवं वायु होती है भोर म ी क उवराशि त
नधा रत करने म इनक मह वपूण भू मका होती है।
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3.3.3 मृदा क उ पि त (Origin of Soil)
69
3.3.4 म ी के भौ तक-रासाय नक गुण
70
............................................................ ..........................
............................................................ ..........................
71
3.3.6 मृदाओं का वग करण एवं वतरण
73
3. म थल य म ी : अ य त शु क भाग म यह म ी पायी जाती है। इसम तर का
पूण वकास नह हो पाता। इसम घुलनशील ख नज अ धक पाए जाते ह।
II. अ त: तर म याँ : उन म य को अ त: तर य म यां कहते ह िजन पर जलवायु
तथा वन प त क अपे ा अ य त व का भाव अ धक होता है। ये क टब धीय े
के म य बखरे े म मलती ह। ये उपजाऊ तथा अनुपजाऊ दोन कार क होती
है। रे डजीना म ी उपजाऊ उदाहरण है।
III. असु तर य म याँ : ये म याँ अ वक सत होती है अथात इसके तर का वकास
नह होता है। इस लए इ हे अपाि वक म याँ कहते ह। जलोढ़, हमोढ़ तथा लोयस
म याँ इस वग म सि म लत क जाती ह।
बोध न-2
1. म ी प र छे दका कसे कहते ह ?
............................................................ .........................
............................................................ .........................
2. पे ड फर तथा पे डोकल म य म अ तर बताइए ?
............................................................ .........................
............................................................ .........................
74
गेहू ँ क कृ ष के लए, लावा काल म ी कपास के उ पादन के लए उ तम है । इसी
कार चकनी म ी म चावल उगाया जाता है ।
वभ न कार क म य के भू म उपयोग न न कार है -
1. उ ण आ पेट क म याँ : यहाँ लेटेराइट म ी मलती है। इन म वन काट कर
कृ ष क जाती है।
इन म य म थाई यापा रक कृ ष वारा चावल ग ना आ द उगाने क अपे ा
रबर, ना रयल, केला, कोक, साबुदाना, मसाल आ द के वृ क कृ ष अ धक उपयोगी
है। जावा म लावा म ी म चावल एवं ग ने क कृ ष क जाती है।
2. उपो ण पेट या वनो ओर घास थल क म याँ - लाल तथा पील म य म खद-
उवरक दे कर चावल, वार, बाजरा, म का, कपास, गेहू ँ तलहन क कृ ष एवं पशु पालन
होती है कृ ष काय काँप म म अ धक कया जाता है संसार म 70% जनसं या
न दय क काँप म ी पर आधा रत है। चीन, भारत, पा क तान, जापान, प. यूरोप ,
पूव संयु त रा य के मानव समू ह काँप म य के े म ह बसे है।
3. समशीतोषण पण पाती वनो क म यां : यहाँ भू रे 'क थई रं ग क म यां होती है
इन पर गेहू ँ जौ, म का आ द क कृ ष, पशु पालक और म त कृ ष तथा फल,
तरका रय और पशु चारे क कृ ष होती है।
4. समशीतो ण घास थल क म याँ : चू ना यु त पेडोक स म याँ है इनम गेहू ँ
म का, जौ, जई, चु क दर, राई, कपास, और पशु चारे क कृ ष होती है। कृ ष
उ पादक के हसाब से इनका अ धक मह व ह।
5. उ तर शंकुधार वनो क म यां : ये कम उपजाऊ है इस लए कृ ष के लए कम
उपयु त है इन का उपयोग पशु चारण, जौ, जई, आलू क कृ ष एवं फलदार वृ के
बगीचे म सफल होता है।
6. घूसर म म याँ : यूमस कम ार अ धक होता है। संचाई वारा फसल उगाई
जाती है पशु चारण (भेड़ चारण) होता है। नील एवं स धु घाट म सं चत फसल उगाई
जाती है।
75
शताि दय से अ धक समय म भी म य क उवरता कम नह हु ई है अत: म ी
अनुर ण तथा संर ण के उपाय न न कार है।
1. कृ ष णाल म प रवतन करने से म ी क उवरता का संर ण हो सकता है।
2. फसल का हे र -फेर होना चा हए।
3. कृ षक को म ी एवं जल ब धन का ान होना चा हए।
4. गोबर तथा पि तय क खाद, फसल के अवशेष जीव धा रय के मल-मू ा द अप श ट
मलबे से म ी के पोषक त व क वृ होती है।
5. आवरण फसल का उपयोग।
6. उवरक तथा खाद का उपयोग
7. मृदा क दूषण से र ा।
8. समो च रे खीय जु ताई।
9. थाना तर कृ ष पर तब ध।
10. पशु चारण पर नय ण।
11. बाढ़ े का संर ण
12. अव ना लकाओं पर बाँध बनाना ।
म ी संसाधन का ववेकपूण योग
म ी भू म संसाधन के ववेकपूण योग के अ तगत म ी संर ण का वचार ह नह
बि क वा त वक उपयोग भी सि म लत है। यह एक मह वपूण त य है क कृ ष भू म क
सं चत और औ यो गक नमाण तथा ाम नगर य जम घंट के लए कये जा रहे अद
नयतन से र ा क जाये।
तवष लगभग 3000 वग KM. कृ ष क भू म नमाण काय म योग कर ल जाती है।
वष 1961-70 के दशक के म य जापान म 7.3% कृ ष भू म, सड़क एवं नवासीय
नमाण म, नीदर लै ड म 4.3% और नाव म 1.5% कृ ष भू म लु त हो गई।
य द वतमान दर से कृ ष क भू म घटती रह तो एक तहाई कृ ष भू म आगामी 20 वष
म कम हो जायगी। अतएव यह आव यक है क कृ ष भू म क अनु चत योग से र ा के
लए बनाय गये नयम का कठोरता से पालन कया जाये।
बोध न-3
1. मृ दा सं साधन का उपयोग कस- कस े म कया जाता है ?
............................................................ ..........................
............................................................ ..........................
2. मृ दा सं साधन सं र ण का उ े य या है ?
............................................................ ..........................
............................................................ ..........................
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3.4 जल संसाधन
जल मानव जीवन क अ य त मह वपूण आव यकता है। ाण क र ा के लए वायु के
बाद दूसरा थान जल का ह है। जल पृ वी पर पाया जाने वाला वह अमू य ाकृ तक
संसाधन है जो कृ त क रचना म सहभागी होकर स पूण जीवम डल को आधार दान
करता है। थलम डल, जलम डल तथा वायुम डल म व यमान जल व भ न अव थाओं
(ठोस, व, गैस) म अपनी भौगो लक ि थ त बदलता रहता है। यह प रवतन जल य च
के मा यम से पूण होता है। पृ वी पर उपल ध जल का लगभग 1 तशत भाग जल य
च म भाग लेता है। इस कार धरातल पर ि थत व भ न ोत , झील, तालाब, न दयाँ,
पेड़-पौधे तथा समु म उपल ध जल का वा पीकरण होता है एवं जल वायुम डल म वेश
करता है। इसके उपरा त तापमान कम होने के कारण संघनन होकर यह वा पीकृ त जल
वषा के प म पुन : धरातल पर आ जाता है। इस कार जल का जो च पूरा होता है
उसे जल य च कहते ह ( च 3.3)।
अमू य संसाधन जल कृ त म वभ न थान म वभ न वत रत है तथा सदै व
ग तशील रहता है व व म जल दो कार का जल पाया जाता है - (1) लवणीय (2)
व छ जल।
1. लवणीय जल सागर , महासागर म पाया जाता है । संसार का 97.39 तशत जल
लवणीय है। इसका आयतन 1,348,000,000 कमी3 है।
2. व छ (शु ) जल : स पूण जलम डल का 2.6 तशत जल शु (fresh) प म
पाया जाता है। इसम थल य जल संसाधन को सि म लत कया जाता ह। हम
टो पयां, हमख ड, हमनद (2.01%), भू -जल एवं मृदा नमी (0.58%), झील तथा
न दयाँ (0.02%) तथा वायुम डल (0.001%) म व छ जल पाया जाता है।
जल संसाधन क वशेषता यह है क इसका उपयोग (बहु उ ेशीय) एक साथ ह वभ न
तरह से होता है। जल का सवा धक उपयोग संचाई म (70%) कया जा रहा है तथा
वतीय थान उ योग का है। घरे लू तथा अ य उपयोग म इसका थान तृतीय है।
महासागर का मु य उपयोग प रवहन म कया जाता है। इसके व भ न उपयोग म
म य पालन का मह वपूण थान है। इस कार जल म डल म व यमान जल रा श का
वभ न प म उपयोग कर हम वकास को ग त दे रहे ह।
च - 3.3 जल य च
77
3.4.1 जल संसाधन का वतरण
78
इस कार भू सतह पर जल व भ न ोत म वत रत है। मु य ोत न न ल खत ह।
1. हम े : शु जल का तीन-चौथाई भाग (77.23%) महा वीपीय हनद , हमा नय ,
हमन दय आ द म हम के प म ह। ये उ च अ ांश एवं उ च पवतीय दे श म
ि थ त ह। अ टारक टका, ीनलड तथा आक टक े म हमचादर के प म जल
व यमान है।
2. न दयाँ : धरातल य जल ोत म न दय का मह वपूण थान है। ये उ च पवतीय
े , हमा छा दत चो टय , झील आ द से नकलकर व तृत भाग म वा हत होती
ह। व व क मु ख न दयां नील, अमेजन नद , यांग टसी यांग, मसी सपी, मेनीसी,
आव, वागहो, पराना, सानुर आमू र, ल मा, मीकांग, मैके जी, नाइजर, डा लग, वो गा,
दजला-फरात जे बेजी, यू े न , से टलारे स, स धु, मपु , गंगा, डे यूब , यूराल
इ या द ह। इनम उ तर पूव अ का म बहने वाल नील नद सबसे ल बी (6695
कमी) है। आमेजन (6570 कमी.), यांि टसी यांग (6300 कमी.) तथा मसी सपी
(6020 कमी.) येक 6 हजार कमी. से अ धक ल बी ह।
3. झील : झील पृ वी तल पर पायी जाने वाल मु ख ि थर जल रा शयाँ ह। कैि पयन
सागर, सु पी रयर, व टो रया, अरल सागर, यूरन, म शगन, टगा नका, ेट बयर,
बैकाल, इर , व नपेग, चाड इ या द बडी झील ह िजनम वशाल जलरा श सं चत है।
े फल क ि ट से कैि पयन सागर (370.9 वग कमी.) व व क सबसे बड़ी झील
है। उससे अमे रका क बड़ी झील म सु पी रयर, यूरन , मशीगन, ेट बयर, अ का
क व टो रया, तंजा नका, मालावी, चाड; यूरोप क कैि पयन सागर तथा ए शया क
अरल सागर, बैकाल झील, लैडोगा और बालकश सि म लत ह।
4. नहर : प रवहन, संचाई तथा जल व युत उ पादन के लए नहर का नमाण कया
जाता है िजनम जल भ डा रत रहता है। ये नहर रा य तथा अ तरा य मह व क
होती है। वेज नहर, पनामा नहर, सू नहर, क ल नहर इ या द बड़ी नहर है।
5. भू जल : भू-सतह के बीच ि थत शैल छ तथा दरार म व यमान जल को भू जल
कहते ह। जल संसाधन का भू मगत जल 0.50% है तथा स पूण जल य रा श के शु
जल य भाग (2.67%) का 22.21% है जो क 4 कमी. क गहराई तक ि थत है।
धरातल के नीचे मलने के कारण इसे अध: सतह जल भी कहते ह। वषा जल तथा
नहर, झील आ द का पानी रस कर अधौभो मक जल के प म एक त होता रहता
है।
महासागर य जल
पृ वी का 70.87% भाग जल य है, िजसका 97.39% भाग महासागर के प म
व यमान है िजनम कु ल 13480 लाख घन कमी. जल सं चत है। उ तर गोला म
40% भाग पर जल तथा 60% भाग पर थल है, जब क द णी गोला म 81% भाग
79
पर जल तथा 19.1 भाग पर थल है। इसी कारण द णी गोला को 'जल य गोला '
कहा जाता है।
महासागर म सबसे बड़ा शा त महासागर है िजसम व व का 46.91% जल य भाग
व यमान है जब क अटलां टक महासागर म 23.38% तथा ह द महासागर म 20.87%
जल उपि थत है।
तीन महासागर का जल लवणीय है। इसके अ त र त उ तर ु व एवं द णी ुव
महासागर म पाये जाने वाले जल का अ धकांश भाग हम के प म है।
हम े के प म आक टक महासागर कुल जल य े के 3.97% भाग पर फैला है।
ता लका-3.2 : मु ख सागर का े एवं जल य आयतन
सागर े फल( कमी.2) (आयतन कमी.3)
मलाया 8,143,100 9873000
कैरे बयन सागर 4319500 9573000
भू म य सागर 2966000 4238000
बाि टक सागर 422300 23000
हडसन 12333000 158000
लाल सागर 437900 215000
फारस क खाडी 238800 6000
बे रंग सागर 2268200 3259000
ओखोट क सागर 1427600 1279000
जापान सागर 100700 1361000
पूव चीन सागर 1249200 235000
अ डमान सागर 797600 694002
कैल फो नया सागर 168200 132000
उ तर सागर 575,300 54000
ोत : - डा. आर. के. गु जर एवं जाट ‘संसाधन भू गोल' पचंशील काशन जयपु र 2007, पृ ठ सं.65
भारत का जल संसाधन
भारत म व व के कु ल जल संसाधन का 6 तशत है। ो. के. एल. राव के अनुसार दे श
म कम से कम 1.6 कमी. ल बाई क लगभग 10360 न दयां है िजनम औसत वा षक
वाह 1869 घन कलोमीटर है।
भारत म तवष 1869 अरब घन मीटर सतह जल होने का अनुमान है। सतह जल के
मु य ोत न दय , झील, तालाब, सरोवर, पोखर इ या द ह। सतह जल का अ धकांश
भाग न दय म बहता है। भौगो लक ि टकोण से अनेक बाधाओं एवं वषम वतरण के
कारण इसम से केवल 690 अरब घन मी. (32%) सतह जल का ह उपयोग हो सकता
80
है। इसके अ त र त रा य तर पर उपल ध पार प रक भ डारण एवं वाह मोड़कर पुन :
आपू त के यो य लगभग 432 अरब घन मीटर जल है।
सतह जल संसाधन का वतरण बहु त असमान है (ता लका 3.3)। इसका अ धकांश भाग
कु छ नद बे सन म सं चत है। कु ल सतह जल वाह का 28.7 तशत जल मपु ,
26.8% गंगा और 3.9% संधु नद णाल म वा हत होता है। इस दे श का 60% जल
उ तर भारत क इन वशाल नद बे सन म सं चत है। ाय वीपीय भारत क न दय म
गोदावर (दे श का 6.4%), कृ णा (3.6%), महानद (3.6%) और नमदा (2.2%) का
जल संसाधन उ लेखनीय है। इस कार द णी भारत म सतह जल संसाधन कम है।
सतह जल संसाधन क मा ा वाह े के आकार, वषा क मा ा और नद के ोत क
वशेशताओं पर नभर होता है। इन ि टय से उ तर भारत क न दयां े ठ ह।
ता लका- 3.3 : भारत के मु ख नद बे सन म उपल ध जल संसाधन
बे सन औसत वा षक वाह कु ल का % उपयोग यो य जल भंडारण
(घन कमी.) (घन कमी.) (घन कमी.)
संधु 73 3.9 46 14.52
गंगा 501 26.8 250 37.40
मपु 537 28.7 24 1.09
गोदावर 119 6.4 76 7.27
कृ णा 68 3.6 58 32.33
कावेर 21 1.1 19 7.25
पे नार 6.8 0.4 6.8 2.37
महानद 67 3.6 50 8.93
सु वण रे खा 10.8 0.6 - _
हमाणी 36 1.9 18.1 4.29
साबरमती 8 0.4 1.9 1.30
माह 11.8 0.6 3.1 4.16
नमदा 41 2.2 34.5 3.02
ता ती 18 1.0 14.5 8.68
ोत : डॉ. आर. के. गु ज र एवं बी.सी. जाट ‘भारत का भू गोल' पचंशील काशन जयपु र 2007, पृ ठ सं . 39
81
दे श म भू मगत जल का अनुमा नत भंडार 433.9 अरब घन मीटर है। इसका अ धकांश
भाग जलोढ़ च ान वाले भाग म पाया जाता है। इस ि ट से उ तर भारत का वशाल
मैदान म भू मगत जल का वशाल भंडार है। संभा वत भंडार क ि ट से उ तर दे श,
म य दे श और बहार सबसे मु ख ह जहां दे श का आधा। भू मगत जल संसाधन सं चत
है। कु ल उपल ध भू मगत जल के केवल 37.2 तशत का ह वकास हो पाया है।
समु जल संसाधन क ि ट से भारतीय उपमहा वीप के लए ह द महासागर क
भौगो लक ि थ त मह वपूण है। भारत क लगभग 7516.6 कमी. ल बी तट रे खा तथा
60,000 वग कमी. अ य समु े म व वध संसाधन के भ डार ह। समावेशी या
अन य आ थक े (Economic Zone EEZ) कसी भी दे श का सागर तट य तटवत
े होता है िजसम आ थक ग त व धयाँ संचा लत होती है। संयु त रा के नयमानुसार
इसका व तार मु य भू म से 200 नाँ टकल मील (370 कमी.) तक होता है।
इस े म स ब जल एवं सागर तल म व यमान ाकृ तक संसाधन क खोज, दोहन
व संर ण का अ धकार होता है। इसको तीन भाग म वभ त कया गया है -
1. थल य सागर : इसका व तार 12 नॉ टकल मील (19 कमी.) तक होता है। मछल
पकड़ने का अ धकार ा त होता है।
2. संस त े : इसका व तार 24 नाँ टकल मील (38 कमी.) तक है। इस म तट य
रा य को पूण वत ता नह होती है, ले कन यहाँ सामु क अनुसंधान व संसाधन
सव ण कर सकता है।
3. खु ला सागर : यह ई.ई.जेड. से आगे का होता है। यहाँ कोई या यक े नह होता है
तथा यह तट य व भू-आवेि ठत दोन ह दे श के लए खु ला होता है। इसे खु ला सागर
कहते है।
उपयु त महासागर जल संसाधन का उपयोग भारत व भ न े म कर रहा है।
भारत म जल के अनेक तथा त पधा मक उपयोग ह। इसके आ थक उपयोग म संचाई
का बहु त अ धक मह व है त वष लगभग 500 अरब घन मीटर जल का उपयोग कया
जाता है। कु ल के 84% का उपयोग संचाई के लए कया जाता है। केवल 4% घरे लू
उपयोग म तथा 12% उ योग, व युत उ पादन आ द म कया जाता है। आवागमन के
साधन, अप श ट पदाथ को हटाने तथा मनोरं जन के साधन के प म भी जल का उपयोग
कया जाता है। भारत म धरातल य साधन क व वधता के कारण व भ न साधन वारा
संचाई क जाती है। य य प दे श के 40% कृ षत भू म को संचाई सु वधाएँ उपल ध ह
पर तु इसम भी व भ न े म व व धता पायी जाती है। भारत म संचाई के चार मु ख
साधन ह - नहर, कु एँ और नलकू प तथा तालाब। नहर वारा सं चत े 32.2% है
कु ओं वारा 21.4% तालाब वारा 6.5% तथा नलकूप वारा 31.6% तथा अ य
साधन वारा जल का उपयोग बढ़ता गया है सन ् 1950-51 म कु ल संचाई मता 226
लाख है टे यर थी जो माच 1999-2000 म 947 लाख है टे यर हो गई।
82
भारत सरकार ने जल संसाधन के बहु त से उ े य क ाि त हे तु अमे रका क टे नेसी नद
घाट योजना क अपार सफलता से भा वत होकर अनेक नद घाट योजनाएँ तैयार क ह।
मु ख प रयोजनाएँ न न कार है -
1. दामोदर घाट प रयोजना : इसका ल य पि चम बंगाल एवं बहार-झारख ड के
घाट वत े का आ थक वकास करना है। इस प रयोजना के अ तगत 8 बांध,
अवरोध बांध, जल व युत उ पादन के ो के अ त र त बोकारो, च पुरा तथा दुगापुरा
म तीन तापीय व युत गृह तथा लगभग 2500 कमी. ल बी नहर के नमाण का
ल य।
2. भाखड़ा नांगल प रयोजना : भारत क सबसे बड़ी बहु उ ेशीय प रयोजना है। यह
प रयोजना पंजाब, ह रयाणा तथा राज थान सरकार का एक संयु त यास है। यह
प रयोजना सतलज नद पर है।
3. च बल प रयोजना : म य दे श एवं राज थान रा य क सि म लत प रयोजना चंबल
नद पर था पत ह।
4. रह द (गो व द व लभ सागर) प रयोजना : उ तर दे श क सबसे बड़ी प रयोजना है।
5. तु ंगभ ा प रयोजना : तु ंगभ ा नद पर ि थत यह आ ध दे श तथा कनाटक रा य क
सयु ं त प रयोजना है।
6. ह राकु ड प रयोजना : (उड़ीसा) - महानद पर ि थत है।
7. कोसी प रयोजना : बहार - नेपाल सीमा परकोसी पर यह प रयोजना ि थत है।
8. नागाजु न सागर प रयोजना : आ दे श म कृ णा नद पर याि वत क गई है।
इसी कार दे श म अनेक बहु उ ेशीय प रयोजनाएँ दे श के अलग-अलग ह स म जल
संसाधन का उपयोग करने हे तु याि वत क गई ह।
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संचाई म तथा 75% सतह जल का उपयोग कया जाता है जब क भारत जैसे दे श
म संचाई म भू जल का अ धाधु ध उपयोग संचाई म कया जा रहा है।
2. उ योग म उपयोग : कुल शु जल का 25% भाग उ योग म उपयोग कया जाता
है यह कारण है क अ धकांश उ योग जल ोत के नकट था पत कये जाते ह।
3. घरे लू काय म उपयोग : घरे लू काय , पीने, खाना बनाने, नान, कपड़े धोने, शौच
इ या द म जल क आव यकता होती है। इसके अलावा पौध एवं पशु ओं को दूषण
र हत जल क आव यकता होती है।
4. प रवहन : न दय , नहर तथा झील म ि थत सतह जल संसाधन का उपयोग जल
प रवहन म कया जाता है।
5. जल व युत : जल से व भ प म शि त का उ पादन कया जा रहा है। अ का
म संसार क 23% स भा वत जल शि त ऊजा व यमान है। ले कन वहाँ वक सत
जल शि त केवल 1% ह है। ए शया म संसार क 23% स भा वत जल शि त है,
ले कन वक सत 11% है। इसी कार द ण अमे रका म जल शि त स भा यता
17% है तथा वक सत जल शि त 4% है।
6. मछल उ योग : न दय , झील , तालाब से मछल पकड़ी जाती ह।
7. थल य जल संसाधन से ख नज क ाि त : कु छ व श ट कार के जल से नमक,
पोटाश ख नज ा त होते ह। भारत म राज थान क सांभर झील, पंचभ ा और लू णसा
म नमक का उ पादन होता है।
8. महासागर स भा वत ऊजा के ोत : महासागर म जो पवन के दबाव से लहरे उठती
है और सू य तथा च मा के आकषण वारा वार-भाटे उ प न होते ह। उनका योग
कारखान को चलाने वाल शि त के प म हो सकता है। वै ा नक ने इसके सफल
पर ण कर लए है। भ व य म इस शि त के वकास क अपार स भावनाएँ ह।
84
है। व व म शु जल क मा ा 1.25 अरब कलोमीटर से 14 अरब कलोमीटर
अनुमा नत है। अत: त यि त त वष औसतन 8696 घनमीटर जल उपयोग
करने के लए उपल ध है। सर 2025 म जल क मांग बढ़ने के साथ यह घट कर
5100 घनमीटर होगी। अत: व व म स पूण मांग के आधार पर जल क कोई भी
कमी नह ं है बशत जल संसाधन का वतरण समान हो।
क तु वषा के वतरण के प रणाम व प सतह जल का वतरण बहु त अ धक असमान
है। वषा का व भ न ऋतु ओं म वतरण भी बहु त अ धक असमान है। वषा क
था नक और का लक वतरण क असमानता के कारण ज टल ाकृ तक वपदाओं क
ि थ त पैदा होना सामा य सी बात है। जैसे क बहु त कम और बहु त अ धक वषा के
े तथा सू खा और बाढ़- त दोन कार के े दे श म एक साथ मलते ह वषा के
इस तरह के े ीय वतरण के कारण जल संसाधन क संभावना कु छ े म अ धक
और अ य म कम है। भारत म ह इसका उदाहरण दे खा जा सकता है। वष भर नमी
क कमी वाले े म राज थान, पि चमी और द णी पंजाब और ह रयाणा का
मैदान, पि चमी गुजरात और पि चमी घाट का वृि ट छाया वाला े मु य ह। इसके
प रणाम व प इन े म म थल य और अ म थल य दशाय मलती है। इन
जलाभाव वाले े म पेय जल और घरे लू उपयोग के जल क कमी होती है। व व
क तीन-चौथाई वषा उन भाग म होती है जहाँ व व क एक-चौथाई ह जनसं या
रहती है। उदाहरण के लए व व के कु ल जल वाह का 20 तशत जल द णी
अमे रका के आमेजन बे सन का है जहाँ एक करोड़ से कम लोग रहते ह। यह ि थ त
अ का के कांगो बे सन का है। ए शया का व व म सवा धक जल वाह है पर तु त
यि त जल क उपल धता 4700 घनमीटर है जब क उ तर अमे रका म त यि त
उपल धता सवा धक 19000 घनमीटर है।
इसी तरह व व के व भ न दे श तथा एक दे श के व भ न भाग म जल के वतरण
तथा उपल धता म बहु त अ तर है। जैसे क भारत म वषा क मा ा के आधार पर
मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है क जल संसाधन म दे श का पूव एक- तहाई
भाग स प न तथा पि चमी एक - तहाई भाग (पि चमी तट और पि चमी घाट को
छोड़कर) वप है। म य के एक- तहाई भाग पर वप नता तथा अ प जल संसाधन
का म त प मलता है। ऋतु गत वषा का वतरण जल पू त को अ धक भा वत
करता है। अ धक वषा वाले े म भी, वषा कु छ ह मह न तक होती है।
प रणाम व प वष के अ धकांश भाग म जल क कमी बनी रहती है। इसी लए
संभा वत जल संसाधन का ववेकपूण उपयोग, संर ण और बंधन क नतांत
आव यकता है। जल क मांग और पू त म संतु लन होने के बावजू द दे श म जल
संसाधन क े ीय व भ नता और ऋतु गत आव यकता गंभीर ि थ त पैदा कर रह है
िजसके लए अ धक यान दे ने क आव यकता है।
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2. जल संसाधन के उपयोग स ब धी सम याय (Problems related to the
utilization of water Resources) : यह अनुमान लगाया गया है क पीने, सफाई,
नान तथा भोजन पकाने के लए त दन त यि त 50 से 100 ल टर पानी
चा हए। ले कन व व के अनेक दे श म इतना पानी नह ं मलता। यह आव यकता
आ थक वकास के तर, नगर करण तथा औ योगीकरण पर नभर है। मीठे पानी के
तीन मु य उपयोग ह: संचाई, औ यो गक तथा घरे लू उपयोग। इन उपयोग म काफ
त पधा है। वकासशील दे श म कृ ष का उ पादन बढ़ाने के लए अ धकांश पानी का
योग संचाई के लए कया जाता है। पर तु उ योग तथा नगर के बढ़ने के साथ इन
पानी क मांग नगर और उ योग वारा क जाने लगी है। यूरोप तथा संयु त रा य
अमे रका म आधे से अ धक पानी का उपयोग उ योग म कया जाता है। फलत: वहाँ
कृ ष तथा घरे लू उपयोग के लए पानी क सम या रहती है। भारत म वक सत जल
संसाधन का 84 तशत संचाई म योग कया जाता है दे श क कु ल संभा वत
संचाई मता के लगभग 68 तशत का वकास कर लया गया है। फर भी दे श
का दो- तहाई कृ षत े अ सं चत है। हाल के वष म कु ओं और नल कू प वारा
संचाई म कामी अ धक वकास हु आ है। ये साधन अधोभौ मक जल पर आधा रत ह।
इसके प रणाम अधोभो मक जल क कमी तथा जल- तर तेजी से नीचा होने जैसी
सम याएं होने लगी ह। अधोभौ मक जल का बहु त अ धक दोहन एक नई सम या क
ओर संकेत कर रहा है। 10 रा य म वशेषकर पंजाब, ह रयाणा, गुजरात, कनाटक,
महारा , राज थान त मलनाडु और उ तर दे श के 114 िजल को अ धक दोहन वाले
काला िजले घो षत कया गया है। अ का तथा ए शया महा वीप म अनेक ऐसे दे श
ह जहाँ जल क तंगी (stress) तथा अभाव (scarcity) क ि थ त है। इससे
खा या न का उ पादन तो भा वत होता ह है, आ थक वकास कता है तथा
पयावरण का अवनयन होता है।
न दय का पानी पाने के लए व व के कई दे श के बीच म ववाद चल रहा है। यहाँ
तक क एक ह दे श क व भ न रा य के बीच नद जल ववाद का कारण बना है।
भारत का कावेर नद जल ववाद तथा नमदा जल ववाद इसी तरह जल क
त पधा के प रणाम है।
3. जल क गुणव ता स ब धी सम याय (Problems Pertaining to Water Quality)
: जल का दूषण एक मह वपूण सम या है। जल के दूषण का मु य ोत घरे लू
यथ (अप श ट) जल, औ यो गक अप श ट जल और गंदे व क नकासी और खेत
का बहता पानी (वाह) ह। कई वशेष यह दावा करते ह क हमारा तीन-चौथाई
धरातल य जल दू षत है और िजसके 80 तशत भाग को केवल मलजल (ग दा
पानी, Sweage) ने दू षत कया है। इस सम या का अनुमान इसी से लगाया जा
सकता है क भारत जैसे पछड़े दे श म लगभग 1200 करोड़ ल टर त दन यथ
पानी थम ेणी नगर से तथा 130 करोड़ ल टर त दन कए हु ए या तो खु ल
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जगह पर या फर न दय म छोड़ दया जाता है। गंगा नद को अप व करने वाले
मानव के मैला को सु र त होने तथा न ट करने के साधन का पया त वकास नह
होता तब तक इसी तरह न दय के जल को हम दू षत करते रहे ग।
अ धकांश नगर य ठोस अप श ट पदाथ को खु ले मैदान म ढे र लगा दया जाता है जो
अ तत: समीप के न दय और जलाशय म पहु ंचता है और पानी को दू षत करता है।
शहर े म ि थ त कारखान बड़े पैमाने पर अवां छत पदाथ उ प न करते ह, जैसे
औ यो गक यथ पदाथ, दू षत बहते हु ए जल म मल जाते ह और ये जहर ल त व
जलाशय , न दय और अ य जल य भाग म पहु ंचकर वहां के जैवीय तं को न ट कर
दे ते ह। औ यो गक े से कतना अ धक अप श ट पदाथ नकलता है इसक क पना
करना क ठन है। उदाहरण के लए कानपुर शहर े के लगभग 150 चमड़ा फै
था पत उ योग तथा मैला न दय के जल को दू षत करते ह तथा नद के नचले
े म रहने वाले लोग के लए गंभीर वा य-संबध
ं ी सम याय पैदा करते ह।
कृ ष भी जल को बहु त दू षत कर रह है। जैसे क उ पादन बढ़ाने के पानी, उवरक
और व भ न रसायन पर आधा रत खेती क जाने लगी है। उवरक और रसायन को
शेष बचा हु आ भाग पानी के साथ बह कर जलाशय म पहु ँ चता है िजससे जल दूषण
ार भ होता है। जीव पा रि थ तक तं को खतरा पैदा हो गया है। जल म लगातार
पोषक त व एक त होते जाते ह, िजससे शैवाल जैसी अवांछनीय वन प त तेजी से
बढ़ती है। उवरक एवं क टनाशक खरपतवार नाशक रसायन रसकर कर भू मगत जल
म भी मल जाते ह। इस तरह जल एवं भू म का दूषण का बढ़ता है। फलत: बना
साफ कए सतह तथा भू मगत जल के योग से जीवन एवं वा य को खतरा पैदा
हो गया है। इस कार रसायन आधा रत आधु नक कृ ष जल एवं भू म का दूषण बढ़ा
रह है। अ धक मा ा म रसाय नक खाद तथा रसायन धरातल य एवं भू ग भक जल को
दू षत करते है। ये रसायन जलाशय म पहु ंचकर वहाँ के रसाय नक संगठन म
प रवतन करके जल य तं को भा वत कर दे ते है। कु छ वशेष े म ऐसे दू षत
पदाथ लोराइड तथा आस नक जमा हो जाते ह।
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व व क 1/4 जनसं या जल के अभाव म जी रह है। एक अरब लोग के े म पानी है
ले कन आ थक एवं तकनीक कारण से उपभोग के लए उपल ध नह ं है।
संचाई म भी जल क बढ़ती हु ई मा ाओं का योग कया जा रहा है। एक है टे यर के
संचाई म औसतन 12000 से 14000 घन मीटर जल का योग कया जा रहा है। एक
कलो ाम गहू पैदा करने के लए 1000 ल टर पानी क ज रत होती है।
पृ वी पर जल के उपयोग म होने वाल इस ती वृ के कारण नकट भ व य म मानव
को जल क कमी का सामना करना पड़ सकता है। ि थत यह है क व व के कु छ भाग
म जल संसाधन पया त ह, पर तु लोग को उपभोग के लए उपल ध कराना क ठन है।
अ य भाग म जल क माग उपल धता से कह ं अ धक है। फलत: सभी को समु चत जल
उपल ध नह ं है। पुन : सर 2020 तक जल का उपभोग 4070 बढ़ने क संभावना है। अ तु
जल संर ण क बहु त आव यकता है।
जल का उपयोग कसी प म कया जा रहा हो सदै व उसके संर ण एवं बंधन क
आव यकता है। आज इस बात पर वचार करना आव यक है क हमारे पास जल संसाधन
का अ धकतम लाभ के लए कैसे योग कर। जल क मा ा तो ि थर है पर तु उसक
मांग नरं तर बढ़ रह है। अ तु सम या जल क मांग और पू त म संतल
ु न बनाने क ह
अथात ् जल संर ण के लए जहां पू त बढ़ाना आव यक है वह ं जल क मांग को घटाना
भी।
मांग के े म कई उपाय जल संर ण म तु रंत सहायक हो सकते ह। उदाहरण के लए
व व म सवा धक शु जल का उपयोग संचाई म कया जाता है। वतमान म च लत
पानी भरने व ध म आधे से अ धक जल यथ हो जाता है। अ तु संचाई क व धय म
संशोधन करके संचाई जल क मांग कम क जा सकती है। जैसे क प तकनीक से 40
से 60% पानी बचाया जा सकता है। इसी तरह संशो धत ि क
ं लर व ध अपनाकर कम
पानी से अ धक संचाई क जा सकती है। इजराइल म दू षत जल को साफ करके
20,000 हे टर को संचाई क जाती है।
उ योग जल के दूसरे उपभो ता है। वक सत दे श म आधे से अ धक जल का उपयोग
औ यो गक याओं म होता है। तकनीक सु धार के मा यम से इसे भी कम कया जा
सकता है। संयु त रा य अमे रका ने औ यो गक याओं उ नत बना कर सन ् 1950 से
सन ् 1990 के म य औ यो गक जल क मांग एक- तहाई कर ल है। वकासशील दे श म
औ यो गक जल बचाने क अपार संभावना है। जैसे क भारत म 1 टन इ पात बनाने म
23 से 56 घन मीटर पानी का योग कया जाता है जब क सयु त रा य तथा जमनी म
केवल 6 घन मीटर।
इसी तरह नगर म जल दाय क यव था सु धार कर 40% से 70% तक यथ बहने
वाले पानी को बचाया जा सकता है। कम पानी वाले लश शोचालय तथा पानी बचाने
वाले उपकरण का उपयोग कर के जल क मांग कम क जा सकती है।
88
मांग नयं त करने के साथ जल क पू त भी बढ़ानी पड़ेगी। इसके लए वाहशील का
सं ह आव यक है। इसके सं हण से भू मगत जल का तल एवं भंडार बढ़ता है।
जल सं ह क संरचनाएं छोटे और लघु आकार क होने पर सीमा त, छोटे कसान और
ामीण गर ब को उसका लाभ मलता ह। इस हे तु जल संभर (Water shed) उपागम
का योग होने पर वहां के नवासी इस काम म सहभागी बनते ह। वषा-जल एक ण
(Rain Water Harvesting) वारा भी जलापू त बढ़ती है। इसक अनेक पार प रक
व धयां च लत ह। यह सब तभी संभव हो सकता है जब क दे श म एक कृ त जलनी त हो
िजसम जल के सभी कार के उपयोग , समाज क सम त आव यकताओं, उनक
ाथ मकताओं, नुक सान द भाव के नयं ण के उपाय, जल क गुणव ता के नयं ण,
पयावरण एवं मानव के वा य के संर ण आ द क यव था हो।
जल संर ण के उपाय
1. नवीन तकनीक का उपयोग कर जल क उपल धता बढ़ाना, उसे साफ करना तथा
उसक त को कम करना।
2. जल बंधन के लए श त तकनीक तथा शास नक कमचा रय का थानीय से
लेकर रा तर तक थापना।
3. भू मगत जल तथा सतह जल का संयु त उपयोग।
4. जल-संभर उपागम तथा वषा जल एक ण जैसी व धय का उपयोग कर जल संर ण
करना।
5. संचाई क उ नत व धय का योग, संचाई जल क द ता बढ़ना।
6. जल संर ण का बहु उ ेशीय होना।
7. एक नद बे सन से अ य नद बे सन म जल का थाना तरण।
8. उ योगो म कम पानी वाल तकनीक का उपयोग कर उनक मांग घटाना।
9. शहर अप श ट जल को संशो धत कर पुन : उपयोग,
10. नगर नकाय वारा जल वतरण णाल म सुधार कर पानी यथ होने से बचाना।
11. पार प रक जल ोत को पुनज वत कया जाना।
12. जल के दु पयोग पर व धक नयं ण।
जल संर ण के लए यह ज र है क पृ वी पर होने वाल वषा के जल को ा त करके
उसके अपवाह को नय मत कया जाये तथा जलाशय म जल का नि चत भ डारण करके
उससे अ धकतम उपयो गता ा त क जाये। जैसी वषा का जल भू तल पर गरता है, य द
तभी उसक अ धका धक मा ा को भू म के अ दर जाने के लए अनुकू ल दशाएँ ा त
करायी जाये तो इससे जहाँ भू मगत जल क मा ा बढ़े गी, वह वा पीकरण कम होगा और
मृदा म नमी बनी रहे गी।
इस लए भू म पर वृ ारोपण अ त आव यक है, य क वृ क जड़ जल को अवशो षत
करती है, िजससे भू म जल का संचय होता है। इसके अलावा उपयु त उपाय जल संर ण
हे तु आव यक है।
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3.5 सारांश (Summary)
ाकृ तक संसाधन म म ी एवं जल संसाधन का वश ट थान है। इस इकाई के
अ तगत ाकृ तक संसाधन मृदा एवं जी के व भ न पहलु ओं पर चचा क गई है। पृ वी
तल पर कृ ष उ पादन य प से म ी पर ह आधा रत है व व क लगभग 80%
जनसं या इससे स बि धत यवसाय म लगी हु ई है म ी प र छे दका म सामा य तीन
तर 'अ' 'ब' एवं 'स' होते है। म य क तीन कार म वभािजत कया जाता है -
क टब धीय, क टब धा त रक एवं अपाि वक म याँ।
क टब धीय म य म पेडोकल एवं पेड फर म याँ मु ख है। व व म इनका वतरण
जलवायु एवं वन प त दे श के अनुसार मलता है। इस लए इ हे क टब धीय म ी कहते
है। म ी संसाधन का उपयोग सवा धक कृ ष काय म कया जाता है संसार म 70%
जनसं या न दय क काँप म ी पर आधा रत है। प रवहन एवं पशु चारण म भी इसका
उपयोग कया जाता रहा है। मृदा क सम याओं को दे खते हु ए इसका संर ण अ त
आव यक है तथा द घकाल तक भावी पीढ़ हे तु उ पादन मता म वृ हो सके। इसके
व भ न उपाय है। जल संसाधन: थल य एवं महासागर य प म फैला हु आ है। न दयाँ,
नहर, झील आ द प म थानीय जल तथा लवणीय प म सागर म (97.39%) जल
वत रत है। स पूण जल म डल का 2.6% भाग शु जल के प म पाया जाता है।
शा त महासागर म व व का 46.9%, अटलां टक महासागर म 23.38% तथा ह द
महासागर म 20.87% जल उपि थत है। जल का सवा धक उपयोग 70% सचाई म
कया जाता है जब क 23% जल का ह उपयोग कया जा रहा है।
जनसं या वृ उ योगो का तेजी से वकास, सं चत भू मका व तार, जलसंसाधनो के
अ धक शोषण के कारण जल संर ण अ त आव यक हो गया है। इसके लए जल संर ण
तकनीक को अपनाना आव यक है ता क भावी पीढ के लए याग हो सके।
जल संर ण क तकनीक - जल का पुन वतरण , दूषण से सु र ा भू मगत जल का
ववेकपूण उपयोग, जनसं या नय ण, कृ ष त प म प रवतन, बाढ़ ब धन, उ योग
मे जल क बचत आ द मु ख उपाय जल संर ण हे तु आव यक है।
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मृदा सरं ण : द घ काल न लाभ ा त करने हे त,ु म ी क उवरता तथा अ य त व
म वृ कर उ पादक मता बढाना।
थल य जल संसाधन : न दयाँ, नहर, झील, नाल , दलदल आ द मे वत रत जल।
जल च : जल वा पीकृ त होकर वायुम डल म संव धत होकर वषा के प म पुन :
धरातल पर आ जाता है यह म नर तर चलता रहता है।
झील : जल य भाग जो चार ओर थल से घरा होता है।
3.8 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. धरातल पर मलने वाले असंग ठत पदाथ क ऐसी परत जो मू ल च ान व वन प त
अंश के संयोग से बनती है।
2. म ी के मु य घटक ख नज, जै वक पदाथ, जल एवं वायु है।
बोध न - 2
1. पृ वी क ऊपर सतह से नीचे क आधार शैल तक म ी उ व काट ह म ी
प र छो दका कहलाती है।
2. पेड फर म ी म ए यू म नयम एवं लोहांश क अ धकता होती है। जब क पेडोकल म ी
म कैल शयम (चू ना) क मा ा अ धक होती है।
बोध न - 3
1. मृदा संसाधन उपयोग कृ ष काय, पशु पालन वृ ारोपण, फल क कृ ष, प रवहन इ या द
म कया जाता है।
2. म ी अपने थान पर कायम रखना, म ी क उवरता तथा अ य त व क अ भवृ
करे के द घकाल तक उ पादन मता म वृ करना है।
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3.9 अ यासाथ न
1. ाकृ तक संसाधन मृदा क प रभाषा को प ट क िजए तथा मह व समझाइऐं।
2. मृदा प र छे दका को स च समझाइऐं ?
3. मृदाओं के भेद ल खए ?
4. मृदा संर ण य आव यक ह ?
5. जल संसाधन का वतरण बताइए ?
6. भारत के जल संसाधन का वणन क िजए।
7. जल संसाधन का उपयोग कस- कस े म बढ़ता जा रहा है ? य ?
8. जल संसाधन क सम याओं का ववरण द िजए।
92
इकाई 4 : जै वक संसाधन : वन प त एवं पशु (Biotic
Resources : Vegetation and Animals)
इकाई क परे खा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 जै वक संसाधन
4.3 ाकृ तक वन प त
4.3.1 वन प त के वतरण को भा वत करने वाले कारक
4.4 वन प त के कार एवं वतरण
4.5 वन प त का उपयोग एवं वन प त के उ पाद
4.6 वन प त का संर ण
4.7 पशु संसाधन
4.7.1 पशु संसाधन कार
4.8 पशु संसाधन का वतरण
4.9 पशु संसाधन का उपयोग
4.9.1 आखेट
4.9.2 पशु पालन उ योग (उ योग : दूध , पनीर, मांस का उ पादन का व व
वतरण ऊन- उ पादन का वतरण आकड़े स हत
4.9.3 म य उ योग
4.10 पशु संसाधन का संर ण
4.11 सारांश
4.12 श दावल
4.13 स दभ थ
4.14 बोध न के उ तर
4.15 अ यासाथ न
4.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे क : -
जै वक संसाधन का मह व
संसार म वन प त के कार एवं वतरण,
संसार म वन प त का उपयोग एवं सर ण,
पशु संसाधन का व व वतरण,
संसार म पशुसंसाधन के उपयोग,
पशु संसाधन के संर ण क आव यकता।
93
4.1 तावना (Introduction)
इस इकाई म हम आपको जै वक संसाधन (वन प त एवं पशु) के व भ न पहलुओं के
वषय म जानकार दान करगे।
जै वक संसाधन के अ तगत वन प त एवं ज तु जगत को सि म लत कया जाता है। इस
संसार म तीन कार के जीवधार -वन प त, ज तु और मानव के पार प रक योग से ह
तीन का सहअि त व होता है। वन प त के बना संसार म मानव क स ता कायम नह
रह सकती। कसी े क वन प त वहाँ के वातारण क मताओं क सू चक होती है।
वभ न दे श म व भ न कार क वन प त होती है। संसार म चार कार क वन प त
वन, घास के मैदान, म थल य झा डयां और टु ा वन प त पायी जाती है। इसका
वभ न े म उपयोग हो रहा है।
जै वक संसाधन म वन प त के प चात पशु संसाधन का थान आता है। संसार म
वभ न कार के पशु संसाधन का व भ न े म यावसा यक एवं घरे लू उपयोग होता
रहा है। इनके वतरण को नि चत करने वाला अ धक भावकार कारक वन प त है।
ए शया महा वीप म मु यत प से पालतू पशु ओं का मू ल थान रहा है। कु ता, घोड़ा, गाय,
बैल, बकर , भेड़, ऊँट और सू ंअर मनु य वारा पाले गये पशु ओं म मु ख ह। इनका
थाना तरण ए शया से अ का आ द दे श म हु आ। द णी अमे रका के पवतीय दे श म
लामा, अलपाका और वकु ना पालतू बनाये गये थे।
4.2 जै वक संसाधन
जै वक संसाधन के अ तगत वन प त एवं ज तु जगत के संसाधन आते ह। संसार म तीन
कार के जीवधार ह - वन प त, ज तु और मानव। तीन के पार प रक योग से ह तीन
का सह - अि त व होता है।
ाकृ तक वन प त का थल य संसाधन म अ य धक मह व है। वन प त के बना संसार
म मनु य क स ता कायम नह रह सकती। मानव एवं ज तु चलते- फरते जीवधार ह
जब क वन प त अचल जीवधार है। मानव और वन प त का इतना घ न ठ स ब ध है
क मानव को जी वत रहने के लए िजस ाण वायु (आ सीजन) क आव यकता होती है,
वह वन प त से ा त होती है।
मनु य उस आ सीजन के बदले म काबन-डाई आ साइड गैस बाहर नकालता है, पेड़-पौधे
इसे हण करते ह। इस कार मानव और वन प त का पर पर जै वक स ब ध है।
ाकृ तक वन प त एक मह वपूण संसाधन ह नह बि क वातावरण क दशा का य
सू चक भी होती है। कसी ाकृ तक वातावरण का कस कार का उपयोग हो सकता है,
इसका भी अनुमान ाकृ तक वन प त से लगाया जा सकता है।
जीवीय संसाधन के अ तगत पा रि थ तक स तुलन क ि ट से व य पशु ओं का मह व
है। य तः बहु त कम व य पशु मानव के लए आव यक ह, तथा प वे भी पा रि थ तक
स तुलन बनाये रखने म मह वपूण योग दे ते ह।
94
जै वक संसाधन पर मानव का अि त व नभर है। यह भोजन का एक मा ोत है।
भोजन के अ त र त व के लए हम रे शे वाले पौध एवं जीव पर नभर ह। घर बनाने
के लए लक ड़याँ वन से ह मलती है। अ य कई कार क चीज, दवाइयाँ, रं ग,
वन प त तेल आ द जीवीय संसाधन से ह ा त होते ह।
जीवीय संसाधन थल एवं जल दोनो भाग म मलता है। थल य जीवीय संसाधन म
ाकृ तक वन प त एवं व य पशु ओं तथा कृ षगत पौध को सि म लत कया जाता है। इस
अ याय म मु य प से ाकृ तक वन प त का अ ययन कया गया है।
4.3 ाकृ तक वन प त
जीवीय संसाधन म ाकृ तक वन प त का मानव के लए मह वपूण उपयोग है। कसी े
क वन प त वहाँ के वातावरण क मताओं क सू चक होती है तथा उस वातावरण के
उपयोग के स ब ध म जानकार ा त कराती है िजससे मनु य को उस वातावरण के
उपयोग म सहायता मलती है।
पौधे अपनी उपज क दशाओं के सू चक होते ह। वे अपने े क जलवायु, सू म जलवायु,
म ी, भू तल, जल, भू मगत जल और वातावरण के उपयोग व अ य कारक के सू चक होते
ह।
व व क ाकृ तक वन प त म चु र- ादे शक भ नता मलती है। कसी एक दे श म भी
व भ न आकार- कार, व भ न जा त एवं व भ न ऊँचाई वाले पेड़-पौधे होते ह। अत:
कसी छोटे से छोटे भू भाग म भी ाकृ तक वन प त क पूण समानता पाना अ य त
क ठन है।
95
आकाश म बादल क आधार (v) पवन के चलने क दशाएँ एवं ग त। वनो के लए
कम से कम 25 सेमी. वा षक वषा या इतनी मा ा म बराबर हमपात आव यक है।
इनम तापमान एवं वषा क मा ा का बहु त अ धक भाव पड़ता है। जहाँ वषा अ धक
होती है वहाँ सदाबहार वन पाए जाते ह। वषा घटने के साथ ह इनके थान पर
पतझड़ वाले वन, झा ड़याँ, घास तथा कंट ल झा ड़याँ उगती ह। इसी तरह तापमान
घटने के साथ चौड़ी प ती वाले वृ के थान पर नुक ल प ती के वृ , कचेन, काई
आ द उगती ह।
2. भू- आकृ त एवं उ चावच : भू-तल क रचना क भाव जल वाह क ग त और
दशा, म ी के कटने एवं जमे रहने, वृ के फैलाव तथा जलवायु दशाओं पर होता
है। समतल भू म क उपे ा उबड़-खाबड़ भू म पर वन प त अ धक पायी जाती है।
3. म ी क उवरता : म ी म रासाय नक त व क मा ा, कण क बार क , संर ता,
आ ता, म ी परत क गहराई वन प त का मु ख आधार होती है।
4. अधो भौ मक जल : वृ क जड़े म ी म पया त गहराई तक जाती है तथा म ी क
नचल परत से खाद पानी लेती ह। ऊपर तल के नीचे के तर म य द जल पया त
है तो वहाँ वन उ प न हो सकते है। जल क कमी के कारण झा ड़याँ और घास
उ प न होती ह।
5. जीवीय संसाधन : जीव-ज तुओं एवं मनु य का भाव होता है। ज तु य द अ धक
मा ा म चराई करने लगते है तो उससे म ी का कटाव होने लगता है। मनु य अपनी
अव यकता क पू त करने के लए वन को न ट करता रहता है। पि चमी और उ तर
भारतीय मैदान से ाकृ तक वन प त के लु त होने का कारण अ य धक मानवीय
यवधान ह है।
6. तकनीक तर : (i) धन के लए लकड़ी के बजाय व युत शि त के उपयोग का
(ii) क चे माल के प म का ठ के नये-नये उपयोग का (iii) लकड़ी के बजाय
लाि टक आ द का अ धक योग कये जाने का। (iv) पादप पा रि थ तक के ान
क वृ और वन व ान क णा लय का भाव वन क रोपाई, कटाई, संर ण
तथा उपयोग पर होता है।
7. भू म य रे खा से दूर : वषुवत रे खा के पास सघन वन पाये जाते ह तथा य- य
हम भूम य रे खा से दूर होते जाते ह य - य ताप एवं पानी क कमी साथ-साथ वन
क गहनता म कमी आती जाती है।
96
घास के मैदान (iii) म थल य झा डयां (iv) टु ा वन प त। इनके उपभेद न न कार
ह-
97
लगभग 44.6/% भू भाग पर वन फैले ह। दूसर और ए शया (21%), अ का (21.9%)
तथा उ तर अमे रका म भू भाग के एक चौथाई से कम ह से पर वन ह।
1. उ ण क टब धीय वन
(i) वषुवत रे खीय उ ण-आ वन : ये कठोर लकड़ी के सदापण वन ह जो वषुवत
रे खा के 10 ०
उ तर और 10० द णी अ ांश के बीच क पेट म ि थत है।
तापमान वष भर ऊँचा (27०C लगभग) रहता है। वा षक वषा 250 सेमी होती है।
द णी अमे रका का अमेजन बे सन और प. म य अ का म कांगो बे सन, दो
सबसे बड़े े ह। इनके वृ म आबनूस , लौह का ठ, रोजबुड, ताड़, महोगनी,
रबर, ल बा, परानट, तल-ताड़ मु य है। अ धक सघन होने के कारण सू य क
करण धरातल पर नह ं पहु ँ चती ह।
इनक लकड़ी कठोर होती ह। वृ अ य त सघन, पास-पास होते ह। एक साथ
वभ न जा तय के पेड़-पौधे एक साथ पाये जाते ह। यहाँ वृ लगभग 55
मीटर क ं ऊँचाई तक पाये जाते ह। मु य वृ के नीचे अ य छोटे -छोटे वृ तथा
लताऐं पायी जाती ह। ये बहु मंिजले वन होते ह।
(ii) उ ण क टब धीय पणपाती वन : इनम मानसू नी पणपाती, अधपणपाती तथा
झा ड़यां होती ह। िजन भाग म वषा क मा ा 150 सेमी से अ धक होती है
उनम अधपणपाती वन होते ह, जैसे पूव भारत यांमार, थाइलै ड, वयतनाम
आ द म मानसू नी वन े का व तार 120 से 250 अ ांश के म य उ तर
एवं द णी गोला म ि थत या पि चमी वीप समू ह, भारत, द. पूव ए शया,
इ डोने शया, मले शया, अ का, उ. आ े लया, द. ाजील, द. पूव संयु त रा य
अमे रका, फामू त तथा द णी चीन आ द दे श म पाया जाता है।
मानसू नी े के वन शु क ऋतु म अपनी पि तयां गरा दे ते ह। इसी कारण इ ह
पणपाती वन कहते ह। इन वन के वृ म सागौन, साल, बरगद, पीपल, गूलर ,
शीशम, आम, महु आ, जामु न, नीम, मैन ोव, यूके ल टस , पलाश, सैमल, ह दू
मु ख ह।
2. म य अ ांशीय वन
(iii) भू म य सागर वन तथा सदा पण झा ड़याँ : इन वन का व तार 30० से 45०
अ ांश के म य महा वीप के पि चमी भाग म ि थत दे श म पाया जाता है।
इन दे श म शीतऋतु म पछुवा पवन से वषा होती है। भू म यसागर के तटवत
े कै लफो नया रा य, द. अ का का ाय वीप भाग, चल एवं आ े लया के
द. प भाग म ि थत समु तट य े आ द म भू म य सागर य वन प त का
व तार पाया जाता है। वा षक वषा का औसतन 40-65 से मी. के म य रहता
है। इनके मु ख वृ सनोवर, बलू त, ओक, कॉक-ओक, जैतू न, अंजीर और शहतू त
ह। झा डय म चपरे ल या माक मु य ह।
98
(iv) समशीतो ण पणपाती वन : शीतो ण क टब ध के आ दे श म, िजनम
ी मकाल म वषा और शीतकाल म हमपात होता है, वहाँ पणपाती वन ह। इनके
वृ शीतकाल म अपनी पि तयाँ गरा दे ते है।
उ तर यूरोप, जापान, मंचु रया, चीन, द. साइबे रया, हमालय पवत और संयु त
रा य अमे रका म ऐसे वन ह। इनम ओक, मैपल
ु , ऐश, ऐम, अखरोट, बीच,
हकर , तु न, भोजप (बच), बान, मो , हलोज आ द व होते ह।
(v) समशीतो ण म त वन : शीतो ण क टब ध म पणपाती तन, ठ डे े म
म त कार के हो जाते ह इनम कु छ सदापण शंकुधार वृ पाये जाते ह -जैसे
चीड़, कैल, ु आ द। उ तर क ओर ठ डे भाग म धीरे -धीरे ये शंकुधार हो
स
जाते ह। म त वन म चौड़ी प ती वाले वृ , आ पेम, ऐश, वच, बलो, अ डर
अ धक होते ह।
(vi) शंकुधार वन : इन वन का व तार केवल उ तर गोला म पाया जाता है। शीत
काल म हमपात से र ा के लए इन वृ क पि तयाँ नोकदार सू ई के आकार
क होती ह। इन वृ क पि तयाँ नह गरती ह। उ तर यूरोप , साइबे रया के
टै गा, कनाडा, हमालय, आ पस, रॉक ज तथा एि डज म शंकु धार सदापण वन
है। इनम मु य वृ चीड़, कैल, दे वदार, ु , हैमलॉक, फर,
स स वर, फर,
डगलस फर, लू पाइन, लाच और धु नेर ह।
ये सदापण तथा नरम लकड़ी के वन ह। इनका उपयोग नमाण उ योग म कया
जाता है। इनम झा डयां, लताएं आ द बहु त कम होती ह। इनका आ थक मह व
अ धक है। इनसे ा त गौण उपज म बरोजा, तारपीन का तेल है।
II घास समु दाय
(i) उ ण क टब धीय घास दे श : उ ण क टब धीय दे श म जहाँ वा षक वषा 26 से
75 सेमी. तक होती है, वहाँ घास के मैदान होते है। आ े म घास के साथ-साथ
वृ भी होते ह। इन घास के मैदान को सवाना कहते ह।
सवाना का सवा धक व तार अ का म है। द णी अमे रका म वेनेजु एला, कोलं बया
तथा ाजील का क पोज े भी सवाना घास का े ह। यह घास ल बी होती है।
अ का के सवाना म तो 1.5 से 4.5 मीटर तक ऊँची घास होती है। भारत के तराई
े म हाथी घास 3.6 से 4.5 मीटर तक ल बी होती है। इन दे श म अनेक कार
के क ट-पतंग होते है, जो मनु य और पशु ओं के लए हा नकारक होते ह। सी सी.
म खी, म छर, प सू दाँस आ द क ट बडे क ट द होते ह।
(ii) म य अ ांशीय या समशीतो ण घास के दे श : शीतो ण घास के े का वकास
30० से 45० अ ांश के म य उ. एवं द णी गोला म पाया जाता है। यहाँ वषा
25 सेमी से 75 सेमी. तक तवष होती है। यहाँ क ल बी घास को ेयर तथा
छोट घास को सामा यतया टे पी कहते ह। इनके े ीय नाम है :
99
संयु त रा य अमे रका तथा कनाडा म ेर ज, म य ए शया म टे पीज, द णी
अमे रका म प पास, द णी अ का म वे स, द णी-पूव आ े लया म डाउ स।
इन मैदान म वृ नह ं होते ह। शीतो ण घास क ल बाई 1.3 मीटर तक पायी जाती
है। यहाँ उगने वाल घास गु छे के प म पायी जाती है।
III म थल एवं अध म थल य वन प त : म थल य वन प त े का व तार
महा वीप के पि चमी भाग म 20० से 30० अ ांश के म य दोन गोला म पाया
जाता है। इन े म वा षक वषा 30 सेमी से कम होती है।
(iii) समशीतो ण पेट म 15 सेमी से कम वषा म म थल होते ह। म थल य वन प त
म काँटेदार वृ तथा झा ड़याँ होती ह। अ का म सहारा तथा कालाहार , ए शया म
अरब, थार, सी यांग और मंगो लया, संयु त रा य अमे रका म कोलोरे डो, द णी
अमे रका म पे और पि चमी आ े लया म म थल इतने बड़े ह क ये मलकर
पृ वी के सम त थल े का लगभग 1/5 भाग घेरे ह। इन भाग म कृ ष नह
होती, केवल पशुचारण होता है। नागफनी, सेण श
ु , पो ट, सैकसोल, अके शया,
यूके ल टस आ द मु ख काँटेदार वृ पाये जाते है।
(iv) टु ा वन प त : टु ा वन केवल उ तर गोला के आक टक े म पाये जाते ह
यहाँ ल बी शीत ऋतु के कारण केवल मास, शैवाल, मरकु ल तथा काई आ द क म
क घास पायी जाती है। शीत ऋतु बहु त ल बी (10 मह न तक) होती है। इसम
केवल 2 मह न के समय म बस त एवं गम क ऋतु होती है। उ. पूव साइबे रया के
टु ा म 1 म हने से कम समय म पौध के उगने, बढ़ने, फूल खलने, बीज बनने
और पणपात हो जाने या तु षार से मु रझा जाने का सम त वन प त-च पूण हो जाता
है।
(v) पवतीय वन प त : पवत पर नीचे से ऊँचाई क ओर वन प त म उसी कार
प रवतन होते है िजस कार का प रवतन वषुवत रे खा से ु व क ओर जाने म होता
है।
उ ण क टब धीय पवत तथा उपो ण क टब धीय पवत पर जैसे - हमालय, आ पस,
राक ज तथा एि डज पर 600 मीटर से नीचे के ढाल और घा टय पर उ ण क टब धीय
तथा उपो ण क टब धीय वन होते ह। इसके ऊपर को ण पणपाती वन होते ह। उससे
अ धक ऊँचाई पर सदापण शंकुधार वन खड़े होते ह। अ धक ऊँचे ढाल और पवतीय भाग
पर अ पाइन म थल होते ह, िजनम पवतीय लोग गम क ऋतु म पशु ओं को चराया
करते है।
हमालय म पाद दे श से लेकर ऊपर तक येक कार के वन ह उनके ऊपर चरागाह है;
फर वन प त क अि तम सीमा से 100 मीटर ऊपर हमरे खा आर भ हो जाती है।
बोध न - 1
1. वन प त क उ पि त को भा वत करने वाले कारक कौन-कौन से है ?
100
............................................................ ...........................
............................................................ ...........................
2. ाकृ तक वन प त के मु ख कार बताइऐ ?
............................................................ ............................
............................................................ ............................
3. शं कु धार वन के मु ख वृ के नाम ल खऐ ?
............................................................ ............................
........................................................................................
102
व व 5585 100.0
ोत : एफ. ए. ओ. टे टि टकल इयरबुक 2005.
इसम औ यो गक लकड़ी, लु गद क लकड़ी तथा राउ ड वुड सि म लत है।
*
103
(ii) कनाडा के टु ा दे श क एि कम तथा अला का क अमेजन-इि डयन आ दम
जा तयाँ।
(iii) अ का के कांगो बे सन म नवास करने वाले पगमी लोग।
(iv) अमेजन बे सन क अमे र ड आ दम जा तयां जैसे िजवार , यागुवा आ द।
(v) कालाहार म थल (द.प. अ का) क आ दम जा त बुशमेन।
(vi) मलाया के वन म रहने वाले सेमांग और सकाई लोग।
(vii) बो नय क पुभन जा त तथा यू गनी के पापु आनलामी।
(viii) उ तर आ े लया क आ दम जा तयां।
इन लोग का जीवन चलवासी होता है। कृ त के अ धक स पक म रहने के कारण
सू झ-बूझ एवं द ता पायी जाती है। आखेटक के ज तु ओं का उपयोग भोजन के लए
माँस, खाल से व बनाने, नवास का त बू और नाव मढ़ने के काम आता है।
ह डय के औजार, खाल के बोरे आ द बनाए जाते है।
(IV) वनोपज का एक ीकरण : एक ीकरण यवसाय दो तरह से कया जाता है -
(i) जीवन नवाह
(ii) यापा रक।
जीवन नवाह के लए एक ीकरण उन े म होता है िजनम व ान एवं
टे नोलॉजी का वकास नह ं हु आ है। यापार के लए एक ीकरण उन े म होता
है िजनम व ान एवं टे नोलॉजी का वकास अ छा हु आ है।
जीवन नवाह के लए एक ीकरण म पाँच कार के पदाथ आते ह -
(i) भोजन के लए क द, मू ल, फल, जंगल शहद, पु प इ या द एक त
करना।
(ii) भोजन क छाल, पि तय एवं घास व के लए इक ा करना।
(iii) धन, लकडी घरे लू आव यकताओं हे तु एक त करना।
(iv) झ पड़ी / नवास बनाने हे तु बांस, वृ क शाखाएं, लकड़ी, घास इ या द।
(v) औष धयाँ एवं जड़ी-बू टयाँ एक त करना।
एक ीकरण का यवसाय उ ण क टब धीय एवं शीतो ण क टब धीय दोन कार के
वन से कया जाता है। उ ण क टब धीय वन से एक त मु य पदाथ ह -फल,
ग द, लाख, चमशोधक पदाथ, पि तयाँ, रबर और बलाटा, च कल, गर दार फल,
औष धयां, रे शो के पदाथ आ द।
समशीतो ण क टब धीय एवं उपो ण क टब धीय वन से एक त मु य पदाथ है-
चमशोधक पदाथ, रे िजन और तारपीन। बैरेजे का योग कागज एवं ग ता बनाने म
कया जाता है।
वन से सीधे उपयोगी व तु एँ तो मलती ह है, परो प से उनसे अनेक लाभ ह
जैसे जलवायु क कठोरता को कम करना, बाढ़ तथा भू म के कटाव को रोकना,
104
असं य जीव को आ य दे ना, पयावरण को संतु लत बनाए रखना आ द अ य
लाभ ह।
2. अ य उपयोग
(i) कृ ष उपयोग समायोजन : थाना तर / भू मका कृ ष काय कया जाता है। बहु त
से जंगल क आ दम जा तयां वन को जला कर भू म को साफ करके कृ ष काय
करती है दो चार वष तक कृ ष करने के प चात ् उस भू म को छोड़ दया जाता है
तथा दूसरे जंगल जला कर राख यु त भू म पर मोटे अनाज क खेती क जाती
है। इसे ह थाना तर कृ ष कहते ह। भारत म इसे झू मंग कृ ष कहा जाता है।
(ii) औ यो गक उपयोग : वन से ा त लकड़ी एवं अ य व तु ओं से संसार म अनेक
कार के उ योग -जैसे कागज, लु गद , रे यन, दयासलाई, रबर, पे ट, वा नस,
लाख, फन चर, क था, के बनेट, लाईबुड आ द वन के उ पादन पर आधा रत है।
जंगल से ा त घास , छाल , रे श , फल , जड़ और झा डय से अनेक कार के
औ यो गक नमाण हो रहे ह।
भारत म कनाटक रा य का भ ावती आयन व स तथा स म यूराल े के कु छ
कारखाने ार भ म वनो क लकड़ी व धन से चलते थे। टे न म भी ख नज
कोयले का योग मालू म होने से पूव लोहे को गलाने के लए लकड़ी का धन के
काम म लाते थे।
(iii) यापा रक उपयोग : वन से ा त लकड़ी, साम ी से अ तदशीय एवं अ तरा य
यापार बड़ी मा ा म होता है। मलाया एवं इ डोने शया से रबर, यूरोपीय दे श , सं.
रा य अमे रका, कनाडा, आ े लया आ द को नयात क जाती है। यांमार से
सागौन, उ णक टब धीय वन क कठोर लकड़ी, मानसू नी वन से लाख, क था,
चमेद का रं ग, बांस, घास आ द अ शु क वन से ग द, छाल इ या द पदाथ का
नयात होता है।
बोध न - 2
1. ाकृ तक वन प त का य उपयोग ल खऐ
............................................................ ........................
........................................................... .........................
2. थाना तर कृ ष कसे कहते ह ?
.............................................. ......................................
........................................................... .........................
3. प पास एवं सवाना म अ तर बताइए ?
.......................................................... ..........................
.......................................................... ..........................
105
4.6 वन प त का संर ण
वन प त को दु पयोग एवं त से बचाने के लए इसका संर ण आव यक है। व तु त:
वन के फसल के प मे मानना मानव का धम हो गया ह वनो से लकड़ी काटने के साथ-
साथ वहाँ वृ ारोपण / वनरोपण करना एवं वन संर ण करना आव यक है। वन संर ण से
वन-स पदा अ ु ण बनी रहती है तथा उससे सतत ् अ धका धक लाभ ा त होते रहते ह।
ाचीन काल म पृ वी के तीन-चौथाई भाग वना छा दत था जब आ द मानव घु मकड
जीवन यतीत करते हु ए पूण प से वन पर आ त था। पशुचारण एवं कृ ष वकास के
साथ ह वनो मू लन को ग त मल तथा यु तर पर वनो को साफ कर अ धका धक
कृ ष भू म ा त क जाने लगी। वष 1860 के दशक म औ यो गक ाि त के उपरा त
वनो मू लन क ग त ओर बढ़ तथा नर तर ती हास आर भ हो गया। 12वीं सद के
थम दशक म स पूण पृ वी के 70% भू भाग वना छा दत था जो वतमान समय म 30%
रह गया है। व व खा य एवं कृ ष संगठन का अनुमान है क त वष 17 करोड़ हे टर
के वन न ट कए जा रहे ह। व व बक का अनुमान 1.7 करोड़ से 2.0 करोड़ हे टर तक
है। वकासशील दे श म वन के न ट होने क वतमान दर 1.0 से 1.5% त वष हो गई
है।
ता लका- 4.2 : व व म े वार वन के अ तगत घटता े फल, 1990 से 2000 तक
( े फल करोड़ हे टर म)
े े फल वनो के अ तगत े
1990 2000 % 1990-1990 के
म य % प रवतन
अ का 296.3 70.2 65.0 21.9 -7.5
ए शया एवं शा त 346.3 73.4 72.6 21.0 -1.0
यू रोप 235.9 104.2 105.1 44.6 0.9
लै टन अमे रका 201.8 101.1 96.4 47.8 -4.6
उ तर अमे रका 183.8 46.7 47.0 25.6 0.7
पि चमी ए शया 37.2 0.4 0.4 1.0 2.8
व व 1301.4 396 386.6 29.7 -2.4
106
वनो मू लन के मु ख कारण ह - कृ ष काय, वनो का चारागाह म प रवतन, नमाण काय
के लए वन वनाश, घरे लू एवं यापा रक उ े य, ख नज खनन, वनाि न, जीवीय कारक
वारा वन वनाश।
वनो मू लन से पयावरण पर भाव पड़ा है, जलवायु पर तकू ल, बाढ़ो क पुनरावृि त , जल
संसाधन का मा ा पर भाव, मृदा अपरदन म वृ , जैव व वधता का ास आ द।
वन संर ण क व धयां : पृ वी तल पर कसी भी राजनी तक दे श के लए वन स पदा
का संर ण आव यक ह अत: सामा यतया वन प त संर ण के लए न न उपाय अपनाये
जा सकते ह-
1. वन क पोषणीय सीमा तक कटाई।
2. वनाि न से सु र ा।
3. वन का हा नकारक क ट से र ण।
4. चयना मक क ट से र ण।
5. धन के वैकि पक ोत अपनाये जाये।
6. घरे लू उपयोग ये इमारती लकड़ी के थान पर वैकि पक व तु ओं का उपयोग कया
जाये।
7. पुन : वनीकरण को यवि थत व ध से वक सत कया जाये।
8. वन के लाभ -हा न के वषय म जन जागृ त / चेतना फैलाई जाये।
9. रा य, अ तरा य वन नी त के अनु प वन वकास कया जाये।
10. वन संर ण से स बि धत नयम का कठोरता से पालन कया जाये।
11. सामािजक वा नक व कृ ष वा नक जैसी योजनाओं को ो साहन दया जाये।
107
अ धक है। मानव जीवन म भोजन, व , प रवहन और सं कृ त के साथ पशु ओं का गहरा
स बंध था पत हो चु का है।
मनु य पशु ओं को पालने का काम, वशेषकर गाय, बकर , भेड़ और घोड़ को (पालना) नव
पाषाण युग म ह आर भ कर दया था। बाद म भस, सु अर, ऊँट और हाथी पालन भी
शु हो गया था। कु ता तो बहु त आ दम काल से ह वामी भ त साथी हो गया था।
इसके साथ ह मु ग-मु गय और शहद क मि खय तथा रे शम बनाने वाले क ट को भी
पाला जाता रहा है।
सामा य प से दो कार के पशु संसाधन संसार म पाये जाते है - (i) पालतू एवं (ii)
व य पशु / पालतू पशु मानव के लए उपयोगी एवं लाभ दायक होते ह -उदाहरणाथ कु ता,
गाय, भस, बकर , भेड़, इ या द। व य पशु ओं क वशेषताओं एवं नवास थान को
भा वत करने वाला सबसे मह वपूण कारक उनके लए भोजन क उपल धता है। इस लए
व य पशु ओं का वग करण भी उनके आहार के अनुसार कया जाता है। जो पशु केवल
अ य पशु ओं का मांस खाकर रहते ह उ हे मांसाहार कहते ह। जो पशु मांस तथा घास
दोनो खाते है उ हे सवभ ी कहते ह।
ज तु ओं के दो मु य वग मलते है (1) र ढ़ क ह डी वाले ज तु तथा (2) बना र ड क
ह डी वाले ज तु । मानव का काय स ब ध मु यत: र ढ़ वाले ज तु ओं से ह होता है।
अकेशे क ( बना र ढ़) जीव भी ाकृ तक स तु लन को बनाये रखने के लए कृ त म
आव यक माने जाते है; पर तु उनसे मनु य के नवास एवं काय म बहु त सी बाधाय होती
ह।
कशे क ज तु : र ढ़ वाले ज तु ओं क मु यत: पाँच े णयाँ है -
(i) म य
(ii) उभयचर : जो जल एवं थल दोनो पर रह सकते है, जैसे मेढक
(iii) सर सृप जो रग कर चलते ह,
(iv) प ी,
(v) तनपायी, इनक जा तयाँ चौपाये पशु तथा वानर है। ाणी व ान क ि ट से
मनु य भी एक तनपायी ाणी है। मनु य के योग म आने वाले ज तु ओं क
सबसे बडी सं या चौपाये पशु ओं क है।
अकशे क ज तु : बना र ढ़ वाले जीवधा रय म क ट पतंग,े जल म रहने वाले घ घे,
पेज, मू ंगा, केचु ए,ं तारा मछल , मकड़ी, जोक, मोल क, कानखजू र,े चपटकृ म इ या द।
क ट पतंग म असं य जा तयाँ होती है जैसी चींट , म खी, डाँस, ततल , ट डी इ या द।
इनका भाव मानव जीवन पर िजतना अ धक होता है, उस पर सामा यत: यान नह
दया जाता। अकशे क ज तु ओं म समु जीव, मधु म खी, रे शम के कृ म, लाख का
108
कृ म, कचु आ आ द केवल कु छ ज तु ओं का योग मानव ने अपने लाभ के लए कया है,
शेष मनु य के जीवन म भार बाधाएँ उ प न करते ह।
109
और समू र वाले जानवर जैसे, बीवर, कं क, औटर, मारटे न, एरमाइन, कंक, लोमडी,
लं स, फशर, भे डया, भालू आ द होते है।
2. घास थल के ज तु : घास थल म-जीवन नवाह करने वाले पशु जेबरा, ि ग
ं
बांक, गजैल,े बसन, जंगल चौ, नीलगाय, वृष हरण, खरगोश आ द शाकाहार पशु
होते ह और इनका भ ण करने वाले तदुआ, शेर, चीता, वन बलाव आ द मांसाहार
ज तु मलते ह। जरख, गीदड़ और ग प ी छोटे मांस भ ी होते ह।
3. म थल के ज तु : कम वन प त होने के कारण ज तुओं क सं या भी कम होती है।
वहाँ गजैले (ऊंचे हरण), खरगोश, लोम ड़याँ, छपकल , सप आ द बना पाले हु ए जंगल
पशु होते ह। ऊंट, घोड़े, गधे, भेड़,बकर पालतू पशु होते ह।
4. टु ा के ज तु : यहाँ भी कम वन प त पायी जाती है। टु ा मे मु क, ऑ स, कै रबो,
हरण तथा सफ़ेद भालू और कु ते होते ह। समु मे सील और वालरास मलती है।
बोध न -3
1. पालतू पशु ओं के नाम ल खए ?
............................................................ .........................
............................................................. ........................
2. जं तु ओं के दो मु ख वग कौन से ह ?
............................................................ .........................
........................................ .............................................
3. पालतू पशु ओं का मू ल थान बताइये ?
............................................................................... .......
............................................................ ..........................
4.9.1 आखेट
1. आखेट: मानव स यता के आ दकाल से मनु य पशु ओं का आखेट करता रहा है।
ार भ मे मानव ने व य पशु ओं से वयं क र ा के लए उनको मारना सीखा था।
इसके उपरांत माँस, समूर और खाल ा त करने के लए आखेट करता रहा है।
लाख ज तु त दन मारे जाते ह। इस कारण व य जीव क सं या बहु त कम हो
गयी है।
110
2. फाँसना (Trapping) : शंकु धार वन मे समू र वाले जंतओ
ु ं को फंसाया जाता है।
कनाडा संयु त रा य अमर का, उ तर स और साइबे रया मे यह धंधा बड़ी मा
मे होता है। इसके उ े य ह-
(a) भोजन ाि त दूध एवं दूध का सामान, माँस ाि त,
(b) व के लए रे शे : भेड़, अलपाका, ऊन भेड़ और बकर से तथा बाल
पशमीने रे श,े अ य पशु ओं से बाल, काल न, चटाई, र से,
(c) कृ ष काय म हल जोतने, संचाई आ द म बैल, ऊँट, घोड़ा आ द,
(d) सामान ढोने म बैल, ऊँट, गधा, ख चर, याक, लामा, हाथी आ द,
(e) पहरे दार के लए कु ता,
(f) सौ दय वृ हे तु रं गीन प ी,
111
जाता है। भारत म व व के सवा धक जानवर ह और व व म सवा धक दूध का
उ पादन (सन ् 2004-05 म 9.1 करोड़ टन) भी होता है; पर तु डेर फा मग के
प म नह ं। पछले तीन दशक म भारत म वेत ाि त आई है। इस काल म
सहकार े म गुजरात क आन द जैसी डेर था पत क गई ह।
डेर पदाथ के व व बाजार ये दूध, म खन पनीर का यापार कया जाता है ।
डेनमाक ने म खन बनाने म वशेषीकरण कया है। इसी कार नीदरलै ड तथा
ि व जरलै ड का पनीर अपने वाद और उ तमता के लए स है।
2. मांस उ योग : माँस उ योग शीत क टब ध के दे श म बहु त वक सत है। शीत
धान दे श का मु य भोजन माँस है जब क उ ण क टब धीय े म वाद के
लए अ प मा ा म योग कया जाता है।
संयु त रा य अमे रका, कनाडा, चीन, पूव सो संघ, यूरोपीय दे श आ द म इसक
खपत सवा धक है। द. पूव ए शया म इसका बहु त कम योग होता है। इसके
लए ाय: वे ह भौगो लक दशाएँ अनुकू ल होती ह जो दु ध यवसाय के लए
आव यक ह।
व व म माँस के पशु गाय, सु अर, भेड़, बकर ह। ार भ म यह उ योग थानीय
था ले कन आजकल वै ा नक व धय के कारण यह बहु त वक सत हो गया है ।
इस उ योग का वकास मु य प से सं रा य अमे रका, द अमे रका, आ े लया
म हु आ है। अज टाइना व व का मु ख माँस उ पादक एवं नयातक दे श है।
चीन, स, संयु त रा य अमे रका, ा स, जमनी, ाजील, जापान तथा टे न
मु ख मांस उ पादक दे श ह।
मांस के अ त र त इनके शर र से अ य पदाथ भी बनाये जाते ह, जैसे कंघे,
ह डय से बटन, बाल से ु , चाकुओं के द ते इ या द।
श
व व म संयु त रा य अमे रका सबसे अ धक गौ मांस का उ पादन करता है।
शकागो व व व यात मांस क म डी है जहाँ 2.5 लाख पशु त दन काटे जाते
ह।
भेड़ मांस नयात करने वाले दे श म यूजीलै ड थम है। सम त व व का 50%
भेड़ मांस व मेमने नयात करता है। सु अर का माँस चीनी जनता का य भोजन
है। सु अर पालन सवा धक चीन म होता है। यहाँ व व के 6% से अ धक सु अर
पाले जाते है। संयु त रा य अमे रका क म का क पेट म सु अर अ धक पाले
जाते ह।
3. ऊन का उ पादन : य य प व नमाण के लए भेड़, बकर , अलपका, लामा,
चकूणा आ द के बाल योग कये जाते है; पर तु ऊन भेड़ के बालो को ह कहते
ह। ऊन क तीन मु य क म ह - (1) मे रनो ऊन, (2) ाँस े ऊन और (3)
ड
कापट ऊन। भेड़ शीतो ण क टब ध के अ शु क और शु क भाग का पशु है। यह
वषम धरातल और कठोर जलवायु म भी पनप सकती ह। अपने जबड़े क बनावट
112
के कारण यह छोट से छोट घास भी खा सकती है। व व म 179 करोड़ (सन ्
2003 म) भेड़-बक रयाँ ह। सवा धक सं या चीन म 32 करोड़ तथा भारत म 18
करोड़ है। साथ ह आ े लया (10 करोड़), सू डान (8.7), ईरान (8), पा क तान
(7.7) और नाइजी रया म इनक सं या बहु त अ धक है। यूजीलै ड, द ण
अ का, टे न, बां लादे श, टक , पेन, ाजील आ द म भेड़ पाल जाती है।
सन ् 2006 म व व म 2194 हजार टन ऊन उ प न कया गया। व व का एक
चौथाई (23.77%) ऊन आ े लया म पैदा कया जाता है। चीन (18%) तथा
यूजीलै ड (10%) भी बड़े ऊन उ पादक ह। इनके अलावा ईरान, टे न,
अज टाइना, टक , सू डान भारत, और द ण अ का म भी ऊन उ पादन
उ लेखनीय है।
4.9.3 म य उ योग
113
5. इन दे श क मछ लय वा द ट एवं पौि टक होती है तथा बड़ी मा ा म मलती
है।
6. इन दे श के र त- रवाज रख धम मछल खाने म बाधक नह ं होते ह अत:
खपत अ धक है।
7. नकटवत वन े से नाव बनाने के लए लकड़ी पया त मा ा म उपल ध हो
जाती है।
8. शीतो ण दे श म अ धकतर दे श स य एवं वक सत होने के कारण वै ा नक
उपकरण से मछ लयाँ पकड़ी जाती है। मछ लय को खाने के अ त र त दवाइयाँ,
तेल एवं व भ न कार क व तु एँ बनती ह।
संसार म मछल भी भोजन के मु य खा य पदाथ म है। संसार म खा य पदाथ हे तु
काम म आने वाले ज तु ओं म 3% मछल का भाग होता है। नाव, जापान, यू
फाउ डलै ड और आइसलै ड म तो 10% खा य पदाथ मछल से ा त होता है।
व व म मछल पकडने के मु ख े न न है ;-
1. उ तर पूव शा त महासागर य तट य े : यह बे रंग जलडम से लेकर द ण म
कै लफो नया तक व तृत है। सैमन, हे रंग, काँड, पलकाड एवं हैल वेट आ द है। यहाँ
से ड ब म भरकर मछ लयाँ नयात कर द जाती है।
2. उ तर पि चमी अटलां टक तट य अमे रक े : यह े यूफाऊलै ड तट से उ तर
अमे रका के पूव तट के सहारे -सहारे कैरोल ना तक व तृत है। इसी े मे ांड बक
नाम का स े शा मल है। इस े कं मु ख मछ लयां काँड, हैडक, मैकरे ल,
हे क, हैल वेट आ द।
3. उ तर -पि चमी यूरोपीय े : यह े उ तर अ तर प से द ण से िज ा टर तक
व तृत है। इसी े म स मछल े डागर बक ि थत है। इस े म लगभग
15% है रंग, 35% कांड तथा 12% हैडक मछ लयाँ पकड़ी जाती है। मु य उ पादक
नाव, पेन, टे न, डेनमाक, जमनी, नीदरलै ड तथा ांस है।
4. उ तर पि चमी शा त तट य े : इस भाग म व व म सवा धक मछ लयाँ पकड़ी
जाती ह। यहाँ व तृत महा वीपीय नम न तट ह तथा जापान एवं यूरो सवो धाराएँ
मलती ह। अत: मछ लय को पया त भोजन मलता है। यह े ताइवान से लेकर
उ तर म पूव साइबे रया तक व तृत है। चीन, जापान, को रया और स वारा इस
े म मछ लयाँ पकड़ी जाती ह।
व व के मु ख उ पादक दे श : व व म सागर य तथा आ त रक जल य े म सन ्
1998 म कुल 865.5 म क टन मछल का उ पादन हु आ। इसका 19.9% उ पादन
केवल चीन म हु आ। चीन के उपरा त जापान, संयु त रा य अमे रका स, द. को रया,
भारत, थाइलै ड, नाव, आ द मु ख म य उ पादक रा है। संसार के मु ख म य
उ पादक दे श को भौगो लक वतरण ता लका - 4.3 म तु त है : -
114
ता लका - 4.3 : व व के बीस मु ख दे श म म य उ पादन क गत
व व का कु ल उ पादन व व का % उ पादन व व का %
दे श 1960 (लाख टन) 2004
चीन _ 489 35.2
पे _ 96.4 6.9
भारत 2.5 60.9 4.4
इंडोने शया 1.9 58.6 4.2
चल 4.1 56.1 4.0
सं. रा य अमे रका 7.0 55.7 4.0
जापान 8.8 51.8 3.7
थाईलड _ 40.2 2.9
नाव 39 31.6 2.3
वयतनाम _ 30.9 2.2
स 7.0 30.5 2.2
फल पाइ स 1.2 27.2 2.0
बां लादे श _ 21.0 1.5
यांमार _ 19.9 1.4
द ण को रया 1.2 19.8 1.4
आइस लै ड 1.5 17.4 1.2
मैि सको 0.5 15.4 1.11
मलाया _ 15.1 1.1
कनाडा 2.3 13.2 0.9
पेन 2.4 11.7 0.8
ोत : एफ. ए. ओ. टे टि टकल इयरबुक 2004
ता लका- 4.3 से प ट है क चीन व व का सबसे बड़ा मछल पकड़ने वाला दे श है जहाँ
व व क एक- तहाई से अ धक (35.2%) मछ लयाँ पकड़ी गई। दूसरा थान द णी
अमे रका मे ि थत पे (6.9%) का है जो द णपूव शा त महासागर य े का मु य
मछल पकड़े का दे श है। भारत तीसरे थान है। भारत के समक ह इ डोने शया, चल
(द णी अमे रका) तथा संयु त रा य अमे रका है। अ य बड़े म य उ पादक दे श म
जापान, थाईलै ड, नाव, वयतनाम, स और फल पाइ स ह। (मान च -4.2)
115
मान च - 4.3 : व व के मु ख समु म यो पादन े एवं म य उ पादन
भारत म भी मछल पकड़ने का यवसाय काफ बढ़ा है। यहाँ सन ् 1950-51 म केवल
7.52 लाख टन मछ लयाँ पकड़ी गई थी। यह मा ा बढ़ कर सन ् 2002-03 म 62 लाख
टन से अ धक हो गई। इस तरह आठ गुना से अ धक वृ हु ई है। दे श म सबसे अ धक
मछल पि चम बंगाल (दे श क 18.1%) म पकड़ी जाती ह। इसके बाद आ दे श
(13.3%), गुजरात (12.5%), केरल (10.9%), महारा (8.3%) तथा त मलनाडु
(7.6%) बड़े मछल उ पादक रा य ह।
ता लका- 4.4 : भारत म मछल उ पादन क वृि त (उ पादन लाख टन म)
वष समु मछल थल य मछल कु ल उ पादन
1950-51 5.34 2.18 7.52
1970-71 10.86 6.70 17.56
1990-91 23.00 15.36 36.36
2000-01 28.11 28.45 56.56
2002-02 29.90 32.10 62.00
ोत: भारत सरकार – ए क चर टे ट स ऐट ए लांस, 2001
116
पर तब ध लगाया गया है। फर भी अनेक जा तयाँ वलोप हो चुक ह, अनेक जीव
जा तयां संकट म ह। अत: संर ण अ नवाय हो गया है। अथात इस कार उपयोग कया
जाये क वतमान पशु संसाधन का अ धका धक समय तक उपयोग कया जा सके।
संर ण यि त एवं समय के साथ प रवतनशील है।
बोध न -4
1. व व का मु ख मां स उ पादक दे श कौन सा है ?
............................................................ ........................
................................................................... .................
2. सवा धक मछल कौनसे दे श म पकड़ी जाती है ?
...................................... ..............................................
................................................................ ....................
3. मानव वारा पशु सं साधन के मु ख उपयोग बताइए ?
............................................................ ........................
................................................................. ...................
4. शकागो कसके लए स है ?
...........................................................................................
................................................................ .....................
117
4.12 श दावल (Glossary)
वन : वृ एवं झा डय से आवृ त बड़े भू भाग को वन कहते ह।
सवाना : उ ण क टब धीय घास के मैदान अ का के सू डान दे श म सवाना कहलाते
ह।
ेर ज : संयु त रा य अमे रका म शीतो ण क टब धीय घास के मैदान ेर ज कहलाते
ह।
प पास : अज टाइना (द. अमे रका) म शीतो ण क टब धीय घास के मैदान।
ल ब रंग : लकड़ी काटने एवं चीरने का यवसाय।
थाना तर कृ ष : वनो को जला कर साफ करके दो तीन वष कृ ष करने के बाद
थान बदल कर पुन : जंगल जला कर कृ ष काय करना।
टु ा : शीत दे श वाला े (कनाडा एवं साइबे रया का उ तर े )।
डेर : दु ध पर आधा रत यवसाय।
4.14 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. जलवायु, भू-आकृ तक उ चावच, म ी क उवरता, जीवीय कारक, अ यौभौ मक जल,
तकनीक तर।
2. वन, घास के मैदान, म थल य झा डयां, टु ा वन प त
3. चीड़, कैल, दे वदार, ू , हैमलॉक, फर, लू पाइन आ द।
स
बोध न- 2
1. वन यवसाय तथा लकड़ी काटना, पशु चारण, आखेट एवं एक ीकरण
2. वनो को जला कर साफ कर दो-तीन वष तक कृ ष काय कया जाता है उसके प चात
अ य थान के वन क जलाकर मोटे अनाज क ं कृ ष क जाती है। इस थाना तर
कृ ष कहा जाता है।
118
3. प पास शीतो ण क टब धीय घास के मैदान है जब क सवाना उ ण क टब धीय घास
के मैदान।
बोध न- 3
1. गाय, बैल, बकर , भस, कु ता, घोड़ा, भेड़, ऊँट इ या द।
2. (i) र ढ़ क ह डी वाले (ii) बना र ढ़ क ह डी वाले ज तु ।
3. ए शया महा वीप
बोध न- 4
1. अज टाइना,
2. चीन
3. आखेट, फाँसना, पशु पालन, म य उ योग
4. मांस म डी
4.15 अ यासाथ न
1. वन प तय के वतरण को भा वत करने वाले कारक का वणन क िजए ?
2. शीतो ण क टब धीय घास के मैदान एवं उ ण क टब धीय घास के मैदान म अ तर
प ट क िजए ?
3. वषुवत रे खीय उ ण-आ वन क वशेषताएं बताइए।
4. व व म लकड़ी काटने के उ योग का वणन क िजये।
5. न न पर ट पणी ल खए : (i) आखेट (ii) एक ीकरण
6. पशु संसाधन का मानव के लए उपयोग क व तृत या या क िजए।
7. व व म म य उ योग के े का वणन क िजए।
8. जै वक संसाधन के सरं ण क आव यकता को समझाइए।
9. कन कारण से समु म त उ पादन म य अ ांशीय समु म केि त ह ?
119
इकाई 5 : ख नज संसाधन (Mineral Resources)
इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 मु ख ख नज के कार
5.2.1 लौह अय क
5.2.2 मैगनीज
5.2.3 अ क
5.2.4 तांबा
5.3 सारांश
5.4 श दावल
5.5 संदभ ध
5.6 बोध न के उ तर
5.7 अ यासाथ न
5.0 उ े य (Objective)
इस इकाई के अ ययन करने के उपरा त आप व व के ख नज संसाधन के बारे म समझ
सकगे :-
व व के व भ न भाग म पाये जाने वाले ख नज के वतरण एवं उ पादन के बारे म
जानकार ा त कर सकगे।
ख नज संसाधन के उपयोग तथा संर ण के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
अ तरा य यापार एवं वा ण य के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
120
आधु नक नमाण उ योग म ख नज का आधारभू त मह व है। यह अन त उ योग को
क चा माल दे ता है। उ योग मशीन पर आधा रत होते ह। इन मशीन के लए ऊजा
ख नज - धन से मलती है। वयं मशीन ख नज से ा त धातुओं क बनी होती ह।
ख नज के बना कसी भी आ थक या-उ योग, प रवहन एवं संचार, कृ ष तथा ख नज
उ खनन संभव नह ं है। अ तु धन तथा अ य ख नज आधु नक उ योग के आधार ह।
5.2 मु ख ख नज के कार
मु य प से ख नज को भौ तक एवं रासाय नक गुण के आधार. पर तीन वग म
वभािजत कया जा सकता ह।
1. धाि वक ख नज (Metallic Minerals) - लोहा, तांबा, मगनीज, सीसा, ज ता,
रांगा, सोना, चांद , बॉ साइट, टन, बॉ साइट आ द।
2. अधाि वक ख नज (Non-metallic Minerals) - ह रा, प ना, नमक, अ क,
ग धक, ेफाइट, चू ना, िज सम आ द।
3. ख नज धन (Mineral Fuels) - कोयला, पे ो लयम, ाकृ तक गैस, यूरे नयम ,
थो रयम आ द।
5.2.1 लौह अय क
121
पाया जाता है। इसम लौह धातु ठोस कण अथवा चू ण म पाई जाती ह। संयु त रा य
अमे रका, स, टे न, कनाडा, ाजील एवं भारत म हे मेटाइट के जमाव मलते ह।
3. लमोनाइट (Limonite, 2Fe2o3H2o) - इसके अ तगत लोहा का अंश पचास
तशत होता है। इसका रं ग कु छ पीलापन लए पूरा होता है। यह भी अवसाद शैल
म मलता ह। इसके अ तगत लोहा, ऑ सीजन तथा हाइ ोजन का म ण होता है।
इसक खु दाई आसान होती है। ा स तथा टे न इसके मु ख उ पादक दे श ह।
4. सडेराइट (siderite, Fe Co3) - इसके अ तगत लोहा का अंश क मा ा 20 से
तीस तशत पाई जाती है। यह धातु लोहे और काबन के म ण से बनी होती है।
इसका रं ग राख जैसा होता है। इं लै ड, ा स, ल मबग इसके मु ख उ पादक दे श
ह।
व व म लोहे के सं चत भ डार
व व म उ च एवं न न को ट के लौह अय क का भ डार लगभग 370 अरब टन आका
गया है। लौह अय क का लगभग 25 तशत भाग पि चमी यूरोप एवं उ तर अमे रका
म, 25 तशत भाग स एवं पूव यूरोपीय दे श म, 20 तशत द णी अमे रक दे श म
एवं शेष 20 तशत द णी पूव एवं पूव ए शया के दे श म पाया जाता है।
व व म लौह अय क वतरण एवं उ पादक दे श
सन ् 1948 म व व म कु ल लौह अय क का उ पादन 10.35 करोड़ टन था जो बढ़कर
1990 म 5870 करोड़ टन हो गया। सन 1998 म व व म 104.50 करोड़ टन तथा
सन 2005 म 154 करोड़ टन लौह अय क का उ पादन हु आ है। वतमान म चीन
सवा धक लौह अय क उ पादन करने वाला दे श बन गया है। इसके उपरा त मश:
ाजील, आ े लया, भारत, स, संयु त रा य अमे रका, यू े न , कनाडा, द णी अ का
तथा वीडन आते ह।
ता लका- 5.1 : व व के मु ख दे श म लौह अय क का उ पादन
. सं. दे श उ पादन व व का %
(लाख टन मे)
* व व 15400 100.0
8. द ण अ का 395 2.6
122
9. कनाडा 304 2.0
123
जाता है। यहाँ आयरन नॉब े एवं पि चमी आ े लया का नाइनट माइल बीच े
मु ख उ पादक है। आ े लया म पलबारा, माउं ट गो डसवद , माउं ट टॉम ाइस,
माउं ट यूमैन , टै लो रंग, कु लानुका आ द उ पादक े ह।
4. भारत: लौह उ पादक म भारत व व म चौथे थान पर है। यहाँ उ चको ट के लौह
अय क के पया त भ डार है। अ धकतर भ डार हे मेटाइट और मै नेटाइट ेणी के ह।
लौह अय क के कु ल प रल य भ डार हैमेटाइट 10.05 अरब टन तथा मै नेटाइट 3.4
अरब टन। हैमेटाइट अय क मु यत: झारख ड, छ तीसगढ़, उड़ीसा तथा कनाटक म
पाया जाता है। आ दे श, झारख ड, गोवा, केरल, त मलनाडु तथा कनाटक म
मै नेटाइट अय क के भ डार ह।
ता लका : 5.2 : भारत म लौह उ पादक रा य
.सं. रा य उ पादन दे श के कु ल
(हजार टन मे) उ पादन का तशत
1 कनाटक 21,857 26.22
2 छ तीसगढ़ 18,081 21.69
3 उड़ीसा 16,208 19.44
4 गोवा 13.641 16.36
5 झारखंड 13053 15.66
6 अ य 527 0.63
योग 83,637 100.00
(i) कनाटक : यह रा य भारत का लगभग एक चौथाई लोहा पैदा करता है। यहाँ
बे लार िजले के बे लार , हा पेट और सु दरू े म लौह अय क क खान
ह। चकमगलूर िजले के मह तपूण उ पादक बाबाबूदन , कालाहांडी तथा
केमनगुडी ह। च दुग, शमोगा, धारवाड़ तथा टु मकु र अ य उ पादक िजले ह।
(ii) छ तीसगढ़ : यह दूसरा बड़ा उ पादक रा य है, जहां पर भारत का बीस
तशत से अ धक लौह अय क पैदा कया जाता है। दांतेवाडा िजले का
बैल डला तथा दुग िजले के ड ल व राजहरा मु ख उ पादक है। यहां का
अ धकांश लोहा वशाखाप तनम प तन वारा जापान को नयात कया जाता
है।
(iii) उड़ीसा : यहां भारत का 19 तशत से अ धक लौह अय क पैदा कया जाता
है। उड़ीसा क मु ख खान ह - गु म हशानी, सलईपत, बादाम पहाड़,
मयूरभंज, क रबु , मेघाहटबु , बोनाई।
(iv) गोवा : गोवा म लोहे का उ पादन दे र से शु हु आ था। इस समय गोवा
भारत का चौथा बड़ा उ पादक रा य है और दे श का 16 तशत से अ धक
लौह अय क पैदा करता है। गोवा क खान, साइ वा लम, सं यूम, यूपेम ,
124
सतार , प डा और बचो लम म ि थत ह। गोवा का अय क मारमागाओं
प तन से वदे श म भेजा जाता है।
(v) झारख ड : यह भारत का पांचवां बड़ा लौह अय क उ पादक रा य है यह दे श
का 15 तशत से अ धक लोहा पैदा करता है। पूव तथा पि चमी संहभू म,
पलामू धनबाद, हजार बाग, संथाल परगना तथा रांची मु य उ पादक िजले ह।
अ य उ पादक
लौह अय क के भंडार महारा म च पुर, र ना गर और भ डारा िजल म ि थत है।
आ दे श के कर मनगर, वारं गल, कनू ल, कड़ पा और अनंतपुर िजलो म लौह अय क के
अ छे भ डार ह। त मलनाडु म सलेम तथा नील गर म अय क का उ खनन होता है।
125
गोरनाया शो रया : यह े म य साइबे रया म ि थत है। इसक ि थ त डोनबास
कोयला े के पास नोवोकु जनेट क दे श के द ण म ह। यहां पर पाया जाने वाला
लौहा न न को ट का पाया जाता है यहां से कु जबास लोहा संयं को भेजा जाता है।
पि चमी साइबे रया : साइबे रया के पि चम म ि थत, नोवो स ब क के 200 कमी
उ तर म, टो क दे श के उ तर म ि थत ब वार थान मु ख उ पादक दे श है।
यहां पाए जाने वाले लोहे म गंधक, स लका तथा ज ता आ द क मा ा म त प
म अ धक पाई जाती है। यहां पाया जाने वाला लौह अय क न न को ट का है।
आमू र घाट : सु दरू पूव तथा आमूर घाट म वतमान समय म थोड़ा बहु त ख नज
नकाला जाता है।
126
मान च - 5.3 : संयु त रा य अमे रका तथा कनाडा के लौह अय क उ पादक े
7. कनाडा: कनाडा म वा षक लौह अय क का कुल उ पादन 3.0 करोड़ टन है व व म
नौवां थान रखता है। कनाडा के मु ख उ पादक े ओंटे रयो, नोवा- को शया,
अ बटा एवं बकू वर वीप, ट प रॉक, यू ेक , टश कोलं बया तथा यूफाउ डलड
आ द ह; ले ेडोर म ि थत शेफर वल खदान मु ख लौह अय क उ पादक खदान ह।
8. यू े न : यू े न का बोइराग े उ पादन क ि ट से थम तथा सं चत भ डार क
ि ट से वतीय थान पर है। यहां लगभग 50 अरब टन सं चत भ डार है िजसम
लौहांश धातु का 48.6 तशत अंश पाया जाता है। यू े न के लौह उ पादक े
न न ह -
(i) कु क : कु क े का व तार नीपर नद के पूव म पाया जाता है। कु क
े म पाया जाने वाला लौहा मै नेटाइट क म का है ले कन इसक गहराई
अ धक है। अत: खनन काय आसान नह ं ह। यहां लगभग तीस अरब टन
सं चत भ डार क धातु स प नता 50-60 तशत है तथा 170 अरब टन
लोहा न न को ट का पाया जाता है।
(ii) कच अ तर प : यह े पूव मया म ि थत है। पूव मया का काय
े जमाव क ि ट से तो स प न ह ले कन यहां पाया जाने वाला लोहा
न न को ट का है। इस अय क म फा फोरस एवं स लका क अ धक मा ा
पाई जाती है।
9. द णी अ का: यहां लोहा अय क चुर मा ा म पाया जाता है। अ का महा वीप
का मु ख उ पादक दे श द ण अ का संघ है। िजसका व व म लौह उ पादन क
ि ट से आठवां थान ह। यहां के मु ख उ पादक दे श ांसवाल का ोटो रया एवं
थावा मजबी े , उ तर केप रा य का पो मासबग एवं नैटाल ा त का कु मान े
है।
10. यूरोपीय दे श : पि चमी यूरोप म लोहे के मु ख भ डार ांस, वीडन, ेट टे न,
जमनी और पेन म ह।
127
वीडन: यूरोप महा वीप म सबसे अ धक लौह अय क का भ डार वीडन म ह पाया
जाता है। वीडन का अ धकांश लौह भ डार इसके उ तर एवं म य भाग म ि थत है।
इसके मु ख उ पादक े क ना और गैल वयर ह जो उ तर म ु वीय दे श म
ि थत ह। इनम उ तम को ट क मै नेटाइट अय क पाया जाता है। यूरोप म अ धकांश
लोहे क आपू त वीडन वारा ह पूर क जाती है।
ांस: ांस म 32 तशत से 38 तशत लोहांश क धातु लारे न, नॉरम डी म ह।
ले कन 96 तशत उ पादन लारे न क खान से होता है। जो ना सी से ल गवे तक
100 कमी ल बे े म फैल है। ांस के उ पादन क लगभग 40 तशत धातु
बेि जयम, जमनी और ल जेमबग को नयात कर द जाती है।
टे न: टे न म लौह धातु न न को ट क है ले कन उसक खान कोयले क खान
क समीप है। मु य उ पादन े नॉथ पटन, ल वलै ड, कोरबी और कनथोप है।
टे न को दूसरे दे श से लोहा आयात करना पड़ता है।
पेन: पेन म 37 तशत से 50 तशत लोहांश क साइराइट और हे मेटाइट धातु
है। मु य भ डार बलबाओ, से ता दे र, गबोन और ओ वडो े म है । दे श म
इ पात नमाण कम होता है अत: लोह, धातु का नयात टे न पि चमी जमनी को
कया जाता है।
जमनी : जमनी म सा जागे तर एवं सीजेन लोह अय क क खाने ह।
व व यापार
लोहे का व व यापार काफ बड़ी मा ा म होता है। ाजील, चीन, आ े लया, कनाडा एवं
भारत लोह अय क के मु ख नयातक दे श ह। िजनका नयात यापार म लगभग 70
तशत ह सा है।
अ य नयातक दे श म वीडन, लाइबे रया, मैर टे नया, वेनेजु एला आ द का नाम आता है।
जापान व व का सबसे बड़ा लौह अय क के आयातक ह। वह अपनी आव यकता का
लगभग 90 तशत लोह अय क का आयात करता है। अ य आयातक दे श म सयु त
रा य अमे रका, जमनी, टे न, पोले ड, इटल , ांस एवं को रया गणतं आ द ह।
बोध न-1
1. व व म लौह अय क का सबसे बड़ा उ पादक दे श कौन है ?
.............................................................................................
.......................................................................................
2. सवा धक लौह धातु वाले अय क का नाम बताइए।
........................................................................................
........................................................................................
3. भारत का कौनसा रा य सबसे अ धक लौह अय क का उ पादन करता है ?
.............................................................................................
.......................................................................................
128
4. चीन के मु ख लौह अय क उ पादक े के नाम बताइये ।
.................................................................................... .......
.................................................................................... .......
5. यू रोप के मु ख लौह उ पादक दे श के नाम बताइये ।
............................................................................................
............................................................................................
मैगनीज का योग मु यत: लोहा एवं ट ल के नमाण म कया जाता है। इसके अलावा
इनका योग औ यो गक ख नज म मगनीज स चे अथ म बहु योगी है। पॉ लश चढ़ाने,
ाई बै , ट, चीनी म ी के बतन, लाि टक छड़े जोड़ने, रासाय नक पदाथ, वान श और
फश के टाइल बनाने म इसका योग होता है। इ पात उ योग इसका सबसे बड़ा उपभो ता
है। इसम लगभग 90 तशत से अ धक का उपभोग होता है।
मैगनीज के मु ख उ पादक दे श
मैगनीज के मु य उ पादक दे श चीन, द ण अ का, आ े लया, ाजील, गैबन, यू े न ,
कजा क तान, घाना, भारत, मैि सको ह।
ता लका - 5.3 : व व म मगनीज उ पादक दे श 2005
.सं. दे श उ पादन व व का
(लाख टन) %
व व 291 100.0
1. चीन 55 18.9
2. द. अ का 46 15.9
3. आ े लया 55 13.8
4. ाजील 32 10.8
5. गेबन 25 8.6
6. यू े न 23 7.8
7. कजा क तान 22 7.6
8. घाना 19 6.6
9. भारत 18 6.0
10. मैि सको 05 1.6
ोत : यू.एस. यालॉिजकल सव- मनरल कमो डट समर ज, जनवर 2008 (इ टरनेट)
1. चीन : चीन व व का सबसे बड़ा मैगनीज उ पादक है । मु ख उ पादक े हू नान के
चांग- सा, वां सी तथा हु पेह े है । इसे अ त र त वांटुं ग ा त तथा उ तर पूव
चीन म भी मैगनीज का उ पादन होता है
129
2. द णी अ का : उ पादन क ि ट से द णी अ का व व का थम मैगनीज
उ पादक दे श है जब क यहाँ सं चत भ डार सी मत मा ा म है । यहां के मु ख
उ पादक े पो टमैसबग, सेरेस, उदसे तथा बेचु नआ
ु लै ड म कगुआ -कगुए क खान,
द णी-पि चमी अ का म ओि जबोरगो खान ह कांगो, जाि बया और अंगोला रा य
म मैगजीन क खान ह ।
3. आ े लया : व व म तीसरा सबसे बड़ा मैगनीज उ पादक दे श ह । जहां व व का
13.7 तशत मैगनीज नकाला जाता है । आ े लया म उ तर ा त के गुटइलै ड,
दूने एवं इ लयंत व पि चमी ऑ े लया के मारबुवर आ द ह ।
4. ाजील : ाजील द णी अमे रका का ह नह ं बि क व व म मैगनीज उ पादन क
ि ट से मु ख थान रखता है। यहां के मु ख उ पादक े नजारे , अमापा, लाफयेते
मगुएल ब नयर, बा हया, मनास, गेरास एवं यू मकुम आ द ह।
5. गेबन: व व का चौथा मैगनीज उ पादक दे श है। जहां क वल के समीप मोआ डी
े म मैगनीज नकाला जाता है।
6. यू े न : यहां कालासागर दे श म ि थत नेकोपोल, तोकमक व बोलसाई मु य खदान
ह।
130
वशाखाप नम, ीकाकुलम और कड पा; कनाटक म उ तर कनारा, से दूर, बेलार ,
कादूर, चतदूर, समोगा के े म मैगनीज के भ डार ा त ह।
व व यापार
भारत, ाजील, द णी अ का, गेबोन, घाना रख जायरे मैगनीज के मु ख नयातक दे श
ह। संयु त रा य अमे रका मैगनीज का सवा धक मह वपूण आयातक दे श ह। अ य
आयातक दे श म जापान, ांस, जमनी, टे न, बेि जयम आ द मु य है।
बोध न-2
1. मै ग नीज का उपयोग मु यत: कस उ योग म होता है ?
............................................................................................
....................................................................... .....................
2. मै ग नीज उ पादन क ि ट से व व म थम तीन दे श कौन से ह ?
............................................................................................
..................................................................... .......................
3. भारत म मै ग नीज के भ डार कहाँ ि थत ह ?
............................................................................................
.......................................................................................... ..
4. द णी अ का के मु य मै ग नीज उ पादक े के नाम बताइये ।
............................................................................................
......................................................................................... ...
5.2.3 अ क (Mica)
131
व व म अ क का वतरण एवं उ पादन अ य त असमान ह। व व म अ क अ धकांश
े कु छ ह थान पर सी मत है। तथा इसक खान जंगल व पहा ड़य म ि थत ह। तथा
यहां के आवागमन एवं यातायात के अ छे साधन बहु त कम उपल ध रहते ह। व व म
सबसे बड़े भ डार भारत म ह। भारत के अलावा स, ाजील, कनाडा, द णी पूव
अ का, संयु त रा य अमे रका, अज टाइना, मैि सको आ द दे शो म भी अ क के भ डार
ह।
सन 2006 म अ क का व व म कु ल उ पादन 3.4 लाख टन था। संयु त रा य
अमे रका एक- तहाई (32.2%) उ पादन करके थम थान पर है। स का दूसरा थान
(29.2%) है। द. को रया ( व व का 10.8%), नाव (7.6%) और कनाडा (5.1%) बड़े
अ क उ पादक दे श ह। ांस, पेन, ताइवान, भारत, ईरान, अज टाइना, ाजील और
मले शया म भी अ क का उ पादन उ लेखनीय है।
1. भारत: भारत म अ क का उ पादन ाचीन काल से होता रहा है। संसार का लगभग
70 तशत अ क भारत से ह ा त होता है। भारत म झारख ड क अ क पेट म
हजार बाग िजले म कोडरमा, गरडीह, दोमाचे य, चाकल, तसर , भागलपुर संहभू म,
पालामू िजल म अ क उ पादन होता है। आ ध दे श क अ क पेट म नेलोर तथा
वशाखाप नम िजले म ि थत है यहां हरे रं ग क अ क नकलती है। मु ख अ क
खाने काल चेहू तेल नाडू म ह। राज थान मे अ क भीलवाड़ा, अजमेर, उदयपुर,
ं रपुर, जयपुर , सीकर, ट क और अलवर िजल म खाने ह।
डू ग
भारत अ क उ पादन के अ य े उड़ीसा म घेनकनाल, स बलपुर, ओरापुट,
म य दे ष म ब तर िजला, त मलनाडू म कृ णा सलेम और नील गर िजले आ द ह।
2. ाजील : अ टाक टका तट य िजल म 480 कमी ल बी और 192 कमी चौड़ी
अ क पेट है। पनास, गेराइस, रा य क सांता लु िजया और पेकानहा क खान एवं
उ तरपूव म जु आजीरो क खाने क मु य उ पादक ह।
3. स: स म अ क के मु य े बेकाल झील के द ण म स युदयांका और बेकाल
के उ तर म ममा े है। बेकाल पि चम म अ यगझेर तथा बारगा े ह। सु दरू पूव
म नागोरनीय क अ क खाने ह उ तर पि चम म ओनेगा झील के समीप
पी ोजावोदक े क खाने ह। बेकाल के द ण पि चम म लकु क के समीप
फूलोगोपाइट कार क अ क खोद जाती है।
4. मालागासी : फोट ढाउ फन के समीप फूलोगोपाइट अ क मलती ह िजसक शराएं
एक से पांच मीटर तक मोट होती ह
5. संयु तरा य अमे रका: यहां उ तर केलो रना के ु , पाइन,
स क लन, स वा और
शे वी हकोर िजल म ेप अ क नकाल जाती है। संयु त रा य अमे रका म
कृ म अ क का नमाण भी बड़ी मा ा म कया जाता है। इसके अलावा द ण
अ का, कनाडा, आ े लया, अज टाइना, चीन, ांस, नाव एवं जाि बया आ द दे श
म भी अ क का उ पादन कया जाता है।
132
व व यापार
भारत अ क का सबसे बड़ा नयातक है। यह अपने उ पादन के अ धकांश भाग का नयात
कर दे ता है। इसके अ य नयातक ाजील एवं द णी अ का ह। अ क अमे रका, टे न,
जापान, जमनी, ांस आ द मह वपूण है।
बोध न-3
1. अ क कस कार क च ान म पाया जाता है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. वह ख नज जो व यु त का कु चालक ह।
............................................................................................
......................................................................................... ...
3. अ क के मु य उ पादक दे श के नाम बताइये ।
............................................................................................
............................................................................... .............
4. रासाय नक सं र चना के आधार पर अ क को कतने क म म वभािजत
कया गया ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
133
व व के व भ न भाग म तांबे का लगभग 31 करोड़ टन सं चत भ डार है। वतमान म
चल दे श सवा धक तांबे का उ पादन लगभग 35 तशत करता है।
ता लका- 5.4 : व व म तांबा उ पादन, 2005 दे श
.सं. दे श उ पादन (हजार टन) व व का तशत
1. चल 5320 35.5
2. संयु त रा य अमे रका 1140 7.6
3. इ डोने शया 1065 7.1
4. पे 1010 6.7
5. आ े लया 916 6.1
6. चीन 762 5.2
7. स 700 4.7
8. कनाडा 595 4.0
9. पोले ड 523 3.5
10. मैि सको 429 2.9
11. जाि बया 423 2.8
12. कजा क तान 422 2.8
व व 15,000 100.0
चल , संयु त रा य तथा इ डोने शया मल कर व व का आधा तांबा पैदा करते ह। इनके
अ त र त पे , आ े लया, चीन, स, कनाडा और पौले ड भी बड़े उ पादक ह।
1. चल : चल व व के कु ल उ पादन 35 तशत तांबे के उ पादन के साथ व व का
थम तांबा उ पादक दे श है। चल एक ऐसा दे श है िजसक पचास तशत से अ धक
रा य आय केवल तांबे के नयात से ह ा त होती है। चल से जु ड़े पी म
मोरोकोचा तथा कासापा का मु ख तांबा क खाने ह। चल के कु ल तांबा उ पादन का
90 तशत भाग ए डीज पवत के पि चमी ढाल पर ि थत न न खदान से होता है।
(i) च क कामाटा-यह व व क सबसे बड़ी तांबे क खदान है। यहां व व के
अ य कसी े वशेष क तु लना म व व म सबसे अ धक सं चत रा श पाई
जाती है।
(ii) एल ते नए त
(iii) ला अ काना
(iv) ाडेन
2. संयु त रा य अमे रका : यहां व व के कुल उ पादन का 7.8 तशत तांबे का
उ पादन होता है जो दूसरे थान पर है। संयु त रा य के म शगन रा य म ि थत
क वेना े ाचीनकाल से ह मु ख तांबा उ पादक े रहा है। संयु त रा य का
पि चमी भाग मौटांना रा य म ि थत बु े नामक थान संयु त रा य म नह ं बि क
134
व व म भी तांबा उ पादन क ि ट से अ त मह वपूण है। यहां व व क अ य तांबा
उ पादन खदान क अपे ा अ धक मा ा म ताबां नकाला जाता है। ऐर जोना रा य
क बी, लोब, मयामी, यूरेका, ओ डहे ट, आजो, मोरे सी, सान मैनए
ु ल े ,
नेवादा रा य म ि थत ए र टन, एल े म ि थत खदान, ऊटा रा य के बंथम एवं
टि टक भी मु ख तांबा उ पादक दे श ह।
3. कनाडा : कनाडा तांबा उ पादन क ि ट से व व म आठवां थान है। मु ख उ पादक
े ह, िजनम चार मु य ह। इनम वशाल झील के उ तर म ि थत सडबर े
सबसे बड़ा है एवं कनाडा के कु ल उ पादक का पचास तशत तांबे का उ पादन इसी
े से ा त होता ह यह ओटे रयो म ि थत है। उ तर पि चमी यूबेक क खदान
का दूसरा थान है। मैनीटोबा एवं स केचवान रा य क सीमा पर ि थत ि लन
लोन े कनाडा का तीसरा मु ख ोत े है। चौथा े है जहां से नारे दा-रोयून
े सडबर े के बाद कनाडा के तांबा का अ धकतम उ पादन ा त होता है। इसी
ेकार बकु वर रा य के उ तर भाग म ि थत टे नया बची े ।
4. स : व व के कु ल तांबा उ पादन का 4.6 तशत उ पा दत कर इस समय वतमान
म छठे थान पर है। यहां यूराल े म यूराल पवत के द णी-पि चमी कनारे पर
सबाई, डे या ला क, गाई, उचाल तथा काराबास े तथा उ तर साइबे रया के
नो रक स े से तांबे का खनन होता है।
135
7. कजा क तान : यहां बा खस झील के पास झे काझगान कोराइ कोए तथा बोजसाकुल
खान म तांबा नकाला जाता है।
8. भारत: भारत म लगभग 71.2 करोड़ टन के भ डार है। िजसम 94 लाख टन धातु
उपल ध ह। झारख ड के संहभू म क मोसबनी, राखा, धोबनी, रजहाई े म इसके
पया त भ डार ह। राज थान के झु झूनु म खेतड़ी, को लहान और चांदमार तथा
अलवर म दर बा खदान ता बे के लए स ह। इसके अलावा म य दे श म
मालाजख ड क खदान उ लेखनीय ह। कनाटक म भी तांबा का बड़ा भंडार है।
उ पादन म म य दे श आगे है तथा राज थान दूसरे थान पर है। झारख ड का
तीसरा थान है।
व व यापार
चल , जाि बया, कनाडा, जायरे , मैि सको, युगो ला वया आ द तांबे के मह वपूण नयातक
ह जब क संयु त रा य अमे रका, पि चम यूरोपीय दे श, जापान आ द तांबे के आयातक ह।
बोध न-4
1. तां बा और न कल मलाने से ' जमन स वर ' बन जाता है उसे या कहते
ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. व व म तां बे का कु ल कतना टन सं चत भ डार है ?
............................................................................................
........................................................................................... .
3. व व म सवा धक तां बे का उ पादन कस दे श म होता है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
4. व व म सबसे बड़ी तां बे क खदान का नाम बताइये ?
............................................................................................
................................................................ ............................
5. भारत के उ पादक े के नाम बताइये ।
............................................................................................
................................................................ ............................
136
म मह वपूण थान ह। ख नज पर व व का औ यो गक वकास टका हु आ है। ख नज
का उपयोग मानव के दै नक जीवन म काम आने वाल व तु ए,ं सु ई से लेकर बड़े मशीन-
यं रख औजार म होता है। अत: ख नज म नर तर उपयोग बढ़ने से इनका संर ण
करना अ त आव यक है।
5.6 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. चीन
2. मै नेटाइट
3. कनाटक
4. द णी मंचु रया, हैनान वीप, शा षी, होपेह, तापेह तथा चांग-िजयांग घाट आ द।
5. स, पेन, वीडेन, ांस आ द।
137
बोध न- 2
1. लोहा एवं ट ल नमाण म
2. चीन, द णी अ का और आ े लया
3. बड़ोदरा से दामोदर घाट तक क पेट म।
4. पो टमे वग, सेरेस, पुटसे , बचनूआइलै ड म कगवा-कगवे क खान।
बोध न - 3
1. सल केट कार क च ान म
2. अ क
3. संयु त रा य अमे रका, स, द र को रया, नाव और कनाडा।
4. तीन भाग मे वभािजत कया गया है : - 1. म को हाईट 2. फूलोगोपाइट, 3.
बायोटाइट
बोध न - 4
1. यूपेरो नकल कहते ह।
2. लगभग 31 करोड़ टन सं चत भ डार है।
3. चल म
4. च क कामाटा।
5. झारख ड म संहभू म िजला, राज थान म झु झू नू के खेतड़ी आ द े तथा म य
दे श का मलाणख ड े ।
5.7 अ यासाथ न
1. ख नज कसे कहते ह ? इसके कार बताइये।
2. व व म लौह अय क सं चत भ डार तथा उ पादन का ववरण का द िजए।
3. मैगनीज का मह व प ट करते हु ए व व उ पादक े क ववेचना क िजए।
4. तांबे क उपयो गता व वतरण तथा व व यापार का वणन क िजए ।
5. अ क के उपयोग तथा व व के वतरण को समझाइये।
138
इकाई 6 : पर परागत ऊजा संसाधन Conventional
Energy Resources)
इकाई क परे खा
6.0 उ े य
6.1 तावना
6.2 कोयला
6.2.1 कोयले क उ पि त एवं कार
6.2.2 कोयले का व व वतरण
6.2.3 कोयले का उपयोग
6.2.4 कोयले का संर ण
6.3 ख नज तेल
6.3.1 ख नज तेल क उ पि त
6.3.2 ख नज तेल का व व वतरण
6.3.3 ख नज तेल का उपयोग
6.3.4 ख नज तेल का संर ण
6.4 जल व युत
6.4.1 जल व युत उ पादन क आव यक दशाएं
6.4.2 जल व युत उ पादन का वतरण
6.4.3 जल व युत का उपयोग एवं मह व
6.5 आण वक ऊजा
6.5.1 आण वक ऊजा क वशेषताएं
6.5.2 आण वक ख नज पदाथ का वतरण
6.5.3 आण वक ऊजा का उ पादन
6.5.4 आण वक ऊजा का उपयोग
6.5.5 आण वक ऊजा का संर ण
6.6 सारांश
6.7 श दावल
6.8 संदभ थ
ं
6.9 बोध न के उ तर
6.10 अ यासाथ न
6.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने का उपरा त आज समझ सकग क : -
139
व व म पर परागत ऊजा ोत का ववरण
कोयला का वतरण, उपयोग एवं संर ण
ख नज तेल का वतरण, मह व एवं संर ण
जल व युत का उ पादन एवं मह व
आण वक ऊजा का वतरण एवं भ व य
इन पर परागत ऊजा ोत क सम याएं एवं स भावनाओं पर चचा करे ग।
6.3 कोयला
कोयला काला या भू रे रं ग का काबनयु त ठोस जीवा म धन है जो मु यत: अवसाद शैल
म पाया जाता है। यह वलनशील होता है। यह घरे लू धन से लेकर औ यो गक धन
तक म उपयोग म लाया जाता है।
140
कोयले क तह भार से दबती गई। प रणाम व प दबाव, भंचाव तथा आ त रक गम से
कोयले क वभ क म का नमाण हु आ।
कोयले क क म (Kinds of Coal)
कोयले म काबन त व क मा ा के अनुसार ऊजा मता होती है। इसके आधार पर न न
क म पायी जाती है -
(i) ऐ ेसाइट (Anthracite) : यह कोयला सव तम कार का होता है। यह कठोर,
चमकदार, रवेदार तथा अंगरु होता है। इसम काबन क मा ा 90%-96% होती है।
इसम वा पशील पदाथ बहु त कम होता है। यह जलने म धु ँआ कम दे ता है तथा
ताप बहु त अ धक होता है।
(ii) बटु मनस (Bituminus) : यह काले रं ग का चमकदार कोयला होता है। इसम
काबन क मा ा 70%–90% होती है । उसम वा पशील पदाथ क मा ा अ धक
होती है। यह जलने म बहु त धु ँआ दे ता है। यह पील लौ के साथ जलता है।
(iii) लगनाइट (Lignite) : यह भू रे रं ग का कोयला है। इसम काबन क मा ा 45%-
70% होती है। यह जलने म धु ँआ अ धक दे ता है तथा राख भी बहु त छोड़ता है।
इसम वन प त का अंश अ धक मा ा म होता है।
(iv) पीट कोयला (Peat Coal) : यह वन प त के मौ लक प म थोड़ा सा ह
प रव तत कोयला है। इसम काबन क मा ा 40% तक पायी जाती है। यह ाय:
लकड़ी क तरह जलता है और जलने म बहु त धु ँआ दे ता है ।
141
1. चीन 237.8 38.4
6. द ण अ का 24.4 3.9
142
मान च - 6.1 : व व के मु ख कोयला े
(अ) दामोदर घाट े : रानीगंज, झ रया, बोकारो, ग रडीह, रामगढ़
और कणपुरा िजल
(ब) सोन घाट े : संगरौल , सोहागपुर , तातापानी, उम रया, और
रामकोला क खदान म य दे श-छतीसगढ म तथा डा टनगंज, औरं गा
व हु तार क खदान झारख ड मे ह।
(स) महानद कोयला े : उड़ीसा के तालचर तथा रामपुर हंगर े
और छ तीसगढ़ के कोरबा, सोनहट, व ामपुर , रामगढ़, झल मल
व लखनपुर े ह।
(द) गोदावर -वधा घाट े : आ दे श के सगरे नी, तंदरू और स ती
तथा महारा के च पुर , यवतमाल, और बलरामपुर िजले ह।
(य) सतपुड़ा े : यह े मोहपानी, पथखेड़ा, का हन घाट और पच
घाट म ि थत है।
(र) अ य े : उ तर पि चमी बंगाल, असम, अ णाचल दे श, हमाचल
दे श, ज मू एवं क मीर, राज थान, त मलनाडु आ द रा य म भी
कोयले का उ पादन कया जाता है।
143
(iv) आ े लया : यह व व का चौथा बड़ा कोयला उ पादक दे श है। यह तवष
लगभग 24 करोड़ मीटर टन कोयला उ प न कर रहा है। जो व व उ पादन का
लगभग 6.5 तशत है। यहां पर ए ेसाइट क म का कोयला पाया जाता है।
यहां क मु ख कोयला खदान यूकै सल , लथगो और कै बला के पास ि थत ह।
(v) स : यह व व का पांचवां बड़ा कोयला उ पादक दे श है। यहां का वा षक
उ पादन लगभग 28 करोड़ मीटर टन है, जो व व उ पादन का लगभग 5.1
तशत है। यहां पर बटु मनस क म का कोयला अ धक पाया जाता है। यहां के
मु ख कोयला े कु सबास े , मा को े , यूराल े , काकेशस े , इकुटरक
बे सन े , ल ना बे सन े , यनीसी बे सन, आमूर घाट कोयला े आ द ह।
(vi) जमनी : जमनी म तीन मु ख कोयला उ पादक े ह, िजसम र घाट , सार
बे सन और सा सनी कोयला े मु ख ह। यहां पर बटु मनस और लगनाइट
क म का कोयला पाया जाता है।
(vii) द ण अ का : यहां पर बटु मनस क म का कोयला पाया जाता है। यहां
ांसवाल और नेटाल दो मु ख कोयले क खान ह।
(viii)पोलै ड - पोलै ड म दो मु ख कोयला े -साइले शया और जैफजर ह।
(ix) ेट- टन : वतीय व व यु से पूव यह कोयला उ पादन म अ णी दे श था,
क तु अब इसका मह व कम हो गया है। इसका औसत वा षक उ पादन मा
1.0 करोड़ टन से कम रह गया है। यहां पर याकशायर-ना टंघम-डब े ,
नाथ बरलै ड-डरहम े , लंकाशायर े , वे स े , लाइड घाट आ द मु ख
कोयला उ पादन े रहे ह।
(x) यू े न : यह व व का एक मु ख कोयला उ पादक दे श है। यहां उ च को ट के
बटु मनस के वशाल भ डार ह। यहां पर डोनबास बे सन म कोयले का व व
स सं चत भ डार है।
(xi) व व के अ य दे श : व व के ांस, बेि जयम, नीदरलै ड, हगंर , रोमा नया,
पेन, कनाडा, ाजील, कोलि बया, नाइजी रया आ द मु ख कोयला उ पादक दे श
ह।
144
कोक, तारकोल, अमो नया, ने थीन, फनायल आ द के नमाण म
सु गं धत तेल तथा साधन साम य के नमाण म आ द।
कोयला का अन यकरणीय संसाधन है, िजसका उपयोग होने पर न ट होता जाता है।
द घकाल तक इसका उपयोग करने के लए न न कार क य न कये जाने चा हए -
(1) कोयले का उ पादन कसी वशेष व ध से ह , िजसम कोयले का य कम हो।
(2) रासाय नक या वारा न न क म के कोयले का उ तम क म का बनाया जाये।
(3) भाप के ईधन म कोयले के उपयोग पर रोक।
(4) कोयले का शु करण उ पादन े के पास म हो।
(5) कोयले का उपयोग अ य त आव यक उ योग म ह हो।
(6) कोयले का वक प खोजना चा हए।
(7) उ च गुणव ता क मशीन म ह कोयले का उपयोग हो, िजससे अ धक ऊजा ा त
क जा सके।
बोध न -1
1. कोयले क उ पि त कै से हु ई?
............................................................................................
............................................................................................
2. कोयले के कार ल खये ।
........................................ ....................................................
.............................................................................. ..............
3. सव े ठ कोयला कौन सा है ।
............................................................................................
................................................................................ ............
4. कोयला उ पादन म भारत का कौन सा थान है ?
............................................................................................
............................................................................... .............
5. व व के सवा धक कोयला उ पादन के पां च दे श के नाम लखो।
............................................................................................
.............................................................................. ..............
6. भारत म कोयला कौन सी शै ल म पाया जाता है ?
............................................................................................
................................................................. ...........................
145
6.4 ख नज तेल (Petroleum)
6.4.1 ख नज तेल क उ पि त
146
ता लका-6.2 : व व के मु ख दे श म तेल उ पादक का तशत, 2006
.स. दे श दै नक उ पादन तशत
(हजार टन)
1. सऊद अरब 1498 13.4
2. स 1307 11.7
3. संयु त रा य अमे रका 1000 9.0
4. ईरान 582 5.2
147
2. स - वतमान म स का ख नज तेल उ पादन म व व म वतीय थान है। स
के वभाजन के प चात ् ख नज तेल का उ पादन कम हु आ है। यह दे श व व का
12% ख नज तेल उ प न कर रहा है। इसका औसत वा षक उ पादन लगभग 28
करोड़ टन है। इसके उ पादन े न न ह - वो गा-यूराल े म पम, उफा,
कु इबीशेव आ द तेल कू प ह, पि चमी साइबे रयाई े म शशीम और सु रगट नाम के
तेल े है, ोजनी े , तथा सरबा लन े ।
3. संयु त रा य अमे रका - इस दे श का ख नज तेल उ पादन म व व म तीसरा थान
है इसका वा षक उ पादन 17 करोड़ टन है। इसके उ पादन े न न ह -
(i) म य महा वीपीय े - क सास, ओकलाहोमा, टै सास, उ तर लु िजयाना
आ द रा य।
(ii) खाड़ी तट य े - मसी सपी, टे सास, अलबामा, लु िजयाना, लो रडा आ द।
(iii) के लफो नया े - लासएंिजलस बे सन व सॉन जोि वन घाट ।
(iv) रॉक पवतीय े - मो टाना, य मग व यूमैि सको रा य।
(v) द णी पि चमी इि डयाना - मो टाना, यो मंग व यूमैि सको रा य।
(vi) ल मा- इि डयाना - मशीगन े - इि डयाना, मशीगन व ओ हयो रा य।
(vii) अ ले शयन े - यूयाक, पेि सलवे नया, आ हयो ,के टु क व वज नया
रा य।
4. ईरान : यह व व का चौथा बड़ा ख नज तेल उ पादक दे श है। यह तवष व व का
लगभग 5.3% ख नज तेल उ प न करता है यहाँ सव थम वष 1908 म म जेदे
सु लेमान े म पे ो लयम उ पादन कया गया। इसके मु य तेल उ पादक े
मि जदे सु लेमान, लाल , आगाजर , ह तकेल, केरमशाह, गचसारन, न त शा फद
आ द ह।
5. ईराक : यह दे श व व का लगभग 4% ख नज तेल उ प न करता है। यहाँ पर
करकुक, जु बरै , न तखाना, बुटमाह और माइला े म ख नज तेल उ प न कया
जाता है।
6. मैि सको : इस दे श म व व का 4.9% ख नज तेल उ प न कया जाता है।
7. चीन : यहाँ पर करामाई े , सैदाम बे सन, जेचवान बे सन, शे सी और फुसु न म
ख नज तेल उ प न कया जाता है।
8. वेनेजु एला : इस दे श के माराकाइबो झील, ओरो नको बे सन और आपुरे बे सन म
व व का 4.2% ख नज तेल उ प न कया जाता है।
9. कनाडा : यहाँ के एडमंटन-केलगैर , स केचवान- मैनीटोवा आ द े ो म पै ो लयम
उ प न कया जाता है।
10. भारत : भारत ख नज तेल के उ पादन म एक नधन दे श है। यह व व का लगभग
0.9% ख नज तेल उ प न कर रहा है। भारत म ख नज तेल के चार मु ख
148
उ पादक े ह - (i) असम म सू रमा घाट तथा डगबोई े (ii) बॉ बे हाई और
(iii) ख भात क खाड़ी े म अंकले वर एवं कलोल े तथा (iv) पूव तट य े
- गोदावर -कृ ण-कावेर बे सन।
11. अ य ख नज उ पादक दे श : कोलाि बया, अज टाइना, ाजील, संयु त अरब
अमीरात, कु वैत (बुरहान पहाड़ी), नाव, ेट टे न, नाइजी रया, ल बया, यू े न ,
इ डोने शया आ द दे श म ख नज तेल उ प न कया जाता है।
149
................................................................ ...........................
3. भारत म ख नज ते ल उ पादक े कौन से ह ?
................................................ ............................................
................................................................ ...........................
4. आधु नक यु ग म पे ो लयम का या मह व है ?
..................................................................... .......................
..................................................................... .......................
5. व व के पाँ च मु ख पे ो लयम उ पादक दे श के नाम ल खये ?
............................................................................................
....................................................................... .....................
6.5 जल व यु त शि त
जल व युत एक कार क यां क ऊजा है। यह ऊपर से नीचे गरती हु ई जलधारा क
ऊजा से संचा लत टरबाइन तथा डयनम से उ प न क जाती है। य य प ाचीन काल से
ह समु लहर व जल- पात से पवन चि कय को चलाने का चलन रहा है। क तु
जल व युत का उ पादन बीसवीं शता द से कया जाने लगा है। इसके अ तगत धरातल
के वाह जल के वेग तथा आयतन को यां क ऊजा म प रव तत करके जल व युत का
उ पादन कया जाता है। व व का सबसे पहला जल- व युत के 1873 ई. म ांस म
बनाया गया था।
150
व युत क औ यो गक एवं नगर य े म मांग,
मांग े क समीपता,
व युत इकाइय का उ चत रख-रखाव,
उपयु त ब धन,
कु शल मक,
राजनी तक ढ़ता एवं ती इ छाशि त का होना आ द।
7. भारत 99 3.4
8. जापान 77 2.7
9. वेनेजु ऐला 74 2.6
151
14. टक 39 1.4
15. आि या 36 1.2
16. अज टाइना 34 1.2
17. इटल 33 1.2
18. ि व जरलै ड 31 1.1
19. पा क तान 31 1.1
152
यहां पर टे नेसी घाट प रयोजना, नया ा पात, हडसन नद ,
मसी सपी व मसौर न दयां, कोलि बया बे सन, कोलोरे डो
बे सन, ओकुम प रयोजना, ा डकू ल और वान वले प रयोजनाओं
आ द से जल व युत उ प न क जाती है।
(iii) ाजील : व व म जल व युत के उ पादन म ाजील का
तृतीय थान है। यहां पर वष पय त होने से सतत ् वा हनी
न दयाँ बहती ह। ाजील के पठार म साओ ां स को, ट क टस,
अरागुआया, पराना, ना वे, रयो ा डे, साओपालो आ द छोट बड़ी
न दय पर ि थत व युत के ो से व व क लगभग 11.0
तशत जल- व युत उ प न क जाती है।
4. चीन : यह व व का चतुथ बड़ा जल व युत उ पादक दे श है जो व व क लगभग
8.0 तशत जल व युत उ प न करता है। चीन म बहु उ ेशीय प रयोजनाओं के
अ तगत वांगह , यांग ट स यांग, सी यांग आ द न दय पर बांध का नमाण करके
शि तगृह था पत कये गये ह।
5. स : यह व व क लगभग 6.0 तशत जल व युत उ प न करता है। स म जल
व युत क तीन-चौथाई स भा य मता साइबे रया (ए शयाई भाग) म है। यहां पर
वो गा, नीपर, डान, बोरखोव, ओब, एनेसी, ल ना, आमू र आ द न दय पर जल
व युत उ पादक के था पत कये गये ह।
6. नाव : कै डने वया पवत से नकलने वाल न दय पर जल व युत उ पादक के
था पत ह। इस दे श म कु ल यां क ऊजा का लगभग 99.5 तशत जल व युत से
ह ा त होता है।
7. जापान : जापान के म य भाग म ि थत उ च पवत े णय से नकलने वाल न दय
से जल व युत प रयोजनाएं संचा लत होती ह। यहां पर टोहकू और बबू दो मु य
जल व युत के ह।
8. भारत : भारत म जल व युत का उ पादन मु यत: वष 1950 के प चात ् आर भ
हु आ। भारत व व का आठवां बड़ा दे श है जहां 3.1 तशत जल- व युत उ प न क
जाती है। यहां पर बहु उ ेशीय प रयोजनाओं, यथा भाखड़ा-नांगल, रह द, दामोदर घाट ,
तु ंगभ ा, नागाजु नसागर, ह राकु ड, मयूरा ी, च बल, ककराधार, माताट ला, रामगंगा
आ द से जल व युत का उ पादन कया जाता है।
9. अ का महा वीप के अ धक वषा वाले दे श : जल व युत क अ का महा वीप म
व व क 41 तशत जल व युत क सभा य मता व यमान है, पर तु अभी तक
इसके 0.5 तशत का ह वकास हो सका है, य क अ का महा वीप के दे श
आ थक एवं तकनीक प से अ य धक पछड़े हु ए ह। यहाँ पर कांग बे सन, जे बजी
बे सन, गनी तट, नील नद आ द म पया त जल व युत क स भावनाएं ह।
153
10. अ य जल व युत उ पादक दे श : ांस, इटल , ि वटजरलै ड, पेन, पोलै ड, यू े न ,
पी , अज टाइना, कोलि बया, वेनेजु एला, इ वेडोर, नेपाल, पा क तान, बांगलादे श,
उ तर व द णी को रया, आ े लया, यूजीलै ड आ द म भी जल व युत उ प न
कया जा रहा है।
154
................................................................. ...........................
4. आधु नक समय म जल व यु त का अ धक मह व य है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
6.6 आण वक ऊजा
आण वक ऊजा के उ पादन म व व के वक सत दे श ह आगे ह, यो क इसके लऐ उ च
तकनीक , व करण से सु र ा और अ धक धन क आव यकता होती है। आण वक शि त
का उ पादन रे डयोधम त व -यूरे नयम , रे डयम, लू टो नयम व थो रयम और बैने लयम,
ल थयम व रल मृदाओं जैसे ख नज से कया जाता है।
ऐसे ख नज पदाथ िजनके परमाणुओं के वख डन से ऊजा ा त होती है, आण वक ख नज
कहलाते ह। आण वक ख नज के वख डन से ा त होने वाल ऊजा को आण वक ऊजा
कहा जाता है परमाणु ख नज के ना भक म अ य धक शि त छपी होती है, िजसका
उपयोग व वध पो म कया जा सकता है। आण वक ऊजा को ना भक य ऊजा भी कहा
जाता है। अणु ऊजा उ पादन क दो व धयाँ है - (i) वख डन (Fission) िजसम एक
अणु टू ट कर छोटे परमाणुओं म वभािजत हो जाता है, तथा (ii) संगलन (fussion) -
िजसम दो ह के अणु गलकर और पर पर मलकर एक बड़े अणु म प रव तत हो जाते ह।
वख डन वारा अणु ऊजा ा त करने के लए यूरे नयम (uranium) और थो रयम
(Thorium) का योग कया जाता है।
155
(I) यूरे नयम
यह भू गभ म पाये जाने वाला रे डयो धम त व है। इसक खोज अठारवीं शता द म हु ई
थी। इसक ाि त पच लड (Pitch blend) तथा कारनोटाइट (Carnotite) नामक दो
ख नज धातु ओं से होती है। यूरे नयम को वखं डत करके भू त मा ा म ना भक य ऊजा
ा त क जाती है। यह पच लड क शराओं और कां लोमरे ट शैल म पाया जाता है।
एक कला ाम यूरे नयम के वखंडन से 25 लाख कलो ाम कोयला के समान ऊजा ा त
होती है।
उ पादक दे श - वतमान म स पूण व व म यूरे नयम का वा षक उ पादन लगभग 35
हजार मीटर टन है। यूरे नयम के उ पादन से संबं धत दे श के आकड़े न न ल खत
ता लका से प ट होते ह -
ता लका 6.4 : व व म यूरे नयम का वा षक उ पादन, 2004
. सं. दे श उ पादन
(सौ मीटर टन मे)
1. कनाडा 109.2
2. आ े लया 49.1
3. द ण अ का 37.7
4. नाइजर 37.1
5. स 25.3
6. उजबे क तान 19.3
7. स. रा. अमे रका 18.1
8. कजाक तान 12.7
9. यू े न 10.0
10. चीन 5.9
11. ांस 5.1
12. भारत 2.1
13. अ य दे श 19.6
व व कु ल 351.8
Source: UN Energy Statics Year book, 2004
157
क अपे ा कम होता है। हालां क यूरे नयम मंहगा है, ले कन इतने कोयले का मू य और
इसका प रवहन खच क अपे ा यह स ता है। व व म आण वक ऊजा के उ पादक दे श
वक सत दे श ह। आण वक ऊजा आण वक ख नज के वखंडन से ा त होती है। वखंडन
का काय वशेष ढं ग से रए टर के मा यम से कया जाता है। इसक ऊजा को व युत म
प रव तत कया जाता है जो अ य धक ज टल या है तथा खच ल भी है। व व म वष
2005 म 2626 अरब घंटे परमाणु ऊजा का उ पादन हु आ िजसका ववरण न नानुसार
है।
ता लका 6.5 : व व म आण वक ऊजा का उ पादन 2004
.सं. दे श उ पादन तशत
(अरब कलोवाट घ टा)
1. सयु ं त रा. अमे रका 782 29.8
2. ांस 429 16.3
3. जापान 278 10.6
4. जमनी 155 5.9
5. स 140 5.3
6. द. को रया 139 5.3
7. कनाडा 87 3.3
8. यू े न 83 3.2
9. ेट टे न 75 2.9
10. वीडेन 69 2.6
11. जापान 55 2.1
12. चीन 50 1.9
13. बेि जयम 45 1.7
14. भारत 16 0.6
Source : UN Statics Year Book, 2006
उपयु त ता लका से व व म आण वक उ पादक दे श इस कार से ह -
1. संयु त रा य अमे रका : इस दे श म वष 1958 म थम आण वक संयं प सबग
के नकट शं पग पोट म था पत कया गया। यह दे श व व क सवा धक परमाणु
ऊजा, 7141 अरब कलोवाट घ टा उ प न कर रहा है। यहाँ के लफो नया म बकले व
लवरमोर, वा शंगटन म हसफोड, नेवादा म लासबेगास, यूयाक म सेने टै डी, यू
मैि सको म लास- अलासास तथा जािजया म सराना मु ख के ह।
2. ांस : व व म आण वक ऊजा क ि ट से ांस दूसरे थान पर है। यहाँ 3880
अरब कलोवाट घ टा ऊजा उ प न क जाती है। मारकूले मु ख आण वक शि त के
है।
158
3. स : व व म आण वक शि त उ पादन म स का चतु थ थान है। यह 1037
अरब कलोवाट घ टा आण वक शि त उ प न कर रहा है। यहाँ पर मान ीस लाक
ाय वीप पर व व का सबसे बड़ा परमाणु शि तगृह था पत है। इसके अ त र त
नीवो-वोरोनेरा, कोला, ले नन ाड तथा ि ल बना आ द अ य मु ख के ह।
4. ेट टे न : यहाँ हंटसटन, ा स फ नड, कैले, चैकेल ास, ओ डवर , साइजवेल, वैडवेल
आद मु ख परमाणु शि त गृह ह।
5. भारत : भारत म 120 अरब कलोवाट घ टा आण वक शि त उ प न क जाती है।
परमाणु शि त के वकास के लए भाभा परमाणु अनुस धान के था पत कया
गया। यहाँ प रघाती खोज के (Atomic Reactors) अ सरा, साइस, जरल ना, तथा
पू णमा ह। भारत का पहला परमाणु व युत के मु बई के नकट तारापुर म सन
1969 म था पत कया गया। इसके अलावा रावत भाटा, काकरपारा, कलप कम,
नरोरा आ द आण वक म शि तगृह था पत कये गये।
6. व व के अ य दे श : व व म कनाडा, जमनी, वीडन, पेन, जापान, चीन, द णी
अ का, अज टाइना, बेि जयम, यू े न आ द दे श ने आण वक ऊजा शि त के
था पत ह।
159
1. आण वक ऊजा या है ?
............................................................................................
............................................................................. ...............
2. आण वक ख नज पदाथ के नाम ल खए ?
............................................................................................
............................................................................ ................
3. व व का सवा धक आण वक ऊजा उ प न करने वाला कौनसा दे श है ?
............................................................................................
............................................................................................
4. भारत के आण वक व यु त के ो के नाम ल खए ?
............................................................................................
............................................... .............................................
5. आण वक ऊजा का उपयोग कन े म कया जाता है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
160
यां क ऊजा : जो ऊजा संचा लत डायनेमो (टरबाइनो) से उ प न क जाती है।
वखंडन : िजसम एक अणु टू ट कर दो छोटे परमाणु ओं म वभािजत हो जाता है।
संगलन: िजसम दो ह के अणु डालकर ओर पर पर मलकर एक बड़े अणु म परव तत
हो जाते है।
6.10 बोध न के उ तर
बोध न - 1
(i) व तृत सघन दलदल वन का भू ग भक हलचल के कारण भू म म दबने से
आ त रक दवाब, भंचाव एवं ताप से कोयले क उ पि त।
(ii) (i) ऐ ेसाइट (ii) बटु मनस
(iii) लगनाइट (iv) पीट
(iii) ऐ ेसाइट
(iv) तीसरा
(v) चीन, संयु त रा य अमे रका, भारत, आ े लया और स।
(vi) ग डवाना शैल म।
बोध न - 2
1. शैल से ा त तेल
2. उथले समु , झील , दलदल , न दय के डे टाओ आ द म मृत जीव-ज तु तथा
वन प तय पर नर तर अवसाद के जमाव एवं आ त रक ताप, दाब व रे डयोध मकता
के भाव से ख नज तेल क उ प त।
3. थार े (1) असम घाट , (2) बा बे हाई, (3) खंभात क खाड़ी और (4) पूव तट य
े ।
4. (i) पे ोरसाय नक उ योग म
(ii) प रवहन के साधन म
(iii) कलपुज मे नेहक के प म
161
(iv) व नमाण उ योग म
(v) मशीन एवं कृ ष यं म
5. सऊद अरे बया, स, संयु त रा य अमे रका, ईरान तथा मैि सको।
बोध न - 3
1. चीन म
2. अ का महा वीप
3. (i) आ थक एवं तकनीक प से अ य धक पछड़ापन
(ii) सरकार उदासीनता
4. (i) तु लना मक ि ट से स ती ऊजा ोत,
(ii) अ ु ण संसाधन
(iii) अ य धक ऊजा का उ प न होना,
(iv) व भ न भाग म उपयोग,
(v) उपयोग म सरल आ द।
बोध न – 4
1. आण वक ख नज के वखंडन से ा त होने वाल ऊजा।
2. यूरे नयम , थो रयम, रे डयम, तथा लू टो नयम।
3. संयु त रा य अमे रका।
4. तारापुर, रावत भाटा, कलप कम, नरोरा, व काकरापारा।
5. (i) मानव क याणकार काय म
(ii) च क सा व ान के े म
(iii) साम रक मह व के उ े य के लए
(iv) कृ ष उ योग म उपयोग
(v) ताप व युत उ पादन
(vi) आण वक बम एवं रे डयो धम दुषण
6.11 अ यासाथ न
1. कोयला के उ पादक े बताइये तथा उसके संर ण के उपाय को ल खये।
2. ''पे ो लयम ने म य पूव के दे श क दशा बदल द है।'' कथन क ववेचना
क िजये।
3. व व के जल व युत उ पादन े का वणन क िजये।
4. ''भ व य म परमाणू शि त का वकास ह औ यो गक वकास का आधार होगा।''
सकारण या या क िजये ?
162
इकाई 7 : गैर-पर परागत ऊजा संसाधन (Non
Conventional Energy Resources)
इकाई क प रे खा
7.1 उ े य
7.2 तावना
7.3 सौर ऊजा
7.3.1 सौर ऊजा के उपयोग क वध
7.3.2 सौर ऊजा का व व वतरण
7.3.3 सौर ऊजा का उपयोग
7.3.4 सौर ऊजा का संर ण
7.4 पवन ऊजा
7.4.1 पवन ऊजा का उ पादन एवं वतरण
7.4.2 पवन ऊजा का उपयोग
7.5 भू तापीय ऊजा
7.5.1 भू-तापीय ऊजा का उ पादन एवं वतरण
7.5.2 भू-तापीय ऊजा का उपयोग
7.6 वार य ऊजा
7.6.1 वार य ऊजा का उ पादन एवं वतरण
7.6.2 वार य ऊजा का उपयोग
7.7 जैव ऊजा
7.7.1 जैव ऊजा का उ पादन एवं वतरण
7.7.2 जैव ऊजा का उपयोग
7.8 सारांश
7.9 श दावल
7.10 संदभ थ
7.11 बोध न के उ तर
7.12 अ यासाथ न.
7.1 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरांत आप समझ सकगे क :
व व के अपर परागत ऊजा ोत का ववरण,
सौर ऊजा उ पादन े ,
नपल ऊजा का वतरण,
163
वार य ऊजा का वतरण,
जैव ऊजा के े ,
अपर परागत ऊजा ोत का मह व,
अपर परागत ऊजा ोत क सम याये एवं स भावनाऐं।
164
Source : UN Statistical Year Book & Energy Statisticvs Year Book, 2006.
आधु नक युग का ऊजा े म महानतम ऊजा ोत सू य है। इसके वारा ऊजा उ पादन
करना बहु त मंहगा होता है। इसी कारण गर ब एवं अ वक सत दे श म इसका उ पादन कम
होता है। सौर ऊजा का उ पादन उ ण क टब धीय े म ह होता है। व व क सवा धक
165
92 तशत सौर ऊजा का उ पादन अकेला संयु त रा य अमे रका करता है। इसके मु य
उ पादन े लो रडा, कै लफो नया, लॉस एंिजल स, वसका सन आ द ह। व व क
वशालतम सौर-भ ी संयु त रा य अमे रका के मोजाव म थल के 'लु ज' नामक थान
पर था पत है। च परे नीज म ओडेर ल के नकट वशाल सौर भ ी ि थत है।
आ े लया, इजराइल, द ण अ का और भारत म भी सौर ऊजा उ प न क जाती है।
भारत म व व का वशालतम सौर सरोवर क थापना गुजरात म भु ज नगर के समीप
'माधपार' नामक थान पर क गयी है। ह रयाणा, कनाटक, त मलनाडु , म य दे श,
महारा , उ तर दे श और राज थान म सौर ऊजा उ पादक लांट था पत ह। राज थान
म जोधपुर िजले के मथा नया क बे म सोलर ऊजा शि त गृह था पत कया गया।
व तु त: सौर ऊजा सतत ् ा त होने वाल थायी ऊजा ोत है। इसक ऊजा को सं चत
करने क तकनीक को वक सत कया जाना चा हए। सू य के ताप को इ पात न लकाओं म
सं ह कया जाये, िजससे आव यकतानुसार समय पर योग कया जा सके। इसके लए
न लकाओं म नाइ ोजन वाह करना होगा जो इस ताप को ग लत लवण के टक म
प रव हत कर दे गी। ये टक बहु त दन तक ताप को बनाये रखते ह। इसके अ त र त
अ तर उप ह के वारा भी सौर ऊजा का सं हण कया जाना चा हए। ऊजा उ पादन
यं , सेल एवं ला ट को स ता करने के उपाय भी वै ा नक को ढू ढने चा हए।
बोध न -1
1. सौर ऊजा या है ?
............................................................ .......................
.................................................................. .................
2. सौर ऊजा उपयोग क व धयां कौनसी ह ?
............................................................ ......................
........................................................... .......................
3. सू य म कन गै स क धानता ह ?
............................................. .....................................
166
................................................................. ...................
4. सवा धक सौर ऊजा कस दे श म उ प न क जाती है ?
............................................................ ........................
................................................................ ....................
167
6. जापान 174.8
7. कनाडा 147.1
8. आि या 132.8
9. ीस 126.6
10. आयरलै ड 111.2
11. आ े लया 88.1
12. म 55.2
13. बेि जयम 22.7
14. को ट रका 20.4
15. फनलै ड 17.0
16. भारत 11.6
Source : UN Statistical Year Book & Energy Statics Year Books, 2006 (Internet)
उपयु त ता लका से प ट होता है क व व म सवा धक पवन ऊजा जमनी म 27.2
अरब कलोवाट त घ टा उ प न क जाती है। इसके बाद संयु त रा य अमे रका का
वतीय थान और डेनमाक का तीसरा थान है। भारत म बहु त कम मा ा 11.6 करोड़
कलोवाट घ टा पवन ऊजा उ प न क जाती है। व व का वशालतम पवन शि त
जनरे टर (300 कमी मता) जमनी के जीयन तट पर था पत है।
बोध न –2
1. पवन ऊजा या है ?
............................................................................................
............................................................... .............................
2. व व म सवा धक पवन ऊजा के पां च दे श के नाम लख।
............................................................................................
................................................................. ...........................
3. कौनसे अ ां श म पवन ऊजा उ प न क जा सकती है ?
............................................................................................
168
............................................................................. ...............
170
आगे बढ़ने का वार और नीचे गर कर पीछे लौटने को भाटा कहते ह। अ य धक वार य
आवृ त वाले सागर तट य े म वार शि त का उपयोग जल व युत उ पादन के ोत
के प म कया जाता है।
वार य तरं ग के दवाब से व युत उ प न क जाती है। सागर तट पर वार च क या
सागर झील था पत क जाती है इनको वार य तरं ग से ा त होने वाल शि त से
संचा लत कया जाता है। वार चि कय को ाय: सागर तट पर ह था पत कया जाता
है।
न न ह -
सागर तट पर वार शि त था पत करना,
लघु उ योग म उपयोग आ द।
बोध न -4
1. वार य ऊजा या है ?
............................................................................................
..................................................................................... .......
2. सं सार का सव थम वार य ऊजा उ पादन का लां ट कहाँ था पत हु आ ?
171
........................................................................................ ....
................................................................ ............................
जैव ऊजा के उ पादन म संयु त रा य अमे रका सबसे आगे है। यह व व क सवा धक
एक तहाई ऊजा उ प न कर रहा है। इसके अ त र त ेट टे न, जमनी, पेन,
आ े लया और भारत भी जैव उजा का उ पादन कर रहे ह।
172
7.7.2 जैव ऊजा का संर ण एवं उपयोग (Use and Conversation of Biogas)
बोध न –5
1. जै व ऊजा या है ?
............................................................ ........................
...................................................... ..............................
2. जै व ऊजा के उ पादन मे कन पदाथ का उपयोग कया जाता है ?
............................................................ ........................
......................................................................... ...........
3. जै व ऊजा का उपयोग लखे ?
............................................................ ........................
................................................................. ...................
173
भाटा : सागर य जल नीच गरकर पीछे लौटने को भाटा कहते ह।
7.11 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. सू य से ा त होने वाल ऊजा।
2. (i) सौर तापीय मा यम,
(ii) सौर फोटो वा टे इक मा यम।
3. हाइ ोजन और ह लयम।
4. संयु त रा य अमे रका।
बोध न - 2
1. पवन के वेग से टरबाइन को संचा लत करके
2. (i) जमनी
(ii) संयु त रा य अमे रका
(iii) डेनमाक
(iv) इटल
(v) नीदरलै ड।
3. 30०-40० उ तर एवं द णी अ ांश म।
बोध न - 3
1. भू ग भक ताप से ा त होने वाल ऊजा।
2. वालामुखी भा वत े ।
3. (i) संवाह नक त त जल,
(ii) गम शु क शैल तं ,
(iii) त त मै मा,
(iv) भू ग भक दाब।
बोध न - 4
174
1. समु तट य भाग म वार य तरं ग के दबाव से व युत उ प न करना।
2. ांस म रे स नद क ए चुअर पर।
बोध न - 5
1. जीव के उ सिजत पदाथ, पशु ओं के गोबर, वन प तयां के अप श ट पदाथ , कूड़ा
आ द को संय ं म सड़ा-गलाने से उ प न गैस को ऊजा के प म काम म लेना।
2. वन प तय के अप श ट पदाथ, पशु ओं का गोबर, जीव के उ सिजत पदाथ, कूड़ा-
करकट आ द।
3. ामीण े म भोजन पकाने, धन के प म, काश करने आ द।
7.12 अ यासाथ न
1. सौ यक ऊजा या है ? कयह कस कार तैयार क जाती है ?
2. पवन ऊजा उ प न करने क व ध एवं े ल खये ?
3. भू-तापीय ऊजा कैसे उ प न क जाती है और इसके कौनसे े ह ?
4. वार य ऊजा के े को ल खये और ये े य ह ?
5. ''जैव ऊजा ामीण े के लए वरदान स हो सकती है।'' या या क िजये ?
175
इकाई – 8 वैि वक ऊजा संकट तथा नयं ण (Global
Energy Crisis and Control)
इकाई क परे खा
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 व व म ऊजा संकट
8.2.1 ऐ तहा सक ऊजा संकट
8.3 वतमान ऊजा संकट
8.3.1 पे ो लयम उपभो ता एवं आयातक
8.3.2 ऊजा का बढ़ता उपभोग
8.3.3 पे ो लयम क क मत म वृ
8.3.4 ऊजा संकट के कारण
8.4 ऊजा संकट के नय ण
ं के उपाय
8.5 सारांश
8.6 श दावल
8.7 स दभ थ
8.8 बोध न के उ तर
8.9 अ यासाथ न
8.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने का मु य उ े य न न ब दुओं को समझना है -
व व म ऊजा संकट क ऐ तहा सक पृ ठभू म,
व व म वतमान म ऊजा संकट क दशा,
वतमान ऊजा संकट पैदा करने म पे ो लयम का योगदान,
ऊजा संकट के मु य कारण,
ऊजा संकट के नयं ण के उपाय।
176
मशीन को शि त दे ने वाल , ऊ मा दे ने वाल तथा बजल दे ने वाल ऊजा पर ह यान
केि त कया गया है।
वतमान समय म जीवा मीय शि त के ोत (कोयला, पे ो लयम तथा ाकृ तक गैस) ह
ऊजा के ाथ मक साधन ह। व व म ऊजा के ोत म तेल आधा रत ऊजा का एक- तहाई
से अ धक (37%) ह सा है। इसके बाद कोयला (25%), ाकृ तक गैस (23%),
आण वक ऊजा (6%), बायोमास (4%) तथा जल व युत (3%) मह वपूण ह। वतमान
तकनीक युग म मशीनीकरण के साथ-साथ ऊजा का उपयोग इतना बढ़ गया है क इसे
वकास का सूचक माना जाने लगा है। जहाँ ऊजा क िजतनी अ धक खपत होती है, वह
दे श उतना ह वक सत माना जाता है। इस ि ट से उ तर अमे रका तथा यूरोप के दे श
काफ आगे ह। सन 2005 म सभी ऊजा का त यि त उपभोग उ तर अमे रका के
कनाडा म 43.6 करोड़ टश थमल इकाई तथा संयु त रा य म 34.0 करोड़ टश
थमल इकाई है, जो व व के औसत (7. 2 करोड़ टश थमल इकाई) का मश: सात
गुना तथा पांच गुना है। दूसर ओर वकासशील दे श म ऊजा के खपत बहु त कम है। जैसे
क अ का महा वीप का औसत 1.6 करोड़ टश थमल इकाई तथा ए शया का 4.1
करोड़ टश थमल इकाई ह है।
177
वकास अव होता है बि क आवागमन, कृ ष, उ खनन आ द भी भा वत होते ह।
मानव जीवन के हरे क प म ऊजा का इतना अ धक समावेश हो चु का है क इसक
आपू त क जाने पर जीवन अ व य त हो जाता है।
178
आ मण हु आ, िजससे भी तेल क आपू त बहु त भा वत हु ई और व व म पे ोल का
संकट आया।
सन ् 2000-01 म कैल फो नया का व युत का संकट : इसका कारण बजल क
क मत पर सरकार नयं ण कया जाना था। इस नयं ण के कारण बजल आपू त
क प नय को बजल ा त करने के लए उपभो ताओं से मलने वाल रा श से
अ धक रा श दे नी पड़ती थी। इस कारण ये व भ न बहाने से बजल क आपू त
घटाने लगी, िजससे संकट पैदा हो गया।
सन ् 2000 म ेट टे न म क चे तेल के दाम म वृ के वरोध के कारण ऊजा
संकट : वाहन के पे ोल तथा डीजल क क मते बढ़ने के वरोध म हड़ताल हु ई। इससे
पै नक फैल गया तथा इतना पे ोल खर दा गया क अनेक पे ोल प प खाल हो गए।
सन ् 2007 के अ त म दाम फर बड़े, िजसका वरोध हु आ इससे कमी क ि थ त
न मत हु ई।
उ तर अमे रका म ाकृ तक गैस का संकट : सन ् 2001 से सन ् 2005 के बीच
उ तर अमे रका म ाकृ तक गैस क क मत म काफ वृ हु ई। इसके कारण व युत
तैयार करने के लए इसक बढ़ती मांग तथा थानीय आपू त म कमी का आना रहे
ह। क मत इतनी अ धक हो गई क कई पे ो-रसायन उ योग तक ब द हो गए। इसी
कमी को पूरा करने के लए तरल ाकृ तक गैस (एल. एन जी.) का आयात करना
पड़ा।
सन ् 2004 म अज टाइना म ऊजा संकट : सन ् 2002 क आ थक मंद के बाद
ऊजा क मांग बढ़ , पर तु इसका उ पादन तथा प रवहन उसी अनुपात म नह बढ़
सका। अज टाइना म आधी बजल गैस से तैयार क जाती है। इस गैस क कमी के
कारण पावर लांट तथा उ योग तो भा वत हु ए ह साथ ह नयात भी ब द हो गया,
िजससे चल , युर वे तथा ाजील भा वत हु ए। चल 90 तशत गैस अज टाइना से
आयात करता है। इससे राजन यक सम या पैदा हो गई। इस सम या से नपटने के
लए अज टाइना को वेनेजु एला से धन तेल का आयात करना पड़ा।
उ तर को रया म शा वत ऊजा संकट : थानीय उ पादन न होने तथा आयात पर
अ य धक नभरता के कारण उ तर को रया म ऊजा का संकट नरं तर बना रहता है।
यांमार म सन ् 2007 म ऊजा संकट : यांमार क जनता को शासन ने धन को
द जाने वाल आ थक सहायता ब द कर दया। इसके कारण पे ोल तथा डीजल के
दाम दो गुने हो गए तथा ाकृ तक गैस के दाम पांच गुना बढ़ गए। इसके वरोध म
यहाँ 15 अग त, 2007 से सरकार वरोधी अ भयान आर भ हु आ। फलत: दे श म
ऊजा का संकट पैदा हो गया।
स-यू े न : इसी तरह स व यू े न के बीच माच 2005 म गैस क क मत पर
ववाद हु आ। पेन को भार मा ा म गैस स से मलती है। समझौता न होने के
कारण जनवर 2006 म स ने यू े न को गैस क आपू त ब द कर द पर तु शी
179
ह पुन : गैस दे ना शु कर दया। इसी तरह स बेला स को भी गैस क आपू त
करता है। सन ् 2006 के अि तम दन म स क गैस आपू त क पनी गैस क ऊंची
क मत मांगने लगी। ऐसा न करने पर गैस क स लाई रोक द । पर तु जनवर 2007
म पुन : स लाई बहाल कर द । इस तरह इनके बीच का ऊजा ववाद संकट गहराने के
पूव हल कर लया गया।
सन ् 2008 म म य ए शया म ऊजा संकट : इस े म शि त के साधन क कमी
बनी रह है। सन ् 2008 म इस भाग म शीत ऋतु म भीषण ठं डक पड़ी िजससे
बजल क मांग बहु त बढ़ गई। सबसे गंभीर सम या ताज क तान म थी जो जल
व युत पर नभर है। यह शीत ऋतु म तु कमा न तान तथा उजबे क तान से बजल
आयात करता है। भीषण ठं डक के कारण न दय का पानी जम गया तथा जल व युत
उ प न करना क ठन हो गया। इसी बीच उजबे क तान ने ताज क तान को गैस का
स लाई ब द कर दया। उजबे क तान म दस बर 2007 म गैस क पाइप लाइन भी
जम गई। वतमान म इस े म पे ो लयम तथा ाकृ तक गैस के उ पादन पर यान
दया जा रहा है।
द ण अ क व युत संकट : सन ् 2007 म सरकार बजल क पनी आव यकता
क पू त के लए चाह गई मा ा म बजल बनाने म अ म महसूस करने लगी
िजससे उ योग तथा लोग क रोजमरा क मांग पूर न हो सक । इस कारण ामीण
भाग म बजल क पू त बहु त कम हो गई।
चीन म सन ् 2005 के अ त म ती ऊजा संकट आया था तथा पुन : सन ् 2008 के
आर भ म भी यह ि थ त बनी। इनके कारण पावर नेटवक का त त हो जाना
था।
द णपूव ए शया के दे श म अ वरल ऊजा संकट : इस े के दे श म ऊजा संकट
एक आम बात हो गई है। भारत जैसे दे श म आव यकता से बहु त कम पे ो लयम का
उ खनन होता है और बहु त कम बजल उ प न हो पा रह है, िजससे न केवल
ामीण े को बहु त कम समय के लए बजल मल पाती है बि क नगर तथा
शहर म भी गंभीर सम या है। पे ो लयम के भार आयात के कारण इसक बढ़ती
क मत का भाव भारत क अथ यव था के ऊपर प ट दखाई दे ता है। पे ोल क
बढ़ क मत के कारण मु ा फ त आसमान छूने लगी है।
बोध न -1
1. ऊजा सं क ट का अ भ ाय या है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. सन ् 1973 के व व यापी ते ल सं क ट का या कारण था ?
............................................................................................
................................................................ ............................
180
3. यु के कारण ते ल क आपू त कब और कहां भा वत हु ई ?
............................................................................................
................................................................ ............................
4. जलवायु के कारण ऊजा सं क ट कहाँ आया था ?
............................................ ................................................
................................................................ ............................
5. भारत म ऊजा सं क ट के दो कारण बताइए ।
.................................................................... ........................
.................................................................... ........................
182
उपभोग क गई ऊजा क मा ा, 2005
(करोड़ अरब टश थमल इकाई मे)
दे श / े उपभोग तशत दे श / े उपभोग तशत
व व 426.798 100.0 ांस 11.43 2.5
ए शया तथा ओसी नया 148.097 32.0 टे न 10.015 2.2
उ तर अमे रका 121.895 26.3 ाजील 9.332 2.0
यूरोप 86.294 18.6 द ण को रया 9.276 2.0
यूरे शया 45.817 9.9 इटल 8.075 1.7
म य-द णी अमे रका 23.408 5.1 ईरान 7.261 1.6
म य पूव 22.854 4.9 मैि सको 6.878 1.5
अ का 14.433 3.1 साउद अरे बया 6.657 1.4
संयु त रा य 100.691 21.8 पेन 6.587 1.4
चीन 67.093 14.5 यू े न 6.209 1.3
स 30.293 6.5 आ े लया 5.492 1.2
जापान 22.572 4.9 इ डोने शया 5.362 1.2
भारत 16.205 3.5 द ण अ का 5.041 1.1
जमनी 14.308 3.1 ताइवान 4.498 1.0
कनाडा 14.308 3.1 नीदरलै ड 4.241 0.9
ोत : यू.एस. एनज इनफोरमेशन एड म न े शन क वेब साईट, सत बर 2007
दे श म संयु त रा य अमे रका सबसे आगे है जो व व क एक-पचमांश से अ धक ऊजा
का उपभोग करता है। चीन दूसरे थान पर है। स, जापान, भारत, जमनी, कनाडा, ांस,
टे न, ाजील और द ण को रया ऊजा के अ य बड़े उपभो ता है। अ तु मांग तथा
आपू त के कारण तेल क कमी इ ह ं े तथा दे श म होना वाभा वक है तथा ऊजा
संकट मु खत: इ ह दे श म आता है।
ता लका- 8.3.5 : पे ो लयम का बढ़ता दै नक उपभोग, लाख बैरल
े 1980 2005 % वृ
म यपूव 20.44 58.53 186.28
ए शया-ओसी नया 107.29 238.29 122.07
अ का 14.74 29.12 97.56
म य-द णी अमे रका 36.13 54.65 51.24
व व 631.14 836.47 32.53
उ तर अमे रका 202.04 251.53 24.50
यूरोप 160.54 163.64 1.94
यूरे शया 89.95 40.73 -54.72
183
ोत : यू. एस. एनज इनफारमेशन एड म न े शन क वेब साइट, 2007
8.3.3 पे ो लयम क क मत म वृ
184
एक अ य कारण यूरोप क तु लना म अमे रक डालर क क मत का गरना भी है। तेल का
यापार डालर म होता है। अ तु तेल के भाव बढ़ा दये गए िजससे यूरोप क उतनी ह
य शि त बनी रहे ।
185
संकट है। ऐसी दशा म अ य ाकृ तक आपदा ब धन क भां त ऊजा संकट से उबरने के
लए भी उपाय करना चा हए। यह ब धन दोन दशाओं म होना चा हए। एक तो ऊजा
क आपू त बढ़ाने का य न कया जाना चा हए िजसके लए पर परागत शि त के साधन
के नए ोत क खोज आव यक है। साथ ह शि त के गैर-पर परागत साधन का
वकास कया जाना चा हए। इसके साथ ह मांग को भी नयं त कया जाना चा हए। जैसे
क ताज क तान ने ऊजा संकट के समय बार तथा कैफे मोमब ती के काश से चलाने का
आदे श दया था। सं ेषण एवं उपभोग क णाल म सु धार करके भी ऊजा क बचत क
जा सकती है। ऊजा के अप यय पर रोक लगा कर ऊजा क भा वता को बढ़ाया जा
सकता है। ऊजा संकट क वकट दशा म ऊजा तथा धन क राश नंग क जा सकती है।
ऊजा क बचत के लए सावज नक सु वधाओं को घटाया जा सकता है। उपभोग को
संचा लत करने के लए ऊजा लेखा-पर ण लागू कया जा सकता है।
व व के लगभग सभी भाग ऊजा संकट का सामना कर रहे है। वक सत, औ यो गक तथा
बड़े दे श म इसक ग भीरता अ धक है। इस सम या से नपटने के लए कई तरह के
उपाय ढू ं ढे जा रहे ह जैसे क ऐसी तकनीक वक सत क जा रह है िजनम पे ोल, डीजल
तथा बजल क कम से कम आव यकता हो। जैसा क सन 1980 म स तथा े टन
गैसोल न तथा बजल का म त वाहन बनाया। सावज नक प रवहन का आधु नक करण
तथा व युतीकरण , रे लवे लाइन का व युतीकरण तथा बायो यूल का वकास ऐसे ह कु छ
यास ह।
जमनी स हत कई दे श ऊजा क सुर ा के लए आण वक व युत का वकास कर रहे ह।
कई दे श ने अपनी ऊजा नी त म संशोधन कया है। ईरान जैसे दे श ने सन ् 2007 म गैस
क राश नंग योजना लागू कया है। कनाडा ने रा य ऊजा नी त तैयार क है। इनके
अलावा ऊजा के अ य ोत क खोज तथा तेल के भंडार का पता लगाने के लए सरकार
सहायता दे रहे ह। ऊजा के थानाप न का भी पता लगाया जा रहा। जैसा क भारत तथा
चीन मे गैस तथा कोयला के तरल करन पर जोर दया जा रहा है। गैर-पर परागत ोत
का उपयोग कया जाने लगा है। जैसे क कनाडा ने टार सै ड से तेल ा त करना ार भ
कर दया है।
भ व य म ऊजा के थानप न के प म बायो यू स , बायोमास, भू तापीय ऊजा, जल
व युत , सौर ऊजा, वार ऊजा, तरं ग ऊजा, पवन ऊजा आ द वक सत कए जा सकते है।
पर तु जैसा ऊजा के अ याय म कहा जा चु का है क अभी तक केवल जल व युत तथा
आण वक ऊजा का वकास मह वपूण हो पाया है।
186
है। यह कमी मु य प से दो कारण से हो सकती है : एक ऊजा क भौ तक कमी तथा
दूसरे मू य वृ तथा अ य कारण से आपू त म कमी। ऊजा का बढ़ता उपयोग, बढ़ती
मांग के साथ ह बढ़ते उ पादन से भ व य म इसक कमी के प ट आसार नजर आने
लगे ह। ऊजा संकट क शु आत सन ् 1973 म तब हु ई जब तेल नयातक दे श के संघ ने
संयु त रा य अमे रका तथा उसके यूरोपीय सहयोगी दे श और जापान को तेल नयात ब द
कर दया। इसी समय तेल क क मत काफ बढ़ाई गई। वशेष का कहना है क सन ्
2005 म तेल का अ धकतम उ पादन हो गया अब यह नरं तर कम होगा। इस आशंका से
भी क मते बढ़ाई गई। इससे प ट है क ऊजा का संकट मु य प से तेल क बढ़ती
क मत, पे ो लयम का संकट, ऊजा क कमी, व युत क कमी अथवा व युत के संकट के
कारण पैदा होता है। वा तव म ऊजा क कमी का मु य कारण उ पादन का कम होना
नह ं बि क मु ख उपभो ता दे श क आयात पर अ य धक नभरता तथा उसक बढ़ती
क मत है। इसको कम करने के लए गैर-पर परागत न यकरणीय ऊजा के ोत का
वकास आव यक है। साथ ह मांग सी मत करने के उपाय भी करने ह गे।
187
4. Wikipedi, the free encyclopedia : Energy crisis, 2008. “http:/
en.wikipedia.org/wiki/Energy_crisis
8.8 बोध न के उ तर
बोध न – 1
1. ऊजा संकट का अ भ ाय ऊजा के आपू त म अचानक कमी का आ जाना है।
2. ओपेक दे श वारा पि चमी दे श को तेल का नयात ब द कर दे ना तथा पे ो लयम
क क मत बढ़ाना।
3. सन ् 1990 म संयु त रा य अमे रका के नेत ृ व म ईराक के ऊपर आ मण कर दया
िजससे तेल क आपू त भा वत हु ई। इसके पूव भी सन ् 1980-88 म खाड़ी यु हो
चु का था। पुन : सन ् 2003 म अमे रका के नेत ृ व म ईराक पर आ मण हु आ िजससे
भी तेल क आपू त बहु त भा वत हु ई।
4. सन ् 2008 म म य ए शया म भीषण ठं डक के कारण ऊजा संकट आया।
5. कम पे ो लयम का उ खनन तथा भार मा ा म आयात बढ़ क मत से भा वत।
बोध न - 2
1. बढ़ती मांग, घटती आपू त तथा पे ो लयम क बढ़ती क मत।
2. संयु त रा य अमे रका, चीन तथा जापान।
3. ओपेक व व के मु ख तेल नयातक का संघ है िजसके वतमान म 12 दे श सद य
ह।
4. अ का।
5. पे ो लयम क क मत बढ़ने के मु य कारण संयु त रा य अमे रका तथा चीन क
बढ़ती मांग, ईराक पर संयु त रा य वारा कये गये आ मण से पे ो लयम का
उ पादन ि थर होना तथा संयु त रा य अमे रका क पे ो लयम के भंडार घटने क
रपोट का भय।
8.9 अ यासाथ न
1. ऊजा संकट के कारण का वणन क िजए।
2. पे ो लयम क बढ़ती क मत के या कारण ह ?
3. ऊजा उपभोग क बढ़ती वृि त का वणन क िजए।
4. बीसवीं सद के उ तरा के मु य ऊजा संकट का ववरण द िजए।
5. ऊजा संकट से उबरने के उपाय सु झाइए।
188
इकाई – 9 मानव संसाधन : जनसं या वृ (Human
Resource - Population Growth)
इकाई क प रे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 जनसं या वृ के कारण
9.3 जनसं या वृ
9.3.1 काल मानुसार जनसं या वृ
9.3.2 व भ न महा वीप म जनसं या वृ
9.9.3 जनसं या वृ का ादे शक व प
9.4 जनसं या वृ के कारण
9.5 जनसं या वृ के प रणाम
9.6 जनसं या वृ नय ण
9.7 सारांश
9.8 श दावल
9.9 संदभ थ
ं
9.10 बोध न के उ तर
9.11 अ यासाथ न
9.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे क -
ाचीन काल से आधु नक काल तक जनसं या वृ ,
जनसं या वृ क माप के बारे म,
व भ न महा वीप म जनसं या वृ ,
जनसं या वृ के कारक,
जनसं या वृ के प रणाम,
जनसं या वृ को नय ण के बारे म जानकार ।
189
व व के व भ न महा वीप म जनसं या वृ क दर भ न- भ न रह है। सन ् 1650-
1750 तक ए शया और यूरोप म जनसं या क वृ दर सामा य थी तथा अ का म
जनसं या अ य त म द ग त से बढ़ रह थी। अनुपयु त जलवायु, महामा रय तथा
च क सा सु वधाओं क कमी के कारण अ का म वृ दर बहु त कम थी। सभी महा वीप
म सन ् 1750-1900 के म य जनसं या ती ग त से बढ़ने लगी। वशेष प से ए शया,
उ तर अमे रका म, ए शया म च क सा सु वधाओं म व तार, ख नज संसाधन के दोहन,
कृ ष उ पादन म वृ , प रवहन के साधन के वकास के कारण जनसं या म ती वृ
हु ई, जब क यूरोप म औ यो गक ाि त के फल व प औ योगीकरण, कृ ष के
आधु नक रण, नगर करण, च क सा एवं प रवहन सु वधाओं के व तार से जनसं या म
वृ हु ई। उ तर अमे रका म जनसं या म ती वृ का कारण यूरोपीय मू ल के नाग रक
का बहु त अ धक सं या म आगमन था। यूरोप म बीसवीं शता द के बाद से जनसं या
वृ दर म कमी आई है।
यहाँ - नैस गक वृ दर = ज म दर - मृ यु दर
आ वासी (Immigrants)
ब हगमनी (Emigrants)
अवलो कत प रवतन व ध
इस व ध म कसी दे श क जनगणना के दो मक आकड़ का उपयोग कया जाता है।
190
जनसं या वृ = 2 1
जहाँ 2 = वतीय जनगणना क जनसं या
1 = थम जनगणना क जनसं या
वा त वक वृ दर : कसी स द भत दशक म वा त वक वृ न न सू ानुसार ात क
जाती है:
pn p 0
वा त वक वृ दर (r) = 1 100
p0
जहाँ - pn = स द भत अव ध के अ त म जनगणना या अगल जनगणना क जनसं या
p0 = स द भत अव ध के ार भ भी जनगणना
उदाहरण के लए भारत क जनसं या सर 1991 म 84.63 करोड़ थी जो बढ़ कर सन
2001 म 102.7 करोड़ हो गई। इस इस अव ध म वृ दर :
102.7 84.36
1 100
84.63
= 21. 35 तशत आती है ।
191
9.3.1 काल मानुसार जनसं या वृ (Chronological population Growth)
192
से पहले मानव कृ ष नह ं करता था, केवल आखेट और भोजन सं हण पर नभर था।
आधु नक मानव का उ व अ त हमयुग क अि तम अव था म हु आ तथा मानव का
एक जा त के प म वकास हु आ। मानव के उ व का मु य के अ का एवं
ए शया माना गया है। यूरोप महा वीप उ व के के समीप और अमे रका महा वीप
इन उ व के से काफ दूर कृ ष के वकास से पूव जनसं या का वतरण केवल
थल य भाग पर ह था, ले कन महा वीप पर बफ का आवरण कम होने के बाद
अ का, आ े लया, द णी यूरोप तथा द णी पि चमी व पूव ए शया म मानवीय
व तार का अनुमान लगाया गया। अमे रक भू म पर मानव उपि थ त पूव पृ वी पर
कु ल 33 लाख रहते थे, जो बढ़कर 15 हजार वष के उपरा त लगभग 53 लाख हो
गये। इसके आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है क इस समय संसार का औसत
घन व त 100 वग कमी पर 4 यि त का था।
कृ ष ाि त (8000 ई.पू.) के आर भ होने के साथ ह जनसं या म वृ ती गत
से होने लगी। इस समय म मनु य पशु पालन ओर पौध के पालतू करण के थान पर
केि त होने लगे। मोसोपोटा मया (ईरान-ईराक), दजला फरात, नील नद क घाट
े आ द मनु य के केि त होने के थान थे। कृ ष ाि त के उपरा त ह नगर का
वकास होना ार भ हो गया। इस समय पृ वी पर 865 लाख लोग रहते थे तथा
जनसं या घन व 1 यि त त वग कमी था।
2. ाचीन-म यकाल न काल (Ancient & Medieval Period) : यह काल ईसा काल
से सन ् 1650 ई. तक माना गया है। अनुमान के आधार पर ईसा के समय व व क
जनसं या लगभग 20 से 30 करोड़ थी। इस काल म व व क जनसं या का
संके ण वतमान मंचू रया, को रया, मंगो लया, तु क तान, वयतनाम, चीन के
अ त र त रोमन स यता वाले े म था।
16वीं शता द के आसपास पूव ए शया म जनसं या वृ हु ई जब क द णी ए शयाई
े म आपदा एवं यु के कारण धीमी वृ रह । यूरोपीय े म ाकृ तक कोप
(जैसे बाढ़, भू क प, महामार आ द) और यु क कारण जनसं या म धीमी वृ
रह ।
ता लका- 9.1 : व भ महा वीप म जनसं या वृ (वष 1650-2001)
(दस लाख मे)
वष ए शया यू रोप अ का उ तर द णी ओशे नया पू व सो वयत व व
अमे रका अमे रका संघ
193
1950 1371 392 122 166 166 13 180 2516
1960 1668 425 279 218 199 16 214
1970 2101 460 362 286 226 19 243
1980 2583 284 477 363 252 23 266
1990 2112 486 602 448 296 26 289
2001 3720 583 818 491 350 31 144.4
2006 3968 732 924 520 378 34 *
* यूरोप एवं ए शया म सि म लत
3. आधु नक कल (Modern Period) : इस काल का आर भ वष 1650 ई. से माना
गया है। इस काल के आर भ म व व क जनसं या लगभग 54 करोड़ थी। इस
काल म कृ ष ां त अपने चरम पर थी ओर ओ यौ गक ाि त (सन ् 1779) के
आर भ होने के साथ ह जनसं या म ती वृ होने लगी। वष 1650 ई. म 54
करोड़ से वष 1950 ई. म 251 करोड़ तक पहु ँ च गई। वष 1750 से 1900 के
म य जनसं या म वृ दर अ य धक रह । जनसं या क वृ क ती ता का
अनुमान इसी से लगाया जा सकता है क 1 अरब तक पहु ंचने म इसे लाख वष लगे;
पर तु अगले 115 वष म सन ् 1925 म यह 2 अरब हो गई। अगले 55 वष म
यह पुन : दोगुनी होकर सन ् 1980 म चार अरब हो गई। पुन : बीस वष म यह डेढ़
गुनी बढ़कर सन ् 1999 म 6 अरब क सं या पार कर गई। इस तरह ईसा से लेकर
वष 1650 तक जनसं या क वृ दर 0.04 तशत थी। इसके बाद यह बढ़ कर
सन ् 1850 तक 0.5 तशत हो गई। यह नरं तर बढ़ती गई और सन ् 1960 के
दशक म अ धकतम 2.1% त वष रह । इसके बाद कुछ कमी आई है और सन ्
2006 म यह 1.2% हो गई ह।
ता लका-9.2 : व व जनसं या म त अरब यि त बढ़ने का काल
सन ् जनसं या समयाव ध
1980 1 अरब सैकड हजारो वष
1925 2 अरब 115 वष
1960 3 अरब 35 वष
1980 4 अरब 20 वष
1987 5 अरब वष
1999 6 अरब 12 वष
194
च - 9.1 : व व जनसं या क वृ
195
वतमान म यूरोप महा वीप के अनेक दे श ने ज म-दर और मृ यु दर पर नय ण कर
लया है। इस लए ज म दर और मृ यु दर दोन घटने के कारण इस महा वीप क
जनसं या बहु त कम बढ़ रह है। यूरोप म बहु त से ऐसे दे श है िजनक जनसं या घट है
जैसे. ए लो नया – 0.4, यू े न - 0.7, स - 0.7, हंगर - 0.4, लात वया – 0.6 आ द।
बोध न -2
1. आधु नक काल का आर भ कब से माना गया ह।
............................................................................................
.............................................................. ..............................
2. आधु नक काल म ती जनसं या वृ का मु य कारण या था ?
............................................................................................
................................................................. ...........................
3. व व क जनसं या कस वष म 7 अरब होनी अनु मा नत है , वह है –
(अ) 2010 (ब) 2012 (स) 2015 (द) 2020 ()
4. द णी ए शयाई े म ाचीन म यकाल म धीमी वृ का या कारण
है ?
............................................................................................
........................................... ........................................ .........
अ का महा वीप
ए शया और यूरोप के बाद अ का भी ारि भक काल से बसा था। सन ् 1650 म यहां
क जनसं या 10 करोड़ थी जो सन ् 1800 म घटकर 9 करोड़ रह गई, य क अ का
क अनुपयु त जलवायु, ाकृ तक आपदाओं, महामा रय क अ धकता तथा च क सा
सु वधाओं के अभाव के कारण मृ युदर उ च रह । सन ् 1800 से 1900 (100 वष म) म
इस महा वीप क जनसं या म 3 करोड़ क वृ हु ई। 20 वीं शता द म कृ ष उ पादन
और ए शया व यूरोप से बडी सं या म लोग के वास के कारण जनसं या म वृ होने
लगी। इस कारण सन ् 1900 म 120 म लयन से जनसं या बढ़कर सन ् 2006 म 92.4
करोड़ हो गई।
अ का महा वीप म जनसं या वृ दर व व म सबसे अ धक है। यहाँ पर ज म दर 38
त हजार (वष 2006) से भी अ धक है। पि चमी और म य अ का म ज म दर 40
त हजार सभी अ धक है। अ य धक वृ दर के प रणाम व प अ का के कई दे श म
जनसं या व फोट क ि थ त बन रह है।
उ तर अमे रका
उ तर अमे रका एक नवीन बसा हु आ महा वीप है। औ यो गक ां त के बाद ए शया और
यूरोप के लोग वास करके इस महा वीप पर आये। सन ् 1650 म इस महा वीप क
जनसं या मा 10 लाख थी जो अगल शता द तक भी बनी रह । 18 वीं शता द के
उ तरा म यूरोपीय लोग का आगमन ार भ हु आ जो 19 वी शता द तक चला। िजस
196
कारण इस महा वीप क जनसं या 19 वी के आरं भ म 8.1 करोड़ हो गई। 1950 म यह
ु ी (16.6 करोड़) और सन ् 2006 बढ़कर लगभग 3 गुणा (52 करोड़)
बढ़कर लगभग दुगन
हो गई।
उ तर अमे रका म संयु त रा य अमे रका व कनाडा म ज मदर और मृ यु दर दोन बहु त
कम ह। िजससे जनसं या वृ कम हु ई। ले कन अ य दे श जैसे, मैि सको (1.7),
हा डु रास (2.5), वाटे माला (2.8), एल सा वेडोर (2.8), नकारागुआ (2.4) आ द म
जनसं या वृ अभी भी अ धक है िजस कारण जनसं या म ती ता से वृ हो रह है।
द णी अमे रका
इस महा वीप म सन ् 1650 से सन ् 2006 तक के म य जनसं या म 32 गुणा वृ
हु ई है। सन ् 1650 म यहाँ 12 म लयन जनसं या थी, जो बढ़कर सन ् 1900 म 63
म लयन, सन ् 1950 म 166 म लयन और 2001 म 350 म लयन हो गई है।
वतमान जनसं या वृ उ च ज म दर के कारण है। कु छ दे श क ज म दर अ धक है,
ले कन ाजील और अज ट ना ने जनसं या वृ पर नय ण कर लया है। अ य कारण
म व भ न दे श क सरकार ने वदे शी आगमन पर भी रोक लगा द है।
ओसी नया
ओसी नया (आ े लया) महा वीप म जनसं या म सवा धक आधु नक काल से ार भ हु ई
है। सन ् 1650 म यहाँ भी जनसं या 20 लाख थी। सन ् 1900 म जनसं या 60 लाख
तक पहु ँ च गई। 20वीं सद म ए शया, यूरोप और अमे रका से वा सय के आगमन के
कारण वष 2006 म जनसं या बढ़कर 3.4 करोड़ हो गई (लगभग 17 गुणा)। इस
महा वीप पर ाकृ तक जनसं या वृ कम रह य क ज म दर और मृ यु दर दोन ह
न न ह। आ े लया और यूजीलै ड म ाकृ तक जनसं या वृ कम है। इस महा वीप
के अ य वपीय दे श म जनसं या वृ अ धक है।
व व जनसं या वृ को वकासशील एवं वक सत दे श के अनुसार दे खा जाय तो प ट
है क वक सत दे श म जनसं या वृ सामा य अथवा ऋणा मक है जब क वकासशील
एवं अ वक सत दे श म जनसं या वृ दर अ धक है।
197
(2.2%) ती जनसं यावृ के े ह। भारत (1.7%) म भी वृ दर अ धक है। इस
वृ क व भ नता का प रणाम है क व व क जनसं या म जु ड़ने वाले 100 यि तय
म से 93 यि त वकासशील दे श के होते ह।
बोध न -3
1. वष 2001 म ए शया क कु ल जनसं या कतनी है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. यू रोप महा वीप म जनसं या वृ म द होने के कारण या ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
3. ऐसा कौनसा दे श है जहॉ जनसं या वृ ऋणा मक पाई जाती ह ?
(अ) टे न (ब) पे न (स) ां स (द) हं ग र ()
4. कस महा वीप क जनसं या वृ दर सवा धक है-
(अ) ए शया (ब) अ का (स) यू रोप (द) द ण अमे रका ()
5. आवजन के कारण िजन महा वीप पर जनसं या वृ हु ई है, वे कौन से
ह?
............................................................................................
................................................................ ............................
198
70 म 21 तशत हो गया। वतमान म मृ युदर 9 त हजार और ज मदर 21
त हजार है। फलत: नैस गक वृ दर घट कर 1.2 तशत रह गई है। जन
वा य सु वधाओं के कारण जीवन या ा बढ़ है। मृ युदर म अभू तपूव गरावट
आने तथा उ च ज मदर के कारण जनसं या वृ म ती ता आई है।
2. खा य पदाथ क सु नि चत आपू त : यां क एवम ् गहन कृ ष, संचाई सु वधाओं के
व तार, उ नत खाद-बीज के उपयोग आ द से व व म खा या न तथा अ य पदाथ
क नि चत एवं नय मत आपू त से जन संसाधन वृ दर बढ़ है तथा अकाल क
सं या अ य त कम हु ई है। ती गामी प रवहन साधन क सहायता से अकाल पी ड़त
े म खा य पदाथ क आपू त सु वधाजनक हु ई है।
199
तथा यु , आतंकवाद आ मण जैसी मानव सृिजत सम य के दौरान प रवहन के
ती गामी साधन ने मानव को सु र त थान पर पहु ँ च का मानव जीवन क त को
कम कया है।
वक सत एवं वकासशील दे श क जनसं या वृ
वक सत एवं वकासशील दे श क जनसं या वृ म काफ अ तर है। वक सत दे श म
जनसं या वृ के मु ख कारण मृ यु दर पर नय ण, यां क कृ ष एवम ् नमाण
उ योग का वकास, सु ख सु वधाओं क अ धकता तथा वास है। वक सत दे श म त
यि त आय अ धक तथा सामा य जीवन तर उ च है। व व के सभी वक सत दे श म
जनसं या वकास क अि तम अव था म है। यहाँ ज म दर और मृ युदर दोन कम है।
आ वासन पर नय ण के कारण उ तर अमे रका, कनाडा और आ े लया आ द दे श म
नाग रकता दान नह ं क । वक सत दे श म छोटे प रवार ह सामा यत: पाए जाते ह
वक सत दे श म जनसं या क वा षक वृ दर 0.1% से कम है। संयु त रा य
अमे रका, कनाडा, टे न, ांस, जमनी, इटल , बेि जयम, डेनमाक, आ े लया,
यूजीलै ड, जापान आ द व व के मु ख वक सत दे श है।
व व के वकासशील दे श म मृ युदर पर नय ण, कृ ष एवं औ यो गक वकास, सु ख
सु वधाओं क बहु लता आ द के अ त र त जनसं या म ती वृ के कु छ अ य कारण भी
ह। ऐसे कारण व तु त: उ न त के माग म अवरोधक ह। व व म जनसं या क अ य धक
वृ वकासशील तथा अ प- वक सत दे श मे हो रह ह। वकासशील दे श म जनसं या
वृ के कारण न न ल खत ह-
1. धा मक कारक : व व के अ धकांश मु ख धम प रवार वृ को ो सा हत करते ह
तथा कु छ धम ज म नय ण के उपाय का वरोध करते है। व व के धा मक
क रप थी समु दाय म ती जनसं या वृ पाई जाती है।
2. सामािजक कारक : वकासशील दे श के समाज म च लत पर पराओं, र त रवाज
आ द से जनसं या क उ च वृ दर को बनाए रखने म सहायता मलती है। अनेक
समाज म अ पायु म ववाह कर दया जाता है। इससे स तानो प त काल द घ होता
है। इसके अ त र त ववाह क अ नवायता, ी वत ता पर नय ण, उदार यौन
यवहार आ द अ य सामािजक कारक ह िजससे वकासशील दे श म जनसं या क
वृ ती ता से हु ई है।
3. अ श ा एवं अ ानता : अ श ा एवम ् अ ानता के कारण अ धकांश वकासशील दे श
म सी मत प रवार क आव यकता को ग भीरता से नह ं लया गया है। नर रता
( वशेषकर ि य म) के कारण जनन रोकने क न तो आव यकता महसूस होती है
और न ह इसक व धय का ान हो पाता है। ब चे का ज म ई वर क दे न मान
लया जाता है।
4. आहार एवं वा य : ज म दर का आहार एवम ् वा य से गहन स ब ध है।
नवीनतम खोज के अनुसार ोट नज य पदाथ के अ धक उपयोग का जनन मता
200
पर वप रत भाव पड़ता है। व व के नधन तथा कुपो षत जन वग म उ च
जननता दर पाई जाती है। वकासशील दे श म यून वा य सु वधाओं से
स बि धत कम जीवन याशा एवम ् उ च शशु मृ यु दर के सि म लत भाव से
एक प रवार औसतन 6 स ताने उ प न कर 3 अथवा 4 के जी वत रहने क आशा
करता है। इस वृि त से जनसं या क वृ अ धक ती ता से हु ई है।
5. जनां कक य कारक : जनां कक य कारक के अ तगत आयु संरचना जनसं या क वृ
को भा वत करती है। आयु संगठन म नव वय क के उ च अनुपात वाले दे श म
उ च ज म दर पाई जाती है। यावसा यक संरचना के आधार पर ाय: दे खा गया है
क अकायशील म हलाओं म ज म दर उ च तथा कायशील म हलाओं म यापा रक
दा य व के कारण ज म दर कम रहती है। वकासशील दे श मे ामीण े म
नगर य े क ं तु लना म उ च ज म दर पाई जाती है। कम नवाह यय, अ ानता,
नर रता, पा रवा रक त ठा, ढ़य , सामािजक-आ थक दबाव आ द अनेक कारण
से ामीण े म जनसं या क ती वृ होती है।
6. जलवायु : व व के उ णा जलवायु वाले दे श म नवा सय क स तानो पादक
मता अथवा जनन दर उ च होती है। मानसू नी ए शयाई दे श , अ का के वषुवत
रे खीय भाग म उ च ज म दर के कारण जनसं या म ती वृ पाई गई है।
जलवायुगत भाव से शार रक प रप वता कम उ म ह ा त हो जाती है।
जनसं या क वृ ज म दर तथा मृ युदर पर नभर करती है। वकासशील दे श म
उि ल खत कारण से ज मदर म ती ता रह है, क तु वै ा नक उ न त के कारण मृ यु
दर म उ लेखनीय गरावट आई है। वकासशील दे श म प रवार का आकार बड़ा पाया
जाता है। वकासशील दे श म जनसं या क वा षक वृ दर 2% से 4% है। वकासशील
दे श म जनसं या क उ च वृ दर ने वकराल प धारण कर लया है।
201
उपल ध होते हु ए भी औ यो गक वकास नह ं हो पा रहा है भारत, चीन, पा क तान,
बांगलादे श, यांमार, नेपाल, इ डोने शया, मले शया फल पाइ स तथा अ का के अ धकांश
दे श आ द इसी कार के दे श ह। अनेक ऐसे दे श है जो अ वक सत ह जहां चु र संसाधन
का उपयोग करने के लए जनसं या कम या अपया त है। इस कार के दे श म ाजील,
पे , जायरे , साइबे रया, कजा क तान, कोलि बया, तु ममे न तान आ द ह।
1. संसाधन पर बढ़ता दबाव : ती जनसं या वृ तथा बढ़ती आकां ाओं ने आधारभू त
संसाधन - भू म, वन एवं जल क मांग इतना अ धक बढ़ा दया है क इनका दोहन
उनक मता से अ धक हो रहा है। कृ ष यो य भू म का अ य काम म उपयोग कृ ष
के लए नई भू म क खोज म वन क सफाई, जोत का वभाजन एवं होता होना,
उवरक एवं रसायन का बढ़ता उपयोग िजससे पयावरण दू षत होना आ द इसके
मु य दु प रणाम ह। अनुमान है क तवष 1 से 1.5 तशत वन न ट हो रहे ह।
2. रोजगार के अवसर म कमी : वकासशील दे श म अ धकांश जनसं या कृ ष पर नभर
रहती है। वतीय और तृतीयक े (उ योग और सेवाओं) का वकास अपे ाकृ त
कम हु आ है। अत: जनसं या म ती वृ के मु काबले रोजगार के अवसर घटते जा
रहे ह। श त और कु शल तकनीक वै ा नक के लए नयोजन क सी मत अवसर
उपल ध है। प रणाम व प श त, अ श त, कु शल, अकु शल यि त रोजगार क
तलाश म पलायन कर जाते है। उदाहरण भारत, बां लादे श, पा क तान आ द का अरब
दे श व पि चमी दे श क ओर पलायन।
3. खा या न म कमी : कृ ष तकनीक वकास के कारण कृ ष उ पादन म बढ़ोतर हो
रह है ले कन यह बढ़ोतर जनसं या वृ क अपे ा कम हो रह है िजसका भाव
सीधा लोग के वा य एवं काय मता पर पड़ता है। अ धकांश लोग को संतु लत
भोजन क कमी रहती है िजससे कु पोषण का शकार हो जाते है।
4. आवासीय सम या : जनसं या म तेजी से वृ होने के कारण जनसं या वृ क
तु लना म आवास म वृ नह ं हो पाती है िजसके कारण कई लोग टू टे-फूटे घर व
छ पर म नवास करते ह। कई ामीण लोग नधनता एवं बेरोजगार के कारण
आवास बनाने म असमथ ह। ती जनसं या वृ के कारण ामीण लोग शहर क
ओर रोजगार क तलाश म पलायन कर जाते ह। शहर े म अ धक कराया एवं
मंहगी जमीन के कारण ये लोग क ची बि तय म रहने लगते ह जहाँ पानी, बजल ,
वा य स ब धी सु वधाओं का अभाव पाया जाता है।
5. न न आ थक वकास : अ धकतर वकासशील दे श म ज मदर उ च पाई जाती है
और वा य सेवाओं म वकास के कारण ज मदर म गरावट हो रह है। इस कारण
वकासशील दे श म जनसं या म युवक का अनुपात अ धक रहता है। युवाओं का यह
वशाल अनुपात वा य, श ण और अ य सामािजक उपल ध सेवाओं पर अ य धक
दवाब डालता है। फलत: उन दे श क सरकार अपनी आय का अ धकांश भाग नाग रक
क ाथ मक आव यकताओं जैसे भोजन, व , मकान, वा य, सेवाओं आ द पर
202
खच करती है, िजसके कारण अ य वतीयक एवं तृतीयक आ थक याओं क तरफ
कम यान दया जाता है। आ थक वकास पर कम यान दे ने के कारण वकास क
ग त जनसं या वृ क तु लना म बहु त कम बढ़ पाती है िजसका सीधा भाव रा य
उ पादन एवं त यि त आय पर पड़ता है।
वक सत दे श म जनसं या वृ के प रणाम
वक सत दे श अ य धक नगर कृ त ओर औ यो गककृ त होते ह, िजनम न केवल त
यि त आय अ धक होती है वरन ् अ धकांश जनसं या या तो वतीयक अथवा तृतीयक
काय पर नभर रहती है। इन दे श मे वकास का उ च तर, उ नत कृ ष और व तृत
पैमाने पर औ यो गक उ पादन होते हु ए भी जनसं या वृ के व भ न प रणाम से
सामना करना पड़ रहा है।
1. उ च नगर करण : रोजगार क खोज तथा नगर य सु वधाओं के आकषण से ामीण
नवासी नगर म आकर बस जाते है। नगर पर जनसं या के भार बढ़ने से मू लभू त
सु वधाओं क उपल धता बा धत होने लगती है। महानगर म वायु, जल, वन
दूषण, थानाभाव, पयावरणीय अवनयन से जु ड़ी वा य समा याएँ, ग द बि तयाँ,
तनावपूण जीवन आ द अनेक सम याएं उ च नगर करण का प रणाम ह।
2. उ च जीवन या ा : वक सत दे श म उ नत च क सक य सु वधाओं के कारण
सामा यत: जीवन या ा 70 वष से अ धक पाई जाती है। ऐसे दे श क आयु
संरचना म वृ का अनुपात अ धक होने से आ तता अनुपात भी बढ़ा है। ऐसे व र ठ
नाग रक क जीवन सु र ा, पशन, वा य तथा अ य सेवाओं पर सरकार को यय
करना पड़ता है, इससे आ थक भार बढ़ता है।
3. मक का अभाव - वक सत दे श के वतीयक एवं तृतीयक यवसाय म शार रक
म वाले तथा जो खम भरे काय करने वाले मक का अभाव रहता है। अ य धक
मशीनीकरण के बावजू द वक सत दे श का अ य दे श से काय शि त के लए मक
उ च वेतन पर मंगाना पड़ता है।
4. जनसं या ास -जमनी, इटल , ांस, स कम से कम 10 यूरोपीय आ द कम से
कम 10 यूरोपीय वक सत दे श म अ त न न ज म दर तथा नयि त मृ यु दर के
कारण जनसं या क वृ दर या तो अ य प है अथवा घट रह । ऐसे दे श म
जनसं या ास क ि थ त उ प न हो गई है।
9.6 जनसं या वृ नय ण
जनसं या क वृ वक सत और वकासशील दोन कार के े म सम या द है। अत:
इस बढ़ती सम या का शी नय ण कया जाना चा हए। संयु त रा संघ के
जनसं या- वशेष इस दशा म य नशील ह। इ होने इस दशा म अनेक सु झाव दये ह
िजससे कसी दे श क जनसं या और संसाधन म स तुलन था पत कया जा सकता है।
जनसं या वृ को रोकने के लए न न उपाय होने चा हए -
1. ज मदर और मृ युदर पर नय ण
203
2. श ा का सार
3. प रवार नयोजन
4. दे र स ववाह
5. आ जन पर नयं ण
1. ज मदर और मृ युदर पर नय ण : येक दे श को ज मदर और मृ युदर को
नय ण करने लए योजना बनानी चा हए। वक सत दे श ने ऐसी योजनाएं बना कर
ऐसी ि थ त म पहु ँ च गये ह जहाँ जनसं या वृ क गई या घटने लग गई। इसके
वप रत वकासशील दे श ज मदर व मृ युदर को नयं त करने के लए यासरत है।
मृ युदर को च क सा व ान के वकास के कारण नय ण कर लया गया है,
ले कन ज मदर अभी भी नयि त नह ं हो पा रह है। येक दे श को सरकार तर
पर योजना बनाकर इसको नयि त करने के उपाय करने चा हए।
2. श ा का चार : जनसं या वृ को रोकने लए श ा के चार क अ य धक
आव यकता है। जनसं या आकार और जनसं या वृ दर का येक नाग रक को
ान होना चा हए। येक नाग रक को इस बात को बताना चा हए क कस कार
जनसं या क वृ कार से हमार मू लभू त आव यकताओं को सी मत कर रह है।
श ा बढ़ने के साथ ह ववाह क आयु बढ़ती है तथा लोग प रवार नयोजन क
आव यकता समझते ह और अपनाते ह। इस तरह ज म दर घटाने म मदद मलती
है।
वक सत दे श म अ धकांश जनसं या श त है िजससे चार- सार अ धक होने के
कारण यहाँ जनसं या वृ नयि त है। अ वक सत व वकासशील दे श म श ा का
तर कम है। ी सा रता कम होने के कारण इन दे श क ि थ त भयानक बनी हु ई
है।
3. प रवार नयोजन : वक सत दे श म श ा के सार के कारण तथा सरकार य न से
लोग ने बड़े पैमाने पर प रवार नयोजन के तर के अपनाया है िजसके कारण
जनसं या नयि त हो गई है ले कन इसके वपर त अ वक सत और वकासशील दे श
म सरकार यास के बावजू द भी लोग प रवार नयोजन नह अपना रहे ह। इसके
कारण जनसं या क ती वृ हो रह है। अत: इन दे श म श ा के चार- सार से
प रवार नयोजन का ता पय समझाकर इसे अपने अपनाने पर जोर दया जाना
चा हए।
4. दे र से ववाह : अ वक सत और वकासशील दे श म अ धकांश लोग अपने ब च का
ववाह कम उ म कर दे ते ह िजससे कम उ म ह ब चे होने लगे ह। ज म दर म
वृ होने के कारण जनसं या म वृ होती है। ववाह क आयु बढ़ने पर जनन का
समय छोटा हो जाता है। फलत: जननता घटती है। अ तु ऐसे यास करना चा हए।
िजससे ववाह दे र से ह । बाल ववाह पर द ड का ावधान होना चा हए।
5. अ वासन पर नय ण : वक सत दे श संयु त रा य अमे रका, आ े लया, कनाडा
आद वा सय को नाग रकता दान नह ं कर रहे ह। िजससे इन दे श क जनसं या
204
वृ अ य त कम हो रह है। इसी कार अ य दे श म भी वास पर रोक लगाकर
जनसं या वृ को कम कर सकते ह।
205
9.10 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. 50 लाख,
2. 25 करोड़,
3. 1950 के बाद के काल को।
बोध न - 2
1. 1650 ई से ,
2. अ यो गक ां त,
3. (अ),
4. आपदा एवं यु ।
बोध न - 3
1. 3720 म लयन,
2. ज म दर और मृ यु दर मे कमी ,
3. (द),
4. (ब),
5. उ तर अमे रका तथा आ े लया।
9.10 अ यासाथ न
1. जनसं या मे वृ से आप या समझते हो ?
2. ऐ तहा सक प र े य मे व व जनसं या वृ को प ट क िजये ?
3. जनसं या वृ को नयं त करने वाले कारक का वतरण क िजये।
4. म य बीसवीं शता द के बाद हु ए जनसं या वृ के कारण का वणन क िजये।
5. ती जनसं या वृ के दु प रणाम ह ?
206
इकाई 10: मानव संसाधन - वैि वक जनसं या व यास
तथा घन व त प) Human Resources –
World Population Distribution and
density pattern)
इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना
10.2 वैि वक जनसं या व यास
10.2.1 घने बसे दे श
10.2.2 वरल बसे दे श
10.2.3 जनसं या का महा वीपीय वतरण
10.2.3.1 ए शया महा वीप
10.2.3.2 यूरोप महा वीप
10.2.3.3 अ का महा वीप
10.2.3.4 उ तर महा वीप
10.2.3.5 द णी अमे रका महा वीप
10.2.3.6 ओसी नया महा वीप
10.3 घन व त प
10.3.1 जनसं या घन व के कार
10.3.2 जनसं या के घन व का त प
10.4 जनसं या वतरण एवं घन व को भा वत करने वाले कारक
10.5 सारांश
10.6 श दावल
10.7 संदभ थ
ं
10.8 बोध न के उ तर
10.9 अ यासाथ न
10.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप समझ सकगे क -
व व का जनसं या व यास,
व व का जनसं या घन व त प,
व व के जनसं या अ य य दे श,
व व के जनसं या वरल दे श,
207
जनसं या घन व के कार के बारे म,
209
व व क जनसं या वतरण को व वध कार क वषमताओं के संदभ म न नां कत
भाग म वभ त कया जा सकता है-
1. घने बसे दे श (Densely Populated Regions)
2. वरल बसे दे श (Sporsely Populated Regions)
210
े , इ डोने शया का जावा वीप उ लेखनीय ह। अ का महा वीप के अ य धक घने े
म म म नील क घाट के सहारे रे खीय पेट , व टो रया झील के कनारे का वलय े
और नाइजी रया का तट य े सि म लत है। द णी अमे रका के अ य धक घने बसे
े म मैि सको का म यवत भाग, मैि सको सट (2 करोड़ से अ धक जनसं या) व व
का मु ख महानगर है। वेनेजु एला, ाजील और अज टाइना के तट य े के मु ख नगर
घने जनसं या वाले के ह ।
211
और मै रटो नया के म थल म येक 15 वग कलोमीटर म एक यि त का घन व
पाया जाता है।
उ ण तथा शीत दोन कार के म थल लगभग नजन है अथात ् कह -ं कह ं घुम कड़
आखेटक और सं ाहक (कालाहार के बुशमैन ) और घुम कड़ो (अरब और सहारा के
बटू ) वारा वरल बसे े ह। म य ए शया और आ े लया के म थल के लोग
पशु धन (भेड़-बकर ) रखते ह ले कन उनका जीवन तर न न है।
इन म थल य े म कु छ े अपवाद मा है। अपवाद े वे है यहां मू यवान
धातु ए,ँ ख नज तेल आ द पाये जाते ह। इन े म मको के समूह और वै ा नक
क बि तयाँ था पत हो रह ह िजससे नगर का वकास हो रहा है।
2. पवतीय दे श : व व के पवतीय दे श जनसं या के वरल े है। पवतीय दे श म
पवत क ऊँचाई के अनुसार जनसं या वरल होती जाती है। न न और म य अ ांश
म 2500 मीटर से अ धक ऊँचाई वाले भाग लगभग नजन होते है। उ च अ ांश पर
यह ि थ त 2500 मी. से कम ऊँचाई से ह ार भ हो जाती है।
रॉक ज, एि डज, आ पस पवतीय भाग म 2500 मीटर से अ धक ऊँचाई वाले भाग
नजन है। अपवाद व प 2500 मीटर से अ धक ऊँचाई वाले वे े जहाँ बहु मू य
धातु एँ पाई जाती ह। वहाँ पर मानव बि तयाँ पाई जाती ह। जैसे - हमालय पवत म
क त बार (लगभग स भाग के भ वाह िजले म) म लगभग 5500 मीटर ऊँचाई पर
मू यवान प थर का खनन कया जाता है। स धु नद के उ गम थल तोक-शालु ंग
थान पर सोना नकाला जाता है। एि डज पवत पर पी और बोल वया म 4000
मीटर क ऊँचाई पर बहु मू य धातु ओं का खनन कया जाता है।
भू म य रे खीय उ ण क टब धीय दे श म जहाँ पर न न ऊँचाई वाले े क
जलवायु अ धवास के ेरक नह होती वहाँ पर अ धकांश क बे, नगर और बि तयाँ
समु तल से 2000 मीटर से अ धक ऊँचाई पर पाई जाती ह। यूटो (इ वेडोर), नेरोबी
(क नयां) ऊँट (भारत), के डी ( ीलंका) आ द सभी समु तल से 2000 मीटर क
ऊँचाई से अ धक ऊँचाई पर ह।
3. ु वीय आवरण : स पूण व व म वरल जनसं या का दूसरा मह वपूण े है। यह
े उ तर और द णी गोला म अ य धक शीत दे श है। उ तर गोला म
आक टक और द णी गोला म अ टाक टका महा ीप अ य त शीत दे श ह जहाँ
शीत ऋतु अ धकारमय भयानक व ल बी होती है। इस दे श के कु छ भाग म लोग
अ थायी नवास करते ह। इन लोग का मु य यवसाय शकार करना और मछल
पकड़ना है। एि कम जा त के लोग जो झील म मछल का शकार करते है, ह 80०
उ तर अ ांश तक पहु ँ च सके ह।
इस दे श म बहु मू य ख नज, सोना, कोयला तेल, नमक आ द पाये जाने के कारण
लोग यहाँ पर रहने लग गये, ले कन भरण-पोषण के लए नकटवत वकास े पर
नभर रहते ह।
212
4. वषुवत रे खीय घने वन. इन े म ाकृ तक वषमताओं एवं हा नकारक जीव-ज तुओं
एवं बीमार के कारण जनसं या बहु त कम पाई जाती है। इस दे श म सदाबहार
वषुवत रे खीय वन पाये जाते ह। ये मु यत: अमेजन बे सन, कांगो बे सन और जावा
के अ त र त द णी पूव ए शया के वीप म पाये जाते ह। इस दे श क उ ण और
आ जलवायु, घने सदाबहार वन, क डे-मकोड़ो, म छर और टसी- टसी म खी से
भा वत े मानव अ धवास के लए उपयोगी नह ं है।
सभी वरल जनसं या वाले े मे अ थाई और वरल कार क बि तयाँ पाई जाती
ह। इन दे श के बड़े-बड़े भाग नजन है, जब क छोटे -छोटे थान पर जनसं या के
झु ड पाये जाते ह।
बोध न -1
1. व व म घने बसे दे श कतने ह ? नाम लखो
............................................................................................
............................................................................................
2. व व म घने बसे दे श म कतनी तशत जनसं या नवास करती है ?
......................................................................................... ...
............................................................................................
3. व व म वरल बसे दे श को कतने भाग म बाटा गया है ? नाम लखो-
............................................................................................
............................................................................................
4. व व म वरल जनसं या वतरण के पहला व दू स रा मह वपू ण दे श
कौनसे ह ?
............................................................................................
............................................................................................
5. व व क कु ल भू म का कतना भाग नजन है ?
............................................................................................
............................................................................................
6. व व क अ धकां श जनसं या कस गोला म नवास करती है ?
............................................................................................
............................................................................................
214
(iv) यूरोप का भू म य सागर य े - भू म य सागर य जलवायु होने के कारण यहाँ
बागानी कृ ष एवं अ य कृ ष क फसल क अ छ पैदावार होती है। साथ ह
समु तट य े होने के कारण यहाँ अनेक यापा रक के भी ि थत ह। इस
कारण इस े म सघन जनसं या पाई जाती है।
उपयु त सघन जनसं या े का व तार 45० उ तर से 55० उ तर अ ांश के म य है।
इन अ ांश के म य सघन जनसं या के कारण कोयला पेट का ि थत होना, जल क
उपल धता, आधु नक उ योग का वकास आ द है।
215
घन व 2 यि त त वग कलोमीटर से भी कम है, जैसे एला का एवं कनाडा के उ तर
शीत दे श।
इस महा वीप म अ धकांश जनसं या संयु त रा य अमे रका के उ तर -पूव भाग म,
कनाडा म बड़ी झील के उ तर-पूव से लेकर से टलारे स नद क घाट म नवास करती
है। यह व व का तीसरा बड़ा जनसमू ह है। इस महा वीप क 80% जनसं या 100०
पि चमी दे शा तर के पूव म 30० उ तर से 45० उ तर अ ांश के म य नवास करती है।
इस दे श म सघन जनसं या औ यो गक वकास, कृ ष पे टय के ि थत होने और
यूरोपीय दे श से वास आ द के कारण पाई जाती है।
उ तर अमे रका क कु ल जनसं या का 90% यूरोप से आये लोग ह। यहां क 79%
जनसं या नगर य है। इस महा वीप पर जनसं या वृ नयि त है, य क यहाँ ज मदर
एवं मृ यु दर दोन पर नय ण है। साथ ह बाहर दे श म अ वास पर भी तब ध लगा
दया गया है।
218
10.3.2 जनसं या के घन व का त प
219
(iii) अ प घन व वाले े : अ प घन व वाले े वे ह जहाँ पर मानवीय जीवन के
वकास क प रि थ तयाँ बहु त कम ह या ब कु ल नह ं है। ये े म थल य
भाग या शीत दे श है, जहाँ जीवन-यापन क सु वधाएं उपल ध नह ं है इनके साथ
ह उ च पवतीय े , उ ण क टब धीय वन आ द भी अ प घन व वाले े ह।
यहाँ क अ प जनसं या पशु चारण, अ थाई कृ ष, म यान कृ ष आ द पर नभर
रहती है।
220
के बाद भी वरल है, य क यहाँ स ब ता का अभाव है। इन अपवाद को छो कर
भारत म जनसं या के वतरण को वषा के वतरण ने भा वत कया है।
2. थलाकृ त : थलाकृ त जनसं या के वतरण को कई तरह से भा वत करती है।
इसका भाव ऊँचाई, उ चावच, ढाल, अपवाह, अधोभौ मक जल-तल के मा यम से
पड़ता है। सामा य प से ऊँचाई बढ़ने के साथ जीवन-यापन क क ठनाईय बढ़ती जाती
ह। इस लए ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ जनसं या वरल होती जाती है।
धरातल के उ चावच एवं ढाल का जनसं या के वतरण पर सवा धक भाव पड़ता है।
इस ि ट से मैदान जनसं या के नवास के लए सबसे अ धक उपयु त होते ह,
य क यहाँ कृ ष और औ यो गक वकास के लए समतल भू म मल जाती ह। यहाँ
म ी गहर और उपजाऊ होती है। इन भाग म कृ ष-काय करना, खेत बनाना, उसक
र ा करना, संचाई क सु वधाओं का नमाण करना, आवागमन के माग बनाना सरल
होता है। इसी कारण मैदानी भाग म जनसं या का जमाव सघन और घन व अ धक
होता है। ऊबड-खाबड़ पहाड़ी और पवतीय े म कृ ष, उ योग एवं प रवहन के लए
उपयु त दशाएँ न होने के कारण जनस या का जमाव वरल हो पाता है, जैसे क
पवतीय ज मू-क मीर, उ तराख ड और उ तरपूव रा य म तथा म य दे श,
छ तीसगढ़, उड़ीसा के पहाड़ी े म वरल जनसं या है। धरातल पथर ला एवं रे तीला
होने पर भी वरल है, जैसे राज थान का म थल य भाग।
3. अपवाह एवं जल आपू त : न दय का मानव अ धवास पर सवा धक भाव होता है।
वकास के आरि भक अव था म पीने के पानी क सु वधा और बाद म कृ ष, उ योग
आ द के लए पानी क सु वधा को यान म रखकर मानव बसता है। इसी कारण
भारत क दो - तहाई जनसं या न दय के नकट मैदानी भाग म केि त है जहाँ
जल-पू त सरल होती है। इसके ा पक उदाहरण म थल म ि थत जल के ोत ह।
वहाँ झील एवं जलाशय के नकट जनसं या एक त हो जाती है। िजन े म
भू मगत जल क गहराई कम होती है उन े म भी अ धक जनसं या नवास करती
ह। जहाँ जल तल काफ नीचे ह, वहाँ जनसं या अ य त वरल है। जहाँ अ य धक
दलदल भू म होती है, उन भाग म जनस या नवास नह ं करती। गुजरात म क छ
का रन का दलदल े इसी कारण जन वह न है।
4. म ी : भू म उपयोग तथा कृ ष क उ पादकता का सीधा स ब ध म ी से है। गहर
एवं उपजाऊ म याँ जनसं या को आक षत करती ह। इसी कारण कांप म ी वाल
न दय के मैदान एवं डे टाई भाग तथा समु तट य मैदान सघन बसे हु ए ह। भारत के
उ तर वशाल मैदान तथा तटवत मैदान म सघन जनसं या होने का एक मु ख
कारण यह भी है। दूसर ओर कम गहर एवं अनुपजाऊ पवतीय एवं पठार म याँ
कृ ष एवं अ य आ थक याकलाप के लए अनुपयु त होती ह। इस कारण ऐसे े
म जनसं या सघन नह ं होती है। उदाहरण के लए हमाचल, उ तरांचल एवं क मीर
तथा ाय वीपीय पठार का व तृत भू भाग। गहर काल म ी का मालवा पठार एवं
221
दकन पठार कृ ष एवं जनसं या के लए अनुकू ल होते हु ए भी जल के अभाव एवं
असमान धरातल के कारण सघन नह ं है। इस कार उपजाऊ म ी एवं जल आपू त
ने भारत क जनसं या के वतरण को भा वत कया है।
5. था नक स ब ध एवं पारग यता : कसी े क अ य े के तथा प रवहन माग
के स दभ म सापे क ि थ त भी जनसं या वतरण को भा वत करती है। के य
ि थ त एवं प रवहन क ि ट से वक सत े सघन होते ह, जैसे, सतलज-गंगा के
मैदान म ि थत रा य सघन ह। जल यातायात क सु वधा के कारण समु तट य
ि थ त लोग को आक षत करती ह। दूसर ओर दुगम एवं पहु ँ च से दूर ि थत े
वरल बसे होते ह, जैसे - क मीर, उ तर-पूव रा य एवं अ डमान वीप समू ह।
अ डमान वीप य द भारत क मु य भू म के नकट होते तो सघन होते। सघन बसे
उ तर दे श से लगा हु आ उ तराख ड सु ग यता के अभाव के कारण सघन नह ं बसा
है। जंगल े भी आवागमन क असु वधा के कारण वरल जनसं या के े ह।
व व तर पर े के अ ांशीय ि थ त का भाव भी जनसं या के वतरण पर पड़ा
है। जैसे क शीत क टब ध के े जनशू य ह। दूसर ओर शीतो ण क टब ध ताप
क अ तशयता नह होती, अ तु यहाँ सघन जनसं या है। इसी तरह सु म तट य भाग
म सम जलवायु जनस या को आक षत करती है। समु से दूर बढ़ने के साथ
महा वीपीय भाव बढ़ता जाता है। अंतरा य टार पर अब भी जल प रवहन का
सव प र मह व है। इस कारण भी समु तट य ि थ त लोग को आक षत करती है।
सं ेप म केवल एक भौ तक कारक से कसी े म जनसं या के वतरण नधा रत
नह ं होता, बि क सभी भौ तक त व सि म लत प से भावी एवं नधारक होते ह।
आ थक कारक
व भ न आ थक काय क भरण-पोषण क मता अलग-अलग होती है िजसका सीधा
भाव जनसं या के घन व पर पड़ता है। आ थक कारक म कृ ष- वकास, ख नज उ खनन,
उ योग का वकास, प रवहन के साधन का व तार, तकनीक वकास जैसे कारक
जनसं या वतरण को भा वत करते ह।
1. कृ ष : आर भ म जनसं या उन े म नवास करती थी जहाँ भोजन क आपू त के
लए कृ ष क संभावनाएँ अ धक थी। इसी कारण मैदानी भाग सघन बसे हु ए ह।
वभ े म भू म क उ पादन- मता अलग-अलग होती है। अत: अ धक उपजाऊ
एवं कृ ष क ि ट से वक सत े म जनसं या सघन पर तु पछड़ी कृ ष के े
म वरल होती है। इसी तरह अ धक उपजाऊ े म जनसं या का घन व अ धक
होता ह है साथ ह इन भाग म कृ ष क उ पादकता बढ़ाने के लए कृ ष के नवाचार
का योग भी अ धक कया जाता है।
2. ख नज एवं उ योग : आधु नक औ यो गक अथ यव था के आधार ख नज एवं शि त
के साधन ह। साथ ह इन आ थक याओं म कृ ष क तु लना म बहु त कम भू म पर
बड़ी जनसं या को भोजन दे ने क मता होती है। इस कारण ख नज े म भी
जनसं या सघन होती जाती है। औ यो गक ाि त के बाद ख नज एवं शि त के
222
साधन का मह व पढ़ गया। प रणाम व प इन े म जनसं या का जमाव होता
गया है। छोटा नागपुर पठार, छ तीसगढ़, आसाम क घाट आ द ख नज क ि ट से
स प न ह। अत: ये े सघन होते जा रहे ह। अ धकांश ख नज े म उ योग के
कारण भी जनसं या सघन हु ई है। झारख ड, पि चमी बंगाल एवं उड़ीसा के सीमा पर
ि थत औ यो गक वृ त म जनसं या का वतरण सघन है जब क चार-पाँच दशक पूव
यह वरल जनसं या के े थे। भारत के सभी औ यो गक के सघन बसे हु ए ह।
3. तकनीक वकास : तकनीक वकास ने आ थक याकलाप - कृ ष, खनन,
औ यो गकरण, प रवहन एवं संचार साधन म ाि त उ प न कर द है। ह रत ाि त
ने अनेक उपजाऊ भाग को अ त सघन बना दया है, जैसे - पंजाब, ह रयाणा। वपुल
उ पादन दे ने वाले बीज के आ व कार से कृ ष का उ पादन बढ़ा, साथ ह सीमा त
े म कृ ष का व तार हु आ। नहर क उपि थ त ने राज थान क म भू म को रहने
लायक बनाया। तकनीक ान क मदद से म ी क उवराशि त बढ़ाई गई। उ नत
तकनीक के योग एवं आवागमन के व तार से ख नज े एवं औ यो गक े म
वकास ती हो गया। दुगम े म भोजन एवं जल आपू त सु लभ हो गई। उदाहरण
के लए छोटा नागपुर पठार े तकू ल प रि थ तय के बाद भी खनन एवं
औ यो गक करण के वकास के कारण सघन होता जा रहा है। इस कार, तकनीक
वकास ने ाकृ तक बाधाओं को कम करके संसाधन के अ धकतम उपयोग को संभव
बनाया है, िजसका भाव जनसं या वतरण पर दखाई दे ता है।
सामािजक एवं सां कृ तक कारक
भौ तक अनुकू लता के बाद भी मनु य अपनी इ छा से नवास-यो य थल का चु नाव करता
है। इसम जा त, धम, भाषा एवं मानवीय यवहार का भी मह वपूण थान होता है।
जनस या उन े म सघन होती है जहाँ ऐ तहा सक काल से जनसं या का बड़ा समूह
रहता आ रहा है। इ ह ं े म जनसं या का नर तर जमाव होता रहता है। कसी एक
े म एक जैसी भाषा बोलने वाले लोग एक त होते जाते ह। भारत म क नड़, तेलगू
त मल, मलयालयम, बंगाल , पंजाबी, ह द भाषा-भाषी रा य के स दभ म यह त य
मह वपूण है। दे श म भाषा के आधार पर जनसं या पुँज न मत होते गए, िज ह अलग
रा य के प म वभािजत कया गया। ले कन आधु नक साँ कृ तक वकास के कारण
भाषायी सीमाएँ समटने लगी ह।
राजनै तक ि थरता एवं सु र ा का भी जनसं या वतरण पर भाव पड़ता है। गुजरात,
राज थान एवं क मीर रा य म पि चमी सीमा के नकट जनसं या अ य त वरल है।
सीमा से दूर ि थत आंत रक भाग म जनसं या सु र त होती है। राजनै तक दशा का
भाव भारत म जनसं या वतरण पर नह ं है, केवल सन ् 1947 म वभाजन के समय
जनसं या का पुन वतरण हु आ था।
जनांकक य कारक
223
दे श म जनसं या वतरण पर ज मदर, मृ युदर एवं वास का भाव पड़ता है। जैसे क
उ तर भारत के चार रा य - उ तर दे श, बहार, राज थान और म य दे श म ज म
दर अ धक ( त हजार 30 से अ धक) तथा मृ यु दर कम ( त हजार 11 से कम) के
कारण जनसं या क ती वृ हो रह है। इस कारण उ तर भारतीय रा य सघन से
सघनतम होते जा रहे ह। इसी तरह औ यो गक और नगर य े म इतना ती आकषण
होता है क भार सं या म वासी उनक ओर आक षत होते ह। उसी या के
प रणाम व प सभी औ यो गक और नगर य े म सघनतम जनसं या का जमाव पाया
जाता है। इन े म ती तर ग त से बढ़ता जनसं या का घन व वास का ह प रणाम
होता है।
बोध न -3
1. व व म जनसं या घन व पाया जाता है –
(अ) 36 (ब) 41
(स) 49 (द) 45 ()
2. या मक घन व कसे कहते ह ?
............................................................................................
........................................................................................ ....
3. व व म जनसं या घन व मु यत: कस पर नभर करता है ?
............................................................................................
....................................................................................... .....
4. व व म सवा धक घन व कस दे श का है –
(अ) भारत (ब) चीन
(स) नाइजी रया (द) मोनोको
5. स पू ण उ तर अमे रका महा वीप का जनसं या घन व कतना है ।
............................................................................................
.................................................................................. ..........
6. व व का कौनसा महा वीप जन शू य है ।
............................................................................................
........................................................................................ ....
224
व व म जनसं या का वतरण एवं घन व व भ न भौगो लक कारक पर नभर रहता है।
वे दे श जहाँ पर मानव नवास के अनुकू ल दशाएँ पाई जाती थी, वे आज सवा धक
जनसं या वाले दे श है। म थल, पहाड़ी एवं पवतीय भाग लगभग जनशू य ह।
औ यो गक वकास तथा ख नज के उ खनन के कारण कम अनुकू ल े म बसाव बढ़ा
है।
10.8 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. पाँच दे श म
1. पूव ए शया
2. द णी ए शया
3. स पूण द णी-पूव ए शया
4. उ तर-पि चमी यूरोप
5. पूव उ तर अमे रका
225
2. 75% से अ धक।
3. चार दे श म।
(i) शु क एवं अ शु क म थल,
(ii) पवतीय े ,
(iii) ु वीय आवरण,
(iv) वषुवत रे खीय घने वन े
4. पहला - शु क अ शु क म थल
वतीय - व
ु ीय आवरण
5. 33%
6. उ तर गोला म।
बोध न - 2
1. पूव से पि चम क ओर
2. (i) उ तर -पूव द णी अमे रका
(ii) तट य भाग
(iii) म य अ ांशीय दे श
3. (ब) 30%
4. (स) तृतीय
5. चीन, भारत तथा इ डोने शया।
6. (ब) आ े लया
बोध न - 3
1. (स) 49 यि त 7 वग कमी
2. या मक घन व कसी े क जनसं या तथा उस े क कृ ष यो य भू म के
अनुपात को का यक घन व कहते ह।
3. भौ तक दशाओं पर
4. (द) (17503 यि त त वग कमी.)
5. 23 यि त त वग कमी.।
6. अ टाक टका।
10.9 अ यासाथ न
1. व व म जनसं या के वतरण का वणन क िजये ।
2. जनसं या घन व कसे कहते ह ? जनसं या घन व के कार का वणन क िजये।
3. जनसं या वतरण एवं घन व को भा वत करने वाले कारक का उदाहरण स हत
वणन क िजये।
226
इकाई 11: जनसं या - संसाधन स ब ध (Population –
Resource Relationship)
इकाई क प रे खा
11.0 उ े य
11.1 तावना
11.2 संसाधन सृजन एवं उपयोग म जनसं या का मह व
11.3 जनसं या एवं संसाधन का स ब ध
11.3.1 अनुकू लतम जनसं या क अवधारणा
11.3.2 जना ध य क अवधारणा
11.3.3 अ प जनसं या क अवधारणा
11.4 व भ न पयावरणीय दशाओं के अ तगत भू म क वहन मता
11.4.1 वहन मता क अवधारणा एवं नधारण
11.4.2 वहन मता क वषमताओं के कारण
11.5 सारांश
11.6 श दावल
11.7 संदभ थ
11.8 बोध न के उ तर
11.9 अ यासाथ न
11.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप समझ सकगे क :
संसाधन सृजन एवं उपयोग म जनसं या का मह व,
जनसं या और संसाधन के म य व भ न कार के स ब ध,
अनुकू लतम, जना ध य एवं अ प जनसं या क अवधारणा,
वभ पयावरणीय दशाओं के अ तगत भू म क वहन मता,
वन, कृ ष, खनन और औ यो गक े क वहन मताओं क वषमताओं के कारण।
227
अपने ान और वै ा नक ग त के आधार पर मानव ने ाकृ तक संसाधन का चरम
उपयोग कया है।
जनस या और संसाधन के पार प रक अ यो या त स ब ध को प ट करने के लए
संसाधन को न न ल खत तीन े णय म वभािजत करके दे खना चा हए, िजनके
समि वत उपयोग के तर से कसी दे श के वकास तर को जाना जा सकता है -
(i) ाकृ तक संसाधन : भू म जल, वन, ख नज, ऊजा आ द।
(ii) मानव संसाधन : जनसं या का आकार, उसक शार रक, बौ क मता व
तकनीक वकास आ द।
(iii) सां कृ तक संसाधन : मानवीय सं कृ त, तकनीक , पू ज
ं ी आ द।
जनसं या एवं संसाधन के पार प रक स ब ध के अ ययन म क तपय न का उठना
वाभा वक है, जैसे - कसी दे श काल म जनसं या संसाधन का अनुपात या हो ?
जनसं या क यूनतम , अनुकू लतम एवं आ ध य अवधारणा या है ? संसाधन के
यूनतम , अनुकू लतम और तकू लतम दोहन का तर या है ? वभ पयावरणीय
दशाओं म भू म क वहन मता के नधारण के मापद ड या ह ? वन, कृ ष, खनन और
औ यो गक े क वहन मताओं क वषमताओं के कारण या ह ?
228
संसाधन के बीच ंखला मक स ब ध पाया जाता है, िजसके एक छोर पर पदाथ और
दूसरे छोर पर चरम संतु ि ट अवि थत होती है।
पदाथ-उपादे यता-आव यकता-तकनीक - पा तरण-संतु ि ट
अत: संसाधन उपयो गता का चरम उ े य मानवीय संतु ि ट ा त करना होता है। कसी
संसाधन क उपादे यता मानवीय संतु ि ट के तर पर नभर करती है। संतु ि ट का तर
संसाधन क मा ा एवं तकनीक ान पर नभर करता है। संसाधन का मह व तभी है
जब उनका उपयोग करने वाल जनसं या है। दूसरे श द म, जनसं या के अि त व के
लए चु र संसाधन क ा यता अप रहाय कोई भी ाकृ तक त व कस सीमा तक
संसाधन बन पाता है, यह केवल उसके भौ तक त व पर नभर नह ं करता; बि क
मानवीय गुण पर भी नभर करता है। सवमा य त य है क संसाधन होते नह ं बि क
मानव वयं अपने यास से उनका नमाण करता है। पृ वी तल पर कोई भी त व उस
समय तक संसाधन नह ं बनता जब तक मानव उनके उपयोग करने क मता ा त नह ं
कर लेता। जैसे- वा हत न दय म शि त उ पादन का गुण व यमान था पर तु जब से
मानव ने उससे जल - बजल उ प न करके उसका उपयोग आर भ कया, उसे एक
संसाधन का प ा त हु आ। इसी कार व भ न कार के ख नज, जैसे - तांबा, लोहा,
ज ता, कोयला आ द स दय से भू म म दबे पड़े थे क तु वे मानवीय यास के बाद ह
संसाधन बन पाए।
मानवीय म तथा उसक तकनीक नपुणता भौ तक संसाधन को उपयोगी व तु ओं म
बदलती है। अत: मानवीय म तथा नपुणता भी एक मुख संसाधन है। कसी भी े के
लए उसक जनसं या आ थक वकास का साधन और सा य दोन होती है। मानवीय म
तथा तकनीक कु शलता सम त उ पादन का मूल आधार है। '' कसी भी रा क उ नत
मानवीय संसाधन संग ठत करने क मता पर नभर करती है। नःस दे ह कसी भी दे श
म जनशि त संसाधन रा क भार पूँजी मानी जाती है।'' इसी लए कसी दे श के
संसाधन के सृजन एवं उपयोग म जनसं या का सवा धक मह व है।
229
जनसं या तथा उसे े के संसाधन म उपयु त समायोजन नह ं पाया जाता है। िजस
कारण अनेक वसंग तया उ प न हो जाती ह। इन वसंग तय क दशा को ह जनसं या
दबाव कहते ह। माबोगु ज
ं े ने बताया क जनसं या दबाव भू म संसाधन, जनसं या और
लोग क आकां ाओं के म य होने वाल अ त: या के प रणाम होते ह। इसे न नां कत
कारक क सहायता से ात कर सकते ह :
(i) संसाधन क उपल धता और उनका गुणा मक व प।
(ii) जनसं या क आकां ाएँ, उनक सीमा तथा व प।
माबोगुज
ं ने प ट कया क संसाधन व जनसं या दोनो कम ह तथा आकाशाएँ ऊँची ह
या संसाधन तथा आकां ाएँ कम हो व जनसं या अ धक हो तो जनसं या दबाव उ प न
होता है।
अकरमन ने भौ तक संसाधन एवं जनसं या के स ब ध को एक सू के प म तु त
कया है, िजसके थम ख ड म संसाधन क मांग को भा वत करने वाले कारक को
रखा है और दूसरे ख ड म संसाधन क पू त को भा वत करने वाले कारक ह । यह
समीकरण है :
PS = RQ (TAST) + Es + Tr ± F – W
जहां - P = जनस या
S = जीवन तर
R = संसाधन क मा ा
Q = संसाधन गुणव ता
T = तकनीक तर
A = शास नक कुशलता
St = संसाधन क ि थरता
Es = केल इकानमी
Tt = यापार
Tr = यापार वारा संसाधन क वृ
F = संसाधन क घषण से त
W = मत ययता
230
बोि डंग के अनुसार - ''वह जनसं या िजस पर जीवन तर अ धकतम होता है आदश
जनसं या कहलाती है।''
डा टन के श द म, ''आदश जनसं या वह है जो त यि त अ धकतम आय दे ती है।''
जॉनसन के अनुसार - ''मनु य क वह सं या जो कसी द हु ई आ थक, सै य अथवा
सामािजक ल य के संदभ म अ धकतम तफल को उ प न करती है, आदश जनसं या
होती है।''
पीटरसन के अनुसार - ''अनुकू लतम अथवा आदश जनसं या यि तय क वह सं या है
जो कसी द हु ई ाकृ तक, सां कृ तक तथा सामािजक पयावरण म अ धकतम आ थक
तफल को उ प न करती है।''
आदश अथवा अनुकूलतम जनसं या कसी दे श वशेष म ि थत उस कु ल जनसं या को
कहते है जो उस े वशेष म उपल ध कु ल आ थक एच सामािजक संसाधनो के उ चत
उपयोग के अनुकू ल हो। दूसरे श द म, कसी े वशेष म ा त दशाओं के अ दर
उ चतम जीवन तर को बनाए रखने वाल लोग क सं या को आदश जनसं या कहते
है। आदश जनसं या क माप म आ थक आधार ह मह वपूण होता है, िजसम उपल ध
ौ यो गक तथा आ थक दशाओं म त यि त अ धक उ पादन का अवसर दान करने
वाल सं या होती है, य य प 'जनसं या के आकार' और 'अ धकतम आ थक उ पादन' को
सीमां कत करना आसान नह ं है। अ धकतम आ थक उ पादन को ाय: सकल रा य
उ पादन (Gross National product) के प म आँका जाता है। उ च सकल रा य
उ पादन दे श के सभी नाग रक क ाथ मक आव यकताओं को सरलता से दान करने को
इं गत करता है।
कार सा डस (Carr Saunders) के अनुसार ''आदश जनसं या वह है, जो अ धकतम
क याण उ प न करती है।''
आर एन संह के अनुसार - '' कसी े या दे श म नवास करने वाले यि तय क वह
आदश सं या जो उस े के संसाधन को पूण उपयोग के लए उपयु त होती है िजससे
सामा य जीवन तर यथासंभव उ चतम हो सकता है, आदश जनसं या कहलाती है।''
वभ न व वान वारा द गई प रभाषाओं से यह न कष नकलता है क आदश
जनसं या वह जनसं या है, िजससे उस े वशेष म नवास करने वाले यि तय क
आय अ धकतम हो, उ च आ थक वकास हो एवं उ चतम जीवन तर हो।
231
1. सकल रा य उ पाद (Gross National Productions, GNP) : कसी े वशेष
के कु ल उ पादन का आंकलन सकल रा य उ पाद कहलाता है। जो एनपी का उ च
तर आदश जनसं या का प रचायक माना जाता है।
2. पूण रोजगार : कसी े वशेष म नवास करने वाले लोगो के उनक यो यता के
अनुसार सभी को रोजगार ा त कराना भी आदश जनसं या का मापद ड माना जाता
है।
3. उ चतम जीवन तर : ती आ थक वकास, अ धकतम आय एवं पूण रोजगार ा त
े म सामािजक एवं सां कृ तक जै वक आव यकताएँ भी उ च ह पाई जाती है।
अत: उ चतम जीवन तर क ाि त उ तम वा य एंव सभी सु वधाओं क पूण
यव था पर आधा रत है।
4. संसाधन का पूण उपयोग : आदश जनसं या होने पर उपल ध संसाधन का आधु नक
ौ यो गक क सहायता से पूण उपयोग होता है। ौ यो गक वकास के साथ नवीन
संसाधन क जानकार होती रहती है तथा उनका आव यकतानुसार उपयोग होता रहता
है।
5. जनां कक य संरचना : आदश जनसं या म आयु, लंग आ द सभी संतु लत अव था म
पाए जाते ह। ज म दर एवं मृ यु दर म संतु लन पाया जाता है िजसके कारण
जनसं या वृ भी बहु त कम एवं संतु लत रहती है। जनसं या लगभग थायी पाई
जाती है।
233
रहता है।“ वतमान समय मे ऐसी दशा ेट टे न, जापान आ द कु छ वक सत दे श मे
पायी जाती है।
(ii) सापे जना ध य (Relative Over Population) : जब कसी े वशेष मे
नवा सत कु ल जनसं या के भरण-पोषण के लए वहाँ उ पा दत सभी व तु एं अपया त
एवं कम होती ह तो ऐसी ि थ त मे े वशेष उपल ध स पूण संसाधनो का वदोहन
तकनीक सु वधाओं क कमी के कारण नह ं हो पता है। ले कन भ व य मे ो यो गक
के वक सत होने पर संसाधनो के उपयोग एवं उ पादन वृ क संभावनाएं रहती ह
िजसके कारण जना ध य क ि थ त भी संतु लत होने क पूण संभावना व यमान
रहती है। लाक महोदय ने कहा है क , ”सापे जनसं या आ ध य संसाधनो मे
संतल
ु न क वह ि थ त है िजसमे उ पादन का वतमान तर जनसं या के लए
अपया त होता है। उ पादन टार को बढ़ा कर इस ि थ त से नजात पाया जा सकता
है।“
वतमान समय मे सापे जना ध य क ि थ त व व के उन छोटे -छोटे वकासशील दे श
मे पायी जाती है जहां उ पादन का तर जनसं या वृ क तुलना मे न न है।
जना ध य क ि थ त अ धकतर स पूण दे श या दे श के दे श वशेष मे पायी जा सकती
है जब क स पूण दे श के अ य भाग मे जनसं या सामा य हो सकती है। उदाहरण के
लए भारत के मैदानी भाग मे, चीन के पूव भाग मे तथा इ डोने शया के जावा वीप
मे जना ध य क ि थ त है जब क अ य भाग मे जनसं या वतरण सामा य पाया
जाता है।
जनसं या आ ध य को ामीण एवं औ यो गक जनसं या आ ध य के प मे भी
वभािजत कया जाता है जब कसी औ यो गक े मे जनसं या क आव यकता से
अ धक पायी जाती है तो वह औ यो गक जनसं या आ ध य क ि थ त कहलाती है।
इसके वपर त जब ामीण े जनसं या भार अ धक होता है तो वह ामीण
जनसं या आ ध य कहलाता है।
ामीण जनसं या आ ध य कारण
(i) ती जनसं या वृ
(ii) भू म के े ीय वतरण मे असमानता,
(iii) मशीनीकृ त कृ ष,
(iv) अकृ षत े का कम वक सत होना,
(v) कृ षगत उ पादन का न न तर,
(vi) सामािजक वकास का तर कमजोर,
(vii) कृ षगत उपज पर अ धकतम जनसं या नवाहन आ द।
जना ध य क ि थ त उस े वशेष क जनसं या वृ क ि थ त, संसाधन क
उपलि ध, उपल ध संसाधन के उपयोग तथा नवीन ौ यो गक पर नभर रहती है।
234
11.3.3 जनाभाव या अ प जनसं या क अवधारणा (Concept of Under Population)
235
रहा है। भारत म भी यह दबाव सन ् 1921 म 81 यि त त वग कमी से बढ़ कर
सन ् 2001 म 324 यि त वग कमी हो गया है। इस मानव न मत दवाब के लए
न न ल खत कारक उ तरदायी है -
1. जनसं या म ती वृ (Rapid Growth in Population) : पृ वी पर 10,000 वष
ईसा पूव मा 50 लाख लोग रहते थे, जो बढ़कर वष 1750 म 80 करोड़ तथा
1930 म 200 करोड़ हो गई व आज 600 करोड़ को पार गई है। ती ता से बढ़ती
इस जनसं या ने पृ वी तल पर दबाव बना दया है।
2. जनसं या का असमान वतरण (Uneven Distribution of Population) : पृ वी के
30 तशत भू भाग पर 95 तशत जनसं या रहती है जब क शेष 70 तशत भाग
पर 5 तशत जनसं या नवास करती है। इसम भी इतनी वषमता है क संसार क
50 तशत जनसं या केवल 5 तशत भू भाग पर ह रहती है। 70 तशत नवास
के अयो य े म शु क, ऊ ण, आ तथा हमा छा दत े ह। इनम वशाल
म थल, वषुवत ् रे खीय े , ीनलै ड, अ टाक टका व आक टक े तथा उ च
पवतीय भाग ह। अत: वशेष े म ह जनसं या का संके ण होने से जनसं या
दवाब बढ़ता है।
3. थाना तरण पर नय ण (Control of Migration) : ाचीन काल म मनु य एक
थान से दूसरे थान पर थाना तरण कर लेता था। ले कन उ नीसवीं शता द म
अनेक दे श ने अपने संसाधन एवं जनसं या के अनुपात को आदश बनाये रखने के
लए थाना तरण पर तब ध लगा दये। इस ि ट से आ े लया क वेत नी त,
द णी अ क क रं गभेद (Aparthied) नी त तथा स, उ तर द णी अमे रक
दे श क चयना मक वास नी त से भी थाना तरण कम हो पाया है। फल व प
ाचीनकाल म बसे े पर जनसं या दबाव बना है।
4. ाकृ तक संसाधन का अ तदोहन (Over Exploitation of Natural Resources) :
बढ़ती जनसं या के कारण ाकृ तक संसाधन का दोहन बढ़ने से भी जना ध य क
ि थ त बनी है, य क जनसं या तो बढ़ती रह , ले कन संसाधन क मा ा जो
नर तर घटती गई। फल व प जनसं या दबाव बना है।
5. ाकृ तक आपदाय (Natural Disasters) : ाकृ तक आपदाओं के कारण जनसं या
का थाना तरण होने से स तुलन बगड़ जाता है। इन आपदाओं म भू क प,
वालामुखी, बाढ़, सू खा, च वात आ द मु ख ह। ाकृ तक आपदाओं के अ त र त
अनेक बार मानव ज नत वपदाय भी जनसं या दबाव म वृ करती ह। यु ,
आ मण, औ यो गक उ पादन आ द के कारण जनसं या का वास होता है।
इन सभी कारण से पृ वी पर जनसं या कु छ व श ट े म संकेि त हो जाती है तथा
उस े वशेष के संसाधन पर दबाव बढ़ जाता है। संसाधन एवं जनसं या म एक बार
स तुलन बगड़ने पर संसाधन के ववेक पूण दोहन वारा ह अनुकू ल ि थ त को ा त
कया जा सकता है। जनसं या दबाव के बढ़ने से ाकृ तक संसाधन पर दबाव बढ़ता है।
236
त यि त कृ षयो य भू म, जल संसाधन तथा अनेक आधारभू त सु वधाओं पर तकू ल
भाव पड़ता है। कृ त म कु छ वशेष थान पर जनसं या का दबाव वगत शता द म
ती ग त से बढ़ा है, िजसका मू ल कारण आ थक ग त के लए संसाधन का दोहन रहा
है। ती औ यो गक वकास के लए संसाधन का अ धका धक दोहन होने लगा। ारि भक
समय म यह ि थ त स तु लत थी। ले कन उ नीसवीं एवं बीसवीं शताि दय म नर तर
बढ़ती जनसं या ने संसाधन के दोहन क दर म वृ क । फल व प न केवल
अन यकरणीय संसाधन वरन ् न यकरणीय संसाधन म भी हास हु आ है। वन संसाधन जैसे
न यकरणीय संसाधन ल बी अव ध म अपना च पूण कर पाते ह। अत: दोहन क दर
बढ़ने से वनावरण म कमी आयी है।
बोध न -1
1. कसी पदाथ क उपयो गता कन कारक पर नभर करती है ?
.................................................................................... ........
................................................................ ............................
2. ' अनु कू लतम जनसं या' के लए 'Optimum Population' का योग
सव थम कसने कया था ?
............................................................................................
................................................................ ............................
3. अनु कू लतम जनसं या कसे कहते ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
4. जना ध य के मु ख कारण या ह ?
......................................................... ...................................
............................................................... .............................
5. जनाभाव क ि थ त कब उ प न होती है ?
................................................................................... .........
............................................................................................
237
ग त से हो रह है। य द यह वृ अनवरत रहती है तो भू म पर इतना दबाव होगा क
उसक वहन मता ह समा त हो जाएगी। अत: एक ओर इस जनसं या वृ को
नयं त करना होगा, दूसर ओर यथासंभव भू म क वहन मता क वृ करनी होगी
िजससे अ धकतम यि तय का भरण-पोषण हो सके।
238
उ ह ने त यि त वा षक ामा णक पोषण इकाई 7,72,138 कैलोर ज मा ा है। इकाई
े क वहन मता क दे श अथवा रा य म सापे त ात करने के लए न न सू का
योग कया जाता है।
C pe
I ae 100
C pr
जहाँ, I ae = इकाई क कृ ष मता का सू चकांक,
C pe = इकाई म जनसं या के प म वहन मता, एंव
239
दो मु ख वशेषताएँ िजनका कृ ष उ पादकता पर य प से पड़ता है -
(अ) धरातल क ऊँचाई, तथा (ब) धरातल का ढाल।
धरातल क ऊँचाई अ धक होने पर हवा का दबाव कम हो जाता है तथा
जलवायु शीतल हो जाती है िजसम फसल का बदलना वाभा वक है। ढाल
कृ ष काय म सहायक अथवा बाधक होता है। म द ढाल जल नकास तथा
जु ताई के लए उपयु त होता है पर तु ती ढाल पर जु ताई नह ं हो पाने से
तथा म ी कटाव से म ी का अि त व नह ं रह पाता है, अत: भू म क
उ पादकता नग य हो जाती है।
(ii) जलवायु दशाएँ : फसल उ पादन पर सवा धक भाव तापमान और वषा का
पड़ता है। कोई भी पौधा तापमान के अभाव म वक सत नह ं हो सकता है।
तापमान म भ नताओं के साथ फसल म भी भ नताएं पाई जाती ह।
फसल के लए औसत तापमान 10 ०
सट ेड से लेकर 28० सट ेड माना
गया है। ले कन वभ न फसल के लए तापमान क भ न- भ न
आव यकता होती है। कु छ फसल अ धक तापमान म वक सत होती ह तो
कु छ फसल कम तापमान म पनपती ह।
फसल के उ पादन पर वषा क मा ा का बड़ा भाव पड़ता है। व व के
अ धक वषा एवं कम वषा वाले दे श म एक ह कार क कृ ष नह ं हो
सकती। उदाहरण के लए भारत के उ तर वशाल मैदान म पूव से पि चम
क ओर वषा क मा ा मश: घटती जाती है और फसल का कार भी वैसे
ह बदलता जाता है।
इसके अ त र त वायु क दशा एवं ग त, पाला, कोहरा, कु हासा, हमपात,
ओला वृि ट तथा सू य काश आ द जलवायु के त व भी फसल के उ पादन
को भा वत करते ह।
(iii) म ी : कृ ष के लए म ी आव यक त व है। व व म कृ ष क ि ट से
कांप, कछार या दोमट म ी सबसे उपयु त मानी जाती है। बलु ई, नमक न
या दलदल म ी कृ ष के लए उपयु त नह ं होती है। म ी क गहराई भी
फसल के कार को बदल दे ती है।
2. आ थक कारक : कृ ष को भा वत करने वाले मु ख आ थक कारक न न ल खत ह -
(i) बाजार क नकटता : बाजार के समीप साग-सि जय , शी न ट होने वाले
तथा दु ध उ पादन कया जाता है। दूर ि थत ामीण भाग म खा या न एवं
उ योग के लए क चा माल आ द का उ पादन कया जाता है।
(ii) आवागमन के साधन : उ पादन े से बाजार दूर होने पर उ पादन लागत
अ धक होगी और य द बाजार नजद क है तो उ पादन लागत कम होगी
िजससे कसान को अ धक लाभ होगा।
240
(iii) म : कृ ष के लए पया त मा ा म कु शल एवं स ते मक क आव यकता
पड़ती है। मक क अ धकता के कारण ह द णी-पूव ए शयाई दे श म
रबर क कृ ष का वकास हो सका है, जब क ाजील जो रबर उ पादन का
आद थल है ले कन मक क कमी के कारण वहाँ इनक कृ ष का वकास
नह ं हो सका।
(iv) पूँजी : यह भी कृ ष उ पादन का आव यक त व है। इसके अभाव म अ छे
क म के बीज, खाद, संचाई के साधन , नवीन कृ ष उपकरण , भ डार आ द
सु यव था नह ं हो सकती।
3. सामािजक कारक : भू म वहन मता को भा वत करने वाले मु ख सामािजक कारक
न न ल खत ह -
(i) जनसं या : कृ ष का मु य उ े य जनसं या का भरण-पोषण करना है। अत:
िजन े म जनसं या घन व अ धक है, वहाँ पर मानव म का योग
अ धक होता है तथा गहन नवाहन कृ ष क जाती है। इसके वपर त िजन
े म कम जनस या घन व है, वहाँ कृ ष म मशीन का अ धक योग
कया जाता है तथा व तृत यापा रक कृ ष क जाती है।
(ii) श ा का तर : कृ षक के श ा का तर भी कृ ष को भा वत करता है।
श त कृ षक उ चत बीज, खाद, कृ ष उपकरण तथा क टाणु नाशक दवाओं
का चु नाव आसानी से कर लेता है। अत: अ धक उ पादन ा त करता है।
4. सां कृ तक कारक : भू म वहन मता को भा वत करने वाल सां कृ तक कारक म
पर पराएँ, धा मक व वास आ द आते ह। भारत, पा क तान, बां लादे श, ीलंका,
यांमार, चीन आ द मानसू न ए शया के दे श म कृ षक पर परागत ढं ग से कृ ष करता
चला आ रहा है। वह अपनी पुरानी पर पराओं को आसानी से छोड़ने को तैयार नह
है। यह कारण हे क यहाँ आज के वै ा नक युग म भी कृ ष अ वक सत दशा म है।
इसके वपर त पा चा य दे श म कृ ष अ य धक वक सत है।
5. राजनी तक कारक : राजनी तक नी तय , वशेषकर फसल एवं पशु ओं से उ पा दत
व तु ओं पर सरकार नयं ण व ह त ेप का भाव भी कृ ष पर पड़ता है।
6. ा व धक कारक : वतमान म भू म क वहन मता का वकास ा व धक उ न त पर
नभर करता है। िजस दे श का ा व धक ान िजतना वक सत होता है, वह दे श
कृ ष वारा उतना ह लाभ कमाता है।
बोध न– 2
1. ‘ भू म वहन मता’ कसे कहते ह ?
............................................................................................
................................................................................ ............
241
2. टै प क ‘ भू म वहन मता’ व ध का भारत मी योग कस व वान ने
कया ?
............................................................................................
......................................................................................... ...
3. भू म वहन मता को भा वत करने वाले मु ख भौ तक कारक कौन से
ह?
............................................................................................
......................................................................................... ..
4. ो. शफ ने भारत वष क 12 फसल क उ पादकता को नधा रत करने
हे तु कस वै ा नक के सू का योग कया ?
............................................................................................
...................................................................... ......................
242
वन, कृ ष, खनन और औ यो गक े क वहन मताओं के वषमताओं के मु य कारण
भौ तक (धरातल, जलवायु, म ी), आ थक (बाजार, आवागमन के साधन, म, पूँजी),
सामािजक कारक (जनसं या, श ा का तर, मानव भोजन क च), सां कृ तक,
राजनी तक एंव ा व धक ह।
11.8 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. कसी पदाथ क उपयो गता पदाथ क उपल धता, उपादे यता, मानवीय आव यकता तथा
तकनीक ान पर नभर करती है।
2. कै ट लोन ने सव थम 'Optimum Population' श द का योग अनुकू लतम
जनसं या के लए कया।
243
3. कसी े वशेष क वह जनसं या जो वहाँ उपल ध कु ल संसाधन के उ चत उपयोग
के अनुकूल ह ।
4. जनसं या क ती वृ , संसाधन का अभाव, म क माँग म कमी, मु ा फ त म
ती वृ आ द जना ध य के मु ख कारण है।
5. जनाभाव क ि थ त उस समय उ प न होती है जब जनसं या संसाधन क तु लना म
कम हो।
बोध न - 2
1. कसी े वशेष क भू म क जनसं या धारण अथवा पोषण मता को भू म वहन
मता कहते ह।
2. ो. जसवीर संह ने कया।
3. धरातल, जलवायु, म ी आ द मु ख भौ तक कारक है जो भू म वहन मता को
भा वत करते ह।
4. इनैडी के सू का योग कया।
11.9 अ यासाथ न
1. जनसं या और संसाधन स ब ध का व तार से वणन क िजए।
2. अनुकूलतम जनसं या को प रभा षत करते हु ए इसके नधारण के मापद ड का वणन
क िजए।
3. भू म वहन मता कसे कहते ह ? भू म वहन मता ात करने क व धय का
वणन क िजए।
4. व भ न पयावरणीय दशाओं के अ तगत भू म क वहन मता क वषमताओं के
कारण का वणन क िजए।
244
इकाई 12: मानव संसाधन वकास सू चकांक (Human
Development Index)
इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 मानव संसाधन
12.2.1 भौ तक गुण
12.2.2 जनसं या के सामािजक-सां कृ तक गुण
12.2.3 जनसं या क आ थक वशेषताएं
12.3 मानव वकास
12.3.1 मानव वकास के संकेतक
12.3.2 मानव वकास का तर एवं े ीय वतरण
12.4 मानव वकास क दशा
12.4.1 जीवन याशा
12.4.2 ज मदर
12.4.3 मृ यु दर एवं शशु मृ यु दर
12.4.4 वय क सा रता
12.5 लंग-स ब धी वकास सू चकांक
12.6 मानव नभरता सू चकांक
12.7 सारांश
12.8 श दावल
12.9 संदभ थ
ं
12.10 बोध न के उ तर
12.11 अ यासाथ न
12.0 उ े य (Objectives)
सू चकांक इस इकाई के अ ययन से आप समझ सकगे :
मानव संसाधन का मह व,
मानव संसाधन का गुणा मक मू यांकन,
व व जनसं या क आयु संरचना, ी-पु ष अनुपात , नगर करण, सा रता,
यावसा यक संरचना,
मानव वकास का ता पय, उ े य, संकेतक,
मानव वकास का वतरण एवं वृि त।
245
12.1 तावना (Introduction)
ल बे काल तक संसाधन का ता पय केवल ाकृ तक संसाधन से लया जाता रहा है।
नि चत प से संसाधन जैव-भौ तक वातावरण के त व ह, पर तु जैसा क इकाई दो म
प ट कया गया है क बना मानव और उसके यास के ये जैव-भौ तक त व केवल
नि य पदाथ (Neutral Stuffs) मा ह अथात ् संसाधन के उपल धता, मू यांकन,
उ पादन, नयतन और ब धन सभी याएं मानव केि त (anthropocentric) ह।
संसाधन वकास क स पूण या म केवल मानव भर ह स य त व है तथा अ य
सभी संसाधन नि कय ह। इतना ह नह ं वह अपने ान, कु शलता और उप मण
(initiatives) का उपयोग करके तट थ पदाथ को संसाधन बनाता है और इन संसाधन
को वांि छत व तु ओं म प रव तत करता है। वा तव म संसाधन क स पूण अवधारणा ह
मानव-केि त है। व तु त: वह संसाधन का नमाता है, साथ ह उनका उपभो ता भी है।
इस कारण वह सबसे मह वपूण संसाधन है।
वकास क अवधारणा म वष 1990 के दशक म एक नया आयाम जु ड़ा िजसे मानव
वकास (Human Development) कहा जाता है। इस प रवतन का मू ल आधार यह है
क वकास क स पूण या का के ब दु मानव है। इस अवधारणा म इस बात पर
जोर दया गया है क वकास क स पूण या को मानव, उसक अनुभू त, सोच,
ि टकोण, ल य आ द के प रपे य म दे खा जाना चा हए। वृ अथात ् आय का बढ़ना
वयं म वकास का ल य नह ं है बि क साधन है। ल य है मानव क याण म वृ और
आ थक, सामािजक, सां कृ तक, राजनै तक आ द े म मानवीय चयन क सु वधा का
व तार। इसी प रपे य म मानव वकास क चचा यहाँ क गई है।
246
क जा चु क है। पर तु इस इकाई म जनस या के गुणा मक प तथा मानव वकास को
तु त कया जा रहा है।
मनु य अपने समाज से कई गुण सीखता है। इन सामािजक सं थाओं म नवास का थान,
भाषा, धम, वैवा हक दशा, जा त, समु दाय, श ा एवं सा रता आ द मह वपूण ह। ये
सं थाएं मनु य के ि टकोण, अनुभू त तथा नवाचार के अ भ हण को भा वत करती ह।
अनुभू त और मू यांकन का संसाधन के मू यांकन म अहम भू मका होती है। समाज का
बढ़ता ान, प र कृ त ौ यो गक और व ान न केवल संसाधन क उपलि ध को बढ़ाता
है बि क उनके नवीन तथा उ नत उपयोग और उनके थानाप न क खोज करता है तथा
उनक पुनन यता नधा रत करता है।
नगर करण : ामीण तथा नगर य जनसं या का वतरण दे श क अथ यव था पर काश
डालता है। वतमान म नगर करण क ग त बहु त तेज है। सन ् 1950 म व व क केवल
248
29 तशत जनसं या नगर म रहती थी। पर तु 2006 म लगभग आधी (48 तशत)
आबाद नगर म बसती हे । वक सत दे श म यह अनुपात 77 तशत पर तु वकासशील
दे श म 41 तशत है। ती नगर करण के कारण म वकासशील दे श म बढ़ता
औ योगीकरण तथा गांव से नगर क ओर पलायन मु य ह।
द णी अमे रका सबसे अ धक नगर कृ त महा वीप है जहाँ क 80 तशत जनसं या
नगर म रहती है। इसके बाद मश: उ तर अमे रका (79%), यूरोप (75%), ओसी नया
(73%), ए शया (38%) एवं अ त म अ का (37%) ह। व व म कई दे श पूणत:
नगर य ह, जैसे बहर न, कतर, संगापुर , हांककांग, मोनाको, नउ । वा तव म ये सभी
बहु त छोटे दे श है। इस तरह उ तर अमे रका, यूरोप तथा ओसी नया म उ च मानव
वकास नगर करण से य त: जु डा हु आ है। नगर वा य, श ा, यापार, वा ण य,
उ योग के के होते ह िजनका अनुकू ल भाव मानव वकास पर पड़ना वाभा वक है।
सा रता : कसी भाषा म एक साधारण संदेश को समझ कर पढ़ एवं लख सकने क
मता रखने वाले यि त को सा र कहा जाता है। सा रता जनसं या क गणु व ता का
सबसे मु ख सू चक है। वषम तकनीक पर आधा रत व श टता तथा व नमय धान
आधु नक अथ यव था म पूण सहभा गता के लए सा रता का यूनतम तर आव यक
होता है। इस ि ट से सा रता तकनीक वकास का संकेतक है। सा रता लोगो क
अनुभू त को ती ण बनाती है और मनोवृि त को भा वत करती है। इससे ान म वृ ,
सू चना के ोत तक पहु ंच और नए वचार को वीकार करने क शि त बढ़ती है।
सा रता का वतरण भी काफ असमान है। संयु त रा य अमे रका, कनाडा, पुतगाल को
छोड़ कर सम त यूरोप, जापान, को रया, शीतो ण द णी अमे रका के दे श, आ े लया
तथा यूजीलै ड म तीन-चौथाई से अ धक लोग सा र ह। म य तथा द णी अमे रका के
शेष दे श, द णी अ का, द णी पूव ए शया तथा म य ए शया के दे श म आधे से दो-
तहाई लोग सा र ह। इसके वपर त द ण ए शया तथा उ तर , म य, पि चमी तथा पूव
अ का के अ धकतर दे श म अब भी सा रता कम है।
249
उ नत दे श म वतीयक एवं तृतीयक उ योग म संल न मक क सं या अ धक होती
है जब क पछड़े दे श म ाथ मक उ योग क धानता होती है। अत: आ थक वकास को
नापने के लए यावसा यक संरचना एक मा यम है। कसी दे श म 60% से अ धक पु ष
मक कृ ष काय म संल न होने पर उसे अ वक सत, 35% से 60% के बीच होने परे
अ वक सत तथा 35% से कम होने पर वक सत कहा जाता ह।
कृ ष म कायरत जनसं या का अनुपात : िजन भाग म नमाण उ योग अ वक सत ह वहाँ
कृ ष जीवनयापन का मु य साधन होती है। ऐसी दशा म बेरोजगार होने के थान पर कृ ष
काय करना उ चत समझा जाता है, य क इससे कु छ अ त र त खा या न पैदा हो जाता
है। सन ् 2004 म ए शया महा वीप म आधे से अ धक (56.3 तशत) याशील
जनसं या कृ ष म लगी है। यह अनुपात भू टान म 93.8 तशत और नेपाल म 93.0
तशत तक है (मान च 12.1)। द णपूव ए शयाई दे श म यह 60 तशत से अ धक
है। भारत म 59.6 तशत याशील लोग खेती म संल न ह। अ का महा वीप म कृ ष
म कायरत जनसं या का अनुपात (63.2 तशत) और भी अ धक याशील जनसं या
का ह सा कृ ष म लगा है। कु ल 28 दे श म 60 तशत से अ धक स य जनसं या
कृ ष काय म लगी है। व व के 55 बड़े दे श ऐसे ह जहाँ क औसत (44.7 तशत) से
अ धक जनसं या खेती करती है। इनम से 34 दे श अकेले अ का महा वीप म और 16
दे श ए शया महा वीप म ह। यूरोप म एक (अ बा नया 48.2 तशत) तथा ओसी नया म
ऐसे दो छोटे दे श ह।
251
म वकास क या मानव-केि त होनी चा हए। कु ल मलाकर मानव के गुणव ता को
बढ़ाना ह इसका उ े य है िजससे वह अपने वकास के सु अवसर का अ धक से अ धक
लाभ ले सके।
252
क व भ नता जानने के लए कया जाता है। इन सू चकांक क गणना के लए कई
वचलक का उपयोग कया जाता है।
सयु त रा संघ वकास काय म (यू एन. डी. पी.) वारा वष 2005 क सू चनाओं के
आधार पर सन ् 2007-08 क व व मानव वकास क रपोट तैयार क गई है िजसम
व व के 177 दे श म मानव वकास क दशा क या या क गई है। इनम से 70 दे श
उ च मानव वकास वग, 85 म यम मानव वकास वग तथा 22 न न मानव वकास
वग म रखे गए ह। इन व भ न वग के दे श का वतरण (मान च 12.1) बहु त रोचक
है।
253
पू व ए शया - शा त े 0.771 71.7 91.7 69.4 6604
लै टन अमे रका 0.803 72.8 90.3 81.2 8417
द णी ए शया 0.611 63.8 59.5 60.3 3416
सब-सहारा अ का 0.493 49.6 60.3 50.6 1998
म यपू व यू रोप 0.808 68.6 99.0 83.5 9527
ओईसीडी 0.916 78.3 _ 88.6 29197
उ च मानव वकास े 0.963 79.2 _ 92.3 33082
म यम मानव वकास े 0.776 70.9 89.9 73.3 7416
न न मानव वकास े 0.570 60.0 60.2 56.3 2513
व व 0.743 68.1 78.6 67.8 9543
254
इसी तरह बहर न म त यि त आय ($ 21482) चल ($ 12027) से लगभग दो
गुनी है; पर तु चल मानव वकास के म म बहर न से ऊपर ह न न मानव वकास के
वग म अ छा उदाहरण तंजा नया का है िजसक त यि त आय ($ 744) अंगोला ($
2335) क तु लना म एक- तहाई है, पर तु जीवन याशा, वय क सा रता सू चकांक,
कू ल म नामांकन आ द म तंजा नया अंगोला से काफ आगे है। इस तरह मानव वकास
केवल आय पर नभर नह ं होता है बि क इस आय वारा वा य, श ा, गर बी
उ मूलन , म हला. सश तीकरण आ द के लए चलाए गए काय म क सफलता पर नभर
होता है।
255
जीवन याशा कम और बहु त कम है। पूव अ का, म य अ का और पि चमी अ का
के दे श म जीवन याशा 50 वष से कम है।
यह उ लेखनीय है क पु ष तथा म हला क जीवन याशा म अब भी अ तर है, पर तु
यह अ तर अ धक याशा वाले दे श म अ धक तथा न न याशा वाले दे श म कम है।
उदाहरण के लए म य- 2007 म व व म औसत जीवन याशा पु ष के लए 66 वष
तथा म हलाओं के लए 70 वष है। वक सत दे श म यह औसत मश: 73 वष और 80
वष का है तथा वकासशील दे श म 64 वष तथा 67 वष का है। इस कार म हला तथा
पु ष क जीवन याशा म अ तर वक सत दे श म 7 वष है पर तु वकासशील दे श म
केवल 3 वष का है। म य तथा पूव अ का म यह अ तर नग य है। ये यून जीवन
याशा के े ह। दूसर ओर यूरोप , उ तर अमे रका तथा द णी अमे रका म म हलाओं
क जीवन याशा पु ष क जीवन याशा से लगभग सात वष अ धक है।
12.4.2 ज म दर
256
व व म असंशो धत मृ यु दर सन ् 1975-80 के म य 12 त हजार थी जो घट कर
सन ् 2006 म 9 त हजार हो गई है। अब भी अ का महा वीप के कई दे श म यह
अ धक और बहु त अ धक है। अ का म भी उ तर भाग के दे श म मृ यु दर कम है। इस
महा वीप से बाहर अफगा न तान तथा तमोर म यह अ धक है। संतु लत भोजन, लोक
वा य, च क सा सेवाओं तथा श ा क कमी के कारण इन े म मृ यु दर उ च है।
दूसर ओर उ तर अमे रका, लै टन अमे रका, पि चमी ए शया तथा उ तर अ का, द ण-
पूव तथा म य ए शया के दे श एवं आ े लया तथा यूजीलड म यह कम तथा बहु त कम
है। इसका भी मानव वकास पर भाव पड़ा है।
शशु मृ यु दर को मानव वकास का एक मह वपूण सूचक समझा जाता है। शशु मृ यु
दर से ता पय त हजार जी वत ज म पर 0-1 वष क आयु तक के शशु ओं क मृ यु
क सं या से है। व व म शशु मृ यु दर 52 त हजार (सन ् 2006) है। इसम भी तेजी
से कमी आई है। सन ् 1970 म शशु मृ यु दर 96 थी। उ च शशु मृ यु दर उन पछड़े
दे श म अ धक है जहाँ ज म दर भी ऊँची है। पुन : उ च शशु मृ यु दर अ का के दे श
म है। सव च शशु मृ यु दर अफगा न तान म 166 त हजार तथा पि चमी अ का म
सयरा लयोन म 163 त हजार है। वक सत दे श म यह बहु त कम (6 त हजार)
तथा वकासशील दे श म कम (57 त हजार) है।
12.4.4 वय क सा रता
257
म नीचे होने का एक मु य कारण ह वचाराधीन कु ल 177 दे श म से 25 दे श म कू ल
नामांकन आधे (50%) से भी कम है अथात ् इन दे श म आधे ब चे क ह कारण से
कू ल म वेश नह ं लए ह। इनम अ का, द ण पूव ए शया तथा कैरे बयन दे श
सि म लत ह।
258
पर आने वाले चाड (अ का) म 56.9 तशत तक है। ता लका के अवलोकन से प ट है
क 50 से 108 तक के म पर आने वाले दे श अ का और ए शया के ह। मानव
नधनता सू चकांक क ता लका म भारत 62 व म पर है िजसका सू चकांक 31.3
तशत है।
12.7 सारांश
संसाधन वकास क स पूण या म केवल मानव भर ह स य त व है। इतना ह नह ं
वह अपने ान, कु शलता और उप म का उपयोग करके तट थ पदाथ को संसाधन बनाता
है। व तु त: वह संसाधन का नमाता है, साथ ह उनका उपभो ता भी है। इस कारण वह
सबसे मह वपूण संसाधन है। जनसं या बढ़ने के साथ ह मानव भौ तक, सामािजक तथा
आ थक ल ण म उ लेखनीय प रवतन हु ए ह। जहाँ वक सत दे श म वृ आयु समू ह क
जनसं या बढ़ है वह वकासशील ती जनसं या वृ वाले दे श म बाल आयु वग का
ह सा बहु त बढ़ गया है। इन दोन दशाओं ने अलग-अलग सम याओं को ज म दया है।
इस कारण ी-पु ष अनुपात म अ तर आया। इस अनुपात का वतरण बहु त असमान
बना हु आ है। नगर म रहने वाल का तशत भी काफ बढ़ गया है और व व क
लगभग आधी जनसं या नगर तथा शहर म रहने लगी है। सा रता बढ़ तथा नर रता
का अनुपात कम हु आ। तथा प वक सत और वकासशील दे श म अभी-भी बहु त अ तर है।
जनसं या क याशीलता तथ मक का यावसा यक वभाजन पुन : वकासशील दे श के
तकू ल है। व व क याशील जनसं या का 44.7 तशत कृ ष म संल न है। ए शया
तथा अ का म यह तशत बहु त अ धक है जो इनके पछड़े होने का सूचक है।
वकास क संक पना म मानव वकास क अवधारणा सन ् 1990 से जु ड़ गई है। इसका
मौ लक ल य मनु य वारा सु अवसर के वक प क सीमा को बढ़ाना है िजससे वकास
अ धक जातां क तथा सहभा गतापूण बन सके। इन सु अवसर म मु ख ह - व थ दघ
जीवन के अवसर, श त होने के अवसर तथा स मानजनक जीवन जीने के अवसर।
इनका तर जानने के लए ज म के समय जीवन याशा, वय क सा रता तथा य
शि त के प म त यि त आय को आधार माना गया है। इनक मदद से मानव
वकास सू चकांक क गणना क गई है। इस संकेतक तथा सू चकांक से कई बात प ट हो
जाती ह। एक तो अभी भी अ का का अ धकांश भाग मानव वकास क ि ट से बहु त
पीछे है। दूसरे , उ च मानव वकास वाले दे श वक सत और स प न दे श ह। स प न दे श
म वा य, श ा, पोषण जैसी मू लभू त सु वधाओं पर यान दया गया है। पर तु
व भ न दे श म इन सभी प पर समु चत यान नह ं दया जा सका है।
12.8 श दावल
मानव संसाधन : मानव के वे सभी गुण जो म शि त क गुणव ता, मा ा तथा
मता का नधारण करते ह और उनक अनुभू त तथा ि टकोण को प दे ते ह।
ी-पु ष अनुपात : त हजार पु ष के पीछे ि य क सं या।
259
सा रता : कसी भाषा म एक साधारण संदेश को समझ कर पढ़ एवं लख सकने क
मता।
सा रता : कु ल जनसं या म सा र का तशत। भारत म कु ल जनसं या के थान
पर 6 वष से अ धक आयु वाल म सा र का तशत को सा रता दर माना गया
है।
मानव वकास : मानव के गुणव ता का बढ़ाना िजससे वह अपने वकास के सु अवसर
का अ धक से अ धक लाभ ले सके।
जीवन याशा : ज म के समय स भा वत जीने क आयु क याशा।
ज म दर : त हजार जनसं या के पीछे एक वष क अव ध म जी वत शशु ओं के
ज म क सं या।
शशु मृ यु दर : त हजार जी वत ज म शशुओं पर 0-1 वष क आयु तक के
शशुओं क मृ यु क सं या।
वय क सा रता : 15 वष से अ धक आयु क जनसं या म सा र का तशत।
12.9 संदभ ंथ
1. आर. सी. चांदना : जनसं या भू गोल, क याणी पि लशस, लु धयाना, 2006
2. बी. पी. पंडा : जनसं या भू गोल, म. . ह द ं अकादमी, भोपाल, 2007
थ
3. Mahbul ul haq : Human Development of South – East Asia. HDC
Oxford University Press, New York, 1997.
4. UNDP : Human Development Report, 2007-08 on Net.
5. कलवार सु गन च द एवं मीणा तेजराम : नधनता उ मू लन एवं ामीण वकास,
पोइ टर पि लशस, जयपुर , 2001
12.10 बोध न के उ तर
1. (i) सं या, (ii) भौ तक शि त तथा (iii) बौ क मता।
2. 15 वष से कम आयु के।
3. यूरोप (1050)।
4. 48 तशत।
5. अ का ।
12.11 अ यासाथ न
1. मानव संसाधन के मह व तथा वशेषताओं का वणन क िजए।
2. जनसं या के भौ तक एवं सा कृ तक ल ण का व व वतरण बताइए।
3. मानव वकास क अवधारणा तथा उसके संकेतक का ववरण द िजए।
4. मानव वकास के वतमान तर को भा वत करने वाले कारक को समझाइए।
5. मानव वकास क दशा का सं त वणन क िजए।
260
इकाई 13 : संसाधन उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं
समाधान (Resources Utilization,
Environment Problems and Solution)
इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 अवधारणा
13.3 कृ ष संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान
13.3.1 कृ ष संसाधन ास को रोकने के समाधान
13.4 मृदा संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सं थाएँ एवं समाधान
13.5 जल संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान
13.5.1 जल संसाधन ास को रोकने के समाधान
13.6 वन संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान
13.6.1 वन संसाधन ास को रोकने के समाधान
13.7 ख नज संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान
13.7.1 ख नज संसाधन ास को रोकने के समाधान
13.8 सारांश
13.9 श दावल
13.10 संदभ थ
13.11 बोध थ
13.12 अ यासाथ न
13.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप समझ सकगे क :
संसाधन उपयोग के कारण उ प न होने वाल पयावरणीय सम याऐं एवं उनके
समाधान।
कृ ष संसाधन के उपयोग, उ प न पयावरणीय सम याएं एवं उनके समाधान।
मृदा संसाधन क उपयोग, उ प न पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान।
जल संसाधन के उपयोग, उ प न पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान।
वन संसाधन के उपयोग, उ प न पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान।
ख नज संसाधन के उपयोग, उ प न पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान।
261
13.1 तावना (Introduction)
संसाधन, पयावरण और मानव अ तस बि धत ह। पछले सौ वष म वा य-र ा क
बेहतर यव था और पोषाहार म सु धार से जनसं या तेजी से बढ़ है, वशेषकर वकासशील
दे श म जनसं या म यह अभू तपूव वृ ाकृ तक संसाधन पर भार दबाव डाल रह है।
जंगल, घास के मैदान और दलदल के बड़े-बड़े टु कड़ को खेती और उ योग के यो य
बनाया जा रहा है। इन प रवतन से अमू य ाकृ तक पा रतं तेजी से गायब हो रहे ह।
जल, भोजन, ऊजा, उपभो ता व तु ओं क बढ़ हु ई आव यकता केवल जनसं या वृ का
प रणाम नह ं है; वह अ धक समृ समाज के सद य वारा और हमारे अपने समाज के
समृ सद य वारा संसाधन के अ त -उपयोग का प रणाम भी है।
औ यो गक वकास का उ े य तमाम उपभो ता व तु ओं क बढ़ती माँग को पूरा करना है,
ले कन ये उपभो ता व तु एँ लगातार बढ़ती मा ा म अप श ट (waste) भी पैदा कर रह
ह। औ यो गक े क वृ के कारण लोग अपनी पर परागत, नवहनीय, ामीण
जीवनशैल को छोड़कर उ योग के इद गद वक सत नगर क ओर आ रहे ह। इसके
कारण अ धक जनसं या घन व वाले इन नगर य े के आस-पास क जमीन िजतना
कु छ पैदा करती है और इन े क भार आबाद का जो उपभोग तर है, उसके बीच
अ तर बढ़ा है। न दय और झील का पानी, खे तहर े से ा त खा य पदाथ ,
चारागाह े के पालतू पशु ओं और जंगल से ा त इमारती लकड़ी, जलावन, नमाण
साम ी और दूसरे संसाधन के बना ये नगर-के बने भी नह रह सकते। औ यो गक
वृ , नगर करण, जनसं या वृ तथा उपभो ता व तु ओ.ं म भार वृ ने पयावरण पर
भार दबाव डाला है। इन सबके कारण कृ ष, मृदा , जल, वन तथा ख नज े मे दूषण
के कारण मानव के वा य पर गंभीर भाव पड़े ह।
13.2 अवधारणा
संसाधन, पयावरण और मानव तीन कृ त के अ भ न त व घटक ह। कृ त के जै वक
(Biotic) और अजै वक (Abiotic) घटक के समु चय को पयावरण कहा जाता है। इ ह ं
घटक के य और अ य त व और शि तय को संसाधन कहा जाता है, िजनम मानव
क आव यकताओं क पू त क मता होती है। मनु य क आव यकताएँ अन त ह, जब क
संसाधन सी मत ह। 20 वीं शता द म मानव के ान तथा व ान क उ न त के कारण
संसाधन के वदोहन म वृ होती गई दूसर ओर व व क जनसं या म व फोटक प
से वृ होती गई। मानव अपनी बौ क कु शलता और चातु य से कृ त के अ धका धक
उपादान का उपयोग करने म सफल रहा है। इस म म मानव समाज क कृ त पर
नभरता धीरे -धीरे कम होने लगी, य क मानव क आव यकताएँ बढ़ती गई, िजनक पू त
के लए जहाँ एक ओर नए संसाधन क खोज शु हु ई, वह ं संसाधन के दोहन क
तकनीक म बदलाव आने लगा। 18 वीं शता द म आ थक वकास, वशेषकर औ यो गक
262
ां त के सू पात के साथ ह संसाधन के दोहन का म शु हु आ। इस युग म मानव,
आ थक मानव के प म प रव तत हो गया। इस आ थक मानव के वारा संसाधन के
दोहन से जहाँ एक ओर उनके संसाधन का भ डार कम होने लगा, वह ं इनके अ धका धक
योग से उ प न अप श ट के कारण दूषण का खतरा भी बढ़ता गया है। इन अप श ट
के कारण जीवन के आधार त व यथा- वायु जल, मृदा आ द दू षत होकर ग तशील
कहे जाने वाले समाज के लए चु नौती बनने लगे ह। इसी म म तकनीक मानव ने
कृ त को वश म करने के नाम पर ऐसे योग का शु भार भ कया क कृ त के आधार
त व एक के बाद एक गुण खोने लगे। मृदा उपयोग क नत नई व धय के कारण मृदा
बांझपन क ओर उ मुख होने लगी है। इसी कार वायु और जल अपनी गुणव ता खोने
लगे ह। वन वनाश से जहाँ एक ओर स बि धत संसाधन क कमी होने लगी है, वह ं
पयावरणीय क ठनाइयाँ भी कट होने लगी ह। जैव व वधता भी वन वनाश से भा वत
हु ई है, जो पयावरण सतु लन के लए आधार प है। संसाधन क कमी और पयावरण के
दूषण से व वध कार क बीमा रयाँ, कु पोषण और असंतोष के कारण जीवन क
गुणव ता म भी हास होने लगा है।
आ थक वकास के नाम पर कृ त के संसाधन के दोहन ने रा सी प ले लया है।
वक सत समाज यह तय नह ं कर पा रहा है क कृ त के उपादान के शोषण क या
सीमा ह। प रणामत: मानव और कृ त के स ब ध बगड़ने के कारण ह पयावरण
स ब धी अनेक सम याएँ कट होने लगी है। वकास के कारण ज म लेने वाल
पयावरणीय सम याएं मु यत: पांच कार क होती ह :
1. मनु य क शार रक मता को भा वत करने वाल सम याएं- रोग, जल एवं वायु
दूषण आ द।
2. भू भाग को नवास के अयो य बनाने वाल सम याएं, यथा खतरनाक कूड़ा करकट,
वन दूषण।
3. संसाधन के अनुकूलतम उपयोग म बाधा डालने बाल सम याएं - मृदा अपरदन,
जल लावन, लवणीकरण, ार करण आ द।
4. पा रि थ तक तं को बा धत करने वाल सम याएं- तापीय दूषण, जैव भूरसायन
च म बाधा, जैव व वधता म कमी।
5. स पूण जैव मंडल को भा वत करने वाल सम याएं- काबन डाइ आ साइड का
एक ण, ओजोन क कमी, उ मा संतु लन म प रवतन आ द।
इस सम याओं जनस या के बढ़ते दबाव के कारण संसाधन का अ त दोहन तथा वक सत
दे श म अ त उपभोग है।
263
13.3 कृ ष संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं
समाधान
आज हमारा भोजन पूर तरह कृ ष, पशु पालन और मछ लय पर नभर है। कृ ष क
आधु नक व धयाँ जो पूर तरह अ नवहनीय ह और रासाय नक खाद और क टनाशक का
अ त-उपयोग करके हमारे पयावरण को दू षत कर रह ह।
हम जानते ह क वन प त जीवन का आधार है और मृदा वन प त क जननी है। मृदा के
दूषण से वन प तयाँ भी दू षत हो रह ह। मृदा म न हत वषैल साम ी रासाय नक
या कर पौध म पहु ँ च जाती है। यह नह ं उवरक के अ धक उपयोग से नाइ ोजन,
पोटाश और फॉ फेट आ द के अंश पौध म बढ़ते जा रहे ह, जो उनक सहन सीमा से
अ धक है। वाभा वक है क ऐसी दशा म पौध दू षत हो रह ह। इसी कार क टनाशक
दवाएँ भी पौध के दूषण को बढ़ावा दे रह ं ह। अ ल वषा भी पौध के दूषण का एक
कारण है। वायु दूषण का भी कु भाव वन प तय पर पड़ रहा है। नगर और कारखान से
नकला कचरा, ग दा जल और रासाय नक साम ी को भी हण कर वन प तयाँ दू षत
हो रह ह।
अनेक वकासशील दे श म जहाँ आबाद तेजी से बढ़ रह है, खा य उ पादन उतनी ती ता
से नह ं बढ़ पा रहा है। खा या न उ पादन बढ़ाने के लए दो तरह के यास कए गए।
एक, कृ ष का नवीन े पर व तार, दूसरे , एक ह भू म से अ धक से अ धक उ पादन
लेने का यास। कृ ष व तार के कारण वन और चारागाह का वनाश हु आ। कृ ष के
गहनीकरण से भी भू म क गुणव ता म कमी आई। व व के 105 वकासशील दे श म से
64 दे श म खा य उ पादन उनक माँग से कम है। भारत उन दे श म से एक है जो कृ ष
यो य भू म के एक बड़े भाग पर संचाई के सहारे खेती करके पया त खा य उ पादन म
समथ हु ए ह। वष 1960 के दशक क ह रत ाि त ने दे श म भु खमर क सम या को
कम कया। ले कन इसके कारण अनेक कु भाव पड़े। हमार उपजाऊ जमीन का अ धक
तेजी से दोहन कया गया। वन , घास के मैदान और दलदल जमीन पर कृ ष करने से
पयावरण स ब धी गंभीर न उठे ह।
भारत म कृ ष-यो य भू म क कमी है और खेत का आकार छोटा है। हर पीढ़ के साथ
खेत और भी छोटे होते जाते ह। कृ ष क अनेक व धयाँ, जैसे -कोटा-जलाओ, हम खेती,
वन का नाश करती ह।
संसार म हर साल 50 से 70 लाख हे टे यर खेती हर जमीन का ास हो रहा है। पोषक
त व म कमी और खेतीहर रसायन का अ त-उपयोग भू म- ास के मु ख कारण ह। जल
क कमी खेती क कम उपज का एक मह वपूण कारण है। खारापन (salinization) और
जलभराव (Water Logging) ने दु नयाभर म बहु त अ धक खे तहर जमीन को भा वत
कया है।
264
फसल पौध क जै वक व वधता म कमी खेती क उपज म कमी का एक और कारण है।
चावल गेहू ँ और म का दु नया क दो- तहाई जनता का थायी भोजन है। संसार के मैदान ,
नम भू मय और दूसरे ाकृ तक आवाम म फसल पौध के व य समतु य का नाश हो
रहा है। इस लए रोग, खारापन आ द का तरोध करने म स म क म के वकास क
मता भी कम हो रह है। जन नक अ भयां क (Genetic Engineering) पर परागत
संकर क म का एक नया आजमाया गया और जो खम भरा वक प है।
खा य और कृ ष संगठन नवहनीय कृ ष क प रभाषा ऐसी कृ ष के प म करता है जो
भू म, जल तथा पौधा और ाणी पी संसाधन को सु र त रखे, पयावरण का हास न
करे , तथा आ थक ि ट से यावहा रक और सामािजक ि ट से वीकाय हो । हमारे
अ धकांश बड़े फाम एक फसल उगाते ह । अगर इस फसल को क ड़े लग जाएँ तो पूर
फसल न ट हो सकती है और कसान को उस साल कोई आय नह ं होती । दूसर ओर
कसान अगर पर परागत क म का योग कर और अनेक अलग-अलग फसल उगाएँ तो
पूर असफलता क संभावना काफ घट जाती है । अनेक अ ययन से प ट है क
अकाब नक खाद और क टनाशक के वक प का उपयोग कया जा सकता है । इसे
समि वत फसल ब ध (Integrated crop Management) कहते ह ।
265
3. ' समि वत फसल ब ध ' कसे कहते ह ?
............................................................................................
.......................................................... ..................................
4. सं सार म त वष लगभग कतने हे टे यर खे तीहर भू म का ास हो रहा
ह?
............................................................................................
................................................ ............................................
267
से कम उपयोग कया जा रहा है। जल संसाधन का न न ल खत े म उपयोग कया
जाता है : -
1. संचाई म उपयोग : जल का सवा धक उपयोग संचाई काय म कया जाता है।
संचाई काय म सतह एवं भू-जल का उपयोग कया जाता है। सतह जल का उपयोग
नहर एवं तालाब वारा कया जाता है जब क भू-जल का उपयोग कु ओं तथा नलकू प
वारा कया जाता है। व व का एक चौथाई भू-भाग ऐसी शु क दशाओं वाला है जो
पूणतया संचाई पर नभर करता है। तु क तान, पि चमी ए शयाई े , म क
घाट , यूरोपीय नद बे सन, ला लाटा बे सन (द णी अमे रका), नाइजी रया,
आ े लया का मरे -डा लग बे सन आ द नहर े संचाई के अ तगत ह। इसी कार
मानसू न ए शया म भी वषा पो षत े (Rainfed Areas) अ त र त े संचाई
पर नभर ह जो खा याभ उ पादन के मह वपूण े ह। यहाँ चावल, गेहू,ँ ग ना,
कपास आ द का वृहत ् तर पर उ पादन कया जाता है।
2. उ योग म उपयोग : कुल शु जल संसाधन का 23 तशत भाग उ योग म
उपयोग कया जाता है। यह कारण है क अ धकांश उ योग जल ोत के नकट
था पत कए जाते ह। उ योग मे जल का उपयोग भाप बनाने, भाप के संघनन,
रसायन के वलयन, व क धु लाई, रं गाई, छपाई, तापमान के नय ण
ं के आ क
एवं शीतक (Refrigeraters) के लए, लोहा-इ पात उ योग म लोहा ठ डा करने क
लए, कोयला धु लाई, चमड़ा शोधन तथा रं गाई, कागज क लु द बनाने के लए तथा
अ त एवं ार बनाने आ द म होता है।
3. घरे लू काय म उपयोग : घरे लू काय म पीने, खाना बनाने, नान करने, कपड़े धोने
आ द म जल का उपयोग कया जाता है। इसके अ त र त पशु ओं के लए भी जल क
आव यकता होती है।
4. नौ-प रवहन म उपयोग : न दय , नहर तथा झील म ि थत सतह जल संसाधन का
उपयोग नौ-प रवहन म कया जाता है। इसम नद या नहर के पानी के वाह क
दशा, जल रा श क मा ा तथा मौसमी भाव एवं न दय व नहर क ल बाई क
मु य भू मका होती है। यूरोप क राइन नद नौ-प रवहन क ि ट से सवा धक य त
है। इसके अ त र त नील, डे यूब , यांग ट सी, वो गा, मसी सपी, सेट लारस, सीन,
ए ब, मीकांग, इरावद , अमेजन तथा भारत क मपु , गंगा, गोदावर आ द न दय
म नौ-प रवहन सु वधा है।
5. नहर : नहर का नमाण जल के बहु े यीय उपयोग के लए कया जाता है िजनम
संचाई, प रवहन, जल- व युत , बाढ़ नयं ण आ द मु ख ह। जल संसाधन के
बहु े यीय उपयोग क ि ट से चीन क ा ड केनाल (1990 कमी. ल बी) मु ख है।
भारत म दामोदरन घाट योजना उ लेखनीय है।
268
6. जल व युत म उपयोग : जल से व भ न प म शि त उ पादन कया जा रहा है।
व व क कु ल जल व युत मता का लगभग 41.4 तशत भाग अ का महा ीप
म पाया जाता है; ले कन यहाँ व व उ पादन का 1 तशत भाग ह उ पा दत कया
जाता है। ए शया म व व के कु ल व युत शि त क संभावना का 21.4 तशत,
द णी अमे रका म 86 तशत है। वक सत दे श म कु ल उ पा दत जल व युत का
82 तशत उ पादन होता है अत: उ पा दत एंव संभा य मता म भार अ तर पाया
जाता है।
जब जल के वाभा वक गुण म प रवतन हो जाता है, तथा इसका कु भाव सजीव के
वा य पर पड़ता है तो उस जल को दू षत जल कहते ह। जल का दूषण भौ तक और
मानवीय ोत से होता है, ले कन मानवीय कारक अ धक भावशाल होते ह। मानवीय
कारक म न न ल खत मु य है :
1. नगर का गंदा जल और मलमू ,
2. कल कारखान क या य साम ी,
3. र डयोधम अप श ट,
4. क टनाशक एवं रासाय नक उवरक,
5. जैवीय साम ी,
6. जलयान के रसाव से नकला पे ो लयम,
व व म जल दूषण का े ीय व प इं गत करता है क अ धक औ यो गक एवं अ धक
नगर कृ त े म अ धक जल दूषण जाया जाता है। इस ि टकोण से यूरोप , उ तर
अमे रका और जापान अ णी दे श ह जहाँ जल दूषण सवा धक पाया जाता है। वकासशील
दे श म जल दूषण क घटना आरि भक अव था म है। अ वक सत दे श इससे मु त ह।
भारत अपने जल को तेजी से दू षत कर रहा है।
269
3. भू मगत जल का ववेकपूण उपयोग : भू-जल क उपल ध मा ा ि थर सी है, पर तु
इसक माँग नर तर बढ़ती जा रह है िजसम भू जल क मा ा कम होती जा रह है।
भू जल का दोहन एक बार होने के उपरा त पुन : पू त काफ ल बे समय म हो पाती
है। अत: भू जल का ववेकपूण उपयोग करना चा हए।
4. जनसं या नयं ण : जनसं या म ती वृ तथा जल संसाधन म ादे शक प म
मा ा मक एंव गुणा मक कमी आने से जल संकट ने उ प ले लया है। जनसं या
वृ के साथ ह कृ ष एवं उ योग का व तार तथा नगर करण बढ़ा है, िजसम
व छ जल क माँग भी बढ़ है। अत: जनसं या नयं ण के वारा भी जल क माँग
को नयं त कया जा सकता है।
5. संचाई क उ नत व धय का योग : संचाई क उ नत व धयाँ अपनाकर जल के
बड़े भाग को बचाया जा सकता है। फ वारा (Sprinkler) तथा बूँद-बूँद संचाई प त
से जल क 50 तशत बचत होती है। इस कार संचाई म, जहाँ जल का सवा धक
उपयोग होता है, संर ण के लए फसल त प के अनुसार उ नत संचाई प तयाँ
अपनाई जानी चा हए।
6. वनावरण म वृ : वगत वष म ती ग त से कए गए वनो मू लन के कारण वषा
जल का अ धकांश भाग बना भू मगत हु ए सागर म मल रहा है। फल व प वषा
जल ती ता से वा हत होकर न दय म मल जाता है। ऐसा ह उ तरांचल के दे हरादून
े म भी हो रहा है। वृ ारोपण से जल का रसाव बढ़ता है िजससे भू जल का तर
बना रहता है। बाढ़ जैसी सम याएं भी कम होती ह।
7. कृ ष त प म प रवतन : जलवायु के अनुसार फसल बोने पर अ त र त जल क
आव यकता नह ं होती है ले कन वकास के वतमान दौर म अ धक लाभकार फसल
ने थान पाया है। इन यापा रक फसल को अ धक जल क आव यकता होती है।
अत: कृ ष जलवायु दशाओं के अनुकू ल फसल त प अपनाया जाना चा हए।
8. बाढ़ ब धन : व व म बाढ़ के प म व छ जल का बड़ा भाग उपयोग म न
आकर वनाशक बन जाता है। तटब ध व नहर का नमाण करके बाढ़ के नुकसान से
बचाव के साथ-साथ जल के बाढ़ भाग को संर त कया जा सकता है। भारत म इस
ि ट से गंगा, यमु ना, महानद , दामोदर, कोसी आ द के अपवाह त को बाढ़
ब धन के अ तगत लेकर बाढ़ से सु र ा दान क गई है।
9. उ योग म जल बचत : उ योग से जल दूषण को बचाने के साथ ह अप श ट जल
क शु करके पुन : उपयोग कया जाना चा हए।
10. शहर अप श ट जल का पुन : उपयोग : अनेक दे श म शहर जल को उपचा रत करके
शहर के नकटवत खेत म सि जय तथा फल उगाने म कया जाता है। जल संर ण
के साथ ह व भ न आव यकताओं क पू त भी होती है।
बोध न-2
1. ' मृ दा ास' से आप या समझते ह ?
270
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2. मृ दा सं साधन ास को रोकने के मु य उपाय कौनसे ह ?
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3. जल का सवा धक उपयोग कसके होता है ?
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4. फ वारा तथा बूँद -बूँद संचाई प त से कतने तशत जल क बचत होती
है ?
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272
13.7 ख नज संसाधन उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं
समाधान
सामा य श द म वे सभी पदाथ जो पृ वी के धरातल अथवा उसके गभ से खनन वारा
ा त कए जाते ह, ख नज पदाथ कहलाते ह। आधु नक युग म ख नज संसाधन का मह व
बहु त अ धक है। आज कसी भी दे श क एवं आ थक वकास का तर ख नज के उपयोग
क मा ा से आँका जाता है। कृ ष, उ योग, प रवहन एवं संचार आ द सभी का वकास
ख नज स पि त पर आधा रत है। इसके अ त र त औष ध नमाण, मनोरं जन, सौ दय
साधन और श ा आ द े म भी य एवं परो प म ख नज का योग कया
जाता है।
खनन उ योग को एक लु टेर अथ यव था क सं ा द जाती है। ख नज संसाधन
अनवीकरणीय संसाधन ह, अथात ् एक बार योग कए जाने के बाद सदै व के लए समा त
हो जाते ह। औ यो गक वकास के ख नज क मांग बढ़ रह है। ख नज का िजतना
अ धक दोहन बीसवीं सद म हु आ, उतना प हले कभी नह ं हु आ।
खनन या के कारण अनेक पयावरणीय सम याएँ भी उ प न हो रह है :
1. जैव व वधता का न ट होना।
2. वन वनाश होना।
3. थल प के व प म प रवतन कया जाना।
4. भू ग भक जल का ास होता जाना।
5. े वशेष के अपवाह-त का भा वत करना।
6. पयावरण दूषण वशेषकर भू म- दूषण को बढ़ावा दे ना।
7. खनन-अप श ट का अ नयं त ग त से बढना।
273
4. कम मू य या कम मांग क ि थ तय म शेष पदाथ का सं ह संर ण क ि ट से
मह वपूण है, य क उनको तकनीक वकास वारा योग म लाया जा सकता है।
5. उ ख नत ख नज अय क से अ धका धक धातु ाि त के यास कए जाने चा हए।
6. न न को ट के ख नज उपयोग क तकनीक वक सत क जानी चा हए।
7. ख नज का बहु े यीय योग कया जाना चा हए ता क उन ख नज से अ धकतम
उपयो गता ा त क जा सके।
8. िजन ख नज का भ डार सी मत ह, उनके वक प पदाथ क खोज क जानी चा हए।
9. ख नज संसाधन क त को रोकने के उपाय कए जाने चा हए।
बोध न-3
1. ' वन ' कसे कहते ह ?
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2. व व म कतने तशत भू - भाग पर वन ह ?
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3. ' ख नज ' कसे कहते ह ?
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4. ' एक लु टे र अथ यव था' कसे कहा जाता है ?
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274
तापमान क घट-बढ़, जीवांश का असंतु लत अनुपात और दूषक के म ण से उ प न
होता है। मृदा ास क रोकने के उपाय म क टनाशक के योग पर नयं ण, रासाय नक
उवरक का संतु लत उपयोग, नगर य दू षत जल, कू ड़ा और रसायन का शु करण के
बाद न पादन, जल जमाव क रोकथाम और भू म का संतु लत उपयोग वशेष मह वपूण
है। जल का सवा धक उपयोग संचाई म कया जाता है, जब क वतीय थान औ यो गक
उपयोग का है। घरे लू व अ य उपयोग म केवल 7 तशत जल का ह उपयोग कया
जाता है। जल के वाभा वक गुण म प रवतन हो जाता है, िजसका कु भाव जीव के
वा य पर पड़ता है तो उस जल को दू षत जल कहते ह। जल संसाधन ास को रोकने
के उपाय म जल क दूषण से सुर ा, जल का संर ण, भू मगत जल का ववेकपूण
उपयोग, जनसं या नयं ण, संचाई क उ नत व धय का योग, वनीकरण म वृ , कृ ष
त प म प रवतन, बाढ़ ब धन, उ योग म जल बचत, शहर अप श ट जल का पुन :
उपयोग आ द मु ख ह।
वृ एंव झा ड़य से आवृ त बड़े भू-भाग को वन कहते ह। वन एक अमू य संसाधन है।
इसे 'हरा सोना' भी कहते ह। वन वनाश के कारण जलवायु पर तकूल भाव, बाढ़ क
पुनरावृ त , तापमान म वृ , मृदा अपरदन म वृ , जैव व वधता का ास आ द मु ख
दु भाव पड़ते ह।
वे सभी पदाथ जो पृ वी के धरातल अथवा उसके गभ से खनन वारा ा त कए जाते ह
ख नज पदाथ कहलाते ह। खनन उ योग को एक लु टेर अथ यव था क सं ा द जाती है।
ख नज अनवीकरणीय संसाधन ह। खनन के कारण जैव व वधता का न ट होना, वन
वनाश, थल प के व प म प रवतन, भू ग भक जल का हास, भू म दूषण आ द
पयावरणीय भाव पड़ते है। ख नज संसाधन के ास को रोकने के उपाय कए जाने
चा हए।
275
समि वत फसल ब ध : कृ ष म अकाब नक खाद और क टनाशक के वक प के
प म जै वक पदाथ का उपयोग करने को कहते ह।
जैव व वधता : कसी दे श म पाए जाने वाले व वध कार के जीव-ज तु ओं और
पादप क सं या।
मृदा ास : मृदा क गुणव ता का घटना
शु क कृ ष : 50 से मी. वा षक वषा वाले े म बना संचाई के क जाने वाल
कृ ष।
13.10 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. कृ त के जै वक और अजै वक घटक के समु चय को पयावरण कहते ह।
2. ऐसी कृ ष जो भू म, जल तथा पौधा और ाणी पी संसाधन को सु र त रखे तथा
आ थक यावहा रक और सामािजक ि ट से वीकाय हो।
3. कृ ष म अकाब नक वाद और क टनाशक के वक प का उपयोग करने को
समि वत फसल ब ध कहते ह।
4. लगभग 50 से 70 लाख हे टे यर।
बोध न- 2
1. मृदा क गुणव ता घटने को मृदा ास कहते ह।
2. क टनाशक के योग पर नयं ण, रसाय नक उवरक का संतु लत उपयोग, नगर य
दू षत जल, कू ड़ा और रसायन का शु करण के बाद न पादन आ द मह वपूण ह।
3. संचाई काय म।
4. 50 तशत जल क ।
बोध न- 3
1. वृ एवं झा डय से अवत रत बड़े भू-भाग को वन कहते है।
2. 31 तशत।
276
3. वे सभी पदाथ जो पृ वी के धरातल अथवा गभ से खनने वारा ा त कए जाते ह,
ख नज कहलाते ह।
4. खनन उ योग को।
13.11 अ यासाथ न
1. संसाधन उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान क संक पना को समझाइए।
2. कृ ष संसाधन के उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान क ववेचना
क िजए।
3. मृदा एवं जल संसाधन के उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान का
व तृत ववेचन क िजए।
4. वन एवं ख नज संसाधन के उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान पर
एक नब ध ल खए।
277
इकाई 14 : संसाधन उपयोग : प रवहन एवं यापार
(Resource Utilization : Transport
and Trade)
इकाई क परे खा
14.0 उ े य
14.1 तावना
14.2 प रवहन
14.2.1 प रवहन का मह व व वकास
14.2.2 प रवहन आधार
14.2.3 प रवहन के कार
14.2.3.1 सड़क प रवहन
14.2.3.2 रे ल प रवहन
14.2.3.3 आ त रक जल प रवहन
14.2.3.4 सामु क प रवहन
14.2.3.5 वायु प रवहन
14.3 अ तरा य यापार
14.3.1 यापार को भा वत करने वाले कारक एवं दशाएं
14.3.2 मु ख यापा रक संघ
14.3.3 यापार क संरचना
14.3.4 यापार क वाह दशा
14.4 सारांश
14.5 श दावल
14.6 स दभ थ
14.7 बोध न के उ तर
14.8 अ यासाथ न
14.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे : -
प रवहन का कसी दे श के आ थक वकास के लए मह व,
प रवहन के वकास के आधार
प रवहन के कार क जानकार
वभ न कार के प रवहन के बारे म जानकार
अ तरा य यापार क संरचना तथा मह व
278
अ तरा य यापार के वाह क दशा
व व के मु ख यापा रक संघ क जानकार
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भा वत करते ह। प रसंचरण (circulation) के अ तगत प रवहन तथा संचार दोन
सि म लत होते ह। व तु ओं या यि तय के एक थान से दूसरे थान पर आवागमन को
प रवहन (Transport) कहते ह तथा संदेश, वचार आ द के आदान- दान को संचार कहते
ह।
वगत दो सौ वष म प रवहन के साधन का वकास बहु त ती ग त से हु आ है। 18वीं
शता द म सड़क का तथा जल प रवहन के लए नहर का वकास हु आ। उ नीसवीं
शता द म रे लगा ड़य तथा भाप से चलने वाले जल पोत का वकास हु आ। बीसवीं
शता द म मोटर प रवहन व वायुयान का वकास हु आ। 19वीं शता द म जहाँ व भ न
शहर क या ा करने म मह न लग जाते थे वह ं आज कु छ घ ट या दन म यह पूण
कर ल जाती है। इस कार प रवहन के वकास वारा पृ वी पर ल बी-ल बी दूर पर
ि थत े भी अब समीप थ हो गये ह।
280
14.2.3 प रवहन के कार (Means of Transport)
संसार म सड़क माग का योग ाचीन काल से होता रहा है। स यता के ार भ से ह
सड़क का वकास हु आ। ार भ म सड़क क ची होती थी। आधु नक प रवहन के साधन के
प म सड़क का वकास मोटरगाड़ी के आ व कार के बाद हु आ।
सड़क प रवहन का मह व
सड़क प रवहन वारा या य तथा माल ढोने म सु वधा रहती है।
यह प रवहन का सबसे सु गम साधन है।
सड़क गाँव को नगर से जोड़ती ह।
सड़क रा य एकता म सहायक होती ह। इनसे दुगम थान पर आसानी से पहु ँ चा जा
सकता है।
सड़क वारा शी न ट होने वाल व तु ओं को उपभोग थान पर भेजना आसान
होता है।
सड़क का वतरण
सड़क व व के सभी दे श म पायी जाती ह। संयु त रा य अमे रका म व व के कु ल
सड़क माग का एक तहाई भाग पाया जाता है। व व म वक सत दे श म सड़क का
घना जाल फैला है। संयु त रा य अमे रका तथा पि चमी यूरोप अ णी रा ह। यहाँ पर
मोटरकार एवं यापा रक गा ड़य क सं या अ धकतम है। भारत का सड़क क ि ट से
व व म दूसरा तथा ए शया म थम थान है। यहाँ पर लगभग 33 लाख कलोमीटर
सड़क ह। वेनेजु एला, कोलि बया, नेपाल, सू डान, बां लादे श, भू टान, माल , रोडो शया आ द
मे मोटरकार तथा यापा रक गा ड़य क सं या कम होने से सड़क क ल बाई कम है।
ता लका - 14.1 : व व के मु ख दे श म सड़क माग ल बाई (लाख कमी.)
281
दे श सड़क दे श सड़क
संयु त रा य अमे रका 63.11 ांस 8.9
282
पूव सो वयत संघ 160 यूनाइटे ड कं गडम 40
कनाडा 75 प० जमनी 35
भारत 70 जापान 30
ांस 45 इटल 25
आ े लया 45 पोलै ड 25
मु ख दे श मे रे लमाग
1. संयु त रा य अमे रका : ल बाई क ि ट से संयु त रा य अमे रका का थम थान
है। यहां पर व व के 26% रे ल माग ि थत ह। दे श का लगभग 4% अ तरा य
यापा रक माल रे ल वारा ढोया जाता है। संयु त रा य अमे रका म अटलां टक तट
से लेकर वशाल मैदान के पूव भाग तक रे ल माग का सघन जाल पाया जाता है।
यह दे श संयु त रा य अमे रका का सबसे घना आबाद दे श है। पि चमी संयु त
रा य अमे रका म रे ल माग बहु त कम है, य क वहाँ जनसं या कम है।
संयु त रा य अमे रका म अ धकांश रे ल माग रे खीय त प (Linear Pattern) म
पाये जाते ह। यहाँ पर पहले रे ल माग बने तथा बाद म इन माग के सहारे -सहारे
बि तयाँ था पत क गई। भार रे ल यातायात पाँच े म पाया जाता है -
(i) ल वलै ड, प सबग, फलाडेल फया से यूयाक तक
(ii) पि चमी वज नया, के टु क के कोयला े से टोलेडो और नोफ क को
जाने वाला रे ल माग
(iii) बफैलो से यूयाक तक
(iv) बफैलो से ै टन होकर फलाडेल फया तक, एवं
(v) शकागो जाने वाले अनेक रे ल माग।
शकागो व व का वृह तम रे लवे जं शन है, िजसम 21 ं क लाइन ह।
संयु त रा य अमे रका म अटलां टक तथा शा त महासागर य तट के बीच तीन मु ख
ास महा वीपीय रे ल माग ह (मान च - 14.1)।
284
म थल जलवायु क तकूल दशाओं के कारण रे ल माग का वकास बा धत रहा है।
पूववत सो वयत संघ के मु ख रे ल माग न न ल खत ह
(i) ांस-साइबे रयन रे ल माग : - यह संसार का सबसे ल बा रे ल माग है जो
से ट पी सबग से ार भ होकर ला दवो तक तक 9560 कमी. ल बा है
(मान च - 14.2)।
इस रे ल माग को वष 1945 म दोहरा कया गया। यह रे ल माग पूव को
पि चम से जोड़ता है। इस रे ल माग वारा साइबे रया के वन संसाधन , कृ ष
साधन और ख नज संसाधन का वकास स भव हु आ है तथा ये संसाधन
यरोपीय दे श को भेजे जाते ह तथा बदले म व न मत माल ा त कया
जाता है। इस रे ल माग के मु ख टे शन ले नन ाद, मा को, टू ला,
कजानउफा, चे पा व क, कु रगन, वडलोव क, ओम क, टोम क, इकुट क
तथा ख ोव क ह। इस रे ल माग क अनेक ांच लाइन नमाण कया गया
है, जो यूराल दे श, कु जबास दे श, म यवत साइबे रया तथा सदुर पूव को
लाभाि वत करती है ।
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3. आधु नक प रवहन साधन के नाम ल खए।
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4. व व म सड़क क ल बाई सबसे अ धक कस दे श म पाई जाती है ?
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5. सं यु त रा य अमे रका म रे ल माग का त प या है ?
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6. उ तर कनाडा म रे ल मागा के वकास म मु ख सम याएँ या ह ?
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287
डै यूब नद आि या, हंगर , रोमा नया, यूगो ला वया , आ द दे श के बीच माल का
प रवहन करती है।
मान च - 14.3
2. उ तर अमे रका के आ त रक जल माग : उ तर अमे रका म आ त रक प रवहन
काय महान झील -सु पी रयर, म शगन, हयूरन , ईर तथा आ टे रयो झील माग वारा
कया जाता है। महान झील से ट लारे स जल माग 2400 कलोमीटर ल बा
आ त रक जल माग है। इन महान झील के दोन ओर अमे रका के मह वपूण कृ ष,
वन, खनन तथा व नमाण े ि थत है। महान झील वारा दे श का 10% वदे शी
तथा लगभग 10% घरे लू जल य यापार होता है। उनके वारा भार क चा माल, लोहा
अय क, कोयला, लकड़ी, धातु ए,ँ का ठ, आ द का प रवहन होता है। वशाल पोत भार
सामान का प रवहन कम मू य पर करते ह। पतन आधु नक मशीनर तथा अ य
सु वधाओं से स प न है। हडसन-मोहोक नगर वारा ओ टे रयो े को स बि धत
कर दया गया है। इस कार क चे माल व उ पा दत साम ी का प रवहन होता है।
मसी सपी, मसौर , ओ हयो, मोनोगहे ला आ द न दयाँ वष भर ना य रहती ह। इन पर
क चे माल, उ पा दत साम ी, गेहू ँ म का, कपास आ द का प रवहन होता रहता है।
3. पूववत सो वयत संघ के आ त रक जल प रवहन- पूव सो वयत संघ म नीपर, वो गा,
डोने ज, आ द न दयाँ वषभर ना य रहती ह। इन दोन न दय को ले नन दोन-वो गा
केनाल वारा जोड़ा गया है। यह नहर प रवहन के लए बड़े मह व क है।
ओब, य नसी, ल ना, इर तश, आ द न दयाँ उ तर क ओर आक टक सागर म गरती
ह। ये न दयाँ ी म काल म ना य रहती ह, मगर शीतकाल म तापमान कम होने के
कारण हम से जम जाती ह। इन न दय के मु हाने दलदल है, जो प रवहन म बाधक
होते ह। इन पर े टर वारा प रवहन कया जाता है।
4. ए शया के आ त रक जल प रवहन- ए शया के मु ख आ त रक जल माग चीन,
भारत, तथा द णी पूव ए शया के दे श म ि थत ह। ये जल माग उन े के लए
वशेष मह वपूण ह जहां रे ल तथा सड़क का कम वकास हु आ है।
(i) चीन म वांगहो, यांि टसी यांग और सी यांग न दय पर जल पोत तथा नाव के
वारा प रवहन होता है। ये न दयाँ पि चम से पूव क ओर बहती ह।
(ii) भारत म गंगा नद के मु हाने से लेकर इलाहाबाद तक तथा मपु नद के
मु हाने से लेकर ड ग
ू ढ़ तक नौकाओं वारा प रवहन काय कया जाता है। इन
288
न दय वारा प रवहन का काय ाचीन काल से ह कया जाता रहा है। इन
न दय म मु ख प से लकड़ी, चू ना, अय क आ द भार माल का प रवहन
कया जाता है।
(iii) यांमार, थाइलै ड, क बो डया आ द से लकड़ी और वन उ पाद का प रवहन
इरावद , सालवीन, मकाँग आ द न दय वारा कया जाता है।
289
सागर, वेज नहर, लाल सागर, ह द महासागर वारा पि चमी यूरोप, म यपूव,
पूव अ का, द णी पूव तथा पूव ए शया और आ े लया तथा यूजीलै ड को
जोड़ता है। यह जलमाग अटलां टक जलमाग क अपे ा प रमाण क ि ट से कम
मह वपूण है, पर तु सामान क व वधता म यह सबसे मु ख है। इस माग से
ढोये जाने वाले सामान म -सोना, ऊन, सू ती व , क चा रे शम, ह क व युत
मशीनर , कार, चाय, कहवा, चमड़ा, ख नज पदाथ, खा या न, फल, पे ो लयम
आद मु ख होते ह। इस जलमाग के मु ख पोता म - सेनपीटसबग, हे बग,
ए टरडम, राटरडम, साउथे पटन, लवरपूल , ल बन, जेनोआ, नेप स, ओडेसा,
अदन, मु बई, कोल बो, संगापुर , पथ, ए लडेड, सडनी, मो बासा, ज जीबार,
डरबन, हांगकांग आ द ह।
वेज नहर माग यापा रक प रवहन क
ि ट से अ य धक मह व है। यह नहर
भू म य सागर तथा लाल सागर को
जोड़ती है। इस नहर का नमाण काय
च इंजी नयर फ डने ड- ड-लेसे स के
नदशन म ार भ हु आ था। इसका
नमाण काय 10 वष म पूण हु आ।
सन 1869 म इस नहर का उ घाटन
हो गया। म क सरकार ने इसका
रा यकरण वष 1956 म कर दया
था। सन 1967 म संयु त रा संघ
(UNO) ने इस रा यकरण को
सहम त द । इस नहर क ल बाई 162
कमी व चौडाई 60 मीटर तथा गहराई
10 मीटर है।
मान च –14.5 : वेज नहर क ि थ त
वेज नहर के भू म य सागर य तट पर पोट सईद पोता य है (मान च - 14.5)।
इसके द ण म यह नहर म झाला झील को पार करती हु ई अलकतरा,
अल फरदान और इ माइ लया नहर पोता य तक आने के बाद द ण म ि थत
ेट ल टल बटर और बटर झील को पार करती है। लाल सागर के तट पर
नहर के पि चम म वेज प तन तथा पूव म तौ फक प तन ि थत है। वेज नहर
के नमाण से यूरोपीय दे श तथा पूव ए शयाई दे श के म य दू रयाँ बहु त कम हो
गई है।
3. केप जलमाग - इस जल माग वारा पि चमी यूरोप एवं पूव अ का, पि चमी
एवं द णी अ का, आ े लया- यूजीलै ड से स बि धत है। यह माग अ य
290
माग क तु लना से स ता माग है य क इस माग वारा या ा तय करने वाले
पोत को वेज नहर माग का भार कर नह ं चु काना पड़ता, पर तु अपे ाकृ त
अ धक समय लगने के कारण इस माग से कम जहाज चलते ह। इस माग वारा
ताँबा, सीसा, लकड़ी, पे ो लयम, ख नज, चमड़ा, माँस, त बाकू, लोहा, व वध
कार क मशीन, कृ ष उपकरण तथा रासाय नक व तु ओं का प रवहन कया जाता
है। इस जल माग के मु ख पोता य-केपटाउन, पोट ए लजाबेथ, ए डलेड, मेलबोन
तथा सडनी ह।
4. द णी अटलां टक माग: यह जल माग द णी अमे रका के ाजील तथा
अज ट ना को यूरोप एवं उ तर अमे रका के अटलां टक तट य दे श से जोड़ता है।
रयो- ड-जेनेरो से जलयान केपटाउन होते हु ए पूव अ का, ए शया, और
आ े लया के लए भी जाते ह। यूरोप से आने वाले पोत मेडीरा तथा केपबड
वीप के आगे ाजील महान वृ त माग का अनुसरण करते ह। इस माग पर शु
तथा अशु पे ो लयम, का ठ, अखबार कागज, ताबाँ, औ यो गक रसायन आ द
का प रवहन कया जाता है। उ तर क ओर जाने वाले पोत खा य पदाथ, क चा
माल जैसे गेहू ँ म का, चीनी, त बाकू, लोहा अय क तथा अ य ख नज का
प रवहन होता है। यूरोप से आने वाले पोता लोहा- पात, रे लवे उपकरण,
औ यो गक मशीनर , मोटर-कार, क, रसायन आ द सामान का प रवहन करते
ह। इस जल माग के मु ख पोता य - रयो- ड-जेनेरो, सा टोस, मो टे व डयो,
तथा यूनस आयस ह।
5. कै र बयन सागर जल माग : इस माग से पूव संयु त रा य अमे रका, म य
अमे रका, तथा कैर बयन दे श के बीच माल का आदान- दान होता है। कैर बयन
सागर म ि थत वीप समू ह से तथा वेनेजु एला, गायना, सु र नाम आ द दे श से
उ तर अमे रका के पूव तट य ब दरगाह और यूरोप को खा य पदाथ व ख नज
पदाथ का नयात होता है। अमे रका और यूरोप से आयात कये जाने वाले माल
म मु यत: खा य पदाथ, रासाय नक पदाथ, मशीन, कागज, व तथा प रवहन
गा ड़याँ होती ह। इस जल माग के मु ख पोता य यू आ लय स, गेलवेटन,
हयू टन , मा रस वले, पैरोजपाइ ट, कोलोन, कं टन आ द ह।
6. शा त महासागर य माग : शा त महासागर व व के सभी महासागर म
वशालतम महासागर है, पर तु यापा रक प रवहन क ि ट से इसका मह व
बहु त कम है। इसके लए दो कारक उ तरदायी ह - (i) व व के दो महान
औ यो गक दे श (उ तर अमे रका तथा यूरोप ) अटलां टक के तट पर ि थत ह;
(ii) शा त महासागर म कोई ऐसा वीप नह ं है िजसका यापा रक मह व हो।
इसके अ त र त यह माग पनामा नहर के खु ल जाने से भी भा वत हु आ है। इस
नहर माग के कारण द णी शा त महासागर म मैगलन जल संयोजी- यूजीलै ड
माग पर पोत का आवागमन कम हो गया है।
291
उ तर शा त माग अमे रका के पि चमी तट को ए शया के दे श से जोड़ता है।
इस माग क एक शाखा चीन-जापान से पि चमी अमे रका तट को जाने के लए
ए यू शयन वीप के समीप वृहत -वृ त माग का अनुसरण करती है। इस माग क
दूसर शाखा हवाई वीप से होकर जाती है जो ए शयाई दे श को तथा आ े लया-
यूजीलै ड को जाती है।
इस माग के मु ख पोता य अमे रका म लॉस ऐंिजल स, सेन ां ससको, सीएटल,
पोटलै ड, वकु वर और स
ं पट तथा ए शया म टो कयो, याकोहामा, कोबे,
ओसाका, शंघाई और हांगकांग है।
पनामा नहर माग : अटलां टक महासागर और शा त महासागर को जोड़ती है।
इस नहर का उ घाटन 15 अग त 1914 को हु आ था। पनामा नहर को बनाने
के बारे म वचार सोलहवीं शता द म ह ार भ हो गया था पर तु इस वचार
को कायाि वत होने म बहु त ल बा समय लगा। इसका मु ख कारण इसके माग
म पवतीय बाधाएं थी, और इन बाधाओं को दूर करने के लए नहर म कई थान
पर लॉ स (जलपाश) बनाने पड़े थे।
292
हो जाती है। यूयाक-सेन ां ससको जाने म 13,000 कमी., यूआ लय स से
सेन ां ससको जाने म 14,200 कमी., ल वरपूल से सेन ां ससको जाने म
9,100 कमी., यूयाक से वालपरे जो जाने म 6,000 कमी. दू रय क बचत हु ई
है।
पनामा नहर वारा पि चम क ओर जाने वाले जहाज उ तर अमे रका के पूव
तट तथा यूरोप के पि चमी तट के ब दरगाह से व वध कार क साम ी ले
जाते ह। पूव संयु त रा य अमे रका से खा य पदाथ तथा कोयला, ाजील से
काफ , बो ल वया से ख नज उ पादन, चल से ताँबा, सीसा, ज ता, पी से
नाइ े ट का प रवहन इस नहर वारा कया जाता है। पनामा नहर वारा
आ े लया तथा यूजीलै ड से ऊन, म खन, पनीर, खाल, आ द पूव उ तर
अमे रका तथा यूरोप के दे श म भेजे जाते ह।
293
(ii) यूयाक , ल दन, ू े स,
स यू नख , यू रख, रोम, का हरा, कु वैत, कराँची, मु बई,
संगापुर , पथ, मेलबोन।
(iii) यूयाक , केपटाऊन, सडनी।
(iv) यूयाक , सेि टयागो।
(v) यूयाक , पनामा, होनोलू लू टो कयो।
(vi) ल दन, यूयाक , मां यल।
(vii) ल दन, यूयाक , शकागो, सेन ां स को।
(viii) ल दन, पे रस, रोम, का हरा, मु बई, संगापुर, सबेन, सडनी।
(ix) ल दन, यूयाक , पनामा, सेि टयागो।
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................................................................ ............................
3. वे ज नहर कौनसे दो सागर को जोड़ती है ?
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........................................... .................................................
4. पनामा नहर पर बनाये गये लॉ स के नाम बताइये ।
............................................................................................
.............................................................. ..............................
5. सं सार के तीन मु ख वायु माग के नाभीय दे श के नाम बताइये ।
............................................................................................
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295
जैसा क पूव इकाइय से प ट है क संसार म जनसं या का वतरण बहु त असमान है।
व व के अ धकांश भाग म बहु त कम लोग है। व व का लगभग 70 तशत भाग नजन
अथवा बहु त वरल बसा है।
भ न अथ यव था वाले े : शि त-चा लत मशीन के आ व कार के बाद मनु य के
वकास के लये आव यक संसाधन म कृ षीय संसाधन के साथ ह धाि वक ओर शि त के
साधन भी सि म लत हो गये ह। मशीन क मदद से वरल बसे उपजाऊ भू म से बड़े
पैमाने पर कृ षीय उ पादन करना संभव हु आ और म य अ ांशीय घास के मैदान अ न के
भंडार बन गये। इन े से सघन बसे े को अ न का नयात होने लगा। दूसर और
मशीनीकरण से बड़े पैमाने पर औ यो गक वकास हु आ। सघन बसे औ यो गक े के
म क मांग कृ ष से मु त मक से हु ई तथा खा य व तु ओं क मांग मशीनीकृ त बड़े
पैमाने क कृ ष से पूर हु ई। औ योगीकरण पुन : भौगो लक दशाओं पर नभर होता है।
उ योग का वकास क चे माल, शि त के साधन, बाजार, स ते मक क सु वधा,
प रवहन आ द क सु वधा पर नभर होता है। इन कारक का वतरण बहु त ह असमान
है। फलत: औ यो गक उ पादन म भी बहु त असमानता है। इ ह असमानताओं का
प रणाम व व - यापार है।
व वधता एवं उ पादन म व श ट करण : य य प मानव वतमान समय म व ान और
तकनीक क मदद से बड़े पैमाने पर व तु ओं का उ पादन एवं प रवहन करने म समथ
हु आ है; तथा प उ पादन क ाकृ तक सीमाएं अब भी भावी ह। जैसे क का उ पादन
उ ण क टब ध म ह सरल और स ता होता है। इसी तरह चाय, ग ना आ द जलवायु क
अनुकू लता के कारण उ ण क टब ध म ह पैदा कया जा सकता ह। इसी तरह उ योग भी
सव नह ,ं ऐसे जगह लगाए जाते ह जहाँ से यूनतम लागत लगा कर उपभो ताओं तक
न मत व तु एं पहु चाई जा सकती ह।
ख नज संसाधन एवं वकास : औ यो गक वकास के लये ख नज और शि त के साधन
क आव यकता होती है, पर तु मू लभू त ख नज और शि त के ोत का व व मे वतरण
बहु त अ धक असमान है। फल व प ख नज और शि त के साधन का बड़े पैमाने पर
यापार अ नवाय होता है। यहां तक क कु छ दे श का औ यो गक वकास ह ख नज के
आयात पर नभर है। जापान और ेट टे न इसके अ छे उदाहरण ह। आयात पर अ धक
नभरता के कारण पि चमी यूरोप और पूव सयु त रा य म बंदरगाह पर ह भार
धाि वक उ योग था पत कये गये ह। वतमान व व- यापार म ख नज क मा ा
सवा धक होती है। इसी तरह शि त के साधन भी मह वपूण यापा रक व तु ह। इनम
कोयला और पे ो लयम बहु त ह मह वपूण ह। यूरोप के सभी वक सत दे श कोयले का
आयात करते ह। पे ो लयम का वतरण और भी वल ण है। अ धकतर बड़े पे ो लयम
उपभो ता आयात पर नभर है। उदाहरण के लए सन ् 2006 म संयु त रा य अमे रका
तथा जापान त दन मश: 122 लाख बैरेल तथा 51 लाख बैरेल पे ो लयम का आयात
करके थम एवं वतीय थान ह।
296
अ य भौ तक दशाएं एवं यापार : व व म धरातल के व प, जलवायु, म ी और
ाकृ तक वन प त के वतरण म बहु त अ धक असमानता है। फलत: कृ ष उपज और वन
उ पाद म भी े ीय अंतर पाया जाता है। इस कारण इन व तु ओं का रा य और
अंतरा य यापार होता है। इस कार क व वधता उ प करने म जलवायु सबसे
मह वपूण है।
उदाहरण के लए ऐसी फसल ह िजनका उपभोग शीतो ण क टब ध के घने औ यो गक े
म होता है, पर तु जलवायु के कारण उनका उ पादन उ ण क टब ध म स ता एवं संभव
होता है, जैसे क चु कंदर उ पादन म वृ होने पर भी शीतो ण क टबंध क श कर क
मांग उ ण क टब ध के ग ना उ पादक े से होती है। इसी तरह केला, चाय, रबर आ द
का उ पादन उ ण क टबंध के े म केि त है िजनके मु ख आयातक यूरोपीय और
अमेर क दे श ह।
दूसर ओर म य अ ांश म ह गेह,ू ँ चु कंदर जैसी फसले पैदा क जाती ह। यह से गेहू ँ
व व- बाजार म पहु ंचता है। जलवायु क अनुकू लता के कारण ह भूम यसागर य े म
फल एवं सि जय का बड़े पैमाने पर उ पादन कया जाता है। इन का अंतरा य यापार
बड़े पैमाने पर कया जाता है। म य अ ांशीय अ शु क शीतल घास के े म भेड़ पालन
और इ ह भाग म पहाड़ी े म बकर पालन क अनुकू ल दशाय पायी जाती ह। इसी
कारण ये े व व म ऊन के धान उ पादन एवं नयातक े बने ह।
लोब पर दे श क ि थ त और उसका आकार भी अंतरा य यापार क ि ट से
मह वपूण रहा है। थल गोला के म य म ि थत होने के कारण टे न का यापा रक
मह व सवा धक रहा है। व व के मु ख समु य एवं वायु माग का यह के रहा है।
अमे रका और यूरोप के स प न दे श समीप ह और जु डे ह। वृह आकार के कारण सयु त
रा य अमे रका का अंतरा य यापार म वशेष थान बन गया है। कु छ छोटे दे श भी
त यि त अंतरा य यापार क ि ट से मह वपूण ह। इनम कु छ उ तर पि चमी
यूरोपीय दे श ह - जमनी, ांस, डे माक आ द। इनका अ धकांश यापार सीमावत दे श के
साथ होता है। यह अ तर-महा वीपीय यापार ह कु छ ऐसे छोटे दे श ह जहां यापा रक
मह व के संसाधन मौजू द ह और अपनी ि थ त के कारण अंतरा य यापार म मह वपूण
ह। अंतरा य यापा रक माग पर ि थत होने के कारण संगापुर, िज ा टन, हांगकांग,
साइ स और मा टा इनम उ लेखनीय ह।
इस तरह पयावरणीय व वधता के कारण व तु ओं के उ पादक एवं उपभो ता े म काफ
अंतर है। फलत: उ पादक े से उपभो ता े म व तुओं को पहु ंचाना आव यक होता
है। व तु ओं का उ पादन अनुकू ल दशाओं म स ता होता है, पर तु मांग के े म उनक
क मत अ धक होती यापार को भा वत करने वाले सामािजक, आ थक एवं सं थागत
कारक भौ तक पयावरण क व भ नता के अलावा सां कृ तक दशाय भी अकेले अथवा
संयु त प से यापार क मा ा और दशा नि चत करती ह। इनम मु ख ह : 1.
आ थक वकास का तर, 2. त यि त रा य आय, 3. वदे शी व नवेश, 4.
297
राजनै तक मै ी, 5. यापार नी त, 6. अ तरा य यापा रक समझौता, 7. रा य र त
रवाज एवं पर पराएं।
आ थक वकास का तर : पछड़े दे श के पास यापार क व तु एं एवं आव यकताएं दोनो
बहु त सी मत होती ह। इसके वपर त वक सत दे श म यापार क आव यकता ती होती
है। उदाहरण के लये ेट टे न व व के वक सत दे श म मु ख है और व व के
व भ न दे श से भार मा ा म खा य पदाथ, क चा माल और अध- न मत व तु एं आयात
करना है। इसके बदले म उ योग वारा न मत व तु ओं के प म वह अपने कामगार क
कु शलता का नयात करता रहा है। अपने यापार को सु गम बनाने के लये वह अपने
उप नवेश म अधोसंरचना का वकास करता है।
त यि त आय : त यि त आय भी यापार क मा ा को भा वत करती है।
अमे रका और यूरोप के औ यो गक दे श म त यि त आय काफ अ धक है। इस आय
का उपयोग औ यो गक और यापा रक वकास म कया गया है। यहां के उ योग आयात
पर बहु त अ धक नभर ह। उदाहरण के लये सयु त रा य अमे रका और पि चमी यूरोपीय
दे श के उ योग के लये अनेक ख नज, धन और ऊजा आयाता करना पड़ता है। यह
अ धक आय के कारण संभव होता है। इसके अलावा संप न रा के नाग रक मू लभू त
आव यकताओं के अलावा सु वधा एवं वला सत क व तु ओं पर खच कर सकते ह। यह
ि थ त भी यापार को ो साहन दे ती है। ए शया, अ का ओर लै टन अमे रका के
अ धकांश दे श म त यि त आय बहु त कम है। अ तु अ तरा य यापार म इनका
बहु त योगदान नह है। तथा प व तु- वशेष के उ पादन म द ता रखने वाले दे श से उन
व तु ओं का यापार होता है।
वदे शी व नवेश : औ यो गक दे श के कारपोरे श स वदे श से पू ज
ं ी लगाते ह िजससे उन
दे श से क चे माल एवं ऊजा मल सक। कभी-कभी क चे माल आ द के उ पादन के लये
खा य व तु ओ,ं उपकरण आ द भी पू ज
ं ी वाले दे श से आता है। इस कार दोनो दे श के
बीच यापार पनपता है। ये कारपेरेश स इन दे श के बीच यापार पनपता है। ये
कारपेरेश स इन दे श म कु छ उ योग भी था पत करते ह िजनका उ पादन यय यहां पर
कम होता है। आयात को सु गम बनाने के लये लै टन अमे रका अ का, आ े लया,
यूजीलै ड और ए शया (जापान को छोड़ कर) म रे ल माग का नमाण आं ल-अमे रका
और यूरोपीय पू ज
ं ी से हु आ था िजनका उ े य आ त रक भाग से बंदरगाह तक व तु ओं को
ढोना था। इसी तरह लै टन अमे रका, पि चमी ए शया, उ तर अ का और द ण पूव
ए शया के अ धकतर पे ो लयम े का वकास भी उ तर अमे रका, टे न, नीदरलै ड
और ांस क क प नय वारा कया गया। इन ऐ तहा सक कारण से इन दे श को
पे ो लयम इन े से नयात कया जाता है। इसी तरह ख नजो खन, बागाती कृ ष का
वकास भी वदे शी पू ज
ं ी से हु आ है। इनके नयात से स बि धत दे श को भार आय होती
है।
298
राजनै तक मै ी : वदे शी यापार बड़ी सीमा तक दे श के राजनै तक स ब ध पर नभर
होता है। उदाहरण के लये सन ् 1940 के दशक म वतं हु ये दे श का यापार उन दे श
से अ धक होता था। िजनके अधीन वे उप नवेश थे। भारत टे न के अधीन था, इस कारण
इसका अ धकांश यापार टे न के साथ होता था। औ यो गक ग त के साथ इसका अ य
दे श से यापा रक समझौता हु आ और उनसे यापा रक स ब ध बढ़े ह।
आ थक नयमन तथा अ तरा य यापार : यापार को नयं त करने के लये रा
अथवा रा ो के समू ह ने नयम पा रत कर रखा है िजनसे भी वदे शी यापार भा वत
होता है। कोई भी दे श मु य प से तीन कारण से अपने वदे शी यापार को नयि त
करता है. 1. तकू ल भु गतान के असंतु लन को ठ क करने के लये, 2. थानीय उ योग
को वदे शी व तु ओं क त पधा से संर ण दे ने के लये, तथा 3. राज व अिजत करने
के लये। एक दे श अ य दे श से आयात तथा व वध कार क सेवाय लेता है और बदले
म नयात करता है तथा व भ न प म सेवाएं दे ता है। अगर आया तत व तु ओं एंव
सेवाओं क क मत नयात क गई व तु ओं एवं सेवाओं से अ धक होती है तो यह ि थ त
तकू ल भु गतान क ि थ त कहलाती है। इसे कम करने के लये रा नयम बनाते ह।
कभी-कभी दे श वदे शी उ योग को संर ण दे ने के लये सीमा शु क लगाते ह। कई
यूरोपीय दे श ने ग ने क श कर पर इतना अ धक समी शु क लगा रखा है क इसक
तु लना म थानीय चु कंदर क श कर स ती पड़े ओर उपभो ता चु कंदर क श कर ह
योग कर। भारत म भी कई उ योग को ो साहन दे ने से उनके उ े य से उनसे बनने
वाल व तु ओं के आयात पर तबंध लगाया गया है। रा य आमदनी बढ़ाने के उ े य से
भी आयात कर लगाये जाते ह।
सामािजक प रि थ तयां : उपरो त आ थक कारक के अलावा कई सां कृ तक प रि थ तयां
भी अ तरा य यापार को ो सा हत / हतो सा हत करती ह। इनम लोग क आदत एवं
र त रवाज का यापार पर काफ भाव पड़ता है। जैसे क यूरोपीय और आं ल अमे रक
दे श म चाय और काँफ का बहु त चलन है। इस आ द को आसानी से बदला भी नह ं जा
सकता। अ तु इनका आयात करना पड़ता है, भले ह इन क क मत बढ़ जाय अथवा
अ धक आयात शु क लगता हो। आधु नक समाज म व ापन यापार को भा वत करने
वाला मु य मा यम बन गया है। व ापन के वारा व तु ओं के गुण को उपभो ताओं तक
पहु ंचाया जाता है। सू चनातं क भा वता अ य बात के अलावा सामािजक तर पर नभर
करता है।
299
1. यूरोपीय समु दाय (European Community, EC) : इस समु दाय म सि म लत
मु ख यूरो पयन दे श का उ े य व व यु तथा उप नवेशवाद से त त आ थक
दशा तथा यापार म सुधार करना था। इसक थापना वष 1958 म छ: मु ख
यूरो पयन दे श - ांस, प. जमनी, ल जमबग, बेि जयम, हालै ड तथा इटल वारा
क गई थी।
2. यूरोपीय मु त यापार संघ (European Free Trade Association, EFTA) :
इसक थापना वष 1960 म टे न, आयरलै ड, नाव, आि या, वीडन, पुतगाल
तथा ि व जरलै ड के वारा क गई। इस संघ के सद य दे श पर पर बना कसी
कार का तट कर लगाये यापार करते ह।
3. उ तर अमे रका मु त यापार संघ (North America Free Trade
Association, NAFTA) : इस संघ क थापना 1992 म कनाडा, संयु त रा य
अमे रका तथा मैि सको वारा क गई। इस संघ के सद य दे श वारा वश ट
यापार नी त अपनाने पर बल दया गया िजसके अ तगत व भ न व तु ओं का खु ला
यापार, तीन दे श क क प नय को कसी भी दे श म नवेश क खु ल छूट, मक
का अ तबि धत आवागमन आ द मु ख बात थीं।
4. लै टन अमे रका वतं यापार संघ (Latin America Free Trade
Association, LAFTA) : - इस संगठन क थापना वष 1960 म लै टन
अमे रक दे श -पे , परा वे, अज ट ना, मैि सको, ाजील तथा चील वारा क गई।
5. पार प रक आ थक सहयोग प रषद (COMECON) : इसक थापना वष 1949 से
पूव सो वयत संघ के साथ मल कर पूव यूरो पयन सा यवाद दे श - पूव जमनी,
पोलै ड, चेको लोवा कया, हंगर , मा नया व बु गा रया तथा मंगो लया, वयतनाम एवं
यूबा वारा क गई।
6. द णपूव ए शयाई रा संघ (Association Of South East Asian Nation,
ASEAN) : इस संगठन क थापना वष 1975 म क गई। इस संघ म मले शया,
थाईलै ड, फल पी स, इ डोने शया, संगापुर , ू ी , वे ट ए रयन,
न वयतनाम आ द
सद य दे श ह।
7. पे ो लयम नयातक संघ (Organisation of Petrolium Explorating
Contries, OPEC) : यह संगठन वष 1973 म मुख तेल उ पादक दे श वारा
बनाया गया था। इस संगठन के मु ख सद य दे श ईरान, ईराक, सऊद अरब, कतर,
कु वैत, संयु त रा य अमीरात, बहर न, अ जी रया, ल बया, म , वेनेजु एला तथा
इ डोने शया ह।
8. सा टा (South Asian Preferentine Agreement, SAPTA) : सन ् 1993 म
ढाका स मेलन म साक दे श - भारत, पा क तान, बां लादे श, ीलंका, नेपाल, भू टान
एवं मालद व वारा इस संघ का गठन कया गया।
300
इन संगठन के अलावा ए शया- शा त आ थक सहयोग संघ (APEC), म य
अ क तटकर संघ (SAUC), एपेक (APEC), तथा अरब साझा बाजार
(ACM- Arab Common Association) आ द मु ख संगठन ह जो अपनी
नी तय वारा अ तरा य यापार को भा वत करते ह।
301
1. व व के कु ल आयात- नयात म सवा धक अंश उ च आय वाले वक सत दे श का होता
है जो आ थक सहयोग एवं वकास संगठन (OECD, Organisation for
Economic Co-operation and Development) या यूरोपीय समु दाय
(European Community) के सद य होते ह अथवा दोन के सद य ह। सन
2000 म इस वग के दे श क औसत त यि त आय 27845 डॉलर थी। इस वग
म 25 दे श आते ह। इन दे श क जनस या व व जनसं या क मा 16.5% है।
इसके वपर त न न आय वाले दे श का आयात तथा नयात म ह सा मश: 32
तशत तथा 29 तशत है जब क इन दे श म व व क 80 तशत जनसं या
नवास करती है।
2. व व के कु ल नयात तथा आयात म संयु त रा य अमे रका क भागीदार मश:
12.3% तथा 19.3% है। जापान का कुल व व नयात म 7.6% तथा कुल आयात
म 5.8% ह सा है। संयु त रा य अमे रका, पि चम यूरोप तथा जापान का कु ल
अ तरा य यापार म 50% ह सा होता है। इस कार NAFTA तथा EC समु दाय
के दे श म आयात तथा नयात तशत का तशत ऊँचा होता है।
3. सं मण अथत वाले दे श - वशेषत: पूव यूरोप , म य ए शयाई तथा सी फेडरे शन
का व व नयात-आयात म अंशदान अ प है। पूँजीवाद बाजार से जु ड़ने के बाद अभी
इनके अथत का नये सरे से समायोजन हो रहा है तथा इनके वदे शी यापार के
व प म तेजी से प रवतन हो रहा है।
4. ख नज तेल के नयात पर आधा रत अथत वाले दे श - उ तर अ का, म य पूव
तथा अ य ओपेक (OPEC) दे श क व व नयात म ह सेदार अ धक होती है।
सऊद अरब क व व नयात म ह सेदार लगभग 2% होती है।
5. ादे शक तर पर अ य प वक सत दे श क यापार म ह सेदार नाम मा क होती
है। इनके नयात म एक या दो ख नज या कृ षगत पदाथ होते ह। स पूण अ का का
व व नयात म अंशदान लगभग 1.8 तशत है।
बोध न –3
1. वक सत दे श वारा कौनसी व तु ओं का नयात कया जाता है ?
...................................................... .......................
...................................................... .......................
2. यु गा डा वारा कौनसी व तु का नयात कया जाता है ?
...................................................... .......................
.............................................................................
3. OPEC दे श के नाम बताइये ।
...................................................... .......................
...................................................... .......................
302
4. वकासशील दे श क आयात सं र चना म कन व तु ओं क ाथ मकता होती
है ?
...............................................................................
...................................................................... .........
5. ना टा ( NAFTA) का सद य दे श है -
( अ) सं यु त रा य अमे रका (ब) ाजील
( स) जमनी (द) भारत
303
सामु क जल प रवहन काय वशालकाय जल पोत वारा कया जाता है। ये जलपोत
वृहत ् वृ त माग (Great Circle Routes) का अनुसरण करते ह। व व म अनेक
सामु क जल माग पाये जाते ह।
वायु प रवहन का यापा रक प से उपयोग 1926 म संयु त रा य अमे रका वारा
कया गया। ती ग त तथा दुगम े म पहु ंच के कारण वायु प रवहन का वशेष
मह व है। संसार म अनेक वायु माग पाये जाते ह जो अ धकतर उ तर गोला म
ि थत ह।
दो दे श के बीच होने वाला यापार अ तरा य यापार कहलाता है।
कसी दे श के अ तरा य यापार क मा ा वहाँ क संसाधन स प नता, आ थक
ि थ त, औ यो गकरण का तर, आय व उपभोग वारा नि चत होती है।
वक सत दे श यूरोप , उ तर अमे रका, तथा जापान खा य साम ी तथा क चे माल
के आयातक तथा मशीनर , प रवहन उपकरण तथा अ य तैयार माल के नयातक होते
ह।
वकासशील दे श क आयात संरचना म मशीनर , प रवहन उपकरण, तथा र ा साम ी
मु ख होती है।
व व के कु ल अ तरा य यापार म सवा धक अंश उ च आय वाले वक सत दे श
का होता है। ादे शक तर पर अ य प वक सत दे श का अंशदान नाम मा होता है।
अ तरा य यापार क दशा तथा मा ा नधारण करने के लए व व के दे श ने
अपने-अपने यापा रक संघ बनाये हु ए ह। ये संघ व तु ओं के आदान- दान क मा ा,
व नमय दर, मू य, भु गतान क शत एवं याज दर का नधारण करते ह।
304
4. डॉ. बी. सी. जाट : आ थक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर
14.7 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. (i) प रपूरकता, (ii) म यव त आपू त का अभाव, (iii) व नमयता का होना
2. बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी, ऊँटगाड़ी
3. जलयान, मोटरगा ड़याँ, रे ल, वायुयान
4. संयु त रा य अमे रका
5. रै खय त प
6. उ तर कनाडा के धरातल का हमा छा दत टु ा वन , पवत व झील से घरा होना
बोध न - 2
1. राइन
2. सु पी रयर, म शगन, यूरन , ईर तथा आ टे रयो झील
3. लाल सागर तथा भू म य सागर
4. गातू न लॉ स, पे ो लॉ स, मरा लास लॉ स
5. (i) म य संयु त रा य अमे रका, (ii) पि चमी यूरोप , (iii) मा को
बोध न – 3
1. वक सत दे श मशीनर , प रवहन उपकरण तथा अ य र ा साम ी का नयात करते ह।
2. कहवा
3. ईरान, ईराक, सऊद अरब, कतर, कुवैत, संयु त अरब अमीरात, बहर न, अ जी रया,
ल बया, म , वेनेजु एला, नाइजी रया।
4. मशीनर , प रवहन उपकरण तथा र ा साम ी
5. (अ) संयु त रा य अमे रका
14.8 अ यासाथ न
1. थल य प रवहन के साधन के प म सड़क तथा रे ल के सापे त मह व को प ट
क िजए।
2. व व म रे ल प रवहन के मह व को प ट क िजए तथा ए शया म रे ल माग के
वतरण का वणन क िजए।
3. वायु प रवहन को भा वत करने वाले कारक को प ट करते हु ए व व म मु ख वायु
माग का वणन क िजए।
4. अ तरा य यापार क संरचना तथा वाह त प क या या क िजए।
5. व व यापार म मु ख यापा रक संघ का वणन क िजए।
305
इकाई 15 : व व के संसाधन दे श (Resource
Regions of the World)
इकाई क परे खा
15.0 उ े य
15.1 तावना
15.2 संसाधन दे श
15.2.1 अथ एवं प रभाषा
15.2.2 संसाधन दे श व उनके वभाजन आधार
15.3 व व के संसाधन दे श
15.3.1 उ तर ु वीय संसाधन दे श
15.3.2 उप ु वीय संसाधन दे श
15.3.3 आं ल-अमे रक दे श
15.3.4 शीतो ण यूरोपीय दे श
15.3.5 अ का-ए शयाई शु क दे श
15.3.6 सहारा के द ण म ि थत आ एवं अधशु क अ का
15.3.7 मानसू न ए शया
15.3.8 लै टन अमे रका
15.3.9 शा त महासागर य दे श
15.4 सारांश
15.5 श दावल
15.6 संदभ थ
15.7 बोध न के उ तर
15.8 अ यासाथ न
15.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे क : -
संसाधन दे श या ह।
इनके वभाजन के आधार या ह ?
व व के मु य संसाधन दे श के मु ख कार क जानकार ।
व व के संसाधन दे श क मु ख वशेषताएँ।
306
क वरासत एवं पयावरण के त व िजन पर मनु य स बल एवं सहायता हे तु नभर है को
संसाधन'' माना है। सामा य प से स पूण पयावरण िजसम ाकृ तक एवं मानवीय
वातावरण सि म लत है तथा उसम उपि थत त व वारा मनु य क आव यकताओं क
पू त होती है, संसाधन कहलाते है। संसाधन होते नह ,ं बनाये जाते ह। ये न तो थाई होते
ह न ह थान वशेष से स बि धत होते ह। जब संसाधन क ि ट से ऐसा दे श िजसम
संसाधन त व क एक पता हो तथा वह अपने गुण व स ब ता क ि ट से अ य े
से भ न हो, संसाधन दे श कहलाता है। भू तल पर भौगो लक त व म अपार व वधता
या त है। मानव क उनसे याशीलता ने संसाधन दे श के वभ न व प को
वक सत कया है। संसाधन दे श का नि चत आकार होता है तथा उसम उपि थत
व भ न भौगो लक त व अथवा कसी त व वशेष क एक पता पाई जाती है िजससे
उसक पहचान होती है। तु त इकाई म व व के संसाधन दे श क व वधताओं एवं
वशेषताओं का ववेचन कया गया है।
15.2 संसाधन दे श
15.2.1 अथ एवं प रभाषा
307
(iv) ाकृ तक संसाधन का वतरण व उपल धता
(v) तकनीक वकास
(vi) आ थक- याओं क कृ त
(vii) थानीय अथ यव था क ि थरता
(viii) यातायात के साधन का वकास तथा यापार
(ix) सामािजक तर
उपयु त आधार को मानते हु ए व व को संसाधन दे श म बाँटा गया है। केवल मा
संसाधन क उपल धता म एक पता ह इन दे श के लए वभाजन आधार नह ं है बि क
वहाँ मानव क आ थक याएँ, तकनीक ान व बदलती आव यकताएँ आ द त व को भी
मह व दया गया है जो पार प रक प म संसाधन दे श के नधारण म सहायता दान
करते ह। ऊपर व णत वशेषताओं के आधार पर व व को 9 संसाधन दे श म बाँटा गया
है।
15.3 व व के संसाधन दे श
15.3.1 ु वीय संसाधन दे श
309
हाल के वष म, इन दोन ह े के नवासी द ण के अ धक स य लोग के
स पक म आने लगे ह, िजससे इ ह आधु नक व तु एं व सु वधाएं उपल ध होने
लगी ह। यहाँ के े म अनेक थान पर लड़ाकू वमान उ डयन के (Air
Base) था पत कये जाने से भी इस े का वकास होने लगा है।
310
प ती वाले वन भी पाये जाते ह। कोणधार वन क लकड़ी नरम व मू यवान
होती है। इसका उपयोग दयासलाई व कागज बनाने म होता है।
वन प त के अ त र त अ य जै वक संसाधन म आ थक ि ट से पशु ओं का भी
यहाँ मह व है। रे डीयर, हरण, कैर बू भू ज व म क आ स मु ख पाये जाने वाले
जीव ह। ज तु ओं के फर व अ य अंग का यापार यहाँ क अथ यव था का
आधार है। यहां कु छ ख नज के लए कनाडा का ले ाडोर व वीडन का क ना-
गै लबर े स है। कनाडा के सडवर े म सोना, चाँद , सीसा, ज ता,
लै टनम, ताँबा तथा बहु धाि वक न कल ख नज मलते ह जब क यूरे शया के
पठार म कई थान पर सोना मलता है व यूराल पवतीय े म लोहा,
कोबा ट, ोमाइट, टं ग टन, टाइटे नयम, वेने डयम, सीसा, न कल, ताँबा, ज ता
तथा ए यू म नयम मलते ह। मैदानी भाग क परतदार च ान म पीट, कोयला
तथा ख नज तेल नकाला जाता है।
(iii) मानवीय वातावरण : पृ वी के कु ल े फल के 10 तशत से भी अ धक भाग
पर फैले हु ए इस वशाल दे श म जनसं या का घन व मा 2 यि त त
कलोमीटर है, पर तु सह तट य भाग , न दय के कनारे तथा प रवहन के साधन
क सु लभता वाले े म जनसं या घन व 5 से 20 यि त त वग
कलोमीटर तक है।
यूरे शया म मु यत: घुम कड़ जा तय के लोग रहते ह। पशु चारण इनका पहले भी
यवसाय रहा है। ये रे ि डयर के झु ड पालते ह। इसके अलावा यहाँ के नवासी
कह -ं कह ं वन म लकड़ी काटने, फर वाले पशु ओं को पकड़ने तथा खनन काय से
जु ड़े हु ए ह। इन घुम तु जा तय को अमे रका म रे ड इि डयन, कै डीने वया म
लै स तथा साइबे रयान म याकू स कहते ह। अब तो यहाँ अनेक यूरो पयन व
अमे रकन वासी भी आकर बस गये ह व ख नज े का वकास कया है। इस
े को वृहद मृत म पड़ने के कारण इसका मह व और भी बढ़ गया है।
बोध न -2
1. ु वीय दे श म च ड ग त से चलने वाल शु क व शीत पवन को कौन
सी आं धयाँ कहते है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. पि वन अ धक सं या म कस महा वीप पर पाये जाते ह ?
............................................................................................
................................................................................ ............
3. ीनलै ड का ईवीगटु ट े स है –
(अ) लोहा उ पादन के लए (ब) आखे ट के लए
(स) ायोलाइट के लए (द) पि वन के लए
311
4. उ तर उप ु वीय सं साधन दे श का अं ाशीय व तार बताइये ।
............................................................................................
.............................................. ............................
4. उ तर उप ु वीय दे श के सवा धक ठ डा रहने वाले थल का नाम बताइए।
............................................................................................
.................................................................................. ..........
312
(ब) ख नज एवं शि त के संसाधन : यह ख नज एवं शि त के साधन क ि ट से एक
स प न दे श है। इस दे श के अ ले शयन, पूव आ त रक, पि चमी आ त रक (संयु त
रा य अमे रका) तथा नोवा को शया व ं नक (कनाडा) के
ज े शि त के संसाधन म
स प न ह। यहाँ कोयला, ख नज तेल तथा ाकृ तक गैस के वपुल भ डार ह। नया ा
पात तथा ए ले शयन पवत से नकलने वाल न दय पर न मत बांध जल व युत
उ पादन के लए व यात ह। यूजस तथा ओजाक े म सीसा, ज ता एवं अलौह
धातु ओं का उ पादन होता है। ए ले शयन पवत के द णी भाग म एवं महान झील के
े म लौह अय क के वशाल सं चत भ डार ह।
(स) मानवीय एवं सां कृ तक वातावरण : पूव आं ल अमे रका म संयु त रा य अमे रका
क 75 तशत तथा कनाडा क 85 तशत जनसं या केि त है। पूरे व व म आधु नक
ान तथा व ान का सवा धक वकास इसी दे श म हु आ है। तकनीक ान तथा आ थक
वकास के त अ धक जाग कता होने के कारण ह यहाँ कृ ष, उ योग ध ध व सू चना
ौ यो गक का भी तेजी से वकास हु आ है। अ धकांश जनसं या नगर म नवास करती
है। यूयाक नगर पूरे व व क आ थक राजधानी माना जाता है।
313
15.3.4 शीतो ण यूरोपीय दे श (Temperate European Region)
314
तापा तर क दर 30० फा. से 50० फा. के बीच रहता है। वषा अ नय मत होती है। मैदानी
भाग म साधारण वषा होती है जब क पवतीय ढाल पर अपे ाकृ त अ धक वषा होती है।
वषा के वपर त यहाँ पाला पड़ने क संभावनाएँ भी बनी रहती ह। िजससे यहाँ कृ ष फसल
को नुकसान होने क संभावना बनी रहती है।
इस दे श म अनेक कार के ख नज भी पाये जाते ह, पर तु उ पादन क ि ट से कोई
भी ख नज मह वपूण नह ं है। यहाँ लोहा, कोयला, पे ो लयम, ताँबा, ज ता, सीसा,
बॉ साइट, पोटाश, ेफाइट आ द ख नज का उ पादन होता है।
यहाँ जनसं या का घन व 10०-25० यि त त वग कमी. है। अ धकांश जनसं या गाँव
म नवास करती है। इस म यवत सं मण पेट म पूव व पि चमी स यताओं का म त
भाव प ट प से दे खने को मलता है। अनेक जा तय के बीच होने वाल वच व क
लड़ाई, दे श क राजनै तक सीमाओं म नर तर प रवतन तथा राजनै तक अि थरता ने यहाँ
के आ थक वकास क दर को बा धत कया है।
(स) यूरोपीय स (European Russia)
शीतो ण यूरोपीय प रम डल का यह सबसे पूववत भाग है िजसका अ धकांश व तार
यूरोपीय स म है। यहाँ पूणत: महा वीपीय जलवायु का भाव है। शीतकाल म कठोर ठ ड
व ी मकाल म अ धक गम पड़ती है। जाड़े का तापमान हमांक ब दु से भी नीचे गर
जाता है। वा षक तापा तर क दर 54० फा. से भी अ धक है। औसत वा षक वषा 25
सेमी. से 50 सेमी. तक होती है। अत: फसल उगाने के लए अनुकू ल अव ध 120 से
180 दन तक होती है। धरातल ाय: समतल व म य येर व चेरनोजम कार क
ह। म त वन यु त वन प त यहाँ पायी जाती है। इस दे श म कोयला, ख नज तेल व
जल व युत के प म ऊजा के संसाधन चु र मा ा म से उपल ध ह। लोहा ख नज व
अलौह धातु भी यहाँ पया त मा ा पाये जाते ह।
इस दे श म जनसं या का वतरण असमान है। जैसे-जैसे उ तर म शीत के कोप व
द णी े म शु कता के भाव बढ़ने लगता है वैस-े वैसे जनसं या के घन व म भी
कमी होने लगती है। जनसं या का औसत घन व 50 से 250 यि त त कमी. पाया
जाता है। इस दे श म श ा के वकास, प रवहन सु वधाओं एवं व ान व तकनीक के
वकास ने तेजी से यहाँ के संसाधन को वक सत कया है और अब यह एक मह वपूण
औ यो गक दे श के प म उभरा है।
(द) भू म यसागर य यूरोपीय दे श (Mediterranean Coastal Europe)
शीतो ण यूरोपीय दे श के द णी पूव भाग म भू म य सागर के समीपवत े म यह
दे श फैला है। इसके अ तगत पेन, इटल , ीस, चैको लोवा कया व म य द णी यूरोप
के े आते ह। यहाँ ी म ऋतु शु क होती है, पर तु जाड़े क ऋतु म भू म यसागर य
च वात से वषा होती है। जनवर म औसत तापमान सव 0० से ट ेड के पास रहता है
जब क ी मकाल म समु तट य भाग को छो कर दे श म तापमान 30० से ट ेड तक
पहु ँ च जाता है। धरातल य उ चावच क ि ट से यह एक वषम दे श है जो ऊँची पवतीय
315
चो टय , पठार व नद घा टय से न मत है। वषा का वा षक औसत 50 से 150 सेमी. है
जो शीतकाल म भू म य सागर म चलने वाल पछुआ पवन से होती है।
कोयला व ख नज तेल के प म शि त संसाधन का यहाँ अभाव है, पर तु जल व युत
के उ पादन क ि ट से यह एक वक सत े है। अ य ख नज का उ पादन यहाँ नग य
है। पेन म लोहा व ताँबा तथा इटल म गंधक, पोटाश व पारा तथा ीस म कु छ मा ा
म लोहा, मगनीज, म ने शयम, बॉ साईट व शीशे का उ पादन होता है।
यह दे श मानव स यता का मु ख के रहा है। यह ं से यूरोपीय स यता का सार हु आ
है। व ान व तकनीक वकास क अपे ा यहाँ कला, संगीत व दशन का वकास अ त
ाचीन काल से होता आया है। समु तट तथा मैदानी भाग म औसत जनसं या घन व
50 से 250 यि त त वग कमी. पाया जाता है जब क पवतीय े म यह 25 से
50 यि त त वग कमी. है।
316
(i) सहारा रे ग तान का पि चमी भाग इसम सि म लत है।
(ii) यहाँ पथर ला च ानी धरातल पाया जाता है िजसे यहाँ ह मादा कहते ह।
(iii) इसके द ण म चेड झील, नाइजर नद व म य म होगार का पठार मु ख धरातल
े ह। कक रे खा इसके म य से गुजरती है।
(iv) चेड झील व ट ब कटू े म सवाना घास के े ह जब क शेष दे श पथर ला
म थल है।
(v) यूरोपीय लोग ने यहाँ आकर खजू र क कृ ष को वक सत कया है तथा उ ह ं के
यास से यहाँ ख नज पै ोल का उ पादन संभव हु आ है।
(ब) नील नद क घाट
(i) सहारा के पूव म उ तर सू डान तथा मस व ल बया के म थल के पूव म नील नद
क घाट का दे श ि थत है। नील नद से जल ाि त से नमी क पया त मा ा पायी
जाती है। रे तील भू म म संचाई वारा अ छ कृ ष होती है। नद घाट से बाहर क
ओर पथर ल धरातल ि थत है जहाँ जल का अभाव है। इसे यहाँ ह मादा कहते ह।
(ii) ल बया तथा म म ख नज तेल का उ पादन होता है।
(iii) म म कपास क कृ ष क जाती है।
(स) द ण पि चमी ए शया
(i) नील नद क घाट के पूव म लाल सागर के दोन ओर ि थत उ ण व शु क दे श
का धरातल भी च ानी तथा रे तीला है।
(ii) कभी यहाँ का जीवन अ यंत क ठन था जहाँ पर ब ू व अ य जा त के घुम तु लोग
खानाबदोश के प म पशुचारण करते थे।
(iii) ख नज तेल के उ पादन शु होने से यहाँ क अथ यव था म एकदम प रवतन आया
है।
(iv) आज फारस क खाड़ी के हर दे श म ख नज तेल का उ पादन कया जाता है।
317
ह दुकुश के पवतीय भाग भी पड़ते ह। वष पय त शु कता व मौसमी बदलाव रहने के
कारण पशु चारण व कृ ष ह यहाँ के लोग का मु ख यवसाय है। अ धक पूव म त बत व
मंगो लया भी शु पठार भाग ह, जहाँ शीतकाल म तापमान बहु त नीचे गर जाता है।
यहाँ भी पशु चारण ह मु य यवसाय है िजनम ऊँट, घोड़े, भेड़ को पाला जाता है। त बत
के पठार पर याक मु ख पालतू पशु है तथा यहाँ बौ धम के अनुयायी लामाओं क
जनसं या अ धक है।
जनसं या क ि ट से इस े के म य भाग म ाकृ तक दशाएँ रहने लायक नह ं ह।
अत: अफगा न तान व बलु च तान म दो यि त त वग कलोमीटर घन व पाया जाता
है। जब क ईरान म 20 व टक म जनस या घन व सवा धक है। टक को ए शया का
वेश वार भी कहते ह। यहाँ यूरो पयन व ए शयाई स यता का म त प दे खने को
मलता है। अत: यहाँ तेजी से आधु नकता व आ थक वकास हो रहा है। ईरान म एक-
तहाई आबाद आज भी खानाबदोश पशु चारक क है। पर तु ख नज तेल पर आधा रत
अथ यव था ने यहां के जीवन तर म प रवतन ला दया है।
ख नज क ि ट से यह े स प न है। पे ो लयम यहाँ क अथ यव था का आधार है
जो टक और ईरान म नकाला जाता है। इसके अ त र त यहाँ कोयला, ग धक, पाराइट,
िज सम, लोहा, ताँबा, ज ता आ द अनेक ख नज पाए जाते ह।
बोध न -2
1. त बत के पठार भाग पर पाले जाने वाले पशु का या नाम है ?
............................................................................................
............................................................................................
2. यू रोपीयन स म कस कार क जलवायु का भाव रहता है ?
(अ) भू म यरे खीय (ब) मानसू नी
(स) महा वीपीय (द) महासागर य
3. सहारा म थल कस महा वीप म ि थत है ?
............................................................................................
............................................................ ................................
4. '' ह मादा '' कसे कहते ह ?
............................................................................................
................................................................ .............................
15.3.6 आ एवं अ शु क अ क दे श
(i) ि थ त व व तार - नी ो जा त के नवास के प म यह दे श एक ाचीन
स यता का के रहा है। इसका व तार सहारा के रे ग तान के द ण म ि थत
म य अ का, गनी तट, सू डान तथा अ का के पूव तथा द णी े तक है।
इस दे श का अ ांशीय व तार 20० उ तर अ ांश से लेकर द णी अ का तक
है।
318
(ii) वातावरण एवं संसाधन - अ ांशीय व तार क अ धकता होने के कारण इस दे श
म तापमान व वषा के वतरण म पया त व भ नता मलती है। भू म यरे खा से
जैसे-जैसे दूर बढ़ती जाती है, वैसे ह वषा क मा ा व तापमान कम होते जाते
ह। भू म यरे खा के पास तापमान व वषा क अ धकता के कारण, भू म यरे खीय
उ ण क टबंधीय आ जलवायु का भाव है। म य अ का तथा गनी का तट
इसके अ तगत आते ह जहाँ सघन उ ण क टबंधीय आ वन पाये जाते ह। इनसे
बाहर क ओर शु कता बढ़ जाती है तथा ी म ऋतु के तापमान भी 30०
से ट ेड से ऊपर पहु ंच जाते ह। अत: यहाँ सवाना वन प त पायी जाती है।
तीसर पेट अ शु क जलवायु क है। जहाँ वषा मा 30 सेमी. से 50 सेमी. के
म य होती है। ी म ऋतु म तेज गम पड़ती है तथा छोट घास व कट ल
झा ड़याँ पायी जाती है। इस े के द ण म कालाहार म थल है तथा उसके
द ण म भू म यसागर य जलवायु पायी जाती है।
(iii) मानवीय दशाएँ - पूरे दे श म सघन वन, अ धक आ ता व भीषण उ णता क
वषम प रि थ तयाँ मानव नवास के लए अनुकू ल नह ं है। अत: व भ न भाग
म जनसं या घन व 20 से लेकर 200 यि त त वग कलोमीटर पाया जाता
है। संसाधन क उपल धता जलवायु क वषम दशाओं एवं जनसं या घन व म
पाये जाने वाले अ तर के आधार पर इसे तीन भाग म बाँटा गया है-
(अ) म य अ का
(i) कैम न, जायरे , अंगोला, द च, अ का व माल के कु छ े इसम शा मल
ह।
(ii) 25 लाख वग मील म फैले इस वशाल े क आबाद मा 2.5 करोड़ है।
(iii) प मी व बाँटू यहाँ क मु ख मानव जा त है।
(iv) घने वन व दलदल का व तार है।
(v) क मती ख नज क धानता है िजनम ह रा, सोना, यूरे नयम, रे डयम व ताँबा
मु ख ह।
(vi) कसाई घाट ह रे क खान के लए तथा च कोलोवाइव यूरे नयम के उ पादन
के लए स है।
(ब) गनी का तट
(i) अटलां टक तट के पास कैम न से सयरा सलोन तक यह दे श व तृत
है।
(ii) 10 लाख वग मील म फैले इस े क आबाद कर ब 5.5 करोड़ है।
(iii) न ो लोग का यह नवास थल है।
(iv) अ धक तापमान व वषा वाले इस दे श म तट के पास दलदल े ह
तथा उनसे सटे हु ए पठार भाग ह।
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(v) यहाँ के वन म एबोनी, महो ग नी क लक ड़याँ तथा ना रयल, कोको व
केले के बागान यूरो पयस ने लगाये ह।
(vi) नाइजी रया म टन, घाना म मगनीज के भ डार ह एवं लोहा, सोना,
ह रा, ख नज तेल व ाकृ तक गैस का उ पादन भी होता है।
(vii) सघन वन व अ धक आ ता के कारण यहाँ अनेक बीमा रय का
कोप रहता है। यहां यूरो पयन क आबाद कम है। न ो लोग ह यहाँ
के मु य नवासी ह।
(स) सू डान तट
(i) सहारा म थल के द ण म ि थत यह वशाल दे श है।
(ii) 20 लाख वग मील म फैले इस े क जनसं या कर ब 1.5 करोड़ है।
(iii) वषा 50 सेमी. से कम होती है तथा अ शु क जलवायु पायी जाती है।
(iv) सवाना वन प त वाले घास के मैदान पाये जाते ह।
(v) समतल धरातल वाला दे श है पर तु तकू ल जलवायु दशाओं के कारण
जनसं या घन व कम है। घुम कड़ जा त के लोग पशु चारण यवसाय के
जु ड़े ह।
(vi) ख नज का नता त अभाव है।
(द) पूव अ का
(i) यह उ च पठार दे श है।
(ii) ऊँचे पवतीय े के कारण जलवायु उ तम है जो यूरोपीय लोग के लए
अनुकू ल है।
(iii) न ो जा त का यह मू ल नवास थान रहा है।
(iv) ख नज कम मा ा म पाये जाते ह।
(य) द णी अ क दे श
इस उप वभाग म अ का के िज बा बे, बो सवाना, नामी बया आ द दे श
को शा मल कया गया है। यहाँ समु तट य मैदानी े तथा आ त रक
भाग म पठार क बहु लता है। भू म य रे खा क दूर के कारण आ त रक
भाग म शीतो ण व तट के पास समशीतो ण जलवायु रहती है। यहाँ
यूरो पयन लोग अ धक रहते ह। यहाँ पर सोने के उ पादन म ांसवाल
तथा ह रे के उ पादन म ीटो रया क खान व व स ह।
321
(iv) यांमार म पे ोल, मले शया म टन, इ डोने शया म पे ोल तथा थाइलै ड म टन व
टं ग टन नकाले जाते ह।
(v) सम त दे श म बागानी कृ ष का मह व है, रबर, चाय व ना रयल मु ख फसल ह।
(स) पूव मानसू न ए शया
(i) इस उप वभाग म चीन, जापान तथा को रया आते ह।
(ii) चीन म व तृत समतल मैदान ह, िजनके नमाण म यहाँ क मु ख न दय , हांगहो,
यां ट सी यांग तथा सी यांग का मह वपूण योगदान है।
(iii) यहाँ मानसू नी जलवायु होते हु ए भी जाड़े म अ धक ठ ड पड़ती है।
(iv) व व क एक तहाई जनसं या यहाँ नवास करती है।
(v) जापान तथा चीन के कुछ ा त म जल व युत ऊजा का अ य धक मह व है।
(vi) यहाँ पर कृ ष यवसाय का अ य धक मह व है, पर तु म य उ पादन पर भी उतना
ह बल दया जाता है।
(vii) लोहा अय क, ताँबा, ज ता तथा ग धक नकाले जाने वाले मु ख ख नज ह।
15.3.8 लै टन अमे रक दे श
322
व ाथ मक उ पादन का मह व है। बागानी कृ ष का यहाँ वशेष मह व है। केला,
कोको तथा कहवा के बागान पाये जाते ह।
ख नज के उ पादन म यह दे श स प न है। व व क 30 तशत चाँद यहाँ
मलती है। यूबा म मगनीज, जमैका म बॉ साइट तथा नीडाड म ख नज तेल
के पया त भ डार ह। जनसं या का अ धक बसाव नद घा टय व तट य भाग म
पाया जाता है।
(2) कैरे बयन द णी अमे रका : द ण अमे रका के उ तर भाग म ि थत
कोलि बया, वेनेजु एला तथा गायना सि म लत ह। यहाँ भौगो लक धरातल व
जलवायु म समानता पायी जाती है। यहाँ उ ण क टबंधीय समु तट तथा भूम य
रे खीय जलवायु का भाव है। धरातल का अ धकांश भाग पठार व पहा ड़य से
न मत है जहाँ ऊँचाई के साथ तापमान म कमी आती जाती है जो मानव बसाव
के अनुकू ल है। अत: जनसं या का सके ण भी ऊँचे भाग म ह यादा पाया
जाता है। यहाँ मैि टजो, रे ड इि डयन, न ो व यूरो पयन लोग नवास करते है।
ख नज क ि ट से यह दे श स प न है। यहाँ वेनेजु एला तथा गुयाना म
हे मेटाइट कार के लौह अय क के वशाल भ डार ह। गुयाना म तथा सू र नाम म
बॉ साईट के पया त सं चत भ डार पाये जाते ह। इसके अ त र त कोलि बया म
सोना, ले टनम तथा प ना के मु ख भ डार ह।
(3) म य ए डीज पवतीय े : ए डीज पवत मालाओं के म य भाग म ि थत
इ वेडोर, पी तथा बोला वया दे श इस े म सि म लत है। यहाँ का धरातल
पवतीय है। यहाँ आ व शु क जलवायु मलती है। जहाँ एक मौसम अ छ वषा
का होता है तो दूसरे म शु कता पायी जाती है। तट य भाग जो थल के भाव
म यादा रहते ह वहाँ शु क पवन बहती ह जब क पवत व उ च पठार पर
मौसम आ रहता है।
(4) द णी ए डीज : ए डीज पवत के पि चमी तट य े म चल का स पूण भाग
इसके अ तगत आता है। इसका व तार द णी अमे रका के पि चमी तट के
पास उ तर से द ण को एक ल बी प ी म है। व तार क अ धकता से यहां क
जलवायु कई क टबंध से भा वत है। उ तर म उ ण म थल य, म य म
भू म यसागर य तथा द ण म समु तट य जलवायु पायी जाती है। केवल
म यवत मैदानी भाग तथा तट य े म ह जनसं या का बसाव अ धक है। शेष
े पवतीय या उबड़-खाबड़ धरातल वाला होने के कारण जनस या को यादा
आक षत नह ं करता।
चल म ताँबा व लोहा ख नज पया त मा ा म पाये जाते ह। ची वी कामाटा म
ताँबा तथा अटाकामा के म थल म लोहा व सो डयम नाई े ट क खु दाई क जाती
है।
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(5) द णी पूव द णी अमे रका : द णी अमे रका महा वीप का यह सु द ूर
द णवत े है, िजसम पैरागुआ, अज टाइना तथा यूरा वे दे श शा मल ह। इस
दे श म उ ण टे पी तु य तथा म य अ ांशीय म थल जलवायु पायी जाती है।
िजसके कारण यहां म त वन व छोट घास के मैदान पाये जाते ह। अ धकांश
भाग चरागाह के लए स है तथा कृ ष के लए भी यहाँ अनुकू ल प रि थ तयाँ
ह। अत: यहां के नवा सय का आज भी मु ख यवसाय पशु पालन और कृ ष
फाम है। कसी समय यहाँ भी रे ड इि डयन तथा न ो लोग का ह यादा बसाव
था पर तु धीरे -धीरे यूरो पयन ने यहां आकर बसना शु कर दया। इस भाग म
वेश करने के लए इ ह ने सव थम ला लाटा नद के मु हाने पर सन ् 1535 म
यूनसआयस ब दरगाह क थापना क । आज यहाँ क अ धकांश जनसं या इसी
उ तर पूव भाग म पै पास के घास के मैदान म केि त है। भीतर भाग म
जनसं या कम होती जाती है। पैटागो नया एक म थल य े है तथा ाय:
जनशू य है। ख नज संसाधन क यहां कमी है पर तु पैटागो नया एवं ाम चाको
म पे ो लयम ा त होने क कु छ संभावना है।
(6) ाजील : द णी अमे रका के लगभग आधे भाग म ि थत ाजील द ण
अमे रका का सबसे बड़ा दे श है। पूरे महा वीप क आधी जनसं या यहाँ नवास
करती है। ाजील के पठार भाग म आ -शु क तथा अमेजन बे सन म
भू म यरे खीय जलवायु का भाव है। अमेजन नद यहाँ क जीवन दा यनी नद है।
यहाँ पर औसत 175 से 250 सेमी. वषा होती है जब क पठार भाग म वषा 75
से 125 सेमी. होती है। यह भाग अमेजन क नचल भू म, ाजील के पठार
तथा समु तट य मैदान से न मत है िजसका 80 से 90 तशत भाग आ थक
उपयोग के लए अनुकू ल है। पूरे दे श म पवतीय उबड़-खाबड़ धरातल के बजाय
समतल पठार व मैदानी भाग क अ धकता, पया त जल संसाधन व अनुकू ल
तापमान क दशाओं के पाये जाने तथा अ छ उपजाऊ म ी के चु रता से
उपल ध होने के कारण कृ ष के लए अनुकू ल प रि थ तयाँ ह। बागानी कृ ष यहाँ
मु खता से क जाती है िजसके अ तगत कहवा, कोको तथा ग ना उपजाया जाता
है।
यहां पया त ख नज संसाधन उपल ध ह िजनम लोहा, मैगनीज, ह रा, सोना तथा
बॉ साइट मु ख ह। मीनास गैरास म लोहे का वशाल भ डार है तथा बेलो
हा रजोटे के नकट सोने क खु दाई होती है। जनसं या का बसाव भी ाजील के
समु तट य भाग म तथा ख नज वाले द णी पूव पठार भाग म ह अ धक है।
आ त रक पठार भाग तथा अमेजन घाट म जनसं या का घन व कम है। ाजील
म पुतगा लय का भाव यादा है।
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15.3.9 शा त सागर य दे श
325
शीतो ण जलवायु पायी जाती है। यूजीलै ड का आ धकांश धरातल पहाड़ी एवं
पठार है। िजस पर बड़े-बड़े चरागाह पाये जाते है। पशु पालन यहाँ मु ख यवसाय
है। यहाँ क अथ यव था म इसका बहु त मह व है।
(2) मेलाने शया : मेलाने शया के वीप समू ह मु यत: वालामु खी अथवा वाल से
न मत ह। ये आ े लया के उ तर पूव भाग म यू गनी , सोलोमन एवं
यूहे वडस , ब माक वीप तथा फजी वीप के समू ह के प म ि थत ह। यहाँ
प मी तथा पापुआन लोग यादा रहते ह िजनका मु य यवसाय आखेट तथा
मछल पकड़ना है। इन छोटे -छोटे वीप पर यहाँ के थानीय लोग के अलावा
यूरोप तथा ए शया के अ य समीपवत दे श से भी लोग आकर बस गये ह।
वीपीय तट के पास उ च तापमान व अ धक वषा होने के कारण बागानी कृ ष
का वकास हो रहा है। इन वीप पर कु छ ख नज का उ पादन भी कया जाता है
िजनम न कल, ोमाइट, लोहा, मगनीज, ताँबा, ज ता, चांद तथा कोयला है।
(3) माइ ोने शया : यू गनी के उ तर से फल पींस के पूव म ि थत छोटे -छोटे वीप
के समू ह को माइ ोने शया कहते ह। इनम मु यत: मै रयाना, मकाऊ, माशल,
गलबट तथा कारोलाइन वीप समू ह आते ह। इनम अ धकांश का नमाण वाल
वारा हु आ है। ये लगभग 1200 वगमील के े म फैले हु ए ह। माशल तथा
गलबट वीप पर आ दवासी अ धक रहते ह जब क शेष वीप पर बाहर से आये
ए शयाई मू ल के तथा यूरोप से आये लोग का नवास है। इनका मु य यवसाय
मछल पकड़ना, सु पार क बागानी कृ ष करना तथा फा फेट ख नज का उ पादन
है।
(4) पो लने शया : इसके अ तगत माइ ोने शया वीप समू ह के पूव शा त महासागर
म ि थत वीपीय पेट आते ह िजसम मु यत: फन स वीप, हवाई वीप
समू ह, उ तर पि चम थम स. वीपीय कटक, टोगर बा, तथा सोसायट वीप
शा मल है। अ तरा य त थ रे खा पर इन वीप पर से होकर गुजरती है। इनका
व तार 10,0000 वग मील े से है। यहाँ अ धकांशत: आ दवा सय का ह
नवास है। इन वीप पर ना रयल के बागान यादा पाये जाते ह। टु आमोटू
वीप पर मोती का उ पादन होता है तथा सोसायट वीप समू ह पर फा फेट
ख नज मलता है।
बोध न –3
1. मानसू न ए शया दे श म पै दा होने वाल कोई तीन बागानी फसल के नाम
बताइये ।
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2. े फल क ि ट से द णी अमे रका का सबसे बड़ा दे श कौनसा है ?
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3. आ े लया महा वीप क जलवायु अनु कू ल है –
( अ) बागानी कृ ष के लए (ब) चरागाह के लए
( स) चावल उ पादन के लए (द) फल उ पादन के लए
4. पो लने शया के टु आमोटू वीप पर कस मू यवान ख नज का उ पादन होता
है ?
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5. यू जीलै ड म कै सी जलवायु पायी जाती है ?
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6. माइ ोने शया के कन दो वीप पर आ दवासी यादा रहते ह ?
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रे ि डयर : ु वीय े म पाला जाने वाला पशु िजसका मांस मु ख भोजन के प म
तथा बफ पर चलने वाल लेज गाड़ी को खींचने के काम आते ह।
रे ड इि डयन : अमे रका म यूरोपवा सय के बसने से पहले पाये जाने वाले मू ल
नवासी।
टु डा : यूरोप , ए शया तथा उ तर अमे रका के सु द ूर उ तर भाग म ि थत वशाल
वन प तह न समतल े िजसम भू तल क मृदा क परत भी बफ से जमी रहती ह।
टगा : साइबे रया म टु ा तथा टै पी तु य घास के दे श के म य पायी जाने वाल
कोणधार वन क पेट ।
म यान : म थल े म जल ब दुओं या झील के पास ि थत उपजाऊ भू म
पर वन प त का समू ह।
पशु चारण : शु क क टबंध म कृ ष के तकू ल प रि थ तयाँ होने से पानी व घास क
उपल धता वाले थल पर पशु ओं को समू ह म लेकर घूमना।
सवाना : उ णक टबंधीय घास के मैदान
पठार : धरातल से ऊपर उठे वे भाग जो ऊपर से समतल क तु एक अथवा अ धक
ओर से अपने आसपास के भू-भाग से ढाल वारा अलग हो जाते ह।
मानसू न : मौसमी हवाओं के भाव वाला वह े िजसम वष पय त हवाय थल से
समु क ओर तथा समु से थल क ओर चल कर व श ट जलवायु दशाओं का
नमाण करती है।
15.7 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. ि लजाड
2. अ टाक टका
3. ब
4. 45० उ तर अ ांश से 66 1/2० उ तर अ ांश
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5. बख यान क
बोध न - 2
1. याक
2. महा वीपीय
3. अ का
4. सहारा के रे ग तान म पथर ले च ानी धरातल को ''ह मादा'' कहते ह।
बोध न - 3
1. चाय, रबर, मसाले
2. ाजील
3. ब चारागाह के लए
4. मोती
5. आ शीतो ण जलवायु
6. माशल तथा गलबट वीप पर
15.8 अ यासाथ न
1. संसाधन दे श के सीमांकन के आधार बताईये तथा व व को मु ख संसाधन दे श म
वग कृ त क िजए।
2. मानसू न ए शया संसाधन दे श क मु ख वशेषताओं का वणन क िजए।
3. ु वीय एवं उ तर उप ु वीय संसाधन दे श क वशेषताओं का एक तु लना मक ववरण
तु त क िजए।
4. न न पर ट पणी क िजए-
( i) शा त महासागर य संसाधन दे श
(ii) अरब के बबर स यता वाले संसाधन दे श
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