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GE-04
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा

संसाधन भू गोल
इकाई सं. इकाई पृ ठ सं .
इकाई - 1 : संसाधन भू गोल : कृ त, वषय- े , मह व तथा अ ययन 7—22
के उपागम
इकाई - 2 : संसाधन : अवधारणाएँ, वग करण, का यक स ा त तथा 23—65
मू यांकन
इकाई - 3 : ाकृ तक संसाधन : मृदा, जल 66—92
इकाई - 4 : जै वक संसाधन : वन प त एवं पशु 93—119
इकाई - 5 : ख नज संसाधन 120—138
इकाई - 6 : पर परागत ऊजा संसाधन 139—162
इकाई - 7 : गैर-पर परागत ऊजा संसाधन 163—175
इकाई - 8 : वैि वक ऊजा संकट तथा नयं ण 176—188
इकाई - 9 : मानव संसाधन : जनसं या-वृ 189—206
इकाई –10 : मानव संसाधन : वैि वक जनसं या व यास तथा घन व 207—226
त प
इकाई -11 : जनसं या- संसाधन स ब ध 227—244
इकाई -12 : मानव संसाधन वकास सूचकांक 245—260
इकाई -13 : संसाधन उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान 261—277
इकाई -14 : संसाधन उपयोग : प रवहन एवं यापार 278—305
इकाई -15 : व व के संसाधन दे श 306—329

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पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खुला व व व यालय कोटा (राज॰)

संयोजक / सम वयक एवं सद य


सलाहकार सद य स चव / सम वयक
ोफेसर (डॉ.) एस.सी. कलवार डॉ. अशोक शमा
पूव ोफेसर एवं वभागा य , भूगोल वभाग वधमान महावीर खुला व व व यालय,
राज थान व व व यालय, जयपुर(राज.) कोटा(राज.)
सद य
1. ोफेसर(डॉ.) स तोष शु ला 2. डॉ. जे.के . जैन
ोफेसर एवं वभागा य पूव एसो सये ट ोफेसर एवं वभागा य , भूगोल वभाग
सामा य एवं यवहा रक भूगोल वभाग जयनारायण यास व व व यालय, जोधपुर(राज.)
एच.एस. गौर व व व यालय,सागर(म य दे श) 3. डॉ. बी.एल. शमा
वभागा य , भूगोल वभाग
राजक य नातको तर महा व यालय, कोटा(राज.)
4. ोफेसर(डॉ.) एन. एल. गु ता 5. डॉ. मनोज गौतम
पूव ोफेसर एवं वभागा य , भूगोल वभाग व र ठ या याता, भूगोल वभाग
मोहनलाल सुख ड़या व व व यालय, उदयपुर(राज.) राजक य नातको तर महा व यालय, कोटा(राज.)

स पादन तथा पाठ ले खन


स पादक 3. डॉ. आर.पी. शमा 4. डॉ. खे मच द शमा
ोफेसर एस.के . शमा व र ठ या याता, भू गोल वभाग व र ठ या याता, भू गोल वभाग
राजक य कला महा व यालय, राजक य कला महा व यालय,
पू व ोफेसर एवं वभागा य
अलवर(राज.) अलवर(राज.)
सामा य एवं यवहा रक भू गोल वभाग
एच.एस. गौर व व व यालय, सागर (म य 5. डॉ. एल.सी. अ वाल 6. डॉ. तेजराम मीणा
दे श) व र ठ या याता, भू गोल वभाग ाचाय, वनायक महा व यालय
ले खक राजक य नातको तर महा व यालय, महु वा, िजला दौसा(राज.)
कोटा(राज.)

1. डॉ. जे.के . जैन 7. डॉ. आर.एन. शमा 8. डॉ. काश यादव


पू व एसो सये ट ोफेसर एवं वभागा य , अ स टे ट ोफेसर, भूगोल वभाग या याता, भूगोल वभाग
भू गोल वभाग राज थान व व व यालय जयपु र (राज.) अरावल महा व यालय, नीम का
जयनारायण यास व व व यालय,
थाना, िजला सीकर(राज.)
जोधपुर (राज.)

2. डॉ. पी. आर. चौहान 9. डॉ. बी.एल. कोल


पू व अ स टे ट ोफेसर, भू गोल वभाग वभागा य , भू गोल वभाग
जयनारायण यास व व व यालय, राजक य कला महा व यालय,
जोधपुर (राज.) अलवर(राज.)

अकाद मक एवं शास नक यव था


ो. नरे श दाधीच ो. डॉ. बी..के . शमा योगे गोयल
कु लप त नदे शक भार
वधमान महावीर खु ला व व व यालय,कोटा संकाय वभाग पा यसाम ी उ पादन एवं वतरण वभाग

पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार ,
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

Production: Dec. 2012 ISBN No. : 13/978-81-8496-182-9


इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु. व., कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण)
वारा या अ य पुनः तुत करने क अनु म त नह ं है ।
व. म. खु. व., कोटा के लये कु लस चव व. म. खु. व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत

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प रचया मक
भू गोल क नूतन वृि तय म इसका यावहा रकता क ओर झु काव भी है । फलत: इसके
अ ययन क प र ध म ऐसे वषय आए ह जो सीधे कृ त-मानव- वकास के कोण के
पार प रक स ब ध का व लेषण करते ह । संसाधन भू गोल भी उनम एक है । वकास
सभी कार के दे श का अ भ ट है और वकास म संसाधन क आधारभू त भू मका होती है
। मानव क याण के व वध आयाम के अ ययन क ओर अ सर भू गोल क इस शाखा के
अ तगत संसाधन का े ीय वतरण, उनके गुण का व लेषण, उनका अनुकूलतम
उपभोग के लए नयतन, उपभोग क याओं तथा त ज नत सम याओं का अ ययन
कया जाता है । अ तु वकास के लए नयोजन तथा पयावरण संर ण के लए यह बहु त
मह वपूण वषय बन गया है । इसी प रपे य म इस पु तक क रचना क गई है ।
यह उ लेख करना समीचीन है क अब भी लोग म म है क केवल भौ तक त व ह
संसाधन ह, पर तु वा त वकता यह है क मानव ह सबसे बड़ा संसाधन है । जब तक
मानव ाकृ तक त व क उपयो गता क अनुभू त नह ं कर ले और उनका अपनी
आव यकता पू त म उपयोग न कर सके तब तक वे ाकृ तक त व नि य पदाथ होते है
। इस कारण ाकृ तक संसाधन के साथ मानव संसाधन को इस पु तक म समा हत कया
गया है । साथ ह संसाधन के उपभाग से उ प होने वाल पयावरणीय, आ थक तथा
सामािजक सम याओं को भी सि म लत कया गया है । इस तरह यह केवल संसाधन क
व लेषण करने वाल एकांगी पु तक ह नह ं है, बि क मानव-पयावरण अ त याज नत
संसाधन के सम आयाम को इसम रखा गया है ।
संसाधन क व वधता को इस पु तक के 15 इकाइय म समा हत कया गया है । इन
संसाधन क व श टताओं के कारण इनका व लेषण उनक द ता वाले अलग-अलग
व वान वारा कया गया है । इसका आर भ संसाधन भूगोल के व प क ववेचना से
कया गया है । संसाधन क अवधारणाओं और उनके ल ण-वणन पर अगला अ याय
केि त है िजसम संसाधन- वषयक ग या मक वचार क या या क गई है । वैसे तो
सभी संसाधन एक तं के प म काम करते ह, फर भी म ी और जल संसाधन इनको
आधार दान करते ह । इनके शा वत ा य व प क ववेचना अ याय चार म क गई
है । आधु नक औ यो गक समाज के आधार ख नज एवं ऊजा के ोत ह । इनके भंडार,
वतरण, उ पादन एवं उपभोग क ववेचना पर अगले तीन अ याय केि त ह । ऊजा के
ोत क अन यकरणीय न शेष गुण के कारण अज ऊजा ोत क मह ता को यान म
रख कर इनक स भावना क चचा पर एक अलग अ याय है । साथ ह व भ न भाग म
आए ऊजा संकट क व तार ववेचना क गई है । अगले चार अ याय म मानव संसाधन
के व भ न आयाम -सं या, वृ तथा मता क ववेचना है । इसम मानव संसाधन एंव
मानव वकास को गहराई से दे खा गया है । संसाधन दोहन से जु डी पयावरणीय सम याओं
के व प तथा उनके लए स भा वत नदान पर भी वचार कया गया है । प रवहन त

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क भी आनुसां गक चचा क गई है । संसाधन के ल ण के आधार पर ादे शीकरण
अि तम अ याय क वषय-साम ी है ।

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इकाई 1 : संसाधन भू गोल : कृ त, वषय- े एवं
मह व तथा अ ययन के उपागम (Nature,
Scope and Significance of Resource
Geography, Approaches to the Study
of Resources Geography)
इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 संसाधन भू गोल का वकास
1.3 संसाधन भू गोल क प रभाषा एवं कृ त
1.4 संसाधन भू गोल का मह व
1.5 संसाधन भू गोल का वषय - े
1.5.1 ाकृ तक संसाधन और उनके उपयोग का अ ययन
1.5.2 मानवीय संसाधन और उनक वशेषताओं का अ ययन
1.5.3 संसाधन संर ण एवं नयोजन का अ ययन
1.5.4 संसाधन मू यांकन - सव ण एवं मान च ण क व धय का अ ययन
1.5.5 संसाधन भू गोल क अ य वषय से स ब ता का अ ययन
1.6 संसाधन भू गोल के अ ययन उपागम
1.6.1 मब उपागम
1.6.2 ादे शक उपागम
1.7 सारांश
1.8 श दावल
1.9 स दभ थ
1.10 बोध न के उ तर
1.11 अ यासाथ न

1.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के प चात ् आप समझ सकगे : -
 संसाधन भू गोल के वकास, उसक प रभाषा, कृ त तथा मह व
 संसाधन भू गोल के वषय- े
 ाकृ तक तथा मानवीय संसाधन के दोहन, उपयोग और वशेषताओं को समझाकर
दोन म अ तर

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 संसाधन के संर ण तथा संध ृत वकास के स ा त
 संसाधन के मू यांकन क सव ण एवं मान च ण व धयाँ
 संसाधन भू गोल क अ य वषय से स ब ता
 संसाधन भू गोल के अ ययन उपागम या व धय को समझाना ।

1.1 तावना (Introduction)


भू गोल क वशेषीकृ त इस शाखा का आर भ व वकास कब और कैसे हु आ ? संसाधन
भू गोल क प रभाषा या है ? इसक कृ त कैसी है ? यह आ थक भू गोल से कस कार
भ न ह ? इसके अ ययन का या मह व है ? इसका वषय- े या है ? अ य वषय
से इसक या स ब ता है ? ाकृ तक और मानवीय संसाधन क या वशेषताएँ ह ? ये
दोन कस कार से अ तस बि धत और अ यो या त ह ? संसाधन का सं रण य
और कैसे स भव है ? कसी दे श के संसाधन के मू यांकन क या व धय ह ?
संसाधन भू गोल के अ ययन उपागम कौन-कौन से ह और कहाँ-कहाँ ासं गक ह ? इन
सभी न का समाधान वतमान भौ तकवाद युग म ज टल अथतं के भावी संचालन
हे तु अथशाि य , राजनी त , पा रि थ तक वद , नी त- नधारक , योजनाकार आ द सभी
के लए ासं गक एवं मह वपूण है। संसाधन भू गोल के इन सभी प का वशद अ ययन
इस इकाई म तु त कया गया है।

1.2 संसाधन भू गोल का वकास (Evolution of Resource


Geography)
कदा चत ् मानव स यता व सं कृ त के उदय के साथ ह भौगो लक ान का भी आर भ
हो गया था क तु उस समय इसका व प बहु त यापक था। ार भ म खगोल य एवं
भौ तक भू गोल वक सत हु ए। काला तर म या ा भू गोल, मान च ण भू गोल आ द वक सत
हु ए। मानव को अपनी ाथ मक आव यकताओं - भोजन, व , नवास - क पू त के लए
जीवनयापन के साधन तथा क दमूल -फल एक ण, आखेट, म य हण, पशु चारण, कृ ष,
खनन आ द याएँ करनी पड़ीं। इस हे तु वह वन , चरागाह , जलाशय , कृ षयो य भू म
आ द क खोज म य नशील हु आ। इस कार मनु य अपने पयावरण के संसाधन तथा
उनके ाि त थल से प र चत हु आ। यह संसाधन भू गोल के वकास का आर भ था,
य य प एक व ान के प म भूगोल क यह शाखा काला तर म वक सत हु ई।
आर भ म भू गोल क केवल दो शाखाएँ वक सत हु ई - भौ तक भू गोल और मानव भू गोल।
संसाधन का अ ययन मानव भू गोल के अ तगत ह कया जाता था। ा सीसी व वान
जी स ं ने मानव भू गोल के स ा त म 'जीवन क मू लभू त आव यकताओं' तथा 'भू म
ूश
दोहन' को वशेष थान दया। मू लभू त आव यकताओं के भू गोल म भोजन, व एवं
नवास को तथा भू म दोहन के भू गोल म कृ ष, पशु पालन, आखेट, खनन आ द यवसाय
का उ लेख कया गया। अमे रक व वान इ सवथ हं टं टन ने मानव भू गोल के अ तगत

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ाकृ तक दशाओं - जल, म ी, ख नज, जीव-ज तु एवं पौध - का ह उ लेख कया। मानव
अ भ यंजनाओं म मनु य क आ थक आव यकताओं, यवसाय एवं संसाधन का न पण
कया गया।
काला तर म भू-म डल के सम व लेषण तथा अ ययन हे तु भू गोल क दोन ह शाखाओं
का वशाखन हु आ। 19वीं शता द के उ तरा म मानव भूगोल के अ तगत आ थक भू गोल
का वकास हु आ। आ थक भू गोल व भ न दे श म पृ वी -तल के संसाधन तथा मानव क
आ थक याओं और उनक अ यो य या का अ ययन एवं या या करता है।
मानव भू गोल के अ ययन म 'वातावरणवाद' क व वध वचारधाराओं का वशेष मह व है।
' न चयवाद' तथा 'स भववाद' क वचारधाराओं म पृ वी तथा मानव के स ब ध क चचा
क गई है, फलत: संसाधन तथा उनके उपयोग का मह व भी बढ़ा। बीसवीं शता द के
पूवा म काल सावर, हाटशोन, मफ , जो स आ द भि त व वान ने आ थक भू गोल
स ब धी नूतन वचार तपा दत कए िजनम ाकृ तक संसाधन व उनके उपयोग, कृ ष,
उ खनन, व नमाण उ योग तथा संसाधन संर ण को के य थान दया गया।
भू गोल म वशेषीकरण क वृि त के फल व प नई शाखाओं का वकास स भव हु आ।
शनै:-शनै: भू गोल क उपशाखाओं के वत अ ययन पर अ धका धक बल दया जाने
लगा। जमनी म आ थक भू गोल तथा टे न व अमे रका म चजम, हाईट, बेक, ि मथ
आ द व वान ने वा णि यक भू गोल का वकास कया।
वतीय व व यु के प चात ् भू गोल म मानव संसाधन को अ धक मह व दे ते हु ए
ाकृ तक संसाधन के अनुकू लतम योग पर बल दया जाने लगा। मानवीय ग त के लए
संसाधन के आंकलन तथा उनके उपयोग को मह व दया जाने लगा य क कसी- भी
रा क आ थक ग त के लए संसाधन परमाव यक ह। यां क कु शलता एवं ौ यो गक
के वकास के कारण प रवहन साधन क वृ ; व वध संसाधन के उ पादन, उपयोग एवं
संर ण; तथा औ योगीकरण से स बि धत सम याओं के अ ययन एवं अनुसंधान म
मश: वृ जार रह । फलत: संसाधन भू गोल का उ तरो तर वकास होता गया।
बोध न-1
1. सं साधन भू गोल का वकास कस म मे हु आ ?
............................................................... ..............................
............................................................... ..............................

1.3 संसाधन भू गोल क प रभाषा एवं कृ त (Definition and


Nature of Resource Geography)
संसाधन भू गोल क प रभाषा एवं कृ त को संसाधन क उ त अवधारणा एवं इस वषय
के वकास के स दभ म सु प ट कया जा सकता है। वशेषीकरण के आधार पर संसाधन
भू गोल मानव भू गोल क एक मु ख शाखा आ थक भू गोल क ह उपशाखा है। इसके
अ तगत सम त संसाधन , उनक वशेषताओं, उ पादन तथा े ीय वतरण ा प का

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अ ययन कया जाता है। अ तु संसाधन भू गोल को इस कार प रभा षत कया जा सकता
है - 'संसाधन भू गोल पृ वी तल पर मानव स हत सम त संसाधन क वशेषताओं, े ीय
व भ नताओं, था नक वतरण तथा उपयोग त प एवं कारक का व ान है।' वा तव
म संसाधन भू गोल, भू गोलन क वह शाखा है िजसम संसाधन के मू यांकन उनके वतरण
एवं नयतन, उनको भा वत करने वाले कारक तथा संसाधन- योग के भाव का
अ ययन कया जाता है। इसके अ तगत मानव वारा ाकृ तक संसाधन क खोज तथा
स बि धत ान के वकास का अ ययन कया जाता है।
शफ ने भू गोल क इस शाखा को प रभा षत करते हु ए कहा है क 'संसाधन भू गोल क
स ब ध ाकृ तक स पदा के उस मा ा मक एवं े ीय सव ण से है जो कसी रा के
अथ यव था क प त तथा संगठन के प र े य म संसाधन के उपयोग क ि थ त के
व लेषण एवं मान च ण के लए कया जाता है। काय थ के अनुसार 'संसाधन के
आकलन, उनके उपयोग वकास के लए नयोजन तथा संर ण का अ ययन ह संसाधन
भू गोल है।
आ थक भू गोल तथा संसाधन भू गोल क समान वषय-व तु को दे खकर कभी-कभी दोन का
अ तर प ट नह ं हो पाता। यह स य है क दोन के बीच कोई कठोर वभाजन रे खा नह ं
खींची जा सकती। उदाहरणाथ, शि त के संसाधन के प म कोयले का अ ययन संसाधन
तथा आ थक भू गोल दोन म ह कया जाता है, क तु संसाधन भू गोल म कोयले के
उ पादन तथा व भ न उपयोग का अ ययन अपे त है जब क कोयले के योग से ा त
उपयो गता तथा इससे न मत उपयोगी पदाथ का मानव वग के बीच वतरण तथा
व नमय आ थक भू गोल क वषय-व तु है। इससे प ट है क संसाधन भू गोल वा तव म
आ थक भू गोल का एक प मा है। दूसरे श द म, आ थक भू गोल का अ ययन े
संसाधन भू गोल के अ ययन े से कह ं अ धक व तृत है।
आ थक भू गोल म सभी कार के संसाधन तथा उनके उपयोग जैसे - कृ ष, उ योग,
यातायात, वा ण य, व वध सेवाकाय आ द - का अ ययन कया जाता है। इनम से येक
क वषय-व तु पृथक् तथा उ ह भा वत करने वाले त व व कारक एवं उनके
अ तस ब ध भी भ न ह।
आ थक तथा संसाधन भू गोल म मु य अ तर यह है क आ थक भू गोल म उ पादन,
व नमय तथा उपभोग स ब धी सम त याएँ सि म लत ह जब क संसाधन भू गोल केवल
उ पादन से स बि धत मानवीय याओं तक सी मत है। उ पादन के अ तगत ाथ मक
उ योग, जैसे - वनोपज सं ह का ठ दोहन, आखेट, म यो पादन, पशु चारण, कृ ष आ द
तथा वतीयक उ योग, जैसे - खनन व व तु- नमाण उ योग - सि म लत ह। ये सभी
संसाधन भू गोल क वषय-व तु ह। तृतीयक उ योग जैसे - यापार एवं प रवहन तथा
चतुथक यवसाय, जैसे - उ च सेवाएँ, योजना, ब धन आ द - व नमय एवं उपभोग से
स बि धत ह तथा ये सभी आ थक भू गोल क वषय-व तु ह।

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संसाधन का अ ययन भू गोल के अलावा कई अ य वषय म कया जाता है। इनम
अथशा , भू गभशा , वन प तशा , मृ तका व ान आ द मु य ह। पर तु इन
वै ा नक एवं भू गोल वद के अ ययन म मौ लक अ तर है। यह अ तर अ ययन के
ि टकोण एवं उपागम म है। भू गोल व भ न संसाधन क ि थ त, वतरण, उनके
पार प रक स ब ध और उनसे बनने वाले भू य का अ ययन करता है। इस तरह केवल
भू गोल सभी संसाधन को पर पर अ तस बि धत एक तं के प म दे खता है। उसका
ि टकोण सम (Holistic) होता है। अ य व ान एक-एक संसाधन को अलग- अलग
अ ययन करते ह।
बोध न- 2
1. सं साधन भू गोल को कै से प रभा षत कया गया है ?
........................................................................................... ..
............................................................... ........................
2. आ थक भू गोल और सं साधन भू गोल म या मु य अ तर है ?
........................................................................................... ..
.................................................................... ...................
3. धन के उ पादन , व नमय , वतरण व उपभोग का अ ययन आ थक भू गोल
म कया जाता है या सं साधन भू गोल म ?
........................................................................................... ..
............................................................. ..........................

1.4 संसाधन भू गोल का मह व (Significance of Resource


Geography)
आधु नक भौ तकवाद स यता के युग म संसाधन भू गोल का अ ययन इतना मह वपूण हो
गया है क इसके बना वतमान ज टल आ थक तं का चलना अस भव ाय है। आ थक
भू-सम याओं के ान के लए संसाधन का भू-आ थक (geoeconomic) ि ट से
अ ययन आधारभूत है। व भ न दे श क प रवतनशील आ थक दशा का ान हम वहाँ के
संसाधन क पया तता एवं यूनता के अ ययन से ह ा त हो सकता है। आज क
अथ यव था इतनी ग तशील एवं अि थर है क उसक संसाधन भू गोल : कृ त,
प रवतनशील ि थ त दूसरे दे श को भा वत कए बना नह ं रह सकती। उदाहरणाथ, य द
डॉलर या कसी अ य मु ा का अवमू यन या अ धमू यन होता है तो व व के सभी दे श
क आ थक ि थ त और आ थक तं पर उसके य या परो भाव दे खने को मलते
है। इसी कार फसल या कृ ष संसाधन या उ पादन के अ य साधन क यूनता या वृ
से अ तरा य बाजार क ि थ त या रा य नी त को बदलते दे र नह ं लगती। व व के
िजन े म ख नज तेल के बड़े भ डार ह - जैसे म यपूव दे श-वहाँ पर अ तरा य
शि तयाँ कसी-न- कसी प म अपना राजनी तक दबाव डाले हु ए ह। व व के कई ऐसे

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े भी ह जहाँ साम रक मह व के ख नज क खोज के लए भूभाग का सव ण जार है।
ीनलै ड वीप म साम रक ख नज क चु रता के कारण अमे रका एवं स उस पर
अपना आ धप य जमाना चाहते ह। इसी कार द णी-पि चमी ए शया आज भी ख नज
तेल भ डार के कारण पू ज
ं ीवाद एवं सा यवाद शि तय क चपेट म जकड़ा हु आ है। कई
दे श को ख नज तेल क ाि त के लए कु वैत एवं बहर न जैसे छोटे दे श पर नभर रहना
पड़ता है। भारत का म य -पूव ए शया के दे श से केवल ख नज तेल ाि त के कारण ह
राजनी तक स ब ध ह।
संसाधन भू गोल का अ ययन हम दो मु य सम याओं के समाधान के लए करते ह।
थम, कसी- भी दे श क आ त रक बढ़ती हु ई जनसं या क मांग के लए संसाधन क
पू त कस तरह से हो िजससे क बढ़ती हु ई असं य आव यकताओं क संतु ि ट हो सके
तथा मानव का जीवन तर ऊँचा हो सके। बढ़ती हु ई जनसं या के स दभ म सी मत
साधन क यूनता का न उठना वाभा वक है। पृ वीतल पर तवष 78 लाख
जनसं या बढ़ रह है िजसके कारण पा रि थ तक एवं पा रि थ तक - म का स तु लन
बगड़ता जा रहा है। वतीय, संसाधन भू गोल का मह व इस लए भी है क इसका
अ ययन हम यह बताता है क कस कार से हम अपने ाकृ तक संसाधन का नयोजन
रा य ि ट से कर आने वाल पी ढ़य को पा रि थ तक संकट से बचा सकते ह। यह
न वभ न े के मनु य के वै ा नक एवं तकनीक ान पर नभर करता है क वे
कस कार से ाकृ तक संसाधन के उपयोग व संर ण क व धयाँ लागू करते ह। वैसे
कोई-भी ऐसा दे श या े नह ं है जहाँ कु छ-न-कु छ संसाधन न भरे पड़े ह क तु संसाधन
क उपयो गता एवं उनके संर ण क व धयाँ राजनी तक नी तय पर नभर करती ह।
इस कार संसाधन भू गोल का मह व न केवल राजनी त , अथशाि य व
नयोजनकताओं को है बि क येक स य एवं सामािजक ाणी को भी है िजसक
अथ यव था पर इसका भाव पड़ता है। इसके अ त र त संसाधन भू गोल का ान
न न ल खत े म भी उपयोगी है -
संसाधन के उ पादन का ान : उ पादन का वा त वक ान हम केवल संसाधन भू गोल
से ह होता है। व व के व भ न े म क चे माल के मु य ोत कहाँ ह ? यह जानना
आव यक है। यह जानकर पा चा य दे श ने उप नवेशवाद का सार कया और
औप नवे शक दे श के संसाधन का दोहन कर अपने आ थक-तं को ढ़ कया।
शि त के साधन का ान : संसाधन भू गोल वा तव म शि त के साधन एवं उ पादन के
वतरण को प ट करता है। शि त के कौन-से साधन कस े म पया त मा ा म
उपल ध हो सकते ह ? उनका तु लना मक ान संसाधन भूगोल ह कराता है।
उ योग क थापना का ान : उ योग क ं थापना के लए क चे माल व ख नज
पदाथ का व तृत ान होना आव यक है। वक सत रा को इसक वशेष आव यकता
होती है। जैसे - स म संसाधन क उ पि त एवं वतरण पर सबसे अ धक मह व व बल

12
दया गया है। राजनी त एवं वशेष के अ त र त उ योगप तय एवं यापा रय को भी
संसाधन का ान उपयोगी है।
यातायात व तार का ान : आधु नक व व म अ तरा य यापार क बढ़ती वृि त के
कारण प रवहन साधन के ान का मह व बढ़ गया है। क चे माल को औ यो गक े
तक पहु ँ चाने तथा व न मत माल को उपभो ता े तक पहु ँ चाने म यातायात के सु गम व
ती साधन का मह व न ववाद प से है जो हम केवल संसाधन भू गोल के अ ययन से
ा त होता है।
वकास तर का ान : आ थक प रवतन के तेजी से बदलते हु ए वतमान प र य म हम
ाकृ तक व मानवीय संसाधन के तकसंगत मू यांकन से ह व व के व भ न दे श के
सामािजक -आ थक वकास तर का ान ा त कर सकते ह। इसी आधार पर आज
व व को अ प वक सत, अ वक सत या वकासशील तथा वक सत रा क े णय म
रखा जाता है। संसाधन क यूनता अथवा पया तता के आधार पर वतमान व व म
न न ल खत तीन कार के संसाधन वकास दे श दे खने को मलते ह
1. संसाधन वकास क सी मत स भावनाओं वाले दे श जैसे - ु वीय े व उ ण
म थल य े ।
2. संसाधन के अ प वकास के दे श जैसे - म य अ ांशीय वन, उ णक टबंधीय वन व
घास के मैदान, तथा
3. उ च तर य वकास के दे श जैसे - वृह नमाण उ योग दे श, भूम यसागर य दे श
तथा कु छ ए शयाई ग तशील दे श।
बोध न-3
1. सं साधन भू गोल के अ ययन का या मह व है ?
............................................................ .........................
............................................................ .............................

1.5 संसाधन भू गोल का वषय- े (Scope of Resource


geography)
संसाधन भू गोल के वषय- े के अ तगत मु यत: पृ वी -तल के संसाधन क वशेषताओं
एवं उनके उ पादन व उपयोग के अ ययन आते ह। मनु य सं कृ त का वकास करके
अपनी आव यकताओं क पू त के लए ाकृ तक त व का योग िजतनी मा ा या अव था
तक कर लेता है उसी मा ा व अव था तक ये त व संसाधन बनते जाते ह। चू क संसाधन
मानव के उपयोग म आने वाले त व ह इनका अ ययन संसाधन भू गोल क अ नवाय
वषय -व तु है। संसाधन भू गोल के वषय े को न न ल खत भाग म रखकर भल -
भां त समझा जा सकता है ( च - 1.1)

13
च - 1.1 : संसाधन भू गोल का वषय- े

1.5.1 ाकृ तक संसाधन और उनके उपयोग का अ ययन

कृ त द त संसाधन को ाकृ तक संसाधन कहते ह। अ य श द म, ाकृ तक पयावरण


के उपयोग- यो य घटक ाकृ तक संसाधन कहलाते ह। भौ तक स दभ म जैवम डल तथा
थलम डल म संसाधन के ाकृ तक वतरण, कार तथा उनके उपयोग- भाव संसाधन
भू गोल क वषय-व तु बनते ह। इस आधार पर कसी दे श क भौगो लक ि थ त, आकार,
धरातल, जलवायु, वन प त, जीव-ज तु, मृदा , वन, पवन, जल, पशु, ख नज, सौर ऊजा
आद त व ाकृ तक संसाधन क ेणी म आते है। इनम से कु छ संसाधन संध ृत ह जैसे -
पवन, जल आ द जब क अ य असंध ृत जैसे - कोयला, ख नज तेल आ द। ाकृ तक
संसाधन के दो मु य वग ह - जै वक और अजै वक। ाकृ तक संसाधन के एकल व
सामू हक दशाओं के योग म ह जै वक समु दाय का अि त व स भव है।

1.5.2 मानवीय संसाधन और उनक वशेषताओं का अ ययन

सं कृ त का नमाता मानव वयं शि तशाल संसाधन है जो ाकृ तक त व को अपने


ान एवं कौशल से संसाधन म पा त रत करता है। वह संसाधन का नमाता तथा
उपभो ता दोन है जो एक भौगो लक कारक व संसाधन के प म सि म लत होकर काय
करता है। मानव संसाधन के दो मु य प ह - (i) मा ा मक प िजसम कु ल जनसं या,
उसक वृ , वतरण, घन व आ द घटक सि म लत होते ह, तथा (ii) गुणा मक प
िजसम जनसं या क शार रक व मान सक मता, लंग संरचना, आयु वग, वा य,
सा रता, म शि त, राजनी तक व सामािजक संगठन, सां कृ तक उपलि धयाँ ( व ान,
तकनीक आ द) तथा आ थक वकास जैसी वशेषताएँ सि म लत होती ह।
जनसं या और संसाधन म घ न ठ स ब ध है। कसी-भी दे श क जनसं या उसके
संसाधन के अनुपात म जना ध य अथवा जना पता क सम या खड़ी कर सकती है। ये

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दोन ह ि थ तयाँ उस दे श के संसाधन के समु चत दोहन म बाधा व प ह। इनका
अ ययन व व को जनसं या-संसाधन दे श म बांटकर कया जाता है जैसे - संसाधन
वकास क सी मत स भावना वाले दे श, अ प वकास अथवा उ च वकास के दे श आ द।

च -1.2 : ाकृ तक एवं मानवीय संसाधन क अ तस ब ता


मानव एक स य ाणी के प म पृ वी -तल पर व यमान संसाधन एवं ाकृ तक प रवेश
का उपयोग करते हु ए उसके साथ समायोजन था पत करता है । इस स पूण या म
वह अपनी बौ क मता के अनुसार कृ त द त त व म से े ठ त व का चयन
करता है और इसी म म इनका पा तरण करता है । च -1.2 ाकृ तक एवं मानवीय
संसाधन क अ तस ब ता को भल -भाँ त प ट करता है।

1.5.3 संसाधन संर ण एवं नयोजन का अ ययन

भ व य म मानव क सामािजक, सां कृ तक और आ थक ग त के लए कसी दे श के


ाकृ तक एवं मानवीय संसाधन के संर ण, नयोजन एवं सदुपयोग क योजनाएँ संसाधन
भू गोल के वषय- े के अ भ न अंग ह। इनका उ े य मानवीय याओं से होने वाले
तकारक प रणाम का नवारण कर संध ृत वकास का माग श त करना है। इन सभी
प के वशद ववेचन हे तु इकाई - 2 दे ख।

1.5.4 संसाधन मू यांकन - सव ण एवं मान च ण क व धय का अ ययन

संसाधन का मू यांकन संर ण नयोजन का अ वभा य अंग है। संसाधन का मू यांकन


उ ह दो मु ख वग मे बांटकर कया जा सकता है - (i) ाकृ तक संसाधन के सव ण
एवं मान च ण वारा िजसम मु खतया पयावरणीय घटक सि म लत कए जाते ह, तथा

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(ii) मानवीय संसाधन के सव ण एवं मान च ण वारा िजसम जनसं या के मा ा मक व
गुणा मक घटक सि म लत कए जाते ह। पयावरणीय घटक म मु खतया वाकृ तक त व,
जलवायु, जल, म ी, पा रि थ तक य त व, भू- उपयोग आ द तथा मानवीय घटक म
जनसं या के मा ा मक व गुणा मक घटक के सव ण व मान च ण काय आते ह। इन
सव ण म उ े यानुसार व भ न मापक का चयन करते हु ए ारि भक, अ - व तृत या
व तृत हवाई एवं धरातल य सव ण स प न कए जाते ह िजनके आधार पर संसाधन के
नयोजन हे तु उ े यपरक मान च (thematic maps) बनाए जाते ह। वतमान समय म
वातावरण के येक कारक के वत एवं पृथक् सव ण व मान च ण क अपे ा अ धक
कौशल व उ तम बोध समाकलन वारा अ धकतर उ े यपरक मान च ह बनाए जाते ह।
ऐसे उपागम को भू म-तं उपागम (land system approach) क सं ा द गई है। इन
सभी सव ण व मान च ण व धय क ववेचना इकाई- 2 म तु त क गई है।

1.5.5 संसाधन भू गोल क अ य वषय से स ब ता का अ ययन

संसाधन भू गोल क अ य वषय से स ब ता भी इसके यापक वषय- े को प ट


करती है। संसाधन भू गोल का अथशा , सांि यक , भौ मक , सै य व ान, मृदा व ान,
पादप-एवं- ाणी- पा रि थ तक , जल व ान, समु व ान, कृ ष व ान, धाि वक ,
अ भयाि क आ द व भ न वषय से साथक स ब ध ह य क संसाधन नयोजन हे तु
इन व ान से आव यकतानुसार वमश क आव यकता पड़ती है। ये सभी वषय ाकृ तक
व सां कृ तक वातावरण के त व का अ ययन करते ह।

च -1.3 : संसाधन भू गोल का अ य व ान से स ब ध


नवीन संसाधन क खोज के प रणाम व प अब संसाधन भू गोल क कु छ अ य वषय
जैसे यापार, वा ण य, प रवहन, रसायन व ान, भौ तक , अ त र व ान आ द - के
साथ भी गाढ़ता बढ़ रह है। इस कार संसाधन भू गोल का वषय- े नर तर यापक
और वै ा नक कृ त का बनता जा रहा है।
बोध न-4

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1. सं साधन भू गोल का वषय- े कन- कन अं ग के अ तगत समझाया जा
सकता है ?
............................................................................................ .
............................................................................................ .
2. सं साधन सं र ण से या आशय है ?
............................................................................................ .
............................................................................................ .
3. सं साधन नयोजन के तीन अ भ न अं ग कौन-कौन-से ह ?
.............. .............................................................................. .
............................................................................................ .
4. सं साधन के मू यां क न क कौन-कौन -सी व धयाँ ह ?
............................................................................................ .
............................................................................................ .

1.6 संसाधन भू गोल के अ ययन उपागम (Approaches to


the Study of Resource Geography)
कसी-भी दे श के संसाधन के उ पादन एवं उपयोग का अ ययन मब तथा ादे शक दो
व धय वारा कया जा सकता है-

1.6.1 मब उपागम (Systematic Approach)

मब उपागम को करण उपागम (topical approach) भी कहते ह। इस उपागम के


अ तगत येक संसाधन का पृथक -पृथक करण म वणन कया जाता है। उदाहरणाथ,
ख नज संसाधन के अ तगत लोहा, मगनीज, अ क, ताँबा, ज ता, सोना, चाँद ,
ए यू म नयम आ द करण म तथा ऊजा संसाधन के अ तगत कोयला, जल व युत,
परमाणु ऊजा, ख नज तेल आ द करण म। इसम संसार के व भ न े म इन ख नज
के उ पादन तथा उपयोग जैसे - लौह-इ पात उ योग. जलपोत नमाण, वायुयान नमाण,
यं नमाण, मशीनी औजार नमाण आ द म अ ययन कया जाता है।

17
1.6.2 ादे शक उपागम (Regional Approach)

इस उपागम के अ तगत दे श को अ ययन क एक इकाई माना जाता है। कसी-भी दे श


के सभी संसाधन जैसे - ख नज, ऊजा, जैव, कृ ष फसल , जल, मानव आ द - मानव,
नमाण उ योग आ द - का मब अ ययन कया जाता है । इस उपागम म येक
दे श के सम भौगो लक यि त व को धानता द जाती है । ादे शक अ ययन के भी
दो उपागम ह -
1. पा मक ादे शक उपागम (Formal Regional Approach) : इस उपागम
के अ तगत ऐसे सम त भू भाग को एक इकाई माना जाता है िजसके सम त
े फल म कसी ाकृ तक ल ण क समानता हो जैसे - सम त गंगा डे टा म
उ णा जलवायु, अ धक वषा व काँप म ी क समानता। अत: सम त गंगा डे टा
को एक दे श मानकर उसके सम त संसाधन का वणन एकल अ याय म कया
जाता है। इसी कार समान ाकृ तक ल ण वाले दे श जैसे - गंगा डे टा,
सतलज-गंगा मैदान, चीन क यांि टसी घाट , उ तर अमे रका के मसी सपी डे टा,
अ का के काँगो बे सन, भू म यसागर य दे श आ द - के सम त संसाधन का
वणन उ ह अलग-अलग े मानकर एकल इकाइय म स ब प से ादे शक
उपागम के अ तगत कया जाता है।
2. कम पल ी ादे शक उपागम (Functional Regional Approach) : इस
उपागम के वारा ऐसे भू-भाग को एक-एक दे श माना जाता है िजनके सम त
े फल म एक-जैसे संसाधन एवं एक-जैसा संसाधन उपयोग मलता है जैसे -
संयु त रा य अमे रका का झील दे श, सो वयत संघ का उ ाइन दे श, ांस का
लॉरें न दे श, जमनी का हर दे श आ द जो सभी इ पात और मशीन नमाण के
दे श ह। भू म यसागर के समीपवत दे श, पि चमी संयु त रा य अमे रका क
कै लफो नया घाट , द ण अमे रका का म य चल , अ का के द णी-पि चमी
भाग का केप ा त, द णी-पि चमी ऑ े लया, उ तर यूजीलै ड आ द - जो
सभी भू म यसागर य कृ ष के दे श ह। इस कार चाहे व नमाण दे श ह या
कृ ष दे श इन सभी म काया मक एक पता पाई जाती है।
बोध न-5
1. सं साधन भू गोल के अ ययन के कौन-कौन-से उपागम ह ?
............................................................ ...........................
............................................................................................ .
2. ाकृ तक दे श के सं साधन का भू- आ थक अ ययन कौन-से उपागम वारा
भावी ढं ग से कया जा सकता है ?
............................................................ ...........................
............................................................ ...........................

18
3. नमाण या कृ ष दे श के सं साधन का भू- आ थक अ ययन करने के लए
कौन-सा उपागम अ धक ासं गक है ?
............................................................ ..........................
............................................................ ..........................

1.7 सारांश (Summary)


कृ त द त सभी पदाथ संसाधन नह ं होते। केवल वे पदाथ संसाधन बनते ह िज ह
मानव अपने ान, व ान व तकनीक से काया मकता व स या मकता के गुण दान
कर उपयोगी बनाता है। संसाधन यि त न ठ अथवा व तु न ठ हो सकते ह। वे
सकारा मक या नकारा मक भी हो सकते ह। ये सब उनके मू यांकन करने वाले यि त के
ि टकोण पर नभर करता है। संसाधन क काया मकता समय तथा थान के अनुसार
भ न- भ न हो सकती है।
संसाधन भू गोल का मक वकास हु आ है। मानव भू गोल क एक मह वपूण शाखा आ थक
भू गोल क उपशाखा के प म संसाधन भू गोल का वकास वतमान वशेषीकरण युग क
दे न है। इसके अ तगत पृ वी -तल पर मानव स हत सम त संसाधन क वशेषताओं,
े ीय व भ नताओं, था नक वतरण व उपयोग त प का अ ययन कया जाता है।
आ थक भू गोल और संसाधन भू गोल म सू म अ तर है। आ थक भू गोल म उ पादन,
व नमय तथा उपभोग स ब धी सम त मानवीय याएँ सि म लत होती ह जब क
संसाधन भू गोल उ पादन से स बि धत याओं तक ह सी मत है। अ तु, संसाधन भू गोल
आ थक भू गोल का एक प मा है और इसका वषय- े आ थक भू गोल क अपे ा
सी मत है। संसाधन भू गोल का अ ययन वतमान भू-आ थक सम याओं के नवारण तथा
संसाधन के संर ण व संध ृत वकास हे तु परमाव यक है। इसके अ ययन से हम संसाधन
के वै ा नक दोहन, ववेकपूण उपयोग, समि वत नयोजन एवं सु नि चत भ व य के त
आ व त होते ह ।
संसाधन भू गोल के वषय- े को मु यत: पाँच भाग म बांटकर समझा जा सकता है –
(i) ाकृ तक संसाधन और उनके उपयोग का अ ययन, (ii) मानवीय संसाधन और उनक
वशेषताओं का अ ययन, (iii) संसाधन संर ण और नयोजन का अ ययन, (iv) संसाधन
मू यांकन - सव ण एवं मान च ण व धय का अ ययन, तथा (v) भू गोल क अ य
वषय से स ब ता। न कष यह ा त होता है क संसाधन भू गोल का वषय- े नर तर
यापक और वै ा नक कृ त का बनता जा रहा है।
संसाधन भू गोल के अ ययन के दो मु ख उपागम या व धयाँ ह - मब और ादे शक।
ादे शक उपागम के पुन : दो प ह - पा मक और कम पल ी। मब उपागम म
येक संसाधन का अलग-अलग करण म बांटकर वणन कया जाता है जब क ादे शक
उपागम म स पूण दे श को एक इकाई मानकर उसके सम भौगो लक यि त व को
अ भ यि त द जाती है। पा मक उपागम म स पूण दे श म ाकृ तक या आ थक

19
ल ण क सम पता पर वचार कया जाता है जब क कम पल ी उपागम म स बि धत
े म स पा दत सम त काय क अ यो य या से ज य काया मक एक पता पर ।
व तु त: दोन उपागम पर पर पूरक ह ।

1.8 श दावल (Glossary)


 संसाधन (Resource) : भू म डल के वे सम त पदाथ जो मानव के लए उपयोगी
होते ह, मानव क आव यकताओं क पू त म स म होते ह और मानव उनक
उपयो गता क अनुभू त करता हो तथा ा त करने म स म हो।
 संसाधन ब धन (Resource Management) : कसी संसाधन का कु शल
नय ण, ब धन, अनुकू लतम उपयोग तथा अनाव यक त से संर ण।
 संसाधन वकास (Resource Development) : कसी संसाधन क उ पादन-
या िजससे उसके स भा य का वा त वक वकास हो सके।
 संसाधन संर ण (Resource Conservation) : संसाधन का ववेकपूण ,
सु नयोिजत, वै ा नक- व धस मत एवं समि वत मू यांकन, दोहन, वकास और
सदुपयोग।
 काया मकता (Functionality) : भौ तक व अभौ तक पदाथ क मानवीय
आव यकताओं को पू त करने क मता जो उ ह कृ त, मानव एवं सं कृ त क
अ यो य याओं से ा त होती है ।
 तरोधक त व (Resistances) : पदाथ या सं कृ त के हा नकारक त व जो मानव
संसाधन वकास को बा धत करते ह।
 उदासीन त व (Neutral Stuff) : कृ त के ऐसे पदाथ जो मानव के लए न तो
लाभकार होते ह, और न ह हा नकारक।
 टॉक (stock) : पृ वी के भौ तक तथा जै वक वग क ऊजा और यमान (mass)
का स पूण योग।
 आर त भ डार (Reserves) : संसाधन का वह उपभाग जो वतमान म तकनीक
उपल ध न होने के कारण भ व य म तकनीक उपल ध होने पर योग कया जा
सकेगा।
 स भा वत या वभव संसाधन (Potential Resources) : ऐसे संसाधन जो वतमान
म यु त नह ं हो रहे ह क तु भ व य म िजनके वकास क स भावनाएँ है।
 मानव संसाधन (Human Resources) : संसाधन के नमाता और उपभो ता के
प म मानव क दोहर भू मका जो मानव संसाधन वकास का नदशक कारक है।
 सां कृ तक संसाधन (Cultural Resources) : मानव सं कृ त के मू त (tangible)
व अमूत (intangible) दोन ल ण। मू त संसाधन जैसे - कोयला, लोहा, ख नज तेल
आ द तथा अमू त संसाधन जैसे - ान, वा य, सामािजक संगठन आ द।
 उपागम (Approaches) : कसी वषय के अ ययन क व धयाँ।

20
 काया मक दे श (Functional Regions) : ऐसे दे श िजनके सम त े फल म
एक-समान संसाधन एवं एक-समान संसाधन उपयोग मलता है जैसे - व नमाण या
कृ ष दे श।
 ादे शक उपागम (Regional Approaches) : कसी दे श के भौगो लक त य का
स पूण अ ययन उस े को कु छ दे श म बांटकर येक दे श का अलग-अलग
अ ययन करना।

1.9 स दभ ग ध (Reference Books)


1. जगद श संह एवं काशीनाथ संह : आ थक भू गोल के मू ल त व, ानोदय
काशन, गोरखपुर , 2007
2. अलका गौतम : संसाधन एवं पयावरण, शारदा पु तक भवन, इलाहबाद, 2006
3. बी. एस. नेगी : संसाधन भू गोल, केदारनाथ रामनाथ, मेरठ, 2007 (अं ेजी म भी
उपल ध)
4. एस. डी. कौ शक : संसाधन भू गोल, र तोगी ए ड क पनी, मेरठ, 2007
5. बी. पी. राव : संसाधन और पयावरण, वसु धरा काशन, गोरखपुर , 2006
6. Zimmermann, E.W.: World Resources and Industries, Harpar
& Row, New York, 1951.
7. Hunker and Henry, L.: Zimmermann’s Introduction to World
Resources, Harper & Row, New York, 1964.

1.10 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. काया मकता, उपयो गता, पया तता, सामी य और अ भग यता।
2. िज मरमैन।
बोध न- 1
1. ार भ म भू गोल क दो मु ख शाखाएँ - भौ तक भू गोल और मानव भू गोल
वक सत हु । तदन तर मानव भू गोल क एक मु य शाखा के प म आ थक
भू गोल का वकास हु आ। वषय वशेषीकरण क वृि त के कारण काला तर म
आ थक भू गोल क एक उपशाखा के प म संसाधन भू गोल का वकास हु आ।
बोध न- 2
1. संसाधन भू गोल पृ वी -तल पर मानव स हत सम त संसाधन क वशेषताओं,
े ीय व भ नताओं, था नक वतरण व उपयोग त प का व ान है।
2. आ थक भू गोल म उ पादन, व नमय तथा उपभोग स ब धी सम त मानवीय
याएँ सि म लत ह जब क संसाधन भू गोल केवल उ पादन स ब धी याओं

21
तक ह सी मत है। वाभा वकत: आ थक भू गोल का वषय- े संसाधन भू गोल
क अपे ा अ धक यापक है।
3. संसाधन भू गोल म।
बोध न- 3
1. वतमान भू-आ थक सम याओं के नवारण तथा संसाधन के संर ण व संध ृत
वकास हे तु ।
बोध न- 4
1. पाँच मु ख अंग के अ तगत - (i) ाकृ तक संसाधन और उनका उपयोग, (ii)
मानवीय संसाधन और उनक वशेषताएँ, (iii) संसाधन संर ण व नयोजन, (iv)
संसाधन मू यांकन - सव ण एवं मान च ण, और (v) संसाधन भू गोल क अ य
वषय से स ब ता।
2. संसाधन का ववेकपूण , सु नयोिजत, वै ा नक - व धस मत एवं समि वत
मू यांकन, दोहन, वकास और सदुपयोग।
3. संसाधन मू यांकन, संर ण और सदुपयोग।
4. सव ण, मान च ण और मापन।
बोध न - 5
1. दो उपागम - मब और ादे शक। ादे शक उपागम के पुन : दो भेद - पा मक
और कम पल ी।
2. पा मक ादे शक उपागम।
3. कम पल ी ादे शक उपागम।

1.11 अ यासाथ न
1. संसाधन भू गोल के अ ययन के मु य उ े य या ह ?
2. संसाधन क अवधारणा प ट क िजए।
3. संसाधन भू गोल का वकास म रे खां कत क िजए।
4. संसाधन भू गोल क प रभाषा एवं कृ त प ट क िजए।
5. संसाधन भू गोल के अ ययन का मह व न पत क िजए ।
6. संसाधन भू गोल के वषय- े क व तृत ववेचना क िजए ।
7. संसाधन भू गोल के अ ययन के उपागम को उनक ासं गकता के स दभ म सोदाहरण
समझाइए ।

22
इकाई 2: संसाधन: अवधारणाएँ, वग करण, का यक
स ा त तथा मू यांकन (Resource -
Concepts, Classification, Functional
Theory and Evaluation)
इकाई क परे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 संसाधन क संक पनाएँ
2.2.1 संसाधन क थै तक संक पना
2.2.2 संसाधन क काया मक संक पना
2.2.3 तरोधी व तट थ त व के साथ संसाधन के अि त व क संक पना
2.2.4 टॉक, संसाधन, आर त भ डार एवं संभा वत संसाधन क संक पना
2.2.5 संसाधन क पया तता क संक पना
2.2.6 संसाधन क यूनता क संक पना
2.2.7 संसाधन क अ भग यता क संक पना
2.2.8 संसाधन के सामी य क संक पना
2.2.9 संसाधन क प रवतनशील संक पना
2.2.10 संसाधन के संर ण क संक पना
2.2.11 संसाधन के संध ृत वकास क संक पना
2.3 संसाधन का वग करण
2.3.1 उपल धता सात य के आधार पर
2.3.2 उ पि त के आधार पर
2.3.3 उ े य के आधार पर
2.3.4 पा रि थक के आधार पर
2.3.5 न यकरणीयता तथा ाि त के आधार पर
2.3.6 संसाधन का साम यीकृ त वग करण
2.4 संसाधन का मू यांकन - सव ण तथा मान च ण
2.4.1 पयावरण घटक का सव ण तथा मान च ण
2.4.2 मानवीय घटक का सव ण तथा मान च
2.4.3 संसाधन सव ण क योजना तथा उपयोग
2.5 सारांश
2.6 श दावल

23
2.7 स दभ थ
2.8 बोध न के उ तर
2.9 अ यासाथ न

2.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने पर आप समझ सकेग क : -
 संसाधन क व भ न संक पनाओं के प ट करण वारा संसाधन के वषय म या त
ां तय का नवारण करना,
 संसाधन क अ ययन म यु त व भ न श दावल / वा यावल के उ चत अथ तथा
न हताथ का ान कराना,
 संसाधन क अ भनव व सवमा य संक पनाओं जैसे - काया मक संक पना, संसाधन
संर ण व संध ृत वकास क संक पना आ द - के वषय म यापक समझ पैदा करना,
 संसाधन क यूनता व पया तता स ब धी संक पनाओं के वषय म पू ज
ं ीवाद व
सा यवाद वचार क सोच प ट करना,
 संसाधन संर ण व संध ृत वकास स ब धी संक पनाओं के मा यम से संसाधन के
नयोिजत, ववेकपूण उपयोग के मह व को तपा दत कर संसाधन के सदुपयोग के
त जनचेतना जागृत करना,
 व भ न आधार पर संसाधन का सोदाहरण वग करण तु त कर जै वक व अजै वक
संसाधन के अ तर तथा इन दोन क पर पर स ब ता व अ यो या ता क कृ त
का ान कराना,
 संसाधन मू यांकन क व भ न सव ण व मान च ण व धय से प र चत कराना,
तथा
 संसाधन के ववेकपूण उपयोग के त े रत कर मानव क याण म सहभा गता
बढ़ाना।

2.1 तावना (Introduction)


संसाधन क संक पवना पर 19वी शता द म दो मु य वचारधाराएँ सामने आई। थम,
संयु त रा य अमे रका के राजनी त वारा तु त पया तता वषयक पू ज
ं ीवाद
वचारधारा, तथा वतीय, स वारा तु त यूनता वषयक सा यवाद वचारधारा। थम
वचारधारा पृ वी पर संसाधन क कोई कमी नह ं मानती य क मानव अपने यास व
तकनीक से न य नए संसाधन क खोज करता रहता है। वतीय वचारधारा पृ वी पर
संसाधन क यूनता व समापनीयता वीकार करती है, अत: भावी पीढ़ को स भा वत
पा रि थ तक संकट से बचाने के लए उनके संर ण व नयोिजत उपयोग पर बल दे ती है।
अ तु, समझना होगा क संसाधन ग या मक ह या थै तक ? मानव अपने यास व
तकनीक से कृ त के पदाथ को उपयो गता व काया मकता के गुण दान कर उ ह
संसाधन बनाता है। अत: संसाधन ग या मक ह, थै तक नह ं ह। संसाधन स या मक ह,

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वे कभी ि थर या नि चत नह ं होते। उनके उपयो गता गुण म अ भवृ कर उनके
प रमाण म व तार सदै व स भव है। यह काया मक संक पना संसाधन के वा त वक
व प को समझाती है।
संसाधन का दोहन व संर ण पर पर पूरक ह। सी मतता, वरलता, अनुपल धता, मू य
वृ आ द अनेक ऐसे कारण ह िजनसे संसाधन का संर ण आव यक है। यहाँ समझना
होगा क या संसाधन का अ योग संर ण है ? नह ,ं संसाधन का ववेकपूण व संतु लत
उपयोग ह संर ण है। पयावरण क गुणव ता म उ नयन संर ण क मू ल भावना है।
अत: संर ण का अथ संक ण न होकर यापक है। आंकलन, मू यांकन, सू चीकरण,
वै ा नक दोहन, संतु लत योग व संध ृत वकास संसाधन संर ण के मू लाधार ह।
संसाधन के वग करण के अनेक आधार ह जैसे - उनक कृ त (भौ तक, जै वक, मानवीय
या सां कृ तक), उपल धता, वतरण एवं बार बारता, योग, न यकरणीयता, वा म व
इ या द। उदाहरण वारा इनका बोध उपादे य है।
संसाधन के मू यांकन हे तु ाकृ तक एवं मानवीय संसाधन के व भ न घटक के सव ण
व मान च ण क आधु नक व धय का ान भी अपे त है।

2.2 संसाधन क संक पनाएँ (Concepts of Resources)


संसाधन अवधारणा (Resource Concepts)
श द यु पि त व ान (Etymology) क ि ट से 'संसाधन' श द का अथ बार-बार
योग म आने वाला साधन है। संसाधन का अं ेजी पयाय 'resource' है जो दो श द
(Re + Source) से मलकर बना है। 'Re' का आशय बार-बार या द घाव ध से है,
'Source' का अथ है साधन। इस कार संसाधन वे ोत ह िजन पर मानव समाज
द घाव ध तक नभर रहता है।
समाज व ान कोष (Encyclopaedia of Social Sciences) के अनुसार मानवीय
संसाधन पयावरण के वे पहलू ह िजनके वारा मनु य क आव यकताओं क पू त म
सु वधा तथा सामािजक उ े य क पू त होती है।
Resources are “those aspects of man’s environment which facilitate
the satisfaction of human wants and the attainment of social
objectives.”
िज मरमैन (Zimmermann) ने संसाधन क प रभाषा इस कार द है - संसाधन
पयावरण क वे वशेषताएँ ह जो मनु य क आव यकताओं क पू त म स म मानी जाती
ह, उ ह मनु य क मताओं वारा उपयो गता दान क जाती है।
Resources are “features of the environment which are considered to
be capable of serving man’s needs, they are given utility by the
capabilities and wants of man.”

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मैकनाल (Mcnall) के अनुसार ाकृ तक संसाधन वे संसाधन ह जो कृ त वारा दान
कए जाते ह तथा मानव के लए उपयोगी होते ह।
Natural resources may be defined as “those resources which are
provided by nature and which are useful to man.”
जे स फशर (Jams Fisher) के श द म संसाधन वह कोई-भी व तु है जो मानवीय
आव यकताओं और इ छाओं क पू त करती है।
Resources are “anything that can be used to satisfy a need or
desire.”
ि मथ एवं फ ल स (Smith and phillips) के मत म मौ लक प से संसाधन
वातावरण क वे याएँ ह जो मानव के उपयोग म आती ह।
“Fundamentally resources are merely environment functioning in the
service of man.”
एक अ य प रभाषा के अनुसार संसाधन मानव वारा आंक लत तथा भरोसा कया हु आ
कसी पदाथ का वह गुण , मता, काय या सं या है जो मानव क प रस पि त बन
जाता है ( च -1)। क ह ं नि चत उ े य क पू त के लए जो भी साधन या उपाय काम
म लाए जाते ह, वे संसाधन कहलाते ह। इनम वयं मानव वारा अवसर का लाभ उठाने
क मता तथा वयं को क ठनाइय से बाहर नकालने क मता भी सि म लत है।
कोई-भी व तु, पदाथ या त व तभी संसाधन कहलाता है जब उसम मनु य क
आव यकताओं क पू त तथा काय स करने या लाभ दान करने क मता न हत हो।
इस ि ट से वयं मानव भी एक संसाधन है बि क यह कहना अ धक उपयु त होगा क
सम त संसाधन म मानव सव प र है। मानव वारा उपयोग म जाए जाने वाले सभी त व
- भू म, म ी, वन प त, जल, ज तु, ख नज आ द - संसाधन कहलाते ह।
संसाधन मानव क आव यकताओं क स पूणत: अथवा अंशत: पू त करते ह तथा मानव
क याण करते ह। इस कार मानव तथा संसाधन पर पर स बि धत व अ यो या त ह।
य य प ये त व तभी साथक होते ह जब मू यवान और उपयोगी बन जाए, उसे संसाधन
कहा जाता है।

च - 2.1 : संसाधन अवधारणा


26
संसाधन के मू त (tangible) तथा अमूत (intangible) दोन पहलू ह। कोयला, लोहा,
ख नज तेल, ताँबा, लकड़ी आ द पदाथ मू त व तु एँ ह। ये संसाधन के प म मह वपूण ह।
दूसर ओर, ान, वा य, सामािजक सगठन, राजनी तक ि थरता, वतं ता, ववेकपूण
नी तयाँ आ द अमू त त व भी संसाधन क ेणी म आते ह, य क ये मानव क
आव यकताओं एवं मह वाकां ाओं क पू त तथा उसके वकास म योगदान करते ह।
िज मरमैन ने संसाधन क प रभाषा दे ते हु ए तीन पहलुओं पर बल दया था - (i) वह
व तु िजस पर मानव नभर हो, (ii) वह व तु िजससे मनु य क आव यकताओं क पू त
होती हो, तथा (iii) मानव म अवसर का लाभ उठाने क शार रक व बौ क मता हो।
संसाधन क स ता (existence) उसका मू यांकन करने वाले यि त पर नभर करती
है। तदनुसार , संसाधन यि त न ठ (subjective) या व तु न ठ (objective) होते ह।
यि त न ठ संसाधन दोहरा काय करते ह - सकारा मक (positive) और नकारा मक
(negative)। संसाधन सकारा मक तब होते ह जब मानव म अवसर का लाभ उठाने क
मता होती है। नकारा मक संसाधन मनु य को क ठनाई से बाहर नकालने म सहायक
होते ह। िज मरमैन के अनुसार संसाधन होते नह ं वे बनते ह (resource are not,
they become)। पीच एवं जे स (peach and James, 1972) के अनुसार संसाधन
मनु य वारा र चत होते ह। वे मानव वारा कए गए मू याकन क अ भ यि त ह।
एकरमैन (Ackerman) के श द म संसाधन सं ेपीकरण वारा गुण अ भमू यन
(appraisal) को य त करता है और कसी काय (function) या सं या (operation)
से स बि धत होता है।
इस कार कोई - भी व तु जो मानव क आव यकताओं क पू त करती हो संसाधन बन
सकती है। उदाहरणाथ, कोयला अपनी आकृ त, रं ग, गठन या यूनता के कारण संसाधन
नह ं होता बि क ऊजा दे ने के कारण संसाधन बनता है। ागै तहा सक काल म मानव को
भू म म दबे हु ए वशाल ख नज भ डार का ान नह ं था और न ह उसे इन पदाथ का
योग करना आता था। तब ये संसाधन नह ं थे। आज इ ह ं ख नज को संसाधन कहा
जाता है य क ये मानव क आव यकताओं क पू त करते है। संसाधन का यह
काया मक या स या मक पहलू बहु त मह वपूण है।
कसी व तु या पदाथ क काया मकता समय तथा थान के अनुसार भ न - भ न हो
सकती है। कोई व तु एक थान पर तो संसाधन के प म काया मक हो सकती है क तु
दूसरे थान पर वह उदासीन त व हो सकता है। उदाहरणाथ, अमे रका म या ा पात से
उ प न जल व युत का उपयोग यू इं लै ड के कागज और सूती व कारखान मे होता
है। अत: न चय ह वह एक संसाधन है। इसके वपर त अ का म काँगो नद पर न मत
टै नल पात से उ प न व युत का मांग के अभाव म उपयोग न होने के कारण वह
संसाधन क ेणी म नह ं रखा जा सकता।
बोध न- 1

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1. भू म डल के सम त पदाथ को सं साधन बनने के लए उनम कौन-कौन-सी
ला णक वशे ष ताएँ होनी चा हए ?
............................................................ ...........................
.................................................................. .....................
2. ' सं साधन होते नह ं वे बनते ह ?' यह यु ि त कस व वान ने द ?
............................................................ ...........................
...................................................................... .................
संसाधन क मु ख संक पनाएँ न नानुसार ह -

2.2.1 संसाधन क थै तक संक पना (Static Concept of Resources)

संसाधन के वषय म अनेक ामक वचार है। उनम से एक है क संसाधन ि थर


(static) तथा नि चत (fixed) होते ह, इनके प रमाण म वृ नह ं क जा सकती। कई
शताि दय पूव संसाधन का आ थक उपयोग अ ात-सा था। वे केवल उ य मय
(enterpreneurs) के मा उपकरण - भू म, ं ी - के
म व पू ज प म जाने जाते थे।
अथशाि य ने तो उनक ाय: उपे ा ह क । काला तर म भू गोवेताओं ने उनका अ ययन
तो कया क तु उसका वै ा नक आधार वक सत नह ं था। संसाधन के स ब ध म
न न ल खत म या धारणाएँ च लत थीं -
1. संसाधन भौ तक पदाथ मा ह : व वान वारा संसाधन को भौ तक पदाथ या
मू त (tangible) व तु ओं के प म मानने क वृि त दोषपूण है। कोयला, लोहा,
पे ो लयम जैसे संसाधन भौ तक पदाथ अव य ह क तु इनक उ पि त मानव
समाज वारा ाकृ तक व तु ओं के नए और अ धक गहन उपयोग ढू ं ढने के यास
के प रणाम है। इस तरह यह एक सां कृ तक अवधारणा है। ये ाकृ तक त व
वातावरण म ल बे समय से मौजू द ह, पर तु तकनीक वकास के बाद है। ये
संसाधन बन पाए। जैसे कोयला ट म इंजन के बाह संसाधन बना। इस कार
मानव तथा उसक तकनीक एवं सं कृ त भी मह वपूण संसाधन ह।
2. संसाधन केवल मू त एवं ि थर व तु ह : संसाधन को ि थर एवं मू त मा मानना
भी म या संक पना है। वा तव म संसाधन पदाथ , शि तय , प रि थ तय ,
स ब ध तथा नी तय का सि म (complex) ह। ये सभी त व स यता क
भाँ त ग तशील है । अत: इ ह नि चत या ि थर मानना मपूण है। संसाधन
जी वत वातावरण क भां त ह, जो मानव यवहार तथा य न के अनु प
प रवतनशील ह। इनसे भी अ धक मह वपूण अमू त (intangible) त व ह - जैसे
ान, वा य, ववेकपूण नी तयाँ आ द। मानव क बु सबसे बड़ा संसाधन है।
3. संसाधन जड़ व तु ह : संसाधन को जड़ व तु समझना मपूण है। ये मानव के
यास से बनते ह। मानव क आव यकता, अनुभू त क मता और तकनीक

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वकास के साथ संसाधन का आकलन, दोहन और उपभोग म प रवतन इसका
माण है। इसी लए िजमरमैन ने कहा है क 'संसाधन होते नह ,ं बनते ह।'

2.2.2 संसाधन क काया मक संक पना (Functional Concept of Resources)

संसाधन के अथ के स ब ध म व वान म काफ मतभेद ह। थै तक वचारधारा (static


school) के समथक के अनुसार संसार के संसाधन थै तक तथा नि चत ह। इनम से
कु छ संसाधन का मानव वारा वकास कर लया गया है और कु छ अभी अ वक सत ह।
उनके वचार म चाहे वे वक सत कर लए गए ह या अभी अ वक सत ह , सभी संसाधन
ह। उनके अनुसार काँगो नद क जल व युत स भा यता और हमालय के ऊँचे ढाल पर
शंकुधार वन क पे टयाँ सभी संसाधन ह, भले ह इनसे स बि धत दे श (म य अ का
और भारत) म वतमान सामािजक - आ थक दशाओं के अ तगत उनके योग कए जाने
के अवसर बहु त कम ह ।
आधु नक वचारक क संसाधन के स ब ध म सवा धक मह वपूण वचारधारा संसाधन
क काया मक संक पना से स बि धत है िजसके अनुसार - (i) संसाधन काया मक
(functional) और स या मक (operational) होते ह, (ii) इनका नमाण मानव यास
से होता है, और (iii) ये ग तक (dynamic) होते ह ।
संसाधन काया मक और स या मक : संसाधन मानवीय इ छाओं क संतु ि ट करते ह
और मानव के लए क याणकार होते ह। इसका ता पय यह है क संसाधन मानव के
लए काया मक अथात ् काय करने क मता रखने वाले होते ह। यहाँ 'काया मक' श द
का अ भ ाय मानव क इ छाओं क संतु ि ट करने वाल मता से है। कोई भी वह
ाकृ तक प रघटना जो मानवीय इ छाओं क संतु ि ट कर सकती है, काया मक होती है
और संसाधन कहलाती है। सू य क धू प जो मानव के शार रक वकास म सहायक होती है,
वायु जो वास लेने म सहायक होती है और ठोस पृ वी िजस पर मानव रहते ह - ये सभी
त व अपने ारि भक काल से ह मानव के लए काया मक रहे ह। पर तु बहु त-सी
ाकृ तक व तु एँ जैसे - म ी, न दयाँ, झरने, ख नज आ द पदाथ अपनी ारि भक या मू ल
दशाओं से ह मानव के लए स या मक नह ं थे अथात ् उनम काया मक मता नह ं थी।
जब तक मानव को धरती म दबे हु ए कोयले और उसके उपयोग के वषय म जानकार
नह ं थी तब तक अपने गुण से स प न होते हु ए भी मानव के लए स या मक नह ं
था। तब यह एक उदासीन त व (neutral stuff) था न क संसाधन। इसने अपनी
काया मक मता तब ा त क जब मानव ने अपने यास से इसे खोजा, अपनी
तकनीक से व भ न उपयोग के लए यु त कया। इस कार वतमान समय म कोयला
एक मह वपूण संसाधन बन गया है। बना काया मक मता के कोयला एक उदासीन त व
था। इस कार संसाधन कसी व तु क वह काया मक मता है जो मानवीय इ छाओं क
संतु ि ट करती है और मानवीय क याण दान करती है। इस कार कसी पदाथ का

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काया मक गुण या काया मकता सवा धक मह व रखती है। काया मकता के मह व को
न न कार प ट कया जा सकता है-
1. य द कसी भौ तक पदाथ म काया मकता को जोड़ दया जाए तो वह संसाधन बन
जाता है जैसे - कोयला, लोहा, जल व युत उ पादन के लए योग क जा रह न दयाँ
आ द।
2. य द क ह ं अभौ तक त व म काया मकता को जोड़ दया जाए तो वह भी संसाधन
बन जाते ह जैसे - तकनीक द ता, श ा, आ थक योजनाएँ आ द।
3. य द कसी संसाधन म से काया मकता को घटा दया जाए तो वह भी अनुपयु त
संसाधन रह जाता है जैसे - कसी कृ ष भू म का वह भाग जो मृदा अपरदन के कारण
अनु पादक हो जाता है।
संसाधन ग या मक : पृ वी ह का स पूण पदाथ नि चत प से ि थर और नयत है।
पर तु इस स पूण पदाथ का कु छ भाग जो मानवीय संसाधन से स बि धत है, सदै व
प रवतनशील रहता है। एक व तु तभी संसाधन बन सकती है जब क वह मानवीय इ छाओं
को संतु ट करने के लए काय मता ा त कर लेती है। संसार के उदासीन त व ने अपनी
काया मक मता को मानव यास वारा ा त कया है और वे संसाधन बन गए ह। जैव
भौ तक पयावरण के त व तब तक तट थ पदाथ होते ह जब तक क मनु य उनक
उपादे यता क अनुभू त न कर ले, उनक आव यकता पू त क मता का मू यांकन न कर
ले तथा उनके उपयोग के साधन वक सत न कर ले। ये तीन दशाएं प रवतनशील ह
अ तु संसाधन प रवतनशील है। पर तु य द कोई व तु मानव क आव यकता पू त के लए
काय नह ं करती तब यह संसाधन नह ं मानी जाती बि क वह एक उदासीन त व ह
रहे गी।
इस संसाधन सं या और काया मकता म मानवीय ान और मता के साथ-साथ वृ
या व तार होता रहता है। वा तव म व भ न पदाथ के बारे म अपने ान म वृ करके
मानव ने उदासीन त व को लगातार एक के बाद दूसरे संसाधन म प रव तत कर दया है
तथा संसाधन भ डार का व तार कर लया है। जब मानव ने ऊजा के प म कोयले के
योग के बारे म ान ा त कया तब उसके संसाधन म व तार हु आ। येक आ व कार
और खोज ने मानव के संसाधन म व तार कया है। पूवकाल म नद का जल ाकृ तक
प रवहन के मा यम के प म एक संसाधन था। त प चात ् मानव को कृ ष के लए जल
क आव यकता हु ई तब उसने नद जल से संचाई करना ार भ कया। उसके बाद मानव
ने वा हत जल से ऊजा उ प न करने के स ब ध म सीखा, उसने नद पर बांध बनाकर
जल का व युत उ पादन के लए योग कया। य द नद के पूव काल के काय क इससे
तुलना क जाए तो नद के संसाधन के प म काय करने म कई गुना वृ हो गई है।
इस कार संसाधन व तार मानवीय इ छाओं और यो यताओं से स बि धत है। कोयला
50 वष पहले क तु लना म आज कह ं अ धक उपयोगी और आव यकताओं क पू त करने
म स म है। अत: संसाधन म मानवीय ान और तकनीक द ता म वृ के साथ -साथ
व तार होता जाता है।
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संसाधन के अ तरे क और अनु चत योग से इनम संकु चन भी हु आ है। हम अपने ख नज-
न ेप का योग करके उ ह समा त करते जा रहे ह। संयु त रा य अमे रका म 10
करोड़ एकड़ भू म अनु चत योग के कारण कृ ष के लए पूणत: बेकार हो चु क है। वन
के अ धाधु ध काटे जाने के कारण संसार के बहु त-से भाग म कृ ष भू म संसाधन म भार
कमी हु ई है। संसाधन म जब भी संकु चन होता है तब तरोध (resistances) म व तार
होता है। तरोध से ता पय संसाधन के योग म कृ त वारा उ प न क जाने वाल
बाधाओं से है, जैसे- बंजर भू म, अनु पादक म ी, वनाशकार बाढ़, भू क प, बीमा रयाँ
आ द। व भ न दे श म यु से भी संसाधन का संकु चन होता है। इस कार संसाधन म
ग तकता पाई जाती है। ये नि चत या ि थर नह ं है। वे मानवीय अ भवृि त अथात ् मानव
क इ छाओं और यो यताओं के अनुसार व ता रत एवं संकु चत होते रहते ह। इस लए
संसाधन ग तक होते ह।
इस कार संसाधन का का यक स ा त यह प ट करता है क पदाथ से उपयो गता का
सृजन करना ह संसाधन कहलाता है और य द उपयो गता का सृजन नह ं होता तो उसे
संसाधन क ेणी म सि म लत नह ं कर सकते। कसी पदाथ को संसाधन क े णी म
सि म लत करने के लए उसक का यक मता (functional ability) मह वपूण थान
रखती है। मानव संसाधन के तकनीक तथा सां कृ तक प रवतन के फल व प आ थक
वकास म प रवतन होता रहता है जैसे - वन के काटे जाने पर या खान से खनन के
उपरा त उनके व प म प रवतन मु य थान रखता है।
संसाधन मानवकृ त : कृ त का कोई पदाथ केवल उसी समय संसाधन बनता है जब वह
कसी मानवीय आव यकता को पूरा करने क मता ा त कर लेता है। उदाहरणाथ,
पृ वी -तल पर बहने वाल न दय के जल म व युत उ पादन का गुण तो सदै व से ह
व यमान रहा है पर तु जब मानव ने कसी जल पात से गरती हु ई धारा से कोई
टरबाइन चलाकर उससे जल व युत उ प न क तभी उस जलधारा को एक संसाधन का
प मला।
इसी कार पृ वी के गभ म कोयला, पे ोल और ाकृ तक गैस के भ डार करोड़ वष से
व यमान रहे ह पर तु जब मनु य ने इन ाकृ तक पदाथ का योग धन के प म
करना आर भ कया केवल तब ह इनको आ थक संसाधन माना गया। ताँबा, लोहा,
ज ता, सोना आ द ख नज लाख वष तक मनु य से अ ात रहे । वे पृ वी तल पर
व यमान अव य थे पर तु वे मनु य क कसी-भी आव यकता क पू त नह ं करते थे,
अत: वे उस काल म संसाधन नह ं थे। पर तु जब मानव ने इ ह काया मक मता दान
क और इ ह ने मानव क आव यकताओं को पूरा करना ार भ कर दया तब ये संसाधन
बन गए। भू म, म ी, वन, ज तु आ द संसाधन के वकास क भी यह ि थ त रह है।
ये सभी भौ तक पदाथ करोड़ वष से पृ वी -तल पर ि थत रहे ह पर तु ये संसाधन तब ह
बन पाए जब मनु य ने इनका योग करके अपनी आव यकताओं को पूरा करना शु

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कया। इस कार उपयु त ववेचन से प ट हो जाता है क 'संसाधन होते नह ं बि क
उनका नमाण कया जाता है।' वे मानव यास से बनते ह।
कृ त का कोई त व जैसे - भू म या म ी कस सीमा तक संसाधन बन पाता है यह बात
केवल भौ तक गुण - थलाकृ त, उवरता, गहराई आ द - पर ह नभर नह ं करती वरन ्
मानवीय गुण , आव यकताओं, ान, तकनीक आ द पर भी नभर करती है । सं ेपत:
कृ त के कसी त व का संसाधन बन जाने का काय उस े क कृ त, मानव और
सं कृ त तीन क पार प रक याओं पर आधा रत रहता है।
काया मक संक पना को भा वत करने वाले त व
ात य है क कृ त संसाधन क जननी तभी कह जा सकती है जब कृ त द त
पदाथ क काया मकता बढ़े िजसे न न ल खत त व भा वत करते ह -
मनु य क आव यकताएं : मनु य अपनी आव यकताओं से े रत होकर कृ त का दोहन
करता है। उदाहरण के लए, गृह नमाण के लए उसने कृ त से प थर का खनन कया,
धन के लए वन को काटकर लकड़ी ा त क , ऊजा के लए न दय पर बांध बनाकर
जल व युत पैदा क और संचाई के लए न दय से नहर नकाल ।ं यह या अना द
काल से चल आ रह है।
आ व कार : ाथ मक अव था म आ व कार के अभाव म कृ त का अ धक दोहन स भव
नह ं था। जैसे-जैसे आ व कार बढ़ते गए ाकृ तक पदाथ का दोहन भी बढ़ता गया।
कु शलता : संसाधन क काया मक संक पना का तपादन तभी स भव है जब कसी
पदाथ को उपयोग करने क कु शलता समाज म हो। उदाहरण के लए, नेपाल या भू टान म
अपार ाकृ तक स पि त भर पड़ी है क तु ये दे श कु शल तकनीक के अभाव म अपने
ाकृ तक संसाधन का समु चत उपयोग नह ं कर सके। अब ऐसे दे श वदे श से तकनीक
सहायता के प म पू ज
ं ी और कु शल म का आयात कर रहे ह।
मनु य : मनु य म ाकृ तक स पदा को काया मक प दान करने क अपार मता है।
एक कु शल एवं तकनीक स प न रा ह ाकृ तक स पदा का उपयोग करके उसे
काया मक प दान कर सकता है। इस ि ट से िजन दे श म अ प जनसं या क
सम या है वे दे श संसाधन के साथ काया मक स ब ध था पत नह ं कर सकते। दूसर
ओर अमे रका, इं लै ड आ द तकनीक स प न दे श ने अपने दे श के संसाधन से घ न ठ
काया मक स ब ध था पत कए ह।
सां कृ तक वकास : जो दे श वै ा नक और तकनीक उ न त म अ गामी ह उनम
ाकृ तक पदाथ का समु चत उपयोग कया गया है। उदाहरण के लए, जापान एक ऐसा
दे श है िजसने ाकृ तक स पदा का पूण उपयोग करके संसाधन से काया मक स ब ध
था पत कए है पर तु भारत जैसे दे श अपनी अपार भू म व जनसं या के बावजू द कु शल
तकनीक के अभाव म संसाधन से काया मक स ब ध था पत नह ं कर पाए ह।
जलवायु : अनुकू ल जलवायु एक ओर जहाँ ाकृ तक स पदा को संसाधन के प म
वक सत करने म सहायक होती है (जैसे क भू म यरे खीय दे श म) वह ं दूसर ओर

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ीनलै ड और आक टक जैसे ठ डी एवं कठोर जलवायु वाले दे श म मनु य का ाकृ तक
स पदा से काया मक स ब ध नह ं जु ड़ पाया है।
इस कार संसाधन क काया मक संक पना केवल उपयो गता मलने पर ह याशील हो
सकती है, अ यथा नह ं। इसको याशील करने म मनु य एवं कृ त दोन का ह
समायोजन अपे त है।

2.2.3 तरोधी व तट थ त व के साथ संसाधन के अि त व क संक पना

(Resources, Resistances and Neutral Stuffs – Concept of Co-


existence)

सभी पदाथ संसाधन नह ं होते। कृ त म संसाधन के साथ कु छ तरोधक त व


(resistances) भी व यमान होते ह। कृ त मानव को अनेक कार के संसाधन दान
करती है जैसे - फसल उगाने के लए भू म व म ी; ऊजा उ पादन के लए कोयला,
पे ो लयम आ द; संचाई के लए वषा का जल व न दयाँ आ द। कृ त इन संसाधन के
अ त र त मानव को कु छ हा नकारक पदाथ भी दान करती है जो तरोधक त व
कहलाते ह। बंजर भू म, बाढ़, बीमा रयाँ, तू फान, भू क प, जहर ले पदाथ आ द ऐसे ह त व
ह जो मानव वकास को बा धत करते ह। ाकृ तक े म ह नह ,ं मानवीय े म भी
संसाधन और तरोधक त व साथ-साथ मलते ह। एक ओर जहाँ श ा, श ण,
वा य, रा यता, अनुकू लतम जनसं या आ द त व संसाधन ह वह ं दूसर ओर
जना तरे क या जना पता, जातीय संघष, अ ान, यु आद तरोधक त व ह।
सां कृ तक े म भी इसी कार कु छ संसाधन मलते ह तो कु छ तरोधक त व होते ह।
मशीन, उपकरण, वा णि यक एवं यापा रक सु वधाएँ, वै ा नक ब ध, सु शासन आ द
संसाधन ह जब क ढ़वा दता, यापा रक मंद , कु शासन आ द तरोध ह।
इस कार कोई-भी त व जो मानव के लए लाभदायक या क याणकार हो, संसाधन
कहलाता है जब क वह पदाथ या त व जो मानव के लए हा नकारक हो या उसके क याण
म बाधक हो, तरोधक कहलाता है। संसाधन तथा तरोधक साथ-साथ काय करते ह।
मानवीय संतु ि ट क सीमा संसाधन और तरोध के काय पर नभर है न क अकेले
संसाधन के काय पर। परमाणु ऊजा एक संसाधन भी है और तरोध भी। इस ऊजा को
य द उ पादक काय मे लगाया जाए तो यह मानव के लए क याणकार है क तु यह
ऊजा य द संसार के वनाश के लए यु त क जाए तो यह तरोध है। कृ त म कु छ
ऐसे पदाथ भी होते ह जो मानव के लए न तो लाभकार ह और न ह हा नकारक। ऐसे
पदाथ उदासीन त व कहलाते ह। मानव जब तक कोयले के गुण तथा य न को नह ं
जानता था और कोयला भू म के नीचे दबा हु आ था तब तक वह न तो संसाधन था और
न ह तरोधक। वह मानव को कसी भी कार से भा वत नह ं करता था इस लए वह
एक उदासीन त व था। कसी े के उदासीन त व को संसाधन के प म वक सत
करना स भव है। िज मरमैन ने इसके लए न न ल खत त व आव यक बतलाए ह -

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अ छ पड़ौस नी त, पू ज
ं ी एवं म क उपल धता, घरे लू एवं वदे शी बाजार, आधु नक
तकनीक का ान आ द।
संसार क सभी भौ तक व अभौ तक व तु एँ इन तीन े णय अथात ् संसाधन, तरोध
तथा उदासीन त व के अ तगत आती ह। मानव इ तहास के ारि भक काल म संसाधन
कम थे तथा तरोधक एवं उदासीन त व अ धक। मानव ने अपनी तकनीक द ता से
उदासीन त व तथा कु छ तरोध को भी संसाधन म बदल दया। कसी-भी उ नत रा
म उदासीन त व तथा तरोध क अपे ा संसाधन अ धक होते ह जब क पछडे समाज
म संसाधन क अपे ा तरोध व उदासीन त व अ धक होते ह।

2.2.4 टॉक, संसाधन, आर त भ डार एवं स भा वत संसाधन क संक पना

(Concept of Stock, Resources, Reserves and Potential Resources)

पृ वी के धरातल पर संसाधन के अनेक वग पाए जाते ह िजनम वातावरण के सम त


या मक घटक का स पूण योग सि म लत रहता है -
1. टॉक : पृ वी के भौ तक तथा जै वक वग क ऊजा और यमान के स पूण
योग को संसाधन का टॉक कहते ह।
2. संसाधन : टॉक का केवल वह भाग संसाधन बनता है जो मानवीय
आव यकताओं क पू त करता है। संसाधन एक सां कृ तक संक पना है िजसे
'पृ वी के साधन टॉक के उस अनुमा नत भाग के प म प रभा षत कया जा
सकता है जो व न द ट तकनीक , आ थक और सामािजक दशाओं के अ दर
मानवीय आव यकताओं क पू त करता है।‘
3. आर त भ डार : आर त भ डार संसाधन का वह उपभाग है जो वतमान
तकनीक , आ थक और सामािजक दशाओं के अनुपल ध होते हु ए भी भ व य म
तकनीक के प रवतन होने पर ा त हो जाते ह। वतमान काल के ये आर त
साधन भ व य म संसाधन बन जाएँग।े
4. स भा वत या वभव संसाधन : वभव संसाधन वे संसाधन ह जो आज यु त
नह ं हो रहे ह क तु भ व य म इ ह वक सत कया जा सकता है। उदाहरण के
लए, अमेजन नद क वशाल अ यु त जलशि त अभी वभव संसाधन है क तु
या ा बांध पर उ पा दत व युतशि त संसाधन है। बीसवीं शता द के पूवा म
यूरे नयम के भ डार केवल टॉक ह थे क तु यूरे नयम से ऊजा उ पादन के
उपरा त यह एक अमू य संसाधन बन गया।

2.2.5 संसाधन क पया तता क संक पना (Concept of Resource Adequacy)

कोई-भी पदाथ संसाधन क ेणी म तभी सि म लत कया जा सकता है जब वह वपुल


मा ा म उपल ध हो। व व के व भ न भाग मे ख नज क जो मा ा न हत है वह सभी
संसाधन क को ट म नह ं गनी जा सकती। उ तर एवं द णी ु वीय े म ख नज के
जो भ डार दबे पड़े ह वे संसाधन क ेणी म तभी सि म लत कए जा सकते ह जब क

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उनक मा ा अपे ाकृ त अ धक एवं सु र त हो तथा उनके खनन से मानवीय
आव यकताओं क पू त हो सके। इस त य को हम संसाधन क पया तता क संक पना
से समझ सकते ह। उदाहरणाथ, उ तर भारत क सदावा हनी न दय म जल क अपार
मा ा होने से उन पर कई योजनाएँ कायाि वत ह और इसी लए वे संसाधन क ेणी म
आती ह। इसके वपर त पि चमी राज थान के जल संसाधन अपनी यूनता के कारण
संसाधन क ं को ट म सि म लत नह ं हो सकते। संसाधन क पया तता क संक पना
वा तव म वै ा नक उ न त एवं तकनीक ान पर नभर करती है।

2.2.6 संसाधन क यूनता क संक पना (Concept of Resource Scarcity)

कु छ पू ज
ं ीवाद वचारक संसाधन क यूनता म व वास करते ह। उनका मत है क
ाकृ तक संसाधन अ य त सी मत ह तथा जनसं या क वतमान ती वृ दर के चलते
नकट भ व य म शी ह इनक कमी हो जाएगी। फल व प व व को पा रि थ तक
संकट और आ थक क ट उठाने पड़गे। स अथशा ी मा थस क मा यता थी क
संसाधन ग णतीय अनुपात म बढ़ते ह जब क जनसं या या मतीय अनुपात म। इसका
दु प रणाम भ व य म संसाधन क यूनता के प म ि टगोचर होगा।
ात य है क संसाधन क पया तता वषयक संक पना ने जब ाकृ तक संसाधन के
अ त-दोहन पर बढ़-चढ़कर बल दया तब त या व प संसाधन क यूनता वषयक
संक पना बलवती हु ई और उसने संसाधन के संर ण व संध ृत वकास क नई संक पना
को ज म दया।

2.2.7 संसाधन क अ भग यता क संक पना (Concept of Resource


Accessibility)

कोई-भी पदाथ तब तक संसाधन क ेणी म सि म लत नह ं कया जा सकता जब तक


क वह अ भग यता अथात ् पहु ँ च क सीमा म न हो। आज के वै ा नक युग म वैसे तो
भौगो लक दूर मट-सी गई है फर भी कई े आज भी अग य ह। अ त र म यद
कोई ह व भ न ख नज स पदा से प रपूण हो पर तु य द वह मानव-पहु ँ च से बाहर हो
तो वहाँ क ख नज स पदा संसाधन नह ं कहलाएगी। पवतीय े म दबी पड़ी ख नज
स पदा या म थल म ि थत म यान या सागर क अतल गहराई क ख नज स पदा
मानवीय पहु ँ च से बाहर होने के कारण संसाधन नह ं है।

2.2.8 संसाधन के सामी य क संक पना (Concept of Resource Proximity)

कसी भी जै वक, अजै वक, ाकृ तक या मानवीय त व को तब तक संसाधन क ेणी म


सि म लत नह ं कया जा सकता जब तक क उसका सामी य न हो। जै वक या अजै वक
पदाथ संसाधन के प म तभी माना जाएगा जब वह आ थक तं म योगदान करता हो।
म थल क रे त या म ी तब तक संसाधन नह ं आंक जा सकती जब तक क वह
उ पादन म योगदान न करे । भावर या तराई े क अपे ा दुगम हमालय के सदाबहार
वन आ थक तं म कम योगदान करते ह इस लए उनम उपयो गता कम मलती है।

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अ डमान वीप समू ह के औज जा त के लोग कोई-भी आ थक या नह ं करते और
मानव समाज म न ह उनका कोई व श ट योगदान है, इस लए मानवीय ेणी म होते हु ए
भी वे संसाधन क को ट म नह ं आते। इसी ि ट से हम कह सकते ह क पूव हमालय
के पे ो लयम े तो संसाधन क को ट म आते ह क तु पि चमी हमालय के पे ो लयम
भ डार को हम संसाधन नह ं कह सकते य क वे मानवीय उपयो गता एवं सामी य से
परे ह।

2.2.9 संसाधन क प रवतनशील संक पना (Concept of Resource Dynamism)

अ भनव भौगो लक सा ह य म संसाधन क काया मक संक पना को अ धक मह व मला


है । मचेल (Mitchell) के मत म सम त मानव संसाधन म ान सबसे बड़ा एवं
मह वपूण संसाधन है। आधु नक स य मानव ने अपनी बु , कु शलता और ान से
ाकृ तक तथा सामािजक वकास करके समृ का माग श त कया है। भौ तक
वै ा नक के अनुसार मा ड म पदाथ या ऊजा क मा ा नि चत व ि थर है। इससे यह
न कष नकलता है क पृ वी अप रवतनीय है क तु संसाधन स यता के साथ बदलते
रहते ह। बोमेन (Bowman) और माशल (Marshall) ने भी माना क ाकृ तक पृ ठभू म
न तो प रवतनीय है और न ह बदल रह है। ाकृ तक संसाधन का वशाल भ डार पृ वी
के धरातल पर सदै व उपल ध रहा है क तु आर भ म ान के अभाव म मानव म
काय मता न थी। औ यो गक ाि त ने मनु य के लए वशाल स भावनाएँ तु त क ।
वष 1925 तक यह धारणा बनी रह क पृ वी पर क चे माल के वशाल भ डार
व यमान ह।
काला तर म ाकृ तक संसाधन क वशालता के वचार म मश: प रवतन होने लगा।
जोबलर (Jobler) के अनुसार संसाधन के त मानव के ि टकोण म आए बदलाव के
मु ख कारण ह - म ी का ग भीर अपरदन, बाढ़ वारा अपार हा न, दो महायु के
दौरान क चे माल का बड़ी मा ा म वदोहन, संसार के सम त भू भाग क पूण खोज का
होना, जनसं या म ती ाकृ तक वृ , मानव के जीवन तर म सुधार , यु एवं उथल-
पुथल आ द । इन सब कारक से क चे माल क मांग म अपूव वृ हु ई । जोबलर के
अनुसार ाकृ तक संसाधन के योग क न न ल खत चार अव थाएँ ह -
1. दुलभता क अव था : ाचीनकाल म ान एवं तकनीक के अभाव म ाकृ तक
संसाधन क ं वा त वक एवं सापे क कमी थी।
2. अ धकता क अव था : औ यो गक ाि त से लेकर वष 1950 तक यह अव था
रह और औ यो गक ाि त के कारण इस दौरान नवीन संसाधन का वकास
हु आ।
3. अि थर आ ध य क अव था : वष 1950 के लगभग संसाधन क ं चु रता के
साथ ह क चे माल क असी मत मांग के कारण संसाधन क वा त वक नह ,ं
सापे कमी महसूस होने लगी।

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4. वा त वक कमी क अवधारणा : आधु नक युग तथा भ व य म ाकृ तक संसाधन
क उ तरो तर कमी आक जा रह है।
वा तव म ये अव थाएं मानव क तकनीक मता और आ थक वकास क अ भ यि त
ह। वे सभी भौ तक त व जो आज है; आ दकाल से पयावरण म मौजू द ह। पर तु मानव
के पास तब उनके उपयोग का ान नह ं था। इसका कारण ान एवं तकनीक क कमी
थी। अत: उस काल म संसाधन क सापे कमी थी। बाद म नि य पदाथ के
पा तरण क ौ यो गक का वकास हु आ और इसके लए सामािजक संगठन भी बने।
फलत: दुलभता आ ध य म बदल गई, य य प ाकृ तक पयावरण वह था। औ यो गक
वकास के साथ संसाधन क मांग बहु त तेजी से बढ़ । तकनीक वकास के कारण उनक
उपल धता तो बढ़ , फर भी मांग क सापे म कमी महसू स होती रह । ौ यो गक के
असी मत वकास क सु वधा का उपयोग करके िजस ढं ग तथा िजतनी मा ा म संसाधन
का दोहन हो रहा है, उसके जैव-भौ तक पयावरण का इतना अवनयन एवं दूषण हो रहा है
क अब संसाधन क सापे और वा त वक दोन कार क कमी हो सकती है। संसाधन
क यह ग या मकता मानव क सं कृ त एवं ि टकोण का प रणाम है। इस तरह संसाधन
एक सां कृ तक अवधारणा है।

2.2.10 संसाधन के संर ण क संक पना (Concept of Resource


Conservation)

संसाधन के संर ण का वचार नया नह ं है। 'संर ण' श द का चलन सव थम वष


1907 म अमे रक वन अ धकार गफोड पनचौट (Gifford Pinchot) वारा कया गया
था क तु इससे पूव वष 1861 म अमे रका म व लयम पैन ने तथा 1828 म े सडे ट
जॉन क सी सी एडम ने वन संर ण वकास के आदे श दए थे।
संर ण का अथ है सु र त रखना। े सडे ट टॉफ (1908) के अनुसार द घ समय तक
अ धका धक लोग क अ धक-से-अ धक भलाई ह संर ण है। चा स वान हज के अनुसार
संर ण का आशय यह है क स भा वत म म संसाधन ाय: अ धक मा ा म रहने
चा हए िजससे क यह ाकृ तक पैत ृक स पि त पूरे प रमाण म भावी पी ढ़य के लए
उपल ध हो सके। जॉन हे ज हे म ड (1930) के अनुसार सर ण का अथ यय से अ धक
बचत को सू चत करता है या सावधानीपूवक सू चत करता है, संर ण सुधार से घ न ठ प
से स बि धत है। िज मरमैन के अनुसार द धकाल न भावी लाभ ा त करने के
उ तरकाल न वीकृ त उ े य के लए उपभोग क वतमान अव था को कम करने क कोई-
भी व ध संर ण कह जा सकती है। पार क स (1936) के मत म संर ण हमार
संसाधन के योग वारा अ धकतम लाभ ा त करके समाज क सु र ा क खोज है।
इसम चल स पि त के नमाण, र ा के य न , अ धक भावशाल व धय क खोज,
तु र त रोजगार तथा संसाधन के नवीनीकरण को पूववत बनाए रखने के यास सि म लत
ह। ऐल के अनुसार वतमान पीढ़ का भावी पीढ़ के लए याग ह संर ण है। एक

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अमे रक अ ययन समू ह के अनुसार संर ण ाकृ तक संसाधन के योग से समाज म
वतमान तथा भ व य म अ धकतम लाभ क गार ट का यास है। संर ण का आशय
संसाधन का उपभोग ब द करना नह ं है अ पतु उस यव था से है िजसके वारा वतमान
संसाधन को अ धका धक समय तक उपयोग कया जा सके। दूसरे श द म, संर ण का
आशय संसाधन के ववेकपूण उपयोग से है। मैकनॉल के अनुसार संर ण क तीन मु ख
वशेषताएँ ह - (i) संर ण एक बचत या है, (ii) संर ण से आशय संसाधन क
बबाद रोकने से है, और (iii) संर ण से आशय संसाधन के ववेकपूण उपयोग से है।
वष 1968 म पे रस म जैवम डल के संसाधन के संर ण एवं ववेकपूण उपयोग के
वै ा नक आधार पर वशेष का थम अ त: सरकार अ धवेशन हु आ िजसम मु य
वचार ब दु यह था क उ पादन म ती वकास के प रवतन से पृ वी ह का जैवम डल
यापक प से दू षत हो रहा है। ठोस, तरल और गैसीय अप श ट पदाथ क मा ा
संसाधन के योग क मा ा के अनुपात म बढ़ती जा रह है और यह अप श ट पदाथ,
िजसका कृ त शोषण नह ं करती, एक त होकर वातावरण को दू षत कर रहा है। कृ त
संर ण म वा य पहलु ओं का मह व नर तर बढता जा रहा है िजसके अ तगत जल
और वायु दूषण को दूर करना आव यक है। वै ा नक ने वातावरण के पण का काय
ार भ कर दया है िजसके अ तगत यापक प से जैवम डल का पा तरण करके
मनु य के जीवनयापन के लए इ टतम दशाएँ उपल ध कराने का यास कया जा रहा है।
संर ण के ल य : कृ त के संर ण का मु ख ल य यह है क मानव समाज और कृ त
के अ त: स ब ध म कारण-और- भाव क पहचान क जाए। इसके साथ ह मानव क
याओं के हा नकारक प रणाम के नवारण के लए व भ न उपाय को अपनाना भी एक
ल य है, य य प यह एक क ठन ल य है। सं ेप म, कृ त-संर ण के ल य को न न
कार से रखा जा सकता है-
1. पयावरण दूषण को रोकना िजससे मानव वा य क सु र ा क जा सके,
2. ाकृ तक संसाधन के ववेकपूण उपयोग का वकास करना ता क वे द घकाल तक
ा त होते रह, तथा
3. नि चत े म कु छ हा नकारक आ थक याओं को रोकना।
ात य है क वतमान समय म 'संर ण' श द का योग संक ण अथ म नह ं कया जाना
चा हए बि क वातावरण क गुणव ता म सु धार के यापक अथ म समझना चा हए।
कृ त दोहन एवं कृ त संर ण : कु छ पा चा य अथशा ी यह व वास करते ह क
जैवम डल के दूषण और उसक अवन त को ज मदर के ढ़तापूवक नय ण,
औ यो गक मताओं के अवनमन, कु छ के प रवहन साधन के वलोपन आ द उपाय
वारा रोका जा सकता है पर तु यह अस भव है क मानव के इ तहास और वकास के
पथ को रोका जाए। भ व य म भी उ योग का वकास जार रहे गा, ख नज का खनन
बढ़े गा और ऊजा के उपयोग म वृ होती रहे गी। तकनीक ग त को रोकना उ चत उपाय
नह ं है बि क कृ त को संर त करके उसका उपयोग कया जाना चा हए। कृ त का

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संर ण और इसका दोहन पर पर वरोधी नह ं है बि क ये दोन अ तस बि धत ह। कृ त
का संर ण अव य कया जाना चा हए ता क उसका दोहन कया जा सके।
इस कार सामािजक वकास हे तु कए गए उ पादन म दो सम याएँ आती ह - (i)
ाकृ तक संसाधन का संर ण एवं पुन पादन , तथा (ii) उनका ववेकपूण उपयोग। इन
दोन सम याओं को एक-साथ रखकर कृ त का ववेकपूण उपयोग अपे त है। कृ त के
ववेकपूण उपयोग के कु छ मू ल स ा त न न कार ह -
1. ाकृ तक संसाधन का योग वातावरण क दशाओं के अनु प कया जाना चा हए,
2. क हं ाकृ तक संसाधन के योग से वातावरण के अ य त व को त नह ं पहु ँ चनी
चा हए,
3. न यकरणीय संसाधन का योग इस कार कया जाना चा हए क उनका पुन पादन
स भव हो सके तथा
4. अन यकरणीय संसाधन (ख नज धन, धातु पदाथ आ द) का योग वै ा नक ढं ग से
आव यकतानुसार रख यापक प से कया जाना चा हए ता क उनके न ेप का
भ व य म ल बे समय तक उपयोग स भव हो सके।
संसाधन का वकास एवं संर ण क वृि तयाँ : संसाधन का नवीकरण तु र त यान दे ने
का वषय है। मनु य अपने तकनीक ान तथा बौ क शि तय से कृ त क
अथ यव था को संतु लत रख सकता है। व तु त: भू म, वन, जल तथा पशु संसाधन
पर पर स बि धत व अ यो या त ह। कसी-भी संर ण क काय णाल इसी सै ाि तक
स य के अनु प होनी चा हए। आव यकता इस बात क है क नवीकरण-यो य संसाधन से
स बि धत एक ऐसा नवीन उपागम अपनाया जाए िजसम अनेक अ तस बि धत तकनीक
का सामंज य हो। व व क अथ यव थाएँ ती ग त से वक सत हो रह ह, साथ ह वे
अनेक सम याओं से त भी ह। इस प र े य म संसाधन को उ नत करने तथा संवारने
क महती आव यकता है। व तु त: संर ण मानव जा त के लए एक अ नवाय आव यकता
है। सभी वक सत तथा वकासशील दे श म संर ण प त क न ववाद आव यकता है।
इस स दभ म यह सावभौम स य है क ाकृ तक संसाधन का योग इस तर तक कया
जाना चा हए िजससे अ धका धक मनु य का क याण हो सके तथा अ धका धक समय तक
संसाधन क पू त होती रहे । दूसरे श द म, संर ण क तकनीक के योग से यह संतु लन
ा त कया जा सकता है िजसे 'ि थर े ' (sustained field) कहा जाता है। इसका
अ भ ाय यह है क कसी नि चत समय म िजतने संसाधन का हम उपयोग करते ह
उतनी ह आपू त भी होती रहनी चा हए ।
संर ण के ि टकोण : संर ण का अथ यि त तथा समय के साथ प रवतनशील है ।
सामा यत: यह श द संसाधन क कमी से स बि धत है। आर भ म संर ण को कु छ
वशेष ि टकोण से जोड़ा गया। पहला ि टकोण प रगणना तथा सव ण के वारा
संसाधन क सीमाएँ नधा रत करने के स ब ध म था। दूसरा ि टकोण संसाधन ाि त
क सीमाएँ समा त करने तथा उ पादन को टालने क धारणा से स बि धत था। तीसरा

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ि टकोण यथास भव संसाधन क नरथकता को कम करने के सतत यास तथा
बहु योग के ो साहन क आव यकता से स बि धत था। चौथा ि टकोण संर णा मक
पर पराओं से स बि धत रहा है जो क वकास क ती ग त के कारण होने वाले
संसाधन के वनाश से कृ त क सु र ा करता है। इन सभी स ा त म संसाधन के
संर ण म उनके भौ तक, आ थक तथा गुणा मक मह व पर बल दया गया है ।
मानव और संसाधन के अ तस ब ध का एक अ य नवीनतम सू ीकरण भी है जो
संर णा मक वचार से स बि धत तो है क तु इसके वकास का ेय भू गोलवेताओं क
अपे ा जीववै ा नक को है। जीववै ा नक ने पा रि थ तक उपागम के मा यम से
संसाधन के संर ण क आव यकता पर बल दया। यह उपागम ाकृ तक व व को
अ तस बि धत प त के समूह म प रव तत सा य क ि थ त म दे खता है िजसम
मनु य एक अस तु लनकार त व के प म ि टगोचर होता है। इससे अनेक ज टलताएँ
पैदा होती ह। इन ज टलताओं का अ ययन बहु-छाँट, णाल - व लेषण व धतं आद
संसाधन क सम याओं को सु लझाने वाल व धय का अ ययन ह वतमान म अभी ट है।
संसाधन संर ण एवं प रर ण : संसाधन संर ण (conservation) से ता पय ाकृ तक
संसाधन को भ व य म उपयोग के लए सु र त करना है। इसके वपर त प रर ण
(preservation) का अथ कसी वतमान संसाधन का मानव वारा उपयोग न कए जाने
से है। संसाधन संर ण आ दोलन 19वीं सद के उ तरा म आर भ हु आ था जो अब
वतमान पीढ़ का उ तरदा य व बन गया है। संसाधन संर ण का अथ संसाधन को बचाए
रखकर उ ह जीवा म म प रव तत करना कदा प नह ं है। प रर ण क आव यकता तब
होती है जब कसी संसाधन का अि त व संकट म होता है, जैसे कसी पौधे या ज तु के
अि त व के लए कया गया ब धन उसका प रर ण कहलाएगा ।
संर ण के कार : संर ण के मु ख चार कार न नानुसार ह –
1. जा त संर ण (Species conservation) : इसके अ तगत जैव जा तय
(िजनका अि त व संकट म है) का संर ण सि म लत है। काले हरण, गर संह आ द
दुलभ जीव का संर ण इसी ेणी म आता है,
2. नवा य संर ण (Habitat conservation) : नवा य संर ण का अथ कसी
पा रि थ तक तं को संर त करना है। मनु य क आ थक याओं से ाय: जीव-
ज तु ओं के आवास थल म अवांछनीय प रवतन हो जाते ह तथा उनका आवास
थल संकट त हो जाता है। इस ि थ त म आवास थल का संर ण आव यक हो
जाता है।
3. भू-उपयोग संर ण (Land use conversation) : भू म के व वध उपयोग म
त प ा बढ़ती है अतएव भू म उपयोग म सांमज य बनाए रखने क आव यकता
होती है। उदाहरणाथ, कसी नगर के एक-ह भाग म अ धका धक आवास के नमाण
को रोकने के लए नगर के चतु दक अ य आवासीय े बना दए जाते ह। इस
यव था से नगर का समु चत भू-उपयोग स भव होता है।

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4. सृजना मक संर ण (Creative conversation) : मनु य वारा न मत भू य
जैसे - बांध, व य वहार, गमनागमन के माग आ द - का संर ण इसके अ तगत
आता है। संसाधन संर ण क दशा म नए संसाधन तथा संसाधन के वैकि पक
उपाय क खोज भी हो रह है। अब मानवीय याकलाप इस कार होने चा हए
िजससे उसके प रवेश क गुणव ता का हास यूनतम हो। इसके लए उप ह य णाल ,
सु दरू संवेदन तकनीक तथा हवाई छाया च ण का योग बढ़ गया है। संसाधन संव न
आज सबसे मह वपूण प बन गया है। मानव वह न े म संसाधन क स भा यता
क खोज क जा रह है। अ टाक टका महा वीप स ब धी खोज इसका माण है।
मनु य अ त र के त भी सचेत है। पृ वी ह पर जनसं या के व तार क
सीमाओं को यान म रखते हु ए अ त र म अ य ह पर मानवीय नवास क
स भावनाओं क खोज जार है। ये सभी उपाय संसाधन के सृजना मक संर ण क
दशा म अ सर ह।
ाकृ तक संसाधन के संर ण के लए नयोजन : य द वतमान क भां त संसाधन का
अ धाधु ध दोहन एवं असावधानीपूवक योग कया जाता रहा तो शी ह मानव क
उ न त एवं मानव जीवनयापन तर क स प नता को बनाए रखना अस भव हो जाएगा।
जैसा क व दत है संर ण का अथ द घकाल न लगातार उ पादन क पू त के लए
ाकृ तक संसाधन का ववेकपूण योग, उनका प रर ण एवं न यकरणीय संसाधन के
पुन पादन से है। अत: ाकृ तक संसाधन के इस कार से संर ण हे तु नयोजन
अ याव यक उपाय है। इस नयोजन के अ तगत मु यत: न न पहलु ओं पर वचार
अपे त है -
1. सव थम कसी े या दे श या रा को ाथ मक इकाई के प म माना जाना
चा हए। इस े के संसाधन-आधार को ात करना आव यक है िजसके लए व भ न
कार के ात एवं स भा वत संसाधन क मा ा, गुण , वशेषताओं आ द के बारे म
जानकार ा त क जानी चा हए। इस काय के लए वातावरण के व भ न त व के
पार प रक अ तस ब ध के स ा त को यान म रखना ज र है िजसके अनुसार
वातावरण के कसी एक त व का दोहन दूसरे त व को भी भा वत करता है।
2. दे श म िजन संसाधन क मा ा सी मत है या जो संसाधन यशील अथात ्
अन यकरणीय है उनका स पूणत: वै ा नक ढं ग से दोहन एवं मह वपूण आव यक
काय के लए ह योग कया जाना चा हए।
3. दे श के ऐसे संसाधन के वकास के लए य न कए जाने चा हए िजनक
उ पादकता म वृ या व तार कया जाना स भव हो। उदाहरणाथ, मृदा संसाधन को
अ छे खाद एवं उवरक के योग तथा स यावतन वारा द घकाल तक अ धक उ पादक
बनाए रखा जा सकता है। इसके अलावा कम उपयु त या न न को ट के संसाधन का
भी तकनीक वकास से मह वपूण उपयोग स भव है। उदाहरणाथ, बे समर म से

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इ पात नमाण के लए कभी यथ समझे जाने वाले न न ेणी के लौह-अय क का
भी लौह- नमाण म योग कया जाना अब स भव हो सका है।
4. दे श के उन संसाधन को जो मानव क त काल न आ थक आव यकताओं क पू त
क ि ट से वतमान म कम उपयोगी ह , न ट नह ं करना चा हए य क भव य म
उनका तकनीक वकास से भावी आ थक दशाओं के अ तगत अ धक कु शल उपयोग
स भव हो सकता है।
5. सी मत मा ा म पाए जाने वाले अ याव यक संसाधन क उपल धता को बनाए रखने
के लए यह ज र है क व ान एवं तकनीक के वकास से उनके वक प अथात ्
त थानी संसाधन का पता लगाया जाए। य द वैकि पक संसाधन न यकरणीय हो तो
अ धक लाभ द रहता है।
6. दे श क जनसं या म वृ के कारण एक ओर जहाँ आ थक आव यकताओं म वृ
हो रह है वह ं दूसर ओर व ान एवं तकनीक के वकास के फल व प वैकि पक
नए संसाधन क नर तर खोज हो रह है। इन दोन के समयानुसार प रव तत या
ग या मक अ तस ब ध क जानकार ा त करने के लए दे श के संसाधन-आधार
का यौरा तवष तैयार कया जाना चा हए िजससे संसाधन क मांग एवं आपू त क
यूनता अथवा पया तता का ान हो सके और इन सम याओं को हल करने के
आव यक उपाय कए जा सक।
7. संसाधन-सि म का स तु लत एवं बहू ेशीय उपयोग कया जाना चा हए िजससे
उनक कम-से-कम मा ा का योग करके अ धक-से-अ धक उपयो गता ा त क जा
सके।
8. कसी भी े के संसाधन स तु लत प से वत रत नह ं होते। इससे कु छ भाग म
संसाधन का अ य धक दोहन हो जाता है। ऐसे भाग के संसाधन का तु र त
पुन पादन और वकास कया जाना चा हए। इसके वपर त कु छ भाग के संसाधन
का कम वकास हो पाता है। यह अ पदोहन भी इतना ह हा नकारक है िजतना क
अ तदोहन। इससे मानव के जीवनयापन तर म े ीय अ तर उ प न हो जाता है जो
समाज म अस तोष को बढ़ाता है। अत: ऐसे े म संसाधन के समान प से
संतु लत दोहन पर जोर दया जाना चा हए िजससे भौगो लक प से स तु लत
ादे शक वकास हो सके।
9. कसी-भी रा के ाकृ तक संसाधन के संर ण- नयोजन के लए यह आव यक है क
वहाँ के नवा सय को उनके ववेकपूण उपयोग के स ब ध म श त एवं श त
कया जाए। वहाँ क मानव-शि त के बौ क वकास के लए उ चत सु वधाएँ जु टाई
जाएँ ता क रा व उसके नाग रक का समु चत आ थक, सामािजक एवं सां कृ तक
वकास हो सके।
10. संसाधन के संर ण- नयोजन के लए रा वारा आव यक नयम बनाए जाने चा हए
िजनके पालन एवं या वयन के लए शास नक यव था से व भ न संगठन का
वकास कया जा सके।
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न कष प म कहा जा सकता है क ाकृ तक वातावरण मे उपल ध संसाधन को
बहु मू य स पि त समझकर उनका इस कार सदुपयोग एवं भ व य के लए संर ण कया
जाना चा हए क वह कसी दे श एवं उसक वतमान एवं भावी पी ढ़य के लए अ धकतम
लाभदायक स हो सके। इसी कार लु त ाय: संसाधन का प रर ण भी आव यक है
ता क उनके अि त व क सुर ा हो सके।

2.2.11 संसाधन के संध ृत वकास क संक पना (Concept of Sustainable


Resource Development)

सतत ् या संध ृत वकास से अ भ ाय ऐसे वकास से है जो मानव समाज क नयतका लक


आव यकताओं क पू त मा को अपना ल य न माने वरन ् भावी पी ढ़य के लए भी
वकास का आधार बना रहे, अथात ् भावी पीढ़ के हत को आघात पहु ंचाए बना वतमान
समाज क आव यकताओं क पू त कर पाना सतत या संध ृत वकास कहलाता है। इसम
मानवीय आव यकताओं तथा जीवन क गुणव ता के लए संसाधन का ऐसा दोहन
सि म लत है जो पयावरण क सहनशीलता क सीमा से बाहर न हो तथा ऐसा दबाव न
बने िजसके नीचे भावी पी ढ़य दब जाएँ और वकास अव हो जाए। संध ृत वकास ऐसे
संर ण पर बल दे ता है जो मानव वारा कृ त के दोहन से वतमान पीढ़ को अ धकतम
थाई लाभ दान करते हु ए भावी पी ढ़य क आव यकताऔं क पू त क स भावना को
ीण न करे ।
पृ वी तथा इसके नवा सय का भ व य हमार मताओं से स ब पयावरणीय अनुर ण
तथा प रर ण पर नभर करता है। इसी स दभ म पयावरण के द घाव धक उपयोग एवं
अ भवृ के लए संध ृत वकास क संक पना का वकास हु आ है। वष 1990 के दशक म
यह माना जाने लगा क पयावरणीय संसाधन के अ तदोहन या अ ववेकपूण तर क से
उपयोग करने पर पयावरणीय हास तथा अि थरता उ प न हो रह है। यह वकासशील दे श
म सवा धक प से दे खा गया है।
पोषणीयता या संध ृतता (sustainability) सभी ाकृ तक पयावरणीय तं का एक अ त:
न मत ल ण है जो मानवीय ह त ेप को यूनतम तर पर वीकार करता है। यह कसी
तं क मता तथा उसके सतत ् वाह को अनुर त (maintain) रखने के लए स ब
करता है िजसके फल व प वह तं अपना व थ अि त व रख पाता है। पयावरणीय
संसाधन के मानवीय उपयोग तथा पयावरणीय तं म ह त ेप के कारण यह अ त:
न मत मता वकृ त हो जाती है जो इसे असंध ृत (unsustainable) बना दे ती है। इसके
वपर त अथशाि य का तक है क संसाधन के दोहन तथा अवनयन से शोध एवं वकास
को बढ़ावा मलता है तथा संसाधन के नए वक प के बारे म खोज क ओर अ सर होते
ह, क तु हर स भावना क एक सीमा भी होती है। संर णवाद एवं पारि थ तक व
य य प एक ल बे समय से ाकृ तक पयावरणीय तं म व यमान पोषणीयता से अवगत
थे तथा प संध ृत वकास क संक पना का वकास दो दशक पूव ह हु आ है। 'संध ृत
वकास' श द का योग सव थम व व संर ण रणनी त (World Conservation

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Strategy) म सन ् 1980 म कया गया ले कन यह व तारपूवक सन ् 1987 म
पयावरण एवं वकास पर व व आयोग (World Commission on Environment
and Development - WCED) वारा चा रत कया गया। इस आयोग के तवेदन
Our Common Future िजसे टलै ड तवेदन (Brudtland Report) के नाम से भी
जानते ह, म सव थम इसे यवि थत प म प रभा षत कया गया। इसके अनुसार भावी
पीढ़ क अपनी आव यकताओं को पूरा करने क मता म ास कए बना वतमान पीढ़
क आव यकताओं को पूरा करना ह संध ृत वकास है।
संध ृतता या पोषणीयता के लए एकल प रभाषा वभ न वषय से वचार को लेकर
वक सत क गई है िजनम अथशा से ‘धीमा वकास या वकास नह 'ं (Slow Growth
or No Growth), समाजशा से व ध क समालोचना (Critique of Technology)
तथा पयावरणीय अ ययन से स वकास (Ecodevelopment), संसाधन-पयावरण
(Resource-Environmental Links) आ द मु ख ह। इनके आधार पर संध ृत वकास
क प रभाषा का व भ न ि टकोण से व तार हु आ। वतमान मे संध ृत वकास के अनेक
समानाथ प रभाषी श द का योग च लत है िजनम पोषणीयता (Sustainability),
पोषणीय वृ (Sustainable Growth), पोषणीय आ थक वकास (Sustainable
Economic Development) मु ख ह। ऑ े लया म इसे पा रि थ तक य पोषणीय
वकास (Ecologically Sustainable Development- ESD) कहा गया है। भारत म
पोषणीय वकास, जीवनधारणीय वकास, टकाऊ वकास, द घकाल न वकास, सदाबहार
वकास आ द को संध ृत वकास के समानाथ प म योग कया गया है।
वष 1987 म यू े न के चरनो बल परमाणु वपदा के बाद पयावरण एवं वकास के व व
आयोग ने लंदन म एक तवेदन तु त कया िजसे टलै ड तवेदन (Brudtland
Report) के नाम से जाना जाता है। इसके मु ख ो हरलेम टलै ड (Gro Horlem
Brudtland) ने शी ह इस श दावल म प रवतन कया तथा 'संध ृत ' श द को अपनाया
जो ' वकास क सीमा' को तपा दत करता है। टलै ड ने वकास क सीमा को प ट
करते हु ए बताया क इस सीमा का अथ नग य वकास नह ं है वरन ् वतमान तकनीक क
ि थ त तथा सामािजक संगठन वारा पयावरणीय संसाधन के उपयोग तथा मानवीय
ग त व धय के भाव को सहन करने क जैवम डल क मता म ि थत सीमा पर बल
दे ना है। ल बे समय से यह मा यता रह है क पृ वी तथा इसके नवा सय का भ व य
कृ त के अनुर ण एवं संचय क मानवीय मताओं पर आधा रत है। कृ त द त
जीवन नवहन यव था को बचाने म मानवीय मताओं म कमी आते ह पयावरण
असंतु लत हो जाता है। इस वषय म संध ृत वकास से स बि धत कु छ मह वपूण संग ह
- (i) सभी न यकरणीय संसाधन का पूण उपयोग संध ृत है, (ii) पृ वी पर जीवन क
व वधता संर त है, तथा (iii) ाकृ तक पयावरणीय तं का हास कम हो गया है ।
संध ृत वकास क मा यता है क उपयु त व ध एवं सामािजक यव था वारा
पा रि थ तक तं से यथे ठ संसाधन क ाि त हो सकती है। यह ऐसा वकास नह ं जो

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पयावरण म व यमान संसाधन के उपयोग पर नय ण रखे जैसी क पयावरण संर ण
क मा यता है। व तु त: यह पयावरण संर ण से हटकर संसाधन के दोहन पर अंकु श न
लगाकर उनक अ भवृ पर बल दे ता है िजसके प रणाम व प मानव एवं पयावरण के
म य एक ऐसी प रवतनशील यव था का उ व होता है जो संसाधन के वदोहन,
ौ यो गक वकास तथा सं थागत प रवतन के वारा मानव समाज क वतमान एवं भावी
आव यकताओं के म य सामंज य था पत को मह व दे ता है। इस कार संध ृत वकास
न न ल खत स ांत पर आधा रत है -
1. सामु दा यक जीवन क दे खभाल रख स मान करना,
2. मानवजीवन क गुणव ता म सु धार करना,
3. पृ वी क सहन मता (vitality) एवं व वधता का संर ण करना,
4. अन यकरणीय संसाधन क गुणव ता हास को रोकना,
5. पृ वी क नवहन मता (carrying capacity) को बनाए रखना,
6. यि तगत ि टकोण एवं नयम म प रवतन करना,
7. स म समुदाय वारा अपने पयावरण क दे खभाल करना,
8. सम वकास तथा संर ण के लए रा य आधार तैयार करना, तथा
9. व व यापी गठब धन का नमाण करना।
इस कार संध ृत वकास पयावरण के ऐसे सकारा मक संर ण पर बल दे ता है िजसम
पयावरण के जै वक तथा अजै वक घटक के र ण, अनुर ण , पुन थापन , द घका लक
दोहन एवं अ भवृ को सम प म मह व दान कया गया है। संध ृत वकास म
न नां कत मु े समा हत ह -

1. संसाधन के उपयोग के त प क अ तप ढ़ य उलझन (Intergeneration


Implications of Patterns of Resource use) - इसम इस त य पर बल
दया जाता है क पयावरणीय धरोहर को संर त करने के लए ाकृ तक संसाधन के
दोहन के बारे म कतनी भावकार नणयन या अपनाई जाए ता क भावी पी ढ़य
को लाभ मल सके।
2. न प तापूण स ब ध (equity concerns) - संसाधन पर कसक पहु ँ च अ धक
है? तयोगी दावेदार मे उपल ध संसाधन का आबंटन कतनी ईमानदार या पूणता
के साथ है? इसम इन त य पर बल दया जाता है, तथा
3. समय सं तर (time horizon) - लघु अव ध के आ थक लाभ या द घाव ध क
पयावरणीय ि थरता क दशा म संसाधन का आबंटन कतना नणयो मु खी है? समय
सं तर म इस पर वचार कया जाता है।
संध ृत वकास पयावरण हास को यूनतम हा न पहु ँ चाने वाल ौ यो गक के वकास,
संसाधन नय ण, संसाधन संर ण, भावी आव यकताओं को यान म रखते हु ए वतमान
संसाधन उपयोग क रणनी त बनाने आ द पर नभर है। य य प यह पा रि थ तक य तं
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के उपयोग क कोई नरपे सीमा वीकार नह ं करता तथा प इसम उपयु त ो यो गक
वकास वारा संसाधन क अ भवृ कर आव यकताओं क पू त पर बल दया जाता है।
बोध न-2
1. सं साधन थै तक ह या ग या मक ह ?
............................................................................................
............................................................................................
2. सं साधन क काया मकता को कौन-से त व भा वत करते ह ?
............................................................................................
............................................................................................
3. पदाथ के कौन-से गु ण उ हे सं साधन बनाते ह ?
............................................................................................
............................................................................................
4. सं साधन के टॉक से या आशय है ?
............................................................................................
............................................................................................
5. सं साधन के आर त भ डार या ह ?
............................................................................................
....................................................... .....................................
6. सं साधन क पया तता व यू न ता वषयक सं क पना या है ?
............................................................................................
............................................................. ...............................
7. सं ध ृ त वकास से या अ भ ाय है ?
............................................................................................
........................................................................................... .

2.3 संसाधन का वग करण (classification of Resources)


संसाधन का वग करण के कई आधार ह, िजनम उनक पुनन यता , ोत, वतरण आ द
मु य ह।

2.3.1 उपल धता सात य के आधार पर

कसी-भी संसाधन के उपयोग क एक अव ध होती है। कु छ संसाधन यूनाव ध के अ दर


समा त हो जाते ह जब क कु छ का सतत उपयोग स भव है। इस कार उपयोग सात य
के आधर पर संसाधन को न न तीन वग म वभािजत कया जा सकता है -
1. न यकरणीय संसाधन (Renewable Resources) : इस ेणी म वे सभी
संसाधन आते ह िजनको भौ तक, यां क तथा रासाय नक याओं वारा पुन :
उ पा दत कया जा सकता है। अत: ये संसाधन असमा य होते ह और इनक

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स पोषक पुनरावृि त स भव है। उदाहरणाथ, वन को एक े से काटे जाने के
बाद उ ह नए े म पुन : उ पा दत कया जा सकता है। व य ा णय क सं या
म वृ क जा सकती है। इसके अ य उदाहरण ह - सौर ऊजा, पवन, जल, मृदा ,
कृ ष उ पाद तथा मानव संसाधन।
2. अन यकरणीय संसाधन (Non-Renewable Resources) : संसाधन के
सतत उपयोग क ेणी म ऐसे संसाधन िजनका एक बार दोहन करने के उपरा त
उनक पुन : पू त संभव नह ं है। इनक मा ा सी मत होती है तथा नमाण अव ध
भी ल बी होती है। अत: इस ेणी के संसाधन का दोहन ती ग त से करने पर
ये समा त हो जाते ह। भू गभ म व यमान ख नज संसाधन इसी ेणी के
अ तगत ह। कोयले का दोहन एक-ह बार कया जा सकता है जब क इसके
नमाण म करोड़ वष लगते ह। ख नज तेल, ाकृ तक गैस, लौह- अय क, ताँबा,
बॉ साइट, यूरे नयम , थो रयम आ द संसाधन भी समा य ह।
3. च य संसाधन (Recyclable Resources) : पृ वी पर कु छ ऐसे संसाधन
पाए जाते ह िजनका बार-बार योग कया जा सकता है। जल संसाधन को
व भ न समय म व भ न प म यु त कया जाता है। इसी कार लोहा भी
वभ न प म उपयोग म आता है।

2.3.2 उ पि त के आधार पर

वभ न कार के संसाधन अलग-अलग अव थाओं म उ प न होते ह। इस कार उ पि त


के आधार पर इ ह अजै वक और जै वक दो े णय म बांटा जा सकता है। अजै वक और
जै वक संसाधन पर पर स बि धत होते हु ए अ यो या त भी ह। वयं मानव एक जै वक
साधन है जो पृ वी के थल य व प म प रवतन करते हु ए याशील रहता है। इसी
आधार पर मनु य ने सां कृ तक वकास कया है। पर पर स ब ता तथा अ यो या ता
के बावजू द अजै वक और जै वक संसाधन म अनेक भ नताएँ भी ह -
1. अजै वक संसाधन (Abiotic Resources) : इस ेणी के अ तगत अजै वक या
अकॉब नक संसाधन आते ह िजनम जीवन या नह ं होती तथा िजनका नवीनीकरण
भी स भव नह ं है। एक बार उपयोग म लेने के उपरा त ये समा त ाय: हो जाते ह।
समापनीय ेणी म होने के कारण इनका संध ृत या आनुपा तक दोहन वांछनीय है।
जल, जमीन तथा ख नज इसके उदाहरण ह। अजै वक संसाधन के वतरण म
असमानता पाई जाती है। कु छ संसाधन जैसे - लोहा, ए यु म नयम आ द व तृत े
म वत रत है जब क सोना, चाँद , आण वक ख नज आ द सी मत े म मलते है।
ग सबग ने पृ वी -तल पर ि थत धरातल य व प , शैल, मृदा , ख नज स पदा, जल
संसाधन आ द को अजै वक संसाधन माना है। ये सभी संसाधन कृ त द त ह जो
पृ वी पर वभ न व प म व भ न मा ा म पाए जाते ह। मानवीय स यता के
वकास म इनका व भ न प म उपयोग हु आ है। अजै वक संसाधन को मानव ने

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अनेक प म प रव तत कया है। यह प रवतन ऐसे थान पर नह ं होता जहाँ मानव
ने कृ त के साथ समायोजन कर लया है, जैसे क ीनलै ड और अ टाक टका म ।
2. जै वक संसाधन (Biotic Resources) : जैवम डल म ि थत अपने नि चत
जीवनच वाले संसाधन जैव संसाधन कहलाते ह। वन, व य ाणी, पशु, प ी,
वन प त तथा अ य सू म जीव जैव संसाधन के उदाहरण ह। जीवा म के
काया तरण के प रणाम व प उ प न होने के कारण कोयला तथा ख नज तेल को भी
जै वक संसाधन कहते ह। इनम से कु छ का नवीनीकरण स भव है (जैसे वन प त
वग) जब क कु छ नवीनीकरण के यो य नह ं ह (जैसे ख नज तेल)। इन संसाधन को
मानवीय याओं ने भा वत कया है। ऐसे संसाधन क मा ा म कमी या वृ भी
क जा सकती है। पशु पालन, म यपालन, वृ ारोपण आ द काय से जै वक संसाधन
को बढ़ाया जा सकता है जब क वनो मू लन तथा संकटाप न जीव का आखेट करके
इनम कमी भी लाई जा सकती है। जै वक संसाधन के दोहन म तकनीक ान तथा
उपयोग- व ध का भाव पड़ता है। ये चल संसाधन माने जाते ह। जै वक संसाधन के
वतरण म भौ तक घटक क मु ख भू मका रहती है। उदाहरण के लए,
उ णक टब धीय आ जलवायु म सघन वन प त मलती है जब क टु ा े म
इसका अभाव पाया जाता है।

जै वक संसाधन म अजै वक संसाधन क अपे ा अ धक व वधता मलती है क तु ये


कम कठोर होते ह, साथ ह इनका वकास शी हो सकता है जब क अजै वक संसाधन के
वकास म द घाव ध लगती है। अजै वक संसाधन क मा ा नि चत होती है तथा इसे
घटाया या बढ़ाया नह ं जा सकता जब क जै वक संसाधन क मा ा म वृ स भव है।
मनु य मृदा या जल का नमाण नह ं कर सकता जब क वह वृ ारोपण कर सकता है,

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जीव क सं या म कमी या वृ भी कर सकता है। इस कार अजै वक और जै वक
संसाधन का आधार (पृ वी ) एक होते हु ए भी इनम अनेक भ नताएँ मलती ह।

2.3.3 उ े य के आधार पर

कृ त म व भ न प म वत रत संसाधन का दोहन व भ न उ े य क पू त हे तु कया


जाता है। इस कार उ े य या उपयो गता के आधार पर संसाधन का वग करण
न नानुसार कया जा सकता है।
1. ऊजा संसाधन (Energy Resources) : यातायात साधन के संचालन, उ योग व
अ य यां क काय म ऊजा संसाधन का उपयोग कया जाता है। ऊजा संसाधन म
समा य तथा असमा य दोन ह कृ त के संसाधन पाए जाते ह। समा य या
अन यकरणीय संसाधन क ेणी म कोयला, ख नज तेल, ाकृ तक गैस आ द ह।
वन, जल व युत, पवन ऊजा, सौर ऊजा, भू तापीय ऊजा, वार य ऊजा आ द को
न यकरणीय या असमा य ऊजा क ेणी म रखा जाता है। ऊजा संसाधन क बढ़ती
मह ता के कारण इनके स पोषक वकास क मू ल भावना का पालन अ य त
आव यक है। इस हे तु उपयु त ौ यो गक का वकास अपे त है।
2. क चे माल (Raw Material) : क चे माल औ यो गक वकास का मु य आधार ह।
ये न न चार कार के होते ह -
(i) ख नज पदाथ - भू गभ से खनन कर नकाले गए पदाथ को इस ेणी मे
रखा जाता है। इनम लौह-अय क, अलौह धातु ए,ँ ग धक, नमक, चू नाप थर,
चीका, बालू इमारती प थर तथा अ य म त धातु एँ समा हत ह।
(ii) वन प त - ाकृ तक वन प त से ा त मु ख व गौण उपज इस ेणी म
आती ह। इनम लकड़ी, रे शेदार उ पाद, ग द, रबर, तेल, बीज, छाल, कॉक,
शैवाल तथा अनेक कार के कृ ष उ पाद सि म लत ह।
(iii) पशु - पशु ओं को भी क चे माल क ेणी म रखते ह। पशु ओं से क चे माल
के प म खाल, समू र, सींग, तेल, चब , ऊन, बाल, रे शम तथा ह डयाँ ा त
होती ह। ये सभी उ पाद जंगल एवं पालतू पशु ओं से ा त कए जाते ह।
(iv) कृ षगत पदाथ - इसम रे शे (कपास, सन, पटसन, हे प), बगानी रबर,
तलहन, बीज तथा इ नकालने के फूल आ द सि म लत ह।
3. खा य पदाथ (Food Stuffs) : मनु य ाचीन काल से खा य सं ाहक रहा है। खा य
पदाथ मु य प से तीन कार के संसाधन से ा त होते ह -
(i) ख नज - इसम जल तथा च ान से ा त नमक समा हत है जो मु यत:
खा य पदाथ के प म यु त होता है।
(ii) वन प त - मनु य एवं पशु ओं के भोजन का अ धकांश भाग वन प त उ पाद
से ा त होता है िजनम फल, क दमू ल, पि तयाँ, खु बी आ द मु य ह।

49
(iii) पशु एवं जीव-ज तु - पशु ओं एवं जीव-ज तुओं से मु ख एवं गौण उपज ा त
होती ह। मु ग पालन, मधुम खीपालन, म यपालन आ द इसी ेणी म आते
ह।

2.3.4 पा रि थ तक के आधार पर

ओवेन (Owen) ने सन ् 1971 म पा रि थ तक के आधार ाकृ तक संसाधन का


वग करण न नवत ् कया है -
1. अ यशील या असमा य संसाधन (Inexhaustible Resources) : इनम सू य काश,
पवन तथा जल सि म लत कए जाते ह। इस वग के दो उपवग ह - (i) अप रवतनीय
(immutable) जैसे - जल, तथा (ii) दु योजनीय (misusable) जैसे - जल।
2. यशील या समा य संसाधन (Exhaustible Resources) : इस वग म जीवा म
धन तथा ख नज पदाथ मु ख ह। इसके भी दो उपवग ह- (i) प रर णीय
(maintainable) जैसे - वन, व य-जीव, मृदा क उवरता आ द, तथा (ii)
अप रर णीय (non-maintainable) जैसे - ख नज।

2.3.5 न यकरणीयता तथा ाि त के आधार पर

िज मरमैन ने न यकरणीयता तथा ाि त के आधार पर संसाधन का वग करण ता लका 2


म दशाए अनुसार कया है ।

2.3.6 संसाधन का सामा यीकृ त वग करण

त व या व तु ओं के नमाण म सहायक कारक के आधार पर संसाधन को न न ल खत


तीन वग म बांटा जाता है -
1. ाकृ तक संसाधन (Natural Resources) : कृ त द त संसाधन को ाकृ तक
संसाधन कहते ह। नॉटन एस. ग सबग ने बताया क कृ त वारा नमू य दान
कए गए पदाथ जब मानवीय याओं से आवृ त होते ह तो उ ह ाकृ तक संसाधन
कहते ह। गाउडी (Goudie, A., 2000) के अनुसार ाकृ तक पयावरण के मानवीय
50
उपयोग-यो य घटक ाकृ तक संसाधन कहलाते ह। भौ तक स दभ म जैवम डल तथा
थलम डल म संसाधन के ाकृ तक वतरण, कार तथा उनके उपयोग के भाव के
आधार पर इनक कृ त का नधारण कया जाता है। इस आधार पर कसी दे श क
भौगो लक ि थ त, आकार, धरातल, जलवायु, वन प त, मृदा , पवन, जल, पशु,
ख नज, सू य काश आ द त व ाकृ तक संसाधन ह। इनम कु छ संसाधन संध ृत या
द घ-पोषणीय ह जो ल बे समय तक उपल ध रहगे जैसे - जल, पवन आ द जब क
कु छ संसाधन ल बी अव ध तक उपल ध नह ं रहगे जैसे - कोयला व ख नज तेल,
िजनके भ डार सी मत ह ।
ाकृ तक संसाधन के वषय म उनक कृ त एवं प रभाषा के व लेषण के उपरा त
न न ल खत न कष ा त हु ए ह
(i) ाकृ तक संसाधन ाकृ तक वातावरण के मु ख घटक ह,
(ii) ये मनु य के लए कृ त द त ह,
(iii) ये संसाधन कृ त म बना मानवीय अनु या के वयं म नि य रहते ह
ले कन जब मनु य इ ह उपयोग म लेता है तो ये स य प म आ थक वकास
म सहयोग करते ह,
(iv) इनक कृ त भ न- भ न होती है, िजसम कु छ समा य तथा कु छ असमा य या
न यकरणीय होते ह,
(v) ाकृ तक संसाधन म व वधता पाई जाती है,
(vi) ये मु यत: दो वग म मलते ह - अजै वक व जै वक, तथा
(vii) ये सभी ात न होकर कु छ अ ात भी होते ह।
कृ त का कोई-भी त व तभी संसाधन बनता है जब वह मानवीय सेवा करता है। इस
स दभ म 1933 म िज मरमैन ने यह तक दया था न तो पयावरण उसी प म
और न ह उसके अंग संसाधन ह जब तक वह मानवीय आव यकताओं को स तु ट
करने म स म न हो। ाकृ तक संसाधन क कृ त ग तशील है जो मानवीय ान
एवं कौशल के वकास वारा प रव तत होती है तथा उसका वक सत प अ धक
वक सत होकर बहू पयोगी प म उपल ध होता है। ाकृ तक संसाधन के एकल तथा
सामू हक दशाओं के योग म ह जै वक समु दाय का अि त व स भव है।
2. मानव संसाधन (Human Resources) : सं कृ त का नमाता मानव वयं एक
सश त संसाधन है जो ाकृ तक त व को अपने ान एवं कौशल के वकास से
संसाधन प म उपयोग करता है। वह संसाधन का नमाता एवं उपभो ता दोन है जो
एक भौगो लक कारक व साधन के प म सि म लत होकर काय करता है। मानव
संसाधन म कसी नि चत इकाई े म रहने वाल जनसं या, उसक शार रक व
मान सक मता, वा य, सामािजक, आ थक, सां कृ तक और राजनी तक संगठन
तथा वै ा नक व तकनीक ि थ त जैसी वशेषताएँ सि म लत ह। ाकृ तक वातावरण
म जब तक मानवीय आव यकताओं क पू त होती रहती है तब तक मानव संसाधन

51
कोई सम या का प नह ं लेता ले कन जनसं या बढ़ने पर आव यकताओं क आपू त
घटने लगती है और वयं मानव संसाधन भी सम या बन जाता है।
मानव एक स य ाणी के प म पृ वी -तल पर व यमान संसाधन एवं ाकृ तक
प रवेश का उपभोग करते हु ए उसके साथ समायोजन करता है। इस स पूण या म
वह अपनी बौ क मता के अनुसार कृ त द त त व म से े ठ का चयन करता
है। वह अपनी आव यकताओं क पू त के लए पृ वी -तल का पा तर भी करता है।
संसाधन उपयोग क ि ट से मानव क के य ि थ त है तथा वह ाकृ तक प रवेश
को नर तर पा त रत कर उसके अनु प अनुकू लन करता है। ाकृ तक घटक के
पा तरण क कृ त एवं दर मनु य के बौ क, आ थक एवं सामािजक वकास पर
नभर करती है।
3. सां कृ तक संसाधन (Cultural Resources) : संसाधन का तीसरा प है
तकनीक एवं सं कृ त। अपने ल य क पू त म सहायक होने के लए मानव िजन
साधन (devices) को उ प न करता है उसके सम प को सं कृ त कहते ह।
तकनीक इ ह के अंग ह। संसाधन क उपल धता, न यता एवं दोहन सभी तकनीक
पर नभर होता है। इसके साथ ह पू ज
ं ी का एक ण एवं सं थाओं क थापना भी
मानव करता है। मानव क आव यकताओं और मताओं के साथ ह संसाधन का
व तार एवं संकुचन होता है। जोबलर का संसाधन का इ तहास इसका अ छा टांत
है।

गूडाल 1987 के आधार पर


बोध न-3
1. वतरण एवं बार बारता के आधार पर सं साधन का या वग करण कया
गया है ?
............................................................ ..........................
............................................................ ..........................
2. योग के आधार पर सं साधन का या वग करण कया गया है ?
............................................................ ..........................
............................................................ ..........................

52
3. न यकरणीयता के आधार पर सं साधन का या वग करण कया गया है ?
............................................................................................
............................................................ ...........................
4. पा रि थ तक के आधार पर सं साधन का या वग करण कया गया है ?
............................................................ ............................
............................................................ ............................
5. न न ल खत सं साधन का एक-एक उदाहरण द िजए- अ यशील , यशील ,
न यकरणीय , अन यकरणीय , प रर णीय , अप रर णीय , पु न: यो य , पु न:
अ यो य , सवसु लभ, सामा य सु ल भ, वरल , एकल , वै भ व और गु त।
............................................................ ...........................
............................................................ ...........................

2.4 संसाधन का मू यांकन - सव ण तथा मान च ण


(Resource Evaluation – Survey and Mapping)
संसाधन के वकास हे तु नयोजन : मानक उपागम
मानव अपनी व तु ओ,ं सेवाओं तथा सु वधाओं क पू त के लए जैव-भौ तक पयावरण का
उपभोग करता रहा है। यह या ''संसाधन- वकास'' कहलाती है । मचेल ने इसे कहा है
क ''संसाधन का वा त वक वदोहन अथवा मानव क आव यकता तथा आकां ाओं क
पू त के लए तट थ पदाथ का व तु अथवा सेवाओं मे पा तरण के समय संसाधन का
उपयोग संसाधन- वकास है''। संसाधन के वकास के नयोजन का एक म है। मानक
उपागम म यह काम तीन अव थाओं म पूरा कया जाता है िजनका म न नानुसार है :
संसाधन का आरं भक पर ण (resource inverntory), उनका मू यांकन एवं वकास।
आरं भक नर ण म संसाधन का सव ण, मान च ण उनका मू यांकन एवं वकास।
आरं भक नर ण म संसाधन का योग संसाधन क मताओं एवं संभावनाओं के
मू यांकन के लए कया जाता है। इस दूसर अव था को मू यांकन (evaluation) कहा
जाता है। इस दूसर अव था म संसाधन के संभा वत व वध उपयोग , उनके लाभ एवं
लागत आ द का मू यांकन सामािजक, आ थक एवं तकनीक तर के अनुसार कया जाता
है। संसाधन के मू यांकन के आधार पर उनका अनुकू लतम उपयोग नि चत कया जाता
है। इसे सामािजक लाभ एवं सामािजक लागत पर वशेष यान दया जाता है। तीसर
अव था वकास (development) क है िजसम स भावनाओं को उ पाद म बदलने
स ब धी याएं सि म लत ह िज ह भौ तक नयोजन कहा जाता है। इनके साथ ह
संसाधन के नयतन का समाज एवं पयावरण पर पड़ने वाले भाव का नधारण (impact
assesment) भी संसाधन उपयोग के नयोजन का एक मु य अंग है। आ े लया म
वक सत ( ि चयन एवं टे वट 1968) इस उपागम का मानक प व व खा य एवं
कृ ष संगठन ने तु त कया है।

53
तीन अव थाओं वाले इस उपागम क आलोचना करते हु ए तीन अ य उपागम ता वत
कए गए ह। इनम एक माँस वारा ता वत पा रि थ तक पर आधा रत ''समकाल न
का यक स ब ध'' (Contemporary functional relationship) है। इस पर आधा रत
सव ण क व ध वक सत नह ं हो पाई। डै वसन वारा ता वत दूसरा उपागम आ थक
है िजसम प हले वांि छत भू म उपयोग का चयन कया जाय फर उसके लए उपयु त
दशाएं ढू ढ़ जाय। यह भी यवहार म नह ं आ पाया।
संसाधन का मू यांकन उ ह दो मु ख वग म बांटकर कया जा सकता है -
1. ाकृ तक संसाधन के सव ण एवं मान च ण वारा िजसम मु खतया पयावरणीय
घटक सि म लत कए जाते ह, तथा
2. मानवीय संसाधन के सव ण एवं मान च ण वारा िजसम जनसं या के मा ा मक व
गुणा मक घटक सि म लत कए जाते ह।

2.4.1 पयावरण घटक का सव ण तथा मान च ण

अ धकांश उ णक टब धीय दे श क अथ यव था ामीण े के उ पादन पर नभर करती


है। भू-उपयोग आयोजन को वै ा नक आधार दान करने, उपल ध संसाधन का समु चत
उपयोग करने तथा वातावरण आपद - सू खा, भू म-कटाव, वन प त- ास आ द - का उ चत
ान ा त करने के लए ाकृ तक संसाधन का सव ण, मान च ण तथा मापन
अ याव यक है ।
ाकृ तक संसाधन के सव ण मे संल न वतमान संगठन को चार समू ह म बांटा जा
सकता है -

54
1. अ तरा य संगठन िजनम संयु त रा खा य एवं कृ ष संगठन (Food and
Agricultural Organisation - FAO) मु ख है,
2. पि चमी दे श के ऐसे वै ा नक संगठन जो अ वक सत दे श म उनक मांग पर
संसाधन सव ण करते ह जैसे - टे न के वदे शी सव ण नदे शालय का भू-संसाधन
वभाग,
3. रा य संगठन जैसे - ऑ े लया के रा म डल य वै ा नक तथा औ यो गक शोध
संगठन का भू-शोध एवं ादे शक सव ण वभाग, तथा
4. कृ ष, संचाई तथा भू- वकास के व भ न अवयव म कायरत परामशदाता यावसा यक
संघ जैसे - इं लै ड का हॅ ि टं ग टै ि नकल स वसेज ल मटे ड आ द।
वाकृ तक सव ण : कृ ष तथा अ भयाि क े म भू-आयोजन स ब धी नणय भू य
वशेषताओं के आधार पर लए जाते ह। वाकृ तक सव ण म े म अवलो कत सम त
य के अ भलेख उनक उ पि त, आयु तथा व तार के अनुसार होते ह। भ न- भ न
आकृ तय को धरातल य मान च पर पर परागत च न क सहायता से मापक के अनुसार
दशाया जाता है। वाकृ तक मान च ण म जन नक तथा कालानु मक वग करण अपनाने
से वतरण, उ पि त तथा आयु के व वध व प का ाकृ त ान हो जाता है। वाकृ तक
मान च म इस हे तु ाय: रं ग का योग कया जाता है। वाकृ तक मान च
समो चरे खाओं के प रकलन से कु छ आका रक य (morphometric) सू चना भी दान
करते ह। वाकृ तक व प के अ त र त ऐसे मान च आ थक एवं सामािजक संसाधन
के दोहन से स बि धत सूचनाएँ भी दान करते ह।
जलवायु तथा जल सव ण : जलवायु सव ण म मौसम-वै ा नक मेघावरण के दै नक
तथा मौसमी प रवतन , वायुग त , ताप म, आ ता तथा तू फान के उ पि त के , उनके
वास माग , उनक गहनता, अव ध आ द के स ब ध म वशु सांि यक ा त करते ह।
जल व ान अ ययन म मु खतया तीन अवयव - आ ता, भू जल तथा धरातल य जल
संसाधन - को सि म लत कया जाता है। इन अ ययन से बाढ़ एवं सू खे से होने वाल
स भा वत त का अनुमान लगाया जाता है। साथ ह घरे लू उपयोग व संचाई के लए
जलापू त तथा शु क दे श म भू जल लवणता स ब धी अ ययन भी कए जाते ह। जल
सव ण मान च व तृत सव ण पर आधा रत होते ह। ये मू लत: व लेषणा मक कृ त
के होते ह िजनक सहायता से कु छ वशेष अवयव - भू मगत जल-तल, अपवाह, स रता
दूषण, न दय के जनन कार आ द - से स बि धत उ े यपूण मान च बनाए जा सकते
है। इन मान च म जला ध य तथा जलाभाव के े का प रसीमन भी कया जाता है।
मा ा मक सांि यक का अभाव इन मान च मे अव य रहता है अत: आव यक सांि यक
का पृथक् से सं हण अ नवाय हो जाता है।
म ी सव ण : म ी सव ण दो कार के होते ह - अ भयाि क य और कृ षीय। म ी
मान च म वृहत ् भू म- मता वग उनके उपवग के साथ दशाए जाते ह। व तृत म ी

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सव ण के लए 1:15000 तथा ारि भक म ी सव ण के लए 1:40000 मापक पर
बने वायु-फोटो उपयु त होते ह। य द वायु-फोटो उपल ध न ह तो ारि भक सव ण के
लए 1:63360 अथवा 1:50000 और व तृत म ी सव ण के लए 115840 मापक
पर बने धरातल-प क का उपयोग कया जा सकता है। कृ ष भू म के लए 1:7920
अथवा 1:3960 मापक पर बने भू कर मान च (cadastral maps) का उपयोग वांछनीय
है।
नद घाट प रयोजनाओं म अपवाह- े के जलाशय म अवसाद- न ेप को कम करने तथा
बांध को द घायु बनाने के लए म ी सव ण आव यक ह। म ी सव ण म भू गभ के
मू ल शैल , म ी के रं ग, गहराई, वन प त आ द पर भी ट प णयाँ लखी जाती ह। म ी
तदश सामा यत: 30 सेमी गहराई से लए जाते ह। मानक संचाई- म ी सव ण म
गहराई के अनुसार pH, लवण मा ा तथा कणीय बनावट को भी मापा जाता है। संचाई-
म ी सव ण ाय: दो बार कए जाते ह - संचाई से पूव और उसके प चात ्। संचाई-पूव
इस लए ता क म ी क कृ त के अनुसार संचाई क यव था क जा सके तथा संचाई-
प चात ् इस लए ता क संचाई के भाव का मू यांकन कया जा सके। उ पि तमू लक म ी-
कार के मान च उ े यानुसार 1:10000 अथवा 1:25000 या 1:100000 मापक पर
बनाए जाते ह। ात य है क म ी सव ण क ज टल कृ त के कारण वां छत वै ा नक
तर पर े वशेष के म ी सव ण काय भू गोलवेता के लए ाय: क ठन ह होते ह।
पा रि थ तक सव ण: अनेक आधु नक वै ा नक अवधारणाएँ मू लत: पा रि थ तक
(ecology) से ह यु प न ह। पा रि थ तक सव ण मे मु य प से वान प तक
अ ययन सि म लत कए जाते ह। वन प त को पयावरणीय दशाओं क स पूणता क
अ भ यि त के प म माना जाता है। वन - सूची अथवा का ठ संसाधन के मू यांकन
तथा चरागाह के सव ण वान प तक अ ययन के अ भ न अवयव ह। पशु-पा रि थ तक
सव ण म क ट-जीवन से स बि धत (जैसे - सी-सी म खी उ पादन) अ ययन सि म लत
कए जाते ह।
भू-उपयोग सव ण : भू-उपयोग मान च ण अ धकतर वायु-फोटो नवचन पर आधा रत
होता है। ऐसे मान च उपल ध भू ग भक, वाकृ तक, जल य, जलवाय वक तथा भू-
वान प तक सांि यक के आधार पर बनाए जाते ह। इन मान च के मू य, तर तथा
प रशु मु ख प से स ब वषय-मान च तथा सांि यक क उपलि ध, मू य तथा
प रशु पर नभर करते ह। व तृत भू-उपयोग सव ण कृ ष के भौगो लक ा प-वग करण
(typology) के उ तम आधार बनते ह। भू-उपयोग स ब धी अ धकांश अमे रक , टश,
ांसीसी, जमन, ि वस, इतालवी, पुतगाल , सो वयत तथा भारतीय अ ययन लघु े के
सव ण पर आधा रत ह तथा व भ न व धय का योग कए जाने के कारण ये पर पर
तु लनीय नह ं ह। भू गोलवेता डडले टा प के नदशन म स प न टे न का भू-उपयोग

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सव ण The Land of Britain – Its Use and Misuse व व म सवा धक व तृत
भू-उपयोग सव ण समझा जाता है ।
भू-उपयोग. मान च म सांि यक का दशन चार व धय वारा कया जाता है - (i) भू-
उपयोग का कार अ तरा य भू गोल संगठन के भू-उपयोग आयोग वारा नधा रत रं ग
के वारा, (ii) भू-उपयोग का वा म व स पि त क सीमाओं वारा ( क तु मान च के
मापक व उ चत आधार - मान च के अभाव म ाम के लघु खेत क सीमाओं का
दशाना स भव नह )ं , (iii) भू-उपयोग प तय को याम च न वारा, तथा (iv) भू-
उपयोग क दशाओं को भू-उपयोग के मु य कार म रं गीन े णय क सहायता से।
ात य है क य े ीय अवलोकनो का दशन भू-उपयोग मान च म केवल सी मत
मा ा म ह कया जाता है। इसी कार इन मान च म ामीण अथ यव था क
उ पादकता तथा गहनता का दशन भी ाय: छोड़ दया जाता है य क ये ऐसे अवयव ह
जो काल तथा थान के अनुसार प रव तत होते रहते ह।

2.4.2 मानवीय घटक का सव ण तथा मान च ण

मानवीय संसाधन का मू यांकन जनसं या के मा ा मक व गुणा मक घटक के सव ण


एवं मान च ण वारा कया जा सकता है। मा ा मक घटक म कु ल जनसं या, उसका
वतरण, घन व, आयु वग, लंग संरचना, कायशील जनसं या आ द सि म लत कए जाते
ह जब क गुणा मक घटक म यि त व, श ा, द ता, म आ द मू य पर वचार कया
जाता है। ये दोन ह घटक कसी दे श के सामािजक-आ थक वकास को सम त: भा वत
करते ह। इन मानवीय घटक का वशद अ ययन इकाई 9 से 12 ( वशेषत: इकाई 12) म
तु त कया गया है।

2.4.3 संसाधन सव ण क योजना तथा उपयोग

ाकृ तक संसाधन के एक पूण वक सत सव ण म न न तीन अव थाएँ होती ह -


1. वणना मक तथा अ वेषणा मक अव था िजसम भौ तक वातावरण का वणन तथा
मान च ण कया जाता है,
2. मू यांकन अव था िजसम पयावरणीय संसाधन के मू यांकन स ब धी काय कए जाते
ह, तथा
3. वकास अव था िजसम संसाधन उपयोग क योजनाएँ बनाई जाती ह।
अनेक संसाधन सव ण - वशेष प से ारि भक सव ण - ाथ मक प से वणना मक
अव था से स बि धत होते ह। उनम मू याकन को अ य प मह व दया जाता है। संग ृह त
सू चना के नवचन म यह आव यक है क भौ तक वातावरण के आठ धान घटक -
भू व ान, भू आकृ त व ान, जलवायु, जल व ान, म ी, वन प त, पशु तथा या धय का
एक ढाँचे के प म योग कया जाए।

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पया त आधार-मान च क ाि त के लए कु छ दशाओं म ारि भक धरातल य सव ण
आव यक होते ह। यह काय अ धकतर फोटो म त व धय वारा स प न कया जाता है।
संसाधन सव ण क थमाव था म नए तथा उ तम को ट के वायु-फोटु ओं का उपयोग
कया जाता है।
भौगो लक व धय का मह वपूण उपयोग वकास दे श के भू-संसाधन सव ण म कया
जा सकता है। ये सव ण वकासशील दे श के ामीण े क सांि यक के सं ह तथा
ा कलन के लए कए जाते ह। इन सव ण म संग ृह त सांि यक का उपयोग ाय: कृ ष
े क सम याओं के समाधान म कया जाता है।
अ धकांश आधु नक भू-संसाधन सव ण समाक लत ढं ग से ह स प न कए जाते ह।
उदाहरणाथ, सन ् 1961-64 म चल के समाक लत सव ण (Proyecto Aerofoto
Grameteric) म भू-उपयोग, भू-आकृ त व ान, म ी, संचाई, वन, मौसम व ान, कृ ष
क टब धन, यो पादन, प रवहन तथा भू-श यता वग करण के सव ण सि म लत थे।
कसी दे श वशेष के संसाधन के वकास के लए अ म योजना बनाने के लए उस दे श
के संसाधन सव ण कए जाते ह। ादे शक कृ त क यापा रक, राजनी तक, आ थक
तथा सामािजक सम याओं से स बि धत व श ट नी त- नधारण के लए रा य संसाधन
क सू चनाएँ आव यक होती ह।
संसाधन सव ण को तीन भाग म बांटा जा सकता है -
1. अ दश योजनाओं के लए यापक ती गामी ारि भक सव ण,
2. संसाधन आयोजन के लए ारि भक सव ण, तथा
3. संसाधन वकास के लए व तृत ारि भक सव ण।
यापक ती गामी ारि भक सव ण अ धकतर वतीयक सांि यक , व वध ोत से
उपल ध मान च तथा म ी, वन प त, जल, भू-उपयोग, जलवायु सू चकांक आ द क
शोध सांि यक पर आधा रत होते ह। ऐसे सव ण म 1:50000 मापक पर न मत फोटो
मोजेक संसाधन व लेषण के लए अ त लाभदायक ह। े अनुसंधान के लए फोटो
मोजेक आधार-मान च का काय करते ह।
िजन े म यापक ती गामी ारि भक सव ण कए जा चु के ह वहाँ वायु सव ण पर
आधा रत ारि भक सव ण काय स प न करना सु गम है। वायु सव ण पर आधा रत
ारि भक सव ण म भू म, म ी, जल, वन प त, पशु तथा मानव जनसं या के
सामािजक एवं आ थक त व का गहनतर अ ययन कया जाता है। ऐसे सव ण के लए
1:30000 अथवा 1:23000 मापक के वायु - फोटो धरातल य प का व तृत फोटो
व लेषण, े सव ण, योगशाला व लेषण तथा तवेदन तैयार करने के लए तवष
10,000 वग कमी का े सव ण के लए आदश े है।
संग ृह त सांि यक का समाकलन अनेक व धय से कया जा सकता है। बहु धा व भ न
वषय के वशेष वारा स प न सव ण म उ चत सम वय न होने के कारण ह
व भ न संसाधन म अ तस ब ध था पत नह ं हो पाता है। जब कसी दे श का सव ण

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वभ न वषय के वशेष वारा कया जाता है तो उसे ‘ ै तज समाकलन'
(horizontal integration) कहते ह। समाकलन का वतीय उपागम 'ऊ वाधर
समाकलन' (vertical integration) कहलाता है िजसम एक े म केवल एक-ह
वशेष वभ न ाकृ तक संसाधन का मू यांकन तथा प रणाम का नवचन करता है।
वा तव म एक ह वशेष सम त वषय के ान से प र चत नह ं होता और ऐसी ि थ त
म वह एक त य पर अ धक व अ य त य पर अपे ाकृ त कम यान दे पाता है। इसी
त य को यान म रखते हु ए आजकल 'बहु दक् समाकलन' (cross integration) पर
जोर दया जाता है िजसम व भ न वषय के वशेष संयु त प से ै तज व ऊ वाधर
दोन समाकलन तर पर काय करते ह।
संसाधन सव ण क दो बात - वायु-फोटो नवचन तथा मान च ण - भू गोलवेताओं से
स बि धत ह। आधु नक सव ण म वायु-फोटो ाफ का उपयोग अनेक कारण से कया
जाता है। थम, उपयु त मान च - वशेषत: वकासशील दे श के ामीण े के - वृहत ्
मापक पर उपल ध नह ं है। वतीय, सव ण के अनेक त व जैसे - भू-उपयोग, भू आकृ त
व ान, संचाई, म ी आ द – के लए व मतीय फोटो नवचन तथा े काय से
मान च त इकाई े का शी एवं वशु प रसीमन कया जा सकता है। तृतीय , वायु-
फोटो ाफ उ डयन का उपयोग िजससे वां छत मापक पर वायु-फोटु ओं को खींचा जाता है।
भू-संसाधन सव ण म सव ण के उ े य तथा सम याओं से स बि धत अनेक मा य
मापक तथा प रचालन तर का उपयोग कया जाता है। व भ न प रचालन तर पर
वायु-फोटो ाफ के व भ न मापक तथा अि तम मान च के उप थापन के लए व भ न
मापक क आव यकता रहती है। कृ ष वकास स ब धी सम याओं के समाधान म तीन
कार के मापक तर - ारि भक, अ - व तृत तथा व तृत - का उपयोग कया जा
सकता है।
वायु-फोटो पर आधा रत सव ण म 1:30000 से कम मापक फोटु ओं का उपयोग कया
जाता है। इन सव ण म अ धकतर 1:50000 मापक का उपयोग कया जाता है। फोटो-
मोजेक का नमाण 1:100000 मापक पर कया जाता है क तु दशन मान च म
ारि भक प रणाम को 1:50000 मापक पर दशाया जाता है। इसके अ त र त मू य,
समय तथा अ ययन उ े य को यान म रखकर अि तम दशन म मापक का चयन
कया जाता है। ारि भक सव ण तर पर े काय कम-से-कम कया जाता है। इस
समय े मान च ण के लए े के व श ट थल के सव ण, फोटो- नवचन कं ु िजय के
नमाण तथा मान च ण आ यान के वकास स ब धी काय अ धक कए जाते ह। इस
तर पर कोई मह वपूण े ीय जाँच काय नह ं कया जाता। ारि भक सव ण का
उपयोग उन े के चयन म कया जाता है जो व तृत अनुसंधान के लए उपयोगी होते
ह। उदाहरणाथ, द णी पेरा वे क गुलो योजना के सव ण म म ी, भू-उपयोग, वन
वकास तथा 65,000 वग कमी सड़क का ारि भक मान च ण पूरा कया गया।

59
वायु-फोटु ओं पर आधा रत अ - व तृत सव ण म 1:12000 तथा 1:20000 मापक के
फोटु ओं का उपयोग कया जाता है। अ - व तृत सव ण के अि तम मान च के मापक
सव ण के उ े य , पूवा यास तथा अ य कारक पर नभर ह। चल ायोजना म वायु-
फोटु ओं, फोटो-मोजेक तथा अि तम अ ध च म 1:20000 मापक का उपयोग कया गया
है।
अ - व तृत सव ण म एक है टर तक के े का प रसीमन कया जाता है। इस तर
पर े मान च ण के लए फोटो- नवचन काय म के आर भ म फोटो- नवचन कं ु िजय के
नमाण एवं आ यान के वकास म तथा सव ण के समय फोटो- नवचन एवं मान च त
े क तदश े ीय जाँच स ब धी दोन अव थाओं म े ा ययन आव यक ह।
अ - व तृत सव ण अनेक आयोजन नणय के लए सू चना दान करता है। इस तर का
सव ण एक आधारभू त सू ची तु त करता है जो आयोजक को वतमान ि थ त तथा
आयोिजत प रवतन ार भ होने के ब दु के बारे म ान दान करती है। इस तर पर
संग ृह त सांि यक तथा सूचना से ादे शक तथा रा य ायोजनाओं एवं काय म के
स ब ध म नणय लए जा सकते ह। इस सांि यक से ऐसे थान का ान हो जाता है
जहाँ व तृत अ ययन क आव यकता है ।
वातावरण के येक कारक के वत तथा पृथक् सव ण वारा य य प वातावरण
स ब धी सूचनाएँ ा त क जा सकती ह तथा प अ धक कौशल तथा उ तम बोध
समाकलन वारा ह ा त कया जा सकता है। यह काय पयावरण स ब धी सू चना के
सं हण मे संल न व भ न वशेष वारा संतोष द ढं ग से स प न कया जा सकता है।
इसके लए सव थम सम पयावरण का सव ण व मान च ण आव यक है, यि तगत
कारक का नवचन बाद म कया जा सकता है। यह उपागम भू म-तं उपागम (Land
system approach) कहलाता है। भू म-तं सव ण क तीन अव थाएँ होती ह -
1. थमाव था वायु-फोटो नवचन क है िजसे े काय से पहले पूरा कया जाता है।
इस अव था म वायु-फोटु ओं पर े क वशेषताओं तथा उनके आवृि त ा प क
पहचान तथा प रसीमन के काय कए जाते ह। इस काय के लए वायु-फोटु ओं पर
य ि टगोचर थलाकृ तय पर वन प त कारक का उपयोग मानद ड के प म
कया जाता है। इस अव था म े के व श ट भू- ा प का अ भ ान एवं
मान च ण मु य काय है।
2. वतीयाव था म थमाव था क अ थाई मान च ण इकाइय का उपयोग े सव ण
के आधार के प म कया जाता है। े मण का आयोजन इस ढं ग से कया जाता
है क न न भू-उपयोग स भावनाओं वाले पवतीय े को छोड़कर स भवत: येक
अ भ ेय इकाई का नर ण कया जा सके। इस ढं ग मे े सव ण के लए उपल ध
सी मत समय का कु शल उपयोग स भव है। े ावलोकन के दो भाग ह - थम,
पारगमन अवलोकन अथात ् मण कए गए े का सतत अ भलेखन, तथा वतीय,
नि चत अव थान पर व तृत थल वणन।

60
3. तृतीय अि तमाव था म े सांि यक का व लेषण कया जाता है और उससे ा त
न कष से मू ल फोटो- नवचन म सु धार कए जाते ह। इसके प चात ् येक भू म-तं
के व तृत वणन का संकलन कया जाता है।
बोध न-4
1. सं साधन का मू यां क न कै से कया जाता है ?
............................................................................. ..........
............................................................ ...........................
2. ाकृ तक सं साधन के सव ण म कौन-कौन-से सव ण सि म लत कए
जाते ह ?
............................................................ ..........................
............................................................................................
3. मानवीय सं साधन के सव ण म जनसं या के कौन-कौन-से घटक को
सि म लत कया जाता है ?
............................................................ ...........................
............................................................ ..................... ......

2.5 सारांश (Summary)


संसाधन अ ययन क मु खतया तीन मू ल संक पनाएँ ह - (i) पया तता वषयक पू ज
ं ीवाद
संक पना, (ii) यूनता वषयक सा यवाद संक पना, और (iii) काया मकता वषयक
स या मक संक पना। इन तीन म स या मक संक पना ह सापे त: वै ा नक और
मू लभू त है। इसके अनुसार संसाधन का नमाण मानव यास व तकनीक से होता है तथा
संसाधन ग तक होते ह, थै तक नह ं। मानव अपने ान, व ान व तकनीक द ता
वारा ह भू म डल के सम त पदाथ को उपयो गता व काया मकता के गुण दान कर
उ ह संसाधन बनाता है। इस काया मक संक पना को कई त व भा वत करते ह जैसे -
कृ त, मानवीय आव यकताएँ, आ व कार, कायकु शलता, धनाभाव, शासक य नी तयाँ और
सव प र वयं मानव सं कृ त।
संसाधन क सी मतता, अनुपल धता, मू य वृ , आधु नक युग क उपभो तावाद सं कृ त
आ द अनेक कारण से वतमान समय म संसाधन संर ण नयोजन एवं उनके संध ृत
वकास क संक पना वशेष प से बलवती हु ई है। संर ण म संसाधन के अ योग क
नह ं बि क ववेकपूण योग क मूल भावना न हत है िजससे क वे द घकाल तक अ ु ण
बने रह । अत: संर ण को अ त- मत ययता के संक ण अथ म नह ं बि क पयावरण
गुणव ता उ नयन के यापक प म समझना चा हए। संसाधन के नयोिजत उपयोग के
लए अनेक ब दु वचारणीय ह जैसे - (i) संसाधन आधार का आकलन, (ii) संसाधन
दोहन क वै ा नक व धय का योग, (iii) संसाधन दु योग का भावी नय ण, (iv)
वरल न समापनीय संसाधन के वक प क खोज, (v) संसाधन टॉक का सू चीकरण,

61
(vi) संसाधन का संतु लत व बहु े यीय योग, (vii) अ तदोहन से बचाव, (viii) भावी
कानून वारा संर ण इ या द। संध ृत वकास क संक पना संसाधन के द घाव धक
समाक लत वकास से स बि धत है।
संसाधन के वग करण के बहु वध आधार ह जैसे - (i) सामा य (भौ तक व जै वक), (ii)
उपल धता (अ यशील व यशील), (iii) वतरण एवं बार बारता (सवसुलभ , सामा य
सु लभ, वरल व एकल), (iv) योग (अ यु त , अ योजनीय, वभव, गु त), (v)
न यकरणीयता (अनवीकरणीय, पुननवीकरणीय , पुनच य), (vi) अ धकार े ( यि तगत,
रा य व वैि वक), (vii) मानवीय उपयोग (भो य पदाथ, क चे माल, शि त के साधन
आ द), और (viii) उ पि त ( ाकृ तक, मानवीय व सां कृ तक) आ द।
संसाधन के मू यांकन हे तु ाकृ तक एवं मानवीय संसाधन के व भ न घटक के सव ण
व मान च ण क व धय का ान उपादे य है। वतमान समय म इसके लए अ धकतर
हवाई सव ण से ा त वायु-फोटो नवचन, सु दरू -संवेदन तकनीक तथा एकल त व क
अपे ा समाक लत सव ण तकनीक का अ धक योग कया जाने लगा है। समाक लत
सव ण म भू म -तं उपागम सवा धक च लत है।

2.6 श दावल (Glossary)


 संसाधन पया तता (Resource Adequacy) : पू ज
ं ीवाद एक ऐसी वचारधारा जो यह
मानती है क पृ वी पर संसाधन क पया त मा ा उपल ध है और भ व य म
तकनीक ग त के साथ इनक मा ा बढ़ती ह जाएगी, अत: भ व य म संसाधन क
कभी कमी नह ं पड़ेगी।
 संसाधन यूनता (Resource Scarcity) : सा यवाद एक ऐसी वचारधारा है जो यह
मानती है क पृ वी पर उपल ध संसाधन सी मत व समापनीय ह अत: इनका
सु नयोिजत उपयोग होना चा हए अ यथा भ व य म इनक कमी पड़ने से पा रि थ तक
संकट उ प न हो जाएगा।
 थै तक संक पना (Static Concept) : संसाधन ि थर तथा नि चत ह और इनके
प रमाण म वृ स भव नह ं है।
 ग या मक संक पना (Dynamic Concept) : कृ त के उ पादन मानव साहचय से
संसाधन बनते ह। संसाधन काया मक और स या मक होते ह, इनक रचना मानव
यास से होती है।
 लु टेर अथ यव था (Robber Economy) : वे आ थक याएँ िजनके अ तगत
व रत लाभ ाि त के लए ाकृ तक संसाधन का अ ववेकपूण दोहन कया जाता है
िजससे भ व य के लए उपयोगी संसाधन का अनाव यक वनाश होता है। यह सं ा
ांसीसी भू गोलवेता जी स ूश
ं ने द थी।
 भौ तक संसाधन (Physical Resources) : कृ त द त अचल उपहार जैसे -
धरातल य व प, च ान, म ी, ख नज, जल, वन आ द।

62
 जै वक संसाधन (Biotic Resources) : कृ त द त चल उपहार जैसे - वन प त,
जीव -ज तु आ द जो प रि थ तय के अनुसार घटते-बढ़ते रहते ह।
 अ यु त संसाधन (Unused Resources) : ऐसे संसाधन जो दुगम दे श म ि थत
होने, न न गुणव ता के होने या अ य कसी-भी कारण से योग म नह ं लाए जा
सकते।
 योजनीय संसाधन (Unusable Resource) : ऐसे संसाधन िजनके गुण एवं योग
के वषय म मनु य अन भ हो।
 अ यशील संसाधन (Inexhaustible Resources) : कभी समा त न होने वाले
संसाधन।
 पा रि थ तक कारक (Ecological Factors) : पयावरणीय कारक जो पादप तथा
ाणी जगत को भा वत करते ह जैसे - उ चावचन, जलवायु, म ी, जलाशय आ द।
 पा रि थ तक तं (Ecosystem) : कसी पयावरण म सम त जै वक एवं अजै वक
कारक क पार प रक अ त या तथा उनके समाकलन से उ प न तं ।
 ु न (Ecological Equilibrium) : कसी पा रि थ तक तं
पा रि थ तक संतल म वह
थाई दशा जब येक त व के उ पादन तथा उपभोग म ाय: संतु लन पाया जाता है।
 पोषणीय या संध ृत वकास (Sustainable Development) : संसाधन का ऐसा
ववेकपूण उपयोग िजसम उनके द घाव धक दोहन क स भावनाएँ न हत ह ता क
भावी पीढ़ क आव यकताएँ पूर क जा सके।

2.7 स दभ थ (Reference Books)


1. एस. डी. कौ शक : संसाधन भू गोल, र तोगी ए ड क पनी, मेरठ, 2007
2. बी. एस. नेगी : संसाधन भू गोल, केदारनाथ रामनाथ, मेरठ, 2007 (अं ेज़ी म भी
उपल ध)
3. बी. पी. राव : संसाधन और पयावरण, वसु धरा काशन, गोरखपुर , 2006
4. अलका गौतम : संसाधन एवं पयावरण, शारदा पु तक भवन, इलाहबाद, 2006
5. जगद श संह एवं काशीनाथ संह : आ थक भू गोल के मूल त व, ानोदय काशन,
गोरखपुर , 2007
6. जयकुमार जैन एवं दानमल बोहरा : यावहा रक भू गोल, राज थान ह द थ

अकादमी, जयपुर , 1989
7. Zimmermann, E.W. : World Resources and Industries, Harper &
Row, New York, 1951
8. Hunker and Henry, L. : Zimmermann’s Introduction to World
Resources, Harper & Row, New York, 1964
9. Kalwar, S.C. : Resources and Development, Ritu Publications,
Jaipur, 2003
63
10. Kalwar, S.C. and Others: Arid Ecology: Resources, Hazards and
Rural Development policies, Pointer Publication, Jaipur Vol. - I &
II, 1999.

2.8 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. काया मकता, उपयो गता, पया तता, सामी य और अ भग यता।
2. िज मरमैन।
बोध न- 2
1. ग या मक।
2. कृ त, मानवीय आव यकताएँ, आ व कार, कौशल, मानवीय सं कृ त आ द।
3. उपयो गता और काया मकता।
4. पृ वी के भौ तक तथा जै वक वग क ऊजा और यमान का स पूण योग टॉक है।
5. आर त भ डार संसाधन का वह उपभाग है जो वतमान तकनीक , आ थक और
सामािजक दशाओं के अ तगत अनुपल ध है क तु भ व य म तकनीक के वकास
होने पर वक सत कया जा सकता है।
6. पया तता वषयक संक पना - कृ त म पदाथ के वपुल भ डार है जो न य नई
तकनीक के वकास से संसाधन बनते रहते ह इस लए भ व य म संसाधन क कोई
कमी नह ं आएगी।
यूनता वषयक संक पना - ाकृ तक संसाधन सी मत ह और जनसं या क वतमान
ती वृ -दर के चलते नकट भ व य म शी ह इनक कमी महसूस क जाने
लगेगी।
7. भावी पीढ़ के हत को नुकसान पहु ँ चाए बना वतमान समाज क आव यकताओं क
पू त कर पाना संध ृत वकास है। यह पयावरण के द घाव धक उपयोग एवं अ भवृ से
स बि धत अवधारणा है।
बोध न- 3
1. सवसुलभ , सामा य सु लभ, ' वरल और एकल।
2. अ यु त , अ योजनीय, वभव और गु त।
3. अनवीकरणीय, पुननवीकरणीय पुन : च य और अ यशील।
4.

64
5. सू य काश, जीवा म धन, पादप, व य जीवन, वन, ख नज, ह रे -जवाहरात, कोयला,
वायुम डल य गैस, कृ ष भू म, यूरे नयम , ायोलाइट, वशाल जल रा शयाँ, अठारहवीं
सद तक ख नज तेल।
बोध न- 4
1. सव ण एवं मान च ण वारा
2. ाकृ तक सव ण, जलवायु तथा जल सव ण, म ी सव ण, पा रि थ तक सव ण,
एवं भू उपयोग सव ण।
3. कुल जनसं या, उसका वतरण, घन व, आयु वग, लंग संरचना, कायशील जनसं या,
अि त व, श ा, द ता, म आ द।

2.9 अ यासाथ न
1. संसाधन क आधारभू त संक पनाओं क समी ा क िजए तथा संसाधन ोत के प म
मानव. सं कृ त एवं कृ त के अ तस ब ध क या या क िजए।
2. अ भनव भौगो लक सा ह य म संसाधन क काया मक संक पना का आलोचना मक
पर ण क िजए। इस संक पना को भा वत करने वाले त व का प ट करण क िजए।
3. संसाधन क पया तता एवं यूनता वषयक संक पनाओं क या या क िजए।
4. संसाधन ग या मक ह अथवा थै तक ? सकारण प ट क िजए।
5. संसाधन का साधार एवं सोदाहरण वग करण क िजए और उनक अ यो या ता प ट
क िजए।
6. ाकृ तक संसाधन से या आशय है ? भौ तक एवं जै वक संसाधन का तु लना मक
अ ययन तु त क िजए।
7. मानव संसाधन से या ता पय है ? मानव संसाधन के समु चत उपयोग म आ थक
वकास तथा उ तरो तर सां कृ तक व तकनीक प रवतन क या भू मका है ?
उपयु त टांत के मा यम से पुि ट क िजए।
8. वतमान शता द म सां कृ तक व तकनीक वकास के संदभ म ाकृ तक संसाधन के
प रवतनशील मह व को समझाइए।
9. सां कृ तक संसाधन से े है ? इनका अ ययन
या अ भ त य आव यक है ?
10. संसाधन के संर ण क या आव यकता है ? संसाधन संर ण क या संक पना
है? संर ण नयोजन स ा त क ववेचना क िजए।
11. संध ृत वकास से या अ भ ाय है ? इसके मु ख स ा त क ववेचना क िजए।
12. ाकृ तक संसाधन के मू यांकन म यु त सव ण एवं मान च ण व धय क सं ेप
म ववेचना क िजए।

65
इकाई 3 : ाकृ तक संसाधन : मृदा जल Natural
Resources: Natural Water
इकाई क परे खा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 ाकृ तक संसाधन अथ एवं प रभाषा
3.3 ाकृ तक संसाधन-मृदा
3.3.1 मृदा संसाधन का मह व
3.3.2 म ी के मु य घटक
3.3.3 मृदा क उ प त
3.3.4 म ी के भौ तक-रसाय नक गुण
3.3.5 मृदा प र छे दका
3.3.6 म ी का वग करण एवं वतरण
3.3.7 मृदा संसाधन का उपयोग
3.3.8 मृदा संसाधन का संर ण
3.4 जल संसाधन मह व
3.4.1 जल संसाधन का वतरण
3.4.2 जल संसाधन का उपभोग
3.4.3 संसाधन क सम याएं
3.4.4 जल संसाधन का संर ण
3.5 सारांश
3.6 श दावल
3.7 स दभ थ
3.8 बोध न के उ तर
3.9 अ यासाथ न

3.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप :
 ाकृ तक संसाधन का अथ, मह व बता सकगे।
 मृदा संसाधन क उ पि त एवं मृदा प र छे दका को समझ सकगे।
 संसार म मृदा एवं जल के वतरण क जानकार ा त कर सकगे।
 संसार म मृदा एवं जल के उपभोग पर ववेचना कर सकगे।
 मृदा एवं जल संर ण क आव यकता पर चचा कर सकेग।

66
3.1 तावना (Introduction)
इस इकाई म हम आपको ाकृ तक संसाधन - मृदा एवं जल के व भ न पहलु ओं को
बताएंगे। इकाई के आर भ म हम बताएंगे क संसार म ाकृ तक संसाधन-मृदा का अथ
एवं मह व या है ? इसका वतरण कहाँ-कहाँ पाया जाता है तथा इस का उपयोग कस-
कस े म हो रहा है। मृदा के उपयोग / उपभोग से उ प न सम याओं के कारण इसका
संर ण आव यक है क चचा क गई है।
जल के उपयोग के मह व को बताया गया है तथा वतरण क जानकार दान क गई ह।
संसार एवं भारत के स दभ म वतमान म जल संकट को दे खते हु ए इसका संर ण एवं
मह व को प ट कया गया है।

3.2 ाकृ तक संसाधन अथ एवं प रभाषा


श द यु पि त के अनुसार संसाधन अं ेजी पयाय 'Resource' दो श द 'Re+Source' से
मलकर बना है । 'Re' का आशय द घ अव ध से है तथा 'Source' का अथ साधन है।
इस कार कृ त म उपल ध वे साधन िजन पर कोई जै वक समु दाय द घ अव ध तक
नभर रहता है संसाधन कहलाता है।
िज मरमैन (Zimmermann E.W.) के अनुसार, ''संसाधन पयावरण क वे वशेषताएँ ह जो
मनु य क आव यकताओं क पू त म स म मानी जाती है, उ ह मनु य क
आव यकताओं एवं मताओं वारा उपयो गता दान क जाती है।
मेकनाल के अनुसार '' ाकृ तक संसाधन वे संसाधन है जो कृ त वारा दान कये जाते
ह तथा मानव के लए उपयोगी होते ह।''
जे स फशर के श द म ''संसाधन वह कोई व तु है जो मानवीय आव यकताओं और
इ छाओं क पू त करता है।“
प ट है संसाधन कृ त म पाया जाने वाला ऐसा पदाथ, गुण या त व होता है जो
मानवीय आव यकताओं क पू त करने क मता रखता है।
कोई भी व तु, पदाथ या त व उसी दशा म संसाधन होता है जब क उसम मनु य क
आव यकता पू त तथा काय स करने अथवा लाभ दान करने क मता हो। इस ि ट
से वयं मानव एक संसाधन है तथा सम त संसाधन म सव प र है।
संसाधन ि टगत (Visible) एवं अ य (invisible) दोन प म पाये जाते ह - यमान
संसाधन म जल, भू म, ख नज, वन प त आ द मु ख है। मानव जीवन, वा य, इ छा,
ान, सामािजक सामंज य, आ थक उ न त आ द मह वपूण अ य संसाधन है।

3.3 ाकृ तक संसाधन-मृदा


म ी ख नज तथा जैव त व का ग या मक (dynamic) ाकृ तक सि म है। िजसम
वन प त एवं पौधे उ प न करने क मता होती है। इसके आव यक त व म ख नज

67
तथा जैव-पदाथ सवा धक मह वपूण है। म ी मानव को सबसे मू लभू त संसाधन है।
ह टंगटन स हत सभी व वान ने म ी को ाकृ तक वातावरण का धान त व माना है।
डा. बैनेट के श द म ''धरातल पर मलने वाले असंग ठत पदाथ क ऐसी परत जो जल
च ान व वन प त अंश के संयोग से बनती है म ी कहलाती है''
सामा य प म मृदा का नमाण मू ल च ान के वघटन तथा अपघटन वारा होता है िजसे
समय के साथ व भ न कार क जलवायु भा वत करती है।
रमन म (1917) मृदा क प रभाषा न न कार द है ''मृदा पृ वी क सबसे ऊपर
अप यत ठोस पपड़ी क परत है, जो च ान के टू टने व रासाय नक प रवतन से बने
छोटे -छोटे कण और उस पर रहने और उपयोग करने वाले पादप व ज तु अवशेष से बनी
है।''
इन प रभाषाओं से प ट है क म ी पृ वी के नमाण म लगे पदाथ से बनी होती है
तथा इसम सतत ् भौ तक रासाय नक एवं जै वक याएं पलती रहती है िजससे इसके गुण
म प रवतन होता रहता है।

3.3.1 मृदा संसाधन का मह व

म ी मनु य के लए बहु त मह वपूण है। पृ वी तल पर कृ ष उ पादन य प से म ी


पर ह आधा रत है। पशु पालन तथा वनो योग भी परो प से म ी पर ह आधा रत है।
म ी वारा उ पादन के यवसाय म व व क लगभग 80% जनसं या लगी हु ई है ।
इसी कारण वा डया ने कहा है क ''मानव उपयोग क ि ट से सभी दे श क म याँ वहाँ
के आवरण तर का सबसे मू यवान अंग ह और उनक सबसे बड़ी ाकृ तक स प त ह।''
कोल के अनुसार '' म ी पृ वी क मृतक धूल को जीवन के सा त य से जोड़ती है।''
वाइट एवं रै नर ने भी यह मत दया है क ''पृ वी तल पर य द म ी न होती तो जीवन
कदा प स भव न था।''
वलकॉ स (Wil Cox) ने तो यहाँ तक कहा है क ''मानव स यता का इ तहास म ी का
इ तहास है और येक यि त क श ा म ी से ह ार भ होती है।''

3.3.2 म ी के मु य घटक

म ी तीन - ठोस, तरल तथा गैस - प म पास जाने वाले पदाथ से मल कर बनी होती
है। इनम ख नज (अजै वक) तथा जै वक पदाथ, जल एवं वायु मु य ह। म ी के वजन म
लगभग 90% ख नज होते ह। ये ख नज या तो भू पपट से ा त होते ह अथवा अपर दत
पदाथ के जमाव से ा त होते ह। म ी म जैव पदाथ यूमस तथा असं य सू म जीव
के प म होते ह। म ी के र म जल एवं वायु होती है भोर म ी क उवराशि त
नधा रत करने म इनक मह वपूण भू मका होती है।

68
3.3.3 मृदा क उ पि त (Origin of Soil)

सी वै ा नक गेरा सभोव के अनुसार म ी क रचना पैत ृक शैल म उन प रवतन के


फल व प होती है जो वभ न कार क जलवायु एवं उ चावच क दशाओं के अ दर
जै वक कारक (ज तु ओं और पौध ) के वारा कये जाते है।
मृदा नमाण को भा वत करने वाले मु ख कारक मू ल पदाथ, जलवायु, जै वक त व,
उ चावच एवं समय ह।
मृदा पृ वी क ऊपर सतह पर एक परत के प म मलती है िजसका नमाण च ान
तथा ख नज के अप य से हु आ है, उसे च ान कहते है। इसम समय के साथ जीवांश
पदाथ का म ण हो जाता है।
मू ल पदाथ का नमाण शैल के अप य से हु आ है तथा मूल पदाथ पर मृदा नमाण करने
वाले स य (जलवायु, जीवम डल), नि य (उ चावच, मू लपदाथ) और उदासीन (समय)
कारको क नर तर या के प रणाम व प मृदा का नमाण होता है।
जब वन प त और ज तु ओं के अवशेष म ी म मलते ह तो जलवायु क या से एक
कार का अ ल य त व ' यूमस ' उ प न होता है। यह पौधे का मु य भोजन होता है।
क ड़े - मकोड़े, बल खोदने वाले ज तु और कचु ए आ द म ी को कु रे द कर उसक रचना
म सहायता करते ह। मनु य कृ ष वारा म ी का पा तरण करता है और अपनी
याओं से भू म के अपरदन को बढ़ाता है अथवा संर ण करता है।
इस कार भौ तक, रासाय नक, जै वक और सां कृ तक कारक क याओं और
त याओं वारा म ी क रचना पूण होती है। म ी एवं ग तशील जी वत त य है।
म ी के नमाण म जलवायु के य एवं परो दोन ि टय से मह व है। य प
से अप य, जल क मा ा तथा समतल थापक शि तय का नधारण जलवायु वारा होता
है। म ी क उ पि त म जलवायु का भाव इतना मह वपूण होता है क एक जलवायु के
दे श म व भ न कार क शैल से बनने वाल म याँ द घकाल म सब एक कार क
होती ह।
उदाहरण सी टे पीय दे श म व भ न शैल , ेनाइट, बेसा ट, लोयेस और ले सयर क
चकनी म ी, सभी से काल चरनोजम म यां बन जाती ह।
एक सी शैल से व भ न जलवायु दे श म व भ न कार क म याँ बनती ह, जैसे क
ेनाइट से शीतल जलवायु म पॉडजोल म ी बनती है, टै पी जलवायु से चरनोजम और
उ ण जलवायु म लेटराइट म ी बनती है।
धरातल का व प भी म ी के गुण को भा वत करता है। म ी का अ धकतम वकास
सामा य ढाल वाले मैदान म होता है।
इसी तरह म ी के वकास के लए पया त ल बे समय क आव यकता होती है।

69
3.3.4 म ी के भौ तक-रासाय नक गुण

बालू, स ट तथा चीका ( ले) के कण से म ी बनती है। इसे ह म ी का गठन कहते


ह। कंकड़ एवं बालू म र ता अ धक होती है। अ तु इनक जल धारण करने क मता
बहु त कम होती है और पानी तु रंत नीचे चला जाता है। स ट का पश आटे के समान
होता है और इसम जल धारण करने क मता भी होती है। ले गील होने पर फैलती ह
तथा सू खने पर सकु ड़ने के कारण दरार पड़ जाती है। इसका अ छा उदाहरण ढकन ैप क
काल म ी ह ऐसी म ी िजसके कण के बीच रखा एवं पानी के वेश के लए पया त
जगह अ छ मानी जाती है।
म ी के कण आपस म चपक कर और एक त होकर एक नि चत प ले लेते ह। इसे
संरचना कहते है। ये प परतदार, पा व य, ख नज अथवा रवेदार हो सकता है।
म ी के कण के बीच छ को संर ता कहते ह। बड़े र वाल म ी म जल तथा वायु
आसानी से ग तशील हो सकता है, क तु इनम जल बहु त दे र तक नह ं ठहरता। इसके
वपर त मह न र म जल दे र तक ठहरता है।
म ी म जल भी होता है जो पौधे के वकास के लए आव यक है य क पौधा घोल के
प म अपना भो य पदाथ लेता है।
म ी कई रं ग क होती है जो इसम पाए जाने वाले रसायन , रासाय नक याओं, मू ल
पदाथ के ख नज तथा जैव पदाथ क मा ा को बताते ह। जैसे क लोहे क कमी वाल
म ी सफेद अथवा राख के रं ग क , पर तु लोहे क अ धकता वाल लाल अथवा ट के रं ग
क होती है।
म ी के रासाय नक गुण -अ लता एवं ारता भी मह वपूण है। म ी जल म थोड़ी अ लता
होनी चा हए। अ लता के अभाव को ारता कहते ह। अ लता- ारता के मापन के लए
पी.एच. मापक (pH Scale) का योग कया जाता है।
म ी क उवरता उसके मू ल पदाथ के रासाय नक और भौ तक गुण पर नभर होती है।
मु ख भौ तक गुण न न ह -
1. म ी का गठन,
2. म ी क संरचना,
3. सरं ता
4. रं ग,
5. जल क मा ा
6. रासाय नक गुण
बोध न-1
1. मृ दा सं साधन को प रभा षत क िजए ।
............................................................ .........................
............................................................ .........................
2. म ी के मु य घटक कौन से ह ?

70
............................................................ ..........................
............................................................ ..........................

3.3.5 म ी प र छे दका (Soil Profile)

पृ वी क ऊपर सतह से नीचे क आधार शैल तक पाई जाने वाल म ी क सतह


प र छे दका कहलाती है। इनम ऊपर क सतह से नीचे क सतह म अ तर आने लगता
है।
म ी पि वका म साधारणतः तीन तर होते है। सबसे ऊपर 'अ' तर, म य म 'ब' तर
तथा सबसे नीचे 'स' तर होता है। इन तर क गहराई एवं गुण अलग-अलग होते ह।
'अ' तर अ य तर म रं ग, कण के आकार तथा कण के पर पर गु थ
ं न म भ न होता
है। यह ऐसा तर है िजसम जैव पदाथ क अ धकता होती है। 'अ' के ऊपर भाग म घास-
फूस, आं शक प से सड़ी-गल वन प त तथा पूणत: न ट वन प त पदाथ क परत होती
है। ले कन आ जलवायु दे श क म ी म न ालन (Leaching) वारा घुलनशील जैव
पदाथ नचले तर म चले जाते ह।
'ब' तर म ब2 तर अ2 क अपे ा अ धक गहरे रं ग का होता है और कोलाइ स क
अ धकता होती है। अ तर के न ा लत ख नज ब तर म जमा हो जाते ह।
'स' तर अप ायत मू ल पदाथ का सं तर है। 'ब' सतह से बहु त कम पदाथ यहां तक
पहु ंचता है तथा बहु त कम रासाय नक याएं होती ह। इसके नीचे आधार शैल (द परत)
होती है।

च 3.1: मृदा प र छे दका

71
3.3.6 मृदाओं का वग करण एवं वतरण

म य के वग करण के कई आधार ह। उदाहरणाथ -


1. मू ल च ान के अनुसार : ेनाइट म याँ, लावा म याँ, चू ना म याँ आ द।
2. नमाण क व ध के अनुसार : अव श ट म याँ, परवा हत म याँ, न दय वारा
जमा क गई जलोढ म य , ले सयर क म यां इ या द।
3. रं ग के अनुसार : भू र , क थई, पील , लाल, काल म याँ।
4. थल के अनुसार : पवतीय, मैदानी, म थल य, समु तट य म यां।
5. कण के अनुसार : रे तील , दोमट, स ट, चकनी म याँ, अ ल य, ार य म यां
आ द।
6. जलवायु : वन प त क व भ न दशाओं म म ी च क अव था के अनुसार नई
म यां प रप व म याँ और वृ म याँ। प रप व म य के े सघन आबाद
होते ह।
व व तर म य को तीन कार म वभ त कया जाता है, िज ह 1. क टब धीय
(Zonal), अ त: तर (Intra Zonal) तथा असु तर य (Azonal) म ी कहते है।

1. क टब धीय म ी : उस कार क म ी को कहते है जो जलवायु तथा वन प त के


द घकाल न भाव से पूण वक सत होती है। चू ं क इस कार क म ी का वतरण
जलवायु एवं वन प त दे श के अनुसार मलता है इस लए इ ह क टब धीय म ी
कहते ह।

मान च - 3.2 : व व क म य का वतरण


72
ये म ी मु खत : दो कार क होती है - इ हे 1. पेडा फर तथा 2. पेडोकल कहते है।
पेडा फर म ऐलु मी नयम (al) तथा लोहा (fe) का मेल होता है ये म यां आ दे श म
पाई जाती ह।
पेडोकल म ी (ped+cal) म ी का ता पय वह मृदा है िजसम कैि सयम (चू ना) क मा ा
अ धक हो। वन प त के आधार पर इसे भी दो भाग बाँटा जाता है 1. छोट घास वाले
दे श क म ी तथा 2. अ म थल म ी।
पेडा फर म यां
आ दे श क म यां पेडा फर कहलाती ह। इन भाग के वन दे श म इनके न न
कार ह।
1. पॉडजोल म ी : यह म ी उ तरोतर ु वी ल बी शीत ऋतु एवं छोट ी म ऋतु वाले
दे श म पाई जाती है। यहां कोणधार वन मलते है। स, कनाडा अला का एवं
केि डने बया आ द दे श के अ धकांश उ तर भाग म ऐसी म ी मलती है
(मान च 3.2)। यह राख के रं ग क अ ल य म ी होती है।
2. पॉडजौ लक म ी : पॉडजोल म ी के द ण म पायी जाती है। पॉडजोलाइजेशन क
या यहाँ भी काय करती है। अ धकांश जीवांश म त वनो क चौडी पि तय से
मलता है।
3. लेटराइट म ी : वषुवत रे खीय वन (आ उ ण) म यह म ी मलती है। यहाँ
लैटराइजेशन या काय करती है। यह म ी अनुपजाऊ होती है।
4. पेड फर ल बे घास वाल म याँ : पॉडजो लक तथा लेटराइट म ी वाले दे श के
बीच म आ भाग म जहाँ ल बी घास वाल वन प त मलती है वहां कई कार क
म यां बनती ह। इन म य म म यम उवरता होती है। द ण पूव चीन, द णी
जापान म इस कार क म ी मलती है। उ ण क टब धीय लाल म ी, उपो ण
क टब धीय लाल तथा पील म ी, ेयर म ी इसके अ तगत आती ह।
पेडोकल म याँ
इस वग म तीन कार क म याँ सि म लत ह -
1. चरनोजम
2. भू र टे स
3. म थल य म ी।
1. चरनोजम म ी : छोट घास वाले दे श म वक सत होती है। इसका रं ग काला होता
है। संयु त रा म यह म ी ेयर म ी वाले दे श के पि चम म 300 कमी. चौड़ी
पेट म व तृत है। स म भी ेयर म ी दे श के द ण म 600 कमी. ल बी
तथा 300 - 500 कमी. चौड़ी पेट म यह मलती है। यह काफ उपजाऊ होती है।
2. भू र टे स म ी : चरनोजम एवं म थल य म ी के म य पायी जाती है। ये वरल
एवं छोट घास के े ह।

73
3. म थल य म ी : अ य त शु क भाग म यह म ी पायी जाती है। इसम तर का
पूण वकास नह हो पाता। इसम घुलनशील ख नज अ धक पाए जाते ह।
II. अ त: तर म याँ : उन म य को अ त: तर य म यां कहते ह िजन पर जलवायु
तथा वन प त क अपे ा अ य त व का भाव अ धक होता है। ये क टब धीय े
के म य बखरे े म मलती ह। ये उपजाऊ तथा अनुपजाऊ दोन कार क होती
है। रे डजीना म ी उपजाऊ उदाहरण है।
III. असु तर य म याँ : ये म याँ अ वक सत होती है अथात इसके तर का वकास
नह होता है। इस लए इ हे अपाि वक म याँ कहते ह। जलोढ़, हमोढ़ तथा लोयस
म याँ इस वग म सि म लत क जाती ह।
बोध न-2
1. म ी प र छे दका कसे कहते ह ?
............................................................ .........................
............................................................ .........................
2. पे ड फर तथा पे डोकल म य म अ तर बताइए ?
............................................................ .........................
............................................................ .........................

3.3.7 मृदा संसाधन का उपयोग

कृ ष काय मानव ने लगभग 10 हजार वष पहले ह सीख लया था। ले कन मानव को


यह ान नह था क कस कार क म य कौन सी फसल के लए उपयोगी है।
पहले जनसं या कम थी तथा भू म अ धक थी। ाचीन समय म एक े म कृ ष,
पशु पालन, आखेट इ या द कई यवसाय साथ-साथ चलते थे। मश: धीरे -धीरे मनु य का
वभ न कार क म य क उपयो गता मालूम होती गई और उनके उपयोग म भ नता
भी आती गई।
लगभग 7000 वष पूव भारत म स धु गंगा क घाट म, चीन क ं ग हो घाट ,
यांग ट स यांग घाट , म क नील घाट , ईराक क दजला-फरात घा टय म म ी क
उवरता के अनुसार उपयोग ार भ हो गया था। उपजाऊ भू मय म कृ ष तथा कम
उपजाऊ भू मय म पशु चारण होता था उस समय वन का व तार अ धक था।
तीन शताि दय से जनसं या संसार क जनसं या म एक दम तेजी से वृ हु ई है तब से
म ी के मह व को व भ न फसल के लए पहचाना गया। योग के मा यम से नये-नये
अनुभव ा त कये गये। प रवहन क सु वधाओं म वृ के साथ-साथ यापार म भी वृ
हो गई प रणाम व प वभ न े म म ी के अनुसार कृ ष-फसल का वशेष करण हो
गया है।
वशेषी करण के उदाहरण के लए -पवत क पथर ल म ी म फल के बगीचे, रे तील
म य म आलू मैदान म मू ँगफल , शकरक द, तरबूज आ द उगाये जाते है। दोमट म ी

74
गेहू ँ क कृ ष के लए, लावा काल म ी कपास के उ पादन के लए उ तम है । इसी
कार चकनी म ी म चावल उगाया जाता है ।
वभ न कार क म य के भू म उपयोग न न कार है -
1. उ ण आ पेट क म याँ : यहाँ लेटेराइट म ी मलती है। इन म वन काट कर
कृ ष क जाती है।
इन म य म थाई यापा रक कृ ष वारा चावल ग ना आ द उगाने क अपे ा
रबर, ना रयल, केला, कोक, साबुदाना, मसाल आ द के वृ क कृ ष अ धक उपयोगी
है। जावा म लावा म ी म चावल एवं ग ने क कृ ष क जाती है।
2. उपो ण पेट या वनो ओर घास थल क म याँ - लाल तथा पील म य म खद-
उवरक दे कर चावल, वार, बाजरा, म का, कपास, गेहू ँ तलहन क कृ ष एवं पशु पालन
होती है कृ ष काय काँप म म अ धक कया जाता है संसार म 70% जनसं या
न दय क काँप म ी पर आधा रत है। चीन, भारत, पा क तान, जापान, प. यूरोप ,
पूव संयु त रा य के मानव समू ह काँप म य के े म ह बसे है।
3. समशीतोषण पण पाती वनो क म यां : यहाँ भू रे 'क थई रं ग क म यां होती है
इन पर गेहू ँ जौ, म का आ द क कृ ष, पशु पालक और म त कृ ष तथा फल,
तरका रय और पशु चारे क कृ ष होती है।
4. समशीतो ण घास थल क म याँ : चू ना यु त पेडोक स म याँ है इनम गेहू ँ
म का, जौ, जई, चु क दर, राई, कपास, और पशु चारे क कृ ष होती है। कृ ष
उ पादक के हसाब से इनका अ धक मह व ह।
5. उ तर शंकुधार वनो क म यां : ये कम उपजाऊ है इस लए कृ ष के लए कम
उपयु त है इन का उपयोग पशु चारण, जौ, जई, आलू क कृ ष एवं फलदार वृ के
बगीचे म सफल होता है।
6. घूसर म म याँ : यूमस कम ार अ धक होता है। संचाई वारा फसल उगाई
जाती है पशु चारण (भेड़ चारण) होता है। नील एवं स धु घाट म सं चत फसल उगाई
जाती है।

3.3.8 मृदा संसाधन का संर ण

म ी से द घ काल न ि टकोण से अ धकतम लाभ ा त करने के लए भू म संर ण


आव यक है म ी संर ण का उ े य म ी को अपने थान पर कायम रखना, म ी क
उवरता तथा अ य त व क अ भवृ करना तथा द घकाल तक उ पादन मता म वृ
करना है।
कसी े क म ी म एक ह फसल लगातार बोये रहने से, म ी म पौध के पोषक
त व कम होते जाते है और फसल क उपज घटती रहती है द घ काल मे बहु त सी
म य क उवरता न ट हो जाती ह। संयु त रा य अमे रका म वगत 3 शताि दय म ह
अनेक े क म याँ बूढ़ एवं अनु पादक हो गई है। जब क भारत और चीन म 50

75
शताि दय से अ धक समय म भी म य क उवरता कम नह हु ई है अत: म ी
अनुर ण तथा संर ण के उपाय न न कार है।
1. कृ ष णाल म प रवतन करने से म ी क उवरता का संर ण हो सकता है।
2. फसल का हे र -फेर होना चा हए।
3. कृ षक को म ी एवं जल ब धन का ान होना चा हए।
4. गोबर तथा पि तय क खाद, फसल के अवशेष जीव धा रय के मल-मू ा द अप श ट
मलबे से म ी के पोषक त व क वृ होती है।
5. आवरण फसल का उपयोग।
6. उवरक तथा खाद का उपयोग
7. मृदा क दूषण से र ा।
8. समो च रे खीय जु ताई।
9. थाना तर कृ ष पर तब ध।
10. पशु चारण पर नय ण।
11. बाढ़ े का संर ण
12. अव ना लकाओं पर बाँध बनाना ।
म ी संसाधन का ववेकपूण योग
म ी भू म संसाधन के ववेकपूण योग के अ तगत म ी संर ण का वचार ह नह
बि क वा त वक उपयोग भी सि म लत है। यह एक मह वपूण त य है क कृ ष भू म क
सं चत और औ यो गक नमाण तथा ाम नगर य जम घंट के लए कये जा रहे अद
नयतन से र ा क जाये।
तवष लगभग 3000 वग KM. कृ ष क भू म नमाण काय म योग कर ल जाती है।
वष 1961-70 के दशक के म य जापान म 7.3% कृ ष भू म, सड़क एवं नवासीय
नमाण म, नीदर लै ड म 4.3% और नाव म 1.5% कृ ष भू म लु त हो गई।
य द वतमान दर से कृ ष क भू म घटती रह तो एक तहाई कृ ष भू म आगामी 20 वष
म कम हो जायगी। अतएव यह आव यक है क कृ ष भू म क अनु चत योग से र ा के
लए बनाय गये नयम का कठोरता से पालन कया जाये।
बोध न-3
1. मृ दा सं साधन का उपयोग कस- कस े म कया जाता है ?
............................................................ ..........................
............................................................ ..........................
2. मृ दा सं साधन सं र ण का उ े य या है ?
............................................................ ..........................
............................................................ ..........................

76
3.4 जल संसाधन
जल मानव जीवन क अ य त मह वपूण आव यकता है। ाण क र ा के लए वायु के
बाद दूसरा थान जल का ह है। जल पृ वी पर पाया जाने वाला वह अमू य ाकृ तक
संसाधन है जो कृ त क रचना म सहभागी होकर स पूण जीवम डल को आधार दान
करता है। थलम डल, जलम डल तथा वायुम डल म व यमान जल व भ न अव थाओं
(ठोस, व, गैस) म अपनी भौगो लक ि थ त बदलता रहता है। यह प रवतन जल य च
के मा यम से पूण होता है। पृ वी पर उपल ध जल का लगभग 1 तशत भाग जल य
च म भाग लेता है। इस कार धरातल पर ि थत व भ न ोत , झील, तालाब, न दयाँ,
पेड़-पौधे तथा समु म उपल ध जल का वा पीकरण होता है एवं जल वायुम डल म वेश
करता है। इसके उपरा त तापमान कम होने के कारण संघनन होकर यह वा पीकृ त जल
वषा के प म पुन : धरातल पर आ जाता है। इस कार जल का जो च पूरा होता है
उसे जल य च कहते ह ( च 3.3)।
अमू य संसाधन जल कृ त म वभ न थान म वभ न वत रत है तथा सदै व
ग तशील रहता है व व म जल दो कार का जल पाया जाता है - (1) लवणीय (2)
व छ जल।
1. लवणीय जल सागर , महासागर म पाया जाता है । संसार का 97.39 तशत जल
लवणीय है। इसका आयतन 1,348,000,000 कमी3 है।
2. व छ (शु ) जल : स पूण जलम डल का 2.6 तशत जल शु (fresh) प म
पाया जाता है। इसम थल य जल संसाधन को सि म लत कया जाता ह। हम
टो पयां, हमख ड, हमनद (2.01%), भू -जल एवं मृदा नमी (0.58%), झील तथा
न दयाँ (0.02%) तथा वायुम डल (0.001%) म व छ जल पाया जाता है।
जल संसाधन क वशेषता यह है क इसका उपयोग (बहु उ ेशीय) एक साथ ह वभ न
तरह से होता है। जल का सवा धक उपयोग संचाई म (70%) कया जा रहा है तथा
वतीय थान उ योग का है। घरे लू तथा अ य उपयोग म इसका थान तृतीय है।
महासागर का मु य उपयोग प रवहन म कया जाता है। इसके व भ न उपयोग म
म य पालन का मह वपूण थान है। इस कार जल म डल म व यमान जल रा श का
वभ न प म उपयोग कर हम वकास को ग त दे रहे ह।

च - 3.3 जल य च
77
3.4.1 जल संसाधन का वतरण

जल संसाधन को भू पटल पर जल के वतरण और ाि त के अनुसार न न दो भाग म


बाँटा जाता है-
1. थल य जल संसाधन तथा 2. महासागर य जल संसाधन।
थल य या आ त रक जल संसाधन के व भ न प न दयाँ, नहर, झील, नाले, तलैया
और दलदल ह। थल य जल का एक बड़ा भाग भू मगत जल के प म है। जल म डल
म पाया जाने वाला जल पृ वी पर व भ न थान पर व भ न प म वत रत है। इसका
अ धकाश भाग (97.39%) लवणीय प म सागर मे सं चत है जब क व छ जल बहु त
कम मा ा म मलता है जलवा प वायुम डल का मह वपूण घटक है जो ऊजा च म
अपनी मु ख भू मका रखता है। इस कार सामा यत: जल य वतरण म धरातल य,
भू मगत तथा महासागर य जल को सि म लत कया जाता है जब क वायुम डल य
जलवा प अनेक याओं को पूण करती है। जल का व व यापी वतरण जल य च के
मा यम से पूण स तु लत रहता है िजसम जलवा प का अपना भौगो लक मह व है।
पृ वी का स पूण जल य भाग जलम डल कहलाता है, िजसम व जल, जलवा प, बफ
तथा हम को सि म लत कया जाता है। महासागर , न दय , झील तथा तालाब , हम
आवरण, हमनद , हम े , भू मगत े के संत ृ त तथा असंत ृ त भाग तथा भू सतह से
ऊपर ि थत वायु म व यमान जल य मा ा जलम डल के भाग है। जलम डल म वतमान
म लगभग 13841 लाख टन कलोमीटर जल व भ न दशाओं म (ता लका सं. 3.1) पाया
जाता है। इसका सबसे बडा भाग (97.39%) महासागर म ि थत है। स पूण जलम डल
का 2.6% भाग शु जल के प म पाया जाता है। इसका 77.23% भाग हमटो पय ,
हमख ड तथा हमनद के प म है। शु जल का 22.21% भू मगत जल के प म 4
कमी. क गहराई तक ि थत ह। शेष जल अ प प म मृदा , झील , जीवम डल तथा
वायुम डल म पाया जाता है।
ता लका- 3.1 : स पूण जल (शु एवं लवणीय) का व भ न प म वतरण
जल के ोत आयतन आयतन का %
हजार घन कमी. का %
महासागर 1348,000 97.39
हमटो पयाँ, हमख ड, हमनद 27820 2.01
भौम जल 8,062 0.58
झील तथा न दयां 225 0.02
वायुमंडल य नमी 13 0.001
कु ल योग 13,84,120 100.00
ोत : डा: आर.के . गु जर एवं जाट ‘संसाधन भू गोल' पचंशील काशन, जयपु र, -2007, पृ. सं. 51,

Source: (After Baumgertner and Reichel (1925)

78
इस कार भू सतह पर जल व भ न ोत म वत रत है। मु य ोत न न ल खत ह।
1. हम े : शु जल का तीन-चौथाई भाग (77.23%) महा वीपीय हनद , हमा नय ,
हमन दय आ द म हम के प म ह। ये उ च अ ांश एवं उ च पवतीय दे श म
ि थ त ह। अ टारक टका, ीनलड तथा आक टक े म हमचादर के प म जल
व यमान है।
2. न दयाँ : धरातल य जल ोत म न दय का मह वपूण थान है। ये उ च पवतीय
े , हमा छा दत चो टय , झील आ द से नकलकर व तृत भाग म वा हत होती
ह। व व क मु ख न दयां नील, अमेजन नद , यांग टसी यांग, मसी सपी, मेनीसी,
आव, वागहो, पराना, सानुर आमू र, ल मा, मीकांग, मैके जी, नाइजर, डा लग, वो गा,
दजला-फरात जे बेजी, यू े न , से टलारे स, स धु, मपु , गंगा, डे यूब , यूराल
इ या द ह। इनम उ तर पूव अ का म बहने वाल नील नद सबसे ल बी (6695
कमी) है। आमेजन (6570 कमी.), यांि टसी यांग (6300 कमी.) तथा मसी सपी
(6020 कमी.) येक 6 हजार कमी. से अ धक ल बी ह।
3. झील : झील पृ वी तल पर पायी जाने वाल मु ख ि थर जल रा शयाँ ह। कैि पयन
सागर, सु पी रयर, व टो रया, अरल सागर, यूरन, म शगन, टगा नका, ेट बयर,
बैकाल, इर , व नपेग, चाड इ या द बडी झील ह िजनम वशाल जलरा श सं चत है।
े फल क ि ट से कैि पयन सागर (370.9 वग कमी.) व व क सबसे बड़ी झील
है। उससे अमे रका क बड़ी झील म सु पी रयर, यूरन , मशीगन, ेट बयर, अ का
क व टो रया, तंजा नका, मालावी, चाड; यूरोप क कैि पयन सागर तथा ए शया क
अरल सागर, बैकाल झील, लैडोगा और बालकश सि म लत ह।
4. नहर : प रवहन, संचाई तथा जल व युत उ पादन के लए नहर का नमाण कया
जाता है िजनम जल भ डा रत रहता है। ये नहर रा य तथा अ तरा य मह व क
होती है। वेज नहर, पनामा नहर, सू नहर, क ल नहर इ या द बड़ी नहर है।
5. भू जल : भू-सतह के बीच ि थत शैल छ तथा दरार म व यमान जल को भू जल
कहते ह। जल संसाधन का भू मगत जल 0.50% है तथा स पूण जल य रा श के शु
जल य भाग (2.67%) का 22.21% है जो क 4 कमी. क गहराई तक ि थत है।
धरातल के नीचे मलने के कारण इसे अध: सतह जल भी कहते ह। वषा जल तथा
नहर, झील आ द का पानी रस कर अधौभो मक जल के प म एक त होता रहता
है।
महासागर य जल
पृ वी का 70.87% भाग जल य है, िजसका 97.39% भाग महासागर के प म
व यमान है िजनम कु ल 13480 लाख घन कमी. जल सं चत है। उ तर गोला म
40% भाग पर जल तथा 60% भाग पर थल है, जब क द णी गोला म 81% भाग

79
पर जल तथा 19.1 भाग पर थल है। इसी कारण द णी गोला को 'जल य गोला '
कहा जाता है।
महासागर म सबसे बड़ा शा त महासागर है िजसम व व का 46.91% जल य भाग
व यमान है जब क अटलां टक महासागर म 23.38% तथा ह द महासागर म 20.87%
जल उपि थत है।
तीन महासागर का जल लवणीय है। इसके अ त र त उ तर ु व एवं द णी ुव
महासागर म पाये जाने वाले जल का अ धकांश भाग हम के प म है।
हम े के प म आक टक महासागर कुल जल य े के 3.97% भाग पर फैला है।
ता लका-3.2 : मु ख सागर का े एवं जल य आयतन
सागर े फल( कमी.2) (आयतन कमी.3)
मलाया 8,143,100 9873000
कैरे बयन सागर 4319500 9573000
भू म य सागर 2966000 4238000
बाि टक सागर 422300 23000
हडसन 12333000 158000
लाल सागर 437900 215000
फारस क खाडी 238800 6000
बे रंग सागर 2268200 3259000
ओखोट क सागर 1427600 1279000
जापान सागर 100700 1361000
पूव चीन सागर 1249200 235000
अ डमान सागर 797600 694002
कैल फो नया सागर 168200 132000
उ तर सागर 575,300 54000
ोत : - डा. आर. के. गु जर एवं जाट ‘संसाधन भू गोल' पचंशील काशन जयपु र 2007, पृ ठ सं.65

भारत का जल संसाधन
भारत म व व के कु ल जल संसाधन का 6 तशत है। ो. के. एल. राव के अनुसार दे श
म कम से कम 1.6 कमी. ल बाई क लगभग 10360 न दयां है िजनम औसत वा षक
वाह 1869 घन कलोमीटर है।
भारत म तवष 1869 अरब घन मीटर सतह जल होने का अनुमान है। सतह जल के
मु य ोत न दय , झील, तालाब, सरोवर, पोखर इ या द ह। सतह जल का अ धकांश
भाग न दय म बहता है। भौगो लक ि टकोण से अनेक बाधाओं एवं वषम वतरण के
कारण इसम से केवल 690 अरब घन मी. (32%) सतह जल का ह उपयोग हो सकता

80
है। इसके अ त र त रा य तर पर उपल ध पार प रक भ डारण एवं वाह मोड़कर पुन :
आपू त के यो य लगभग 432 अरब घन मीटर जल है।
सतह जल संसाधन का वतरण बहु त असमान है (ता लका 3.3)। इसका अ धकांश भाग
कु छ नद बे सन म सं चत है। कु ल सतह जल वाह का 28.7 तशत जल मपु ,
26.8% गंगा और 3.9% संधु नद णाल म वा हत होता है। इस दे श का 60% जल
उ तर भारत क इन वशाल नद बे सन म सं चत है। ाय वीपीय भारत क न दय म
गोदावर (दे श का 6.4%), कृ णा (3.6%), महानद (3.6%) और नमदा (2.2%) का
जल संसाधन उ लेखनीय है। इस कार द णी भारत म सतह जल संसाधन कम है।
सतह जल संसाधन क मा ा वाह े के आकार, वषा क मा ा और नद के ोत क
वशेशताओं पर नभर होता है। इन ि टय से उ तर भारत क न दयां े ठ ह।
ता लका- 3.3 : भारत के मु ख नद बे सन म उपल ध जल संसाधन
बे सन औसत वा षक वाह कु ल का % उपयोग यो य जल भंडारण
(घन कमी.) (घन कमी.) (घन कमी.)
संधु 73 3.9 46 14.52
गंगा 501 26.8 250 37.40
मपु 537 28.7 24 1.09
गोदावर 119 6.4 76 7.27
कृ णा 68 3.6 58 32.33
कावेर 21 1.1 19 7.25
पे नार 6.8 0.4 6.8 2.37
महानद 67 3.6 50 8.93
सु वण रे खा 10.8 0.6 - _
हमाणी 36 1.9 18.1 4.29
साबरमती 8 0.4 1.9 1.30
माह 11.8 0.6 3.1 4.16
नमदा 41 2.2 34.5 3.02
ता ती 18 1.0 14.5 8.68
ोत : डॉ. आर. के. गु ज र एवं बी.सी. जाट ‘भारत का भू गोल' पचंशील काशन जयपु र 2007, पृ ठ सं . 39

भारत म जल के अनेक तथा त पधा मक उपयोग है। इसके आ थक उपयोग म संचाई


का बहु त अ धक मह व है। भारत म धरातल य साधन क व वधता के कारण व भ न
साधन वारा संचाई क जाती है। य य प दे श के 40% भू-भाग म संचाई सु वधाएँ
उपलि ध है पर तु इसम भी व भ न े म व व धता पायी जाती है। भारत म संचाई
के तीन मु ख साधन ह - नहर, कु एँ और नलकू प तथा तालाब।
भू मगत जल

81
दे श म भू मगत जल का अनुमा नत भंडार 433.9 अरब घन मीटर है। इसका अ धकांश
भाग जलोढ़ च ान वाले भाग म पाया जाता है। इस ि ट से उ तर भारत का वशाल
मैदान म भू मगत जल का वशाल भंडार है। संभा वत भंडार क ि ट से उ तर दे श,
म य दे श और बहार सबसे मु ख ह जहां दे श का आधा। भू मगत जल संसाधन सं चत
है। कु ल उपल ध भू मगत जल के केवल 37.2 तशत का ह वकास हो पाया है।
समु जल संसाधन क ि ट से भारतीय उपमहा वीप के लए ह द महासागर क
भौगो लक ि थ त मह वपूण है। भारत क लगभग 7516.6 कमी. ल बी तट रे खा तथा
60,000 वग कमी. अ य समु े म व वध संसाधन के भ डार ह। समावेशी या
अन य आ थक े (Economic Zone EEZ) कसी भी दे श का सागर तट य तटवत
े होता है िजसम आ थक ग त व धयाँ संचा लत होती है। संयु त रा के नयमानुसार
इसका व तार मु य भू म से 200 नाँ टकल मील (370 कमी.) तक होता है।
इस े म स ब जल एवं सागर तल म व यमान ाकृ तक संसाधन क खोज, दोहन
व संर ण का अ धकार होता है। इसको तीन भाग म वभ त कया गया है -
1. थल य सागर : इसका व तार 12 नॉ टकल मील (19 कमी.) तक होता है। मछल
पकड़ने का अ धकार ा त होता है।
2. संस त े : इसका व तार 24 नाँ टकल मील (38 कमी.) तक है। इस म तट य
रा य को पूण वत ता नह होती है, ले कन यहाँ सामु क अनुसंधान व संसाधन
सव ण कर सकता है।
3. खु ला सागर : यह ई.ई.जेड. से आगे का होता है। यहाँ कोई या यक े नह होता है
तथा यह तट य व भू-आवेि ठत दोन ह दे श के लए खु ला होता है। इसे खु ला सागर
कहते है।
उपयु त महासागर जल संसाधन का उपयोग भारत व भ न े म कर रहा है।
भारत म जल के अनेक तथा त पधा मक उपयोग ह। इसके आ थक उपयोग म संचाई
का बहु त अ धक मह व है त वष लगभग 500 अरब घन मीटर जल का उपयोग कया
जाता है। कु ल के 84% का उपयोग संचाई के लए कया जाता है। केवल 4% घरे लू
उपयोग म तथा 12% उ योग, व युत उ पादन आ द म कया जाता है। आवागमन के
साधन, अप श ट पदाथ को हटाने तथा मनोरं जन के साधन के प म भी जल का उपयोग
कया जाता है। भारत म धरातल य साधन क व वधता के कारण व भ न साधन वारा
संचाई क जाती है। य य प दे श के 40% कृ षत भू म को संचाई सु वधाएँ उपल ध ह
पर तु इसम भी व भ न े म व व धता पायी जाती है। भारत म संचाई के चार मु ख
साधन ह - नहर, कु एँ और नलकू प तथा तालाब। नहर वारा सं चत े 32.2% है
कु ओं वारा 21.4% तालाब वारा 6.5% तथा नलकूप वारा 31.6% तथा अ य
साधन वारा जल का उपयोग बढ़ता गया है सन ् 1950-51 म कु ल संचाई मता 226
लाख है टे यर थी जो माच 1999-2000 म 947 लाख है टे यर हो गई।

82
भारत सरकार ने जल संसाधन के बहु त से उ े य क ाि त हे तु अमे रका क टे नेसी नद
घाट योजना क अपार सफलता से भा वत होकर अनेक नद घाट योजनाएँ तैयार क ह।
मु ख प रयोजनाएँ न न कार है -
1. दामोदर घाट प रयोजना : इसका ल य पि चम बंगाल एवं बहार-झारख ड के
घाट वत े का आ थक वकास करना है। इस प रयोजना के अ तगत 8 बांध,
अवरोध बांध, जल व युत उ पादन के ो के अ त र त बोकारो, च पुरा तथा दुगापुरा
म तीन तापीय व युत गृह तथा लगभग 2500 कमी. ल बी नहर के नमाण का
ल य।
2. भाखड़ा नांगल प रयोजना : भारत क सबसे बड़ी बहु उ ेशीय प रयोजना है। यह
प रयोजना पंजाब, ह रयाणा तथा राज थान सरकार का एक संयु त यास है। यह
प रयोजना सतलज नद पर है।
3. च बल प रयोजना : म य दे श एवं राज थान रा य क सि म लत प रयोजना चंबल
नद पर था पत ह।
4. रह द (गो व द व लभ सागर) प रयोजना : उ तर दे श क सबसे बड़ी प रयोजना है।
5. तु ंगभ ा प रयोजना : तु ंगभ ा नद पर ि थत यह आ ध दे श तथा कनाटक रा य क
सयु ं त प रयोजना है।
6. ह राकु ड प रयोजना : (उड़ीसा) - महानद पर ि थत है।
7. कोसी प रयोजना : बहार - नेपाल सीमा परकोसी पर यह प रयोजना ि थत है।
8. नागाजु न सागर प रयोजना : आ दे श म कृ णा नद पर याि वत क गई है।
इसी कार दे श म अनेक बहु उ ेशीय प रयोजनाएँ दे श के अलग-अलग ह स म जल
संसाधन का उपयोग करने हे तु याि वत क गई ह।

3.4.2 जल संसाधन का उपयोग

जल संसाधन सभी संसाधन का आधार है तथा जल क उपि थ त के कारण अ य


ाकृ तक संसाधन का दोहन एवं संर ण स भव है। यह एक न य करण संसाधन है। जल
ह ऐसा संसाधन है िजसक हमे नय मत आपू त आव यक है।
जल का सवा धक उपयोग 74% संचाई म तथा 18% उ योग म कया जा रहा है। घरे लू
एवं अ य उपयोग म 8% जल ह उपयोग म कया जा रहा है। लोग वारा पृ वी पर
व यमान कु ल शु जल का 10% से कम उपयोग कया जा रहा है। समान प से
व ता रत नह होने के कारण कु छ दे श म भयंकर जल संकट उ प न हो गया है। जल
संसाधन का न न ल खत प म उपयोग कया जाता है-
1. संचाई म उपयोग : जल का सवा धक उपयोग संचाई म कया जाता है व व का
एक - चौथाई भाग ऐसी शु क दशाओं वाला है जो पूणतया संचाई पर नभर ह सी,
तु क तान, पि चम ए शयाई े , म क घाट , यूरोपीय नद बे सन, ला लाटा
बे सन, नाइजी रया, मर -डा लग बे सन आ द। संयु त रा य अमे रका म 25% भू जल

83
संचाई म तथा 75% सतह जल का उपयोग कया जाता है जब क भारत जैसे दे श
म संचाई म भू जल का अ धाधु ध उपयोग संचाई म कया जा रहा है।
2. उ योग म उपयोग : कुल शु जल का 25% भाग उ योग म उपयोग कया जाता
है यह कारण है क अ धकांश उ योग जल ोत के नकट था पत कये जाते ह।
3. घरे लू काय म उपयोग : घरे लू काय , पीने, खाना बनाने, नान, कपड़े धोने, शौच
इ या द म जल क आव यकता होती है। इसके अलावा पौध एवं पशु ओं को दूषण
र हत जल क आव यकता होती है।
4. प रवहन : न दय , नहर तथा झील म ि थत सतह जल संसाधन का उपयोग जल
प रवहन म कया जाता है।
5. जल व युत : जल से व भ प म शि त का उ पादन कया जा रहा है। अ का
म संसार क 23% स भा वत जल शि त ऊजा व यमान है। ले कन वहाँ वक सत
जल शि त केवल 1% ह है। ए शया म संसार क 23% स भा वत जल शि त है,
ले कन वक सत 11% है। इसी कार द ण अमे रका म जल शि त स भा यता
17% है तथा वक सत जल शि त 4% है।
6. मछल उ योग : न दय , झील , तालाब से मछल पकड़ी जाती ह।
7. थल य जल संसाधन से ख नज क ाि त : कु छ व श ट कार के जल से नमक,
पोटाश ख नज ा त होते ह। भारत म राज थान क सांभर झील, पंचभ ा और लू णसा
म नमक का उ पादन होता है।
8. महासागर स भा वत ऊजा के ोत : महासागर म जो पवन के दबाव से लहरे उठती
है और सू य तथा च मा के आकषण वारा वार-भाटे उ प न होते ह। उनका योग
कारखान को चलाने वाल शि त के प म हो सकता है। वै ा नक ने इसके सफल
पर ण कर लए है। भ व य म इस शि त के वकास क अपार स भावनाएँ ह।

3.4.3 जल संसाधन क सम याय (Problems of Water Resources)

जल कृ त क अ य दे न है। क तु बढ़ती हु ई मांग तथा जल संसाधन के वतमान


उपयोग से आने वाले वष म मानव क याण, वकास, जी वका तथा वयं जीवन को भी
खतरा उ प न हो गया है। भ व य म वकास के लए आव यक उपयु त पानी क कमी
हो सकती है। कमी के साथ पानी क गुणव ता को भी तेजी से गर रह है। इन
ि टकोण से जल संसाधन संबध
ं ी सम याएं तीन वग म वभािजत क जा सकती ह,
यथा-1. उपल धता स ब धी सम याएं, 2. उपयोग स ब धी सम याएं, और 3. अवनयन
तथा दूषण क सम याएँ।
1. जल संसाधन क उपल धता (Availability of Water Resources) : पानी का
ाथ मक ोत वषा है। इसका एक भाग जमीन के अ दर जाकर अधोभौ मक जल को
बढ़ाता है, एक भाग वा पीकृ त हो जाता है, बाक बचा भाग सतह जल के प म
बहता है। मोटे तौर पर वषा क मा ा तथा वतरण शु जल क मा ा नधा रत करता

84
है। व व म शु जल क मा ा 1.25 अरब कलोमीटर से 14 अरब कलोमीटर
अनुमा नत है। अत: त यि त त वष औसतन 8696 घनमीटर जल उपयोग
करने के लए उपल ध है। सर 2025 म जल क मांग बढ़ने के साथ यह घट कर
5100 घनमीटर होगी। अत: व व म स पूण मांग के आधार पर जल क कोई भी
कमी नह ं है बशत जल संसाधन का वतरण समान हो।
क तु वषा के वतरण के प रणाम व प सतह जल का वतरण बहु त अ धक असमान
है। वषा का व भ न ऋतु ओं म वतरण भी बहु त अ धक असमान है। वषा क
था नक और का लक वतरण क असमानता के कारण ज टल ाकृ तक वपदाओं क
ि थ त पैदा होना सामा य सी बात है। जैसे क बहु त कम और बहु त अ धक वषा के
े तथा सू खा और बाढ़- त दोन कार के े दे श म एक साथ मलते ह वषा के
इस तरह के े ीय वतरण के कारण जल संसाधन क संभावना कु छ े म अ धक
और अ य म कम है। भारत म ह इसका उदाहरण दे खा जा सकता है। वष भर नमी
क कमी वाले े म राज थान, पि चमी और द णी पंजाब और ह रयाणा का
मैदान, पि चमी गुजरात और पि चमी घाट का वृि ट छाया वाला े मु य ह। इसके
प रणाम व प इन े म म थल य और अ म थल य दशाय मलती है। इन
जलाभाव वाले े म पेय जल और घरे लू उपयोग के जल क कमी होती है। व व
क तीन-चौथाई वषा उन भाग म होती है जहाँ व व क एक-चौथाई ह जनसं या
रहती है। उदाहरण के लए व व के कु ल जल वाह का 20 तशत जल द णी
अमे रका के आमेजन बे सन का है जहाँ एक करोड़ से कम लोग रहते ह। यह ि थ त
अ का के कांगो बे सन का है। ए शया का व व म सवा धक जल वाह है पर तु त
यि त जल क उपल धता 4700 घनमीटर है जब क उ तर अमे रका म त यि त
उपल धता सवा धक 19000 घनमीटर है।
इसी तरह व व के व भ न दे श तथा एक दे श के व भ न भाग म जल के वतरण
तथा उपल धता म बहु त अ तर है। जैसे क भारत म वषा क मा ा के आधार पर
मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है क जल संसाधन म दे श का पूव एक- तहाई
भाग स प न तथा पि चमी एक - तहाई भाग (पि चमी तट और पि चमी घाट को
छोड़कर) वप है। म य के एक- तहाई भाग पर वप नता तथा अ प जल संसाधन
का म त प मलता है। ऋतु गत वषा का वतरण जल पू त को अ धक भा वत
करता है। अ धक वषा वाले े म भी, वषा कु छ ह मह न तक होती है।
प रणाम व प वष के अ धकांश भाग म जल क कमी बनी रहती है। इसी लए
संभा वत जल संसाधन का ववेकपूण उपयोग, संर ण और बंधन क नतांत
आव यकता है। जल क मांग और पू त म संतु लन होने के बावजू द दे श म जल
संसाधन क े ीय व भ नता और ऋतु गत आव यकता गंभीर ि थ त पैदा कर रह है
िजसके लए अ धक यान दे ने क आव यकता है।

85
2. जल संसाधन के उपयोग स ब धी सम याय (Problems related to the
utilization of water Resources) : यह अनुमान लगाया गया है क पीने, सफाई,
नान तथा भोजन पकाने के लए त दन त यि त 50 से 100 ल टर पानी
चा हए। ले कन व व के अनेक दे श म इतना पानी नह ं मलता। यह आव यकता
आ थक वकास के तर, नगर करण तथा औ योगीकरण पर नभर है। मीठे पानी के
तीन मु य उपयोग ह: संचाई, औ यो गक तथा घरे लू उपयोग। इन उपयोग म काफ
त पधा है। वकासशील दे श म कृ ष का उ पादन बढ़ाने के लए अ धकांश पानी का
योग संचाई के लए कया जाता है। पर तु उ योग तथा नगर के बढ़ने के साथ इन
पानी क मांग नगर और उ योग वारा क जाने लगी है। यूरोप तथा संयु त रा य
अमे रका म आधे से अ धक पानी का उपयोग उ योग म कया जाता है। फलत: वहाँ
कृ ष तथा घरे लू उपयोग के लए पानी क सम या रहती है। भारत म वक सत जल
संसाधन का 84 तशत संचाई म योग कया जाता है दे श क कु ल संभा वत
संचाई मता के लगभग 68 तशत का वकास कर लया गया है। फर भी दे श
का दो- तहाई कृ षत े अ सं चत है। हाल के वष म कु ओं और नल कू प वारा
संचाई म कामी अ धक वकास हु आ है। ये साधन अधोभौ मक जल पर आधा रत ह।
इसके प रणाम अधोभो मक जल क कमी तथा जल- तर तेजी से नीचा होने जैसी
सम याएं होने लगी ह। अधोभौ मक जल का बहु त अ धक दोहन एक नई सम या क
ओर संकेत कर रहा है। 10 रा य म वशेषकर पंजाब, ह रयाणा, गुजरात, कनाटक,
महारा , राज थान त मलनाडु और उ तर दे श के 114 िजल को अ धक दोहन वाले
काला िजले घो षत कया गया है। अ का तथा ए शया महा वीप म अनेक ऐसे दे श
ह जहाँ जल क तंगी (stress) तथा अभाव (scarcity) क ि थ त है। इससे
खा या न का उ पादन तो भा वत होता ह है, आ थक वकास कता है तथा
पयावरण का अवनयन होता है।
न दय का पानी पाने के लए व व के कई दे श के बीच म ववाद चल रहा है। यहाँ
तक क एक ह दे श क व भ न रा य के बीच नद जल ववाद का कारण बना है।
भारत का कावेर नद जल ववाद तथा नमदा जल ववाद इसी तरह जल क
त पधा के प रणाम है।
3. जल क गुणव ता स ब धी सम याय (Problems Pertaining to Water Quality)
: जल का दूषण एक मह वपूण सम या है। जल के दूषण का मु य ोत घरे लू
यथ (अप श ट) जल, औ यो गक अप श ट जल और गंदे व क नकासी और खेत
का बहता पानी (वाह) ह। कई वशेष यह दावा करते ह क हमारा तीन-चौथाई
धरातल य जल दू षत है और िजसके 80 तशत भाग को केवल मलजल (ग दा
पानी, Sweage) ने दू षत कया है। इस सम या का अनुमान इसी से लगाया जा
सकता है क भारत जैसे पछड़े दे श म लगभग 1200 करोड़ ल टर त दन यथ
पानी थम ेणी नगर से तथा 130 करोड़ ल टर त दन कए हु ए या तो खु ल

86
जगह पर या फर न दय म छोड़ दया जाता है। गंगा नद को अप व करने वाले
मानव के मैला को सु र त होने तथा न ट करने के साधन का पया त वकास नह
होता तब तक इसी तरह न दय के जल को हम दू षत करते रहे ग।
अ धकांश नगर य ठोस अप श ट पदाथ को खु ले मैदान म ढे र लगा दया जाता है जो
अ तत: समीप के न दय और जलाशय म पहु ंचता है और पानी को दू षत करता है।
शहर े म ि थ त कारखान बड़े पैमाने पर अवां छत पदाथ उ प न करते ह, जैसे
औ यो गक यथ पदाथ, दू षत बहते हु ए जल म मल जाते ह और ये जहर ल त व
जलाशय , न दय और अ य जल य भाग म पहु ंचकर वहां के जैवीय तं को न ट कर
दे ते ह। औ यो गक े से कतना अ धक अप श ट पदाथ नकलता है इसक क पना
करना क ठन है। उदाहरण के लए कानपुर शहर े के लगभग 150 चमड़ा फै
था पत उ योग तथा मैला न दय के जल को दू षत करते ह तथा नद के नचले
े म रहने वाले लोग के लए गंभीर वा य-संबध
ं ी सम याय पैदा करते ह।
कृ ष भी जल को बहु त दू षत कर रह है। जैसे क उ पादन बढ़ाने के पानी, उवरक
और व भ न रसायन पर आधा रत खेती क जाने लगी है। उवरक और रसायन को
शेष बचा हु आ भाग पानी के साथ बह कर जलाशय म पहु ँ चता है िजससे जल दूषण
ार भ होता है। जीव पा रि थ तक तं को खतरा पैदा हो गया है। जल म लगातार
पोषक त व एक त होते जाते ह, िजससे शैवाल जैसी अवांछनीय वन प त तेजी से
बढ़ती है। उवरक एवं क टनाशक खरपतवार नाशक रसायन रसकर कर भू मगत जल
म भी मल जाते ह। इस तरह जल एवं भू म का दूषण का बढ़ता है। फलत: बना
साफ कए सतह तथा भू मगत जल के योग से जीवन एवं वा य को खतरा पैदा
हो गया है। इस कार रसायन आधा रत आधु नक कृ ष जल एवं भू म का दूषण बढ़ा
रह है। अ धक मा ा म रसाय नक खाद तथा रसायन धरातल य एवं भू ग भक जल को
दू षत करते है। ये रसायन जलाशय म पहु ंचकर वहाँ के रसाय नक संगठन म
प रवतन करके जल य तं को भा वत कर दे ते है। कु छ वशेष े म ऐसे दू षत
पदाथ लोराइड तथा आस नक जमा हो जाते ह।

3.4.4 जल संसाधन का संर ण

ऐल के अनुसार ''वतमान पीढ़ के लए याग ह संर ण है।''


वतमान समय म जनसं या वृ , उ योग का तेजी से वकास तथा सं चत भू म के
व तार के कारण जल संसाधन का शोषण ती ग त से बढ़ा है। संसार म जल का त
यि त त दन औसत उपभोग ामीण े म 50 ल टर तथा नगर म 150 ल टर तक
रहता है। वक सत दे श म बड़े नगर म इससे अ धक जल का उपयोग कया जाता है।
उदाहरणाथ मा को म त दन त यि त 600 ल टर जल का योग कया जाता है।
यह अनुमान है क नगर म जल का 85% उ योग वारा उपभोग मे लाया जाता है इस
तरह 15% जल मनु य क दै नक आव यकताओं क पू त के लए बचता है। वतमान म

87
व व क 1/4 जनसं या जल के अभाव म जी रह है। एक अरब लोग के े म पानी है
ले कन आ थक एवं तकनीक कारण से उपभोग के लए उपल ध नह ं है।
संचाई म भी जल क बढ़ती हु ई मा ाओं का योग कया जा रहा है। एक है टे यर के
संचाई म औसतन 12000 से 14000 घन मीटर जल का योग कया जा रहा है। एक
कलो ाम गहू पैदा करने के लए 1000 ल टर पानी क ज रत होती है।
पृ वी पर जल के उपयोग म होने वाल इस ती वृ के कारण नकट भ व य म मानव
को जल क कमी का सामना करना पड़ सकता है। ि थत यह है क व व के कु छ भाग
म जल संसाधन पया त ह, पर तु लोग को उपभोग के लए उपल ध कराना क ठन है।
अ य भाग म जल क माग उपल धता से कह ं अ धक है। फलत: सभी को समु चत जल
उपल ध नह ं है। पुन : सर 2020 तक जल का उपभोग 4070 बढ़ने क संभावना है। अ तु
जल संर ण क बहु त आव यकता है।
जल का उपयोग कसी प म कया जा रहा हो सदै व उसके संर ण एवं बंधन क
आव यकता है। आज इस बात पर वचार करना आव यक है क हमारे पास जल संसाधन
का अ धकतम लाभ के लए कैसे योग कर। जल क मा ा तो ि थर है पर तु उसक
मांग नरं तर बढ़ रह है। अ तु सम या जल क मांग और पू त म संतल
ु न बनाने क ह
अथात ् जल संर ण के लए जहां पू त बढ़ाना आव यक है वह ं जल क मांग को घटाना
भी।
मांग के े म कई उपाय जल संर ण म तु रंत सहायक हो सकते ह। उदाहरण के लए
व व म सवा धक शु जल का उपयोग संचाई म कया जाता है। वतमान म च लत
पानी भरने व ध म आधे से अ धक जल यथ हो जाता है। अ तु संचाई क व धय म
संशोधन करके संचाई जल क मांग कम क जा सकती है। जैसे क प तकनीक से 40
से 60% पानी बचाया जा सकता है। इसी तरह संशो धत ि क
ं लर व ध अपनाकर कम
पानी से अ धक संचाई क जा सकती है। इजराइल म दू षत जल को साफ करके
20,000 हे टर को संचाई क जाती है।
उ योग जल के दूसरे उपभो ता है। वक सत दे श म आधे से अ धक जल का उपयोग
औ यो गक याओं म होता है। तकनीक सु धार के मा यम से इसे भी कम कया जा
सकता है। संयु त रा य अमे रका ने औ यो गक याओं उ नत बना कर सन ् 1950 से
सन ् 1990 के म य औ यो गक जल क मांग एक- तहाई कर ल है। वकासशील दे श म
औ यो गक जल बचाने क अपार संभावना है। जैसे क भारत म 1 टन इ पात बनाने म
23 से 56 घन मीटर पानी का योग कया जाता है जब क सयु त रा य तथा जमनी म
केवल 6 घन मीटर।
इसी तरह नगर म जल दाय क यव था सु धार कर 40% से 70% तक यथ बहने
वाले पानी को बचाया जा सकता है। कम पानी वाले लश शोचालय तथा पानी बचाने
वाले उपकरण का उपयोग कर के जल क मांग कम क जा सकती है।

88
मांग नयं त करने के साथ जल क पू त भी बढ़ानी पड़ेगी। इसके लए वाहशील का
सं ह आव यक है। इसके सं हण से भू मगत जल का तल एवं भंडार बढ़ता है।
जल सं ह क संरचनाएं छोटे और लघु आकार क होने पर सीमा त, छोटे कसान और
ामीण गर ब को उसका लाभ मलता ह। इस हे तु जल संभर (Water shed) उपागम
का योग होने पर वहां के नवासी इस काम म सहभागी बनते ह। वषा-जल एक ण
(Rain Water Harvesting) वारा भी जलापू त बढ़ती है। इसक अनेक पार प रक
व धयां च लत ह। यह सब तभी संभव हो सकता है जब क दे श म एक कृ त जलनी त हो
िजसम जल के सभी कार के उपयोग , समाज क सम त आव यकताओं, उनक
ाथ मकताओं, नुक सान द भाव के नयं ण के उपाय, जल क गुणव ता के नयं ण,
पयावरण एवं मानव के वा य के संर ण आ द क यव था हो।
जल संर ण के उपाय
1. नवीन तकनीक का उपयोग कर जल क उपल धता बढ़ाना, उसे साफ करना तथा
उसक त को कम करना।
2. जल बंधन के लए श त तकनीक तथा शास नक कमचा रय का थानीय से
लेकर रा तर तक थापना।
3. भू मगत जल तथा सतह जल का संयु त उपयोग।
4. जल-संभर उपागम तथा वषा जल एक ण जैसी व धय का उपयोग कर जल संर ण
करना।
5. संचाई क उ नत व धय का योग, संचाई जल क द ता बढ़ना।
6. जल संर ण का बहु उ ेशीय होना।
7. एक नद बे सन से अ य नद बे सन म जल का थाना तरण।
8. उ योगो म कम पानी वाल तकनीक का उपयोग कर उनक मांग घटाना।
9. शहर अप श ट जल को संशो धत कर पुन : उपयोग,
10. नगर नकाय वारा जल वतरण णाल म सुधार कर पानी यथ होने से बचाना।
11. पार प रक जल ोत को पुनज वत कया जाना।
12. जल के दु पयोग पर व धक नयं ण।
जल संर ण के लए यह ज र है क पृ वी पर होने वाल वषा के जल को ा त करके
उसके अपवाह को नय मत कया जाये तथा जलाशय म जल का नि चत भ डारण करके
उससे अ धकतम उपयो गता ा त क जाये। जैसी वषा का जल भू तल पर गरता है, य द
तभी उसक अ धका धक मा ा को भू म के अ दर जाने के लए अनुकू ल दशाएँ ा त
करायी जाये तो इससे जहाँ भू मगत जल क मा ा बढ़े गी, वह वा पीकरण कम होगा और
मृदा म नमी बनी रहे गी।
इस लए भू म पर वृ ारोपण अ त आव यक है, य क वृ क जड़ जल को अवशो षत
करती है, िजससे भू म जल का संचय होता है। इसके अलावा उपयु त उपाय जल संर ण
हे तु आव यक है।

89
3.5 सारांश (Summary)
ाकृ तक संसाधन म म ी एवं जल संसाधन का वश ट थान है। इस इकाई के
अ तगत ाकृ तक संसाधन मृदा एवं जी के व भ न पहलु ओं पर चचा क गई है। पृ वी
तल पर कृ ष उ पादन य प से म ी पर ह आधा रत है व व क लगभग 80%
जनसं या इससे स बि धत यवसाय म लगी हु ई है म ी प र छे दका म सामा य तीन
तर 'अ' 'ब' एवं 'स' होते है। म य क तीन कार म वभािजत कया जाता है -
क टब धीय, क टब धा त रक एवं अपाि वक म याँ।
क टब धीय म य म पेडोकल एवं पेड फर म याँ मु ख है। व व म इनका वतरण
जलवायु एवं वन प त दे श के अनुसार मलता है। इस लए इ हे क टब धीय म ी कहते
है। म ी संसाधन का उपयोग सवा धक कृ ष काय म कया जाता है संसार म 70%
जनसं या न दय क काँप म ी पर आधा रत है। प रवहन एवं पशु चारण म भी इसका
उपयोग कया जाता रहा है। मृदा क सम याओं को दे खते हु ए इसका संर ण अ त
आव यक है तथा द घकाल तक भावी पीढ़ हे तु उ पादन मता म वृ हो सके। इसके
व भ न उपाय है। जल संसाधन: थल य एवं महासागर य प म फैला हु आ है। न दयाँ,
नहर, झील आ द प म थानीय जल तथा लवणीय प म सागर म (97.39%) जल
वत रत है। स पूण जल म डल का 2.6% भाग शु जल के प म पाया जाता है।
शा त महासागर म व व का 46.9%, अटलां टक महासागर म 23.38% तथा ह द
महासागर म 20.87% जल उपि थत है। जल का सवा धक उपयोग 70% सचाई म
कया जाता है जब क 23% जल का ह उपयोग कया जा रहा है।
जनसं या वृ उ योगो का तेजी से वकास, सं चत भू मका व तार, जलसंसाधनो के
अ धक शोषण के कारण जल संर ण अ त आव यक हो गया है। इसके लए जल संर ण
तकनीक को अपनाना आव यक है ता क भावी पीढ के लए याग हो सके।
जल संर ण क तकनीक - जल का पुन वतरण , दूषण से सु र ा भू मगत जल का
ववेकपूण उपयोग, जनसं या नय ण, कृ ष त प म प रवतन, बाढ़ ब धन, उ योग
मे जल क बचत आ द मु ख उपाय जल संर ण हे तु आव यक है।

3.6 श दावल (Glossary)


 ाकृ तक संसाधन : वे संसाधन जो कृ त वारा दान कये जाते है।
 मृदा प र छे दका : पृ वी क ऊपर सतह से नीचे क आधार शैल तक म ी क उ व
काट ह म ी प र छे दका कहलाती है।
 पेडोकल : (Ped+Cal) अथात वह मृदा िजसम कैि शयम (चू ना) क मा ा अ धक
होती है।
 पेड फर : (Ped+AL+Fe) अथात वह मृदा िजसम ए यू म नयम एवं लोहांश क
मा ा अ धक पाई जाती है।
 समो य रे खीय जु ताई : समो य रे खाओं के अनुसार कृ ष काय करना।

90
 मृदा सरं ण : द घ काल न लाभ ा त करने हे त,ु म ी क उवरता तथा अ य त व
म वृ कर उ पादक मता बढाना।
 थल य जल संसाधन : न दयाँ, नहर, झील, नाल , दलदल आ द मे वत रत जल।
 जल च : जल वा पीकृ त होकर वायुम डल म संव धत होकर वषा के प म पुन :
धरातल पर आ जाता है यह म नर तर चलता रहता है।
 झील : जल य भाग जो चार ओर थल से घरा होता है।

3.7 स दभ थ (Reference Books)


1. काशी नाथ संह, जगद श संह : आ थक भू गोल के मूल त व, वसु धरा काशन,
गोरखपुर , 1984
2. राम कुमार गुजर, वी. सी. जाट : संसाधन भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2007
3. एस. डी. कौ शक व अलका गौतम : संसाधन भू गोल, र तोगी पि लकेश स, मेरठ,
2003
4. एस. डी. कौ शक : संसाधन एवं पयावरण, र तोगी पि लकेश स, मेरठ, 2007
5. चतुभु ज मामो रया व एस. सी. जैन : भारत का भू गोल, सा ह य भवन पि लकेश स
आगरा, 2000
6. Kalwar, S.C. and Saini, R.R. : Remote Sensing in Resource
Geography, Pointer Publication, Jaipur, 1992
7. Kalwar, S.C. : Resources and Development, Ritu Publications,
Jaipur, 2003

3.8 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. धरातल पर मलने वाले असंग ठत पदाथ क ऐसी परत जो मू ल च ान व वन प त
अंश के संयोग से बनती है।
2. म ी के मु य घटक ख नज, जै वक पदाथ, जल एवं वायु है।
बोध न - 2
1. पृ वी क ऊपर सतह से नीचे क आधार शैल तक म ी उ व काट ह म ी
प र छो दका कहलाती है।
2. पेड फर म ी म ए यू म नयम एवं लोहांश क अ धकता होती है। जब क पेडोकल म ी
म कैल शयम (चू ना) क मा ा अ धक होती है।
बोध न - 3
1. मृदा संसाधन उपयोग कृ ष काय, पशु पालन वृ ारोपण, फल क कृ ष, प रवहन इ या द
म कया जाता है।
2. म ी अपने थान पर कायम रखना, म ी क उवरता तथा अ य त व क अ भवृ
करे के द घकाल तक उ पादन मता म वृ करना है।

91
3.9 अ यासाथ न
1. ाकृ तक संसाधन मृदा क प रभाषा को प ट क िजए तथा मह व समझाइऐं।
2. मृदा प र छे दका को स च समझाइऐं ?
3. मृदाओं के भेद ल खए ?
4. मृदा संर ण य आव यक ह ?
5. जल संसाधन का वतरण बताइए ?
6. भारत के जल संसाधन का वणन क िजए।
7. जल संसाधन का उपयोग कस- कस े म बढ़ता जा रहा है ? य ?
8. जल संसाधन क सम याओं का ववरण द िजए।

92
इकाई 4 : जै वक संसाधन : वन प त एवं पशु (Biotic
Resources : Vegetation and Animals)
इकाई क परे खा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 जै वक संसाधन
4.3 ाकृ तक वन प त
4.3.1 वन प त के वतरण को भा वत करने वाले कारक
4.4 वन प त के कार एवं वतरण
4.5 वन प त का उपयोग एवं वन प त के उ पाद
4.6 वन प त का संर ण
4.7 पशु संसाधन
4.7.1 पशु संसाधन कार
4.8 पशु संसाधन का वतरण
4.9 पशु संसाधन का उपयोग
4.9.1 आखेट
4.9.2 पशु पालन उ योग (उ योग : दूध , पनीर, मांस का उ पादन का व व
वतरण ऊन- उ पादन का वतरण आकड़े स हत
4.9.3 म य उ योग
4.10 पशु संसाधन का संर ण
4.11 सारांश
4.12 श दावल
4.13 स दभ थ
4.14 बोध न के उ तर
4.15 अ यासाथ न

4.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे क : -
 जै वक संसाधन का मह व
 संसार म वन प त के कार एवं वतरण,
 संसार म वन प त का उपयोग एवं सर ण,
 पशु संसाधन का व व वतरण,
 संसार म पशुसंसाधन के उपयोग,
 पशु संसाधन के संर ण क आव यकता।

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4.1 तावना (Introduction)
इस इकाई म हम आपको जै वक संसाधन (वन प त एवं पशु) के व भ न पहलुओं के
वषय म जानकार दान करगे।
जै वक संसाधन के अ तगत वन प त एवं ज तु जगत को सि म लत कया जाता है। इस
संसार म तीन कार के जीवधार -वन प त, ज तु और मानव के पार प रक योग से ह
तीन का सहअि त व होता है। वन प त के बना संसार म मानव क स ता कायम नह
रह सकती। कसी े क वन प त वहाँ के वातारण क मताओं क सू चक होती है।
वभ न दे श म व भ न कार क वन प त होती है। संसार म चार कार क वन प त
वन, घास के मैदान, म थल य झा डयां और टु ा वन प त पायी जाती है। इसका
वभ न े म उपयोग हो रहा है।
जै वक संसाधन म वन प त के प चात पशु संसाधन का थान आता है। संसार म
वभ न कार के पशु संसाधन का व भ न े म यावसा यक एवं घरे लू उपयोग होता
रहा है। इनके वतरण को नि चत करने वाला अ धक भावकार कारक वन प त है।
ए शया महा वीप म मु यत प से पालतू पशु ओं का मू ल थान रहा है। कु ता, घोड़ा, गाय,
बैल, बकर , भेड़, ऊँट और सू ंअर मनु य वारा पाले गये पशु ओं म मु ख ह। इनका
थाना तरण ए शया से अ का आ द दे श म हु आ। द णी अमे रका के पवतीय दे श म
लामा, अलपाका और वकु ना पालतू बनाये गये थे।

4.2 जै वक संसाधन
जै वक संसाधन के अ तगत वन प त एवं ज तु जगत के संसाधन आते ह। संसार म तीन
कार के जीवधार ह - वन प त, ज तु और मानव। तीन के पार प रक योग से ह तीन
का सह - अि त व होता है।
ाकृ तक वन प त का थल य संसाधन म अ य धक मह व है। वन प त के बना संसार
म मनु य क स ता कायम नह रह सकती। मानव एवं ज तु चलते- फरते जीवधार ह
जब क वन प त अचल जीवधार है। मानव और वन प त का इतना घ न ठ स ब ध है
क मानव को जी वत रहने के लए िजस ाण वायु (आ सीजन) क आव यकता होती है,
वह वन प त से ा त होती है।
मनु य उस आ सीजन के बदले म काबन-डाई आ साइड गैस बाहर नकालता है, पेड़-पौधे
इसे हण करते ह। इस कार मानव और वन प त का पर पर जै वक स ब ध है।
ाकृ तक वन प त एक मह वपूण संसाधन ह नह बि क वातावरण क दशा का य
सू चक भी होती है। कसी ाकृ तक वातावरण का कस कार का उपयोग हो सकता है,
इसका भी अनुमान ाकृ तक वन प त से लगाया जा सकता है।
जीवीय संसाधन के अ तगत पा रि थ तक स तुलन क ि ट से व य पशु ओं का मह व
है। य तः बहु त कम व य पशु मानव के लए आव यक ह, तथा प वे भी पा रि थ तक
स तुलन बनाये रखने म मह वपूण योग दे ते ह।

94
जै वक संसाधन पर मानव का अि त व नभर है। यह भोजन का एक मा ोत है।
भोजन के अ त र त व के लए हम रे शे वाले पौध एवं जीव पर नभर ह। घर बनाने
के लए लक ड़याँ वन से ह मलती है। अ य कई कार क चीज, दवाइयाँ, रं ग,
वन प त तेल आ द जीवीय संसाधन से ह ा त होते ह।
जीवीय संसाधन थल एवं जल दोनो भाग म मलता है। थल य जीवीय संसाधन म
ाकृ तक वन प त एवं व य पशु ओं तथा कृ षगत पौध को सि म लत कया जाता है। इस
अ याय म मु य प से ाकृ तक वन प त का अ ययन कया गया है।

4.3 ाकृ तक वन प त
जीवीय संसाधन म ाकृ तक वन प त का मानव के लए मह वपूण उपयोग है। कसी े
क वन प त वहाँ के वातावरण क मताओं क सू चक होती है तथा उस वातावरण के
उपयोग के स ब ध म जानकार ा त कराती है िजससे मनु य को उस वातावरण के
उपयोग म सहायता मलती है।
पौधे अपनी उपज क दशाओं के सू चक होते ह। वे अपने े क जलवायु, सू म जलवायु,
म ी, भू तल, जल, भू मगत जल और वातावरण के उपयोग व अ य कारक के सू चक होते
ह।
व व क ाकृ तक वन प त म चु र- ादे शक भ नता मलती है। कसी एक दे श म भी
व भ न आकार- कार, व भ न जा त एवं व भ न ऊँचाई वाले पेड़-पौधे होते ह। अत:
कसी छोटे से छोटे भू भाग म भी ाकृ तक वन प त क पूण समानता पाना अ य त
क ठन है।

4.3.1 ाकृ तक वन प त को भा वत करने वाले कारक

वभ न े म वभ न कार क वन प त होती है। वन प त और वातावरण के


स ब ध का अ ययन पादप-पा रि थ तक कहलाता है। येक े क वन प त पर
वातावरण के कारक क मल -जु ल या होती है। िजसम तापमान, वषा क मा ा, धू प,
पनपने क ऋतु, पाला, म ी, भू म के ख नज त व, जल वाह, पवन क तेजी आ द का
भाव रहता है।
पृ वी पर बहु त दूर -दूर ि थत दे श म भी जहाँ-जहाँ एक सी जलवायु, म याँ, भू-
आकृ तयाँ तथा अ य भौ तक कारक है; वहाँ-वहाँ एक सी वन प त पाई जाती है। कनाडा
और साइबे रया के बीच म अटलां टक एवं यूरोप ि थत ह, फर भी दोन दे श म एक-से
शंकुधार वन है। वन प त क उ पि त न न ल खत त व वारा भा वत होती है - (1)
जलवायु, (2) भू-आकृ तक उ चावच, (3) म ी क उवरता (4) अधोभौ मक जल, (5)
जीवीय कारक, (6) तकनीक तर ।
1. जलवायु : वन प त क उ पि त एवं कार पर सबसे अ धक भाव जलवायु का होता
है - (i) तापमान (ii) सू य के काश क मा ा (iii) आ ता एवं वषा क मा ा (iv)

95
आकाश म बादल क आधार (v) पवन के चलने क दशाएँ एवं ग त। वनो के लए
कम से कम 25 सेमी. वा षक वषा या इतनी मा ा म बराबर हमपात आव यक है।
इनम तापमान एवं वषा क मा ा का बहु त अ धक भाव पड़ता है। जहाँ वषा अ धक
होती है वहाँ सदाबहार वन पाए जाते ह। वषा घटने के साथ ह इनके थान पर
पतझड़ वाले वन, झा ड़याँ, घास तथा कंट ल झा ड़याँ उगती ह। इसी तरह तापमान
घटने के साथ चौड़ी प ती वाले वृ के थान पर नुक ल प ती के वृ , कचेन, काई
आ द उगती ह।
2. भू- आकृ त एवं उ चावच : भू-तल क रचना क भाव जल वाह क ग त और
दशा, म ी के कटने एवं जमे रहने, वृ के फैलाव तथा जलवायु दशाओं पर होता
है। समतल भू म क उपे ा उबड़-खाबड़ भू म पर वन प त अ धक पायी जाती है।
3. म ी क उवरता : म ी म रासाय नक त व क मा ा, कण क बार क , संर ता,
आ ता, म ी परत क गहराई वन प त का मु ख आधार होती है।
4. अधो भौ मक जल : वृ क जड़े म ी म पया त गहराई तक जाती है तथा म ी क
नचल परत से खाद पानी लेती ह। ऊपर तल के नीचे के तर म य द जल पया त
है तो वहाँ वन उ प न हो सकते है। जल क कमी के कारण झा ड़याँ और घास
उ प न होती ह।
5. जीवीय संसाधन : जीव-ज तुओं एवं मनु य का भाव होता है। ज तु य द अ धक
मा ा म चराई करने लगते है तो उससे म ी का कटाव होने लगता है। मनु य अपनी
अव यकता क पू त करने के लए वन को न ट करता रहता है। पि चमी और उ तर
भारतीय मैदान से ाकृ तक वन प त के लु त होने का कारण अ य धक मानवीय
यवधान ह है।
6. तकनीक तर : (i) धन के लए लकड़ी के बजाय व युत शि त के उपयोग का
(ii) क चे माल के प म का ठ के नये-नये उपयोग का (iii) लकड़ी के बजाय
लाि टक आ द का अ धक योग कये जाने का। (iv) पादप पा रि थ तक के ान
क वृ और वन व ान क णा लय का भाव वन क रोपाई, कटाई, संर ण
तथा उपयोग पर होता है।
7. भू म य रे खा से दूर : वषुवत रे खा के पास सघन वन पाये जाते ह तथा य- य
हम भूम य रे खा से दूर होते जाते ह य - य ताप एवं पानी क कमी साथ-साथ वन
क गहनता म कमी आती जाती है।

4.4 ाकृ तक वन प त के कार एवं वतरण


ाकृ तक वन प त का वग करण अनुवां शक एवं सामा य वशेषताओं के आधार पर कया
जाता है। व व तर पर पहले वन प त समु दाय का वभाजन कया जाता है, िजसको
पादप साहचय कहते ह। ाकृ तक वन प त के चार मु ख साहचय होते है - (i) वन (ii)

96
घास के मैदान (iii) म थल य झा डयां (iv) टु ा वन प त। इनके उपभेद न न कार
ह-

च 4.1 : संसार के घास- थल, म थल और टु ा वन प त के े । 1. उ ण


क टब धीय थल, 2. म य अ ांशीय या समशीतो ण घास थल, 3. टु ा वन प त, 4.
म य अ ांशीय म थल, 5. उ ण क टब धीय म थल, 6. पवतीय वन प त।
(I) वन (Forest)
1. उ ण क टब धीय वन
(i) वषुवत रे खीय उ ण- आ वन,
(ii) उ ण क टब धीय पणपाती वन,
2. म य अ ांशीय वन
(iii) भू म य सागर य वन तथा सदावण झा डयां
(iv) समशीतो ण पणपाती वन
(v) समशीतो ण म त वन
(vi) शंकुधार वन
(II) घास समु दाय
1. उ ण क टब धीय घास के दे श
2. म य अ ांशीय घास के दे श
(III) म थल एवं अध म थल य वन प त
1. उ ण क टब धीय
2. म य अ ांशीय
(IV) टु ा वन प त (शीत म थल)
(V) पवतीय वन प त

मान च - 4.2 : संसार के मु य वन दे श


I. वन
व व म 387 लाख वग कमी. पर वन का व तार है जो भू तल का 29.7% भाग पर
फैले ह ( च -4.1)। लै टन अमे रका का 47.8% भाग वन से ढका है। यूरोप म भी

97
लगभग 44.6/% भू भाग पर वन फैले ह। दूसर और ए शया (21%), अ का (21.9%)
तथा उ तर अमे रका म भू भाग के एक चौथाई से कम ह से पर वन ह।
1. उ ण क टब धीय वन
(i) वषुवत रे खीय उ ण-आ वन : ये कठोर लकड़ी के सदापण वन ह जो वषुवत
रे खा के 10 ०
उ तर और 10० द णी अ ांश के बीच क पेट म ि थत है।
तापमान वष भर ऊँचा (27०C लगभग) रहता है। वा षक वषा 250 सेमी होती है।
द णी अमे रका का अमेजन बे सन और प. म य अ का म कांगो बे सन, दो
सबसे बड़े े ह। इनके वृ म आबनूस , लौह का ठ, रोजबुड, ताड़, महोगनी,
रबर, ल बा, परानट, तल-ताड़ मु य है। अ धक सघन होने के कारण सू य क
करण धरातल पर नह ं पहु ँ चती ह।
इनक लकड़ी कठोर होती ह। वृ अ य त सघन, पास-पास होते ह। एक साथ
वभ न जा तय के पेड़-पौधे एक साथ पाये जाते ह। यहाँ वृ लगभग 55
मीटर क ं ऊँचाई तक पाये जाते ह। मु य वृ के नीचे अ य छोटे -छोटे वृ तथा
लताऐं पायी जाती ह। ये बहु मंिजले वन होते ह।
(ii) उ ण क टब धीय पणपाती वन : इनम मानसू नी पणपाती, अधपणपाती तथा
झा ड़यां होती ह। िजन भाग म वषा क मा ा 150 सेमी से अ धक होती है
उनम अधपणपाती वन होते ह, जैसे पूव भारत यांमार, थाइलै ड, वयतनाम
आ द म मानसू नी वन े का व तार 120 से 250 अ ांश के म य उ तर
एवं द णी गोला म ि थत या पि चमी वीप समू ह, भारत, द. पूव ए शया,
इ डोने शया, मले शया, अ का, उ. आ े लया, द. ाजील, द. पूव संयु त रा य
अमे रका, फामू त तथा द णी चीन आ द दे श म पाया जाता है।
मानसू नी े के वन शु क ऋतु म अपनी पि तयां गरा दे ते ह। इसी कारण इ ह
पणपाती वन कहते ह। इन वन के वृ म सागौन, साल, बरगद, पीपल, गूलर ,
शीशम, आम, महु आ, जामु न, नीम, मैन ोव, यूके ल टस , पलाश, सैमल, ह दू
मु ख ह।
2. म य अ ांशीय वन
(iii) भू म य सागर वन तथा सदा पण झा ड़याँ : इन वन का व तार 30० से 45०
अ ांश के म य महा वीप के पि चमी भाग म ि थत दे श म पाया जाता है।
इन दे श म शीतऋतु म पछुवा पवन से वषा होती है। भू म यसागर के तटवत
े कै लफो नया रा य, द. अ का का ाय वीप भाग, चल एवं आ े लया के
द. प भाग म ि थत समु तट य े आ द म भू म य सागर य वन प त का
व तार पाया जाता है। वा षक वषा का औसतन 40-65 से मी. के म य रहता
है। इनके मु ख वृ सनोवर, बलू त, ओक, कॉक-ओक, जैतू न, अंजीर और शहतू त
ह। झा डय म चपरे ल या माक मु य ह।

98
(iv) समशीतो ण पणपाती वन : शीतो ण क टब ध के आ दे श म, िजनम
ी मकाल म वषा और शीतकाल म हमपात होता है, वहाँ पणपाती वन ह। इनके
वृ शीतकाल म अपनी पि तयाँ गरा दे ते है।
उ तर यूरोप, जापान, मंचु रया, चीन, द. साइबे रया, हमालय पवत और संयु त
रा य अमे रका म ऐसे वन ह। इनम ओक, मैपल
ु , ऐश, ऐम, अखरोट, बीच,
हकर , तु न, भोजप (बच), बान, मो , हलोज आ द व होते ह।
(v) समशीतो ण म त वन : शीतो ण क टब ध म पणपाती तन, ठ डे े म
म त कार के हो जाते ह इनम कु छ सदापण शंकुधार वृ पाये जाते ह -जैसे
चीड़, कैल, ु आ द। उ तर क ओर ठ डे भाग म धीरे -धीरे ये शंकुधार हो

जाते ह। म त वन म चौड़ी प ती वाले वृ , आ पेम, ऐश, वच, बलो, अ डर
अ धक होते ह।
(vi) शंकुधार वन : इन वन का व तार केवल उ तर गोला म पाया जाता है। शीत
काल म हमपात से र ा के लए इन वृ क पि तयाँ नोकदार सू ई के आकार
क होती ह। इन वृ क पि तयाँ नह गरती ह। उ तर यूरोप , साइबे रया के
टै गा, कनाडा, हमालय, आ पस, रॉक ज तथा एि डज म शंकु धार सदापण वन
है। इनम मु य वृ चीड़, कैल, दे वदार, ु , हैमलॉक, फर,
स स वर, फर,
डगलस फर, लू पाइन, लाच और धु नेर ह।
ये सदापण तथा नरम लकड़ी के वन ह। इनका उपयोग नमाण उ योग म कया
जाता है। इनम झा डयां, लताएं आ द बहु त कम होती ह। इनका आ थक मह व
अ धक है। इनसे ा त गौण उपज म बरोजा, तारपीन का तेल है।
II घास समु दाय
(i) उ ण क टब धीय घास दे श : उ ण क टब धीय दे श म जहाँ वा षक वषा 26 से
75 सेमी. तक होती है, वहाँ घास के मैदान होते है। आ े म घास के साथ-साथ
वृ भी होते ह। इन घास के मैदान को सवाना कहते ह।
सवाना का सवा धक व तार अ का म है। द णी अमे रका म वेनेजु एला, कोलं बया
तथा ाजील का क पोज े भी सवाना घास का े ह। यह घास ल बी होती है।
अ का के सवाना म तो 1.5 से 4.5 मीटर तक ऊँची घास होती है। भारत के तराई
े म हाथी घास 3.6 से 4.5 मीटर तक ल बी होती है। इन दे श म अनेक कार
के क ट-पतंग होते है, जो मनु य और पशु ओं के लए हा नकारक होते ह। सी सी.
म खी, म छर, प सू दाँस आ द क ट बडे क ट द होते ह।
(ii) म य अ ांशीय या समशीतो ण घास के दे श : शीतो ण घास के े का वकास
30० से 45० अ ांश के म य उ. एवं द णी गोला म पाया जाता है। यहाँ वषा
25 सेमी से 75 सेमी. तक तवष होती है। यहाँ क ल बी घास को ेयर तथा
छोट घास को सामा यतया टे पी कहते ह। इनके े ीय नाम है :

99
संयु त रा य अमे रका तथा कनाडा म ेर ज, म य ए शया म टे पीज, द णी
अमे रका म प पास, द णी अ का म वे स, द णी-पूव आ े लया म डाउ स।
इन मैदान म वृ नह ं होते ह। शीतो ण घास क ल बाई 1.3 मीटर तक पायी जाती
है। यहाँ उगने वाल घास गु छे के प म पायी जाती है।
III म थल एवं अध म थल य वन प त : म थल य वन प त े का व तार
महा वीप के पि चमी भाग म 20० से 30० अ ांश के म य दोन गोला म पाया
जाता है। इन े म वा षक वषा 30 सेमी से कम होती है।
(iii) समशीतो ण पेट म 15 सेमी से कम वषा म म थल होते ह। म थल य वन प त
म काँटेदार वृ तथा झा ड़याँ होती ह। अ का म सहारा तथा कालाहार , ए शया म
अरब, थार, सी यांग और मंगो लया, संयु त रा य अमे रका म कोलोरे डो, द णी
अमे रका म पे और पि चमी आ े लया म म थल इतने बड़े ह क ये मलकर
पृ वी के सम त थल े का लगभग 1/5 भाग घेरे ह। इन भाग म कृ ष नह
होती, केवल पशुचारण होता है। नागफनी, सेण श
ु , पो ट, सैकसोल, अके शया,
यूके ल टस आ द मु ख काँटेदार वृ पाये जाते है।
(iv) टु ा वन प त : टु ा वन केवल उ तर गोला के आक टक े म पाये जाते ह
यहाँ ल बी शीत ऋतु के कारण केवल मास, शैवाल, मरकु ल तथा काई आ द क म
क घास पायी जाती है। शीत ऋतु बहु त ल बी (10 मह न तक) होती है। इसम
केवल 2 मह न के समय म बस त एवं गम क ऋतु होती है। उ. पूव साइबे रया के
टु ा म 1 म हने से कम समय म पौध के उगने, बढ़ने, फूल खलने, बीज बनने
और पणपात हो जाने या तु षार से मु रझा जाने का सम त वन प त-च पूण हो जाता
है।
(v) पवतीय वन प त : पवत पर नीचे से ऊँचाई क ओर वन प त म उसी कार
प रवतन होते है िजस कार का प रवतन वषुवत रे खा से ु व क ओर जाने म होता
है।
उ ण क टब धीय पवत तथा उपो ण क टब धीय पवत पर जैसे - हमालय, आ पस,
राक ज तथा एि डज पर 600 मीटर से नीचे के ढाल और घा टय पर उ ण क टब धीय
तथा उपो ण क टब धीय वन होते ह। इसके ऊपर को ण पणपाती वन होते ह। उससे
अ धक ऊँचाई पर सदापण शंकुधार वन खड़े होते ह। अ धक ऊँचे ढाल और पवतीय भाग
पर अ पाइन म थल होते ह, िजनम पवतीय लोग गम क ऋतु म पशु ओं को चराया
करते है।
हमालय म पाद दे श से लेकर ऊपर तक येक कार के वन ह उनके ऊपर चरागाह है;
फर वन प त क अि तम सीमा से 100 मीटर ऊपर हमरे खा आर भ हो जाती है।
बोध न - 1
1. वन प त क उ पि त को भा वत करने वाले कारक कौन-कौन से है ?

100
............................................................ ...........................
............................................................ ...........................
2. ाकृ तक वन प त के मु ख कार बताइऐ ?
............................................................ ............................
............................................................ ............................
3. शं कु धार वन के मु ख वृ के नाम ल खऐ ?
............................................................ ............................
........................................................................................

4.5 वन प त का उपयोग एवं वन प त के उ पाद


ाकृ तक वन प त का उपयोग अनेक कार से कया जाता रहा है। मानव वारा वन प त
का समायोजन य और अ य दो कार का होता है -
1. य उपयोग : (i) वन यवसाय तथा लकड़ी काटना, (ii) पशु चारण, (iii) वनोपज
का एक ीकरण।
2. अ य उपयोग : (i) कृ ष, (ii) औ यो गक (iii) यापा रक उपयोग।
1. य उपयोग
(I) वन यवसाय तथा लकड़ी काटना : वन का सवा धक मह वपूण एवं बडे एवं सु ग ठत
पैमाने पर वक सत उ योग लकड़ी काटने और चीरने (Iumblering) का है। लकड़ी
काटना भार ाथ मक उ योग है।
पृ वी के सम त थल ख ड 30% भाग वन से आ छा दत है और मनु य के जीवन
म वृ तथा का ठ का बहु त बड़ा मह व है। मानव के लए वन उसके जीवन से
स ब है। मानव स यता के आर भ से लकड़ी और वृ का आधार लया था। वह
लकड़ी क सहायता से ह आखेट करता था, वृ के नीचे ह व ाम करता था, वृ
के प त ओर छाल से ह शर र ढकता था। जब मानव स यता के एक चरण आगे
बढ़ा और उसने अि न जलाना सीखा, तब भी लकड़ी से औजार, उपकरण और
प रवहन गा ड़याँ बनाई। आज क स यता म लकड़ी और वृ का मह व पहले क
अपे ा बहु त व तृत एवं मह वपूण हो गया है।
वन से लकड़ी मलती है जो मकान , इमारत , पुल , प रवहन, गा ड़य , नाव , पोत ,
फन चर आ द बनाने के काम आती है। साथ ह लकड़ी का उपयोग क चे माल क
तरह नमाण उ योग म भी होता है। आज भी लकड़ी का सवा धक उपयोग धन के
प म होता है।
व व म सन 2004 म 55.9 अरब घन मीटर लकड़ी का उ पादन हु आ। इसम
औ यो गक लकड़ी, लु गद क लकड़ी तथा राउं डवुड भी शा मल ह। इनके अलावा
जलाऊ लकड़ी तथा ल ा आ द का भी उ पादन होता है। लकड़ी उ पादन म शीतो ण
क टब ध के दे श मु य ह, य क यहाँ क मुलायम लकड़ी उ तम क म क मानी
जाती है। इनम संयु त रा य अमे रका सबसे आगे है (ता लका-4.1) दूसरे थान पर
101
कनाडा है। दोन मलकर व व क एक-चौथाई से अ धक (26.6%) लकड़ी उ पादन
करते ह। शीतो ण क टब ध के अ य मु ख उ पादक स, चीन, वीडन, फनलड,
जमनी, ांस, चल , पोलड ह। ाजील, भारत, इ डोने शया उ ण क टब धीय मु ख
लकड़ी उ पादक दे श ह।
वन से काट गई लकड़ी के व भ न उपयोग
वन से कठोर तथा नरम सभी कार क लकड़ी काट जाती है। उनके मु य उपयोग
न न कार है -
(i) धन क तरह लकड़ी का योग 40%
(ii) इमारती काय म, भवन नमाण, पुल नमाण, पोत, नाव, रे वे ल पर, रे ल
के ड बे, मोटर, क और बस क बा डयाँ सामान पैक करने के ब से और
पे टय , फन चर इ या द म उपयोग 40%।
(iii) क चे माल क तरह नम लकड़ी का कागज क लु गद , कागज, दयासलाई,
रे यान, लाि टक आ द का नमाण उ योग म उपयोग 10%।
(iv) खान क छत को गरने से बचने के लए ख भे, बि लयाँ, सी ढ़याँ तथा
अ य फुटकर उपयोग 10%।
ता लका – 4.1 : वन से लकड़ी का उ पादन, 2004
दे श उ पादन* तशत
(दस लाख घन मीटर म)
सं. रा. अमे रका 1044 18.7
कनाडा 439 7.9
चीन 388 6.9
स 370 6.6
ाजील 363 6.5
भारत 343 6.1
वीडन 154 2.8
इ डोने शया 145 2.6
फनलै ड 128 2.3
जमनी 116 2.1
चल 85 1.5
ांस 78 1.4
पोलै ड 76 1.4
द णी अ का 69 1.2
आ े लया 67 1.2

102
व व 5585 100.0
ोत : एफ. ए. ओ. टे टि टकल इयरबुक 2005.
इसम औ यो गक लकड़ी, लु गद क लकड़ी तथा राउ ड वुड सि म लत है।
*

लकड़ी काटने और चीरने के लए न न आव यक सु वधाएँ होनी चा हए िजनसे यह


यवसाय वक सत होता है।
(i) आव यक वृ का मलना।
(ii) स ते और यो य मक।
(iii) स ता प रवहन।
(iv) जल व युत शि त।
(v) माँग के बाजार क समीपता।
(II) पशु चारण : घास के मैदान एवं म थल म पशु चारण अपने पालतू पशु ओं के
झु ड के लए घूमते रहते ह। एक चारागाह म चारा समा त होने पर वे एक-दूसरे
चारागाह म चले जाते ह। ये लोग पशु ओं से भोजन के लए दूध तथा माँस ा त
करते ह, व और त बू के लए ऊन तथा बाल ा त करते ह।
उ ण क टब धीय घास थल अथात ् सवाना, लानोज, के पोज और वी स लै ड म
चराये जाने वाले मु य पशु गाय, भसे, भेड़-बक रयाँ ह। म थल म ऊँट मु ख है।
पि चमी अ का म मौ रटो नया से लेकर सहारा म थल तक और अरब म घुम तू
पशु चारक वग रहते ह।
समशीतो ण घास- दे श : यूरोप व ए शया म टे पीज, उ तर अमे रका म ेयर ज,
द णी अमे रका के प पास, द णी अ का के वै स तथा द. आ े लया के
डाऊ स म पशु चारण होता है। यहाँ पशु पालन दो कार का होता है - घुम तू
पशु पालन और यापा रक पशु पालन। घुम तू पशुचारण केवल म य ए शया म होता।
टु ा े एवं आक टक महासागर के तटवत े म रे न डयर रख बारह संगा पशु ओं
को चराया जाता है।
पवतीय े - हमालय, आ पस, रॉक ज, ए डीज और त बत म गाये, बक रयाँ,
भेड़, याक, जीबू और ख चर चराये जाते है।
पशु चारण यवसाय संसार म भूम य रे खा से लेकर आक टकवृ त तक होता है। यहाँ
वातावरण के अनुसार पशु चारण कया जाता है।
(III) आखेट तथा पशुचारण : जीवन नवाह के लए वन म आखेट करना और मछल
पकड़ना, ये दोन ह मनु य के ाचीन यवसाय ह।
पृ वी पर कु छ ऐसे े ह जो बरल आबाद ह, उनम जीवन नवाह के लए आखेट
काय करना भरण-पोषण का मह वपूण साधन है।
(i) साइबे रया क उ तर पेट के टु ा एवं टै गा म नवास करने वाले लोग
सैमोथेड, औ तयाक, तु ंग,ु याकू त, यंका गर, च ची आ द।

103
(ii) कनाडा के टु ा दे श क एि कम तथा अला का क अमेजन-इि डयन आ दम
जा तयाँ।
(iii) अ का के कांगो बे सन म नवास करने वाले पगमी लोग।
(iv) अमेजन बे सन क अमे र ड आ दम जा तयां जैसे िजवार , यागुवा आ द।
(v) कालाहार म थल (द.प. अ का) क आ दम जा त बुशमेन।
(vi) मलाया के वन म रहने वाले सेमांग और सकाई लोग।
(vii) बो नय क पुभन जा त तथा यू गनी के पापु आनलामी।
(viii) उ तर आ े लया क आ दम जा तयां।
इन लोग का जीवन चलवासी होता है। कृ त के अ धक स पक म रहने के कारण
सू झ-बूझ एवं द ता पायी जाती है। आखेटक के ज तु ओं का उपयोग भोजन के लए
माँस, खाल से व बनाने, नवास का त बू और नाव मढ़ने के काम आता है।
ह डय के औजार, खाल के बोरे आ द बनाए जाते है।
(IV) वनोपज का एक ीकरण : एक ीकरण यवसाय दो तरह से कया जाता है -
(i) जीवन नवाह
(ii) यापा रक।
जीवन नवाह के लए एक ीकरण उन े म होता है िजनम व ान एवं
टे नोलॉजी का वकास नह ं हु आ है। यापार के लए एक ीकरण उन े म होता
है िजनम व ान एवं टे नोलॉजी का वकास अ छा हु आ है।
जीवन नवाह के लए एक ीकरण म पाँच कार के पदाथ आते ह -
(i) भोजन के लए क द, मू ल, फल, जंगल शहद, पु प इ या द एक त
करना।
(ii) भोजन क छाल, पि तय एवं घास व के लए इक ा करना।
(iii) धन, लकडी घरे लू आव यकताओं हे तु एक त करना।
(iv) झ पड़ी / नवास बनाने हे तु बांस, वृ क शाखाएं, लकड़ी, घास इ या द।
(v) औष धयाँ एवं जड़ी-बू टयाँ एक त करना।
एक ीकरण का यवसाय उ ण क टब धीय एवं शीतो ण क टब धीय दोन कार के
वन से कया जाता है। उ ण क टब धीय वन से एक त मु य पदाथ ह -फल,
ग द, लाख, चमशोधक पदाथ, पि तयाँ, रबर और बलाटा, च कल, गर दार फल,
औष धयां, रे शो के पदाथ आ द।
समशीतो ण क टब धीय एवं उपो ण क टब धीय वन से एक त मु य पदाथ है-
चमशोधक पदाथ, रे िजन और तारपीन। बैरेजे का योग कागज एवं ग ता बनाने म
कया जाता है।
वन से सीधे उपयोगी व तु एँ तो मलती ह है, परो प से उनसे अनेक लाभ ह
जैसे जलवायु क कठोरता को कम करना, बाढ़ तथा भू म के कटाव को रोकना,

104
असं य जीव को आ य दे ना, पयावरण को संतु लत बनाए रखना आ द अ य
लाभ ह।
2. अ य उपयोग
(i) कृ ष उपयोग समायोजन : थाना तर / भू मका कृ ष काय कया जाता है। बहु त
से जंगल क आ दम जा तयां वन को जला कर भू म को साफ करके कृ ष काय
करती है दो चार वष तक कृ ष करने के प चात ् उस भू म को छोड़ दया जाता है
तथा दूसरे जंगल जला कर राख यु त भू म पर मोटे अनाज क खेती क जाती
है। इसे ह थाना तर कृ ष कहते ह। भारत म इसे झू मंग कृ ष कहा जाता है।
(ii) औ यो गक उपयोग : वन से ा त लकड़ी एवं अ य व तु ओं से संसार म अनेक
कार के उ योग -जैसे कागज, लु गद , रे यन, दयासलाई, रबर, पे ट, वा नस,
लाख, फन चर, क था, के बनेट, लाईबुड आ द वन के उ पादन पर आधा रत है।
जंगल से ा त घास , छाल , रे श , फल , जड़ और झा डय से अनेक कार के
औ यो गक नमाण हो रहे ह।
भारत म कनाटक रा य का भ ावती आयन व स तथा स म यूराल े के कु छ
कारखाने ार भ म वनो क लकड़ी व धन से चलते थे। टे न म भी ख नज
कोयले का योग मालू म होने से पूव लोहे को गलाने के लए लकड़ी का धन के
काम म लाते थे।
(iii) यापा रक उपयोग : वन से ा त लकड़ी, साम ी से अ तदशीय एवं अ तरा य
यापार बड़ी मा ा म होता है। मलाया एवं इ डोने शया से रबर, यूरोपीय दे श , सं.
रा य अमे रका, कनाडा, आ े लया आ द को नयात क जाती है। यांमार से
सागौन, उ णक टब धीय वन क कठोर लकड़ी, मानसू नी वन से लाख, क था,
चमेद का रं ग, बांस, घास आ द अ शु क वन से ग द, छाल इ या द पदाथ का
नयात होता है।
बोध न - 2
1. ाकृ तक वन प त का य उपयोग ल खऐ
............................................................ ........................
........................................................... .........................
2. थाना तर कृ ष कसे कहते ह ?
.............................................. ......................................
........................................................... .........................
3. प पास एवं सवाना म अ तर बताइए ?
.......................................................... ..........................
.......................................................... ..........................

105
4.6 वन प त का संर ण
वन प त को दु पयोग एवं त से बचाने के लए इसका संर ण आव यक है। व तु त:
वन के फसल के प मे मानना मानव का धम हो गया ह वनो से लकड़ी काटने के साथ-
साथ वहाँ वृ ारोपण / वनरोपण करना एवं वन संर ण करना आव यक है। वन संर ण से
वन-स पदा अ ु ण बनी रहती है तथा उससे सतत ् अ धका धक लाभ ा त होते रहते ह।
ाचीन काल म पृ वी के तीन-चौथाई भाग वना छा दत था जब आ द मानव घु मकड
जीवन यतीत करते हु ए पूण प से वन पर आ त था। पशुचारण एवं कृ ष वकास के
साथ ह वनो मू लन को ग त मल तथा यु तर पर वनो को साफ कर अ धका धक
कृ ष भू म ा त क जाने लगी। वष 1860 के दशक म औ यो गक ाि त के उपरा त
वनो मू लन क ग त ओर बढ़ तथा नर तर ती हास आर भ हो गया। 12वीं सद के
थम दशक म स पूण पृ वी के 70% भू भाग वना छा दत था जो वतमान समय म 30%
रह गया है। व व खा य एवं कृ ष संगठन का अनुमान है क त वष 17 करोड़ हे टर
के वन न ट कए जा रहे ह। व व बक का अनुमान 1.7 करोड़ से 2.0 करोड़ हे टर तक
है। वकासशील दे श म वन के न ट होने क वतमान दर 1.0 से 1.5% त वष हो गई
है।
ता लका- 4.2 : व व म े वार वन के अ तगत घटता े फल, 1990 से 2000 तक
( े फल करोड़ हे टर म)
े े फल वनो के अ तगत े
1990 2000 % 1990-1990 के
म य % प रवतन
अ का 296.3 70.2 65.0 21.9 -7.5
ए शया एवं शा त 346.3 73.4 72.6 21.0 -1.0
यू रोप 235.9 104.2 105.1 44.6 0.9
लै टन अमे रका 201.8 101.1 96.4 47.8 -4.6
उ तर अमे रका 183.8 46.7 47.0 25.6 0.7
पि चमी ए शया 37.2 0.4 0.4 1.0 2.8
व व 1301.4 396 386.6 29.7 -2.4

ोत : एफ. ए. ओ टे टि टकल इयरबुक 2004


भारत म आ थक वकास के दौर एवं जनसं या वृ के साथ वनो मू लन का काय तेज हो
गया। वगत चार दशक म भारत क 50 लाख है टे यर भू म वन र हत हु ई है। वतमान
समय (सन ् 2003- 04) म 6.97 लाख वग क मी. े वना छा दत है जो कु ल े है
जो कु ल तवे दत े का 22.8% ह। जब क सु दरू संवेदन (Remote sensing) से
ा त सू चनाओं के अनुसार कु ल े के मा 14% भाग पर ह वन है। ये वन भी
पवतीय रख दुगम पठार े म बचे ह। मैदानी भाग लगभग वन- वह न है।

106
वनो मू लन के मु ख कारण ह - कृ ष काय, वनो का चारागाह म प रवतन, नमाण काय
के लए वन वनाश, घरे लू एवं यापा रक उ े य, ख नज खनन, वनाि न, जीवीय कारक
वारा वन वनाश।
वनो मू लन से पयावरण पर भाव पड़ा है, जलवायु पर तकू ल, बाढ़ो क पुनरावृि त , जल
संसाधन का मा ा पर भाव, मृदा अपरदन म वृ , जैव व वधता का ास आ द।
वन संर ण क व धयां : पृ वी तल पर कसी भी राजनी तक दे श के लए वन स पदा
का संर ण आव यक ह अत: सामा यतया वन प त संर ण के लए न न उपाय अपनाये
जा सकते ह-
1. वन क पोषणीय सीमा तक कटाई।
2. वनाि न से सु र ा।
3. वन का हा नकारक क ट से र ण।
4. चयना मक क ट से र ण।
5. धन के वैकि पक ोत अपनाये जाये।
6. घरे लू उपयोग ये इमारती लकड़ी के थान पर वैकि पक व तु ओं का उपयोग कया
जाये।
7. पुन : वनीकरण को यवि थत व ध से वक सत कया जाये।
8. वन के लाभ -हा न के वषय म जन जागृ त / चेतना फैलाई जाये।
9. रा य, अ तरा य वन नी त के अनु प वन वकास कया जाये।
10. वन संर ण से स बि धत नयम का कठोरता से पालन कया जाये।
11. सामािजक वा नक व कृ ष वा नक जैसी योजनाओं को ो साहन दया जाये।

4.7 पशु संसाधन


जीवीय संसाधन के अ तगत वन प त के उपरा त पशु संसाधन का थान आता है। पशु ओं
म व य एवं पालतू दो कार ह। पा रि थ तक स तु लन क ि ट से व य पशु ओं का
मह व है। य : बहु त कम व य पशु मानव के लए लाभदायक ह; तथा प वे भी
पा रि थ तक स तुलन बनाये रखने म मह वपूण योग दे ते ह। व य पशु एवं वन प त म
साहचय मलता है।
वन प त क अपे ा ज तु ( ाणी) अ धक े ठ ह, य क वे चलते- फरते ह और अपनी
इ छा के अनुसार इधर-उधर जाते ह।
संसार म सम त मानव जनसं या का सबसे बड़ा आ थक साधन पशु धन है। य य प
वतमान वै ा नक एवं टै नोलोजीकल उ न त के युग म कल-कारखान , य , मशीनर ,
प रवहन, यान , रे लगा ड़य , जलपोत और संचार म डल के नमाण के लए शि त के
संसाधन और ख नज संसाधन का मह व दन- त दन बढ़ता जा रहा है; फर भी पशु
संसाधन का मह व तथा वा षक उ पादन का मू य ख नज संसाधन क अपे ा आज भी

107
अ धक है। मानव जीवन म भोजन, व , प रवहन और सं कृ त के साथ पशु ओं का गहरा
स बंध था पत हो चु का है।
मनु य पशु ओं को पालने का काम, वशेषकर गाय, बकर , भेड़ और घोड़ को (पालना) नव
पाषाण युग म ह आर भ कर दया था। बाद म भस, सु अर, ऊँट और हाथी पालन भी
शु हो गया था। कु ता तो बहु त आ दम काल से ह वामी भ त साथी हो गया था।
इसके साथ ह मु ग-मु गय और शहद क मि खय तथा रे शम बनाने वाले क ट को भी
पाला जाता रहा है।

4.7.1 पशु संसाधन कार

सामा य प से दो कार के पशु संसाधन संसार म पाये जाते है - (i) पालतू एवं (ii)
व य पशु / पालतू पशु मानव के लए उपयोगी एवं लाभ दायक होते ह -उदाहरणाथ कु ता,
गाय, भस, बकर , भेड़, इ या द। व य पशु ओं क वशेषताओं एवं नवास थान को
भा वत करने वाला सबसे मह वपूण कारक उनके लए भोजन क उपल धता है। इस लए
व य पशु ओं का वग करण भी उनके आहार के अनुसार कया जाता है। जो पशु केवल
अ य पशु ओं का मांस खाकर रहते ह उ हे मांसाहार कहते ह। जो पशु मांस तथा घास
दोनो खाते है उ हे सवभ ी कहते ह।
ज तु ओं के दो मु य वग मलते है (1) र ढ़ क ह डी वाले ज तु तथा (2) बना र ड क
ह डी वाले ज तु । मानव का काय स ब ध मु यत: र ढ़ वाले ज तु ओं से ह होता है।
अकेशे क ( बना र ढ़) जीव भी ाकृ तक स तु लन को बनाये रखने के लए कृ त म
आव यक माने जाते है; पर तु उनसे मनु य के नवास एवं काय म बहु त सी बाधाय होती
ह।
कशे क ज तु : र ढ़ वाले ज तु ओं क मु यत: पाँच े णयाँ है -
(i) म य
(ii) उभयचर : जो जल एवं थल दोनो पर रह सकते है, जैसे मेढक
(iii) सर सृप जो रग कर चलते ह,
(iv) प ी,
(v) तनपायी, इनक जा तयाँ चौपाये पशु तथा वानर है। ाणी व ान क ि ट से
मनु य भी एक तनपायी ाणी है। मनु य के योग म आने वाले ज तु ओं क
सबसे बडी सं या चौपाये पशु ओं क है।
अकशे क ज तु : बना र ढ़ वाले जीवधा रय म क ट पतंग,े जल म रहने वाले घ घे,
पेज, मू ंगा, केचु ए,ं तारा मछल , मकड़ी, जोक, मोल क, कानखजू र,े चपटकृ म इ या द।
क ट पतंग म असं य जा तयाँ होती है जैसी चींट , म खी, डाँस, ततल , ट डी इ या द।
इनका भाव मानव जीवन पर िजतना अ धक होता है, उस पर सामा यत: यान नह
दया जाता। अकशे क ज तु ओं म समु जीव, मधु म खी, रे शम के कृ म, लाख का

108
कृ म, कचु आ आ द केवल कु छ ज तु ओं का योग मानव ने अपने लाभ के लए कया है,
शेष मनु य के जीवन म भार बाधाएँ उ प न करते ह।

4.8 पशु संसाधन का वतरण


संसार म ज तु ओं (पशु ओ)ं के वतरण को नि चत करने वाला सबसे अ धक भावकार
कारक वन प त है जो वयं जलवायु, म ी, भू आकृ त और जल- वाह से नयं त होती
है।
भोजन या चारे ाि त क सु वधानुसार शाकाहार एवं मांसाहार ज तु मलते ह। चूँ क घास
के मैदान एवं वनो म घास एवं पि तयाँ खाने वाले पशु होते ह, इस लए इ ह दे श म
उन शाक -भ य को खाने वाले माँस भ ी-भे ड़ये, चीते, शेर इ या द होते ह।
क ड़े-मकोड़ एवं न न तर के ज तु ओं का वतरण े सी मत है। उदाहरण के लए
सी.सी. म खी केवल उ ण क टब ध म वशेषकर अ का म होती है। ट डी दल घास के
मैदान म होते है। मू ँगे केवल उ ण क टब धीय महासागर म होते ह। मछल ु वीय े
म, सामन, हे रंग मछ लयाँ समशीतो ण पेट म सागर म होती ह।
ए शया महा वीप पालतू पशु ओं का मूल थान रहा है। मनु य वारा पाले गये पशु ओं म
कु ता, घोड़ा, गाय, बैल, बकर , भेड़, ऊँट और सु अर मु य ह। इनम कु ता, घोड़ा, ऊँट,
गाय एवं बैल आ द थाना तरण वारा ए शया से अ का आ द को चले गये थे। ाचीन
युग म पूव साइबे रया और उ तर अमे रका पर पर बै रंग थल सेतु के वारा जु ड़े हु ए थे।
द णी अमे रका के पवतीय दे श म लामा, अलपाका और वकु ना पालतू बनाये गये।
अत: पशु ओं का व व वतरण न न कार है।
1. वन के ज तु (Forest Animals)
2. घास थल के ज तु (Grassland Animals)
3. म थल के ज तु (Desert Animal)
4. टु ा के ज तु (Tundra Animals)
1. वनो के ज तु : उ ण क टब धीय, मानसू नी और उपो ण क टब धीय वनो म थल पर
रहने वाल चौपाये सबसे अ धक होते ह। हाथी, गडा, िजराफ, हरन, भसा, भे ड़या,
लोमड़ी, खरगोश, सेह, जंगल सु अर, चींट खोर, लक ब गा, जंगल बलाव, नीलगाय,
जंगल भेड़, जेबरा, तदुआ, चीता, गुराल शेर आ द बहु त कार के तृप भ ी और
मांसाहार पशु होते है।
वषुवतरे खीय सघन वनो म वृ पर रहने वाले ज तु ओं का, जैसे, वानर, छपकल ,
प ी, सप और क ट पतंग का सा ा य है। न दय म घ ड़याल, मगरम छ और
ह पौपोटे मस (द रयाई घोड़ा) जैसे बड़े जलचर मलते ह।
समशीतो ण पण पाती वनो म हरण, ऐ क, मू स, भे डयाँ, बीवर, लोमड़ी, खरगोश,
जंगल बलाव, सेह, र छ, चीता आ द मलते ह। टै गा वनो म हरण, कै रबो, ऐ कमस

109
और समू र वाले जानवर जैसे, बीवर, कं क, औटर, मारटे न, एरमाइन, कंक, लोमडी,
लं स, फशर, भे डया, भालू आ द होते है।
2. घास थल के ज तु : घास थल म-जीवन नवाह करने वाले पशु जेबरा, ि ग

बांक, गजैल,े बसन, जंगल चौ, नीलगाय, वृष हरण, खरगोश आ द शाकाहार पशु
होते ह और इनका भ ण करने वाले तदुआ, शेर, चीता, वन बलाव आ द मांसाहार
ज तु मलते ह। जरख, गीदड़ और ग प ी छोटे मांस भ ी होते ह।
3. म थल के ज तु : कम वन प त होने के कारण ज तुओं क सं या भी कम होती है।
वहाँ गजैले (ऊंचे हरण), खरगोश, लोम ड़याँ, छपकल , सप आ द बना पाले हु ए जंगल
पशु होते ह। ऊंट, घोड़े, गधे, भेड़,बकर पालतू पशु होते ह।
4. टु ा के ज तु : यहाँ भी कम वन प त पायी जाती है। टु ा मे मु क, ऑ स, कै रबो,
हरण तथा सफ़ेद भालू और कु ते होते ह। समु मे सील और वालरास मलती है।
बोध न -3
1. पालतू पशु ओं के नाम ल खए ?
............................................................ .........................
............................................................. ........................
2. जं तु ओं के दो मु ख वग कौन से ह ?
............................................................ .........................
........................................ .............................................
3. पालतू पशु ओं का मू ल थान बताइये ?
............................................................................... .......
............................................................ ..........................

4.9 पशु संसाधन का उपयोग


पशु ओं का मानव व भ न कार से उपयोग करता है। जी वत से लेकर मृत पशु मानव के
उपयोग मे आते ह, इनसे भोजन, व बनाने के रे शे तथा खाल, आ म या त बू, बनाने
क साम ी, बतन, थैले आ द ा त होते ह। मनु य पशुओं को समान धोने, सवार करने,
कृ ष एवं उ योग मे योग करता है। मानव के वारा पशु संसाधन के उपयोग के मु य
पहलू ह- (i) आखेट, (ii) फाँसना, (iii) पशु पालन तथा (iv) म य उ योग।

4.9.1 आखेट

1. आखेट: मानव स यता के आ दकाल से मनु य पशु ओं का आखेट करता रहा है।
ार भ मे मानव ने व य पशु ओं से वयं क र ा के लए उनको मारना सीखा था।
इसके उपरांत माँस, समूर और खाल ा त करने के लए आखेट करता रहा है।
लाख ज तु त दन मारे जाते ह। इस कारण व य जीव क सं या बहु त कम हो
गयी है।

110
2. फाँसना (Trapping) : शंकु धार वन मे समू र वाले जंतओ
ु ं को फंसाया जाता है।
कनाडा संयु त रा य अमर का, उ तर स और साइबे रया मे यह धंधा बड़ी मा
मे होता है। इसके उ े य ह-
(a) भोजन ाि त दूध एवं दूध का सामान, माँस ाि त,
(b) व के लए रे शे : भेड़, अलपाका, ऊन भेड़ और बकर से तथा बाल
पशमीने रे श,े अ य पशु ओं से बाल, काल न, चटाई, र से,
(c) कृ ष काय म हल जोतने, संचाई आ द म बैल, ऊँट, घोड़ा आ द,
(d) सामान ढोने म बैल, ऊँट, गधा, ख चर, याक, लामा, हाथी आ द,
(e) पहरे दार के लए कु ता,
(f) सौ दय वृ हे तु रं गीन प ी,

4.9.2 पशु पालन उ योग

यवसाय के प से मु यत: दूध उ पादन अथात ् डेर फा मग, मांस और ऊन उ पादन


जाता है।
1. डेर फा मग या डेर उ योग : ाचीन काल से ह भारत, चीन, म य ए शया,
स, म य अमे रका, और अ का के सवाना दे श म दूध के लए पशु पाले
जाते रहे ह। अत: पशु ओं को पालने म सवा धक यान दूध के पशु ओं के वकास
म और दूध शालाओं के नमाण म दया जा रहा है।
डेर उ योग के लए न न ल खत दशाएँ होना आव यक है- डेर उ योग क
मु य पशु गाये ह; जलवायु, बाजार क समीपता, छोटे -छोटे फाम, उ तम
प रवहन, पर ण एवं आ व कार, वष भर दूध क स लाई को ि थर रखना।
व व म दु ध उ योग के दे श : वष 2003 म व व म 234 लाख दुधा पशु
थे, िजसम से 82.2 लाख ए शया महा वीप म, 47.7 लाख यूरोप , 44 लाख
अ का, 33.4 लाख द णी अमे रका तथा 20.9 लाख उ तर अमे रका म थे।
इसी वष व व म 60 करोड़ टन दूध, 171 लाख टन पनीर, 80 लाख टन
म ख़न - घी तथा 40 लाख टन संघ नत दूध का उ पादन हु आ। यापा रक डेर
फा मक करने वाले यूरोप के दे श म स, जमनी, ांस, नीदरलै ड, डेनमाक,
बेि जयम, टे न, आयरलै ड, ि व जरलै ड, यू े न, इटल आ द मु य ह। इनसे
बाहर पूव संयु त रा य अमे रका, द ण पूव कनाडा, द ण पूव आ े लया
और यूजीलै ड भी डेर उ योग म बड़े हु ए ह।
इनके अलावा द ण अमे रका म अज टाइना, ाजील, कोलं बया, और द ण
अ का म भी दु ध उ योग होता है।
ए शया के सघन जनसं या के दे श म चीन, भारत, जापान और पा क तान म
केवल नगर के आस-पास के गाँव म ह यापा रक तर पर दूध उ प न कया

111
जाता है। भारत म व व के सवा धक जानवर ह और व व म सवा धक दूध का
उ पादन (सन ् 2004-05 म 9.1 करोड़ टन) भी होता है; पर तु डेर फा मग के
प म नह ं। पछले तीन दशक म भारत म वेत ाि त आई है। इस काल म
सहकार े म गुजरात क आन द जैसी डेर था पत क गई ह।
डेर पदाथ के व व बाजार ये दूध, म खन पनीर का यापार कया जाता है ।
डेनमाक ने म खन बनाने म वशेषीकरण कया है। इसी कार नीदरलै ड तथा
ि व जरलै ड का पनीर अपने वाद और उ तमता के लए स है।
2. मांस उ योग : माँस उ योग शीत क टब ध के दे श म बहु त वक सत है। शीत
धान दे श का मु य भोजन माँस है जब क उ ण क टब धीय े म वाद के
लए अ प मा ा म योग कया जाता है।
संयु त रा य अमे रका, कनाडा, चीन, पूव सो संघ, यूरोपीय दे श आ द म इसक
खपत सवा धक है। द. पूव ए शया म इसका बहु त कम योग होता है। इसके
लए ाय: वे ह भौगो लक दशाएँ अनुकू ल होती ह जो दु ध यवसाय के लए
आव यक ह।
व व म माँस के पशु गाय, सु अर, भेड़, बकर ह। ार भ म यह उ योग थानीय
था ले कन आजकल वै ा नक व धय के कारण यह बहु त वक सत हो गया है ।
इस उ योग का वकास मु य प से सं रा य अमे रका, द अमे रका, आ े लया
म हु आ है। अज टाइना व व का मु ख माँस उ पादक एवं नयातक दे श है।
चीन, स, संयु त रा य अमे रका, ा स, जमनी, ाजील, जापान तथा टे न
मु ख मांस उ पादक दे श ह।
मांस के अ त र त इनके शर र से अ य पदाथ भी बनाये जाते ह, जैसे कंघे,
ह डय से बटन, बाल से ु , चाकुओं के द ते इ या द।

व व म संयु त रा य अमे रका सबसे अ धक गौ मांस का उ पादन करता है।
शकागो व व व यात मांस क म डी है जहाँ 2.5 लाख पशु त दन काटे जाते
ह।
भेड़ मांस नयात करने वाले दे श म यूजीलै ड थम है। सम त व व का 50%
भेड़ मांस व मेमने नयात करता है। सु अर का माँस चीनी जनता का य भोजन
है। सु अर पालन सवा धक चीन म होता है। यहाँ व व के 6% से अ धक सु अर
पाले जाते है। संयु त रा य अमे रका क म का क पेट म सु अर अ धक पाले
जाते ह।
3. ऊन का उ पादन : य य प व नमाण के लए भेड़, बकर , अलपका, लामा,
चकूणा आ द के बाल योग कये जाते है; पर तु ऊन भेड़ के बालो को ह कहते
ह। ऊन क तीन मु य क म ह - (1) मे रनो ऊन, (2) ाँस े ऊन और (3)

कापट ऊन। भेड़ शीतो ण क टब ध के अ शु क और शु क भाग का पशु है। यह
वषम धरातल और कठोर जलवायु म भी पनप सकती ह। अपने जबड़े क बनावट

112
के कारण यह छोट से छोट घास भी खा सकती है। व व म 179 करोड़ (सन ्
2003 म) भेड़-बक रयाँ ह। सवा धक सं या चीन म 32 करोड़ तथा भारत म 18
करोड़ है। साथ ह आ े लया (10 करोड़), सू डान (8.7), ईरान (8), पा क तान
(7.7) और नाइजी रया म इनक सं या बहु त अ धक है। यूजीलै ड, द ण
अ का, टे न, बां लादे श, टक , पेन, ाजील आ द म भेड़ पाल जाती है।
सन ् 2006 म व व म 2194 हजार टन ऊन उ प न कया गया। व व का एक
चौथाई (23.77%) ऊन आ े लया म पैदा कया जाता है। चीन (18%) तथा
यूजीलै ड (10%) भी बड़े ऊन उ पादक ह। इनके अलावा ईरान, टे न,
अज टाइना, टक , सू डान भारत, और द ण अ का म भी ऊन उ पादन
उ लेखनीय है।

4.9.3 म य उ योग

मछल पकड़ने का ध धा बहु त ाचीन है और आज भी व व भर म च लत है। तालाब


और पोखर से लेकर झील, नद -नाले और समु तक म मछ लयाँ पकड़ी जाती ह। मछल
पकड़ने के दो कार के े ह - एक मीठे पानी के जलाशय तथा दूसरे , समु । व व म
वतमान समय म पकड़ी जाने वाल कु ल मछ लय म से 16% ह मीठे पानी के जलाशय
से पकड़ी जाती ह और शेष 84% समु मछ लयाँ होती ह। मीठे पानी के जलाशय से
पकड़ी जाने वाल मछ लय म तीन-चौथाई स स हत ए शया महा वीप से ा त होती है।
इसके बाद अ का और उ तर अमे रका का थान है।
उ ण क टब धीय े के समु म अपे ाकृ त कम मछल पकड़ी जाती ह, य क यहाँ
मछल ाि त क अनुकू ल दशाएँ नह ं पायी जाती ह। उ ण क टब ध म जल म ऊ व ग त
नह ं होती और सतह जल गम बना रहता है। फलत: लकटन कम होते ह जो मछ लय
का मु य भोजन है। बैि टर या से भी इ ह हा न होती है।
शीतो ण क टब धीय दे श म अनुकू ल दशाएँ : इन भाग म भौ तक, आ थक और
सां कृ तक दशाएँ अनुकूल होने के कारण यापा रक ि टकोण से अ धकांश मछ लयाँ
पकड़ी जाती ह। इसके न न ल खत कारण ह : -
1. समु तट कटे फटे ह, इस लए मछ लय को पकड़ने क सु वधा एवं सु र त
ब दरगाह पाये जाते ह। प. यूरोप, टे न, जापान, उ तर अमे रका आ द शीतो ण
क टब ध म ि थत दे श म यह सु वधा उपल ध है।
2. ठ डी जलवायु ाकृ तक शीत भ डार क सु वधा दान करते ह। इससे मछ लयाँ
सड़ती नह ं ह।
3. इन े म ठ डी एवं गम धाराएँ मलती ह जहाँ मछल का भोजन लकटन
जीव बहु तायत मा ा म मलता है। इन े म छछले समु क अ धकता है।
4. कृ ष यो य भू म क कमी के कारण मनु य का झु काव समु क ओर होता है।

113
5. इन दे श क मछ लय वा द ट एवं पौि टक होती है तथा बड़ी मा ा म मलती
है।
6. इन दे श के र त- रवाज रख धम मछल खाने म बाधक नह ं होते ह अत:
खपत अ धक है।
7. नकटवत वन े से नाव बनाने के लए लकड़ी पया त मा ा म उपल ध हो
जाती है।
8. शीतो ण दे श म अ धकतर दे श स य एवं वक सत होने के कारण वै ा नक
उपकरण से मछ लयाँ पकड़ी जाती है। मछ लय को खाने के अ त र त दवाइयाँ,
तेल एवं व भ न कार क व तु एँ बनती ह।
संसार म मछल भी भोजन के मु य खा य पदाथ म है। संसार म खा य पदाथ हे तु
काम म आने वाले ज तु ओं म 3% मछल का भाग होता है। नाव, जापान, यू
फाउ डलै ड और आइसलै ड म तो 10% खा य पदाथ मछल से ा त होता है।
व व म मछल पकडने के मु ख े न न है ;-
1. उ तर पूव शा त महासागर य तट य े : यह बे रंग जलडम से लेकर द ण म
कै लफो नया तक व तृत है। सैमन, हे रंग, काँड, पलकाड एवं हैल वेट आ द है। यहाँ
से ड ब म भरकर मछ लयाँ नयात कर द जाती है।
2. उ तर पि चमी अटलां टक तट य अमे रक े : यह े यूफाऊलै ड तट से उ तर
अमे रका के पूव तट के सहारे -सहारे कैरोल ना तक व तृत है। इसी े मे ांड बक
नाम का स े शा मल है। इस े कं मु ख मछ लयां काँड, हैडक, मैकरे ल,
हे क, हैल वेट आ द।
3. उ तर -पि चमी यूरोपीय े : यह े उ तर अ तर प से द ण से िज ा टर तक
व तृत है। इसी े म स मछल े डागर बक ि थत है। इस े म लगभग
15% है रंग, 35% कांड तथा 12% हैडक मछ लयाँ पकड़ी जाती है। मु य उ पादक
नाव, पेन, टे न, डेनमाक, जमनी, नीदरलै ड तथा ांस है।
4. उ तर पि चमी शा त तट य े : इस भाग म व व म सवा धक मछ लयाँ पकड़ी
जाती ह। यहाँ व तृत महा वीपीय नम न तट ह तथा जापान एवं यूरो सवो धाराएँ
मलती ह। अत: मछ लय को पया त भोजन मलता है। यह े ताइवान से लेकर
उ तर म पूव साइबे रया तक व तृत है। चीन, जापान, को रया और स वारा इस
े म मछ लयाँ पकड़ी जाती ह।
व व के मु ख उ पादक दे श : व व म सागर य तथा आ त रक जल य े म सन ्
1998 म कुल 865.5 म क टन मछल का उ पादन हु आ। इसका 19.9% उ पादन
केवल चीन म हु आ। चीन के उपरा त जापान, संयु त रा य अमे रका स, द. को रया,
भारत, थाइलै ड, नाव, आ द मु ख म य उ पादक रा है। संसार के मु ख म य
उ पादक दे श को भौगो लक वतरण ता लका - 4.3 म तु त है : -

114
ता लका - 4.3 : व व के बीस मु ख दे श म म य उ पादन क गत

व व का कु ल उ पादन व व का % उ पादन व व का %
दे श 1960 (लाख टन) 2004
चीन _ 489 35.2
पे _ 96.4 6.9
भारत 2.5 60.9 4.4
इंडोने शया 1.9 58.6 4.2
चल 4.1 56.1 4.0
सं. रा य अमे रका 7.0 55.7 4.0
जापान 8.8 51.8 3.7
थाईलड _ 40.2 2.9
नाव 39 31.6 2.3
वयतनाम _ 30.9 2.2
स 7.0 30.5 2.2
फल पाइ स 1.2 27.2 2.0
बां लादे श _ 21.0 1.5
यांमार _ 19.9 1.4
द ण को रया 1.2 19.8 1.4
आइस लै ड 1.5 17.4 1.2
मैि सको 0.5 15.4 1.11
मलाया _ 15.1 1.1
कनाडा 2.3 13.2 0.9
पेन 2.4 11.7 0.8
ोत : एफ. ए. ओ. टे टि टकल इयरबुक 2004
ता लका- 4.3 से प ट है क चीन व व का सबसे बड़ा मछल पकड़ने वाला दे श है जहाँ
व व क एक- तहाई से अ धक (35.2%) मछ लयाँ पकड़ी गई। दूसरा थान द णी
अमे रका मे ि थत पे (6.9%) का है जो द णपूव शा त महासागर य े का मु य
मछल पकड़े का दे श है। भारत तीसरे थान है। भारत के समक ह इ डोने शया, चल
(द णी अमे रका) तथा संयु त रा य अमे रका है। अ य बड़े म य उ पादक दे श म
जापान, थाईलै ड, नाव, वयतनाम, स और फल पाइ स ह। (मान च -4.2)

115
मान च - 4.3 : व व के मु ख समु म यो पादन े एवं म य उ पादन
भारत म भी मछल पकड़ने का यवसाय काफ बढ़ा है। यहाँ सन ् 1950-51 म केवल
7.52 लाख टन मछ लयाँ पकड़ी गई थी। यह मा ा बढ़ कर सन ् 2002-03 म 62 लाख
टन से अ धक हो गई। इस तरह आठ गुना से अ धक वृ हु ई है। दे श म सबसे अ धक
मछल पि चम बंगाल (दे श क 18.1%) म पकड़ी जाती ह। इसके बाद आ दे श
(13.3%), गुजरात (12.5%), केरल (10.9%), महारा (8.3%) तथा त मलनाडु
(7.6%) बड़े मछल उ पादक रा य ह।
ता लका- 4.4 : भारत म मछल उ पादन क वृि त (उ पादन लाख टन म)
वष समु मछल थल य मछल कु ल उ पादन
1950-51 5.34 2.18 7.52
1970-71 10.86 6.70 17.56
1990-91 23.00 15.36 36.36
2000-01 28.11 28.45 56.56
2002-02 29.90 32.10 62.00
ोत: भारत सरकार – ए क चर टे ट स ऐट ए लांस, 2001

4.10 पशु संसाधन का संर ण


पशु संसाधन संर ण से ता पय भ व य के उपयोग के लए पशु ओं सु र त करना है।
बढ़ती हु ई जनसं या के कारण अपनी माँग पू त हे तु पशु संसाधन का उपयोग बढ़ता जा
रहा है। व य एवं पालतू पशु ओं क सं या म कमी आती जा रह है िजससे पयावरण
संकट उ प न हो गया है। पा रि थ तक स तुलन गड़बड़ाने लगा है। इस लए ववेकपूण
योग आव यक है ता क वे द घकाल तक ा त होते रहे। व व म भारतीय व य जीव
व वधता पूण है। व य जीव न केवल पयटन तथा आ थक याओं का स तु लन बनाते है
अ पतु जैव व वधता के प रर ण म भी मह वपूण योगदान दे ते ह। रं ग बरं गे प ी, ज तु
तथा जीवन के अ य प पा रि थ तक स तु लन के प रर ण म मह वपूण ह। वनो के
वनाश से व य जीवन भी न ट होता है। इसी कार वन एवं व य जीव का संर ण भी
साथ-साथ चलता है। रा य उ यान तथा व य जीव अ यारण क थापना से व य
जीव का संर ण होता है। अनेक दे श ने पशु-प य को मारने पर कानूनी तब ध
लगाए ह। भारत म भी संह, बाघ, हरण, चीतल, मोर, इि डयन ब टाड आ द के आखेट

116
पर तब ध लगाया गया है। फर भी अनेक जा तयाँ वलोप हो चुक ह, अनेक जीव
जा तयां संकट म ह। अत: संर ण अ नवाय हो गया है। अथात इस कार उपयोग कया
जाये क वतमान पशु संसाधन का अ धका धक समय तक उपयोग कया जा सके।
संर ण यि त एवं समय के साथ प रवतनशील है।
बोध न -4
1. व व का मु ख मां स उ पादक दे श कौन सा है ?
............................................................ ........................
................................................................... .................
2. सवा धक मछल कौनसे दे श म पकड़ी जाती है ?
...................................... ..............................................
................................................................ ....................
3. मानव वारा पशु सं साधन के मु ख उपयोग बताइए ?
............................................................ ........................
................................................................. ...................
4. शकागो कसके लए स है ?
...........................................................................................
................................................................ .....................

4.11 सारांश (Summary)


जै वक संसाधन म वन प त एवं पशु संसाधन आते ह। थल य संसाधन म ाकृ तक
वन प त का अ धक मह व है। यह एक मह व पूव संसाधन ह नह बि क ाकृ तक
वातावरण का सू चक भी है। संसार म ाकृ तक वन प त के चार साहचय पाये जाते है -
(1) वन, घास, म थल य झा ड़यां एवं टु ा वन प त। इनके अनेक उपभेद ह िजनम
वभ न कार के वृ पाये जाते ह। उ ण क टब धीय घास के मैदान म सवाना मु ख
है, वह शीतो ण क टब धीय घास के मैदान म ेर ज, प पास, टे पीज एवं वे स मु ख
ह। वन प त का उपयोग वन यवसाय, पशुचारण , आखेट एवं एक ीकरण तथा कृ ष,
उ योग एवं यापा रक े म कया जाता है। धन म 40%, इमारती काय म 40%,
क चे माल के प म 10% तथा अ य म 10% उपयोग कया जाता है। इसका संर ण
आव यक है, य क 19वीं शता द म 70% भाग पर वन थे जो वतमान म पृ वी के
30% भू-भाग पर ह रह गये ह।
जै वक संसाधन म ाकृ तक वन प त के उपरा त पशु संसाधन का थान आता है। पशु
दो कार के ह पालतू एवं व य पशु । भोजन क ाि त के आधार पर शाकाहार एवं
मांसाहार दो कार के पशु पाये जाते है। ए शया महा वीप पालतू पशु ओं का मू ल थान
है। पशु ओं का व व वतरण वन , घास थल , म थल एवं टु ा के आधार पर कया
गया है।

117
4.12 श दावल (Glossary)
 वन : वृ एवं झा डय से आवृ त बड़े भू भाग को वन कहते ह।
 सवाना : उ ण क टब धीय घास के मैदान अ का के सू डान दे श म सवाना कहलाते
ह।
 ेर ज : संयु त रा य अमे रका म शीतो ण क टब धीय घास के मैदान ेर ज कहलाते
ह।
 प पास : अज टाइना (द. अमे रका) म शीतो ण क टब धीय घास के मैदान।
 ल ब रंग : लकड़ी काटने एवं चीरने का यवसाय।
 थाना तर कृ ष : वनो को जला कर साफ करके दो तीन वष कृ ष करने के बाद
थान बदल कर पुन : जंगल जला कर कृ ष काय करना।
 टु ा : शीत दे श वाला े (कनाडा एवं साइबे रया का उ तर े )।
 डेर : दु ध पर आधा रत यवसाय।

4.13 स दभ थ (Reference Books)


1. डा. काशी नाथ संह, जगद श संह : ''आ थक भू गोल के मूल त व'' वसु धरा काशन,
गोरखपुर , 1984
2. डा. आर. के. गुजर, वी.सी. जाट : ''संसाधन भू गोल'', पंचशील काशन, जयपुर ,
2007
3. डा.एस.डी. कौ शक, अलका गौतम : ''संसाधन भू गोल'', र तोगी पि लकेश स, मेरठ,
2003
4. डा. चतु भज
ु मामो रया, एस.सी.जैन : ''भारत का भू गोल'', सा ह य भवन पि लकेश स,
आगरा, 2000

4.14 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. जलवायु, भू-आकृ तक उ चावच, म ी क उवरता, जीवीय कारक, अ यौभौ मक जल,
तकनीक तर।
2. वन, घास के मैदान, म थल य झा डयां, टु ा वन प त
3. चीड़, कैल, दे वदार, ू , हैमलॉक, फर, लू पाइन आ द।

बोध न- 2
1. वन यवसाय तथा लकड़ी काटना, पशु चारण, आखेट एवं एक ीकरण
2. वनो को जला कर साफ कर दो-तीन वष तक कृ ष काय कया जाता है उसके प चात
अ य थान के वन क जलाकर मोटे अनाज क ं कृ ष क जाती है। इस थाना तर
कृ ष कहा जाता है।

118
3. प पास शीतो ण क टब धीय घास के मैदान है जब क सवाना उ ण क टब धीय घास
के मैदान।
बोध न- 3
1. गाय, बैल, बकर , भस, कु ता, घोड़ा, भेड़, ऊँट इ या द।
2. (i) र ढ़ क ह डी वाले (ii) बना र ढ़ क ह डी वाले ज तु ।
3. ए शया महा वीप
बोध न- 4
1. अज टाइना,
2. चीन
3. आखेट, फाँसना, पशु पालन, म य उ योग
4. मांस म डी

4.15 अ यासाथ न
1. वन प तय के वतरण को भा वत करने वाले कारक का वणन क िजए ?
2. शीतो ण क टब धीय घास के मैदान एवं उ ण क टब धीय घास के मैदान म अ तर
प ट क िजए ?
3. वषुवत रे खीय उ ण-आ वन क वशेषताएं बताइए।
4. व व म लकड़ी काटने के उ योग का वणन क िजये।
5. न न पर ट पणी ल खए : (i) आखेट (ii) एक ीकरण
6. पशु संसाधन का मानव के लए उपयोग क व तृत या या क िजए।
7. व व म म य उ योग के े का वणन क िजए।
8. जै वक संसाधन के सरं ण क आव यकता को समझाइए।
9. कन कारण से समु म त उ पादन म य अ ांशीय समु म केि त ह ?

119
इकाई 5 : ख नज संसाधन (Mineral Resources)
इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 मु ख ख नज के कार
5.2.1 लौह अय क
5.2.2 मैगनीज
5.2.3 अ क
5.2.4 तांबा
5.3 सारांश
5.4 श दावल
5.5 संदभ ध
5.6 बोध न के उ तर
5.7 अ यासाथ न

5.0 उ े य (Objective)
इस इकाई के अ ययन करने के उपरा त आप व व के ख नज संसाधन के बारे म समझ
सकगे :-
 व व के व भ न भाग म पाये जाने वाले ख नज के वतरण एवं उ पादन के बारे म
जानकार ा त कर सकगे।
 ख नज संसाधन के उपयोग तथा संर ण के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
 अ तरा य यापार एवं वा ण य के बारे म जानकार ा त कर सकगे।

5.1 तावना (Introduction)


सामा य श द म सभी पदाथ जो खनन (Mining) वारा ा त कए जाते ह, ख नज
कहलाते ह। ख नज संसाधन भू गभ से नकाले जाने वाले मु ख ाकृ तक पदाथ होते ह जो
भौ तक एवं रासाय नक सहयोग से बनते ह। मनु य, पशु-प य एवं वन प तय सभी क
संरचना म ख नज त व का समावेश होता ह। पृ वी पर पाई जाने वाल सभी च ान
ख नज से बनी ह। अ धकांश ख नज अजैव (Inorganic) संसाधन होते ह क तु कोयला,
पे ो लयम जैसे कु छ ख नज जैव (Organic) संसाधन ह।
ख नज पदाथ संसार के सबसे अ धक मू यवान संसाधन म से एक है। ाचीन युग से
लेकर आज के तकनीक एवं वै ा नक युग म भी ख नज का योग कसी ने कसी प
से हु आ है। सु ई से लेकर भार मशीन एवं वभ न कार के औजार के नमाण म
ख नज संसाधन का मह वपूण थान ह।

120
आधु नक नमाण उ योग म ख नज का आधारभू त मह व है। यह अन त उ योग को
क चा माल दे ता है। उ योग मशीन पर आधा रत होते ह। इन मशीन के लए ऊजा
ख नज - धन से मलती है। वयं मशीन ख नज से ा त धातुओं क बनी होती ह।
ख नज के बना कसी भी आ थक या-उ योग, प रवहन एवं संचार, कृ ष तथा ख नज
उ खनन संभव नह ं है। अ तु धन तथा अ य ख नज आधु नक उ योग के आधार ह।

5.2 मु ख ख नज के कार
मु य प से ख नज को भौ तक एवं रासाय नक गुण के आधार. पर तीन वग म
वभािजत कया जा सकता ह।
1. धाि वक ख नज (Metallic Minerals) - लोहा, तांबा, मगनीज, सीसा, ज ता,
रांगा, सोना, चांद , बॉ साइट, टन, बॉ साइट आ द।
2. अधाि वक ख नज (Non-metallic Minerals) - ह रा, प ना, नमक, अ क,
ग धक, ेफाइट, चू ना, िज सम आ द।
3. ख नज धन (Mineral Fuels) - कोयला, पे ो लयम, ाकृ तक गैस, यूरे नयम ,
थो रयम आ द।

5.2.1 लौह अय क

लोहा एक धाि वक ख नज है। यह कृ त म शु प से नह ं पाया जाता, बि क अय क


या यौ गक के प म मलता है। लोहा आधु नक स यता का तीक है। लोहा आज के
वै ा नक युग क धुर है। इस धातु का उपयोग मु य प से सभी े म कया जाता
है। आधु नक औ यो गक अथ यव था म मशीन के प म यातायात के व भ न साधन ,
कृ ष यं , मकान , नमाण, कारखान के ढांच,े राकेट, पनडु बी, अ -श , गोला-बा द
का नमाण लौह धातु से कया जाता है। लौह अय क भी उपयो गता इसी समय से
न ववाद है क वतमान युग को 'लौहयुग' के नाम से जाना जाता है।
लौह अय क के कार
लौह अय क म उपि थत रासाय नक पदाथ के कारण इसे चार भाग म वभािजत कया
जाता ह।
1. मै नेटाइट (Magnetic, Fe3o4) - इसके अ तगत लोहांश क मा ा 60-70% तक
पाई जाती है। इसका रं ग काला होता है। इसे आ नेय अथवा काया त रत च ान क
दरार अथवा शराओं से ा त कया जाता है। इस लोहा धातु म बैने डयम, ो मयम
तथा टाइटे नयम के अंश भी पाए जाते ह। इसम लोहे के साथ आ सीजन क मा ा के
म ण के कारण चु बक य गुण भी पाया जाता है। आक टक वीडन के क ना व
शलावेयर, लाइबे रया तथा मैि टगो क म उ तम मै नेटाइट लोहा मलता है।
2. हे मेटाइट (Hematite, Fe2o2) - इसम लोहे का अंश 50-65 तशत तक होता है।
इसका रं ग लाल और पूरे क थई रं ग के समान होता है। यह ाय: अवसाद शैल म

121
पाया जाता है। इसम लौह धातु ठोस कण अथवा चू ण म पाई जाती ह। संयु त रा य
अमे रका, स, टे न, कनाडा, ाजील एवं भारत म हे मेटाइट के जमाव मलते ह।
3. लमोनाइट (Limonite, 2Fe2o3H2o) - इसके अ तगत लोहा का अंश पचास
तशत होता है। इसका रं ग कु छ पीलापन लए पूरा होता है। यह भी अवसाद शैल
म मलता ह। इसके अ तगत लोहा, ऑ सीजन तथा हाइ ोजन का म ण होता है।
इसक खु दाई आसान होती है। ा स तथा टे न इसके मु ख उ पादक दे श ह।
4. सडेराइट (siderite, Fe Co3) - इसके अ तगत लोहा का अंश क मा ा 20 से
तीस तशत पाई जाती है। यह धातु लोहे और काबन के म ण से बनी होती है।
इसका रं ग राख जैसा होता है। इं लै ड, ा स, ल मबग इसके मु ख उ पादक दे श
ह।
व व म लोहे के सं चत भ डार
व व म उ च एवं न न को ट के लौह अय क का भ डार लगभग 370 अरब टन आका
गया है। लौह अय क का लगभग 25 तशत भाग पि चमी यूरोप एवं उ तर अमे रका
म, 25 तशत भाग स एवं पूव यूरोपीय दे श म, 20 तशत द णी अमे रक दे श म
एवं शेष 20 तशत द णी पूव एवं पूव ए शया के दे श म पाया जाता है।
व व म लौह अय क वतरण एवं उ पादक दे श
सन ् 1948 म व व म कु ल लौह अय क का उ पादन 10.35 करोड़ टन था जो बढ़कर
1990 म 5870 करोड़ टन हो गया। सन 1998 म व व म 104.50 करोड़ टन तथा
सन 2005 म 154 करोड़ टन लौह अय क का उ पादन हु आ है। वतमान म चीन
सवा धक लौह अय क उ पादन करने वाला दे श बन गया है। इसके उपरा त मश:
ाजील, आ े लया, भारत, स, संयु त रा य अमे रका, यू े न , कनाडा, द णी अ का
तथा वीडन आते ह।
ता लका- 5.1 : व व के मु ख दे श म लौह अय क का उ पादन
. सं. दे श उ पादन व व का %
(लाख टन मे)
* व व 15400 100.0

1. चीन 4200 27.3

2. ाजील 2814 18.3


3. आ े लया 2619 17.0
4. भारत 1400 9.1
5. स 968 6.3
6. यू े न 686 4.5
7. संयु त रा य अमे रका 543 3.5

8. द ण अ का 395 2.6

122
9. कनाडा 304 2.0

10. वीडन 233 1.5


11. वेनेजु एला 200 1.3
12. ईरान 190 1.2
13. कजा क तान 165 1.1
14. मैि सको 117 0.8

15. मा ता नया 117 0.8

16. अ य 107 0.7


ोत: यू. एस. योलाजीकल सव – मनरल कमो डट समर ज़, जनवर , 2008 (इंटरनेट )

1. चीन: वतमान समय म लौह अय क के उ पादन म चीन का व व म थम थान


है। चीन म लौह धातु का उ पादन 1992 म लगभग 19.4 करोड़ टन से बढ़कर सन ्
2005 म चीन म 42 करोड़ टन हो गया जो व व का 27.3% है। चीन म पाए
जाने वाले लौह अय क म धातु का अंश लगभग 35 तशत पाया जाता है। चीन म
लौह धातु का उ पादन 1960 के बाद व व के अ य दे श क तु लना म अ य धक
ती ग त से हु आ है। चीन के मु ख लौह उ पादक े न न ह-
(i) द णी मंचू रया- द ण मंचू रया चीन का मु ख लौह अय क का उ पादक
े है। यहां चीन के कु ल सं चत भ डार का 50 तशत पाया जाता है।
द ण मंचू रया के मु ख लौह उ पादक दे श अशांन, चांग लग तथा पक ,
शेनयान, मु कदे न े मु ख ह
(ii) अ य े - द णी मंचू रया के अ त र त चीन के मुख लौह उ पादक े
हैनान वीप, शातु ंग अ त रप, हगझाऊ, शा शी, होपेह, तापेह तथा चांग-िजयांग
घाट े आद मु ख ह।
2. ाजील : ाजील द ण अमे रका महा वीप का मु ख लौह उ पादक दे श है। यह
व व के कु ल उ पादन का 18.3 तशत है। ाजील वतमान समय म लौह उ पादन
क ि ट से व व का दूसरा मु ख लौह उ पादक दे श है।
ाजील का मनास गेरास मु ख लौह उ पादक रा य है। सं चत भ डार क ि ट से
भी यह रा य ाजील का मु ख रा य है। इस रा य का माउ ट इता बरा े मु ख
लौह उ पादक े है जहां ाजील के लौह उ पादन का अ धकांश ा त होता है।
ाजील म काराजोस एवं इि डयन जमाव े मु ख ह, जो अमेजन क सहायक िजंग
नद के पूव म ि थत है तथा साओ लु इस ब दरगाह तक रे ल माग से जु ड़े ह।
तकनीक एवं औ यो गक वकास क कमी के कारण ाजील अपने उ पादन का
अ धकांश भाग नयात कर दे ता है।
3. आ े लया- कुल व व उ पादन का आ े लया से 17.0 तशत लौह अय क का
उ पादन होता है। द णी आ े लया एवं यू साउथ वे स से लौह अय क ा त कया

123
जाता है। यहाँ आयरन नॉब े एवं पि चमी आ े लया का नाइनट माइल बीच े
मु ख उ पादक है। आ े लया म पलबारा, माउं ट गो डसवद , माउं ट टॉम ाइस,
माउं ट यूमैन , टै लो रंग, कु लानुका आ द उ पादक े ह।
4. भारत: लौह उ पादक म भारत व व म चौथे थान पर है। यहाँ उ चको ट के लौह
अय क के पया त भ डार है। अ धकतर भ डार हे मेटाइट और मै नेटाइट ेणी के ह।
लौह अय क के कु ल प रल य भ डार हैमेटाइट 10.05 अरब टन तथा मै नेटाइट 3.4
अरब टन। हैमेटाइट अय क मु यत: झारख ड, छ तीसगढ़, उड़ीसा तथा कनाटक म
पाया जाता है। आ दे श, झारख ड, गोवा, केरल, त मलनाडु तथा कनाटक म
मै नेटाइट अय क के भ डार ह।
ता लका : 5.2 : भारत म लौह उ पादक रा य
.सं. रा य उ पादन दे श के कु ल
(हजार टन मे) उ पादन का तशत
1 कनाटक 21,857 26.22
2 छ तीसगढ़ 18,081 21.69
3 उड़ीसा 16,208 19.44
4 गोवा 13.641 16.36
5 झारखंड 13053 15.66
6 अ य 527 0.63
योग 83,637 100.00
(i) कनाटक : यह रा य भारत का लगभग एक चौथाई लोहा पैदा करता है। यहाँ
बे लार िजले के बे लार , हा पेट और सु दरू े म लौह अय क क खान
ह। चकमगलूर िजले के मह तपूण उ पादक बाबाबूदन , कालाहांडी तथा
केमनगुडी ह। च दुग, शमोगा, धारवाड़ तथा टु मकु र अ य उ पादक िजले ह।
(ii) छ तीसगढ़ : यह दूसरा बड़ा उ पादक रा य है, जहां पर भारत का बीस
तशत से अ धक लौह अय क पैदा कया जाता है। दांतेवाडा िजले का
बैल डला तथा दुग िजले के ड ल व राजहरा मु ख उ पादक है। यहां का
अ धकांश लोहा वशाखाप तनम प तन वारा जापान को नयात कया जाता
है।
(iii) उड़ीसा : यहां भारत का 19 तशत से अ धक लौह अय क पैदा कया जाता
है। उड़ीसा क मु ख खान ह - गु म हशानी, सलईपत, बादाम पहाड़,
मयूरभंज, क रबु , मेघाहटबु , बोनाई।
(iv) गोवा : गोवा म लोहे का उ पादन दे र से शु हु आ था। इस समय गोवा
भारत का चौथा बड़ा उ पादक रा य है और दे श का 16 तशत से अ धक
लौह अय क पैदा करता है। गोवा क खान, साइ वा लम, सं यूम, यूपेम ,

124
सतार , प डा और बचो लम म ि थत ह। गोवा का अय क मारमागाओं
प तन से वदे श म भेजा जाता है।
(v) झारख ड : यह भारत का पांचवां बड़ा लौह अय क उ पादक रा य है यह दे श
का 15 तशत से अ धक लोहा पैदा करता है। पूव तथा पि चमी संहभू म,
पलामू धनबाद, हजार बाग, संथाल परगना तथा रांची मु य उ पादक िजले ह।
अ य उ पादक
लौह अय क के भंडार महारा म च पुर, र ना गर और भ डारा िजल म ि थत है।
आ दे श के कर मनगर, वारं गल, कनू ल, कड़ पा और अनंतपुर िजलो म लौह अय क के
अ छे भ डार ह। त मलनाडु म सलेम तथा नील गर म अय क का उ खनन होता है।

मान च - 5:1 : भारत म मु ख लौह अय क के े


5. स गणतं : वतमान म स का लौह अय क उ पादन म पांचवां थान है। सन ्
2005 म यहां स पूण व व का 6.3 तशत उ पादन हु आ है। सो वयत संघ के
वघटन के उपरा त मु ख लौह उ पादक रा यू े न अलग होने से कमी आई है। स
के मु ख लौह अय क उ पादक े न न ह (मान च - 5.2)।
यूराल दे श : यहां 50 से 54 तशत धातु वाला उ चको ट के लोहे का भ डार
लगभग तीस करोड़ मी क टन पाया जाता है। यहां का मु ख उ पादक े
मै टोगो क का मै ेट माउ टे न है जहां बोइराग के प चात स म सवा धक
उ पादन होता है। नझनीता गल एवं इ दे ल े भी यहां के मु ख लौह उ पादक े
ह।

125
गोरनाया शो रया : यह े म य साइबे रया म ि थत है। इसक ि थ त डोनबास
कोयला े के पास नोवोकु जनेट क दे श के द ण म ह। यहां पर पाया जाने वाला
लौहा न न को ट का पाया जाता है यहां से कु जबास लोहा संयं को भेजा जाता है।
पि चमी साइबे रया : साइबे रया के पि चम म ि थत, नोवो स ब क के 200 कमी
उ तर म, टो क दे श के उ तर म ि थत ब वार थान मु ख उ पादक दे श है।
यहां पाए जाने वाले लोहे म गंधक, स लका तथा ज ता आ द क मा ा म त प
म अ धक पाई जाती है। यहां पाया जाने वाला लौह अय क न न को ट का है।
आमू र घाट : सु दरू पूव तथा आमूर घाट म वतमान समय म थोड़ा बहु त ख नज
नकाला जाता है।

मान च - 5.2 : स एवं यू े न के मु ख लौह अय क उ पादक दे श


6. संयु त रा य अमे रका: संयु त रा य ारि भक समय से लौह अय क के उ पादन म
मु ख थान पर रहा है। ले कन 1985 के बाद यहां व व के अ य दे श क तु लना
म उ पादन म हास हु आ है। वतमान समय म संयु त रा य स पूण व व के कु ल
उ पादन का 4.1 तशत उ पादन करता है। व व म लौह उ पादन क ि ट से
संयु त रा य अमे रका का सातवां थान है। यहां लोहे क खान मु य प से
मनेसोटा, मशीगन एवं अलाबामा रा य म ि थत ह (मान च -5.3)। संयु त रा य
अमे रका का 90 तशत से भी अ धक लोहा हे मेटाइट क म का है।
(i) सु पी रयर झील े : यहां क मेसाबी खान व व क सबसे बड़ी खान म एक
ह। िजसके उ च को ट का लोह भ डार लगभग समा त ाय है। जब क न न
को ट का भ डार वशाल प रमाण म मौजूद ह। अ य खान वा म लयन,
मनो मनी, मारकेट, गोजे बक एवं कु याना।
(ii) द णी अ पे शयन या अलाबामा े : ब मघम अलबामा।
(iii) उ तर-पूव अ पे शयन े : यूयाक , प सलवे नया, यूजस क अ दरे न डाक,
का नवाल, डोगार फ ड आ द।
(iv) पि चमी े : उटा, बायो मंग, कैल फो नया एवं नेवादा।

126
मान च - 5.3 : संयु त रा य अमे रका तथा कनाडा के लौह अय क उ पादक े
7. कनाडा: कनाडा म वा षक लौह अय क का कुल उ पादन 3.0 करोड़ टन है व व म
नौवां थान रखता है। कनाडा के मु ख उ पादक े ओंटे रयो, नोवा- को शया,
अ बटा एवं बकू वर वीप, ट प रॉक, यू ेक , टश कोलं बया तथा यूफाउ डलड
आ द ह; ले ेडोर म ि थत शेफर वल खदान मु ख लौह अय क उ पादक खदान ह।
8. यू े न : यू े न का बोइराग े उ पादन क ि ट से थम तथा सं चत भ डार क
ि ट से वतीय थान पर है। यहां लगभग 50 अरब टन सं चत भ डार है िजसम
लौहांश धातु का 48.6 तशत अंश पाया जाता है। यू े न के लौह उ पादक े
न न ह -
(i) कु क : कु क े का व तार नीपर नद के पूव म पाया जाता है। कु क
े म पाया जाने वाला लौहा मै नेटाइट क म का है ले कन इसक गहराई
अ धक है। अत: खनन काय आसान नह ं ह। यहां लगभग तीस अरब टन
सं चत भ डार क धातु स प नता 50-60 तशत है तथा 170 अरब टन
लोहा न न को ट का पाया जाता है।
(ii) कच अ तर प : यह े पूव मया म ि थत है। पूव मया का काय
े जमाव क ि ट से तो स प न ह ले कन यहां पाया जाने वाला लोहा
न न को ट का है। इस अय क म फा फोरस एवं स लका क अ धक मा ा
पाई जाती है।
9. द णी अ का: यहां लोहा अय क चुर मा ा म पाया जाता है। अ का महा वीप
का मु ख उ पादक दे श द ण अ का संघ है। िजसका व व म लौह उ पादन क
ि ट से आठवां थान ह। यहां के मु ख उ पादक दे श ांसवाल का ोटो रया एवं
थावा मजबी े , उ तर केप रा य का पो मासबग एवं नैटाल ा त का कु मान े
है।
10. यूरोपीय दे श : पि चमी यूरोप म लोहे के मु ख भ डार ांस, वीडन, ेट टे न,
जमनी और पेन म ह।

127
वीडन: यूरोप महा वीप म सबसे अ धक लौह अय क का भ डार वीडन म ह पाया
जाता है। वीडन का अ धकांश लौह भ डार इसके उ तर एवं म य भाग म ि थत है।
इसके मु ख उ पादक े क ना और गैल वयर ह जो उ तर म ु वीय दे श म
ि थत ह। इनम उ तम को ट क मै नेटाइट अय क पाया जाता है। यूरोप म अ धकांश
लोहे क आपू त वीडन वारा ह पूर क जाती है।
ांस: ांस म 32 तशत से 38 तशत लोहांश क धातु लारे न, नॉरम डी म ह।
ले कन 96 तशत उ पादन लारे न क खान से होता है। जो ना सी से ल गवे तक
100 कमी ल बे े म फैल है। ांस के उ पादन क लगभग 40 तशत धातु
बेि जयम, जमनी और ल जेमबग को नयात कर द जाती है।
टे न: टे न म लौह धातु न न को ट क है ले कन उसक खान कोयले क खान
क समीप है। मु य उ पादन े नॉथ पटन, ल वलै ड, कोरबी और कनथोप है।
टे न को दूसरे दे श से लोहा आयात करना पड़ता है।
पेन: पेन म 37 तशत से 50 तशत लोहांश क साइराइट और हे मेटाइट धातु
है। मु य भ डार बलबाओ, से ता दे र, गबोन और ओ वडो े म है । दे श म
इ पात नमाण कम होता है अत: लोह, धातु का नयात टे न पि चमी जमनी को
कया जाता है।
जमनी : जमनी म सा जागे तर एवं सीजेन लोह अय क क खाने ह।
व व यापार
लोहे का व व यापार काफ बड़ी मा ा म होता है। ाजील, चीन, आ े लया, कनाडा एवं
भारत लोह अय क के मु ख नयातक दे श ह। िजनका नयात यापार म लगभग 70
तशत ह सा है।
अ य नयातक दे श म वीडन, लाइबे रया, मैर टे नया, वेनेजु एला आ द का नाम आता है।
जापान व व का सबसे बड़ा लौह अय क के आयातक ह। वह अपनी आव यकता का
लगभग 90 तशत लोह अय क का आयात करता है। अ य आयातक दे श म सयु त
रा य अमे रका, जमनी, टे न, पोले ड, इटल , ांस एवं को रया गणतं आ द ह।
बोध न-1
1. व व म लौह अय क का सबसे बड़ा उ पादक दे श कौन है ?
.............................................................................................
.......................................................................................
2. सवा धक लौह धातु वाले अय क का नाम बताइए।
........................................................................................
........................................................................................
3. भारत का कौनसा रा य सबसे अ धक लौह अय क का उ पादन करता है ?
.............................................................................................
.......................................................................................

128
4. चीन के मु ख लौह अय क उ पादक े के नाम बताइये ।
.................................................................................... .......
.................................................................................... .......
5. यू रोप के मु ख लौह उ पादक दे श के नाम बताइये ।
............................................................................................
............................................................................................

5.2.2 मैगनीज (Manganese)

मैगनीज का योग मु यत: लोहा एवं ट ल के नमाण म कया जाता है। इसके अलावा
इनका योग औ यो गक ख नज म मगनीज स चे अथ म बहु योगी है। पॉ लश चढ़ाने,
ाई बै , ट, चीनी म ी के बतन, लाि टक छड़े जोड़ने, रासाय नक पदाथ, वान श और
फश के टाइल बनाने म इसका योग होता है। इ पात उ योग इसका सबसे बड़ा उपभो ता
है। इसम लगभग 90 तशत से अ धक का उपभोग होता है।
मैगनीज के मु ख उ पादक दे श
मैगनीज के मु य उ पादक दे श चीन, द ण अ का, आ े लया, ाजील, गैबन, यू े न ,
कजा क तान, घाना, भारत, मैि सको ह।
ता लका - 5.3 : व व म मगनीज उ पादक दे श 2005
.सं. दे श उ पादन व व का
(लाख टन) %
व व 291 100.0
1. चीन 55 18.9
2. द. अ का 46 15.9
3. आ े लया 55 13.8
4. ाजील 32 10.8
5. गेबन 25 8.6
6. यू े न 23 7.8
7. कजा क तान 22 7.6
8. घाना 19 6.6
9. भारत 18 6.0
10. मैि सको 05 1.6
ोत : यू.एस. यालॉिजकल सव- मनरल कमो डट समर ज, जनवर 2008 (इ टरनेट)
1. चीन : चीन व व का सबसे बड़ा मैगनीज उ पादक है । मु ख उ पादक े हू नान के
चांग- सा, वां सी तथा हु पेह े है । इसे अ त र त वांटुं ग ा त तथा उ तर पूव
चीन म भी मैगनीज का उ पादन होता है

129
2. द णी अ का : उ पादन क ि ट से द णी अ का व व का थम मैगनीज
उ पादक दे श है जब क यहाँ सं चत भ डार सी मत मा ा म है । यहां के मु ख
उ पादक े पो टमैसबग, सेरेस, उदसे तथा बेचु नआ
ु लै ड म कगुआ -कगुए क खान,
द णी-पि चमी अ का म ओि जबोरगो खान ह कांगो, जाि बया और अंगोला रा य
म मैगजीन क खान ह ।
3. आ े लया : व व म तीसरा सबसे बड़ा मैगनीज उ पादक दे श ह । जहां व व का
13.7 तशत मैगनीज नकाला जाता है । आ े लया म उ तर ा त के गुटइलै ड,
दूने एवं इ लयंत व पि चमी ऑ े लया के मारबुवर आ द ह ।
4. ाजील : ाजील द णी अमे रका का ह नह ं बि क व व म मैगनीज उ पादन क
ि ट से मु ख थान रखता है। यहां के मु ख उ पादक े नजारे , अमापा, लाफयेते
मगुएल ब नयर, बा हया, मनास, गेरास एवं यू मकुम आ द ह।
5. गेबन: व व का चौथा मैगनीज उ पादक दे श है। जहां क वल के समीप मोआ डी
े म मैगनीज नकाला जाता है।
6. यू े न : यहां कालासागर दे श म ि थत नेकोपोल, तोकमक व बोलसाई मु य खदान
ह।

मान च - 5.4 : व व के मु ख मैगनीज उ पादक े


7. घाना: घाना मैगनीज के उ पादन एवं नयात क ि ट से मह वपूण थान रखता है।
इसके मु य उ पादक े नसू ता, आइवर को ट रा य म े ड लबाऊ खान ह।
8. भारत: भारत म संसार का वशालतम मैगनीज भ डार ि थत है। यहां संसार का
सव तम को ट का मैगनीज मलता है। पि चम म बड़ौदा से लेकर पूव म दामोदर घाट
तक लगभग 1250 कमी ल बी प ी म मैगनीज का भंडार मलती है। मु य े
म य दे श के बालाघाट, छंदवाड़ा, जबलपुर , महारा के नागपुर , भ डारा, र ना गर ;
गोवा, गुजरात म पंचमहल, झारख ड के क हन, संहभू म, चायवासा आ दे श म

130
वशाखाप नम, ीकाकुलम और कड पा; कनाटक म उ तर कनारा, से दूर, बेलार ,
कादूर, चतदूर, समोगा के े म मैगनीज के भ डार ा त ह।
व व यापार
भारत, ाजील, द णी अ का, गेबोन, घाना रख जायरे मैगनीज के मु ख नयातक दे श
ह। संयु त रा य अमे रका मैगनीज का सवा धक मह वपूण आयातक दे श ह। अ य
आयातक दे श म जापान, ांस, जमनी, टे न, बेि जयम आ द मु य है।
बोध न-2
1. मै ग नीज का उपयोग मु यत: कस उ योग म होता है ?
............................................................................................
....................................................................... .....................
2. मै ग नीज उ पादन क ि ट से व व म थम तीन दे श कौन से ह ?
............................................................................................
..................................................................... .......................
3. भारत म मै ग नीज के भ डार कहाँ ि थत ह ?
............................................................................................
.......................................................................................... ..
4. द णी अ का के मु य मै ग नीज उ पादक े के नाम बताइये ।
............................................................................................
......................................................................................... ...

5.2.3 अ क (Mica)

अ क एक पारदश , लचकदार और परतदार धाि वक ख नज है जो स लकेट कार क


च ान म पाया जाता है। यह चमकदार होता है। इसके वशाल भ डार भारत म ि थत है।
व ान एवं टै नोलॉजी के वकास के साथ-साथ अ क के नये-नये योग सामने आते जा
रहे ह। ताप एवं व युत का कु चालक होने के कारण मु यत: बजल के उपकरण बनाने
म होता है। इसके अलावा इसका उपयोग चमनी, च मा, दवा, रं ग आ द के नमाण म भी
कया जाता है।
अ क क क म
रासाय नक संरचना के आधार पर अ क क तीन क म होती है।
1. सफेद अ क, पोटाश िजसे मसको हाइट भी कहते ह।
2. पीत अ क, यह बहु रं गी अ धकतर पीत रं ग का होता है िजसे फूलोगोपाइट भी कहते
ह।
3. याम अ क, मै ी शयम यह काला और गहरा रं ग का होता है इसे बायोटाइट भी
कहते ह। इनम सबसे मह वपूण सफेद अ क है।
व व म अ क का वतरण एवं उ पादन

131
व व म अ क का वतरण एवं उ पादन अ य त असमान ह। व व म अ क अ धकांश
े कु छ ह थान पर सी मत है। तथा इसक खान जंगल व पहा ड़य म ि थत ह। तथा
यहां के आवागमन एवं यातायात के अ छे साधन बहु त कम उपल ध रहते ह। व व म
सबसे बड़े भ डार भारत म ह। भारत के अलावा स, ाजील, कनाडा, द णी पूव
अ का, संयु त रा य अमे रका, अज टाइना, मैि सको आ द दे शो म भी अ क के भ डार
ह।
सन 2006 म अ क का व व म कु ल उ पादन 3.4 लाख टन था। संयु त रा य
अमे रका एक- तहाई (32.2%) उ पादन करके थम थान पर है। स का दूसरा थान
(29.2%) है। द. को रया ( व व का 10.8%), नाव (7.6%) और कनाडा (5.1%) बड़े
अ क उ पादक दे श ह। ांस, पेन, ताइवान, भारत, ईरान, अज टाइना, ाजील और
मले शया म भी अ क का उ पादन उ लेखनीय है।
1. भारत: भारत म अ क का उ पादन ाचीन काल से होता रहा है। संसार का लगभग
70 तशत अ क भारत से ह ा त होता है। भारत म झारख ड क अ क पेट म
हजार बाग िजले म कोडरमा, गरडीह, दोमाचे य, चाकल, तसर , भागलपुर संहभू म,
पालामू िजल म अ क उ पादन होता है। आ ध दे श क अ क पेट म नेलोर तथा
वशाखाप नम िजले म ि थत है यहां हरे रं ग क अ क नकलती है। मु ख अ क
खाने काल चेहू तेल नाडू म ह। राज थान मे अ क भीलवाड़ा, अजमेर, उदयपुर,
ं रपुर, जयपुर , सीकर, ट क और अलवर िजल म खाने ह।
डू ग
भारत अ क उ पादन के अ य े उड़ीसा म घेनकनाल, स बलपुर, ओरापुट,
म य दे ष म ब तर िजला, त मलनाडू म कृ णा सलेम और नील गर िजले आ द ह।
2. ाजील : अ टाक टका तट य िजल म 480 कमी ल बी और 192 कमी चौड़ी
अ क पेट है। पनास, गेराइस, रा य क सांता लु िजया और पेकानहा क खान एवं
उ तरपूव म जु आजीरो क खाने क मु य उ पादक ह।
3. स: स म अ क के मु य े बेकाल झील के द ण म स युदयांका और बेकाल
के उ तर म ममा े है। बेकाल पि चम म अ यगझेर तथा बारगा े ह। सु दरू पूव
म नागोरनीय क अ क खाने ह उ तर पि चम म ओनेगा झील के समीप
पी ोजावोदक े क खाने ह। बेकाल के द ण पि चम म लकु क के समीप
फूलोगोपाइट कार क अ क खोद जाती है।
4. मालागासी : फोट ढाउ फन के समीप फूलोगोपाइट अ क मलती ह िजसक शराएं
एक से पांच मीटर तक मोट होती ह
5. संयु तरा य अमे रका: यहां उ तर केलो रना के ु , पाइन,
स क लन, स वा और
शे वी हकोर िजल म ेप अ क नकाल जाती है। संयु त रा य अमे रका म
कृ म अ क का नमाण भी बड़ी मा ा म कया जाता है। इसके अलावा द ण
अ का, कनाडा, आ े लया, अज टाइना, चीन, ांस, नाव एवं जाि बया आ द दे श
म भी अ क का उ पादन कया जाता है।

132
व व यापार
भारत अ क का सबसे बड़ा नयातक है। यह अपने उ पादन के अ धकांश भाग का नयात
कर दे ता है। इसके अ य नयातक ाजील एवं द णी अ का ह। अ क अमे रका, टे न,
जापान, जमनी, ांस आ द मह वपूण है।
बोध न-3
1. अ क कस कार क च ान म पाया जाता है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. वह ख नज जो व यु त का कु चालक ह।
............................................................................................
......................................................................................... ...
3. अ क के मु य उ पादक दे श के नाम बताइये ।
............................................................................................
............................................................................... .............
4. रासाय नक सं र चना के आधार पर अ क को कतने क म म वभािजत
कया गया ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................

5.2.4 तांबा (Copper)

मनु य के उपयोग क ि ट से लोहे के बाद दूसरा थान तांबे का ह है। यह अलौह


धातु ओं म सबसे अ धक उपयोगी है। वतमान औ यो गक युग म तांबे का मु य उपयोग
न न कार है।
 संसार का लगभग साठ तशत तांबा व युत उपयोग म तथा व युत उ योग म
काम आता है। इसका योग व युत उपकरण , संयं , वायरलेस , जनरे टर ,
वातानुकू लत करने के यं , रे डया, टे ल फोन उपकरण, टे ल ाफ , रे डीयेटर आ द म
कया जाता है। इनके अलावा इससे बजल के ब व, टे ल वीजन, रे ल के स ल,
रे लगा ड़य , जलपोत और वायुयान के पुज आ द बनाए जाते ह।
 35 तशत म धातु क तरह योग कया जाता है। तांबा और रांगा को म त
करने पर 'कांसा' बनता है। तांबा और ज ता मलाने से 'पीतल' बन जाता है। तांबा
और नकल मलाने से 'जमन स वर' बन जाता है। तांबा और एलु म नयम के म ण
से ' यूरालु मन' बनता है। तांबा और सोना मलाने से 'रॉ ड-गो ड' बन जाता है।
 पांच तशत तांबे से स के, बतन, बॉयलर के पुज , प प के पुज, जल के नल,
घ ड़य के पुज, तांबे क पॉ लश, औष धयां आ द बनाए जाती है।
व व वतरण एवं उ पादन

133
व व के व भ न भाग म तांबे का लगभग 31 करोड़ टन सं चत भ डार है। वतमान म
चल दे श सवा धक तांबे का उ पादन लगभग 35 तशत करता है।
ता लका- 5.4 : व व म तांबा उ पादन, 2005 दे श
.सं. दे श उ पादन (हजार टन) व व का तशत
1. चल 5320 35.5
2. संयु त रा य अमे रका 1140 7.6
3. इ डोने शया 1065 7.1
4. पे 1010 6.7
5. आ े लया 916 6.1
6. चीन 762 5.2
7. स 700 4.7
8. कनाडा 595 4.0
9. पोले ड 523 3.5
10. मैि सको 429 2.9
11. जाि बया 423 2.8
12. कजा क तान 422 2.8
व व 15,000 100.0
चल , संयु त रा य तथा इ डोने शया मल कर व व का आधा तांबा पैदा करते ह। इनके
अ त र त पे , आ े लया, चीन, स, कनाडा और पौले ड भी बड़े उ पादक ह।
1. चल : चल व व के कु ल उ पादन 35 तशत तांबे के उ पादन के साथ व व का
थम तांबा उ पादक दे श है। चल एक ऐसा दे श है िजसक पचास तशत से अ धक
रा य आय केवल तांबे के नयात से ह ा त होती है। चल से जु ड़े पी म
मोरोकोचा तथा कासापा का मु ख तांबा क खाने ह। चल के कु ल तांबा उ पादन का
90 तशत भाग ए डीज पवत के पि चमी ढाल पर ि थत न न खदान से होता है।
(i) च क कामाटा-यह व व क सबसे बड़ी तांबे क खदान है। यहां व व के
अ य कसी े वशेष क तु लना म व व म सबसे अ धक सं चत रा श पाई
जाती है।
(ii) एल ते नए त
(iii) ला अ काना
(iv) ाडेन
2. संयु त रा य अमे रका : यहां व व के कुल उ पादन का 7.8 तशत तांबे का
उ पादन होता है जो दूसरे थान पर है। संयु त रा य के म शगन रा य म ि थत
क वेना े ाचीनकाल से ह मु ख तांबा उ पादक े रहा है। संयु त रा य का
पि चमी भाग मौटांना रा य म ि थत बु े नामक थान संयु त रा य म नह ं बि क

134
व व म भी तांबा उ पादन क ि ट से अ त मह वपूण है। यहां व व क अ य तांबा
उ पादन खदान क अपे ा अ धक मा ा म ताबां नकाला जाता है। ऐर जोना रा य
क बी, लोब, मयामी, यूरेका, ओ डहे ट, आजो, मोरे सी, सान मैनए
ु ल े ,
नेवादा रा य म ि थत ए र टन, एल े म ि थत खदान, ऊटा रा य के बंथम एवं
टि टक भी मु ख तांबा उ पादक दे श ह।
3. कनाडा : कनाडा तांबा उ पादन क ि ट से व व म आठवां थान है। मु ख उ पादक
े ह, िजनम चार मु य ह। इनम वशाल झील के उ तर म ि थत सडबर े
सबसे बड़ा है एवं कनाडा के कु ल उ पादक का पचास तशत तांबे का उ पादन इसी
े से ा त होता ह यह ओटे रयो म ि थत है। उ तर पि चमी यूबेक क खदान
का दूसरा थान है। मैनीटोबा एवं स केचवान रा य क सीमा पर ि थत ि लन
लोन े कनाडा का तीसरा मु ख ोत े है। चौथा े है जहां से नारे दा-रोयून
े सडबर े के बाद कनाडा के तांबा का अ धकतम उ पादन ा त होता है। इसी
ेकार बकु वर रा य के उ तर भाग म ि थत टे नया बची े ।
4. स : व व के कु ल तांबा उ पादन का 4.6 तशत उ पा दत कर इस समय वतमान
म छठे थान पर है। यहां यूराल े म यूराल पवत के द णी-पि चमी कनारे पर
सबाई, डे या ला क, गाई, उचाल तथा काराबास े तथा उ तर साइबे रया के
नो रक स े से तांबे का खनन होता है।

मान च - 5.5 : व व के मु ख तांबा उ पादक े


5. आ े लया : आ े लया व व के कुल तांबा उ पादन का 6.2 तशत तांबा का
उ पादन करता है। यहां के मु ख उ पादक े कोबार, माउ ट लायल, माउ ट ईशा
एवं टे ना ट मह वपूण दे श ह।
6. अ का: अ का महा वीप म तांबा के मु ख उ पादक दे श सहारा म थल के
द णी भाग म ि थत है। जहां से व व के कु ल तांबा उ पादन का सात तशत
उ पादन ा त होता है। कागरे के कटांगा दे श से जैि बया के म य म ि थत भाग
म 450 कमी ल बी एवं 80 कमी चौड़ी तांबे के सं चत भ डार क प ी पाई जाती
है। यहां पाया जाने वाला तांबा उ च को ट का है।

135
7. कजा क तान : यहां बा खस झील के पास झे काझगान कोराइ कोए तथा बोजसाकुल
खान म तांबा नकाला जाता है।
8. भारत: भारत म लगभग 71.2 करोड़ टन के भ डार है। िजसम 94 लाख टन धातु
उपल ध ह। झारख ड के संहभू म क मोसबनी, राखा, धोबनी, रजहाई े म इसके
पया त भ डार ह। राज थान के झु झूनु म खेतड़ी, को लहान और चांदमार तथा
अलवर म दर बा खदान ता बे के लए स ह। इसके अलावा म य दे श म
मालाजख ड क खदान उ लेखनीय ह। कनाटक म भी तांबा का बड़ा भंडार है।
उ पादन म म य दे श आगे है तथा राज थान दूसरे थान पर है। झारख ड का
तीसरा थान है।
व व यापार
चल , जाि बया, कनाडा, जायरे , मैि सको, युगो ला वया आ द तांबे के मह वपूण नयातक
ह जब क संयु त रा य अमे रका, पि चम यूरोपीय दे श, जापान आ द तांबे के आयातक ह।
बोध न-4
1. तां बा और न कल मलाने से ' जमन स वर ' बन जाता है उसे या कहते
ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. व व म तां बे का कु ल कतना टन सं चत भ डार है ?
............................................................................................
........................................................................................... .
3. व व म सवा धक तां बे का उ पादन कस दे श म होता है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
4. व व म सबसे बड़ी तां बे क खदान का नाम बताइये ?
............................................................................................
................................................................ ............................
5. भारत के उ पादक े के नाम बताइये ।
............................................................................................
................................................................ ............................

5.3 सारांश (Summary)


पृ वी के धरातल म व भ न कार क च ान म व भ न कार क ख नज स पदा भर
पड़ी है। मानव अपनी आ थक उ न त के लए ख नज का खनन करता है और अपनी
अथ यव था सु ढ़ करने क को शश करता है। ख नज स पि त का खनन आ थक मानव
क आधु नक अथ यव था क धु र है। िजन दे श एवं रा म ख नज क वपुलता है व
दे श औ यो गक एवं सामािजक अथ यव था वक सत है। वतमान युग म ख नज का व व

136
म मह वपूण थान ह। ख नज पर व व का औ यो गक वकास टका हु आ है। ख नज
का उपयोग मानव के दै नक जीवन म काम आने वाल व तु ए,ं सु ई से लेकर बड़े मशीन-
यं रख औजार म होता है। अत: ख नज म नर तर उपयोग बढ़ने से इनका संर ण
करना अ त आव यक है।

5.4 श दावल (Glossary)


 ख नज : सामा यत: खनन वारा ा त कया हु आ पदाथ, जैसे लोहा अय क, तांबा,
अ क, मैगनीज एवं अधाि वक ख नज। वै ा नक ि ट से अजैव पदाथ िजसका एक
व श ट रासाय नक संगठन होता है।
 खनन : खनन काय से संबध
ं यवसाय, खनन व ान।
 लौह-युग : मानव सं कृ त का वह काल िजसम सव थम लोहे को गलाकर उसका
औ यो गक योग कया गया था। कहा जाता है क पि चम ए शया और म म यह
काय ईसा से लगभग 1000 वष पूव होता था।
 ाकृ तक संसाधन : वे ाकृ तक संपदाएं जो ाकृ तक प से मानव को उसके आ थक
एवं सां कृ तक वकास के लए उपल ध होती ह, जैसे भू म, जल, ख नज आ द।
 आयात : यापा रक उ े य से अथवा आव यकतावश माल को वदे श से मंगाना।
 नयात : यापा रक उ े य से अथवा आव यकतावश माल को वदे श भेजना।
 सं चत भ डार : भू गभ के अ दर व भ न के ख नज क असी मत मा ा।

5.5 संदभ थ (Reference Books)


1. एस.डी. कौ शक एवं डॉ. अ का गौतम : संसाधन भू गोल, र तोगी पि लकेश स, 2007
2. बलवीर संह नेगी : संसाधन भू गोल, केदारनाथ रामनाथम मु डे, 2007
3. रामकुमार गुजर व बीसी जाट : संसाधन भू गोल, पंचशील काशन, 2007
4. एम.एच. कुरे शी : भू गोल के स ा त भाग 2 एनसीआरट , 2006
5. संजयकुमार संह : ॉ नकल पि लकेश स, नई द ल , 2006
6. रॉ बनसन : आ थक भू गोल, लंदन 1968
7. का ता साद कुल े ठ एवं वीर संह आय : मानव भू गोल प रभाषा कोश, ह द काशन
स म त, वाराणसी, 2004

5.6 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. चीन
2. मै नेटाइट
3. कनाटक
4. द णी मंचु रया, हैनान वीप, शा षी, होपेह, तापेह तथा चांग-िजयांग घाट आ द।
5. स, पेन, वीडेन, ांस आ द।
137
बोध न- 2
1. लोहा एवं ट ल नमाण म
2. चीन, द णी अ का और आ े लया
3. बड़ोदरा से दामोदर घाट तक क पेट म।
4. पो टमे वग, सेरेस, पुटसे , बचनूआइलै ड म कगवा-कगवे क खान।
बोध न - 3
1. सल केट कार क च ान म
2. अ क
3. संयु त रा य अमे रका, स, द र को रया, नाव और कनाडा।
4. तीन भाग मे वभािजत कया गया है : - 1. म को हाईट 2. फूलोगोपाइट, 3.
बायोटाइट
बोध न - 4
1. यूपेरो नकल कहते ह।
2. लगभग 31 करोड़ टन सं चत भ डार है।
3. चल म
4. च क कामाटा।
5. झारख ड म संहभू म िजला, राज थान म झु झू नू के खेतड़ी आ द े तथा म य
दे श का मलाणख ड े ।

5.7 अ यासाथ न
1. ख नज कसे कहते ह ? इसके कार बताइये।
2. व व म लौह अय क सं चत भ डार तथा उ पादन का ववरण का द िजए।
3. मैगनीज का मह व प ट करते हु ए व व उ पादक े क ववेचना क िजए।
4. तांबे क उपयो गता व वतरण तथा व व यापार का वणन क िजए ।
5. अ क के उपयोग तथा व व के वतरण को समझाइये।

138
इकाई 6 : पर परागत ऊजा संसाधन Conventional
Energy Resources)
इकाई क परे खा
6.0 उ े य
6.1 तावना
6.2 कोयला
6.2.1 कोयले क उ पि त एवं कार
6.2.2 कोयले का व व वतरण
6.2.3 कोयले का उपयोग
6.2.4 कोयले का संर ण
6.3 ख नज तेल
6.3.1 ख नज तेल क उ पि त
6.3.2 ख नज तेल का व व वतरण
6.3.3 ख नज तेल का उपयोग
6.3.4 ख नज तेल का संर ण
6.4 जल व युत
6.4.1 जल व युत उ पादन क आव यक दशाएं
6.4.2 जल व युत उ पादन का वतरण
6.4.3 जल व युत का उपयोग एवं मह व
6.5 आण वक ऊजा
6.5.1 आण वक ऊजा क वशेषताएं
6.5.2 आण वक ख नज पदाथ का वतरण
6.5.3 आण वक ऊजा का उ पादन
6.5.4 आण वक ऊजा का उपयोग
6.5.5 आण वक ऊजा का संर ण
6.6 सारांश
6.7 श दावल
6.8 संदभ थ

6.9 बोध न के उ तर
6.10 अ यासाथ न

6.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने का उपरा त आज समझ सकग क : -

139
 व व म पर परागत ऊजा ोत का ववरण
 कोयला का वतरण, उपयोग एवं संर ण
 ख नज तेल का वतरण, मह व एवं संर ण
 जल व युत का उ पादन एवं मह व
 आण वक ऊजा का वतरण एवं भ व य
 इन पर परागत ऊजा ोत क सम याएं एवं स भावनाओं पर चचा करे ग।

6.1 तावना (Introduction)


मानव ाचीन काल से ह अपनी शार रक शि त तथा पशु ओं क शि त का योग करता
रहा है। बाद म मनु य ने पवन और बहते जल के वारा चि कय और यं को चलाना
आर भ कया। अठारहवीं सद क औ यो गक ाि त के बाद से कोयला, ख नज तेल, जल
व युत और ाकृ तक गैस का योग शि त साधन के प म कया जाने लगा।
कसी भौ तक या जै वक त व म व यमान काय करने क शि त को ऊजा कहते ह। ऊजा
कसी मा यम क सहायता से एक प से दूसरे प म प रवतनीय होती है।
संसार म ऊजा ाि त के मु यत: दो ोत ह - (1) अ यशील ोत और (2) यशील
ोत। अ यशील ोत के अ तगत सौर ऊजा, पवन, जल, भू ग भक ताप आ द आते ह
और यशील ोत के अ तगत जीवा म धन (कोयला, ख नज-तेल, ाकृ तक गैस) और
वख डनीय आण वक ऊजा को सि म लत कया जाता है। इसम अ यशील ोत से
द घकाल तक ऊजा ा त होती रहे गी जब क यशील ोत के सं चत भ डार सी मत ह
और योग के प चात ् सदा के लए समा त हो जाते ह। हम इन पर परागत ऊजा ोत
के उपयोग, वतरण एवं संर ण क चचा करे ग।

6.3 कोयला
कोयला काला या भू रे रं ग का काबनयु त ठोस जीवा म धन है जो मु यत: अवसाद शैल
म पाया जाता है। यह वलनशील होता है। यह घरे लू धन से लेकर औ यो गक धन
तक म उपयोग म लाया जाता है।

6.3.1 कोयले क उ पि त (Origin of Coal)

कोयला एक ख नज पदाथ है। िजसम काबन क मा ा अ धक पायी जाती है। काबन के


अ त र त ऑ सीजन, हाइ ोजन, नाइ ोजन तथा अ य कु छ अप य पदाथ कोयले म पाये
जाते ह। यह एक जीवा म वन प त है। ाय: कोयले क उ प त के दो युग मु य माने
जाते ह: (1) काब नीफेरस युग और (2) टर शयर युग। इन युग म भू तल के व भ न
दे श म व तृत सघन दलदल वन छाये हु ए थे, जो भू ग भक हलचल के कारण भू म म
दब गये। मश: दबाव के कारण यह परत कठोर होती गयी और वन प त कोयले के प
म बदल गयी। इन दे श म इसके ऊपर क चड़, मृदा और तलछट जमती रह । िजससे

140
कोयले क तह भार से दबती गई। प रणाम व प दबाव, भंचाव तथा आ त रक गम से
कोयले क वभ क म का नमाण हु आ।
कोयले क क म (Kinds of Coal)
कोयले म काबन त व क मा ा के अनुसार ऊजा मता होती है। इसके आधार पर न न
क म पायी जाती है -
(i) ऐ ेसाइट (Anthracite) : यह कोयला सव तम कार का होता है। यह कठोर,
चमकदार, रवेदार तथा अंगरु होता है। इसम काबन क मा ा 90%-96% होती है।
इसम वा पशील पदाथ बहु त कम होता है। यह जलने म धु ँआ कम दे ता है तथा
ताप बहु त अ धक होता है।
(ii) बटु मनस (Bituminus) : यह काले रं ग का चमकदार कोयला होता है। इसम
काबन क मा ा 70%–90% होती है । उसम वा पशील पदाथ क मा ा अ धक
होती है। यह जलने म बहु त धु ँआ दे ता है। यह पील लौ के साथ जलता है।
(iii) लगनाइट (Lignite) : यह भू रे रं ग का कोयला है। इसम काबन क मा ा 45%-
70% होती है। यह जलने म धु ँआ अ धक दे ता है तथा राख भी बहु त छोड़ता है।
इसम वन प त का अंश अ धक मा ा म होता है।
(iv) पीट कोयला (Peat Coal) : यह वन प त के मौ लक प म थोड़ा सा ह
प रव तत कोयला है। इसम काबन क मा ा 40% तक पायी जाती है। यह ाय:
लकड़ी क तरह जलता है और जलने म बहु त धु ँआ दे ता है ।

6.3.2 कोयले का व व वतरण

भू वै ा नक के अनुसार व व म लगभग 905.4 अरब टन कोयला सं चत है, िजसका


लगभग 97 तशत यूरे शया एवं उ तर अमे रका महा वीप म तथा शेष 3 तशत तीन
द णी महा वीप (अ का, आ े लया एवं द णी अमे रका) म सं चत ह (मान च -
6.1)। व व का कोयला उ पादन एवं वतरण न नवत है।
(i) चीन - चीन म कोयले का उ पादन बहु त तेजी से बढ़ा है, िजसक वजह से आज
यह व व का सबसे बड़ा उ पादक दे श हो गया है। यहां तवष लगभग 187
करोड़ मीटर टन कोयले का उ पादन होने लगा है, जो व व उ पादन का लगभग
34.3 तशत है। यहां का अ धकांश कोयला ए ेसाइट एवं बटु त स क म का
है। यहां येक ा त म कोयला पाया जाता है। चीन के मु ख कोयला उ पादक
े हु ये- बीिजंग े , शा सी-शे सी े , शा टु ं ग ाय वीप, मंचू रया े ,
फुह शन े , फुशु न, सेचवान, य नान, वीचाक आ द है। दे श के वकास और
औ यो गक ग त म कोयले का मह वपूण योगदान है।
ता लका 6.1 : व व मे कोयले का उ पादन ( तशत म), 2006
. सं. दे श उ पादन (करोड़ टन) तशत

141
1. चीन 237.8 38.4

2. संयु त रा य अमे रका 105.8 38.4


3. भारत 45.1 7.3

4. आ े लया 38.1 7.2


5. स 30.9 5.0

6. द ण अ का 24.4 3.9

7. जमनी 20.2 3.3

8. इ डोने शया 16.9 2.7


9. पोलै ड 15.5 2.5
10. कजा क तान 9.6 1.6
11. यूनान 6.6 1.1

12. टक 6.5 1.1

13. कोलि बया 6.4 1.0

14. कनाडा 6.3 1.0

15. चेको लोवा कया 6.3 1.1


16. यू े न 6.2 1.0
व व 100.0
Source: US Energy Information Administration Web Site.
(ii) संयु त रा य अमे रका : यह व व का दूसरा मु ख कोयला उ पादक दे श है। यहां
तवष 110 करोड़ मीटर टन कोयला उ प न कया जाता है जो व व का 18.4
तशत है। इस दे श म कोयला े स पूण दे श म व तृत ह। यहां के मु ख
कोयला उ पादक े मे अ ले शयन कोयला े , खाड़ी तट य कोयला े ,
आ त रक कोयला े , वृहद मैदान कोयला े , राक पवतीय कोयला े ,
शा त तट य कोयला े आद मु ख ह।
(iii) भारत : भारत व व का तीसरा बड़ा कोयला उ पादक दे श है। यहां पर तवष
लगभग 40 करोड़ मीटर टन कोयला उ पा दत कया जाता है, जो व व का
उ पादन का लगभग 7.4 तशत है। भारत का लगभग 98 तशत कोयला
ग डवाना शैल म और लगभग 2 तशत कोयला टर शयर शैल म पाया जाता
है। भारत म अ धकतर कोयला बटु मनस क म का है, यहाँ पर कु छ ए ेसाइट
और थोड़ी मा ा म ल नाइट के भ डार भी ह। भारत के मु ख कोयला े
न न ल खत ह –

142
मान च - 6.1 : व व के मु ख कोयला े
(अ) दामोदर घाट े : रानीगंज, झ रया, बोकारो, ग रडीह, रामगढ़
और कणपुरा िजल
(ब) सोन घाट े : संगरौल , सोहागपुर , तातापानी, उम रया, और
रामकोला क खदान म य दे श-छतीसगढ म तथा डा टनगंज, औरं गा
व हु तार क खदान झारख ड मे ह।
(स) महानद कोयला े : उड़ीसा के तालचर तथा रामपुर हंगर े
और छ तीसगढ़ के कोरबा, सोनहट, व ामपुर , रामगढ़, झल मल
व लखनपुर े ह।
(द) गोदावर -वधा घाट े : आ दे श के सगरे नी, तंदरू और स ती
तथा महारा के च पुर , यवतमाल, और बलरामपुर िजले ह।
(य) सतपुड़ा े : यह े मोहपानी, पथखेड़ा, का हन घाट और पच
घाट म ि थत है।
(र) अ य े : उ तर पि चमी बंगाल, असम, अ णाचल दे श, हमाचल
दे श, ज मू एवं क मीर, राज थान, त मलनाडु आ द रा य म भी
कोयले का उ पादन कया जाता है।

143
(iv) आ े लया : यह व व का चौथा बड़ा कोयला उ पादक दे श है। यह तवष
लगभग 24 करोड़ मीटर टन कोयला उ प न कर रहा है। जो व व उ पादन का
लगभग 6.5 तशत है। यहां पर ए ेसाइट क म का कोयला पाया जाता है।
यहां क मु ख कोयला खदान यूकै सल , लथगो और कै बला के पास ि थत ह।
(v) स : यह व व का पांचवां बड़ा कोयला उ पादक दे श है। यहां का वा षक
उ पादन लगभग 28 करोड़ मीटर टन है, जो व व उ पादन का लगभग 5.1
तशत है। यहां पर बटु मनस क म का कोयला अ धक पाया जाता है। यहां के
मु ख कोयला े कु सबास े , मा को े , यूराल े , काकेशस े , इकुटरक
बे सन े , ल ना बे सन े , यनीसी बे सन, आमूर घाट कोयला े आ द ह।
(vi) जमनी : जमनी म तीन मु ख कोयला उ पादक े ह, िजसम र घाट , सार
बे सन और सा सनी कोयला े मु ख ह। यहां पर बटु मनस और लगनाइट
क म का कोयला पाया जाता है।
(vii) द ण अ का : यहां पर बटु मनस क म का कोयला पाया जाता है। यहां
ांसवाल और नेटाल दो मु ख कोयले क खान ह।
(viii)पोलै ड - पोलै ड म दो मु ख कोयला े -साइले शया और जैफजर ह।
(ix) ेट- टन : वतीय व व यु से पूव यह कोयला उ पादन म अ णी दे श था,
क तु अब इसका मह व कम हो गया है। इसका औसत वा षक उ पादन मा
1.0 करोड़ टन से कम रह गया है। यहां पर याकशायर-ना टंघम-डब े ,
नाथ बरलै ड-डरहम े , लंकाशायर े , वे स े , लाइड घाट आ द मु ख
कोयला उ पादन े रहे ह।
(x) यू े न : यह व व का एक मु ख कोयला उ पादक दे श है। यहां उ च को ट के
बटु मनस के वशाल भ डार ह। यहां पर डोनबास बे सन म कोयले का व व
स सं चत भ डार है।
(xi) व व के अ य दे श : व व के ांस, बेि जयम, नीदरलै ड, हगंर , रोमा नया,
पेन, कनाडा, ाजील, कोलि बया, नाइजी रया आ द मु ख कोयला उ पादक दे श
ह।

6.3.3 कोयले का उपयोग

कोयले का उपयोग न न े म कया जाता है -


 घरे लू धन के प म
 कारखान म मशीन के संचालन म
 कोयला ऊजा का मु ख ोत
 उ योग, प रवहन, कृ ष आ द म ऊजा के प म योग
 क चे माल के प म
 कोल गैस बनाने म

144
 कोक, तारकोल, अमो नया, ने थीन, फनायल आ द के नमाण म
 सु गं धत तेल तथा साधन साम य के नमाण म आ द।

6.3.4 कोयले का संर ण

कोयला का अन यकरणीय संसाधन है, िजसका उपयोग होने पर न ट होता जाता है।
द घकाल तक इसका उपयोग करने के लए न न कार क य न कये जाने चा हए -
(1) कोयले का उ पादन कसी वशेष व ध से ह , िजसम कोयले का य कम हो।
(2) रासाय नक या वारा न न क म के कोयले का उ तम क म का बनाया जाये।
(3) भाप के ईधन म कोयले के उपयोग पर रोक।
(4) कोयले का शु करण उ पादन े के पास म हो।
(5) कोयले का उपयोग अ य त आव यक उ योग म ह हो।
(6) कोयले का वक प खोजना चा हए।
(7) उ च गुणव ता क मशीन म ह कोयले का उपयोग हो, िजससे अ धक ऊजा ा त
क जा सके।
बोध न -1
1. कोयले क उ पि त कै से हु ई?
............................................................................................
............................................................................................
2. कोयले के कार ल खये ।
........................................ ....................................................
.............................................................................. ..............
3. सव े ठ कोयला कौन सा है ।
............................................................................................
................................................................................ ............
4. कोयला उ पादन म भारत का कौन सा थान है ?
............................................................................................
............................................................................... .............
5. व व के सवा धक कोयला उ पादन के पां च दे श के नाम लखो।
............................................................................................
.............................................................................. ..............
6. भारत म कोयला कौन सी शै ल म पाया जाता है ?
............................................................................................
................................................................. ...........................

145
6.4 ख नज तेल (Petroleum)
6.4.1 ख नज तेल क उ पि त

ख नज तेल वतमान युग का सबसे मह वपूण पर परागत ऊजा का ोत है। यह कृ त


न मत हाइ ो-काबन त व है िजसका नमाण वान प तक त व तथा जीव के अवशेष के
पा तरण से हु आ है। यह एक जीवा म धन है िजसको पे ो लयम भी कहते ह।
पे ो लयम का शाि दक अथ ''शैल से ा त तेल'' से है। पे ो लयम क उ प त वन प तय
तथा जीव-ज तु ओं के सड़ने व गलने से होती है। सामा यतया उथले समु , झील , दलदल
न दय के डे टाओं आ द म मृत जीव-ज तु तथा वन प तयाँ तल पर एक त होती रहती
ह और उनके ऊपर अवसाद जमा होते रहते ह। भू गभ म करोड़ वष तक शैल म दबे
रहने के कारण ताप, दाब तथा रे डयो ध मता से पे ो लयम, काबन गंधक आ द त व का
उ व होता है। यह अवसाद शैल म जल क भाँ त सं चत रहता है मु यत: ट शयर युग
क अवसाद शैल म ख नज तेल पाया जाता है।
भू गभ से ा त ख नज तेल अशु प म मलता है। इसे शोधन शालाओं म शो धत कया
जाता है। शो धत पे ो लयम को तीन े णय म वभािजत कया जाता है -
(1) पे ोल (2) डीजल (3) केरोसीन

6.4.2 ख नज तेल का व व वतरण

भू ग भक सव ण के अनुसार व व म लगभग 17456 अरब टन ख नज तेल क सं चत


रा श है। िजसम सवा धक 65% ए शया महा वीप म, 12% यूरोप और 10% अ का
महा वीप के दे श म सं चत है (मान च -6.2)। व व के मु ख दे श म तेल उ पादन का
तशत न न ता लका से है।

च - 6.2 : व व के मु ख पे ो लयम उ पादक े

146
ता लका-6.2 : व व के मु ख दे श म तेल उ पादक का तशत, 2006
.स. दे श दै नक उ पादन तशत
(हजार टन)
1. सऊद अरब 1498 13.4
2. स 1307 11.7
3. संयु त रा य अमे रका 1000 9.0
4. ईरान 582 5.2

5. मैि सको 531 4.8

6. चीन 493 4.4

7. वेनेजु ऐला 426 3.8


8. कनाडा 420 3.8
9. नाव 396 3.6

10. अरब अमीरात 373 3.3


11. कु वैत 366 3.3
12. नाइजी रया 355 3.2

13. ाजील 277 2.5

14. अ जी रया 263 2.4

15. ईराक 255 2.3

16. टे न 239 2.1


17. ल बया 227 2.0
18. कजाख तान 183 1.7
19. ऊंगोल 170 1.5

20. इ डोने शया 153 1.4

21. कतर 149 1.3

22. भारत 107 1.0


Source : UN Statistical Year Book & Energy Statistics Year Book, ENERDATA, 2006
(Internet)
उपरो त ता लका के आकड़ के अनुसार ख नज तेल उ पादन दे श न न ल खत है -
1. सऊद अरब - यह दे श व व का सवा धक ख नज तेल उ पादक दे श है। यहाँ व व
का लगभग 13.5% ख नज तेल नकाला जाता है। इसका वा षक उ पादन 35-40
करोड़ टन है। यहां पर थम तेल कू प सन ् 1926 म धाहरान े म खोदा गया।
यहाँ द मान, घाबर, आबकाइक, का तफ और आइनेदार मु ख तेल उ पादक े ह।
सदोन और रासतनूरा दो मु ख शोधन शालाएँ ह।

147
2. स - वतमान म स का ख नज तेल उ पादन म व व म वतीय थान है। स
के वभाजन के प चात ् ख नज तेल का उ पादन कम हु आ है। यह दे श व व का
12% ख नज तेल उ प न कर रहा है। इसका औसत वा षक उ पादन लगभग 28
करोड़ टन है। इसके उ पादन े न न ह - वो गा-यूराल े म पम, उफा,
कु इबीशेव आ द तेल कू प ह, पि चमी साइबे रयाई े म शशीम और सु रगट नाम के
तेल े है, ोजनी े , तथा सरबा लन े ।
3. संयु त रा य अमे रका - इस दे श का ख नज तेल उ पादन म व व म तीसरा थान
है इसका वा षक उ पादन 17 करोड़ टन है। इसके उ पादन े न न ह -
(i) म य महा वीपीय े - क सास, ओकलाहोमा, टै सास, उ तर लु िजयाना
आ द रा य।
(ii) खाड़ी तट य े - मसी सपी, टे सास, अलबामा, लु िजयाना, लो रडा आ द।
(iii) के लफो नया े - लासएंिजलस बे सन व सॉन जोि वन घाट ।
(iv) रॉक पवतीय े - मो टाना, य मग व यूमैि सको रा य।
(v) द णी पि चमी इि डयाना - मो टाना, यो मंग व यूमैि सको रा य।
(vi) ल मा- इि डयाना - मशीगन े - इि डयाना, मशीगन व ओ हयो रा य।
(vii) अ ले शयन े - यूयाक, पेि सलवे नया, आ हयो ,के टु क व वज नया
रा य।
4. ईरान : यह व व का चौथा बड़ा ख नज तेल उ पादक दे श है। यह तवष व व का
लगभग 5.3% ख नज तेल उ प न करता है यहाँ सव थम वष 1908 म म जेदे
सु लेमान े म पे ो लयम उ पादन कया गया। इसके मु य तेल उ पादक े
मि जदे सु लेमान, लाल , आगाजर , ह तकेल, केरमशाह, गचसारन, न त शा फद
आ द ह।
5. ईराक : यह दे श व व का लगभग 4% ख नज तेल उ प न करता है। यहाँ पर
करकुक, जु बरै , न तखाना, बुटमाह और माइला े म ख नज तेल उ प न कया
जाता है।
6. मैि सको : इस दे श म व व का 4.9% ख नज तेल उ प न कया जाता है।
7. चीन : यहाँ पर करामाई े , सैदाम बे सन, जेचवान बे सन, शे सी और फुसु न म
ख नज तेल उ प न कया जाता है।
8. वेनेजु एला : इस दे श के माराकाइबो झील, ओरो नको बे सन और आपुरे बे सन म
व व का 4.2% ख नज तेल उ प न कया जाता है।
9. कनाडा : यहाँ के एडमंटन-केलगैर , स केचवान- मैनीटोवा आ द े ो म पै ो लयम
उ प न कया जाता है।
10. भारत : भारत ख नज तेल के उ पादन म एक नधन दे श है। यह व व का लगभग
0.9% ख नज तेल उ प न कर रहा है। भारत म ख नज तेल के चार मु ख

148
उ पादक े ह - (i) असम म सू रमा घाट तथा डगबोई े (ii) बॉ बे हाई और
(iii) ख भात क खाड़ी े म अंकले वर एवं कलोल े तथा (iv) पूव तट य े
- गोदावर -कृ ण-कावेर बे सन।
11. अ य ख नज उ पादक दे श : कोलाि बया, अज टाइना, ाजील, संयु त अरब
अमीरात, कु वैत (बुरहान पहाड़ी), नाव, ेट टे न, नाइजी रया, ल बया, यू े न ,
इ डोने शया आ द दे श म ख नज तेल उ प न कया जाता है।

6.4.3 ख नज तेल का उपयोग

आधु नक युग म ख नज तेल एक मह वपूण शि त संसाधन ह नह ं है बि क इसका


व वध े ो म उपयोग कया जाता है जो न न ल खत है -
 पे ोरासाय नक उ योग म क चे माल के प म।
 ख नज तेल वतमान प रवहन तं का मू लाधार है यथा मोटर वाहन , रे ल इंजनो,
जलयान , वायुयान आ द के संचालन म उपयोग।
 कलपुज म नेहक के प म यु त।
 घरे लू धन के प म
 कारखान क मशीन तथा कृ ष म यु त यं म उपयोग।
 व नमाण उ योग म ऊजा के प म, आ द।

6.4.4 ख नज तेल का संर ण

ख नज तेल एक जीवा म धन है, इसका न ाण भू-वै ा नक युग म जैवतल क


रासाय नक कया वारा हु आ है। यह एक यशील ऊजा संसाधन है अत: उसके संर ण
के लए न न उपाय अपे त ह -
 ख नज तेल का भू ग भक सव ण से वा त वक मा ा का पता लगाना।
 इसके शोधन क आधु नक वै ा नक तकनीक को अपनाना।
 इसका उपयोग ऊजा के थान पर क चे माल के प म करना।
 ख नज तेल के वक प क खोज करना।
 घरे लू धन के प म योग पर लगाना।
 व व म उपयु त एवं सु ढ ख नज तेल नी त को लागू करना।
 आव यक उ योग म ह क चे माल के प म ख नज तेल का योग करना।
 ख नज तेल के थान पर अ यशील ऊजा ोत को योग म लाना।
बोध न-2
1. पे ो लयम का शाि दक अथ या है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. ख नज ते ल क उ पि त कै से हु ई ?
............................................................................................

149
................................................................ ...........................
3. भारत म ख नज ते ल उ पादक े कौन से ह ?
................................................ ............................................
................................................................ ...........................
4. आधु नक यु ग म पे ो लयम का या मह व है ?
..................................................................... .......................
..................................................................... .......................
5. व व के पाँ च मु ख पे ो लयम उ पादक दे श के नाम ल खये ?
............................................................................................
....................................................................... .....................

6.5 जल व यु त शि त
जल व युत एक कार क यां क ऊजा है। यह ऊपर से नीचे गरती हु ई जलधारा क
ऊजा से संचा लत टरबाइन तथा डयनम से उ प न क जाती है। य य प ाचीन काल से
ह समु लहर व जल- पात से पवन चि कय को चलाने का चलन रहा है। क तु
जल व युत का उ पादन बीसवीं शता द से कया जाने लगा है। इसके अ तगत धरातल
के वाह जल के वेग तथा आयतन को यां क ऊजा म प रव तत करके जल व युत का
उ पादन कया जाता है। व व का सबसे पहला जल- व युत के 1873 ई. म ांस म
बनाया गया था।

6.5.1 जल व युत उ पादन क आव यक दशाएं

व व के व भ न भाग म जल व युत के उ पादन मे अ य धक वषमताएं पायी जाती


ह। ये वषमताएं भौ तक तथा मानवीय दशाओं के कारण होती ह िजनको हम न न
ब दुओं वारा समझ सकते ह –
I. भौ तक दशाएं : इसके व भ न ब दु इस कार से ह –
 भू म का अ य धक ती ढाल,
 जल पात का होना
 ती गामी नय मत जल- वाह होना,
 बाँध का नमाण करना,
 जल भ डार के लए व तृत भू म क उपलि ध,
 जल वाह के लए तापमान का हमांक से ऊपर होना अ नवाय है।
II. मानवीय दशाएँ : जल व युत के उ पादन म मानवीय कारक बहु त उपयोगी होते ह,
जो न न है -
 उ नत ौ यो गक क आव यकता,
 पूँजी क पया त होना,
 ऊजा के अ य ोत , यथा कोयला, पे ो लयम व ाकृ तक गैस का अभाव,

150
 व युत क औ यो गक एवं नगर य े म मांग,
 मांग े क समीपता,
 व युत इकाइय का उ चत रख-रखाव,
 उपयु त ब धन,
 कु शल मक,
 राजनी तक ढ़ता एवं ती इ छाशि त का होना आ द।

6.5.2 जल व युत उ पादन का वतरण

जैसा क पूव म बताया गया है क व व म व युत क उ पादन और मता का वतरण


अ य धक असमान है। जल व युत के उ पादन क संभावनाएं उन दे श म अ धक है
जहां वष भर वषा होने से न दय म सतत ् जल वाह होता है। इस तरह के उदाहरण
भू म यरे खीय दे श म दखाई दे ते ह। हमनद से नकलने वाल नद से भी व युत
उ पादन क संभावना रहती है। व व म जल- व युत क संभा य मता का लगभग 41
तशत अ का महा वीप म, 23 तशत ए शया महा वीप म, 13 तशत उ तर
अमे रका, 11 तशत यूरोप और 8 तशत द ण अमे रका महा वीप म है। व व म
जल व युत का वा षक उ पादन लगभग 2600 अरब कलोवाट घ टा है। वतमान म
कनाडा और संयु त अमे रका व व के वृहतम जल व युत उ पादक दे श ह। संसार म जल
व युत का वा षक उ पादन न न ता लका से प ट होता है -
ता लका 6.3 : व व म मु ख दे श म जल व युत का वा षक उ पादन, 2005
. स. दे श उ पादन व व का तशत
(अरब कलोवाट त घंटा)

1. चीन 397 13.7


2. कनाडा 360 12.4

3. ाजील 334 11.5

4. संयु त रा य अमे रका 270 9.3


5. स 173 6.0
6. नाव 173 4.6

7. भारत 99 3.4
8. जापान 77 2.7
9. वेनेजु ऐला 74 2.6

10. वीडेन 72 2.5


11. ांस 51 1.8
12. परा वे 51 1.8

13. कोलि बया 39 1.4

151
14. टक 39 1.4

15. आि या 36 1.2
16. अज टाइना 34 1.2
17. इटल 33 1.2
18. ि व जरलै ड 31 1.1
19. पा क तान 31 1.1

20. मैि सको 27 1.0


US Energy Information Administration Web Site.
उपयु त ता लका म अं कत व व म जल व युत का वा षक उ पादन का ववरण का
न न कार ह।
1. कनाडा : यह व व का थम वृहतम जल व युत उ पादक दे श है। यहां व व क
12.6 तशत जल व युत उ प न क जाती है। इस दे श म जल शि त के वकास
के लए उ तरदायी कारक म उपयु त भौ तक दशाए एवं कोयला व पे ो लयम का
अभाव है। इस दे श म जल व युत उ पादन के दो मु ख े ह –

मान च - 6.3 : व व म जल व युत क संभा य मता और उ पादन त प


(i) पूव े : यूबेक तथा ओ टा रयो ा त क सट लारस, सट
मा रस, ओटावा व नगन आ द न दय पर जल व युत उ पादक
के था पत ह।
(ii) संयु त रा य अमे रका : यह व व का वतीय जल व युत
उ पादक दे श है। यहां सतत ् वा हनी एवं ती गामी न दय व जल
पात के कारण जल व युत के उ पादन के अनुकू ल दशाएँ ह।
यहाँ व व क 12.2 तशत जल व युत उ प न क जाती है।

152
यहां पर टे नेसी घाट प रयोजना, नया ा पात, हडसन नद ,
मसी सपी व मसौर न दयां, कोलि बया बे सन, कोलोरे डो
बे सन, ओकुम प रयोजना, ा डकू ल और वान वले प रयोजनाओं
आ द से जल व युत उ प न क जाती है।
(iii) ाजील : व व म जल व युत के उ पादन म ाजील का
तृतीय थान है। यहां पर वष पय त होने से सतत ् वा हनी
न दयाँ बहती ह। ाजील के पठार म साओ ां स को, ट क टस,
अरागुआया, पराना, ना वे, रयो ा डे, साओपालो आ द छोट बड़ी
न दय पर ि थत व युत के ो से व व क लगभग 11.0
तशत जल- व युत उ प न क जाती है।
4. चीन : यह व व का चतुथ बड़ा जल व युत उ पादक दे श है जो व व क लगभग
8.0 तशत जल व युत उ प न करता है। चीन म बहु उ ेशीय प रयोजनाओं के
अ तगत वांगह , यांग ट स यांग, सी यांग आ द न दय पर बांध का नमाण करके
शि तगृह था पत कये गये ह।
5. स : यह व व क लगभग 6.0 तशत जल व युत उ प न करता है। स म जल
व युत क तीन-चौथाई स भा य मता साइबे रया (ए शयाई भाग) म है। यहां पर
वो गा, नीपर, डान, बोरखोव, ओब, एनेसी, ल ना, आमू र आ द न दय पर जल
व युत उ पादक के था पत कये गये ह।
6. नाव : कै डने वया पवत से नकलने वाल न दय पर जल व युत उ पादक के
था पत ह। इस दे श म कु ल यां क ऊजा का लगभग 99.5 तशत जल व युत से
ह ा त होता है।
7. जापान : जापान के म य भाग म ि थत उ च पवत े णय से नकलने वाल न दय
से जल व युत प रयोजनाएं संचा लत होती ह। यहां पर टोहकू और बबू दो मु य
जल व युत के ह।
8. भारत : भारत म जल व युत का उ पादन मु यत: वष 1950 के प चात ् आर भ
हु आ। भारत व व का आठवां बड़ा दे श है जहां 3.1 तशत जल- व युत उ प न क
जाती है। यहां पर बहु उ ेशीय प रयोजनाओं, यथा भाखड़ा-नांगल, रह द, दामोदर घाट ,
तु ंगभ ा, नागाजु नसागर, ह राकु ड, मयूरा ी, च बल, ककराधार, माताट ला, रामगंगा
आ द से जल व युत का उ पादन कया जाता है।
9. अ का महा वीप के अ धक वषा वाले दे श : जल व युत क अ का महा वीप म
व व क 41 तशत जल व युत क सभा य मता व यमान है, पर तु अभी तक
इसके 0.5 तशत का ह वकास हो सका है, य क अ का महा वीप के दे श
आ थक एवं तकनीक प से अ य धक पछड़े हु ए ह। यहाँ पर कांग बे सन, जे बजी
बे सन, गनी तट, नील नद आ द म पया त जल व युत क स भावनाएं ह।

153
10. अ य जल व युत उ पादक दे श : ांस, इटल , ि वटजरलै ड, पेन, पोलै ड, यू े न ,
पी , अज टाइना, कोलि बया, वेनेजु एला, इ वेडोर, नेपाल, पा क तान, बांगलादे श,
उ तर व द णी को रया, आ े लया, यूजीलै ड आ द म भी जल व युत उ प न
कया जा रहा है।

6.5.3 जल व युत का उपयोग एवं मह व

भू तल पर जल सवा धक थायी और अ ु ण संसाधन है। बीसवीं शता द से जल वारा


व युत उ पादन म ती वृ हु ई है, य क जल व युत ऊजा का थायी ोत है। इसका
उपयोग न न प म कया जाता है -
 उ योग-ध ध म
 कृ ष काय म,
 प रवहन के साधन म,
 व भ न भाग म ऊजा के प म,
 घरे लू उपकरण म,
 काश के लए,
 यापा रक काय म आ द।
हम न न ब दुओं से जल- व युत के मह व को दशायगे -
 उपयोग म सु गम एवं सरल,
 अ ु ण संसाधन,
 तु लना मक ि ट से स ता साधन,
 उ च बो ट क शि त का होना,
 बहु उपयो गता का ऊजा ोत,
 सं ेषण म सु गमता
 घरे लू उ योग, यापा रक, शै क, रोशनी आ द सभी े म उपयोग से मह व अ धक
है।
बोध न -3
1. व व म सबसे अ धक जल व यु त कहां उ प न क जाती है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. कौन से महा वीप म जल- व यु त उ प न करने क सबसे अ धक सं भावना
है ?
............................................................................................
............................................................. ...............................
3. अ का महा वीप म जल- व यु त का उ पादन कम होने के या कारण है ?
............................................................................................

154
................................................................. ...........................
4. आधु नक समय म जल व यु त का अ धक मह व य है ?
............................................................................................
................................................................ ............................

6.6 आण वक ऊजा
आण वक ऊजा के उ पादन म व व के वक सत दे श ह आगे ह, यो क इसके लऐ उ च
तकनीक , व करण से सु र ा और अ धक धन क आव यकता होती है। आण वक शि त
का उ पादन रे डयोधम त व -यूरे नयम , रे डयम, लू टो नयम व थो रयम और बैने लयम,
ल थयम व रल मृदाओं जैसे ख नज से कया जाता है।
ऐसे ख नज पदाथ िजनके परमाणुओं के वख डन से ऊजा ा त होती है, आण वक ख नज
कहलाते ह। आण वक ख नज के वख डन से ा त होने वाल ऊजा को आण वक ऊजा
कहा जाता है परमाणु ख नज के ना भक म अ य धक शि त छपी होती है, िजसका
उपयोग व वध पो म कया जा सकता है। आण वक ऊजा को ना भक य ऊजा भी कहा
जाता है। अणु ऊजा उ पादन क दो व धयाँ है - (i) वख डन (Fission) िजसम एक
अणु टू ट कर छोटे परमाणुओं म वभािजत हो जाता है, तथा (ii) संगलन (fussion) -
िजसम दो ह के अणु गलकर और पर पर मलकर एक बड़े अणु म प रव तत हो जाते ह।
वख डन वारा अणु ऊजा ा त करने के लए यूरे नयम (uranium) और थो रयम
(Thorium) का योग कया जाता है।

6.6.1 आण वक ऊजा क वशेषताएं

आण वक ख नज के उपयोग और मह व के अनुसार कु छ मु ख वशेषताएँ न न ल खत


ह-
 आण वक शि त के आधार यूरे नयम, थो रयम, रे डयम और लूटो नयम आ द ख नज
ह।
 आण वक ऊजा के उ पादन के लए परमाणु भ ी लगाने और परमाणु शि तगृह के
नमाण म पूँजी अ धक लगती है।
 इसके लए अ य धक वक सत तकनीक क आव यकता होती है।
 वखंडन और संगलन व ध से आण वक ऊजा उ प न क जाती है।
 मानव क याणकार काय म अ धक उपयोग है।
 साम रक मह व के काय म उपयोग कया जा सकता है।
 रे डयोधम पदाथ क आव यकता आ द।

6.6.2 आण वक ख नज पदाथ का वतरण

आण वक शि त के उ पादन म यूरे नयम और थो रयम का उपयोग कया जाता है । इन


ख नज का व व वतरण न न कार है -

155
(I) यूरे नयम
यह भू गभ म पाये जाने वाला रे डयो धम त व है। इसक खोज अठारवीं शता द म हु ई
थी। इसक ाि त पच लड (Pitch blend) तथा कारनोटाइट (Carnotite) नामक दो
ख नज धातु ओं से होती है। यूरे नयम को वखं डत करके भू त मा ा म ना भक य ऊजा
ा त क जाती है। यह पच लड क शराओं और कां लोमरे ट शैल म पाया जाता है।
एक कला ाम यूरे नयम के वखंडन से 25 लाख कलो ाम कोयला के समान ऊजा ा त
होती है।
उ पादक दे श - वतमान म स पूण व व म यूरे नयम का वा षक उ पादन लगभग 35
हजार मीटर टन है। यूरे नयम के उ पादन से संबं धत दे श के आकड़े न न ल खत
ता लका से प ट होते ह -
ता लका 6.4 : व व म यूरे नयम का वा षक उ पादन, 2004
. सं. दे श उ पादन
(सौ मीटर टन मे)
1. कनाडा 109.2
2. आ े लया 49.1
3. द ण अ का 37.7
4. नाइजर 37.1
5. स 25.3
6. उजबे क तान 19.3
7. स. रा. अमे रका 18.1
8. कजाक तान 12.7
9. यू े न 10.0
10. चीन 5.9
11. ांस 5.1
12. भारत 2.1
13. अ य दे श 19.6
व व कु ल 351.8
Source: UN Energy Statics Year book, 2004

च - 6.4 : व व के यूरे नयम भ डार का वतरण


156
उपयु त ता लकानुसार यूरे नयम का व व वतरण इस कार से है -
1. कनाडा : यह व व का सवा धक 10.9 हजार मीटर टन यूरे नयम का उ पादन करता
है। इसके उ पादक े - (i) पोटरे डयम, (ii) बीवरलाज (iii) लाइ ड घाट , (iv)
बान ो ट े आ द ह।
2. आ े लया : यह व व का दूसरा यूरे नयम उ पादक दे श है जहाँ तवष 4.9 हजार
टन यूरे नयम उ प न कया जाता है। इसके उ पादन े रे डयम हल, मैर कैथल न
तथा रम फारे ट ह।
3. द णी अ का : यह व व का तीसरा यूरे नयम उ पादक दे श है जो 3.8 हजार टन
यूरे नयम का उ पादन करता है। यहाँ ांसवाल े क खदान से यूरे नयम नकाला
जाता है।
4. नाइजर : इस दे श म 3.7 हजार टन यूरे नयम का उ पादन कया जाता है।
5. स : यह 2.53 हजार मीटर टन यूरे नयम का उ पादन करता है।
6. संयु त रा य अमे रका : इस दे श म 1.8 हजार मीटर टन यूरे नयम का उ पादन
कया जाता है। अ धकांश यूरे नयम क ाि त कोलेरेडो पठार से होती है।
7. भारत : भारत म 0.21 हजार मीटर टन यूरे नयम का उ पादन कया जाता है। यह
बहार, आ दे श और राज थान रा य म धारवाड़ और आ कयन शैल से ा त
कया जाता है।
8. व व के अ य दे श : इनके अलावा ांस, पेन, जमनी, पा क तान, चीन, यू े न ,
नामी वया, अ जी रया आ द दे श म यूरे नयम का उ पादन कया जाता है।
(II) थो रयम :
यह पूरे वेत रं ग क रे डयोधम धातु है। इसका मु ख अय क मोनाजाइट है जो शेल क
शराओं म तथा रे त म पायी जाती है। इसका वणांक 500०पै. है। इसका व व म
उ पादक े ं न न ह।
1. भारत : थो रयम के वृहतम भंडार भारत म ि थत है। यहाँ पर यह मानोजाइट
ख नज म मलता है। यह केरल के समु तट य रे तीले भाग तथा त मलनाडु ,
आ ध दे श और उड़ीसा के पूव समु तट पर मलता है।
2. ाजील : ाजील के पूव समु तट य भाग के एि प रटा सा टा े म थो रयम
पाया जाता है।
3. संयु त रा य अमे रका : इसके लो रडा तट तथा पि चमी राक पवतीय े म
थो रयम यु त ख नज पाये जाते ह।
4. द ण अ का : यहाँ क शैल शराओं म थो रयम क मा ा पायी जाती है।

6.6.3 आण वक ऊजा का उ पादन

आण वक ऊजा का व व म सव थम वष 1930 ई. म ान हु आ था। ार भ म यह


ऊजा ोत बहु त मंहगी मालू म होती थी, ले कन इससे व युत उ पादन का यय कोयले

157
क अपे ा कम होता है। हालां क यूरे नयम मंहगा है, ले कन इतने कोयले का मू य और
इसका प रवहन खच क अपे ा यह स ता है। व व म आण वक ऊजा के उ पादक दे श
वक सत दे श ह। आण वक ऊजा आण वक ख नज के वखंडन से ा त होती है। वखंडन
का काय वशेष ढं ग से रए टर के मा यम से कया जाता है। इसक ऊजा को व युत म
प रव तत कया जाता है जो अ य धक ज टल या है तथा खच ल भी है। व व म वष
2005 म 2626 अरब घंटे परमाणु ऊजा का उ पादन हु आ िजसका ववरण न नानुसार
है।
ता लका 6.5 : व व म आण वक ऊजा का उ पादन 2004
.सं. दे श उ पादन तशत
(अरब कलोवाट घ टा)
1. सयु ं त रा. अमे रका 782 29.8
2. ांस 429 16.3
3. जापान 278 10.6
4. जमनी 155 5.9
5. स 140 5.3
6. द. को रया 139 5.3
7. कनाडा 87 3.3
8. यू े न 83 3.2
9. ेट टे न 75 2.9
10. वीडेन 69 2.6
11. जापान 55 2.1
12. चीन 50 1.9
13. बेि जयम 45 1.7
14. भारत 16 0.6
Source : UN Statics Year Book, 2006
उपयु त ता लका से व व म आण वक उ पादक दे श इस कार से ह -
1. संयु त रा य अमे रका : इस दे श म वष 1958 म थम आण वक संयं प सबग
के नकट शं पग पोट म था पत कया गया। यह दे श व व क सवा धक परमाणु
ऊजा, 7141 अरब कलोवाट घ टा उ प न कर रहा है। यहाँ के लफो नया म बकले व
लवरमोर, वा शंगटन म हसफोड, नेवादा म लासबेगास, यूयाक म सेने टै डी, यू
मैि सको म लास- अलासास तथा जािजया म सराना मु ख के ह।
2. ांस : व व म आण वक ऊजा क ि ट से ांस दूसरे थान पर है। यहाँ 3880
अरब कलोवाट घ टा ऊजा उ प न क जाती है। मारकूले मु ख आण वक शि त के
है।

158
3. स : व व म आण वक शि त उ पादन म स का चतु थ थान है। यह 1037
अरब कलोवाट घ टा आण वक शि त उ प न कर रहा है। यहाँ पर मान ीस लाक
ाय वीप पर व व का सबसे बड़ा परमाणु शि तगृह था पत है। इसके अ त र त
नीवो-वोरोनेरा, कोला, ले नन ाड तथा ि ल बना आ द अ य मु ख के ह।
4. ेट टे न : यहाँ हंटसटन, ा स फ नड, कैले, चैकेल ास, ओ डवर , साइजवेल, वैडवेल
आद मु ख परमाणु शि त गृह ह।
5. भारत : भारत म 120 अरब कलोवाट घ टा आण वक शि त उ प न क जाती है।
परमाणु शि त के वकास के लए भाभा परमाणु अनुस धान के था पत कया
गया। यहाँ प रघाती खोज के (Atomic Reactors) अ सरा, साइस, जरल ना, तथा
पू णमा ह। भारत का पहला परमाणु व युत के मु बई के नकट तारापुर म सन
1969 म था पत कया गया। इसके अलावा रावत भाटा, काकरपारा, कलप कम,
नरोरा आ द आण वक म शि तगृह था पत कये गये।
6. व व के अ य दे श : व व म कनाडा, जमनी, वीडन, पेन, जापान, चीन, द णी
अ का, अज टाइना, बेि जयम, यू े न आ द दे श ने आण वक ऊजा शि त के
था पत ह।

6.6.4 आण वक ऊजा का उपयोग

आण वक ऊजा का उपयोग न न े म कया जाता है -


 मानव कलयाणकार काय म,
 साम रक उ े य के लए,
 च क सा व ान के े म,
 कृ ष, उ योग तथा ताप व युत के उ पादन म,
 सजन तथा वकास क अपार शि त व यमान।

6.6.5 आण वक ऊजा का संर ण

मानव के आ थक वकास एवं उ च जीवन तर के लए ऊजा का उपयोग अ नवाय है।


इस लए ऊजा संकट से बचने के लए ऊजा संर ण आव यक है। इसके लए न न ल खत
उपाय अपे त ह-
 आण वक ख नज क खोज करके उ खनन णाल म सु धार करना चा हए
 रे डयोधम पदाथ से अ य रे डयोधम करण का उ सजन होता है िजसका मनु य
तथा अ य जीव के वा य पर दु भाव पड़ता है। अत: रे डयोधम दूषण को
रोकना चा हए। परमाणु बम के व फोट पर रोक लगनी चा हए।
 परमाणु भ य से होने वाले रसाव पर नयं ण परम आव यक है।
 रे डयोधम यथ पदाथा का न तारण सह तर के से करना चा हए आण वक ऊजा का
उपयोग मानव वकास और व थ जीवन के लए होना चा हए।
बोध न -4

159
1. आण वक ऊजा या है ?
............................................................................................
............................................................................. ...............
2. आण वक ख नज पदाथ के नाम ल खए ?
............................................................................................
............................................................................ ................
3. व व का सवा धक आण वक ऊजा उ प न करने वाला कौनसा दे श है ?
............................................................................................
............................................................................................
4. भारत के आण वक व यु त के ो के नाम ल खए ?
............................................................................................
............................................... .............................................
5. आण वक ऊजा का उपयोग कन े म कया जाता है ?
............................................................................................
................................................................ ............................

6.7 सारांश (Summary)


मानव के वकास और आव यक सु वधाओं के लए ऊजा क आव यकता होती है।
सामा यतया समृ के लए कसी न कसी शि त के संसाधन का उपयोग कया जाता है।
मानव ार भ से ह अपनी भौ तक सु वधाओं, आ थक वकास, सामािजक उ च जीवन तर
आ द के लए पूण प से संसाधनो पर नभर है। व व म शि त के संसाधन के वतरण
म असमानता पायी जाती है। कोयला, ख नज तेल, जल व युत और आण वक ऊजा
परं परागत ऊजा के ोत ह। इस अ ययन म यह प ट होता है क िजन दे श म ऊजा
के ोत क चु रता है और उनका वदोहन समा यतया आव यकता के अनुकू ल हो रहा है
वे दे श समृ शाल या वकासशील ि थ त से गुजर रहे है। संयु त रा य अमे रका, स,
ेट टे न, चीन, कनाडा, जापान, जमनी, भारत आ द दे श म कोई न कोई ऊजा का ोत
उपल ध है। इस लए ये दे श उ योग, कृ ष, ऊजा, तकनीक , प रवहन व ान आ द क
ि ट से स प न ह। शेष व व के अ य दे श म ऊजा के ोत के अभाव म वकास
अव है। अत: उन दे श म कृ त द त ोत क पहचान कर उनका वा त वक
सदुपयोग करना ह उपयु त होगा।

6.8 श दावल (Glossary)


 अ यशील ोत : ऐसे साधन िजनका उपयोग करने पर वे न ट नह होते ह जैसे सौर
ऊजा, पवन ऊजा आ द।
 जीवा म धन : िजनका नमाण भू-वै ा नक युग म जैव त व क रासाय नक
या वारा हु आ है।

160
 यां क ऊजा : जो ऊजा संचा लत डायनेमो (टरबाइनो) से उ प न क जाती है।
 वखंडन : िजसम एक अणु टू ट कर दो छोटे परमाणु ओं म वभािजत हो जाता है।
 संगलन: िजसम दो ह के अणु डालकर ओर पर पर मलकर एक बड़े अणु म परव तत
हो जाते है।

6.9 स दभ थ (Reference Books)


1. बी. एस. नेगी : संसाधन भू गोल, केदार नाथ रामनाथ पि लकेशन, 2005
2. मो. हा न : संसाधन भू गोल, वसु धरा काशन, 2007
3. एस. डी. कौ शक : संसाधन भू गोल, र तोगी पि लकेशन, 2007
4. एस. डी. मौय : संसाधन भू गोल, याग पु तक भवन, 2006
5. Hartshorn & Alexander : Economic Geography, Prentic Hall of
India Pvt. Ltd, 2005
6. J. L. Guha & P. R. Chatoraj : Economic Geography, The Would
Press Pvt. Ltd. 2001,

6.10 बोध न के उ तर
बोध न - 1
(i) व तृत सघन दलदल वन का भू ग भक हलचल के कारण भू म म दबने से
आ त रक दवाब, भंचाव एवं ताप से कोयले क उ पि त।
(ii) (i) ऐ ेसाइट (ii) बटु मनस
(iii) लगनाइट (iv) पीट
(iii) ऐ ेसाइट
(iv) तीसरा
(v) चीन, संयु त रा य अमे रका, भारत, आ े लया और स।
(vi) ग डवाना शैल म।
बोध न - 2
1. शैल से ा त तेल
2. उथले समु , झील , दलदल , न दय के डे टाओ आ द म मृत जीव-ज तु तथा
वन प तय पर नर तर अवसाद के जमाव एवं आ त रक ताप, दाब व रे डयोध मकता
के भाव से ख नज तेल क उ प त।
3. थार े (1) असम घाट , (2) बा बे हाई, (3) खंभात क खाड़ी और (4) पूव तट य
े ।
4. (i) पे ोरसाय नक उ योग म
(ii) प रवहन के साधन म
(iii) कलपुज मे नेहक के प म

161
(iv) व नमाण उ योग म
(v) मशीन एवं कृ ष यं म
5. सऊद अरे बया, स, संयु त रा य अमे रका, ईरान तथा मैि सको।
बोध न - 3
1. चीन म
2. अ का महा वीप
3. (i) आ थक एवं तकनीक प से अ य धक पछड़ापन
(ii) सरकार उदासीनता
4. (i) तु लना मक ि ट से स ती ऊजा ोत,
(ii) अ ु ण संसाधन
(iii) अ य धक ऊजा का उ प न होना,
(iv) व भ न भाग म उपयोग,
(v) उपयोग म सरल आ द।
बोध न – 4
1. आण वक ख नज के वखंडन से ा त होने वाल ऊजा।
2. यूरे नयम , थो रयम, रे डयम, तथा लू टो नयम।
3. संयु त रा य अमे रका।
4. तारापुर, रावत भाटा, कलप कम, नरोरा, व काकरापारा।
5. (i) मानव क याणकार काय म
(ii) च क सा व ान के े म
(iii) साम रक मह व के उ े य के लए
(iv) कृ ष उ योग म उपयोग
(v) ताप व युत उ पादन
(vi) आण वक बम एवं रे डयो धम दुषण

6.11 अ यासाथ न
1. कोयला के उ पादक े बताइये तथा उसके संर ण के उपाय को ल खये।
2. ''पे ो लयम ने म य पूव के दे श क दशा बदल द है।'' कथन क ववेचना
क िजये।
3. व व के जल व युत उ पादन े का वणन क िजये।
4. ''भ व य म परमाणू शि त का वकास ह औ यो गक वकास का आधार होगा।''
सकारण या या क िजये ?

162
इकाई 7 : गैर-पर परागत ऊजा संसाधन (Non
Conventional Energy Resources)
इकाई क प रे खा
7.1 उ े य
7.2 तावना
7.3 सौर ऊजा
7.3.1 सौर ऊजा के उपयोग क वध
7.3.2 सौर ऊजा का व व वतरण
7.3.3 सौर ऊजा का उपयोग
7.3.4 सौर ऊजा का संर ण
7.4 पवन ऊजा
7.4.1 पवन ऊजा का उ पादन एवं वतरण
7.4.2 पवन ऊजा का उपयोग
7.5 भू तापीय ऊजा
7.5.1 भू-तापीय ऊजा का उ पादन एवं वतरण
7.5.2 भू-तापीय ऊजा का उपयोग
7.6 वार य ऊजा
7.6.1 वार य ऊजा का उ पादन एवं वतरण
7.6.2 वार य ऊजा का उपयोग
7.7 जैव ऊजा
7.7.1 जैव ऊजा का उ पादन एवं वतरण
7.7.2 जैव ऊजा का उपयोग
7.8 सारांश
7.9 श दावल
7.10 संदभ थ
7.11 बोध न के उ तर
7.12 अ यासाथ न.

7.1 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरांत आप समझ सकगे क :
 व व के अपर परागत ऊजा ोत का ववरण,
 सौर ऊजा उ पादन े ,
 नपल ऊजा का वतरण,

163
 वार य ऊजा का वतरण,
 जैव ऊजा के े ,
 अपर परागत ऊजा ोत का मह व,
 अपर परागत ऊजा ोत क सम याये एवं स भावनाऐं।

7.2 तावना (Introduction)


इस ईकाई म गैर-पर परागत ऊजा ोत का अ ययन कया जाऐगा। गैर-पर परागत ऊजा
ोत से ता पय ऐसे ऊजा से है िजनका उपयाग वतमान समय म बहु त कम कया जाता
है य य प उनका पुन : योग के लए नवीनीकरण कया जा सकता है। गैर-पर परागत
ऊजा ोत म सौर ऊजा, पवन ऊजा, जैव ऊजा, वार य वषा, भू तापीय ऊजा, तरं ग ऊजा
आद मु ख ह। ये ऊजा ोत अ यशील होते ह। इनका पुन : उपयोग कया जाता है। आज
व व म पर परागत ऊजा के ोत समा त होते जा रहे ह। उनके वक प और मांग के
अनुसार गैर-पर परागत ोत धीर-धीरे वक सत हो रहे ह। इन साधन से पयावरणीय
दूषण भी नह ं होता है। ले कन व व म इन ोत से ऊजा बहु त कम मा ा मे उ प न
क जा रह है। इनका व तृत ववरण इस इकाई म कया जाऐगा।

7.3 सौर ऊजा (Solar Energy)


सू य असीम ऊजा शि त का ोत है। इससे ा त होने वाल ऊजा को सौर ऊजा कहते ह।
यह सतत ् प से ा त होने वाल थायी ऊजा ोत है। सौर ऊजा सू य क सतह से लघु
तंरग वारा सा रत होती है। िजसक ग त 298 कमी त सेके ड होती है। इनम
हाइ ोजन तथा ह लयम गैस क धानता है। सू य क सतह का तापमान 6000०
सोि सयस तथा इसके के का तापमान 20,000,000० सेि सयस तक होने का अनुमान
है। इतने ऊंचे तापमान के कारण तापीय-आण वक याओं के कारण हाइ ोजन गैस म
प रव तत होती है और ऊजा को व करण वारा सा रत करती है। इसी सौर व करण से
काश तथा ऊ मा ा त होती है।
ता लका- 7.1 : व व म सौर ऊजा का उ पादन, 2005
. सं. दे श उ पादन
(करोड़ कलोवाट/ घ टा)
1. जमनी 128.2
2. संयु त रा य अमे रका 59.6
3. लाओ गणरा य 19.3
4. पेन 7.8
5. इटल 3.1
6. द णी अ का 2.1
7. कनाडा 1.7
8. आ े लया 1.1

164
Source : UN Statistical Year Book & Energy Statisticvs Year Book, 2006.

सू य से पृ वी को ा त होने वाल व करण ऊजा को सू यताप कहते ह। सू य के तल से


त सैके ड नकलने वाल व करण ऊजा 16,000 अ व शि त के बराबर होती है,
िजसका 1/2 अरब वां भाग ह पृ वी तक पहु ँ च पाता है। ले कन पृ वी को ा त होने वाल
यह अ प मा ा लगभग 23,000 अ व शि त के बराबर होती है। सू यातप क मा ा
भू म य रे खा के समीप सवा धक होती है तथा ु व क ओर मश: घटती जाती है। सू य
क करण का तरछापन, दन क अव ध, अ ांशीय ि थ त, पृ वी से सू य क दूर , सौर
कलंक तथा वायुम डल य दशाएं सू यताप के वतरण को भा वत करती ह।
सौर ऊजा क ाि त सू य क करण के मा यम से होती है अत: य प से यह दन
म ह उपल ध हो सकती है और वह भी दै नक तथा ऋतु के अनुसार घटती-बढ़ती रहती
है। अत: सौर-ऊजा का उपयोग सतत ् प म तभी कया जा सकता है, जब उसे यां क
प म सं चत कया जा सके।

7.3.1 सौर ऊजा के उपयोग क वध

व व म सौर ऊजा का योग मु यत: अ ल खत दो व धय से कया जाता है -


(i) सौर तापीय मा यम : इस व ध म सौर ऊजा को तापीय ऊजा म पीरव तत कया
जाता है। इसम सौर धू प को बड़े-बड़े आतशी शीश , र े टर या लस क
सहायता से एक थान पर बड़ी मा ा म सं ह कया जाता है। इस संकेि त
आवेश का तापमान 6000० फै. तक पहु ंच जाता है। इस ताप क मता एक
मनट म 8 इंच मोटे इ पात म 12 इंच ल बा छे द करने तक क होती है।
(ii) सौर फोटो वा टे इक मा यम : इस व ध म सौर धू प से सीधे व युत बनायी
जाती है। इसके लए व श ट कार के स लकन सेल का योग कया जाता है।

मान च - 7.1 : व व के मु ख सौर ऊजा उ पादक े

7.3.2 सौर ऊजा का व व- वतरण (World Distribution Of Solar Energy)

आधु नक युग का ऊजा े म महानतम ऊजा ोत सू य है। इसके वारा ऊजा उ पादन
करना बहु त मंहगा होता है। इसी कारण गर ब एवं अ वक सत दे श म इसका उ पादन कम
होता है। सौर ऊजा का उ पादन उ ण क टब धीय े म ह होता है। व व क सवा धक
165
92 तशत सौर ऊजा का उ पादन अकेला संयु त रा य अमे रका करता है। इसके मु य
उ पादन े लो रडा, कै लफो नया, लॉस एंिजल स, वसका सन आ द ह। व व क
वशालतम सौर-भ ी संयु त रा य अमे रका के मोजाव म थल के 'लु ज' नामक थान
पर था पत है। च परे नीज म ओडेर ल के नकट वशाल सौर भ ी ि थत है।
आ े लया, इजराइल, द ण अ का और भारत म भी सौर ऊजा उ प न क जाती है।
भारत म व व का वशालतम सौर सरोवर क थापना गुजरात म भु ज नगर के समीप
'माधपार' नामक थान पर क गयी है। ह रयाणा, कनाटक, त मलनाडु , म य दे श,
महारा , उ तर दे श और राज थान म सौर ऊजा उ पादक लांट था पत ह। राज थान
म जोधपुर िजले के मथा नया क बे म सोलर ऊजा शि त गृह था पत कया गया।

7.3.3 सौर ऊजा का उपयोग (Use of Solar Energy)

हालां क सौर ऊजा का उपयोग वृहद तर पर ार भ नह ं हु आ है, फर भी इसका न न


े म उपयोग कया जाता है
 घर एवं सड़क पर काश यव था म,
 होटल, अ पताल एवं सामु दा यक भवन म पानी गरम करने म,
 रे डयो, ट वी. सेट, ह टर, कू कर, ायर, गणक आ द उपकरण चलाये जाते ह।
 वमान प तन एवं लघु उ योग म उपयोग आ द।

7.3.4 सौर ऊजा का संर ण (Conversation of Solar Energy)

व तु त: सौर ऊजा सतत ् ा त होने वाल थायी ऊजा ोत है। इसक ऊजा को सं चत
करने क तकनीक को वक सत कया जाना चा हए। सू य के ताप को इ पात न लकाओं म
सं ह कया जाये, िजससे आव यकतानुसार समय पर योग कया जा सके। इसके लए
न लकाओं म नाइ ोजन वाह करना होगा जो इस ताप को ग लत लवण के टक म
प रव हत कर दे गी। ये टक बहु त दन तक ताप को बनाये रखते ह। इसके अ त र त
अ तर उप ह के वारा भी सौर ऊजा का सं हण कया जाना चा हए। ऊजा उ पादन
यं , सेल एवं ला ट को स ता करने के उपाय भी वै ा नक को ढू ढने चा हए।
बोध न -1
1. सौर ऊजा या है ?
............................................................ .......................
.................................................................. .................
2. सौर ऊजा उपयोग क व धयां कौनसी ह ?
............................................................ ......................
........................................................... .......................
3. सू य म कन गै स क धानता ह ?
............................................. .....................................

166
................................................................. ...................
4. सवा धक सौर ऊजा कस दे श म उ प न क जाती है ?
............................................................ ........................
................................................................ ....................

7.4 पवन ऊजा (Wind Energy)


पवन ऊजा एक कार क ग त ऊजा है। िजसके वेग से टरबाइन को संचा लत करके
व युत ऊजा उ प न क जाती है। यह ऊजा उ ह ं भाग म उ प न क जाती है िजन
े म उप रवत एवं म यम वायु हमेशा चलती है, ऐसी हवा दोन गोला म 30०-40०
अ ांश के म य चलती ह। पवन ऊजा ा त करने के लए वायु ग त 25 कमी से 80
कमी त घ टा होनी चा हए है। इसके लए न तो वायु को शा त या अ य त मंद होना
चा हए और न आँधी-तू फान जैसे ती होना चा हए।

मान च -7.2 : व व के मुख पवन ऊजा उ पादक े

7.4.1 पवन ऊजा का उ पादन एवं वतरण (Production and Distribution of


Wind Energy)

पवन चि कय का योग ऊजा के प म ाचीन काल से ह हो रहा है। ईरान म ईसा क


7 वीं शता द म अ न पीसने के लए पवन चि कय के माण मलते ह। हालै ड म सन ्
1450 ई. म तथा इ लै ड म सन◌् 1185 म पवन चि कय के था पत होने के माण
मलते ह।
वतमान म व व म पवन ऊजा का उ पादन न न ता लका से प ट होता है -
ता लका- 7.1 : व व म पवन ऊजा का उ पादन, 2005
.सं. दे श उ पादन
(करोड़ कलोवाट / घ टा)
1. जमनी 2722.9
2. संयु त रा य अमे रका 1788.1
3. डेनमाक 661.4
4. इटल 234.4
5. नीदरलै ड 178.4

167
6. जापान 174.8
7. कनाडा 147.1
8. आि या 132.8
9. ीस 126.6
10. आयरलै ड 111.2
11. आ े लया 88.1
12. म 55.2
13. बेि जयम 22.7
14. को ट रका 20.4
15. फनलै ड 17.0
16. भारत 11.6
Source : UN Statistical Year Book & Energy Statics Year Books, 2006 (Internet)
उपयु त ता लका से प ट होता है क व व म सवा धक पवन ऊजा जमनी म 27.2
अरब कलोवाट त घ टा उ प न क जाती है। इसके बाद संयु त रा य अमे रका का
वतीय थान और डेनमाक का तीसरा थान है। भारत म बहु त कम मा ा 11.6 करोड़
कलोवाट घ टा पवन ऊजा उ प न क जाती है। व व का वशालतम पवन शि त
जनरे टर (300 कमी मता) जमनी के जीयन तट पर था पत है।

7.4.2 पवन ऊजा का उपयोग (Use of Wind Energy)

पवन ऊजा का उपयोग न न े म कया जाता है-


 पेय जल नकालने के लए,
 संचाई के लए नलकू प को चलाने म,
 ह क मशीन म,
 धन के प म आ द।
वतमान म पवन क शि त से चा लत पवन-च क जनरे टर से बड़े पैमाने पर व युत
उ पादन कर भ डारण के यास कये जा रहे ह। भ व य म बहु त मह वपूण ऊजा ोत
सा बत होगा।

बोध न –2
1. पवन ऊजा या है ?
............................................................................................
............................................................... .............................
2. व व म सवा धक पवन ऊजा के पां च दे श के नाम लख।
............................................................................................
................................................................. ...........................
3. कौनसे अ ां श म पवन ऊजा उ प न क जा सकती है ?
............................................................................................

168
............................................................................. ...............

7.5 भू-तापीय ऊजा (Geo-thermal Energy)


वतमान म मानव को पृ वी के आंत रक भाग से ा त ऊ मा एक महानतम यवहा रक
नवीन ऊजा ोत के प म ा त है। पृ वी के अ दर भू तापीय ऊजा का अपार भंडार है ।
भू ग भक ताप से ा त होने वाल ऊजा को भू तापीय ऊजा कहते ह। पृ वी के आंत रक
भाग म 1017 मेगावाट वष ऊजा सं चत होने का अनुमान है। भू गभ म तापीय ऊजा के
चार मु ख ोत ह - (i) संवाह नक त त जल, (ii) गम शु क शैल तंग, (iii) त त मै मा
तथा (iv) भू ग भक दाब वाला तापीय े । अभी तक 150० सेि सयस से अ धक तापमान
वाले संवाह नक जलय ोत से ताप ह व युत उ प न क जाती है।
संसार के बहु त से भाग म धरातल से नीचे 1 से 5 मील क गहराई पर उ ण च ाने ह।
इस उ मा का उ चत योग कू प खोदर तथा शीत जल का प प वारा उस च ान म
वा हत करके कया जा सकता है। वह जल च ान क ऊ मा से 350० फै. तक गम होकर
संवहन वारा धरातल क ओर उठता है। तब उसक ऊजा को टरबाइन को चलाने म
योग कया जा सकेगा।

7.5.1 भू-तापीय ऊजा का उ पादन एवं वतरण (Prodution and Distribution of


Geothermal Energy)

व तु त: गम जल के झरने तथा जवालामु खी े म भू-तापीय ऊजा के उ पादन क


सवा धक संभावनाएं होती ह। ाय: वालामु खी े भूग भक लेट के तथा स य
भू सच
ं लन वाले ं सत े म पायी जाती ह। व व के छोटे -बड़े लगभग 80 दे श म
स य वालामु खी पाये जाते ह। इन े म भू तापीय ऊजा के उ पादन तथा उपयोग क
बल संभावनाएं व यमान ह। व व म भू तापीय ऊजा के उ पादक े का ववरण न न
ता लका से प ट है –

मान च - 7.3 : व व के मु ख भू-तापीय ऊजा उ पादक े


ता लका - 7.2 : व व म भू तापीय ऊजा का उ पादन, 2005
.सं. दे श उ पादन
(करोड़ कलोवाट/ घ टा)
1. संयु त रा य अमे रका 1677.8
2. फ लपाइ स 990.2
169
3. मैि सको 729.9
4. इटल 532.4
5. जापान 302.7
6. आइसलै ड 165.8
7. इल-स वाडोर 105.1
8. को ट रका 93.3
Source : UN Statistical year Book & Energy Statistics Year Book, 2006 (Internet)

उ त ता लका म द शत आंकड के अनुसार व व म सवा धक भू तापीय ऊजा संयु त


रा य अमे रका म 1677.8 करोड़ मेगावाट घ टा उ प न क जा रह है। इसका मु य
े के लफो नया क इ पी रयल घाट है। फ लपाइ स और मैि सको का मश: भू तापीय
उ पादन म वतीय व तृतीय थान है। इटल के यू केनी ा त म लोरे स के पास
ाकृ तक वा प े म यह ऊजा उ प न क जा रह है। उ त ता लका म व णत सभी दे श
वालमु यी भा वत े म आते ह। भारत म हमाचल दे श के म नकारन तथा ल ाख
के पूगा घाट म भू-तापीय ऊजा का दोहन कया जा रहा है।

7.5.2 भू-तापीय ऊजा का उपयोग (Use of Geo-therwal Energy)

भू-तापीय ऊजा के उपयोग न न ह -


 घरे लू इले ो नक उपकरण के उपयोग म,
 काश एवं रोशनी करने म।
 संचाई करने म।
 छोटे उ योग आ द म उपयोग म लायी जाती है।
बोध न -3
1. भू - तापीय ऊजा या है ?
............................................................................................
................................................................. ...........................
2. व व म सवा धक भू तापीय ऊजा उ प न करने वाले े कौनसा ह ?
............................................................................................
................................................................. ...........................
3. भू - तापीय ऊजा के मु ख ोत ल खये ?
............................................................................................
.......................................................................................... ..

7.6 वार य ऊजा (Tidal Energy)


समु तट य भाग म ाय: त दन नि चत अंतराल के प चात ् वार आते रहते ह।
सागर म वार क उ पि त च मा और सू य के गु वाकषण बल के कारण होती है।
िजससे सागर म जल क ऊँची-ऊँची लहरे उ प न होती है। सागर य जल के ऊपर उठकर

170
आगे बढ़ने का वार और नीचे गर कर पीछे लौटने को भाटा कहते ह। अ य धक वार य
आवृ त वाले सागर तट य े म वार शि त का उपयोग जल व युत उ पादन के ोत
के प म कया जाता है।
वार य तरं ग के दवाब से व युत उ प न क जाती है। सागर तट पर वार च क या
सागर झील था पत क जाती है इनको वार य तरं ग से ा त होने वाल शि त से
संचा लत कया जाता है। वार चि कय को ाय: सागर तट पर ह था पत कया जाता
है।

7.6.1 वार य ऊजा का उ पादन व वतरण (Production and Distribution of


Tidal Energy)

सामा यतया समु तटवत दे श म वार य ऊजा उ प न क जाती है। व व के न न


दे श म वार य ऊजा उ प न क जा रह है-
ता लका- 7.3 : व व म वार य ऊजा का उ पादन, 2005
.सं. दे श उ पादन
(करोड़ मेगावाट/ घ टा)
1. ांस-मोनाको 53.4
2. कनाडा 3.1
3. संयु त रा य अमे रका 1.6
Source- Statistical Year Book & Energy statics Year Book 2006 (Internet)

उ त ता लका के अनुसार संसार का सव थम वृहत पैमाने पर वार य शि त उ पादन


लांट ांस म रे स नद क ए चु अर पर था पत कया गया। कनाडा म यू स वक
और संयु त रा य अमे रका म मेन रा य म फुंडी क खाडी म वार य ऊजा उ प न क
जाती है। भारत म वार य ऊजा ाि त क संभवनाएं सी मत ह, य क यहां पर तट
कटा-फटा नह है और न ह गहर खा डयाँ ह। ले कन फर भी ख भात क खाडी, क छ
क खाडी, नमदा, ता ती व हु गल नद के मु हान पर वार य ऊजा उ प न करने क
बल संभावना है।

7.6.2 वार य ऊजा का उपयोग (Use of Tidal Energy)

न न ह -
 सागर तट पर वार शि त था पत करना,
 लघु उ योग म उपयोग आ द।
बोध न -4
1. वार य ऊजा या है ?
............................................................................................
..................................................................................... .......
2. सं सार का सव थम वार य ऊजा उ पादन का लां ट कहाँ था पत हु आ ?

171
........................................................................................ ....
................................................................ ............................

7.7 जैव ऊजा (Bio-Energy)


जैव ऊजा का उ पादन जीव के उ सिजत पदाथा, पशु ओं के गोबर वन प तय के अप श ट
पदाथ , शहर के कू ड़ा-करकट, मानव के मलमू व गंदे पानी को सड़ाया व गलाया जाता
है और उससे बायोगैस उ प न होती है, िजसका उपयोग ऊजा के प म कया जाता है।
इसके लए छोटे बडे बायोगैस उ पादक संयं था पत कये जाते ह। त इकाई े फल
म व यमान जै वक पदाथ कु ल भार को बायोमास कहा जाता है। इसके अंतरगत पौध
तथा फसल के डठल, गोबर, कू ड़ा-कचरा आ द को स म लत कया जाता है।
बायोमास से ऊजा दो याओं वारा ा त क जाती है - (i) तापीय रासाय नक या
(Thermo-Chemical Process)- इस या वारा ताप, वा प तथा गैस उ प न क
जाती है। (ii) जै वक या (Biological Process) - इस या के अंतगत ताप या
क वन वारा एलकोहल तथा बै ट रया के भ ण से बायोगैस उ प न होती है।

7.7.1 जैव ऊजा का उ पादन एवं वतरण (Production and Distribution of


Biogas)

व व मे जैव ऊजा का उ पादन बडे पैमाने पर हो रहा है। यह न न ता लका से प ट


होता है-
ता लका- 7.4 : व व म जैव ऊजा उ पादन, 2005
.सं. दे श उ पादन
(करोड़ मेगा वाट / घ टा)
1. संयु त रा य अमे रका 15984.8
2. ेट टे न 6030.2
3. जमनी 5999.2
4. पेन 1326.9
5. आ े लया 1273.0
6. कनाडा 803.8
7. जापान 596.0
8. यूजीलै ड 142.4
9. मैि सको 43.2
Source : UN Statistical Year Book & Energy Statics Year Book, 2006 (Internet)

जैव ऊजा के उ पादन म संयु त रा य अमे रका सबसे आगे है। यह व व क सवा धक
एक तहाई ऊजा उ प न कर रहा है। इसके अ त र त ेट टे न, जमनी, पेन,
आ े लया और भारत भी जैव उजा का उ पादन कर रहे ह।

172
7.7.2 जैव ऊजा का संर ण एवं उपयोग (Use and Conversation of Biogas)

उ ण क टब धीय एवं सम शीतो ण े म व तृत भू भाग पर कृ ष क जाती है और


उसम अनेक फसल उगायी जाती ह। फसल के उठल, भू सा, फल के छलके जैसे अप श ट
पदाथ भार मा ा म पाये जाते है। ामीण े म कृ ष के साथ पशु पालन भी कया जाता
है। इन पशु ओं के गोबर का उपयोग बायोगैस संयं म कया जाता है िजससे ामीण े
क जनता क ऊजा आव यकताओं क पू त होती है। ामीण े म भोजन पकाने के
धन के प म तथा घर म काश के लए बायोगैस का उपयोग कया जा रहा है। इससे
संसाधन का व भ न े म वकास होता है। अप श ट पदाथ का उपयोग होता है और
धुआ
ं र हत अ य ऊजा ा त होती है।

बोध न –5
1. जै व ऊजा या है ?
............................................................ ........................
...................................................... ..............................
2. जै व ऊजा के उ पादन मे कन पदाथ का उपयोग कया जाता है ?
............................................................ ........................
......................................................................... ...........
3. जै व ऊजा का उपयोग लखे ?
............................................................ ........................
................................................................. ...................

7.8 सारांश (Summary)


ऊजा उपभोग को आ थक वकास का मापद ड माना जाता है। व व के ऊजा उ पादन े
के वतरण से प ट होता है क जहां पर ऊजा के ोत पया त मा ा म ह वे दे श वकास
कर रहे है। पर परागत ऊजा ोत धीरे -धीरे ख म होते जा रहे ह। ऐसी ि थ त म
अपर परागत ऊजा ोत जो कभी न ट नह ं होने वाले ह का उपयोग बढ़ाया जाना चा हए।
ऐसे ऊजा के ोत पवन ऊजा, जैव ऊजा, सौर ऊजा, भू तापीय ऊजा, वार य ऊजा आ द
ह। इन ऊजा ोत को वक सत करने म ाकृ तक प रि थ तय के साथ उ च तकनीक
ं ी व मशीन क आव यकता होती है। इसी कारण संयु त रा य अमे रका,
एवं पया त पू ज
पि चमी यूरोपीय दे श, चीन, जापान एवं भारत म अ यशील ऊजा के ोत का वकास हो
रहा है जो भ व य के आ थक वकास का आधार ह।

7.9 श दावल (Glossary)


 वक ण : लघु तंरग का सा रत होना।
 सू यातप : सू य से पृ वी को ा त होने वाल वकरण ऊजा।
 बायोमास : त इकाई े फल म व यमान जै वक पदाथ का कु ल भार।
 वार : सागर य जल के ऊपर उठकर आगे बढ़ने को वार कहते ह।

173
 भाटा : सागर य जल नीच गरकर पीछे लौटने को भाटा कहते ह।

7.10 स दभ ंथ (Referencey Books)


1. बी एस. नेगी : संसाधन भू गोल, केदारनाथ, रामनाथ पि लकेशन, 2005
2. मो. हा न : संसाधन भू गोल, वसु धरा काशन, 2007
3. एस. डी. कौ शक : संसाधन भू गोल, र तोगी पि लकेशन, 2007
4. एस. डी. मौय : संसाधन भू गोल, याग पु तक भवन, 2006
5. Hartshorn & Alexander : Economic Geography, Prentice Hall of
India Pvt. Ltd. 2005
6. J.L. Group & P.R. Chatoraj : Economic Geography, The World
Press Pvt. Ltd. 2001

7.11 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. सू य से ा त होने वाल ऊजा।
2. (i) सौर तापीय मा यम,
(ii) सौर फोटो वा टे इक मा यम।
3. हाइ ोजन और ह लयम।
4. संयु त रा य अमे रका।
बोध न - 2
1. पवन के वेग से टरबाइन को संचा लत करके
2. (i) जमनी
(ii) संयु त रा य अमे रका
(iii) डेनमाक
(iv) इटल
(v) नीदरलै ड।
3. 30०-40० उ तर एवं द णी अ ांश म।
बोध न - 3
1. भू ग भक ताप से ा त होने वाल ऊजा।
2. वालामुखी भा वत े ।
3. (i) संवाह नक त त जल,
(ii) गम शु क शैल तं ,
(iii) त त मै मा,
(iv) भू ग भक दाब।
बोध न - 4

174
1. समु तट य भाग म वार य तरं ग के दबाव से व युत उ प न करना।
2. ांस म रे स नद क ए चुअर पर।
बोध न - 5
1. जीव के उ सिजत पदाथ, पशु ओं के गोबर, वन प तयां के अप श ट पदाथ , कूड़ा
आ द को संय ं म सड़ा-गलाने से उ प न गैस को ऊजा के प म काम म लेना।
2. वन प तय के अप श ट पदाथ, पशु ओं का गोबर, जीव के उ सिजत पदाथ, कूड़ा-
करकट आ द।
3. ामीण े म भोजन पकाने, धन के प म, काश करने आ द।

7.12 अ यासाथ न
1. सौ यक ऊजा या है ? कयह कस कार तैयार क जाती है ?
2. पवन ऊजा उ प न करने क व ध एवं े ल खये ?
3. भू-तापीय ऊजा कैसे उ प न क जाती है और इसके कौनसे े ह ?
4. वार य ऊजा के े को ल खये और ये े य ह ?
5. ''जैव ऊजा ामीण े के लए वरदान स हो सकती है।'' या या क िजये ?

175
इकाई – 8 वैि वक ऊजा संकट तथा नयं ण (Global
Energy Crisis and Control)
इकाई क परे खा
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 व व म ऊजा संकट
8.2.1 ऐ तहा सक ऊजा संकट
8.3 वतमान ऊजा संकट
8.3.1 पे ो लयम उपभो ता एवं आयातक
8.3.2 ऊजा का बढ़ता उपभोग
8.3.3 पे ो लयम क क मत म वृ
8.3.4 ऊजा संकट के कारण
8.4 ऊजा संकट के नय ण
ं के उपाय
8.5 सारांश
8.6 श दावल
8.7 स दभ थ
8.8 बोध न के उ तर
8.9 अ यासाथ न

8.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने का मु य उ े य न न ब दुओं को समझना है -
 व व म ऊजा संकट क ऐ तहा सक पृ ठभू म,
 व व म वतमान म ऊजा संकट क दशा,
 वतमान ऊजा संकट पैदा करने म पे ो लयम का योगदान,
 ऊजा संकट के मु य कारण,
 ऊजा संकट के नयं ण के उपाय।

8.1 तावना (Introduction)


काम करने क मता को ऊजा कहते ह। ऊजा के बना न तो कोई काम हो सकता है
और न ह कसी व तु को ग तशील कया जा सकता है। ऊजा के अनेक प होते ह, जैसे
ग तज ऊजा (kinetic) ि थ तज (Statics) ऊजा, उ मीय (Thermal) ऊजा, गु वीय
(Gravitational) ऊजा, व न (Sound) ऊजा, काश (Light) ऊजा, व युत -चु बक य
(Electromagnetic) ऊजा, रासाय नक ऊजा, ना भक य ऊजा, यमान (mass) ऊजा
आ द। ऊजा के ये व वध प एक-दूसरे म पा त रत होते रहते ह। इस इकाई म केवल

176
मशीन को शि त दे ने वाल , ऊ मा दे ने वाल तथा बजल दे ने वाल ऊजा पर ह यान
केि त कया गया है।
वतमान समय म जीवा मीय शि त के ोत (कोयला, पे ो लयम तथा ाकृ तक गैस) ह
ऊजा के ाथ मक साधन ह। व व म ऊजा के ोत म तेल आधा रत ऊजा का एक- तहाई
से अ धक (37%) ह सा है। इसके बाद कोयला (25%), ाकृ तक गैस (23%),
आण वक ऊजा (6%), बायोमास (4%) तथा जल व युत (3%) मह वपूण ह। वतमान
तकनीक युग म मशीनीकरण के साथ-साथ ऊजा का उपयोग इतना बढ़ गया है क इसे
वकास का सूचक माना जाने लगा है। जहाँ ऊजा क िजतनी अ धक खपत होती है, वह
दे श उतना ह वक सत माना जाता है। इस ि ट से उ तर अमे रका तथा यूरोप के दे श
काफ आगे ह। सन 2005 म सभी ऊजा का त यि त उपभोग उ तर अमे रका के
कनाडा म 43.6 करोड़ टश थमल इकाई तथा संयु त रा य म 34.0 करोड़ टश
थमल इकाई है, जो व व के औसत (7. 2 करोड़ टश थमल इकाई) का मश: सात
गुना तथा पांच गुना है। दूसर ओर वकासशील दे श म ऊजा के खपत बहु त कम है। जैसे
क अ का महा वीप का औसत 1.6 करोड़ टश थमल इकाई तथा ए शया का 4.1
करोड़ टश थमल इकाई ह है।

8.2 व व म ऊजा संकट


इकाई छ: तथा सात के अ ययन से प ट है क व व के पर परागत ऊजा के ोत धीरे -
धीरे समा त हो रहे ह और गैर-पर परागत ोत का उतनी तेजी से वकास नह ं हो रहा
है। साथ ह यह भी प ट है क पर परागत ऊजा के ोत का वतरण बहु त असमान है।
पे ो लयम जैसे ोत पर तो कु छ ह दे श का एका धकार है। आण वक ऊजा के लए
आव यक ख नज कु छ ह दे श म पाए जाते ह। कोयला अपे ाकृ त व तृत भाग पर पाया
जाता है, ले कन व वध प म उपयोग कए जाने के कारण यह ऊजा क मांग पूरा करने
म स म नह ं है। जल व युत का उ पादन भी भौ तक, आ थक एवं तकनीक कारण से
सव संभव नह ं है। वतमान ऊजा संकट के मू ल म ऊजा के ोत का यह असमान
वतरण ह है। साथ ह ऊजा क मांग वक सत और वकासशील सभी दे श म है। फलत:
इनका यापार आव यक होता है।
ऊजा का बढ़ता उपयोग, बढ़ती माग साथ ह बढ़ते उ पादन से भ व य म इसक कमी के
प ट आसार नजर आने लगे ह। पर तु वतमान मे ऊजा संकट का अ भ ाय ऊजा क
आपू त मे अचानक कमी का आ जाना है। यह कमी मु य प से दो कारण से हो सकती
है एक ऊजा क भौ तक कमी तथा दूसरे , मू य वृ तथा अ य कारण से आपू त म
कमी।
ऊजा का संकट काफ गंभीर सम या है, य क अ य संसाधन के दोहन तथा उपयोग के
लए ऊजा का होना आव यक है। आज के व व क वा त वकता यह है क वकास क
गाड़ी ऊजा से ह चलती है। बना समु चत ऊजा क आपू त के न केवल औ यो गक

177
वकास अव होता है बि क आवागमन, कृ ष, उ खनन आ द भी भा वत होते ह।
मानव जीवन के हरे क प म ऊजा का इतना अ धक समावेश हो चु का है क इसक
आपू त क जाने पर जीवन अ व य त हो जाता है।

8.2.1 ऐ तहा सक ऊजा संकट

ऊजा संकट क अनुभू त सन ् 1970 के दशक से होने लगी। इसके बाद व व म


औ योगीकरण तेजी से हु आ है तथा नई तकनीक क खोज हु ई िजससे लोग क जीवन-
शैल ऐसी हो गई क अब ऊजा उनके जीवन का अंग बन गया है। इस कारण इसक
कमी और अभाव स पूण सामािजक - आ थक तं को भा वत कर दे ता है। नकट भू त म
ऐसे कई अवसर आए, िजनम कु छ न न ह।
 सन ् 1973 म व व यापी तेल संकट : सन ् 1973 म व व म बहु त बड़ा ऊजा संकट
पैदा हो गया था, जब ओपेक ( व व म तेल नयातक दे श का संघ) के अरब सद य
तथा म और सी रया ने यह घोषणा क जो दे श योम क पार यु म इजराइल क
मदद कर रहे ह उनको पे ो लयम का नयात नह ं करगे। इससे संयु त रा य
अमे रका तथा उसके यूरोपीय सहयोगी दे श और जापान सवा धक भा वत हु ए।
इसी समय इन दे श ने तेल क क मत नधा रत करने का नया तर का अपना कर
क मत बढ़ा दया। इस मू य वृ से व व के अ धकांश दे श भा वत हु ए। औ यो गक
दे श क तेल पर नभरता तथा ओपेक का मह वपूण नयातक होने के कारण इन दे श
म मु ा फ त बहु त बढ़ गई।
 सन ् 1979 म ईरानी ाि त के कारण तेल संकट : दूसरा ऊजा संकट सन ् 1979 म
संयु त रा य अमे रका म आया। इसका कारण ईरान क ाि त थी। इसी वष ईरान
के शाह पहलवी ने दे श छोड़ा तथा आयतु ला खु मानी ने शासन संभाला। इसके वरोध
म ईरान का तेल उ पादन बखर गया। नए शासन ने ऊंची दर पर कम पे ोल नयात
कया। य य प ओपेक ने इस कमी को पूरा करने के लए उ पादन बढ़ाया फर भी
पै नक म क मत काफ बढ़ गई।
सन ् 1980 म ईरान म ईराक हमला हु आ। इस कारण ईरान म पे ो लयम का
उ पादन लगभग ब द हो गया तथा ईराक का भी उ पादन काफ कम हो गया। सन ्
1981 के बाद छ: साल तक पे ो लयम क क मत म काफ कमी आई। इसके कारण
थे घटती मांग तथा अ धक उ पादन। इसके कारण ओपेक दे श म बखराव आया। इस
काल म मैि सको, नाइजी रया तथा वेनेजु एला का नयात बढ़ा।
 सन ् 1990 म खाड़ी यु तथा तेल क क मत म वृ : दो अग त 1990 म
संयु त रा य अमे रका के नेत ृ व मे व व के 34 दे श क सेनाओं ने ईराक के ऊपर
आ मण कर दया। इसका उ े य कु वैत दे श का कु वैत के अमीर को वापस कराना
था। इसके पूव भी सन 1980-88 म खाड़ी यु हो चु का था इस कारण सर 1990-
91 के यु को वतीय खाड़ी यु कहा गया। इसके कारण कु वैत तथा ईराक म तेल
का उ पादन बहु त घट गया। पुन : सन 2003 म अमे रका के नेत ृ व म ईराक पर

178
आ मण हु आ, िजससे भी तेल क आपू त बहु त भा वत हु ई और व व म पे ोल का
संकट आया।
 सन ् 2000-01 म कैल फो नया का व युत का संकट : इसका कारण बजल क
क मत पर सरकार नयं ण कया जाना था। इस नयं ण के कारण बजल आपू त
क प नय को बजल ा त करने के लए उपभो ताओं से मलने वाल रा श से
अ धक रा श दे नी पड़ती थी। इस कारण ये व भ न बहाने से बजल क आपू त
घटाने लगी, िजससे संकट पैदा हो गया।
 सन ् 2000 म ेट टे न म क चे तेल के दाम म वृ के वरोध के कारण ऊजा
संकट : वाहन के पे ोल तथा डीजल क क मते बढ़ने के वरोध म हड़ताल हु ई। इससे
पै नक फैल गया तथा इतना पे ोल खर दा गया क अनेक पे ोल प प खाल हो गए।
सन ् 2007 के अ त म दाम फर बड़े, िजसका वरोध हु आ इससे कमी क ि थ त
न मत हु ई।
 उ तर अमे रका म ाकृ तक गैस का संकट : सन ् 2001 से सन ् 2005 के बीच
उ तर अमे रका म ाकृ तक गैस क क मत म काफ वृ हु ई। इसके कारण व युत
तैयार करने के लए इसक बढ़ती मांग तथा थानीय आपू त म कमी का आना रहे
ह। क मत इतनी अ धक हो गई क कई पे ो-रसायन उ योग तक ब द हो गए। इसी
कमी को पूरा करने के लए तरल ाकृ तक गैस (एल. एन जी.) का आयात करना
पड़ा।
 सन ् 2004 म अज टाइना म ऊजा संकट : सन ् 2002 क आ थक मंद के बाद
ऊजा क मांग बढ़ , पर तु इसका उ पादन तथा प रवहन उसी अनुपात म नह बढ़
सका। अज टाइना म आधी बजल गैस से तैयार क जाती है। इस गैस क कमी के
कारण पावर लांट तथा उ योग तो भा वत हु ए ह साथ ह नयात भी ब द हो गया,
िजससे चल , युर वे तथा ाजील भा वत हु ए। चल 90 तशत गैस अज टाइना से
आयात करता है। इससे राजन यक सम या पैदा हो गई। इस सम या से नपटने के
लए अज टाइना को वेनेजु एला से धन तेल का आयात करना पड़ा।
 उ तर को रया म शा वत ऊजा संकट : थानीय उ पादन न होने तथा आयात पर
अ य धक नभरता के कारण उ तर को रया म ऊजा का संकट नरं तर बना रहता है।
 यांमार म सन ् 2007 म ऊजा संकट : यांमार क जनता को शासन ने धन को
द जाने वाल आ थक सहायता ब द कर दया। इसके कारण पे ोल तथा डीजल के
दाम दो गुने हो गए तथा ाकृ तक गैस के दाम पांच गुना बढ़ गए। इसके वरोध म
यहाँ 15 अग त, 2007 से सरकार वरोधी अ भयान आर भ हु आ। फलत: दे श म
ऊजा का संकट पैदा हो गया।
 स-यू े न : इसी तरह स व यू े न के बीच माच 2005 म गैस क क मत पर
ववाद हु आ। पेन को भार मा ा म गैस स से मलती है। समझौता न होने के
कारण जनवर 2006 म स ने यू े न को गैस क आपू त ब द कर द पर तु शी

179
ह पुन : गैस दे ना शु कर दया। इसी तरह स बेला स को भी गैस क आपू त
करता है। सन ् 2006 के अि तम दन म स क गैस आपू त क पनी गैस क ऊंची
क मत मांगने लगी। ऐसा न करने पर गैस क स लाई रोक द । पर तु जनवर 2007
म पुन : स लाई बहाल कर द । इस तरह इनके बीच का ऊजा ववाद संकट गहराने के
पूव हल कर लया गया।
 सन ् 2008 म म य ए शया म ऊजा संकट : इस े म शि त के साधन क कमी
बनी रह है। सन ् 2008 म इस भाग म शीत ऋतु म भीषण ठं डक पड़ी िजससे
बजल क मांग बहु त बढ़ गई। सबसे गंभीर सम या ताज क तान म थी जो जल
व युत पर नभर है। यह शीत ऋतु म तु कमा न तान तथा उजबे क तान से बजल
आयात करता है। भीषण ठं डक के कारण न दय का पानी जम गया तथा जल व युत
उ प न करना क ठन हो गया। इसी बीच उजबे क तान ने ताज क तान को गैस का
स लाई ब द कर दया। उजबे क तान म दस बर 2007 म गैस क पाइप लाइन भी
जम गई। वतमान म इस े म पे ो लयम तथा ाकृ तक गैस के उ पादन पर यान
दया जा रहा है।
 द ण अ क व युत संकट : सन ् 2007 म सरकार बजल क पनी आव यकता
क पू त के लए चाह गई मा ा म बजल बनाने म अ म महसूस करने लगी
िजससे उ योग तथा लोग क रोजमरा क मांग पूर न हो सक । इस कारण ामीण
भाग म बजल क पू त बहु त कम हो गई।
 चीन म सन ् 2005 के अ त म ती ऊजा संकट आया था तथा पुन : सन ् 2008 के
आर भ म भी यह ि थ त बनी। इनके कारण पावर नेटवक का त त हो जाना
था।
 द णपूव ए शया के दे श म अ वरल ऊजा संकट : इस े के दे श म ऊजा संकट
एक आम बात हो गई है। भारत जैसे दे श म आव यकता से बहु त कम पे ो लयम का
उ खनन होता है और बहु त कम बजल उ प न हो पा रह है, िजससे न केवल
ामीण े को बहु त कम समय के लए बजल मल पाती है बि क नगर तथा
शहर म भी गंभीर सम या है। पे ो लयम के भार आयात के कारण इसक बढ़ती
क मत का भाव भारत क अथ यव था के ऊपर प ट दखाई दे ता है। पे ोल क
बढ़ क मत के कारण मु ा फ त आसमान छूने लगी है।
बोध न -1
1. ऊजा सं क ट का अ भ ाय या है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. सन ् 1973 के व व यापी ते ल सं क ट का या कारण था ?
............................................................................................
................................................................ ............................

180
3. यु के कारण ते ल क आपू त कब और कहां भा वत हु ई ?
............................................................................................
................................................................ ............................
4. जलवायु के कारण ऊजा सं क ट कहाँ आया था ?
............................................ ................................................
................................................................ ............................
5. भारत म ऊजा सं क ट के दो कारण बताइए ।
.................................................................... ........................
.................................................................... ........................

8.3 वतमान ऊजा संकट


इस ऐ तहा सक ववरण से प ट है क ऊजा का संकट मु य प से तेल क बढ़ती
क मत, पे ो लयम का संकट, ऊजा क कमी, व युत क कमी अथवा व युत के संकट के
कारण पैदा होता है। वा तव म पे ोलयम क कमी का मु य कारण उ पादन का कम
होना नह ं बि क मु ख उपभो ता दे श क आयात पर अ य धक नभरता तथा उसक
बढ़ती क मत है।

8.3.1 पे ो लयम उपभो ता एवं आयातक

य द ऊजा के इ तहास को दे ख तो प ट हो जाता है क कोयले का मह व नरं तर कम हो


रहा है तथा पे ो लयम एवं ाकृ तक गैस का मह व काफ बढ़ा है। व व के सभी वक सत
एवं वकासशील दे श पे ो लयम का ऊजा के प म उपयोग करते ह पर तु, जैसा क
इकाई छ: म लखा जा चुका है, इसका उ पादन कु छ ह दे श मे होता है तथा अ धकतर
बड़े उपभो ता पे ो लयम क आपू त के लए आयात पर नभर रहते ह। यह उ लेखनीय है
क वक सत औ यो गक दे श म इसका उ पादन होने पर भी उ ह भार मा ा म
पे ो लयम आयात करना पड़ता है। इस कारण इनक नयातक दे श पर अ य धक नभरता
है। ता लका 8.1 म व व के मु ख 15 पे ो लयम उपभो ता दे श तथा थम 15
पे ो लयम आयातक दे श अं कत है।
ता लका 8.1 व व के मु ख पे ो लयम उपभो ता एवं आयातक दे श, 2006
म दे श दै नक उपभोग म देश दै नक आयात
हजार टन % हजार टन कु ल उपभोग
का %
1. सं.रा.अमे रका 2821.1 24.4 1 सं.रा.अमे रका 1666.4 59.1
2. चीन 983.8 8.5 2. जापान 691.6 98.8
3. जापान 700.1 6.1 3. चीन 469.7 47.7
4. स 386.6 3.3 4. जमनी 344.9 93.2
5. जमनी 370.1 3.1 5. द ण को रया 291.7 98.9
6. भारत 345.7 3.0 6. ांस 258.3 92.5
181
7. कनाडा 315.3 2.7 7. भारत 226.7 65.6
8. ाजील 308.8 2.6 8. इटल 228.7 89.9
9. द ण को रया 295.0 2.6 9. पेन 209.0 97.7
10. सऊद अरे बया 289.0 2.5 10. ताईवान 143.4
11. मैि सको 282.0 2.4 11. नीदरलड 132.0
12. ांस 267.6 2.3 12. संगापु र 107.2
13. टे न 241.4 2.2 13. थाईल ड 89.7
14. इटल 253.6 2.0 14. टक 81.9
15. ईरान 230.5 2.0 15. बेि जयम 72.9
इस ता लका से प ट है क व व के वक सत दे श म संयु त रा य अमे रका शीष थ है
जो त दन 2.82 लाख टन तेल का उपभोग करता है। यह व व के कु ल दै नक
उपभोग का एक -चौथाई (24.4%) है। इसम से 1.67 लाख टन आया तत पे ो लयम
होता है जो कु ल उपभोग का 59.1 तशत ह उपभोग कए गए पे ो लयम म से
आया तत पे ो लयम का अनुपात चीन म 47.7% से लेकर पेन म 97.7%, जापान म
98.8% तथा द ण को रया म 98.9% तक है। ऐसी ि थ त म य द कसी कारण से
पे ो लयम के आयात म बाधा आती है तो ऊजा संकट पैदा होना अवसंभावी हो जाता है।
दूसर ओर व व के मह वपूण पे ो लयम नयातक दे श ने पे ो लयम से अ धक से अ धक
लाभ कमाने के उ े य से एक संगम बनाया है िजसे ''पे ो लयम नयातक दे श संगठन''
(Organization of Petroleum Exporting Countries) कहा जाता है। इस संगठन क
थापना सन ् 1960 म बगदाद म हु ई थी, ले कन यह सन ् 1970 से स य हु आ। इस
संगठन म कु ल 12 दे श - ईरान, ईराक, कु वैत, कतर, सउद अरे बया, संयु त अरब
अमीरात, ल बया, अ जी रया, नाइजी रया, अंगोला, वेनेजु एला तथा इ वेडोर ह।
इ डोने शया भी इस संगठन का सद य था जो अब छोड़ रहा है। वतमान म इसका
मु यालय वयना म है। सन ् 1973 म पहल बार इन दे श के कड़े ख के कारण व व
तर पर ऊजा का संकट पैदा हु आ था।

8.3.2 ऊजा का बढ़ता उपभोग

व व म ऊजा का उपभोग तेजी से बढ़ा है। सन ् 1980 म व व म ाथ मक ऊजा का


कु ल उपभोग 283 करोड़ अरब टश थमल इकाई था जो बढ़ कर सन ् 2005 म 463
करोड़ अरब टश थमल इकाई हो गया है। इस तरह इस अव ध म ऊजा के उपभोग म
डेढ़ गुनी से अ धक वृ हु ई है। महा वीप म उ तर अमे रका सबसे आगे है जो व व क
एक- तहाई ऊजा का उपभोग करता है। इसके बाद यूरोप का थान है। इन दोन महा वीप
म औ योगीकरण, नगर करण तथा आ थक वकास का तर ऊंचा होने के कारण इतनी
अ धक ऊजा क खपत होती है। इस ि ट से अ का सबसे पीछे है।
ता लका 8.2 : कु ल ऊजा का सवा धक उपभोग करने वाले दे श म

182
उपभोग क गई ऊजा क मा ा, 2005
(करोड़ अरब टश थमल इकाई मे)
दे श / े उपभोग तशत दे श / े उपभोग तशत
व व 426.798 100.0 ांस 11.43 2.5
ए शया तथा ओसी नया 148.097 32.0 टे न 10.015 2.2
उ तर अमे रका 121.895 26.3 ाजील 9.332 2.0
यूरोप 86.294 18.6 द ण को रया 9.276 2.0
यूरे शया 45.817 9.9 इटल 8.075 1.7
म य-द णी अमे रका 23.408 5.1 ईरान 7.261 1.6
म य पूव 22.854 4.9 मैि सको 6.878 1.5
अ का 14.433 3.1 साउद अरे बया 6.657 1.4
संयु त रा य 100.691 21.8 पेन 6.587 1.4
चीन 67.093 14.5 यू े न 6.209 1.3
स 30.293 6.5 आ े लया 5.492 1.2
जापान 22.572 4.9 इ डोने शया 5.362 1.2
भारत 16.205 3.5 द ण अ का 5.041 1.1
जमनी 14.308 3.1 ताइवान 4.498 1.0
कनाडा 14.308 3.1 नीदरलै ड 4.241 0.9
ोत : यू.एस. एनज इनफोरमेशन एड म न े शन क वेब साईट, सत बर 2007
दे श म संयु त रा य अमे रका सबसे आगे है जो व व क एक-पचमांश से अ धक ऊजा
का उपभोग करता है। चीन दूसरे थान पर है। स, जापान, भारत, जमनी, कनाडा, ांस,
टे न, ाजील और द ण को रया ऊजा के अ य बड़े उपभो ता है। अ तु मांग तथा
आपू त के कारण तेल क कमी इ ह ं े तथा दे श म होना वाभा वक है तथा ऊजा
संकट मु खत: इ ह दे श म आता है।
ता लका- 8.3.5 : पे ो लयम का बढ़ता दै नक उपभोग, लाख बैरल
े 1980 2005 % वृ
म यपूव 20.44 58.53 186.28
ए शया-ओसी नया 107.29 238.29 122.07
अ का 14.74 29.12 97.56
म य-द णी अमे रका 36.13 54.65 51.24
व व 631.14 836.47 32.53
उ तर अमे रका 202.04 251.53 24.50
यूरोप 160.54 163.64 1.94
यूरे शया 89.95 40.73 -54.72

183
ोत : यू. एस. एनज इनफारमेशन एड म न े शन क वेब साइट, 2007

कु ल ऊजा के उपभोग वृ के साथ पे ो लयम का उपभोग भी काफ बढ़ा है। उदाहरण के


लए सन ् 1980 म व व म पे ो लयम का दै नक उपभोग 631 लाख बैरल था जो बढ़
कर सन ् 2005 म 836 लाख बैरल हो गया है। इस अव ध म उपभोग म सवा धक वृ
पि चम ए शया (म यपूव) के दे श म हु ई है। उ लेखनीय है क ये दे श पे ो लयम के
मु य उ पादक भी ह। शेष ए शया, ओसी नया, अ का एवं म य तथा द णी अमे रका
म भी पे ो लयम के उपभोग के बढ़ने क दर भी व व के औसत से काफ अ धक है।
अथात ् वकासशील दे श म पे ो लयम का उपभोग तेजी से बढ़ा है। दूसर ओर उ तर
अमे रका तथा यूरोप महा वीप म यह बहु त मंद ग त से बढ़ा है। इसका कारण यह है क
इन दे श म पहले से ह पे ो लयम का बहु त अ धक उपयोग हो रहा है। पूव सो वयत स
से अलग हु ए दे श म यह काफ घटा है। इससे लगता है क पे ो लयम के संकट का
भाव वक सत दे श पर अ धक पड़ा है।

8.3.3 पे ो लयम क क मत म वृ

वतमान ऊजा संकट का मु य कारण पे ो लयम क क मत म सन ् 2003 से लगातार


वृ तथा उसक घटती आपू त है। यूयाक तेल मंडी के अनुसार म य 1980 से सत बर
2003 तक त बैरल पे ो लयम क क मत 25 अमे रक डालर से कम थी। सन ् 2004
म यह 40 डालर तथा अग त 2005 म 60 डालर हो गई। क मत बढ़ती हु ई वष 2008
के पूवा म सवा धक हो गई। 11 जु लाई 2008 को इसका भाव 147.02 डालर त
बैरल तक पहु ंच गया।
क मत बढ़ने के कारण दए जाते ह, िजनम मु य कारण संयु त रा य अमे रका तथा
चीन क बढ़ती मांग, ईराक पर संयु त रा य वारा कये गये आ मण से पे ो लयम का
उ पादन ि थर होना (ईराक पे ो लयम के भंडार म व व म तीसरा), संयु त रा य के
खाड़ी तट पर 2005 म कैटर ना तू फान के कारण इस े से पे ोल क आपू त व त
होना तथा संयु त रा य अमे रका क वह रपोट िजसम पे ो लयम के भंडार घटने क बात
कह गई है।
पे ो लयम क स लाई घटने प रणामत: भाव बढ़ने के कारण म पि चमी ए शया, जो
व व का अि थरता तथा उ तर अ का म स भा वत अि थरता को माना जाता है।
पर तु ये व व यापी कारण नह ं ह।
इसका सबसे बड़ा कारण यह मानना है क पे ो लयम का उ पादन सन ् 2005 म सव च
शखर पर पहु ंच चुका है और अब गरावट क स भावना है। अ तु क मत म लगातार
गरावट संभा वत है। इस आशंका से भी क मते बढ़ाई ग । वैसे भी अब तक सु गम े
के तेल भंडार का वकास कर लया गया था। नए तेल के भंडार क ठन े म ह िजनक
वक सत करना महंगा है। इसका भी भाव क मत पर पड़ता है।

184
एक अ य कारण यूरोप क तु लना म अमे रक डालर क क मत का गरना भी है। तेल का
यापार डालर म होता है। अ तु तेल के भाव बढ़ा दये गए िजससे यूरोप क उतनी ह
य शि त बनी रहे ।

8.3.4 ऊजा संकट के कारण

उपयु त ववरण से प ट है क ऊजा क कमी होने के कई कारण ह, िजनम मु य ह -


 बाजार म एका धकार होने से माकट का असफल होना,
 औ यो गक कमचार संघ क हड़ताल,
 अ य धक उपभोग, अधोसंरचना का पुराना होना, कभी-कभी पे ो लयम शु शालाओं
तथा ब दरगाह क सम याओं के कारण आपू त म बाधा का आना। अ त शीतल शीत
ऋतु ओं के कारण भी आपात ि थ त पैदा हो जाती है।
 पाइप लाइन के खराब होने तथा अ य दुघटनाओं के कारण भी ऊजा क आपू त म
अ पका लक बाधा उ प न हो जाती है। भीषण तू फान से बाधा हो सकती है। सन ्
2005 म टे न म आइल ट मनल म आग लगने के कारण तथा संयु त रा य म
कैटर ना तू फान के कारण अ प काल के लए धन क कमी हु ई थी।
 आतंकवाद आ मण अथवा यु के कारण भी ऊजा संकट गहरा जाता है।
बोध न -2
1. ऊजा सं क ट के तीन मु य कारण या है ?
............................................................................................
.................................... .......................................... ..............
2. व व के तीन बड़े पे ो लयम उपभो ता तथा आयातको के नाम ल खए।
............................................................................................
..................................... .......................................................
3. ओपे क या है ?
............................................................................................
................................................................. ...........................
4. पे ो लयम का दै नक उपभोग कस महा वीप म सबसे कम है ?
............................................................................................
.................................................................. ..........................
5. पे ो लयम क क मत बढ़ने के तीन मु य कारण बताइए।
............................................................................................
........................................................................ ....................

8.4 ऊजा संकट के नयं ण के उपाय


पे ो लयम तथा बजल का संकट वैसे तो सभी को भा वत करता है ले कन जो लोग
ऊ मा, भोजन बनाने तथा जल आपू त के लए इन नभर ह उनके लए तो यह मानवीय

185
संकट है। ऐसी दशा म अ य ाकृ तक आपदा ब धन क भां त ऊजा संकट से उबरने के
लए भी उपाय करना चा हए। यह ब धन दोन दशाओं म होना चा हए। एक तो ऊजा
क आपू त बढ़ाने का य न कया जाना चा हए िजसके लए पर परागत शि त के साधन
के नए ोत क खोज आव यक है। साथ ह शि त के गैर-पर परागत साधन का
वकास कया जाना चा हए। इसके साथ ह मांग को भी नयं त कया जाना चा हए। जैसे
क ताज क तान ने ऊजा संकट के समय बार तथा कैफे मोमब ती के काश से चलाने का
आदे श दया था। सं ेषण एवं उपभोग क णाल म सु धार करके भी ऊजा क बचत क
जा सकती है। ऊजा के अप यय पर रोक लगा कर ऊजा क भा वता को बढ़ाया जा
सकता है। ऊजा संकट क वकट दशा म ऊजा तथा धन क राश नंग क जा सकती है।
ऊजा क बचत के लए सावज नक सु वधाओं को घटाया जा सकता है। उपभोग को
संचा लत करने के लए ऊजा लेखा-पर ण लागू कया जा सकता है।
व व के लगभग सभी भाग ऊजा संकट का सामना कर रहे है। वक सत, औ यो गक तथा
बड़े दे श म इसक ग भीरता अ धक है। इस सम या से नपटने के लए कई तरह के
उपाय ढू ं ढे जा रहे ह जैसे क ऐसी तकनीक वक सत क जा रह है िजनम पे ोल, डीजल
तथा बजल क कम से कम आव यकता हो। जैसा क सन 1980 म स तथा े टन
गैसोल न तथा बजल का म त वाहन बनाया। सावज नक प रवहन का आधु नक करण
तथा व युतीकरण , रे लवे लाइन का व युतीकरण तथा बायो यूल का वकास ऐसे ह कु छ
यास ह।
जमनी स हत कई दे श ऊजा क सुर ा के लए आण वक व युत का वकास कर रहे ह।
कई दे श ने अपनी ऊजा नी त म संशोधन कया है। ईरान जैसे दे श ने सन ् 2007 म गैस
क राश नंग योजना लागू कया है। कनाडा ने रा य ऊजा नी त तैयार क है। इनके
अलावा ऊजा के अ य ोत क खोज तथा तेल के भंडार का पता लगाने के लए सरकार
सहायता दे रहे ह। ऊजा के थानाप न का भी पता लगाया जा रहा। जैसा क भारत तथा
चीन मे गैस तथा कोयला के तरल करन पर जोर दया जा रहा है। गैर-पर परागत ोत
का उपयोग कया जाने लगा है। जैसे क कनाडा ने टार सै ड से तेल ा त करना ार भ
कर दया है।
भ व य म ऊजा के थानप न के प म बायो यू स , बायोमास, भू तापीय ऊजा, जल
व युत , सौर ऊजा, वार ऊजा, तरं ग ऊजा, पवन ऊजा आ द वक सत कए जा सकते है।
पर तु जैसा ऊजा के अ याय म कहा जा चु का है क अभी तक केवल जल व युत तथा
आण वक ऊजा का वकास मह वपूण हो पाया है।

8.5 सारांश (Summary)


वतमान म व व पार प रक ऊजा के ोत पर नभर है िजनम भी पे ो लयम तथा
ाकृ तक गैस सबसे मह वपूण ह। इनका वतरण असमान है जब क इनक मांग वक सत
और वकासशील दोन कार के दश म है। इस कारण जब भी िजस भी कारण से इनक
आपू त मांग से कम और बहु त कम हो जाती है तो ऊजा संकट क ि थ त पैदा हो जाती

186
है। यह कमी मु य प से दो कारण से हो सकती है : एक ऊजा क भौ तक कमी तथा
दूसरे मू य वृ तथा अ य कारण से आपू त म कमी। ऊजा का बढ़ता उपयोग, बढ़ती
मांग के साथ ह बढ़ते उ पादन से भ व य म इसक कमी के प ट आसार नजर आने
लगे ह। ऊजा संकट क शु आत सन ् 1973 म तब हु ई जब तेल नयातक दे श के संघ ने
संयु त रा य अमे रका तथा उसके यूरोपीय सहयोगी दे श और जापान को तेल नयात ब द
कर दया। इसी समय तेल क क मत काफ बढ़ाई गई। वशेष का कहना है क सन ्
2005 म तेल का अ धकतम उ पादन हो गया अब यह नरं तर कम होगा। इस आशंका से
भी क मते बढ़ाई गई। इससे प ट है क ऊजा का संकट मु य प से तेल क बढ़ती
क मत, पे ो लयम का संकट, ऊजा क कमी, व युत क कमी अथवा व युत के संकट के
कारण पैदा होता है। वा तव म ऊजा क कमी का मु य कारण उ पादन का कम होना
नह ं बि क मु ख उपभो ता दे श क आयात पर अ य धक नभरता तथा उसक बढ़ती
क मत है। इसको कम करने के लए गैर-पर परागत न यकरणीय ऊजा के ोत का
वकास आव यक है। साथ ह मांग सी मत करने के उपाय भी करने ह गे।

8.6 श दावल (Glossary)


 ऊजा : काम करने क मता को ऊजा कहते ह।
 ऊजा संकट : ऊजा संकट का अ भ ाय ऊजा के आपू त म अचानक कमी का आ
जाना है ।
 ओपेक : ( व व म तेल नयातक दे श का संघ) सन ् 1960 म था पत इस संगठन
कु ल 12 दे श ह - ईरान, ईराक, कु वैत, कतर, साउद अरे बया, संयु त अरब अमीरात,
ल बया, अ जी रया, नाइजी रया, अंगोला, वेनेजु एला तथा इ वेडोर ह। इ डोने शया भी
इस संगठन का सद य था जो अब छोड़ रहा है।
 म यपूव : फारस के खाड़ी के दे श का स बो धत करने के लए यूरोपीय वारा योग
कया जाने वाला नाम।
 यूरे शया : यूरोप तथा ए शया का सि म लत स बोधन।
 गैर-पर परागत ऊजा ोत : जीवा मीय ोत के अलावा शि त के साधन
 जीवा मीय शि त के साधन : कोयला, पे ो लयम तथा ाकृ तक गैस जीवा मीय
शि त के साधन कहलाते ह।

8.7 स दभ थ (Reference Books)


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गोरखपुर
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187
4. Wikipedi, the free encyclopedia : Energy crisis, 2008. “http:/
en.wikipedia.org/wiki/Energy_crisis

8.8 बोध न के उ तर
बोध न – 1
1. ऊजा संकट का अ भ ाय ऊजा के आपू त म अचानक कमी का आ जाना है।
2. ओपेक दे श वारा पि चमी दे श को तेल का नयात ब द कर दे ना तथा पे ो लयम
क क मत बढ़ाना।
3. सन ् 1990 म संयु त रा य अमे रका के नेत ृ व म ईराक के ऊपर आ मण कर दया
िजससे तेल क आपू त भा वत हु ई। इसके पूव भी सन ् 1980-88 म खाड़ी यु हो
चु का था। पुन : सन ् 2003 म अमे रका के नेत ृ व म ईराक पर आ मण हु आ िजससे
भी तेल क आपू त बहु त भा वत हु ई।
4. सन ् 2008 म म य ए शया म भीषण ठं डक के कारण ऊजा संकट आया।
5. कम पे ो लयम का उ खनन तथा भार मा ा म आयात बढ़ क मत से भा वत।
बोध न - 2
1. बढ़ती मांग, घटती आपू त तथा पे ो लयम क बढ़ती क मत।
2. संयु त रा य अमे रका, चीन तथा जापान।
3. ओपेक व व के मु ख तेल नयातक का संघ है िजसके वतमान म 12 दे श सद य
ह।
4. अ का।
5. पे ो लयम क क मत बढ़ने के मु य कारण संयु त रा य अमे रका तथा चीन क
बढ़ती मांग, ईराक पर संयु त रा य वारा कये गये आ मण से पे ो लयम का
उ पादन ि थर होना तथा संयु त रा य अमे रका क पे ो लयम के भंडार घटने क
रपोट का भय।

8.9 अ यासाथ न
1. ऊजा संकट के कारण का वणन क िजए।
2. पे ो लयम क बढ़ती क मत के या कारण ह ?
3. ऊजा उपभोग क बढ़ती वृि त का वणन क िजए।
4. बीसवीं सद के उ तरा के मु य ऊजा संकट का ववरण द िजए।
5. ऊजा संकट से उबरने के उपाय सु झाइए।

188
इकाई – 9 मानव संसाधन : जनसं या वृ (Human
Resource - Population Growth)
इकाई क प रे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 जनसं या वृ के कारण
9.3 जनसं या वृ
9.3.1 काल मानुसार जनसं या वृ
9.3.2 व भ न महा वीप म जनसं या वृ
9.9.3 जनसं या वृ का ादे शक व प
9.4 जनसं या वृ के कारण
9.5 जनसं या वृ के प रणाम
9.6 जनसं या वृ नय ण
9.7 सारांश
9.8 श दावल
9.9 संदभ थ

9.10 बोध न के उ तर
9.11 अ यासाथ न

9.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे क -
 ाचीन काल से आधु नक काल तक जनसं या वृ ,
 जनसं या वृ क माप के बारे म,
 व भ न महा वीप म जनसं या वृ ,
 जनसं या वृ के कारक,
 जनसं या वृ के प रणाम,
 जनसं या वृ को नय ण के बारे म जानकार ।

9.1 तावना (Introduction)


पृ वी पर मानव के उ व का काल अ ामा णत सा है। ागै तहा सक काल म जनसं या
एवं जनसं या वृ के कसी कार के य सा य नह ं है। अत: अठारहवीं शता द से
पूववत काल म व व क जनसं या क गणना अनुमान पर अ धक नभर है। ऐसा माना
जाता है क पृ वी पर मानव का आ वभाव लगभग दस लाख वष पूव हु आ था तथा तब
सं या कु छ हजार ह थी। आज (सन ् 2006) व व क जनसं या 655.5 करोड़ हो गई।

189
व व के व भ न महा वीप म जनसं या वृ क दर भ न- भ न रह है। सन ् 1650-
1750 तक ए शया और यूरोप म जनसं या क वृ दर सामा य थी तथा अ का म
जनसं या अ य त म द ग त से बढ़ रह थी। अनुपयु त जलवायु, महामा रय तथा
च क सा सु वधाओं क कमी के कारण अ का म वृ दर बहु त कम थी। सभी महा वीप
म सन ् 1750-1900 के म य जनसं या ती ग त से बढ़ने लगी। वशेष प से ए शया,
उ तर अमे रका म, ए शया म च क सा सु वधाओं म व तार, ख नज संसाधन के दोहन,
कृ ष उ पादन म वृ , प रवहन के साधन के वकास के कारण जनसं या म ती वृ
हु ई, जब क यूरोप म औ यो गक ाि त के फल व प औ योगीकरण, कृ ष के
आधु नक रण, नगर करण, च क सा एवं प रवहन सु वधाओं के व तार से जनसं या म
वृ हु ई। उ तर अमे रका म जनसं या म ती वृ का कारण यूरोपीय मू ल के नाग रक
का बहु त अ धक सं या म आगमन था। यूरोप म बीसवीं शता द के बाद से जनसं या
वृ दर म कमी आई है।

9.2 जनसं या वृ क माप


कसी भौगो लक े म एक नि चत समय म मानव क सं या म होने वाले प रवतन
को उस े क जनसं या वृ कहा जाता है। जनसं या म यह प रवतन धना मक और
ऋणा मक दोन हो सकता है अथात ् जनसं या का बढ़ना और घटना दोन को वृ कहा
जाता है।
जनसं या वृ का मापन दो व धय से कया जाता है
थम व ध : त थापन या व ध (Process of Replacement Method)
वतीय व ध : अवलो कत प रवतन व ध (Observed Changed Method)
त थापन या व ध
त थापन या व ध म जनसं या वृ ज म और मृ यु दर के शु अ तर के आधार
पर प रक लत क जाती है।
नैस गक ज म−मृ यु प रवतन
जनसं या वृ = × 100
म य वष यजनसं या
यह जनसं या वृ वा तव म नैस गक वृ दर ह होती है य क इसम केवल ज म दर
एवं मृ यु दर के आकड़ो को आधार माना गया है।
वास (Migration) के आधार पर जनसं या वृ भी गणना न नां कत सू से ात क
जाती है-
कृ तक वृ दर+आ वासी
जनसं या वृ दर = × 100
म य वष य जनसं या

यहाँ - नैस गक वृ दर = ज म दर - मृ यु दर
आ वासी (Immigrants)
ब हगमनी (Emigrants)
अवलो कत प रवतन व ध
इस व ध म कसी दे श क जनगणना के दो मक आकड़ का उपयोग कया जाता है।

190
जनसं या वृ =  2  1
जहाँ  2 = वतीय जनगणना क जनसं या
 1 = थम जनगणना क जनसं या
वा त वक वृ दर : कसी स द भत दशक म वा त वक वृ न न सू ानुसार ात क
जाती है:
 pn  p 0 
वा त वक वृ दर (r) =   1   100
 p0 
जहाँ - pn = स द भत अव ध के अ त म जनगणना या अगल जनगणना क जनसं या
p0 = स द भत अव ध के ार भ भी जनगणना
उदाहरण के लए भारत क जनसं या सर 1991 म 84.63 करोड़ थी जो बढ़ कर सन
2001 म 102.7 करोड़ हो गई। इस इस अव ध म वृ दर :
 102.7  84.36 
  1 100
 84.63 
= 21. 35 तशत आती है ।

9.3 जनसं या वृ (Population Growth)


व व क जनसं या लगभग तीन लाख वष पूव 10 लाख, 50 हजार वष पूव 15 लाख
तथा ईसा से 10 हजार वष पूव 50 लाख मानी गई है। इस काल तक मानव जीवन ि थर
था। मानव शकार एवं वन-व तु ओं से जीवन-यापन करता था। पुरा पाषाण काल तक
मणशील मानव ाचीन व व के अनेक भाग म वरल प से वत रत था। ईसा से
लगभग 8000 वष पूव जब कृ ष के शु भार भ के साथ मानव स यता ि थर जीवन क
ओर अ सर हु ई, तब व व क जनसं या म मह वपूण प रवतन आए। इस समय व व
क जनसं या 1 करोड़ आक गई। ईसा से 6000 वष पूव तक भारतीय उपमहा वीप म
स धु घाट , उ तर चीन म वांग हो घाट , म म नचल नील क घाट तथा ईरान-
ईराक म मैसोपोटा मया म कृ ष तथा पशु पालन के कारण सघन ाम का वकास हो चु का
था। ईसा से 4000 वष पूव तक भू म यसागर तटवत यूरोपीय एवं अ क े , भू म य
सागर य वीप से द णी पि चमी ए शया, भारत और चीन तक फैल प ी म कृ ष और
नगरो मु ख समाज के वकास के फल व प जनसं या म ती वृ होने लगी।
ईसा के ारं भ तक व व क जनसं या लगभग 25 करोड़ के कर ब थी। ईसवी के आर भ
से सन ् 1650 ईसवी तक व व क जनसं या म ाकृ तक कोप , महामा रय , यु आद
के कारण म द ग त वृ हु ई। सन ् 1650 म व व क जनसं या 55 करोड़ थी। इस के
बाद के काल को जनसं या क अ य धक ती वृ के कारण जनसं या व फोट का काल
अथवा जनां कक धमाके का काल माना जाता है।

191
9.3.1 काल मानुसार जनसं या वृ (Chronological population Growth)

मानव इ तहास के आरि भक चरण और ागै तहा सक काल म जनसं या म वृ धीमी


ग त से हु ई। िजसके लए अनेक कारण उ तरदायी ह। जैसे वषम जलवायु क दशाएं,
घुम कड़ जीवन, अ पपोषण आ द। समय के साथ-साथ मानव ने पशु ओं और पौध को
घरे लू बनाया, कृ ष काय करने लगा िजससे पया त भोजन ा त हो सका। इस मानवीय
या के आकि मक प रवतन को कृ ष ां त के नाम से जाना जाता है। कृ ष ां त के
फल व प मानव शर र म वषम जलवायु प रि थ तय को सहन करने क आई। इसके
प रणाम व प जनसं या धीमी ग त से बढ़ने लगी।

ऐ तहा सक प र े य (Historical Perspective)

ागै तहा सक काल म व व क जनसं या के बारे म कसी कार का य अथवा


ल खत माण उपल ध नह ं ह। जनसं या के व वान ने पा रि थ तक माण के आधार
पर ागै तहा सक काल क जनसं या का अनुमान लगाया।
इनसे प ट है क कृ ष ां त के उपरा त जनसं या म वृ होती रह है। वष 1779 म
औ यो गक ाि त का जनसं या के था नक वतरण पर गहरा भाव पड़ा। ऐ तहा सक
काल म जनसं या वृ के व प को प ट करने के लए इसे न न ल खत काल-ख ड
म वभ त कया जा सकता है -
1. ारि भक ागै तहा सक काल (आ द काल से 4000 ई. पू. तक)
2. ाचीन एवं म य काल (8000 ई. पू से 1650 ई. तक)
3. आधु नक काल (1650 से वतमान तक)
बोध न -1
1. ईसा से 10 हजार वष पू व व व क जनसं या कतनी थी ?
............................................................................................
.................................................................. ..........................
2. ईसा के ज म के समय व व क जनसं या कतनी थी ?
............................................................................................
................................................................ ............................
3. कस वष के बाद के काल को जनसं या व फोट काल कहते ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
1. ारि भक ागै तहा सक काल (Early Ancient Period) : ारि भक ागै तहा सक
काल म जनसं या वृ व घन व के स ब ध म कसी भी कार के य और
ल खत माण नह ं है। यह अनुमान पर आधा रत है।
इस काल का ार भ आखेट और भोजन सं ह यव था से माना गया है। मानव ने
लगभग 5 लाख वष पूव अि न का योग करना आर भ कर दया था। 8000 ई. पूव

192
से पहले मानव कृ ष नह ं करता था, केवल आखेट और भोजन सं हण पर नभर था।
आधु नक मानव का उ व अ त हमयुग क अि तम अव था म हु आ तथा मानव का
एक जा त के प म वकास हु आ। मानव के उ व का मु य के अ का एवं
ए शया माना गया है। यूरोप महा वीप उ व के के समीप और अमे रका महा वीप
इन उ व के से काफ दूर कृ ष के वकास से पूव जनसं या का वतरण केवल
थल य भाग पर ह था, ले कन महा वीप पर बफ का आवरण कम होने के बाद
अ का, आ े लया, द णी यूरोप तथा द णी पि चमी व पूव ए शया म मानवीय
व तार का अनुमान लगाया गया। अमे रक भू म पर मानव उपि थ त पूव पृ वी पर
कु ल 33 लाख रहते थे, जो बढ़कर 15 हजार वष के उपरा त लगभग 53 लाख हो
गये। इसके आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है क इस समय संसार का औसत
घन व त 100 वग कमी पर 4 यि त का था।
कृ ष ाि त (8000 ई.पू.) के आर भ होने के साथ ह जनसं या म वृ ती गत
से होने लगी। इस समय म मनु य पशु पालन ओर पौध के पालतू करण के थान पर
केि त होने लगे। मोसोपोटा मया (ईरान-ईराक), दजला फरात, नील नद क घाट
े आ द मनु य के केि त होने के थान थे। कृ ष ाि त के उपरा त ह नगर का
वकास होना ार भ हो गया। इस समय पृ वी पर 865 लाख लोग रहते थे तथा
जनसं या घन व 1 यि त त वग कमी था।
2. ाचीन-म यकाल न काल (Ancient & Medieval Period) : यह काल ईसा काल
से सन ् 1650 ई. तक माना गया है। अनुमान के आधार पर ईसा के समय व व क
जनसं या लगभग 20 से 30 करोड़ थी। इस काल म व व क जनसं या का
संके ण वतमान मंचू रया, को रया, मंगो लया, तु क तान, वयतनाम, चीन के
अ त र त रोमन स यता वाले े म था।
16वीं शता द के आसपास पूव ए शया म जनसं या वृ हु ई जब क द णी ए शयाई
े म आपदा एवं यु के कारण धीमी वृ रह । यूरोपीय े म ाकृ तक कोप
(जैसे बाढ़, भू क प, महामार आ द) और यु क कारण जनसं या म धीमी वृ
रह ।
ता लका- 9.1 : व भ महा वीप म जनसं या वृ (वष 1650-2001)
(दस लाख मे)
वष ए शया यू रोप अ का उ तर द णी ओशे नया पू व सो वयत व व
अमे रका अमे रका संघ

1650 327 103 100 1 12 2 _ 545


1750 475 144 95 1 11 1 _
1800 597 192 90 6 19 1 _
1850 741 274 95 26 33 1 _
1900 915 423 120 81 63 6 _

193
1950 1371 392 122 166 166 13 180 2516
1960 1668 425 279 218 199 16 214
1970 2101 460 362 286 226 19 243
1980 2583 284 477 363 252 23 266
1990 2112 486 602 448 296 26 289
2001 3720 583 818 491 350 31 144.4
2006 3968 732 924 520 378 34 *
* यूरोप एवं ए शया म सि म लत
3. आधु नक कल (Modern Period) : इस काल का आर भ वष 1650 ई. से माना
गया है। इस काल के आर भ म व व क जनसं या लगभग 54 करोड़ थी। इस
काल म कृ ष ां त अपने चरम पर थी ओर ओ यौ गक ाि त (सन ् 1779) के
आर भ होने के साथ ह जनसं या म ती वृ होने लगी। वष 1650 ई. म 54
करोड़ से वष 1950 ई. म 251 करोड़ तक पहु ँ च गई। वष 1750 से 1900 के
म य जनसं या म वृ दर अ य धक रह । जनसं या क वृ क ती ता का
अनुमान इसी से लगाया जा सकता है क 1 अरब तक पहु ंचने म इसे लाख वष लगे;
पर तु अगले 115 वष म सन ् 1925 म यह 2 अरब हो गई। अगले 55 वष म
यह पुन : दोगुनी होकर सन ् 1980 म चार अरब हो गई। पुन : बीस वष म यह डेढ़
गुनी बढ़कर सन ् 1999 म 6 अरब क सं या पार कर गई। इस तरह ईसा से लेकर
वष 1650 तक जनसं या क वृ दर 0.04 तशत थी। इसके बाद यह बढ़ कर
सन ् 1850 तक 0.5 तशत हो गई। यह नरं तर बढ़ती गई और सन ् 1960 के
दशक म अ धकतम 2.1% त वष रह । इसके बाद कुछ कमी आई है और सन ्
2006 म यह 1.2% हो गई ह।
ता लका-9.2 : व व जनसं या म त अरब यि त बढ़ने का काल
सन ् जनसं या समयाव ध
1980 1 अरब सैकड हजारो वष
1925 2 अरब 115 वष
1960 3 अरब 35 वष
1980 4 अरब 20 वष
1987 5 अरब वष
1999 6 अरब 12 वष

194
च - 9.1 : व व जनसं या क वृ

9.3.2 व भ न महा वीप म जनसं या वृ

येक महा वीप पर जनसं या वृ पर भ न- भ न रह है, य क येक महा वीप म


जनांकक य, सामािजक-आ थक, राजनी तक आ द कारक म भी भ नता पाई जाती है।
इनके कारण येक महा वीप क ज म दर व मृ यु दर म भी भ नता पाई जाती है।
यूरे शया ार भ से ह सघन जनसं या वाला े रहा है। जब क उ तर और द णी
अमे रका म जनसं या म वृ यूरोपीय वा सय के आने के बाद हु ई। व व म सवा धक
जनसं या म वृ सन ् 1650 ई. के बाद ार भ हु ई। वष 1650 ई. से 10 लाख वष म
जनसं या म मा 54 करोड़ क वृ हु ई। 1650 ई. से 1850 ई. के म य शेष व व
क तु लना म यूरे शया म जनसं या वृ सवा धक रह । इसी समया तराल म कृ ष ां त
एवं औ यो गक ाि त का ार भ हु आ जो जनसं या वृ का मु य कारण रहा। इस
कार व व के सभी महा वीप म ती ता से जनसं या बढ़ है।
ए शया महा वीप
अनेक भू गोलवे ताओं एवं इ तहासकार ने ए शया को मानव जा त का उ व थान माना
है। इस कारण यहाँ पर ार भ से ह जनसं या अ धक रह है। ता लका- 9.1 से ात
होता है क सन ् 1650 म यहाँ क जनसं या 32.7 करोड़ थी जो व व क जनसं या
क 60% तशत थी यह व व म सवा धक थी। जनसं या बढ़कर सन ् 1750 म 91.5
करोड़ हो गई। वष 1900 से 2001 के म य ए शया क जनसं या म ती वृ हु ई तथा
यह बढ़कर सन ् 2001 म 396.8 करोड़ हो गई। उपरो त से प ट है क 1950 से
2006 (56 वष म) म िजतनी जनसं या म वृ हु ई है उतनी पछले 300 वष म नह
हु ई।
ए शया महा वीप म जापान को छो कर शेष सभी वकासशील दे श ह। इन वकासशील
दे श म मृ युदर क तु लना म ज मदर काफ अ धक है। वा य एवं च क सा सेवाओं
वारा मृ यु दर का नयि त कया गया ले कन ज मदर उस अनुपात म नयि त नह ं
हो पाई। अत: जनसं या व फोट क ि थ त बन गई।
यूरोप महा वीप
यूरोप महा वीप भी ार भ से ह सघन जनसं या वाला रहा है। सन ् 1650 म यूरोप क
जनसं या 10.3 करोड़ थी जो बढ़कर, सन ् 1850 म बढ़कर 27.4 करोड़, सन ् 1950 म
बढ़कर 39.2 करोड़ तथा सन ् 2001 म बढ़कर 73.2 करोड़ हु ई। मशीन का अ धका धक
योग और नमाण उ योग के कारखाने एक दे श से दूसरे दे श म फैलने लगे।
औ यो गक ां त के बाद यूरोप म जनसं या का भार बढ़ गया तो वहाँ के लोग दूसरे
महा वीप म जाकर अपने उप नवेश (Colonies) बसाने लगे। बाहर को लगातार वास
होते रहने पर भी यूरोप म जनसं या वृ होती रह । इस वृ के कारण म टे नोलॉजी
क ग त के अलावा आ थक, सामािजक और राजनी तक प रवतन भी थे।

195
वतमान म यूरोप महा वीप के अनेक दे श ने ज म-दर और मृ यु दर पर नय ण कर
लया है। इस लए ज म दर और मृ यु दर दोन घटने के कारण इस महा वीप क
जनसं या बहु त कम बढ़ रह है। यूरोप म बहु त से ऐसे दे श है िजनक जनसं या घट है
जैसे. ए लो नया – 0.4, यू े न - 0.7, स - 0.7, हंगर - 0.4, लात वया – 0.6 आ द।
बोध न -2
1. आधु नक काल का आर भ कब से माना गया ह।
............................................................................................
.............................................................. ..............................
2. आधु नक काल म ती जनसं या वृ का मु य कारण या था ?
............................................................................................
................................................................. ...........................
3. व व क जनसं या कस वष म 7 अरब होनी अनु मा नत है , वह है –
(अ) 2010 (ब) 2012 (स) 2015 (द) 2020 ()
4. द णी ए शयाई े म ाचीन म यकाल म धीमी वृ का या कारण
है ?
............................................................................................
........................................... ........................................ .........
अ का महा वीप
ए शया और यूरोप के बाद अ का भी ारि भक काल से बसा था। सन ् 1650 म यहां
क जनसं या 10 करोड़ थी जो सन ् 1800 म घटकर 9 करोड़ रह गई, य क अ का
क अनुपयु त जलवायु, ाकृ तक आपदाओं, महामा रय क अ धकता तथा च क सा
सु वधाओं के अभाव के कारण मृ युदर उ च रह । सन ् 1800 से 1900 (100 वष म) म
इस महा वीप क जनसं या म 3 करोड़ क वृ हु ई। 20 वीं शता द म कृ ष उ पादन
और ए शया व यूरोप से बडी सं या म लोग के वास के कारण जनसं या म वृ होने
लगी। इस कारण सन ् 1900 म 120 म लयन से जनसं या बढ़कर सन ् 2006 म 92.4
करोड़ हो गई।
अ का महा वीप म जनसं या वृ दर व व म सबसे अ धक है। यहाँ पर ज म दर 38
त हजार (वष 2006) से भी अ धक है। पि चमी और म य अ का म ज म दर 40
त हजार सभी अ धक है। अ य धक वृ दर के प रणाम व प अ का के कई दे श म
जनसं या व फोट क ि थ त बन रह है।
उ तर अमे रका
उ तर अमे रका एक नवीन बसा हु आ महा वीप है। औ यो गक ां त के बाद ए शया और
यूरोप के लोग वास करके इस महा वीप पर आये। सन ् 1650 म इस महा वीप क
जनसं या मा 10 लाख थी जो अगल शता द तक भी बनी रह । 18 वीं शता द के
उ तरा म यूरोपीय लोग का आगमन ार भ हु आ जो 19 वी शता द तक चला। िजस

196
कारण इस महा वीप क जनसं या 19 वी के आरं भ म 8.1 करोड़ हो गई। 1950 म यह
ु ी (16.6 करोड़) और सन ् 2006 बढ़कर लगभग 3 गुणा (52 करोड़)
बढ़कर लगभग दुगन
हो गई।
उ तर अमे रका म संयु त रा य अमे रका व कनाडा म ज मदर और मृ यु दर दोन बहु त
कम ह। िजससे जनसं या वृ कम हु ई। ले कन अ य दे श जैसे, मैि सको (1.7),
हा डु रास (2.5), वाटे माला (2.8), एल सा वेडोर (2.8), नकारागुआ (2.4) आ द म
जनसं या वृ अभी भी अ धक है िजस कारण जनसं या म ती ता से वृ हो रह है।
द णी अमे रका
इस महा वीप म सन ् 1650 से सन ् 2006 तक के म य जनसं या म 32 गुणा वृ
हु ई है। सन ् 1650 म यहाँ 12 म लयन जनसं या थी, जो बढ़कर सन ् 1900 म 63
म लयन, सन ् 1950 म 166 म लयन और 2001 म 350 म लयन हो गई है।
वतमान जनसं या वृ उ च ज म दर के कारण है। कु छ दे श क ज म दर अ धक है,
ले कन ाजील और अज ट ना ने जनसं या वृ पर नय ण कर लया है। अ य कारण
म व भ न दे श क सरकार ने वदे शी आगमन पर भी रोक लगा द है।
ओसी नया
ओसी नया (आ े लया) महा वीप म जनसं या म सवा धक आधु नक काल से ार भ हु ई
है। सन ् 1650 म यहाँ भी जनसं या 20 लाख थी। सन ् 1900 म जनसं या 60 लाख
तक पहु ँ च गई। 20वीं सद म ए शया, यूरोप और अमे रका से वा सय के आगमन के
कारण वष 2006 म जनसं या बढ़कर 3.4 करोड़ हो गई (लगभग 17 गुणा)। इस
महा वीप पर ाकृ तक जनसं या वृ कम रह य क ज म दर और मृ यु दर दोन ह
न न ह। आ े लया और यूजीलै ड म ाकृ तक जनसं या वृ कम है। इस महा वीप
के अ य वपीय दे श म जनसं या वृ अ धक है।
व व जनसं या वृ को वकासशील एवं वक सत दे श के अनुसार दे खा जाय तो प ट
है क वक सत दे श म जनसं या वृ सामा य अथवा ऋणा मक है जब क वकासशील
एवं अ वक सत दे श म जनसं या वृ दर अ धक है।

9.3.3 जनसं या वृ का ादे शक व प

वष 2005-07 अव ध म व व जनसं या वृ क दर 1.3 तशत त वष रह है। इस


वृ दर म बहु त अ धक ादे शक अ तर है। (मान च 9.2)। जहां वक सत दे श त
वष केवलन 0.1 तशत क दर से जनसं या बढ़ रह है, वह ं वकासशील दे श म
जनसं या बढ़ने क ग त 1.5 तशत है। पुन : इन दोन कार के े भी अ तर है।
जैसे क यूरोप महा वीप क जनसं या बढ़ने के बजाय घट रह है। यून ज म दर इसका
कारण है। स स हत पूव यूरोप म यह नकारा मक वृ क वृि त है। इनके वपर त
उ तर अमे रका (1%) तथा ओसी नया (1.2%) म म यम वृ दर है। ए शया मह प का
औसत (1.3%) व व के बराबर है। ले कन लै टन अमे रका (1.4%) तथा अ का

197
(2.2%) ती जनसं यावृ के े ह। भारत (1.7%) म भी वृ दर अ धक है। इस
वृ क व भ नता का प रणाम है क व व क जनसं या म जु ड़ने वाले 100 यि तय
म से 93 यि त वकासशील दे श के होते ह।
बोध न -3
1. वष 2001 म ए शया क कु ल जनसं या कतनी है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. यू रोप महा वीप म जनसं या वृ म द होने के कारण या ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
3. ऐसा कौनसा दे श है जहॉ जनसं या वृ ऋणा मक पाई जाती ह ?
(अ) टे न (ब) पे न (स) ां स (द) हं ग र ()
4. कस महा वीप क जनसं या वृ दर सवा धक है-
(अ) ए शया (ब) अ का (स) यू रोप (द) द ण अमे रका ()
5. आवजन के कारण िजन महा वीप पर जनसं या वृ हु ई है, वे कौन से
ह?
............................................................................................
................................................................ ............................

9.4 जनसं यावृ के कारण


व व म जनसं या वृ क वृि तय से ात होता है क सभी महा वीप म जनसं या
वृ हु ई है, क तु जनसं या क वृ दर सभी महा वीप पर एक समान नह ं है। पृ वी
पर मानवीय अि त व के 99% काल म जनसं या अ य त कम तथा वृ दर अ य त
म द रह है, क तु पछले 350 वष म व व क जनसं या बडी तेजी से बढ है। वगत
50 वष म व व के अनेक दे श जनसं या क व फोट ि थ त मे पहु ँ च गये ह। जनसं या
वृ के उ तरदायी कारक न नवत ह-
1. मृ यु दर मे गरावट : व व मे जनसं या वृ का सबसे मह तवपूण कारण मृ युदर
पर नय ण है। वगत 50 वष म वै ा नक उपलि धय तथा वा य एवम ्
च क सा सु वधाओं के व तार के कारण सं ामक रोग तथा महामा रय पर
सफलतापूवक नय ण कर लया गया है िजससे मृ युदर म भार गरावट आई है।
लेग, चेचक, हैजा, पो लयो आ द बीमा रय का लगभग उ मूलन हु आ है तथा शशु
मृ यु दर कम हु ई है। सन ् 1950-55 से सन ् 1965-70 के म य व व क औसत
मृ यु दर 20 यि त त हजार से घटकर 13 यि त हो गई; पर तु ज म दर 37
त हजार से 34 ह हो पाई। फलत: ज म और मृ यु दर का अ तर बढ़ा और
जनसं या क वृ दर वष 1950-55 के औसत 1.8 तशत से बढ़ कर सन ् 1965-

198
70 म 21 तशत हो गया। वतमान म मृ युदर 9 त हजार और ज मदर 21
त हजार है। फलत: नैस गक वृ दर घट कर 1.2 तशत रह गई है। जन
वा य सु वधाओं के कारण जीवन या ा बढ़ है। मृ युदर म अभू तपूव गरावट
आने तथा उ च ज मदर के कारण जनसं या वृ म ती ता आई है।
2. खा य पदाथ क सु नि चत आपू त : यां क एवम ् गहन कृ ष, संचाई सु वधाओं के
व तार, उ नत खाद-बीज के उपयोग आ द से व व म खा या न तथा अ य पदाथ
क नि चत एवं नय मत आपू त से जन संसाधन वृ दर बढ़ है तथा अकाल क
सं या अ य त कम हु ई है। ती गामी प रवहन साधन क सहायता से अकाल पी ड़त
े म खा य पदाथ क आपू त सु वधाजनक हु ई है।

मान च - 9.2 : व व म जनसं या क औसत वृ दर


3. औ यो गक वकास : औ यो गक ाि त के कारण खनन, ऊजा, उ योग, उ पादन,
प रवहन, यापार, तकनीक आ द सभी े क बहु मु खी वकास हु आ है, िजससे
रोजगार के साधन बड़े ह तथा सामा य जीवन तर म सु धार आया है। इससे
जनसं या वृ ो सा हत हु ई है।
4. शाि त और सु र ा : मानव स यता के इ तहास म सा ा य व तार, आ थक लाभ,
धम सार, राजनै तक वच व आ द अनेक उ े य क पू त के लए लड़े गए यु म
असं य सै नक एवम ् असै नक नाग रक क मृ यु हु ई है। शाि त एवं सु र ा क
थापना से व व म सामा य ग त का व तार हु आ है तथा जनसं या क वृ होती
रह है।
5. वै ा नक तथा ा व धक ग त : वै ा नक तथा ा व धक ग त के फल व प अनेक
अ व कार हु ए है; िजनसे मानव जीवन को सु खी एवं स पन बनाने वाले साधन का
वकास हु आ है। इससे जनसं या वृ ो सा हत हु ई है।
6. वास : यूरोप म औ यो गक ाि त के फल व प यूरोप म सभी े म ती वृ
हु ई। मृ यु दर क तु लना स उ च ज म दर के कारण जनसं या तेजी से बढने लगी
तथा यूरोपीय नवा सय ने बड़े पैमाने पर उ तर अमे रका, द णी अमे रका एवम ्
आ े लया क ओर वास आर भ कया। अत: महा ीप म आ जक के कारण ती
जनसं या वृ हु ई।
7. प रवहन : व व म प रवहन सु वधाओं के व तार से खा य पदाथ क आपू त सहज
हु ई। बाढ़, भू क प, वालामु खी उ गार, सु नामी, भू- खलन जैसे ाकृ तक वपदाओं

199
तथा यु , आतंकवाद आ मण जैसी मानव सृिजत सम य के दौरान प रवहन के
ती गामी साधन ने मानव को सु र त थान पर पहु ँ च का मानव जीवन क त को
कम कया है।
वक सत एवं वकासशील दे श क जनसं या वृ
वक सत एवं वकासशील दे श क जनसं या वृ म काफ अ तर है। वक सत दे श म
जनसं या वृ के मु ख कारण मृ यु दर पर नय ण, यां क कृ ष एवम ् नमाण
उ योग का वकास, सु ख सु वधाओं क अ धकता तथा वास है। वक सत दे श म त
यि त आय अ धक तथा सामा य जीवन तर उ च है। व व के सभी वक सत दे श म
जनसं या वकास क अि तम अव था म है। यहाँ ज म दर और मृ युदर दोन कम है।
आ वासन पर नय ण के कारण उ तर अमे रका, कनाडा और आ े लया आ द दे श म
नाग रकता दान नह ं क । वक सत दे श म छोटे प रवार ह सामा यत: पाए जाते ह
वक सत दे श म जनसं या क वा षक वृ दर 0.1% से कम है। संयु त रा य
अमे रका, कनाडा, टे न, ांस, जमनी, इटल , बेि जयम, डेनमाक, आ े लया,
यूजीलै ड, जापान आ द व व के मु ख वक सत दे श है।
व व के वकासशील दे श म मृ युदर पर नय ण, कृ ष एवं औ यो गक वकास, सु ख
सु वधाओं क बहु लता आ द के अ त र त जनसं या म ती वृ के कु छ अ य कारण भी
ह। ऐसे कारण व तु त: उ न त के माग म अवरोधक ह। व व म जनसं या क अ य धक
वृ वकासशील तथा अ प- वक सत दे श मे हो रह ह। वकासशील दे श म जनसं या
वृ के कारण न न ल खत ह-
1. धा मक कारक : व व के अ धकांश मु ख धम प रवार वृ को ो सा हत करते ह
तथा कु छ धम ज म नय ण के उपाय का वरोध करते है। व व के धा मक
क रप थी समु दाय म ती जनसं या वृ पाई जाती है।
2. सामािजक कारक : वकासशील दे श के समाज म च लत पर पराओं, र त रवाज
आ द से जनसं या क उ च वृ दर को बनाए रखने म सहायता मलती है। अनेक
समाज म अ पायु म ववाह कर दया जाता है। इससे स तानो प त काल द घ होता
है। इसके अ त र त ववाह क अ नवायता, ी वत ता पर नय ण, उदार यौन
यवहार आ द अ य सामािजक कारक ह िजससे वकासशील दे श म जनसं या क
वृ ती ता से हु ई है।
3. अ श ा एवं अ ानता : अ श ा एवम ् अ ानता के कारण अ धकांश वकासशील दे श
म सी मत प रवार क आव यकता को ग भीरता से नह ं लया गया है। नर रता
( वशेषकर ि य म) के कारण जनन रोकने क न तो आव यकता महसूस होती है
और न ह इसक व धय का ान हो पाता है। ब चे का ज म ई वर क दे न मान
लया जाता है।
4. आहार एवं वा य : ज म दर का आहार एवम ् वा य से गहन स ब ध है।
नवीनतम खोज के अनुसार ोट नज य पदाथ के अ धक उपयोग का जनन मता

200
पर वप रत भाव पड़ता है। व व के नधन तथा कुपो षत जन वग म उ च
जननता दर पाई जाती है। वकासशील दे श म यून वा य सु वधाओं से
स बि धत कम जीवन याशा एवम ् उ च शशु मृ यु दर के सि म लत भाव से
एक प रवार औसतन 6 स ताने उ प न कर 3 अथवा 4 के जी वत रहने क आशा
करता है। इस वृि त से जनसं या क वृ अ धक ती ता से हु ई है।
5. जनां कक य कारक : जनां कक य कारक के अ तगत आयु संरचना जनसं या क वृ
को भा वत करती है। आयु संगठन म नव वय क के उ च अनुपात वाले दे श म
उ च ज म दर पाई जाती है। यावसा यक संरचना के आधार पर ाय: दे खा गया है
क अकायशील म हलाओं म ज म दर उ च तथा कायशील म हलाओं म यापा रक
दा य व के कारण ज म दर कम रहती है। वकासशील दे श मे ामीण े म
नगर य े क ं तु लना म उ च ज म दर पाई जाती है। कम नवाह यय, अ ानता,
नर रता, पा रवा रक त ठा, ढ़य , सामािजक-आ थक दबाव आ द अनेक कारण
से ामीण े म जनसं या क ती वृ होती है।
6. जलवायु : व व के उ णा जलवायु वाले दे श म नवा सय क स तानो पादक
मता अथवा जनन दर उ च होती है। मानसू नी ए शयाई दे श , अ का के वषुवत
रे खीय भाग म उ च ज म दर के कारण जनसं या म ती वृ पाई गई है।
जलवायुगत भाव से शार रक प रप वता कम उ म ह ा त हो जाती है।
जनसं या क वृ ज म दर तथा मृ युदर पर नभर करती है। वकासशील दे श म
उि ल खत कारण से ज मदर म ती ता रह है, क तु वै ा नक उ न त के कारण मृ यु
दर म उ लेखनीय गरावट आई है। वकासशील दे श म प रवार का आकार बड़ा पाया
जाता है। वकासशील दे श म जनसं या क वा षक वृ दर 2% से 4% है। वकासशील
दे श म जनसं या क उ च वृ दर ने वकराल प धारण कर लया है।

9.5 जनसं या वृ के प रणाम (Consequences of


Population Growth)
जनसं या वृ के प रणाम तब प ट दखाई दे ते है जब कसी े म उपल ध कु ल
संसाधन क तु लना म जनसं या अ धक या कम होती है। संसार म जनसं या के
प रणाम दन त दन अ धका धक ग भीर और ज टल होते जा रहे ह। एक दे श से दूसरे
दे श क जनसं या वृ के प रणाम समय और थान के अनुसार भ न होते है। इन
प रणाम का अ धक सु यवि थत ढं ग से अ ययन कया जा सकता है य द हम वक सत
और वकासशील दे श के प रणाम पर अलग- अलग वचार कर।
वकासशील दे श म जनसं या वृ के प रणाम
व व क अ धकांश जनसं या वकासशील दे श म नवास करती है। चीन और भारत म
व व क 20 और 17 तशत जनसं या नवास करती है। व व क 374 जनसं या
वकासशील दे श म नवास करती है। इन दे श म ौ यो गक वकास का तर नीचा है,
िजसके कारण कृ ष क उ पादकता भा वत होती है और इनम थानीय संसाधन के

201
उपल ध होते हु ए भी औ यो गक वकास नह ं हो पा रहा है भारत, चीन, पा क तान,
बांगलादे श, यांमार, नेपाल, इ डोने शया, मले शया फल पाइ स तथा अ का के अ धकांश
दे श आ द इसी कार के दे श ह। अनेक ऐसे दे श है जो अ वक सत ह जहां चु र संसाधन
का उपयोग करने के लए जनसं या कम या अपया त है। इस कार के दे श म ाजील,
पे , जायरे , साइबे रया, कजा क तान, कोलि बया, तु ममे न तान आ द ह।
1. संसाधन पर बढ़ता दबाव : ती जनसं या वृ तथा बढ़ती आकां ाओं ने आधारभू त
संसाधन - भू म, वन एवं जल क मांग इतना अ धक बढ़ा दया है क इनका दोहन
उनक मता से अ धक हो रहा है। कृ ष यो य भू म का अ य काम म उपयोग कृ ष
के लए नई भू म क खोज म वन क सफाई, जोत का वभाजन एवं होता होना,
उवरक एवं रसायन का बढ़ता उपयोग िजससे पयावरण दू षत होना आ द इसके
मु य दु प रणाम ह। अनुमान है क तवष 1 से 1.5 तशत वन न ट हो रहे ह।
2. रोजगार के अवसर म कमी : वकासशील दे श म अ धकांश जनसं या कृ ष पर नभर
रहती है। वतीय और तृतीयक े (उ योग और सेवाओं) का वकास अपे ाकृ त
कम हु आ है। अत: जनसं या म ती वृ के मु काबले रोजगार के अवसर घटते जा
रहे ह। श त और कु शल तकनीक वै ा नक के लए नयोजन क सी मत अवसर
उपल ध है। प रणाम व प श त, अ श त, कु शल, अकु शल यि त रोजगार क
तलाश म पलायन कर जाते है। उदाहरण भारत, बां लादे श, पा क तान आ द का अरब
दे श व पि चमी दे श क ओर पलायन।
3. खा या न म कमी : कृ ष तकनीक वकास के कारण कृ ष उ पादन म बढ़ोतर हो
रह है ले कन यह बढ़ोतर जनसं या वृ क अपे ा कम हो रह है िजसका भाव
सीधा लोग के वा य एवं काय मता पर पड़ता है। अ धकांश लोग को संतु लत
भोजन क कमी रहती है िजससे कु पोषण का शकार हो जाते है।
4. आवासीय सम या : जनसं या म तेजी से वृ होने के कारण जनसं या वृ क
तु लना म आवास म वृ नह ं हो पाती है िजसके कारण कई लोग टू टे-फूटे घर व
छ पर म नवास करते ह। कई ामीण लोग नधनता एवं बेरोजगार के कारण
आवास बनाने म असमथ ह। ती जनसं या वृ के कारण ामीण लोग शहर क
ओर रोजगार क तलाश म पलायन कर जाते ह। शहर े म अ धक कराया एवं
मंहगी जमीन के कारण ये लोग क ची बि तय म रहने लगते ह जहाँ पानी, बजल ,
वा य स ब धी सु वधाओं का अभाव पाया जाता है।
5. न न आ थक वकास : अ धकतर वकासशील दे श म ज मदर उ च पाई जाती है
और वा य सेवाओं म वकास के कारण ज मदर म गरावट हो रह है। इस कारण
वकासशील दे श म जनसं या म युवक का अनुपात अ धक रहता है। युवाओं का यह
वशाल अनुपात वा य, श ण और अ य सामािजक उपल ध सेवाओं पर अ य धक
दवाब डालता है। फलत: उन दे श क सरकार अपनी आय का अ धकांश भाग नाग रक
क ाथ मक आव यकताओं जैसे भोजन, व , मकान, वा य, सेवाओं आ द पर

202
खच करती है, िजसके कारण अ य वतीयक एवं तृतीयक आ थक याओं क तरफ
कम यान दया जाता है। आ थक वकास पर कम यान दे ने के कारण वकास क
ग त जनसं या वृ क तु लना म बहु त कम बढ़ पाती है िजसका सीधा भाव रा य
उ पादन एवं त यि त आय पर पड़ता है।
वक सत दे श म जनसं या वृ के प रणाम
वक सत दे श अ य धक नगर कृ त ओर औ यो गककृ त होते ह, िजनम न केवल त
यि त आय अ धक होती है वरन ् अ धकांश जनसं या या तो वतीयक अथवा तृतीयक
काय पर नभर रहती है। इन दे श मे वकास का उ च तर, उ नत कृ ष और व तृत
पैमाने पर औ यो गक उ पादन होते हु ए भी जनसं या वृ के व भ न प रणाम से
सामना करना पड़ रहा है।
1. उ च नगर करण : रोजगार क खोज तथा नगर य सु वधाओं के आकषण से ामीण
नवासी नगर म आकर बस जाते है। नगर पर जनसं या के भार बढ़ने से मू लभू त
सु वधाओं क उपल धता बा धत होने लगती है। महानगर म वायु, जल, वन
दूषण, थानाभाव, पयावरणीय अवनयन से जु ड़ी वा य समा याएँ, ग द बि तयाँ,
तनावपूण जीवन आ द अनेक सम याएं उ च नगर करण का प रणाम ह।
2. उ च जीवन या ा : वक सत दे श म उ नत च क सक य सु वधाओं के कारण
सामा यत: जीवन या ा 70 वष से अ धक पाई जाती है। ऐसे दे श क आयु
संरचना म वृ का अनुपात अ धक होने से आ तता अनुपात भी बढ़ा है। ऐसे व र ठ
नाग रक क जीवन सु र ा, पशन, वा य तथा अ य सेवाओं पर सरकार को यय
करना पड़ता है, इससे आ थक भार बढ़ता है।
3. मक का अभाव - वक सत दे श के वतीयक एवं तृतीयक यवसाय म शार रक
म वाले तथा जो खम भरे काय करने वाले मक का अभाव रहता है। अ य धक
मशीनीकरण के बावजू द वक सत दे श का अ य दे श से काय शि त के लए मक
उ च वेतन पर मंगाना पड़ता है।
4. जनसं या ास -जमनी, इटल , ांस, स कम से कम 10 यूरोपीय आ द कम से
कम 10 यूरोपीय वक सत दे श म अ त न न ज म दर तथा नयि त मृ यु दर के
कारण जनसं या क वृ दर या तो अ य प है अथवा घट रह । ऐसे दे श म
जनसं या ास क ि थ त उ प न हो गई है।

9.6 जनसं या वृ नय ण
जनसं या क वृ वक सत और वकासशील दोन कार के े म सम या द है। अत:
इस बढ़ती सम या का शी नय ण कया जाना चा हए। संयु त रा संघ के
जनसं या- वशेष इस दशा म य नशील ह। इ होने इस दशा म अनेक सु झाव दये ह
िजससे कसी दे श क जनसं या और संसाधन म स तुलन था पत कया जा सकता है।
जनसं या वृ को रोकने के लए न न उपाय होने चा हए -
1. ज मदर और मृ युदर पर नय ण

203
2. श ा का सार
3. प रवार नयोजन
4. दे र स ववाह
5. आ जन पर नयं ण
1. ज मदर और मृ युदर पर नय ण : येक दे श को ज मदर और मृ युदर को
नय ण करने लए योजना बनानी चा हए। वक सत दे श ने ऐसी योजनाएं बना कर
ऐसी ि थ त म पहु ँ च गये ह जहाँ जनसं या वृ क गई या घटने लग गई। इसके
वप रत वकासशील दे श ज मदर व मृ युदर को नयं त करने के लए यासरत है।
मृ युदर को च क सा व ान के वकास के कारण नय ण कर लया गया है,
ले कन ज मदर अभी भी नयि त नह ं हो पा रह है। येक दे श को सरकार तर
पर योजना बनाकर इसको नयि त करने के उपाय करने चा हए।
2. श ा का चार : जनसं या वृ को रोकने लए श ा के चार क अ य धक
आव यकता है। जनसं या आकार और जनसं या वृ दर का येक नाग रक को
ान होना चा हए। येक नाग रक को इस बात को बताना चा हए क कस कार
जनसं या क वृ कार से हमार मू लभू त आव यकताओं को सी मत कर रह है।
श ा बढ़ने के साथ ह ववाह क आयु बढ़ती है तथा लोग प रवार नयोजन क
आव यकता समझते ह और अपनाते ह। इस तरह ज म दर घटाने म मदद मलती
है।
वक सत दे श म अ धकांश जनसं या श त है िजससे चार- सार अ धक होने के
कारण यहाँ जनसं या वृ नयि त है। अ वक सत व वकासशील दे श म श ा का
तर कम है। ी सा रता कम होने के कारण इन दे श क ि थ त भयानक बनी हु ई
है।
3. प रवार नयोजन : वक सत दे श म श ा के सार के कारण तथा सरकार य न से
लोग ने बड़े पैमाने पर प रवार नयोजन के तर के अपनाया है िजसके कारण
जनसं या नयि त हो गई है ले कन इसके वपर त अ वक सत और वकासशील दे श
म सरकार यास के बावजू द भी लोग प रवार नयोजन नह अपना रहे ह। इसके
कारण जनसं या क ती वृ हो रह है। अत: इन दे श म श ा के चार- सार से
प रवार नयोजन का ता पय समझाकर इसे अपने अपनाने पर जोर दया जाना
चा हए।
4. दे र से ववाह : अ वक सत और वकासशील दे श म अ धकांश लोग अपने ब च का
ववाह कम उ म कर दे ते ह िजससे कम उ म ह ब चे होने लगे ह। ज म दर म
वृ होने के कारण जनसं या म वृ होती है। ववाह क आयु बढ़ने पर जनन का
समय छोटा हो जाता है। फलत: जननता घटती है। अ तु ऐसे यास करना चा हए।
िजससे ववाह दे र से ह । बाल ववाह पर द ड का ावधान होना चा हए।
5. अ वासन पर नय ण : वक सत दे श संयु त रा य अमे रका, आ े लया, कनाडा
आद वा सय को नाग रकता दान नह ं कर रहे ह। िजससे इन दे श क जनसं या

204
वृ अ य त कम हो रह है। इसी कार अ य दे श म भी वास पर रोक लगाकर
जनसं या वृ को कम कर सकते ह।

9.7 सारांश (Summary)


ाचीन काल से ह जनसं या म वृ होती रह है। ाचीन काल से म यकाल तक वृ
अ य त मंद रह । ले कन कृ ष ाि त एवं औ यो गक ाि त के बाद जनसं या म ती
वृ हु ई। पछले 10 लाख वष म जनसं या म मा 50 करोड़ भी वृ हु ई। वष 1650
ई. से 1850 ई. के म य यूरोप और ए शया म सवा धक वृ हु ई। सन 1950 से 2001
(50 वष म) के म य व व क जनसं या म िजतनी वृ हु ई उतनी वृ पछले 300
वष म नह हु ई।
वक सत दे श म जनसं या वृ दर बहु त कम या ि थर हो चु क है, य क इन दे श म
ज मदर और मृ यु दर म बहु त अ धक अ तर नह ं है। यूरोप म कई दे श ऐसे है जहाँ
जनसं या वृ ऋणा मक है य क यहाँ ज म दर और मृ युदर समान पाई जाती है।
अ वक सत और वकासशील दे श म अभी भी ज म-मृ यु का अ तर अ धक है िजस कारण
जनसं या म नर तर वृ हो रह है। व व तर पर जनसं या वृ के प रणाम को
ि टगत रखते हु ए इनका समाधान खोजा जा रहा है।

9.8 श दावल (Glossary)


 ज मदर (Birth Rate) : एक वष म त हजार पर जीव त ज म क सं या ज म
दर कहलाती है।

 मृ यु दर (Death Rate) : एक वष म त एक हजार जनसं या पर होने वाल


मृ यु को मृ यु दर कहते ह।
 जनसं या वृ : कसी दे श क जनसं या के आकार म एक नि चत समय म होने
वाले प रवतन को जनसं या वृ कहा जाता है।
 वास (Migration) : कसी यि त वशेष या मानव समु दाय वारा दे शा तरण या
भौगो लक एवं थान स बंधी आवागमन को वास कहते है।

9.9 संदभ- ंथ (Reference Books)


1. Howels : W.W. The Distribution of man, Scientific Americans vol.
2003,
2. Leakey : L.S.B. The Origin of the Genus Homo in Sol tex (ed.),
The Evaluation of man, Chicago,1960
3. The Population Explosion causes and Consequences (Internate)
Caroly Kinder (1998),

205
9.10 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. 50 लाख,
2. 25 करोड़,
3. 1950 के बाद के काल को।
बोध न - 2
1. 1650 ई से ,
2. अ यो गक ां त,
3. (अ),
4. आपदा एवं यु ।
बोध न - 3
1. 3720 म लयन,
2. ज म दर और मृ यु दर मे कमी ,
3. (द),
4. (ब),
5. उ तर अमे रका तथा आ े लया।

9.10 अ यासाथ न
1. जनसं या मे वृ से आप या समझते हो ?
2. ऐ तहा सक प र े य मे व व जनसं या वृ को प ट क िजये ?
3. जनसं या वृ को नयं त करने वाले कारक का वतरण क िजये।
4. म य बीसवीं शता द के बाद हु ए जनसं या वृ के कारण का वणन क िजये।
5. ती जनसं या वृ के दु प रणाम ह ?

206
इकाई 10: मानव संसाधन - वैि वक जनसं या व यास
तथा घन व त प) Human Resources –
World Population Distribution and
density pattern)
इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना
10.2 वैि वक जनसं या व यास
10.2.1 घने बसे दे श
10.2.2 वरल बसे दे श
10.2.3 जनसं या का महा वीपीय वतरण
10.2.3.1 ए शया महा वीप
10.2.3.2 यूरोप महा वीप
10.2.3.3 अ का महा वीप
10.2.3.4 उ तर महा वीप
10.2.3.5 द णी अमे रका महा वीप
10.2.3.6 ओसी नया महा वीप
10.3 घन व त प
10.3.1 जनसं या घन व के कार
10.3.2 जनसं या के घन व का त प
10.4 जनसं या वतरण एवं घन व को भा वत करने वाले कारक
10.5 सारांश
10.6 श दावल
10.7 संदभ थ

10.8 बोध न के उ तर
10.9 अ यासाथ न

10.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप समझ सकगे क -
 व व का जनसं या व यास,
 व व का जनसं या घन व त प,
 व व के जनसं या अ य य दे श,
 व व के जनसं या वरल दे श,

207
 जनसं या घन व के कार के बारे म,

10.1 तावना (Introduction)


संसाधन क खृं ला म मानव संसाधन बहु त मह वपूण है, य क वह यथ के पदाथ से
संसाधन बनाता है आर वह सभी संसाधन का उपभो ता है। अ य संसाधन क भां त
मानव का व व म वतरण बहु त असमान है। वा तव म मनु य उ ह ं े म नवास
करता है जो भौ तक ि ट से उसके नवास के यो य हो, जहाँ भोजन, पानी और आवास
क आव यकताएँ आसानी से पूर क जा सकती ह । व व म ऐसे भाग सी मत ह। अ तु
मानव उ ह ं भाग म केि त ह। इसके वपर त व तृत भाग क ठन जलवायु, वषम
धरातल, अनुपजाऊ म ी, जल के अभाव आ द के कारण नवास-यो य नह ं है। फलत: ये
नजन तथा अ त वरल जनसं या के े ह। इस इकाई का उ े य इसी असमान
जनसं या के वतरण को तु त करना है।

10.2 वैि वक जनसं या व यास


मानव इ तहास के ारि भक चरण से स यताओं का वकास नर तर होता रहा है। मानव
स यताओं के वकास के साथ आई ज टलताओं के साथ कारण पृ वी पर जनसं या
व यास एक समान नह ं पाया जाता है। इसके साथ ह जनसं या का वतरण, वसन
और जनसं या वृ दर म भ नताओं के साथ प रव तत होता रहता है। व व क लगभग
आधी जनसं या 5% भू म पर नवास करती है, जब क कु ल भू म का 33% भाग नजन
है। कु ल जनसं या का 90% उ तर गोला म शेष 10% जनसं या द णी गोला म
नवास करती है। उ चावच के ि टकोण से 60% जनसं या समु तल से 200 मीटर से
कम ऊँचाई वाले भू-भाग पर नवास करती है। अ ांशीय वतरण के ि टकोण से दे खा
जाए तो व व क 50% जनसं या 20० से 40० उ तर अ ांश के म य रहती है तथा
30% जनसं या 40० से 60० उ तर अ ांश के म य नवास करती है। मा 1%
जनसं या 60 उ तर अ ांश से उ च अ ांश म रहती है। घन व के आधार पर दे खा

जाए तो वह भू भाग जहाँ क जलवायु व उवर मृदा अनुकू ल है उन थान पर सघन


जनसं या पाई जाती है। चीन क 65% जनसं या समु तट य व नद घाट े म
नवास करती है। भारत म गंगा व यमु ना नद के मैदानी े तथा तट य मैदान सघन
बसे हु ए ह।
व व क जनसं या म य 2006 म 655.5 करोड़ तक पहु ँ च गई। िजसम से 1/4
(23.0%) वक सत दे श म नवास करती है, िजसम संयु त रा य अमे रका, यूरोप ,
जापान, आ े लया, यूजीलै ड और भू तपूव सो वयत स के दे श ह। कम वक सत े
िजसम अ का, द णी अमे रका, ए शया, मले शया और माइ ोने शया-पो लने सया आ द,
म व व क लगभग तीन - चौथाई (77.%) जनसं या नवास करती है। ए शया महा वीप
म व व क आधी से भी अ धक जनसं या (396.8 करोड़) नवास करती है। इस कारण
यह महा वीप व व का सवा धक जनसं या वाला है। अ का महा वीप 92.4 करोड़
208
जनसं या के साथ व व म दूसरे थान पर है। इसके बाद 732 करोड़ क जनसं या
वाला यूरोप महा वीप आता है (ता लका - 10.1)। यूरोप, द णी अमे रका, उ तर
अमे रका और ओसी नया कम जनसं या वाले महा वीप है।
ता लका-10.1 : महा वीपवार जनसं या का वतरण - 2006
महा वीप जनसं या व व का तशत घन व त
(करोड़ यि त) वग कमी
ए शया 396.8 60.45 125
अ का 92.4 14.1 31
उ तर अमे रका 52.0 7.9 23
द णी अमे रका 37.8 5.8 21
यूरोप 73.2 11.2 32
ओसी नया 3.4 0.5 04
व व 655.5 100.0 49
ोत : पापु लेशन रफरस यू रो, वा शंगटन : 2006 वड पापु लेशन डाटा शीट

महा वीप के अ दर भी जनसं या का वतरण समान नह ं है। उदाहरण के लए सन ्


2006 म व व के दे श म जनसं या होल सी (द णी यूरोप ), नड (पोल ने शया) और
मांट सेरट (कैर बयन) म एक हजार से लेकर भारत म 112.2 करोड़ तथा चीन म
131.1 करोड़ यि त ह। व व के 11 दे श म जनसं या 10 करोड़ से अ धक है। इनम
चीन और भारत म तो 100 करोड़ से भी अ धक है। इस तरह व व क दो तहाई
(60.6%) जनसं या इन 11 दे श म केि त है। ये दे श न न ह (ता लका- 10.2)।
ता लका- 10.2 : जनसं या के अनुसार व व के 10 बड़े दे श
. सं. दे श जनसं या व व का घन व
1. चीन 131.1 20.00 137
2. भारत 112.2 17.12 341
3. संयु त रा य अमे रका 29.9 4.56 31
4. इ डोने शया 22.5 3.43 119
5. ाजील 18.7 2.85 22
6. पा क तान 16.6 2.53 208
7. बां लादे श 14.7 2.24 1018
8. स 14.2 2.17 8
9. नाइजी रया 13.5 2.06 146
10. जापान 12.8 1.95 338
11. मैि सको 10.8 1.65 55
ोत: पापुलेशन रफरस यू रो, 2006 वड पापुलेशन डाटा शीट

209
व व क जनसं या वतरण को व वध कार क वषमताओं के संदभ म न नां कत
भाग म वभ त कया जा सकता है-
1. घने बसे दे श (Densely Populated Regions)
2. वरल बसे दे श (Sporsely Populated Regions)

10.2.1 घने बसे दे श (Densely Populated Regions)

व व म पाँच दे श ऐसे है जहाँ सघन जनसं या पाई जाती ह। इन दे श का जनसं या


घन व 100 यि त त वग कलोमीटर से भी अ धक है।
(i) पूव ए शया - चीन, जापान, द. को रया और ताइवान।
(ii) द णी ए शया - भारत, पा क तान, बां लादे श, ीलंका, नेपाल।
(iii) स पूण द णी पूव ए शया के दे श।
(iv) उ तर-पि चमी यूरोप - ेट टे न, ांस, जमनी, नीदरलै ड, बेि जयम, ल जे बग
डे माक, आयरलै ड, पेन और इटल ।
(v) पूव उ तर अमे रका - उ तर पूव संयु त रा य अमे रका और द ण-पूव
कनाडा।
उपयु त सभी दे श उ तर गोला म ि थत ह। इन दे श म व व क 75% से भी
अ धक जनसं या मानव संसाधन नवास करती है। ए शयाई समूह म व व क 50%
जनसं या से अ धक नवास करती है। चीन मे वांगहो का मैदान, यांगट सी यांग और
स यांग न दय क घा टय म, पूव तट, संगापुर , हांगकांग तथा जावा ऐसे े ह जहाँ
जनसं या घन व 1000 यि त त वग क मी. से भी अ धक है। भारत म सतलज-
मपु का मैदान, पूव तट य मैदान और सदा वा हत न दय क घा टयाँ घने बसे े
ह। पा क तान म पंजाब ांत, िजससे होकर पाँच न दय ( संध,ु सतलज, झेलम, चनाब
और रावी) वा हत होती ह, घने बसे े ह। बां लादे श केवल चटगाँव पहा ड़य के भाग
को छोड़कर सम त क छार दे श व नेपाल क घाट भी घने जनसं या के े ह।
जापान को छो कर पूव ए शया और द णी ए शया के दे श क जनसं या मु यत: गांव
म नवास करती है। इन दे श म जहाँ सामा य ढाल क मैदानी भू म, उपजाऊ कछार
म ी और जल (भू मगत जल और वषा) है वहाँ जनसं या घन व सबसे अ धक है। यहाँ
के नवासी य प से कृ ष काय म संल न ह।
उ तर-पि चमी यूरोप म व व क 4 तशत तथा उ तर अमे रका के पूव भाग म 5
तशत जनसं या रहती है। इन दे श म घनी जनसं या वाले े म नगर य समू हन
(Urban Agglomaration) ह। औ यो गक वकास एवं तृतीयक याओं (सेवाओं) क
वृ के कारण पछले 200 वष म नगर करण क वृ त म वृ हु ई। इसी कारण यूरोप
और उ तर अमे रका क 3/4 जनसं या नगर म नवास करती है।
उपयु त व णत घनी आबाद के पांच े के अ त र त कु छ अलग और बखरे हु ए घनी
आबाद के के भी ह। इन छोटे के म मीकांग, मीनाम और ईराबद न दय के डे टा

210
े , इ डोने शया का जावा वीप उ लेखनीय ह। अ का महा वीप के अ य धक घने े
म म म नील क घाट के सहारे रे खीय पेट , व टो रया झील के कनारे का वलय े
और नाइजी रया का तट य े सि म लत है। द णी अमे रका के अ य धक घने बसे
े म मैि सको का म यवत भाग, मैि सको सट (2 करोड़ से अ धक जनसं या) व व
का मु ख महानगर है। वेनेजु एला, ाजील और अज टाइना के तट य े के मु ख नगर
घने जनसं या वाले के ह ।

10.2.2. वरल बसे दे श (Sparsely Populated Regions)

इन दे श म व व क मा 5 तशत जनसं या नवास करती है जब क यह दे श व व


के 70 तशत भूभाग पर ि थत ह। यहाँ जनसं या घन व 10 यि त त वग कमी से
भी कम है। इस दे श क इन े म ि थ त, उ चावच, जलवायु क वषम प रि थ तयाँ
उ च अ ांश म हमा छादन, म थल मे उ णता एवं वषुवत रे खीय े म अत
उ णता एवं आ ता के कारण वरल जनसं या पाई जाती है। उपयु त कारण के आधार
पर इस वग को न न ेणीय म वभािजत कया जा सकता है -
ता लका- 10.3 : नवास के अयो य दे श
.सं दे श तशत ि थ त एवं ल ण
े फल
1. शु क एवं अ शु क म थल 20 व व के सभी उ ण एवं शीतो ण
म थल
2. पवतीय े 20 2500 मीटर से अ धक ऊँचाई वाले
पवत, हमालय, रॉक ज, एि डज,
आ पस आ द।
3. ु वीय आवरण 20 60० अ ांश के ऊपर ि थत
े ,आक टक, अ टाक टक, ीनलै ड,
साइबे रया तथा उ तर अमे रका का
उ तर भाग।
4. वषुवत रे खीय घने वन े 10 वषुवत रे खीय सघन वन े , कांगो,
अमेजन बे सन व द णी ए शया के
वीप समूह
1. म थल, शु क और अ शु क े (Desert, Arid & Semi Arid Areas) :
म थल, शु क और अ शु क े म वरल जनसं या पाई जाती है, य क यहाँ
पर इन े म वषा क दर क तु लना म वा पीकरण क दर अ धक होती है। जल
का अभाव व अनुपल धता इन े म मनु य के बसने म मु य सम या ह।
म थल क महान खृं ला महा ीप के पि चमी कनारे पर वशेषकर कक और मकर
रे खाओं के सहारे जनसं या वरल पाई जाती है। ल बया, अ जी रया, नाइजर, चाड

211
और मै रटो नया के म थल म येक 15 वग कलोमीटर म एक यि त का घन व
पाया जाता है।
उ ण तथा शीत दोन कार के म थल लगभग नजन है अथात ् कह -ं कह ं घुम कड़
आखेटक और सं ाहक (कालाहार के बुशमैन ) और घुम कड़ो (अरब और सहारा के
बटू ) वारा वरल बसे े ह। म य ए शया और आ े लया के म थल के लोग
पशु धन (भेड़-बकर ) रखते ह ले कन उनका जीवन तर न न है।
इन म थल य े म कु छ े अपवाद मा है। अपवाद े वे है यहां मू यवान
धातु ए,ँ ख नज तेल आ द पाये जाते ह। इन े म मको के समूह और वै ा नक
क बि तयाँ था पत हो रह ह िजससे नगर का वकास हो रहा है।
2. पवतीय दे श : व व के पवतीय दे श जनसं या के वरल े है। पवतीय दे श म
पवत क ऊँचाई के अनुसार जनसं या वरल होती जाती है। न न और म य अ ांश
म 2500 मीटर से अ धक ऊँचाई वाले भाग लगभग नजन होते है। उ च अ ांश पर
यह ि थ त 2500 मी. से कम ऊँचाई से ह ार भ हो जाती है।
रॉक ज, एि डज, आ पस पवतीय भाग म 2500 मीटर से अ धक ऊँचाई वाले भाग
नजन है। अपवाद व प 2500 मीटर से अ धक ऊँचाई वाले वे े जहाँ बहु मू य
धातु एँ पाई जाती ह। वहाँ पर मानव बि तयाँ पाई जाती ह। जैसे - हमालय पवत म
क त बार (लगभग स भाग के भ वाह िजले म) म लगभग 5500 मीटर ऊँचाई पर
मू यवान प थर का खनन कया जाता है। स धु नद के उ गम थल तोक-शालु ंग
थान पर सोना नकाला जाता है। एि डज पवत पर पी और बोल वया म 4000
मीटर क ऊँचाई पर बहु मू य धातु ओं का खनन कया जाता है।
भू म य रे खीय उ ण क टब धीय दे श म जहाँ पर न न ऊँचाई वाले े क
जलवायु अ धवास के ेरक नह होती वहाँ पर अ धकांश क बे, नगर और बि तयाँ
समु तल से 2000 मीटर से अ धक ऊँचाई पर पाई जाती ह। यूटो (इ वेडोर), नेरोबी
(क नयां) ऊँट (भारत), के डी ( ीलंका) आ द सभी समु तल से 2000 मीटर क
ऊँचाई से अ धक ऊँचाई पर ह।
3. ु वीय आवरण : स पूण व व म वरल जनसं या का दूसरा मह वपूण े है। यह
े उ तर और द णी गोला म अ य धक शीत दे श है। उ तर गोला म
आक टक और द णी गोला म अ टाक टका महा ीप अ य त शीत दे श ह जहाँ
शीत ऋतु अ धकारमय भयानक व ल बी होती है। इस दे श के कु छ भाग म लोग
अ थायी नवास करते ह। इन लोग का मु य यवसाय शकार करना और मछल
पकड़ना है। एि कम जा त के लोग जो झील म मछल का शकार करते है, ह 80०
उ तर अ ांश तक पहु ँ च सके ह।
इस दे श म बहु मू य ख नज, सोना, कोयला तेल, नमक आ द पाये जाने के कारण
लोग यहाँ पर रहने लग गये, ले कन भरण-पोषण के लए नकटवत वकास े पर
नभर रहते ह।

212
4. वषुवत रे खीय घने वन. इन े म ाकृ तक वषमताओं एवं हा नकारक जीव-ज तुओं
एवं बीमार के कारण जनसं या बहु त कम पाई जाती है। इस दे श म सदाबहार
वषुवत रे खीय वन पाये जाते ह। ये मु यत: अमेजन बे सन, कांगो बे सन और जावा
के अ त र त द णी पूव ए शया के वीप म पाये जाते ह। इस दे श क उ ण और
आ जलवायु, घने सदाबहार वन, क डे-मकोड़ो, म छर और टसी- टसी म खी से
भा वत े मानव अ धवास के लए उपयोगी नह ं है।
सभी वरल जनसं या वाले े मे अ थाई और वरल कार क बि तयाँ पाई जाती
ह। इन दे श के बड़े-बड़े भाग नजन है, जब क छोटे -छोटे थान पर जनसं या के
झु ड पाये जाते ह।
बोध न -1
1. व व म घने बसे दे श कतने ह ? नाम लखो
............................................................................................
............................................................................................
2. व व म घने बसे दे श म कतनी तशत जनसं या नवास करती है ?
......................................................................................... ...
............................................................................................
3. व व म वरल बसे दे श को कतने भाग म बाटा गया है ? नाम लखो-
............................................................................................
............................................................................................
4. व व म वरल जनसं या वतरण के पहला व दू स रा मह वपू ण दे श
कौनसे ह ?
............................................................................................
............................................................................................
5. व व क कु ल भू म का कतना भाग नजन है ?
............................................................................................
............................................................................................
6. व व क अ धकां श जनसं या कस गोला म नवास करती है ?
............................................................................................
............................................................................................

10.2.3 जनसं या का अ त: महा वीपीय वतरण

महा वीप म जनसं या का वतरण एक समान नह ं है। यह असमान वतरण भौ तक,


ऐ तहा सक, सां कृ तक और आ थक कारण से है। भौ तक कारक म जलवायु, भू व प,
(terrain), पानी, म ी, ख नज स पदा और था नक स ब ध मह वपूण ह। ऐ तहा सक
कारक व व म मु ख बि तय के वकास का आज भी सबसे मह वपूण कारक है।
सां कृ तक कारको म सामािजक वचारधारा, आ थक वकास का तर, राजनै तक संगठन
213
आ द भी जनसं या वतरण को भा वत करते है। ज म दर व मृ यु दर तथा वसन के
कारण भी व व के जनसं या घन व म अ तर पाया जाता है।

10.2.3.1 ए शया महा वीप

यह व व म सबसे अ धक जनसं या वाला महा वीप है। इस महा वीप म भी जनसं या


का वतरण असमान है। यहाँ पर जनसं या के वतरण पर कृ ष का भाव मु य है।
जापान दे श के अ त र त सभी दे श कृ ष धान ह। चीन व व म सबसे अ धक जनसं या
(131.1 करोड़) वाला दे श है। भारत (112.2 करोड) का चीन के बाद दूसरा थान है।
इ डोने शया, पा क तान, बंगलादे श और जापान भी भार जनसं या के दे श ह।
ए शया महा वीप म जनसं या का वतरण 10० उ तर से 40० उ तर अ ांश के म य है।
यहाँ जलवायु उ ण तथा उपो ण कार क है। चीन, भारत, जापान, को रया, वयतनाम,
बां लादे श आ द मानसू नी जलवायु म आते ह। जहाँ मानसूनी पवन से पया त वषा होती
है। उ च पवतीय े से नकलने वाल न दय म वष पय त जल वा हत होता है। यहाँ
कम से कम दो फसल ल जाती ह। ए शया म न दय वारा न े पत जलोढ़ मृदा से
न मत मैदानी भाग पर गहन कृ ष क जाती है, फलत: सघन जनसं या रहती है। नद
बे सन के अ त र त समु तट य े भी सघन आबाद के े ह। इस कार पूव ,
द णी तथा द ण पूव ए शया के दे श म व व क 57 तशत जनसं या है। शेष 3.5
तशत जनसं या पि चमी ए शया के उ ण म थल ; म य ए शया के पठार तथा
शीतो ण म थल तथा उ तर शीत दे श म बखरे प म नवास करती है।

10.2.3.2 यूरोप महा वीप

महा वीप म जनसं या क ि ट से यूरोप महा वीप का ए शया एवं अ का के बाद


तीसरा थान है। स पूण यूरोप क जनसं या 73.2 करोड़ है। यहाँ सवा धक जनसं या
वाला दे श स (14.23 करोड़) दूसरे थान पर जमनी (8.24 करोड़) है। ांस (6.12
करोड़), इटल (5.9), पेन (4.7) और पेन (4.6) चार करोड़ से अ धक जनसं या वाले
दे श ह।
यूरोप महा वीप को आबाद क सघनता के अनुसार न न ल खत े म बाँट सकते ह -
(i) इंग लश चेनल तथा उ तर सागर के तटवत य े - उ नीसवीं शता द के
उ तरा म औ यो गक ाि त के उपरा त इस े म बड़े-बड़े औ यो गक के
का वकास हु आ। इस कारण इस े म जनसं या का अ धक के यकरण हु आ
है।
(ii) उ तरपूव ा स, म य जमनी एवं पौलड - इस भाग म कोयला े का व तार
होने से जनसं या का घन व अ धक है।
(iii) राइन नद क घाट से पूव का े - इस े म उ योग एवं कृ ष दोन
सि म लत प से वक सत ह। इस कारण यहाँ पर सघन जनसं या पाई जाती
है।

214
(iv) यूरोप का भू म य सागर य े - भू म य सागर य जलवायु होने के कारण यहाँ
बागानी कृ ष एवं अ य कृ ष क फसल क अ छ पैदावार होती है। साथ ह
समु तट य े होने के कारण यहाँ अनेक यापा रक के भी ि थत ह। इस
कारण इस े म सघन जनसं या पाई जाती है।
उपयु त सघन जनसं या े का व तार 45० उ तर से 55० उ तर अ ांश के म य है।
इन अ ांश के म य सघन जनसं या के कारण कोयला पेट का ि थत होना, जल क
उपल धता, आधु नक उ योग का वकास आ द है।

10.2.3.3 अ का महा वीप

इस महा वीप का े फल व व के धरातल य े का 22.6 तशत है, पर तु यहाँ क


जनसं या व व क कु ल जनसं या क 14.1% ह है। अ तु यह वरल जनसं या वाला
महा वीप है। नाइजी रया इस महा वीप का सबसे अ धक जनसं या वाला दे श है। इसके
अलावा म , इ थयो पया, कांगो डेमो रप, द णी अ का और सू डान बड़ी जनसं या के
दे श है।
वष 2006 म अ का महा वीप क जनसं या 92.4 करोड़ यि त है। इस महा वीप म
जनसं या का वतरण असमान पाया जाता है। यहाँ पर केवल 30% भू-भाग ह बसाव
े है शेष 70 तशत भू-भाग म थल व सघन वन तथा अ त आ ता के कारण
नजन ाय है। इस महा वीप पर सघन बसाव चार े म पाया जाता है। थम, नील
नद घाट का े है जहाँ म क 7.54 करोड़ जनसं या नवास करती है। सू डान क
(4.12 करोड़) जनसं या का बड़ा भाग भी इसी नद घाट म ह रहता है। दूसरा े ,
जाि बया एवं नाइजर नद घा टय के म य ि थत गनी तट है। यह अ का का सबसे
व तृत बसा े है। इसम नाइजी रया (13. 45 करोड़), गनी घाना (2.2 करोड़), कोटे
डवोरे (1.97 करोड़) तथा माल (1.4 करोड़) सि म लत ह। तीसरा े द णी अ का
का द णी तथा पूव तट य भाग केपटाऊन तक व तृत है। नेटाल एवं कैप ा त म
सघन बसाव मलता है। चौथा े व टो रया झील के चार ओर फैला है िजसम
तंजा नया, क नया तथा यूगांडा म जनसं या का जमाव है।

10.2.3.4 उ तर अमे रका

उ तर अमे रका क सन ् 2006 म कु ल जनसं या 52 करोड़ है जो व व क कु ल


जनसं या क 7.9 तशत है। इसम से 14.9 करोड़ (2.3%) म य अमे रक दे श म
तथा लगभग 4 करोड़ (0.6%) कैर बयन दे श म रहती है। संयु त रा य अमे रका,
मैि सको और कनाडा इस महा वीप के जनसं या म बड़े दे श ह।
इस महा वीप म पूव से पि चम और द ण से उ तर क ओर जाने पर जनसं या घटती
जाती है। उ तर भाग म जहाँ ल बी शीत ऋतु एवं बफ ले े ह वहाँ जनसं या का

215
घन व 2 यि त त वग कलोमीटर से भी कम है, जैसे एला का एवं कनाडा के उ तर
शीत दे श।
इस महा वीप म अ धकांश जनसं या संयु त रा य अमे रका के उ तर -पूव भाग म,
कनाडा म बड़ी झील के उ तर-पूव से लेकर से टलारे स नद क घाट म नवास करती
है। यह व व का तीसरा बड़ा जनसमू ह है। इस महा वीप क 80% जनसं या 100०
पि चमी दे शा तर के पूव म 30० उ तर से 45० उ तर अ ांश के म य नवास करती है।
इस दे श म सघन जनसं या औ यो गक वकास, कृ ष पे टय के ि थत होने और
यूरोपीय दे श से वास आ द के कारण पाई जाती है।
उ तर अमे रका क कु ल जनसं या का 90% यूरोप से आये लोग ह। यहां क 79%
जनसं या नगर य है। इस महा वीप पर जनसं या वृ नयि त है, य क यहाँ ज मदर
एवं मृ यु दर दोन पर नय ण है। साथ ह बाहर दे श म अ वास पर भी तब ध लगा
दया गया है।

10.2.3.5 द णी अमे रका

द णी अमे रका म 37.8 करोड़ यि त ( व व के 5.8%) रहते ह। ाजील (18.7


करोड़) जनसं या म सबसे बड़ा दे श है। इसके अलावा कोलि बया, अज टाइना, पे ,
वेनेजु एला भी 2 करोड़ से अ धक जनसं या वाले दे श ह। द णी अमे रका महा वीप म
भी जनसं या वतरण असमान है। इस महा वीप पर सघन जनसं या के े वहाँ पर है
जहाँ आ भाग म कृ ष होती है। अ य भाग म जनसं या बहु त ह वरल है। इसके
आ त रक भाग नजन है।
सघन जनसं या वाले े न न ह-
1. उ तर -पूव द णी अमे रका
2. तट य भाग - जहाँ पर समतल भू म तथा बा य दे श से यापा रक स ब ध था पत
है।
3. म य अ ांशीय दे श - इन दे श म मु य प से कृ ष क जाती है, जैसे यूरा वे,
पारा वे तथा अज टाइना का मैदानी भाग। इन दे श का अ धकांश भाग समतल है
तथा गेहू ँ क खेती मह वपूण है। इसके अलावा कहवा क यापा रक कृ ष तथा ख नज
उ खनन का भी जनसं या वतरण पर भाव पड़ा है।

10.2.3.6 ओसी नया

आ े लया का अ धक भाग जनशू य है। सन ् 2006 म इस महा वीप तथा समीप थ


वीप म 3-4 करोड़ लोग थे। यहाँ पर जनसं या का वतरण असमान है। अ धकांश
जनसं या आ े लया के द ण-पूव भाग म केि त है। आ े लया महा वीप पर सघन
जनसं या के मु य े न न ल खत है-
(i) मरे एवं डॉ लग का े : इस े म जल क उपल ध और उपजाऊ भू म होने
के कारण कृ ष वक सत है। यहाँ गेहू ँ क फसल मु य है।
216
(ii) व टो रया का पूव े - इस े म पशु चारण यवसाय के कारण जनसं या का
घन व अ धक है।
(iii) पि चमो तर े - यह े समतल ाय: मैदान होने के कारण यहाँ पर कृ ष
वक सत होने के कारण जनसं या का आ ध य है ।
बोध न -2
1. उ तर अमे रका महा वीप म कस ओर जाने पर जनसं या क मा ा घटती
है ?
............................................................................................
................................................................. ...........................
2. द ण अमे रका महा वीप पर सघन जनसं या े कौन से ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
3. अ का महा वीप का कतना तशत भाग बसाव े है -
(अ) 35% (ब) 30%
(स) 60% (द) 70% ()
4. जनसं या क ि ट से यू रोप महा वीप का व व म थान है -
(आ) थम (ब) वतीय
(स) तृ तीय (द) चतु थ ()
5. ए शया महा वीप म सवा धक जनसं या के तीन दे श कौन से है ?
............................................................................................
............................................................................................
6. कस महा वीप क जनसं या सबसे कम है ?
(अ) ए शया (ब) आ े लया
(स) यू रोप (द) अ का ()

10.3 घन व त प (Density Patterns)


जनसं या का घन व
घन व एक ऐसा मापद ड है िजसके वारा जनसं या और भू म के स ब ध को य त
कया जाता है। भू सतह पर जनसं या के था नक वतरण को बताने क यह भावशाल
व ध है। भू म क त इकाई पर रहने वाले लोग क सं या को जनसं या का घन व
कहते ह।

10.3.1 जनसं या घन व के कार

जनसं या का घन व अथात ् जनसं या तथा भू म का अनुपात व भ न व धय से नापा


जाता है। इनम त वग मील या त वग कलोमीटर पर कतनी जनसं या नवास
करती है, यह घन व सव च लत है। उ े य के आधार पर घन व के न न कार होते
ह:
217
(i) ग णतीय जनसं या का घन व (Arithmetic Density)
(ii) आ थक घन व (Economic Density)
(iii) या मक घन व (Physiological Density)
(iv) कृ षीय घन व (Agricultural Density)
(v) पोषक घन व (Nutririon Density)
(i) ग णतीय जनसं या घन व : ग णतीय जनसं या घन व कुल जनसं या और कु ल
े का अनुपात होता है। वा तव म यह भू म एवं मनु य का साधारण अनुपात
होता है। सू के प मे –
दे श क स पूण जनसं या
ग णतीय जनसं या घन व =
दे श क स पूण भू म का े फल

(ii) आ थक घन व : कसी दे श के आ थक घन व को मालूम करने के लये वहाँ के


सभी ाकृ तक संसाधन और आ थक संसाधन का मू यांकन करना होता है।
इसम कृ ष क भू म, म ी का उपजाऊपन, ख नज पदाथ, वन, जलाशय,
समु तट, म त उ योग के साधन, प रवहन क सु वधाऐं, अ तदशीय यापार क
सु वधाय सि म लत ह। अत: कसी दे श के आ थक घन व वारा उस दे श क
सम त आ थक संसाधन क उ पादन मता पर जनसं या के भार को ात
कया जाता है।
दे श क स पूण जनसं या
आ थक घन व = दे श के स पूण संसाधन

(iii) या मक घन व : यह घन व कसी े क जनसं या तथा उस े क कृ ष


यो य भू म के अनुपात को द शत करता है। इसम खेती के अयो य भू म को,
जैसे वनो, चरागाह , दलदल और म भू म को छो कर गणना क जाती है। इस
घन व को मानव तथा कृ ष यो य भू म अनुपात भी कहते ह।
े क कु ल जनसं या
या मक घन व =
े क कु ल कृ ष यो य भू म

(iv) कृ षीय घन व : कृ षीय घन व म सम त जनसं या के बजाय केवल कृ षक


जनसं या ल जाती है। दे श के कु ल कसान क सं या व सम त खेती यो य
भू म के े फल का अनुपात कृ षीय घन व कहलाता है। सू है :
कृ ष मे संल न जनसं या
कृ ष घन व =
कृ ष योगी भू म

(v) पोषक घन व : कृ ष भू म क येक इकाई से िजतने यि तय को भोजन ा त


होता है, उन यि तय क सं या को पोषक घन व कहते ह। अथात पोषक घन व
कसी दे श क कुल जनसं या तथा उस दे श क खा या न फसल के अ तगत
े फल के म य का अनुपात है। सू है :
कु ल जनसं या
पौषक घन व =
खा या न फसल के अंतगत े फल

218
10.3.2 जनसं या के घन व का त प

जनसं या का असमान वतरण उसके ग णतीय घन व से भी प ट है। वष 2006 म


व व म जनसं या का औसत घन व 49 यि त तवग कलोमीटर है। महा वीप तर
पर यह घन व आ े लया म 4 यि त त वग क मी. से लेकर ए शया म 125
यि त त वग क मी. तक है। (ता लका- 10.1)। यूरोप घन व क ि ट से दूसरे
थान पर है जहाँ औसतन त वग क मी. 32 लोग रहते ह। अ का का घन व (31
यि त त वग क मी.) यूरोप के समक हो गया है। शेष तीन महा वीप म घन व
बहु त कम है। यह आ े लया म 4 यि त, उ तर अमे रका म 23 यि त तथा द ण
अमे रका म 21 यि त त वग कलोमीटर है। इस तरह ए शया को छोड़ कर अ य
जनसं या बहु त वरल है।
मान च - 10.1 म दे शवार वष 2006 का जनसं या का घन व द शत है। घन व के
आधार पर ये दे श न न तीन वग म रखे जा सकते ह -

मान च -10.1 : जनसं या का ग णतीय घन व


(i) अ य धक घन व वाले े : इस कार के े म चीन, जापान, पि चमी यूरोप
के रा य, उ तर अमे रका का उ तर पूव भाग, भारत आ द का सि म लत कये
जा सकते ह। पा चा य दे श ( वक सत दे श ) म जनसं या का घन व मु यत:
औ यो गकरण पर नभर है जब क ए शया के दे श म कृ ष पर।
(ii) म यम घन व वाले े : म यम घन व वाले े म कृ ष जी वका का मु य
साधन है तथा म यम घन व वाले े का व तार पृ वी के धरातल पर अ धक
है। ये े सघन दे श के बाहर भाग म ि थत ह। म य संयु त रा य, म य
अमे रका, पेन, बलकान, टक , ा स-साइबे रयन रे वे क संकर पेट ,
अ जी रया, नाइजी रया, यांमार (बमा), मलाया, क पू चया , उ तर को रया, म य
चल और ाजील का समु तट इस कार के दे श ह।
पूव यूरोप के मैदानी भाग म 50 सेमी से 100 सेमी तक वा षक वषा होती है
और ी म ऋतु म फसल पकने का अ छा मौसम रहता है। वहाँ भी 10 से 50
यि त त वग क मी. क सघनता है। द णी-पूव ए शया म ऐसे दे श कम
वषा वाले और पवतीय भाग म है।

219
(iii) अ प घन व वाले े : अ प घन व वाले े वे ह जहाँ पर मानवीय जीवन के
वकास क प रि थ तयाँ बहु त कम ह या ब कु ल नह ं है। ये े म थल य
भाग या शीत दे श है, जहाँ जीवन-यापन क सु वधाएं उपल ध नह ं है इनके साथ
ह उ च पवतीय े , उ ण क टब धीय वन आ द भी अ प घन व वाले े ह।
यहाँ क अ प जनसं या पशु चारण, अ थाई कृ ष, म यान कृ ष आ द पर नभर
रहती है।

10.4 जनसं या वतरण एवं घन व को भा वत करने वाले


कारक
जनसं या का वतरण अनेक कारक वारा नयं त होता है। वे भौ तक दशाएँ जो कृ ष
को भा वत करती ह मु खत: वे ह जनसं या के वतरण को भी भा वत करती ह। इन
दशाओं म समतल भू म, उपजाऊ म ी, समु चत वषा अथवा संचाई-जल क उपल धता,
उपयु त तापीय दशाएँ मु य ह। औ यो गक वकास के कारण ख नज एवं धन के
उ खनन म आशातीत वृ हु ई। प रणामत: ख नज पे टय का बसाव हु आ है। इन पे टय
म उ योग भी लगाए गए। औ योगीकरण एवं नगर करण के कारण नगर एवं महानगर म
जनसं या का के करण हु आ है। इस कार जनसं या वतरण को अनेक कारक ने एक
साथ मलकर भा वत कया है। इ ह तीन समू ह म रखा जाता है - भौ तक दशाएँ,
आ थक-सामािजक-सां कृ तक वकास तथा जनांकक य कारक।
भौ तक कारक
व व तर पर भौगो लक कारक म जलवायु, धरातल का व प, अपवाह एवं जल क
आपू त, म ी तथा था नक स ब ध मु ख ह।
1. जलवायु : जलवायु मानव बसाव को य और परो दोन प म भा वत करती
है। य : यह मानव क शार रक मता को नधा रत करती है। परो प से कृ ष
क स भावनाओं के मा यम से जनसं या के वतरण को भा वत करती है। इस ि ट
से जलवायु के दो त व - तापमान एवं वषा सबसे मह वपूण ह। अ य धक अथवा
अत यून तापमान और वषा के े जनसं या को आक षत नह ं कर पाते ह।
फलत: ऐसे े वरल जनसं या के े ह। शीत दे श म अ त यून ताप के कारण
अ धकांश भू भाग हम से ढका रहता है। इसके वपर त उ च तापमान वाले शु क
म थल भी लगभग नजन ह। जैसे क मीर म लेह-ल ाख े एवं राज थान का
म थल। भारत म तापमान से ह जनसं या वतरण नधा रत नह ं है, वरन ् तापमान
एवं वषा दोन के संयु त भाव से वतरण भा वत है। अ धक वषा के े तापमान
के अनकुल होते हु ए भी वरल ह। इसी कार केवल वषा क अ धकता वाले े भी
सघन नह ं है। उदाहरण के लए उ तर-पूव रा य अ त वषा के बाद भी पवतीय एवं
जंगल े ह, अत: वरल ह। इसी कार अ डमान- नकोबार वीप समूह अ त वषा

220
के बाद भी वरल है, य क यहाँ स ब ता का अभाव है। इन अपवाद को छो कर
भारत म जनसं या के वतरण को वषा के वतरण ने भा वत कया है।
2. थलाकृ त : थलाकृ त जनसं या के वतरण को कई तरह से भा वत करती है।
इसका भाव ऊँचाई, उ चावच, ढाल, अपवाह, अधोभौ मक जल-तल के मा यम से
पड़ता है। सामा य प से ऊँचाई बढ़ने के साथ जीवन-यापन क क ठनाईय बढ़ती जाती
ह। इस लए ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ जनसं या वरल होती जाती है।
धरातल के उ चावच एवं ढाल का जनसं या के वतरण पर सवा धक भाव पड़ता है।
इस ि ट से मैदान जनसं या के नवास के लए सबसे अ धक उपयु त होते ह,
य क यहाँ कृ ष और औ यो गक वकास के लए समतल भू म मल जाती ह। यहाँ
म ी गहर और उपजाऊ होती है। इन भाग म कृ ष-काय करना, खेत बनाना, उसक
र ा करना, संचाई क सु वधाओं का नमाण करना, आवागमन के माग बनाना सरल
होता है। इसी कारण मैदानी भाग म जनसं या का जमाव सघन और घन व अ धक
होता है। ऊबड-खाबड़ पहाड़ी और पवतीय े म कृ ष, उ योग एवं प रवहन के लए
उपयु त दशाएँ न होने के कारण जनस या का जमाव वरल हो पाता है, जैसे क
पवतीय ज मू-क मीर, उ तराख ड और उ तरपूव रा य म तथा म य दे श,
छ तीसगढ़, उड़ीसा के पहाड़ी े म वरल जनसं या है। धरातल पथर ला एवं रे तीला
होने पर भी वरल है, जैसे राज थान का म थल य भाग।
3. अपवाह एवं जल आपू त : न दय का मानव अ धवास पर सवा धक भाव होता है।
वकास के आरि भक अव था म पीने के पानी क सु वधा और बाद म कृ ष, उ योग
आ द के लए पानी क सु वधा को यान म रखकर मानव बसता है। इसी कारण
भारत क दो - तहाई जनसं या न दय के नकट मैदानी भाग म केि त है जहाँ
जल-पू त सरल होती है। इसके ा पक उदाहरण म थल म ि थत जल के ोत ह।
वहाँ झील एवं जलाशय के नकट जनसं या एक त हो जाती है। िजन े म
भू मगत जल क गहराई कम होती है उन े म भी अ धक जनसं या नवास करती
ह। जहाँ जल तल काफ नीचे ह, वहाँ जनसं या अ य त वरल है। जहाँ अ य धक
दलदल भू म होती है, उन भाग म जनस या नवास नह ं करती। गुजरात म क छ
का रन का दलदल े इसी कारण जन वह न है।
4. म ी : भू म उपयोग तथा कृ ष क उ पादकता का सीधा स ब ध म ी से है। गहर
एवं उपजाऊ म याँ जनसं या को आक षत करती ह। इसी कारण कांप म ी वाल
न दय के मैदान एवं डे टाई भाग तथा समु तट य मैदान सघन बसे हु ए ह। भारत के
उ तर वशाल मैदान तथा तटवत मैदान म सघन जनसं या होने का एक मु ख
कारण यह भी है। दूसर ओर कम गहर एवं अनुपजाऊ पवतीय एवं पठार म याँ
कृ ष एवं अ य आ थक याकलाप के लए अनुपयु त होती ह। इस कारण ऐसे े
म जनसं या सघन नह ं होती है। उदाहरण के लए हमाचल, उ तरांचल एवं क मीर
तथा ाय वीपीय पठार का व तृत भू भाग। गहर काल म ी का मालवा पठार एवं

221
दकन पठार कृ ष एवं जनसं या के लए अनुकू ल होते हु ए भी जल के अभाव एवं
असमान धरातल के कारण सघन नह ं है। इस कार उपजाऊ म ी एवं जल आपू त
ने भारत क जनसं या के वतरण को भा वत कया है।
5. था नक स ब ध एवं पारग यता : कसी े क अ य े के तथा प रवहन माग
के स दभ म सापे क ि थ त भी जनसं या वतरण को भा वत करती है। के य
ि थ त एवं प रवहन क ि ट से वक सत े सघन होते ह, जैसे, सतलज-गंगा के
मैदान म ि थत रा य सघन ह। जल यातायात क सु वधा के कारण समु तट य
ि थ त लोग को आक षत करती ह। दूसर ओर दुगम एवं पहु ँ च से दूर ि थत े
वरल बसे होते ह, जैसे - क मीर, उ तर-पूव रा य एवं अ डमान वीप समू ह।
अ डमान वीप य द भारत क मु य भू म के नकट होते तो सघन होते। सघन बसे
उ तर दे श से लगा हु आ उ तराख ड सु ग यता के अभाव के कारण सघन नह ं बसा
है। जंगल े भी आवागमन क असु वधा के कारण वरल जनसं या के े ह।
व व तर पर े के अ ांशीय ि थ त का भाव भी जनसं या के वतरण पर पड़ा
है। जैसे क शीत क टब ध के े जनशू य ह। दूसर ओर शीतो ण क टब ध ताप
क अ तशयता नह होती, अ तु यहाँ सघन जनसं या है। इसी तरह सु म तट य भाग
म सम जलवायु जनस या को आक षत करती है। समु से दूर बढ़ने के साथ
महा वीपीय भाव बढ़ता जाता है। अंतरा य टार पर अब भी जल प रवहन का
सव प र मह व है। इस कारण भी समु तट य ि थ त लोग को आक षत करती है।
सं ेप म केवल एक भौ तक कारक से कसी े म जनसं या के वतरण नधा रत
नह ं होता, बि क सभी भौ तक त व सि म लत प से भावी एवं नधारक होते ह।
आ थक कारक
व भ न आ थक काय क भरण-पोषण क मता अलग-अलग होती है िजसका सीधा
भाव जनसं या के घन व पर पड़ता है। आ थक कारक म कृ ष- वकास, ख नज उ खनन,
उ योग का वकास, प रवहन के साधन का व तार, तकनीक वकास जैसे कारक
जनसं या वतरण को भा वत करते ह।
1. कृ ष : आर भ म जनसं या उन े म नवास करती थी जहाँ भोजन क आपू त के
लए कृ ष क संभावनाएँ अ धक थी। इसी कारण मैदानी भाग सघन बसे हु ए ह।
वभ े म भू म क उ पादन- मता अलग-अलग होती है। अत: अ धक उपजाऊ
एवं कृ ष क ि ट से वक सत े म जनसं या सघन पर तु पछड़ी कृ ष के े
म वरल होती है। इसी तरह अ धक उपजाऊ े म जनसं या का घन व अ धक
होता ह है साथ ह इन भाग म कृ ष क उ पादकता बढ़ाने के लए कृ ष के नवाचार
का योग भी अ धक कया जाता है।
2. ख नज एवं उ योग : आधु नक औ यो गक अथ यव था के आधार ख नज एवं शि त
के साधन ह। साथ ह इन आ थक याओं म कृ ष क तु लना म बहु त कम भू म पर
बड़ी जनसं या को भोजन दे ने क मता होती है। इस कारण ख नज े म भी
जनसं या सघन होती जाती है। औ यो गक ाि त के बाद ख नज एवं शि त के

222
साधन का मह व पढ़ गया। प रणाम व प इन े म जनसं या का जमाव होता
गया है। छोटा नागपुर पठार, छ तीसगढ़, आसाम क घाट आ द ख नज क ि ट से
स प न ह। अत: ये े सघन होते जा रहे ह। अ धकांश ख नज े म उ योग के
कारण भी जनसं या सघन हु ई है। झारख ड, पि चमी बंगाल एवं उड़ीसा के सीमा पर
ि थत औ यो गक वृ त म जनसं या का वतरण सघन है जब क चार-पाँच दशक पूव
यह वरल जनसं या के े थे। भारत के सभी औ यो गक के सघन बसे हु ए ह।
3. तकनीक वकास : तकनीक वकास ने आ थक याकलाप - कृ ष, खनन,
औ यो गकरण, प रवहन एवं संचार साधन म ाि त उ प न कर द है। ह रत ाि त
ने अनेक उपजाऊ भाग को अ त सघन बना दया है, जैसे - पंजाब, ह रयाणा। वपुल
उ पादन दे ने वाले बीज के आ व कार से कृ ष का उ पादन बढ़ा, साथ ह सीमा त
े म कृ ष का व तार हु आ। नहर क उपि थ त ने राज थान क म भू म को रहने
लायक बनाया। तकनीक ान क मदद से म ी क उवराशि त बढ़ाई गई। उ नत
तकनीक के योग एवं आवागमन के व तार से ख नज े एवं औ यो गक े म
वकास ती हो गया। दुगम े म भोजन एवं जल आपू त सु लभ हो गई। उदाहरण
के लए छोटा नागपुर पठार े तकू ल प रि थ तय के बाद भी खनन एवं
औ यो गक करण के वकास के कारण सघन होता जा रहा है। इस कार, तकनीक
वकास ने ाकृ तक बाधाओं को कम करके संसाधन के अ धकतम उपयोग को संभव
बनाया है, िजसका भाव जनसं या वतरण पर दखाई दे ता है।
सामािजक एवं सां कृ तक कारक
भौ तक अनुकू लता के बाद भी मनु य अपनी इ छा से नवास-यो य थल का चु नाव करता
है। इसम जा त, धम, भाषा एवं मानवीय यवहार का भी मह वपूण थान होता है।
जनस या उन े म सघन होती है जहाँ ऐ तहा सक काल से जनसं या का बड़ा समूह
रहता आ रहा है। इ ह ं े म जनसं या का नर तर जमाव होता रहता है। कसी एक
े म एक जैसी भाषा बोलने वाले लोग एक त होते जाते ह। भारत म क नड़, तेलगू
त मल, मलयालयम, बंगाल , पंजाबी, ह द भाषा-भाषी रा य के स दभ म यह त य
मह वपूण है। दे श म भाषा के आधार पर जनसं या पुँज न मत होते गए, िज ह अलग
रा य के प म वभािजत कया गया। ले कन आधु नक साँ कृ तक वकास के कारण
भाषायी सीमाएँ समटने लगी ह।
राजनै तक ि थरता एवं सु र ा का भी जनसं या वतरण पर भाव पड़ता है। गुजरात,
राज थान एवं क मीर रा य म पि चमी सीमा के नकट जनसं या अ य त वरल है।
सीमा से दूर ि थत आंत रक भाग म जनसं या सु र त होती है। राजनै तक दशा का
भाव भारत म जनसं या वतरण पर नह ं है, केवल सन ् 1947 म वभाजन के समय
जनसं या का पुन वतरण हु आ था।
जनांकक य कारक

223
दे श म जनसं या वतरण पर ज मदर, मृ युदर एवं वास का भाव पड़ता है। जैसे क
उ तर भारत के चार रा य - उ तर दे श, बहार, राज थान और म य दे श म ज म
दर अ धक ( त हजार 30 से अ धक) तथा मृ यु दर कम ( त हजार 11 से कम) के
कारण जनसं या क ती वृ हो रह है। इस कारण उ तर भारतीय रा य सघन से
सघनतम होते जा रहे ह। इसी तरह औ यो गक और नगर य े म इतना ती आकषण
होता है क भार सं या म वासी उनक ओर आक षत होते ह। उसी या के
प रणाम व प सभी औ यो गक और नगर य े म सघनतम जनसं या का जमाव पाया
जाता है। इन े म ती तर ग त से बढ़ता जनसं या का घन व वास का ह प रणाम
होता है।
बोध न -3
1. व व म जनसं या घन व पाया जाता है –
(अ) 36 (ब) 41
(स) 49 (द) 45 ()
2. या मक घन व कसे कहते ह ?
............................................................................................
........................................................................................ ....
3. व व म जनसं या घन व मु यत: कस पर नभर करता है ?
............................................................................................
....................................................................................... .....
4. व व म सवा धक घन व कस दे श का है –
(अ) भारत (ब) चीन
(स) नाइजी रया (द) मोनोको
5. स पू ण उ तर अमे रका महा वीप का जनसं या घन व कतना है ।
............................................................................................
.................................................................................. ..........
6. व व का कौनसा महा वीप जन शू य है ।
............................................................................................
........................................................................................ ....

10.5 सारांश (Summary)


व व म जनसं या का वतरण एवं घन व एक सव एक समान नह ं है। व व क 80
तशत जनसं या केवल 20 तशत भू-भाग पर ह केि त है। शेष 20 तशत
जनसं या वषम प रि थ तय वाले 80 तशत धरातल पर वत रत है।
व व का जनस या घन व (2006) 49 यि त त वग कमी है। ए शया (125 यि त
त वग कमी.) सवा धक घन व वाला महा वीप है जब क ओसी नया महा वीप (4
यि त त वग म.मी.) म जनस या घन व सबसे कम है।

224
व व म जनसं या का वतरण एवं घन व व भ न भौगो लक कारक पर नभर रहता है।
वे दे श जहाँ पर मानव नवास के अनुकू ल दशाएँ पाई जाती थी, वे आज सवा धक
जनसं या वाले दे श है। म थल, पहाड़ी एवं पवतीय भाग लगभग जनशू य ह।
औ यो गक वकास तथा ख नज के उ खनन के कारण कम अनुकू ल े म बसाव बढ़ा
है।

10.6 श दावल (Glossary)


 जनसं या वतरण : पृ वी तल पर जनसं या का था नक फैलाव ह जनसं या का
वतरण है िजससे े ीय त प प ट होता है।
 जनसं या घन व : यह जनस या एवं भू म का अनुपात है।
 या मक घन व : कसी े क जनसं या तथा उस े क कृ षयो य भू म का
अनुपात है।
 कृ षीय घन व : कसी े म कृ ष म संल न जनसं या और कृ षयो य भू म का
अनुपात है।

10.7 स दभ ंथ (Reference Books)


1. P.Ehrlich, and A. Ehrlick : The Population Explosion, New York :
Simon and Schuster, 1990
2. T.G. Miller, : Living In The Environment. Belmont, Calif : Wads
Worth, Inc, 1992
3. D.E. Newton : Population : Too many piple Library of Congress,
U.S.A., 1992
4. N. Sadik : The State of World Population New York : United
nation Population Fund, 1995
5. मािजद हु सैन : मानव भू गोल, रावत पि लकेश स, जयपुर, 2004
6. एस. डी. कौ शक : मानव भू गोल, र तोगी पि लकेशन, मेरठ, 2002
7. रामकुमार गुजर व बी. सी. जाट : मानव भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर।

10.8 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. पाँच दे श म
1. पूव ए शया
2. द णी ए शया
3. स पूण द णी-पूव ए शया
4. उ तर-पि चमी यूरोप
5. पूव उ तर अमे रका
225
2. 75% से अ धक।
3. चार दे श म।
(i) शु क एवं अ शु क म थल,
(ii) पवतीय े ,
(iii) ु वीय आवरण,
(iv) वषुवत रे खीय घने वन े
4. पहला - शु क अ शु क म थल
वतीय - व
ु ीय आवरण
5. 33%
6. उ तर गोला म।
बोध न - 2
1. पूव से पि चम क ओर
2. (i) उ तर -पूव द णी अमे रका
(ii) तट य भाग
(iii) म य अ ांशीय दे श
3. (ब) 30%
4. (स) तृतीय
5. चीन, भारत तथा इ डोने शया।
6. (ब) आ े लया
बोध न - 3
1. (स) 49 यि त 7 वग कमी
2. या मक घन व कसी े क जनसं या तथा उस े क कृ ष यो य भू म के
अनुपात को का यक घन व कहते ह।
3. भौ तक दशाओं पर
4. (द) (17503 यि त त वग कमी.)
5. 23 यि त त वग कमी.।
6. अ टाक टका।

10.9 अ यासाथ न
1. व व म जनसं या के वतरण का वणन क िजये ।
2. जनसं या घन व कसे कहते ह ? जनसं या घन व के कार का वणन क िजये।
3. जनसं या वतरण एवं घन व को भा वत करने वाले कारक का उदाहरण स हत
वणन क िजये।

226
इकाई 11: जनसं या - संसाधन स ब ध (Population –
Resource Relationship)
इकाई क प रे खा
11.0 उ े य
11.1 तावना
11.2 संसाधन सृजन एवं उपयोग म जनसं या का मह व
11.3 जनसं या एवं संसाधन का स ब ध
11.3.1 अनुकू लतम जनसं या क अवधारणा
11.3.2 जना ध य क अवधारणा
11.3.3 अ प जनसं या क अवधारणा
11.4 व भ न पयावरणीय दशाओं के अ तगत भू म क वहन मता
11.4.1 वहन मता क अवधारणा एवं नधारण
11.4.2 वहन मता क वषमताओं के कारण
11.5 सारांश
11.6 श दावल
11.7 संदभ थ
11.8 बोध न के उ तर
11.9 अ यासाथ न

11.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप समझ सकगे क :
 संसाधन सृजन एवं उपयोग म जनसं या का मह व,
 जनसं या और संसाधन के म य व भ न कार के स ब ध,
 अनुकू लतम, जना ध य एवं अ प जनसं या क अवधारणा,
 वभ पयावरणीय दशाओं के अ तगत भू म क वहन मता,
 वन, कृ ष, खनन और औ यो गक े क वहन मताओं क वषमताओं के कारण।

11.1 तावना (Introduction)


संसाधन वह व तु है जो मानवीय आव यकताओं और इ छाओं क पू त करती है। पर तु
कृ त का कोई भी पदाथ तब तक संसाधन नह ं बनता जब तक उसका मानव के वारा
उपयोग नह ं कया जाता। संसाधन होते नह ,ं अ पतु उ ह मानव वारा उपयोगी बनाकर
संसाधन बनाया जाता है। जनसं या और संसाधन का अ यो या त समब ध है। संसाधन
के म य मानव क के य ि थ त है। मनु य वयं एक संसाधन है। वह अपनी समझ,
कौशल और तकनीक का वकास कर मानवता का क याणकार संसाधन बन गया है।
मानवीय संसाधन तथा ाकृ तक संसाधन अनेक कार से एक-दूसरे को भा वत करते ह।

227
अपने ान और वै ा नक ग त के आधार पर मानव ने ाकृ तक संसाधन का चरम
उपयोग कया है।
जनस या और संसाधन के पार प रक अ यो या त स ब ध को प ट करने के लए
संसाधन को न न ल खत तीन े णय म वभािजत करके दे खना चा हए, िजनके
समि वत उपयोग के तर से कसी दे श के वकास तर को जाना जा सकता है -
(i) ाकृ तक संसाधन : भू म जल, वन, ख नज, ऊजा आ द।
(ii) मानव संसाधन : जनसं या का आकार, उसक शार रक, बौ क मता व
तकनीक वकास आ द।
(iii) सां कृ तक संसाधन : मानवीय सं कृ त, तकनीक , पू ज
ं ी आ द।
जनसं या एवं संसाधन के पार प रक स ब ध के अ ययन म क तपय न का उठना
वाभा वक है, जैसे - कसी दे श काल म जनसं या संसाधन का अनुपात या हो ?
जनसं या क यूनतम , अनुकू लतम एवं आ ध य अवधारणा या है ? संसाधन के
यूनतम , अनुकू लतम और तकू लतम दोहन का तर या है ? वभ पयावरणीय
दशाओं म भू म क वहन मता के नधारण के मापद ड या ह ? वन, कृ ष, खनन और
औ यो गक े क वहन मताओं क वषमताओं के कारण या ह ?

11.2 संसाधन सृजन एवं उपयोग म जनसं या का मह व


मानवीय आव यकताएँ अन त ह िजनक पू त उपल ध संसाधन से क जाती है। ाकृ तक
पदाथ का स दय से मानव वारा उपयोग कया जा रहा है। एक पदाथ का कई व धय
और प म उपयोग कया जाता है। कसी पदाथ क उपयो गता न न कारक पर नभर
करती है :
(i) पदाथ क उपल धता (Availability),
(ii) पदाथ क उपादे यता (Usefulness),
(iii) मानवीय आव यकता (Human need) एवं
(iv) तकनीक ान (Technology)
पदाथ क उपलि ध मा से कोई पदाथ संसाधन नह ं कहलाता है, अ पतु उसक उपादे यता
उसे संसाधन बनाती है। कसी भी पदाथ क उपादे यता मानवीय मांग एवं उसक
आव यकता पर नभर करती है। अपनी आव यकताओं क पू त मानव अपने तकनीक
ान के वारा करता है।
येक लोकक याणकार रा य का परम ् उ े य अपने ाकृ तक एवं मानवीय संसाधन का
दोहन कर मानव क आव यकताओं क संतु ि ट करना होता है। कु छ संसाधन के शोषण से
मानवीय आव यकताओं क पू त हो जाती। उदाहरणाथ - वन से लकड़ी, समु से मछल
य प से मानवीय आव यकताओं क पू त करती ह, जब क वा हत न दय से
पन बजल बनाने के लए उसे तकनीक ान का उपयोग करना पड़ता है। जनसं या और

228
संसाधन के बीच ंखला मक स ब ध पाया जाता है, िजसके एक छोर पर पदाथ और
दूसरे छोर पर चरम संतु ि ट अवि थत होती है।
पदाथ-उपादे यता-आव यकता-तकनीक - पा तरण-संतु ि ट
अत: संसाधन उपयो गता का चरम उ े य मानवीय संतु ि ट ा त करना होता है। कसी
संसाधन क उपादे यता मानवीय संतु ि ट के तर पर नभर करती है। संतु ि ट का तर
संसाधन क मा ा एवं तकनीक ान पर नभर करता है। संसाधन का मह व तभी है
जब उनका उपयोग करने वाल जनसं या है। दूसरे श द म, जनसं या के अि त व के
लए चु र संसाधन क ा यता अप रहाय कोई भी ाकृ तक त व कस सीमा तक
संसाधन बन पाता है, यह केवल उसके भौ तक त व पर नभर नह ं करता; बि क
मानवीय गुण पर भी नभर करता है। सवमा य त य है क संसाधन होते नह ं बि क
मानव वयं अपने यास से उनका नमाण करता है। पृ वी तल पर कोई भी त व उस
समय तक संसाधन नह ं बनता जब तक मानव उनके उपयोग करने क मता ा त नह ं
कर लेता। जैसे- वा हत न दय म शि त उ पादन का गुण व यमान था पर तु जब से
मानव ने उससे जल - बजल उ प न करके उसका उपयोग आर भ कया, उसे एक
संसाधन का प ा त हु आ। इसी कार व भ न कार के ख नज, जैसे - तांबा, लोहा,
ज ता, कोयला आ द स दय से भू म म दबे पड़े थे क तु वे मानवीय यास के बाद ह
संसाधन बन पाए।
मानवीय म तथा उसक तकनीक नपुणता भौ तक संसाधन को उपयोगी व तु ओं म
बदलती है। अत: मानवीय म तथा नपुणता भी एक मुख संसाधन है। कसी भी े के
लए उसक जनसं या आ थक वकास का साधन और सा य दोन होती है। मानवीय म
तथा तकनीक कु शलता सम त उ पादन का मूल आधार है। '' कसी भी रा क उ नत
मानवीय संसाधन संग ठत करने क मता पर नभर करती है। नःस दे ह कसी भी दे श
म जनशि त संसाधन रा क भार पूँजी मानी जाती है।'' इसी लए कसी दे श के
संसाधन के सृजन एवं उपयोग म जनसं या का सवा धक मह व है।

11.3 जनसं या एवं संसाधन का स ब ध


जनसं या एवं संसाधन म पर परा त स ब ध पाए जाते ह। कृ त म व यमान
वभ न कार के संसाधन को मानव उपयोग यो य व प म वक सत करता है। मानव
इस पृ वी पर संसाधन के सृजनक ता के साथ ह उनका उपयोग क ता भी है। मनु य के
ा व धक ान म वकास के साथ ह संसाधन को बढ़ाने व नवीन संसाधन का सृजन
करने क मता म वृ होती है।
जनसं या और संसाधन के म य संतल
ु न क ि थ त उस समय उ ू त होती है जब कृ त
म व यमान संसाधन क तु लना म जनसं या अनुकूलतम हो। संसाधन क तु लना म
जनसं या अ धक होने पर उसे जना ध य (Over Population) तथा कम होने पर
जनाभाव (Under Population) कहते ह। ले कन जनसं या और संसाधन के म य
संतु लन क दशा बहु त कम ि टगत होती है। इस कार कसी े म नवास करने वाल

229
जनसं या तथा उसे े के संसाधन म उपयु त समायोजन नह ं पाया जाता है। िजस
कारण अनेक वसंग तया उ प न हो जाती ह। इन वसंग तय क दशा को ह जनसं या
दबाव कहते ह। माबोगु ज
ं े ने बताया क जनसं या दबाव भू म संसाधन, जनसं या और
लोग क आकां ाओं के म य होने वाल अ त: या के प रणाम होते ह। इसे न नां कत
कारक क सहायता से ात कर सकते ह :
(i) संसाधन क उपल धता और उनका गुणा मक व प।
(ii) जनसं या क आकां ाएँ, उनक सीमा तथा व प।
माबोगुज
ं ने प ट कया क संसाधन व जनसं या दोनो कम ह तथा आकाशाएँ ऊँची ह
या संसाधन तथा आकां ाएँ कम हो व जनसं या अ धक हो तो जनसं या दबाव उ प न
होता है।
अकरमन ने भौ तक संसाधन एवं जनसं या के स ब ध को एक सू के प म तु त
कया है, िजसके थम ख ड म संसाधन क मांग को भा वत करने वाले कारक को
रखा है और दूसरे ख ड म संसाधन क पू त को भा वत करने वाले कारक ह । यह
समीकरण है :
PS = RQ (TAST) + Es + Tr ± F – W
जहां - P = जनस या
S = जीवन तर
R = संसाधन क मा ा
Q = संसाधन गुणव ता
T = तकनीक तर
A = शास नक कुशलता
St = संसाधन क ि थरता
Es = केल इकानमी
Tt = यापार
Tr = यापार वारा संसाधन क वृ
F = संसाधन क घषण से त
W = मत ययता

11.3.1 आदश जनसं या क प रभाषा (Definition of Optimum Population)

आदश जनसं या के लए 'Optimum Population' श द का याग सव थम कै ट लोन


ने कया था। अनके अनुसार - '' कसी े म उपल ध दशाओं के अ तगत यि तय क
उस सं या को अनुकू लतम कहते ह जो उ चतम जीवन तर कायम रखने म समथ हो।''
े टन लाउड के अनुसार - ''आदश जनसं या वह है जो एक नि चत सीमा रे खा म
सि न हत हो तथा वह सं या इतनी पया त हो िजसम सभी नवा सय म नर तर उ च
जीवन तर ा त करने के लए नमाण मता हो।''

230
बोि डंग के अनुसार - ''वह जनसं या िजस पर जीवन तर अ धकतम होता है आदश
जनसं या कहलाती है।''
डा टन के श द म, ''आदश जनसं या वह है जो त यि त अ धकतम आय दे ती है।''
जॉनसन के अनुसार - ''मनु य क वह सं या जो कसी द हु ई आ थक, सै य अथवा
सामािजक ल य के संदभ म अ धकतम तफल को उ प न करती है, आदश जनसं या
होती है।''
पीटरसन के अनुसार - ''अनुकू लतम अथवा आदश जनसं या यि तय क वह सं या है
जो कसी द हु ई ाकृ तक, सां कृ तक तथा सामािजक पयावरण म अ धकतम आ थक
तफल को उ प न करती है।''
आदश अथवा अनुकूलतम जनसं या कसी दे श वशेष म ि थत उस कु ल जनसं या को
कहते है जो उस े वशेष म उपल ध कु ल आ थक एच सामािजक संसाधनो के उ चत
उपयोग के अनुकू ल हो। दूसरे श द म, कसी े वशेष म ा त दशाओं के अ दर
उ चतम जीवन तर को बनाए रखने वाल लोग क सं या को आदश जनसं या कहते
है। आदश जनसं या क माप म आ थक आधार ह मह वपूण होता है, िजसम उपल ध
ौ यो गक तथा आ थक दशाओं म त यि त अ धक उ पादन का अवसर दान करने
वाल सं या होती है, य य प 'जनसं या के आकार' और 'अ धकतम आ थक उ पादन' को
सीमां कत करना आसान नह ं है। अ धकतम आ थक उ पादन को ाय: सकल रा य
उ पादन (Gross National product) के प म आँका जाता है। उ च सकल रा य
उ पादन दे श के सभी नाग रक क ाथ मक आव यकताओं को सरलता से दान करने को
इं गत करता है।
कार सा डस (Carr Saunders) के अनुसार ''आदश जनसं या वह है, जो अ धकतम
क याण उ प न करती है।''
आर एन संह के अनुसार - '' कसी े या दे श म नवास करने वाले यि तय क वह
आदश सं या जो उस े के संसाधन को पूण उपयोग के लए उपयु त होती है िजससे
सामा य जीवन तर यथासंभव उ चतम हो सकता है, आदश जनसं या कहलाती है।''
वभ न व वान वारा द गई प रभाषाओं से यह न कष नकलता है क आदश
जनसं या वह जनसं या है, िजससे उस े वशेष म नवास करने वाले यि तय क
आय अ धकतम हो, उ च आ थक वकास हो एवं उ चतम जीवन तर हो।

11.3.2 आदश जनसं या के नधारण के मापद ड (Determinant Parameters of


Optimum Population)

कसी े वशेष म नवा सत जनसं या आदश है या नह ं इसका आंकलन न न ल खत


मापद ड क सहायता से कया जा सकता है -

231
1. सकल रा य उ पाद (Gross National Productions, GNP) : कसी े वशेष
के कु ल उ पादन का आंकलन सकल रा य उ पाद कहलाता है। जो एनपी का उ च
तर आदश जनसं या का प रचायक माना जाता है।
2. पूण रोजगार : कसी े वशेष म नवास करने वाले लोगो के उनक यो यता के
अनुसार सभी को रोजगार ा त कराना भी आदश जनसं या का मापद ड माना जाता
है।
3. उ चतम जीवन तर : ती आ थक वकास, अ धकतम आय एवं पूण रोजगार ा त
े म सामािजक एवं सां कृ तक जै वक आव यकताएँ भी उ च ह पाई जाती है।
अत: उ चतम जीवन तर क ाि त उ तम वा य एंव सभी सु वधाओं क पूण
यव था पर आधा रत है।
4. संसाधन का पूण उपयोग : आदश जनसं या होने पर उपल ध संसाधन का आधु नक
ौ यो गक क सहायता से पूण उपयोग होता है। ौ यो गक वकास के साथ नवीन
संसाधन क जानकार होती रहती है तथा उनका आव यकतानुसार उपयोग होता रहता
है।
5. जनां कक य संरचना : आदश जनसं या म आयु, लंग आ द सभी संतु लत अव था म
पाए जाते ह। ज म दर एवं मृ यु दर म संतु लन पाया जाता है िजसके कारण
जनसं या वृ भी बहु त कम एवं संतु लत रहती है। जनसं या लगभग थायी पाई
जाती है।

च - 11.1 : अनुकू ल जनसं या स ा त


6. दूषणर हत वकास : आदश जनसं यायु त े म पयावरणीय दूषण क मा ा बहु त
कम पाई जाती है। टे लर के अनुसार आदश जनस या वह है जो पयावरण अथवा
समाज या पोषण क कमी से यि त के वा य को त पहु ँ चाये बना ह
अ नि चत काल तक कायम रह सके।
इस अवधारणा को आरे ख ( च - 11.1) के मा यम से समझा जा सकता है। आरे ख के
ै तज अ पर जनसं या का आकार तथा ऊ व अ पर उ पादन / त यि त औसत
उ पादन तथा आय म वृ होती रहती है तब तक जनसं या को आदश से कम माना
232
जाता है। वह जनसं या को आदश से कम माना जाता ह वह जनसं या का आकार ( च
म ब दु) जब उ पादन एवं अ धकतम हो जाती है उसे अनुकू ल जनसं या क दशा
कहते ह। इससे अ धक जनसं या होने पर त य त उ पादन एवं आय म कमी होने
लगती है। इस दशा को जना ध य कहते ह।

11.3.2 जना ध य क अवधारणा (Concept of Over Population)

जनसं या के सामा य स तुलन क अव था से वच लत होकर तेजी से बढ़ने क अव था


को सामा यतया जनसं या आ ध य या जना ध य कहा जाता ह। कसी नि चत दे श म
उपल ध सम त ाकृ तक संसाधन क तु लना म वहाँ नवासी जनसं या अ धक होती है
तथा जनसं या वृ भी ती होती है िजसके कारण उस े क पोषण मता क तु लना
म जनसं या अ धक हो जाती है। ऐसी अव था के कारण उस े वशेष के लोग का
जीवन तर न न, बेरोजगार क सम या आ द म नर तर वृ होती जाती है तथा
आ थक एवं सामािजक जीवन तर नर तर न न होता जाता है यह अव था उस े
वशेष क अ त जनसं या, जना ध य जना तरे क क अव था कहलाती है। जना ध य के
कारण भू म एवं ाकृ तक संसाधन पर नर तर जनसं या का दबाव बढ़ता जाता है।
नधनता, बेरोजगार , न न जीवन तर, त यि त आय म गरावट, वा य स ब धी
सु वधाओं म कमी इसके मु ख ल ण ह।
जना ध य का मु ख कारण तो उस े म जनसं या म ती वृ को ह माना जाता है
ले कन कभी-कभी संसाधन का अभाव, म क माँग म कमी, मु ा फ त म ती वृ
आ द कारण से भी जनसं या स तुलन म जना ध य क ि थ त आ जाती है। जना ध य
के कारण उपल ध भौ तक संसाधन का उपयोग भी आव यकतानुसार एवं उ चत प से
नह ं हो पाता है य क जनसं या वृ क तु लना म संसाधन क मा ा म वृ नह ं हो
पाती है।
जनसं या एवं संसाधन के आपसी स ब ध के आधार पर जना ध य दो कार का हो
सकता है-
(i) पूण जना ध य (Absolute Over Population)
(ii) सापे जना ध य (Relative Over Population)
(i) पूण जना ध य (Absolute Over population) : वक सत एवं ात तकनीक के
अनुसार कसी े वशेष म उपल ध संसाधन का उपयोग अ धकतम एवं उ च तर
तक हो जाता है तथा उससे आगे आ थक वकास क ग त लगभग अव हो जाती
है ले कन वकास क ग त के वपर त जनसं या के बढ़ने क ग त नर तर जार
रहती है। िजसके कारण त यि त संसाधन क ाि त म गरावट आने से त
यि त आय गरने लगती है और जीवन तर न नतर होता जाता है। ऐसी जनसं या
क अव था को पूण जना ध य क अव था कहा जाता है।
लाक महोदय ने महोदय ने “ नरपे जना ध य जनसं या वृ क वह अव था है
िजसमे संसाधनो के चरम वकास के बावजू द भी जीवन के रहन-सहन का तर न न

233
रहता है।“ वतमान समय मे ऐसी दशा ेट टे न, जापान आ द कु छ वक सत दे श मे
पायी जाती है।
(ii) सापे जना ध य (Relative Over Population) : जब कसी े वशेष मे
नवा सत कु ल जनसं या के भरण-पोषण के लए वहाँ उ पा दत सभी व तु एं अपया त
एवं कम होती ह तो ऐसी ि थ त मे े वशेष उपल ध स पूण संसाधनो का वदोहन
तकनीक सु वधाओं क कमी के कारण नह ं हो पता है। ले कन भ व य मे ो यो गक
के वक सत होने पर संसाधनो के उपयोग एवं उ पादन वृ क संभावनाएं रहती ह
िजसके कारण जना ध य क ि थ त भी संतु लत होने क पूण संभावना व यमान
रहती है। लाक महोदय ने कहा है क , ”सापे जनसं या आ ध य संसाधनो मे
संतल
ु न क वह ि थ त है िजसमे उ पादन का वतमान तर जनसं या के लए
अपया त होता है। उ पादन टार को बढ़ा कर इस ि थ त से नजात पाया जा सकता
है।“
वतमान समय मे सापे जना ध य क ि थ त व व के उन छोटे -छोटे वकासशील दे श
मे पायी जाती है जहां उ पादन का तर जनसं या वृ क तुलना मे न न है।
जना ध य क ि थ त अ धकतर स पूण दे श या दे श के दे श वशेष मे पायी जा सकती
है जब क स पूण दे श के अ य भाग मे जनसं या सामा य हो सकती है। उदाहरण के
लए भारत के मैदानी भाग मे, चीन के पूव भाग मे तथा इ डोने शया के जावा वीप
मे जना ध य क ि थ त है जब क अ य भाग मे जनसं या वतरण सामा य पाया
जाता है।
जनसं या आ ध य को ामीण एवं औ यो गक जनसं या आ ध य के प मे भी
वभािजत कया जाता है जब कसी औ यो गक े मे जनसं या क आव यकता से
अ धक पायी जाती है तो वह औ यो गक जनसं या आ ध य क ि थ त कहलाती है।
इसके वपर त जब ामीण े जनसं या भार अ धक होता है तो वह ामीण
जनसं या आ ध य कहलाता है।
ामीण जनसं या आ ध य कारण
(i) ती जनसं या वृ
(ii) भू म के े ीय वतरण मे असमानता,
(iii) मशीनीकृ त कृ ष,
(iv) अकृ षत े का कम वक सत होना,
(v) कृ षगत उ पादन का न न तर,
(vi) सामािजक वकास का तर कमजोर,
(vii) कृ षगत उपज पर अ धकतम जनसं या नवाहन आ द।
जना ध य क ि थ त उस े वशेष क जनसं या वृ क ि थ त, संसाधन क
उपलि ध, उपल ध संसाधन के उपयोग तथा नवीन ौ यो गक पर नभर रहती है।

234
11.3.3 जनाभाव या अ प जनसं या क अवधारणा (Concept of Under Population)

जनाभाव क ि थ त उस समय उ प न होती है जब जनसं या संसाधन क तु लना म कम


हो। अथात ् जब कसी दे श या े वशेष म नवास करने वाल जनसं या उस दे श या
े म उपल ध संसाधन क तु लना म अ य प या यून हो तो ऐसी ि थ त को जनाभव,
यून जनसं या या जना पता क ि थ त कहा जाता है। जनाभाव वाले े म संसाधन
तो चु र मा ा म पाये जाते ह, ले कन जनाभाव होने के कारण उन संसाधन का पूण
उपयोग नह हो पाता है िजसके कारण उस दे श या े वशेष का स तु लत आ थक
वकास नह ं हो पाता है। जनाभाव वाले े ऐसे दे श होते है जहाँ जनसं या को बढ़ाकर
ह आ थक वकास एवं त यि त आय का तर उ च कया जा सकता है।
लाक महोदय ने कहा हे क, ''जनाभाव वाले े म संसाधन का पूण उपयोग नह ं हो
पाता है अथवा जहाँ संसाधन जीवन तर म कमी के बना अथवा बेरोजगार म वृ कये
बना ह वृह जनसं या का पोषण करने म समथ होते ह।''
जनाभाव क ि थ त को दो भाग म वभािजत कया जा सकता है -
(i) पूण जनाभाव : जहाँ स पूण े म संसाधन के उपयोग क तु लना म जनसं या
कम पायी जाती है। वह पूण जनाभाव कहलाता है।
(ii) सापे जनाभाव : महामार या अ य ाकृ तक एवं कृ म कारण से कसी े
वशेष म मृ युदर के ज मदर से अ धक होने के कारण उ प न जनाभाव क
ि थ त को सापे जनाभाव कहा जाता है अ धकांशत: जनाभाव क ि थ त पछड़े
समाज म पायी जाती है। वतमान समय म ेयर , आ े लया, यूजीलै ड आ द
े के कु छ सी मत भाग म जनाभाव क ि थ त पायी जाती है। वतमान समय
म यून जनसं या क ि थ त अ धकतर उन भाग म पायी जाती है। जहाँ
ौ यो गक के वकास का तर न न होता है जब क यहाँ व तृत भू म एवं
पया त मा ा म संसाधन उपल ध होते ह तथा वहाँ नवास करने वाल जनसं या
अश त एवं अकु शल पायी जाती है िजसके कारण वे लोग उपल ध संसाधन का
उपयोग अपनी आव यकताओं क पू त म नह ं कर पाते ह। जनाभाव क ि थ त
को आधु नक ौ यो गक के वकास एवं जनसं या थाना तरण के वारा दूर
कया जा सकता है।
जनसं या दबाव (population Pressure)
जनसं या वृ के अ ययन से प ट होता है क पृ वी पर ारि भक समय म जनसं या
दबाव नह ं था ले कन धीरे -धीरे जनसं या क वृ होती गई। जनसं या दबाव क ि थ त
गहराती गई। उदाहरण के लए व व क अनुमा नत जनसं या सन ् 1650 म 54 करोड़
थी। तब भू भाग के त कलोमीटर केवल 4 यि तय का भार था। यह जनसं या बढ़
कर सन ् 1950 म 252 करोड़ हो गई तथा त वग कमी घन व भी 19 यि त हो
गये। पचास वष बाद सन 2001 म यह घन व 46 य त तथा 2006 म 49 यि त
त वग कमी. हो गया। इस तरह भू भाग पर लोग के भरण-पोषण का दबाव नरं तर बढ़

235
रहा है। भारत म भी यह दबाव सन ् 1921 म 81 यि त त वग कमी से बढ़ कर
सन ् 2001 म 324 यि त वग कमी हो गया है। इस मानव न मत दवाब के लए
न न ल खत कारक उ तरदायी है -
1. जनसं या म ती वृ (Rapid Growth in Population) : पृ वी पर 10,000 वष
ईसा पूव मा 50 लाख लोग रहते थे, जो बढ़कर वष 1750 म 80 करोड़ तथा
1930 म 200 करोड़ हो गई व आज 600 करोड़ को पार गई है। ती ता से बढ़ती
इस जनसं या ने पृ वी तल पर दबाव बना दया है।
2. जनसं या का असमान वतरण (Uneven Distribution of Population) : पृ वी के
30 तशत भू भाग पर 95 तशत जनसं या रहती है जब क शेष 70 तशत भाग
पर 5 तशत जनसं या नवास करती है। इसम भी इतनी वषमता है क संसार क
50 तशत जनसं या केवल 5 तशत भू भाग पर ह रहती है। 70 तशत नवास
के अयो य े म शु क, ऊ ण, आ तथा हमा छा दत े ह। इनम वशाल
म थल, वषुवत ् रे खीय े , ीनलै ड, अ टाक टका व आक टक े तथा उ च
पवतीय भाग ह। अत: वशेष े म ह जनसं या का संके ण होने से जनसं या
दवाब बढ़ता है।
3. थाना तरण पर नय ण (Control of Migration) : ाचीन काल म मनु य एक
थान से दूसरे थान पर थाना तरण कर लेता था। ले कन उ नीसवीं शता द म
अनेक दे श ने अपने संसाधन एवं जनसं या के अनुपात को आदश बनाये रखने के
लए थाना तरण पर तब ध लगा दये। इस ि ट से आ े लया क वेत नी त,
द णी अ क क रं गभेद (Aparthied) नी त तथा स, उ तर द णी अमे रक
दे श क चयना मक वास नी त से भी थाना तरण कम हो पाया है। फल व प
ाचीनकाल म बसे े पर जनसं या दबाव बना है।
4. ाकृ तक संसाधन का अ तदोहन (Over Exploitation of Natural Resources) :
बढ़ती जनसं या के कारण ाकृ तक संसाधन का दोहन बढ़ने से भी जना ध य क
ि थ त बनी है, य क जनसं या तो बढ़ती रह , ले कन संसाधन क मा ा जो
नर तर घटती गई। फल व प जनसं या दबाव बना है।
5. ाकृ तक आपदाय (Natural Disasters) : ाकृ तक आपदाओं के कारण जनसं या
का थाना तरण होने से स तुलन बगड़ जाता है। इन आपदाओं म भू क प,
वालामुखी, बाढ़, सू खा, च वात आ द मु ख ह। ाकृ तक आपदाओं के अ त र त
अनेक बार मानव ज नत वपदाय भी जनसं या दबाव म वृ करती ह। यु ,
आ मण, औ यो गक उ पादन आ द के कारण जनसं या का वास होता है।
इन सभी कारण से पृ वी पर जनसं या कु छ व श ट े म संकेि त हो जाती है तथा
उस े वशेष के संसाधन पर दबाव बढ़ जाता है। संसाधन एवं जनसं या म एक बार
स तुलन बगड़ने पर संसाधन के ववेक पूण दोहन वारा ह अनुकू ल ि थ त को ा त
कया जा सकता है। जनसं या दबाव के बढ़ने से ाकृ तक संसाधन पर दबाव बढ़ता है।

236
त यि त कृ षयो य भू म, जल संसाधन तथा अनेक आधारभू त सु वधाओं पर तकू ल
भाव पड़ता है। कृ त म कु छ वशेष थान पर जनसं या का दबाव वगत शता द म
ती ग त से बढ़ा है, िजसका मू ल कारण आ थक ग त के लए संसाधन का दोहन रहा
है। ती औ यो गक वकास के लए संसाधन का अ धका धक दोहन होने लगा। ारि भक
समय म यह ि थ त स तु लत थी। ले कन उ नीसवीं एवं बीसवीं शताि दय म नर तर
बढ़ती जनसं या ने संसाधन के दोहन क दर म वृ क । फल व प न केवल
अन यकरणीय संसाधन वरन ् न यकरणीय संसाधन म भी हास हु आ है। वन संसाधन जैसे
न यकरणीय संसाधन ल बी अव ध म अपना च पूण कर पाते ह। अत: दोहन क दर
बढ़ने से वनावरण म कमी आयी है।
बोध न -1
1. कसी पदाथ क उपयो गता कन कारक पर नभर करती है ?
.................................................................................... ........
................................................................ ............................
2. ' अनु कू लतम जनसं या' के लए 'Optimum Population' का योग
सव थम कसने कया था ?
............................................................................................
................................................................ ............................
3. अनु कू लतम जनसं या कसे कहते ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
4. जना ध य के मु ख कारण या ह ?
......................................................... ...................................
............................................................... .............................
5. जनाभाव क ि थ त कब उ प न होती है ?
................................................................................... .........
............................................................................................

11.4 व भ न पयावरणीय दशाओं के अ तगत भू म क वहन


मता (Carrying Capacity Land Under Different
Environment)
भू म क जनसं या धारण अथवा पोषण मता होती है िजसे भू म वहन मता (Land
Carrying capacity) कहते है। व भ न पयावरणीय दशाओं के अ तगत भू म क वहन
मता भ न- भ न होती है। जैसे क घास के मैदान अथवा वन क बहु त कम लोग को
भोजन दे ने क मता होती है। इसके वपर त कृ ष दे श क वहन मता अ धक तथा
औ यो गक े क बहु त अ धक होती है। जैसा क सव व दत है जनसं या क वृ ती

237
ग त से हो रह है। य द यह वृ अनवरत रहती है तो भू म पर इतना दबाव होगा क
उसक वहन मता ह समा त हो जाएगी। अत: एक ओर इस जनसं या वृ को
नयं त करना होगा, दूसर ओर यथासंभव भू म क वहन मता क वृ करनी होगी
िजससे अ धकतम यि तय का भरण-पोषण हो सके।

11.4.1 वहन मता क अवधारणा एवं नधारण

वहन मता क अवधारणा को कृ ष के उदाहरण से समझा जा सकता है। कसी दे श क


भू म वहन मता वहाँ क कृ ष उ पादकता से स बि धत ह। कृ ष के संदभ म वहन
मता का ता पय है कसी े - वशेष म लोग को भरण-पोषण दे ने के लए पया त है।
इसको ात करने का सरल तर का पोषक घन व है। पोषण घन व इस त य को दशाता है
क त हे टे यर कृ षत भू म पर कतने ामीण नवास करते ह। भू म कसी दे श का
उ च पोषण घन व इस बात को द शत करता है क वहाँ क जनसं या को अनाज तथा
खा य पदाथ के लए दूसरे दे श पर नभर रहना पड़ता है।
पोषण घन व वारा वहन- मता का संकेत ह मलता है। इसका शु तापूवक अनुमान कृ ष
क उ पादकता और जनसं या के अनुपात के वारा ह लगाया जा सकता है। एल.
डी. टै प (1958) ने भू म क उ पादकता ात करने हे तु 'भू म वहन मता' वध
तु त कया। भारत म इस व ध का योग जसवीर संह (1972-74) ने कया। संह ने
वहन मता के नधारण हे तु न न व ध अपनाई :
1. सव थम सभी फसल का त एकड़ उपज ात करना।
2. येक फसल के उ पादक े का आकलन करना।
3. कुल उ पादन का 16.8% भाग नकालकर, शेष उ पादन के आधार पर पोषक मता
ात करना।
4. येक फसल के उ पादन को कैलोर ज म बदलना।
5. त यि त कमी कैलोर म उ पादन ात करना। त यि त मा णक पोषण क
मा ा का नधारण।
6. त यि त के लए आव य ामा णक पोषण के आधार पर त वग कमी वहन
मता ात करना।
उपयु त प रकलन न न कार से कया गया है -
C0
Cp 
Sn
जहाँ, C p = वहन मता (जनसं या के प म),

C0 = त इकाई पोषण के लए उपल ध कैलोर ज,


Sn = त यि त त वष आव यक ामा णक पोषण।

238
उ ह ने त यि त वा षक ामा णक पोषण इकाई 7,72,138 कैलोर ज मा ा है। इकाई
े क वहन मता क दे श अथवा रा य म सापे त ात करने के लए न न सू का
योग कया जाता है।
C pe
I ae  100
C pr
जहाँ, I ae = इकाई क कृ ष मता का सू चकांक,
C pe = इकाई म जनसं या के प म वहन मता, एंव

C pr = स पूण दे श क औसत वहन मता।

यह व ध उन े के लए उपयु त है जहाँ खा या न फसल 58-90% े पर बोई


जाती ह। अखा य फसल के े क वहन- मता इस व ध से अछूती रह जाती है। इस
कमी को पूरा करने के लए सभी फसल के कु ल उ पादन क क मत ात क जा सकती
है। अ य लोग के अलावा नूर मोह मद ने 'भारत म खा य सु र ा का ादे शक त प'
ात करने के लए कया। उ होने दे श के येक िजले क सभी फसल का तीन साल का
औसत उ पादन लेकर उसम स बि धत फसल के औसत मू य का गुणा करके येक
िजले क फसल का मू य ात कर लया। इसम से 16.8 तशत घटा कर उपभोग के
लए उपल ध नरा मू य ात कया। इस कु ल मू य म कृ षत भू म के े फल का भाग
दे कर त हे टर मू य ात कया। यह मू य खा य व तु ओं के य करने क मता का
योतक है। नूर मोह मद ने अनुमान लगाया क त यि त त वष 1150 जीवन-
नवाह के लए पया त ह। इस कारण त हे टर फसल के मू य म 1150 का भाग
दे कर उस िजले क वहन- मता ात क जा सकती है।

11.4.2 वहन मता क वषमताओं के कारण

प ट है क कसी े क वहन मता का स ब ध वहाँ क उ पादकता से है। कसी े


क उ पादकता वहां के धरातल, जलवायु, म ी, संचाई के साधन, तकनीक ान आ द के
वारा नधा रत होती है। अत: कसी दे श के वन, कृ ष, खनन और औ यो गक े क
वहन मता क वषमताओं के कारण का वणन न न ल खत है :
1. भौ तक कारक : भौ तक कारक ह फसल के उ पादन क सीमा को नि चत करते ह।
मु ख भौ तक कारक न न ल खत ह :
(i) धरातल : धरातल य दशाएँ कृ ष को य प से भा वत करती है; य क
धरातल के आधार पर व भ न फसल का उ पादन एवं कृ ष काय कया
जाता है। धरातल के मु ख व प पवत, पठार एवं मैदान ह जो कृ ष म
अनेक व भ नताएँ पैदा करते ह। मैदान मानव स यता के ज म थान रहे
ह। अत: कृ ष व मानव का अ धकतम घन व यह पाया जाता। धरातल क

239
दो मु ख वशेषताएँ िजनका कृ ष उ पादकता पर य प से पड़ता है -
(अ) धरातल क ऊँचाई, तथा (ब) धरातल का ढाल।
धरातल क ऊँचाई अ धक होने पर हवा का दबाव कम हो जाता है तथा
जलवायु शीतल हो जाती है िजसम फसल का बदलना वाभा वक है। ढाल
कृ ष काय म सहायक अथवा बाधक होता है। म द ढाल जल नकास तथा
जु ताई के लए उपयु त होता है पर तु ती ढाल पर जु ताई नह ं हो पाने से
तथा म ी कटाव से म ी का अि त व नह ं रह पाता है, अत: भू म क
उ पादकता नग य हो जाती है।
(ii) जलवायु दशाएँ : फसल उ पादन पर सवा धक भाव तापमान और वषा का
पड़ता है। कोई भी पौधा तापमान के अभाव म वक सत नह ं हो सकता है।
तापमान म भ नताओं के साथ फसल म भी भ नताएं पाई जाती ह।
फसल के लए औसत तापमान 10 ०
सट ेड से लेकर 28० सट ेड माना
गया है। ले कन वभ न फसल के लए तापमान क भ न- भ न
आव यकता होती है। कु छ फसल अ धक तापमान म वक सत होती ह तो
कु छ फसल कम तापमान म पनपती ह।
फसल के उ पादन पर वषा क मा ा का बड़ा भाव पड़ता है। व व के
अ धक वषा एवं कम वषा वाले दे श म एक ह कार क कृ ष नह ं हो
सकती। उदाहरण के लए भारत के उ तर वशाल मैदान म पूव से पि चम
क ओर वषा क मा ा मश: घटती जाती है और फसल का कार भी वैसे
ह बदलता जाता है।
इसके अ त र त वायु क दशा एवं ग त, पाला, कोहरा, कु हासा, हमपात,
ओला वृि ट तथा सू य काश आ द जलवायु के त व भी फसल के उ पादन
को भा वत करते ह।
(iii) म ी : कृ ष के लए म ी आव यक त व है। व व म कृ ष क ि ट से
कांप, कछार या दोमट म ी सबसे उपयु त मानी जाती है। बलु ई, नमक न
या दलदल म ी कृ ष के लए उपयु त नह ं होती है। म ी क गहराई भी
फसल के कार को बदल दे ती है।
2. आ थक कारक : कृ ष को भा वत करने वाले मु ख आ थक कारक न न ल खत ह -
(i) बाजार क नकटता : बाजार के समीप साग-सि जय , शी न ट होने वाले
तथा दु ध उ पादन कया जाता है। दूर ि थत ामीण भाग म खा या न एवं
उ योग के लए क चा माल आ द का उ पादन कया जाता है।
(ii) आवागमन के साधन : उ पादन े से बाजार दूर होने पर उ पादन लागत
अ धक होगी और य द बाजार नजद क है तो उ पादन लागत कम होगी
िजससे कसान को अ धक लाभ होगा।

240
(iii) म : कृ ष के लए पया त मा ा म कु शल एवं स ते मक क आव यकता
पड़ती है। मक क अ धकता के कारण ह द णी-पूव ए शयाई दे श म
रबर क कृ ष का वकास हो सका है, जब क ाजील जो रबर उ पादन का
आद थल है ले कन मक क कमी के कारण वहाँ इनक कृ ष का वकास
नह ं हो सका।
(iv) पूँजी : यह भी कृ ष उ पादन का आव यक त व है। इसके अभाव म अ छे
क म के बीज, खाद, संचाई के साधन , नवीन कृ ष उपकरण , भ डार आ द
सु यव था नह ं हो सकती।
3. सामािजक कारक : भू म वहन मता को भा वत करने वाले मु ख सामािजक कारक
न न ल खत ह -
(i) जनसं या : कृ ष का मु य उ े य जनसं या का भरण-पोषण करना है। अत:
िजन े म जनसं या घन व अ धक है, वहाँ पर मानव म का योग
अ धक होता है तथा गहन नवाहन कृ ष क जाती है। इसके वपर त िजन
े म कम जनस या घन व है, वहाँ कृ ष म मशीन का अ धक योग
कया जाता है तथा व तृत यापा रक कृ ष क जाती है।
(ii) श ा का तर : कृ षक के श ा का तर भी कृ ष को भा वत करता है।
श त कृ षक उ चत बीज, खाद, कृ ष उपकरण तथा क टाणु नाशक दवाओं
का चु नाव आसानी से कर लेता है। अत: अ धक उ पादन ा त करता है।
4. सां कृ तक कारक : भू म वहन मता को भा वत करने वाल सां कृ तक कारक म
पर पराएँ, धा मक व वास आ द आते ह। भारत, पा क तान, बां लादे श, ीलंका,
यांमार, चीन आ द मानसू न ए शया के दे श म कृ षक पर परागत ढं ग से कृ ष करता
चला आ रहा है। वह अपनी पुरानी पर पराओं को आसानी से छोड़ने को तैयार नह
है। यह कारण हे क यहाँ आज के वै ा नक युग म भी कृ ष अ वक सत दशा म है।
इसके वपर त पा चा य दे श म कृ ष अ य धक वक सत है।
5. राजनी तक कारक : राजनी तक नी तय , वशेषकर फसल एवं पशु ओं से उ पा दत
व तु ओं पर सरकार नयं ण व ह त ेप का भाव भी कृ ष पर पड़ता है।
6. ा व धक कारक : वतमान म भू म क वहन मता का वकास ा व धक उ न त पर
नभर करता है। िजस दे श का ा व धक ान िजतना वक सत होता है, वह दे श
कृ ष वारा उतना ह लाभ कमाता है।

बोध न– 2
1. ‘ भू म वहन मता’ कसे कहते ह ?
............................................................................................
................................................................................ ............

241
2. टै प क ‘ भू म वहन मता’ व ध का भारत मी योग कस व वान ने
कया ?
............................................................................................
......................................................................................... ...
3. भू म वहन मता को भा वत करने वाले मु ख भौ तक कारक कौन से
ह?
............................................................................................
......................................................................................... ..
4. ो. शफ ने भारत वष क 12 फसल क उ पादकता को नधा रत करने
हे तु कस वै ा नक के सू का योग कया ?
............................................................................................
...................................................................... ......................

11.5 सारांश (Summary)


जनसं या और संसाधन के पार प रक स ब ध का अ ययन मह वपूण है, य क मानव
क आव यकताओं क पू त उपल ध संसाधन से ह होती है। कसी भी पदाथ क
उपयो गता उसक उपल धता, उपादे यता, आव यकता तथा मानव के तकनीक ान पर
नभर करती है। जनसं या और संसाधन के बीच ंखला मक स ब ध पाए जाते ह,
िजसके एक छोर पर पदाथ और दूसरे छोर पर चरम संतु ि ट होती है। संसाधन का सृजन
मानव के यास से ह होता है। मानवीय म तथा उसक तकनीक नपुणता भौ तक
संसाधन को उपयोगी व तु ओं मे बदलती ह। जनसं या और संसाधन के म य संतु लन क
ि थ त उस समय उ ण होती है जब कृ त म व यमान संसाधन क तु लना मे
जनसं या अनुकू लतम हो। संसाधन क तु लना म जनसं या अ धक होने पर उसे
जना ध य तथा कम होने पर जनाभाव कहते ह। जनसं या और संसाधन के म य
संतु लन क दशा बहु त कम ि टगत होती है। इस कार कसी े म नवास करने वाल
जनसं या तथा उस े के संसाधन म उपयु त समायोजन नह ं पाया जाता है। िजस
कारण अनेक वसंग तयाँ उ प न हो जाती ह। इन वसंग त क दशा को ह जनसं या
दबाव कहते ह। अनुकू लतम जनसं या श द का सव थम योग कै टलोन ने कया था।
अनुकू लतम जनसं या वह है िजससे उस े म रहने वाले यि तय क आय अ धकतम
हो, उ च आ थक वकस हो एवं उ चतम जीवन तर ा त हो। इसका आकलन सकल
रा य उ पाद, पूणरोजगार , उ चतम जीवन तर, संसाधन . का पूण उपयोग, जनां कक य
संरचना, दूषण र हत वकास आ द कारक के आधार पर कया जाता है।
भू म क जनस या धारण अथवा पोषण मता को भू म वहन मता कहते ह सव थम
टै प ने भू म क उ पादकता ात करने हे तु 'भू म वहन मता' का उपयोग कया।
भारत म इस व ध का योग जसवीर संह ने कया।

242
वन, कृ ष, खनन और औ यो गक े क वहन मताओं के वषमताओं के मु य कारण
भौ तक (धरातल, जलवायु, म ी), आ थक (बाजार, आवागमन के साधन, म, पूँजी),
सामािजक कारक (जनसं या, श ा का तर, मानव भोजन क च), सां कृ तक,
राजनी तक एंव ा व धक ह।

11.6 श दावल (Glossary)


 अनुकू लतम जनसं या (optimum Population) : कसी े वशेष क वह कु ल
जनसं या जो वहाँ उपल ध कु ल संसाधन के उ चत उपयोग के अनुकू ल हो।
 जना ध य (Over Population) : कसी े वशेष क वह कु ल जनसं या जो वहाँ
उपल ध कु ल संसाधन क तु लना म अ धक हो।
 जनाभाव (Under Population) : कसी े वशेष क वह कु ल जनसं या जो वहाँ
उपल ध कु ल संसाधन क तु लना म कम हो।
 भू म वहन मता (Land Carrying Capacity) : कसी े वशेष क भू म क
जनसं या धारण पोषण- मता।
 जनसं या दबाव (Population Pressure) : कसी े क जनसं या तथा
संसाधन के म य समायोजन के अभाव म उ प न वसंग तय क दशा।

11.7 संदभ थ (Reference Books)


1. कमला का त दुबे एंव महे बहादुर संह : जनसं या भू गोल, रावत पि लकेश स,
जयपुर , 2006
2. मोह मद हा न : आ थक भू गोल के मू लत व, वसु धरा काशन, गोरखपुर, 2007
3. ह रमाहन स सेना : पयावरण एवं दूषण, राज थान ह द थ अकादमी, जयपुर ,
1995
4. मला कु मार एवं ी कमल शमा : कृ ष भू गोल, म य दे श, ह द थ अकादमी,
भोपाल, 2006.
5. आर सी. तवार एवं बी. एन. संह : कृ ष भू गोल, याग पु तक भवन, इलाहाबाद,
2006
6. गुजर एवं जाट : मानव एवं आ थक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर

11.8 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. कसी पदाथ क उपयो गता पदाथ क उपल धता, उपादे यता, मानवीय आव यकता तथा
तकनीक ान पर नभर करती है।
2. कै ट लोन ने सव थम 'Optimum Population' श द का योग अनुकू लतम
जनसं या के लए कया।

243
3. कसी े वशेष क वह जनसं या जो वहाँ उपल ध कु ल संसाधन के उ चत उपयोग
के अनुकूल ह ।
4. जनसं या क ती वृ , संसाधन का अभाव, म क माँग म कमी, मु ा फ त म
ती वृ आ द जना ध य के मु ख कारण है।
5. जनाभाव क ि थ त उस समय उ प न होती है जब जनसं या संसाधन क तु लना म
कम हो।
बोध न - 2
1. कसी े वशेष क भू म क जनसं या धारण अथवा पोषण मता को भू म वहन
मता कहते ह।
2. ो. जसवीर संह ने कया।
3. धरातल, जलवायु, म ी आ द मु ख भौ तक कारक है जो भू म वहन मता को
भा वत करते ह।
4. इनैडी के सू का योग कया।

11.9 अ यासाथ न
1. जनसं या और संसाधन स ब ध का व तार से वणन क िजए।
2. अनुकूलतम जनसं या को प रभा षत करते हु ए इसके नधारण के मापद ड का वणन
क िजए।
3. भू म वहन मता कसे कहते ह ? भू म वहन मता ात करने क व धय का
वणन क िजए।
4. व भ न पयावरणीय दशाओं के अ तगत भू म क वहन मता क वषमताओं के
कारण का वणन क िजए।

244
इकाई 12: मानव संसाधन वकास सू चकांक (Human
Development Index)
इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 मानव संसाधन
12.2.1 भौ तक गुण
12.2.2 जनसं या के सामािजक-सां कृ तक गुण
12.2.3 जनसं या क आ थक वशेषताएं
12.3 मानव वकास
12.3.1 मानव वकास के संकेतक
12.3.2 मानव वकास का तर एवं े ीय वतरण
12.4 मानव वकास क दशा
12.4.1 जीवन याशा
12.4.2 ज मदर
12.4.3 मृ यु दर एवं शशु मृ यु दर
12.4.4 वय क सा रता
12.5 लंग-स ब धी वकास सू चकांक
12.6 मानव नभरता सू चकांक
12.7 सारांश
12.8 श दावल
12.9 संदभ थ

12.10 बोध न के उ तर
12.11 अ यासाथ न

12.0 उ े य (Objectives)
सू चकांक इस इकाई के अ ययन से आप समझ सकगे :
 मानव संसाधन का मह व,
 मानव संसाधन का गुणा मक मू यांकन,
 व व जनसं या क आयु संरचना, ी-पु ष अनुपात , नगर करण, सा रता,
यावसा यक संरचना,
 मानव वकास का ता पय, उ े य, संकेतक,
 मानव वकास का वतरण एवं वृि त।

245
12.1 तावना (Introduction)
ल बे काल तक संसाधन का ता पय केवल ाकृ तक संसाधन से लया जाता रहा है।
नि चत प से संसाधन जैव-भौ तक वातावरण के त व ह, पर तु जैसा क इकाई दो म
प ट कया गया है क बना मानव और उसके यास के ये जैव-भौ तक त व केवल
नि य पदाथ (Neutral Stuffs) मा ह अथात ् संसाधन के उपल धता, मू यांकन,
उ पादन, नयतन और ब धन सभी याएं मानव केि त (anthropocentric) ह।
संसाधन वकास क स पूण या म केवल मानव भर ह स य त व है तथा अ य
सभी संसाधन नि कय ह। इतना ह नह ं वह अपने ान, कु शलता और उप मण
(initiatives) का उपयोग करके तट थ पदाथ को संसाधन बनाता है और इन संसाधन
को वांि छत व तु ओं म प रव तत करता है। वा तव म संसाधन क स पूण अवधारणा ह
मानव-केि त है। व तु त: वह संसाधन का नमाता है, साथ ह उनका उपभो ता भी है।
इस कारण वह सबसे मह वपूण संसाधन है।
वकास क अवधारणा म वष 1990 के दशक म एक नया आयाम जु ड़ा िजसे मानव
वकास (Human Development) कहा जाता है। इस प रवतन का मू ल आधार यह है
क वकास क स पूण या का के ब दु मानव है। इस अवधारणा म इस बात पर
जोर दया गया है क वकास क स पूण या को मानव, उसक अनुभू त, सोच,
ि टकोण, ल य आ द के प रपे य म दे खा जाना चा हए। वृ अथात ् आय का बढ़ना
वयं म वकास का ल य नह ं है बि क साधन है। ल य है मानव क याण म वृ और
आ थक, सामािजक, सां कृ तक, राजनै तक आ द े म मानवीय चयन क सु वधा का
व तार। इसी प रपे य म मानव वकास क चचा यहाँ क गई है।

12.2 मानव संसाधन


न ववाद प से मानव क दोहर भू मका है। वह उ पादन के लए आव यक म दान
करता है, तकनीक का अ वेषण करता है तथा पूँजी एक त करता है, साथ ह न मत
व तु ओं को बाजार भी दान करता है। पहले अथ म मानव वयं सबसे बड़ा संसाधन कहा
जा सकता है। मानव- शि त, बु , कु शलता और ान, िजनका योग उपयोगी व तु एं
बनाने म कया जाता है - को मानव संसाधन कहा जाता है। मानव संसाधन के तीन
मु ख प ह - (i) सं या, (ii) भौ तक शि त तथा (iii) बौ क मता। इ ह गुण के
सं दभ म मानव संसाधन का मू यांकन कया जाता है। साथ ह मनु य पूँजी एक त
करता है एवं तकनीक क खोज और सं थाओं क थापना करता है। इस कारण मानव के
वे सभी गुण वचारणीय होते ह जो म शि त क गणु व ता, मा ा तथा मता का
नधारण करते ह और उनक अनुभू त तथा ि टकोण को प दे ते ह। इस कारण मानव
सं या, उसका वतरण एवं वृ , ज म-मृ यु दर तथा भौ तक, सां कृ तक और आ थक
गुण वचारणीय होते ह। इनम जनसं या वृ तथा वतरण क चचा पछल दो इकाइय

246
क जा चु क है। पर तु इस इकाई म जनस या के गुणा मक प तथा मानव वकास को
तु त कया जा रहा है।

12.2.1 जनसं या के भौ तक गुण

अपने दा य व के नवाह के लए मानव शार रक प से दु त और व थ होना चा हए।


मानव क गुणव ता , मता और मांग मु खत: उसके दो भौ तक ल ण -आयु एवं लंग -
पर बड़ी सीमा तक नभर होते ह। आयु मानव क मान सक और शार रक शि त का
योतक है। आयु ह याशील जनसं या का नधारण करती है। साथ ह अनेक
सामािजक आचार- यवहार भी आयु से जु ड़े ह। बाल आयु वग क धानता जनसं या क ं
ती वृ का योतक है। वष 15 से 59 आयु वग क जनसं या मशि त नधा रत
करती ह इन कारण से आयु कसी भी े क आ थक एवं सामािजक दशा का सबसे
मु ख नयं क है। इतना ह मह व ल गक सरंचना का है। भरतीय संदभ म दे ख तो ी-
पु ष अनुपात का भाव सा रता एवं श ा, बा य जगत का ान, पा रवा रक नणय क
या म ह सेदार , ववाह जैसे सामािजक सं थाओं तथा उनक आ थक सहभा गता पर
प टत: दे खा जा सकता ह इन कारण से मानव संसाधन के मू यांकन म इन भौ तक
ल ण पर वचार कया जाता है।
आयु संरचना : आयु सरं चना म काफ भ नता पाई जाती ह सन ् 2007 म व व क कु ल
जनसं या का 28 तशत बाल आयु वग (<15 वष) म है। यह मोनाको तथा ब गा रया
म (यूरोप) 13 तशत से लेकर माल , नाइजर तथा गनी बसाउ म 48 तशत तथा
यूगांडा (सभी अ का म) म 50 तशत तक है। बाल आयु वग का अ धक अनुपात (कु ल
जनसं या का 40 तशत से अ धक) पि चमी, म य और पूव अ का के सभी दे श ,
उ तर अ का म सू डान, द ण तथा द ण-पूव ए शया के कु छ दे श तथा लै टन
अमे रका के कु छ दे श म है। ये दे श अ वक सत अथवा अ प वक सत ह तथा यहाँ ज म
दर बहु त अ धक है तथा इन भाग म जनसं या तेजी से बढ़ रह है। दूसर ओर यूरोप के
सभी दे श , उ तर अमे रका, पूव ए शया के वक सत दे श, आ े लया, यूजीलै ड और
द णी अमे रका के कु छ दे श म ब च का कु ल जनसं या म ह सा कम (20 से 30%)
तथा बहु त कम (<20%) है। इन दे श म ज म दर (10 त हजार से) कम है तथा ये
दे श आ थक ि ट से समु नत ह।
ता लका-12.1 : आयु संगठन, 2007
े . आयु वग
<15 वष 15 से 64 65
व व 28 65 7
वक सत दे श 17 67 16
वकासशील दे श 31 63 6
अ का 41 56 3
247
उ तर अमे रका 220 68 12
लै टन अमे रका 30 64 6
ए शया 28 66 6
यूरोप 16 68 16
ओसी नया 25 65 10
ोत : पापु लेशन रफरस यू रो - 2007 पापु लेशन डाटा शीट

वृ आयु वग का वतरण इसके वपर त है। व व क 7 तशत जनसं या 65 वष और


उससे अ धक आयु क है। यूरोप , उ तर अमे रका तथा आ े लया आ द म यह अनुपात
अ धक है। अथात ् यहाँ वृ का कु ल जनसं या म ह सा अ धक है। इसके वपर त
अ का, अ धकांश ए शया, मेलाने शया तथा माइ ोने शया म बूढ़ का ह सा (6 तशत
से) कम है। इन भाग म उ च मृ यु दर तथा न न जीवन याशा के कारण वृ आयु
वग छोटा है। सं ेप म कहा जा सकता है क उ च ज म दर वाले दे श म बाल आयु वग
का अनुपात अ धक है। दूसर ओर न न ज म दर तथा उ च जीवन याशा वाले दे श म
वृ क अ धकता है।
ी-पु ष अनुपात : त हजार पु ष के पीछे ि य क सं या को ी-पु ष अनुपात
कहा जाता है। व व म यह अनुपात 990 ि य का है। यूरोप (1050), उ तर अमे रका
(1049), तथा अ का (1017) म ि य का अनुपात अ धक है। इसके वपर त
ओसो नया (983), ए शया (960) तथा लै टन अमे रका (958) म ि य का अनुपात कम
है। ी-पु ष अनुपात का भाव ववाह जैसी सं थाओं तथा काम म सहभा गता पर पड़ता
है। िजन भाग म ी-पु ष अनुपात अ धक है वहाँ म हलाओं को न केवल ववाह के लए
संघष करना पड़ता है बि क पु ष के साथ क धा मला कर काम भी करना पड़ता है।
इस लए इन भाग म म हला सहभा गता फलत: कु ल सहभा गता अ धक होती है। कम
ी-पु ष अनुपात वाले े म इसके वपर त होता है। इस कार ी-पु ष अनुपात
मशि त क उपल धता को भा वत करता है।

12.2.2 जनसं या के सामािजक एवं सां कृ तक गुण

मनु य अपने समाज से कई गुण सीखता है। इन सामािजक सं थाओं म नवास का थान,
भाषा, धम, वैवा हक दशा, जा त, समु दाय, श ा एवं सा रता आ द मह वपूण ह। ये
सं थाएं मनु य के ि टकोण, अनुभू त तथा नवाचार के अ भ हण को भा वत करती ह।
अनुभू त और मू यांकन का संसाधन के मू यांकन म अहम भू मका होती है। समाज का
बढ़ता ान, प र कृ त ौ यो गक और व ान न केवल संसाधन क उपलि ध को बढ़ाता
है बि क उनके नवीन तथा उ नत उपयोग और उनके थानाप न क खोज करता है तथा
उनक पुनन यता नधा रत करता है।
नगर करण : ामीण तथा नगर य जनसं या का वतरण दे श क अथ यव था पर काश
डालता है। वतमान म नगर करण क ग त बहु त तेज है। सन ् 1950 म व व क केवल

248
29 तशत जनसं या नगर म रहती थी। पर तु 2006 म लगभग आधी (48 तशत)
आबाद नगर म बसती हे । वक सत दे श म यह अनुपात 77 तशत पर तु वकासशील
दे श म 41 तशत है। ती नगर करण के कारण म वकासशील दे श म बढ़ता
औ योगीकरण तथा गांव से नगर क ओर पलायन मु य ह।
द णी अमे रका सबसे अ धक नगर कृ त महा वीप है जहाँ क 80 तशत जनसं या
नगर म रहती है। इसके बाद मश: उ तर अमे रका (79%), यूरोप (75%), ओसी नया
(73%), ए शया (38%) एवं अ त म अ का (37%) ह। व व म कई दे श पूणत:
नगर य ह, जैसे बहर न, कतर, संगापुर , हांककांग, मोनाको, नउ । वा तव म ये सभी
बहु त छोटे दे श है। इस तरह उ तर अमे रका, यूरोप तथा ओसी नया म उ च मानव
वकास नगर करण से य त: जु डा हु आ है। नगर वा य, श ा, यापार, वा ण य,
उ योग के के होते ह िजनका अनुकू ल भाव मानव वकास पर पड़ना वाभा वक है।
सा रता : कसी भाषा म एक साधारण संदेश को समझ कर पढ़ एवं लख सकने क
मता रखने वाले यि त को सा र कहा जाता है। सा रता जनसं या क गणु व ता का
सबसे मु ख सू चक है। वषम तकनीक पर आधा रत व श टता तथा व नमय धान
आधु नक अथ यव था म पूण सहभा गता के लए सा रता का यूनतम तर आव यक
होता है। इस ि ट से सा रता तकनीक वकास का संकेतक है। सा रता लोगो क
अनुभू त को ती ण बनाती है और मनोवृि त को भा वत करती है। इससे ान म वृ ,
सू चना के ोत तक पहु ंच और नए वचार को वीकार करने क शि त बढ़ती है।
सा रता का वतरण भी काफ असमान है। संयु त रा य अमे रका, कनाडा, पुतगाल को
छोड़ कर सम त यूरोप, जापान, को रया, शीतो ण द णी अमे रका के दे श, आ े लया
तथा यूजीलै ड म तीन-चौथाई से अ धक लोग सा र ह। म य तथा द णी अमे रका के
शेष दे श, द णी अ का, द णी पूव ए शया तथा म य ए शया के दे श म आधे से दो-
तहाई लोग सा र ह। इसके वपर त द ण ए शया तथा उ तर , म य, पि चमी तथा पूव
अ का के अ धकतर दे श म अब भी सा रता कम है।

12.2.3 जनसं या क आ थक वशेषताएं

िजस तरह से कसी े म संसाधन क उपि थ त मा से उस े का वकास नह ं हो


जाता उसी तरह भार जनसं या होने मा से वकास हो, यह आव यक नह ं है। वकास के
लए संसाधन का अनुकू लतम थानीय उपयोग कया जाना चा हए। इस प रपे य म
जनसं या के ब धन क ि ट से इस त य का व लेषण भी अ नवाय है क मानवशि त
का कतना ह सा आ थक ग त व धय म भाग लेता है और वह कन यवसाय म संल न
है। यह आ थक तथा सामािजक वकास के तर का योतक है। आ थक वकास के साथ-
साथ संसाधन क खोज म व वधता तथा यवसाय म मानव संसाधन वकास वृ होती
है। वतीयक तथा तृतीयक आ थक याओं क धानता आ थक वकास के बढ़ते कदम
का ल ण है। इस कारण मानव संसाधन के उपयोग के त प का व लेषण उपयोगी है।

249
उ नत दे श म वतीयक एवं तृतीयक उ योग म संल न मक क सं या अ धक होती
है जब क पछड़े दे श म ाथ मक उ योग क धानता होती है। अत: आ थक वकास को
नापने के लए यावसा यक संरचना एक मा यम है। कसी दे श म 60% से अ धक पु ष
मक कृ ष काय म संल न होने पर उसे अ वक सत, 35% से 60% के बीच होने परे
अ वक सत तथा 35% से कम होने पर वक सत कहा जाता ह।
कृ ष म कायरत जनसं या का अनुपात : िजन भाग म नमाण उ योग अ वक सत ह वहाँ
कृ ष जीवनयापन का मु य साधन होती है। ऐसी दशा म बेरोजगार होने के थान पर कृ ष
काय करना उ चत समझा जाता है, य क इससे कु छ अ त र त खा या न पैदा हो जाता
है। सन ् 2004 म ए शया महा वीप म आधे से अ धक (56.3 तशत) याशील
जनसं या कृ ष म लगी है। यह अनुपात भू टान म 93.8 तशत और नेपाल म 93.0
तशत तक है (मान च 12.1)। द णपूव ए शयाई दे श म यह 60 तशत से अ धक
है। भारत म 59.6 तशत याशील लोग खेती म संल न ह। अ का महा वीप म कृ ष
म कायरत जनसं या का अनुपात (63.2 तशत) और भी अ धक याशील जनसं या
का ह सा कृ ष म लगा है। कु ल 28 दे श म 60 तशत से अ धक स य जनसं या
कृ ष काय म लगी है। व व के 55 बड़े दे श ऐसे ह जहाँ क औसत (44.7 तशत) से
अ धक जनसं या खेती करती है। इनम से 34 दे श अकेले अ का महा वीप म और 16
दे श ए शया महा वीप म ह। यूरोप म एक (अ बा नया 48.2 तशत) तथा ओसी नया म
ऐसे दो छोटे दे श ह।

मान च - 12.1 : व व क कुल कृ षीय जनसं या का वतरण, 2004


लै टन अमे रका म ि थ त ए शया म भ न है। यहाँ एक-पचमांश से कम याशील
जनसं या कृ ष म लगी है। द णी अमे रका का औसत केवल 17.8 तशत है। इन
वकासशील े क तु लना म वक सत े म कृ ष पर नभरता इतनी अ धक नह ं है।
उ तर अमे रका, पि चमी यूरोप , अज टाइना, ऑ े लया और यूजीलै ड म अ पांश
जनसं या, दशमांश से भी कम ह कृ ष काय करती है। संयु त रा य म इससे भी कम,
केवल 2.1 तशत ह कृ षक का अनुपात है, जब क यह व व म कई उपज का मु ख
उ पादक दे श है। यह पाया गया है क कृ षक का कृ ष म संल न रहने का नणय उनक
अनुभू त, उ े य एवं मू य से बहु त अ धक भा वत होता है। ेट टे न म इसका यून
250
होना 1.8% वाभा वक ह है। जापान (4.1 तशत) भी इसी वग का दे श है। स,
द णी अ का, चल , व वेनेजु एला तथा शेष यूरोप (ब कान के दे श छोड़कर) म कृ षक
एक चौथाई तक है। यूरोप के ब कान के दे श म ह कृ षक क सं या एक तहाई से आधे
तक है।
बोध न -1
1. मानव सं साधन के कौन से तीन प ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. बाल आयु वग म कतनी आयु तक के ब चे सि म लत कए जाते ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
3. कस महा वीप म सवा धक ी-पु ष अनु पात ह ?
............................................................................................
............................................................... ............................
4. व व म कतनी तशत जनसं या नगर म नवास करती है ?
............................................................................................
....................................................................... .....................
5. कृ ष म सं ल न सवा धक याशील जनसं या कस महा वीप म है ?
............................................................................................
................................................................ ............................

12.3 मानव वकास


मानव वकास क अवधारणा मानव संसाधन वकास क अवधारणा से अ धक व तृत है।
यह वकास क नई अवधारणा है िजसे संयु त रा संघ वकास काय म (UNDP) ने
सन 1990 म अपने डेवलमे ट रपोट के मा यम से तु त कया था। इस रपोट म महबू
उल हक ने लखा है क मानव वकास का उ े य ऐसा सश त पयावरण न मत करना है
िजसम यि त ल बे समय तक व थ तथा रचना मक जीवन का आन द ले सक।'
वा तव म आज के आपाधापी म यह भुला दया गया है क 'मानव ह रा क वा त वक
स पि त है।' इसी कारण मानव हत क तु लना भौ तक स पि त से करने क भू ल करते ह।
यह भी स य है क बना स पि त के मानव -क याण संभव नह है; परंतु वकास का
मु य मापद ड मानव जीवन क गुणव ता है। संपि त तो अवसर के चयन क सु वधा
दान करती है। मानव वकास का मौ लक ल य मनु य वारा सु अवसर के वक प क
सीमा को बढ़ाना है िजससे वकास अ धक जातां क तथा सहभा गतापूण बन सके। इन
सु अवसर म मु ख ह - व थ द घ जीवन के अवसर, श त होने के अवसर तथा
स मानजनक जीवन जीने के अवसर। कई और भी वक प ह िजनम सृजना मक और
उ पादक बनने के अवसर और वा भमानपूण जीवन जीने के अवसर सि म लत ह। सं ेप

251
म वकास क या मानव-केि त होनी चा हए। कु ल मलाकर मानव के गुणव ता को
बढ़ाना ह इसका उ े य है िजससे वह अपने वकास के सु अवसर का अ धक से अ धक
लाभ ले सके।

12.3.1 मानव वकास के संकेतक

मानव वकास क थम रपोट के काशन के बाद से मानव क याण के माप का नमाण


करने और उ ह प र कृ त करने के यास कए जाते रहे ह। आरं भ म मानव क आयु,
ान तथा जीवन तर के े म अिजत उपलि धय के आधार पर मानव वकास का तर
ात कया जाता है। जनसं या के तीन प का तर जानने के लए तीन कार के
सू चकांक का योग कया जाता था जो न नानुसार ह :
1. वा थ सू चकांक (Health Indicators) : ज म दर, कु ल जननता, मृ यु दर, शशु
मृ यु दर, पोषण, जीवन याशा आ द।
2. सामािजक सूचकांक (Social Indicators) : सा रता, वशेषकर म हला सा रता,
कू ल आयु वग के ब चे-बि चय का कूल म दा खला, शाला यागी छा का
अनुपात, छा - श क अनुपात आ द।
3. आ थक सू चकांक (Economic Indicators) : त यि त आय, नधनता क
ि थ त, रोजगार क दशा आ द।
वतमान म भी इ ह तीन वग के आधार पर मानव वकास सू चकांक क गणना क जाती
है पर तु सूचक क सं या न नानुसार कर द गई है :
1. द घ व थ जीवन : सू चक : ज म के समय जीवन याशा (जी वत रहने क
संभावना),
2. श ा : सू चक वय क सा रता दर और सकल ाथ मक, मा य मक एवं तृतीयक
कू ल म नामांकन, तथा
3. स मानजनक जीवन तर : सू चक : यशि त समता के प म त यि त सकल
घरे लू उ पाद (सामा य श द म यशि त समता के प म त यि त आय)।
इन संकेतक के आकड़ क मदद से वषम गणना व ध का उपयोग करके मानव वकास
सू चकांक (Human Development Index, HDI) क गणना क जाती है। इस तरह ा त
सू चकांक के आधार पर वचारणीय दे श को न नानुसार तीन वग म रखा जाता है :
(i) उ च मानव वकास वग : सू चकांक 0.8 से अ धक,
(ii) म यम मानव वकास वग : सू चकांक 0.5 से 0.8 तक, तथा
(iii) न न मानव वकास वग : सूचकांक 0.5 से कम।
मानव वकास सूचकांक (Human Development Index, HDI) के साथ ह मानव वकास
रपोट म लंग वकास सूचकांक (Gender-related Development Index, GDI), लंग
सश तीकरण मापद ड (Gender Empowerment Measures, GEM) तथा मानव गर बी
सू चकांक (Human Poverty Index, HPI) जैसे सू चकांक का भी उपयोग मानव वकास

252
क व भ नता जानने के लए कया जाता है। इन सू चकांक क गणना के लए कई
वचलक का उपयोग कया जाता है।

12.3.2 मानव वकास का तर एवं े ीय वतरण

सयु त रा संघ वकास काय म (यू एन. डी. पी.) वारा वष 2005 क सू चनाओं के
आधार पर सन ् 2007-08 क व व मानव वकास क रपोट तैयार क गई है िजसम
व व के 177 दे श म मानव वकास क दशा क या या क गई है। इनम से 70 दे श
उ च मानव वकास वग, 85 म यम मानव वकास वग तथा 22 न न मानव वकास
वग म रखे गए ह। इन व भ न वग के दे श का वतरण (मान च 12.1) बहु त रोचक
है।

मान च - 12.2 : मानव वकास का तर, 2005


सभी न न मानव वकास वाले दे श अ का महा वीप म ह। इनम सेनेगल (सू चकांक
0.499) से लेकर सयरा लयोन (0.366) तक सभी मानव वकास सू चकांक 0.5 से कम
है। इसके वपर त अ धकांश उ च मानव वकास वाले दे श उ तर अमे रका, यूरोप तथा
आ े लया महा वीप म ि थ त ह। इनसे बाहर द ण अमे रका के लगभग आधे दे श,
अ का म केवल ल बया तथा ए शया म जापान, द ण को रया, मले शया तथा कु छ
खाड़ी के तेल उ पादक दे श ह इस ेणी म आते ह। े वार मानव वकास तथा
स बि धत सू चकांक न न ता लका 12.2 म तु त है।
म यम मानव वकास वाले दे श मु य प से ए शया तथा शेष अ का म ह। द णी
अमे रका के उ तर पि चमी भाग के कुछ दे श इसी वग मे आते ह। भारत भी इसी ेणी
आता है िजसका 177 दे श म ऊपर से 128 वां म है तथा मानव वकास सू चकांक
0.619 है।
ता लका 12.2 : े वार मानव वकास क दशा, 2005
े मानव जीवन वय क कूल त यि त
वकास याशा सा रता दर नामांकन आय $
सू चकांक वष मे तशत म सू चकांक
वकासशील दे श 0.69 66.1 76.7 64.1 5282
अ प वक सत दे श 0.488 54.5 53.9 48.0 1499
अरब दे श 0.699 67.5 70.3 65.5 6712

253
पू व ए शया - शा त े 0.771 71.7 91.7 69.4 6604
लै टन अमे रका 0.803 72.8 90.3 81.2 8417
द णी ए शया 0.611 63.8 59.5 60.3 3416
सब-सहारा अ का 0.493 49.6 60.3 50.6 1998
म यपू व यू रोप 0.808 68.6 99.0 83.5 9527
ओईसीडी 0.916 78.3 _ 88.6 29197
उ च मानव वकास े 0.963 79.2 _ 92.3 33082
म यम मानव वकास े 0.776 70.9 89.9 73.3 7416
न न मानव वकास े 0.570 60.0 60.2 56.3 2513
व व 0.743 68.1 78.6 67.8 9543

इन मानव सू चकांक से व भ न े म मानव क याण के तर तथा वकास के वक प


म अ तर प ट होता है। जैसे क मानव वकास के दूसरे म पर आने वाले दे श नाव
तथा अि तम पायदन पर आने वाले सयरा लयोन म यि त ब कु ल वपर त मानव
वकास क दशाओं म रहते ह। नाव वासी सयरा लयोन वा सय से 51 गुना अ धक धनी
ह। उनके जीवत रहने क अव ध लगभग दो गुनी है। नाव म सभी ब च का कू ल म
नामांकन है जब क सयरा लयोन म केवल 44.6 तशत ब च का ह है।
मानव वकास के इस े ीय वतरण से प ट है क इसका सीधा स ब ध त यि त
आय से है। उपरो त ता लका 12.2 से यह प ट है क मानव वकास के तर के साथ
त यि त आय बदलती जाती है। यह उ च मानव वकास के दे श म 23986 डालर
( यशि त समता के प म) है जो घट कर म यम मानव वकास के दे श म 4876
डालर तथा न न मानव वकास के दे श म 1112 डालर रह जाती है। न न आय वग के
दे श म अ य धक नधनता के कारण न केवल चु नाव के वक प क कमी रहती है बि क
पोषण क कमी, वा य सु वधाओं का अभाव तथा श ा ा त करने के अ प अवसर भी
होते ह।
त यि त आय तथा वा य एवं श ा का सीधा और घ न ट स ब ध है। इसी कारण
स प न दे श के लोग अ धक व थ तथा श त ह। यह बात आय के आधार पर दए
गए मानव वकास के संकेतक से प ट है। उ च आय वाले दे श म जीवन याशा 79.2
वष क है जब क न न आय वाले दे श म केवल 60 वष का औसत है। इसी तरह कू ल
आयु वाले ब च का नामांकन मश 92.3% तथा 56.3% है। इस तरह आ थक ि ट से
स प न तथा वक सत दे श सामा यतया उ च मानव वकास सू चकांक वाले दे श ह।
इस सामा यीकरण के अपवाद भी ह। कु छ ऐसे दे श भी ह जो आय के म म तो काफ
आगे ह ले कन मानव वकास के म म काफ पीछे ह। जैसे क द ण अ का त
यि त आय क ि ट से 56 व म पर आता है ले कन मानव वकास के सूचकांक म
वह 121 व म पर है। दूसर ओर यूबा मानव वकास सू चकांक म 51 व म पर है
जब क त यि त आय म 94 व म पर आता है अथात ् यहाँ त यि त आय क
तु लना मानव क याण के काय म अ धक भावी ढ़ग से लागू कए गए तथा वक सत ह।

254
इसी तरह बहर न म त यि त आय ($ 21482) चल ($ 12027) से लगभग दो
गुनी है; पर तु चल मानव वकास के म म बहर न से ऊपर ह न न मानव वकास के
वग म अ छा उदाहरण तंजा नया का है िजसक त यि त आय ($ 744) अंगोला ($
2335) क तु लना म एक- तहाई है, पर तु जीवन याशा, वय क सा रता सू चकांक,
कू ल म नामांकन आ द म तंजा नया अंगोला से काफ आगे है। इस तरह मानव वकास
केवल आय पर नभर नह ं होता है बि क इस आय वारा वा य, श ा, गर बी
उ मूलन , म हला. सश तीकरण आ द के लए चलाए गए काय म क सफलता पर नभर
होता है।

12.4 मानव वकास क दशा


मानव वकास के आंकड़ से साफ है क म य - 1970 के दशक से अब तक व व के
लगभग सभी े म मानव वकास संकेतक म वृ हु ई है। वकासशील दे श म मानव
वकास संकेतक म काफ ग त हु ई तथा प वक सत और वकासशील दे श के बीच अब
भी बहु त अ तर है। यह त य मानव वकास जानने के लए योग कए जाने वाले
संकेतक क मदद से समझा जा सकता है।

12.4.1 जीवन याशा

पछले तीन दशक म ज म के समय जीने क याशा वकासशील दे श म 10 वष बढ़


जब क वक सत दे श म केवल सात वष। सन ् 1970-75 म वकासशील दे श म औसत
जीवन याशा 55.8 वष थी जो बढ़ कर सन ् 2000-05 म 65.5 वष हो गई। दूसर
और वक सत दे श म इसी अव ध म यह 71.7 वष से बढ़ कर 78.9 वष हु ई। इस कार
दोन कार के दे श के बीच अ तर तो कम हु आ है तब भी वतमान अ तर भी बहु त
अ धक है। उदाहरण के लए जापान म औसत जीवन याशा सवा धक 82.3 वष है जब क
यूनतम 40.3 वष जाि बया (अ का) मे है। इस तरह अ धकतम तथा यूनतम म अ तर
41.8 वष का है। सामा य प से जीवन याशा आय से जु ड़ी हु ई है। औसत जीवन
याशा वक सत दे श म 79.2 वष, म यम आय वाले दे श म 70.9 वष तथा न न
आय वग वाले दे श म केवल 60 वष है। सामािजक-आ थक ि ट से वक सत दे श म
मृ यु दर कम होने के कारण जीवन याशा अ धक होती है। जब क वकासशील और
अ प वक सत दे श म मृ यु दर अ धक होने के कारण यह कम होती है। उ च याशा
वाले दे श म वृ क सं या अ धक होती है पर तु न न याशा वाले दे श म ब च का
अनुपात अ धक होता है।
व व के व भ न भाग म जीवन याशा म काफ अंतर है। उ तर अमे रका, यूरोप ,
आ े लया, यूजीलै ड, लै टन अमे रका के कु छ दे श तथा ए शया म चीन, द ण
को रया, जापान, ीलंका और थाईलै ड म जीवन याशा अ धक (< 70 वष) है । इनके
अ त र त कई छोटे दे श भी इस वग म आते ह। उन दे श म म यम जीवन याशा है
जहाँ मृ यु दर कम है। इसके वपर त अ य त पछड़े, गर ब तथा अ श ा वाले दे श म

255
जीवन याशा कम और बहु त कम है। पूव अ का, म य अ का और पि चमी अ का
के दे श म जीवन याशा 50 वष से कम है।
यह उ लेखनीय है क पु ष तथा म हला क जीवन याशा म अब भी अ तर है, पर तु
यह अ तर अ धक याशा वाले दे श म अ धक तथा न न याशा वाले दे श म कम है।
उदाहरण के लए म य- 2007 म व व म औसत जीवन याशा पु ष के लए 66 वष
तथा म हलाओं के लए 70 वष है। वक सत दे श म यह औसत मश: 73 वष और 80
वष का है तथा वकासशील दे श म 64 वष तथा 67 वष का है। इस कार म हला तथा
पु ष क जीवन याशा म अ तर वक सत दे श म 7 वष है पर तु वकासशील दे श म
केवल 3 वष का है। म य तथा पूव अ का म यह अ तर नग य है। ये यून जीवन
याशा के े ह। दूसर ओर यूरोप , उ तर अमे रका तथा द णी अमे रका म म हलाओं
क जीवन याशा पु ष क जीवन याशा से लगभग सात वष अ धक है।

12.4.2 ज म दर

ज म दर और कु ल जननता जनसं या क गुणव ता को भा वत करती ह। त हजार


जनसं या के पीछे एक वष क अव ध म जी वत शशु ओं के ज म क सं या को ज म
दर कहा जाता है। यह मानव क तमाम आ थक एवं सामािजक दशाओं को भा वत करता
है। व व म ज म दर नरं तर कम हो रह है। यह सन ् 1975 म 31.5 त हजार थी
जो घट कर सन ् 1985 म 27 त हजार तथा सन 2007 म 21 त हजार हो गई है।
व व के व भ न भाग म ज म दर म अंतर पाया जाता है। ए शया तथा अ का के कु छ
दे श म ज म दर बहु त अ धक (>40/1000) है। इसम पूव , म य तथा पि चमी अ का
के लगभग सभी दे श तथा ए शया के यमन तथा अफगा न तान आते ह। साथ ह म य
अ का के सू डान, म य अ क गणतं , कैम न, गेबन तथा द ण अ का, पि चम
ए शया म ईराक, जाडन, सी रया और सउद अरब, द ण ए शया म अफगा न तान,
बं लादे श, नेपाल एवं भू टान और द ण अमे रका म बोल वया और परा वे म ज म
सू चकांक दर अ धक (30 से 40/1000) है। इनके वपर त शीतो ण क टब ध म ि थत
सामािजक-आ थक ि ट से वक सत दे श म कम और बहु त कम है। कम ज म दर वाले
दे श म संयु त रा य अमे रका, कनाडा, पि चमी, द णी तथा पूव यूरोप के अ धकांश
दे श, ए शया म चीन, हांगकांग, जापान, द ण को रया, ताइवान तथा संगापुर उ लेखनीय
ह।

12.4.3 मृ यु दर एवं शशु मृ यु दर

ज म दर क भां त त हजार जनसं या के पीछे एक वष क अव ध म मृत यि तय


क सं या को मृ यु दर कहा जाता है। यह मानवीय वा य का मह वपूण सू चक तो है
भी आ थक तथा सामािजक दशाओं का भी त ब ब है। वा य एवं च क सा सु वधाओं
के व व यापी व तार तथा खा या न क आपू त के कारण मृ यु दर म कमी आई है।

256
व व म असंशो धत मृ यु दर सन ् 1975-80 के म य 12 त हजार थी जो घट कर
सन ् 2006 म 9 त हजार हो गई है। अब भी अ का महा वीप के कई दे श म यह
अ धक और बहु त अ धक है। अ का म भी उ तर भाग के दे श म मृ यु दर कम है। इस
महा वीप से बाहर अफगा न तान तथा तमोर म यह अ धक है। संतु लत भोजन, लोक
वा य, च क सा सेवाओं तथा श ा क कमी के कारण इन े म मृ यु दर उ च है।
दूसर ओर उ तर अमे रका, लै टन अमे रका, पि चमी ए शया तथा उ तर अ का, द ण-
पूव तथा म य ए शया के दे श एवं आ े लया तथा यूजीलड म यह कम तथा बहु त कम
है। इसका भी मानव वकास पर भाव पड़ा है।
शशु मृ यु दर को मानव वकास का एक मह वपूण सूचक समझा जाता है। शशु मृ यु
दर से ता पय त हजार जी वत ज म पर 0-1 वष क आयु तक के शशु ओं क मृ यु
क सं या से है। व व म शशु मृ यु दर 52 त हजार (सन ् 2006) है। इसम भी तेजी
से कमी आई है। सन ् 1970 म शशु मृ यु दर 96 थी। उ च शशु मृ यु दर उन पछड़े
दे श म अ धक है जहाँ ज म दर भी ऊँची है। पुन : उ च शशु मृ यु दर अ का के दे श
म है। सव च शशु मृ यु दर अफगा न तान म 166 त हजार तथा पि चमी अ का म
सयरा लयोन म 163 त हजार है। वक सत दे श म यह बहु त कम (6 त हजार)
तथा वकासशील दे श म कम (57 त हजार) है।

12.4.4 वय क सा रता

मानव वकास का तर जानने के लए सा रता को भी मु ख आधार माना गया है। इसके


लए दो संकेतक का उपयोग कया गया है- वय क सा रता दर तथा दूसरे , कू ल म
नामांकन का अनुपात। वय क सा रता दर का मतलब 15 वष से अ धक आयु वाल
जनसं या म सा र का तशत तथा नामांकन म ाथ मक, मा य मक तथा तृतीयक
क ाओं म वेश लेने वाले ब च का उन आयु वग के कु ल ब च म तशत। इन म
उ लेखनीय ग त हु ई है तथा प अभी बहु त कु छ करना बाक है। व व तर पर वय क
सा रता सन ् 1985-94 के औसत 76.4 तशत से बढ़ कर सन ् 1995-2005 के दशक
म 82.4 तशत हो गई। इसी अव ध म वकासशील दे श म यह दर 68.2 से 77.1
तथा उ च आय वाले दे श म 98.9 से 99.1 तशत हो गई। इस तरह वक सत और
वकासशील दे श म अब भी बड़ा अ तर है। कई अ क दे श म आधे से अ धक वय क
मानव संसाधन वकास लोग अभी भी अ श त ह। ए शयाई दे श म भी अ श ा एक-
तहाई तक है। यह भी उ लेखनीय है क वय क म हला सा रता पु ष क तु लना म कम
है। औसत प से वकासशील दे श क 70 तशत वय क म हलाएं सा र हो पाई ह।
कू ल म नामांकन भी बढ़ा और व व के दो- तहाई (67.8%) ब च का कू ल म वेश
हु आ है। इसका मतलब है क अब भी एक- तहाई ब चे कू ल जाने से वं चत ह। जहाँ
वक सत दे श के 92 तशत से यादा ब चे कू ल जाते ह। वह वकासशील दे श के
केवल 64 तशत ब चे ह कू ल म दा खला ले पाए ह। यह इन दे श के मानव वकास

257
म नीचे होने का एक मु य कारण ह वचाराधीन कु ल 177 दे श म से 25 दे श म कू ल
नामांकन आधे (50%) से भी कम है अथात ् इन दे श म आधे ब चे क ह कारण से
कू ल म वेश नह ं लए ह। इनम अ का, द ण पूव ए शया तथा कैरे बयन दे श
सि म लत ह।

12.5 लंग-स बि धत वकास सू चकांक (Gender-related


Development index)
मानव वकास सू चकांक जनस या के दोन अंग - पु ष एवं म हला - को सि म लत कर
एक साथ मानवीय दशा पर वचार करता है। पर तु समाज म इन दोन वग क दशाओं
म काफ व भ नता है। मानव वकास के तीन आयाम - व थ सु खद जीवन, ान तथा
स मानजनक जीवन तर - म पु ष एवं म हला अ तर को प ट करने के लए लंग
स बि धत वकास सू चकांक का योग कया जाता है। य द पु ष एवं म हला असमानता
न हो तो मानव वकास सू चकांक तथा लंग-स बि धत वकास सूचकांक दोन बराबर ह गे।
य द असमानता है तो लंग-स बि धत वकास सूचकांक मानव वकास सू चकांक से कम
होगा। इन दोन म िजतना अ धक अ तर होगा उतनी ह अ धक लंग असमानता होगी।
सन ् 2005 म व व का औसत लंग-स बि धत वकास सू चकांक 0.761 है। वकासशील
दे श का औसत लंग-स बि धत वकास सू चकांक 0.662 तथा वक सत दे श का औसत
0.912 है। यह लंग-स बि धत वकास सू चकांक कांगो रपि लक म 0.328 तथा
तंजा नया म 0.335 से लेकर नाव, ल जे बग तथा संयु त रा य अमे रका म 1.000
तक है। िजन दे श म म हला-पु ष म लगभग समानता है उनम नाव, ल जे बग, संयु त
रा य अमे रका, आ े लया, कनाडा, आयरलै ड, वीडेन, ि वटजरलै ड, डे माक, आि या,
बेि जयम, टे न, इटल , हांगकांग उ लेखनीय ह। सामा यतया वक सत दे श म
असमानता कम है। इसके वपर त अ का, द णी तथा पूव ए शया म लंग-स बि धत
वकास सू चकांक कम है जो म हला-पु ष वषमता का योतक है।

12.6 मानव नधनता सू चकांक (Human Poverty Index)


मानव वकास के तीन साधन के वं चत करने म नधनता सबसे मह वपूण है। इस लए
नधनता क गहनता जानने का यास भी व भ न मानव वकास क रपोट म कया
जाता है। नधनता का वा य पर भाव जानने के लए 40 वष क आयु से पूव मरने
वाल का तशत को आधार बनाया गया। ान क नधनता जानने के लए वय क म
नर रता के तशत को दे खा गया। वा य सेवाएं, सु र त पानी क सु वधा तथा 5
वष से कम आयु वाले ब च म कु पो षत ब च का तशत के मा यम से अ छे जीवन
के अभाव को दे खा जाता है। सन ् 2005 को मानव वकास रपोट म 108 दे श के मानव
नधनता सू चकांक क गणना क गई तथा उ हे म दया गया है। इन दे श म मानव
नधनता सूचकांक थम म पर आने वाले बरबाडोस म 3 तशत से लेकर अि तम म

258
पर आने वाले चाड (अ का) म 56.9 तशत तक है। ता लका के अवलोकन से प ट है
क 50 से 108 तक के म पर आने वाले दे श अ का और ए शया के ह। मानव
नधनता सू चकांक क ता लका म भारत 62 व म पर है िजसका सू चकांक 31.3
तशत है।

12.7 सारांश
संसाधन वकास क स पूण या म केवल मानव भर ह स य त व है। इतना ह नह ं
वह अपने ान, कु शलता और उप म का उपयोग करके तट थ पदाथ को संसाधन बनाता
है। व तु त: वह संसाधन का नमाता है, साथ ह उनका उपभो ता भी है। इस कारण वह
सबसे मह वपूण संसाधन है। जनसं या बढ़ने के साथ ह मानव भौ तक, सामािजक तथा
आ थक ल ण म उ लेखनीय प रवतन हु ए ह। जहाँ वक सत दे श म वृ आयु समू ह क
जनसं या बढ़ है वह वकासशील ती जनसं या वृ वाले दे श म बाल आयु वग का
ह सा बहु त बढ़ गया है। इन दोन दशाओं ने अलग-अलग सम याओं को ज म दया है।
इस कारण ी-पु ष अनुपात म अ तर आया। इस अनुपात का वतरण बहु त असमान
बना हु आ है। नगर म रहने वाल का तशत भी काफ बढ़ गया है और व व क
लगभग आधी जनसं या नगर तथा शहर म रहने लगी है। सा रता बढ़ तथा नर रता
का अनुपात कम हु आ। तथा प वक सत और वकासशील दे श म अभी-भी बहु त अ तर है।
जनसं या क याशीलता तथ मक का यावसा यक वभाजन पुन : वकासशील दे श के
तकू ल है। व व क याशील जनसं या का 44.7 तशत कृ ष म संल न है। ए शया
तथा अ का म यह तशत बहु त अ धक है जो इनके पछड़े होने का सूचक है।
वकास क संक पना म मानव वकास क अवधारणा सन ् 1990 से जु ड़ गई है। इसका
मौ लक ल य मनु य वारा सु अवसर के वक प क सीमा को बढ़ाना है िजससे वकास
अ धक जातां क तथा सहभा गतापूण बन सके। इन सु अवसर म मु ख ह - व थ दघ
जीवन के अवसर, श त होने के अवसर तथा स मानजनक जीवन जीने के अवसर।
इनका तर जानने के लए ज म के समय जीवन याशा, वय क सा रता तथा य
शि त के प म त यि त आय को आधार माना गया है। इनक मदद से मानव
वकास सू चकांक क गणना क गई है। इस संकेतक तथा सू चकांक से कई बात प ट हो
जाती ह। एक तो अभी भी अ का का अ धकांश भाग मानव वकास क ि ट से बहु त
पीछे है। दूसरे , उ च मानव वकास वाले दे श वक सत और स प न दे श ह। स प न दे श
म वा य, श ा, पोषण जैसी मू लभू त सु वधाओं पर यान दया गया है। पर तु
व भ न दे श म इन सभी प पर समु चत यान नह ं दया जा सका है।

12.8 श दावल
 मानव संसाधन : मानव के वे सभी गुण जो म शि त क गुणव ता, मा ा तथा
मता का नधारण करते ह और उनक अनुभू त तथा ि टकोण को प दे ते ह।
 ी-पु ष अनुपात : त हजार पु ष के पीछे ि य क सं या।

259
 सा रता : कसी भाषा म एक साधारण संदेश को समझ कर पढ़ एवं लख सकने क
मता।
 सा रता : कु ल जनसं या म सा र का तशत। भारत म कु ल जनसं या के थान
पर 6 वष से अ धक आयु वाल म सा र का तशत को सा रता दर माना गया
है।
 मानव वकास : मानव के गुणव ता का बढ़ाना िजससे वह अपने वकास के सु अवसर
का अ धक से अ धक लाभ ले सके।
 जीवन याशा : ज म के समय स भा वत जीने क आयु क याशा।
 ज म दर : त हजार जनसं या के पीछे एक वष क अव ध म जी वत शशु ओं के
ज म क सं या।
 शशु मृ यु दर : त हजार जी वत ज म शशुओं पर 0-1 वष क आयु तक के
शशुओं क मृ यु क सं या।
 वय क सा रता : 15 वष से अ धक आयु क जनसं या म सा र का तशत।

12.9 संदभ ंथ
1. आर. सी. चांदना : जनसं या भू गोल, क याणी पि लशस, लु धयाना, 2006
2. बी. पी. पंडा : जनसं या भू गोल, म. . ह द ं अकादमी, भोपाल, 2007

3. Mahbul ul haq : Human Development of South – East Asia. HDC
Oxford University Press, New York, 1997.
4. UNDP : Human Development Report, 2007-08 on Net.
5. कलवार सु गन च द एवं मीणा तेजराम : नधनता उ मू लन एवं ामीण वकास,
पोइ टर पि लशस, जयपुर , 2001

12.10 बोध न के उ तर
1. (i) सं या, (ii) भौ तक शि त तथा (iii) बौ क मता।
2. 15 वष से कम आयु के।
3. यूरोप (1050)।
4. 48 तशत।
5. अ का ।

12.11 अ यासाथ न
1. मानव संसाधन के मह व तथा वशेषताओं का वणन क िजए।
2. जनसं या के भौ तक एवं सा कृ तक ल ण का व व वतरण बताइए।
3. मानव वकास क अवधारणा तथा उसके संकेतक का ववरण द िजए।
4. मानव वकास के वतमान तर को भा वत करने वाले कारक को समझाइए।
5. मानव वकास क दशा का सं त वणन क िजए।

260
इकाई 13 : संसाधन उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं
समाधान (Resources Utilization,
Environment Problems and Solution)
इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 अवधारणा
13.3 कृ ष संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान
13.3.1 कृ ष संसाधन ास को रोकने के समाधान
13.4 मृदा संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सं थाएँ एवं समाधान
13.5 जल संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान
13.5.1 जल संसाधन ास को रोकने के समाधान
13.6 वन संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान
13.6.1 वन संसाधन ास को रोकने के समाधान
13.7 ख नज संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान
13.7.1 ख नज संसाधन ास को रोकने के समाधान
13.8 सारांश
13.9 श दावल
13.10 संदभ थ
13.11 बोध थ
13.12 अ यासाथ न

13.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप समझ सकगे क :
 संसाधन उपयोग के कारण उ प न होने वाल पयावरणीय सम याऐं एवं उनके
समाधान।
 कृ ष संसाधन के उपयोग, उ प न पयावरणीय सम याएं एवं उनके समाधान।
 मृदा संसाधन क उपयोग, उ प न पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान।
 जल संसाधन के उपयोग, उ प न पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान।
 वन संसाधन के उपयोग, उ प न पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान।
 ख नज संसाधन के उपयोग, उ प न पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान।

261
13.1 तावना (Introduction)
संसाधन, पयावरण और मानव अ तस बि धत ह। पछले सौ वष म वा य-र ा क
बेहतर यव था और पोषाहार म सु धार से जनसं या तेजी से बढ़ है, वशेषकर वकासशील
दे श म जनसं या म यह अभू तपूव वृ ाकृ तक संसाधन पर भार दबाव डाल रह है।
जंगल, घास के मैदान और दलदल के बड़े-बड़े टु कड़ को खेती और उ योग के यो य
बनाया जा रहा है। इन प रवतन से अमू य ाकृ तक पा रतं तेजी से गायब हो रहे ह।
जल, भोजन, ऊजा, उपभो ता व तु ओं क बढ़ हु ई आव यकता केवल जनसं या वृ का
प रणाम नह ं है; वह अ धक समृ समाज के सद य वारा और हमारे अपने समाज के
समृ सद य वारा संसाधन के अ त -उपयोग का प रणाम भी है।
औ यो गक वकास का उ े य तमाम उपभो ता व तु ओं क बढ़ती माँग को पूरा करना है,
ले कन ये उपभो ता व तु एँ लगातार बढ़ती मा ा म अप श ट (waste) भी पैदा कर रह
ह। औ यो गक े क वृ के कारण लोग अपनी पर परागत, नवहनीय, ामीण
जीवनशैल को छोड़कर उ योग के इद गद वक सत नगर क ओर आ रहे ह। इसके
कारण अ धक जनसं या घन व वाले इन नगर य े के आस-पास क जमीन िजतना
कु छ पैदा करती है और इन े क भार आबाद का जो उपभोग तर है, उसके बीच
अ तर बढ़ा है। न दय और झील का पानी, खे तहर े से ा त खा य पदाथ ,
चारागाह े के पालतू पशु ओं और जंगल से ा त इमारती लकड़ी, जलावन, नमाण
साम ी और दूसरे संसाधन के बना ये नगर-के बने भी नह रह सकते। औ यो गक
वृ , नगर करण, जनसं या वृ तथा उपभो ता व तु ओ.ं म भार वृ ने पयावरण पर
भार दबाव डाला है। इन सबके कारण कृ ष, मृदा , जल, वन तथा ख नज े मे दूषण
के कारण मानव के वा य पर गंभीर भाव पड़े ह।

13.2 अवधारणा
संसाधन, पयावरण और मानव तीन कृ त के अ भ न त व घटक ह। कृ त के जै वक
(Biotic) और अजै वक (Abiotic) घटक के समु चय को पयावरण कहा जाता है। इ ह ं
घटक के य और अ य त व और शि तय को संसाधन कहा जाता है, िजनम मानव
क आव यकताओं क पू त क मता होती है। मनु य क आव यकताएँ अन त ह, जब क
संसाधन सी मत ह। 20 वीं शता द म मानव के ान तथा व ान क उ न त के कारण
संसाधन के वदोहन म वृ होती गई दूसर ओर व व क जनसं या म व फोटक प
से वृ होती गई। मानव अपनी बौ क कु शलता और चातु य से कृ त के अ धका धक
उपादान का उपयोग करने म सफल रहा है। इस म म मानव समाज क कृ त पर
नभरता धीरे -धीरे कम होने लगी, य क मानव क आव यकताएँ बढ़ती गई, िजनक पू त
के लए जहाँ एक ओर नए संसाधन क खोज शु हु ई, वह ं संसाधन के दोहन क
तकनीक म बदलाव आने लगा। 18 वीं शता द म आ थक वकास, वशेषकर औ यो गक

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ां त के सू पात के साथ ह संसाधन के दोहन का म शु हु आ। इस युग म मानव,
आ थक मानव के प म प रव तत हो गया। इस आ थक मानव के वारा संसाधन के
दोहन से जहाँ एक ओर उनके संसाधन का भ डार कम होने लगा, वह ं इनके अ धका धक
योग से उ प न अप श ट के कारण दूषण का खतरा भी बढ़ता गया है। इन अप श ट
के कारण जीवन के आधार त व यथा- वायु जल, मृदा आ द दू षत होकर ग तशील
कहे जाने वाले समाज के लए चु नौती बनने लगे ह। इसी म म तकनीक मानव ने
कृ त को वश म करने के नाम पर ऐसे योग का शु भार भ कया क कृ त के आधार
त व एक के बाद एक गुण खोने लगे। मृदा उपयोग क नत नई व धय के कारण मृदा
बांझपन क ओर उ मुख होने लगी है। इसी कार वायु और जल अपनी गुणव ता खोने
लगे ह। वन वनाश से जहाँ एक ओर स बि धत संसाधन क कमी होने लगी है, वह ं
पयावरणीय क ठनाइयाँ भी कट होने लगी ह। जैव व वधता भी वन वनाश से भा वत
हु ई है, जो पयावरण सतु लन के लए आधार प है। संसाधन क कमी और पयावरण के
दूषण से व वध कार क बीमा रयाँ, कु पोषण और असंतोष के कारण जीवन क
गुणव ता म भी हास होने लगा है।
आ थक वकास के नाम पर कृ त के संसाधन के दोहन ने रा सी प ले लया है।
वक सत समाज यह तय नह ं कर पा रहा है क कृ त के उपादान के शोषण क या
सीमा ह। प रणामत: मानव और कृ त के स ब ध बगड़ने के कारण ह पयावरण
स ब धी अनेक सम याएँ कट होने लगी है। वकास के कारण ज म लेने वाल
पयावरणीय सम याएं मु यत: पांच कार क होती ह :
1. मनु य क शार रक मता को भा वत करने वाल सम याएं- रोग, जल एवं वायु
दूषण आ द।
2. भू भाग को नवास के अयो य बनाने वाल सम याएं, यथा खतरनाक कूड़ा करकट,
वन दूषण।
3. संसाधन के अनुकूलतम उपयोग म बाधा डालने बाल सम याएं - मृदा अपरदन,
जल लावन, लवणीकरण, ार करण आ द।
4. पा रि थ तक तं को बा धत करने वाल सम याएं- तापीय दूषण, जैव भूरसायन
च म बाधा, जैव व वधता म कमी।
5. स पूण जैव मंडल को भा वत करने वाल सम याएं- काबन डाइ आ साइड का
एक ण, ओजोन क कमी, उ मा संतु लन म प रवतन आ द।
इस सम याओं जनस या के बढ़ते दबाव के कारण संसाधन का अ त दोहन तथा वक सत
दे श म अ त उपभोग है।

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13.3 कृ ष संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं
समाधान
आज हमारा भोजन पूर तरह कृ ष, पशु पालन और मछ लय पर नभर है। कृ ष क
आधु नक व धयाँ जो पूर तरह अ नवहनीय ह और रासाय नक खाद और क टनाशक का
अ त-उपयोग करके हमारे पयावरण को दू षत कर रह ह।
हम जानते ह क वन प त जीवन का आधार है और मृदा वन प त क जननी है। मृदा के
दूषण से वन प तयाँ भी दू षत हो रह ह। मृदा म न हत वषैल साम ी रासाय नक
या कर पौध म पहु ँ च जाती है। यह नह ं उवरक के अ धक उपयोग से नाइ ोजन,
पोटाश और फॉ फेट आ द के अंश पौध म बढ़ते जा रहे ह, जो उनक सहन सीमा से
अ धक है। वाभा वक है क ऐसी दशा म पौध दू षत हो रह ह। इसी कार क टनाशक
दवाएँ भी पौध के दूषण को बढ़ावा दे रह ं ह। अ ल वषा भी पौध के दूषण का एक
कारण है। वायु दूषण का भी कु भाव वन प तय पर पड़ रहा है। नगर और कारखान से
नकला कचरा, ग दा जल और रासाय नक साम ी को भी हण कर वन प तयाँ दू षत
हो रह ह।
अनेक वकासशील दे श म जहाँ आबाद तेजी से बढ़ रह है, खा य उ पादन उतनी ती ता
से नह ं बढ़ पा रहा है। खा या न उ पादन बढ़ाने के लए दो तरह के यास कए गए।
एक, कृ ष का नवीन े पर व तार, दूसरे , एक ह भू म से अ धक से अ धक उ पादन
लेने का यास। कृ ष व तार के कारण वन और चारागाह का वनाश हु आ। कृ ष के
गहनीकरण से भी भू म क गुणव ता म कमी आई। व व के 105 वकासशील दे श म से
64 दे श म खा य उ पादन उनक माँग से कम है। भारत उन दे श म से एक है जो कृ ष
यो य भू म के एक बड़े भाग पर संचाई के सहारे खेती करके पया त खा य उ पादन म
समथ हु ए ह। वष 1960 के दशक क ह रत ाि त ने दे श म भु खमर क सम या को
कम कया। ले कन इसके कारण अनेक कु भाव पड़े। हमार उपजाऊ जमीन का अ धक
तेजी से दोहन कया गया। वन , घास के मैदान और दलदल जमीन पर कृ ष करने से
पयावरण स ब धी गंभीर न उठे ह।
भारत म कृ ष-यो य भू म क कमी है और खेत का आकार छोटा है। हर पीढ़ के साथ
खेत और भी छोटे होते जाते ह। कृ ष क अनेक व धयाँ, जैसे -कोटा-जलाओ, हम खेती,
वन का नाश करती ह।
संसार म हर साल 50 से 70 लाख हे टे यर खेती हर जमीन का ास हो रहा है। पोषक
त व म कमी और खेतीहर रसायन का अ त-उपयोग भू म- ास के मु ख कारण ह। जल
क कमी खेती क कम उपज का एक मह वपूण कारण है। खारापन (salinization) और
जलभराव (Water Logging) ने दु नयाभर म बहु त अ धक खे तहर जमीन को भा वत
कया है।

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फसल पौध क जै वक व वधता म कमी खेती क उपज म कमी का एक और कारण है।
चावल गेहू ँ और म का दु नया क दो- तहाई जनता का थायी भोजन है। संसार के मैदान ,
नम भू मय और दूसरे ाकृ तक आवाम म फसल पौध के व य समतु य का नाश हो
रहा है। इस लए रोग, खारापन आ द का तरोध करने म स म क म के वकास क
मता भी कम हो रह है। जन नक अ भयां क (Genetic Engineering) पर परागत
संकर क म का एक नया आजमाया गया और जो खम भरा वक प है।
खा य और कृ ष संगठन नवहनीय कृ ष क प रभाषा ऐसी कृ ष के प म करता है जो
भू म, जल तथा पौधा और ाणी पी संसाधन को सु र त रखे, पयावरण का हास न
करे , तथा आ थक ि ट से यावहा रक और सामािजक ि ट से वीकाय हो । हमारे
अ धकांश बड़े फाम एक फसल उगाते ह । अगर इस फसल को क ड़े लग जाएँ तो पूर
फसल न ट हो सकती है और कसान को उस साल कोई आय नह ं होती । दूसर ओर
कसान अगर पर परागत क म का योग कर और अनेक अलग-अलग फसल उगाएँ तो
पूर असफलता क संभावना काफ घट जाती है । अनेक अ ययन से प ट है क
अकाब नक खाद और क टनाशक के वक प का उपयोग कया जा सकता है । इसे
समि वत फसल ब ध (Integrated crop Management) कहते ह ।

13.3.1 कृ ष संसाधन ास को रोकने के समाधान

कृ ष संसाधन हास को रोकने के कु छ सु झाव न न ल खत है : -


1. कृ ष म रासाय नक खाद और क टनाशक के उपयोग को सी मत कया जाए।
रसाय नक खाद के थान पर दे शी एवं जै वक खाद के उपयोग को बढ़ावा दया जाना
चा हए। इसे जै वक कृ ष कहते ह।
2. कृ ष पर जनसं या दबाव को कम करने के लए नूतन खा य ोत का वकास कया
जाना चा हए। जैसे - महासागर क कृ ष आ द।
3. भू म सु धार काय म को लागू कया जाए।
4. शु क े ीय कृ ष (Dryland Farming) को अपनाना चा हए।
5. बंजर भू म वकास काय म को पूर शि त के साथ लागू कया जाना चा हए।
6. वकास के लए आव यक अधोसंरचना, यथा सड़क, मंडी, बक आ द क सु वधा बढ़ाई
जाय।
बोध न-1
1. ' पयावरण ' कसे कहते ह ?
............................................................................................
......................................................................... ...................
2. ' नवहनीय कृ ष ' कसे कहते ह ?
............................................................................................
......................................................................... ...................

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3. ' समि वत फसल ब ध ' कसे कहते ह ?
............................................................................................
.......................................................... ..................................
4. सं सार म त वष लगभग कतने हे टे यर खे तीहर भू म का ास हो रहा
ह?
............................................................................................
................................................ ............................................

13.4 मृदा संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान


कृ त वारा द त संसाधन म मृदा सवा धक मह वपूण है। हमार कृ ष, वन, व य जीव
आ द सभी मृदा संसाधन पर आ त ह। धरातल पर ि थत ढ ले तथा मह न कण से
न मत एक पतल परत िजनम ख नज के कण, यूमस , आ ता, वायु आ द संयु त होते
ह, मृदा कहलाती है। सामा य प से मृदा का नमाण मू ल च ान के वघटन वारा होता
है, िजसे समय के साथ व भ न कार क जलवायु भा वत करती है।
मृदा पयावरण का आधार त व है। वन प तय एवं फसल के लए उपजाऊ मृदा क
उपि थ त ने आ द मानव को आक षत कया िजसके फल व प नद घाट स यताओं का
उदय हु आ है। आज भी उपजाऊ मृदा के े सबसे अ धक घने बने ह। भारत और चीन
व व क आधी से अ धक जनसं या को समेटे हु ए ह और इनक तीन-चौथाई जनसं या
कृ ष के मा यम से मृदा से जु ड़ी हु ई है।
मानव ने अपने वकास हे तु मृदा संसाधन का व भ न प म जाने-अनजाने शोषण कया
है। वन के कटने से जहाँ एक ओर म ी के अपरदन म वृ हु ई है वह ं उपजाऊ म ी के
अपरदन होने से म थल करण को बढ़ावा मला है। इसी कार मनु य ने घर के नमाण
हे तु ट के नमाण म म ी क ऊपर बहु मू य परत का वशाल मा ा म दोहन कया है।
बढ़ते नगर करण व औ यो गक करण के इस युग म करोड़ टन कू ड़े-कचरे का न कासन
हो रहा है। जहाँ एक ओर इसके न तारण क सम या है, वह ं दूसर ओर इसम मृदा
दूषण फैल रहा है। इस कू ड़े-कचरे को अ धकांशत: खु ले म डाल दया जाता है िजसम
म ी म लाि टक, वषैले रसायन तथा अनेक भार धातु ओं का वलय हो रहा है।
हम जानते ह क वन प त जीवन का आधार है और मृदा वन प त क जननी है। मृदा के
दूषण से वन प तयाँ भी दू षत हो रह ह। मृदा म न हत वषैल साम ी रासाय नक
या कर पौध म पहु ँ च जाती है। यह नह ं उवरक के अ धक उपयोग से नाइ ोजन,
पोटाश और फॉ फेट आ द के अंश पौध म बढ़ते जा रहे ह, जो उनक सहन सीमा से
अ धक है। वाभा वक है क ऐसी दशा म पौध दू षत हो रह ह। इसी कार क टनाशक
दवाएँ भी पौध के दूषण को बढ़ावा दे रह ं ह। अ ल वषा भी पौध के दूषण का एक
कारण है। वायु दूषण का भी कु भाव वन प तय पर पड़ रहा है। नगर और कारखान से
नकला कचरा, ग दा जल और रासाय नक साम ी को भी हण कर वन प तय दू षत
हो रह ह।
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इसी कार बढ़ती जनसं या के लए आवास सम या को दूर करने के लए जहाँ एक ओर
नगर , गाँव , क ब के आकार म वृ हो रह है, वह ं दूसर ओर इतनी वशाल जनसं या
के भरण-पोषण हे तु गहन कृ ष से 'मृदा शोषण' से इसक उ पादकता म नर तर कमी आ
रह है। अत: मानवीय या-कलाप से मृदा अवनयन म वृ हु ई है।
जब हम मृदा क गुणव ता घटने लगती है तो उसे मृदा ास कहते है। यह मृदा हास
म ी के कटाव, अ धक उपयोग से पोषक त व क कमी, जीवांश का असंतु लत अनुपात
और दूषक के म ण से उ प न होता है। प ट है क मृदा क गुणव ता के हास के
लए मानवीय या-कलाप अ धक िज मेदार ह।

13.4.1 मृदा संसाधन हास को रोकने के समाधान

जैसा क सव व दत है क मृदा आधारभू त संसाधन है। इसक गुणव ता हास का यापक


भाव मानव जीवन पर पड़ता है। मृदा क उवराशि त के घटने से उ पादन घटता है और
यह कृ ष धान दे श के लए महान संकट है। दू षत मृदा क वन प तयाँ अवांछनीय
त व को मानव तक पहु ँ चा कर अनेक बीमा रय को ज म दे ती ह।
मृदा संसाधन के ास को रोकना आज क मह वपूण आव यकता है, य क बढ़ती
जनसं या के लए भोजन, उ योग के लए क चा माल और पशु ओं के लए चारा जु टाना
इसक गुणव ता पर आधा रत है। इसके लए जो उपाय काम म लाए जा सकते ह, उसम
क टनाशक के योग पर नयं ण, रासाय नक उवरक का संतु लत उपयोग, नगर य
दू षत जल, कू ड़ा और रसायन का शु करण के बार न पादन, जल जमाव क रोकथाम
और भू म का संतु लत उपयोग मह वपूण ह। फसल च , सामा य जु ताई, योग के बाद
कु छ समय के लए भू म व ाम, जै वक खाद का योग आ द उपाय भी मह वपूण उपाय
ह।

13.5 जल संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधन


जल पयावरण का जीवनदायी त व है। पा रि थ तक के नमाण म जल आधारभू त कारक
है। वन प तय से लेकर जीव-ज तु अपने पोषक त व क ाि त जल के मा यम से करते
ह। मानव जीवन भी शु जल पर आधा रत है। यह कारण है क जहाँ शु जल उपल ध
है, मानव बसाव भी वह ं पाया जाता है।
पृ वी के कु ल जल संसाधन म से केवल 3 तशत ताजा जल है। इसम से 2.997
तशत ु व क बफ म या हमा नय (Glaciers) के प म है। इस तरह पृ वी के कु ल
जल का केवल 0.003 तशत ह हम म ी क नमी, भू जल, वा प तथा झील , नद
नाल और नमभू मय के प म उपल ध है।
जल का सवा धक उपयोग संचाई म (7 तशत) कया जा रहा है, जब क वतीय थान
उ योग (23 तशत) का है। घरे लू तथा अ य उपयोग म केवल 7 तशत जल का ह
उपयोग कया जाता है। लोग वारा पृ वी पर व यमान कु ल शु जल का 10 तशत

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से कम उपयोग कया जा रहा है। जल संसाधन का न न ल खत े म उपयोग कया
जाता है : -
1. संचाई म उपयोग : जल का सवा धक उपयोग संचाई काय म कया जाता है।
संचाई काय म सतह एवं भू-जल का उपयोग कया जाता है। सतह जल का उपयोग
नहर एवं तालाब वारा कया जाता है जब क भू-जल का उपयोग कु ओं तथा नलकू प
वारा कया जाता है। व व का एक चौथाई भू-भाग ऐसी शु क दशाओं वाला है जो
पूणतया संचाई पर नभर करता है। तु क तान, पि चमी ए शयाई े , म क
घाट , यूरोपीय नद बे सन, ला लाटा बे सन (द णी अमे रका), नाइजी रया,
आ े लया का मरे -डा लग बे सन आ द नहर े संचाई के अ तगत ह। इसी कार
मानसू न ए शया म भी वषा पो षत े (Rainfed Areas) अ त र त े संचाई
पर नभर ह जो खा याभ उ पादन के मह वपूण े ह। यहाँ चावल, गेहू,ँ ग ना,
कपास आ द का वृहत ् तर पर उ पादन कया जाता है।
2. उ योग म उपयोग : कुल शु जल संसाधन का 23 तशत भाग उ योग म
उपयोग कया जाता है। यह कारण है क अ धकांश उ योग जल ोत के नकट
था पत कए जाते ह। उ योग मे जल का उपयोग भाप बनाने, भाप के संघनन,
रसायन के वलयन, व क धु लाई, रं गाई, छपाई, तापमान के नय ण
ं के आ क
एवं शीतक (Refrigeraters) के लए, लोहा-इ पात उ योग म लोहा ठ डा करने क
लए, कोयला धु लाई, चमड़ा शोधन तथा रं गाई, कागज क लु द बनाने के लए तथा
अ त एवं ार बनाने आ द म होता है।
3. घरे लू काय म उपयोग : घरे लू काय म पीने, खाना बनाने, नान करने, कपड़े धोने
आ द म जल का उपयोग कया जाता है। इसके अ त र त पशु ओं के लए भी जल क
आव यकता होती है।
4. नौ-प रवहन म उपयोग : न दय , नहर तथा झील म ि थत सतह जल संसाधन का
उपयोग नौ-प रवहन म कया जाता है। इसम नद या नहर के पानी के वाह क
दशा, जल रा श क मा ा तथा मौसमी भाव एवं न दय व नहर क ल बाई क
मु य भू मका होती है। यूरोप क राइन नद नौ-प रवहन क ि ट से सवा धक य त
है। इसके अ त र त नील, डे यूब , यांग ट सी, वो गा, मसी सपी, सेट लारस, सीन,
ए ब, मीकांग, इरावद , अमेजन तथा भारत क मपु , गंगा, गोदावर आ द न दय
म नौ-प रवहन सु वधा है।
5. नहर : नहर का नमाण जल के बहु े यीय उपयोग के लए कया जाता है िजनम
संचाई, प रवहन, जल- व युत , बाढ़ नयं ण आ द मु ख ह। जल संसाधन के
बहु े यीय उपयोग क ि ट से चीन क ा ड केनाल (1990 कमी. ल बी) मु ख है।
भारत म दामोदरन घाट योजना उ लेखनीय है।

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6. जल व युत म उपयोग : जल से व भ न प म शि त उ पादन कया जा रहा है।
व व क कु ल जल व युत मता का लगभग 41.4 तशत भाग अ का महा ीप
म पाया जाता है; ले कन यहाँ व व उ पादन का 1 तशत भाग ह उ पा दत कया
जाता है। ए शया म व व के कु ल व युत शि त क संभावना का 21.4 तशत,
द णी अमे रका म 86 तशत है। वक सत दे श म कु ल उ पा दत जल व युत का
82 तशत उ पादन होता है अत: उ पा दत एंव संभा य मता म भार अ तर पाया
जाता है।
जब जल के वाभा वक गुण म प रवतन हो जाता है, तथा इसका कु भाव सजीव के
वा य पर पड़ता है तो उस जल को दू षत जल कहते ह। जल का दूषण भौ तक और
मानवीय ोत से होता है, ले कन मानवीय कारक अ धक भावशाल होते ह। मानवीय
कारक म न न ल खत मु य है :
1. नगर का गंदा जल और मलमू ,
2. कल कारखान क या य साम ी,
3. र डयोधम अप श ट,
4. क टनाशक एवं रासाय नक उवरक,
5. जैवीय साम ी,
6. जलयान के रसाव से नकला पे ो लयम,
व व म जल दूषण का े ीय व प इं गत करता है क अ धक औ यो गक एवं अ धक
नगर कृ त े म अ धक जल दूषण जाया जाता है। इस ि टकोण से यूरोप , उ तर
अमे रका और जापान अ णी दे श ह जहाँ जल दूषण सवा धक पाया जाता है। वकासशील
दे श म जल दूषण क घटना आरि भक अव था म है। अ वक सत दे श इससे मु त ह।
भारत अपने जल को तेजी से दू षत कर रहा है।

13.5.1 जल संसाधन हास को रोकने के समाधान

ादे शक तथा व व तर पर सभी दे श को व छ जल क मा ा को संर त करने क


आव यकता है। इसके लए व भ न भौगो लक अवि थ तय तथा प रि थ तय म उपयु त
व ध अपनाकर जल संर ण दान करना चा हए। जल संसाधन के हास को रोकने के
न न ल खत उपाय कये जा सकते है:
1. जल क दूषण से सु र ा : पृ वी पर उपल ध स पूण जलरा श को दूषण से मु त
रखा जाना चा हए। इसके लए े ीय एवं व व तर पर उपाय कए जाने चा हए।
दू षत जल को साफ करने के बाद ह इनम मलने दे ना चा हए।
2. जल का संर ण : वषा से ा त जल, जो न दय म बह जाता है, जलाशय का
नमाण करके सं हत कया जा सकता है, िजसम कृ ष, उ योग , नगर आ द को
जल क पू त क जा सके।

269
3. भू मगत जल का ववेकपूण उपयोग : भू-जल क उपल ध मा ा ि थर सी है, पर तु
इसक माँग नर तर बढ़ती जा रह है िजसम भू जल क मा ा कम होती जा रह है।
भू जल का दोहन एक बार होने के उपरा त पुन : पू त काफ ल बे समय म हो पाती
है। अत: भू जल का ववेकपूण उपयोग करना चा हए।
4. जनसं या नयं ण : जनसं या म ती वृ तथा जल संसाधन म ादे शक प म
मा ा मक एंव गुणा मक कमी आने से जल संकट ने उ प ले लया है। जनसं या
वृ के साथ ह कृ ष एवं उ योग का व तार तथा नगर करण बढ़ा है, िजसम
व छ जल क माँग भी बढ़ है। अत: जनसं या नयं ण के वारा भी जल क माँग
को नयं त कया जा सकता है।
5. संचाई क उ नत व धय का योग : संचाई क उ नत व धयाँ अपनाकर जल के
बड़े भाग को बचाया जा सकता है। फ वारा (Sprinkler) तथा बूँद-बूँद संचाई प त
से जल क 50 तशत बचत होती है। इस कार संचाई म, जहाँ जल का सवा धक
उपयोग होता है, संर ण के लए फसल त प के अनुसार उ नत संचाई प तयाँ
अपनाई जानी चा हए।
6. वनावरण म वृ : वगत वष म ती ग त से कए गए वनो मू लन के कारण वषा
जल का अ धकांश भाग बना भू मगत हु ए सागर म मल रहा है। फल व प वषा
जल ती ता से वा हत होकर न दय म मल जाता है। ऐसा ह उ तरांचल के दे हरादून
े म भी हो रहा है। वृ ारोपण से जल का रसाव बढ़ता है िजससे भू जल का तर
बना रहता है। बाढ़ जैसी सम याएं भी कम होती ह।
7. कृ ष त प म प रवतन : जलवायु के अनुसार फसल बोने पर अ त र त जल क
आव यकता नह ं होती है ले कन वकास के वतमान दौर म अ धक लाभकार फसल
ने थान पाया है। इन यापा रक फसल को अ धक जल क आव यकता होती है।
अत: कृ ष जलवायु दशाओं के अनुकू ल फसल त प अपनाया जाना चा हए।
8. बाढ़ ब धन : व व म बाढ़ के प म व छ जल का बड़ा भाग उपयोग म न
आकर वनाशक बन जाता है। तटब ध व नहर का नमाण करके बाढ़ के नुकसान से
बचाव के साथ-साथ जल के बाढ़ भाग को संर त कया जा सकता है। भारत म इस
ि ट से गंगा, यमु ना, महानद , दामोदर, कोसी आ द के अपवाह त को बाढ़
ब धन के अ तगत लेकर बाढ़ से सु र ा दान क गई है।
9. उ योग म जल बचत : उ योग से जल दूषण को बचाने के साथ ह अप श ट जल
क शु करके पुन : उपयोग कया जाना चा हए।
10. शहर अप श ट जल का पुन : उपयोग : अनेक दे श म शहर जल को उपचा रत करके
शहर के नकटवत खेत म सि जय तथा फल उगाने म कया जाता है। जल संर ण
के साथ ह व भ न आव यकताओं क पू त भी होती है।
बोध न-2
1. ' मृ दा ास' से आप या समझते ह ?

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............................................................................................
................................................................. ...........................
2. मृ दा सं साधन ास को रोकने के मु य उपाय कौनसे ह ?
............................................................................................
.................................................................................. ..........
3. जल का सवा धक उपयोग कसके होता है ?
..................................... .......................................................
............................................................................. ...............
4. फ वारा तथा बूँद -बूँद संचाई प त से कतने तशत जल क बचत होती
है ?
............................................................................................
................................................................ ............................

13.6 वन संसाधन : उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान


वृ एवं झा ड़य से आवृ त बड़े भू-भाग को वन कहते ह। व व म 31 तशत भू-भाग
पर वन का व तार है। इसम अ य धक व वधता मलती है। पृ वी पर पाये जाने वाले
कु ल वन े के तशत क ि ट से द णी अमे रका थम है। इसके उपरा त उ तर
एवं म य अमे रका अ का तथा ए शया का थान है। यू रोप तथा ओसी नया म स पूण
व व के केवल 4 तशत वन े ह। दे श तर पर पापुआ यू गनी व व का सवा धक
वनावा रत दे श है। भारत म व व के 1.7 तशत वन ह।
वन एक अमू य संसाधन है। इसक मह ता को दे खते हु ए इसको 'हरा सोना' कहते है।
पर तु सं कृ त का सबसे अ धक कहर वन पर ह हु आ है। पछल तीन शताि दय से
मानव ने वन का ऐसा वनाश कया है क उसक पू त नह ं हो सकती। वतमान समय म
भी इस संसाधन का तेजी से उपयोग कया जा रहा है।
वन स पदा को त पहु ँ चाने वाले मु ख कारण न न ल खत है : -
1. कृ ष हे तु वनो मू लन कया जाना।
2. बढ़ती जनसं या एंव घटते चारागाह क ि थ त म वन े को साफ करके चारागाह
म पा त रत कया जाना।
3. औ योगीकरण, नगर करण तथा आवासीय आव यकताओं के लए वन को न ट कया
जाना।
4. घरे लू एवं यापा रक उपयोग हे तु वन का वनाश कया जाना।
5. ख नज खनन तथा अ य प रयोजनाओं के कारण वन वनाश कया जाना।
6. वनाि न वारा वन वनाश कया जाना।
7. जै वक कारक , जैसे पशुचरण वारा वन वनाश कया जाना।
वन जलवायु स तु लन के मु ख कारक माने जाते ह। वन वनाश का भाव स पूण
पा रि थ तक त पर पड़ता है। वन वनाश के न न ल खत दु भाव ह :
271
1. वन वनाश का जलवायु पर तकूल भाव पड़ता है। इनम ताप बढ़ना तथा वषा
घटना मु य ह।
2. वनो मू लन के कारण बाढ़ क आवृि त बहु त बढ़ गई है।
3. वन वनाश के कारण मृदा अपरदन म वृ हो रह है।
4. वनो मू लन के कारण जैव व वधता का ास हो रहा है।
उपयु त भाव के अ त र त वन वनाश के कारण भू म संसाधन भी वकृ त हो रह है।
म थल करण क या तेज हो रह है। कृ त म काबन-डाई-आ साइड मा ा बढ रह है।
िजससे व व तापमान म वृ हो रह है इससे अनेक सम याएं ने ज म ले रह ह।

13.6.1 वन संसाधन ास को रोकने के उपाय

वन के मह व को दे खते हु ए वन के दु पयोग तथा त से बचाने के लए इसका संर ण


एक ाथ मक आव यकता है। सामा यत: वन के संर ण के लए न न ल खत उपाय
अपनाये जा सकते ह :
1. मनु य के ववेकपूण उपयोग वारा वन का दोहन उसी सीमा तक कया जाए िजस
सीमा तक उनका पुनवृ हो सके।
2. वन क आग से सु र ा क जानी चा हए।
3. मनु य के अ त र त वन का अनेक हा नकारक क ट न ट करते ह। इन क ट का
जै वक नयं ण व धय से न ट कया जाना चा हए।
4. चयना मक कटाई क जानी चा हए। उ ह ं वृ क कटाई क जाए िजनक वा तव म
मांग हो। स पूण वृ को काटने के बजाय उसक शाखाएँ काट जाए ता क
ु न , वकृ त नह ।
पा रि थ तक संतल
5. धन के लए वन को न ट नह ं कया जाए वरन अ य वैकि पक ोत उपल ध
कया जाए।
6. घरे लू उपयोग हे तु इमारती लकड़ी के थान पर कु छ वैकि पक ोत उपल ध कराए
गए।
7. पुन : वनीकरण को यवि थत व ध से वक सत कया जाए।
8. पा रि थ तक के अनुकूल दशाओं वाले वृ का रोपण कया जाए।
9. सामािजक वा नक व कृ ष वा नक जैसी योजनाओं को ो सा हत कया जाए।
10. वन के लाभ एवं हा नय के बारे म जन चेतना फैलाई जाए।
11. वन संर ण से स बि धत नयम का कठोरता से पालन कया जाए।
उ त उपाय के साथ ह योजनाओं के या वयन करते समय वन संसाधन के मह व को
यान म रख जाए तथा चपको आ दोलन, नमदा बचाओं आ दोलन, तथा राज थान के
जोधपुर िजले क अमृतादे वी वारा चलाये गए संर णा मक आ दोलन को भी जन
समथन मलना चा हए।

272
13.7 ख नज संसाधन उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं
समाधान
सामा य श द म वे सभी पदाथ जो पृ वी के धरातल अथवा उसके गभ से खनन वारा
ा त कए जाते ह, ख नज पदाथ कहलाते ह। आधु नक युग म ख नज संसाधन का मह व
बहु त अ धक है। आज कसी भी दे श क एवं आ थक वकास का तर ख नज के उपयोग
क मा ा से आँका जाता है। कृ ष, उ योग, प रवहन एवं संचार आ द सभी का वकास
ख नज स पि त पर आधा रत है। इसके अ त र त औष ध नमाण, मनोरं जन, सौ दय
साधन और श ा आ द े म भी य एवं परो प म ख नज का योग कया
जाता है।
खनन उ योग को एक लु टेर अथ यव था क सं ा द जाती है। ख नज संसाधन
अनवीकरणीय संसाधन ह, अथात ् एक बार योग कए जाने के बाद सदै व के लए समा त
हो जाते ह। औ यो गक वकास के ख नज क मांग बढ़ रह है। ख नज का िजतना
अ धक दोहन बीसवीं सद म हु आ, उतना प हले कभी नह ं हु आ।
खनन या के कारण अनेक पयावरणीय सम याएँ भी उ प न हो रह है :
1. जैव व वधता का न ट होना।
2. वन वनाश होना।
3. थल प के व प म प रवतन कया जाना।
4. भू ग भक जल का ास होता जाना।
5. े वशेष के अपवाह-त का भा वत करना।
6. पयावरण दूषण वशेषकर भू म- दूषण को बढ़ावा दे ना।
7. खनन-अप श ट का अ नयं त ग त से बढना।

13.7.1 ख नज संसाधन ास को रोकने के समाधान

ख नज क नर तर ाि त व पू त के लए ख नज का भ डार चा हए। इस भ डार का


संर ण आव यक है िजससे आधु नक ग तशील स यता एक ल बे काल तक चलती रहे ।
ख नज संसाधन संर ण हे तु न न ल खत उपाय अपे त है :
1. नये-नये ख नज े का पता लगाकर इन न ेप से उ पादन कया जाना चा हए
िजससे ख नज भ डार पर भार न पड़े।
2. ख नज के अनु पादक योग को रोका जाना चा हए जो खनन या म ख नज क
उपे ा के कारण होता है।
3. व वध ख नज के अ वेषण वारा नए पदाथ क ाि त संर ण के लए मह वपूण
कदम है। तांबा, सीसा, ज ता, पे ो लयम और ाकृ तक गैस से ग धक तथा यूरे नयम
से बैने डयम आ द नए पदाथ ा त हु ए ह।

273
4. कम मू य या कम मांग क ि थ तय म शेष पदाथ का सं ह संर ण क ि ट से
मह वपूण है, य क उनको तकनीक वकास वारा योग म लाया जा सकता है।
5. उ ख नत ख नज अय क से अ धका धक धातु ाि त के यास कए जाने चा हए।
6. न न को ट के ख नज उपयोग क तकनीक वक सत क जानी चा हए।
7. ख नज का बहु े यीय योग कया जाना चा हए ता क उन ख नज से अ धकतम
उपयो गता ा त क जा सके।
8. िजन ख नज का भ डार सी मत ह, उनके वक प पदाथ क खोज क जानी चा हए।
9. ख नज संसाधन क त को रोकने के उपाय कए जाने चा हए।
बोध न-3
1. ' वन ' कसे कहते ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. व व म कतने तशत भू - भाग पर वन ह ?
............................................................................................
................................................................. ...........................
3. ' ख नज ' कसे कहते ह ?
............................................................................................
............................................................................................
4. ' एक लु टे र अथ यव था' कसे कहा जाता है ?
............................................................................................
................................................................................ ............

13.8 सारांश (Summary)


संसाधन, पयावरण और मानव कृ त के अ भ न अंग होने के साथ एक-दूसरे से
अ तस बि धत ह। कृ त के जै वक और अजै वक घटक के समु चय को पयावरण कहा
जाता है। इ ह ं घटक के य और अ य त व और शि तय को संसाधन कहा जाता है
िजनम मानव क आव यकताओं क पू त क मता होती है। मनु य क आव यकताएँ
अन त ह, जब क संसाधन सी मत ह। आ थक वकास के नाम पर कृ त के संसाधन के
दोहन ने रा सी प ले लया है। प रणामत: मानव और कृ त के स ब ध बगड़ने के
कारण ह पयावरण स ब धी अनेक सम याएँ कट होने लगी ह। इनम कृ ष, मृदा , जल,
वन तथा ख नज समाधान के उपयोग, पयावरणीय सम याओं एवं उनके समाधान का
अ ययन इस अ याय म कया गया। संसार म त वष 50 से 70 लाख हे टे यर खेतीहर
जमीन का ास हो रहा है। पोषक त व म कमी और खेती हर रसायन का अ त-उपयोग
इस हास का मु ख कारण ह। जब मृदा क गुणव ता घटने लगती है तो उसे मृदा ास
कहते ह। यह मृदा ास म ी के कटाव, अ धक उपयोग से पोषक त व क कमी,

274
तापमान क घट-बढ़, जीवांश का असंतु लत अनुपात और दूषक के म ण से उ प न
होता है। मृदा ास क रोकने के उपाय म क टनाशक के योग पर नयं ण, रासाय नक
उवरक का संतु लत उपयोग, नगर य दू षत जल, कू ड़ा और रसायन का शु करण के
बाद न पादन, जल जमाव क रोकथाम और भू म का संतु लत उपयोग वशेष मह वपूण
है। जल का सवा धक उपयोग संचाई म कया जाता है, जब क वतीय थान औ यो गक
उपयोग का है। घरे लू व अ य उपयोग म केवल 7 तशत जल का ह उपयोग कया
जाता है। जल के वाभा वक गुण म प रवतन हो जाता है, िजसका कु भाव जीव के
वा य पर पड़ता है तो उस जल को दू षत जल कहते ह। जल संसाधन ास को रोकने
के उपाय म जल क दूषण से सुर ा, जल का संर ण, भू मगत जल का ववेकपूण
उपयोग, जनसं या नयं ण, संचाई क उ नत व धय का योग, वनीकरण म वृ , कृ ष
त प म प रवतन, बाढ़ ब धन, उ योग म जल बचत, शहर अप श ट जल का पुन :
उपयोग आ द मु ख ह।
वृ एंव झा ड़य से आवृ त बड़े भू-भाग को वन कहते ह। वन एक अमू य संसाधन है।
इसे 'हरा सोना' भी कहते ह। वन वनाश के कारण जलवायु पर तकूल भाव, बाढ़ क
पुनरावृ त , तापमान म वृ , मृदा अपरदन म वृ , जैव व वधता का ास आ द मु ख
दु भाव पड़ते ह।
वे सभी पदाथ जो पृ वी के धरातल अथवा उसके गभ से खनन वारा ा त कए जाते ह
ख नज पदाथ कहलाते ह। खनन उ योग को एक लु टेर अथ यव था क सं ा द जाती है।
ख नज अनवीकरणीय संसाधन ह। खनन के कारण जैव व वधता का न ट होना, वन
वनाश, थल प के व प म प रवतन, भू ग भक जल का हास, भू म दूषण आ द
पयावरणीय भाव पड़ते है। ख नज संसाधन के ास को रोकने के उपाय कए जाने
चा हए।

13.9 श दावल (Glossary)


 अप श ट : औ यो गक उ पादन के फल व प अथवा मानव के उपयोग के बाद शेष
अनुपयोगी पदाथ।
 चारागाह : पशु चारण हे तु तथा उनके खाने के लए घास इ या द के काम आने वाल
भू म।
 पयावरण : कृ त के जै वक और अजै वक घटक का समु चय।
 औ यो गक ाि त : 18वीं शता द म मशीन आधा रत औ यो गक उ पादन क ती
वृ ।
 नवहनीय कृ ष : ऐसी कृ ष जो भू म, जल तथा पौधा व ाणी पी संसाधन को
सु र त रखते हु ए आ थक, यावहा रक और सामािजक ि ट से वीकाय हो।
 पयावरण ास : पयावरण क गुणव ता म कमी आना।

275
 समि वत फसल ब ध : कृ ष म अकाब नक खाद और क टनाशक के वक प के
प म जै वक पदाथ का उपयोग करने को कहते ह।
 जैव व वधता : कसी दे श म पाए जाने वाले व वध कार के जीव-ज तु ओं और
पादप क सं या।
 मृदा ास : मृदा क गुणव ता का घटना
 शु क कृ ष : 50 से मी. वा षक वषा वाले े म बना संचाई के क जाने वाल
कृ ष।

13.10 संदभ थ (Reference Books)


1. मोह मद हा न : आ थक भू गोल के मू ल त व, वसु धरा काशन, गोरखपुर, 2007
2. इराक भ चा : पयावरण अ ययन, ओ रयंट लॉ मेन ाइवेट ल मटे ड, नई द ल,
2006
3. गुजर एवं जार : मानव एंव आ थक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2007
4. एल. सी. अ वाल : जैव भू गोल, रो हणी बु स, जयपुर, 2002
5. एस. डी. कौ शक एवं अलका गौतम : संसाधन भू गोल, र तोगी पि लकेश स, मेरठ,
2007

13.10 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. कृ त के जै वक और अजै वक घटक के समु चय को पयावरण कहते ह।
2. ऐसी कृ ष जो भू म, जल तथा पौधा और ाणी पी संसाधन को सु र त रखे तथा
आ थक यावहा रक और सामािजक ि ट से वीकाय हो।
3. कृ ष म अकाब नक वाद और क टनाशक के वक प का उपयोग करने को
समि वत फसल ब ध कहते ह।
4. लगभग 50 से 70 लाख हे टे यर।
बोध न- 2
1. मृदा क गुणव ता घटने को मृदा ास कहते ह।
2. क टनाशक के योग पर नयं ण, रसाय नक उवरक का संतु लत उपयोग, नगर य
दू षत जल, कू ड़ा और रसायन का शु करण के बाद न पादन आ द मह वपूण ह।
3. संचाई काय म।
4. 50 तशत जल क ।
बोध न- 3
1. वृ एवं झा डय से अवत रत बड़े भू-भाग को वन कहते है।
2. 31 तशत।

276
3. वे सभी पदाथ जो पृ वी के धरातल अथवा गभ से खनने वारा ा त कए जाते ह,
ख नज कहलाते ह।
4. खनन उ योग को।

13.11 अ यासाथ न
1. संसाधन उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं समाधान क संक पना को समझाइए।
2. कृ ष संसाधन के उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान क ववेचना
क िजए।
3. मृदा एवं जल संसाधन के उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान का
व तृत ववेचन क िजए।
4. वन एवं ख नज संसाधन के उपयोग, पयावरणीय सम याएँ एवं उनके समाधान पर
एक नब ध ल खए।

277
इकाई 14 : संसाधन उपयोग : प रवहन एवं यापार
(Resource Utilization : Transport
and Trade)
इकाई क परे खा
14.0 उ े य
14.1 तावना
14.2 प रवहन
14.2.1 प रवहन का मह व व वकास
14.2.2 प रवहन आधार
14.2.3 प रवहन के कार
14.2.3.1 सड़क प रवहन
14.2.3.2 रे ल प रवहन
14.2.3.3 आ त रक जल प रवहन
14.2.3.4 सामु क प रवहन
14.2.3.5 वायु प रवहन
14.3 अ तरा य यापार
14.3.1 यापार को भा वत करने वाले कारक एवं दशाएं
14.3.2 मु ख यापा रक संघ
14.3.3 यापार क संरचना
14.3.4 यापार क वाह दशा
14.4 सारांश
14.5 श दावल
14.6 स दभ थ
14.7 बोध न के उ तर
14.8 अ यासाथ न

14.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे : -
 प रवहन का कसी दे श के आ थक वकास के लए मह व,
 प रवहन के वकास के आधार
 प रवहन के कार क जानकार
 वभ न कार के प रवहन के बारे म जानकार
 अ तरा य यापार क संरचना तथा मह व

278
 अ तरा य यापार के वाह क दशा
 व व के मु ख यापा रक संघ क जानकार

14.1 तावना (Introduction)


ाचीन काल से ह प रवहन एवं यापार का मानवीय स यता के वकास म म मह वपूण
योगदान रहा है। ाचीनकाल म जीवन नवाह के संसाधन क खोज म आखेट, भू मय ,
चरागाह , कृ ष भू म, ख नज आ द क तलाश म मानव समू ह घूमते रहते थे। इसके बाद
थायी बि तय क थापना हो जाने के उपरा त कृ ष, लघु उ योग व नमाण के का
वकास हु आ। इसके फल व प कसी े म आव यकता पू त से अ धक (Surplus) मा ा
म खा य व तु ओं का उ पादन होने लगा, कसी म कपास या अ न का उ पादन, कसी म
धातु व औजार बनने लगे, कसी म व अ धक बुने जाने लगे। इस कार व भ न े
म उ प न हु ई व तु ओं का यापार आर भ हु आ।
संसार के अलग- 2 े म (i) संसाधन क खोज म, (ii) व तु ओं के यापार के लए,
(iii) दूसरे दे श के वषय म िज ासा क पू त के लए तथा (iv) आ मण के लए
या ाय होने लगीं। ये या ाय पहले थल पर आर भ हु ई, बाद म न दय म नाव वारा
तथा समु तट के सहारे -सहारे ार भ हु ई। आधु नक युग म व ान और तकनीक
वकास के कारण प रवहन व यापार म मह वपूण प रवतन हु आ है। व ान ने प रवहन
े और यापार म ाि तकार प रवतन कये। प रवहन के आधु नक साधन वारा
स पूण संसार सकु ड़कर रह गया है।

14.2 प रवहन (Transport)


14.2.1 प रवहन का मह व एवं वकास

कसी दे श या थान के आ थक वकास के लए प रवहन के साधन आव यक होते ह।


प रवहन के साधन दूर थ थान को जोड़ते ह। प रवहन के साधन का वकास कये बना
दे श के ाकृ तक संसाधन का पूणत: दोहन नह ं कया जा सकता। संसार म सभी दे श के
नवासी यापा रक व तु ओं (Commodities) के व नमय पर पहले क अपे ा वतमान म
यादा नभर रहते ह। य द प रवहन के साधन नह ं ह तो क चे माल तथा तैयार माल
का माँग के े तक पहु ँ चना अ य त क ठन होता। प रवहन के अभाव म कसी दे श
क औ यो गक मता को पूण उपयोग नह ं हो पाता है। प रवहन के साधन कसी दे श क
रा य आपदा (बाढ़, भू क प, अकाल) या यु काल म भी मह वपूण भू मका नभाते ह।
इस कार प रवहन सु वधाओं क उपल धता के अनुसार ह कसी दे श क औ यो गक
तथा यापा रक कृ त पर नभर करती है। येक उ पादन दे श का स ब ध अ य सभी
दे श से घ न ठ होता जा रहा है, य क येक दे श का अ य सभी दे श से आपू त
पर नभरता बढ़ती जा रह है। इस कार वभ न दे श क आ थक अ यो या ता
अ धका धक ज टल होती जा रह है। प रवहन के उपल ध साधन प रसंचरण त प को

279
भा वत करते ह। प रसंचरण (circulation) के अ तगत प रवहन तथा संचार दोन
सि म लत होते ह। व तु ओं या यि तय के एक थान से दूसरे थान पर आवागमन को
प रवहन (Transport) कहते ह तथा संदेश, वचार आ द के आदान- दान को संचार कहते
ह।
वगत दो सौ वष म प रवहन के साधन का वकास बहु त ती ग त से हु आ है। 18वीं
शता द म सड़क का तथा जल प रवहन के लए नहर का वकास हु आ। उ नीसवीं
शता द म रे लगा ड़य तथा भाप से चलने वाले जल पोत का वकास हु आ। बीसवीं
शता द म मोटर प रवहन व वायुयान का वकास हु आ। 19वीं शता द म जहाँ व भ न
शहर क या ा करने म मह न लग जाते थे वह ं आज कु छ घ ट या दन म यह पूण
कर ल जाती है। इस कार प रवहन के वकास वारा पृ वी पर ल बी-ल बी दूर पर
ि थत े भी अब समीप थ हो गये ह।

14.2.2 प रवहन के आधार

प रवहन का व प वभ न दे श के आ थक स ब ध को य त कया जाता है। क ह ं


दो दे श के म य प रवहन स ब ध था पत होने के लए तीन त व का होना आव यक
होता है :-
(i) प रपूरकता (Complementary) : दो दे श के बीच प रवहन क आव यकता
तभी होती है जब कसी व तु के लए एक दे श म माँग हो तथा दूसरे दे श म
इस माँग क पू त के लए व तु वशेष क अ धकता हो। इस कार क ि थ त
वभ न दे श क ाकृ तक एवं मानवीय व भ नता के कारण उ प न होती है।
(ii) म यवत आपू त का अभाव (Lack of Intervening Opportunity) : प रवहन
के लए दो े के बीच व श ट प रपूरकता के अ त र त म यवत आपू त ोत
का अभाव होना आव यक होता है। य द कसी दे श म कसी व तु वशेष क
आव यकता है तथा इसक पू त अनेक थान से हो सकती है तो ऐसी ि थ त म
वह दे श कसी भी आपू त े से अपनी माँग क पू त कर सकता है। य द
म यवत ोत का अभाव होता है तो उनके बीच प रवहन क आव यकता पड़ती
है।
(iii) व नमयता (Transferability) : प रपूरकता तथा म यवत आपू त ोत का
अभाव होने पर भी दो दे श के म य प रवहन स ब ध था पत नह ं हो सकते
जब तक उनम व नमयता नह ं हो। व नमयता का अथ है क एक दे श दूसरे
दे श से व तु वशेष मंगाने म समथ हो। इसके लए यह आव यक है क उस
व तु के प रवहन म उतना ह प रवहन लागत तथा समय लगे जो आ थक
ि टकोण से लाभदायक हो। अ धक दूर तथा अ धक समय लगने पर व तु का
प रवहन नह ं हो सकता।

280
14.2.3 प रवहन के कार (Means of Transport)

पृ वी पर व भ न भाग म भौगो लक प रि थ त, थल क रचना, आ थक साधन क


उपल धता तथा तकनीक तर के आधार पर भ न- भ न प रवहन के साधन योग कये
जाते ह। ाचीन काल म यह काय पूणत: पशु ओं वारा कया जाता था। बाद म घोड़ा
गाड़ी, बैलगाड़ी एवं ऊँट गा ड़य वारा कया जाने लगा। आज भी ारि भक
अथ यव थाओं म भौगो लक प रि थ त के अनुसार पर परागत प रवहन साधन का योग
होता है। वन म लकड़ी ढोने के लए हाथी का योग होता है। म थल म ऊँट तथा
पवतीय े म ख चर-ट ू आज भी प रवहन का मह वपूण साधन ह। वतमान म
प रवहन ती गामी हो गया है। वतमान प रवहन साधन म जलयान, मोटरगा ड़याँ, रे ल
तथा वायुयान मु ख ह। प रवहन के वतमान साधन को न न ल खत पाँच मु ख वग म
वभािजत कया जा सकता है : -
1. थल य प रवहन
2. जल य प रवहन
3. वायु प रवहन

14.2.3.1 सड़क प रवहन (Road Transport)

संसार म सड़क माग का योग ाचीन काल से होता रहा है। स यता के ार भ से ह
सड़क का वकास हु आ। ार भ म सड़क क ची होती थी। आधु नक प रवहन के साधन के
प म सड़क का वकास मोटरगाड़ी के आ व कार के बाद हु आ।
सड़क प रवहन का मह व
 सड़क प रवहन वारा या य तथा माल ढोने म सु वधा रहती है।
 यह प रवहन का सबसे सु गम साधन है।
 सड़क गाँव को नगर से जोड़ती ह।
 सड़क रा य एकता म सहायक होती ह। इनसे दुगम थान पर आसानी से पहु ँ चा जा
सकता है।
 सड़क वारा शी न ट होने वाल व तु ओं को उपभोग थान पर भेजना आसान
होता है।
सड़क का वतरण
सड़क व व के सभी दे श म पायी जाती ह। संयु त रा य अमे रका म व व के कु ल
सड़क माग का एक तहाई भाग पाया जाता है। व व म वक सत दे श म सड़क का
घना जाल फैला है। संयु त रा य अमे रका तथा पि चमी यूरोप अ णी रा ह। यहाँ पर
मोटरकार एवं यापा रक गा ड़य क सं या अ धकतम है। भारत का सड़क क ि ट से
व व म दूसरा तथा ए शया म थम थान है। यहाँ पर लगभग 33 लाख कलोमीटर
सड़क ह। वेनेजु एला, कोलि बया, नेपाल, सू डान, बां लादे श, भू टान, माल , रोडो शया आ द
मे मोटरकार तथा यापा रक गा ड़य क सं या कम होने से सड़क क ल बाई कम है।
ता लका - 14.1 : व व के मु ख दे श म सड़क माग ल बाई (लाख कमी.)
281
दे श सड़क दे श सड़क
संयु त रा य अमे रका 63.11 ांस 8.9

भारत 33.00 आ े लया 7.11


ाजील 16.7 इटल 6.54
चीन 15.26 टक 4.10
जापान 11.56 अज ट ना 2.20
कनाडा 9.2 पा क तान 2.20

14.2.3.2 रे ल प रवहन (Railway Transport)

थल प रवहन म रे लवे का मह वपूण थान है। औ यो गक ाि त के फल व प रे ल


प रवहन का उपयोग ार भ हु आ। पहले रे लवे इंिजन कोयले वारा भाप बनाकर चलाया
जाता था। बाद म डीजल इंजन का योग होने लगा। वतमान म बजल से चलने वाले
इंजन का योग होने लगा है।
माल के प रवहन म रे लमाग सवा धक मह वपूण है। रे लमाग का वकास घने आबाद तथा
समृ मैदान म अ धक हु आ है। पवतीय एवं म थल य े ाय: रे ल माग वह न ह।
अ य धक वषा या हमा छादन वाले े म रे ल माग के वकास म क ठनाई होती है।
रे ल माग को भा वत करने वाले कारक
रे ल माग क सघनता न न ल खत कारक वारा भा वत होती है : -
1. लोग के जीवन तर तथा दे श के वै ा नक तर,
2. दे श क ाकृ तक संसाधन के योग करने क मता,
3. दे श / दे श क जनसं या का आकार तथा घन व,
4. धरातल तथा उ चावच,
5. आ थक एवं औ यो गक वकास का तर।
संसार म रे ल माग का वतरण.
माल ढोने वाले प रवहन साधन म रे ल प रवहन का मह वपूण थान है। इनका
महा वीपीय वतरण बहु त वषम है। रे ल माग का वकास घने आबाद तथा समृ मैदान
म अ धक हु आ है। यूरोप तथा संयु त रा य अमे रका म व व के लगभग दो- तहाई रे ल
माग ि थत ह। ए शया म व व का 12% रे ल माग ह। लै टन अमे रका म 12%, अ का
म 5%, तथा आ े लया- यूजीलै ड म 3% ह रे ल माग ह। रे ल माग क ल बाई क ि ट
से संयु त रा य अमे रका, पूव सो वयत संघ , कनाडा, भारत, जमनी, आ े लया, यूनाइटे ड
कं गडम, ाजील, जापान, तथा इटल मह वपूण ह।
ता लका-14.2 : व व के मुख दे श मे रे ल माग क लंबाई (हजार कमी. मे)
दे श ल बाई दे श ल बाई
संयु त रा य अमे रका 370 ाजील 40

282
पूव सो वयत संघ 160 यूनाइटे ड कं गडम 40
कनाडा 75 प० जमनी 35
भारत 70 जापान 30
ांस 45 इटल 25
आ े लया 45 पोलै ड 25
मु ख दे श मे रे लमाग
1. संयु त रा य अमे रका : ल बाई क ि ट से संयु त रा य अमे रका का थम थान
है। यहां पर व व के 26% रे ल माग ि थत ह। दे श का लगभग 4% अ तरा य
यापा रक माल रे ल वारा ढोया जाता है। संयु त रा य अमे रका म अटलां टक तट
से लेकर वशाल मैदान के पूव भाग तक रे ल माग का सघन जाल पाया जाता है।
यह दे श संयु त रा य अमे रका का सबसे घना आबाद दे श है। पि चमी संयु त
रा य अमे रका म रे ल माग बहु त कम है, य क वहाँ जनसं या कम है।
संयु त रा य अमे रका म अ धकांश रे ल माग रे खीय त प (Linear Pattern) म
पाये जाते ह। यहाँ पर पहले रे ल माग बने तथा बाद म इन माग के सहारे -सहारे
बि तयाँ था पत क गई। भार रे ल यातायात पाँच े म पाया जाता है -
(i) ल वलै ड, प सबग, फलाडेल फया से यूयाक तक
(ii) पि चमी वज नया, के टु क के कोयला े से टोलेडो और नोफ क को
जाने वाला रे ल माग
(iii) बफैलो से यूयाक तक
(iv) बफैलो से ै टन होकर फलाडेल फया तक, एवं
(v) शकागो जाने वाले अनेक रे ल माग।
शकागो व व का वृह तम रे लवे जं शन है, िजसम 21 ं क लाइन ह।
संयु त रा य अमे रका म अटलां टक तथा शा त महासागर य तट के बीच तीन मु ख
ास महा वीपीय रे ल माग ह (मान च - 14.1)।

मान च - 14.1 : उ तर अमे रका के महा वीप-पार रे ल-माग


(i) उ तर ांस महा वीपीय रे ल माग : यह शा त महासागर तट पर सीएटल
नगर से चलकर पोटलै ड, म नआपो लस, से टपाल, यूलु थ, मलवाक ,
शकागो होता हु आ यूयाक तक जाता है।
283
(ii) म य ांस महा वीपीय रे ल माग : यह रे ल माग शा त महासागर तट पर
सेन ां ससको को एटलां टक तट पर यूयाक से जोड़ता है। सा टलेक सट ,
ओमाहा, शकागो, प सबग, फलाडेल फया इस माग पर मु ख टे शन ह।
(iii) द ण ांस महा वीपीय रे ल माग : यह रे ल माग लॉस एि जल स से चलकर
अलबुकक आता है, जहाँ यह दो शाखाओं म वभािजत हो जाता है। इसक
उ तर शाखा व चता, क सास सट तथा शकागो होते हु ए यूयाक तक
जाती है। इसक द णी शाखा अलपासो, हयू टन तथा गेलवे टन होकर
यूऑ लय स तक जाती है।
2. कनाडा के रे लमाग : केवल द ण कनाडा म ह रे ल माग का वकास हो पाया है।
ाय: सम त जनसं या का बसाव भी इसी े म है। कनाडा म दो मु ख ास
महा वीपीय रे लमाग ि थत ह-
(i) केने डयन पै स फक रे लवे – यह माग हे लफे स से माि यल और व नपेग
होता हु आ वकू वर तक जाता है।
(ii) केने डयन नेशनल रे लवे : - एटलां टक से पै स फक तक जाता है। इस माग
पर ं ,
स पट, च चल, मू सोनी, मु ख टे शन ह।
3. यूरोप के रे ल माग - यूरोप म रे ल माग का सघन जाल है। यहाँ रे ल माग क
सघनता उ तर सागर के समीपवत दे श म अ धक है। यूरोप म ल दन, पे रस, बोन,
ू स , ब लन,
स यु रख, वयना, ाग, वारसा, मलान और मे ड मु ख रे ल माग के
के ह, जहाँ व भ न दशाओं से आने वाले रे ल माग का संगम होता है।
यूरोप के मु ख रे ल माग न न है : -
(i) ल दन पे रस-बोन-ब लन-वारसा-मा को रे ल माग।
(ii) पे रस- ाग- े काऊ-लवोव-क व रे ल माग।
(iii) साउथे पटन-ल हे वर-पे रस- वयना-बुदापे ट-बुकारे ट- कि नव माग।
(iv) पे रस- मलान-रोम-रे पु स माग।
(v) टॉकहोम-हे बग-बोन-बेसेल- मलान माग।
(vi) वारसा- वयना- यू नख - यू रख-बास लोना-मै ड माग।
(vii) ब लन-कोलोन-पे रस-मै ड माग।
(viii) दा सक-ब लन- यू नख , इ ज क
ु - मलान-रोम।
(ix) ए सटडम-एसेल-कोलोन-बोन- ासबग-बेसेल- मलान-रोम माग।
(x) हे बग-ब लन- ाग- वयना-वेरोना- मलान माग।
4. पूव सो वयत संघ के रे ल माग - पूव सो वयत संघ म अ धक चौड़े (बॉड गेज) रे ल
माग ह। इन रे ल माग वारा भार -भार वजन तथा वृहत ् आकार के माल को ढोया
जाता है। स म रे ल माग का वतरण बहु त ह वषम पाया जाता है। काकेशस दे श
म पया त रे ल माग ह, जब क साइबे रया तथा म य ए शया म ु ववत तथा

284
म थल जलवायु क तकूल दशाओं के कारण रे ल माग का वकास बा धत रहा है।
पूववत सो वयत संघ के मु ख रे ल माग न न ल खत ह
(i) ांस-साइबे रयन रे ल माग : - यह संसार का सबसे ल बा रे ल माग है जो
से ट पी सबग से ार भ होकर ला दवो तक तक 9560 कमी. ल बा है
(मान च - 14.2)।
इस रे ल माग को वष 1945 म दोहरा कया गया। यह रे ल माग पूव को
पि चम से जोड़ता है। इस रे ल माग वारा साइबे रया के वन संसाधन , कृ ष
साधन और ख नज संसाधन का वकास स भव हु आ है तथा ये संसाधन
यरोपीय दे श को भेजे जाते ह तथा बदले म व न मत माल ा त कया
जाता है। इस रे ल माग के मु ख टे शन ले नन ाद, मा को, टू ला,
कजानउफा, चे पा व क, कु रगन, वडलोव क, ओम क, टोम क, इकुट क
तथा ख ोव क ह। इस रे ल माग क अनेक ांच लाइन नमाण कया गया
है, जो यूराल दे श, कु जबास दे श, म यवत साइबे रया तथा सदुर पूव को
लाभाि वत करती है ।

मान च - 14.2 : ा सइबे रयन रे लमाग


(ii) ांस-कैि पयन रे लवे माग : यह काला सागर पर ि थत बातू म से बाकू, मव,
बोखारा, समरक द होती हु ई ताशक द और फरगना जाती है। इस माग क
द ण शाखा अफगान सीमा पर कु क तक जाती है।
(iii) तु कमे नयन-साइबे रयन रे लवे : नोवा स ब क से से मपला त क होती हु ई
ताशक द तक जाती है।
(iv) उ तर पेचोरा माग : यह रे ल माग मा को-उ ता-पेचोरो-वरकु टा के म य
व तृत है। इस रे ल माग वारा उ ता दे श का पे ो लयम तथा पेचोरा बे सन
का कोयला मा को तथा से टपीटसबग को भेजा जाता है।
(v) यूराल के रे ल माग : यूराल दे श के भार औ यो गक माल को ढोने के लए
इस माग का वकास कया गया है। यह माग वडलोव क, चे या ब क,
मेग नतोग क आ द नगर को मा को तथा से टपीटसबग से जोड़ता है।
(vi) से ट पीटसबग रे ल माग : यह रे ल माग मा को तथा बाि टक गणरा य को
लाभाि वत करता है। इसक एक शाखा मु मा क तथा दूसर शाखा वोल दा से
आख जल कु तक तथा अ य शाखा करोव से कोटलास जाती है।
285
(vii) काके शया रे ल माग : इस रे ल माग क ं दो शाखाएँ ह। इसक उ तर शाखा
कैि पयन सागर तट पर मारवचकाला से लेकर ोजनी,आमावीर,तु आ से होकर
द ण शाखा से मलती है। द णी शाखा कैि पयन सागर पट पर ि थत
बाकू से लेकर काला सागर तट पर बाटु क तक जाती है।
5. ए शया के रे ल माग - ए शया म व व के 1504 रे ल माग ि थत ह। जापान म
ए शया का सघनतम रे ल माग ह। ए शया मे रे ल माग के वकास क ि ट से तीन
मु ख दे श भारत, चीन तथा जापान ह।
1. भारत : यहाँ पर व व का चौथा तथा ए शया का बृह तम रे ल माग का जाल है।
भारत म 8770 माल क ढु लाई रे ल माग वारा होती है। भारत म रे ल माग क
सघनता उ तर मैदान म है। द णी पठार म रे ल माग क कम सघनता है।
उ तर तथा उ तर पूव पवतीय दे श म रे ल माग का अभाव है। रे ल माग के
ब धन के लए दे श को नौ रे ल े (Zones) म बाँटा गया है : -
(i) उ तर रे लवे - पंजाब, ह रयाणा, राज थान और उ तर दे श
(ii) उ तर -पूव रे लवे- उ तर दे श का पूव उ तर भाग, उ तर बहार
(iii) पूव रे लवे - बहार तथा बंगाल
(iv) पूव तर सीमांत रे लवे- उ तर बंगाल, मेघालय असम, नागालै ड, मणीपुर ,
मेघालय
(v) पि चम रे लवे - राज थान, गुजरात, म य दे श, महारा का प.भाग
(vi) म य रे लवे - म य दे श का म य भाग तथा महारा का पूव भाग
(vii) द णी-पूव रे लवे- पूव म य दे श तथा उड़ीसा
(viii) द णी-म य रे लवे - महारा का द णी पूव भाग व आ दे श
(ix) द णी रे लवे - कनाटक, त मलनाडु और केरल
2. जापान : जापान म ए शया का सघनतम रे ल माग पाया जाता है। यहाँ पर रे ल
का व युतीकरण हो गया है। रे ल के मु य के टो कयो, याकोहामा, ओसाका,
कोबे, नागोया, हरो शमा आ द ह। यहाँ पर रे ल माग उनके पृ ठ दे श म फैले
हु ए ह।
3. चीन : - चीन के अ धकांश रे ल माग पूव भाग म संकेि त ह जो उ तर-द ण
दशा म व तृत ह। उ तर तथा पि चमी भाग म रे ल माग का अभाव है।
बोध न -1
1. दो दे श के म य प रवहन स ब ध था पत होने के लए आव यक त व
बताइये ।
............................................................ ..........................
..................................................... .................................
2. पर परागत प रवहन साधन के नाम ल खए।
............................................................ ..........................

286
........................................................ ..............................
3. आधु नक प रवहन साधन के नाम ल खए।
.............................................................................................
........................................................... ............................
4. व व म सड़क क ल बाई सबसे अ धक कस दे श म पाई जाती है ?
............................................................ ............................
........................................................ ................................
5. सं यु त रा य अमे रका म रे ल माग का त प या है ?
............................................................ ............................
........................................................................................
6. उ तर कनाडा म रे ल मागा के वकास म मु ख सम याएँ या ह ?
........................................................... .............................
........................................................................................

14.2.3.3 आ त रक जल प रवहन (Inland Water transport)

आ त रक जल प रवहन माग थल य भाग म ि थत न दय तथा झील से होकर जाते


ह। इन माग के लए पया त जल क मा ा वाल न दयाँ एवं झील उपयु त होती ह।
व व के िजन भाग म पया त जल वाह वाल बड़ी न दयाँ पायी जाती ह, उनका उपयोग
आ त रक जल प रवहन के लए कया जाता है। आ त रक जलमाग वारा अ धकांशत:
भार क तु कम मू य वाले सामान जैसे - कोयला, लोहा, अय क, पे ो लयम, बॉ साइड,
बालू बजर , का ठ तथा अनाज आ द का प रवहन कया जाता है। यह प रवहन के अ य
साधन क तु लना म स ता होता है।
1. यूरोप के आ त रक जल माग : आ त रक जल प रवहन क ि ट से यूरोप क न दयाँ
तथा उनको जोड़ने वाल नहर व व क सवा धक वक सत ह। यूरोप के उ तर-पि चम
म अटलां टक महासागर और द ण म भू म य सागर म गरने वाल अनेक न दयाँ
मु ख यापा रक माग दान करती है। उ तर मैदान म वायर, सीन, सा े यूज,
राइन, वेजर, ए ब, आडर, व चुला आ द न दयाँ बहती ह, िजनको बीच-बीच म नहर
वारा जोड़ा गया है।
यूरोप म राइन नद को 'यूरोप क जीवन रे खा' कहते ह। यह यूरोप का सबसे
मह वपूण जल माग है। इसम महासागर य जलपोत जमनी के आ त रक भाग तक
आते ह। यह नद जमनी, ांस, ि व जरलै ड, बैि जयम और नीदरलै ड के आयात
नयात का प रवहन करती है। साइन नद को अनेक नहर वारा बीजर, ए ब, ओडर,
सीन, रोन और डै यूब न दय वारा जोड़ा गया है। ए ब नद य य प राइन िजतनी
गहर नह ं है पर तु यह माल के प रवहन म राइन के बाद वतीय थान पर ह

287
डै यूब नद आि या, हंगर , रोमा नया, यूगो ला वया , आ द दे श के बीच माल का
प रवहन करती है।

मान च - 14.3
2. उ तर अमे रका के आ त रक जल माग : उ तर अमे रका म आ त रक प रवहन
काय महान झील -सु पी रयर, म शगन, हयूरन , ईर तथा आ टे रयो झील माग वारा
कया जाता है। महान झील से ट लारे स जल माग 2400 कलोमीटर ल बा
आ त रक जल माग है। इन महान झील के दोन ओर अमे रका के मह वपूण कृ ष,
वन, खनन तथा व नमाण े ि थत है। महान झील वारा दे श का 10% वदे शी
तथा लगभग 10% घरे लू जल य यापार होता है। उनके वारा भार क चा माल, लोहा
अय क, कोयला, लकड़ी, धातु ए,ँ का ठ, आ द का प रवहन होता है। वशाल पोत भार
सामान का प रवहन कम मू य पर करते ह। पतन आधु नक मशीनर तथा अ य
सु वधाओं से स प न है। हडसन-मोहोक नगर वारा ओ टे रयो े को स बि धत
कर दया गया है। इस कार क चे माल व उ पा दत साम ी का प रवहन होता है।
मसी सपी, मसौर , ओ हयो, मोनोगहे ला आ द न दयाँ वष भर ना य रहती ह। इन पर
क चे माल, उ पा दत साम ी, गेहू ँ म का, कपास आ द का प रवहन होता रहता है।
3. पूववत सो वयत संघ के आ त रक जल प रवहन- पूव सो वयत संघ म नीपर, वो गा,
डोने ज, आ द न दयाँ वषभर ना य रहती ह। इन दोन न दय को ले नन दोन-वो गा
केनाल वारा जोड़ा गया है। यह नहर प रवहन के लए बड़े मह व क है।
ओब, य नसी, ल ना, इर तश, आ द न दयाँ उ तर क ओर आक टक सागर म गरती
ह। ये न दयाँ ी म काल म ना य रहती ह, मगर शीतकाल म तापमान कम होने के
कारण हम से जम जाती ह। इन न दय के मु हाने दलदल है, जो प रवहन म बाधक
होते ह। इन पर े टर वारा प रवहन कया जाता है।
4. ए शया के आ त रक जल प रवहन- ए शया के मु ख आ त रक जल माग चीन,
भारत, तथा द णी पूव ए शया के दे श म ि थत ह। ये जल माग उन े के लए
वशेष मह वपूण ह जहां रे ल तथा सड़क का कम वकास हु आ है।
(i) चीन म वांगहो, यांि टसी यांग और सी यांग न दय पर जल पोत तथा नाव के
वारा प रवहन होता है। ये न दयाँ पि चम से पूव क ओर बहती ह।
(ii) भारत म गंगा नद के मु हाने से लेकर इलाहाबाद तक तथा मपु नद के
मु हाने से लेकर ड ग
ू ढ़ तक नौकाओं वारा प रवहन काय कया जाता है। इन

288
न दय वारा प रवहन का काय ाचीन काल से ह कया जाता रहा है। इन
न दय म मु ख प से लकड़ी, चू ना, अय क आ द भार माल का प रवहन
कया जाता है।
(iii) यांमार, थाइलै ड, क बो डया आ द से लकड़ी और वन उ पाद का प रवहन
इरावद , सालवीन, मकाँग आ द न दय वारा कया जाता है।

14.2.3.4 महासागर य प रवहन (Oceanic Transport)

महासागर म जल पोत य य प कसी भी माग से जा सकते ह पर तु अ धकांश यापा रक


जलपोत कु छ प टत: नधा रत माग पर ह चलते ह। यापा रक जलपोत के लए
नधा रत महासागर य जल माग को वृहव वृ त माग (Great Circle Routes) कहते ह।
अ तरा य यापा रक प रवहन के मु य महासागर य माग न न ल खत ह (मान च -
14.4) : -

मान च - 14.4 : व व के मु ख जलमाग


1. उ तर अटलां टक जल माग : यह व व का सबसे य ततम जल माग है। इस
माग से व व के कु ल अ तरा य यापार का लगभग 30 से 40 तशत
आयात - नयात होता है। यह माग उ तर अमे रका के पूव भाग तथा यूरोप के
पि चमी कनारे के दे श को जोड़ता है।
पि चमी यूरोप के मु य बंदरगाह (harbours) ल दन, लवरपूल , हे बग, ीमेन,
बजेन, रोटरडम, ए सटडम, द हे ग, ल हे वर, े ट ना ट ज, ब बाओं, ओपोट ,
रोम, ने प स आ द ह, िजनक वशाल प चभू मयाँ (hinterlands) ह। अटलां टक
के पि चमी कनारे पर उ तर अमे रका पूव तट पर ि थत यूयाक, बो टन,
फलाडेल फया, बा ट मोर, गेलवे टन, चा सटन, यूआ लय स तथा हाउसटन
पोता म तथा कनाडा के हैल फै स एवं वेबेक पोता म है।
2. पि चम यूरोप - भू म य सागर - ह द महासागर माग - यह माग संसार का सबसे
ल बा यापा रक माग है। यह माग अटलां टक महासागर के यूरोपीय तट से भूम य

289
सागर, वेज नहर, लाल सागर, ह द महासागर वारा पि चमी यूरोप, म यपूव,
पूव अ का, द णी पूव तथा पूव ए शया और आ े लया तथा यूजीलै ड को
जोड़ता है। यह जलमाग अटलां टक जलमाग क अपे ा प रमाण क ि ट से कम
मह वपूण है, पर तु सामान क व वधता म यह सबसे मु ख है। इस माग से
ढोये जाने वाले सामान म -सोना, ऊन, सू ती व , क चा रे शम, ह क व युत
मशीनर , कार, चाय, कहवा, चमड़ा, ख नज पदाथ, खा या न, फल, पे ो लयम
आद मु ख होते ह। इस जलमाग के मु ख पोता म - सेनपीटसबग, हे बग,
ए टरडम, राटरडम, साउथे पटन, लवरपूल , ल बन, जेनोआ, नेप स, ओडेसा,
अदन, मु बई, कोल बो, संगापुर , पथ, ए लडेड, सडनी, मो बासा, ज जीबार,
डरबन, हांगकांग आ द ह।
वेज नहर माग यापा रक प रवहन क
ि ट से अ य धक मह व है। यह नहर
भू म य सागर तथा लाल सागर को
जोड़ती है। इस नहर का नमाण काय
च इंजी नयर फ डने ड- ड-लेसे स के
नदशन म ार भ हु आ था। इसका
नमाण काय 10 वष म पूण हु आ।
सन 1869 म इस नहर का उ घाटन
हो गया। म क सरकार ने इसका
रा यकरण वष 1956 म कर दया
था। सन 1967 म संयु त रा संघ
(UNO) ने इस रा यकरण को
सहम त द । इस नहर क ल बाई 162
कमी व चौडाई 60 मीटर तथा गहराई
10 मीटर है।
मान च –14.5 : वेज नहर क ि थ त
वेज नहर के भू म य सागर य तट पर पोट सईद पोता य है (मान च - 14.5)।
इसके द ण म यह नहर म झाला झील को पार करती हु ई अलकतरा,
अल फरदान और इ माइ लया नहर पोता य तक आने के बाद द ण म ि थत
ेट ल टल बटर और बटर झील को पार करती है। लाल सागर के तट पर
नहर के पि चम म वेज प तन तथा पूव म तौ फक प तन ि थत है। वेज नहर
के नमाण से यूरोपीय दे श तथा पूव ए शयाई दे श के म य दू रयाँ बहु त कम हो
गई है।
3. केप जलमाग - इस जल माग वारा पि चमी यूरोप एवं पूव अ का, पि चमी
एवं द णी अ का, आ े लया- यूजीलै ड से स बि धत है। यह माग अ य

290
माग क तु लना से स ता माग है य क इस माग वारा या ा तय करने वाले
पोत को वेज नहर माग का भार कर नह ं चु काना पड़ता, पर तु अपे ाकृ त
अ धक समय लगने के कारण इस माग से कम जहाज चलते ह। इस माग वारा
ताँबा, सीसा, लकड़ी, पे ो लयम, ख नज, चमड़ा, माँस, त बाकू, लोहा, व वध
कार क मशीन, कृ ष उपकरण तथा रासाय नक व तु ओं का प रवहन कया जाता
है। इस जल माग के मु ख पोता य-केपटाउन, पोट ए लजाबेथ, ए डलेड, मेलबोन
तथा सडनी ह।
4. द णी अटलां टक माग: यह जल माग द णी अमे रका के ाजील तथा
अज ट ना को यूरोप एवं उ तर अमे रका के अटलां टक तट य दे श से जोड़ता है।
रयो- ड-जेनेरो से जलयान केपटाउन होते हु ए पूव अ का, ए शया, और
आ े लया के लए भी जाते ह। यूरोप से आने वाले पोत मेडीरा तथा केपबड
वीप के आगे ाजील महान वृ त माग का अनुसरण करते ह। इस माग पर शु
तथा अशु पे ो लयम, का ठ, अखबार कागज, ताबाँ, औ यो गक रसायन आ द
का प रवहन कया जाता है। उ तर क ओर जाने वाले पोत खा य पदाथ, क चा
माल जैसे गेहू ँ म का, चीनी, त बाकू, लोहा अय क तथा अ य ख नज का
प रवहन होता है। यूरोप से आने वाले पोता लोहा- पात, रे लवे उपकरण,
औ यो गक मशीनर , मोटर-कार, क, रसायन आ द सामान का प रवहन करते
ह। इस जल माग के मु ख पोता य - रयो- ड-जेनेरो, सा टोस, मो टे व डयो,
तथा यूनस आयस ह।
5. कै र बयन सागर जल माग : इस माग से पूव संयु त रा य अमे रका, म य
अमे रका, तथा कैर बयन दे श के बीच माल का आदान- दान होता है। कैर बयन
सागर म ि थत वीप समू ह से तथा वेनेजु एला, गायना, सु र नाम आ द दे श से
उ तर अमे रका के पूव तट य ब दरगाह और यूरोप को खा य पदाथ व ख नज
पदाथ का नयात होता है। अमे रका और यूरोप से आयात कये जाने वाले माल
म मु यत: खा य पदाथ, रासाय नक पदाथ, मशीन, कागज, व तथा प रवहन
गा ड़याँ होती ह। इस जल माग के मु ख पोता य यू आ लय स, गेलवेटन,
हयू टन , मा रस वले, पैरोजपाइ ट, कोलोन, कं टन आ द ह।
6. शा त महासागर य माग : शा त महासागर व व के सभी महासागर म
वशालतम महासागर है, पर तु यापा रक प रवहन क ि ट से इसका मह व
बहु त कम है। इसके लए दो कारक उ तरदायी ह - (i) व व के दो महान
औ यो गक दे श (उ तर अमे रका तथा यूरोप ) अटलां टक के तट पर ि थत ह;
(ii) शा त महासागर म कोई ऐसा वीप नह ं है िजसका यापा रक मह व हो।
इसके अ त र त यह माग पनामा नहर के खु ल जाने से भी भा वत हु आ है। इस
नहर माग के कारण द णी शा त महासागर म मैगलन जल संयोजी- यूजीलै ड
माग पर पोत का आवागमन कम हो गया है।
291
उ तर शा त माग अमे रका के पि चमी तट को ए शया के दे श से जोड़ता है।
इस माग क एक शाखा चीन-जापान से पि चमी अमे रका तट को जाने के लए
ए यू शयन वीप के समीप वृहत -वृ त माग का अनुसरण करती है। इस माग क
दूसर शाखा हवाई वीप से होकर जाती है जो ए शयाई दे श को तथा आ े लया-
यूजीलै ड को जाती है।
इस माग के मु ख पोता य अमे रका म लॉस ऐंिजल स, सेन ां ससको, सीएटल,
पोटलै ड, वकु वर और स
ं पट तथा ए शया म टो कयो, याकोहामा, कोबे,
ओसाका, शंघाई और हांगकांग है।
पनामा नहर माग : अटलां टक महासागर और शा त महासागर को जोड़ती है।
इस नहर का उ घाटन 15 अग त 1914 को हु आ था। पनामा नहर को बनाने
के बारे म वचार सोलहवीं शता द म ह ार भ हो गया था पर तु इस वचार
को कायाि वत होने म बहु त ल बा समय लगा। इसका मु ख कारण इसके माग
म पवतीय बाधाएं थी, और इन बाधाओं को दूर करने के लए नहर म कई थान
पर लॉ स (जलपाश) बनाने पड़े थे।

मान च - 14.6 : पनामा नहर क ि थ त


पनामा नहर क ल बाई 82 कलोमीटर, चौड़ाई 16 मीटर तथा गहराई 12 मीटर
है। इस नहर म तीन थान पर लॉ स का नमाण कया कया गया है - (i)
गाल लॉ स अटलां टक सरे पर, (ii) पै ो लॉ स म य म और (iii) मरा लोस
लॉ स शा त महासागर के सरे पर। इस नहर पर संयु त रा य अमे रका का
नयं ण है। इसे पार करने म पोत को 7-8 घ टे का समय लगता है। त दन
लगभग 50 पोत को पार करा सकती है।
पनामा नहर बनाने से पूव शा त महासागर क ओर जाने वाले अमे रक तथा
यूरोपीय जल पोत को द णी अमे रका के द ण म केप हान का च कर लगा
कर जाना पड़ता था। अब इस नहर के नमाण से समय तथा दूर दोन क बचत

292
हो जाती है। यूयाक-सेन ां ससको जाने म 13,000 कमी., यूआ लय स से
सेन ां ससको जाने म 14,200 कमी., ल वरपूल से सेन ां ससको जाने म
9,100 कमी., यूयाक से वालपरे जो जाने म 6,000 कमी. दू रय क बचत हु ई
है।
पनामा नहर वारा पि चम क ओर जाने वाले जहाज उ तर अमे रका के पूव
तट तथा यूरोप के पि चमी तट के ब दरगाह से व वध कार क साम ी ले
जाते ह। पूव संयु त रा य अमे रका से खा य पदाथ तथा कोयला, ाजील से
काफ , बो ल वया से ख नज उ पादन, चल से ताँबा, सीसा, ज ता, पी से
नाइ े ट का प रवहन इस नहर वारा कया जाता है। पनामा नहर वारा
आ े लया तथा यूजीलै ड से ऊन, म खन, पनीर, खाल, आ द पूव उ तर
अमे रका तथा यूरोप के दे श म भेजे जाते ह।

14.2.3.5 वायु प रवहन (Air Transport)

संसार म वायु प रवहन का वकास थम व व यु (वष 1914-1919) के प चात ् हु आ,


क तु यापा रक प रवहन के लए हवाई या ी उड़ान तथा डाक सेवा के लए वष 1926
म संयु त रा य अमे रका म कया गया। वायु प रवहन क ती ग त तथा दुगम े म
पहु ँ च के कारण आज इसका अ य धक मह व है। इससे या ा, यापार, संचार आ द े
अ य धक लाभाि वत हु ए ह।
वायु प रवहन को भा वत करने वाले कारक
(i) वायुम डल य दशाएँ : वायु प रवहन को वायुम डल य दशाएँ अ य धक भा वत
करती ह। वशेषत: धु ध, कोहरा, हमपात, तू फान और वषा का सबसे अ धक
भाव पड़ता है। धरातल य कोहरा होने पर वमान का उतरना क ठन हो जाता है।
वायुयान मौसम क ि ट से सु र त माग का ह योग करते ह।
(ii) थल य दशाएँ : थल का उ चावच भी वायु प रवहन को भा वत करता है।
समतल भू म पर ह वायुयान उतर सकते ह। वायु माग का चु नाव माग म आने
वाल पवतीय े णय , दलदल, सागर आ द को यान म रखकर कया जाता है।
(iii) नि चत माग पर अ धक ै फक का होना भी वायु सेवाओं को बा धत करता है।
संसार के मु य वायु माग
संसार के मु य वायु माग उ तर गोला म ह। इन वायु माग के तीन मु ख नाभीय
दे श (Focal regions) ह, जो म य संयु त रा य अमे रका, पि चमी यूरोप तथा मा को
दे श म ि थत है। इन नाभीय दे श से संसार के व भ न भाग म वायु प रवहन होता
है। द णी-पूव ए शया म मु बई, द ल , हांगकांग, संगापुर , शंघाई और टो कय वायु
माग के बीच मु ख टे शन आते ह। मु ख वायु माग न न ल खत ह : -
(i) यूयाक , ल दन, पे रस, कफट, रोम, का हरा, बे त, द ल , कोलकाता, रं गन
ू ,
संगापुर , हांगकांग, शंघाई, टो कयो।

293
(ii) यूयाक , ल दन, ू े स,
स यू नख , यू रख, रोम, का हरा, कु वैत, कराँची, मु बई,
संगापुर , पथ, मेलबोन।
(iii) यूयाक , केपटाऊन, सडनी।
(iv) यूयाक , सेि टयागो।
(v) यूयाक , पनामा, होनोलू लू टो कयो।
(vi) ल दन, यूयाक , मां यल।
(vii) ल दन, यूयाक , शकागो, सेन ां स को।
(viii) ल दन, पे रस, रोम, का हरा, मु बई, संगापुर, सबेन, सडनी।
(ix) ल दन, यूयाक , पनामा, सेि टयागो।

मान च - 14.7 : व व के मु ख वायु माग


(x) ल दन, बोन, ब लन, मा को।
(xi) पे रस, बोन, मा को।
(xii) सेन ां स को, होनोलू लू टो कयो, शंघाई।
(xiii) मा को, ल दन, मां टयल।
(xiv) वकू वर, टो कयो, शंघाई, संगापुर , डा वन, सडनी।
(xv) मा को, वारसा, ाग, यू रख , पे रस, ल दन।
(xvi) ल दन, नैरोबी, केपटाउन।
(xvii) मा को, नोवो स ब क, ला दवो तक।
उपयु त ल बे वायु माग के अलावा व व के सभी दे श म अपनी-अपनी वायु सेवाएँ एवं
वायु माग ह तथा समीपवत दे श म वायुमाग ह। द णी पूव ए शया का लगभग 66
तशत वायु प रवहन जापान तथा भारत वारा होता है।
बोध न -2
1. कस नद को ' यू रोप क जीवन रे खा' कहते ह ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. उ तर अमे रका क महान झील के नाम बताइये ।

294
............................................................................................
................................................................ ............................
3. वे ज नहर कौनसे दो सागर को जोड़ती है ?
............................................................................................
........................................... .................................................
4. पनामा नहर पर बनाये गये लॉ स के नाम बताइये ।
............................................................................................
.............................................................. ..............................
5. सं सार के तीन मु ख वायु माग के नाभीय दे श के नाम बताइये ।
............................................................................................
................................................................ ............................

14.3 अ तरा य यापार (International Trade)


दो रा के बीच व तु ओं का आयात- नयात अंतरा य यापार कहलाता है। व व के
सभी रा अंतरा य यापार वारा पर पर आब ह। व व का कोई भी रा , सवथा
आ म नभर नह ं है। येक रा को अपनी आव यकता पू त करने के लए दूसरे रा से
व तु ओं का आदान- दान करना पड़ता है। अ तरा य यापार ऐसा मा यम है जो कृ त
द त संसाधन म वषमता को दूर कर स पूण व व म मानव जीवन तर म समानता
लाने म समथ है। अ तरा य यापार के वारा कसी भी दे श क आ थक स प नता एवं
वकास के तर को जाना जा सकता है। वदे शी यापार म सार-संकु चन, सु वधा- यवधान
के अनुसार रा य अथत म समृ - वप नता तथा उसके आ त रक भू वै या सक संगठन
म प रवतन होते रहते है। अ तरा य यापार कसी भी रा क अथ यव था को
भा वत करने वाले या-कलाप जैसे, कृ ष, उ योग, खनन आ द क अवि थ त को
नि चत करता है। आयात- नयात उ मुख पदाथ से स बि धत उ योग-ध धे जैसे भारत म
पे ोल शोधन, जापान म लोहा-इ पात, व युत उपकरण, मोटर कार, आ द क थापना
मु ख पोता य के इद- गद हु ई है। दूसरे , उ योग ध धे जो नयात कये जाने वाले माल
क क ची साम ी से स बि धत होते ह, दे श के भीतर उन नगर म था पत होते ह जो

ु प रवहन माग वारा इन पोता य से जु ड़े होते है। व व के सव च वदे शी यापार
वाले दे श म संयु त रा य अमे रका, जापान, जमनी, ेट टे न तथा ांस का मु ख
थान है।

14.3.1 यापार को भा वत करने वाले कारक एवं दशाएं

ाकृ तक संसाधन एवं जनसं या का असमान वतरण : अ तरा य यापार स ब धी


वचार का सार यह है क व व- यापार सापे क लाभ के स ा त पर आधा रत है। इसे
भा वत करने वाले मु ख कारक एवं दशाएं न न ह।

295
जैसा क पूव इकाइय से प ट है क संसार म जनसं या का वतरण बहु त असमान है।
व व के अ धकांश भाग म बहु त कम लोग है। व व का लगभग 70 तशत भाग नजन
अथवा बहु त वरल बसा है।
भ न अथ यव था वाले े : शि त-चा लत मशीन के आ व कार के बाद मनु य के
वकास के लये आव यक संसाधन म कृ षीय संसाधन के साथ ह धाि वक ओर शि त के
साधन भी सि म लत हो गये ह। मशीन क मदद से वरल बसे उपजाऊ भू म से बड़े
पैमाने पर कृ षीय उ पादन करना संभव हु आ और म य अ ांशीय घास के मैदान अ न के
भंडार बन गये। इन े से सघन बसे े को अ न का नयात होने लगा। दूसर और
मशीनीकरण से बड़े पैमाने पर औ यो गक वकास हु आ। सघन बसे औ यो गक े के
म क मांग कृ ष से मु त मक से हु ई तथा खा य व तु ओं क मांग मशीनीकृ त बड़े
पैमाने क कृ ष से पूर हु ई। औ योगीकरण पुन : भौगो लक दशाओं पर नभर होता है।
उ योग का वकास क चे माल, शि त के साधन, बाजार, स ते मक क सु वधा,
प रवहन आ द क सु वधा पर नभर होता है। इन कारक का वतरण बहु त ह असमान
है। फलत: औ यो गक उ पादन म भी बहु त असमानता है। इ ह असमानताओं का
प रणाम व व - यापार है।
व वधता एवं उ पादन म व श ट करण : य य प मानव वतमान समय म व ान और
तकनीक क मदद से बड़े पैमाने पर व तु ओं का उ पादन एवं प रवहन करने म समथ
हु आ है; तथा प उ पादन क ाकृ तक सीमाएं अब भी भावी ह। जैसे क का उ पादन
उ ण क टब ध म ह सरल और स ता होता है। इसी तरह चाय, ग ना आ द जलवायु क
अनुकू लता के कारण उ ण क टब ध म ह पैदा कया जा सकता ह। इसी तरह उ योग भी
सव नह ,ं ऐसे जगह लगाए जाते ह जहाँ से यूनतम लागत लगा कर उपभो ताओं तक
न मत व तु एं पहु चाई जा सकती ह।
ख नज संसाधन एवं वकास : औ यो गक वकास के लये ख नज और शि त के साधन
क आव यकता होती है, पर तु मू लभू त ख नज और शि त के ोत का व व मे वतरण
बहु त अ धक असमान है। फल व प ख नज और शि त के साधन का बड़े पैमाने पर
यापार अ नवाय होता है। यहां तक क कु छ दे श का औ यो गक वकास ह ख नज के
आयात पर नभर है। जापान और ेट टे न इसके अ छे उदाहरण ह। आयात पर अ धक
नभरता के कारण पि चमी यूरोप और पूव सयु त रा य म बंदरगाह पर ह भार
धाि वक उ योग था पत कये गये ह। वतमान व व- यापार म ख नज क मा ा
सवा धक होती है। इसी तरह शि त के साधन भी मह वपूण यापा रक व तु ह। इनम
कोयला और पे ो लयम बहु त ह मह वपूण ह। यूरोप के सभी वक सत दे श कोयले का
आयात करते ह। पे ो लयम का वतरण और भी वल ण है। अ धकतर बड़े पे ो लयम
उपभो ता आयात पर नभर है। उदाहरण के लए सन ् 2006 म संयु त रा य अमे रका
तथा जापान त दन मश: 122 लाख बैरेल तथा 51 लाख बैरेल पे ो लयम का आयात
करके थम एवं वतीय थान ह।

296
अ य भौ तक दशाएं एवं यापार : व व म धरातल के व प, जलवायु, म ी और
ाकृ तक वन प त के वतरण म बहु त अ धक असमानता है। फलत: कृ ष उपज और वन
उ पाद म भी े ीय अंतर पाया जाता है। इस कारण इन व तु ओं का रा य और
अंतरा य यापार होता है। इस कार क व वधता उ प करने म जलवायु सबसे
मह वपूण है।
उदाहरण के लए ऐसी फसल ह िजनका उपभोग शीतो ण क टब ध के घने औ यो गक े
म होता है, पर तु जलवायु के कारण उनका उ पादन उ ण क टब ध म स ता एवं संभव
होता है, जैसे क चु कंदर उ पादन म वृ होने पर भी शीतो ण क टबंध क श कर क
मांग उ ण क टब ध के ग ना उ पादक े से होती है। इसी तरह केला, चाय, रबर आ द
का उ पादन उ ण क टबंध के े म केि त है िजनके मु ख आयातक यूरोपीय और
अमेर क दे श ह।
दूसर ओर म य अ ांश म ह गेह,ू ँ चु कंदर जैसी फसले पैदा क जाती ह। यह से गेहू ँ
व व- बाजार म पहु ंचता है। जलवायु क अनुकू लता के कारण ह भूम यसागर य े म
फल एवं सि जय का बड़े पैमाने पर उ पादन कया जाता है। इन का अंतरा य यापार
बड़े पैमाने पर कया जाता है। म य अ ांशीय अ शु क शीतल घास के े म भेड़ पालन
और इ ह भाग म पहाड़ी े म बकर पालन क अनुकू ल दशाय पायी जाती ह। इसी
कारण ये े व व म ऊन के धान उ पादन एवं नयातक े बने ह।
लोब पर दे श क ि थ त और उसका आकार भी अंतरा य यापार क ि ट से
मह वपूण रहा है। थल गोला के म य म ि थत होने के कारण टे न का यापा रक
मह व सवा धक रहा है। व व के मु ख समु य एवं वायु माग का यह के रहा है।
अमे रका और यूरोप के स प न दे श समीप ह और जु डे ह। वृह आकार के कारण सयु त
रा य अमे रका का अंतरा य यापार म वशेष थान बन गया है। कु छ छोटे दे श भी
त यि त अंतरा य यापार क ि ट से मह वपूण ह। इनम कु छ उ तर पि चमी
यूरोपीय दे श ह - जमनी, ांस, डे माक आ द। इनका अ धकांश यापार सीमावत दे श के
साथ होता है। यह अ तर-महा वीपीय यापार ह कु छ ऐसे छोटे दे श ह जहां यापा रक
मह व के संसाधन मौजू द ह और अपनी ि थ त के कारण अंतरा य यापार म मह वपूण
ह। अंतरा य यापा रक माग पर ि थत होने के कारण संगापुर, िज ा टन, हांगकांग,
साइ स और मा टा इनम उ लेखनीय ह।
इस तरह पयावरणीय व वधता के कारण व तु ओं के उ पादक एवं उपभो ता े म काफ
अंतर है। फलत: उ पादक े से उपभो ता े म व तुओं को पहु ंचाना आव यक होता
है। व तु ओं का उ पादन अनुकू ल दशाओं म स ता होता है, पर तु मांग के े म उनक
क मत अ धक होती यापार को भा वत करने वाले सामािजक, आ थक एवं सं थागत
कारक भौ तक पयावरण क व भ नता के अलावा सां कृ तक दशाय भी अकेले अथवा
संयु त प से यापार क मा ा और दशा नि चत करती ह। इनम मु ख ह : 1.
आ थक वकास का तर, 2. त यि त रा य आय, 3. वदे शी व नवेश, 4.

297
राजनै तक मै ी, 5. यापार नी त, 6. अ तरा य यापा रक समझौता, 7. रा य र त
रवाज एवं पर पराएं।
आ थक वकास का तर : पछड़े दे श के पास यापार क व तु एं एवं आव यकताएं दोनो
बहु त सी मत होती ह। इसके वपर त वक सत दे श म यापार क आव यकता ती होती
है। उदाहरण के लये ेट टे न व व के वक सत दे श म मु ख है और व व के
व भ न दे श से भार मा ा म खा य पदाथ, क चा माल और अध- न मत व तु एं आयात
करना है। इसके बदले म उ योग वारा न मत व तु ओं के प म वह अपने कामगार क
कु शलता का नयात करता रहा है। अपने यापार को सु गम बनाने के लये वह अपने
उप नवेश म अधोसंरचना का वकास करता है।
त यि त आय : त यि त आय भी यापार क मा ा को भा वत करती है।
अमे रका और यूरोप के औ यो गक दे श म त यि त आय काफ अ धक है। इस आय
का उपयोग औ यो गक और यापा रक वकास म कया गया है। यहां के उ योग आयात
पर बहु त अ धक नभर ह। उदाहरण के लये सयु त रा य अमे रका और पि चमी यूरोपीय
दे श के उ योग के लये अनेक ख नज, धन और ऊजा आयाता करना पड़ता है। यह
अ धक आय के कारण संभव होता है। इसके अलावा संप न रा के नाग रक मू लभू त
आव यकताओं के अलावा सु वधा एवं वला सत क व तु ओं पर खच कर सकते ह। यह
ि थ त भी यापार को ो साहन दे ती है। ए शया, अ का ओर लै टन अमे रका के
अ धकांश दे श म त यि त आय बहु त कम है। अ तु अ तरा य यापार म इनका
बहु त योगदान नह है। तथा प व तु- वशेष के उ पादन म द ता रखने वाले दे श से उन
व तु ओं का यापार होता है।
वदे शी व नवेश : औ यो गक दे श के कारपोरे श स वदे श से पू ज
ं ी लगाते ह िजससे उन
दे श से क चे माल एवं ऊजा मल सक। कभी-कभी क चे माल आ द के उ पादन के लये
खा य व तु ओ,ं उपकरण आ द भी पू ज
ं ी वाले दे श से आता है। इस कार दोनो दे श के
बीच यापार पनपता है। ये कारपेरेश स इन दे श के बीच यापार पनपता है। ये
कारपेरेश स इन दे श म कु छ उ योग भी था पत करते ह िजनका उ पादन यय यहां पर
कम होता है। आयात को सु गम बनाने के लये लै टन अमे रका अ का, आ े लया,
यूजीलै ड और ए शया (जापान को छोड़ कर) म रे ल माग का नमाण आं ल-अमे रका
और यूरोपीय पू ज
ं ी से हु आ था िजनका उ े य आ त रक भाग से बंदरगाह तक व तु ओं को
ढोना था। इसी तरह लै टन अमे रका, पि चमी ए शया, उ तर अ का और द ण पूव
ए शया के अ धकतर पे ो लयम े का वकास भी उ तर अमे रका, टे न, नीदरलै ड
और ांस क क प नय वारा कया गया। इन ऐ तहा सक कारण से इन दे श को
पे ो लयम इन े से नयात कया जाता है। इसी तरह ख नजो खन, बागाती कृ ष का
वकास भी वदे शी पू ज
ं ी से हु आ है। इनके नयात से स बि धत दे श को भार आय होती
है।

298
राजनै तक मै ी : वदे शी यापार बड़ी सीमा तक दे श के राजनै तक स ब ध पर नभर
होता है। उदाहरण के लये सन ् 1940 के दशक म वतं हु ये दे श का यापार उन दे श
से अ धक होता था। िजनके अधीन वे उप नवेश थे। भारत टे न के अधीन था, इस कारण
इसका अ धकांश यापार टे न के साथ होता था। औ यो गक ग त के साथ इसका अ य
दे श से यापा रक समझौता हु आ और उनसे यापा रक स ब ध बढ़े ह।
आ थक नयमन तथा अ तरा य यापार : यापार को नयं त करने के लये रा
अथवा रा ो के समू ह ने नयम पा रत कर रखा है िजनसे भी वदे शी यापार भा वत
होता है। कोई भी दे श मु य प से तीन कारण से अपने वदे शी यापार को नयि त
करता है. 1. तकू ल भु गतान के असंतु लन को ठ क करने के लये, 2. थानीय उ योग
को वदे शी व तु ओं क त पधा से संर ण दे ने के लये, तथा 3. राज व अिजत करने
के लये। एक दे श अ य दे श से आयात तथा व वध कार क सेवाय लेता है और बदले
म नयात करता है तथा व भ न प म सेवाएं दे ता है। अगर आया तत व तु ओं एंव
सेवाओं क क मत नयात क गई व तु ओं एवं सेवाओं से अ धक होती है तो यह ि थ त
तकू ल भु गतान क ि थ त कहलाती है। इसे कम करने के लये रा नयम बनाते ह।
कभी-कभी दे श वदे शी उ योग को संर ण दे ने के लये सीमा शु क लगाते ह। कई
यूरोपीय दे श ने ग ने क श कर पर इतना अ धक समी शु क लगा रखा है क इसक
तु लना म थानीय चु कंदर क श कर स ती पड़े ओर उपभो ता चु कंदर क श कर ह
योग कर। भारत म भी कई उ योग को ो साहन दे ने से उनके उ े य से उनसे बनने
वाल व तु ओं के आयात पर तबंध लगाया गया है। रा य आमदनी बढ़ाने के उ े य से
भी आयात कर लगाये जाते ह।
सामािजक प रि थ तयां : उपरो त आ थक कारक के अलावा कई सां कृ तक प रि थ तयां
भी अ तरा य यापार को ो सा हत / हतो सा हत करती ह। इनम लोग क आदत एवं
र त रवाज का यापार पर काफ भाव पड़ता है। जैसे क यूरोपीय और आं ल अमे रक
दे श म चाय और काँफ का बहु त चलन है। इस आ द को आसानी से बदला भी नह ं जा
सकता। अ तु इनका आयात करना पड़ता है, भले ह इन क क मत बढ़ जाय अथवा
अ धक आयात शु क लगता हो। आधु नक समाज म व ापन यापार को भा वत करने
वाला मु य मा यम बन गया है। व ापन के वारा व तु ओं के गुण को उपभो ताओं तक
पहु ंचाया जाता है। सू चनातं क भा वता अ य बात के अलावा सामािजक तर पर नभर
करता है।

14.3.2 मु ख यापा रक संघ

अ तरा य यापार क दशा तथा मा ा नधारण म भौगो लक, आ थक तथा राजनै तक


कारक के साथ-साथ यापा रक संघ क भी मह वपूण भू मका होती है। इन संघ वारा
व तु ओं के आदान- दान क मा ा, व नयम दर, मू य, भु गतान क शत एवं याज दर
नधा रत क जाती ह। मु ख यापा रक संघ न न ल खत है : -

299
1. यूरोपीय समु दाय (European Community, EC) : इस समु दाय म सि म लत
मु ख यूरो पयन दे श का उ े य व व यु तथा उप नवेशवाद से त त आ थक
दशा तथा यापार म सुधार करना था। इसक थापना वष 1958 म छ: मु ख
यूरो पयन दे श - ांस, प. जमनी, ल जमबग, बेि जयम, हालै ड तथा इटल वारा
क गई थी।
2. यूरोपीय मु त यापार संघ (European Free Trade Association, EFTA) :
इसक थापना वष 1960 म टे न, आयरलै ड, नाव, आि या, वीडन, पुतगाल
तथा ि व जरलै ड के वारा क गई। इस संघ के सद य दे श पर पर बना कसी
कार का तट कर लगाये यापार करते ह।
3. उ तर अमे रका मु त यापार संघ (North America Free Trade
Association, NAFTA) : इस संघ क थापना 1992 म कनाडा, संयु त रा य
अमे रका तथा मैि सको वारा क गई। इस संघ के सद य दे श वारा वश ट
यापार नी त अपनाने पर बल दया गया िजसके अ तगत व भ न व तु ओं का खु ला
यापार, तीन दे श क क प नय को कसी भी दे श म नवेश क खु ल छूट, मक
का अ तबि धत आवागमन आ द मु ख बात थीं।
4. लै टन अमे रका वतं यापार संघ (Latin America Free Trade
Association, LAFTA) : - इस संगठन क थापना वष 1960 म लै टन
अमे रक दे श -पे , परा वे, अज ट ना, मैि सको, ाजील तथा चील वारा क गई।
5. पार प रक आ थक सहयोग प रषद (COMECON) : इसक थापना वष 1949 से
पूव सो वयत संघ के साथ मल कर पूव यूरो पयन सा यवाद दे श - पूव जमनी,
पोलै ड, चेको लोवा कया, हंगर , मा नया व बु गा रया तथा मंगो लया, वयतनाम एवं
यूबा वारा क गई।
6. द णपूव ए शयाई रा संघ (Association Of South East Asian Nation,
ASEAN) : इस संगठन क थापना वष 1975 म क गई। इस संघ म मले शया,
थाईलै ड, फल पी स, इ डोने शया, संगापुर , ू ी , वे ट ए रयन,
न वयतनाम आ द
सद य दे श ह।
7. पे ो लयम नयातक संघ (Organisation of Petrolium Explorating
Contries, OPEC) : यह संगठन वष 1973 म मुख तेल उ पादक दे श वारा
बनाया गया था। इस संगठन के मु ख सद य दे श ईरान, ईराक, सऊद अरब, कतर,
कु वैत, संयु त रा य अमीरात, बहर न, अ जी रया, ल बया, म , वेनेजु एला तथा
इ डोने शया ह।
8. सा टा (South Asian Preferentine Agreement, SAPTA) : सन ् 1993 म
ढाका स मेलन म साक दे श - भारत, पा क तान, बां लादे श, ीलंका, नेपाल, भू टान
एवं मालद व वारा इस संघ का गठन कया गया।

300
इन संगठन के अलावा ए शया- शा त आ थक सहयोग संघ (APEC), म य
अ क तटकर संघ (SAUC), एपेक (APEC), तथा अरब साझा बाजार
(ACM- Arab Common Association) आ द मु ख संगठन ह जो अपनी
नी तय वारा अ तरा य यापार को भा वत करते ह।

14.3.3 व व यापार संरचना

व व के व भ न दे श के म य होने वाले अ तरा य यापार क संरचना अ य त ज टल


है। येक दे श के आयात तथा नयात क मा ा वहाँ क संसाधन स प नता, आ थक
ि थ त, औ यो गक करण का तर, आय एवं उपभोग तर पर नभर करती है।
वकासशील दे श म आ थक वकास होने से यापार म भी नर तर वृ हु ई है। सन ्
1960 म जहाँ 2315 अरब डॉलर का अ तरा य यापार होता था वह ं 1990 म 7480
अरब डॉलर तथा 2000 म यह 12901 अरब डॉलर तक पहु ँ च गया।
व व यापार म सि म लत मु ख व तु ओं म खा य साम ी, क चे माल, धन तथा
न मत साम ी मु ख होती ह। इस यापार म औ यो गक रा - यूरोप , उ तर अमे रका
तथा जापान खा य-साम ी तथा क चे माल के मु ख आयातक होते ह। ये दे श वकासशील
दे श से ख नज व पे ो लयम, क चा माल व खा य साम ी जैसे, अनाज, पेय पदाथ, फल,
माँस तथा मसाले आयात करते ह। वकासशील दे श व न मत व तु ओं का आयात करते ह
तथा क ची साम ी का नयात करते ह।
व व के सभी दे श क आयात- नयात संरचना भी अलग-अलग होती है। अ धकांश
वकासशील दे श क अथ यव था म एक या दो व तु ओं के नयात क धानता होती है।
युगा डा म दे श के कु ल नयात का 95% ह सा कहवा का होता है। जाि बया म 81%
ह सा ताँबे का होता है। वक सत पूँजीवाद दे श के नयात म मशीनर , प रवहन उपकरण
तथा अ य साम य क धानता होती है।
वकासशील दे श के आयात संरचना म मशीनर , प रवहन उपकरण तथा र ा साम ी आ द
क ाथ मकता होती है जब क वक सत जमनी, जापान, पेन, संयु त रा य अमे रका,
फनलै ड के आयात म धन क ाथ मकता रहती है।
सन ् 1972 के बाद व व यापार सरंचना म मह वपूण प रवतन हु ए ह। सबसे मह वपूण
प रवतन न मत व तु ओं के ह से का घटना है। वतमान म वकासशील दे श म उन
व तु ओं का भी नमाण होने लगा है िज ह वे पहले आयात कया करते थे।

14.3.4 अ तरा य यापार क वाह त प

व व के व वध दे श के म य होने वाला अ तरा य यापार वहाँ क भौगो लक,


सामािजक तथा आ थक कारक के अनुसार अलग-अलग होता है। व व म अ तरा य
यापार के वाह के मु ख त प न न ल खत ह

301
1. व व के कु ल आयात- नयात म सवा धक अंश उ च आय वाले वक सत दे श का होता
है जो आ थक सहयोग एवं वकास संगठन (OECD, Organisation for
Economic Co-operation and Development) या यूरोपीय समु दाय
(European Community) के सद य होते ह अथवा दोन के सद य ह। सन
2000 म इस वग के दे श क औसत त यि त आय 27845 डॉलर थी। इस वग
म 25 दे श आते ह। इन दे श क जनस या व व जनसं या क मा 16.5% है।
इसके वपर त न न आय वाले दे श का आयात तथा नयात म ह सा मश: 32
तशत तथा 29 तशत है जब क इन दे श म व व क 80 तशत जनसं या
नवास करती है।
2. व व के कु ल नयात तथा आयात म संयु त रा य अमे रका क भागीदार मश:
12.3% तथा 19.3% है। जापान का कुल व व नयात म 7.6% तथा कुल आयात
म 5.8% ह सा है। संयु त रा य अमे रका, पि चम यूरोप तथा जापान का कु ल
अ तरा य यापार म 50% ह सा होता है। इस कार NAFTA तथा EC समु दाय
के दे श म आयात तथा नयात तशत का तशत ऊँचा होता है।
3. सं मण अथत वाले दे श - वशेषत: पूव यूरोप , म य ए शयाई तथा सी फेडरे शन
का व व नयात-आयात म अंशदान अ प है। पूँजीवाद बाजार से जु ड़ने के बाद अभी
इनके अथत का नये सरे से समायोजन हो रहा है तथा इनके वदे शी यापार के
व प म तेजी से प रवतन हो रहा है।
4. ख नज तेल के नयात पर आधा रत अथत वाले दे श - उ तर अ का, म य पूव
तथा अ य ओपेक (OPEC) दे श क व व नयात म ह सेदार अ धक होती है।
सऊद अरब क व व नयात म ह सेदार लगभग 2% होती है।
5. ादे शक तर पर अ य प वक सत दे श क यापार म ह सेदार नाम मा क होती
है। इनके नयात म एक या दो ख नज या कृ षगत पदाथ होते ह। स पूण अ का का
व व नयात म अंशदान लगभग 1.8 तशत है।

बोध न –3
1. वक सत दे श वारा कौनसी व तु ओं का नयात कया जाता है ?
...................................................... .......................
...................................................... .......................
2. यु गा डा वारा कौनसी व तु का नयात कया जाता है ?
...................................................... .......................
.............................................................................
3. OPEC दे श के नाम बताइये ।
...................................................... .......................
...................................................... .......................

302
4. वकासशील दे श क आयात सं र चना म कन व तु ओं क ाथ मकता होती
है ?
...............................................................................
...................................................................... .........
5. ना टा ( NAFTA) का सद य दे श है -
( अ) सं यु त रा य अमे रका (ब) ाजील
( स) जमनी (द) भारत

14.4 सारांश (Summary)


इस इकाई म व व म प रवहन तथा अ तरा य यापार का व तृत प से वणन कया
गया है:-
 पृ वी के धरातल पर व तु ओं तथा यि तय को एक थान से दूसरे थान पर
आवागमन को प रवहन कहते ह। ार भ म प रवहन थल पर ार भ हु आ, बाद म
न दय म नाव वारा तथा समु म जलयान वारा हु आ।
 क ह ं दो दे श के म य प रवहन स ब ध था पत होने के लए उन दे श के बीच
प रपूरकता, म यवत आपू त ोत का अभाव तथा व नमयता का होना आव यक
होता है।
 ाचीन काल म प रवहन पर परागत साधन - घोड़ागाड़ी या बैलगाड़ी से कया जाता
था। वतमान म प रवहन के आधु नक साधन- मोटर, रे लगा ड़य , वशालकाय पोत एवं
वायुयान से कया जाता है।
 प रवहन के आधु नक साधन के वकास के कारण स पूण दु नया क दू रयां समट
कर छोट हो गई ह।
 प रवहन के मा यम को पाँच वग म वभािजत कया जा सकता है - (i) सड़क
प रवहन, (ii) रे ल प रवहन (iii) आ त रक जल प रवहन (iv) सामु क जल प रवहन
(v) वायु प रवहन।
 सड़क प रवहन म सड़क पर मोटर गा ड़य , बस , क, े टर- ा लय , आ द वारा
प रवहन कया जाता है। सड़क प रवहन वारा शी न ट होने वाल व तु एँ ज द
ग त य थान पर पहु ँ च जाती ह। व व म सड़क माग क ि ट से संयु त रा य
अमे रका तथा पि चमी यूरोप के दे श अ णी ह।
 रे ल प रवहन व भ न कार क या ी रे लगा ड़य , मालगा ड़य , पासल े न आ द से
कया जाता है। रे ल माग क ि ट से संयु त रा य अमे रका का थम थान है,
यहाँ पर व व के 26 तशत रे ल माग पाये जाते ह।
 आ त रक जल प रवहन न दय , झील तथा नहर वारा कया जाता है।

303
 सामु क जल प रवहन काय वशालकाय जल पोत वारा कया जाता है। ये जलपोत
वृहत ् वृ त माग (Great Circle Routes) का अनुसरण करते ह। व व म अनेक
सामु क जल माग पाये जाते ह।
 वायु प रवहन का यापा रक प से उपयोग 1926 म संयु त रा य अमे रका वारा
कया गया। ती ग त तथा दुगम े म पहु ंच के कारण वायु प रवहन का वशेष
मह व है। संसार म अनेक वायु माग पाये जाते ह जो अ धकतर उ तर गोला म
ि थत ह।
 दो दे श के बीच होने वाला यापार अ तरा य यापार कहलाता है।
 कसी दे श के अ तरा य यापार क मा ा वहाँ क संसाधन स प नता, आ थक
ि थ त, औ यो गकरण का तर, आय व उपभोग वारा नि चत होती है।
 वक सत दे श यूरोप , उ तर अमे रका, तथा जापान खा य साम ी तथा क चे माल
के आयातक तथा मशीनर , प रवहन उपकरण तथा अ य तैयार माल के नयातक होते
ह।
 वकासशील दे श क आयात संरचना म मशीनर , प रवहन उपकरण, तथा र ा साम ी
मु ख होती है।
 व व के कु ल अ तरा य यापार म सवा धक अंश उ च आय वाले वक सत दे श
का होता है। ादे शक तर पर अ य प वक सत दे श का अंशदान नाम मा होता है।
 अ तरा य यापार क दशा तथा मा ा नधारण करने के लए व व के दे श ने
अपने-अपने यापा रक संघ बनाये हु ए ह। ये संघ व तु ओं के आदान- दान क मा ा,
व नमय दर, मू य, भु गतान क शत एवं याज दर का नधारण करते ह।

14.5 श दावल (Glossary)


 आयात : कसी दे श वारा अ य दे श से व तु एँ मँगाना।
 नयात : कसी दे श वारा अ य दे श को व तु एँ भेजना।
 प रसंचरण : प रवहन तथा संचार मा यम का फैलना।
 व नमयता : एक दे श का दूसरे दे श से व तु एँ मँगाने क साम यता।
 पोता य : महासागर के कनारे पर जलपोत के सामान को उतारने तथा चढ़ाने का
थान।
 प च भू म : पोता य का समीपवत थल भाग
 नाभीय दे श : के य दे श

14.6 संदभ ग ध (Reference Books)


1. एस डी कौ शक : संसाधन भू गोल, र तोगी पि लकेश स, मेरठ
2. डॉ. अलका गौतम : आ थक भू गोल के मू ल त व, शारदा पु तक भवन, इलाहाबाद
3. जगद श संह, काशीनाथ : आ थक भू गोल के मूल त व, राधा पाि लकेश स, नई
द ल

304
4. डॉ. बी. सी. जाट : आ थक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर

14.7 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. (i) प रपूरकता, (ii) म यव त आपू त का अभाव, (iii) व नमयता का होना
2. बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी, ऊँटगाड़ी
3. जलयान, मोटरगा ड़याँ, रे ल, वायुयान
4. संयु त रा य अमे रका
5. रै खय त प
6. उ तर कनाडा के धरातल का हमा छा दत टु ा वन , पवत व झील से घरा होना
बोध न - 2
1. राइन
2. सु पी रयर, म शगन, यूरन , ईर तथा आ टे रयो झील
3. लाल सागर तथा भू म य सागर
4. गातू न लॉ स, पे ो लॉ स, मरा लास लॉ स
5. (i) म य संयु त रा य अमे रका, (ii) पि चमी यूरोप , (iii) मा को
बोध न – 3
1. वक सत दे श मशीनर , प रवहन उपकरण तथा अ य र ा साम ी का नयात करते ह।
2. कहवा
3. ईरान, ईराक, सऊद अरब, कतर, कुवैत, संयु त अरब अमीरात, बहर न, अ जी रया,
ल बया, म , वेनेजु एला, नाइजी रया।
4. मशीनर , प रवहन उपकरण तथा र ा साम ी
5. (अ) संयु त रा य अमे रका

14.8 अ यासाथ न
1. थल य प रवहन के साधन के प म सड़क तथा रे ल के सापे त मह व को प ट
क िजए।
2. व व म रे ल प रवहन के मह व को प ट क िजए तथा ए शया म रे ल माग के
वतरण का वणन क िजए।
3. वायु प रवहन को भा वत करने वाले कारक को प ट करते हु ए व व म मु ख वायु
माग का वणन क िजए।
4. अ तरा य यापार क संरचना तथा वाह त प क या या क िजए।
5. व व यापार म मु ख यापा रक संघ का वणन क िजए।

305
इकाई 15 : व व के संसाधन दे श (Resource
Regions of the World)
इकाई क परे खा
15.0 उ े य
15.1 तावना
15.2 संसाधन दे श
15.2.1 अथ एवं प रभाषा
15.2.2 संसाधन दे श व उनके वभाजन आधार
15.3 व व के संसाधन दे श
15.3.1 उ तर ु वीय संसाधन दे श
15.3.2 उप ु वीय संसाधन दे श
15.3.3 आं ल-अमे रक दे श
15.3.4 शीतो ण यूरोपीय दे श
15.3.5 अ का-ए शयाई शु क दे श
15.3.6 सहारा के द ण म ि थत आ एवं अधशु क अ का
15.3.7 मानसू न ए शया
15.3.8 लै टन अमे रका
15.3.9 शा त महासागर य दे श
15.4 सारांश
15.5 श दावल
15.6 संदभ थ
15.7 बोध न के उ तर
15.8 अ यासाथ न

15.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे क : -
 संसाधन दे श या ह।
 इनके वभाजन के आधार या ह ?
 व व के मु य संसाधन दे श के मु ख कार क जानकार ।
 व व के संसाधन दे श क मु ख वशेषताएँ।

15.1 तावना (Introduction)


ाचीन काल से ह मानव अपनी आव यकताओं क पू त के लए भू तल और उसके
वातावरण का उपयोग करता आया है। स संसाधन भूगोलवे ता िज मरमेन ने ''मनु य

306
क वरासत एवं पयावरण के त व िजन पर मनु य स बल एवं सहायता हे तु नभर है को
संसाधन'' माना है। सामा य प से स पूण पयावरण िजसम ाकृ तक एवं मानवीय
वातावरण सि म लत है तथा उसम उपि थत त व वारा मनु य क आव यकताओं क
पू त होती है, संसाधन कहलाते है। संसाधन होते नह ,ं बनाये जाते ह। ये न तो थाई होते
ह न ह थान वशेष से स बि धत होते ह। जब संसाधन क ि ट से ऐसा दे श िजसम
संसाधन त व क एक पता हो तथा वह अपने गुण व स ब ता क ि ट से अ य े
से भ न हो, संसाधन दे श कहलाता है। भू तल पर भौगो लक त व म अपार व वधता
या त है। मानव क उनसे याशीलता ने संसाधन दे श के वभ न व प को
वक सत कया है। संसाधन दे श का नि चत आकार होता है तथा उसम उपि थत
व भ न भौगो लक त व अथवा कसी त व वशेष क एक पता पाई जाती है िजससे
उसक पहचान होती है। तु त इकाई म व व के संसाधन दे श क व वधताओं एवं
वशेषताओं का ववेचन कया गया है।

15.2 संसाधन दे श
15.2.1 अथ एवं प रभाषा

ऐसे दे श या े िजनम भौगो लक पयावरण क सम पता के आधार पर उसम समा हत


संसाधना मक सश तता का समाकलन कया जाये तो उसे संसाधन दे श कहते ह। व व
के व भ न े म ाकृ तक संसाधन क व वधता के फल व प आ थक व भ नताएं
दे खने को मलती ह। उदाहरण के लए कसी दे श म ख नज क अ धकता है तो कसी
म वन क सघनता, कह ं गहन कृ ष के व प दे खने को मलते ह। कह ं शि त के
संसाधन क अ धकता या यूनता है तो कह ं जै वक संसाधन का अभाव। संसार का कोई
भी दे श संसाधन क ि ट से प रपूण नह ं है। तु त इकाई म व व के संसाधन दे श
क व श टताओं एवं ल ण को प ट करने का यास कया गया है।

15.2.2 व व संसाधन दे श के वभाजन के आधार

संसाधन दे श के नधारण म इ क सवीं सद क तेजी से हो रह ग त, नये संसाधन


क खोज तथा संसाधन के उपयोग क ाि तकार ौ यो गक एवं उनके दोहन से उ प न
भाव को यान म रखा गया है। अत: संसाधन दे श के नधारण म सू म ि टकोण
नह ं अपना कर उनके अ धका धक सामा यीकरण को यान म रखा गया है। तु त
संसाधन दे श का सीमांकन ाकृ तक तथा मानवीय पयावरण के समु च यक त व जैसे
भू तल, जलवायु, वन प त, जनसं या घन व तथा मानव सं कृ त व स यता क सामा य
वशेषताओं के आधार पर कया गया है। संसाधन दे श के नधारण म न न त व को
मु खता दान क गई है ।
(i) ि थ त व संसाधन क पया तता
(ii) जलवायु तथा वन प त
(iii) जनसं या का वतरण व संरचना

307
(iv) ाकृ तक संसाधन का वतरण व उपल धता
(v) तकनीक वकास
(vi) आ थक- याओं क कृ त
(vii) थानीय अथ यव था क ि थरता
(viii) यातायात के साधन का वकास तथा यापार
(ix) सामािजक तर
उपयु त आधार को मानते हु ए व व को संसाधन दे श म बाँटा गया है। केवल मा
संसाधन क उपल धता म एक पता ह इन दे श के लए वभाजन आधार नह ं है बि क
वहाँ मानव क आ थक याएँ, तकनीक ान व बदलती आव यकताएँ आ द त व को भी
मह व दया गया है जो पार प रक प म संसाधन दे श के नधारण म सहायता दान
करते ह। ऊपर व णत वशेषताओं के आधार पर व व को 9 संसाधन दे श म बाँटा गया
है।

15.3 व व के संसाधन दे श
15.3.1 ु वीय संसाधन दे श

(i) ि थ त एवं व तार : उ तर व द णी गोला म 661720 अ ांश से ु व के


बीच व तृत इस दे श के अ तगत ए शया, यूरोप , उ तर अमे रका के ु वीय
दे श व अ टाक टका महा वीप सि म लत ह। उ तर गोला म कनाडा का
अ धकांश भाग, ीनलै ड, स के उ तर े तथा लेपलै ड के े शा मल ह
जब क द णी गोला म अ टाक टका इस दे श का मु य भाग है। 10०
से ट ेड से कम तापमान वाले े को इस दे श म शा मल कया गया है।
(ii) ाकृ तक वातावरण व संसाधन (Natural Environmental & Resource) :
जलवायु इस दे श क मु ख वशेषता है। यहाँ बफ ल जलवायु पायी जाती है।
सव भू तल हम से आ छा दत रहता है। वृि ट बफ के प म होती है। वषा का
वा षक औसत 25 सेमी है। अ य धक शु क व ठ डी हवाओं क आँ धयाँ यहाँ
च ड ग त के साथ चलती ह िज ह ि लजाड (Blizzard) कहा जाता है। जलवायु
क इन दशाओं म ादे शक भ नता भी दे खने को मलती है। ु व के समीप

तापमान सदै व 0 से ट ेड से कम रहता है तथा ये दे श सदै व बफ से
आ छा दत रहते ह। यहाँ कभी कोई वन प त नह ं उगती है। अत: इन भाग को
ु वीय म थल (Polar Desert) भी कहते ह। इसके बाद क दूसर पेट ारं भ
होती है जहाँ तापमान 3० से ट ड
े तक पाया जाता है। ी मकाल म यहाँ बफ
पघल जाती है िजससे कह -ं कह ं घास, ल चे स (Lichen) व माँस (Moss) क
वन प तयाँ भी उग आती ह। अत: इस दे श को घासयु त टु ा दे श भी कहते
ह। ु व से बाहर क ओर तीसर पेट म तापमान 5० से ट ेड से 10० से ट ड

तक पाया जाता है। यहाँ झाड़ीदार वन प त प ट प से दे खी जा सकती है
308
िजनम मु यत: अ डर, बच व बल के कम ऊंचाई वाले पेड़ एवं ोबर व
बलबेर क झा ड़याँ पायी जाती ह। ी मकाल म बफ के पघल जाने पर
आक टक वृत के समीपवत भाग म ी म ऋतु म व वध कार के फूल भी उग
आते ह जो शीतऋतु ारं भ होने पर समा त हो जाते ह।
इस प रम डल म उ चावच के ाय: सभी व प दे खने को मलते ह। यहाँ नचले
मैदान, पठार तथा पवत े णयाँ मु ख धरातल य व प ह।
(iii) संसाधन (Resources) : संसाधन क ि ट से यह दे श वप न है। उपल ध
संसाधन को तीन े णय म बाँटा गया है : (अ) जल य, (ब) जै वक, तथा (स)
ख नज
इस दे श म जल य संसाधन क बहु लता है। यहां के समु के ठ डे पानी म
लकटन क मा ा अ धक होती है। अत: व वध कार क मछ लयां व सील
चु रता से पायी जाती ह। जै वक पशु ओं म यहाँ ु वीय भालू भे ड़ये, म क बैल,
कैर बू रे डीयर, ल मग तथा खरगोश एवं वालरस व पग वन जैसे व श ट ज तु
पाये जाते ह। पग वन क अ टाक टका महा वीप म सं या अ धक पायी जाती है।
शीत धान कठोर जलवायु होने के कारण यहाँ उपल ध ख नज संसाधन का अभी
तक पूण दोहन नह ं हो पाया है। अभी तक कु छ े से ह ख नज का दोहन हो
रहा है। ीनलै ड म ई वगटु ट (Ivigtut) े से ायोलाइट, स के पेबानो े
से नकल, ेट बीयर झील के समीपवत भाग से यूरे नयम , वालवॉड तथा ल ना
नद के डे टा े से कोयला रख अला का के उ तर भाग म ाकृ तक गैस
उपल ध है।
(iv) मानवीय वातावरण : कठोर शीत धान जलवायु के कारण यहाँ मानव नवास के
लए अ य त तकू ल प रि थ तयाँ ह। अ टाक टका महा वीप पूणत : जनशू य
दे श है एवं आक टक मृत म भी केवल दो यि त त वग कमी का जनसं या
घन व पाया जाता है। इस वृत म मानव ने जीवन यापन के लए आखेट तथा
म य पालन को ह अपनी अथ यव था का आधार बनाया हु आ है। कु छ े म
रे ि डयर पालन व पशु चारण भी यहाँ के नवा सय का यवसाय है । यहाँ मानव
बसाव के दो े , उ तर अमे रका तथा यूरे शया ह। दोन े म मानव के रहन
सहन व आ थक काय म पया त व भ नता पायी जाती है। उ तर अमे रका के
कनाडा व ीनलै ड े म एि कम लोग नवास करते ह। ये लोग मु यत: सील
का शकार करते ह। अत: इनके आवास भी समु तट के पास मलते ह। शीत
ऋतु म बफ को काटकर इनके वारा यहाँ बनाये व श ट आवास को इ लू
(Igloo) कहते ह। यूरे शया के यूरोप तथा पूव स के उ तर भाग म लै स,
तंग,ु चकची, याकू त, सैमोये स आ द जनजा तयां पायी जाती ह। ये रे ि डयर का
शकार व इसका पालन भी करते ह। पशुचारण के लए ये लोग ऋतु ओं के
अनुसार उ तर से द ण तथा द ण से उ तर क ओर खसकते रहते ह। पर तु

309
हाल के वष म, इन दोन ह े के नवासी द ण के अ धक स य लोग के
स पक म आने लगे ह, िजससे इ ह आधु नक व तु एं व सु वधाएं उपल ध होने
लगी ह। यहाँ के े म अनेक थान पर लड़ाकू वमान उ डयन के (Air
Base) था पत कये जाने से भी इस े का वकास होने लगा है।

15.3.2 उ तर उप ु वीय संसाधन दे श (North Sub-Polar Region)

(i) ि थ त एवं व तार : शीतो ण क टबंध क उ तर सीमा पर 45० उ तर अ ांश


से ारभ होकर 66 1/2० उ तर अ ांश के म य ि थत पेट म इस दे श का
व तार उ तर अमे रका, यूरोप व यूरे शया म पाया जाता है। इसे टै गा दे श भी
कहते ह। यहाँ क जलवायु टु ा क अपे ा कम कठोर होती है। जु लाई का
तापमान लगभग 15 से ट ेड तथा जनवर का तापमान 5० से ट ेड रहता है।

अ धकांश वषा ी म ऋतु म होती है। शीतकाल म बफ गरती है। वा षक वषा


का औसत 20 से 40 सेमी. होता है। वष भर कम तापमान रहने से वा पीकरण
क दर भी कम रहती है जो पौध क वृ के लए लाभदायक होती है। दे श के
अ धकांश े म जाड़े व ी म काल के औसत तापमान म अ धक अ तर नह ं
पाया जाता है। पर तु साइबे रया म वा षक तापा तर क दर अ धक होती है। यहां
के बख यान क े म जनवर के औसत तापमान - 58० से ट ड
े तक पहु ँ च
जाते ह। सह तट के पास अपे ाकृ त अ धक तापमान होने के कारण टै गा वन
का द ण क ओर व तार कम ह हु आ है, जब क महा वीप के आ त रक भाग
म ठ ड अ धक पड़ने के कारण इनका व तार अ धक द ण तक पाया जाता है।
(ii) ाकृ तक वातावरण व संसाधन (Natural Environment & Resources) :
इस दे श म भी ाकृ तक वातावरण पर म जलवायु का भाव प ट प रल त
होता है। यहाँ ी म ऋतु छोट व अ पाव ध क होती है। इसके वपर त शीतकाल
ल बा व कठोर होता है। ी मकाल म दन 18 से 24 घ टे के होते है, पर तु
शीतऋतु म दन क अव ध छोट रहने का कारण न न तापमान पाया जाता है।
अत: वन प त क ी मऋतु म ह तेजी से वृ का समय होता है। वषा
ी मकाल म होती है व वा षक वषा का औसत 25 सेमी तक पाया जाता है।
इस दे श के ादे शक धरातल म पया त वषमता पायी जाती है। पवत , पठार व
मैदान से बने धरातल को यहाँ बहने वाल न दय ने तथा हम वाह के कटाव
ने असं य झील म बदल दया है।
उप ु वीय दे श के सबसे मु ख संसाधन टै गा वन ह। यहाँ अ धकतर एक ह
जा त के धार वन पाये जाते ह। अमे रका म स
ू तथा फर, पि चमी
साइबे रया म फर, बच और एवं पूव साइबे रया म लाच तथा फर के वृ क
धानता है। जब क न दय के कनारे , जलाशय व झील आ द के आसपास, चौड़ी

310
प ती वाले वन भी पाये जाते ह। कोणधार वन क लकड़ी नरम व मू यवान
होती है। इसका उपयोग दयासलाई व कागज बनाने म होता है।
वन प त के अ त र त अ य जै वक संसाधन म आ थक ि ट से पशु ओं का भी
यहाँ मह व है। रे डीयर, हरण, कैर बू भू ज व म क आ स मु ख पाये जाने वाले
जीव ह। ज तु ओं के फर व अ य अंग का यापार यहाँ क अथ यव था का
आधार है। यहां कु छ ख नज के लए कनाडा का ले ाडोर व वीडन का क ना-
गै लबर े स है। कनाडा के सडवर े म सोना, चाँद , सीसा, ज ता,
लै टनम, ताँबा तथा बहु धाि वक न कल ख नज मलते ह जब क यूरे शया के
पठार म कई थान पर सोना मलता है व यूराल पवतीय े म लोहा,
कोबा ट, ोमाइट, टं ग टन, टाइटे नयम, वेने डयम, सीसा, न कल, ताँबा, ज ता
तथा ए यू म नयम मलते ह। मैदानी भाग क परतदार च ान म पीट, कोयला
तथा ख नज तेल नकाला जाता है।
(iii) मानवीय वातावरण : पृ वी के कु ल े फल के 10 तशत से भी अ धक भाग
पर फैले हु ए इस वशाल दे श म जनसं या का घन व मा 2 यि त त
कलोमीटर है, पर तु सह तट य भाग , न दय के कनारे तथा प रवहन के साधन
क सु लभता वाले े म जनसं या घन व 5 से 20 यि त त वग
कलोमीटर तक है।
यूरे शया म मु यत: घुम कड़ जा तय के लोग रहते ह। पशु चारण इनका पहले भी
यवसाय रहा है। ये रे ि डयर के झु ड पालते ह। इसके अलावा यहाँ के नवासी
कह -ं कह ं वन म लकड़ी काटने, फर वाले पशु ओं को पकड़ने तथा खनन काय से
जु ड़े हु ए ह। इन घुम तु जा तय को अमे रका म रे ड इि डयन, कै डीने वया म
लै स तथा साइबे रयान म याकू स कहते ह। अब तो यहाँ अनेक यूरो पयन व
अमे रकन वासी भी आकर बस गये ह व ख नज े का वकास कया है। इस
े को वृहद मृत म पड़ने के कारण इसका मह व और भी बढ़ गया है।
बोध न -2
1. ु वीय दे श म च ड ग त से चलने वाल शु क व शीत पवन को कौन
सी आं धयाँ कहते है ?
............................................................................................
................................................................ ............................
2. पि वन अ धक सं या म कस महा वीप पर पाये जाते ह ?
............................................................................................
................................................................................ ............
3. ीनलै ड का ईवीगटु ट े स है –
(अ) लोहा उ पादन के लए (ब) आखे ट के लए
(स) ायोलाइट के लए (द) पि वन के लए

311
4. उ तर उप ु वीय सं साधन दे श का अं ाशीय व तार बताइये ।
............................................................................................
.............................................. ............................
4. उ तर उप ु वीय दे श के सवा धक ठ डा रहने वाले थल का नाम बताइए।
............................................................................................
.................................................................................. ..........

15.3.3 आं ल अमे रक दे श (Eastern Anglo American Region)

(i) ि थ त एवं सामा य वशेषताएँ : इस दे श म से य द कनाडा के टै गा तथा टु ा


दे श को पृथक कर दया जावे तो स पूण कनाडा तथा संयु त रा य अमे रका
इसके अ तगत आते ह। इस दे श म ाकृ तक वातावरण क अपे ा सां कृ तक
वातावरण के त व अ धक भावशाल ह। यहां के मू ल नवासी ए क मो व रे ड
इि डयन क सं या कम हो रह है तथा यूरोप व अ य दे श से आये लोग क
सं या बढ़ रह है। यह व व के सघनतम जनसं या वाले दे श म से एक है।
इस दे श म वपुल ाकृ तक स पदा, मानव क उ च वै ा नक ि ट, तकनीक
तथा सूचना ौ यो गक के वकास तथा सामािजक भाव के कारण अ य धक
आ थक ग त हु ई है। व व के महान औ यो गक दे श यहाँ ि थत है।
(ii) ाकृ तक वातावरण : आं ल अमे रका दे श म जलवायु एवं धरातल य बनावट म
पया त व भ नता दे खने को मलती है। ादे शक भ नता के आधार पर इसे दो
भाग म बाँटा गया है।

15.3.3.1 पूव आं ल अमे रका दे श (Eastern Anglo American Region)

(अ) सामा य वशेषताएँ


(i) यह पठार तथा मैदान से न मत, अपे ाकृ त अ धक संसाधन स प न दे श ह।
(ii) मसी सपी, मसौर नद के उपजाऊ मैदान इस दे श म ि थत ह।
(iii) जलवायु क ि ट से 50 सेमी वषा रे खा के पूव भाग को आं ल अमे रका कहते
ह। इस भाग म वषा ाय: 50 से 150 सेमी के म य होती है पर तु इसक मा ा
मश: पि चम तथा उ तर को घटती जाती है।
(iv) दे श के उ तर भाग म शीतकाल कठोर होती है।
(v) कसी समय के स ेयर ज घास के मैदान आज यहाँ के मु ख कृ ष दे श बन
गये ह।
(vi) जलवायु क व भ नता तथा द ण से उ तर क ओर तापमान एवं वषा म कमी
होते जाने के आधार पर ग ना, कपास, म का व गेहू ँ क अलग-अलग कृ ष
पे टयाँ पायी जाती ह।
(vii) पहाड़ी भाग व घा टय म म त वन पाये जाते ह।

312
(ब) ख नज एवं शि त के संसाधन : यह ख नज एवं शि त के साधन क ि ट से एक
स प न दे श है। इस दे श के अ ले शयन, पूव आ त रक, पि चमी आ त रक (संयु त
रा य अमे रका) तथा नोवा को शया व ं नक (कनाडा) के
ज े शि त के संसाधन म
स प न ह। यहाँ कोयला, ख नज तेल तथा ाकृ तक गैस के वपुल भ डार ह। नया ा
पात तथा ए ले शयन पवत से नकलने वाल न दय पर न मत बांध जल व युत
उ पादन के लए व यात ह। यूजस तथा ओजाक े म सीसा, ज ता एवं अलौह
धातु ओं का उ पादन होता है। ए ले शयन पवत के द णी भाग म एवं महान झील के
े म लौह अय क के वशाल सं चत भ डार ह।
(स) मानवीय एवं सां कृ तक वातावरण : पूव आं ल अमे रका म संयु त रा य अमे रका
क 75 तशत तथा कनाडा क 85 तशत जनसं या केि त है। पूरे व व म आधु नक
ान तथा व ान का सवा धक वकास इसी दे श म हु आ है। तकनीक ान तथा आ थक
वकास के त अ धक जाग कता होने के कारण ह यहाँ कृ ष, उ योग ध ध व सू चना
ौ यो गक का भी तेजी से वकास हु आ है। अ धकांश जनसं या नगर म नवास करती
है। यूयाक नगर पूरे व व क आ थक राजधानी माना जाता है।

15.3.3.2 पि चमी आं ल अमे रका दे श (Western Anglo American Regions)

(अ) सामा य वशेषताएँ :


(i) राक पवत मालाओं एवं शा त महासागर के तट के पास ि थत यह वशाल
पवत े णय , अ तपवतीय पठार तथा घा टय का दे श है।
(ii) यहाँ क धरातल क व वधता के कारण एक थान से दूसरे थान क जलवायु
म वषमता पाई जाती है।
(iii) इस भाग म पूव भाग क अपे ा वषा कम होती है, पर तु पवत के पि चमी
ढाल तथा ऊँची े णय पर वषा अ धक होती है।
(iv) इसका द णी पि चमी वशाल भाग वृि ट छाया े म आने से वषा के अभाव
म रे ग तान म बदल गया है।
(v) शा त महासागर य तट पर जहाँ वषा पया त होती है तथा म ी उपजाऊ है,
वह ं वकास क दर तेज है।
(ब) संसाधन व सां कृ तक वातावरण : संसाधन म स प न होने के बाद भी धरातल व
जलवायु क तकू ल प रि थ तय पाये जाने के कारण यह े पूव दे श क तु लना म
कम वक सत हो पाया है। कै लफो नया े म ख नज तेल, रॉक पवतीय े से कोयला
तथा टश कोलि बया, का केद तथा सयरा नवेदा रा य म जल व युत का उ पादन
होता है। इसके अलावा एर जोना, उटाह व मो टाना रा य म ताँबा तथा कनाडा के
कोलि बया रा य म क बरले म व व स सीसा, ज ता तथा चाँद क खान ह। त
वग क मी. जनसं या घन व कम है। शा त तट य दे श म तथा समतल धरातल वाले
े म जहाँ आवागमन के साधन वक सत हो गये ह, सघन जनसं या नवास करती है।

313
15.3.4 शीतो ण यूरोपीय दे श (Temperate European Region)

टै गा तथा टु ा क पतल प ी को छोड़कर सम त यूरोप महा वीप इसके अ तगत आता


है। पूव क ओर इसका व तार साइबे रया के पि चमी भाग तक है। यहाँ वषा पया त होती
है। अत : उ नत कार क कृ ष का तेजी से वकास हु आ है। औ योगीकरण, तकनीक
वकास तथा यावसा यक व श टता ने इस दे श को वकास क अ य धक ऊँचाईय पर
पहु ँ चा दया है। पठार व व तृत मैदान से न मत धरातल तथा समशीतो ण जलवायु
दशाओं क अनुकूल प रि थ तय ने मानव क काय मता को बढ़ाते हु ए और फू त
दायक बना दया है। पर तु जलवायु, रहन सहन व आ थक तर म उ तर से द ण व
पूव से पि चम म पया त वषमता दे खने को मलती है। इसके आधार पर इसे चार मु ख
उप वभाग म बाँटा गया है।
(अ) उ तर पि चमी समु तट य दे श (North West Oceanic Region)
(ब) म य यूरोप (Middle Europe)
(स) यूरोपीय स (European Russia)
(द) भू म यसागर य यूरोपीय दे श (Mediterrean Coastal Europe)
(अ) उ तर पि चमी समु तट य दे श (North West Oceanic Region)
इस दे श क सामा य वशेषताएँ न न ह : -
(i) यूरोप महा वीप के पि चम म ि थत वीडेन, नाव, हॉलै ड, डेनमाक, बेि जयम,
जमनी, ांस तथा ेट टन दे श इसम आते ह।
(ii) इस दे श म सागर य सम जलवायु का भाव रहता है। वषा वष भर होती है तथा
औसत वा षक तापमान 15 से 30 से ट ड
० ०
े के म य रहता है।
(iii) दे श के उ तर व द णी छोर पर ि थत पवत े णय को छो कर सम त भाग
समतल मैदानी है व पॉडजो लक म याँ पायी जाती ह िजनम उवरक क मा ा
बढ़ाकर उ तम कार क कृ ष क जाती है।
(iv) इस दे श म कोयले के पया त भ डार है। लौह अय क सी मत मा ा म ह उपल ध है
जब क अलौह धातुओं का अभाव है। केवल ांस म बॉ साइट ख नज पाया जाता है।
(v) अनुकूल जलवायु, तट य मैदानी दे श क उपि थ त, संसाधन क चुर उपल धता
तथा उ च ौ यो गक वकास व उपल ध तकनीक सु वधाओं के. कारण इस े का
तेजी से औ यो गक वकास हु आ है। आज यूरोप क सबसे सघन जनसं या इस दे श
म नवासी करती है।
(ब) म य यूरोप (Middle Europe)
यूरोप महा वीप के द ण म भू म य सागर से ारंभ होकर उ तर म टै गा तथा टु ा तक
तथा जमनी से स के बीच फैला म यवत यूरोप का यह एक सं मणीय दे श है। इस
दे श पर पि चमी महासागर य जलवायु तथा पूव महा वीपीय जलवायु का सयु त भाव
दे खने को मलता है। शीतकाल म पछुआ पवन के भाव से यहाँ तापमान अ धक नह ं
गर पाता है, पर तु ी म ऋतु म गम अपे ाकृ त अ धक पड़ती है। इस कार वा षक

314
तापा तर क दर 30० फा. से 50० फा. के बीच रहता है। वषा अ नय मत होती है। मैदानी
भाग म साधारण वषा होती है जब क पवतीय ढाल पर अपे ाकृ त अ धक वषा होती है।
वषा के वपर त यहाँ पाला पड़ने क संभावनाएँ भी बनी रहती ह। िजससे यहाँ कृ ष फसल
को नुकसान होने क संभावना बनी रहती है।
इस दे श म अनेक कार के ख नज भी पाये जाते ह, पर तु उ पादन क ि ट से कोई
भी ख नज मह वपूण नह ं है। यहाँ लोहा, कोयला, पे ो लयम, ताँबा, ज ता, सीसा,
बॉ साइट, पोटाश, ेफाइट आ द ख नज का उ पादन होता है।
यहाँ जनसं या का घन व 10०-25० यि त त वग कमी. है। अ धकांश जनसं या गाँव
म नवास करती है। इस म यवत सं मण पेट म पूव व पि चमी स यताओं का म त
भाव प ट प से दे खने को मलता है। अनेक जा तय के बीच होने वाल वच व क
लड़ाई, दे श क राजनै तक सीमाओं म नर तर प रवतन तथा राजनै तक अि थरता ने यहाँ
के आ थक वकास क दर को बा धत कया है।
(स) यूरोपीय स (European Russia)
शीतो ण यूरोपीय प रम डल का यह सबसे पूववत भाग है िजसका अ धकांश व तार
यूरोपीय स म है। यहाँ पूणत: महा वीपीय जलवायु का भाव है। शीतकाल म कठोर ठ ड
व ी मकाल म अ धक गम पड़ती है। जाड़े का तापमान हमांक ब दु से भी नीचे गर
जाता है। वा षक तापा तर क दर 54० फा. से भी अ धक है। औसत वा षक वषा 25
सेमी. से 50 सेमी. तक होती है। अत: फसल उगाने के लए अनुकू ल अव ध 120 से
180 दन तक होती है। धरातल ाय: समतल व म य येर व चेरनोजम कार क
ह। म त वन यु त वन प त यहाँ पायी जाती है। इस दे श म कोयला, ख नज तेल व
जल व युत के प म ऊजा के संसाधन चु र मा ा म से उपल ध ह। लोहा ख नज व
अलौह धातु भी यहाँ पया त मा ा पाये जाते ह।
इस दे श म जनसं या का वतरण असमान है। जैसे-जैसे उ तर म शीत के कोप व
द णी े म शु कता के भाव बढ़ने लगता है वैस-े वैसे जनसं या के घन व म भी
कमी होने लगती है। जनसं या का औसत घन व 50 से 250 यि त त कमी. पाया
जाता है। इस दे श म श ा के वकास, प रवहन सु वधाओं एवं व ान व तकनीक के
वकास ने तेजी से यहाँ के संसाधन को वक सत कया है और अब यह एक मह वपूण
औ यो गक दे श के प म उभरा है।
(द) भू म यसागर य यूरोपीय दे श (Mediterranean Coastal Europe)
शीतो ण यूरोपीय दे श के द णी पूव भाग म भू म य सागर के समीपवत े म यह
दे श फैला है। इसके अ तगत पेन, इटल , ीस, चैको लोवा कया व म य द णी यूरोप
के े आते ह। यहाँ ी म ऋतु शु क होती है, पर तु जाड़े क ऋतु म भू म यसागर य
च वात से वषा होती है। जनवर म औसत तापमान सव 0० से ट ेड के पास रहता है
जब क ी मकाल म समु तट य भाग को छो कर दे श म तापमान 30० से ट ेड तक
पहु ँ च जाता है। धरातल य उ चावच क ि ट से यह एक वषम दे श है जो ऊँची पवतीय

315
चो टय , पठार व नद घा टय से न मत है। वषा का वा षक औसत 50 से 150 सेमी. है
जो शीतकाल म भू म य सागर म चलने वाल पछुआ पवन से होती है।
कोयला व ख नज तेल के प म शि त संसाधन का यहाँ अभाव है, पर तु जल व युत
के उ पादन क ि ट से यह एक वक सत े है। अ य ख नज का उ पादन यहाँ नग य
है। पेन म लोहा व ताँबा तथा इटल म गंधक, पोटाश व पारा तथा ीस म कु छ मा ा
म लोहा, मगनीज, म ने शयम, बॉ साईट व शीशे का उ पादन होता है।
यह दे श मानव स यता का मु ख के रहा है। यह ं से यूरोपीय स यता का सार हु आ
है। व ान व तकनीक वकास क अपे ा यहाँ कला, संगीत व दशन का वकास अ त
ाचीन काल से होता आया है। समु तट तथा मैदानी भाग म औसत जनसं या घन व
50 से 250 यि त त वग कमी. पाया जाता है जब क पवतीय े म यह 25 से
50 यि त त वग कमी. है।

15.3.5 अ का-ए शयाई शु क दे श (Africa-Asia Dry Region)

सामा य वशेषताएँ : कक व मकर रे खा के म य ि थत यह एक शु क एवं रे तीला दे श


है। इस दे श म उ तर गोला ि थत अ का का सहारा म थल य े , सऊद अरब,
थार व गोबी के म थल आते ह तथा द णी गोला म इसका व तार कलाहार के
म थल, पे , पैटागो नया, तथा आ े लया के म थल य े म है। पूरे दे श म अ त
शु क जलवायु दशाएँ पायी जाती है। वा षक वषा का औसत यहाँ 10 सेमी. से भी कम
रहता है। यह अ नि चत होती है। शु क हवाएँ नर तर बहती रहती ह तथा वा पीकरण क
दर बहु त अ धक होती है। वा षक तापा तर 20० से ट ड
े से भी अ धक होता है। ऐसी
वषम प रि थ तय म यहाँ वन प त के प म कह ं काँटेदार झा ड़यां तो कह ं मोट प ती
वाल घास पायी जाती है तथा कह -ं कह ं म यान (Oases) दे खने को मलते ह।
अ तः वाह जल वाह णाल यहाँ ाय: दे खने को मलती है।
शु क जलवायु के कारण पशु चारण ह लोग का मु ख यवसाय है। यहाँ भेड़, बक रयाँ,
ऊँट तथा याक यादा पाले जाते ह। इ ह ं शु क दे श म सव थम ाचीन नव तर युग
क स यता का सू पात हु आ था। तापीय वषमता तथा सां कृ तक एवं भौगो लक
व भ नता के आधार पर इस दे श को दो उप वभाग म बाँटा गया है।

15.3.5.1 अरब स यता वाले े

ये े मु यत: पि चमी सहारा, नील नद क घाट तथा द णपि चमी ए शयाई े म


फैला है। ये उ ण व शु क े ह। जहाँ ग मयाँ बहु त भीषण होती ह तथा शीतकाल म
सद कम पड़ती है। ल बया का म थल, सहारा म थल, नील नद क घाट , द णी
पि चमी ए शया के उ ण व शु क े इसम ि थत ह। उनक व श टताओं के आधार पर
इसे तीन उप े म बाँटा गया है -
(अ) पि चमी सहारा -

316
(i) सहारा रे ग तान का पि चमी भाग इसम सि म लत है।
(ii) यहाँ पथर ला च ानी धरातल पाया जाता है िजसे यहाँ ह मादा कहते ह।
(iii) इसके द ण म चेड झील, नाइजर नद व म य म होगार का पठार मु ख धरातल
े ह। कक रे खा इसके म य से गुजरती है।
(iv) चेड झील व ट ब कटू े म सवाना घास के े ह जब क शेष दे श पथर ला
म थल है।
(v) यूरोपीय लोग ने यहाँ आकर खजू र क कृ ष को वक सत कया है तथा उ ह ं के
यास से यहाँ ख नज पै ोल का उ पादन संभव हु आ है।
(ब) नील नद क घाट
(i) सहारा के पूव म उ तर सू डान तथा मस व ल बया के म थल के पूव म नील नद
क घाट का दे श ि थत है। नील नद से जल ाि त से नमी क पया त मा ा पायी
जाती है। रे तील भू म म संचाई वारा अ छ कृ ष होती है। नद घाट से बाहर क
ओर पथर ल धरातल ि थत है जहाँ जल का अभाव है। इसे यहाँ ह मादा कहते ह।
(ii) ल बया तथा म म ख नज तेल का उ पादन होता है।
(iii) म म कपास क कृ ष क जाती है।
(स) द ण पि चमी ए शया
(i) नील नद क घाट के पूव म लाल सागर के दोन ओर ि थत उ ण व शु क दे श
का धरातल भी च ानी तथा रे तीला है।
(ii) कभी यहाँ का जीवन अ यंत क ठन था जहाँ पर ब ू व अ य जा त के घुम तु लोग
खानाबदोश के प म पशुचारण करते थे।
(iii) ख नज तेल के उ पादन शु होने से यहाँ क अथ यव था म एकदम प रवतन आया
है।
(iv) आज फारस क खाड़ी के हर दे श म ख नज तेल का उ पादन कया जाता है।

15.3.5.2 तुक -मंगोल स यता वाले दे श

अ का-ए शयाई शु क संसाधन दे श का यह े द णपि चम ए शया म इरान के


पि चमी भाग व तु क के पठार से ारं भ होकर पूव म मंगो लया, गोबी के म थल तथा
त बत के पठार तक व तृत है। इसम अनातो लया का पठार, ईरान, बलु च तान,
अफगा न तान का पवतीय व पठार भाग, ा स कैि पयन क नचल भू म, मंगो लया
तथा त बत के पठार दे श शा मल ह। अनातो लया का पठार भाग एक शु क े है
जहाँ 25 सेमी. तक वषा हो जाती है। अत: यहाँ अंगोरा जा त क बक रयाँ मु यत: पाल
जाती ह। जनवर के तापमान हमांक ब दु से भी नीचे चले जाते ह। इस समय यह े
उ तर पूव शीत हवाओं के भाव म रहते ह।
यहाँ से पूव म ईरान, बलु च तान व अफगा न तान होते मंगो लया तक फैला यह एक
शु क े है। यहाँ का धरातल शु क व पठार है पर तु इसी म ए बुज, कराकोरम, व

317
ह दुकुश के पवतीय भाग भी पड़ते ह। वष पय त शु कता व मौसमी बदलाव रहने के
कारण पशु चारण व कृ ष ह यहाँ के लोग का मु ख यवसाय है। अ धक पूव म त बत व
मंगो लया भी शु पठार भाग ह, जहाँ शीतकाल म तापमान बहु त नीचे गर जाता है।
यहाँ भी पशु चारण ह मु य यवसाय है िजनम ऊँट, घोड़े, भेड़ को पाला जाता है। त बत
के पठार पर याक मु ख पालतू पशु है तथा यहाँ बौ धम के अनुयायी लामाओं क
जनसं या अ धक है।
जनसं या क ि ट से इस े के म य भाग म ाकृ तक दशाएँ रहने लायक नह ं ह।
अत: अफगा न तान व बलु च तान म दो यि त त वग कलोमीटर घन व पाया जाता
है। जब क ईरान म 20 व टक म जनस या घन व सवा धक है। टक को ए शया का
वेश वार भी कहते ह। यहाँ यूरो पयन व ए शयाई स यता का म त प दे खने को
मलता है। अत: यहाँ तेजी से आधु नकता व आ थक वकास हो रहा है। ईरान म एक-
तहाई आबाद आज भी खानाबदोश पशु चारक क है। पर तु ख नज तेल पर आधा रत
अथ यव था ने यहां के जीवन तर म प रवतन ला दया है।
ख नज क ि ट से यह े स प न है। पे ो लयम यहाँ क अथ यव था का आधार है
जो टक और ईरान म नकाला जाता है। इसके अ त र त यहाँ कोयला, ग धक, पाराइट,
िज सम, लोहा, ताँबा, ज ता आ द अनेक ख नज पाए जाते ह।
बोध न -2
1. त बत के पठार भाग पर पाले जाने वाले पशु का या नाम है ?
............................................................................................
............................................................................................
2. यू रोपीयन स म कस कार क जलवायु का भाव रहता है ?
(अ) भू म यरे खीय (ब) मानसू नी
(स) महा वीपीय (द) महासागर य
3. सहारा म थल कस महा वीप म ि थत है ?
............................................................................................
............................................................ ................................
4. '' ह मादा '' कसे कहते ह ?
............................................................................................
................................................................ .............................
15.3.6 आ एवं अ शु क अ क दे श
(i) ि थ त व व तार - नी ो जा त के नवास के प म यह दे श एक ाचीन
स यता का के रहा है। इसका व तार सहारा के रे ग तान के द ण म ि थत
म य अ का, गनी तट, सू डान तथा अ का के पूव तथा द णी े तक है।
इस दे श का अ ांशीय व तार 20० उ तर अ ांश से लेकर द णी अ का तक
है।

318
(ii) वातावरण एवं संसाधन - अ ांशीय व तार क अ धकता होने के कारण इस दे श
म तापमान व वषा के वतरण म पया त व भ नता मलती है। भू म यरे खा से
जैसे-जैसे दूर बढ़ती जाती है, वैसे ह वषा क मा ा व तापमान कम होते जाते
ह। भू म यरे खा के पास तापमान व वषा क अ धकता के कारण, भू म यरे खीय
उ ण क टबंधीय आ जलवायु का भाव है। म य अ का तथा गनी का तट
इसके अ तगत आते ह जहाँ सघन उ ण क टबंधीय आ वन पाये जाते ह। इनसे
बाहर क ओर शु कता बढ़ जाती है तथा ी म ऋतु के तापमान भी 30०
से ट ेड से ऊपर पहु ंच जाते ह। अत: यहाँ सवाना वन प त पायी जाती है।
तीसर पेट अ शु क जलवायु क है। जहाँ वषा मा 30 सेमी. से 50 सेमी. के
म य होती है। ी म ऋतु म तेज गम पड़ती है तथा छोट घास व कट ल
झा ड़याँ पायी जाती है। इस े के द ण म कालाहार म थल है तथा उसके
द ण म भू म यसागर य जलवायु पायी जाती है।
(iii) मानवीय दशाएँ - पूरे दे श म सघन वन, अ धक आ ता व भीषण उ णता क
वषम प रि थ तयाँ मानव नवास के लए अनुकू ल नह ं है। अत: व भ न भाग
म जनसं या घन व 20 से लेकर 200 यि त त वग कलोमीटर पाया जाता
है। संसाधन क उपल धता जलवायु क वषम दशाओं एवं जनसं या घन व म
पाये जाने वाले अ तर के आधार पर इसे तीन भाग म बाँटा गया है-
(अ) म य अ का
(i) कैम न, जायरे , अंगोला, द च, अ का व माल के कु छ े इसम शा मल
ह।
(ii) 25 लाख वग मील म फैले इस वशाल े क आबाद मा 2.5 करोड़ है।
(iii) प मी व बाँटू यहाँ क मु ख मानव जा त है।
(iv) घने वन व दलदल का व तार है।
(v) क मती ख नज क धानता है िजनम ह रा, सोना, यूरे नयम, रे डयम व ताँबा
मु ख ह।
(vi) कसाई घाट ह रे क खान के लए तथा च कोलोवाइव यूरे नयम के उ पादन
के लए स है।
(ब) गनी का तट
(i) अटलां टक तट के पास कैम न से सयरा सलोन तक यह दे श व तृत
है।
(ii) 10 लाख वग मील म फैले इस े क आबाद कर ब 5.5 करोड़ है।
(iii) न ो लोग का यह नवास थल है।
(iv) अ धक तापमान व वषा वाले इस दे श म तट के पास दलदल े ह
तथा उनसे सटे हु ए पठार भाग ह।

319
(v) यहाँ के वन म एबोनी, महो ग नी क लक ड़याँ तथा ना रयल, कोको व
केले के बागान यूरो पयस ने लगाये ह।
(vi) नाइजी रया म टन, घाना म मगनीज के भ डार ह एवं लोहा, सोना,
ह रा, ख नज तेल व ाकृ तक गैस का उ पादन भी होता है।
(vii) सघन वन व अ धक आ ता के कारण यहाँ अनेक बीमा रय का
कोप रहता है। यहां यूरो पयन क आबाद कम है। न ो लोग ह यहाँ
के मु य नवासी ह।
(स) सू डान तट
(i) सहारा म थल के द ण म ि थत यह वशाल दे श है।
(ii) 20 लाख वग मील म फैले इस े क जनसं या कर ब 1.5 करोड़ है।
(iii) वषा 50 सेमी. से कम होती है तथा अ शु क जलवायु पायी जाती है।
(iv) सवाना वन प त वाले घास के मैदान पाये जाते ह।
(v) समतल धरातल वाला दे श है पर तु तकू ल जलवायु दशाओं के कारण
जनसं या घन व कम है। घुम कड़ जा त के लोग पशु चारण यवसाय के
जु ड़े ह।
(vi) ख नज का नता त अभाव है।
(द) पूव अ का
(i) यह उ च पठार दे श है।
(ii) ऊँचे पवतीय े के कारण जलवायु उ तम है जो यूरोपीय लोग के लए
अनुकू ल है।
(iii) न ो जा त का यह मू ल नवास थान रहा है।
(iv) ख नज कम मा ा म पाये जाते ह।
(य) द णी अ क दे श
इस उप वभाग म अ का के िज बा बे, बो सवाना, नामी बया आ द दे श
को शा मल कया गया है। यहाँ समु तट य मैदानी े तथा आ त रक
भाग म पठार क बहु लता है। भू म य रे खा क दूर के कारण आ त रक
भाग म शीतो ण व तट के पास समशीतो ण जलवायु रहती है। यहाँ
यूरो पयन लोग अ धक रहते ह। यहाँ पर सोने के उ पादन म ांसवाल
तथा ह रे के उ पादन म ीटो रया क खान व व स ह।

15.3.7 मानसू न ए शया

सामा य वशेषताएँ : ए शया महा वीप के द ण, द ण पूव तथा पूव भाग म ि थत


भारत, पा क तान, बां लादे श, ीलंका तथा द णी पूव ए शया ि थत यांमार, थाईलै ड,
मले शया तथा चीन, जापान, को रया मल कर इस दे श का नमाण करते ह। इसका
अ ांशीय व तार 30 ०
उ तर अ ांश से 10 द ०
णी अ ांश तक है। मानसू नी जलवायु
क व श ट दशाओं के पाये जाने के कारण ह इसे मानसून ए शया कहा जाता है। ी म
320
ऋतु गम एवं आ होती है तथा सम त दे श समु से थल क ओर चलने वाल
मानसू नी पवन के भाव म रहता है। शीतकाल सामा यत: ठ डा एवं शु क होता है तथा
हवाय थल से समु क ओर चलती ह। ी म ऋतु का औसत तापमान 27० से ट ेड व
अ धकतम 38० से ट ेड पाया जाता है, जब क शीतकाल म औसत तापमान 18० से ट ेड
तक पाया जाता है। दे श के उ तर गोला म तीन प ट ऋतु एँ पायीं जाती है माच से
जू न तक ी म ऋतु, जु लाई से अ टू बर तक वषा ऋतु तथा नव बर से फरवर तक शीत
ऋतु का भाव रहता है। जेट म पवन यहाँ क जलवायु का नधारण करती ह।
न दय वारा बहाकर लाई गई उपजाऊ म ी, पया त जल क मा ा व अनुकू ल जलवायु ने
यहाँ सघन जीवन नवाह कृ ष को ज म दया है। चावल व गेहू ँ मु ख खा या न ह। इसके
अलावा लू ट, ग ना, कपास व तलहन क कृ ष क जाती है। यह कारण है क व व क
आधी जनस या इस दे श म नवास करती है। बागानी कृ ष का यहाँ वशेष मह व है।
मु ख बागानी फसल चाय, कहवा, रबर तथा मसाले ह।
मानसू न ए शया दे श म चीन के उ तर पूव भाग ि थत फुशु न, यांि टसी घाट , शे सी
तथा शा टु ग के पठार से कोयला नकाला जाता है। भारत म भी दामोदर नद क घाट के
झ रया, रानीगंज व ग रडीह, महानद घाट के कोरवा तथा तालचर मु ख कोयला उ पादन
े ह। इ ह ं के पास वशाल लोह अय क के भ डार होने से लोहा एवं इ पात उ योग का
यहाँ तेजी से हु आ है। द णी पूव ए शया म पे ो लयम के भी पया त भ डार मौजूद होने
से यहाँ औ यो गक वकास के भ व य क अ छ संभावना है। इस भाग म पायी जाने
वाल े ीय व वधताओं के आधार पर इसे तीन भाग म बाँटा गया है
(अ) द णी मानसू न ए शया
(i) इसम भारत, पा क तान, बां लादे श, नेपाल व भू टान सि म लत ह।
(ii) मानसू नी जलवायु का भाव है। वषा द णी पि चमी मानसू न वारा होती है। औसत
वषा सह तट पर 200 सेमी. तथा आ त रक भाग म 50 सेमी. होती है।
(iii) वषा क मा ा म वष तवष भ नता दे खने को मलती है जो यहाँ सू खे और बाढ़ क
सम याओं के लए उ तरदायी है।
(iv) इस महासमू ह क अ धकांश जनस या गाँव म नवास करती है।
(v) कृ ष यहाँ क अथ यव था का आधार है।
(ब) द णी पूव मानसू न ए शया
(i) इसम यांमार, मले शया, संगापुर , इ डोने शया तथा लाओस आते है।
(ii) यहाँ पवत; मैदान तथा पठार पाये जाते ह। ादे शक तापा तर कम होता है व वषा
अपे ाकृ त अ धक व नि चत होती है। यह दोन द णी पि चमी मानसू न एवं उ तर
पूव मानसू नी हवाओं से होती है। वन प त सघन व उ ण क टब धीय सदाबहार वन
के प म पायी जाती है।
(iii) मैदान म जहाँ कृ ष के लए अनुकूल प रि थ तयाँ ह। जनसं या का जमाव अ धक
होता है

321
(iv) यांमार म पे ोल, मले शया म टन, इ डोने शया म पे ोल तथा थाइलै ड म टन व
टं ग टन नकाले जाते ह।
(v) सम त दे श म बागानी कृ ष का मह व है, रबर, चाय व ना रयल मु ख फसल ह।
(स) पूव मानसू न ए शया
(i) इस उप वभाग म चीन, जापान तथा को रया आते ह।
(ii) चीन म व तृत समतल मैदान ह, िजनके नमाण म यहाँ क मु ख न दय , हांगहो,
यां ट सी यांग तथा सी यांग का मह वपूण योगदान है।
(iii) यहाँ मानसू नी जलवायु होते हु ए भी जाड़े म अ धक ठ ड पड़ती है।
(iv) व व क एक तहाई जनसं या यहाँ नवास करती है।
(v) जापान तथा चीन के कुछ ा त म जल व युत ऊजा का अ य धक मह व है।
(vi) यहाँ पर कृ ष यवसाय का अ य धक मह व है, पर तु म य उ पादन पर भी उतना
ह बल दया जाता है।
(vii) लोहा अय क, ताँबा, ज ता तथा ग धक नकाले जाने वाले मु ख ख नज ह।

15.3.8 लै टन अमे रक दे श

म य एवं द ण अमे रका म इस दे श का व तार म है। यह दे श ाकृ तक संसाधन


से भरपूर िजसम अपार ख नज संसाधन, अनुकू ल जलवायु, घने जंगल, जल व युत ऊजा
का उ तम आधार उपल ध है। पर तु इनका अभी तक उपयोग नह ं हो पाने से यह दे श
वकास क दौड़ से पछड़ रहा है। इस दे श म यूरोप से पेन व पुतगाल नवा सय ने
16वीं-17वीं शता द म आकर बसना शु कया तब से यह े वक सत हु आ है। इनके
आगमन से पूव यहाँ रे ड इि डयन रहते थे जो पशुचारण व कृ ष जैसे ाथ मक यवसाय
वारा अपना जीवनयापन करते थे। इस दे श म यूरो पयन के आगमन के साथ ह
संसाधन का वदोहन तेजी से होने लगा पर तु ाकृ तक धरातल व जलवायु म पायी जाने
वाल वषमताओं से वकास क एक पता नह है। जहाँ ख नज क चु रता है, धरातल
समतल है, तथा जलवायु अनुकू ल है वे सजी से वक सत होते गये पर तु जो दे श इन
सु वधाओं से वं चत थे वहाँ वकास अभी भी नह ं के बराबर है। इ ह ं वषमताओं के
आधार पर पूरे दे श को 6 भाग म बाँटा गया है िजनक मु ख वशेषताएँ न न ह -
(1) उ तर लै टन अमे रका : म य अमे रका, मैि सको तथा पि चमी वीप समू ह से
मलकर यह बना है। भौगो लक प से उ तर अमे रका म होते हु ए भी यहाँ
लै टन अमे रक सं कृ त का भाव दे खने को मलता है। कक रे खा इस दे श को
दो भाग म बाँटती है इसके उ तर म ि थत मैि सको का अ धकांश भाग शु क
है, पर तु कक रे खा के द ण म इस े के पूव भाग म थानीय च वाती
दशाओं से वषभर पया त वषा होती है। ले कन पि चमी तट पर वषा क मा ा म
मौसमी अ तर पाया जाता है। धरातल व जलवायु क व भ नता का भाव यहाँ
के आ थक याकलाप पर भी दे खने को मलता है। पूरे दे श म कृ ष यवसाय

322
व ाथ मक उ पादन का मह व है। बागानी कृ ष का यहाँ वशेष मह व है। केला,
कोको तथा कहवा के बागान पाये जाते ह।
ख नज के उ पादन म यह दे श स प न है। व व क 30 तशत चाँद यहाँ
मलती है। यूबा म मगनीज, जमैका म बॉ साइट तथा नीडाड म ख नज तेल
के पया त भ डार ह। जनसं या का अ धक बसाव नद घा टय व तट य भाग म
पाया जाता है।
(2) कैरे बयन द णी अमे रका : द ण अमे रका के उ तर भाग म ि थत
कोलि बया, वेनेजु एला तथा गायना सि म लत ह। यहाँ भौगो लक धरातल व
जलवायु म समानता पायी जाती है। यहाँ उ ण क टबंधीय समु तट तथा भूम य
रे खीय जलवायु का भाव है। धरातल का अ धकांश भाग पठार व पहा ड़य से
न मत है जहाँ ऊँचाई के साथ तापमान म कमी आती जाती है जो मानव बसाव
के अनुकू ल है। अत: जनसं या का सके ण भी ऊँचे भाग म ह यादा पाया
जाता है। यहाँ मैि टजो, रे ड इि डयन, न ो व यूरो पयन लोग नवास करते है।
ख नज क ि ट से यह दे श स प न है। यहाँ वेनेजु एला तथा गुयाना म
हे मेटाइट कार के लौह अय क के वशाल भ डार ह। गुयाना म तथा सू र नाम म
बॉ साईट के पया त सं चत भ डार पाये जाते ह। इसके अ त र त कोलि बया म
सोना, ले टनम तथा प ना के मु ख भ डार ह।
(3) म य ए डीज पवतीय े : ए डीज पवत मालाओं के म य भाग म ि थत
इ वेडोर, पी तथा बोला वया दे श इस े म सि म लत है। यहाँ का धरातल
पवतीय है। यहाँ आ व शु क जलवायु मलती है। जहाँ एक मौसम अ छ वषा
का होता है तो दूसरे म शु कता पायी जाती है। तट य भाग जो थल के भाव
म यादा रहते ह वहाँ शु क पवन बहती ह जब क पवत व उ च पठार पर
मौसम आ रहता है।
(4) द णी ए डीज : ए डीज पवत के पि चमी तट य े म चल का स पूण भाग
इसके अ तगत आता है। इसका व तार द णी अमे रका के पि चमी तट के
पास उ तर से द ण को एक ल बी प ी म है। व तार क अ धकता से यहां क
जलवायु कई क टबंध से भा वत है। उ तर म उ ण म थल य, म य म
भू म यसागर य तथा द ण म समु तट य जलवायु पायी जाती है। केवल
म यवत मैदानी भाग तथा तट य े म ह जनसं या का बसाव अ धक है। शेष
े पवतीय या उबड़-खाबड़ धरातल वाला होने के कारण जनस या को यादा
आक षत नह ं करता।
चल म ताँबा व लोहा ख नज पया त मा ा म पाये जाते ह। ची वी कामाटा म
ताँबा तथा अटाकामा के म थल म लोहा व सो डयम नाई े ट क खु दाई क जाती
है।

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(5) द णी पूव द णी अमे रका : द णी अमे रका महा वीप का यह सु द ूर
द णवत े है, िजसम पैरागुआ, अज टाइना तथा यूरा वे दे श शा मल ह। इस
दे श म उ ण टे पी तु य तथा म य अ ांशीय म थल जलवायु पायी जाती है।
िजसके कारण यहां म त वन व छोट घास के मैदान पाये जाते ह। अ धकांश
भाग चरागाह के लए स है तथा कृ ष के लए भी यहाँ अनुकू ल प रि थ तयाँ
ह। अत: यहां के नवा सय का आज भी मु ख यवसाय पशु पालन और कृ ष
फाम है। कसी समय यहाँ भी रे ड इि डयन तथा न ो लोग का ह यादा बसाव
था पर तु धीरे -धीरे यूरो पयन ने यहां आकर बसना शु कर दया। इस भाग म
वेश करने के लए इ ह ने सव थम ला लाटा नद के मु हाने पर सन ् 1535 म
यूनसआयस ब दरगाह क थापना क । आज यहाँ क अ धकांश जनसं या इसी
उ तर पूव भाग म पै पास के घास के मैदान म केि त है। भीतर भाग म
जनसं या कम होती जाती है। पैटागो नया एक म थल य े है तथा ाय:
जनशू य है। ख नज संसाधन क यहां कमी है पर तु पैटागो नया एवं ाम चाको
म पे ो लयम ा त होने क कु छ संभावना है।
(6) ाजील : द णी अमे रका के लगभग आधे भाग म ि थत ाजील द ण
अमे रका का सबसे बड़ा दे श है। पूरे महा वीप क आधी जनसं या यहाँ नवास
करती है। ाजील के पठार भाग म आ -शु क तथा अमेजन बे सन म
भू म यरे खीय जलवायु का भाव है। अमेजन नद यहाँ क जीवन दा यनी नद है।
यहाँ पर औसत 175 से 250 सेमी. वषा होती है जब क पठार भाग म वषा 75
से 125 सेमी. होती है। यह भाग अमेजन क नचल भू म, ाजील के पठार
तथा समु तट य मैदान से न मत है िजसका 80 से 90 तशत भाग आ थक
उपयोग के लए अनुकू ल है। पूरे दे श म पवतीय उबड़-खाबड़ धरातल के बजाय
समतल पठार व मैदानी भाग क अ धकता, पया त जल संसाधन व अनुकू ल
तापमान क दशाओं के पाये जाने तथा अ छ उपजाऊ म ी के चु रता से
उपल ध होने के कारण कृ ष के लए अनुकू ल प रि थ तयाँ ह। बागानी कृ ष यहाँ
मु खता से क जाती है िजसके अ तगत कहवा, कोको तथा ग ना उपजाया जाता
है।
यहां पया त ख नज संसाधन उपल ध ह िजनम लोहा, मैगनीज, ह रा, सोना तथा
बॉ साइट मु ख ह। मीनास गैरास म लोहे का वशाल भ डार है तथा बेलो
हा रजोटे के नकट सोने क खु दाई होती है। जनसं या का बसाव भी ाजील के
समु तट य भाग म तथा ख नज वाले द णी पूव पठार भाग म ह अ धक है।
आ त रक पठार भाग तथा अमेजन घाट म जनसं या का घन व कम है। ाजील
म पुतगा लय का भाव यादा है।

324
15.3.9 शा त सागर य दे श

सामा य वशेषताएँ : आ े लया महा वीप स हत शा त महासागर म ि थत अन गनत


वीप को इस दे श म सि म लत कया जाता है। इनम मु ख प से आ े लया,
यूजीलै ड, यू गनी , फल पींस, व माक वीप समू ह आ द शा मल ह। इन वीप समूह
को तीन भाग म बाँटा गया है।
(अ) यू गनी , व माक वीप समू ह, फजी वीप समू ह, सोलोमन तथा यू हे ाइ स को
मेलाने शया कहते ह।
(ब) यूजीलै ड, हवाई तथा ई टर वीप समू ह को मलाकर बने भु जाकार े म ि थत
वीप के समू ह को पोल ने शया कहते ह।
(स) कैरोलाइन, मेर आना, माशल वीप व इनके साथ जु ड़े असं य छोटे -छोटे वीप को
सि म लत प से माइ ोने शया कहा जाता है।
इन वीप समू ह क स यता व सं कृ त द णी पूव ए शया तथा पूव वीप समू ह से
उ प न स यता व सं कृ त क शाखाएँ ह मानी जाती ह। पर तु यहां के आ दवा सय म
कसी धम वशेष के त क रता व ब धन होने के कारण यूरो पयन स यता का तकार
करने क इनम मता नह ं थी। अत: यूरोपीयन स यता का इन पर भाव तथा इस दे श
म सार बहु त तेजी से हु आ। शा त महासागर य दे श को न न चार उप वभाग म बाँटा
गया है।
(1) आ े लया यूजीलै ड े : शा त महासागर म ि थत ाचीन ढ़ भू ख ड के
द णी पूव भाग म ि थत इस े म आ े लया तथा यूजीलै ड को
सि म लत कया जाता है। इस स पूण े का धरातल समु तल से मा 30
मीटर ह ऊँचा है। ऊँचाई कम होने के कारण यहाँ वायुदाब अ धक रहता है। तट य
भाग म आ तथा आंत रक भाग म शु क जलवायु क धानता है। धरातल य
उ चावच के तीन व प नजर आते ह। पि चमी भाग पठार है। म यवत भाग
काप या क खाड़ी से ेट आ े लयन बट तक नीची भू म है िजसम मरे
बे सन शा मल है। जलवायु तथा धरातल क वषमता के कारण यहाँ आ ,
अ शु क तथा शु क एवं भू म यसागर य वन प त पायी जाती ह। आ े लया का
अ धकांश भाग चरागाह के लए उपयु त है। भेड़ का तथा पशु ओं म गाय का
पालन बड़े पैमाने पर कया जाता है। कृ ष के लए उपयु त भू म व ाकृ तक
दशाएँ मर -डा लग के बे सन म पायी जाती है।
यहाँ यूरे नयम तथा कोयला के उ पादन के अलावा सोना, चाँद , सीसा, ज ता,
ताँबा तथा टन व लोहा ख नज सभी का उ पादन होता है।
यह एक बसा हु आ महा वीप है जहाँ पर यादा आबाद टे न से आये लोग क
है। यहां क आधी से अ धक आबाद ए डलेड, सबेन, मैलबान, पथ, सडनी,
नगर म नवास करती है। आ े लया के द ण पूव म ि थत यूजीलै ड क
जलवायु एवं ाकृ तक वातावरण आ े लया से सवथा भ न है। यहाँ आ

325
शीतो ण जलवायु पायी जाती है। यूजीलै ड का आ धकांश धरातल पहाड़ी एवं
पठार है। िजस पर बड़े-बड़े चरागाह पाये जाते है। पशु पालन यहाँ मु ख यवसाय
है। यहाँ क अथ यव था म इसका बहु त मह व है।
(2) मेलाने शया : मेलाने शया के वीप समू ह मु यत: वालामु खी अथवा वाल से
न मत ह। ये आ े लया के उ तर पूव भाग म यू गनी , सोलोमन एवं
यूहे वडस , ब माक वीप तथा फजी वीप के समू ह के प म ि थत ह। यहाँ
प मी तथा पापुआन लोग यादा रहते ह िजनका मु य यवसाय आखेट तथा
मछल पकड़ना है। इन छोटे -छोटे वीप पर यहाँ के थानीय लोग के अलावा
यूरोप तथा ए शया के अ य समीपवत दे श से भी लोग आकर बस गये ह।
वीपीय तट के पास उ च तापमान व अ धक वषा होने के कारण बागानी कृ ष
का वकास हो रहा है। इन वीप पर कु छ ख नज का उ पादन भी कया जाता है
िजनम न कल, ोमाइट, लोहा, मगनीज, ताँबा, ज ता, चांद तथा कोयला है।
(3) माइ ोने शया : यू गनी के उ तर से फल पींस के पूव म ि थत छोटे -छोटे वीप
के समू ह को माइ ोने शया कहते ह। इनम मु यत: मै रयाना, मकाऊ, माशल,
गलबट तथा कारोलाइन वीप समू ह आते ह। इनम अ धकांश का नमाण वाल
वारा हु आ है। ये लगभग 1200 वगमील के े म फैले हु ए ह। माशल तथा
गलबट वीप पर आ दवासी अ धक रहते ह जब क शेष वीप पर बाहर से आये
ए शयाई मू ल के तथा यूरोप से आये लोग का नवास है। इनका मु य यवसाय
मछल पकड़ना, सु पार क बागानी कृ ष करना तथा फा फेट ख नज का उ पादन
है।
(4) पो लने शया : इसके अ तगत माइ ोने शया वीप समू ह के पूव शा त महासागर
म ि थत वीपीय पेट आते ह िजसम मु यत: फन स वीप, हवाई वीप
समू ह, उ तर पि चम थम स. वीपीय कटक, टोगर बा, तथा सोसायट वीप
शा मल है। अ तरा य त थ रे खा पर इन वीप पर से होकर गुजरती है। इनका
व तार 10,0000 वग मील े से है। यहाँ अ धकांशत: आ दवा सय का ह
नवास है। इन वीप पर ना रयल के बागान यादा पाये जाते ह। टु आमोटू
वीप पर मोती का उ पादन होता है तथा सोसायट वीप समू ह पर फा फेट
ख नज मलता है।
बोध न –3
1. मानसू न ए शया दे श म पै दा होने वाल कोई तीन बागानी फसल के नाम
बताइये ।
......................................................................................
.................................................................. ...................
2. े फल क ि ट से द णी अमे रका का सबसे बड़ा दे श कौनसा है ?
......................................................................................

326
.............................................................. ........................
3. आ े लया महा वीप क जलवायु अनु कू ल है –
( अ) बागानी कृ ष के लए (ब) चरागाह के लए
( स) चावल उ पादन के लए (द) फल उ पादन के लए
4. पो लने शया के टु आमोटू वीप पर कस मू यवान ख नज का उ पादन होता
है ?
......................................................................................
............................................ ..........................................
5. यू जीलै ड म कै सी जलवायु पायी जाती है ?
......................................................................................
............................................................................. .........
6. माइ ोने शया के कन दो वीप पर आ दवासी यादा रहते ह ?
......................................................................................
......................................................................................

15.4 सारांश (Summary)


ाकृ तक एवं मानवीय वातावरण के त व िजनम मानव क आव यकताओं क पू त क
मता होती है, संसाधन कहलाते ह। इन त व क े वशेष म एक पता हो एवं आपस
म स ब ता हो तो ऐसे े को संसाधन दे श कहा जाता है। व व म जलवायु, धरातल
व वन प त तथा ख नज संसाधन एवं मानवीय संसाधन के वतरण म एक पता नह ं
पायी जाती। कह ं इनक अ धकता है तो कह ं यूनता। कह ं मनु य ने अपने ान व
कौशल से इनका अ य धक उपभोग कर उन दे श को वक सत कर दया है पर तु बहु त
से े म संसाधन क बहु लता होते हु ए भी उनका वदोहन नह ं हो पाया है। अत: वे
े पछड़े हु ए रह गये। जलवायु, भू-धरातल, संसाधन क उपल धता तथा मनु य के
ान व कौशल के आधार पर व व को 9 संसाधन दे श म बाँटा गया है।
व व के ु वीय, उप ु वीय तथा अ का ए शया के उ ण एवं शु क जलवायु वाले संसाधन
दे श आज भी वकास के मानक तर पर नह ं पहु ँ च पाये ह। जनसं या का घन व कम
और बहु त कम है। जब क आं ल अमे रका, शीतो ण यूरोप तथा मानसू न ए शया म
संसाधन का अ य धक उपयोग हु आ है एवं यहाँ उ योगीकरण व कृ ष संसाधन के तेजी
से वकास ने जन समू ह को आक षत कया है। शा त महासागर य े म ि थत वीप
समू ह के संसाधन दे श ाकृ तक सीमाओं से बंधे ह तथा सी मत वकास ह कर पाये ह।

15.5 श दावल (Glossary)


 ि लजाड : ु वीय े म चलने वाल अ य धक शु क व ठ डी हवाओं क आं धयाँ

327
 रे ि डयर : ु वीय े म पाला जाने वाला पशु िजसका मांस मु ख भोजन के प म
तथा बफ पर चलने वाल लेज गाड़ी को खींचने के काम आते ह।
 रे ड इि डयन : अमे रका म यूरोपवा सय के बसने से पहले पाये जाने वाले मू ल
नवासी।
 टु डा : यूरोप , ए शया तथा उ तर अमे रका के सु द ूर उ तर भाग म ि थत वशाल
वन प तह न समतल े िजसम भू तल क मृदा क परत भी बफ से जमी रहती ह।
 टगा : साइबे रया म टु ा तथा टै पी तु य घास के दे श के म य पायी जाने वाल
कोणधार वन क पेट ।
 म यान : म थल े म जल ब दुओं या झील के पास ि थत उपजाऊ भू म
पर वन प त का समू ह।
 पशु चारण : शु क क टबंध म कृ ष के तकू ल प रि थ तयाँ होने से पानी व घास क
उपल धता वाले थल पर पशु ओं को समू ह म लेकर घूमना।
 सवाना : उ णक टबंधीय घास के मैदान
 पठार : धरातल से ऊपर उठे वे भाग जो ऊपर से समतल क तु एक अथवा अ धक
ओर से अपने आसपास के भू-भाग से ढाल वारा अलग हो जाते ह।
 मानसू न : मौसमी हवाओं के भाव वाला वह े िजसम वष पय त हवाय थल से
समु क ओर तथा समु से थल क ओर चल कर व श ट जलवायु दशाओं का
नमाण करती है।

15.6 स दभ थ (Reference Books)


1. जगद श संह : संसाधन भू गोल, राधा पि लकेश स, 2006
2. मोह मद हा न : संसाधन भू गोल, वसु धरा काशन, 2007
3. रामकुमार गुजर व बी. सी. : जाट संसाधन भू गोल, पंचशील काशन, 2007.
4. भावना माथुर व महे श नारायण : संसाधन भू गोल, वसु धरा काशन, 1999
5. बलवीर संह नेगी : संसाधन भू गोल, केदारनाथ रामनाथ, 1980
6. एस. डी कौ शक : संसाधन भू गोल, र तोगी पि लकेश स, 2007
7. Zimmermann, W.E. : world Resources and Industries, harper 7
Row, 1951.

15.7 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. ि लजाड
2. अ टाक टका
3. ब
4. 45० उ तर अ ांश से 66 1/2० उ तर अ ांश

328
5. बख यान क
बोध न - 2
1. याक
2. महा वीपीय
3. अ का
4. सहारा के रे ग तान म पथर ले च ानी धरातल को ''ह मादा'' कहते ह।
बोध न - 3
1. चाय, रबर, मसाले
2. ाजील
3. ब चारागाह के लए
4. मोती
5. आ शीतो ण जलवायु
6. माशल तथा गलबट वीप पर

15.8 अ यासाथ न
1. संसाधन दे श के सीमांकन के आधार बताईये तथा व व को मु ख संसाधन दे श म
वग कृ त क िजए।
2. मानसू न ए शया संसाधन दे श क मु ख वशेषताओं का वणन क िजए।
3. ु वीय एवं उ तर उप ु वीय संसाधन दे श क वशेषताओं का एक तु लना मक ववरण
तु त क िजए।
4. न न पर ट पणी क िजए-
( i) शा त महासागर य संसाधन दे श
(ii) अरब के बबर स यता वाले संसाधन दे श

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