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Bhasha Vigyan PDF
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पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज थान)
संयोजक एवं सद य
संयोजक सम वयक
ो. (डॉ.) च कला पा डेय डॉ. मीता शमा
ह द वभाग सहायक आचाय, ह द वभाग
कलक ता व व व यालय, कलक ता वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
सद य
ो. (डॉ.) सुदे श ब ा ो. (डॉ.) जवर मल पारख
पू व अ य , ह द वभाग अ य , मान वक व यापीठ
राज थान व व व यालय, जयपु र इि दरा गांधी रा य खु ला व व व यालय, नई द ल
(डॉ.) कु मार कृ ण ो. (डॉ.) रं जना बेन अरगडे
अ य , ह द वभाग अहमदाबाद व व व यालय, गु जरात
हमांचल व व व यालय, शमला
ो. (डॉ.) न दलाल क ला डॉ. हे त ु भार वाज
पू व अ य , ह द वभाग पू व ाचाय,
जयनारायण यास व व व यालय, जोधपुर पार क महा व यालय जयपु र
डॉ. न द कशोर आचाय
व र ठ आलोचक व सा ह यकार, बीकानेर
पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार ,
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
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एमएएचडी-07
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
भाषा व ान
ख ड सं. इकाई सं. इकाई का नाम पृ ठ सं या
1 भाषा और भाषा व ान : एक प रचय
8 व न संरचना 151—169
9 वन या 170—187
10 प संरचना : प क अवधारणा 188—203
11 वा य संरचना 204—224
12 अथ संरचना 225—243
13 ल प का उ व एवं वकास और नागर लप 244—265
14 ह द क श द स पदा 266—286
3 भाषा प रवार और ह द
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पा य म – प रचय
सा ह य भाषा क अमू य संपि त है । भाषा ने अपने ऐ तहा सक वकास म जो कु छ अिजत
कया है वह भाषा के सा ह य म ह सु र त रहता है । इस भाषा के व धवत ान के लए
भाषा व ान का अ ययन ज र है । भाषा व ान समकाल न, ऐ तहा सक, तु लना मक और
ायो गक अ ययन के ज रए भाषा के उ व- वकास, यु पि त गठन, कृ त एवं वृि त का
वै ा नक अ ययन करते हु ए भा षक अ ययन क सै ां तक भी न मत तथा नधा रत करता है
। सा ह य और भाषा व ान के म य उपकाय और उपकारक का संबध
ं है । यह दोन पर पर
सहयोगी ह । भाषा व ान से अन भ सा ह य श क क ि थ त उतनी ह दयनीय मानी जा
सकती है िजतनी शर र व ान से अन भ च क सक क । भाषा के स यक् ान बना
सा ह य का अ ययन एकांगी बन कर रह जाता है । सा ह य के हर अ येता के लए भाषा का
ान और भाषा के ान के लए भाषा व ान का ान अ नवाय ह नह ं अप रहाय है ।
अ नवायता को ि ट म रख एम.ए. ह द (उ तरा ) के पा य म के तृतीय न प को
'भाषा व ान' शीषक से अ नवाय पा य म म सि म लत कया गया है ।
यह पूरा पा य म चार खंड म वभािजत कया गया है िजसम भाषा वकास क परं परा और
अ ययन के आयाम को अ वि छ न प म रखा गया है । नीचे चार खंड का प रचय दया
जा रहा है ।
खंड- 1
यह खंड 'भाषा और भाषा व ान एक प रचय' शीषक से लखा गया है । इसमे कु ल सात
इकाइयाँ ह । भाषा क प रभाषा और अ भल ण, भाषा का उ व एवं वकास, भाषा संरचना और
भा षक काय, भाषा व ान क प रभाषा और अ ययन े , भाषा व ान के अ ययन क
प तयाँ एवं इसका अ य सामािजक व ान से संबध
ं और भाषा व ान के अ ययन क
पा चा य एवं भारतीय परं परा को इस खंड म सि म लत कर उस पर अ ययन साम ी तैयार क
गई है । इस खंड म यह प ट कया गया है क भाषा व ान जैसा यापक वषय भाषाओं के
अ ययन म कस ि ट को अपनाता है । भाषा व ान के अ ययन क भारतीय और पा चा य
परं पराओं को तु लना मक व ध से तु त करते हु ए दखाया गया है क आधु नक भाषा व ान
के ति ठत होने के पूव ह भारत म भाषा चंतन क एक समृ परं परा थी । सं कृ त के भाषा
चंतक ने तर य याकरण ह नह ं लखा अ पतु अथ क स ता आ द के बारे म भी ताि वक
व लेषण कया । इस े म कया गया उनका दाश नक चंतन और व लेषण प त काश
त भ क तरह आज भी पथ नदश कर रहे ह । भाषाओं के म य समान त व का दशन
करते हु ए और महान रचनाओं को पढ़ते हु ए व वान क च और िज ासा बढ़ तथा उ ह ने
भाषाओं के म य स पक सू तलाशना आरंभ कया । सं कृ त, जमन, ले टन, ीक आ द
भाषाओं के त वशेष दलच पी ने ह व वान को भाषाओं पर तु लना मक अ ययन के लए
े रत कया और तु लना मक भाषा व ान क नींव रखी गई । इसी कार भाषा म बदलाव क
खोज करते हु ए ऐ तहा सक भाषा वइ तन और अ य सामािजक व वान का पार प रक संबध
ं
भी दखाया गया है ।
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खंड-2
यह खंड 'भाषा और भा षक संरचनाएं' शीषक से लखा गया है । इस खंड म कु ल सात इकाइयाँ
ह । िजनम व न संरचना के अंतगत व न के आयाम , क् ग करपा, वन नयम, वन
प रवतन क दशाओं एवं या, वन का वग करण, वन गुण , व नम संरचना का व प,
व नम वतरण एवं व लेषण पर वचार कया गया है । प संरचना के अंतगत प क
अवधारणा, पक एवं स प क प रभाषा, पम के भेद, काय तथा प प रवतन के कारण
एवं दशाओं पर अ ययन साम ी तैयार क गई है । वा य संरचना के अंतगत वा य ह
अवधारणा, उसका वग करण, वा य व लेषण, गहन और बादय संरचना वचारणीय रहे ह ।
अथ संरचना म अथ क अवधारणा, अथ प रवतन के कारण तथा दशाओं को व ले षत कया
गया है । इस खंड का वै श य है भाषा व ान के आधारभू त स ांत के ज रए व न संरचना,
पद संरचना, अथ संरचना, एवं वा य संरचना के नाना वध पहलु ओं का सू म और सहज
व लेषण । ह द क व नय के साथ अथ भेदक व नय ( व नम ) का औ चार णक प रवेश,
व नम वतरण, व नम व लेषण का ववेचन कया गया है । इसी के साथ ह द के प, पद
तथा श द एवं पद से संर चत 'पदबंध का व लेशण कया गया है । वा य व ान भाषा का
मु य और मह वपूण पहलू है जो व तृत के साथ ज टल भी है इसे कं चत अ धक म से
सहज सं ेषणीय बनाकर तु त कया गया है ।
अथ व ान म याकरण थ
ं से इतर पयायता वलोमता आ द का भी अ ययन कया गया है
। इस खंड क अं तम दो इकाइय म ल प के उ व तथा वकास, संसार क कु छ मु ख
ल पय , नागर ल प के गुण दोष मानक करण तथा वै ा नकता पर व तृत वचार कया गया
है । ह द म आगत श द को समे कत करते हु ए ह द क श द संपदा शीषक इकाई लखी
गयी है िजसम व वध ोत से आए ह द म घुल मल हमारे अपने श द म शा मल होकर
श द संसाधन को वपुल प म समृ दे ने वाले त सम, त व दे शी, वदे शी तथा व या मक
आ द श द का व लेषण है ।
खंड-3
इस इकाई क रचना ' व भ न भाषा प रवार और ह द शीषक से क गई है । खंड 3 म कु ल
पांच इकाइयां ह व व के मु ख भाषा प रवार के अंतगत भारोपीय प रवार का वशेष प रचय
दया गया है । ाचीन एवं म यकाल न भाषाओं वै दक तथा लौ कक सं कृ त म ताि वक अंतर,
वैयाकर णक वै श य, पा ल, ाकृ त और अप ंश क व न एवं प संरचनागत वशेषताएं
आधु नक भारतीय आयभाषाओं के सामा य प रचय के साथ ह द के उ व और वकास उसक
उपभाषाओं पि चमी एवं पूव का व तृत ववेचन कया गया है । भा षक वकास के नैर तय
को, उसके अ वि छ न म को अ यंत सहजता एवं सं ेषणीयता के साथ पठनीय और
अ ययनयो य बनाया गया है । पा य म के इस खंड के नमाण म हमारा ल य व व के
मु ख भाषा प रवार से आपका प रचय कराते हु ए ाचीन भारतीय आय भाषाओं से उनका संबध
ं
जोड़कर समझाना तथा ाचीन भारतीय आय भाषाओं से म यकाल न और उनसे आधु नक
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भारतीय आयभाषाओं के वकास के अ य सल सले को दयंगम कराना रहा है । ह द भारत
क राजभाषा, रा भाषा और स पक भाषा तीन का महत ् दा य व नभाती है । ऐसी व श ट
भाषा के उ व और वकास क कहानी उसक उपभाषाओं और बो लय के कारण ा त समृ
के प र े य म तु त क गई है ।
खंड-4
यह खंड ' ह द और उसके व भ न काय' शीषक से लखा गया है । यह अं तम खंड है और
कु छ खा सयत भी समटे हु ए है । ह द पहले केवल. सा ह य क भाषा थी ह तु आज बहु पी
बन चु क है । अब वह योजनमू लक बन व वध वा मय और ान व ान को अपनी
श दावल म अ भ य त करने म स म बनती जा रह है । रे शीय' के साथ उसका एक
अ तरदे शीय प भी उभर चु का ह । हमारे सं ेषण तं म ह द का चार योग वकास पथ
पर बढ़ता जा रहा है । इस खंड क छ: इकाइय म से दो म ह द के व वध प , राजभाषा,
रा भाषा, संपक भाषा, मा यम एवं संचार भाषा के प रचय के साथ ह द क संवध
ै ा नक
ि थ त को प ट करते हु ए भारत सरकार क राजभाषा नी त को समझाया गया है । शेष चार
इंकाइय म अनु यु त भाषा व ान का सामा य प रचय एवं उसके मु ख कार पर स व तार
वचार कया गया है । इनमे भाषा श ण और ह द तथा शैल व ान क अवधारणा को
प ट करते हु ए इसके तमान एवं या तथा अ य अनुशासन से शैल व ान के संबध
ं को
प ट कया गया है । भाषा श ण, अनुवाद कोश कला और शैल व ान का अ ययन आपके
लए अ यंत उपयोगी होगा । शैल व ान का ान भाषा के बोधा मक, अ भधा मक ओर
स दयपरक संसाधन के ायोजन मूलक प से आपको प र चत कराएगा, भाषा के सामािजक
और सृजना मक काय का अ ययन होने के कारण आपको यह जानकार भी हो जाएगी क
सं ेषण म कौनसी भा षक इकाइयाँ आऐगी ।
चार खंड म वभािजत भाषा व ान का यह पा य म भाषा व ान क एक सु प ट समझ
बनाने के ल य से बनाया गया है और तदनुसार पा य साम ी तैयार क गई है ।
हम आशा ह नह ं पूण व वास है क इस पा य म का अ ययन आपको भाषा व ान क सह
और स यक जानकार दे ने म समथ होगा ओर ह द संरचना के मह वपूण उपादान को
समझने म आपका सहायक भी । ह द भाषा के व वध प ओर योजनमू लक संदभ को भी
आप वै ा नक ढं ग से आ मसात कर सु प ट समझ वक सत कर पाऐंगे । भाषा और
भाषा व ान से संब यह आधारभू त अ ययन साम ी आपके लए नता त उपयोगी स होगी।
ात य है क येक खंड क इकाई के अंत म मह वपूण संदभ थ
ं क सू ची भी द जा रह है
िजसक सहायता से आप अपने इयन म अपे त वृ कर पाऐंगे ।
आपके उ वल भ व य क कामना स हत भाषा व ान का यह पा य म आपके अ ययनाथ
तु त है ।
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खंड-1 एमए. ह द (उ तरा ) के भाषा व ान (तृतीय न प ) पा य म का पहला खंड 'भाषा
और भाषा व ान-एक प रचय' शीषक से र चत है ।
पा य म प रचय क भूमका म भाषा व ान पर जो प रचया मक ट पणी द गई है उसे यहाँ
यथावत संयक
ु ा करते हु ए बना कसी ा कथन के हम सीधे खंड क इकाइय पर आ जाते ह ।
इस खंडम कु ल सात इकाइयां ह िजनम न न ल खत प म अ ययन साम ी तु त क गई
ह:-
इकाई- 1 भाषा मानव स यता के वकास क सव कृ ट उपलि ध है, यह एक यव था ओर
सं ेषण का सहजतम मा यम है । इस इकाई म भारतीय और पा चा य व वान वारा द गई
भाषा क व भ न प रभाषाओं, भाषा के अ भल ण एवं वशेषताओं पर वचार कया गया है ।
इकाई-2 भाषा के उ व और वकास क रोचक कथा को अनेक उदाहरण के साथ इस इकाई म
या या यत कया गया है ।
इकाई-3. इस इकाई म भाषा के संरचना प और भा षक काय को सहज सरल शत। म
व ले षत कर अ ययन साम ी तु त क गई है ।
इकाई-4 चौथी इकाई म भाषा का अ ययन तु त करने वाले े , भाषा व ान क उन व वध
प रभाषाओं का प रचय और व लेषण कया गया है िज ह पा चा य और भारतीय भाषा वद ने
अलग अलग ि टकोण से तु त कया है । इसी इकाई म भाषा व ान के अ ययन के े
एवं भाषा वै ा नक अ ययन प तय पर वचार कया गया है ।
इकाई-5 भाषा सभी सामािजक व ान क बु नयाद है । इस इकाई म भाषा व ान एवं अ य
सामािजक व ान के म य के संबध
ं को दशाया गया है ।
इकाई-6 इस इकाई 'भाषा व ान के अ ययन क भारतीय परं परा' म प ट कया गया है क
कस कार आधु नक भाषा व ान क अवधारणा के पूव ह भारत म भाषा चंतन क समृ
धरोहर तैयार क जा चु क थी । सं कृ त भाषा चतक ने न केवल सं कृ त भाषा के लए उ नत
याकरण ह लखा अ पतु अथ क स ता आ द के वषय म भी सोचा ।
इकाई-7 यह इस खंड क अं तम इकाई है जो 'भाषा व ान के अ ययन क पा चा य परं परा'
शीषक से र चत है । इसके आधु नक भाषा व ान के उ व और वकास क चचा क गई है ।
अं तम दोन इकाइय को एक म म पढ़ तो प ट होगा भाषा व ान एक यापक और गंभीर
वषय है, िजसे अपने वतमान व प म पहु ँ चने म सैकड़ वष लग गए ह और पा ण न,
पतंज ल, का यायन से लेकर स यूर, लूम फ ड, चॉ क तक सैकड़ मनी षय ने इसे अपने
ान और चंतन से समृ बनाया है ।
खंड –– 2: भाषा व ान के पा य म क भू मका के म म हम यहाँ इकाइय के प रचय पर
आ जाते ह । यह खंड भाषा और भा षक संरचनाएँ शीषक से र चत है । इसम कु ल सात
इकाइयां ह िजनका प रचय न न ल खत प म दया जा रहा है-
इकाई-8 यह इकाई ' व न संरचना शीषक से र चत है । इसम व न के व वध आयाम ,
उ चारणा मक, सार णक तथा वणा मक का प रचय दे ते हु ए व नय का वग करण, वर
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और यंजन का वग करण, व न प रवतन के कारण और दशाएं तथा म, बनर और
ासमैन के व न नयम क चचा क गई है ।
इकाई -9. इस इकाई म वन संरचना के व प और शाखाओं, वागवयव वन का वग करण
एवं वन गुण का ववरण दया गया है । इसी के साथ व नम क अवधारणा पर वचार करते
हु ए, व नम संरचना के व प, व नम के भेद एवं व नम के व लेषण पर काश डाला
गया है ।
इकाई- 10. फप संरचना शीषक इस इकाई म प क अवधारणा, पम एवं स प क
प रभाषा, पम के भेद एवं काय तथा प प रवतन के कारण एवं दशाओं पर अ ययन
साम ी तैयार क गई है ।
इकाई- 11. वा य संरचना शीषक से र चत यह इकाई वा य क अवधारणा, वा य का
वग करण, वा य वशेषण क व ध तथा गहन संरचना एवं बाहय संरचना पर वचार करती है।
इकाई- 12 यह इकाई 'अथ संरचना शीषक से र चत है । इसम अथ क अवधारणा, अथ
प रवतन के कारण एवं दशाओं पर वचार कया गया है ।
इकाई- 13 ल प भाषा का एक मह वपूण घटक है । ' ल प का उ व और वकास' शीषक से
लखी गई इस इकाई म व व क कु छ मु ख ल पय पर प रचया मक ट पणी के साथ नागर
ल प पर व तृत वचार साम ी द गई है । नागर ल प के उ व एवं वकास के साथ इस
ल प के गुण -दोष, इसमे सु धार क आव यकता, वै ा नकता एवं मानक करण के साथ नागर
ल प और व या मक लेखन पर भी सं त ट पणी तु त क गई है ।
इकाई- 14 इस खंड क यह अं तम इकाई है जो ह द क 'श द स पदा' शीषक से र चत है ।
इसम ह द म यु त उन सभी श द के ोत पर वचार कया गया है । जहाँ से आगत
श द आज ह द क कृ त म ढल ह द के अपने श द बन चु के ह ।
खंड 3 का प रचय
यह खंड व भ न भाषा प रवार और ह द शीषक से र चत है । इसम कु ल पांच इकाइयाँ ह,
िजनका प रचय न न ल खत प से दया जा रहा है:-
इकाई- 15 इस इकाई क रचना ' व व के मु ख भाषा प रवार' शीषक से क गई है । व व के
मु ख भाषा प रवार और उनम बोल जाने वाल मु ख भाषाओं का प रचय उनक व न, प
अथ व यास संबध
ं ी वशेषताओं के साथ इस इकाई म तुत कया गया है ।
इकाई- 16 'भारोपीय भाषा प रवार शीषक इस इकाई म भारोपीय भाषा प रवार क भाषाओं का
व तृत ववेचन कया गया है । भाषाओं के व नगत और पगत वै श य को भी अ ययन म
समेटा गया है ।
इकाई- 17 ाचीन और म यकाल न भारतीय भाषाओं, वै दक तथा लौ कक सं कृ त दोन का
ताि वक अंतर, उनक याकरणगत वशेषताएं, पा ल, ाकृ त, अप श
ं और उनक वैयाकर णक
वशेषताओं का प रचय इस इकाई म दया गया है ।
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इकाई- 18 यह इकाई 'आधु नक भारतीय आयभाषाओं का प रचय' शीषक से र चत है तथा
मु ख आधु नक भारतीय आयभाषाओं के व न, प, अथ एवं वा य वै या सक वै श य का
व लेषण तु त करती है ।
इकाई- 19 इस इकाई क रचना ह द का उ व और वकास शीषक से क गई है । इसम
ह द के उ ु व और वकास के ववेचन के साथ ह द क उपभाषाओं पि चमी एवं पूव का
व तृत व लेषण तु त कया गया है ।
खंड 4 का प रचय
भाषा व ान पा य म का यह अं तम खंड ह द और उनके व भ न काय' शीषक से वग कृ त
है । इसम कु ल 6 इकाइयाँ ह, िजनका प रचय न नानुसार दया जा रहा है:-
इकाई-20 इस इकाई म ह द के व वध प और उनके काय का प रचय तु त कया गया
है । ह द के प म राजभाषा, रा भाषा, संपक भाषा, मा यम एवं संचार भाषा क वशेषताएं
व तारपूवक लखी गई ह ।
इकाई-21 : इस इकाई म भारत सरकार क राजभाषा नी त का प करण कया गया है इसी
संदभ म ह द क संवध
ै ा नक ि थ त पर भी चचा क गई है ।
इकाई-22 : यह. इकाई अनु यु त भाषा व ान शीषक से र चत है । यह ायो गक भाषा
व ान है इसके अंतगत अ ययनयो य मु ख वषय पर यहाँ समी ा मक ट प णयाँ तु त ह।
इकाई-23 : भाषा श ण और ह द शीषक से र चत यह इकाई भाषा के श ण म
भाषा व ान क उपादे यता को प ट करती है ।
इकाई-24 : शैल व ान क अवधारणा, इसके उ व और वकास, शैल व ान के व लेषण
तमान एवं या पर इस इकाई म पया त अ ययन साम ी द गई है ।
इकाई-25 : इस खंड क अं तम इकाई म शैल व ान का अ य सामािजक व ान से संबध
ं
दखाया गया है ।,
ात य है क उपयु त सभी खंड क येक इकाई के अंत म श दावल , अ यास के लए
नबंधा मक एवं लघू तर न दये गये ह । व तृत एवं गहन अ ययन के लए सहायक एवं
उपयोगी संदभ ं सू ची द गई है, आप इ ह भी दे ख और अ ययन कर ।
थ
12
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इकाई-1 भाषा : प रभाषा और अ भल ण
इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 स ेषण के साधन
1.2.1 मू क साधन
1.2.1.1 इं गत भाषा
1.2.1.2 संकेत भाषा
1.2.2 मु खर साधन
1.3 भाषा क प रभाषा
1.3.1 पा चा य व वान के मत
1.3.2 भारतीय व वान के मत
1.4 भाषा के अ भल ण
1.4.1 मानव और मनावे तर भाषा
1.4.2 या ि छकता
1.4.3 अनुकरणशीलता
1.4.4 सृजना मकता
1.4.5 प रवतनशीलता
1.4.6 बहु घटकता या वि छ नता
1.4.7 अ भरचना क वैतता
1.4.8 व ता- ोता क दोहर भू मका
1.4.9 दशा और काल क अंतरणता
1.4.10 असहजवृि तकता
1.5 भाषा और भा षक यवहार
1.6 वचार संदभ / श दावल
1.7 सारांश
1.8 अ यासाथ न
1.9 भाषा और भा षक यवहार
1.0 उ े य
तु त इकाई के अ ययन के प चात आप
स ेषण के व वध प और उसम भाषा के मह व क जानकार दे सकगे ।
भाषा स ब धी भारतीय एवं पा चा य व वान के मत क जानकार ा त कर
भाषा क नि चत प रभाषा बता सकगे ।
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मानव और मानवे तर स ेषण यव था के पर े य म मानव भाषा के
अ भल ण को प ट कर सकगे ।
1.1 तावना
मानव का सव तम सृजन भाषा है । स ेषण के लये उपल ध सभी साधन म भाषा
अनुपम साधन है । भाषा के वारा ह मनु य समाज के व वध े के बारे म, सभी
ानानुशासन क जानकार ा त करता ह । मानव एवं मानव समाज के वकास म भाषा क
मह वपूण भू मका है । भाषा केवल भाव एवं वचार के आदान दान का साधन मा नह ं है
अ पतु मानव के चंतन एवं सोचने का साधन है । मानव, मानव समाज तथा समाज के व वध
े को जोड़ने वाल शृंखला भाषा है । तु त इकाई म स ेषण के एक अहम साधन के प
म आप भाषा क प रभाषा एवं मानव मानवे तर भाषा के अ तर के आधार पर भा षक
अ भल ण क जानकार ा त कर सकगे ।
1.2.1 मू क साधन
1.2.1.1 इं गत भाषा
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दूसरे म को चु प रहने का संकेत । दूर खड़े कसी को हाथ उठाकर अपनी ओर बुलाने का
संकेत तो कभी केवल सर हलाकर ह हाँ या ना का संकेत करना । रे लगाडी को लाल या हर
ब ती के वारा कने या जाने का संकेत । चोर वारा हाथ दबाकर या ऐसे कु छ इशार के
वारा संकेत पर पर लये- दये जाते ह । इं गत -संकेत के मा यम से होने वाले भाव या वचार
के आदान- दान का े यापक होते हु ए भी उसे भाषा नह ं कहा जा सकता य क उसक
अपनी कु छ सीमाएं भी ह ।
1.2.2 मु खर साधन
मनु य अपने भाव वचार के आदान- दान हे तु िजस दूसरे साधन को अपनाता है, वह
मु खर साधन है । इसके अ तगत मानव और मानवे तर सभी णय क बो लय का समावेश
होता है । मु ख साधन म वाक् का योग होता है । पुन : इसके य त वाक् और अ य त वाक्
दो वभाग कये जा सकते ह । मानव क अपे ा मानवे तर भाषा म बहु त अ तर तो होता है,
ले कन मू लभू त अ तर यह है क - ा णय क भाषा अ नि चत और अ प ट होती है; अत:
उसे अ य त वाक् या वाणी कहा गया है । मानव वारा िजस मु खर साधन का योग कया
जाता है उसे य त वाणी अथात ् नि चत प ट वाणी कहा जाता है । मानव वारा िजस मु खर
साधन का योग कया जाता है उसे य त वाणी अथात ् नि चत प ट वाणी कहा जाता है ।
मानव वारा यु त बोल क नि चतता एवं प टता के पीछे उसका चंतन है । एक
सु यवि थत चंतन, य न के प रणाम व प नःसृत होने के कारण ह वह प ट एवं
नि चत होती है । उसका अ ययन व लेषण कया जा सकता है । उसे सीखा और सखाया जा
सकता है ।
मनु य क भाषा ह उसके भाव , वचार को प टता, पूणता एवं सु नि चतता दान
करती है । यहां एक बात और समझ लेना ज र है क मनु य वारा यु त वाणी आव यक
नह ं क हमेशा साथक ह हो । मानव कृ त व नयाँ साथक भी हो सकती है और नरथक भी ।
भाषा व ान केवल साथक व नय का अ ययन व लेषण करता है । भाषा के संबध
ं म एक
और बात मह वपूण है वह यह क भाषा के वारा हमेशा अपने भाव क शत तशत
अ भ यि त नह ं होती है । कभी कभार भाव तरे क क ि थ त म भाषा असमथ हो जाती है तब
भं गमा के वारा भाव क अ धक सु दर अ भ यि त होती है । सा ह य म वरह, मलन आ द
व वध ि थ तय म सा ह यकार नायक ना यकाओं क भाव-भं गमा का सु दर अंकन करता है ।
भाषा केवल भाव- वचार क अ भ यि त का ह नह ं वचार करने एव सोचने का भी
मा यम-साधन ह । बना भाषा मनु य का वचार करना, सोचना भी बंद हो जाता है । अत:
भाषा एवं वचार का अटू ट स ब ध स होता है । वष से भाषा से या भाषा वारा मनु य और
समाज दोन का नर तर वकास होता आया है, हो रहा है और होता रहे गा । मनु य और भाषा
का पार प रक टकराव ह नये चंतन, नयी सं कृ त, नयी सोच और नये समाज को ज म दे ता
है । मानव और मानवे तर भाषा म यह मू लभू त अ तर है क- बरस से पशु-प य क वह
भाषा है जब क मानव भाषा म और मानव समाज म नर तर वकास और प रवतन दे खा जा
सकता है ।
16
1.3 भाषा क प रभाषा
ऐसी मानव भाषा को नि चत सीमा म बांधना अथात ् उसक प रभाषा दे ना उतना
आसान नह ं ह । आ दकाल से मानवभाषा को प रभा षत करने का उप म भारत एवं पि चम म
अनेक व वान ने कया है तथा प कसी भी प रभाषा को भाषा के पूण व प का उ घाटन
करनेवाल प रभाषा का नाम नह ं दया जा सकता । वैसे प रभाषा श द अपने आप म बड़ा
अ प ट है य क, िजसे हम प रभाषा कहते ह वह प रभा य व तु के ल ण , उ े य आ द के
आधार पर उसक या या भर होती है । ववे य व तु का यथाशि त पूण एवं सं त प रचय
दे ना आव यक होता है । यह काय प रभाषा के वारा स प न होता है । शा कार ने प रभाषा
क प रभाषा दे ते हु ए लखा है:
“तदे व ह ल णं (यद या य त या यसंभव पं) दोष य शू यम"्
अथात ् जो अ याि त, अ त याि त और असंभव प तीन दोष से मु त हो, वह
प रभाषा है । यहाँ भाषा क प रभाषा दे ते समय इस बात का यान रखा जायेगा । भाषा क
नि चत प रभाषा तक पहु ंचने के लये भारतीय एवं पि चमी व वान के वारा भाषा के
स ब ध म जो वचार य त कये गये ह उ ह जानना आव यक है ।
1.3.1 पा चा य व वान के मत
17
अथात ् वचार , भावनाओं और इ छाओं को वे छा से उ प न तीक के मा यम से
स े षत करने क वषु मानवीय ओर य नज प त को भाषा कहते ह । उ चारण
अवयव से उ प न मा यम- तीक ाथ मकत: ाव णक होते ह । (एडवड सपीर)
5. “The essence of Language is human acitivityon the part of an
individual to make him-self under-stood by another and activity on
the part of that other to understand what was in the mind of the
first.” (Jospoerson Otto)
भाषा का सार त व यह है क - वह एक मानवीय स यता है, मनु य-मनु य के बीच
पार प रक बोध के लए स यता, ता क व ता के मन क बात को ोता समझ सके।
-ये पसन
6. “A Language is a system of arbitrary vocal symbols by means of
which a social group co-operate”(Block and Triager)
''भाषा या ि छक व न- तीक क वह यव था है, िजसके सहारे कोई सामािजक
समु दाय पर पर सहयोग करता है ।
- लाग तथा े गर
7. “Language is a system of conventional sign that can be voluntarily
produced at any time” (Ebbinghaus)
भाषा ऐसे परं परागत च ह क यव था है िज ह वे छा से मनु य कभी भी उ प न
कर सकता है |
8. ”Language is articulated with limited sound organised for the
purpose of Expression“(Croce-aesthetics)
भाषा सी मत व नय से संयोिजत यव था है, िजसका उ े य अ भ यि त होता है ।
- ाचे ए थेि कस
9. “Language can be thought of as organised noise used in situations
actual social situations or in other words contextualised systematic
sounds” (A. Mclntosh-M.K. Halliday)
भाषा एक यवि थत व न योजना है, िजसका योग वा त वक सामािजक ि थ तय म
कया जाता है । दूसरे श द म भाषा को संदभ ज नत यवि थत व न योजना कहना
समीचीन होगा ।
-ए.मै कनटोश-एम.के.है लडे
10. “A Language is an instument of communication in value of which
human experience is analyzed differently in each given
community.” (Elements of General Linguistics, Matinet)
18
भाषा स ेषण का एक साधन है, िजसके वारा अलग-अलग मानव समुदाय अपने-
अपने अनुभव का व लेषण करत है ।
-मा टने एल मे टस ऑफ जनरल लि वि टकस
11. “Language is structured ie. eachutterance far from being a random
series of words is put together according to some principle or set
of principles which determines the word that occure and te form
and order of the words.”(Ed. J.P. Allen & S Pit Corder)
भाषा संच रत होती है, अथात ् येक भा षक उि त स ांत के आधार पर संघ टत
होती है । ये स ांत यु त श द के प, श द म आ द का न चय करते ह ।
जे.पी. एलेन और एस. पट काडर
12. “I will consider a language to be a set (finite orinfinite) of
sentences, each finite in length and constructed out of a finite set
of elements” (Noam chomsky)
चॉ सक भाषा को प रभा षत करते हु ए उसे असीम ओर सी मत वा य समूह का
समु चय मानते ह ।
चॉ सक
13. “Language may be defined as an arbitrary system of vocal
symbols by means of which, human leving as member of a social
group and participants in culture interact and communicate.
भाषा या ि छक वन तीक क वह यव था है िजसके ज रए एक सामािजक
समु दाय के लोग जो एक ह सं कृ त के सहचर ह, भाव व नमय या संवाद करते ह ।
-इ साइ लोपी डया टे नका
19
4. ''भाषा उ चारण अवयव से उ चा रत मूलत: ाय: या ि छक वन तीक क वह
यव था है िजसके वारा कसी भाषा समाज के लोग आपस म वचार को आदान- दा
करते ह।
डॉ. भोलाना तवार
5. भाषा मनु य क उस चे टा या यापार को कहते ह, िजसम मनु य अपने उ चारण पयोगी
शर रावयव से उ चारण कये गये वणा मक या य त श द वारा अपने वचार को कट
करते ह''
- डॉ. मंगलदे वी शा ी
6. '' व या मक श द वारा दयगत भाव तथा वचार का कट करण ह भाषा है ।''
- डॉ. पी.डी. गुणे
7. ''अथवान ् क ठ से नःसृत व न समि ट ह भाषा है ।”
- सु कुमार सेन
‘भाषा’ श द 'भाष’् धातु से बना है, िजसका अथ है कहना या बोलना । भाषा का
सहारा हम अपनी बात दूसर तक पहु ंचाने के लये तथा दूसर क बात खु द समझने के लये
लेते ह ।
ाचीन सं कृ त व वान म भाषा संबध
ं ी चंतन दे खने को मलता है । मह ष पतंज ल
ं म कहा है ''
ने भाषा के संबध य त वा च वणा येषां त इमे य त वाच: ' अथात ् जो वाणी
वण म य त होती है उसे भाषा कहते ह । भाषा के इस य त भाव को आगे चलकर कई
व वान ने व ले षत कया है ।
आचाय भतृह र ने ‘वा य पद य' म श द क उ पि त और हण के स ब ध म लखा
है-
“श दकारणमभध य स ह तेनोपज यते
तथा च बु वषयादद ा छ द: तीयते । 3.3.3.2.
बु यथादे व बु यथ जाते तदा न यते । 3.3.3.3.
अथात ् आशय यह हे क - ''श द- यापार या भाषण- या बु य के बीच आदान-
दान का मा यम है ।'' इस कार दे खा जा सकता है क -भारतीय सं कृ त व वान तथा
भाषा वद के वारा तथा पा चा य व वान के वारा भाषा को प रभा षत करने का य न
समय-समय पर होता रहा है तथा प भाषा क अपनी कृ त प रवतनशीलता एवं सृजना मकत
को म ेनजर रख येक समय पर भाषा नया प धारण करती है अत: कसी एक प रभाषा को
समीचीन या उपयु त कहना ठ क नह ं ह । हाँ यह ज र है क - कु छ प रभाषाएँ भाषा के
व प को अ धक कर बी एवं प टता से उजागर करने म सहायक स होती है । उपयु त
सभी मत को यान म रखते हु ए भाषा के व प को न न ल खत मु म य त कया जा
सकता है ।
क. भाषा तीका मक होती है अथात ् व न, श द, प, वा य, अथ येक तर पर भाषा
म तीक ह है । भाषा तीक क यव था है ।
20
ख. भाषा व या मक तीक क यव था होती ह । भाषा म यु त तीक व या मक
होते ह मानव उ चारण अवयव से उ चा रत-वाक तीक होते है । अ य साधन से
अ य कार क व नय जैसी ताल बजाना, चु टक बजाना आ द से जो वन उ प न
होती है वह व न भाषा के अ तगत नह ं आती है भले ह उससे कामचलाऊ व नमय
होता हो ।
ग. भाषा म यु त वन तीक या ि छक होते है ।
Arbitrary Vocal symbols- अथात ् व न, श द, प आ द सभी तर पर भाषा क
यव था या ि छक होती है । या ि छक अथात ् 'माना हु आ' । भाषा म यु त तीक भाषा-
भाषी समाज वारा माने हु ए होते है, यि त वारा नह ं समि ट भाषा म व न-समि ट या
श द का जो अथ होता है वे य ह , बना कसी तक, या नयम याकरण आ द के माना हु आ
होता है । य द यह स ब ध सहजात, तकपूण , वाभा वक या नय मत होता तो सभी भाषाओं
म सा य मलता । उदाहरण के प म अं ेजी म िजसे ‘वाटर’ कहते ह उसे ह द म 'पानी’ या
अ य भाषाओं म अलग-अलग श द तीक से पहचाना जाता है । अगर यह संबध
ं या ि छक
नह ं होता तो संसार क सभी भाषाओं म एक व तु के लए एक ह श द तीक का योग होता
। ऐसी ि थ त म भाषा भी एक ह होती । ले कन ऐसा नह ं है ।
भाषा क व वध प रभाषाओं के व लेषण से भाषा के दो प उभर कर सामने आते ह
- पहला है भाषा का मान सक प और दूसरा है उसका भौ तक प मान सक प भाषा का
अमू त या अ कट प है जब क भौ तक मू त या कट प । कसी भी व ता के बोलने वाले के
मन म भाव और वचार क अवि थ त अमू त प म रहती ह है उ ह कट करने क इ छा
होने पर व ता को वा गि य क मदद लेनी पड़ती है िजससे वह भाषा को मू त प दे ता है ।
ोता या सु नने वाले के मन म भी भाव और वचार के प म भाषा अमूत प म मौजू द
रहती है । व ता के अ भ ाय को ोता इसी कारण यथावत समझ लेता है य क व ता वारा
उ चा रत भाषा वणेि य के मा यम से उसके मन म ि थत वचार से सामंज य बैठा लेती है
। सं ेषणीयता और ा यता क इस या से ह वचार का पार प रक व नमय भाषा के
मा यम से संभव हो जाता है ।
इस या म व ता और ोता के म य सामंज य होना अ त आव यक है । य द
ोता व ता क भाषा नह जानता तो अथ सं ेषण नह ं हो पाएगा । कई बार व ता और ोता
के म य बौ क तर भेद के कारण भी अथ सं ेषण म बाधा पहु ंचती है । भाषा क इसी
वशेषता को ल य कर बी.एल. हाफ ने अपनी पु तक Linguistic velativity (भाषा
सापे यता) म कहा है “भाषा व व को दे खने के लए एक कार क ऐनक है जो केवल एक
भाषायी समाज के लए नजर बनने का काम करती है । दूसरा समाज उसे ऐनक के प म
यव त नह ं कर पाता है और करे भी तो दे ख नह ं पाता ह ।
भा षक सं ेषण के आधार पर भाषा के तीन प माने गये ह । पहला है - उ चारण
प दूसरा संवहन प और तीसरा हण प ।
21
क उ चारण प - व ता के मन म अवि थत भाव या वचार पहले मान सक तर पर
वा य के प म आकार हण करते ह इसके प चात वकता म से वा य क व नय
को उ चा रत करता है । उदाहरण के लए तु म घर जाओ = त ् + उ + म ् + अ + घ ्
+ अ + र् + अ + ज + अ + ओ । भाषा के इस प का अ ययन व न व ान के
अंतगत कया जाता है ।
ख संवहन प - जब व ता व नय का उ चारण करता है तो वे वायु तरं ग से वा हत
होती हु ई ोता के कण कु हर म वेश करती है । जैसे शांत तालाब म कंकड़ फकने पर
लहर का एक वृ त आकार हण करता है और कु छ दूर तक जाते जाते लहर का वृत
ीण होकर पुन : जल म खो जाता है, उसी कार उ च रत व नयां एक खास दूर के
बाद सु नाई नह ं दे ती । इसे भाषा का संवहन प कहते ह इस प का अ ययन
भौ तक व ान के अ तगत सू मता से एवं व तार पूवक कया जाता है ।
ग हण प - व ता िजन व नय का उ चारण करता है, वे वायुतरं ग के मा यम से
ोता के कान तक पहु ंचती है और उसके मन म उसी श द बंब का नमाण करती है
जो व ता के मन म अवि थत था । यह अथ बोध है । कान के ज रए व नयां
मि त क तंतु ओं तक कस कार पहु ंचती है और उनसे श द बंब कैसे बनता है? इस
पहलू का अ ययन शर र व ान के अ तगत कया जाता है ।
घ जब दो यि त बातचीत करते है तो मश: दोन व ता एवं ोता क भू मका का
नवहन करते ह । व ता क बात ख म होने पर वह ोता बन जाता है और ोता
व ता । यह म बातचीत समा त होने तक चलता रहता है ।
ङ भाषा क अपनी यव था होती है । हर भाषा क व न, श द, प, वा य एवं अथ तर
क नि चत यव था होती है यव था के कारण ह भाषा का अपना वतं अि त व
और मह व होता है । यव था के कारण ह वह भाषा बनती है, उसे मानक थान क
ाि त होती है अ यथा वह बोल या सामा य व नय का समू ह मा रह जाती है ।
यव था से ह भाषा क पहचान होती है ।
च भाषा का मु ख काय स ेषण है अथात ् भाव वचार का आदान- दान । दु नया म
अभी तक इससे अ धक समथ और स म साधन नह ं बना है । य द सृि ट परमा मा
वारा र चत सु दर सृजन है तो इस सृि ट म भाषा सबसे मह वपूण वचार- व नमय
साधन है । भाषा के मा यम से सामा य से लेकर वशेष कार के भाव- वचार का
आदान- दान होता है । दु नया म मानव समाज, सं कृ त स यता या व वध े म
हु ए वकास और उस वकास को जन-जन तक पहु ंचाने का मा यम एकमा भाषा है ।
छ भाषा का योग नि चत मानव-समुदाय या समाज वशेष म होता है । भाषा के
यो ताओं का वग तथा उसका नि चत े होता है । जैसे मराठ का महारा ,
गुजराती का गुजरात, अस मया का असम, आ द । वैसे भाषा योग क ि ट से कसी
सीमांकन क आव यकता नह ं होती है य क एक व ता और ोता अथात दो समान
भाषाभाषी मलने पर दु नया म कह ं भी कसी भी भाषा को बोला-समझा जा सकता है
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वह जैसा क - बताया गया क - वहाँ व ता ोता के समान भाषाभाषी होना ज र है
जब क, भाषा के नि चत े म आप भाषा का योग कसी से भी सहज प से कर
सकते ह । इस ि ट से भाषा बोलने वाल का नि चत समु दाय, वग एवं े होता है।
न कषत: कहा जा सकता है क – “भाषा मानव उ चारण अवयव से उ च रत
या ि छक वन तीक क वह यव था है िजसके वारा समु दाय वशेष के लोग पर पर
वचार- व नमय करते ह । ''
1.4 भाषा के अ भल ण
जब भाषा के अ भल ण क बात क जाती है तो उससे आशय यह हे क भाषा (मानव
भाषा) क वशेषता या मू लभूत ल ण कौन से ह जो उसे मानवे तर भाषा से अलग करते है ।
ऐसी कौन सी बात है िजससे मानव भाषा मानवे तर भाषा या अ य भाषा प से अलगाती है ।
संसार म मानवभाषा सं ेषण का सव कृ ट साधन ह । वैसे भाव या वचार के आदान- दान के
अनेक तर क क चचा इत:पूव क जा चु क है । सृि ट म सभी पशु-प ी, जीव ज तु ओर यहां
तक वन प त, पेड़-पौध , जलवायु आ द के बीच भी एक वशेष कार से तार जु ड़ा हु आ है
पार प रक जु ड़े त तु से पर पर आदान दान भी होता है । स ेषण को यापक धरातल पर
दे खने पर व भ न ानानुशासन ने अपने-अपने े म खोज करके इस बात को एक या दूसरे
प म, एक या दूसरा नाम दे कर इसे स कया है । यहां उस व तृत संदभ क चचा असंगत
होगी पर तु मोटे तौर पर मानव और मानवे तर भाषा के बीच अ तर के मु ख मु क चचा
करना आव यक है । िजसक चचा जाने माने भाषा वै ा नक ने क ह िजसक पी ठका पर
भाषा के अ भल ण क बात क जा सकती है ।
23
मानव और मानवे तर भाषा को अलगाने का यास कया हे । मानव अपनी भाषा के मा यम
से नये या पुराने भाव को असी मत प म अ भ यि त दे सकता है जब क मानवे तर भाषा म
अ भ यि त क शि त सी मत होती है, दूसर बात यह क - मानवे तर भाषा ाय: उ ीपन-
अनु या के प म ह होती है जब क मानव भाषा नह ं । तीसर मु ख बात यह कह है क
मानव भाषा कसी भी अननुमा नत, अ ान, या नये से नये संदभ को अ भ यि त दे ने म समथ
होती है जब क मानवे तर भाषा म यह मता नह ं होती है ।
मानव और मानवे तर भाषा को अलगाने क इस या से ह भाषा के अ भल ण का
ज म हु आ । अलग-अलग भाषा वै ा नक ने इन अ भल ण क चचा अलग-अलग सं या म
गनाते हु ए क है जैसे हॉकेट ने सात अ भल ण का उ लेख कया है तो ह द भाषा वै ा नक
ने भी अलग-अलग नाम दे कर उसक चचा क ह । सं या या नाम के च कर म पड़े बना
भाषा क कृ त को समझना आव यक है अत: यहां ह द के स भाषा वै ा नक भोलानाथ
तवार वारा च चत भाषा के मु ख दस अ भल ण क चचा तु त है-
1.4.2 या ि छकता
1.4.3 अनुकरणशीलता
24
अपने माता पता, प रवार, पास-पड़ोस या अपने आस-पास के वातावरण से जाने अनजाने भाषा
सीखता है । लोग-बोलते ह, वह सु नता है । बार-बार सु नने पर उ च रत व नय का अनुकरण
कर उ चारण करता है । साथ म अमुक चीज, व तु, पदाथ आ द को इस नाम से पहचाना
जाता है, यह भी सब सीख लेता है जैसे कसी वशेष ाणी के लये 'गाय' श द बार बार सु नने
पर उसे बोध हो जाता है क - इसे गाय' कहा जाता है साथ ह 'गाय' व नय का उ चारण ।
ऐसे ह सम त पदाथ , भाव , यवहार आ द क जानकार ा त करता है । इस कार से भाषा
अ धगम क या को अनौपचा रक अनुकरण के वारा भाषा अजन क या कहा जाता है।
जब क, बालक एक उ के बाद कू ल, कॉलेज, व व व यालय या अनौपचा रक प से
श ा दे ने वाल सं थाओं से जो भाषा अजन करता है, उसे अनौपचा रक भाषा अ धगम या
कहा जाता है । संभव हे क जहाँ बालक औपचा रक प से भाषा सीखने के म म गलत
उ चारण, अपूण जानकार के कारण या अनुकरण म खामी के कारण भाषा का अजन दोषपूण
प म करता है । इन सारे भाषा संबध
ं ी दोष का उपचार एवं नदान औपचा रक भाषा श ण
अ धगम या के अ तगत हो जाता है । एक बात और भी यान रहे क-मनु य जीवनभर
अनौपचा रक प से भाषा का अजन करता ह रहता है, औपचा रक श ा उसे भाषा सीखने-
सखाने के लए यवि थत दशा नदशन करती है । समाज के वभ न े क जानकार
सामािजक, आ थक आ द यावहा रक काय म भाषा ह मा यम के प म काम करती है ।
अत: मनु य जीवन के हर कदम पर भाषा का अजन करता रहता है- अनुकरण के वारा और
भाषा के मा यम से उसके यि त व का वकास भी होता है । भाषा सीखने यो य होती है अत:
उसी अ धग यता के प म समाज के व वध े क जानकार ा त होती है इसी को
सां कृ तक सं ेषणीयता या परमपरानुगा मता भी कहा जाता है । कु ल मलाकर कह तो भाषा
मनु य को मानवे तर पशु-प ी, जीव क भां त ज मजात या आनुवां शक प म नह ं मलती
उसे सीखना-अिजत करना पडता ह यह अजन अनुकरण के प म होता है ।
25
हर यो ता को हर समय नयेपन या ताजगी क अनुभू त कराती है जैसे म, तु म, वह, मलना
इन चार श द से - 'मु झ'े , तु मसे वह बात कहने के लये मलना है ।' 'वह तु मसे मु झे
मलवाने क इ छा रखता है', ’तु म मु झसे मलो, उसम उसक खु शी है', 'मु झे तु मको उससे
मलवाना है । आ द अनेक वा य क रचना हो सकती है ।
1.4.5 प रवतनशीलता
26
टु कड़ म व ले षत कर सकते ह जैसे कसी मानव भाषा म हु ई अ भ यि त को भा षक
व लेषण से प ट कर सकते ह । उदाहरण के प म नर-मादा पशु क आपसी भावो तेजक
व नय को व लेषण संभव नह ं है जब क मानव भाषा म हु ई बातचीत को वा य, पद, श द,
व न आ द म वभािजत कया जा सकता है । इस कार मानव भाषा क एका धक इकाईय के
योग से न मत होने को ह बहु तघटकता या वि छ नता कहा जाता है ।
27
हम अतीत क सभी भाषाओं, प रि थ तय के बारे म बात कर सकते ह । ऐसा नह ं क खडी
बोल 1वीं2 सद म नह ं थी तो उस समय क बात नह ं कर सकते ह । ठ क वैसे ह सौ साल
के बाद या होगा उसके वषय म वतमान क भाषा म सू चना दे सकते ह ऐसा नह ं क उस
समय वतमान भाषा होगी या नह ं यह तय न होने के कारण हम नह ं बता सकते । इस कार
भाषा कालांत रत होती है । कालांतरण क भां त भाषा थाना तरण के बंधन से भी मु त होती
है । जैसे ह द , ह द भाषी दे श म तो भाषा के प म यु त होती है पर तु इसका अथ
यह नह ं क यह अ य दे श या वदे श म नह ं बोल जा सकती । दो समान भाषा-भाषी
मलने पर भाषा का योग व व म कह ं भी कसी भी थान पर कया जा सकता है । भाषा
को काल क तरह थान का बंधन भी नह ं होता है ।
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1. वागत या आ मालाप : इसका आशय है अपने जीवन म व वध ि थ तय म वागत
वातालाप करता है । वशेषकर वचार करते समय कसी आवेश अथवा उ तेजना के
ण म पर ा आ द के लये कसी सू को कंठ थ करते हु ए अथवा प ठत अंश को
दोहराने के लये ओर ाथना तथा ई वर के सामने आ म नवेदन करते हु ए - इन सबके
अ त र त नहाते हु ए गुनगुनाना , बहु त छोटे शशुओं से बात करना । सु सु ताव था म
कु छ-कु छ बोलना आ द इसके अंतगत आते है । इस कार का भा षक यवहार कमोबेश
हर वग के लोग म ल त कया जाता है ।
2. बातचीत या वातालाप : भा षक यवहार का सबसे सश त यापक ओर मह वपूण प
है बातचीत या वातालाप । इसम व ता और ोता दोन क अवि थ त होती है और
व ता ोता का थान बदलता रहता है । यह सल सला काफ दे र तक चलता रह
सकता है । कभी-कभी यह बातचीत दो या अ धक लोग के बीच भी होती है । संभाषण
क अनेक ि थ तयां इस वग म आती ह । िजनम आ ा, अनु ा, नदश, न उ तर,
भावा भ यि त आ द अनेक प प रल त हो सकते है ।
3. भाषण (एक व ता वारा बड़े समुदाय को सं ो धत करना) : भा षक यवहार का यह
पहलू एक व ता का अपे ाकृ त बडे समु दाय से ब होना है इसम व ता मु खर होता
है जब क ोता नि य । कु छ अपवाद को छोड़ दे तो व यालय , महा व यालय क
क ाएँ, राजनी तक नेताओं क जनसभाएं, संत ओर महा माओं के वचन, आकाशवाणी
और दूरदशन क वाताएँ, समाचार बुले टन , रे वे टे शन और हवाई अडड क घोषणाएँ,
एक प ीय भाषण के व वध उदाहरण है ।
भाषा के दो प है जेसा क हम पहले बता चु के ह मान सक और भौ तक । थू ल अथ म
व नय का समूह भाषा कहलाता है । व नय के मेल से श द, श द के मेल से पद और पद
के मेल से वा य बनते ह । वा य भाषा क सबसे छोट , साथक इकाई है िजसके वारा मानव
मन म ि थत व भ न भाव ओर वचार क कट कया जाता है । क तु भाषा का यह
व प केवल भौ तक है इसके अलावा भाषा का एक सू म प भी है िजसे भाषा का मान सक
प भी कहा जा सकता है । उदाहरण के लये जब कोई कहता है क अलका बंगला जानती है
तो ता पय यह होता है क अलका के मि त क म मौजू द उन भा षक सं कार के बारे म बात
क जा रह है िजसक मदद से वह बंगला भाषा बोलती और समझती है|
एक संगीतकार के दमाग म संगीत सं कार के प म मौजू द रहता है । जब वह कोई वा ययं
बजाता है तो उससे संगीत के वर सु नयोिजत प म फु टत होते ह, ले कन एक ऐसा
यि त जो संगीत नह ं जानता वह वा ययं को छोडकर केवल बेहतर न व नयां या शोर ह
उ प न कर सकता है । वर लह रय से पूण संगीत नह ं । इससे प ट होता है क िजस तरह
संगीत मान सक सं कार है उसी तरह भाषा भी मान सक सं कार है और मान सक सं कारह न
यि त न वह भाषा बोल सकेगा और न ह वह समझ सकेगा ।
तेजपाल चौधर लखते ह “ क तु इसका ता पय यह नह ं क भाषा का भौ तक प नग य या
कम मह वपूण है । िजस कार अ छे वा य यं के बना अ छा संगीत उ प न नह ं कया जा
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सकता उसी कार वा य वागवयव के बना नद ष भाषा नह ं बोल जा सकती । जब हम
संभाषण करते ह, तो हमारे भाव और वचार भा षक सं कार क सहायता से वा य प म
प रव तत हो जाते ह, वागवयव उ ह उ चा रत भाषा का प दे ते ह और ोता अपने भा षक
सं कार के कारण उ ह अ वकल प से हण कर लेता है । व तु त: व ता और ोता के बीच
िजतना यादा भा षक तालमेल होगा उनका संभाषण उतना ह सफल होगा । आयु, श ा,
सामािजक और बौ क तर मलकर भा षक तालमेल को नधा रत करते ह ।“
भाषा के मान सक और भौ तक प क बात फ दना द स यूर ने भी कह है । वे मानते है क
भाषा के दो प होते ह : भाषा ओर वाक् । भाषा सं कार प म व यमान अमूत व तु है ओर
वाक् उसका थू ल भौ तक प । इतना ह नह ं भाषा सामािजक व तु है और वाक् वैयि तक ।
स यूर ने प ट श द म कहा है क भाषा समाज के सं कार म अमू त प म व यमान रहती
है और वाक् यवहार म यु त होता है| भाषा का भौ तक प व ता क यो यता श ा-द ा
और प रवेश के अनुसार बदलता रहता है पर तु मान सक प अपे ाकृ त ि थर रहता है । हां,
जब कोई भा षक प रवतन बहु त यापक जन समु दाय वारा वीकार कर लया जाता है तो वह
भाषा के अमू त सं कार को भी भा वत करता है ओर समया तर म भाषा वकास का प ले
लेता है ।
नद ष सं ेषण के लये व ता और ोता के म य तालमेल का होना अ त अ नवाय ह उदाहरण
के लये य द एक मनो व ान क व ता अपने नर र नौकर को मनो व ान क बार कयां
समझाए तो या तो वह ऊब कर वहां से भाग जाएगा अथवा अपने वामी के त आ ानुव तता
द शत करते हु ए झू ठमू ठ सर हलाता रहे गा । बौ क तर क यह असमानता तो टाल भी
जा सकती है ले कन य द ोता व ता क भाषा से ह अन भ हो तो पर पर संभावना एक
न फल चे टा बन कर रह जायेगी ।
मनु य का जीवन आज से पहले क तु लना म कह ं अ धक ज टल, संि ल ट और तेज ग त
वाला हो गया है । हम अपने दै नक काम म भी कई भाषाओं क ज रत पडती है । घर म हम
अपनी मातृभाषा बोलते ह घर के बाहर थानीय भाषा ओर कई थान पर ह द अथवा अं ेजी
। यावहा रक ज रत के कारण लोग एका धक भाषाओं म भा षक तालमेल और सं ेषण म
स म स हो रहे ह ।
30
9. जीवंतता ـ ाणव ता, जीवन के ल ण
10. बहु घटकता ـ अनेक ख ड वाला, भाषा के संदभ म मानव भाषा का कई इकाइय
यथा वा य, पद, श द, व न से मल कर बनना है ।
11. मानवे तर ـ मनु य के अ त र त अ य ाणी
12. आं गक ـ शर र के अंग से संक लत
13. अवयव ـ अंग
14. संगणक ـ क यूटर के लये यु त होने वाला श द ।
1.7 सारांश
मानव के भाव एवं वचार के आदान- दान के कई तर के ह । इं गत , संकेत , व वध,
हावभाव, चे टाओं, भं गमाओं के वारा यह काय होता है पर उसक अपनी सीमा है । उसे भाषा
नह ं कहा जा सकता । भाषा क एक नि चत यव था होती है । सं ेषण के सभी साधन म से
भाषा ह सव े ठ साधन है । मानव एवं मानव समाज क सव कृ ट साधना के प रणाम व प
भाषा का ज म हु आ है । सृि ट य द परमा मा का सु दर सृजन है तो भाषा मानव समाज का
सु दर एवं सव कृ ट सृजन है । भाषा से जहां भाव एवं वचार का पर पर आदान- दान होता
है वह ं भाषा के वारा मानव का चंतन मनन एवं सोचने का काय भी स प न होता है ।
भाषा के अभाव म मानव एवं समाज के व वध े के वकास एवं ग त क क पना
भी नह ं क सकती है । अत: आचाय द डी ने ठ क ह कहा है क भाषा पी द पक के काश
से तीन लोक का अंधकार दूर होता है । इससे आशय यह है क समाज या संसार के वकास
को समझने के लये भाषा ज र है । भाषा महज एक साधन है पर तु उस साधन से दु नया
भर क सभी े क जानका रयां हा सल क जा सकती ह । भाषा ान नह ं ान ाि त का
साधन है ।
मानव भाषा क तरह मानवे तर भाषा का अपना अि त व है पर तु मानव भाषा वष
क मनु य एवं समाज क कठोर साधना का फल है । अत: उसक कु छ अपनी नजी वशेषताएं
एवं अ भल ण है जो उसे मानवे तर भाषा से अलगाते है । पशु-प य , ज य जीवज तु ओं क
भाषा युग से वैसी क वैसी है वह ं मानव भाषा नर तर प रवतन और अनुभू त एवं
अ भ यि त के तर पर आये प रवतन का संकेत दे ती है । मानवे तर भाषा म जहां
सृजना मकता का नामो नशान नह ं होता है वह ं मानव भाषा येक समय, येक अ भ यि त
म सृजना मकता क अ भ यि त कराने म स म, समथ होती है । एक ओर जहां पशु-प ी का
ब चा ज म से ह सहज प से अनुवां शक प से अपने माता- पता क भाषा सीखकर ज म
लेता है । उसे कु छ सीखने- सखाने क ज रत नह ं होती है । वह ं मानव भाषा का अजन करता
है ओर वह अजन अनुकरण के प म होता है । सं कृ त व वान ् का पु ज म से सं कृ त नह ं
बोलता उसे अजन करना पड़ता है अ यथा वह जैसा का तैसा रहे गा । इसके वपर त गांव के
कसान का लडका अजन या से गुजरते हु ए सं कृ त भाषा का व वान बन सकता है । भाषा
का अजन अनुकरण से होता है अनुकरण औपचा रक एवं अनौपचा रक प म होता है । मानव
जीवन भर अनौपचा रक प से भाषा सीखता है और इसी म म वह समाज के व वध े
31
क जानकार , रहन-सहन, र त- रवाज, आ द क जानकार भी ा त करता है अत: भाषा को
सां कृ तक सं ेषणीयता का सबल साधन माना जाता है ।
भाषा जहां वा य, प, श द, तर पर साथक होती है वहां वन तर पर अथभेदक
होती है िजसे अ भरचना क वैतता कहा जाता है । भाषा क एक अ य वशेषता उसक
बहु घटकता म है । भाषा के वारा य त भाव या वचार जो वा य म होते ह उसे वभािजत-
व ले षत कर प, श द, व न जैसे खंड कये जा सकते ह जब क मानवे तर भाषा म यह
संभव नह ं ह । भाषा थान एवं काल क सीमाओं के बंधन से मु त होती है अथात ् वतमान
क भाषा म अतीत एवं भ व य के वषय म बातचीत हो सकती है । वैसे ह भाषा का योग
दु नया म कह ं भी कसी भी थान पर कया जा सकता है ।
भाव एवं वचार क अ भ यि त का सबल मा यम होने के बावजू द भाषा के मा यम
से मनु य अपने भाव या वचार छपाने का काय भी कर सकता है । भाषा क इस कृ त को
असहजवृ तकता कहा जाता है । भाषा म व ता ओर ोता क भू मका हमेशा समान नह ं रहती
। वह बदलती रहती ह । बोलने पर व ता ओर सु नने पर ोता । बातचीत म यह भू मकाएं
बदलती रहती है । न कषत: भाषा मनु य का अनुपम सृजन ह अभी तक भाषा से अ धक े ठ
भाव- वचार व नमय का साधन आ व कृ त नह ं हु आ है । वह भाषा मानव उ चारण अवयव से
उ चा रत होती है । भाषा या ि छक व न- तीक क यव था है । भाषा मानव समु दाय म
यु त होती ह अत: उसका े समु दाय क ि ट से नि चत होता है । भाषा का मु ख काय
सं ेषण है अथात ् भाव एवं वचार का आदान- दान करना ।
1.8 अ यासाथ न
क द घ तर न
1. स ेषण के व वध साधन बतलाइये ।
2. भाषा संबध
ं ी भारतीय व वान के मत पर काश डा लये ।
3. भाषा संबध
ं ी पा चा य व वान के मत पर काश डा लये ।
4. मु ख भारतीय एवं पा चा य व वान के मत क चचा करते हु ए भाषा क
प रभाषा द िजये ।
5. भाषा क प रभाषा दे ते हु ए भाषा संबध
ं ी मु ख मु का प रचय द िजये ।
6. मानव और मानवे तर भाषा संबध
ं ी भाषा वै ा नक के मत पर काश डा लये ।
7. मु ख भा षक अ भल ण क सोदाहरण चचा क िजये ।
8. ट पणी:
अ. मू क साधन एवं मु खर साधन
ब. क ह ं दो भारतीय व वान क भाषा क प रभाषा
स. प रवतनशीलता
द. या ि छकता
य. अ भरचना क वैतता
32
र. मानव और मानवे तर भाषा
ख लघू तर न
1. संकेत भाषा का आशय सोदाहरण बताइये ।
2. भाषा के संवहन प से या ता पय है ।
3. भाषा संबध
ं ी चो सक क प रभाषा द िजये ।
4. भोलानाथ तवार क भाषा प रभाषा को प ट क िजये ।
5. भाषा के अ भल ण दशा और काल क अंतरणता को सं प
े म समझाइये ।
ग. र त थान क पू त क िजये
1. भाषा................................ का अहम साधन है ।
2. येक भा षक उ त क ह ं स ांत के आधार पर.............................. होती है।
3. भाषा एक यवि थत................................................ है ।
4. ................................. का अथ है जैसी इ छा हो ।
5. भाषा क ........................................... उसक जीवंतता का तीक है ।
घ. सह /गलत चि नत क िजये
1. भाषा असीम व नय से संयोिजत यव था है –
सह /गलत
2. भाषा म यु त वन तीक अमू त होते ह ।
सह /गलत
3. उ चारण अवयव से उ प न मा यम- तीक ाथ मकता य होते ह ।
सह /गलत
4. मनु य को भाषा पैत ृक संपि त के प म मलती है । सह /गलत
5. मानव भाषा के लये थान और काल का बंधन नह ं होता है । सह /गलत
1.9 संदभ थ
1. डॉ. भोलानाथ तवार ; भाषा व ान, कताब महल, इलाहाबाद, 1997
2. डॉ. धीरे वमा; ह द भाषा का इ तहास, ह दु तानी एकेडेमी, इलाहाबाद,
3. डॉ. दे वे नाथ शमा; भाषा व ान क भू मका, अनुपम काशन, पटना, 2001
4. डॉ. उदयनारायण तवार ; ह द भाषा का उ व और वकास, भारती भ डार, इलाहाबाद,
1979
33
इकाई-2 भाषा का उ व एवं वकास
इकाई क परे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 भाषा उ व के स ा त
2.2.1 द यो पि त अथवा ई वर स ा त
2.2.2 संकेत स ा त
2.2.3 अनुकरण ( ड -डॉड.) स ा त
2.2.4 अनुकरण (बोउ-बोउ) स ा त
2.2.5 आवेग (पुह -पूह ) स ा त
2.2.6 म (यो-हे -हो) स ा त
2.2.7 इं गत (हाव-भाव) स ा त
2.2.8 स पक स ा त
2.2.8 संगीत स ा त
2.2.10 तीक स ा त
2.2.11 सम वय ( म त) स ा त
2.2.12 तभा स ा त
2.3 भाषा वकास का व प, दशाएँ और कारण
2.3.1 भाषा वकास का व प
2.3.2 भाषा वकास क दशाएँ
2.3.2.1 व न वकास
2.3.2.2 श द वकास
2.3.2.3 पद वकास
2.3.2.4 वा य वकास
2.3.2.5 अथ वकास
2.3.3 भाषा- वकास के कारण
2.4 वचार संदभ/श दावल
2.5 सारांश
2.3.5 अ यासाथ न
2.3.6 संदभ थ
ं
2.0 उ े य
तु त इकाई म भाषा का उ व एवं वकास का अ ययन कया जायेगा । इसे प ने के
बाद आप :-
34
भाषा के उ व के व प को समझ सकगे ।.
भाषा उ व के व भ न स ा त का व धवत प रचय ा त करते हु ए उनका पर ण
एवं व लेषण कर सकगे ।
भाषा वकास (प रवतन) क व वध दशाओं व न, श द, प, वा य एवं अथ से
प र चत हो सकगे ।
भाषा वकास के बाहय एवं आ त रक कारण से प र चत हो सकगे ।
2.1 तावना
कसी भी भाषा के वै ा नक अ ययन को “भाषा व ान” कहते है । यह न ववाद स य
है क िजस तरह याकरण के बना भाषा को लखना और बोलना भल कार नह ं आता उसी
तरह भाषा व ान के बना भाषा के उ व संबध
ं ी रह य का स यक् ान नह ं होता । भाषा
व ान ह वह कं ु जी है िजसके वारा कसी भाषा क बनावट, उसके ास एवं वकास के बोधक
व न वकास, श द वकास, प वकास, अथ वकास एवं वा य वकास आ द का ान होता
है ।
भाषा व ान ह वह व ान है जहाँ भाषा क उ पि त एवं वकास क या या,
वणना मक, तु लना मक एवं ऐ तहा सक अ ययन के मा यम से होती है । अत: भाषा के
स यक् उ व एवं वकास के अ ययन के लये भाषा व ान एक अ नवाय व ान और
अप रहाय वषय है ।
2.2 भाषा-उ व के स ा त
भाषा ान एवं श ा का आधार है य क भाषा सम त काय का आधार है । भाषा
ज म से लेकर मृ यु तक येक ण हमारे साथ रहती है क तु “अ तप रचयादव ा’ क तरह
हम उसक अवहे लना करते ह और यह जानने का य न नह ं करते क भाषा जैसी अमू य
न ध का उ व कैसे हु आ ।
यह माना जाता है क वसन उसी ण ारंभ हु आ होगा िजस ण वसन या पर
नभर पहले जीवधार का ज म हु आ, क तु वसन का वै ा नक अ ययन बहु त बाद म हु आ
होगा । ठ क यह बात भाषा के वषय म कह जा सकती है । आ द मानव ने भी अपनी
अ भ यि त कसी या, नाद अथवा हावभाव के प म य त क होगी । ब चे क भाषा
उ पि त पर वचार करने पर हम पाते ह क ब चा अपनी भाषा, दन या के मा यम से
ारं भ करता है धीरे -धीरे दन या म सु खा मक एवं दुखा मक वभेद ि ट गोचर होने लगते
है । कु छ ह मह न म बालक वा यं का योग कर हँ सने, बड़बड़ाने एवं चीखने लगता है ।
भाषा का उ व कैसे हु आ, कसके वारा हु आ इन न पर मनु य ने अनेक वष बाद
वचार कया होगा जो आज तक एक पहे ल बना हु आ ह य क लाख वष पूव मानव के ज म
के साथ ज मी भाषा क प रि थ तय एवं कारण को जानने का कोई साधन मनु य के पास
नह ं था ।
भाषा क उ पि त के लये दो बात अ नवाय है :-
35
(1) वागय से वनन या वण चारण क मता ा त करना ।
(2) उ च रत व न का अथ के साथ संबध
ं था पत करने का ारं भ ।
जहाँ तक वनन अथात ् व न उ प न करने का न है वह उन अग णत पशु-प य
म पाया जाता है िजनके पास व न यं है जैसे घोड़ा हन हनाता है; बंदर खी-खी करता है
इसम साथकता का अभाव है
वचारणीय वषय यह है क मनु य ने सव थम श द और अथ का संबध
ं कैसे था पत
कया? इस बात का उ तर ह िज ासा का वषय है ।
भाषा-उ व वषयक अनेक स ा त के चलन के बाद भी भाषा क उ पि त का
नि चत उ तर ा त न होने के कारण भाषा वै ा नक ने इस वषय को भाषा व ान के े
से बाहर घो षत कया । 1866 ई. म पे रस म भाषा व ान क एक स म त (ला सो सएट
फॉर लि वि टक) क थापना हु ई थी । उसने अपने अ ध नयम म नदश दया क “भाषा के
उ व और व वभाषा नमाण” इन दो वषय पर वचार नह ं होगा य क भाषो पि त वषयक
स ा त अनुमान पर आ त है । व ान अनुमान पर आ त न होकर त य पर नभर होता
ं भाषा व ान से न होकर मानव व ान, दशन शा
है साथ ह भाषा उ व का नकट संबध ,
मनो व ान एवं समाज शा से है ।
इसके अ त र त भाषा के उ व संबध
ं ी ान से भाषा क रचना को समझने म कोई
मदद नह ं मलती ।
आधु नक भाषा वै ा नक इस न पर अपने वचार कट करना समीचीन नह ं मानते
। उनका मत है क भाषा के उ गम क सम या भाषा व ान क शि त के बाहर ह । व तु त:
मानव क उ पि त और मानव समाज क सृि ट से इस सम या का घ न ठ संबध
ं है । मानव
मि त क के वकास तथा समाज के संगठन के साथ-साथ भाषा क मक सृि ट हु ई । अत:
प ट है क भाषा क उ पि त का वषय भाषा व ान का न होकर मानव इ तहास तथा
समाजशा का है और इ तहासकार एवं समाजशाि य को ह इस वषय पर वचार वमश
करना चा हये । व वान ने भाषा के उ व के संबध
ं म जो कु छ स ा त कट कये है उनका
ऐ तहा सक मह व है । िजससे यह पता चलता है क व वान ने भाषा उ व संबध
ं ी सम या
का कस तरह समाधान कया । इसी लये आगे भाषा उ व संबध
ं ी स ा त का न पण कया
जायेगा, जो असं य पी ढ़य एवं अनेक शताि दय से च लत भाषा के उ गम क ओर हमारा
यान आक षत करते ह ।
2.2.1 द यो पि त अथवा ई वर स ा त
36
और मृ तय म अनेक माण इस वषय के ा त होते ह क ई वर से ह वेद क उ पि त हु ई
है ।
दे वी वाचमजनय त दे वा तां व व पा: पशवो वदि त ।
(ऋ वेद ८- १०० - ११)
अथात ् वा दे वी (भाषा) को दे व ने उ प न कया और उसे सभी ाणी बोलते ह । इस
म म भाषा क दै वी उ पि त का प ट उ लेख है । “अ.इ.उण.् .'' आ द 14 महे वर सू शव
के डम से उ प न माने जाते ह । यह भी भाषा क दै वी उ पि त का सू चक है ।
ह दू लोग अपनी इसी मा यता के आधार पर सं कृ त भाषा को दे ववाणी कहते है ।
‘सं कृ त आ द भाषा है' इस कथन क पर परा को लेकर बाद म अ न वर वाद जैन और बौ
ने भी अ मागधी या पा ल को आ द भाषा कहना ार भ कया । ईसाइय ने 'ओ ड टे टामट'
क ह ू भाषा को और मु सलमान ने कु रान क भाषा अरबी को आ द भाषा घो षत कया ।
एक जमन व वान सु स म स ने भाषा क दै वी उ पि त का समथन करते हु ए कहा है
क ''भाषा मानवकृ त नह ं है अ पतु परमा मा से सा ात ् उपहार प म ा त हु ई है ।“ जमन
लोग जमन भाषा को आ द भाषा कहते ह । इसी कार ीस के व वान म 'फूसेइ-थेसइ’ का
ववाद शताि दय तक चला क भाषा ई वर य दे न है या मानवकृ त ।
इस कार व वध मतावल बी अपने-अपने धम थ क भाषा को ई वर से उ प न
कहकर भाषा के दै वी उ पि त संबध
ं ी स ा त क पुि ट करते ह । िजस कार ' बनु ह र कृ पा
तृनहु न हं डोलै' के अनुगामी क ि ट म ई वरे छा सार सम याओं का सहज समाधान कर
दे ती है, क तु व ान क तक ाह ि ट उसे वीकार नह ं कर पाती । एक अ य वग दै वी
उ पि त के इस मत को ा आधा रत मत मानते ह ।
समी ा
इस स ा त पर मु य आपि तयाँ न न ल खत ह :-
(1) यह स ा त तक व ान संगत नह ं है । केवल आ था पर नभर है ।
(2) य द भाषा ई वर द त है तो भाषाओं के इतने भेद य ह? पशु-प य क भाषा तो
संसार म समान है क तु मानव मा क भाषा समान य नह ं है?
(3) जमन व वान हे डर ने अपने पुर कृ त नबंध ''ओ रिजन ऑफ ल वेज'' म इस स ा त
का ख डन करते हु ए लखा है य द भाषा ई वरकृ त होती तो यह अ धक सु यवि थत
और तक संगत होती । अ धकांश भाषाएँ अ यवि थत और ु ट पूण है ।
(4) य द भाषा ई वर य दे न है तो यह ज म से ह मनु य को ा त हो जाती । उसे समाज
से सीखने क आव यकता नह ं होती । पर तु ऐसा नह ं दे खा जाता है ।
सभी व वान इस वचार से सहमत ह क भाषा क उ पि त ई वर य या दै वी हो या न
हो, पर तु एक बात स य है क साथक और प ट उ चारण के यो य वाग-् य और उसको
संचा लत करने वाल बु मनु य को ई वर य दे न है । सामा यत: यह मत व वान को
वीकाय नह ं है ।
37
2.2.2 संकेत स ा त
39
बंगाल म 'काक' पंजाबी म 'कॉ' और अं ेजी म ' ो’ कहते ह । ये सभी श द अनुकरण के
आधार पर बने है । ।
इसी कार गजन, तजन, चमाचम, जगमग, चकमक, छलछल, कलकल, खटखटाना,
गड़ गड़ाना आ द श द का नमाण व न सा य के आधार पर हु आ ।
समी ा
इस स ा त म न न ल खत दोष दखाई दे ते ह -
(1) सभी भाषाओं म थोड़े से ह श द अनुकरणा मक होते ह और कु छ भाषाओं म तो एक
भी श द अनुकरणा मक नह ं होता । इससे यह स होता है क अनुकरणा मक श द
से भ न भाषा के अ य श द क उ पि त कैसे हु ई होगी?
(2) यह स ा त मनु य को भाषा वह न मानकर चलता है और यह स करता है क
मानव को भाषा पशु-प य का अनुकरण करने पर ा त हु ई ।
(3) सभी भाषाओं म अनुकरणा मक श द भी एक से नह ं मलते जैसे झर-झर क वन
करने वाले को सं कृ त म नझर, ह द म 'झरना', अं ज
े ी म 'ि म' और जमन म
' म' आ द कहते ह । य द अनुकरण के आधार पर भाषा के श द बने होते तो सभी
समान होते क तु ऐसा सव दखाई नह ं दे ता ।
(4) यह मत अ धक से अ धक 1 तशत श द का समाधान करता है । 99 तशत
श द के लए यह मत मौन है ।
इस कार हम यह कह सकते ह क स पूण भाषा क उ पि त अनुकरण के आधार पर
नह ं हु ई है । ओटाये पसन ने भी इसे आं शक मा यता दान क है । अत: यह मत सी मत
अंश म ह मा य है पूणतया मा य नह ं है । येक यि त के मि त क म पृथक व नयाँ
झंकृ त हो सकती है । इससे एक व तु के अनेक नाम हो सकते है । यह मत अ वीकृ त होने
पर भी रोचकता के लए च लत है ।
40
इस स ा त म अनेक दोष ह :-
(1) आवेग श द आवेगा मकता को ह कट करते ह सामा य भावा भ यि त को नह ं
अतएव इनका संबध
ं भाषा के मु य अंग से नह ं है ।
(2) भ न- भ न भाषाओं म ऐसे श द एक प म नह ं मलते य द ये श द वाभा वक प
से नःसृत हु ए होते तो अव य ह सभी मनु य म ये लगभग एक से होते । पर संसार
भर के मनु य दुःखी होने पर एक कार से न हाय करते ह और न स न होने पर
एक कार से वाह ।
(3) ोफेसर वै फ ने इस मत का ख डन कया है क आवेग व नयाँ भाषा क अ मता
को सू चत करती है । ये भाव भाषा वारा य त नह ं कए जा सकते । अत: इनसे
भाषा का उ व नह ं हो सकता ।
(4) ये श द वचार पूवक यु त नह ं होते अ पतु आवेग क ती ता म अनायास नकल
पड़ते है ।
(5) हाँ इतना अव य वीकार कया जा सकता है क इस कार क व नयाँ आर भ म
अ धक रह होगी और उनका योग भी भाषा के अभाव म अ धक होता रहा होगा ।
सारांशत: यह कह सकते. ह क आवेग स ा त भी भाषो पि त वषयक उलझन को
सु लझाने म असमथ है ।
समी ा
इस स ा त म न न ल खत (क मयाँ) यूनताएँ ि टगोचर होती ह -
(1) ये म मू लक व नयाँ नरथक होती है । अत: इन नरथक व नय से कभी भी
साथक व नमयी भाषा का उ व स भव नह ं है ।
(2) इन व नय का कसी भी भाषा म कोई वशेष थान नह ं है य क छयो- छयो या
ह-ह या हो-हो आ द व नयाँ अथ शू य ह जो प र म करते समय वर तं य से
अनायास नकल जाती ह । सभी यि त इनका उ चारण नह ं करते ।
41
(3) इन व नय का संबध
ं सामू हक काय करने से है जैसे कसी भार पदाथ को उठाने के
लए जब एक आदमी पहले जोर लगाओ कहता है तब अ य सभी मजदूर 'ह-ई-साब’
एक साथ कहते ह । िजससे सामू हक शि त वारा वह भार पदाथ सहज ह म उठ
जाता है ।
(4) इन व नय का संबध
ं बौ क चंतन से नह ं अ पतु शार रक म से है ।
(5) अत: न ववाद स य है क ऐसी नरथक एवं च तनह न व नय से कभी भाषा क
उ प त नह ं हो सकती । इसके संबध
ं म बे फ का यह कथन अ वीकार नह ं कया जा
सकता क ऐसे श द केवल वहाँ यु त कए जाते ह जहाँ बोलना संभव नह ं होता ।
अत: यह स ा त अंशत: ठ क है
2.2.7 इं गत स ा त (हाव-भाव स ा त)
42
(2) कु छ सामा य याएँ अव य इं गत से न मत हु ई ह क तु भाषाओं क अ य सभी
याओं पर यह नयम लागू नह ं होता ।
(3) य द सभी इं गत से भाषा क उ पि त होती है तो पशु ओं एवं प य म भाषा अभी
तक य वक सत नह ं हु ई? वे तो इं गत पर ह आज तक अपना काम चलाते है ।
(4) हाथ, पैर, ओ ठ आ द के आधार पर श द रचना क क पना नमू ल है ।
(5) अत: उ त दोष के कारण इं गत स ा त भी मा य नह ं है । इतना अव य है क
भाषा म कु छ श द अव य इं गत स ा त पर बने ह पर तु सम भाषा को इससे
उ प न मानना उपयु त नह ं है ।
2.2.8 स पक स ा त
2.2.9 संगीत स ा त
43
इस स ा त म भी कु छ दोष है -
(1) गुनगुनाने से भाषा क उ पि त होना केवल अनुमान पर आधा रत है । इसका कोई
माण नह ं है ।
(2) आ दम यि त गुनगुनाता था इसका कोई भी पु ट आधार नह ं है ।
अत: यह स ा त अ वीकार कया गया ।
2.2.10 तीक स ा त
2.2.11 सम वय / म त स ा त
समी ा
(1) भाषा क उ पि त समझाने के लए अ य कोई एकमत शु न होने से सबका सम वय
उपयु त माना गया ।
(2) यह स ा त सामा यता न वरोध प से वीकार कया जाता है ।
44
2.2.12 तभा स ा त
45
मलता है । सू म अथ क अ भ यि त के लए कोई भी श द इन स ा त के
वारा नह ं बन पाते ह ।
न कष
न कषत: हम यह कह सकते ह क तभा येक जीव म पृथक -पृथक प म रहती
है यह येक यि त म सं कारज य होती है । यह मानव जीवन को संचा लत करती है ।
यह येक जीव को आव यकतानुसार काय करने क ेरणा दे ती है । गौरै या का सु दर घ सला
बनाना, मकड़ी का जाला बनाना, ब दर का कू दना, भस आ द का जल म तैरना आ द काय
तभा के वारा ह स प न होते ह । अभी तक तभा अनु बु प म थी आव यकता ने
बा य होकर तभा पर बल दया । इस कार आव यकता और तभा के सम वय से भाषा
क उ पि त हु ई । भाषा वै ा नक क ि ट से भाषा ई वर य नह ं है । अ पतु तभा ई वर य
है इसके वारा ह भाषा क सृि ट होती है । इसी अथ म भाषा को ई वर य दे न कहा जा
सकता है । हम यह कह सकते ह क तभा एक प नह ं है और न ह हो सकती है अ पतु
वह सवशि त स प न है ।
46
प रि थ तय और वातावरण म एक होती है अत: वकास क ग त म व तु और प रि थ त के
भेद से भेद हो जाता है ।
भाषा भी प रवतन के इस नयम का अपवाद नह है । भाषा भी उ प न होती है,
बढ़ती है, फलती-फूलती है और प रव तत होती जाती है । भाषा को बहता नीर कहा गया है ।
भाषा क उपमा नद के वाह से द जाती है िजस कार नद अपने उ गम थल से नकल
कर नर तर बहती जाती है, उसम अनेक नाले, नद और न मलते जाते ह उसके व प म
प रवतन और प रवधन होता जाता है पर तु उसका नाम वह च लत रहता है ।
उसी कार भाषा म भी व भ न धम, जा तय और सं कृ तय के श द नर तर आकर
मलते रहते ह पर तु उसका नाम भी वह च लत रहता है इस कार भाषा क धारा अबाध
ग त से चलती रहती है । भाषा म सतत ् वकास होता रहता है वह सौ वष पहले जैसी थी वैसी
ह आज नह रहती अ पतु उसम कह -ं कह ं तो पया त प रवतन हो जाता है । भाषा मनु य क
तरह अपना पुराना चोला उतार कर नया चोला पहन लेती है जैसे ाचीन वै दक सं कृ त ने
अपना पुराना चोला बदला तो वह लौ कक सं कृ त हो गयी फर चोला बदलते हु ए पा ल, ाकृ त,
ं और वतमान आय-भाषा ह द आ द के
अप श प म अ भनय के लए तु त हु ई है यह
प रवतन ह उसके आकषण का के है ।
भाषा के वकास पर बहु त पहले से कसी न कसी प म वचार कया गया है । श द
शा पर वचार करने वाले भारतीय आचाय म का यायन, पतंज ल, कै यट तथा जयाद त
वामन के नाम इस ि ट से उ ले य है । योरोप म इस वषय पर यवि थत प से वचार
करने वाले थम यि त डे नश व वान जे.एच. े सडाफ ह । इ होने 1821 म वन
प रवतन पर वचार करते समय तथा अ य भी भाषा प रवतन के 7-8 कारण गनाए थे तब
से इस सद तक पॉल ये पसन आ द अनेक लोग ने इस वषय को उठाया । पछले कु छ दशक
म टवे ट ने इस वषय का पहल बार व तार से ववेचन कया ले कन उसे भी पूण नह ं
माना जा सकता ।
व भ न भाषाओं के अ ययन से ात होता है क भाषा म वकास थान-भेद, काल-
भेद, प रि थ त-भेद से ि टगोचर होता है । उदाहरण के तौर पर भारतीय भाषाएँ एक ह मू ल
भाषा से नकल ह पर तु थान भेद से वे उ डया, ह द , बंगला, मराठ , पंजाबी आ द भ न
प से च लत है । इन भाषाओं म पया त अ तर हो गया है एक भाषा-भाषी दूसर भाषा को
अनायास नह ं समझ सकता । इसी कार काल-भेद के कारण वै दक सं कृ त से ह द तक क
भाषा म प भेद ि टगोचर होता है । आचाय भतृह र ने ''वा यपद य'' म कहा है क
प रि थ त-भेद, दे श-भेद, और काल-भेद से येक व तु म शि त-भेद होता है । व वान इस
बात पर सहमत ह क भाषा म प रवतन होता है क तु प रवतन के कारण के संबध
ं म वे एक
मत नह ं ह ।
47
2.3.2 भाषा- वकास क दशाएँ
2.3.2.1 - व न- वकास
48
2.3.2.2 - श द- वकास
2.3.2.4 - वा य- वकास
49
दोन वा य म म बदलने से अथ पूर तरह बदल गया । इसी कार अ य भाषाएँ जैसे चीनी,
सू डानी, आ द भाषाओं म थान या म बदल दे ने पर अथ बदल जाता है । उदा. चीनी भाषा
म वो-ता-नी िजसका अथ है ‘म मारता हू ँ तु झ'े ले कन नी-ता-वो, म बदल दे ने पर अथ होगा
‘तू मारता है मु झ'े ।
इस कार वा य प रवतन के वारा भी भाषा प रवतन का ान होता है अत: वा य
प रवतन भी भाषा प रवतन क एक दशा है ।
अथ भाषा क आ मा है । अथ के बना श द, श द नह ं है और वा य, वा य नह ं है
। भाषा का योग अथ क अ भ यि त के लए ह होता है । भाषा प रवतन क दशा का ान
अथ प रवतन से ह होता है । ाय: जो श द पहले िजस अथ म यु त होते रहते ह काला तर
म उन श द का योग अ य अथ म भी होने लगता है । अथात ् भाषा के बा य प के साथ-
साथ उसका आ त रक प भी प रव तत होता रहता है य क योग ह भाषा का नयामक है
योग जब ढ़ हो जाते ह तो इनका मूल अथ उसम नह ं रह जाता है । अथ का यह प रवतन
अथ- वकास एवं अथ क दशाएँ कहलाता है । अथ प रवतन क तीन मु ख दशाएँ ह, अथ का
कह ं व तार होता ह, कह ं संकोच होता है तो कह ं ब कुल ह अथ बदल जाता है । जैसे-तेल
श द का मू ल अथ था तल का सार, ले कन काला तर म इस श द के अथ म इतना व तार
हु आ क सभी पदाथ के सार को तेल कहने लगे । इस लए आज सरस का तेल, मू ँगफल का
तेल, म ी का तेल और यहाँ तक आदमी का तेल आ द कहा जाता है । इसी कार वेद म मृग
श द पशु मा का वाचक था वह बाद म केवल हरन के अथ म यु त होने लगा यह अथ
संकोच क दशा को बताता है । अथ संकोच के अ य उदाहरण पंकज, नीरज, सरोज, स यास,
आ द ह । जब एक अथ के लु त होने पर उसके थान पर नवीन अथ आ जाता है तो उसे
अथादे श कहते है जैसे-असुर श द ऋ वेद म दे वता के लए यु त है क तु आज वह रा स का
वाचक है । यह कारण है क व वध अथ प रवतन को भी भाषा प रवतन क एक दशा माना
जाता है ।
50
कारण बताये थे । इस वषय पर ो. ई. एच. टु टवट, ओटो ये पसन और हे नर एम.
हो न सवा ड ने आधु नक प त से बहु त व तृत ववेचन तु त कया है ।
भाषा वकास के कारण को दो भाग म बाँटा जा सकता है -
1. आ य तर या आ त रक कारण
2. बा य या बाहर कारण ।
2.3.3.1 आ य तर कारण
51
(आ) अ वधानता - सावधानी से न सु नना भी अनुकरण क अपूणता का कारण है ।
साथ ह अ प ट सु नना या कु छ अनसु ना करना यह अनुकरण का मान सक प है ।
य द श द या वा य सावधानी से नह ं सु ना तो उसका अनुकरण भी ु टपूण होगा ऐसे
उ चारण भाषा म प रवतन लाते ह ।
(इ) अ श ा - श ा के अभाव के कारण ामीण जन अ श त एवं अ श त
यि त व नय का सह उ चारण नह ं कर पाते उनका अनुकरण दोष यु त होता है
िजससे भाषा प रव तत होती है । अ श ा के कारण ब चा क ा को क छा, छा को
ा दे श को दे स, ण को कशु न 'आ स कालेज' को 'आठ कालेज', ' सनॉ सीस' को
'सन आफ सी और 'यू नव सट ' को यू नेवर सी ट ‘ आ द अशु श द का योग करता
है िजससे भाषा प रव तत होती है ।
(iii) य नलाघव - भाषा प रवतन के आ त रक कारण म य नलाघव का थान सव प र
है । य नलाघव का अथ है कम य न करना । मानव क वृि त है क वह कम
प र म से अ धक लाभ ा त करना चाहता है अथात वह कामचोर , आल य अथवा
लघुमाग से काम चलाने का य न करता है । ता पय यह है क मनु य क यह
वाभा वक वृि त होती है क कम प र म से अ धक लाभ उठाया जाय । इस तरह के
यि त कम से कम समय म कम से कम बोलकर अथवा लखकर अ धक से अ धक
अपने अ भ ाय को अ भ य त करना चाहते ह । इसम म और समय क बचत भी
होनी चा हए । इस मनोवृि त के कारण मनु य 'माइ ोफोन' को 'माइक', ' यूज पेपर'
को 'पेपर‘, ' वा रका साद' को डी.पी,. भारतीय जनता पाट को बी.जे.पी., 'जनरल
पो ट ऑ फस' को जी.पी.ओ., 'काशी ह दू व व व यालय' को बी.एच.यू., आ द
य नलाघव के कारण अनेक कार के भाषा प रवतन होते ह ।
(iv) योगा ध य - िजस कार अ य व तु एँ अ धक योग से घस जाती है उसी कार
भाषा म श द भी अ धक योग के कारण घस जाते ह । यह भी य नलाघव क
वृि त का एक प ह जैसे:- उपा याय< ओझा< झा, चतु वद < चौबे, पाठ <
तवार , ववेद < दुबे, घृत> घी, स य< स च झ सच, आ द ।
(v) भावा तरे क - भाषा वकास म भावा तरे क भी बड़ा काय करता है । यह भावा तरे क ाय:
ेम शोक, ोध आ द भाव के आ ध य के अवसर पर दे खा जाता है जब मानव
अ धक ेम के कारण आ म वभोर हो जाता है तो भाई को भै या, ब चा को बचवा, जी
को िजयरा बोलता है । जब क ोधा वेग म चमार को चमरवा, राम को रामू और
शोका वेग म कम के लए करमवा, पु के लए पुतवा आ द श द का अ तरे क दे खा
जाता है ।
(vi) बलाघात - जब कसी श द का उ चारण करते समय उसम से कसी व न, श द या
पद पर अ धक बल दया जाता है और कसी पर कम तो सबल व न क पा ववत
व न कालांतर म नबल होने के कारण लु त हो जाती है । िजससे भाषा म अ ुत
प रवतन आ जाता है । जैसे- न ब का नीम, कु ठ का कोढ़, उपा याय का झा,
52
ातृजाया का भौजी, भा डागा रक का भ डार , सु वणकार का सु नार आ द प रवतन का
मू ल कारण बलाघात है । अत: बलाघात से भाषा म बड़े-बड़े प रवतन होते ह ।
(vii) माद या असावधानी - ाय: मानव माद या असावधानी के कारण श द को तोड-
मरोडकर बोलता है । कभी-कभी वण वपयय कर दे ता है तो कभी अ य अथ वाले
श द को अ य अथ म यु त कर दे ता है, तो कभी याकरण क अवहे लना कर अशु
श द का योग कर दे ता है जो आगे चलकर ब मू ल होकर चलन म आ जाते है ।
जैसे- गु को गुर उपे ा को अपे ा, साँप को ाप, व व ता को व वानता, सौ दय
को सौ दयता, े ठ को े ठतम, चाकू को काचू, लड़क को लकड़ी आ द सभी प रवतन
असावधानी के कारण ि टगोचर होते है ।
(viii) सा य -जब मानव कसी श द योग को दे खकर उसके मू ल आधार का पता लगाए
बना उसी के समान दूसरा श द गढ़ लेता है वहाँ सा य प रवतन दे खा जाता है ।
आज कल ाय: अनेक पु तक म सृ टा , टा, ट य श द यु त कए जाते ह ।
वा तव म इनके थान पर मश: ‘ टा', ' टा’, ' ट य' श द शु प म लखे
जाने चा हए, पर तु ‘सृि ट’ को दे खकर वे ‘सृ टा’ लखने लगे है, ' ि ट' को दे खकर
‘ टा’ और ' ट य' श द का योग करने लगे है, जो सवथा अशु योग है । ऐसे
ह कु छ क वय ने ' नगु ण’ के सा य पर ‘सगु ण’, दुःख के सा य पर 'सु ख’ श द
गढ़ लए है यह सा य भाषा वकास म बहु त मह वपूण है । यह सा य वा त वकता
पर नभर न होकर अ धानुकरण पर नभर होता है इस लये इसे म या सा य भी
कहा जाता है । सा य भाषा प रवतन के कारण के प म व व क सभी भाषाओं पर
अपना भु व रखता है ।
(ix) नवीनीकरण क वृि त - मनु य क यह वृि त है क वह कु छ न कु छ नवीन काय
करके अपने नाम को अमर एवं ि थर कर जाना चाहता है । इस मनोवृि त को ह नव-
नमाण क वृि त भी कहते ह । इस वृि त के कारण कु छ लोग न य नए-नए श द
के नमाण म लगे है । इस नवीनीकरण क वृि त के कारण मै समूलर को
मो मूलर , ऐकेडमी को अकादमी, लंि वि ट स को भा षक , इसी तरह से वीकारना,
ब तयाना, फ माना, फोन को फु नयाना आ द या श दो का ज म होने से भाषा म
प रवतन ि टगोचर हो रहा है ।
(x) बौ क तर - येक मनु य का बौ क तर एक सा नह ं होता । बौ क तर का
वचार पर भाव पड़ता है । बौ क तर म अ तर के कारण श द के अथ म
खासतौर से अमूत श द के अथ म वशेष और अनेक अथ हो जाते है । जैसे एक के
लए सं या, हवन, दान उ तम काय है तो दूसरे के लए ढ ग । इसी तरह से पाप-
पु य , वग-नरक, धम-अधम, आ द श द येक यि त के बौ क तर के अनुसार
पृथक अथ बताते ह इसी कार बौ क तर क भ नता भाषा म प रवतन का कारण
बनती है ।
53
(xi) जातीय मनोवृि त - येक जा त क कु छ नजी वशेषताएँ होती है और वे वशेषताएँ
उस जा त क भाषा म दखाई दे ती ह जैसे- आय जा त ग तशील रह है इस लए
सं कृ त म ग यथक धातु ओं क सं या अ धक है- जैसे गम,् ज, इ, अ आ द । इसी
कार ांसी सय म कोमलता है अत: उनक भाषा म सु कु मारता है, अं ेज म समय-
न ठा मु य है । अत: अं ेजी के धातु प म काल पर बहुत बल है । आय जा त
धम धान है इस लए सं कृ त म धम-कम से संब अनेक श द है । जब क अं ेजी
आ द म धम आ द से संबं श द बहु त कम है । इस कार जातीय मनोवृि त। भाषा
म प रवतन का कारण बन जाती है ।
(xii) अंधानुसरण - कभी-कभी मानव कसी अ य भाषा का अ धानुसरण करके अपनी भाषा
म भी वैसे ह योग करने लगता है । इससे भाषा म योग एवं वा य रचना म
प रवतन आ जाता है ।
जैसे अं ेजी के अंधानुसरण पर उसी भाषा के यय लेकर ह द म भी श द बना लए गए है
जैसे- र ा फकेशन, सरल फाई आ द । इसी कार अ प श त लोग ह द क या म अं ेजी
का यय 'इंग’ लगाकर व च प रवतन तु त करते है जैसे 'माय कार इज क चड़ म फ संग,
ऐसे अनेक श द जैसे पड़ त, गड़ त, मर त आ द इसी मनोवृि त के प रचायक है । अत:
अंधानुसरण के कारण भाषा प रव तत होती रहती है ।
2.3.3.2 बा य कारण
54
भारतीय भाषाओं का भी यह इ तहास के येक शासक जा त ने अपना भाव भाषा
पर छोड़ा है । फल व प ह द म फारसी क , क् , ख, ग, ज व नय एवं इनाम,
ईमान, फुसत आ द श द आये । अरबी के - अजब, कताब, ताबीज आ द । तु क के-
कची, कु ल , गल चा, चाकू आ द । अ जी के - ऑ फस, कू ल, ि ं , कमीशन आ द
ग
श द आये । इस तरह भाषा संबध
ं ी प रवतन म ऐ तहा सक कारण का भी भाव पड़ा
है ।
(iii) सां कृ तक (धा मक) कारण - सं कृ त ह येक दे श अथवा समाज क अि मता क
प रचायक है । सं कृ त ह कसी दे श का वकास अथवा वनाश करती है । भाषा पर
भी इसका भाव पडता है और उसके वारा भाषा म वकास होता है । सां कृ तक
भाव व भ न सं थाओं, महापु ष , और व भ न सं कृ तय के स मेलन से पड़ता है
। व व म अनेक सां कृ तक ां तयां हु ई । भारत वष म सां कृ तक ाि त का
सू पात मह ष दयान द ने 1875 ई म आय समाज क थापना के वारा कया ।
ऐ तहा सक, धा मक अथवा राजनै तक कारण से व भ न सं कृ तयां एक दूसरे के
स पक म आई और उनक भाषाओं पर भी एक दूसरे का भाव पड़ा । जैसे आय- वड़
सं कृ त, आय- ीक सं कृ त, आय-मु ि लम सं कृ त, ीक-रोमन सं कृ त, ीक-आं ल
सं कृ त, रोमन-आं ल सं कृ त, आय और यवन सं कृ त । इन सं कृ तय के स मेलन
से भाषा पर दो कार के भाव पड़े ।
(अ) य भाव
(i) श द क लेन दे न - ह द म आि क के गंगा, वड़ के तीर यवन के होडा,
दाम, सु रंग । तक एवं मु सलमान के पाजामा, त कया रजाई । यूरो पयन के याय
और पशन संबध
ं ी आ द । ह द म इस कार के श द क ठ क से छानबीन क
जाय तो इनक सं या आठ हजार के कर ब है ।
(ii) व न का आना - यूरोपीय भाषा म ट व न नह ं थी, वड़ के भाव से
भाषा म ये व नयाँ आ गई है । इस तरह ह द भाषा म मु सलमान तथा अं ेज के
स पक से कई नई व नयाँ आ गई है । जैसे - क् , ज़, ग़, ख़, फ़ तथा ऑ ।
(iii) ह द का वा य गठन, मु हावरे, लोकोि त आ द फारसी और अं ेजी भाषा से
भा वत ह । जैसे पानी-पानी होना, फारसी भाषा का 'आब-आब शु दन' का अनुवाद है
तो काय प म प रणत करना अं ेजी के to translate into action का ।
(आ) अ य
वचार व नमय के कारण एक दूसरे का सा ह य कला आ द पर भाव पड़ता है और
उससे भाषा अछूती नह ं रहती ।
(iv) वैयि तक कारण - महापु ष भी भाषा को भा वत करते है । महा मा गांधी
के भाव के कारण वदे शी आ दोलन, ह द आ दोलन वाधीनता आ दोलन आ द
चले । इनके वारा ह द भाषा को बहु त आ थक बल मला । आय भाषा ह द के
चार के लए उ ह ने अनेक सं थाएं च लत क , गो वामी तु लसीदास और जायसी ने
55
ह द के साथ अवधी को तो सू रदास ने ह द के साथ ज भाषा को अ धक भा वत
कया । इस तरह से यि तगत भाषा, भाषा के वकास म मह वपूण योगदान दे ती है।
अ सामािजक कारण
भाषा और समाज का पर पर नकट संबध
ं है । हर भाषा समाज म ज म लेती है और
समाज म ह पनपती है । समाज म कभी ां त, कभी यु कभी शां त, तो कभी व लव, कभी
जय, कभी पराजय होता है । िजसका भाव भाषा पर पड़ता है । शां त के समय कला,
सा ह य, संगीत अथ और दशन क उ न त होती है, तो यु के समय वीरता, शू र गाथा,
रणनी त शा व या व सै य श ा क उ न त होती है और इससे संबं धत अनेक श द का
ज म होता है । भारत वष म इनके कारण व भ न जा तय के आगमन से भाषा म प रवतन
हु आ है । शक-हू ण, फारसी, मु सलमान ईसाई के आगमन से सह नए श द आए है जैसे
कचहर , अदालत, ज चा, मेहतर, वायरलेस, ऐयर फोस, लैक आउट, बमबार , रडार,
बी.एस.एफ. आ द । जो शी ह भाषा श दावल के अंग बन गए ।
(vi) सा हि यक कारण - भाषा के वकास म सा ह य क मह वपूण भू मका रह है ।
सा ह य भी भाषा को नि चत, ि थर और जी वत प दान करता है । जनमानस
अपनी बोलचाल क भाषा म सा ह य रचता है । ाचीन समय म उ च वग क भाषा
सं कृ त को याग महावीर और गौतम बु ने लोक भाषा को अपनाकर अ मागधी और
पा ल भाषा म सा ह य रचना क । इसी कार भि तकाल के क व कबीर, जायसी, सू र,
तु लसी, रह म आ द ने लोक भाषा का योग कर लोकतं क थापना क । वह
बहार , म तराम, दे व और घनान द ने गृं ार क रस धारा बहायी । इसी कार
छायावाद क वय साद, पंत, नराला ने खड़ी बोल को अपने का य के मा यम से
समृ बनाया । सा ह य जहां भाषा के वकास म मह वपूण योगदान दे ता है वह ं कभी-
कभी सा ह य आ य पाकर लोक-भाषा म भाषा बन जाती है । इस कार सा ह य
भाषा के प रवतन म असाधारण योग दे ती है ।
(vii) वै ा नक कारण - भाषा के वकास म व ान का योगदान सवथा वचारणीय है । आज
व ान ने ान क व वध शाखाओं का आ व कार करके भाषा म नए-नए श द न मत
कए है िजससे न केवल भाषा का वकास हो रहा है । नए-नए श द के आ व कार से
ह द भाषा का श दकोष समृ हो रहा है । आज व ान के पा रभा षक श द को
समझने के लए ऑ सीजन के लए ओषजन, एटम के लए परमाणु, क पाउ ड के लए
यौ गक, ऑर बट के लए क आद श द ह द म बनाये गए ह । इन वै ा नक
आ व कार से भाषा म वकास ि टगोचर होता है ।
(viii) सामािजक कारण - स यता समाज का त ब ब है या यह कह सकते है क दोनो एक
दूसरे के पूरक है । समाज के बा य प म वेशभू षा, . ष, यापार, उ योग कला एवं
मनोरं जन क चीज आती है । व ान क उ न त के साथ स यता का वकास हो रहा है
। नए य , नए औजार, नई मशीन नए श प नए मनोरं जन के साधन दन- त दन
बढ़ते जा रहे है । साथ ह साथ नए-नए श द क रचना क ग त भी वेग से चल रह
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है । भाषा का श द कोष और नव-श द नमाण क या ती ता से चल रह है, तो
दूसर ओर स यता के बल भाव म अनुपयोगी या अ त क श) श द वीरग त को
ा त हो रहे है अत: स यता के कारण भाषा म प रवतन हो रहा है ।
57
2.5 सारांश
भाषा उ व का वहंगावलोकन करने पर ात होता है क भाषा उ पि त संबध
ं ी स ांत
म से कु छ दै व ा तो कु छ पूण आं शक अनुमान पर अथवा कोर क पनाओं पर आधा रत है
। हम पूण आ व त होकर यह नह ं कह सकते ह क भाषा उ व अमु क स ांत से हु आ है ।
वा त वकता तो यह है क भाषा का उ व एक पहे ल बना हु आ ह जो अभी तक सु लझ नह ं
पायी है ।
दूसर ओर यह भी सच है क आधु नक भाषा वै ा नक के अनुसार भाषा-उ व का
न भाषा व ान के अ ययन े म नह ं आता । साथ ह अनुमान सू त होने के कारण ये
स ांत नह , अ पतु क पना मा है । स भवत: इसी स य को समझते हु ए सन ् 1886 म
ांस क भाषा व ान स म त ने इस न पर वचार करना ह अनाव यक घो षत कर दया
था ।
आज का युग वकासवाद पर व वास करता है । मनु य और मनु य से जु ड़ी येक
व तु का आरं भ वकास के आधार पर माना जाता है । भाषा-मनु य क एक सामािजक न ध है
और वकासवाद के अनु प उसका भी आर भ प रवतन, और वनाश होता है । भाषा का वकास
पांच दशाओं व न, श द, पद, वा य, अथ म होता है । जो भाषा के मह वपूण अंग है ।
संसार क येक व तु म प रवतन होता है अत: भाषा म प रवतन वाभा वक है ।
भाषा प रवतन के मु यत: आ यं तर और बा य कारण ि टगोचर हु ए ह, िजसके कारण भाषा
नर तर नद क धारा क तरह वहमान होती रह है और आज भी वहमान है ।
2.3.5 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. भाषा क उ व के संबध
ं म ा त व भ न मत का सं त प रचय द िजए ।
2. भाषा के उ व के संबध
ं म आपक ि ट म कौनसा स ांत सवा धक मा य होना
चा हए? युि तयु त उ तर द िजए ।
3. भाषा- वकास क व वध दशाओं का ववेचन क िजए ।
4. भाषा- वकास के आ त रक कारण पर काश डा लए ।
5. भाषा- वकास के बा य कारण क ववेचना क िजए ।
ख. लघु तर न
1. सम वय स ांत का प रचय दे ते हु ए इसक समी ा क िजए ।
2. अनुकरण स ांत क व वसनीयता पर काश ड लए ।
3. भाषा वकास के कारण पर सं ेप म वचार क िजए ।
4. तभा स ांत पर ट पणी ल खए ।
5. म स ांत क या मा यता है?
ग. र त थान क पू त क िजए,
1. म स ांत को............................................ कहते ह ।
58
2. आवेग श द................................................ को कट नह ं करते ।
3. संकेत ’ स ांत‘ म अनेक........................................... है ।
4. पीते समय शरब व न को लेकर.......................... श द बना ।
5. ................................................. के ज मदाता डा वन ने आवेग व नय का
कारण शर रक माना है ।
घ. सह / गलत पर नशान लगाइए
1. संगीत स ांत पूर तरह दोष र हत है । सह / गलत
2. तीक स ांत मू लत: भाषा के ारं भक श द क या या करता है ।
सह /गलत
3. सं कृ त के ातृजाया से मौसी श द बनता है । सह /गलत
4. मानव जानबूझ कर श द को तोड़ मरोड़ कर बोलता है । सह / गलत
5. तभा येक जीव म पृथक पृथक प म रहती है । सह / गलत
2.3.7 संदभ थ
ं
59
इकाई-3 भाषा-संरचना एवं भा षक काय
इकाई क परे खा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 श द
3.2.1 श द और पद
3.2.2 श द-रचना
3.3 उपसग
3.3.1 सं कृ त के उपसग
3.3.2 ह द के उपसग
3.3.3 वदे शी उपसग
3.4 यय
3.5 समास
3.5.1 अ ययी भाव समास
3.5.2 त पु ष समास
3.5.3 कमधारय समास
3.5.4 वगु समास
3.5.5 व द समास
3.5.6 बहु ी ह समास
3.6 सं ध
3.6.1 सं ध के कार
3.7 लंग, वचन और कारक
3.7.1 लंग
3.7.2 वचन
3.7.3 कारक
3.8 वशेषण
3.9 या
3.10 वा य
3.11 ह द म वा य रचना
3.12 या वशेषण
3.13 वा य वचार
3.14 मु हावरे, लोकोि तयां तथा सू ि तयां
3.15 प रभा षक श दावल
3.16 प लेखन
3.17 अनुवाद
3.18 वचार संदभ / श दावल
60
3.19 सारांश
3.20 अ यासाथ न
3.21 संदभ थ
ं सूची
3.0 उ े य
इस इकाई को पढने के बाद आप ह द भाषा क संरचना से अ छ तरह प र चत हो
जाएंगे । ह द क कृ त और वृ त को कस कार याकर णक संरचना ि थर ओर नयं त
करती है । कौन-कौन से घटक भाषा क प रचना को समृ करते ह? इ ह समझ कर आप
भा षक शु ता को वयं अपनी भाषा का अंग बना सकगे ।
यह सव व दत है क औपचा रक प से ह द इस दे श क राजभाषा है । इसके
अ त र त यह इस दे श क अि मता का पयाय बन चुक है । अत: ह द भाषा म तथा
सामािजक-राजनै तक तर पर राजभाषा और स पक भाषा के प म । ह द क कृ त
जनो मु खी रह है । तु त इकाई म ह द क संरचना और उसके काया मक व प का
सं त प रचय दया गया है ।
3.1 तावना
ह द क यह वड बना रह है क ह द का याकरण सं कृ त याकरण के अनुकरण
पर वक सत हु आ अथवा अं ेजी याकरण के सहारे , िजसे हम ह द का अपना याकरण कह
सक, वह याकरण आज भी हमारे पास नह ं है । आचाय कशोर दास वाजपेयी जैसे वैयाकरण
ने ह द का अपना याकरण वक सत करने क दशा म जो मह वपूण काय कया, उसे
सार वत जगत म समु चत त ठा नह ं मल । य य प ह द के मह व को रा य आंदोलन
के दौरान भल -भां त पहचान लया गया था, तथा पत वतं ता के बाद ह ह द को सं वधान
म राजभाषा का दजा मला और ह द हमार रा य अि मता क पहचान बन गयी । ह द
ने पछल शता द म उसे अनुशासन का प धारण कर लया है जो भारतीय सां कृ तक
चंतनधारा के वै व यपूण प को एक सू म बाँधकर रा य जीवन क एक सम झाँक
तु त कर सके, क तु यहाँ यह भी उ लेखनीय है क कु छ राजनै तक ववाद ने ह द क
ि थ त को कमजोर कया है और उसके रा य व प को ववादा पद बना दया है । दूसरे यह
क चूँ क ह द हमार मातृभाषा है, अत: हम उसे गंभीरता से नह ं लेते ह । इस उपे ा भाव से
भी ह द क त हु ई है, क तु एक त य यह भी है क ह द का वकास व भ न तर पर
हो रहा है । जीवन म ह द क आव यकता बढ़ती जा रह है । अदालत और सरकार
कायालय म ह द का योग बढ़ रहा है । तयोगी पर ाओं म ह द का योग बढ़ रहा है
। उधर व ान और तकनीक के े म भी ह द के योग से हमारे युवा लाभाि वत हो रहे
ह।
अत: उ त प र े य को यान म रखते हु ए तु त इकाई म ह द के संरचना मक
और काया मक व प का सं त प रचय दया गया है ता क पाठक लाभाि वत हो सके ।
61
3.2 श द
ं ‘श द’ धातु से है िजसका अथ है बोलना । इसका अथ ' व न' है ।
श द का संबध
अं ेजी के ''word'' तथा अरबी के ल ज का अथ होता है- व न कया हु आ या मु ँह से फका
हु आ । पतंज ल का कथन है क 'िजसके बोलने से अथ क ती त हो, वह श द है' । अथ के
तर पर भाषा क सबसे छोट इकाई को भी श द कहा गया है | सामा य प से वण का वह
समू ह िजसम कसी अथ क ती त होती हो, श द कहलाता है । जैसे 'पु तक' कहने या पढने
से एक व तु वशेष का बोध होता है जो उसका अथ है, इस लए 'पु तक' श द है, जब क इ ह ं
वण को इस कार रख दया जाए 'क तपु' तो कसी अथ क ती त नह ं होती । इस लए यह
समू ह श द नह ं हे । अत: अथ क ती त श द के लए आव यक है ।
3.2.1 श द और पद
3.2.2 श द-रचना
3.3 उपसग
उपसग श द से पूव लगने वाला वह अ र समू ह है जो श द के पूव लगने से या तो
उसके अथ म प रवतन या वशेषता ला दे ता है, जैसे जन, ग त, गम श द म 'दुर’ उपसग
लगने से दुजन, दुग त , दुगम श द बन गये । हम दे खते है क दुर उपसग के लगने से तीन
श द का अथ ब कु ल ह बदल गया है । इसी कार नाश, जय, वंस श द म ‘ व’ उपसग के
लगने से वनाश, वजय, व वंस श द बने ह । यहाँ इस उपसग के लगने से इन श द का
अथ ब कु ल तो ज र नह ं बदला, ले कन ' व’ उपसग लगने से तीन ह श द के अथ म
वशेषता आ गयी है ।
इन उपसग का वतं प से कोई अथ नह ं होता, ले कन श द के साथ लगने से
श द म वकार उ प न कर दे ते ह । यह भी यान दे ने यो य है क एक उपसग ाय: एक या
दो अथ म ह यु त होता है ।
ह द म च लत उपसग को तीन वग म रख सकते ह - (1) सं कृ त के उपसग (2)
ह द के उपसग और (3) वदे शी उपसग ।
62
3.3.1 सं कृ त के उपसग
3.3.2 ह द के उपसग
63
अ अभाव, नषेध अधर, अमोल अचेतन
अध आधा अधपका, अधजला, अधनंगा
उन ् कम उ नीस, उ तीस, उनचाल स
स, सु स हत, उ तम सकाम, सु माग, सजीव
3.4 यय
' यय' वे अ र या अ र समू ह है जो अ य श द के बाद जोड़े जाते ह । ह द म
सं कृ त यय क धानता है जो ाय: त सम श द पर ह लगाये जाते ह । ह द के कु छ
अपने यय भी ह तथा कु छ अरबी फारसी के लए गए है ।
धातु पर यय लगाकर जब नये श द बनाये जाते है तो ऐसे यय को 'कृ त यय'
कहते ह तथा नये श द को ‘कृ द त’ कहते ह । य द सं ा, सवनाम, वशेषण आ द पर यय
लगाकर नये श द बनाये जाते ह, तो ऐसे यय को ‘त त यय' कहते है । तथा नये श द
को ‘त ता त’ कहते ह । यहाँ दोन कार के यय दये गये ह और उनके सामने कृ . और
त. या कृ . अथवा त. लखा गया है । उसी म से उदाहरण भी दये गये है । वर से आरं भ
होने वाले यय से पूव श द के अि तम वर का लोप समझना चा हए, यथा-
(1) अ कड़ (कृ .) - कतृवाचक सं ा, यथा-पी+अ कड़= पय कड़ | घूम +अ कड़=घुम कड़ ।
इस यय क यु पि त अ क-ट+'अ कड़' से क गयी है ।
(2) अता(कृ .) - वतमान कृ द त, यथा उड़ता, चलता फरता । इनके ी लंग प उड़ती,
चलती, फरती है । इनका स ब ध सं कृ त के यय अत ् (शतृ) से है ।
(3) आ (कृ ., त:) - भू तका लक कृ द त, भाववाचक सं ा, करणवाचक सं ा, वशेषण, यथा
बैठ, उठा । झगड़ा झटका, घेरा, फाँसा । भू खा, यासा ।
(4) आई (कृ ., त.) - भाववाचक सं ा, यथा-लड़ाई, खु दाई, भलाई, बुराई, चतु राई, पं डताई
आद ।
64
(5) आहट (कृ ., त.) - भावचाक सं ा, यथा-गड़गड़ाहट, गुराहट, चकनाहट, कडु आहट आ द।
यह दे शज यय है ।
3.5 समास
दो या दो से अ धक श द को पार प रक स ब ध योतक श द के लोप होने से उन
दो या दो से अ धक श द के योग से जो नया श द बनता है, उसे सामा सक श द कहते ह ।
श द के इस योग को ‘समास' कहते है । .समास भारोपीय प रवार क भाषाओं क वशेषता है
। जब सामा सक श द को तोड़ा जाता है और लु त स ब ध योतक श द , यय , वभि तय ,
आ द को कट कया जाता है, तब इसे ‘समास- व ह’ कहते ह । कभी-कभी सं कृ त म
वभि तय का लोप नह ं भी होता है और समास बन जाता है, यथा-सर सज, अ तेवा सन,
क तु यह वृि त अपवाद मा है ।
समास छ: कार के होते है- (1) अ ययीभाव, (2) त पु ष, (3) कमधारय, (4) वगु
(5) बहु ी ह, (6) व द । कमधारय और बहु ी ह समास को ‘त पु ष’ समास का ह अंग माना
गया है अत: मू ल प से समास के चार भेद ह-
3.5.2 त पु ष समास
65
(3) स दान त पु ष- इसम थम ख ड क स दान वभि त का लोप होता है यथा-
दे श के लए भि त दे शभि त
रसोई के लए घर रसोईघर
(4) अपादान त पु ष- इसम थम पद क अपादान वभि त का लोप होता है, यथा-
दे श से नकाला दे श नकाला
ऋण से मु त ऋणमु त
(5) स ब ध त पु ष - इसम थम पद क स ब ध वभि त का लोप होता है, यथा-
राजा क पु ी राजपु ी
जनता का पथ जनपथ
(6) अ धकरण त पु ष- इसम थम पद क अ धकरण वभि त का लोप होता है यथा-
ाम म वास ामवास
अपने पर बीती आपबीती
3.5.5 व द समास
66
सीता और राम सीता-राम
गुण और अवगुण गुण -अवगुण
(2) वैकि पक व व-इसम सम त पद के दोन पद 'या', 'अथवा' आ द से जु ड़े होते ह ।
वक प-बोधक तथा समु चय बोधक श द समास करते ह लु त हो जाते ह ।
उदाहरणाथ-
पाप या पु य पाप-पु य
साग या पात साग-पात
उ टा या सीधा उ टा-सीधा
सु ख या दुख सु ख-दुख
(3) समाहार व व -सामा सक पद के अ त र त अ य मलते-जु लते अथ का बोध हो तो
उसे समाहार व व समास कहते है । इस समास म दोन पद के बाद 'आ द' का
अथ छपा रहता है, जैसे-
कंकड-प थर कंकड़ प थर आ द
क ड़ा-काँटा क ड़ा काँटा आ द
दाल-रोट दाल रोट आ द
समानाथ यु म म भी 'आ द' अथ छपा रहता है । इस कारण इ ह भी समाहार
व व समास मानना चा हए. जैसे- बतन-भाँड,े बाल-ब चे, जीव-ज तु साँप-सपोला आ द ।
समाहार व व समास सामा यत: बहु वचन होते ह ।
3.6 सं ध
सं ध श द का अथ है मलना या मेल । याकरण म सं ध का अथ है दो या दो से
अ धक वण का मेल । जब दो पद अथवा एक ह पद के दो अवयव एक-दूसरे के पीछे बोले
जाते ह, तब पहले पद के अं तम वण तथा दूसरे पद के थम वण म मेल होकर वकार
उ प न हो जाता है, इसे ह सं ध कहते ह । जैसे 'पीत' तथा 'अ बर' दो श द ह । जब इन
दोन को नकट रखकर बोला जाए तो पहले पद 'पीत’ के अं तम वण ‘अ’ (पीत+अ) तथा दूसरे
67
पद के थम वण ‘अ’ म मेल हो जायेगा तथा दोन वण 'आ' हो जायगे तथा श द मलकर
'पीता बर' श द हो जायेगा ।
सरल श द म कह सकते ह क दो वण के पास-पास आने पर उनम जो वकार
उ प न होता है, उसे सं ध कहते है । सं ध म दो वण का मेल होता है तथा सं ध के बाद वण
का प बदल जाता है । सं ध- व छे द करने पर ह वण के वा त वक प का पता चलता है
जैसे ‘त ल न' श द है । सं ध- व छे द कर पता चलता है क यह ततल
् +न से बना है । सं ध-
व छे द करने के प चात ् ह 'त'् तथा 'ल' का प प ट होता है ।
3.6.1 सं ध के कार
68
3.7.2 वचन
3.7.3 कारक
69
स दान कारक-िजसके लए कोई काय कया जाता है, उसे स दान कारक कहते ह ।
यथा-
उसने राम को कताब द ।
यहाँ दे ना या ह तथा यह या राम के लए क जाती है, अत: ‘राम को' स दान
कारक है ।
4. अपादान कारक-जहाँ एक पदाथ से दूसरे पदाथ के अलग होने का बोध होता है, उसे
अपादान कारक कहते ह । यथा-
पेड़ से प ता गरा ।
यहाँ प ता पेड़ से अलग होता है । अत: ‘पेड़ से' म अपादान कारक है ।
5. स ब ध कारक-जहाँ सं ा या सवनाम का स ब ध अ य पदाथ से हो, वहाँ स ब ध
कारक होता है । यथा-
ये मेर पु तक ह ।
यहाँ ‘मेर ’ का स ब ध पु तक से हे । अत: 'मेर ' यहाँ स ब ध कारक है ।
6. अ धकरण कारक-िजससे या के आधार या थान का बोध होता है, वहाँ अ धकरण
कारक होता है । जैसे-
म मेज पर पु तक रखता हू ँ ।
यहाँ 'पु तक' रखने का थान 'मेज' है । अत: 'मेज पर' अ धकरण कारक है ।
7. स बोधन कारक - सं ा के िजस प से कसी को पुकारा, बुलाया या उ बो धत कया
जाये, उसे स बोधन कहते ह ।
3.8 वशेषण
सं ा क वशेषता बताने वाले श द वशेषण कहलाते ह । वशेषण श द सं ा श द के
साथ यु त होते ह तथा ये गुण -दोष आ द को कट करते ह । उदाहरणाथ-
उसके पास लाल घोड़ा है ।
यहाँ लाल श द घोड़े क वशेषता का बोधक है ।
वशेषण के भेद सामा यत: वशेषण पाँच कार के होते ह-
1. गुणवाचक-सं ा श द के गुण -अवगुण को कट करने वाले श द गुणवाचक वशेषण
कहलाते ह । सं यावाचक वशेषण-जो वशेषण श द कसी सं ा क सं या का बोध
कराते है, वे सं यावाचक वशेषण होते ह । जैसे-चार लड़के, येक यि त ।
2. प रमाणवाचक वशेषण-जो वशेषण कसी व तु क नाप तौल या मा ा बतलाते ह, वे
प रमाणवाचक वशेषण कहलाते ह । जैसे- एक सेर दूध, थोड़ा पानी ।
3. संकेतवाचक वशेषण-जो वशेषण कसी सं ा क ओर संकेत करते ह, संकेतवाचक
वशेषण कहलाते ह । जैसे-वे लड़के पढ़ रहे ह, यह ी सु दर है ।
4. यि तवाचक वशेषण- यि तवाचकसं ा से बनने वाले वशेषण यि तवाचक वशेषण
कहलाते ह । जैसे- भारतीय समय (भारत यि तवाचक सं ा से)
70
5. जापानी गु ड़या (जापान यि तवाचक सं ा से)
3.9 या
कु छ करने या होने क सू चना दान करने वाले प को या कहते ह या क
रचना धातु से होती है । धातु या का मू ल अंग होता है, जैसे-उठ, बैठ, लख, पढ़ । धातु से
या के व भ न प बनते ह, क तु धातु या के सभी प म व यमान रहती है । जैसे-
चल धातु है, इससे चलना, चलो, चल, चलूँ, चला, चल , चले, चलगे आ द बनते ह ।
या के भेद- या के भेद कई कार से कए जाते ह-
1. कम के अनुसार या के भेद - कम के अनुसार या दो कार क होती है- (क)
सकमक या और (ख) अकमक या । िजन याओं का फल कम पर पड़ता है, वे
सकमक या कहलाती है अथात ् कम स हत या होती है । उदाहरण-
अ. मोहन पु तक पढ़ता है ।
ब. वह प लखता है ।
इन वा य म 'पढ़ता है’, ' लखता है’, याएँ है । इनका भाव मश: पु तक तथा
प पर पड़ता है । िजस या का यापार क ता तक ह सी मत रहता है, अथात ् िजस
या का कोई कम नह ं होता, वे अकमक याएँ होती है । उदाहरणाथ-
'पानी बरसता है' इसम बरसना या है, क तु उसका भाव केवल पानी तक सी मत
है । इसम कोई कम नह ं है । अत: बरसता है अकमक या है ।
2. बनावट के अनुसार या के भेद-जैसे उ लेख कया जा चु का है, याओं का नमाण
धातु से होता है । धातु एँ दो कार क होती है-
मू ल धातु-जो दूसरे श द के सहारे न मत नह ं होती, वे मूल धातु होती ह । जैसे-
चलना, जाना, आना आ द ।
यौ गक धातु-जो धातु कसी दूसरे श द के सहारे न मत होती है, वे यौ गक धातु
कहलाती है । जैसे चलना, से चल, चलगे, चलेगा आ द ।
यौ गक धातु एँ चार कार क होती ह-
(क) ेरणा मक याएँ - जहाँ क ता वयं कोई काय न कर कसी दूसरे से
करवाता है या दूसरे को करने क ेरणा दे ता है, जैसे-
राम ने दज से कु ता सलवाया ।
(ख) संयु त याएँ-जो दो या दो से अ धक धातु ओं से बनती है । जैसे-
वह गीत गाने लगा है ।
(ग) पूवका लक याएँ-वे याएँ िजनका पूण होना कसी दूसर या के पूण होने
के पूव ह पाया जाए पूवका लक याएँ कहलाती ह, जैसे-
वह खाना खाकर कू ल गया ।
71
(घ) नाम धातु या-सं ा से न मत होने वाल याएँ नाम धातु या कहलाती
ह, जैसे-
राम ने सार स पि त ह थया ल । (हाथ से)
3. यवहार क ि ट से या म भेद-
(क) न चय बोधक या-िजससे कसी काय के न चय को बोध हो, वे न चय
बोधक याएँ होती है, जैसे-
वह नर तर लखता रहा है ।
(ख) अ न चय बोधक या-िजससे कसी काय के न चय का बोध हो, वे अ न चय
बोधक याएँ होती ह, जैसे-
वह सो रहा होगा ।
(ग) (ग) आ ाथक याएँ-िजन याओं से आ ा, ाथना, अनुम त का बोध हो,
वे आ ाथक याएँ कहलाती ह । जैसे-
पु तक लाओ ।
3.10 वा य
जब या क ता, कम या कसी भाव का वधान करती है, तब वह मश: कतृवा य,
कमवा य या भाववा य म बदल जाती है । उदाहरण के लए - 'म रोट खाता हू’ँ (कतवा य),
‘रोट खाई जाती है', (कमवा य), 'मु झसे चला नह ं जाता’ (भाववा य) ।
3.11 ह द म वा य रचना
वा य श द का एक ऐसा समू ह है जो एक वचार- वशेष को पूर तरह कट कर दे ता
है । येक वा य म पूवा और उ तरा . दो ख ड होते ह । पहले को उ े य और दूसरे को
वधेय कहते ह । उदाहरणाथ-
‘राम गाता है’ वा य म राम उ े य है, 'गाता है' वधेय है । वा य के अ तगत श द
के पर पर स ब ध वषयक वचार को व ले षत कया जाता है । इस लए यह प ट है क
भाषा क रचना पर वचार करते हु ए हम सबसे पहले वा य क रचना पर वचार करना होता है
। हमार वचार-शैल का भेद वा य भेद से कट होता है । इस लए भ न- भ न भाषाओं म
वा य रचना के भेद से या वा य म क ता, कम, या आ द के पर पर स ब ध को कट
करने के भ न कार से वा य वभाव और रचना का बहु त कु छ पता लग सकता है । संसार
क भ न- भ न मनु य जा तय क वचार-शैल । भ न- भ न होती है । पदाथ के त भी
उनक ि टयाँ भ न- भ न इसी लए होती ह । यह कारण है क भ न- भ न भाषाओं म
वा य रचना एक सी न होकर भ न- भ न कार क होती है ।
3.12 या वशेषण
या क वशेषता बतलाने वाले श द को या- वशेषण कहते है । जैसे- ‘वह तेजी से लखता
है’ । इस वा य म लखता है या है तथा ‘तेजी से' श द या क वशेषता 'ती ता' को
72
कट करता है और उसक वशेषता बतलाता ह अत: ‘तेजी से' या वशेषण है । या-
वशेषण के मु यत: चार भेद कये गये ह-
1. कालबोधक या- वशेषण
2. थानबोधक या- वशेषण
3. प रणामबोधक या- वशेषण
4. र तबोधक या- वशेषण
स ब धबोधक अ यय-सं ा तथा सवनाम के प चात ् यु त होने वाले परसग मू ल
स ब धबोधक अ यय कहे जाते ह, जैसे-ने, को, क , से, आ द ।
अ य स ब ध बोधक-इसम सं ा या सवनाम के पूव या प चात ् दोन ि थ तय म
यु त होने वाले स ब ध बोधक अ यय क गणना होती है, जैसे-बगैर, बना, मारे सवा आ द।
समु चयबोधक अ यय-वा य के यप , अंश व उपवा य को पर पर जोड़ने वाले अ यय
को समु चबोधक अ यय कहते ह । जेसे-अत:, अथवा, अथात,् क तु, य द आ द ।
व मया दबोधक अ यय- व मया दबोधक मनोभाव क अ भ यंजना करने वाल को
व मया दबोधक अ यय कहते ह । जैसे-अरे ! अहा! छ! थू! वाह! हाय! आ द ।
3.13 वा य वचार
अ भ यि त का आधार वा य माना गया है । वा य नमाण श द के मेल से होता है
। जैसे-
1. राम राजा दशरथ के पु थे ।
2. दशरथ राजा राम के पु थे ।
इन दोन वा य को दे खने से पता चलता है क पहला वा य यह प ट करता है क
राम नाम यि त दशरथ का पु था, जो राजा थे, क तु दूसरे उदाहरण से कु छ भी प ट नह ं
होता । दूसरे श द म कहा जा सकता है क दूसरे उदाहरण के श द-समू ह का अथ नकलता ।
अत: यह कहा जा सकता है क वह साथक श द समू ह वा य कहलाता है िजससे व ता या
लेखक के आशय का ठ क-ठ क बोध ोता या पाठक को हो सके ।
वा य के आव यक त व
वा य के व प को समझने के लए वा य के त व को जानना आव यक है । वा य के
आव यक त व न न ल खत ह-
1. साथकता-इसका ता पय यह है क वा य कसी भाव या त य को प ट करता है ।
‘रामच रत मानस' तु लसी क सव े ठ रचना है । यह वा य एक त य को य त
करता है ।
2. मब ता-वा य म आने वाले श द एक म म यु त होने चा हए तथा वा य सु दर
और साथक बनता है और इसे ह मब ता कहते ह ।
73
3. आकां ा-व ता या लेखक वा य म पूर बात कहना चाहता ह । य द वा य म बात
अधूर रह जाती है तो उसे कहने और सु नने क िज ासा अपूण रह जाती है । यह
िज ासा आकां ा कहलाती है ।
4. यो यता- कसी आशय को प ट करने के लए उपयु त श द का चयन ह यो यता
कहलाता है अथात ् वा य म यु त श द म कसी आशय को प ट करने क यो यता
होनी चा हए । जैसे-वह पु तक लखता है ।
अ वय
क ता, या, कम वा य के मु ख अंग है । इन तीन के पार प रक स ब ध से ह
कोई वा य शु बनता है । क ता, या, कम के पर पर स ब ध को ह अ वय या मेल कहते
है ।
74
3.16 प लेखन
प जहाँ रोजमरा क आव यकताओं क पू त करते ह, वह ं मनु य को आ मा भ यि त
का अवसर दान करते ह । ह द म महावीर साद ववेद , ेमचंद, नराला, मु ि तबोध का
प -सा ह य भू त प म उपल ध है िजसके अ ययन से बहु त कु छ सीखा जा सकता है तथा प
प लखते समय न न ल खत बात का यान रख जाना चा हए-
1. प म अनाव यक त व का समावेश नह ं होना चा हए ।
2. प म सरल भाषा और उ चत शैल का योग होना चा हए ।
3. प म कसी बात को अ धक व तार नह ं दे ना चा हए ।
4. प म भाव तथा वचार क प टता आव यक है ।
प के कार-
1. यि तगत एवं सामािजक प
2. यावसा यक प
3. शासक य प एवं सां कृ तक प
75
सभी बात को स व तार अपने प म लखना । तु हारा प न पाने से मन ख न
रहता है ।
प ो तर क ती ा म, तु हारा म
अनुवाद के कार
अनुवाद चार कार के बतलाये गये ह, जो इस कार ह-
1. भाषापरक अनुवाद (शि दक अनुवाद मू-(ल भाषा के अनुवाद को दूसर भाषा म पा तर
करना भाषापरक अनुवाद कहलाता है ।
2. त यपरक अनुवाद-मू ल भाषा म य त त य को दूसर भाषा म तु त करना
त यपरक अनुवाद कहलाता है । वै ा नक, तकनीक तथा आ थक ' त य का पा तर
ह को ट म आता है ।
3. सां कृ तक अनुवाद -मूल भाषा म य त सां कृ तक वचार का दूसर भाषा म पा तर
करना सां कृ तक अनुवाद कहलाता है । धा मक, नै तक तथा सां कृ तक पा य साम ी
का अनुवाद इस को ट म आता है ।
4. स दयपरक अनुवाद -मू ल भाषा के ल लत सा ह य का िजसका आधार स दय है, दूसर
भाषा म पा तर स दयपरक अनुवाद कहलाता है । रचना मक सा हि यक का अनुवाद
इसी को ट म आता है ।
अ छे अनुवाद क वशेषताएँ
1. अ छे अनुवाद म मू ल भाषा के जैसा ला ल य होना चा हए ।
76
2. अनुवाद क भाषा भावा भ यंजक होनी चा हए ।
3. अनुवाद म सृजना मक होनी चा हए ।
4. अनुवाद म मू ल व त य के सारे त य य त होने चा हए ।
77
3.19 सारांश
याकरण का काय भाषा के अंग के व छे दन वारा उनके सह व प को समझाना है
। सं कृ त वा मय म याकरण श द का योग बहु त यापक अथ म हु आ है । इसके अंतगत
व नय का उ चारण, सं ा, सवनाम, वशेषण वग के श द म सु प वभि तयां यु त कर बनने
वाले पद क स या के व भ न गण और लकार के प, त त और कृ द त श द के
नमाण क या, सभी यय और उनसे न मत होने वाले श द आ द । अनेक वषय आ
जाते ह । ह द याकरण एवं रचना म भी कर ब-कर ब इन सबका ववेचन कया गया ह इस
इकाई म भाषा रचना एवं भा षक काय का व तृत ववेचन कया गया है िज ह ठ क से
समझ कर आप अपनी भाषा को याकरण स मत और ु ट व हन कर सकगे ।
ह द के राजभाषा का व प हण करने के बाद इसका योजन व वध मु खी बन
गया है । इसी इकाई म ह द के व वध योजनपरक प का भी ववरण दया गया है । यह
ह द का यावहा रक प है और इससे अवगत होना समय क मांग है ।
3.20 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. भाषा संरचना एवं भा षक काय से या ता पय है?
2. सं कृ त और ह द के उपसग का ववरण सोदाहरण द िजए ।
3. समास एवं उनके भेद पर काश डा लए ।
4. या एवं उनके भेद सोदाहरण समझाइए ।
5. वा य एवं उनके कार पर काश डा लए ।
ख. लघू तर न
1. उपसग एवं यय का अ तर उदाहरण दे ते हु ए समझाइए ।
2. कमधारय और बहु ी ह समास का मू ल अंतर या है?
3. लंग नणय क िजए, आँसू मोती, मु लाकात, चाय, दह , खेत, अव था, लहर,
गरदन, पु लस
4. समास व ह करते हु ए उनके नाम बताएँ- नीलकंठ, यथा व ध, हरसाल, रे खां कत,
गगनचु बी, नीलाकाश, जनपथ, साग-पात, पंचतं , च मौ ल ।
5. सं ध कसे कहते ह । इसके कतने भेद ह । येक भेद के दो दो उदाहरण
द िजए।
ग. पा रभा षत श द ल खए
1. The proposal in quik in order
2. Accountable for
3. Abondoment claim
4. Act of misconduct
5. The proposal in self explanary
78
घ .सह / गलत पर नशान लगाइए
1. मु हावरे भाषा का स दय य करते ह । सह / गलत
2. सं ध का अथ व ह है । सह / गलत
3. उपसग मू ल श द के पीछे जोड़े जाते ह । सह / गलत
4. ' ामवास' श द म बहु ी ह समास है । सह / गलत
5. च ड़या का बहु वचन च ड़याँ होगा । सह / गलत
3.21 संदभ ंथ
1. वासु देव साद; आधु नक ह द याकरण रचना, भारती भवन, पटना
2. धीरे वमा; ह द भाषा का इ तहास, कताब महल, इलाहाबाद ।
3. वी.रा. जग नाथ; योग और योग, ऑ सफोड यू नव सट ेस, द ल
4. ह रवंश राय शमा; सा हि यक मु हावरा-लोकोि त कोश, राजपाल ए ड संस, द ल
5. कामता साद गु ; ह द याकरण, नागर णाल , सभा, काशी
6. डॉ. हरदे व बाहर ; ह द उ गम: वकास और प, कताब महल, इलाहाबाद
79
इकाई-4 भाषा व ान : प रभाषा, े और अ ययन क
प तयाँ
इकाई क परे खा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 भाषा व ान : प रभाषा व व प
4.2.1 भाषा व ान का अथ व नामकरण
4.2.2 भाषा क प रभाषा
4.2.3 भाषा व ान: कला अथवा व ान
4.3 भाषा- व ान के अ ययन के े
4.3.1 भाषा- व ान अ ययन के धान े
4.3.2 भाषा- व ान अ ययन के गौण े
4.4 भाषा व ान के अ ययन क प तयाँ
4.4.1 वणना मक प त
4.4.2 ऐ तहा सक प त
4.4.3 तु लना मक प त
4.4.4 यावहा रक प त
4.4.5 य तरे क प त
4.4.6 ऐ तहा सक और तु लना मक अ ययन प तय म पर पर नभरता
4.5 भाषा व ान के अ ययन क उपयो गता
4.6 वचार संदभ / श दावल
4.7 सारांश
4.8 अ यासाथ न
4.9 संदभ थ
ं
4.0 उ े य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप :-
भाषा व ान का अथ, प रभाषा व व प क जानकार ा त कर सकगे ।
भाषा व ान के अ ययन के धान व गौण े क जानकार हण कर सकगे ।
भाषा व ान के अ ययन क प तय क जानकार ा त कर अपने ान का अ भवधन
कर सकगे ।
भाषा व ान के अ ययन क उपयो गता से प र चत होकर भाषा व ान के संबध
ं म
अ धका धक शोध करने क वृि त क ओर अ सर हो सकगे ।
80
4.1 तावना
भाषा व ान के मु य करण, भाषा का इ तहास, भाषा व ान का इ तहास, भाषा का
वग करण, व न श ा, व न वचार, प वचार, अथ वचार, वा य वचार और भाषामूलक चीन
शोध है । अि तम और सबसे आव यक करण है, कसी एक भाषा का वै ा नक अ ययन । ये
सब मलकर भाषा व ान को पूण बनाते है । हर शा , वषय और शीषक का अपना मह व
होता है- आ थक, भौ तक, लौ कक, पारलौ कक, यश, यवहार और क याण - कामना आ द ।
व ान ने तो हर अ ययन का उ े य नि चत कर दया है । उसक पूर योगशाला इसी के
लए है । उसके सारे सू इसी के लए है । भाषा व ान आज का वक सत वषय है । इसके
उ े य व वध व वान ने नि चत कए है । भाषा व ान के अ ययन का आशय है - भाषा
के वषय म कया गया अ ययन न क सीधे भाषा का अ ययन । भाषा वै ा नक अ ययन का
आशय है - भाषा के अ तस क खोज न क भाषा संबध
ं ी रचनाओं का अ ययन ।
याकरण का भाषा व ान पर बड़ा ऋण है । पा ण न ने लखा है - ''अस दे हाथम ्
चा येय याकरणम'् अथात ् याकरण का अ ययन अ ात सु लभ संदेह के नवारण हे तु ह कया
जाना चा हए । भाषा के स पूण अग , े , दशाओं, संबध
ं , प रवतन और शै लय का
अ ययन भाषा - व ान म कया जाता है । अत: इनके संबध
ं म उ प न िज ासाएँ एवं
ि थत ान के नवारण के लए भाषा व ान का अ ययन कया जाता है । यह इसका उ े य
या योजन है । भाषा व ान म श द, प, अथ, और वा य आ द के संबध
ं म ान हो जाता
है । इनक व वध दशाओं का ान हो जाता है, वकास क या का भी सह -सह ान हो
जाता है । भाषा का वकास अपने मक वकास के साथ सामने आ जाता है । इससे कसी
े के जा त, समाज, सं कृ त, स यता, कला सा ह य के वकास का भी पता चल जाता है ।
य क भाषा कसी भी ान या व या क तु त का सश त मा यम है ।
81
य क भाषा श द से ह बनती है और 'भाषा व ान' या 'भाषा शा ' वा तव म 'श द
व ान' या 'श द शा ' ह है पर यह 'श द शा ' एक तो याकरण के अथ म यु त होता है
और दूसरे उतना अ धक यापक नह है । इसे इतना अ धक यापक होना चा हए, िजससे एक
ओर याकरण और दूसर ओर 'भाषा व ान' दोन का उसम समावेश हो सके ।
य य प भाषा व ान अपने शु और स चे प म ाचीन समय म उतना अ धक
आदर नह पा सका, जब क उसके दूसरे अंग याकरण ने इस दे श म बहु त अ धक उ न त क
। कु छ भी हो, सं कृ त ह द का अ ययन इतने वै ा नक और यवि थत प से हु आ है क
ह द सं कृ त - याकरण आजकल के भाषा वै ा नक के लए भी आदर और आ चय क व तु
माना जाता है ।
भाषा व ान का अथ है - भाषा का व ान अथवा व श ट ान । व श ट ान से
आशय उस स पूण ान से है- जो वै ा नक ि ट से ा त हु आ है ।, अं ेजी म भाषा -
व ान से आशय Science of Language से है । अथात ् भा षक व ान । यह ान
स पूणता और सु यव था के साथ होता है । ' 'भाषा व ान वह व ान है - जो मानव भाषा
एवं बो लय का उनक आ त रक संरचना के आधार पर अ ययन करता है तथा इसके प रणाम
व प भाषा- वषयक क तपय ऐसे सावभौम स ा त का अनुसंधान करता है - जो व व क
सभी भाषाओं एवं बो लय म समान प से लाग होते है ।''
आज भाषा - व ान अपना वतं अि त व बना चु का है । व व म इसक मह ता है
। इसके वशेष दे शभर म है । ो. दे वे नाथ शमा ने कहा है - '' भाषा व ान का सीधा
अथ है भाषा का व ान और व ान का अथ है व श ट ान । इस कार भाषा का व श ट
ान भाषा व ान कहलाएगा । ''
पा चा य - जगत ् म इसके लए सबसे च लत पद फलालॉजी है । Philology ीक
श द Philश द = , Logos= व ान से बना है । ाचीन यूरोप म भाषा - व ान का
अ ययन भारत क भाँ त 'भाषा - याकरण म ह कया जाता था । इसी से वहाँ पर भाषा
(Language) से बना श द है Linguistics । भारत म तो, Philology अ धक भाषा -
व ान के लए Linguistics श द का योग होता है । ांस म इसी को Linguistique कहा
गया है । इन दोन म भेद भी बताए गये ह ।
िजससे ल खत भाषा का अ ययन कया जाता है उसे ‘ फलालॉजी’ और िजसम
बोलचाल क भाषा का अ ययन कया जाता है उसे ' लं युि टक' कहते ह । “िजसम भाषाओं क
आ त रक रचना का अ ययन कया जाता है उसे ‘ ल युि टक' और िजसम भाषाओं के
आ त रक और बा य सभी प का अ ययन कया जाता है उसे फलालॉजी कहते है । ये दोन
श दभ न प और अथ म यु त कए जाने लगे है । भाषा- व ान ( फलालॉजी) के अ तगत
ाचीन भाषा-साम ी का व लेषण कया जात है और लं युि ट स (भाषा शा ) के अ तगत
आधु नक जी वत भाषाओं और बो लय का अ ययन तु त कया जात है ।
82
वै ा नक तथा तकनीक श दावल आयोग, भारत सरकार वारा न मत मान वक
श दावल (भाषा- व ान) म ‘ लंि वि ट स' के लए भाषा- व ान एवं फलालॉजी के लए'
‘वा मीमासा' श द का योग कया गया है ।इस कार फलालॉजी का े यापक हो गया है -
अथ वचार, व न वचार, सा ह य, भाषा, शैल , कोष- नमाण, पाठालोचन, ं -स पादन तथा
थ
लोकवाता का व लेषण भी फलालॉजी म आ गया है, पर तु लंि वि ट स कसी ाणवान भाषा
क संरचना - व ध एवं व लेषण तक ह सी मत रह गया है । आज वा मीमांसा (Philology)
का बोध तु त: उस अ ययन से होता है जो यूरोप म 19वीं शता द म स प न हु आ था,
क तु भाषा- व ान (Linguistics) से उस प त का बोध होता है- िजसका वतन हॉ कट,
है रस, फ मोर, हा लडे एवं चॉम क आ द व वान करते आ रहे ह । इस कार ह द म हम
उ ले य नाम मले - भाषा- व ान, भाषा शा , भाषा त व, भाषा वचार, भाषा लोचन,
तु लना मक भाषा शा , भा षक , श दशा , तु लना मक याकरण, याकरण शा , न त,
वा मीमांसा, श दमीमांसा, श दानुशासन, याकरण, तु लना मक भाषा- व ान, तु लना मक और
ऐ तहा सक भाषा व ान, िजहा- व ान, संरचना मक, भाषा- व ान, भाषा मीमांसा आ द । क तु
इन सभी नाम म भाषा- व ान नाम ह सवा धक च लत है । डॉ. यामसु दरदास, डॉ.
रामच वमा, डॉ. अ बा साद सु मन, ी कशोर दास वाजपेयी, डॉ. बाबूराम स सेना तथा डॉ.
दे वे नाथ शमा आ द व वान ने अपने थ
ं म ‘भाषा- व ान’ का ह यवहार कया है । डॉ.
मंगलदे व शा ी, डॉ. उदयनारायण तवार तथा दे वे कु मार शा ी ने इस वषय के लए
अपनी पु तक म भाषाशा का नाम यवहार कया है । डॉ. उदयनारायण तवार 'भाषा-
व ान' तथा 'भाषा शा ’ नाम म कोई अ तर नह मानते है । डॉ. दे वे कु मार शा ी का
कहना है - ''भाषा शा से हमारा अ भ ाय ' लंि वि ट स' से है । पं. सीताराम चतु वद ने इस
वषय से संबं धत अपनी पु तक का नाम 'भाषा लोचन' रखा है । डॉ. दे वीशंकर ववेद के
श द म - 'भाषा क कृ त, उसके गठन तथा यवहार आ द क व तु न ठ पर ा करने वाले
भाषा व ान का नाम भा षक है । अ धकांश लोग ने भाषा- व ान पद का योग कया है ।
यह सं त वै ा नक च लत, प ट, सं े णीय एवं सहज है ।
4.2.2 प रभाषा
83
डॉ. भोलानाथ तवार - ''भाषा व ान वह व ान है िजसम भाषा अथवा भाषाओं का
एकका लक, बहु का लक, तु लना मक य तरे क अथवा अनु ायो गक अ ययन- व लेषण
तथा त वषयक स ा त का नधारण कया जाता है । '
डॉ. याम सु दर दास - ''भाषा- व ान उस शा को कहते है िजसम भाषा मा के
भ न- भ न अंग और व प का ववेचन तथा न पण कया जाता है ।
डॉ. उदयनारायण तवार - ''भाषा- व ान उस शा को कहते है िजसम हम भाषा मा
के भ न- भ न अंग का ववेचन, अ ययन और अनुशीलन करना सीखते है । ''
डॉ. मनमोहन गौतम - ''भाषा- व ान वह शा है िजसम ऐ तहा सक एवं तु लना मक
अ ययन के वारा भाषा क उ पि त, बनावट, कृ त, वकास तथा ास आ द क
वै ा नक या या क जाती डॉ. वा रका साद स सेना - ''भाषा व ान वह व ान है
िजसम भाषा एवं भा-त व का ऐ तहा सक एवं तु लना मक आधार पर वै ा नक
अ ययन कया जाता है । ''
डॉ. दे वीशंकर - ''भाषा- व ान को अथात ् भाषा के व ान को भा षक कहते है ।''
डॉ. हर श शमा - ''भाषा- व ान भाषा मा के अ ययन से स ब एक ग या मक
अ ययन है । भाषा-त व के व लेषण-सं लेषण संबध
ं ी दे श काल सापे यवि थत
अ ययन के फल व प ा त न कष के मा यम से भाषा मा के अनुशीलन एवं
ं ी अ ययन को भाषा- व ान कहते है । ''
स ा त न पण संबध
(ख) पा चा य- पा चा य-जगत म फलालॉजी और लंग वि ट स दोन नाम से अ ययन
हु ए है, दोन पर पहले वचार कया जा चु का है । अ ययन के फल व प दोन पर
पु तक और प रभाषाऐं मलती है- मै समूलर - ''भाषा- व ान, िजसको फलालॉजी कहना
ह सह है, भाषा का वै ा नक अ ययन है । वेबसटर ड शनर ने भाषा व ान को
अ यंत यापक अथ म प रभा षत करते हु ए लखा है 'Study of literature that
includes grammer criticism, litrary history, language history, system
of…..and any thing else that is relevant to literature or to language
as used in literature.
हाँल - ''भाषा क कृ त और याशीलता को समझाने वाला व ान भाषा- व ान है ।
रो ब स- “सम त दे श और काल क मानवीय भाषा के सभी प - योग का वै ा नक
अ ययन भाषा- व ान कहलाता है ।''
भारतीय और यूरोपीय प रभाषाओं को दे खने से प ट होता है क भाषा का वै ा नक
अ ययन करने वाला व ान या शा ह भाषा- व ान है । अत: भाषा का वै ा नक अ ययन
ह भाषा- व ान है ।
84
4.2.3 भाषा व ान : कला अथवा व ान
85
के े है ।भाषा व ान का े उतना ह व तृत और यापक है - िजतनी मानव जा त व
मानव समाज ।
व वध व वान के मत को दे खते हु ए हम भाषा- व ान के अ ययन े को दो वग
म बाँट कर वचार कर सकते ह । इनम सभी के वग आ जाते है । इसके साथ सब प ट भी
हो जाते ह । थम वग - धान वग है और वतीय गौण वग है । इसके धान वग पर तो
अलग-अलग अ याय भी दए गए है ।
86
' प- व ान' क दो उप-शाखाओं म से एक को 'श द- व ान' और दूसर को 'पद-
व ान' कहते है ।
4. वा य व ान (Syntax) भाषा क पूण और द घ इकाई वा य है । इससे वचार
व नमय स प न कया जाता है । यह भाषा का सबसे अ धक, वाभा वक और
मह वपूण अंग है । इसके चार प ह- (क) एक का लक, (ख), ऐ तहा सक. (ग)
तु लना मक, (घ) य तरे क । वा य व ान म पद म, अ वय, नकट थ अवयव,
के यता, बा य संरचना, आ त रक संरचना, पा तरण, प रवतन के कारण, प रवतन
क दशाएँ आ द का अ ययन कया जाता है । येक वा य म दो घटक होते है-
उ े य और वधेय । िजसके वषय म कहा जाए उसको उ े य और जो कु छ कहा जाए
उसको वधेय कहते है । जैसे- ‘राम गाँव जाता है' वा य म राम-उ े य और गाँव जाता
है, वधेय है ।
5. अथ व ान (Sementics) यह भाषा क आ मा है । भाषा का यह आ त रक तर है
। इसका अ ययन भी एक का लक, तु लना मक, ऐ तहा सक तथा य तरे क आ द प
म होता है । इसम श द के अथ का नधारण, उनके तर, प रवतन, कारण व
दशाएँ, पयाय व वलोम आ द पर भी वचार कया जाता है । अथ के कई प होते
है- याकर णक, कोशीय, ासं गक, े ीय, ऐ तहा सक और सामािजक आ द । अथ-
वकास क मु य तीन दशाएँ होती ह- (1) व तार, (2) संकोच और (3) वपयय ।
यह भाषा- व ान के पांच मु ख अंग या शाखाएँ है । आगे व तार से उ लेख कया
गया है ।
87
4. भाषा काल म व ान - गणना के आधार पर अनेक त य को ात करने क यह
र त है । इसम आधारभूत श द समू ह म पुराने और नये त व के आधार पर कसी
भाषा क अव था आ द का ान कया जाता है ।
5. भाषा पर आधा रत ागै तहा सक सव ण - इसम भाषा के आधार पर अतीत के संबध
ं
म कु छ जाना जाता है । आज का आदमी भा षक याकलाप से अतीत को जानने का
यास करता है । भाषा- व ान से अनेक साथक सव ण हु ए ह । इससे ागै तहा सक
सं कृ त और स यता का भी पता चल जाता है ।
6. ल प व ान - भाषा और भाषा व ान के अ ययन म ल प का भी योगदान है ।
ल प सबको ि थर और यवि थत करती है । व न को यह आ रक प दे ती है ।
व न को संकेता मक या तीका मक च दे ती है । व न क सहायता से ल प के
सु धार आ द पर भी भाषा- व ान के े म वचार कया जाता है ।
7. मनोभाषा व ान - इसम भाषा- व ान के मनो-वै ा नक प का अ ययन कया जाता
है ।
8. समाज भाषा व ान - इसम समाज और भाषा का संबध
ं तथा व वध समाज के
तर वारा यु त भाषा क व न, प, श द, वा य रचना तथा अथ आ द वषयक
वशेषताओं का अ ययन होता है ।
9. शैल - व ान - हर भाषा-भाषी क भाषा-प त कुछ भ न अव य होती है । यह एक-
एक क अपनी पहचान होती है । शैल यि त व का नमाण करती है । इन नजी
वशेषताओं का शैल व ान म अ ययन होता है ।
10. सव ण प त - कसी े वशेष म बोल जाने वाल भाषा के व लेषण के लये
साम ी एक त करने क र त का इसम अ ययन होता है । इसम सूचक, सव ण,
नावल साम ी-संचयन एवं लेखन और सबके उपयोग क र त का अ ययन कया
जाता है ।
11. भू-भाषा- व ान - इसम व व म भाषाओं का फैलाव उनके राजनी तक, आ थक,
सामािजक एवं सां कृ तक मह व क आकलन व ध, सा य-वैष य, रा ो क नजी
भ नता रा क सां कृ तक नी त भाषा को कैसे भा वत करती है तथा रा -भाषा
या राज-भाषा जैसी सम याओं का अ ययन कया जाता है ।
12. कोश- व ान - इसम श द समू ह और अथ त व क बात का संकलन होता है । श द
क यु पि त, अथ योग और आव यक ट प णयाँ द जाती है । श द का कोशीय
अथ अपना वशेष मह व रखता है ।
13. यु पि त व ान - इसम श द क उ पि त और वकास या प रवतन पर वचार कया
जाता है । श द का उ व और वकास दे खा जाता है । श द का शार रक इ तहास
बताया जाता है ।
14. अनुवाद व ान - एक भाषा मे कसी अ य भाषा के अनुवाद या भाषा तरण म अ धक
क ठनाईयाँ आती ह । अथ, भाव, संग, दे शकाल वातावरण, समाज, सं कृ त तथा धम
88
और दशन आ द को लेकर वशेष प से । व न, श द, पद, वा य अथ और शैल
संबध
ं ी क ठनाईयाँ आती है । भाषा व ान म इन पर व धवत वचार होता है । भाषा
व ान का यह नया अंग था पत हो रहा है । इनके अ त र त नाम- व ान, पयाय-
व ान, जा त-भाषा- व ान, मेटा लंि वि ट स, पुन नमाण आ द क भी भाषा व ान
क नई शाखाओं के प म चचा क जाती है । मेटा लंि वि ट स म भा षक एवं
तकनीक, श प व ध तथा पा रभा षक श दावल का अ ययन कया जाता है । जा त-
भाषा- व ान म सामािजक वकास क या का अ ययन कया जाता है
89
व लेषणा मक मता पर वदे शी भी मु ध हो जाते है पर इससे वणा मक भाषा व ान और
याकरण को एक नह ं कहा जा सकता है । आज यह शाखा अपना वतं थान भी रखती है ।
अमे रका के अ त र त अपने दे श म भी इस पर सराहनीय काय हो रहे है । यहाँ के
तारापोरवाला तथा डॉ. स े वर वमा ने इस दशा म बहु त काय कये ह । डॉ0 स े वर वमा
क पु तक ' ाचीन भारतीय वैयाकरण के व या मक वचार का ववेचना मक अ ययन'
(Critical Studies in the Phonetic Observetion of Indian Grammarians) इस
ि ट से बहु त सराहनीय है ।
इस कार हम दे खते है क वणा मक अ ययन प त म काल वशेष म वशेष व न,
श द, पद, वा य और अथ सं क स पूण अंग का अ ययन, ववेचन एवं व लेषण स प न
होता है ।
इसका जनक ि वटजरलै ड नवासी द सा यूर को माना जाता है । इसके मु य के
जेनेवा और ोहा बताए जाते है । वदे श म इसका मह व अ धक बढ़ गया है । डॉ. भोला नाथ
तवार ने इसको वणा मक म ह माना है । पर तु आज इसक वतं प त के प म
थापना हो चु क है । इससे संरचना मक भाषा व ान क त ठा हो चु क है । इस प त को
भाषा का ग णत कहा जा सकता है । अमेर का म इस प त का खू ब वकास हो रहा है ।
आज यूरोप तथा अमे रका म संरचना मक भाषा- व ान म कई सं दाय वक सत हो रहे
है - िजनम मु य ह भा षम (Glossematics) वनगु णक, (Prosodic), तर परक
(Stratificational)ए यव थापक (Systemic) एवं कायपरक (Functional) अमे रका म
इसके लए पूरा ेय लूमफ ड को दया जाता है । इस प त म भाषा क संरचना के आधार
पर अ ययन कया जाता है । भाषा-अ ययन क यह प त भाषा क व भ न इकाइय के पूण
च तन पर नधा रत होती है । इसम भाषा का ववेचन और व लेषण संगठना मक ि टकोण
से करते है । इसम भाषा क पार प रक संब ता पर वशेष यान दया जाता है । वणा मक
प त म भी कह - कह संरचना मक प उभर आता है इन दोन प तय म वशेष अ तर
यह है क वणा मक प त म भाषा क इकाईय का अ ययन एकाक प म कया जात है,
जब क संरचना मक अ ययन म व भ न इकाईय के पार प रक संबध
ं पर भी वचार कया
जाता है । जैसे - 'काम’ श द के संरचना मक अ ययन म इसके व भ न व न- च न क् +
आ + म ् + अ के ल खत तथा उ च रत प पर च तन करते है । इस कार श द-संरचना के
साथ-साथ व न-संरचना पर भी वचार हो जाता है । आजकल इस प त पर वशेष काय हो
रहे है । इसके एक-एक घटक पर काय हो रहे है- व न ाम (Phonemics) लय ाम
(Tonetics), बोल - व ान (Dialectology) आ द ।
4.4.2 ऐ तहा सक प त
90
सवा धक उपयोगी स होती है । जैसे ह द के वकास को सं कृ त, ाकृ त, अप ंश और
अवह के वकास म को बड़ी सरलता से समझा जा सकता है ।
इसम कोशगत प रवतन, पद एवं वा य मू लक प रवतन तथा व न प रवतन के कारण
एवं दशाओं पर कई ि टय से वचार कया जाता है । व न प रवतन के दशा- नधारण हे तु
लोप, आगम, समीकरण, वषमीकरण, उ मीकरण, महा ाणीकरण जैसे - कृ तपरक संदभ पर
वचार कया जाता है । इसी कार इस अ ययन म पुन नमाण वन नयम, सा य,
सरल करण, पुरालेख शाखा, (इ प ाफ ) पुरा ल प शा (पै लया ाफ ) जैसे ढे र से बु नयाद
शा ीय एवं तकनीक श द का योग कया जाता है और ववे य भाषा को उ चको ट के सू म
व लेषण वारा परखा जाता है ।
इसके अ ययन आधार के लए हम व वध साम य का उपयोग करते है ' ल खत
आलेख भि त लेख, मु ाओं, स क या शलालेख पर उ क ण साम ी आ द । इस प त म
तु लना मक संरचना मक प तय का भी उपयोग कया जाता है इस संदभ म मा रस वाडेश
नामक व वान ने 1950 म उ लेखनीय काय कया था । तदुपरा त राबट ल ज एवं ल सन ने
इस अ ययन को आगे बढ़ाया । इसम सांि यक य या ग णतीय प त पर न कष नकाला
जाता है । इससे भाषा के नए-पुराने प के भेद को समझने म सु वधा होती है । वकास के
एक - एक सोपान का इससे अंदाज लग जाता है । व न, श द, प, अथ के प रवतन, वकास
के कारण दशाओं एवं अ य भा षक प रवतन क धाराओं का पता लग जाता है ।
91
का स यक अ ययन करना चाह, तो ज, अवधी, खड़ी बोल , क नौजी, बु दे ल आ द प का
भी तु लना मक अ ययन करना अ नवाय होगा । इसी कार के अ ययन के न कष पर
भाषाओं का इ तहास लखा जाता है ।
डॉ0 पी. डी. गुणे के श द म 'तुलना मक 'भाषा- व ान' का संबध
ं भाषा के अतीत और
वतमान के त य से है । यह भाषा के जीवन के व भ न जाल के त य का तु लना मक
अ ययन करके उसका इ तहास तु त करता है ।'' व व के मु ख भाषा-प रवार म, नयम
आ द भाषा-संबध
ं ी तु लना मक अ ययन क ह मह वपूण दे न ह ।
4.4.4 यावहा रक प त
4.4.5 य तरे क प त
92
आ द म भी यह अ ययन ारं भ हो चु का है । इससे भाषा- श ण म बड़ी सहायता मल रह है
।
वतीय व वयु व के समय वदे श म लडने वाले सै नको के लये वहाँ क भाषा को
यथाशी सीखने और सखाने क ऐसी व ध क खोज करने के लये भाषा वै ा नक चि तत
हु ए । इस तरह क सम या यूरोप एवं अमे रका म साथ-साथ ारं भ हु ई थी, पर तु इस प त
के वकास का ेय अमर क भाषा वै ा नक को जाता है िजनम चा स सी, ोज एवं राबट
लेडो का नाम स मान के साथ लया जाता है । इस तरह इसका इ तहास छोटा है ।
आज संसार को बहु भाषाओं को सीखने क आव यकता है । संसार म कोई एक ऐसी
भाषा नह ं है िजसे समझा या सबसे जोडा जा सके । ऐसी दशा म इस अ ययन प त क
उपयो गता वत: स हो जाती है । इस पर आज अनेक पु तका याय एवं शोध प आ रहे ह।
93
के समाज, सं कृ त इ तहास भू गोल, रहन-सहन, धम और सा ह य के बारे म भी जानकार मल
जाती है ।
94
4. सा ह य के अ ययन म उपयोगी : आज सा ह य के भाषा शा पर कताब आने लगी
है । सा ह य के सम ववेचन म भाषा - शैल का उ लेख कया जाता है । सा ह य
क रचना बना भाषा के संभव नह है । सा ह य को दय धान और भाषा को बु
धान कह कर कु छ लोग भेद पैदा करते है; पर ढं ग से दे खा और समझा जाए तो
दोन एक दूसरे के पूरक है । दोन के लए दय और बु क आव यकता पड़ती है ।
अतीत के सा ह य को समझने म भाषा सबसे अ धक बाधक है । ह द के रासो
सा ह य को पढ़ने क लए अप श
ं भाषा का ान होना आव यक है । ''सा ह य के
अ ययन के लए भाषा का स यक् ान आव यक है और भाषा के वै ा नक अ ययन
के लए भाषा - व ान क उपे ा नह ं क जा सकती है । ''
सा ह य के अनेक ववाद को भाषा व ान के ान से हल कया जा सकता
है । यह बोल के वक सत भाषा प को बताता है । सा ह य के लोक और शा
ं को इससे समझा जा सकता है |
संबध
5. भाषागत अ ययन म उपयोगी : भाषा- व ान भाषा के स पूण अ ययन को तु त
करने के लए उ तरदायी होता है । व न, श द, पद, वा य और अथ पर इसम सबसे
अ धक वचार होता है । दे शी- वदे शी भाषाओं को सीखने म भाषा व ान से पूणता,
सरलता और शी ता आती है । एक भाषा से दूसर भाषा म भा षक अनुवाद म इससे
सहायता मलती है । भाषा, ल प आ द म सरलता और शु ता क आ द क ि ट से
प रवतन और प रव न करने म इससे सहायता मलती है । भाषा- व ान से कसी भी
भाषा को शु -शु लखना, पढ़ना और बोलना आ जाता है । इसी से भाषा भेद भी
समझ म आता है । भाषा- व ान भाषाओं के वै ा नक अ ययन को नयी जमीन
स पता है |
6. पुराताि वक एवं ऐ तहा सक खोज म उपयोगी : पुरात व और इ तहास संबध
ं ी खोज
म भाषा- व ान सहयोग करता है । भाषा के अनेक रह य का उ घाटन होता रहता है
। कफन और बटन के लए ह द म कोई उपयु त श द नह है, इसका कारण है क
सं कृ त काल म शव को जलाया, गाड़ा या वा हत कर दया जाता था । कफन क
आव यकता नह ं थी । इससे श द नह बना इसी कार पहले गाँठ बाँधने क पर परा
थी-बटन क नह ं । बारह ब द , युगलब द बनती थी । इसी से बटन श द नह आया
। इ लाम के आगमन से ऐसे उनके श द भाषा म आए । अत: भाषा से उस समय क
र त का पता चलता है । आय के नवास, जीवन, सं कृ त और स यता के संबध
ं म
जानने के लए आय भाषा क मदद सराहनीय है । व व के ाचीन अ ययन क
जानकार इसके अ ययन से मलती है ।
7. भाषा-शु ता म उपयोगी : भाषा व ान के मु य अंग ह- व न, श द, पद, या प,
वा य और अथ । यह भाषा के भी नमाता है । भाषा- व ान के मा यम से इसके
उ चत योग एवं समझदार का ान हो जात है । भाषा-संरचना म भाषा- व ान का
मु ख योगदान है । इससे भाषा के स पूण अंग एवं उनके योग का ववेचन होता है
95
। आज याकरण भाषा - व ान से सी मत हो गया है । शु जानकार का अभाव,
वतनी क अनेक पता, याकरण के ान से र हत होना, श द क सह यु पि त न
जानना भाषा क शु ता के बाधक ह । इनसे भी भा षक वकार उ प न हो जाते ह ।
श द म समय-समय पर उ प न होने वाले प रवतन -वणागम, लोप व वपयय का
ान भाषा- व ान के अ ययन से ह हो पाता है । इससे कसी भी भाषा को शु -शु
बोलना, लखना और पढ़ना आ जाते है । भाषा क शु ता और समु चत योग का
ान भा षक त व के ान से ह हो सकता है ।
8. भा षक सम याओं के समाधान म उपयोगी : भाषा के व भ न अंग के साथ अनेक
सम याएँ भी आती है । व न, श द, प, वा य और अथ आ द को लेकर ह द म
अनेक व नयाँ ववादा पद है- श, ष, ऋ, र के उ चारण ख, ख़, म, भ, व - दघ
मा ा को लेकर छ, , म भेद श, ष, श म भेद ग, ग़, फ, फ़, ज, ज़ म ाय: भेद
नह हो पाता है । रोमन व नय और ल पय म तो और अ यव था है । भा षक
श दावल को लेकर अनेक सम याएँ उ प न होती है । इनसे अनुवाद क क ठनाइयाँ
सामने आती है । ह द , उदू और अं ेजी के म ण क सम या है । श द ह नह
वा य रचना तक भा वत हो रह है ।भाषा व ान सबका समाधान रखता है ।
9. वै ा नक याकलाप म उपयोगी :यह मानना पडेगा क आज सा ह य से आगे
व ान चला गया है । उपयो गता क ि ट से भी इसका बहु त मह व है । क यूटर
णाल ने और वै ा नकता दे द है । कोड वड क उपयो गता बढ़ती जा रह है ।
व नयाँ नया और यापक अथ पाती जा रह है । टे ल फोन, तार, बेतार का तार और
फै स और ईमेल आ द के उपयोग बढ़ते जा रहे है । इले ा नक मी डया ने इधर
वै ा नकता को अ धक ग त द है । वशेष व नयाँ बढ़ती जा रह है । अनुवाद ,
सं तीकरण, नोट, ट पणी, ट पण, संकेत, टका, पाठालोचन आ द म भी पाठालोचन
म भी भाषा- व ान से सहायता मल रह है । यह उन सांके तक श दाव लय का
नमाण कराने म सहायक होता है, िजससे अनुवाद सरलता से कया जा सकता है ।
पा रभा षक श दावल और तकनीक श द के नमाण मे भी इसक उपयो गता सव प र
है ।
10. वाक् - च क सा म उपयोगी : भाषा- व ान वाणी संशोधन- श ण म बहु त उपयोगी
स हो रहा है । भाषा व ान के अ ययन से कसी भी भाषा को ठ क - ठ क
लखना, पढ़ना और बोलना आ जाता है । जो लोग अशु उ चारण करते है - उनको
व नयं क सहायता से सह उ चारण का श ण दया जाता है । आजकल कैमरे
व ए सरे मशीन का उपयोग कया जाता है । उ चारण - थान और य न का ान
कराकर वाणी संशोधन कया जाता है । इससे हकलाहट और तु तलाहट जैसे वाणी रोग
का नदान कया जाता है । इस कार वा यं क यूनताएँ प ट हो जाती है -
िजससे च क सा म सु गमता होती है ।
96
11. बौ क संतु ि ट और मनोरं जन के लए उपयोगी : भाषा व ान के अ ययन से अनेक
िज ासाओं क संतु ि ट होती है । बौ क शां त मलती है । अनेक रोचक ओर
मनोरं जक करण ा त होते है । उ कतयाँ, कहावत और मु हावरे उपल ध हो जाते ह ।
भाषा व ान श द के व प का दलच प उ घाटन करने म पूण स म होता है ।
अनेक गोपनीय त य का इससे उ घाटन होता है ।
4.7 सारांश
भाषा के मा यम ह- व न, संकेत और ल प । इ ह ं के ज रए वह चलती और
यवि थत होती है । इसी भाषा का वशेष और सवागीण प से भाषा व ान म अ ययन
कया जाता है । भाषा- व ान भौ तक , रसायन और च क सा जैसा न व ान है और न
च कला, संगीतकला, ल लतकला और वा तु कला के समान कला है । पर तु यह कला से
अ धक व ान है । इधर व ान श द का उपयोग बढ़ता जा रहा है । भाषा व ान के मु य
97
अ येत य ह-भाषा क उ पि त, गठन, कृ त और वकास । भाषा का वकास अनवरत होता
रहता है । िजस भाषा का वकास अव हो जाता है-वह मृत भाषा कह जाती है । भाषा
व ान म मृत और जी वत दोन प का अ ययन कया जाता है । जी वत भाषा के
ऐ तहा सक, योजनमू लक, यावहा रक शास नक, समाचार, ा प लेखन, सं े ण एवं
योगा मक, ट पणी तथा दे शी वदे शी प का अ ययन भाषा व ान म होता है । इसम
यि त क भाषा से लेकर व वभाषा के व वध प का अ ययन कया जाता है । इसम
शा ीय और गँवा प समान प से उपयोगी होते है । भाषा-वै ा नक अनुसध
ं ान अनेक
ि टय से उपयोगी स हो रहे है । अ ात को ात करना फर ात को नवीनतम प से
व ले षत करना अनुसंधान है । आज इसका े यापक हो गया है । आज व व म भाषा
व ान वषय वतं प से ति ठत हो चु का है । भाषा का भी वतं प से अ ययन
ार भ हो गया है । व व व यालय म सा ह य, संगीत, भाषा, समाज, वा ण य, व ान और
श ा आ द संकाय के समान भाषा व ान के वभाग भी खु ल रहे है । तकनीक ढं ग से इसका
श ण चल रहा है । अनेक संयं इसक सेवा म लगते जा रहे है । अनेक नणय म इनसे
अभू तपूव सहायता मल रह है । भाषा व ान क अनेक योगशालाएँ बड़ी सफलता के साथ
कायरत ह ।
4.8 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. भाषा व ान क व वध प रभाषाओं के प र े य म इसका व प नधारण
क िजए।
2. भाषा व ान को आप कला मानगे या व ान प ट क िजए ।
3. भाषा व ान के अ ययन के े बताइए ।
4. भाषा व ान के अ ययन क प तय का प रचय द िजए ।
5. भाषा व ान के अ ययन क उपयो गता पर वचार क िजए ।
ख. लघू तर न
1. फलॉलाजी और लं गवि ट स का अंतर प ट क िजए ।
2. भाषा व ान क व वध प रभाषाओं म से कौनसी आपको पूण ,सरल एवं वै ा नक
लगती है?
3. ऐ तहा सक और तु लना मक भाषा वै ा नक अ ययन प तयां कस प म पर पर
सहयोगी ह?
4. यावहा रक प त से या ता पय है?
5. भाषा व ान के अ ययन से हु ए कोई दो लाभ बताइए ।
ग. र त थान क पू त क िजए
1. प और पद का ाथ मक व प ........................................ है ।
2. भारतीय व वान ने श द के ........................... भेद कये है ।
98
3. येक वा य म दो .................................. होते ह ।
4. ......................................... प त को बहु का लक का वपर त समझना चा हए
।
5. ....................................... का अथ वशेष होता है ।
घ. सह / गलत पर नशान लगाइए
1. भाषा व ान एक नि चत व ान है । सह / गलत
2. भाषा क कृ त और याशीलता को समझाने वाला व ान भाषा व ान है ।
सह / गलत
3. वणा मक अ ययन का सव े ठ थ
ं पा ण नय याकरण है । सह / गलत
4. तु लना मक भाषा व ान का संबध
ं केवल भाषा के अतीत के त य से है
सह / गलत
5. अ ययन क यावहा रक प त के कारण भाषा व ान क को ट म आता है ।
सह / गलत
4.9 संदभ थ
1. डॉ. नरे म ; भाषा और भाषा व ान, सं.. 2001
2. डॉ. भोलानाथ तवार ; भाषा व ान, . सं. 1992
3. डॉ. मंगलदे व शा ी; भाषा व ान, . सं. 1962
4. डॉ. हर श शमा; भाषा व ान क परे खा, . सं. 1997
5. डॉ. दे वे नाथ शमा; भाषा व ान क भू मका, सं.. 1966
6. बाबू यामसु दर दास; भाषा व ान . सं. 1944
7. पं. कशोर दास वाजपेयी; भारतीय भाषा व ान, . सं. 1966
8. डॉ. धीरे वमा; ह द भाषा का इ तहास, दशम सं करण . सं. 1980
9. डॉ. ेम काश र तोगी; ह द भाषा का उ व और वकास, . सं. 1966
10. डॉ. उदयनारायण तवार ; ह द भाषा का उ व और वकास, संवत ् 2012
11. डॉ. कृ ण कु मार र तू; भाषा व ान : नये भाषायी सनदभ, बुक एन लेव
जयपुर . सं. 2003
12. डॉ. अनुज ताप संह; भाषा व ान, नमन काशन नई द ल , 2007
99
इकाई-5 भाषा व ान एवं अ य सामािजक व ान
इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 भाषा व ान एवं अ य सामािजक व ान का संबध
ं
5.2.1 भाषा व ान तथा याकरण
5.2.2 भाषा व ान और दशनशा
5.2.3 भाषा व ान तथा सा ह य
5.2.4 भाषा व ान तथा समाज व ान
5.2.5 भाषा व ान तथा अनुवाद व ान
5.2.6 भाषा व ान और मनो व ान
5.2.7 भाषा व ान और इ तहास
5.2.8 भाषा व ान और भू गोल
5.2.9 भाषा व ान और शर र व ान
5.2.10 भाषा व ान और सूचना तकनीक
5.3 वचार संदभ / श दावल
5.4 सारांश
5.5 अ यासाथ न
5.6 संदभ थ
5.0 उ े य
इस इकाई म भाषा व ान एवं उन समाज व ान के म य संबध
ं दखाया गया है जो
कसी न कसी एक दूसरे के अ ययन म सहयोगी क भू मका नभाते ह ।
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप -
भाषा व ान याकरण सा ह य एवं दशन के बु नयाद संबध
ं को समझ एवं समझा
सकगे।
भाषा व ान के अ ययन म इ तहास, भू गोल, एवं समाज व ान के सहयोग एवं इन
समाज व ान के अ ययन म भाषा व ान क उपादे यता को समझ और समझा
सकगे ।
भाषा व ान तथा अनुवाद के संबध
ं क बर क को समझ एवं समझा सकगे ।
भाषा व ान और शर र व ान के संबध
ं को समझते हु ए उ चारण अवयव के
वै श य को समझा सकगे ।
नरं तर वकासमान सू चना तकनीक और भाषा व ान के संबध
ं को समझ एवं समझा
सकगे ।
100
5.1 तावना
भाषा व ान क पछल इकाइय को पढ़ने के बाद आप प ट प म समझ गये ह गे क
भाषा व ान वह व ान है िजसम भाषा का सवागीण ववेचना मक अ ययन तु त कया
जाता है । अ य व ान क तु लना म भाषा व ान का े अ यंत व तृत है य क इसका
संबध
ं कसी एक भाषा से नह ं अ पतु मानव मा क भाषा से है । भाषा मानव क कृ त और
कृ त का यथाथ दपण है । यह मानव मा का अ भ न अंग है । अत: मानव जीवन से
स ब व ान और शा से भी भाषा व ान का अ भ न संबध
ं था पत होता है । िजस
तरह समाज का एक यि त अनेक प म अनेक यि तय से स ब होता है उसी तरह भाषा
व ान क अनेक वधाएँ ऐसी ह िजससे वह अ य व ान से नकटतम संपक रखती है । भाषा
व ान के ताि वक ान के लए इन व ान को और शा का सहारा लेना पड़ता है । दूसर
ओर कु छ त य के ठ क-ठ क ान के लए वे भाषा व ान क मदद लेते ह अमे रका के
स भाषा वै ा नक नीम चॉम क से कसी ने एक बार इ टर यू म पूछा क उनके भाषा
वै ा नक अ ययन और राजनी त म या संबध
ं है । उ ह ने उ तर दया मेरे भाषा संबध
ं ी काय
और राजनी त म कोई संबध
ं नह ं है । दरअसल मानव कृ त के आधारभू त त य के त दोन
के कु छ मामल म समान ख और धारणाएँ ह । दु नया के यह मशहू र राजनी त व भाषा
व ान के े म आए थे । एक भारतीय भाषा वै ा नक दे वी स न पटनायक कहते ह'' भाषा
और राजनी त का गहरा संबध
ं है । भाषा चाहे यि त अथवा समू ह क पहचान बने स ेषण के
मा यम के प म मानी जाए या फर सां कृ तक आदान- दान का कारण बने ये सभी बात
राजनी तक जोड़-तोड़ से नयं त होती है । राजनी त चाहे यि त क हो, असमानता क , भाषा
मह वपूण भू मका नभाती है । इस तरह य हो या परो भाषा व ान का भी व वध
व ान से कमोबेश संबध
ं रहता है ।
103
वकास को समझने और समझाने म भी सा ह य से मदद मलती है । िजन भाषाओं म सा ह य
लखा गया है उ ह ति ठत माना जाता है । सा ह य के ज रए भाषा का काल मानुसार
वकास दखलाया जा सकता है । भाषा के व भ न भौगो लक प भी इस मा यम से पहचाने
जा सकते ह । य द याकरण और भाषा व ान के संबध
ं को अगल भाव संबध
ं कहा जाए तो
ं उपकाय-उपकारक संबध
भाषा व ान और सा ह य का संबध ं है । सा ह य और भाषा व ान
एक दूसरे के उपकारक ह । सा ह य भाषा के ाचीन प को सु र त रखकर भाषा व ान के
अ ययन के लए उपयोगी साम ी जु टाता है । इस कार सा ह य भाषा व ान का उपकारक है
। दूसर ओर भाषा व ान भी सा ह य का उपकार है । सा ह य के अनेक अ प ट और दुब ध
श द का इ तहास भाषा व ान क मदद बना नह ं ात कया जा सकता । वेद के हजार
श द का अथ नणय भाषा व ान क सहायता से ह हो पाया है । भाषा व ान वारा ह एक
भाषा का व वान अनेक भाषाओं से जु ड कर व भ न भाषाओं के सा ह य क जानकार ा त
करता है और बहु भाषा व बन जाता है । तु लना मक भाषा व ान का आधार भी वभ न
भाषाओं का सा ह य ह है ।
104
व तु बताते हु ए वाणी को उसका य त और वैयि तक प कहा । बोआज ने भाषा को सं ेषण
के मा यम से कह ं बढ़कर माना और समाज तथा सं कृ त क संवा हका बतलाया । भारत म
भी समाज भाषा व ान उपे त नह ं रहा । डॉ. राम वलास शमा ने भी 'भाषा और समाज' थ
ं
लखकर इस े को समृ कया ।
105
अनुवाद और श द व ान
कसी भाषा क व नय के साथक समु चय श द कहलाते ह । भाषा के ल याथ के
सं े ण और अथ वहन के काय को श द ह करते ह अनुवाद मू लत: एक भाषा के शाि दक
तीक का दूसर भाषा के शाि दक तीक म त थापन है । श द के अ मधा ल णा अथवा
यंजना भेद और याकर णक को ट को दे खकर ह श द का अथ नधारण होता है । सह
अनुवाद के लए श द के सह और सट क प क जानकार अप रहाय है । पा रभा षक श द के
अनुसार म भी श द व ान क जानकार से मदद मलती है, कसी भाषा के श द भंडार म
बो लय के श द को चि हत करना और उनका साथक अनुवाद करना भी श द व ान के ान
से ह संभव हो पाता है ।
अनुवाद और प व ान
क य का सं ेषण भाषा के प- व यास पर नभर होता है, इस लये अनुवादक को ोत
भाषा तथा ल य भाषा दोन ह प-रचना के नयम चूँ क तमाम याकर णक को टय पर लागू
होते ह इस लये इनका े बहु त ह व तृत है सं ा तथा सवनाम के कारक य प क रचना,
सं ा, सवनाम तथा व लेषण तथा या के लंग-वचन आ द का बोधन, कृ द त क रचना,
उपसग यय आ द के योग से श द के याकर णक को ट म प रवतन, समास रचना आ द
सभी याओं एवं त याओं के अ ययन के उपरांत ह कोई े ठ अनुवादक बन सकता है ।
अनुवाद और वा य व ान
वा य अथ सं ेषण क इकाई है िजसक रचना प ब श द के संयोजन से होती है,
वा य व ान के अंतगत सामा य प से भी और भाषा वशेष के संद म भी वा य रचना
और इसके व भ न प का अ ययन- व लेषण कया जाता है । वा य व ान क जानकार
भाषा के सह व प को समझने के लए बहु त ज र है य क भ न- भ न अथ के सं ेषण
के लये भाषा म भ न- भ न कार क वा य रचनाओं का योग कया जाता है । वा य
संरचनाओं के सू म अंतर को समझने के लए वा य व यास का गहन अ ययन ज र ह
कसी भी भाषा के वा य म पद के याकर णक संबध
ं तय रहते ह बना इसे समझे ठ क-ठ क
भाषांतरण लगभग असंभव ह है ।
अनुवाद और अथ व ान
भाषा का काय अथ सं ेषण है । अथ व ान म भाषा के अथ प का ह अ ययन
कया जाता है । कभी-कभी श द का सीधा अथ अनुवाद को गलत कर दे ता है । संदभ के
अनुसार इसके ल णा मक और यंजना मक अथ को यान म रखकर ह सह अनुवाद कया
जा सकता है । उदाहरण के लए अं ेजी के एक श द के कई अथ होते ह य द अनुवादक श द
कोष से अ भधा मक अथ लेकर अनुवाद कर दे और अथ संदभ को यान म न रखे तो अथ
का अनथ भी हो जाता है । खासकर लोकोि तय मु हावर और सू ि त के अनुवाद म अथ
व ान क मदद बना सफलता ा त करना मु ि कल है ।
अनुवाद और शैल व ान
शैल का संबध
ं मूल प म भाषा से है इस लए भाषा का हर तर इसके नधारण म
सहायक हो सकता है । संदभ के अनुसार या वशेष संदभ म, वशेष व नय , श द , प , या
106
वा य व यास का योग यहाँ तक क लप क व च ताएँ भी क य को तु त करने क
शैल को प दे सकती है । उदाहरण के लये रे णु क रचनाओं का अनुवाद य द सीधे-सपाट
वणा मक ग य म कर दया जाए तो केवल रचनाओं म व णत घटनाओं के सामा य सू ह
मल पायगे उसका संपण
ू संि ल ट भाव नह ं आ पायेगा । ेमचंद क रचनाएं य द ि ल ट
सं कृ त म भांषात रत क गई तो न केवल लेखक क शैल क सादगी खं डत होगी बि क इस
शैल से अ भ हत क य भी खं डत हो जायेगा । शैल का तमाम यापार भाषा से जु ड़ा है और
अनुवाद भी भा षक या ह है । अनुवाद का े बहु त व तृत है और जो कु छ भी अनू दत
होता है उसक अपनी शैल होती ह इस लये अनुवादक को शैल व ान के नयम तथा
व धय क ठ क-ठ क जानकार होनी चा हए िजससे वह ोत भाषा क साम ी के अथ को
सह -सह समझ कर संगतयुि तय के मा यम से उस अथ को ल य भाषा म यथा संभव पूव
प से सं े षत कर सके ।
107
इस कार भाषा व ान और इ तहास को घ न ट माना जा सकता है । ये दोन एक
दूसरे के सहायक ह । कह भाषा व ान क मदद से ाचीन अ भलेख , शलालेख , स क पर
अं कत भाषाओं आ द का अ ययन करते हु ए पुराने इ तहास के अ ात और अंधेरे म डू बे प
को उजागर कया जा सकता है तो कह ं इ तहास क मदद से श द के अथ को सु नि चत
कया जाता है । ऐ तहा सक भाषा व ान का आधार ह इ तहास है । श द और अथ कस
कार बदले यह इ तहास वारा ह ात कया जाता है । इसी तरह भाषाओं के ऐ तहा सक या
पा रवा रक वग करण म भी इ तहास का मह वपूण योगदान है इ तहास के तीन प
राजनी तक, धा मक तथा सामािजक से भाषा व ान के संबध
ं को न न ल खत प म दखाया
जा सकता है:-
सामािजक इ तहास : सामािजक इ तहास के वारा ह यह त य जाना जाता है क
समाज म च लत परं पराएँ कस कार भाषा को भा वत करती ह । भारतीय भाषाओं म नाते-
र ते मू लक श दावल एवं उन वाचक सं ाओं का िजतना योग मलता है उतना व व क
अ य भाषाओं म नह ं अं ेजी म जहाँ दर इन ल और स टर इन ला तथा अंकल-आ ट म
ं समा हत हो जाते ह वहाँ ह द म साला, जीजा, साल , भाभी, मामा, चाचा, चाची,
अनेक संबध
बुआ , ताई, ननद आ द अलग अलग श द मलते ह । भारतीय समाज म र त के मह व का
तपादन इन अलग अलग श द से हो जाता है ।
राजनी तक इ तहास : इ तहास के इस कार से ात होता है क कस कार शासक
क भाषा शा सत दे श म चा रत हो जाती ह भारतीय भाषाओं खासकर ह द के श द
संसाधन पर यान द तो प ट होगा अरबी, फारसी, अं ेजी, तु क , च, और पुतगाल
श द का आगमन शासन प रवतन के साथ साथ हु आ है । पूव वीप समू ह म
सं कृ त के श द क अ धकता का कारण इसके ज रए समझा जा सकता है ।
धा मक इ तहास : इ तहास का यह भेद धम या स दाय पर आधा रत भाषा संबध
ं ी
अनेक सम याओं का उ तर दे ता है । उदाहरण के लए भारत म ह द , उदू सम या,
ह दुओं क भाषा म सं कृ त श द क बहु लता और मुसलमान क भाषा म अरबी
फारसी के श द क अ धकता को लया जा सकता ह भाषा व ान के अ ययन से ह
धम के ाचीन प को जाना जा सकता है । डॉ. भोलानाथ तवार के अनुसार ''धा मक
इ तहास ह इस न का उ तर दे ता है क य बंगाल तथा मराठ म जभाषा म भी
कु छ प आ जाते ह या एक ह गांव म रहने वाले ह दू क भाषा य अपे ाकृ त
अ धक सं कृ त म त है तो मु सलमान क भाषा अ धक अरबी. फारसी म त । धम
के कारण ह बहु त सी बो लयां अ य क तु लना म मह वपूण होकर भाषा बन जाती
है । म ययुग म जभाषा और अवधी के मह व का कारण हम धा मक इ तहास म ह
मलता है । दूसर और धम के ाचीन प क बहु त सी गुि थयाँ भाषा व ान से
सु लझ जाती ह । एक दे श के दूसरे दे श पर धा मक भाव के अ ययन म धम से
स ब श द का अ ययन बड़ी सहायता करता है । इस कार दोन एक दूसरे से
सहायता लेते ह ।''
108
5.2.8 भाषा व ान और भू गोल
109
5.2.9 भाषा व ान और शर र व ान
110
5.2.10 भाषा व ान और सूचना तकनीक
111
नए अनुसंधान संदभ पर काश डालता है और भाषा योग संबध
ं ी जानका रय को पहले क
तु लना म अ धक त यपरक और व वसनीय ढं ग से तु त करता है िजसे परं परागत ि टकोण
से उजागर करना संभव नह ं था । क यूटर भाषा व ान के मा यम से अनुसध
ं ान क कृ त
एवं उ े य के आधार पर सू म याकर णक नयम बनाए जा सकते ह िजनका न केवल श द
तर पर अ पतु पम तर पर व लेषण भी संभव है ।
5.4 सारांश
इस इकाई म आपने भाषा व ान एवं अ य कई व ान के पार प रक संबध
ं के बारे
म पढ़ा िजससे यह बात आपके सामने प ट हो गई होगी क संसार का सारा ान भाषा म ह
नब है । ान क सम त शाखाएं कसी न कसी प म भाषा व ान से जु ड़ी हु ई ह । ान
वयं म अखंड है कं तु अ ययन क सु वधा के लए उसे खंड खंड प म पढ़ा और समझा
112
जाता है । भाषा के मा यम से श द माण के प म ान हम तक पहु ँ चता है । य तो ान
क सभी शाखाओं से भाषा व ान का संबध
ं कसी न कसी प म होती ह है क तु श द
सीमा के कारण आपके अ ययन के लए मु खतम को ह तु त कया गया है । याकरण,
दशन, सा ह य, अनुवाद , इ तहास, भू गोल, समाजशा , मनो व ान, शर र व ान, और सू चना
तकनीक से भाषा व ान कन प म जु ड़ा है कस कार वह कभी सहायक है तो कभी संपरू क
और कस कार अ य व ान शाखाएं भाषा व ान से मदद ले अपने अ ययन को सफलता के
आयाम तक ले जाती ह इस इकाई को पढने के बाद आप नःसंदेह भाषा व ान एवं अ य
शा के संबध
ं को प टत: समझ गए ह गे ।
5.5 अ यासाथ न
अ. द घ तर न
1. भाषा व ान का अथ बताते हु ए इसका अनुवाद व ान से संबध
ं प ट
क िजए।
2. भाषा व ान को इ तहास और भू गोल से कस कार संब कर सकते ह ।
3. भाषा व ान और सूचना तकनीक का संबध
ं तय क िजए ।
4. क ह दो समाज व ान से भाषा व ान का संबध
ं बताइए ।
5. भाषा व ान और याकरण के संबध
ं म समता एवं अंतर को चि नत क िजए।
व. लघु तर य न
1. भाषा वीप से या ता पय है?
2. इ तहास और भाषा व ान एक दूसरे के पूरक ह - कथन से अपनी सहम त
ल खए ।
3. समाज भाषा व ान के अ ययन का े बताइए ।
4. दशन और भाषा व ान म ं है?
या संबध
5. भाषा व ान और मनो व ान या पर पर सहयोगी ह?
स. र त थान क पू त क िजए
1. रचना प के ान के लए............................ क बनावट का ान ज र है
।
2. मु ख सु ख क वृ त क कृ त पर.......................... ह काश डालता है ।
3. भाषाओं के पा रवा रक वग करण म........................ का मह वपूण योगदान
है ।
4. भाषा व ान के अ ययन से धम के...................... प को जाना जा सकता
है ।
5. कसी भाषा का....................... भौगो लक प रि थ तय पर नभर करता है ।
द. सह / गलत पर नशान लगाइए
1. भाषा भू गोल भाषा व ान क अधु नातन शाखा है । सह / गलत
113
2. हर भाषा क व न यव था एकसी होती है । सह / गलत
3. क य का सं ेषण भाषा के प वधान पर टका होता है । सह / गलत
4. याकरण एकका लक व ान है । सह / गलत
5. भाषा व ान का यावहा रक प है । अनु यु त भाषा व ान । सह / गलत
5.6 संदभ थ
1. डॉ. क पल दे व ववेद ; भाषा व ान एवं भाषा शा
2. तेजपाल चौधर ; भाषा और भाषा व ान
3. सं. राजमल वोरा; भाषा व ान
4. इ नू; भाषा व ान और ह द भाषा
5. डॉ. भोलानाथ तवार ; भाषा व ान
114
इकाई–6 भाषा व ान के अ ययन क भारतीय पर परा
इकाई क परे खा
6.0 उ े य
6.1 तावना
6.2 भाषा वै ा नक अ ययन
6.3 सं कृ त भाषा म भाषा वै ा नक अ ययन
6.3.1 ा मण और आर यक थ
ं
6.3.2 पदपाठ
6.3.3 ा तशा य
6.3.4 श ा
6.3.5 नघ टु
6.3.6 आचाय या क- न त
6.3.7 आ पश ल एवं काशकृ न
6.3.8 ऐ स दाय
6.3.9 पा ण न
6.3.10 वा तक
6.3.11 पतंज ल
6.3.12 ट काकार एवं कौमु द कार
6.3.12.1 मु ख ट काकार
6.3.12.2 मु ख कौमु द कार
6.4 सं कृ त एवं जन भाषा म भाषा वै ा नक अ ययन
6.4.1 च शाखा
6.4.2 जैने शाखा,
6.4.3 शाकटायन शाखा
6.4.4 हे मच शाखा
6.4.5 कात शाखा
6.4.6 सार वत शाखा
6.4.7 बोपदे व शाखा
6.5.8 पा ल
6.5.9 ाकृ त
6.5 आधु नक भाषा वै ा नक अ ययन
6.5.1 कॉडवेल
6.5.2 केलॉग
115
6.5.3 जॉन बी स
6.5.4 हॉनले
6.5.5 यसन
6.5.6 डी. प
6.5.7 डॉ. सर रामकृ ण गोपाल भ डारकर
6.5.8 रे फ लले टनर
6.5.9 जू ल लॉक
6.5.10 ओझा गौर शंकर ह राचंद
6.5.11 कामता साद गु
6.6 वचार संदभ / श दावल
6.7 सारांश
6.8 अ यासाथ न
6.9 संदभ थ
6.0 उ े य
तु त इकाई के अ ययन के प चात आप-
भाषा वै ा नक अ ययन के मह व को समझ सकगे ।
भाषा-अ ययन संबध
ं ी सं कृ त एवं ाकृ त भाषा म सु ढ़ भारतीय पर परा को जान
पायगे ।
भारतीय एवं पि चमी व वान वारा आधु नक काल म हु ए भारतीय आय भाषाओं के
भाषा-वै ा नक अ ययन का प रचय ा त कर सकगे ।
6.1 तावना
भाषा भाव और वचार के आदान- दान का सबसे सबल, स म साधन है । संसार म
भाषा का आ वभाव मानव िजतना ह पुराना है । हाँ यह बताना ज र है क मानव समाज म
काफ प र म एवं साधना के बाद मानव भाषा न मत हु ई होगी । दु नया क सभी खोज म
सबसे बड़ी खोज मानव भाषा है । मानव भाषा तीका मक मानव के उ चारण अवयव से
उ च रत या ि छक यव था है । मानव भाषा प रवतनशील है । मानव क च तवृि तय के
प रवतन का भाव समाज पर और समाज के वभ न े म बा य प रवतन का भाव
मानव च त पर पड़ता है । भाषा के मा यम से इन दोन प रवतन को समझा, जाना जा
सकता है, वह ं दूसर और इन प रवतन म भाषा भी समाज क आव यकतानुसार अपना प
बदलती है । मानव समाज म समय-समय पर ाचीन काल से भाषा क यव था, भाषा क
कृ त तथा उसक यव था के वभ न त व को समझने का उ यम - भाषा वै ा नक
अ ययन के प म हु आ है । भारत म यह पर परा अ य त सश त, सु ढ़ प म ा त होती
116
है । तु त इकाई म भाषा-वै ा नक अ ययन क भारतीय पर परा पर काश डालने का यास
कया गया है ।
118
का यायन, पतंज ल, भ ोिज द त, भतृह र , वर च, ेमचंदक , और माक डेय वशेष
स माननीय ह ।
पा णनी को सं कृ त याकरण का आ द गु माना जाता है । उ ह ने सू शैल म
अ टा यायी क रचना क , िजसम वैयाकर णक प रपूणता है । इस थ
ं म व न, पद, कृ द त,
प त, सि ध, समास और लंगानुशासन आ द वषय का सू म व लेषण कया गया है ।
पा ण न का सबसे मह वपूण अवदान है- श द नमाण या िजसके ज रये भारतीय भाषाएँ
हजार वष से अपनी श द संपदा को समृ से समृ तम बनाती आई ह । का यायन सं कृ त
याकरण म वा तककार के नाम से जाने जाते ह । उ ह ने लगभग 1500 वा तक लखे जो
कह ं उनक अधू र बात को पूरा करते ह तो कह पा ण न के सू क या या करते हु ए उ ह
और अ धक प ट करते ह । पतंज ल सू के भा यकार के प म सु यात ह उनके वारा
र चत थ
ं महाभा य को याकरण का गंभीर और ौढ़ थ
ं माना जाता है ।
भ ोिज द त ने सं कृ त याकरण के स ांत को सरल शैल म तु त कया है ।
इनका वशेष काय है अ टा यायी के सू को वषयानुसार वै ा नक म दे ना, सू को प ट
करना और यथा थान नयम का उदाहरण दे ना । इनक रचना स ांत कौमुद ो सं कृ त
याकरण का वेश हार माना जाता है । मौ लक वैयाकरण म भतृह र अ ग य ह । भतृह र ने
वा य को भाषा क एकमा साथक इकाई माना है । आज आधु नक भाषा वै ा नक िजस
वा यवाद को भाषा चंतन क मह तम उपलि ध मानते ह, वह वष पहले भतृह र के वा यपद य
म बडे ह सु दर तर के से व ले षत है ।
वर च, हे मच सू र, माक डेय और पु षो तम ाकृ त के याकरणाचाय ह । वर च
का ाकृ त काश हे मचं सू र का स हे म श दानुशासन, माक डेय का ाकृ त सव व और
पु षो तम का ाकृ तानुशासन, म ययुगीन भाषाओं के उ ले य थ
ं ह । ाकृ त के इन थ
ं से
जहां एक ओर ाकृ त के व प को समझने म सहायता मलती है वह ं उनके े ीय भेद और
उपभेद क ामा णक जानकार भी ा त होती है ।
इस इकाई म भाषा व ान के भारतीय आचाय क एक ववर णका तु त क गई है
। िजससे आप यह समझ. सकगे क भाषा व ान एक यापक और गंभीर वषय है िजसे अपने
वतमान व प तक पहु ंचने म स दयां लगी ह और पा ण न, पतंज ल से लेकर स लूम,
कशोर दास वाजपेयी और भोलानाथ तवार तक अनेक मनी षय ने इसे अपने ान ओर
चंतन से समृ बनाया ह । सं कृ त और जनभाषाओं के वैयाकरण और उनके भाषा- याकरण
संबध
ं ी काय के अ ययन से आपके सामने यह बात प ट हो जाएगी क भारतीय आचाय ने
ह भाषा वै ा नक अ ययन क आधार शला रखी ओर एक नई राह भी श त क ।
119
से मानना अनु चत भी नह ं होगा । यावहा रक प से भाषा संबध
ं ी काय क शु आत ा मण
ं से होती है अत: उसी
थ म म यहाँ अ ययन कया जा रहा है ।
6.3.1 ा मण और आर यक थ
ं
6.3.2 पदपाठ
6.3.3 ा तशा य
6.3.4 श ा
व नय का सै ाि तक ववेचन श ा थ
ं म हु आ है । आज लगभग 40 श ा थ
ं
उपल ध ह जैसे पा णनीय- श ा, नारद श ा, भार वाज श ा, या व कय श ा, वर- यंजन
श ा आद । श ा थ
ं के रचनाकाल के वषय म कहा जाता है क ये ा तशा य के बाद के
ह । वन व प, व नय का वग करण, सु र, अ र आ द पर उन थ
ं म वचार हु आ है ।
120
6.3.5 नघ टु
अथ क ि ट से वै दक श द के सं ह का जो थ
ं बना उसे नघ टु कहा गया ।
जनभाषा के बढ़ते भाव से वै दक भाषा के अथ को सु र त बनाये रखने तथा लोग तक
पहु ंचाने के लए वै दक कोश बनाया गया वह ं नघ टु है । उस: समय कई नघ टु बने पर
आज एक ह उपल ध है । मैकडोनेल ने या क के समय पांच नघ टु होने क बात क है ।
वैसे तो वै दक श द सं ह को नघ टु कहा जाता था पर तु बात म इसी म म 'अमरकोश’
‘वैजयनती कोश' जैसे लौ कक कोश को भी नघ टु कहा जाने लगा । आज उपल ध नघ टु म
पांच अ याय ह । िजन म थम तीन अ याय म श द को पयाय म म रखा गया है । चौथे
अ याय म वेद के कु छ ि ल ट श द को रखा गया है । पांचव अ याय म वै दक दे वताओं के
नाम का उ लेख है ।
6.3.6 आचाय या क- न त
121
8. न तकार सभी श द को कु छ मू ल पर आधा रत होने क बात कहते ह
प रणाम व प बाद म पा ण न जैसे व वान धातु स ा त का तपादन कर सकने म
स म होते ह ।
9. भाषा क उ पि त के साथ वभाषाओं क उ पि त क बात करते ह ।
10. नाम, आ यात. उपसग, नपात का व तृत ववेचन मलता है । सं ा और या तथा
कृ द त ओर त त के यय भेद का भी कु छ-कु छ उ लेख मलता है ।
11. पूववत थ
ं से अ धक वै ा नकता एवं शु ता तथा वरोधी मत के खंडन म ता ककता
दे खने को मलती है ।
आचाय या क के भाषा संबध
ं ी काय क वै ा नकता और अवै ा नकता को लेकर
व वान म अलग अलग मत ह पर तु एक सच बात यह है क िजस समय आचाय या क ने
ं ी काय कया वह समय आज के जैसा नह ं था अत: आज के जैसी वै ा नकता क
भाषा संबध
अपे ा रखना उ चत भी नह ं है अत: यह बात सच है क उनके काय को पूणत: अवै ा नक
नह ं कहा जा सकता ।
6.3.8 ऐ स दाय
6.3.9 पा ण न
122
ह और येक पाद म अनेक सू ह । पूर पु तक 14 सू पर आधा रत है-अइउण,् ऋलृक,
ऐऔंच,् हयवरट, लण,् अमडणनम ् झभ , घढभष, जबगउदश, खफछठथचटतव, कपय शषसर,
हल इ ह माहे वर सू भी कहा जाता है । इनम याहार गण करके बात सं ेप म कहने क
सू प त का योग कया गया है । पा ण न क अ टा यायी क कु छ वशेषताएँ है जो इस
कार ह-
1. लौ कक और वै दक सं कृ त का तु लना मक अ ययन कया गया है ।
2. स ा मक प त से सट क, ता कक एवं वै ा नक ढं ग से काय कया गया है प रणाम
व प आज इतने बरस के बाद भी उसका थान अ य कोई थ
ं नह ं ले पाया है ।
3. व न श द, प, वा यरचना तथा अथ जैसे भाषा यव था के सम त तर का
यवि थत ववेचन कया गया है ।
4. चौदह माहे वर सू के आधार पर सं त एवं सट क ढं ग से लगभग चार हजार सू
क रचना क है । इन सू म भाषा के सभी तर का व तृत व लेषण दया गया है
। इस काय क एक अ य वशेषता उसक प टता है ।
5. भाषा म वा य क मह ता को वीकार करते हु ए पा ण न ने यह मा णत कया है क
भाषा का आरं भ वा य से हु आ है ।
6. भाषा के मानक प के संदभ म सामािजक एवं भौगो लक े को याकरण के
अ तगत समा व ट करने वाले याकरणाचाय के प म पा ण न को याद कया जाता है
।
7. भाषा म ा त सभी श द का मू ल धातु है, पा ण न ने ऐसा स कया । धातु से कोई
या या भाव कट होता है । पा ण न ने उपसग, यय आ द को जोड़कर श द एवं
प रचना क बात क है ।
8. भाषा के श द को सु ब त एवं त त दो वग म वग कृ त कया है । व व क सभी
भाषाओं म भाषा शाि य के वारा यु त श द के वग करण म यह वग करण आज
भी अ धक वै ा नक एवं सट क ि ट से वीकृ त है ।
पा ण न ने 'धातु पाठ' एवं 'गणपाठ' तथा 'उणा दसू ' आ द अ य थ
ं क रचना भी क
थी । पा ण न अपने भाषा स ब धी काय के लये व व के भाषा एवं याकरण जगत ् म मील
का. प थर सा बत हु ए ह ।
6.3.10 वा तक
123
अ वीकृ त कया । इसके बावजू द अ टा यायी जैसी रचना म अशु यां खोजने का वशेष उप म
कया यह सामा य बात नह ं है ।
6.3.11 पतंज ल
ट काकार एवं कौमु द कार : पा ण न एवं पतंज ल के बाद ऐसा महान याकरणाचाय नह ं
हु आ जो उसक भां त मौ लक एवं वै ा नक ढं ग से उनके जैसा काय कर सके । अत:
उनक (पा ण न क ) अ टा यायी पर समय समय पर ट काएँ एवं अन तर कौमु दयाँ लखी गई
समय क आव यकता को यान म रखते हु ए ट काएँ लखी गई । िजनम से मु ख न नानुसार
ह-
6.3.12.1 मु ख ट काकार
124
6.3.12.2 मु ख कौमु द कार
याकरण पर बहु त अ धक थ
ं का नमाण हो चु का था अत: बोधग यता क ि ट से
सरल ढं ग से तु त के लए कौमु द - क रचना हु ई । ट काओं के े म अ धक काम हो
चु का था । अत: कौमु द के मा यम से व वान ने भाषा संबध
ं ी काय करना ठ क समझा । एक
मह वपूण बात यह भी है क वदे शी शासन के कारण राजनी तक, सामािजक एवं अ य कारण
से भाषा का प प रव तत हो रहा था । ऐसे म भाषा को सु र ा दान करने के लए सरल
तर के से कौमु द थ
ं का सृजन हु आ । धान कौमु दयाँ एवं कौमु द कार न नानुसार ह-
वमल सर वती : ‘ पमाला’ नाम से अ टा यायी के सू पर 1 4वीं सद म यह काय हु आ है
। याहार सं ा और प रभाषा के सू के प चात ् वर, कृ त भाव, यंजन और नसग इन
चार भाग म सू ं ी काय हु आ है । सु ब त,
संबध ी यय एवं कारक को छ: भाग म थान
दया है । प त और समास करण को अंत म रखा है । आ यान करण व तृत है ।
येक लकार पर अलग से वचार कया गया है । लकाराथ-माला के प म परश ट क
तु त अ त म है । सरल, सु चपूण शैल के कारण यह थ
ं अ धक लोक य भी बना ।
रामच : ‘ या कौमु द ’ के नाम से 15वीं सद म द णी ा मण रामच वारा न मत इस
कौमु द क एक वशेषता यह है क इस पर कई ट काएँ लखी गई ह ।
भ ोिज द त : कौमुद कार म अ म पंि त का नाम है भ ोिज द त । सं कृ त याकरण के
अ येता इसे अव य पढ़ते-पढ़ाते ह । ' स ांत कौमु द क वशेषता यह है क इसके आगे लोग
अ टा यायी को भी भूल जाते ह । स ांत कौमु द पर अनेक ट काएँ लखी गयी; पर सबसे
दलच प बात यह है क वयं भ ािज ने बाल मनोरमा एवं ' ौढ़ मनोरमा' नामक ट काएँ लखी ।
रामच क कौमु द एवं हेमच के श दानुशासन को आधार बनाकर स ांत कौमु द क रचना
हु ई है ।नागोजी, ह र द त जैसे खर व वान ने इस पर अपनी ट काएँ लखी ह तो खंडन
उ े य से पं डतराज जग नाथ ने ‘मनोरमा कुचमदन' नामक मनोरं जन पूण पु तक लखी ।
वरदराज : अठारवीं सद म स ांत कौमु द के लघु, म य और सार नामक तीन सं त सं करण
लखने वाले वरदराज सं कृ त अ येताओं के बीच अ धक लोक य रहे ।
6.4.2 चा शाखा
125
घटाकर 13 कर दये- जैसे 'हयवरट' और ‘लण’ को ‘हयवरटलण’ एक कर दया । ठ क वैसे ह
कु छ याहार को नकालकर नये जोड़कर सू क सं या लगभग 3100 कर द । च गो मन
ने अपने मौ लक 35 सू दये ह । अ याय क सं या छ: रखी ह । बौ धम होने के कारण
इस शाखा का चार लंका और त बत म काफ हु आ है । च गो मन ने उणा दसू , धातु पाठ
गणपाठ आ द क रचना भी क है ।
6.4.4 हे मच शाखा
126
6.4.7 बोपदे व शाखा
6.4.8 पा ल
पा ल भाषा म याकरण थ
ं से स बि धत तीन शाखाएँ मलती ह-क चायन,
मो गलान तथा अ गवंस । सं कृ त से भा वत ये थ
ं वषय क ि ट से इतने सश त नह ं है
। पा ल भाषा म भारत, मदे श एवं लंका तीन म याकरण थ
ं क रचनाएं हु ई ह ।
का यायन या क चायन, भो गलान और अ गवंस तीन सं कृ त के भाव से मु त नह ं
क तु तपा य क व न से अधू रे ह । इसी म म आपक - जानकार के लए तीन का
सं त प रचय अपे त है । क चायन या का यायन का रचनाकाल 8वीं या 9वीं सद के बीच
का कोई समय है । कु छ लोग इ ह ह सं कृ त वैयाकरण का यायन समझने के म म पड़
जाते ह अत: इनका पा ल नाम क चायन ह लोक य है । इ ह ने क चायन याकरण लखा
ले कन उसम पा ल और सं कृ त के ऐ तहा सक संबध
ं पर नजर नह ं डाल ं इनके याकरण पर
कई ट काएं रची गई िजनम स मल वमलमु न क ट का यास को ।
यो गलान का रचनाकाल 12वीं सद माना गया है । ये यो गलायन नाम से भी जाते ह
। इनके वारा र चत ट का भी खु द इ ह ने यो गलायन पं चका के नाम से लखी । इनके थ
ं
क कु छ सीमाएँ है फर भी यह का चायन से मा णक और पूण है । अपने थ
ं क रचना के
लए इ ह ने पा ण न एवं च गो मन के याकरण को आधार बनाया है । कु छ अ स पा ल
याकरण ग थ से भी इ ह ने मदद ल है । इनके याकरण पर लखी गई ट काओं म
पयदि सन क पादसाधन और राहु ल क योगग लायन पं चका पद य स ह ।
अ गवंस का समय 12वीं सद है । ये मदे श के रहने वाले थे । इ ह ने स नी त
नामक याकरण थ
ं लखा । अ गवंस क शाखा का चार- सार लंका तक हु आ । क चायन
से गंभीर प म भा वत होने के कारण वैयाकरणाचाय इनक शाखा को वतं न मान
क चायन क ह अनुगामी मान उ ह ं के भीतर थान दे ते ह ।
6.4.9 ाकृ त
127
ची य शाखा का स थ
ं ‘हे मच श दानुशासन' है िजसके रच यता आचाय
हे मच ह । सात अ याय म सं कृ त याकरण क चचा है । आठव अ याय म व तार से
ाकृ त पर वचार कया गया है । पुरानी शैल पर हे मच ने अपने सू का गठन कया है ।
ा य शाखा:
ाकृ त भाषा का सबसे पुराना याकरण ं वर च कृ त ' ाकृ त
थ काश’ है । वर च
इस शाखा के सु स आचाय ह । थम नौ अ याय म सं कृ त क तज पर मराठ ाकृ त क
व तृत चचा है । 10, 11, व 12 व अ याय म मश: पैशाची, मागधी, शौरसेनी का वणन है
। तीसर सद म ल खत ' ाकृ त मंजर ' का यायन क सबसे ाचीन ट का है । इसके अलावा
अ य रचनाओं म लंके वर क ‘ ाकृ त कामधेन'ु वसंतराज क ' ाकृ त संजीवनी’ तथा उ ड़सा
नवासी माकडे य क ‘ ाकृ त सव व’ है ।
स वैयाकरण के अलावा अ य े के व वान , चंतक , मीमांसक , सा ह य
र सक ने भाषा संबध
ं ी अपना अ ययन तु त कया है । उदाहरण के प म भाषा के अथ के
संबध
ं म मनोवै ा नक प का अ ययन कु छ नैया यक ने तु त कया । जगद श तकालंकार
का श द का शका थ
ं इस वषय म उ लेखनीय है । तो दूसर ओर भारतीय का य शा क
समृ परं परा म आचाय आन दवधन, आचाय व वनाथ, आचाय म मट आद कई
सा ह यशा ी-आचाय ने सा ह य और भाषा के अ तःसबंध का सु चपूण प त से उ घाटन
कया । कु छ मीमांसक ने श द, वा य, श दाथ आ द पर गहन अ ययन करके कु छ न कष
तु त कये ह । वेदाि तय ने अपनी रचनाओं म भाषा वषयक अपना ि टकोण तु त कया
है ।
न कषत: कह सकते ह क सं कृ त, पा ल, ाकृ त एवं अप श
ं भाषाओं म भारत म
कई ऐसे तभा के धनी याकरण वशेष हु ए िज ह ने अपनी बौ क तभा से भाषा यव था
संबध
ं ी अपना व श ट अ ययन तु त कया । वैसे तो सभी का अपना मह व है ले कन
पा ण न जैसे वैयाकरण ने व व के सामने भारत के भाषा संबध
ं ी अ ययन क मह ता एवं
वशेषता को अपनी वै ा नक एवं ता कक ि ट से तु त कया िजसे पहले भी वीकारा गया
और आज भी उसे अ धक आदर के साथ याद और वीकार कया जाता है ।
6.5.1 कॉडवेल
128
6.5.2 केलॉग
6.5.3 जॉन बी स
6.5.4 हॉनले
129
क भारतीय भाषाओं का इस वदे शी व वान ने कतनी लगन और गहराई से अ ययन कया
है।
6.5.5 यसन
6.5.6 डॉ. प
130
भाषाओं म पाये जाने वाले ाचीन तथा नवीन प का ववेचन, ाचीन म य तथा आधु नक
आय भाषाओं का संबध
ं आ द का व लेषण कया गया । आधु नक भारतीय भाषावै ा नक म
भंडारकर का नाम मील के प थर के समान है ।
6.5.9 जू ल लॉक
केलॉग ने ह द याकरण का थम थ
ं अव य लखा पर एक भारतीय वारा ह द
भाषा का थम याकरण थ
ं लखने का ेय कामता साद गु को जाता है । मूलत: ये
सं कृ त के व वान ् थे ह द भाषा का अ ययन- व लेषण उनका काय े रहा । ह द भाषा
का अ य त गहराई से व लेषण उनक पु तक ' ह द - याकरण’ म दे खने को मलता है ।
131
3. वा तक - पा ण न के अ टा यायी के पूरक थ
ं । अ टा यायी
म ल खत सह गलत के व लेषण थ
ं ।
4. ताि वक - ं ी, वा त वक ।
त व अथवा मूल सं बध
5. यु पि त - उ गम थान, श द का वह मूल प िजससे वह
नकला या बना हो ।
6. आधार शला - नींव या बु नयाद
7. मील का प थर - रा त पर दूर नापने के लए लगाये गये सं या
अं कत प थर। भाषा म कसी यि त अथवा उसके
काय क े ठता सू चक मुहावरे के प म यु त ।
8. न त - नघ टु (वै दक कोश) म संक लत येक श द क
बनावट और उससे न प न अथ पर वचार करने
वाला थ
ं ।
9. या ि छक - जैसी इ छा हो, या माना हु आ
10. तज - धु न, लय, या माना हु आ
11. बोधग यता - सरलता, आसानी से समझ म आने लायक
12. कण - करण, अ याय
13. श दानुशासन - श द पर नयं ण रखना, याकरण
14. जनभाषा - मानक भाषा के समाना तर जनता के बीच बोल
जाने वाल लोक य भाषा जैसे सं कृ त के समय
पा ल, ाकृ त और अप ंश थी ।
15. पदपाठ - वै दक सं हताओं को पद प म सुर त रखने का
उप म
6.7 सारांश
इस कार दे खा जा सकता है क भाषा संबध
ं ी भारतीय पर परा वै दककाल से लेकर
उ नीसवी सद तक और उसी के वक सत प म आज भी है । भाषा व ान संबध
ं ी भारतीय
परं परा को एक तरफ ाचीन सं कृ त भाषा म हु ए काय ने सु ढ़ आधार दान कया ा मण-
आर यक ं तक तो ठ क है, पर तु पदपाठ,
थ ा तशा य, श ा जैसे अ ययन म आधु नक
काल जैसी सु वधाएँ उपल ध न होने के बावजू द व न, प संबध
ं ी भाषा यव था का एक
अनुशासन के साथ, एक व श ट प त के साथ अ ययन हु आ िजसका आज भी कोई सानी
नह ं है । तो दूसर ओर सं कृ त परं परा म आचाय या क जैसे भाषा के समथ व वान ने श द
के अथ तथा यु पि त संबध
ं ी मह वपूण काय को अंजाम दया । श द के अथ क खोज,
उसक सु र ा, कोश नमाण क शु आत वह ं से मानी जाती है । उनका नघ टु श दकोश का
पयाय बन गया तो न त भाषा म श द मू ल तक जाकर अथ क प टता करने क वध
एवं या क मसाल बना । धातु स ांत क शु आत या बीज इसे कहा जा सकता है ।
132
केवल भारत म ह नह ं व व म उस समय भी और आज भी िजसका लोहा ले सके ऐसा
ता कक, वै ा नक, सट क भाषा संबध
ं ी काय का भी कोई जवाब नह ं है । पा ण न क
अ टा यायी ने भारतीय भाषा व ान संबध
ं ी अ ययन को न केवल सु ढ़ पी ठका दान क वरन ्
भारत के भाषा व ान संबध
ं ी ान एवं काय को व व के सम उजागर कया दूसर ओर
अ टा यायी के उपरा त वैसा काय होने क गु ज
ं ाइश न रह पाने के कारण अ टा यायी के
स ांत को सरल, सु बोध बनाकर लोक भो य बनाने के म म ट का एवं कौमु द कार क
यवि थत, परं परा का सू पात हु आ िजसम भतृह र , क यट जैसे ट काकार तथा वमल सर वती,
रामच भ ािज द त जैसे स कौमु द कार मले । वा तक, ट काएँ, कौमु दय के मा यम
से भाषा- व ान संबध
ं ी भारतीय परं परा एक नयी ऊँचाई का पश करती है ।
भाषा प रवतनशील होती है, अत: वै दक, लौ कक सं कृ त के उपरा त जन भाषा जो
समाना तर प से चल रह थी । भाषा क ि ट से उनके बढ़ रहे अ तर को पाटने का काय
कु छ व वान ने ाकृ त भाषा म याकरण एवं भाषा संबध
ं ी काय करके कया । पा ण न से इतर
जो शाखा प म याकर णक या भाषा संबध
ं ी काय हु आ वह जनभाषा को यान म रखकर हु आ
है । च शाखा, जैने शाखा, हे मच शाखा, बोपदे व शाखा इसके अ छे उदाहरण है तो ा य-
ती य शाखा के प म भी ाकृ त म यह काय हु आ ।
भाषा व ान क भारतीय परं परा म जहाँ एक ओर सं कृ त, ाकृ त एवं अप श
ं म
र चत भाषा यव था संबध
ं ी अ ययन करने वाले थ
ं ह वह ं आधु नक काल म व व म हो रहे
प रवतन एवं पार प रक आदान दान के बढ़ते अवसर के कारण दु नया के भाषा- व ान के े
म हु ए और हो रहे काय से लोग एक दूसरे के प रचय म आये और भारत म वदे शी भाषा
वै ा नक से भारतीय व वान ने वदे शी भाषा वै ा नक काय -प तय से प र चत होकर
भारतीय आय भाषाओं का तु लना मक, वणना मक एवं सै ाि तक प त से काय कया । भारत
जैसे बहु भा षक एवं भौगो लक ि ट से भाषा वै व य रखने वाले दे श म भाषा व ान संबध
ं ी
े म काय क अनेक संभावनाएँ आधु नक काल म व भ न भाषा वै ा नक के वारा हु ए
काय से हमारे सामने आती है । कॉ डवेल, प, बी स, हानले, यसन, टनर, लॉक एक ओर
तो दूसर ओर सर रामकृ ण गोपाल भंडारकर, कामता साद गु , गौर शंकर ओझा, बाबूराम
स सेना, उदयनारायण तवार , पं. कशोर दास वाजपेयी, धीरे वमा, सु नी त कु मार चैटज ,
रवी नाथ ीवा तव, डी. भोलानाथ तवार आ द कई व वान क एक ल बी परं परा के प म
यह काय चलता रहा ।
कु ल मलाकर भारत म भाषा व ान क परं परा को - (1) शा ीय धारा जो भारतीय
अ ययन क सं कृ त भाषा म न मत थ
ं क धारा है तथा दूसर ांस, इं लै ड, जमनी,
अमे रका तथा (2) स जैसे वदे शी भाषा अ ययन प त से पु ट आधु नक भाषा व ान
अ ययन क परं परा ऐसे दो भाग म वभ त कर सकते ह पर यान रहे क ये दोन पर पर
पूरक बनकर भारतीय भाषा व ान के अ ययन को सु ढ़ आधार दान करती ह तथा भाषा
व ान संबध
ं ी अ ययन के नये आयाम को उजागर करती ह ।
133
6.8 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. सं कृ त भाषा म हु ए भाषा वै ा नक अ ययन का प रचय द िजये ।
2. आचाय या क एवं न त क वशेषताएं बतलाइये ।
3. मु न य कसे कहा जाता है? प ट करते हु ए मु न य के भाषा वै ा नक अ ययन
पर काश डा लये ।
4. पा ण न क अ टा यायी क वशेषताएं बतलाइये ।
5. शाखा सं दाय क व भ न शाखाओं को गनाइये ।
6. पा ल एवं ाकृ त भाषा म हु ए भाषा अ ययन संबध
ं ी काय का प रचय द िजये ।
7. वदे शी व वान वारा भारतीय आय भाषाओं पर कये गये काय पर काश डा लये
।
ख. लघू तर न
ट प णयाँ ल खए
1. ा तशा य 2. श ा
3. नघ टु और न त 4. अ टा यायी क वशेषताएं
5. ट काकार एवं कौमु द कार 6. वा तक
7. हॉनले 8. यसन
9. डॉ. सर रामकृ ण गोपाल भंडारकर
ग. एक या दो श द म उ तर द िजये:
1. ा तशा य का मु य काय या था?
2. पदपाठ का अथ बताइये ।
3. मु न य के दो मु नय के नाम ल खये ।
4. क चायन को और कस नाम से जाना जाता है?
5. 'श दानुशासन चि का' के ट काकार कौन थे?
6. वा यपद प के रच यता का नाम ल खए ।
7. डी. प कन कन भाषाओं के जानकार थे?
8. िजने बु ने कौन कौन सी ट काएँ लखीं?
9. शाकटायन शाखा के क ह ं दो वैयाकरण के नाम ल खए ।
10. अ टा यायी म कु ल कतने सू ह?
घ सह उ तर पर नशान लगाएं-
क. 'हे मच श दानुशासन' ती य शाखा का थ
ं है ।
ख. वर च के थ
ं म मागधी ाकृ त क चचा है ।
ग. श ा थ
ं म अथ व ान पर वचार कया गया है ।
घ. या क ने श द क े ठता के दो कारण बताए ।
134
ङ. महाभा य म सात अ याय ह ।
र त थान क पू त क िजए-
क. हरद त ने ........................................................................................
ट का लखी ।
ख. ........................................ ने लघु म य और सार नाम से स ांत कौमु द
के सं त सं करण लखे ।
ग. न त ..........................................................................................
क या या है ।
घ. वड़ भाषाओं म तु लना मक याकरण ...............................................
रचना है ।
ङ. आ पशा ल ने ................................................................. के लए
जमीन तैयार क ।
6.9 संदभ थ
1. डॉ. भोलानाथ तवार ; भाषा व ान, कताब महल इलाहाबाद, 1997
2. डॉ. दे वे नाथ शमा; भाषा व ान क भू मका, अनुपम काशन, पटना; 2001
3. कैलाशच भा टया; एवं मोतीलाल चतु वद ; ह द भाषाः वकास और व प, थ
ं
अकादमी, नई द ल , 2004
4. उदयनारायण तवार ; ह द भाषा उ व एवं वकास, भारती भंडार, इलाहाबाद, 1979
5. डॉ. हरदे व बाहर ; ह द उ व ओर वकास, लोकभारती, इलाहाबाद
6. डॉ. दे वे नाथ शमा; ह द भाषा का वकास,, अनुपम काशन, पटना, 2001
7. Language-Leonard Bloomfield London 1993
8. डॉ. धीरे वमा; ह द भाषा का इ तहास, ह दु तानी अकादमी. इलाहाबाद
135
इकाई-7 भाषा व ान के अ ययन क पा चा य पर परा
इकाई क परे खा
7.0 उ े य
7.1 तावना
7.2 भाषा प रवार
7.3 मु ख पा चा य भाषा वद
7.4 पा चा य भाषा व ान क परं परा व वकास
7.4.1 यूनान काल
7.4.2 म य काल
7.4.3 आधु नक काल
7.5 भाषा व ान के अ ययन क मु ख पा चा य प त : संरचना मक भाषा व ान
7.5.1 फ दनाद द स युर (1857-1913)
7.5.2 लयोनाड लू मफ ड (1887-1949)
7.6 टै मी म स और सि ट मक याकरण
7.7 चॉ क के भाषा- स ांत
7.8 वचार संदभ / श दावल
7.9 सारांश
7.10 अ यासाथ न
7.11 संदभ थ
ं
7.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप-
भाषाओं के वग करण के आधार को समझ सकगे ।
भाषा व ान के अ ययन क पा चा य पर परा को जानने से पूव मु ख पा चा य
भाषा व क जानकार भी ा त कर सकगे ।
पा चा य भाषा व ान के े म 'फ दनांद द स यूर ‘ और लूमफ ड के योगदान को
रे खां कत कर सकगे ।
संरचना मक भाषा व ान म व लेषण क या को समझ सकगे ।
7.1 तावना
हम सभी जानते ह क भाषा व ान याकरण क तु लना म एक यवि थत अ ययन
े है । भाषा व ान भाषाओं के अ ययन व वणन के लए एक यवि थत आधार दान
करता है िजससे संसार क भाषाओं का समान प से याकरण तैयार हो सकता है । एक
व ान के प म भाषा व ान का आ वभाव आधु नक काल म ह हु आ ह और वह भी
वशेषकर 19वीं सद म । आधु नक युग म एक-दूसरे दे श व समु दाय का स पक होने से
भाषाएं जानने व सीखने के अवसर बढ़े फल व प तु लना मक व ऐ तहा सक भाषा व ान का
136
ारं भ हु आ । आधु नक भाषाओं के याकरण लखने क कोई परं परा न होने के कारण पुरानी
भाषाओं के याकरण को आधार बनाने के कारण वणना मक भाषा व ान का प सामने आया
। पा चा य भाषा व ान के अ ययन म तु लना मक ऐ तहा सक व वणाना मक के अ त र त
भाषा व लूमफ ड ने संरचना मक भाषा व ान के संदभ म व तृत जानकार तु त क ।
भाषा व ान क पा चा य परं परा के अंतगत ीककाल से लेकर आधु नक काल तक म मु ख
भाषा वद व उनके नयम , स ांत क जानकार इस इकाई म द जा रह है ।
137
आि क प रवार — खासी, मु ंडा, भाषाएँ, (संताल , ख ड़या, हो, मु ंडार आ द)
चीनी- त बती प रवार — मजो, नागा भाषाएँ, म णपुर , नेवार आ द ।
हम भाषाओं के संरचना के आधार पर भी वग कृ त करते ह िजसे आकृ तमूलक
वग करण कहा जाता है । इसम एक प रवार क भाषा क आकृ त क अपनी कु छ वशेषताएँ
होती ह, जो उस प रवार क सभी भाषाओं म दखाई दे ती है । आकृ तमूलक वग करण को
न न ल खत आरे ख, म प ट कया गया है-
7.3 मु ख पा चा य भाषा वद
भाषा व ान का मू ल व प आधु नक काल म ह तैयार हु आ । इसम दे शी वदे शी
भाषा वद का समान प से योगदान ह । भारत म आज के भाषा व ान क नींव वदे शी
व वान ने ह रखी । भाषा व ान के अधययन के संदभ म भारतीय व पा चा य परं परा व
व प के अलग-अलग अ ययन क आव यकता है । डॉ. अनुप ताप संह के अनुसार पा चा य
परं परा के अंतगत मु ख भाषा व क गणना इस कार है-
1. वशप का डवेल (1814-1891ई.) - वड़ प रवार क भाषाओं के अ ययन म उ त
पादर पि डत ने अपना पूरा जीवन इस काय म लगा दया । 1856 ई. म उनका
' वड़ भाषाओं का तु लना मक याकरण का शत हु आ यह थ
ं एक सद से भी अ धक
ाचीन होने पर भी बहु त उपयोगी ह अब 1956 ई. म म ास व व व यालय ने इसका
नवीन सं करण नकाला है । भाषा के अ ययन क ि ट से यह थ
ं बड़ा उपयोगी है।
2. डॉ. हानले (ज म 1841ई.) - हानले क श ा जमनी और इं लै ड म हु ई थी । वे
1885 म जयनारायण म नर कॉलेज, बनारस म ा यापक नयु त हु ए । 1873ई.
म जब वे इं लै ड गए तो भी अपना गॉ डयन याकरण लखते रहे । 1872-73 ई. म
उ ह ने अपना थम भाषा वै ा नक नब ध (लगभग 100 पृ. का) जो गौड़ीय भाषा-
समु दाय से स ब था, सोसायट के जनल म का शत करवाया । 1880 ई. म उनका
स ं 'A Comparative Grammer of Gaudian Language’
थ का शत
हु आ । इसम भोजपुर के याकरण के साथ-साथ आधु नक आय भाषाओं क पया त
तु लना मक साम ी द गयी है । ाचीन ल पय के वकास पर भी उ ह ने काम कया
।
3. जान बी स - इं लै ड नवासी बी स 1857 ई. म इि डयन स वल स वस म आए
और बंगाल म नयु त हु ए । भारत आने के 10 वष उपरा त उनका पहला ं 'ऐन
थ
138
आउट लाइन ऑफ इि डयन फलालोजी’ का शत हु आ । का डवेल से उनको बहु त
अ धक ेरणा मल । लगभग 14 वष तक इस वषय पर काय करते हु ए उ ह ने
अपना स ं 'ए
थ पैरे टव ामर आफ द माडन आयन ल वेजेज ऑफ इि डया'
तीन भागो, (भाग-1-1872 ई. म, भाग-2 1875 म तथा भाग-3 1879 ई. म)
का शत कया । भारतीय आय भाषाओं क तु लना मक वकास पर यह पहला काय है
। ह द , पंजाबी, संधी, गुजराती, मराठ , उ ड़या तथा बंगला क व नय तथा उनके
सं ा, सवनाम, सं यावाचक वशेषण तथा या प का सं कृ त से तु लना मक वकास
दखलाया गया है ।
4. डॉ. अन ट प - डॉ. प सं कृ त, ाकृ त, संधी तथा प त आ द भाषाओं के
व वान थे । 1872 म उनका स ं ' संधी
थ याकरण (Grammer of the
sindhi Language compared with the Sanskrit Prakrit and the
cognate Indian Vernaculars) का शत हु आ, िजसम सं कृ त, ाकृ त, तथा
आधु नक भारतीय भाषाओं से भी तु लना मक साम ी द गयी है ।
5. ु ल एच. केलाग -
सैमअ यूयाक के वे ट हे पटन म ज मे पादर केलाग भारत म ईसाई
धम के चाराथ आए थे । इनका ' ह द भाषा का याकरण' (A Grammer of the
Hindi Language) है । थ
ं का थम सं करण 1876 ई. म तथा दूसरा प रव त
और प र कृ त सं करण 1893 म का शत हु आ । इससे पहल बार ह द का
याकरण सामने आया । इसका मह व आज तक बना हु आ है । इसम ल प, व न-
यव था तथा सं ध के अ त र त ह द के त काल न प र नि ठत प के साथ-साथ
मारवाड़ी, मेवाड़ी, मेरवाड़ी, जयपुर , हाड़ाती कु माऊँनी, गढ़वाल , नेपाल , कनौल
वैसवाडी, र वाडी, भोजपुर , मगंह , और मै थल आ द के प भी यथा थान दये गये है
। वा य रचना के यावहा रक नयम तथा श द के व वध प के पया त उदाहरण
दये गये है । इससे ह द के सम प का पता चल जाता है । परवत हंद
याकरण पर इसक यव था का भाव है । कामता साद गु के हंद याकरण पर
सं कृ त याकरण के साथ-साथ इसका पया त भाव है । इस थ
ं का हंद अनुवाद
ह द सा ह य स मेलन, याग से का शत है ।
6. रे फ ललेटनर - उनका थम ं 1931 ई० म
थ का शत हु आ । इसम नेपाल तथा
आधु नक भारतीय आय भाषाओं के श द समूह का सव थम तु लना मक तथा
ऐ तहा सक ववेचन तु त है । टनर ने मराठ , वराघात, गुजराती, व न समू ह तथा
संधी भाषा पर भी काय कया है ।
7. यूल लॉक - लॉक का 'मराठ -भाषा क बनावट' (La Formation de la
Language marathi) नामक थ
ं 1919 ई. म का शत हु आ । उनक अ य
रचनाएं (1) 'भारतीय आय भाषा' (2) ' वड़-भाषाओं का याकर णक गठन' यावहा रक
एवं याकर णक ि ट से उनक रचनाओं का वशेष मह व है ।
139
8. सर जाज डॉ. अ ाहम यसन - यसन साहब का ज म आयरलै ड म हु आ था ।
उ ह ने भारत म सभी भाषाओं, उपभाषाओं, बो लय तथा उपबो लय का सव ण ार भ
कया जो 'Linguistics Survey of India’ बड़ी-बड़ी िज द म 1894-1927 म
का शत हु आ । उनका यह थ
ं कु छ अपवाद को छोडकर अ वतीय और थम है ।
सं कृ त, ाकृ त तथा आधु नक भाषाओं और ल पय पर उनके लगभग 100 खोजपूण
तथा वै ा नक लेख का शत है । उनक भाषा- व ान संबध
ं ी अ य मु य कृ तयां ह -
' बहार का तु लना मक कोश' (हानले के साथ 1889 अपूण), ' पशाच लि वज' (1906
ई०) 'ए सै युअल ऑर का मीर लि वज' (1911 ई.), का मीर कोश ' (4 ख ड म
1916-32 ई०)
140
इ तहास गवाह है क िजस ग त से ीक का उ थान हु आ उस ग त से पतन भी हु आ
। यूनानी स यता के बाद रोमन स यता का उदय हु आ । प रणाम व प ीक भाषा क जगह
'लै टन भाषा' ने ल । ईसाई धम का चार- सार 'लै टन भाषा' म हु आ । ऐसी ि थ त म
व वान ने लै टन के याकरण पर यादा यान दया । लै टन भाषा क व नयां, श द, अथ
व उ पि त का अ ययन हु आ । 15वीं शता द के आसपास लोरशसवाल नामक व वान ने
ीक, लै टन व ह ू यहू द भाषा के तु लना मक अ ययन क परं परा का ी गणेश कया ।
उनके वारा र चत ं ‘लै टनभाषा’ का
थ याकरण के अनुकरण पर 'बार ' व ि कन' व वान
ने भी यावहा रक व सरल याकरण थ
ं क रचना क ।
7.4.2 म य काल
141
थापना के उ घाटन भाषण म उ ह ने यूरोपीय भाषा व वान को सं कृ त के याकरण
से प रचय कराया । उ ह ने सं कृ त, ीक व लै टन भाषाओं का तु लना मक अ ययन
करके यह स कर दया क इनम कोई मू ल अंतर नह ं है ।
2. रा मस के. रॉ क (1787-1832 ई.) - डे नश व वान रा क बचपन म ह
याकरण व के प म स हो गये थे । उ ह ने आयरलै ड क भाषाओं का
याकरण लखा- िजसे ' ाचीन नास का याकरण’ के नाम से जाना जाता है । वा तव
म जैकोब म के स ांत का ेरणा ोत रा क ह थे । साथ ह ऐ लो सै शन
याकरण क रचना क । उ ह ने अवे ता, सं कृ त, ीक, लै टन आ द भाषाओं पीर भी
मह वपूण काय कया है ।
3. जैकोब म (1785-1863 ई.) - जमन व वान म का 'जमन भाषा का याकरण’
बहु त स ं है । जो 1819 ई. म
थ का शत हु आ । भारोपीय भाषाओं के थम
प रवतन एवं जमन भाषाओं म वतीय वण-प रवतन म क बु क दे न है । यह
दोन ' म- नयम’ के नाम से स है । म क ि ट ऐ तहा सक अ धक रह हे ।
वे सं कृ त, जमन, ीक लै टन तथा फारसी आ द भाषाओं के का ड पं डत थे ।
उ ह ने वा य व ान तथा वै ा नक श दावल पर भी शंसनीय काय कया ।
4. के.एम. रै प (1836 से 1841 ई.) - व न शा पर चार भाग म पु तक लखकर
रै प महोदय ने व नय का व तृत ववेचन कया है । व न और ल प के आधार
बनाते हु ए उ ह ने व या मक अनुलेखन (जैसा उ चारण वैसा लेखन) का योग कया।
5. आउगु ट लाइशर (1832-1868 ई.) - इ ह ने योरोपीय भाषाओं का तु लना मक
अ ययन कया है । वे बहु भाषा व थे उ ह ने संसार क भाषाओं का आकृ तमूलक
वग करण कया तथा उनको 3 वग म वभ त कया है । 1. अयोगा मक भषाएँ 3.
आयोग मक अि ल ट भाषाएँ तथा 3. योगा मक ि ल ट भाषाएँ ।
6. े ड रक मै समू लर - जमन व वान मै समू लर ने भाषा व ान पर 1861 ई. म बहु त
मह वपूण या यान दये थे- जो काला तर म पु तक प मे का शत हु ए ।
आ सफोड व व व यालय म सं कृ त के ा यापक के प म उनको बड़ी या त मल
। उ ह ने सं कृ त भाषा और नागर ल प क मह ता को त ठा पत कया है । उनका
अथ- ववेचन अपना वशेष मह व रखता है । वेद पर कया गया उनका काय भी
सराहनीय है ।
7. व लयम वाइट ि वटनी (1827-1894 ई.) - ि वटनी साहब सं कृ त के व वान ओर
अमे रकावासी थे । 1867 म 'भाषा और भाषा का अ ययन' 1875 ई. म 'भाषा का
जीवन और वकास' तथा 1879 म ‘सं कृ त याकरण’ लखकर उ ह ने या त अिजत
क । उनका मत है क 'भाषा एक सं था है-िजसका वकास धीरे -धीरे होता है ।
8. काल ु मान तथा हे रमॉन ओ टाफ - 1849- 1919 तक काल
ग ग
ु मान अनुसंधान
काय से भाषा- व ान क सेवा करते रहे । उनका वशेष योगदान 'आनुना सक स ांत’
क थापना है ।
142
9. हे मान पाउल (1846 से 1921 ई.) - पाउल महोदय ने भाषा- व ान क सेवा क ।
उनका स ं है- 'भाषा शा
थ ीय इ तहास के स ांत’ यह आज भी भाषा व ान
का महान ् थ
ं बना हु आ है । उनका सबसे मह वपूण काय भाषा व ान के अंतगत
वाग ् शि त के स ांत और दशन का प ट करण है |
10. ासमान और बनर - दोन जमन व वान थे । दोन ने जमन भाषा म कये गये
व न-प रवतन के ‘ म- नयम’ के अपवाद को दूर करने का काय कया । सबसे पहले
ासमान का काय सामने आया । काला तर म ासमान के काय और समाधान शेष
रह गए; कु छ अपवाद के समाधान बनर ने तु त कया दोन व वान के सु झाए गये
नयम समाधान को ‘ ासमान नयम’, 'बनर नयम’ के नाम से जाना जाता
143
' याकरण तथा उसके आ शीषक अ याय म उ ह ने समका लक भाषा व ान के अंतगत भाषा
क संरचना के अ ययन का व तृत व ध व ान तु त कया है ।
ऐ तहा सक भाषा व ान शीषक भाग म स युर ने भाषा प रवतन के सा य आद
कारण, भाषा वभेद के भौगो लक आधार, पूव भाषा तथा भाषा पुनगठन आ द संक पनाओं क
चचा तो क है । साथ ह ऐ तहा सक भाषा व ान के अ ययन के संदभ म एक मह वपूण
योगदान भी दया है । एक वृहत ् संरचना के दो घटक को दे खते हु ए जहां दोन का अथ एक
दूसरे पर नभर है और कु ल मलाकर संरचना का एक अथ भी ह इसी को स युर संरचना मक
एका मक कहते ह । इस तरह संरचना-घटक क एका मकता न केवल श द म, बि क भाषा क
सम त संरचनाओं म दे खी जा सकती है । तीक व ान का आरंभ स युर से माने तो गलत
नह ं होगा । वे भाषा व ान को तीक व ान के अंतगत रखते ह । भाषा व ान का संबध
ं
समाज व ान से है । तीक व ान का मनो व ान से ले कन दोन व ान कु ल मलाकर अथ
सं ेषण क रचना तथा या पर काश डालते ह । तीक या ि छक होता ह अथात ् व न-
बंब और यय का संबध
ं या ि छक होता है । यय से नया व न- बंब अि त व म आ
सकता है । व न- बंब से नया यय सू चत हो सकता है । स युर चू ं क पूर भाषा को तीक
क या या कहते है । या ि छकता का स ांत सम त भाषा के प रवतन क या या म
सहायक है । या ि छकता का ता पय यवहार म यि त क व छं दता नह ं ह या ि छकता
उस सामािजक बंधन का ह दूसरा नाम है िजससे भाषा सामािजक व तु बनती है । जब क
भाषा म ऐसी या ि छकता नह ं है, बि क ता कक संग त और संग ठत यव था है । इन दोन
के कारण ह भाषा म कई शता द तक भी अ धक प रवतन नह ं होता ।
144
अ ययन का वषय हो सकता है । हम सभी जानते है क भाषा समाज म वचार के आदान-
दान का मा यम है । भाषा एक सामािजक यवहार है । यह यवहार अ य यवहार से भ न
नह ं है । भाषा से अलग यवहार भी सं ेषण म काम आते ह जैसे आपको यास लगी है ।
आप 'पानी चा हए' कह सकते ह या इशारा कर सकते ह । ोता (या टा) 'अभी दे ता हू ँ कह
सकता है या बना बोल पानी लाकर दे सकता है । इस तरह यह यवहार है और इसका आधार
भा षक है या भाषेतर । हम यवहार के प म भाषा को दे ख सकते ह और अ ययन कर सकते
ह ।
भाषा के इतर यवहार क तु लना म भाषा यवहार क कु छ वशेषताएं है । यहां संकेत
उ च रत व नय से बने ह । अथात भाषा वै ा नक के लए नर ण यो य व तु मा
उ च रत व नयां है । व नयां ेरणा नह ं है बि क व नय से न मत उि तयां संकेत यव था
म साथक है । कस तरह व नय से अथ दे ने वाल उि तय का नमाण होता ह यह दे खना ह
भाषा के अ ययन का ल य है । मनु य सी मत व नय से अ य त ज टल या अमूत वषय
पर भी सू मता से अथ क अ भ यि त करता है । यह भाषा क ज टल यव था के कारण ह
संभव है । यह यव था ह भाषा व ान है । भाषा व तु जगत से अलग होती है । भू ख न हो
तो भी यि त 'भू ख लगी है कहता है । इस कथन क भी साथकता है । भाषा संदभ से अलग
होती । आप सफ एक ोता को ह नह ,ं पूरे दे श को संबो धत कर सकते ह । भाषा वा त वक
यवहार से अलग हो सकती है । भाषा म चंतन इसका उदाहरण ह
भाषा सामािजक व तु ह । एक भाषा समु दाय के लोग वचार के सं ेषण के लए एक
भाषा का योग करते ह । अथात ् सभी यि त समान व नय के वारा समान अथ का
सं ेषण करते है । न कष प से कह सकते ह क भाषा समु दाय का हर यि त उस भाषा का
सह त न ध होता है ।
लूमफ ड ने भाषा के भा षक प व संरचना पर वशद अ ययन कया है । भाषा क
प रभाषा व प व उसक कृ त को चचा उनका मह वपूण योगदान है । उ ह ने भाषा क
संरचना या यव था क चचा कर व नय से लेकर वा य तक संरचना का एक अ ध म
था पत कया िजसम अ ध म के तर पर भा षक प से भा षक संरचनाएं न मत है । इसे
हम उ तरा ध मीय भाषा व ान कह सकते है । लूमफ ड ह इस संरचना मक भाषा व ान के
जनक ह । अ ध म को हम न न आरे ख से समझ सकते ह-
145
हर तर पर संरचना होती ह अथात ् वा य एक या एक से अ धक उपवा य से न मत
होता है । यहां वा य संरचना है, उपवा य घटक । हर उपवा य एक या अ धक पदबंध से
न मत होता है । यहां उपवा य और पदबंध मश: संरचना और घटक है । इसी तरह प से
लेकर वा य तक संरचना का एक अ ध म है ।
उ त आरे ख से प ट होता है क वन भाषा क आधारव तु है । भोलानाथ तवार के
अनुसार ' वन का अ ययन उ चारण, हवा म सरण या वण के आधार पर होता है । ''
पर तु भाषा क संरचना क सव थम इकाई वन को नह ं वरन ् व नम को माना गया ह
व नम व ान भाषा क संरचना के अ ययन का एक प है िजसम वाक वन सव नम नामक
अथभेदक इकाइय म यवि थत कया जाता है । ले कन व नम साथक इकाई नह ं है । भाषा
क लघुतम इकाई प है । पम व ान प को पहचानने, वग कृ त करने तथा प से श द
से नमाण का अ ययन करता है । वा य व ान म श द से पदबंध क रचना, पदबंध से
उपवा य क रचना और उपवा य से वा य क रचना का अ ययन कया जाता है । इस तरह
उ त आरे ख म व नम व ान, प तथा वा य व ान कु ल मलाकर भाषा का याकरण कहे
जाते ह । इसे उ तरा ध मीय याकरण या भाषावै ा नक याकरण कह सकते ह ।
7.6 टै मी म स और सि ट मक याकरण
लूमफ ड के अ ध म आरे ख स ब धी याकरण का सु धार करते हु ए अमे रका के
भाषा-वै ा नक पाइक व है लडे ने अलग ढं ग से याकरण क परे खा तु त क िजसे
(taxtonomic grammer) 'टे टोनो मक' याकरण कहा गया ।
1. टै मी म स - अमे रक वै ा नक केनेथ एल. पाइक ने टै गेमी म स नामक उपागम का
वतन कया । उदाहरण के तौर पर जहां लूमफ ड उपवा य को केवल पदबंध के
घटक म वभािजत करते है, पाइक पदबंध को उस जगह आने वाले कायातमक
श द क सू ची के साथ सू चत करते ह । जैसे-
कता. सं ा पदबंध + कम : सं ा पदबंध + वधेय : या पदबंध
2. स ट मक याकरण - यह भाषा व ान क यूरोपीय शाखा क उपज है । िजसके
वतक है लडे है । है लडे मानते है क भाषा के व लेषण म संदभ का मह व है
य क अथ संदभ का ह काय है । इस लए भाषा अ ययन म व वध संदभ का
अ ययन आव यक है और संदभ म भाषा के काय को भी अधययन का ल य बनाया
जाना चा हए । इस संदभ म याकरण को स ट मक - काया मक याकरण भी कहते
ह । है लडे भाषा व ान क यूरोपीय शाखा काया मक याकरण के भी तंभ माने जाते
ह ।
7.7 चॉ क
चॉ क, लूमफ ड भाषा के यवहारवाद स ांत का ख डन करते हु ए मनोवाद
उपागम पर बल दे ते है । चॉ क -पोलड मूल म अमे रक भाषा वै ा नक है । भाषा क आदत
या यवहार वारा अजन के वरोध म चॉ क भाषा क सृजना मकता पर अ धक बल दे ते ह ।
146
सृजना मकता मन क मता है, जो क ह नयम के अंतगत अब तक न सु नी गयी रचनाओं
को भी पहचानता है और नये-नये वा य का उ पादन ( न पादन) करता है । चॉ क तथा
उनके सं दाय के व वान का कहना है क भाषा ज मजात गुण है जो सफ मानव क
वशेषता है । यह मानव के वक सत मि त क के कारण है । लूमफ ड के अनुसार भाषा
आदत का समु चय है । चॉ क के अनुसार भाषा सी मत नयम का समु चय है । िजनसे
यि त भाषा के असी मत वा य का उ पादन करता है । इस कारण भाषा मा यवहार नह ,ं
नयमब यवहार है । ये नयम व ता तक कैसे पहु ंचते ह ' याकरण थ
ं से? नह ं । यि त
भाषा सीखने क अपनी ज मजात वृि त के कारण भाषा को सु नता है, भाषा का मन म
व लेषण करता है ओर भाषा के नयम को आ मसात ् करता है । इ ह ं मन म अं कत नयम
के आधार पर वह भाषा के सह ओर ा य वा य का उ पादन करता है और पहचानता है ।
नयमब यवहार के प म भाषा को दे खने के कारण ह हम यि त क इस सजना मक
शि त का प ट करण दे पाते ह । इस ि ट से सजना मकता तथा न पादन मता दोन श द
समान अथ दे ते ह ।
चॉ क सं दाय के कारण भाषा अजन, भाषा दोष के व लेषण आ द े म भी नये
युग का सू पात हु आ । पहले माना जाता था क यि त आदत के प म यवहार वारा भाषा
सीखता है । इस सं दाय ने ब च के भाषा अजन के संदभ म स कर दया क ब चे
नयमब यवहार के प म भाषा सीखते है । हर ब चे का भाषा सीखने का एक नि चत म
होता है । जैसे पहले एक श द, बाद म दो श द के कु छ वा य कार आ द, पहले ववृत वर,
बाद म संव ृत वर आ द । यह म सावभौम होता है । छह साल तक सभी ब चे अपनी
मातृभाषा म द हो जाते है । भाषा के अजन और यवहार म जै वक और मान सक आधार
इस सं दाय का मु ख अ भल ण ह । तीसरा है व लेषण क पया तता । हम यह कैसे मान
सकते ह कोई भी याकरण सावभौम भाषा वै ा नक स ांत के अनुसार खरा भी होना चा हए ।
चॉ क खु द मानते है क ऐसा याकरण अभी न मत होना संभव नह ं है ।
7.9 सारांश
यूरोप के भाषा- व ान का वकास मश: इस कार है- जमन से ांस, ांस से
इं लै ड और इं लै ड से सवा धक अमे रका । आज अमे रका म भाषा व ान संबध
ं ी काय हो
रहा है । संरचना मक भाषा व ान भाषा के अ ध मीय व लेषण का मु ख उपागम है । इसका
ल य केवल वतमान म मौ खक प से तु त भाषा का अ ययन है, जो व लेषण के लए न
ऐ तहा सक सा य पर नभर है, न मान सक प से न हत कारण का सहारा लेता है ।
संरचना मक भाषा व ान का आ वभाव स युर के थ
ं के काशन से माना जाना चा हए-
लगभग 1915 के आसपास । ले कन यह 1933 म लूमफ ड क पु तक 'भाषा' के काशन
के साथ ह पूण काश म आया । तब से लेकर लगभग 1965 तक संरचना मक भाषा '
व ान का जोर था । व व क कई भाषाओं का वणना मक याकरण लखा गया । भाषा को
आदत ( यवहार) मानने तथा आदत वारा भाषा सीखने क मा यता के कारण संरचना मक
भाषा व ान ने भाषा श ण को भी बहु त भा वत कया ।
संरचना मक भाषा व ान क तु लना म ऊपर तौर पर य त संरचनाओं का रचना के
तर पर व लेषण नह ं करता, बि क हर वा य को भा षक मता के आधार पर उसक
अंत न हत रचना के आधार पर दे खने का य न करता है । इस कारण इस अ ययन े म
वा य के अंत:संबध
ं को श द के संचरण के संदभ म या या यत करने पर बल दया जाता
है।
7.10 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. पा चा य भाषा व ान क पर परा व वकास पर एक लेख ल खए ।
2. संरचना मक भाषा व ान के संदभ म स युर' तथा ' लूमफ ड' के योगदान का
वणन क िजए ।
3. आधु नक काल के मु ख पा चा य भाषा के व वान का उ लेख क िजए ।
4. उ तरा ध मीय याकरण कसे कहते ह? संरचना मक भाषा व ान के संदभ म
लूमफ ड के स ांत का व लेषण क िजए ।
ख. लघू तर न
7.11 संदभ ंथ
1. उदयनारायण तवार ; भाषाशा क परे खा, भारती भंडार, इलाहाबाद
2. जय कु मार जलज; ऐ तहा सक भाषा व ान, भारतीय थ
ं नकेतन, नई द ल , 2001
3. कृ पाशंकर संह व चतुभु ज सहाय; आधु नक भाषा व ान, नेशनल पि ल शंग हाउस, नई
द ल , 1977
4. Bloomfield; Leonard Motilal Banarsidas; language, Delhi, 1963
5. डॉ. नरे म ; भाषा और भाषा व ान, .सं. 200।
6. डॉ. भोलानाथ तवार ; भाषा व ान, . सं. 1992
7. डॉ. मंगलदे व शा ी; भाषा व ान, . सं. 1962
8. डॉ. हर श शमा; भाषा व ान क परे खा, सं. 1997
9. डॉ. दे वे नाथ शमा; भाषा व ान क भू मका, .सं. 1966
10. बाबू यामसु दर दास; भाषा व ान, . सं. 1944
11. पं. कशोर दास वाजपेयी; भारतीय भाषा व ान, . सं. 1966
149
12. डॉ. धीरे वमा; ह द भाषा का इ तहास, दशम सं करण . सं. 1980
13. डॉ. ेम काश र तोगी; ह द भाषा का उ व और वकास, . सं. 1966
14. डॉ. उदयनारायण तवार ; ह द भाषा का उ व और वकास, संवत ् 2012
15. डॉ. कृ ण कुमार रत भाषा व ान : नये भाषायी सनदभ, बुक एन लेव जयपुर . सं.
2003
16. डॉ. अनुज ताप संह; भाषा व ान, नमन काशन नई द ल , 2007
150
इकाई-8 व न संरचना
इकाई क परे खा
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 व न आयाम
8.3 व न का वग करण
8.3.1 वर एवं उनका वग करण
8.3.2 यंजन एवं उनका वग करण
8.3.3 वर और यंजन व नय एवं दशाएं
8.4 व न प रवतन के कारण एवं दशाएं
8.5 व न नयम- म, ासमेन एवं बनर
8.6 वचार संदभ श दावल
8.7 सारांश
8.8 अ यासाथ न
8.9 स दभ थ
8.0 उ े य
इस इकाई को पढने के बाद आप भाषा म -
भाषा क नरथक लघुतम इकाई व न और उसक संरचना से प र चत हो सकगे ।
भाषा वै ा नक ि ट से व न के आयाम क जानकार ा त कर सकगे ।
व नय का वग करण एवं व न के कार से अवगत हो सकगे ।
वर और यंजन व नय का अंतर समझ कर उ ह समझा पायगे ।
व न प रवतन के कारण एवं प रवतन क दशाएँ जान सकगे ।
व न प रवतन के सवजनीय सु यात नयम के बारे म पढ़ और समझ कर जान
सकगे कन नयम के तहत भाषा म व नय का प रवतन घटना है ।
8.1 तावना
व न संरचना या वन व ान के अ तगत भाषा व नय के वग करण एवं वन
संवहन, हण व नय के वग करण एवं व न प रवतन आ द का अ ययन कया जाता है ।
भारतीय याकरण म व न व ान का अ ययन ाचीन काल से होता आया है िजसे ' श ा'
सं ा से जाना जाता है । पा णनीय श ा इस वषय का एक उ लेख ग ध है । इसके
अतर त भ ो द त क वैयाकरण स ा त कौमु द म भी वर और यंजन के उ चारण
का सू म ववेचन हु आ है ।
आधु नक भाषा व ान म इस वषय क जानकार और गहराई से द गई है । पाइक,
ट बल, रो ब स लाक े गर डे नयल जो स, लू मफ ड आ द पि चमी तथा उदयनारायण तवार ,
151
बाबूराम स सेना, सु नी त कु मार चटज , मंगलदे व शा ी और भोलानाथ तवार आ द भारतीय
व वान ने व न और वन व ान के अनेक अनछुए पहलु ओं पर गंभीर च तन कया है ।
व न भाषा क नरथक लघुतम इकाई है । यह अथभेदक त व है । भाषा क
बु नयाद ह व न पर आधा रत है । इसके अभाव म भाषा न म त क क पना ह असंभव है ।
व न श द का संबध
ं ीक श द '96000' से है, िजसका अथ व न ह है । व तु त: सं कृ त
श द भण ् ( व न करना या कहना) से ह व न श द वक सत हु आ है । दै नक जीवन म
वन श द यापक अथ म यु त होता है जैसे क प ी क आवाज, रे ल क सीट आ द भी
व नयाँ ह है ले कन व न व ान म उसी व न का अ ययन होता है िजसके संयोग से श द
बनते ह श द से पद, पद से वा य और वा य से भाषा । भाषा क इसी लघुतम इकाई का
व तृत प रचय आप इस इकाई को पढ़ कर ा त करग ।
व नशा तो भाषा व ान का मह वपूण अंग है । अं ेजी म फोनोलॉजी और
फोने ट स श द का बहु त योग होता है । 'लॉजी और ' ट स व ान के समानाथ श द ह ।
फोने ट स मु य प से व न- श ा, व न क प रभाषा, भाषा क वभ न व नय , वागवयन,
व नय के वग करण, व न गुण , व न क उ पि त, व न के सं ेषण, वण एवं हण पर
वचार करता है । फोनोलॉजी म व नमशा वन प रवतन, वन के इ तहास इ या द पर
वचार कया जाता है ।
व न क उ पि त के लए चार त व क आव यकता होती है - (1) भाव या वचार
(2) वचार काशने छा (3) ाणवायु क मदद (4) वागवयव का सह प रचालन । ये सार
वशेषताएँ मानव म समा हत होती ह । चेतना से वचार क उपलि ध होती है, ये वचार मन
के वारा ग त ा त करते ह, त प चात ् वायु के वारा वागवयव से नयं त होकर नग मत
होते ह । इस पूर या से व न उ पादन होता है ।
152
कया जाता है क कस व न का नमाण या नगमन कस वागवयव वारा हु आ है । इस
कार यहाँ उ चारण पर आधृत व नय का ववेचन एवं वग करण कया जाता है ।
2. ासर णक व न सारणी
ासर णक व न सारणी को तरं गीय या सांवह नक व न सारणी भी कहा जाता है ।
इसम उ चारण के फल व प जो व न तरं ग उ प न होती ह, एवं कान तक पहु ँ चती है, उनका
अ ययन कया जाता है । इसके लए ग णतीय प त अपनाई जाती है । इसम व वध यं
यथा काइमो ाफ, ऑ सलो ाफ इ या द क सहायता ल जाती है ।
3. ाव णक व न सारणी
इसे ौ तक या ौ तक व न सारणी भी कहते ह । इसका संबध
ं कण परल से है ।
इसम व नय के सु ने जाने का अ ययन कया जाता है । यहाँ कई तर पर यह अ ययन
कया जाता है क व न कैसे कणपटल से होकर म यकण और फर अंतःकण से होकर
मि त क म पहु ँ चती है । इस सारणी का संबध
ं भी शर र से ह है चूँ क इसके अंतगत हम कान
क या- व ध का भी अ ययन करते ह । व नय का वै व य भाषण एवं संगीत दोन म
दखाई पड़ता है । व नय क भं गमाओं का कोई नि चत ओर छोर नह ं ह । व नय के
वग करण के मु यत: तीन आधार माने गए ह- (1) थान, (2) करण एवं (3) य न । इन
तीन आधार का पृथक मह व है ।
8.3 व नय का वग करण
वातालाप के समय मानव कंठ अनेक कार क व नय का उ पादन करता है ।
व तु त: मानव के कंठ म असीम शि त समा हत होती है व न के न पादन हे तु इन व नय
का वै व य भाषण एवं संगीत दोन म दखाई पड़ता है । व नय क भं गमाओं का कोई
नि चत ओर छोर-नह ं है । व नय के वग करण के मु यत : तीन आधार माने गए ह - 1
थान, 2. करण एवं 3. य न । इन तीन आधार का पृथक मह व है । इ ह इस तरह
समझा जा सकता है - यथा, 'क', 'ख, ग, 'घ' एक ह वग क व नयाँ ह परं तु इनम अंतर
य नशील है परं तु 'क' एवं 'प अलग-अलग थान से नःसृत व नयाँ ह, अत: इनका पाथ य
थान सापे है । जहाँ तक न करण का है तो 'करण का ता पय है क इं य । यह चल
स ता का वामी है, थान ह तरह इसक स ता अंचल नह ं होती । यथा, तालु थान है तो
िज वा करण य क पहला अचल है जब क दूसरा वागवयव चल है । व वध थान , करण एवं
य न से व वध व नय का उ पादन होता है ।
व नय का सबसे पुराना और आज तक च लत वग करण वर, तथा यंजन के नाम
से जाना जाता है । ‘ वर’ श द एवं ‘ वृ' धातु से बना हु आ है िजसका अथ है व न । बाद म
वर' श द योग उदा त आ द वर के लए भी हु आ है । इसी तरह से ' यंजन' श द व +
अनुज + यू f (अन) अथात ् व उपसगपूवक अ ज धातु से न मत हु आ है । 'अ ज'् का अथ
है य त होना या कट होना । वर तथा यंजन क व तृत प रभाषा बपारव एवं े गर ने
न न ल खत प म द ह :-
153
वर उन व नय को कहा जा सकता है, जो मु ख से बना कसी बाधा के उ च रत
होती ह । फेफड से आने वाल हवा ह ठ और उससे आगे तक कह ं अव नह ं होती । इसको
कह ं बहु त संक ण माग से नह ं नकलना पड़ता है । यह मु ख ववर क वर सीमा म ह रहती
है और इसके उ चारण म वतं ी से ऊपर वाले कसी भी वागवयव म कंप न नह ं होता है ।
यह ाय: घोष व न होती है परं तु ऐसा अ नवायत: नह ं कहा जा सकता है ।'
(Outlines of Lingnistic Analysis, Bloch and Tragn pg.18)
' यंजन, वह व न है, िजसके उ चारण म फेफड़ म जो वायु आती है, वह वरतं य
या मु ख के वारा रोक जाती है या बहु त ह संकु चत रा ते से बाहर नकलती है, अथवा मु ख-
ववर क वर सीमा से पृथक होते हु ए िज के एक या दोन ओर से बाहर आती है या वतं ी
के ऊपर वाले कसी वागवयव म कंपन पैदा कर दे ती है । उपयु त प रभाषाओं से यह प ट है
क वर व नयाँ जहाँ अबाध ह, वह ं यंजन व नय सबाध ह । इसके साथ ह वर व नयाँ
ाय: यंजन, व नय क तु लना म अ धक मु खर होती है । ो० हे फूनर ने मु खरता क ि ट
से व नय को आ रक (Syllabic) एवं अना रक (Non- Syllabic) दो भाग म बांटा है ।
उनके अनुसार आ रक व नयाँ बलाघात को वहन करती ह, जो मता ाय: वर व नय म
ह है एवं अना रक व नयाँ ऐसा नह ं कर सकती ह, अत: ाय: यंजन व नयाँ इस को ट म
रखी जाती ह । वैसे ऐसा सव नह ं होता । यथा, सं कृ त म र एवं ऊ' यंजन व नयाँ ह पर
बलाघात सह सकती है । अं ेजी म 'L', 'M' एवं N' कु छ श द म आ रक ह । इसके अलावा
वर एवं यंजन के बीच म कु छ अ य व नयाँ भी होती ह, िज ह अध- वर कहा जाता है । ये
व नयाँ न तो पूणत: अबाध ह और न पूणत: सबाध । ये व नयाँ हंद म च', छ, प म
मा य ह । अं ेजी भाषा म ?' एवं 'भ' से ह अध वर ह ।
154
कर दया जाता है । यह संक णता कह अपे ाकृ त कम होती है तो कह ं यादा । इस
ि ट से मु ख ववरण के चार भेद माने जाते ह । 1 ववृत , 2. अध ववृत , 3. अध
संव ृत , 4. संव ृत ।
1. ववृत ' ववृत से ता पय है खु ला हु आ । जब िज वा एवं मु ख ववर के ऊपर भाग म
अ धका धक दूर रहती है तो ववृत क उ पि त होती है । ये व नयाँ ( ववृत ) उ च रत
से मु ँह को फैला दे ती हे । यथा - आ ।
2. अध ववृत अध ववृत व नय म ववृत व नय क तु लना म िज वा एवं उपर मु ख
ववर क दूर थोड़ी सी कम होती है । इन व नय के उदाहरणाथ ऐ, औ को दे खा जा
सकता है ।
3. अधसंव ृत जब संव ृत क अपे ा िज वा ओर मु ख ववर के ऊपर भाग क दूर अ धक
रहती है तो अधसंव ृत व नयाँ उ च रत होती ह । यथा - ए, ओ ।
4. संव ृत जब िज वा एवं मु ख ववर क ऊपर सतह के बीच कम-से-कम दूर होती है, तब
संव ृत व नयाँ उ च रत होती ह । यथा इ ई, उ ऊ ।
(ग) ओ ठ क ि थत क ि ट म उ चारणम ओ ठ क भू मका बड़ी ह मह वपूण है ।
नः वास का बाहय नयमन ओ ठ का ह काम है । येक वर के उ चारण म
िज वा के साथ ओ ठ क भी भू मका होती ह ओ ठ क ि थ त व वध कार क
होती है, िजनम न न मह वपूण है:
1. सृत : इस ि थ त म ओ ठ थोडा आगे नकलकर गोल हो जाते ह इस ि थ त म
उ ऊ, ओ औ का उ चारण होता है ।
2. वतु ल: इस ि थ त म ओ ठ थोड़ा आगे नकलकर गोल हो जाते ह । इस ि थ त
म उ ऊ, ओ औ उ चारण होता है ।
3. अधवतु ल: इस ि थ त म ओ ठ पूण गोलाकार न होकर अ गोलाकार होते ह । ऐसे
म आ जैसी व न उ च रत होती ह ।
(घ) मू ध यता िज वा के अ , म य, प च भाग उ चारण म अपनी भू मका अदा करते ह ।
ऐसे म िज वानोक ाय: न चे ट रहती है । वह दांत के पीछे पडी रहती है । वह
कसी ि थ त वशेष म तालु या मू धा क ओर मु ड़ सकती है । ऐसे म व नयाँ उ प न
होती है, वे मूध य व नयाँ ह । इसके लए वर के नीचे एक बंद ु क यव था करनी
पड़ती है । इस तरह से सभी वर व नयाँ या मू ध य ह या अमूध य । ये व नयाँ
अमे रक अं ेजी म सु लभ ह ।
(ङ) कोमल तालु क ि थ त: कोमल तालु और कौवा ना सका ववर को कभी पूणतया बंद
कर दे ते ह तो कभी म य म रहते ह, िजससे वायु मु ख और ना सका दोन माग से
नकलती है । इसके आधार पर भी वर का वभाजन संभव है । यथा: अनुना सक अँ,
आँ, ई, ई इ या द । जब ऐसा नह ं होगा तब व न अननु ना सक होगी । उदाहरणाथ -
मौ लक वर अ आ, ई, ई इ या द ।
155
(च) घोष और अघोष जब वर तं य खु ल रहती ह तब अंदर से आनेवाल वायु बना
कसी घषण के बाहर नकलती है । ऐसी व नयाँ अघोष होती ह । कभी वर तं य
का मु ख बंद रहता है, अंदर से आने वाल वायु घषण के साथ छोटा छ बनाकर
नकलती है, यह सघोष व न के पैदा होने का कारण है । अत: वर व न संघोष या
अघोष भी हो सकती ह ।
(छ) मा ा मा ा के आधार पर भी वर व नय का वग करण संभव है । यथा अध म व
(उदासीन वर अँ), व ए, व ओ इ या द ।
(ज) तनाव : मु ख क मांसपे शया अथवा अ य वागवयव क ढ़ता (तनाव) या शै थ य के
आधार पर भी वर व नय का भेद कया जा सकता है । इस ि ट से वर के दो
भेद ह । अ इ उ य द श थल वर व नयाँ ह तो आ, ई, ऊ तनाव त वर व नयाँ
ह ।
(झ) मान वर मान वर को कसी भाषा वशेष से जोड़कर नह ं दे खा जा सकता है । यह एक
वै ा नक प त है । इसके आधार पर हरे क भाषा के वर के उ चारण थान यथाथ
ान ा त होता है । इनक सं या आठ बताई जाती है । ( व तारपूवक दे ख इकाई 1)
(ञ) गौण मान वर. यह पूव त है क होठ क वृ ताकार या अवृ ताकार ि थ तयाँ होती है
। उ चारण म इनका मह व है संसार क ाय: भाषाओं म अ सवर अवृ ताकार एवं
प च वर वृ ताकार होते ह परं तु अनेक भाषाओं म वर को वपयय (ऊपर कहे गए
का) के प म उ च रत करते ह । यह गौण मान वर ह । ''
156
(घ) कं य या कोमल ताल य : ये व नयाँ िज वा के पछले भाग के वारा कोमल वायु
को छूने से उ च रत होती ह । इस थान से उ च रत होने के कारण ये कं य व न भी
कह जाती ह । कोमल तलु या कंठ से दो थान वशेष संबं धत ह िजनसे वर
(संयु त) का उ चारण होता है. (1) कंठ ताल य (2) कंठो य
(ङ) मु ध य: िजन व नय के उ चारण म िज वानोक उलटकर तथा मू धा का पश करके
वायु वाह रोक दे ती है । उ ह मू ध य कहा जाता है । यथा - ट, ष आ द ।
(च) कठोर ताल य : इस कार क व नय का उ चारण कठोर तालु से होता है । इसम
िज वा कठोर तालु को पश करके बाहर जाती वायु का रा ता रोकता है । उदाहरण
के लए च, छ, ज, य ऐसी व नयाँ है ।
(छ) व य या ब वय : दाँत क जड़ म मसू ढ़े के पास के खु रखु रे अंश को व स कहते ह ।
िज वा के वारा इस थान को छूकर जो व न उ प न होती है वह व य व न है
। उदाहरणाथ स, ज, र, ल, न, एवं डी व नयाँ व य व नयाँ ह ।
(ज) दं य : इन व नय क न मत िज वा वारा दांत के सं पश से होती लै । त, थ,
द, ध जैसी हंद क व नयाँ दं य ह ह ।
(झ) दं यो य : कु छ ऐसी यंजन व नयाँ है िजनका उ चारण ऊपर के दांत एवं नीचे के
होठ क मदद से होता है । यह ं व नयाँ दं यो य व नयाँ ह । हंद म व एवं फ
ऐसी ह व नयाँ ह ।
(ञ) ओ य : इन व नय क उ पि त के मूल म होठ होते ह । इ ह कभी तो दोन होठ
क सहायता से उ च रत कया जाता है (यथा प, फ, व, भ, म) और कभी सफ एक
होठ से (यथा श) ।
आ यांतर य न के आधार पर भी यंजन व नय का वग करण संभव है । इ ह
न नतया ऐसा दे खा जा
(क) पश : पश व नय म िज वा मु ख ववर के ऊपर भाग को कह ं-न-कह ं पश करती
ह । उदाहरणाथ क वग, च वग, ट वग क व नयाँ ऐसी ह ह ।
(ख) पश संघष : इन व नय का उ चारण पश के साथ नः वास वायु के संघषण क
मांग करता है । अत: ये पश संघष व नयाँ है । यथा ये ठ मं ' ये' इसी कार
का योग है ।
(ग) संघष : इन व नय म वायु का नगम माग संक ण हो जाता है, अत: वह संघष
करके बाहर आती है । यथा श ष, स ।
(घ) पाि वक : इनम िज वानोक मूधा को छूती है एवं वायु दोन पा व से बाहर नकलती
है । उदाहरणाथ ल ।
(ङ) लो ड़त : इन व नय के उ चारण के व त, िज वानोक व स पर अनेक या एक बार
ठोकर मारती है । र' ऐसी ह एक व न है ।
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(च) उि त : इन व नय के उ चारण के व त िज वा तालु के कसी भाग को झटका
दे कर हट जाती है । जैसे ड, ढ ।
(छ) अध वर : इन व नय का उ चारण पूर तरह से पशधम नह ं होता न ह इनम
वर के उ चारण क सी पाथ य क ि थ त होती है । यथा य, व ।
(ज) अनुना सक : इन व नय के उ चारण म वायु मु खर ववर के साथ ना सका से भी
नकलती है । नागर वणमाला का येक पंचमा र ह अनुनाणनक है । यथा ड, *,
ण ।
इसके अलावा संयु त यंजन व नय , िजनके सम व न एवं वषम व न दो भेद ह, क
भी प रक पा क गई है । यथा सम व न - यु म युध ् + ध, स चा, क चा आ द ।
वषम व न - र त, उ कट, चम, गम आ द ।
उ चारण शि त के आधार पर यंजन के सश त (fortis) और अश त (lenis) तथा
मा यम ये तीन भेद कए जा सकते है । सश त वे यंजन है िजनके मु ँह क मांस पे शयाँ ढ़
ह जैसे स, f । अश त यंजन म मांसपे शयाँ श थल होती है जैसे र, ल म यम वग म च,
श आद व नयाँ आती है । वता द घता के आधार पर क, च, प आ द व ह तो क,
च, प आ द द घ) द घ यंजन को लेखन म व व के आधार पर व व यंजन कहा जाता
है ।
कु छ असामा य यंजन और उनके भेद आपके अ ययन के लए ऊपर िजन यंजन
और उनके भेद का प रचय दया गया उनम से ाय: सभी बहु च लत और सामा य है । इनके
अ त र त कु छ ऐसे भी यंजन है जो असामा य ह और िजनका योग तथा चलन कम है ।
ऊपर च चत सभी यंजन ाय: ब ह: फोटा मक थे अथात ् उनम हवा फेफड़े से बाहर क ओर
आती थी ले कन अब िजनक चचा क जा रह है वे अ त: फोटा मक है इनके उ चारण म हवा
बाहर से भीतर जाती है ।
1. अ त: फोटा मक यंजन (Implosive) इ ह अ त फोट या अ तमु खी भी कहते ह ।
ये पश यंजन ह । सामा य पश क तरह इनके उ चारण म भी मु ँह के कसी भाग
म पश या अवरोध होता है, इसी के साथ वरयं भी काफ नीचे हो जाता है ।
फलत: पश थान और वर यं के बीच क जगह वसृत हो जाती है, हवा फैल कर
ह क हो जाती है और अवरोध का उ मोचन होता है भीती क ह क हवा के कारण
बाहर से हवा बड़ी तेजी से वेश करती है और ये यंजन व नयाँ उ च रत होती ह ।
फोटा मक व नयाँ कभी-कभी बहु त ह क होती है और वयो य, दं य, ताल य और
कोमल ताल य क को ट म आती ह । इ ह अ य व नय से अलग दखाने के लए
इनके पूव ाय: ऊपर एक उ टा कौका लगाते है- जैसे प .(p)', अफ का क p क
इबो, हौसा जु ल, भारत क स धी (ज व) तथा कु द राज थानी भाषाओं म इस कार
क व नयाँ मलती ह ।
2. उ गार यंजन (Glotalized stop) इ ह ह पश व न माना जाता है । इसम मु हँ
म पश के अवरोध के साथ-साथ वर यं मु ख भी वरतं य के कर ब आने से ब द
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हो जाता है पहले मु ँह म फोट होता है फर आधे सैके ड के बाद वरयं म । इस
बार वरयं कु छ ऊपर उठ जाता है । दोहरे अवरोध और दोहरे उ योचन के कारण यह
व न एक खास तरह क कु छ तेजी से बोतल के काक खु लने जैसी सु नाई पड़ती है ।
इसके उ चारण म मु ँह क मांसपे शय म संकोचन से हवा संकु चत रहती है और
उ योचन होते ह जोर से बाहर नकलती है । यह पश, वयो य, ताल य कोमल
ताल य कई कार क हो सकती है । इसे लखने म ल प च ह के आगे ऊपर 'दायां
लगाते है जैसे 'क' (‘k’) ‘प’ ('p') आ द ये व नयाँ मु यत: अ क और अंशत: च
भाषाओं म मलती है ।
3. ि लक (click) इसे अ तमु खी व पश या अ त: फोट पश भी कहा जाता है । ि ल
व नय क दो मु य वशेषताएं है- पहल मु ँह म दो थान पर पश या अवरोध और
दूसर हवा का बाहर से भीतर जाना । दो अवरोधो म से एक तो कोमल तलवा (अथात ्
'क' के समान) होता है और दूसरा पश उसके इधर कह ं भी इसके उ चारण म जीभ
तथा मांसपे शय कु छ स त रहती ह । पहले बाहर के पश का उ मोचन होता है ।
भीतर क मांसपे शय क स ती एवं खंचाव से भीतर क हवा संकु चत सी रहती है ।
उ मोचन होते ह बाहर से हवा घुसती है और तु र त ह क थानीय पश भी
उ मोचीत होता है । इस परवत उ मोचन के अंत धीमा होने के कारण वह सु नाई नह ं
पड़ता । व न के तु र त बाद कसी सामा य वर का उ चारण होता है । ि लक
व नयाँ कई कार क होती है । इनका यह अंतर क- थानीय पश के कारण नह ं
होता, य क यह पश तो सभी म एक-सा होता है । अ तर उस दूसरे पश के कारण
होता है जो क- थान के इधर घ टत होता है । इन पूववत पश के आधार पर ह
ि लक व नय के मु यत: 6 भेद कए गए ह । वयो य, द य, व स-ताल य
तवेि ठत कठोर-ताल य, व य-पाि वक । इनम अं तम उ मोचन ‘ल' क तरह केवल
एक पा व म होता है । ि लक व नयाँ ाय: द णी अमे रक क भाषाओं म पाई
जाती है । च भाषा म संशय और अचरज कट करने के लए त का ि लप प
यु त होता है । ह द क च+च ् अथवा टक s टक व नयाँ इसी कार क ह ।
संयु त यंजन : हल, द घ, संयु त
संयु त यंजन दो या दो से अ धक यंजन के मेल से बनते ह । य द मलने वाले
दोन यंजन एक ह जैसे (च का = क + क) तो इस संयु त यंजन को द घ या व व
यंजन (Long या double Consonant) कहते ह ले कन य द दोन अलग अलग वग के ह
(जैसे शम = r + म) को इसे संयु त यंजन (Compound consonant) कहते ह । इन
यंजन के दो भेद कए जा सकते ह । पश - संघष या पूण बाधा वाले तथा अ त । पश
और पश संघष के व व म ऐसा होता है क उसम पश क पहल (हवा के आने और पश
होने) आ खर या तीसर (उ मोचन या फोट) ि थ त म तो कोई अंतर नह ं आता, केवल दूसर
या अवरोध क ि थ त बड़ी हो जाती ह । च का म व तु त: दो क् नह ं उ च रत होते, बि क क्
के म य क ि थत तु लना म बड़ी हो जाती है । इसी कारण वै ा नक ि ट से इस कार के
159
व व को दो 'क' न कहकर 'क' का द घ प या 'द घ यंजन क या द घ लि बत कं' कहना
अ धक उ चत है, य क दो 'क' तब कहलाते ह जब दोन क तीन-तीन ि थ तयाँ घ टत होती
पश संघष 'च' आ द ं म भी यह ि थ त है ज गी, स चा, ल जा,
यंजन के संबध म ी
अ ड, प ती, ग ी, थ पड़, अ बा आ द श द के व व ऐसे ह है । इस प म महा ाण का
व व नह ं होता । व तु त: अ प ाण और महा ाण व नय का अंतर फोट के वायु वाह के
कम और अ धक के कारण होता है । अत: जब दो मलगे तो पहले का फोट नह ं होगा, इस
कार वह अ प ाण हो जाएगा । ता पय यह है क र व, ध, झ, , म आ द का
उ चारण हो ह नह ं सकता उ चारण म वे ख, ध, च , उठ एवं य हो जाएंगे जैसे घ घर,
म छर, झ झर, भ भड़ आ द । अ य ाय: सभी यंजन के व व म इस कार क कोई
बात नह ं होती केवल उनक द घता बढ़ जाती है । जैसे ग ना, अ मा, र सा आ द ।
संयु त यंजन म य द पहला पश या पश-संघष है तो वह अ फो टत होता है,
अथात ् उसका फोट या उ मोचन नह ं होता जैसे पै ट, अ छ आ द । अ य ाय: कोई भी
यंजन आये तो उसम कृ त क ि ट से कोई अ तर नह ं पड़ता । केवल द घता या मा ा इस
अ धक होती है । संयु त यंजन म एक का घोष व-अघोष व दूसरे के व प को भा वत
करता है । नागपुर का उ चारण 'ना पुर' ग पर पड़े प के भाव म कारण है । सं कृ त क
सं धय म इसके अनेक उदाहरण पाए जा सकते ह ।
161
(छ) का या मकता - का य म छं द के बंध भी व न प रवतन का कारण बन जाते ह ।
यथा - वीर-वीरा, अंगडाई - अंगराई जू ह -जु ह ।
(ज) बलाघात - बलाघात व न प रवतन का एक मह वपूण कारक ह । इसम व न वशेष
पर बल दए जाने के कारण अ य व नयाँ ीण हो जाती है । यथा - अ यंतर -
भीतर, उप र - पर ।
2. बा य कारण
(क) भू गोल का भाव - भू गोल के भाववश भी व नय म प रवतन होता है । यथा संध-ु
हंद ु ीरामपुर-सेरामपोर, स ाह-ह ता इ या द ।
(ख) सामािजक - राजनी तक प रि थ तयाँ - इन प रि थ तय पर उ न त या अवन त टक
होती है, िजससे व न पर भाव पड़ता है । उ न त क अव था त सममयी होता है तो
अवन त त व सापे है । यथा-
द ल -दे हल , पं डत-पंडा, क लकाता-कलक ता, बु -बु ू वाराणसी-बनारस ।
(ग) काल भाव - काल भाव से ढे र श द का त सम प बदलकर त व हो जाता है ।
यहाँ भी व न प रवतन दे खने को मलता है । यथा - नवतते - बटता ।
(घ) ल प दोष - कई ल पय म कसी श द वशेष क प रवतन होता है । यथा - राम -
Ram, अशोक-Ashoka (अशोका), म - म ा, आ द । इसके अलावा अ य भाषाओं
के भाव एवं सा य से भी व न प रवतन संभव है ।
व न प रवतन के कारण को जानने के बाद उसक ( व न प रवतन क ) दशाओं को
जानना भी उतना ह ज र है । ाय: इनके मू ल म य न लाघव ह ह ।
(क) समीकरण
जब दो वषम व नयाँ एक साथ संयु त होती है तो एक व न दूसर व न को
भा वत करके अपने जैसा बना लेती है । यह समीकरण है जो तीन कार का होता है
(1) पुरोगामी - इसम पूववत व न परवत व न को अपने जैसा प दे दे ती है ।
यथा - प -प ता, च -च का, पख-प का ।
(2) प चगामी. इसम परवत व न पूववत व न को अपने जैसा बना लेती है । यथा-
त ल न-त ल न, धम-ध म
(3) पार प रक इसम दोन व नयाँ पार प रक संपक म आने के बाद एक तीसर वन
बन जाती है जैसे स य-स य-सच
वषमीकरण यह समीकरण का वपयय है । यहाँ दो सम व नय म एक वषम प
धारण करती है । यथा काक-काग, कंकण-कंगन, मु कु ट-मउर ।
(ग) आगम
उ चारण क सु वधा के लए श द के आ द, म य एवं अंत म जब कु छ व नयाँ
आती ह तो उ ह आगम कहते ह । इसके मु यत: तीन प ह - (1) आ द वरागम,
(2) म य वरागम, (3) अं यत वरागम । आ द वरागम म उ चारण क सु वधा के
162
लए कु छ यंजन वशेष प से संयु त यंजन से ारं भ होने वाले श द के आ द म
एक वर का आगम हो जाता है । यथा - ी-इ ी, नान-अ नान, उ लास-हु लास
इ या द ।
संयु त यंजन के उ चारण म होने वाल असु वधा को दूर करने के लए म य म
कसी क ि थ त म य यंजनागम क भी होती है ।
यथा - म य वरागम. टे शन - सटे शन, पंि त - पंगल साद - परसाद ।
म य यंजनागम : सु नर - सु ंदर, सु नर -सु ंदर , वानर - बंदर ।
कभी-कभी म य अ रागम क भी - ि थ त होती है । यथा ता -तांबडा, आलस
आलकस ।
अं य वरागम : अंत म उ चारण - सौकय हे तु जब कोई वर आ जाता है तो उसे
अं य वरागम कहते ह । इसे हलंत के वारा चि नत करते ह । यथ महत-् महंत,
हनुमत-् हनुमंत, ाम-गंवई, मु ख-मु खड़ा ।
(घ) लोप
उ चारण सौकय या उ चारण शी ता वराधात हे तु जब कसी व न का लोप होता है
तो यह (लोप क ) ि थ त पनपती है । लोप तीन तरह के होते ह - 1. वरलोप, 2.
यंजन लोप, 3. अ र लोप । ये भी आ द, म य, अंत-चरण म नजर आते ह ।
आद वर लोप - अनाज-नाज, म य वरलोप – Do not Don't' अं य वरलोप -
घर-घर ।
आद यंजन लोप- थाल -थाल , म य यंजन लोप -क त -कई अं य यंजनलोप -उ
-ऊँट । आ द अ रलोप - उपा याय-झा, म य अ रलोप-भांडागार-भंडार, अं य
अ रलोप-माता-माँ ।
(ङ) समा र लोप
जब दो समान व नयाँ एक के बाद दूसर आती ह, वहाँ उ चारण सु वधा के लए
उनम से एक का लोप हो जाता है । यथा - खर ददार-खर दार, नाककट-नकटा ।
(च) वण- वपयय
इसे वपयय भी कहते है । इसम वर या यंजन का थान असावधानीवश या
जानबूझकर बदल दया जाता है । यथा - नान-नहाना, वाराणसी-बनारस, मतलब-
मतबल ।
(छ) महा ाणीकरण
मु ख-सु ख हे तु अ प ाण व नय को महा ाण के प म उ च रत कया जाता है । ऐसी
ह ि थ त महा ाणीकरण कहलाती है । यथा - गृह -घर, परशु-फरसा ।
(ज) अ प ाणीकरण
यह महा ाणीकरण का वपयय है । मु खसु ख हे तु इसम महा ाण व नयाँ अ प ाण बना
द जाती ह ।
यथा वा द ठ- वा द ट, संध-ु हंद ु ।
163
(झ) घोषीकरण
मु ख-सु ख हे तु जब अघोष व नय को घोष म त द ल करते ह, तो यह ि थ त तैयार
होती है । यथा- शाक-साग, काक-काग, शती-सद ।
(ञ) अघोषीकरण
इसम घोष व नय को अघोष कर दे ते ह । यथा-त + पर-त पर, मदद-मदत ।
(ट) अनुना सक करण
उ चारण सौकय हे तु जब नरानुना सक श द को अनुना सक बना दया जाता है, तब
वहाँ अनुना सकता का आगमन होता है । यह सकारण एवं अकारण दोन ह तरह क
होती है । यथा सकारण-चं -चाँद, क पन-काँपना । अकारण-सप-साँव भू-भ ।
(ठ) ऊ मीकरण
जब कु छ व नय को ऊ म व न म बदला दया जाता है तब ऊ मीकरण होता है ।
यथा - Octo अ ट ।
(ड) मा ा-भेद
मु ख-सु ख हे तु कभी-कभी द घ वर को व एवं व को द घ बना दया जाता है ।
यह मा ा भेद है िजससे व न प रवतन होता है । यथा - पु -पूत , अ य-आज,
आलाप-अलाप ।
164
सु र त है । दूसर ओर गा थक न न जमन, अं ेजी जैसी भाषाएँ ह िजनम यह
प रवतन हु आ है ।
वतीय वण प रवतन : दूसरा वण प रवतन सातवीं शता द ई वी के लगभग हु आ ।
यह वण त द ल केवल जमन भाषा के दो प उ च एवं न न म हु ई । न न जमन
का तनध प अं ेजी से उ च जमन म घ टत हु आ । यहाँ यह प ट कर दे ना
ज र है क न न जमन अथात ् समतल जमनी (उ तर जमनी) क भाषा और जमनी
का द णी पहाड़ी भाग अथात ् उ च जमन का े । अं ेजी, डच, डै नश, वी डश
भाषाएँ शाखाएँ ह न न जमन क तो सां तक जमन भाषा उ च जमन है ।
थम वण प रवतन - म नयम के मु ता बक पहला वग प रवतन न नवत हु आ
मू ल भारोपीय जमन
क त, प (अघोष अ प ाण) का ख (ह) थ, फ (अघोष महा ाण)
घ, ध, भ (घोष अ प ाण)
घ, ध, भ (घोष महा ाण) का ग द, व (घोष महा ाण)
ग द, ब (घोष अ प ाण)का क त, प (अघोष अ प ाण)
165
द से त वौ/ वेद टू (two) वेट (sweat)
ब से प तु बा (ला तन) थोप (thorp)
दूसरा वण - प रवतन. दूसरे वण प रवतन म हम जमन के ह दोन प (उ च एवं न न) को
आधार बना कर म नयम को समझ सकते ह
न न जमन (अं ेजी) उ च जमन (आधु नक जमन)
क से ख बुक (book) बुख (Buch)
त से थ (स) वाटर (Water) हासेर (wasser)
प से फ ि ं (Spring)
ग यू लंग (Fruling)
ि लप (slip) लाइफेन (Schlifan)
थ से द (three) दे ई (drei)
नाथ (north) नोरदे न (Nordin)
ासमेन नयम :- हे मान ासमान या ासमेन (18०9-1877)ए भी एक जमन व वान ह था
। इसने म के नयम का संशोधन कया । इस म म उन गल तय को भी सु धारा जो म-
नयम म थीं । जैसे म नयम के अनुसार ब ् को p और को त ् होना चा हए परं तु गा थक
म भी ब और ह मलते ह ।
सं कृ त गॉ थक
बोध त बउदन
दभ ् दउ स
ासमेन ने सं कृ त एवं ीक भाषाओं का पर ण करने पर पाया क सं कृ त और ीक
भाषाओं म दो अ यव हत सो म व नय म से समा यतया थम ऊ म वन ( व न)
नकलती है । जहाँ पर वतीय वण रो ऊ म व न का वेश हो जाता है । इस कार यह
कहा जा सकता है क म वारा गनाए गए अपवाद संदभ से इतर भी अपवाद क
संभावनाओं पर ासमेन ने वचार कया उनसे जो काय छूट गया वह काय काल बनर ने कया।
3. बनर का नयम : काल बनर भी जमन भाषा वै ा नक था । उसका समय 1848 से
1896 का था । उसने भी म नयम का संशोधन कया । उसने भी म नयम का
संशोधन कया उसने कहा क म नयम का आधार Accent (उदा त वर) था ।
उसके नयम के अनुसार मू ल भारोपीय भाषा के श द के क् , त,् पृ को जमन भाषाओं
म ह, T, P, म तभी बदला जाता है जब मूल भाषा म अ यव हत पूव और कोई
उदा त वर होता है य द उदा त वर क, त,् प ् के बाद होगा तो इनक जगह मश:
ग,् द, ब ् का आगमन होगा । नीचे दए गए उदाहरण पर यान द सं कृ त लै टन
गा थक अं ेजी व न प रवतन :-
युवकस ् Jurencus Juggs, young क- ग
स तन ् Septem Silum Seven प -व
शतम ् Cemtum Jtund Hundred क् -ग!
166
बनर के नयम म भी कु छ अपवाद है िजनका समाधान म या सा य वारा संभव
हु आ है । वचार
8.7 सारांश
इस इकाई म आपने पढ़ा क व न भाषा का मू ल है । भाषा क बु नयाद व न पर
ह टक होती है । इसे भाषा के अथ-भेदक त व म गना जाता है । इसके अभाव म भाषा
न मत ह नह ं हो सकती । आपने व न के औ चार णक ासर णक एवं ाव णक प का
अ ययन कया । व नय के वग करण से प र चत हु ए और समझा क वर तथा यंजन म
कस प म ताि वक अंतर होता है । वर का वग करण िज वा के व वध अव थान , उसे
यव त भाग क ऊँचाई क ि ट से ओ ठ क ि थ त क ि ट से मू ध यता, कोमल तालु क
ि थ त आ द से कस कार कया जाता है, इससे अप अवगत हु ए । यंजन का वग करण भी
थान, करण, य न एवं उ चारण शि त के आधार पर माना गया है । इस इकाई म वन
प रवतन के भीतर और बाहर कारण पर वचार कया गया । आपने यह जाना क सृि ट के
अनेकानेक प रवतनशील पदाथ क तरह भाषा भी प रवतनशील है । यह प रवतन व वध
कारण से होता है । आपको प रवतन के कारण और दशाओं से अवगत कराया गया । वन
प रवतन के कु छ व श ट स ांत ह िजसम म, ासमेन एवं बनर जैसे भाषा शाि य के
167
स ांत व न नयम के प म स है । आपको इन नयम का सं त प रचय दया गया
। इस इकाई क परवत इकाई जो व नय के ववेचन से संबं धत है जो पढने के बाद आप
व न व ान के बारे म एक सामािजक समझ बना पाने म नःस दे ह स म ह गे ।
8.8 अ यासाथ न
क. द घा तर न
1. व न कसे कहते है? इसके व वध आयाम का प रचय द िजए ।
2. ' व नय का वग करण' शीषक से एक सं त नबंध ल खए ।
3. व न प रवतन के कारण एवं दशाओं का प रचय सोदाहरण द िजए ।
4. उ चारण शि त के आधार पर यंजन का वग करण तु त क िजए ।
5. क ह ं दो व न नयम का प रचय द िजए ।
ख. लघू तर न
1. लो डत और उि त व नयाँ कौन-_कौन सी होती है? इनका उ चारण कस
कार होता है ।
2. वर और यंजन म ताि वक अंतर बताइए ।
3. समीकरण कसे कहते ह? इसके भेद का सोदाहरण प रचय द िजए ।
4. व न प रवतन के कं ह दो कारण पर वचार क िजए ।
5. ' व न नयम से या ता पय है? बनर के वन नयम का सं त प रचय
द िजए ।
ग. र त थान क पू त क िजए
1. ‘त’ और 'थ’...................... व नयाँ है ।
2. .................................. व नयाँ वरतं ी के मु ख से उ च रत होती ह ।
3. कई बार........................... होने पर भी श द का गलत उदाहरण हो जाता है ।
4. बनर जमन......................... ?ऐ....... था ।
5. भाषा क साथक लघुतम इकाई................................. है ।
घ. सह ' गलत पर नशान लगाइए
1. भारतीय याकरण म व न व ान का अ ययन ाचीन काल से ह होता रहा है ।
सह /गलत
2. दं तो प व नयाँ ऊपर ओ ठ क मदद से उ च रत होती ह । सह गलत
3. भू गोल के भाव से कभी व नयाँ नह ं बदलती । सह '/गलत
4. अ त: फोटा मक यंजन पश यंजन भी कहलाते ह । सह गलत
5. यंजन व नयाँ वर व नय क तु लना म कह ं अ धक मु खर होती है ।
सह /गलत?
168
8.9 संदभ ंथ
1. डॉ. भोलानाथ तवार ; भाषा व ान, कताबमहल, पटना
2. डॉ. राजम ण शमा; आधु नक भाषा व ान वाणी काशन, नई द ल
3. तेजपाल चौधर ; भाषा और भाषा व ान, वकास काशन, कानपुर
169
इकाई- 9 वन या
इकाई क प रे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 वागवयव एवं उनके काय
9.3 व न गुण या वन गुण 94 मान वर
9.5 व नम व प और संक पना
9.6 व नम के स ब ध म सहायक स ांत
9.7 व नम म भेद
9.8 व न मक व लेषण व ध
9.9 वचार संदभ श दावल
9.10 सारांश
9. 11 अ यासाथ न
9.12 संदभ थ
ं
9.0 उ े य
तु त इकाई के अ ययन से आप-
व न संरचना म वर के उ चारण संवहन एवं हण को भल भां त समझ सकगे ।
वर के उ चारण म सहायक वागवयव एवं उनके काय से प र चत हो सकगे ।
वन गुण एवं व न क एक व श टता मान वर का अ ययन का भाषा म वर
व नय के मह व क जांच कर सकगे ।
व नम म व प और संक पना से प र चत हो सकगे ।
व नम के अ ययन म सहायक स ांत के बारे म पढ़कर वयं व नय का वग करण
करने म स म हो सकगे ।
व नम म भेद को पढ़ कर व नय के कार क पहचान कर सकगे ।
व नमक व लेषण व ध को समझा सकगे ।
व तु त: इकाई 8 तथा 9 दोन को एक साथ संपरू क के प मे पढ़कर आप वन
( वन) क बार कय से अ छ तरह से अवगत हो जायगे ।
9.1 तावना
इकाई 08 म हमने वन संरचना ( व न संरचना) का व प, उसक शाखाएँ एवं
व नय के वग करण ( वन का वग करण) को अ ययन तो कया ह उसके साथ ह हम
व नम प रवतन ( व न प रवतन) के कारण एवं उसक दशाओं से भी प र चत हु ए । इस
अ ययन म हम वागवयण , व गुण को तो जान ह पायगे, उसके साथ ह व नक तथा
सं वन के बारे मे भी जानकार हा सल करगे ।
170
वा गि याँ ह वे साधन है िजसम भाषा के श द का काशन होता है । ये शर र का
अंग है । अत: उनक ि थ त एवं काय का सह तरह से समझना आव यक है । ये दो भाग
म बंट है- (1) करण एवं (2) थान । करण वह वागवयन है जो ाय: ग तशील होते ह । वे
व भ न ि थ तयाँ एवं लय धारण कर सकते ह । ओ ठ िज वा इसके अ यतम उदाहरण ह ।
थान वागवयो म उन वा यं को दे ख सकते ह जो ि थर होते है । जीभ इन थान को पश
कर सकती है । दं त, तालु एवं मू धा इस कार के अवयव ह । ऊपर के दाँत, ओ ठय, तालु
तीन अपने ह थान पर ि थर रहते ह, ढ रहते ह । अत: ये थान वागवयव ह । व न गुण
व नय के ल ण ह । व न गुण के वारा ह भाषा को मू त प ा त करने म सफलता
मलती है । हम बोलते व त कभी कसी श द पर बल दे ते ह, तो कभी सु र, अनुतान या संगम
का योग करते ह । इससे वा य का सु र तक बदल जाता है । ये ह त य व न गुण है ।
व नम का संबध
ं भाषा वशेष से होता है, तथा येक भाषा क नजी व न मक
यव था होती ह । व नम कसी भाषा के अथभेदक त व ह । ये य तरे क होते ह । एक
व नम के अनेक सं वन होते है, जो पृथक -पृथक होते ह । ये सं व न भी कहे जाते ह ।
172
भाषणेि य भी ह । यह मु ख के नचले भाग म पडी रहती ह । यह व वध भाग को
पश कर व वध व नय का उ चारण करती ह । इसके कई प ह:
1. िज वानोक: यह जीभ का सबसे आगे का नुक ला भाग है । इसक व वध
ि थ तय से आ,त,थ,द,स जैसी व नयाँ उ प न होती ह ।
2. िज वाफलक: िज वा ब दु से यह संयु त होता है, और यह मु ख से बाहर भी
नकाला जा सकता ह । इससे स का उ चारण संभव होता ह ।
3. िज वा : जीभ का यह अंश कठोर तालु के नीचे पड़ता है । यह डेढ़ इ च का होता
है । इसक व वध ि थ तय से च,छ जैसी व नयाँ उ प न होती ह ।
4. िज वाम य: यह िज वा एवं िज वाप च के बीच का भाग ह । इसके कठोर तालु
एवं कोमल तालु के बीच का सेतु भी कहा जा सकता ह । यह म य वर या
के य वर के उ चारण का कारक ह ।
5. िज वाप च: यह िज वा का शेष भाग है । यह म यिज वा के बाद ि थत होता है
। इसक व वध ि थ तय से उ, ओ, क् , ख, ग! क् ख, ग जैसी व नय का
उ चारण संभव हो पाता है ।
9.3 वन ( व न) गु ण
व न गुण व नय के ल ण ह है । जब हम भाषण दे ते है तब हमारे मु ख से
लगातार वा य वाह नःसृत होता है । इनम से कु छ वा य ऐसे भी होते है जहाँ कु छ श द या
अ र पर काफ बल दया गया होता है । कभी-कभी इ ह कारण से एक ह वा य कह अथ
दे ता ह । िजन त व से वा य मे यह प रवतन आता है एवं वे मु त होते है, उ हे हम वन
गुण कहते ह । इसके कह प होते है । इन प को हम न नवत दे ख सकते ह।
(क) मा ा: इसे द घता भी कहते है । कसी भी व न के उ चारण म व त का जो ह सा
खच होता ह, वह मा ा ह । येक व न के उ चारण मे समान समय नह ं लगता,
कसी मे कम तो कसी मे यादा लगता ह । व वान ने मा ा को तीन भागो म बाटा
ह- ह व, द घ एवं लु त । व क अपे ा द घा के उ चारण मे अ धक समय लगता
है, द घ मा ा के उ चारण से यादा समय लु त म लगता ह । द घ व नय क
कृ त तथा ववरण पर आधा रत होती ह । वर व नय मे सवा धक द घता होती ह
। त प चात ् संघष व नय के उ चारण म व त लगता ह । ये व नयाँ वाहमान
होती ह । अत: उ चारण म समय लगाती ह । इनसे थोडा से कम व त पाि वक,
अनुना सक तथा लु ं ठत व नय म लगता ह ।
(ख) आघात : आघात का अथ होता है चोट । यह दो कार का होता है- एक मे तान का
योग होता है तथा दूसरे म वास-वायु का । इ ह मश: वराघात व बलाघात कहा
जाता ह । तान या मा ा के न बदलने पर भी वराघात म फक पड़ सकता ह ।
बलाघात म कसी व न पर नः वास वायु वारा वशेष ध का दये जाने के कारण
उ चारण संप न होता ह । जब क वराघात मे वर क उ चता का योग होता है ।
173
(ग) वर: वर ह सु र भी है । यह तं य के क प न क आवृ त पर टका होता ह । यह
क प न अ धक हो तो वर उ च होगा और य द कम होता है तो वर न न होगा ।
वर के दो भेद होते है-आरोह एवं अवरोह । वर क उ चता आरोह है तो उसका उतार
अवरोह है । इसी कार वर के अ य तीन भेद भी ह- उदा त, अनुदा त और व रत
। उदा त तीन बात पर (पतंज ल के अनुसार ) टका होता है- आयाम ( व न आरोह),
दा णता ( वर तं ी म तनाव), अणु ता ( वरतं ी म संकोच) । उदा त का तो अथ उ च
पा े ठ है । अनुदा त न न सु र है । पतंज ल ने इसके सात भेद बताये ह- उदा त,
उदा ततर, अनुदा त , अनुदाततर , व रत, व रत त उदा त एवं ु त । इन सब मे
न नतर अनुदा ततर है । व रत मे उदा त म अनुदा त का समाहार होता है । यह
एक सम व न है । इसमे आरोह एवं अवरोह होता है । अत: इसे व रत कहा जाता है।
सु र क लहर भी होती है िजसके वारा वा य म आरोह, अवरोह का म बनता है ।
येक वा य म यह आ यंत रहने वाल चीज है । सु र लहर के दो भेद ह- श द सु र
लहर व वा य सु र लहर ।
(घ) संगम : बोलते व त एक व न के दूसर व न का आगमन होता है । व ता एक
व न क समाि त पर ह दूसर व न का उ चारण करता है । यह पूर या दो
कार से समा त होती है- कभी तो यह सीधे-सीधे होती है और दोन व नय के बीच
कु छ भी नह ं आता । जैसे- 'तु हारे' म 'म' के बाद 'ह आ जाता है । कं तु कभी-कभी
एक व न व दूसर व न के उ चारण के बीच म कु छ होता है । यथा तु म 'हारे ' यहाँ
अथ भेद तो होता है, अथात ् दोन व नय के बीच के मौन ने अथभेद पैदा कया ।
यह मौन का वराम संगम है ।
(ङ) वृि त : वृि त का अथ है ता (ग त) यह व न उ चारण मे बहु त मह वपूण होती
है । कु छ व वान तो इसे व न गुण ह नह ं मानते ह । वृि त के तीन भेद ह- 1
दुत , 2. म यम, 3. वलं बत । हम ती ग त से बोलते ह, या तो म यम ग त से या
फर वलं बत ग त से धीरे -धीरे । वृि त के स यक नवाह पर ह उ चारण क
सट कता एवं तदथ अथबोध क सट कता टक होती ह ।
9.4 मान वर
मान वर क संक पना वर व ान क मह वपूण उपलि ध है । इसके अंतगत आठ
वर को मानक वर क मा यता द गई है िजनके वारा हम संसार क कसी भी भाषा के
वर के उ चारण को ठ क-ठ क आकलन कर सकते ह । ये आठ वर िज वा के काय पर
आधा रत है । कस वर के उ चारण म िज वा ऊपर उठकर मु ख ववरण को संकरा बनाती है
और िजसका उ चारण करते समय ववरण खु ला या अधखुला रहता है । कौनसा वर िज वा के
अ भाग वारा बोला जाता है, कौनसा म य भाग से और कौनसा प च से । इसका वै ा नक
व लेषण ह मान वर क अवधारणा का आधार है ।
174
भारतीय याकरणारचाय ने अ ववृत अध संव ृत क सं ा से वर का जो वग करण
कया उसी के अ और प च के वभाजन का संयोजन कर मान वर का चतुभु ज तैयार कया
गया । अत: मान वर क संक पना को आधु नक भाषा व ान का मौ लक अवदान नह माना
जा सकता य क इसका बीज भारतीय याकरण म ह मौजू द है ।
आधु नक काल म इस अ ययन को जॉन वे लस ने शु कया । उ ह ने वर के
उ चारण म िज वा क ि थ तय का अ ययन कया जो काफ कु छ ववृत -सवृत और अ -
म य-प च क भारतीय अवधारणा से मेल खाता ह । काला तर म हे लबेग वारा वर का एक
भु ज बनाया गया िजसम पांच वर थे । भु ज इस कार है–––
175
रे खाएं अ और प च क । इस नमो से हम एक नजर म जान लेते ह क ई- ऊ संव ृत वर
ह, ए-ओ अथ संव ृत , अँ-ऑ अथ नवृत तथा अ-आ पूण प से ववृत ।
य द हम कसी भाषा म कसी वर का सह उ चारण जानना चाहते ह तो उसे चतु भु ज
म एक नि चत ब दु पर चि नत कया जा सकता है । उदाहरण के लए ह द के अ का
ि थत अ ववृत न होकर म य अध ववृत क है । ले कन रहना-सहना म थम यंजन का
अ अ अध ववृत है जो मान वर अ के नकट है ।
176
एक व न है 'ल' । य द हम 'उलटा', 'लो', 'ले' तथा 'ला' इन चार श द का सावधानी से
उ चारण करे तो जीभ क , पश-ि थ त पर यान दे तो प ट हो जाएगा ल' ('उ टा का ओके
उ चारण मे जीभ उलट जाती है ल' (लो) दांत क और थोड़ा आगे से उ चा रत होता है, ल'
(ले) और आगे से तथा ल4 (ला) और भी आगे से । अथात 'ल' श द के इन श द म चार
त न ध (ल ल ल ' ल :) ह और चार के उ चारण- थान एक दूसरे से कु छ-कु छ भ न ह ।
1 2 3 4
177
अं ेजी के ऑ फस, े टर, बक आ द श द म भी अब ऑ और अँ व नय को ह द
क कृ त के अनु प बना लया गया है । अब ाय: पूर क पूर आगत श दावल ह द
व नय का योग करती है । व नम प रवार के सद य को सह वन या सं वन कहा जाता है
। व नम व ान म इनके लए खास च ह का योग कया जाता है । व नम को दो खड़ी
रे खाओं के बीच तथा सह वन को बड़े को ठ (1 वारा द शत करते ह जैसे ।क । (का आ द ।
कसी व नम के सह वन प रपूरक वतरण म आते ह । िजस व या मक संदभ म
'क', का योग होता है उसम''क' क' या य का नह ं हो सकता । येक सह वन का े
सु नि चत है । इस लए कसी कार के अ त मण के लए थान नह ं । इस बात को ड ध न
प ट कया जा सकता है । । 5 । के दो मह वपूण सह वन है (5 )
2
के दो उदाहरण से और
व न है और (5 ) उत इ त । भ नता को लए उि स त S को ड़
2
पश प ट करने के
लखा जाता है । इन दोन के योग का े सु नि चत है । (5') का योग नीचे द गई
ि थ तय म होता है :-
1. श द के आर भ म जैसे - ड लया, डाकघर, डर, डम , डाल , डंगल आ द
2. श द के बीच म अनुसार के बाद जैसे - मंडन, ठं डक, कं ु डल , खंडन आ द ।
3. श द के म य म अनु वार के पहले आडंबर, वडंबना आ द ।
4. श द के म य म व व क ि थत म वडंबना आ द अ डा, ग डी आ द (52) के
योग क ि थ तयां न नानुसार है:-
अ श द के म य म (अनु वार से पूव , अनु वार के बाद और व व क ि थ तय के
अ त र त) - सड़क, पकडना, झडप आ द
व. श दा त म (अनु वार के बाद क ि थ त को छोड़कर)-जड, झाड, पतझड आ द ।
इसे इस प म अं कत कया जा सकता है-
। 5 । - (51)(52)
। ढ । के सह वन को भी ब कु ल । 5 । ह क तरह दखाया जा सकता है जैसे (दै ) का
योग श द के आ द म होता है ढोलक, ढे र, ढलान आ द
(ढ2) का योग श द के म य तथा अंत म जैसे पढ़ाई, चढ़ना, गाढ, ढू ँ ढ़ा, ढ़, आ द ।
गौरतलब है क सं कृ त के त सम श द म ड़, ढ, उि त नह ं थे ले कन अब ह द म
त सम श द भी त व श द क भां त उपयु त वतरण के भीतर आते ह सं कृ त के पीड़ा,
ड़ा, ढ़ गाढ ह द म मश: पीड़ा, डा, ढ, और गाढ़ बोले तथा लखे जाते ह ।
ह द क वग के व नम को न न प म लखा जाएगा -
।क। [क ] [क ] [क ] [क4] [क ]
1 2 3 5
।ख। [ख ] [ख ] [ख ] [ख4] [ख ]
1 2 3 5
।ग। [ग ] [ग ] [ग ] [ग ] [ग ]
1 2 3 4 5
।घ। [घ1] [घ ] [घ ] [घ ] [घ ]
2 3 4 5
178
आपको बताया जा चु का है क कसी भाषा के भ न- भ न व नम य तरे क क वतरण म
आते ह अथात जहाँ एक व नम का योग होता है वहाँ उसी अथ म दूसरे का योग नह ं
कया जा सकता । ये अ यायवत , होते ह । इस बात को आप को समझाने के लए यूनतम
वरोधी यु म के उदाहरण दए जा रहे ह
क ल-खील - इन दोन श द पर गौर क िजए इनम क और ख को छोडकर शेष व नयाँ समान
है । क और ख भी यूनतम वरोधी यंजन है, दोन अघोष और पश ह तथा दोन का
उ चारण थान कोमल तालु है । य द अंतर है तो केवल ास व का ख महा ाण व न है तो
क अ प ाण । इस जरा से अ तर से दोन श द के अथ एकदम अलग हो गए ह जहाँ क ल
का अथ लोहे का एक नुक ला टु कड़ा है वह ं खील का अथ भु ना हु आ धान । एक और उदाहरण
दे ख––
काल -गाल इन दोन श द पर भी गौर कर तो दे खगे क और ग के अ त र त अ य व नयाँ
यहाँ समान है और समान म म आई है । उ चारण समान है और समान म म आई है ।
उ चारण थान और आ यंतर य न क ि ट से भी दोन समान है । अ तर मा यह है क
जहाँ क अघोष है वहाँ ग घोष । इस घोषता एवं अघोषता के कारण दोन श द के अथ
नता त भ न हो गए ह जहाँ काल रं ग के अथ म यामलता का पयाय है बड़ी गाल का अथ
अपश द है ।
इसी कार च वग ट वग, तवग और प वग व नय के भी यूनतम वरोधी यु म बनाए जा
सकते ह जैसे-
1. चल-छल चल-जल, जड़-झड़
2. टालना-डालना टे र-ढे र डेला-ढे ला
3. ताल-दाल ताल -थाल , तन-धन
4. पल-पल पल-बल, बला-भला
उपयु का श द यु म पर यान द तो प ट होगा क ह द म येक वग म कम से कम चार
यंजन है । अघोष, अ प ाण, अघोष-महा ाण घोष अ प ाण और घोष महा ाण । इ ह पर पर
य तरे क क ववरण म गना जाता है । एक यासा यि त य द पानी चाह रहा हो तो उसे
पका ह उ चारण करना पड़ेगा य द वह पानी क जगह बाक -बाक च लाए तो उसका आशय
कोई नह ं समझ पाएगा ।
6. व नय का नधारण करने म प रपूरक वतरण और य तरे क वतरण का यह सू
अ य भाषाभा षय अथवा शशु ओं (जो अभी नया-नया बोलना सीख रहे है) पर लागू नह ं हो
सकता । एक अं ेज य द अपने भारतीय रसोइए को आदे श दे ते हु ए कहे 'खाना बनाओ' तो वह
खाना बनाना ह शु करे गा कसी क आँख फोड़कर उसे काना बनाने का अथ कसी प म
उसके दमाग म नह ं उभरे गा । ऐसी ि थ त म क-ख का अंतर अथ भेदक नह ं होगा । ोता
व ता क क-ख क व न भ नता को नजरअ दाज कर उसका पूव नि चत ढ़ अथ ह
समझेगा । यहाँ अं ेजी भाषा-भाषी के क और ख क अ भ नता का भाषा वै ा नक कारण है ।
अं ेजी म क और ख दो व नक नह ं है केवल एक ह 'क' है जो ह द के अ प ाण क क
179
तु लना म इंचमा महा ाण है और ख क तु लना म थोड़ा सा अ प ाण इस लए अं ेजी म
बकॉज और बखॉज ह द के कान और खान क तरह अलग-अलग श द नह ं है ।
अं ेजी ह य भारत म ह पूव तर क कु छ भाषाओं म काल -खाल एक ह तरह उ च रत
होते ह ले कन वहाँ अथ हण ठ क-ठ क होता है । अं ेजी म त और द व नयाँ नह ं है अत:
तु लसीदास का टु लसीदास बन जाना सहज वाभा वक है य क त और ट क नकटतम
व नयाँ ट और ड है । इसी कार बंगला और उसक भाषा म ओकारा तता है अत: अ का
उ चारण वतु लओ क तरह कया जाता है इसके कारण अ य सहज ह ओजोय तथा भजन
भोजोन बन जाता है ले कन इसके कारण सं ेषण म कोई अवरोध नह ं आता । यह या
मु त वतरण कहलाती है ।
शशुओं के मु ँह से नचल वाल म भी मु त वतरण क ि थ त ट य है । शशु र सी को
ल सी और हाथ को हात कहने पर भी लोग समझ लेते ह क वह या कहना चाह रहा है ।
व तु त: मान सक यवहार एक मनोवै ा नक या है । अगर व नम खलन व ता और
ोता के म य बाधक नह ं है तो उसे मु त वतरण का उदाहरण मानना चा हए ।
इस कार वतरण के संबध
ं म तीन सू मरणीय ह:-
1. एक व नक के सह वन पर पर प रपूरक वतरण म पड़ते है ।
2. दो व नम एक दूसरे के पूरक नह ं हो सकते । वे य तरे क वतरण म आते है और
अ यायवज होते है ।
3. य द व ता तथा ोता के म य व नय का गलत योग सं ेषण म बाधक न हो तो
उसे मु ता समझना चा हए ।
9.6 व नम के स ब ध म सहायक स ा त
नीचे कु छ वशेष स ा त के बारे म बताया जा रहा है जो कसी अ ान भाषा के
व नम के अ ययन म सहायक होते ह-
1. वतरण का स ा त- यह स ा त कसी भाषा के व नम और सह वन के अ ययन
म सवा धक व वसनीय आधार दान करता है व ान के नयमानुसार जो व नयाँ
प रपूरक वतरण के अंतगत आती ह उ ह एक ह व नम के सह वन के प म
मानना चा हए । इसके वपर त जो य तरे क वतरण म आये उ ह वतं व नम क
सं ा दे नी चा हए ।
प रपूरक वतरण का व प सहअि त व क भावना के समान है । िजस कार एक
प रवार के व वध सद य पर पर अ वरोधी होते ह, उसी कार सह वन भी एक दूसरे .
के अ वरोधी होते है और उसके अपने े सु नधा रत-सु नि चत होते ह । (उदाहरण
पहले दये जा चु के ह) ।
इसके वपर त दो व नम कभी एक दूसरे के पूरक नह ं होते । वे तो पर पर य तरे क
होते ह कर ब-कर ब एक दूसरे से असहयोग सा करते हु ए । य द एक क जगह दूसरे
का योग कया जाए तो (मु त ववरण के अ त र त) समु चत अथ सं ेषण नह ं होगा
बि क कभी-कभी नता त भ न अथ क ती त होगी- वह तो ब कु ल काल है' और
180
वह तो ब कुल खाल है म एक जहाँ याम वमा का घोतन करता है वह ं दूसरा
यथता या बेकार के अथ का बोध कराता ह । यहाँ एक व नम भर बदलने से सारे
वा य का अथ प रव तत हो गया है ।
2. व या मक समानता का स ा त- व न व ान मे थान आ य तर दान और बाहय
य न के आधार पर वर तथा यजन के व प नधा रत कए जाते ह । व नम
के नधारण म यह सवा धक मा य एवं व वसनीय कसौट है । इस व ध म समान
उ चारण थान और समान य न वारा उ चा रत दो व नय का एक ह व नम के
सह वन माना जा सकता है । ले कन जब थान, आ यंतर- य न और बाहय य न
मे से कोई भी प रव तत हो जाता है तो भ न व नम का उ चारण होता है । कान,
नकल और अं कत श द का दे खे तो इनके यु त क' कS क' के उ चारण म अ तर
होने के बावजू द ये तीन कामल तालन अघोष, अध ाण पश व नयाँ ह । इस कारण
तीन के वल सह वन ह, भ न व नक नह ं । भाषा व ान के श दावल के थान
और य न क अ भ नता इ ह एक व नम के सह वन- मा णत करती है ।
इसके वपर त काल खाल और गाल श द म यु त क और ग भ न- भ न व नम
ह, य क कोमल ताल य रहने के बावजू द बाहय य न क पुि ट से व भ न ह जहाँ
क अघोष अ प ाण है वहाँ ख अघोष महा ाण तथा ग घोष महा ाण ।
कभी- कभी इस नयम के अपवाद भी ि टगत होते है । उदाहरण के लए ड और ड़
ह द म एक ह व नम के सह वन ह जब क इनम व या मक एक पता नह ं है ।
ड पश है ड़ उि त । आ यंतर य न क भ नता को दे खते हु ए इ ह वतं
व नम माना जाना चा हए । यह अपवाद न होकर अपवादा-मास क ि थ त है । इस
तरह क य न भ नता अ य भी प रल त क जा सकती ह । उदाहरण के लए
ह द का चवग पश संघष वग है ले कन चु प, चोर आ द वर मे प च वर मे
प च संयोग वाला च उतना संघष नह ं होता िजतना अ वर के संयोग वाला
चकना, ची कार आ द श द का च । इस कार व या मक एक पता के व नम
नधारण क नद ष कसौट माना जा सकता है ।
3. ढांचे का स ा त- दु नया क हर भाषा का एक व या मक ढांचा होता है िजसके
आधार पर उस भाषा वशेष के व नम को नधा रत कर सकते ह । उदाहरण के लए
ह द को ल तो दे खगे इसके येक यंजन मे उ चारण थान से संबं धत एक वग है
क वग का कोमल ताल य. चवग का ताल य, टवग का मू ध य, तवग का द य और
चवग का ओ टय । इसके बाद चार यंजन अंत थ फर तीन उ म और अंत म
महा ाण है । एक म म 'यह ढांचा सजा हु आ है । इस स ा त से अप र चत भाषा
मे व नम पहचानना भी सहज है जैसे य द कोई वदे शी ह द के यंजन को सीखना
चाहे और उसक सं ह त, व नय मे कह ढ वन न आया हो तो इस ढांचे से उसे
पता चल जाएगा क जब येक वग मे घोष महा ाण यंजन क अवि थ त है तो इस
व न का होना ह चा हए और वह फर से व नय को एक करने क चे टा करे गा ।
181
ढांचे का स ा त वतरण या व या मक समानता के स ा त क भाँ त पूर तरह
व वसनीय नह ं है । अं ेजी यंजन के नधारण म तो यह नता त असफल है ।
4. व या मक संदभ का स ा त- व नम नधारण क सव तम एवं व वसनीय कसौट
है यह स ा त । इसके अनुसार जो वन श द के आ द, अध और अ त सभी
व या मक संदभ मे आए उसे सह वन मानना चा हए । उदाहरण के लए ह द के
ना स य यंजनो क इस कसौट पर जाँच कर, तो जो न कष नकलगे वे
न न ल खत प म ह ।
न यंजन-
(1) श द के आ द म- नर, नाक, नीर, नीम
(2) श द के म य म- अनेक, अनोखा, अ नि चत, अना मका
(3) श द के अ त म- पवन, दांत, दन, दमन ।
इसके अलावा 'न' व न का योग सभी वर के साथ होता है जैसे नर नाम, नतांत,
नुक ला, ने , नहर, नोक, नौका ।
सभी संयु त यंजन मे 'न' का योग दे खा जाता ह । जैसे- यास, याय, अ वेषण
आद ।
म यंजन-
(1) आ द का योग- महु आ, माया, मकान, म हमा ।
(2) म य योग - अमीन, समान, उ मोचन ।
(3) अ त योग- कोम, काम, दाम, ेम ।
(4) वर संयोग- मल, माल, मलन, मीत, मु कुर, मू क, मेल, मैदान, मोदक, मौसम ।
(5) यंजन संयोग-मलान यान, यु न सा य ।
(6) वत-सममान स मेलन स मोहन ।
शेष न सका यंजन म ड़ और जैसे- पडखा, रं डूगी, अ च, य चा आ द म । श द म
आ द म ण का योग नह ं होता इसके म य. अ य और अनु वार के वक प प म
योग मलते ह ।
(1) म य योग- प रणय, योग ।
(2) अंत योग- वण, दपण,. या ।
(3) अनु वार का वक प- घ टा, म डल, अ डा ।
इस कार व या मक संदभ के स ा त के आधार पर इन तीन को 'न' के सह वन
माना जा सकता है । गौरतलब है क सं कृ त याकरण म र ष और ऋ के बाद अगर
न' आये ता उसे ण बना दे ने का वधान है । इस या को ण व वधान कहते ह ।,
जैसे- ऋण, ण, अ वेषण ।
5. अ धक भेद और अ धक अभेद का स ा त- यह एक यावहा रक स ा त है िजसे
मत ययता का स ा त भी कहा जाता ह । इसके अनुसार व नम के नधारण म यह
182
सावधानी रखने क ज रत है क हम कसी सं वन को व नम मानकर उसके अ धक
भेद न नधा रत कर ल अथवा कसी व नम को सं वन मानक व नम के कम भेद
न नधा रत कर ल ।
इस स ांत का सबसे बड़ा दोष यह है क यह अ ययनकता के ववेक पर सब कु छ
छोड़ते हु ए व नम नधारण क कोई कसौट तु त नह ं करता ।
9.7 व नम के भेद
ऊपर वन और व नम के बारे म आपने जो पढ़ा उसके आधार पर व नम के चार भेद कये
जा सकते ह- के य, प रधीय, खंडय एवं अखंडय जो व नम भाषा म सामा य प से अथ
भेदक तथा य तरे क होते ह, उ हे के य मु य तथा जो कु छ सी मत लोग, सी मत श द व
सी मत प रि थ तय म यु त होते ह । इ ह प रधीय गौण व नम कहते ह इन दोन के
अ त र त खंडय एवं अखंडय व नम वशेष व नम भेद ह िजनके बारे मे व तृत चचा क जा
रह है ।
(3) खं य व नम वे व नयाँ ह िजनका पृथक् एवं वतं उ चारण संभव है । इनका
वतं अि त व भी होता ह । यथा अ इ उ क च, प, त इ या द ये य त एवं
वभा य भी ह ।
(4) अखं य व नम को खं येतर व नम भी कहा जाता ह । इन व नम क कोई वतं
स ता नह ं होती ह । ये खं य व नम पर नभर रहते ह । अखंडय व नम कई
कार के होते ह-
(क) मा ा:- यह एक मह वपूण अखंडय व नम है । इसे द घता भी कहते ह । सार
एवं यंजन मे मा ाओं क वजह से अंतर उ प न होता ह । वर मे मा ा
भेद व, द घ एवं लु त तीन-तीन भाग मे बंटा ह । यथा अ,आ, इ, ई के
उ चारण मे फक ह । यंजन व नय म संयु त यंजन उ चारण म दुगन
ु े
समय क मांग करते ह इससे अथभेद होता ह यथा बचा एवं ब चा, पका
प का इ या द ।
(ख) सु र या सु रलहर:- इनका भाव श द एवं वा य दोन पर पड़ता ह ।
वरतं य पर पडते दबाव के आधार पर इनके तीन भेद कए गए ह-
(1) उदा त (उ च), 2) व रत (म यम), 3) अनुदा त ( न न) । सु र से अथ
म भी अ तर आ सकता है-
वह मर गया । (सामा य)
वह मर गया? ( नवाचक)
वह मर गया! ( व मय)
(ग) बलाघात:- बलाघात म कसी श द अ र या वा य पर अ धक जोर डालकर
उ चारण कया जाता ह । यह फेफड़ से आने वाल वायु क ती ता पर नभर
183
करता है । इसके चार भेद कये गये ह- व) ती , 2) मंद, 3) संि ल ट,
4)ह न ।
(घ) संगम:- श द एवं वा य मे कु छ व नयाँ संयु त प म कु छ ऐसे मलती है
क पद छे द अथवा य त के वारा उनके व वध अथ का योतन होता है ।
संगम पर हमने व न गुण के संदभ म हमने पूव म ह चचा क ह । अत:
इस पर यहाँ पुन : बात. करना असमीचीन ह । ये अभंग, सभंग एवं सभंगाभंग
इन तीन प म भाषा म मलते ह ।
(ङ) अनुना सकता:- अनुना सकता से भी अथ भेद पैदा होता है । इनमे ना सका
ववरण उ चारण के व त मह वपूण भू मका अदा करता ह । यह व नम
यूनतम वरोधी यु म म भी उपल ध ह । यथा-गोद-ग द, काटा-काँटा, रग-रं ग
इ या द ।
9.8 व न मक व लेषण व ध
(1) साम ी- संचयन:- कसी भी जी वत भाषा के व नम को छांटने के लए उसको बोलने
वाले यि त से उस भाषा के वा य, े षत को सु नकर संक लत कया जाता ह । िजस
यि त को मा यम बनाकर यह काय कया जाता है, उसे सू चक कहते ह । य द कसी
मृत भाषा के व नम का व लेषण करना हो तो उसके सा हि यक प से यह काय
कया जाता है ।
(2) व या मक लेखन:- उपयु त संक लत साम ी का व या मक लेखन क सू म
तलेखन प त से लखा जाता ह । इसे वर एवं यंजन क सू मताओं का संकेतन
भी होता ह । इससे बलाघात, सु र आ द का भी उ लेख कया जाता ह । इसम
उ लेखनीय बात न न होती है-
(क) वर:- (1)वह घोष अथात जी वत, कस कार का है, (2) वह ह व द घ या
लु त ह, (3) वह संव ृत या नवृत ह, (4) वह अनुना सका है या अनुना सक ।
(5) वह अ , म य या प च वर है । (6) वह बलाघात या सु र से यु त है
। (7) वह आ रक है या नह ं य द आ रक है तो कस प म । (8) वह
अवृतमुखी या वृ तमु खी ।
(ख) यंजन:- (1) कं य, ताल य आ द थान म से उसका थान या है । (2)
या वह अपने मू ल प म उ चा रत ह अथवा अ य प म? (3) य न क
ि ट से वह संघष , प ट या ईषत ् प ट है? अपने असल प से अलग ता
नह ं । (4) अधर क ि थ त केसी है । (5) पश पूण है या अपूण , कह ं
फो टत या अ फो टत तो नह ं । (6) अनुना सक है या अनुना सक ह । (7)
आ रक है या अना रक ।
7. व नम को छांटने क या:- कसी भी भाषा म व नम को न न व ध से छांटते
ह:-
184
(क) सू चक वारा संक लत साम ी का संकलन एवं उसे म-ब कये जाने क चे टा
। (2) उसका तु लना मक पर ण । (3) उसका व नय के साथ संयोजन ।
(1) सव थम एक चाट तैयार करके येक व न से ार भ होने वाले श द का अलग-
अलग नोट कया जाता है । इसम यह भी नोट कया जाता है क या कसी वन
का कसी वशेष व न के साथ ह आगमन हो रहा है यह भी दे खा जाता है क
संद भत व न कस थल (आ द, म य या अंत) पर अवि थत है ारं भक व नम
िजन व नय के साथ जु ड़े होते है, उ ह पृथक नोट कया जाता ह । ारं भक व नम
क सू ची बनने के बाद म य एवं अं य व नम क सू ची बनाई जाती ह ।
(2) तु लना मक अ ययन वारा येक व न म फक दे खा जाता है । वरोधी व नम को
छांटकर अलग कर दया जाता है ।
(3) आ द, म य या अंत म येक व नम कन व नय से संयु त ह, इसका ववरण
भी) दया जाता है ।
व नम का वग करण: कस सं वन को कस व नम (जा त) म रखा जाएगा, इसके
सामा यत: तीन नयम ह: 1) वतरण, 2) समानता 3) कायगत एक पता । ये तीन गुण
िजन व नय म ा त होते है, वे एक वग क व नयाँ ह । वतरण मे यह दे खा जाता है क
व नयाँ कन प रि थ तय मे आयी है । िजन प रि थ तय म एक वन यु त हु ई है, उसी
मे दूसर वन यु त नह ं होती । य द उन प रि थ तय म दूसर वन यु त हो भी जाए
तो अथभेद हो जाएगा । यथा कान, मान, पान, दान इ या द । थान और य न क समानता
ह समानता म दे खी जाती है । थापना और य न क वषमता से व नम मे व भ न होगा
। काय क एक पता से ता पय है क य द काय मे फक है तो पूरक एवं सहायक होने पर भी
उसे अ य व नम माना जाएगा ।
185
8. सु र लहर- श द और वा य पर भाव डालने वाल व न तरं ग- इसके तीन भेद होते
ह उदा त, अनुदा त और व रत ।
9. वादे ि य- खाने के वाद को महसू स कराने वाल इि य मु यत: िज वा ।
10. व रत- सु र लहर के भेद म से (म यम) इसम आरोह तथा अवरोह होता है ।
11. अ भकाकल- िज वामूल के पास ि थत एक मांसल भाग ।
12. मू धा- कठोर तालु के पीछे क और ि थत अं तम भाग ।
13. मान वर-आठ सवजनीन वर िज ह मानक वर क मा यता द गई ह । जॉन वे लस
ने इसके लए एक भु ज तीक बनाया है ।
14. लु त- ह व और द घ के बीच क वन ।
15. व न मक- व नम से संबं धत ।
9.10 सारांश
व न बहु त ह मह वपूण त व है य क अ भ यि त क संह वका तो वह वयं ह है
। वागवयव वारा मानव. व न तो उ प न करता है, साथ ह उससे अपने अ भ त
े के
काशनाथ यो य भी बनाता है । ये वागवयक व न के साधक ह । फेफडे, वासनल . सनी
जहाँ व न उ पादन म परो भू मका नभाते है, वहाँ वरतं ी, वरतं , काकल, अ भकाकल
गल बल कौवा, नास ववर, कोमलतालु मूधा, कठोर तालु, व स, दं त, ओ ट तथा िज वा य
भू मका का ' नवाह करते ह । मानव व न का श द के वा य म परोकर भाषाभी यि त
करता है । व नगुण वे त व होते ह जो वा य का मू त प दे ने के साथ, उनम प रवतन क
ि थ त पैदा करते ह । मा ा, आघात, वर, संगम एवं वृि त के प म व न गुण वा य म
व यमान रहते ह । व नम कसी भाषा क नजी स प त है । ये समान व नय का
त न ध व करते ह । व अथ प रवतन के कारक है । ये खं य एवं अखं य दो कार के होते
ह । खं य व नम तं होते ह । इनका उ चारण भी सहज ह । यथा- अ आ, क इ या द ।
अखं य व नम मे मा ा सु र, सु रलहर, बलाघात, संगम एवं अनुना सकता का उ लेख कया
जाता ह । ये वर तं नह ं होते और ये खं य व नम पर उ चारणाथ नभर होते ह । इन
व नम को संकलन एवं व या मक लेखन करने के म म व वध म म उनका वशलेषण
भी होता ह । येक व नम के एक या अनेक सं वन होते ह । ये व नम सभी जाती क
ईकाइयाँ ह । ये ह उ चारण म य प से व नत होते ह ।
सह वन (सं वन) व नम के वे प है िजनका यवहार होता ह । भाषा म सं वन ह
य होते है व नम नह ं । व नम य द एक जा त का त न ध व करते ह तो सं वहन उस
जा त के यि त वशेष का । यथा- काम, कभी आ द म क व जा त (गे व नम ह । एक
व नम के अनेक सं वन हो सकते ह । सं वन के भेद से व नम म अंतर नह ं होता है । बाद
क व न के आधार पर 'क' के उ चारण म भेद हो सकता ह । यथा काल, कु ल करनी कल न
य आ द । ऐसे वहन को क', क', क' इ या द के प म लखकर फक दखाया जाता है ।
186
सह वन अथमड़क नह ं होते ह, क को कसी भी थान से उ चा रत कया जाए कंठ म या
उसके आगे-पीछे के थान से उसके अथ मे अंतर नह ं आएगा ।
9.11 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. वागवयव का प रचय दे ते हु ए उनके काय बतलाइये ।
2. व नगुण या है? इसके व भ न प का प रचय द िजए ।
3. व नम के व प एवं संक पना का व लेषण किजए ।
4. व नम के अ ययन म सहायक क ह ं दो स ा त का प रचय द िजए ।
5. व नम के भेद का सोदाहरण ववेचन क िजए ।
ख. लघू तर न
1. मान वर पर ट पणी ल खए ।
2. प रपूरक वतरण का आशय प ट क िजए ।
3. व नम के वतरण के संबध
ं मे कौन से तीन सू स ह ।
4. व या मक संदभ का स ांत को प ट क िजए ।
5. ख ड और अख य व नम मे अंतर सोदाहरण बताईये ।
ग. र त थान क पू त क िजए
1. वृि त का अथ है..................................... ।
2. आधु नक काल म मान वर का अ ययन............................................. ने शु
कया ।
3. ................................ अथ भेदक नह ं होते ह ।
4. ...................................... िज वा का शेष भाग है ।
5. दो व नम कभी एक दूसरे के........................................ नह ं होते ह ।
घ. सह ' गलत पर नशान लगाइये
1. येक भाषा क नजी ' व न मक होती है । सह /गलत
2. वलं बत वृ त के भेद म से एक ह । सह / गलत
3. कसी व नम के सह वन प रपूरक वतरण म नह ं आते । सह गलत
4. बंगला और असमी भाषाओं म उकारा तता ह । सह गलत
5. खंड, व नम वतं नह ं होते ह । सह गलत
9.12 संदभ थ
इकाई 8 म दए गए संदभ ग थ म इस इकाई के अ त र त अ ययन म सहायता ल
जा सकती है ।
187
इकाई-10 प संरचना : प क अवधारणा
इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना
10.2 प संरचना. प क अवधारणा
10.2.1 प व प एवं प रभाषा
क. श द तथा प (पद)
ख. अथ त व एवं संबध
ं त व
10.2.2 पम एवं स प क प रभाषा
10.2.3 पम नधारण प त
10.2.4 पय तथा सं य का अंकन : प त
10.2.5 पम के भेद
10.2.6 पम के काय आधार, याकर णक को टयाँ
10.2.7 प प रवतन क दशाएं तथा कारण
क. दशाएँ
ख. कारण
10.2.8 प व नम व ान
10.3 वचार संदभ/श दावल
10.4 सारांश
10.5 अ यासाथ न
10.6 संदभ थ
ं
10.0 उ े य
तु त इकाई के अ ययन के प चात ् आप-
प व ान एवं पम व ान क अवधारणा एवं संरचना पर काश डाल सकगे ।
श द' तथा प एवं 'अथ त व तथा संबध
ं त व का वा य संरचना म अवदान तो
न पत कर ह सकगे, साथ ह इनके पार प रक अंतर को भी रे खां कत कर सकगे ।
भाषा व ान म प एवं पम व ान के मह व को का शत कर सकगे ।
कसी भी भाषा के पम एवं सं प का नधारण कर सकगे ।
10.1 तावना
'भाषा' के सम अ ययन हे तु उसे वभ न वभाग म बाँटा गया । 1 वन एवं
व नम व ान 2. प एवं पम व ान,. 3. वा य व ान तथा 4. अथ व ान भाषा के वे
मू ल वभ त ह, िजनसे भाषा क बाहय ओर आंत रक संरचना के वै श य का पता चलता है ।
188
इसी लए इ ह भाषा व ान का मह वपूण वभाग वीकार कया जाता है । व तु त: भाषा के दो
प ह- अनुभू त एवं अ भ यि त अनुभू त प सीधे अथ से संब है । अत: भाषा व ान क
िजस शाखा म भाषाओं के अथ प का अ ययन कया जाता है, वह अथ व ान कहलाता है ।
इस शाखा का संबध
ं दशनशा ओर मनो व ान से अ धक रहता है । कं तु भाषा व ान क
भी यह अ नवायता है ।
भाषा व ान क उपयु त थम तीन शाखाओं का संबध
ं अ भ यि त प से है ।
व तु त: भाषा और भाषा व ान का ज म ह वन एवं व नम व ान से होता है । य द वन
नह ं तो भाषा का अि त व ह नह ं । वन भाषा क लघुतम इकाई है, इनम अथ नह ं होता
कं तु अथ प रवतन क मता होती है । यथा - पल, चल, हल । यहाँ एक ह ि थ त म
यु त प, च, ह के प रवतन से तीन श द का अथ बदल जाता है । ' वन' के वपर त ' प'
(पद) एक अथवान इकाई है । अथात ् इनके एक नि चत श द कोशीय अथ होते है । कं तु
श द को सीधे कथन (वा य) म यु त नह ं कया जा सकता । हर भाषा के अपने याकर णक
नयम होते ह और वा य म यु त के लए इ ह याकर णक नयम के अनु प प रवतन
करना होता है । यथा ' याम पु तक पढ । इनम तीन कोशीय श द ह, इनका कोई अथ
अ भ ेत नह ,ं इसी कार रावण राम मारा' । यहाँ भी, य द हम ऐ तहा सक प र े य म न जाएं
तो प ट नह ं हो पाता क कसने कसको मारा । इन दोन श द यु म को य द लखा या
बोला जाए - ' याम ने पु तक पढ़ , रावण को राम ने मारा' तो अथ प ट हो जाता है, श द
क पर पर संब ता भी प ट हो उठती है । य द यान से दे खा जाए तो मश: ने ई, को, ने,
आ एवं वा य म पु तक का थान (कम) अपना अपना याकर णक काय कर रह ह । वह ने,
-ई, को, ने -आ एवं वा य ने कम का थान ह कोशीय श द के व प का प रवतन कर नए
प दे ने के साथ-साथ उसे नए अथ से सपूत। करता है । दूसरे श द म वा य म यु त यो य
बनाने क या प न मत क या है, और इस या क पूणता ह ' प-संरचना' क
पूणता है । कं तु कभी-कभी यह भी दे खा जाता है क एक ह अथ क ाि त हे तु व भ न प
यु त होते ह । यथा- अं ेजी म बहु वचन बनाने के लए कह 'स' (cats), कह ं 'ज' (Dogs)
कह ं एन' (chidron) यु त होता है, इसी कार ह द म भी घोड़े, घोड़ दोन बहु वचन प
ह।
भाषा व ान वे ताओं ने इसके संि ल ट अ ययन हे तु ' पम' ( प ास) क संक पता
क ओर एक अथ क अ भ यि त के लए प रपूरक वतरण म यु त प को 'स प' वीकार
कर उनका एक वग बनाया और उसके त न ध को ' पम' कहा गया । ये प कभी लंग,
और कभी वचन कारक, प तथा वृि त के अनुसार बदलते रहते ह ।
इसके वपर त वा य ' प ' का समू ह तो होता ह है, उसम भी अथ अ भ यि त/ ेषण
क मता होती है । यह मता वा य संरचना म नयत थान पर यु त प के कारण
तभा षत होती है । ह द वा य संरचना म मश: कता, कम एवं या का थान ाय:
नधा रत है, इसके वपर त अं ेजी म यह म है - कता, या, और कम । रावण को राम ने
189
मारा' । कता के थान पर यु त होकर भी 'रावण' 'को' से संयु त होने के कारण राम के कम
को ह अ भ य त कर रहा, कता राम' है । वैसे वा य का म होना चा हए था राम' ने रावण
को मारा । प टत: वा य केवल थान भेद के कारण प के अथ को नया प दे ता है, कं तु
' प' मू लत: वना मक याकरणा मक व प है, वह याकर णक अथ दे ता है । व तु त: वा य
क सांके तकता प के सह याकर णक व प न मत म ि थत है । अ तु असल
याकरणा मक संरचना प है और भाषा वशेष के याकरण के अनुसार इनम होने वाले
प रवतन भा षक प रवतन तथा अलगाव, दूसर भाषा से पाथ य के योतक ह- यथा सं कृ त म
राम: पु तकम पठ त जब क ह द म होगा राम(ने) पु तक (को) पढ़ता है यहाँ संबध
ं त व
अलग ह, जब क सं कृ त म मू ल के साथ संयु त ।
ता पय यह क प भाषा क एक मह वपूण याकरणा मक संरचना प त है और
इसके अ ययन के बना कसी भाषा का ान संभव ह नह । इतना ह नह ं प संरचना
मू लत: भाषा समाज क सामािजक चेतना का भी दपण है । यथा-सं कृ त म तीन लंग ओर
तीन वचन के थान पर ह द म दो लंग ओर दो वचन सामािजक चेतना के प रवतन के
द दशक ह । ं त व (
कृ त से अलग संबध यय) का योग भाषा प रवतन का नयामक
बनता है । ह द म पता राजा आ द । श द के साथ कया का बहु वचन म योग ' पताजी
आ रहे ह राजा आ रहे ह यह दशाता है क ह द का समाज बडे और छोटे म बंटा हु आ है ।
अं ेजी म सामािजक वभेद नह ं ''Father is coming son is comming. King is
comming".
प और पम संरचना क इस मह ता को यान म रखकर इस इकाई म प और
पम संरचना क अवधारणा को प ट करने का यास कया गया है । इसी म म इस
इकाई म श द एवं पद तथा संबध
ं त व क या या के साथ पम, स प आ द क प रभाषा
उनके भेद , प रवतन के कारण एवं दशाओं को सोदाहरण तु त कया गया है ।
क. श द तथा प (पद)
ऊपर चचा आई है क श द' ह ' प' बनते ह क तु 'श द' और ' प' दोन का अलग-
अलग अि त व है । सामा यत: बोलचाल म श द और ' प म अंतर नह ं कया जाता और
दोन के लए 'श द' का यवहार कया जाता है; कं तु भाषा व ान क ि ट से दोन म
पया त अंतर है । सं कृ त वैयाकरण ने सु व त एवं तड त को पद कहा । इनके अनुसार श द
क शु प तपा दत कहलाता है । राम, नद , पु तक आ द तपा दक है क तु जब हम
इसके थमा, वतीया, तृतीया आ द के अनुसार एक वचन, ववचन, बहु वचन के इ क स प
न मत करते ह तो यह प(पद) हो जाता है । य क ये, मू ल श द के अंत म सु यय
जोड़कर बनते ह और सु ब त (अथातृ सु प_ृ यय है अंत म िजनके) कहलाते ह इसी कार
190
सं कृ त के या-पद के मू ल प को धातु कहा जाता है । प ' (पढ- ह द ), गम'् आ द धातु
प ह, िजनके अंत म ' त ' आ द यय जोड़कर पठ त पठत:, पठि त आ द प बनते ह ।
अथात ् या प त त है और अ य श द प सु ंव त/सं कृ त वा य म इ ह ं सुव त और
तड त प का यवहार होता रहा है । ह द अयोगा मक और संयोगा मक दोन ाकृ तयाँ ह
। फल व प कह ं यय का योग संयोगा मक प म होता ह- आव यक = आव यकता (-ता
यय का संयोग अथ प रव तत कर दे ता है) । अथात यह एक नया ' प बना और कह ं
अयोगा मक वृि त दखाई दे ती है-राम ने, 'पढ़ रहा आ द ।
उपयु त ववेचन से यह प ट हो जाता है क सं कृ त और ह द भाषा म 'श द' तथा
'पद' पया त अंतर है । बना पद ( प) बनाए कसी भी मू ल श द ( तप दत या धातु का
वा य म योग नह ं कया जा सकता । सं कृ त वैयाकरण का तो' प ट नदश है-. ना वभि तं
पदं यु ज
ं ीत अथात ् वभि त र हत पद का योग भाषा म नह ं करना चा हए । इसी कार
'पा प केवल कृ त: पयो त या, ना प केवल: यय' ' - पतंज ल । अथात ् न तो केबल कृ त
(मू ल श द- तपा दक या धातु) का योग करना चा हए न ह केवल यय (सु प, त ) आ द
का ।
कभी-कभी मू ल श द और वा य यु त श द म कोई पगत भेद नह ं दखाई दे ता ।
इसका ता पय यह है क य द श द वा य क आव यकतानुसार अपने प म- वा य म तु त
होता है तो वह पद' या ' प' कहलाएगा, श द नह ं । अथात ् 'श द' वा य के बाहर व नय के
साथक समू ह क ि थ त है और प (पद) वा य के भीतर श द क साथक पुनसरचना है ।
अयोगा मक या एका र प रवार क भाषाओं म मू ल श द ह वा य म थान भेद से पद त व
का थान हण कर लेता है । वह प नमाण के लए कसी अ य त व वभि त, यय या
उपसग का सहारा नह ं लया जाता ।
उपयु त ववेचन से प ट है क '' प भाषा क याकरणा मक अ भ यि त का
लघुतम मा यम है । ''और ' यह व नम का ऐसा साथक यु म है जो याकरण के अनु प
प रव तत होकर कथन म यवृहत होता है । ' प ह 'पद' ह ये दोन पयायवाची ह सं कृ त म
'पद' का योग च लत था और आधु नक भाषा वै ा नक इसे ' प कहना पसंद करते ह ।
अं ेजी म इसके लए श द है –Morph’
ख. अथ त व एवं संबध
ं त व
प टत: मू लश द/ कृ त, धातु या तपा दक तथा पद म अंतर यह है क मू ल श द
( कृ त) म वा य म यु त होने क यो यता नह ं होती तथा पद म संबध
ं त व जु ड़ने के
कारण यह यो यता आ जाती है । मू लत: संबध
ं त व का काय है- वा य म यु त हु ए श द
म पर पर संब ता के गुण का वकास इस गुण का वकास ह याकर णक संरचना को व प
दे कर वा य को अथवान बनाता है । इस कार कहा जा सकता है- मू ल श द+ संबध
ं त व
(पद) । भाषा व ान म इस मू ल श द को ह अथत व कहा जाता है । अथात ् उसम समाज
वीकृ त यु त अथ हमेशा व यमान रहता है । यथा- 'गाय', 'अ य', 'च मा'., 'पढ, 'जो',
191
रो', 'पी आ द । व तु त: इन श द म अथ चपका होता है, दूसर तरफ संबध
ं त व का काय
वा य म पद का एक दूसरे से संबध
ं था पत करना होता है । यथा 'गाय ने दूध को बछड़े को'
पलाया' । यहाँ 'ने', 'को, 'को', ला+या=लाया वा य से पद से सि न हत संबध
ं अ भ य त कर
रहे ह । दूसरे श दो म यह कहा जा सकता है क संबध
ं त व भाषा क वह या है जो अथ
त व (मू ल श द) म पहले से व यमान अथ को का शत कर दे ती । एक और उदाहरण
अपे त है-
याम रमेश मार
य य प यहाँ उपि थत तीन श द अथत व ह, कं तु यह प ट नह ं है क कसने
ं त व से यु त कर द तो वा य होगा-
कसको मारा । य द इसे संबध
' याम ने रमेश को मारा'
' याम रमेश को मारे गा' आ द
यहाँ यह प ट हो गया है क मारने क कया करने वाला याम है, एवं या से
भा वत रमेश है । वा य(दो) म ' याम, रमेश कता, कम के थान पर यु त होने के कारण
कया करने वाला तथा या से भा वत को अथ दे दे ते ह हां, वा य (2) म अथ त व 'मार'
ं त व 'एम' जु ड़ा है जो भ व यकाल का
के साथ संबध यय (संबध
ं त व) है, जो भ व य म
होने वाल या का संकेत दे ता ह यह (ल न) संबध
ं त व भ व यका लक या का अथ दे ने
वाला पम है ऊपर यह दशाया जा चु का है क मू ल श द (अथ त व) या तपा दक म भाषा
के याकरण क आव यकता के अनुसार ह संबध
ं त व सं त होता है-
म जाता हू ँ ।
म जाती हू ँ ।
वे जाते ह ।
वे जाती है ।
उपयु त चार वा य म 'जाना' या के चार प मलते ह इनम जु ड़े चार संबध
ं त व
ह- आ, ई, ए. ई । 'आ पुि लंग एकवचन का बोधक है, तो ई' ी लंग एकवचन का । 'ए'
पुि लंग बहु वन का बोधक है तो :ई बहु वचन का ।
उपयु त ववेचन से प ट हे क श द ह अथत व है य क श द म हमेशा अथ
चपका रहता है, इस लए उसे ' म भी माना गया है । म से ता पय यह है क उसक
हमेशा व यमानता रहती है, यह अलग बात है क कभी-कभी वह योग युत होकर केवल
कोश क शोभा बढ़ाता है । दूसर बात यह भी है क श द म अथ तो चपका रहता है, कं तु
उसम प रवतन( वकास) भी होता है । बना अथ के श द क प रक पना ह नह ं क जा
सकती, इसी लए भाषा वै ा नक श दावल म इसे अथ त व कहा गया ।
इसके वपर त संबध
ं त व को याकर णक अथ दान करता है, और अथत व को वा य
म यु त यो य बनाता है । प नमाण या म संबध
ं त व का व प दो तरह का
प टत: दखाई दे ता है- 1 एक तो व या मक होता है अथात ् बोलते समय कसी व न या
192
व नसमू ह पर बल 7: आघात दे कर कथानक अथ बदल जाता है । व ोि त इसी तरह का
उदाहरण है । यथा-आप तो पं डत ह । यहाँ 'पं डत पर बल दे कर उसे मू ख कहना तपा य है
। व न/श द पर बल के कारण होने वाले प रवतन के भी कई भेद ह । इनम मु ख ह -
वराघात और बालाघात तथा अप ु त (कु कम, कु कम ) । दूसरे कार के संबध
ं त व यय
होते ह जो काल, लंग, वचन, पु ष , कारक, प , वृि त आ द क अ भ यि त -करते ह । ये
कभी अथत व से जु ड़े होते ह (पु ष व ) और कभी वतं होते ह( याम को) । ह द म कारक
संबध
ं त व को छोडकर अ धकांश अथत व से जु ड़े होते ह ।
193
कसी एक को पम मानकर उप प (स प ) का नधारण कया जाता है । यथा- ह द
ी लंग
पम सह प/सं प
-ई' -ई' (लड़क ), -इन' (नाऊ-नाइन)
-नी' (रानी)
अं ेजी भाषा म सं ा प के बहु वचन बनाने के लए '-स' (s = Works), ज' (-
S=Boys), एज', (es- horses), -एन' (en=oxen), '- रन'(ren-children), तथा 'शू य'
(Sheep) प का योग होता है । यहाँ भी-सं' (S) पम है, शेष उसके सं प/ व भ न ' प
का समू ह स प कहा जाता है, और उसका तनध पम सं प का त न ध व कर''
10.2.3 पम नधारण प त
194
न न ल खत कथन (उ चार) क उपयु त दोन आधार पर पर ा से बात प ट हो
जाएगी-
'वह अपने बड़े भाई के साथ अ छा यवहार करता है ।'' धीरे -धीरे उ च रत कये जाने
पर इसके वाभा वक टु कड़े ह गे-
वह /, /अपने /, / बडे /, / भाई /, / के /, / साथ /, / अ छा' /,/ यवहार /,/ करता /,/
है ।
तु त वा य क न मत म सहायक पम क खोज के लए हम कसी अंश को
लेकर उपयु त न के आधार पर उस अंश क पर ा करगे-
/वह/
(1) / वह जाता है/
/वह पढ़ती है ।
/वह खेलता है ।
प ट है क /वह/ अ य उ चार म भी उसी प म और उसी अथ म यु त होता है
। चु ने उ चार के /वह / एवं इन उ चार के 7वह/ अथ म समानता है । यह ह द का सवनाम
प है जो अ य पु ष म ी लंग तथा पुि लंग दोन म यु त होता है । यह इसका अथ है ।
(2) /'वह/ के संभा वत टु कड़े हो सकते ह-
/व/, /ह/
/ वहाँ / वह / , /वापस/ म टु कड़े यव त तो होते ह पर तु उसी अथ म नह ं यहाँ वह
के /व/', या /ह/ टु कड़ म उपयु त अथ यो तत नह ं है । अ पतु ये दूसरे अथ के जनक ह ।
अ तु ये नरथक ह । न कषत: /वह/ के और साथक टु कड़े नह ं कये जा सकते, इस लए '/वह/
एक पम है ।
(2) /अपने/
/म अपने घर जा रहा हू/ँ
/वह अपने गु जन का स मान करता है/
/वह अपने पता के साथ भोजन कर रहा है/
इन उ चार म /अपने/ लगभग उसी अथ म यु त है । अत: यह एक पम है ।
(2) /अपने/ के न न ल खत टु कड़े कये जा सकते ह-
(क) '/आ/,/ने/
(ख) /अ/, /'पन/'
(ग) /अपन/, /ए/
थम दोन टु कड़े य य प ह द भाषा म अ य उ चार म यु त होते है कं तु
उपयु त अथ म नह ं अ तु ये दोन टु कड़े हमारे काम के नह ं । (ग) टु कड़ा समान अथ म
ह द भाषा के अ य उ चार म भी यु त होता है । /ए/ पुि लंग बहु वचन बोधक यय के
प म /अपने/ /और/ बड़े/ म यु त है/ अत: अपने संयु त पम है- '/अपन/+/-ए/ एवं स प ।
195
'उपयु त आधार के अ त र त पम नधारण म न न ल खत आधार क भी
सहायता ल जाती है-
1. व न मक आधार भ न होने पर भी अथ क समानता के आधार पर पम का
नधारण होता है । अं ेजी के बहु वचन के दो यय /स/ (s) तथा /ज/(-Z) ह । इनम /ज/ का
योग सघोष यंजन के बाद तथा /स/ का योग अघोष यंजन के बाद होता है । व तु त: ये
'/-ज/ /तथा/ /स/ एक ह पम के स प ह' िजनका वतरण प रपूरक है ।
2. भू तकाल बनाने के लए अं ेजी म /-ed/ लगता है कं तु put एवं cut म भू तकाल
बनातेस मय इस यय का योग नह ं होता । ढाँचे क एक पता के लए भू तकाल म इन
धातु ओं म शू य यय का यवहार कया जाता है । यह: शू य उप प कुछ' व या मक कारण
से यव त नह ं होता । यह उप प याकर णक ि ट के मह वपूण है,।
3. कसी संरचना ेणी (structural series) का कार आधार म द एक वतं पम
बन सकता है । जब क यह कट आकार भेद तथा बाद वाला शू य से रचना मक प मलकर
प और अथ क भ नता क या या करते है । यथा Foot, Feet (you-I) संरचना े णी
का आकार-भेद ह िजसके अंत म बहु वचन सू चक कोई यय नह ं लगता । इस ि थ त म
संरचना मक ेणी का आकार भेद (you-I) एक पम का नमाण करते ह ह द म /म/, /वह/,
/तु म/ तथा अरबी म / कताब/ /कु तुब/ /का तब/ आ द म भी यह स ांत कायरत है।
4. सवथा भ न अथवाची सम व या मक प दो भ न ' पम' माने जाते ह । यथा
ह द का /कनक/ दो पम है । एक का अथ ' वण' ह, दूसरे का धतू रा ।
ऐसे सम व या मक प जो अनेकाथ ह तथा उनके अथ संदभ से प ट हो जाएँ तो
वे एक ह पम के स प ह गे । यथा 'मु झे मार', तथा 'मु झे मार पड़ी' म 'मार' श द मश:
या और सं ा ह तथा संदभगत प टता ह । कं तु उसके वपर त वे प जो अनेकाथ ह पर
संदभर हत ह अलग पम ह गे । यथा- ऊपर का उदाहरण -`कनक'/'कनक अ छा नह ं होता ।
इस कथन म संदभगत प टता नह ं है अत: अलग पम होगा ।
10.2.5 पम के भेद
196
(ख) ब पम : वह पम जो सदै व अ य पम के साथ यु त होता है, ब पम
कहलाता है । ी लंग, काल और वचन के यय इसी कार पम है । यथा 'लड़का-
लड़क ' के लड़क म 'ई' ी लंग यय है कं तु यह अलग मु त पम के प म
यु त नह ं हो सकता । यह ि थ त ह द के अ धकांश काल तथा वचन के यय
के साथ भी है ।
(ग) मु त-ब पम : वह पम जो कभी मु त रहता हो और कभी वह मु त ब पम
है । व तु त: इसका े ठतम उदाहरण है ह द (सं कृ त भी) क समास यव था ।
यथा- राजपु ष । इसके दोन पम राज' और पु ष मु त प म भी यु त हो सकते
ह और ब प म भी ।
(घ) संयु त पम य द कसी पद म एक से अ धक पम संयु त ह , कं तु उनम केवल
एक ह अथ त व हो तो उसे संयु त पम कहते ह । घर , नगर , बालक:, बालको,
पंकज, नीरज आ द इसके उदाहरण ह ।
197
होकर, तू, तु म, तु हारे हो जाता है । इसी तरह अ य पु ष म वह वे आप प ट है
क पम ह कस वा या मक संरचना के न न पु ष का बोध कराता है ।
(घ) कारक : ह द म इस को ट के पम का संबध
ं सं ा और सवनाम प से कारक से
कसके आधार पर लगाया जाए यह कारक पम ह यो तत करता है । इतना ह
नह ,ं यह पक म वा या मक संरचना मक म यह पम कता, कम या को
पर पर स ब करता है ।
(ङ) काल : कया प का काल (वतमान, भू त, भ व य) के अनुसार प रव तत कर यु त
होने यो य काल परक पम ह बनाता है । यथा 'म जाता हू,ँ 'म जाऊँगा । यान से
दे खने पर प ट हो जाता है क मू ल या प 'जा वतमान म '- ता', संव ृ त है ।
भू त म इसका प पूणता बदल जाता ह, और भ व य म -ऊँगा ', सं कृ त ह यवसाय
और वषय म 'ऊंगा संयु त होता है । यह संव ृ तता ह काल परक पम है जो वा य
को व भ न काल का अथ दान करता है । पम (भू तकाल) के संदभ म यह बता
दे ना आव यक है क इसम अथत व और संबध
ं त व इस कार मल गया है क
दोन के अि त व का पता नह ं चलता ।
(च) प या कार : इस तरह के पम का भी संबध
ं या से है । यह या ' वार
सू चत काय क पूणता, अपूणता तथा बार बारता का संकेतक है । यथा - वह गया,
वह जाता है, वह जा रहा है ।
(छ) वृि त या अथ : यह भी या के न चयाथ, संभावनाथ, संदेहाथ, अ ाथ और संकेताथ
का संकेतक है । अनेक अथ वाले श द जब पर पर मलकर एक श द के प लेते ह
और कस वशेष अथ को का शत करते ह तो इस या को वृि त कहा जाता ह
यथा - पंकज, कं ु भज आ द इसी कार के पम है ।
(ज) वा य : इस कार के पम से पता चलाता है क काय संपादन का दा य व कता पर
है या वह उससे भा वत होता है । सामा यत: दो वा य मा य है- कतृवा य एवं -
कमवा य । यथा - कतृवा य काटना, तारना, मराना तथा कमवा य म यह पम
बदल कर-कटना, तरना, गराना बनगे और कमवा य का अथ दान करगे ।
क. दशाएं
प प रवतन का े व न प रवतन क अपे ा संकु चत होता है । व न प रवतन के बाद
पुरानी व नय का चलन समा त हो जाता है य क पुरानी व न को समा त करके ह नयी
व न बनती है जब क प प रवतन होने के बाद नए प के साथ पुराने प भी चलते रहते ह
। यह कारण है क कभी-कभी भाषा म एक अथ दे ने वाले अनेक प साथ-साथ मल जाते ह
। पतंज ल ने भी अपने महाभा य म इस त य को वीकार कया है।
प प रवतन क दशाएं अनेक गनाई गई ह । यथा- पुराने प का लोप तथा नए का योग,
(2) सा य के कारण नए प क न मत, (3) अ त र त यय योग, (4) अ त र त श द
198
योग, (5) गलत यय योग, (6) नए यय क न मत, (7) आधा पुराना , आधा नया
यय, (8) मूल म प रवतन, (9) मू ल और यय दोन का प रवतन आ द । कं तु आधु नक
भाषा-वै ा नक केवल दो दशाएँ ह वीकार करते ह- (i) नए प क उ पि त एवं (ii) पुराने
प का नाश ।
(i) नये प क उ पि त - प म जब अ धक एक पता आ जाती है तो प के योग
म म होने लगता है तथा अथ म भी अ नि चतता तथा संदेह उ प न हो जाता है तब
प क एक पता समा त करके उनम अनेक पा लाने के यास क ओर मनु य का
मन उ मु ख होने लगता है । नवीनता का आकषण भी इसम सहायक होता है । ह द
परसग का वकास इस या का प रणाम है ।
(ii) पुराने प का नाश - कसी एक अथ हे तु पुराने एवं नये प के एक साथ चलने पर
व ता पुराने प का योग भार समझने लगता है । प रणाम व प वह योग युत
हो जाता है । कं तु कला, वारा भ व य म ये प फर कभी यव त हो सकते ह
अथात ् यहाँ 'नाश' से केवल इतना ता पय है क वे प कु छ काल के लए उस भाषा
के योग से लु त हो जाते ह सं कृ त के आठ कारक प के थान पर ह द म
केवल तीन कार के ह कारक मलते ह । सं कृ त के तीन वचन के वपर त ह द म
दो ह वचन होते ह । शेष कारक एवं वचन प का ह द म लोप हो गया है ।
प प रवतन क ये दशाएँ न तो बहु त प ट ह और न ह वतं दशा म काय
करती ह, अ पतु वे पीछे मु ड़कर ाचीन प को भी हण कर सकती ह और आगे
बढ़कर नए प का भी नमाण कर सकती ह ।
ख. कारण
प प रवतन के मुख कारण ह -
1. सरलता क मनोवृि त - क ठन से सरल क ओर उ मु खता मानवीय वृि त है । यह
मनोवृि त प प रवतन को भी भा वत करती है । ह द म कारक एवं वचन तथा
लंग के प क सं या म कमी इसी मनोवृि त का प रणाम है । पहले इनके प म
जहाँ आ ध य के कारण ि ल टता थी वह ं इनक सं या कम करके सरलता क ओर
बढ़ने क वृि त है सं कृ त म एक श द के इ क स प थे, ह द म यह केवल छ:
रह गये ।
2. नवीनता - नत नवीन बनने एवं बनाने क मानव- वृ त होती है । जब परं परागत
श द- प का योग करते-करते मन ऊब जाता है, तो वह नए प क खोज म वृत
होता है । यथा- सु दरता का स दय चु रता का ाचु य आ द । इसी कार व तु के
लए वषय-व तु, यंजना के लए अ भ यंजना प का नमाण भी हमारे नवीनता के
त आकषण का तीक है ।
3. प टता - श द प क अ य धक समानता से भाषा म अ प टता आ जाती है । इस
अ प टता को दूर करने क लए पुन : भाषा के समान प म भेद उ प न कया जाता
है । साथ ह खास अथ क अ भ यि त के लए खास यय का योग कया जाता
199
है । यथा- पा ल म तृतीया , चतुथ , पंचमी, ष ठ तथा स तमी वभि तय के प
समान हो जाने पर ष ठ वभि त के लए केरक तथा स तमी के लए म झे' आ द ।
सहायक श द प का योग भाषा म चल पड़ा । फल व प ष ठ एवं स तमी
वभि त के अथ म प टता आ गयी ।
4. सा य - प-रचना क व वधता म सा य एक मह वपूण कारक है । सं कृ त -
क रणा से ह रणा क न म त इसका उदाहरण है । सं कृ त अकारांत श द प म
सा य पर आगे चलकर पा ल म इकारांत, उकारांत श द के प भी अकारांत हो गए
। तीन से तीन के सा य पर दो से दोन , वादश के सा य पर एकादश, आस
(सं कृ त-आशा) के सा य पर साँस (सं. वास पु.) को ी लंग प सा य का ह
उदाहरण है ।
5. अ ानता - े ठ के साथ-साथ े ठतर, े ठतम, उपयु त के थान पर उपरो त आ द
प अ ानता के उदाहरण ह ।
6. बल - बल दे ने के लए भी भाषा प म प रवतन हो जाता है । यथा - खा लस
खलाफ का मश: नखा लस, के खलाफ यहाँ ' न' एवं वे बल दे ने के लए यु त ह।
10.2.8 प व नम व ान
10.4 सारांश
प संरचना वयं म एक ज टल याकर णक या ह यह भी दे खने म आता है क
संसार क सम त भाषाओं क यह संरचना- या दूसर भाषा से आना अलगाव द शत करती
ह । सभी के ' प अलग ह, उनक न मत या भी अलग है ।
यह संरचनागत या का अलगाव संसार क भाषाओं को अलग करता है । व तु त:
यह संरचना या मानवीय वृि त क तकृ त है; साथ ह उसके सामािजक व प क भी
प रचायक है । यह कारण है क प संरचना के बदलाव क ि थ तयाँ अ धसं य भाषाओं म
समान प से मलती ह ।
'श द' और ' प' भ न इकाई ह । एक म अथ चपका रहता है दूसरे म अपे त
याकरणा मक संरचना के अनु प इस चपके हु ए अथ के काशन क मता आ जाती है ।
वा या मक संरचना क मह वपूण या आधारभू त इकाई पम है यह ' पम' भाषा क लघुतम
साथक इकाई तो है ह साथ ह सं प के समू ह का त न ध भी पम क अवधारणा अथत व
और संबध
ं त व के वभेद परक ान वारा ह हो पाती है । प म होने वाले प रवतन
मनु य क सरलतागामी वृि त के प रचायक ह । उसक प रवतन परक दशाएँ बहु त प ट
नह ं है कं तु यह सवमा य त य है क ' प' तथा ' पम' को ान क भाषा को समझ पाने
क मता दान करता है और कथन के धरातल पर वन तथा वा य से भी अ धक मह वपूण
संरचना है - ' पम इस लए भाषा व ान म इसका मह व सवा धक है ।
201
10.5 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. कप, स प' तथा पम' को सोदाहरण प रभा षत क िजए ।
2. 'अथत व एवं संबध
ं त व का उदाहरण स हत अंतर प ट क िजए ।
3. पम नधारण प त का प रचय द िजए ।
4. प प रवतन क दशाएँ और कारण का सोदाहरण ववेचन क िजए ।
5. पम के काय प ट क िजए ।
ख. लघू तर न
1. पम और स प का अ तर बताइए ।
2. अथत व और संबध
ं त व के मौ लक अंतर को प ट क िजए ।
3. मु त ब और ब मु त पम म आप या फक पाते ह?
4. प प रवतन के कोई दो कारण ल खए ।
5. प व नम व ान कसे कहते ह?
ग. र त थान क पू त क िजए
1. श द और प दोन का अलग अलग .......................................................
है।
2. व नम के सभी अनु म ............................................................ नह ं
होते।
3. राम.......................रावण..................................तीर.......................... मारा।
4. लोग मौ खक उ चारण वारा .................................. सं े षत करते ह ।
5. सं कृ त के आश श द के ...................................... पर साँस श द बना है ।
घ. सह /गलत चि नत क िजए
1. पम भाषा उ चार क लघुतम अथवान इकाई है । सह /गलत
2. कसी संरचना ेणी का कट आकार भेद एक वतं पम बन सकता है ।
सह /गलत
3. वह पम जो सदै व अ य पम के साथ यु त होता है, मु त पम कहलाता
है ।
सह /गलत
4. घर , नगर , संयु त पम के उदाहरण ह । सह /गलत
5. सवथा भ न, अथवाची स व या मक प दो भ न पम माने जाते ह ।
सह /गलत
10.6 संदभ ंथ
1. ो. राजम ण शमा; आधु नक भाषा व ान, वाणी काशन, द ल -S
202
2. डॉ. उदयनारायण तवार ; अ भनव भाषा व ान, कताब महल, इलाहाबाद
3. C.F. Hocket; A cwise in modern lingwistics, oxford and I. B. H.
Publishing Co. New Delhi.
4. Jr. H.A. Gleanon; An introduction to descriptive linguistics, I.B.H
Publishing Co. New Delhi.
203
इकाई- 11 वा य संरचना
इकाई क परे खा
11.0 उ े य
11.1 तावना
11.2 वा य व ान
11.3 वा य क अवधारणा
11.3.1 वा य के भेद
11.3.2 वा य प रवतन
11.3.3 वा य प रवतन के कारण
11.4 वा य संरचना
11.4.1 वा य संरचना के व वध तर
11.5 वा य व लेषण और उसके तर
11.6 आधु नक भाषा व ान : स यूर और चॉ क क मा यताओं का सामा य प रचय
11.7 वचार संदभ श दावल
11.8 सारांश
11.9 अ यासाथ न
11.10 संदभ थ
ं
11.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप -
वा य व ान के अ ययन के े को चि नत कर उ ह पहचान सकगे ।
वा य क अवधारणा को प टत: समझ सकगे और भाषा संरचना म वा य के थान
एवं।. मह व को समझ सकगे ।
संरचना अथ एवं संदभ क ि ट से वा य के व प के अलग अलग आयाम को
समझ सकगे ।
वा य म पद म एवं कारक संबध
ं को समझ सकगे ।
वा य व लेषण के व वध तर को समझ कर वयं वा य व लेषण करने क मता
अिजत कर सकगे ।
गहन संरचना और बा य संरचना के सू म अंतर को समझ सकगे ।
स यूर और चॉ क के भाषा संबध
ं ी वचार क जानकार ा त कर सकगे ।
11.1 तावना
पछल इकाईय के आपने ह द क व नय प, पद तथा श द एवं पद से संर चत
पदबंधी का अ ययन कया । याकर णक संरचना के एक अ य प पदबंध से वा य क
रचना क चचा इस इकाई म क जाएगी । प, पद तथा श द तीन के स मेलन से बने वा य
204
व ान िजसे अं ेजी म स टे स (Syntax) कहते ह भाषा का मु य और मह वपूण पहलू है
। यह व तृत के साथ संि ल ट भी है । आपके अ ययन के लए वा य व ान के अ नवाय
पहलु ओं क जानकार इस इकाई म तु त क जा रह है ।
11.2 वा य व ान
िजस कार व न संरचना म व न तथा प संरचना म श द और प क यापकता
तथा व लेषण कया जाता है(जैसा क आप अब तक पढ़ चु के है) वा य व ान भाषा क उस
या और नयमन यव था का अ ययन करता है िजनके वारा श द पार प रक संयोग से
वा य रचते ह । दूसरे श द म वा य व ान वा य संरचना के व भ न घटक के म य के
संबध
ं का अ ययन करता है । भोलानाथ तवार के श द म ' 'वा य व ान म वा य-गठन
या पद से वा य बनाने क या का वणना मक तु लना मक तथा ऐ तहा सक ि ट से
अ ययन होता है । वणा मक वा य व ान म कसी भाषा म कसी एक काल म च लत
वा य-गठन का अ ययन कया जाता है । तु लना मक तथा य तरे क म दो या अ धक भाषाओं
का वा य गठन क ि ट से कये गये अ ययन क तु लना करके सा य और वैष य दे खा जाता
है । ऐ तहा सक वा य व ान म एक भाषा के व भ न काल का अ ययन कर वा य-गठन क
ि ट से उसका इ तहास तु त कया जाता है ।
वा य व ान के अंतगत वा य के व वध घटक के संबध
ं का अ ययन दो तर पर
कया जाता है (पहला तर वा य वै या सक संबध
ं और दूसरा पावल संबध
ं है । पहले म
वा य के व भ न घटक के म य पाये जाने वाले मक याकर णक संबध
ं का अ ययन कया
जाता है िजससे कसी खास भाषा के वा य क को टय क सं या और व प के नधारण म
मदद मलती है । इ ह ं वा य को टय से भाषा के सारे वा य का जनन( यू पि त ) होता है ।
दूसरे अथात ् पावल संबध
ं म वा य के कसी वशेष घटक का उसके अपने ह वग के अ य
श द से या संबध
ं है यह व ले षत कया जाता है । अथात ् एक ह वग के एक से अ धक
श द या पदबंध के बीच के संबध
ं को पावल संबध
ं कहते ह ।
11.3 वा य क अवधारणा
भाषा वचार को वहन करती है और वचार को वा य के मा यम से मू त करती है ।
इस कार भाषा व ान म वा य का थान सबसे ऊपर है । वा य के व प को लेकर
भाषा वद म काफ मतभेद ह । कु छ इसे पद का समू ह कहते ह तो कु छ पद को वा य के
कृ म खंड क सं ा दे ते ह । इन वचार क तु लना समाज परक और यि तपरक सोच से क
जा सकती है । समाजपरक सोच यि त क तु लना म समाज को अ धक मह व दे ती है
य क यि त समाज क एक इकाई मा है जब क यि तवाद सोच, यि त क स ता को
सबसे ऊपर वीकार करती है य क यह सोच समाज को यि तय का समू ह मा ठहराती है ।
भारतीय दशन म वा य और पद के मह व को लेकर अ यंत ाचीन काल से ववाद चला आ
रहा है । मीमांसक कु मा रल िजनका मत अ भ हता वयवाद कहलाता है क मा यता है श द या
पद ह व तु त: अथ के वाचक होते ह और एक खास म म वा य का व प हण करते ह ।
कु मा रल के श य भाकर िजनका: मत 'अि वता वधानवाद के प म स है का मानना है
205
क भाषा म वा य क स ता ह वा त वक होती है य क वा य ह अथ बोध का कारण बनते
ह । पहले पद का अ वय होता है फर अि वत श द अथ क ती त कराते ह ।
आधु नक भाषा व ान वा य को ह भाषा क 'पूण इकाई मानता है । मनु य का
सोचना समझना और कु छ कहना वा य के ज रए ह होता है । यहाँ तक क भावावेग म कहा
गया एक श द भी पूण वा य का अथ दे ता है । जंगल म हठात बाघ को दे ख कसी का बाघ-
बाघ च लाना ह पूण अथ क ती त करा दे ता है । मसलन, कोई हो तो उसे बचाये, यहाँ बाघ
जैसा हंसक ज तु है आ द । च लाना भी एक पूण वा य है िजसका शेष ह सा 'अ याहत
होता है । आधु नक श ा शा ी इसी त य के आधार पर भाषा का पहला पाठ वा य के
मा यम से शु करने क सलाह दे ते ह जैसे- नल पर चल, कलम पकड वा य क पढ़ ब चे
न, ल, प, र, च, ल, क ल, म, प, क q आ द वण को पहचानना सीखते ह । 'वा यवाद क
इस अवधारणा को भतृह र ने बहु त पहले प ट कर दया था:
“पदे न वणा: व य ते, वण ययवा: च न ।
वा यात ् पदानाम अ य त ववेको न क चन । '''
(अथात ् पद म वण और वण म अवयव नह ं होते वा य से पृथक पद क कोई नजी पहचान
नह ं होती ।)
वा य और पद के मह व को लेकर चले आ रहे इस ववाद से वा य क प रभाषा भी
भा वत हु ई है' । ाचीन याकरण पतंज ल और यूनानी दाश नक डॉ. ै स ने वा य क
प रभाषा दे ते हु ए कहा है 'पूण अथ क ती त कराने वाले श द समू ह वा य कहते ह । यह
अ य त व मयजनक है क दो भ न दे श और दो भ न काल के इन दोन वचारक के मत
म इतनी अ ु त समानता है ।
वा य क सबसे च चत प रभाषा क वराज व वनाथ ने अपने ं 'सा ह य दपण' म द
थ
है । वे यो यता, आकां ा और नकटता से यु त पद समू ह को ह वा य मानते ह । इस
प रभाषा के अनुसार वा य क आकां ा, यो यता तथा आसि त तीन अ नवाय शत ह ।
आकां ा से आशय श द क पर पर पूरकता से है । जैसे नवीन खाना खाता है । इस वा य म
तीन पद है - 'नवीन', 'खाना' और 'खाता' है । याकर णक ि ट से तीन पर पर एक दूसरे क
आकां ा रखते ह । नवीन कता है िजसे खाना या क आकां ा है । 'खाता है या है िजसे
एक कम क आकां ा है । 'खाना' कम है िजसे एक कता और एक या क आकां ा है । इस
कार ये पद मलकर एक वा य क संरचना करते ह । इसके थान पर य द कोई यि त
कलम, सागर, भोजन और फूल श द का उ चारण करे तो सभी पद मलकर भी वा य नह ं
कहलायग ये श द सू ची मा है य क यहाँ कसी श द को कसी अ य क आकां ा नह ं ह ।
'यो यता का आशय अ भ यि त है । वा य म आये श द य द असंगत अथ अ भ य त
कर तो याकर णक ि ट से पर पर संब होते हु ए भी वा य नह ं कहलायगे । जैसे वह खाना
खाता है- वा य है ले कन वह आग खाता है वा य नह ं है । हवाई जहाँज उड़ता है वा य है
ले कन नद उड़ती है वा य नह ं है । य क यहाँ श द के म य पार प रक अथ बोध क
यो यता नह ं है ।
206
'आसि त का अथ समीप होना है । वा य क तीसर शत पद क नकटता है । य द
कोई यि त सु बह पु तक और शाम को पढ़ो कहे तो यह वा य नह ं कहलायेगा व ता के वारा
उ च रत पद म सात य का होना आव यक है । ल खत भाषा पर भी-यह बात लागू होती है ।
जहाँ ल खत श द म वा य के अथ बोध के लये ल बे अंतराल का न होना आव यक है ।
भाषा का काम भाव और वचार क अ भ यि त है इस लये मनु य अपनी भाषा उतने
ह श द को सं े षत करता है । िजतने से भाव सं े षत हो जाये । कई श द वा य म आये
बना ह वा य अथ को य त कर दे ते ह । नाटक , उप यास , कहा नय और' वातालाप म ऐसे
योग क अ धकता होती है । वा य म अ यु त श द का अथ जब पूवापर संग से य त
होता है तब अ याहार कहलाता है । ह द म ाय: सभी कारक के अ याहार के उदाहरण
मलते ह । उदाहरण के लये -
1. कहाँ जा- रहे हो ?(तु म)
2. तु हार य सु नँ ू (बात कम)
3. मने उसे बाहर नकाल दया । (कमरे से अपादन)
आधु नक भाषा व वा य क अवधारणा पर व वध आयाम से वचार करते रहे ह ।
या वा य को अथ क एक इकाई माना जाये या संरचना क एक इकाई ? उसे मान सक
इकाई के ं ी कु छ वचार को नीचे दया जा रहा है-
प म वा य क अवधारणा संबध
वा य अथ पालन इकाई के प म ाचीनकाल से भाषा वद ने वा य को अथ क एक
इकाई मानते हु ए वा य को एक अपे ाकृ त पूण और वतं मानव उि त कहा जो अकेले
यु त होने या हो सकने के कारण पूणता और वतं ता से यु त है । कामता साद गु ने
भी वा य को एक पूण वचार य त करने वाला श द समू ह कहा है । नीचे दये गये दोन
उदाहरण को यान से दे ख । पहला वा य' है य क इसके श द समू ह संग ठत प म एक
अथ य त करते ह । जब क दूसरा वा य नह ं है य क इसके 'श द मे पर पर छुटकर कोई
अथ अ भ य त करने क मता नह ं है ।
1. मेर सहेल कल मु मासे मलने आ रह . है ।
2. मेरा नद , घर, आकाश
वा य याकर णक इकाई के प म
वा य के अलग-अलग घटक क वा य म सु नि चत याकर णक भू मका होती है ।
सभी घटक कसी न कसी याकर णक योजन को पूरा करते ह । इस ि ट से वा य
याकरण क ऐसी संरचना है िजसम यूनतम दो अंग उ े य और वधेय का होना अ नवाय है।
उ े य वा य का वह ह सा है और वधेय वह ह सा है जो उ े य के बारे म कु छ
बताता है । न न ल खत उदाहरण पर यान द िजये.
उ े य वधेय
सीता क बड़ी बेट कमला परस जा रह है अ पताल म भत है ।
वा य म उ े य और वधेय का वशेषताओं के योग से या अ य घटक के सहयोग से
व तार कया जा सकता है । जैसे -
207
क. सीता क बड़ी बेट परस हवाई जहाँज से द ल जा रह है ।
ख. कमला बीमार के कारण अ पताल म भत है ।
ग. संरचना परक. इकाई के प म कई भाषा वै ा नक अथ या वचार क पूणता को
सापे क मानते ह । एक ह वचार को एक वा य म भी य त कया जा सकता है ।
एका धक म भी । संरचनावाद भाषा व वा य को कु छ घटक के मेल से बनी एक
रचना मानते ह । इस मत के व ता लूमफ ड कहते ह वा य एक ऐसी रचना है जो
कसी उि त वशेष म अपने से बड़ी कसी रचना का अंग नह ं बन सकती । इस मत
के अनुसार वा य भाषा को सबसे बडी इकाई जैसे - वन वयं से बड़ी रचना श द
का अंग है, श द पद ब ध उपवा य का कं तु वा य खु द से बडी कसी रचना का अंग
नह ं हो सकता । नीचे दये गये उदाहरण पर यान द िजये ।
व नयाँ - ब/ए ट ई (श द बेट )
श द - मेर /बड़ी बेट
पदब ध - मेर बड़ी बेट ' परस जा रह है । (उपवा य: मेर बडी बेट
परस जा रह है)
उपवा य - मैने सरला को बताया क मेर बेट परस जा रह है । वा य: मने सरला
को बताया क मेर बड़ी बेट परस जा रह है ।
ऊपर दये गये उदाहरण से आप प ट प से समझ सकते ह क कैसे व नयाँ श द
का, श द पदबंध का, पदबंध उपवा य का अंग है । कं तु सबके मेल से बना वा य सबसे बडी
इकाई है जो अपने से बड़ी कसी रचना का अंग नह ं हो सकता ।
वा य मनोवै ा नक इकाई के प म
संरचनावाद भाषा वै ा नक के अनुसार वा य एक सू तथा व लेषणयु त रचना था क तु
पांतर न पादक याकरण के वतक चॉ क क ि ट म वा य मानव मि त क म अवि थत
एक अमू त संक पना है िजसका यि त या यावहा रक व प उि त है । अपने अ य त
मान सक प म वा य एक आदश वा य होता है िजसे हर ि ट से पूण और सह माना जाता
है । बाहय संरचना के ज रये कट होने वाला उसका प मान सक प से भ न भी हो सकता
है । इस प म वा य क दो कार क संरचनाओं क क पना क गई है- बाहय संरचना
(Surface) और आतं रक या गहन संरचना (Deep Surface) । आज आधु नक भाषा व ान
क श दावल म आतं रक या गहन संरचना को अंत न हत व प कहते ह य क यह उसी अथ
म संरचना नह ं है िजस अथ म बा य संरचना होती है । इन दोन संरचनाओं म सू म अंतर है
। आंत रक या गहन संरचना व ता के अंतमन म न हत होती है जब क बाहय संरचना व नय
या ल प के मा यम से प ट उजागर हो जाती ह । जब कोई बोलता या लखता है तो हाथ म
पकड़ी कलम के कागज पर कु छ अं कत करने या मु ख से उ च रत करने के साथ उसके मन म
भी एक संरचना तैयार होती रहती है । आंत रक संरचना क स ता केवल मान सक है जब क
बाहय संरचना क भौ तक । आंत रक संरचना म आ थक और याकर णक घटक अपने अमूत
प म होते ह जब क बा य म वे मू त प धारण एक रचना बन कर उपि थत हो जाते ह ।
208
इस कार ऊपर से एक दखाई दे ने वाले एक जैसे वा य म एक या अ धक आंत रक वा य
न हत हो सकते है । इन आंत रक वा य को आधा रत वा य कहते ह । िजस वा य म
आधा रत वा य छपा होता है उसे आधा ी वा य कहा जाता है । उदाहरण नीचे दये जा रहे ह-
बा य संरचना : श का ने छा को क ा से बाहर नकलते दे खा ।
आंत रक संरचना: क. श का ने छा को दे खा (आधा ी वा य)
ख. छा क ा से बाहर नकल रहे थे (आधा रत वा य)
मनोवै ा नक भाषा व वा य को एक गुँथी हु ई माला मानते ह जो रे खीय म म बुनी गई न
होकर उचचा धक म म बुनी हु ई है । िजसके एक से अ धक तर ह ।
जहाँ संरचनावाद भाषा वै ा नक का मानना था क अथ का व लेषण नह ं कया जा
सकता वह ं चॉ क ने अथ बोध को अपने व लेषण म एक घटक के प म वीकार कया ।
इसी घटक के कारण बाहय तर पर समान दखाई पड़ने वाले कं तु आंत रक तर पर भ न
वा य म अंतर था पत करना संभव हो पाता है । जैसे कमला ने सीता को हंसते हु ए दे खा ।
क. कमला हँ स रह थी । (वा य एक)
ख. सीता हँ स रह थी । (वा य दो)
संदभपरक इकाई के प म
भाषा व ान के वकास म समाज भाषा व ान और संकेत योग व ान ने एक नया आयाम
जोड़ा िजससे वा य क संक पना म बड़ा बदलाव दखाई पड़ा । वा य अब केवल संरचना के
प म नह 'ं ' अ पतु एक सामािजक घटना या कायवृत के घटक के प म प रल त कया
जाने लगा । वा य का स ब ध संवाद के पूरे प रवेश से जोड़ते हु ये इसे मू ल इकाई नह ं अ पतु
संदेश सं ेषण क एक इकाई माना गया संदेश सं ेषण क ि ट से भाषा क मू ल इकाई वा य
को न मान ोि त को माना गया । ोि त वह वा य या वा य समू ह है जो व ता के पूरे
मंत य या वचार ब दु को अ भ य त करे । संगानुसार ोि त एक श द से लेकर एक या
एका धक वा य एक अनु छे द एक पूरे अ याय क हो सकती है ।
ऊपर के ववेचन से आप यह समझ गये ह गे क वा य के व प क प रभाषा भाषा
वै ा नक वचारधाराओं के वकास और प रवतन से बदलती रह है ।
11.3.1 वा य के भेद
209
4. अ याहार
5. शैल
1. भाषा क आकृ त - भाषा क आकृ त के आधार पर व व म दो कार क भाषाएँ ह-
1 योगा मक और 2. अयोगा मक िजनके आधार पर वा य के भी दो कार ह:-
(i) योगा मक वा य और
(ii) अयोगा मक वा य
(i) योगा मक म श द के साथ यय या वभि तयां जु ड़ी रहती ह ।
(अ) कृ ण ने कंसम ् अवधीत ् (सं कृ त)
(ब) कृ ण ने कंस को मारा ।
(ii) अयोगा मक वा य म श द म संबध
ं त व नह ं जु ड़ता । चीनी भाषा एक ऐसी ह
भाषा है- कम
ताड़ चाय - कम चाय को मारता है ।
गो त न' - म तु ह मारता हू ँ ।
2. याकर णक रचना - याकर णक रचना क ि ट से वा य के तीन भेद ह । साधारण
वा य, संयु त वा य, और म त वा य (वा य के इन भेद के बारे म वा य संरचना
के तर पर वचार करते हु ए बताया जा चु का है ।
3. याथ - याथ क ि ट से वा य के अनेक भेद कये जा सकते ह । उदाहरण के
लये –
(i) वधान (कथन)
सरला कमीज सलती है ।
(ii) आ ा
तु म बाजार जाओ ।
(iii) ाथना
कृ पया हमार मदद क िजए ।
(iv) संभावना
शायद आज शाम तक पा रत हो ।'
(v) संदेह
तु म कह ं बा रश से भीग न जाओ ।
(vi) संकेत
य द बरसात होती तो गम से राहत मलती ।
(vii) न
आप इन दन कह ं रहते ह?
(viii) व मया द
अरे वाह! आप आ गये । '
210
(ix) आ ह
शां त से बै ठये न ।
(x) नषेध
शोर मत मचाइये ।
(xi) इ छाथक
िजससे इ छा का बोध हो-तु म चरायु हो ।
इसके अ त र त यथा संग म भी भेद हो सकते ह ।
4. अ याहार- इस ि ट से कई भाषा शा ी वा य के दो भेद मानते ह । या यु त
वा य और याह न वा य । यायु त वा य म असामा य वा य आते ह िजनम
या मौजू द रहती है । जैसे वह जा रहा है । सरला जायेगी । याह न वा य म
यय प म मौजू द न हो अ याहत रहती है । सं कृ त म इनका यचे ट चलन था ।
ह द म भी ऐसे वा य का योग अखबार क सु खय ( ामीण इलाक म मले रया
का कोप), लोकोि तय (जैसा दे श, वैसा भेस)
संभाषण ( फर वह बकवास) तथा व ापन म (मोबाइल के साथ एक सम काड )
आद म याह न वा य दे खे जा सकते है ।
5. शैल - शैल ि ट से वा य के अनेक भेद उपल ध हो सकते ह । िजनम मु य ह-
(i) अलंकृत वा य
(ii) अनलंकृ त वा य
(iii) समांत रत वा य
(iv) आवृ था मक वा य तथा
(v) शृंख लत वा य
(i) अलंकृत वा य - इस को ट के वा य अलंकार से सु यवि थत होते ह । और
सा हि यक भाषा म इनका ाचु य होता है ।
(ii) अनलंकृ त वा य - सामा य और बना सजावट वाले वा य जो सहज ग य म
मलते ह । जैसे- नद के कनारे एक घर था ।
(iii) समांत रत वा य - समानत रत शैल क एक मह वपूण वशेषता है िजसमे दो
कथन म भाव और श द का समा तर योग कया जाता है । एक और
आज था, साहस का तो दूसर ओर कायरत और वप नता ।
(iv) आवृ या मक वा य - जहाँ मु य कथन से पहले कौतू हल से भरे अवयव क
आवृ त होती है और अंत म वाचन को पूर ताकत के साथ ह थयार क तरह
चला दया जाता है । उ तेजना मक भाषाण म ाय: ऐसे वा य का योग
होता है ।
(v) शृंख लत वा य - ामीण लोग बातचीत करते हु ए ाय: छोटे -छोटे वा य का
उनके पहले वा य का अं तम अंश ( वधेय) अगले वा य का उ े य बन जाता
है और वा य क एक शृंखला सी बनती है जाती है । जैसे एक मजदूर जंगल
211
म लकड़ी काटने गया । लकडी काटने गया तो राह भूल गया । राह भू लकर
एक झ पड़ी के सामने जा पहु ँ चा ।
आधारभू त वा य
व प और ल ण - कसी भी भाषा के मू ल वा य का नधारण कये बना उस भाषा क
वा य यव था को समझना मु ि कल है । भाषा म वा य कई व प हण कर यु त होते ह ।
इनका आकार कार छोट भी हो सकता है और बड़ा भी, इनम कभी एक उपवा य हो सकता है
तो कभी एका धक । कु छ वा य पूणाग हो सकते ह तो कु छ अ पांग(मेरा नाम सं या है ।
आपका ?) सं ापद बंध आ द के प म संकु चत होकर एक ह वा य म दूसरा वा य अपना
थान बना ले सकता है उदाहरणाथ (म फर से द ल लौटने क बात सोच रहा हू ँ । उपर के
उदाहरण पर गौर कर तो पाएँगे हर वा य म एक आधारभू त वा य क स ता अव य मौजू द
रहती हे । यह बीज वा य भी कहलाता है य क इसी से भाषा के अनेक वा त वक वा य
ज नत होते ह । गौर क िजए वा त वक वा य इस क ा क सभी बा लकाएँ नय मत प से
होमवक' करती ह ।
आधारभू त वा य. बा लकाएँ 'होमवक' करती ह । वा य के सभी घटक अ नवाय होते ह ।
येक भाषा के आधारभू त वा य का व प और उनक सं या भ न- भ न हो सकती है ।
उनके नधारण के लए अलग अलग मानक तय कये जा सकते ह फर भी सावभौम प म
इनके नधारण के लए कु छ ल ण मह वपूण ह ।
(क) अ नवाय घटक - आधारभू त वा य म केवल अ नवाय घटक ह मह वपूण होते ह ।
ऐि छक घटक नह ं । उदाहरण के लए नीता दूध पीती है को आधार वा य कहगे
य क इसके सारे घटक अ नवाय है जब क नीता कभी-कभी दूध पीती है । म कभी-
कभी एक ऐि छक घटक है य क इसके बना भी वा य याकरण और मू ल अथ क
ि ट से पूण है । इस लए यह ऐि छक घटक आधारभूत वा य का अंग नह ं हो
सकता।
(ख) कथाना मक वा य - आधारभूत वा य सरल कथाना मक वा य से बनते ह । संयु त
म या अ पांग वा य आधारभू त वा य के अंतगत नह ं रखे जा सकते । इसी तरह
नवाचक, नषेधवाचक आ ाथक आ द संदभ- व श ट वा य भी आधारभूत वा य क
को ट म नह आते य क इन सबको आधारभूत वा य से पांत रत कया जा सकता
है ।
(ग) नयं क त व या - आधारभू त वा य म या ह नयं क शि त है । या क
कृ त और माँग के अनुसार ह वा य रचना का नधारण कया जाता है और वा य म
आने वाले घटक (कता, कम) क सं या भी या ह नधा रत करती है । उदाहरण के
लए रोना या (आकषक) एक घटक (कता) क अपे ा करती है । यानी या
(सकमक) दो घटक (कता तथा कम) क ओर ‘लेना’ या ( वकमक) तीन घटक
(कता, कम और सं दान) क । हर भाषा म आधारभू त वा य क सं या अलग अलग
हो सकती है । ह द म 4 से 21 तक सं या बताई गई है. ।
212
11.3.2 वा य प रवतन
213
1. अ ान - भा षक बदलाव का एक सश त कारण अ ान है । इसके चलते कोई यि त
अपूण या गलत अनुकरण कर वा य प रवतन का कारण बनता है । कृ पया करके मेर
बात सु न या म केवल पांच पये मा लेकर बस म चढ़ गया जैसे वा य म कृ पया के
साथ करके और एक ह वा य म केवल और मा श द (जो समावत है) का योग
अ ान का ह माण है ।
2. अ य भाषा का माण - दो भाषाओं के पार प रक स पक म आने के कारण भी
वा य म प रवतन होता है । य क एक भाषा क वा य संरचना दूसर को कह ं न
कह ं भा वत करती है । ह द म अ य कथन क वृ त अं ेजी के भाव से आई
है जैसे ह द क कृ त के अनुसार जो वा य सरला ने कहा है क म बीमार हू ँ है
वह ं अं ेजी के भाव से सरला ने कहा है क यह बीमार है बन जाता है ।
3. य न लाघव - सरलता के त आ ह भी वा य रचना पर भाव डालता है । ह द
के वा य म मेरे को मेरे से, तेरे से, तेरे को, तेरे से जैसे सवनाम इसी कारण आए ह
। इनक बलता से मु झ, मु झ,े तु झ, तु झ,े योग घटते जा रहे ह ।
4. प टता के त आ ह - प टता के त आ ह के कारण भी वा य म पद म का
याकर णक मह व बढ़ जाता ह वभि तय के लोप के बाद परसग ने उनका थान
ले लया और पद म को याकर णक मह व ा त हो गया । ह द क यह ि थ त
आयोगा मकता क ओर अ सर होने क है ।
5. कसी भाषा के सी मत दायरे से नकल व तृत े म स रत होने से उसक वा य
रचना पर गंभीर भाव पड़ता है । उसक संरचना म शै थ य आ जाता है । ह द
आज रा भाषा और संपक भाषा के प म दे शभर म फैल गई है । फलत: उसक
संरचना म थानीयता ने थान बना लया है । कलक ते क ह द म लंग संबध
ं ी
गड़ब डयां एवं मु ंबई क ह द म सवनाम संबध
ं ी श थलता आमतौर पर सु नी और दे खी
जा सकती है ।
11.4 वा य संरचना
भा षक संरचना म वा य क ि थ त - भा षकसंरचना के तीन मु ख अवयव व न,
याकरण और अथ म से याकरण के पुन : दो अंग ह वा य और श द । आप पढ़ चु के ह क
याकर णक संरचना क ि ट से वा य के भाषा क सबसे बड़ी इकाई होने के बावजू द आधु नक
भाषा व ान म संदेश के सं ेषक क ि ट से े षत को वा य से भी बड़ा माना गया है
य क यह व ता के पूण आशय को अ भ य त करने क मता रखती है ।
11.4.1 वा य संरचना के व वध तर
214
अंतर नह ं होता । नीचे दो उदाहरण दये जा रहे ह पहले म एक वतं उपवा य है
दूसरे म एक वतं + एक अ वतं ले कन दोन सरलवा य क को ट म आते ह:
1. सरला ने एक पु तक खर द - (एक वतं उपवा य = वा य)
2. सरला ने जो पु तक खर द उसम आठ सौ पृ ठ ह । ( वतं उपवा य +
अ वतं उपवा य=वा य वा य के वतं उपवा य को अना त और अ वतं को
(आ त) कहते ह ।
अ य उपवा य पर आ त उपवा य आ त तथा अ य उपवा य पर आ त नह ं होने
वाले वतं या उपवा य होते ह । नीचे दये गये उदाहरण को दे खए-
1. माँ ने आलमार से कपड़े नकाले और बेट को दये ।
(दोन उपवा य वतं ह),
2. बेट ने वह कपड़े पहने िज ह उसे माँ ने दया था ।
(पहला उपवा य वतं या मु य दूसरा आ त)
जो उपवा य दो वतं उपवा य वाले होते ह उ ह संयु त वा य कहते ह और िजन
वा य म एक उपवा य वतं या मु य और दूसरे आ त रहता है, उ ह म त
वा य कहते ह । ऊपर दये गये उदाहरण म पहला संयु त वा य है दूसरा म
वा य।
(ख) पदब ध - उपवा य पदब ध को मलाकर बनता है । यह उपवा य से छोटा घटक है ।
वा य म याकर णक काय को पूर करने वाल इकाईयाँ पदब ध कहलाती है । इनका
अि त व वा य के भीतर ह संभव है, बाहर नह ं । इस कार येक वा य म कता,
कम, पूरक कया वशेषण और कता आ द का एक नि चत योग थान आ द होता है
जहाँ यु त होकर सं ा, वशेषण, कया- वशेषण, या आ द श द वा य म सु नि चत
भू मकाओं को नभाते हु ए वा य म नधा रत योजन को पूरा करते ह । वा य के
थान वशेष को काय थान कहते ह और वहाँ जो श द या श द समू ह यु त होते
ह उ ह पदब ध कहते ह । पदब ध एक अथवा एका धक श द का हो सकता है ।
कता पदब ध कम पदब ध या पदब ध
1. माल पौधा लगा रहा है ।
2. मेरा माल दो पौधे लगा रहा है
3. मेरा नया माल कई तरह के पौधे लगा रहा है ।
215
शीष का समाना धकरण संबध
ं म जोड़कर एवं परसग आ द के योग से पदब ध से
छोट इकाई श द है । श द के योग से ह पदब ध क रचना छोट ह । वा य बखरे
हु ये श द का समू ह मा नह ं है । कसी भी वा य को यान से दे खे तो इसके घटक
के म य एक शल शला पाया जाता है । इसी शल शले या मब ता को पद म कहते
ह । इन घटक के बीच एक तरह का याकर णक संबध
ं भी पाया जाता है जो श द
या घटक के योग थान वारा या फर व भ न वभि तय के वारा य त होता है
। याकरण क भाषा म यह कारक संबध
ं कहलाता है । वा य के जो घटक अ य
घटक के प को वचन, लंग, पु ष क ि ट से भा वत करते ह, उसे अि वत त
कहते ह । यह भी दे खा जाता है क समान संरचनातमक को ट का श द होते हु ए भी
उसके थान पर दूसरे कसी श द का योग नह ं कया जा सकता । श द के अथ म
एक कार क संग त होती है िजससे श द सह वा य का नमाण करत ह वा य का
यह ल ण अथ संग त या यो यता कहलाता है ।
216
राजद प : सं ा
व यालय : सं ा
से : परसग
अभी-अभी : या वशेषण
लौटा : या
है : सहायक या
घर : सं ा
काय परक - इस तर पर वा य के घटक का नधारण वा य म उनक याकर णक
भू मकाओं को दे खते हु ए कया जाता है । ये एक तरह क कारक को टयाँ ह जो केवल वा य के
अंतगत न हत होती ह जैसे कता, कम, पूरक, कया, वशेषण, या आ द । संरचना मक
को टयां(सं ा, वशेषण) आ द का अि त व वा य से बाहर केवल श द के तर पर भी संभव है
जो काय परक म नह ं नधा रत क जाती उदाहरण के लये जनता ने राजद प को वधायक
चु ना क काय मक को टयाँ न न ल खत प म ह गी:
जनता ने : कता
राजद प को : कम
वधायक : पूरक
चु ना : या
लौ कक अथ परक - इस तर के वा य के घटक का नधारण लौ कक या यावहा रक लोक म
उनक भू मकाओं को ि ट म रखकर कया जाता है जैसे अ भकता (स यकता) अनुभवकता,
भौ ता ल य (कम), प रवेश( या वशेषण) आ द । उदाहरणाथ लड़क को यास लगी वा य
क लौ कक अथ को टयाँ इस कार ह गी:
लड़क को : अनुभवकता
यास लगी : या
इसी तरह
रमा अम द खा रह है म वा य क न न ल खत को टयाँ ह गी -
रमा : अ भकता
अम द : ल य
खा रह है : या
सू चनापरक - भाषा क मू ल इकाई वा य को न मान करण को मानने वाले भाषा वद का
कहना है चूँ क व ता अपने संदेश को सं े षत करने के लए िजन वक प को चु नता है वे
वशेष करण या संग के अनुकू ल होते ह और वा य को सू चना भी संदेश के प म ग ठत
करते ह । इस लए वे कभी वा य के कसी घटक को शु म कभी बीच म तो कभी अंत म ले
आते ह । कभी-कभी तो वा य के सहज म म भी बदलाव या बलाघात लाया जाता है । इस
तरह प ट होता है क िजस, कार वा य क याकर णक संरचना होती है । उसी कार
217
सू चना क भी अपनी संरचना होती है । सूचना के तर पर ात सू चना और नई सूचना दो
घटक क ि थ त मानी जाती है । सू चना का जो अंश ोता को पहले- से मालूम होता है वह
ात या व यमान सू चना और िजसक जानकार दे ना व ता का ल य है वह नई सू चना
कहलाती है । उदाहरण के लए शीला आज पढने नह ं आएगी वा य क सू चना- संरचना
न नानुसार है:
शीला : ात सू चना
आज पढने नह ं आएगी : नई सू चना
सू चना संयोजन को ि ट म रख वा य के दो खंड कये जाते है थीम और र म । थीम
वा य के शु म यु त होने वाला और र म अंत म यु त होने वाला घटक है । यथा
थीम रम
सरला खाना खा रह है ।
दूर कह ं बादल बरस रह ह ।
218
व लेषण व तु के प म वीकार कया । इसी भाषा यव था क सह कृ त को समझने
समझाने के लए स यूर ने भाषा वै ा नक अ ययन णाल को व तु न ठ और तक संगत
बनाने पर बल दया । णाल गत अ ययन क भू मका के प म उ ह ने पा रभा षक श दावल
के जो साथक यु म दये उनम से जो आज भी मा य ह उनका उ लेख नीचे कया जा रहा है-
1. भाषा- यव था (लांग) और भाषा यवहार
2. संकेताथ और संकेतक
3. उपादान (स सटे स) और प (फॉम)
4. व यास मी ( संटेगये टक) और सहचारकम (एसो सए टम) संबध
ं
5. एकक लक ( सन नक) और काल मक(डाय नक) संबध
ं
भाषा - यव था का संबध
ं भा षक इकाईय क संरचना मक यव था से है । इन
भा षक इकाईय जैसे श द वा य आ द को भा षक तीक के प म दे खा जाना संभव ह वैसे
तो भा षक तीक संकेताथ (वा य) और संकेतक (वाचक) के अंतरं ग सहसंबध
ं के प रणाम होते
ह ले कन भाषा यव था के संदभ म उनक कृ त मू यपरक होती है । शतरंज के खेल म
यु त होने वाले मोहरे िजस तरह एक मू य के प म पहचाने जाते ह (जैसे यादे के एक घर
चलना ओर फज बनने पर तरछे काटना, घोडे का ढाई घर फाँद कर भी आगे बढ़ना आ द ।)
न क अपनी आकृ त और उपादान (लकड़ी, लाि टक, कागज या कसी धातु से न मत) वारा
उसी कार भा षक इकाईयाँ भी अपने संकेतन काय (मू य) वारा पहचानी जाती है । मू य
परक ( काय ज य) होने के कारण ह भाषा यव था को शु प (फाम) के प म हण कया
जाता है । यह पा मक यव था ह है जो ह द के लए कता + कम + या' और अं ेजी
के लए 'कता + या + कम' का वा या मक वधान दे ती है ।
स यूर ने माना क संरचना मक प भा षक तीक के व यास मी और सहचर मी
संबध
ं के आधार पर बनता है । व यास मी संबध
ं भा षक तीक को एक सु खृं ल कड़ी के
प म दे खने का आ ह करता है । भाषा केवल तीक क भीड़ नह ं वह उनके एक नधा रत
म का प रणाम भी है । कस इकाई के पूव या पर कस इकाई को आना है, इसका आधार
इकाईय का व यास मी संबध
ं होता है । इस यव था क जानकार के कारण ह द भाषा का
यो ता रमा ने सरला को प लख दया था को तो समझना और वीकार कर लेता है ले कन
'था लख ने रमा प को दया सरला’ को भाषा स मत वा य नह ं मानता, जब क दोन वा य
ं , भा षक इकाईय के म य ि थत उस
क इकाईय क सं या समान है । सहचार मी संबध
संबध
ं क ओर हमारा यानाकषण कराता है जो कसी संदभ या वातावरण वशेष म मौजू द होने
के कारण दो भा षक तीक म नजर आता है । काम और खान म 'क’ और 'ख' के बीच
सहचार संबध
ं है य क ये आ द थान पर आए ह और दोन क परवत व नयाँ समान ह ।
इसी तरह सरला ने फल तोड़ा और सरला ने फल खाया म 'सरला' और ‘तरला’ वा य संरचना
के एक ह काय मक खाने म यु त हु ए ह ।
भाषा अ ययन के एक भा षक संदभ वारा कसी ि थ त वशेष म भाषा क
संरचना मक यव था का काल नरपे ववरण तु त कया जाता है । इसके वपर त भाषा का
219
काल मक अ ययन भाषा के काल सापे वकास का ववरण दे ता है । इसे ऐ तहा सक भाषा
व ान भी कहा जाता है । य य प स यूर ने भाषा क एकका लक संरचना मक यव था और
भाषा प रवतन क ऐ तहा सक भू मका-दोन को पहचाना, पर भाषा यव था (लांग) के अ ययन
के संदभ म उ ह ने एक का लक णाल पर ह बल दया । उनका तक था क भाषा वै ा नक
अ ययन का ल य भा षक तीक क संरचना मक यव था का अ ययन है और भा षक
प रवतन हमेशा इस यव था के बाहर क व तु है । स यूर के अनुसार भाषा प रवतन न तो
सहे तु क होता है और न ह यव था से े रत । इस व वान के स ांत आधु नक भाषा व ान
के मा य स ांत ह िजनके बना बीसवीं से इ क सवीं शता द क कसी भी च लत भाषा
वै ा नक अवधारणा को न तो हम समझ सकते ह न ह उनका सह मू यांकन कर सकते ह ।
अमे रक भाषा वै ा नक नोम चॉ क ने भाषा वै ा नक चंतन के जगत म अपनी
पु तक ' समटै ि टकल चर' के वारा ां तकार प रवतन घ टत कया । उ ह ने भाषा
वषयक सोच क एक नई दशा द । उनके स ांत रचना तरण जनक याकरण ने मील के
प थर का काम कया । इ ह ने पांतरणशीलता के स ांत को था पत कया । पांतरण का
अथ है कसी एक रचना का दूसर रचना म अंतरण या प रवतन । उदाहरण के लये 1 सरला
एक सु दर बा लका है । 2. सरला एक सु दर बा लका नह ं है ।
ऊपर दये गये उदाहरण म पहला वा य सकारा मक है दूसरा नकारा मक । इन दोन
वा य म या अंतर है । इसे पाठक या ोता अपने ववेक से समझ लेता ह वह बड़ी ह
सहजता से इस बात को समझ पाता है क पहले वा य से ह दूसरा वा य अंत रत हु आ है ।
चॉ क के स ांत ने वा य से पम तक पूर याकर णक संरचना को वा य व यास का
ह सा ठहराया । वा य के अलग-अलग घटक के पार प रक संबध
ं म अंतर करना ज र नह ं
समझा । चॉ क के स ांत क प रभाषा दे ते हु ए समालोचक जॉन लयो स ने लखा ' कोई
भी याकरण जो येक वा य क पृ ठ संरचना और गहन संरचना का व लेषण करता है तथा
उन दोन व लेषण के म य णाल ब संबध
ं था पत करता है उसे रचना तर य याकरण क
सं ा द जा सकती है । जनन श द को ग णत क पा रभा षक श दावल से हण कया गया
है । िजसका आशय है गनना, नापना, पहचानना अथवा आरे ख खींचना । रचना तर य याकरण
न श द को उ प न करता है, न भाषायी त व क अ पतु भाषा के श द समु चय के त व
क योजना से_ संरचना सू का योग अि वत करके नये-नये वा य क रचना करता है ।
इसम उन प को पूव क थत कया जाता है िज ह उस भाषा के वा य को उ पा दत कये
जाने पर ा त कया जायेगा । ''
वा य- व यास के अ ययन का वषय मूल व ता क वह शु भाषा है जो उसके
मि त क म अमूत प म मौजू द ह समाज के हर मनु य का भा षक यवहार खा सयत लये
हु ए होता है । इस खा सयत के बावजू द एक ह भाषा-समाज के लोग बड़ी सहजता से एक दूसरे
को समझ लेते ह । इस या का कारण हर व ता के मि त क म भाषायी शि त के प म
अवि थत वह अवधारणा तथा चेतना है जो भाषा के एक सामािजक सामा य प से जु ड़ी है ।
कसी भी भाषा का याकरण मनु य क इसी बौ क मता को ि ट म रखकर रचा जाता है ।
मान सक मता को ि ट म रखकर रचा जाता है । मान सक ि ट से व य मनु य के
220
दमाग म जो संरचना सू व यमान रहते है उ ह ं के सहारे वह नये से नये वा य का जनन
करता है । इ ह ं सू को अि वत कर अं तम शृंखला को उपल ध कया जाता है । जो व तु त:
पद प क ह शृंखला है । ग णत के ज रये इन संबध
ं को समझाना इनका व लेषण और
प रगणन करना संभव भी है और सहज भी । को ठन या घटक संरचना को याकरण म
शा मल कराने का मु ख ल य याकर णक अ प टताओं का बोध कराना है । चॉ क क
मा यता है क सफल याकरण कसी भाषा के सम त संभा वत याकर णक वा य को ज नत
करके उनका वणन करता है । इसम याकर णक हण यो य वा य के पूवानुमान और
प ट करण पर जोर दया गया है । उसम केवल क थत उि तय का ह वणन नह ं होता अ पतु
उन उि तय को भी समा हत कया जाता है जो संभा य है । अ याकर णक वा य जैसे 'पढ़ती
है वह कताब' को यहाँ मह व नह ं मलता है, यहाँ इस बात पर भी यान दया जाता है क
मातृभाषी को वीकाय न होने वाले वा य के जनन को उ चत न माना जाए । वा य क
संरचना म याकर णक और अ याकर णक अंतर को समझने तथा नर ण करने क उपयु ता
होना चा हए । याकरण को मातृभा षय क भा षक चेतना का ान होना चा हए । िजससे
नर णीय आँकड के संदभ म वणा मक औ च य रह सके । स यूर वारा िजसे लांग और
पेरोल कहा गया है उसे ह चॉ क मश: 'भा षक भा षक और योग क सं ा दे ते ह ।
भा षक द ता के दो भेद ह - याकर णक और संकेतपरक । चॉ क ने भा षक सावभौम को भी
वीकार कया है । उनका मानना है क संसार क हर भाषा म कु छ सावभौम त व उपल य
होते है । जैसे याकरण अथ नि चत मानवीय व नयां और संरचना मक वैतता आ द । भाषा
व ान का उ े य भाषा को प रभा षत करने वाले सावभौम त व का न पण करना है ।
चॉ छ दो सावभौम त व को रे खां कत करते ह- स वपरक सावभौम और पा मक सावभौम
स वपरक या सं ापरक सावभौम त व उन संक पनाओं को माना है जो भा षक वणन म
वश ट कथन के नमाण म सहायक होते ह । इसके अंतगत वा यीय को टयां वन या
के भेदक ल ण और श दाथ च हक आ द आते ह । पा मक सावभौम व भ न : वा य को
जोड़ने वाले वा यातर नयम है जो अपे ाकृ त अमू त होते ह । चॉ क के जनक याकरण के
चार भाग है- मू ल सू ा श द संवग, रचना तरण सू , वन या मक सू और अथा मक
ववेचन । मू ल सू को पुन : दो भाग म बांटा गया है । पहला है-मू ल वा य के संरचना सू
िज ह पदब ध संरचना सू या नमाण सू भी कहते ह और दूसरा है - वशेष कार क
संयोिजत श दावल का समु चय जो बताता है कसी भी भाषा म वा य दो कार के होते ह
पहला आधार वा य या बीज वा य, रचना तरण के वारा इसी वा य को नवाचक,
नषेधवाचक म वा य आ द प म ज नत कया जाता ह । मूल वा य क संरचना िजन
घटक से होती है उ ह पदब ध कहते ह ।
सं ेप म आपको चॉ क के पांतरण जनक याकरण को समझने क अ ययन
साम ी द गई । थान, थान पर जो वा य वै ा नक अ ययन आपके सामने रखा गया,
उसम चॉ क के स ांत को यवहार प म भी अपनाया गया है ।
221
11.7 वचार संदभ / श दावल
1. सात य : लगातार, मब ता
2. परसग : वभि तयाँ
3. अि व त : बनावट, संरचना
4. ह : जगल भयानक, हंसक
5. पूवापर: : आगे पीछे , अगला और पछला
6. मू त : साकार
7. शै थ य : ढ लापन, श थलता
8. अभीि सत : इि छत
9. जनक : उ पादक, ज म दे ने वाला
10. अ याहार : तक वतक, भाषा व ान म गोपन अथ म यु त
11. अ या वत : तक कया हु आ भाषा व ान म गोपन या न हत
अथ म यु त
12. आसि त : लगाव, भाषा व ान म समीप होने या नकटता के
अथ म यु त
13. यो यता : काब लयत, कु छ कर सकने क मता, भाषा व ान
म अ भ यि त के अथ म यु त
14. असंगत : अनु चत, संदभह न
15. आकां ा : इ छा, उ कट अ भलाषा, भाषा व ान म श द क
पर पर पूरकता के - अथ म यु त
16. याथ : या के लए या या के अथ म
17. पदबंध : वा य म नधा रत याकर णक योजन को पूर
करने वाल इकाईयाँ
18. आधारभूत : मू ल, बु नयाद
19. उ चा ध म : नीचे से ऊपर के म म
20. न पादक : न प न करने वाला, पैदा करनेवाला
11.8 सारांश
वा य व ान भाषा क उस या और नयमन यव था के अ ययन से संब है
िजनके वारा श द पर पर जु ड़कर वा य क रचना करते ह । वा य के व वध घटक के बीच
म वा या मक संबध
ं दो तरह के होते ह जो वा य वै या सक और पावल संबध
ं के प म
जाने जाते है । याकर णक तर पर वा य ह भाषा क मू ल इकाई है ले कन संदेश-सं ेषण के
तर पर ोि त को भाषा क मू ल इकाई माना जाता है । याकर णक ि ट से वा य म दो
अंग उ े य तथा वधेय का होना अ नवाय ह उपवा य वा य से छोटा घटक है िजसके दो भेद
आ त और वतं हो सकते ह । दो वतं उपवा य वाले वा य संयु त तथा एक उपवा य
222
के वतं शेष के आ त होने पर वा य म कहलाते ह । पदबंध वा य म नधा रत
याकर णक काय को पूर करने वाल इकाईयां ह इनका अि त व वा य से बाहर संभव नह ं
होता । वा य का व लेषण संरचना, काय, लौ कक, अथ और सू चना के तर पर कया जा
सकता है । वा य वै या सक अ ययन म स यूर और चॉ क का योगदान अ यंत मह वपूण
है । स यूर ने भा षक चंतन म संरचना मक और नोम चॉ क ने भाषा चंतन को रचना मक
जनन याकरण वारा नई दशा दे ने का यास कया ।
11.9 अ यासाथ न
क. द घ तर न '
1. वा य व ान क प रभाषा लखते हु ए वा य क अवधारणा को प ट क िजए ।
2. वा य संरचना के व वध तर का सौदाहरण प रचय द िजए ।
3. वा य के वग करण के आधार को ि ट म रखते हु ए नाम वा य के भेद को
प ट क िजए ।
4. वा य क प रभाषा लखते हु ए वा य का व प प ट क िजए ।
5. वा य व लेषण के तर को सोदाहरण समझाइए ।
ख. लघू तर न
1. अ याहार से या ता पय है?
2. बाहय संरचना और गहन संरचना म या अंतर है 7.
3. नोम चॉ सक के वचार पर ट पणी ल खए ।
4. स यूर क मु ख मा यताएँ या ह?
5. अथसंग त का आशय प ट क िजए ।
ग. र त थान क पू त क िजए
1. पदबंध का अ ययन............................................ के अंतगत होता है ।
2. ...................................... एक ऐसी रचना है जो अपने से बड़ी कसी रचना का
अंग नह ं बन सकता ।
3. संदेश-सं ेषण क ि ट से................................ भाषा क मू ल इकाई है ।
4. वाचन, लंग, पु ष भाषा क ........................................ को टयाँ ह ।
5. वा य के कसी घटक वशेष के भाव से प प रवतन क
या......................... कहलाती है ।
घ सह गलत पर नशान लगाइए
1. ोि त हमेशा एक से अ धक वा य क होती है । सह /गलत
2. संरचना क ि ट से वा य भाषा क लघुतम इकाई है । सह /गलत
3. संयु त वा य म कोई भी आ त उपवा य नह ं होता । सह /गलत
4. पद म का वधान हर भाषा म एक समान होता है । सह गलत
5. ह द म कता तथा या वा य के अ नवाय घटक ह । सह /गलत
223
11.10 संदभ ंथ
1. डॉ. राम कशोर शमा; भाषा चंतन के नए आयाम, लोक भारती काशन, इलाहाबाद'
2. रवी नाथ ीवा तव एवं रामनाथ सहाय; (संपा.) ह द का सामािजक संदभ, के य
ह द सं थान, आगरा
3. डॉ. भोलानाथ तवार ; ह द भाषा क संरचना, वाणी काशन, द ल
4. तेजपाल चौधर ; भाषा और भाषा व ान, वकास काशन, कानपुर
5. भाषा व ान और ह द भाषा, एम.एच डी. 7, ह द संरचना, इं दरा गांधी रा य
मु त व व व यालय, द ल
6. नोअम चॉ क ; Aspect of the Theory of Syntax
7. रामनाथ सहाय; अनुवादक, वा य व यास का सै ां तक प
8. रवी नाथ ीवा तव; अनु यु त भाषा व ान स ांत एवं योग, राधाकृ ण काशन,
द ल
224
इकाई-12 अथ संरचना
इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 अथ व ान
12.3 श द क अवधारणा
12.4 श द और अथ का संबध
ं
12.5 अथ बोध के साधन
12.5.1 भारतीय
12.5.2 पा चा य
12.6 अथ प रवतन
12.7 अथ प रवतन क दशाएँ
12.7.1 अथ व तार
12.7.2 अथ संकोच
12.7.3 अथादे श
12.8 अथ प रवतन के कारण
12.9 वचार संदभ श दावल
12.10 सारांश
12.11 अ यासाथ न
12.12 संदभ थ
12.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप :-
अथ या है? भाषा म अथ का या मह व है? श द और अथ म या स ब ध है?
अथ बोध कैसे होता है?अथ प रवतन कन प म होता है और य होता है? आ द
त य से प र चत हो सकगे ।
व तु त: श द अथ के स ब ध का अ ययन जातीय जीवन क मान सक या से
स ब होता हू ँ । फल व प इस अ ययन वारा आप कसी भई वशेष समु दाय क
सं कृ त का प रचय ा त कर 'सकगे ।
12.1 तावना
भाषा व ान के अ तगत पछल इकाइय म आप वन व ान, प एवं वा य
व ान आ द के बारे म पढ़ चु के ह । तु त इकाई म आप अथ व ान के वषय म पढ़गे ।
225
इसम अथ क अवधारणा, अथ बोध के साधन, अथ प रवतन क दशाएं और अथ प रवतन के
कारण ।' के बारे म व तार से चचा क जाएगी ।
12.2 अथ व ान
अथ व ान, अथ का व ान है । इसम भाषा के अथ प का वै ा नक अ ययन-
व लेषण कया जाता है । भाषा के दो प होते ह-शार रक या यां क, मनोवै ा नक या
अयां क । वन या तथा प संरचना भाषा के शर र प से संब है तथा अथ व ान
भाषा के मनोवै ा नक प से । श द के पगत प रवतन का आधार बा येि याँ ह और
अथगत प रवतन का सीधा स ब ध भाषा के बोलने वाल के मानस जगत से होता है । अथ
श द क आ मा है । अथ व ान म श दाथ के आ त रक प का ववेचन व लेषण कया
जाता है । अथ या है? अथ का ान कैसे होता है? श द और अथ म या स ब ध है?
संकेत हण कैसे होता है? मन म ब ब नमाण कैसे होता है? ब ब से अथ बोध क या
आ द भाषा के आ त रक प है । अथ व ान क सरलतम प रभाषा- श द तथा वा य के
तर पर घ टत या न हत अथ का ववेचन । अं ेजी म इसे सीमेि ट स (semantics) कहते
ह । ह द म इसके लए अथ वचार, श दाथ वचार, श दाथ व ान आ द नाम भी च लत
रहे है । आज अथ व ान नाम ह सव य है ।
भारतीय भाषा चंतन म अथ पर बड़ी गहराई तथा सू मता से वचार कया गया है ।
या क कृ त ' न त' अथ व ान का सव थम भारतीय ग ध है । इसके प चात पतंज ल कृ त
'महाभा य' ओर भतृह र कृ त वा यपद य इस वषय के अ य त मह वपूण थ है । अथ
व ान के े म मह वपूण काय करने वाले पा चा य व वान ह - च व वान मशेल
ेआल, जमन व वान पाल, के. र िजंग ए.बेनर , पो टगेट, गमान, वीट आ द ।
12.3 श द क अवधारणा
श द समू ह कसी भी भाषा क अ ु ण संपदा होता है । श द के बा य तथा आ यंत रक दो
प होते है । एक को 'नाम क सं ा द जाती है, दूसरे को 'भाव’ क । नाम और भाव अथवा
पदाथ के बीच का संबध
ं ह अथ है । वाणी से जो उ च रत होता है वह तो केवल व न है ।
इन व नय के साथ भाव या पदाथ वशेष का जो स ब ध जु ड़ा है, वह अथ है । भाषा
व ान कोष के अनुसार अथ वह त व है जो कसी श द या अ भ यि त क आ मा के प म
उसम न हत होता है । मनोवै ा नक तर पर अथ वह ब ब है, जो पाठक के मि त क म
श द आ द पढ़ कर या ोता के मि त क म श द सु नकर बनता ह । सं ेप म कहा जा सकता
है क कसी भी भा षक इकाई (वा य, वा यांश, प, श द, मु हावरा आ द) को कसी भी
इि य( मु खत कान, आँख)ए से हण करने पर जो मान सक ती त होती है, वह अथ है ।
इस कार अथ का ान यय या ती त के प म होता है । यह ती त अनुभव से
होती है । यह अनुभव दो कार का है- 1 आ म-अनुभव 2. पर-अनुभव
1. आ म-अनुभव: आ म अनुभव का अथ है वयं कसी व तु आ द को अपनी आँख
आ द से दे खना या अनुभव करना । जैसे- मनु य , ी, गाय, अ व, प ी आ द को
226
दे खकर वयं ान ा त करना । चीनी मीठ होती है म मीठ के अथ क ती त वयं
चीनी चखने से हो जाती है । पानी, गम , धू प के अथ क ती त भी इसी कार हो
सकती है । यह आ म-अनुभव है । आ म अनुभव प ट, अ धक ामा णक और थायी
होता है आ म अनुभव के भी दो भेद है- (क) बा य इि य-ज य (ख) अ त रि य-
ज य ।
(क) बा य इि य-ज य आख, कान, नाक, वचा और िज वा हमार बा य इि याँ
ह । आँख से दे खी हु ई व तु, कान से सु ना हु आ श द, नाक से सू ची हु ई गंध, वचा से
छुआ हु आ पदाथ और जीभ से चखा हु आ वाद-बा य इि यज य ान या अनुभव है
। इनका ान और इनक ामा णकता इि य ने वये य क है ।
(ख) अ त रि य-ज य : अ त रि य या अ तःकरण मन है । इि याँ थू ल
व तु ओं का ान ह कर पाती ह, सू म चीज का ान वे नह ं कर पाती । उनका
ान मन करता है । जैसे सु ख-दुःख , शोक, ोध, घृणा , अपमान, भू ख- यास आ द का
अनुभव । शोक, दुःख, अपमान, हष, ोभ आ द का अनुभव यि त वयं मन से
करता है । यह अ त रि य ज य आ म-अनुभव है अ त रि य से होने वाला अनुभव
सू म होने के कारण कम प ट और कु छ अंश तक अ नवचनीय एवं अवणनीय होता
है ।
2. पर अनुभव पर अनुभव का अथ है िजसे 'पर' या 'दूसरे ' ने दे खा है । अनेक े ऐसे
भी होते ह जहां हमार पहु ंच नह ं होती । उस े से संब श दा द के अथ क ती त
के लए हम दूसर के अनुभव या ान पर नभर रहना पडता है । उदाहरण के लए,
हममे से अनेक लोग ने 'जहर' नह ं दे खा होगा, क तु दूसर से ऐसा सु न रखा है क
जहर जीव को मार डालने वाला होता है । अत: जहर' श द के अथ क ती त का
मू लाधार आ म अनुभव न होकर पर अनुभव है । ऐसे ह आ मा, परमा मा, धम-अधम,
पाप-पु य , वग-नरक, मो आ द अ य भी अनेक कार के श द हो सकते ह ।
12.4 श द और अथ का संबंध
भाषा कसी समाज के सम इ तहास का तफल होती है । भाषा क कृ त का
वा त वक पर ण और नधारण नाम तथा भाव अथवा श द और अथ के स ब ध के अ ययन
के आधार पर ह कया जाता सकता है । श द और अथ म ं है? यह
या संबध न भाषा म
अना द काल से उठता रहा है । य पानी कहने से पानी का बोध होता है? या पानी श द
और पानी ं है? भाषा को 'या ि छक
य का कोई संबध वन तीक क यव था कहा गया है
। इसका अथ यह है क भाषा के श द तीक ह । कौन सा श द कस अथ का बोध कराता है,
यह संकेत हण पर नभर है । येक भाषा म कोई श द कसी अथ को संके तत करता है ।
येक भाषा म इस श द का यह अथ होगा, यह संके तत है । यह संकेत सामा यतया वे छा-
ज य या या ि छक होता है । ारं भ मे कोई यि त कसी वशेष अथ म कसी श द का
योग करता है । बाद म वह श द उस समाज या उस भाषा म लोक य हो जाता है । वह
227
उस श द का संके तत अथ माना जाता है । कसी श द से कसी अथ का स ब ध था पत
करना संकेत ह है । यह संकेत ह लोक- यवहार एवं अनुशासन से होता है ।
ं पर वचार करते हु ए या क अपने ' न
श द और अथ के संबध त' म कहते है क
िजस कार बना अि न के शु क ईधन व लत नह ं होता, उसी तरह अथ बोध के बना श द
को दोहराने मा से अभीि सत वषय को का शत नह ं कया जा सकता ।
य गृह तम व ातं नगदे नव
ै श यते ।
अन ना वव शु केधे न त जवल त क ह चत ् । ।
श द से अथ का बोध होता है । इसम श द बोधक है और अथ बो य । श द अथ का
बोध करा कर नवृ त हो जाता है । इसी लये भाषा म मह व अथ का है ।श द और अथ के
स ब ध को वा य-वाचक या बो य-बोधक स ब ध कहते है । श द वाचक या बोधक है, अथ
वा य या बो य ।
अथ क ि ट से श द के दो वग को पहचाना गया है एकाथ और अनेकाथ ।
सं कृ त के का य-शाि य ने श द और अथ के स ब ध म गहन मनन- चंतन कया
है । इस ववेचन को 'श द-शि त' या वृि त - न पण' नाम से तु त कया गया है । श द से
होने वाले अथ तीन कार के है- वा य, ल य और यं य । इसी आधार पर श द भी तीन
कार के होते ह-वाचक, ल क और यंजक । इन तीन म व यमान शि त या वृि त को
अ भधा, ल णा और यंजना कहते ह ।
भारतीय परं परा म अथ बोध के आठ साधन माने गये ह- यवहार, उपमान, करण,
या या, स पद का साि न य, याकरण, कोश, आ त वा य ।
1. यवहार- यह अथ बोध का सबसे मु ख साधन है । यवहार का अ भ ाय है- लोक-
यवहार बालक से लेकर वृ तक लोक- यवहार से ह सबसे अ धक अथ- ान या
संकेत- ह करते ह । संसार क सभी व तु ओं के नाम हम लोक- यवहार से ह जानते
ह । माता- पता, गु , साथी, म , आ द के यवहार से ह संबं धय के नाम पशु-
प य के नाम, बाजार क सभी व तु ओं के नाम आ द का बोध होता है ।
2. उपमान- उपमान का अथ है सा य । एक व तु के सा य पर दूसर व तु का ान
ा त करना । जैसे घोड़ा, द रयाई घोड़ा का शान पहले से है और उसी से मलते जु लते
जानवर के लए जो जमीन के ऊपर नह ,ं बि क जल के भीतर रहता है, एक अथ
बोधक श द है द रयाई घोड़ा । इसी कार गधे या घोड़े से ख चर, कु ते से भे ड़या,
गाय से नील गाय आ द का अथ ात हो जाता है ।
3. करण- एक ह श द के जब व भ न अथ (अनेकाथ श द) होते ह, तब व ध से अथ
हण होता है । रस श द के कई अथ ह, जैसे का य रस, ग ने का रस, वेदना न ह
228
रस । जब कोई यि त कसी वा य म वशेष श द का यवहार करता है, तब वह उसे
अनेक अथ के होते हु ए भी केवल एक अथ म लाता है और ाय: ोता भी उसे उसी
अथ म हण करता ह रसोई म बैठा हु आ रसोइया जब कहार से सै धवमानय' कहता
तो कहार नमक ह लाकर दे ता था, घोड़ा नह । और य द राजदरबार म जाने के लये
तैयार सरदार सईस से सै धवमानय' कहता था, तो साईस घोड़ा ह लाता था, नमक
नह ं । करण ह इस कार के श द के अथ का नणायक है । एक समय म एक ह
अथ उपि थत रहता है । उस समय अ य अथ गायब से रहते ह, य य प वे
अ तःकरण म सु ताव था म' पड़े रहते ह ह , सा ह यकार जहां अपनी कला के दशन
के लए व ोि त आ द म लेष का योग करते ह, वहां दूसर बात है । पर वह सब
कृ म है, भाषा का वाभा वक अंग नह ।
4. या या- इस कार 'धातु' का याकरण म एक अथ है, क तु सामा य जीवन म धातु
म सोना, चांद , तांबा आ द का बोध होता है । गोल एक करण म 'ब दूक क गोल
है तो दूसरे करण म 'दवा क गोल ओर तीसरे करण म ब च के खेलने क गोल '।
5. स पद का साि न य - कु छ श द का अथ पूव ात स श द के साि न य से
खु लता ह जैसे एक वा य ल - 'इस बार गहू ँ जौ, चना, मटर, म का आ द क फसल
अ छ हु ई' मान ल िजए इसम मटर का अथ ात नह ं है तो उसका गहू ँ जौ के साथ,
उसके बडे वग के सद य के प म योग से समझा जा सकता है क यह भी अनाज
ह ह । इसी तरह ' 'बासमती चावल तलक चंदन से अ छा होता है । - तलक चंदन
से अनजान इस वा य का पाठक बासमती और चावल के साि न य से समझ जाएगा
क तलक चंदन कसी चावल का नाम है ।
6. याकरण - कोशगत श द का कालगत, वचनगत या इसी तरह के अ य पा तरण का
ान याकरण के वारा होता है । ' पढ़ना' या 'पढ़ा' य बन गई, इसका या
ता पय है, इसका संकेत याकरण म ह मल सकता है । वतमान काल क कया
भू तकाल म प रव तत होकर 'पढ़ना से 'पढ़ा बन जाती है । इसी तरह लड़का श द
अनेक के अथ म बहु वचन हो जाता है और इसका पा तरण लड़के हो जाता है ।
7. कोश - बहु त से श द का अथ श द कोश के मा यम से जाना जाता है ।
8. आ तवा य- महान, व वान, स , स या पहु ंचे हु ए लोग के वा य कभी कभी अथ
बोध कराते है । यावहा रक जगत म बहु त सी चीज ऐसी होती ह िजनम हमारा य
सा ा कार नह ं होता । ऐसी व तु ओं का अथा मक हण आ त वा य से हो जाता है ।
आ थावान लोग का ई वर, वग, नरक, आ मा, पुनज म जेसे श द का अथबोध
मु यत: आ त वा य पर अवधा रत है ।
12.5.2 पा चा य
12.6 अथ प रवतन
संसार प रवतनशील है । यहां क सभी व तु एं प रव तत होती रहती ह । भाषा भी
प रवतनशील है । िजस कार व नय म प रवतन होता है उसी कार येक भाषा के श द
के अथ म भी प रवतन होता रहता है । कसी श द का अथ सवथा एक नह ं रहता । मनु य
क मन: ि थ त म प रवतन के फल व प उसके वचार एक से नह ं रह पाते । भाषा वचार
क वा हका है । अत: उसे भी वचार का साथ दे ना पडता है । इस साथ दे ने के यास म ह
उसके श द म अथ प रवतन आ जाता है । उदाहरण के लए 'गंवार' श द सं कृ त ामदारक'
से वक सत है िजसका मू ल अथ है गांव का रहने वाला, गांव का लड़का अथवा गांव वाला ।
अब इसका अथ प रव तत होकर 'असं कृ त' या अस य हो गया है । इसी कार तेल श द
सं कृ त के तैल' से वक सत है । िजसका मू लाथ है । ' तल का सार' । आरंभ म तल के रस
को तैल कहते रहे ह गे । पर आज तो इसका अथ इतना प रव तत हो गया है क सरस ,
ना रयल, अलसी, मू ंगफल , सू रजमुखी के फूल के तेल को ह नह ं म ी, सांप और मछल के
तेल को भी तेल कहते है । सं कृ त म ' वहार' श द का अथ वचरण करना टहलना आ द था ।
पा ल भाषा म वह नवास थान के बाहु य म बराबर योग म आया है ओर आज कसी ांत
म बौ वहार के कारण ह शायद उसका नाम ह बहार हो गया । ह द म बाडी, बार श द
ाय: सं कृ त के वा टका श द अथ म आज भी यु त होता ह पर बंगला म उसका अथ घर हो
गया ।
ट फेन उलमान के अनुसार नाम और भाव के मौ लक स ब ध म य ह अ तर
पडता है क अथ म प रवतन आ जाता है । यह प रवतन मु यत: दो प म होता है । कभी
230
कोई नया भाव पुराने नाम के साथ जु ड़ जाता है अथवा कभी पुराने भाव नये नाम के साथ जु ड़
जाते ह इस कार अथ प रवतन का च बराबर चलता ह रहता है । व वान यह मानते है क
भाषा कभी ग तह न नह ं होती । कभी-कभी दे खने म भाषा क ग तशीलता का एकदम पता नह ं
चलता क तु वा तव म व न-गठन, याकरणा मक त व, श द प और श द अथ-ये अभी
समान प म नर तर प रव तत होते रहते ह ।
संसार के भाषा वै ा नक इस न कष पर पहु ंचे ह क श द के पगत प रवतन का
आधार बा येि यां है और अथगत प रवतन का सीधा स ब ध उस भाषा के बोलने वाल के
मानस जगत से होता है । इस कार श द अथ के स ब ध का अ ययन जातीय जीवन क
मान सक या से संब होता है । जो मु यत: भाषा शा ीय, ऐ तहा सक और सामािजक
ि थ तय के व लेषण पर आधा रत होता है ।
यह स हो चु का है क अथ प रवतन का अ ययन यि त, समाज या जातीय
सं कृ त का उ घाटन करता है । आधु नक भाषा वद क यह थापना है क पहले क तु लना म
आज अथात ् आधु नक समाज म अथ प रवतन अ धक घ टत होता है य क आज का जीवन
अपे ाकृ त अ धक कोलाहलपूण और अि थर है । अत: यह माना जाने लगा है क मानव जीवन
और मानव समाज के अ ययन क दशा म व न प रवतन के अ ययन क अपे ा अथ
प रवतन का अ ययन अ धक सहायक है ।
12.7.1 अथ व तार
231
वकास क इस वृि तत को 'अथ- व तार' क सं ा द गई है । अं ेजी म इसे जेनरलाइजेशन
ए सपशन, वाइडे नंग, ए सटे शन इनमी नंग आ द व भ न नाम से अ भ हत कया गया ह ।
उदाहरण-
वीण - वीण का यु पि ततपरक तथा आरं भक अथ है वीणा वादन म नपुण । यह श द
वीणा वादन क नपुणता को छोडकर केवल ' नपुण ' या द (चतुर ) अथ म यु त होने लगा है
। कू दने म वीण, कृ ष कम म वीण कला म वीण, चोर करने म वीण आ द प म
इसका योग होता है ।
गवेषणा - मू ल अथ गौ क 'एषणा अथात ् गाय क इ छा या गाय क खोज है । अब तो कसी
भी कार क खोज गवेषणा' है ।
कु शल - कु श लाने म चतुर यि त के लए 'कु शल' श द यु त होता था । क तु धीरे धीरे
इसका अथ व तार हो गया । कसी भी काय को ठ क तरह से करने वाले को कु शल कहा
जाता है ।
दा ण - वशेषण पद प म कठोर नदय, भयंकर, ती , आ द मू ल अथ म ह द म यु त
है, जैसे दा ण, दुःख , दा ण वपि त, दा ण घटना । क तु बंगला म यह श द अ तशय कठोर
अस य न ठु र आ द अथ म खू ब यवृहत होता है । जैसे-दा ण सु धा(अ तशय भू ख), दा ण
वृि ट , दा ण वभाव( न ठु र वभाव), दा ण भालो(बहु त अ छा) आ द । ह द क तु लना म
बंगला म अ धक अथ सं सारण हु आ है । इस श द म न हत च डता का भाव वहां लु त हो
गया है और बच रहा है केवल अ तशयता का भाव ।
क या - आभा से द ि त स प न अव था म आई हु ई लड़क को अथात ् दस वष क अव था से
मं डत लड़क को क या कहा जाता था । पर ह द म यह श द उस क सीमा रे खा म बंधा
नह ं है । पु ी , बेट , लड़क के सामा य अथ म क या श द का योग होता ह जैसे- 'मु झे तीन
क याएँ तथा दो पु है भले ह इन: तीन लड कय म कोई छ: साल क या ब च वाल
ववा हता ह य न हो । ता पय - क या श द के पीछे जो अ ववा हत या ववाह यो य का
एक वशेष अथ था, वह ह द म सामा य हो गया है ।
12.7.2 अथ संकोच
233
जाता है । जैसे जल यापक अथ म यु त है, पर तु इसके पूव व लेषण मीठा अथवा खारा
यु त हो जाने पर अथ संकु चत हो जाता है- मीठा जल, खारा जल । जब हम कसी श द को
व श ट पा रभा षकता दान कर दे ते ह, तो भी उसका अथ सी मत हो जाता है । जैसे - का य
के संदभ म रस' अ य अथ को छोड़ दे ता है । याकरण के संदभ म इसी तरह के श द ह-
गुण , धातु, आदे श, वृ आद ।
12.7.3 अथादे श
234
(क) अथ कष - य द कसी श द का अथ आरं भ म बुरा हो बाद म अ छा हो जाये
। अथ का पहले से अ धक उ नत हो जाना अथात ् े ठ हो जाना ह अथ कष है ।
उदाहरण –
साहस - साहस का ाचीन अथ चोर , डकैती, य भचार आ द था । अब इसका
'उ साहपूण काय' अथ म योग होता है ।
मु ध - मू ल अथ था मू ख । इसका अथ हो गया है मो हत होना ।
कपट-कपड़ा - सं कृ त म फटे पुराने कपड़े का अथ दे ता था । अब 'कपड़ा' का योग
अ छे व के लए होता है ।
गो ठ-गो ठ - गो ठ गोशाला के लए यु त होता था । उसी से बना 'गो ठ स य
समाज क सभा के लए है ।
(ख) य का य - इसम अथ प रवतन समान तर पर रहता है । बदला हु आ
अथ न उ नत होता है न अवनत ।
वा टका- वा टका का मू ल अथ है बगीचा, इसी से वक सत 'बाडी' बंगला म घर के अथ
म यु त होता संदेश - मू ल अथ है वध करना, आघात करना, क ट दे ना, नुकसान
पहु ंचाना । बंगला म ई या- व वेष के अथ म इस श द का योग होता है।
(ग) अथापकष - अ छे अथ म यु त होने वाला श द कु छ कारण से बुरे अथ म
यु त होने लगता है । उसक अथगत अवन त हो जाती है । उदाहरण-
पाख ड-यह मू लत: स या सय के एक सं दाय का नाम था । अब पाखंड का अथ ढ ग
दखावा रह गया है ।
ं व-प गा- पु ग
पु ग ं व का मूल अथ े ठ था । अब इसी से वक सत प गा श द का अथ
है मू ख ।
बौ -बु - बौ का मूल अथ है बु का अनुयायी । 'बौ ' श द से वक सत बु का
अथ होता है मू ख ।
व वटु क - मू ल अथ पूण चार । इसी से वक सत बजरब ू का अथ है महामू ख ।
भ -भ ा- द श द सु शील के अथ म यु त होता था । उसका वक सत प 'भ ा का
अथ है कु प, ग दा-बुरा ।
चतु वद -चौबे- चतु वद चार वेद के ाता के लए था । उसका वक सत प 'चौबे'
केवल 'अ धक खाने वाला' अथ रह गया ।
235
सरल तथा सं त है । मलते ने यह दशाया क अथ-प रवतन क पृ ठभू म म मु यत: तीन
कारण न हत होते ह-
1. भाषाशा ीय
2. ऐ तहा सक
3. सामािजक
(1) भाषाशा ीय : ाचीन तथा आधु नक सभी भाषा व मानते ह क वयं भाषा क
कृ त म प रवतन के कारण न हत रहते ह । ेआल का मत है क श द तथा श द
वारा बो य व तु के बीच कसी न कसी तरह का नर तर अभाव रहता है, िजसके
कारण अ भ यि त म कभी अ धक व तार आ जाता है और कभी अ धक संकोच ।
वचारक क राय म उपमाओं, पक आ द का आ व कार श द और बो य व तु के
अभाव क दूर मटाने के लए होता है, य क वयं श द म अथ क अ नि चतता
रहती है ।
(2) ऐ तहा सक : दे श, काल तथा पा के अनुकूल शासन, श ा, यापार आ द के प म
नर तर प रवतन होता रहता है । भाषा इस नर तर प रवतनशीलता के पीछे -पीछे
चलती ह भाव के प रवतन से नाम म तो प रवतन नह ं आता, ले कन अथ म
प रवतन आता रहता है ।
(3) सामािजक. िजस तरह कसी खास पेशे का श द सामािजक म ति ठत हो जाता है
या फैशनवष कोई वशेष सामा य हो जाता है अथवा पा रभा षक श द साधारण जीवन
का अंग बन जाता है, उसी तरह नये अथ भी एक समू ह या वग से दूसरे वग या समू ह
तक व तार पाते ह । वशेष वातावरण एकदम ताजे ओर अ य त पा रभा षक भाव
को पुराने श द के साथ जोड़ दया करते ह । इन श द के साथ पा रभा षक भाव
संल न हो जाया करते ह । जब साधारण से वशेष कसी काय के संदभ म श द का
योग होता है तो उसका योग सी मत होता है । कभी-कभी इन कारण से अथ सवथा
प रव तत हो जाया करता है ।
नि चत ह मलते वारा नद शत कारण क उपयु त ववेचना पूण नह ं मानी जा
सकती । अथ-प रवतन के अनेक मनोवै ा नक कारण अ या येय ह । अथ-बोध क
ज टल या को सामने रखकर समय-समय पर अनेक ववेचनाएं तु त क गई,
ता क इस ववेचना क सीमाएं दूर हो सक । डॉ. तारापोरवाला ने अपनी पु तक
'Element of the Science of Language म ो. टकर के अनुसार अथ प रवतन
के बारह कारण माने ह । अ य अनुसध
ं ान को भी समि वत करते हु ए अथ प रवतन
के न न ल खत कारण सु झाए गये ह-
(1) ला णक योग - अथ प रवतन का यह सव मु ख कारण है । भाव और
अनुभू तय क सरल सु दर और कला मक अ भ यि त के लये ल णा शि त का
आ य लया जाता है । भाषा एक सृजना मक या है । येक भाषा अपने
याकरण के अनु प नए-नए श द , योग का सृजन करती रहती है । येक व ता
236
का यह य न होता है क उसक भाषा उसके भाव ओर वचार को बड़ी सू मता ओर
कला मकता से अ भ य त करे । उसे बार बार ऐसा अनुभव होता रहता है क सु व दत
तथा ढ़ तीक से यु त श द उसक आव यकता को भावषाल ढं ग से पूण नह ं कर
पा रहे ह । इसका मु ख कारण यह है क लगातार योग म आते-आते श द क
यंजकता और भावो पादकता ीण हो जाती है । अत: उनम अथ यंजना क शि त
पैदा करने के लये यो ता उनके योग म कु छ प रवतन लाने का य न करता है ।
फलत: वह श द क अथ सीमा को बढ़ाता या घटाता है । नज व क वशेषता या
गुण -धम को सजीव के लए ओर सजीव के गुण धम को नज व के लए यु त करना
अथ क नई भं गमा क आकां ा का प रणाम है । गुण ाह को हंस कहना, डरपोक को
गीदड़ कहना, मू ख को गधा कहना, ग दे यि त को सु अर कहना, खु शामद को कु ता
कहना, भोले को गाय कहना, कपट और अपकार को सांप कहना- इसी तरह के योग
ह । कटु ता, मधुरता, सु दरता, सरसता, नीरसता, मठास आ द श द को मू ल अथ से
व तृत करके योग म लाया जाता है । जैसे- कटु , स य, मधु र लय, सु दर, क पना,
सरस सा ह य, नीरस व तृता, मीठ मु कान आ द ।
भाषा के अथ- वकास म पक व क भी मह वपूण भू मका मानी गई है । इसम मनु य
के अंग को अनेक ढं ग से आरो पत कया गया है । जैसे-सुराह क गदन, घडे का मु ँह,
पवत क चोट , ना रयल क आँख, आर के दाँत, चारपाई के पैर, छ द के चरण, गुफा
का पेट आ द ।
(2) प रवेश-प रवतन. प रवेश या वातावरण म अ तर हो जाने के कारण श द के
अथ म प रवतन हो जाता है यह प रवेश-भेद अनेक कार का हो सकता है-
(क) भौगो लक प रवेश भेद- भाषा का योग िजस े म होता रहता है उसके
बदलाव के साथ बहु त से श द द अथ म बदलाव आ जाता है । वेद म 'उ ' श द का
योग आर भ म भसे के लए हु आ है, बाद म उसका अथ ऊँट हो गया । इससे यह
न कष नकलता है क आय जा त आरं भ म जहां थी, वहां ऊँट नह ं थे, भसे मु य
प से थे । बाद म थाना त रत होकर जहां पहु ंचे वहां ऊँट अ धक थे । फलत: वे
'उ ' का योग दूसरे कार के जानवर के लए करने लगे । इसी कार 'कान' श द
के वभ न थान पर व भ न अथ ह-इं लै ड म गहू ँ कॉटलै ड म बाजरा और
अमे रका म म का । 'ठाकु र' श द का योग उ तर दे श म य के लए, बहार म
नाई के लए और बंगाल म खाना बनाने वाले के लए होता है । अवध े , बहार
ओर बंगाल म पके हु ए चावल को भात कहते है । क तु खड़ी बोल म 'चावल' क चे
और पके दोन कार के चावल का बोधक है ।
(ख) सामािजक प रवेश भेद- समाज म प रवेश के भेद से अथ म भेद हो जाता है
। अं ेजी के मदर और ' स टर' श द का अथ साधारणत: कु छ और है, गरजाघर म
कु छ और है तथा अ पताल म कु छ और है । इसी कार सभा म या यान दे ने वाले
237
के भाई और बहन श द कु छ दूसरे अथ रखते ह और घर म भाई-बहन का योग कु छ
दूसरा अथ रखता है । सामािजक प रवेश भेद के कारण ह एकाथक होने पर भी
परमा मा को ह दू - 'ई वर', ईसाई 'गॉड', और मु सलमान 'अ लाह कहता है ।
(ग) धा मक प रवेश भेद- धा मक परं पराओं के भेद से श द के अथ म अंतर हो
जाता ह ाचीन परं परा के अनुसार 'दो वेद जानने वाला ' ववेद ', तीन वेद जानने वाला
' वेद , और चार वेद जानने वाला 'चतु वद ' कहलाता था, पर तु ये श द अब ा मण
क जा त वशेष के वाचक रह गये ह । 'यजमान' य करने वाले के लये यु त होता
था । यजमान य कराने वाले को कु छ दे ता था, अत: आज जो भी ा मण या नाई-
धोबी को नय मत प से दे ता है, यजमान कहलाता है ।
(घ) भौ तक प रवेश भेद-भौ तक प रवेश म अ तर आने पर भी श द के अथ
प रवतन हो जाते ह । कभी-कभी तो कसी अथ वशेष का वाचक पुराना श द लु त भी
हो जाता है । पानी पीने के पा के प म आज ' लास' का योग होता है, जो इस
त य का सू चक है क वह शु म काँच से बनता रहा होगा । धीरे -धीरे सभी धातुओं म
बने इस तरह के पा को लास कहा जाने लगा । लास जैसे पा के लये पहले या
श द था, इसका पता लगाना ह मु ि कल हो गया । 'पेन' श द का भी ऐसा ह इ तहास
है । प ी के पंख को पेन कहते ह । पहले कलम प ी के पंख से बनती थी, अत: उसे
'पेन' कहा गया । अब पेन, फाउ टे न पेन, डाँट पेन, आ द कसी भी धातु से बने हो
सकते ह ।
(3) सामािजक श टाचार तथा वनय दशन - भाषा सं कृ त क संवा हका ह ।
श टाचार तथा न तावष श द का योग ऐसे अथ म कर दया जाता है जो उस श द
का वा त वक अथ नह ं होता । राजा-महाराजा का आदर दे ने के लए पृ वीनरे श ,
जाव सल आ द श द से सं ो धत कया जाता है । यह न कहकर क 'मेरे यहां
आइए, यह कहना क 'मेर कु टया को प व क िजए', या कसी वशेष म के आ
जाने पर यह कहना 'आज कैसे इतनी कृ पा हो गई' या 'इधर' कैसे रा ता भूल पडे'
आ द वन ता दशन हे तु सामा य अथ से भ न अथ म यु त उि तयाँ ह ।
(4) सु यता- इसे वण सु खदता भी कहते ह । अशुभ , अमंगलसूचक, घृ णत और
ीड़ाजनक श द सु नने म अ य होते ह । अत: उन अथ के लये शु भ एवं सु दर
श द का योग स यता तथा श टता का सूचक माना जाता है । जैसे मृ यु के लए
पंच व, दे हावसान, वगवास आ द, 'लाश के लए शव, म ी आ द, वैध य के लए चू ड़ी
फूटना, सहर धु लना आ द । अंधे को सू रदास, ाच ु कहना भी अशु भ प रहार है ।!'
(5) वपर त ल णा या यं य - कसी के ऊपर यं य करने के लए कभी-कभी
श द को उनके च लत संकेत से वपर त अथ म यु त कया जाता है । जैसे कु प
को कामदे व, मू ख को वृह प त , झू ठे को यु धि ठर , कृ पण को कण, डरपोक को संह
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आ द । 'आँख का अंधा नाम नयनसु ख', 'नाच न जाने आंगन टे ढा' आ द मु हावरे भी
यं यमूलक ह ।
(6) भावा मक बल - कसी श द के च लत अथ को खू ब बढ़ा-चढ़ा कर य त
करने क भावना से कभी-कभी उसके साथ व च तरह का वशेषण जोड़ दया जाता है
। जैसे कपड़ म 'भयंकर छूट', भीषण सु दरता, चंड मू ख आ द । आ चय क ि थ त
म हे राम, अरे राम, राम-राम का उ चारण भगवान के नाम मरण के लए नह ं होता,
धककार का व मय सूचक होता है ।
(7) सामा य के लए वशेष का योग - कभी-कभी सामा य के लए वशेष का
योग च लत हो जाता है । कसी व श ट अथ को बताने वाला श द सामा य प से
उस वग का बोध कराता है जैसे स ज का अथ है हरा और स जी का अथ है हर
तरकार । पर अब सभी कार क तरकार को स जी कहा जाता है, चाहे वह हर हो
या सू खी । याह श द काले का बोधक है, पर तु अब सभी कार क याह के लए
इसका योग होता है-नील याह , हर याह , लाल याह , काल याह । कु छ
जा तवाचक श द एक ह लंग म यु त होते ह और पु लंग- ी लंग दोन का बोध
कराते है । जैसे तोता, कौआ, को कल, बारह संगा, चीता, गीदड़, आ द म पु लंग का
योग दोन लंग के लए होता है ।
(8) ां तमू लक अवधारणा - भाषा का ान समाज म अनुकरण के वारा होता है
। अ ान का ांत धारणा के कारण बहु त से श द का अशु योग होने लगता ह जैसे
लेबर का अथ है प र म, लेबर का अथ है मजदूर । कं तु व न संकोचन के कारण
लेबर का अथ मजदूर हो गया । इसी तरह फजूल के अथ म 'बे फजू ल', खा लस के
अथ म नख लस आ द श द का योग होता है, जब क इनका अथ वे, न, आ द
नषेधवाची उपसग के योग से वपर त हो जाता है ।
(9) अथपरक अ नि चतता - भाषा म कु छ श द ऐसे होते ह, िजनका अथ पूणतया
प ट और नि चत नह ं होता । इस को ट म मु य प से अमू त भाव के बोधक
श द ह । अनुकंपा, दया, कृ पा आ द श द का अथ भेद इतना सू म है क बना
वशेष ान के इनका अंतर समझना क ठन है । सामा य भाषा यो ता इ ह एक
दूसरे के थान पर ाय: यु त करता है । अ युदय -उ न त, पावन-प व , वकास-
ग त इसी तरह के श द यु म है ।
(10) अवधारणा मक अ तर - भाषा यवहार क एक सां कृ तक सीमा भी होती है ।
यि त वशेष क सां कृ तकता तथा वैयि तक मता भी अथ हण को भा वत
करती है । सां कृ तकता तथा वैयि तक मता के भेद के कारण अथ भेद पैदा होता ह
धम-अधम, पाप-पु य , स य-अस य आ द ऐसे ह श द ह िजनका अलग-अलग
सं कृ तय तथा सं दाय म अवधारणा मक अथ भेद मलता है ।
(11) साहचयज नत गौण अथ क मु खता - कसी व तु वशेष का उ पादन या
अ य स ब ध के आधार पर नामकरण करके नये अथ को न हत कर दया जाता है
239
। स धु म पैदा होने वाले नमक को सै धव इसी आधार पर कहा गया । श कर क
क म वशेष 'चीनी' का नामकरण चीन से इसक स ब ता के कारण है । इसी कार
लंका से आया तत होने के कारण बंगला मच को लंका कहा जाता है।
(12) श द के व वध प म नये अथ का समावेश - भाषाओं के वकास के कारण
एक श द के अनेक प च लत हो जाते ह । त सम श द ाय: ाचीन मू ल अथ को
बताता है । त व श द उससे संब नकृ ट अथ या अ य अथ को बताता ह जैसे-
ग भणी( ी के लए), गा भन(गाय भस के लए), तन-थन, साधु-साहू े ठ-सेठ,
खा य-खाद(उवरक), वाता-बात आ द ।
(13) याकर णक कारण - याकरण के कारण भी श द के अथ म प रवतन होता
है । हार' श द म उप, व, आ, सं आ द उपसग के संयोजन से अथ बदला जाता है ।
जैसे उपहार, वहार, आहार, संहार । इसी कार कार श द म उपसग के जु डने से नये
अथवान श द बनते ह- आकार, वकार सं कार । य य के यु त होने से भी अथ
प रवतन होता है । जैसे कल-कल , मीठा- मठाई समास के वारा भी: अथभेद लाया
जाता है । जैसे प तगृह (ससुराल ), गृहप त (गृह वामी ), क वराज(वै य), राजा का क व)
आद ।
240
13. करण - संग
14. अ त रि य - मन, चेतना
15. अ नवचनीय, - िजसे वाणी वारा कट न कया जा सके
12.10 सारांश
तु त इकाई म आपने भाषा म अथ संरचना िजसे सामा यत: अथ- व ान क सं ा द
जाती है, म अथ के व भ न पहलु ओं का अ ययन कया और समझा क कस कार अथ के
मह व को ाचीन तथा आधु नक सभी व वान ने एकमत से वीकार कया । व न, पद और
वा य को हम य द भाषा का शर र माने तो नःसंदेह अथ उसक आ मा है । न त म या क
ने कहा है 'िजस तरह ईधन कतना ह सू खा य न हो वह अि न के बना काश नह ं दे
सकता, उसी कार अथ ान के बना य द श द का उ चारण कया जाए तो वह अभीि सत
योजन स नह ं करते । ''
इस इकाई म अथ संरचना के अ तगत अथ क अवधारणा को प ट कया गया ।
आप समझ गये ह गे क कसी भी भा षक इकाई, वा य, वा यांश, प, श द, मु हावरा आ द
को कसी भी इि य(मु यत कान, आख) से हण करने पर जो मान सक ती त होती है वह
अथ है । इस कार अथ का ान यय या ती त के प से होता है और यय या ती त
अनुभव से होती ह । अनुभव आ म एवं पर होते ह श द और अथ के पार प रक संबध
ं को
समझते हु ए आपने दे खा क न त के अथ बोध के भारतीय साधन म यवहार, उपमान,
करण, ववरण एवं अनुवाद से आप प र चत हु ए । इसी संदभ म अथ प रवतन एवं उसके
दशा बोध का ान ा त कया । अथ संरचना म अथादे श का वशेष मह व है िजसम एक
अथ के थान पर दूसरा ति ठत हो जाता है । इसके व वध टांत के मा यम से समझ
गये ह गे क कन प रि थ तय म अथ संकोच प रल त होता है । अथ प रवतन के कारण
पढ़ते हु ए आपने इन प रवतन के पीछे कायरत भाषाशा ीय सामािजक और ऐ तहा सक
पृ ठभू म को भी समझा होगा ओर यावहा रक तर पर एक समझ बना पाए ह गे ।
12.11 अ यासाथ न
क. द घ तर न-
1. अथ व ान या है? भाषा व ान म इसके मह व पर वचार क िजये ।
2. अथ क अवधारणा को प ट करते हु ए श द और अथ के स ब ध पर वचार
क िजये ।
3. अथ बोध के साधन का प रचय द िजये ।
4. अथ-प रवतन के अ ययन क उपयो गता पर काश डा लये ।
5. अथ-प रवतन क दशाओं का वणन क िजये ।
6. अथ व तार एवं अथ संकोच म या अंतर है? उदाहरण स हत उ लेख क िजये ।
7. अथ प रवतन के कारण का ववेचन क िजये ।
ख. लघु तर य न-
241
1. अथ व ान के अ ययन का या उ े य है?
2. अथ क अवधारणा कुछ पंि तय म प ट क िजये ।
3. अनुभव कतने कार के होते ह?
4. अथ बोध के करण साधन पर ट पणी लख ।
5. पा चा य व वान ने अथ बोध के कौन-कौन से साधन माने ह ।
ग. सह 'गलत कथन चि नत कर-
1. भाषा म अथगत प रवतन का कारण व वान के या यान ह
सह /गलत
2. कसी श द से कसी अथ का संबध
ं था पत करना संकेत ह है ।
सह /गलत
3. उपमान का अथ है असमता । सह /गलत
4. कुछ श द का अथ पूव ात स श द के साि न य से खु लता है ।
सह /गलत
5. नाम और भाव के मौ लक संबध
ं म य य अंतर बढ़ता है, अथ म प रवतन आ
जाता है । सह /गलत
घ. र तां थान पूण क िजये-
1. श द के पगत प रवतन का आधार
2. ....................................................................... है ।
3. कुश लाने म चतु र यि त के लए ...................................... श द का योग
होता था ।
4. जब श द का सामा य अथ व श टता क ओर वृ त होता है तब उसे
...........................कहते ह ।
5. .............................. का अथ है, एक अथ के थान पर दूसरे अथ का आ
जाना ।
6. अथादे श को ................................. भी कहते ह ।
12.12 संदभ थ
1. डॉ. बाबूराम स सेना; अथ व ान, पटना व व व यालय, पटना
2. डॉ भोलानाथ तवार ; श द का जीवन, राजकमल काशन, नई द ल
3. डॉ. भोलानाथ तवार ; आधु नक भाषा व ान, राजकमल काशन, नई द ल
4. डॉ. क पल दे व ववेद ; अथ व ान और याकरण दशन, व व व यालय
काशन, वाराणसी
5. डॉ. क पल दे व ववेद ; भाषा व ान एवं भाषा शा , व व व यालय काशन,
वाराणसी
242
6. ो. राम कशोर शमा; आधु नक भाषा व ान के स ांत, लोक भारतीय काशन,
इलाहाबाद
243
इकाई-13 ल प का उ व एवं वकास और नागर लप
इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 ल प का इ तहास, ल प का वकास
13.3 ल प के वकास के चरण
13.3.1 च लप
13.3.2 सू लप
13.3.3 तीका मक ल प
13.3.4 भाव ल प
13.3.5 भाव- व नमू लक ल प
13.3.6 व न ल प
13.3.6.1 अ रा मक ल प
13.3.6.2 वणा मक ल प
13.4 भाषा और ल प का पार प रक संबध
ं
13.5 ल प व ान का उ व और वकास
13.6 दे वनागर ल प: उ व और वकास
13.6.1 स धु घाट क लप
13.6.2 ा मी ल प
13.6.3 खरो ठ ल प
13.6.4 दे वनागर ल प का वकास
13.6.5 दे वनागर ल प का व प
13.7 दे वनागर लप क वशेषताएँ
13.7.1 दे वनागर ल प के गुण
13.7.2 दे वनागर ल प के दोष
13.8 दे वनागर ' ल प म सु धार
13.9 मानक दे वनागर लप
13.10 मानक ह द वतनी
13.11 दे वनागर ल प और व या मक तलेखन
13.12 वचार संदभ/श दावल
13.13 सारांश '
13.14 अ यासाथ, न
13.15 संदभ थ
ं
244
13.0 उ े य
इस इकाई को पढने के बाद आप:-
भाषा के एक अप रहाय अंग ल प से प र चत हो पाऐंगे और ल प तथा भाषा के संबध
ं
को रे खां कत कर पाऐंगे । ल प और भाषा का संबध
ं यह है क भाषा अपने मू ल प
म व नय पर आधा रत है, ल प म उन व नय (या कु छ भाषाओं म श द ) को
रे खाओं वारा य त करते ह अथात ् दोनो के मा यम का अंतर समझ सकगे ।
ल प के इ तहास और उसके वकास के व वध चरण से अवगत हो सकगे ।
व व क कु छ च चत ल पय का सामा य प रचय ा त कर सकगे ।
दे वनागर ल प के उ व और वकास को समझ सकगे ।
दे वनागर लप क वशेषताएं-उसके गुण दोष एवं उसम सु धार के सोपान को जान
सकगे ।
मानक दे वनागर ल प एवं मानक ह द वतनी के स ांत को समझ कर वतनी क
गल तय से अपनी भाषा को बचा पाएंगे ।
ल प के संदभ म व या मक तलेखन क उपादे यता से प र चत हो सकगे ।
13.1 तावना
आ दम मनु य ने लखावट अथवा ल प क रे णा अपने चार ओर नैस गक प रवेश से
ा त क होगी । आकाश म समय-समय पर उगते-डू बते चांद-सू रज और रात भर टम टमाते
न से उसने मू क संदेश ा त कया होगा । उसके मन म इ छा जागी होगी क वह भी
अपने मन म उठते गरते भाव को कसी संकेत वारा अ भ य त करे । संभवत: च ांकन के
पीछे यह चाह बलवती रह होगी । इस त य के कुछ माण भी ा त हो जाते ह ।
पे दे श म कु इपुँ (QUIPU) नाम क डो रय का िज मलता है िजनम रं ग- बरं गे
धाग क गांठे तथा गांठ को बाँधने के तर क से व वध भाव का बोधन कराया जाता था ।
उ तर अमर का म चमडे म मोती-मू ँगे आ द को परोकर भाव को सु र त रखने क परं परा
मलती है, िजसे वै पम (WAMPAUM) कहते ह । भारत क व भ न भाषाओं म कसी बात
को मरण रखने के लए गांठ बांध लेना अथ का मु हावरा मलता ह च वारा अथा भ यि त
क परं परा अ यंत ाचीन. है । कई दे श म धटनाव लयो को च के मा यम से थायी बनाने
के उदाहरण मलते है ।
ल प का आ व कार मनु य क मेधा क सव तम उपलि धय म से एक है । ल प के
मा यम से ह संसार के े ठ सा ह यकार क कालजयी रचनाओं को पढ़ उनका रसा वादन कर
सकते ह । ल प के, मा यम से अपना संदेश दूर दूरांतर के दे श तक सं े षत कर सकते ह ।
य य प उ चा रत भाषा ह अ भ यि त का सहज तम मा यम है, पर तु उसक सीमा है । वह
जहां और जब बोल जाती है केवल वहां और उसी समय सु नी जा सकती है । व न-मु ण ओर
दूर संचार मा यम के अ याधु नक उपकरण ने इस सीमा को तोडा ज र है कं तु सबक अपनी
सीमाएं ह । एक ओर तो ये सव सुलभ नह ,ं दूसर ओर यय सा य और म सा य ह । ऐसी
245
ि थ त म भाषा' को सहजता से सं े षत और सु र त रखने म ल प ह सबसे उ तम साधन है
। अ ययन-अ यापन से लेकर सरकार ' कामकाज, नजी प ाचार, प -प काओं के काशन तक
म सव ल प आधु नक जीवन से जु ड़ी है ।
13.3.1 च लप
246
द वार, प थर, जानवर क खान, म ी के बतन, पेड़ क छाल, हाथी-दाँत, काठ, ह डी आ द पर
बनाए जाते थे ।
भोलानाथ तवार के अनुसार ' ' ाचीन काल म च ल प बहु त ह यापक रह होगी,
य क इसके आधार पर कसी भी व तु का च बनाकर उसे य त कर सकते ह गे । इसे
एक अथ म अ तरा य ल प भी माना जा सकता है य क कसी भी व तु या जीव का च
सव ाय: एकसा ह रहे गा और उसे दे खकर व व का कोई भी यि त जो उस व तु या जीव
से प र चत होगा, उसे पढ लेगा । पर यह तभी संभव रहा होगा जब तक च मूल प म रहे
ह ।
च ल प क कई सीमाएं थी-
1. यि तवाचक सं ाओं जैसे सीता, कमला, राधा, आ द को च के मा यम से दशाना
संभव नह ं है ।
2. थू ल चीज के अलावा अथात ् भाव और वचार का च ांकन असंभव था ।
3. च को बनाने म समय लगता था । ज द म च बनाकर कोई भी अ भ यि त
मु ि कल थी ।
4. काल, समय आ द के भाव को कट करने के साधन इस ल प म नह ं के बराबर थे ।
च ल प वक सत होते-होते तीका मक बन गई ।
13.3.2 सू ल प
13.3.3 तीका मक ल प
13.3.4 भाव ल प
247
य य प भाव ल प च ल प तथा सू ल प से अ धक उ नत थी पर तु मानव के असं य
भाव के लए असं य च को बनाना एवं मरण रखना क ठन काय स हु आ । अत:
उ न त के सोपान पर चढ़ते हु ए मानव ने भाव- व नमू लक ल प और फर व नमू लक ल प
का वकास कया ।
13.3.6 व न ल प
13.3.6.1 अ रा मक ल प
13.3.6.2 वणा मक ल प
13.5 ल प व ान का उ व और वकास
आधु नक युग म भाषा व ान के वकास म ल प व ान का मह वपूण थान है ।
ल प शा के अंतगत कसी भाषा के वन तीक के आधार पर वै ा नक प त से उस
भाषा के लए एक सु यवि थत ल प का नमाण कया जाता है । भाषा व ान क इस शाखा
को वक सत करने म अमर क व वान का मह वपूण थान है । अमर क भाषा वै ा नक
कैनेथ एल. पाइक का ल प शा के े म सराहनीय योगदान है । इस दशा म उनक
पु तक फोने म स एक मह वपूण उपलि ध है ।
सभी ल पय को यावहा रक ि ट से एक वणमाला का चयन करना पड़ता है ।
ल पशा क सहायता से कसी भाषा वशेष क अनेकानेक व नय म से कु छ नि चत
नयम के आधार पर एक तनध व न समू ह को छांट लेते ह, और केवल इ ह ं व नय को
अं कत करने के लए ल प च ह का नमाण करते ह ।
249
जमनी के वैयाकरण ने ल पशा के संबध
ं म एक मह वपूण स ांत यह दया है क
यह शा जी वत बो लय को ल पब करने क यवि थत णाल दे ने के साथ-साथ ाचीन
ल खत भाषाओं को ल पब करने के लए भी नि चत सुझाव दे ता है ।
ल पशा क वृ त ग णत के समान है । ल पशा का अ येता ग णत के अ येता
क तरह अ यास करता है ।
13.6.1 स धु घाट क लप
13.6.2 ा मी ल प
13.6.3 खरो ठ लप
250
। हखमानी सा ा य क अरमाइक ल प से खरो ठ ल प के यारह च ह मलते जु लते ह ।
इस ल प क ' न न ल खत वशेषताएँ है-
1. यह ल प दाँए से बाएँ लखी जाती थी ।
2. यह एक अ रा मक ल प थी, िजसम 37 ल प संकेत थे ।
ह व और द घ वर म अंतर न होने एवं मा ाओं और संयु ता र के अभाव म यह
एक आधी-अधू र अवै ा नक ल प मानी जाएगी ।
251
च गु त वतीय को दे व सं ोधन दया गया था । अत: दे व नगर से ता पय था पाट लपु
और वहां क ल प दे वनागर कहलाई ।
13.8.5 दे वनागर ल प का व प
यह एक अ रा मक ल प है । दे वनागर म 14 वर और 33 यंजन है ।
वर - अ आ, इ ई, उ ऊ, ऋ, ऋ, ए, ऐ,ओ, औ, अं, अ: ।
इनके अ त र त सं कृ त म यु त ‘तृ' 1 5वाँ वर है ।
यंजन - क् , ख,ग, घ, ड च, छ, ज, झ,ञ ट, ढ, ड, ठ, ण
त,् थ, द, ध, न,् प, फ, ब, भ म, य, र, ल, व, श ष, स,
ह
उि त ड़, ढ़ नीचे ब दु लगाकर लखे जाते ह ।
संयु त यंजन - वणमाला म , , , का संयु त यंजन के प म समावेश कया
गया है।
मा ाएँ - यंजन और वर के संयोग के लए मा ाओं क यव था है ।
िजसका व प इस कार है ।
वर : अ आ,इ, ई, उ ऊ, ऋ, ऋ, ए,ऐ,ओ, औ अं, अत:
मा ाएँ(क् के साथ)- क, का, क, क , कु, कृ , कe, के, क, को, क , कं, क: ।
252
आते ह फर यंजन । वर म भी पहले समान वर और बाद म संयु त वर आते
ह अथात ् उनम भी एक आंत रक म है । समान वर म भी पहले ह व ओर बाद म
द घ का म रहता है । यंजन म पहले पश आते ह, फर अंत थ और इसके बाद
उ म । येक वग म अघोष अ प ाण, अघोष महा ाण, घोष अ प ाण, घोष महा ाण
और ना स य यंजन का म रहता है । अत: दे वनागर क वणमाला म अ यंत
वै ा नक एवं यवि थत प म वग का म आता है, िजसका अ य कसी भाषा क
वणमाला म ाय: अभाव दे खने को मलता है ।
इसे य द व तारपूवक समझाना हो तो य कहे क दे वनागर के यंजन को उ चारण
थान के अनु प सजाया गया है । अथात ् क वग - कंठ व नयाँ, च वग - ताल य,
ट वग - मू ध य, त वग-दं य, प वग-ओ य । येक वग क अं तम व न ना स य
व न हे जैसे ड. *, ण, न,् म ् ।
येक वग का दूसरा और चौथा वण महा ाण और पहला, तीसरा और पाँचवा वण
अ प ाण व न ह उसी कार येक वग के पहले दो वण अघोष और शेष तीन वण
घोष व नयाँ है । न कष प म कहा जा सकता है क यह म दे वनागर लप म
इतने यवि थत प से दे खने को मलता है जो व व क कसी अ य ल प म दुलभ
है ।
अ प ाण - क् , ग, ड, च, अ, ज,ञ,ट, ड़,ण,त, , न,् प, ब, म,् य, र, बू, ड।
महा ाण - ख, घ, छ, झ ठ, ढ, थ, ध, ह, फ, ह, ह, ढ ।
अघोष - क् , ख, च, छ, ट, ठ, त,् थ, प, फ, स, श ।
घोष - ग, घ, ड, ज,झ, * ड,ढ,ण,द,ध,ण,ब,भ,म,य,र,ल,व,ह,ड,ढ ।
रोमन ल प क वणमाला म यह यव था एवं एक पता ि टगत नह ं होती है । जैसे
A वर है, B यंजन, C और D यंजन के बाद फर E वर । उदू के अ लफ, बे,
पे, म भी यह अ यव था है ।
2. दे वनागर म ल प च ह के नाम उसके उ चारण के नकट है जेसे अ आ, इ ई, क
ख, ग आ द । रोमन म छ का उ चारण है पर नाम 'बी' है, 'S' का उ चारण 'स' है
पर नाम 'एस' है यह अवै ा नकता उदू के अ लफ, वे, पे, ढाल आ द म भी मलती
है।
3. दे वनागर क एक वशेषता यह भी है क इसम एक व न के लए एक ह लप च ह
है, जैसे क के लए क, ख, के लए ख और ग के लए ग आ द । इसके वपर त
रोमन म एक व न के लए कई ल प च न यु त कये जाते ह जैसे 'क' के लए
K(King), C-Calcutta, और Q(Queen) तीन वण ह यहां तक क Cheristry,
Choose आ द श द म 'क' व न के लए Ch दो वण का भी योग कया जाता है
। अरबी ल प(उदू) म भी ‘स' के लए से, सीन, वाद, सोय आ द कई ल प च ह
का योग होता
253
4. ठ क इसके उ टे म म दे वनागर ल प म एक ल प च न एक ह व न के लए
यु त होता है । अथात ् ‘क' के लए क 'ख' के लए ख, आ द इसके वपर त रोमन
ल प म 'C' 'क' और 'स' के लए, 'G' ग और ज, 'S' स और ज के लये यु त
होते ह । वर म और भी अ नय मतता है जैसे I के लये आई और इ दो उ चारण
मलते ह उदाहरणाथ Fine, Pin
5. दे वनागर म अ र का व प हमेशा एक सा रहता है जब क रोमन म (बड़ी) Capital
(A,B,C) और Small (छोट ) (a,b,c) का भी अंतर है ।
वष पूव जब वै दक और लौ कक सं कृ त के लए ा मी ल प का नमाण हु आ, तब
उस भाषा क आव यकताओं क पू त के लए यह ल प पूणतया समथ थी । पर तु इ तहास
का रथ आगे बढ़ता गया और व भ न भाषाओं के भाव, प रवतन और प रव न के फल व प
िजस ह द का ज म हु आ एवं आज योग म लाई जा रह है, उसक दे वनागर ल प कु छ
दशाओं म पछड़ी हु ई है । इसका एक कारण व ान संबध
ं ी एवं तकनीक वकास भी है ।
भारत म मु ण और मी डया के वकास के अनु प दे वनागर ल प म प रवतन नह ं कये गये,
फल व प आज हम दे वनागर ल प म न न ल खत दोष दखाई पड़ते ह-
1. अ र क वैधता - दे वनागर का योग भारत के कई सु दरू ि थत ांत म होता है
इस लए कु छ अ र को दो प म लखा जाता है जैसे , ऋ, ऋ, झ, झ, ल, ल
त, त आद ।
2. सं द धता - कु छ वण म इतना अ धक सा य है क वे दूसरे वण क तरह तीत होते
ह जैसे ख-ख, घ-ध, व-ब, म-भ, ड-ड, आ द ।
3. कई संयु ता र क बहु लता - दे वनागर म संयु ता र के लए वतं ल प संकेत है
जो मु ण क ि ट से असु वधाजनक तीत होते ह जैसे ( य), ( म), ( ान),
( शूल), य( व या), म( ा मी) आ द ।
4. संयु ता र ऊपर-नीचे लखे जाते ह जो मु ण म बाधा सा बत होते ह और अ धक
थान लेते ह जैसे डु (अ डा), (ग ा), व( वार), (ख ा) आ द ।
5. र के संयोग क तीन ि थ तयाँ बनती ह जो ल प, को अ धक ज टल बना दे ती ह ।
अथात ् अगले यंजन के ऊपर (वण), यंजन के नीचे( म, कार), ट वण के नीचे
( ाम, म) आ द ।
6. अनु वार ओर ना स य वण का वैकि पक योग लेखन और मु ण म वैधता और
असंमजस लाते ह जैसे चंदन-च दन, खंडन-ख डन, आलंबन-आल बन, घंटा-घ टा आ द
।
254
7. मा ाएँ - दे वनागर अ रा मक ल प है । इसम वर यंजन के संयोग के लए मा ाओं
का योग कया जाता है । ये मा ाएं ऊपर नीचे, बाएँ, दाएँ चार तरफ लगाई जाती ह
जो मु ण म अ धक थान घेरती है
जैसे-. ऊपर-केशव, मौय
नीचे-गु , मृत , पूरा
बाँए-दाँए - बना, मीना, कसान
इसके अलावा अनु वार , अनुना सक और वसग भी मा ा क तरह यु त होते ह जैसे-
अनु वार - गंदा, कंठ
अनुना सक - दाँत, आँख
वसग - ाय:, अत:
जब दो मा ाएँ एक ह थान पर एक ह वण के साथ लगाई जाती है तब असु वधा
और सं द धता और बढ़ जाती है । जैसे प छना, अशीवाद सद आ द ।
व तु त: उपयु त सारे दोष का मूल कारण यां क उपकरण के अनु प दे वनागर लप
का तालमेल न बैठना तीत होता है । पर तु धीरे -धीरे क यूटर के लए नवीन और अ धक
भावषाल सॉ टवेयर वक सत कये जा रहे ह िजनम दे वनागर लप क सम त
आव यकताओं को यान म रखा जा रहा है । इसके साथ ह दे वनागर ल प के सुधार के लए
जो सु झाव दये गये ह उ ह आ मसात कर लेने से दे वनागर ल प के सारे दोष दूर कये जा
सकते ह और उसे एक पूण वै ा नक ल प का थान दया जा सकता है ।
255
4. 'ख' को नीचे से मलाकर लखा जाए ।
5. रे फ को दोन यंजन के बीच म लगाया जाए जैसे धम, ध ' म, का ' य ।
6. , , , म से को , को त लखा जाए । पर को यथापूव लखा जाए ।
7. संयु ता र म क और क के संयोग को पूववत रखा जाए जैसे या और शेष खड़ी पाई
वाले यंजन क पाई हटाकर दूसरे यंजन से जोड़ा जाए । जैसे या त, यादा, याग
आद । बना पाई वाले यंजन के नीचे हल त च ह लगाकर आगे के यंजन से
जोड़ने का सु झाव दया गया । जैसे व वान, अ डा, व या आ द ।
8. वर क जगह अ क बारहखड़ी का योग कया जाए ।
9. इ क मा ा को पूववत रखा जाए ।
सन ् 1947 म उ तर दे श सरकार ने एक स म त का गठन कया िजसके अ य
आचाय नरे दे व थे ।
डॉ. धीरे वमा, मंगलदे व शा ी आ द सु स भाषा वै ा नक क इस स म त ने लगभग दो
वष के अ ययन और आठ-नौ बैठक के बाद जो सु झाव दये उनका सारांश न न ल खत है-
1. ऊ क बारहखड़ी को वीकार न कया जाए ।
2. संयु ता र के लए वतं ल प संकेत क आव यकता नह ं है ।
3. प टता के लए ध और भ को उपर घु ड
ं ी लगाकर लखा जाए ।
4. मा ाएँ थोड़ी दूर पर लगाई जाएँ जैसे द' श ।
5. ह और र का पर परागत प वीकार कया जाए ।
6. मराठ वण ल को दे वनागर वणमाला म वीकार कया जाए ।
7. वैध वण म अ, झ, ण ओर श को वीकार कया जाए ।
8. पंचम वग के थान पर अनु वार का योग हो िजसका च ह 0 हो ।
9. ह व इ क मा ा भी दाँयी ओर लगाई जाए और द घ मा ा से उसे भ न दखाने के
लए पाई को त नक छोटा रखा जाए ।
1953 म सवप ल राधाकृ णन क अ य ता म एक अ खल भारतीय स म त का
गठन कया गया िजसने लखनऊ म आयोिजत सभा म कु छ संशोधन के साथ नरे दे व
समत क सफा रश को वीकृ त कर लया पर ह व इ क मा ा दाँई ओर लगाए जाने के
ताव का यापक वरोध होने के कारण 1957 म उसे पूववत कर दया गया ।
256
वसग – क:
यंजन - क ख ग घ ड च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व
श ष स ह
वीकृ त संयु ता र - , , ,
हल त च ह - क्
वदे शी भाषाओं से हण कये गये श द के लए 'ऑ (जैसे कॉलेज डॉ टर) ओर ख,
जू, फ (फना, जरा) आ द को मा यता द गई ।
संयु त यंजन को लखने क चार शै लय क मा यता द गई ।
1. खड़ी पाई वाले यंजन -.... ........ ......... याय, यारह
2. बना पाई वाले यंजन -......................... ग ढा, म ा
3. क और फ का योग - व त, द तर
4. (क) म, ेम
(ख) काय, भाया
(ग) े ता, हण
इसी तरह के कई सु झाव को अपनाते हु ए दे वनागर ल प का मानक प ि थर कया
गया िजसका योग आज तक कया जा रहा है । इन सु झाव के साथ नागर लप क
एक पता, प टता और सरलता के गुण को बनाए रखते हु ए उसे और अ धक वै ा नक बनाया
गया ।
257
(क) व द समास के पद के बीच हाइफन रखा जाए । उदाहरण माता- पता
(ख) सा, जैसा आ द से पूव हाइफन का योग उदाहरण तु म-सा
(ग) त पु ष समास म सामा यतया हाइफन लगाने क आव यकता नह ं है केवल
कु छ वश ट योग को छोडकर । उदाहरण - त पु ष समास- धानमं ी,
महास चव आ द व श ट योग उदाहरण- भू-तल
(घ) क ठन सं धय के थान पर हाइफन का योग कया जाए । उदाहरण व-
अथक
5. अ यय- ह द म कहाँ, जहाँ, चाहे, ले कन जैसे कई अ यय का योग कया जाता है ।
(क) अ यय सदा पृथक लखे जाएँ । उदाहरण कहाँ जाओगे, प के पीछे आ द ।
(ख) स मानाथक ' ी', 'जी' भी अलग लखे जाएँ उदाहरण - ी संह जी
(ग) सम त पद म त, यथा आ द अ यय पृथक् न लखे जाएँ उदाहरण
त दन, यथासमय
6. ु तमू लक - ह द म 'य' और 'व' को ु तमूलक माना गया है और इसके योग के
संबध
ं म यह नयम है क जहाँ 'य' और 'व' श द का ह मू ल त व ह एवं मा
ु तमू लक याकर णक प रवतन न ह , वहाँ उनका उसी प म योग हो जैसे -
थायी, वा तव आ द ।
जब क जहाँ ु तमूलक 'य' और 'व' का योग वक प से हो वहाँ उनका योग न
कया जाए जैसे कये, जाये, आवे, हु वा के थान पर कए, जाए, आए, हु आ का योग
कया जाए ।
7. अनु वार तथा चं ब दु - मानक ह द म अनु वार और चं ब दु दोन ह च ह
च लत रहगे । य द पंचमा र के बाद अ य वग का कोई वण आए अथवा वह
पंचमा र आए तो पंचमा र अनु वार के प म प रव तत नह ं होगा । जैसे- स म त,
उ मु ख आ द मा य है । इसके थान पर संम त, उं मु ख का योग न कया जाए ।
चं ब दु ओर अनु वार के बना अथ का म रहता है अत: इनका योग
आव यकतानुसार कया जाना चा हए । उदाहरणाथ 'हंस' और 'हँ स' म अनु वार अ तर
से अथ म प रवतन ल त होता है ।
8. हल च ह - सं कृ तमूलक त सम श द क वतनी म सं कृ त प रखा जाना चा हए पर
िजन श द के योग म ह द हल ् च ह का लोप हो चुका है उ ह फर से लगाने का
यास नह ं करना चा हए जैसे महान, व वान आ द ।
9. सं कृ तमू लक त सम श द को य का य हण कया जाना चा हए जैसे मा च ह
आ द को मा च न लखना सवथा गलत माना जाएगा । िजन त सम श द म तीन
यंजन के संयोग क ि थ त हो वहां य द व वमू लक यंजन लु त हो गया है तो उसे
न लख, तो ऐसा योग मा य हो सकता है । उदाहरण अ या त व के थान पर अध
या त व मा य है ।
258
10. वसग- सं कृ त के िजन श द म वसग का योग होता है य द वे त सम प म
यु त ह तो वसग का योग अ नवाय है और य द वे तदभव प म यु त ह तो
वसग का लोप कया जा सकता है । उदाहरण त सम योग - दु: खानुभू त त व
योग सु ख-दुख
11. ऐ. औ का योग - 'ऐ' और 'औ' क मा ा का योग उ चत प म कया जाए जैसे
गवैया, कौआ, गौर आ द के थान पर मश: ग वया, क वा, गऔर आ द का योग
गलत है ।
12. वराम च ह - पूण वराम (।) को छोड़कर ह द म उन सभी वराम च ह का योग
कया कया जाना चा हए जो अं ेजी म च लत ह जैसे ;, ?, -, :-, आ द ।
13. पूवका लक यय- पूवका लक यय को सदा श द के साथ मलाकर लख जैसे
मलाकर, जाकर, खाकर आ द ।
14. शरोरे खा - य य प दे वनागर ल प म शरोरे खा के संबध
ं म काफ ववाद रहा है पर तु
फलहाल शरोरे खा का चलन जार रहे गा ।
इ ह ं चौदह नयम के आधार पर ह द क वतनी का मानक करण कया गया ।
259
उपयु त उदाहराण पर गौर कर तो प ट हो जाएगा क परं परागत तलेखन उ चा रत
भाषा को यथावत ल पब करने म समथ नह ं होता और वै ा नक अ ययन के लए ऐसे
तलेखन क ज रत होती है जो यथासंभव श द को उसी प म लख पाये िजस प म
उनका उ चारण कया जाता है । इस उ चारण के अनुसार लखने को ह ' व या मक
तलेखन' कहा जाता है ।
व या मक तलेखन और उसका उपयोग
इस संग म एक न का उठना और उस पर वचार करना वाभा वक है । वह यह क जब
कोई भाषा-समाज और याकरण परं परागत तलेखन को ह वीकार करता और उसे पूर
मा यता दे ता हे और तदनुसार ल खत श द के उ चारण म एक पता भी मल जाती है तो
व या मक तलेखन क या आव यकता ह? व तु त: सामा य ि थ तय म इसक कोई
आव यकता नह ं होती । ले कन आज व भ न कारण से अ य भाषाओं के श द को भी अपनी
ल प म बदलाव करने क ज रत पड़ जाती है अगर कोई ल प इस काय को करने म अ म
हो तो अनेक यावहा रक मु ि कल खड़ी हो जाती ह । इस कार क मु ि कल भारतीय भाषाओं
को ठ क न लख पाने के कारण अं ेजी के सामने भी आयी इसी के कारण क वगु ठाकु र
'टै गोर' ल लता 'लो लटा' और धनराज 'ठे नराज' के प म ल पब हु ए और इसी प म स
हो गये । यह व या मक तलेखन क उपयो गता का यावहा रक प है । सह अथ म
इसका उपयोग व नय के उ चारण के वै ा नक अ ययन म कया जाता है । इस कार कसी
दूसर भाषा म ल पब करने क चे टा म व या मक तलेखन क आव यकता पड़ती है ।
अपनी भाषा म भी परं परागत तलेखन म केवल व नम को लखा जा सकता है सह व नम
के लए व या मक तलेखन क मदद क ज रत होती है । श द कोश नमाण म
व या मक लेखन काफ मददगार स होता है । अं ेजी जैसी भाषाओं म जहां श द के
उ च रत और ल खत प म यथे ट अंतर होता है वहां व या मक तलेखन क मदद से ह
सह लखा जा सकता है । उदाहरण के लए अं ेजी के तीन श द culprit, disown, fete
और freak को यान से दे खए अं ेजी म ऐसे श दकोश म इनका उ चारण मश: कि ट,
डओन, फेट और क लखा है । व या मक तलेखन के नदश के अभाव म भारतीय
अ येता इसे कु ल ट, डसाउन, फेटे और े क पढने क गल तयां कर सकता था ।
इस कार कहा जा सकता है व या मक तलेखन के दो मु य उपयोग है । यावहा रक और
शा ीय । इ ह नजर म रखते हु ए भाषा वद ने व या मक तलेखन के 2 भेद कये ह पहला
थू ल तलेखन और दूसरा सू म तलेखन । पहले का योग यावहा रक जीवन म कया
जाता है । दे वनागर ल प के सामा य प को थूल तलेखन क सं ा द जा सकती है
िजसम अं ेजी और अरबी, फारसी के श द को उ चारण के नकटतम लेजाकर लखने क
वै ा नकता है । आप दे वनागर लप क वशेषता इसी इकाई के आरंभ म पढ़ चु के है इस लए
यह जानते ह क के य ह द नदे शालय वारा कु छ नए च न के साथ दे वनागर को सू म
तलेखन के अनुकू ल एक नवीन प दान कया गया है िजसका योग अ य भारतीय भाषाओं
को लखने के लए कया जाता है । इस ल प म स धी के अ त: फोटा मक ड-ब जैसे सह-
व नम के लए भी ल प संकेत न मत कये गये ह ।
260
व या मक तलेखन और नागर लप
दे वनागर ल प को संसार क सवा धक वै ा नक ल प माना जाता है । व या मक तलेखन
के लए उसका नमू ल योग हो सकता है । आमतौर पर हमार प र चत भाषाओं म से कसी
म ऐसी एक भी व न नह ं है िजसे दे वनागर म लखा न जा सके । थू ल तलेखन के लए
तो यह सव कृ ट है ह , इसे व व तर य सू म व या मक तलेखन के लए भी उपयोगी
बनाया जा सकता है । ज रत है कु छ एक नए च न क यव था करने क ।
दे वनागर ल प के कु छ वै श य जेसे येक भा षक व न के लए ल प संकेत एक ह
व नम के लए एक ह ल प संकेत, इसे सव तम बनाने का ेय द त करते ह । दे वनागर
म जो है उतने वै ा नक ल प संकेत अ तरा य मानक ल प म 'भी नह ं है । उसम महा ाण
यंजन के लए वतं वण नह ं ह इस लए उसम लगातार अ प ाण यंजन को महा ाण
बनाया जाता है, जब क दे वनागर म ख, छ, ठ, थ, फ, घ, झ, ढ और भ महा ाण वण है ।
संघष यंजन को मु त लगाकर लखा जा सकता है ।
दे वनागर का येक वण केवल एक व नम के लए यु त होता है क के लए ।क ।
ख के लए ।ख । जब क रोमन ल प म c (स) और (क) दोन के लए G (ज) और ग दोन
के लए camel म c क है जब क cycle म c स है । दे वनागर म एक व नम के लए एक
ह ल प संकेत (वण) का योग होता है । जेसे च के लए ।च । छ के लए ।छ । ज के लए
।ज । ले कन रोमन म ।क । के लए c है जैसे cat, crow calm म तो कह ं k जैसे king
kolkata तो कह ं Q जैसे Queen, Quilt म । इसी तरह व के लए कभी V(van) का तो
कभी W(work) लखे जाते ह । वैसे तो दे वनागर ल प क भी अपनी सीमाएँ ह य क यह
आ रक ल प है और इसम यंजन + वर संयोग के लए मा ाएं यु त होती ह । ये मा ाएं
उपर (के, कै) नीचे (कु, कू कृ ) दाएँ (का) बाएँ ( क) तथा दाय और ऊपर (क , को, कौ) लगती
ह । ये ल प क वै ा नकता को आघात पहु ंचाते ह । फर भी आप पढ़ चु के ह अपनी कु छ
वशेषताओं के कारण यह दु नयां क सव तम ल प है िजसम कसी भी भाषा क व नय के
तलेखन क मता है ।
व या मक दे वनागर का व प-
1. संव ृत अ वर - ई ई (वश ट वर)
संव ृत म य वर - ई, ऊ ( व श ट वर)
संव ृत प च वर - ऊ, ऊं ( व श ट वर)
2. अध संव ृत अ वर - ए, ए. ( व श ट वर)
अध संव ृत म य वर - अं ( व श ट वर)
अध संव ृत प च वर - ओ ओ (वश ट वर)
3. अध ववृत अ वर - एँ, एँ. ( व श ट वर)
अध ववृत म य वर – ऐ
अध ववृत प च वर - अ ओ
4. ववृत अ वर - आ
261
ववृत म य वर - अ ∙
ववृत प च वर - आ, आ ( व श ट वर)
इस व या मक लप म वश ट वर के लए वग म कु छ प रवतन कये गये
अं ेजी के अॅ और ऑ को ऊपर च का च ह लगाकर एँ और ऑ बनाया गया है ।
यंजन
1. पश
कोमल ताल य - क ख ग घ ङ
मू ध य - ट त ड ढ ण
ताल य - च घ ज झ
व य
द य - त थ द ध
ओ ठय - प फ व भ म
2. अध वर
ताल य - य
द तौ य - व
3. उि त
मू ध य - ड़, ढ़
4. लु ं ठत
5. पाि वक
व य र व य ल
6. संघष
ताल य श
मू ध य ष
दं य स
7. वर यं मु खी महा ाण - ह
8. ताल य वग पश संघष है ।
1. काक य व नय के लए नीचे मु ता लगाया जाता है । जैसे पश क़, ग़ संघष ख़,
ग़ । कु छ भाषाओं म काक य र भी मलता है उसके लए र० वण यु त होता है ।
काक य ना स य ङ के लए भी ङ० व श ट ल प च ह है ।
2. ताल य कवग के नीचे छोट रे खा लगाई जाती है जैसे क़ ग घ
3. व य च-ज के लए भी इसी कार क रे खा का योग होता है जैसे च ज
4. व य स, टश, डज और डझ को भी अधोरे खा से. चं हत कया जाता है ।
5. संघष ओ य प, फ, ब, तथा संघष ताल य ज नीचे भी मु ता लगाया जाता है जैसे
प, फ़, ब, ज़, । इस कार कु छ छोटे छोटे प रव न से तैयार क गयी दे वनागर एक
वै ा नक वना मक ल प बन गई है ।
262
13.12 वचार संदभ/श दावल
1. मेधा - बु , मि त क
2. शरोरे खा - श द या वण के ऊपर द गई रे खा
3. वैधता - िजसके दो प ह
4. मु ण - छपाई
5. प रव न - कसी रचना म कु छ जोड़ कर उसे बढ़ाना या बदलना
6. अधो ब दु - वण के नीचे लगाया जाने वाला ब दु
7. सू ल प - सू ने या धागे म गाँठ-बॉध कर भाव को अ भ य त क जाने वाल लप
8. आ यान - क सा, कहानी
9. त ती - लकड़ी क प टया या पटर
10. आ रक - अ र से यु त
11. मानक - िजस प का ा धकृ त कया गया हो
12. ह तांत रत - एक हाथ से दूसरे म दे ना या जाना
13. सं द धता - िजसम संदेह या संशय हो
14. अ यो या त- एक दूसरे पर आ त
15. व या मक - व न संबध
ं ी
13.13 सारांश
इस इकाई को पढने के बाद आप समझ गए ह गे क लखने क कला का आ व कार
मानव स यता क एक मह वपूण घटना है । इस इकाई म इनमे ल प के बारे म व तार से
चचा क है । व वान के मतानुसार लेखन-कला क उ पि त भाषा क उ पि त के बहु त बाद म
हु ई । कई शताि दय तक मनु य भाषा के मा यम से अपने वचार क अ भ यि त करता रहा
पर उसके संर ण के लए उसके पास कोई साधन न था । प रणाम व प इस जगत म कई
जा तय क भाषाएं ज मी और वल न हो गई पर उनके बारे म कसी को कोई ान नह ं है ।
जब भाषा के साथ लेखन का मा यम जुड़ा तब एक नवीन सृि ट का आरंभ हु आ । वा तव म
भाषा और लेखन कला मनु य क स यता और उ न त के मानद ड ह जो उसे अ य ा णय से
पृथक् करते ह ।
भाषा क सहायता से मनु य नकटवत लोग के पास अपने मनोभाव को य त करने
म समथ हु आ पर स यता के वकास के साथ जब मनु य जा त का पृ वी के व भ न अंश म
सार होने लगा तब सु दरू ि थत लोग के पास मनोभाव य त करने के लए उसम एक
य ता उ प न हु ई िजसके प रणाम व प सैकड़ वष के यास के बाद उसे यह ात हु आ क
भू म पर रे खाएं खींचकर भाव को अ भ य त कया जा सकता है । मनु य ने अपनी
भावा भ यि त के लए ल प का आ व कार तो कया ह इसे नरं तर वक सत भी कया । यहां
ल प के वष इ तहास को सं ेप म तु त कया गया । भारत क ाचीन ल पय यथा ा मी,
खरो ठ और संधु घाट क ल प का भी वणन कया गया । दे वनागर के नामकरण व े के
263
वषय म व वान के मत को समा व ट कया गया दे वनागर म ऐसे गुण ह जो व व क
कसी भी ल प म नह ं है वह ं कु छ ु टय के कारण दे वनागर संसार क अ य ल पय क
तु लना म क यूटर और मु ण के े म पछड़ चु क है । इन ु टय के नवारण संबध
ं ी सु धार
और मानक दे वनागर के नयम क या या क गई है । ह द क मानक वतनी का ह द के
वकास एवं सार म मह वपूण थान हे । अत: ह द क मानक वतनी संबध
ं ी नयम का
उ लेख कया गया हे ।
अ त म व या मक तलेखन क दे वनागर ल प म उपादे यता क चचा क गई ह ।
13.14 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. ल प का इ तहास बताते हु ए ाचीन ल पय के कार क जानकार द ।
2. दे वनागर ल प के गुण क चचा कर ।
3. दे वनागर ल प के दोष क चचा करते हु ए व भ न स म तय वारा उसके सु धार
संबध
ं ी सु झाव क चचा कर ।
4. दे वनागर ल प के नामकरण पर काश डालते हु ए उसक वशेषताएं ल खए ।
5. दे वनागर ल प और व या मक तलेखन पर ट पणी ल खए ।
ख. लघू तर न
1. मानक ह द वतनी के नयम क सं त जानकार द ।
2. दे वनागर ल प के व प को प ट कर ।
3. च ल प और भावमू लक ल प क चचा कर ।
4. व या मक तलेखन का आशय प ट कर ।
5. भारत क ाचीन ल पय क जानकार द ।
ग. हाँ या ना म उ तर द
1. दे वनागर म नु ते का योग फरसी के भाव से आया है ।हाँ/ना
2. दे वनागर ल प म 12 वर ह ।हाँ/ना
3. दे वनागर ल प वणा मक ल प है ।हाँ/ना
4. दे वनागर ल प का वकास खरो ठ ल प से हु आ है ।हाँ/ना
5. ह द म ज और क को ु तमूलक माना गया है ।हाँ/ना
घ र त थान क पू त क िजए
1. उदू एक ............................................. धान ल प है ।
2. ............................. व न ह द म रोमन से आई है ।
3. संधु घाट क ल प के नमू ने ............... क खु दाई से मले है ।
4. दे वनागर म ल प च ह के नाम उसके ............................ के नकट है ।
5. सन ् 1947 म .................................... क अ य ता म ल प को मानक प
दे ने के लये एक स म त ग ठत हु ई ।
264
13.15 संदभ ंथ
1. डॉ. महावीर सरन जैन; भाषा और व ान, लोकभारती काशन, इलाहाबाद
2. डॉ. भोलानाथ तवार ; ह द भाषा और नागर ल प, लोकभारती काशन, इलाहाबाद
3. डॉ. भागीरथ म एवं डॉ शु भकार कपूर ; ह द भाषादश, लोकभारती काशन, इलाहाबाद
4. डॉ. राजबल पा डेय; भारतीय पुरा ल प लोकभारती काशन, इलाहाबाद
5. तेजपाल चौधर ; भाषा और भाषा व ान, वकास काशन, कानपुर
6. डॉ. सरयू साद अ वाल; भाषा व ान और ह द , लोकभारती काशन, इलाहाबाद
7. डॉ. भोलानाथ तवार ; मानक ह द का व प, लोकभारती काशन, इलाहाबाद
8. बाबूराम स सेना; सामा य भाषा व ान, ह द सा ह य स मेलन, याग
9. न लनी मोहन सा याल; भाषा व ान, रामनारायण लाल पि लशर ए ड बुकसेलर ,
इलाहाबाद
10. दे वे नाथ शमा; पा चा य का यशा , मयूर पेपरबै स, नोएडा, 1998
265
इकाई-14 ह द क श द संपदा
इकाई क परे खा
14.0 उ े य
14.1 तावना
14.2 ह द क श द संपदा के प
14.2.1 ेमचंद
14.2.2 मंजू र एहतेशाम
14.2.3 उदय काश
14.3 ह द क श द संपदा के ोत
14.3.1 त सम
14.3.2 त व
14.3.3 दे शज
14.3.4 वदे शज
14.4 संकर श द
14.4.1 हंद फारसी संकर श दावल
14.4.2 हंद अरबी संकर श दावल
14.4.3 फारसी अरबी संकर श दावल
14.5 श द यु पि त
14.5.1 उपसग
14.5.2 यय
14.5.3 समास
14.6 वचार संदभ/श दावल
14.7 सारांश
14.8 अ यासाथ न
14.9 संदभ थ
ं
14.0 उ े य
इस इकाई म हंद क श द-संपदा का प रचय दया गया है । इस इकाई के अ ययन
के बाद आप:
1. ह द क श द-संपदा का मह व समझ सकगे ।
2. ह द के श द-भंडार से प र चत हो सकगे ।
3. ह द क श द संपदा के व भ न ोत का प रचय ा त कर सकगे ।
4. ह द श द क संरचना से प र चत हो सकगे ।
5. ह द श द क याकर णक वशेषताएँ बता सकगे ।
6. ह द भाषा के वकास म श द-भंडार के अवदान का वणन कर सकगे ।
266
14.1 तावना
आप जानते ह क सं कृ त भारतीय भाषाओं क जननी है । वेद क रचना िजस भाषा
म हु ई उसे वै दक सं कृ त कहा जाता है । ईसा पूव 500 तक का समय वै दक सं कृ त का
काल है । ले कन सं कृ त को सं कृ त के नाम से जाना जाता है । यह वै दक सं कृ त का
पारवत प है । आप यह भी जानते है क पा ल, ाकृ त और अप ंश से आधु नक भारतीय
ं भाषा का समय 500ई वी से 1000 ई वी तक माना जाता है
भाषाओं का ज म हु आ । अप श
। यह सच है क अप ंश म सा ह य-सृजन 1000ई वी के बाद ह हु आ है । शौरसेनी, पैशाची,
ाचड, महारा , मागधी और अधमागधी अप ंश के व वध प ह । अपनी हंद शौरसैनी
अप श
ं का वक सत प है ।
ह द के वकास अथवा उसके उ गम पर अलग से एक इकाई तु त क गई है ।
उसे आपने पढ़ लया होगा तथा ह द के उ व तथा वकास के संबध
ं म आपने एक प ट
अवधारणा बना ल होगी ।यहाँ श द-संपदा के अ ययन के पहले श द का अथ, मह व आ द
क सामा य जानकार हा सल करना अनाव यक न होगा ।
व नय से श द बनते ह पर तु व नय का अपना कोई अथ नह ं होता । वे नरथक
होती ह । श द साथक होते ह । इतना ह नह ं कई बार एक-एक श द के अनेक अथ होते ह ।
अ प, क र आ द व नयाँ ह । इनका कोई अथ नह ं होता है । ले कन 'कलम' श द कहने पर
हमारे मन म एक व तु का बोध होता है । कलम श द म 'क', 'ल', और 'म' तीन व नयाँ ह
इन तीन व नय के मेल से बनने वाले श द का अथ कसी के लए लेखनी है तो कसी के
लए ' तंभ' का योतक होता है । 'श द' भाषा के अथ का वाहक होता है । अथयु त होना
श द क सबसे बड़ी वशेषता होती है । ऊपर जो श द आया था, वह था कलम । य द हम
पलम या पमल या लमप कह तो या कोई अथ नकलता है । िजस व तु को हम कलम कहते
ह या उसके क ह ं गुण के साथ उ त ं है? संभवत: नह ं ।
व नय का संबध य क भाषाई
समु दाय अपने ढं ग से अथ ात करने के लये श द का यवहार करता है । कलम को कोई
'पेन' समझता है तो कोई लेखनी । सं कृ त म 'कुशल' श द का योग कु श बीनने क कला म
पटु यि त के लए यु त होता था पर तु आज कसी भी सफल यि त के संदभ म इसका
योग होता है । ठ क इसी कार ' वीण' श द को भी लया जा सकता है । 'वीणा' वादन म
स ह त यि त को ह वीण कहा जाता था । पर तु आज इसका अथ- व तार हु आ है ।
मतलब यह क श द और अथ का संबध
ं ऐ तहा सक वकास के साथ प रव तत होता है ।
आपने दे खा होगा क नद अपनी धार म बहु त सार चीज बहा कर ले जाती है । उन
व तु ओं को अपने वाह म लेते हु ए उ ह माँजती है, प र कृ त करती है, नया आकार व कार
दे ती ह ठ क इसी तरह भाषा भी वाहमयी होती ह न जाने वह कतने ोत से कतने श द व
श द प को अपने वाह म समेटती रहती है, उ ह अपना प दे ती है । कु छ को अप रव तत
रख दे ती है तो थोड़ा-बहु त माँजकर नये प म कु छ श द को अपने रं ग- प म ढाल दे ती है ।
इससे भाषा संप न होती है, समृ होती है । श द-भंडार जैस-े जैसे बढ़ता जाता है भाषा वक सत
267
होती जाती है । रचनाकार अनायास ह व भ न भाषाओं के श द का योग करता है, कभी
दे शज तो कभी वदे शज । इससे भाषा क वाभा वकता बनी रहती है, भाषा जीवंत हो उठती ह
लेखक क भाषा अपनी वशेषताओं के चलते आसानी से पहचानी जाती है । कोई रचनाकार
त सम धान श द से अपनी भाषा को सहे जता है तो कोई चालू मु हावरे दार भाषा का योग
करता ह । कोई उदू म त ह द लखना पंसद करता है तो कोई काि यक भाषा का योग
करता है । वा तव म ह द के व वध प हमारे सामने प ट दखाई पड़ते ह । आगे हम इस
ब दु पर चचा करगे ।
14.2 ह द क श द संपदा के प
आप जानते ह क लोग क चयाँ भ न- भ न होती ह । यह च केवल खान-पान,
वेश-भू षा तक ह सी मत नह ं ह लेखक य अ भ च के अनुसार भाषा का व प भी बदलता है
। इसके मू ल म भी श द-भंडार या श द-संपदा क उ लेखनीय दे न होती है । ह द के कु छ
स रचनाकार क रचनाओं से कु छ अवतरण उ ृत करके श द-संपदा से प र चत कराने का
यास कया जा रहा है:
14.2.1 ेमचंद
268
वक सत श द को त व कहते ह । ेमचंद क 'आ माराम शीषक कहानी के अवत रत अंश म
यु त त व श द क सू ी न नवत ् है-
रात < रा , प ता < प , आज < अ य, भू ख < बुभु ा, पंजड़ा < पंजर, सू ना <
शू य, काम < कम, हाथ < ह त, बूँद < बंद ु आ द त सम, त व श द के बाद उ त
अवतरण म यु त। वदे शी श द को भी ढू ँ ढा जा सकता है । वा तव म वदे श श द उसे कहते
ह जो अ य भाषा के श द ह , खासकर वदे श क भाषा से आगत हो । अरबी भाषा का श द
'आदत और फारसी का 'याद' ह द से ब कु ल घुल मल गये है । इतना ह नह ं य द
आलो य अवतरण क भा षक संरचना पर यान द तो पाएँगे यहाँ उपसग, यय और समास
आ द से अनेक श द न मत हु ए ह । रचनाकार अनायास लखता जाता है । लखने के म म
उसे याकर णक वशेषताओं का यान नह रहता । लेखन-काय के प चात उस लेखन का
व लेषण हो तो अनेक भा षक वै श य प ट प से दखाई पड़ते ह कभी-कभी तो नये श द
न मत भी हो जाते ह । इस या म श द-संपदा संप न होती है ।
269
यु त हुए ह । कू ल-कॉलेज, बायकॉट, टै स, सी नयर आ द अंगरे जी श द से भाषा स प न
हु ई है तो वदे शी, वराज ज म जैसे त सम श द से श द-संपदा वक सत हु ई है । इतना ह
नह ,ं ह, अदालत, सयासत, तकाजा, महसूस आ द वदे शी श द से मंजरू एहतेशाम क भाषा
समृ हु ई है ।
इसी म म आगे बढ़ने के लए समकाल न ह द कहानी से ति ठत रचनाकार उदय
काश क बहु च चत कहानी त रछ का एक पैरा ाफ उ ृत कया जा रहा है । इसे आप
यानपूवक प ढ़ए एवं श द-संपदा क अ भवृ म मह वपूण भू मका नभानेवाले कारक , यानी
त सम, त व, दे शज, वदे शज यय, उपसग आ द के मेल से बनने वाले श द को सू चीब
करने का यास क िजए:
14.3 ह द क श द संपदा के ोत
इस इकाई म एत पूव आपने श द-संपदा के व वध ोत के बारे म सामा य जानकार
हा सल कर ल है । अब हम उसके व भ न ोत के बारे म स व तार अ ययन करगे । ोत
क ि ट से ह द म चार कार के श द मलते ह । अथात ् ह द श द के चार मु ख वग
ह- त सम, त व, दे शज एवं वदे शज, ये ोत उसी कार भाषा म घुल - मल जाते ह जैसे नद
के व भ न ोत क जलधारा, व वध ोत क जलधारा जब नद क धारा म मल जाती है
270
तो नद क धारा के प म ह प र चत होती हे । इसी कार व ध ोत से आगत श दावल
भाषा म ह एका. ......... था पत कर लेती है ।
14.3.1 त सम
14.3.2 त व
271
ाकृ त, या अप ंश से होकर ह द म ह इसे समझने के लए आप न न ल खत प को दे ख
सकते ह:-
सं कृ त पा ल, ाकृ त, अप श
ं ह द
अ अि ख आँख
स य स त-स च सच
धम ध म धम
कम क म काम
अ ु अ सु आँसू
ह द म त व श द क सवा धक सं या है । घर(गृह ), हाथ (ह त), साँझ(सं या),
कपड़ा(कपट), मोर(मयूर ), आम(आ ), साँप(सप), घोड़ा(घोटक), चाँद(चं मा), बरस(वष),
सू रज(सू य), दूध(दु ध), सात(स त), ईख(ई )ु , जीभ(िज वा), बहरा(ब धर), धुआ(ँ धू ),
आग(अि न), भाई( ातृ), जमाई(जामातृ), अंगठ
ू ा (अंगु ठ ), ऊँट(उ ), गधा(गदभ), रात(रा ),
आज(अ य), पीना(पा), ह ता(स ताह), चमार(चमकार), सु नार( वणकार), त व श द क
भू मका अ यंत मह वपूण है । त व श द ने ह द को समृ तथा संप न कया है ।
14.3.3 दे शज श द
जो श द दे श म ह ज म ह उ ह दे शज कहा जाता है । यध प दे शज श द के ोत
के संबध
ं म व वान म मतभेद है तथा प इतना कहा जा सकता है क ये श द न सं कृ त मू ल
के ह और न ह वदे शी भाषा के । इन श द का योग उस भाषा-भाषी समाज म ह शु हु आ
जहाँ से ये आगत ह । ये भाषा के अपने श द ह । डॉ. भोलानाथ तवार ने दे शज श द को दो
वग म वभािजत कया है-
क. अ ात यु पि तक
ख. अनुकरणा मक
अ ात यु पि तक का अथ िजसक अ ात यु पि त का पता न हो । ये तो दे शी
भाषाओं से हण कये गये श द ह । इस थम वग के अंतगत ट दू ,तदुआ, चू हा, ठे ठ, ट स,
घपला, चंपत, पेड़, भु ता आ द श द ह जब क ह द काल म अनुकरण के आधार पर बनाए गये
श द को अनुकरणा मक श द कहा जाता है । ये श द त सम, त व अथवा वदे शी नह ं ह ।
इस वग म अ धकांश श द व या मक होते ह । जैसे हडहड, फडफड़, खड़खड़, भड़भड़, चटचट,
फटफ टया, चकाच ध, चप चपा, काँव-काँव, भ पू, लच लचा आ द ।
ऊपर जो दो वग बनाये गये ह, इनके अलावा आय तर भारतीय भाषाओं से गृह त श द
एवं सं कृ तो तर काल म न मत श द के वग करण को दे शज के अंतगत रखा जा सकता है ।
पा रवा रक संबध
ं के वाचक श द जैसे चाचा, काका, मामा, दादा, नाना आ द दे शज श द के
अंतगत रख सकते ह । कभी-कभार तो एक-एक साथक- नरथक श द यु म अ ययन के लए
आव यक हो जाता है । इन श द यु म म एक साथक होता है तो दूसरा नरथक । इस बात
को और अ धक प ट करने के लए कु छ श द-यु म के उदाहरण ट य ह जैसे खाना-वाना,
272
चाय-वाय आ द । इस उदाहरण म खाना के साथ वाना और चाय के साथ वाय नरथक श द
ह।
14.3.4 वदे शज श द
273
फारसी के सात हजार से भी अ धक श द च लत ह । इतनी बड़ी सं या म
अरबी-फारसी के श द का आयात होना, मामू ल बात नह ं है । इसके पीछे
कारण भी ह । ाचीन फारसी एवं सं कृ त दोन एक ह भाषा प रवार के
अंतगत ह । मु सलमानी शासन-काल म फारसी भारतीय जन-जीवन का
अ भ न अंग बन चु क थी । अरबी के श द फारसी से होकर आये ह ।
इस लए अरबी-फारसी से आगत श द को अलग-अलग प से न रखकर एक
साथ सूचीब करना उ चत तथा सहज तीत होता है-
1. रोजा, मजहब, खु दा, हज, पैगब
ं र
2. मकान, दरवाजा, द वार, बरामदा
3. सरकार, तहसीलदार, चपरासी, वक ल, द वान, मु ंशी, हा कम, मु कदमा,
इंसाफ, खजांची, सपाह , अदालत
4. बादाम, सेब, मेवा, अनार, अगर, नाशपाती, मु न का, कश मश, शहतू त,
शर फा, प ता, पुद ना
5. न ज, बदह मी, हैजा, लकवा, जु काम, दवा, मर ज
6. बजाज, दज , सराफ, दलाल, हलवाई, िज दसाज
7. फ़ौज, हौलदार, हमला, संगीन
8. दे हात, क बा, िजला, तहसील, मु ह ला, शहर
9. खत, लफाफा, पता
10. बरफ , हलवा, जलेबी, कु फ , समोसा, बालु शाह , श करपारा
11. आइना शीशा, हजामत, साबुन, सु रमा, इ आ द ।
पुतगाल : पुतगाल क भाषा पुतगाल है । ाचीन एवं म यकाल न भारत म पुतगाल के
साथ यापार-वा ण य के संदभ म भारतीय भाषाओं म पुतगाल से अनेक श द
गह त हु ए । श द ह द म भी अपनाये गये । ह द म आगत क तपय
पुतगाल श द के उदाहरण न न ल खत ह-
अन नास, अलमार , आल पन आया, इ ी, क तान, कनल, काफ , काजू,
गमला, गोभी, गोदाम, चाबी, चाय, तौ लया, पपीता, नीलाम, फ ता, बा ट ,
बोतल, म ी, संतरा आ द ।
अं ेजी : अं ेज के साथ भी भारतीय का य संबध
ं लगभग तीन सौ साल से
अ धक रहा । ह द म अं ेजी श द का अ धका धक सं या म चलन हु आ
है । ह द म आकर कु छ अं ेजी श द ह द के ढाँचे म ढल चु के ह जैसे
लालटे न (Lantern), अलमार (Almirah), तजोर (Treasury), रपट
(Report) आ द । अं ेजी के बहु च लत श द ह द म य के य गृह त
हु ए ह । श त जनता इ ह त नु प अपनाती है तो अ श त लोग इ ह
कं चत प से हण कर लेते ह । आज दु नया तेजी से बढ़ती जा रह है ।
इसके साथ दु नया इतनी समट चु क है क वह मु ी म आ गई है ।
274
पा चा य सं कृ त एवं जीवन शैल ने महानगर य जीवन ह नह ं दूर -दराज के
ा य-जीवन को भी बल प से भा वत कया है । इसके दु प रणाम क
सं या बहु त अ धक हो सकती है परं तु इससे एक उ लेखनीय प रवतन यह
हु आ है क ह द क श द-संपदा का उ तरो तर वकास हो रहा है । ह द के
श द-भंडार को संप न बनानेवाले कु छ अंगरे जी श द क सूची अधो ल खत है-
1. पट, शट, कोट, सू ट, टाई, ओवरकोट, ट शट, बूट , सै डल, ल पर, ॉक,
लाउज, अंडरवेयर, पा कट, कालर, वेटर ।
2. ब कु ट, चाकलेट, आइस म, ेड, डबल ेड, बटर, जेम, टॉफ , लेमन,
सोडा, सू प, को ड स बीयर, ांडी. कॉकटे ल ।
3. इंजन, मोटर, मशीन, मीटर, बस, लार , टै सी, कू टर, साइ कल, े न,
कार, े न, टकर, वेन, े टर, यूबवेल , बुलडोजर ।
4. ाइवर, ल बर, कंड टर, वे डर, वेटर, सवर, लक, अफसर, ोफेसर,
ं सपल, ट चर, डाँ टर, नस, सजन, ले चर, र डर, चांसलर, कॉलर
5. कू ल, कॉलेज, यु नव सट , ड ी, लास, चाक, बोड, बच, ड टर, नो टस
बोड, अ पताल, पो ट ऑ फस, लब हाउस, ीम म
6. बैट, बॉल, केट, हाँक , टं प, रन, गोल, डफस, फुटबाल, रकाड, गोल-
पो ट
7. पेन, प सल, रबर, पन, पेपर, पेपर वेट, पैड, टे पलर, अंड, टे शनर
8. हॉल, म, कचन, गैलर , बालकनी, बाथ म, बाथटब, गैलर , गैराज,
लैट
9. सी नयर, जू नइयर, फाइन, सु परफाइन, फैशनेबल
ु , टाइल
10. कोट, हाईकोट, सु ीम कोट, इं पे टर, कल टर, म न टर, वारं ट, समन,
अपील
11. पो टकाड, मनीआडर, रिज , बुक पो ट, पीड पो ट, पासल, मेल
12. आट, श, वाटर, कलर, आयल पट, केच, सीनर फोटो, फ म
13. जे सन, ऑपरे शन, टे बल, कंपाउ डर, थमामीटर, े संग
14. म, नो, वैसल न, पाउडर, नेलपा लश ल प टक
15. ेस, टाइप, कंपोिजटर, ू र डर, डमाई
फ
16. अ यु म नयम, रो डगो ड टन, नकल, लै टनम, िजंक, स वर आ द ।
आप अपने दै नं दन जीवन म उपयु त श द के अलावा और भी चलन मलता है ।
प रवेश एवं पा के अनुसार रचनाकार अं ेजी श द का बहु त चलन मलता है । प रवेश एवं
पा के अनुसार रचनाकार अं ेजी श द का अनायास योग करता है । और एक बात, अं ेजी
भाषा के मा यम से कु छ ांसीसी एवं जापानी भाषा के श द भी ह द म आये ह य क
ह द भाषा े से इन भाषाओं के य संपक का अभाव था । जो भी हो, इससे ह द के
275
श द भंडार क ीवृ हु ई है । इसे अ वीकारा नह ं जा सकता । ' र शा' श द जापानी भाषा
का है जो रे तरां', 'कू पन', 'कारतूस ' आ द श द ांसीसी के ह ।
यह सवमा य है क दो भ न भाषा-भाषी ांत या े एक दूसरे के संपक म आते ह
तो दोन ह एक दूसरे से कु छ न कु छ श द लेते ह । वदे शी भाषाओं से श द हण करने क
यह या सवदा चलती रहती है । इससे भाषा समृ होती है । उसक जीवंतता बनी रहती है
। नवीन श द के आगमन से श द संपदा समृ होती है ।
14.4 संकर श द
दो भाषाओं या एक ह भाषा के दो प के योग से बने हु ए श द संकर श द के नाम
से जाने जाते ह । संकर श द का योग आजकल काफ मा ा म हो रहा है । दो भ न ोत
से आगत श द को मलाकर एक नया श द बना लया जाता है तो उसे हम संकर श द के प
से जानते ह । उदाहरण के लए 'रे लगाड़ी' और 'रे डयो तरंग' श द क चचा क जा सकती है ।
'रे ल' अं ेजी भाषा का श द है और ''गाड़ी' ह द भाषा का है । ठ क उसी कार 'रे डयो' अं ेजी
श द है जब क 'तरं ग' है सं कृ त श द । इ ह हम न नवत सू ब कर सकते ह-
अं ेजी + ह द = रे ल गाड़ी
अं ेजी + सं कृ त = रे डयो तरं ग
कु छ और उदाहरण भी आपक सु वधा एवं समझ के लए दये जा रहे ह-
सं कृ त + अरबी-फारसी = कृ ष मजदूर
सं कृ त + अं ेजी = योजना-कमीशन
अं ेजी + सं कृ त = रे ल या ी
ह द + फारसी = काम-काज
अं ेजी + अरबी-फारसी = अफसरशाह
ह द + सं कृ त = मांगप
अरबी-फारसी + ह द = कताबघर
ह द + अरबी-फारसी = घड़ीसाज
बहु धा यह भी दे खा जाता है क ह द के याकर णक प - यय उपसग-लगाकर
संकर श द का नमाण होता है । मू ल श द वदे शी भाषा का होता है और उसम ह द के
यय उपसग जोड़कर नये श द क रचना होती हे । जैसे 'पाट बाजी' श द म पाट + बाज
+ई( यय) है । इसी कार 'पशनी' श द म 'पशन' अं ेजी श द है और इसम 'ई' यय का
योग हु आ है िजसका आशय होता है सेवा नवृत होनेवाले कमचार को पशन मलेगी । अब संकर
श दावल क तीन सं त सू चयां आपके सामने तु त क जा रह ह-
276
चोर-बाजार, सवार गाड़ी, च ड़याखाना, मोमब ती, गल -मु ह ला, राजदरबार, भाईबंद चोर-दरवाजा,
घुड़सवार आ द ।
14.5 श द तु पि त
श द क यु पि त के बारे म जानने के पहले ' यु पि त का सामा य अथ जान लेना
आव यक है । इसका आशय है श द का वह मूल प िजससे वह नकला या बना हो । अं ेजी
म इसे डे रवेशन के नाम से जाना जाता है । य द हम 'अ व वसनीय' श द क यु पि त करना
चाहगे तो सबसे पहले उसका मूल खोजगे । इस श द का मू ल प है ' व वास' इसके पूव एवं
प चात अ रया अ र का समू ह समावे शत है । अ एवं अनीय यथा थान जु ड़े ह । श द क
यु पि त म इन वषय का अ ययन अपे त है । श द क यु पि त के संदभ म ऐसे भा षक
उपादान का अ ययन कया जाता है जो नये-नये श द के नमाण म सहायक होते ह ।
उपसग, यय और समास ऐसे ह उपादन ह ।
यु पि त क ि ट से श द के तीन भेद ह । ये ह-
1. ढ़- व श ट अथ म यु त श द- घट, पट आ द ।
2. भौ गक-धातुओं ढ श द म उपसग, यय, या दोन मलाकर बनने वाले श द जैसे
कृ ', धातु से काय क त य, करणीय, कारण आ द ।
3. योग ढ़-दो या अ धक घटक के योग से बनने वाले श द-पंकज, जलद आ द ।
श द के तीसरे भेद म उदाहरण के प म लया गया 'जलद' श द क तु प त कर
तो प ट होता है क यह 'जल' और 'द' के मेल से बना है । पानी दे ने वाले के लए अथात ्
कोई भी जनदान कर तो उसे जलद कहा जाना चा हए । परं तु 'जलद' केवल बादल के अथ म
ढ़ हो गया है । इसी लए इस कार के श द को 'योग ढ़, कहा जाता है ।
277
आगे हम ह द क श द-संपदा क अ भवृ म उपसग, यय और समास क मह ता
को रे खां कत करगे ।
14.5.1 उपसग
278
उपयु त सूची के अ त र त त सम उपसग म और भी उपसग का योग होता है ।
कभी-कभी एका धक उपसग का भी योग कया जाता है । जैसे याघात, या ध आ द श द म
' व' और 'आ दो उपसग यु त हु ए ह । ठ क इसी कार दु प रणाम श द म 'दु: ' एवं 'प र'
उपसग ह । नीचे कु छ और श द दये जा रहे ह । इन श द म न हत एका धक उपसग को
पहचानने क को शश क िजए:
दुरा ह, दु चार, नरपराध, नःसंदेह, न योजन,
अनुसंधान , समु न त, ार ध, ारं भ, ा धकरण,
ाकार, उप नवेश, वागत, अ यागत, युपकार ।
त व उपसग : एतदपूव आपने पढ़ लया है क त सम श द से त व श द का वकास हु आ है
। इसी तरह त सम उपसग से त व उपसग वक सत हु ए है । ये ह द के अपने उपसग ह
श द-रचना के लए इन उपसग का योग होता है । उ उन और, क दु, न, पर, स, आ द
उपसग त व के अंतगत ह ।
उ - उनींदा, उथला, उतरना, उभरना आ द म यु त 'उ' उपसग वा तव म सं कृ त
के 'उ ' से आगत है िजसका अथ होता है । ऊपर, ऊँचा आ द ।
उन - उ नीस, उ तीस, उनचास, उनसठ, उनह तर, उ यासी आ द म यु त 'उन'
सं कृ त के उन' से आया हु आ है । इसका अथ है 'एक कम' ।
और - औगुन , औघट आ द म न हत 'औ' उपसग सं कृ त म 'अव' का वक सत प
ह 'अव' का अथ ह न, नीचे आ द है ।
क - कपूत । सं कृ त के 'कु' उपसग से ह द का 'क' उपसग आगत है ।
न - नडर, नक मा, नह था आ द । सं कृ त के न: या नर् से गृह त उपसग है
। इसका अथ र हत है ।
पर - परपोता परदादा, परनाना आ द । यह उपसग सं कृ त के ' ' से लया गया है
जो 'दूसर पीढ़ के' अथ म यु त है ।
कु छ व वान ने अधपका, बनबुलाया भरपेट आ द श द म यु त 'अध', ' कन', 'भर'
को त व उपसग के अंतगत माना है । परं तु ये समास के अंतगत होते ह । अत: इ ह त व
उपसग के प म मानलेना अनु चत है ।
अरबी-फारसी के उपसग
ना - नापसंद, नालायक, नाराज, नाबा लग, नाकाम, नादान आ द ।
बे - बेवजह, बेकसू र, बेहया, बेशम, बेचारा, बे मसाल आ द ।
ब - बखू बी, बमु ि कल, बद तू र आ द ।
हम-हमउ , हमसफर, हमदद, हमश ल आ द ।
ला - लाचार, लापरवाह, लावा रस, लाइलाज, लाजवाब आ द ।
हर - हरदम, हरव त, हरसाल आ द ।
279
यान दे ने क बात है क वाइस चेयरमेन, वाइस ं सपल, सब-क मट , सब- टे शन
आ द म 'वाइस' और 'सब' अं ेजी भाषा के उपसग ह जो आजकल ह द म भी यु त ह ।
14.5.2 यय
280
इया - कनौिजया, भोजपु रया, चु हया, ड बया, चु टया
ई - घोड़ी, लडक , नानी, चाची, कटार , तेल , टोकर , कौड़ी
ईला - चमक ला, भड़क ला, शम ला, हठ ला, पथर ला
एरा - लु टेरा, ममेरा, चचेरा, फुफेरा, बहु तेरा, सपेरा
पन - बचपन, छुटपन, बड़ पन, पागलपन
वाला - खानेवाला, ऊपरवाला, जानेवाला, ताँगेवाला
आटा - खराटा, फराटा
खोर - सू दखोर, घूसखोर, र वतखोर, हरामखोर
कार - सलाहकार, द तकार, का तकार
गर - बाजीगर, कार गर, रफूगर
गार - मददगार, रोजगार, यादगार
इयत - इंसा नयत, आद मयत, खै रयत, अस लयत, अं ेिजयत, सहु लयत
गाह - बंदरगाह, ईदगाह, चारागाह, आरामगाह
आना - जु माना, घराना, रोजाना, सालाना
ज़ाद - शाहजाद आदमजाद, रईसजाद
दाँ - कानूनदाँ, उ दाँ, कदूदाँ
दान - कलमदान, चायदान इ दान, पीकदान
दार - ईमानदार, दुकानदार, कजदार, मालदार, खु शबूदार, जमींदार, इ जतदार
बाज़ - मु कदमेबाज़ धोखेबाज, चालबाज, पतंगबाज, नशेबाज, ग पबाज
बान – बागबान, दरबान
मंद – अकलमंद, दौलतमंद, ज रतम द
सार - खाकसार, शमसार
खाना - दौलतखाना, डाकखाना
बीन - तमाशबीन, दूरबीन
इ म - क यू न म बु म, सोश ल म, शै व म
इ ट - सोश ल ट, मा क ट बु सट ।
उपयु त सूची से आपको यह प ट हो गया होगा क एक यय के योग से श द-
भंडार म श द बढ़ते जाते ह । आपको यह भी प ट हो गया होगा क त सम, त व, दे शज,
वदे शज यय कभी धातु म तो कभी श द म जु ड़कर नये श द का नमाण करते ह । यह
म रहता है क यय का अथ नह ं होता है । परं तु यय का अथ होता है । इसम संदेह
नह ं ह भले ह यह अथ याकर णक य न हो । कु छ यय वशेषण के अथ म यु त होते
ह तो कु छ या वशेषण के अथ म । यय क कु छ वैयाकर णक कतासू चक, भाववाचक,
वशेषणसूचक लघुतासूचक एवं लगसूचक वग के अंतगत रखते ह । श द- नमाण क या म
यय क भू मका अ यंत मह वपूण होती है, इसे अ वीकारा नह ं जा सकता है ।
281
अ तु उपसग एवं यय क श द- नमाण म भू मका पर वचार करने के प चात ् हम
समास के योगदान क चचा कर रहे ह । इससे आपके मन म यह अवधारणा प ट हो जाएगी
क नवीन श द-रचना के संदभ म समास का या योगदान है ।
14.5.3 समास
282
नञ ् समास : अभाव अथ के वाचक अ, अन ् आ द श द के साथ सं ा को नञ ् समास कहा
जाता है अ याय, अि थर, अशांत, अनु चत, अनजाना, अनमोल, नासमझ, नालायक, नापसंद
आ द नञ ् समास के उदाहरण ह ।
कमधारय समास : इस समास को भी त यु ष समास का ह एक भेद माना जाता है ।
वशेषण- वशे य, उपमेय-उपमान होनेवाले समास को कमधारय कहा जाता है । जैसे
वशेषण- वशे य - नीलकमल, स जन, महा मा, महाभा य, नीलगाय, खु शबू आ द ।
उपमेय-उपमान - चरण-कमल, मृगनयन , चं मु ख, कमलनयन आ द ।
म यपदलोपी कमधारय - दह बड़ा गोबरगणेश बैलगाड़ी आ द ।
त पु ष समास का एक भेद और है जो वगु समास के अंतगत है । य द पहला श द
सं यावाचक वशेषण हो और सम त पद-समू ह का बोध कराए तो उसे वगु समास कहा जाता
है । जैसे चव नी, अठ नी, दोपहर, पंचवट , पंचत व, दे व, फला, चौराहा आ द ।
बहु ह समास बहु ी ह समास म न तो पूवपद का मह व होता है और न ह उ तरपद
का दोन मलकर कोई अ यपद अथ का के होता ह जैसे नीलकंठ-नीला है कंठ िजसका
अथात ् शव, नीलांबर-नीला है कपड़ा िजसका आ द ।
वीणापा ण - वीणा + पा ण(हाथ) - वह यि त िजसके हाथ म वीणा हो ।
िजतेि य - िजत + इं यां - वह यि त िजसने इं य को जीत लया हो ।
चतुभु ज - चार भु जाएँ ह िजसके वह अथात ् व णु ।
व व समास : इस समास म उभय पद धान होता ह । इसम दोन पद म 'और' अथ
सि न हत रहता है । जैसे
माता- पता - माता और पता
भोजन-व - भोजन ओर व
ऊँच-नीच - ऊँच और नीच
भू त- ेत - भू त और ेत
कंकड-प थर - कंकड और प थर आ द ।
समास से भाषा म सं तता ह नह ं स दय भी आता है । श द-संपदा क वृ होती
है । इसी म म हम कु छ अनुकरणा मक श द का भी उ लेख करना चाहगे । इससे आपको
यह पता चलेगा क अनुकरणा मक श द कस कार श द भ डार को समृ करते ह । 'खनक'
श द क न म त के बारे म जरा सो चए । कसी स के के गरने से नकलने वाल आवाज
'खन खनाना' कहलाती है । अनुकरणा मक व न से ह द के श द-वैभव म वकास हु आ ।
कु छ अ य उदाहरण ट य ह-
टपटप, टपटपाना, टपकना
चप चपा, चप चपाहट, चपकना
धंड़धड़, धड़धड़ाह, धड़धड़ाना
खलबल , सु गबगाहट, सम- झम खटपट, तामझाम, झल मलाना आ द ।
283
14.6 वचार संदभ/श दावल
1. अ तहत - न रोका हु आ, अपरािजत
2. खलाफत - वरोध करना
3. खु ार - आ मस मान
4. अ ात यु पि तक – िजन श द क यु पि त के बारे म न जाना गया हो
5. यु म - जोड़ा
6. ीवृ - शोभा बढ़ना
7. एत पूव - इससे पहले
8. ार ध - भा य, नय त
9. सौगात - उपहार
10. नह था - खाल हाथ, बना ह थयार लए
11. आगत - आए हु ए
12. चक - एक तरह का जाल दार परदा
13. सयासत - रा य, राजनी तक, दे श का शासन बंध और यव था
14. ह - आ मा
15. मजहब - धम
14.7 सारांश
ू इकाई पढ़ने के बाद आप समझ गये ह गे क भाषा के वकास म श द-संपदा का
संपण
कतना बड़ा मह व ह दरअसल िजस भाषा क श द-संपदा िजतनी समृ होती है वह भाषा
उतनी ह संप न मानी जाती है । श दावल क नमाण या या है? श द के नमाण के
ोत कौन-से है? इनके बारे म भी आपने अ ययन कर लया होगा । कु छ श द भाषा के अपने
होते ह तो कु छ श द आव यकतानुसार गढ़ लये जाते ह । इस इकाई म हमने श द-संपदा के
चार व भ न ोत क भी चचा क ह संकर श द का उ लेख कया गया है । धातु एवं यय
उपसग आ द से भी आप प र चत हो गये ह गे तथा श द- नमाण क या से अवगत हो गये
ह गे । समास क भू मका को भी आपने अ छ तरह से समझ लया गया होगा । इसी संदभ
म आपने यह भी दे खा क भाषा म ग तशीलता तब तक बनी रहती है जब तक वह व भ न
ोत से बहकर आनेवाले योग को अपने म समा हत करती रहती है ि थरता आ जाने से
भाषा का वकास बा धत हो जाता है । श द-संपदा त दन अपने को व ता रत करती रहती ह
इससे भाषा क सजीवता एवं ाणवंतता बनी रहती है ।
14.8 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. ह द क श द-संपदा से आप या समझते ह?
2. ह द क श द-संपदा के ोत का प रचय द िजए ।
284
3. ह द के उपसग यय एवं समास पर एक ट पणी ल खए ।
4. श द यु पि त का आशय प ट क िजए ।
ख. लघू तर न
1. नीचे कुछ त सम श द दये गये ह । इनके त व प ल खए
अि न, वण, वृ , दु ध, अ ,ु कम, अ य, जामातृ घोटक
2. न न ल खत अवतरण को यानपूवक प ढ़ए एवं पूछे गये न के उ तर ल खए:
बाहर लब के अहाते म अपनी कार तलाशते पैर राव को दूर से आती आवाज से
परे शानी हु ई । जब उ ह ने अपने घर पर पा टयाँ द थीं, तब इ ह ं वर ने यह
गाना उनके स मान म भी ' था । वे तेज कदम बढ़ाते हु ए नकल गए । हमेशा
क तरह अपनी जगह पर खड़ी उनक .?.◌ं जैगअ
ु र घुप अंधेरे म ठ क से दखाई
नह ं पड़ी वे उससे टकराए तो हाथ म ह क सी चोट आ गई । अँधेरे को, कार से
रं ग को और आगे क सीट पर गहर नींद ले रहे ाइवर को कोसते हु ए, कार म
बैठकर उ ह ने हॉन बजाया । ाइवर च ककर उठ पड़ा । फर सीट से मु डी-तु ड़ी
टोपी उठाकर उसने पहनी ओर गाड़ी चला द ।
अ) उपयु त अवतरण म यु त अं ेजी श द को पहचा नए ।
ब) उपयु त अवतरण म यु त अरबी-फारसी श द क सूची बनाइए ।
स) अवतरण के त सम श द कौन-से ह 7
द) अवतरण म यु त सामा सक पद का उ लेख क िजए ।
य) अवतरण म दे शज श द का योग कह ं मलता है?
3. क) ब, बे, आम उपसग का योग करते हु ए तीन-तीन श द बनाइए ।
ख) इक, इया, पन, आटा, सार, खाना यय से तीन-तीन श द बनाइए ।
ग) भाषा म सामा सक पद के मह व पर काश डा लए ।
घ) संकर श दावल का ता पय प ट करते हु ए अं ेजी-सं कृ त, सं कृ त-अरबी,
रबी- ह द , ह द -फारसी श द के उदाहरण तु त क िजए ।
14.9 संदभ ंथ
1. भोलानाथ तवार ; भाषा व ान
2. भोलानाथ तवार ; ह द भाषा क संरचना भोलानाथ तवार ; ह द श द साम य
3. भोलानाथ तवार ; ह द भाषा
4. आचाय रामचं वमा; श दाथ और भाषा व ान तेजपाल चौधर ; भाषा और भाषा व ान
रामचं वमा; अ छ ह द
5. धीरे वमा; ह द भाषा का इ तहास
6. जग नाथ वीरा.; योग और योग
7. कामता साद गु ; ह द याकरण
285
286
इकाई-15 व व के मु ख भाषा प रवार
इकाई क परे खा
15.1 उ े य
15.2 तावना
15.3 व व के भाषा प रवार
15.3.1 भारोपीय प रवार
(1) ीक उप प रवार
(2) इता लक उप प रवार
(3) जम नक उप प रवार
(4) केि टक उप प रवार
(5) तोखार उप प रवार
(6) ह ती उप प रवार
(7) बा लो ला वक उप प रवार
(8) आरमीनी उप प रवार
(9) अलबानी उप प रवार
(10) भारत ईरानी (आय) उप प रवार
15.3.2 वड़ प रवार
15.3.3 बु श क प रवार
15.3.4 यूराल अ टाई प रवार
15.3.5 काकेशी प रवार
15.3.6 चीनी प रवार
15.3.7 जापानी को रयाई प रवार
15.3.8 हाइपरबोर अ यु तर प रवार
15.3.9 बा क प रवार
15.3.10 सामी-हामी प रवार
15.3.11 सू ानी प रवार
15.3.12 बाँटू प रवार
15.3.13 होते तोत बुशमैनी प रवार
15.3.14 मलय बहु वीपीय प रवार या मलय पाले न शयन प रवार
15.3.15 पापुई प रवार
15.3.16 आ े लयाई प रवार
15.3.17 द णपूव ए शयाई प रवार
15.3.18 अमर का के भाषा प रवार
287
इस प रवार म लगभग 100 प रवार क क पना क गई है । अनेक प रवार
क भाषाएँ अपने वै ा नक अ ययन क ती ा म ह ।
उपयु त प रवार क भाषाओं के अ त र त संसार म अनेक भाषाएँ ऐसी ह,
िजनक न खोज हो पाई है और न उनका भा षक अ ययन ।
15.4 वचार संदभ श दावल
15.5 सारांश
15.6 अ यासाथ न
15.7 संदभ थ
ं
15.1 उ े य
तु त इकाई के अ ययन के प चात ् आप:-
व व के भाषा प रवार क संक पना तथा व प पर काश डाल सकगे ।
भाषा प रवार के े , उनक भाषाओं,उनके सा ह य तथा भाषा प रवार के भा षक को
आय रे खां कत कर सकगे ।
व व क भाषाओं म व भ न कारण से आए बदलाव और उनके वकासा मक व प
को न पत कर सकगे ।
हजार मील क दूर के बावजू द एक भाषा वंश वृ (मू ल ोत) से उ प न भाषाओं क
मू ल भा षक संपदा एवं संवेदना का तु लना मक रे खांकन कर सकगे ।
15.2 तावना
मनु य क पहल खोज है – “आग“ और दूसर खोज है - “भाषा“ । इनम सवा धक
मह वपूण खोज है - भाषा, िजसने मनु य को अ य ा णय और जीव जंतु ओं से वश ट
बनाया । भाषा मानव-अनुभू त क अ भ यि त का मु ख और वल ण मा यम है । भाषा ने
ह मनु य को समू ह म रहना सखाया । भले ह ारं भक ि थ त ' कबीलाई' ' रह हो । कं तु
सामु दा यक भावना यहाँ भी व यमान थी । अथात ् एक साथ एकजु ट होकर रहने क आदत ।
एक दूसरे क सहायता क भावना । व तु त: भाषा क सहायता से ह मनु य ने संगठन क नींव
रखी । ऐसा संगठन जो एक कबीले के वकास, स यता के साथ बढता हु आ गॉद, नगर, ांत,
दे श आ द तमाम इकाईय म इस धरती पर फैल गया । भाषा के काय और योग क सीमा भी
बढ़ । उसी ने वैचा रक, धा मक, जा त तथा दे श और महा वीप आ द के धरातल पर व व-
मानव-समु दाय को बाँटा । इस बटवारे ने उसम व भ न प रि थ तय के घात- तघात वारा
अनेक बदलाव पैदा कए । इसम सहायक बनी जलवायु और भौगो लक ि थ त भी । फल व प
एक 'मू लभाषा' (Proto speech) से वक सत संसार क अ धसं य भाषाएँ आज एक दूसरे से
बहु त दूर नकल गयीं है । कं तु वै भ य तथा असमानता के बावजू द संसार क मु ख भाषाओं
म कह ं न कह ं पर पर स ब ता के सू मल ह जाते ह । यह एक सू ता उनके वकास के
एक 'मूल ोत' क धारणा को बल करती है ।
288
आज! भाषा- वशेष, मानव-समु दाय- वशेष का त न ध व करती है । यह समु दाय छोटा
भी हो सकता है और बड़ा भी, स य भी अस य भी । ऐसी ि थ त म संसार म अनेक भाषाओं
क व यमानता वाभा वक है । अ य वषय क भाँ त ह हमारे मन म संसार क भाषाओं के
ान, उनके पार प रक संबध
ं एवं सं या आ द के वषय म न उभरते है । इन न के
समाधान हे तु भाषाओं के वै श ठय ान क आव यकता महसूस हु ई, जो भाषाओं के वै ा नक
अ ययन वारा संभव था । यह अ ययन तभी संभव था, जब व व क जी वत भाषाओं क
जानकार हो । इस दशा म पया त यास हु ए । कं तु यह अधू र ह । डॉ. राजम ण शमा को
यह कहने म संकोच नह ं क मु ख भाषाओं क खोज हु ई, कं तु आज भी अनेक भाषाएँ भाषा-
वै ा नक क पहु ँ च के बाहर ह तथा वे अपने अ ययन क ती ा म ह ।
अब तक खोजी जा चु क तथा वै ा नक अ ययन का के बनी व व क भाषाओं क
वशेषताओं, पर पर स ब ता के ान तथा वै ा नक अ ययन का एकमा रा ता था –
“ ोटो पीच” (मूल भाषा) से उ प न व व क भाषाओं क प रक पना के आधार पर प रवार म
उनका वग करण ।
न उठता है क वग करण का आधार कसे बनाया जाए? महा वीप, दे श धम, काल
को आधार बनाकर कए गए वग करण वै ा नक तो क तई नह ं हो सकते । अंतत: भाषा क
कृ त क समानता-असमानता को वग करण का आधार बनाया गया । भाषाओं म मलने वाल
समानताएँ मु यत: दो कार क होती है । पहल समानता बाहय- संरचना मक होती है एंव
दूसर आत रक अथवा कृ त- धान । जब भाषाओं को उनक आकृ त अथात बाहय समानता के
आधार पर अलग-अलग वग म वग कृ त कया जाता है, तब उसे आकृ त मूलक वग करण कहते
ह और जब भाषाओं को उनक आत रक-सरचना के आधार पर व भ न समू ह म बीटा जाता है,
तब इस कार के वग करण को 'पा रवा रक' या 'ऐ तहा सक वग करण' कहा जाता है । भाषाओं
म आ त रक समानता से यु त भाषा को एक ह प रवार का माना जाता है । इस प त के
अनुसार उन भाषाओं को एक ह वग मे 'रखा जाता है, िजन भाषाओं म ऐ तहा सक संब ध
रहता ह । इसके वपर त बाहू य-रचनागत समानता के आधार पर िजन भाषाओं को एक ह
समू ह या वग म रखा जाता है, उनके म य कोई नाता- र ता नह ं होता है। साथ ह रचनागत
समानताएँ कभी नव न मत होती ह, कभी लु पा । यथा- आज क योगा मक भाषाएँ कल
अयोगा मक हो सकती ह और उज़ख हो सकती ह । अ तु! बाहय-सरंचना आधृत वग करण -
आकृ त मू लक - न तो थायी वग करण हो पाता है और न हो भाषाओं क पर पर ऐ तहा सक
संब ता का माण ह बन पाता है और वग करण का मु य उ े य तो भाषाओं क पर पर
संब ता का इगन है । इस उ े य क स तो केवल 'पा रवा रक वग करण' वारा ह संभव हो
पाती है, जो थायी भी होती है ।
यह पहले ह प ट कया जा चु का है क भाषा-प रवार क संक पना का आधार
एका धक भाषाओं का एक मू ल से वकास है । इस लए भाषा प रवार क तु लना एक वृ से क
जा सकती है । िजस कार कसी वृ के एक तने से व भ न शाखा- शाखाएँ वक सत होकर
289
भी एक होने का ह बोध कराती है । उसी कार एक मू ल भाषा से न प न अनेक भाषाएँ
पर पर संब होती ह । िजस तरह एक पूवज से उ प न सभी मनु य एक गो के माने जाते
ह, उसी तरह एक भाषा से कालांतर म अनेक सगो भाषाओं क उ पि त होती है, जो एक
प रवार म रखी जाती ह और ऐसी भाषाएँ एक भाषा-वंश वृ क शाखाएँ- शाखाएँ ह । यथा-
सं कृ त, जमन, ला तन, फारसी, च, अं ेजी, ह द के बीच हजार मील क दूर है, पर उनम
आ चयजनक सा य है । सं कृ त- पतृ, मातृ एंव ातृ मश: ला तन म, पातेर मातेर ( ातेर,
मु तेर), दे र हो जाता है । न चय ह इतना सा य आकि मक या अकारण नह ं हो सकता ।
इसका कारण है - इन भाषाओं का एक मू ल से वकास । व व के भाषा प रवार नधारण हे तु
भाषाओं क भौगो लक ि थ त, थानीय समीपता, मूल श दावल म समानता, अथगत, याकरण
गत तथा व या मक समानता को भी आधार बनाया जाता है ।
अ ययन क सु वधा हे तु व व के भाषा-प रवार को चार भाषा ख ड म वभ त कर
उनक सू ची यहाँ तु त है-
(क) यूरे शया (यूरोप एवं ए शया) - (1) भारोपीय प रवार, (2) वड़ प रवार, (3)
बु श क प रवार, (4) यूराल - अलाई प रवार, (5) काकेशी प रवार, (6) चीनी
प रवार, (7) जापानी को रयाई प रवार (8) हाइपर बोर अ युतर प रवार, (9)
बा क प रवार, (10) सामी-हामी प रवार
(ख) अ का ख ड - (11) सू डानी प रवार, (12) ॉटू प रवार, (13) होते तोत
बुशमेनी प रवार ।
(ग) शा त महासागर य ख ड - (14) मलय बहु वीपीय प रवार/मलय
पाले न शयन प रवार (15) पापुई प रवार, (16) आ े लयाई या आ ो
ए शया टक प रवार, (17) द ण पूव ए शयाई प रवार
(घ) अमे रका ख ड - (18) अमर का के भाषा प रवार (इस प रवार म लगभग
100 भाषाओं क क पना क गई है) ।
290
ांसीसी, अं ेजी एंव सी भाषाओं म व यमान वै ा नक सा ह य भी अ तम है । वगत
शताि दय म हु ई वै ा नक ग त का ेय भी अ तम है । वगत शताि दय म हु ई राजनी तक
भु व एवं उप नवेशवाद यव था के चलते इस प रवार क कई भाषाएँ अपने े से नकलकर
दूसरे े म फैल । अमे रका, भारत, यूजीलड, आ े लया आ द म अं ेजी का वच व कथन
का माण ह । (6) भाषा वभाग क ि ट से भी यह प रवार सवा धक उ ले य है । इस
प रवार क भाषाओं का िजतना अ धक अ ययन हु आ है, उतना अ य प रवार क भाषाओं का
नह ं । सवमा य त य और स य है क भाषा व ान का आरं भ ह इस प रवार क भाषाओं के
अ ययन से हु आ । सन ् 1886 म बंगाल क रायल ए शया टक सोसाईट के स मु ख सर
व लयम जो स ने पहल बार ीक और लै टन से सं कृ त के घ न ट संबध
ं क घोषणा क थी
और उसी समय उ ह ने इन तीन के एक मू ल भाषा से वक सत होने क अवधारणा तु त क
थी । सर जो स के इस भाषण से तु लना मक भाषा व ान का ज म हु आ ।
अ तु जनसं या, यापकता, सा ह य स याता सं कृ त, वै ा नक ग त, राजनी तक
एंव भाषा वै ा नक आ द सभी ि टय से भारोपीय प रवार व व क भाषाओं म सव च थान
का अ धकार है ।
भाषा वै ा नक अ ययन क चु रता एंव वै व य के कारण इस प रवार के नाम के
ं म भी ववाद हु आ । जमन भाषा वै ा नक ने इसका नाम इ डो जम नक' दया । अ य
संबध
ने इसे 'आय' नाम दे ना पंसद कया । इनम पहले का आधार भौगो लक और दूसरे का जा त
वशेष था, ये दोन नाम इस प रवार क सम त भाषाओं का संकेत नह ं कर पाते । कालांतर म
सेमे टक-हैमे टक क तज पर 'जफे टक' नाम सु झाया गया । इसे लोक यता ा त नह ं हु ई ।
भारोपीय नाम भी अ याि त और अ त याि त दोष से यु त ह; य क इस वग क
भाषाएँ न तो पूरे भारत और न ह पूरे यूरोप म बोल जाती ह । दूसर तरफ इन दोन े के
बाहर अमे रका, अ का, आ े लया, यूजीलड म भी ये भाषाएँ बोल जाती है । इसी प रवार
क तोखार इस सीमा से परे तु क तान म बोल जाती है । साथ ह यह नाम भी भौगो लक
ि थ त पर आधृत है । बावजू द इसके, यह नाम सवा धक लोक य हु आ और आज भी इसी
नाम से इस प रवार क भाषाएँ जानी पहचानी जाती ह ।
सन ् 1893 म ए शया माइनर के बोगाज कोई नामक थान क पुराताि वक खु दाई म
कु छ क ला र मले । चेक व वान दवेजनी ने इ ह पढ़कर इस भाषा को ' ह ताइत' नाम दया
। इससे यह स हु आ क ह ताइत भारोपीय भाषा क परवत वक सत भाषा न होकर उसक
समकाल न थी । इस त य के कारण इसे भारोपीय भाषा क शाखा मानना उ चत नह ं था ।
अ तु इन व वान ने इस प रवार का नाम 'भारत- ह ती' दया । इससे सम या सु लझने के
बजाय और उलझी । व तु त: भारत और ह ती नाम मश: दे श और जा त के संकेतक ह ।
इस नाम से इस भाषा प रवार के व तार का भी पता नह ं चलता । यध प आज के व वान
भारत- ह ती नाम को अ धक साथक मानते है, कं तु लोक यता के धरातल पर 'भारोपीय' से
यह बहु त पीछे है ।
291
मू ल 'भारोपीय' भाषा अथवा भारत- ह ती क ल खत साम ी उपल य नह ं । सं कृ त,
ीक, लै टन आ द भाषाओं के ाचीनतम प के तु लना मक अ ययन वारा मू ल 'भारोपीय'
भाषा क पुनसरचना का यास कया गया । इस कि पत पुनसर चत भाषा को ह भाषा
वेघाया नक ने मू ल भारोपीय भाषा कहा । कं तु सं कृ त, ीक, लै टन को दे खने से यह तीत
होता है क ये भाषाएँ कसी भाषा के व भ न प से वक सत ह न क उस भाषा से सीधे ।
व तु त: सा ह य और शासन वारा पो षत भाषाओं के वपर त लोक म व यमान बोल के
वभ न प से न मत होकर एक नई भाषा ज म लेती है; जो कालांतार म पूव क सा हि यक
भाषा के ढ़ होने पर उसे अपद थ कर उसका थान हण करती है । यह भाषा के वकास
(प रवतन) क नरं तर चलने वाल या है । सं कृ त से लौ कक सं कृ त, लौ कक सं कृ त से
पा ल ाकृ त, फर ाकृ त से अप ंश के वकास क या इसके माण ह । ये सीधे, ढ़ या
प र नि ठत हु ई भाषा से वक सत नह ं हु ई, अ पतु सा हि यक या मानक भाषा के व
समानांतर प म लोक क वाभा वक वृि त से वक सत हु ई और इ ह ने अपने प प संगठन
हे तु एक नह ं यापक प र े क बो लय के प को अपने म समा हत कया । अ तु सं कृ त,
ीक प रकि पत मू ल भारोपीय से वक सत न होकर मू ल भारोपीय भाषा के समानांतर लोक म
च लत बो लय से वक सत हु ई । यह कारण है क इनम एका धक बो लय (भाषाओं) क
वशेषताएँ मलती ह ।
भारोपीय भाषा के मू ल थान के न ने भावना मक ववाद को ज म दया । कोई
इसे यूरोप का स करता है तो कोई भारत का तथा कु छक लोग इसे ए शया का कोई थान
मानते ह । लोकमा य तलक इसके मूल थान को उ तर ु व के नकट वीकार करते ह ।
कु छ व वान म य ए शया म यूराल -अ ताई के नकटवत मैदान को इसका मू ल थान वीकार
करते ह । फलहाल डॉ. राजम ण शमा क ि ट म ाचीन आयाव त ह इस भाषा का मू ल
थान रहा है ।
'भारोपीय भाषा प रवार' के अ येताओं ने यह तो वीकार कया क इस प रवार क
भाषाएँ एक दूसरे से स ब ह, कु छ म अ धक नकटता है और कु छ म कम । समूचे व व म
फैले इस भाषा प रवार के भाषाओं क नकटता और दूर को ह ल य म रखकर भाषा
वै ा नक, सघन अ ययन क सु वधा हे तु इसे दो प रवार म बाँटते ह - (1) कतु म और (2)
सतम ् ।
व तु त: इन भाषाओं क व नय क तु लना के प चात ् सन ् 1870 ई. म अ कोल
नाम भाषा-वै ा नक इस न कष पर पहु ँ चा क मू ल भारोपीय भाषा क कं य क् , ख ् आ द रह
गई ह तथा कु छ म संघष स,् श,् ष,् ज ् हो गई ह । उदाहरण के लए मू ल भारोपीय भाषा का
श द 'दक् ' ीक म 'दक' है कं तु सं कृ त म 'दश' । इस वृि त क 'सौ' के वाचक श द क
सहायता से अपने न कष को मा णत कया । ला तन म 'सौ' को 'केतु म' कहते ह और
अवे ता म 'सतम'् । इस लए उसने 'कतु म'् और 'सतम'् वग म सम त भारोपीय भाषाओं को
वभािजत कया । यह वभाजन न न ल खत है - -
कतु म ् वग - ीक, इता लक के ल टक जम नक, तोखार और ह ताइत ।
292
सतमू वग - बा टो वा लक आरमीनी अलबीनी भारत-ईरानी
यद ह ताइत को भारोपीय के समक रखा जाएगा तो ह ताइत एक वंत भाषा
प रवार होगा और शेष भारोपीय वग के उपयु त दो वग म ह गे । ह ताइत आज लु पा भाषा
है।
कतु म वग
(1) ीक (हे ले नक) कतु म समु दाय क सवा धक ाचीन भाषा है । इसक सं कृ त और
सा ह य अ य धक पुराना है । ईसा से लगभग एक हजार वष पूव होमर ने 'इ लयड'
और 'ओ डसी' क रचना क । ीक वणमाला से ह सम त यूरोपीय ल पय का
वकास हु आ । लेटो और अर तु जैसे महान वचारक एवं सकंदर जैसा व व वजेता
ीक क उ ल द है । यह अलवा नया युगो ला वया , बुलगा रया तथा तु क , साइ स म
बोल जाती है ।
(2) इता लक (लै टन) रोमन कैथो लक सं दाय क धमभाषा एवं यूरोप क सां कृ तक भाषा
है । यूरोप म इसका वह थान है, जो भारत म सं कृ त का । म यकाल न लै टन से
आधु नक लै टन का वकास हु आ । ला तन के अ त र त ांसीसी ( ांस), पेनी
( पेन), पुतगाल (पुतगाल), एवं मानी ( मा नया) इस उप प रवार क अ य स
भाषाएँ ह । इन भाषाओं म व या मक अंतर अ धक है । उप नवेश व तार के कारण
इस उप प रवार क भाषाओं का फैलाव कनाडा, मैि सको, द णी अमे रका म भी है ।
(3) जम नक भारोपीय प रवार का मह वपूण उप प रवार है । अं ेजी इसी उप वग क भाषा
है, जो योग क ि ट से आज संसार भर म छायी है । गा थक इस उप प रवार क
ाचीनतम भाषा है । बाइ बल का अनुवाद (चौथी शती) गा थक क सबसे ाचीन रचना
है । डच, जमन भी चार- सार क ि ट से उ लेखनीय ह । सा ह य' दशन, ान क
ि ट से अं ेजी पया त मह वपूण है । वैसे दशन और व ान के े म अं ेजी से
अ धक जमन समृ मानी जाती है । भाषा व ान क ि ट से भी जमन एक
मह वपूण भाषा है । इस उप प रवार क मु ख भाषाएँ ह - आइसबै डी (आईसलै ड),
डेनी (डेनमाक), नावई (नाव), वीडी ( वीडेन), अं ेजी (इं लै ड), उ च और न न
जमन (जमनी), डच (हालै ड), पलेमी (बेि लयम) । ारं भ म ये भाषाएँ योगा मक थीं,
कं तु आज इनम अयोगा मकता क वृि त दखायी दे ती है ।
(4) केि टक भाषाएँ दासोज़खी है । दो हजार वष पूव केि टक प रवार क भाषाओं का
योग यूरोप के बड़े भू-भाग - टे न, ांस, उ तर इटल से लेकर ए शया माइनर
आधु नक तु क तक था । कं तु कालांतर म रोमन को भु व और रा य व तार के
साथ-साथ केि टक जा त और भाषा का दास आरं भ हु आ । आज इनके यो ताओं क
सं या बहु त कम है; राजनी तक मह व भी समा त है । आज उ तर पि चमी ांस
और ेट टे न, काटलै ड, आयर लै ड, वे स और कानवाल म केि टक बोल जाती है
। आयरलै ड क आय रश, वे सक वे स इसक मु ख भाषाएँ ह । मन, काच, टे नी
और गाल भी इस उप प रवार क भाषाएँ ह । भारोपीय भाषा प रवार म यह सवा धक
293
क ठन और अ प ट है । व तु त: इसके श द म इतना अ धक प रवतन हो गया है क
उ ह पहचानना क ठन है और इनके आधार पर व न-प रवतन संबध
ं ी नयम क
प रक पना टे ढ़ खीर है । वा य संरचना क ि ट से भी इस भाषा-शाखा क भाषाएँ
अ यंत ज टल है ।
(5) तोखार का पता बीसवीं सद म उस समय लगा, जब पूव तु क तान से ा त कु छ प
एवं थ
ं का अ ययन कया गया । यह तोखार जा त क और भारोपीय प रवार क
भाषा है । तोखारो का रा य म य ए शया (तु रफान) म दूसर शता द ईसा पूव से 7
वीं शता द ईसवी तक. था, िजसे हू ण ने वन ट कया । थान नकटता के कारण
इस पर यूराल -अ टाई भाषाओं का भाव प ट है । तोखार म ा त साम ी ईसा क
थम शता द से पूव क है ।
(6) ह ती या ह ताइत का पता 2०वी शता द के आरंभ म ए शया माइनर के बोगाजकोई
(तु क ) म अंकारा से 9० मील पूव एक गाँव क खु दाई म ा त साम ी से लगा । ये
म ी क चौड़ी प काओं पर क ला र से लखे अ भलेख ह, िजनका समय ईसा पूव
2000 के लगभग आँका गया । इनम अनेक सु मेर और अ कद भावलेख भी ह,
िजनके कारण ारं भ म ह ती के प रवार का नधारण न हो पाया । यह भारोपीय क
एक शाखा है, भारोपीय से ं है, जो
ह ती का वह संबध ीक या सं कृ त का । यह
सवमा य स ांत है क तोखार और ह ती भारोपीय से सबसे पहले अलग हु ई । हं ती
के कारक, सवनाम भारोपीय के समान ह । लंग दो - पुि लंग, नपु स
ं क एवं दो काल -
वतमान और भू त ( ह ती) भारोपीय क कई शाखाओं म मलते ह ।
(7) वा तो ता वक क दो शाखाएँ ह - बाि टक एवं ता वक । इसक उपबो लयाँ ह -
लथुआनी और लेती (ले टश) । ला वक तीन वग - पूव (महा सी, वेत सी, लघु
सी (उ ायनी)! पि चमी (पोल , चेक, लोवाक) एंव द णी (बुलग़र , सव ोतो तथा
लोवनी) - म वभ त क जाती ह । बाि टक शाखा क लथु आनी भारोपीय प रवार
क ाचीनतम भाषा है । यह वै दक सं कृ त के समान पूण ि ल ट है । इस भाषा म
सा ह य तो नह ं है, कं तु भाषा वै ा नक ि ट से यह अ य धक मह वपूण है । पूव
ता वक क महा सी या सी सो वयत संघ क रा भाषा है । शासन, श ा,
ा व धक एंव वै ा नक सा ह य म इसी का योग होता है । 18वीं सद से ांरभ इस
भाषा के सा ह यकार - चंतको म तु गनेव, दा ताये क , चेखव, ताले तोय, गोक
आद यात है ।
(8) ईरान से सटे आरमी नया क भाषा आरमीनी है । इसके अनेक श द, यय, उपसग
ईरानी ह । यह बा तो ला वक और आय भाषाओं को जोड़ने वाल कड़ी है ।
(9) अलबानी (इल र ) के अ ययन क साम ी अ य प है । सा ह य का अभाव है ।
सोहलवीं शता द का बाइ बल का एक अनुवाद उपल ध है । इसके सा ह य म
लोकगीत क धानता है । अलबानी आि या तक सागर के पूव ि थत पहाड़ी दे श
क भाषा है । ल खत प म आने से पहले ह अलबानी म व न पद रचना क ि ट
294
से बहु त अ धक प रवतन हो गया है । फल व प कु छ भाषा वै ा नक इसे भारोपीय
प रवार म थान दे ने म संकोच करते ह । ीक, तु क के अनेक श द इस भाषा म भरे
पड़े है ।
(10) भारत-ईरानी (आय) दो उप भाषा प रवार का समूह है । अथात भारतीय वग और
ईरानी वग । भारतीय वग क मु ख भाषा सं कृ त है और ईरान क ईरानी । ईरानी क
दो शाखाएँ - (1) ाचीन फारसी और (2) अवे ता ह । ईरानी का त न ध सा ह य
ं अवे ता (जरथु ट) है ।
पार सय का धम थ ाचीन बैि या रा य क यह राजभाषा
थी । म यकाल न ईरानी ाचीन फारसी का वकसत प है, इसे फारसी या पहलवी भी
कहा जाता है । पहलवी के दो प - (1) हु वारे श, (2) पाजंद है । आधु नक ईरानी
अथवा आधु नक फारसी म हंद क ह भां त वयोगा मकता के ल ण दखाई दे ते ह ।
इसका आरं भक थ
ं महाक व फरदौसी (150 से 1020 ई) का 'शाहनामा' नामक
रा य महाका य है । आधु नक फारसी क अनेक बो लयाँ ह । असे टक, कु द या
कु द श, वलोची, प तो तथा दे वार इनम मु ख ह ।
ईरानी भाषा का स ह य अ यंत चीन तो मा य हे कं तु इन ाचीन न धय का कोई
पता ठकाना नह ं । इस लए इसक भाषाओं का मब इ तहास तु त कर पाना
क ठन है । इसके ं 'अवे ता' क
ाचीनतम सा ह य फारसी धम थ भाषा ऋ वेद से
मलती जु लती है । इसके अ त र त ह यानी बादशाह के छठ सद ई. पू के कु छ
पुराने शलालेख भी मलते ह ।
व तु त: भारत-ईरानी शाखा क मु ख भाषा है - सं कृ त । सं कृ त का ाचीनतम प है
- वै दक सं कृ त । वै दक सं कृ त का ाचीनतम प ऋ वेद के दूसरे से नवम म डल
ं ह नह ं ह, इनम भारतीय दशन चंतन का
क भाषा म मलता है । वेद केवल धम थ
भ डार है । व वान का भी अभाव इस सा ह य म नह ं है । वै दक भाषा व भ न
समय , व भ न थान , व भ न ऋ षय क भाषा है । यह सा ह य और लोक भाषा
का म त प है । वै दक भाषा का दूसरा प परवत रचना - ादमण थ
ं और
उप नषद म मलता ह । इसका काल ईपू 2500 से ई.पू. 1000 तक मा य है । यह
आय क भाषा है । आय क स ता क थापना के साथ ह इसके व भ न प का,
थानीय संयोग से, वकास हु आ । इस मक सा हि यक भाषा का दूसरा प है -
लौ कक सं कृ त । यह वै दक काल म जन क बोलचाल क भाषा थी ।
ाचीन भारतीय आय भाषा क बढ़ती हु ई भ नता से चं तत होकर पा ण न ने वै दक
भाषा का प र न ठ करण कया । यह प र न ठ करण उ ह ने अपने स याकरण
'अ टा यायी' के मा यम से कया । पतंज ल ने इसका महाभा य तु त कया ।
पा ण न के यास से भाषा का एक ि थर प हु आ, िजसका नाम - सं कृ त पड़ा ।
पा ण न ने सं कृ त के उद य (उ तर ) प को आदश माना । वा मी क, यास,
का लदास, हष, माघ, बाणभ आ द इस के यात रचनाकार ह ।
295
वै दक भाषा म मू ल भारोपीय क अपे ा सरल करण क वृि त के कारण 13 वर
व नयाँ ह, 9 मू ल और 4 सां य वर । यजन के पाँच वग बन चु के थे । सं कृ त
श द भ डार क ि ट से पया त संप न भाषा थी । उसम नए श द न मत क अपूव
मता थी । म यकाल न एवं आधु नक आय भाषाएँ सा हि यक और भा षक धरातल
पर ाचीन आय भाषा क अनेक वशेषताओं को अपने म संजोए ह । मू ल भारोपीय क
भा षक वशेषताएँ न न ल खत ह - (1) मू ल वर - पाँच और पाँच इ ह ं के द घ प
। आज ये ह द म सु र त है । - अ आ, इ ई, उ ऊ, ए, ऐ । (2) संयु त ह व
वर क सं या 16 है और संयु त द घ वर 18 ह । (3) उदासीन अ त व है - अ
अध वर - य,् व सं कृ त और ह द म यथावत सु र त ह । चार वरवत ् यु त
व नयाँ और इनके ह व और द घ प भी ह । (4) वर म आनुना सक का वधान
नह ं था । (5) क वग म तीन कार क यंजन व नयाँ थी । वग एक क व नयाँ -
क् , ख,् ग,् घ ् ; सं कृ त म स, श, ष, + ऊ म व नय म वक सत हु ई और वग (2)
क व नयाँ य, य, रय, य; च वग म तथा वग तीन क व नयाँ व, य, गव,
व; क वग म । यह व वान क दूरा ढ़ क पना है । (6) अंत थ यंजन य,् र्, ल,्
व, न, म ् सं कृ त म सु र त ह । (7) 'ह' के संभवत: दो प थे - सघोष और अघोष
। (8) सं कृ त व या मक संरचना म वराघात का मह व था, जो इस प रवार क
भाषाओं म केवल सं कृ त म सु र त है ।
भारोपीय भाषाओं क याकरणा मक संरचना
मू ल भारोपीय भाषाओं क मु ख याकरणा मक संरचनागत वशेषताएँ यहाँ तु त ह -
(1) भारोपीय भाषा ि ल ट एवं ि ल ट योगा मक के म य क थी, िजनम अथत व एवं संबध
ं
त व पर पर घुले - मले रहते थे । (2) यय क बहु लता थी । धातु म यय जोड़कर पद
रचना क जाती थी । पद रचना ज टल थी । मु यत: धातु ओं से श द न प न होते थे । (3)
याकरणा मक श द, संइत, या एवं अ यय अलग-अलग थे । कतु सवनाम एंव वशेषण
संइग़ के ह अंश थे । सवनाम म व वधता थी । (4) श द प म तीन पु ष - थम,
म यम, उ तम; तीन लंग - ी लंग, पुि लंग, नपु स
ं क लंग; तीन वचन - एक वचन,
ववचन, बहु बचन एवं सं ा क आठ वभि तयाँ थीं । संभवत: इसी आधार पर सं कृ त म
आठ कारक का योग हु आ । (5) श द क सामा सक रचना भी होती थी, जो इस भाषा क
अ यतम वशेषता है । (6) या के चार काल एवं पग़ँच भाव थे । या म काल क अपे ा
काय क पूणता-अपूणता क ि थ त का मह व था । (7) आ मने पद एवं पर मैपद य याएँ
अि त व म थी । (8) याकरणा मक संरचना म सु र एवं वराघात का मह व था । साथ ह
श द के म य वर-प रवतन रचना मक मह व रखता था । यह वृि त ह द म भी दखाई
दे ती है । यथा- पढ़ना = पढ़ाना । दोन के अथ भ न ह । (9) अनेक प म धातु का
अ यास व व हो जाया करता था, जैसे - प एवं न के थम यंजन का व व हो कर
'पपाठ', 'ननाद' । (10) वराघात या इसक मु ख वशेषता है । ीक तथा वै दक सं कृ त
296
म भारोपीय के वराघात ठ क प म मलते ह । कालांतर म सु र के साथ वराघात का ाब य
हो जाता ह । यथा-सोि त = सै. स त, ीक - एं त लै0 - सु त ।
ऐसा तत होता है क भारोपीय भाषा क याकरणा मक तथा व या मक संरचना का
आधार सं कृ त भाषा है । व तु त: एकाध को छो कर शेष वशेषताएँ सं कृ त म ' यथावत
मलती ह ।
15.3.2 वड़ प रवार
297
क नड म उपि थत ह । इसम पं ह वर और स ताइस यंजन ह । ह द क भाँ त ऋ, ऋ,
लृ, लु का इसम भी अभाव है । तेलु गु के स भाषा-शा ी डॉ. चकू ट नारायण राव ने तेलु गु
को आय प रवार क भाषा स करते हु ए 'आं भाषा -च र ' (तेलु गु भाषा का इ तहास) नामक
वृहत ् थ
ं तु त कया है । वे तो याकरण, वणमाला दोन के धरातल पर तेलु गु को सं कृ त
एवं ह द से भा वत मानते ह । एक कारण और है - आ ो के 'पूवज आय य थे । इस
भाषा क ल प म 56 अ र ह, और ह द क सम त व नयाँ इसम सि म लत ह ।
ठ क यह ि थ त मलयालम क है । अ धकांश मलयालयी व वान इसका वकास
सं कृ त से मानते है । क तपय व वान इसे त मल क बेट मानते ह और आठवीं शता द म
इसके अलगाव को वीकार करते ह । जो वै ा नक धरातल पर खरा नह ं उतरता । सच यह है
क मलयालम वड़ भाषा से अलग होती गयी और सं कृ त के पूण भाव से इसका वकास
हु आ ।
वशेषताएँ -
1 वड़ प रवार क त मल भाषा का सा ह य सातवीं सद से भी पूव का ह । चार
भाषाओं म समृ सा ह य उपल ध है, कं तु अ धकांश सा ह य परव त है ।
2 ह द क भाँ त इस प रवार क भाषाएँ अि ल ट अ तव योगा मक ह । इनम कृ त
यय का प ट भेद रहता है । इस धरातल पर ये तु क स श ह ।
3 श द ाय: वरांत होते ह ।
4 मू ध य व नय क धानता के कारण क तपय व वान सं कृ त क मू ध य व नय
पर इस प रवार का भाव वीकार करते ह ।
5 सघोष व नयाँ श दारं भ म युता नह ं होती; कं तु म यि थ तय म इनका योग
अप रहाय है, वशेषकर त मल म ।
6 सम वरता पर यूराल , अ ताई प रवार का भाव दखाई दे ता है ।
7 ए, ओ द घ भी है, व एँ, आँ भी होते ह ।
8 सं ाओं के चेतन एवं अचेतन भेद होते ह ।
9 लंग तीन ह और वचन दो । लंग का आधार ा ण व अ ा ण व है ।
10 सं ा के अनु प वशेषण के प म प वतन नह ं होता ।
11 वभि तय का काम यय से लया जाता है ।
12 या म तड त से अ धक कृ द त प का योग होता है । पु ष का बोध पु ष
वाचक सवनाम जोडकर कराया जाता है । कमवा य का अभाव होने से उसका काय
सहायक या वारा लया जाता है ।
13 काल अ न चय और न चय क भावना से नधा रत होता है ।
14 भारतीय आय भाषाओं पर वड़ भाषाओं एवं वड़ भाषाओं पर सं कृ त का अ य धक
भाव ट य है ।
298
15.3.3 बु श क प रवार (खजु आ या कु जुती प रवार)
यूराल एवं अ ताई पहाड़ के बीच ि थत होने के कारण यहाँ के भाषा समू ह का यह
नाम यात हु आ । कु छ इसे दो प रवार (1) यूराल एवं (2) अ ताई मानते ह और कु छे क
इसम से फ न स और तु क भाषाओं को अलग कर इसे अलग - एक प रवार मानना पंसद
करते ह । यह प रवार टक , हंगर , फनलड तक फैला है, फनलड क फ नख हंगर क
मु नयार एवं टक क तु क इसक यात भाषाएँ ह । इसके अ त र त लापी (उ तर फनलड
एवं नाव), ए तोनी (ऐ तोनय ), सामवेद (साइबे रया), कर गज़ ( कर गज), अजर बैजान (अजर
बैजान), उजवेक (उजबे क तान), मंगोल (मंगो लया), मंचू र (मं चु रया) तु गज
ु ा (एनेसी से
अखे क सागर तक) भाषाएँ भी इस प रवार के अंतगत आती है ।
वशेषताएँ
1 फ नस म गयार एवं तु क तीन म, वशेषकर तु क म सा ह य उपल ध है ।
2 तु क पर अरबी, फारसी का भी भाव है, इसने वयं अरबी फारसी को भा वत कया है
। तु क से श द धरातल पर ह द भी भा वत है ।
3 फ न स पर भारोपीय भाषा का अ य धक भाव है ।
4 ये भाषाएँ अि ल ट योगा मक ह; धातु के पीछे यय जोड़कर पद क रचना क जाती
है।
5 सम वरता इस प रवार क एक और वशेषता है । सम वरता से ता पय है क मू ल श द
म जैसा वर होगा यय म भी वैसा ह वर होगा । सम वरता का योग उ चारण
सु वधा के लए कया गया तीत होता है ।
299
चेचेन लेगी । आज इस े म सी भाषा का चार अ धक है । जाज ता लन क मातृ भाषा
थी । जािजयन भाषा म ह कु छ सा ह य उपल ध है ।
वशेषताएँ -
(1) ये भाषाएँ अि ल ट एवं ि ल ट के म य क ह । (2) धातु ओं म वभि त एवं
यय दोन का योग होता है । (3) कु छ भाषाओं म 8 लंग ह । (4) काकेशस क उ तर
शाखा म यंजन क बहु लता और वर क अ पता है । 'अवर नामक भाषा म यंजन क
सं या 43 ह । (5) पद रचना अ यंत ज टल है । (6)अनेक भाषाओं म सवनाम और या का
योग हो जाता है, जो ि ल टता का ल ण है ।
300
धारणा भी अ प ट है । यय जोडकर बहु वचन का बोध कराया जा सकता है । को = ब चा,
दोन = को - दोन = ब चे । (7) कारक संबध
ं का बोध परसग वारा कराया जाता है ।
यथा- वाताकु श गा न ् म, वाताकु शनो द मेरा । (8) पद म नय मत ह । (9) सं कृ त के ह
अनुसार सं यावाचक का प बदलता है । (10) जापानी या म उ तम, म यम तथा अ य
पु ष का वभेद नह ं ।
पेन एंव ांस क सीमा पर पेरानीज पवत के पि चमी भाग म बा क भाषा बोल
जाती है । यह चतु दक आय भाषा से घर है । बोलने वाल क सं या दो लाख से ऊपर है ।
पहाड़ी े एंव यातायात क सु वधा के अभाव म इसक कई बो लयाँ वक सत हो गई ह ।
वशेषाताएँ -
(1) यह अि ल ट योगा मक भाषा है । (2) उपपद, परसग क भाँ त बाद म लगता है
। (3) या प म ज टलता है । (4) सवनाम का या प म संयोग होता है । (5) े के
अनुासर वा य क बनावट ज टल एंव क ठन है । कं तु तारापोर वाला के अनुसार इसक वा य
रचना अ यंत सरल है । (8) लंग वचार केवल या म होता है । (7) श द भ डार सी मत है
। अपूव वचार के बोधक श द वलु त नह ं है ।
302
कार के श द होते ह, िज ह व न च , श द- च अथवा वणना मक या वशेषण कहते है ।
इनके वारा वाणीग त के साथ- प, ि थ त, रं ग, वाद तथा गंध क यंजना होती है । ये
श द या वशेषण होते ह तथा अप रवतनीय भी ।
15.3.12 बा टू प रवार
मलय पो लने शयाई अथवा आ ोने शयाई प रवार भी इसे कहा जाता है । पि चम म
अ का के तटवत मेडागा कर से लेकर पूव म ई ट वीप तक और उ तर म फारमोसा से
लेकर द ण म यूजीलड तक इस प रवार क भाषाओं का योग होता ह । यह े छोटे -छोटे
वीप का समू ह है, इनम मु ख वीप ह- मलाया, जावा, सु मा ा, बो नयो, सल वज बाल ,
फल पीन, यूजीलै ड और शांत महासागर के अनेक वीप । मु ख भाषाओं म मलय,
फ िजयन, जावनीज एवं मओर क गणना होती है । ये वीप ाय: पि चमी दे श के उप नवेश
रहे ह, इस लए इनक मू ल भाषाओं का वकास नह ं हो पाया । जो वतं हु ए, उनक मूल
303
वक सत हो रह ह । व तु त: इनम से अ धकांश वीप वृह तर भारत के अंग थे; वभावत:
इनक भाषाओं पर भा षक तथा भारतीय सं कृ त का भाव पड़ा, िजसे आज भी दे खा जा
सकता है ।
वशेषताएँ -
(1) ये योगा मक भाषाएँ ह । (2) व नयाँ क ि ट से मु ंडा- समूह क भाषाएँ समृ
ह । इनम वर, घोष, अघोष तथा अ प ाण, महा ाण यंजन ह । भारतीय े म बोल जाने
304
के कारण एक तरफ वयं आय भाषा प रवार क वशेषताओं से यु त है और दूसर तरफ आय
भाषा प रवार क भाषाओं को भा वत करती ह - (3) श द के अंत म संयु त यंजन का
अभाव है । (4) चीनी भाषा-स श इसम भी थान भेद से एक श द संइग़, सवनाम बन जाता
है । अत: श द- याकरण ान करण से होता है । (5) पद-रचना के लए उपसग का योग
म य या अंत म होता है - मं झ = मु खया, मपं झ = मु खए । (6) वभि तय का काम
उपसग से लया जाता है । (7) लंग-बोध के लए श द म ह ी या पु षवाचक श द जोड़
दए जाते ह । (8) वचन तीन होते ह । (9) गणना बीस के म म होती है । बीस का बोधक
कोड़ी' श द मु ंडा का ह है, जो ह द और बंगला म यु त होती है ।
305
आना' ।
लौ कक सं कृ त - अ धक प र नि ठत और सा हि यक सं कृ त जो वै दक सं कृ त
से भ न हो गई ।
कोड़ी - वड़ भाषा कोड़ी श द कौ ड़य से बीस का समू ह गनने के
लए यु त होता था । बंगला म आज भी बीस के अथ म
यु त ।
पूण ि ल ट योगा मक - इन भाषाओं म संबध
ं त व और अथ त व का योग इतना पूण
होता है क वा य कर ब एक ह श द बन जाता है, जैसे मेरठ
क बोल म उसने कहा का उ नेका' बन जाना ।
अपद थ - परािजत करना
15.5 सारांश
मनु य के वकास क भाँ त भाषा का वकास भी एक वंशवृ के प म होता है ।
िजस कार एक ह माता- पता से ज म दो भाई का कालांतर म दो प रवार के प म एक
दूसरे से दूर होते हु ए भी अपनी परं परा, तथा सं कृ त के धरातल पर एक दूसरे के नकट होते
ह, उसी कार एक मू ल ोत/भाषा ( ोटो पीच) से उ प न भाषाएँ भी भौगो लक, ाकृ तक एंव
योगगत कारण से एक दूसरे से हजार मील दूर होकर भी अपनी मू ल भा षक संपदा - व न,
श द एवं वा य संरचना तथा वकासा मक वृि त आ द धरातल पर और मू ल संवेदना क
सं या म एक दूसरे के नकट होती ह । यह नैक य मान उ ह एक प रवार का स करता है।
संसार म अनेक भाषाएँ ह । इन भाषाओं का ज म एका धक मू ल ोत से माना गया
है । इ ह ं मू ल ोत को द रवार क संइग़ से अ भ हत कया गया है । प रवार को आधार
बनाकर और उसम भाषाओं को बाँटकर, उनका ववेचन- व लेषण तथा े नधारण भाषा
व ान क ाथ मक आव यकता है । यह प त अ ययन को संि ल ट और वै ा नक बनाती है
। इस या एवं प त वारा भाषाओं के वकासा मक पहलू का ान तो होता ह है, संसार
के व भ न े म च लत एवं यु त भाषाओं से भी हम प र चत होते ह । इस अ ययन से
यह पता चलता है क संसार क अनेक भाषाएँ अपनी खोज और अ ययन क ती ा म ह ।
यह भी प ट होता है क भाषा- योग के मामले म मनु य कतना वंत और प रवतनशील है
तथा कैसे भौगो लक, राजनी तक एंव ाकृ तक प रि थ तयाँ भाषा म, समाज म बदलाव क
मह वपूण कू मइका नभाती ह । काल- वशेष म सा ह य और मानव समाज म मह वपूण रह ं
भाषाएँ दूसरे काल म लु पा या योग ब ह कृ त कैसे हो जाती ह, कैसे दूसर भाषाएँ उनका थान
ले लेती ह, यह रोचक जानकार भी हम मलती है, भाषा प रवार के अ ययन वारा ।
15.6 अ यासाथ न
(क) द घ तर न
1 भाषाओं के प रवार नधारण के मू ल स ांतो तथा उसक उपयो गता पर काश
डा लए ।
306
2 संसार के क ह ं दो भाषा-प रवार का प रचय दे ते हु ए, उनक भा षक वशेषताएँ
रे खां कत क िजए ।
3 वड़ प रवार क भाषाओं का सं त प रचय एवं वै श य तु त क िजए ।
4 चीन म बोल जाने वाल भाषाओं क वशेषताएँ रे खां कत क िजए ।
5 सामी-हामी प रवार क भाषाओं का प रचय दे ते हु ए, उनक वशेषताएं बताइए ।
(ख) लघू तर न
1 भाषा प रवार क संक पना का आधार या है? भाषा प रवार क तु लना कससे क
जाती है?
2 व व के भाषा प रवार को कतने भाषा ख ड म बाँटा गया है? कसी एक ख ड
के प रवार के नाम ल खए ।
3 केि टक भाषाएं दासोज़खी य कह ं जाती ह?
4 जापानी-को रयाई प रवार क भा षक वशेषताएं सं ेप म ल खए ।
5 यूराल - अ टाई प रवार पर सं त ट पणी ल खए ।
(ग) र त थान क पू त क िजए -
1 ............................... क ल खत साम ी उपल ध नह ं ।
2 भारत ईरानी........................................ वग क भाषा है ।
3 सं कृ त का ाचीनतम प........................... है ।
4 चीनी- त बती प रवार का........................... नाम उसक आकृ तगत वशेषता के
कारण पड़ा ।
5 हाइपर बोर का अथ है.................................................... ।
(घ) सह /गलत व त य को चि नत क िजए –
1 बाइ बल क मू ल भाषा ाचीन ह ू है । सह /गलत
2 द ण पूव ए शयाई (आि क) प रवार म भाषा े के साथ बोलने वाल क
सं या भी बहु त है । सह /गलत
3 आ े लयाई प रवार क भाषाएं अि ल ट योगा मक भाषाएं है । सह /गलत
4 अवर नामक भाषा म 20 यंजन ह । सह /गलत
5 सू डानी भाषा प रवार क खास वशेषता उसके व न और श द च का होना है।
सह /गलत
15.7 संदभ ंथ
1. डॉ. राम वलास शमा; भाषा और समाज, राजकमल काशन ा. ल., 8 नेताजी सु भाष
माग, नई द ल - 1100021
2. डॉ. राजम ण शमा; आधु नक भाषा व ान, वाणी काशन, 21 ए, द रयागंज. नई
द ल -1100021
307
3. जाज अ ाहम; यसन; अनु. तवार ; डॉ. उदयनारायण; भारत का भाषा सव ण,
उ तर दे श ह द थान, लखनऊ, ख ड 1, भाग 1,
4. लाख जे. (ले.); अनु. कृ ण कुमार शमा; जयपुर, वड़ भाषाओं क याकर णक
संरचना, राज थान ह द थ
ं अकादमी ।
5. ो. जी. सु ंदर रे डी; ह द तथा वड़ भाषाओं के समान पी म नाथ श द-राजपाल
ए ड स स,. क मीर गेट, नई द ल
6. IRCH Tarapore; Elements of Science of Language – Calcutta
University, Calcutta, wolo Jahangir Soraliji
7. Bloomfield; Language – 1- chock, Varanasi.
Leonard
Motilal
Banarsidas
308
इकाई-16 भारोपीय भाषा प रवार
इकाई क परे खा
16.1 उ े य
16.2 तावना
16.3 भारोपीय भाषा प रवार
16.3.1 मह व
16.3.2 नामकरण क सम या
16.3.3 े
16.3.4 मू ल भारोपीय भाषा; संरचना
16.3.5 भारोपीय भाषा प रवार का वग करण एवं वशेषताएं
16.3.6 भारोपीय भाषा प रवार के उप प रवार
(क) कतु म शाखा
1. ीक उप प रवार
2. इता लक उप प रवार
3. जम नक उप प रवार
4. केि टक उप प रवार
5. तोखार उप प रवार
6. वतीय ह ाइट उप प रवार
(ख) सेतु म ् शाखा
7. बा लो ला वक उप प रवार
8. आरमीनी (इल र ) उप प रवार
9. अलबीनी उप प रवार
10. भारत ईरानी उप प रवार
(अ) भारतीय आय भाषाएं
(आ) ईरानी भाषाएं
16.4 वचार संदभ/श दावल
16.5 सारांश
16.6 अ यासाथ न
16.7 संदभ थ
ं
16.1 उ े य
तु त इकाई के अ ययन के प चात आप
309
भारोपीय भाषा प रवार के मह व, े व तार, नामकरण क सम या तथा उसके
वग करण आ द पर काश डाल सकगे ।
भारोपीय भाषा प रवार क भाषाओं के पार प रक संब ध और भा षक वै श य को
रे खां कत कर सकगे ।
भारोपीय भाषा प रवार क भाषाओं के सा हि यक और भाषा वै ा नक मह व का
न पण कर पाएंगे ।
16.2 तावना
व व भाषाओं का समु है । अन गनत भाषाएं इसके गभ म समा गयीं और अनेक
इसक लहर स श आज भी उछाल मार रह ह, गजना कर रह ह । इ ह ं म एक भाषा प रवार
है- भारोपीय/इसके ाचीनतम व प का तो पता नह ं । ह ! अनेक ाचीन कहलाने वाल भाषाओं
के उपल ध सा ह य उसक जीवंतता, स यता तथा सं कृ त के चरमो कष क गाथा कहते ह ।
संसार का एकमा यह भाषा प रवार है, िजसका सवा धक भाषा-वै ा नक अ ययन हु आ । इस
अ ययन से यह भी स होता है क इस भाषा का वच व समूचे व व पर रहा है, व व क
अनेक, अ य प रवार क , भाषाएं इसके भाव से अछूती नह ं है । य द भारत का ह स दभ ल
तो यह बात मा णत हो जाती है क भारत का वड़ प रवार भारोपीय भाषा प रवार क
सवा धक ाचीन, समृ और सश त भाषा सं कृ त क श द-संवेदना, वा य संरचना,
याक रणक-संरचना तथा मू ल संवेदना से अ य धक भा वत है । एक बात और, थानीय
नकटता के कारण वड़ भाषाओं ने भी सं कृ त तथा सं कृ त- न प न म यकाल न एवं
आधु नक भारतीय आय भाषाओं को श द सं पदा के धरातल पर भा वत कया है । अ तु, यह
बात बहु त साफ है क कोई भी भाषा अपनी पूण वपु ता का बखान नह ं कर सकती, उसम
आदान- दान होते रहते ह । वच व क लड़ाई म जो भाषा जीतती है, वह दूसर को सवा धक
भा वत करती है । भारोपीय भाषा प रवार क अनेक भाषाएं ऐसी ह ह ।
मानव समुदाय के सामािजक यवहार का मा यम है भाषा । संभवत: मनु य क यह
दूसर खोज है, उसक पहल खोज है- आग । मानव-समु दाय, वशेषकर मनु य आ दम काल से
आज तक नर तर प रव तत होता रहा ह, और उसका यह प रवतन उसक अपनी खोज-भाषा
को भी नर तर प रव तत करता रहता है । यह प रवतन एक नि चत दशा और या के
तहत होता है, िजस कार कल का एक मानव प रवार कालांतर म कई प रवार , गाव , नगर
म बँटकर पुराने प रवार से ब कु ल अलग-अलग अपनी पहचान बना लेता है ठ क उसी तरह
एक भाषा क व भ न बो लयां जौ. कल तक उसी भाषा क अंग रह ह, कालांतर म अपने
उप प को वक सत कर वतं अि त व धारण कर भाषा बन जाती है । यह बनने बगडने क
या सतत ् चलती रहती है, और यह या भा षक प रवार क रचना क नमा ी बनती है
। भारोपीय भाषा प रवार के संदभ म यह संक पना क जाती है क आज इस प रवार म
सि म लत भाषाओं का कोई ाचीन व प रहा होगा और इन भाषाओं के ाचीनतम प का
वकास मू ल भारोपीय भाषा से हु आ होगा ।
310
भाषा प रवार नधारण म पहल आव यकता है भाषाओं म अथत व एवं रचना क
समानता । इस समानता का कारण भाषाओं के म य पाया जाने वाला ऐ तहा सक संब ध है ।
भाषा मानव-समु दाया वशेष का वै श य, और उसक अपनी नजी पहचान है । अ तु दो भाषाओं
म समानता कम ह दे खने को मलती है, क तु इसके अपवाद भी मलते ह । कई बार यह
दे खने को मलता है क एका धक भाषाएं एक दूसरे के समान ह । इसके कारण होते ह- (ऊ)
आकि मक, (ख) शशु-श दावल , (ग) अनुकरणा मक श दावल , घ) भावा भ यंजक श दावल ,
ड) भाषायी आगत, और (च) समान उ गम ोत ।
इन समानताओं को अलग करने पर भी य द भावशाल समानता दखायी पड़े, और
वह समानता भी कु छ सां कृ तक श द तक ह सी मत न हो, उन भाषाओं क मू ल श दावल
के बहु त बड़े अंश के साथ-साथ भाषाओं क याकरणा मक एवं धव या मक संरचना म भी ि ट
गोचर हो तब ऐसी समानताओं से यु त भाषाओं क -उ पि त का ोत एक होने क संभावना
बनती है । उपयु त कसौ टय पर कंस कर खरा पाने पर ह भारोपीय भाषा प रवार क
संक पना क गई है ।
311
अपनी-अपनी भाषाओं - अं ेजी, जमन, फांसीसी आ द म अनुवाद कया । इस अनुवाद या
म उ ह ने पाया क सं कृ त बाहू य तथा आत रक संरचना के धशतल पर ीक, लै टन, अं ेजी,
जमन, च आ द के बहु त नकट है । सन ् 1886 म रायल ए शया टक सोसायट म, दये गए
व लयम जो सन अपने भाषण म सं कृ त से ीक और लै टन के घ न ठ स ब ध क घोषणा
क । वह से तु लना मक भाषा व ान का ज म हु आ और भारोपीय भाषा प रवार का व प
सामने आया ।
16.3.2 नामकरण क सम या
16.3.3 े
312
ये भाषाएं कसी भाषा के व भ न प से वक सत ह न क उस भाषा से (कि पत भारोपीय
भाषा) सीधे ।
भाषा वै ा नक वारा कि पत एवं न मत भारोपीय भाषा क व या मक एवं
याकरणा मक संरचना क परे खा यहां सं त प म तु त है ।
(क) ध या मक भाषा : संरचना
वर - मू ल ह य-अ, इ उ, ए, ओ मूल द घ - आ, ई, ऊ, ऐ, ओ
संयु त व - अइ, अड, अश, अ त, अन, अम, एड, एउ, एऋ, एलृ,
- एन, एम, आई, आउ, आऋ, आय ओल,् आमे ।
संयु त द घ - आइ, आउ, आ ह आ त, आन, आम, एइ, एउ, एलृ
- ए ट, एम, ओइ ओउ, ओ ट ओल, ओन, ओम ।
डदासीन अ त व - अ
अध वर - य, व
वरवत ् यु त - ऋ, लृ, म,् न,् । इनके भी द व और द घ प थे ।
वर म आनुना सकता का वधान नह ं था ।
यंजन
क वग- इसम तीन कार क व नयां थी -
(क) क ख, ग घ, क ठय अथवा प चात क य वन
(ख) व, व. य, य, क ठ + ताल य
(ग) य, एव, व, व : क ठौ य
सं कृ त म वग (क) क व नयां स,् श ्, ष,् उ म व नय म वक सत हु ई ।
वग (ख) क व नयां च,् , ज,् झ ् म वक सत हु ई ।
वग (ग) क व नयां क् , ख,् ग ्, घ ् म वक सत हु ई ।
तवग - त,् थ,् , ध : दं य या व स
पवग - प,् फ् , ब,् म,् : ओ ठय ्
उ म - स,् (ज़)
अंत थ यंजन: य,् र्, ल,् व,् न,् म ्
'ह' के स भवत: दो प थे- सघोष एवं अघोष ।
संयु त यंजन का योग होता था ।
धव या मक संरचना म वराघात का मह व था ।
(ख) याकरणा मक संरचना
(1) भारोपीय भाषा ि ल ट एंव ि ल ट योगा मक के म य क थी, िजसम अथत व एवं
संब धत व पर पर घुले - मले रहते थे । (2) यय क बहु लता थी । धातु म यय जोड़कर
पद रचना क जाती थी । फल व प पद रचना ज टल थी । श द मु यत: धातु ओं से न प न
होते थे । (3) याकरणा मक श द, सं ा या एवं अ यय अलग-अलग थे, क तु सवनाम एवं
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वशेषण सं ा के ह अंश थे । सवनाम म व वधता थी । (4) श द प म तीन पु ष - थम,
म यम, उ तम, तीन लंग- ी लंग, पुि लंग, नपु स
ं क लंग, तीन वचन - एक वचन, ववचन,
बहु वचन एवं सं ा क आठ वभि तयां थी । स भवत: इसी आधार पर सं कृ त म आठ कारक
का योग हु आ । (5) श द क सामा सक रचना भी होती थी जो इस भाषा क अ यतम
वशेषता थी । (6) या के चार काल एवं पांच भाव थे । या म काल क अपे ा काय क
पूणता-अपूणता क ि थ त का मह व था । (7) याऐं दो कार क थी आ म द य और
पर मैपद य । (8) याकरणा मक संरचना म सु र एवं वराघात का मह व था । साथ ह श द
के म य म वर प रवतन, रचना मक मह व रखता था । (पढ़ना > पढ़ाना) (9) अनेक प म
धातु का अ यास व व हो जाया करता था, जैसे पत ् एवं त के थम यंजन का व व होने
पर पपाठ, ननाद (10) वराघात या उसक मु ख वशेषता है । ीक तथा सं कृ त म
भारोपीय जैसे सोि त > सं. सि त ीक एि त ह सु ना । वराघात के सह प मलते ह आगे
चलकर सु र के साथ वराघात का ाब य हो जाता है । ऐसा तीत होता है क धानत:
सं कृ त को के म रखकर भारोपीय भाषा प रवार के मूल भाषा क प रक पना क गई है ।
य क उपयु त अ धसं य वशेषताएं सं कृ त, वशेषकर वै दक सं कृ त म सु र त है ।
314
ह ती भारोपीय भाषा के एक उप प रवार के प म यहां तु त है । य द भारोपीय भाषा के
समाना तर ह ती को वीकार कया जाएगा तो ऐसी ि थ त म यह वग करण न न ल खत प
म होगा:-
(क) ह ती - ह ती
(ख) भारोपीय - (1) कतु भ - ीक, इता लक के ल टक जमनी, तोखार ।
(2) सतम ् - बा टो ता वक, आरमीनी अलबीनी,
भारत-ईरानी
(ब) वशेषताएं.
मू ल भारोपीय भाषा से भारोपीय भाषा प रवार क उपयु त भाषाएं अलगाव दशाती है ।
व तु त: व भ न बोल प से वक सत इन भाषाओं म मू ल भारोपीय के साथ कु छ नई
वशेषताएं भी समा हत है । अ तु भारोपीय भाषा क वशेषताएं यहां तु त है: (1) यह ि ल ट
योगा मक भाषा है । (2) श द क रचना उपसग, घातु और यय के योग से होती है ।
उपसग ार भ म वतं साथक श द थे । (3) वा य रचना पद से होती है । वभि त से
संयु त पद बनते ह । (4) समास बनाने क वृि त धान थी । सं कृ त इसका उदाहरण है ।
वर प रवतन से अथ प रव तत हो जाता है । वर प रवतन श द रचना का अंग है । (5) इस
प रवार म यय का बाहु य है ।
315
3. कता, कम, सं दान एवं संब ध इसके कारक ह ।
4. ीक म अ ययो, उपसग एवं या- वशेषण क बाहु य है ।
5. सं कृ त क भां त ीक म भी दोन पद पर मै पद एवं आ मन पद क याएं पाई जाती
है ।
6. ीक म समास भी ह, क तु सं कृ त क भां त ल बे नह ं ।
7. सं कृ त क ह भां त ीक म भी तीन लंग-पुि लंग , ी लंग, नपु स
ं क लंग है ।
8. ह द क भां त दो वचन एक वचन एवं बहु वचन है ।
9. मू ल भारोपीय के वर तो सु र त ह क तु यंजन म प रवतन हो गया है ।
2. इटा लक (रोमांस) उप प रवार -इस उप प रवार को इता लक उप प रवार भी कहते ह । इस
प रवार क सबसे स भाषा ले टन रोमन केथो लक सं दाय क धमभाषा एंव यूरोप क
सां कृ तक भाषा है । व तु त: यूरोप म इसका वह थान है जो भारत म सं कृ त का है ।
लै टन का ाचीनतम प 500 ई. पूव के आस-पास शलालेख म मलता है । म यकाल म
ले टन का ाचीनतम प वक सत होकर पूरे रोमन-सा ा य क राजभाषा के प यात हु आ
। आधु नक ले टन म यकाल न लै टन का वक सत प है । इस प रवार क ाचीनतम
भाषाओं-ओ कन एवं अ टे वन का परवत वकास नह ं मलता । इस े म लै टन के
अतर त ासीसी ( ांस), पेनी ( पेन), पुतगाल (पुतगाल) एवं मानी ( मा नया) का भी
वकास हु आ ।
इन भाषाओं म रचना मकता से अ धक धव या मक अंतर ि टगत होता है । पुतगाल ,
पेनी और इता लक ल खत प म बहु त कु छ बोधग य ह । धव या मक भेद क ि ट से
फांसीसी इनसे अ धक न न है । मानी (इता लक) संरचना मक ि ट से भ न ह ।
सा हि यक ि ट से ला तन के अ त र त फासीसी, इता लक पेनी और पुतगाल स प न भाषाएं
ह । उप नवेश व तार के कारण इता लक वग क भाषाओं का फैलाव कनाडा ( ांसीसी,
मैि सक ( पेनी) और द णी अमे रका( पेनी) और पुतगाल म भी है ।
वशेषताएं -
1. भारतीय आय भाषाओं क भां त ला तन वग क सभी भाषाय योगा मकता से
अयोगा मकता क और उ मुख है ।
2. ला तन म कारक वभि तय का योग होता था क तु शेष भाषाओं म वभि तय का
काय उपसग का नपात से कया जाता है ।
3. ला तन म तीन लंग थे, क तु अब इनम केवल दो लंग है- पुि लंग और ी लंग ।
नपु स
ं क लंग सं ा या तो पुि लंग म यु त होती है या ी लंग म ।
4. वचन दो ह -एकवचन और ववचन ।
5. वशेषण के लंग और वचन सं ा के लंग और वचन के अनुसार चलते ह । बहु त
ज टल है ।
6. काल और प के बाहु य के कारण या प क रचना बहु त ज टल है ।
316
7. एक ोत से वक सत होने के कारण रोमन भाषाओं के श द भ डार तथा वा य रचना
म एक पता है ।
8. ला तन के न चय वाचक सवनाम 'इ ले' से वभ न प म वक सत आ टकल का
योग सभी भाषाओं म होता है । हां, इतालवी, ांसीसी, पेनी, पुतगाल म इसका
योग सं ा के पहले और रोमानी म सं ा के बाद होता है ।
9. प टत: ला तन इस प रवार क ाचीनतम भाषा है, जो काला तर म वक सत भाषाओं
को भा वत करती है ।
10. अयोगा मक होने से वा य म पद का थान मह वपूण हो जाता है ।
3. जम नक ( यूटा नक) उप प रवार
आज संसार क सवा धक मह वपूण भाषा अं ेजी - इस उप प रवार क ह भाषा है ।
गा थक इस प रवार क ाचीनतम भाषा है क तु आज यह लु पा ाय है । चौथी शता द का
बाई बल का अनुवाद गा थक क सबसे ाचीन रचना है । जमन और डच भाषाएं चार- सार
और सा ह य, दशन तथा ान क ि ट से इस उप प रवार क उ लेख भाषाएँ है, वशेषकर
जमन । भाषा- व ान क ि ट से भी जमन का मह व बहु त अ धक ह । इस उप प रवार क
मु ख भाषाएँ ह- आइसलै डी (आइसलै ड), डेनी '(डेनमाक), नावई (नाव), वीडी ( वीडेन),
अं ेजी (इंगलै ड), उ च और न न जमन (जमनी), डच (हॉले ड), पलेमी (बेि लयम) ।
वशेषताएं-
1. ार भ म ये भाषाएं अयोगा मक थीं, जमन आज क बहु त कु छ योगा मक है, क तु
आज इस प रवार क भाषाओं म अयोगा मकता क वृि त का बाहु य है ।
2. व न-प रवतन क ि ट से जम नक शाखा क भाषाएं उ ले य ह ।
सबल और नबल याओं के दो वग ह । सबल याएं वे ह िजनम धातु के अंतव त
वर म ह प रवतन करके भू तकाल बना लया जाता है । जैसे-कम-केम, सी-सा ईट-एट,
ेक- ोक आ द । नबल याऐं वे ह िजनम यय जोड़कर भू तकाल बताया जाता है-
ल ह-ल हड, वाक् -वा ड ।
3. सभी भाषाओं म बल का योग होता है । केवल वीडी म वर का योग होता है ।
4. केि टक उप प रवार : लगभग दो हजार वष पूव केि टक शाखा क भाषाओं का योग
यूरोप के बड़े भू भाग- टे न, फांस, उ तर इटल से लेकर ए शया माइनर, आधु नक तु क
तक होता था । इस भाषा के यो ता अ यंत साहसी और यु - य थे । इस भू-भाग म
उनके सा ा य का व तार था । कालांतर म रोमन सा ा य के भु व और रा य-
व तार के साथ-साथ केि टक जा त और केि टक भाषा का दास आर भ हु आ । आज
इस शाखा क भाषाओं को बोलने वाल क सं या सी मत हो गई है । उनके राजनी तक
भु व का भी दास हु आ ।
इस शाखा क भाषाएं आज उ तर पि चमी ांस और ेट टे न, कॉटलै ड, आयरलै ड,
वे स तथा कानवाल म बोल जाती है । आयरलै ड क आइ र सस और वे स क वे स
317
इस समय इस उप प रवार क मु य भाषाएं है । इसके अ त र त मान, काच, टे नी
और गाल भी इसी उप प रवार क उप भाषाएं ह ।
वशेषताएं-
1. भाषा- व ान क ि ट से भारोपीय प रवार मे केि टक सबसे क ठन और अ ठ भाषा ह
। प रवतन के कारण इनके मू ल श द को पहचानना क ठन है । इन प रवतन के
आधार पर व न- या स ब धी नयम क प रक पना भी टे ढ़ खीर है ।
2. सं ा के प अं ेजी क तरह वि ल ट हो गए ह ।
3. वा या मक संरचना भी अ य धक ज टल ह । इस लए कु छ व ान क क पना है क
इस शाखा क वा य रचना का आधार अभारोपीय है । वे बबर भाषा को केि टक क
वा य रचना का आधार मानते ह ।
4. भारोपीय क प व न केि टक क एक शाखा म व यमान है, दूसर म 'ऊ' के प म
प रवतन हो जाती है । इसी कारण क तपय भाषा-वै ा नक इस शाखा को 'क' वग और
'प' वग म बांटते ह ।
क- वग म आइ रस, काच, मा स एंव प वग म वे स, का नश, टश, गा धक
भाषाएं आती ह ।
5. तोखार उप प रवार - इस उप प रवार का पता बीसवीं सद म तब लगा, जब पूव
तु क तान से ा त कु छ प एवं थ
ं का अ ययन कया गया । इस भाषा को बोलने
वाल जा त-तोखार अथवा तोषार- के आधार पर तोखार कहा गया । इसक ा त
साम ी ईसा क थम शता द से पूव क मानी जाती है । महाभारत म ‘तु षार’ श द से
तोखार का उ लेख मलता ह । इनका रा य म य ए शया म दूसरा सद ईपू से 7 वीं
सद तक था । ऐसा माना जाता है क हू ण ने इन पर अ धप य जमाया । इसका े
म य ए शया (तु रफान) है । थान-नैक य के कारण तोखार भाषा पर यूराल अ ताई
भाषाओं का भाव प ट ह ।
वशेषताएं -
1. तोखार म भारोपीय क वर व नयां सरलता क ओर उ मुख ह, अ तु वर मा ाएं
उपे त हु ई । यंजन क सं या भी बहु त कम ह । भारोपीय पश- यंजन म भी
केवल तीन- प, त,् क् , शेष ह ।
2. कारक नौ ह । कता, कम और स ब ध इनम धान ह, िजनके एकवचन प भारोपीय
के समान ह । बहु वचन म केवल कता और कम के प ह भारोपीय स श है । अ य
कारक का बहु वचन अि ल ट योगा मक प त से बनता है ।
3. इसम ववचन भी मलता है ।
4. सवनाम भारोपीय के ह ह ।
5. सं या वाचक श द भी भारोपीय के ह । सौ के सं या वाचक श द इसे कतुभ शाखा
क भाषा स करता ह ।
6. या प म ज टलता है ।
318
7. ह ती उप प रवार : ह ती आज मृत भाषा है । क तु भाषा वैइग़ नक ि ट से यह
भारोपीय प रवार क भाषा या उसक बहन स होती है । इसी लए बीसवीं सद के
आर भ म ए शया माइनर के बोगज कोई (तु क ) म (अंकारा से 80 मील पूव ) गांव क
खु दाई से ा त अ भलेख भारोपीय प रवार के ाचीनतम लेख माने जाते ह । व तु त:
म ी क चौड़ी प काओं पर क ला र म लखे ये अ भलेख ईसा पूव 2000 वष पूव
के स होते ह । सु मे रयन एवं अ के डयन भाषाओं के भाव के कारण इसे सेमे टक
प रवार क तथा सामी से उ प न माना जाता था, क तु यह नि चत प से भारोपीय
प रवार क कतु म ् वग क भाषा है य क भारोपीय भाषा क कु छ खास वशेषताएं
केवल ह ती म ह दखाई पड़ती है । भारोपीय का ह ती से वह स ब ध है जो ीक
या सं कृ त का इता लक से । सवमा य स ांत है क तोखार और ह ती सबसे पहले
भारोपीय प रवार से अलग हु ई, इस लए टटवट जैसे अनेक भाषा वै ा नक भारोपीय
प रवार को भारत ह द प रवार कहने के प पाती है ।
वशेषताएं –
1. ह ती क सं ाओं, वशेषण तथा सवनाम म केवल दो ह लंग पाए जाते ह -
पुि लंग और नपु स
ं क लंग । ी लंग का अभाव है । यह वशेषता समू चे भारोपीय
प रवार म केवल ह द म ह मलती है ।
2. भारोपीय कारक म से ह ती म केवल छ: कारक है । अ धकरण उपे त है ।
3. भारोपीय सवनाम म से ह ती के सवनाम क अ य धक समानता है ।
4. ाचीन भारोपीय क अपे ा ह ती क याओं म सरलता है ।
5. काल दो ह - वतमान और भू त ।
(ख) सतम ् शाखा -
7. बा तो ला वक उप प रवार- यह प रवार दो उप शाखाओं बाि तक एंव ला वक म
वभ त है । बाि तक क उप बो लयां ह- लथुआनी एवं लेती (लेि च) । ला वक -
पूव ; पि चमी एवं द णी-तीन वग म वभ त हो जाती है । पूव म महा सी,
खेत सी, लघु सी (उ ायनी), पि चमी म पोल चेक, लोवाक एवं द णी म बुलगाट ,
सव ोत तथा लोवेनी बो लयां यु त होती है । बुलग़ रया , पोलै ड और चेको ला वया
के े म इस उप प रवार क भाषाओं क योगगत धानता है ।
(क) बाि तक - बाि तक सागर के तट पर ि थत लथुआ नया और लात वया नाम
दो छोटे दे श क भाषाएं इस शाखा म शा मल ह । महायु के पूव ये दोन वतं दे श
थे क तु बाद म सो वयत संघ के अंग बने । लथु आनी पूणतया ि ल ट और वै दक
सं कृ त से मलती-जु लती है । यह बादय- भाव से पूणतया मु त है । इसम
लथुआ नयन भारोपीय प रवार क ाचीनतम भाषा है । भाषा वै ा नक ि ट से यह
मह वपूण तो ह, क तु सा हि यक ि ट से नग य ह ।
319
(ख) ला वक - पूव ला वक क महा सी या सी सो वयत संघ क रा भाषा ह
। शासन, श ा, तकनीक एंव वै ा नक सा ह य म उसी का योग होता है । इसका
सा ह य 18 वीं सद से आर भ होता है तब भी इसम भू त सा ह य उपल ध है ।
तु गनेक दा ता वे क , चेखव, ताल तोय, गोक आ द इसके स सा ह यकार है । यह
बड़ी समथ और सबल भाषा है ।
' लोवाक' चेक भाषा का वैभा षक प माना जाता है । द णी ला वक क सबसे
ाचीन भाषा बुल गार है । ला वक शाखा का ाचीनतम सा हि यक अवशेष बाइ बल के
एक अनुवाद (लगभग 8 वीं सद का) को वीकार कया जाता है । नवीं से बाहरवीं
सद के बीच संत स रल और मेथो दडस ने धा मक सा ह य क रचना क । सी
भाषा के लए वतमान म यु त ल प के नमाण का ेय संत स रल को दया जाता
है । आधु नक बुल गार , ाचीन बुलगार ीक, तु क , मानी एवं अलबानी भाषाओं के
श द क बहु लता हो गई है । द णी ला वक सव ोतो युगो ला वया (द ण) क
भाषा ह । इसक अनेक बो लयां है । ला वक क इस मह वपूण भाषा का सा ह य
बारहवीं सद से उपल ध होता है । लोवेनी युगो ला वया के द ण आ या तक सागर
के तट पर बोल जाती है । इसका सा ह य अनुपल ध है ।l
8. आरमीनी उप प रवार - आरमी नया क भाषा आरमीनी है । यह े ईरान से सटा है,
अ तु इस पर ईरानी भाषा का भाव है । अनेक श द, यय, उपसग ईरानी के ह ।
इसका ढांचा अलग है । व तु त: यह बा लो ता वक और आय भाषाओं को जोड़ने वाल
कड़ी है । उपल य सा ह य 10- 12 वीं सद का है । यह कु तु तु नया और कृ ण
सागर के कनारे बोल जाती है।
9. अलबानी (इल र ) उप प रवार - अलबानी, इल र नामक भाषा एक यापक शाखा का
अवशेष है, िजसके अ ययन क साम ी अ य प है केवल कु छ ाचीन अ भलेख ह
ा त ह । सा ह य का इसम अभाव है । सोलहवीं सद का बाइ बल का एक अनुवाद
अव य उपल ध है । स हवीं शता द से इसम सा ह य का ार भ माना जाता है,
िजसम लोकगीत क धानता है । अलबानी आ या तक सागर के पूव ि थत पहाड़ी
दे श क भाषा है । ल खत प म आने के पहले अलबानी म व न और पद रचना
क ि ट से इतना अ धक प रवतन हो गया है क कु छ भाषा-वै ा नक उसे भारत
यूरोपीय प रवार म रखने के प धर नह ं थे । ीक का नेक य ला वका का भाव
एवं वे नस तथा तु क के राजनी तक भु व के प रणाम व प अलबानी म वदे शी श द
का बाहु य और नजी व प का अभाव है ।
10. भारत ईरानी (आय) उप प रवार- इसके दो वग कए जाते ह -
(क) भारतीय उप शाखा और (ख) ईरानी उप शाखा ।
(क) भारतीय उप शाखा - इसको भी तीन वग म वभ त कया गया है -
(1) ाचीन भारतीय आय भाषा - ार भ से 500 ई.पू. तक
(2) म यकाल न भारतीय आयभाषा – ई.पू. 501 से 1000 ई. तक
320
(3) आधु नक भारतीय आय भाषा 1000 ई. से आज तक ।
ाचीन भारतीय आय भाषा न तो एक समय क भाषा है और न एक े क । यह
पूरे भारत क , ाचीन काल क भाषा है । इसका ाचीनतम प वेद म मलता है, और उसी
काल म जन साधारण के बीच यव त होने वाल भाषा कालांतर म लौ कक सं कृ त के प म
सा हि यक भाषा का थान हण करती है । अत: इसके दो प ह (1) वै दक सं कृ त एवं (2)
लौ कक सं कृ त । वै दक भाषा संसार क भाषाओं म उपल ध सवा धक ाचीन प म व यात
है । इसम भी ऋ वेद के दूसरे से नवम म डल म इसका ाचीनतम प सु र त है । इस भाषा
का परवत प ा मण थ
ं एवं उप नषद , आर यक आ द थ
ं म मलता है । इसका काल
ई.पू. 2500 से ई.पू. 1000 तक माना जाता है । इस समय तक आय क स ता म यदे श म
था पत हो चु क थी । लौ कक सं कृ त का काल यध प ई.पू. 1000 से ई.पू. 500 तक माना
जाता है क तु इसका चार सार योग आज तक होता रहा है । भाव के धरातल पर
म यकाल न और आधु नक आय भाषाएं उ ले य ह पा ण न ने इस भाषा का सं कार कया
उनक अ टा यायी आज भी भाषा व ान का मू ल ोत है । पंतज ल का 'महाभा य' भी इस
दशा म एक मह वपूण ं है । ' नघ टु ' जैसा कोष संसार क अ य भाषाओं म अनुले ख है ।
थ
सा ह य के े म वा मी क यास का लदास, हाल, माघ एवं हष आ द अनेक रचनाकार के
थ
ं सं कृ त को संसार क अ य भाषाओं से ऊँचा थान दलाते ह ।
लौ कक सं कृ त के समानांतर लोक क भाषा अपना व प ा त करती रह , िजसे
' ाकृ त' कहा गया । ाकृ त के तीन तर तीन काल के प रचायक ह । थम ाकृ त अथात
'पा ल' क अव ध ईपू 501 से थम शता द के ार भ तक, थम शता द से 501 ई. तक
क अव ध वतीय ाकृ त अ त शु ' ाकृ त' तथा 501 ई.से. व 1000 ई. तक तृतीय ाकृ त
अथात ् 'अप ंश' का काल वीकार कया जाता है । ई. सन 1000 से आधु नक भारतीय
आयभाषाएं अलग-अलग े म भा षक व प हण करती है । इनम मु ख ह ह द , बंगला
उ डया अस मया, मराठ . गुजराती, आ द । वतं ता ाि त के प चात ् ह द को भारत क
राजभाषा घो षत कया गया । सा हि यक स प नता और बहु चार क ि ट से ह द के
प चात ् बंगला एवं मराठ अ य धक स प न भाषाएं है ।
व तु त: पूरे भारत क भाषाओं को ह नह ,ं अनेक वदे शी भाषाओं को भी सं कृ त ने
बहु त गहरे तक भा वत कया और आज आधु नक भारतीय आय भाषाओं के नाम से अ भ हत
क जानी वाल भाषाओं क व नयां, संरचना णाल एवं श द संपदा आ द सं कृ त क ह दे न
ह । हां मानव क बदलती वृि त एवं बदलती प रि थ त के अनु प ह आज क भाषाओं का
व प बदला, सा ह य के धरातल पर ग या मक वधाओं ने भी ज म लया । सरल करण क
वृ त तो पा ल काल से ह ार भ हु ई, जो आज और आगे बढ़ । फल व प ह द आ द
आधु नक भाषाओं (भा.आ.भा.) का याकरण भी बदला । क तु त सम (सं कृ त श द) श दावल
क बहु लता आज क ह द क ाणधारा है । यह ि थ त बंगला, मराठ और गुजराती क भी
है । वड़ प रवार क भाषाएं वशेषकर मलयालम, तेलगु और क नड क भी यह ि थ त है ।
सं कृ त व नयां आधु नक भारतीय आय भाषाओं म कु छ लु त हु ई यथा ऋ, लू, द, - म से
321
थम तीन तो पा लकाल म ह लु पा हु ई शेष आगे चलकर सच तो यह है क वै दक और
लौ कक सं कृ त व नय म पा लकाल म ं तक पहु ंचते- पहु ंचते पूणता
ार भ प रवतन अप श
ा त करता है जो स करता है क आधु नक भारतीय आय भाषाएं सं कृ त का ह
वकासा मक व प ह । अं ेजी आ द क भां त आज आभा. आय भाषाऐं शल ट से अि ल ट,
योगा मकता से अयोगा मकता क ओर उज़ख ह । सं कृ त वा य रचना म पद थान मु ख
था, क तु आज यह गौण हो गया । कारक का वकास भी हु आ । वचन और लंग तीन के
थान पर दो रह गए केवल गुजराती, मराठ म तीन लंग ह दे शज श द के भी नए वकास
हु ए । अनेक वदे शी श द भी आभा. आय भाषाओं क श दावल के अंग बने िजनम अं ेजी,
अरबी, त मल, तेलगु, मलयालम तथा फारसी के भी श द ह । व व यंजन का लोप कर बने
श द को त व क सं ा द गई कम > क म > काम > धम > ध म > धाम ।
(ख) ईरानी शाखा - कहा जाता है क ईरानी भाषा का सा ह य अ यंत ाचीन है,
क तु उन ाचीनतम थ
ं का कोई पता ठकाना नह ं । फल व प इस उप प रवार क भाषाओं
का मब इ तहास तु त कर पाना क ठन है । इसका कारण है सक दर ई.पू. 323 एवं
अरब वजेताओं (ई. सन ् 651) का आ मण आज वहां का ाचीनतम सा ह य फारसी धम थ
ं
'अवे ता' ह है । इसक भाषा चवेद से मलती-जु लती है । इसके अ त र त हरमानी बादशाह
के छठ सद ईपू के कु छ पुराने शलालेख भी मलते ह । इरानी भाषाओं क दो शाखाएं पूव
और पि चमी मा य है । पूव शाखा क एक भाषा अवे ता है । अवे ता का अथ है शा ।
अवे ता भाषा का वकास कस प म आगे हु आ, इसक जानकार नह ं मल पाती । पूव शाखा
क दूसर भाषा सोि दयन है इसका पता 18 वीं सद म लगा । इस भाषा म ईसाई और बौ
धम क कु छ पु तक मलती ह । यह सि दयाना क भाषा थी कभी िजसका व तार मंचू रया
तक था । पामीरो आ द बो लय को इसी क बेट माना जाता है । का मीर ह दूकु श पइंत एवं
पामीर को तराई म बोल जाती है इसक स बोल गलचा है ाचीन ईरान के पि चमी े म
दो भाषाएं मी डयन एवं ाचीन फारसी यु त होती थी मी डयन भाषा के स ब ध म वशेष
जानकार नह ं मल पाती । वैसे यह अनुमान कया जाता है क यह पि चमी ईरान म च लत
थी । ाचीन ईरान के पि चमी ह से को फारस कहा जाता था । इस े क भाषा ाचीन
फारसी थी । क तपय व वान इसे अवे ता से वक सत मानते ह अवे ता का त न ध सा ह य
फारसीय का धम थ
ं अवे ता है िजसके रच यता जरथु ट ह । यह वैि या रा य क राजभाषा
थी । इस लए फारसी को अवे ता से वक सत मानना उ चत नह ं हो यह तो अवे ता से
वक सत हु ई अथवा कु छ काल बाद ह इसका वकास हु आ । डे रयस थम आ द के ई.पू.
512-485 के खु दाई क ला र अ भलेख म इसका व प सु र त है । इसका अलग सा ह य
नह ं मलता । यध प यह अवे ता और सं कृ त के अ य धक नकट ह ।
म यमकाल न ईरानी फारसी का ह वक सत प है । इसे पहलवी भी कहा जाता है ।
इसका ाचीनतम प तीसर सद ईपू के कु छ स क म मलता है पहलवी का सा ह य तीसर
सद से नय मत प म मलने लगता है । पहलवी के दो प (1) हु वारे ष, एवं (2) पांजद थे
। हु वारे ष म सेमे टक श द क बहु लता थी । याकरण पर सेमे टक का भाव है । सेमे टक
से भा वत इसक ल प अवै ा नक है । अवे ता के कु छ अनुकद एवं पार सय का धा मक
322
सा ह य इस भाषा क सा हि यक न ध है । पहलवी का दूसरा प पाजेद या फारसी है यह
सेमे टक भाव से मु त ह इसका चार- सार पूव दे श म था । भारतीय पार सय क भाषा
यह ह. िजसका भाव गुजराती पर पड़ा है ।
आधु नक फारसी म ह द क ह भां त वयोगा मकता के ल ण दखाई दे ते ह इसका
आरि भक थ
ं महाक व फरदौसी (840 से 1020 ई.) का शाहनामा नामक रा य
महाका या मक ं है । यह म यकाल न क अपे ा माधुय यु त , एवं सरस ह । इसक भाषा
थ
म अरबी के श द कम ह क तु परवत फारसी अरबी के भाव से बो झल ह उठ है । क तु
रा े , अपनी सं कृ त तथा भाषा
म ेम से े रत आंदोलन के प रणाम व प अरबी श द को
नकाल बाहर कर अ यतन फारसी अपने मू ल वै श य को ा त कर एक स प न भाषा बन
गई हां, ांसीसी श द क घुसपैठ इधर कु छ हु ई है, िजसका कारण तेल क प नय का भु व है
। आधु नक फारसी क बो लय के नधारण म व वान एकमत नह ं । इसका कारण है, यह न
प ट हो पाना क कसका वकास अवे ता से हु आ और कसका फारसी से । टकर क मा यता
है क आधु नक फारसी एवं पहलवी भी सं द ध ह उनके अनुसार अवे ता और ाचीन फारसी के
बाद सभी ईरानी भाषाएं एवं बो लयां त युगीन बो लय से वक सत हु ई ।
असे टक (काकेशस के एक छोटे से दे श म यु त ), कु द या कु दश, बलोची
( बलो च तान) इसक मु ख बो लयां है असे टक क व नयां जािजयन से भा वत है । पास-
पड़ोस क अ य अनाय भाषाओं से भी यह भा वत है । कु दश आधु नक फारसी के समीप है ।
इसक सव मु ख वशेषता इसके छोटे श द प ह । बलोची भी आधु नक फारसी के नकट ह
। यह अभी तक कु छ संयोगा मक है । सा ह य के नाम पर कु छ ाम कथाऐं ह उपल ध है ।
संघष वण, पश म प रवतन हो गए । प तो भारतीय आयभाषा क व या मका एंव
वा या मक संरचना तथा बलाघात से भा वत है आज यह भारतीय एवं ईरानी क म यवत
भाषा सी बन गई है । 16 वीं सद के बाद से प त म कु छ सा ह य रचना हु ई । इसम लोक
सा ह य भी काफ है ।
323
6. पुन :सृिजत - फर से बनाई गई
7. बहु लता अ धकता
8. ल त ाय - खोने के कर ब
9. टे ढ़ खीर - मु ि कल के अथ म यु त मु हावरा
10. वच व - भु व
11. नैक य - समीपता
12. प धर - प लेने वाले, समथक
13. वैभा षक - कसी भाषा क उपभाषा म यु त श द
14. क ला र - छोट -छोट क ल ठोककर काठ क प ी पर अं कत अ र
15. बोध ग य - समझ म आने लायक
16.5 सारांश
जनसं या, यापकता, सा ह य, स यता, सं कृ त, वै ा नक ग त, राजनी तक भु व
एवं भाषा - वै ा नक उपलि यय आ द सभी ि टय से भारोपीय प रवार संसार क भाषाओं म
सव च थान का अ धकार ठहरता है । यह सच है क मू ल भारोपीय भाषा या थी? उसका
मू ल थान कहां था? आ द सभी न अनु त रत है क तु पुनः नमाण भाषा-शा के स ांत
के अनुसार न मत मू ल भारोपीय भाषा को पूणतया खा रज नह ं कया जा सकता । साथ ह
भाषा के मू ल- थान सं ब धी न के उ तर क खोज म समय और म क बबाद भी यथ है
। इसी कार इस भाषा प रवार के 'नाम' क सम या को भी ववाद म घसीटना अनाव यक है।
सबसे मह वपूण बात यह है क इस भाषा-प रवार क भाषाएं व व के कोने-कोने म
फैल ह, जो इन भाषाओं के शि त साम य, सीखने म सहजता, सरलता, सा हि यक वच व क
कहानी कहती ह । स यता और सां कृ तक समृ ह इन भाषाओं के सार-फैलाव के कारक है
। आज का मानव समु दाय वह चाहे िजस दे श- े का नवासी हो इस भाषा प रवार क स यता
और सं कृ त का अनुगमन कर वयं अपनी स यता और सं कृ त को समृ करने क आकां ा
से े रत है ।
भा षक धरातल पर व व क अनेक भाषाओं को इस भाषा प रवार क भाषाओं ने
भा वत तो कया ह है, साथ ह अ य भाषा प रवार को यह भाषा प रवार भाषा- ववेचन के
स ांत के अ त र त अपनी भाषाओं को समृ बनाने क ेरणा भी दे ता है । इस कार इस
प रवार क भाषाएं अ य भाषाओं के वकास, उनक संर ा म सहायक स हो रह है । ठ क
इसी तरह ये अ य भाषाओं के सा ह यक वकास का मागदशक बन रह है ।
16.8 अ यासाथ न
(क) द घ तर न
1. भारोपीय भाषा प रवार के मह व, े व तार तथा नामकरण पर काश डा लए ।
324
2. भारोपीय भाषा प रवार के वग करण पर वचार करते हु ए कसी एक उप वग क दो
भाषाओं का प रचय द िजए और वशेषताएं बताइए ।
3. भारत ईरानी प रवार क भाषाओं का तु लना मक ववेचन क िजए ।
4. भारोपीय भाषा प रवार म भारतीय आय शाखा का सा हि यक और भा षक मह व
रे खां कत क िजए ।
5. भारोपीय भाषा प रवार क पुनसृिजत भाषा के संरचना मक वै श ठय पर काश डा लए।
(ख) लघूतर न
1. इता लक उप प रवार क भाषाओं क वशेषताएं सं ेप म ल खए ।
2. ह ती उप प रवार क भाषाओं क जानकार कैसे मल ? इस उप प रवार क चार
भा षक वशेषताएं ल खए ।
3. कतु म शाखा से या ता पय है इसम संसार क कौन-कौन सी भाषाएं आती है ।
4. भारोपीय भाषाओं का े नधा रत क िजए ।
5. तोखार उप प रवार क भाषाओं का पता कब और कैसे लगा?
(ग) र त थान को पूण क िजए -
1. आरमी नया क भाषा........................................... है ।
2. लोवाक................................................ भाषा का वैभा षक प माना जाता है ।
3. भारोपीय भाषा म....................................... क बहु लता थी ।
4. ......................................... समु दाय क ाचीनतम भाषा ीक है ।
5. अं ेजी...................................... उप प रवार क भाषा है ।
(घ) सह /गलत चि नत क िजए-
1. मनु य क पहल खोज भाषा है । सह /गलत
2. मू ल भारोपीय भाषा अथवा भारत ह ती क ल खत साम ी उपलख नह ं है ।
सह /गलत
3. भारोपीय प रवार म भाषा वै ा नक ि ट से केि टक सबसे सु प ट और सरल भाषा
है।
सह /गलत
4. इता लक उप प रवार क सव स भाषा ले टन है । सह /गलत
5. चेखव, गोक और टा सटॉय ने सी भाषा म लखा । सह /गलत
16.7 संदभ ंथ
1. डा. राजम ण शमा; आधु नक भाषा व ान, वाणी काशन, 21 ए द रयागंज नई
द ल - 110002
2. वह - ह द भाषा इ तहास और व प वह ं
3. RACH Taraporewala Jahangir Soralegi – Elemente ed. of Science of
language – Calcutta University, Calcutta.
325
इकाई-17 ाचीन एवं म यकाल न भारतीय आय भाषाएं
इकाई क परे खा
17.1 उ े य
17.2 तावना
17.3 ाचीन एवं म यकाल न भारतीय आय भाषाएं
17.3.1 ाचीन भारतीय भाषाएं
(क) वै दक सं कृ त व लौ कक सं कृ त
17.3.2 म यकाल न भारतीय भाषाएं
(क) पा ल. प रचय एवं याकरणा मक वशेषताएं
(ख) ाकृ त. प रचय एवं याकरणा मक वशेषताएं
(ग) अप श
ं प रचय एवं याकरणा मक वशेषताएं
17.4 वचार संदभाश दावल
17.5 सारांश
17.6 अ यासाथ न
17.7 संदभ थ
ं
17.1 उ े य
तु त इकाई के अ ययन के प चात ् आप :-
व व क भाषाओं म ाचीन भारतीय आय भाषा (वै दक एवं लौ कक सं कृ त) के मह व
का तपादन कर सकगे ।
ाचीन एवं म यकाल न भारतीय आय भाषाओं के याकरणा मक वै श य का रे खांकन
कर सकगे ।
ाचीन एवं म यकाल न भारतीय आयभाषाओं के सा हि यक एवं भाषा वै ा नक अवदान
का न पण कर सकगे ।
17.2 तावना
''आय'' श द जा त सू चक माना जाता है । कालांतर म यह धम से भी संप ृ त हु आ
तथा स यता सं कृ त से भी जु डा । आय सं कृ त, आय स यता से भी जु ड़ी । व तु त: आय
एक संघषशील अपराजेय जा त रह , िजसने अपनी स ता, भाषा, सं कृ त और स यता का
वकास कर उसे व व के कोने-कोने म फैलाया । ाचीनतम भारतीय आय-भाषा, स यता और
सं कृ त व व क सव तम और ाचीन न ध है जो उसके सा ह य म सु र त है । सं कृ त का
वकास और समृ आय क दे न है । सं कृ त म आय जा त के गौरव का आ दम थ
ं है ।
सं कृ त के दो प ह (1) वै दक (2) लौ कक सं कृ त । वै दक सं कृ त का व प वेद म
सु र त है । वेद म ऋ वेद के वतीय से आठव म डल तक क भाषा का काल ईपू 5000
वष आज मा य हो चु का है और चार वेद एक तरफ सा ह य ह, दूसर तरफ आ या म दशन
326
तथा चंतन के न कष । ऐसे न कष जो व व म अतुलनीय ह । अ यतन भाषा वै ा नक
अ ययन से स हो चु का है क ीक, लै टन, जमन, अवे ता आ द यूरोपीय भाषाएँ सं कृ त क
परवत और उससे भा वत है । आज तो भारोपीय भाषा क पुनसृिजत भाषा भी अमा य हो
गयी है । सं कृ त उसके समानांतर जा पहु ँ ची है ।
सं कृ त काल या य कह 'चै दक सं कृ त' के सा हि यक भाषा का थान हण करते ह
जन-सामा य म यु त भाषा समानांतर प से वक सत होकर कभी लौ कक सं कृ त, कभी
पा ल, कभी ाकृ त और कभी अप श
ं के प म पूव सा हि यक भाषा को अपद थ कर
सा हि यक भाषा के प म मा य हु ई । यह भी कहा जा सकता है क ाचीन भारतीय आय
भाषा के जहाँ दो प (1) वै दक सं कृ त एंव (2) लौ कक सं कृ त थे, वह ं म यकाल न आय
भाषा के तीन प (1) पा ल भाषा (2) ाकृ त भाषा एवं (3) अप ंश ह । सच यह है क ये
पाँच प आय भाषा जा त के वकास के पाँच सोपान ह । छठा सोपान है, आधु नक आय
भाषाएँ । व तु त: भाषा-वै ा नक स ांत के अनु प भी एक ह भाषा हमेशा-हमेशा अपने मू ल
प म व यमान नह ं रह पाती । उसम हमेशा सु षप
ु ा प म प रवतन क या स य रहती
है; और एक लंबे काल बाद भाषा का व प पूणतया बदल जाता है । इस बदलाव के कारक ह
- प रि थ त, े प रवतन, अ य भाषाओं से संपक, राजनी तक भु ता और जलवायु । सं कृ त
(वै दक या लौ कक) के ं अपने-अपने
थ े म ''आ द'' थ
ं माने गए ह । सं कृ त म याकरण
ं भी लखे गए, जो आज इस
थ े म अपने मानद ड के लए व यात और तु लना मक भाषा
व ान को ज म दे ने वाले भी है ।
''पा ल'' एक भाषा ह नह ं एक आदोलन है । यह आदोलन जहाँ सामािजक संरचना को
बदल डालने का यास ह, वह ं यह जनता से सपूत। होकर जनता क बोल को सा हि यक-भाषा
के प म संप ृ त करने का यास भी है । पहल बार, इस भाषा के वारा धमगत ढ़य ,
सामंतवाद या सा ा यवाद वृि त पर हार हु आ ।
' ाकृ त ' क उपि थ त तो सं कृ त काल से ह मानी जाती है, यहाँ तक क लोक-भाषा
पा ल ाकृ त क थम अव था है । प ट है क ' ाकृ त' या वतीय ाकृ त भी जन-बोल का
प होगी । ाकृ त के ढे र सारे उदाहरण शलालेख म मलते ह । ाकृ त, ीक, जमन, अवे ता
के समानांतर आय क भाषा के प म ति ठत हु ई । व तु त: इसने भी, सं कृ त क ह भाँ त
वदे शी भाषाओं को भा वत कया । इस अव था तक भारतीय आय भाषाओं पर वदे शी भाषा
का भाव नह ं दखायी दे ता है । ह , अप ंश म कु छ इतर प रवार क भाषाओं के 'श द मल
जाते ह । य द पा ल बौ धम को आधार बनाकर पुि पत -प ल वत हु ई तो अप श
ं को जैन
धमावलं बय का करावलंब मला और सं कृ त के प चात ् अप श
ं ह ऐसी भाषा है, िजसम
बंधा मक रचनाओं ने व प पाया । उ च वग के वपर त सामा य वग क पीड़ा, यथा,
सं ास के ान को इस भाषा ने ल य बनाया । कथानक और का या मक ढ़य को नया प
दया । का य- वधाओं का व तार कया । पा ल से ारं भ सरल करण क वृि त पूण हु ई और
आधु नक भारतीय भाषाओं का ज म हु आ ।
327
भारतीय आय भाषा के उपयु त चरण के अ ययन से जहाँ धम, जा त, समाज एंव
मानव वकास समाज स ब धी जानका रयाँ मलती ह, वह ं यह बात भी प ट हो जाती है क
भाषा धम और जा त से जु ड़े बना वक सत नह ं हो पाती । यह भी पता चलता है क भाषा
का योग धम चार के लए एक औजार के प म होता रहा है और यह भी य हो जाता
है क मनु य वृि त सरल करण क है वह अपनी इस वृि त के कारण भाषा म बदलाव करता
रहता है । तीसर बात! यह भारत और वशेषकर भारतीय आय भाषा का दुभा य है क हर
काल म इसके अलग नाम दए गए, जब क वै दक सं कृ त के सरल करण से भाषा-बदलाव क
वृि त ारं भ होती है । व व क अ य भाषाओं म ाचीन, म यकाल न और गध नक वभाजन
ह कए गए ह । यह वृि त ारं भ से आयन सं कृ त म लोकतां क यव था के पोषण का
भाव है ।
प टत: ाचीन और म यकाल न भारतीय आय भाषाएँ, वशेषकर सं कृ त (दोन प)
और ाकृ त व व क भाषाओं के दशा- नदशक ह । टश उप नवेशवाद के कारण भारतीय
आय भाषा का मह व नकारा गया, क तु अब भाषा वै ा नक खोज और स ा त ने यह
मा णत कर दया क वै दक सं कृ त या तो मू ल भारोपीय भाषा है, अथवा उसके समक है ।
यह सभी त य मा णत ह गे, तु त ववेचन म ।
328
एक लेखक क रचना न होकर, व भ न काल , व भ न थान तथा व भ न ऋ षय के सू त
के सं ह ह ।.
जहाँ तक थान क बात है, छ वेद के ाचीनतम प क भाषा स त संधु या पंजाब
के आसपास क है । कु , पांचाल तक पहु ँ चे आय क भाषा के माण सामवेद, यजु वद और
अथववेद म सु र त है । अ तु इस काल क भाषा का के ब दु पंजाब े क भाषा रह ं ।
इसके प चात ् आय आगे बढ़े और अंत म म य दे श उनका के हु आ । यहाँ के थानीय त व
भी आय भाषा म समा हत हु ए और संभवत: इसी काल म ाहमण , उप नषद क रचना हु ई ।
क तपय अपवाद के अलावा इन थ
ं क भाषा वेद के बाद के भाषा- व प का माण है ।
इनम ग य भाग भी है, िजसक भाषा बोलचाल के बहु त नकट है । यहाँ तक पहु ँ चते-पहु ँ चते
भा षक ज टलता और पा ध य कम हु आ । यह अलग बात है क यह भाषा, पूववत वेद-भाषा
िजतनी याकरण स मत नह ं थी । यह ि थ त ई.पू. 2500 के आसपास क है । ई.पू. 1000
के आसपास भाषा का और वक सत प सू म मलता है
प टत: चार वेद के काल तक क भाषा वै दक सं कृ त भाषा तथा ाहमण , उप नषद
आ द क भाषा लौ कक सं कृ त भाषा है । वै दक सं कृ त क अपे ा लौ कक सं कृ त क भाषा
म याकर णक नयम क अपे ा, बोलचाल क धानता दखायी दे ती है ।
म य दे श तक आय के वकास क ि थ त, उनम भा षक व भ नता भी उजागर करती
है । यह वै भ च दु ह बनी वै दक सं हताओं को सामा य जन के लए बोधग य बनाने के
उ े य से बने पद-पाठ, पद-पाठ से सं हता बनाने के नयम और इन नयम के नदशन के
लए र चत ा तशा य म दखायी पड़ती है । अथात इसी या क प रण त है, लौ कक
सं कृ त का ज म, जो वै दक सं कृ त के समानांतर होता है, िजसम लोक मु खता है, प
वै व य है और कालांतर म वै दक सं कृ त को अपद थ कर लौ कक सं कृ त भाषा बन जाती है।
भाषा के धरातल पर याकरण क अशु ता, अ यव था को पा ण न ने ल य कया ।
ईपू पाँचवीं शती म पा ण न ने अपने याकरण म उद य (पंजाब) म यु त सं कृ त के प से
अपे ाकृ त अ धक प र नि ठत एवं पं डत म मा य प को नयमब कया, जो लौ कक या
लै सकल सं कृ त का आदश बना । पा ण न के अ टा यायी का भाव आज तक क सं कृ त
पर दे खा जा सकता है । यह अलग बात है क हर युग के बोलचाल क भाषा का भाव सं कृ त
म नरं तर समा हत होता रहा ।
वै दक सं कृ त, भाषा और सा ह य, व ान, आ या म-दशन आ द धरातल पर व व
क भाषाओं का मानद ड तो रह ं है, सं कृ त तो एक कदम और आगे बढ़कर नेत ृ व क बागडोर
संभालती है । रामायण (ई.पू. 4000 वष) महाभारत, पुराण , का लदास, माघ, ी हष मृ त
अनेक क वय क भाषा और उनका सा ह य पुि पत-प ल वत होता रहा । यह प लवन पा ल,
ाकृ त और अप ंश काल (म यकाल न भारतीय आय भाषा काल) म भी नह ं का ।
पा ण न ने अ टा यायी के अ त र त ' श ासू , 'गणपाठ', 'धातु पाठ' और ' लंगानुशासन'
आ द पु तक भी लखीं । पतंज ल ने 'अ टा यायी' को आधार बनाकर 'महाभा य' लखा ।
329
पा ण न के ह सहा यायी थे, वर च िज ह ने अनेक याकरण और का य थ
ं लखे । या क
ने वै दक श दकोष के प म नघ टु न त क रचना क । प टत: वै दक सं कृ त और
लौ कक सं कृ त हर ि ट से भारोपीय प रवार तथा भारत ईरानी प रवार क ाचीनतम और
े ठतम भाषा है । भारत इसका मू ल थान था । ह , आज के भारत और उस समय ई.पू.
5000 वष पूव के भारत क सीमाओं म अंतर था, उस समय इसका नाम आयावत था, जो
कालांतर म ''भारत'' कहलाया । वै दक सं कृ त अवे ता, ीक, लै टन, जमन आ द अ य ईरानी
या भारोपीय प रवार क भाषाओं को कस धरातल पर भा वत करती ह, इसका संकेत
तावना म दया जा चु का है । व तु त: आय इन भाषा दे श म एका धकार कर गए और
अपनी भाषा- वै दक सं कृ त का भाव उनक भाषा पर छोड़ आए ।
कु छ भाषा वद का मानना है क अं ेरन के उप नवेश के कारण, उस काल म यूरोपीय
व वान वारा, वशेषकर अं ेज वारा कए गए भा षक-अ ययन म वै दक सं कृ त को अपनी
भाषाओं क परवत स करने के यास हु ए; जब क सच यह है क वै दक सं कृ त के थ
ं क
उपलअता से भारोपीय प रवार क संक पना सामने आई; और भाषाओं क पर पर स ब ता
स हु ई । परवत भाषा-वै ा नक अ ययन से भी यह स हो गया क प रकि पत मू ल
भारोपीय भाषा (Proto speach) का पूण आधार है - वै दक सं कृ त । भारोपीय मूल भाषाओं
म बदलाव, छोड़ने - हण करने क या यूरोपीय भाषाओं म मलती है, न क वै दक सं कृ त
म । स य तो यह है क वै दक सं कृ त क अ धसं य व नयाँ प रकि पत भाषा म थान पाती
ह, कु छे क ह ीक, लै टन क ह, िजनका समावेश जानबूझकर कया गया है ।
सं कृ त याकरण, वशेषकर पा ण न के अ टा यायी के संदभ म लूमफ ड ने प ट
कहा है क ''भारोपीय भाषाओं के तु लना मक याकरण क शु आत पा ण न के याकरण से तब
होती है, जब यूरोप को इस ं क जानकार होती है । '' इसी
थ ं क पृ ठ सं या 270 पर
थ
वे यह भी कहते ह क भारोपीय भाषाओं म पा ण न के याकरण म ह भाषाओं का पूण
व लेषण है । यध प ीक और ले टन म भी याकरण थ
ं लखे गए, कं तु इस ि ट से वे
अपूण और अ यवि थत ह । यह सवमा य त य है क भाषा का याकरण तभी पूण और
यि थत प म लखा जा सकता है, जब भाषा पूणतया वक सत और हर ि ट से संप न हो
चु क होती है । तु मफ ड का उपयु त। मंत य ''पा ण न'' के संसार का पहला और सफल
वैयाकरण स करता है और उनक रचना को भाषा वै ा नक धरातल पर पहला और े ठतम
तु लना मक थ
ं वीकार करता है । यह मत ह सं कृ त भाषा-वै दक और लौ कक क ाचीनता
और मह ता का तपादक है ।
वशेषताएँ
(अ) व नयाँ
(1) वर:
मू ल वर या समाना र. अ आ, इ ई, उ ऊ, ऋ, ऋ, लृ, ल,
संयु त वर या सं या र गुण वर - ए, ओ वृ वर - ऐ, औ
330
(क) वर का वकास :- अ = व वर । भारोपीय अँ, हू व ओ के थान पर । यह मू ल
ह व एवं द घ अ यंजन न ् (n), म ् (m) का और 'अन'् और 'अम'् का भी
थानाप न है । आ- द घ मू ल वर । द घ अ ए, ओ का थानाप न । इ न ् हू व
मू ल वर । ए, य क कमजोर ेणी का भी संकेतक ई-द घ मू ल वर । 'य' क न न
ेणी इसम शा मल है । उ = ह व मू ल वर । ओ y क न न ेणी का समावेश ।
अ = मू ल वर । औ और व क न न ेणी का त न ध । ऋ = र को ह वर प
। कृ त > कर । ऋ = अर त श द के पुि लंग और ी लंग के वतीया और श ट
बहु वचन म ा त होता है । यथा - पतृणामू । लृ = ल ् का वर प । यथा - तृप ,
क प । ए = आ + इ गुण सं ध के कारण ए होता है । , ध,् . का पूववत ए =
अज से । औ = आ + उ गुण सं ध के कारण । ओ = मूल अज से य, व से पूववत
के कारण । ऐ = आ + इ से वृ सं ध के कारण । औ = आ + उ, से वृ सं ध के
कारण ।
(ख) वराघात :- वै दक सं कृ त क यह मह वपूण वशेषता है । ारं भ म वै दक सं कृ त म
वराघात क दो ह ि थ तयाँ थी - उदा त और व रत । आगे चलकर अनुपात का भी
वकास हु आ - उदा त, अनुदा त और व रत । धान वरयु त वर वन क
उदा त, वरह न अ र क अनुदा त तथा उदा त वर क अ यव हत परवत
न नगामी वूर व न अ र एवं उदा त म उठकर वर म डु लने वाले अ र क
व रत सं ा है । वै दक थ
ं को छं दो बना वराघात पढ़ना, अशु माना जाता है ।
वराघात से श द के अथ भी बदलते है । यथा - इ श :ु = िजसका श ु इ है
(बहु ी ह), इ श ु = इ का श ु (त पु ष) । वराघात प रवतन से कभी-कभी
लंग प रवतन भी होता है ।
(ग) अप ु त :- वर एवं अ र के पर पर प रवतन के कारण पद क कृ त अथवा यय
या वभि त म होने वाले प वतन को ह अप ु त कहा जाता है । इसके पाँच भेद है -
(1) वर यु त कृ त वर । यथा- आ तो म (म ा त करता हू,ँ आजु म: (हम ा त
करते है) । (2) वर यु त कृ त सं सारण - ज ाह (मैन पकड़ा), ज हु: (उ होने
पकडा) । (3) ह वीभू त म म आ का लोप । यथा - हि त (मारता है), ह नि त
(मारते है), गाथ (गान), गीत (गाया हु आ) । (4) ह वी भू त म म ऐ > ई । (5)
गायीते (गाता है) समास म व व क अव था म तथा सं ोधन म ई, ऊ, ईर, ऊर का
प रवतन इ उ ऋ म हो जाता है ।
(घ) वर भि त :- ऋक् सं हता म छं द क लय को ठ क करने के लए 'र' से संयु त
यंजन के बीच अ त द व रबर व न. का सि नवेश आव यक होता है । इस वर -
सि नवेश को ह वर भि त कहते ह - इ > इ दुअर ।
(2) यंजन
331
(क) क वग (कं य), च वग (ताल य), त वग (दै य), प वग (ओ य) के
अ त र त मू ध य ( , , , ढ़, ण, ल (!) तथा ल (lh), अध वर (य, र,
ल, व), उ म वर (श,् ष,् स),
् महा ाण (ह), आनुना सक (m), अघोष
वसृजनीय - ह (h), अघोष िज वामूल य - ह (h), अघोष उपआनीय - (h)
ाचीन भारतीय आय भाषा क यंजन व नयाँ है ।
(ख) कं य पश व नयाँ भारोपीय भाषा क प च कं य (क आ द) क तनध
है।
(ग) पा चा य व वान ् ट वग का सि नवेश वड़ भाषा प रवार के भाव का
प रणाम मानते ह, क तु सं हता म अr य यंजन केवल पद के म य अथवा
अंत म ह आए है । व तु त: ये मूध य ष ् (मू ल स,् श,् ज,् ) अथवा 'र्' से
अनुग मत दं य यंजन के फल व प कट हु ए - दु टर- अजेय (= दु तर),
वंि ट (= वष- त) ।
(घ) अथ वर - 'र्' भारोपीय 'र्' तथा 'ल'् के थान म यु त हु आ है ।
(ङ) ऊ म यंजन अ प ाण ह । समीकरण म ये एक दूसरे का थान ले लेते है ।
(च) ताल य श पश - संघष का और मू ध य 'ष'् मू ल दं य ऊ म का तनध
है।
(छ) य,् र्, व वर और यंजन के बीच आने के कारण अंत थ कहलाते ह ।
(ज) महा ाण व न 'हू मूल कं य ताल य महा ाण के उ तराध म दं य 'ध' और
ओ ठय 'म' का थानाप न है - गाध > गाह, म > ह ।
(ब) प रचना
(क) श द रचना - (1) ा. भा. आ. भाषा म दो कार के श द - अज त ( वरांत)
एंव हलंत ( यंजनांत) थे । अजंत श द म द व तथा द घ 'अ, इ, उ, ऋ' से
अंत होने वाले श द आते ह । 'हलंत श द अं य कृ त अथवा यांत यंजन
के अनुसार कई कार के ह । (2) लंग तीन है - पुि लंग, ी लंग एवं
ं ु क लंग । (3) वचन तीन ह - एक,
नपु स व और बहु वचन । (4) आठ
कारक ह - कता, कम, करण, सं दान, अपादान, संबध
ं , अ धकरण तथा
सं ोधन । येक श द के आठ कारक , तीन वचन तथा तीन लंग के प
सुप'् यय जोड़ने से बनते ह । (5) कता तथा कम कारक के एकवचन एंव
ववचन म तथा कता के बहु वचन म यंज संत प रचना म एक ा तप दक
का साधारण प रहता है, अ य इ वी भू त प मलता है । यथा - कता-
राजा, सजानी, राजानः, कम- राजानम रानौ, रा ः । सं कृ त वैयाकरण ने इन
पॉच प को 'सवनाम थान, दया है, आधु नक भाषा शा ी इसे द वीभू त
प मानते है । (क) अ त ह वीभू त (व) सामा य वीभूत (6) वै दक, यह
तक क लौ कक सं कृ त म भी म य यंजनागम क वृि त स य है ।
332
यथा- फला न, आ या न (अं य इ के पूव ) । (7) ा. भा. आय भाषा म
उपसग और यय के संयोग से नए अथ का योतन होता है । (8) वशेषण
एवं सं यावाचक वशेषण के प भी सं ा क भाँ त सु प यय के संयोग से
बनते ह । (9) सवनाम म लंग तथा वचन भेद कमजोर है । (10) वै दक के
सवनाम प सं कृ त म बदल जाते ह - यथा - अ मद - वे - कता ववचन
वा, सं. - आवाम ।
(ख) या प - रचना - (1) या पद के दो प - आ मने तथा पर मै पद
मलते ह । (2) काल तथा भाव के आधार पर इन पद के प म और
भ नता आती थी । काल सूचक छ: तथा भाव सू चक पाँच लकार ह । काल
सू चक लकार म लु एंव लृ का योग वै दक सं कृ त म नह ं मलता, यह
सं कृ त म ह मलता है । इसी कार वै दक काल म भाव - सू चक लकार लड
नदारद है । (3) धातु से पूव 'अ' के आगम का योग ल , लु तथा लृ म
होता है । न,् य, व, र से आरभ धातु ओं म यह 'आ' हो जाता है । इ, उ, ऋ
के साथ इसक वृ हो जाती है - ऐ छत (ईष ् 'चाहना' का असंप न भू त)
ाय: यह आगम लु त भी हो जाता है । ऐसा तीत होता है क नपात प
म यह एक् वंत आगम रहा है । (4) ल म क ह ं धातु ओं म ल , लु
स नत, षङ त याओं के कारण धातु के ारं भक अ र का व व हो
जाता है । इसक छ: ि थ तयॉ है । (5) वकरण क भ नता के अनुसार
धातु ओं को दस गण म बाँटा गया है । ये ह - वा दगण, सधा दगण
अदा दगण, जु हो या दगण दवा दगण वा दगण तु दा दगण तना दगण
या दगण, चु रा दगण । इनके भी दो भेद ह । इ ह यूह कहा गया । वकरण
यय केवल वतमान तथा इसके भाव एंव असंप न म युत। होते ह । अ य
काल म धातु से लंग यय सीधे जु ड़ जाते ह वै दक भाषा क धातु ओं के
अस प न स प न एवं सामा य प म कालगत भेद नह ,ं इनम केवल
या भेद है ।
वै दक म सं ध नयम का पालन नह ं है, कं तु वर एवं यंजन सं धय के
व प का आभास अव य मलता है । इसक अपे ा लौ कक सं कृ त म
सं धय क नयमब ता अ धक प रल त -होती ह । सं हताओं म दो समान
वर के मेल से सवण सं ध हु ई ह – इ +आ = इ ा । आरं भक वै दक
भाषा म ऋ का अर् होने के उदाहरण बहु त कम मलते है, जब क सं कृ त म
यह प रवतन अ नवाय है ।
समास रचना - वै दक सं कृ त म केवल समास चार थे - त पु ष, कमधारय,
बहु ी ह एवं व व । शेष दो समास लौ कक सं कृ त म बाद म वक सत
हु ए।
333
17.3.2 म यकाल न भारतीय आय भाषाएँ
334
''पा ल'' श द ''पा'' धातु म ' णच'् यय ' ल' के योग से बना है । ''पा'' धातु का अथ
है - र ा करना । अथ या वचन क र ा करती है, इस लए पा ल (''अं थानं पा त
र खतौ त त मा पा ल'') । इससे ''पा ल सा ह य'' के संकलन एवं ल पब कए जाने
के इ तहास पर काश पड़ता है । यह पा ल श द क सह णु प त और अथ है ।
(2) पा ल क मू ल बोल :- यु पि त क ह भी त यह भी ववादा पद है क ''पा ल'' कह ं
क कस बोल पर आधृत है । व तु त: ''मागधी'' तथा ''शौरसेनी'' क भां त ''पा ल''
श द न तो थान वाचक है और न ह जा त वाचक । लंका के बौ क मा यता है
क पा ल मगध क भाषा थी और बु के वचन हू बहू उसी प म इस भाषा म संगह त
है । मागधी, पा ल से पया त भ न है, साथ ह वह परव त काल क भाषा भी है ।
डॉ. ओ डनबग को क लंग म खारवेल के खंड ग र अ भलेख क भाषा पा ल के समान
तीत हु ई । उनके अनुसार क लंग से ह लंका म बौ धम फैला । खारवेल एक तो
वड़ भाषा-भाषी था, दूसरे उसक भाषा जनभाषा नह ं थी । इतना तो प ट है क
पा ल जनभाषा से वक सत भाषा है । इस लए ओ डनवग का मत वीकाय नह ं ।
अशोक के गरनार (गुजरात) अ भलेख क भाषा पा ल से बहु त समानता रखती है और
राजकुमार महे का ज म थान उ जैन रहने के कारण उनक मातृभाषा भी उ जैन
क बोल रह होगी । इसी म उ ह ने लंका म बौ धम का चार कया होगा, इसी म
वह पटक ले गया होगा । इन धारणाओं के प रपे य म वे टर गाड तथा ई कु हल
का मत है क पा ल उ जैन क बोल रह होगी । उ तर भारत क सम त जन
भाषाओं क तु लना करके आरओ. क और टे नकोनो ने वं य दे श क भाषा को
पा ल का आधार बताया है । इसका आधार है- पा ल म मलने वाले पैशाची के क तपय
ल ण । वे यह भी मानते है क वं य े पैशाची का के रहा । डॉ. यसन
पैशाची को उ तर-पि चमी सीमांत क भाषा वीकार करते है । यह मत अ धक संगत
है । यसन क ि ट म पा ल मू लत: मगध क भाषा है और मगध से ह त शला
के व यापीठ म पहु ंची जहां उस पर पेशाची का भाव पड़ा क तु त शला महायान
सं दाय का के था, महायान का पटक सं कृ त म था, जब क पा ल म ह नयान
सं दाय का पटक था । मगध सा ा य क रा य भाषा और बु के कोसल य
होने के आधार पर ट नडे व स कोसल क बोल को पा ल भाषा का आधार मानते ह ।
व डश और गायनर ने ऐसी भाषा को पा ल माना जो सम त जनपद म समझी जाती
थी और व भ न जनपद के थानीय उ चारण आ द वशेषताओं से संयु त थी ।
समूचे ववाद का कारण पा ल पटक म मागधी के श द / प क उपि थ त है ।
सला लेवी तथा लू डस इसका मु य कारण अनुवाद म हु ई असावधानी को मानते ह ।
इनके अनुसार असावधानी अथवा छं द नवाह के कारण सं कृ त पटक और पा ल
पटक म मागधी प रह गए । व तु त: पटक का मूल प मागधी म रहा होगा
और बाद म अ य जनपद क बो लय म इसका अनुवाद हु आ होगा । ''शं'' क
उपि थ त के संदभ म भी यह कहा जाता है क ''श'' कार मागधी क अपनी वशेषता
335
थी और यह साधारण जनता म भी रह होगी । राजक य भाषा म यह ब ह कृ त रहा
होगा । यह भाषा काशी, कोसल, वदे ह और मगध म लोक यवहार क भाषा थी ।
अत: कु छ ने इसी लोक भाषा म अपने उपदे श दए ह गे । बु के नवाण के प चात ्
उनके वचन के सं ह के लए हु ई बौ सभा म भाग लेने वाले भ ुओं म
''महाक यप'' मु ख थे । ये म य दे श के नवासी थे । संभावना यह है क इ ह ने
म य दे श क भाषा ( ाचीन शौरसेनी जो मथु रा से उ जैन तक फैल थी) म भी बु
वचन को अनू दत कया हो । अत: म य दे श क भाषा ह ''पा ल'' का आधार है ।
इस आधार के पीछे म य ए शया म ा त अ वघोष के नाटक के वे अंश भी है,
िजनम यु त - ाचीन शौरसेनी (म य दे श क भाषा) पा ल से बहु त समानताएँ रखती
ह । जैन आचाय (ईसवी सन के ारं भ तथा बाद म एक दो शता द तक) क भाषा
भी पा ल रह , िजसका माण क लंग शासक खाखेल के हाथी गुका अ भलेख से भी
मलता है । पा ल के सा ह यक भाषा बनते ह उसम पैशाची आ द अ य जनपद क
भाषा के त व आ जु टे । इसम काशी, कोसल, शू रसेन के त व के साथ पंजाबी के भी
त व मल गए ।
अत: ''पा ल'' कसी े क भाषा/बोल न होकर सम त सं कृ त े म जनसाधारण म
च लत, भा षक प से न प न भाषा थी, जो सबके लए बोधग य थी और सबक
थी । हाँ ! ई.पू. 500 आसपास इस भाषा का कोई नाम नह ं था, जनपद क बो लयाँ
अलग-अलग थी । ''पा ल'' नामकरण गौतम बु के प चात ् हु आ और लंका से भा वत
होकर इसने सा हि यक भाषा का प हण कया ।
(3) वशेषताएँ :-
वै दक भाषा प रवतन क या के तहत सं कृ त वारा उपे त व नय , उ चारण
त व एंव प को 'पा ल' ने पुन : हण कया, सं कृ त के अनेक त व पा ल म लु पा भी हु ए ।
मु ख-सु ख और औ चार णक सु वधा क ट से क तपय व नयॉ प रव तत भी हु ई । प रवतन
क यह या लौ कक सं कृ त म ह ारं भ हु ई थी, जो सामा य भा ष यबदलाव क या
भी है ।
(अ) व या मक - 'पा ल'' के स वैयाकरण क चायन पा ल म 41 व नय का
अि त व वीकार करते ह, जब क दूसरे वैयाकरण मो गलान 43 व नय का
अि त व मानते ह । वर – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऐ, ए, ओं, ओ । (1) इनम एँ,
ऑ व वर है । इनका नया वकास हु आ है । (2) ऋ, लू का लोप हु आ । वसग
भी लु त हु आ । ऋ, अर्, इर, उर् और एर् के प म वक सत हु आ - वृि चक >
वि छक, पृ छ त > पु छ त । लृ > ड बना । लृप > कृ त । (3) ा.भा.आ. भाषा
का सा य र - ऐ, औ या तो लु त हु आ या इनका थान ए, ओ ने ले लया - शैल
> से ल, गौतम > गोतम । (4) सं कृ त को संयु त यंजन के पूव का 'अ' पा ल म
कह -ं कह ं व 'ए' हो गया- श या > से या । (5) संयु ग़ यजन क ऐ > इ तथा
336
औ > उ म प रव तत हु ई - ऐ वया > इ स रय, औ सु य > उ तु क । (6) सं ध के
कारण ा.भा.आ. भाषा का - 'अय', 'अव' मश: ए, ओ हो जाता है - जप त > जे त,
अव ध > ओ ध । (8) समीकरण और वषमीकरण क वृि त पा ल म भी सं कृ त
क ह भां त स य है - इषु > उसु, इ ु > उ खु (पूववत वर का परवत वर के
अनु प होना-समीकरण) । परवत वर के अनु प पूववत वर का प हण करने
क भी वृि त व यमान है । वषमीकरण - म त > मु त, म जा > म जा
(असमान बनाने क वृ त ) । (9) च, व का पूण वर म पांतरण भी दखाई दे ता है
- वान > सू न, लान > थान । (10) नकट थ वर के उ चारण का भाव आ द
अं य वर के साथ आ द और म य पर भी पडता है । (11) पा ल म वर क
नमत क दो वि त वक सत हु ई - अ) द वीकरण और (ब) द घ करण ।
हू वीकरण म वराघात के प रणाम व प दघ वर द व बने उताहो उ उदाहु ।
पा ल म द घ वर केवल असंयु त यंजन के पूव ह आ सकता है । अत: ऐसी
ि थत म ा. भा. आ. भाषा म युत। द घ वर पा ल म द य बने । वराघात जब
श द क थम वर व न पर आता है, तो वह द घ हो जाती है - अिजर > आिजर
। करण एवं अ धकरण कारक म इकरांत औ उकारात के इ तथा उ द घ हु ए - मु न भ
> मु नी ह । (12) वराघात पा ल म लु पा हु आ । फल व प बलाघात का उपयोग
हु आ, िजससे वर का या तो लोप हु आ या द वीकरण हु आ - अलंकार > लकार (अ
का लोप) । (13) संयत
ु ा यंजन क वर तु त या ( वर भि त) पा ल म भी
स य है- मयादा > म रयादा । यह वर भि त वै दक क आधी या चौथाई क
अपे ा अ धक मा ा बोध का पयाय है । व वान ने इसे व कष' कहा है । पा ल म
छं द एवं समास के कारण कह -ं कह ं वर का मा ाकाल प रव तत हु आ है । (14)
संयु त यंजन के एक यंजन का लोप कर पूव इ व वर के थान पर सानुना सक
ह व वर का योग पा ल क वशेषता है - म कु ण > मँकु ण, शवर > संवर ।
(15) च, या के थान पर ई एवं इ तथा वा > उ एंव व > ऊ हो गया । इस
सं सारण या अ र संकोच कहा जाता है । (16) वराघात के भाव से पा ल म अ,
इ, उ म प रव तत हु आ - चरम > च रम, नव त > नवु त, उपक > ओक । यसन
पा ल म केवल बला मक वराघात वीकार करते ह, जब क टनर संगीता मक और
बला मक दोन । जू ल लाँक 'पा ल' म वराघात क वृि त को नकारते ह । (17)
सं कृ त क अपे ा पा ल म सं ध के नयम भ न और उदार ह । वर के बाद वर
आने पर एक वर के लोप का वधान है, इसके अपवाद भी मलते ह ।
स ा+इि यम= स ि यं (पूव वर का लोप), सो + अ प = सो प (प रवत वर
का लोप) और लता + इव = लताइव (अलोप) ।
यंजन - क वग, च वग, ट वग, त वग, प वग के अत र त य, र, ल, व, ण, लह,
स,् हू, अं (:) यंजन व नयाँ पा ल म व यमान ह । (1) वै दक क् , लहू पा ल म ,
337
के थान पर यु त ह । (2) वसग, िजदवामूल य उपआनीय यंजन व नय का
लोप हु आ है । (3) वै दक श ् ष,् स के थान पर पा ल म केवल 'स'् है । (4)
अनु वार पा ल म वंत व न है, िजसे न गह त नाम दया गया है । (5) घोष व के
कारण अघोष > सघोष और सघोष > अघोष हु ई । अथात ् घोषीकरण और अघोषीकरण
दोन क वृि त व यमान है । (6) ठ क इसी तरह णा व, समीकरण क वृि त भी
उपि थत है । व तु त: घोष व, ाण व तथा समीकरण (सं कृ त के संयु त यंजन म)
क वृि त सं कृ त श द क व नय म स य है । यथा - उताहो > उदाहो (सघोष),
अगु > अकलु (अघोष), भ गनी > व हणी (अ प णीकरण), क ल > खील
(महा ाणीकरण), तथा सव > सब, माग > म ग, धम > ध म आ द । (7) त युगीन
बो लय के भाव से पा ल म यंजन के उ चारण थान म प रवतन एवं वै व य एक
बडी वशेषता है । क य > ताल य (कु द > चु ड), ताल य > दं य ( च क स त >
त क छ), मू ध य, दै य ( डि डम > दे ि डम), दं य > मूध य (इत > हर, थम >
पठम) । (8) न,् ल,् र् वर म प रव तत हु ए । (9) य, व भी प रव तत हु ए तथा द >
र हो गया । (10) त वग य व नय का 'च' के संयोग से ताल यीकरण हो गया - य
> च, य > छ, य > ज, य > य, य > य ।
(ब) श द प
पा ल म श द- प न म त या क दो वशेषताएँ उ ले य ह- (क) सरल करण क
या और (ख) वै दक भाषा - स श श द क अनेक पता ।
(क) सरल करण क वृि त -
इस वृि त के कारण (1) हलंत ( यंजनांत) ा तप दक लु त हु ए । इनका थन 'अ ने
लया - सु मेधस ् > सुमेध , कह ं-कह ं उ ( व युत > व जु > व जुता) या आ भी हु आ
। (2) व भ न कारक एंव वचन म इनके प वरांत ा तप दक के समान न प न
हु ए । (3) कु छ यंजनांत ा तप दक प पा ल म बचे ह - वाचात ् ए. व. वाच । (4)
म या सा य के कारण इकारांत एवं उकारांत ा तप दक के सं दान - संबध
ं कारक
के प अकारांत ा तप दक के समान बने । अँि ग स अि गन भी सं दान संबध
ं से
नपु स
ं क लंग के म या सा य पर बना । (5) अ धकरण के प सवनाम के समान
बने - अि ग स > अि गि ह । (8) नपु स
ं क लंग श द के अनेक प पुि लंग के
समान बनने लगे - नरतो, तपो, सु खो । (7) सं दान और संबध
ं कारक के प एक
जैसे हो गए और करण एंव अपादान के बहु वचन प म ाय: समानता आ गई । (8)
ववचन का लोप हो गया । ववचन बहु वचन म ह समा हत हु आ । पा ल म ' वे-
दुबे तथा दुभो ववचन प बचे ह । (9) लंग तो तीन ह रहे , कं तु अप श
ं म लोप
ं क लंग कह -ं कह ं पुि लंग म समा हत होता नजर आता है ।
क पूणता पाया नपु स
प टत: पा ल के परवत काल म दो लंग क प रक पना ारं भ हो चु क थी ।
(ख) वै दक भाषा के समान अनेक पता -
338
पा ल लोक क , जन क भाषा है । लौ कक सं कृ त काल म वै दक सं कृ त के अनेक
श द- प योग तु त हु ए, कं तु वे लोक म जन-मन म सु र त थे, फल व प उनका
नव- योग पा लकाल म ारं भ हु आ । ये प- व भ न े म वभ न प म
उ च रत होते थे । पा ल' ने इ ह व भ न जनपद क बो लय से त वत ले लया ।
फलत: एक ह श द के अनेक प पा ल भाषा के गुण और अवगुण दोन बने । एकाध
उदाहरण दे ख - कता कारक बहु वचन म 'दे वा' के साथ-साथ दे वा से, करण कारक
बहु वचन म 'दे वे ह' प पा ल म चले । अ य वशेषताएँ है - (1) वशेषण श द के
प सं कृ त स श ह । सं यावाचक वशेषण म व या मक प रवतन हु आ - स त,
अ , आ द । (2) सवनाम के प यथो चत व न प रवतन स हत सं कृ त के समान
न प न हु ए, जो ह द के नकट ह - स ब (सब), स बे (सभी), को, के, क स
( कस), मयं (म), सो, तु व,ँ तु ह आ द । (3) अ यय के व भ न प भी पा ल म
व यमान ह - अ ज (काल बोधक), अ त ( थान बोधक), अव सं ( न चय बोधक),
अ पेव (संदेह बोधक), कथं ( कार बोधक), उ (संयोजक), मोरे , वे ( व मा द बोधक)
। (4) वभि तयाँ आठ ह । इनके एकवचन और बहु वचन प बनाने के लए यय
अलग-अलग ह । इनके वक प भी मलते ह । (5) या प पा ल म भ न काल
एवं अनु ा आ द भाव म यु त होने वाल वभि तयाँ भी अलग-अलग है । पर मै
पद और आ मने पद के आधार पर भी भेद है । या- प का अलग वै श ठय है ।
(6) या ग म भी ववचन का लोप होता है । (7) सरल करण क वृि त यह
भी स य है । सं कृ त के दस क अपे ा पा ल म छ लकार ह । (9) पा ल म तीन
काल - प दु पन काल (वतमान), भू तकाल और. भ व यकाल (क चायन के अनुसार
अनागत) के अत र त या तप त को भी काल के प म यु त कया गया है । एक
वा य क या दूसरे वा य क या के बना य द अ स और न प न होती है तो
इसे या तपि त कहते ह । हे तु हे त-ु म हा भी यह है । (10) भाव चार ह - नदश,
अनुइ त, स भा य, अ भ ाय । (11) ल और लो के प अलग ह, पर अथ एक है
। (12) आ मने पद ाय: लु त है । कमवा य म भी पा ल म पर मैपद य यय
यु त होते ह । (13) पा ल म सात गण ह बचे है । मणोलायन 9 गण मानते ह,
उ ह ने अदा द को भवा द म माना ह । (14) या प म भी वैकि पक य ग का
बाहु य है । (15) णे, णय, याम, णाप य आ द पा ल म ेरणाथक यय के प म
जोड़े जाते ह । (16) सं ा, सवनाम, वशेषण आ द से इ छाथक उपमानाथक
आचाराथक याएँ बनाने क वृि त पा ल म व यमान ह । (17) पा ल म 'त त'
और 'कृ त' यय लगाकर प बनते ह । त त-ल = दे व+ल ् = दे वल आ द । कृ त
यय का योग धातु, वा य, यापार और कल क व भ न अव थाओं को द शत
करने के लए कया जाता है ।
(ख) ाकृ त : प रचय एवं याकरणा मक वशेषताएँ
339
ई. सन ् के ारं भ के लगभग दो सौ वष पूव जनपद क भाषाओं क दूर एक दूसरे से
बढ़ने लगी थी । फल व प संपक भाषा के प म इस काल म सं कृ त का भाव बढ़ा
। सं त एक तरफ जनपद य भाषाओं के भा षक त व को भा वत करती रह , दूसर
तरफ अपना वतं वकास भी । पा ल म त त या और जनभाषाओं के बढते
दबाव के कारण एक नयी भाषा अि त व म आयी, यह थी - ाकृ त । व तु त:
जनपद य भाषाओं क एक दूसरे से दूर का कारण वह े ीय भाषाएँ थी - जो ाकृ त
क ारं भक अव था का आभास दे ती ह । ई.पू. 200 से ई.सन ् 200 वष तक का
काल य द सा हि यक भाषा के पद से पा ल के हटने क या का काल है तो सं कृ त
के नए प पुनज म एवं ाकृ त के ज म और वकास का भी काल है । व तु त:
म यकाल न भारतीय आयभाषा आयभाषा का यह सं ां त काल माना जाता है ।
'' ाकृ त'' का अथ है जो अपने कृ त प म हो । अथात ् िजसम कसी कार क
कृ मता न हो । संभवत: यह श द वै दक सं कृ त और सं कृ त के समानांतर चला ।
एक सं कार संप न दूसर सहज - कृ त भाषा । इस कार जन साधारण के बीच
अपने वाभा वक प म व यमान भाषा ाकृ त कहलायी । इस अथ म पा ल भी
ाकृ त ह है, क तु ''पा ल'' नाम इस भाषा के लए ढ़ हु आ । वैसे यह नामकरण
पा ल' के ासकाल म कया गया, केवल भा षक अलगाव को इं गत करने के लए,
िजसक आव यकता नह ं थी । दूसर से पाँचवी शती म जनसाधारण के बीच व यमान
बोल - ाकृ त - सा हि यक भाषा के प म ति ठत हो गयी । यध प ा. भा. आय
भाषा के काल से ह ाकृ त भाषा के सा हि यक योग मलते ह, पा ल म तो इसक
भरमार है, कं तु ईपूव दूसर शती से दूसर ईसवीं तक के बीच इसका योग और बढ़ा
। इस काल क भाषा म छटपुट सा ह य भी मलता है । पर तु सम प म
म यकाल न भाषा प क भावी भू मका नभाने वाल व यमान ाकृ त के वल दूसर
से छठ शती तक ह सा हि यक भाषा का थान पा सक । फल व प अलंकार
शाि य और वैयाकरण वारा उि ल खत और का य और नाटक म युता ाकृ त
भाषा के लए ' ाकृ त' श द ढ़ हो गया । ाकृ त के अंतगत जैन आगम क ाकृ त,
सा हि यक एवं नाटक य ाकृ त (अ वघोष के नाटक, अशोक के शलालेख, ाकृ त
ध मपद, नय ाकृ त स ह य) सि म लत क जाती ह ।
यु पि त - ाकृ त क यु पि त कृ त से मानी जाती है । कृ त के अथ के संदभ म
ाकृ त वैयाकरण म मतभेद है । हे मच , माक डेय, ध नक, संहदे व गणी आ द
वैयाकरण ाकृ त क कृ त सं कृ त मानते ह । हे मच के अनुसार कृ त सं कृ त है,
उससे उ प न या आगत भाषा ाकृ त है । सं कृ त के प चात ् ाकृ त का भाव आरंभ
होता है । ( कृ ष : सं कृ तम, त भवं, त आगतम वा ाकृ त.....) ाकृ त म त व दो
ह - स और सा यभाव ( ाकृ त यानुशासन ् स सा यामन भेद..........) । अनुशासन
म इन दोन कार के श द का तपादन है । ' कृ त: सं कृ तम ् त भवं ाकृ तमु यते'
वारा माक डेय भी हे मच के उपयु त मत क पुि ट करते ह और दश पक के
340
ट काकार ध नक के इस कथन ' कृ ते आगतम ् ाकृ तम,् । कृ त: सं कृ तम'् से भी
यह तभा सत होता है ।
उपयु त कथन से यह बात साफ हो जाती है क सं कृ त के कृ त यय के सा य-
वैष य के आधार पर ाकृ त क व न- यव था, श द रचना, प-रचना आ द -
याकर णक ि थ तय का बोध होता है । अ तु सं कृ त और ाकृ त म माँ बेट का
र ता न मानकर मक वकास माना जाना चा हए, जो भाषा- वकास क ि थ त का
सह प रचायक होता है । ए े ड सी. वुलनर और डॉ. मशेल क मा यता भी ऐसी ह
है । मशेल ाकृ त भाषाओं क जड़ जनता क बो लय के भीतर मानते ह, और इनके
मु य त व आ दकाल म जीती जागती और बोल जाने वाल भाषा से लए गए ह!
कं तु बोल चाल क वे भाषाएँ जो बाद म सा हि यक भाषाओं के पद पर ति ठत हु ई,
उ ह सु ग ठत प से तु त करने के लए सं कृ त क भाँ त बहु त ठ का-पीटा गया ।
उपयु त मा यता के व 'न म साधु' के अनुसार सकल जगत के जीव-जंतु ओं के
याकरण आ द सं कार से र हत सहज वचन यापार को कृ त कहते ह । उससे
उ प न अथवा वह ं ाकृ त है । ा कृ त अथ त व से उसका नमाण हु आ िजसका अथ
है, पहले बना हु आ । इस मत को वीकार करने म सबसे बड़ा संकट है - ाकृ त के
व प का नधारण और सा हि यक भाषा ाकृ त का काल नधारण । न चय ह
न भसाधु का मत अ त याि त दोष से त तो है ह भाषा वैइत नक नकष पर भी
खरा नह ं उतरता ।
ाकृ त के भेद और आधार (ना य ाकृ त) :- ' ाकृ त' का भेद- न पण सं कृ त नाटक
म ा त ाकृ त भाषा के व प के आधार पर कया गया । भरत ने ना य-शा म
भाषा योग नी त का खु लासा करते हु ए लखा है क उ तम पा य द ऐ वय से म त
और द र हो जायँ तो सं कृ त के बदले ाकृ त का योग कर, तपि वय भ ुओं
ि य , बाल ह और संत आ द के लए ाकृ त योग का वधान है । भरत ने सात
दे शी भाषाओं - मागधी, अव ती, ा य, शौरसेनी, अधमागधी, बादल का और
द णा या- का उ लेख करते हु ए जा त, कम आ द के आधार पर इनके योग का
वधान कया है । भरत क समसाम यक या पूववत अ वघोष के नाटक म ाकृ त
योग मलते ह । आज का लदास के नाटक म नयमानुकू ल ाकृ त का योग हु आ है
। ग य शौरसेनी तथा प य महारा म है । अ भ ान शाकु तलम ् म मछुआरा मागधी
बोलता है । शू कर चत 'मृ छक टक ' ाकृ त के वै च यपूण योग का े ठ उदाहरण है
। मशेल क मा यता है क यहनाटक ाकृ त के व भ न उदाहरण को तु त करने के
उ े य से लखा गया है । याहरवीं (कु छ क ि ट म बाहरवीं) शती तक के सं कृ त
नाटक म ाकृ त का योग वाभा वक र त से चला ।
ाकृ त-भेद न पण म व वान एक मत नह ं है । वरक च महारा , पैशाची, मागधी
और शौरसेनी को ह ाकृ त का भेद मानते ह । हे मच (12 वीं शती) ने 'आय '
(अधमागधी) एवं शू लका पैशाची पर भी वचार कया । ाकृ त क अ य अनेक शाखाएँ
341
रह ं ह गी, कं तु उनके ल खत सा ह य न मलने के कारण उनका ववेचन संभव नह ं
। आज ाकृ त के पाँच भेद मा य ह-(।) शौरसेनी, (2) मागधी, (3) अधमागधी, (4)
महारा और (5) पैशाची ।
शौरसेनी ाकृ त, शू रसेन दे श (मथु रा के आसपास) क भाषा रह है । सं कृ त नाटक
म ग य भाषा के प म ी और वदूषक पा वारा यह यव त हु ई । म य दे श
क भाषा होने के कारण यह सं कृ त के अ धक नकट रह । मागधी - ा य दे श
(मगध) क जन-साधारण (लोक) क भाषा होने के कारण अ य ाकृ त क अपे ा
इसके प मे अ धक प रवतन हु आ है । सं कृ त नाटक म न न ेणी के पा वारा
यव त कए जाने का वधान था । कालांतर म पा ल को इसने सवा धक भा वत
कया । अधमागधी - कोसल दे श क भाषा थी । जैन आचाय ने शा क रचना के
लए इसी भाषा को चु ना । वे इसे 'आष कहते थे और आ द भाषा मानते थे । म य
ए शया से ा त अ वघोष के नाटक शा रपु करणं म अध-मागधी का योग सं कृ त
नाटक म इस भाषा के योग का माण है । जैन थ
ं म तो यह उि ल खत है क
भगवान महावीर के उपदे श क भाषा अ मागधी थी, कं तु इसका माण उपल द नह ं
है । वेता बर आगम थ
ं क अध-मागधी का प नवीं शती का तीत होता है, कं तु
ग य क तु लना म प य क भाषा अ धक पुरानी तीत होती है । अध-मागधी म 18
दे शी भाषाओं का म ण माना जाता है । इस पर मु डा का- भाव इस बात का माण
है क अदा-मागधी इस े क भाषा रह ं । व तु त: बौ काल म यह भाषा समूचे
उ तर भारत क संपक भाषा थी, फल व प आव यकतानुसार इसने अ य भाषा के
भा वक प को आ मसात कया । अध मागधी पूव और पि चम क भाषा को एक
प को एक कड़ी के प म जोडने का काम करती है । इस लए य द इस पर पूव
(मागधी) और पि चमी (शौरसेनी) के प गठन का भाव है तो दूसर तरफ पूव
पि चमी भी इससे भा वत ह ।
महारा ाकृ त को ाकृ त वैयाकरण ने आदश ाकृ त क सं ा से व लइषत कया है
। यह स य है क सा हि यक ाकृ त म महारा ाकृ त सवा धक वक सत और
संप न भाषा है । सं कृ त नाटक म आए प य अंश इसी ाकृ त म ह । इसम
महाका य और ख डका य भी मलते है । 'सेतु बध
ं 'ु तथा 'ग बहो', हाल क 'गाहा
स तसती' तथ 'व जाल ग' जैसी े ठ का या मक रचनाओं क भाषा महारा ाकृ त
ह है । यह महारा क जन भाषा थी । कु छे क व वान इसे मराठ का पूव प
मानते ह । कु छ और व वान इसे शौरसेनी का प रवत प मानते ह । शौरसेनी से
अलग होकर महारा ने द ण म पहु ँ चकर थानीय लोक भाषा के भाव को
आ मसात ् कया । द ण से यह भाषा पुन : उ तर क ओर का यभाषा के प म आई
। उ जैन तक फैल पुरानी कोसल ने भी इसे भा वत कया, वयं भी भा वत हु ई ।
ह द के वकास म इस ाकृ त का मह वपूण अवदान है ।
342
वर म यग पश यंजन का लोप इसक मह वपूण वशेषता है । यथा- लोक >
लोक, सागर > सायर । ता पय यह क क् , त,् य,् ग,् , व ् पूणतया लु त हु ए और
ख,् फ् , घ,् ध,् भ ् के थान पर कवल ाणध न ' ' बची । साधु > साहु, नाथ > नाह
। शौरसेनी और महारा ाकृ त क मु ख भ नता का आधार यह व या मक
प रवतन है, अ यथा शौरसेनी महारा ाकृ त के अ य धक नकट है ।
पैशाची का ाचीनतम थान पि चमो तर पंजाब, अफगा न तान मा य है ( यसन) ।
कु छ लोग इसक उ पि त कैकेय दे श म मानते ह । चीनी, तु क तान के शलालेख
तथा कु बलयमाल म ा त प के आधार पर इसे ाकृ त म ाचीनतम माना गया है ।
बांणभ इसे भू त भाषा मानते है । इसक कोई सा हि यक रचना आज उपल य नह ं है
। ह , कु छ लोग क मा यता है क गुणा य क ब डकहा (बृह कथा ) मू लत: पैशाची म
लखी गयी थी ।
ाकृ त क वशेषताएँ - (1) ा. भा. आ. भाप क व 'ए' और 'ओ' तथा 'ण', 'ल
पा ल क भाँ त ाकृ त म भी यु त हु ई । ऐ, औ, ऋ, लृ का योग ाकृ त म नह ं
मलता । (2) सा हि यक ाकृ त म मु ख-सु ख क ि ट से पा ल क ह भाँ त वर के
थान म पया त प रवतन हु ए । (3) पा ल क ह भाँ त संयु त। यंजन के पूव ह व
वर तथा असंयु त यंजन के पूव द घ वर का वधान ाय: सभी ाकृ त म है ।
(4) असंयत
ु ा ऊ म श ्, ष,् स ् के थान पर 'स'् यु त हु आ । ारं भ म ये तीन ऊ म
व यमान थे, कं तु बाद म मागधी म श सु र त रहा । अ य ाकृ त म इन तीन के
थान पर 'स' का योग हु आ । (5) पा ल क भॉ त श दांत के यंजन लु पा हु ए । (6)
न > ण हु आ । यह वृि त शौरसेनी क थी, कं तु भाव अ य ाकृ त पर भी पड़ा ।
यध प पैशाची तथा ध म पद म 'न'् सु र त है । (7) दो वर के बीच आने पर वग
के थम और तृतीय यंजन का लोप हु आ - मु कुल > मउल । (8) म यग महा ाण म
केवल 'ह' बचा, छ, ढ़, फ, ब सु र त है । य ् श दारं भ म 'ज'् बना । (9) 'र्' ाय:
सु र त है । मागधी म यह 'ल'् हो गया । (11) व > अ हो जाता ह । (12) 'ह'
ाय: सु र त है । (13) > ख, छ, झ हो गया । > ज हो गया । (14)
संयु त यंजन के थम यंजन का लोप और दूसरे के व व हो जाने क वृि त
ाकृ त का वै श ठय है । (15) ाकृ त म सं ध नयम अ यंत प ट है । कु छ श द म
सं कृ त गुण सं ध का भाव दखायी दे ता है । कई श द म पूव च लत सं ध नयम
का उ लंघन भी है ।
पद रचना - (1) सरल करण और एक करण क बढ़ती वृि त के कारण ाकृ त म
पुि लंग श द म अकारांत का इकारांत तथा ी लंग श द का आकारांत, ईकारांत और
अकारांत ह प म भेद रह गया । (2) चतु थ के लए ष ठ वभि त का योग भी
इसक एक वशेषता है । (317 एक वचन का योग बहु बचन ् के लए भी होने लगा ।
(4) सा य के आधार पर प क व वधता समा त होने क ओर उ मुख थी । (5)
343
ी लंग श द म थमा एकवचन का प यथावत है । (6) तृतीया , चतुथ , पंचमी
और स तमी एकवचन के प म अनेक वक प मलते है । (7) पुि लंग, ी लंग के
साथ नपु स
ं क लंग के श द भी व यमान है । (8) वचन दो ह - एकवचन एवं
बहु वचन ।
व न प रवतन और सा य क या सवनाम प को भी एक पता और सरल करण
क ओर उज़ख करती है । सवनाम के अनेक योग लोक म च लत थे । सं कृ त के
समान ाकृ त म भी संइत तथा सवनाम क प रचना म समान यय का योग
होता है ।
या प - आ मने पद का दास, कतृ और कम वाचक के एक करण का यास तथा
सा य के चलते या प म प रवतन ाकृ त का वै श य है । या पद के
अ धकांश गण क प रचना वा दगण के सा य पर क गयी । काल रचना
अ नयं त सी है । वतमान काल का सभी काल के लए योग तथा व ध लड का
सभी वा य और काल पर भाव अ नयं ण का भाव है । भू तकाल म तडतीय प
समा त ाय ह । कृ दं त प का योग बढ़ा । भू तकाल म कृ द तीय योग धान है ।
ाकृ त म ल , लृङ , युट , आशी लड, ल , लुङ आ द लकार समा त ाय ह । ाकृ त
म पूव का लक या के यय म – दूण , दा ण, ऊण, ता, ताणं, उअ आ द धान
ह । ेरणाथक याएँ इ, अं (ह स अं), व अं (हस व अं), उं (हसे उं ) यांत है ।
सं ाथक या ह सदुं , ग मदुं , क र दु ह ।
(ग) ं : प रचय एवं याकरणा मक वशेषताएँ
अप श
ईसा पूव 150 वष पूव पतंज ल के महाभा य म 'अप श
ं ' श द का योग श द के भेद
या प रचय के लए यु त हु आ ह - 'एकैम य हश द य बहवोडय ंशा:'' यहाँ 'एकैक य श द'
का अथ पा णनीय याकरण से स श द से है और 'बहवोडय ंशा' बो लय और वभाषाओं म
युत पा णनीय स श द के पा तर से है । यथा- स श द है 'गो और बो लय वभाषाओं
म इसका पांतर है - गावी गोणी, गोता, गोपात लका इ या द । व तु त: ये श द स श द के
व या मक पांतरण भाषा- वकास (प रवतन) क कथा के गायक ह । ऐसे अपा णनीय योग
वेतांबर जैन थ
ं क अध-मागधी म मल जाते ह । ाकृ त वैयाकरण च ड और हे मचं ने
कु छ श द को महारा क दे न माना है । इस ववेचन से इतना तो प ट है क श द के
धरातल पर अप ंश क उपि थ त पा ल काल से वीकाय है, जो सतत ् पा ल, ाकृ त से चलकर
अप श
ं क भाषा का बाना पहनती है । तीसर सद के भरत के ना य शा म भी अप श
ं के
उदाहरण मल जाते ह । यह उकार बहु ला थी । भरत ने इसे आमीरोि त कहा । संभवत: सव
थम छठ शती के ा ईकृ त वैयाकरण च ड ने अपने ं ' ाकृ त ल णम'् म इस श द का
थ
योग भाषा के अथ म कया । वसु देव हंडी (589 ई.) म भी अप ंश के पुराने । प का संधान
ह । आचाय भामह का कथन - ''सं कृ त ाकृ त चायम श
ं इत धा'' (का यालंकार 1-26) -
ं को, सं कृ त,
अप श ाकृ त के प चात ् क भा षक ि थ त क वीकृ त दान करती है । अ तु
छठ से सातवीं शती के बीच सं कृ त और ाकृ त से अलग अप श
ं ने अपनी स ता और साख
344
सा हि यक भाषा के प म था पत कर ल थी । द डी (सातवीं शता द ) ने भी आमीरा द गर:
ं ा: इ त
का ये वप श मृता ' कहकर अप ंश क का या मक त ठा दशायी । कु वलयमाला म
उ योतन सू र ने भी सं कृ त के साथ-साथ अप श
ं को भी सा हि यक भाषा क मा यता द ।
नवीं शती म ट ने सं कृ त- ाकृ त के साथ अप ंश का उ लेख करते हु ए दे श भेद से इसके
अनेक भेद कहे ह, िजससे अप श
ं के व तार का पता चलता है । राजशेखर ने भी इसका
उ लेख कया (10 वीं शती) । 11 वीं शती म ाकृ त वैयाकरण पु षो तम ने अप ंश को श ट
वग क भाषा वीकार कया । 12 वीं शती म आचाय हमच ने अप श
ं का याकरण लखा।
श द से भाषा के प म अप ंश के वकास क कथा, िजतनी रोचक है, उतनी ह
रोचक इसके नामकरण क कथा है । नामकरण क कथा लोक भावनाओं, वीकृ तय को
नकारने, उपे त करने क भी दा तान ह । यह
नामकरण संकेत करता है क उ च, स मा य - वग से इसे ब ह कृ त करने का यास
कया गया और समाज म एक वग उपे त हु आ । फलहाल यह उपे त वग हमेशा उपे त
नह ं रह सकता, वह तो नई-नई भाषा को एकदम नई अथव ता से संप ृ त करता है । अ तु
िजसको भाषा प म ई.पू. दूसर शती म मा यता मल जानी चा हए थी, वह आठ सौ वष बाद
सा हि यक भाषा बनती है।
'' ाचीन और म यकाल न भाषाओं म अप श
ं ह एक ऐसी भाषा है, िजसे न तो छांदस,
न पा ण न का सं कार मला न ह गौतम बु जैसे महान तप वी का वरदह त । फर भी यह
जन साधारण क अपराजेय शि त से संव लत होकर सं कृ त के प चात ् सबरने लंबे काल तक
सा ह य क भाषा ह नह ं बनी अ पतु आधु नक भारतीय आय भाषाओं क ज मदा ी भी बनी ।
यह इसक लोकतां कता का प रचायक है । तभी तो आचाय पतंज ल ने सबसे पहले यह
अनुभव कया था क इस भाषा के वकास को रोक पाना क ठन है ।'' ( ो. राजम ण शमा -
ह द भाषा इ तहास और व प, . 60) ।
अप श
ं सा हि यक ि ट से सं कृ त के प चात ् सवा धक संप न और व तृत े क
भाषा छठ शती तक सा हि यक भाषा के प म ति ठत हो चु क थी और इसम उ च तर य
का य रचनाएँ ारं भ हो चु क थी । यह कम पं हवी सोलहवीं शती तक चला ।
अप श
ं को कसी ने अभीर क बोल कहा, कसी ने दे शी वचन क संइग़ द ।
फलहाल अभीसे का उ लेख महाभारत म एक दुधष जा त के प म आया है । यह ई वी सन ्
के आसपास पि चमो तर भारत म बस चु क थी । कालातार म इनका फैलाव म य दे श म भी
हु आ । यहाँ तक क आज के उ तर दे श के मजापुर िजले म ये बहु सं यक ह । तभी तो
वाराणसी के पास अ हरौरा कभी अभीर क राजधानी बसा । पाद ल ताचाय (5 वीं शती) ने इसे
दे सवचण घो षत कया । कालांतर म व याप त ने भी अप श
ं से मलते जु लते परव त प
को 'अवह ' कहा । वयंभू भी इस भाषा म का य रचना को रचना मक उपल ख वीकार करते
ह । (पउम च रउ) । वे िजसक रडु ब का य रचने क अपनी संक पना दोहराते ह, वह आगे
चलकर अप श
ं क अपनी वशेषता बनी ।
345
सच यह है क एक समय ऐसा आया जब अप ंश पि चम से पूव , उ तर से द ण
तक समू चे भारत क सा हि यक भाषा बन बैठ । जैन धम क यह भाषा बनी । इसम
रामका य, कृ ण का य तो लखे ह गये ( वयंभू का पउम च रउ तथा पु पदं त का महापुराण ),
लोक जीवन बंधा मक का य के अंग बने (धनपाल का भ वसप तकहा) । नी तपरक तथा धम-
जीवन दशन संबध
ं ी रचनाएँ भी भू त मा ा म उपल य ह (राम संह का पाहु ड दोह मु न िजन
वजय आ द क मु तक रचनाएँ) । वीर और शृंगार परक रचनाओं का अभाव नह ं ।
ं के भेद को लेकर भी पया त ववाद है । माक डेय ने इसके 27 भेद गनाए,
अप श
कं तु केवल तीन - नागर, उपनागर एवं ाचड म, वे इसे समा हत करते ह । नागर गुजरात
क , उपनागर राज थान क तथा ाचड, संध क बोल थी । याकोबी चार भेद - पूव , पि चमी,
उ तर तथा द णी वीकार करते ह । तगारे याकोबी के उ तर भेद को वीकार करते ह ।
अ तु वे तीन भेद मानते ह - (1) पूव अप श
ं - सरह तथा क हपा और बौ स के दोहा
कोश तथा चया पद क भाषा । (2) द ं -
णी अप श वयं भू पु पदं त र चत महापुराण , णय
कु मार च रड, जसहर च रड तथा मु न कनकामर के करक ड च रउ क भाषा । (3) पि चमी
ं - शौर सेनी
अप श ाकृ त का परवत प िजसम राज थान क बो लय का म ण है ।
का लदास, जोइंद ु (सावयध म दोहा), राम संह (पाहु डू दोहा), धनपाल (म वसय त कहा) और हे म
याकरण म उ ृत अप श
ं के दोह आ द म इस भाषा का प ा त होता है । डॉ. नामवर संह
केवल दो भेद वीकार करते ह - पि चमी और पूव । पि चमी अप श
ं को प र नि ठत मानते ह
तथा पूव अप ंश को पि चमी अप ंश क वभाषा । इनका आधार है - पि चमी और द णी
ं क (भाषागत समानता) । डॉ. संह के पूव आचाय हजार
अप श साद ववेद ने भी अप श
ं
के दो भेद - पूव और पि चमी ह वीकार कए थे । आचाय ववेद के भेद का आधार का य
व तु और ं म भ न - भ न जा तय क दो चीज वक सत
वृि त है । उनके अनुसार अप श
हु ई - (1) पि चमी अप श
ं म राज तु त ऐ हकता मू लक शृंगार का य, नी त वषयक, फुटकल
रचनाएँ और लोक य कथानक । पूव अप श
ं से नणु णयॉ संतो क शा नरपे उ
वचारधारा, झाड-फटकार, अ खड़पन, सहजशू य क साधना, योग प त और भि त मू लक
रचनाएँ ।
अप श
ं क अशेषताएँ
अप श
ं म वयोगा मक वृि त मु खर है । (2) अप ंश म ाकृ त क वर और यंजन
सभी व नयाँ व यमान है । (3) ए,ओ, व व नय के लए अप श
ं म नवीन लेखन च न
न बनाकर ाकृ त और सं कृ त क अनुलेखन प त का अनुगमन कया गया । उ तर भारत के
लेखक व ए, ओ के लए इ, उ का यवहार करते रहे । (4) 'अ' के संव ृ त एंव ववृ त भेद
क भ नता दशन हे तु भी कोई च न नह ं है । (5) सं कृ त और ाकृ त क अपे ा 'अ' का
उ चारण भ न था । (6)लु त म यग यंजन के थान पर कह ं 'अ' मलता है और कह ं 'य'
ु त का समावेश है ।
346
यध प ाकृ त वैयाकरण ने अप ंश म वर प रवतन को अ नय मत माना है, कं तु
वरागम (भि त) (आय > आ रय, वष > व रस), वर लोप (उप व ट > बइडु ), द घ करण
(क स > कासु, ( या > पअ, गंभीर > ग हर), सानुना सकता तथा नरनुना सकता (प न >
प ख, व > बक, संह > सीह, वंश त > बीस), समीकरण अथवा वषमीकरण (ख दर >
खदर, म यम > मि जम), आ द वर क सु र ा (जघन > जहन, क प > कासु, (मा ा
प रवतन) अर य > र य), वर सं ध (सहकार > सहआर, वणकार > सु णआर) ु त - (अ
उ > य व) (अमृत > आ मउ, कंचुक कंचु व) तथा ऋ का अ, इ, उ, ए, अर, र म प रवतन
(मृत > मु अ, कृ ण > क ह, कृ पाण > कयाण, गह थ > गेह थ, ातृ > भायर, पतृ >
पयर, ऋण > रण, ऋ > र ) प रवतन जैसी वर वकार क दशाएँ प ट ह ।
यंजन
एक अनु वार स हत अप श
ं म तीस यंजन व नयाँ है - क वग, च वग, त वग, प
वग के अ त र त य,् र्, ल,् व,् स,् , अनु वार (-) उपि थत ह ।
(1) उपयु त यंजन व नयाँ ा. भा. आ. भाषा का त न ध व तो करती ह, कं तु
इनम कई दे शी व नयाँ सि म लत ह । (2) कई संयु त व नयाँ अप श
ं म अपना अ ति त व
खो बैठ ं ( ं द त S कैद, कय उ कअ) । (3) उ चारण थान म भी प रवतन हु आ है । क
वग म पश यंजन है, च वग पश संघष , च वग मू ध य, त वग दं य, प वग ओ य है ।
(4) येक वग क थम दो अघोष, शेष घोष, पहल और तीसर अ प ाण, शेष महा ाण
व नयाँ है । (5) ण,् न,् म ् सानुना सक शेष नरनुनो सक ह । (6) य,् र्, ल,् व ् अंत थ
यंजन ह । ये सभी सघोष अ प ाण ह । च ् तालु, र् मू धा या व स, ल ् व स, व दं य से
उ च रत व नयाँ ह । (7) य न के आधार पर र को लु ं ठत या उि त त माना जाता है ।
(8) l दं य अघोष महा ाण व न है । इसने श य को भी अपने म समा हत कर लया । (9)
ं म 'ह
अप श व न का सवा धक सार हु आ । यह कं य सघोष महा ाण है ।
यंजन वकार क ि थ तयाँ ाकृ त स श ह ह । (1) न,् प,् शृ, ष के अ त र त
अप श
ं म आ द यंजन सु र त ह, कं तु कह ं महा ाणीकरण अथवा अ प णीकरण के उदाहरण
मल जाते ह (सा य उ ठ ढू ) । (2) न > ण, य > ज़ और श ष > स ् हु आ । (3) ाकृ त-
स श अप ंश म भी अं य यंजन लु पा हु ए (कृ त > कय) । (4) ाकृ त के समान ह म यग
क् , ग,् च,् ज,् त,् , प ् के लोप का वधान है । ह , इसके थान पर अप ंश म मइ ु त का
वशेष योग हु आ (युगल > जु पल, लोचन > लोयण) । (5) ाकृ त के समान म यग महा ाण
यंजन खृ, ध,् थ,् ध, फ् , भ ् के थान पर ' ' हो गया । (स ख > स ह द घ > द ह) । (6)
कहा तो यह जाता है क म यग यंजन लोप क वृि त अप श
ं का वै श य है, पर वैकि पक
प म इ ह कह -ं कह ं सघोष भी कया गया है (आगत: > आगदो द प > द व) । (7) म यग
'म' अप ंश म सु र त है ।
पा ल ाकृ त क यंजन प रवतन क दशाएँ अप ंश म भी याशील ह । (1)
बलाघात के कारण आस-पास आ द, म य या अंत क व न लु त हु ई । (2) उ चारण सु वधा
347
के लए पहले से अनुपि थत कसी नयी व न का आगम हु आ । (3) वण- वपयय के उदाहरण
भी मल जाते ह ( ाहमण > बा हन) । (4) समीकरण- वषमीकरण एंव व वीकरण क ि थ त
भी है । ाय: यह संयत
ु ा यंजन म हु ई । (च > च क, माग > मजा) । (5) घोषीकरण -
क् , ख,् त,् थ,् प,् फ् आ द म यग अघोष अपने वग क सघोष बन जाती ह । (6)
महा ाणीकरण - अ प ाण व नय को महा ाण करने क वृि त भी अप ंश म दखाई दे ती है
। (पु तक > पो थय, पि चम > पि छम) ।
प रचना -
इस ि ट से अ य म. भा. आय भाषाओं से अप श
ं का अलग वै श य है । इसम
जहाँ पा ल, ाकृ त क सरल करण और एक करण क वृ त व यमान ह, वह ं इसम आ.भा.
आय भाषा क वृि तयाँ भी मु खर ह । वयोगा मकता क ओर उज़खता ने इसे अपनी पूववत
भाषाओं से दूर खड़ा कया है ।
सं ा प
(1) वरांत ा तपादे प : अप श
ं म व वधता से एक पता क ओर अ सर हु ए । अं तम द घ
वर को हू व करने क वृि त ने इसम पया त सहायता क । फल व प द घ वरांत
ा तपा दक अप ंश म लु त ाय ह - (पूजा > पु ज) । इस कार अप श
ं म अ, इ, उ कारात
ा तपा दक ह शेष बचे । (2) अप ंश म अं तम यंजन का या तो लोप हु आ या वह अकार
यु त हो गया (आ मन ् > अ यण), सभी तप दक को वरांत बना दया गया । ा तप दक
क व वधता से मु त) पाकर अप ंश सरलतम भाषा बन गयी । (3) अ, इ, उ म भी अकारांत
क ह धानता है ।
अप श
ं म दो ह लंग रह गए । यध प ा. भा. आ. भा. के नपु स
ं क लंग लोप से अप श
ं क
लंग यव था अ नयं त हो गय , फर भी ह द इससे भा वत हु ई । अप श
ं म पुि लंग क
धानता है, नपु स
ं क लंग का तो लोप हु आ ह , ी लंग के प भी कम ह ।
वचन दो रह गये - एक वचन, बहु वचन । ववचन के संकेत के लए व श द क सहायता
ल गयी ।
अप श
ं म ा. एंव अ य म. भा. आ. भा. के थान पर केवल तीन कारक समूह है - (1)
कता-कम- संडग़ेधन, (2) करण-अ धकरण एंव (3) सं दान-संब ध और अपादान ।
अप श
ं यो ताओं क वृि त तो सरल करण क थी, कं तु लु पा वभि तक पद के कारण
अथ- न पादन अ प ट और दु ह हो उठा, इस सम या के नदान के लए अनुसग या परसग
का योग अप ंश म बढ़ा परसग का वकास अप श
ं म वतं श द प म भी हु आ । परसगौ
के वकास म सं ा प क अपे ा सवनाम क भू मका अ धक मह वपूण है । अप ंश क
परसग य श दावल का आदान सं कृ त से हु आ (सहु ँ < सह, सम) यह करण क रक का है ।
या प
या प क न म त म अप श
ं ा. या अ य म. भा. आ. भा. से अलग अपना वै श य
था पत करती है । सा हि यक योग - युत , कं तु, लोक च लत अनेक याओं क:ए
348
अप श
ं म मह व (,मेलता है (बो ल, धोह, लु क, चव, छो ल, उ ह, झूर, छि ल) तो
श दानुकरणा मक धातु ओं क नमत या भी अप श
ं क दे न है । इन दो याओं के
अ त र त नाम से धातु बनाने क पुरानी परं परा चलती रह । ा. भा. आ. भा. क अप श
ं म
चलती रह ं । इनम काल, अथ, वा य, पु ष और वचन के अनुसार व भ न यय संप ृ त हु ए
। सरल करण के लए गण के नमाण का अंतर समा त कर क तपय नपात का सहारा लया
गया । अ यय और या- वशेषण के नए प क न म त का वै श ठय है ।
349
17.5 सारांश
उपयु त ववेचन से प ट है क ा.ओर म. भा. आ. भाषाओं का वकास एक
सु नि चत नयम के तहत हु आ । वै दक भाषा क उपि थ त जहाँ 5000 वष ई.पू. से भी पहले
क मा य है, वह ं यह भी वीकाय त य है क वै दक भाषा और इसके भाषा भाषी ईरान एवं
यूरोप के दे श तक एका धक बार पहु ँ चे तथा वहाँ क भाषाओं को भा वत कया । यह तभी
संभव है जब भाषा वशेष क सं कृ त और स यता तथा सा ह य पूणतया स प न हो । इस
ि ट से वै दक सं कृ त क संप नता का बखान बेमानी है, य क व व क अनेक भाषाओं म
वै दक सं कृ त के शता धक श द क उपि थ त, याकर णक नयम का भाव एवं सा हि यक
अवदान वयं इसक कथा कहता है । यह मा णत त य है क वै दक भाषा के प चात ् भी
लौ क क सं कृ त और ाकृ त से व व क अनेक भाषाओं ने श द , व या मक तथा
याकरणा मक संरचरना के नयम का आदान कया । यह त य इस बात को भी पु ट करता है
क ाचीन और म यकाल न आय भाषाओं के भारतीय यो ता दुधष और संघषशील थे । उनक
स यता और सं कृ त भी अ यतम तथा अनुकरणीय थी।
वै दक सं कृ त वयं म ि ल ट थी, कं तु वाभा वक भाषा बदलाव क या के तहत
ं तक पहु ँ चते-पहु ँ चते भाषा वयोगा मक बन गयी । इसके कारण थे - सरल करण तथा
अप श
एक पता दे ने का यास इनम मु ख था । एक कारक और मह वपूण है - वह है - लोक ।
सबसे पहले यह 'लोक' लौ कक सं कृ त को ज म दे ता है, फर पा ल, ाकृ त तथा अप श
ं को ।
यद यान से दे खा जाए तो ये तीन भा षक प लोक क दे न ह, जैसे-जैसे लोक/जनसाधारण
क दखलंदाजी बढ़ वैस-े वैसे भाषा का प भी बदला । अ तु लोक क भाषा-सरल करण या
लोकानु प भाषा क नमत या अप ंश म आकर पूर होती है ।
लौ कक सं कृ त के संदभ म याकरण स मत भाषा या सा हि यक समृ क चचा यहाँ
अनाव यक है । कं तु परवत तीन भाषाओं म याकरण भी लखे गए, सा हि यक रचनाएँ भी
हु ई, वशेषकर अप श
ं तो इस ि ट से सवा धक संप न भाषा है । एक बात और, ये भाषाएँ
जन-मन एवं उनक आकां ाओं क भी त न ध बनीं ।
अंततः! यह गव के साथ कहा जा सकता है क ाचीन और म यकाल न भारतीय
आयभाषाएँ स यता, सं कृ त, दशन/ चंतन/अ या म एंव भाषा वै ा नक- स ा त के न म त क
ि ट से समू चे व व म अ वतीय है ।
17.6 अ यासाथ न
क. दघ तर न
1 ाचीन एवं म यकाल न भारतीय आय भाषा के व भ न भा षक व प का प रचय
दे ते हु ए उनके नामकरण पर वचार क िजए ।
2 ाचीन भारतीय आय भाषा के दोन प के भा षक अंतर न पत क िजए ।
3 वै दक और लौ कक सं कृ त के सा हि यक मह व का रे खांकन क िजए ।
350
4 पा ल भाषा के नामकरण, े नधारण पर वचार करते हु ए उसक भा षक
वशेषताओं का ववेचन क िजए ।
5 '' ाकृ त'' का शाि दक अथ प ट करते हु ए उसक वशेषताएँ बताइए ।
ब. लघू तर न
1 पा ल और ाकृ त का ताि वक अंतर बताइए ।
2 अप श
ं का अथ बताते हु ए इसके कोई दो व या मक वै श ठय बताइए ।
3 पूव और द णी अप श
ं क कु छ रचनाओं के नाम ल खए
4 मै वै दक और लौ कक सं कृ त म या मू ल अंतर था?
5 म. भा. आ. म कौन-कौन सी भाषाएं आती है? सबक एक-एक पगत वशेषता
ल खए ।
स. र त थान क पू त क िजए
1 बु के उपदे श का सं ह......................................... है ।
2 पा ल क ल प...................................... रह है ।
3 ाकृ त क यु पि त................................... से मानी जाती है ।
4 वैयाकरण................................................ ने अप ंश को श ट वग क भाषा
माना ।
5 मू ल भारोपीय भाषा का मू ल आधार है........................................... ।
द. सह /गलत पर नशान लगाइए -
1 आय श द जा त सूचक माना जाता है । सह /गलत
2 पा ल जनसाधारण के लए बहु त क ठन और ज टल भाषा थी । सरल/क ठन
3 क चायन सं कृ त के स वैयाकरणाचाय थे । सह /गलत
4 अप श
ं म उ च तर य का य रचनाएं उपल य है । सह /गलत
5 पा ल ाकृ त क यंजन प रवतन क दशाएं अप श
ं म भी याशील ह ।
सरल/गलत
17.7 संदभ ध
1 डा. राजम ण शमा; ह द भाषा इ तहास और व प, वाणी काशन 21 P द रयागंज,
द ल
2 लूमफ ड - ल वेज वो यूम P 1929 लंदन पृ. 267-276
3 डा. भोला नाथ तवार ; भाषा व ान कताब महल, इलाहाबाद
4 डा. राजम ण शमा; भाषा चंतन, भाषा व ान वभाग, काशी ह दू व व व यालय,
वाराणसी
351
इकाई-18 आधु नक भारतीय आय भाषाओं का प रचय
इकाई क परे खा
18.1 उ े य
18.2 तावना
18.3 आधु नक भारतीय भाषाएँ
18.3.1 आधु नक भारतीय आय भाषाएँ
18.3.2 आधु नक भारतीय आय भाषाएँ. संक पना एवं वग वभाजन
18.4 वचार संदभ7श दावल
18.5 सारांश
18.7 अ यासाथ न
18.8 स दभ थ
18.1 उ े य
तु त इकाई के अ ययन के प चात आप:-
आधु नक भारतीय आय भाषा क संक पना, व थ तथा वग करण पर काश डाल
सकगे ।
व भ न आधु नक भारतीय आय भाषाओं के े 'तथा उसक वशेषताओं से आप
प र चत हो सकगे ।
एक ह मू ल से उ प न पर पर संब इन भाषाओं क सामा सक सं कृ त के वकास के
रा य मह व को आप रे खां कत कर सकगे ।
18.2 तावना
दसवीं शती के आसपास भा षक-चेतना म एक और बदलाव प रल त होता है ।
म यकाल क अं तम कड़ी अप श
ं से व भ न े क बो लय के प अपना अलगाव द शत
करने लगे । यह या चलती रह चौदहवीं शती तक अनेक बो लय ने मादा का प हण
कर लया । यध प दसवीं से चौदहवीं शती तक क रचनाओं म अप ंश क वृि त व यमान है
और भाषाओं के वकास क भी, इस लए इसे सं मण काल या अवह काल कहा जाता है ।
व याप त के क तलता क भाषा यह अवह है- 'दे सल बयना सब जन म ा तं तैसहो जंपहो
अवह ा । ' संदेश रासक, ाकृ त पगलम पुरातन बंध सं ह, उि त यि त, करण, वण
र नाकर, ढोला मा रा दूहा और पृ वीराज रासो इस काल क मु ख रचनाएँ ह ।
ई वी सन ् 1000 के प चात ् और ई. सन ् 1400 के पूव -भाषा प म वक सत मु ख
आधु नक भाषाएँ ह- हंद , बंगला, अस मया, उ डया, गुजराती , संधी, पंजाबी, मराठ और पहाड़ी
। ये भाषाएँ पूणतया अयोगा मक हो गयीं । ल प और उ चारण म अंतर आ गया ।व तु त:
व नयाँ प रव तत हो गयीं । अनेक वदे शी व नय और श द का योग होने लगा । श द
प और धातु प क सं या कम हो गई । गुजराती, मराठ को छोड़कर शेष भाषाओं म
352
केवल दो लंग रह गए । वचन भी दो ह रह गए । न कष प म आमा.अप ंश क अपे ा
और सरल करण क ओर उज़ख हु ई ।
354
अव श ट है जैसे - ज- पूत हं (कम), भौन हं (अ धकरण) । डॉ. यसन ी यय -
'ई' को बाहर वग क वशेषता मानते ह । डॉ. चटज भीतर वग म भी 'ई सभी
यय खोज नकालते ह । प टत: डॉ. चटज ने बार भीतर वग करण के डॉ.
यसन के सम त आधार को खा रज कर दया वे एक नया वग करण भी पेश करते
ह -
1. उद य - संधी, लँ हद , पंजाबी ।
2. ती य - गुजराती, राज थानी ।
3. म यदे शीय-पि चमी ह द ।
4. ा य - पूव ह द , बहार , उ ड़या, अस मया, बंगला ।
5. द णा य-मराठ ।
न चय ह डॉ. चटज का यह वग करण बहु त मौ लक नह ं । इसम ह द के व वध
प को अलग भाषा मानकर दूसरे -दूसरे वग म रखा गया है । भारतीय सं वधान, लोक-
यवहार, भाषा क कृ त, सा हि यक भाषाओं के मक वकास तथा उसक बोधग यता को
दे खते हु ए यह वग करण समीचीन नह ं तीत होता ।
डॉ. धीरे वमा ने डॉ. चटज के ती य वग से राज थानी को तथा ा य वग से पूव
ह द एवं बहार को हटाकर म यदे शीय म पि चमी ह द को साथ रख कर चटज के
वग करण का संशोधन तु त कया । डॉ. हरदे व बाहर ने दो वग बनाए - (1) ह द वग
म य पहाड़ी, राज थानी, पि चमी ह द , पूव ह द (ये सभी ह द क उपभाषाएँ ह) । (2)
ह द तर 'वग - उ तर (नेपाल ), पि चमी (पंजाबी, संधी, गुजराती), द णी ( संहल , मराठ ),
पूव (उ ड़या, बंगला, अस मया) ।
उपयु त वग करण म अ धकांशत: े ीयता को मु ख आधार माना गया है, जब क
मू ल उ गम तथा थानीय संपक भाषाओं का भाव ह कसी भाषा क वृि त को नि चत
करते ह । बहार को ह द वग म माना जाता है जब क वह बंगला से भी वृि तगत सा य
रखती है । कं तु भा षक वकास के दौरान बहार भाषा ह द के अ धक समीप आती गयी ह,
अत: इसे ह द के साथ रखना अनु चत नह ं ह ।
डॉ. राजभ रप के अनुसार सवमा य वग करण का व प न न ल खत होगा -
1. ह द - पि चमी, पूव , बहार ।
2. ह द के नकट-पहाड़ी, राज थानी ।
3. ह द से दूर होती पर ह द के सा क वै श य से संयु त - गुजराती,
मराठ ।
4. ह द से पूण अलगाव द शत करती भाषाएँ- लहँ दा, पंजाबी, संधी, अस मया,
बंगला, उ ड़या नेपाल , संहल ।
355
18.3.2 आधु नक भारतीय आय भाषाएँ : संक पना एवं वग वभाजन
356
उदाहरण - हे कड मा हु खे, व पुट हु आ ।............ त ढण उ ह जो व डो पुट म न म
ह ।
3. पंजाबी - यह पूव पंजाब (भारत) तथा पि चमी पंजाब (पा क तान) क भाषा है । इस
े म पाँच न दयाँ- रावी, सतलज, यास, चेनाब और झेलम है । इसी लए पंजाब कहा
जाता है - पंच (पाँच), आव (न दयाँ) । इसक डोगर आ द कु छ उपभाषाएँ ज मु े
तक फैल है । माझी, डोगर , मालबाई पोबाधी, राठ , म यानी इसक मु ख बो लयाँ है
। पंजाबी क ल प गु मु खी तथा डोगर क टाकर है । पंजाबी बोलने वाले स स क
धानता के कारण इसे ' स खी' भी कहा जाता है । इस भाषा का नखरा प अमृतसर
के आसपास मलता है । 13 वीं शती से इसका सा ह य मलता है । गु नानक , एवं
गु ओं तथा संत क वाणी का सं ह 'गु ं सा हब' पंजाबी का
थ स एवं ाचीन
धा मक और सा हि यक थ
ं ह । पंजाबी क लोक सा ह य परं परा पया त समृ है ।
नानक, वा रसशाह, मोहन संह, अमृता ीतम इसके मुख सा ह यकार है ।
संयु त वर को वर भि त लगाकर बोलने क वृि त पंजाबी क मु ख वशेषता है -
टे शन - सटे शन, म - म तर । व व श द का भी योग मलता है - स त,
अ , अ स, पु तर । ी लंग बहु वचन म सं ा के साथ आँ (दाती, रायणाँ) का योग
होता है । तयक बहु वचन के साथ यह वृि त ी लंग और पुि लंग म भी दखाई
दे ती है - घरॉ, जु आँ । ह द म इस ि थ त म ओ का योग होता है । पंजाबी के
कई परसग ह द से भ नता दशाते ह । यथा- ह द कम तथा करण म मश: को,
से यु त होता है जब क पंजाबी म मश: नूँ थ का । ं -का, के, क
ह द संबध
पंजाबी म मश: दा, दे , द हो गए ह । पंजाबी ी लंग वशेषण का
आव यकतानुसार वचन प रव तत हो जाता है । सवनाम रचना भी ह द से अलग है ।
यथा ह द हम, तु म, तु हारा, पंजाबी म मशः-अ सी, तु सी, असाड़ा तु साड़ा । ह द
का वतमानका लक कृ दं त प-ता, ते, ती पंजाबी म मश: दा, दे , द हो जाता है ।
ी लंग सू चक या को बहु वचन बनाने के लए पंजाबी म मु य तथा सहायक या
दोन म प रव तत कया जाता है । जब क ह द म केवल सहायक या भा वत
होती है यथा-करती थीककरद याँ सन ।
4. गुजराती : गुजरात क भाषा होने के कारण इसे गुजराती नाम से अ भ हत कया गया
। गुजरात े म 'गुजर जा त का भु व था । गुजर से ह गुजरात और इससे
गुजराती बना । पहले तो यह महारा गुजरात के सि म लत प बाचई क भाषा थी,
वाद म महारा और गुजरात के प म ब बई के वभाजन के प चात गुजरात के
राजकाज क भाषा बनी । यह कारण है क मु ंबई या महारा म गुजराती बोलने वाल
क पया त सं या है । इसक मु ख उपभाषाएँ है- कालवाडी, सोरठ , गो हलावाड़ी एवं
का ठयावाड़ी । कं तु इनम वभेद अ धक नह ं है । अहमदाबाद के आसपास क गुजराती
357
प र न ठत एवं सा हि यक गुजराती है । नागर , ब बईयाँ, गास डया ,सु रती, अनावला
पाट दार बडोदर , प नी, का ठयावाड़ी आ द इसक उपबो लयाँ ह ।
12 वीं शती के आसपास से गुजराती सा ह य मलना ारं भ होता है । हे मच द के
याकरण म भी ाचीन गुजराती के उदाहरण मलते ह । नरसी मेहता, ेमानंद, सामल
भ , रे वाशंकर आ द गुजराती के ाचीन सा ह यकार ह गोवधनराम पाठ , नानालाल,
ं ी रमणलाल दे साई, काका कालेलकर, उमाशंकर जोशी, आ द
उमाशंकर मा णक लालमु श
मु ख आधु नक सा ह यकार ह । गुजराती क अपनी ल प है, जो दे वनागर से पया त
समानता रखती है । यह ल प कैथी ल प से भी मलती जु लती है ।
नागर अप श
ं से वक सत गुजराती म ह द के समान ह म यकाल न भाषा के
संयु त यंजन के थान पर पूव वर भी तपू त के लए द घ करण क वृि त
व यमान है- पृ ठ -धीठा । बोलचाल म क् , ख,
ग व नयाँ च,् , ज ् म बदल जाती है । यथा-ला यो-ला यो । सू-ह (सू रज-हू रज) ।
दं य और मध य व नयाँ आपस म बदल जाती ह । यथा-द ढ़ो-डीढ़ो । वचन दो और
लंग तीन ह । ह द परसग 'का', 'के', 'क ' और ' लए' गुजराती म मश: 'नौ', 'तो',
'नी' और 'मारे ' प म मलते ह । सवनाम म ह द और गुजराती म पया त समानता
है । यथा- ह द -हू ँ (म), गुजराती-आम, अम (हम), ह द -तू ँ (तू, गुजराती-तमे, ते (वह)
आ द । वतमान सहायक या के प म हू ँ छे और भू त सहायक या म हतो हती
का योग होता है ।
5. मराठ : मराठ वतमान महारा ांत क भाषा है । इसम वदभ, मराठवाड़ा, क कण
आद दे श आ जाते ह । ब बई, पूना और नागपुर मराठ के स के ह । यध प
मराठ क कई बो लयाँ ह. कं तु पूना के पास बोल जाने वाल मराठ प र नि ठत
मराठ है । कोकड़ी बोल वड़ भाषाओं से भा वत है, जो क कड़ म बोल जाती है ।
मराठ क मू ल ल प, 'मोड़ी' है, िजसका योग कम पढ़े लखे लोग वारा आज भी
दै नक काय से होता है परं तु सा ह य और वतमान म राजकाज म यु त मराठ के
लेखन हे तु दे वनागर ल प ह मा य है ।
मराठ का वकास महारा ाकृ त से मा य है, कं तु यह मा यता ववादा पद है ।
व तु त: महारा ाकृ त शौरसेनी क परव त म य े क प र नि ठत सा हि यक
भाषा थी । यह द ण से होकर उ तर े म आई ।
मराठ के अ भलेख 9 वीं - 10 वीं शता द से मलते ह और सा ह य 12 वीं शती
उ तरा से उपल ध है । मु कु द राय इसके आ द क व ह । नामदे व एवं ानदे व इसके
स ाचीनकाल न सा ह यकार ह । इसके प चात तु काराम, रामदास, ीधर, एकनाथ,
राम जोशी जैसे सा ह यकार हु ए ह । आधु नक काल न रचनाकार म अ ,े ख डेकर,
फड़के, ह रनारायण आ टे एवं वजय तेदल
ु कर आ द स है । द लत सा ह य का
ज म ह मराठ म हु आ । यो तबा फुले, दया पंवार, शरण कु मार ल बाले, शांताबाई
358
का बले, बेबी का बले, कु मु द पावण आ द ने इसे समृ कया । आधु नक सा ह य क
व वध वधाओं, नाटक, क वता, समी ा, कहानी, आ मकथा आ द का पया त वकास
मराठ म हु आ िजसका भाव अ य आधु नक भारतीय भाषाओं पर भी पड़ा ।
मराठ एवं गुजराती क संरचना म पया त समानता है । मराठ म त सम श द के
अतर त त च वड़ एवं फारसी श द क सं या भी पया त है । क् ' व न मराठ
म सु र त है । ग-स, ण हो गया । इसम दो वचन और तीन लंग का वधान ह ।
ह द और मराठ के परसग म वषमता ल त होती है । यथा - करण-ने शी,
सं दान लाद ते, अपादान - अन न ् इन । सवनाम प म भी भ नता व यमान है ।
यथा ह द - म, हम, मु झ, तु म, वह मराठ म मश: मी, अि ह मज, तू तो, हो मं
बदल जाते ह । ह द क भाँ त मराठ म भी वतमान का लक ट और भू तका लक
या का - ल प मल जाता है । याथक सं ा एकरांत है जब क ह द म
अकारांत है- करना-करण ।
6. बंगला - बंगला' मागधी ाकृ त के अप श
ं प से वक सत है । बंगला अ वभािजत
बंगाल क भाषा है । इसके दो प ह - (1) पूव और (2) पि चमी । पूव का के
ढाका है जो बां लादे श क राजधानी है और पि चमी का कलक ता । बंगला के मौ खक
और ल खत प म ह नह ं नागर और ामीण प म भी अंतर पाया जाता है । यह
ाचीन दे वनागर से वक सत बंगला ल प म लखी जाती है । सा ह य- समृ क
ि ट से आधु नक भारतीय आय भाषाओं म बंगला मह वपूण थान क अ धका रणी
है । पि चमी सा ह य के संपक म सबसे पहले बंगला भाषा ह आई, फल व प अनेक
नवीन सा हि यक वधाओं का बंगला से ह हु आ । और बंगला से होकर अ य आधु नक
भारतीय भाषाओं म उनका वकास हु आ । भ त - क व चंडीदास एवं चैत य महा भु
बंगला के ाचीन सा ह यकार ह । आधु नक काल के स सा ह यकार म राजा
राममोहन राय, माइकेल मधु सु दन, ई वरच व यासागर, बं कमच रवी नाथ
ठाकु र, वजे लाल राय, शरतच , तारा आ द के नाम उ लेखनीय ह । डॉ. सु नी त
कु मार चटज बंगला सा ह य का ारं भ 950 ई. से मानते ह ।
सा हि यक बंगला सं कृ त के त सम श द से भर पड़ी है । बंगला म अ-ओ (जल-
जोल, क व-को व), आ-ओ (मलो-मालो), व-ब (एक-वक), य-ज (यइा-जइा, योग-जोग),
स-श (सखर- शखर) हो जाता है ।
संयु त यंजन का त वीकरण हु आ है - व या - व जा, पर ा - पो र सा । इस
संदभ म उ लेख है क यह पा ल और ाकृ त क कृ त के आ मसात कए तीत
होती है ।
या म लंग प रवतन नह ं होता है- ह द म चलूँगी के लए बंगला म आ म चा लबो
। वचन दो ह । बंगला ह द क अपे ा अ धक योगा मक भाषा है । अवधी स श
वशेषण आकारांत है । कं तु उ चारणगत भ नता उनम दूर का बोध कराती है । भू त
का लंक या का - 'ल', प भोजपुर तथा भ व य - च प एवं वतमान - त' प
359
अवधी से समानता रखता है । कं तु वा या मक संरचना म या संरचना भोजपुर और
अवधी से भ न है ।
7. असमी : 'असमी' (अस मया) असम दे श क भाषा है । यह मागधी ाकृ त के पूव प
से वक सत हु ई ह । यह कारण है क यह बंगला से पया त समानता रखती है ।
कं तु संरचना मक ि ट से 'अस मया बंगला से पया त भ न है । सच यह है क
असम म भी बंगला सा ह य का बहु त दन तक भु व रहा, इसका प रणाम यह हु आ
क असमी सा ह य का वकास अव हु आ । इस लए असमी अ धक उ लेखनीय
सा ह य का अभाव है । इधर सां कृ तक चेतना और जनजागृ त के प रणाम व प
असम म असमी के चार- सार के लए आ दोलन ने जोर पकड़ा । फल व प नव
लेखन का चार- सार बढ़ा । सा ह य क भाँ त इसका भाषागत अ ययन भी सी मत है
। अतएव उसक बो लय का उ लेख क ठन ह । असमी पर चीनी, त बती, प रवार
कु छ भाषाओं का भी भाव है । 13 वीं शती से असमी का सा ह य मलने लगता है ।
हे म सर वती को असमी का क व माना जाता है । असमी के ग य तथा सु यवि थत
इ तहास क परं परा काफ पुरानी है । असमी क अपनी ल प है । कं तु व बंगला से
बहु त मेल खाती है । वीरे भ ाचाय तथा इं दरा गो वामी असमी के आधु नक
उ लेखनीय रचनाकार ह ।
असमी म 'च',् ' ' के थान पर 'ष',् और 'स'् के थान 'ह', अथवा 'ख', हो जाता है ।
य-ज और व-ब ् का प रवतन ह द और बंगला के समान है । ड़, ढ़, र, र के प म
उ च रत होता है । कम-क, करण-ए, ऐर, सं दान-लै, लैके, संबध
ं -अर, ओर, अ धकरण-
अत, अते असमी के परसग है । या के साथ लंग और वचन का भेद असमी म
नदारत है । सभी के लए एक पता है । यथा- तु म या तो मालो के खइशा (जू खाता,
तु म खाते हो, तु म खाती हो के लए) यु त होता है । भू तका लक या का ल प
और भ व यका लक 'व' प बंगला के समान ह ।
8. उ ड़या : उड़ीसा ा त क भाषा उ ड़या है । मागधी के द णी प से वक सत उ ड़या,
बंगला भाषा के काफ नकट है । इसका कारण यह है क कभी यह े बंगा लय से
बहु त अ धक भा वत था । पुराने शलालेख ह उ ड़या के ाचीन प के प रचायक है
। उ ड़या भाषा क सीमाएँ वड़ (त मल) एवं मराठ भाषा क सीमा से जु ड़ी होने के
कारण इसम त मल एवं मराठ के पया त श द ह । यह स है क क लंग शासक
खारवेल वड़ भाषा-भाषी था । अशोक के आ मण के प चात ् इस े क भाषा ने
पुन : अपने मू ल प को ा त कया ।
यद प उ ड़या म थानीय भाषागत भेद व यमान है तथा प उ ड़या क बो लय का
प ट प प रल त नह ं होता । वैसे इसका एक कारण है इस भाषा का भाषा
वैइग़ नक-अ ययन का अभाव । इस ि थ त म इसक उपबो लय का उ लेख कर पाना
क ठन ह । उ ड़या का ाचीन सा ह य मु य प से कृ ण भि त का सा ह य है ।
बलरामदास, जग नाथ, पं चसखा, द नकृ ण, गोपालकृ ण आ द म यकाल के यात
360
क व है । फक र मोहन गंगाधर, गोपालच नंद कशोर, कं ु तनकुमार नीलक ठदास,
आधु नक क व ह । गोपीनाथ महि त एवं द ि तरं जन पटनायक ग य के लेखक ह ।
इसक एक वतं ल प है, जो ाचीन दे वनागर एवं बंगला के अ यंत नकट है ।
उ ड़या म ह द क ह भाँ त य,् व,् मश: ज,् ब ् म प रव तत हो गया । श, ष ् का
उ चारण स ् जैसा है । यह वृि त बंगला और ह द क भी है । यह मराठ प हो
गया । मन, लोक, गण बहु वचन सू चक श द है, िजनका योग बहु वचन प न मत म
होता है । पूव ह द के समान सं ा के साथ इवा तथा उवा यय का योग होता.
है । कम एवं सं दान कु, अपादान म , संबध
ं म न, अ धकरण म 'र्' व श ट पर
सग य योग है । सवनाम क प रचना सरल है । भू तकाल म 'ल' भ व य म 'ब'
वतमान म इड का योग होता है । यथा-क र ल क रबी, करई ।
9. नेपाल : यह पहाड़ी का पूव प है । व तु त: यह नेपाल क राजभाषा के प म
मा यता ा त है । थ हर और डोटाल इसक दो मु ख बो लयाँ ह । इसके उ चारण
म आनुना सकता अ धक है । लंग भेद क व च ता के लए यह स है । ि य
के लए ी लंग शेष के लए पुि लंग का यवहार होता है । बहु वचन बनाने के लए
ह श द का योग होता है । पुि लंग एकवचन ओकरात तथा बहु वचन आकारांत होता
है । कता म - ले, कम एवं सं दान म - ताई, करण अपादान म वार, संबध
ं म-को,
का, क और अ धकरण म मा, माँ परसग य योग स ह । सवनाम म स (मै), तं
(छ, त म आयु ( वयं) उ लेख है । 'ल' भ व य का सू चक है, जब क पूव भाषाओं म
यह भू तका लक या का सू चक है ।
10. संघल : इस भाषा का मु ख े द णी लंका है । यह ात तो नह ं क भारत के
कस े के लोग पाँचवी सद ईसा पूव वजय राजा के साथ लंका पहु ँ चे पर कु छ
भारतीय अव य गए और यह ं के बनकर रह गये । इ ह ं के साथ यह भाषा लंका
गयी।
11. मै थल : सं वधान क आठवीं अनुसू ची म शा मल ह द क बोल मै थल भारतीय
आय भाषाओं म एक मु ख भाषा के प म ति ठत हो गई है । इस भाषा क कु छ
वशेषताएँ न नो त ह-
बहार ह द क बो लय म एकमा सा ह य संप न भाषा है मै थल । व याप त क
पदावल मै थल क कालजयी रचना है । इस भाषा म आज े ठ सा ह य रचा जा रहा
है । मै थल पर बंगला का भाव प ट प रल त होता है ।
361
सं ा श द के 'वा' तथा 'उवा' यय लगाने क वृि त मलती है जैसा बेटा से बेटवा,
छोरा से छोरवा आ द इकारानत सं ाओं म भी इया - और ईवा यय लगते ह जैसे
धोबी, धो बया-धो बवा आ द ।
अन यय लगा कर बहु वचन बनाने क वृि त ल त क जा सकती है- बात से
वातन, लागे से लागन आ द । परसग म कम का 'के' करण और अपादान के सो,
ं के 'कर' फेर तथा अ धकरण के 'मे' भोजपुर से मलते है । केवल अ धकरण का
संबध
'मो' मला है ।
सवनाम म तो (तू तोहनी(तु म), तोरा (तु हारा), ओ(वह) जोड़ा जाता है । सवनाम के
कु छ प काफ भ न है जैसे मोरा, तु करा हु नका । छै (है), छएनी (हो), छ , हू
छतीनी मानक ह द से काफ दूर ह, कयाकलापो म ज टलता भी है । सामा य भू ऊ'
लगाकर बनता है तथा भ व यत काल राई' ओर उमहर लगाकर बनता है । अ यय म
अनूठाम (यहाँ) ओ ठाम (वहाँ), इमहर-उमहर(इधर-उधर), और वशे ल उ लेखनीय है ।
12. ह द और उसक उपभाषाएँ : ह द कह ं एक थल क भाषा नह ,ं वह एक म डल
क उपभाषाओं, बो लय से सू त है । इस म डल के अंतगत, पूव तथा पि चमी ह द
के दोन प के अ त र त राज थानी, बहार और पहाड़ी बो लय के े म आते ह ।
पंजाबी भी इस े का अंग है, फल व प पि चम म पंजाब से लेकर पूव म बहार,
उ तर म नैनीताल क तलहट से लेकर द ण म बालाघाट तक ह द का फैलाव है ।
और इन सब े क उपभाषाओं, बो लय के सि म लत प एवं वक सत प का
नाम ह द है, ठ क वैसे जैसे अप श
ं , ाकृ त और पा ल (यह इस लए भी, य क
आज भी ह द इन े म बोधग य है, और भा षक योग का मा यम है । थानीय
व या मक भ नता भले हो । एक बात और, आज रा भाषा तथा राजभाषा के प
म आधु नक भारतीय आय भाषाओं के े म ह नह ं समू चे दे श म यह संपक भाषा
प म स य है ।
ह द क नामकरण के संदभ म यह मत पूणतया मा य नह ं क यह नाम मु सलमान
वारा फारसी म स-ह होने के कारण संधु - ह दु या ह द बनने के कारण दया गया
। स-ह प रवतन पा ल काल म भी हु आ है, ाकृ त म भी यह प रवतन य है ।
अप श
ं क तो बात ह नह ं है ।
ह द का वकास अप श
ं के अवसान के साथ ह ारं भ हु आ । यहाँ तक क अप श
ं
के परवत व प अव को पुरानी ह द कहा गया ।
ह द दे श पया त व तृत है । आधु नक भाषाओं के वकास के पूव इस दे श म
मु खत: पाँच ाकृ त थी । उपनागर अप श
ं से राज थानी, शौरसेनी से पि चमी ह द,
अधमागधी से पूव ह द , मागधी से बहार , ह द , खस से पहाडी ह द का वकास हु आ ।
इस कार ह द क पाँच उपभाषाएँ हु ई - (1) राज थानी ह द (2) पि चमी ह द (3) पूव
ह द (4) बहार ह द (5) पहाडी ह द ।
362
इन उपभाषाओं क अपनी खास सा हि यक परं परा है । इनक बो लयाँ और उप बो लयाँ
ह । इनम से कसी एक क कोई बोल सा हि यक तर को ा त करके समूचे म य दे श क
सा हि यक भाषा बनती रह । राज थानी क डंगल भाषा, पि चमी ह द क वजभाषा, पूव
ह द क अवधी और पुन : पि चमी ह द क खडी बोल को मश: यह गौरव ा त हु आ ।
इन भाषाओं का व तार समय-समय पर म यदे श के बाहर संपण
ू भारत म भी होता रहा ।
(क) राज थानी ह द - राज थान दे श क भाषा का नाम राज थानी है । इसके अ त र त
संध और ' म य दे श के भी कु छ भाग म यह बोल जाती है । यसन ने राज यान के
भाषा प के लए इसे एक सामू हक नाम के प म यु त कया है । राज थानी का ाचीन
प डंगल यापक प से सा हि यक यवहार क भाषा थी । रासो ं ो, ढोला मा
थ रा दूहा ,
कसन ि मणी र बे ल आ द म इसी भाषा का योग हु आ है । राज थानी कव य ी मीरा,
संत क व दादूदयाल, चरणदास, ह रदास आ द क वा णयाँ स ह । राज थानी म ग य क
परं परा मलती ह । राज थानी क अनेक बो लयाँ और उप बो लयाँ ह िजनम मु ख ह-
मारवाड़ी, जयपुर , मेवाती, मालवी ।
मारवाड़ी का े जोधपुर , बीकानेर, कशनगढ़, मेवाड़, सरोह , पालनपुर , जैसलमेर,
अमरकोट, बीकानेर, जयपुर तक फैला है । वशु मारवाड़ी जोधपुर तथा उसके आसपास क
बोल है । जयपुर जयपुर नगर क बोल है । बूँद और कोटा म भी इस बोल से स ब
उपबोल च लत है । जयपुर का ह दूसरा नाम वॉडी है । मेवाती-मेओ जा त से संबं धत
थान मेवाती और बोल मेवाती कहलायी । यह अलवर, भरतपुर के उ तर पि चमी भाग तथा
गुडगाँव ांत क बोल है । शु मालवी का े उ जैन, इ दौर और दे वास है ।
वशेषताएँ -
(1) इस उपभाषा म टवग य व नय क धानता है ।
(2) वर के साथ और अंत म ल वन ाय: क व न म बदल जाती है ।
(3) ऋ और स लेखन म च लत ह कं तु औ चार णक वशु ता सु र त नह ं है ।
(4) ण, ड का योग अ धक होता है ।
(5) उ तर पि चमी तथा द णी े क बो लय म च का स,् ज ् का ज़ और झ का य,
स ् का ह उ चारण कया जाता है ।
(6) महा ाणी करण से कंत से कैथ, अ प ाणीकरण समा ध से समा द के अनेक उदाहरण
मलते ह ।
(7) एकवचन से बहु वचन बनने के लए सामा य ह द ओं के थान पर आँ का योग
सवा धक च लत है- खेत-खेती, रात-राती ।
(8) ओकारांत एकवचन को बहु वचन बनने के लए आकारांत कर दया जाता है । यथा
तार -तारा, घोड़ो-घोड़ा ।
(9) राज थानी म सयोगा मकता के त व अपे ाकृ त अ धक ह ।
363
(10) ह द क ह भां त इसम 'भी परसग यु त होते है । क ता ने (मालवी तथा मेवाती
म यु त ) कम-को, कूँ ने, ने, ना, रै ताई, रहई, त; करण, ती, ते, थी, से-हंत, नइ,
क र ऊँ, स दान-कूँ को, ने म कािज बेइ मोट, अपादान - ताइ, सड, थड, हु त, पासर,
ं - रा, ३, र , का क , के, केर, केरा-अ धकरण-म, म ध माह, पर उप र, स र आ द
संबध
परसग का योग होता है । इनम से अ धकांश शु ह द म यथावत यु त होते ह
। सवनाम का प ह द के समान ह है कं तु परसग क व वधता उ ह व वध
प म ढाल दे ती है । यथा - कम म म का बहु वचन हांन, करण म हांती, सं दान
म हांज,े अयादान हांती, संबध
ं अ ह णी व श ट तीत होते ह । वतमान सहायक
या-हू ँ भू त-थयो, हु ई-भ व य-स अथवा ल प ह- दे खसी, बूडेला ।
(ख) पि चमी ह द - इस उपभाषा का े पि चमी म पंजाबी और राज थानी क सीमा से
आरं भ होकर पूव म अवधी, बघेल क सीमा, उ तर म पहाडी, द ण म मराठ क सीमा तक
व तृत है । इसक पाँच मु ख बो लयाँ ह - खड़ी, बाँग , ज, क नौजी और बूदे ल ।
ब बई, म ास, हैदराबाद के मु सलमान घर म यु त दि यनी ह द इसी उपभाषा वग
क है । इस कार छ: बो लय म तीन-खडी, बाँग और दि यनी आकार बहु ला तथा अ य-
ज, क नौजी,
बूदे ल बो लयां ह । इनम खड़ी और ज ह मु ख है शेष इ ह ं बो लय क उपबो लयाँ
है ।
वशेषताएँ -
(1) पि चमी ह द म अ ववृ त व न है ।
(2) ऐ, औ मू ल वर ह ।
(3) य, व का उ चारण सु र त है ।
(4) ण, श का भी प ट उ चारण कया जाता है ।
(5) कु छे क बो लय म ल व न भी मलती है ।
(6) आकार बहु ला बो लय म 'ड' क तु लना म तु, न क तु लना म ण, ओकार बहु ला
बो लय म ण, ड, श क तु लना म मश: न, र, स अ धक बोला जाता है ।
(7) उ चारण म महा ाण व नयाँ अ प ाण हो जाती ह । '
आकरांत तथा ओकारांत पुि लंग श द को वा य म योग करते समय एकारांत कर
दया जाता है । बहु वचन म आ को ओ तथा ओ को अस कर दया जाता है ।
पि चमी ह द के परसग ह - क ता - ने, न, ने, कम-को, कस को, करण-अपादान -
त, सेती, से, सबंध-का,के,क ,को अ धकरण - म, मै । पर, त । सवनाम म - म, ह , हमारा,
हमार , हारो, तु म, तहारो आ द उ ले य है ।
वतमान सहायक या है- ह, ह , हो, भू त- था, थे, हतो, हो आ द, भ व य- ग, गे, गी
प जैसे-चलेगा, चलेगा आ द ।
364
(ग) पूव ह द - इसका े काफ व तृत है । कानपुर से मजापुर , लखीमपुर नेपाल
सीमा से दुग-ब तर क सीमा तक पूव ह द का े फैला हु आ है । अवधी, बघेल ,
छ तीसगढ इसक तीन मु ख बो लयाँ है । इन बो लय म पार प रक सा य अ य उपभाषा क
बो लय से अ धक है । इन बो लय म सा हि यक मह ता सफ अवधी क है, जो म यकाल म
सा हि यक भाषा भी रह है । अवधी क उपि थ त पा ल काल म भी रह है । आज भी इसम
उ लेखनीय सा ह य सृिजत हो रहा है ।
इस उपभाषा म ग ् व न के थान पर न,् ल के थान पर र तथा श, ष के थान पर
स ् बोला जाता है । य, व को मश ए, उ अथवा ज, ए बोलते ह । यथा - युवा - जु वा, यश -
जस, वक ल - उक ल । श द के म य तथा अंत म ड व न नह ं आती । ऐ, औ मूल वर न
होकर संयु त वर है । ऐ का उ चारण अइ और औ का उ चारण अड होता है । यथा - पैसा
- पइसा औरत - अडरत ् । 'अ' पि चमी ह द क अपे ा संव ृत तथा वृ ताकार है । पि चमी क
'र' बन गयी । तु लना म इ ड का उ चारण अ धक ह व है । पि चमी ह द क ड, ढ ल
व नयाँ पूव म र बन गयी । सू ंता श द का एकवचन, तयक एकवचन, सामा य बहु वचन एक
समान रहते ह । कता कारक म 'ने' परसग का योग नह ं कया जाता । शेष म परसग है -
कम - सं दान - क का, म ह, जू के, को कइ । सं दान - कहू याँ, बरे , बदे , बाढ़े । करण -
अपादान - से, से न, सती, सन, लग, भइ, हु त, म, वे । संबध
ं - के, कर, केर, का, क कारे ,
अ धकरण - माँ, म, माँ ह माँझ, मझार पर, प, मइहाँ ।
या क प रचना इस उपशाखा म ज टल है । यह ज टलता तडतीय प के
अवशेष तथा सावना मक यय से उ प न होती है । यथा - म आता हू ँ क इस उपभाषा म
आइत-ई बोलते ह । खात नाह ं (तु म खाते य नह )ं , क हस का अथ है- उसने कह ं भ व य म
हू, ब का योग कया जाता है । अहै, आटे , बाटे आ द वतमान सहायक याएँ ह ।
(घ) बहार ह द - बहार ह द का े वतमान बहार ांत है । बहार क एक मु ख
बोल भोजपुर का अ धकांश े पूव उ तर दे श म पड़ता है । ऐसी ि थ त म बहार नाम
समीचीन नह ं रह जाता । बहार के अंतगत दो मु ख अ य बो लयाँ मै थल और मगह है ।
इन बो लय म इतनी वषमता है क डॉ. सु नी त कु मार चटज जैसे े ठ भाषा वै ा नक इ ह
एक वग म रखना उ चत नह ं समझते । मै थल म सा हि यक रचनाओं क परं परा मलती है ।
बहार उपभाषा पूव ह द क भाँ त आकार बहु ला है, अथात ् श द का अंत अ से
अ धक होता है । पूव ह द म अब 'अ' का उ चारण ाय: नह ं कया जाता, इस लए उ चारण
म श द यंजनांत होते जा रहे ह । बहार म अ का प ट उ चारण होता है,जैसे रामड,
कसडला । शेष व नय म बहार और पूव ह द म सम पता है । पूव ह द क तरह
बहार म भी सं ा के दो-तीन प च लत ह, जैसे सोनार, सोनखा सोनरऊ । तृतीया (करण
कारक) म परसग के अलावा वभि तयतमा भी अव श ट है, जैसे- रघुएँ (रघु से) ।
पूव ह द क ह भाँ त कता का परसग 'ने' यहाँ भी अनुपि थत है । अ य परसग ह-
कम- सं दान-के, क, लाग, वा ते, लेल, खा तर, करण अपादान-से, स, सज, सेती, सती, करते,
365
स बंध- क के, केर, क, केरा. अ धकरण-म, मो, म, प र, पर । प टत: कम-सं दान को
छो कर बहार ह द के अ धसं य परसग, पूव ह द के ह ह ।
सवनाम म तोहनी तोहरनी हमनी, हमरनी, व श ट योग ह । पूव ह द म- तोहार,
हमार, हमन यु त होता है । बहु वचन बनाने के लए सभ, लोका न लोगा न लोगन या
लोका न । यह वृि त मू लत: अवधी है । मै थल म सहायक या- छै , छह, अह, छल,
भोजपुर म बाटे , रहल, मगह म है, हल । मै थल म आदर अनादर आ द के यान से या
के के अनेक प वक सत हो गए ।
पहाडी ह द - पहाड़ी े क बोल होने के कारण इसे इसे पहाडी ह द कहा गया । नेपाल ,
ँ ी, तथा गढ़वाल इस
कु मायून े क मु ख बो लयाँ ह । सा हि यक योग क ि ट से मश:
नेपाल तथा गढ़वाल मह वपूण ह । गढ़वाल और कु माऊँनी का भाषा वै ा नक अ ययन भी
हु आ है । कु माउँ नी म भी छटपुट सा ह य इधर दे खने म आ रहा है । ाचीन काल म यहाँ
अनाय जा तयाँ नवास करती थी । कं तु इस े म ऋ षय -मु नय के साधना के था पत
हो जाने से आय भाषाओं का भाव बढ़ता रहा ।
पहाडी वन यव था ाय: ह द के समान है । आ का उ चारण कह ं कह ं अ धक
' ववृ त ह । ए, ऐ का उ चारण त सम श द के साथ अइ, अड या आइ, आड करने का
य न कया जाता है । प टत: ये दोन प रवतन पूव ह द से भा वत ह । यंजन व नय
म क ड, ड, ह, ह, रह, लह भी यु त होते ह । वर म सानुना सक वर का आ ध य है।
पुि लंग सं ाएँ ओ । आकारांत ह । बहु वचन न और अँ प ह । ी लंग सं ाएँ
तयक प म यथावत बनी रहती है ।
366
6. पु तर - पु , बेटा (पंजाबी भाषा का श द)
7. उद च - उ तर
8. ती य - पि चम संबध
ं ी
9. खेवे - पार
10. मू ध य व नयाँ - मू ा से उ च रत होने वाले व नयाँ ट, ल, ड और ढ, ब
11. अ प ाणीकरण - कम वास य न से उ चा रत यंजन- अ प? ाण कहलाते
ह । महा ाण यंजन के अ प ाण उ चारण को अ प ाणी
करण कहते ह जैसे खीला से क ला ।
12. महा ाणीकरण - याकरण के अनुसार कु छ व नयाँ (वण) िजनके उ चारण
म ाणवायु का वशेष यवहार करना पड़ता है महा ाण
कहलाती है, व न को महा ाण बनाने क या है यहाँ
जैसे क ला से खीला ।
13. परसग - कारक के च ह
14. अनुना सकता - मु ँह और नाक से उ चारण करने क या ।
15. सू त - नकल हु ई, बनी हु ई ।
18.5 सारांश
उपयु त ववेचन से प ट है ं के हास,
क आधु नक भारतीय आय भाषाएं अप श
अवहट क शु आत से अलग होकर अपना व प न मत करती ह । अप श
ं के व भ न प
से वक सत होने के कारण इनम पर पर संब ता के सू भी मलते ह, दूसर तरफ अलगाव के
कारक भी मु खर होते ह । श द संपदा के धरातल पर सं कृ त क त सम अप ंश और ह द
क त व श दावल का भाव अ धक दे खने को मलता है । हॉ, व या मक प रवतन या
संरचना मक या के कारण इनम अंतर भी दखाई दे ता है । ले कन यह अंतर बोधग य और
सहज है । यह कारण है क इस समूचे े म ह द बोधग य बनी है ।
आधु नक भारतीय भाषाओं क ल पयाँ भी दे वनागर से वक सत है । इनक संवेदना
और सं कृ त एक दूसरे को भा वत करती है । फल व प सा हि यक धरातल पर यह समानता
दे खी जा सकती है । एक का सा हि यक वकास दूसरे को भा वत करता है ।
आधु नक भारतीय आय भाषाओं का यह अ ययन भाषा-प रवतन क सहज या और
उसके कारण तथा मानवीय वृि त का भी प रचायक है । व तु त: भाषा प म वभ न ाकृ त
से वक सत ये भाषाएँ मानव-समु दाय क भावनाओं वच व थायन, वतं ता आ द क भी
कहानी कहती ह ।
18.6 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. आधु नक भारतीय आय भाषा क संक पना प ट करते हु ए इनका वग करण
तु त क िजए ।
367
2. क ह ं दो आधु नक भारतीय आय भाषाओं का प रचय दे ते हु ए उनका भा षक
एवं रचना मक वै श य रे खां कत क िजए ।
3. पूव और पि चमी ह द का अंतर प ट क िजए ।
ख. लघू तर न
1. बंगला भाषा क व या मक वशेषता ल खए?
2. मै थल भाषा के सवनाम, यापद एवं अ यय का उ लेख क िजए?
3. पूव ह द क या संरचना प ट क िजए?
4. दसवीं सद के आसपास भाषा म या बदलाव प रल त हु आ?
5. डॉ. हरदे व बाहर ने आधु नक भारतीय आय भाषाओं को कतने वग म बाँटा और
कस वग म कौनसी भाषा शा मल क ?
ग. र त थान क पू त क िजए
1. जयपुर का ह दूसरा नाम............................................. है ।
2. .................................................. का ाचीन सा ह य कृ ण भि त का
सा ह य है ।
3. संरचना क ि ट से.................................... बंगला से काफ भ न है । -
4. ............................ भाषा का मु ख े द णी लंका है ।
5. .......................... ने सबसे पहले भारत क भाषाओं का अ ययन कया ।
घ. सह /गलत चि नत क िजए
1. अस मया महारा ाकृ त से वक सत हु ई है । सह /गलत
2. सा हि यक बंगला म सं कृ त के श द का बाहु य है । सह /गलत
3. मै थल क या प रचना अ यंत सरल है । सह /गलत
4. नेपाल पहाड़ी भाषा का पूव प है । सह /गलत
5. ं से वक सत हु ई ह । सह /गलत
गुजराती नागर अप श
6. बंगला, अस मया और उ ड़या का पर पर सा य-वैष य प ट क िजए ।
7. मराठ और गुजराती का सं त प रचय द िजए ।
18.7 संदभ ंथ
डॉ. राजम ण शमा; ह द भाषा इ तहास और व प वाणी काशन, 21 ए द रयागंज
द ल
डॉ. हरदे व बाहर ; ह द . उ व, वकास और प, कताब महल ा. ल. इलाहाबाद
डॉ. उदयनारायण तवार ; ह द भाषा का उ गम और. वकास सा ह य भवन,
इलाहाबाद
368
इकाई-19 ह द का उ व तथा वकास - ह द क
उपभाषाएँ/बो लयाँ
इकाई क परे खा
19.0 उ े य
19.1 तावना
19.2 ह द का भौगो लक व तार
19.3 पि चमी ह द
19.3.1 खड़ी बोल
19.3.2 जभाषा
19.3.3 ह रयाणवी/ह रयाणी
19.3.4 बु दे लख डी
19.3.5 क नौजी
19.3.6 दि खनी ह द
19.4 पूव ह द
19.4.1 अवधी
19.4.2 बघेल
19.4.3 छ तीसगढ़
19.5 बहार ह द
19.5.1 भोजपुर
19.5.2 मगह
19.6 राज थानी ह द
19.6.1 मारवाड़ी
19.6.2 जयपुर
19.6.3 मेवाती
19.6.4 मालवी
19.7 पहाड़ी ह द
19.7.1 कुमायून
ँ ी
19.7.2 गढ़वाल
19.8 वचार संदभ श दावल
19.9 सारांश
19.10 अ यासाथ न
19.11 संदभ थ
369
19.0 उ े य
इस इकाई के मा यम से आप :
येक ांत म बदलती हु ई ह द क बो लय का सा हि यक और याकर णक अ ययन
कर सकगे ।
पड़ौसी ांतीय भाषाओं से ह द क व वध बो लय के भा वत होने क या के
वषय म जानगे ।
समय के साथ-साथ ह द क व भ न बो लय के वकास के सोपान का अ ययन
करगे ।
19.1 तावना
िजस कार सा ह य भाषा का मह वपूण प रचायक है ठ क उसी कार इस भाषा क
याकर णक वशेषताएँ, व वध प और ांतीय सीमाओं का अ ययन भी उसक मह वपूण
पहचान है । व वध ा त और दे श म फैल ह द उसके सा ह य और याकरण दोन को
भा वत करती है । साथ ह सीमाओं पर बोल जाने वाल ह द का दूसर आय व अनाय
भाषाओं को भा वत करना व वयं भा वत होना भी हमार रा य एकता का एक मह वपूण
ल ण है । तु त इकाई म ह द क व भ न बो लय , उनके ांतीय व तार, याकर णक
वशेषताएँ, सा हि यक वकास, ऐ तहा सक व राजनी तक मह व, अ यतन प रि थ त आ द का
वषद अ ययन कया गया है । इस अ ययन के मा यम से मानक ह द को भा वत करने
वाल ांतीय वशेषताओं के वषय म अ येता को सट क ान हो सकता है । ह द क इन
बो लय का अ ययन ह द के अ ययन का मह वपूण प है ।
370
3. ाचड अप श
ं सधी
4. महारा अप श
ं मराठ
5. अधमागधी अप ंश पूव ह द
6. मागधी अप ंश बहार , बंगला, उ ड़या, अस मया ।
ह द भाषा के भारत के वषाल भू-भाग क भाषा है । व तृत तौर पर यह भाषा
ह रयाणा, द ल , उ तर दे श, राज थान, उ तराखंड, छ तीसगढ़, म य दे श, झारख ड, बहार म
बोल जाती है । भाषा वै ा नक ि ट से इसे पाँच उपभाषाओं म वभ त कया जाता है । वे ह
- पि चमी ह द , पूव ह द , राज थानी ह द, बहार ह द और पहाड़ी ह द । येक
उपभाषा क अपनी बो लयाँ ह एवं उनक अपनी पदा मक और व या मक वशेषताएँ ह ।
19.3 पि चमी ह द
पि चमी ह द का उ भव शौरसेनी अप श
ं से तथा शौरसेनी अप श
ं का वकास
शौरसेनी ाकृ त से हु आ है । इसका े व तु त: ाचीन म यदे श है अथात ् पि चम से सर वती
म लेकर याग तक इसक सीमा है । बोलचाल क ि ट से पि चमी ह द उ तर दे श के
पि चमी भाग, द ल , पंजाब के पूव भाग, पूव राज थान, वा लयर, बु दे लख ड तथा
म य दे श के उ तर -पि चमी भाग म बोल जाती है । पि चमी ह द क बो लयाँ न न ल खत
ह –
371
लोक-सा ह य क ि ट से खड़ी बोल काफ वक सत है । पवाड़ा, नाटक, लोककथा,
लोकगीत आ द का समृ सा ह य इस बोल म रचा गया है िजनम से अ धकांश का शत प
म उपल ध है ।
19.3.2 जभाषा
372
उ तमपु ष म ह (म), मो (मु झ), हमारो (हमारा), तथा म यम पु ष के तू ँ (तू, त (तू, तो
(तु झ) और तहारो (तु हारा) आ द यु त होते ह । अ य सवनाम म वो (वह), वा (उस), यो
(यह), या (इस), कौ (कौन), का ( कस), जा (िजस) आ द का योग मानक?- ह द से भ न
है ।
या के प म हु तो (था), हु ते (थे), हु ती (थी), भयो (हु आ), भये (हु ए), भई (हु ई)
का योग होता है । याथक सं ा के दे खनो चलनो के साथ दे खबो, च लबो जैसे प मलते
है ।
अ यय म इत (यहाँ), उन(वहाँ), िजत(जहाँ), कत(कहॉ), िज म(जैसे), क म(कैसे),
मनहु(ँ मानो), अजहु(ँ अभी), तेकु(त नक), ज न(नह )ं आ द का योग कया जाता है ।
द णी भरतपुर , करौल तथा पूव -जयपुर क गूजर जा तयाँ भी जभाषा बोलती है ।
इनक जभाषा म अनेक थानीय वशेषताएँ दे खने को मलती है । वशेषकर यहाँ क जभाषा
म राज थानी का म ण ल य कया जा सकता है ।
जभाषा म कभी-कभी नपु स
ं क लंग का भी योग मलता है । उ तर भारत क
अ धकांश बो लय म यह लंग लु क हो चु का है, पर जभाषा म इसका योग इस भाषा क
ाचीनता का योतक है । सा हि यक जभाषा क अपे ा ामीण जभाषा म नपु स
ं क लंग का
अ धक योग दे खने को मलता है उदाहर ग़ाथ सोने' का नपुसंक प' 'सोनी' या सोन ामीण
जभाषा म च लत है ।
जभाषा म ह द 'आ' यय के थान पर ओ यय का योग होता है । पूव म
क नौजी के भाव से जभाषा म औ का ओ उ चारण कया जाता है । दोआब और हे लखंड
क जभाषा म औ के थान पर 'आ' का ह योग होता है जैसे इसम घोड़ा' प ह चलता है,
घोडौ नह ं ।
जभाषा म भ व यत काल के प, साधारण-वतमान के प म 'गौ' संयु ता करने से
स प न होते ह जैसे मार गौ (गाऊँगा) । जभाषा के अनुसग न न ल खत ह -
क ता - न, न
कम - स दान - कुँ, कूँ क , क, के ।
करण-अपादान - स , सू ँ ते, ते ।
ं - कौ, तयक (पुि लंग ), के (
संबध ी लंग) क ।
अ धकरण - म, म, पै, ल ।
373
बांग नाम से अ भ हत कया । ह रयाणी म बाँगर का अथ है हरा-भू रा उपजाऊ दे श ।
ह रयाणा वा तव म भारत का हरा-भरा दे श है । अत: बाँगर दे श क बोल होने के कारण
इसे 'बाँग ' कहा गया ।
यह द णी-पूव प टयाला, पूव हसार, रोहतक, नाभा, द ल के कु छ अंश म बोल
जाती है । बाँग के कई थानीय नाम है जैसे ह रयाणा के पडौस म इसे ह रयानी दे सवाल या
दे सडी, रोहतक और द ल के आसपास जाट क अ धक आबाद के कारण जादू और द ल म
चमखा कहलाती है ।
बाँग म लोक सा ह य क चु र मा ा म रचना हु ई ह । सांग ( वांग) ह रयाणा का
स लोकना य है जो खु ले मंच पर खेला जाता है । होल और आ हा भी यहाँ लोक य ह ।
इस लोक सा ह य का कु छ अंश का शत हो चु का है ।
बाँग क व नयाँ खड़ी बोल से मलती जु लती है । वै दक काल क 'क' व न बाँग
म है । ण व क कृ त इससे पाई जाती है जैसे वण (वन) बासण (बतन), पाणी (पानी) आ द
। व व का ाचु य है जैसे गा डी (गाड़ी), भु या (भू खा) आ द । स परसग बहु वचन के ओ क
जगह 'आँ' का योग कया जाता है । उदाहरण व प बलहदाँ ने (बैल को), छोरा सू ँ (लड़को
से) आ द । परसगा म 'को' के बदले 'ने' क , लयाँ (के लए), क खा तर (क खा तर), सू ँ
(सो), माँह या माँ ह (म) का योग कया' जाता है । 'होना या के प सै (है), स (ह), सो
(हो), और सू ँ (हू ँ का योग होता है । इसम अनुसग का योग अ नि चत है य क एक ह
अनुसग कई कारक म ं का अनुसग खड़ी बोल क तरह 'का' है ।
यु त होता है । संबध
पुि लंग के व भ न प के साथ के-कै अनुसग यु त होता है । कम और स दान कारक म
वे-नै अनुसग का योग कया जाता है उदाहारणाथ - परदे श को (खड़ी बोल ), परदे श को
(ह रयाणी) । ती, ते, तै अनुसग कम, स दान और अपादान म यव त होते ह यथा - म ने
छोरे ती मारया (मने छोरे (लड़के) को मारा । करण कारक म सते और अपादान म कानी-ती
अनुसग यु त होते ह यथा िजवा रयाँ सने (जवर , र सी से) ।
19.3.4 बु द
ं े लखंडी
बु द
ं े ला राजपूत क भू म बुदेलख ड कहलाती है । बु द
ं े ल या बुदेलख डी बु द
ं े लख ड क
ं े ल क बोल मानी जाती है । इसका व तार जालौन, हमीरपुर, झाँसी, बाँदा,
धान जा त बु द
वा लयर, ओरछा, सागर, दमोह, नर संहपुर, सवनी, जबलपुर तथा होशंगाबाद तक ह । बांदा
ं े ल , बघेल और बैसवाडी (अवधी) का सि म ण है । इस व तृत
िजले क भाषा म बु द े को
एक सू म बाँधने वाल सामािजक एकता के अभाव के कारण इस बोल म कई भेद है
िजसका एक मु य कारण यातायात साधन का अभाव है । थानीय वशेषताओं पर यान दे ते
हु ए यसन ने बुदेल के पँवार , खटोला, राठौर और लु धाँती आ द कई उपभेद माने ह ।
ठे ठ बु द
ं े ल क सा हि यक रचना उपल ध नह ं है पर वहाँ के व वान ऐसा मानने से
ं े ल क व मानते है । ईसुर धमदास, गंगाधर
इंकार करते ह । वे र तकाल न क व बहार को बु द
ं े ल म अपनी रचनाएँ क ह । केशव, तु लसी, प ाकर, ठाकु र और गोरे लाल आ द क वय
ने बु द
374
वारा यु त जभाषा म बु द
ं े ल का यथे ट भाव दे खने को मलता है । जग नक क स
रचना 'आ हाखंड' के वषय म कु छ व वान का यह मत है क यह बनाफर भाषा म र चत
थ ं े ल क उपबोल है । क व ईसु र के 'फाग'
ं है जो महोबा के आसपास बोल जाने वाल बु द
और गंगाधर क शृंगा रक रचनाएँ बु द
ं े ल क अनमोल न ध है ।
बु द
ं े ल म ऐसे अनेक श द का योग ा त होता है िजनका योग ह द म नह ं कया
जाता है । ऐसे श द क सं त सूची न न ल खत ह -
बाबा, बड़े बाबा - पतामह
दाई, दाद - पतामह
दादा, भाई, बापू भैया - पता
द द , अइया, माई - माता
दादू - चाचा
क हह - चाची
दु हन, लु गाई, मेह रया, बसह , ज आ, गोटानी-प नी
ब टया, बुईया , धौनी - पु ी
लाला, दादू छौना, बूआ - पु
पाहु न, नात - दामाद
फवा, बुश - मौसी
गंगल - म ी का घड़ा
कर हया - कड़ाती
कोपर - परात
च बू - पीतल का कटोरा
सनस - सँडसी
याकरण - जब ए तथा ओ ह व प म उ च रत होते ह तो वे मश: 'ह' तथा 'उ' म प रणत
हो जाते ह जैसे बेट - ब टा, घोरो - घुरवा आ द । यंजन म ड़ का उ चारण 'र' म प र णत
हो जाता है यथा - पड़ो - परो, घुड़वा - घुरवा । आरंभ म ि थत 'थ', 'ज़', म 'व' 'ब' म
प रणत हो जाता है । यथा - यह - जो, वह - बो । बुदेल म सं ा के गु अथवा द घा त प
का ाय योग होता है । ऐसे पुि लंग श द के अंत म 'वा' और ी लंग के अंत म आ आता
है जैसे घुरवा, घोड़ा बेट , ब टया । ह द के पुि लंग ओकारांत श द बु द
ं े ल म ओकारा त हो
जाते है जैसे ह द - घोड़ा - बु द
ं े ल घोर । बु द
ं े ल म कारक और अनुसग का म न न ल खत
है ।
कता कारक - ने ( ह द ने)
कम कारक - खां, ख (को)
करण-अपादान - स (से)
स दान - के लान, के नान (के लए)
375
संबध
ं - कौ, क , के, खी, खी, खे (का, क , के)
अ धकारण - म, पै, पर (म, पर)
िजस कार ह द क अ य बो लयाँ ओकारा त बहु ला है ठ क वैसे ह बु द
ं े ल भी
ओकारा त बहु ला भाषा है अथात ् ह द , सं ा, सवनाम, कृ द त के प म जहाँ अ य 'आ'
व न मलती है, वहाँ बु द
ं े ल म 'ओं' मलता है जैसे - गला ( ह द ) - गरो (बु द
ं े ल ), बुरा ( ह) -
बुरओ (सु आ द ।
सं ा के मू ल तथा वकृ त एकवचन और बहु वचन के प जभाषा के ह समान है जैसे
- मौड़ा मौडन (लड़का), गोड़ो गोड़न (पैर) आ द ।
सवनाम प भी जभाषा के समान है केवल न नां कत अंतर है - उ तम पु ष संबध
ं
कारक प रो ( ज) - ओ (बु द
ं े ल ) - हमाओ (हमारा) म यम पु ष संबध
ं कारक प - रौ ( ज)
- ओ (तु हाओ) तु हारा सहायक ं म उ लेखनीय बात न नां कत ह -
या के संबध
वतमानकाल बु द
ं ेल ह द
आय है
ऑय ह
आँव ह
आततू, है
आव हौ
भू तकाल तो था
ते थे
भ व यत काल के प क रचना जभाषा क भाँ त - 'ह' के पांतर को लगाकर होती
है । उदाहरणाथ ह द जाना या के प बु द
ं े ल म इस कार है -
म जैह (म जाऊँगा) हम जैहन (हम जाएँग)े
त जैहत (तू जाएगा) तु म जैहो (तु म जाओगे)
वी जैहे (वह जाएगा) वै जैह (वे जाएँग)े
19.3.5 क नौजी
376
गंगा के उ तर तथा कानपुर क क नौजी म यंजनांत पद म एक 'इ' जोड़ द जाती है
जैसे दे त को दे त और बाद को बा द कहा जाता है । हरदोई के पूव भाग म बोल जाने वाल
क नौजी म इतना अ धक सि म ण है क यह तय करना क ठन हो जाता है क यह क नौजी
है या ज । क नौजी म लोकसा ह य मलता है िजसका कु छ अंश का शत भी हो चु का है ।
उस े के अ धकांश स क वय जैसे चंताम ण, म तराम आ द ने ज को ह अपनी
सा हि यक अ भ यि त का मा यम बनाया ।
याकर णक ि ट से क नौजी और जभाषा म अ धक अंतर नह ं है । क नौजी
ओकारा त धान भाषा है । उदाहरण के लए
ह द क नौजी
छोटा छोटो
बडा बड़ो
दया दयो
लया लयो
सहायक या के प न न ल खत है -
(क) वतमानका लक प म - 'न व न का योग होता है । यथा - हैगो (है), ह (है) ।
(ख) भू तका लक प कृ द त ह ह परं तु थानगत अंतर मलता है ।
क नौजी ह द
थो, थे, थी था, थे, थी
हतो, हते, हती रहो रहे, रह
(ग) भ व यतकाल के प म भी - गो-गी-गे प जु ड़ते ह ।
जभाषा म जहाँ आयी, गयौ जैसे उ चारण मलते ह, वीं क नौजी म आयो, गयो जैसे
उ चारण कए जाते ह । यहाँ 'य' ु त के अभाव म 'गयो का उ चारण 'गओ जैसा होता है ।
क नौजी म ऐ-औ पूण प से संयु त वर के भाव म यु त होते है और अइ, अउ बोले जाते
ह यथा - पइर (पैर), कउन (कौन) । अवधी क भाँ त 'व' का उ चारण ऊं जैसा होता है जैसे
साउन माँ (सावन म) । क नौजी म दो वर के बीच के हं का लोप हो जाता है यथा क हहौ -
कैहय । ह द के संकेत अथवा उ लेख वाचक सवनाम वह तथा 'यह के लए मश: वह, बौ
और यहु जौ प मलते ह । कारक और अनुसग का म न न ल खत ह –
कता - ने
कम, सं दान - को, क
करण, अपादान - से, सेती, सन,् त, ते, क र, कर-के ।
संबध
ं को - ( तयक, के) ी,, ल. क
अ धकरण - म, म, माँ, मो, पर, लो ।
377
19.3.6 दि खनी ह द
19.4 पू व ह द
पि चमी ह द और बहार ह द के बीच पूव ह द का े है । पूव ह द के
अंतगत अवधी, बघेल और छ तीसगढ़ नामक तीन बो लयाँ ह । ये पाँच ा त यथा
उ तर दे श, बघेलख ड, बु द
ं े लख ड के उ तर-पि चम, मजापुर िजले, सोननद के द ण के कु छ
भाग, चं भकार सरगुजा, को रया, जशपुर के कु छ भाग तथा छोटा नागपुर म भी पूव ह द
बोल जाती है । म य दे श के जबलपुर, म डला तथा छ तीसगढ़ के िजले भी पूव ह द क
भौगो लक सीमा म आते ह ।
पूव ह द क उ पि त अधमागधी अप ंश से हु ई है । इसम शौरसेनी और मागधी
दोन अप श
ं के ल ण व यमान है । पूव ह द के उ तर म पहाड़ी भाषाएँ वशेषकर नेपाल
बोल जाती है । इसके पि चम म पि चमी ह द क दो बो लयाँ क नौजी और बु द
ं े ल बोल
378
जाती है । पूव सीमा पर नागपुर और भोजपुर तथा द ण म मराठ का े है । पूव ह द
क तीन बो लय यथा अवधी, बघेल और छ तीसगढ़ का व तृत ववरण न न ल खत ह –
19.4.1 अवधी
379
थोड़े श थल है । यंजना त सं ापद के कतग एकवचन के प म उ लगता है जैसे घ , बनु
आद ।
परसग म कता कारक म 'ने' का अभाव है जो नि चत प से अवधी क उ लेखनीय
वशेषता है । इस ि ट से अवधी और बहार म समानता है । कम का परसग का, करण के
उन, सेती सं दान के बरे , बदे , संबध
ं के कर और केर और अ धकरण का परसग मा है ।
सवनाम म मोर (मेरा), तोर (तेरा), ऊ (वह), ओ (उस-), ई (यह), ए (इस-) जे (जो),
के (कौन), काहे ( य ) यु त होते ह । उ तम पु ष सवनाम का बहु त कम योग होता है ।
हम का योग एकवचन क तरह होता है । या के प म 'होना या के लए 'है, 'अहै' के
अ त र त 'आटे ' और ‘बाटे ' प भी मलते है । भू तकाल म भवा, भए, रहा, रहे का योग
कया जाता है । भू तकाल म चला, के अ त र त ‘चलेउ’ और ी लंग म 'च लउ’ जैसे यु त
होते ह । याथक कृ द त या 'व' यय से बनते ह जैसे दे खब (दे खना), करब (करना) ।
यय म बहो र ( फर), क नाई (क तरह), अव स (अव य), इ म (य ), िज म
( य ), क म (कैसे), बे ग (ज द ), इहाँ (यहाँ), उहाँ (वहाँ), स (सऊँ) (सामने), ज न (नह )
आद यु त होते है ।
डॉ. बाबूराम स सेना के अनुसार अवधी क पि चमी, के य और पूव नामक तीन
वभाषाएँ ह । खीर , (खीमपुर), सीतापुर, लखनऊ, उ नाव तथा फतेहपुर म पि चमी, बहराइच,
बाराबंक , रायबरे ल म के य एवं ग डा, फैजाबाद, सु लानपुर, इलाहाबाद, जौनपुर और मजापुर
म अवधी क पूव वभाषा बोल जाती है ।
10.4॰2 बघेल
380
छोट ल रक । कह -ं कह ं 'हा’ भी लगता है उदा-नीकहा या के पाम म भ व यत काल म ‘ह’
वाले प अ धक च लत है जैसे महँ च ल हऊँ (मै चलूँगा), तू-च लहइँ । अ यय श द म एती
(इधर), ओती (उधर), काहे क ( य क), अइसन (ऐसे), जइसन (जैसे) मह वपूण है ।
परसग का म न न ल खत है -
कता म ‘ने' परसग का अभाव है और सबंध के परसग म लंग के अनुसार प रवतन
नह ं होते । वशेषण के प भी ी लंग और पुि लंग म अप रव तत ह रहते ह ।
कम-स दान - का, कहा ।
करण - अपादान - से, ते, तार ।
संबध
ं - कर ।
अ धकरण - म ।
19.4.3 छ तीसगढ़
381
संबध
ं - के (यह लंग के अनुसार प रव तत नह ं होता)
अ धकरण - माँ
अ यय म इह ं (यहाँ), उहाँ (वहाँ), एती (इधर), ओती (उधर), आजकल (आजकल),
काहे के ( य क) आ द का चलन होता है । छ तीसगढ़ पर मराठ , उ ड़या और तेलगू का
काफ भाव है । खासकर श द भ डार क ि ट से छ तीसगढ़ पर इन तीन भाषाओं का
भाव पड़ा है । आ दवा सय क घनी आबाद होने के कारण छ तीसगढ़ पर आ दवा सय क
व भ न बो लय का यापक भाव पड़ा है ।
19.5 बहार ह द
डॉ टर यसन ने पि चमी मागधी बो लय का बहार नामकरण कया है िजसके
अंतगत मगह , मै थल ओर भोजपुर - ये तीन बो लयाँ ह । इनम से मै थल को सन ् 2002
म भाषा का दजा मल चु का है अत: मै थल अब ह द क बोल नह ं है बि क यह एक वतं
भाषा बन चु क है िजसे भारतीय सं वधान क आठवीं अनुसच
ू ी म थान मल चुका है ।
डॉ. उदयनारायण तवार के अनुसार ऐ तहा सक ि ट से बौ वहार के आधार पर इस
ांत का नाम बहार पडा और ाचीन बहार व तु त: बौ और जैन क भाषा रह है । यह
भाषा सम त बहार ांत, उ तर दे श के गोरखपुर , बनारस, छोटानागपुर के पठार और हाल ह
म ज मे झारखंड रा य म बोल जाती है । बहार का बंगला, उ ड़या और अस मया से भी
गहन संबध
ं है । बहार और बंगला सं कृ त म भी काफ एकता है । य क िजस कार बंगाल
शि त का उपासक है । उसी कार बहार भी धान प से शा त है । बहार ह द क
उ पि त मागधी ाकृ त और अप श
ं से हु ई है । बहार ह द क बो लय का ववरण
न न ल खत है ।
19.5.1 भोजपुर
382
ने भोजपुर लोकगीत और डॉ. उदयनारायण तवार ने भोजपुर के उ गम और वकास पर
गहन अ ययन और व तृत काय कया है ।
याकर णक वशेषताएँ - भोजपुर म ‘र' का लोप यापक प म दे खा जाता है जैसे
लइका (ल रका), द और ध मश: ‘न’ और ‘ ह’ प म उ च रत होते है । जैसे चानन
(च दन), नींन (नींद), बा ह (बांध) आ द । इसी कार ‘ ब' और ‘ भ’ को मश: ‘म' ओर
‘ ह’ प म उ च रत कया जाता है । जैसे - तागा (ता बा), ख हा (खंभा) आ द ।
भोजपुर म अकारा त पुि लंग श द का आकरा त प म उ चारण कया जाता है यथा
घोर (घोड़ा), बड़ (बड़ा), लाभ (लंबा) । कु छ श द क अंत म ‘वा’, ‘वना’ यय लगाया जाता है
जैसे घोड़, घोडवा घोडवना । वदे शी श द म भी यह था च लत है जैसे फोन, फोनवा
फोनवना आ द । मानक ह द के अकारा त ी लंग श द भोजपुर म इकारा त प म यु त
होते ह । जैसे ब ह न (बहन), आ ग (आग) । मू ल बहु वचन म कई बार प अप रव तत ह
रहते ह परं तु प टता के लए 'लोग' श द को जोड़ दया जाता है ।
परसग म अवधी क भाँ त कता म 'ने' का अभाव रहता है । इसके अलावा -
कम - के, कहँ, ना
करण - से, सन, सेती
संबध
ं - कै कर केर यु त होते है ।
भोजपुर के सवनाम म व भ नता ि टगत होती है यथा हमनीका (हम), तोहनीका
(तु म), मोर (मेरा), तोर (तेरा), हमार (हमारा), तोहार (तु हारा), आ द । भोजपुर म गुणवाचक
वशेषण और सावना मक वशेषण का लंग अप रव तत रहता है जैसे हमार बेटवा, हमर
ब टया, हमार गाँव, हमार खेत (बहु वचन) । कया के प म आटे , बाटे (है). र हल र हले (था,
थे) आ द का योग कया जाता है । या के प काफ संि ल ट ह जैसे भ व यत ् काल के
प ‘ह’ औरे ‘ब’ लगकर बनते है यथा दे खब,जाइब, रहब या दे खहै, दे खहै आ द । भोजपुर के
नागपुर प म बंगला भाषा के भाव से अकारा त का ओकारा त होता है यथा - कल-कोल ।
सं ा और वशेषण के तीन प माल , म लयाँ ओर म लयनवा आ द मलते है ।
19.5.2 मगह
383
उ चा रत होते ह । ड़ और ल क जगह श द के बीच म ‘र’ आ जाता है यथा - नींन (नींद),
बा ह (बाँध), घोर (घोड़ा), ल रका (लडका), पातर (पतला) । परसग म कता म ‘न' परसग का
अभाव है । भोजपुर के समान 'के', 'ला’ (को, के लए), महँ, प र (म, पर) का योग कया
जाता है । परं तु सं दान म ला ग या ल ग यय यु त होता है । मै थल के समीपवत
इलाक म स दान म 'लेव’ ओर अ धकरण म 'मो' का योग होता है । या के प म था,
थे के लए हल, हल का योग होता है । 'थे' के लए हल खन’ और 'हल थन’ का भी योग
होता है । अ यय म हआँ (यहा), हु आँ (वहाँ), एहर (इधर), उहर (उधर) का योग कया जाता
है ।
19.6.1 मारवाडी
राज थानी क के य बोल मारवाडी है । अत: गई व वान इसे राज थानी नाम से
भी अ भ हत करते ह । यध प इसका के मारवाड़ ा त है पर जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर
आ द िजल के अ त र त यह भारत के हर ांत म बसे यापा रय वारा बोल जाती है ।
बीकानेर , शेखावाट , मेवाड़ी, बागड़ी आ द कई उपबो लयाँ इसके अंतगत आती ह । मारवाड़ी म
लोक-सा ह य चु र मा ा म लखा गया है । मीराबाई के पद इस बोल म है ।
मानक ह द व नय के साथ ह मारवाड़ी म वै दक भाषा क क व न भी व यमान
है । ‘व’ को दो तरह से उ च रत कया जाता है । जैसे एक दं तौ ठय और दूसरा इ यौ य ।
‘श’ ओर 'ष' का अभाव है केवल ‘स’ का योग होता है । कु छ उपबो लय म 'कहना’, ‘रहना',
आ द म 'ह’ का उ चारण बहु त ीण हो जाता है और र यो, क यो आ द का उ चारण कयो,
रयो जैसा होता है ।
अं तम महा ाण यंजन म भी अ प ाण व ि टगत होता है । अत: दुख , मू ठ, सु ख
मश: दुक, मू ट, सुक प म बोले जाते ह । ‘च' और 'छ' को ‘स' प म उ च रत करना भी
मारवाड़ी क एक वशेषता है । अत: च क को स क ओर छत को सत बोला जाता है ।
'ण व’ मारवाड़ी क यापक वृि त है ।
मारवाड़ी ओकार बहु ला होती है । मानक ह द के आकारा त पुि लंग श द मारवाड़ी म
ओकारा त हो जाते है । और उनके बहु वचन परसग प आकारा त होते ह जैसे घोड़ो
384
(एकवचन), घोड़ा (बहु वचन) । मारवाड़ी म कम का परसग ने है । संबध
ं कारक के लए रो, रा,
र का योग होता है । सवनाम म कूँ (म), आपाँ (हम), हारो (हमारा), थू (तू,, तमे या थ
(तु म), थासे (तु हारा) का योग होता है ।
या के प म वतमान के तड त प चलै है, चलू हू ँ चला ह , चलो हो का योग
होता है । सामा य भू तकाल म 'च यो' खड़ीबोल के 'च या’ के कर ब है । अ यय म जद या
जदै (जब), कद या कदै (कब), अठ या अठै (यहाँ), उठ या उठै (वहां), जठै या जती (जहाँ),
कठै या कठ (कहाँ) का योग होता है ।
19.6.2 जयपुर
इसका पर परागत नाम 'ढु ढार ’ है । यह जयपुर के आस-पास के इलाक म बोल जाती
लै । कोटा-बूँद क हाड़ौती भी इसी क उपबोल मानी जाती है । जयपुर म के य राज थानी
क सभी व नयाँ सि म लत क गई ह । अनेक श द म 'इ' के थान पर ‘अ’ का योग होता
है जैसे पडत (पं डत), कसान ( कसान), दन ( दन) । मारवाड़ी क भाँ त जयपुर म भी ‘ह’ का
लोप और यंजन क ीण महा ाणता क वृि त दे खने को मलती है जैसे सैर (शहर), रै णो-
सैणो (रहना-सहना), भू क (भू ख) आ द । मारवाड़ी क तरह ‘न' का 'ण’ उ चारण होता है जैसे
घणा (अ धक), पाणी (पानी) आ द ।
परसग म मारवाड़ी क तरह कम का परसग 'ने' है । इसे अलावा 'कै', ‘कै’ का योग
भी होता है । सपरसग ओ के थान पर 'ओं' यु त होता है यथा कताबी म, घराँ म । संबध
ं
म को, का, क परसग है । सवनाम म आपाँ (हम), मू ँ (मु झ), हा (सपरसग हम), हारो
(हमारा), थे (तु म), थी (तु म, सपरसग), थारो (तु हारा), वो (वह), वा (उस) वै (वे), वां (उन),
यो (यह), ई (इस.....) का योग होता है । 'होना' या के 'छ' वाले प जयपुर क वशेषता
है यथा -छै (है), छो (हो), छूँ (हू ँ) । उ तम पु ष बहु वचन म छ (ह), था, थी, थे के लए छो,
छ , छा प च लत है ।
सामा य वतमान काल म चलै (चलता है,), चल (चलते ह), चलो (चलते हो) प
च लत है । अ य पु ष बहु वचन म चले एकवचन जैसे प) और उ तम पु ष म चल का
योग होता है । शौरसेनी अप श
ं के उपनगर प से वक सत इस बोल म केवल लोक-सा ह य
ह उपल ध है । तोरावाह काठै ड़ी चौरासी आ द इसक उपबो लयाँ ह ।
19.6.3 मेवाती
यह बोल उ तर-पूव राज थान म मेव लोग वारा बोल जाती है । अलवर इसका के
है । इसके अ त र त भरतपुर और गुड़गाँव के े म मेवाती का व तार है । इस बोल पर
खड़ी बोल और जभाषा का यापक भाव है । इसक एक म त बोल अह रवाट है । राठ ,
नहे र कठे र, गुजर आ द इसक उपबो लयाँ है । शौरसेनी अप श
ं के उपनगर प से वक सत
मेवाती बोल म केवल लोक-सा ह य उपल ध है ।
385
व नय क ि ट से मेवाती और जयपुर म काफ सा य है । अि तम यंजन म
अ प ाणता जैसे हात (हाथ), जीव (जीभ), और वधान (बहण-बहन, थण-थन) मलता है । च
वग म ‘च' का आगम दे खने को मलता है जैसे यार (चार), प यास (पचास) । बाँग के
समान कता और कम दोन कारक के लए 'ने' परसग करण -अपादान के लए ते, त संबध
ं के
लए को, का, क का योग होता है ।
सवनाम म, मु झ ........हम, मेरो, हारो, तू तु झ, तम, तेरो थारो वो, वे, बी (उस....)
यो, ये, एको (इसका) का योग होता है । 'होना’ या के प है, ह, हो, हू ँ मानक ह द के
समान है परं तु उ तम पु ष बहु वचन म 'ह ' का योग होता है । अ य प जयपुर से सा य
रखते है जैसे वतमान काल चले, चलूँ चलो, भू तकाल च य , च या, चल और भ व यत काल -
चलैगो चलाँगा आ द ।
19.6.4 मालवी
19.7 पहाड़ी ह द
हमालय क उप यका म ह द क व न एवं याकरण संबध
ं ी कु छ समानता रखने
वाल बो लयाँ नेपाल , गढवाल , और कुँ माउनी ह । डॉ. सु नी त कु मार चटज ने इन बो लय का
वकास खस-अप श
ं से माना है तथा वे शौरसेनी और गुजर अप श
ं से भा वत है ।
386
19.7.1 कुमायून
ँ ी
19.7.2 गढ़वाल
387
खडी बोल और गढ़वाल क व नय म काफ समानता है । मराठ व य चवग से
गढ़वाल के च, ज म सा य है । मानक ह द क तु लना म ये व नयाँ अ धक संघष है ।
पंजाबी और खडीबोल के समान अ प ाणीकरण और अघोषीकरण क वृि त ि टगत होती है
यथा - हे त (खेत), हत (छत), खू पसू रत (खू बसू रत), अंताज (अंदाज) । प का म काफ
ज टल है । परसग के दस से भी यादा वैकि पक योग मलते है । उदा - करण- अपादान
के लए - सी, नै, ले, ल, वटे , वट , ते, न, मान, ऐइ, आऊ आ द ।
अ यय म कालवाचक अब, जब, कब, के अ त र त अबेर, जबेर, कबेर, तबेर का भी
चलन है । थानवाचक श द म दो कार के योग ि टगत होते ह यथा -
थ - यथ, जथ, कथ, तथ
ख - यख, जख, तख, कख ।
बैहर (बाहर), भ (भीतर), आ द योग गढवाल क अपनी वशेषता है । इसक मु ख
उपबो लयाँ राठ , बघानी, सलानी टे हर आ द है ।
388
19.9 सारांश
तु त इकाई म आपने पढ़ा क हंद भाषा का मू ल ोत ाचीन आय भाषा है और
वह आय भाषा प रवार से संब है । यू पि त क ि ट से हंद स पूण दे श क भाषाओं के
लये उपयु त सं ा मानी जा सकती है । ाचीन भाषाओं के इ तहास पर नजर डालने से भी
ात होता है क जनसाधारण के बीच अ धक यापक होने के कारण इसी भाषा का वशेष
मह व रहा और इसी वजह से इसे उ त सं ा से सं ो धत कया गया ले कन आज उसका अथ
केवल उ तर दे श तथा उसके आसपास के अ य ह द दे श क भाषाओं के लए ढ़ हो गया
है । ह द का जो प रा य भाषा एवं राजभाषा के प म गृह त हु आ है वह प उ तर म
हमालय से लेकर द ण म नमदा क तलहट तक और पूव म भागलपुर से लेकर पि चम म
अमृतसर तक पठन पाठन से सा हि यक और बो लय से कायालयीन भाषा तक फैला है । इस
व तृत भू भाग का ह द दरअसल बो लय का एक समु चय है िजसे व न- प-वा य और
श द संसाधन गत संरचना क ि ट से पि चमी, पूव बहार , राज थानी और पहाड़ी वग म
बांट कर उनका व लेषण कया गया है । प अंतगत रखा गया है िजसे पढ़कर आप ह द के
अथ म िजतनी बो लयाँ समा हत है को अ छ तरह समझ गए ह गे । भारत के व मृत भू-भाग
म बोल जाने वाल ह द क सभी बो लय के भा षक वै श य से अवगत हो गए होग ।
इस अ ययन से ह द क सम त बो लयाँ अपनी-अपनी वशेषताओं के साथ पनपती
हु ई दखाई पड़ी होगी । इन सभी के सम त प एक-दूसरे के भाषा प तथा सा ह य को
समझ के म सहायक स हु ए ह और इस प म इनका एक दूसरे से घ न ठ संबध
ं था पत
हो रहा है एवं रा य भाषा ह द को अ धक पु ट करने म इनके सहयोग क पूर संभावना है।
19.10 अ यासाथ न
(क) द घ तर न
1. पि चमी ह द के उ व और वकास क सं त जानकार दे ते हु ए उसक बो लय का
व तृत प रचय दे ।
2. बहार ह द क व भ न बो लय क याकर णक वशेषताओं का ववेचन क िजए ।
3. ह द क पूव -बो लय के पगत वै श य पर वचार क िजए ।
4. राज थानी ह द क परे खा क चचा कर ।
5. पहाड़ी - ह द के अंतगत आने वाल बो लय का प रचय द िजए ।
(ख) लघू तर न
1. बंगा क वशेषताएँ बताइये ।
2. जभाषा क सा हि यक और याकर णक वशेषताओं क जानकार द ।
3. पहाडी ह द क बो लय का सं ेप म ववेचन कर ।
4. खड़ी बोल क याकर णक वशेषताओं क जानकार द ।
5. दि खनी ह द पर एक ट पणी ल खए ।
389
(ग) हाँ या ना म उ तर द िजए
1. पि चमी ह द क उ पि त अधमागधी अप ंश से हु ई है । हाँ/ना
2. बघेल बहार ह द क बोल है । हाँ/ना
3. राज थानी म ह द क चार मु ख बो लयाँ है । हाँ/ना
4. पूव ह द क उ पि त शौरसेनी अप श
ं से हु ई है । हाँ/ना
5. खडी बोल मानक ह द के बहु त नकट है । हाँ/ना
(घ) र त थान क पू त कर -
1. बहार ह द क उ पि त................................ अप ंश से हु ई है।
2. राज थानी ह द क बो लय म............................... सा ह य क धानता है।
3. बहार ह द क .......................................... बोल अब भाषा बन गई है ।
4. राज थानी ह द क .......................................बोल पर मराठ का यापक भाव
है।
5. ह रयाणी बोल का दूसरा नाम...................................... है ।
19.11 संदभ ंथ
1. तेजपाल चौधर ; भाषा और भाषा व ान वकास काशन थम सं. 2002 कानपुर
2. उदयनारायण तवार ; ह द भाषा का उ गम और वकास, लोकभारती काशन 1998,
इलाहाबाद भोलानाथ तवार ; भाषा व ान
3. भोलानाथ तवार ; मानक ह द का व प, भात काशन 2004
4. राम काश; मानक ह द , व प और संरचना
5. डी. झा टे दं गल; योजनमूलक ह द : स ांत ओर योग, वाणी काशन 2006 नई
द ल सरयू साद अ वाल; भाषा व ान और ह द लोकभारती काशन, इलाहाबाद
6. बाबूराम स सेना; सामा य भाषा व ान, ह द सा ह य स मेलन - याग
390
इकाई-20 ह द के व वध प और उनके काय (राजभाषा,
रा भाषा, स पक भाषा मा यम भाषा व संचार
भाषा)
इकाई क परे खा
20.0 उ े य
20.1 तावना
20.2 ह द के व वध प और उनके काय
20.2.1 राजभाषा
20.2.2 रा य भाषा
20.2.3 राजभाषा और सहराज भाषा
20.2.4 रा भाषा
20.2.4.1 राजभाषा और रा भाषा म अ तर
20.2.5 संपक भाषा
20.3 भारत सरकार क भाषा नी त म भाषासू क संक पना
20.4 मा यम अथवा संचार भाषा ह द
20.5 वचार संदभ/श दावल
20.6 सारांश
20.7 अ यासाथ न
20.8 संदभ थ
20.0 उ े य
इस इकाई को पढ़ कर आप
सा हि यक ह द से इतर ह द के कु छ व श ट प से प र चत हो सकगे
राजभाषा क अवधारणा और मह व क जानकार ा त कर सकगे ।
राजभाषा, रा य भाषा और रा भाषा का अ तर समझते हु ए उनके मह व का
आकलन कर सकगे ।
सहराज भाषा क संक पना तथा भारत सरकार क भाषा नी त म ' भाषा सू ' के
मह व को जान सकगे ।
ह द के नर तर वक सत होते व प संपक भाषा का वै श य समझ सकेग
जन संचार मा यम क भाषा ह द क लोक यता एवं इसके भा षक व प म
बदलाव क या से अवगत हो सकगे ।
391
20.1 तावना
भारतीय सं वधान वारा खड़ी बोल ह द को राजभाषा वीकार कए जाने के उपरा त
ह द का पारं प रक अथ, व प तथा यवहार े यापकतर हो गया । पहले ह द भाषा के
अ ययन और अ यापन का सीधा सादा अथ ाय: भाषा शा ीय अथवा याकर णक वषय और
सम याओं तक सी मत था और सा ह य का संबध
ं रसा वादन रसा वेषण एवं रस न पि त तक
। ले कन जैसे ह ह द राजभाषा क नवीन भू मका म अवत रत हु ई उसक एक नए सरे से
पहचान शु हु ई । वह अब मा कथा-कहा नय , क वता, ल लत नबंध और समी ापरक
आलेख म सा हि यक अ भ ाय को कट करने का मा यम न रह शासन वधान, याय
श ा तथा प का रता आ द वभ न े क अ भ यि त का भी मा यम बन गई । अब
ह द केवल सौ दय मू लक ल य क सा धका नह ं रह बि क रोट रोजी का साधन अथवा सेवा
मा यम भी बन गई ।
राजभाषा के प म इसका योग मु यत: चार े म अ भ ेत है- शासन, वधान,
याय पा लका और कायपा लका । इस कार आज ह द का योग सामा य भाषा शा ीय
तथा संवध
ै ा नक तीन व भ न संदभ म हो रहा है । सं वधान ने ह द को के य राजभाषा,
ादे शक भाषा एवं सहराजभाषा (पंजाब, गुजरात तथा महारा दे श के लए) के प म
मा यता द है ।
राजभाषा का सामा य अथ है- राजकाज क भाषा । दूसरे श द म िजस भाषा के
वारा राजक य काय पूरे कये जाये । राजभाषा श द के दो भ न अथ है- एक रा य क भाषा
दूसरा रा य क भाषा । इन दोन अथ म अ भ त
े शास नक तं को संचा लत रखने वाल
भाषा ह ‘राजभाषा’ है । भारत जैसे संघीय जनतां क णाल म दोहर शासन प त होती है-
पहल प त के तथा रा य के बीच शास नक सरोकार क होती है । दूसर ादे शक रा य
शासन क । इस कारण राजभाषा क ि थ त भी दो कार क होती है- थम के य तथा
संघ क राजभाषा तथा वतीय रा य क राजभाषा िजसे समान प से रा य भाषा कहा जाता
है । वाधीनता सं ाम के दौरान ह द भारत क रा भाषा के प म उभर पर आजाद दे श म
इसका वरोध आरं भ हु आ । सं वधान ने भले ह ह द को रा य भाषा के पद पर ति ठत
कया हो पर उसे रा भाषा घो षत करने म कह ं न कह ं हचक बनी हु ई है । ह द को
राजभाषा घो षत करते हु ए यह आ वासन दया गया था क 1965 तक अं ेजी म भी काम
होता रहे गा । फर धीरे -धीरे यह थान ह द वयं ले लेगी । ले कन 1965 म जब ह द को
अं ेजी का थानाप न करने क बात उठ तब राजनै तक तर पर ह द तर दे श म इसका
खु लकर तवाद कया गया, आज ि थ त यह है क ह द और अं ेजी दोन भाषाओं म
शास नक काम कये जा रहे ह । यवहा रक तौर पर अं ेजी का वच व आज भी कायम है
और ह द अनुवाद क भाषा बनकर रह गई है ।
कसी भी रा के लये एक संपक भाषा का होना ज र है । भारत जैसे बहु भाषी दे श
म तो यह ज रत और भी बढ़ जाती है । संपक भाषा के प म ह द दन दन अपने े
को व ता रत करती जा रह है । इस इकाई म ह द के व वध व प रा य भाषा, रा
392
भाषा, संपक भाषा और राजभाषा के व प क चचा करते हु ए उनके ताि वक अंतर को भी
समझाया गया है । इकाई के अंत म ह द के सवा धक लोक य नत नये होते और भा षक
ि ट से बदलते प का व लेषण कया गया है जो है इसका मा यम एवं संचार क भाषा का
व प । संचार भाषा ह द पूरे दे श को एक सू म बांधने म नरत है य क इसक पहु ँ च
व तृत जन समु दाय तक है ।
20.2.1 राजभाषा
393
भारतीय सं वधान सभा के अ धकांश सद य का यह मत था क रा य सु ढ़ता क
ाि त के लए सं वधान का एक मु ख ह सा “रा भाषा संबध
ं ी यव था'' पर होना चा हए ।
अपने धम चार के दौरान वामी दयान द सर वती पहले ह ह द को रा भाषा का दजा दे
चु के थे । भाषा के वकास और सार के लए पि डत मदन मोहन मालवीय तथा ी पु षो तम
दास टं डन ने 10 अ टू बर 1910० ई० को ह द सा ह य स मेलन क थापना क । गुजरात
के भड़ौच नामक थान पर आयोिजत वतीय गुजरात श ा अपने भाषण म प ट प से
कहा क केवल ह द रा भाषा हो सकती है, ह द और उदू एक ह ह केवल उनक शैल म
अ तर है । सन ् 1918 म जब गाँधीजी ह द सा ह य स मेलन के आठव अ धवेशन के
अ य चु ने गए ।
उ होने बड़ी ढ़ता के साथ कहा क जब तक ह द को रा य तर तथा ा तीय भाषाओं को
जनजीवन म उनका उ चत थान दान नह ं कया जाता, तब तक वरा य क सार बात यथ
ह । उ ह ने ह द का उ लेख करते हु ए यह भी कहा क यह दे वनागर या उदू ल प म
ह दुओं और मु सलमान , दोन के वारा पढ़ और बोल जाती है ।
गाँधी जी वारा ह द को रा भाषा के प म मा यता दए जाने से दे श म ह द सार
आ दोलन को ताकत मल । सन ् 1918 म गाँधीजी ने द ण भारत ह द चार सभा क
थापना क । इस सं था के ासं गक मागदशक के लए राजगोपाल पाथ एवं मो र
स यनारायण का नाम सदै व मरण कया जाएगा । सन ् 1920 म गाँधीजी ने म ास ेसीडे सी
क जनता से अपील क क वह लोग वारा ह द सीखने क रा य ज रत को वीकार कर
ल । इसके प चात,् मु यत: ह द सा ह य स मेलन के त वावधान म कई गैर ह द भाषी
रा य म ह द के चार सार के लए संगठन बनाए गए ।
सन ् 1925 म कां ेस के कानपुर अ धवेशन म गाँधीजी क ह ेरणा से कां ेस क भाषाना त
क घोषणा न न ल खत श द म क गई। “यथा संभव कां ेस क कायवाह ह दु तान म क
जाएगी य द भाषण-कता ह दु तानी बोलने म असमथ है या जब आव यक हो अं ेजी या अ य
ा तीय भाषा का योग कया जा सकता है । ा तीय कां ेस कमे टय क कायवा हयाँ
सामा यत: संबं धत ा त क भाषा म संचा लत होगी, ह दु तानी का योग भी कया जा
सकता है ।“
ै , सन ् 1935 म गाँधीजी ने सा ह य स मेलन के 24व अ धवेशन क अ य ता क और
अ ल
जो कहा वह ‘ह रजन' क 16 मई 1936 के अंक म छपा । इस लेख म उ होने सं कृ त न ठ
ह द के योग का प लेते हु ए लखा “आज जो ल य है, वह एक नई भाषा का वकास
करना नह ं है, बि क उस भाषा को हण करना है जो अ त ा तीय भाषा के नाम से जानी
जाती है । म समझता हू ँ क इसम यु त भाषा के प का प लेकर ी मु ंशी ने ठ क कया
। उदाहरण के लए कह सकते ह क त मल या तेलु गु से ह द या ह दु तानी म पा तर
करते समय सं कृ त श द के योग को छोड़ना उसी कार असंभव है िजस कार अरबी भाषा
से ह द या ह दु तानी म पा तर करते समय अरबी भाषा के योग से बचना ।”
394
सन ् 1936 म ह द सा ह य स मेलन के नागपुर अ धवेशन के अवसर पर गाँधीजी ने भारतीय
सा ह य प रषद के नमाण का वागत कया । उ ह ने इसक अ य ता वीकार कर ल ।
े ीय भाषाओं के सा हि यक स मेलन का एक संघ व प ह इस प रषद का उ े य था ।
गाँधीजी क ेरणा से ह सव थम उसके सं वधान म ' ह द - ह दु तानी’ श द कट हु ए ।
गाँधीजी के लए यह एक क ठन समय था य क हर आदमी क हर बात को संतु ट करने
वाले सू को लेकर के व भ न ि टकोण को समे कत कर रहे थे । यह तक करना तो ऐसी
ि थ त म सरल था क ह दु तानी, रा भाषा होने के नाते, ह द भाषी तथा उदू भाषी जनता
दोन को मा य होनी चा हए य क बाजार तर पर भाषा एक ह थी, ले कन जब वह वचार
क उ चतर अ भ यि त का मा यम हु ई, तो ह दु तानी नाम क कोई चीज नह ं रह गई उसे
या तो सं कृ त न ठ ह द होना था ना फारसी न ठ । एक ओर सा दा यक ि थ त सघन और
ती होती गई, दूसर ओर गाँधीजी ह द और उदू के बीच क खाई को पाटने के लए य न
करते गये और समझौत क सलाह दे ते गये जो अ यवहा रक थी । मु सलमान के लये
अ वीकाय क और ह दुओं के लए नापस द । तथा प कां ेस क सभाओं म ह द और उदू
ने एक कार के सहनशील सह अि त व का वकास कर लया । सं वधान सभा के ारं भक
काल म मू ल अ धकार संबध
ं ी उप स म त ने जो गाँधीजी वारा दशाये गये माग पर चल रह
थी न न ल खत सू हण कर लया-
“जनता के वक प पर दे वनागर या फारसी ल प म ल खत ह दु तानी रा भाषा क भाँ त
संघ क थम राजभाषा होगी । अं ेजी उस समय तक के लये संघ क वतीय राजभाषा होगी
। जो संघ व ध वारा नि चत कर जब तक क संघ व ध वारा अ य यव था न द, संघ
के सभी सरकार अ भलेख ह दु तानी म, दोन ल पय म, और अं ेजी म भी रख जायगे ।”
यह सू इस आशा के साथ रखा गया था क य द सं वधान सभा म मु ि लम ल ग सि म लत
हु ई तो यह दोन प को पूर तरह वीकाय स होगा । डॉ० अ बेडकर ने १9 अ ल
ै 1947
को अपना वचार दे ते हु ए कहा क ह दु तानी को न केवल संघ क वरन ् सभी इकाईय क
भाषा बना दया जाना चा हये । अ बेडकर के श द म- “यथाि थ त धारा 9 ह दु तानी को
संघ क राजभाषा घो षत करती है । स म त वारा श दावल के वचार से यह प ट है क
ह दु तानी रा य क , अथात ् संघ क भाषा होगी और साथ ह इकाईय क भी । य द येक
इकाई को वतं ता द जाती है जैसे क अ य धारा म द गई है क वह कसी भी भाषा को
राजभाषा बनाये तो इससे न केवल भारत के लये एक रा भाषा का उ े य पराभू त हो जायेगा
वरन ् भाषायी वभेदता के कारण भारत का शासन भी असंभव हो जायेगा । अत: मेरा अ भमत
है क ‘संघ’ के थान पर ‘रा य' श द रख दया जाये हो सकता है क इकाईयाँ ह दु तानी को
अपनी राजभाषा बनाने के लये समय मांगे । इसके लये उ ह समय दे ने म कोई हा न नह ं है
। क तु इस वषय पर कोई संदेह नह ं हो सकता क ारं भ से ह ईकाईय पर ह दु तानी को
हण करने क वैधा नक अ नवायता या बा यता होगी । ह दु तानी को ह दू लेखक वारा
सं कृ त न ठ और मु सलमान लेखक वार अरबी न ठ बनाये जाने से बड़ा भार खतरा है । य द
ऐसा होता है तो ह दु तानी रा भाषा न रह पायेगी और एक रा य अकादमी के बना
395
ह दु तानी भाषा इस संकट पर वजय ा त करने म असमथ होगी । अत: यह आव यक है
क ांस के रा य अकादमी क तरह इस दे श के सं वधान म यह यव था क जाये ।
नःसंदेह सम या का यह एक समाधान था और बहु त से लोग यह मानगे क एक सम प रा
के प म भारतीय को संग ठत करने के लए यह एक सह वक प था । ले कन यह
यवहा रक नह ं था । उदाहरण के लए माना क ह द या ह दु तानी को अ त ा तीय संबध
ं
के लए संपक भाषा क ज रत है जब क े ीय भाषाओं का ा त म योग कया जाना था ।
उ ह ं के नदश म कां ेस ने सन ् 1920 म भाषायी ा त के संबध
ं म ताव पा रत कया था
और अब कदम पीछे हटाना संभव नह ं था ।
डॉ0 अ बेडकर क एक सफा रश यह भी थी क ह द के चलन के लए कोई समय सीमा
नह ं तय क जानी चा हए । संभवत: यह एक सह सफा रश थी क तु ह द के नेता इसे
वीकार करने के लए तैयार नह ं थे तथा ा तीय नेताओं से जैसा क ब कु ल वाभा वक था
। आशा नह ं क जा सकती थी क वे वयं कस त थ के लए वचनब होते । आरंभ म
कां ेस दल रा भाषा के न पर न न ल खत वग म वभ त था-
क एक छोटा वग ऐसा था जो सं वधान वारा राजभाषा का नधारण नह ं चाहता था ।
ख एक छोटा क तु अ य त शि तशाल वग ' ह दु तानी' को चाहता था ।
ग एक छोटा वग द ण भारतीय का था जो चाहता था क अं ेजी प ह वष के लए
राजभाषा बनी रहे और तब तक के लए ह द का न ठं डे ब ते म रहे ।
घ पु षो तम दास टं डन के नेत ृ व म सद य का एक काफ बड़ा वग चाहता था क
ह द को त काल रा भाषा के प म च लत कर दया जाए ।
ङ एक बड़ा वग कोई ऐसा सू चाहता था जो काय यो य समझौता दे सके और अंततः
ह द को दे श क रा भाषा बना सके ।
जु लाई 1949 म कु छ लोग अनौपचा रक प से मले । ह द को दे श क राजभाषा
और दे वनागर को राज ल प तथा उसके साथ दस वष के लए अं ेजी को अ त र त राजभाषा
बनाने के लए उ ह ने सं वधान के अनु छे द का ा प तैयार कया ।
इसका अनुमोदन सं वधान सभा के लगभग 80 सद य ने कया जो कां ेस दल का
सबसे बड़ा वग था ।
सं वधान म कसी भी राजभाषा का उ लेख न चाहने वाला वग अपनी ि थ त सु ढ़ न रख सका
और यह दशा उस वग क भी हु ई जो केवल अं ेजी को बनाए रखना चाहता था । सं वधान
सभा म राजभाषा वषयक बहस म तीन कार के वचारक कट हु ए-
क ह द के वे उ साह िजनका अ भमत था क ह द न केवल संघ क राजभाषा बनाई
जा सकती थी और बनाई जानी चा हए थी वरन ् सीधे उसका चलन उ च यायालय
म भी हो सकता था ।
ख वे जो, 1947 ई. के पूव क तरह अं ेजी को जार रखना चाहते थे, ह द को वतीय
भाषा के प म अ ययन के लए छोड़ दे ना चाहते थे ।
396
ग वे जो सोचते थे क संघ क राजभाषा के प म ह द को धीरे -धीरे उ न त करते हु ए
अं ेजी का थान उस समय हण कर लेना चा हए जब वह अं ेजी वारा कए जाने
वाले काय को कु छ सीमा तक करने म समथ हो जाए ।
इ ह ं संघष के बीच से वह सू तैयार हु आ जो प -प काओं म 'मु ंशी-आयंगर’ सू के
नाम से स हु आ । इस सू म सम या को अ य त यथाथ प म लेकर हल कया गया था
। अत: इसे सवा धक स मान ा त हु आ । इसने अ य त उ चत र त से ह द क महत ्
शि त और मु यत: सं कृ त से ह इसक श दावल के हण करने क आव यकता पर बल
दया । अ त म यह सू अनेक प रवतन के साथ सं वधान के, अनु छे द 343 तथा 344 का
अंग हो गया । तदनुसार ह द संघ क राजभाषा घो षत हु ई िजसक ल प दे वनागर रह ।
संघ के राजक य योजन के लए योग होने वाले अंक का प भारतीय अंक के अ तरा य
प को रखा गया । ह द को राजभाषा बनाते समय यूने को क राजभाषा क प रभाषा को भी
ह रके म रखा गया था िजसके अनुसार “राजभाषा उस भाषा को कहा जाता है जो सरकार
कामकाज क भाषा के प म वीकार क गई हो और शासन तथा जनता के बीच आपसी
संपक के काम आती हो ।”
राजभाषा का योग मु यत: चार े े है- शासन,
म अभ त वधान, यायपा लका
और कायपा लका । इन चार म जो भाषा यु त हो वह राजभाषा कहलाएगी । अब तक यह
काम अं ेजी करती थी अब इसक िज मेदार ह द को द गई है । इस काय से ादे शक
भाषाओं को कसी कार क त नह ं पहु ँ चेगी वरन ् उनक शि त भी बढ़े गी य क ह द
उनका भी पोषण करे गी । इस ख ड क परवत इकाई म आप ह द क संवध
ै ा नक ि थ त के
बारे म पढ़गे िजससे भारत सरकार क राजभाषा वषयक नी त के वषय म आप एक साम क
समझ बना पाएंगे ।
20.2.2 रा य भाषा
398
20.2.4 रा भाषा
399
20.2.4.1 रा भाषा और राजभाषा म ताि वक अ तर
400
भाषा क क पना इससे भ न है । उसका पद और भी बड़ा है । उसी भाषा का गौरव
सबसे अ धक हो सकता है और वह रा भाषा कहला सकती है िजसको सब जनता
समझती हो और िजसका अि त व सामािजक ओर सां कृ तक ि ट से मह वपरक हो
।'' सं ेप म रा भाषा जहाँ रा य हत एवं रा य जीवन के पंदन , आदश का
अ भलेख बनकर रह जाती है, वहाँ राजभाषा राजनी त बोध से े रत अंतरा य संपक
से जु ड़ी रहती है ।
401
बोलने वाला मै थल भाषी से संवाद तथा वैचा रक आदान- दान कर सके । ह द इस योजन
को पूरा करती है और भारत क संपक भाषा के प म दन दन जन य होती जा रह है ।
402
भाषा सू नी त के संदभ म आने वाले वष म ह द को रा भाषा बनाने के लये
श ा आयोग क रपोट केि त थी । गुजरात कमेट ने पुन : अ ह द भाषी दे श म ह द के
ो साहन के लये भाषा सू का आधु नक कृ त प तु त कया िजसके मु ख ब दु
न न ल खत ह :-
क. े ीय / ादे शक भाषा
ख. उदू / क और ख छोड़कर अ य आधु नक भारतीय भाषा
ग. अं ेजी या अ य आधु नक यूरो पयन भाषा ।
सभी कार के सु झाव एवं सं तु तय के बाद भी भारत म भाषा सू नी त एवं
सं तु तय के बाद भी भारत भाषा सू नी त पूण प से सफल नह ं हु ई । इसके भावी
या वयन के लये भारत सरकार ने एक और भावी योजना बनाई है जो इस कार है-
अ ह द भाषी रा य म ह द अ यापक क नयुि त के लये के सरकार सहायता
जार रखेगी।
रा य म ह द श ण सं थान क थापना ।
भाषा नी त म ह द के नगरानी क िज मेदार के य ह द सं थान आगरा क
होगी जो अनुसध
ं ान और श ण क उपल धता को सु नि चत करे गा ।
क यूटर आधा रत भाषा- श ण एवं अनुदेशन के लए के य भारतीय भाषा सं थान,
मैसरू को बी0बी0सी0 माइ ो क यूटर उपल ध करवाये जाय ।
जैसा क ऊपर आपको बताया जा चु का है । द ण भारत म भाषा सू को छोड़कर
वभाषा सू को ह अ धक यवहा रक मान कर उसे ह वीकार कया गया है । संघ क लोक
सेवाओं के बारे म दे श के व भ न भाग के लोग के यायो चत दाव और हत क र ा का
सरकार का आ वासन और संसद म पा रत संक प क न न ल खत बात भी सवथा उ चत है:
1. उन सेवाओं और पद को छोड़कर िजनके लए ऐसी कसी सेवा अथवा पद के क त य
के संतोषजनक न पादन के लए केवल अं ेजी अथवा ह द दोन , जैसी क ि थ त
हो, का उ च तर का ान आव यक समझा जाए, संघ सेवाओं अथवा पद के लए
भत करने हे तु उ मीदवार के चयन के समय ह द अथवा अं ेजी म से कसी एक
का ान अ नवायत: अपे त होगा ।
2. पर ाओं क भावी योजना, या संबध
ं ी पहलुओं एवं समय के वषय म संघ लोक
सेवा आयोग के वचार जानने के प चात ् अ खल भारतीय एवं उ चतर के य सेवाओं
संबध
ं ी पर ाओं के लए सं वधान क आठवीं सू ची म शा मल सभी भाषाओं तथा
अं ेजी को वैकि पक मा यम के प म रखने क अनुम त होगी ।
ऊपर दए गए संक प से एक ओर जहाँ ह द को उ चतर थान दया गया है वह ं
दूसर ओर अं ेजी को बरकरार रखने का बढ़ावा भी । प ट है क श ा के े म तथा
सरकार क भाषा नी त म जब तक अपे त प रवतन नह ं कए जाते तब तक अं ेजी के योग
पर रोक लगाना असंभव रहे गा ।
403
20.4 मा यम अथवा संचार भाषा ह द
आज जन संचार मा यम हमारे जीवन और रा य वकास का अ वि छ न अंग बन
गया है । जन संचार के व भ न मा यम सूचना, श ा, मनोरं जन आ द के काय से जु ड़े ह ।
जन संचार के इन मा यम क पहु ँ च व भ न ोता वग तक होती है । उनक अलग-अलग
वशेषताएँ होती है िजनके कारण इसम यु त भाषा का व प भी बदलता रहता है । आज के
दौर म सु बह से शाम तक यहाँ तक क रा क न त धता म भी जन संचार मा यम मनु य
के साथी होते ह । अखबार, रे डयो, टे ल वजन, सनेमा, छोटे पद के धारावा हको, व ापन एवं
इ टरनेट ने इस े म ां त ला द है । मा यम ने ह द के वकास के नए मोड़ पर ला
खड़ा कया है और इसक भाषा म नत नए योग प रल त कए जा रहे ह । आइए इन
सबके बारे म आपको एक व तृत जानकार द जाए ।
ह द मू ल प म तो हमार जन संपक क भाषा रह है । आ दकाल से अब तक के
भा षक प रवतन म ह द का स मान बढ़ा है । आ याि मक गु हो या सा ह यकार सभी ने
महसूस कया क ह द के बना ान वचार और भावनाओं को जन-जन तक पहु ँ चाना मु ि कल
है । भारत म होने वाले सामािजक, सां कृ तक, धा मक और राजनै तक आ दोलन तक क
भाषा ह द रह है और वतमान जन संचार मा यम को संदेश सं ेषण के लए ह द क परम
ज रत है । वतमान प र य म संचार मा यम नयं क शि त के प म उभर रहे ह । इनक
भू मका अ य धक मह चपूण हो गई है । लोकतं के चौथे त भ के प म अ डग प से
था पत प का रता क व वध इकाइयाँ सरकार ग त व धय तक पर य -परो नयं ण
रखने म स म है ।
वै वीकरण के इस दौर म यि त को यि त से जोड़ने के संचार मा यम क भू मका
सवा धक उपयोगी स हु ई है । आज के युग म, इन मा यम क भाषा का भी
' लोबलाइजेशन' हो रहा है । अब मी डया क भाषा अपने पारं प रक प क कचुल उतार
प रवतन के सं मत दौर से गुजर रह है । संचार मा यम का मकसद जन-जन के म य
संपक थापन है न क भाषा का प र कार करना । साथ ह इनका योजन जन समु दाय,
समाज एवं रा का वकास करना, मनोरं जन करना एवं ानव न करना भी है । ता पय यह
है क जन संचार मा यम ान- व ान तथा यवहा रकता से संबं धत दै नक घटनाओं का यौरा
दान करते ह । इन सभी ल य को पूरा करने के लए भाषा क ज रत होती है । भाषा का
सरोकार स दय से शासक और शासन से रहा ह । अ य त ाचीनकाल से भाषा स य के
ग लयारे म खड़ी नजर आई है । जैसे-जैसे युग बदला, भाषा भी अपना व प बदलती गई ।
संचार मा यम क भाषा और सरकार क भाषा जन साधारण क भाषा से अ धक प र कृ त प
म यु त होती रह है । सरकार का भा षक ि टकोण शास नक याकलाप के संदभ म
प र करण करना है जब क संचार मा यम क भाषा पर उ पादक और यापा रय ने बाजार
और व ापन के ज रए क जा कर लया है । उदाहरण के लए य द हम मु त मा यम को
यान से दे ख तो पाएंगे इनक भाषा का कोई नि चत व प नह ं है न कोई मानक ह तय
हु आ है । अपनी और बाजार क ज रत के अनुसार ये भाषा गढ़ लेते है, इस लए इनक भाषा
404
ह द वन के थान पर 'भाषा क खचड़ी' के प म यु त होती है । आज के दौर म मु त
मा यम म भाषा का थान गौण होने लगा है । मी डया का काम पाठक क च और मु नाफे
क ि ट म रखते हु ए और मु यत: ाहक सं या बढ़ाने के लये चटपट साम ी तु त करना
है । इस कारण भाषा केवल पाठक तक सं े षत हो सकने क चे टा करती है । मौजू दा दौर म
मा यम क भाषा न ह शु सं कृ त न ठ ह द हो सकती है और न ह उदू म त
ह दु तानी । सूचना ौ यो गक के वकास और बाजारवाद के बढ़ते दायरे म ह द भाषा ने
नये वषय, नये संदभ, नये श द और नई भा षक सं कृ त वक सत कर ल है । जहाँ प -
प काओं के शैशवकाल म आ. महावीर साद ववेद ने 'सर वती’ प का के ज रये ह द को
प र कृ त करने का भरपूर यास कया, वह ं आज क प काएँ ह द का व प और उसक
ि थ त बदल रह है । जैसे मु यमं ी जी ने हाईटे क क यूटर लाय ेर का उ घाटन कया ।
'आज ऑन लाइन टे डी’ से पढ़ाई आसान हो गई है । जैसे वा य म न तो भाषा के प र कार
क परवाह है और न उसके वा य- व यास क । शु ता पर ि ट ह द भाषा का याकर णक
और ल यंत रत व प मी डया वारा नर तर प रव तत कया जा रहा है । अब इन मा यम
म म त श दावल जैसे सु परहाइवे, म ट मी डया, हाइपर टे सैट, सवर, क यूटर ऑन लाइन,
ा ड के साथ-साथ खलाफ, ावधान, सबक नाराज, कानून जैसे हजार श द का योग ह द
म बेधड़क कया जा रहा है।
य मा यम म आकाशवाणी सबसे सश तम ् मा यम है जो त दन दे श क वतमान
ि थ त क ताजा जानकार सा रत करता है । रा य और ा तीय के से सा रत होने
वाले काय म ह द और ा तीय भाषाओं का अनु योग सहजतापूवक कर रहे ह । रे डयो क
भाषा जन सामा य क भाषा है िजसे बड़ी सं या म लोग समझ सकते ह । रे डय से सा रत
ह द काय म दु नया के कई दे श म लोक य है । य मा यम म ह द क भा षक ि थ त
मु त मा यम क भाँ त म त श दावल यु त बनती जा रह है य क इस पर भी
बाजारवाद का गहरा भाव है । य य मा यम ने स ती लोक यता बढ़ाने के उ े य से
जनता और बाजार क भाषा को अपना लया है । कॉ वट श त उ घोषक कभी-कभी बना
सोचे समझे ह बोल पड़ता है- वी आर वैर ल ड टू से दै ट वी आर गोइंग टू से ल ेट ह द डे
टु माँर - ले कन ऐसे योग से ह द क ि थ त कमतर नह ं आंक जा सकती । दूरदशन पर
सा रत होने वाले अनेक धारावा हक ने ह द को और मजबूत बनाया है । नर तर नई-नई
संभावनाओं ज रत क खोज म भाषा का प र नि ठत व प बदला है । दूरदशन क ह द
अनुवाद क भाषा न होकर जन साधारण क भाषा है । य- य मा यम म सनेमा ऐसा
शि तशाल मा यम है िजसने ह द को वैि वक तर पर स मान दलाया और भाषा के लहाज
से स पूण भारत को एक भा षक सू से जोड़ा । सच कह तो सनेमा ने ह द भाषा के मानक
व प को छोड़ अं ेजी, उद, फारसी और ा तीय भाषाओं और बो लय के श द का समावेश
करते हु ए िजस तरह फ म म संवाद और गीत लख, उससे सं वधान क यह शत भी पूर हु ई
लगती है क हर जगह के श द लेते हु ए ह द दे श क सामािजक सं कृ त के चार- सार को
बढ़ावा दे गी ।
405
आज का युग व ापन का युग है । ान के सू वा य बने, व ापन क भाषा भी
म त है । व ापन क भाषा का मूल योजन भाषा का प र करण नह ं अ पतु ाहक बटोरना
है । इस लये वह ाहक क भाषा को अपनाता है । उसका मकसद है-थोड़ा कहना, थोड़ा सु नना
और यादा समझना । तु कबंद व ापन के भाषा क खास व ध है और ह द इसके लए
फट है । जैसे- “सौ य सु हान प का राज, फेयरलवल बना रहा है आज” । अं ेजी क रोमन
ल प म तु कबंद - 'संडे हो या मंडे रोज खाओ अ डे' भी कम भावशाल नह ं । जन संचार
मा यम के बढ़ते भाव से ऐसा तीत होने लगा है क आज संचार मा यम के बना संसार
नह ं चल सकता, व ापन के बना उ पाद बक नह ं सकता और ह द के बना व ापन चल
नह ं सकता ।
सू चना ौ यो गक के वतमान दौर म क यूटर क मह ता को कौन अ वीकार करे गा
। क यूटर ता कक शि त के भ डार का एक ऐसा मशीनी यं है जो संदेश और सू चनाओं को
सहजता से सं ह एवं सं ेषण कर सकता है । भारतीय बाजार म बहु त बड़ी सं या म ह द
उपभो ता है । इस लये सॉ टवेयर क प नय ने ह द म सॉ टवेयर ो ाम तैयार कर लये ह
। क यूटर पर ह द भाषा का योग दन दन बढ़ता जा रहा है । ह द भाषा के कसी भी
समाचार को वेबसाइट के ज रये क यूटर पर पढ़ा जा सकता है । सू चना तं क बढ़ती ग त से
ह द का योग भी ग त पकड़ने लगा है । ह द के चार- सार को दे खते हु ए लगता है क
वह दन दूर नह ं जब समाचार प , रे डयो, दूरदशन, व ापन, सनेमा, क यूटर, इंटरनेट जैसे
अ याधु नक वक सत जनसंचार मा यम पर ह द भाषा का चलन बढ़ जायेगा ।
सारांशत: संचार के सभी मा यम ने ह द के वकास को ग तशीलता दान क है ।
उसे रा य-अंतरा य पर य पर त ठा दलाई है और उसे संचार क भाषाओं म तीसरे
थान पर लाकर खड़ा कर दया है । व भ न दे श के व भ न भाषा-भा षय तक ह द को
लोक य बनाने का मह तम काय कया है । भारतीय दूरदशन और सनेमा-धारावा हक ने ।
आ दवासी भू-भाग या दूरदराज के इलाक म नर र या अ प श त लोग म ह द को रे डय
ने जन य बनाया है । पूरे भारतवष म एफ०एम० चैनल सु नने वाल क सं या करोड़ म पहु ँ च
गई है । दूरदशन, सनेमा और रे डयो जन संचार के ऐसे मा यम ह िज ह ने आजाद दे श म
अं ेजी के बढ़ते वच व के सं मण काल म ह द को ति ठत भाषा का गौरव दे ने का
साहसपूण कदम उठाया है । सम त वषमताओं के बावजू द य- य संचार मा यम क ह द
अपने माग पर अनवरत चलती रह है और सारे दे श को भा षक एकता क डोर म बांधने का
दा य व सहजता और न ठा से नभा रह है ।
406
3. ू ी -सं वधान क वह अनुसच
आठवीं अनुसच ू ी िजसम शा मल सभी भाषाएँ (बाइस) रा य
भाषाएँ है ।
4. शास नक योजन- शासन और के के कामकाज को पूरा करने के लए यव था क
जाए ।
5. ा पण- कायालयी काय व ध का मह वपूण अंग । सरकार प का क चा या अं तम
ा प तैयार करना ।
6. व धक- कानून से संबं धत ।
7. आयंगर मु ंशी फामू ला- क हैयालाल मा णक लाल मु श
ं ी और गोपाल वामी आयंगर क
अ य ता म यह फामू ला बना िजसके तहत संघ क भाषा ह द और ल प दे वनागर
रखने पर सहम त बनी ।
8. काय साधन ान - िजन अ धका रय / कमचा रय ने मै क या उसके समक तर
का ह द ान ा त कर लया है उ ह काय साधक ान ा त माना जाता है ।
9. सह राजभाषा- भारत सरकार क वभाषी नी त के अनुसार ह द राजभाषा और
अं ेजी सह राजभाषा होगी और सम त द तावेज दोन भाषाओं म रखे जाएंगे ।
10. धु र -के
11. काय व ध सा ह य - शास नक काय म इ तेमाल क जाने वाल नयम पुि तकाएँ
सं हताएँ और नयमाव लयाँ ।
12. पैरवी- सफा रश
13. आधारभू त-मौ लक
14. अंतरा य अंक- सं वधान वारा अं ेजी के अंक को अ तरा य अंक माना गया है ।
15. वचाराधीन- िजस मामल म कायवाह पूर नह ं हु ई ।
20.6 सारांश
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप ह द के सा हि यक प से इधर उसके उन प से
प र चत हु ए जो उसे एक स म और समृ भाषा के प म मा यता दलाते ह । आप ह द
के राजभाषा, रा य भाषा और संपक भाषा के साथ मा यम भाषा के प म ह द क दन दन
बढ़ती लोक यता से अवगत हो सके । यह समझ सके क रा य और शासन क भाषा
राजभाषा कहलाती है । भारतीय संघ क राजभाषा दे वनागर ल प म लखी ह द को माना
गया है । सं वधान म जो ावधान दए गए ह उनके अनुसार सं वधान लाग होने के प ह वष
बाद तक क अव ध अथात 1965 तक ह द को पूर तरह राजभाषा बन जाना था ले कन
1967 म कए गए संशोधन के अनुसार अं ेजी को सह राजभाषा के प म बरकरार रखने का
ावधान कया गया । इसी संदभ म आप भारत सरकार क वभाषी नी त एवं भाषा सू से
प र चत हु ए ।
आपने जाना क रा य म यु त भाषा रा यभाषा कहलाती है । सं वधान के अनु छे द
345 के अ तगत रा य का वधान म डल व ध के पा रत उस रा य के राजक य योजन के
लए रा य क एक अथवा एका धक अथवा ह द को ा धकृ त कर सकता है ।
407
रा भाषा रा य स मान को वहन करती है । आजाद क लड़ाई के दौरान पूरा दे श
ह द को रा भाषा मान चुका था क तु आजाद भारत के सं वधान ने उसे राजभाषा का पद
दया है । भारत के सं वधान क आठवीं अनुसच
ू ी के अ तगत सभी बाइस भाषाएँ रा भाषा है ।
ह द भी इनम से एक है ।
संपक भाषा के प म ह द आज पूर तरह ति ठत हो चुक है । उसको यह
स मान भारत क जनता ने दया है ।
ह द का यह प केवल बातचीत के तर तक ह सी मत न रहकर यवहार के सभी
े तक फैल गया है । अंत म आपने मा यम भाषा के प म ह द के लगातार उभरते नए-
नए व प क जानकार ा त क ।
20.7 अ यासाथ न
क. दघ तर न
1. राजभाषा, रा भाषा और रा यभाषा के ताि वक अ तर पर काश डा लए ।
2. भारतीय सं वधान म राजभाषा क संक पना कस प म यंिजत क गई है?
3. संपक भाषा कसे कहते ह? संपक भाषा के प म ह द क भू मका प ट
क िजए ।
4. राजभाषा और सह राजभाषा संबध
ं ी संवध
ै ा नक ावधान बताइए?
5. मा यम भाषा से या ता पय है? मा यम भाषा के प म ह द क ि थत
प ट क िजए ।
ख. लघू तर न
1. भारत सरकार क वभाषी नी त और भाषा सू का ता पय प ट क िजए?
2. राजभाषा और रा भाषा का मौ लक अंतर बताइए ।
3. राजभाषा क प रभाषा एवं मह व का प रचय द िजए ।
4. सं वधान के रा यभाषा वषयक नदश का प रचय द िजए ।
ग. सह / गलत चि नत क िजए ।
1. आपसी बोलचाल क भाषा को राजभाषा कहते ह । सह /गलत
2. सं वधान क आठवीं अनुसच
ू ी म प ह भाषाएँ है । सह /गलत
3. दे श के कामकाज क भाषा को संपक भाषा कहते ह । सह /गलत
4. भारतीय संघ क राजभाषा अं ेजी है । सह /गलत
5. आज भारत सरकार का सम त कामकाज ह द म संचा लत कया जा रहा है ।
सह /गलत
घ र त थान क पू त क िजए
1. भारत............................. म गणतं बना ।
2. वचार के आदान- दान का योजन........................................ स करती
है ।
408
3. भारत क .................................... अं ेजी है ।
4. आजाद से पहले पूरा दे श ह द को............................................ कहता
था ।
5. ादे शक भाषाएँ............................ के कामकाज क भाषाएँ ह ।
20.8 संदभ ग थ
1. शंकर दयाल संह; ह द रा भाषा, राजभाषा जनभाषा कताबघर, नई द ल
2. डॉ0 भोलानाथ तवार ; राजभाषा ' ह द ’
3. डॉ0 दं गल झा टे ; योजन मूलक ह द , व या वहार, नई द ल
4. कृ ण कु मार गो वामी; योजन मू लक ह द और कामकाजी ह द ह द -क लंग
काशन नई द ल
5. वनोद गोदरे ; योजन मू लक ह द , वाणी काशन, नई द ल
409
इकाई-21 ह द क संवध
ै ा नक ि थ त
इकाई क परे खा
21.0 उ े य
21.1 तावना
21.2 वातं यो तर भारत म भाषा क संक पना
21.3 सं वधान म ह द क ि थ त
21.4 राजभाषा अ ध नयम 1983 एवं 1987
21.5 राजभाषा नयम 1976
21.6 राजभाषा आयोग एवं राजभाषा स म तयां
21.7 वचार संदभ / श दावल
21.8 सारांश
21.9 अ यासाथ न
21.10 संदभ थ
21.0 उ े य
इस इकाई म भारत के सं वधान म ह द क ि थ त एवं राजभाषा अ ध नयम तथा
नयम से अवगत कराया जा रहा है । इस इकाई के अ ययन के बाद आप-
राजभाषा के प म ह द के वकास से प र चत हो सकगे ।
भारतीय सं वधान के कन- कन अनु छे द म राजभाषा के प म ह द संबध
ं ी उपबंध
कए गए ह । इसक जानकार ा त कर सकगे ।
राजभाषा अ ध नयम 1963 एवं 1987 म कए गए राजभाषा वषयक संशोधन और
त नुसार ावधान को समझ सकगे ।
राजभाषा नयम 1976 के बारे म ान ा त कर सकगे िजसम ह द के योग को
बढ़ाने के यास क चचा क गई है ।
राजभाषा आयोग के गठन, उसके काय एवं सफा रश के वषय म जान सकगे ।
राजभाषा ह द के काया वयन के बारे म वचार करने के उ े य से ग ठत व भ न
स म तय क थापना और उनके उ े य को जान सकगे ।
राजभाषा ह द के वकास के संबध
ं म संघ सरकार के दा य व तथा उसके नवाह को
लेकर क गई कायवा हय के वषय म पूर जानकार ा त कर सकगे ।
पूर इकाई के अ ययन के उपरा त भारत सरकार क भाषा नी त के बारे म एक सम
समझ बना पाएंगे ।
21.1 तावना
योजन मू लक ह द और उसके व प के बारे म आप पहले ह पढ़ चुके ह िजससे
सा हि यक ह द और सामा य ह द के व प से योजन मू लक ह द कह ं और कस कार
410
भ न है यह भी आप के सामने प ट हो गया होगा । योजन मू लक भाषा कसी खास
योजन के लए यव त भाषा होती है । चूँ क इसका योग व भ न यवहार े म कया
जाता है प रणामत: इसक वभ न युि तय का वक सत होना वाभा वक हो जाता है ।
ह द के राजभाषा का पद हण कर लेने के बाद इसके अ तगत कायालयीन- ह द , ब कग
ह द , व ध, मी डया आ द कई युि तया वक सत हो गई ।
सां कृ तक ि ट से भारत एक ाचीन दे श है ले कन राजनी तक ि ट से एक
आधु नक रा के प म भारत का वकास एक नए सरे से टे न के शासनकाल म हु आ ।
वतं ता-सं ाम के साहचय म रा य वा भमान और वतं ता सं ाम के चैत य क अनुगँज
ू
घर-घर तक पहु ंचायी, वदे श ेम और वदे शी-भाव क मान सकता को सां कृ तक और
राजनी तक आयाम दया, नवयुग के नवजागरण को रा य अि मता, रा य अ भ यि त और
रा य वशासन के साथ अंतरं ग और अ वि छ न प से जोड़ दया ।
भारत के वतं ता सं ाम म ह द और अ य भारतीय भाषाओं क मह वपूण भू मका
रह । ये भाषाएं भारतीय वाधीनता के अ भयान और आ दोलन को यापक जनाधार दे ते हु ए
लोकतं क इस आधारभू त अवधारणा को संपु ट करती रह क जब दे श आजाद होगा तो लोक
यवहार और राजकाज म भारतीय भाषाओं का योग होगा ।
आजाद मल और हमने सं वधान बनाने का उप म शु कया । सं वधान का ा प
अं ेजी म बना, सं वधान क बहस अ धकांशत: अं ेजी म हु ई । यह बहस 12 सत बर 1949
दोपहर से 14 सत बर 1949 शाम तक चल । ारंभ म सं वधान सभा के अ य डॉ0
राजे साद ने अं ेजी म एक सं त भाषण दया । उ होने कहा क भाषा के वषय म
आवेश उ प न करने या भावनाओं को उ तेिजत करने के लए कोई अपील नह ं होनी चा हए
और भाषा के न पर सं वधान सभा का व न चय समू चे दे श को मा य होना चा हए । उ ह ने
बताया क भाषा संबध
ं ी अनु छे द पर लगभग तीन सौ या उससे भी अ धक संशोधन तु त
कए गए ।
14 सत बर 1949 क शाम बहस के समापन के बाद जब भाषा संबध
ं ी सं वधान का
त काल न भाग 14 क और वतमान भाग 17 सं वधान का ह सा बन गया तब डॉ0 राजे
साद ने अपने भाषण म बधाई के कु छ श द कहे, जो थे, “आज पहल ह बार ऐसा सं वधान
बना है जब क हमने अपने सं वधान म एक भाषा रखी है, जो संघ के शासन क भाषा होगी
।'' उ होने कहा- “इस अपूव अ याय का दे श के नमाण पर बहु त भाव पड़ेगा । यह मान सक
दशा का भी न है िजसका हमारे सम त जीवन पर भाव पड़ेगा । हम के म िजस भाषा
का योग करगे उससे हम एक-दूसरे के नकटतर आते जाएँगे । आ खर अं ेजी से हम
नकटतर आए ह य क वह एक भाषा थी । अं ेजी के थान पर हमने एक भारतीय भाषा को
अपनाया है । इससे अव यमेव हमारे संबध
ं घ न टतर ह गे, वशेषत: इस लए क हमार
पर पराएं एक ह ह, हमार सं कृ त एक ह है और हमार स यता म सब बात एक ह है ।
अतएव य द हम इस सू को वीकार नह ं करते तो प रणाम यह होता क या तो इस दे श म
बहु त सार भाषाओं का योग होता या वे ा त पृथक हो जाते जो बा य होकर कसी भाषा
411
वशेष को वीकार नह ं करना चाह रहे थे । हमने यथा संभव बु मानी का काय कया है और
मु झे हष है, मु झे स नता है और मु झे आशा है क भावी संत त इसके लए हमार सराहना
करे गी ।”
413
। हमारे इ तहास म अब तक कभी भी एक भाषा को शासन और शासन क भाषा के प म
मा यता नह ं मल थी । हमारा धा मक सा ह य और काशन सं कृ त म सि न हत था,
न स दे ह उसका सम त दे श म अ ययन कया जाता था, क तु वह भाषा भी कभी समू चे दे श
के शासक य योजन के लए यु त नह ं होती थी । आज पहल ह बार ऐसा सं वधान बना
है जब क हमने अपने सं वधान म एक भाषा रखी है जो संघ के शासन क भाषा होगी और
उस भाषा का वकास समय क प रि थ तय के अनुसार ह करना होगा । हमारे सं वधान म
बहु त से ववाद उठ खड़े हु ए ह िजन पर गंभीर मतभेद थे, क तु हमने कसी न कसी कार
उनका नपटारा कर लया । यह सबसे बड़ी खाई थी िजससे हम एक दूसरे से अलग हो सकते
थे । हम यह क पना करनी चा हये क यद द ण ह द भाषा और दे वनागर ल प को
वीकार नह ं करता तब या होता ? ि व जरलड जैसे छोटे से, न ह से दे श म तीन भाषाएँ है
जो मा य ह और सब कु छ काम उन तीन भाषाओं म होता है । या हम समझते ह क हम
के य शासक य योजन के लए उन भाषाओं को रखने क सोचते जो भारत म च लत है;
तो या हम सब ा त को साथ रख सकते थे? सब म एकता कर सकते थे? येक पृ ठ को
शायद प ह-बीस भाषाओं म मु त करना पड़ता ।”
और यह केवल यय का न नह ं है । यह मान सक दशा का भी न है िजसका
हमारे सम त जीवन पर भाव पड़ेगा । हम के म िजस भाषा का योग करगे उससे हम
एक दूसरे के नकटतर आएँगे । आ खर अं ेजी से हम नकटतर आये ह, य क वह एक भाषा
थी । अं ेजी के थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है, इससे अव यमेव हमारे
ं घ न टतर ह गे, वशेषत: इस लए क हमार पर पराएँ एक ह है, हमार सं कृ त एक ह
संबध
है और हमार स यता म सब बात एक ह है । '' वातं यो तर भारत म भाषा क संक पना को
क व गु रव नाथ क भाषा म प ट कया जा सकता है ।” आधु नक भारत क सं कृ त
एक वक सत शतदल कमल के समान है, िजसका एक एक दल एक-एक ा तीय भाषा और
उसक सा ह य एवं सं कृ त है । कसी एक को मटा दे ने से उस कमल क शोभा ह न ट हो
जाएगी । हम चाहते ह क भारत क सब ा तीय बो लयाँ, िजसम सु दर सा ह य सृि ट हु ई है,
अपने अपने घर म ( ा त म) रानी बन कर रह, ा त के जनगण क हा दक च ता क काश
भू म व प क वता क भाषा होकर रह और आधु नक भाषाओं के हार क म यम ण ह द
भारत-भारती होकर वराजती रहे ।
21.3 ह द क संवैधा नक ि थ त
जैसा क आपको इस इकाई क तावना म बताया गया भारत का सं वधान पा रत हु आ
और यह आशा और - याश जन-जन म जागृत हु ई क अब भारतीय भाषाओं का व तार होगा,
राजभाषा ह द के योग म दूत ग त से ग त होगी और संपक भाषा के प म ह द
रा भाषा के पद पर ति ठत होगी । सं वधान के अनु छे द 350 म न द ट है क कसी
शकायत के नवारण के लए येक यि त का संघ या रा य के कसी अ धकार या
ा धकार को संघ म या रा य म यु त होने वाल कसी भाषा म तवेदन दे ने का अ धकार
होगा । 1956 म अनु छे द 350 क सं वधान म अ तः था पत हु आ और यह न द ट हु आ क
414
ाथ मक तर पर मातृभाषा म श ा क पया त सु वधाओं क यव था करने का यास कया
जाए । अनु छे द 344 म राजभाषा के संबध
ं म आयोग और संसद य स म त ग ठत करने का
नदश दया गया । योजन यह था क संघ के शासक य योजन के लए ह द का
अ धका धक योग हो, संघ और रा य के बीच राजभाषा का योग बढ़े , संघ के शासक य
योजन के लए अं ेजी भाषा के योग को सी मत या समा त कया जाए । ह द भाषा के
वकास के लए यह वशेष नदश अनु छे द 351 म दया गया क संघ का यह क त य होगा
क वह ह द भाषा का सार बढ़ाए इसका वकास कर, िजससे वह भारत क सामा सक
सं कृ त के सभी त व क अ भ यि त का मा यम बन सके एवं इसका श द भ डार समृ
और संव धत हो ।
इस कार भारत के सं वधान के 17व भाग म राजभाषा वषयक यव था क गई ।
ं म अनु छे द 345 से 351 के अ तगत संवध
इस संबध ै ा नक उदाहरण ा त होते ह िज ह चार
अ याय म वभािजत कया गया है । अ याय म अनु छे द 343 और 344 के उपबंध म संघ
क राजभाषा के बारे म यव था क गई है । अ याय 2 म अनु छे द 345 से 347 तक म
ादे शक भाषाओं के संबध
ं म यव था क गई है । अ याय 3 के अ तगत उ चतम यायालय
तथा उ च ं म अनु छे द 348 एवं 349 म उपबंध दए गए ह
यायालय क भाषा के संबध
तथा अ याय 4 म अनु छे द 350 एवं 351 के अनुसार वशेष नदश दए गए ह । अब
व तारपूवक इनके बारे म आपको जानकार दे ने के लए येक अनु छे द पर पृथक चचा क
जाएगी ।
अनु छे द 343 (1) के अ तगत संघ क राजभाषा ह द और ल प दे वनागर होने का
नदश है । संघ के शासक य योजन के लए योग कए जाने वाले अंक का प भारतीय
अंक का अ तरा य प होगा । अनु छे द 343 (2) म यह यव था क गई क सं वधान के
लागू होने के समय से प ह वष क अव ध तक अथात 26 जनवर 1965 तक संघ के सभी
सरकार योजन के लए अं ेजी का योग पूववत होता रहे गा । ले कन उ त अव ध के दौरान
रा प त जी के आदे श वारा कसी काम के लए अं ेजी के अ त र त ह द के योग क
अनुम त भी ा त क जा सकेगी । अनु छे द 343 (3) म संसद को यह अ धकार दान कया
गया क वह 1965 के बाद भी सरकार कामकाज म अं ेजी का योग बनाए रखने क
यव था कर सकती है ।
इस कार अनु छे द 343 के दूसरे ख ड म द त शि तय का योग करते हु ए
रा प त जी का 27 मई 1952 को पहला आदे श जार कया गया िजसम ह द के गामी
काया वयन क दशा का उ लेख कया गया; इसम:-
1. रा य के रा यपाल
2. उ च यायालय के यायाधीश
3. उ चतम यायालय के यायाधीश क नयुि त क अ धसूचना के लए अं ेजी भाषा के
अलावा ह द और अ तरा य अंक के अ त र त दे वनागर के अंक को भी ा धकृ त
कया गया ।
415
रा प त जी का दूसरा आदे श सन ् 1955 म जार कया गया िजसम संघ के व भ न
शासक य योजन के लए अं ेजी भाषा के अ त र त ह द के योग को ा धकृ त कया गया
। इन योजन म जनता से प यवहार, शास नक रपोट तथा संसद म पेश क जाने वाल
रपोट , सरकार संक प तथा वधायी अ ध नयम ह द को राजभाषा के प म वीकार करने
वाल रा य सरकार के बीच पर पर प यवहार, सं धय और करार , अ य दे श क सरकार ,
उनके दूतावास और अ तरा य संगठन के साथ प यवहार आ द शा मल कए गए ।
इस अनु छे द क ववेचना से जो बात सामने आती है वह यह है क भारत क भाषायी
ि थ त पर गौर करते हु ए प ह वष क अव ध म ह द का योग बढ़ाने क चे टा तो क जा
सकती है ले कन प ह वष बीत जाने के बाद भी अं ेजी के योग को कायम रखने के
प रणाम व प ह द को राजभाषा का जो सह थान ा त करना था वह उसे नह ं मल पाया
। ह द के वषय म लगता है सं वधान के संक प का न कष कह ं खो सा गया । संपक
भाषा के प म ह द क शि त, मता और साम य अका य, अद य और अ वतीय है,
ले कन यह न सहज ह मन म उठता है क हमने सं वधान के सपने को साकार करने के
लए या कया? हमारे काय म भावी य नह ं हु ए? य और कैसे अं ेजी भाषा क
मान सकता हमार नई पीढ़ पर इस कदर हावी हो गई क हमार अपनी भाषाओं क अि मता
और भ व य संकट म पड़ गए । श ा, यापार और यवहार म, संसद य, शासक य और
या यक याओं म ह द को और ादे शक भाषाओं को पांव रखने क जगह तो ा त हु ई,
सं या का आभास भी मला क तु भावी वच व नह ं मल पाया ।
अनु छे द 344 (1) म रा प त जी को यह अ धकार दया गया है क वे नधा रत
अव ध समा त होने के उपरा त संघ के सरकार योजन के लए ह द के योग के वषय म
ि थ त का आकलन-अ ययन कर रपोट तु त करने के लए राजभाषा आयोग का गठन कर
सकते ह । इस आयोग म सं वधान क आठवीं अनुसच
ू ी म सि म लत सभी भाषाओं के
त न ध ह गे । आपक जानकार के लए यहाँ बता दे ने क ज रत है सं वधान क आठवीं
अनुसू ची म भारत क उन सभी मु ख भाषाओं को शा मल कया गया है जो दे श क
राजभाषाएँ है । ये सभी भाषाएँ ‘रा य भाषा' कहलाने का गौरव ा त करती ह । आरं भ म इस
सू ची म अस मया, बंगला, गुजराती, ह द , क नड, क मीर , मलयालम, उ ड़या, पंजाबी,
सं कृ त, त मल, तेलु गु और उदू भाषाओं को सि म लत कया गया । सन ् 1956 म संशोधन
वारा संधी तथा 1992 म म णपुर , नेपाल और क कणी को भी शा मल कर लया गया ।
2002 म पुन : एक संशोधन करते हु ए मै थल , संथाल , बोडो और डोगर को भी सं वधान क
आठवीं अनुसू ची म थान दे दया गया है । फलहाल इस अनुसच
ू ी म कु ल बाइस भाषाएँ
सि म लत है ।
अनु छे द 344 (1) के ह अ तगत द गई शि तय का योग करते हु ए रा प त जी
ने सन ् 1955 के 7 जू न को राजभाषा आयोग के गठन का आदे श दया । त नुसार ी
बी०जी० खेर क अ य ता म न न ल खत वषय पर सफा रश करने के लए एक आयोग
ग ठत हु आ-
416
क. संघ के राजक य योजन के लए ह द भाषा का अ धक योग,
ख. संघ के राजक य योजन म से सब अथवा कसी के अं ेजी भाषा के योग पर
नबधन,
ग. सं वधान के अनु छे द 342 म व णत योजन म सब अथवा कसी के लए योग क
जाने वाल भाषा,
घ. संघ के कसी एक अथवा अ धक उि ल खत योजन के लये योग कए जाने वाले
अंक का प,
ङ. संघ क राजभाषा तथा संघ और कसी रा य के बीच अथवा एक रा य और दूसरे
रा य के बीच संचार क भाषा तथा योग के बारे म रा प त जी वारा आयोग से
पूछे गए अ य वषय ।
इस आयोग ने सन ् 1956 म अपना तवेदन पेश कर दया । आयोग वारा क गई
सफा रश क जाँच के लए सं वधान के अनु छे द (344 ख ड-4) के अनुसार 3 दस बर
1957 को एक संसद य स म त का गठन कया गया िजसम कु ल 30 सद य थे । 20
लोकसभा के और 10 रा यसभा के । स म त ने व वध सरकार उप म , मं ालय के नर ण
और सा य काय म के आधार पर फरवर 1959 म अपनी रपोट तु त क । इस रपोट म
स म त ने न न ल खत सफा रश क -
क. भारत क वभ न ादे शक भाषाएँ अपने-अपने रा य म सरकार कामकाज तथा श ा
का मा यम बने ।
ख. संघ के सरकार योजन के लए कोई एक भाषा काम म लाई जाए ।
ग. अं ेजी से ह द म प रव तत होने क या के बारे म अपनी राय दे ते हु ए रपोट म
कहा गया । इस प रवतन को धीरे -धीरे कया जाए ता क कसी कार क असु वधा न
हो । भाषा प रवतन का काम एक साथ कया जाना असंभव है ।
घ. स म त के अनुसार कसी जातां क दे श और उसक सरकार के लए ऐसी एक भाषा
म अ नि चत अव ध तक राजकाज चलाना मु ि कल ह नह ं असंगत भी था िजसे कु छ
लोग ह समझते ह । स म त ने 1965 तक अं ेजी को मु य राजभाषा और ह द
को सह राजभाषा बने रहने का सु झाव दया और यह भी कहा क सन ् 1965 म
ह द संघ क मु य राजभाषा का थान ले लेगी ले कन सह राजभाषा के प म
अं ेजी चलती रहनी चा हए ।
इस रपोट पर संसद के दोन सदन म चचा हु ई । सं वधान के अनु छे द 344 (6) के
अनुपालन म रा प तजी वारा एक द घ आदे श जार कया गया । इस आदे श म श दावल
नमाण, शास नक सा ह य का अनुवाद, सरकार कमचा रय के लए ह द का श ण,
ह द का चार, अ खल भारतीय सेवाओं और उ चतर के य सेवाओं म भत , पर ा का
मा यम, अ ध नयम क भाषा, उ च एवं उ चतम यायालय क भाषा और ह द के गामी
योग के लए योजनाब काय म तैयार करने के बारे म नदश जार कए गए ।
रा प तजी के आदे श के प रणाम व प न न ल खत यास प रल त हु ए-
417
क. दे श के आजाद होने के बाद सन ् 1950-51 म ह भारत सरकार श दावल नमाण के
लए वै ा नक पा रभा षक श दावल बोड क थापना कर चु क थी । इस बोड को ह
यह काम स पा गया क वह एक समान वै ा नक श दावल को वक सत करे जो दे श
क सम त भाषाओं म यव त हो सके । काला तर म यह काय वै ा नक तथा
तकनीक श दावल आयोग को स प दया गया । श दावल नमाण के नदशक
स ा त भी तय कर दए गए ।
ख. के य कमचा रय के लए सेवाकाल न ह द - श ण क यव था के ल य से ह द
श ण योजना क थापना क गई िजसके ज रए सरकार कमचा रय को ह द भाषा
का नःशु क श ण दे ने का ब ध कया गया ।
ग. सरकार सं हताओं एवं काय व ध सा ह य का ह द अनुवाद सु चा प म हो, इसके
लए एक अ भकरण था पत करने क बात सोची गई । बाद म इसी उ े य से के य
अनुवाद यूरो था पत कया गया । ह द आशु ल पक / टं कक के श ण क भी
यव था हु ई ।
घ. ह द टाइपराइटर के कं ु जीपटल को मानक प दे ने का काम आरं भ कया गया ।
ङ. ह द तथा ादे शक भाषाओं म आव यक प और वभागीय सा ह य मु हय
ै ा कराने
क दशा म काम शु कया गया ।
अनु छे द 345 रा य क राजभाषा अथवा राजभाषाओं से संबं धत है । इस अनु छे द के
अनुसार कसी रा य का वधान मंडल उस रा य म यु त कसी भाषा या ह द के योग को
सरकार योजन के लए ा धकृ त कर सकेगा । जब तक वधान मंडल वारा व ध के ज रए
कोई अ य उपबंध जार न कया जाए तब तक अं ेजी के योग को ह जार रखा जाए ।
अनु छे द 346 कसी रा य और संघ के अथवा एक रा य से दूसरे के म य प ाचार
क भाषा तय करने से संबं धत है । इस अनु छे द के तहत यह यव था भी क गई क य द
क ह ं कारण से संघ और रा य तथा एक रा य और दूसरे रा य के म य अं ेजी ह राजभाषा
हो तो भी दो या अ धक रा य आपसी करार के ज रए अपने अपने रा य म प यवहार के
लए ह द को राजभाषा मान सकते ह । पंजाब, गुजरात और महारा संघ के साथ इसी
अनुबध
ं के तहत ह द म प ाचार करना वीकार कर चुके ह । य द दो रा य क राजभाषा
एक ह हो तो वे भी आपसी प ाचार के लए ह द का यवहार कर सकते ह । उदाहरण के
लए पां डचेर और त मलनाडु क राजभाषा त मल और पुरा तथा पि चम बंगाल क बंगला
होने के बावजू द वे पर पर सरकार प ाचार ह द या अं ज
े ी म कर सकते ह ।
अनु छे द 347 म ावधान है क कसी रा य वशेष क जनसं या के कसी वशेष
ह से वारा बोल जाने वाल भाषा के लए वशेष उपबंध कए जा सकते ह । आशय यह हु आ
क य द कसी रा य का एक बड़ा जन समु दाय यह चाहता हो क उसक भाषा को मा यता द
जाए और राज के सरकार योजन के लए उस भाषा को अपनाया जाए तो रा प त जी
त वषयक नदश जार कर सकगे । व तृत जन समु दाय क मांग पर बोडो, डोगर और
संथाल जैसी कई भाषाओं को मा यता मल चु क है ।
418
अनु छे द 348 तथा 349 म उ चतम और उ च यायालय क भाषा वषयक ावधान
ह । इसके अनुसार संसद वारा जब तक भाषा संबध
ं ी कोई यव था नह ं क जाती तब तक
उ चतम यायालय एवं उ च यायालय के नयम अ ध नयम और वधेयक के लए योग
क भाषा अं ेजी ह रहे गी । इसके साथ रा य के रा यपाल के हाथ म यह अ धकार रहे गा क
वह रा प त क पूवानुम त से अपने रा य के उ च यायालय के लए ह द अथवा उस रा य
क राजभाषा को ा धकृ त कर सके । ले कन संसद तथा वधान मंडल जो भी वधेयक,
अ यादे श, अ ध नयम, नयम, व नयम, जार अथवा पा रत करगे उनका अं ेजी पाठ ह
ा धकृ त माना जाएगा । अनु छे द 350 म भाषायी अ पसं यक पर पूरा यान दए जाने क
यव था है । इसके अनुसार कोई भी यि त अपनी शकायत को दूर करने के लए लखे गए
ाथना प म संघ अथवा रा य म यु त होने वाल कसी भी भाषा का यवहार कर सकता
है।
अनु छे द 350 (1) म येक रा य के अ पसं यक समु दाय के ब च को उनक
मातृभाषा म श ा दए जाने का ावधान है । 350 (2) के अ तगत भाषाई अ पसं यक के
लए वशेष अ धकार नयु त कए जाने का ावधान है । यह अ धकार सं वधान के अधीन
अ पसं यक समु दाय से जु ड़े वषय का नर ण पर ण करते हु ए समय-समय पर अपनी
रपोट रा प त जी को स पता रहे गा । रा प त जी के नदश से ये रपोट संसद के दोन
सदन म तु त क जाएगी और संबं धत रा य सरकार के पास भी समु चत कायवाह के
नदश के साथ भेजी जाएगी ।
अनु छे द 351 सं वधान के भाषाई उपबंध म सवा धक मह वपूण है । इसम ह द
भाषा के वकास से संबं धत नदश है । अनु छे द म कहा गया है “ ह द भाषा क सार वृ
करना, ता क वह भारत क सामा सक सं कृ त के सब त व क अ भ यि त का मा यम हो
सके । तथा उसक आ मीयता म ह त ेप कए बना ह दु तानी और अ टम अनुसू ची म
उ ले खत अ य भारतीय भाषाओं के प शैल और पदावल को आ मसात करते हु ए तथा जहां
आव यक या वांछनीय हो वहाँ उसके श द भंडार के लए मु यत: सं कृ त से तथा गौणत: वैसी
उि ल खत भाषाओं से श द हण करते हु ए उसक समृ को नि चत करना संघ का क त य
होगा ।“
इस अनु छे द म ह द को एक सावदे शक भाषा के प म समृ बनाने पर जोर दया
गया है, साथ ह इसे धम नरपे और सामािजक सं कृ त क अ भ यि त का मा यम बनाने
क बात कह गई है । इस कार ह द क संवध
ै ा नक ि थ त इस भाषा को रा य जीवन क
अ भ यि त क भाषा बनाने पर बल दे ती हु ई इससे सम वय भू मका नवहन के त आशा एवं
व वास य त करती है ।
419
प रपालन क चे टा म एक ओर जहाँ ह द के योग म तेजी आ रह थी वह ं दूसर ओर
अं ेजी के भु व को बरकरार रखने का आ दोलन जोर पकड़ रहा था । कु छ अं ेजी पर त लोग
िजनम त मलनाडु के लोग बड़ी सं या म थे अ नि चत काल तक अं ेजी को राजभाषा बनाए
रखने के प धर थे । रा प त जी के नदश से ग ठत राजभाषा आयोग और तीस सद यीय
संसद य राजभाषा स म त ने भी इस वषय पर गहन वचार के बाद अपना मत दे दया था क
सन ् 1965 के बाद भी अं ेजी को ब कु ल हटा दे ने का काय अ य त क ठन होगा । इस दशा
म गैर ह द भाषी दे श को आशंका थी क ह द उन पर जबद ती थोपी जा रह है को
बेबु नयाद स करने के ल य से सं वधान के अनु छे द 343 (3) म दए गए ावधान म
संशोधन कर 1965 के बाद भी अं ेजी के योग को यथावत बनाए रखने क यव था क गई
। सन ् 1963 म ह यह राजभाषा अ ध नयम त काल न गृहमं ी ी लाल बहादुर शा ी वारा
(11 अ ेल 1963) संसद म तु त कया गया । संसद म इस अ ध नयम पर हु ई चचा को
आरं भ करते हु ए शा ी जी ने कहा- 'हम अं ेजी क वतमान ि थ त कायम नह ं रख सकते
और न ह इसे रहना चा हए । जब तक कोई रा य औ च य न हो तब तक अं ेजी के थान
पर ह द और दे श क अ य रा य भाषाओं को अपनाने म अ नि चतता बनाए रखना भी
उपयु त नह ं है । अन त काल तक अं ेजी क वतमान ि थ त नह ं चलने द जा सकती ।
द घ चचा के बाद 10 मई 1963 को राजभाषा अ ध नयम 1963 पा रत हु आ िजसके
फल व प 28 जनवर 1965 के बाद भी ह द के अ त र त अं ेजी के योग को सरकार
योजन म बरकरार रखने को संभव बनाया गया । राजभाषा अ ध नयम 1963 म मह वपूण
उपबंध न न ल खत ह -
इस अ ध नयम क धारा (3) म सरकार कायालय से जार होने वाले सभी द तावेज
को अ नवाय प म वभाषी ( ह द और अं ेजी दोन म) होने का उपबंध रखा गया ।
प रभाषा व प सामा य आदे श, नयम, अ ध नयम, सूचना शास नक रपोट, ेस व ाि तय ,
सं वदाए, न वदाएं, करार लाईसस और संसद पटल पर रखे जाने वाले सम त सरकार प
आ द अ नवाय प से वभाषी (अं ेजी और ह द ) प म जार करने का बंध कया गया ।
इससे रा य तर पर वभा षकता क ि थ त उ प न हो गई । धारा 4 के अनुसार ावधान
कया गया क इस वष के बीतते ह संसद वारा राजभाषा संबध
ं ी एक स म त ग ठत क
जाएगी जो संघ के राजक य योजन के लए ह द के योग क ि थ त क जांच पड़ताल
करे गी और रा प तजी को अपना तवेदन तु त करे गी ।
इसी अ ध नयम क धारा 5 (1) म कहा गया क के य अ ध नयम - व नयम आ द
का रा प तजी के आदे श से का शत ह द पाठ को उसका ा धकृ त पाठ माना जाए । धारा
5 (2) के अ तगत संसद म पेश कए जाने वाले अ ध नयम , संशोधन आ द के अं ेजी पाठ
के साथ-साथ उनका ह द म भी ा धकृ त अनुवाद कए जाने का ावधान रखा गया । इसी
अ ध नयम क धारा 7 के अनुसार रा प त क पूवानुम त से कसी भी रा य के रा यपाल
वारा रा य के उ च यायालय के नणय ड ीय आ द म अं ेजी के अ त र त ह द के
योग को भी ा धकृ त कया जा सकता है ।
420
राजभाषा अ ध नयम (1963) 26 जनवर 1965 से लागू हु आ । इसी वष ह द
सलाहकार का पद बनाया गया िजसे राजभाषानी त क नगरानी और काया वयन का दा य व
दया गया । ले कन इसके बाद भी संसद म ह द के राजभाषा व प को लेकर बहस होती ह
रह । यह नह ं द ण म भाषायी दगे भी हु ए । संसद म कई बार दए गए त काल न
धानमं ी नेह जी के आ वासन क 26 जनवर 1965 के बाद भी अं ेजी का योग कया
जाता रहे गा । जब बात नह ं संभल तो आ वासन को अमल जामा पहना कर उ ह संवध
ै ा नक
प दे ने के ल य से राजभाषा अ ध नयम 1963 म संशोधन कया गया । यह संशोधन 16
दस बर 1967 को पा रत हु आ । इसे राजभाषा (संशो धत) अ ध नयम 1967 कहा जाता है ।
इसक मु य यव थाएं न नानुसार है-
1. अ ध नयम क धारा 3 (1) के अनुसार (क) संघ के उन सभी सरकार योजन के
लए िजनक खा तर 26 जनवर 1965 से त काल पूव अं ेजी का योग कया जा
रहा था और (ख) संसद के काय न पादन के लए 26 जनवर 1965 के बाद भी
ह द के अ त र त अं ेजी का योग जार रखा जा सकेगा ।
2. के सरकार और ह द को राजभाषा के प म न अपनाने वाले कसी रा य के बीच
प ाचार क भाषा अं ेजी होगी, बशत उस रा य ने इसके लए ह द का योग करना
वीकार न कया हो । इसी कार ह द भाषी रा य क सरकार भी ऐसे रा य क
सरकार से अं ेजी म प ाचार करे गी और य द वे ऐसे रा य को कोई प ह द म
भेजती है तो साथ म उनका अं ेजी अनुवाद भी भेजेगी । पार प रक समझौते से य द
कोई भी दो रा य आपसी प ाचार म ह द का योग कर तो कसी कार क आपि त
नह ं उठे गी ।
3. के य सरकार के कायालय आ द के बीच प यवहार के लए ह द अथवा अं ेजी
का योग कया जा सकता है । ले कन जब तक संबं धत कायालय आ द के कमचार
ह द का काय साधक ान न ा त कर ल, तब तक प ा द का दूसर भाषा म
अनुवाद उपल ध कराया जाता रहे गा ।
4. राजभाषा अ ध नयम क धारा 3 (3) के अनुसार न न ल खत कागज प के लए
ह द और अं ेजी दोन का योग अ नवाय है :
(1) संक प (2) सामा य आदे श (3) नयम (4) अ धसू चनाएं (5) शास नक प (6)
ेस व ि तयां (7) संसद के कसी एक अथवा दोन सदन के सम रखी जाने वाल
शास नक तथा अ य रपोट (8) सरकार कागज प (9) सं वदाए (11) करार (12)
अनुलि तयां (12) टडर नो टस और (13) टडर फाम ।
5. धारा 3 (4) के अनुसार अ ध नयम के अधीन नयम बनाते समय यह सु नि चत कर
लेना होगा क के य सरकार का कोई कमचार ह द या अं ेजी मे से कसी एक
भाषा म वीण होने पर भी अपना सरकार कामकाज भावी ढं ग से कर सके और
केवल इस आधार पर क वह दोन मापद ड म वीण नह ं है, उसका कोई अ हत न
हो ।
421
6. राजभाषा (संशोधन) अ ध नयम, 1967 वारा अ ध नयम क धारा 3 (5) के प म
यह उपबंध कया गया है क उपयु त व भ न काय के लए अं ेजी का योग जार
रखने संबध
ं ी यव था तब तक चलती रहे गी जब तक ह द को राजभाषा के प म न
अपनाने वाले सभी रा य के वधान मंडल अं ेजी का योग समा त करने के लए
आव यक संक प न पा रत कर ल और इन संक प पर वचार करने के बाद संसद का
येक सदन भी इसी आशय का संक प पा रत न कर दे ।
7. राजभाषा अ ध नयम क धारा 4 म 26 जनवर 1975 के बाद एक संसद य राजभाषा
स म त के गठन का उपबंध है । इसम 30 सद य ह गे (20 लोकसभा + 10
रा यसभा) यह स म त संघ के सरकार योजन के लए ह द के योग म हु ई ग त
क जाँच कर सफा रश स हत अपना तवेदन रा प त को स पेगी । स म त का
यथासमय गठन कर दया गया था, अब तक यह सात तवेदन तु त कर चु क है ।
8. अ ध नयम क धारा 7 के अनुसार कसी रा य का रा यपाल रा प त क पूण सहम त
से उस रा य के उ च यायालय वारा दए अथवा पा रत कए गए कसी नणय ड
अथवा आदे श के लए, अं ेजी भाषा के अलावा ह द अथवा रा य क राजभाषा का
योग ा धकृ त कर सकता है । तथा प य द कोई नणय, ड या आदे श अं ेजी से
भ न कसी भाषा म दया या पा रत कया जाता है तो उसके साथ संबं धत उ च
यायालय के ा धकार से अं ेजी भाषा म उसका अनुवाद भी कया जाएगा । अब तक
उ तर दे श, आ ध दे श, राज थान और बहार के रा यपाल ने अपने-अपने उ च
यायालय म उपयु त उ े य के लए ह द के योग क अनुम त दे द है ।
राजभाषा संक प
दस बर 1967 म संसद के दोन सदन ने सरकार क भाषा नी त के संबध
ं म एक
सरकार संक प भी पा रत कया, िजसे 18 जनवर 1968 को अ धसू चत कया गया । इस
संक प के पहले पैरा ाफ के अनुसार के य सरकार ह द के चार तथा वकास और संघ के
व भ न सरकार योजन के लए और उसके योग म तेजी लाने के ल य से एक अ धक
गहन और व तृत काय म तैयार करे गी और उसे कायाि वत करे गी ।
के य सरकार इस संबध
ं म कए गए उपाय तथा उनम हु ई ग त का यौरा दे ते हु ए
एक वा षक मू यांकन रपोट भी संसद के दोन सदन के सभा पटल पर तु त करे गी । इस
संबध
ं म नर तर कायवाह क जाती रह है ।
राजभाषा अ ध नयम 1963 पा रत होने के बाद संघ के सरकार कामकाज म
वभा षक ि थ त शु हु ई है, िजसम कु छ काय के लए ह द और अं ेजी दोन भाषाओं का
योग कया जाना अ नवाय है और के य सरकार का येक कमचार अपने सरकार
कामकाज म ह द अथवा अं ेजी दोन म से कसी भी भाषा का योग करने के लए वतं
है।
राजभाषा नयम, 1976 म इन बात क पुि ट क गई है । ले कन सरकार क यह
सु वचा रत नी त है क संघ के कामकाज म ह द का योग मक प से बढ़ाया जाए ता क
वह संघ क राजभाषा के प म अपना उ चत थान हण कर सके । राजभाषा नी त क
422
सफलता के लए यह बहु त ज र है क ह द न जानने वाले के य सरकार के कमचा रय
को ह द सखाई जाए ता क कम से कम वे ह द म लखी गई ट प णय और मसौद को
पढ़ और समझ सक । इसके लए ह द श ण योजना के मा यम से समु चत यव था क
गई है ।
423
इसके अलावा “ग” े के के य सरकार के कायालय से “क'' और “ख” े के
रा य म ि थत के सरकार से भ न कायालय म ह द अथवा अं ेजी म प ाचार कया जा
सकता है । इस नयम के अ तगत सभी कमचा रय को उनक सु वधानुसार आवेदन तथा
अनुमोदन ह द या अं ेजी म दे ने क यव था क गई ।
राजभाषा नयम के 10 (4) म यह यव था क गई क िजन कायालय म 80
तशत से अ धक कमचा रय को ह द का कायसाधक ान है उ ह भारत के राजप म
अ धसू चत कया जाएगा। िजससे उन कायालय से ह द म ह प ाचार कया जा सके ।
राजभाषा नयम 1976 के नयम 11 के अनुसार के सरकार के कायालय म यु त
होने वाल सं हताओं, नयमाव लय , फामा एवं या व ध सा ह य आ द को ह द और अं ेजी
दोन म तैयार कर वभाषी प म छपवाया जाएगा । इसके अलावा कायालय के नाम, सू चना
प , मोहर, लेखन साम ी आ द पर ह द और अं ेजी दोन का योग कया जाएगा ।
राजभाषा नयम 1976 क कु छ और मह वपूण बात नीचे द जा रह है:-
1. ह द म ा त कए गए प का उ तर ह द म ह दया जाएगा ।
2. सभी द तावेज पर जो अ धकार ह ता र करे गा उसका दा य व यह सु नि चत करना
होगा क ह द और अं ेजी म जार सम त द तावेज वभाषी प म तैयार कए
और छपवाए जा रहे ह ।
3. राजभाषा अ ध नयम और राजभाषा नयम का अनुपालन कायालय म समु चत प म
हो रहा है या नह ं । इसक नगरानी क िज मेदार येक कायालय के शास नक
धान क होगी । उसे इस संबध
ं म भावी जांच क यव था करनी होगी ।
4. िजन अ धका रय कमचा रय ने मै क या इसके बराबर तर क कोई पर ा पास
करते हु ए ह द का ान ा त कर लया है, उ ह ह द का कायसाधक ान ा त
माना जाएगा ।
5. य द कोई कमचार फाइल पर ट पणी या मसौदा ह द म लखता है तो उससे उसका
अं ेजी अनुवाद नह ं मांगा जाएगा ।
424
स म त का गठन कया गया । इस स म त का काम ह द काया वयन क नगरानी
था । 5 सत बर 1967 को यह पुनग ठत हु ई । धानमं ी के अ त र त इसम के
सरकार के गृह एवं रा यमं ी, रा य के आठ मु यमं ी, सात सांसद और ह द के
दस व श ट व वान सि म लत होते ह । राजभाषा वभाग के स चव इसके सद य
स चव होते ह । इसक साल म एक बैठक ज र है । स म त का नणय भारत सरकार
का नणय माना जाता है ।
3. ह द सलाहकार स म त - व भ न मं ालय म ह द के ठ क ठ क काया वयन के
लए सलाहकार स म तयां ग ठत क गई है । त तीन मास स म तय क बैठक क
यव था है । इनका कायकाल तीन वष का होता है । संबं धत मं ालय के मं ी इसके
अ य होते ह ।
4. राजभाषा काया वयन स म तयाँ- इस स म त के सद य क सं या 15 से अ धक नह ं
रखी जाती । तीन मह ने म एक बार स म त क बैठक आव यक है । इस स म त के
काय क नगरानी क िज मेदार मं ालय के संयु त स चव को द जाती है । इस
स म त के मु य काय ह- ह द काया वयन का पुनर ण -गृहमं ालय के अनुदेश के
पालन क जांच- तमाह ग त रपोट का पुनपर ण - ह द काया वयन के माग म आई
सम याओं का हल खोजना एवं ह द टाइ पंग और आशु ल प के श ण के लए
उपयु त सं या म सरकार कमचा रय को भेजना ।
5. के य राजभाषा काया वयन स म त- भारत सरकार के राजभाषा वभाग के स चव क
अ य ता म सभी मं ालय / वभाग क काया वयन स म तय म सम वय के उ े य से
यह ग ठत क गई है । व भ न मं ालय म काया वयन स म तय के अ य एवं
मं ालय / वभाग के राजभाषा नदे शक और उप स चव इसके सद य होते ह । इसके
काय भी कर ब कर ब राजभाषा काया वयन स म तय के सम है।
6. नगर राजभाषा काया वयन स म त - इसे ‘नराकास' लघु सं ा से भी जाना जाता है ।
बड़े नगर जहाँ के सरकार के दस से अ धक कायालय ह म इनका गठन कया गया
है । नगर के के य कायालय के वभागीय अ य या उनके त न ध के प म
राजभाषा अ धकार इस स म त के सद य होते ह । इसक बैठक वष म दो बार होती
है िजसक अ य ता नगर के व र ठतम अ धकार करते ह । इसक बैठक म ह द
श ण, टं कण, आशु ल प, दे वनागर ल प के टाइपराइटर (अब क यूटर सॉ टवेयर
भी) क उपल धता तथा ह द के काया वयन के माग म आई क ठनाइय को दूर
करने के बारे म वचार कया जाता है ।
425
3. अ ध नयम- यव था, नयम कानून ।
4. तवेदन- कसी घटना अथवा काय का ववरण जो कसी को सू चत करने के लए हो,
कसी को द जाने वाल सूचना ( रपोट)
5. अ धसू चना-अ धकृ त सू चना, रा य अथवा के सरकार वारा आम जनता अथवा कसी
कायालय के कमचा रय को द जाने वाल सू चना ।
6. संशोधन-सु धार, संसद म जो नयम पहले पा रत कये गये ह, उनम य द कु छ जोड़ना
या बदलना हो तो अ ध नयम म संशोधन पेश करके और पा रत करके ह उसे बदला
जा सकता है ।
7. गामी योग-भ व य म कया जाने वाला योग जो वकास या उ न त से जु ड़ा हो ।
8. ा धकृ त पाठ-वह ल खत अंश िजसे स या पत कर मा य कया गया हो । वह पाठ
िजसे ठ क-ठाक माना गया हो ।
9. ू ी -सं वधान क एक अनुसच
अ टम ् अनुसच ू ी िजसम भारत क सम त रा य भाषाएं दज
है । फलहाल सं वधान क आठवीं अनुसच
ू ी म बाइस भाषाएं शा मल है ।
10. अ यादे श-रा य क ओर से गजट म (राजप म) नकाला गया वह आ धका रक ज र
आदे श जो कसी काय यव था आ द के संबध
ं म हो । आमतौर पर संसद का स न
होने क हालत म अ यादे श जार होते ह ।
11. करार- समझौता, दो रा य के दे श के बीच कसी एक बात को लेकर समझौता या
सं ध ।
12. सामािजक सं कृ त- मल जु ल सं कृ त, आपसी मेल और सौहाद क सं कृ त ।
13. भाषायी अ पसं यक-भाषा क ि ट से सं या म कम, वह वग जो दे श क ऐसी भाषा
बोलता है जो बहु सं यक जनता वारा नह ं बोल जाती ।
14. सं वदा- कु छ नि चत शत के आधार पर दो प के बीच होने वाला समझौता ।
15. ावधान- गु ज
ं ाइश, यव था कए जाने क या ।
21.8 सारांश
इस इकाई म भारत सरकार क भाषानी त से आपका प रचय कराया गया और इस
संदभ म ह द का भारतीय सं वधान म थान एवं राजभाषा अ ध नयम / नयम को समझाया
गया । कस तरह आजाद क लड़ाई म ह द ने एक मह वपूण भू मका नभाई और आजाद
ा त करने के बाद भारत म भाषा क संक पना कस प म वक सत हु ई और दे श क
सामा सक सं कृ त क र ा तथा दे श को एकसू ता म बांधने के लए कस तरह ह द को
रा भाषा/राजभाषा का थान दया गया । ये सार बात व तारपूवक बताई गई । सं वधान के
खंड 10 (3) म 343-351 के अ तगत कए गए संवध
ै ा नक उपबंध क जानकार स व तार
दे ते हु ए रा प त जी के 1960 के अ यादे श से प र चत कराया गया । इसी इकाई म आपने
राजभाषा अ ध नयम 1963,1967 (यथा संशो धत) के व भ न उपबंध एवं राजभाषा नयम
1976 को पढ़ा और समझा । ह द के चार, सार, व तार और समृ के लए भारत
426
सरकार वारा ग ठत राजभाषा आयोग एवं व भ न स म तय के कायकलाप का अ ययन करते
हु ए न संदेह आप भारत सरकार क राजभाषा नी त के बारे म एक सु प ट समझ बना पाए
ह गे ।
21.9 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. वातं यो तर भारत म भाषा क संक पना पर वचार क िजए ।
2. भारत सरकार क भाषा नी त का प रचय द िजए ।
3. राजभाषा अ ध नयम 1963 और यथासंशो धत अ ध नयम 1967 पर वचार क िजए ।
4. राजभाषा नयम 1976 पर एक व तृत ट पणी ल खए ।
5. राजभाषा ह द के वकास के लए कए गए सरकार य न क चचा क िजए ।
ख. लघू तर न
1. सं वधान म राजभाषा वषय के उपबंध कौन-कौन से है?
2. रा ै 1960 के आदे श पर ट पणी ल खए ।
प त जी के अ ल
3. अनु छे द 343 के अ तगत कौन-कौन से उपबंध ह?
4. ह द के वकास म संघ सरकार का या उ तरदा य व है?
5. 'क' 'ख’ एवं 'ग’ े से या ता पय है? इनके अ तगत कौन-कौन से रा य ह?
ग. र त थान क पू त क िजए
1. ू ी म................................ भाषाएं ह ।
सं वधान क आठवीं अनुसच
2. राजभाषा आयोग का गठन..................................... क अ य ता म हु आ ।
3. ह द टं कक /आशु ल पक .......................................... क यव था क गई ।
4. भारतीय सं वधान के.......................................... भाग म राजभाषा वषयक
यव था क गई है ।
5. राजभाषा वषयक रा प तजी का दूसरा आदे श सन................................
् म जार
हु आ ।
घ. सह गलत पर नशान लगाइए
1. ह द को 26 जनवर 1965 से राजभाषा घो षत कया गया । सह /गलत
2. नेह जी ने राजभाषा अ ध नयम 1963 को संसद म तु त कया था । सह /गलत
3. के य ह द स म त के अ य रा य के मु यमं ी होते ह । सह /गलत
4. नगर राजभाषा काया वयन स म त क बैठक हर मह ने होती है । सह /गलत
5. अनु छे द 350 (1) म रा य के अ पसं यक को अं ेजी म श ा दलाने का ावधान
है । सह /गलत
21.10 संदभ थ
1. दं गल झा टे ; योजन मूलक ह द , व या वहार, नई द ल
427
2. शंकर दयाल संह; ह द रा भाषा राजभाषा जन भाषा, कताबघर
3. भारत का सं वधान; भारत सरकार काशन वभाग, स वल लाइ स, नई द ल
4. राजभाषा ह द के ं ी नयम; राजभाषा वभाग
योग संबध वारा का शत, नई द ल
428
इकाई-22 अनु यु त भाषा व ान
इकाई क परे खा
22.0 उ े य
22.1 तावना
22.2 अनु यु त भाषा व ान का व प
22.3 मनोभाषा व ान
22.4 भाषा श ण
22.5 अनुवाद
22.6 भाषा-तु लना
22.7 शैल व ान
22.8 कोश व ान
22.9 वचार संदभ/श दावल
22.10 सारांश
22.11 अ यासाथ न
22.12 संदभ थ
ं
22.0 उ े य
इस इकाई म अनु यु त भाषा व ान के व प पर वचार कया गया है । अनु यु त
भाषा व ान क मा यताओं और धारणाओं पर भी आलोकपात कया गया है । इस इकाई को
पढ़ने के बाद आप :
अनु यु त भाषा व ान के व प क चचा कर सकगे,
अनु यु त भाषा व ान के े पर काश डाल सकगे,
मनोभाषा व ान भाषा- श ण, अनुवाद, भाषा-तु लना, शैल व ान, कोश व ान
स ब धी ववेचन करने का यास कर सकगे ।
भाषा व ान के यावहा रक पहलु ओं क चचा कर सकगे ।
22.1 तावना
इस इकाई के पहले आपने भाषा व ान क व भ न अवधारणाओं क सह समझ
ा त कर ल होगी । भाषा के उ व तथा वकास क जानकार भी हा सल कर ल होगी । भाषा
व ान के यावहा रक प को जानना एवं समझना एक रोचक त व होता है । भाषा व ान के
सै ां तक प का उपयोग अनु यु त भाषा व ान कहलाता है । अं ेजी म अनु यु त भाषा
व ान के लए Applied Linguistics पदबंध च लत है ।
रसायन शा के स ांत का औष ध के े म अनु योग कर हम व भ न कार क
जीवन र क दवाइयाँ बना सकते ह । ठ क उसी तरह भाषा व ान क मा यताओं को आधार
बनाकर उनका उपयोग भाषा- श ण के संदभ म कया जा सकता है, इस संदभ म भाषा- श ण
को हम अनु यु त भाषा- व ान के अंतगत रख सकते ह । प ट है क जहाँ भाषा व ान हम
429
भाषा क संरचना और उसके व लेषण का ान दान करता है वहाँ भाषा के अनु योग के बारे
म जानकार दान करने वाला शा अनु यु त भाषा- व ान कहलाता है । इस इकाई के अगले
उपशीषक म हम भाषा व ान के अनु यु त े के बारे चचा करगे ।
22.3 मनोभाषा व ान
भाषा मनु य क सबसे बडी पूँजी है । भाषा का सवा धक यवहार मनु य वारा होता
है । मनु य क भाषा यवहार मता ज मणना होती है । मनु य इसे सामािजक सं ेषण के
मा यम के प म वीकार करता है । ‘मनो भाषा व ान' म भाषा व ान एवं मनो व ान क
अंतः याओं का अ ययन होता है । भाषाई यव था के वै ा नक स ांत का अ य नाम भाषा
व ान है । मान सक याओं के भाषाई ान के स ांत को मनो व ान कहते है, इस लए
मनोभाषा व ान म भाषा व ान एवं मनो व ान का समि वत अ ययन होता है । भाषा ान,
भाषा से ाि त और भाषा यवहार से संबध
ं रखने वाल सम त मान सक याओं का ववेचन
मनोभाषा व ान म होता है । भाषा-अजन म या अिजत होता है, कस कार अिजत होता है
एवं अ भ यि त म उसका कस कार - उपयोग होता है, इन सम त यापार का अ ययन
मनोभाषा व ान म होता है । पॉल फ ज के श द म कहा भी जा सकता है – “मनोभाषा व ान
हमार अ भ यि त क आव यकताओं और सं ेषण के बीच संबध
ं का अ ययन है और हमारे
बा यकाल या बाद म सीखी गयी भाषा के वारा द त मा यम से संब है ।”
मनोभाषा व ान केवल भाषा व ान के कोडीकरण तथा वकोडीकरण क याओं से
संब नह ं है । व इसका काय केवल भाषागत द त का व लेषण करना है । व ता के कथन
के उ े य को कोड संकेत म प रणात करना ह नह ं है और न इसका काय केवल भावागत
द त का व लेषण करना है । मनोभाषा व ान म भाषा अजन और उसके अनुर ण से
संबं धत वा त वक भाषाई यवहार का भी अ ययन होता है । सामा य अ धगम स ांत, वा चक
ं न, भाषा अ धगम के
यवहार और अनुबध मु ख मानक स ांत, भाषा और सं ान म संबध
ं ,
सावभौ मक त व क कृ त आ द के े म मनोभाषा व ान का योग होता है ।
430
मनोभाषा व ान कु छ मह वपूण सम याओं के समाधान के े म भी कायरत है । ये
सम याएँ न नवत ् है -
1. बालक अपनी मातृभाषा क श ा कैसे ा त करता है?
2. कसी बालक एवं कसी वय क क भाषा म या अंतर है : बाल भाषा कैसे वय: भाषा
म प रव तत होती है ।
3. भाषा अ धगम कैसे होता है?
4. भाषा-सृजन एवं भाषा-संवेदना म ं ह?
या संबध
5. वा य का नमाण कैसे होता है और वे कैसे समझे जाते ह?
मनोभाषा व ान म भाषा अजन और भाषा अ धगम दो अ त मह वपूण त व है ।
अपने यास और अनुभव से कु छ ा त करने क या को अजन कहा जाता है जब क कसी
वषय के संबध
ं म ान ा त करने क या अ धगम कहलाती है । थम के लए वातावरण
तो दूसरे के लए अ ययन-अ यापन आव यक होता है ।
शशु के भाषा अजन या भाषा अ धगम के बारे म यवहारवाद मनोवै ा नक क
मा यता है क भाषा केवल अनुभव या अ यास वारा सीखी जाती है । शशु का मन क ची
म ी क तरह होता है । वह जैसे-जैसे बडा होता है, चलता- फरना, खाना-पीना आ द यवहार
सीख लेता है । ठ क उसी कार भाषा का अजन भी कर लेता है ।भाषा के अ धकगम के बारे
म भी यवहारवा दय का ऐसा ह वचार ह ।
शशु के भाषा अजन या भाषा अ धगम के बार म सं ानवा दयो या बु जी वय क
मा यता कु छ भ न है । शशु के मि त क म पहले से ह एक डेटा ोसे संग मेका न म होता
है । शशु भाषा क साम ी को सु नने के बाद उसके बारे म ाक पना करता है और डेटा
ोसे संग क सहायता से नयम क खोज करता है । शशु क पना के मा यम से भाषा
सीखता है । भाषा अजन एक सृजना मक या है । यह शशु क सहजात और अ नवाय
वृि त है । मनोभाषावै ा नक भी सं ानवा दय के वचार को अपनाते ह, मनो भाषा वै ा नको
के अनुसार शशु का मि त क एक क यूटर क तरह होता है, क यूटर म पहले से ह डाटा
फ ड कये जाते ह । ठ क उसी तरह शशु के मि त क म ज म के पहले जै वक उपकरण होता
है । यह भाषा अजन म सहायक होता है । भाषा अजन म न न याओं पर अ धकार ा त
करना आव यक है -
1. दूसर क भाषा को समझना
2. श दसमूह का नमाण
3. श द को संयु त करके वा य नमाण
4. उ चारण
ारं भक छह मह न म शशु सीखने के म म एका र व न 'मा', 'आ' आ द करता
है । इसके बाद उन व नय क पुनरावृि त करते हु ए वअ र य व न अपनाता है फर धीरे -
धीरे वह बड़ा होता है । इसी म म चार वष का होते-होते वह वय क जैसी याकर णक भाषा
का योग करने लगता है । बालक के सहज वकास के साथ-साथ भाषा का अजन होता है ।
431
भाषा क अजन या वकास या को सहज या माना जा सकता है, ले कन अ धगम ऐसा
नह ं है । अ धगम एक ऐसी या है िजससे नवीन ान और नवीन त याएँ ा त क जा
सकती ह । अ धगम म अनेक कार क याएँ तथा याएँ सि म लत है ।
अ धगम के संबध
ं म यवहारवाद और बु वाद मनौवै ा नक भ न- भ न मत-पोषण
करते ह । यवहारवाद मनोवै ा नक वातारण को मह व दे ते ह तो बु वाद मनोवै ा नक 'सू झ'
या अंत ि ट को । यवहारवा दय क मा यता है क कसी व श ट वातावरण म उ ीपन 'एस'
और अनु या 'आर’ का बंधन अ धगम कहलाता है । 'आर-एस' स ांत से भी यह जाना जाता
है ।
भाषाई अ यास करना ह भाषा-अ धगम है । भाषा का यं वत और वचा लत ढं ग से
योग करना ह भाषा का अ धगम का ल य है । भाषा अ धगम उसके न व ट क कृ त पर
नभर करता है । बालक बजस कार क न व टयाँ सु नता है उनका अनुकरण करता है अ यास
करता है । इस लए भाषा अ धगम म बाल क भाषा के त संपक मह वपूण होता है ।
यवहारवाद मनोवै ा नक के स ांत के आधार पर संरचनावाद भाषा वै ा नक ने संरचना
व ध का तपादन कया है । व लयम माउलटन इनम से मु ख है । उ ह ने अ धगम के
संदभ म भाषा क न न ल खत वशेषताएँ बताई ह ।
1. भाषा मौ खक है, ल खत नह ं
2. भाषा सखाने का उ े य भाषा कौशल सखाना है यह केवल भाषा के बारे म जानकार
दे ना नह ं है ।
3. भाषा आदत का समू ह है ।
4. भाषा का वा त वक प वह है िजसे मातृभाषा -भाषी व ता बोलता है ।
भाषा एक यवहार भी है । इस लए यवहार करने से ह भाषा का अ धगम हो सकता
है । कंठ थ करके भी भाषा अ छ तरह से सीखी जा सकती है । वण-भाषण, पठन-लेखन
आ द के मा यम से भाषा अ धगम हो सकता है । भाषा के अ धगम के लए यह यान दे ना
आव यक है क एक समय एक ह श ण बंद ु लेना उ चत है । एक बंद ु पर अ धकार ा त
करने के प चात ् दूसरे बंद ु को अपनाना चा हए । अ य भाषा के श ण अथवा अ धगम म कई
कार क ु टयाँ होती ह य क अ येता के पास पहले एक भाषा होती है । उस भाषा क
सामािजक, सां कृ तक, आ थक संरचना वतीय भाषा क ि थ तय से भ न होती है ।
फल व प अ धगम का अंतरण होता है । मनो भाषा व ान ु टय , अंतरण तथा कारण का
अ ययन करता है । इस लए अनु यु त भाषा व ान म मनोभाषा व ान एक अ यंत
मह वपूण अंग है ।
22.4 भाषा श ण
अनु यु त भाषा व ान क एक मह वपूण शाखा है भाषा- श ण । भाषा श ण का
े अ यंत यापक है । इसके एका धक संदभ ह । इन संदभ म भाषा- श ण सवा धक
च लत है । मातृभाषा - श ण, अ य भाषा श ण आ द म भाषा व ान क उ लेखनीय दे न
रह है । सव थम भाषा श ण का सामा य अथ जान लेना उ चत लगता है । भाषा श ण
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का आशय है भाषा का श ण । भाषा श ण म भाषा ह अ ययन क व तु है । इसम भाषा
साधन है और सा य भी । भाषा का अ ययन करने वाला भाषा-अ येता कहलाता है । भाषा-
अ येता कसी वशेष उ े य से े रत होकर भाषा सीखता है । यहाँ भाषा- श क क भू मका
मह वपूण हो जाती है । परं तु वह स ांत का णेता न होकर उसका या याता होता है ।
भाषा- श ण म मातृभाषा एवं अ य भाषा श ण दो मु ख भेद ह । अ येता क
आव यकता, योजन आ द म भ नता होने से भाषा- श ण भी भ न हो सकता है । मातृभाषा
के मा यम से यि त अपनी सामािजक पहचान बनाता है । अपनी अि मता को नधा रत करता
है । एक मानक भाषा क कई बो लयाँ होती ह जैसे हंद क अधीन थ बो लयाँ है ज, अवधी,
भोजपुर । ज या अवधी अथवा भोजपुर या मगह बोलने वाले अपनी मातृभाषा हंद ह बताते
ह । कारण यह क इससे एक वृह तर समाज से जु ड़ने तथा अपनी अि मता था पत करने का
उ े य स होता है । मातृभाषा के मा यम से अिजत क गई अनुभू तय क अ भ यि त, ान
तथा बोधन मता के वकास एवं अपने समाज और सं कृ त क सह समझ उ प न होती है ।
इस लए मातृभाषा का कोई वक प नह ं है । भारते दु ह रशच ने इसे ' नज भाषा' कहा है ।
मातृभाषा का वकास सामािजक वकास का के बंद ु है । सा रता का आधार मातृभाषा है ।
यि त चाहे कसी भी भाषा म अपने वचार कट य न कर, उसके वचार सव थम
मातृभाषा म आते ह, यि त क औपचा रक श ा मातृभाषा के मा यम से पूर होती है अत:
भारते दु का कथन ट य है -
“' नज भाषा उ न त अहै
सब उ न त को मू ल
बनु नज भाषा ान के
मटत न हय को शू ल” । ।
कसी भी वषय को जानने-समझने के लए मातृभाषा क सहायता लेने एवं तदभाषा
क शै लय से प र चत होने के प चात ् श ण साथक हो सकता है । श ा क मा यम भाषा
के प म मातृभाषा ( थम भाषा) को मह व दे ना परम आव यक है । मातृभाषा अ धगम वारा
यि त अनेक मताएँ अिजत करता है । यि त को उसके कई बौ क यवहार को साधन,
नयं त करने और संप न करने क मता मातृभाषा के वारा ा त होती है । इ ह ं कारण
से मातृभाषा को एक सामािजक यथाथ कहा गया है । मातृभाषा के वकास का मानदं ड
सामािजक, सां कृ तक एवं बौ क वकास का प रचायक है ।
जैसा क पहले भी बताया गया है क अ य भाषा श ण का एक मह वपूण वभाजन
है । मातृभाषा से इतर कसी दूसर भाषा को अ य भाषा के प म जाना जाता है । भाषा
श ण म अ य भाषा क भी भू मका उ लेखनीय है । अ य भाषा के दो वग ह -
1. वतीय भाषा
2. वदे शी भाषा
बात वतीय भाषा क हो तो मन म न उठता है क थम भाषा या होती है?
बालक िजस भाषा को सबसे पहले वयं वाभा वक प से सीखता है उसे थम भाषा कहते है
433
। हंद के संदभ म थम भाषा उसक कोई न कोई बोल होती है । इससे सहारे बालक अपने
प रवार के सद य तथा आ मीय जन के साथ अपने भाव को अ भ य त करता एवं बांटता है
। अथात ् अपने दै नक जीवन क भाषा जो यि तगत प से यु त होती है उसे थम भाषा
कहा जाता है । व वान ने इसे 'मातृबोल ' भी कहा है ।
बहरहाल, अ य भाषा क चचा अपे त है । मातृभाषा क आव यकता से भ न होती
है अ य भाषा क आव यकता । अ य भाषा के वैयि तक एवं सामािजक संदभ भी भ न होते
ह । वतीय भाषा एवं मातृभाषा का प रवेश कु छ हद तक समान होता है । ये भाषाएँ एक ह
रा क होती है और इनका सामािजक तथा ऐ तहा सक वकास म भी समान होता है,
उदाहरणतया, हंद थम भाषा/मातृभाषा हु ई तो गुजराती, पंजाबी, मराठ आ द वतीय भाषा हो
सकती है ।
आपने व यालय म अ ययन करते समय वतीय भाषा के प म अं ेजी का पठन-
पाठन कया होगा । ऐसा य ? यह तो एक वदे शी भाषा है । वा तव म एक ल बी अव ध
तक अं ेजी भारतीय भाषाओं के बीच रह ोसे संग । पर पर संपक क भाषा भी रह । इसने
भारतीय भाषा प रवार म वक प क भाषा के प म अपने को ति ठत कया । कायालय,
तकनीक , ान- व ान, उ च श ा, तथा औ यो गक वकास के े म इस भाषा का अलग
मह व रहा है । इस लए अं ेजी सीखने के पीछे हमेशा एक सामािजक दबाव काम करता आया
है । परं तु धीरे -धीरे अंगरे जी का थान हंद लेने लगी है । संपक भाषा के प म इसने अपनी
सफलता हा सल क है ।
वदे शी भाषा भी अ य भाषा के अंतगत है । यो ता के कसी अ य समाज अथवा
रा क सं कृ त को जानने-समझने के मा यम के प म वदे शी भाषा का योग होता है ।
यह अपने भाषा-प रवार क भाषा नह ं है । न ह मातृभाषा के नकट क भाषा है । इसे सीखने
के लए न तो कोई सामािजक दबाव होता है न ह इसका कोई बड़ा असर यो ता के मान सक
वकास पर पड़ता है । कसी भावा मक लगाव के कारण वदे शी भाषा सीखी जाती है ।
आव यकता के अनुसार वदे शी भाषा सीखी जाती है । च, जमन, जापानी आ द भाषाएँ वदे शी
भाषा के उदाहरण ह ।
भाषा- श ण के अंतगत मातृभाषा और अ यभाषा के व प के बारे म आपको
जानकार हा सल हो गई । अब भाषा- श ण म यु त व धय के बारे म बताया जाएगा ।
मातृभाषा - श ण एवं अ यभाषा श ण म इन व धय का उपयोग कया जाता है । भाषा-
श ण क सफलता इन व धय पर नभर करती है । यू ँ तो भाषा- श ण क अनेक व धयाँ
च लत है और नई-नई व धयाँ ता वत क जा रह ह परं तु भाषा- श ण क मु ख व धय
को चार ु ं म वभािजत कया जा सकता है । ये ह -
मु ख बंदओ
1. याकरण व ध
2. याकरण अनुवाद व ध
3. य वध
4. सं ेषणपरक भाषा- श ण
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1. याकरण व ध - इस व ध के अंतगत श द, श द-संयोजन तथा याकर णक नयम
का अ यास कराया जाता है । इस व ध म याकर णक नयम से यावहा रक भाषा
को अ धक मह व दया जाता है ।
2. याकरण अनुवाद व ध - इस व ध म याकरण और अनुवाद को समान मह व दया
जाता है । इस व ध के अंतगत थम भाषा और वतीय भाषा के बीच अनुवाद क
या को मह वपूण माना जाता है । श द भेद, धातु प, कारक. काल-रचना, आ द
कंठ थ करवाये जाते है । इसके बाद कोश क सहायता से उसके अनुसाद क
आव यकता होती है । चू ं क इस व ध म भाषा क जीवंतता, ल य भाषा के मह व तथ
श ाथ क च पर यान नह ं दया जाता है, इस लए इस वध क साथकता
सं द ध हो गई ।
3. य वध - य व ध के अंतगत याकरण अनुवाद व ध क सीमाओं को दूर
कया जाता है । भाषा- श ण को यावहा रक प दे ने का यास कया जाता है । इस
व ध के अंतगत मातृभाषा को मा यम नह ं बनाया जाता है । ल य भाषा के साथ
सीधे संपक था पत कया जाता है । मौ खक अ यास कराया जाता है । इस लए
इसका अ य नाम मौ खक वातालाप व ध है । इस व ध क श ण या म दे र
तक वा य को सु ना जाता है और उनका अ यास कराया जाता है । इससे वा य
आदत के प म ढल जाते है । य व ध सवा धक लोक य है ।
4. सं ेषणपरक भाषा- श ण : यह वध य व ध क पूरक है । भाषा- श ण को
भावी बनाने तथा उसके यावहा रक प पर बल दे ने के लए सं ेषणा मक भाषा
श ण को मह व दया जाता है । इस व ध से भाषा श ण को एक ऐसा आधार
मला िजसम भाषा के मौ खक प और उसक समाज सां कृ तक वशेषताओं को
मह व दान कया गया । इस व ध ने यह था पत कया क भाषा- श ण का आशय
भाषा योग के नयम को सीखना है, भाषा के याकर णक नयम को सीखना नह ं ।
यहाँ उ ले य है क भाषा- श ण क अनेक व धयाँ तो ह परं तु व ध के भावी योग
के लए उ चत साम ी का होना आव यक है । इसम अ यापक का सह श ण भी आव यक
है । भाषा- श ण के लए कु छ श ण साम याँ अ नवाय है । इसके अंतगत पा य पु तक ,
याकरण, श दकोश आ द है । लैक बोड, चाट, लैश काड, ामोफोन, लाइड, भाषा
योगशाला, रे डय , टे ल वजन, क यूटर , इंटरनेट आ द साम ी भी भाषा श ण को यावहा रक
एवं वै ा नक बनाते ह ।
भारत एक बहु भाषी दे श है । यहाँ भाषा- श ण क ि थ त अ त मह वपूण है । थम
वतीय तृतीय भाषा के प म अनेक भाषाएँ सखाई जाती है । सामािजक ि थ त एवं रा य
आव यकता के अनुसार भाषा श ण क उपादे यता नधा रत होती है । संचार ां त के युग म
भाषा- श ण क भू मका का भी व तार हु आ है । दूरदशन म कसी भी काय म क 'ड बंग’ के
मा यम से दशक अपनी भाषा म उसका लाभ उठा सकते ह ।
435
इस संदभ म अनुवाद क दे न उ लेखनीय है । इसका े काफ यापक है । व भ न
भाषाओं के सृजनपरक सा ह य का अनुवाद हो रहा है । साथक अनुवाद का सारा दारोमदार
सफल अनुवादक पर........रहता है । सफल अनुवादक वो हो सकता है जो ोत भाषा और ल य
भाषा म द हो । दो भाषाओं म द ता अिजत करने के लए भाषा श ण सवा धक उपयोगी
होता है ।
अंतरा य प र े य म भाषा- श ण ने पूरे व व को एक प रवार म बदलने का यास
कया है । सैकड़ो भारतीय व व व यालय म वदे शी भाषाएं सखाई जा रह ह । संसार के
अनेक व व व यालय म हंद का पठन-पाठन हो रहा है । इन श ालय म वषयव तु क
जानकार भर दे ना मा नह ं है श ा थय के मन म भाषा सं कार उ प न कए जाने का भी
यास होता है । भाषा श ण के मा यम से श ाथ अपनी भाषा या कसी दूसर भाषा म
अ धक स म होता है । आज के व व म वभाषी या बहु भाषी यि त वैचा रक ि ट से एक
भाषी यि त क तु लना म अ धक समथ और शि तशाल होता है । ऐसे म, भाषा श ण क
भू मका वयमेव बढ़ जाता है । इस लए भाषा श ण को बड़ी गंभीरता से अपनाया जा रहा है।
भाषा के ु ट व लेषण, पर ण, मू यांकन आ द भाषा- श ण के मह वपूण प है ।
भाषा दोष व लेषण चॉ क के उपागम पर आधा रत है । चॉ क के अनुसार भाषा अजन क
या म ु टयाँ वाभा वक है । संरचनागत व भ नता के कारण ये ु टयाँ होती ह, भाषा के
नयम के प रपालन क याएं कस प म काम करती है, इसक जानकार भी हम चॉ क
के उपागम से मलती है ।
भाषा श ण सो े य होता है । इस संदभ म भाषा का पर ण होना भी अ नवाय है ।
भाषा- श ण म हम व वध भा षक कौशल म अिजत मता का पर ण करना उ चत है ।
भाषा- श ण म तु तीकरण, साम ी आ द को भी भावी बनाने क आव यकता है ।
मौ खक कौशल का वकास करना भी ज र है । इसके लए अ यास-काय तैयार करना तथा
उस पर अमल करना आव यक है ता क भाषा- श ण को हम भावी, उपयोगी एवं साथक बना
सक ।
436
आती ह । इन सम याओं म से कु छ भा षक तर क होती है तो कु छ अ य कार क इन पर
वतं प से वचार कया जायेगा ।
पहले कहे गए को फर से कहना अनुवाद है । इसे और प ट करने के लए कहा जा
सकता है क पहले कसी भाषा म लखी या कह गई बात को पीछे कसी अ य भाषा म कहने
या लखने क या म केवल भाषा का अंतरण आता है । अथ एक ह बना रहता है ।
अनुवाद दो भाषाओं के बीच का संबध
ं है । इसम एक भाषा के शाि दक तीक वारा
अ भ य त बात को दूसर भाषा म शाि दक तीक के मा यम से पुन तु त कया जाता है ।
अनुवाद का वैभा षक प ह अ धक च लत तथा आलो चत है । परं तु एक भा षक अनुवाद
भी होते ह । जैसे पुरानी हंद से आधु नक हंद या पुरानी अं ेजी से आधु नक अं ेजी । फर
भी, अनुवाद का बहु लांश म दो भाषाओं के संदभ म योग होता है । िजस भाषा से अनुवाद
कया जाता है उसे मू ल भाषा या ोत भाषा कहते ह । िजस भाषा म अनुवाद कया जाता है ।
उसे ल य भाषा के नाम से जाना जाता है । मू ल कृ त 'गोदान' हंद भाषा मे र चत है इसका
अं ेजी म अनुवाद तु त कया जाये तो हंद ोत भाषा एवं अं ेजी ल य भाषा होगी । कोई
जमन अनुवादक हंद न जाने और अंगरे जी अनुवाद को अपना आधार बनाए तो अं ेजी फलटर
भाषा के प म जानी जाती है ।
अनुवाद पुन : तु त है । इसम भाषा तो बदल जाती है, अथ नह ं बदलता । भाषा का
सामािजक- सां कृ तक ऐ तहा सक और राजनी तक प रवेश होता है । अनुवादक केवल श द का
उ था तु त करना नह ं चाहता । सफल अनुवादक उसके प रवेश को भी च त करता है ।
हालां क आशय क पूण समानता संभव नह ं हो पाती है । फर भी, अनुवादक को यथासंभव
यास करना चा हए । अथ क समतु यता पर वशेष यान दे ना चा हए । मू ल रचनाकार के
उ े य के सफल पायन को सवदा यान म रखना चा हए ।
आप जानते ह क भाषा के दो प ह - मौ खक एवं ल खत । इसी कार अनुवाद के
भी दो प होते ह । मौ खक अनुवाद के अंतगत दुभा षए आते ह । जो त काल ोत भाषा से
ल य भाषा म मौ खक अनुवाद करते ह और ोताओं को व ता के वचार से प र चत कराते ह
। ल खत अनुवाद का मह व होता है इस लए यह अनुवाद सहज, एवं वाभा वक होना चा हए ।
सबसे अ छा अनुवाद उसे कहा जाता है जो अनुवाद होते हु ए भी मू ल कृ त का रस दान कर ।
अनुवाद का भाषा- व ान से भी गहरा संबध
ं होता है व न, श द, प, वा य आ द
तर का ान होना अनुवादक के लए आव यक है ।इन तर पर मू ल भाषा तथा ल य भाषा
क कृ त एवं संरचना म न हत अंतर से प र चत होना ज र होता है । येक भाषा क
अपनी व श ट व नयाँ होती ह । उसका अपना श द भंडार भी होता है । येक भाषा क प
यव था जैसे लंग, वचन, पु ष , कारक, या आ द क यव था भी भ न होती है ।
अनुवादक के लए इन वषय क जानकार हा सल करना भी आव यक होता है ।
भाषा क मू लभूत इकाई है वन । वन व ान के अंतगत भाषा क वभ न
व नयाँ, व नगु छ , व नम , अ र, मा ा, बलाघात आ द का अ ययन कया जाता है ।
व न तथा उ चारण से ह भाषा क वतनी यव था स बि धत है । व नय के संयोजन से
श द, श द से पद और वा य बनते ह । इस लए व न ह मू लभू त इकाई है, एक भाषा क
437
व न दूसर भाषा म नह ं होती । जैसे, हंद क ‘त’ व न का योग अं ेजी म 'ट' (T) होता
है । अं ेजी म ‘V' और 'W' दो अलग-अलग उ चारण ह परं तु ह द म इनके लए ‘व’ का ह
उ चारण होता है ।
ल यंतरण क या म भी व नय का काफ मह व रहता है । पा चा य चंतक
Taine का उ चारण 'तेन' होता है जब क Rembtand के लए ‘रे बा’ । यहाँ 'टाइने' या
‘रे ां ट' उ चारण गलत मा य होता है ।
अनुवाद म श द व ान का ान होना भी ज र है । साथक व न समू ह को श द
कहा जाता है । अथ वहन करने वाले श द को साथक माने जाते ह । श द क प रभाषा उसके
योग-संदभ, उसके ोत, उसक याकर णक को टयाँ आ द श द व ान के अंतगत आते ह ।
श द का अथ जान लेना ह काफ नह ं ह । श द का योग कस संदभ म हु आ है । उसक
जानकार ा त करना भी अपे त है, श द का अथ एक हो सकता है परं तु उसके संदभ भ न-
भ न हु आ करते ह, जैसे अं ेजी का श द है फादर Father । हंद म सामािजक ि थ तय के
अनुसार ' पता' के लए भ न- भ न श द का योग होता है - पताजी, बाबूजी, पापा, वा लद,
ब चा, पता ी, बाप, यो आ द ।
पा रभा षक श दावल के संदभ म भी श द व ान क आव यकता है, पा रभा षक श द
ढ़ होते है और व श ट संदभ म ह यु त होते ह । व श ट शा , व ान के लए
व श ट श द का नमाण हु आ है जैसे, दशन के े म ' व श टा वैतवाद, ग णत म 'दशमलव’
रसायन शा म ' ाम-अणु वलोपन', पदाथ व ान म 'अचु ंबक यपदाथ, आ द । सामा य
बोलचाल म इन श द क ज रत नह ं होती ह । कभी कभार अनुवादक को श द के अभाव म
समतु य श द का नमाण करना भी पडता है ।
अनुवाद म प रचना संबध
ं ी नयम क जानकार अपे त ह, सं ा, सवनाम, लंग,
वचन, पु ष , कृ दं त, उपसग, यय का अ ययन प व ान के े म आता है । प रचना
के ान से अनुवाद कम सफल होता है, सट क बनता है ।
अनुवाद म वा य व ान क समझ सहायक होती है । भाषा के सह व प को
समझने म भी वा य व ान क भू मका मह वपूण है । सामा य सू चना दे ने वाले दो वा य
म कस कार अंतर हो सकता है, इसे अनुवादक को समझना होता है । इस काम म वा य
व ान क जानकार क ज रत है । उदाहरण के लए:
(क) संतोष ने कलमदान तोड़ दया ।
(ख) संतोष से कलमदान टू ट गया ।
उपयु त दोन वा य से ा त समान सू चना है 'कलमदान का दूटना , दोन म कता
संतोष है । कम है कलमदान । ‘टू टना’ या है । इन वा य क संरचना क भ नता है ।
इस लए उनके अथ म अंतर आ गया है । पहले वा य म यह अथ होता है क संतोष ने
वे छा से, जानबूझकर कलमदान तोड़ दया दूसरे वा य से प ट होता है क संतोष क कसी
चू क के चलते कलमदान टू ट गया । वह नह ं चाहता क कलमदान तोड़ दे । इस कार
438
सामा य समान सू चना दे ने वाले वा य मं न हत अंतर को समझने म वा य व ान सहायक
होता है।
कभी-कभी दो भाषाओं म वा य क याकर णक संरचना समान तीत होती है परं तु
उन संरचनाओं से संब वा याथ भ न होता है । हंद म कमवा य एवं कतृवा च यु त होते
ह तो अं ेजी म Active एवं Passive वा य संरचना का योग होता है । हंद म न न दो
कार के वा य मलती है :
(क) 'गोदान' उप यास ेमचंद वारा लखा गया था ।
(ख) 'गोदान' उप यास ेमचंद ने लखा था ।
अं ेजी (क) The Novel ‘Godan’ was written by Premchand.
(ख) The ‘Godan’ novel was written by premchand.
हंद म र चत दोन वा य सह होते हु ए भी दूसरे कार के वा य का
अ धका धक योग होता है । ऐसे वा य सहज लगते ह । एक अ य उदाहरण दे खा जा
सकता है :
(क) यह दरवाजा चोर वारा तोड़ दया गया था ।
(ख) यह दरवाजा चोर ने तोड़ा था ।
उपयु त दोन वा य के लए अं ेजी म यु त वा य है :
The doors was broken by the thieves.
अनुवादक को थम कार के असहज एवं बनावट वा य से बचना चा हए । अं ेजी म
active voice सहज लगता है परं तु हंद म कतृवा य संरचनाएँ सहज तीत होती है,
वाभा वक भी लगती है ।
अनुवाद म अथ व ान का भी बड़ा मह व है । श द का अथ अ भधा, ल णा या
यंजना म य त होता है । व ता या रचनाकार ने श द से कस आशय का अथ प ट करना
चाहा है यह अनुवादक के लए जानना अ त आव यक है । मैदान म खड़ा 'गधा' और क ा म
बैठे कसी मू ख छा के लए यु त श द 'गधा’ म अंतर होता है । इस लए श द के अथ
संदभ, योग, काल, ोत, लंग, सह योग बलाघात,, अनुतान आ द से भी नधा रत होते ह ।
अनुवाद कम म इनका तो योग होता ह है, पद, पदबंध, वा य, ोि त, मु हावरे एवं लोकोि त
के संदभ को भी जानना-समझना अनुवादक के लए आव यक होता है । अनुवादक को यान
दे ना पड़ता है क कसी भी श द का ोत या है? अं ज
े ी श द check का याग आमतौर
पर रोकथाम, नयं ण आ द के अथ म होता है । परं तु अमे रका म इसी श द का योग बक म
यु त Cheque के लए भी होता है ।
कसी भाषा म मु हावरे तथा लोकोि तय के योग के वशेष संदभ होते ह । दो
यि तय म बड़ा भार अंतर हो और दोन म तु लना करनी हो तो हंद म कहा जाता है –
“कह ं राजा भोज और कहाँ गंग तेल ” अं ेजी अनुवाद म इसके संदभ और अथ को मह वपूण
होना चा हए, न क यहाँ यु त श द । ठ क उसी तरह लंबोदर का श दाथ 'लंबे पेटवाला’ होता
है, पर इसका योग केवल 'गणेश’ के लए होता है ।
439
अनुवाद के े म अनु यु त भाषा व ान का योग अ त मह वपूण है । भाषा
व ान के व वध तर का योग अनुवाद म होता है तो अनुवाद अ यंत सहज एवं वै ा नक
स मत होता है । शैल व ान अनुवाद को कैसे सहायता दान करता है ? इस वषय पर भी
थोड़ी सी जानकार हा सल करना उ चत लगता है । यान रहे क शैल का भी संबध
ं मू लतया
भाषा से है । कसी भी रचना क शैल रचनाकार के यि त व, वचारधारा और कृ त का
प रचय दान करती है । उदाहरण के लए हजार साद ववेद जी के ल लत नबंध उनक
वनोद वृि त के प रचायक है तो नराला क अनेक क वताएँ उनके व ोह तेवर से प र चत
कराती ह, ेमचंद क कहा नय म ामीण जन-जीवन के बंब अं कत है । जो ामीण जन-
जीवन क र त-नी तय , आचार- वचार के प रचायक बनते ह । रचनाकार के वचार और
वभाव का प रचय दान करती है । उसक रचनाएँ । अत: अनुवाद करते समय इस मह वपूण
बंद ु परसदा यान कि त करना चा हए । मू ल रचना क आ मा सदा बनी रहे अ यथा शैल से
अ भ हत क य के खं डत होने क बल संभावना बनी रहती है । शैल व ान के नयम एवं
व धय क समु चत जानकार हा सल करना परम आव यक है । ोत भाषा का मू ल क य
ल य भाषा तक सह -सह बना रहे तो अनुवाद न केवल सफल होता है । साथक भी बन जाता
है ।
सारांश यह क अनुवाद अनु यु त भाषा- व ान का एक उ लेखनीय े है । वन
व ान, श द व ान, प व ान, वा य व ान, अथ व ान, शैल व ान के नयम एवं
व धय का प रपालन अनुवाद म होता है।
440
य तरे क यव था ह दोन म अथ-भेद का आधार है । इस कार अथ भेद उ प न करने वाले
वपर त त व को नि चत करना य तरे क व लेषण का मु य ल य है ।
य तरे क व लेषण का सवा धक वरोध भाषा- ु ट व लेषण करता है । भाषा ुट
व लेषण म ु टय के पूवानुमान के स ांत को नकारा गया । भाषाओं म भ नता होने के
बावजू द गल तयाँ नह ं हो सकती है । जैसे, हंद म एक सवनाम है 'उसका', अं ेजी म इसके
लए दो प ह - His एवं Her हंद क तु लना म अं ेजी म समानीकरण है । परं तु कसी भी
अ येता से अं ेजी म यह ु ट नह ं होती है । वा तव म ु ट व लेषण को वतनी तक सी मत
रखना नह ं चा हए । हमारे मि त क म वचार ज म लेते ह और अ भ यि त का प धारण
करते ह । इस लए ुट व लेषण करते समय अ य अंत न हत संरचनाओं क ओर भी यान
दे ना आव यक है । अ सर हमारे गहन वचार का साथ भाषा नह ं दे ती । हम कु छ कहना
चाहते ह परं तु अ भ यि त भ न प धारण कर लेती है । इसका अ ययन भाषा ु ट व लेषण
म कया जाता है ।
भाषा क तु लना य एवं कस लए क जाती है ? भाषा क तु लना म या उपयो गता
है? इन न पर वचार करते हु ए वी.रा. जग नाथन ने न न आरे ख तु त कया है ।
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अं ेजी Practice श द का योग होता है । जब क यह रवाज, यायाम आ द के लए भी
यु त होता है । ऐसे म, अनुवादक को श द के अथ के लए सह संदभ ात करना ज र
होता है । एक गलत अनुवाद का उदाहरण दे खए
The class-teacher advised to practice mathematics.
श क ने ग णत का यायाम करने के लए सलाह द ।
Thousands of sleepers were burnt.
एक दूसरा गलत अनुवाद का उदाहरण दे ख.
हजार सोने वाले जला दये गये, जब क उ त वा य का सह अनुवाद होगा - हजार
रे ल के तीपर जला दये गये थे ।
पदबंध, या, वा य व यास, वा य संरचना आ द के संदभ म भी भाषा क तु लना
होती है । यहाँ भी अनुवादक को सह संदभ का यान रखते हु ए समतु य प का चयन करना
होता है ।
अ य भाषा के प म भाषा श ण म भाषा क तु लना का मह व है । अ णाचल
दे श तथा अ य कई दे श म महा ाण व नय का चलन नह ं होता है । इस लए इन ांत
के श ाथ 'घंटा' को गटा, 'छाता को चाता, 'भरपूर को 'बरपूर आ द बोलते ह । अ यापक
‘चाता' को 'छाता, गंटा को 'घंटा’ आ द मान लेता है । छा क क ठनाइय को पहचान कर
उनका नराकरण करना होता है । ऐसे म भाषाओं का तु लना मक अ ययन अ यापक क बहु त
सहायता करता है ।
भाषा क तु लना म चयन का थान मह वपूण है । भाषा श ण म इस बात क
तु लना क जाती है क श ाथ ने ारं भ से हंद सीखी है या अ य भाषा के संदभ म हंद क
श ा ा त क है । इस बंद ु पर यान दए बना चयन नह ं कया जा सकता । अपनी भाषा
के भाव के फल व प श ाथ को व न, ल प, वतनी, श द, वा य आ द के तर पर
क ठनाई हो सकती है । एत स ब धी गल तयाँ भी होती ह । अत: भाषा श ण म भाषा
तु लना क अ नवायता वयं स है । भाषा तु लना के आधार पर पा य साम ी का नमाण
अ धक वै ा नक एवं तक स मत होगा ।
श ाथ क मातृभाषा क पहचान भाषा श ण योजना को नया आयाम दे ती है ।
चीनी अथवा पै नश भाषा-भाषी को हंद श ण म लगाया जाये तो ल प, उ चारण क श ा
पर अ धक बल दे ना होगा । इसी कार य द कसी गुजराती या मराठ भाषी को हंद सखाना
हो तो ल प, उ चारण एवं वतनी म सबसे कम समय दे ना होगा इस संदभ म साम ी नमाण
एवं तु तीकरण क भू मका अ त मह वपूण है । यह काय अ यापक वारा आव यकता को
यान म रखते हु ए तु त करना पडता है । छा क ु टय को चि नत करना, उन ु टय
के संभा वत कारण का पता लगाना और उनके नराकरण हे तु आव यक कदम उठाना होता है ।
इस पूर या म भाषा तु लना बहु त बड़ी सहायता पहु ँ चाती है ।
नई पा य साम ी को तु त करते समय भी अ यापक छा क मातृभाषा के ान से
सहायता ले सकता है । इस काय के लए भी भाषा क तु लना क आव यकता होती है ।
442
उदाहरण के तौर पर हंद वा य -‘रोज दस प ने पढा करो’- 'पढ़ा करो' का अं ेजी समतु य
योग ढू ँ ढना पड़ता है । अ यापक बताएगा Read ten pages daily. ठ क उसी कार ‘मुझे
तंग मत कया करो’ 'अथवा 'मु झे सु नाया न करो,' जैसे वा य के समतु य अं ेजी प ढू ँ ढने
का अ यास करवा सकता है ।
न कष के प म यह कहा जा सकता है क भाषा तु लना आधु नक अ ययन े ह ।
हम व व क क ह ं दो भाषाओं क तु लना संरचना मक तथा अनु योगा मक भाषा- व ान के
संदभ म कर सकते है । अनुवाद, भाषा श ण, कोश व ान आ द अनु योग के े म दो
भाषाओं क तु लना क जा सकती है ।
22.7 शैल व ान
सा ह य के संपण
ू अ ययन के लए भाषा वै ा नक एवं का यशा ीय ि ट का
सि म लत यास आव यक है । सा ह य म कला मकता, सृजना मकता , सा हि यकता के साथ-
साथ भाषा क उ कृ टता भी होती है । सा ह य भाषा क कु से ज म लेता है । समथ भाषा
सा ह य को सश त बनाती है । रचनाकार अपने भाव , वचार और अनुभव क अ भ यि त के
लए अपनी भाषा-शि त का योग करता है । भाषा क इस शि त का अ य नाम शैल है ।
भारतीय का यशा म 'शैल ' श द क यु पि त सं कृ त के ‘शील' धातु से मानी गई
है । वभाव, ल ण, झु काव, आदत, च र आ द के अथ म 'शील' श द का योग होता है ।
बाद म वृि त , वृि त , र त और का य प त के अथ म शैल श द का योग हु आ भारतीय
परं परा अनुसार का य शा म ष स ांत म से एक है र त स ांत, वामन इसके मु ख
वतक थे । ' व श ट पदरचना र त:' के आधार पर वामन ने र त को पद क व श ट रचना
कहा है । भरत के अनुसार र त व ता के वभाव, उसक सं कृ त या उसक ादे शकता के
आधार पर नि चत होती है । भामह ने भाषा और का य म अंतर प ट कया । उ ह ने
सामा य श दाथ को वाता माना । कं ु तक ने ‘व ोि त का य जी वनम'् कहा । अत: प ट है
क भले ह हंद म शैल पर समु चत मा ा म शा ीय ववेचन अ धका धक नह ं हु आ है
तथा प व भ न आचाय ने इस पर अपने वचार कट कये है । गुलाब राय के अनुसार
अ भ यि त या गुण शैल है । क णाप त पाठ क मा यता है क आकषक, रमणीय,
भावो पादक अ भ यि त शैल है ।
पा चा य का य शा के अनुसार Style लै टन भाषा के Stilus से यु प न हु आ है
। इसका अथ था 'लौह लेखनी’ । वा तव म लेखन क वशेषता के प म इस श द का चलन
हु आ । आगे चलकर अ भ यि त के तीक, लखने क वशेष प त, आ द के लए उ त श द
का चलन होने लगा । पा चा य सा ह यशा म शैल क वशेषताओं और उसके गुण -दोष का
स व तार ववेचन हु आ । लेटो ने सहज, व च और म त शैल के प म शैल के तीन भेद
गनाये तो अर तु ने प टता और औ च य के शैल के दो गुण के प म वीकार कया ।
पा चा य चंतक होरे स ने ववेक श द योजना और प टता जैसे गुण को अ नवाय माना ।
वा टर रे ले ने श द और अथ पर बल दया । इस कार कहा जा सकता है क पा चा य
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का यशा म शैल एक वल ण और व श ट प त के प म मा य है । इसम ाचीनता एवं
नवीनता का सम वय है । था य व एवं प रवतन का समायोजन है । सरलता, प टता,
भावो पादकता, लया मकता आ द गुण से शैल ओत ोत है ।
अब तक आपने शैल का सामा य अथ जान लया होगा । साथ ह , भारतीय एवं
पा चा य सा ह य म व णत शैल स ब धी अवधारणाओं के बारे आपक एक समझ वक सत हो
गई होगी । अब आपको शैल व ान के व प के बारे म बताया जाएगा । शैल व ान
आलोचना क एक णाल है । इससे सा हि यक रचना क समझदार यवि थत व वक सत
होती है । शैल व ान वह व ान है जो सा ह य को भा षक कला क को ट म रखता है इसम
एक ओर कला होती है तो दूसर ओर भाषा रचनाकार क कृ त के शैल परक योग का
अ ययन शैल व ान का े है । सा ह यकार क कृ त ह शैल व ान का तपा य है ।
शैल व ान कृ त का व लेषण करता है ।
यह व लेषण न तो पाठक य होता है, न दाश नक, न ह सामाजशा ीय अथवा
मनोवै ा नक । इस लए शैल व ान, एक भाषापरक आलोचना है । कसी भी कृ त के
सृजना मक बंद ु तक पहु ँ चने के लए शैल व ान सदैव दशन, समाज, मनो व ान, भाषा
व ान के उपकरण का उपयोग कर सकता है ।
शैल व ान के अनुसार कसी भी सा हि यक कृ त को सह ढं ग से समझने के लए
उसक आंत रक संरचना को समझना ज र होता है । उसक का या मकता का संधान करना
आव यक है । व न संयोजन, प या, श द सं कार, वा य रचना, ोि त संरचना को
यान म रखकर आंत रक संरचना क खोज क जा सकती है । इसके बाद क व या पाठक,
सामािजक या सां कृ तक मू य का ववेचन कर पाता है । इस लए शैल व ान म क य और
अ भ यि त के सम वय पर अ धक बल दया जाता है ।
शैल व ान म कृ त के भीतर के संसार को जी वत करने का यास कया जाता है ।
इससे कृ त क सृजना मकता सामने आती है । शैल व ान म अंतरं ग आलोचना का ह
सवा धक मह व है ।
शैल व ान के लए अं ेजी म Stylistic श द का योग होता है । शैल क , शैल
शा , र त व ान जैसे नाम से इसे जानने का भी यास कया गया । परं तु शैल व ान
नामक श द अ धक उपयु त तीत हु आ ।
शैल व ान का उ व बीसवीं शता द म हु आ । जेनेवा कू ल के सु स चा स बेल
ने इसक त ठा क थी । उनके अनुसार भाषा क अ भ यंजना एवं या का अ ययन ह
शैल व ान है । बेल ने सा हि यक कृ त को शैल व ान क प र ध के बाहर रखा । ले कन
उनका स ांत भाषा- यो ता के सृजना मक त व पर आधा रत है । उनका भाषा - स ांत
सा हि यक कृ त क भाषा पर भी लागू हो सकते है । बेल ने अपने गु फद स पूर के 'भाषा'
और 'वाक् ' स ांत से ा त कया था । स यूर के स ांत को आगे बढ़ाते हु ए बेल ने वैयि तक
भाषा म भावा मकता को न हत बताया । भावा मकता भाषा म जो मू य तु त करती है वह
शैल के मू ल म रहती है । इ ह ं मू य का अ ययन शैल व ान का े है । अत: यह कहा
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जा सकता है क “ यवि थत भाषा क अ भ यि तय का अ ययन उनम न हत भावकार
त व के आधार पर करना अथात ् भाषा के मा यम से होने वाल संवेदनशीलता क अ भ यि त
का तथा संवेदनशीलता पर आधा रत भाषा यापार का अ ययन करना शैल व ान का काय है
।'' बेल के अनुसार सा ह यकार सदै व वे छा से और सचेत होकर अपनी भाषा मक मता का
योग करता है । वह िजस चयन को तु त करता है वह सो े य होता है । ऐसे म भाषा का
स दयमूलक भाव ु ण होता है । उसम सहजता नह ं रह जाती है । भाषा बनावट हो जाती है
। ऐसी ि थ त म भाषा सवजन सु लभ होने से वं चत रह जाती है । बेल के इन वचार का
बड़ा वरोध हु आ । उनके श य ने भी उनके मत को अ वीकृ त कर दया । यहाँ तक क
मारसेल े सॉट ने उनके मत का खंडन कया और यह मा यता द क सा ह य क कृ त म
सा ह यकार अपनी सं ेषणीयता को पाठक के सामने यवि थत ढं ग से तु त करता है ।
शैल व ान और भाषा व ान म पर पर स ब ध है । भाषा व ान भाषा के काय
का अ ययन करता है । तो शैल व ान भाषा क अनु ायो गक वधा का व लेषण करता है
ं भाषा से है । भाषा व ान मु यत: भाषा के उस
। दोन का संबध प तक सी मत है जो
लोग म सामािजक संपक था पत करने म सहायक है । यह उस भाषा तक सी मत है । जो
लोग म सामािजक संपक था पत करने म सहायक है । भाषा व ान वाक अवयव क भाषा
से संबं धत है जब क शैल व ान वा य के संदभपरक अथ के अलावा संसाधन तक ले जाता
है । स यूर क यह संक पना थी । इसके आधार पर अमर क चंतक नोअम चॉ क ने
भाषायी मता और भाषायी यवहार क धारणा वक सत क । उनके अनुसार मनु य ि थ त
एवं संदभ के अनुसार नई उि तय का सृजन करता है । ये उि तयाँ पहले न तो बोल गई थी
और न ह सु नी गई थी । परं तु समझी गई होती है । यह इस लए क सं हता क अ भ यि त
के प म संदेश के प म जानी-पहचानी जाती है । शैल व ान भाषा सं ेषण म आने वाल
इकाइय का अ ययन तु त करता है । भाषा के बोधा मक, अ भधा मक एवं स दय परक
संसाधन का, ायो गक अ ययन शैल व ान वारा संभव होता है । भाषा के ये तीनो काय
पर पर संब ह । भाषा के बोधा मक काय से अ भ यि त होती है । इसम व ता अपने भाव
एवं वचार को कट करता है । दूसरे काय म व ता क वृि त एवं उससे यि त व का पता
चलता है । साथ ह , व ता और ोता का संबध
ं ात होता है । तीसरा काय स दयपरक है जो
यि त क भाषागत सृजना मकता से सबं धत है । यह काय वा य के बीच के संबध
ं तक ह
सी मत न होकर ि थ त एवं संदभ के अनुसर काय करता है । इस काय म वा य क सीमा
का अ त मण हो जाता है । इसे सृजनपरक योग भी कहा जाता है । शैल व ान भाषा के
अ भ यंजनापरक भावपरक एवं स दयपरक प का अ वेषण करते हु ए भाषा व ान क
सहायता करता है ।
भाषा व ान वा य को मानता है, उसका व लेषण करता है जब क शैल व ान वा य
से परे पूर कृ त को अपनी प र ध म समेट लेता है । वा य, उपवा य कोशीय प, व ता एवं
ं ,
ोता का संबध या या मक अ भल ण आ द क भी या या शैल व ान के अंतगत क
जाती है । भाषा व ान कसी सा हि यक कृ त के व न वधान, लय, छं द, वा य रचना आ द
को समझने म सहायता करता है । भाषा का वणना मक ान भाषा व ान से ा त होता है ।
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जब क शैल व ान भाषा के सृजना मक योग क भी जानकार दे ता है । इसम केवल शाि दक
अथ क या या नह ं होती अथगत वचलन पर भी यान दया जाता है । अत: प ट है क
शैल व ान का े भाषा व ान के े से कह ं अ धक यापक है ।
सा हि यक आलोचना के े म शैल व ान क भू मका अ यंत मह वपूण है । शैल
व ान म सा हि यक कृ त क स दयपरक या या क जाती है । इसम सा हि यक व लेषण भी
तु त कया जाता है । शैल व ान म भाषा का अ ययन तो होता ह है, कला मक भा षक
रचना क शैल का भी अ ययन होता है । सा हि यक आलोचना का े भी सी मत है य क
यहाँ केवल मू य नणय के साथ स दयानुभू त को मह व दया जाता है । शैल व ान म भाषा
का व लेषण, मू य नणय के साथ साथ सहानुभू त भी समा हत है । वणना मकता के आधर
पर शैल व ान कसी भी शैल का अ ययन करता है, व लेषण करता है और वशेषताओं का
नणय करता है । शैल व ान के यापक प रसर को यान म रखते हु ए कहा जा सकता है,
क यह अनु यु त भाषा व ान का सवा धक मह वपूण अंग है । शैल व ान कसी भी
सा हि यक कृ त का संपण
ू ववेचन करने क मता रखता है ।
22.8 कोश व ान
आज के युग म कोश हमारे लए न य योजनीय है । भारत जैसे बहु भाषी दे श म
नय मत प से कोश का उपयोग होता है । कोश कसी भी प या अथ को ि थरता और
मानकता दान करता है । भाषा के मानक करण हे तु कोश का योग होता है । अथात कोश
भाषा को (Standard) मानक बनाता है । परं तु कोश नमाता जानबूझकर मानक करण नह ं
करता । कोश केवल संदभ ं नह ं होता है । दन-ब- दन
थ ान क ग त के साथ-साथ कोश
क उपयो गता भी बढती जा रह है । व भ न भाषा-भा षय के बीच नाना कार के आदान
दान हे तु कोश क आव यकता पड़ती है । तकनीक श दावल तथा पा रभा षक श द के लए
कोश का उपयोग ज र है । इ ह ं सब ज रत को यान म रखकर अनु यु त भाषा व ान
के अंतगत कोश व ान का पठन-पाठन शु कया गया है ।
भारतीय भाषाओं के संदभ म कोश का थान, मह वपूण है । इसका सबसे ाचीन नाम
' नघ टु ' है । इस श द का योग पयायवाची, अनेकाथ, नानाथ आ द के लए भी हु आ करता है
। त मल, तेलु ग,ु मलयालम आ द भाषाओं म आज भी कोश के लए ' नघंटु' का योग होता है
। अ भधान, श द क प म
ु , श दाथ कौ तु भ, श द पा रजातम श द चंताम ण श द सागर, श द
र नाकर, श द मु तावल , श द मंजर , श दा भधान श दाणव, आ द भी कोश के लए यु त
होते है ।
कोश व ान एक संदभ थ
ं है । कोश व ान से हम श द का संदभ जान सकते ह ।
श द का अथ और योग, श दो चारण, श द क यु प त तथा वकास के बारे म श दकोश
प र चत कराता है । श द से न मत व वध प, मु हावरे एवं उसक याकर णक वशेषताओं क
जानकार भी हम कोश व ान से होती है । अत: श द के संदभ म सू चनाओं को मब प
म, वै ा नक ढं ग से तु त करने क कला का अ य नाम कोश व ान है ।
446
कोश व ान के लए अं ेजी श द Lexicography का चलन है । इसका श दाथ
व ान तथा भाषा व ान से अटू ट संबध
ं है । कोश व ान अनु यु त व ान का सबसे
मह वपूण अंग है । श द के उ चारण एवं अथ क पू त के लए कोश व ान का योग होता
है । इसका अ य व ान से भी गहरा संबध
ं होता है । कोश क वि ट म कोशकार को भाषा
के याकरण का ान होना आव यक है । वभाषी, भ
ै ा षक श दकोश के संदभ म कोशकार
को समानाथ श द, याकरण, य तरे क व लेषण पर यान दे ना पड़ता है ।
पहले भी बताया जा चु का है क मानक करण के े म कोश का सबसे बड़ा योगदान
है । समाज म च लत व भ न श द प म से मानक प को लेना एवं व भ न त पध
श द म से सवा धक मा य प को श दकोश म वि ट दे ना पड़ता है ।
जैसा क उपर कहा गया है क कोश म श द का उ चारण, यु पि त, अथ, योग,
पयाय, याकर णक को ट आ द का ववरण दया जाता है । वणानु म अथात ् अकारा द म म
कोश क वि टयाँ होती ह । काल म, आकार, भाषा क कृ त आ द के आधार पर कोश का
वग करण कया जाता है । कोश न न कार के हो सकते ह - बोल कोश, पेशा कोश,
तकनीक कोश, कू टभाषा कोश, वतनी कोश, उ चारण कोश, समनाम कोश, वपर ता मक कोश,
याकर णक कोश, आवृि त कोश, पयायवाची कोश, वलोम कोश, कृ त कोश, श ाथ कोश,
भाषी कोश, वभाषी कोश, बहु भाषी कोश अ द ।
कोश नमाण एक लंबी या है । इस काय म कई वष लग जाते ह । कोश काय के
मु यत: तीन चरण होते ह । ये ह -
(क) नयोजन, साम ी संकलन और वि टय का चयन
(ख) कोश क वि ट क संरचना
(ग) वि टय क म यव था, मु ण त तु त करना ।
साम ी संकलन ( ोत का ववरण), काड बनाकर उ ह भरना, श द सू ची का चयन,
कोश वि ट क संरचना, श द के अथ और वणन, नामांकन, पदबंध, उदाहरण, ल प,
उ चारण, याकर णक को टय आ द को नयोिजत करना पड़ता है । श द क यु पि त पर भी
यान दे ना आव यक होता है उदाहरण के तौर पर कु छ श द के ोत का ववरण न नतया
द त है :
थान पु. (सं. थान) 1. जगह, थान
2. नवास थान, डेरा
गुहा . (कह )ं थान करना - जम या अडकर बैठ जाना ।
3. घोड़ के बाँधे जाने का थान
4. कुछ नि चत लंबाई के कपड़े, गोटे आ द का पूरा टु कडा
5. सं या, अदद जैसे चार थान
चौमुहानी ी ( ह. चौ = चार + फा. मु हाना) : चौराह चौरा ता चतु पथ
447
मयादा - ी (सं.) 1 सीमा, हद 2. तट, कनारा, 3. त ा 4. नयम, 5. सदाचार
6. त ठा 7. धम
कोशकार को पूर को शश करनी चा हए क श द के अ धक से अ धक तर य भेद का
न पण हो सके । इसके लए कोशकार को उस भाषा के शैल व ान, समाज व ान आ द क
सहायता लेनी पड़ती है । ऐ तहा सक भाषा व ान के अ ययन से उसे काल मक भेद का
न पण करने म मदद मल सकती है । कोश व ान म अनु यु त भाषा व ान क समथ
उपि थ त पाई जाती है ।
22.10 सारांश
अनु यु त भाषा व ान का योग ल बी अव ध से एक वचारधारा के प म होता
आया था । बीसवीं शता द के म यभाग म पहल बार इस श द का योग हु आ था । ल वेज
ल नग नाम से का शत जनल का उप वषय 'अनु यु त भाषा व ान का म
ै ा सक जनल रख
गया था । अनु यु त भाषा व ान अंत: वषया मक है । उसका अ य वषय के साथ
ं है । यह अ य वषय को जोड़ता है । मनोभाषा व ान, भाषा श ण, अनुवाद ,
रचना मक संबध
भाषा तु लना, शैल व ान, कोश व ान आ द अनु यु त भाषा व ान के मह वपूण अंग ह ।
448
ये वषय अनु यु त भाषा व ान के उ लेखनीय े ह । भाषा के मानक करण, भाषा व ान
के वकास तथा भाषा के व वध संदभ से प र चत होने के लए इन े क भू मका को
अ वीकार नह ं कया जा सकता है । भाषा व ान के यावहा रक पहलु ओं क संपण
ू जानकार
हा सल करने म अनु यु त भाषा व ान बड़ी भू मका का नवाह करता है ।
22.11 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. अनु यु त भाषा व ान का व प प ट करते हु ए भाषा अजन एवं भाषा अ धगम क
या स व तार समझाइए ।
2. 'मनोभाषा व ान' का आशय प ट करते हु ए उसके े का प रचय द िजए ।
3. मातृभाषा श ण के व प का ववेचन क िजए ।
4. भाषा श ण क मु ख व धय का प रचय द िजए ।
5. ु ट व लेषण क या और योजन समझाइए ।
6. अनु यु त भाषा- व ान के मु ख े के प म अनुवाद क चचा क िजए ।
7. अनुवाद और भाषा व ान के संबध
ं पर काश डा लए ।
8. भाषा तु लना क योजनीयता का ववेचन क िजये ।
ख. लघू तर न
1. मनोभाषा व ान के अंतगत भाषा अजन म कन याओं पर अ धकार पाना आव यक
है? व लयम माउलटन ने अ धगम के संदभ म भाषा क कौन-कौन सी वशेषताएं
बताई ह?
2. भाषा श ण म मातृभाषा का मह व बताइए ।
3. भाषा श ण म 'अ य भाषा' से या ता पय है ।
4. भाषा श ण क मु ख व धय को कन ब दुओं म वभािजत कया जा सकता है?
ग. र त थान क पू त क िजए
1. गुलाब राय के अनुसार .................................या गुण शैल है ।
2. भाषा क मू लभूत इकाई....................................है ।
3. कोश क वि टयाँ.......................................म होती है ।
4. ..................................एक ऐसी या है । िजससे नवीन ान दान कया जा
सकता है।
5. शशु का मन................... म ी क तरह होता है ।
घ. सह और गलत चि नत क िजए -
1. अं ेजी म अनु यु त के लए Practicas Livgronric पदबंध च लत है ।
सह /गलत
2. मनो भाषा व ान म भाषा व ान एवं मनो व ान क बा य याओं का अ ययन
होता है । सह /गलत
449
3. मातृभाषा का वकास सामािजक वकास का के ब दु है ।
सह /गलत
4. अनुवाद मौ लक सृजन है । सह /गलत
5. स यूर ने भाषा और वाक् स ांत का तपादन कया । सह /गलत
6. Thousands of sleepers were burnt का सह अनुवाद है - हजार सोने वाले
जला दए गए
सह /गलत
22.12 संदभ ंथ
1. मनोरमा गु त; के य हंद सं थान, आगरा
2. ो. चतुभु ज सहाय; भाषा श ण और भाषा व ान, गवेषणा 71-72 के य हं द
सं थान आगरा
3. मनोरमा सं. गु त; कोश व ान, के य हंद सं थान, आगरा
4. रवी नाथ ीवा तव; एवं कृ णा कु मार; गो वामी, अनुवाद स ांत और सम याएँ,
आलेख काशन, नई द ल
5. सं. रवी नाथ तवार ; डॉ. भोलानाथ गो वामी; डी. कृ णकुमार; अनु यु त भाषा
व ान, आलेख काशन, नई द ल
450
इकाई-23 भाषा श ण और ह द
इकाई क परे खा
23.0 उ े य
23.1 तावना
23.2 भाषा श ण: अथ एवं प रभाषा
23.2.1 भाषा श द का अथ एवं प रभाषा
23.2.2 श ा एवं श ण का अथ
23.2.3 भाषा श ण का अथ एवं व प
23.3 भाषा श ण का सै ाि तक प रचय
23.3.1 भाषा श ण का मह व
23.3.2 भाषा श ण का उ े य
23.3.3 भाषा श ण क व धयाँ
23.3.4 भाषा श ण के व वध उपकरण
23.4 भाषा श ण और ह द
23.4.1 ह द वाचन श ण
23.4.2 ह द लेखन श ण
23.4.3 ह द उ चारण श ण
23.4.4 ह द वतनी श ण
23.5 भाषा श ण एवं ह द सा ह य
23.5.1 ह द क वता श ण
23.5.2 ह द कहानी श ण
23.5.3 ह द नाटक श ण
23.6 वचार संदभ/श दावल
23.7 सारांश
23.8 अ यासाथ न
23.9 संदभ थ
ं
23.0 उ े य
तु त इकाई म भाषा श ण और ह द का अ ययन कया जाएगा । इसे पढ़ने के
बाद आप:-
बता सकगे क भाषा, श ा, श ण, एवं भाषा श ण का अथ एवं व प या है ।
भाषा श ण के सै ाि तक व प से प र चत हो सकगे ।
भाषा श ण के मह व, उ े य, व धयाँ एवं व वध उपकरण का प रचय ा त कर
सकगे।
451
ह द के वाचन, लेखन, उ चरण और वतनी श ण से प र चत हो सकगे ।
ह द सा ह य म क वता, कहानी और नाटक श ण का प रचय ा त कर सकगे ।
23.1 तावना
भाषा, ान और श ा क आधार शला है । य क भाषा से ान और ान से श ा
एवं अ य काय होते ह । स य समाज म मानव सृि ट क उ न त म भाषा एवं श ा क वैसी
ह आव यकता है जैसी जीवन क र ा के लये वास एवं भोजन क ।
मनु य भाषा के वारा अपने सू म वचार को य त करता है वह श ा वारा अपनी
वचार शि त क वृ और वचार क शु वारा उ चतानु चत का नणय करता है ।
भारतीय श क ने भाषा श ण यव था म एक मु ख थान ा त कया । आधु नक
श ण व धय - य, ृ य और य- ृ य मा यम वारा छा को श त कया जा रहा है ।
िजससे श क क ा म भाषा के शु वाचन, लेखन, उ चारण एवं वतनी के साथ-साथ क वता,
कहानी, नाटक आ द का उ कृ ट श ण कर सक ।
इसके वारा छा एवं अ यापक भाषा श ण और ह द का ान ा त कर अपने
ान को वक सत कर सके ।
23.2.2 श ा एवं श ण का अथ
453
'' श ण वह या है िजसम अ धक वक सत यि त व कम वक सत यि त व के
स पक म आता है और कम वक सत य कत व क अ म श ा के लये वक सत
यि त व यव था करता है ।'' इसम श ण या के अ तगत श क का थान धान
माना जाता है, और छा का थान गौण है ।
श ण क बशेताएं
श ा शाि य और मनोवै ा नक ने श ण या क अनेक प रभाषाएँ द ह ।
िजनक अधो ल खत वशेषताएँ इस कार ह ।
1. श ण एक अ त: या है ।
2. श ण एक सो े य या है
3. श ण एक सामािजक तथा यावसा यक या है ।
4. श ण एक वकासा मक या है ।
5. श ण कला तथा व ान दोन ह है ।
6. श ण म भाषा, स ेषण का काय करती है ।
7. श ण एक उपचार व ध है ।
8. श ण एक ता कक या है ।
9. श ण का मापन कया जाता है ।
10. श ण म सु धार तथा वकास भी कया जाता है ।
11. श ण एक औपचा रक तथा अनौपचा रक या है ।
454
अत: भाषा श ण के लये मान सक और भौ तक प का सामंज य होना आव यक
है।
भावशाल यि त व सफल भाषा श ण का धान गुण माना गया है । मनो व ान
के अ ययन से ात होता है क छा म सव थम अनुकरण त तर, अ वेषण क वृि त
जा त होती है । छा के भ व य के अ वेषण, पूव के अनुकरण पर आधा रत होते ह । एक
भाषा वारा ह उसके मनोभाव का आदान- दान होता है । इस लये भाषा श ण का पूणत:
ान एक श क के लये आव यक है । िजससे वह भाषा श ण का मह व छा को समझा
सके ।
भाषा श ण म भाषा का ान अ याव यक है ।
23.3.2 भाषा श ण का उ े य
455
(1) ान प (2) कौशल या यवहार प
भाषा क एक संरचना होती है इसम वणमाला, व न, श द वा य, व न, वतनी,
अनु छे द होते ह । भाषा के त व का ान और उनका योग भाषा श ण के मु य उ े य है
। भाषा म कौशल का वकास-शु लखने, शु बोलने, शु पढ़ने का स ब ध याकरण से
होता है । कौशल के भी दो प होते ह ।
(क) कौशल का वकास या हण करना
(ख) कौशल का अ भ यि त म समु चत उपयोग करना । ाना मक उ े य भाषा और
सा ह य दोन प के होते ह । भाषा म कौशल प धान होता है जब क सा ह य म
कला मक भावप तथा सौ दयानुभू त क धानता होती है ।
भाषा- श ण के मु ख दो ह उ े य होते ह-
(1) ाना मक उ े य
(2) कौशला मक उ े य
1. ाना मक उ े य : ाना मक उ े य क ाि त के लये न न ल खत अपे त यवहार
कये जाते ह ।
(1) भाषा स ब धी त व का ान ा त करना अथवा पहचान करना ।
(2) भाषा स ब धी अशु य क पहचान करना और उनम सुधार करना ।
(3) भाषा स ब धी त व के उदाहरण तु त करना तथा तु लना करना ।
(4) भा षक त व म पर पर अ तर तथा स ब ध ात करना ।
(5) इन त व का व लेषण तथा वग करण करना आ द ।
2. कौशला मक उ े य : कौशला मक उ े य का स ब ध भा षक त व को कु शलता से
योग करने क मता के वकास करने से है । भाषा के अ तगत चार कौशल का
वकास कया जाता है, पढ़ना, लखना, बोलना तथा सुनना । इनका स ब ध शु
उ चारण, शु वतनी, शु याकरण के योग से है । कौशला मक उ े य क मु ख
याएँ या कौशल न न ल खत ह ।
(1) शु एवं प ट वाचन क यो यता दान करना ।
(2) सु नकर शु अथ हण करने क मता का वकास करना ।
(3) बोलकर अपने भाव एवं वचार को य त करने क मता का वकास करना।
(4) लखकर अपने भाव एवं वचार को य त करने क यो यता का वकास
करना ।
(5) ग य, प य, कहानी तथा नाटक आ द पढ़कर अथ हण करने क यो यता
का वकास करना ।
भाषा श ण के अ य उ े य
भ न- भ न मनोवै ा नक तथा भाषाशाि य ने उ च क ाओं म भाषा श ण के
अ य उ े य कये ह ।
456
1. व या थय को इस यो य बनाना क वे सामा य ग त से बोल गई भाषा को ठ क-ठ क
समझ सक ।
2. उ चत वराम च ह का योग करते हु ए वे शु ह द म बातचीत कर सक ।
3. उनक बोलचाल क भाषा म कसी भी कार का उ चारण दोष नह ं होना चा हये ।
4. छा म इतनी मता उ प न करना क वे उ च तर पर स वर वाचन कर सके ।
5. उ ह इस यो य बनाना क वे वणना मक तथा सूचना मक साम ी का सं ेपीकरण एवं
प लवन कर सक । छा म इतनी यो यता उ प न करना क वे सु नी हु ई घटनाओं
का ठ क-ठ क ववरण ल खत एवं मौ खक प म दे सक ।
6. कसी सामा य वषय पर शु तथा सरल ह द म यि तगत वचार य त करने एवं
लखने क द ता ा त कर सक ।
7. उ च क ाओं म छा -छा ाओं को इस बात का अवसर दे ना चा हये क वे ह द भाषा
एवं सा ह य का अ ययन एवं श ण दे सक ।
457
ीधरनाथ मु खज इस वषय म लखते ह क- ‘ कसी भी श ण- व ध म भाषा का
उपयोग एकदम ब द नह ं कया जा सकता । य व तु या या हाव-भाव, दखाकर, अथवा
टा त वारा थोड़े-बहु त श द अव य समझाये जा सकते ह, क तु सभी श द इस प त के
अनुसार नह ं सखाये जा सकते, जैसे वशेषण, भाववाचक सं ाएँ इ या द ।
2. परो व ध : इस व ध म मातृ-भाषा के मा यम से कसी नवीन भाषा को पढ़ाया
जाता है । इस व ध म न न ल खत नयम को यान म रखा जाता है ।
(i) येक वा य का श द मातृ-भाषा म अनु दत करके पढ़ाया जाता है ।
(ii) पा य-पु तक क रचना याकरण के आधार पर ह क जाती है । तथा स पूण
याकरण का अनुवाद कर लया जाता है ।
(iii) अनुवाद के मा यम से नवीन भाषा तथा मातृभाषा क तु लना क जाती है ।
(iv) अनुवाद के मा यम से नवीन श द और मु हावरे उ चत कार से समझाये जाते ह ।
इस व ध म अनेक दोष ह इस व ध म याकरण के नयम को वशेष मह व
दया जाता है िजससे श ण बँधा सा रहता है । इस व ध म केवल वाचन पर ह
बल दया जाता है, िजससे छा बोलचाल क श ा उ चत कार से नह ं ा त कर
पाते ।
3. यवि थत व प : इस व ध म भाषा के कु छ चु ने हु ए मु ख श द और न मत
समान वा य के मा यम से भाषा श ण आर भ होता है । इस व ध से छा तीन
या चार वष म भाषा का ान ा त कर लेता है । पर तु यह प त अं ेजी भाषा के
लये ह उपयोगी स हो सकती है । ह द भाषा के वा य क रचना म तथा अं ेजी
भाषा के वा य क रचना म अ य धक अ तर है । पर तु इस व ध म दोष भी
व यमान ह, जैसे इसम श द-रचना पर यान नह ं दया जाता । िजससे श द भ डार
के वक सत होने क स भावनाऐ नह ं रहती ।
इस व ध के आधारभूत नयम न न ल खत ह ।
(i) मौ खक काय को भाषा श ण का आधार बनाया जाता है ।
(ii) वा य के गठन को क ठ थ करा दया जाता है ।
(iii) छा को भाषा सीखने के लये े रत कया जाता है ।
(iv) वा य क संरचनाओं पर वशेष बल दया जाता है ।
(v) अ य भाषा का योग कया जा सकता है ।
4. वे ट क व ध या नवीन व ध : इस व ध के नमाता माइकेल वे ट थे । उ ह ने
अं ेजी, श ण म य न व ध का योग कया तथा वयं अं ेजी पढ़ाने क व ध का
नमाण कया, जो वे ट क व ध या 'नवीन प त' कहलाई ।
वे ट क व ध के स ा त न न ल खत ह:-
(i) भाषा- श ण म वाचन क धानता- वे ट के अनुसार भाषा श ण का आर भ
वाचन से कया जाना चा हये । कसी भी भाषा म द ता ा त करने के लये
458
आव यक है क श द का वकास कया जाए । वाचन के वारा बालक नये-नये
श द को सीखता है । िजससे उसके श दकोष का वकास होता है
(ii) व भ न प तयाँ – ‘वे ट महोदय के अनुसार वाचन, लेखन तथा भाषण सखाने के
लये अलग अलग प तय का योग कया जाय । कसी पाठ को पढ़ाते समय
एक साथ ह तीन का अ यास करना अनु चत है ।
(iii) मातृ-भाषा का मह व :- वे ट महोदय नवीन भाषा के श ण म 'मातृभाषा ' के
उपयोग को उ चत समझते ह । उनके वचार म नवीन भाषा के श द का ान
कराने के लये अनुवाद को भी थान मलना चा हये ।
उपयु त व धय का अ ययन करने से पता चलता है क भाषा- श ण को सफल
बनाने के लये यह आव यक है क सम त छा सह वाचन, लेखन तथा पठन कर सक ।
459
13. सू ि तयाँ, लोकोि तयाँ तथा 13. लाइड- फ म
मु हावरे प याँ तथा च दशक
14. ामोफोन 14. मू क च
15. रे डयो 15. ता लका
16. भाषाय 16. सारणी
17. टे प रकाडर
18. ट रयो
य- य साधन का योग करने से श ण म कु शलता आती है । साथ ह श ण
और अ धक भावशाल बन जाता है । य य साम ी के योग से शु क तथा अ चकर
वषय अथवा उप- वषय को अ य व धय क अपे ा अ धक सरल, रोचक तथा प ट बनाया
जा सकता है । अब हम इन साधन पर व तार से काश डालगे ।
1) य साधन
(1) वणन:- कसी घटना, य या आयोजन का अपने श द म व तार से उ लेख करने
को वणन कहते ह जैसे- कसी समारोह का वणन आ द ।
(2) आ यान या कथन:- कसी घटना, य एवं शोध का त या मक ववरण कथन है ।
(3) या या- कसी ज टल श द, वा य, वा यांश या बात को ख ड-ख ड करके बोधग य
बनाना ह या या है ।
(4) उदाहरण:- वषय व तु को प ट करने क ि ट से उदाहरण का योग कया जाता है
। उदाहरण क । भाषा का सरल एवं बोधग य होना ज र है ।
(5) नदशना - जब कसी ि ल ट बात या अंश को दखाकर प ट कया जाये अथवा
मौ खक प से इस तरह प ट कया जाये क सु नने वाले के मि त क म उस बात
का च सा खंच जाये, तब हम उसे नदशना कहते ह ।
(6) न एवं उ तर- न युि त श ण म सवा धक उपयोग म आने वाल युि त है ।
उसी के जवाब म दया गया वा य उ तर कहलाता है ।
(7) तु लना - आकृ त से लगभग समान लगने वाल दो व तु ओं एवं बात क समानताओं
एवं भ नताओं को एक साथ दे खना तु लना कहा जाता है ।
(8) टांत - टांत मौ खक उदाहरण होते ह ।
(9) सं मरण - अपने जीवन म घ टत हु ई घटना को दूसर को सु नाना ह सं मरण है ।
(10) लघुकथा- व या थय को पाठ के कु छ अंश समझाने के लये लघु कथाओं का योग
कया जाता है ।
(11) अ तकथा - अ तकथा का े कु छ भी हो सकता है, अ तकथा बड़ी एवं छोट भी हो
सकती है ।
(12) उपमा - उपमाओं का योग कसी अ ात व तु क समानता ात व तु से करने के
लये कया जाता है ।
460
(13) सू ि तयाँ, लोकोि तयाँ तथा मु हावरे-सूि तयाँ कसी महापु ष अथवा बड़े लोग वारा
नर ण अथवा अनुभव के आधार पर कह जाती ह । मु हावरे अपने शाि दक अथ से
भ न अथ दे ते ह ।
(14) रे डयो - रे डयो से वह व न सु नाई पड़ती है जो रे डयो टे शन से सा रत क जाती
है।
(15) भाषा य - मु ख भा षक यं जैसे - ऑ सलो ाफ एवं पे ो ाफ वारा कसी भी
भा षक व नय के उ चारण क श ा द जाती है ।
(16) ामोफोन - यह चाबी के आधार पर चलने वाल मशीन है ।
(17) टे प रकाडर - यह बजल या बैटर के वारा चलने वाल मशीन होती है । इसम एक
ह टे प पर अनेक बार रकाड कया जा सकता है ।
(18) ट रयो - टे प रकाडर म कहानी, क वता, गीत आ द के श द को टे प पर रकाड
कया जाता है । उसी टे प को जब ट रयो पर लगाते ह, तो रकाड क हु ई वन
अपने मू ल प म पीकर वारा पुन : उसी प म व नत होने लगती है ।
2) य साधन
(1) वा त वक व तु एँ - वा त वक व तु ओं के अ तगत श ण क आव यक साम ी
यामप , चॉक, ड टर आते ह ।
(2) नमू ने - कसी भी श ण साम ी को प ट करने के लये उसे नमू ने के प म तु त
करना होता है । च - च म आकृ त होती है ले कन आकार नह ं होता है ।
(3) मान च - कसी भी थान वशेष व दे श वशेष क खंची गई च के मा यम से
बनाई गई आकृ त रे खा च कहलाती है । इसे थान क ि थ त बताने के लये
योग कया जाता है ।
(4) रे खा च तथा खाके - यह भी मान च का ह पयाय है ।
(5) ाफ - ाफ अथ यव था क ि थ त के उतार-चढ़ाव पर आधा रत होता है ।
(6) चाट - श ण साम ी को सं त एवं सरल तर के से समझाने के लये चाट का
योग कया जाता है ।
(7) बुले टन बोड - यह समाचार को सा रत करने का मा यम है ।
(8) लेनेल बोड - यह श ा के े म एक नई प त है । िजसे - हम एक बोड (त ता)
कह सकते ह । िजस पर कसी भी रं ग का फै ट या ब लयड लाथ लगाया जाता है ।
इस बोड पर च , अ र आ द चपका सकते ह ।
(9) सं हालय - सं हालय म व भ न कार क जानका रयाँ सं हत क जाती ह ।
(10) य साधन म अ य सहायक साधन जैसे-जादू क लालटे न, च व तारक य ,
लाइड, फ म,
(11) प टयाँ तथा च दशक मू क च , ता लका, सा रणी आ द साधन का भाषा श ण म
योग कया जाता ह िजससे श ण सरल व सट क बनता है ।
3) य- य साधन
461
(1) चल च :- श ा को भावी बनाने के लये भ न- भ न चल च क सहायता ल
जाती है । यह चल च , छ ब ह म दखाये जाने वाले चल च से भ न होते ह ।
यह 16 मल मीटर फ म पर बनाए जाते ह और 16 मल मीटर ेपक के वारा
द शत कये जाते ह ।यह क ा म छा को दखाने के लये बनाये जाते ह ।
(2) टे ल वीजन - टे ल वीजन वारा सा रत काय म अ धक से अ धक 50-60 मील क
प र ध म ह दे खे और सु ने जाते ह ।
(3) ामा- ामा का ह द अथ नाटक है जो मनोरं जन के मा यम से श ा को आसान
बनाने का तर का है । इसके लये अ यास क आव यकता होती है । इसम आं गक
संकेत के वारा भाव को य त कया जाता है ।
(4) ं ी फ म-समाचार स ब धी स पूण जानकार क एक
समाचार संबध फ म तैयार क
जाती है बाद म जब चाहे उसका दोबारा उपयोग कर सकते ह ।
भाषा श ण के व वध उपकरण के स ब ध म िजतने ब दुओं क ववेचना क गई है
उन सभी का सार यह है क सहायक साधन आकषक ह और उसका अवसरानुकूल ह उपयोग
कया जाये एवं व याथ उससे लाभाि वत ह ।
23.4 भाषा श ण और ह द
23.4.1 ह द वाचन श ण
462
अनुकरण वाचन कया जाता है । जब छा अ यापक के आदश पाठ के अनु प वाचन
करने का य न करते ह । तो उसे अनुकरण (स वर) वाचन कहा जाता है ।
वाचनकता के अनुसार वैयि तक वाचन तथा सामू हक वाचन को भी मह वपूण ब दु
म रखा जाता है ।
(ii) मौन वाचन : मौन वाचन का शाि दक अथ है बना ह ठ हलाये चु पचाप पढ़ना, पर तु
सू म अथ म मौन वाचन का अथ चु पचाप पढ़ते हु ए अ धक से अ धक अथ हण
करना है । मौन वाचन के लये शाि तपूण वातावरण, वाचन क मु ा, धैय क भावना,
वक सत श द कोष, एका ता, उ चत वाह तथा ग त आ द बात का वशेष यान
रखना पड़ता है । मौन वाचन से मनन तथा ता कक शि त का वकास होता है । मौन
वाचन के दो कार ह (1) ग भीर मौन वाचन (2) व रत मौन वाचन । ग भीर मौन
वाचन म येक श द वा य तथा भाव पर ग भीरतापूवक वचार अथवा मनन कया
जाता है । व रत मौन वाचन का उ े य मनोरं जन क ाि त है ।
ह द वाचन श ण क व धयाँ:-
ह द वाचन श ण के अ तगत शु वाचन क श ा दे ने के लये व भ न तर पर
अलग-अलग व धय का योग कया जाता है । इनम कु छ व धय का ववरण यहाँ तु त है।
(1) अ र बोध णाल - इसम छा को वणमाला के सभी अ र का बोध कराया जाता है,
जैसे –अ,आ, इ,ई । इसम श ण का म वणा र-श द-वा य रहता है ।
(2) श द श ण व ध - इस व ध म छा को पहले साथक एवं सरल श द क श ा द
जाती है जैसे-नाना, मामा, पापा, चाचा, आ द ।
(3) वा य श ण व ध - इस व ध म पहले वा य बोला जाता है, त प चात ् श द ान
और अ त मे अ र ान कराया जाता है ।
(4) कहानी व ध - इस व ध म अनेक च के सहयोग से छा को कहानी सु नाई जाती
है । च के नीचे बड़े-बड़े अ र म कहानी से स बि धत वा य लख दये जाते ह ।
(5) सामू हक पठन व ध - इस व ध म बाल-गीत और संवाद क श ा द जाती है ।
व याथ , अ यापक के आदश वाचन का अनुकरण समवेत वर म करते ह ।
(6) व न सा य व ध - इस व ध म समान उ चारण वाले श द को साथ-साथ सखाया
जाता है ।
(7) भाषा श ण - य व ध- इस व ध म शु उ चारण वाले रकाड को बजाया जाता
है यह 'अनुकरण ' धान है ।
(8) खेल व ध - यह व ध पा चा य श ा णाल क दे न है ।
इन व धय म कतनी ह पूणता य न हो, कु शल श ण के वारा ह हम ह द
वाचन श ण को सरल बना सकते ह ।
463
23.4.2 ह द लेखन श ण
23.4.3 ह द उ चारण श ण
465
(2) ◌ु तथा ◌ू (उ तथा ऊ क मा ा)के उ चारण क अशु याँ
(3) ◌े तथा ◌ै (ऐ तथा ए क मा ा) के उ चारण क अशु याँ
(4) ◌ो तथा ◌ौ (ओ तथा औ क मा ा) के उ चारण क अशु याँ
(4) अनुना सक, अनु वार और अ अनु वार स ब धी उ चारण अशु याँ
(5) व न लोप स ब धी उ चारण अशु याँ
(6) व न आ ध य स ब धी उ चारण अशु याँ
(7) व न प रवतन स ब धी उ चारण अशु याँ
(8) नाक से बोलने व उदू व न नु ता (.) क अनाव यक उ चारण संबध
ं ी अशु याँ
(9) वराघात उ चारण स ब धी अशु याँ
ह द उ चारण श ण म उ चारण अशु य के कारण
ह द भाषा के उ चारण म अशु याँ होने के अनेक कारण ह । ह द उ चारण म होने वाल
सामा य अशु य के सामा य कारण को न न ल खत वग म वभािजत कर सकते ह ।
1. शार रक संरचना एवं शार रक वकार के कारण उ चारण म अशु आती है ।
2. मान सक कारण - भाषा का उ चारण शर र और मन के योग से होता है । शर र म
या मन म वकार आ जाने से उ चारण म अशु आना वाभा वक है । भय, संकोच
एवं शी ता इसके कारण ह ।
3. सामािजक कारण-सामािजक कारण के अ तगत बो लय का भाव, अ य भाषाओं का
भाव आ द कारण उ चारण को भा वत करते ह ।
4. शै क कारण - जैसे-जैसे श ा का चार सार बढ़ा है, कू ल म ब च क सं या
भी बढ़ है । िजससे सभी ब च पर श क यान नह ं दे पाते और ब चे अशु याँ
करते ह । इनम मू ल व नय , मा ाओं, अनुना सक, अनु वार और अ अनुना सक का
अ प ट ान, वराघात के नयम क अन भ ता आ द ह ।
5. भाषायी कारण- ह द भाषा क मू ल व नय म इतनी समानता है क अ प टता का
सामना करना पड़ता है जैसे छ, , ट, ठ, इसके साथ ह कुछ मू ल व नय के
अ नि चत कारण मा ाओं क व च ता एवं र के चार प और ऋ का योग छा क
भू ल के कारण बनते ह ।
शु उ चारण क श ा
शु उ चारण ह श त यि त क पहल पहचान है । इस लये शु उ चारण के लये हम
इन आव यक ब दुओं क ओर ि ट डालनी होगी ।
1. छा के मान सक संतु लन का वकास
2. छा के उ चारण अवयव अथवा वर यं क दे खभाल
3. वशु भाषा का योग करने वाल क संगत
4. उ चारण स ब धी सामा य नयम का ान
5. शु उ चारण स ब धी अ यास
6. वउपचार व ध
466
7. वै ा नक उपचार श ण व धयाँ
8. पर परागत उपचार श ण व धयाँ
इस कार अशु य का नवारण करके और नर तर अ यास के वारा हम शु ह द
का उ चारण करने म सफल हो सकते ह ।
23.4.4 ह द वतनी श ण
467
आ ध य स ब धी वतनी अशु याँ, व न प रवतन स ब धी वतनी अशु याँ, अनु वार और
नु ता का अनाव यक योग श द रचना स ब धी वतनी क भू ल आती ह, वतनी अशु य के
अ य कारण भी इसम अहम ् भू मका नभाते ह िजसम शार रक कारण (शार रक संरचना,
शार रक वकार वा यं म वकार) मान सक कारण (भय अथवा संकोच,शी ता एवं असावधानी),
सामािजक कारण (बो लय का भाव, अ य भाषाओं का भाव) शै क कारण (मू ल व नय
एवं च ह का अ प ट ान, मा ाओं का अ प ट ान, उ चारण एवं वतनी संबध
ं ी नयम क
अन भ ता), भाषायी कारण (मा ाओं क व च ता, मू ल व नय क अ धकता) सि म लत ह ।
पु तक के मु ण क अशु याँ भी इसे भा वत करती ह और श द अथवा लेखन अ यास के
अभाव के कारण भी अशु याँ होती है ।
वतनी स ब धी अशु य के कार
वतनी स ब धी अशु य के कार न न ल खत ह ।
1. सामा य ल प स ब धी अशु याँ
2. पंचम वण स ब धी अशु याँ
3. अनु वार स ब धी अशु याँ
4. अ र या वण क अशु याँ
5. मा ाओं क अशु याँ
6. लंग तथा वचन स ब धी अशु याँ
7. सि ध व समास स ब धी अशु याँ
8. यय एवं उपसग स ब धी अशु याँ
वतनी म सावधा नयाँ
लेखन म वतनी का वशेष मह व है य क लखने क शु ता वतनी पर नभर होती
है । लेखन म श क को दोन प पर यान दे ना चा हये- श द व अ र म सु दरता तथा
एक पता हो । वतनी म न न ल खत सावधा नय का यान रखना आव यक है ।
1. वतनी तथा लेखन दोन क शु ता, पर यान दया जाना चा हये ।
2. वतनी तथा लेखन स ब धी नयम का अनुसरण कया जाय ।
3. नरोधा मक तथा सु धारा मक उपाय को यु त कया जाए ।
4. वतनी स ब धी भाषा व ान का ान भी श क को होना चा हये ।
5. वतनी के सु धार म अ यास पर वशेष बल दया जाना चा हये ।
अत: हम कह सकते है क भाषा म शु ह द वतनी श ण क आव यकता है ।
468
क वता के वारा इनको पश करता हु आ स यम ् शवम ् सु दरम,् के आदश क ओर ले चलता
है । क वता अनुभव करने क व तु है या या करने क नह ं । आचाय व वनाथ ने ‘सा ह य
दपण' म ‘रसा मक वा य' को का य माना है ।
''वा यं रसा मकं का यम ् ।”
पं डतराज जग नाथ के अनुसार -
''रमणीयाथ तपादक: श द का यम/''
्
अथात-् रमणीय अथ का तपादन करने वाला श द का य है ।
क वता श ण के उ े य-
क वता श ण के उ े य न न ल खत ह
1. क व के भाव और वचार के साथ-साथ तादा मय था पत कर छा को अलौ कक
आन द क अनुभू त कराना ।
2. छा म क व के भाव क पनाओं और अ भ यि त क सु दरता क जाँच करने क
यो यता य त करना ।
3. लय ताल और भाव के अनुसार क वता पाठ करने क यो यता पैदा करना ।
4. भाव भं गमाओं और वर के उतार चढ़ाव के साथ क वता का अ यास करना ।
क वता श ण क वध
1. तावना
पूण ान के आधार पर वषय का प रचय दे ने के लये तावना द जाती है
(i) क व प रचय वारा
(ii) क वता के अनुकूल वातावरण उपि थत करके
(iii) समा तर क वता पाठ वारा
(iv) उसी पाठ के वारा
अ यापक वारा स वर वाचन
स वर वाचन क वता श ण का सबसे मह वपूण सोपान है । अ छे स वर वाचन से क वता का
स पूण भाव समझ म आ जाता है । स वर वाचन कई कार से कया जा सकता है जैसे - (i)
केवल छ द क ग त और य त के अनुसार पठन करना । क वता क रचना छ द या वृ त म
क जाती है । छ द म मा ाओं और वृत म वण क समानता का यान रखा जाता ह इन
कारण से क वता म लय होती है । क वता म पाठ, नाप, त व और लय का यान रखा जाता
है । (ii) भाव के अनुसार राग म वाचन करना (iii) वाचन के साथ साथ क वता के व भ न
भाव को हाव-भाव, चे टा एवं अंग संचालन वारा य त करना ।
के य भाव हण के न - यध प अ यापक के स वर वचन से ह छा के दय म रस का
संचार होने लगता है, क तु वह संचार थायी और वा त वक नह ं होता । इस लये सु वाचन के
उपरा त अं तम पाँचवा सोपान भाव प ट करण है । भाव प ट करण क न नां कत व धयाँ
ह।
469
(i) नो तर - नो तर वारा भाव बोध कराया जाता है क तु न उतने ह पूछे जाते
ह िजतने से भाव प ट हो जाए । अ धक न पूछने से क ा के वातावरण म
नीरसता आने क आशंका रहती है ।
(ii) अ तकथा - भाव व लेषण के लये कह ं-कह ं अ तकथा का नाममा के लये संकेत
दया जाता है ।
(iii) वकथन- नो तर व ध से यह ज र नह क क वता का भाव पूर तरह से प ट
हो जाये इस लये अ यापक वकथन, वचन, सहायक कथन आ द का सहारा लेता है ।
(iv) या या-य द क वता छा के मान सक तर से ऊँची है तो उसक या या करनी
पड़ती है ।
(v) भाव सा य-य द क वता पूण भाव को प ट करने के लये कभी-कभी अ य क वय
अथवा उसी क व के उ रण दे कर भाव पु ट कया जाता है उ रण सोच समझकर जाते
ह और दोन क तु लना करके भाव को प ट कया जाता है ।
(vi) प ट करण और सौ दयानुभू त - छा को भाव सौ दय और रसानुभू त दोन को पाने
का य न करना चा हये । भाव सौ दय के साथ वचार सौ दय, भाषा सौ दय,
क पना, सौ दय क अनुकू इत एवं रस, अलंकार, छं द आ द प ट होना चा हये ।
(vii) वतीय आदश वाचन अ यापन वारा- जब भाव व लेषण के बाद क वता के सभी
सौ दय त व प ट हो जाएँ तब भाव क एका ता तथा पूण रसा वादन करने के
लये श क को वतीय आदश वाचन दे ना चा हये ।
(viii) अथ हण तथा सौ दय बोध पर ण- यह परखने के लये छा न क वता के सौ दय
त व को कस सीमा तक आ मसात कया है, इस हे तु अ यापक को अथ हण
स ब धी न पूछने चा हये ।
(ix) रचना मक काय वारा क ा म रचना मक एवं का यमय वातावरण बना रहे, इस
उ े य से उसी भाव क अ य क वताएँ भी छा को सु नाई जा सकती ह और छा से
सु नी जा सकती ह ऐसा करने से छा को क वता क ठ थ करने क ेरणा मलती है।
23.5.2 ह द कहानी श ण
470
''कहानी एक ऐसी रचना है, िजसम जीवन के कसी एक अंग अथवा एक मनोभाव को
तु त करना ह लेखक का उ े य हो । यह एक ऐसा सु दर उ यान नह ं है, िजसम भल
भाँ त, बेल-बूटे , फल तथा फूल ह , वरन ् यह एक ऐसा गमला है, िजसम एक ह पौधे का माधु य
अपने स तुलन प म ि टगोचर होता है ।''
कहानी श ण के उ े य
कहानी, श ण का एक मह वपूण साधन है, इस लये कहानी श ण के समय म
न न ल खत उ े य सामने रखने चा हये ।
1. छा का मनोरं जन करना ।
2. छा का शार रक, बौ क, चा र क और संवेगा मक वकास करना ।
3. छा क क पना शि त का वकास करना ।
4. छा को यथाथ और आदश जीवन यतीत करने क श ा दे ना ।
5. छा क ानवृ करना ।
हमारे उ े य कतने ह अ छे य न ह , सभी श क और सभी कहा नयाँ इन उ े य
क पू त नह ं कर सकते । सभी कहा नय म जीवन का संदेश एवं नै तक उपदे श नह ं होते ।
कु छ कहा नयाँ ऐसी भी हो सकती ह िजनका छा के च र पर वपर त भाव पड़ सकता है ।
अत: श क क कु शलता और अ छ कहानी के चयन से ह उन उ े य क पू त स भव है ।
कहानी श ण क वध
कहानी सा हि यक वधा के साथ-साथ श ण व ध भी है, कहानी म कहानी श ण
व ध का वशेष मह व है, कहानी श ण क व धयाँ इस कार है ।
1. अ छ कहानी चु न लेने के उपरांत श क को कहानी के श ण ब दु चु न लेने चा हये
। कहानी म या- या मु य बात ह । िजन पर काश डालना आव यक है । यह
नि चत कर लेना चा हये ।
2. कहानी सु नाने के ा य उ े य को ि थर कर लेना चा हये ।
3. छा के अवधान को बनाये रखने के लये नो तर णाल का आ य लेना चा हये ।
4. कहानी के बीच-बीच म यथायो य यामप पर रे खा च बनाते रहना चा हये, य क
सु नने क अपे ा दे खना अ धक भावी या है ।
5. ब च को कहानी कहने के लये े रत करना चा हये ।
6. कहानी श ा द होनी चा हये । श क को कहानी क श ा छा से न के मा यम
से ा त करनी चा हये ।
23.5.3 ह द नाटक श ण
471
करके मनोरं जन करते थे । इस कार मन को आनि दत करने के साधन ने युगा तर म एक
सा हि यक वधा को ज म दया, िजसे नाटक के नाम से पुकारा गया ।
सं कृ त नाटक को य का य कहा गया है, जो कान और ने दोन को सु ख दे ता है,
इस लये उसक व श टता भी घो षत क गई है ।
''का येषु नाटक र यम ् ।''
भरतमु न ने ना यशा म नाटक क या या करते हु ए लखा है-
''अव था अनुकृ त नाटकम''् कसी भी अव था म अनुकरण को नाटक कहते ह ।''
नाटक म अ भनय क धानता होती है । अ भनय करने वाले को नट-नट कहते ह ।
ये चार कार के अ भनय करते ह । (i) वा चक, (ii) आं गक, (iii) साि वक और (iv) आहाय
अ भनव भारती ने ''अ भनव ना यशा '' म नाटक क या या करते हु ए लखा है-
''नाटक वह योग है िजसम कसी स ऐ तहा सक अथवा कि पत कथा के आधार
ना यकार वारा र चत प के अनुसार ना य तयो गता वारा श त नट रं गमंच पर
अ भनय और संगीत क सहायता से दशक के दय म उसे उ प न करके मनो वनोद करते ह,
और परो प से उ ह उपदे श और मान सक शि त दान करते ह''
नाटक श ण के उ े य
नाटक श ण के सामा य उ े य न न ल खत ह:-
1. छा को व थ मनोरं जन दे ना - अ भनेता अ भनय के वारा छा का मनोरंजन
करते ह । मनोरं जक नाटक को पढ़कर, सु नकर, और अ भनय को दे खकर भी कया
जाता है । मनोरं जन के उ े य से गहन अ ययन-अ यापन वारा नाटक का अ भनय
कराया जाता है ।
2. दे श क सं कृ त, ाचीन मह ता और गौरव तथा वतमान ग त से प र चत कराना -
नाटक के वारा भारत क ाचीन पर परा, सं कृ त, धम, इ तहास, एवं मयादाओं का
दशन कराया जाता है ।
3. अपने दे श तथा समाज क बदलती हु ई प रि थ तय से अवगत कराना - दे श और
समाज क आ थक, राजनी तक, सामािजक और सां कृ तक प रि थ तयाँ नर तर
बदलती रहती ह । छा को उन प रि थ तय से अवगत कराने के लये नाटक वधा
अ य त उ तम मानी गई है ।
4. आदश पा के उ ात च र च ण वारा छा क भावनाओं का प र करण करना -
नाटक म ाय: आदश पा के उदा त च र च ण कया जाता है और जब ये नाटक
रं गमंच पर खेले जाते ह । अथवा कथा से ग य पाठ के प म पढाये जाते ह, तब ये
छा पर अपना भाव अं कत करते ह ।
5. छा म सा हि यक अ भ च का वकास करना - नाटक एवं एकांक ग य क मु ख
वधाओं म से एक है । छा म इस वधा के लये ेम तभी पैदा हो सकता है, जब
नाटक का अ ययन क ा म व धवत हो ।
472
6. भाव भं गमाओं क वकास का अवसर - छा को उ चत आरोह-अवरोह के साथ व वध
कार क भाव भं गमाओं का श ण दया जाता है । इसके श ण से वातालाप कला
का श ण मलता है और उ े य क पू त होती है ।
7. आ मा भ यि त का अवसर दे ना-छा को अ भनय कला से प र चत कराते हु ए उ ह,
आ मा भ यि त और आ म- काशन के अवसर दे ना ।
नाटक का श ण व ध- नाटक सा ह य क वधा के साथ श ण व ध भी है ।.. .....म
नाटक श ण व ध का वशेष मह व है नाटक के श ण क मु ख व धयाँ न न ल खत ह ।
(1) या या श ण व ध- इस व ध म अ यापक वारा पठन एवं या या क जाती है,
इसम वह संग नो तर णाल वारा कथाव तु का प ट करण पा का च र
च ण, कथोपकथन तथा व वध भाव एवं अनुभू तय क ववेचना क जाती है ।
(2) आदश अ भनय व ध - इसम श क स पूण नाटक को रं गमंच के कलाकार क भाँ त
पा के हाव-भाव, हष, वषाद आ द भाव वारा अ भनय तु त करता है, आदश
ना य णाल म श क ह स य रहता है । श क ह अंग संचालन के वारा नाटक
के पा का वा चक आं गक अ भनय करता है । जब क छा मू क दशक और ोता बने
रहते ह ।
(3) क ा अ भनय णाल - इसम क ा म छा को व वध पा मानकर उ चत भाव
भं गमा के साथ पढ़ने के लये कहा जाता है । वे क ा म पा के अनुसार वाचन
करते ह और अपने दै नक सामा य वेशभू षा म ह रहते ह । इस णाल म रं गमंच
स जा य प रवतन पर यान नह ं दया जाता ।
(4) रं गमंच अथवा अ भनय व ध - रं गमंच पर नाटक को व धपूवक खेलना रं गमंच
अ भनय व ध कहलाती है । इसम श क छा को क ा म बहु त पहले से एक-एक
पा क भू मका दे दे ते ह । बाद म सब मलकर वशेष काय म म नाटक को रं गमंच
पर तु त करते ह ।
(5) समवाय अथवा संयु त श ण व ध- समवाय का अथ है सभी णा लय के गुण को
लेकर ऐसी णाल अपनाना िजसम दोष कम से कम ह और उ े य क पू त भी हो
जाय और अ यापन व ध भी अपने म पूण हो । इस व ध म पहले श क वयं
अ भनेता या पा क भू मका का नवाह करता है । उसके उपरांत छा से पा के
अनु प वाचन कराया जाता है । तदोपरांत श क पाठ क वषय व तु को अ धक
ा य बनाने के लये सू ि त या या शु ोचारण आ द क समी ा क जाती है । ऐसा
करने से छा नाटक के उस पाठ क वषय व तु को समझ लगे । िजससे नाटक
श ण के सभी उ े य क पू त हो जाएगी ।
473
का मा यम टे ल वजन, नाटक, सनेमा
3. भाष ् कहना, बोलना
4. सू मा तसू म अ त सू म, छोटे से छोटा
5. आतं रक भीतर , मन के भीतर ि थत
6. अनुबध
ं न लगाव, संबध
ं , अ र तथा वग का ान भाषा श ण
7. श ण सखाना, लखने पढ़ने एवं बोलने के कौशल का श ण
8. अनुदेशन श ा दे ने क या, क वता, ग य तथा लेखन को बोध एवं
सा ह य
9. तवादन समी ा, आलोचना, समालोचना एवं सौ दयानुभू त का श ण
10. आ यान कहानी (इ तहास अथवा पुराण से संबं धत कथा का वणन)
11. व नसा य व ध इस श ण व ध म समान उ चारण वाले श द को साथ-
साथ सखया जाता है ।
12. व रत शी
13. अन भ ता जानकार न होना
14. द ता कु शलता, ठ क से सीख लेना
15. अ तकथा कहानी के भीतर कहानी (इ तहास या पुराण से संबं धत)
16. अवधान मनोयाग, यान
17. नदशना जब कसी यि त बात या अंश को दखाकर इस कार
प ट कया जाए क ोता के मि त क पर इस बात का
च सा खंच जाए ।
18. मौन वाचन मन ह मन पढ़ना बना ओठ हलाए पढ़ना, इस या
वारा अ धक से अ धक अथ हण कया जाता है ।
19. भावी असर डालने लायक, भावशाल
20. स वर, पाठ ताल, लय के साथ पढ़ना
23.7 सारांश
इस इकाई म आपने भाषा श ण और ह द के बारे म जानकार ा त क । इस
इकाई को पढ़ने के बाद आप बता सकगे क भाषा श ण कसे कहते ह ।
भाषा, मानव समाज को वधाता क ओर से ा त एक अमू य वरदान है । वाक् शि त
के बल पर ह मनु य एक े ठ ाणी बन सका है । ह द भाषा वतमान समय म रा भाषा
है । हम भारत के कसी भी थान पर जाये, ह द भाषा के मा यम से वचार- व नमय वारा
अपने काय को भल -भाँ त पूरा कर सकते है । भाषा श ण क नयी अवधारणा म भाषा को
दो प म वभािजत कया गया । 1) भौ तक प 2) मान सक प - दोनो प म साम त य
ज र है । भाषा श ण के चार सोपान ह :- 1) अनुबध
ं 2) श ण, 3) अनुदेशन 4)
तवादन ।
474
भाषा श ण का संपादन अनुबध
ं न और श ण वारा कया जा सकता है ।
भाषा श ण के लये चार श ण व धयाँ भावशाल होती ह
1) य व ध 2) परो व ध 3) यवि थत व ध 4) नवीन व ध इन व धय के श ण
वारा छा वाचन लेखन एवं भाषण म द हो जाता है ।
भाषा श ण एवं भाषा अजन के लये मौ खक अ यास के साथ-साथ व वध उपकरण
का भी उपयोग होता है । िजसम य साधन, य साधन, य- य साधन वारा भाषा का
श ण दया जाता है ।
भाषा श ण म श क क मह वपूण िज मेदार होती है क वह रा भाषा ह द का
शु वाचन, लेखन, उ चारण और वतनी का श ण द और भाषा स ब धी अशु को शु कर
। मानव जीवन को सु ंदर एवं मू यवान बनाने के लये क वता श ण, कहानी श ण, और
नाटक श ण का मह वपूण योगदान है इसके वारा भाषा श ण क मता एवं द ता भी
प रल त होती है ।
23.7 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. भाषा श द का अथ बताते हु ए श ा एवं श ण को समझाईये ।
2. भाषा श ण का सै ाि तक प रचय द िजये ।
3. भाषा श ण के व वध उपकरण पर काश डा लये ।
4. भाषा श ण और ह द सा ह य शीषक से एक नबंध ल खए
5. भाषा श ण व ध से ह द श ण कस कार करगे समझाइए ।
ख. लघू तर न
1. श ण का अथ बताते हु ए इसक वशेषताएं ल खए ।
2. भाषा श ण का उ े य प ट क िजए ।
3. भाषा श ण क परो व ध से या ता पय है?
4. ह द वाचन श ण व धय का उ लेख क िजए ।
5. छा ं ी कौन-कौन सी
से उ चारण संबध ां तय के कारण वतनी गलत हो जाती है ।
ग. र त थान क पू त क िजए
1. अ र तथा वण का ान भाषा श ण............................... कहलाता है ।
2. श ण एक........................... या है ।
3. .......................................... के वारा बालक नए नए श द सीखता ह ।
4. ........................................ साधन के योग से श ण म कु शलता आती है ।
5. ..................................... म समान उ चारण वाले श द को साथ साथ सखया
जाता है ।
घ. सह / गलत च ह लगाइए
1. खेल व ध भारतीय श ा णाल क उपज है । सह / गलत
475
2. व रत मौन वाचन का उ े य ानव न है । सह /गलत
3. वतनी के सु धार म अ यास पर बल दे ना ज र है । सह / गलत
4. नाटक श ण वारा केवल मनोरं जन कया जा सकता है । सह /गलत
5. सं कृ त नाटक को यका य कहा गया है । सह / गलत
23.8 स दभ थ
1. पी. डी. पाठक; जी. एस. डी. यागी; श ा के स ा त, वनोद पु तक मि दर, आगरा.
2. सा व ी संह; ह द श ण, लॉयल बुक डपो, मेरठ.
3. डी. शखा चतु वद - ह द श ण, आर. लाल बुक डपो, ेरठ.
4. योगे जीत; ह द भाषा श ण, वनोद पु तक मि दर, हाि पटल रोड, आगरा.
5. बी. एन. शमा; ह द श ण, सा ह य काशन, आगरा.
6. रमन बहार लाल; ह द श ण, र तोगी पि लकेश स, शवाजी रोड, मेरठ.
7. वामन शवराम आ टे ; सं कृ त ह द कोश, मोतीलाल बनारसीदास पि लशस ा. ल.
द ल.
476
इकाई-24 शैल व ान : उ व एवं वकास
इकाई क परे खा
24.0 उ े य
24.1 तावना
24.2 अथ (भारतीय एवं पा चा य संदभ)
24.3 प रभाषाएँ
24.4 शैल एवं शैल व ान
24.5 उ व और वकास
24.5.1 सं कृ त का यशा ीय शैल व ान
24.5.2 पा चा य शैल व ान
24.5.2.1 आँ ल अमे रक शैल व ान
24.5.2.2 सी-चैक शैल व ान
24.5.2.3 ांसीसी शैल व ान
24.5.2.4 जमन शैल व ान
24.5.2.5 पेनी शैल व ान
24.6 वचार संदभ/श दावल
24.7 सारांश
24.8 अ यासाथ न
24.9 संदभ थ
ं
24.0 उ े य
तु त इकाई को पढ़ने के बाद आप बता सकगे क -
शैल व ान का भारतीय एवं पा चा य संदभ म या अथ ह ।
शैल व ान को कस तरह प रभा षत कया गया है ।
शैल व ान का उ व एवं वकास भारत एवं पा चा य चंतन म कस कार हु आ ।
आँ ल-अमे रक शैल व ान का प रचय पा सकगे ।
सी-चेक शैल व ान क जानकार पा सकगे ।
ांसीसी शैल व ान का प रचय मलेगा ।
जमन शैल व ान का प रचय मलेगा ।
पेनी शैल व ान का प रचय मलेगा ।
24.1 तावना
भारतीय एवं पा चा य सा ह य चंतन म सा ह य के व लेषण क व भ न। प तयाँ
समय-समय पर वक सत होती रह ह । भारत म इसक शु आत जहाँ आचाय भरत से मानी
जाती है वह ं पा चा य चंतन म लेटो और अर तु इसके ारि भक ोत माने गये ह ।
477
सा ह य क अ भ यि त का मा यम भाषा होता है और भाषा का नमाण समाज के सां कृ तक
वकास का प रणाम है िजसके अंतगत प रवेश, परं परा, मू य व वास एवं भौगो लक
प रि थ तय आ द का योगदान रहता है । सा ह य क भाषा के संरचना मक अ ययन का काय
जहाँ भाषा व ान के मा यम से होता है वह ं उसके योग के वै श य का अ ययन शैल के
मा यम से होता है । व तु त: शैल व ान भाषा के वै श य के अ ययन का तर का है िजसके
मा यम से कसी योग के सां कृ तक, सामािजक एवं भाषा वै ा नक कारण को समझने का
यास कया जाता है । इस इकाई क पूर अवधारणा को व तार से भारतीय एवं पा चा य
संदभ म समझाने का यास कया जाएगा ।
478
और संग पर । इस कार शैल भाषा क शाि दक बुनावट का अ ययन है जो उसे अ भ यि त
के संग एवं उ े य के आधार पर ववे चत करता है ।
शैल क अवधारणा अ य त ाचीन है । पा चा य चंतन म इस श द का ाचीन
योग का यशा के संदभ म न होकर 'वाि मताशार ’ (Rehetorics) के संदभ म मलता है
जहाँ 'वाि मता' को आकषक बनाने क तकनीक के प म यह व णत है । आगे चलकर 'शैल '
क अवधारणा का वकास सा ह य क भाषा के योग के वै श य के अ ययन के लए होने
लगा । पा चा य भाषा चंतक ने इसे लेकर वृहद एवं सू म ववेचन कया । इस म म बूफ़ो
ने जहाँ इसे व श ट रचनाकार क कृ त क अ नवाय व श टताओं को न द ट करने वाला
शा कहा वह ं ि व ट ने इसे रचना के 'पाठ' या ' ोि त' से जड़ दया । व तु त: 'शैल ' क
आधु नक अवधारणा भाषा के वणना मक व लेषण से जुडी है । भाषा व ान म जहाँ भाषा के
संरचना मक व लेषण क वृि त होती है वह ं शैल व ान म कृ त क बुनावट का अ ययन
होता है । इन भावी त व को आरे खत करने के लए तीन ि टयाँ अपनाई जाती ह - (1)
व ता या लेखन क ि ट (2) पाठ-केि त ि ट और (3) पाठक या ोता क ि ट ।
पा चा य सा ह यालोचन म शैल को लेकर गंभीर एवं वशद अ ययन हु आ है और
व वान ने भ न- भ न ि टय से इसे न पत कया है । सेमू र चैटमैन, ट फेन उलमान,
न स ए रक एंि त ट, डे वड टल, डेरेक डेवी, आइ.आर. गाला ेन, केट वे स, रोलां बाथ
जैसे स भाषाशाि य ने शैल को लेकर अपनी अपनी थापनाएँ द ह । ट फेन उलमान ने
शैल क वैयि तकता के आधार पर इस रचनाकार के व श ट भा षक अ यास के साथ-साथ
उसम न हत अनुभव क कृ त से जोड़ कर दे खा है । डे वड टल एवं डेरेक डेवी ने शैल
म न हत अथ को प ट करते हु ए इसे (1) भा षक- वृि त (2) भा षक कृ त क भागीदार
(3) अ भ यंजना णाल एवं (4) अ भ यंजना णाल क उ तमता, भाव परकता एवं सु दरता
के मा यम से प ट कया है ।
सेमरू चैटमेन ने ‘शैल ' के अथ पर यापक वचार करते हु ए उसके चार प का
नदश कया है-
1. शैल के अंतगत रचनाकार वारा कये गये श द के चयन एवं उसके योग क
व श टता का अ ययन कया जाता है ।
2. शैल व तु न ठ प म भ नता का उ घाटन होता है । िजस कार येक यि त
अपने शर र, मु ख-म डल एवं यि त व म भ न और व श ट होता है उसी कार
अ भ यि त आ द म भी । इस अथ म शैल 'वणना मक' होती है । िजसका ल य
'वै श य का आरे खन' होता है ।
3. 'शैल ’ का अ भ यि तपरक अथ है वैचा रक त व या क य क अपे ा अ भ यंजना का
संवहन ।
4. 'शैल ’ का चौथा प संबो धत करने का लहजा या टोन है । इसके अ तगत सामा य
बोलचाल म यु त ोि त क व ध को व ता और ोता क सामािजक ि थ त के
औपचा रक-अनौपचा रक प रवेश के सापे ववे चत कया जाता है ।
479
आइ.आर. गाल न ने शैल को भाषा के सौ दय म अ भवृ करने वाले त व के प
म या या यत करते हु ए इसे अ भ यंजना-कौशल के प म दे खा है जब क यो एन.ल च ने
इसे वह माग बताया है िजसम भाषा यव त होती है । उनका यह मानना है क भाषा- यवहार
के े म कसी रचनाकार वारा व श ट संदभ, वधा एवं पाठ म होने वाले वक पा मक
चयन को शैल कहते ह उनका यह भी कहना है क शैल वशेषत: स हि यक भाषा म होती है
और उसका वशेष सरोकार भाषा के का या मक या सौ दया मक प से होता है ।
24.3 प रभाषाएँ
उपयु त ववेचन से प ट होता है क 'शैल ' को लेकर व वान म एक राय नह ं है
तथा व भ न ि टय से इसे प रभा षत करने क को शश क गयी है । कु छ मु ख प रभाषाओं
के मा यम से हम 'शैल ' को प ट करने का य न करगे:-
लू स के अनुसार : 'शैल एक ऐसा साधन है िजससे एक यि त अ य यि तय के
साथ स ब ध था पत करता है । यह श द से वभू षत यि त व अथवा श दब चर है ।'
म टन मर के अनुसार : 'शैल रचनाकार के वै श य, व नमय तपादन क वध
तथ उसक कला मक अ भ यि त है, िजसे सा ह य क चरम उपलि ध कहा जा सकता है ।
न स ए रक एि वं ट के अनुसार :
1. शैल एक कार का यवि थत भा षक वै व य है ।
2. शैल व भ न अ भ यि तय म से े ठ चयन है ।
3. शैल नजी व श टताओं का सि म लत प है ।
4. शैल था पत तमान से वचलन है ।
5. शैल सामू हक वशेषताओं का समु चय है ।
6. शैल भाषा-ताि वक इकाइय का अ त: संबध
ं है ।
हॉकेट के अनुसार : 'एक भाषा म सामा यत: एक ह अ भ ाय एवं अ भसूचन क दो
भ ना मक ि थ तयाँ, जो अपनी भाषायी संरचना म भी भ न होती है, अलग-अलग शै लयाँ
कह जा सकती ह ।'
मल माइ स के अनुसार : 'शैल उसी कार व तु का चयन करती है िजस कार वह
अ भ यि त क यव था करती है ।
आर.एस. सेस के अनुसार : 'सा हि यक अ ययन के लए शैल केवल भा षक य घटक नह ं है,
वह क य, संरचना-च र और सबसे अ धक सौ दयपरक सा भ ायता को तफ लत करने वाला
घटक भी है ।
रवी नाथ ीवा तव के अनुसार : 'भाषा क यापक संभावना के संदभ म भा षक तीक एवं
उसके अनेक वक प म से कसी एक के चयन का प रणाम शैल है ।’
नागे के अनुसार : 'शैल वशेष भा षक संरचना है ।’
भोलानाथ तवार के अनुसार : 'शैल भा षक अ भ यि त का वह व श ट ढं ग है, जो यो ता
के यि त व, वषय, वधा, काल, सा हि यक-धारा तथा थान आ द से स ब होता है तथा जो
480
चयन, वचलन, समाना तरता एवं अ तु त वधान आ द भा षक सामा य अ भ यि त के लए
असुल भ उपकरण एवं उनके संयोजन पर आधृत होता है ।'
इन प रभाषाओं के अ ययन से शैल क जो सामा य वशेषताएँ कट होती ह उ ह इस
कार य त कया जा सकता है-
1. शैल वषय-व तु के आंत रक स य को उ घा टत करने का रचना- स ांत है ।
2. शैल चयन है िजसके अंतगत कसी एक भाषा क दो ऐसी अ भ यि तय के अंतर का
आरे खन होता है िजनका अथ लगभग समान होता है पर तु जो अपनी भा षक संरचना
म एक दूसरे से भ न होते है ।
3. शैल श द-चयन एवं भाषा म उनके वशेष योग- म का अ ययन होता है जो ोता,
पाठक या उ े य पर आधा रत होते ह ।
(i) शैल वचलन है अथात भाषा के सामा य मानक प से अलग योग है ।
(ii) शैल अ तवा यीय पाठ का वै श य है अथात शैल व ान वा य क बड़ी
इकाई पाठ का वह व लेषण है िजससे उसम अ त न हत भाव कट हो जाएँ।
(iii) शैल वचार क त ल प है अथात रचनाकार क वैचा रकता क अ भ यि त
रचना म शैल के प म होती है ।
(iv) शैल यि तक वशेषता है अथात शैल रचनाकार के नजी यि त व क
रचना मक तु त है िजसक अ भ यंजना प त व श ट होती है ।
481
24.5 उ भव और वकास
शैल के आधार पर रचना के मू यांकन क परं परा भारतीय एवं पा चा य सा ह यालोचन
म ाचीन काल से ह रह है । यध प आधु नक शैल व ान क व ध एवं ाचीन मू यांकन
ि ट म अ य धक अ तर दे खा जा सकता है फर भी उसके ए तहा सक मह व क अपे ा नह ं
क जा सकती । भारतीय संदभ म सं कृ त का यशा क परं परा को सा ह य के शैल गत
अ ययन के प म वीकार कया जा सकता है । व तुत : सं कृ त का यशा का मू लाधार
सा हि यक भाव के भाषामूलक योग का अ ययन है और यह ि ट आधु नक शैल वै ा नक
अ ययन म पायी जाती है । इस अथ म 'शैल ' के ऐ तहा सक संदभ को समझने के लए
सं कृ त का यशा ीय सा ह यालोचन संबध
ं ी मा यताओं का आरे खन मह वपूण होगा ।
482
गुण , अलंकार, रस, या कारक, लंग, वचन, वशेषण, उपसग, नपात आ द के अधीन होती है
जो भाषा-संरचना के साथ-साथ सा हि यक संरचना के भी अंग होते ह ।
अनुभू तवाद वग के अंतगत रस एवं व न को रखा जा सकता है । ‘रस' जहाँ सा ह य
के सामा यबोध के लए आव यक आधार का सृजन करता है वह ं व न सा हि यक अनुभव के
व वध प को प ट करता ह । अथ क वा य ल य एवं यं य, ये तीन े णयाँ करके
आन दवधन सा हि यक अनुभव के न पादक उपकरणे के प म इसक थापना करते ह और
इनका संबध
ं भाषा के पा मक उपकरण व नम, अ र, श द, खृं ला, वा य तथा वा यबंध से
जोड़ते ह रस- व न, अलंकार- व न एव व तु-ध न के मा यम से वे सा हि यक अ भ यि त क
सभी व श टताओं को व न के अ तगत लाने का यास करते ह ।
उपयु त ववेचन के आधार पर कहा जा सकता है क सं कृ त का यशा ीय शैल
व ान म सा हि यक अनुभव को कट करने वाले शैल गत उपकरण का वणन कारा तर से
व भ न का याशा ीय मा यताओं के अंतगत कया गया है ।
24.5.2 पा चा य शैल व ान
483
24.5.2.1 आं ल अमे रक शैल व ान
484
आज आं ल-अमे रकन शैल - व ान के अंतगत भाषा व ान का योग आरं भ हो गया
है । टल, फाउलर, ल च, ले बन, चैटमैन हल याको लन आ द व वान ने उसे खू ब आगे
बढ़ाया ह हल ने शैल के अंतगत सा य (Analogy) क संक पना तु त करते हु ए प ट
कया क सा य एक पूण का य स ांत हे जो अ य वधाओं क तु लना म क वता पर
सवा धक लागू होता है । उनके अनुसार सा य से क वता को शैल गत अि व त अथात
रचना मक संगठन ा त होता है । यह सा य योजना गठन एवं बनावट दोन तर पर होती
है तथा अलग होते हु ए भी पर पर स ब रहती है ।
याको सन ने शैल के अंतगत सममू यता के स ांत को का य स ांत के प म
तु त कया । उनका यह स ांत क वता तक सी मत ह उनके अनुसार सममू यता क वता क
अ भ यि त का मू ल त व है । सममू यता का अथ है स बधगत समानता । इसके अंतगत
ऐसी दो ि थ तय को सममू य मानते ह िजनम स ब ध म समानता मलती है और य द
उनम से एक को अ वीकृ त कर दया जाये तो उसका भाव दूसर पर भी पड़ेगा और एक
कार के वरोध क सृि ट होगी । याको सन ने का य-भाषा के प ट करण के लए चयन और
व यास क बात भी क है । का य भाषा म चयन का आधार सामा यत: सममू यता, सा य,
पयायता एवं वरोध होते ह जब क व यास का आधार होता है सि न ध । उनके अनुसार भाषा
का का या मक काय तब स प न होता है जब सममू यता के आधार पर कये गये चयन
अ भ यि तय म सि न हत होते ह ।
485
3. सा हि यक शैल व ान-इसम सा हि यक कृ त क संरचनागत वशेषताओं के
सौ दया मक भाव का अ ययन होता है ।
चेक संरचनावाद शैल व ान के पुर कता मु कारोव क को माना जाता है । उ ह ने
शैल व ान को दो प म तु त कया – 1. संरचनावाद एवं 2. तीकवाद (Semiotics) ।
संरचनावाद ि टकोण के अंतगत प ट कया गया क सा हि यक कृ त के घटक आपसी संबध
ं
के आधार पर ह अथवान होते ह ओर यह घटक के आपसी तनाव या सामंज य दोन से ह
संभव हो सकताहै । इसके अ त र त संरचनावाद ि टकोण म भाषा क बहु कायता
(Polyfunctionality of language) पर भी वचार कया गया है जो पवाद शैल व ान म
नह ं था । इस स ांत के अनुसार सा हि यक कृ त म स दया मक काय क मु खता होती है
िजससे रचना म वकेि यता आती है । यह काय ब हमु खी न होकर अंतमु खी होता है
सा ह य-भाषा पर केि त होता है ।
तीकवाद शैल व ान के अंतगत सा हि यक कृ त को एक तीक मानते हु ए सा ह य
ववेचन के अंतल ी एवं ब हल ी ि टकोण म सामंज य था पत कया जाता है । इसके
अ त र त सा हि यक कृ त से रचनाकार एवं पाठक के संबध
ं क या या करते हु ए उसके
आ वादन क या को भी प ट कया जाता है । शैल व ान क चेक वचारधारा ' ाग
कू ल' के नाम से व यात है । शैल के वषय म इसक कु छ मु ख अवधारणाय इस कार ह-
1. ' ाग कू ल' ने योजनमू लक शै लय (Functional Styles) क संक पना क िजसके
अंतगत शै लय क व वधता एवं उसके तमान के लचीलेपन क बात कह गयी ।
2. ' ाग कू ल' क यह मा यता थी क शैल भाषा का सामा य गुण है । भाषा म शैल
अ नवाय प से रहती है तथा शैल ह न भाषा क क पना असंगत है ।
3. यह शैल के दो प क बात करता है- स ेषणा मक एवं का या मक । स ेषणा मक
शैल सू चना मक एवं व तु गत होती है िजसका योग शास नक काय, कानून , व ान
आद े म होता है जब क का या मक शैल यि तगत होती है एवं इसम यि त के
नज व क अ भ यि त मलती है ।
4. ‘ ाग कू ल' क एक मह वपूण मा यता है अ भ यि तय क समानता
(Automatization) एवं व श टता (foreg Uounding) । भाषा म संग-भेद से
दोन तरह क अ भ यि तयां मलती ह सा हि यक कृ त म व श ट अ भ यि तय क
धानता होती है जो रचना के आंत रक तनाव, वैष य, असंग त एवं अनेकाथ से
संबं धत होती है ।
5. ' ाग कू ल' ने शैल - व लेषण क चार योजनाओं का वतन कया- क सौ दया मक
ख. वै ा नक ग. बोलचाल क एवं घ. जन-स पक य ।
6. शैल अ ययन के े म सांि यक के योग क शु आत ाग कू ल से हु ई तथा साथ
ह अनुवाद एवं तु लना मक शैल व वान के े म भी मह वपूण काय हु ए ।
486
24.5.2.3 ांसीसी शैल व ान
487
24.5.2.4 जमन शैल व ान
488
साथ पाठ का ऐ तहा सक प भी लेना चा हए और वचार के इ तहास का अ ययन भी
होना चा हए । इस धारा के मु ख लेखक आरबाख (Auerbach) माने जाते ह ।
489
स ांत संबध
ं गत समानता का अ ययन ।
9. गुणा मक गण पर आधा रत ।
10. नज व अपनापन, खास अपना तर का ।
11. जनसंपक य लोग से जु ड़ाव रखने वाल वध
12. समतु य बराबर तु लना करने लायक ।
13. यां क व धयाँ यं क मदद से कया गया अ ययन शैल अंतगत उपकरण क
सू ची बनाना उनका वग करण, वषयव तु एवं लेखक के मनो व ान
के यंजक श द क गणना आ द आते है।
14. तलप लखी हु ई चीज क नकल
15. वकेि यता सा ह य क भाषा पर केि त अ तमु खी अ ययन िजसम रचनाकार
का नजी वै श य ल य कया जा सके ।
24.7 सारांश
उपयु त व लेषण से प ट है क शैल व ान का वकास व व के व भ न भाग म
अलग-अलग ि टय एवं व धय के सापे हु आ । भारतीय सं कृ त का यशा ीय शैल व ान
म जहाँ इसका वकास र त के मा यम से अ भ यंजनावाद एवं अनुभू तवाद प म हु आ वह ं
पा चा य जगत म यह लेटो एवं अर तु के चंतन से आरं भ हुआ । शैल के अ ययन क
आधु नक परं परा म आं ल-अमे रक , सी-चेक तथा ांसीसी परं परा म सा हि यक कृ त क
आंत रक स ता का व लेषण तथा उ घाटन ह शैल व ान का चरम ल य माना गया जब क
इसके वपर त जमन तथा पेनी परं परा म शैल का वकास रचनाकार एवं रचना मक
मान सकता के अ ययन के म म अ धक हु आ ।
24.8 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. शैल के अथ से संबं धत भारतीय एवं पा चा य वचार का प रचय द िजए ।
2. शैल क व वध प रभाषाओं का व लेषण क िजए ।
3. शैल व ान के उ व एवं वकास का सं त प रचय द िजए ।
4. आं ल-अमे रक शैल व ान क ववेचना क िजए ।
5. जमन शैल - व ान के व वध प पर वचार क िजए ।
ख. लघू तर न
1. शैल व ान का अ ययन े या है?
2. शैल श द अं ेजी के कस श द के अनुवाद पर आधृत है? इस श द का अथ
बताइए ।
3. ांसीसी शैल व ान के मू ल ब दुओं पर काश डा लए ।
4. शैल व ान वषयक दामासो क थापनाएँ बताइये ।
5. शैल व ान संबध
ं ी व टर श लोव क के वचार ल खए ।
490
ग. र त थान क पू त क िजए
1. शैल श द के मू ल म............................ श द है ।
2. ि व ट ने शैल श द को रचना के पाठ या............................................ से
जोड़ दया ।
3. सो यूर ने भाषा वै ा नक................................................... का वतन कया
।
4. शैल व ान का वकास स म..................................................... के प म
हु आ ।
5. शैल व ान क चेक वचारधारा...........................................................
कहलाती है ।
घ. सह / गलत पर नशान लगाइए
1. ांसीसी शैल व ान के वतक चा स बेल माने जाते ह ।
सह /गलत
2. सं कृ त समालोचना म शैल का समतु य कोई श द नह ं है ।
सह /गलत
3. रचड ने अथ के चार पहलु ओं क चचा क है ।
सह /गलत
4. माइकेल रफातेअर ने शैल व ान को भाषा व ान क वतं शाखा माना ।
सह /गलत
5. सा हि यक अ ययन के लए शैल केवल भा षक य घटक है ।
सह /गलत
24.9 संदभ ंथ
इकाई 25 के संदभ थ
ं दे ख ।
491
इकाई-25 शैल व ान : तमान एवं या े और
अ य अनुशासन से संबध
ं
इकाई क परे खा
25.0 उ े य
25.1 तावना
25.2 शैल व लेषण के कार
25.3 शैल व लेषण के व वध तर
25.4 शैल व लेषण- तमान न पण
25.4.1 अ तु त
25.4.1.1 वचलन
25.4.1.2 वपथन
25.4.1.3 समानांतरता
25.4.1.4 वरलता
25.4.2 शैल च हक
25.4.3 शैल च हक के कार
25.4.3.1 धना मक शैल च हक
25.4.3.2 ऋणा मक शैल च हक
25.5 शैल व लेषण क या
25.5.1 व लेषण
25.5.2 सं लेषण
25.5.3 नवचन
25.6 शैल व ान े एवं अ य अनुशासन
25.6.1 भाषा व ान और शैल व ान
25.6.2 समाज व ान और शैल व ान
25.6.3 कोश व ान और शैल व ान
25.6.4 अनुवाद और शैल व ान
25.7 वचार संदभ/श दावल
25.8 सारांश
25.9 अ यासाथ न
25.10 संदभ थ
25.0 उ े य
तु त इकाई को पढ़ने के बाद आप बता सकगे क
492
शैल व लेषण या ह ।
शैल व लेषण के कतने कार है ।
शैल व लेषण के कौन से व वध तर ह ।
शैल व लेषण के तमान न पण के प म अ तु त क या भू मका है ।
अ तु त के व लेषण के लए यु त चार प वचलन, वपथन, समाना तरता
और वरलता का या आशय है ।
शैल च हक से या ता पय है ।
शैल व लेषण क या के अ तगत व लेषण, सं लेषण और नवचन क या
भू मका है ।
इस इकाई म आप शैल व ान के े और अ य अनुशासन से शैल व ान का संबध
ं पढ़गे
और
बता सकगे क शैल व ान का अ य अनुशासन से ं है,
या संबध
भाषा व ान और शैल व ान का अ य अनुशासन से ं है,
या संबध
शैल व ान और मनोव व ान से कस कार संबं धत है,
कोश व ान म शैल व ान क या उपयो गता है,
अनुवाद म शैल व ान कस कार सहायक स होता है
25.1 तावना
शैल व लेषण कसी रचना के अ ययन क वह वै ा नक व ध है िजसके वारा
रचना क भाषा के च र एवं उसक व भ न प रि थ तय के अ ययन से रचना म न हत मू ल
एवं वा त वक क य के योग क व श टता का उ घाटन कया जाता है । इसके लए शैल
वै ा नक ने रचना के भ न- भ न प क पहचान क हे िजनसे शैल - व लेषण क या
पूर क जाती है । इस अ याय के अ तगत शैल व लेषण के इ ह ं उपकरण का अ ययन
अपे त है । शैल व लेषण क सामा यत: दो ि टयाँ च लत ह । वे इस कार ह-
1. शैल माप मी ि ट : इसके अ तगत व लेषण-कता का उ े य उन सभी कार के
अ भल ण को खोजना व रे खां कत करना होता है िजनसे रचना वशेष क भा षक
पहचान प ट होती है । इसके अ तगत अ भ यि त मा का व लेषण करने वाल
वृि त का योग कसी रचना ओर रचनाकार के स पूण अ भ ान के लये कया जाता
ह ल वन, चैटमैन आ द शैल वद ने इस व ध क तावना क थी ।
2. शैल वै ा नक ि ट : इसम कृ त क अ भ यि त के साथ-साथ उसके क य-स दय एवं
अ तव तु को प ट करने का यास कया जाता है । इसके लए पाठ के मा यम से
सा हि यक कृ त के स पूण भाव क या या क जाती है । ह द म च लत शैल -
वै ा नक अ ययन म इसी व लेषण प त का योग होता है ।
शैल व ान भाषा- व ान का वह अनु यु त प है िजसके मा यम से कसी रचना क
आलोचना उसके आ त रक प के आधार पर क जाती है । शैल व ान भाषा-
वै ा नक अ ययन का वह यावहा रक प है जो भाषा के याकर णक एवं संरचनागत
493
अ ययन के बजाय उसक आंत रक संघटना एवं संयोजन का अ ययन करता है िजसके
वारा कोई संदेश या अ भ यि त अपनी व श ट पहचान बनाती है । ये संदेश
पारं प रक भा षक यव था से चयन, वचलन, वपथन आ द के मा यम से अपने को
अलग करते ह और वशेष भाव तथा उ े य के लये न मत होते ह शैल वै ा नक
अ ययन के चलन से पूव कसी रचना का अ ययन या तो उसक चेतना के तर पर
होता था अथवा भाषा के तर पर । भाषाई अ ययन के अ तगत याकर णक को टय
का अ ययन मु ख था, पर तु जबसे शैल वै ा नक अ ययन क परं परा शु हु ई है,
रचना के अ ययन का एक नया मा यम ा त हु आ है ।
आज शैल व ान का अ ययन केवल सा हि यक े म ह नह ं होता और उससे
केवल क वता या अ य सा हि यक वाधओं को समझने क ि ट ह नह ं ा त होती, बि क
अ ययन के व भ न े म इस व ध का योग अ य त लाभदायक स हु आ है । भाषा
व ान समाज व ान, मनो व ान, कोश व ान, अनुवाद व ान, मानव व ान आ द वभ न
े म शैल वै ा नक अ ययन क मह ता को वीकार कया गया है । व तु त: इसके मा यम
से भाषा क युि त का वै श य आरे खत करना अ ययनकता का उ े य होता है और इससे
ा त न कष के आधार पर उसे अपने अ ययन म वशेष ि ट ा त होती है । कु छ मु ख
वषय के साथ शैल व ान का अ तस ब ध न न ल खत है-
494
तर के नधारण के वषय म शैल व लेषक म कु छ मतदभेद दखाई दे ता है । स शैल
शा ी डे वड टल और डे वड डेवी ने उसके चार तर बताए ह- 1 व न 2. याकरण 3.
श द 4. अथ ।
व न तर के अ तगत मू लत: मानवीय वा चक वन क उपयो गता और वशेषता का
अ ययन होता है । याकरण तर के अ तगत कसी भाषा क आंत रक संरचना का व लेषण
करके यह पता लगाया जाता है क ये कस प म और अनु म म काय करते ह । इसम
पशा और वा य रचनाशा को भी शा मल कया जाता है जो मु हावर आ द म यु त
होकर वशेष भाषा वै ा नक संदभ क रचना करते ह । ऐसे श द का अ ययन शैल व लेषण
म आव यक माना जाता है । इसके अ तगत वशेष शाि दक योग और पाठ म उसके क य
और वषय को दे खते हु ए अथ का अ ययन आव यक होता है । पारं प रक प से इसे पदस जा
अथवा diction भी कहा जाता है ।
अथ तर के अ तगत भाषा के द घतर फैलाव का अ ययन कया जाता है । व तु त:
अथ का तर वह तर है जहाँ केवल श द के आधार पर अथ का अ ययन नह ं होता बि क
अ य भा षक इकाईय के आधार पर उसका अ ययन होता है । इसके अ तगत क य के
वकास के सांच,े उसक अवधारणाओं, ला णक योग , व धता आ द का भी अ ययन कया
जाता है ।
जी.एन. ल च ने शैल व लेषण के तर क या या करते हु ए उसे तीन भाग म
वभािजत कया है पहला भाषा वयन अथवा या वयन तर, अ भ यंजना कृ त (Ferm) का
तर और अथ का तर । वे भाषा वयन के अ तगत वनशा और ले खम शा को रखते ह
। इसी के अ तगत प-रचना और वा य-रचना का भी अ ययन होता है । अथ के तर पर
उसके दो प अ भधा मक या अ भधाथक (probablistic) और तीयमान (Cognitive)
अथयप को लया जाता है ।
495
4. तमान का अि तम आव यक गुण यह होता है क उसम यापकता होनी चा हए
िजससे व लेषक को सु प ट (Categorical) श द म उसके संभा य (probabilistic)
नयम के साथ व णत कया जा सके ।
कसी रचना या पाठ के शैल वै ा नक व लेषण के लए तमान के नधारण को
लेकर शैल वद म पया त मतभेद रहे ह । फर भी व वान ने इसे मु यत: दो प म तु त
कया है-
1. अ तु त तमान (Foreg Uounding)
2. शैल च हक तमान (Style marker)
25.4.1 अ तु त
25.4.1.1 वचलन
496
वै ा नक अ ययन के लए अ य त आव यक माना है । व तु त: वचलन शैल के अ ययन के
लए वह मह वपूण संक पना है िजसका यवहार रचना के भा षक वै श य जैसे उसके
अ यवहार णक योग आ द को प ट करने के लए कया जाता है । वचलन क वह पहचान
व तु त: युि त के मानक के आधार पर कट क जाती है, यध प इस वचार के बारे म
पया त मतभेद ह ।
वचलन का ांर भक संबध
ं कसी रचना के याकर णक वै श य के अ ययन से माना
जाता है । कसी रचना के व भ न याकर णक तर के अ ययन से यह प ट होता है क
मानक भाषा योग से वह कसी कार भ न है । वचलन क यह पहचान याकरण के वशेष
योग क या को प ट करता है क कन उ े य क पू त के लए यह रचना म गृह त हु ई
है । वचलन को आरे खत करने के लए सामा यत: दो तर क को योग होता है । पहल
प त म सामा य अ वच लत या मानक याकरण के आधार पर यह रे खां कत कया जाता है
क कन नयम म प रवतन के कारण वच लत पाठ उ प न हु आ है ।
दूसर प त म वच लत पाठ म यु त याकरण का ववेचन- व लेषण कया जाता है
। िजसम उसक तु लना मानक या अ वच लत पाठ के याकरण से क जा सके ।
वचलन के कार : वचलन के कार को लेकर शैल वदो म पया त मतभेद ह और उ ह ने
अपने ढं ग से इसका नदश कया है । एस.आर. ल वन ने वचलन को ा मता और
आ त रकता के आधार पर दो भाग म वभािजत कया है । ल वन के अनुसार आ त रक
वचलन वह वक प है जो कसी रचना क अपनी पृ ठभू म के वरोध म भरता है । यहाँ
मानक को व लेषण रचना म ह ा त कया जाता है अथात ् रचनाकार वारा उसी कृ त म
यु त मानक भा षक प से इतर वचलन यु त योग कया जाता है और उस वचलन का
व लेषण उसी रचना के मानक के सापे कया जाता है तो वह आ त रक वचलन होता है ।
बा य वचलन रचना से इतर मानक क पृ ठभू म म उपि थत होता है । यहाँ मानक
रचना म न होकर उससे बाहर होता है । सामा यत: यह मानक याकर णक या बोलचाल के
वीकृ त योग के सापे न मत होता है और जो रचना म इस मानक से अलग प यु त
होता है तब उसे बा य वचलन कहते ह । बा य वचलन को भी ल वन ने दो कार का
बताया है । पहला सु प ट वचलन और दूसरा सांि यक य वचलन । सु प ट वचलन मू लत:
रचना क आधार भाषा के याकरण अथवा वीकृ त भा षक योग के मानक से अ त मण करने
को कहते ह । दूसरे श द म इसे याकर णकता कहा जा सकता है । सांि यक य वचलन कसी
भाषा के व वध योग के अनुपात के अ ययन से नधा रत होता है । यहाँ सामा य भाषा म
होने वाले भाषायी योग और कृ त म यु त भाषायी प के योग क तु लना करते हु ए
उसक आनुपा तकता नकाल जाती है । इस आनुपा तकता के आधार पर भाषाओं के वै श य
को कट कया जाता है । चूँ क यह पूरा अ ययन सांि यक य प त पर आधा रत होता है
इस लये इसे सांि यक य वचलन कहते ह । ल वन वारा कये गये वचलन के इन कार को
स शैल वै ा नक वान पयर भी कमोबेश वीकार करते ह । जब क यो एच.ल च ने इसे
अ य कार से तीन प म वभािजत कया है- ाथ मक वचलन, वतीयक वचलन और
तृतीयक वचलन ।
497
ाथ मक वचलन : ल च के, अनुसार ाथ मक वचलन दो प म उपि थत होता है । पहला
जहाँ भाषा कसी वशेष चयन का अनुसरण करती है पर तु क व इस नधा रत योग से बाहर
जाकर अलग श द चयन करता है ।
वतीयक वचलन : दूसरा ाथ मक वचलन वह है जहाँ भाषा कसी चयन का तो अनुसरण
करती है पर तु क व वयं चयन क मु तता को अ वीकार करता हु आ कसी वशेष भाषाई प
का योग बार-बार करता है । ल च ने इसे प ट करते हु ए ाथ मक वचलन को असामा य
अ नय मतता (abnormal irrelarity) और असामा य नय मतता के प म कट कया है ।
वतीयक वचलन म सामा यत: भाषा क अ भ यि त के नधा रत मानक का अ त मण नह ं
होता बि क सा हि यक रचना के मानक का अथवा का या मक स ांत का अ त मण होता है
। इसके अ तगत रचनाकार वशेष अथवा वधा वशेष के मानक का भी समावेश होता है ।
इस कार के वचलन को पारं प रक (conventional deviation) भी कहा जाता है ।
तृतीयक वचलन : तृतीयक वचलन के अ तगत पाठ के आ त रक मानक से वचलन होता है
। ल वन ने इसे ह आ त रक वचलन कहा है । इसके अ तगत पाठ के आ त रक मानक से
अलग तरह के अ त मण का अ ययन कया जाता है ।
लोमैन ने वशद वा योि त (macro syntagm) को के म रखकर वचलन के कार का
नदश कया है । उनके वारा न द ट वचलन तीन कार के होते ह-
वा यांश परक वचलन : यह वचलन वहाँ उपि थत होता है जहाँ मु य उपवा य म सकमक
या का अभाव होता है ।
अपूण वा य परक वचलन : जब वा य के अ त म संदभ के लय आव यक संग का अभाव
होता है तब अपूण वा य परक वचलन होता है ।
पूण वा य परक वचलन: इस कार का वचलन अपग ठत वा य तथा अ वीकाय वा य मे
कट होता है ।
वचलन के व वध कार को दे खने से प ट होता है क इनम रचना के व लेषण के
अलग अलग आयाम को लेकर वचलन क अवधारणा पर वचार कया गया है । ऐसे म
वचलन के नि चत तमान का नधारण क ठन होता है । व तु त: कसी रचना म वचलन
के व वध तर होते ह िजनके अ ययन से वचलन के प और कृ त को समझा जा सकता है
। वचलन के ये तर कई कार के होते ह । भा षक इकाईय के आधार पर कट होने वाले
वचलन के न न ल खत प ह-
1. व न तर य वचलन : जब श द वशेष म मानक प से यु त होने वाल व नयाँ
अपने सामा य लोग से भ न प म उपि थत होती है तब वहाँ व न तर य वचलन
होता है । इस कार का वन तर य वचलन रचना वारा वशेष अ भ ाय से कभी
लय, तु क क पू त , छ द मा ा पू त अथवा वशेष भाव क न म त के लए कया
जाता है । जैसे नराला ने 'कु कु रमु ता' क वता म कै वट ल ट के थान पर कैपीट ल ट
श द का योग कया है ।
498
2. श द तर य वचलन : कसी रचना क भाषा म यु त होने वाले श द जब अपने
मानक प को छोडकर व पत और वकृ त होते ह तब वहाँ श द तर य वचलन
कट होता है । नराला ने 'गभ पकौडी म ा मण के लए 'ब हन' श द का योग
कया है जो क श द तर य वचलन का अ छा उदाहरण है ।
3. प तर य वचलन : जब प के तर पर भाषा म कसी कार का नवीन योग हो
अथवा कसी वीकृ त मानक प क जगह उसका कोई ऐसा दूसरा प व णत हो जो
उ चत न हो तो वहाँ इस कार का वचलन उपि थत होता है । इस कार का वचलन
याकर णक को टय के असामा य योग से कट होता है ।
4. वा य तर य वचलन : वा य तर य वचलन क लोमैन ने अपने ववेचन म व तार
से चचा क है । इसके अ तगत वा याशंगत वचलन, वा यगत वचलन, अपूण
वा यगत वचलन, पूण वा यगत वचलन आ द का उ लेख हु आ है । व तु त: इस
कार के वचलन म वा य म आने वाल उन व वधताओं का उ लेख कया जाता है
जो याकर णक अथवा वीकृ त मानक से अलग होती है । वा य रचना के म म
कभी मु य वा य म सहायक या का अभाव हो जाता है तो कभी वा य म अपूणता,
मभंगता आ द दखाई दे ते ह । इन व वधताओं को यान म रखकर ह वा य रतर य
को कट कया जाता है ।
5. ोि त तर य वचलन : ोि त तर य वचलन स शैल वै ा नक ाइस वारा
न द ट है िजसम उ ह ने प रमाण, गुण , और संबध
ं के आधार पर ोि त तर य
वचलन का ववेचन कया है ।
जब संदभ के अनु प आव यक मा ा से अ धक या कम कहा जाए तो प रणाम संबध
ं ी
ोि त वचलन दखाई दे ता है । कभी-कभी कम कहने, न कहने आ द से भी यह
वचलन कट होता है । इसी तरह जब कसी रचना म ोि त तर पर म या कथन
कया जाता है अथवा ऐसी उि त तु त क जाती है िजसे मा णत नह ं कया जा
सके वहाँ ोि त का गुण -संबध
ं ी वचलन दखाई दे ता है । इस कार वचलन रचनाकार
वशेष अ भ ाय से तु त करता है । इसी तरह जब कसी रचना मे ोि त क
ासं गता और उसके संदभ क उपे ा कर द जाती है िजससे उसम ता का लक
अस ब ता कट होने लगती है तब वहाँ ोि त के संबध
ं का वचलन कट होता है ।
यह वचलन भी रचनाकार सौ े य प म करता है ।
6. अथ तर य वचलन : अथ तर य वचलन म वा य बा य संरचना मक तर पर तो
पूर तरह याकरणस मत और सु ग ठत होते ह पर अथ क तर पर वे ाथ मक प
से सहज वीकाय नह ं हो पाते । व तु त: कसी वा य का अथ हण संदभ के अनु प
वीकायता अथवा अ वीकायता पर आधा रत होता है । इस लये पाठक या ोता एक
वा य के अथ को कसी वशेष संदभ म वीकार कर सकता है । पर तु उस संदभ से
अलग करके उसके अथ को अ वीकार भी कर दे ता है । सामा यत: क वता म तमाम
ऐसे वा य दे खे जा सकते ह जो अपनी अ भ यि त म सहज एवं सामा य अथ को
499
कट नह ं करते । जैसे 'मनु य क गदन पर उगी हु ई ''सघन अयाल'' अथवा “श द
पर उगे हु ए बाल'' जैसे वा य याकर णक प से सु ग ठत होते हु ए भी संदभ म इतर
अथ के तर पर वीकाय नह ं हो सकते । पर तु का य म इनका वशेष और
भावशाल अथ हो सकता है ।
7. ले खम तर य वचलन : जहाँ रचना म आव यक वरामांकन का योग न कया जाए
अथवा वरामांकन के योग क अवहे लना जानबूझकर क जाए और उससे वशेष भाव
क रचना क जाए वहाँ ले खम तर का वचलन दे खा जा सकता है । व तु त:
वरामांकन के अभाव म रचना म अनेक वधता और अनेकाथकता क ि थ त उ प न
करने क को शश क जाती है । इसके अ त र त ले खम तर के वचलन के अ य भी
कई प दे खने को मलते ह । कभी-कभी रचनाकार एक भाषा क वण ल प म दूसरे
भाषा क वण ल प या अंक का योग करके वशेष भाव पैदा करना चाहता है अथवा
भा षक ले खम प त म च कला क ले खम प त का योग भी करता है । उदाहरण
के लए-
जीवहुE
ँ श सcज बल, हरहु ँ जन क Pर ।
अथवा
क र व४ दे यो बहु त, जब वधु दोष न १ ।
इसके अ त र त सं कृ त क व का य परं परा अथसा ईसा पूव तीसर चौथी
शता द के यूनानी यूको लक का य (216) म भी ले खम वचलन को दे खा जा सकता है
। िजसम क वता क पंि तपरक ले खम प त को छोडकर वभ न पाकार म ले खम
योग कये गये ह ।
25.4.1.2 वपथन
500
1. जब रचनाकार अपने कसी पाठ वशेष जैसे उप यास, कहानी, क वता आ द म वयं
वारा न मत ढाँचे अथवा संरचना का भाषा के कसी भी तर पर अ त मण करता है
तो वहाँ पाठ के मानक से स बि धत मु त वपथन उपि थत होता है ।
2. जब कोई रचनाकार अपनी रचना म अपने सजना मक स ांत को छोड़कर अचानक
नये स ांत को हण करता है तो वहाँ सा ह यकार के नजी मानक से संबं धत मु त
वपथन दखाई दे ता है ।
3. कभी-कभी रचनाकार िजस वधा म रचना कर रहा है उस वधा के सामा य वीकृ त
मानक प से अलग हटकर य द उसम अपने अनुसार प रवतन उपि थत करता है तो
उसे सा हि यक प वधा के वपथन के प म जाना जाता है ।
4. जब रचनाकार वारा समाज वशेष के सां कृ तक अथवा स दयबोधा मक था पत
मानक को छोड़कर अ य कार से रचना क जाती है तो ऐसे वपथन को सां कृ तक
स दया मक वपथन कहा जाता है ।
5. जब रचनाकार वारा सा ह य म यु त होनेवाल पारं प रक वषयव तु अथवा साम य
को छोड़कर नयी वषयव तु अथवा साम य को हण कया जाता है तो ऐसे वपथन
को वषयव तु अथवा श प के मानक से उ प न वपथन के प म दे खा जाता है ।
संि ल ट वपथन : यह वपथन का वह कार है िजसम अ तु त के दूसरे ल ण
जैसे वचलन, समानांतरता का भी सं लेष होता है पर तु इन सभी म वपथन क
वृ त सवा धक बल होती है ।
वपथन के तर : रचना म वपथन को व न, श द, प, वा य, ोि त, अथ एवं
लप तर पर आरे खत कया जा सकता है । वन तर पर जब रचनाकार या क व
अपनी रचना म कसी एक तरह क व न संरचना जैसे घोष-अघोष, अ प ाण-महा ाण,
ना स य आ द का यवहार करता हु आ अचानक कसी दूसरे कार क व न संरचना
को हण कर लेता है तो वहाँ व न तर य वपथन होता है । इसी तरह से श द तर य
वपथन म भी कसी रचना म यु त वशेष कृ त वाले श द से इतर दूसर कृ तवाले
श द का योग अचानक होने लगे तो उसे श द तर य वपथन कहते ह । प तर य,
वा य तर य, ोि त तर य, अथ तर य और ल प तर य वपथन क या भी यह है
। इन सभी म रचनाकार अपनी रचना म वयं वारा था पत मानक का अ त मण
करता हु आ अचानक कसी नये तरह के प, वा य, ोि त, अथ अथवा लेखन शैल
क संरचना करता है । इन सभी तर पर वपथन क या याकरण से इतर कृ त
म आने वाले प रवतन को कट करती है । यहाँ वशेष यह है क रचनाकार वयं
अपने वारा था पत माग को छोड़कर कसी नये माग का अनुसरण सा भ ाय करता
है ।
501
कसी रचना म भा षक ल ण या वधान क पुनरावृि त क नय मतता । पुनरावृ त क यह
नय मतता भाषा के हर तर पर दे खी जा सकती है । अ गा मता के अ ययन म म शैल
व लेषक समाना तरता को अ ययन के साथक उपकरण के तौर पर दे खा जा जाता है जो रचना
म यु त व भ न भा षक नय मतताओं का आरे खन करता है । समाना तरता को मु य प
से न न ल खत को टय म वभािजत कया जाता है-
1. संघटन आधा रत समाना तरता
2. काय आधा रत समाना तरता
3. पाठ आधा रत समाना तरता
संघटन आधा रत समाना तरता : जब कसी रचना क भाषा क संरचना म स य वभ न
संघटक म या त समाना तरता का अ ययन कया जाता है तो उसे संघटना आधा रत
समाना तरता कहते ह । इसके अ तगत सं ा, सवनाम, परसग, या, नपात आ द के योग
म वशेष अनु म समाना तरता क सृि ट क जाती है । रचना म या त छांद सक योजना भी
रचना म वनीय समाना तरता कट करती है ।
काय आधा रत समाना तरता : काय आधा रत समाना तरता म रचना म या त आवृ त क
कृ त का अ ययन कया जाता है । व तु त: कोई श द या पदब ध रचना म कस कार बार-
बार उपि थत होकर वशेष भाव क सृि ट करता ह इसका अ ययन इसके अ तगत कया
जाता है । जैसे '' फर वह कोमल हवा कोमल सतारे , फर वह कोमल नद कोमल कनारे '' म
श द- तर और वा य तर दोन म समतामूलक समाना तरता ा त होती है ।
कभी-कभी यह समाना तरता श द के वरोधमू लक योग म भी आवृत होती है । सु ख-दुःख ,
मान-अपमान, हष-शोक, न दा- शंसा जैसे योग वरोधमू लक समाना तरता को कट करते ह ।
पाठ आधा रत समाना तरता : पाठ आधा रत समाना तरता कसी नि चत पाठ क सीमा म
भाषा के व भ न तर पर उपि थत पाठ य समाना तरता को कट करती है । उदाहरण के
लये ‘राम क शि तपूजा’ अथवा गोदान जैसी रचना म पाठ के सापे उसक भाषा क पूर
रचना कट होती है । वह समाना तरता भाषा के व भ न भा षक तर जैसे श द, अथ,
ोि त आ द के तर पर रचना म उपि थत होकर रचना का वै श य कट करती है।
भा षक इकाईय के आधार पर समाना तरता : समाना तरता को व भ न भा षक इकाईय के
आधार पर अ धक प टता से कट कया जा सकता है-
1. वन तर य समाना तरता : वन तर य समाना तरता वहाँ उपि थत होती है जहाँ
कसी वशेष यंजन या वन क सा भ ाय आवृि त होती है । यह आवृि त घोष-अघोष,
अ प ाण-महा ाण, ववृत -संव ृत जैसी व नय के मा यम से रचना म कट हो सकती है । छं द
शा क पूर संक पना व नमू लक समाना तरता पर आधा रत होती है । उदाहरण के लए
नराला क न न ल खत पंि तय को दे खा जा सकता है-
कण-कण कर कंकण, य
कण- कण रव कं कणी
रणन-रणन नूपुर, उर लाज
502
लौट रं कणी
प ट है क इन पंि तय म घोष व नय का आव तन व नगत समाना तरता क सृि ट कर
रहा है ।
श द तर य समाना तरता : श द तर य समाना तरता वहाँ होती है जहाँ कसी कृ त म कसी
श द वशेष का आवतन बार-बार कया जाता है । उदाहरण के लए भवानी साद म के
‘सतपुडा के जंगल' म पागल श द क आवृ त हु ई है-
घास पागल, कास पागल
शाल और पलाश पागल
लता पागत, बात पागल
डाल पागल, पात पागल
म त मु ग और तीतर
इन वन के खू त भीतर ।
श द तर य समाना तरता आवृ त के अ त र त त समता, त वता आ द आधार पर
भी हो सकती है । कभी-कभी इस कार क समाना तरता श द के वरोधमूलक योग म कट
होती है ।
वा य तर य समाना तरता : वा य तर य समाना तरता रचना म या त समान वा य क
आवृि त को कट करती है । व तु त: कभी-कभी एक ह वा य रचना म व भ न संदभ म
वा य बार-बार यु त होते ह और वशेष भा षक भाव क सृि ट करते ह । अ ेय ने अपने
स उप यास 'नद के वीप' म 'अकेले ह न, तभी ल क पकड़कर चलते ह'', वा य क
आवृि त कई बार क है । इसी तरह नराला ने 'खू न क होल जो खेल ’ वा य का योग
अपनी एक क वता म बार-बार कया है ।
ोि त तर य समाना तरता : सामा यत: ोि त तर य समाना तरता क आवृि त और ोि त
के वरोधमूलक योग म सि न हत होती है । जहाँ कसी रचना म ोि त क आवृ त हो वहाँ
आवृ तपरक और जहाँ ोि त के योग म वरोध कट हो वहाँ े तीमूलक समाना तरता होती
है । उदाहरण के लए राह चलते िजस दन बैठे-बैठे जानू ग
ं ा, मेरे पीछे कोई है और मु ड़कर नह ं
ँ ा, और उस दन म जान लू ंगा क मेर खोज मेरे लए खोज समा त हो गयी है ।' म
दे खूग
आवृि त मू लक ोि त कट होती है । इसी तरह जब वरोधी वृि त क ोि तयाँ एक साथ
कट ह तो वहाँ वरोधा मक ोि त कट होती है ।
अथ तर य समाना तरता : अथ तर य समाना तरता कसी कृ त म पयायवाची श द के
योग अथवा वरोधमूलक अथ क सृि ट करने वाले श द के योग क आवृि त म कट होती
ह, जैसे पंत ने 'प रवतन’ क वता म संसार के लए व व, संस ृ त , जगत, जग, जगती जैसे
पयाय का योग कया है । यह अथ तर य समाना तरता कह जा सकती है । इसी तरह
सु ख-दुख , अपना-पराया, सवाल-जबाब, धूप-छाया, चढ़ती-उतरती आ द योग म अथ तर य
समाना तरता दे खी जा सकती है ।
503
25.4.1.4 वरलता
504
पंि त '' य या मनी जागी'' के आधार पर इसे समझा जा सकता है । इस वा य का पूण
आयाम होगा ''वह य या मनी भर जाग रह है । पर तु वा य म ''वह'' “भर” और “रह है”
क अनुपि थ त ऋणा मक शैल च हक को कट करती है ।
25.5.1 व लेषण
25.5.2 सं लेषण
505
संगु फत कर पूण इकाई के प म उ ह तु त करे । अ ययन क इस या को सं लेषण
करते ह ।
25.5.3 नवचन
506
आधार को दे खना समझना संभव हो । सा ह य और भाषा के अतरं ग संबध
ं क सह कृ त को
सामने रखकर वह भाषा क अपनी शि तय का उ घाटन करता है । अत: शैल व ान का े
व तु त: वह सं ध माना गया है िजसे कलाशा और भाषा व ान स मत प से काटते ह ।
507
का अ त मण करता है । शैल व ान म भाषा वै ा नक व ध केवल अ ययन का मा यम
है, ल य नह ं । इसके अंतगत भा षक व लेषण के साथ-साथ रचना के भाव प क या या
भी होती है और क य के वै श य को व न, श द, प, वा य, ोि त आ द के वशेष योग
के मा यम से उ घा टत करने का यास कया जाता है ।
भाषा व ान रचना के उन भा षक संसाधन का पता लगाता है जो वा त वक संदेश
का सृजन करने हे तु यु त होते ह और वा य के भीतर नि चत याकर णक संरचना से
प रचा लत होते ह । पर तु ये वा य याकर णक संरचनाओं के अ त र त अपने अथ क सृि ट
करते ह अथात ् याकर णक ि ट से चाहे कोई वा य सह हो अथवा गलत, व ता अलग-अलग
तर क से अपनी अ भ यि त कर सकता है और वह अपने वचार को सह और सट क ढं ग से
ोताओं अथवा पाठक के सामने तु त कर सकता है यह व ता क सजना मक और भावा मक
शि त पर नभर करता है क वह कन संदभ म कस ोता वग के सामने कस तरह के
वा य अथवा श द का योग करता है । अत: यह प ट है क शैल व ान भाषा व ान क
उस सजना मक, भावा मक शि त से जु ड़ा है जो भाषा व ान के अंतगत नह ं आता ।
भाषा व ान मु य प से उस भाषा तक सी मत है जो नि चत समु दाय के वारा
अपनी यि तगत, सामिजक एवं रा य अनुभू तय को एक दूसरे तक स े षत करने का
मा यम बनती है, जो व भ न याकर णक नयम से बंधी होती है और िजसक वश ट श द
स पदा होती है । जब क शैल व ान भाषा क संदभपरक युि त अथात वाक् के अ ययन क
णाल है । अमे रक व वान नोएम चॉम क ने भाषायी मता और भाषायी यवहार के अंतर
को प ट करते हु ए एक को भाषा वषयक ान से संबं धत बताया और दूसरे को उसक
अनौपचा रक युि त के प म । उनके अनुसार मानव एक ऐसा सृजनशील ाणी है जो ि थ त
और संदभ के अनुसार नयी उि तय का सृजन करता है । हो सकता है क ये उि तयाँ पहले
कभी न बोल गयी ह या न सु नी गयी ह , पर तु वे हमेशा समझी जाती रह ह । इस वशेष
समझ को सं े षत करने हे तु ह शै लय का नमाण होता है िजसके अ ययन से रचनाकार का
वै श य कट होता है । शै लय का यह वै श य सामािजक परं पराओं के अनु प य त होता
है । चूँ क शैल व ान भाषा के सामािजक एवं सजना मक काय का अ ययन करता है, अत:
वह यह पता लगाता है क सं ेषण म कौन-कौन सी भा षक इकाईयाँ शा मल ह और संदेश
िजस तर के से यवि थत ह उसम व भ न सामािजक सां कृ तक संदभ कस कार सि म लत
है ।
शैल व ान भाषा के बोधा मक, अ भधा मक और स दयपरक उपकरण के
योजनमू लक प का अ ययन है । स शैल वै ा नक हे ल डे ने सामािजक ि ट से इ ह
उ ावनापरक रचनाकार से संबं धत और सा हि यक प कहा है । व तु त: भाषा के ये काय
एक दूसरे से अलग नह ं ह बि क आपस म जु ड़े हु ए ह । भाषा का बोधा मक प संदभ क
अ भ यि त करता है । इसके अंतगत व ता या रचनाकार क वैयि तक शि त है । भाषा के
उस अ ययन से जो रचनाकार से संबं धत हो, रचना करने वाले के यि त व, वभाव एवं
मान सक सोच का पता चलता है । इससे उसके और पाठक के बीच कस कार का संबध
ं है
यह भी ात होता है । शैल का तीसरा मह वपूण काय भाषा क सजना से जु ड़ा है जो भाषा
508
के आंत रक च र को कट करता है । यह आंत रक च र प रि थ तय और संदभ से भी
े रत होता है । भाषा का यह आंत रक च र सफ श द या वा य के बीच न हत संबध
ं तक
ह सी मत नह ं है बि क अपनी अथा भ यि त म यह भाषायी च र क सीमा का अ त मण
भी करता है । भाषा के इस गुण के कारण व ता या रचनाकार क अ भ यि त म एक वशेष
स दय या वशेष सजना मक योग दखाई दे ता है । शैल व ान भाषा के अ भ यंजनापरक,
भावपरक और स दयपरक प का अ वेषण करने म भाषा व ान क सहायता करता है ।
भाषा व ान का व ता या रचनाकार के साथ सीधा संबध
ं नह ं होता । व ता वारा
यु त श द या वा य-संरचना न तो हमेशा भाषा व ान वारा नय मत होते ह और न ह
प रचा लत । बि क एक समािजक ाणी होने के नाते उसक भाषा म सामािजक संरचना,
सामािजक यवहार और मानव सं कृ त का योग रहता है िजसके अ ययन म शैल व ान
सहायक स होता है । व भ न सामािजक परि थ तय म एक ह वा य को भ न- भ न
तर के से तु त कया जा सकता है । टे ल फोन पर बात करते हु ए, कायालय म अपने
अधीन थ से बात करते हु ए, कॉलेज म ं सपल या अ यापक से बात करते हु ए, म से बात
करते हु ए, भाषा बदलती रहती है । ऐसी ि थ त म व ता और ोता उनके स ब ध
प रि थ तय , मान सकता और भाषायी यव था को यान म रखकर शैल वै ा नक अ ययन
कये जा सकते ह िजसम भाषा व ान केवल सहायक क भू मका म ह दखाई दे ता है। यहाँ
यह जानना मह वपूण होगा क भाषा व ान कसी अ भ यि त के बा य प का अ ययन है
जब क शैल व ान अ भ यि त के आंत रक प का । भाषा व ान कसी अ भ यि त के अथ
का उ घाटन है जब क शैल व ान उस अ भ यि त म न हत भाव का । शैल व ान म
भाषा मा यम है िजससे कसी अ भ यि त म न हत स दय क सजना मकता को कट कया
जाता है जब क भाषा व ान का ल य भाषा के व वध उपकरण का अ ययन है ।
भाषा व ान के लये भाषा क मह तम इकाई वा य होता है जब क शैल व ान वा य
से आगे बढ़कर पूर कृ त को अपने अ ययन म समेट लेता है । वह कसी रचना के ोि त
व लेषण म सा हि यक पाठ और इस पाठ के अ य पहलु ओं जैसे वा य , उपवा य , को शय
प और या या मक ल ण तथा व ता और ोता के संबध
ं क भी या या करता है ।
इतना ह नह ,ं वह रचना क तु त जैसे पैरा ाफ, इकाई संरचना, वा य-उपवा य यव था
आ द क भी अपे त या या करता है ।
भाषा व ान भाषा का वणा मक ान कराता है जब क शैल व ान भाषा के सजना मक
योग के वै श य को प ट करता है । व तु त: सजना मक योग से संदभ के अनु प अथ म
भी प रवतन होते ह और इसम याकर णक नयम का अ त मण भी होता है । शैल व ान
श द, व न, प, वा य आ द याकर णक को टय क सहायता लेकर अ भ यि त म न हत
वशेष संदेश को कट करता है । भाषा व ान का संबध
ं भाषा संगठन या संरचना का पता
लगाने से होता है जब क शैल व ान उसम न हत स दय के उ घाटन को अपना ल य बनाता
है । वह वाक् (Speech) के सामा य शैल गत अ भल ण क थापना करता है । वा तव म
शैल व ान भाषायी साधन क योजनमू लक इकाईय का सह और वृहद ान कराने म
सहायक होता है । इस कार शैल व ान भाषा व ान से घ न ठ प से जु ड़ा होकर भी उससे
509
ि ट और यवहार म भ न होता है । भाषा व ान क सहायता से वह रचना के आंत रक
प के उ घाटन म वृत होता है ।
510
भ न- भ न अथ-छ वयाँ कट करते ह । ऐसे म उनका मानक प नधा रत करना एक
मु ि कल काम होता है । इसी लये कोश नमाण म उन स ांत का यवि थत एवं सु संगत
पालन आव यक माना जाता है िजससे वि टय का उ चत चयन एवं तु तीकरण हो सके ।
इसके लये जहाँ एक ओर भाषावै ा नक प तय क सहायता ल जाती है वह ं दूसर ओर
अनु यु त भाषा व ान के प म शैल व ान का उपयोग सहायक होता है ।
शैल व ान अ ययन के मा यम से कसी श द के अथ का न चय भाषा संरचना के
सापे उसके योग से कया जाता है । इसके अंतगत उन संदभ को कट कया जाता है ।
िजनम उनका अथ नि चत होता है अगर हम अथ के साथ उसके योग का संदभ भी द तभी
उसके अथ का वै श य प ट होगा । उदाहरण के लये चलता श द को ले सकते ह । इस
श द का योग भ न- भ न संदभ म अलग-अलग अथ के लये कया जा सकता है । जैसे
'गाड़ी चलती है’, वह ‘चलती भाषा म लखता है’, 'आजकल सब कुछ चलता है’, इ या द ।
प ट हे क बना संदभगत संकेत के चलता / चलती श द के योग वै श य को नह ं समझा
जा सकता है । इसी तरह एक अथ के लये यु त होने वाल व भ न श द के योग म
शै लवै ा नक वै श य ह मु ख होता है । माँ, अ मा, माता, माई आ द श द का योग
अपनी अ भ यि त म शैल वै श य का नमू ना होता है और येक श द अपने प रवेश वशेष
को कट करता है । अत: बना शैल वै ा नक नदश के इन सभी श द का एक ह अथ
नधारण अनु चत हो सकता है । इसी तरह न हा, छोटा, लघु आ द श द या फूल, कु सु म,
पु प, सु मन आ द श द के योग वै श य को दे खा जा सकता है । इस कार प ट है क
कोश व ान म श द के ववेचन व लेषण म म शै लवै ा नक ि ट से उनका मू यांकन एवं
अथ नधारण अ य त मह वपूण है । चाहे वभाषीय कोश हो या समभाषी कोश, दोन ह म
शैल व ान मह वपूण भू मका नभाता है ।
511
शा ीय या सा हि यक शै लय के अनुवाद म भी इसका यान रखना आव यक होता है
। कसी रचना का ल य भाषा म अनुवाद करते समय मूल भाषा के संग के अ त र त उसके
उ े य अथवा वधा का भी यान रखना आव यक है । जैसे कसी पाठ क रचना का उ े य
स दयबोध से संबं धत, यावहा रक या वै ा नक कु छ भी ह सकता है । इसके अनुवाद के लये
ल य भाषा म उसी तरह क ि ट या श दावल के योग को उ चत माना जाएगा । जैसे
रे डयोवाता, शोध ब ध आ द के अनु प ह ल य भाषा म उसक अ भ यि त उ चत होगी ।
इसके लये उसी कार क व ध उपयु त होगी जैसे मू ल भाषा म है ।
अनुवाद के े म शैल व ान क भू मका तब अ य त मह वपूण हो जाती है जब
सा ह य क कसी वधा का अ य भाषा म अनुवाद कया जता है । वा तव म सा हि यक
अनुवाद मूलत: भाषा क सम या न होकर पाठ म व यमान शैल के अनुवाद क सम या है ।
सा ह य म यु त भाषा अपने व भ न सामािजक संदभ के साथ यु त होती है और अ य
भाषा म उनका अनुवाद सजना मक भाषा तरण कहा जाता है । इसके अंतगत मू लभाषा म
र चत कसी क वता या उप यास, कहानी आ द ग य-रचना का भाषांतरण ल य-भाषा म करते
ह । इसी तरह सा हि यक अनुवाद म सा ह य क वधाओं आ द का भी यान रखना आव यक
माना जाता है । मू ल भाषा म यु त अलंकार आ द से उ प न भाव को भी ल य भाषा म
कट करने क को शश शैल वै ा नक व ध क सहायता से ह संभव हो पाती है ।
इस कार यह दे खा जा सकता है क अनुवाद के े म शैल व ान क एक नि चत
और भावशाल भू मका है िजसके अभाव म सट क और प ट अनुवाद क या लगभग
असंभव तीत होती है ।
25.8 सारांश :
एम.ए. उ तरा के तृतीय न प (भाषा व ान) क अं तम इकाई म आपने भाषा
व ान क अनु योगा मक शाखाओं म मु ख शैल व ान का अ ययन कया । इस अ ययन
म आपके सामने प ट हो गया होगा क रचनाकार भाषा का जो कला मक योग करता है
उसके ह उसक शैल कह सकते ह । आप शैल व ान क अवधारणा, शैल वै ा नक
व लेषण तमान एवं या के साथ शैल व ान के े एवं ान के अ य अनुशासन से
ं म अवगत हु ए । सारांशत: इस इकाई को पढ़ने के बाद आपने न नां कत ब दुओं
उसके संबध
को प टत: समझा-
1. शैल व लेषण क तीन मु ख याएँ होती ह- व लेषण, सं लेषण और नवचन और
शैल व लेषण क सामा यत: दो वधाएं शैल माप मी और शैल वै ा नक च लत है
।
2. शैल व लेषण के तीन कार होते ह - तु लना मक वणना मक ओर प रवेशगत शैल
व लेषण ।
3. शैल व लेषण के लये सामा यत: दो तमान नधा रत कये जाते ह- अ तु त
तमान और शैल च हक तमान ।
4. अ तु त का आशय भाषा म उपि थत होने वाले उन अ या शत अथवा वशेष
योग से है जो सामा य से अलग तीत होते हु ए पाठक का यान वशेष प से
आक षत करते ह ।
5. कृ त क अ गा मता के व लेषण के लए चार प का नधारण कया जाता है-
वचलन, वपथन, समाना तरता और वरलता ।
6. भाषा के मानक योग से कया जाने वाला अ त मण, उ लघंन या य त म वचलन
कहलाता है ।
513
7. कसी रचना का पाठ पढ़ते हु ए पाठक के मन म रचना से िजस तरह क याशा
न मत होती है अगर वह क ह ं कारण से वफल होती है तो शैल शा ीय भाषा म
उसे वपथन कहते ह ।
8. कसी रचना म भा षक ल ण या वधान क पुनरावृि त क नय मतता को
समाना तरता कहते ह ।
9. आज शैल व ान का अ ययन केवल सा हि यक े म ह नह ं होता वरन अ ययन के
वभ न े म इस व ध का योग लाभदायक स हु आ है ।
10. भाषा व ान, समाज व ान, मनो व ान, कोश व ान, अनुवाद व ान, मानव व ान आ द
वभ न े म शैल व ान अ ययन क मह ता को वीकार कया गया है ।
11. शैल व ान भाषा व ान क ायो गक प त है िजसक व ध भाषा व ान क वभ न
शाखाओं से न प न है ।
12. भाषा व ान भाषा का वणना मक ान कराता है जब क शैल व ान भाषा के
सजना मक योग के वै श य को प ट करता है ।
13. कोई भी रचना समाज म ह स होती ह कसी रचनाकार क भाषा उसक सामािजक
प रि थ तय से उ प न होती है िजसका आरे खन उसके शैल वै ा नक अ ययन से होता
है ।
14. कोश व ान के अ तगत कोश नमाण क व ध सवा धक मह वपूण होती है । इसके
लये भाषावै ा नक प तय के साथ अनु यु त भाषा व ान के प म शैल व ान का
योग सहायक होता है ।
15. अनुवाद और शैल व ान का भी मह वपूण संबध
ं है य क अनुवाद - या म मू ल
भाषा के च र क ल य भाषा म उ चत अ भ यि त शैल वै ा नक प त वारा ह क
जाती है ।
25.9 अ यासाथ न
क. द घ तर न
1. शैल व लेषण के तर क ववेचना क िजए ।
2. शैल व लेषण के तमान का प रचय क िजए
3. वचलन के कार पर काश डा लए ।
4. समाना तरता कसे कहते ह इसक को टय का व लेषण क िजए ।
5. भाषा व ान और शैल व ान के संबध
ं पर वचार क िजए ।
ख. लघू तर न
1. सं लेषण का आशय प ट क िजए ।
2. शैल व ान म वपथन से या ता पय है?
3. भा षक इकाईय के आधार पर समानतरता को प ट क िजए ।
4. शैल व ान का े बताइए ।
5. समाज व ान और शैल व ान का संबध
ं बताइए ।
514
ग. र त थान क पू त क िजए
1. तमान क तीसर आव यकता उसक .................................. होती है ।
2. तमान को............................................................ के रे खांकन म समथ
होना चा हए ।
3. कसी कृ त क भाषा म वभ न भा षक त व क
वशेष............................................... ऋणा मक शैल च हक है ।
4. शैल व लेषण क अि तम या को..............................कहते ह ।
5. शैल व लेषण भाषा व ान क .............................. प त है ।
घ. सह गलत च ह लगाइए
1. भाषा के मानक योग से कया जाने वाला अ त मण वपथन कहलाता है ।
सह /गलत
2. कसी भी कृ त का भाषाई वै श य दो प म अ तु त हो सकता है ।
सह /गलत
3. सं लेषण से आशय है व लेषण से ा त न कष का ववेचन ।
सह /गलत
4. शैल - व ान का अ ययन े अ यंत यापक है । सह /गलत
5. वचलन का स ांत अ नय मतता क संक पना को अपना आधार बनाता है ।
सह / गलत
25.10 संदभ ध
1. रवी नाथ ीवा तव; अनु यु त भाषा व ान, स ांत एवं योग राधाकृ ण
काशन, द ल
2. श शभू षा शीतांशु पा डेय; शैल और शैल व ान, वाणी काशन, नई द ल
3. गवेषणा प का अंक 73/1999, के य ह द
गवेषणा प का अंक, 88/2007, सं थान
गवेषणा प का अंक, 87, 2007 आगरा
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