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JMBJ04
JMBJ04
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पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कुलप त
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज थान)
संयोजक एवं सद य
संयोजक
डॉ. एच.बी. न दवाना 1. डॉ. संजीव भानावत
पु तकालय एवं सूचना व ान वभाग अ य , जनसंचार के
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा राज थान व व व यालय, जयपुर
सद य 2. ी राजे बोडा
3. ो. दे वेश कशोर 4. डॉ. रमे श च पाठ थानीय संपादक, दै नक भा कर
नदे शक (से. न.) वभागा य जयपुर
इले ॉ नक मी डया ोड शन सटर प का रता एवं जनसंचार वभाग 5. ी राजन महान
इि दरा गांधी रा य मु त लखनऊ व व व यालय, लखनऊ राज थान यू रो चीफ
व व व यालय नई द ल एन.डी.ट .वी. जयपुर
6. ो. रमे श जै न 7. डॉ. अ नल कुमार उपा याय 8. ी न द भार वाज
वभागा य (से. न.) वभागा य नदे शक
प का रता एवं जनसंचार वभाग प का रता एवं जनसंचार वभाग दूरदशन, जयपुर
वधमान महावीर खुला व व व यालय, महा मा गांधी काशी व यापीठ,
कोटा वाराणसी
पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा
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JM/BJ-04
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज थान)
मी डया लेखन
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पा य म प रचय
बी. जे. (एम. सी.) काय म का चौथा पा य म 'मी डया लेखन' है । इस पा य म म 13 इकाइय
को शा मल कया गया है, इनका प रचय न नानुसार है :
इकाई-1 समाचार अवधारणा एवं लेखन तकनीक - इस इकाई म समाचार क अवधारणा, प रभाषा,
त व, कार एवं मह व से अवगत करवाया गया है साथ ह समाचार के ोत एवं
वग करण, समाचार लेखन तकनीक, समाचार लेखन के मह वपूण त व एवं समाचार
लेखन के पाँच सकार पर भी काश डाला गया है ।
इकाई - 2 संवाददाता, समाचार ोत एवं संकलन - इस इकाई म संवाददाता से आशय, संवाददाताओं
क े णयाँ एवं काय वभाजन, समाचार के ोत एवं समाचार संकलन क व तार से
चचा क गई है साथ ह समाचार लेखन एवं तु तीकरण एवं समाचार का अनुवतन क
भी जानकार द गई है ।
इकाई - 3 सा ा कार - इस इकाई म सा ा कार का अथ एवं व प, सा ा कार और अ य वधाएं,
उपयो गता एवं मह व क व तार से जानकार द गई है साथ ह इले ा नक एवं टं
मी डया म सा ा कार कैसे लेते ह? इस संदभ म भी काश डाला गया है । सा ा कार
या को व तार से रे खां कत कया गया है ।
इकाई - 4 समाचार का वग करण- ( भाग 1 ) - इस इकाई म समाचार का व प, त व, कार
एवं वग करण पर काश डाला गया है । वषय व तु के आधार पर, कृ त के आधार
पर, या या के आधार पर एवं रपो टग व धक के आधार पर समाचार के वग करण
पर व तार से चचा क गई है ।
इकाई - 5 समाचार का वग करण- (भाग 2 ) - इस इकाई म घटना के मह व के आधार पर, े
के आधार पर एवं वषय अथवा बीट के आधार पर समाचार के वग करण क व तृत
जानकार द गई है ।
इकाई - 6 तंभ लेखन - इस इकाई म तंभ लेखन का मह व, तंभ एवं समाचार, तंभ लेखन
के वषय, तंभ लेखन क कृ त के साथ इंटरनेट पर तंभ लेखन, भावी तंभ लेखन
को भी चचा क गई है ।
इकाई - 7 फ चर लेखन - इस इकाई म फ चर लेखन या है? फ चर क वशेषताएं एवं मूल व प
क जानकार द गई है । फ चर लेखक क यो यताएं, फ चर लेखन क तैयार , शीषक,
भू मका एवं च ांकन एवं व भ न वधाओं से तु लना क भी जानकार द गयी है ।
इकाई - 8 समी ा लेखन - इस इकाई म समी ा के अथ एवं व प, समी ा कैसे करे ? समी ा
लेखन के कार और मी डया म समी ा लेखन क व तृत जानकार द गई है ।
इकाई - 9 रे डयो समाचार लेखन - इस इकाई म समाचार क प रभाषा, रे डयो समाचार या ा,
आकाशवाणी का समाचार तं एवं समाचार के ोत से अवगत करवाया गया है साथ
ह रे डयो समाचार का लेखन व संपादन, रे डयो समाचार क भाषा पर भी काश डाला
गया है ।
इकाई - 10 रे डयो लेखन के स ांत - इस इकाई म रे डयो लेखन के स ांत, रे डयो लेखन क सीमाएं
और संभावनाएं एवं रे डयो लेखन के व भ न आयाम क चचा क गई है साथ ह संगीत
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के लए लेखन एवं उ घोषणाओं पर भी काश डाला गया है ।
इकाई - 11 टे ल वजन समाचार लेखन - इस इकाई म भारत म टे ल वजन समाचार का इ तहास,
मह व एवं लेखन पर व तृत जानकार द गई है । टे ल वजन समाचार बुले टन एवं
टे ल वजन समाचार के या मक त व से भी अवगत करवाया गया है ।
इकाई - 12 टे ल वजन के लए पटकथा लेखन - इस इकाई म पटकथा का अथ, इ तहास, प रभाषा,
आलेख के कार, पटकथा लखने का ाराप आ द क चचा क गई है साथ ह नमू ने
क पटकथाय एवं नदशक के आलेख क भी जानकार द गई है ।
इकाई - 13 साइबर मी डया के लये लेखन - इस इकाई म साइबर मी डया के लए लेखन, साइबर
लेखन क वशेषताएं, साइबर लेखन के कार, भारत म साइबर लेखन क ि थ त एवं
भारत म साइबर लेखन के मह व एवं संभावनाओं पर व तृत जानकार द गई है ।
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इकाई-1
समाचार : अवधारणा एवं लेखन तकनीक
इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 समाचार का व प
1.2.1 समाचार क अवधारणा एवं प रभाषा
1.2.2 समाचार के त व
1.2.3 समाचार के कार
1.3 समाचार का मह व
1.3.1 समाचार का घटना- थल और दूर
1.3.2 यि त का मह व
1.3.3 मानवीय च
1.4 समाचार के ोत एवं वग करण
1.4.1 या शत समाचार
1.4.2 अ या शत समाचार
1.4.3 पूवानुमा नत समाचार
1.5 समाचार लेखन तकनीक
1.5.1 समाचार का गठन - छ: ककार
1.5.2 वलोम परा मड शैल
1.5.3 ऊ व परा मड शैल
1.5.4 समाचार लेखन क नई शैल
1.5.5 शीषक
1.5.6 व तार
1.5.7 समापन
1.6 समाचार लेखन के मह वपूण त व
1.7 समाचार लेखन के पाँच सकार
1.8 सारांश
1.9 श दावल
1.10 कु छ उपयोगी पु तक
1.11 अ यासाथ न
1.0 उ े य
इस पाठ का उ े य समाचार क अवधारणा एवं लेखन तकनीक के बारे म जानकार दे ना है
। समाचार या है? एक समाचारप के लए समाचार कैसे एक त कए जाते ह? समाचार
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का मह व, समाचार लेखन क तकनीक, मह वपूण त व और पाँच सकार के बारे म व तार
से इस इकाई म बताया गया है । इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप जान पाएंगे क-
समाचार या है - यह प ट प से समझ सकगे ।
समाचार श द को कैसे प रभा षत कया जा सकता है, यह जान सकगे ।
िजन-िजन ोत से समाचार ा त कए जा सकते ह, उनसे अवगत हो सकगे ।
समाचार के मह व, समाचार क संरचना, समाचार लेखन क तकनीक, समाचार लेखन
के मह वपूण त व और पाँच सकार से प र चत हो जाएंगे ।
आप समाचार लेखन म व श टता ा त कर सकगे ।
1.1 तावना
‘समाचार क अवधारणा एवं लेखन तकनीक’ का मी डया म मह वपूण थान है , चाहे संवाददाता
हो या उपसंपादक उसे समाचार को अवधारणा और उसक तकनीक से अ छ तरह प र चत
होना आव यक है । भारत म हाल ह के वष म एक तरह क मी डया ां त आई है और
समाचार मा यम का भी यापक व तार हु आ है । हमारे दे श के वशाल और वकासशील
समाज म आज मी डया के येक े का व तार हो रहा है । प -प काओं के पाठक क
सं या लगातार बढ़ रह है, रे डयो और ट वी चैनल क सं या भी नरंतर बढ़ती जा रह है
। ले कन आज भी मी डया म और खास तौर से समाचार मी डया म अनेक गंभीर मु को
सतह और ना समझी के साथ तु त कया जाता है । अनेक अवसर पर समाचार को
अनाव यक प से ‘रोचक’ और 'मनोरं जक' बनाने क को शश क जाती है ।
ो. सुभाष धू लया एवं डी. आनंद धान के श द म कहा जा सकता है क “दरअसल, समाचार
और मनोरं जन के नींव क वभाजन रे खा के ख म होने के कारण पेज वन और पेज ी (पेज
वन मह वपूण समाचार और पेज ी मनोरं जन क प का रता) एक-दूसरे से ग डम ड होते
जा रहे ह । इसके कारण समाचार मा यम क ाथ मकताएँ भी बदलती जा रह ह। यह नह ,ं
इसके साथ ह समाचार क प रभाषा भी बदल द गई है । अब समाचार के के म आम
आदमी और उसके सु ख-दुख , सरोकार, चंताएँ और उ मीद उतनी नह ं है, बि क कभी-कभी
तो सेल ट
े ज भी समाचार के पयाय तीत होते ह । समाचार य घटनाओं क प रभाषा म ह
बदलाव आ रहा है । इस प क तरफ भी यान दए जाने क ज रत है क कन वषय
पर लोग को ज रत से अ धक जानका रयाँ द जाती ह और कन वषय के बारे म उ ह अंधेरे
म रखा जाता है ।'' समाचार अवधारणा और लेखन कया को तु त इकाई म व तार से
ववे चत कया गया है ।
1.2 समाचार का व प
‘समाचार' क कोई यापक प से वीकाय प रभाषा आज तक नह ं उभर पाई है । समाचारप
म जानकार , बात और अफवाह क भरमार होती है । ले कन हर जानकार , हर बात और
हर अफवाह समाचार नह ं होती । तब न उठता है क समाचार या है? उसक प रभाषा
या है? उसक संरचना कैसे हु ई? उसके मु य त व या ह? इन न का उ तर अनेक
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व वान ने दया है । अं ेजी म समाचार को ' यूज' (NEWS) कहते ह । इस श द के चार
अ र होते ह- एन. ई. ड लू. एस. । इन अ र से चार दशाओं - उ तर (नोथ), पूव (ई ट),
पि चम (वे ट) और द ण (साउथ) का बोध होता है । अत: यह कहा जा सकता है क जो
चार दशाओं का बोध कराए, वह समाचार है । स भवत: इसी ि ट से हेडन के कोश म समाचार
क प रभाषा सब दशाओं क घटना द गई है । उ तर, पूव , पि चम और द ण क घटनाओं
को समाचार समझना चा हए ।
अं ेजी का ' यू ले टन' के 'नौवा' सं कृ त के 'नव’ श द पर आधा रत है । इन तीन श द
का एक ह अथ है 'नवीन' । वा तव म समाचार तो वह है, जो नवीन है । महाक व जयशंकर
साद ने ठ क ह कहा है - '' कृ त के यौवन का शृंगार करगे , कभी न बासी फूल ।'' जैसे
कोई बासी फूल को पस द नह ं करता उसी कार कोई भी पाठक बासी समाचार को पढ़ना
चकर नह ं समझता । स य तो यह है क समाचार का शव व उसक नवीनता म है । कहा
जा सकता है क जो न य नूतन हो, वह समाचार है । इस तरह हम कह सकते ह क पहला
तो नई सूचना समाचार भी आव यक शत है और दूसरा कसी वषय को एक नई ि ट म
दखना भी समाचार क ेणी म आता है ।
'समाचार वह है, िजसे तु त करने म कसी बु मान (समाचारप के) यि त को सबसे
अ धक स तोष हो और जो ऐसा तु त करते समय कता को अ धक लाभ तो न होता हो,
पर तु िजसके संपादन से ह उसक यावसा यक कुशलता का पूरा-पूरा पता चलता हो । संपादक
क इस मता क सबसे बड़ी कसौट अ प टताओं और दु हताओं क ओट म छपे मह वपूण
त य को इस ढं ग से तुत करना है क उन त य को इस दु नया के वे लोग समझ जाएँ ,
िजनम अ ानता, लापरवाह और मू खता ह भर है तथा वचार के संघष के त च का
अभाव है । '
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'' े ठ समाचार क प रभाषा य य प यह है, तथा प साधारण यवहार म समाचार वे ह, जो
अखबार म छपते ह और अखबार वे ह, िज ह समाचारप म काम करने वाले तैयार करते
ह । यह कथन य य प वेदनामू लक है तथा प कटु यं य होते हु ए भी स य है ।''
- जोरा ड ड लू जॉनसन
“िजसे अ छा संपादक का शत करना चाहे, वह समाचार है ।”
“समाचार घटना का ववरण है । घटना वयं म समाचार नह ं ।”
“घटनाओं, त य और वचार क साम यक रपोट समाचार है, िजसम पया त लोग क च
हो ।'' - व लयम एल. रवस
“वह स य घटना या वचार, िजसम बहु सं यक पाठक क अ भ च हो ।''
- एम.लाइल पसर
“उन मह वपूण घटनाओं क िजनम जनता क दलच पी हो, पहल रपोट को समाचार कह
सकते ह ।” - इर सी. हापवुड
“ कसी समय होने वाल उन मह वपूण घटनाओं के सह और प पातर हत ववरण को, िजनम
उस समाचारप के पाठक क अ भ च हो, हम समाचार कह सकते ह ।''
- व लयम एस. मा सबाई
“समाचार अ त ग तशील सा ह य है । समाचार समय के चरखे पर इ तहास के बहु रं गे
बेल-बूटेदार कपड़े को बुनने वाले तकु ए ह ।”
- हापर ल च और जॉन सी. कैरोल
“समाचारप का मौ लक क चा माल न कागज है, न याह । वह है समाचार । फर चाहे
का शत साम ी ठोस संवाद के प म हो या लेख के प म, सबके मू ल म वह त व रहता
है, िजसे हम समाचार कहते ह ।”
- डी. न द कशोर खा
अब व व तेजी से बदल रहा है । मी डया म नई पर पराएँ था पत हो रह ह । समाचार
के बारे म भी मा यताएँ बदल गई ह ।
एक व वान ् ने समाचार क बड़ी ग भीर प रभाषा क है - 'िजसे कह ं कोई दबाना चाह रहा
हो समाचार है, शेष सब व ापन ।'
ेमनाथ चतु वद ने समाचार क या या करते हु ए लखा है – “'सू खे त य को समाचार नह ं
माना जाता । वे त य ह समाचार ह जो पाठक के जीवन, सु ख-दुःख, भावना और वचार
पर भाव डालते, उसे चकर तीत होते और आन द दे ते ह ।”
के.पी. नारायण ने समाचार के सृजन म स य को मह वपूण त व माना है । उनक मा यता
है िजन त व से समाचार बनता है, उनम सबसे मह वपूण त व है - स य का त व ।
साम यकता मू यवान होती है, क तु स य उससे भी अ धक मू यवान होता है ।
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टे न के स समाचारप 'मानचे टर गा डयन' ने एक बार ‘समाचार क प रभाषा या है’
इस पर एक तयो गता कराई थी, िजसम सव तम प रभाषा जो पुर कृ त क गई, वह इस
कार थी – “समाचार कसी अनोखी या असाधारण
घटना क अ वल ब सूचना को कहते ह, िजसके बारे म लोग ाय: पहले कुछ न जानते ह ,
ले कन िजसे तुर त ह जानने क यादा से यादा लोग म च हो ।”
एक बार कसी प कार ने समाचार क या या करते हु ए कहा क 'बुराई म समाचार है ।‘
आप ईमानदार से काम करते ह, इसम समाचार व कु छ नह ं है, पर य द चोर करते हु ए पकड़े
जाएँ तो वह समाचार हो जाएगा । प कार के कहने का अथ यह था क बुराई म कु छ न कुछ
असाधारणता, कु छ नवीनता, कु छ सनसनी और लोग के लए कु छ कु तूहल रहता है, अत:
उसका समाचार क ि ट से मू य है । उपयु त प रभाषाओं के अ त र त अनेक व वान
ने समाचार को प रभा षत कया है, िजसम से कुछ उ लेखनीय ह-
“िजस कसी बात को संपादक कहते ह वह समाचार होता है ।”
“ वचार र हत त य भी समाचार है ।”
“समाचार का अथ आगे बढ़ना, चलना, अ छा आचरण या यवहार है । म य और परवत
काल म कसी काय या यापार क सू चना को समाचार मानते थे । ऐसी ताजी या हाल क
घटना क सूचना, िजनके स ब ध म पहले लोग क जानकार न हो ।”
- मानक ह द कोश (रामच वमा)
''दु नया म कह ं भी कसी समय कोई छोट -मोट घटना या प रवतन हो उसका श द म जो
वणन होगा, उसे समाचार या खबर कहते ह ।”
- रा. र. खा डलकर
“घटना समाचार नह ं है, बि क वह घटना का ववरण है, िजसे उसके लए लखा जाता है,
िज ह ने उसे दे खा नह ं है ।” - मै सफ ड
“जो सा रत अथवा समाचारप म मु त होता है वह समाचार होता है ।”
संवाद, खबर, वृता त , ववरण और सूचना समाचार के पयाय ह । अमरकोश म वाता, वृि त ,
वृि त तथा ‘उद त’ चार श द समाचार के लए यु त हु ए ह । इन सभी श द से कसी
घटना क पूर जानकार दे ने का भाव प ट होता है ।
“समाचार कसी घटना, प रि थ त, ि थ त या प क सह और साम यक सूचना है - ऐसी
सू चना, िजसम उन लोग को, िजनके लए वह अ भ ेत हो, दलच पी होगी ।”
- डाउ लंग लेदरवुड
“समाचार ‘सामा य से परे ’ कोई भी बात है और समाचार ह एक ऐसी बात है, जो समाचारप
क वशाल सं या को बेचने म सहायता कर सकती है ।”
- नाथि लफ
“समाचार कसी भी घटना का ऐसा ववरण है, िजसे एक समाचारप केवल इस लए मु त
करता है ता क वह लाभ कमा सके ।” - क टस डी. मे डेगेल
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“समाचार कसी वतमान वचार, घटना या ववाद का ऐसा ववरण है, जो उपभो ताओं को
आक षत करे ।” - वूल ले और कै पवेल
News is anything you did not know yesterday. - Turner Calledge
‘Anything timely that interests a number of persons and the best news
is that which has greatest interest for the greatest numbers.’
- Willard Bleyer
News is history in a hurry. - George H. Morris
It is the honest and unbiased and complete account of events of
interest and concern to the public. - Duane Bradley
News is anything out of the ordinary.
‘News is something revealed.’
‘News is something which somebody wants suppressed.’
‘News is any event, idea or opinion that is timely, that interests or
affects a large number of people in a community and that is capable
of being understood by them.’
‘News is a compilation of facts and events of current interest or
importance to the readers of the Newspaper printing it.’
‘Sex money, crime - that is news.’
’News is anything and everything interesting about life and materials
all their manifestation.’
‘What is new in News?’
इन सभी प रभाषाओं से यह न कष नकलता है क स य, साम यक और बहु सं यक यि तय
क िजसम च हो, वह सू चना 'समाचार' है ।
1.2.2 समाचार के त व
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ह और आ दो लत करते ह, वे ह समाचार बनते ह । भावो े क करने वाले या अपने हत और
अ हत से स ब समाचार म मनु य क वशेष च होती है । इस लए ऐसे समाचार म आकषण
के मूल गुण न न माने ह- 1. नवीनता, 2. साम यकता, 3. सामी य, 4. व हत, 5. धन,
6. काम-वासना, 7. संघष और रोमानी, 8. असाधारणता, 9. वीर पूजा, 10. यश, 11. रह य,
12. मानवीय गुण का उ े क, 13. साहस और वीरता, 14. आ व कार और खोज, 15. कु कृ य,
16. ग त क कहानी, 17. नाटक यता, 18. व श टता ( यि त, थान और पद), 19.
प रणाम ( यापक और सघन), 20. सं कृ त, 21. व वास, 22. वा य, 23. सु र ा, 24.
बंधु व (अ तरा य, रा य, ादे शक, नगर य और जातीय) तथा 25. सामािजक और
आ थक प रवतन ।
डा. न द कशोर खा ने वे बात, जो अ धकांश पाठक को दलच प लगती ह, वे इस कार
मानी ह- 1. नवीनता, 2. असामा यता, 3. अनापे त भाव, 4. आ मीयता, 5. आकां ा, 6.
यि तगत भाव, 7. नकटता, 8. क णा और भय, 9. धन, 10. मानवीय प , 11 सहानुभू त
और 12. रह य ।
ो. सुभाष धू लया ने समाचार य मह व म िजन त व का उ लेख कया है वे ह - 1 नकटता,
2. आकार, 3. भाव, 4. उपभो ता वग, 5. संदभ, 6. नी तगत ढांचा, 7. मह वपूण
जानका रयाँ और 8. असाधारणता ।
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थान हण करते ह । कभी-कभी तो वे इतने मह व के होते ह क कम मह व के
समाचार को बचाकर पृ ठ का व प ह बदल दे ना पड़ता है । पूव - नधा रत अ त मह व
के समाचार गौण प ले लेते ह ।
2. यापी समाचार - वह है, जो अपने मह व और भाव के कारण पृ ठ पर ऐसा थान
पाता है मानो सभी पर आ छा दत हो । उसका व तार भी बड़ा हो सकता है । यह भी
संभव है क यापी समाचार के खंडन के लए अ य समाचार भी उसके अनुगामी का थान
हण करते ह । यापी समाचार को थान भी वशेष मलता है और उसका शीषक भी
अ धक आकषक होता है । इस कार के समाचार अपने म पूण होते ह ।
अंतरा य मह व के समाचार
1.3 समाचार का मह व
समाचार का मह व तय करने के लए संवाददाता को कु छ बात वशेष प से यान म रखना
चा हए । उसे याद रखना चा हए क वह समाचार लखने वाला बाबू नह ं है । साथ ह , समाचार
का हू-ब-हू च ण कर दे ने वाला 'फोटो ाफर' भी नह ं है । उसे मानवीय ि टकोण से घटना
क समालोचना करना है और उसका उ चत मह व तय करना है । इसम पहला आधार- त म
समय है । समाचार का मु य आधार शी ता पर ह है । आज का समाचार कल के अखबार
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म छप जाए तभी उसका मह व है । तीसरे दन छपे तो उसका मह व थोड़ा कम हो जाएगा,
पर रहे गा ज र । ले कन इसके बाद तो उसम से समाचार-त व ब कुल नकल जाएगा । वैसे
कोई घटना पुरानी हो गई हो और का शत नह ं हु ई तब भी इस घटना म समाचार व है, यह
कहा जा सकता है ।
समाचार त काल न ट होने वाल व तु है, यह स य संवाददाता के दमाग म लखा हु आ रहना
चा हए । दै नक-समाचारप के कई सं करण का शत होते ह । नगर सं करण म नगर के
अि तम से अि तम समाचार समेट लेने क को शश क जाती है । इस- कार समय समाचार
का मह वपूण अंग है । नई ौ यो गक आने के बाद तक ह थान से समाचारप के कई
सं करण के अलावा अनेक समाचारप अनेक थान से अलग- अलग सं करण भी नकालने
लगे ह ।
1.3.2 यि त का मह व
1.3.3 मानवीय च
19
को अपने-अपने व वसनीय संपक सू बनाने होते ह । सारांश म कहा जा सकता है क
लोग ह समाचार से ोत होते ह ।
2. संवाददाता को सबसे पहले उस े के मह वपूण यि तय , सं थाओं और उनके भार
यि तय के बारे म जानकार होनी चा हए । इसके अ त र त संवाददाता को राजनी तक
दल के नेताओं, उनके कायालय , पु लस थान , च क सालय , वधान मंडल, नगर नगम
और उनके व भ न अनुभाग , शै णक, सामािजक, धा मक, सां कृ तक सं थाएँ, वक ल
संघ , नगर के सभी मह वपूण यि तय , सं थाओं, संगठन आ द क भल भाँ त
जानकार होनी चा हए और येक जगह उसका स पक सू होना चा हए ।
3. ेस व ि त क तरह संवाददाता स मेलन या स
े कां स भी समाचार का मु य ोत
होता है । संवाददाता को संवाददाता स मेलन म नय मत प से जाना चा हए और वहाँ
से समाचार संक लत करने चा हए ।
4. संवाददाता म समाचार सू ंघने और परखने क शि त होनी चा हए । संवाददाता के इ ह ं
े ी म ‘नोज फार द यूज' कहा गया है । उसम जाँच-पड़ताल, खोज- बन,
गुण को अं ज
पूछताछ आ द के लए जासू स जैसे गुण, व भ न कार के समाचार- ो ( यि तय )
के मु ंह से बात नकलवाने के लए मनोवै ा नक जैसे गुण होने चा हए ।
5. संवाददाता को अपना सू चना- ोत का व वास सदै व कायम रखना चा हए । य द उसम
कोई 'ऑफ द रकाड' बात कह हो तो उसे अ य कह ं न बताए । मरण रहे क अपने
स पक सू म कह ं भी कोई आँच नह ं आने दे नी चा हए । जहाँ ा त जानकार क
व वसनीयता के बारे म जरा भी संदेह हो, संवाददाता को शी ह माण एक कर लेना
चा हए ।
6. स पक सू था पत करने के साथ-साथ उ ह बनाए रखना भी अ य त आव यक है ।
इसके लए अपनी ओर से सदै व य न करते रहना चा हए । स पक-सू म नर तरता
भी ज र है ।
संवाददाता के लए समाचार के न न ोत हो सकते ह -
1. ेस व ि तयाँ 2. ेस क यु न स
3. ेस कॉ स 4. भाषण एवं व त य
5. सा ा कार या भट वाता 6. रे डयो या टे ल वजन समाचार
7. समाचार स म तयाँ 8. पु लस थाना
9. यायालय 10. अ पताल
11. सरकार वभाग 12. वधान मंडल
13. यि तगत संपक 14. अ य ोत- स मेलन, संगो ठ , तवेदन, रपोट
आद ।
समाचार का वग करण
समाचार ोत को तीन भाग म वभ त कया जा सकता है -
1. या शत समाचार 2. अ या शत समाचार 3. पूवानुमा नत समाचार
20
1.4.1 या शत समाचार
1.4.2 अ या शत समाचार
22
के त य सबसे पहले दे ना चा हए और सबसे कम मह व के अंश को सबसे बाद म दे ना चा हए
। एक समाचार दे खए -
अमर क व व व यालय म अंधाधु ध
ं फाय रंग
30 मरे 28 घायल
लै सवग, व 17 अ ेल (एजसी)
अमर क रा य वज नया के एक व व व यालय म एक बंद ूकधार ने एक छा ावास और
ं गोल बार कर कम से कम 30 लोग क ह या कर द , जब क 28 से
लास म म अंधाधु ध
अ धक लोग घायल हो गए । पु लस का कहना है क फाय रंग क घटनाओं के बाद हमलावर
भी मरा हु आ पाया गया ले कन यह अभी प ट नह ं हो सका है क उसने खु द अपनी जान
ल या वह पु लस क गोल का नशाना बना । एक यूज चैनल के मुता बक हताहत म कोई
भारतीय नह ं है । वज नया टे क के पु लस मुख वे डेल ि लंशम ने बताया क फाय रंग वे ट
ए बलर जॉ टन हॉल छा ावास और एक इंजी नय रंग संकाय के भवन नॉ रस हॉल म हु ई
। ये दोन थान 26 सौ एकड़ के व व कै पस के अलग-अलग कोन पर है ।
े मका क तलाश?
हमलावर कौन है और उसने वारदात को अंजाम य दया इसके बारे म कोई पु ट जानकार
नह ं मल है । बताया जाता है क एक युवक अपनी गल ड के बारे म छा से पूछताछ
कर रहा था । इसके कु छ ह दे र बाद फाय रंग क घटना हो गई ।
(राज थान प का, 17 अ ेल 2007)
23
है - 1. समाचार त य को संक लत करना, 2. कथा क काय योजना बनाना तथा लखना,
3. आमु ख लखना, 4. प र छे द का नधारण करना, 5. व ता के कथन को अ वकल प
से तु त करना, 6. सू के संकेत को उ ृत करना ।
समाचार लेखन के लए दो कार क शैल च लत है - 1. वलोम परा मड शैल और 2.
उ व परा मड शैल ।
24
वलोम परा मड शैल को 'उ ट तू पी प त' के नाम से भी जाना जाता है । मी डया जगत ्
म यह प त या शैल वशेष प से च लत और लोक य है ।
ऊ व परा मड (Upright Pyramid) शैल वलोम परा मड शैल से एकदम उलट है । ऐसे
समाचार म सवा धक मह वपूण अंश को शु म न दे कर उसका आर भ सबसे कम मह व
के ववरण से कया जाता है । ले कन धीरे -धीरे मह वपूण वषय को लया जाता है और
समाचार सवा धक मह व वाले ववरण पर समा त कया जाता है । इ ह नलं बत अ भ च
वाले समाचार भी कहा जाता है । ऊ व परा मड का उपयोग फ चर, मानवीय अ भ च के
समाचार म यु त कया जाता है । इसम द जाने वाल साम ी का म कुछ इस कार
रहता है-
1. दलच प आर भ
2. गैर मह वपूण सूचना
3. त य
4. व तार
5. मह वपूण जानकार
25
2. समाचार से जु ड़े त य ।
3. व तार, िजसम समाचार क पृ ठभू म भी शा मल है ।
4. मह वपूण जानकार ।
5. सवा धक मह वपूण जानकार िजसे समाचार का चम कष भी कहा जा सकता है ।
ऊ व परा मड शैल (Upright Pyramid) को इस कार तु त कया जा सकता है-
26
1.5.5 शीषक
1.5.6 व तार
समाचार लेखन म इं ो या आमु ख लेखन पर िजतना जोर दया जाता है, उतना जोर समाचार
के व तार अथात ् अ य श द म समाचार क बॉडी लखने पर नह ं दया जाता । इस लए
कई बार अ छे इं ो के बावजू द कमजोर व तार (बॉडी) के कारण समाचार अ भावी और
अपठनीय हो जाते ह । वा तव म, संवाददाता को कसी भी समाचार को उसक संपण
ू ता म
दे खना चा हए न क उसके अलग-अलग पहलुओं जैसे इं ो, व तार और समापन के तौर पर
। समाचार काँपी लेखन क काँपी तैयार करते हु ए संवाददाता को यह हमेशा यान म रखना
चा हए क इं ो के बाद समाचार क बॉडी म या होगा और वह कैसे आएगा?
इसके लए संवाददाता को यह सु नि चत करना चा हए क इं ो और बॉडी के बीच एक नरं तरता
हो और पाठक को ऐसा न लगे क समाचार के इं ो और बॉडी के बीच कोई सामंज य ह नह ं
है । कहा जा सकता है क समाचार लेखन के लए समाचार क बॉडी के अलावा बाक शर र
भी मह वपूण है । समाचार क बॉडी का मह व इस लए बढ़ जाता है क इं ो म उ ले खत
त य क या या और व लेषण समाचार क बॉडी म होता है । समाचार के व तार म दो
त य का यान रखना आव यक है - 1. इं ो म दए गए त य क या या, और 2. कम
मह वपूण त य को समाचार म या या पत करना । इससे समाचार को या या पत करने
म सहायता मलती है, जो आमतौर पर इं ो म नह ं आ पाते ।
27
1.5.7 समापन
28
आतंकवाद, टाचार और सरकार व ि तयाँ, चु नाव आ द समाचार क समाचारप
म भरमार होती है । ले कन मानवीय च – ‘ यूमन इंटेरे ट’ से जु ड़े समाचार का
समाचारप म अभाव रहता है । मानवीय संवेदनाओं और जीवन के कु छ अ य त पहलु ओं
को काश म लाने वाले समाचार मानवीय च क समाचार क ेणी म आते ह । ऐसे
समाचार को लखने के ढं ग से और रोचक भी बनाया जा सकता है ।
4. आ मीयता - 'आ मीयता’ भी समाचार का एक बड़ा गुण है । समाचार से जुड़ी घटनाओं
से पाठक िजतनी आ मीयता पाएगा, वह उससे उतना ह भा वत होगा । इसके अ त र त
स यता, नवीनता, वैयि तकता, सं या और आकार, संशय और रह य आ द समाचार
के ऐसे त व ह, िजनम समाचार के त आकषण उ प न होता है ।
5. सामी य त व - समाचार लेखन म 'सामी य' का अपना वशेष मह व है । सामी य का
आशय नकटता से है । जो समाचार पाठक के नकट या आस-पास होगा वह उतना ह
पाठक वारा पढ़ा जाएगा, य क पाठक का अपने आस-पास क घटनाओं म च होना
वाभा वक है ।
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……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. वलोम परा मड समाचार ले ख न या है ?
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1.8 सारांश
‘समाचार अवधारणा एवं लेखन तकनीक' इकाई पढ़ लेने के बाद आप जान गए क समाचार
कसे कहते ह और समाचार लखने क तकनीक या है । इसम समाचार के व भ न
प रभाषाओं क भी व तार से समी ा क है । साथ ह समाचार के मह व, समाचार के ोत,
समाचार लेखन, समाचार के मह वपूण त व और समाचार के पाँच सकार क व तृत
ववेचना क है ।
मी डया जगत म समाचार का अपना व श ट थान है, चाहे वह टं मी डया हो या
इले ॉ नक मी डया । समाचार लेखन म वलोम परा मड शैल या उ ट परा मड शैल का
योग सवा धक होता है, ले कन इधर कु छ वष से समाचार लेखन म अनेक नई शै लय का
योग हो रहा है । नई शै लय म सवा धक लोक य शैल कथा मक या वणना मक शैल
है । अं ेजी एवं ह द के समाचारप म इस शैल का चलन बढ़ रहा है
1.9 श दावल
समाचारप - नय मत प से त दन का शत होने वाले दै नक समाचारप कहलाते ह ।
भारत के ेस ए ड रिज े शन ऑफ बु स ए ट के अनुसार – ‘समाचारप कोई भी नि चत
अव ध म का शत होने वाला प है िजसम सावज नक समाचार या ऐसे समाचार पर
ट प णयाँ हो ।’ यह प रभाषा समाचार से जु ड़ी हर प का को समाचारप क प र ध म शा मल
कर दे ती है ।
समाचार संकलन - संवाददाता वारा अपनी सू झबूझ, प र म और साहस से । व भ न ोत
से समाचार ा त करना, ढू ं ढना, खोजना, जनसंपक करना, वयं घटना- थल तक पहु ँचकर
समाचार ा त करना आ द समाचार संकलन कहलाता है ।
समाचार के त व - समाचार को समाचार व दान करने वाले त य ह - 1. जानकार , 2.
नवीनता, 3. बहु सं यक क अ धकतम च, 4. उ तेजक सू चना और 5. प रवतन क सूचना।
फ चर - प का रता म फ चर लेखन एक वशेष वधा है । इसका उ े य सामा य पाठक का
मनोरं जन करना है अथवा उसक जानकार बढ़ाना है । फ चर कसी रोचक वषय पर मनोरंजक
शैल म लखा गया लेख है ।
संवाददाता - समाचारप को संवाद या समाचार भेजने वाला प कार संवाददाता कहलाता है
। संवाददाता भी दो तरह के होते है - 1. थानीय और 2. अ य थान से समाचार एक
कर डाक, फे स, फोन आ द से भेजने वाले ।
30
इं ो या आमु ख - समाचार का आरं भक भाग, िजसे आमु ख भी कहा जाता है । इसम समाचार
के ाय: एक या दो या अ धक मह वपूण अंश का संकेत होता है ।
ककार - समाचार लेखन म छ: ककार का अपना मह वपूण थान है । ये ककार है - या,
कहाँ, य , कैसे, कौन और कब ।
इनवटड परा मड/ वलोम परा मड - समाचार के आरं भक वा य म ह मह व के अनुसार
जानकार दे ने का स ा त । इसम सबसे मह वपूण जानकार पहले द जाती है और गौण
यौरे अंत म ।
अपराइट परा मड/ऊ व परा मड - मानवीय संवदे ना उजागर करने या उभारने वाले समाचार
म घटना या उसके मह वपूण यौरे आर भ म न दे कर बाद म उनका उ लेख कया जाता
है ।
1.11 अ यासाथ न
1. समाचार या है? समाचार क प रभाषा समझाते हु ए समाचार- ोत के वग करण पर काश
डा लए।
2. समाचार लेखन क तकनीक क व तृत ववेचना क िजए ।
3. समाचार संकलन के बाद सवा धक मह वपूण काय समाचार लेखन का है ।” इस कथन क
समी ा क िजए।
4. “ वलोम परा मड शैल समाचार लेखन का बु नयाद स ा त है । यह समाचार लेखन का
सबसे सरल, उपयोगी और यावहा रक स ा त है ।'' समी ा क िजए ।
5. इं ो से आप या समझते ह? एक अ छे इं ो क वशेषताएँ बताइए ।
6. समाचार के पाँच सकार कौन से है? आप इन सकार म से कन सकार को उपयोगी और
भावी मानते है? व तार से बताइए ।
7. समाचार लेखन के मह वपूण त व कौन-कौन से है? इन त व का व तृत प रचय द िजए
।
31
8. समाचार-संकलन के मु ख ोत या ह? ' यि त ह समाचार के ोत होते ह । इस कथन
क समी ा क िजए।
9. सं त ट प णयाँ ल खए –
1. समाचार का व प 2. समाचार के कार
3. समाचार का मह व 4. समाचार लेखन क नई शै लयाँ
5. छ: ककार 6. समाचार के शीषक
32
इकाई-2
संवाददाता, समाचार ोत एवं संकलन
इकाई क परे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 संवाददाता से आशय
2.3 संवाददाताओं क े णयाँ काय वभाजन
2.3.1 कायालय संवाददाता
2.3.2 वशेष संवाददाता
2.3.3 अंशका लक संवाददाता
2.3.4 काय के आधार पर संवाददाता
2.3.4.1 लाइनर
2.3.4.2 ि ं गर
2.3.4.3 पूणका लक संवाददाता
2.3.4.4 टाफस
2.3.5 प कार वेतन मंडल वारा नधा रत संवाददाता
2.3.5.1 वशेष संवाददाता
2.3.5.2 मु य कायालय संवाददाता
2.3.5.3 उप मु य कायालय संवाददाता
2.3.5.4 रपोटर
2.3.5.5 संवाददाता
2.3.5.6 वदे श संवाददाता
2.4 समाचार : व प एवं आशय
2.4.1 समाचार के कार
2.4.1.1 व श ट समाचार
2.4.1.2 यापी समाचार
2.5 समाचार के ोत
2.5.1 या शत ोत
2.5.2 अ या शत ोत
2.5.3 पूवानुमा नत ोत
2.6 समाचार संकलन
2.6.1 ेस व ि त
2.6.2 पु लस थाने एवं अ पताल
2.6.3 सरकार एवं गैर सरकार सं थान
33
2.6.4 ेस स मेलन
2.6.5 जनस पक वभाग
2.6.6 सा ा कार
2.6.7 यूज एजेि सयां
2.7 समाचार लेखन एवं तु तीकरण
2.8 समाचार का अनुवतन सारांश
2.9 सारांश
2.10 श दावल
2.11 कु छ उपयोगी पु तक
2.12 अ यासाथ न
2.0 उ े य
यह सूचना युग है । सूचना संसाधन का नयं ण और उपयोग जो कर सकता है वह शि तशाल
है । दरअसल यह सू चनाओं के व फोट का दौर है । आप नह ं भी चाहगे तब भी सूचनाएँ
आपके इद- गद घूमगी और आपके सरोकार उनम तय करे गी ह । इस इकाई म आपको समाचार
दे ने वाले संवाददाता, समाचार ोत एवं संकलन के बारे म ह जानकार द जा रह है । इस
इकाई के अ ययन उपरा त आप -
संवाददाता से आशय, उसक प रभाषा के बारे म जान सकगे ।
संवाददाता क वभ न े णयाँ एवं उसके काय वभाजन को' समझ सकग ।
समाचार क प रभाषा एवं उसके व प को जान सकगे ।
समाचार के व भ न ोत एवं संकलन तकनीक के बारे म जान सकगे ।
समाचार लेखन तकनीक एवं उसके व प को समझ सकगे ।
2.1 तावना
सू चना ौ यो गक के इस युग म व व भर क दू रयाँ अब समा त हो गयी है । दूरसंचार,
क यूटर-इंटरनेट और सैटेलाईट के ज रए पलभर म व व के एक कोने से दूसरे कोने तक
संदेश का सारण संभव होने के साथ ह मी डया के पार प रक व प म भी तेजी से बदलाव
आया है । समाचारप के इ टरनेट सं करण आने के साथ ह उनक पहु ंच दे श दू रय को
समा त कर चुक है । आप अमे रका म बैठे ह और वहां ह दु तान के कसी छोटे से िजले
से का शत दै नक समाचार का आ वाद लेना चाहते ह तो त काल इ टरनेट से जुड़े क यूटर
पर जाएं, आपको वहां वह अखबार अपने पूरे कलेवर के साथ मौजू द मलेगा-नवीनतम सूचनाओं
के साथ । ऐसा ह ट वी के साथ हु आ है । इतने अ धक सैटेलाईट चैनल का आकाश माग
से व व म वेश हो चुका है क आप दु नया जहान म घ टत पल-पल के समाचार को दे ख-सु न
सकते ह ।
ऐसा जब हो रहा है तो वाभा वक ह है क समाचार लखने वाले, तु त करने वाले संवाददाता
का काय भी अब बेहद चु नौतीपूण हो गया है । समाचारप एवं इले ॉ नक मी डया म काय
करने वाले संवाददाता ह वे मह वपूण कड़ी है जो पल-पल के समाचार को एक थान से दूसरे
34
थान तक पहु ंचाते ह । ऐसे म संवाददाता क भू मका, समाचार के लए यु त उसके ोत
के आयाम भी नरं तर बदले ह । टं एवं इले ॉ नक मी डया म संवाददाता क या है भू मका,
कौनसे ह उसके ोत, कैसे करता है वह समाचार का संकलन और कैसे उनक करता है तु त?
इस इकाई म इ ह ं पर काश डालने का यास कया गया है ।
35
म भी मह वपूण भू मका नभाता है । प का रता को लोकतं का चौथा त भ कहा गया है
। संवाददाता इस चौथे त भ क वह बेहद मह वपूण कड़ी है जो समाचार के मा यम से
जनता क न ज को टटोलते, अ भ यि त क वतं ता का सह मायने म इ तेमाल करते
हु ए लोकतं क नींव को मजबूत करता है ।
36
के लए नधा रत करते हु ए खबर क तह तक जाने का यास करते हु ए संबं धत
व भ न अ य समाचार से उसे संब करते हु ए समाचार लखता है । एक अनुभवी
प कार होने के नाते वशेष संवाददाता समाचार लखते समय घटना या वषय का
व लेषण ह नह ं करते बि क वे उसके भ व य म होने वाले प रणाम का ववेचन
भी करता है । ऐसे ह इले ॉ नक मी डया के वशेष संवाददाता कसी राजनी तक
समाचार, वशेष घटना के समाचार, व श ट सू चना आ द का पूण व लेषण करते
हु ए ता कक ढं ग से उसके प रणाम और उसके लोग पर पड़ने वाले असर के बारे म
योरा बनाते हु ए उसे यापक दशक , ोताओं तक पहु ंचाते ह । ऐसे म वे घटना थल
पर वयं पहु ंचकर वहाँ क य- य साम ी भी जु टाते ह । उदाहरण के लए लखनऊ
से का शत होने वाले समाचारप म लखनऊ नगर म समाचार का उ तरदा य व
कायालय संवाददाता या रपोटर का होता है ।
2.3.4.1 लाइनर
2.3.4.2 ि ं गर
37
। तमाह इ ह एक नधा रत रा श अपने प का रता कम के लए दान क जाती
है । आजकल इले ॉ नक मी डया म तो अ धकांशत: ि ं गर ह तैनात होते ह िजनके
पास वयं के कैमरे होते ह । संबं धत इले ॉ नक मी डया के लए ये ि ं गर य
य- य साम ी भजवाते ह ।
2.3.4.4 टाफस
प कार वेतन मंडल के मानदं ड के अंतगत वशेष संवाददाता उसे माना गया है जो
कसी समाचारप के लए संसद य, राजनी तक और आम जन के मह व के सभी
समाचार को संक लत करते हु ए उनक समी ा करता है । वशेष संवाददाता द ल
म भारत सरकार वारा मा यता ा त होता है और वदे श म नयु त कया हु आ
भी हो सकता है । ऐसे प रभाषा म उन प कार को भी शा मल कया गया है जो
संसद य, राजनी तक या सामा य जन मु के समाचार के संकलन एवं लेखन के
साथ एक से अ धक रा य म या कसी ऐसे रा य या कसी ऐसे थान पर, जहां
उनसे ऐसा ह काय करने को कहा गया है, काम करते ह ।
2.3.5.4 रपोटर
2.3.5.5 संवाददाता
39
बशत क उसम सावज नक समाचार, सू चनाएं छपी हो, अथवा इन समाचार के संबध
ं म कोई
ट का- ट पणी हो और वह एक नि चत अव ध के बाद ब के लए का शत होता हो ।”
समाचारप के बारे म इस कथन से यह बात प ट होती है क सावज नक सूचनाओं को यापक
अथ म समाचार कहा जाता है । अब तो समाचार श द ह सूचना के सार का योतक बन
गया है । मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है क मनु य क च को यान म रखते हु ए
एका धक लोग तक पहु ंचाई जाने वाल सू चना क अ भ यि त को समाचार कहा जाता है ।
समाचार को कसी वशेष अथ म प रभा षत नह ं कया जा सकता, चू ं क इसका े अ य धक
यापक है । टं और इले ॉ नक मी डया के इस दौर म समाचारप म का शत सू चनाओं
को ह समाचार नह ं कहा जा सकता बि क सारण के व भ न मा यम म तु त क जाने
वाल सू चनाओं के व वध प भी समाचार से ह संबं धत माने जायगे ।
सामा यतया समाचारप के संदभ म समाचार वह है िजसे संपादक का शत करना चाहे या
संपादक िजसे लखे वह समाचार है । समाचार अथात ् घटना, त य या मत क ऐसी साम यक
सू चना िजसके बारे म जानने के लए यापक वग को उ सु कता हो । ऐसा भी कहा जाता है
क िजसके बारे म कुछ समय पहले तक कसी कार क जानकार नह ं हो समाचार वह स चाई
है ।
समाचार के बारे म बहु च लत प रभाषा यह भी द जाती है क कु ता अगर आदमी को काट
ल तो वह समाचार नह ं है । य द आदमी कु ते को काट ले तो उसे समाचार कहगे । इसका
अथ यह हुआ क अ या शत ऐसी सूचना िजसके बारे म सामा यतया अनुमान नह ं लगाया
जाता, वह समाचार ह कहलायेगी । मी डया म समाचार के बारे म एक अवधारणा यह भी
खासा च लत है क िजस सू चना को लोग को जानने न दे ने अथात ् दबाने का यास कया
जाता है वह ं समाचार या खबर कहलाता है ।
शाि दक अथ म दे ख तो समाचार को अं ेजी श द NEWS के ह द पा तरण के प म
भी दे खा जाता है । NEWS क उ प त NEW से ल जाती है अथात ् नवीन । जो कुछ नया
है, िजसम नवीनता का बोध हो । ऐसा माना जाता है क NEW का समु चय NEWS है
। हे डन कोश के अनुसार “सब दशाओं क घटनाओं को समाचार कहा जाता है ।” इस अथ
म NEWS श द के चार अ र चार दशाओं के आ या र ह । NEWS के पहले अ र N
को NORTH, E को EAST, W को WEST व S को SOUTH के अंतगत चार दशाओं
का सूचक मानते हु ए इसका अथ लगाया जाता है । चू ं क समाचार के अंतगत चार दशाओं
से समाचार व सू चनाओं का आदान- दान जो होता है । प का रता का ाणत व समाचार ह
जामना जाना जाता है । वृ तांत , खबर, ववरण, सू चना को समाचार के पयाय के प म दे खा
जाता है । अमरकोश म वाता, बूि त तथा उद त श द समाचार के लए यु त हु ए ह । ऐसे
म यह कहा जा सकता है क संवाद सं ेषण के अंतगत बहु उपयोगी घटना क पूर जानकार
दे ने का काय समाचार के अंतगत कया जाता है ।
अं ेजी के बाद ह द म य द समाचार श द का व लेषण कर तो पायगे क ह द वणमाला
के चार श द स+म+च+र = समचर बना है । समचर का ता पय साथ-साथ चलने से है ।
इस अथ म समाचार, समाचार दाता और ा तकता के साथ-साथ ह तांतरण से संबं धत है
40
। समाचार का अथ समाज को सू चत करने से है । इसम सूचना दे ना और लेना दोन ह
स म लत है । कुल मलाकर समाचार का अ भ ाय दै नक जीवन को सहज, सरल और कु छ
रोचक बनाने के लए मलने वाले ान अथात सू चनाओं से है । मनु य सामािजक ाणी है
और वह अपने आस-पास के प रवेश से कभी भी अलग नह ं रह सकता । ऐसे म समाचार
का मनु य से जु ड़ाव नरं तर बना रहता है । एक दूसरे के बारे म जानने क उ सुकता सहज
मानवीय वाभाव है ।
आचाय रामच वमा के अनुसार – “'समाचार का अथ आगे बढ़ना, चलना, अ छे आचरण
अथवा यवहार है । म य और परवत काल म कसी काय या यापार क सू चना को समाचार
मानते थे ।”
ो. व लयम जी लेयर के श द म – “अनेक यि तय क अ भ च िजस साम यक बात
म हो, वह समाचार है । े ठ समाचार वह है िजसम बहु सं यक क अ धकतम च हो ।”
मानचे टर गािजयन के अनुसार – “समाचार कसी अनोखी या असाधारण घटना क अ वल ब
सू चना को कहते है । ऐसी सूचना िजसके बारे म लोग ाय: पहले कु छ न जानते हो पर तु
िजसे तुर त ह जानने क अ धक से अ धक लोग म च हो ।”'
व लयम एल रवस के मतानुसार – “घटनाओं, त य और वचार क साम यक रपोट िजसम
पया त लोग क च हो, समाचार है ।”'
जाज. एच. मौ रस कहते ह – “समाचार ज द म लखा गया इ तहास है ।''
टनर कॉलेज - '’वह सभी कु छ िजससे आप कल तक अन भइा थे, समाचार है ।''
जेरा ड ड यू जॉनसन के अनुसार- “साधारण यवहार म समाचार वे है, जो अखबार म छपते
है और अखबार वे है िज ह समाचारप म काम करने वाले तैयार करते है ।''
ो. रमेश जैन के श द म – “स य, साम यक और बहु सं यक यि तय क िजसम च हो
वह सूचना समाचार है । ''
इन प रभाषाओं के आधार पर प टत: यह कहा जा सकता है क समाचार वह है िजसम
बहु सं यक लोग क जानने क उ सु कता हो, जो नवीन हो, िजसम ग त हो, जो साम यक
घटनाओं और वषय को अ भ य त करती हो । व तु त: सूचनाओं के व फोट के इस दौर
म समाचार साम यक घटनाओं के इ तहास के प म टं एवं इले ॉ नक मी डया क वह
धरोहर है िजससे हर आम और खास का सरोकार जु ड़ा होता है ।
41
उसके पूण प रवेश और भ व य म पड़ने वाले त य के भाव का व लेषणा मक
यौरा तु त कया जाता है ।
इसी कार घटना के मह व के हसाब से दे ख तो समाचार को दो और भाग म वभ त
कर समझा जा सकता है ।
2.5 समाचार के ोत
समाचार के व भ न ोत होते ह । एक संवाददाता को अ छे समाचार के लए ल खत ोत ,
वशेष , आम या भु तभोगी लोग , घटना से संबं धत लोग को ोत के प म योग करना
होता है । खास प रि थ तय म संवाददाता वयं घटना थल जाकर खु द भी सूचनाओं का ोत
42
हो सकता है । समाचार के ोत य भी हो सकते ह और अ य भी हो सकते ह । समाचार
लखने वाले संवाददाता का िजतना समृ जनस पक होगा , उतना ह वह समाचार के मामले
म समृ होगा । समाचार के व भ न ोत इस कार से ह-
2.5.1 या शत ोत
2.5.2 अ या शत ोत
2.5.3 पूवानुमा नत ोत
कई बार समाचार एजेि सय भी ऐसे समाचार को जार करती ह िज ह हू बहू उपयोग म लेने
क बजाय उनके आधार पर उससे संबं धत और खोजबीन करके मह वपूण समाचार का सृजन
प कार कर लेते ह । समाचार एजे सी ने मान ल िजए राजधानी द ल से संबं धत कोई
राजनी तक समाचार जार कया है, थानीय ग त व धय को उसम सि म लत करते हु ए जब
प कार त य से संबं धत और भी जानका रयां जु टा लेते ह तो उससे समाचार एजे सी से इतर
भी मह वपूण समाचार बन जाता है । कसी भी प कार के लए उसके जानकार के नता त
नजी ोत का वशेष मह व होता है । व भ न सं थान , वभाग , कायालय , संसद एवं
वधानसभाओं आ द सभी थान पर प कार जब नरं तर जाता-आता रहता है तो वयं के
नजी स पक भी वहां के कमचा रय , टाफ के लोग से कर लेता है । यह उसके ऐसे ोत
होते ह जो कई बार बेहद मह वपूण सू चनाएं प कार को अनायास ह दान कर दे ते ह । ऐसे
म यह कहा जा सकता है क कसी भी प कार के घ न ठ स पक ह उसके समाचार के ोत
होते ह । मोटे तौर पर समाचार ाि त के लए समाचारप या इले ॉ नक मी डया के दो
ह ोत होते ह-
प कार या संवाददाता
समाचार स म तयाँ या सरकार एजेि सयाँ
44
टं एवं इले ॉ नक मी डया म समाचार ाि त के मु य ोत उसके वयं के प कार या
फर समाचार स म तयाँ एवं सरकार एजेि सयां ह होती ह । यह ं से आ धका रक समाचार
ा त होते ह । इसके अलावा प कार सूचनाओं क ाि त भी व भ न तर पर करता है ।
सू चना को ह बाद म वह य द उससे समाचार बनाता है तो उसका उपयोग खबर के प म
करता है । य द सू चना खबर यो य नह ं है तो उसका उपयोग फर वह नह ं करता है, कसी
और संदभ के लए उसका उपयोग है तो कई बार वह त काल उसका उपयोग समाचार के प
म नह ं करके बाद म भी उसका योग कर लेता है । आरं भक समाचार के मोटे तौर पर जो
ोत होते ह, वे इस कार से ह-
2.6.1 ेस व ि त
45
2.6.3 सरकार एवं गैर सरकार सं थान
2.6.4 ेस स मेलन
46
2.6.6 सा ा कार
48
से पहले उसके मा यम के बारे म यान रखते हु ए उसका लेखन कया जाए, चू ं क समाचारप ,
रे डयो, ट वी आ द मा यम के लए समाचार लेखन का व प अलग-अलग होता है । मसलन
रे डयो एवं ट वी के लए समाचार जब लखा जाता है तो हर समाचार के लए पृथक पृ ठ
पर उसका त यवार योरा लखा जाता है । समाचार लेखन म यहाँ पर य के लए अंतराल
को भी वशेष प से यान म रखना पड़ता है । अंतराल म या तो य च या फर छाया च
के लए अलग-अलग अव ध को ि टगत रखते हु ए समाचार तु त कया जाता है ।
इले ॉ नक मी डया के लए समाचार लेखन इस प म भी चुनौतीपूण होता है क वहाँ य
एवं य को यान म रखते हु ए लेखन करना होता है । ऐसे समाचार म सरल, सहज श द
का योग तो हो ह साथ म उनक शैल ऐसी हो िजससे दशक या ोता समाचार को अपना
ह सा मान । टं मी डया म भी समाचार लेखन के लए तयशु दा मापदं ड को मानते हु ए
लेखन नह ं कया जाना चा हए । पाठक को यान म रखते हु ए कैसे समाचार पाठक के प रवेश
का ह सा बने, कैसे वह पाठक म उ सु कता को अंत तक बनाए रखे? इन न पर वचार
करके य द समाचार लेखन कया जाए तो न केवल वे भावी ह गे बि क अपना असर भी
पाठक पर अंत तक बनाए रखगी ।
सामा यतया य ोत का उ लेख समाचार म कर दया जाता है । पर तु कई बार
व वसनीय ोत के वारा जानकार ा त कर संवाददाता समाचार का लेखन करता है । ऐसे
म वह उस ोत का सीधे तौर पर उ लेख नह ं करता है । ऐसे म समाचार जब लखा जाता
है तो संवाददाता उसम '' व वसनीय सू के अनुसार” या फर सू से ा त जानकार के
अनुसार ' या फर “जानकार सू के अनुसार” आ द श द का इ तेमाल करते हु ए समाचार
का लेखन करता है ।
समाचार का सवा धक मह वपूण , व वसनीय च लत और मा य ोत सरकार के व भ न
वभाग भी होते ह । रा य एवं के सरकार के सू चना एवं जनस पक वभाग समाचार के
मु ख ोत इस प म होते ह क उनके ज रए जन क याण, आम आदमी से सरोकार वाल
योजनाओं, प रयोजनाओं के बारे म समाचारप को नय मत प से साम ी ा त होती है
। सरकार एजे सी वारा उपल य करायी गयी जानकार स
े व ि त, सरकार वभाग,
मं ालय, कायालय अ धकार वारा बुलायी गयी स
े का स, ेस स मेलन के ज रए
समाचारप तक पहु ंचती ह । सरकार के सूचना एवं जनस पक अ धकार समाचारप एवं
इले ॉ नक मी डया से य त: सतत स पक बनाए रखते ह ता क सरकार नी तय ,
काय म , उपलि धय , जनता से सरोकार वाले मु पर सरकार के ख आ द को यापक
लोग तक टं एवं इले ॉ नक मी डया वारा पहु ंचाया जा सके ।
समाचार ोत के अंतगत समाचारप के संवाददाता के स पक का दायरा िजतना व तृत होगा ,
उतना ह वह समाचार के मामले म समृ होता है । संवाददाता क अपने समाचार ोत के
त िजतनी अ धक व वसनीयता होगी, उतने ह मह वपूण समाचार प ा त कर उ ह
समाचारप हे तु लख सकता है । इसी आधार पर उसे कई बार बेहद मह वपूण समाचार भी
हा सल हो जाते ह । संवाददाता के अपने ोत के साथ ह उसक वयं क स यता भी उससे
49
अ छे समाचार कई बार लखवा लेती ह । मसलन वह अपने आस-पास के प रवेश, संभा वत
घटनाओं के त कतना सजग है, उसे कसी वषय वशेष क संभावना या आशंका के बारे
म ता कक व लेषण क कतनी मता है, आ द ऐसी बहु तेर बात ह िजनके आधार पर कई
बार बेहद मह वपूण समाचार समाचारप को मल जाते ह । अपराध, दुघटना वाले थान
पर संवाददाता को वयं उपि थत होकर घटना, समाचार का योरा लेते हु ए उससे संबं धत
समाचार लखना होता है तो अकाल, बाढ़ आ द के समय क घटनाओं का सू म एवं बार क
मू यांकन य द करना उसे आता है तो वह समाचारप पाठक के लए कई बार मागदशन का
काय भी अपने समाचार के ज रए कर दे ता है । यहाँ भी मह वपूण उसक वयं क स यता
और उसके यि तगत ोत ह होते ह ।
बहु त पहले इन पंि तय का लेखक जब वतं प का रता के अंतगत ‘सा ता हक ि ल ज़’
के लए खोजी प का रता से संब समाचार लेखन से नय मत जु ड़ा हु आ था तो ऐसे ह
यि तगत संपक के कारण कई बार बेहद मह वपूण ऐसे समाचार भी ा त हु ए जो थानीय
दै नक समाचारप को भी तब उपल ध नह ं हो पाए थे । याद पड़ता है बीकानेर के पी.बी.एम.
अ पताल म डाँ टर क लापरवाह से एक म हला को माँ बनने के सु ख से सदा के लए वं चत
होना पड़ा था । च क सक ने म हला को अव धपार इंजे शन लगा दया था । रा को म हला
के बहु त अ धक र त ाव होने लगा और डाँ टर को उसक ब चेदानी नकालनी पड़ी । रा
म कोई दो बजे के कर ब यि तगत स पक सू के अनुसार इस संबध म इन पंि तय के
लेखक को जब जानकार मल तो व रत लेखक अ पताल पहु ँ चा और तभी च क सक क
इस लापरवाह क जो रपट तैयार क उसका फायदा यह हु आ क अ पताल म लगायी जाने
वाले अव धपार इंजे शन क पोल खुल और इससे अ पताल क यव थाओं म तो सुधार हु आ
ह च क सक क लापरवाह से होने वाले नुकसान से भी मर ज को नजात मल ।
समाचारप वारा समाचार लेखन के अपने ोत के बारे म डेटलाईन के बाद उसक जानकार
दे ता है । संवाददाता वयं के तर पर जब वशेष जानकार जु टाता है और उसको ए स लू िजव
के प म लखता है तो वह उसका अपना वशेष समाचार होता है और ाय: उसके नाम से
ह समाचारप म वह का शत होता है । ऐसे समाचार बाइलाईन (संवाददाता के नाम के साथ)
का शत होते ह । इसी कार संवाददाता जब कसी ेस व ि त से समाचार बनाता है तो
समाचार ोत के प म ( व.) लखा जाता है । समाचार एजेि सय से ा त समाचार म
डेटलाईन के बाद संबं धत एजे सी का सं त नाम (रायटर/पीट आई/यूएनआई/भाषा/वाता
आ द) लखा जाता है ।
समाचार लेखन एवं तु तकरण के संबध
ं म नाथ ि लफ का यह कथन अ य धक सट क
है- “समझाइए, सरल बनाइए और प ट क िजए ।''
इस संबध
ं म महाक व अ ेय का यह कथन भी अ य त मह वपूण ह- “श द म का प
है । इसे न ट न कर और कम श द म अ धक बात कहने क कला सीख ।”'
दरअसल समाचार लेखन और तु तकरण के अंतगत साम यकता के साथ ह जनाकषण का
यान रखा जाना बेहद ज र है । इसी से वह अ धकतम पाठक , दशक और ोताओं म अपनी
पैठ बना पाता है । जन च, लोग के आकषण, त य क स चाई, पाठक के श ा तर,
50
जनमत नमाण म सहयोग आ द ऐसी बात ह, िज ह यान म रखकर समाचार का लेखन,
तु तकरण कया जाए तो लोकतं के चौथे त भ के प म मी डया क भू मका म समाचार
अपनी भावशाल भू मका नि चत ह यापक पाठक वग पर बनाता है । संवाददाता इसे यान
म रखते हु ए काय करे तभी उसके होने क साथकता सह मायने म स होती है ।
2.9 सारांश
सू चना ौ यो गक के इस दौर म सूचनाओं का जैस-े जैसे तेजी से व तार हो रहा है, वैसे ह
जनता के लए उनका उपयोग भी नरं तर बढ़ता जा रहा है । लोकतं म मी डया को चौथा
त भ माना गया है । चौथे त भ का काय जनमत नमाण का होता है, जनमत नमाण
म समाचार क ह आज मु ख भू मका है । यह चौथा त भ जनता क ओर से सरकार पर
नजर रखता है और सरकार के कायकलाप से जनता को सू चत करता है, जानकार बनाता
है । ऐसे म समाचार लखने वाले संवाददाता का काय भी अब बेहद चु नौतीपूण हो गया है
। समाचारप म वभ न तर पर काय करने वाले संवाददाताओं का काय उनक कृ त
के अनुसार अलग-अलग वभािजत ह । संवाददाता समाज म जो कु छ घ टत हो रहा है, उसक
यवि थत सू चना टं एवं इले ॉ नक मी डया के मा यम से बहु सं य लोग को दे ता है ।
51
ऐसा जब वह करता है तो जनमत नमाण म वत: ह उसक मह वपूण भू मका हो जाती
है । समाज और मी डया को अलग नह ं कया जा सकता, चू ं क समाज म रहते ह वह समाचार
के अपने ोत क तलाश व भ न तर पर करता है । इन ोत क तलाश के बाद ह वह
समाचार को सु नयोिजत तर के से लखता और तु त करता है । इस इकाई म संवाददाता,
समाचार ोत एवं संकलन के बारे म ह व तार से जानकार द गयी है ।
2.10 श दावल
समाचार स म त - वह सं था जो नधा रत दर पर प -प काओं एवं इले ॉ नक मी डया
को समाचार दे ती है, जैसे भाषा, यू नवाता, रायटस, ेस ट ऑफ इि डया, आ द ।
बाइ लाईन - समाचार के ऊपर समाचारदाता के नाम का जब उ लेख कया जाता है तो
वह बाइ लाईन कहलाती है ।
डेट लाईन - समाचार के ारं भ म थान तथा दनांक का जो उ लेख कया जाता है, उसे
डेट लाईन कहा जाता है । इसम समाचार ेषण या लेखन के थान, दनांक ओर म हने
का उ लेख होता है ।
फॉलो अप - दूसरे दन के समाचार । वशेषत: कई दन तक चलने वाले ऐसे समाचार
जो कसी पूव के का शत समाचार के बाद का ववरण एक कार से दे ते ह ।
कू प - ऐसा कोई वशेष समाचार जो अ य कसी समाचारप म का शत नह ं हु आ हो।
2.12 अ यासाथ न
1. संवाददाता क प रभाषा एवं समाचारप म काय वभाजन के हसाब से उसक व भ न
े णय पर काश डा लए।
2. समाचार से या आशय है? समाचार के व भ न ोत बताते हु ए समाचार के लेखन क
तकनीक क जानकार द िजए।
3. संवाददाता के समाचार संकलन ोत बताते हु ए समाचार लेखन एवं अनुवतन को
समझाइए।
52
इकाई- 3
सा ा कार
इकाई क परे खा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 अ भ ेरणा
3.3 सा ा कार का अथ एवं व प
3.4 सा ा कार और अ य वधाएं
3.5 सा ा कार क उपयो गता एवं मह व
3.6 सा ा कार के उ े य
3.7 सा ा कार के कार
3.8 सा ा कार क वध
3.9 सा ा कार क या
3.10 सा ा कारकता क वशेषताएं
3.11 सा ा कार : एक कला
3.12 टं -मी डया म सा ा कार
3.13 इले ॉ नक-मी डया म सा ा कार
3.14 सारांश
3.15 श दावल
3.16 कु छ उपयोगी पु तक
3.17 अ यासाथ न
3.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन करने के बाद आप -
सा ा कार का अथ एवं प रभाषा का ान ा त कर सकगे ।
सा ा कार और उसक अ य वधाओं को जान सकगे ।
सा ा कार का मह व, उपयो गता एवं उ े य क जानकार मल सकेगी ।
सा ा कार क अ य वधाओं से तुलना करके उसके व प को जान सकगे ।
सा ा कार के व भ न कार से प र चत हो सकगे ।
सा ा कार लेने क या एवं व ध को जान सकगे ।
सा ा कारकता क वशेषताओं क जानकार ा त हो सकेगी ।
टं -मी डया और इले ॉ नक-मी डया म सा ा कार कैसे लए जाएं, इस तकनीक को जान
सकगे ।
आप सा ा कार म व श टता ा त कर पारं गत हो सकगे ।
53
3.1 तावना
िज ासा मानव क सहज वृि त है । एक ओर वह बा य सृि ट के वषय म जानने को उ सु क
रहता है तो दूसर ओर अ य मानव के अंतजगत म सं चत अनुभव का लाभ उठाने क आकां ा
मन म रहती है । इसके साथ ह हर यि त म अपने अंतजगत को उ घा टत कर दे ने क
सहज वृि त व यमान है । बा य-जगत को दे खकर, उसम वचरण कर, मन पर पड़े भाव
और अनुभू तय का वह कट करण कर दे ना चाहता है । सं चत व भ न अनुभव , ान तथा
फुरणाओं को अ भ य त कर दे ने म वह संतोष और आनंद क अनुभू त करता है । दूसर
के साथ वैचा रक आदान- दान से उसे तृि त मलती है । िज ासा और अ भ यि त एक-दूसरे
क पूरक है । एक जानना चाहता है , दूसरा बताता है , जानकार दे ता है, अपने वचार अ भ य त
करता है । अपने अनुभव , वचार आ द से दूसर को ेरणा और लाभ दे ना चाहता है । यह ं
सा ा कार का बीज- प है ।
पछले कु छ दशक म अनेक नवीन वधाएं वक सत हु ई ह, उनम 'सा ा कार' का नाम वशेष
उ लेखनीय है । सा ा कार एक नव वक सत, वतं , उपयोगी और मह वपूण वधा है ।
इसम िज ासु यि त कसी व श ट सा हि यक, राजनेता, समाजसेवी, कलाकार, वै ा नक,
शासक, प कार, संत, उ योगप त, फ म-जगत के यि त, अ य व श टजन अथवा
सामा यजन से वयं भट करके, उससे वाता, न, बहस, करते हु ए उसके यि त व, जीवन,
कृ त व, प रवेश, वचार , योजनाओं आ द के वषय म सीधे जानकार ा त करता है । कभी
यह जानकार टे ल फोन, प , क यूटर , इंटरनेट आ द के मा यम से भी ा त क जाती है
। कभी वह सं चत साम ी अथवा क पना के आधार पर न और संभा वत उ तर वयं लख
दे ता है । सा ा कार को इंटर यू, भटवाता, मु लाकात, बातचीत, संवाद आ द भी कहा जाता
है ।
3.2 अ भ ेरणा
सा ा कार क मू ल अ भ रे णा िज ासा-समाधान, ान और सं चत अनुभव से लाभ पहु ँचाना
तथा उठाना है । िज ासु ाय: प कार ह होता है, जो कसी वशेष यि त से उसके बारे
म बातचीत और न के मा यम से जानकार ा त करके प -प का के ज रए उसे दूसर
तक पहु ँचा दे ता है । दूरदशन (ट वी) और आकाशवाणी (रे डयो) पर यह जानकार सीधे ह
दशक - ोताओं तक पहु ँच जाती है । व श ट यि त के जीवन, यि त व, कृ त व, वचार
से दूसर को ेरणा मल सकती है, उसके अनुभव से लाभ उठाया जा सकता है । कई नई
और ामा णक जानका रयाँ तो मलती ह ह । सामा यजन से मा जानकार ह ा त क
जाती है यह सा ा कार क अ भ रे णा है ।
54
पि चम से बन-संवरकर आया है । इसके अंतगत सामा यत: कोई प - त न ध कसी राजनेता
अथवा अ य व श ट यि त से मलता है, न के मा यम से सा ा कार के वषय पर
जानकार ा त करता है और उसके वचार जानता है । कुछ सा ा कार जानकार हा सल करने
पर केि त होते ह और कुछ म वचार या ' टड' जानना मह वपूण होता है ।
द रडमहाउस ड शनर आफ द इंग लश ल वेज म कहा गया है – ‘'सा ा कार उस वाता
अथवा भट को कहा गया है िजसम लेखक अथवा संवाददाता कसी यि त अथवा क ह ं
यि तय से न पूछकर कसी समाचारप के काशन अथवा टे ल वजन से सारण हे तु
साम ी एक करता है ।'’ आ सफोड इंग लश ड शनर म '' कसी ब दु वशेष प को लेकर
औपचा रक वचार- व नमय हे तु य भट करने, पर पर मलने या वमश करने, कसी
प - त न ध वारा काशन हेतु व त य लेने के लए कसी से भट करने को सा ा कार कहा
गया है ।'’
डॉ. नगे के अनुसार- ‘'इंटर यू (सा ा कार) से अ भ ाय उस रचना से है िजसम लेखक
यि त- वशेष के साथ सा ा कार करने के बाद ाय: कसी नि चत नमाला के आधार पर
उसके यि त व एवं कृ त व के संबध
ं म जानकार ा त करता है और फर अपने मन पर
पड़े भाव को ल पब कर डालता है ।'' डॉ. चं भान रावत का कथन है - ''बहु त-से लोग यह
मानते ह क नावल वारा ा त साम ी तथा इंटर यू से ा त साम ी म अंतर नह ं, कं तु
नावल क अपनी सीमाएं ह, नावल इंटर यू नह ं हो सकती ।'' डॉ. ह रवंशराय ब चन
लखते ह- ''इंटर यू का येय है पढ़ने वाला यह अनुभव करे क जैसे वह क व- वशेष से मल
आया है, उसके पास हो आया है, उसे सू ंघ आया है, उसे गले लगा आया है ।''
मु ख सा ा कारकता डॉ. प संह शमा 'कमलेश' के अनुसार- ' इंटर यू दे ने वाला यि त अपनी
यो यताओं को वयं य त करता है और यह इंटर यू लेने वाले पर नभर है क वह इंटर यू
दे ने वाले को अपना व वासपा बनाकर उससे जो चाहे सो नकलवा ल । यह बड़ा क ठन
काय है जो ा, प र म तथा बु म ता पर नभर करता है ।''
मु ख प कार डॉ. नंद कशोर खा के श द म - ''भटवाता या समालाप (सा ा कार)
समाचार-संकलन का आव यक अंग ह नह ं है बि क इसके बगैर अ धकांश समाचार, सरकार
व त य, भाषण, सावज नक घोषणाएँ, व ि तयाँ और औपचा रक आयोजन के त य ववरण
मा होते ह । इन सबक खबर वभावत: एकप ीय या एकांगी होती है । इनम ' य ' और
'कैसे' पूछने क गु ज
ं ाइश नह ं होती, जब क ' य ' और 'कैसे' का उ तर ह खबर क जान
होता है । ' य ' और 'कैसे' सवाल इ ह ं के ज रए पूछे जा सकते ह । सामा य प म इंटर यू
को बहु त सरल वधा के प म माना जाता है, ले कन वा त वकता यह है क सा ा कार अथवा
भटवाता बहु त क ठन है । सा ा कारकाता को िजस यि त से भट करके चचा करनी होती
है उससे बहु त सी कह -अनकह बात का स य उगलवाना पड़ता है । यह भटवाता का सबसे
दुःखद और कठोर काय है । सा ा कारकता को संबं धत यि त के रचना मक प क िजतनी
अ धक और पु ट जानकार होगी वह इस वधा म उतना ह सफल माना जाएगा ।'’
55
व र ठ प कार रामशरण जोशी कहते ह- ''सा ा कार वधा को प का रता के आधारभू त स ांत
म से एक के प म दे खा जाना चा हए । आधु नक प का रता म इसका मह व पहले से कह ं
अ धक और बहु आयामी हो गया है । इले ॉ नक मा यम (टे ल वजन) के अि त व म आने
के प चात ् इसक भू मका का व तार हु आ है । आज प का रता 'ऑन लाइन प का रता' या
'इंटरनेट प का रता' के युग म वेश कर चुक है । अत: सा ा कार वधा क उपयो गता क
नई संभावनाएं पैदा हो गई ह । जहाँ पहले प कार हाथ म कापी-प सल थामे सा ा कार लया
करता था, आज क यूटर इन दोन को ाय: अपद थ करने क ि थ त म पहु ँच गया है ।
ई-मेल के मा यम से लंब-े लंबे सा ा कार लये जा रहे ह । व भ न चैनल के ' यूज -बुले टन '
म 'सैकंडजीवी' एवं ' मनटजीवी' सा ा कार क उपि थ त उ ह जीवंतता दान कर रह है
। मु ण-मा यम अथात ् प -प काओं म सा ा कार का योगदान इ तहास स है ।''
इस कार सा ा कार, मी डया क एक अ नवाय वधा के पम ति ठत हो गया है । बना
सा ा कार के मी डया अधूरा माना जाता है । इसी लए प कार , संपादक , उपसंपादक ,
रपोटर , लेखक तथा इले ॉ नक-मी डया (ट वी-रे डयो) के त न धय आ द का
सा ा कार- वधा म पारं गत होना आव यक समझा जाता है ।
56
इस कार प ट है क अ य वधाओं के त व सा ा कार म सी मत मा ा म सहायक प
म ह हो सकते ह । ये सभी सा ा कार को आगे बढ़ाते ह उसे रोचक, सु ंदर और भावी बनाते
ह ।
3.6 सा ा कार के उ े य
सा ा कार एक सो े य या है । सा ा कार कसी यि त वशेष के यि त व और कृ त व
पर भी केि त हो सकता है और यह कसी मह वपूण वषय पर कसी यि त के वचार
जानने पर भी केि त हो सकता है । इसके अनेक उ े य ह । सम सा ा कार म
सा ा कार-नायक या पा से आरं भ म यह पूछा जाता है क वह इस े म कैसे आया? य द
सा ह यकार है तो सा ह य म प कार है तो प का रता म, राजनेता है तो राजनी त म, कलाकार
है तो कला े म, खलाड़ी है तो खेल जगत म आ द । फर उसके ारं भक जीवन, श ा
आ द के वषय म जाना जाता है । इस कार पा के जीवन के वषय म जानकार ा त
करना सा ा कार का उ े य होता है ।
फर उसके कृ त व के बारे म जानना सा ा कार का उ े य होता है । उसने या- या रचनाएं
लखीं अथवा च बनाए, समाजसेवा क आ द । फर व भ न वषय , यि तय आ द के
वषय म उसके वचार जाने जाते ह । त प चात ् उसक चय , दनचया, योजनाओं क
जानकार ल जाती है । पा के बा य का वणन सा ा कारकता कर दे ता है । इस कार पा
के अंतबा य को जानना सा ा कार का मु य उ े य होता है ।
सा ा कार का दूसरा मु ख उ े य जानकार से पाठक को अवगत कराना होता है । अत:
सा ा कार कसी प -प का म का शत कया जाता है । ट वी-रे डयो पर सा ा कार का सजीव
57
(त काल) सारण होता है अथवा रकाड करके उसे बाद म सा रत कया जाता है । कसी
वषय पर केि त सा ा कार का सबसे मह वपूण पहलू गहन अनुसंधान और ऐसे न तैयार
करना है क सा ा कार म कु छ नया और मह वपूण नकल कर आए ।
ट वी- रे डयो के लघु-सा ा कार म कसी घटना, व त य आ द के वषय म लोग के वचार
त या, सु झाव आ द जानना सा ा कार का उ े य होता है । कसी घटना- वशेष के वषय
म अ धक तथा व वध जानकार एक क जाती है ।
58
का ह दा य व होता है समी यमाण यि त (सा ा कार-पा ) के अंतमानस क झाँक लेने
का । अत: लेखक क सतकता, ौढ़ता एवं सू म ा हणी शि त का भी प रचय उसी म
अंत न हत रहता है ।'’
डॉ. हरदयाल भी सा ा कार के दो कार मानते ह । उनका कथन है - ''इधर हंद म एक
नई ग य- व या वक सत हु ई है 'इंटर यू’ । इसक जो रचनाएं सामने आई ह, उनसे इसके
दो कार बन जाते ह - एक यथाथ इंटर यू अथात ् जी वत यि तय से मलकर इंटर यू -लेखक
उनके ह जीवन और वचार के संबध
ं म जानकार ा त करता है । हंद म अभी तक ऐसे
इंटर यू सा ह यकार से संब रहे ह । इनम सा ह यकार के वारा द गई उनक सा ह य-रचना
क ेरणा, सा ह य-सृजन क या आ द-आ द के संबध
ं म उनके वचार इक े कए गए
ह । इंटर यू का दूसरा कार 'का प नक' ह । इसम दवंगत यि तय से इंटर यू लेने क
क पना कर ल जाती है और उसके जीवन, रचना, वचार आ द को तु त कया जाता है।'’
प कार डॉ. नंद कशोर खा के अनुसार- ''भटवाताएं मु यत: दो कार क होती ह । एक -
कसी रोचक या मह वपूण यि त से भट और दूसर - ठोस समाचार के संबध
ं म भटवाता
।'' प कार डॉ. भंवर सुराणा ने सा ा कार के छ: मु ख कार नधा रत कए ह - 1.
पूव - नधा रत सा ा कार, 2. सव णाथ सा ा कार, 3. य व अ य सा ा कार, 4.
औपचा रक व अनौपचा रक सा ा कार, 5. पुनरावृि त , और 6. अचानक (आकि मक)
सा ा कार ।
ए मो कॉट वाटसन के मतानुसार- 1. त या मक समाचार सा ा कार, 2. यि तपरक अथवा
फ चर हे तु सा ा कार और 3. आ मकथा मक सा ा कार होते ह । व र ठ प कार रामशरण
जोशी सा ा कार को इस कार वग कृ त करते ह- आ मकथा मक, सं मरणा मक, च ा मक
एवं वणना मक, का प नक, संवादा मक, नो तरा मक, यि त वपरक, मु ापरक,
प रचचा मक, क तवार सा ा कार, योगा मक, औपचा रक, अनौपचा रक, व रत,
आकि मक और योजनाब , त या मक और मु ाब ।
सा ा कार के व भ न कार ह । व णु पंकज के अनुसार :-
1. व प के आधार पर
2. शैल के आधार पर
3. औपचा रकता के आधार पर,
4. संपक के आधार पर
5. मी डया के आधार पर
6. आकार के आधार पर,
7. वषय के आधार पर
8. वाताकार के आधार पर,
9. पा के आधार पर और
10. अ य आधार पर ।
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1. व प के आधार पर
(क) यि त न ठ- इसम यि त को पूरा-पूरा मह व दया जाता है ।
(ख) वषय न ट- इसम वषय को अ धक मह व दया जाता है ।
वषय न ट सा ा कार को भी तीन वग म रखा जाता है-
(अ) सामा य - इसम सामा य वषय को लेकर सा ा कार लया जाता है ।
(आ) वशेष - वषय के ब दु- वशेष को मु यतया इसम लया जाता है ।
(इ) व वध - इसम अनेक वषय न हत होते ह ।
2. शैल के आधार पर
(क) ववरणा मक, (ख) वणना मक, (ग) वचारा मक, (घ) भावा मक, (घ) हा य-
यं या मक, (छ) भावा मक और (ज) नो तरा मक ।
3. औपचा रकता के आधार पर
(क)औपचा रक - ये योजना बनाकर पा से समय लेकर लए जाते ह ।
(ख) अनौपचा रक - ये बना योजना के, अचानक और बना समय नधा रत कए लए जाते
ह ।
4. संपक के आधार पर
(क) य भट - इसम पा से य भटवाता क जाती है ।
(ख) प - इंटर यू - प वारा लए जाते ह ।
(ग) का प नक - (अ) गंभीर (इसम पा के उ तर या वचार उसक रचनाओं, व त य , डायर ,
प आ द से लए जाते ह, (आ) पूण का प नक, (इ) हा य- यं या मक ।
5. मी डया के आधार पर
(क) टं मी डया - प -प काओं, पु तक , अ भनंदन ं ,
थ मृ त थ
ं आद म का शत
होने वाले।
(ख) इले ॉ नक मी डया- ट वी, रे डयो, टे ल फोन, क यूटर , इंटरनेट, टे ल टं र, फै स,
ई-मेल आ द मा यम से लए गए सा ा कार ।
6. आकार के आधार पर
(क) लघु - ये छोटे सा ा कार होते ह और मनी इंटर यू कहलाते ह । ये अब वतं वधा
का प लेते जा रहे ह।
(ख) द घ - ये बड़े सा ा कार होते ह ।
7. वषय के आधार पर
(क) सा हि यक सा ह य वषय पर सा ह यकार से लए गए, सा हि यक ढं ग से लखे गए
सा ा कार इस ेणी म आते ह ।
(ख) सा ह येतर-सा ह य को छोडकर अ य वषय -प का रता, कला, संगीत, राजनी त, धम,
खेल, फ म, समाजसेवा, व ान आ द वषय से संब सा ा कार इस वग म आते ह
। ये प कार , कलाकार , संगीतकार , राजनेताओं, संत , खला ड़य , अ भनेताओं-
अ भने य , समाजसे वय , वै ा नक आ द से लए गए सा ा कार होते ह ।
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8. वाताकार के आधार पर
सा ह यकार, प कार, मी डयाकम (ट वी-रे डयो) तथा अ य सामा य अथवा व श टजन से
सा ा कार होते ह ।
9. पा के आधार पर
(क) व श टजन से लए गए सा ा कार ।
(ख) सामा यजन से लए गए सा ा कार ।
10. अ य आधार पर
(क) आ मसा ा कार - लेखक वयं अपना (का प नक) सा ा कार लखता है ।
(ख) सव ण, अनुसध
ं ान, नौकर , पर ा आ द के सा ा कार ।
ाय: यह दे खा गया है क कसी एक प त वारा सा ा कार नह ं लया जाता । उसम अनेक प तय
का समावेश हो जाता है । फर भी, िजस प त क धानता होती है, उसी वग म उसे रख दया जाता
है ।
3.8 सा ा कार क वध
सामा यत: सा ा कार लेने क एक या या व ध होती है । कस यि त का सा ा कार
कया जाए, यह तय करना इस या का पहला चरण है । सामा यत: सा ा कार व श टजन
के ह लए जाते ह, परं तु आजकल सामा यजन (आम आदमी, गृह थ , पी ड़तजन आ द) के
भी सा ा कार ( वशेषत: ट वी पर) खू ब लए जाते ह । बाहु बल, अपराधी आ द के भी सा ा कार
लए जाते ह । कभी-कभी प -प का के संपादक, ट वी-रे डयो के अ धकार तय कर दे ते ह
क अमुक यि त से सा ा कार लेना है । कभी-कभी सा ा कारकता वयं भी सा ा कार-पा
का चयन करता है ।
सा ा कार-पा तय हो जाने पर यह तय होता है क उसम कस वषय (या वषय ) पर बात
करनी है, सा ा कार कतना बड़ा लेना है, सम (टोटल) बातचीत करनी है आं शक । फर
पा से समय नधा रत कया जाता है । कभी-कभी बना समय तय कए भी सा ा कार लेना
पड़ता है । ट वी-रे डयो का सा ा कार ाय: टू डयो म बुलाकर अथवा कैमरा और रकाडर
के साथ पा के पास जाकर लया जाता है ।
प -प का के लए भी सा ा कार लेते समय टे प रकाडर का योग कया जाता है । कु छ साम ी
संक लत क जाती है अथवा हाथ से लखनी भी पड़ सकती है । सा ा कार लेते समय खे
ढं ग से एक के बाद एक लगातार न न पूछ जाएं, बातचीत भी क जाए, पूरक न भी
पूछे जाएं, पा के मू ड के अनु प वाता को मोड़ दया जाए । कसी न का उ तर य द टाल
दया जाए तो मौका दे खकर, भाषा बदलकर उस न को पुन : पा के सामने रखा जा सकता
है, परं तु फर भी य द पा उसका उ तर नह ं दे तो िज नह ं क जाए, अड़ा नह ं जाए ।
पा छोटा हो या बड़ा उसका आदर कया जाए, उसके उ तर , वचार को मह व दया जाए
। अपनी ओर से असहम त या नाराजगी कट न क जाए ।
सा ा कार म दे श के अ हत म अथवा समाज म व वेष फैलाने वाल बात नह ं होनी चा हए
। य द कसी कारणवश आ भी जाए तो संपा दत करते समय उसे हटा दया जाए । य द कभी
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ट वी-रे डयो के सजीव सारण के समय ऐसा हो जाए तो सा ा कारकता उसका त काल
नराकरण कर दे । य द कसी सा ा कार म पा को कई ब दु सा ा कार म न रखने को
कहे तो सामा यत: उसका अनुरोध मान लेना चा हए ।
सा ा कार शु करते समय (इले ॉ नक-मी डया म) पा का सं त प रचय दे दे ना चा हए
। टं -मी डया के सा ा कार म सा ा कार पूरा हो जाने पर तैयार करते समय ऐसा करना
चा हए । सा ा कार पूरा होते समय सा ा कार पा को ध यवाद दे ना न भू ल ।
3.9 सा ा कार क या
सामा यत: सा ा कार लेने के लए एक नि चत या अपनाई जाती है । कई बार इस या
का पूर तरह से पालन नह ं हो पाता, फर भी सा ा कारकता को एक या से तो गुजरना
ह पड़ता है, चाहे इसम कुछ प रवतन हो जाय अथवा सा ा कारकता वयं कर दे । साधारणत:
इस या के न न ल खत चरण हाते ह-
1. सा ा कार पा का चयन
कसी यि त का सा ा कार लया जाय, यह नि चत करना इसक या का पहला
चरण है । सा ा कार-पा का चयन कई बात पर नभर करता है । ल ध ति ठत
सा ह यकार , मु ख नेताओं, समाज के वश ट यि तय , कलाकार , गायक ,
संगीतकार , खला ड़य आ द के वषय म जानने के लए लोग सामा यत: उ सुक रहते
ह । अतएव प कार और लेखक इस कार के यि तय के सा ा कार लेने के लए अवसर
ढू ँ ढते रहते ह । पहले व श ट, स , महान ् अथवा उ लेखनीय यि तय से ह इंटर यू
लेना उपयु त समझा जाता था । बाद म साधारण, न न, उपे त अथवा कु यात लोग
के भी सा ा कार लये जाने लगे । कह ं आतंककार हमला हु आ है, डाका पड़ा है, बड़ी
चोर हु ई है, अपहरण हु आ है, कोई बड़ा या कु यात यि त पकड़ा गया है, आयकर वाल
का छापा पड़ा है, बला कार हु आ है, ए सीडट या दुघटना हु ई है, ाकृ तक आपदा आ
पड़ी है, कोई बड़ा खेल, मेला, तयो गता आ द का आयोजन हु आ है, चु नाव हु ए ह, कोई
बड़ा नेता जीत या हार गया है, दल-बदल या पाट गत व ोह हु आ है, कसी को पाट या
मं म डल से नकाला गया है, शेरनी के ब चे हु ए ह, कसी क ह या हु ई है, कसी ने
आ मह या क है…. मतलब क लोग हर तरह क खबर जानना चाहते ह, उसक तह म
जाना चाहते ह, य -कब-कैसे क जानकार चाहते ह । तो इनसे जु ड़े व भ न यि तय
के सा ा कार लए जाते ह । जो ट वी एवं रे डयो पर तो त काल दखा दए जाते ह,
शाम को या दूसरे दन अखबार म छप जाते ह । कुछ के सा ा कार लेने के लए ट वी
एवं रे डयो के अ धका रय , प -प काओं के संपादक से नदश मल जाते ह, कु छ के
सा ा कार, प कार, संवाददाता, ू ता,
त न ध आ द वयं लेते ह और समाचार क संपण
रोचकता दान करते ह । ऐसे सा ा कार छोटे होते ह और इनम सा ा कार के सोपान ,
इसक या का पालन करने का अवकाश नह ं होता ।
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कभी ऐसा भी होता है क नगर म कसी व श ट यि त का आगमन होता है तो थानीय
ट वी एवं रे डयो- त न ध, संवाददाता, प -प का से जु ड़ा प कार या लेखक उसका सा ा कार
लेना तय करता है अथवा इस काय के लए उसे नदश मलता है । कसी समारोह म कसी
व श ट यि त के पदापण करने पर उसे सा ा कार का पा बना लया जाता है । कभी कसी
नि चत योजना के अंतगत भी कसी अपे त यि त अथवा यि तय के सा ा कार लये
जाते ह । इसके लए कई बार बाहर भी जाना पड़ता है । यि त कसी के वषय म जानने
को उ सुक होता है , उससे भा वत होता है, तो भी वह उससे सा ा कार लेने क सोच लेता
है ।
सामा यत: ये सा ा कार उस यि त से मलकर, बातचीत करके, न पूछकर लये जाते
ह । कभी-कभी सा ा कार अपने न डाक वारा उस यि त के पास भेज दे ता है और उनका
उ तर आने पर न-उ तर जमाकर सा ा कार बना लया जाता है । फोन आ द के वारा
भी उस यि त से सा ा कार ले लया जाता है । दवंगत यि तय के सा ा कार क पना
के आधार पर लखे जाते ह । कभी-कभी इसम उस यि त के अ य लखे वचार , कथन
का समावेश भी कर लया जाता है ।
2. वषय का चयन
सा ा कार पा का चयन हो जाने पर, उससे कस वषय पर सा ा कार लेना है यह तय
कया जाता है । क व से क वता पर, कथाकार से कहानी-उप यास पर, कलाकार से कला
पर, राजनेता से राजनी त पर सा ा कार सामा यत: लये जाते ह । संबं धत अ य बात
पूछने का ि टकोण भी रहता है । कभी-कभी पा के जीवन, कृ त व, ेरणा, चय ,
भाव, दनचया, वचार, योजना आ द अनेक े क जानकार ा त करने का ल य
रहता है । कभी सा ा कार-पा के नजी जीवन आ द के बारे म न पूछकर कसी वषय
या उसके कसी बंद ु पर ह बात क जाती है । साधारण पा से योजनानुसार न पूछे
जाते ह ।
3. योजना का नमाण
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म म उलटफेर हो जाती है । कु शल सा ा कार येनकेन- कारे ण, घुमा- फराकर, अपना
काम नकाल ह लेते ह । कभी-कभी नावल सामने रखने का अवकाश ह नह ं मल
पाता, तब सा ा कारकता को अपने मानस म सं चत िज ासा और न से काम चलाना
होता है ।
अनेक सा ा कारकता बना कसी ल खत योजना के ह कुशलतापूवक सा ा कार ले लेते
ह, फर भी दमाग म एक योजना तो रहती ह है, जो प रि थ त के अनुसार बदलती
रहती है । प कार इस कला म काफ हो शयार होते ह । वैसे भी सा ा कार पा के सामने
ल खत नावल लेकर बैठना वाभा वक और वाह म यवधान उपि थत कर सकता
है । इससे कभी सा ा कार पा असहज अनुभव कर सकता है , ऊब सकता है, चढ़ सकता
है, नाराज हो सकता है, य य प ऐसा अपवाद म ह होता है ।
ाय: बना योजना, परे खा या योजना के सा ा कारकता योजनाब तर के से आगे नह ं
बढ़ पाता, सा ा कार पा से अपे त बात नह ं नकलवा पाता । वह ऊपर-ह -ऊपर तैरकर
वापस आ सकता है, गहराई म गोते नह ं लगा सकता । व भ न यि तय के लए एक
जैसी नावल भी काम नह ं आ सकती । सा ा कार म यु प नम त व का होना
आव यक है ।
4. भटवाता
5. ब दु-अंकन
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कृ त के नाम, घटनाओं, उ ारण , स ांत-वा य आ द का अंकन करना आव यक है ।
त
ु -लेखन का अ यास सा ा कारकता के लए लाभदायक रहता है । संकेत से ह बंदओ
ु ं
का त काल अंकन करके वाता- वाह को वह आगे नह ं होने दे ता । इसके अ त र त
सा ा कार पा के यि त व, हाव-भाव, वातावरण, अपनी त या आ द का अंकन
भी बंद-ु प म तु रंत करता जाता है अथवा घर जाकर मृ त के आधार पर वह बाद म
लख लेता है । य द 'लघुभट' ( मनी-इंटर यू) है तो इसक ज रत नह ं पड़ती ।
6. तु तीकरण
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कई बार ऐसा हु आ है क सा ा कार के दौरान सा ा कार ने कु छ और कहा है, कसी
सा ा कारकता ने गलती से या जानबूझ कर कु छ और लख दया है । कभी-कभी
प -प का के संपादक भी मनमाने संशोधन या काट-पीट कर दे ते ह । गलत बात या
त य को तोड़-मरोड़कर छप जाने से सा ा कार पा को क ट या पीड़ा या नाराजगी होती
है । मनमानी काट-छाँट से कई बार अथ का अनथ हो जाता है । डॉ. बनारसीदास चतु वद ,
महादे वी वमा, अमृता ीतम , व णु भाकर, मनोहर याम जोशी जैसे लोग इस पीड़ा को
भु गत चु के ह । इन लोग ने अपनी पीड़ा को य त भी कया है । फ म े म तो
यह वृि त और भी अ धक है ।
सामा यत: प कार ज द म होता है, उसका ल य व श ट और सं त होता है । वह
सा ह यक सा ा कार क भाँ त अवकाश नह ं पाता । उसका ल य पा को उजागर करना
नह ,ं अपे त त य को सामने लाना होता है । वह सा ा कार क सम या को नह ं
अपना पाता, सा ा कार के संपण
ू सोपान का नवाह उससे नह ं हो पाता । फर भी उसके
सा ा कार का अपना मह व है । यह ज र नह ं है क सा ा कार म कस पा को संपण
ू त:
उजागर कया जाए, उसक एक झलक, कु छ अंश भी सामने लाए जा सकते ह । संपण
ू ता
लये हु ए सा हि यक सा ा कार सा ा कार- वधा के मह वपूण अंग ह और वे
सा ा कार-सा ह य क बहु मू य न ध ह ।
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बात होनी चा हए । पा क सं कृ त, भाषा, तर, वचारधारा, ट प णयाँ आ द य द अनुकू ल
न ह तब भी सा ा कारकता को सामा य और संय मत रहना चा हए ।
यद टं -मी डया के लए सा ा कार है तो पा के वचार , उसके वारा द गई जानकार
को तोड़-मरोड़कर, अथ बदलकर पेश नह ं करना चा हए । कई सा ा कारदाताओं (पा ) यथा
अमृता ीतम , मनोहर याम जोशी आ द ने इस कार क शकायत क है । ट वी या रे डयो
पर तो सा ा कारकता कोई संशोधन कर ह नह ं सकता ।
सा ा कार म झू ठ तार फ, खु शामद, चमचा गर , न दा, कसी पर अनु चत हार आ द न
हो । सा ा कार साथक हो । वह नधा रत समय म पूरा होना चा हए । कोई बात समझ म
नह ं आए तो उसे प ट कर लेनी चा हए । य य प कसी एक यि त म इतनी वशेषताएं
नह ं हो सकती, फर भी िजतनी अ धक हो, अ छा है ।
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मु ख सा ा कारकता डॉ. पदम संह शमा 'कमलेश’ का मत ह – ‘'इंटर यू के अ छे -बुरे होने
क कुछ िज मेदार इंटर यू दे ने वाले क भी है । य द इंटर यू लेने वाले क ा को मह व
न दे कर चलताऊ बात बताता है और काय म च नह ं लेता तो इंटर यू कभी अ छा नह ं
बन सकता । ''ऐसा भी संभव है क सा ा कारकता को कसी मह वपूण बात क जानकार
न हो अथवा वह उस समय पूछना भू ल जाए तो पा को वह जानकार वत: दे दे नी चा हए
। महा मा गांधी तक ने ऐसा कया है । सा ा कार को अनु चत चार, कसी को गराने-उठाने,
न दा- तु त का मंच नह ं बनाना चा हए । अपा (उपलि धह न) लोग से सा ा कार लेना
उ चत नह ं । सामा यजन इसके अपवाद ह । अगंभीर, मह वह न लोग को इस वधा से दूर
रहना चा हए ।
प कार डॉ. नंद कशोर खा ठ क ह लखते ह - ''समाला य- यि त (पा ) ऐसा हो सकता
है जो वत: ह सार जानकार दे दे और ऐसा भी हो सकता है जो मु ँह खोलना ह नह ं चाहे
। दोन ह प रि थ तय म भट-वाताकार या समालापक को बड़ा सतक, सयाना और ववेक
बनने क आव यकता होती है । य द कोई यि त अपने-आप बहु त कु छ बताता है तो संभव
है वह आपको अपने मु त चार का साधन बनाने क को शश कर रहा हो । जो यि त कुछ
नह ं बोलता और आपसे सहयोग को तैयार नह ं है वह न चय ह आपसे कु छ छपाने क को शश
म है । ऐसे यि तय से नपटना आसान नह ं होता । इन यि तय से खबर नकाल लेने
म आपका यावसा यक चातु य काम म आता है ।''
बोध न- 1
1. सा ा कार कसे कहते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. सा ा कार और अ य वधाओं म अं त र क िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. मी डया म सा ा कार का मह व एवं उपयो गता को बताइए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
4. सा ा कार के व भ न कार कौन- कौन से ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3.12 ट
ं - मी डया म सा ा कार
टं -मी डया म सा ा कार एक मह वपूण वधा है । यह प का रता, सा ह य,
इले ॉ नक-मी डया (ट वी-रे डयो) आ द अनेक े से जु ड़ी है । हंद म इस वधा के वतन
का ेय डॉ. नगे , डॉ. व वनाथ शु ल आ द व वान ने मूध य प कार बनारसीदास चतु वद
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को दया है । डॉ. नगे का कथन है - '' हंद -ग य म इस वधा (सा ा कार) के वतन का
ेय बनारसीदास चतु वद को है - वशाल भारत म का शत 'र नाकरजी से बातचीत' ( सत बर,
1931) और ' ेमच दजी के साथ दो दन ' (जनवर , 1932) इस दशा म उनक उ लेखनीय
रचनाएं ह ।'' डॉ. व वनाथ शु ल ने भी लखा है - ''इस वधा का सू पात करने का थम
ेय पं. बनारसीदास चतु वद को है । उ ह ने 'र नाकरजी से बातचीत' शीषक इंटर यू सतंबर,
1931 के ' वशाल भारत' म का शत कया था । इसके कुछ ह मह ने बाद ' ेमचंदजी के
साथ दो दन' शीषक से उनका दूसरा इंटर यू जनवर , 1932 के ' वशाल भारत' म का शत
हु आ । संभवत: 1931 का र नाकरजी वाला इंटर यू हंद का थम सा हि यक इंटर यू है । ''
इसके वपर त डॉ. रामगोपाल संह चौहान हंद म इस वधा के वतन का ेय डॉ. पदम संह
शमा 'कमलेश' को दे ते ह । वे लखते ह- '' हंद म इंटर यू क वधा का सू पात करने का
ेय डॉ. पदम संह शमा 'कमलेश' को है । इससे पहले यह वधा हंद म अनजानी थी । डॉ.
कमलेश ने हंद के चोट के सा ह यकार से इंटर यू लेकर मौ लक काय कया । ’' डॉ कमलेश
का च चत सा ा कार-सं ह 'म इनसे मला' दो भाग म 1952 म का शत हु आ था ।
परं तु सा ा कार- वधा के थम शोधकता व णु पंकज ने हंद म सा ा कार वधा के वतन
का ेय प कार-लेखक चं धर शमा 'गुलेर ' को दया और समालोचक के सतंबर, 1905 के
अंक म का शत उनके सा ा कार 'संगीत क धु न एक संवाद' को हंद का पहला सा ा कार
माना, यह सा ा कार संगीत-महारथी व णु दगंबर पलु कर से लया गया था । गुलेर जी
'समलोचक' के 'अघो षत संपादक' (रा यसेवा म होने के कारण) थे । वे तब मेयो कालेज,
अजमेर म ा यापक थे । पलु करजी के अजमेर आगमन पर 'समालोचक' के त न ध को
है सयत से उ ह ने यह सा ा कार लया था । इसम सा ा कार के पूरे त व ह, जब क
र नाकरजी वाल बातचीत नबंध, सं मरण, रे खा च संवाद आ द अनेक वधाओं का
समवेत- प है, सा ा कार के गुण उसम नह ं है ।
मु ख आलोचक और सा ा कारकता डॉ. रणवीर रां ा ने व णु पंकज के का शत शोध- थ
ं
' हंद - इंटर यू : उ व और वकास' क समी ा आकाशवाणी, द ल (7 अग त, 1984 को
सा रत) पर करते हु ए कहा – ‘’ व णु पंकज का शोध- बंध हंद -इंटर यू ‘उ व और वकास'
अपने वषय का पहला और सु नयोिजत अनुसध
ं ान काय है । इस शोध- बंध म इंटर यू- वधा
के बारे म च लत अनेक ाि तय का सम ाण नराकरण भी कया गया है । हंद म इस
वधा के वतन के वषय म अब तक दो मत सामने आए थे । डॉ. नगे , डॉ. व वनाथ
शु ल जैसे व वान ् शीष थ प कार पं. बनारसीदास चतु वद को पहला इंटर यूकार होने का
ेय दे ते ह । इसके वपर त रामगोपाल संह चौहान जैसे समी क ने यह ेय डॉ. पदम संह
शमा 'कमलेश' क पु तक 'म इनसे मला' को दया है । गहर छानबीन के आधार पर इस
शोध- बंध ( हंद -इंटर यू : उ व और वकास) म पं. च धर शमा ‘गुलेर ’ को हंद इंटर यू
का वतक स कया है ।''
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3.13 इले ॉ नक-मी डया म सा ा कार
इले ॉ नक-मी डया (मु यत: ट वी-रे डयो) पर आरं भ से ह सा ा कार सा रत हो रहे ह ।
रोजाना ह व वध चैनल पर छोटे -बड़े, व वध वषय पर, सा ा कार आते ह । इले ॉ नक-
ां त ने अनेक मा यम व तृत और सश त बना दए , कई नए मा यम भी वक सत कर
दए ह । अब टे ल फोन, वी डयोफोन, इंटरनेट फै स, ई-मेल आ द से भी खू ब सा ा कार लए
जाने लगे ह ।
व पन हांडा, द पक बोहरा, शेखर सु मन आ द ने टे ल वजन पर बड़ी सं या म सा ा कार लए
ह । तब सुम ने अनेक फ मी हि तय से सा ा कार लेकर 'फूल खले ह गुलशन-गुलशन '
जैसे काय म को सफल बनाया था । कमले वर ने अनेक यि तय से बातचीत क । कैलाश
वाजपेयी, चं कु मार बरठे , कलानाथ शा ी आ द ने सा ह यकार के, भु चावला, एम.जे.
अकबर, क हैयालाल नंदन, रजत शमा, वनोद दुआ, श शकु मार, उदयन शमा आ द ने
राजनेताओं के, व पन हांडा, द पक बोहरा, शेखर सुमन , महे श भ , फा क शेख, मनीष दुबे,
मोहन कपूर आ द ने फ मी हि तय के अ छे सा ा कार लए ह । भु चावला ने 'सीधी
बात', रजत शमा ने 'जनता क अदालत', शेखर सु मन ने 'शेकस ए ड मू वस' म तेज तरार
सा ा कार लए ह । मेनका गांधी ने जीव दया, अनुराधा साद ने व वध वषय , रोशनी ने
पाकशा पर बातचीत क है । शेखर गु ता ने टहलते हु ए सो नया गांधी, ऐ वया राय आ द
से भटवाता क है । रामशरण जोशी, णवराय, सईद नकवी, महे मधु प (कृ ष पर), मनोज
ं ी, करण थापर, राहु ल दे व, मृणाल पांडे , पंकज शमा, राजे
रघुवश बोहरा, राधे याम तवार ,
राजीव शु ला, पु पेश पंत, बलजीत, आशा सचदे व, जाि मन मोजेज, फर दा जलाल, नीलम
शमा, न लनी संह, वा त आ द वारा भी बहु त-से सा ा कार लए गए ह ।
रे डयो पर गोपालदास, जसदे व संह, ठाकु र साद संह, नरो तम पुर , छोटे , स वता बजाज,
मोहन संह सगर, वेद यास, स यनारायण शमा, मदन शमा, राह , मंजल
ु , राम संह पंवार,
वजय चौधर , सवाई संह धमोरा, अचला नागर, अ नता, म लक, इंद ु जैन, कं ु था जैन , वमला
पा टल, सरल कु मार आ द ने उ लेखनीय सा ा कार कये ह ।
बोध न- 2
1. ं मी डया के लए सा ा कार कै से ले ते ह ?
ट
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. इले ॉ नक मी डया म सा ा कार वधा आज य लोक य है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. सा ा कार क या के मु ख चरण कौन से ह?
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……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
4. सा ा कार एक कला है , समी ा कर ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3.14 सारांश
इस इकाई म हम दे ख चु के है क सा ा कार मी डया का एक मह वपूण और उपयोगी घटक
है । सा ा कार क कला जाने बगैर कसी भी मी डयाकम , प कार का काम चलना क ठन
है । उसे कभी पा से य भट करके सा ा कार लेना होता है तो कभी टे ल फोन या अ य
इले ॉ नक-मा यम वारा । इस पाठ म सा ा कार के व प, कार, थम हंद -सा ा कार,
टं -मी डया और इले ॉ नक-मी डया के सा ा कार के अ ययन के अलावा हमने इसक
उपादे यता और मह व को जाना । सा ा कारकता म या गुण ह , सा ा कार कैसे ल - यह
जानकार भी हमने ा त क । सा ा कार- वधा को सम प म जानने का यास हमने कया
है । सा ा कार एक वतं वधा है ।
3.15 श दावल
इस इकाई म आने वाले पा रभा षक श द के अथ इस कार ह -
सा ा कार - यह जनसंचार क मु ख वधा है । इसके अंतगत सा ा कारकता
सा ा कार दे ने वाले से मलकर बातचीत करके, नो तर वारा
उसके जीवन, कृ त व और वचार आ द क जानकार ा त करता
है ।
71
6. इंटर यू स ांत, तकनीक और यवहार - डॉ. व णु पंकज, नेशनल पि ल शंग हाउस,
नई द ल
7. सा ा कार स ांत और यवहार - रामशरण जोशी, ं श पी, नई द ल
थ
8. म इनसे मला - डॉ. पदम संह शमा 'कमलेश', आ माराम एंड संस, नई द ल
9. सा ह यकार के संग - कैलाश कि पत, कताबघर, द ल
10. भारतीय सा ह यकार से सा ा कार - डॉ. रणवीर रां ा, भारतीय ानपीठ काशन, नई
द ल
3.17 अ यासाथ न
1. सा ा कार से आप या समझते ह? यह अ य वधाओं से कस कार भ न है?
2. सा ा कार क उपयो गता और मह व पर व तृत काश डा लए ।
3. सा ा कार कतने कार के होते ह? इनम से कौन-सा कार आपको अ धक भावी लगा?
तक के साथ समझाइए ।
4. आप एक सफल सा ा कार कस कार लगे? व तार से बताइए ।
5. सा ा कार- या का व तार से उ लेख क िजए ।
6. एक सफल सा ा कारकता म या वशेषताएं होनी चा हए? इनम से कौन-सी वशेषताएं
आप अपने अंदर अनुभव करते ह?
7. 'सा ा कार कला है ।' इस कथन क समी ा क िजए ।
8. पहला हंद -सा ा कार आप कसे मानते ह और य ? व तारपूवक लखे ।
9. सं त ट प णयाँ लख -
1. टं -मी डया म सा ा कार
2. इले ॉ नक-मी डया म सा ा कार
3. सा ा कार और अ य वधाएं
4. मी डया म सा ा कार का मह व
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इकाई-4
समाचार का वग करण - (भाग-1)
इकाई क परे खा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 समाचार का व प
4.3 समाचार के त व
4.4 समाचार के कार एवं वग करण
4.4.1 वषयव तु के आधार पर
4.4.2 कृ त के आधार पर
4.4.3 या या के आधार पर
4.4.4 रपो टग व ध के आधार पर
4.4.5 तु तीकरण क व श ट शैल के आधार पर
4.5 सारांश
4.6 श दावल
4.7 कु छ उपयोगी पु तक
4.8 अ यासाथ न
4.0 उ े य
इस पाठ का उ े य समाचार, इसके अथ, इसके व प, इसके त व तथा समाचार के कार
के संबध
ं म व तार से चचा करना है । बदले हु ए प रवेश म समाचार का जन जीवन म या
मह व हो गया है, समाचार के अथ और प रभाषा म पछले दो दशक के दौरान कस तरह
का बदलाव आया है, वगत अव ध के दौरान समाचार का कौनसा नया वग करण तथा
कौन-कौनसे नए कार उभरकर सामने आए ह इन सब बात क इस पाठ के अ तगत चचा
क गई है । इस पाठ का अ ययन करने के प चात ् आप जान सकगे: -
समाचार या है?
समाचार क परं परागत व नवीन प रभाषाएं या ह?
समाचार के मु ख त व कौनसे ह ।
व भ न आधार पर समाचार का वग करण कैसे कया जा सकता है तथा समाचार के
कार कौन कौन से ह ।
4.1 तावना
पछले दो दशक के दौरान, व वभर के मी डया जगत एवं खासतौर पर टं मी डया के
अवधारणा और व प म आमूल प रवतन आया है । मी डया का काम सफ सू चनाओं को
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य का य आम आदमी तक पहु ंचाना भर नह ं रहा । टे ल वजन और इंटरनेट ने अब
समाचारप को अपनी भू मका पर पुन वचार के लए मजबूर कर दया है । शायद यह कारण
है क समाचारप के मु ख पृ ठ पर आज, कसी भी घटना क ाथ मक सूचना के बजाय
पछले दन टे ल वजन पर दखाई जा चु क अमुक घटना का व लेषण, पृ ठभू म या भाव
दखाया जाता है । समाचारप म अब बयो ड टे ल वजन जन ल म क नई अवधारणा ज म
लेने लगी है, िजसके अ तगत वह करने का यास कया जाता है जो ट वी. नह ं कर सका।
समाचारप के बदले हु ए कलेवर पर नजर डाल तो न सफ 'समाचार' क दो दशक पुरानी
अवधारणा बदल हु ई नजर आती है बि क समाचारप के 'समाचारप ' होने पर भी बड़ा सा
सवाल लगा दखाई दे ता है । समाचारप का मु ख उ े य अब सू चना दे ने के बजाय आम
आदमी का मनोरंजन करना अ धक हो गया है । अ धकांश समाचारप के प ने गंभीर
राजनी तक समाचार के बजाय फ मी हि तय क ग त व धय से तथा वकास योजनाओं
क सू चना के बजाय वला सता और सैर सपाटे से जु ड़ी ताजातर न जानका रय जैसे: - वा य,
सौ दय और लेमर से जु ड़ी नवीनतम खोज व सूचनाओं से भरे दखाई दे ते ह । हाल ह म
इले ो नक मी डया का भार व तार हु आ है और समाचारप का सार भी बढ़ा है । इसके
साथ ह मी डया का यापार करण हु आ और बाजार पर क जा करने के मकसद से ह समाचार
म मनोरं जन का त व हावी हु आ है ।
समाचारप क इस बदल हु ई त वीर के म ेनजर ह समाचारप म लेखन क कई नवीन
वधाओं का ज म हु आ है । कुछ समय पूव तक प म जहां सफ त य आधा रत समाचार
एवं संपादक य आलेख ह छपा करते थे, वह ं आज समाचारप म हाड यूज, सॉ ट यूज,
यूज फ चर , यूमन टोर , पािज टव यूज एवं अ य कई तरह क समाचार वधाओं का योग
होने लगा है । समाचार जगत क बदलती हु ई ज रत को यान म रखते हु ए प का रता के
छा को समाचार लेखन क इन नवीनतम वधाओं से प र चत होना ह चा हए ।
4.2 समाचार का व प
आम जीवन म हम जब भी कसी प र चत अथवा अप र चत से मुलाकात करते ह, दोन
मु लाका तय का आपस म पहला सवाल यह रहता है क ''और या खबर है ?'' जब कसी
म अथवा प र चत को यि तगत प लखा जाता है पंि त बरस से कु छ यू ं शु क जाती
रह है, ''अ कु शलम त ा तु के प चात ् समाचार यह है क... अथवा आगे समाचार यह है
क.. वगैरह... ।’’ जा हर है इंसानी संवाद क एक मु य वजह जानका रय का लेना या दे ना
रह है । जानका रय के त मानव सु लभ िज ासा ने ह 'समाचार' को एक यवसाय क
व तु बना दया है । यह समाचार व तु त: पूरे मी डया जगत का क चा माल भी है और इसका
मु य उ पाद भी ।
परं परागत या याओं के अ तगत समाचार का अथ इसके अं ेजी नाम से समझा जाता है
िजसके अनुसार NEWS से चार दशाओं नाथ, ई ट, वे ट और साउथ का भान होता है ।
कई अ य प रभाषाओं का न कष भी यह दशाता है क समाचार दरअसल सूचनाओं का सं ह
है कं तु एक यावसा यक नज रए से हम दे ख तो हर सूचना समाचार नह ं हो सकती । बहार
74
के मु यमं ी का वहां के कसी के बनेट मं ी से गोपनीय वातालाप, बहार के पाठक के लए
नि चत प से समाचार हो सकता है मगर म य दे श के पाठक के लए यह जानकार एक
ऐसी सूचना भर है िजसम उनक कोई च नह ं है । इस ि ट से हम कह सकते ह क
समाचारप के लए वह सूचना समाचार बनती है िजसे लोग जानना चाहते ह ।
एक यि तगत वातालाप अथवा एक नजी च ी म द जाने वाल जानका रयां, संबं धत लोग
के लए अव य समाचार हो सकते ह मगर अ य लोग के लए ये मा अ चकर सूचनाएं
ह । इस ि ट से हम यू ं भी कह सकते ह क ''समाचारप के लए वे ह सू चनाएं समाचार
है, िज ह अ धक से अ धक लोग जानना चाहते ह ।’’
4.3 समाचार के त व
कसी सूचना को समाचार बनाने म कु छ कारण अपनी भू मका नभाते ह । यह कारण समाचार
के त व कहे जा सकते ह । िजन लोग का कभी अदालती वाद- ववाद से पाला पड़ा हो वे
जानते ह गे क कोई भी वाद दायर करते समय वाद प म वाद कारण का उ लेख कया जाता
है, जो यह प ट करता है क अमु क ववशता के कारण यह वाद दायर कया जाना आव यक
हो गया है । ठ क इसी तरह समाचार का शत करते समय पाठक को भी यह बताना ज र
होता है क अमु क समाचार आज का शत करने का औ च य अथवा कारण या बना है ।
उदाहरणत: हम नगर के कसी ऐसे जलाशय पर समाचार फ चर बना रहे ह, िजसका वजू द
सौ वष से भी यादा समय से है । ऐसे म हम यह अव य लखना होगा क इस जलाशय
म पछले एक माह या छ: माह के दौरान अचानक अ त मण बढ़ गए ह अथवा पछले दस
रोज म तेज गम के कारण इसका जल तर अचानक एक फुट कम हो गया है । यह ताजातम
ि थ त ह इस समाचार का कारक त व होगा ।
कोई समाचार कस सीमा तक समाचार है और कसके बाद असमाचार, यह सब बात नधा रत
करने वाले न न ल खत कुछ मु ख त व ह िज ह समझना हमारे लए नि चत प से उपयोगी
रहे गा । समाचार लेखन के मुख त व ह-
1. जन च
2. ताजगी
3. ल त समू ह
4. जानकार का आकार
5. संपादक या रपोटर का ववेक
6. ता का लक प रि थ तयां
7. सू चना मा यम क नी त
8. बदलते मानदं ड
1. जन च - समाचार का सबसे पहला त व जन च है । कसी सू चना म समाचारप पाठक ,
रे डय ोताओं अथवा ट वी दशक क कतनी च है यह उस समाचार के नमाण, चयन,
लेसमट अथवा ड ले का आधार बनता है । इसके अ त र त कतने लोग अथवा समाज
के कतने बड़े वग क च अमुक सूचना म है , यह बात उस समाचार का आकार भी
75
तय करती है । हम अ सर समाचार का मह व उसम द जाने वाल जानकार , बड़े आकड़े
अथवा बड़े यि त के नाम से तय करने क गलती कर बैठते ह कं तु समाचार जगत ्
म ऐसी कसी भी सूचना अथवा जानकार का मह व सफ जन च ह तय करती है ।
य द हम यावसा यक नज रए क बात कर तो कसी जानकार क बाजार माँग ह उसक
क मत तय करती है ।
2. ताजगी- समाचार का एक मह वपूण त व उपल ध जानकार क ताजगी है । सूचना
मा यम क दौड़ म अब वह वजेता माना जाता है जो सबसे ताजा जानकार दे । आम
आदमी समयातीत या पुरानी जानका रय म वह ं तक च रखता है जहां तक वे कसी
ताजा घटना म क पृ ठभू म क ि ट से ासं गक ह । इस तरह से जो सूचना िजतनी
नई है उतनी ह समाचार क ि ट से मह वपूण है ।
3. ल त समू ह - िजसे हम बोलचाल म टारगेट ु या टारगेट आ डये स कहते ह, उसक
प
भौगो लक दूर घटना थल से कतनी है, यह बात भी समाचार का एक मह वपूण त व
है । बंगलोर के नकट कसी गांव म घ टत बस दुघटना म बीस लोग भी मर जाएं तो
इसे राज थान के समाचारप म संगल कॉलम समाचार ह बनाया जा सकता है, मगर
य द जयपुर म हु ई दुघटना म तीन लोग भी मारे जाएं तो यह थानीय प म दो अथवा
तीन कॉलम क खबर बन सकती है ।
4. जानकार का आकार - कसी समाचार म दया गया आकड़ा, मृतक क सं या , योजना
का े आ द आकार म कतना बड़ा है, यह त व भी समाचार को भा वत करता है क तु
यह त व हमेशा प रि थ तय पर नभर करता है । भौगौ लक दूर अथवा जन च आ द
त व वपर त होने पर यह त व ाय: गौण रह जाता है ।
5. संपादक या रपोटर का ववेक - कसी खास संपादक या रपोटर क यि तगत सोच
भी कई बार कसी समाचार के मह व को घटा अथवा बढ़ा सकती है । कसी शहर म
आम तौर पर दो दन म एक बार पेयजल आपू त होती है । कसी दन यह आपू त तीन
रोज तक पहु ंच जाती है । थानीय रपोटर एवं संपादक के लए यह आम समाचार है
मगर शहर म एक नया रपोटर कसी ऐसे शहर से आता है जहां दन म दो बार जलापू त
होती थी । ऐसे रपोटर के लए तीन दन म जल आपू त, एक ल ड समाचार जैसा मह वपूण
हो सकता है ।
6. ता का लक प रि थ तयाँ - एक ह सू चना अलग-अलग प रि थ तय म समाचार अथवा
असमाचार हो सकती है । समाचारप म उस दन व ापन क सं या, अ य मह वपूण
घटना म क तुलना मक ि थ त अथवा कु छ अ य यावहा रक कारण एक ह सू चना
के मह व को घटा अथवा बढ़ा सकते ह । दे श के कसी लोक य यि त का नधन आम
दन म समाचारप क थम ल ड बन सकता है कं तु उसी दन दे श के कसी भाग म
भू कंप से कई लोग मारे जाएं तो इस यि त के नधन का समाचारप के कसी कोने
म, संगल कॉलम म भी का शत हो सकता है ।
7. सू चना मा यम क नी त - एक ह सूचना के साथ अलग-अलग समाचारप अथवा अलग
अलग सू चना मा यम म भी अलग अलग यवहार हो सकता है । कु छ ट वी चैनल, भू त त
े
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क घटनाओं को बढ़ा चढ़ा कर दखाते ह जब क कु छ चैनल संजीदा समाचार को
ाथ मकता दे ते ह । कसी समाचारप म आ याि मक समाचार मुखता से छापे जाते
ह तो कसी म बला कार या अपराध क खबर को बड़ा आकार ा त होता है ।
8. बदलते मानदं ड - समाचार के त व ाय: समय काल के अनुसार भी बदलते रहते ह ।
एक समय था जब दे श का धानमं ी कसी भी दे श म कोई भाषण दे ता था तो वह
समाचारप क थम ल ड के प म का शत हु आ करता था । अब वह समय आ गया
है जब भाषण के लए भीतर पृ ठ के कोने म भी जगह नह ं मलती । कसी अ भनेता
के ववाह क पाट अथवा कसी केट टार का म
े संग जो शायद कसी जमाने म
समाचार का वषय भी नह ं माना जाता था अब प क थम ल ड के प म छप सकता
है ।
समाचार म द जाने वाल साम ी, जानकार त य तथा आंकड़े पाठक य मनि थ त पर गंभीर
भाव डालते ह अथवा ह का फु का, यह बात कसी समाचार को हाड यूज अथवा सा ट
यूज क ेणी म वभािजत करती है ।
(क) हाड यूज
ठोस त य पर आधा रत घटना धान एवं समयब समाचार को हाड यूज कहा जा
सकता है । यह समाचार लेखन क परं परागत शैल है । ह या, दुघटना , वधा यका क
बैठक, वी.आई.पी. का आगमन अथवा कोई मह वपूण अदालती फैसला हाड यूज का
वषय हो सकता है ।
हाड यूज क मुख वशेषताओं को हम इस तरह अलग रख सकते ह थम , हाड यूज
त य एवं ठोस जानकार पर आधा रत होती है । वतीय, हाड यूज अखबार के ऐसे
ट न समाचार क ेणी म आती है जो खुद चल कर रपोटर के पास आती ह, तृतीय ,
हाड यूज ाय: सभी त पध समाचारप म एक ह दन का शत होती है, इ ह अगले
77
दन के लए रोका नह ं जा सकता, चतु थ, हाड यूज क भाषा गंभीर व सपाट होती है
। पंचम, हाड यूज का मुख उ े य पाठक को सूचना दे ना होता है । ष ठम , हाड यूज
ाय: उ व परा मड क श ल म ह बनाई जाती है, िजसम ठोस व मु ख जानकार आर भ
म तथा गौण जानकार बाद म का शत क जाती है । उदाहरण-
'अि न पर ा’ म सफल अि न- 3
भारत ने मसाइल तकनीक कया । बंगाल क खाड़ी ि थत वाल मसाइल है। यह
तक म लंबी छलांग लगाते ह लर वीप के अंत रम पर ण चीन के बीिजंग और
हु ए 3 हजार कलो मीटर थल (आईट आर) से सु बह 10:52 शंघाई तक मार करने
तक परमाणु ह थयार के बजे इसे छोड़ा गया । यह दे श क अब म स म है ।
साथ मार करने म स म तक क सवा धक दूर तक मर करने
'अि न-3' मसाइल का
गु वार को सफल पर ण
(ख) सा ट यूज
जैसा क नाम से ह जा हर है सा ट यूज के भीतर चकर जानकार दलच प अंदाज म
तु त क जाती है । गम के मौसम म अचानक सद हो जाना, कसी भ त का दंडवत करते
हु ए तीथया ा करना, कसी बारात म दू हे स हत घोड़ी का भाग जाना आ द ऐसे ह के-फु के
वषय है िजनके कसी समाचारप म न छपने पर पाठक प को अधूरा तो महसू स नह ं करता
मगर िज ह पढ़ने के बाद एक अवणनीय आन द का अनुभव अव य करता है । सा ट यूज
क मु ख वशेषताएं इस कार ह । थम, सा ट यूज म हाड यूज क तरह सभी मु ख
ककार का इं ो म होना आव यक नह ं माना जाता । वतीय, सा ट यूज ाय: समयब
नह ं होती तथा जब तक कोई च चत घटना से जु ड़ा समाचार न हो इसे उसी दन का शत
करना ज र नह ं समझा जाता । तृतीय, सा ट यूज क भाषा ाय: चु ट ल और मु हावरे दार
हु आ करती है चतुथ, सा ट यूज का मुख ल य सू चना दे ना नह ं पाठक का मनोरं जन करना
होता है । पंचम, सा ट यूज पाठक पर कोई गंभीर भाव डालने क अपे ा, उसक भावना,
संवेदना अथवा अनुभू तय को पश करने का काय करती है ।
उदाहरण-
कान से गु बारा फुलाने वाला स नू
बड लयास गांव के संजय शमा (32) ने कान दन बाद उसने ट वी पर एक युवक को मु ंह से
से गु बारे म हवा भरने का कारनामा कर मोटर साइ कल के यूब म हवा भरते दे खा ।
दखाया है । लोग उसे ''कान से गु बारा इसके बाद उसने कान से गु बारे म हवा
फुलाने वाला स तु'' कहते ह । दो साल पहले भरने क को शश शु क । छह मह ने बाद
बनास नद म नहाने के बाद संजय ने कान उसने दो त के सामने गु बारे म कान से हवा
से पानी नकालने क को शश क । नाक भर कर दखाई।
बंद करने पर कान से फ वारे क तरह पानी
बाहर आया । एक-दो
78
4.4.2 कृ त के आधार पर
79
से करते ह तथा जन च ाय: पोल खोल समाचार म अ धक दखाई दे ती है । इस ि ट
से सरकार वारा जार वकास के आँकड़े, भावी वकास योजनाएं, दे श, रा य अथवा सरकार
क ग त क सू चनाओं म आम पाठक क अ धक च नह ं होती, कं तु कसी ऐसे मु े
पर य द कोई वकास समाचार जार होता है, जो कसी गंभीर जन सम या से जुड़ा हु आ
है तो इसम पाठक क गहर च होती है, मसलन कसी पेयजल सम या त इलाके
म मह वाकां ी पेयजल योजना से जु ड़ा समाचार अथवा, कसी भीड़भाड़ और ै फक जाम
वाले इलाके म ओवर ज बनने से जु ड़ी सू चना आ द ।
(ङ) त या : कसी खास अवसर पर अथवा कसी च चत मु े को लेकर या तो मी डया
वारा संबं धत प से त या आमं त क जाती है अथवा कसी मु ख मामले म
वशेष यि त या पदा धकार मी डया को अपनी राय दे ते ह । उनक बात त या के
प म छपती है ।
4.4.3 या या के आधार पर
समाचार बनाते समय अमुक जानकार के त रपोटर अथवा संपादक का नज रया भी अपना
काम करता है । समाचार पर रपोटर के ि टकोण का जो भाव पड़ता है, इसे
यान म रखते हु ए समाचार को दो े णय म बांटा जा सकता है ।
(क) सीधा समाचार
(ख) या या मक समाचार
(क) सीधा समाचार
जब कसी वषय वशेष के संबध
ं म उपल ध सू चनाओं को हाड यूज क श ल म यथावत
पेश कया जाता है तो ऐसे समाचार को सीधा समाचार कहा जाता है । ाय: घटना धान
समाचार म त य को यथावत पेश कर दया जाता है । ऐसे समाचार म पाठक को कसी
न कष पर पहु ंचने अथवा कोई राय बनाने म रपोटर क ओर से कोई सहायता नह ं क
जाती । दे ख एक समाचार
रा य म पहले सेज को कानूनी दजा
अजमेर रोड पर कलवाड़ा गाँव म ता वत म हं ा व ड सट के सूचना ौ यो गक
(आईट ) वशेष आ थक े (सेज) को क सरकार ने कानूनी दजा दे दया है । इसके
बाद अब आईट े क कंप नयाँ यहाँ अपना कारोबार था पत कर सकगी । सेज नमाण
पर दे श यापी ज ोजहद और नई पा लसी जार होने के बाद राज थान का सरकार क
भागीदार वाला यह पहला सेज होगा, िजसे कानूनी दजा मला है । इसम र को क 26
तशत भागीदार है ।
(ख) या या मक समाचार
या या मक समाचार को हम एक सीमा तक वचार म त त य वाला समाचार कह
सकते ह, मगर ऐसे समाचार म वचार उसी सीमा तक वांछनीय होते ह, जहां तक ये
पाठक को कसी सूचना वशेष क पृ ठभू म अथवा इसके भावी प रणाम को समझने
म सहायता करते ह । कु छ जानका रय को लेकर रपोटर का कोई खास ि टकोण होता
80
है अथवा वह अपनी अ त र त जानकार के मा यम से कसी समाचार क या या करता
हु आ इसे पेश करता है ता क पाठक को समझ म आ जाए क इस जानकार का मह व
या है अथवा इससे फक या पड़ने वाला है । ऐसे समाचार को या या मक समाचार
क ेणी म रखा जाता है । क तु या या मक समाचार लखने क जो खम उ ह ं लेखक
को उठानी चा हए जो वषय पर पूरा अ धकार रखते ह तथा अपनी व वसनीयता पर
आँच लाए बगैर समाचार क या या कर सकते ह । जैसे-
इ फो सस- व ो का रा ता साफ
राजधानी जयपुर म ता वत म ह ा व ड सट ल मटे ड के ता वत पेशल
इकोनो मक जोन (सेज) म क यूटर सॉ टवेयर नमाता क प नय इ फो सस व व ो
के आने का रा ता साफ हो गया है । के य वा ण य मं ालय ने सांगानेर तहसील के
कलवाड़ा गांव म 188 एकड़ जमीन को सू चना ो यौ गक सेज के प म अ धसू चत
होने के बाद उसम मलने वाल कर रयायत लागू हो गई है िजससे इसका वकास तेजी
से होगा ।
कसी समाचार पर काय करते समय अथवा जानकार के संकलन म रपोटर ने कौनसी व ध
का इ तेमाल कया है, इस आधार पर समाचार के न न ल खत वग करण हो सकते ह :-
(क) सा ा कार (ख) सव ण (ग) खोजपूण समाचार
(क) सा ा कार - समाचार संकलन एवं लेखन क काफ लोक य शैल है सा ा कार । कसी
भी यि त का सा ा कार ाय: दो अलग-अलग कारण से कया जा सकता है । पहला
कारण तो उस यि त क खास शि सयत हो सकती है । कसी मुख यि त के
समाचारप काशन े म आगमन पर उससे औपचा रक मुलाकात इस आशय से क
जाती है क वह अमु क प के पाठक के लए कोई नई जानकार दे । इस ि थ त म
यि त क शि सयत का मह व अ धक होता है उसके वारा द गई जानकार का कम
। दूसर ि थ त म रपोटर के पास पहले से कोई मह वपूण जानकार और मु ा मौजू द
होता है तथा कसी खास ब दु पर ह वह अमु क यि त का सा ा कार करना चाहता
है । इस ि थ त म जानकार अथवा मु ा मह वपूण होता है एवं यि त गौण ।
सा ा कार पर आधा रत समाचार क तु त के दो तर के होते ह । पहला है नो तर
का तर का एवं दूसरा है टे ट के प म सीधा समाचार का शत करने का । नो तर
शैल का योग ाय: प काओं म होता है जब क दूसर शैल म समाचार पृ ठ पर
सा ा कार भी समाचार के भीतर दए गए एक सामा य व त य क तरह ह तु त कया
जाता है ।
(ख) सव ण आधा रत समाचार - सव ण पर आधा रत समाचार ाय: कसी साम यक घटना
अथवा मु े को लेकर बनाए जाते ह । चु नाव के दौरान चु नाव पूव सव ण पाठक क
च का वषय हु आ करता है । सव ण आधा रत समाचार म समाचार लेखक के सम
कोई वचार प रक पना अथवा मु ा पहले से मौजू द रहता है । रपोटर अपनी प रक पना
के प अथवा वप म लोग के वचार एक त करते ह तथा इन वचार को खास न कष
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क श ल म पाठक के सम तु त करते ह । सव ण आधा रत समाचार को लेकर
अ सर यह सवाल उठता है क सव ण के लए चु ने गए लोग के चु नाव का आधार या
था इस बात को लेकर संवाददाता पर अ सर यह आरोप लगता है क वे अपने पूवा ह
को चंद लोग के मा यम से आम सोच के प म था पत करना चाहते ह । इसके बावजूद
सव ण, समाचार व लेषण का एक भावशाल तर का माना जाता है ।
(ग) खोजपूण समाचार - खोजपूण समाचार पछले कुछ दशक के दौरान उ साह प कार के
बीच लोक य हु ई समाचार लेखन क एक वशेष वधा है । अमे रका का बहु च चत वाटरगेट
कांड, प का रता के इ तहास म या त पाने वाला ऐसा पहला करण कहा जा सकता
है, िजसने न सफ त काल न अमर क रा प त रचड न सन को अपना पद छोड़ने
पर मजबूर कर दया बि क व व भर क प का रता को एक नई दशा दे डाल ।
खोजपूण समाचार दरअसल दु साह सक प का रता के प रणाम होते ह , िज ह पाने के
लए प कार को एक जासू स क भू मका नभानी होती है । खोजपूण समाचार म कसी
ऐसी सूचना का रह यो घाटन कया जाता है , िजसे कसी थान पर, कसी यि त वारा
दबाने का यास कया गया हो । जा हर है ऐसी जानकार को बाहर लाने के लए रपोटर
वारा वशेष यास करने होते ह । कई खोजी प कार के अनुभव के आधार पर समाचार
खोज क वशेष तकनीक को ' यूज इ वेि टगेशन' नाम दे दया गया है ।
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यूम न टोर भी य य प एक क म का यूज फ चर ह है मगर ऐसे समाचार म मानवीय
संवेदनाओं क धानता रहती है । कसी यि त पर हो रहे जु म, मानव अ धकार का
हनन, कसी वकलांग यि त का जीवन संघष, कसी मानव पा वारा द शत
असाधारण मानवीयता आ द मानवीय समाचार के मु य वषय हु आ करते ह । ऐसे
समाचार लखते समय भाषा शैल म क णा, संवेदना, मा मकता, हा य अथवा अ य कसी
मानवीय भावना को उभार कर ि थ त का श द च खींचने का यास कया जाता है।
(ग) यूमरस यूज
यूमरस यूज ाय: वे छोटे -छोटे समाचार होते ह, िज ह समाचार पृ ठ पर बीच बीच
म बॉ स बना कर खास अंदाज म पेश कया जाता है । इ ह यूमरस इस लए कहा जाता
है य क इनम द जाने वाल जानकार ाय: चटपट अथवा मनोरं जक हु आ करती है
। लालू यादव साइ कल पर द तर गए टायर पंचर होने के कारण मु यमं ी को ढाबे पर
कना पड़ा, नेताजी रफ अहमद कदवई को मु ह मद रफ बोलते रहे, आ द जानका रयाँ
अ सर यूमरस यूज का वषय हु आ करती है । ऐसे समाचार को रोचक और ल छे दार
भाषा म पेश करने पर ह ये पाठक पर भाव डाल पाते ह ।
(घ) पािज टव टोर
जैसा क नाम से ह जा हर है, पािज टव टोर जीवन के सकारा मक पहलू को उजागर
करने से ह जु ड़ी होती है । समाचारप क पहचान आज, अपराध, दुघटना , घपले,
टाचार जैसे नकारा मक समाचार से बन चुक है । ऐसे म कोई एक समाचार जीवन
के कसी उजले प को उजागर करता है तो पाठक को यह म थल म बरसात जैसा
सु खद अहसास कराता है । एक ब चा अपने कसर पी ड़त दो त के इलाज के लए कार
साफ करके पैसा बटोर रहा है । कसी कूल बस क दुघटना के बाद अ पताल क म हलाओं
ने घायल ब च को गले लगाया और ढांढस बँधाया, भू क प म अनाथ हु ई ब ची को कसी
द प त ने अपना लया आ द जानका रयां अ छ पािज टव टोर का वषय हो सकती
ह ।
(ङ) खानाबदोश नतक बनी राजनी त क खलाड़ी
उ तर दे श के रामपुर िजले क शाहबाद वधानसभा सीट के लए कां ेस उ मीदवार के
प म खड़ी गु डी बेगम क िज दगी हमेशा से संघष का पयाय रह है फर भी वह हर
परे शानी का मु काबला िज दा दल से करती ह ।
कभी गल मुह ल म नाच करने वाल खानाबदोश नट समु दाय क गु डी बेगम ( नमला
दे वी) अपने मु ि लम ेमी से शाद करने के लए मु सलमान बन गई । इसके बाद वह
राजनी त के े म उतर और िजला पंचायत क सद य चु नी गई । अब वह एमएलए
बनने क लड़ाई लड़ रह है । गु डी का कहना है क हम वकास क बात करनी चा हए
न क बीती िज दगी क ।
बोध न-
1. हाड यू ज या है ?
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……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. े स नोट या होता है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. फ ड बै क कसे कहते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
4.5 सारांश
हमने दे खा क प का रता क वकास या ा के दौरान समाचार क कई कई नई वधाएं वक सत
हो गई । समाचार के व भ न भेद समझने के लए हमने इनका अलग-अलग आधार पर
अलग-अलग वग करण कर दया । वषय व तु के आधार पर हाड यूज व सॉ ट यूज ।
रपो टग तकनीक के आधार पर सा ा कार, सव ण एवं खोजपूण समाचार । कृ त के आधार
पर भाषण, व त य, ेस नोट, या या के आधार पर सीधा व या या मक समाचार, व श ट
शैल के आधार पर यूज फ चर , यूमन टोर , यूमरस टोर व पािज टव टोर आ द का
वग करण कया गया । अगले अ याय म समाचार के कु छ और भेद अलग आधार पर कए
गए ह ।
4.6 श दावल
इस इकाई म यु त श दावल इस कार है -
टं मी डया :- वे सू चना मा यम जो कागज और याह के मा यम से अथात ् छपाई
क तकनीक से लोग तक अपनी बात पहु ंचाते ह । इनम समाचारप
व प काएं मु ख ह ।
लेसमट :- समाचारप म कसी समाचार का थान नधा रत करने क या को
लेसमट कहते ह । जैसे इसे मु ख पृ ठ पर लगाया जाए या भीतर ।
मु ख पृ ठ के शीष पर लगाया जाए अथवा बॉटम म ।
ड ले :- कसी समाचार अथवा फोटो क समाचारप म तु त तथा इसके
वजु अल भाव को ह ड ले कहा जाता है ।
टारगेट प
ु :- लोग का वह समूह िजसे यान म रख कर समाचार लखा जा रहा
हो ।
संगल कॉलम :- दै नक समाचारप के मु ख पृ ठ को ाय: 8 कॉलम म बांट दया जाता
है । ऐसे म िजस समाचार का फैलाव एक ह कॉलम तक सी मत हो
उसे संगल कॉलम कहा जाता है ।
थम ल ड :- समाचारप के मु ख पृ ठ के शीष पर आरि भक कॉल स म जो
सव थम पठनीय समाचार लगाया जाता है वह थम ल ड कहलाता
84
है ।
इं ो :- समाचार का मु खड़ा अथवा आमु ख दरअसल सारांश म कहा गया संपण
ू
समाचार ह होता है ।
4.8 अ यासाथ न
1. एक पाठक क नजर से आप समाचार कसे मानते ह? समझाइये । समाचार के मुख
त व कौन-कौन से ह?
2. हाड यूज व सॉ ट यूज म या अ तर है ? उदाहरण स हत समझाइये ।
3. एक अ छ यूमन टोर क या वशेषताएं होती है । उदाहरण स हत समझाइए ।
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इकाई-5
समाचार का वग करण - (भाग-2)
इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 समाचार का वग करण
5.2.1 घटना के मह व के आधार पर
5.2.1.1 व श ट समाचार
5.2.1.2 यापी समाचार
5.2.2 े अथवा थान के आधार पर
5.2.2.1 थानीय समाचार
5.2.2.2 ांतीय समाचार
5.2.2.3 रा य समाचार
5.2.2.4 अंतररा य अथवा वदे श समाचार
5.2.3 वषय अथवा बीट के आधार पर
5.2.3.1 राजनी तक समाचार
5.2.3.2 चु नाव समाचार
5.2.3.3 संसद य समाचार
5.2.3.4 व ान समाचार
5.2.3.5 तर ा समाचार
5.2.3.6 अपराध समाचार
5.2.3.7 अदालती समाचार
5.2.3.8 वा ण य समाचार
5.3 सारांश
5.4 श दावल
5.5 कु छ उपयोगी पु तक
5.6 अ यासाथ न
5.0 उ े य
पछले पाठ म हमने समाचार, इसके अथ एवं व प के साथ-साथ समाचार के व भ न कार
एवं अलग-अलग आधार पर इनके ेणीकरण के संबध
ं म अ ययन कया । समाचार के
ेणीकरण को लेकर ह कुछ अ य ब दुओं का हम इस पाठ के अंतगत अ ययन करगे ।
इस पाठ का अ ययन करने के प चात ् हम जान सकगे क : -
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घटना के मह व के आधार पर व श ट एवं यापी समाचार या होते ह?
समाचार के कवरे ज ए रया अथवा े के आधार पर थानीय, ांतीय, अ तदशीय,
अ तरा य, ामीण एवं सट समाचार म या भेद होता है?
बीट कसे कहते ह, बीट के आधार पर समाचार का ेणीकरण कैसे होता है तथा बीट
कौन कौन सी होती है?
इसके अ त र त राजनी तक, संसद य, अपराध, व ान, तर ा, वा ण य, अदालती
समाचार आ द के संबध
ं म प र चत हो जाएंगे ।
5.1 तावना
समाचार का मू ल त व पाठक य च अहम भू मका अदा करती है । इस ि ट से हर वह
सू चना, समाचार है िजसम पाठक य च होती है । मगर हर समाचार म च रखने वाले पाठक
का तर, व च का अंश समान नह ं होता । पाठक य च के हर समाचार को न तो समाचारप
क मु य ल ड के थान पर लगाया जा सकता है और न ह हर तरह के समाचार के कवरे ज
के लए खेल संवाददाता, वा ण य संवाददाता अथवा अपराध संवाददाता जैसे कसी भी रपोटर
को ह भेजा जा सकता है । जा हर है समाचार बंधन के काय के लए समाचार क क म
और कृ त क पहचान ज र होती है ।
कसी समाचार को मु ख पृ ठ पर लगाया जाना है अथवा भीतर पृ ठ पर ? चार कॉलम म
लगाया जाना है अथवा संगल कॉलम म? यह नणय करने से पूव यह दे खना ज र होता
है क समाचार सफ एक वग वशेष क च का है अथवा हर आम आदमी क च का कस
सं करण म दया जाए, इसका फैसला करने के लए यह जानना ज र होता है क घटना
कस े म घ टत हु ई है तथा समाचार कस े के लोग क च का है ।
समाचार बंधन के अंतगत कई बार यह भी दे खना होता है क कवरे ज कए जाने वाले वषय
के अंतगत कोई वशेष ता पूण जानकार क आव यकता तो नह ं? य द ऐसा है तो वषय
को सह ढं ग से समझने वाले को ह इसके कवरे ज का कायभार स पना होता है । इसी वजह
से समाचारप के कायालय म व भ न रपोटर के बीच, वषयानुसार काय का बंटवारा कर
दया जाता है ।
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5.2.1 घटना के मह व के आधार पर
5.2.1.1 व श ट समाचार
यापी समाचार से आशय ऐसे समाचार अथवा घटनाओं से है िजनका असर यापक हो तथा
यादा से यादा लोग क इसम च हो । ऐसे समाचार म कसी भी पाठक क च, महज
इंसानी िज ासा के आधार पर हु आ करती है, चाहे उस घटना का य अथवा परो प
से उस पर कोई भाव पड़ रहा हो अथवा नह ं । रा य अथवा अंतररा य तर पर होने
वाल घटना-दुघटनाएं आतंककार हमले , खगोल य घटनाएं महंगाई आ द पर आधा रत समाचार
ाय: आम च से जु ड़े होते ह । यापी समाचार समाचारप म का शत वे समाचार होते
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ह िज ह प के अ धका धक पाठक न सफ पढ़ते ह - बि क पूरा पढ़ते ह । त पधा के
दौर म येक समाचारप अपने प न का अ धका धक तशत यापी समाचार से ह भरना
चाहता है : -
इ तीफे क धमक
नई द ल , 1० अग त । अमे रका के साथ एटमी करार को लेकर जहां
यूपीए सरकार और वाम दल के बीच टकराव बढता जा रहा है, वह ं
ऐसी खबर भी आ रह ह क वाम दल के उ तेवर को शांत करने के
लए धानमं ी मनमोहन संह इ तीफे क धमक का ' मा ' भी चला
चु के ह ।
वाम दल म व भ न सू के मुता बक धानमं ी ने मंगलवार दे र रात
जब माकपा महास चव काश करात और भाकपा नेताओं एबी बधन और
डी राजा से फोन पर बात क थी तब वे भावुक हो उठे थे । इसके चंद
घंटे पहले वाम दल एटमी करार को सरे से खा रज कर चुके थे । सू
का कहना है क धानमं ी ने इस बातचीत म ''मु झे हटने क इजाजत''
दो जैसे श द का इ तेमाल कया । इसका अथ इ तीफे से लगाते हु ए
वाम दल के नेता बचाव क मु ा म आ गए और वे धानमं ी से इस
मसले पर एक और दौर क वाता के लए तैयार हो गए ।
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सं करण जब काशन थल से अ य कसी गांव अथवा शहर म जाता है तो संभव है क
जो समाचार इसके बनाने वाले के लए थानीय है वह पढ़ने वाले के लए बाहर समाचार
हो कं तु आम तौर पर समाचारप म थानीय समाचार अथवा लोकल यूज, इसके काशन
के से जु ड़े शहर, क बे क खबर को ह कहा जाता है ।
समाचारप म थानीय सं करण सबसे ताजा सं करण होता है य क इस सं करण के
काशन थल से वतरण थल तक प रवहन म लगने वाले समय क बचत के कारण इसे
दे र रात तक छापना और इसम ताजातम समाचार कवर करना आसानी से संभव हो पाता है
। थानीय सं करण म थानीय समाचार क मु खता रहती है, िजनम थानीय
घटना-दुघटनाओं के अलावा थानीय वकास से जु ड़ी योजनाएं थानीय सम याएं मुख
थानीय लोग क ग त व धयां व अ य थानीय हलचल से जु ड़ी खबर शा मल रहती ह ।
कु छ समाचारप थानीय घर म होने वाले ज म व मृ यु से जुड़े छोटे समाचार का शत कर
थानीय लोग से नजद क था पत करने का यास भी करते ह ।
रा य समाचारप व ट वी चैनल से त पधा के बावजू द भाषाई समाचारप का वजू द
दरअसल थानीय समाचार के बूत पर ह कायम है ।
थानीय समाचार के कवरे ज के लए येक समाचारप म अलग से एक वभाग होता है
। कुछ प म सट ए डटर व अ धकांश म एक चीफ रपोटर अनेक रपोटर क ट म का
नेत ृ व करता है तथा शहर क व भ न ग त व धय के कवरे ज म इनका मागदशन करता है।
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शु कर दए ह िजनम थानीय समाचार क ह मु खता रहती है । थानीयता क यह होड़
इस सीमा तक जा पहु ंची है क कई बार एक िजले के लोग को यह पता नह ं चल पाता क
उनके पास के ह िजले म या बड़ी घटना घ टत हो गई है । यव था के तौर पर इन थानीय
सं करण म भी ांतीय समाचार के लए एक अथवा दो पृ ठ नधा रत कर दए जाते ह ,
िजनम स पूण ांत क मुख खबर स म लत करने का यास कया जाता है ।
5.2.2.3 रा य समाचार
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चतुथ , कई बार रपोटर के श ण अथवा वशेष ता के आधार पर उसक बीट का नधारण
कया जाता है जैसे यु अथवा सीमा संबध
ं ी ग त व धय के कवरे ज का काय ऐसे रपोटर को
स पा जाता है, िजसने 'वार रपो टग' का बाकायदा श ण ा त कया हो ।
पंचम, अनुभव एवं व र ठता के आधार पर भी रपोटर क बीट का आवंटन संभव है । ाय:
चु नाव के कवरे ज, संसद या वधानसभा क रपो टग या कसी अ त व श ट यि त से मुलाकात
क िज मेदार व र ठ एवं अनुभवी रपोटर को ह स पी जाती है ।
वषय अथवा बीट के आधार पर समाचार का न न ल खत वग करण संभव हो सकता है :-
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के खलाफ ट पणी करने के आरोप म क रपं थय ने त ल मा के खलाफ
फतवा जार कर रखा है । त ल मा ने भारत सरकार से यहाँ क नाग रकता
क भी माँग क है । इस बीच, पि चम बंगाल सरकार ने गु वार को बताया
क इसी माह समा त हो रह उनक वीजा अव ध छह माह बढ़ा द गई है
संसद क बैठक, कारवाई, घोषणाएं वधेयक का पेश होना या कानून का पास होना, सांसद
क नोक झ क, मं य के व त य, बजट आ द बात संसद य समाचार क ेणी म आती
ह । अ यंत अनुभवी एवं व र ठ रपोटर को ह संसद य एवं वधान सभाई रपो टग के लए
लगाया जाता है । संसद व वधान सभा क रपो टग करते समय न सफ इन सदन के
वशेषा धकार क जानकार होना ज र है बि क यह समझ होना भी ज र है क वहाँ से
मलने वाल जानकार के सम दर म से पाठक य च क बात कैसे नकाल जाए ।
5.2.3.4 व ान समाचार
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धारणा को चु नौती मलने लगी है । टश शोधकताओं के मु ता बक, पेड़
पर इधर-उधर कूदने वाले बंदर (ओरगोटग जा त) ह पहले जीव थे,
िज ह ने दो पैर पर चलना शु कया था । व ापन प का साइंस के ताजा
अंक म छपे एक लेख म कहा गया है क बंदर ने पतल टह नय से
फल तोड़ने के लए दो पैर पर चलना शु कया । वैसे इस तरह चलने
के वा ते उसे सहारे के लए अपने हाथ का इ तेमाल करना पड़ता था ।
इस लेख को लवरपूल यू नव सट के रो बन ाम टन, ब मघम
व व व यालय क सूशेनहा थोप और रोजर हो डर ने मलकर लखा है ।
ाम टन ने कहा, 'अब तक दु नया यह मानती आई है क सबसे पहले
इंसान ने ह केवल दो पैर के बूते चलना जाना ।’ अगर हम सच है तो
कसी ाचीन बंदर और शु आती इंसान के जीवा म म अंतर कर पाना
और मु ि कल हो जाएगा ।
5.2.3.5 तर ा समाचार
तर ा संबध
ं ी जानका रय से जु ड़े समाचार इस ेणी म आते ह । ं ी घोटाले,
तर ा संबध
अ सर खोजी प कार के समाचार का मुख वषय रहे ह । ऐसे समाचार दे ते समय यह
सावधानी रखना ज र है क भंडाफोड़ करने के उ साह म कोई ऐसी जानकार का शत न
हो जाए जो दे श क सुर ा के लए खतरा बन जाए ।
समाचारप म सवा धक पढ़े जाने वाले समाचार क ेणी म अपराध समाचार ह आते ह
। थानीय एवं े ीय सं करण म अपराध समाचार को सवा धक मह व दया जाता है ।
अपराध समाचार के लए येक दै नक समाचारप म एक रपोटर अलग से नयु त रहता
है जो नय मत प से न सफ पु लस थान व अपने ऐसे ह सू के स पक म रहता है बि क
दुघटनाओं व अ य हादस क जानकार रखने के लए े के अ पताल के भी च कर लगाता
है ।
5.2.3.8 वा ण य समाचार
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के लए वृि त कस ओर है । बाजार क तेजी-मंद , िज स के भाव, थोक व कराणा बाजार,
शेयर माकट, कारपोरे ट जगत आ द से जु ड़े समाचार एक खास भाषा एवं खास तकनीक के
साथ कवर कए जाते ह । इन समाचार को बनाने का काय वशेष एवं अनुभवी रपोटर
वारा ह कया जाता है ।
समाचार के उपरो त कार के अलावा भी वषय एवं बीट के आधार कई अ य कार हो सकते
ह जैसे खेल समाचार, कृ ष समाचार, पयावरण समाचार, सा हि यक एवं सां कृ तक समाचार,
फ म समाचार, शै णक समाचार आ द ।
समाचार का वषय अथवा े चाहे कोई भी हो, इसका मूल उ े य पाठक य िज ासा को शांत
करना ह होता है । य द इस येय को यान म रखा जाए तो ज रत पड़ने पर कोई भी रपोटर,
कैसे भी समाचार को कवर कर सकता है ।
बोध न-
1. यापी समाचार का अथ समझाइये ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……
2. ां तीय समाचार या होते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……
3. वा ण य समाचार कसे कहते है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
5.3 सारांश
पछल इकाई म समाचार के कु छ व श ट भेद एवं इनके वग करण के आधार का अ ययन
करने के बाद समाचार क कु छ बची हु ई े णय का अ ययन हमने इस इकाई म कया ।
हमने जाना क समाचार के वग करण का मु य उ े य समाचारप म समाचार क क म
एवं कृ त के अनुसार, इसके कवरे ज, रचना, लेसमट और तु तकरण क रणनी त बनाना
और इसके अनुसार यव था करना है ।
5.4 श दावल
बीट - रपोटर का काय े ।
कवरे ज - कसी घटना वशेष को इसके मह व के अनुसार समाचारप म जो
थान दया जाता है, इसे कवरे ज कहते ह ।
टारगेट प
ु - लोग का वह समू ह िजसे यान म रख कर समाचार लखा जा रहा
हो ।
डाक ए डशन - समाचारप का वह अंक जो काशन थल से बाहर कसी अ य थान
पर सा रत होता है ।
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सट ए डशन - समाचारप का वह अंक जो इसके मु ण व काशन वाले शहर म
ह बंटता है ।
5.6 अ यासाथ न
1. घटना के मह व के आधार पर समाचार का वग करण कस कार संभव है ।
2. े अथवा थान के आधार पर समाचार के भेद समझाइये ।
3. बीट कसे कहते ह? वषय के आधार पर समाचार क कौन क न सी े णयां हो सकती
ह?
97
इकाई- 6
त भ लेखन
इकाई क परे खा
6.0 उ े य
6.1 तावना
62 त भ लेखन का मह व
6.3 त भ और समाचार
6.4 त भ लेखन के वषय
6.5 त भ क कृ त
6.6 इंटरनेट पर त भ लेखन
6.7 भावी त भ लेखन
6.8 सारांश
6.9 कु छ उपयोगी पु तक
6.10 अ यासाथ न
6.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के बाद व याथ -
तंभ लेखन के व वध पहलु ओं से प र चत हो पाएंगे ।
कसी भी समाचारप और प का म तंभ का या थान है और तंभ लेखन के बारे
म पाठक क या त याएं रहती ह, इस बारे म भी यह इकाई उनका मागदशन करे गी
।
तंभ लेखन के उ े य और उसक उपयो गता को जान सकगे ।
तंभ लेखन के लए वषय का चुनाव कैसे कर और अपने लेखन को भावी कैसे बनाएं
इस दशा म भी यह इकाई सहायक स होगी ।
स य प का रता म तंभ लेखन को अपनाने के इ छुक छा के लए यह इकाई वशेष
प से उपयोगी है ।
तंभ ओर समाचार के अंतर को समझ सकगे ।
तंभ लेखन क अधु नातन वृि तय को समझ सकगे ।
6.1 तावना
समाचारप अथवा प का म अ य साम ी के साथ का शत होने वाले तंभ का भी अपना
अलग मह व है । एक बड़ा पाठक वग ऐसा है, जो नय मत तौर पर का शत होने वाले
तंभ का अ ययन करते ह । बड़ी सं या उन पाठक क भी है, जो अ य साम ी से भी अ धक
मह व कसी तंभ को दे ते ह । समाचारप म का शत होने वाले तंभ य द भावी और
नरपे ह, तो नि चत तौर पर पाठक के दल म अपना थान बनाते ह । त यपरक,
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वचारपूण और एक नई राह सु झाने वाले तंभ अ य का शत साम ी के बीच अपनी अलग
पहचान रखते ह । साधारण तौर पर यह माना जाता है क बु वग के पाठक ह तंभ पढ़ते
ह, पर हर मामले म यह बात लागू नह ं क जा सकती । बड़ी सं या ऐसे साधारण पाठक
क भी है, जो समाचार और फ चर साम ी के साथ नय मत का शत होने वाले तंभ भी
पढ़ते ह । अ धकांश पाठक का मानना है क समाचारप म का शत समाचार के बीच अगर
वचार कह ं िजंदा है, तो वह तंभ लेखन म ह है । वतमान दौर म तंभ लेखन क वधा
का उपयोग पाठक क संवेदनाओं को जा त करने के लए भी कया जाता है । रोजमरा के
समाचार के बीच कई बार पाठक क संवेदनाएं सूख जाती ह और वे तु त घटना म को
लेकर अ यंत न वकार भाव से त या य त करते ह । ऐसी सू रत म तंभ लेखक उनक
संवेदनाओं को पश करता हु आ उनके वचार को एक नई राह दखाता है ।
6.2 त भ लेखन का मह व
अनेक प कार ऐसे ह, जो समाचार और फ चर लेखन क तुलना म तंभ लेखन को अपनाते
ह । इसके पीछे वचार यह है क समाचार लेखन धीरे-धीरे एक ट न का काम बन जाता
है और इस वजह से उसम वै व य नह ं आ पाता है । यादातर प कार के सामने इसके अलावा
कोई वक प नह ं होता क वे स
े कां स या कसी दूसरे आयोजन से जु ड़े समाचार को य
का य लख द । उ ह अपने वचार य त करने क गु ज
ं ाइश नह ं होती और समाचार लेखन
क जो पारं प रक शैल है, उ ह उसे ह अपनाते हु ए अपना लेखन तुत करना होता है ।
इसी तरह फ चर लेखन म भी उ ह फ चर क शैल का अनुसरण ह करना होता है और फ चर
का जो अनुशासन है , उसक अनुपालना करते हु ए उ ह अपना लेखन कम पूरा करना होता
है । दूसर तरफ तंभ लेखन म उ ह अ भ यि त क वतं ता मलती है और अपनी राय,
अपने वचार वे एक यापक पाठक वग के सम रख सकते ह ।
6.3 त भ और समाचार
जहां तक समाचार लेखन का सवाल है, तो यह माना जाता है क नय मत अ ययन के अलावा
गहन श ण और नरं तर अ यास के बाद कोई भी इस वधा म पारं गत हो सकता है । इसी
तरह, अगर आप सह फामूल का चयन कर ल, तो फ चर लेखन को भी आसानी से अपनाया
जा सकता है । ले कन तंभ लेखन को सबसे मु ि कल वधा माना जाता है, य क इस दौरान
आपको नरं तर वचार मंथन क या से गुजरना पड़ता है । हर पल अपने आपको अपडेट
करना होता है और नय मत और मब अ ययन क वृि त को वक सत करना होता है
। हालां क तंभ लेखन म लेखक के वचार का ह सवा धक मह व होता है, ले कन इसका
यह आशय नह ं क तंभ लेखक अपने अता कक वचार का चार- सार करने क चे टा करे
। यह आव यक है क वचार सुसंगत, वाहमान और तक क कसौट पर खरा उतरते ह
। और साथ म उनका पठनीय होना तो आव यक है ह । जब तक वचार चपूण और मब
तर के से तु त नह ं कए जाएंग,े तब तक वे पाठक म दलच पी जगाने म सफल नह ं
ह गे । इन अथ म तंभ लेखक क भू मका कसी वक ल जैसी होती है । उसे अपनी दल ल
99
से पाठक को आ व त करना होगा क उसका मु वि कल यानी उसका मंत य सह राह का
अनुसरण कर रहा है ।
6.4.1 राजनी तक
6.4.2 खेलकू द
6.4.3 बागवानी
6.4.4 संगीत
100
6.4.5 पु तक
6.4.7 सेहत
लोग को वा य संबध
ं ी जानकार दे ने वाले इस तंभ क पठनीयता भी असं द ध
है । ाय: येक काशन वा य संबध
ं ी जानकार से भरपूर साम ी को थान दे ता
है । इस तंभ म पाठक क भागीदार सु नि चत करने के लए वशेष क सलाह
को भी थान दया जा सकता है ।
6.4.8 फटनैस
इसे हम वा य संबध
ं ी तंभ से भ न प म तु त करना होगा और एक तंभ
लेखक के लए यह सबसे बडी चु नौती है । आज क भाग-दौड़ भर िजंदगी म फटनैस
क चाहत हर कसी को होती है । तंभ लेखक को चा हए क वह अपने े के पाठक
क ाथ मकताओं को समझकर उनके लए उपयु त साम ी का चु नाव इस तंभ
के लए करे ।
6.4.9 सनेमा
101
सनेमा संबध
ं ी तंभ म ह ट वी काय म से संबं धत साम ी शा मल क जा सकती
है ।
6.4.11 व तीय
6.4.12 कला
कला संबध
ं ी ग त व धय पर आधा रत इस तंभ को लखने वाले प कार क छ व
एक कला समी क क बन जाती है, ले कन इस तंभ को लखने से पूव लेखक को
अपने वषय का गहराई से ान होना चा हए । उसम नरं तर अ ययन क वृि त
का होना भी आव यक है और कला जगत क व भ न धाराओं का भी उसे पया त
ान होना चा हए ।
6.4.13 रं गमंच
102
6.4.15 पा रवा रक उलझन
6.4.16 धम और अ या म
6.4.17 यो तष और रा शफल
6.5 त भ क कृ त
तंभ लेखन के लए वषय का चयन करने के दौरान इन बात का यान भी रखा जाना चा हए-
जानकार - यू ं तो अनेकानेक वषय ऐसे ह, िजन पर तंभ लेखन कया जा सकता है, ले कन
असल सवाल यह है क या आप संबं धत वषय के ाता ह? वषय के हर पहलू क आपको
कतनी जानकार है? या आप उस वषय पर अ धकारपूवक चचा कर सकते ह? कहने का
आशय यह क आप िजस वषय का चयन कर, उससे जु ड़ी हर छोट -बड़ी बात क जानकार
आपको होनी ह चा हए । जानकार के साथ-साथ वषय क समझ हा सल कए बना आप
जो कु छ लखगे, उसम चू क होने क आशंका लगातार बनी रहे गी । याद रहे क त य और
वषयव तु के तु तीकरण म जरा-सी चूक भी आपक छ व धू मल कर सकती है और आपके
तंभ क व वसनीयता को खं डत कर सकती है ।
ासं गकता - वषय का चु नाव करते समय ासं गकता का पहलू अव य यान म रख । जब
तक वषयव तु ासं गक नह ं होगी, पाठक उस तंभ से अपना तादा य था पत नह ं कर
पाएंगे । इसके अलावा, अपने तंभ लेखन को पठनीय बनाए रखने के लए भी ासं गकता
के प को यान म रखना आव यक है । लेखन से पहले यह अव य दे ख क संबं धत वषय
वतमान दौर म कतना ासं गक और पठनीय है । कहने का आशय यह क अगर आप व ान
से जु ड़े वषय पर तंभ लेखन करते ह और लोबल वा मग जैसे वलंत मु े पर कुछ लखना
चाहते ह, तो ऐसा लेखन भीषण गम के दौर म कया जा सकता है और अगर आप कड़कड़ाती
103
सद के दन म इस वषय पर कलम चलाते ह, तो पाठक इस वषय से कदा प नह ं जु ड़
पाएंगे ।
शोध और अ ययन - तंभ लेखक म शोध और अ ययन क वृि त का होना भी आव यक
है । जब भी कसी वषय पर लखने क तैयार कर, तो ज र है क हम उस वषय से संबं धत
पहलु ओं क यापक जानकार के लए शोध के तर पर अ ययन कर । इस तरह हम कसी
भी सम या या मु े क गहराई तक पहु ंच सकगे और पाठक को भी इस बात का एहसास
होगा क जो तंभ आलेख उ ह ने पढ़ा है, उसने उ ह वषय क पया त जानकार द है ।
इसी तरह अगर हम नय मत अ ययन का अ यास रखगे, तो पाठक को कसी भी वषय
के बारे म सवाग जानकार दे पाएंगे । याद रख क लखने से भी यादा ज र है पढ़ना ।
नई पीढ़ के प कार म अ ययन क वृि त कम दखाई दे रह है और अ सर वे गवेषणा
और शोध जैसे यास से बचते ह । जब क नय मत अ ययन से न सफ उनका ववेक तर
ऊंचा होगा, अ पतु उनका भाषा ान भी समृ होगा ।
त य का संकलन - य य प तंभ लेखन म लेखक य वचार क धानता रहती है, तथा प
त य से पूर तरह मु ँह नह ं मोड़ा जा सकता । इस लए तंभ लेखक को त य का संकलन
करने के लए हमेशा त पर रहना चा हए । ामा णक त य से यु त तंभ लेखन पाठक के
लए अपना अ भमत वक सत करने म सहायक सा बत होता है । इसके अलावा, त य के
सहारे तंभ लेखक अपने वचार को अ धक भावी शैल म पाठक तक पहु ंचा सकता है ।
त य को अपडेट भी करते रह, ता क ु ट र हत लेखन कया जा सके । त य के सं हण
के लए उसे सरकार योजनाओं और द तावेज का भी नय मत अ ययन करना चा हए । साथ
ह उसे सभी मुख कानून और नयम क अ यतन जानकार भी होनी चा हए ।
तंभ लेखन चू ं क लेखक के नजी अनुभव और यि तगत वचार का त बंब है, इस लहाज
से यह ज र है क िजस वषय पर वह तंभ लख रहा है, उस वषय क उसे गहर समझ
हो । सफ दलच पी के आधार पर ह कसी वषय का चयन कर लेना युि तसंगत नह ं कहा
जा सकता । संबं धत वषय से जु ड़े येक पहलू क पया त जानकार आपके पास होनी ह
चा हए । इसके अलावा, तंभ लेखन शु करने के बाद भी अपने वषय से संबं धत जानकार
लगातार जु टाने का य न करना चा हए । इस तरह आप अपने पाठक को अपडेट जानकार
भी दे पाएंगे और अपने तंभ को लंबे समय तक पठनीय और उपयोगी बनाए रख सकगे ।
याद र खए संपादक भी आपके तंभ म तब तक ह दलच पी दखाएंग,े जब वे आ व त
हो जाएंगे क पाठक के बीच आपके तंभ लेखन क अ छ चचा है और इसक वजह से पाठक
समाचारप को अ धक पठनीय मानते ह । और जब पाठक आपके तंभ को काट कर अलग
रखना शु कर द और उस पर चचा करने लग, तो मान ल िजए क आपने उस तर को छू
लया है, िजसक अपे ा एक कॉलम राइटर से क जाती है । वतमान दौर म यादातर तंभ
सामािजक या राजनी तक वषय पर ह आधा रत ह, ले कन खेल, व ान, पयावरण, धम,
सनेमा और संगीत से संबं धत वषय पर आधा रत तंभ भी पाठक वारा सराहे जाते ह
। संगीत से संबं धत तंभ लेखन म हम ताजा सांगी तक ग त व धय क जानकार दे ने के
104
साथ कलाकार के अनूठे योग और गुणी ोताओं और पाठक के झान का उ लेख भी कर
सकते ह । पछले दशक तक हंद प -प काओं म संगीत समी ा के तंभ नय मत तौर
पर का शत कए जाते थे । धीरे -धीरे इनका काशन कम हु आ और मौजू दा दौर म तो ऐसे
काशन क गनती उं ग लय पर क जा सकती है, िजनम संगीत समी ा का तंभ नय मत
तौर पर का शत कया जाता है । इसी तरह व ान और पयावरण भी ऐसे वषय ह, िज ह
तंभ लेखन म शा मल करने का साहस आम तौर पर हंद के प कार नह ं करते । हंद के
काशन म व ान और पयावरण पर आलेख या फ चर भी यदा-कदा ह मलते ह, ऐसी सूरत
म तंभ लेखन क बात दूर क कौड़ी नजर आती है । सनेमा संबध
ं ी तंभ लेखन क वधा
वतमान दौर म सबसे लोक य है । नए और पुराने प कार सनेमा को अपने लेखन का वषय
बनाना चाहते ह, तो इसका कारण यह है क सनेमा सबसे यादा पढ़ा जाने वाला वषय है
। न सफ फ मी प -प का, बि क सामा य प -प काओं म भी सनेमा संबध
ं ी साम ी क
भरमार है । पर सनेमा पर तंभ लखने वाले प कार अ सर गंभीर और संजीदा लेखन से
बचते ह । आम तौर पर वे सनेमा पर सतह लेखन से ह काम चलाते ह और इसके पीछे
उनका तक यह होता है क पाठक यह सब कु छ पढ़ना चाहते ह । यह ठ क वैसा ह है जैसा
क अ सर हमारे फ मकार तक दे ते ह क वे उसी तरह क फ म बनाते ह, जैसी क दशक
दे खना चाहते ह । पर इस सवाल से शायद सब बचना चाहते ह क पाठक और दशक क
च अगर वाकई गलत दशा म मु ड़ गई है, तो इसे प र कृ त करने क िज मेदार आ खर
कसक है । यह सवाल इस लए भी मह वपूण हो जाता है , य क अ सर पाठक अपने वचार
का वाह उसी दशा म मोड़ लेते ह, जो दशा उ ह तंभ लेखक के वचार से मलती है ।
इस लहाज से तंभ लेखक का दा य व और भी बढ़ जाता है । कोई भी मंत य और वचार
य त करने से पहले उसे चा हए क वह यह बात ि टगत रखे क एक बड़ा पाठक वग उसके
वचार का अनुसरण कर सकता है । इन वचार के काश म हम तंभ लेखन के यापक
मह व को इन बंदओ
ु ं के अंतगत य त कर सकते ह
तंभ लेखन सम साम यक मह व के कसी भी मसले पर पाठक के अ भमत को य त
करता है । हालां क तंभ म य त वचार सफ लेखक के मंत य को प ट करते ह,
ले कन यह नि चत है क पाठक का एक बड़ा वग भी उसी मंत य को अपना लेता है।
तंभ लेखन कसी ऐसे मसले क तरफ लोग का यान आकृ ट करता है, िजसका संबध
ं
यापक जन समु दाय से हो ।
तंभ लेखन से पाठक के अ भमत को त दन या एक नि चत आवृि त पर नई दशा
मलती ।
नय मत और तयशु दा थान पर का शत होने से कई बार कोई तंभ कसी काशन
क पहचान भी बन जाता है ।
तंभ लेखक क पहचान भी अपने कॉलम के साथ जु ड़ी होती है । यह पहचान कई बार
पाठक के लए सहायक सा बत होती है क वे लेखक को कस नज रए से दे खते ह ।
105
6.6 इंटरनेट पर त भ लेखन
कं यूटर और इंटरनेट ने आज हर कसी के सामने लेखक बनने का सु गम और सु वधाजनक
रा ता खोल दया है । अपनी दशा खोिजए और उस दशा म लेखन का यास शु कर द िजए
। तंभ लेखन के लए अब सफ समाचारप अथवा प का पर ह नभर रहने क आव यकता
नह ं है । नए प कार के लए अब इंटरनेट भी तंभ लेखन का अ छा मा यम सा बत हो
रहा है । कु छ अथ म तो यह मा यम समाचारप और प का से भी यादा भावी सा बत
हो रहा है । इसका आधारभू त कारण यह है क समाचारप और प का के मुकाबले इंटरनेट
के ज रए अ धक लोग तक पहु ंचना आसान हो गया है । इंटरनेट पर अपलोड कया गया कोई
भी तंभ पूर दु नया म एक साथ हजार -लाख लोग वारा पढ़ा जा सकता है, वह भी तुरंत
। ऐसी सु वधा तो समाचारप म भी उपल ध नह ं है ।
इंटरनेट पर तंभ लेखन का सबसे बड़ा लाभ यह है क आपको अपने लेखन के बारे म बड़ी
सं या म त याएं मल जाती ह । एक साथ बड़े पाठक वग तक पहु ंचने क मता के
कारण इंटरनेट पर अपलोड कया गया कोई भी कॉलम त काल त याएं जु टा लेता है ।
इसके अलावा, ता का लक मह व के तंभ के लए इंटरनेट मानो वरदान सा बत हु आ है ।
तेजी से बदलती दु नया म आज कोई भी वषय या संग कुछ ह अस म अपनी धार खो
बैठता है । लगाता चौबीस घ टे समाचार और दूसरे काय म पेश करने वाले टे ल वजन चैनल
के कारण कई बार कसी घटना या संग के हर पहलू का इतनी अ धक बार व लेषण कया
जाता है क फर समाचारप अथवा प काओं म इस बारे म कॉलम लखने का कोई औ च य
नह ं रह जाता । ऐसी सू रत म इंटरनेट आपके लए मददगार के प म सामने आता है, जहां
आप अपने वचार के वाह को अनवरत रख सकते ह ।
6.6.1 तंभ क कृ त
106
6.6.2 तंभ लेखन क शु आत
िजस तरह एक खलाड़ी त दन अ यास के सहारे अपने खेल म नरंतर सुधार लाने
का यास करता है, ठ क उसी तरह तंभ लेखक भी अपने त दन के लेखन के
साथ अपनी शैल म नरंतर सुधार कर सकता है । कसी भी नए तंभ लेखक के
लए यह सु झाव दया जा सकता है क वह सा ता हक तंभ के साथ शु आत करे
। उसे यह बात समझ लेनी चा हए क था पत तंभ लेखक के एक-एक श द के
पीछे वष का अनुभव और अ ययन छपा है । कसी भी नवो दत तंभ लेखक को
ारं भ म त दन आवृि त वाला तंभ लेखन नह ं करना चा हए । त दन कोई तंभ
लखने के कारण उसे नय मत अ ययन के लए समय नह ं मलेगा और अगर उसने
नय मत अ ययन क वृि त वक सत नह ं क , तो वह अपने लेखन को समृ नह ं
कर पाएगा । तंभ लेखन क या शु करने के लए आपको न नां कत चार
चरण से गुजरना होगा-
पहला - थानीय, ादे शक और रा य समाचारप का गहन अ ययन कर । दे ख
क समाचारप कस कार के कॉलम का शत कर रहे ह और या वह तंभ आपक
और दूसरे पाठक क ज रत को पूरा कर रहा है । यह भी दे ख क समाचारप के
अपने तंभ लेखक ह अथवा वह कसी संडीकेशन एजसी के ज रए तंभ का शत
कर रहा है । जो समाचारप संडीकेशन एजसी के ज रए तंभ का शत कर रहा
है, उसे अगर थानीय तर पर कोई तंभ लेखक मले, तो शायद वह अपना
ए स लू सव कॉलम शु कर सकता है । आम तौर पर संडीकेशन के मा यम से
ा त होने वाले तंभ म थानीयता का पुट नह ं होता और एक से अ धक काशन
म छपने के कारण उसक व श टता भी समा त हो जाती है ।
दूसरा - समाचारप का अ ययन करने के बाद चु नंदा अखबार के संपादक को प
लख और थायी प से तंभ लखने के अपने ताव का उ लेख कर । साथ म
नमू ने के तौर पर एक या दो तंभ भी लख कर भेज, ता क संपादक आपक लेखन
मता और वषय के बारे म आपक तब ता तथा जानकार का अनुमान लगा
सक । संपादक को संबो धत करते हु ए जो प लखा जाए उसम अपनी यो यता और
अपने लेखन संबध
ं ी अनुभव का उ लेख करना न भूल ।
तीसरा - इस बात के लए तैयार रह क संपादक आपको ायो गक तौर पर कुछ तंभ
लखने के लए कह सकते ह । कई बार संपादक अपनी आ वि त के लए या फर
अपने पाठक क च को परखने के लए आपको अ थायी तौर पर तंभ लेखन के
लए कह सकते ह । भले ह ऐसा लेखन नमू ने के तौर पर ह कया जाए ले कन
तब ता, जानकार और वचार के तर पर उसे कह ं भी कमजोर नह ं होना चा हए
। इसके अलावा, डेडलाइन का पालन करना भी अ यंत आव यक है । एक बार अगर
आपने संपादक क आव यकता के अनु प लेखन क शु आत कर द , तो आगे रा ते
खु लने म भी वलंब नह ं होगा ।
107
चौथा - तंभ लेखन क शु आत पहले थानीय तर पर कर, उसके बाद अपने शहर
और रा य के बाहर ि थत समाचारप से संपक कर । वतं प से काम करने
वाले तंभ लेखक कसी एक समाचारप के साथ जु ड़ने क बजाय एका धक
समाचारप म तंभ लख सकते ह । इस ि थ त म यान रखने यो य बात यह
है क थानीय तर पर एक से यादा अखबार म समान तंभ नह ं लख ।
108
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……
4. इं ट रने ट पर तं भ ले ख न के या लाभ ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……
5. तं भ ले ख न से सं बं धत चु नौ तय क चचा कर ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……
110
। अलग-अलग लोग के वचार को सु नने से तंभ लेखक क लेखक य ि ट वक सत
होती है और इस तरह वह अपने लेखन को समृ बना सकता है । नए तंभ लेखक
के लए तो यह और भी आव यक है । उ ह अपने वषय से संबं धत वचारक क
तकपूण बात के सहारे अपनी लेखन शैल को वक सत करने का अवसर मल सकता
है । नए तंभ लेखक अपने आदश लेखक के वचार का नय मत अ ययन कर
और उनके वचार के वाह को समझते हु ए अपनी अलग लेखन शैल वक सत कर,
तो यह उनके के रयर लहाज से भी अ छा होगा । सीखने का कोई तयशु दा फामू ला
नह ं है और हम अपने दै नं दन क लेखन या म ह बहु त कु छ सीख लेते ह ।
एक अ छा तंभ लेखक वह बन सकता है, जो इस या को अपने यवहार का
ह सा बना ले । कई तंभ लेखक कसी भी मह वपूण मु े पर धारावा हक प से
लेखन करते ह और येक नए तंभ के साथ उस मु े के हरे क पहलू का खुलासा
करते जाते ह । ऐसी ि थ त म पाठक को भी नय मत आवृि त पर आने वाले तंभ
का इंतजार रहता है । इस लहाज से तंभ लेखक क िज मेदार भी बढ़ जाती है
क वह पाठक क अपे ाओं को यथासंभव पूरा करे । इन अपे ाओं को पूरा करने
के लए तंभ लेखक म न नां कत गुण का होना आव यक है -
1. तंभ लेखक के लए यह आव यक है क वह पाठक क अ भ च को समझे
। येक काशन के पाठक क अ भ च भ न- भ न हो सकती है । हर वग
के पाठक भी कसी तंभ से अलग-अलग अपे ा कर सकते ह । इस लहाज
से यह ज र है क तंभ लेखक समकाल न दौर के पाठक क दलच पी का
भल -भां त यान रखे ।
2. तंभ लेखक का भाषा पर पूरा अ धकार होना आव यक है । अपनी भाषा के
श द स दय के साथ वह उसके ला णक मु हावर तथा लोकोि तय का इ तेमाल
अपने लेखन म करता है, तो पूरा तंभ रसपूण बनेगा और पाठक चाव के साथ
उसे पढ़गे । तंभ क भाषा कु छ ऐसी हो क साधारण पाठक भी लेखक का आशय
आसानी से समझ जाए ।
3. तंभ क तु त भी अपना अलग मह व रखती है । सीधा-सपाट लेखन अ धक
दन तक पाठक को बाँध कर नह ं रख सकता । इस लए ज र है क लेखन
का या मक और स दय से प रपूण हो । इन अथ म यह भी कहा जा सकता
है क तंभ लेखक फ चर के कु छ त व का समावेश भी अपने लेखन म कर
सकता है ।
4. लेखन म तु लना मक अ ययन तु त कया जा सके, तो पाठक को और आसानी
रहती है । कसी भी मसले पर तंभ लेखन से पूव अगर हम उस मसले के सभी
ज र पहलू पाठक के सम तु त कर पाएंग,े तो नि चत तौर पर पाठक
क नजर म हमारे तंभ क व वसनीयता बढ़ जाएगी ।
5. तंभ लेखन का वषय चाहे जो हो, ले कन तंभ लेखक के ान का तर
बहु आयामी होना चा हए अथात ् उसे अ धक से अ धक वषय क पया त
111
जानकार होनी चा हए । कई बार बहु आयामी जानकार से तंभ लेखन को सम
कया जा सकता है और पाठक को भी एक ह पहलू से संबं धत पूर जानकार
द जा सकती है ।
6. कहा जाता है क लेखन वह सफल है, िजसम क पना और वा त वकता का
सु ंदर सम वय नजर आता हो । यह बात तंभ पर भी लागू होती है । एक सफल
तंभ लेखक वह है, जो अपने लेखन को यथाथपरक बनाए रखते हु ए उसम
क पना के सु ंदर रं ग का संयोजन भी करे ।
7. वतमान दौर तेज र तार का दौर है और जा हर है क ऐसे समय म पाठक के
पास भी समय का अभाव है । ऐसी ि थ त म कसी तंभ को नय मत तौर
पर बहु त अ धक समय दे ना उनके लए संभव नह ं होगा, इस लए आव यक है
क हम अपने लेखन को सं त और सारग भत बनाए रख । कम श द म
अपनी बात कहने क कला का इ तेमाल तंभ लेखन म कया जा सकता है।
6.8 सारांश
सं प
े म कहा जा सकता है क प -प का म का शत साम ी के बीच कसी भी तंभ क
अपनी व श ट पहचान होती है । समाचार क भीड़ के बीच एक यह साम ी ऐसी है, िजसम
वचार को जी वत रखा जा सकता है । समाचार के लेखन और तु तीकरण म वचार का
समावेश करने क छूट नह ं द जा सकती, ले कन तंभ लेखन के सहारे न सफ वचार का
सतत वाह जार रखा जा सकता है, अ पतु पाठक के लए भी एक नई राह श त क जा
सकती है । अ धकांश मामल म दे खा गया है क कसी तंभ म य त वचार के सहारे पाठक
अपना अ भमत बनाते ह । इन अथ म जनमत का नमाण करने म भी तंभ लेखन क
उपयो गता से इनकार नह ं कया जा सकता । तंभ लेखन के लए वषय क कोई कमी नह ं
है और वषय म भी इतनी व वधता है क नए 'प कार अपनी अ भ च का वषय चु न सकते
ह । समाचारप के लेखक के बीच तंभ लेखक क त ठा भी अ धक होती है और इसका
एक बड़ा कारण यह है क वह पाठक के साथ नय मत तौर पर संवाद कायम करता है ।
इस तरह समाचारप के पाठक के एक बड़े वग के साथ उसका र ता थायी प से कायम
हो जाता है । नय मत तौर पर का शत होने वाले तंभ कई बार समाचारप या प का क
पहचान बनाने म भी सहायक होते ह ।
6.10 अ यासाथ न
1. तंभ लेखन क व वध वृि तय क चचा क िजए । समाचार क तुलना म तंभ लेखन
कस कार भ न है?
112
2. एक तंभ लेखक से पाठक या अपे ाएं कर सकते ह?
3. तंभ लेखन के लए वषय का चु नाव कैसे कया जा सकता है?
4. भावी तंभ लेखन के मूलभूत त व कौन-से ह?
5. समाचारप म छपने वाले अपनी पसंद के कसी तंभ क चचा क िजए और उसके
गुणावगुण का िज करते हु ए उसक उपयो गता प ट क िजए ।
113
इकाई-7
फ चर लेखन
इकाई क परे खा
7.0 उ े य
7.1 तावना
7.2 फ चर या है?
7.3 फ चर क वशेषताएं
7.3.1 िज ासा और नौ र न
7.3.2 दूसर व याओं के उपादान
7.3.3 संवेदनशीलता
7.4 फ चर का मूल व प
7.4.1 समाचार फ चर
7.4.2 व श ट फ चर
7.5 फ चर लेखन
7.5.1 फ चर लेखक क यो यताएं
7.5.2 फ चर लेखन क तैयार
7.5.3 भाषा, शैल और आ त रक गठन
7.5.4 शीषक
7.5.5 भू मका
7.5.6 व लेषण
7.5.7 उपसंहार
7.5.8 च ांकन
7.6 व भ न वधाओं से तुलना
7.6.1 नबंध, लेख और फ चर
7.6.2 समाचार और फ चर
7.6.3 कम और फ चर
7.6.4 कहानी और फ चर
7.6.5 संपादक य और फ चर
7.6.6 अ य वधाएं और फ चर
7.7 फ चर के वषय
7.7.1 यि त व फ चर
7.7.2 समाचार फ चर
7.7.3 यौहार स ब धी फ चर
7.7.4 रे डयो फ चर
114
7.7.5 च ा मक फ चर
7.7.6 यं या मक फ चर
7.7.7 या ा फ चर
7.7.8 मानवीय च वषयक फ चर
7.7.9 ऐ तहा सक फ चर
7.8 सारांश
7.9 श दावल
7.10 कु छ उपयोगी पु तक
7.11 अ यासाथ न
7.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप
फ चर का अथ समझ सकगे,
फ चर क वशेषताओं के बारे म जानकार ा त कर सकगे,
फ चर-लेखन क ाथ मक आव यकताओं से प र चत हो सकगे,
फ चर के व प को समझ सकगे,
फ चर क व वध कार का प रचय ा त कर सकगे,
समाचारप के व भ न तंभ और फ चर का अंतर समझ सकगे
और आप एक अ छे फ चर-लेखक बन सकगे ।
7.1 तावना
समाचार म सभी े क घटनाओं के समाचार तो होते ह ह, इसके अलावा संपादक य, वशेष
आलेख, हा य- यं य, काटू न और फ चर भी होते ह जो समाचारप का च र और यि त व
करते ह । व भ न अखबार म बहु त से समाचार एक जैसे होते ह । संवाद स म त से आए
समाचार का पाठ थोड़े बहु त अंतर के साथ सभी अखबार म एक जैसा हो सकता है । संवाद
स म त का समाचार न हो तो भी वह कौन-कब-कह ं आ द ककार या समाचार के याकरण
म बंधा होता है । ले कन दूसरे तंभ पर यह बात नह ं लागू होती। इनम फ चर का थान
सव प र है । स अमे रक प कार एले सस मैकनी के अनुसार सामा य समाचार आधारभू त
े कौन, कब, कहाँ, य और कैसे (छह ककार) से बाहर अथवा परे हटकर संघात करने
वाला लेखन फ चर है । फ चर म मु यत: कसी मा मक प का तपादन होता है । समाचार
म यह प ाय: नह ं आ पाता । अब तो हर अखबार को शश करता है क हर दन कुछ समाचार
फ चर शैल म लख जाएं । अगर समाचार अखबार का शर र है तो फ चर उसक आ मा ।
इस पाठ म हम फ चर के सभी प का व लेषण करगे ।
115
7.2 फ चर या है ?
फ चर (Feature) श द लै टन के फै ा (Factura) से बना है । फ चर के अनेक अथ ह
। वे टर के नए श दकोश के अनुसार फ चर का कुछ अथ ह-
1. यि त या व तु का व प
2. चेहरे अथवा चेहरे के अंग वशेष , जैसे आँख, नाक, मु ँह आ द का व प
3. समाचारप या प का म का शत व श ट रचना
4. पूर लंबाई का चल च आद
फ चर को ह द म कुछ व वान ने '' पक'' भी कहा है । यह श द का यशा के अलंकार,
य-का य और नाटक के अथ म ढ़ हो चु का है । फ चर का इ तेमाल बहु त हो रहा है ।
रे डयो फ चर, फोटो फ चर आ द धड़ ले से चलते ह इस लए यह श द इसी प म यव त
करना समीचीन होगा । प का रता म फ चर से ता पय समाचारप तथा प काओं म का शत
व श ट आलेख से है, जो हम जानकार दे ने के अलावा आनं दत और फुि लत भी करते
ह । इन लेख म वषय का तु तीकरण इस कार कया जाता है क उनका वा त वक अथ
और व प सा ात ् व य हो उठता है । इसी लए ये फ चर कहे जाते ह ।
प रभाषा
फ चर क कोई सवमा य प रभाषा नह ं क जा सक है । अनेक व वान ने फ चर क व वध
ि टय से जो प रभाषाएं क ह, वे फ चर के गुण का प ट करण करती ह -
सर. खा डलकर क ि ट म, ''फ चर वे लेख ह जो पाठक को यह बताएं क कोई घटना य
हु ई तथा उसका प रणाम या होगा ।''
डॉन डंकन के अनुसार ''फ चर जीवन के त एक नवीन ि टकोण, दै नक जीवन क क णा,
उसक नाटक यता और प रहास प को हण करके उसका च ण करने क एक व ध है
। फ चर एक ''सड वच'' के समान है, िजसके दोन पा व श कर क परत से ढंके हु ए केक
के टु कड़े तथा बीच म मसालेदार मांस तथा आलू भरे रहते ह ।''
जे स बे वस के अनुसार, ''फ चर समाचार को नया आयाम दे ता है, उसका पर ण करता है,
व लेषण करता है तथा उस पर नया काश डालता है । फ चर का सव े ठ कार वह है जो
साम यक हो तथा समाचार से जु ड़ा हु आ हो ।''
मु ख लेखक डॉ. ववेक राय के अनुसार समाचारा मक नबंध पक है और वह व भ न े
क नवीनतम हलचल का श द- च होता है । पी.डी. टं डन के अनुसार फ चर एक कार का
ग य गीत है । यं य लेखक ीकृ ण च शमा के लए फ चर कसी वचार (मा यता),
यि त, घटना आ द का वध शाि दक च ण है िजसे थायी प दे दया गया हो ।
इन प रभाषाओं म फ चर को व भ न ि टय से दे खने का यास कया गया है । येक
प रभाषा उसक कसी न कसी एक वशेषता पर बल दे ती है । फ चर को सम प से समझने
के लए कोई एक प रभाषा पया त नह ं है । फर भी कहा जा सकता है क ''फ चर’’ व तु त:
वृि तय और भावनाओं का सरस, मधुर और अनुभू तपूण वणन है । फ चर लेखक गौण है,
116
वह मा एक मा यम है जो फ चर वारा पाठक क िज ासा, उ सु कता और उ कंठा को शांत
करता हु आ समाज क व भ न वृि तय का आकलन करता है । इस कार फ चर म साम यक
त य का यथे ट समावेश तो होता ह है ले कन अतीत क घटनाओं तथा भ व य क
स भावनाओं से भी वह जु ड़ा रहता है । उसम समय क धड़कन गू ज
ं ती ह ।
7.3 फ चर क वशेषताएं
फ चर ि थ त का वहंगावलोकन ह नह ं करता, वह न का उ तर भी दे ता है और अ ात
का ान भी कराता है । फ चर मानो कसी घटना क दूरबीन से जाँच करता है । अ छे फ चर
के गुण क जब हम बात करते ह, तो उसके मूल चार आधार पर हमारा यान जाना आव यक
है । ये ह- िज ासा, स यता, यो यता और व वास ।
7.3.1 िज ासा और नौ र न
117
7.3.2 दूसर वधाओं के उपादान
118
फ चर म वशेष और अनोखे स य का व लेषण मलता है । फ चर पाठक क िज ासा,
सहानुभू त, आशंका, वनोद, सं ास और आ चय का उ यीपन करता है । प का रता
वशयक अनेक पु तक के लेखक जाज फा स मोर का वचार है क फ चर का ाण
संवेदना है ।
7.3.3 संवेदनशीलता
119
बनाता है । वह घटनाओं के भाव का पूवानुमान करता है तथा संभा वत प रणाम
क ओर यानाक षत करता है ।”
फ चर के त ऐसा आकषण य ? समाचार नयी जानकार दे ता है । इस नवीनता
के कारण सामा य पाठक उसको पढ़ना चाहता है । फ चर म समाचार और सम या
आ द के रह य क वशेष जानकार के साथ आ मीयता, भावना और ववेचना के
गुण का समावेश होता है । इन त व के कारण ह पाठक क उससे भावना मक
संतु ि ट होती है । पाठक क यह संतु ि ट उसके आकषण का मू ल कारण है । इस
संतु ि ट क उपलि ध फ चर म समा व ट उसके अनेक मूल त व के कारण होती है।
बोध न- 1
1. फ चर कसे कहते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. फ चर को कौनसे नौ त व आकषक बनाते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. फ चर समाचार का सरस , यापक सं द भयु त मोहक व तार है । या आप इससे
सहमत ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
7.4 फ चर का मू ल व प
7.4.1 समाचार फ चर
120
2. जीवन के सु खांत और दुखांत पहलु ओं पर वचार ।
3. अ धक याद रहने वाल कहानी ह पाठक को अ धक छूती है ।
4. क ण फ चर को सरल और संयत रखा जाए ।
5. छछले हा य और बाजा भाषा का योग न कर ।
6. धम, जा त और रा यता पर आ ेप न हो ।
7. श द के चयन पर वशेष यान रखा जाए ।
8. घटना के आकषक पहलुओं पर यान दया जाए, लेखक उ ह अपने मन से न
गढ़ ।
9. फ चर म बनावट त य को भरने क को शश न क जाए । बनावट त य से
फ चर को औप या सक प दे ना उपयोगी नह ं । त य प व है, नाटक यता नह ।ं
7.4.2 व श ट फ चर
121
तक पहु ंच सकता है, िजन तक सामा य पाठक कभी नह ं पहु ँ च पाता ।
नर ण-शि त के अभाव म फ चर के लेखक म अपनापन नह ं आता । फ चर
का न अपना यि त व नखरता है और न लेखक का यि त व ह बनता है
। पैनी नगाह से दे खने, उस पर मनन करने तथा अपने न कष पर पहु ंचने
का सतत अ यास ज र है ।
4. फ चर का मू ल आधार समाचार है । समाचार केवल पढ़े ह न जाएं, बि क फ चर
के उपयु त लगने वाले समाचार क कतरन भी एक होती रह । समाचार फ चर
के त य को आधार बनाकर जब लेखक व न के रह य, उनक स यता, उनम
तारत य का गठन, दुघटनाओं और व न का ताल-मेल मनोरंजक ढं ग से इस
कार तु त करता है क वे दय को छू जाएं, तब वह स पूण फ चर बन जाता
है । इस कार का फ चर तैयार करने म कु छ समय तो लगता ह है । स पूण
फ चर तु रत-फुरत का लेखन नह ,ं वह तो अ ययन, अ यवसाय और
लेखन-चातुर का चम कार होता है । स पूण फ चर साम यक , थानीय,
दे श यापी, सवदे शीय, नयतका लक और शा वत हो सकते ह । व श ट फ चर
म लेखक के सा हि यक तथा वै ा नक तर क के साथ-साथ खर वणन शैल
और नाटक यता का आ य लेकर त य-क य को अ धक व तृत , संवेदनशील,
आकषक तथा मनोरंजक बनाया जता है । लेखक उसके मा यम से पाठक को
श ण भी दे ता है, पर तु अ य प म जब क समाचार फ चर म कसी कार
अथवा कसी प म श ण समा हत नह ं होता ।
7.5 फ चर लेखन
7.5.1 फ चर लेखक क यो यताएं
122
5. फ चर लेखक को प रवेश के त सजग तथा समसाम यक प रि थ तय के त
जाग क होना चा हए, ता क वह उन व वध वषय को अपनी सू म ि ट से दे ख
सके, िजन पर रोचक फ चर लखे जा सकते ह ।
6. फ चर लेखक को अपनी आंत रक वृि त , ान और अनुभव पर व वास होना चा हए
।
7. फ चर लेखक को अपनी आख तथा कान पर व वास रखते हु ए भाव , अनुभू तय ,
एवं नर ण-शि त का सहारा लेकर फ चर तैयार करने चा हए ।
123
लखते समय उसके पाठक क वृि त , च और प क नी त का भी यान
रखे ।
(4) पाठक क च और प क नी त का यान रखते समय लेखक को इस
त य पर भी नजर रखनी चा हए क फ चर सामा य पाठक के लए है, न
क वशेष के लए । सामा य बु के पाठक क सं या अ धक होती है
और उ ह ं से कसी प क लोक यता आंक जाती है । सामा य पाठक
ने फ चर पसंद कया, तो सम झए क फ चर लेखक क कदर बढ़ने क
संभावना संभावना है ।
(5) जहां तक फ चर के आकषण का न है वह बहु मुखी हो, न क अ त सी मत
। आकषण का आधार एकांगी होने से पाठक क सं या सी मत होगी और
वह उ ह कम चेगा । मानव वभाव बहु रं गी है । उसक कृ त एक पता
से ज द ऊब जाती है । उसे व वधता म मजा आता है । इसी रह य को
यान म रखकर फ चर म आकषण क व वधता लाने का यास कया जाता
है ।
(6) फ चर का पाठक उसम समा हत स य और अनुभव का पर ण करने को
आतु र हो जाता है । अत: फ चर म जो बात लखी जाएं, वे पूण प से
यावहा रक होनी चा हए । वे ऐसी का प नक न ह , िजनका कसी धरातल
पर पर ण न हो सके । य द ऐसा हु आ तो पाठक का लेखक पर से व वास
उठ जाएगा और उसक कृ त भ व य म लोक यता खो दे गी ।
124
भाषा और भाव के उ चत सं म ण से शैल बनती है । कसी व वान क मा यता है क भावह न
भाषा से भाव क सृि ट नह ं हो सकती । बना संयत भाषा के अ भ ेत भाव भी य त नह ं
होता ।
मोटे तौर पर शैल के दो कार ह-वणना मक और भावा मक । एक म लेखन का ढं ग वणन
कर प लेता है और दूसरे म भाव क धानता होती है । इन दोन शै लय का म ण भी
हो सकता है । फ चर लेखन म म त शैल का योग ह अ धक उपयु त होता है । हमारे
ग य क भाषा लया मक होनी चा हए । उसम लय-ला ल य होगा, तब वह आनंददायक होगी
। भाषा-शैल को गौण समझना उ चत नह ं । पहले तो इस बात का मह व है क जो कु छ
कहा जा रहा है वह कैसे, कस ढं ग से, कस चतुराई से और वह कैसा चम कार उ प न करने
वाला है । उसके प चात ् '' या कहा जा रहा है” के मह व क गणना होती है ।
शैल के आव यक गुण ह - सरलता, प टता, सजीवता, मम प शता और भावो पादकता
। इनके साथ “ वनोद”का पुट हो, तो वह सोने म सु हागे का काम करता है । बालकृ ण भ
ने एक थान पर लखा है- “सच पूछो तो हा य ह लेख क आ मा है । लेख पढ़कर कं ु द
क कल के समान दांत न खल उठ, तो वह लेख ह या ।”
इसके साथ ह यह कहना भी पूर तरह ठ क नह ं क यि त ह शैल है अथवा शैल ह यि त
है । व वनाथ साद (“भाषा”, ववेद मृ त अंक , अग त 1964) क मा यता है क शैल
के पूण वकास के लए यह आव यक है क लेखक या क व अपने वषय म अपने आपको
ब कु ल डु बो कर, अपने आपको ब कुल भूलकर रम जाए । वषय के वणन म आ म वभोर
हु ए बना शैल का नखार कहाँ? शैल कार तो अपने यि त व का होम करके ह , अपने को
ब कु ल खपा करके, वातावरण के व प अथवा वानुभू त का यथावत अंकन कर पाता है।
फ चर लेखन क शैल म यि त व का दशन नह ,ं उसका गोपन अ धक आव यक अंग माना
जाता है । वषय, संग, प रि थ त और करण के अनु प ह फ चर लेखक श द का चयन
और वा य का गठन करता है । यह लचीलापन ह शैल को नखारता है और यह उसम साद
गुण क वृ करता है ।
फ चर लेखन क शैल के बारे म के.पी. नारायण का वचार है – “'वह छोट नद के वाह
जैसी होनी चा हए । फ चर के लए भावा मक शैल का योग अ धक उपयु त है ।”'
फ चर लेखन क भावो पादक शैल के लए सं ेप म आव यक गुण इस कार ह-
1. “अरथु अ मत अ त आखर थोरे ” - तु लसीदास
2. साद गुण, आसानी से समझ म आ जाए
3. सा हि यक पुट लए टकसाल तथा ओजपूण भाषा
4. श द तथा वा य के अथ गौरव का ान और उसका शु योग
5. कहने का अपनापन जो नवीन, चटक ला, सट क और मनोरंजक हो
6. मु हावरे, कहावत और सूि तय का सह योग
7. वा य का गठन सरल हो, पर तु ढ लापन लए हु ए नह ं
8. वा य के गठन म अनेक पता
125
9. श द , वा य और वचार क पुनरावृि त न हो
10. पैरा न तो बहु त छोटे ह और न अ धक ल बे ह
11. जहां तक संभव हो पैरा के थम वा य म ह मह वपूण नवीन वचार को थम थान
मल जाए
12. येक पैरा के गठन म भी व वधता जान पड़े
13. येक वा य और पैरा म कथन का तारत य बना रहे
14. अनाव यक कुछ न हो, न भाव और न वा य
15. वषय के अनु प कथन का प हो
16. तकनीक तथा दु ह वा यावल तथा श द का कम से कम योग कया जाए
17. ामीण श द का योग न कया जाए तो अ छा । संगानुसार उनका कह ं योग कर
भी दया जाए तो बुरा नह ं
18. भाव और भाषा म उलझन न जान पड़े
19. अनुवाद भाषा का पूण प र याग
20. भाव और भाषा के सं कार क र ा का यान
21. शैल प रमाजन के लए रचना का बार-बार पठन ।
7.5.4 शीषक
7.5.5 भू मका
7.5.6 व लेषण
7.5.7 उपसंहार
7.5.8 च ांकन
127
7.6 व भ न वधाओं से तु लना
फ चर और संपादक य, लेख, नबंध, कहानी आ द म मौ लक अंतर है, हालां क कु छ वधाओं
के त व फ चर म भी होते ह ।
नबंध, (अं ेजी पयाय “ऐसे”) का अथ कसी वषय अथवा वचार से संबं धत साम ी
को बांधना या एक करना है । नबंध मु त अथवा व छं द रचना है । ांसीसी
लेखक- माइकेल दमानतेन 'ऐसे' या नबंध के जनक माने जाते ह । वह नबंध के
मा यम से अपने “म” को सच, सहज और सामा य तर के से य त करते ह । उ ह ं
का अनुकरण कर नबंध लेखक का “म” खु लकर खेलता रहा । बाद म नबंध म “म”
बहु त कुछ लु त हो गया । अब उसम दु नया का सब कु छ होता है, सफ “म” नह ं
। लेखक को मनमानी करने क छूट होती है । वह वषय या वचार का बंधन नह ं
मानता । नबंध लेखन मनमाने या अनाड़ी ढं ग से श द का खलवाड़ नह ं है । वह
ग य म अ भ यि त क ऐसी स और ऐसा कला मक सं ेषण है, िजसम लेखक
अपने जीवनानुभव और उपलि धय को जाने या अनजाने इस कार रखता है क
पाठक उसी भाव-भू म पर संचरण करने लगता है । उसम लेखक का “अपनापन” प ट
झलके । वषय तो यि तगत अ भ यि त क बैशाखी मा है ।
लेख आधु नक श द है । इसका योग अं ेजी श द “आ टकल” के पयाय के प म
होता है । यह श द प का रता के वकास के साथ जु ड़ा हु आ है । लेख म मु यत:
नवयि तक ढं ग से कसी वषय का ववेचन होता है । नबंध और लेख म वशेष
अंतर नह ं है । नबंध म पां ड य का प अ धक नखरा हु आ और भार भरकम होता
है । लेख बहु त कु छ ह कापन लए होता है । नबंध थायी सा ह य का अंग बन
सकता है और बन जाता है । लेख क ि ट साम यक है । वह तुरत-फुरत वाले सा ह य
क को ट म आता है ।
नबंध, लेख और फ चर क तु लना कर तो पाएंगे क नबंध और फ चर दोन म ेठ
ग य के दशन होते ह । दोन थायी सा ह य क को ट म पहु ँ चने क को शश म
रहते ह । दोन म आधारभूत वषय-चयन क कोई सीमा नह ं । नबंध म “म” कसी
न कसी प म झलकता है । फ चर म “म” होता ह नह ं और होना भी नह ं चा हए
। नबंध म पां ड य क झलक अव य होती है । फ चर म पां ड य का लेशमा दशन
नह ं होता ।
लेखक और फ चर प का रता से अ धक संब ह । लेख और फ चर दोन का ह आधार
साम यक को ट का होता है । फ चर तथा लेख अ छे ग य के नमू ने होने चा हए
। दोन सूचनापरक ह और इनका अपने-अपने कार से आकषक होना ज र है ।
लेख के वषय व तृत और गहन होते ह । लेख एक वषय को छूता हु आ अनेक
वषय को अपने दायरे म समेट लेता है । लेख म व व ता का पुट होता है । वह
128
शैल और तपादन करने म अ धक गंभीर होता है, पर नबंध क तु लना म कम,
लेख औपचा रक होता है । कसी त य का तपादन करते समय अपना मत कट
करना लेखक का पूण अ धकार ह नह ं है , उससे उसक अपे ा क जाती है । फ चर
अनौपचा रक ढं ग से लखा जाता है । फ चर लेखक अपनी राय सं त प म ह
कट करता है । आलोचना करने का उसका तर का सीधा न होकर अ य होता
है ।
लेख म त य , तार ख और आंकड़ का बाहु य हो सकता है । लेख क सीमा पर
कोई तबंध नह ं । य द सीमा है, तो प -प का के आकार और संपादक क इ छा
के अनुसार ।
फ चर का वषय नि चत और संकु चत होता है । उसम अ धक त य और आंकड़
का दया जाना ज र नह ं । लेख म च आव यक नह ं । च और काटू न फ चर
के आव यक अंग ह । अनेक फ चर च - धान होते ह । फ चर म रं गीनी और
नाटक यता होनी ह चा हए । फ चर-लेखन क शैल गंभीर न होकर वनोद होती
है । मन पर चोट और उस पर अ धका धक भाव डालने का गुण उसम होना ज र
है । फ चर का व प छोटा ह होना चा हए ।
कसी एक वषय पर लेख के लए िजतनी तैयार क ज रत है, उससे कह ं अ धक
मसाला फ चर के लए जु टाना पड़ता है । लेख के कारण, वृि त और वचारधारा
पर अ धक रोशनी नह ं डाल जाती । फ चर तो अ धकतर घटनाच और
लोक- त या पर क त रहता है ।
सं ेप म कहा जा सकता है क लेख और नबंध मि त क क उपज है तो फ चर
दय क । लेख और नबंध मानस-पु ह । फ चर है दयतं ी क झनकार ।
7.6.2 समाचार और फ चर
129
के प म लखा जाता है । फ चर को उ तम, म यम अथवा अ य पु ष के प म
लख सकते ह । फ चर म त य रं गीन और सजीव होते ह । चु ट ल तथा भावो पादक
भाषा उसम पृ ठभू म, तपादन और भावा मक तु तीकरण का आधार होती है ।
फ चर लेखक अ धक वमशक होता है और समाचार लेखक अ धक वणना मक ।
फ चर का शा वत त व समाचार क णभंगरु ता को लांघने वाला होता है ।
7.6.3 कम और फ चर
7.6.4 कहानी और फ चर
7.6.5 संपादक य और फ चर
130
7.6.6 अ य वधाएं और फ चर
7.7 फ चर के वषय
प रवेश क यापकता के कारण फ चर लेखन के लए भी व भ न वषय चु ने जा सकते ह
। मानवीय जीवन के व वध पहलुओं पर फ चर लखे जा सकते ह , तथा जन च के अनेक
े को फ चर का वषय बनाया जा सकता है । सामािजक, आ थक, राजनै तक, धा मक,
सां कृ तक पौरा णक आ द े के व भ न वषय पर े ठ फ चर लखे गए ह । च ा मक
तथा यं या मक फ चर आज वशेष लोक यता अिजत कर रहे ह । के. ह । के.पी. नारायणन
ने फ चर के तीन मु ख भेद का ववेचन कया है - यि त व फ चर, यौहार फ चर तथा
च ा मक फ चर । पी.डी. टं डन ने पौरा णक फ चर का भी उ लेख कया है ।
131
ेमनाथ चतु वद ने फ चर के दो मु ख भेद कए ह -समाचार धान और व श ट तथा इ ह ं
दो भेद म सम त कार को समा हत कया है । यावहा रक ि ट से फ चर के अनेकानेक
भेद कए जा सकते ह । कुछ मु य भेद क चचा यहाँ क जा रह है-
7.7.1 यि त व फ चर
7.7.2 समाचार फ चर
7.7.4 रे डयो फ चर
132
फे टन के अनुसार बी.बी.सी. म “फ चर” नाम “डाकुम ” के लए यव त होता है
। आज से लगभग 30 वष पहले बी.बी.सी. म “फ चर' नाम क रचनाएं नह ं होती
थी, ले कन बी.बी.सी. का नाटक वभाग रे डयो टे कनीक के संबध
ं म नए-नए योग
कर रहा था । उसे वशेष अवसर के लए काय म का आयोजन करना पड़ता था
। इन काय म क सूचनाएं “रे डयो हाइलाइट” या वशेष काय म शीषक से
समाचारप म द जाती थी । उसी कार बी.बी.सी. के वशेष काय म क सू चनाएं
प म नकलती थी । इ ह लोग “फ चड ो ाम” कहते थे । बोलचाल म “'फ चड”
के “ड” का लोप हो गया और उसे “फ चर” ो ाम कहने लगे ।”
रे डयो फ चर का े अ यंत यापक है । इसके मा यम से हम महापु ष क जीवनी,
े - वशेष क सां कृ तक जीवन-झांक , ऐ तहा सक, थान का प रचय आ द पा
सकते ह ।
7.7.5 च ा मक फ चर
7.7.6 यं या मक फ चर
7.7.7 या ा फ चर
133
7.7.8 मानवीय च वषयक फ चर
7.7.9 ऐ तहा सक फ चर
7.8 सारांश
सामा य समाचार के आधारभू त े या न कौन, या, कब, कहाँ, य और कैसे के बाहर
अथवा परे हटकर जानकार दे ने वाला और मानवीय प को वृह तर प र े य म तु त
संवदे नशील रचना को फ चर कह सकते ह । इसम त य रं गीन और सजीव होते ह । भाषा
चु ट ल और असरदार होती है । फ चर कसी भी वषय पर लखा जा सकता है । संदभ और
वृि तय क ओर संकेत करने वाला अनुभवा त यह लेखन मम पश होता है । पाठक
घटना- धान समाचार को आसानी से भूल जाता है ले कन अ छे फ चर को नह ं । ये फ चर
समाचारप को जानदार और अ धक पठनीय बनाते ह ।
7.9 श दावल
फ चर (Feature) - पक, फ चर का शाि दक अनुवाद हो सकता है और अनेक लेखक पक
लखते भी है, ले कन पक अलंकार और नाटक के अथ म ढ़ हो चु का है । फ चर श द चलन
म आ गया ह । इस लए फ चर को फ चर ह कहना और लखना चा हए ।
इं ो (intro) - समाचार क तरह फ चर का भी आमु ख या इं ो होता है ।
उप-शीषक (Sub-Heading) - समाचार म उप-शीषक दे ने क परं परा नह ं है । ले कन फ चर
म बीच-बीच म उप-शीषक दये जा सकते ह, हालां क यह अ नवाय नह ं है ।
फोटो फ चर - फोटो फ चर म फोटो- च मु ख होते ह और शीषक या सं त आलेख गौण,
ये अ त र त जानकार दे ने और च को एक सू म बांधने का काम करते ह ।
134
7.10 कुछ उपयोगी पु तक
फ चर लेखन- ेमनाथ चतु वद , काशन वभाग, भारत सरकार, नई द ल
पक लेखन - डॉ. जभू षण संह आदश, म. . हंद ं अकादमी, भोपाल
थ
संपादन कला - के.पी. नारायणन, म. . हंद ं अकादमी, भोपाल,
थ
Feature With Flair - Brin Nichalls, Vikas Publications, New Delhi.
Feature Writing for Newspapers - Demiel R. Williamson
Writing and Selling Feature Articles – Helen M. Paterson
Mass Communication and Journalism in India – D.S. Mehta, Allied
Publications, New Delhi.
7.11 अ यासाथ न
1. फ चर के व प को प ट करते हु ए समझाइए क नबंध से वह कसी प म भ न
ह?
2. आपसी ि ट म आदश फ चर क मु ख वशेषताएं या ह?
3. फ चर को वषयानुसार कन वग म बांटा जा सकता है?
4. अपनी च के कसी वषय पर सं त फ चर ल खए ।
135
इकाई-8
समी ा लेखन
इकाई क परे खा
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 समी ा-अथ एवं व प
8.3 समी क से अपे ाएँ
8.4 समी ा कैसे कर?
8.4.1 समी ा लेखन का मा यम
8.4.2 समी ा लेखन क या
8.5 समी ा लेखन के कार
8.5.1 या या मक समी ा
8.5.2 ऐ तहा सक समी ा
8.5.3 आ मच रतमू लक समी ा
8.5.4 मनो व लेषणा मक समी ा
8.5.5 भाववाद समी ा
8.5.6 समाजशा ीय समी ा
8.5.7 सौ दया वेषी समी ा
8.6 मी डया म समी ा लेखन
8.6.1 पु तक समी ा
8.6.2 फ म समी ा
8.6.3 ना य समी ा
8.6.4 कला समी ा
8.7 सारांश
8.8 कु छ उपयोगी पु तक
8.9 अ यासाथ न
8.0 उ े य
इस इकाई म आप 'समी ा लेखन' के मह व एवं तकनीक के संबध
ं म व तार से जान सकगे
। इकाई के अ ययन के बाद आप-
'समी ा' के अथ एवं व प को जान सकगे ।
समी क से या अपे ाएं रखी जा सकती है, इससे प र चत हो सकगे ।
समी ा लेखन ' कैसे कर, इस वधा को जान पाएंगे ।
136
समी ा का मा यम और समी ा क या से अवगत हो सकगे ।
'समी ा' के व भ न कार को समझ सकगे ।
मी डया के व भ न मा यम के लए समी ा लेखन के व प को जान सकगे ।
आप समी ा लेखन म कुशलता ा त कर एक यो य समी क बन सकगे ।
8.1 तावना
'समी ा' श द क न प त 'सम' उपसग के साथ 'ई दशने' धातु से भाव वाचक 'आ' यय
से हु ई है िजसका अथ 'स यक् दशन' है । समी ा के अ य च लत श द आलोचना,
समालोचना, मीमांसा, ववेचन, परामश, त या वेषण, गुण -अवगुण पर ा, जांच, परख,
समावलोकन, मानदं ड, पैमाना आ द ह । 'समी क' का आशय आलोचक, कला समालोचक,
कला समी क, पर क, पारखी, ववेचक, वमश और समालोचक से है । आलोचना श द
सं कृ त क 'लुच'् धातु से बना है । लुच ् के अनेक अथ ह- 1. दे खना (ने से), 2. इं य
मा से या मन से हण करना या समझना, 3. का शत करना । अथात ् िजससे दे खा जाए
िजससे कु छ प ट हो या का शत हो, उसे 'लोचन' कहते ह । लोचन के पूव 'आ क' उपसग
लगता है िजसम अ क ‘ क’ का लोप हो जाने से 'आलोचना' श द बनता है । 'आ' का अथ
है चार ओर से । अत: समालोचन का अथ है कसी वषय क पूण जानकार ा त करना,
उस पर वचार- वमश करना, उसको प ट करना तथा गुण-दोष का ववेचन कर अपना मत
कट करना । आलोचना म 'सम' उपसग से 'समालोचन' श द बनता है, िजसका अथ है स यक्
प से आलोचना करना । अं ेजी के ' ट स म' श द क मू ल धातु ' ाइटस' है िजसका
आशय अलग करना, नणय करना या मू यांकन करना है । व तु त: यह समी ा का मू ल
आधार है ।
मी डया म 'समी ा लेखन' का अपना व श ट थान है । समी ा लेखन ह वह मा यम है
िजसके वारा कसी कृ त वशेष का मू यांकन कर उसके वचार से पाठक को अवगत कराया
जाता है ।
137
'समी ा' के अथ एवं व प को भारतीय और पा चा य व वान ने इस कार प रभा षत कया
है-
“सा ह य े म थ
ं को पढ़कर उसके गुण और दोष का ववेचन करना और उसके संबध
ं
म अपना मत कट करना आलोचना कहलाता है । य द हम सा ह य को जीवन क या या
माने तो आलोचना को उसक या या क या या मानना पड़ेगा ।”
डॉ. याम सु ंदर दास
“ थाई समी ा वह ं होती है िजसम क व क वचारधारा म डू बकर उसक वशेषताओं का
द दशन तथा उसक अंतवृि तय क छानबीन क जाती है ।”
पं. रामचं शु ल
“ कसी व तु या वषय के सभी अंश पर अ छ तरह वचार करना ह समी ा है ।”
- आचाय महावीर साद ववेद
“स यं, शवं, सु ंदरम का समु चत अ वेषण, पृथ करण तथा अ भ यंजना ह स ची समी ा
है ।''
- आचाय नद दुलारे वाजपेयी
“आलोचक क थापना एक कार से नणायक क थापना है ।''
- रचडसन
सारांश म कहा जा सकता है क 'समी ा' के मा यम से हम कृ तकार के उ े य , कृ त के
गुण -दोष तथा रचना क मन पर पड़ी त या को य त करते ह ।
138
7. पु तक-समी क, नाटक समी क और फ म समी क को नभ क होना चा हए ।
वैयि तक च-अ च से ऊपर उठकर उसे वा त वक मू यांकन करने का यास करना
चा हए ।
पा चा य व वान ने समी क म न न ल खत गुणआव यक माने ह- 1. सु नि चतता,
2. वातं य, 3. सूझ, 4. े ठ वचार, 5. उ साह, 6. हा दक अनुभू त, 7. गंभीरता, 8.
ान, 9. अथक प र म ।
139
का य न करना चा हए । पु तक िजन उ े य को लेखर लखी गई है , उसके नवाह
म लेखक क सफलता कस सीमा तक रह है, यह भी मह वपूण प है । यह
बात नाटक एवं फ म समी ा करते समय यान म रखना चा हए ।
लेखक के वचार के अ त वरोध, नवीन योग, उसक यावहा रकता, भाषागत वाह,
अ भ यि त, अथ-बोध आ द प पर वचार करते हु ए समी क को कृ त का
मू यांकन करना चा हए । प टत: समी ा का े अ य त यापक है तथा समी क
का काय बहु त दा तय वपूण है । कसी कृ त क अ त न हत मू ल चेतना समी क
वारा उ घा टत होती है ।
8.5.1 या या मक समी ा
140
युग क चेतना से े रत होकर सा ह यकार अपने सृजन-संसार म वेश करता है ।
व भ न समय म लेखन के रचना- वधान म वै व य का कारण व भ न युग -चेतनाएँ
ह ह । टे न क यह ि ट ऐ तहा सक समी ा-प त क मू ल भि त है ।
141
समाज और राजनी त बदलती है अथवा ान- व ान का समाजशा और अथशा बदलता
है, वैस-े वैसे समी ा ि ट भी बदलती रहती है । समी ा लेखन का सामा य अथ है कसी
व तु, यि त, कृ त, घटना, सम या, न, व श ट सा ह य आ द पर सोचना, समझना,
दे खना, परखना, नणय करना, आ वादन करना और मू य नधारण । इस कार समी ा
लेखन म तीन मह वपूण बाते ह-
1. कलाकृ त का आ वादन
2. ववेचन- व लेषण क गहनता
3. मू य नधारण क मता
हम यहाँ पर समी ा लेखन के अंतगत मी डया म वशेष प से च लत पु तक समी ा, नाटक
समी ा, फ म समी ा और कला समी ा पर ह ववेचना करगे ।
8.6.1 पु तक समी ा
142
4. सं त या व तृत समी ा पु तक- समी ा आकार क सं त भी हो सकती
है और व तृत भी । आकार के आधार पर वह सं त या व तृत पु तक समी ा
कहलाएगी ।
5. मी डया के आधार पर पु तक समी ा- पु तक-समी ा य द प -प का म
काशन हे तु तैयार क जाती है तो वह काशनाथ समी ा होती है और का शत
हो जाने पर ' का शत समी ा' कहलाती है । दूरदशन और आकाशवाणी पर
पु तक-समी ा का सारण कया जाता है । अत: वह ' सा रत समी ा' होती
है ।
एक अ छ और सफल पु तक समी ा म न नां कत वशेषताओं का होना अपे त है -
1. तट थता, 2. व तु न ठता, 3. क ब दु, 4. ासं गकता, 5. भाषा शैल , 6. सौह ता
और 7. नजता ।
1. तट थता- एक अ छ पु तक समी ा म तट थता का होना आव यक है । उस पर
समी क क वशेष वचारधारा एवं पूवा ह का भाव नह ं होना चा हए ।
2. व तु न ठता- पु तक समी ा म व तु न ठा ह होना आव यक है । समी ा का
क - ब दु पु तक को होना चा हए । ऐसा न हो क समी क आलोचना शा ,
तकजाल, व- व वता, लेखक क न दा- तु त आ द के बयावान म भटक कर रह
जाए ।
3. क - ब दु- समी क पु तक के क - ब दु पर यान रखे । उसे इस क - ब दु से
बहु त दूर नह ं चले जाना चा हए । क - ब दु को उभारने का लगातार यास उसे करना
चा हए ।
4. ासं गकता- समी ा का ासं गक होना वां छत है । बहु त पुरानी कताब क समी ा
ाय: नह ं करनी चा हए नई कताब क समी ा भी य द दे र से का शत या सा रत
होती है तो पाठक क उसम अपे त च नह ं रहती ।
5. भाषा शैल - पु तक समी ा सरल, परं तु तर य भाषा-शैल म तु त क जानी चा हए
। सामा य पाठक, ोता, दशक उसे सहज क समझ सके, इस बात का यान रखा
जाना चा हए ।
6. सौह ता- पु तक समी ा म सौह यता का होना अपे त है । पु तक समी ा के भाव
म आकर ह कोई उस पु तक को पढ़ने या न पढ़ने क सोचना है । अत: समी ा
म सौह यता का गुण होना चा हए ।
7. नजता- हर समी क क लेखन शैल , समी ा-प त, ि टकोण, व लेषण का
तर का भ न होता है । यह समी क क अपनी नजता होती है । नए समी क
को अपने आप म इस गुण को वक सत करना चा हए ।
एक यो य और कु शल पु तक समी क बनने के लए उसम क तपय गुण या
वशेषताओं का होना ज र है । न न ल खत गुण को नर तर अ ययन, अ यास,
नर ण, वचार- वमश आ द के मा यम से वक सत कया जा सकता है- 1.
143
वशेष ता, 2. सामा य ान संप नता, 3. तट थता, 4. रचना मक ि टकोण, 5.
व तु न ठ मू यांकन, 6. तकनीक का ान ।
अ धकांश समाचारप -प काओं म समी ा का यह सामा य नयम है क समी य
पु तक क दो तयाँ प के कायालय म े षत क जाएँ । साधारणत: पु तक क
एक त कायालय के पु तकालय हे तु रखी जाती है तथा दूसर समी क के पास
भेजी जाती है । कु छ ति ठत प क नी त भ न कार क है । ये प समी ा
हे तु पु तक आमं त नह ं करते वरन ् समय-समय पर वयं े ठ पु तक का चयन
करके उनक समी ा करवाने का बंध करते ह । समी ा का व प भी भ न- भ न
प काओं म भ न- भ न होता है । कह -ं कह ं समी ा काफ सं त द जाती है
(दै नक प म वशेष प से) तो कह ं व तारपूवक आलोचना मक पर ण कया
जाता है । इस े म आकाशवाणी क भू मका भी उ लेखनीय है । नई कृ तय क
समी ा का सारण करने क यव था आकाशवाणी के अनेक क पर है ।
'समी ा- त भ' पृ ठ क स जा भी व भ न प म दे खने को मलती है । कु छ
प काओं म समी य पु तक का ववरण- जैसे पु तक का नाम , संपादक या लेखक
का नाम, काशक, मू य, पृ ठ-सं या आ द पृ ठ के नीचे दया जाता है तो कह ं
समी ा-साम ी के म य म भी दो समाना तर रे खाएँ खींचकर यह तु त कया जाता
है । स जा क भावो पादकता के अनु प इसका थान नधा रत कया जा सकता
है । कह -ं कह ं समी य पु तक का सं त लाक भी का शत कया जाता है ।
समी ा करते समय समी य पु तक क मूल संवेदना का यंजक शीषक भी कभी-कभी
दे दया जाता है ।
वतमान युग म समाचारप -प काओं के काशन क बाढ़ सी आ गई है । लगभग
सभी मुख दै नक समाचारप - सा ता हक, पा क, मा सक, म
ै ा सक आ द
प काएं समी ा के नए प रव तत तेवर तु त कर रह है । राज थान क व श ट
समी ा मक प काओं म 'मधु मती', 'लहर', 'शोध-प का', 'वरदा', 'म भारती',
'राज थान भारती' आ द का अपना व श ट थान है । वह रा य प -प काओं
म दै नक ह दु तान, ह दु तान टाइ स, नवभारत टाइ स, जनस ता, राज थान
प का, टाइ स ऑफ इं डया, इं डयन ए स ेस आ द के र ववार य एवं अ य वशेष
सं करण तथा ानोदय, हंस, इं डया टु डे, अहा! िजंदगी, आलोचना, नवनीत,
सा ा कार, आजकल, कादि बनी आ द प काएँ समी ा-सा ह य को वक सत,
ो सा हत एवं े रत करती हु ई और मह वपूण दा य व नभाती हु ई
स सा ह य- नमाण के माग को श त कर रह है । ' कर' आ द कु छ प काएँ तो
मा समी ाओं का ह काशन करती ह ।
8.6.2 फ म समी ा
144
समी ा का मह व दशक क च को प र कृ त करने म भी है और वह जानकार
दे ने का भी एक मु ख ोत है । बहु त से लोग फ म समी ा को चार मा यम
से जोड़ दे ते ह । समी क को चारक मानकर उस पर दबाव डाले जाते ह ।
फ म समी ा के लए न न त व को यान म रखना आव यक है । ये ह- 1.
कथा वचार (Theme of the Story), 2. कथा सार (Short Story), 3. पा
(Character), 4. पटकथा (Script), 5. संवाद (Dialogrie) । फ म-मी डया म
इंटर यू वधा का मु य थान है । एक सफल मी डयाकम वह है, जो फ म वधा
के व भ न प से जु ड़े लोग का इंटर यू ले सके । फ म समी ा भी इंटर यू वधा
से समृ होती है । फ म जगत ् म इंटर यू लेना एक चु नौतीपूण काय है । अ धकांश
अ भनेता इंटर यू दे ते रहते ह ता क उ ह चार मले ।
फ म समी क ब कचन ीवा तव के श द म ''एक जाग क फ म समी क को
फ म इ तहास के साथ-साथ सा ह य, कला, संगीत, च कला, नाटक, जन-जीवन
आ द का भी अ छा ान होना चा हए । फ म कैसे बनती है? इसका भी ान होना
अ नवाय है । उसे कथा और पटकथा का अंतर पता होना चा हए । उसे ात होना
चा हए क आउटडोर शू टंग और इनडोर शू टंग म या अंतर है? लोज अप और
लांग शाट कसे कहते ह? भारतीय भाषाओं म बन रह फ म बनाने वाल क आ थक
ि थ त, कला मक झान, पृ ठभू म आ द क आव यक जानकार होनी चा हए ।''
इधर गा सप फ मी लेखन का चार- सार अ धक हो रहा है । गा सप का अथ है-ग प
। व वभर म फ म जगत ् के बारे म सबसे अनगल लखा जाता है । लोग इसे चाव
से पढ़ते ह। एक अ छे फ म प कार को गा सप लेखन और समी ा से बचना चा हए।
8.6.3 ना य समी ा
145
(अ) ना य भाषा एवं (ब) संवाद
6. शैल
ना य समी क कसी भी नाटक क समी ा करते समय नाटक के उपयु त मू ल त व को
ह ि टगत रखते हु ए अपनी समी ा के प रणाम पर पहु ँचता है तथा लगभग इ ह ं त व को
अपनी समी ा का आधार बनाता है । ना य समी ा के लए ना य लेखन एवं रं गमंच क
जानकार ज र है । समी क का मन संवेदनशील होना चा हए तथा तक मता के साथ उसे
ना य कला का यापक ान तथा उसक पृ ठभू म क जानकार होनी चा हए । ना य रचना
के व वध त व और प का वयं पठन अथवा दशन कर दूसर के लए उसे ट य बनाना
ह समी क का कम है । समी क को अपनी ि ट म न प होना चा हए ।
समी ा का अथ है- स यक् ई ा अथात ् अ छ तरह दे खना अथवा पड़ताल करना । कसी
कला, रचना या वषय के संबध
ं म तपा दत स ांत के आधार पर येक त व का ववेचन
करना अथात ् व भ न पहलु ओं से उसक पड़ताल यानी समी ा करना । जब नाटक के संबध
ं
म उसक रचना, उसके व प, उसके व भ न त व , गुण -दोष तथा श प आ द का ववेचन
कया जाता है, तो उसे ना य समी ा कहते ह । ना य समी क के लए ना य लेखन एवं
रं गमंच क जानकार ज र है । समी क का मन संवेदनशील होना चा हए तथा तक- मता
के साथ उसे ना य कला का यापक ान तथा उसक पृ ठभू म क जानकार होनी चा हए
। ना य रचना के व वध त व और प का वयं पठन अथवा दशन कर दूसर के लए उसे
ट य बनाना ह समी क का कम है । समी क को अपनी ि ट म न प होना चा हए।
ना य समी ा स ांत- डॉ र तारानी पाल वाल ने ना य समी ा के स ांत को इस कार
रे खां कत कया है-
ना य समी ा के स ांत का आधार मु यत: नाटक के मूल त व अथात ् वषय व तु, कथानक,
चर च ण, दे श, काल, कथोपकथन तथा शैल ह ।
नाटक क समी ा दो ि ट से क जानी चा हए-
1. ना य-रचना, और
2. ना य योग
ना य-रचना क समी ा म हम इन न का उ तर दे ना चा हए-
1. नाटककार ने कस उ े य से नाटक क रचना क है तथा नाटक के वषय के चु नाव के
पीछे उसक ि ट?
2. उस उ े य क पू त के लए नाटककार ने कस कार का कथनाक बुना या गढ़ा है ; कस
कार के कतने पा और घटनाओं का समावेश कया है?
3. कस कार नाटककार ने घटनाओं और पा के संयोजन म कुतू हल का नवाह करते हु ए
पा और घटनाओं का सामंज य था पत कया है?
4. कतने पा का योग कया गया है? उनम से कतने ऐसे ह िजनका संयोजन अ नवाय
है?
146
5. कतने पा ऐसे ह िजनके बना भी ना य- यापार सरलता और सु चा प से संचा लत
कया जा सकता है?
6. कतनी घटनाएं ऐसी ह, जो पा के च र - वकास और कथा- वाह के संवधन क ि ट
से उ चत और अप रहाय थीं?
7. उनम से कतनी घटनाएं स भव, वाभा वक और आव यक ह?
8. नाटककार ने जो प रणाम नकाला है, वह उसके उ े य क ि ट से कहाँ तक संगत है?
9. उस घटना के प रणाम को कसी दूसरे प म तु त करने से उस उ े य क स हो
सकती थी या नह ?
ं
10. वाभा वक होते हु ए भी वह प रणाम कहाँ तक वांछनीय और घटनाओं के वाह म अनुकूल
ह?
व भ न पा के च र - च ण के लए यु त भाषा-शैल का भल भाँ त पर ण करते हु ए ना य-समी क
को यह दे खना चा हए क-
1. वभ न ेणी के पा कसी भाषा का योग करते ह; वह भाषा उ त ेणी के पा क
मयादा के अनुकूल है या नह ?
ं
2. भाषा के योग म संभावना और आव यकता के साथ-साथ वाभा वकता तथा औ च य
का भी वचार कया गया है या नह ?
ं औ च य से ता पय यह क संवाद म पर पर
जोड़-तोड़, उ तर- यु तर क संग त और म ठ क है या नह ं ?
3. उसका कतना अंश कथा- वाह को आगे बढ़ाने तथा पा का च र प ट करने के लए
आव यक है?
4. कतना भाग ऐसा है िजसे नकाल दे ने से नाटक के सौ दय और कथा- वाह म कसी
कार क कोई ु ट उपि थत नह ं होगी?
5. नाटक के संवाद को सु नकर दशक सरलता से उ ह समझ सकगे या नह ?
ं
दशक को नाटक का आनंद लेने म सबसे अ धक सहायता उसके संवाद से मलती है । अत:
समी क वारा संवाद का पर ण इसी ि ट से करना चा हए । इसके अ त र त यह भी
दे खना चा हए क गीत, नृ य और वा य आ द का संयोजन कहाँ तक उ चत , उपयु त और
आव यक हु आ है?
योग- ि ट से नाटक क समी ा करते समय यह दे खना चा हए क-
1. नाटककार ने य- वधान इस म से रखा है या नह ं क नाटक क कथा- धारा का म
नबाध बना रहे?
2. नाटककार ने जो रं ग नदश दए ह, वे असंभव तथा अ वाभा वक तो नह ं ह?
3. रं ग- नदश म रं गद पन तथा अ भनेता के लए प ट नदश ह या नह ?
ं
4. नाटककार ने अ भनेता के वा चक, आं गक और साि वक अ भनय के लए पया त अवसर
दए ह या नह ?
ं
147
5. समी क को न प भाव से यह दे खना चा हए क नाटक िजन दशक के लए लखा
गया है, उनक समझ म आ सकेगा या नह ?
ं
6. नाटक का कथा- म ऐसा तो नह ं है क दशक को उसके समझने म क ठनाई हो?
7. य- वधान दु ह तो नह ं है क ना य- यो ता उसे तु त ह नह ं कर सके?
8. पा - वधान ज टल तो नह ं है?
9. संवाद- वधान क ठन तो नह ं है क अ भनेता उसम अ भनय क संभावनाएं ह न पा सके?
नाटक िजस रं गमंच के लए लखा गया है, उसके लए उपयु त भी है अथवा नह ं? दशक
पर नाटक का या भाव पड़ता है? या नाटककार अपने उ े य म सफल हु आ?
10. उपरो त सभी न का उ तर दे ने पर ह ना य-समी ा पूण होती है ।
148
होना आव यक है, य क इससे समी ा समृ होती है । कला और जीवन का
आपस का नकट संबध
ं है । इस लए कला के व भ न े म एक-दूस रे पर
पर पर नभर होते ह ।
3. पूवा ह मु तता- संतु लत एवं वै ा नक आधार पर समी ा लेखन के लए
समी क का पूवा ह से मु त होना आव यक है । पूवा ह यि तगत भी हो
सकता है और वषय से संबं धत भी । समी ा कम म यि तगत पूवा ह सवथा
या य है । समी क को अपने आप म एक न ल त भाव और सोच वक सत
करने का पूरा यास करना चा हए जहाँ उसके लए न कोई म है और न ह
कोई श ु । पूव ह का याग कए बना समी क के प म सफलता पाना क ठन
है ।
4. ि ट-संप नता- समी क क ि ट खुल होनी चा हए, ि टगत संक णता
समी ा को दुबल बनाती है । ि टगत संक णता के मु य दो कारण होते ह-
अ ान और कसी मत या वाद वशेष के त आ हशील होना । अ ानता कसी
यि त के ि टकोण को वभावत: संक ण बना दे ती है । दूसर ओर अगर कोई
यि त कसी वशेष वचारधारा म व वास रखता है और अपनी वचारधारा के
अलावा कसी अ य वचारधारा का स मान नह ं करता तो उसके लेखन म
वैचा रक पूवा ह पैदा हो जाता है ।
5. व तु न ठता- कला समी क को पूवा ह तथा दुरा ह को छोड़कर, तट थता
के साथ कसी भी कला व या का व तु न ठ मू यांकन करना चा हए । राग- वेष
से र हत होकर व या- वशेष का नरपे प से ववेचन करना ह समी क का
दा य व है । इसके अ त र त कला समी क को िजस कला के आयोजन, दशन
या तु त क समी ा करनी है उसको सह प र े य म रखकर जांचना चा हए
। समी क को आ म न ठ नह ं होना चा हए । व तु न ठता अपना लेने से
आ म न ठता एवं पूव ह के खतर को टालना संभव है ।
6. संतु लत लेखन- समी ा म संतु लत लेखन का वशेष मह व है । इसका संबध
ं
पूवा ह मु तता, ि ट संप नता और व तु न ठता से है । कसी भी वधा क
अनाव यक नंदा या बुराई करने का काम समी ा-कम म बाधा उ प न करता
है । न प ता के साथ, तकपूण एवं श टता शैल म कसी भी कला के दुबल
या सबल प क आलोचना या शंसा संतु लत ढं ग से करनी चा हए । स यक्
मू यांकन, संतु लत भाषा, तक-संगत ढं ग और सह प र े य के साथ क गई
समी ा, लेखन क सबलता के साथ समी क के संतु लत प म लेखन करने
के गुण का भी प रचय दे ती है ।
7. सामािजक दा य व बोध- समी क समाज का एक अंग है । समाज के त उसका
एक उ तरदा य व है । कला क व वध धाराओं, वधाओं और कलाकम से आम
े क, पाठक या लोग को प र चत करवाना और कलाकम एवं कला के त
स मान रखने वाल के बीच एक संवाद क ि थ त पैदा करना, समी क का
149
सामािजक काय है । कला के साथ जु ड़ने और कला हलचल म आम जनता को
े रत करने क दशा म समी क क मह वपूण भू मका होती है । समी क का
काय समाज को कला के मा यम से उ कृ ट वातावरण तैयार करने क ओर भी
उ पे रत करना है ।
8. भाषा एवं शैल गत वशेषताएं- कला समी क क भाषा सरल, सहज, और
स े य होनी चा हए । कला के तकनीक मु हावर या कलाकम से संबं धत श द
का योग करते समय यह यान रखना आव यक है क येक पाठक क समझ
म आने वाले श द और भाषा का योग कया गया है । भाषा एवं शैल रोचक
और या मक हो ता क पाठक के मि त क म कला क कोई भी घटना या
तु त च क तरह सजीव हो उठे । समी ा पढ़ने म उसका झान बड़े ।
कला वधा के अनु प श द और भाषा होनी चा हए । सारांश म कहा जा सकता
है क सहज और सरल होकर गंभीर बात करना, उसम रोचकता पैदा करना,
समी क का जहाँ गुण है , वहाँ यह समी ा क वशेषता है ।
बोध न-
1. समी ा का अथ या है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. समाजशा ीय समी ा या है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. समी कसे मु य अपे ा या है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
4. अ छ समी ा के या गु ण है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
8.7 सारांश
समी ा चाहे कला क हो, सा ह य कृ त क हो या कसी अ य व तु क उसम एक कार
क व तु न ठता और ग तशीलता का होना आव यक है । समी क के सामने समय और
बदलाव क तेज ग त ने अनेक चु नौ तयां पैदा कर द है ह । अत: समी क को अपनी जड़
को पकड़े रहने के साथ-साथ समय क ग त के साथ ग तशील होकर एक व तृत प रवेश और
यापक ढांचे म समी ा कम करने और समय के तेवर को समझने क चु नौती का सामना
करने के लए तैयार रहना चा हए ।
150
मी डया म पु तक समी ा, फ म समी ा, ना य समी ा और कला समी ा लोक य और
अ धक च लत है । पु तक समी ा प का रता और सा ह य का एक अ नवाय अंग है । प कार
और लेखक को उसका ान होना आव यक है । फ म समी क क आंख के ज रए सने
दशक फ म को दे खना सीखते ह । फ म न समाज को बदल सकती है, न ां त ला सकती
है ले कन वह समाज के एक बहु त बड़े वग म वैचा रक ां त के बीज अव य बो सकती है
। ना य समी ा का अथ है- नाटक और रं गमंच क समी ा, सै ां तक और यावहा रक
स दयशा का नधारण, आंकलन और मू यांकन । ना य समी ा म कला मक ि ट अथवा
आ ह तुत होना चा हए यि तगत प पात अथवा पूवा ह नह ं । ना य समी ा साथक
और मू लपरक होनी चा हए । कला समी ा म कला क परख करना और उसका व लेषण
करना, एक आसान काय नह ं है । कला क व वधता एवं शै लयां आ द का फलक अ य त
ह यापक है । कला क गहराइय म जाने क या, समु म डु बक लगाने के समान है।
8.9अ यासाथ न
1. ‘समी ा लेखन' से आप या समझते ह?
2. समी ा करते समय समी क से या अपे ाएं करनी चा हए ।
3. समी ा लेखन का मा यम और या पर अपने वचार य त क िजए ।
4. समी ा के व भ न कार का सं त म उ लेख क िजए ।
5. सं त ट प णयां ल खए-
(अ) पु तक समी ा
(ब) ना य समी ा
(स) कला समी ा
(द) फ म समी ा
151
इकाई-9
रे डयो समाचार लेखन
इकाई क परे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 समाचार क प रभाषा
9.3 रे डयो समाचार
9.3.1 रे डयो समाचार क व श टता
9.4 रे डयो समाचार या ा
9.4.1 वदे श समाचार
9.4.2 े ीय समाचार
9.4.3 अ य समाचार
9.4.4 समसाम यक काय म
9.5 आकाशवाणी का समाचार तं
9.5.1 समाचार सेवा भाग
9.5.2 समाचार क (जी.एन.आर)
9.5.3 पूल यव था
9.5.4 हंद पूल
9.6 समाचार के ोत
9.7 रे डयो समाचार का लेखन व संपादन
9.7.1 यता
9.7.2 न प ता और सरलता
9.7.3 मयादा
9.7.4 समाचार क संरचना
9.8 रे डयो समाचार क भाषा
9.8.1 श द चयन
9.8.2 वा य रचना
9.8.3 अनुवाद क चु नौती
9.9 सारांश
9.10 कु छ उपयोगी पु तक
9.11 अ यासाथ न
9.0 उ े य
इस पाठ को प ने के बाद आप :
152
दे श म समाचार के सारण क शु आत और उसके बदलते प क जानकार ा त कर
सकगे।
समाचार क प रभाषा और रे डयो के मह व को समझ सकगे ।
समाचार क क काय णाल को जान सकगे ।
समाचार संकलन के ोत से प र चत हो जाएंगे ।
समाचार के लेखन और संपादन का श प सीख सकगे ।
आकाशवाणी के समाचार सेवा भाग क ग त व धय क जानकार हा सल कर सकगे।
समाचार क भाषा और उनके अनुवाद के व भ न पहलु ओं को जान सकगे ।
9.1 तावना
हमारे दे श म इस समय टे ल वजन के नए-नए समाचार चैनल खु ल रहे ह । एक वकासशील
दे श म इतनी बड़ी सं या म ट .वी. समाचार चैनल होना सचमु च एक अभूतपूव घटना है ।
ले कन टे ल वजन के अ ज इले ॉ नक मा यम रे डयो समाचार का केवल एक ह सारण
संगठन है और वह है आकाशवाणी । आकाशवाणी का समाचार सेवा भाग त दन समूचे
दे श और वदे श म 500 से अ धक समाचार बुले टन सा रत कर रहा है । ये बुले टन हंद
े ी के अलावा मु ख भारतीय भाषाओं, बो लय और वदे शी भाषाओं म होते ह । भारत
और अं ज
म समाचार सारण उतना ह पुराना है िजतना खु द रे डयो सारण य क 1923 म रे डयो
सारण क शु आत ह समाचार सु नाने के उ े य से हु ई थी । वष1936 को समाचार सारण
का मह वपूण पड़ाव माना जाता है जब द ल क ने काम करना शु कया । इससे पहले
मु ंबई से एक अं ेजी और एक हंद ु तानी म और कलक ता से एक बंगला बुले टन ह सा रत
कया जाता था । वतीय व वयु छड़ने के बाद सरकार को अपनी बात लोग तथा सै नक
तक पहु ंचाने क आव यकता महसू स हु ई िजसके फल व प रे डयो के व तार का सल सला
चल पड़ा ।
समाचार सारण को वा त वक बढ़ावा आजाद के बाद ह मला, जब रे डयो सारण का उ े य
राजनी तक और सै नक न रहकर रा य और सामािजक हो गया । आजाद के प चात ् चला
व तार अ भयान आज तक जार है । इस दौरान टे ल वजन के आगमन से रे डयो सारण
तक त वं वी मला ले कन रे डयो समाचार के संचालक संगठन समाचार सेवा भाग ने
ह मत नह ं हार और समाचार बुले टन म व वधता व रोचकता लाने और उ ह अ धक
आकषक तथा भावकार बनाने के उपाय करके इस चु नौती का सफलतापूवक मु काबला कया
। एफ.एम. टे नोलोजी अपना लए जाने से इन यास को बल मला और नजी ट .वी. चैनल
तथा दे श भर म खुल रहे समाचार चैनल क जोरदार बाढ़ के बावजू द रे डयो समाचार के पांव
नह ं उखड़े । अब रे डयो समाचार ने काफ हद तक अपनी पुरानी ग रमा फर से ा त कर
ल है । अ याधु नक सूचना टे नोलोजी के उपकरण और क यूटर करण क मदद से ोताओं
को रे डयो समाचार के साथ जोड़ने क को शश रं ग ला रह ह और गंभीर समाचार म च
लेने वाले ोता रे डयो के समाचार को ह व वसनीय मानने लगे ह । बड़ी सं या म एफ.एम.
टे शन चालू हो जाने से रे डयो फर से आम जीवन का अंग बन गया है । रे डयो क लोक यता
का एक कारण यह भी है क इसके समाचार म सरल और आम भाषा का इ तेमाल कया
153
जाता है और इसक रचना भी सरल और सरल शैल म ह क जाती है ता क हर वग के लोग
इ ह आसानी से समझ सक । रे डयो समाचार लेखन अखबार के समाचार से अलग होता
है । नजी एफ.एम चैनल को अभी समाचार सारण क अनुम त नह ं है । इस बारे म क
जा रह जोरदार मांग मान लए जाने पर रे डयो समाचार क लोक यता कई गुना बढ़ जाएगी
। इस तरह रे डयो समाचार इ क सवीं सद म अपनी उ लेखनीय भू मका नभाने को पूर तरह
क टब दखाई दे रहा है ।
155
बाद आकाशवाणी के क के साथ-साथ समाचार बुले टन क सं या म तेजी से बढ़ोतर हु ई
। इस समय आकाशवाणी का समाचार सेवा भाग 82 भारतीय भाषाओं/बो लय तथा वदे शी
भाषाओं म 52 घंट क अव ध के 509 बुले टन सा रत करता है । एफ.एम. चैनल पर भी
व भ न अव धय के समाचार बुले टन सा रत होते ह ।
9.4.2 े ीय समाचार
9.4.3 अ य समाचार
156
इनके अलावा बजट पेश होने और लोकसभा व वधानसभाओं के चु नाव के मौके पर
वशेष बुले टन सा रत कए जाते ह । संसद के अ धवेशन के दौरान नई द ल से
संसद-समी ा और रा य वधानसभाओं के स के दौरान संबं धत े ीय इकाइय
वारा वधानमंडल समी ा सा रत होती है । ाकृ तक आपदा के दौरान पी ड़त लोग
के लए वशेष बुले टन पेश कए जाते ह । साक दे श के लए द ल से हर र ववार
को वशेष साक बुले टन सा रत कया जाता है ।
157
वह है समाचार सेवा भाग । जब हम समाचार लेखन क बात करते ह तो उसम समाचार
ा त करना, उसक ि ट बनाना, उसका संपादन करना, रका डग करना, वायस ओवर
करना आ द याएं शा मल ह । समाचार के लेखन, संकलन, संपादन को समझने के लए
समाचार सेवा भाग के व प तथा उसक काय प त को जानना आव यक
9.5.3 पूल यव था
158
व तृत गवेषणा का यास करना चा हये । समाचार सं त , साधारण और दलच प
हो । वषय इतना प ट हो क ोता सु नकर असमंजस म न पड़े ।
समाचार म ऐसे ववरण क पूण उपे ा क जानी चा हये जो तु छ, अनुपयु त ,
गैर-िज मेदार, खतरनाक और वअथ ह । पुराने , घ टया कार के तथा चारा मक
और व ापनपरक समाचार को रे डयो पर दे ने से पूण प से बचना चा हए ।
आकाशवाणी आचार सं हता और दशा- नदश का पालन करते हु ए, रे डयो समाचार
म म दे श क आलोचना, कसी धम या जा त पर हार नह ं कया जाना चा हये,
िजससे कसी जा त वशेष या समु दाय के यि तय म उ ता या वैमन य उ प न
हो । कोई आपि तजनक, मानहा नपूण कटु ता पैदा करने वाला या कानून क यव था
भंग करने वाला अथवा यायालय क मान-हा न करने वाला,
रा प त, रा यपाल और यायपा लका पर लांछन लगाने वाला अथवा कसी व श ट
राजनी तक दल पर हार करने वाला समाचार नह ं होना चा हये । यि त वशेष,
सं था वशेष अथवा यावसा यक सं था के चारा मक समाचार को मह व दे ना भी
बलकुल उ चत नह ं है । इसका अथ यह नह ं क इस कार क घटनाओं को समाचार
बुले टन म सि म लत ह न कया जाये, क तु यह आव यक है क इनम सावधानी
एवं संयम से काम लया जाये ।
9.6 समाचार के ोत
समाचार के कई ोत ह । के सरकार का प सूचना कायालय, रा य सरकार के सूचना
एवं जनसंपक वभाग, अ य सरकार वभाग, मु ख संगठन वारा जार क जाने वाल
व ि तयां आ द समाचार के ोत ह । व भ न वभाग और राजनी तक तथा गैर राजनी तक
संगठन वारा आयोिजत प कार स मेलन और स
े ी फं ग से व भ न ग त व धय क
जानकार द जाती है । पु लस नयं ण क , यायालय आ द से नि चत कार के समाचार
159
ा त कये जा सकते ह । संसद और वधानसभाओं के अ धवेशन, मक संगठन, औ यो गक
त ठान, समाज सेवी सं थाएं और सा हि यक-सां कृ तक सं थाएं आ द भी समाचार के ोत
ह ।
इसके अलावा दे श और वदे श क मु ख समाचार एज सयां समाचार क बहु त बड़ी ोत ह
। समाचार क पी.ट .आई, भाषा, यू.एन.आई., यूनीवाता जैसी संवाद स म तय का भरपूर
इ तेमाल करता है ।
आकाशवाणी के अपने संवाददाता सबसे व वसनीय और सु ढ़ ोत ह । समाचार सेवा भाग
के दे श भर म लगभग 90 नय मत संवाददाताओं के अलावा लगभग 400 अंशका लक
संवाददाता ताजा घटनाओं क सूचनाएं भेजते रहते ह । मु यालय म अलग से रपो टग इकाई
काम करती है । वदे श म भी आकाशवाणी के संवाददाता नयु त ह ।
एक िज मेदार समाचार संगठन के त न ध के नाते संवाददाताओं को कई सावधा नयां बरतनी
पड़ती ह । संवाददाता को समाचार क व वसनीयता क जांच करने के उपरा त ह समाचार
दे ना चा हए । ाकृ तक आपदाओं जैसे सू खा, बाढ़ आ द के समाचार इस कार दये जाएं िजससे
लोग का मनोबल नह ं गरे तथा उनको राहत संबध
ं ी काय आ द क पूर जानकार मले ।
ं ी समाचार के साथ उस यि त क , सं
मृ यु संबध त जीवनी दे ना भी ज र है । समाचार
संकलन करते समय सारण संगठन क नी त और आचार सं हता का पालन आव यक है ।
आकाशवाणी समाचार क भू मका तट थ और रचना मक रहनी चा हए ।
9.7.1 यता
160
करने क मता होनी चा हए । रे डयो म समाचार कान के लए लखना होता है
न क आख के लये ।
समाचार लखने से पहले उसक पृ ठभू म को जानना आव यक है । साथ ह , समाचार
म रे डयो के ोता के लायक समाचार त व क पहचान करना मह वपूण है । समाचार
लेखन एक व श ट कला है । े ठ समाचार वह हो सकता है जो सूचना मक हो
तथा उसम त य को इस तरह संक लत कया गया हो क पाठक घ टत घटना का
ववरण, सह प र े य म समझ सके । समाचार लेखक अपनी वशेष प कार य
तकनीक का योग कर उसे रोचक तथा भावी बना दे ता है । अत: समाचार लखने
े नशीलता, क पनाशीलता, रचना मकता
के लये समाचार त व के अ त र त संवद
जैसे गुण का होना आव यक है ।
9.7.2 न प ता और सरलता
9.7.3 मयादा
161
9.7.4 समाचार क संरचना
समाचार मु यतया तीन भाग म बंटा होता है- आमु ख (इं ो या ल ड), म य तथा
अंत भाग । इनम सबसे मह वपूण इं ो है । इं ो सं त ले कन सारपूण होना चा हए
। इं ो समाचार का पूवाभास कराता है , अत: यह इस कार लखा जाए क ोता
पूरा समाचार सु नना चाहे । समाचार के म य भाग म ोता को समाचार वशेष क
मु य-मु य घटनाओं, त य आ द क सं त जानकार कराई जानी चा हए ।
समाचार के अंत म सबसे कम मह व क बात हो, िजससे अगर वह अंश समयाभाव
के कारण पढ़ा नह ं जा सके तब भी ोता को समाचार अधू रा नह ं लगे और पूर बात
समझ म आ जाए ।
बोध- न-2
1. आकाशबाणी के समाचार क का या काय है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………….....……………
2. समाचार के ोत कौन-कौन से ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………… ...………
3. रे डयो समाचार के ले ख न म कन बात का यान रखना आव यक है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………………………………………………… ...…
4. पू ल यव था का या उ े य है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………...………………………………………………………………
5. समाचार क सं र चना का वणन क िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………… ...……
9.8.1 श द चयन
163
श द का उ लेख कया है जो बोलचाल म ह द श द के अपने श द बन चुके ह
। दूसर ओर ऐसे श द भी ह, जो अं ेजी तथा ह द श द को मलाकर बने ह ।
न वे पूर तरह अं ेजी श द ह और न ह त व ह । यह ह, रे लगाड़ी, टे ल फोन के ,
बस अ डा, डाक टकट आ द । यहां यह यान रखने क बात है क एक भी समाचार
या बुले टन म कसी श द का बार-बार योग करना रोचकता म बाधक होता है ।
इस लए कसी अथ म एक बार ह द श द और दूसर बार उसका च लत अं ज
े ी
पयाय इ तेमाल कर लया जाता है । उदाहरण के लए थाना और पु लस टे शन,
कू ल तथा व यालय, कालेज और महा व यालय, े और समाचारप , बल और
स
वधेयक, स म त और कमेट , इकाई और यू नट, बे झझक योग कए जाते ह ।
क तु इसका मतलब यह नह ं क व व व यालय के थान पर यू नव सट , कमचार
के लए ए लाई, सद य के लए मे बर, अ वीकार क बजाय रजे ट, खलाड़ी क
जगह लेयर या पु लस चौक के थान पर पु लस पो ट श द भी इ तेमाल कए
जा सकते ह । सम या तब आती है जब ऐसे अं ेजी श द का योग करना हो िजनका
अपनी भाषा म कोई पयाय च लत ह न हो । उस श द क सं त या या स हत
मू ल श द भी साथ म बोलना चा हए ता क ोता अथ भी समझ ले और नए श द
से भी प र चत हो जाए ।
9.8.2 वा य रचना
164
कई बार वा य छोटे तो होते ह, क तु उनक रचना इतनी ज टल होती है क समझने
के लए मि त क पर दबाव डालना पड़ता है । कसी समाचारप म छपा यह वा य
सह लगता है व तमं ी ी चद बरम ् के बजट ने कर सुधार के युग का सू पात
करके अथ यव था को नई दशा द है, जो तीन दशक से बनी हु ई उस “'ि थ त
के वपर त” है, िजसक समाजवाद के वरोधी “पर मट कोटा राज” कह कर न दा
करते रहे ह ।
यह वा य बहु त बड़ा नह ं है, क तु ज टल होने के कारण सु नने पर त काल समझ
म नह ं आता । इसे सरल बनाने के लए दो वा य म तोड़ना हतकर है । हालां क
कम समय म अ धक बात कहना सारण का मूल स ा त है क तु अ प ट तथा
अबूझ बात कहना तो समय क ह बबाद है । इस लए समाचार को सु बोध बनाने
के लए य द कु छ सै कं ड अ धक खच करने पड़ तो संकोच नह ं करना चा हए । इस
वा य को रे डयो संपादक य कहे गा; ी चदं बरम के बजट से अथ यव था म कर
सु धार के युग का सू पात हु आ है । यह नई दशा पछले तीन दशक से चले आ
रहे पर मट कोटा राज के वपर त है ।
9.9 सारांश
इस पाठ म हमने आपको समाचार के यापक प तथा रे डयो समाचार क व श टता और
मह व के बारे म बताया । आपने यह भी जाना क भारत म सा रता दर कम है इस लए
रे डयो लोग को व भ न घटनाओं, योजनाओं, नी तय , काय म , क तु र त और सह
जानकार का मु य मा यम है ।
आकाशवाणी के समाचार सेवा भाग का सं त ववरण दे ते हु ए बताने का यास कया गया
क समाचार का संकलन कैसे कया जाता है तथा उसके लेखन और स पादक क मू लभू त
आव यकताएं या है? रे डयो समाचार म ऐसी बात नह ं आनी चा हए िजससे सं वधान द त
165
सं थाओं और संवध
ै ा नक पद क मयादा को ठे स पहु ंचे । रे डयो म सनसनीखेज और भड़काने
वाले समाचार सा रत नह ं कये जाने चा हए ।
रे डयो क भाषा सरल और आसानी से समझ म आने वाल होनी चा हए । रे डयो समाचार
वण यो य होने चा हये य क वे कान के लये लखे जाते ह न क आख के लये । भाषा
शु हो और इसम याकरण क कोई गलती नह ं हो, अनुवाद करते समय भाषा को कृ म
और दु ह होने से बचाना चा हए । बोलचाल क भाषा ह रे डयो क भाषा है ।
9.10 अ यासाथ न
1. रे डयो समाचार के मह व पर एक सारग भत ट पणी ल खए ।
2. रे डयो समाचार के लेखन व संपादन के मु य पहलुओं पर काश डा लए ।
3. रे डयो समाचार के लेखन म कन मयादाओं को यान म रखना आव यक है?
4. समाचार क क काय णाल का वणन क िजए ।
5. रे डयो समाचार क भाषा पर सं त लेख ल खए ।
166
इकाई-10
रे डयो लेखन के स ांत
इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना
10.2 रे डयो सारण के उ े य
10.3 रे डयो क व श टता
10.4 रे डयो लेखन क सीमाएं और संभावनाएं
10.4.1 रे डयो लेखन क परं परा
10.4.2 रे डयो क भाषा
10.4.3 आचार सं हता
10.5 रे डयो लेखन के आयाम
10.5.1 समाचार
10.5.2 वाता
10.5.3 प रचचा
10.5.4 सा हि यक रचनाएं
10.5.4.1 कहानी
10.5.4.2 क वता
10.5.5 हसन
10.5.6 रे डयो पक
10.5.7 रे डयो नाटक
10.6 संगीत के लए लेखन
10.6.1 गीतमाला 1
10.6.2 गीत भर कहानी
10.6.3 संगीत सभाएं
10.7 उ घोषणाएं
10.7.1 सू चनाएं
10.7.2 संदेश
10.7.3 लोगन/ ोमो
10.8 सारांश
10.9 कु छ उपयोगी पु तक
10.10 अ यासाथ न
167
10.1 उ े य
इस पाठ म रे डयो क व भ न वधाओं के लए लेखन से जु ड़े पहलुओं क चचा क जाएगी।
इसके अ ययन के बाद आप -
रे डयो सारण के उ े य के बारे म जानकार ा त कर सकगे ।
रे डयो तथा अ य मा यम के लए लेखन म अंतर को समझ सकगे ।
रे डयो क व भ न वधाओं के लए लेखन करते हु ए यान म रखी जाने वाल बात के
बारे म जान सकगे ।
रे डयो क आचार सं हता का ान ा त कर सकगे ।
रे डयो लेखन क परं परा से अवगत हो सकगे ।
नाटक, पक जैसे काय म के लए लेखन क शैल क जानकार ा त कर सकगे ।
समाचार लेखन और संपादन के व वध पहलुओं को समझ सकगे ।
संगीत म लेखन क संभावनाओं और उनसे जु ड़े त व को पहचान सकगे ।
10.1 तावना
रे डयो जनसंचार का एक मु ख मा यम है जो अ य मा यम , टे ल वजन और मु त मा यम
या न प -प काओं से कई मायन म भ न है । यह य मा यम है इस लए श त-अ श त
सभी वग के लए सुलभ और बोधग य है । रे डयो स ता तो है ह अब एफ.एम. टे नोलोजी
के इ तेमाल के बाद इसक व या मक गुणव ता भी बेहतर हो गई है । एफ.एम. सारण
के नजीकरण करने के सरकार के फैसले के फल व प बड़ी सं या म एफ.एम. चैनल खु ल
रहे ह जो थानीय तभा का उपयोग करके े ीय भाषाओं या बो लय म काय म सा रत
करके बड़े पैमाने पर ोताओं को रे डयो वण से जोड़ रहे ह ।
आप पछले पृ ठ म पढ़ चु के ह क भारत म रे डयो सारण का मु य संगठन आकाशवाणी
है जो समू चे दे श म फैले अपने सारण तं के ज रए हंद , अं ेजी और मु ख भारतीय और
वदे शी भाषाओं म काय म सा रत करके दे श के वकास और रा य एकता क दशा म
मह वपूण भू मका नभा रहा है । 1927 म शु हु आ रे डयो सारण शु के दो चार वष को
छोड़कर सरकार नयं ण म ह रहा है । टश काल म रे डयो को सरकार ने अपने सा ा यवाद
को सु ढ़ करने के साधन क तरह इ तेमाल कया कं तु वतं भारत क सरकार ने नयं ण
के बावजूद रे डयो को दे श के वकास, जन-जागरण, मनोरंजन और लोकतं का एक मजबूत
तंभ मानते हु ए जहां इसके संरचना मक तं का तेजी से व तार कया वह ं दे श क व वध
सं कृ त और बहुभाषायी व प के अनु प गीत, संगीत, सा ह य, समाचार, श ा, कृ ष,
उ योग, रोजगार से संबं धत जानकार दे ने वाले तरह-तरह के रोचक और ानवधक काय म
शु कए । आकाशवाणी अपने 225 के क मदद से लगभग 99 तशत े तथा 91
तशत आबाद तक अपने काय म पहु ँ चा सकने क मता ा त कर चुका है । 1980 के
बाद दूरदशन क लोक यता बढ़ जाने और बाद म नजी टे ल वजन चैनल के स य होने
पर आकाशवाणी के ोताओं क सं या शहर े म कम होने लगी ले कन आकाशवाणी के
काय म के रं ग- प म बदलाव आने और एफ.एम. चैनल के नजीकरण के फल व प लोग
168
फर से रे डयो क ओर लौटने लगे ह और रे डयो आज भारत म जनसंचार के सबसे भावशाल
मा यम के प म नई ऊँचाइयाँ छूने क ओर बढ़ रहा है ।
169
से नह ं होता जैसा काशन के लए कोई लेख, कहानी या क वता लखी जाती है । रे डयो
एक उ च रत मा यम है । इसम सभी काय म पूव ल खत प म तैयार नह ं होते । बहु त
से काय म बातचीत या सा ा कार प म सीधे बोलकर रकाड या सा रत कए जाते ह ।
अत: रे डयो लेखन म वह सब साम ी भी शा मल है िजसे ए टपोर अथात ् बना तैयार के
सीधे बोला जाता है । जो काय म पहले ल खत प म तैयार कए जाते ह उनक भाषा और
तु तीकरण क शैल को भी बोलचाल के लायक बनाया जाता है ता क ोताओं को उ ह
समझने म क ठनाई न हो और एक बार सु नकर ह वे वषय को हण कर ल । इस लए रे डयो
काय म क भाषा के साथ-साथ वषय के तु तकरण को भी सरल, प ट और रोचक रखना
ज र होता है । रे डयो म समाचार से लेकर संगीत तक व वध कार के काय म का सारण
होता है और येक वधा के लेखन और तु तकरण म अलग तरह क शैल अपनाई जाती
है । श द और वा य का चयन करते हु ए यह भी दे खना होता है क उ ह बोलना सरल हो
और वे कणमधु तथा असरदार भी ह य क रे डयो म समूचा ेषण श द व व नय और
उनक तु त के ज रए ह कया जाता है । रे डयो लेखन एक कला है िजसके लए लेखन
म वषय और वधा वशेष क स यक जानकार , बोलचाल क भाषा क समझ और ोताओं
क चय क पूर पहचान होनी चा हए । रे डयो लेखन करने वाले को समय के साथ ोताओं
क बदलती अ भ चय , भाषा के नए प और तु तकरण क नई टे नोलोजी और शै लय
के त सजग और संवेदनशील होना चा हए । उदाहरण के लए कसी राजनी तक या आ थक
घटना पर कसी वाता और कसी एफ.एम. चैनल पर फ मी गाने के लए क जाने वाल
उ घोषणा क भाषा और व प म दन-रात का अंतर होगा । रे डयो के काय म के बदलते
व प के साथ-साथ रे डयो लेखन क शैल , अंदाज और भाषा म भी प रवतन होता रहा है।
170
क शास नक सेवा म आये तो रे डयो म नया माहौल बना । तब येक भाषा के
े ठ सा ह यकार, क व, संगीतकार, नाटककार, गायक, कलाकार रे डयो से जु ड़ गए
। रे डयो म अ खल भारतीय सा ह य समारोह आयोिजत कए गए । सवभाषा क व
स मेलन क पर परा चल पड़ी । रे डयो के मा यम से रचनाध मय को मह वपूण
ढं ग से तु त कया जाने लगा । भारतीय शा ीय संगीत और फ मी संगीत रे डयो
पर सु नाई दे ने लगा ।
1967 म ' व वध भारती' के नाम से अ खल भारतीय काय म ारं भ कया गया ।
समय के साथ युवा पीढ़ बदलता मानस जो रे डयो सीलोन के लोक य फ म संगीत
म रमने लगा था, उसे पुन : आकाशवाणी क ओर आकृ ट करने के लए यह काय म
शु कया गया । इसम ऐसे जन य काय म क ोताओं क पसंद भी शा मल
क गई । ऐसे जन य काय म क भाषा वभावत: सरल और अपे ाकृ त
अनौपचा रक रहती थी ।
1970 के आस-पास नई पीढ़ के कलाकार और लेखक रे डयो से जु ड़ने लगे तो रे डयो
क भाषा और शैल म और प रवतन आने लगा । सा हि यक और तकनीक वषय
के काय म म भले ह धीर-गंभीर शैल और श दावल का चलन होता रहा ले कन
अ य काय म म धीरे -धीरे लचीलापन आता गया । 1990 के दशक के बाद रे डयो
काय म के व प और तेवर म आमूल प रवतन आ गया और एफ.एम. चैनल ने
तो रे डयो क भाषा और लेखन या तु तकरण को एकदम नया प दे दया । यहां
तक क समाचार क तु त और संपादन ने नई करवट ल और एफ.एम. गो ड
पर सा रत होने वाले समाचार बुले टन का व प अनौपचा रक और बातचीत जैसा
हो गया । समाचार पर आधा रत वाताएं जो पहले लखकर समाचार वाचक वारा
पढ़ जाती थी वे धीरे -धीरे इंटरे ि टव यानी संवाद प म प रव तत हो गई और वत:
ह उनम बोलचाल क भाषा और शैल का पदापण हो गया । जब कोई काय म
सोच-सोच कर लखा जाता है तो उसम न चाहते हु ए भी भाषा का ल खत प झलक
आता है कं तु जब आप पूरा काय म ह बातचीत क शैल म तु त करगे तो भाषा
का व प और श दावल वत: ह सरल, वाभा वक और भावकार बन जाती है
। इस कार समय के साथ आकाशवाणी के काय म के व प म बदलाव के अनु प
भाषा और तु त या न लेखन म प रवतन क या भी जार रहती है ।
173
के लए रे डयो ऑन करते ह । इन व वध चय वाले ोताओं को संतु ट करने के लए रे डयो
को उनक पसंद के काय म सा रत करने पड़ते ह । इन सभी काय म का व प, भाषा
या तु तकरण क शैल एक समान नह ं हो सकती । सभी वधाओं के लेखन, संपादन या
तु तकरण म व श ट ोता वग क अपे ाओं को यान म रखा जाता है । अब हम रे डयो
से सा रत मु ख वधाओं के काय म के लए लेखन या का व लेषण करगे ।
10.5.1 समाचार
174
लोग क अपनी होती है िजनम कभी-कभी उ चारण दोष या अं ेजी का योग खलता
है कं तु इससे समाचार क व वसनीयता बढ़ती है य क हम घटना क स चाई या
उसके भाव क जानकार संबं धत यि त के अपने मुह
ँ से ा त करते ह ।
इसी कार समाचार बुले टन म घटना को कवर करने वाले संवाददाता क अपनी
आवाज म वायस ड पैच लए जाते ह । वायस ड पैच य क संवाददाता वयं तैयार
करता और बोलता है इस लए उनम सरल और बोलचाल क भाषा रहती है । कभी-कभी
टू डयो म बैठा एंकर या समाचार वाचक सीधे घटना थल पर मौजू द संवाददाता से
घटना के बारे म फोन पर बात करता है जो समाचार के साथ त काल सा रत हो
जाती है । ऐसी बातचीत क भाषा भी सरल तथा बोलचाल क होती है । इन नए
त व के इ तेमाल से रे डयो के समाचार बुले टन बनाना ज टल अव य हो गया है
कं तु वे सरल, बोधग य और अ धक व वसनीय बन गए ह ।
10.5.2 वाता
175
वाचन दोन मलकर वाता को सजीव बनाते ह । वाताकार को ोताओं के साथ
नकटता का भाव उ प न करना पड़ता है ।
वाताओं के कई कार ह । कुछ वाताय काय म वशेष के लए तैयार क जाती ह-
जैसे युवाओं के लए, म हलाओं के लए, ब च के लए, व या थय के लए, कसान
के लए । इसके अलावा सं मरणा मक और आ मकथा मक वाताएं भी होती ह ।
ऐसी वाताओं म कथात व भी होता है जो ोताओं को बाँधता है ।
10.5.3 प रचचा
प रचचा म कसी वषय पर बहु प ीय चचा होती है । अत: प रचचा वचार- वमश
है । प रचचा का नयामक वषय और तभा गय का प रचय दे कर वषयगत कसी
एक न को एक तभागी पर उछाल दे ता है और इस तरह प रचचा आर भ हो
जाती है । य द अ य तभागी आव यक समझे तो वे बीच म ह त ेप कर अपनी
बात रख सकते ह । हां, नयामक प रचचा को आगे बढ़ाने म एक कड़ी का काय
करता है । वह दूसरा न अ य तभागी के सम रखता जाता है । इसम तीन
से पांच तभागी भाग ले सकते ह । इससे अ धक तभागी होने पर ोताओं के
मत हो जाने क आशंका रहती है ।
प रचचा म वषय से भटक जाने क गु ज
ं ाइश भी रहती है । अत: वषय को स पूणता
से तुत करने एवं वचार का सल सला बनाये रखने के लए तभा गय और
नयामक को नो स बना लेने चा हए । य द तभा गय म सरलता और अ भ यि त
म पैनापन नह ं हु आ तो प रचचा बेजान और नीरस हो जाएगी ।
10.5.4 सा हि यक रचनाएं
10.5.4.1 कहानी
176
रे डयो कहानी सरल और सु बोध भाषा क अपे ा रखती है । कहानीकार अपनी बात
सीधे, सरल और रोचक ढं ग से कहे न क घुमा फराकर नह ं तो ोता बोधग यता
और रोचकता के अभाव म व ता के साथ तादो मय नह ं कर पाएंगे । हाँ उसम
नाटक यता अव य होनी चा हए तभी वह सु नने म रोचक हो सकेगी ।
10.5.4.2 क वता
10.5.5 हसन
177
झलक म संवाद बड़े पैने और चु त होते ह । संवाद म हा य- यं य का पुट हो िजससे
ोताओं का भरपूर मनोरं जन हो सके । इतना सब होते हु ए भी झलक उ े य र हत
नह ं होती, वह समाज म फैल कु र तय पर चोट करती है ।
10.5.6 रे डयो पक
178
कया जा सकता है । रे डयो नाटक अ धकतर सम या मूलक होते ह जो आज समाज
म या त कु र तय , वकृ तय का पदाफाश करते ह ।
10.6.1 गीतमाला
179
गीत भर कहानी के कथानक म बीच-बीच म कसी भाव को भावी बनाने के लए
कोई फ मी गीत बजा दया जाता है । इस तरह गीत सु नवाए जाते ह और साथ
ह कथानक भी चलता रहता है । गीत के चयन म सावधानी अव य चा हए य क
भाव वशेष से गीत का गहरा संबध
ं ह । कथानक क भावभू म और गीत क भावभू म
एक ह हो िजससे भाव ोता के मन को गहराई तक छुए ।
इस काय म क भाषा बहु त मधु र और सहज अ भ यि त भर होनी चा हए । कोई
भी ोता संगीत क फुहार म भीगने के बाद नीरस आलेख क अ भ यि त वीकार
नह ं कर पाएगा । व तु त: यहां संगीत के साथ भाषा क चु नौती लेखक को वीकार
करनी पड़ती है । वा य सीधे और सरल ह कोई बात घुमा फरा कर न कह जाए,
नह ं तो ोता का भाव-तादा मय टू ट सकता है ।
इसम ना य अंश का भी योग कया जा सकता है । जैसे कथानक म दो पा क
कथा बढ़ती है तब ना य अंश के प म उन दो पा क थोड़ी सी झलक दे ने के
लए तु त कर दया जाता है ता क भाव वशेष पा और संवाद के साथ जीवंत
एवं भावी बन सक ।
180
10.7 उ घोषणाएं
रे डयो म उ घोषणा और काय म का अ भ न संबध
ं ह । काय म सु नने क च ोताओं
म उ घोषणा सु नकर ह जागृत होती है । उ घोषणा िजतने रोचक ढं ग से क जायेगी ोता
उतने ह सु नने के लए आकु ल हो जाएंगे । एक ह बात को अलग-अलग उ घोषक अपनी
शैल से असरदार बना दे ते ह । अत: उ घोषणा के लए अ छा वर, सधे हु ए अथपूण श द
और साफ-साफ उ चारण होना आव यक है । उ घोषणा म कु छ बात ज र होती ह जैस-े कौन
सा के है, काय म कौन सा है, समय के साथ य द कोई वशेष सूचना है । एक अ छ
उ घोषणा म सूचना, उ सु कता और रोचकता तीन गुण पाए जाते ह । उ घोषक या उ घोषणा
लेखक इन तीन बात को कु छ वा य म परो लेता है ।
10.7.1 सू चनाएं
10.7.2 संदेश
181
उ लासपूण भावना से भरे होते है । हाँ, संदेशदाता को समयानुसार संदेश क भाषा
को वर म ढालना होता है । भावनाओं को न छू पाने क ि थ त म संदेश बेजान
हो जाता है । यह काय क ठन अव य है । इसम बड़ी सावधानी क आव यकता है
। उपरो त बात को यान म रखते हु ए जब आलेख तैयार कए जाएं तो संदेशदाता
के यि त व क ग रमा को भी यान म रखना होगा ।
182
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3. रे डयो नाटक के मु य त व को प ट कर ।
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4. आकाशवाणी के सं गीत काय म म ले ख न के मह व पर काश डा लए ।
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10.8 सारांश
इस पाठ म हमने आपको रे डयो सारण के उ े य को प ट करते हु ए रे डयो क व भ न
वधाओं के लए लेखन और तु तीकरण से जु ड़े पहलु ओं क जानकार द । आकाशवाणी लोक
सारण संगठन है इस लए इसके काय म के लेखन म अनेक मयादाओं का पालन करते हु ए
कई तरह क सावधा नयां बरतनी पड़ती ह । य मा यम होने के कारण काय म क भाषा
सरल, बोधग य और तुर त समझ म आ जाने वाल होनी चा हए । यह भी बताया गया है
क समाचार लखना सबसे चु नौतीपूण काय है ।
10.10अ यासाथ न
1. जनसंचार मा यम के प म रे डयो क व श टता का व लेषण क िजए ।
2. रे डयो लेखन के व वध आयाम तथा परं परा का वणन क िजए ।
3. 'रे डयो क व भ न वधाओं म समाचार लेखन सबसे चु नौतीपूण काय है' इस कथन क
समी ा क िजए ।
4. रे डयो नाटक और रे डयो पक म अंतर प ट क िजए ।
5. रे डयो लेखन म भाषा के मह व पर सं त नबंध ल खए ।
6. सा हि यक रचनाओं क रे डयो तु त पर काश डा लए ।
7. रे डयो सारण म संगीत के मह व को रे खां कत करते हु ए इसके काय म लेखन और
तु तकरण क संभावनाओं का ववेचन क िजए ।
183
इकाई-11
टे ल वजन समाचार लेखन
इकाई क परे खा
11.0 उ े य
11.1 तावना
11.2 टे ल वजन समाचार का मह व
11.3 भारत म टे ल वजन समाचार का इ तहास
11.3.1 दूरदशन समाचार
11.3.2 नजी समाचार चैनल
11.4 टे ल वजन समाचार लेखन
11.4.1 समाचार क संरचना
11.4.2 घटना म
11.4.3 च ा मकता
11.4.4 सं तता
11.4.5 भाषा क सरलता
11.4.6 अनुवाद
11.5 टे ल वजन समाचार बुले टन
11.5.1 व प और या
11.5.2 म नधारण
11.5.3 मु य समाचार
11.5.4 लैश
11.5.5 पूरक समाचार
11.6 टे ल वजन समाचार के या मक त व
11.6.1 मू वी च
11.6.2 लाइ ेर /फाइल च
11.6.3 ि टल फोटो
11.6.4 सी.जी. (करै टर जेनरे शन)
11.6.5 ा फ स और एनीमेशन
11.6.6 लॉगो
11.7 व या मक त व
11.7.1 साउं ड बाइट
11.7.2 वायसका ट
11.7.3 लाइव ड पैच
11.7.4 फोन-इन
11.7.5 पीस टू कैमरा
184
11.8 सारांश
11.9 उपयोगी पु तक
11.10 अ यासाथ न
11.0 उ े य
इस पाठ को पढ़ने के बाद आप :
आज के युग म टे ल वजन समाचार के मह व और भारत म टे ल वजन समाचार के इ तहास
क जानकार पा सकगे।
टे ल वजन समाचार लेखन क या और उसके व भ न प को समझ सकगे ।
टे ल वजन समाचार क संरचना और उसक बु नयाद वशेषताओं के बारे म जान सकगे ।
समाचार बुले टन के व प क जानकार पा सकगे ।
टे ल वजन समाचार के च ा मक और व या मक त व को समझ सकगे ।
टे ल वजन समाचार क मौजू दा चु नौ तय के बारे म जान सकगे ।
11.1 तावना
समूचे व व म संचार मा यम के े म अभू तपूव ग त और ां त के इस दौर म सू चना
एक शि त के प म उभर है । जनसंचार मा यम सम सामािजक और आ थक वकास
के अ नवाय साधन और मापदं ड बन चुके ह । जनसंचार मा यम के प म सबसे पहले टं
मी डया यानी प -प काओं का पदापण हु आ, ले कन पछल सद के पूवाध म इले ॉ नक
मी डया के उदय के उपरांत दु नया कर ब आ गई है । उप ह संचार णाल ने तो टे ल वजन
और रे डयो संदेश को एकदम सवसु लभ बना दया है । इंटरनेट ने ान और सूचना णाल
का व प ह बदल दया है । टे ल वजन य तो मु यतया मनोरं जन का मा यम रहा है कं तु
सू चना और समाचार के मा यम के प म भी इसक भू मका कम उपयोगी नह ं है । 24 घंटे
के समाचार चैनल तो कसी भी मह वपूण घटना के न केवल त य को बि क उससे जु ड़े अ य
पहलु ओं तथा उसके अतीत के साथ-साथ उसके संभा वत प रणाम के अनुमान भी हमारे सामने
त काल तुत कर दे ते ह । आतंकवाद घटना हो या कसी उप ह या अंत र यान को छोड़ना,
समु के गभ म होने वाला पनडु बी यु हो या आकाश क ऊँचाइय म हो रहा हवाई यु ,
संकट म फंसे कसी यि त या ब चे क सहायता का अ भयान हो अथवा ू रता के घृ णत
य ये सभी त य स च प म त काल हम तक पहु ंच जाते ह । टे ल वजन समाचार सारण
इतना आगे बढ़ आया है क हमारे दे श म भी, जहाँ टे ल वजन और टे ल वजन समाचार क
या ा इतनी लंबी नह ं है, समाचार के व प, ामा णकता और सामािजक औ च य पर न
उठने लगे ह । नजी समाचार चैनल के बीच बढ़ती होड़ के कारण समाचार भी बकाऊ व तु
का प लेता जा रहा है । हंद के अ धकतर ट .वी. समाचार चैनल पर व ापन लोलु पता
और धन कमाने तथा एक दूसरे से आगे बढ़ने क अंधी होड़ म समाचार क मयादाओं का
उ लंघन करने के आरोप लगने लगे ह । यहां तक क उनके नयं ण और नयमन के लए
कसी तरह क कानूनी या आंत रक नयमन यव था तक ह मांग होने लगी है । यह ि थ त
टे ल वजन समाचार क लोक यता और मह व क भी प रचायक है । इस लए टे ल वजन
185
समाचार के लेखन और तु त के सै ां तक और यावहा रक प का गहन ववेचन और
व लेषण आव यक हो गया है ।
186
द गई । केबल ट .वी. आने के बाद नजी संगठन को भी अपने चैनल चलाने और समाचार
सा रत करने क छूट मल । 1995 के बाद अलग से समाचार चैनल भी काम करने लगे
। इस समय दूरदशन के समाचार चैनल और अनेक े ीय समाचार इकाइय के साथ-साथ
लगभग 75 नजी समाचार चैनल चल रहे ह, जो हंद , अं ेजी और े ीय भाषाओं म खबर
और समाचार पर आधा रत काय म सा रत कर रहे ह ।
187
छाने लगा । इसका भाव समाचार सारण पर भी पड़ा । जैसा क आपने पढ़ा ारं भ
म नजी सारक दूरदशन से ह अपने समाचार काय म सा रत करते थे । आज
के 'एन डी ट वी’ और 'आज तक' चैनल ने अपनी आख दूरदशन क गोद म ह
खोल थीं । धीरे -धीरे अ य उप ह चैनल से आं शक प से समाचार का सारण
होने लगा । बीसवीं सद के अं तम वष म वतं समाचार चैनल अि त व म आ
गए जो केवल खबर और समाचार आधा रत काय म के सारण को सम पत ह
। इससे हंद समाचार क लोक यता बढ़ने लगी और समाचार और समाचार
बुले टन के व प, उ े य और संरचना म तेजी से बदलाव आ गया । दूरदशन के
समाचार के व प म भी तदनु प प रवतन आया कं तु उसे वो आजाद और खु लापन
उपल य नह ं है, जो नजी उप ह चैनल के पास है । दूरदशन य क लोक सारक
क भू मका भी नभाता है इस लए उसे सनसनीखेज और उ तेजक समाचार से बचना
पड़ता है और अपने सामािजक, संवध
ै ा नक और राजनी तक सरोकार क भी चंता
करनी पड़ती है ।
दूसर ओर तकनीक और तु तीकरण क े ठ शै लयां अपनाने के बावजूद 75 से
अ धक उप ह ट .वी. समाचार चैनल अपनी ोफेशनल िज मेदा रय और मयादाओं
क उपे ा करते हु ए केवल शहर और संप न वग के हत और च के अनु प
समाचार सा रत करने लगे ह और समाचार संगठन के प म अपने दा य व नभाने
क राह से भटक गए ह । यह ि थ त आदश समाचार सारण क ि ट से सोचनीय
है । ये चैनल वा त वक समाचार चैनल न रहकर ट .आर.पी. बढ़ाने के उ े य से
नकारा मक, मनोरंजक, फूहड़ और स ते काय म के सारण पर उतर आए ह ।
ये समाचार के नाम पर तं -मं और जादू-टोने क खबर, पा रवा रक कलह के क से,
लतीफे-चुटकुले और फ मी क से-कहा नय व अधन न व फूहड़ नाच-गान पर
आधा रत काय म परोसकर समाचार क ग रमा गरा रहे ह ।
बोध न - 1
1. टे ल वजन समाचार का या मह व है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………...………………………………………………
2. भारत म टे ल वजन समाचार क या ा का सं त यौरा द िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………… .....…
3. दू र दशन और नजी चै न ल के समाचार म या अं त र है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………………………………………………… ..…
188
11.4 टे ल वजन समाचार लेखन
आपने पढ़ा क टे ल वजन मा यम के अखबार और रे डयो से भ न होने के कारण इसके
समाचार का व प और संरचना भी इन दोन मा यम के समाचार से भ न होती है । य
मा यम होने के चलते जहां इसम श द क भू मका अपे ाकृ त कम है, वह ं भाषा को सरल
और सु बोध रखना आव यक है, य क इसे नर र और अ प श त लोग भी दे खते-सु नते
ह । समाचार का मु य ोत संवाद एज सयां ह, जो ाय: अखबार क आव यकता को यान
म रखकर समाचार तैयार करती ह । इन समाचार को टे ल वजन पर सारण यो य बनाने
के लए इनका यापक संपादन कया जाता है और इ ह उपल ध च और व न साम ी
के अनु प ढाला जाता है ।
यहां यह प ट कर दे ना ज र है क टे ल वजन के लए समाचार लेखन से ता पय केवल
आलेख लखने से नह ,ं बि क समू चा समाचार यानी यूज आइटम तैयार करने से है । हम
इसे समाचार लेखन क बजाय समाचार रचना भी कह सकते ह । इसके अंग ह आलेख, यानी
भाषा, च और व न । इन तीन म साथक और रोचक सम वय और संतल
ु न ह टे ल वजन
समाचार का सार है । यह ं आकर टे ल वजन समाचार संपादन क कला सामा य समाचार
संपादन से भ न हो जाती है ।
11.4.2 घटना म
11.4.3 च ा मकता
11.4.4 सं तता
190
जनसमू ह, मह वपूण यि त या भाषण के वषय से संबं धत फाइल च दखाकर
समाचार को रोचक और भावशाल बनाया जा सकता है । आलेख को सं त रखने
क मता अ छे संपादक का अ नवाय गुण है ।
11.4.6 अनुवाद
191
य द शाि दक अनुवाद से बचते हु ए भावानुवाद पर बल दया जाए तो ज टलता एवं
कृ मता से कुछ हद तक मु ि त पाई जा सकती है । अं ज
े ी क वा य रचना ज टल
है और उसम एक ह वा य म योजक श द क सहायता से कई बात शा मल कर
ल जाती ह । इस कार के वा य को दो या तीन लघु और सरल वा य म तोड़
कर लखा जाना चा हए । इस कार अं ेजी के मुहावर को य का य ह द म
पांत रत कर दे ने से भाषा क वाभा वकता पर आंच आती है । कं तु ऐसा करते
समय च क अनु पता और समय सीमा का यान भी रखना आव यक है । नजी
समाचार चैनल क भाषा दूरदशन समाचार क भाषा के मु काबले अ धक सरल, सु बोध
और लचील होती है । इन चैनल म आम बोलचाल क भाषा इ तेमाल होती है ।
अं ेजी श द और वा य तक का खु लकर योग कया जाता है । कु छ आलोचक
क शकायत है नजी समाचार चैनल समाचार के व प के साथ-साथ समाचार क
भाषा को भी दू षत कर रहे ह । ले कन समाचार क भाषा िजतनी सरल व लचील
होगी, समाचार उतने ह आकषक और ा य ह गे ।
11.5.1 व प और या
192
समाचार वशेष के लए कतनी अव ध के च या अ य साम ी अपे त है । बुले टन
का तु तकता यानी ो यूसर, संपादक के परामश के अनुसार च का संपादन करता
है । संपादक च के अनुसार समाचार लखता है तथा पृ ठ सं या अं कत करके
समाचार वाचक या एंकर को दे ता है । अब तो संपादक वयं एंकर भी बन रहे ह
। यह सारा काम क यूटर पर ह होता है । क यूटर से ह टे ल ो पटर क मदद
से एंकर समाचार पढ़ता है । हर समाचार पर आव यक संकेत या नदश अं कत रहते
ह । इसके अलावा जब बुले टन पढ़ने वाले दो यि त ह तो येक पृ ठ पर एंकर
या वाचक का नाम भी अं कत कया जाता है । क यूटर येक आइटम क अव ध
वत: सू चत कर दे ता है िजससे बुले टन क नि चत अव ध के अनुसार ह आइटम
तैयार करना सरल रहता है । सारण के समय तु तकता क मु य भू मका रहती
है । वह पैनल पर बैठकर माइक से टू डयो म लोर मैनज
े र के मा यम से समाचार
वाचक /एंकर , कैमरामैन तथा अ य य/ व न साम ी के दशन के संबध
ं म कमांड
दे ता है ।
11.5.2 म नधारण
193
तक मु य समाचार बनाने क परं परा है । बजट बुले टन जैसे वशेष समाचार बुले टन
म इससे अ धक मु य समाचार भी रखे जाते ह । य द कोई मह वपूण समाचार
बुले टन के सारण के दौरान ा त होने पर लैश के प म शा मल कया जाता है
तो उसे अंत म दोबारा पढ़े जाने वाले मु य समाचार म उसके मह व के अनुसार
म पर रखकर पढ़ाया जाता है । कभी-कभी यह नया समाचार अंत म दुबारा पढ़े
जाने वाले मु य समाचार का 'ल ड' समाचार भी बन जाता है । मु य समाचार के
साथ संबं धत च भी दए जाने चा हए । ये आमतौर पर रकॉड कर लए जाते ह
ता क आलेख और च का सम वय भल कार हो जाए ।
11.5.4 लैश
194
4. समाचार के आले ख क भाषा कै सी होनी चा हए ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………………
11.6.1 मू वी च
11.6.3 ि टल फोटो
195
कोई समाचार दे ते हु ए उस यि त का च न पर आने से समाचार क
सं ेषणीयता बढ़ जाती है । यि त क कसी उपलि ध, बयान, मृ यु आ द क खबर
दे ते हु ए भी इन च का उपयोग कया जाता है । इसके अ तर त भवन जैसे क
संसद भवन, उ चतम यायालय, वधानसभा भवन, नवाचन आयोग आ द के ि टल
च से उनसे संबं धत समाचार को ासं गकता दान क जाती है । ि टल च
को इंटरनेट या अ य ोत से डाउन लोड करके अपने क यूटर म संक लत कर लया
जाता है ।
11.6.5 ा फ स और एनीमेशन
िजस थान, िजला, ांत, दे श आ द के संबं धत समाचार दया जा रहा हो, उसका
मान च दखाने से घटना और थान के बीच संबध
ं जोड़ने म सरलता हो जाती है
। एनीमेशन श प क मदद से मान च म यह भी दखाया जा सकता है क घटना म
कस थान से ारंभ होकर कहाँ तक पहु ंचा । उदाहरण के लए वमान अपहरण का
समाचार दे ते हु ए ए शया मान च म वमान के च तथा तीर क मदद से यह दखाया
जा सकता है क वमान का अपहरण अमृतसर म हु आ, वहाँ से वमान लाहौर ले
जाया गया और वहां से काबुल होता हु आ वह द ल म उतरा । यह पूरा माग एनीमेशन
के ज रए न पर अं कत हो जाता है । मौसम क जानकार दे ते हु ए वषा,
ओलावृि ट , बादल आ द के थान व ग त को दखाने के लए यह व ध अपनाई
जाती है । कई बार काटू न या एनीमेशन से तैयार च या जंगल, सड़क, रे लगाड़ी,
196
वमान आ द के च बनाकर घटना को साकार कर दया जाता है । सार या
क यूटर कृ त होने के कारण त काल उपयोग म लाई जा सकती है ।
11.6.6 लॉगो
11.7 व या मक त व
आप पढ़ चु के ह क टे ल वजन सबसे अ धक भावशाल और रोचक मा यम इसी लए है क
यह या मक, व या मक, और मु त एक साथ हो सकता है । आप च और मु त या
ल खत प म सू चना सारण क सी.जी. प त के बारे म पढ़ चु के ह । अब हम उन त व
का अ ययन करगे जो व या मक ह और कभी-कभी य के साथ मलकर च व वन
दोन का म त भाव छोड़ते ह । व न से यहां अ भ ाय समाचार के उस उ च रत अंश
से है जो वाचक या एंकर वारा बोले गए श द से अलग होता है ।
11.7.2 वायसका ट
इसम कसी घटना या काय म क मौके पर कसी संवाददाता वारा रपोट पेश क
जाती है । यह तकनीक ट .वी. समाचार सारण क सबसे अ धक ामा णक व ध
है । इसम एंकर घटना के थान पर मौजूद संवाददाता या कसी वशेष से सीधे
वातालाप करता है और संवाददाता का ववरण अथवा वशेष क ट पणी का सीधा
सारण समाचार के ह से के प म होता रहता है । इसम घटना के च और
संवाददाता/ वशेष क आवाज साथ-साथ दशक तक पहु ंचते ह और उसे घटना या
काय म का ामा णक यौरा मल जाता है ।
11.7.4 फोन-इन
198
2. ा फ स और एनीमे श न का टे ल वजन समाचार सारण म या मह व है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
...………………………………………………………………………………………………………………………………
3. साउं ड बाइट और वायसका ट म या अं त र है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
...………………………………………………………………………………………………………………………………
11.8 सारांश
इस पाठ म आपको आज के युग म टे ल वजन समाचार क साथकता, मह व और चु नौ तय
के बारे म बताया गया । आपको टे ल वजन के लए लखे जाने वाले समाचार क संरचना
से अवगत कराते हु ए ट.वी. समाचार बुले टन के व प तथा उसक या समझाने का यास
कया गया । कैमरा शू टंग से ा त च के अलावा ल खत समाचार को या मक प दान
करने के अ य सहायक त व का भी ववरण दया गया । ट .वी. समाचार के व या मक
प पर काश डालते हु ए यह बताया गया क ट.वी. समाचार क भाषा को कैसे सरल और
सु बोध बनाया जा सकता है तथा अनुवाद क ि थ त म उसे कृ मता तथा ज टलता जैसे दोष
से कैसे बचाया जा सकता है । संरचना के हसाब से टे ल वजन समाचार एक 'पैकेज' होता
है िजसम एंकर लंक, वॉइस ओवर, बाइ स और रपोटर के पीस-टू -कैमरा का समावेश होता
है ।
11.9 उपयोगी पु तक
1. जनमा यम और प का रता - वीण द त, सहयोगी सा ह य सं थान, कानपुर
2. भारतीय सारण व वध आयाम - मधुकर गंगाधर, वीण काशन, नई द ल
3. दूर दशन: वाय तता और वतं ता- सुधीश पचौर , स चन काशन, नई द ल
11.10 अ यासाथ न
1. टे ल वजन सारण म समाचार का या थान है?
2. समाचार क संरचना पर सं त नबंध ल खए ।
3. टे ल वजन समाचार, अखबार तथा रे डयो समाचार से कस तरह भ न है?
4. समाचार को च ा मक बनाने के सहायक साधन का यौरा द िजए ।
5. टे ल वजन समाचार के धव या मक त व का ववेचन क िजए ।
6. 'टे ल वजन समाचार क भाषा' वषय पर नबंध ल खए ।
7. इस समय भारत म टे ल वजन समाचार के सामने या- या चु नौ तयां ह?
8. दूरदशन और नजी चैनल के समाचार क तुलना क िजए ।
9. “ नजी समाचार चैनल खबर के नाम पर स ता मनोरंजन परोस कर समाचार क ग रमा
कम कर रहे ह ।” इस कथन का व लेषण क िजए ।
10. न न ल खत पर ट प णयां ल खए
199
लैश
वायसका ट
साउं ड बाइट
फोन-इन
पीस टू कैमरा
200
इकाई - 12
टे ल वजन के लए पटकथा लेखन
इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 पटकथा का अथ
12.3 पटकथा का इ तहास
12.4 पटकथा क प रभाषा
12.5 आलेख के कार
12.6 पटकथा लेखन
12.7 पटकथा लखने का ा प
12.8 पटकथा के नमू ने
12.9 नदशक का आलेख
12.10 सारांश
12.11 व-मू यांकन
12.12 श दावल
12.13 कु छ उपयोगी पु तक
12.14 अ यासाथ न
12.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप यह जान पायगे-
पटकथा या है?
पटकथा कैसे लखी जाती है?
अलग- अलग काय म क 'पटकथा' म या अ तर होता है?
टे ल वजन क 'भाषा' या होती है?
टे ल वजन म यु त होने वाले व भ न आलेख अ य मा यम से अलग कैसे और य
है?
'पटकथा' लखने का ा प और शैल ।
नदशक का आलेख ।
टे ल वजन म यु त तकनीक श दावल का अ ययन ।
नमू ने क पटकथा के आधार पर पटकथा लखने क मता का नमाण ।
12.1 तावना
कोई भी नमाण काय आरं भ करने से पूव उसक नयोिजत परे खा बनाना आव यक होता
है । ठ क इसी कार दूरदशन अथवा टे ल वजन म भी येक काय म न मत (Production)
201
कसी न कसी कार आलेख (Script) पर नभर करती है । टे ल वजन म येक काय म
का अपना अलग ' ा प' (Format) होता है, इस लए उसके आलेख अथवा Script का व प
भी भ नता लए होता है ।
यू ं तो, कसी भी काय म नमाण से पूव उसका आलेख अथवा नमाण संबध
ं ी ' परे खा' नमाता
(Producer) के मि त क म ह न हत होती है । अ सर यह कहा जाता है क कोई भी
काय म नमाण से पहले ह वह ' नमाता' (Producer) के मि त क म आकार ले चु का होता
है । इस लये कई बार, कई काय म के 'आलेख' औपचा रक प से लखे ह नह ं जाते ।
ले कन इसका यह ता पय कदा प नह ं है क टे ल वजन म 'आलेख ' का मह व कम है । इसके
वपर त िजतना मह व, उपयो गता और आलेख क व वधता टे ल वजन म ि टगत होती
है, उतनी अ य शायद ह कह हो ।
टे ल वजन म व भ न कार के आलेख काय म क व भ न ' कृ त' (Nature) के अनुसार
उपयोग म लाये जाते ह । कु छ सं त होते ह, तो कु छ स व तार, ले कन होते अव य ह।
भले ह कोई लेखक हो, या ना हो मगर ' ोड शन ट म' के येक सद य से इतनी उ मीद
अव य क जाती है क वे काय म के ' ा प' (Format) और वषय व तु (Content) और
उसक नमाण या संबध
ं ी व वध बात क जानकार अव य रखता हो । अथवा कसी
ल खत आलेख को ट .वी. ो ाम म पा त रत (Translate) करने म मददगार सा बत हो
सक।
'पटकथा' लेखन एक अलग या है । इसे लेखन के लए वशेष ावी य अथवा कौश य
क आव यकता होती है । 'पटकथा' म मु यत: कसी ' संग' वशेष (Situation) को व तार
दे ने (Develop करने) कहानी के अनुसार च र (Characters) अथवा पा को कम अ धक
करने, नये नमाण करने ओर पा ानु प संवाद लखने, उनक ग त व धय को रे खां कत करने
आ द अनेक मह वपूण त व सि म लत होते ह । इन सभी त व को एक साथ 'गू थ
ं कर' एक
सफल काय म नमाण करने के लये भी अनुभव और कौश य अ नवाय होता है । कु छ सेकं स
क व ापन फ म से लेकर तीन साढ़े तीन घंटे क फ म तक क पटकथा, अपने वषय
ओर व तार के कारण अलग अलग होती है ।
'पटकथा' वा तव म एक ऐसा ' केलेटन' या 'ढाँचा' होता है, िजसम फ मकार धीरे -धीरे ाण
फूँ कता है । उसको मानवीय प म पा यत करता है । और फर मानवीय संवेदनाओं- जैसे,
हा य, वषाद, हष. आ द से प रपूण हँसती, गाती, बोलती, नाचती फ म तैयार करता है ।
12.2 पटकथा का अथ
'पटकथा' या है? कैसे लखी जानी चा हए? टे ल वजन और फ चर फ म क 'पटकथा' म
या कोई बु नयाद अ तर होता है ? आ द न पर वचार करने से पहले यह जान लेना
आव यक है क िजसे आज हम 'पटकथा' अथात अं ेजी म Screen Play कहते ह, उसक
पूव पी ठका या है ?
202
'पट' या न 'परदा' और 'कथा' का अथ तो आप सभी जानते ह है । इससे यह प ट होता
है क 'पटकथा' या न 'परदे ' क कथा । यह तो हु आ इसका साधारण व प ववेचन ।
203
सनेमाघर म ' ोजे ट न ट' पूर फ म ोजे टर वारा ' ोजे ट' करता है अथात ् हॉल म बैठे
हु ए दशक को दखाता है । इसी तरह बंगाल 'पटकथा' म एक आदमी 'पूरा रोल ' संभालता
है ओर नीचे बैठा हु आ एक आदमी च ंखला के आधार पर (ठ क फड वाचन क तरह)
कथावाचन करता है ।
ये 'रोल' कब 'र ल' म बदल गये पता ह नह ं चला । ले कन यह पर परा हमारे दे श म ाचीन
काल से ह व यमान रह है । इसी 'पटकथा' अथवा फड शैल का प रमािजत व प हम
फ मी पटकथा म पा त रत होता हु आ दे ख सकते ह ।
204
का काय है । फर भी य द पटकथाकार इन बात का उ लेख अपनी पटकथा म करता है तो
फ म क अव ध (Duration) का पूवानुमान लगाना आसान हो जाता है ।
येक पटकथाकार को 'कथाव तु' के आधार पर 'पटकथा' लखने क कु छ वतं ता होती
है । 'कु छ' इस लए क अ धकांश कहा नय म कई नये पा गढ़ने पड़ते ह । कई बार अनाव यक
'कथा व तार' क काट-छॉट करनी पड़ती है । और पटकथा म ऐसा 'पंच' या 'तनाव' नमाण
(Create) करना पड़ता है, क दशक त ध होकर फ म को दे खे और आगे ' या होगा?'
क चंता करने लगे । कई बार ऐसी Situation नदशक के साथ चचा करके भी Create
क जाती है । पटकथा लेखन को कसी सा हि यक वधा के प म भले ह मा यता न मल
हो, फर भी पटकथा लेखन शू य से आरंभ होकर एक नई दु नया का सृजन करती है , इस लए
लेखक य कौशल तो होता ह है, लेखक क जीवन ि ट, दूर ि ट, अनुभव और सामािजक
चेतना का प रचय तो अव य होता है ।
पटकथा लेखन को कसी ' वधा' का नाम न दे ने के कारण इसका कोई ' वधान' भी सवस मत
नह ं है । फर भी 'कथानक' के अनुसार येक य म घ टत होने वाल घटनाओं का मवार
उ लेख ह पटकथा क ेणी म आता है । पटकथा को 'सीने रय ' भी कहा जाता है ।
उपरो त व लेषण के प चात ् सं ेप म हम कह सकते ह क (पटकथा) का अथ ह मूल कथा
का ग तशील वकास, मूल वचार क र ा तथा भटकाव से बचाकर रचना को अपने हे तु तक
पहु ँ चाना । इसी बात को अगर हम दूसरे श द म कहना चाह तो कह सकते ह क- 'कहानी
सु नाने के लये आव यक भौ तक, या मक, पा ानु प और संवादा मक त व को जो एक
साथ संक लत करती है, उसे 'पटकथा' कहते ह ।
205
दशक तक पहु ँचाना होता है, इस लये व ापन फ म क पटकथा अ यंत 'चु त'
एवं सं त होते हु ए भी 'संपण
ू ' होती है ।
206
2.4 कस 'पा ' क कतनी 'दूर ' से कतनी हाई पीच होगी, यह पहले ह तय करना
पड़ता है।
2.5 फर आता है, कैमरा! वैसे तो फ म नमाण के समय भी इ ह अ धकांश बात
का यान रखा जाता है, ले कन अ धकांश फ म 'एक कैमरा सैटअप’ होती है
। कई बार यु - संग आ द को फ माने के लये एक से अ धक कैमर के
उपयोग म लाये जाने के भी उ लेख मलते ह ।
ले कन, टे ल वजन टू डयो म एक से अ धक 'कैमरा सैटअप' होने के कारण
इस बात का यान रखना ज र होता है क, कौनसा पा कस कैमरे क ओर
दे ख कर संवाद बोलेगा । और कौनसा कैमरा कस पा का ‘ र-ए शन-टे क'
करे गा ।
2.6 इसके बाद क सार िज मेदार आरं भ होती है नमाता (Producer) क ।
य क यहाँ से आरंभ होती है टे ल वजन क भाषा ।
2.7 टे ल वजन क भाषा केवल मौ खक श दावल ह नह ं होती, इसके अलावा भी,
इस भाषा के कई प होते ह । जैसे - कैमरे क भाषा,
2.8 कौनसा कैमरा, 'शॉट', कस 'एंगल’ से लेगा, यह 'कमांड' उसे (अथात ् कैमरामैन
को) नमाता दे ता है ।
2.9 कैमरे के बाद व न (Sound) एवं व न भाव (Sound effects)
2.10 ा फ स अथवा वशेष भाव
207
2. शू टंग थल
1. शाक भर दे वी का मं दर (उदयपुरवा टका, झु ंझन
ु )ू
2. शीला दे वी का मं दर (आमेर, जयपुर )
3. राज थान के मु ख दे वी मं दर
4. व भ न दे वी म डप
5. शहर के व भ न दे वी मं दर
6. …………..के पुजार से बातचीत
7. ………....के भ त से बातचीत
8. ..........भजन ( रकाड थल मं दर ांगण)
इसके ठ क वपर त टे ल फ म के लये लखते समय न न बात का यान रखना पड़ता
है ।
1. शीषक (Title)
2. अव ध (Duration)
3. पटकथा (Screen Play)
4. शू टंग ि ट (इसे Director’s Script भी कहते ह)
टे ल वजन क पटकथा के साथ न न सू चयाँ अलग-अलग पृ ठ पर अव य संल क
जानी चा हये ।
1. कलाकार तथा पा -प रचय
(अ) मु य कलाकार
(ब) सहयोगी कलाकार
(स) कोरस अथवा भीड़ के कलाकार
2. वेशभू षा - पा के च र के अनुसार, उनक पोशाक/उनके रं ग/दाढ़ मूछ/उनक
साईज/ टाईल/दाढ़ मु छ के रं ग/भ ह इ या द ।
3. मेकअप - मेकअप कतने कार का है । साधारण है या च र के अनुसार
(Characteristic) है । इसक संपण
ू जानकार ।
4. ोपट – 1. आउटडोर-बा य च ांकन थल (Location) होने पर या- या अ नवाय
ोपट क आव यकता होगी । 2. इनडोर पर या- या अ नवाय ोपट क आव यकता
होगी । इन सभी बात का स व तार वणन
5. प स जा - हे अर टाईल इ या द ।
6. लोकेश स - कहानी एवं पटकथा के अनुसार लोकेश स का चयन कया जाता है ।
208
शीषक……………………………… पृ ट सं या..............
अनु म य संवाद वन भाव वशेष
ऐ पसोड- 1
नवेदक - हमारे सभी दशक को नम कार, सलाम, आदाब । पेश है आज
क यह खू बसूरत रं गीन शाम बतौर खास आपके नाम । हम
उ मीद है
नवे दका - उ मीद से और आप?
नवेदक इतनी बड़ी उ मीद से नह ।ं हम आपसे उ मीद है ।
नवे दका - हमसे? ये कैसे संभव है?
नवेदक - आप इसी तरह हलती रह , तो दशक क यह शाम, जो हमने
उनके ह नाम कर द ..है..हो जाएगी ना
नवे दका - हराम । तो दशक माफ क िजए-दशक
नवेदक - दशक ....दशक
नवे दका - हाँ-हाँ हम भी जानते ह-जैसे, दशक कहते ह, जैसे फश को कहते
ह,
- उसी तरह दशक कहते ह-जो आदश का.. वो या कहते है ना
209
कु छ लगता है ।
नवेदक - मा क िजए । ये आज कुछ.... खैर छो ड़ये.....
- मु झे एक शेर याद आ रहा है - अज कया है.....
नवे दका - शेर अज भी दे ता है? हमने तो सु ना है क शेर.....
नवेदक - शेर सु नाने से पहले ऐसे ह कहते ह....
नवे दका - कौन कहते ह?
नवेदक - शायर..... या न जो शायर करते ह ।
नवे दका - तु ह कैसे पता? तु म शायर तो हो ह नह ं सकते.....
नवेदक - (गु से म) कसी और के शेर तो पढ़ कर सु ना ह सकता हू?ँ
नवे दका - अ छा । अब समझी । आप चोर भी करते ह ।
नवेदक - ये चोर नह ं कहलाती ।
नवे दका - अ छा! सीनाजोर कहलाती है?
नवेदक - (झु ंझलाकर).... कस उ लू के प े ने आपको यहाँ बुलाया है ?
नवे दका - म या जानू..ं ? वैसे ो यूसर क पी.ए. का फोन आया था-
नवेदक - बुलाओ उस ो यूसर को......?
नवे दका - म य बुलाऊं? तु म बुलाने जाओ....
नवेदक - F.M. Please, Producer को यहाँ बुलाईये । ये लड़क सारा
ो ाम चौपट कए जा रह है ।
F.M. - ओ.के. सर
नवेदक - जब तक ो यूसर नह ं आते आप ऐसा कर (दशक क ओर दे खते
हु ए) आप यह सीन दे ख ल..... ....Cut....
210
''फरसा''
5. दोन तरफ भस क कतार
-
कु छ खू बसू रत लड़ कयाँ
बैठ , लेट व भ न मु ाओं
म- बाल खु ले और बखरे
हु ए ...
6. एम.डी. का वेश
यमराज म. एम.डी. बादल के गरजने
आजकल क आवाज और
अपनी यूट बज लय के
ठ क तरह से कड़कड़ाने क
नह ं दे रहे ह । आवाज आँधी और
तू फान का भाव
एम.डी. ( सर झुकाये
खड़े ह ।)
यमराज कहाँ रहे इतने
दन.... या
''शो कॉज'
नो टस जार
करना पड़ेगा ।
दो मह ने से
एक भी केस
अ व
ू ल करके
नह ं भेजा....।
एम.डी. - सर. कैसे
करता । हसाब
रखते-रखते
सारा टाफ
बीमार हो गया
सर.. उफ्
हद होती है
पैदा करने क
भी! एक-एक
के तेरा-तेरा
मु झे तो लगता
211
है सर,
लोग मरने से
इंकार न कर दे
.... भारत का
एक क सा हो
तो बयान
कर-वहाँ तो
सारा ह
गड़बड़झाला है
। जा त, धरम
और पता नह ं
कस कस के
नाम पर पैदा
कए जा रहे
ह....
212
शा मल नह ं हो सकते
सर... वे दौड़ जाते ह
ओलि पक और
हमारा वाहन उसके
सामने या बीन और
या अ शर...
यमराज - ओह येस It is very
serious Matter
हम अपना वाहन तो
change नह ं कर
सकते य क, भैसा
हमारा रा य पशु है
। कतने ह थोर – थोर
पु ष ने हमारे इस
रा य पशु को अपने
आचरण म शा मल
कर लया है । कतने
ह नेताओं के च र
तीक म कतई अ तर
दखाई नह ं दे ता ।
एम.डी. – You are right
sir….
यमराज - हं ेड एंड वन
परस टे ज क बात
बोला ... तुम ऐसा
करो अपना भेष बदल
कर धरती के घर म
घुसपैठ करो ... कोई
तु ह पहचानेगा भी
नह ं और भाग भी नह ं
सकेगा ।
एम.डी. – ओ.के. सर, थ यू...
यमराज - यू केन गो नाऊ .....!
(एम.डी. का थान)
यमराज - दरबार क कायवाह
जार रहे गी । संगीत
213
एक और दूत ताल
बजता है
(नाचने वाल लड़ कय का वेश । व श ट मु ाओं वाला नृ य – दशन)
…Cut…
सीन - नं. 1
अ.न. य
214
12.10 सारांश
इस इकाई म हमने पटकथा का अथ, उसक प रभाषा, आलेख के कार, पटकथा लखने क
तकनीक, पटकथा लखने का ा प, नमू ने क पटकथाओं के मा यम से वषय- व लेषण,
नदशक का आलेख आ द का अ ययन कया है । साथ ह पटकथा के इ तहास के मा यम
से लोक जीवन म च लत लोक वधाओं का भी व लेषण कया हे ।
इस इकाई के अ ययन के प चात ् आप भी 'पटकथा' लेखन म कौश य ा त कर सकते ह।
बोध न- 1
1. आले ख कतने कार के होते ह ?
...................................................................................................
...................................................................................................
2. समाचार के आले ख और वृ त च के आले ख म या अ तर है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
3. ' पटकथा ' का या ता पय है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
4. ' पटकथा ' का लोकजीवन से या स ब ध है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
बोध न-2
1. कसी एक ' वृ त च ' क ' पटकथा ' लख ।
...................................................................................................
...................................................................................................
2. कसी भी कहानी के कसी एक ' य ' को ' पटकथा ' के ा प के अनु सार तु त कर।
...................................................................................................
...................................................................................................
3. टे ल फ म क ' पटकथा ' के साथ कौन-कौन सी सू चयाँ सं ल क जाती ह ?
...................................................................................................
...................................................................................................
4. ' मे क अप ' कतने कार का होता है ? सोदाहरण प ट कर ।
...................................................................................................
...................................................................................................
बोध न- 3
1. नाटक य आले ख को तु त करते समय कन- कन बात का यान रखा जाता है ।
215
...................................................................................................
.................................................................... ...............................
2. ' टे ल वजन क भाषा के वल ' मौ खक ' नह ं होती । ' इस उ रण को प ट कर ।
...................................................................................................
................................................. ..................................................
3. न न श द के पू ण प लख – LS, MS, ECU, CU, b.g.
...................................................................................................
...................................................................................................
12.12 श दावल
वैसे तो अ धकांश श द के अथ ह द और अं ेजी म दये गये ह फर भी कुछ श द ऐसे
ह, िजनका व लेषण अ नवाय है –
1. ELS- Extreme Long shot
2. LS- Long Shot
3. ECU- Extreme Close-up
4. MS- Medium Shot
5. Panning L to R- Panning Left to Right
Or R to L- Right to Left
6. CU- Close up
7. b.g.- Background
8. f.g.- Foreground
9. F.M.- Floor Manager
12.14 अ यासाथ न
1. 'पटकथा' या है? पटकथा का प रचय दे ते हु ए, इसक अ नवायता पर काश डाल ।
2. टे ल वजन म यु त होने वाले व भ न आलेख के कार तथा उनक लेखन प त का
व लेषण कर।
3. नदशक का आलेख और पटकथा म या अ तर होता है । सोदाहरण प ट कर ।
217
इकाई – 13
साइबर मी डया के लए लेखन
इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 साइबर मी डया के लए लेखन
13.3 साइबर लेखन क वशेषताएं
13.4 साइबर लेखन के कार
13.5 भारत म साइबर लेखन क ि थ त
13.6 भारत म साइबर लेखन का मह व एवं संभावनाएँ
13.7 सारांश
13.8 व-मू यांकन
13.9 श दावल
13.10 कुछ उपयोगी पु तक
13.11 अ यासाथ न
13.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप जान पाएंगे क -
साइबर मी डया के लए लेखन या और कैसा है?
साइबर लेखन क वशेषताएं या ह?
साइबर मी डया कतने कार का होता है?
भारत म साइबर लेखन क या ि थ त है?
भारत म इस कार के मा यम लेखन के वकास क या संभावनाएं ह?
13.1 तावना
पछल सद व भ न कार के संचार मा यम क ईजाद क सद रह है । यह वजह है क
लेखन और संभाषण के िजतने कार लोग ने पछल सद म सीखे उतने इससे पहले कभी
नह ं सीखे । मौ खक और ल खत अ भ यि तय का श ण ल बे समय से होता आ रहा
था ले कन पछल सद म रे डयो, फ म, टे ल वजन और इंटरनेट जैसे मा यम के सतत ्
वकास क वजह से इ ह ं दो ाथ मक अ भ यि तय के व भ न कार का वकास हु आ
और लोग को उनम बाकायदा श ण लेना पड़ा । इस इकाई म हम साइबर मा यम के लए
लेखन के कार क व भ न वशेषताओं और कार का व लेषण करगे और उ ह सीखने
का यास करगे ।
218
13.2 साइबर मी डया के लए लेखन
क यूटर, दूरसंचार और सेटेलाइट के संबं होने से साइबर मी डया अि त व म आया । साइबर
मी डया क वाहक ौ यो गक इंटरनेट है िजसके मा यम से दु नयाभर म संपक कया जा
सकता है और तमाम तरह क जानका रयां हा सल क जा सकती ह ।
सावज नक साइबर कैफे जैसे थान पर बैठे-बैठै व वभर क सू चनाएं ा त कर सकते ह या
व व म कह ं भी बैठे अपने म और र तेदार से संपक कर सकते ह । इंटरनेट पहले केवल
लखी हु ई भाषा के पाठ पर आधा रत था । आज तेजी से बदलते हु ए प र य म व व यापी
संजाल (World Wide Web - www) कहलाता है जो ल खत पाठ के अ त र त य,
व नयाँ और चल च या ए नमेशन के मा यम से सूचनाओं के सारण का एक सश त मा यम
बन गया है । व व म अनेक छोटे -बड़े संगठन क अपनी वेबसाइट होती है और इनम उनके
बारे म तमाम तरह क जानकार और आलेख होते ह । इसके अलावा साइबर लेखन कसी
एक यि त का लखा हु आ लॉग भी हो सकता है, कसी व ापन एजसी का वेब पर दया
गया व ापन भी हो सकता है और कसी समाचारप का ऑन लाइन सं करण भी हो सकता
है । उन सभी कार के लेखन क अपनी वशेषताएं ह िजनक चचा हम इस इकाई म आगे
करगे ।
219
इसी बीच व भ न मा यम के क वजस क वजह से वेब आधा रत संचार के कु छ नए आयाम
भी उभर कर आए िजनम वेब रे डयो और वेब टे ल वजन मुख ह । इस कार कइ वेब सारण
म भाषा के नए आयाम खोजने क आव यकता नह ं है, य क वह तो पारं प रक रे डयो या
टे ल वजन के ह व तार ह ।
वेब के लये या साइबर लेखन क वशेषताएं यह ह क पहले तो इसम कसी भी समाचार
को सफ शीषक और सं त प से दया जा सकता है और लंक के मा यम से पूरे समाचार
को पढ़ा जा सकता है । इस लए सं ेप म समाचार लखने क कला साइबर लेखन के लए
सबसे मह वपूण है । जैसा क पहले बताया गया है साइबर मी डया एक म ट मी डया है िजसम
व न, च ा फ स आ द सभी का योग होता है । साइबर लेखन को भावशाल बनाने
के लए इस म ट मी डया पैकेज म सभी त व क समझ होनी चा हए । यह भी यान रखना
ज र है क इस लेखन को दु नया भर म कोई कसी भी समय पढ़ता है- इसे पढ़ने, दे खने
या सु नने वाल का कोई नधा रत समूह नह ं होता । इस ि ट से भी लेखन शैल को ढालना
होता है ।
220
लेते ह । अत: वेब पेज क संक पना करने वाले को इस बात का भी यान रखना पड़ता है
क उसका पेज पाठक के कं यूटर म ज द से ज द तु त हो सके अथात ् डाउन लोड को
सके ।
वेब पेज वेब साइट का एक ह सा मा होता है । सामा य तौर पर लोग वेब पर साम ी दे ने
के लए एक आध पेज बनाते ह ले कन य द साम ी बहु त अ धक है तो उ ह एक पूर वेब
साइट बनानी पड़ती है िजसम अनेक वेब पेज होते ह । ऐसी ि थ त म सभी पेज हाइपर लंक
क मदद से एक
दूसरे से जोड़ दए जाते ह । हाइपर लंक का इ तेमाल करके दो व भ न वेबसाइट के पृ ठ
को भी एक दूसरे से जोड़ा जा सकता है । वेब पर द जाने वाल साम ी जब एक सीमा से
अ धक हो जाती है तो हम वेब पोटल बनाने क क पना करने लगते ह ।
221
हालां क हमारे दे श म अभी क यूटर और इंटरनेट का सार सी मत है , पर इसका तेजी से
व तार हो रहा है
। छोटे -छोटे
नगर -क ब म
साइबर कैफे खुल
रहे ह और इसके
उपभो ताओं क
सं या बढ़ रह है
। समाचारप
सं थान ने अपने
अखबार नेट पर
डालने आरंभ कए
ह और वशेष कर
िजस तरह
बु जी वय ने लॉग अपना कर साइबर लेखन आरंभ कया है वह उस बात का योतक है
क आने वाले दन म जैस-े जैसे इंटरनेट क सु वधा आम लोग तक पहु ँ चेगी वैस-वै
े से साइबर
लेखन का मह व बढ़े गा और उसक पहु ँच भी व तृत होगी ।
साइबर लेखन क संभावना भी उसके सार क तरह अनंत ह । वेबसाइट से लेकर ई-पु तक
तक अनेक व प म यह लोग को उपल ध होगा । िजस तरह डाकघर आ त च य क
जगह दन - दन ई-मेल का योग बढ़ रहा है उसी तरह आने वाले दन म साइबर लेखन का
योग भी बढ़े गा ।
13.7 सारांश
प ट है क साइबर लेखन ने अपने को एक वतं लेखन वधा क तरह था पत कर लया
है और इसके व प एवं चार- सार म दन - दन नए योग, नई तकनीक और नए क य
क संभावनाएं बढ़ रह ह । े डंग, ई-मेल, ई-पु तक , वेब अखबार, लॉग और यहाँ तक क
एस.एम.एस. भी साइबर लेखन के व भ न कार ह ।
भारत म इस कार का लेखन आरं भक दन म केवल अं ेजी तक सी मत रहा ले कन बाद
के दन म जैस-े जैसे भारतीय भाषाओं का सम वयन इंटरनेट म हु आ है वैसे-वैसे साइबर
काशन म भारतीय भाषाओं क ह से दार भी बढ़ है । भारत सरकार क ई- शासन क
नी तय ने भी साइबर लेखन को बढ़ावा दया है । ई- श ा, ई- वा य एवं ई-कृ ष क भी
यह माँग है क अ धका धक लोग साइबर लेखन को अपनाएं एवं नेट पर अ धका धक साम ी
उपल ध हो सके ।
बोध न-
1. साइबर या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
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2. वे ब साइट या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
3. लॉग या है ?
...................................................................................................
. ...................................................................................................
13.8 व मू यांकन
इस इकाई को पढ़ कर आप ने जाना होगा क साइबर मा यम के लए कस कार का लेखन
कया जा रहा है । इस वषय के बारे म अपना ान और अ धक बढ़ाने के लए आपको चा हए
क आप इंटरनेट पर जाकर उस कार क िजनक अ धक वेब साइट दे ख ता क आपको य
ान ा त हो क इंटरनेट पर कस कार का लेखन कया जा रहा है । आप ने इस इकाई
से या कु छ सीखा है यह जानने के लए एवं अपना मू यांकन वयं करने के लए आपको
सलाह द जाती है क इकाई के अंत म द गई पु तक को पढ़ने का यास क िजए एवं दए
न को यान से हल क िजए ।
13.9 श दावल
म ट मी डया ऐसा कं यूटर िजसम ल खत पाठ, य, य चल च एवं ए नमेशन
का योग कया जाता है।
एच.ट .ट .पी. हाइपर टे ट ांस मशन ोटोकॉल वह प त है िजससे वेब पृ ठ का
ेषण एवं ा त करना संभव होता है ।
एच.ट .एम.एल. हाइपर टे ट मेनटे नस ल वेज वह भाषा है िजसके मा यम से वेब
पर लखे जाने वाले पृ ठ के व भ न त व को समायोिजत कया
जा सकता है ।
हाइपर लंक कस वेब पृ ठ को अ य पृ ठ या अ य वेब साइट से जोड़ा जा सकता
है ।
जेपीजी डिजटल व प म च का संक लत एवं सा रत करने क एक
प त ।
टफ च एवं ए नमेशन के नेट पर डालने का एक वशेष फामट ।
िजफ यो ता के लए बनाया गया या मक इंटरफेस ।
लॉग वेब ला गंग अथात ् नधा रत वेब साइट पर जाकर पंजीकरण कराने
के प चात कया जाने वाला लेखन ।
ई-बुक डिजटल तर के से तैयार क गई पु तक िजसे इंटरनेट के अलावा
मोबाइल फोन या ई-बुक र डर आ द म पढ़ा जा सके ।
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13.10 कुछ उपयोगी पु तक
1. जगद श च वत (2003) साइबर मी डया जन ल म : इमिजग टे नोलॉजी, फायरवाल
मी डया, द रयागंज, नई द ल
2. कुट रोहर (1998) : माक टंग इन द साइबर एज, जे वल
3. हे रक डे नस, (2003) : मी डया मैनेजमट इन द एज ऑफ जाएंटस, लेकवेल पि ल शंग,
यूयॉक
4. Om Gupta and Ajay S. Jasra (2002) : Internet Journalism in India,
Kanishka Publisher, New Delhi
13.11 अ यासाथ न
1. वेब पेज के उ व और वकास पर एक सं त लेख ल खए ।
2. हाइपर टे ट भाषा और वेब पेज लेखन के संबध
ं का ववेचन क िजए।
3. भारत म साइबर मी डया लेखन के वकास और उसक उपयो गता क चचा क िजए ।
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