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पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कुलप त
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज थान)
संयोजक एवं सद य
संयोजक
डॉ. एच.बी. न दवाना 1. डॉ. संजीव भानावत
पु तकालय एवं सूचना व ान वभाग अ य , जनसंचार के
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा राज थान व व व यालय, जयपुर

सद य 2. ी राजे बोडा
3. ो. दे वेश कशोर 4. डॉ. रमे श च पाठ थानीय संपादक, दै नक भा कर
नदे शक (से. न.) वभागा य जयपुर
इले ॉ नक मी डया ोड शन सटर प का रता एवं जनसंचार वभाग 5. ी राजन महान
इि दरा गांधी रा य मु त लखनऊ व व व यालय, लखनऊ राज थान यू रो चीफ
व व व यालय नई द ल एन.डी.ट .वी. जयपुर
6. ो. रमे श जै न 7. डॉ. अ नल कुमार उपा याय 8. ी न द भार वाज
वभागा य (से. न.) वभागा य नदे शक
प का रता एवं जनसंचार वभाग प का रता एवं जनसंचार वभाग दूरदशन, जयपुर
वधमान महावीर खुला व व व यालय, महा मा गांधी काशी व यापीठ,
कोटा वाराणसी

संपादन एवं पाठ ले खन


संपादक  डॉ. रमे श अ वाल (4,5)
ो. सु भाष धू लया संयु त संपादक
वभागा य , एजु केशन रसच ए ड े नंग दै नक भा कर, जयपुर
इले ॉ नक मी डया ोड शन सटर  याम माथु र (6)
इि दरा गांधी रा य मु त व व व यालय , नई द ल समाचार संपादक
पाठ ले खक राज थान प का जयपुर

 ो. रमे श जै न (1,7,8)  सु भाष से तया (9,10,11)


वभागा य (से. न.), प का रता एवं जनसंचार वभाग अपर महा नदे शक (समाचार) (से. न.), समाचार सेवा भाग
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा आकाशवाणी, नई द ल
 डॉ. राजे श यास (2)  डॉ. सी.के. वरठे (12)
सूचना एवं जनस पक अ धकार सहायक क नदे शक
राज थान सरकार, जयपुर दूरदशन, जयपुर
 डॉ. व णु पंकज (3)  ो. हे म त जोशी (13)
धान संपादक ह द वभाग
अ णी संदेश, जयपुर जा मया म लया इसला मया व व व यालय , नई द ल

अकाद मक एवं शास नक यव था


ो. नरे श दाधीच ो. एम..के . घड़ो लया योगे गोयल
कु लप त नदे शक भार
वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा संकाय वभाग, पा य साम ी उ पादन एवं वतरण वभाग

पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

पु नः उ पादन – अ ैल 2011 ISBN No : 13/978-81-8496-275-8


इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु. व., कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या
अ य पुनः तुत करने क अनु म त नह ं है ।व. म. खु. व., कोटा के लये कु लस चव व. म. खु. व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत।

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JM/BJ-04
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज थान)

मी डया लेखन

इकाई सं इकाई का नाम पृ ठ सं या


इकाई - 1 समाचार : अवधारणा एवं लेखन तकनीक 8
इकाई - 2 संवाददाता, समाचार ोत एवं संकलन 33
इकाई - 3 सा ा कार 53
इकाई - 4 समाचार का वग करण – (भाग – 1) 73
इकाई - 5 समाचार का वग करण – (भाग – 2) 86
इकाई - 6 त भ लेखन 98
इकाई - 7 फ चर लेखन 114
इकाई - 8 समी ा लेखन 136
इकाई - 9 रे डयो समाचार लेखन 152
इकाई – 10 रे डयो लेखन के स ा त 167
इकाई – 11 टे ल वजन समाचार लेखन 184
इकाई – 12 टे ल वजन के लए पटकथा लेखन 201
इकाई – 13 साइबर मी डया के लए लेखन 218

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पा य म प रचय
बी. जे. (एम. सी.) काय म का चौथा पा य म 'मी डया लेखन' है । इस पा य म म 13 इकाइय
को शा मल कया गया है, इनका प रचय न नानुसार है :
इकाई-1 समाचार अवधारणा एवं लेखन तकनीक - इस इकाई म समाचार क अवधारणा, प रभाषा,
त व, कार एवं मह व से अवगत करवाया गया है साथ ह समाचार के ोत एवं
वग करण, समाचार लेखन तकनीक, समाचार लेखन के मह वपूण त व एवं समाचार
लेखन के पाँच सकार पर भी काश डाला गया है ।
इकाई - 2 संवाददाता, समाचार ोत एवं संकलन - इस इकाई म संवाददाता से आशय, संवाददाताओं
क े णयाँ एवं काय वभाजन, समाचार के ोत एवं समाचार संकलन क व तार से
चचा क गई है साथ ह समाचार लेखन एवं तु तीकरण एवं समाचार का अनुवतन क
भी जानकार द गई है ।
इकाई - 3 सा ा कार - इस इकाई म सा ा कार का अथ एवं व प, सा ा कार और अ य वधाएं,
उपयो गता एवं मह व क व तार से जानकार द गई है साथ ह इले ा नक एवं टं
मी डया म सा ा कार कैसे लेते ह? इस संदभ म भी काश डाला गया है । सा ा कार
या को व तार से रे खां कत कया गया है ।
इकाई - 4 समाचार का वग करण- ( भाग 1 ) - इस इकाई म समाचार का व प, त व, कार
एवं वग करण पर काश डाला गया है । वषय व तु के आधार पर, कृ त के आधार
पर, या या के आधार पर एवं रपो टग व धक के आधार पर समाचार के वग करण
पर व तार से चचा क गई है ।
इकाई - 5 समाचार का वग करण- (भाग 2 ) - इस इकाई म घटना के मह व के आधार पर, े
के आधार पर एवं वषय अथवा बीट के आधार पर समाचार के वग करण क व तृत
जानकार द गई है ।
इकाई - 6 तंभ लेखन - इस इकाई म तंभ लेखन का मह व, तंभ एवं समाचार, तंभ लेखन
के वषय, तंभ लेखन क कृ त के साथ इंटरनेट पर तंभ लेखन, भावी तंभ लेखन
को भी चचा क गई है ।
इकाई - 7 फ चर लेखन - इस इकाई म फ चर लेखन या है? फ चर क वशेषताएं एवं मूल व प
क जानकार द गई है । फ चर लेखक क यो यताएं, फ चर लेखन क तैयार , शीषक,
भू मका एवं च ांकन एवं व भ न वधाओं से तु लना क भी जानकार द गयी है ।
इकाई - 8 समी ा लेखन - इस इकाई म समी ा के अथ एवं व प, समी ा कैसे करे ? समी ा
लेखन के कार और मी डया म समी ा लेखन क व तृत जानकार द गई है ।
इकाई - 9 रे डयो समाचार लेखन - इस इकाई म समाचार क प रभाषा, रे डयो समाचार या ा,
आकाशवाणी का समाचार तं एवं समाचार के ोत से अवगत करवाया गया है साथ
ह रे डयो समाचार का लेखन व संपादन, रे डयो समाचार क भाषा पर भी काश डाला
गया है ।
इकाई - 10 रे डयो लेखन के स ांत - इस इकाई म रे डयो लेखन के स ांत, रे डयो लेखन क सीमाएं
और संभावनाएं एवं रे डयो लेखन के व भ न आयाम क चचा क गई है साथ ह संगीत

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के लए लेखन एवं उ घोषणाओं पर भी काश डाला गया है ।
इकाई - 11 टे ल वजन समाचार लेखन - इस इकाई म भारत म टे ल वजन समाचार का इ तहास,
मह व एवं लेखन पर व तृत जानकार द गई है । टे ल वजन समाचार बुले टन एवं
टे ल वजन समाचार के या मक त व से भी अवगत करवाया गया है ।
इकाई - 12 टे ल वजन के लए पटकथा लेखन - इस इकाई म पटकथा का अथ, इ तहास, प रभाषा,
आलेख के कार, पटकथा लखने का ाराप आ द क चचा क गई है साथ ह नमू ने
क पटकथाय एवं नदशक के आलेख क भी जानकार द गई है ।
इकाई - 13 साइबर मी डया के लये लेखन - इस इकाई म साइबर मी डया के लए लेखन, साइबर
लेखन क वशेषताएं, साइबर लेखन के कार, भारत म साइबर लेखन क ि थ त एवं
भारत म साइबर लेखन के मह व एवं संभावनाओं पर व तृत जानकार द गई है ।

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इकाई-1
समाचार : अवधारणा एवं लेखन तकनीक
इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 समाचार का व प
1.2.1 समाचार क अवधारणा एवं प रभाषा
1.2.2 समाचार के त व
1.2.3 समाचार के कार
1.3 समाचार का मह व
1.3.1 समाचार का घटना- थल और दूर
1.3.2 यि त का मह व
1.3.3 मानवीय च
1.4 समाचार के ोत एवं वग करण
1.4.1 या शत समाचार
1.4.2 अ या शत समाचार
1.4.3 पूवानुमा नत समाचार
1.5 समाचार लेखन तकनीक
1.5.1 समाचार का गठन - छ: ककार
1.5.2 वलोम परा मड शैल
1.5.3 ऊ व परा मड शैल
1.5.4 समाचार लेखन क नई शैल
1.5.5 शीषक
1.5.6 व तार
1.5.7 समापन
1.6 समाचार लेखन के मह वपूण त व
1.7 समाचार लेखन के पाँच सकार
1.8 सारांश
1.9 श दावल
1.10 कु छ उपयोगी पु तक
1.11 अ यासाथ न

1.0 उ े य
इस पाठ का उ े य समाचार क अवधारणा एवं लेखन तकनीक के बारे म जानकार दे ना है
। समाचार या है? एक समाचारप के लए समाचार कैसे एक त कए जाते ह? समाचार
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का मह व, समाचार लेखन क तकनीक, मह वपूण त व और पाँच सकार के बारे म व तार
से इस इकाई म बताया गया है । इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप जान पाएंगे क-
 समाचार या है - यह प ट प से समझ सकगे ।
 समाचार श द को कैसे प रभा षत कया जा सकता है, यह जान सकगे ।
 िजन-िजन ोत से समाचार ा त कए जा सकते ह, उनसे अवगत हो सकगे ।
 समाचार के मह व, समाचार क संरचना, समाचार लेखन क तकनीक, समाचार लेखन
के मह वपूण त व और पाँच सकार से प र चत हो जाएंगे ।
 आप समाचार लेखन म व श टता ा त कर सकगे ।

1.1 तावना
‘समाचार क अवधारणा एवं लेखन तकनीक’ का मी डया म मह वपूण थान है , चाहे संवाददाता
हो या उपसंपादक उसे समाचार को अवधारणा और उसक तकनीक से अ छ तरह प र चत
होना आव यक है । भारत म हाल ह के वष म एक तरह क मी डया ां त आई है और
समाचार मा यम का भी यापक व तार हु आ है । हमारे दे श के वशाल और वकासशील
समाज म आज मी डया के येक े का व तार हो रहा है । प -प काओं के पाठक क
सं या लगातार बढ़ रह है, रे डयो और ट वी चैनल क सं या भी नरंतर बढ़ती जा रह है
। ले कन आज भी मी डया म और खास तौर से समाचार मी डया म अनेक गंभीर मु को
सतह और ना समझी के साथ तु त कया जाता है । अनेक अवसर पर समाचार को
अनाव यक प से ‘रोचक’ और 'मनोरं जक' बनाने क को शश क जाती है ।

ो. सुभाष धू लया एवं डी. आनंद धान के श द म कहा जा सकता है क “दरअसल, समाचार
और मनोरं जन के नींव क वभाजन रे खा के ख म होने के कारण पेज वन और पेज ी (पेज
वन मह वपूण समाचार और पेज ी मनोरं जन क प का रता) एक-दूसरे से ग डम ड होते
जा रहे ह । इसके कारण समाचार मा यम क ाथ मकताएँ भी बदलती जा रह ह। यह नह ,ं
इसके साथ ह समाचार क प रभाषा भी बदल द गई है । अब समाचार के के म आम
आदमी और उसके सु ख-दुख , सरोकार, चंताएँ और उ मीद उतनी नह ं है, बि क कभी-कभी
तो सेल ट
े ज भी समाचार के पयाय तीत होते ह । समाचार य घटनाओं क प रभाषा म ह
बदलाव आ रहा है । इस प क तरफ भी यान दए जाने क ज रत है क कन वषय
पर लोग को ज रत से अ धक जानका रयाँ द जाती ह और कन वषय के बारे म उ ह अंधेरे
म रखा जाता है ।'' समाचार अवधारणा और लेखन कया को तु त इकाई म व तार से
ववे चत कया गया है ।

1.2 समाचार का व प
‘समाचार' क कोई यापक प से वीकाय प रभाषा आज तक नह ं उभर पाई है । समाचारप
म जानकार , बात और अफवाह क भरमार होती है । ले कन हर जानकार , हर बात और
हर अफवाह समाचार नह ं होती । तब न उठता है क समाचार या है? उसक प रभाषा
या है? उसक संरचना कैसे हु ई? उसके मु य त व या ह? इन न का उ तर अनेक

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व वान ने दया है । अं ेजी म समाचार को ' यूज' (NEWS) कहते ह । इस श द के चार
अ र होते ह- एन. ई. ड लू. एस. । इन अ र से चार दशाओं - उ तर (नोथ), पूव (ई ट),
पि चम (वे ट) और द ण (साउथ) का बोध होता है । अत: यह कहा जा सकता है क जो
चार दशाओं का बोध कराए, वह समाचार है । स भवत: इसी ि ट से हेडन के कोश म समाचार
क प रभाषा सब दशाओं क घटना द गई है । उ तर, पूव , पि चम और द ण क घटनाओं
को समाचार समझना चा हए ।
अं ेजी का ' यू ले टन' के 'नौवा' सं कृ त के 'नव’ श द पर आधा रत है । इन तीन श द
का एक ह अथ है 'नवीन' । वा तव म समाचार तो वह है, जो नवीन है । महाक व जयशंकर
साद ने ठ क ह कहा है - '' कृ त के यौवन का शृंगार करगे , कभी न बासी फूल ।'' जैसे
कोई बासी फूल को पस द नह ं करता उसी कार कोई भी पाठक बासी समाचार को पढ़ना
चकर नह ं समझता । स य तो यह है क समाचार का शव व उसक नवीनता म है । कहा
जा सकता है क जो न य नूतन हो, वह समाचार है । इस तरह हम कह सकते ह क पहला
तो नई सूचना समाचार भी आव यक शत है और दूसरा कसी वषय को एक नई ि ट म
दखना भी समाचार क ेणी म आता है ।
'समाचार वह है, िजसे तु त करने म कसी बु मान (समाचारप के) यि त को सबसे
अ धक स तोष हो और जो ऐसा तु त करते समय कता को अ धक लाभ तो न होता हो,
पर तु िजसके संपादन से ह उसक यावसा यक कुशलता का पूरा-पूरा पता चलता हो । संपादक
क इस मता क सबसे बड़ी कसौट अ प टताओं और दु हताओं क ओट म छपे मह वपूण
त य को इस ढं ग से तुत करना है क उन त य को इस दु नया के वे लोग समझ जाएँ ,
िजनम अ ानता, लापरवाह और मू खता ह भर है तथा वचार के संघष के त च का
अभाव है । '

1.2.1 समाचार क अवधारणा एवं प रभाषा

समाचार क कु छ मह वपूण और रोचक प रभाषाएँ इस कार ह -


“पया त सं या म मनु य िजसे जानना चाहे वह समाचार है , शत यह है क वह सु च तथा
त ठा के नयम का उ लंघन न करे ।'' – जे.जे. सडलर
“कोई भी ऐसी घटना िजसम, 'मनु य ' क दलच पी हो, समाचार है ।''
''पाठक िजससे जानना चाहते ह, वह समाचार है ।''
“समाचार सामा यत: वह उ तेजक सूचना है , िजसम कोई यि त संतोष अथवा उ तेजना ा त
करता है ।'' - ो. च टन बुश
अनेक यि तय क अ भ च िजस साम यक बात म होती है, वह समाचार है । सव े ठ
समाचार वह है, िजसम बहु सं यक लोग क अ धकतम च हो ।
- ो. व लयम जी. लेयर

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'' े ठ समाचार क प रभाषा य य प यह है, तथा प साधारण यवहार म समाचार वे ह, जो
अखबार म छपते ह और अखबार वे ह, िज ह समाचारप म काम करने वाले तैयार करते
ह । यह कथन य य प वेदनामू लक है तथा प कटु यं य होते हु ए भी स य है ।''
- जोरा ड ड लू जॉनसन
“िजसे अ छा संपादक का शत करना चाहे, वह समाचार है ।”
“समाचार घटना का ववरण है । घटना वयं म समाचार नह ं ।”
“घटनाओं, त य और वचार क साम यक रपोट समाचार है, िजसम पया त लोग क च
हो ।'' - व लयम एल. रवस
“वह स य घटना या वचार, िजसम बहु सं यक पाठक क अ भ च हो ।''
- एम.लाइल पसर
“उन मह वपूण घटनाओं क िजनम जनता क दलच पी हो, पहल रपोट को समाचार कह
सकते ह ।” - इर सी. हापवुड
“ कसी समय होने वाल उन मह वपूण घटनाओं के सह और प पातर हत ववरण को, िजनम
उस समाचारप के पाठक क अ भ च हो, हम समाचार कह सकते ह ।''
- व लयम एस. मा सबाई
“समाचार अ त ग तशील सा ह य है । समाचार समय के चरखे पर इ तहास के बहु रं गे
बेल-बूटेदार कपड़े को बुनने वाले तकु ए ह ।”
- हापर ल च और जॉन सी. कैरोल
“समाचारप का मौ लक क चा माल न कागज है, न याह । वह है समाचार । फर चाहे
का शत साम ी ठोस संवाद के प म हो या लेख के प म, सबके मू ल म वह त व रहता
है, िजसे हम समाचार कहते ह ।”
- डी. न द कशोर खा
अब व व तेजी से बदल रहा है । मी डया म नई पर पराएँ था पत हो रह ह । समाचार
के बारे म भी मा यताएँ बदल गई ह ।
एक व वान ् ने समाचार क बड़ी ग भीर प रभाषा क है - 'िजसे कह ं कोई दबाना चाह रहा
हो समाचार है, शेष सब व ापन ।'
ेमनाथ चतु वद ने समाचार क या या करते हु ए लखा है – “'सू खे त य को समाचार नह ं
माना जाता । वे त य ह समाचार ह जो पाठक के जीवन, सु ख-दुःख, भावना और वचार
पर भाव डालते, उसे चकर तीत होते और आन द दे ते ह ।”
के.पी. नारायण ने समाचार के सृजन म स य को मह वपूण त व माना है । उनक मा यता
है िजन त व से समाचार बनता है, उनम सबसे मह वपूण त व है - स य का त व ।
साम यकता मू यवान होती है, क तु स य उससे भी अ धक मू यवान होता है ।

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टे न के स समाचारप 'मानचे टर गा डयन' ने एक बार ‘समाचार क प रभाषा या है’
इस पर एक तयो गता कराई थी, िजसम सव तम प रभाषा जो पुर कृ त क गई, वह इस
कार थी – “समाचार कसी अनोखी या असाधारण
घटना क अ वल ब सूचना को कहते ह, िजसके बारे म लोग ाय: पहले कुछ न जानते ह ,
ले कन िजसे तुर त ह जानने क यादा से यादा लोग म च हो ।”
एक बार कसी प कार ने समाचार क या या करते हु ए कहा क 'बुराई म समाचार है ।‘
आप ईमानदार से काम करते ह, इसम समाचार व कु छ नह ं है, पर य द चोर करते हु ए पकड़े
जाएँ तो वह समाचार हो जाएगा । प कार के कहने का अथ यह था क बुराई म कु छ न कुछ
असाधारणता, कु छ नवीनता, कु छ सनसनी और लोग के लए कु छ कु तूहल रहता है, अत:
उसका समाचार क ि ट से मू य है । उपयु त प रभाषाओं के अ त र त अनेक व वान
ने समाचार को प रभा षत कया है, िजसम से कुछ उ लेखनीय ह-
“िजस कसी बात को संपादक कहते ह वह समाचार होता है ।”
“ वचार र हत त य भी समाचार है ।”
“समाचार का अथ आगे बढ़ना, चलना, अ छा आचरण या यवहार है । म य और परवत
काल म कसी काय या यापार क सू चना को समाचार मानते थे । ऐसी ताजी या हाल क
घटना क सूचना, िजनके स ब ध म पहले लोग क जानकार न हो ।”
- मानक ह द कोश (रामच वमा)
''दु नया म कह ं भी कसी समय कोई छोट -मोट घटना या प रवतन हो उसका श द म जो
वणन होगा, उसे समाचार या खबर कहते ह ।”
- रा. र. खा डलकर
“घटना समाचार नह ं है, बि क वह घटना का ववरण है, िजसे उसके लए लखा जाता है,
िज ह ने उसे दे खा नह ं है ।” - मै सफ ड
“जो सा रत अथवा समाचारप म मु त होता है वह समाचार होता है ।”
संवाद, खबर, वृता त , ववरण और सूचना समाचार के पयाय ह । अमरकोश म वाता, वृि त ,
वृि त तथा ‘उद त’ चार श द समाचार के लए यु त हु ए ह । इन सभी श द से कसी
घटना क पूर जानकार दे ने का भाव प ट होता है ।
“समाचार कसी घटना, प रि थ त, ि थ त या प क सह और साम यक सूचना है - ऐसी
सू चना, िजसम उन लोग को, िजनके लए वह अ भ ेत हो, दलच पी होगी ।”
- डाउ लंग लेदरवुड
“समाचार ‘सामा य से परे ’ कोई भी बात है और समाचार ह एक ऐसी बात है, जो समाचारप
क वशाल सं या को बेचने म सहायता कर सकती है ।”
- नाथि लफ
“समाचार कसी भी घटना का ऐसा ववरण है, िजसे एक समाचारप केवल इस लए मु त
करता है ता क वह लाभ कमा सके ।” - क टस डी. मे डेगेल

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“समाचार कसी वतमान वचार, घटना या ववाद का ऐसा ववरण है, जो उपभो ताओं को
आक षत करे ।” - वूल ले और कै पवेल
News is anything you did not know yesterday. - Turner Calledge
‘Anything timely that interests a number of persons and the best news
is that which has greatest interest for the greatest numbers.’
- Willard Bleyer
News is history in a hurry. - George H. Morris
It is the honest and unbiased and complete account of events of
interest and concern to the public. - Duane Bradley
News is anything out of the ordinary.
‘News is something revealed.’
‘News is something which somebody wants suppressed.’
‘News is any event, idea or opinion that is timely, that interests or
affects a large number of people in a community and that is capable
of being understood by them.’
‘News is a compilation of facts and events of current interest or
importance to the readers of the Newspaper printing it.’
‘Sex money, crime - that is news.’
’News is anything and everything interesting about life and materials
all their manifestation.’
‘What is new in News?’
इन सभी प रभाषाओं से यह न कष नकलता है क स य, साम यक और बहु सं यक यि तय
क िजसम च हो, वह सू चना 'समाचार' है ।

1.2.2 समाचार के त व

जो घटना या व तु एकाएक हमारा यान आक षत कर लेती है उसम समाचार का बु नयाद


त व मौजू द होता है, ऐसी मा यता है । इनके अ त र त न न त व का कसी भी समाचार
को मह व दे ने म वशेष योगदान रहता है - 1. ता का लकता, 2. नकटता, 3. आकार एवं
सं या, 4. मह व, और 5. व च ता ।
समाचार क आधु नक और िजतनी भी प रभाषाएँ ह, इन सबका सार यह है क समाचार
को समाचार व दान करने वाले न न ल खत पाँच त व ह - 1. जानकार , 2. नवीनता, 3.
बहु सं यक क अ धकतम च, 4. उ तेजक सू चना और 5. प रवतन क सूचना ।
ेमनाथ चतु वद के श द म 'केवल शु क त य कभी समाचार नह ं कहलाते । पर तु जो त य
मानव के जीवन, भावना और वचार म भाव डालते ह, उसे चकर लगते ह, आन द दे ते

13
ह और आ दो लत करते ह, वे ह समाचार बनते ह । भावो े क करने वाले या अपने हत और
अ हत से स ब समाचार म मनु य क वशेष च होती है । इस लए ऐसे समाचार म आकषण
के मूल गुण न न माने ह- 1. नवीनता, 2. साम यकता, 3. सामी य, 4. व हत, 5. धन,
6. काम-वासना, 7. संघष और रोमानी, 8. असाधारणता, 9. वीर पूजा, 10. यश, 11. रह य,
12. मानवीय गुण का उ े क, 13. साहस और वीरता, 14. आ व कार और खोज, 15. कु कृ य,
16. ग त क कहानी, 17. नाटक यता, 18. व श टता ( यि त, थान और पद), 19.
प रणाम ( यापक और सघन), 20. सं कृ त, 21. व वास, 22. वा य, 23. सु र ा, 24.
बंधु व (अ तरा य, रा य, ादे शक, नगर य और जातीय) तथा 25. सामािजक और
आ थक प रवतन ।
डा. न द कशोर खा ने वे बात, जो अ धकांश पाठक को दलच प लगती ह, वे इस कार
मानी ह- 1. नवीनता, 2. असामा यता, 3. अनापे त भाव, 4. आ मीयता, 5. आकां ा, 6.
यि तगत भाव, 7. नकटता, 8. क णा और भय, 9. धन, 10. मानवीय प , 11 सहानुभू त
और 12. रह य ।
ो. सुभाष धू लया ने समाचार य मह व म िजन त व का उ लेख कया है वे ह - 1 नकटता,
2. आकार, 3. भाव, 4. उपभो ता वग, 5. संदभ, 6. नी तगत ढांचा, 7. मह वपूण
जानका रयाँ और 8. असाधारणता ।

1.2.3 समाचार के कार

वैसे तो समाचार के कार क नि चत प से पहचान करना मु ि कल है फर भी समाचार


मु य प से दो कार के होते ह -
1. सीधा समाचार (Straight News)
2. या या मक समाचार (Interpretative News)
सीधा समाचार उन समाचार को कहा जाता है, िजसम समाचार का सरल, प ट और सह
त या मक ववरण हो । इनम त य को य के य तु त कया जाता है, त य को
तोड़ा-मरोड़ा नह ं जाता है । या या मक समाचार म समाचार क घटना क गहर खोजबीन
क जाती है, उसे स पूण प से काश म लाया जाता है । इस समाचार म घटना क प रवेश,
पूवापर स ब ध तथा उसके वशेष प रणाम को लखा जाता है, िजससे पाठक सरलता से समझ
सके ।
घटना के मह व क ि ट से
घटना के मह व क ि ट से भी समाचार के दो प होते ह । वे इस कार ह –
1. व श ट समाचार
2. यापी समाचार
1. व श ट समाचार - वे ह, िजनके बारे म पहले से कुछ मालूम नह ं होता है । समाचार
जब घ टत हो जाते ह तो उनका अपना वशेष मह व और भाव होता है । समाचार
गरमागरम और अ यतन होते ह । व श ट समाचार अपने गुण के कारण पृ ठ पर मु य

14
थान हण करते ह । कभी-कभी तो वे इतने मह व के होते ह क कम मह व के
समाचार को बचाकर पृ ठ का व प ह बदल दे ना पड़ता है । पूव - नधा रत अ त मह व
के समाचार गौण प ले लेते ह ।
2. यापी समाचार - वह है, जो अपने मह व और भाव के कारण पृ ठ पर ऐसा थान
पाता है मानो सभी पर आ छा दत हो । उसका व तार भी बड़ा हो सकता है । यह भी
संभव है क यापी समाचार के खंडन के लए अ य समाचार भी उसके अनुगामी का थान
हण करते ह । यापी समाचार को थान भी वशेष मलता है और उसका शीषक भी
अ धक आकषक होता है । इस कार के समाचार अपने म पूण होते ह ।

े अथवा थान के आधार पर

थूल प से े अथवा थान के आधार पर समाचार को चार भाग म वभ त कया जा


सकता है-
1. थानीय समाचार - वे समाचार, जो उस थान से वशेष प से संब ह , जहाँ से समाचारप
का शत होता है ।
2. ांतीय समाचार - िजस ांत से समाचारप का शत होता है, उस थान के समाचार ।
3. अंतदशीय समाचार - दे श के सभी दे श से संब समाचार ।
4. अंतरा य समाचार- व व के अनेक दे श से संब समाचार ।
उपयु त समाचार म येक वग के अ तगत न न कार के समाचार को सि म लत कया जा सकता
है -
1. भाषण, व त य और स
े व ि त
2. असामािजक त व क ग त व धयाँ
3. अदालती ग त व धयाँ
4. आ थक अपराध
5. अशां त, उप व और तोड़-फोड़
6. प रवहन तथा माग दुघटनाएँ
7. ाकृ तक दुघटनाएँ , जैसे - बाढ़, आँधी, हमपात, भू क प, अवषण तथा अ तवषण आ द
8. असाम यक या आकि मक मृ यु या आ मह या
9. राजनी तक, सामािजक, सां कृ तक, आ थक संगठन क ग त व धयाँ, काय म, समारोह, दशनी
और जुलू स
10. युवा , छा , कसान-मजदूर आंदोलन
11. राजनी तक, सामािजक, सां कृ तक, आ थक संगठन क ग त व धयाँ, काय म, समारोह, दशनी
और जुलू स
12. सरकार वभाग और थानीय शासन नकाय क ग त व धयाँ
13. वै ा नक संगठन , शै णक, सा हि यक, सां कृ तक व कला स ब धी ग त व धयाँ
14. सरकार अ धका रय , कमचा रय तथा राजनी तक नेताओं एवं कायकताओं क मनमानी और
याद तय क शकायत
15
15. उ योग, वा ण य एवं बाजार समाचार
16. खेल-कूद समाचार
17. मेल एवं पव के समाचार
18. यि तगत समाचार, जैसे - वदे श या ा, ववाह, ज म, मृ यु आ द
19. मनोरं जक एवं चम का रक समाचार
20. मानवीय अ भ च के समाचार, जैसे - ेम, दया, ई या, सहानुभू त, याग, भय, आतंक और घृणा
आद ।

अंतरा य मह व के समाचार

कु छ समाचार रा य मह व के होते हु ए भी अ तरा य मह व के होते ह, जैसे-


1. चु नाव, चु नाव म कसी दल क वजय व पराजय, सरकार का गठन
2. धानमं ी, मु यमं ी, रा प त का चु नाव
3. मि म डल का गठन एवं वभाग का वतरण
4. संसद य ग त व धयाँ - बहस, नो तर-काल, आरोप- यारोप, हंगामा, काम रोको ताव,
यानाकषण ताव, उ तेजना, मत- वभाजन व ब हगमन आ द
5. सरकार का पतन, मं य का यागप , न कासन, गृह-यु , सै नक व ोह
6. लोकत क थापना एवं राजतं का पतन
7. राजनी तक, आ थक, सामािजक समझौते
8. अंतरा य संबध

9. शीत-यु
10. कूटनी तक संबध
ं और वाता
11. यु क घोषणा
12. सीमा संघष, थल एवं जल सीमांत क ग त व धयाँ
13. वमान अपहरण
14. जासूसी कांड
15. अंतरा य या रा य या त के यि त का अपहरण, ह या या अक मात ् अपद थ होना
16. दे श और वदे श के मु ख जासूसी संगठन
17. क यु न ट और गैर-क यु न ट दे श क मह वपूण ग त व धयाँ
18. रा संघ
19. व व वा य संगठन
20. व व म संगठन
21. वदे शी अ त थ
22. वै ा नक उपलि धयाँ एवं वै ा नक पर ण
23. दो दे श के म य सै नक समझौता व उसके अ तगत अ -श दे ना
24. शि त संतु लन
16
25. वदे शी मु ा बाजार ।
उपयु त दोन समाचार सू चय को पूण नह ं कहा जा सकता । इसका उ े य केवल इतना ह है क
प का रता के े म आने वाले छा , संवाददाताओं, समाचार लेखक को अपने समाचारप के लये
व वध समाचार के आकलन और काशन म सहायता मल सके ।
मह व क ि ट से भी समाचार के तीन भेद कये जा सकते ह -
1. मह वपूण
2. कम मह वपूण
3. सामा य
वषय े को आधार मानकर समाचार के अनेक वग करण कए जा सकते ह, जैसे- राजनी तक समाचार,
वा ण य समाचार, आ थक समाचार, खेल समाचार, सां कृ तक समाचार, अपराध समाचार, डाक
समाचार, मौसम समाचार, यायालय समाचार, हष-शोक समाचार, फ म समाचार, वदे श समाचार,
संसद य समाचार, यु समाचार , व ान समाचार, वकासा मक समाचार, ामीण समाचार, कृ ष
समाचार, पयावरणीय समाचार आ द ।
समाचार ाि त क ि ट से समाचार के तीन भेद कए जा सकते ह -
1. या शत समाचार
2. अ या शत समाचार
3. पूवानुमा नत समाचार
समाचार नगर या गाँव म घूमने से तो मलते ह है पर साथ ह काफ समाचार समाचारप के कायालय
म वयमेव आ जाते ह । समाचार संपादक या मु य संवाददाता का क त य होता है क वह दै नं दनी
म अं कत कर क अमुक काय अमु क संवाददाता को करना है । नगरपा लकाओं, नगर- नगम ,
वधानसभाओं, संसद भवन तथा व भ न सं थाओं क बैठक क कायवाह के संवाद-लेखन के लए
संवाददाताओं को भेजा जाता है । कसी राजनै तक दल का उ सव हो या सरकार स मेलन, ेस स मेलन
हो या भट वाताएँ; सब या शत समाचार क ेणी म आते ह । खेलकू द, नाटक, चल च या अ य
सां कृ तक ग त व धय के समाचार पूव नि चत रहते ह ।
अ या शत समाचार म दुघटना, ह या, आग, डकैती, चोर , बला कार आ द अपराध का तु तीकरण
आता है । इस कार के समाचार के लए संवाददाता को पु लस टे शन, रे लवे टे शन, बस टे ड,
अि नशामक दल, अ पताल, टाउन हाल आ द से स पक रखना अ नवाय होता है । वह त दन इन
कायालय को 'नई खबर' के बारे म टे ल फोन करता रहता है ।

1.3 समाचार का मह व
समाचार का मह व तय करने के लए संवाददाता को कु छ बात वशेष प से यान म रखना
चा हए । उसे याद रखना चा हए क वह समाचार लखने वाला बाबू नह ं है । साथ ह , समाचार
का हू-ब-हू च ण कर दे ने वाला 'फोटो ाफर' भी नह ं है । उसे मानवीय ि टकोण से घटना
क समालोचना करना है और उसका उ चत मह व तय करना है । इसम पहला आधार- त म
समय है । समाचार का मु य आधार शी ता पर ह है । आज का समाचार कल के अखबार

17
म छप जाए तभी उसका मह व है । तीसरे दन छपे तो उसका मह व थोड़ा कम हो जाएगा,
पर रहे गा ज र । ले कन इसके बाद तो उसम से समाचार-त व ब कुल नकल जाएगा । वैसे
कोई घटना पुरानी हो गई हो और का शत नह ं हु ई तब भी इस घटना म समाचार व है, यह
कहा जा सकता है ।
समाचार त काल न ट होने वाल व तु है, यह स य संवाददाता के दमाग म लखा हु आ रहना
चा हए । दै नक-समाचारप के कई सं करण का शत होते ह । नगर सं करण म नगर के
अि तम से अि तम समाचार समेट लेने क को शश क जाती है । इस- कार समय समाचार
का मह वपूण अंग है । नई ौ यो गक आने के बाद तक ह थान से समाचारप के कई
सं करण के अलावा अनेक समाचारप अनेक थान से अलग- अलग सं करण भी नकालने
लगे ह ।

1.3.1 समाचार का घटना- थल और दूर

समाचार का मह व नि चत करते समय उसका घटना- थल और दूर भी यान


म रखी जाती है । अमे रका म घट कोई घटना वाराणसी या अहमदाबाद के लोग
के लए शायद नरथक भी हो सकती है । अ पताल से ब चे के अपहरण क घटना
थानीय है । इस कारण थानीय लोग के लए अ य त मह वपूण है । हमारे दे श
म कई रा य ह और इन रा य क सरकार से नी तय संबध
ं ी ढे र सारे समाचार मलते
रहते ह । इसका अथ यह नह ं क दूर-दराज क सभी घटनाएँ यथ मानी जाएँ ।
अमे रक रा प त के चु नाव के समाचार को व व भर के समाचारप म थान
मलेगा । इसी कार चीन के रा प त के दे हा त का समाचार भी दु नया-भर म
का शत होगा । चीन और स जैसे फौलाद द वार वाले सा यवाद दे श क छोट
घटनाओं को भी अखबार म अ य त मह व मलता है; य क ये घटनाएँ सूचक
होती ह ।

1.3.2 यि त का मह व

समाचार क , घटना म कौन यि त सि म लत है, यह त य भी अनेक बार मह व


था पत करने म सहायक होता है । घटना के घेरे म कौन यि त है, यह वशेष
प से दे ख लेना चा हए । शहर म छोट -बड़ी दुघटनाएँ तो हर रोज होती ह रहती
ह, ले कन शहर का महापौर (मेयर) कसी छोट -सी दुघटना का शकार हो जाए, तो
यह समाचार अपने आप म मह वपूण हो जाता है । छोट -बड़ी रे ल दुघटनाएँ भी
जब-तब होती रहती ह । कोई छोट रे ल-दुघटना हो और उसम दो-तीन यि तय क
मृ यु हो जाए , ले कन उन मरने वाल म कोई स यि त हो, तो यह सामा य
प से एक कॉलम म छपने यो य समाचार बड़े शीषक म का शत होगा । इसी कार
दु नया म त दन असं य शा दयाँ और सगाइयाँ होती ह; ले कन ए वया राय क
अ भषेक ब चन से शाद या दल प कुमार तथा सायरा बानो अथवा राजेश ख ना
और ड पल काप डया या फर जैक कैनेडी का औना सस से ववाह का समाचार
मह वपूण समाचार कहा जाएगा । यि त िजतना अ धक स होगा उतना ह
18
समाचार भी अ धक मह वपूण होगा । समाज के भ न- भ न े म नेत ृ व कर
रहे लोग का जीवन यि तगत नह ं रहकर सावज नक हो जाता है और लोग उनके
जीवन क छोट घटनाओं म ह बहु त दलच पी रखते ह ।
येक े के मह वपूण यि त से स ब घटना को मह व दया जाता है । यह
बात नकारा मक प से लागू होती है । कसी सामा य यि त का छोटा-सा दुराचार
समाचारप म कोई वशेष थान ा त नह ं करता, ले कन कसी मं ी या उ च
अ धकार के जीवन का छोटा 'दुराचरण' भी बड़ा सनसनीखेज हो जाता है । अमे रका
का ‘वाटरगेट कांड' इसका उदाहरण है । इसके अ त र त 'बे ट बेकर कांड', ‘व ड
े ड सटर पर हमला', 'गोधरा कांड', 'अ रधाम पर हमला', 'ताज कार डोर प रयोजना',
टा प पेपर घोटाला', 'जे सका लाल ह या कांड', ' रय लट शो बग दर और श पा
शे ी' आ द को सि म लत कया जा सकता है । इस कार कसी भी घटना क समी ा
करते समय उसम कौन यि त सि म लत है, इस ओर संवाददाता को एक नजर
अव य डाल लेनी चा हए और इसी आधार पर इसका मह व तय करना चा हए ।

1.3.3 मानवीय च

मानवीय च भी समाचार का मह व नि चत करती है । समाचार के बारे म एक


मशहू र कहावत है क कु ता आदमी को काट ले तो समाचार नह ं होगा, ले कन आदमी
कु ते को काट ले, यह समाचार हो जाएगा । इस कहावत का ता पय यह है क
अ वाभा वकता का त व भी कसी घटना को समाचार बना दे ता है । कोई सामा य
घटना समाचार नह ं होती । इसके बजाय उसम कोई असामा य होती है, तो वह घटना
समाचार बन जाती है । उदाहरण के प म कोई ी चार या पाँच ब च को एक
साथ ज म दे ती है, तो यह समाचार होगा । कुछ ह दन पहले एक ऐसी घटना
का शत हु ई थी क एक मु ग के दो के बजाय चार टांग दे खी गई । यह असाधारण
घटना कह जाएगी । ऐसे समाचार अखबार म बॉ स समाचार बनकर छपगे । दो
सर वाल बकर पैदा होना, व च अंग वाले बालक का ज म होना, यह सभी इसके
उदाहरण ह । समाचारप , चम कार के बारे म भी भाँ त-भाँ त क घटनाएँ छापते
ह । वा तव म, इस कार क सभी घटनाओं क िजतनी भी संभव हो, जाँच-परख
करने के बाद ह का शत करना चा हए ।

1.4 समाचार के ोत एवं वग करण


संवाददाताओं को समाचार व भ न ोत से ा त होते ह । ये ोत अ धका रक भी हो सकते
ह और गैर-अ धका रक भी । कहा जा सकता है क समाचार ोत का उपभोग और दोहन
करना भी एक कला है । अत: येक संवाददाता को इस कला म पारं गत होना चा हए । समाचार
ोत के गठन और उनके उपभोग से संबं धत ब दु इस कार ह-
1. संवाददाता के अपने यि तगत संपक सू होने चा हए । िजतने अ धक लोग से संवाददाता
का संपक होगा उसे उतनी ह अ धक एवं अ छ खबर मलेगी । इस लए येक संवाददाता

19
को अपने-अपने व वसनीय संपक सू बनाने होते ह । सारांश म कहा जा सकता है क
लोग ह समाचार से ोत होते ह ।
2. संवाददाता को सबसे पहले उस े के मह वपूण यि तय , सं थाओं और उनके भार
यि तय के बारे म जानकार होनी चा हए । इसके अ त र त संवाददाता को राजनी तक
दल के नेताओं, उनके कायालय , पु लस थान , च क सालय , वधान मंडल, नगर नगम
और उनके व भ न अनुभाग , शै णक, सामािजक, धा मक, सां कृ तक सं थाएँ, वक ल
संघ , नगर के सभी मह वपूण यि तय , सं थाओं, संगठन आ द क भल भाँ त
जानकार होनी चा हए और येक जगह उसका स पक सू होना चा हए ।
3. ेस व ि त क तरह संवाददाता स मेलन या स
े कां स भी समाचार का मु य ोत
होता है । संवाददाता को संवाददाता स मेलन म नय मत प से जाना चा हए और वहाँ
से समाचार संक लत करने चा हए ।
4. संवाददाता म समाचार सू ंघने और परखने क शि त होनी चा हए । संवाददाता के इ ह ं
े ी म ‘नोज फार द यूज' कहा गया है । उसम जाँच-पड़ताल, खोज- बन,
गुण को अं ज
पूछताछ आ द के लए जासू स जैसे गुण, व भ न कार के समाचार- ो ( यि तय )
के मु ंह से बात नकलवाने के लए मनोवै ा नक जैसे गुण होने चा हए ।
5. संवाददाता को अपना सू चना- ोत का व वास सदै व कायम रखना चा हए । य द उसम
कोई 'ऑफ द रकाड' बात कह हो तो उसे अ य कह ं न बताए । मरण रहे क अपने
स पक सू म कह ं भी कोई आँच नह ं आने दे नी चा हए । जहाँ ा त जानकार क
व वसनीयता के बारे म जरा भी संदेह हो, संवाददाता को शी ह माण एक कर लेना
चा हए ।
6. स पक सू था पत करने के साथ-साथ उ ह बनाए रखना भी अ य त आव यक है ।
इसके लए अपनी ओर से सदै व य न करते रहना चा हए । स पक-सू म नर तरता
भी ज र है ।
संवाददाता के लए समाचार के न न ोत हो सकते ह -
1. ेस व ि तयाँ 2. ेस क यु न स
3. ेस कॉ स 4. भाषण एवं व त य
5. सा ा कार या भट वाता 6. रे डयो या टे ल वजन समाचार
7. समाचार स म तयाँ 8. पु लस थाना
9. यायालय 10. अ पताल
11. सरकार वभाग 12. वधान मंडल
13. यि तगत संपक 14. अ य ोत- स मेलन, संगो ठ , तवेदन, रपोट
आद ।
समाचार का वग करण
समाचार ोत को तीन भाग म वभ त कया जा सकता है -
1. या शत समाचार 2. अ या शत समाचार 3. पूवानुमा नत समाचार

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1.4.1 या शत समाचार

या शत समाचार का आशय उन समाचार से ह जो संवाददाता को य प से मल जाते


ह । अदालत क सु नवाई, फैसले, वधान मंडल, नगर नगम, नगर पा लका क बैठक, प कार
स मेलन, सा ा कार, सरकार घोषणाएँ, सावज नक व त य, जाँच आयोग क बैठक आ द
कु छ या शत समाचार के ोत ह । अ य समाचार को पढ़ने से भी या शत साम यक
समाचार क जानकार मल सकती है ।

1.4.2 अ या शत समाचार

अ या शत समाचार का समाचार ा त करने या उसका सुराग पाने के लए संवाददाता का


संपक सू काम म आता है । दुघटना, आगजनी, अपराध, मृ यु आ द ऐसे अ या शत
समाचार का पूवानुमान उसे भी नह ं होता है । इस कार के समाचार के संकेत बहु त सहसा
या अचानक मलते ह, िज ह अनुभवी संवाददाता ज द से पकड़ लेता है ।

1.4.3 पूवानुमा नत समाचार

पूवानुमा नत समाचार के ोत फ चर, सा ता हक डायर , अदालत म जन च के मामल क


तार ख, फैसले, व भ न े म हो रहे वकास के काय, उनम पड़ी अडचन आ द पूवानुमा नत
समाचार के ोत ह ।

1.5 समाचार लेखन तकनीक


समाचार क अवधारणा से प र चत होने के बाद संवाददाता के सम सबसे पहला न यह
आता है क समाचार को कैसे लखा और तुत कया जाए? समाचार-लेखन के स ा त
या है और समाचार लेखन कसे कहगे?
यापक अथ म कहा जाए तो समाचार लेखन कसी समाचार मा यम वारा, ' कसी कहे हु ए,
सु ने हु ए अथवा कसी तरह ा त कए संदेश को पुन : तु त करना है ।' यूयॉक टाइ स
म क एस. एड स के कथनानुसार - ‘Reporting means the application of
curiosity directed by intelligence and fairness to the current happenings
of the world.’ - (दु नया म होने वाल घटनाओं के स ब ध म इस तरह बु संगत प
से िज ासा क पू त करना, िजससे स चाई और ईमानदार के स ा त क अवहे लना न हो
।)
व यात अमे रकन प कार चा स ए. डाना इसे एक ‘उ च ेणी क कला’ कहते ह । कृ णमू त
इसे 'ल लतकला' मानते ह । दूसरे श द म कह तो ''जो हो चुका है , अथवा होने क संभावना
है, उसके वषय म सह , संपण
ू तट थ और समय पर जानकार दे ने क कया को समाचार
लेखन कहा जा सकता है ।''
इस ववरण से यह प ट होता है क समाचारप म समाचार लेखन का अ य त मह वपूण
थान है । आज व व क आबाद पचास वष पहले थी, उससे दुगन
ु ी होने जा रह है और
व व के एक भाग से दूसरे भाग म पहु ँचने म बहु त कम समय लगता है । मानव क िज ासा
21
का े भी इसी कार व तृत होता जा रहा है और भ व य म और व तृत होता जाएगा
। वाभा वक ह है क इस कया के साथ-साथ समाचार लेखन का े भी बढ़ता जा रहा
है और इस े म नए-नए वषय वेश करते जा रहे ह । मानव क कृ त और मानव यवहार
िजतना पर पर आधा रत होता जाएगा उतना ह उसका भाव समाचारप पर बढ़ता जाएगा,
यह नि चत है ।
एक समय म यह मा यता थी क लेखक क तरह प कार भी ज मजात प कार होता है ।
य न से या श ण लेकर प कार नह ं बना जा सकता । यह मा यता आज भी सह है,
ले कन आ शक प म ह । आज येक े म उ चत श ण का मह व बढ़ता जा रहा
है और एक ऐसा समय आ गया है क जब ज मजात गुण रखने वाले यि त को भी थोड़ा
श ण तो लेना ह पड़ता है । ज मजात गुण और श ण के बीच क सीमा रे खा आज
खतरे म है । प रि थ त धीरे -धीरे श ण के प म जा रह है । जोसेफ पु ल जर के श द
म कह तो - आज के युग म ज मजात ा त कया जा सके, ऐसा कोई गुण है तो वह सफ
‘मू खता’ का गुण है । यह कहकर तुर त ह वे पूछते ह क आज संसार का कौन सा े ऐसा
है िजसम मनु य को श ण क आव यकता नह ं पड़ती । चाहे जैसे, ज मजात गुण रखने
वाला यि त भी उ चत श ण ले तो सोने म सु गध
ं हो जाएगी और वह कुशल संपादक
या संवाददाता बन सकेगा ।

1.5.1 समाचार का गठन - छ: ककार

सन ् 1800 से पूव समाचार लेखन के लए कोई वै ा नक प त नह ं थी । संवाददाता दै नक


घटनाओं को काल मानुसार रखकर अपना काय चला रहे थे । धीरे -धीरे समाचारप का सार
होता गया । समाचारप म थान का मह व बढ़ा और मू य का भी । अत: समाचार को
यवि थत ढं ग से तु त कया जाने लगा । सन ् 1894 म एड वन एल. शू मैन ने ' िै टकल
जन ल म’ नामक पु तक म प का रता के इन व श ट त य क ओर संकेत कया ।
डयाड कप लंग ने सव थम समाचार-लेखन के लए 5 ड यू. और 1 एच. का उ लेख कया
। इ ह हंद म छ: ककार कहते ह । ये छ: ककार आज भी न केवल समाचार संकलन जगत
के बि क प का रता-जगत के आधार त भ ह –
1. या हु आ, अथात ् या घटना हु ई?
2. कहाँ हु आ, अथात घटना कहाँ हु ई?
3. कब हु आ, अथात ् कस समय घटना घट ?
4. कौन सी घटना हु ई, अथात ् कसके साथ या हु आ?
5. य घटना घ टत हु ई, अथात घटना का या कारण था?
6. कैसे घटना घ टत हु ई?
अं ेजी म इ ह – What, Where, when, who, why और How कहा जाता है (अथात ्
5 ड यू और 1 एच) । पाठक इन ककार का उ तर इसी म म चाहता है । सबसे पहले
' या' और सबसे बाद 'कैसे' का उ तर दे ना चा हए । सामा य नयम यह है क अ य त मह व

22
के त य सबसे पहले दे ना चा हए और सबसे कम मह व के अंश को सबसे बाद म दे ना चा हए
। एक समाचार दे खए -
अमर क व व व यालय म अंधाधु ध
ं फाय रंग
30 मरे 28 घायल
लै सवग, व 17 अ ेल (एजसी)
अमर क रा य वज नया के एक व व व यालय म एक बंद ूकधार ने एक छा ावास और
ं गोल बार कर कम से कम 30 लोग क ह या कर द , जब क 28 से
लास म म अंधाधु ध
अ धक लोग घायल हो गए । पु लस का कहना है क फाय रंग क घटनाओं के बाद हमलावर
भी मरा हु आ पाया गया ले कन यह अभी प ट नह ं हो सका है क उसने खु द अपनी जान
ल या वह पु लस क गोल का नशाना बना । एक यूज चैनल के मुता बक हताहत म कोई
भारतीय नह ं है । वज नया टे क के पु लस मुख वे डेल ि लंशम ने बताया क फाय रंग वे ट
ए बलर जॉ टन हॉल छा ावास और एक इंजी नय रंग संकाय के भवन नॉ रस हॉल म हु ई
। ये दोन थान 26 सौ एकड़ के व व कै पस के अलग-अलग कोन पर है ।
े मका क तलाश?
हमलावर कौन है और उसने वारदात को अंजाम य दया इसके बारे म कोई पु ट जानकार
नह ं मल है । बताया जाता है क एक युवक अपनी गल ड के बारे म छा से पूछताछ
कर रहा था । इसके कु छ ह दे र बाद फाय रंग क घटना हो गई ।
(राज थान प का, 17 अ ेल 2007)

इस समाचार म छ: ककार का उ लेख मल जाएगा -


1. या? अंधाधु ध
ं फाय रंग से हु ई दुघटना
2. कहाँ? अमर क रा य वज नया के एक व व व यालय म
3. कब? 17 अ ल
े , 2007 को
4. कौन? 30 मरे और 28 घायल
5. य ? एक युवक वारा अपनी गलफड क तलाश के संदभ म
6. कैसे? हमलावर वारा छा से गलफड के बारे म पूछताछ के दौरान अंधाधु ध
ं फाय रंग
पाठक इन ककार के इसी म म उ तर चाहता है । सबसे पहले ' या’ और उसके बाद म
उसे 'कैसे' का उ तर चा हए । वैसे यह दे खा जाता है क ' या’ का उ तर दे ने के बाद समाचार
के अ य न के कम म उलट-फेर भी हो जाता है । सामा य नयम यह है क अ त मह वपूण
त य को या प रणाम को सबसे पहले दे ना चा हए और सबसे कम मह व के अंश को सबसे
पीछे ।
संवाददाता को समाचार लेखन से पूव तय कर लेना चा हए क समाचार क शु आत कैसे करनी
है? कौन सी जानकार पहले दे नी है और कस म से दे नी है? मन म इस तरह का खाका
बना लेने से यौरे तरतीब से सजाए जा सकते ह तथा सु ग ठत और तलाश हु आ समाचार लखा
जा सकता है । डा. अजु न तवार ने समाचार लेखन के लए न न याओं को ज र बताया

23
है - 1. समाचार त य को संक लत करना, 2. कथा क काय योजना बनाना तथा लखना,
3. आमु ख लखना, 4. प र छे द का नधारण करना, 5. व ता के कथन को अ वकल प
से तु त करना, 6. सू के संकेत को उ ृत करना ।
समाचार लेखन के लए दो कार क शैल च लत है - 1. वलोम परा मड शैल और 2.
उ व परा मड शैल ।

1.5.2 वलोम परा मड शैल

समाचार-लेखन के लए कु छ पार प रक नयम है, िजनका कमोबेश आज भी योग होता है


। उदाहरण के लए ' वलोम परा मड' (Inverted Pyramid) शैल । परा मड का आधार
आयताकार होता है और शीष पहाड़ क चोट क तरह नुक ला । परा मड को उलटकर न क
के बल पर खड़ा कर दया जाए तो उसका आधार ऊपर क तरफ होगा । समाचार के संदभ
म इसका अथ है क समाचार का सार सं ेप आर भ म ह दे दया जाए ता क पाठक को
एक ह नजर म पता लग जाए क आगे या- या जानकार मलने वाल है । इससे पाठक
म आगे प ने क उ सु कता जागेगी और य - य वह खबर पढ़ता जाएगा जानकार क परत
एक-एक करके उभरती चल जाएँगी ।
वलोम परा मड शैल से पाठक को शु मह ात हो जाता है क समाचार म या है? दूसरा
य द पेज का मेकअप करते समय मैटर या समाचार बढ़ जाता है यानी जगह कम रहती है
तो आ खर के दो-तीन पैरे आसानी से काटे जा सकते ह, अंत म गौण त य ह ह गे ।
वलोम परा मड क संरचना दे ख –
1. इ ो 1. समाचार का सार

2. व तार 2. आमुख (इ ो) का व तार

3. समापन 3. गौण ववरण

वलोम परा मड शैल म कुछ खा मयाँ भी ह । जैस-े समाचार के आरि भक भाग (इ ) म


जानकार ठू सने क को शश म वा य रचना के बो झल होने का खतरा रहता है । दूसरा, समाचार
क शु आत रोचक ढं ग से नह ं होती । तीसर बात यह है क शीषक और इ ो म वषय या
जानकार क पुनरावृि त होती है । आगे चलकर अ य त य दे ते समय उनका फर से उ लेख
करना पड़ जाता है । इन खा मय के बावजू द वलोम परा मड शैल समाचार को कम से कम
थान या पंि तय म जोड़ने क ि ट से भी बहु त उपयोगी है । समाचार म पूर तरह और
बड़ी घटनाओं क खबर म काफ हद तक वलोम परा मड का अनुसरण कया जाता है ।
वलोम परा मड शैल (Inverted Pyramid) को इस कार तु त कया जा सकता है-

24
वलोम परा मड शैल को 'उ ट तू पी प त' के नाम से भी जाना जाता है । मी डया जगत ्
म यह प त या शैल वशेष प से च लत और लोक य है ।

1.5.3 ऊ व परा मड शैल

ऊ व परा मड (Upright Pyramid) शैल वलोम परा मड शैल से एकदम उलट है । ऐसे
समाचार म सवा धक मह वपूण अंश को शु म न दे कर उसका आर भ सबसे कम मह व
के ववरण से कया जाता है । ले कन धीरे -धीरे मह वपूण वषय को लया जाता है और
समाचार सवा धक मह व वाले ववरण पर समा त कया जाता है । इ ह नलं बत अ भ च
वाले समाचार भी कहा जाता है । ऊ व परा मड का उपयोग फ चर, मानवीय अ भ च के
समाचार म यु त कया जाता है । इसम द जाने वाल साम ी का म कुछ इस कार
रहता है-
1. दलच प आर भ
2. गैर मह वपूण सूचना
3. त य
4. व तार
5. मह वपूण जानकार

1. सबसे कम मह वपूण सूचना , ले कन जो पाठक म उ सु कता पैदा करे ।

25
2. समाचार से जु ड़े त य ।
3. व तार, िजसम समाचार क पृ ठभू म भी शा मल है ।
4. मह वपूण जानकार ।
5. सवा धक मह वपूण जानकार िजसे समाचार का चम कष भी कहा जा सकता है ।
ऊ व परा मड शैल (Upright Pyramid) को इस कार तु त कया जा सकता है-

1.5.4 समाचार लेखन क नई शैल

समाचार मा यम म समाचार लेखन के लए आज भी वलोम परा मड शैल का सवा धक


योग होता है, ले कन इधर कु छ वष म धीरे-धीरे ह सह , समाचार लेखन क कई नई शै लय
का चलन भी बढ़ा है । पाठक नए तर क से लखे जा रहे इन समाचार को पसंद कर रहे
ह । इसका मुख कारण यह है क वलोम परा मड शैल के अ धक योग के कारण समाचार
मा यम म नीरसता और उबाऊपन सा आ जाता है, िजसे तोड़ने के लए नई शै लय का योग
बढ़ रहा है । नई शै लय म सवा धक लोक य शैल कथा मक या वणना मक शैल है । इसम
वलोम परा मड के बजाय समाचार को कथा मक/ वणना मक शैल म लखा जाता है । इसम
पूरा समाचार पढ़ने से ह एक नर तरता बनती है और उसे वलोम परा मड क तरह कह ं
भी संपा दत या काटा-छाँटा नह ं जा सकता है । ऐसे समाचार म ार भ से लेकर अंत तक
पाठक क च बनी रहे, इस लए उ ह ऐसा लखा जाता है क, िजसम पाठक को कह ं भी
उबाऊपन का अहसास नह ं हो । अं ेजी के समाचारप – ‘टाइ स ऑफ इं डया’, ‘ ह दु तान
टाइ स’, ‘इं डयन ए स स
े ' आ द समाचारप म कथा मक या वणाना मक शैल म लखे
समाचार का चलन लगातार बढ़ रहा है । हंद के समाचारप 'नवभारत टाइ स’, 'दै नक
ह दु तान', ‘दै नक भा कर’, 'जनस ता आ द म इस शैल म लखे गए समाचार दखाई दे ते
ह ।

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1.5.5 शीषक

'मानव शर र म जो शीष का मह व है वह समाचार म शीषक का । शीषक समाचार का ाण


और उसके सार का व ापन है । समाचार के शीषक से यह बोध हो सकता है क समाचारप
क वचारधारा, नी त और पर परा कस कार है । शीषक समाचारप क मनोभावना का
प ट त ब ब है । कोई भी समाचार या लेख बना शीषक के का शत नह ं होते । सबसे
अ धक वह समाचारप बकते ह, िजनके शीषक साथक, पैन,े सं त और जीवंत होते ह
। वा तव म शीषक ह बकते ह, समाचारप नह ं ।
शीषक के तीन उ े य होते ह -
1. समाचार को व ा पत करना या उसे काश म लाना ।
2. समाचार के मह वपूण अंश का सार कट करना ।
3. समाचारप के पृ ठ को साज-स जा क ि ट से सु ंदर एवं आकषक बनाना ।
समाचारप म मु यत: न न शीषक का योग कया जाता है - ॉसलाइन, ॉपलाइन,
वलोम सोपानी, पूण पा त, वलोम तू पी, क ट शीषक आ द । मह वपूण समाचार के लए
गगन रे खा और बैनर (पताका) का योग कया जाता है । चु ट ले, रसीले, भीषण तथा
अ या शत समाचार को 'बा स' (Box) म का शत कया जाता है ।

1.5.6 व तार

समाचार लेखन म इं ो या आमु ख लेखन पर िजतना जोर दया जाता है, उतना जोर समाचार
के व तार अथात ् अ य श द म समाचार क बॉडी लखने पर नह ं दया जाता । इस लए
कई बार अ छे इं ो के बावजू द कमजोर व तार (बॉडी) के कारण समाचार अ भावी और
अपठनीय हो जाते ह । वा तव म, संवाददाता को कसी भी समाचार को उसक संपण
ू ता म
दे खना चा हए न क उसके अलग-अलग पहलुओं जैसे इं ो, व तार और समापन के तौर पर
। समाचार काँपी लेखन क काँपी तैयार करते हु ए संवाददाता को यह हमेशा यान म रखना
चा हए क इं ो के बाद समाचार क बॉडी म या होगा और वह कैसे आएगा?
इसके लए संवाददाता को यह सु नि चत करना चा हए क इं ो और बॉडी के बीच एक नरं तरता
हो और पाठक को ऐसा न लगे क समाचार के इं ो और बॉडी के बीच कोई सामंज य ह नह ं
है । कहा जा सकता है क समाचार लेखन के लए समाचार क बॉडी के अलावा बाक शर र
भी मह वपूण है । समाचार क बॉडी का मह व इस लए बढ़ जाता है क इं ो म उ ले खत
त य क या या और व लेषण समाचार क बॉडी म होता है । समाचार के व तार म दो
त य का यान रखना आव यक है - 1. इं ो म दए गए त य क या या, और 2. कम
मह वपूण त य को समाचार म या या पत करना । इससे समाचार को या या पत करने
म सहायता मलती है, जो आमतौर पर इं ो म नह ं आ पाते ।

27
1.5.7 समापन

समाचार का समापन कैसे कया जाए, इस संदभ म कोई नि चत नयम या फामू ला नह ं


है । परा मड शैल म समाचार को उसके मह व और समाचार मा यम म उपल ध जगह के
अनुसार कह ं भी समा त कर सकते ह । इस शैल म लखे
समाचार म त य और सू चनाओं को उनके घटते म म लखा जाता है । ऐसे म समाचार
के समापन के लए अलग से यास करने क कोई आव यकता नह ं है । फर भी इसके बावजू द
समाचार को इस तरह से समा त नह ं कया जाना चा हए, िजससे उसका अथ प ट न हो
या ऐसा लगे क समाचार का अंत अटपटे ढं ग से कया गया है ।
समाचार का समापन करते समय इस त य को यान म रखना चा हए क उसम समाचार
के मुख त व आ गए ह , समाचार के इं ो और समापन के म य एक मब ता होनी चा हए
। कु छ समाचार का तो कोई अंत या समापन ह नह ं हो सकता है । इस कार के समाचार
म घटना म या वकास म को चलाकर समाचार का समापन कया जा सकता है ।

1.6 समाचार लेखन के मह वपू ण त व


समाचार-लेखन के आकषक के जो मु य मू ल त व माने गए ह, उनम 1. साम यकता, 2.
घटना थल ( काशन थल), 3. मानवीय च, 4. आ मीयता, एवं 5. सामी य त व वशेष
मह व रखते ह । इसी कार समाचार-लेखन म कुशलता एवं वीणता ा त करने के लए
चार गुण मह वपूण ह । ये ह - स यता, प टता, सु च और सं तता । इ ह
समाचार-लेखन के चार सकार भी कहा जा सकता है । समाचार लेखन के मह वपूण त व
ह -
1. साम यकता - 'साम यकता' समाचार-लेखन का सवा धक मह वपूण गुण है । कोई भी
समाचार चाहे वह ट मी डया का हो या इले ॉ नक मी डया का, नवीन घटनाओं एवं
वतमान जगत ् से िजतना अ धक जु ड़ा होगा उसम पाठक क उतनी ह अ धक च होगी
। समाचार का सबसे बड़ा गुण है उसक ता का लकता या साम यकता । उसे नद के
नर तर बहते जल- वाह क तरह नवीनतम होना चा हए ।
घटना म के ती वाह के साथ-साथ समाचार का क य भी बदलता रहता है । यह
साम यकता है । पुराना या बासी पड़ गया समाचार एक तरह से समाचार नह ं रह जाता
। समाचार य द साम यक या नवीनतम न हो तो वह संवाद न होकर संदभ व लेषण या
आ यान बन जाता है ।
2. घटना थल ( काशन थल) - समाचार का दूसरा मह वपूण गुण उसका ‘घटना- थल’
या ' काशन- थल' है । आम पाठक क अपने आस-पास, नगर या रा य के समाचार
म दलच पी होना वाभा वक है; य क जो घटनाएँ पाठक के इद- गद घटती ह, वे उसे
अ धक भा वत करती है ।
3. मानवीय च - रोजमरा क आपाधापी क िज दगी म कु छ ऐसी ि थ तयाँ आती ह, जो
जीवन क ि ट से अथपूण होती ह । आम तौर पर नेताओं के भाषण , बयान , अपराध ,

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आतंकवाद, टाचार और सरकार व ि तयाँ, चु नाव आ द समाचार क समाचारप
म भरमार होती है । ले कन मानवीय च – ‘ यूमन इंटेरे ट’ से जु ड़े समाचार का
समाचारप म अभाव रहता है । मानवीय संवेदनाओं और जीवन के कु छ अ य त पहलु ओं
को काश म लाने वाले समाचार मानवीय च क समाचार क ेणी म आते ह । ऐसे
समाचार को लखने के ढं ग से और रोचक भी बनाया जा सकता है ।
4. आ मीयता - 'आ मीयता’ भी समाचार का एक बड़ा गुण है । समाचार से जुड़ी घटनाओं
से पाठक िजतनी आ मीयता पाएगा, वह उससे उतना ह भा वत होगा । इसके अ त र त
स यता, नवीनता, वैयि तकता, सं या और आकार, संशय और रह य आ द समाचार
के ऐसे त व ह, िजनम समाचार के त आकषण उ प न होता है ।
5. सामी य त व - समाचार लेखन म 'सामी य' का अपना वशेष मह व है । सामी य का
आशय नकटता से है । जो समाचार पाठक के नकट या आस-पास होगा वह उतना ह
पाठक वारा पढ़ा जाएगा, य क पाठक का अपने आस-पास क घटनाओं म च होना
वाभा वक है ।

1.7 समाचार लेखन के पाँच सकार


समाचार-लेखन म कुशलता ा त करने पाँच सकार को अव य यान म रखना चा हए । ये
ह - 1. स यता, 2. प टता, 3. सु च, 4. सं तता और 5. साम यकता ।
1.7.1 स यता – समाचार म स यता हो तथा समाचार कसी पूवा ह या प पात से नह ं
लखा जाए । स य को ठे स पहु ँचाना समाचार क आ मा को न ट करना है । समाचार
म साम यकता भी मू यवान होती है, ले कन स य भी उससे अ धक मू यवान होता
है ।
1.7.2 प टता - समाचार सरल एवं सहज भाषा म लखा जाए, िजससे पाठक को समझने
म कोई क ठनाई नह ं हो। प टता समाचार का मह वपूण ब दु है , जो समाचार
िजतना प ट होगा वह पाठक वारा अ धक पढ़ा जाएगा।
1.7.3 सु च - समाचार सदै व सु च ढं ग से लखा जाना चा हए, िजससे पाठक क च
उसम बनी रहे ।
1.7.4 सं तता - समाचार म थोड़े से श द से अ धक से अ धक बात कहने क मता
हो । सं तता समाचार का व श ट गुण है ।
1.7.5 साम यकता - समाचार म साम यकता का सदै व यान रखना चा हए । समाचारप
या येक पाठक सम-साम यक घटनाओं या समाचार के बारे म जानना चाहता है।
बोध- न -
1. समाचार क प रभाषा द िजये ।
...........................................................................................
...........................................................................................
2. समाचार के छ: ककार या है ?

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……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. वलोम परा मड समाचार ले ख न या है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

1.8 सारांश
‘समाचार अवधारणा एवं लेखन तकनीक' इकाई पढ़ लेने के बाद आप जान गए क समाचार
कसे कहते ह और समाचार लखने क तकनीक या है । इसम समाचार के व भ न
प रभाषाओं क भी व तार से समी ा क है । साथ ह समाचार के मह व, समाचार के ोत,
समाचार लेखन, समाचार के मह वपूण त व और समाचार के पाँच सकार क व तृत
ववेचना क है ।
मी डया जगत म समाचार का अपना व श ट थान है, चाहे वह टं मी डया हो या
इले ॉ नक मी डया । समाचार लेखन म वलोम परा मड शैल या उ ट परा मड शैल का
योग सवा धक होता है, ले कन इधर कु छ वष से समाचार लेखन म अनेक नई शै लय का
योग हो रहा है । नई शै लय म सवा धक लोक य शैल कथा मक या वणना मक शैल
है । अं ेजी एवं ह द के समाचारप म इस शैल का चलन बढ़ रहा है

1.9 श दावल
समाचारप - नय मत प से त दन का शत होने वाले दै नक समाचारप कहलाते ह ।
भारत के ेस ए ड रिज े शन ऑफ बु स ए ट के अनुसार – ‘समाचारप कोई भी नि चत
अव ध म का शत होने वाला प है िजसम सावज नक समाचार या ऐसे समाचार पर
ट प णयाँ हो ।’ यह प रभाषा समाचार से जु ड़ी हर प का को समाचारप क प र ध म शा मल
कर दे ती है ।
समाचार संकलन - संवाददाता वारा अपनी सू झबूझ, प र म और साहस से । व भ न ोत
से समाचार ा त करना, ढू ं ढना, खोजना, जनसंपक करना, वयं घटना- थल तक पहु ँचकर
समाचार ा त करना आ द समाचार संकलन कहलाता है ।
समाचार के त व - समाचार को समाचार व दान करने वाले त य ह - 1. जानकार , 2.
नवीनता, 3. बहु सं यक क अ धकतम च, 4. उ तेजक सू चना और 5. प रवतन क सूचना।
फ चर - प का रता म फ चर लेखन एक वशेष वधा है । इसका उ े य सामा य पाठक का
मनोरं जन करना है अथवा उसक जानकार बढ़ाना है । फ चर कसी रोचक वषय पर मनोरंजक
शैल म लखा गया लेख है ।
संवाददाता - समाचारप को संवाद या समाचार भेजने वाला प कार संवाददाता कहलाता है
। संवाददाता भी दो तरह के होते है - 1. थानीय और 2. अ य थान से समाचार एक
कर डाक, फे स, फोन आ द से भेजने वाले ।

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इं ो या आमु ख - समाचार का आरं भक भाग, िजसे आमु ख भी कहा जाता है । इसम समाचार
के ाय: एक या दो या अ धक मह वपूण अंश का संकेत होता है ।
ककार - समाचार लेखन म छ: ककार का अपना मह वपूण थान है । ये ककार है - या,
कहाँ, य , कैसे, कौन और कब ।
इनवटड परा मड/ वलोम परा मड - समाचार के आरं भक वा य म ह मह व के अनुसार
जानकार दे ने का स ा त । इसम सबसे मह वपूण जानकार पहले द जाती है और गौण
यौरे अंत म ।
अपराइट परा मड/ऊ व परा मड - मानवीय संवदे ना उजागर करने या उभारने वाले समाचार
म घटना या उसके मह वपूण यौरे आर भ म न दे कर बाद म उनका उ लेख कया जाता
है ।

1.10 कुछ उपयोगी पु तक


1. संपादन, पृ ठ स जा और मु ण - ो. रमेश जैन (मंगलद प पि लकेश स, जयपुर )
2. जनसंचार व वकोश - ो. रमेश जैन (नेशनल पि ल शंग हाऊस, जयपुर एवं द ल )
3. टं मी डया लेखन - ो. रमेश जैन (मंगलद प पि लकेश स, जयपुर )
4. समाचार संपादन - ेमनाथ चतु वद (एकेड मक पि लशस, नई द ल )
5. समाचार संकलन और लेखन - डॉ. नंद कशोर खा ( ह द स म त, लखनऊ)
6. संवाद और संवाददाता - राजे (ह रयाणा सा ह य अकादमी, चंडीगढ़)
7. समाचार अवधारणा और लेखन कया, संपादक- सु भाष धू लया एवं आनंद धान
(भारतीय जनसंचार सं थान, नई द ल )
8. प का रता क व भ न वधाएँ - डॉ. नशांत संह (राधा पि लकेश स, नई द ल )
9. योजनमू लक हंद - ो. रमेश जैन (नेशनल पि ल शंग हाउस, जयपुर )

1.11 अ यासाथ न
1. समाचार या है? समाचार क प रभाषा समझाते हु ए समाचार- ोत के वग करण पर काश
डा लए।
2. समाचार लेखन क तकनीक क व तृत ववेचना क िजए ।
3. समाचार संकलन के बाद सवा धक मह वपूण काय समाचार लेखन का है ।” इस कथन क
समी ा क िजए।
4. “ वलोम परा मड शैल समाचार लेखन का बु नयाद स ा त है । यह समाचार लेखन का
सबसे सरल, उपयोगी और यावहा रक स ा त है ।'' समी ा क िजए ।
5. इं ो से आप या समझते ह? एक अ छे इं ो क वशेषताएँ बताइए ।
6. समाचार के पाँच सकार कौन से है? आप इन सकार म से कन सकार को उपयोगी और
भावी मानते है? व तार से बताइए ।
7. समाचार लेखन के मह वपूण त व कौन-कौन से है? इन त व का व तृत प रचय द िजए

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8. समाचार-संकलन के मु ख ोत या ह? ' यि त ह समाचार के ोत होते ह । इस कथन
क समी ा क िजए।
9. सं त ट प णयाँ ल खए –
1. समाचार का व प 2. समाचार के कार
3. समाचार का मह व 4. समाचार लेखन क नई शै लयाँ
5. छ: ककार 6. समाचार के शीषक

32
इकाई-2
संवाददाता, समाचार ोत एवं संकलन
इकाई क परे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 संवाददाता से आशय
2.3 संवाददाताओं क े णयाँ काय वभाजन
2.3.1 कायालय संवाददाता
2.3.2 वशेष संवाददाता
2.3.3 अंशका लक संवाददाता
2.3.4 काय के आधार पर संवाददाता
2.3.4.1 लाइनर
2.3.4.2 ि ं गर
2.3.4.3 पूणका लक संवाददाता
2.3.4.4 टाफस
2.3.5 प कार वेतन मंडल वारा नधा रत संवाददाता
2.3.5.1 वशेष संवाददाता
2.3.5.2 मु य कायालय संवाददाता
2.3.5.3 उप मु य कायालय संवाददाता
2.3.5.4 रपोटर
2.3.5.5 संवाददाता
2.3.5.6 वदे श संवाददाता
2.4 समाचार : व प एवं आशय
2.4.1 समाचार के कार
2.4.1.1 व श ट समाचार
2.4.1.2 यापी समाचार
2.5 समाचार के ोत
2.5.1 या शत ोत
2.5.2 अ या शत ोत
2.5.3 पूवानुमा नत ोत
2.6 समाचार संकलन
2.6.1 ेस व ि त
2.6.2 पु लस थाने एवं अ पताल
2.6.3 सरकार एवं गैर सरकार सं थान

33
2.6.4 ेस स मेलन
2.6.5 जनस पक वभाग
2.6.6 सा ा कार
2.6.7 यूज एजेि सयां
2.7 समाचार लेखन एवं तु तीकरण
2.8 समाचार का अनुवतन सारांश
2.9 सारांश
2.10 श दावल
2.11 कु छ उपयोगी पु तक
2.12 अ यासाथ न

2.0 उ े य
यह सूचना युग है । सूचना संसाधन का नयं ण और उपयोग जो कर सकता है वह शि तशाल
है । दरअसल यह सू चनाओं के व फोट का दौर है । आप नह ं भी चाहगे तब भी सूचनाएँ
आपके इद- गद घूमगी और आपके सरोकार उनम तय करे गी ह । इस इकाई म आपको समाचार
दे ने वाले संवाददाता, समाचार ोत एवं संकलन के बारे म ह जानकार द जा रह है । इस
इकाई के अ ययन उपरा त आप -
 संवाददाता से आशय, उसक प रभाषा के बारे म जान सकगे ।
 संवाददाता क वभ न े णयाँ एवं उसके काय वभाजन को' समझ सकग ।
 समाचार क प रभाषा एवं उसके व प को जान सकगे ।
 समाचार के व भ न ोत एवं संकलन तकनीक के बारे म जान सकगे ।
 समाचार लेखन तकनीक एवं उसके व प को समझ सकगे ।

2.1 तावना
सू चना ौ यो गक के इस युग म व व भर क दू रयाँ अब समा त हो गयी है । दूरसंचार,
क यूटर-इंटरनेट और सैटेलाईट के ज रए पलभर म व व के एक कोने से दूसरे कोने तक
संदेश का सारण संभव होने के साथ ह मी डया के पार प रक व प म भी तेजी से बदलाव
आया है । समाचारप के इ टरनेट सं करण आने के साथ ह उनक पहु ंच दे श दू रय को
समा त कर चुक है । आप अमे रका म बैठे ह और वहां ह दु तान के कसी छोटे से िजले
से का शत दै नक समाचार का आ वाद लेना चाहते ह तो त काल इ टरनेट से जुड़े क यूटर
पर जाएं, आपको वहां वह अखबार अपने पूरे कलेवर के साथ मौजू द मलेगा-नवीनतम सूचनाओं
के साथ । ऐसा ह ट वी के साथ हु आ है । इतने अ धक सैटेलाईट चैनल का आकाश माग
से व व म वेश हो चुका है क आप दु नया जहान म घ टत पल-पल के समाचार को दे ख-सु न
सकते ह ।
ऐसा जब हो रहा है तो वाभा वक ह है क समाचार लखने वाले, तु त करने वाले संवाददाता
का काय भी अब बेहद चु नौतीपूण हो गया है । समाचारप एवं इले ॉ नक मी डया म काय
करने वाले संवाददाता ह वे मह वपूण कड़ी है जो पल-पल के समाचार को एक थान से दूसरे

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थान तक पहु ंचाते ह । ऐसे म संवाददाता क भू मका, समाचार के लए यु त उसके ोत
के आयाम भी नरं तर बदले ह । टं एवं इले ॉ नक मी डया म संवाददाता क या है भू मका,
कौनसे ह उसके ोत, कैसे करता है वह समाचार का संकलन और कैसे उनक करता है तु त?
इस इकाई म इ ह ं पर काश डालने का यास कया गया है ।

2.2 संवाददाता से आशय


संवाददाता का सामा य तौर पर अथ कर तो पाएंग-े संवाद दे ने वाला । शाि दक अथ मे कह
तो कसी घटना वशेष के संबध म त या मक जानकार दान करने का काय ह एक कार
से ‘संवाद’ कहलाता है । ऐसे म जो यह काय करता है, उसे संवाददाता या रपोटर कह
सकते ह । संवाद का अथ कहने, सूचना दे ने अथवा कसी घटना का ववरण तु त करने
से ह । इस कार से जब संवाद सं ेषण कया जाता है तो उसे प का रता क भाषा मे रपो टग
कहा जाएगा । रपोटर बहु सं य लोग के उपयोग क जानका रय को टं या इले ॉ नक
मी डया के मा यम से सं ेषण करता है । इसे ऐसे भी कहा जा सकता है क जो रपोट या
समाचार लेखन, तु तीकरण का काय करता है, उसे संवाददाता कहा जाएगा । पहले
समाचारप के काशन के मु यालय पर तैनात रपोटर कहे जाते थे और जो मु यालय से
बाहर से समाचार भेजते थे उ ह संवाददाता कहा जाता था ।
संवाददाता समाज के बहु सं यक लोग क च वाल सूचनाओं को समाचार के प म पाठक ,
दशक या फर ोता या फर इन सबके लए ह तु त करने का काय करता है । वह सूचनाओं
के मह व को समझते हु ए उनका व रत आंकलन ह नह ं करता बि क कम से कम समय
म उसे अ धक से अ धक लोग तक पहु ंचाने का काय करता है ।
सू चना के मह व, उसक उपयो गता को समझते हु ए उसे समाचार के प म जब संवाददाता
तु त करता है तो उसे यह भी दे खना होता है क उसका असर पढ़ने, सु नने या दे खने वाले
पर या होगा!
ट .एच. कॉट के अनुसार – “'प कार या संवाददाता वह यि त है जो थोड़े-थोड़े समय के अंतर
पर का शत अपनी रचनाओं से जनमत को एक नि चत दशा म भा वत करता है ।''
डॉ. नशांत संह के मतानुसार – “ कसी घटना वशेष के बारे म अ य यि तय को त या मक
जानकार दे ना ‘संवाद’कहलाता है और इस काय को करनेवाला यि त संवाददाता या
रपोटर कहलाता है ।''
व र ठ प कार एवं लेखक ानेश उपा याय के श द म – “संवाददाता वह है, जो नूर समाज
क जनोपयोगी स चाइय से समाज का ल खत, स- वर, स- य सा ा कार करवाता है ।”
डॉ. महे मधु प का कहना है- ''बहुउपयोगी सू चनाओं के सं ष
े ण के संवाहक को संवाददाता
कहा जाएगा । वह टं एवं इले ॉ नक मी डया के लए अ धकतम लोग क च क
जानका रयाँ ह नह ं जु टाता बि क उ ह आकषक ढं ग से इस कार तु त करता है क लोग
क उ सुकता उसम बनी रहे ।''
इन प रभाषाओं के आधार पर प टत: यह कहा जा सकता है क संवाददाता जनोपयोगी
नवीनतम घटनाओं, जानका रय के संवाद का सं ेषण ह नह ं करता बि क जनमत नमाण

35
म भी मह वपूण भू मका नभाता है । प का रता को लोकतं का चौथा त भ कहा गया है
। संवाददाता इस चौथे त भ क वह बेहद मह वपूण कड़ी है जो समाचार के मा यम से
जनता क न ज को टटोलते, अ भ यि त क वतं ता का सह मायने म इ तेमाल करते
हु ए लोकतं क नींव को मजबूत करता है ।

2.3 संवाददाता क े णयाँ एवं काय वभाजन


समाचार संकलन क ि ट से संवाददाताओं क अलग-अलग े णयां बनी हु ई है । टं एवं
इले ॉ नक मी डया के लए काय करने वाले संवाददाताओं को उनके काय के हसाब से वग कृ त
कया जाता है । एक समय था जब समाचारप के एक या दो सं करण ह अ धका धक हु आ
करते थे, आज ि थ तयां बदल चु क ह । े ीय प का रता के इस दौर म समाचारप के
िजलेवार सं करण का शत होने लगे ह । यहां तक क उपखंड तर के भी पृ ठ अलग से
समाचारप म दये जाते ह । ऐसे म संवाददाताओं क सं या म भी पहले से कई गुना बढ़ोतर
हो गयी है । अब अलग-अलग वषय के समाचार के लए अलग-अलग बीट का नधारण
होता है । मसलन अपराध समाचार है तो उस बीट को अलग से एक संवाददाता दे खता है ।
ऐसे ह सां कृ तक, राजनी तक, धा मक, आ थक आ द अलग-अलग वषय क बीट के भी
अलग-अलग संवाददाता नधा रत होते ह । यह नह ं िजस कार से सरकार म अलग-अलग
वभाग के अलग-अलग अ धकार होते ह, उसी कार से समाचारप म भी अलग-अलग वषय
के लए अलग-अलग नधा रत संवाददाता होते ह । वे संवाददाता अपने वषय से संबं धत
समाचार को ह दे खते ह ।
इसी कार थान के आधार पर भी संवाददाता क अलग-अलग े णयां ह । समाचार संकलन
के अंतगत मोटे तौर पर संवाददाताओं क तीन े णयां क हु ई ह ।

2.3.1 कायालय संवाददाता

समाचारप के काशन थल पर थानीय समाचार का संकलन कर उनका जो लेखन


करते ह, उ ह कायालय संवाददाता क ेणी म रखा जाता है । कायालय संवाददाता
समाचारप कायालय म आने वाले समाचार को भी समाचारप के तेवर के हसाब
से लखते ह । थानीय वषय पर सरकार एवं गैर सरकार ेस व ि तयां तथा
व भ न आयोजन आ द के संबध
ं म समाचार एक कर उसे लखने का काय
कायालय संवाददाता अमू मन करता है । टं मी डया के अंतगत भी आने वाल ेस
व ि तयां, व भ न समाचार योर को वहाँ के कायालय संवाददाता एक कर
संपा दत कर उसे सारण यो य बनाते हु ए यापक लोग तक पहु ंचाने क यव था
करते ह ।

2.3.2 वशेष संवाददाता

रा य और रा य तर य समाचार का संकलन कर उनका व लेषण करते हु ए लेखन


का काय समाचारप म कायरत वशेष संवाददाताओं वारा कया जाता है । वशेष
संवाददाता समाचार क न ज को पहचानते हु ए त नुसार उसका कलेवर समाचारप

36
के लए नधा रत करते हु ए खबर क तह तक जाने का यास करते हु ए संबं धत
व भ न अ य समाचार से उसे संब करते हु ए समाचार लखता है । एक अनुभवी
प कार होने के नाते वशेष संवाददाता समाचार लखते समय घटना या वषय का
व लेषण ह नह ं करते बि क वे उसके भ व य म होने वाले प रणाम का ववेचन
भी करता है । ऐसे ह इले ॉ नक मी डया के वशेष संवाददाता कसी राजनी तक
समाचार, वशेष घटना के समाचार, व श ट सू चना आ द का पूण व लेषण करते
हु ए ता कक ढं ग से उसके प रणाम और उसके लोग पर पड़ने वाले असर के बारे म
योरा बनाते हु ए उसे यापक दशक , ोताओं तक पहु ंचाते ह । ऐसे म वे घटना थल
पर वयं पहु ंचकर वहाँ क य- य साम ी भी जु टाते ह । उदाहरण के लए लखनऊ
से का शत होने वाले समाचारप म लखनऊ नगर म समाचार का उ तरदा य व
कायालय संवाददाता या रपोटर का होता है ।

2.3.3 अंशका लक संवाददाता

अंशका लक संवाददाता वे होते ह जो कसी समाचारप , समाचार एजे सी के लए


दूर दराज के इलाक से समाचार एक कर का शत करने हेतु भजवाते ह । बड़े
समाचारप के संवाददाता हालां क दे श क राजधा नय , बड़े नगर म भी तैनात होते
ह पर तु दूर-दराज के शहर , गांव म समाचार के उनके ोत अंशका लक संवाददाता
ह होते ह । ऐसे ह इले ॉ नक मी डया म ऐसे संवाददाताओं को ि ं गर कहा जाता
है । वे घटना या वशेष वषय का योरा य या य या फर य- य दोन
ह प म सारण के लए भजवाते ह ।

2.3.4 काय के आधार पर संवाददाता

संवाददाता क इन े णय के अलावा ंट एवं इले ॉ नक मी डया म बहु त से तर


पर प कार जु ड़े होते है । मी डया म काय क वृ त के हसाब से उनका नामकरण
भी अलग-अलग थान पर अलग-अलग कया हु आ है । काया धकता के कारण
संवाददाताओं क जो अ य े णयां क हु ई ह, वे इस कार ह-

2.3.4.1 लाइनर

ये वे संवाददाता होते ह जो समाचारप के थायी कमचार नह ं होते । इ ह उनके


का शत समाचार क पंि तयां (कॉलम) के अनुसार अपने काय का पा र मक
मलता है । छोटे -छोटे क ब , गांव म बड़े समाचारप के लए लाइनर ह संवाददाता
का काय करते ह । ये समाचारप के लए व ापन जु टाने का काय भी करते ह ।

2.3.4.2 ि ं गर

लाइनर से कुछ बेहतर ि थ त ि ं गर क होती है । भले ह ये थायी कमचार नह ं


होते पर तु इ ह, िजस टं या इले ॉ नक मी डया के लए काय करते ह, उस मी डया
क ओर से प कार को द जाने वाल सामा य सु वधाएं उपल य करायी जाती है

37
। तमाह इ ह एक नधा रत रा श अपने प का रता कम के लए दान क जाती
है । आजकल इले ॉ नक मी डया म तो अ धकांशत: ि ं गर ह तैनात होते ह िजनके
पास वयं के कैमरे होते ह । संबं धत इले ॉ नक मी डया के लए ये ि ं गर य
य- य साम ी भजवाते ह ।

2.3.4.3 पूणका लक संवाददाता

जैसा क नाम से ह व दत है । ये समाचारप या इले ॉ नक मी डया चैनल के


नय मत प कार होते ह । मी डया ह आव यकता के अनुसार ये कसी िजला
मु यालय या अ य थान पर नयु त होते ह और इ ह उपसंपादक के समान
सु वधाएं, वेतन ा त होता है ।

2.3.4.4 टाफस

सामा यतया रा य क राजधा नय म टाफस लगे होते ह । इनका सीधा संबध



समाचारप या चैनल के मु य कायालय से होता है । बड़े समाचारप और इले ॉ नक
मी डया के बड़े चैनल वारा ह टाफस रखे जाने क पर परा है, चू ं क इ ह नय मत
प कार क सु वधाएं और टे स दया होता है ।

2.3.5 प कार वेतन मंडल वारा नधा रत संवाददाता

टं एवं इले ॉ नक मी डया म संवाददाताओं क नयुि त अपनी सु वधा और तर


के हसाब से क होती है पर तु प कार वेतन मंडल वारा संवाददाताओं क जो े णयां
नधा रत क हु ई ह, वे इस कार से ह-

2.3.5.1 वशेष संवाददाता ( पेशल कॉरे सप डेट)

प कार वेतन मंडल के मानदं ड के अंतगत वशेष संवाददाता उसे माना गया है जो
कसी समाचारप के लए संसद य, राजनी तक और आम जन के मह व के सभी
समाचार को संक लत करते हु ए उनक समी ा करता है । वशेष संवाददाता द ल
म भारत सरकार वारा मा यता ा त होता है और वदे श म नयु त कया हु आ
भी हो सकता है । ऐसे प रभाषा म उन प कार को भी शा मल कया गया है जो
संसद य, राजनी तक या सामा य जन मु के समाचार के संकलन एवं लेखन के
साथ एक से अ धक रा य म या कसी ऐसे रा य या कसी ऐसे थान पर, जहां
उनसे ऐसा ह काय करने को कहा गया है, काम करते ह ।

2.3.5.2 मु य कायालय संवाददाता (चीफ रपोटर)

चीफ रपोटर क ेणी म उन प कार को शा मल कया गया है जो समाचारप के


काशन के थान पर सभी कायालय संवाददाताओं के मु ख के प म काय करता
हो । चीफ रपोटर उसे माना गया है जो कायालय संवाददाताओं के काय क दे खभाल
करता है और वयं नय मत प से वधान-मंडल य, राजनी तक तथा सामा य मह व
के समाचार का संकलन और उनक या या करता है ।
38
2.3.5.3 उप मु य कायालय संवाददाता या व र ठ संवाददाता

उप मु य संवाददाता क ेणी म वे प कार आते ह जो मु य कायालय संवाददाता


क उसके काय म सहायता करते ह तथा उनक अनुपि थ त म उसके काय का वहन
भी करते ह । ऐसे ह व र ठ संवाददाता उसे कहा जाता है जो समाचारप के काशन
के थान पर समाचार का संकलन करता है । व र ठ संवाददाता उसे कहा जाता है
िजसे संवाददाता के प म काय करने का कम से कम पांच वष का अनुभव हो ।

2.3.5.4 रपोटर

रपोटर समाचार को ा त कर उसे समाचारप के लए सामा यतया लखने का काय


करता है । समाचारप म प कार के प म कसी यि त क शु आत समाचारदाता
के प म ह होती है । रपोटर का काम एक प के काशन थल या कसी अ य
वशेष थान पर समाचार का संकलन कर उसे समाचारप के लए तुत करना
होता है ।

2.3.5.5 संवाददाता

प कार वेतन मंडल के अनुसार संवाददाता वह यि त होता है जो समाचारप


का शत होने वाले थान से दूर रहकर समाचार को एक कर उ ह फै स, इ टरनेट,
तार, डाक या फर अ य कसी भी संचार मा यम से समाचारप कायालय तक
पहु ंचाता है ।

2.3.5.6 वदे श संवाददाता

वदे श संवाददाता उसे कहा जाता है जो िजस दे श म समाचारप का शत होता है,


उससे भ न कसी दूसरे दे श म रहकर उस समाचारप के लए समाचार संकलन
का काय करता है । ऐसा संवाददाता आम तौर पर संवाद स म तय या फर कसी
बड़े समाचारप के लए काय करता है ।
संवाददाताओं क उपयु त े णयां मु यत: प कार वेतन म के आधार पर कया
हु आ है । वेतन म के अनुसार ह प कार का यह वग करण ऐसा है जो वत: ह
उनक क न ठता और व र ठता के बारे म भी जानकार दे दे ता है । यह ज र नह ं
है क सभी समाचारप म उपयु त बताए कार के सभी संवाददाताओं क े णयां
ह पर तु मोटे तौर संवाददाताओं का वभाजन इसी आधार पर कया हु आ है ।

2.4 समाचार : व प एवं आशय


समाचार अं ेजी श द “ यूज ” का ह द अनुवाद है । यूज दरअसल म यकाल न लै टन श द
“नोवा” से बना है । यूज से ह बाद म यूज पेपर अथात ् समाचारप श द योग म आया
। मु ण कला के वकास के साथ समाचारप का े नरं तर यापक होता चला गया । इं लड
के “ यूज पेपर लायबल रिज े शन ए ट” के अनुसार “कोई भी परचा समाचारप कहा जायेगा

39
बशत क उसम सावज नक समाचार, सू चनाएं छपी हो, अथवा इन समाचार के संबध
ं म कोई
ट का- ट पणी हो और वह एक नि चत अव ध के बाद ब के लए का शत होता हो ।”
समाचारप के बारे म इस कथन से यह बात प ट होती है क सावज नक सूचनाओं को यापक
अथ म समाचार कहा जाता है । अब तो समाचार श द ह सूचना के सार का योतक बन
गया है । मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है क मनु य क च को यान म रखते हु ए
एका धक लोग तक पहु ंचाई जाने वाल सू चना क अ भ यि त को समाचार कहा जाता है ।
समाचार को कसी वशेष अथ म प रभा षत नह ं कया जा सकता, चू ं क इसका े अ य धक
यापक है । टं और इले ॉ नक मी डया के इस दौर म समाचारप म का शत सू चनाओं
को ह समाचार नह ं कहा जा सकता बि क सारण के व भ न मा यम म तु त क जाने
वाल सू चनाओं के व वध प भी समाचार से ह संबं धत माने जायगे ।
सामा यतया समाचारप के संदभ म समाचार वह है िजसे संपादक का शत करना चाहे या
संपादक िजसे लखे वह समाचार है । समाचार अथात ् घटना, त य या मत क ऐसी साम यक
सू चना िजसके बारे म जानने के लए यापक वग को उ सु कता हो । ऐसा भी कहा जाता है
क िजसके बारे म कुछ समय पहले तक कसी कार क जानकार नह ं हो समाचार वह स चाई
है ।
समाचार के बारे म बहु च लत प रभाषा यह भी द जाती है क कु ता अगर आदमी को काट
ल तो वह समाचार नह ं है । य द आदमी कु ते को काट ले तो उसे समाचार कहगे । इसका
अथ यह हुआ क अ या शत ऐसी सूचना िजसके बारे म सामा यतया अनुमान नह ं लगाया
जाता, वह समाचार ह कहलायेगी । मी डया म समाचार के बारे म एक अवधारणा यह भी
खासा च लत है क िजस सू चना को लोग को जानने न दे ने अथात ् दबाने का यास कया
जाता है वह ं समाचार या खबर कहलाता है ।
शाि दक अथ म दे ख तो समाचार को अं ेजी श द NEWS के ह द पा तरण के प म
भी दे खा जाता है । NEWS क उ प त NEW से ल जाती है अथात ् नवीन । जो कुछ नया
है, िजसम नवीनता का बोध हो । ऐसा माना जाता है क NEW का समु चय NEWS है
। हे डन कोश के अनुसार “सब दशाओं क घटनाओं को समाचार कहा जाता है ।” इस अथ
म NEWS श द के चार अ र चार दशाओं के आ या र ह । NEWS के पहले अ र N
को NORTH, E को EAST, W को WEST व S को SOUTH के अंतगत चार दशाओं
का सूचक मानते हु ए इसका अथ लगाया जाता है । चू ं क समाचार के अंतगत चार दशाओं
से समाचार व सू चनाओं का आदान- दान जो होता है । प का रता का ाणत व समाचार ह
जामना जाना जाता है । वृ तांत , खबर, ववरण, सू चना को समाचार के पयाय के प म दे खा
जाता है । अमरकोश म वाता, बूि त तथा उद त श द समाचार के लए यु त हु ए ह । ऐसे
म यह कहा जा सकता है क संवाद सं ेषण के अंतगत बहु उपयोगी घटना क पूर जानकार
दे ने का काय समाचार के अंतगत कया जाता है ।
अं ेजी के बाद ह द म य द समाचार श द का व लेषण कर तो पायगे क ह द वणमाला
के चार श द स+म+च+र = समचर बना है । समचर का ता पय साथ-साथ चलने से है ।
इस अथ म समाचार, समाचार दाता और ा तकता के साथ-साथ ह तांतरण से संबं धत है

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। समाचार का अथ समाज को सू चत करने से है । इसम सूचना दे ना और लेना दोन ह
स म लत है । कुल मलाकर समाचार का अ भ ाय दै नक जीवन को सहज, सरल और कु छ
रोचक बनाने के लए मलने वाले ान अथात सू चनाओं से है । मनु य सामािजक ाणी है
और वह अपने आस-पास के प रवेश से कभी भी अलग नह ं रह सकता । ऐसे म समाचार
का मनु य से जु ड़ाव नरं तर बना रहता है । एक दूसरे के बारे म जानने क उ सुकता सहज
मानवीय वाभाव है ।
आचाय रामच वमा के अनुसार – “'समाचार का अथ आगे बढ़ना, चलना, अ छे आचरण
अथवा यवहार है । म य और परवत काल म कसी काय या यापार क सू चना को समाचार
मानते थे ।”
ो. व लयम जी लेयर के श द म – “अनेक यि तय क अ भ च िजस साम यक बात
म हो, वह समाचार है । े ठ समाचार वह है िजसम बहु सं यक क अ धकतम च हो ।”
मानचे टर गािजयन के अनुसार – “समाचार कसी अनोखी या असाधारण घटना क अ वल ब
सू चना को कहते है । ऐसी सूचना िजसके बारे म लोग ाय: पहले कु छ न जानते हो पर तु
िजसे तुर त ह जानने क अ धक से अ धक लोग म च हो ।”'
व लयम एल रवस के मतानुसार – “घटनाओं, त य और वचार क साम यक रपोट िजसम
पया त लोग क च हो, समाचार है ।”'
जाज. एच. मौ रस कहते ह – “समाचार ज द म लखा गया इ तहास है ।''
टनर कॉलेज - '’वह सभी कु छ िजससे आप कल तक अन भइा थे, समाचार है ।''
जेरा ड ड यू जॉनसन के अनुसार- “साधारण यवहार म समाचार वे है, जो अखबार म छपते
है और अखबार वे है िज ह समाचारप म काम करने वाले तैयार करते है ।''
ो. रमेश जैन के श द म – “स य, साम यक और बहु सं यक यि तय क िजसम च हो
वह सूचना समाचार है । ''
इन प रभाषाओं के आधार पर प टत: यह कहा जा सकता है क समाचार वह है िजसम
बहु सं यक लोग क जानने क उ सु कता हो, जो नवीन हो, िजसम ग त हो, जो साम यक
घटनाओं और वषय को अ भ य त करती हो । व तु त: सूचनाओं के व फोट के इस दौर
म समाचार साम यक घटनाओं के इ तहास के प म टं एवं इले ॉ नक मी डया क वह
धरोहर है िजससे हर आम और खास का सरोकार जु ड़ा होता है ।

2.4.1 समाचार के कार

समाचार के मु यत: दो कार है -


1. सीधा समाचार 2. या या मक समाचार ।
सीधा समाचार वह होता है जो सरल, प ट और सह त या मक प म ववरणा मक
लखा जाता है । इसके अंतगत त य को य का य तु त कर दया जाता है,
उनक या या नह ं क जाती । या या मक समाचार घटना या त य के व लेषण
पर आधा रत होते ह । इसके अंतगत समाचार के त य क गहर खोजबीन करते

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उसके पूण प रवेश और भ व य म पड़ने वाले त य के भाव का व लेषणा मक
यौरा तु त कया जाता है ।
इसी कार घटना के मह व के हसाब से दे ख तो समाचार को दो और भाग म वभ त
कर समझा जा सकता है ।

2.4.1.1 व श ट समाचार ( पॉट यूज )

व श ट समाचार वे होते है जो अचानक घ टत कसी घटना या सू चना के अ या शत


मोड़ के आधार पर लखे जाते है । अथात ् ये वे समाचार होते है िजनके बारे म पहले
से कसी कार का अनुमान नह ं होता । जब कोई घटना घट जाती है तो उसका
वशेष मह व और जो भाव पड़ता है वह ं समाचार म आता है । सं ेप म कह तो
ये साम यक और अ यतन होते है । व श ट होने के कारण ाय: ऐसे समाचार मु य
पृ ठ क खबर बनते है । अचानक और अ या शत घटना से जु ड़े होने के कारण
ऐसे समाचार का मह व कई बार इतना अ धक होता है क समाचारप क छपाई
रोककर पूव समाचार को गौण करते इ ह थान दया जाता है । ऐसे ह इले ॉ नक
मी डया के अंतगत ऐसे समाचार चल रहे सारण के म य वशेष थान पाते ह ।

2.4.1.2 यापी समाचार ( ड


ै यूज )

जैसा क श द से ह ात होता है, ये वे समाचार होते ह जो अपने मह व और भाव


से पूर तरह अपना फैलाव करते ह । अपने आप म पूण ऐसे समाचार घटना या संग
के संवाहक बनते व तार पाते ह । ऐसे समाचार कसी व श ट घटना या संग से
मह व पाते और दूसर भा वत होने वाल घटनाओं के छोटे -छोटे अंश के साथ पूण
प से या या मक अपना प दखाते ह । मसलन रा प त पद पर कसी का
मनोनयन होना । कल तक साधारण प म समाज का ह सा बना यि त जब दे श
के सव च पद पर आसीन होता है तो उससे संब वभ न कार क सू चनाएं भी
अपना मह व जताते यापक व तार पाती है । टं एवं इले ॉ नक मी डया म इस
कार के समाचार को वशेष थान मलता है और उनका तु तीकरण भी खासा
रोचक होता है । समाचार को यू ँ तो कसी तयशु दा ढाँचे म नह ं रखा जा सकता परंतु
फर भी े , थान, घटना आ द के आधार पर उ ह अलग-अलग प म वग कृ त
कया जा सकता है । मसलन थानीय समाचार, ांतीय समाचार, अंतदशीय और
अंतरा य समाचार । इनके अंतगत भी समाचार का अलग-अलग प म वषय
के हसाब से वग करण कया जा सकता है, यथा खेल समाचार, व ध समाचार,
आ थक, राजनै तक, सामािजक, सां कृ तक, वै ा नक, सरकार ेस व ि त आ द।

2.5 समाचार के ोत
समाचार के व भ न ोत होते ह । एक संवाददाता को अ छे समाचार के लए ल खत ोत ,
वशेष , आम या भु तभोगी लोग , घटना से संबं धत लोग को ोत के प म योग करना
होता है । खास प रि थ तय म संवाददाता वयं घटना थल जाकर खु द भी सूचनाओं का ोत

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हो सकता है । समाचार के ोत य भी हो सकते ह और अ य भी हो सकते ह । समाचार
लखने वाले संवाददाता का िजतना समृ जनस पक होगा , उतना ह वह समाचार के मामले
म समृ होगा । समाचार के व भ न ोत इस कार से ह-

2.5.1 या शत ोत

या शत ोत वे होते ह िजनसे सीधे तौर पर समाचार ा त कया जा सकता है


। व भ न सामािजक सं थाएं, धा मक थल, नगर वकास याय, वकास
ा धकरण, पु लस टे शन, अ पताल, संसद और वधानसभाएं, सरकार कायालय,
प कार स मेलन, सावज नक समारोह, अदालत के फैसले आ द या शत ोत के
समाचार होते ह । या शत ोत से ा त समाचार को समाचारप -प काओं अथवा
इले ॉ नक मी डया के लए बेहद सावधानी रखते हु ए संपा दत करके ह काशन
या सारण यो य बनाया जाता है ।

2.5.2 अ या शत ोत

पहले से कसी घटना का अनुमान नह ं हो और अचानक वह घट जाए और उससे


जब समाचार बनता है तो वह अ या शत ोत ेणी का समाचार माना जाता है ।
मसलन सब कु छ सामा य चलते हु ए औचक कह ं पर कोई बड़ी दुघटना हो जाती
है, आगजनी हो जाती है या फर कसी सं थान, वभाग के अंतगत मह वपूण फैसले
से यापक वग पर बहु त बड़ा भाव पड़ने जा रहा हो और उसके बारे म संवाददाता
को वहां ऐसे ह जाने पर सहज जानकार मल जाती है तो वह उस समाचार का मह व
जानते हु ए जब उसे पता लगाता है तो वह अ या शत ोत का समाचार हो जाता
है । ऐसे ह संवाददाता घर से कायालय के लए रवाना हु आ, रा ते म ै फक पु लस
क मनमानी या बगैर रसीद काटे चालान काटे जाने को अपनी आंख से दे खता है
तो इस दशा म और खोज-बीन ारं भ कर मह वपूण त य जु टा लेता है तो अनायास
ह उसे अ या शत ोत से कई बार मह वपूण समाचार मल जाता है । समाचार
के लए ये ऐसे ोत होते ह जो पहले से तय नह ं होते ह अनायास ह उनसे समाचार
बन जाते ह ।

2.5.3 पूवानुमा नत ोत

वषय , घटनाओं, संग के संबध


ं म पहले से अनुमान लगाकर लखे जाने वाले
समाचार पूवानुमा नत ोत माने जाते ह । पूवानुमा नत ोत समाचार लेखक क
तक शि त, बौ क मता, भ व य को भांप लेने क यो यता आ द पर नभर करती
है । समाचार प -प काओं एवं इले ॉ नक मी डया के अंतगत ऐसे ोत के इ तेमाल
से कई बार बेहद मह वपूण समाचार का काशन, सारण संभव हो जाता है । कसी
घटना, संग के संकेत से ह संवाददाता यह समझ लेता है क भ व य म इसक
या प रण त होनी है, इसी आधार पर कई बार व श ट समाचार मी डया को ा त
हो जाते है । कई बार ऐसा भी होता है क मौसम, व ान के कसी शोध अनुसंधान
43
को लेकर भी इस कार के अनुमान लगाए जाते ह जो भ व य म सच होते है या
फर चु नाव के दौरान भी संवाददाता जनता क लहर को दे खते हु ए एि जट पोल
जैसा कोई वशेष समाचार लख दे ते ह । पूवानुमा नत समाचार ोत पूणत : संवाददाता
के ववेक और बु पर ह नभर होता है ।
मु यत: समाचार के ोत को उपयु त तीन े णय म ह बाँट कर दे खा जाता है
पर तु इनके अलावा भी समाचार के व भ न य एवं अ य ोत होते ह ।
समाचारप म जब कोई समाचार का शत होता है तो उसके व भ न ोत के बारे
म भी जानकार द जाती है । कसी समाचारप म उसके थायी कमचार
संवाददाताओं के साथ ह अंशका लक और वतं प कार के लखे समाचार भी
का शत कये जाते है । समाचार के ोत कसी भी तर के हो सकते है । समाचार
प -प काओं और इले ॉ नक मी डया के व भ न मा यम के वारा य एवं
अ य ोत से समाचार संक लत कर उनका तु तकरण कया जाता है ।

2.6 समाचार संकलन


समाचारप के लए कसी समाचार का लेखन या इले ॉ नक मी डया के लए समाचार का
सारण कया जाता है तो नधा रत ोत के साथ ह बहु त से यि तगत ोत का भी सहारा
लेता है । सबसे पहले तो वे सब जानका रयाँ जो कसी न कसी प म पहले से ह मी डया
म उपल ध है उसम हम एक समाचार के प म वक सत कर सकते ह और इस ि ट से
यह हमारा समाचार का ोत है अथात ् यहाँ से हम समाचार का वचार आया या उसक पहल
सू चना ा त हु ई । इसके अलावा आम लोग भी कायालय आकर या जहाँ कह ं हम उनसे मलते
ह हम इस तरह क सूचना दे ते ह िज ह हम समाचार के प म वक सत कर सकते ह ।

कई बार समाचार एजेि सय भी ऐसे समाचार को जार करती ह िज ह हू बहू उपयोग म लेने
क बजाय उनके आधार पर उससे संबं धत और खोजबीन करके मह वपूण समाचार का सृजन
प कार कर लेते ह । समाचार एजे सी ने मान ल िजए राजधानी द ल से संबं धत कोई
राजनी तक समाचार जार कया है, थानीय ग त व धय को उसम सि म लत करते हु ए जब
प कार त य से संबं धत और भी जानका रयां जु टा लेते ह तो उससे समाचार एजे सी से इतर
भी मह वपूण समाचार बन जाता है । कसी भी प कार के लए उसके जानकार के नता त
नजी ोत का वशेष मह व होता है । व भ न सं थान , वभाग , कायालय , संसद एवं
वधानसभाओं आ द सभी थान पर प कार जब नरं तर जाता-आता रहता है तो वयं के
नजी स पक भी वहां के कमचा रय , टाफ के लोग से कर लेता है । यह उसके ऐसे ोत
होते ह जो कई बार बेहद मह वपूण सू चनाएं प कार को अनायास ह दान कर दे ते ह । ऐसे
म यह कहा जा सकता है क कसी भी प कार के घ न ठ स पक ह उसके समाचार के ोत
होते ह । मोटे तौर पर समाचार ाि त के लए समाचारप या इले ॉ नक मी डया के दो
ह ोत होते ह-
 प कार या संवाददाता
 समाचार स म तयाँ या सरकार एजेि सयाँ

44
टं एवं इले ॉ नक मी डया म समाचार ाि त के मु य ोत उसके वयं के प कार या
फर समाचार स म तयाँ एवं सरकार एजेि सयां ह होती ह । यह ं से आ धका रक समाचार
ा त होते ह । इसके अलावा प कार सूचनाओं क ाि त भी व भ न तर पर करता है ।
सू चना को ह बाद म वह य द उससे समाचार बनाता है तो उसका उपयोग खबर के प म
करता है । य द सू चना खबर यो य नह ं है तो उसका उपयोग फर वह नह ं करता है, कसी
और संदभ के लए उसका उपयोग है तो कई बार वह त काल उसका उपयोग समाचार के प
म नह ं करके बाद म भी उसका योग कर लेता है । आरं भक समाचार के मोटे तौर पर जो
ोत होते ह, वे इस कार से ह-

2.6.1 ेस व ि त

समाचारप , इले ॉ नक मी डया के अंतगत ट वी एवं रे डयो चैनल पर सरकार के


व भ न वभाग, सं थान, कंप नयाँ आ द अपने यहाँ आयोिजत काय म या फर
कसी वशेष काय के लए गए नणय, बैठक आ द के बारे म ेस व ि त तैयार
कर भजवाने का आजकल एक कार से रवाज ह ारंभ हो गया है । यहां तक क
ेस स मेलन, ेस का स, कसी व श ट आयोजन आ द म भी पहले से तैयार
ेस व ि त प कार को दान क जाने लगी ह । स
े वपि त समाचार का बड़ा
ोत इस प म है क संवाददाता इससे ामा णक जानकार ा त कर अपने समाचार
को पूरा कर लेता है , इससे बाद म कसी कार क ववाद क कोई गु ज
ं ाईश नह ं
रहती । स
े व ि त भी कई बार हू बहू समाचार श ल म तैयार कर द जाती है तो
कई बार घटना, समारोह, नणय के ववरण के प म समाचारप , इले ॉ नक
मी डया के चैनल तक पहु ँचती ह । सूचना के इस ोत का समाचार लेखन म बड़ा
योगदान होता है । जाग क प कार स
े व ि त का बेहतर न उपयोग खबर के लए
करता है तो कई बार स
े व ि त भेजने वाले को यह लाभ भी मलता है क उसके
वारा े षत सूचना हू बहू समाचार बन जाती है । यह इस बात पर नभर करता है
क ेस व ि त भेजने वाले ने समाचारप क अनुकू लता का कतना यान रखा
है । बहरहाल, ेस व ि त समाचार का बड़ा ोत है ।

2.6.2 पु लस थाने एवं अ पताल

वतमान समाचार के बड़े ोत के प म इनका अ य धक मह व है । कसी कार


क घटना, दुघटना के बारे म सबसे पहले प कार पु लस थाने या फर अ पताल
से ह जानकार ा त करता है । थान वशेष पर होने वाले अपराध, दुघटना या
फर कसी ववाद के बारे म पु लस थान और अ पताल से ह सूचनाएं ा त क
जाती है । समाज म जो कु छ घ टत हो रहा है, उससे मानवीय भावनाएं जुड़ी होती
है । ऐसे म टं एवं इले ॉ नक मी डया कम ाय: इन थान से सतत स पक
बनाए रखते ह ता क कसी भी कार क घटना-दुघटना के बारे म यापक पाठक
वग, दशक- ोताओं को उसके बारे म जानकार द जा सके ।

45
2.6.3 सरकार एवं गैर सरकार सं थान

समाज से जुड़े सरोकार वाले सं थान , श ण सं थाओं, तकनीक एवं व ान


इं ट यूट आ द के अंतगत समाज को दशा दे ने वाले कौनसे नये कोस, श ण
ारं भ कए जाने वाले ह, कै रयर को ये कैसे दशा दगे या फर श ण से समाज
नमाण म इनक या भू मका रहे गी, इसे दे खते हु ए ान व ान से जु ड़े कूल,
कॉलेज, व व व यालय, सरकार एवं गैर सरकार श ण सं थान आ द समाचार
के उपयोगी ोत सा बत होते ह । प कार इनसे स पक रखते हु ए कई बार बेहद
मह वपूण समाचार जु टा लेता है ।

2.6.4 ेस स मेलन

व भ न बड़े सं थान , उप म , जन त न धय , सरकार वभाग , संसद,


वधानसभा तक म ेस स मेलन बुलाकर प कार को वशेष काय म, आयोजन,
लए गए व श ट नणय, बहु उपयोगी जानका रयां, आम जन के हत से जु ड़े मु
पर जानकार दे ने के लए ेस स मेलन का आयोजन कये जाते ह । इसके अंतगत
एक साथ टं एवं इले ॉ नक मी डया के त न धय को बुलाकर जानकार द जाती
है । जब ऐसा होता है तो प कार भी संबं धत या इतर वषय से जु ड़ी और जानका रय
के लए ेस स मेलन बुलाने वाले से न करके समाचार साम ी जु टाता है । फ म
अ भनेता, राजनेता, वशेष वषय से जु ड़ी नामचीन यि त व के लए कई बार ेस
वारा भी मट-द- ेस का आयोजन कया जाता है । इसम संबं धत यि त से उससे
जु ड़े सामािजक सरोकार वाले न कर समाचार का सृजन कया जाता है ।

2.6.5 जनस पक वभाग

समाचार ाि त का बेहद मह वपूण ोत के एवं रा य सरकार के जनस पक


वभाग होते ह । ाय: सभी रा य के िजला मु यालय पर सूचना एवं जनस पक
कायालय होते ह और वहां पद था पत सू चना एवं जनस पक अ धकार त दन िजले
म ि थत व भ न राजक य वभाग से संबं धत सूचनाओं को समाचार के प म तैयार
कर टं एवं इले ॉ नक मी डया तक पहु ंचाने क यव था करता है । वशेष
आयोजन, व श ट यि त क सैर, राजनी त के दौरे , मह वपूण सरकार बैठक
म होने वाले नणय आ द क समाचारप एवं इले ॉ नक मी डया तक पहु ंच ाय:
सरकार जनस पक कायालय के मा यम से ह होती है । दे श क राजधानी द ल
म भी व भ न रा य सरकार के अपने-अपने सू चना के ह जो रा य मी डया
तक सरकार े व ि तयां, मह वपूण नणय , आयोजन के समाचार े षत करते

ह । के सरकार वारा स
े इ फोमशन यूरो के ज रए व भ न सरकार वभाग
क योजनाओं, उपलि धयॉ को मी डया तक पहु ंचाया जाता है ।

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2.6.6 सा ा कार

समाचार के मह वपूण ोत के प म सा ा कार का व श ट थान है । सा ा कार


के अंतगत संवाददाता व श ट वषय के जानकार, मु ख राजनी त , वै ा नक,
फ म अ भनेता या अ य कसी कार के मह वपूण यि त व से यि तगत
सा ा कार के ज रए अपनी िज ासाओं का समाधान पाता है । संवाददाता जो न
सा ा कारदाता से करता है, उनके उ तर ह समाचार के प म यु त कर लेता
है । सा ा कार आधा रत समाचार इस प म व वसनीय और लोग के लए रोचक
होते ह क उनम कयास या कसी कार का संदेह नह ं होता है । टं एवं इले ॉ नक
दोन ह मी डया के लए सा ा कार समाचार का मु ख ोत है ।

2.6.7 यूज एजेि सयां

हालां क बदलते समय के साथ समाचारप के का शत होने वाले बहु सं करण और


इले ॉ नक मी डया के दूर-दराज पर तैनात ि ं गर के कारण समाचार स म तय
का मह व धीरे -धीरे कम होता चला गया है पर तु आज भी बड़े तर पर समाचार
स म तयां ह समाचार के मुख ोत होती है । समाचार स म तयां वयं समाचार
का सारण या काशन नह ं करती बि क टं एवं इले ॉ नक मी डया के लए इनका
संकलन, ेषण करती है । बड़े समाचारप वशेष? वदे श समाचार , कसी घटना,
संग से जु ड़े दूर दराज के मु पर आज भी समाचार स म तयां वारा े षत समाचार
पर ह अ धक नभर है । रा य से का शत होने वाले समाचारप को रा य के
अलावा अ य रा य और दे श के मह वपूण समाचार ात करने का मु ख ोत आज
भी समाचार स म तयां ह ह । समाचार स म तयां समाचारप एवं इले ॉ नक
मी डया चैनल को घटना वशेष का व रत समाचार एवं फोटो ेषण करती ह ।
मु खत: दे श म वतमान म स
े ट ऑफ इि डया, यूनाइटे ड यूज ऑफ इि डया,
भाषा, वाता, ह दु तान समाचार आ द समाचार एजेि सयां दे शभर के समाचारप
एवं इले ॉ नक मी डया को अपनी समाचार सेवाएं दे ती है । अ तरा य समाचार
एजेि सय के अंतगत ए.पी. अमे रका, रायटर, आईएनएस, यू.पी.आई., ए.एफ.पी.,
तास आ द मुख ह । ये व वभर के मी डया को समाचार एवं फोटो सेवाएं दान
करती है ।

2.7 समाचार लेखन एवं तु तीकरण


संवाददाता व भ न ोत से समाचार ा त करने के बाद समाचारप या फर इले ॉ नक
मी डया के अपने चैनल क अनुकू लता के हसाब से उसे लखता है । समाचार लेखन से पहले
वह इस बात पर ह वचार करता है क कैसे उसक शु आत क जाए । समाचार म कौनसी
ऐसी मह वपूण जानकार है िजसे पहले द जाए और बाद का म कैसे रखा जाए, यह
संवाददाता समाचार लेखन म पहले-पहल तय करता है । समाचार लेखन के अंतगत संवाददाता-
 त य का संकलन करता है ।
 उनसे संबं धत संदभ क तलाश करता है ।
47
 आव यक हो तो उससे संबं धत यि त के व त य को भी लया जाता है ।
 व त य संकलन के बाद समाचार लेखन क काय योजना बनायी जाती है ।
 इसके बाद आमु ख तैयार करता है ।
 आमु ख के बाद के त य का म नधारण करते हु ए समाचार संबध
ं ी ा त अ य सू
और साम ी को समायोिजत करते हु ए समाचार का समापन करता है ।
समाचारप और इले ॉ नक मी डया म समाचार के लेखन का अलग-अलग तर का होता
है । समाचार से आशय है सबसे पहले तो या हु आ फर कैसे हु आ और अंत म इसके या
प रणाम ह गे । मु यत: समाचार का लेखन करते समय उसके तीन ह से कए जाते ह ।
थम समाचार का आमुख या इं ो, वतीय भाग समाचार का व तार और तीसरा भाग उसका
अंत । समाचार लेखन के अंतगत इस बात का यान वशेष प से रखा जाना चा हए क
समाचार का मह व कस प म ह । उसी आधार पर उसका इं ो अथात ् आमु ख लखा जाता
है । समाचार का आरंभ अ य धक आकषक और भावी होना चा हए । दरअसल आमुख ह
समाचार का वह ह सा होता है िजसे पढ़ते ह उसे आगे प ने या न प ने का टं मी डया
के अंतगत पाठक मानस बनाता है । ऐसे ह इले ॉ नक मी डया के अंतगत कसी खबर या
समाचार का रोचक, भावशाल शैल से शु आत करने से ह उसके आगे दे खे जाने का दशक
का मन करता है । इस प म समाचार का इं ो ऐसा होना चा हए जो पाठक या दशक म
अपने श द से ऐसा जादू जगाए क उसे हण करने वाला उससे मो हत होते उससे बंधता
चला जाए । आमुख सधे हु ए श द म ऐसा होना चा हए जो सं तता के साथ अपने उ े य
क पू त कर यानी िजससे पहल नजर म ह पाठक या दशक समाचार के मंत य को जानते
उसे आगे जानने के लए उ सु क बना रहे । इं ो या आमुख मु यत: समाचार के छ: ककार
क अवधारणा पर आधा रत होते ह । छ: ककार- “कब, कसने. कहां, य , कैसे, और या”
ह । समाचार के अंतगत घटना, पा , थान, समय, कारण और िज ासा से जब समाचार
ारं भ कया जाता है तो उसम इन छ: ककार का ह योग सु नि चत कया जाता है । सभी
समाचार सामा यतया इ ह ं पर आधा रत होते ह ।
समाचार के दूसरे ह से के अंतगत समाचार का व तार कया जाता है । इसके अंतगत इं ो
म जो जानकार द जाती है, उसे सु नयोिजत तर के से सल सलेवार आगे बढ़ाया जाता है
। समाचार के व तार भाग को दरअसल समाचार क दे ह कहा जाता है । इसके अंतगत समाचार
से जु ड़े व भ न अ य आव यक त व का उ लेख कया जाता है । कई बार ऐसा भी होता
है क समाचार के व तार भाग के अंतगत ह समाचार का अंत भी न हत होता है । ऐसा
य द नह ं होता है तो समाचार के अं तम भाग को व श ट प से लखा जाता है । इसका
अथ यह है क समाचार पूरा लखे जाने के बाद अंत म उसके समाहार के प म उसके भ व य
के प रणाम के संदभ म कसी कार क आशंका या संभावना य त क जाती है ।
समाचार लेखन के अंतगत इस बात का सदै व यान रखा जाना चा हए क वह कस मा यम
के लए लखा जा रहा है । समाचारप म कोई लखा हु आ समाचार बेहद आकषक, रोचक
हो सकता है, ज र नह ं है क वह रे डयो या दूरदशन या कसी नजी चैनल के लए भी उतना
ह रोचक व मह वपूण बना हो । ऐसे म सावधानी यह रखी जानी ज र है क समाचार लखने

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से पहले उसके मा यम के बारे म यान रखते हु ए उसका लेखन कया जाए, चू ं क समाचारप ,
रे डयो, ट वी आ द मा यम के लए समाचार लेखन का व प अलग-अलग होता है । मसलन
रे डयो एवं ट वी के लए समाचार जब लखा जाता है तो हर समाचार के लए पृथक पृ ठ
पर उसका त यवार योरा लखा जाता है । समाचार लेखन म यहाँ पर य के लए अंतराल
को भी वशेष प से यान म रखना पड़ता है । अंतराल म या तो य च या फर छाया च
के लए अलग-अलग अव ध को ि टगत रखते हु ए समाचार तु त कया जाता है ।
इले ॉ नक मी डया के लए समाचार लेखन इस प म भी चुनौतीपूण होता है क वहाँ य
एवं य को यान म रखते हु ए लेखन करना होता है । ऐसे समाचार म सरल, सहज श द
का योग तो हो ह साथ म उनक शैल ऐसी हो िजससे दशक या ोता समाचार को अपना
ह सा मान । टं मी डया म भी समाचार लेखन के लए तयशु दा मापदं ड को मानते हु ए
लेखन नह ं कया जाना चा हए । पाठक को यान म रखते हु ए कैसे समाचार पाठक के प रवेश
का ह सा बने, कैसे वह पाठक म उ सु कता को अंत तक बनाए रखे? इन न पर वचार
करके य द समाचार लेखन कया जाए तो न केवल वे भावी ह गे बि क अपना असर भी
पाठक पर अंत तक बनाए रखगी ।
सामा यतया य ोत का उ लेख समाचार म कर दया जाता है । पर तु कई बार
व वसनीय ोत के वारा जानकार ा त कर संवाददाता समाचार का लेखन करता है । ऐसे
म वह उस ोत का सीधे तौर पर उ लेख नह ं करता है । ऐसे म समाचार जब लखा जाता
है तो संवाददाता उसम '' व वसनीय सू के अनुसार” या फर सू से ा त जानकार के
अनुसार ' या फर “जानकार सू के अनुसार” आ द श द का इ तेमाल करते हु ए समाचार
का लेखन करता है ।
समाचार का सवा धक मह वपूण , व वसनीय च लत और मा य ोत सरकार के व भ न
वभाग भी होते ह । रा य एवं के सरकार के सू चना एवं जनस पक वभाग समाचार के
मु ख ोत इस प म होते ह क उनके ज रए जन क याण, आम आदमी से सरोकार वाल
योजनाओं, प रयोजनाओं के बारे म समाचारप को नय मत प से साम ी ा त होती है
। सरकार एजे सी वारा उपल य करायी गयी जानकार स
े व ि त, सरकार वभाग,
मं ालय, कायालय अ धकार वारा बुलायी गयी स
े का स, ेस स मेलन के ज रए
समाचारप तक पहु ंचती ह । सरकार के सूचना एवं जनस पक अ धकार समाचारप एवं
इले ॉ नक मी डया से य त: सतत स पक बनाए रखते ह ता क सरकार नी तय ,
काय म , उपलि धय , जनता से सरोकार वाले मु पर सरकार के ख आ द को यापक
लोग तक टं एवं इले ॉ नक मी डया वारा पहु ंचाया जा सके ।
समाचार ोत के अंतगत समाचारप के संवाददाता के स पक का दायरा िजतना व तृत होगा ,
उतना ह वह समाचार के मामले म समृ होता है । संवाददाता क अपने समाचार ोत के
त िजतनी अ धक व वसनीयता होगी, उतने ह मह वपूण समाचार प ा त कर उ ह
समाचारप हे तु लख सकता है । इसी आधार पर उसे कई बार बेहद मह वपूण समाचार भी
हा सल हो जाते ह । संवाददाता के अपने ोत के साथ ह उसक वयं क स यता भी उससे

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अ छे समाचार कई बार लखवा लेती ह । मसलन वह अपने आस-पास के प रवेश, संभा वत
घटनाओं के त कतना सजग है, उसे कसी वषय वशेष क संभावना या आशंका के बारे
म ता कक व लेषण क कतनी मता है, आ द ऐसी बहु तेर बात ह िजनके आधार पर कई
बार बेहद मह वपूण समाचार समाचारप को मल जाते ह । अपराध, दुघटना वाले थान
पर संवाददाता को वयं उपि थत होकर घटना, समाचार का योरा लेते हु ए उससे संबं धत
समाचार लखना होता है तो अकाल, बाढ़ आ द के समय क घटनाओं का सू म एवं बार क
मू यांकन य द करना उसे आता है तो वह समाचारप पाठक के लए कई बार मागदशन का
काय भी अपने समाचार के ज रए कर दे ता है । यहाँ भी मह वपूण उसक वयं क स यता
और उसके यि तगत ोत ह होते ह ।
बहु त पहले इन पंि तय का लेखक जब वतं प का रता के अंतगत ‘सा ता हक ि ल ज़’
के लए खोजी प का रता से संब समाचार लेखन से नय मत जु ड़ा हु आ था तो ऐसे ह
यि तगत संपक के कारण कई बार बेहद मह वपूण ऐसे समाचार भी ा त हु ए जो थानीय
दै नक समाचारप को भी तब उपल ध नह ं हो पाए थे । याद पड़ता है बीकानेर के पी.बी.एम.
अ पताल म डाँ टर क लापरवाह से एक म हला को माँ बनने के सु ख से सदा के लए वं चत
होना पड़ा था । च क सक ने म हला को अव धपार इंजे शन लगा दया था । रा को म हला
के बहु त अ धक र त ाव होने लगा और डाँ टर को उसक ब चेदानी नकालनी पड़ी । रा
म कोई दो बजे के कर ब यि तगत स पक सू के अनुसार इस संबध म इन पंि तय के
लेखक को जब जानकार मल तो व रत लेखक अ पताल पहु ँ चा और तभी च क सक क
इस लापरवाह क जो रपट तैयार क उसका फायदा यह हु आ क अ पताल म लगायी जाने
वाले अव धपार इंजे शन क पोल खुल और इससे अ पताल क यव थाओं म तो सुधार हु आ
ह च क सक क लापरवाह से होने वाले नुकसान से भी मर ज को नजात मल ।
समाचारप वारा समाचार लेखन के अपने ोत के बारे म डेटलाईन के बाद उसक जानकार
दे ता है । संवाददाता वयं के तर पर जब वशेष जानकार जु टाता है और उसको ए स लू िजव
के प म लखता है तो वह उसका अपना वशेष समाचार होता है और ाय: उसके नाम से
ह समाचारप म वह का शत होता है । ऐसे समाचार बाइलाईन (संवाददाता के नाम के साथ)
का शत होते ह । इसी कार संवाददाता जब कसी ेस व ि त से समाचार बनाता है तो
समाचार ोत के प म ( व.) लखा जाता है । समाचार एजेि सय से ा त समाचार म
डेटलाईन के बाद संबं धत एजे सी का सं त नाम (रायटर/पीट आई/यूएनआई/भाषा/वाता
आ द) लखा जाता है ।
समाचार लेखन एवं तु तकरण के संबध
ं म नाथ ि लफ का यह कथन अ य धक सट क
है- “समझाइए, सरल बनाइए और प ट क िजए ।''
इस संबध
ं म महाक व अ ेय का यह कथन भी अ य त मह वपूण ह- “श द म का प
है । इसे न ट न कर और कम श द म अ धक बात कहने क कला सीख ।”'
दरअसल समाचार लेखन और तु तकरण के अंतगत साम यकता के साथ ह जनाकषण का
यान रखा जाना बेहद ज र है । इसी से वह अ धकतम पाठक , दशक और ोताओं म अपनी
पैठ बना पाता है । जन च, लोग के आकषण, त य क स चाई, पाठक के श ा तर,

50
जनमत नमाण म सहयोग आ द ऐसी बात ह, िज ह यान म रखकर समाचार का लेखन,
तु तकरण कया जाए तो लोकतं के चौथे त भ के प म मी डया क भू मका म समाचार
अपनी भावशाल भू मका नि चत ह यापक पाठक वग पर बनाता है । संवाददाता इसे यान
म रखते हु ए काय करे तभी उसके होने क साथकता सह मायने म स होती है ।

2.8 समाचार का अनु वतन


संवाददाता का काय समाचार लेखन तक ह सी मत नह ं होता बि क वह समाचार के बाद
भी उससे संबं धत त य का एक कार से पीछा करता है । गत दवस के समाचार क अगल
और नवीन सू चना क ाि त क या को ह दरअसल खबर का अनुवतन करना कहते
ह । समाचार का फॉलोअप समाचार के मह व को यान म रखकर कया जाता है । फॉलोअप
के अंतगत समाचार के पहले के त य, बाद म होने वाले प रणाम और भ व य म संभा वत
प रणाम को यान म रखते हु ए संवाददाता बेहद सावधानी से ववेक और तक शि त के साथ
िजतने भावी तर के से करता है, उतना ह उसका पाठक य मह व बनता है । जब कभी सू खा,
बाढ़, कसी वशेष कार के ह याकांड, वा षक बजट, क मत म उछाल, कर लगाए जाने आ द
का काय कया जाता है तो संवाददाता ऐसे समाचार का फॉलोअप करता है ।
बोध न -
1. सं वाददाता का अथ या है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. लाइनर कसे कहते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. टाफस कौन होते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

2.9 सारांश
सू चना ौ यो गक के इस दौर म सूचनाओं का जैस-े जैसे तेजी से व तार हो रहा है, वैसे ह
जनता के लए उनका उपयोग भी नरं तर बढ़ता जा रहा है । लोकतं म मी डया को चौथा
त भ माना गया है । चौथे त भ का काय जनमत नमाण का होता है, जनमत नमाण
म समाचार क ह आज मु ख भू मका है । यह चौथा त भ जनता क ओर से सरकार पर
नजर रखता है और सरकार के कायकलाप से जनता को सू चत करता है, जानकार बनाता
है । ऐसे म समाचार लखने वाले संवाददाता का काय भी अब बेहद चु नौतीपूण हो गया है
। समाचारप म वभ न तर पर काय करने वाले संवाददाताओं का काय उनक कृ त
के अनुसार अलग-अलग वभािजत ह । संवाददाता समाज म जो कु छ घ टत हो रहा है, उसक
यवि थत सू चना टं एवं इले ॉ नक मी डया के मा यम से बहु सं य लोग को दे ता है ।

51
ऐसा जब वह करता है तो जनमत नमाण म वत: ह उसक मह वपूण भू मका हो जाती
है । समाज और मी डया को अलग नह ं कया जा सकता, चू ं क समाज म रहते ह वह समाचार
के अपने ोत क तलाश व भ न तर पर करता है । इन ोत क तलाश के बाद ह वह
समाचार को सु नयोिजत तर के से लखता और तु त करता है । इस इकाई म संवाददाता,
समाचार ोत एवं संकलन के बारे म ह व तार से जानकार द गयी है ।

2.10 श दावल
 समाचार स म त - वह सं था जो नधा रत दर पर प -प काओं एवं इले ॉ नक मी डया
को समाचार दे ती है, जैसे भाषा, यू नवाता, रायटस, ेस ट ऑफ इि डया, आ द ।
 बाइ लाईन - समाचार के ऊपर समाचारदाता के नाम का जब उ लेख कया जाता है तो
वह बाइ लाईन कहलाती है ।
 डेट लाईन - समाचार के ारं भ म थान तथा दनांक का जो उ लेख कया जाता है, उसे
डेट लाईन कहा जाता है । इसम समाचार ेषण या लेखन के थान, दनांक ओर म हने
का उ लेख होता है ।
 फॉलो अप - दूसरे दन के समाचार । वशेषत: कई दन तक चलने वाले ऐसे समाचार
जो कसी पूव के का शत समाचार के बाद का ववरण एक कार से दे ते ह ।
 कू प - ऐसा कोई वशेष समाचार जो अ य कसी समाचारप म का शत नह ं हु आ हो।

2.11 कुछ उपयोगी पु तक


संवाद और संवाददाता - राजे , ह रयाणा सा ह य अकादमी, चंडीगढ़
योजनमू लक ह द - ो. रमेश जैन, नेशनल पि ल शंग हाउस, जयपुर
जनसंचार और ह द प का रता - डॉ. अजु न तवार , जयभारती काशन, इलाहबाद
प का रता प रभाषा कोश - वै ा नक एवं तकनीक श दावल आयोग, नई द ल
ह द प का रता क दशाएं - जोगे संह, सु रे कु मार एंड संस, शाहदरा, द ल
जनसंचार व वकोश - ो. रमेश जैन, नेशनल पि ल शंग हाउस, जयपुर

2.12 अ यासाथ न
1. संवाददाता क प रभाषा एवं समाचारप म काय वभाजन के हसाब से उसक व भ न
े णय पर काश डा लए।
2. समाचार से या आशय है? समाचार के व भ न ोत बताते हु ए समाचार के लेखन क
तकनीक क जानकार द िजए।
3. संवाददाता के समाचार संकलन ोत बताते हु ए समाचार लेखन एवं अनुवतन को
समझाइए।

52
इकाई- 3
सा ा कार
इकाई क परे खा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 अ भ ेरणा
3.3 सा ा कार का अथ एवं व प
3.4 सा ा कार और अ य वधाएं
3.5 सा ा कार क उपयो गता एवं मह व
3.6 सा ा कार के उ े य
3.7 सा ा कार के कार
3.8 सा ा कार क वध
3.9 सा ा कार क या
3.10 सा ा कारकता क वशेषताएं
3.11 सा ा कार : एक कला
3.12 टं -मी डया म सा ा कार
3.13 इले ॉ नक-मी डया म सा ा कार
3.14 सारांश
3.15 श दावल
3.16 कु छ उपयोगी पु तक
3.17 अ यासाथ न

3.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन करने के बाद आप -
 सा ा कार का अथ एवं प रभाषा का ान ा त कर सकगे ।
 सा ा कार और उसक अ य वधाओं को जान सकगे ।
 सा ा कार का मह व, उपयो गता एवं उ े य क जानकार मल सकेगी ।
 सा ा कार क अ य वधाओं से तुलना करके उसके व प को जान सकगे ।
 सा ा कार के व भ न कार से प र चत हो सकगे ।
 सा ा कार लेने क या एवं व ध को जान सकगे ।
 सा ा कारकता क वशेषताओं क जानकार ा त हो सकेगी ।
 टं -मी डया और इले ॉ नक-मी डया म सा ा कार कैसे लए जाएं, इस तकनीक को जान
सकगे ।
 आप सा ा कार म व श टता ा त कर पारं गत हो सकगे ।

53
3.1 तावना
िज ासा मानव क सहज वृि त है । एक ओर वह बा य सृि ट के वषय म जानने को उ सु क
रहता है तो दूसर ओर अ य मानव के अंतजगत म सं चत अनुभव का लाभ उठाने क आकां ा
मन म रहती है । इसके साथ ह हर यि त म अपने अंतजगत को उ घा टत कर दे ने क
सहज वृि त व यमान है । बा य-जगत को दे खकर, उसम वचरण कर, मन पर पड़े भाव
और अनुभू तय का वह कट करण कर दे ना चाहता है । सं चत व भ न अनुभव , ान तथा
फुरणाओं को अ भ य त कर दे ने म वह संतोष और आनंद क अनुभू त करता है । दूसर
के साथ वैचा रक आदान- दान से उसे तृि त मलती है । िज ासा और अ भ यि त एक-दूसरे
क पूरक है । एक जानना चाहता है , दूसरा बताता है , जानकार दे ता है, अपने वचार अ भ य त
करता है । अपने अनुभव , वचार आ द से दूसर को ेरणा और लाभ दे ना चाहता है । यह ं
सा ा कार का बीज- प है ।
पछले कु छ दशक म अनेक नवीन वधाएं वक सत हु ई ह, उनम 'सा ा कार' का नाम वशेष
उ लेखनीय है । सा ा कार एक नव वक सत, वतं , उपयोगी और मह वपूण वधा है ।
इसम िज ासु यि त कसी व श ट सा हि यक, राजनेता, समाजसेवी, कलाकार, वै ा नक,
शासक, प कार, संत, उ योगप त, फ म-जगत के यि त, अ य व श टजन अथवा
सामा यजन से वयं भट करके, उससे वाता, न, बहस, करते हु ए उसके यि त व, जीवन,
कृ त व, प रवेश, वचार , योजनाओं आ द के वषय म सीधे जानकार ा त करता है । कभी
यह जानकार टे ल फोन, प , क यूटर , इंटरनेट आ द के मा यम से भी ा त क जाती है
। कभी वह सं चत साम ी अथवा क पना के आधार पर न और संभा वत उ तर वयं लख
दे ता है । सा ा कार को इंटर यू, भटवाता, मु लाकात, बातचीत, संवाद आ द भी कहा जाता
है ।

3.2 अ भ ेरणा
सा ा कार क मू ल अ भ रे णा िज ासा-समाधान, ान और सं चत अनुभव से लाभ पहु ँचाना
तथा उठाना है । िज ासु ाय: प कार ह होता है, जो कसी वशेष यि त से उसके बारे
म बातचीत और न के मा यम से जानकार ा त करके प -प का के ज रए उसे दूसर
तक पहु ँचा दे ता है । दूरदशन (ट वी) और आकाशवाणी (रे डयो) पर यह जानकार सीधे ह
दशक - ोताओं तक पहु ँच जाती है । व श ट यि त के जीवन, यि त व, कृ त व, वचार
से दूसर को ेरणा मल सकती है, उसके अनुभव से लाभ उठाया जा सकता है । कई नई
और ामा णक जानका रयाँ तो मलती ह ह । सामा यजन से मा जानकार ह ा त क
जाती है यह सा ा कार क अ भ रे णा है ।

3.3 सा ा कार का अथ एवं व प


य य प ाचीन भारतीय सा ह य म भट-वाता, सा ा कार, िज ासा-समाधान, संवाद, वातालाप
आ द के अनेक उदाहरण ा त होते ह, परं तु प का रता क वतमान वधा के प म सा ा कार

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पि चम से बन-संवरकर आया है । इसके अंतगत सामा यत: कोई प - त न ध कसी राजनेता
अथवा अ य व श ट यि त से मलता है, न के मा यम से सा ा कार के वषय पर
जानकार ा त करता है और उसके वचार जानता है । कुछ सा ा कार जानकार हा सल करने
पर केि त होते ह और कुछ म वचार या ' टड' जानना मह वपूण होता है ।
द रडमहाउस ड शनर आफ द इंग लश ल वेज म कहा गया है – ‘'सा ा कार उस वाता
अथवा भट को कहा गया है िजसम लेखक अथवा संवाददाता कसी यि त अथवा क ह ं
यि तय से न पूछकर कसी समाचारप के काशन अथवा टे ल वजन से सारण हे तु
साम ी एक करता है ।'’ आ सफोड इंग लश ड शनर म '' कसी ब दु वशेष प को लेकर
औपचा रक वचार- व नमय हे तु य भट करने, पर पर मलने या वमश करने, कसी
प - त न ध वारा काशन हेतु व त य लेने के लए कसी से भट करने को सा ा कार कहा
गया है ।'’
डॉ. नगे के अनुसार- ‘'इंटर यू (सा ा कार) से अ भ ाय उस रचना से है िजसम लेखक
यि त- वशेष के साथ सा ा कार करने के बाद ाय: कसी नि चत नमाला के आधार पर
उसके यि त व एवं कृ त व के संबध
ं म जानकार ा त करता है और फर अपने मन पर
पड़े भाव को ल पब कर डालता है ।'' डॉ. चं भान रावत का कथन है - ''बहु त-से लोग यह
मानते ह क नावल वारा ा त साम ी तथा इंटर यू से ा त साम ी म अंतर नह ं, कं तु
नावल क अपनी सीमाएं ह, नावल इंटर यू नह ं हो सकती ।'' डॉ. ह रवंशराय ब चन
लखते ह- ''इंटर यू का येय है पढ़ने वाला यह अनुभव करे क जैसे वह क व- वशेष से मल
आया है, उसके पास हो आया है, उसे सू ंघ आया है, उसे गले लगा आया है ।''
मु ख सा ा कारकता डॉ. प संह शमा 'कमलेश' के अनुसार- ' इंटर यू दे ने वाला यि त अपनी
यो यताओं को वयं य त करता है और यह इंटर यू लेने वाले पर नभर है क वह इंटर यू
दे ने वाले को अपना व वासपा बनाकर उससे जो चाहे सो नकलवा ल । यह बड़ा क ठन
काय है जो ा, प र म तथा बु म ता पर नभर करता है ।''
मु ख प कार डॉ. नंद कशोर खा के श द म - ''भटवाता या समालाप (सा ा कार)
समाचार-संकलन का आव यक अंग ह नह ं है बि क इसके बगैर अ धकांश समाचार, सरकार
व त य, भाषण, सावज नक घोषणाएँ, व ि तयाँ और औपचा रक आयोजन के त य ववरण
मा होते ह । इन सबक खबर वभावत: एकप ीय या एकांगी होती है । इनम ' य ' और
'कैसे' पूछने क गु ज
ं ाइश नह ं होती, जब क ' य ' और 'कैसे' का उ तर ह खबर क जान
होता है । ' य ' और 'कैसे' सवाल इ ह ं के ज रए पूछे जा सकते ह । सामा य प म इंटर यू
को बहु त सरल वधा के प म माना जाता है, ले कन वा त वकता यह है क सा ा कार अथवा
भटवाता बहु त क ठन है । सा ा कारकाता को िजस यि त से भट करके चचा करनी होती
है उससे बहु त सी कह -अनकह बात का स य उगलवाना पड़ता है । यह भटवाता का सबसे
दुःखद और कठोर काय है । सा ा कारकता को संबं धत यि त के रचना मक प क िजतनी
अ धक और पु ट जानकार होगी वह इस वधा म उतना ह सफल माना जाएगा ।'’

55
व र ठ प कार रामशरण जोशी कहते ह- ''सा ा कार वधा को प का रता के आधारभू त स ांत
म से एक के प म दे खा जाना चा हए । आधु नक प का रता म इसका मह व पहले से कह ं
अ धक और बहु आयामी हो गया है । इले ॉ नक मा यम (टे ल वजन) के अि त व म आने
के प चात ् इसक भू मका का व तार हु आ है । आज प का रता 'ऑन लाइन प का रता' या
'इंटरनेट प का रता' के युग म वेश कर चुक है । अत: सा ा कार वधा क उपयो गता क
नई संभावनाएं पैदा हो गई ह । जहाँ पहले प कार हाथ म कापी-प सल थामे सा ा कार लया
करता था, आज क यूटर इन दोन को ाय: अपद थ करने क ि थ त म पहु ँच गया है ।
ई-मेल के मा यम से लंब-े लंबे सा ा कार लये जा रहे ह । व भ न चैनल के ' यूज -बुले टन '
म 'सैकंडजीवी' एवं ' मनटजीवी' सा ा कार क उपि थ त उ ह जीवंतता दान कर रह है
। मु ण-मा यम अथात ् प -प काओं म सा ा कार का योगदान इ तहास स है ।''
इस कार सा ा कार, मी डया क एक अ नवाय वधा के पम ति ठत हो गया है । बना
सा ा कार के मी डया अधूरा माना जाता है । इसी लए प कार , संपादक , उपसंपादक ,
रपोटर , लेखक तथा इले ॉ नक-मी डया (ट वी-रे डयो) के त न धय आ द का
सा ा कार- वधा म पारं गत होना आव यक समझा जाता है ।

3.4 सा ा कार और अ य वधाएं


सा ा कार एक वतं , सम और सश त वधा के प म अपना थान बना चु का है । इसके
वधाकार क सूची वशाल है । सा ा कार म कह ं-कह ं जीवनी, आ मकथा, सं मरण,
रे खा च , नबंध, नाटक, आलोचना आ द के त व दखाई दे ते ह, कभी-कभी सा ा कार-नायक
कोई क वतांश भी सु ना दे ता है, परं तु ये सभी त व सा ा कार के सहायक प म ह होते ह
और सा ा कार को रोचक, जानकार से यु त, अलंकृ त तथा भावी बनाते ह । य द ये त व
सा ा कार पर हावी हो जाएंगे तो सा ा कार, सा ा कार ह नह ं रहे गा ।
सा ा कार म सा ा कारकता कह -ं कह ं ( टं -मी डया के सा ा कार म) सा ा कार-नायक
अथवा सा ा कार- थान आ द का नबंधा मक वणन करता है, पर तु वह सं त होना चा हए
तथा यह सा ा कार को आगे बढ़ाता है । अत: सा ा कार नबंध नह ं हो सकता ।
सा ा कारकता नायक का कभी-कभी रे खा च -सा खींचता है, परं तु वह रे खा च - वधा का प
नह ं होता । सा ा कार म उसका नायक अपने जीवन के वषय म आ मकथा मक शैल म
कु छ बताने लगता है अथवा अपने जीवन के सं मरण सु नाने लगता है । इनका उपयोग
सा ा कार का वकास करने म होता है । सा ा कार म संवाद का अ य त मह वपूण थान
है, परं तु वे नाटक के संवाद से अलग होते ह । सा ा कार संवाद के होते हु ए भी नाटक नह ं
है । सा ा कार-नायक अपनी या दूसर क रचनाओं अथवा कृ त व पर आलोचना मक
ट प णयाँ भी कर दे ता है, परं तु वे वतं आलोचना- वधा नह ं होती । कभी-कभी नायक कोई
क वतांश भी सु ना दे ता है, परं तु वह सा ा कार का ह ह सा होती है , वतं क वता- वधा
ं ह नग य है, फर भी कसी वषय क
नह ं होती । अ य वधाओं से सा ा कार का संबध
वृ त और मा यम क वशेषताओं का भी सा ा कार पर सबसे गहरा भाव होता है ।

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इस कार प ट है क अ य वधाओं के त व सा ा कार म सी मत मा ा म सहायक प
म ह हो सकते ह । ये सभी सा ा कार को आगे बढ़ाते ह उसे रोचक, सु ंदर और भावी बनाते
ह ।

3.5 सा ा कार क उपयो गता एवं मह व


सा ा कार क उपयो गता और मह व असं द ध है । इसके वारा हम यि त- वशेष, कसी
वषय के बारे म अ धका धक, नवीन, मह वपूण और ामा णक जानकार ा त करते ह, उसे
सम प से जानने का य न करते ह । टे ल वजन पर उस यि त को दे खने तथा उसक
भाव-भं गमाओं के अवलोकन का दुलभ अवसर ा त करते ह । सा ा कार से ा त जानकार
उपयोगी और मह वपूण होती है ।
डॉ. सकलदे व शमा का कथन है - ''सा ा कार पढ़ते समय अप र चत, अनदे खा रचनाकार पाठक
से -ब- होता है ।इससे लेखक और पाठक के बीच तादा य क सृि ट होती है । ववरण
व वसनीय और ामा णक लगता है । आप कह सकते ह क नगु ण और नराकार रचनाकार
सगुण साकार हो उठता है । ''
ो. अफगान उ लाह खां लखते ह - ''चू ं क बातचीत करने वाले का अपने पसंद दा कलाकार
के साथ भावना मक लगाव या आ मीयता का र ता कायम हो जाता है । इस लए वह कलाकार
के अंतरं ग म ताक-झांक करने और उसे कर ब से जानने क को शश करने लगता है, जो सहज
या मानवीय वृि त है और तकसंगत पहचान भी । इस लए यादातर बातचीत फनकार के
नजी जीवन और वचार से संबं धत सवाल-जवाब क बु नयाद तैयार हो जाती है । ''

3.6 सा ा कार के उ े य
सा ा कार एक सो े य या है । सा ा कार कसी यि त वशेष के यि त व और कृ त व
पर भी केि त हो सकता है और यह कसी मह वपूण वषय पर कसी यि त के वचार
जानने पर भी केि त हो सकता है । इसके अनेक उ े य ह । सम सा ा कार म
सा ा कार-नायक या पा से आरं भ म यह पूछा जाता है क वह इस े म कैसे आया? य द
सा ह यकार है तो सा ह य म प कार है तो प का रता म, राजनेता है तो राजनी त म, कलाकार
है तो कला े म, खलाड़ी है तो खेल जगत म आ द । फर उसके ारं भक जीवन, श ा
आ द के वषय म जाना जाता है । इस कार पा के जीवन के वषय म जानकार ा त
करना सा ा कार का उ े य होता है ।
फर उसके कृ त व के बारे म जानना सा ा कार का उ े य होता है । उसने या- या रचनाएं
लखीं अथवा च बनाए, समाजसेवा क आ द । फर व भ न वषय , यि तय आ द के
वषय म उसके वचार जाने जाते ह । त प चात ् उसक चय , दनचया, योजनाओं क
जानकार ल जाती है । पा के बा य का वणन सा ा कारकता कर दे ता है । इस कार पा
के अंतबा य को जानना सा ा कार का मु य उ े य होता है ।
सा ा कार का दूसरा मु ख उ े य जानकार से पाठक को अवगत कराना होता है । अत:
सा ा कार कसी प -प का म का शत कया जाता है । ट वी-रे डयो पर सा ा कार का सजीव

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(त काल) सारण होता है अथवा रकाड करके उसे बाद म सा रत कया जाता है । कसी
वषय पर केि त सा ा कार का सबसे मह वपूण पहलू गहन अनुसंधान और ऐसे न तैयार
करना है क सा ा कार म कु छ नया और मह वपूण नकल कर आए ।
ट वी- रे डयो के लघु-सा ा कार म कसी घटना, व त य आ द के वषय म लोग के वचार
त या, सु झाव आ द जानना सा ा कार का उ े य होता है । कसी घटना- वशेष के वषय
म अ धक तथा व वध जानकार एक क जाती है ।

3.7 सा ा कार के कार


डॉ. नगे , डॉ. च भान, डॉ. व वनाथ साद तवार , डॉ. रामचं तवार , डॉ. रमेश
कं ु तलमेघ , डॉ. हरदयाल, नातक स यकाम वमा आ द आलोचक ने सा ा कार के मु यत:
दो कार बताए ह - वा त वक और का प नक । डॉ. व वनाथ शु ल ने इस वधा के तीन
प माने । वे लखते ह - ‘' ारं भ म हंद म तीन कार से इस वधा का सू पात हु आ- 1.
स लेखक के पास एक नि चत नावल भेजकर उनके उ तर ा त करना, 2. लेखक
से वयं मलकर य वातालाप वारा जानकार ा त करना, और 3. दवंगत सा ह यकार
से का प नक इंटर यू करना । आजकल वतीय कार के इंटर यू ह सवा धक च लत ह
और जीवंत होने के कारण उ ह ं को सव े ठ भी माना जाता है ।'’
डॉ. चं भान ने वा त वक इंटर यू के दो कार दए ह- 1. प कार के तथा 2. सा ह यकार
के सा ह यकार के इंटर यू भी उ ह ने दो कार के बताए ह- म त तथा एकांगी । उनके
अनुसार का प नक इंटर यू के तीन भेद ह- प रहास, यं य च ा मक तथा वगत सा ह यकार
के । डॉ. च भान ने यह वग करण ' प क ि ट' से कया है । समय क ि ट से इंटर यू
के दो वग कए ह- एक बैठक म लए गए इंटर यू तथा दूसरा कई दन म लए गए इंटर यू
। उनका कथन है - ‘'वा त वक इंटर यू म आज म त और एकांगी इंटर यू च लत ह ।
म त इंटर यू म जीवन-प रचय, समय-प रचय, ि टकोण, रचना-प रचय आ द सभी का
म ण रहता है और आजकल इसी कार के इंटर यू बहु त दे खने म आते ह ।'’
डॉ. व वनाथ साद तवार लखते ह- ''इंटर यू वा त वक और का प नक दोन कार के
होते ह । वा त वक इंटर यू म लेखक यि तगत सा ा कार करता है और अपने ा त त य
का ववरण दे ता है । का प नक इंटर यू म य य प यि तगत सा ा कार नह ं होता, क तु
यथाथ का आ ह उसम भी धान होता है । य न यह रहता है क िजस यि त और संग
का इंटर यू तुत है वह अ धक से अ धक वा त वक हो ।''
स यकाम वमा के श द म ''समाचारप -संपादन म इंटर यू का अ य धक मह व है । कसी
भी वषय पर यि त के वचार जानने का सीधा तर का है - ' य समी ण' (सा ा कार)
। इसम यि त के अंतमानस का नर ण शी हो जाता है । का प नक इंटर यू या समी ण
भी लखे जाने लगे ह, इस कार के इंटर यू मृत यि तय के संबध
ं म भी का शत कए
जा रहे ह, इसम लेखक का अपना यि त व अ य प म ह झलकता है । यह कहना
ामक है क यि त व का कोई मह व नह ं होता । नकता के प म इंटर यू करने वाले

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का ह दा य व होता है समी यमाण यि त (सा ा कार-पा ) के अंतमानस क झाँक लेने
का । अत: लेखक क सतकता, ौढ़ता एवं सू म ा हणी शि त का भी प रचय उसी म
अंत न हत रहता है ।'’
डॉ. हरदयाल भी सा ा कार के दो कार मानते ह । उनका कथन है - ''इधर हंद म एक
नई ग य- व या वक सत हु ई है 'इंटर यू’ । इसक जो रचनाएं सामने आई ह, उनसे इसके
दो कार बन जाते ह - एक यथाथ इंटर यू अथात ् जी वत यि तय से मलकर इंटर यू -लेखक
उनके ह जीवन और वचार के संबध
ं म जानकार ा त करता है । हंद म अभी तक ऐसे
इंटर यू सा ह यकार से संब रहे ह । इनम सा ह यकार के वारा द गई उनक सा ह य-रचना
क ेरणा, सा ह य-सृजन क या आ द-आ द के संबध
ं म उनके वचार इक े कए गए
ह । इंटर यू का दूसरा कार 'का प नक' ह । इसम दवंगत यि तय से इंटर यू लेने क
क पना कर ल जाती है और उसके जीवन, रचना, वचार आ द को तु त कया जाता है।'’
प कार डॉ. नंद कशोर खा के अनुसार- ''भटवाताएं मु यत: दो कार क होती ह । एक -
कसी रोचक या मह वपूण यि त से भट और दूसर - ठोस समाचार के संबध
ं म भटवाता
।'' प कार डॉ. भंवर सुराणा ने सा ा कार के छ: मु ख कार नधा रत कए ह - 1.
पूव - नधा रत सा ा कार, 2. सव णाथ सा ा कार, 3. य व अ य सा ा कार, 4.
औपचा रक व अनौपचा रक सा ा कार, 5. पुनरावृि त , और 6. अचानक (आकि मक)
सा ा कार ।
ए मो कॉट वाटसन के मतानुसार- 1. त या मक समाचार सा ा कार, 2. यि तपरक अथवा
फ चर हे तु सा ा कार और 3. आ मकथा मक सा ा कार होते ह । व र ठ प कार रामशरण
जोशी सा ा कार को इस कार वग कृ त करते ह- आ मकथा मक, सं मरणा मक, च ा मक
एवं वणना मक, का प नक, संवादा मक, नो तरा मक, यि त वपरक, मु ापरक,
प रचचा मक, क तवार सा ा कार, योगा मक, औपचा रक, अनौपचा रक, व रत,
आकि मक और योजनाब , त या मक और मु ाब ।
सा ा कार के व भ न कार ह । व णु पंकज के अनुसार :-
1. व प के आधार पर
2. शैल के आधार पर
3. औपचा रकता के आधार पर,
4. संपक के आधार पर
5. मी डया के आधार पर
6. आकार के आधार पर,
7. वषय के आधार पर
8. वाताकार के आधार पर,
9. पा के आधार पर और
10. अ य आधार पर ।

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1. व प के आधार पर
(क) यि त न ठ- इसम यि त को पूरा-पूरा मह व दया जाता है ।
(ख) वषय न ट- इसम वषय को अ धक मह व दया जाता है ।
वषय न ट सा ा कार को भी तीन वग म रखा जाता है-
(अ) सामा य - इसम सामा य वषय को लेकर सा ा कार लया जाता है ।
(आ) वशेष - वषय के ब दु- वशेष को मु यतया इसम लया जाता है ।
(इ) व वध - इसम अनेक वषय न हत होते ह ।
2. शैल के आधार पर
(क) ववरणा मक, (ख) वणना मक, (ग) वचारा मक, (घ) भावा मक, (घ) हा य-
यं या मक, (छ) भावा मक और (ज) नो तरा मक ।
3. औपचा रकता के आधार पर
(क)औपचा रक - ये योजना बनाकर पा से समय लेकर लए जाते ह ।
(ख) अनौपचा रक - ये बना योजना के, अचानक और बना समय नधा रत कए लए जाते
ह ।
4. संपक के आधार पर
(क) य भट - इसम पा से य भटवाता क जाती है ।
(ख) प - इंटर यू - प वारा लए जाते ह ।
(ग) का प नक - (अ) गंभीर (इसम पा के उ तर या वचार उसक रचनाओं, व त य , डायर ,
प आ द से लए जाते ह, (आ) पूण का प नक, (इ) हा य- यं या मक ।
5. मी डया के आधार पर
(क) टं मी डया - प -प काओं, पु तक , अ भनंदन ं ,
थ मृ त थ
ं आद म का शत
होने वाले।
(ख) इले ॉ नक मी डया- ट वी, रे डयो, टे ल फोन, क यूटर , इंटरनेट, टे ल टं र, फै स,
ई-मेल आ द मा यम से लए गए सा ा कार ।
6. आकार के आधार पर
(क) लघु - ये छोटे सा ा कार होते ह और मनी इंटर यू कहलाते ह । ये अब वतं वधा
का प लेते जा रहे ह।
(ख) द घ - ये बड़े सा ा कार होते ह ।
7. वषय के आधार पर
(क) सा हि यक सा ह य वषय पर सा ह यकार से लए गए, सा हि यक ढं ग से लखे गए
सा ा कार इस ेणी म आते ह ।
(ख) सा ह येतर-सा ह य को छोडकर अ य वषय -प का रता, कला, संगीत, राजनी त, धम,
खेल, फ म, समाजसेवा, व ान आ द वषय से संब सा ा कार इस वग म आते ह
। ये प कार , कलाकार , संगीतकार , राजनेताओं, संत , खला ड़य , अ भनेताओं-
अ भने य , समाजसे वय , वै ा नक आ द से लए गए सा ा कार होते ह ।

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8. वाताकार के आधार पर
सा ह यकार, प कार, मी डयाकम (ट वी-रे डयो) तथा अ य सामा य अथवा व श टजन से
सा ा कार होते ह ।
9. पा के आधार पर
(क) व श टजन से लए गए सा ा कार ।
(ख) सामा यजन से लए गए सा ा कार ।
10. अ य आधार पर
(क) आ मसा ा कार - लेखक वयं अपना (का प नक) सा ा कार लखता है ।
(ख) सव ण, अनुसध
ं ान, नौकर , पर ा आ द के सा ा कार ।
ाय: यह दे खा गया है क कसी एक प त वारा सा ा कार नह ं लया जाता । उसम अनेक प तय
का समावेश हो जाता है । फर भी, िजस प त क धानता होती है, उसी वग म उसे रख दया जाता
है ।

3.8 सा ा कार क वध
सामा यत: सा ा कार लेने क एक या या व ध होती है । कस यि त का सा ा कार
कया जाए, यह तय करना इस या का पहला चरण है । सामा यत: सा ा कार व श टजन
के ह लए जाते ह, परं तु आजकल सामा यजन (आम आदमी, गृह थ , पी ड़तजन आ द) के
भी सा ा कार ( वशेषत: ट वी पर) खू ब लए जाते ह । बाहु बल, अपराधी आ द के भी सा ा कार
लए जाते ह । कभी-कभी प -प का के संपादक, ट वी-रे डयो के अ धकार तय कर दे ते ह
क अमुक यि त से सा ा कार लेना है । कभी-कभी सा ा कारकता वयं भी सा ा कार-पा
का चयन करता है ।
सा ा कार-पा तय हो जाने पर यह तय होता है क उसम कस वषय (या वषय ) पर बात
करनी है, सा ा कार कतना बड़ा लेना है, सम (टोटल) बातचीत करनी है आं शक । फर
पा से समय नधा रत कया जाता है । कभी-कभी बना समय तय कए भी सा ा कार लेना
पड़ता है । ट वी-रे डयो का सा ा कार ाय: टू डयो म बुलाकर अथवा कैमरा और रकाडर
के साथ पा के पास जाकर लया जाता है ।
प -प का के लए भी सा ा कार लेते समय टे प रकाडर का योग कया जाता है । कु छ साम ी
संक लत क जाती है अथवा हाथ से लखनी भी पड़ सकती है । सा ा कार लेते समय खे
ढं ग से एक के बाद एक लगातार न न पूछ जाएं, बातचीत भी क जाए, पूरक न भी
पूछे जाएं, पा के मू ड के अनु प वाता को मोड़ दया जाए । कसी न का उ तर य द टाल
दया जाए तो मौका दे खकर, भाषा बदलकर उस न को पुन : पा के सामने रखा जा सकता
है, परं तु फर भी य द पा उसका उ तर नह ं दे तो िज नह ं क जाए, अड़ा नह ं जाए ।
पा छोटा हो या बड़ा उसका आदर कया जाए, उसके उ तर , वचार को मह व दया जाए
। अपनी ओर से असहम त या नाराजगी कट न क जाए ।
सा ा कार म दे श के अ हत म अथवा समाज म व वेष फैलाने वाल बात नह ं होनी चा हए
। य द कसी कारणवश आ भी जाए तो संपा दत करते समय उसे हटा दया जाए । य द कभी
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ट वी-रे डयो के सजीव सारण के समय ऐसा हो जाए तो सा ा कारकता उसका त काल
नराकरण कर दे । य द कसी सा ा कार म पा को कई ब दु सा ा कार म न रखने को
कहे तो सामा यत: उसका अनुरोध मान लेना चा हए ।
सा ा कार शु करते समय (इले ॉ नक-मी डया म) पा का सं त प रचय दे दे ना चा हए
। टं -मी डया के सा ा कार म सा ा कार पूरा हो जाने पर तैयार करते समय ऐसा करना
चा हए । सा ा कार पूरा होते समय सा ा कार पा को ध यवाद दे ना न भू ल ।

3.9 सा ा कार क या
सामा यत: सा ा कार लेने के लए एक नि चत या अपनाई जाती है । कई बार इस या
का पूर तरह से पालन नह ं हो पाता, फर भी सा ा कारकता को एक या से तो गुजरना
ह पड़ता है, चाहे इसम कुछ प रवतन हो जाय अथवा सा ा कारकता वयं कर दे । साधारणत:
इस या के न न ल खत चरण हाते ह-
1. सा ा कार पा का चयन
कसी यि त का सा ा कार लया जाय, यह नि चत करना इसक या का पहला
चरण है । सा ा कार-पा का चयन कई बात पर नभर करता है । ल ध ति ठत
सा ह यकार , मु ख नेताओं, समाज के वश ट यि तय , कलाकार , गायक ,
संगीतकार , खला ड़य आ द के वषय म जानने के लए लोग सामा यत: उ सुक रहते
ह । अतएव प कार और लेखक इस कार के यि तय के सा ा कार लेने के लए अवसर
ढू ँ ढते रहते ह । पहले व श ट, स , महान ् अथवा उ लेखनीय यि तय से ह इंटर यू
लेना उपयु त समझा जाता था । बाद म साधारण, न न, उपे त अथवा कु यात लोग
के भी सा ा कार लये जाने लगे । कह ं आतंककार हमला हु आ है, डाका पड़ा है, बड़ी
चोर हु ई है, अपहरण हु आ है, कोई बड़ा या कु यात यि त पकड़ा गया है, आयकर वाल
का छापा पड़ा है, बला कार हु आ है, ए सीडट या दुघटना हु ई है, ाकृ तक आपदा आ
पड़ी है, कोई बड़ा खेल, मेला, तयो गता आ द का आयोजन हु आ है, चु नाव हु ए ह, कोई
बड़ा नेता जीत या हार गया है, दल-बदल या पाट गत व ोह हु आ है, कसी को पाट या
मं म डल से नकाला गया है, शेरनी के ब चे हु ए ह, कसी क ह या हु ई है, कसी ने
आ मह या क है…. मतलब क लोग हर तरह क खबर जानना चाहते ह, उसक तह म
जाना चाहते ह, य -कब-कैसे क जानकार चाहते ह । तो इनसे जु ड़े व भ न यि तय
के सा ा कार लए जाते ह । जो ट वी एवं रे डयो पर तो त काल दखा दए जाते ह,
शाम को या दूसरे दन अखबार म छप जाते ह । कुछ के सा ा कार लेने के लए ट वी
एवं रे डयो के अ धका रय , प -प काओं के संपादक से नदश मल जाते ह, कु छ के
सा ा कार, प कार, संवाददाता, ू ता,
त न ध आ द वयं लेते ह और समाचार क संपण
रोचकता दान करते ह । ऐसे सा ा कार छोटे होते ह और इनम सा ा कार के सोपान ,
इसक या का पालन करने का अवकाश नह ं होता ।

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कभी ऐसा भी होता है क नगर म कसी व श ट यि त का आगमन होता है तो थानीय
ट वी एवं रे डयो- त न ध, संवाददाता, प -प का से जु ड़ा प कार या लेखक उसका सा ा कार
लेना तय करता है अथवा इस काय के लए उसे नदश मलता है । कसी समारोह म कसी
व श ट यि त के पदापण करने पर उसे सा ा कार का पा बना लया जाता है । कभी कसी
नि चत योजना के अंतगत भी कसी अपे त यि त अथवा यि तय के सा ा कार लये
जाते ह । इसके लए कई बार बाहर भी जाना पड़ता है । यि त कसी के वषय म जानने
को उ सुक होता है , उससे भा वत होता है, तो भी वह उससे सा ा कार लेने क सोच लेता
है ।
सामा यत: ये सा ा कार उस यि त से मलकर, बातचीत करके, न पूछकर लये जाते
ह । कभी-कभी सा ा कार अपने न डाक वारा उस यि त के पास भेज दे ता है और उनका
उ तर आने पर न-उ तर जमाकर सा ा कार बना लया जाता है । फोन आ द के वारा
भी उस यि त से सा ा कार ले लया जाता है । दवंगत यि तय के सा ा कार क पना
के आधार पर लखे जाते ह । कभी-कभी इसम उस यि त के अ य लखे वचार , कथन
का समावेश भी कर लया जाता है ।
2. वषय का चयन
सा ा कार पा का चयन हो जाने पर, उससे कस वषय पर सा ा कार लेना है यह तय
कया जाता है । क व से क वता पर, कथाकार से कहानी-उप यास पर, कलाकार से कला
पर, राजनेता से राजनी त पर सा ा कार सामा यत: लये जाते ह । संबं धत अ य बात
पूछने का ि टकोण भी रहता है । कभी-कभी पा के जीवन, कृ त व, ेरणा, चय ,
भाव, दनचया, वचार, योजना आ द अनेक े क जानकार ा त करने का ल य
रहता है । कभी सा ा कार-पा के नजी जीवन आ द के बारे म न पूछकर कसी वषय
या उसके कसी बंद ु पर ह बात क जाती है । साधारण पा से योजनानुसार न पूछे
जाते ह ।

3. योजना का नमाण

यि त और वषय तय हो जाने पर सामा यत: सा ा कारकता इंटर यू लेने क एक योजना


बना लेता है । इसम सा ा कार पा से समय लेना, सा ा कार का थान तय करना,
सा ा कार म पूछे जाने वाले न व अ य बात क सूची बनाना अथवा अपने दमाग
म उनक एक परे खा रखना आ द सि म लत है । अ धकांशत: इस योजना के ल खत
प का ह योग कया जाता है । कभी-कभी सा ा कार दे ने वाला सा ा कार से पूव
न को अपनी सु वधा के लए माँग लेता है, ता क उसे पता चल सके क सा ा कार
म या पूछा जाना है और वह तैयार के साथ उ तर दे सके अथवा अचानक कसी न
से हड़बड़ाए नह ं । ट वी पर सा ा कार लेते समय भी सा ा कारकता अपनी नावल
टे बल पर रखता है और सा ा कार के दौरान समय-समय पर उसे दे खता रहता है । इससे
उसे सा ा कार लेने म आसानी रहती है । फर भी नावल के अनुसार पूर तरह से
सा ा कार नह ं चलाया जा सकता । कभी बातचीत क दशा बदल जाती है, न के

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म म उलटफेर हो जाती है । कु शल सा ा कार येनकेन- कारे ण, घुमा- फराकर, अपना
काम नकाल ह लेते ह । कभी-कभी नावल सामने रखने का अवकाश ह नह ं मल
पाता, तब सा ा कारकता को अपने मानस म सं चत िज ासा और न से काम चलाना
होता है ।
अनेक सा ा कारकता बना कसी ल खत योजना के ह कुशलतापूवक सा ा कार ले लेते
ह, फर भी दमाग म एक योजना तो रहती ह है, जो प रि थ त के अनुसार बदलती
रहती है । प कार इस कला म काफ हो शयार होते ह । वैसे भी सा ा कार पा के सामने
ल खत नावल लेकर बैठना वाभा वक और वाह म यवधान उपि थत कर सकता
है । इससे कभी सा ा कार पा असहज अनुभव कर सकता है , ऊब सकता है, चढ़ सकता
है, नाराज हो सकता है, य य प ऐसा अपवाद म ह होता है ।
ाय: बना योजना, परे खा या योजना के सा ा कारकता योजनाब तर के से आगे नह ं
बढ़ पाता, सा ा कार पा से अपे त बात नह ं नकलवा पाता । वह ऊपर-ह -ऊपर तैरकर
वापस आ सकता है, गहराई म गोते नह ं लगा सकता । व भ न यि तय के लए एक
जैसी नावल भी काम नह ं आ सकती । सा ा कार म यु प नम त व का होना
आव यक है ।

4. भटवाता

सा ा कार लेने क योजना या ा प बन जाने पर उसे याि वत करने, मू त प दे ने


के लए सा ा कार पा से भट क जाती है या प ा द वारा स पक कया जाता है ।
भटवाता के दौरान सा ा कार पा के वचार को नकलवाने, ता वत न के उ तर
ा त करने का यास कया जाता है । नधा रत योजना के अनु प सा ा कार चलता
रहता है । बदलती हु ई प रि थ त और पा क मनःि थ त के अनुसार सा ा कार वाता
को बदलाव या मोड़ दे ता रहता है । वह यह भी यान रखता है क कसी न से पा
ऊब न जाये अथवा अ स न न हो जाये । य द कभी थोड़ा-बहु त यवधान भी पड़ता है
तो वह ि थ त को कु शलतापूवक संभाल लेता है और सा ा कार को असफल नह ं होने
दे ता ।

5. ब दु-अंकन

य द सा ा कारकता के पास वी डयो- रकाडर (ट वी के लए) अथवा टे प- रकाडर या


आशु ल पक क सु वधा उपल ध नह ं है तो वह वयं आशु ल प (शॉटहै ड) न जानने के
कारण सा ा कार पा वारा अ भ य त वचार को उसी ग त से हू-ब-हू नह ं लख सकता
। ट वी टू डयो या रे डयो टे शन पर यह सम या नह ं होती । दूसरे , य द सा ा कारकता
सा ा कार पा के कथन को ु तलेख ( ड टे शन) क भाँ त लखता रहे गा तो यह अनु चत
तीत होगा और वचार क ंखला भी टू ट जाएगी । अतएव सा ा कारकता मु य-मु य
बात को बंद-ु प ( वाइं स) म लखता जाता है । बंद ु अंकन म इस बात का यान रखा
जाता है क कोई भी मह वपूण बात लखने से न रह जाय । त थय , यि त, सं था,

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कृ त के नाम, घटनाओं, उ ारण , स ांत-वा य आ द का अंकन करना आव यक है ।

ु -लेखन का अ यास सा ा कारकता के लए लाभदायक रहता है । संकेत से ह बंदओ
ु ं
का त काल अंकन करके वाता- वाह को वह आगे नह ं होने दे ता । इसके अ त र त
सा ा कार पा के यि त व, हाव-भाव, वातावरण, अपनी त या आ द का अंकन
भी बंद-ु प म तु रंत करता जाता है अथवा घर जाकर मृ त के आधार पर वह बाद म
लख लेता है । य द 'लघुभट' ( मनी-इंटर यू) है तो इसक ज रत नह ं पड़ती ।

6. तु तीकरण

सा ा कार लेकर सा ा कारकता लौट आता है । लौटकर वह बंदुओं और वाता क मृ त


के आधार पर पूरा सा ा कार लखता है । सा ा कारपा के कथन को यथासंभव उसी
क भाषा म लखने का यास कया जाता है । सा ा कार के वकास म वह अपनी शैल
का समावेश करता है । सा ा कार के न-उ तर और बातचीत को वह खृं लाब करता
है ।
सा ा कार तैयार करते समय इस बात का यान रखा जाता है क उसका वाह बना रहे
तथा कोई भी मह वपूण प छू टने न पाए । सा ा कारकता सा ा कार म यथा थान,
सा ा कारपा के यि त व का बा य-अंकन, हाव-भाव, वहाँ के वातावरण, अपनी
त याओं तथा ट प णय को भी दे ता जाता है ।
कई बार सा ा कार म सा ा कारपा अनौपचा रक प से कुछ बात कह दे ता है जो 'ऑफ
रकॉड' होती ह, िजनको सा ा कार म नह ं दया जाना चा हए । कई बार सा ा कार दे ने
वाला इस बात को कह भी दे ता है क यह बात अनौपचा रक प म कह गई है, इस
अंश को सा ा कार म शा मल न कया जाये । कसी के च र वषय म क गई तकूल
ट पणी, अपश द, कोई नजी गोपनीय त य (िजसको कट करना उ चत न हो) आ द
को सा ा कार तैयार करते समय छोड़ दे ना चा हए । सा ा कार के सफल तुतीकरण
पर ह उसक सफलता नभर करती है ।
आज के इस अ य धक य त युग म कसी से समय लेकर सा ा कार जैसे मसा य
और ययसा य काय करना वैसे ह क ठन है, उस पर फर वीकृ त लेने क क लत!
सा ा कारकता वयं भी एक लेखक, प कार, बु जीवी यि त है । उसका अपना
यि त व और टे टस है । यह उ चत तीत नह ं होता क कई परे शा नय के रहते पहले
तो वह कसी का सा ा कार ले और फर लक क भाँ त सा ा कार क फाइल लये
ह ता र के लए सा ा कार पा के आगे-पीछे घूमता रहे । य द सा ा कारपा ह ता र
ँ लेकर लौट आए । हाँ, य द सा ा कारपा
करने से मना कर दे तो अपना-सा मुह वयं
यह कह दे क सा ा कार तैयार हो जाने पर उसे दखा दया जाय अथवा वशेष ि थ त
म.... कह ं उसके कथन या ववरण म कोई शंका हो अथवा कोई ववादा पद या ज टल
बंद ु हो तो अपनी र क को कम करने के लए वह सा ा कार उसके पा को दखा सकता
है, उसक वीकृ त ले सकता है । ट वी या रे डयो के सा ा कार म यह सम या नह ं आती
। टै प कए हु ए सा ा कार म भी उलझन नह ं रहती ।

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कई बार ऐसा हु आ है क सा ा कार के दौरान सा ा कार ने कु छ और कहा है, कसी
सा ा कारकता ने गलती से या जानबूझ कर कु छ और लख दया है । कभी-कभी
प -प का के संपादक भी मनमाने संशोधन या काट-पीट कर दे ते ह । गलत बात या
त य को तोड़-मरोड़कर छप जाने से सा ा कार पा को क ट या पीड़ा या नाराजगी होती
है । मनमानी काट-छाँट से कई बार अथ का अनथ हो जाता है । डॉ. बनारसीदास चतु वद ,
महादे वी वमा, अमृता ीतम , व णु भाकर, मनोहर याम जोशी जैसे लोग इस पीड़ा को
भु गत चु के ह । इन लोग ने अपनी पीड़ा को य त भी कया है । फ म े म तो
यह वृि त और भी अ धक है ।
सामा यत: प कार ज द म होता है, उसका ल य व श ट और सं त होता है । वह
सा ह यक सा ा कार क भाँ त अवकाश नह ं पाता । उसका ल य पा को उजागर करना
नह ,ं अपे त त य को सामने लाना होता है । वह सा ा कार क सम या को नह ं
अपना पाता, सा ा कार के संपण
ू सोपान का नवाह उससे नह ं हो पाता । फर भी उसके
सा ा कार का अपना मह व है । यह ज र नह ं है क सा ा कार म कस पा को संपण
ू त:
उजागर कया जाए, उसक एक झलक, कु छ अंश भी सामने लाए जा सकते ह । संपण
ू ता
लये हु ए सा हि यक सा ा कार सा ा कार- वधा के मह वपूण अंग ह और वे
सा ा कार-सा ह य क बहु मू य न ध ह ।

3.10 सा ा कारकता क वशेषताएं


सा ा कारकता को एक अ छा ोता होना सबसे ज र है । सा ा कारपा क बात यान से
धैय-पूवक सु न, ऊब, उतावलापन, असहम त, नाराजगी न जताएं । सा ा कारपा यद
सामा य या कमजोर अथवा ग रमाह न ि थ त (अपराधी) का भी हो तो भी उसक उपे ा न
कर । उसक वेशभू षा, भाषा, सं कृ त, हाथ-भाव आ द क उपे ा न कर । व श टजन तो
आदर के पा है ह । य द सा ा कारकता के वचार पा के वचार के तकू ल ह तो भी
वह संयम बरते । पा के कथन ह सा ा कार म मह वपूण होते ह, सा ा कारकता तो एक
सहायक मा यम क भू मका अदा करता है ।
सा ा कारकता म न पूछने क कला होनी चा हए । य द सामा य न से अपे त जानकार
न मले तो उस न को अवसर दे खकर, भाषा बदलकर बाद म फर पूछना चा हए, य द फर
भी पा उसे टाल दे तो दुरा ह नह ं करना चा हए ।
सा ा कार लेने से पूव संबं धत पा और वषय क जानकार कर लेनी चा हए । य द संगीत
के वषय म सा ा कारकता शू य है तो वह संगीत से सफल सा ा कार नह ं ले सकेगा ।
जानकार के लए पु तकालय और वषय से संबं धत यि त से सहयोग लया जा सकता है
। य द उसे मनो व ान का थोड़ा-बहु त ान होगा तो वह पा क मनोि थ त, मू ड को तु र त
भाँप लेगा और सा ा कार को आगे बढ़ाता जाएगा । सा ा कारकता म अहंकार, खापन, अपनी
बात थोपना, पूवा ह , वाचालता, कटु ता, सु ती-जैसी चीज नह ं होनी चा हए । उसम िज ासा,
न ता, भाषा पर अ धकार, बात नकालने क कला, तट थता, पा क बात सु नने का धैय,
लेखन-शि त, बदलती हु ई प रि थ त के अनुकू ल सा ा कार को टन (मोड़) दे ने क मता-जैसी

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बात होनी चा हए । पा क सं कृ त, भाषा, तर, वचारधारा, ट प णयाँ आ द य द अनुकू ल
न ह तब भी सा ा कारकता को सामा य और संय मत रहना चा हए ।
यद टं -मी डया के लए सा ा कार है तो पा के वचार , उसके वारा द गई जानकार
को तोड़-मरोड़कर, अथ बदलकर पेश नह ं करना चा हए । कई सा ा कारदाताओं (पा ) यथा
अमृता ीतम , मनोहर याम जोशी आ द ने इस कार क शकायत क है । ट वी या रे डयो
पर तो सा ा कारकता कोई संशोधन कर ह नह ं सकता ।
सा ा कार म झू ठ तार फ, खु शामद, चमचा गर , न दा, कसी पर अनु चत हार आ द न
हो । सा ा कार साथक हो । वह नधा रत समय म पूरा होना चा हए । कोई बात समझ म
नह ं आए तो उसे प ट कर लेनी चा हए । य य प कसी एक यि त म इतनी वशेषताएं
नह ं हो सकती, फर भी िजतनी अ धक हो, अ छा है ।

3.11 सा ा कार : एक कला


सा ा कार मु यत: प कार, लेखक, मी डयाकम ह लेते ह । कभी-कभी अ य े के यि त
भी ले लेते ह । सा ा कार एक कला है । डॉ. च भान का कहना है - ''इंटर यू भी एक कला
है, इसम बड़े कौशल क आव यकता होती है । आप न पूछ और उ तरदाता आपको इधर-उधर
ह भटकाता रहे और कसी न का उ तर ठ क से न दे । व तु त: कसी यि त से उसके
जीवन क बात नकलवा लेना एक कला है, इसके लए पहल आव यकता इस बात क है
क सा ा कारकता आपके मन से उस यि त से संबं धत सभी पूवा ह को नकाल दे , वह
साफ लेट लेकर उसके पास पहु ँ च,े तभी स य व प उस पर अं कत हो सकेगा । दूसर
आव यकता यह है क वह उस ल य- यि त का व वासपा बन जाए, बना उसका
व वासपा हु ए वह सार बात उससे नह ं कहलवा सकता । तीसर आव यकता इस बात क
है क इंटर यू म या श ु भाव से न लया जाए । ’'
िजस कार सा ा कार लेना एक कला है, उसी कार सा ा कार दे ना भी एक कला है । हर
आदमी अ छा इंटर यू नह ं दे सकता । सा ा कार एक मह वपूण और उपयोगी वधा है ।
इसम य द नवीन और मह वपूण साम ी नह ं आएगी तो वह कोई अ छा सा ा कार नह ं होगा
। िजस कार सा ा कारकता म कुछ वशेषताएं होनी चा हए, वैसे ह सा ा कारदाता (पा )
म भी कु छ अ छ बात का होना सा ा कार को सफल और अ धक उपयोगी बनाता है । व श ट
सा ा कारपा का अपने े पर अ धकार, उ लेखनीय यि त व-कृ त व, वशेष उपलि धयां,
पूवा ह र हत होना, अहंकार र हत, सा ा कारकता का स मान करने वाला, उसे सहयोग दे ने
वाला, वन , खु श- मजाज, डींग न हांकने वाला, भाषा पर संयम रखने वाला होना चा हए
। उसम वगोपनवृि त , अपने को छपाने क वृि त न हो । य य प ये सारे गुण कसी एक
यि त म नह ं हो सकते, परं तु िजतने अ धक गुण ह , अ छा है । सामा यजन म ये सब
होना ज र नह ं होता । सा ा कार को सफल, मह वपूण और उपयोगी बनाने का दा य व
सा ा कारकता के साथ-साथ सा ा कारपा का भी है । महा मा गांधी, जैने , ब चन, व णु
भाकर आ द इस कला म न णात ह । उ ह ने बड़ी सं या म अ छे सा ा कार दए ह ।

67
मु ख सा ा कारकता डॉ. पदम संह शमा 'कमलेश’ का मत ह – ‘'इंटर यू के अ छे -बुरे होने
क कुछ िज मेदार इंटर यू दे ने वाले क भी है । य द इंटर यू लेने वाले क ा को मह व
न दे कर चलताऊ बात बताता है और काय म च नह ं लेता तो इंटर यू कभी अ छा नह ं
बन सकता । ''ऐसा भी संभव है क सा ा कारकता को कसी मह वपूण बात क जानकार
न हो अथवा वह उस समय पूछना भू ल जाए तो पा को वह जानकार वत: दे दे नी चा हए
। महा मा गांधी तक ने ऐसा कया है । सा ा कार को अनु चत चार, कसी को गराने-उठाने,
न दा- तु त का मंच नह ं बनाना चा हए । अपा (उपलि धह न) लोग से सा ा कार लेना
उ चत नह ं । सामा यजन इसके अपवाद ह । अगंभीर, मह वह न लोग को इस वधा से दूर
रहना चा हए ।
प कार डॉ. नंद कशोर खा ठ क ह लखते ह - ''समाला य- यि त (पा ) ऐसा हो सकता
है जो वत: ह सार जानकार दे दे और ऐसा भी हो सकता है जो मु ँह खोलना ह नह ं चाहे
। दोन ह प रि थ तय म भट-वाताकार या समालापक को बड़ा सतक, सयाना और ववेक
बनने क आव यकता होती है । य द कोई यि त अपने-आप बहु त कु छ बताता है तो संभव
है वह आपको अपने मु त चार का साधन बनाने क को शश कर रहा हो । जो यि त कुछ
नह ं बोलता और आपसे सहयोग को तैयार नह ं है वह न चय ह आपसे कु छ छपाने क को शश
म है । ऐसे यि तय से नपटना आसान नह ं होता । इन यि तय से खबर नकाल लेने
म आपका यावसा यक चातु य काम म आता है ।''
बोध न- 1
1. सा ा कार कसे कहते ह ?
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……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. सा ा कार और अ य वधाओं म अं त र क िजए ।
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……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. मी डया म सा ा कार का मह व एवं उपयो गता को बताइए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
4. सा ा कार के व भ न कार कौन- कौन से ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

3.12 ट
ं - मी डया म सा ा कार
टं -मी डया म सा ा कार एक मह वपूण वधा है । यह प का रता, सा ह य,
इले ॉ नक-मी डया (ट वी-रे डयो) आ द अनेक े से जु ड़ी है । हंद म इस वधा के वतन
का ेय डॉ. नगे , डॉ. व वनाथ शु ल आ द व वान ने मूध य प कार बनारसीदास चतु वद

68
को दया है । डॉ. नगे का कथन है - '' हंद -ग य म इस वधा (सा ा कार) के वतन का
ेय बनारसीदास चतु वद को है - वशाल भारत म का शत 'र नाकरजी से बातचीत' ( सत बर,
1931) और ' ेमच दजी के साथ दो दन ' (जनवर , 1932) इस दशा म उनक उ लेखनीय
रचनाएं ह ।'' डॉ. व वनाथ शु ल ने भी लखा है - ''इस वधा का सू पात करने का थम
ेय पं. बनारसीदास चतु वद को है । उ ह ने 'र नाकरजी से बातचीत' शीषक इंटर यू सतंबर,
1931 के ' वशाल भारत' म का शत कया था । इसके कुछ ह मह ने बाद ' ेमचंदजी के
साथ दो दन' शीषक से उनका दूसरा इंटर यू जनवर , 1932 के ' वशाल भारत' म का शत
हु आ । संभवत: 1931 का र नाकरजी वाला इंटर यू हंद का थम सा हि यक इंटर यू है । ''
इसके वपर त डॉ. रामगोपाल संह चौहान हंद म इस वधा के वतन का ेय डॉ. पदम संह
शमा 'कमलेश' को दे ते ह । वे लखते ह- '' हंद म इंटर यू क वधा का सू पात करने का
ेय डॉ. पदम संह शमा 'कमलेश' को है । इससे पहले यह वधा हंद म अनजानी थी । डॉ.
कमलेश ने हंद के चोट के सा ह यकार से इंटर यू लेकर मौ लक काय कया । ’' डॉ कमलेश
का च चत सा ा कार-सं ह 'म इनसे मला' दो भाग म 1952 म का शत हु आ था ।
परं तु सा ा कार- वधा के थम शोधकता व णु पंकज ने हंद म सा ा कार वधा के वतन
का ेय प कार-लेखक चं धर शमा 'गुलेर ' को दया और समालोचक के सतंबर, 1905 के
अंक म का शत उनके सा ा कार 'संगीत क धु न एक संवाद' को हंद का पहला सा ा कार
माना, यह सा ा कार संगीत-महारथी व णु दगंबर पलु कर से लया गया था । गुलेर जी
'समलोचक' के 'अघो षत संपादक' (रा यसेवा म होने के कारण) थे । वे तब मेयो कालेज,
अजमेर म ा यापक थे । पलु करजी के अजमेर आगमन पर 'समालोचक' के त न ध को
है सयत से उ ह ने यह सा ा कार लया था । इसम सा ा कार के पूरे त व ह, जब क
र नाकरजी वाल बातचीत नबंध, सं मरण, रे खा च संवाद आ द अनेक वधाओं का
समवेत- प है, सा ा कार के गुण उसम नह ं है ।
मु ख आलोचक और सा ा कारकता डॉ. रणवीर रां ा ने व णु पंकज के का शत शोध- थ

' हंद - इंटर यू : उ व और वकास' क समी ा आकाशवाणी, द ल (7 अग त, 1984 को
सा रत) पर करते हु ए कहा – ‘’ व णु पंकज का शोध- बंध हंद -इंटर यू ‘उ व और वकास'
अपने वषय का पहला और सु नयोिजत अनुसध
ं ान काय है । इस शोध- बंध म इंटर यू- वधा
के बारे म च लत अनेक ाि तय का सम ाण नराकरण भी कया गया है । हंद म इस
वधा के वतन के वषय म अब तक दो मत सामने आए थे । डॉ. नगे , डॉ. व वनाथ
शु ल जैसे व वान ् शीष थ प कार पं. बनारसीदास चतु वद को पहला इंटर यूकार होने का
ेय दे ते ह । इसके वपर त रामगोपाल संह चौहान जैसे समी क ने यह ेय डॉ. पदम संह
शमा 'कमलेश' क पु तक 'म इनसे मला' को दया है । गहर छानबीन के आधार पर इस
शोध- बंध ( हंद -इंटर यू : उ व और वकास) म पं. च धर शमा ‘गुलेर ’ को हंद इंटर यू
का वतक स कया है ।''

69
3.13 इले ॉ नक-मी डया म सा ा कार
इले ॉ नक-मी डया (मु यत: ट वी-रे डयो) पर आरं भ से ह सा ा कार सा रत हो रहे ह ।
रोजाना ह व वध चैनल पर छोटे -बड़े, व वध वषय पर, सा ा कार आते ह । इले ॉ नक-
ां त ने अनेक मा यम व तृत और सश त बना दए , कई नए मा यम भी वक सत कर
दए ह । अब टे ल फोन, वी डयोफोन, इंटरनेट फै स, ई-मेल आ द से भी खू ब सा ा कार लए
जाने लगे ह ।
व पन हांडा, द पक बोहरा, शेखर सु मन आ द ने टे ल वजन पर बड़ी सं या म सा ा कार लए
ह । तब सुम ने अनेक फ मी हि तय से सा ा कार लेकर 'फूल खले ह गुलशन-गुलशन '
जैसे काय म को सफल बनाया था । कमले वर ने अनेक यि तय से बातचीत क । कैलाश
वाजपेयी, चं कु मार बरठे , कलानाथ शा ी आ द ने सा ह यकार के, भु चावला, एम.जे.
अकबर, क हैयालाल नंदन, रजत शमा, वनोद दुआ, श शकु मार, उदयन शमा आ द ने
राजनेताओं के, व पन हांडा, द पक बोहरा, शेखर सुमन , महे श भ , फा क शेख, मनीष दुबे,
मोहन कपूर आ द ने फ मी हि तय के अ छे सा ा कार लए ह । भु चावला ने 'सीधी
बात', रजत शमा ने 'जनता क अदालत', शेखर सु मन ने 'शेकस ए ड मू वस' म तेज तरार
सा ा कार लए ह । मेनका गांधी ने जीव दया, अनुराधा साद ने व वध वषय , रोशनी ने
पाकशा पर बातचीत क है । शेखर गु ता ने टहलते हु ए सो नया गांधी, ऐ वया राय आ द
से भटवाता क है । रामशरण जोशी, णवराय, सईद नकवी, महे मधु प (कृ ष पर), मनोज
ं ी, करण थापर, राहु ल दे व, मृणाल पांडे , पंकज शमा, राजे
रघुवश बोहरा, राधे याम तवार ,
राजीव शु ला, पु पेश पंत, बलजीत, आशा सचदे व, जाि मन मोजेज, फर दा जलाल, नीलम
शमा, न लनी संह, वा त आ द वारा भी बहु त-से सा ा कार लए गए ह ।
रे डयो पर गोपालदास, जसदे व संह, ठाकु र साद संह, नरो तम पुर , छोटे , स वता बजाज,
मोहन संह सगर, वेद यास, स यनारायण शमा, मदन शमा, राह , मंजल
ु , राम संह पंवार,
वजय चौधर , सवाई संह धमोरा, अचला नागर, अ नता, म लक, इंद ु जैन, कं ु था जैन , वमला
पा टल, सरल कु मार आ द ने उ लेखनीय सा ा कार कये ह ।
बोध न- 2
1. ं मी डया के लए सा ा कार कै से ले ते ह ?

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……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. इले ॉ नक मी डया म सा ा कार वधा आज य लोक य है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
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3. सा ा कार क या के मु ख चरण कौन से ह?

70
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4. सा ा कार एक कला है , समी ा कर ।
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3.14 सारांश
इस इकाई म हम दे ख चु के है क सा ा कार मी डया का एक मह वपूण और उपयोगी घटक
है । सा ा कार क कला जाने बगैर कसी भी मी डयाकम , प कार का काम चलना क ठन
है । उसे कभी पा से य भट करके सा ा कार लेना होता है तो कभी टे ल फोन या अ य
इले ॉ नक-मा यम वारा । इस पाठ म सा ा कार के व प, कार, थम हंद -सा ा कार,
टं -मी डया और इले ॉ नक-मी डया के सा ा कार के अ ययन के अलावा हमने इसक
उपादे यता और मह व को जाना । सा ा कारकता म या गुण ह , सा ा कार कैसे ल - यह
जानकार भी हमने ा त क । सा ा कार- वधा को सम प म जानने का यास हमने कया
है । सा ा कार एक वतं वधा है ।

3.15 श दावल
इस इकाई म आने वाले पा रभा षक श द के अथ इस कार ह -
सा ा कार - यह जनसंचार क मु ख वधा है । इसके अंतगत सा ा कारकता
सा ा कार दे ने वाले से मलकर बातचीत करके, नो तर वारा
उसके जीवन, कृ त व और वचार आ द क जानकार ा त करता
है ।

सा ा कारकता - जो यि त सा ा कार लेता है उसे सा ा कारकता कहते ह ।


सा ा कारपा - िजस यि त से सा ा कार लया जाता है वह सा ा कारपा
कहलाता है ।
टं मी डया - मु त मा यम (समाचारप , प का, थ
ं आ द) को कहते ह ।
इले ॉ नक मी डया - ट वी रे डयो, क यूटर, इंटरनेट, फै स, ई
मेल आ द को कहते ह ।

3.16 कुछ उपयोगी पु तक


1. ह द -इंटर यू : उ व और वकास - डॉ व णु पंकज, ववेक पि ल शंग हाउस, जयपुर
2. जनसंचार क वधा-सा ा कार- डॉ. व णु पंकज, राज थान काशन, जयपुर
3. सा ा कार-कोश- डॉ. व णु पंकज, रचना काशन, जयपुर
4. भारतीय भाषाओं म सा ा कार - डॉ. व णु पंकज, मंगलद प एि लकेशन, जयपुर
5. मी डया इंटर यू - डॉ. व णु पंकज, मंगलद प पि लकेशन, जयपुर

71
6. इंटर यू स ांत, तकनीक और यवहार - डॉ. व णु पंकज, नेशनल पि ल शंग हाउस,
नई द ल
7. सा ा कार स ांत और यवहार - रामशरण जोशी, ं श पी, नई द ल

8. म इनसे मला - डॉ. पदम संह शमा 'कमलेश', आ माराम एंड संस, नई द ल
9. सा ह यकार के संग - कैलाश कि पत, कताबघर, द ल
10. भारतीय सा ह यकार से सा ा कार - डॉ. रणवीर रां ा, भारतीय ानपीठ काशन, नई
द ल

3.17 अ यासाथ न
1. सा ा कार से आप या समझते ह? यह अ य वधाओं से कस कार भ न है?
2. सा ा कार क उपयो गता और मह व पर व तृत काश डा लए ।
3. सा ा कार कतने कार के होते ह? इनम से कौन-सा कार आपको अ धक भावी लगा?
तक के साथ समझाइए ।
4. आप एक सफल सा ा कार कस कार लगे? व तार से बताइए ।
5. सा ा कार- या का व तार से उ लेख क िजए ।
6. एक सफल सा ा कारकता म या वशेषताएं होनी चा हए? इनम से कौन-सी वशेषताएं
आप अपने अंदर अनुभव करते ह?
7. 'सा ा कार कला है ।' इस कथन क समी ा क िजए ।
8. पहला हंद -सा ा कार आप कसे मानते ह और य ? व तारपूवक लखे ।
9. सं त ट प णयाँ लख -
1. टं -मी डया म सा ा कार
2. इले ॉ नक-मी डया म सा ा कार
3. सा ा कार और अ य वधाएं
4. मी डया म सा ा कार का मह व

72
इकाई-4
समाचार का वग करण - (भाग-1)
इकाई क परे खा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 समाचार का व प
4.3 समाचार के त व
4.4 समाचार के कार एवं वग करण
4.4.1 वषयव तु के आधार पर
4.4.2 कृ त के आधार पर
4.4.3 या या के आधार पर
4.4.4 रपो टग व ध के आधार पर
4.4.5 तु तीकरण क व श ट शैल के आधार पर
4.5 सारांश
4.6 श दावल
4.7 कु छ उपयोगी पु तक
4.8 अ यासाथ न

4.0 उ े य
इस पाठ का उ े य समाचार, इसके अथ, इसके व प, इसके त व तथा समाचार के कार
के संबध
ं म व तार से चचा करना है । बदले हु ए प रवेश म समाचार का जन जीवन म या
मह व हो गया है, समाचार के अथ और प रभाषा म पछले दो दशक के दौरान कस तरह
का बदलाव आया है, वगत अव ध के दौरान समाचार का कौनसा नया वग करण तथा
कौन-कौनसे नए कार उभरकर सामने आए ह इन सब बात क इस पाठ के अ तगत चचा
क गई है । इस पाठ का अ ययन करने के प चात ् आप जान सकगे: -
 समाचार या है?
 समाचार क परं परागत व नवीन प रभाषाएं या ह?
 समाचार के मु ख त व कौनसे ह ।
 व भ न आधार पर समाचार का वग करण कैसे कया जा सकता है तथा समाचार के
कार कौन कौन से ह ।

4.1 तावना
पछले दो दशक के दौरान, व वभर के मी डया जगत एवं खासतौर पर टं मी डया के
अवधारणा और व प म आमूल प रवतन आया है । मी डया का काम सफ सू चनाओं को

73
य का य आम आदमी तक पहु ंचाना भर नह ं रहा । टे ल वजन और इंटरनेट ने अब
समाचारप को अपनी भू मका पर पुन वचार के लए मजबूर कर दया है । शायद यह कारण
है क समाचारप के मु ख पृ ठ पर आज, कसी भी घटना क ाथ मक सूचना के बजाय
पछले दन टे ल वजन पर दखाई जा चु क अमुक घटना का व लेषण, पृ ठभू म या भाव
दखाया जाता है । समाचारप म अब बयो ड टे ल वजन जन ल म क नई अवधारणा ज म
लेने लगी है, िजसके अ तगत वह करने का यास कया जाता है जो ट वी. नह ं कर सका।
समाचारप के बदले हु ए कलेवर पर नजर डाल तो न सफ 'समाचार' क दो दशक पुरानी
अवधारणा बदल हु ई नजर आती है बि क समाचारप के 'समाचारप ' होने पर भी बड़ा सा
सवाल लगा दखाई दे ता है । समाचारप का मु ख उ े य अब सू चना दे ने के बजाय आम
आदमी का मनोरंजन करना अ धक हो गया है । अ धकांश समाचारप के प ने गंभीर
राजनी तक समाचार के बजाय फ मी हि तय क ग त व धय से तथा वकास योजनाओं
क सू चना के बजाय वला सता और सैर सपाटे से जु ड़ी ताजातर न जानका रय जैसे: - वा य,
सौ दय और लेमर से जु ड़ी नवीनतम खोज व सूचनाओं से भरे दखाई दे ते ह । हाल ह म
इले ो नक मी डया का भार व तार हु आ है और समाचारप का सार भी बढ़ा है । इसके
साथ ह मी डया का यापार करण हु आ और बाजार पर क जा करने के मकसद से ह समाचार
म मनोरं जन का त व हावी हु आ है ।
समाचारप क इस बदल हु ई त वीर के म ेनजर ह समाचारप म लेखन क कई नवीन
वधाओं का ज म हु आ है । कुछ समय पूव तक प म जहां सफ त य आधा रत समाचार
एवं संपादक य आलेख ह छपा करते थे, वह ं आज समाचारप म हाड यूज, सॉ ट यूज,
यूज फ चर , यूमन टोर , पािज टव यूज एवं अ य कई तरह क समाचार वधाओं का योग
होने लगा है । समाचार जगत क बदलती हु ई ज रत को यान म रखते हु ए प का रता के
छा को समाचार लेखन क इन नवीनतम वधाओं से प र चत होना ह चा हए ।

4.2 समाचार का व प
आम जीवन म हम जब भी कसी प र चत अथवा अप र चत से मुलाकात करते ह, दोन
मु लाका तय का आपस म पहला सवाल यह रहता है क ''और या खबर है ?'' जब कसी
म अथवा प र चत को यि तगत प लखा जाता है पंि त बरस से कु छ यू ं शु क जाती
रह है, ''अ कु शलम त ा तु के प चात ् समाचार यह है क... अथवा आगे समाचार यह है
क.. वगैरह... ।’’ जा हर है इंसानी संवाद क एक मु य वजह जानका रय का लेना या दे ना
रह है । जानका रय के त मानव सु लभ िज ासा ने ह 'समाचार' को एक यवसाय क
व तु बना दया है । यह समाचार व तु त: पूरे मी डया जगत का क चा माल भी है और इसका
मु य उ पाद भी ।
परं परागत या याओं के अ तगत समाचार का अथ इसके अं ेजी नाम से समझा जाता है
िजसके अनुसार NEWS से चार दशाओं नाथ, ई ट, वे ट और साउथ का भान होता है ।
कई अ य प रभाषाओं का न कष भी यह दशाता है क समाचार दरअसल सूचनाओं का सं ह
है कं तु एक यावसा यक नज रए से हम दे ख तो हर सूचना समाचार नह ं हो सकती । बहार

74
के मु यमं ी का वहां के कसी के बनेट मं ी से गोपनीय वातालाप, बहार के पाठक के लए
नि चत प से समाचार हो सकता है मगर म य दे श के पाठक के लए यह जानकार एक
ऐसी सूचना भर है िजसम उनक कोई च नह ं है । इस ि ट से हम कह सकते ह क
समाचारप के लए वह सूचना समाचार बनती है िजसे लोग जानना चाहते ह ।
एक यि तगत वातालाप अथवा एक नजी च ी म द जाने वाल जानका रयां, संबं धत लोग
के लए अव य समाचार हो सकते ह मगर अ य लोग के लए ये मा अ चकर सूचनाएं
ह । इस ि ट से हम यू ं भी कह सकते ह क ''समाचारप के लए वे ह सू चनाएं समाचार
है, िज ह अ धक से अ धक लोग जानना चाहते ह ।’’

4.3 समाचार के त व
कसी सूचना को समाचार बनाने म कु छ कारण अपनी भू मका नभाते ह । यह कारण समाचार
के त व कहे जा सकते ह । िजन लोग का कभी अदालती वाद- ववाद से पाला पड़ा हो वे
जानते ह गे क कोई भी वाद दायर करते समय वाद प म वाद कारण का उ लेख कया जाता
है, जो यह प ट करता है क अमु क ववशता के कारण यह वाद दायर कया जाना आव यक
हो गया है । ठ क इसी तरह समाचार का शत करते समय पाठक को भी यह बताना ज र
होता है क अमु क समाचार आज का शत करने का औ च य अथवा कारण या बना है ।
उदाहरणत: हम नगर के कसी ऐसे जलाशय पर समाचार फ चर बना रहे ह, िजसका वजू द
सौ वष से भी यादा समय से है । ऐसे म हम यह अव य लखना होगा क इस जलाशय
म पछले एक माह या छ: माह के दौरान अचानक अ त मण बढ़ गए ह अथवा पछले दस
रोज म तेज गम के कारण इसका जल तर अचानक एक फुट कम हो गया है । यह ताजातम
ि थ त ह इस समाचार का कारक त व होगा ।
कोई समाचार कस सीमा तक समाचार है और कसके बाद असमाचार, यह सब बात नधा रत
करने वाले न न ल खत कुछ मु ख त व ह िज ह समझना हमारे लए नि चत प से उपयोगी
रहे गा । समाचार लेखन के मुख त व ह-
1. जन च
2. ताजगी
3. ल त समू ह
4. जानकार का आकार
5. संपादक या रपोटर का ववेक
6. ता का लक प रि थ तयां
7. सू चना मा यम क नी त
8. बदलते मानदं ड
1. जन च - समाचार का सबसे पहला त व जन च है । कसी सू चना म समाचारप पाठक ,
रे डय ोताओं अथवा ट वी दशक क कतनी च है यह उस समाचार के नमाण, चयन,
लेसमट अथवा ड ले का आधार बनता है । इसके अ त र त कतने लोग अथवा समाज
के कतने बड़े वग क च अमुक सूचना म है , यह बात उस समाचार का आकार भी

75
तय करती है । हम अ सर समाचार का मह व उसम द जाने वाल जानकार , बड़े आकड़े
अथवा बड़े यि त के नाम से तय करने क गलती कर बैठते ह कं तु समाचार जगत ्
म ऐसी कसी भी सूचना अथवा जानकार का मह व सफ जन च ह तय करती है ।
य द हम यावसा यक नज रए क बात कर तो कसी जानकार क बाजार माँग ह उसक
क मत तय करती है ।
2. ताजगी- समाचार का एक मह वपूण त व उपल ध जानकार क ताजगी है । सूचना
मा यम क दौड़ म अब वह वजेता माना जाता है जो सबसे ताजा जानकार दे । आम
आदमी समयातीत या पुरानी जानका रय म वह ं तक च रखता है जहां तक वे कसी
ताजा घटना म क पृ ठभू म क ि ट से ासं गक ह । इस तरह से जो सूचना िजतनी
नई है उतनी ह समाचार क ि ट से मह वपूण है ।
3. ल त समू ह - िजसे हम बोलचाल म टारगेट ु या टारगेट आ डये स कहते ह, उसक

भौगो लक दूर घटना थल से कतनी है, यह बात भी समाचार का एक मह वपूण त व
है । बंगलोर के नकट कसी गांव म घ टत बस दुघटना म बीस लोग भी मर जाएं तो
इसे राज थान के समाचारप म संगल कॉलम समाचार ह बनाया जा सकता है, मगर
य द जयपुर म हु ई दुघटना म तीन लोग भी मारे जाएं तो यह थानीय प म दो अथवा
तीन कॉलम क खबर बन सकती है ।
4. जानकार का आकार - कसी समाचार म दया गया आकड़ा, मृतक क सं या , योजना
का े आ द आकार म कतना बड़ा है, यह त व भी समाचार को भा वत करता है क तु
यह त व हमेशा प रि थ तय पर नभर करता है । भौगौ लक दूर अथवा जन च आ द
त व वपर त होने पर यह त व ाय: गौण रह जाता है ।
5. संपादक या रपोटर का ववेक - कसी खास संपादक या रपोटर क यि तगत सोच
भी कई बार कसी समाचार के मह व को घटा अथवा बढ़ा सकती है । कसी शहर म
आम तौर पर दो दन म एक बार पेयजल आपू त होती है । कसी दन यह आपू त तीन
रोज तक पहु ंच जाती है । थानीय रपोटर एवं संपादक के लए यह आम समाचार है
मगर शहर म एक नया रपोटर कसी ऐसे शहर से आता है जहां दन म दो बार जलापू त
होती थी । ऐसे रपोटर के लए तीन दन म जल आपू त, एक ल ड समाचार जैसा मह वपूण
हो सकता है ।
6. ता का लक प रि थ तयाँ - एक ह सू चना अलग-अलग प रि थ तय म समाचार अथवा
असमाचार हो सकती है । समाचारप म उस दन व ापन क सं या, अ य मह वपूण
घटना म क तुलना मक ि थ त अथवा कु छ अ य यावहा रक कारण एक ह सू चना
के मह व को घटा अथवा बढ़ा सकते ह । दे श के कसी लोक य यि त का नधन आम
दन म समाचारप क थम ल ड बन सकता है कं तु उसी दन दे श के कसी भाग म
भू कंप से कई लोग मारे जाएं तो इस यि त के नधन का समाचारप के कसी कोने
म, संगल कॉलम म भी का शत हो सकता है ।
7. सू चना मा यम क नी त - एक ह सूचना के साथ अलग-अलग समाचारप अथवा अलग
अलग सू चना मा यम म भी अलग अलग यवहार हो सकता है । कु छ ट वी चैनल, भू त त

76
क घटनाओं को बढ़ा चढ़ा कर दखाते ह जब क कु छ चैनल संजीदा समाचार को
ाथ मकता दे ते ह । कसी समाचारप म आ याि मक समाचार मुखता से छापे जाते
ह तो कसी म बला कार या अपराध क खबर को बड़ा आकार ा त होता है ।
8. बदलते मानदं ड - समाचार के त व ाय: समय काल के अनुसार भी बदलते रहते ह ।
एक समय था जब दे श का धानमं ी कसी भी दे श म कोई भाषण दे ता था तो वह
समाचारप क थम ल ड के प म का शत हु आ करता था । अब वह समय आ गया
है जब भाषण के लए भीतर पृ ठ के कोने म भी जगह नह ं मलती । कसी अ भनेता
के ववाह क पाट अथवा कसी केट टार का म
े संग जो शायद कसी जमाने म
समाचार का वषय भी नह ं माना जाता था अब प क थम ल ड के प म छप सकता
है ।

4.4 समाचार के कार एवं वग करण


प का रता के े म पछले बरस के दौरान जो बदलाव आए ह, उनके अ तगत समाचार
और लेखन क कई नवीन शै लयां वक सत हु ई ह । पाठक को आक षत करने के लए या
त पधा म और से अलग नजर आने के लए समाचार तु त के नत नए तर क क खोज
नर तर जार है । समाचार के अलग अलग कार को अलग-अलग े णय म वग कृ त कया
जा सकता है । समाचार के वग करण के जो मु ख आधार हो सकता ह, वे न नानुसार है :-
4.4.1 वषयव तु के आधार पर
4.4.2 कृ त के आधार पर
4.4.3 या या के आधार पर
4.4.4 रपो टग व ध के आधार पर
4.4.5 तु तीकरण क व श ट शैल के आधार पर

4.4.1 वषय व तु के आधार पर वग करण

समाचार म द जाने वाल साम ी, जानकार त य तथा आंकड़े पाठक य मनि थ त पर गंभीर
भाव डालते ह अथवा ह का फु का, यह बात कसी समाचार को हाड यूज अथवा सा ट
यूज क ेणी म वभािजत करती है ।
(क) हाड यूज
ठोस त य पर आधा रत घटना धान एवं समयब समाचार को हाड यूज कहा जा
सकता है । यह समाचार लेखन क परं परागत शैल है । ह या, दुघटना , वधा यका क
बैठक, वी.आई.पी. का आगमन अथवा कोई मह वपूण अदालती फैसला हाड यूज का
वषय हो सकता है ।
हाड यूज क मुख वशेषताओं को हम इस तरह अलग रख सकते ह थम , हाड यूज
त य एवं ठोस जानकार पर आधा रत होती है । वतीय, हाड यूज अखबार के ऐसे
ट न समाचार क ेणी म आती है जो खुद चल कर रपोटर के पास आती ह, तृतीय ,
हाड यूज ाय: सभी त पध समाचारप म एक ह दन का शत होती है, इ ह अगले

77
दन के लए रोका नह ं जा सकता, चतु थ, हाड यूज क भाषा गंभीर व सपाट होती है
। पंचम, हाड यूज का मुख उ े य पाठक को सूचना दे ना होता है । ष ठम , हाड यूज
ाय: उ व परा मड क श ल म ह बनाई जाती है, िजसम ठोस व मु ख जानकार आर भ
म तथा गौण जानकार बाद म का शत क जाती है । उदाहरण-
'अि न पर ा’ म सफल अि न- 3
भारत ने मसाइल तकनीक कया । बंगाल क खाड़ी ि थत वाल मसाइल है। यह
तक म लंबी छलांग लगाते ह लर वीप के अंत रम पर ण चीन के बीिजंग और
हु ए 3 हजार कलो मीटर थल (आईट आर) से सु बह 10:52 शंघाई तक मार करने
तक परमाणु ह थयार के बजे इसे छोड़ा गया । यह दे श क अब म स म है ।
साथ मार करने म स म तक क सवा धक दूर तक मर करने
'अि न-3' मसाइल का
गु वार को सफल पर ण
(ख) सा ट यूज
जैसा क नाम से ह जा हर है सा ट यूज के भीतर चकर जानकार दलच प अंदाज म
तु त क जाती है । गम के मौसम म अचानक सद हो जाना, कसी भ त का दंडवत करते
हु ए तीथया ा करना, कसी बारात म दू हे स हत घोड़ी का भाग जाना आ द ऐसे ह के-फु के
वषय है िजनके कसी समाचारप म न छपने पर पाठक प को अधूरा तो महसू स नह ं करता
मगर िज ह पढ़ने के बाद एक अवणनीय आन द का अनुभव अव य करता है । सा ट यूज
क मु ख वशेषताएं इस कार ह । थम, सा ट यूज म हाड यूज क तरह सभी मु ख
ककार का इं ो म होना आव यक नह ं माना जाता । वतीय, सा ट यूज ाय: समयब
नह ं होती तथा जब तक कोई च चत घटना से जु ड़ा समाचार न हो इसे उसी दन का शत
करना ज र नह ं समझा जाता । तृतीय, सा ट यूज क भाषा ाय: चु ट ल और मु हावरे दार
हु आ करती है चतुथ, सा ट यूज का मुख ल य सू चना दे ना नह ं पाठक का मनोरं जन करना
होता है । पंचम, सा ट यूज पाठक पर कोई गंभीर भाव डालने क अपे ा, उसक भावना,
संवेदना अथवा अनुभू तय को पश करने का काय करती है ।
उदाहरण-
कान से गु बारा फुलाने वाला स नू
बड लयास गांव के संजय शमा (32) ने कान दन बाद उसने ट वी पर एक युवक को मु ंह से
से गु बारे म हवा भरने का कारनामा कर मोटर साइ कल के यूब म हवा भरते दे खा ।
दखाया है । लोग उसे ''कान से गु बारा इसके बाद उसने कान से गु बारे म हवा
फुलाने वाला स तु'' कहते ह । दो साल पहले भरने क को शश शु क । छह मह ने बाद
बनास नद म नहाने के बाद संजय ने कान उसने दो त के सामने गु बारे म कान से हवा
से पानी नकालने क को शश क । नाक भर कर दखाई।
बंद करने पर कान से फ वारे क तरह पानी
बाहर आया । एक-दो

78
4.4.2 कृ त के आधार पर

समाचार के वग करण का एक आधार उस सूचना क कृ त भी है जो क पाठक तक पहु ंचाई


जानी है । अलग- अलग ोत अथवा मा यम से ा त होने वाल सूचनाओं का ल य एवं
वषय अलग-अलग हो सकता है । सूचना क कृ त के आधार पर हम समाचार का
न न ल खत ेणीकरण कर सकते ह: -
(क) भाषण
(ख) व त य
(ग) ेस नोट
(घ) वकास समाचार
(ङ) त या
(क) भाषण : राजनेताओं, मु ख यि तय , लोक य हि तय अथवा बु लोग वारा
सावज नक थल पर दए जाने वाले भाषण हमेशा से समाचार का वषय बनते रहे ह
। क तु पछले एक दशक से भाषण का कवरे ज समाचारप म काफ हद तक सी मत
हो चला है । भाषण से जु ड़े समाचार का इं ो बनाते समय दो बात को यान म रखा
जाता है । थम तो यह है क भाषण दे ने वाला यि त कतनी जानी मानी शि सयत
ह, दूसरे भाषण म कह गई बात आम लोग को कस सीमा तक भा वत या उ वे लत
करने वाल है । राजनेताओं का भाषण कवर करते समय उनके वारा क गई नई घोषणाओं
को सबसे पहले वर यता द जाती है । य द कोई घोषणा नह ं हु ई है तो उनके वारा कह
गई कसी नई, ववादा पद या तीखी बात को मु खता द जाती है ।
(ख) व त य : कुछ मु ख अवसर पर वशेष यि तय वारा वशेष व त य जार कए जाते
ह । दो दे श के शखर यि तय क वाता के प चात ् संयु त व त य जार करने क
पर परा भी रह है । कभी कसी बड़ी घटना या वशेष अवसर पर सरकार या शासन
क ओर से भी व त य जार कए जाते ह, िजनका ल य ाय: कसी खास मसले पर
सरकार प रखना या कसी म क ि थ त को दूर करना होता है । ऐसे व त य को
इनके मह व के अनुसार ेस वारा औपचा रक तर के से ाय: हू-ब-हू का शत कया जाता
है ।
(ग) ेस नोट : समाचारप म का शत होने वाले समाचार का एक मु ख ोत ेस नोट
अथवा स
े व ि तयां होते ह । सरकार व शासन क ओर से जनस पक वभाग नय मत
प से सरकार ग त व धय पर स
े नोट जार करते ह । इनम अनेक कार क जनोपयोगी
एवं जन च क सूचनाएं भी रहा करती ह । कई बार नजी सं थाओं , वयंसेवी सं थाओं
व व भ न वभाग क ओर से भी ेस नोट जार कए जाते ह । ेस नो स क भाषा
औपचा रक, ल य चार एवं सू चनाएं एकतरफा हु आ करती ह ।
(घ) वकास समाचार : वकासा मक समाचार काफ हद तक स
े नोट अथवा सरकार व त य
क कृ त के होते ह । आमतौर पर हम समाचार क प रभाषा जन च से जु ड़ी सूचना

79
से करते ह तथा जन च ाय: पोल खोल समाचार म अ धक दखाई दे ती है । इस ि ट
से सरकार वारा जार वकास के आँकड़े, भावी वकास योजनाएं, दे श, रा य अथवा सरकार
क ग त क सू चनाओं म आम पाठक क अ धक च नह ं होती, कं तु कसी ऐसे मु े
पर य द कोई वकास समाचार जार होता है, जो कसी गंभीर जन सम या से जुड़ा हु आ
है तो इसम पाठक क गहर च होती है, मसलन कसी पेयजल सम या त इलाके
म मह वाकां ी पेयजल योजना से जु ड़ा समाचार अथवा, कसी भीड़भाड़ और ै फक जाम
वाले इलाके म ओवर ज बनने से जु ड़ी सू चना आ द ।
(ङ) त या : कसी खास अवसर पर अथवा कसी च चत मु े को लेकर या तो मी डया
वारा संबं धत प से त या आमं त क जाती है अथवा कसी मु ख मामले म
वशेष यि त या पदा धकार मी डया को अपनी राय दे ते ह । उनक बात त या के
प म छपती है ।

4.4.3 या या के आधार पर

समाचार बनाते समय अमुक जानकार के त रपोटर अथवा संपादक का नज रया भी अपना
काम करता है । समाचार पर रपोटर के ि टकोण का जो भाव पड़ता है, इसे
यान म रखते हु ए समाचार को दो े णय म बांटा जा सकता है ।
(क) सीधा समाचार
(ख) या या मक समाचार
(क) सीधा समाचार
जब कसी वषय वशेष के संबध
ं म उपल ध सू चनाओं को हाड यूज क श ल म यथावत
पेश कया जाता है तो ऐसे समाचार को सीधा समाचार कहा जाता है । ाय: घटना धान
समाचार म त य को यथावत पेश कर दया जाता है । ऐसे समाचार म पाठक को कसी
न कष पर पहु ंचने अथवा कोई राय बनाने म रपोटर क ओर से कोई सहायता नह ं क
जाती । दे ख एक समाचार
रा य म पहले सेज को कानूनी दजा
अजमेर रोड पर कलवाड़ा गाँव म ता वत म हं ा व ड सट के सूचना ौ यो गक
(आईट ) वशेष आ थक े (सेज) को क सरकार ने कानूनी दजा दे दया है । इसके
बाद अब आईट े क कंप नयाँ यहाँ अपना कारोबार था पत कर सकगी । सेज नमाण
पर दे श यापी ज ोजहद और नई पा लसी जार होने के बाद राज थान का सरकार क
भागीदार वाला यह पहला सेज होगा, िजसे कानूनी दजा मला है । इसम र को क 26
तशत भागीदार है ।
(ख) या या मक समाचार
या या मक समाचार को हम एक सीमा तक वचार म त त य वाला समाचार कह
सकते ह, मगर ऐसे समाचार म वचार उसी सीमा तक वांछनीय होते ह, जहां तक ये
पाठक को कसी सूचना वशेष क पृ ठभू म अथवा इसके भावी प रणाम को समझने
म सहायता करते ह । कु छ जानका रय को लेकर रपोटर का कोई खास ि टकोण होता

80
है अथवा वह अपनी अ त र त जानकार के मा यम से कसी समाचार क या या करता
हु आ इसे पेश करता है ता क पाठक को समझ म आ जाए क इस जानकार का मह व
या है अथवा इससे फक या पड़ने वाला है । ऐसे समाचार को या या मक समाचार
क ेणी म रखा जाता है । क तु या या मक समाचार लखने क जो खम उ ह ं लेखक
को उठानी चा हए जो वषय पर पूरा अ धकार रखते ह तथा अपनी व वसनीयता पर
आँच लाए बगैर समाचार क या या कर सकते ह । जैसे-
इ फो सस- व ो का रा ता साफ
राजधानी जयपुर म ता वत म ह ा व ड सट ल मटे ड के ता वत पेशल
इकोनो मक जोन (सेज) म क यूटर सॉ टवेयर नमाता क प नय इ फो सस व व ो
के आने का रा ता साफ हो गया है । के य वा ण य मं ालय ने सांगानेर तहसील के
कलवाड़ा गांव म 188 एकड़ जमीन को सू चना ो यौ गक सेज के प म अ धसू चत
होने के बाद उसम मलने वाल कर रयायत लागू हो गई है िजससे इसका वकास तेजी
से होगा ।

4.4.4 रपो टग व ध के आधार पर

कसी समाचार पर काय करते समय अथवा जानकार के संकलन म रपोटर ने कौनसी व ध
का इ तेमाल कया है, इस आधार पर समाचार के न न ल खत वग करण हो सकते ह :-
(क) सा ा कार (ख) सव ण (ग) खोजपूण समाचार
(क) सा ा कार - समाचार संकलन एवं लेखन क काफ लोक य शैल है सा ा कार । कसी
भी यि त का सा ा कार ाय: दो अलग-अलग कारण से कया जा सकता है । पहला
कारण तो उस यि त क खास शि सयत हो सकती है । कसी मुख यि त के
समाचारप काशन े म आगमन पर उससे औपचा रक मुलाकात इस आशय से क
जाती है क वह अमु क प के पाठक के लए कोई नई जानकार दे । इस ि थ त म
यि त क शि सयत का मह व अ धक होता है उसके वारा द गई जानकार का कम
। दूसर ि थ त म रपोटर के पास पहले से कोई मह वपूण जानकार और मु ा मौजू द
होता है तथा कसी खास ब दु पर ह वह अमु क यि त का सा ा कार करना चाहता
है । इस ि थ त म जानकार अथवा मु ा मह वपूण होता है एवं यि त गौण ।
सा ा कार पर आधा रत समाचार क तु त के दो तर के होते ह । पहला है नो तर
का तर का एवं दूसरा है टे ट के प म सीधा समाचार का शत करने का । नो तर
शैल का योग ाय: प काओं म होता है जब क दूसर शैल म समाचार पृ ठ पर
सा ा कार भी समाचार के भीतर दए गए एक सामा य व त य क तरह ह तु त कया
जाता है ।
(ख) सव ण आधा रत समाचार - सव ण पर आधा रत समाचार ाय: कसी साम यक घटना
अथवा मु े को लेकर बनाए जाते ह । चु नाव के दौरान चु नाव पूव सव ण पाठक क
च का वषय हु आ करता है । सव ण आधा रत समाचार म समाचार लेखक के सम
कोई वचार प रक पना अथवा मु ा पहले से मौजू द रहता है । रपोटर अपनी प रक पना
के प अथवा वप म लोग के वचार एक त करते ह तथा इन वचार को खास न कष

81
क श ल म पाठक के सम तु त करते ह । सव ण आधा रत समाचार को लेकर
अ सर यह सवाल उठता है क सव ण के लए चु ने गए लोग के चु नाव का आधार या
था इस बात को लेकर संवाददाता पर अ सर यह आरोप लगता है क वे अपने पूवा ह
को चंद लोग के मा यम से आम सोच के प म था पत करना चाहते ह । इसके बावजूद
सव ण, समाचार व लेषण का एक भावशाल तर का माना जाता है ।
(ग) खोजपूण समाचार - खोजपूण समाचार पछले कुछ दशक के दौरान उ साह प कार के
बीच लोक य हु ई समाचार लेखन क एक वशेष वधा है । अमे रका का बहु च चत वाटरगेट
कांड, प का रता के इ तहास म या त पाने वाला ऐसा पहला करण कहा जा सकता
है, िजसने न सफ त काल न अमर क रा प त रचड न सन को अपना पद छोड़ने
पर मजबूर कर दया बि क व व भर क प का रता को एक नई दशा दे डाल ।
खोजपूण समाचार दरअसल दु साह सक प का रता के प रणाम होते ह , िज ह पाने के
लए प कार को एक जासू स क भू मका नभानी होती है । खोजपूण समाचार म कसी
ऐसी सूचना का रह यो घाटन कया जाता है , िजसे कसी थान पर, कसी यि त वारा
दबाने का यास कया गया हो । जा हर है ऐसी जानकार को बाहर लाने के लए रपोटर
वारा वशेष यास करने होते ह । कई खोजी प कार के अनुभव के आधार पर समाचार
खोज क वशेष तकनीक को ' यूज इ वेि टगेशन' नाम दे दया गया है ।

4.4.5 तु तीकरण क व श ट शैल के आधार पर

समाचार क व श ट कृ त अथवा इसके खास ल य को यान म रखते हु ए इसके तु तकरण


म भी अलग-अलग शै लय का योग कया जाता है । समाचार को तुत करने क इन
शै लय के आधार पर समाचार के न न ल खत भेद हो सकते ह : -
(क) यूज फ चर (ख) यूमन टोर
(ग) यूमरस यूज (व)पािज टव टोर
(क) यूज फ चर
यूज फ चर दरअसल समाचार और फ चर क मल जुल वधा है । यूज फ चर ,
सू चना मकता त य क ताजगी तथा साम यक मह व आ द गुण क ि ट से समाचार
के कर ब है कं तु भाषा शैल , व लेषणा मकता तथा रं जकता आ द गुण के कारण फ चर
जैसा है । यूज फ चर कसी घटना क साइड टोर अथवा फॉलोअप के प म भी बनाए
जा सकते ह तो ये अपने आप म वतं आलेख भी हो सकते ह । कसी वलंत सम या,
कसी आयोजन, कसी अवसर अथवा यि त पर भी यूज फ चर बनाए जा सकते ह,
मगर इनम दो बात का होना बहु त ज र है । थम तो यह क कसी थान, अवसर
अथवा यि त के बारे जो बात लखी जा रह है उसम अ य थान , अवसर अथवा
यि तय से कोई बात अलग हो, दूसरे वतमान संदभ म जो बात यूज फ चर लखने
का कारण बन रह हो वैसी बात पहले कभी नह ं हु ई हो ।
(ख) यूम न टोर

82
यूम न टोर भी य य प एक क म का यूज फ चर ह है मगर ऐसे समाचार म मानवीय
संवेदनाओं क धानता रहती है । कसी यि त पर हो रहे जु म, मानव अ धकार का
हनन, कसी वकलांग यि त का जीवन संघष, कसी मानव पा वारा द शत
असाधारण मानवीयता आ द मानवीय समाचार के मु य वषय हु आ करते ह । ऐसे
समाचार लखते समय भाषा शैल म क णा, संवेदना, मा मकता, हा य अथवा अ य कसी
मानवीय भावना को उभार कर ि थ त का श द च खींचने का यास कया जाता है।
(ग) यूमरस यूज
यूमरस यूज ाय: वे छोटे -छोटे समाचार होते ह, िज ह समाचार पृ ठ पर बीच बीच
म बॉ स बना कर खास अंदाज म पेश कया जाता है । इ ह यूमरस इस लए कहा जाता
है य क इनम द जाने वाल जानकार ाय: चटपट अथवा मनोरं जक हु आ करती है
। लालू यादव साइ कल पर द तर गए टायर पंचर होने के कारण मु यमं ी को ढाबे पर
कना पड़ा, नेताजी रफ अहमद कदवई को मु ह मद रफ बोलते रहे, आ द जानका रयाँ
अ सर यूमरस यूज का वषय हु आ करती है । ऐसे समाचार को रोचक और ल छे दार
भाषा म पेश करने पर ह ये पाठक पर भाव डाल पाते ह ।
(घ) पािज टव टोर
जैसा क नाम से ह जा हर है, पािज टव टोर जीवन के सकारा मक पहलू को उजागर
करने से ह जु ड़ी होती है । समाचारप क पहचान आज, अपराध, दुघटना , घपले,
टाचार जैसे नकारा मक समाचार से बन चुक है । ऐसे म कोई एक समाचार जीवन
के कसी उजले प को उजागर करता है तो पाठक को यह म थल म बरसात जैसा
सु खद अहसास कराता है । एक ब चा अपने कसर पी ड़त दो त के इलाज के लए कार
साफ करके पैसा बटोर रहा है । कसी कूल बस क दुघटना के बाद अ पताल क म हलाओं
ने घायल ब च को गले लगाया और ढांढस बँधाया, भू क प म अनाथ हु ई ब ची को कसी
द प त ने अपना लया आ द जानका रयां अ छ पािज टव टोर का वषय हो सकती
ह ।
(ङ) खानाबदोश नतक बनी राजनी त क खलाड़ी
उ तर दे श के रामपुर िजले क शाहबाद वधानसभा सीट के लए कां ेस उ मीदवार के
प म खड़ी गु डी बेगम क िज दगी हमेशा से संघष का पयाय रह है फर भी वह हर
परे शानी का मु काबला िज दा दल से करती ह ।
कभी गल मुह ल म नाच करने वाल खानाबदोश नट समु दाय क गु डी बेगम ( नमला
दे वी) अपने मु ि लम ेमी से शाद करने के लए मु सलमान बन गई । इसके बाद वह
राजनी त के े म उतर और िजला पंचायत क सद य चु नी गई । अब वह एमएलए
बनने क लड़ाई लड़ रह है । गु डी का कहना है क हम वकास क बात करनी चा हए
न क बीती िज दगी क ।
बोध न-
1. हाड यू ज या है ?

83
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. े स नोट या होता है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. फ ड बै क कसे कहते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

4.5 सारांश
हमने दे खा क प का रता क वकास या ा के दौरान समाचार क कई कई नई वधाएं वक सत
हो गई । समाचार के व भ न भेद समझने के लए हमने इनका अलग-अलग आधार पर
अलग-अलग वग करण कर दया । वषय व तु के आधार पर हाड यूज व सॉ ट यूज ।
रपो टग तकनीक के आधार पर सा ा कार, सव ण एवं खोजपूण समाचार । कृ त के आधार
पर भाषण, व त य, ेस नोट, या या के आधार पर सीधा व या या मक समाचार, व श ट
शैल के आधार पर यूज फ चर , यूमन टोर , यूमरस टोर व पािज टव टोर आ द का
वग करण कया गया । अगले अ याय म समाचार के कु छ और भेद अलग आधार पर कए
गए ह ।

4.6 श दावल
इस इकाई म यु त श दावल इस कार है -
टं मी डया :- वे सू चना मा यम जो कागज और याह के मा यम से अथात ् छपाई
क तकनीक से लोग तक अपनी बात पहु ंचाते ह । इनम समाचारप
व प काएं मु ख ह ।
लेसमट :- समाचारप म कसी समाचार का थान नधा रत करने क या को
लेसमट कहते ह । जैसे इसे मु ख पृ ठ पर लगाया जाए या भीतर ।
मु ख पृ ठ के शीष पर लगाया जाए अथवा बॉटम म ।
ड ले :- कसी समाचार अथवा फोटो क समाचारप म तु त तथा इसके
वजु अल भाव को ह ड ले कहा जाता है ।
टारगेट प
ु :- लोग का वह समूह िजसे यान म रख कर समाचार लखा जा रहा
हो ।
संगल कॉलम :- दै नक समाचारप के मु ख पृ ठ को ाय: 8 कॉलम म बांट दया जाता
है । ऐसे म िजस समाचार का फैलाव एक ह कॉलम तक सी मत हो
उसे संगल कॉलम कहा जाता है ।
थम ल ड :- समाचारप के मु ख पृ ठ के शीष पर आरि भक कॉल स म जो
सव थम पठनीय समाचार लगाया जाता है वह थम ल ड कहलाता

84
है ।
इं ो :- समाचार का मु खड़ा अथवा आमु ख दरअसल सारांश म कहा गया संपण

समाचार ह होता है ।

4.7 कुछ उपयोगी पु तक


यूज राइ टंग ए ड रपो टग फार टु डे ज मी डया - स
ू डी. इटपूले व डगलस ए. ए डरसन
बे सक यूज राइ टंग - मेि वन मे शर
बे सक जन ल म - रं गा वामी पाथसारथी
समाचार संकलन और लेखन - नंद कशोर खा
संपादन, पृ ठ स जा और मु ण - ो. रमेश जैन
समाचार संपादन - ेमनाथ चतु वद
समाचार और संवाददाता - डा. नशांत संह
संवाद और संवाददाता - राजे
समाचार : अवधारणा और लेखन कया-संपादन - सु भाष धू तया, आनंद धान

4.8 अ यासाथ न
1. एक पाठक क नजर से आप समाचार कसे मानते ह? समझाइये । समाचार के मुख
त व कौन-कौन से ह?
2. हाड यूज व सॉ ट यूज म या अ तर है ? उदाहरण स हत समझाइये ।
3. एक अ छ यूमन टोर क या वशेषताएं होती है । उदाहरण स हत समझाइए ।

85
इकाई-5
समाचार का वग करण - (भाग-2)
इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 समाचार का वग करण
5.2.1 घटना के मह व के आधार पर
5.2.1.1 व श ट समाचार
5.2.1.2 यापी समाचार
5.2.2 े अथवा थान के आधार पर
5.2.2.1 थानीय समाचार
5.2.2.2 ांतीय समाचार
5.2.2.3 रा य समाचार
5.2.2.4 अंतररा य अथवा वदे श समाचार
5.2.3 वषय अथवा बीट के आधार पर
5.2.3.1 राजनी तक समाचार
5.2.3.2 चु नाव समाचार
5.2.3.3 संसद य समाचार
5.2.3.4 व ान समाचार
5.2.3.5 तर ा समाचार
5.2.3.6 अपराध समाचार
5.2.3.7 अदालती समाचार
5.2.3.8 वा ण य समाचार
5.3 सारांश
5.4 श दावल
5.5 कु छ उपयोगी पु तक
5.6 अ यासाथ न

5.0 उ े य
पछले पाठ म हमने समाचार, इसके अथ एवं व प के साथ-साथ समाचार के व भ न कार
एवं अलग-अलग आधार पर इनके ेणीकरण के संबध
ं म अ ययन कया । समाचार के
ेणीकरण को लेकर ह कुछ अ य ब दुओं का हम इस पाठ के अंतगत अ ययन करगे ।
इस पाठ का अ ययन करने के प चात ् हम जान सकगे क : -

86
 घटना के मह व के आधार पर व श ट एवं यापी समाचार या होते ह?
 समाचार के कवरे ज ए रया अथवा े के आधार पर थानीय, ांतीय, अ तदशीय,
अ तरा य, ामीण एवं सट समाचार म या भेद होता है?
 बीट कसे कहते ह, बीट के आधार पर समाचार का ेणीकरण कैसे होता है तथा बीट
कौन कौन सी होती है?
 इसके अ त र त राजनी तक, संसद य, अपराध, व ान, तर ा, वा ण य, अदालती
समाचार आ द के संबध
ं म प र चत हो जाएंगे ।

5.1 तावना
समाचार का मू ल त व पाठक य च अहम भू मका अदा करती है । इस ि ट से हर वह
सू चना, समाचार है िजसम पाठक य च होती है । मगर हर समाचार म च रखने वाले पाठक
का तर, व च का अंश समान नह ं होता । पाठक य च के हर समाचार को न तो समाचारप
क मु य ल ड के थान पर लगाया जा सकता है और न ह हर तरह के समाचार के कवरे ज
के लए खेल संवाददाता, वा ण य संवाददाता अथवा अपराध संवाददाता जैसे कसी भी रपोटर
को ह भेजा जा सकता है । जा हर है समाचार बंधन के काय के लए समाचार क क म
और कृ त क पहचान ज र होती है ।
कसी समाचार को मु ख पृ ठ पर लगाया जाना है अथवा भीतर पृ ठ पर ? चार कॉलम म
लगाया जाना है अथवा संगल कॉलम म? यह नणय करने से पूव यह दे खना ज र होता
है क समाचार सफ एक वग वशेष क च का है अथवा हर आम आदमी क च का कस
सं करण म दया जाए, इसका फैसला करने के लए यह जानना ज र होता है क घटना
कस े म घ टत हु ई है तथा समाचार कस े के लोग क च का है ।
समाचार बंधन के अंतगत कई बार यह भी दे खना होता है क कवरे ज कए जाने वाले वषय
के अंतगत कोई वशेष ता पूण जानकार क आव यकता तो नह ं? य द ऐसा है तो वषय
को सह ढं ग से समझने वाले को ह इसके कवरे ज का कायभार स पना होता है । इसी वजह
से समाचारप के कायालय म व भ न रपोटर के बीच, वषयानुसार काय का बंटवारा कर
दया जाता है ।

5.2 समाचार का वग करण


इस इकाई के अ तगत हम तीन मु ख आधार पर समाचार के वग करण का अ ययन करगे,
जो इस कार ह : -
1. घटना के मह व के आधार पर
2. े अथवा थान के आधार पर तथा
3. वषय अथवा बीट के आधार पर

87
5.2.1 घटना के मह व के आधार पर

समाचारप कायालय म, समाचार का यह ेणीकरण, इस बात को तय करने म सहायता


करता है क कस समाचार को कतना मह व दया जाए । समाचार के मह व के आधार
पर ह यह बात तय होती है क समाचार को कतने कॉलम का शीषक लगाया जाए, समाचार
का आकार कतना बड़ा रखा जाए, इसे कौन से पृ ठ पर दे , इसके साथ च भी लगाया जाए
अथवा नह ं तथा या इसके साथ कसी साइड टोर अथवा ट पणी आ द क आव यकता
है या नह ?

घटना के मह व क ि ट से समाचार को दो भाग म बांटा जा सकता है : -
1. व श ट समाचार
2. यापी समाचार

5.2.1.1 व श ट समाचार

व श ट समाचार वे होते ह जो कसी खास पाठक समू ह क च से संबध


ं रखते ह । यह
पाठक समू ह भौगो लक े के अनुसार भी हो सकता है तथा इसम न हत लोग के समान
हत, समान चय या समान प रि थ तय के आधार पर भी हो सकता है ।
कु छ समाचार एवं घटनाएं बड़ी होने के बावजू द कसी े वशेष के लोग क च से जु ड़ी
होती है । इस आधार पर समाचार के ेणीकरण का अ ययन हम अगले ब दु के तहत करगे
। कुछ समाचार एवं घटनाएं ऐसी होती ह, जो कसी खास वग क च से जु ड़ी होती ह, जैसे
खेल समाचार, वा ण य समाचार राजनी तक समाचार, व ान समाचार आ द । ऐसे समाचार
म हर पाठक क च होना ज र नह ं है । न न ल खत उदाहरण म जो समाचार दखाया
गया है उससे अधीन थ लेखा सेवा के कमचा रय के अलावा अ य लोग क च होना संभव
नह ं है: -
शपथ हण समारोह कल
जयपुर , 30 जू न । राज थान अधीन थ लेखा सेवा िजला शाखा जयपुर
क नवग ठत कायका रणी का शपथ हण समारोह 2 जू न को शाम 5:30
बजे व त भवन प रसर म आयोिजत कया जाएगा । मु य अ त थ व त
रा यमं ी वीर मीणा, शासन स चव ( व तीय वतीय) संजय म हो ा तथा
कोष एवं लेखा नदे शक पी.आर. शमा व दे श पदा धकार इसम भाग लगे ।

5.2.1.2 यापी समाचार

यापी समाचार से आशय ऐसे समाचार अथवा घटनाओं से है िजनका असर यापक हो तथा
यादा से यादा लोग क इसम च हो । ऐसे समाचार म कसी भी पाठक क च, महज
इंसानी िज ासा के आधार पर हु आ करती है, चाहे उस घटना का य अथवा परो प
से उस पर कोई भाव पड़ रहा हो अथवा नह ं । रा य अथवा अंतररा य तर पर होने
वाल घटना-दुघटनाएं आतंककार हमले , खगोल य घटनाएं महंगाई आ द पर आधा रत समाचार
ाय: आम च से जु ड़े होते ह । यापी समाचार समाचारप म का शत वे समाचार होते

88
ह िज ह प के अ धका धक पाठक न सफ पढ़ते ह - बि क पूरा पढ़ते ह । त पधा के
दौर म येक समाचारप अपने प न का अ धका धक तशत यापी समाचार से ह भरना
चाहता है : -
इ तीफे क धमक
नई द ल , 1० अग त । अमे रका के साथ एटमी करार को लेकर जहां
यूपीए सरकार और वाम दल के बीच टकराव बढता जा रहा है, वह ं
ऐसी खबर भी आ रह ह क वाम दल के उ तेवर को शांत करने के
लए धानमं ी मनमोहन संह इ तीफे क धमक का ' मा ' भी चला
चु के ह ।
वाम दल म व भ न सू के मुता बक धानमं ी ने मंगलवार दे र रात
जब माकपा महास चव काश करात और भाकपा नेताओं एबी बधन और
डी राजा से फोन पर बात क थी तब वे भावुक हो उठे थे । इसके चंद
घंटे पहले वाम दल एटमी करार को सरे से खा रज कर चुके थे । सू
का कहना है क धानमं ी ने इस बातचीत म ''मु झे हटने क इजाजत''
दो जैसे श द का इ तेमाल कया । इसका अथ इ तीफे से लगाते हु ए
वाम दल के नेता बचाव क मु ा म आ गए और वे धानमं ी से इस
मसले पर एक और दौर क वाता के लए तैयार हो गए ।

5.2.2 े अथवा थान के आधार पर

समाचार का एक मुख त व माना जाता है , नकटता । नकटता से आशय, भौगो लक नकटता


से है । िजतनी अ धक भौगो लक नकटता होगी घटना म उतनी ह अ धक पाठक य च
होगी । एक जैसी ह घटना मेरठ और जयपुर म घ टत हो तथा दोन ह घटनाओं क
प रि थ तयां एवं भा वत क सं या बराबर हो तो ज र नह ं क दोन ह जगह के
समाचारप म दोन ह समाचार को बराबर का थान मले । मेरठ के प म जहां एक तरफ
मेरठ क खबर को अ धक मह व मलेगा वह ं जयपुर क खबर उस े के प म एक कॉलम
म भी शायद ह थान पाए । ठ क ऐसा ह जयपुर के समाचारप म मेरठ क घटना के साथ
होगा । समाचार के मह व पर पड़ने वाले इस भाव के कारण ह े ीय आधार पर समाचार
के वग करण क आव यकता पड़ती है ।
े अथवा थान के आधार पर समाचार का न न वग करण कया जा सकता है : -
1. थानीय समाचार
2. ांतीय समाचार
3. अंतदशीय अथवा रा य समाचार
4. अंतररा य व वदे श समाचार

5.2.2.1 थानीय समाचार

थानीय समाचार से सीधा ता पय उन समाचार से है जो समाचार बनाने वाले अथवा समाचार


प ने वाले यि त के शहर, क बे अथवा ाम से संबध
ं रखते ह । कसी समाचारप का

89
सं करण जब काशन थल से अ य कसी गांव अथवा शहर म जाता है तो संभव है क
जो समाचार इसके बनाने वाले के लए थानीय है वह पढ़ने वाले के लए बाहर समाचार
हो कं तु आम तौर पर समाचारप म थानीय समाचार अथवा लोकल यूज, इसके काशन
के से जु ड़े शहर, क बे क खबर को ह कहा जाता है ।
समाचारप म थानीय सं करण सबसे ताजा सं करण होता है य क इस सं करण के
काशन थल से वतरण थल तक प रवहन म लगने वाले समय क बचत के कारण इसे
दे र रात तक छापना और इसम ताजातम समाचार कवर करना आसानी से संभव हो पाता है
। थानीय सं करण म थानीय समाचार क मु खता रहती है, िजनम थानीय
घटना-दुघटनाओं के अलावा थानीय वकास से जु ड़ी योजनाएं थानीय सम याएं मुख
थानीय लोग क ग त व धयां व अ य थानीय हलचल से जु ड़ी खबर शा मल रहती ह ।
कु छ समाचारप थानीय घर म होने वाले ज म व मृ यु से जुड़े छोटे समाचार का शत कर
थानीय लोग से नजद क था पत करने का यास भी करते ह ।
रा य समाचारप व ट वी चैनल से त पधा के बावजू द भाषाई समाचारप का वजू द
दरअसल थानीय समाचार के बूत पर ह कायम है ।
थानीय समाचार के कवरे ज के लए येक समाचारप म अलग से एक वभाग होता है
। कुछ प म सट ए डटर व अ धकांश म एक चीफ रपोटर अनेक रपोटर क ट म का
नेत ृ व करता है तथा शहर क व भ न ग त व धय के कवरे ज म इनका मागदशन करता है।

5.2.2.2 ांतीय समाचार

यू ं तो येक समाचार दे श के कसी न कसी ांत से संबं धत होता है कं तु जब कुछ समाचार


के समू ह को एक ांत वशेष के नाम से अलग पहचान दे द जाती है तो ये समाचार ांतीय
समाचार के वग म शा मल हो जाते ह ।
रा य समाचारप म भी समाचारप का कोई एक पृ ठ अथवा पृ ठ का कोई एक कोना
कसी ांत वशेष के लए नधा रत कर दया जाता है । इस पृ ठ पर उस ांत या दे श वशेष
के चु नंदा समाचार को थान दया जाता है । ऐसा करने का एक लाभ तो यह होता है क
उस ा त वशेष क खबर म च रखने वाले पाठक को अपनी च क खबर एक नि चत
जगह पर ा त हो जाती है, दूसरा यह उस ांत के पाठक से समाचारप के भावना मक जुड़ाव
क रणनी त का ह सा भी है ।
जहां तक े ीय तर पर छपने वाले भाषाई समाचारप ं है, इनम ांतीय समाचार
का संबध
को वशेष मह व ा त होता है । ांतीय तर क राजनी त, ांत के वकास से जु ड़ी नी तयां,
ांतीय तर के राजनेताओं क ग त व धयां आ द इन समाचारप म मुखता के साथ का शत
क जाती ह ।
े ीय तर पर समाचारप क त पधा जब से थानीय तर पर उतर आई है, ांतीय
समाचार का मह व कुछ कम होने लगा है । पाठक को अ धक से अ धक उनके नजद क
े के समाचार पढ़वाने क होड़ म समाचारप के थानीय सं करण क बाढ़ सी आ गई
है । अनेक समाचारप ने एक एक ांत म बारह-बारह, थानीय सं करण का शत करने

90
शु कर दए ह िजनम थानीय समाचार क ह मु खता रहती है । थानीयता क यह होड़
इस सीमा तक जा पहु ंची है क कई बार एक िजले के लोग को यह पता नह ं चल पाता क
उनके पास के ह िजले म या बड़ी घटना घ टत हो गई है । यव था के तौर पर इन थानीय
सं करण म भी ांतीय समाचार के लए एक अथवा दो पृ ठ नधा रत कर दए जाते ह ,
िजनम स पूण ांत क मुख खबर स म लत करने का यास कया जाता है ।

5.2.2.3 रा य समाचार

ाय: सभी दै नक समाचारप म आज भी हाड यूज के पृ ठ पर सव च वर यता, रा य


तर पर घ टत घटना म को ह द जाती है । ट .वी. चैनल क बदौलत रा य तर के
घटना म को य य प अब हाथ -हाथ उसी दन दे खा जाना संभव हो गया है, मगर इसके
बावजू द पाठक य िज ासा क भू ख अगले दन समाचारप म इसे पढ़ने के बाद ह पूर तरह
शांत होती है । कोई वमान दुघटना, कोई बड़ी रे ल दुघटना, सीमा पर झड़प, आतंककार घटनाएं
कसी रा य नेता से जु ड़ी कोई खबर अथवा रा य तर क कोई वकास योजना रा य
समाचार का वषय हो सकती है
रा य तर के हंद अथवा अं ेजी अखबार के मुख पृ ठ पर रा य समाचार क ह बहु लता
रहती है कं तु भाषाई एवं े ीय समाचारप ने ट .वी. एवं रा य समाचारप क त पधा
से अलग े वक सत करने क ि ट से अब ांतीय एवं थानीय समाचार को रा य
समाचार से अ धक मह व दे ना शु कर दया है । इन समाचारप म अब रा य तर के,
वे ह समाचार शा मल हो पाते ह जो क घटना के मह व के आधार पर यापक ह अथवा
जो अपने चटपटे पन, अनोखेपन या कसी खास दलच पी के कारण पाठक य च से जु ड़े
हु ए ह ।

5.2.2.4 अंतररा य अथवा वदे श समाचार

अंतररा य अथवा वदे श समाचार वे होते ह जो कसी समाचारप से जु ड़े मु क से बाहर


क घटनाओं पर आधा रत होते ह । व भ न दे श के बीच यु और सं धयां, अंतररा ं ,
य संबध
अंतररा य यापार, यू.एन.ओ, अ य रा क आ त रक राजनी त या व व तर य चटपटे
समाचार ऐसे ह समाचार क ेणी म आते ह ।
अंतररा य समाचार का काशन रा य तर के अखबार वशेष प से अं ेजी के अखबार
म अ धक होता है । भाषाई एवं े ीय समाचारप म वदे श समाचार ाय: वे ह कवर होते
ह जो या तो व ड े ड टावर जैसी कसी बड़ी दुखाि तका से संबं धत ह अथवा ये ऐसे कसी
वषय से जु ड़े हो िजससे आम पाठक य च जु ड़ी हु ई हो । वा ं ी कोई नई खोज,
य संबध
लाइफ टाइल या कसी मशहू र वदे शी शि सयत से जु ड़ी कोई चटपट घटना वदे श समाचार
के कॉलम म अ सर थान पा जाती है: -
ह टन ने कया एक और जु म
यूयाक , 30 जू न । शराब पीकर गाड़ी चलाने के जु म म पांच जू न से जेल जाने क तैयार
कर रह हॉल वुड क खू बसू रत अ भने ी पे रस ह टन अब गाड़ी पा कग नयम के उ लंघन
मामले म फंस गई ह । 26 वष या सु नहरे बाल वाल ह टन कल शाम यहाँ अपनी कार को
91
नधा रत पा कग थल पर लापरवाह से खड़ी करके पास ि थत एक ा ट टोर म च कार
करने चल गई िजसके बाद ै फक पु लस ने उनक कार पर जु माना ठ क दया ।
गौरतलब है क वष 2006 म शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले म ह टन क जेल क सजा
पाँच जू न से शु हो रह है । उ ह लास ऐंिज स सचु र र जनल डटशन सटर म अपनी 23
दन क यह सजा काटनी है और इस सल सले म जेल अ धका रय ने अपनी तैया रयां भी
कर ल है ।

5.2.3 वषय अथवा बीट के आधार पर

कारोबार म एक कहावत है क मौत और ाहक का कोई भरोसा नह ,ं जाने कब आ जाए ।


ठ क इसी तरह प कार के लए यह कहावत खर है क समाचार का कोई ठकाना नह ,ं जाने
कब और कहां मल जाए । समाचार का य द कोई नि चत ठकाना हु आ करता तो हर
समाचारप का द तर उसी ठकाने पर खु लता है जहां समाचार खु द-ब-खु द द तर के आंगन
म आकर एक त हो जाएं । मगर ऐसा नह ं होता । दुघटना, अपराध, घटना, मृ यु जैसे समाचार
बेशक कसी समाचारप के द तर म खु द चल कर पहु ंच जाते ह, मगर कई समाचार अलग
अलग इलाक , अलग अलग वभाग और अलग अलग द तर म दबे- बखरे पड़े होते ह िज ह
खु द जाकर लाना पड़ता है ।
िजस तरह अलग-अलग े म ढे र समाचार बखरे पड़े रहते ह, उसी तरह समाचारप के
द तर म अनेक रपोटर समाचार क टोह म इंतजार करते रहते ह । ऐसी ि थ त म कसी
थान से कसी समाचार क खुशबू आते ह द तर के सारे रपोटर य द एक साथ समाचार
थल पर पहु ंच जाएं तो समाचार संकलन का काय एक तमाशा बन सकता है । इसी तरह
कह ं कोई बड़ा हादसा हो जाए और द तर का हर रपोटर इस भरोसे म रहे क कोई अ य
रपोटर वहां पहु ंच गया होगा, तो संभव है, इस घटना का समाचार अखबार म का शत ह
न हो । इन सब गड़ब ड़य से बचने के लए ह समाचारप रपोटर के बीच काय वभाजन
क एक नि चत यव था बनाई जाती है िजसके अनुसार येक रपोटर का काय े नधा रत
कर दया जाता है । इस नधा रत काय े को ह दरअसल 'बीट' कह कर पुकारा जाता है।
रपोटर क बीट का नधारण अलग-अलग आधार पर कया जा सकता है, जैसे- सव थम
भौगो लक े के आधार पर रपोटर क बीट नधा रत क जा सकती है । कसी शहर का
व तार य द असाधारण प से बड़ा है तो रपोटर को पु लस महकमे क तरह भौगो लक आधार
पर े बाँट दए जाते ह । इस तरह के वभाजन अ सर अपराध व दुघटनाओं क 'बीट' म
कए जाते ह ।
वतीय, एक अ य बीट वभाजन वभागीय आधार पर कया जाता है । व भ न सरकार
वभाग , जैसे बजल वभाग, जलदाय वभाग अथवा अ य नकाय क िज मेदार अलग
अलग रपोटर म बाँट द जाती है तथा इनसे जु ड़े समाचार क जवाबदे ह इ ह ं क होती है।
तृतीय , बीट का वभाजन वषय के अनुसार भी कया जाता है , जैसे सां कृ तक एवं सामािजक
ग त व धय का रपोटर एवं शै णक ग त व धय से स ब रपोटर ।

92
चतुथ , कई बार रपोटर के श ण अथवा वशेष ता के आधार पर उसक बीट का नधारण
कया जाता है जैसे यु अथवा सीमा संबध
ं ी ग त व धय के कवरे ज का काय ऐसे रपोटर को
स पा जाता है, िजसने 'वार रपो टग' का बाकायदा श ण ा त कया हो ।
पंचम, अनुभव एवं व र ठता के आधार पर भी रपोटर क बीट का आवंटन संभव है । ाय:
चु नाव के कवरे ज, संसद या वधानसभा क रपो टग या कसी अ त व श ट यि त से मुलाकात
क िज मेदार व र ठ एवं अनुभवी रपोटर को ह स पी जाती है ।
वषय अथवा बीट के आधार पर समाचार का न न ल खत वग करण संभव हो सकता है :-

5.2.3.1 राजनी तक समाचार

समाचारप का पचास तशत से अ धक भाग ाय: राजनी तक समाचार से रं गा होता है


। राजनेताओं के व त य, राजनी तक दल के दाव पच, मं य के इ तीफे, चुनावी गठजोड़
व राजनी त क तमाम ग त व धयां राजनी तक समाचार के दायरे म आती ह । रा य
समाचार के प र े य म इन समाचार का के जहां के य मं ी और सांसदगण होते ह
वह ं नगर के समाचार म नगर पाषद क हलचल, राजनी तक समाचार का वषय हो सकती
है ।
पछले एक अरसे के दौरान समाचारप का यान, महज राजनी त से हट कर खेल, मनोरं जन,
लाइफ टाइल आ द वषय क ओर काफ हद तक मु ड़ने लगा है इसके बावजू द राजनी तक
समाचार का मह व आज भी अपनी जगह कायम है।
अनेक अवसर पर राजनी तक प रि थ तय को लेकर क गई या या मक ट प णयां भी
राजनी तक समाचार का ह एक प कह जा सकती ह । उदाहरणत: दो वरोधी राजनेताओं
क कोई गु त मुलाकात , आने वाले समय म राजनी तक समीकरण पर या भाव डाल सकती
है । अमु क राजनेता के कसी वशेष राजनी तक दल को समथन दे ने क घोषणा से उस दल
क राजनी तक है सयत पर या भाव पड़ सकता है, आ द कवरे ज व लेषण होते हु ए भी
समाचार क ेणी म 'आते ह', मगर ऐसे राजनी तक समाचार पया त अनुभव और गहर
राजनी तक समझ रखने वाले उन ह रपोटर को लखने चा हए िज ह न सफ संबं धत
राजनी तक र त क जानकार बि क राजनेताओं के यवहार क पूर समझ भी हो । एक
समाचार दे ख -
त ल मा पर हमला
हैदराबाद, 9 अग त । बां लादे श क ववादा पद ले खका त ल मा नसर न
पर गु वार को यहां मज लस इ तेहादुल मु सलमीन (एमआईएम) पाट के
तीन वधायक व 20 कायकताओं ने हमला कर दया त ल मा के सर
म मामूल चोट आने क खबर है । पु लस ने हमलावार को गर तार
कर लया । बाद म उ ह जमानत मल गई । हमले के बाद त ल मा ने
कहा, म भारत म सुर त रहू ंगी । हमला करने वाले मु ीभर है जब क
शु भ चंतक यादा ।
म अपने व वास के अनुसार लखना जार रखूग
ँ ी । गौरतलब है क इ लाम

93
के खलाफ ट पणी करने के आरोप म क रपं थय ने त ल मा के खलाफ
फतवा जार कर रखा है । त ल मा ने भारत सरकार से यहाँ क नाग रकता
क भी माँग क है । इस बीच, पि चम बंगाल सरकार ने गु वार को बताया
क इसी माह समा त हो रह उनक वीजा अव ध छह माह बढ़ा द गई है

5.2.3.2 चु नाव समाचार

चु नाव समाचार भी राजनी तक समाचार का ह एक प है मगर चु नावी समाचार ऐसे


समीकरण पर आधा रत ग णत क तरह हु आ करते ह, िजनका मू ल फामू ला बदलता रहता
है । चु नावी समाचार बनाते समय ता का लक राजनी तक ि थ त पर हर पल नजर रखनी
ज र होती है । थायी राजनी तक प रि थ तयां इनम सफ पृ ठभू म का काम करती है ।
चु नावी समाचार क बनावट ऐसी पहे लय क तरह होती है, िजनम पाठक को इसके उ तर
क परछाई तो नजर आती है, मगर वा त वक उ तर नह ं मल पाता ।
चु नाव के दौरान होने वाले राजनी तक सव ण, चु नाव व लेषण, चु नावी मु े व जन भावनाएं
आ द चु नाव समाचार के मु य वषय रहा करते ह ।

5.2.3.3 संसद य समाचार

संसद क बैठक, कारवाई, घोषणाएं वधेयक का पेश होना या कानून का पास होना, सांसद
क नोक झ क, मं य के व त य, बजट आ द बात संसद य समाचार क ेणी म आती
ह । अ यंत अनुभवी एवं व र ठ रपोटर को ह संसद य एवं वधान सभाई रपो टग के लए
लगाया जाता है । संसद व वधान सभा क रपो टग करते समय न सफ इन सदन के
वशेषा धकार क जानकार होना ज र है बि क यह समझ होना भी ज र है क वहाँ से
मलने वाल जानकार के सम दर म से पाठक य च क बात कैसे नकाल जाए ।

5.2.3.4 व ान समाचार

व ान समाचार को मोटे तौर पर दो अलग े णय म रखा जा सकता है । पहल ेणी म


वे समाचार आते ह, जो गूढ़ वै ा नक मसल पर आधा रत होते ह । ऐसे समाचार म ाय:
उ ह ं लोग क च रहती है िज ह व ान के आधारभूत नयम का ान अव य हो । ऐसे
समाचार बनाने वाले रपोटर म व ान क गहर समझ आव यक है । ये समाचार आमतौर
पर व ान से जु ड़ी प काओं अथवा समाचारप म वशेष टारगेट प
ु के लए नधा रत
कॉलम म ह छपते ह । व ान के लए वशेष तायु त समाचार बनाने क वधा ने व ान
प का रता के प म अपनी अलग पहचान बनाई है ।
दूसर क म के व ान समाचार आम आदमी क च से जु ड़े होते ह, िजनम तकनीक और
ान पर अ धक बल नह ं होता । ऐसे समाचार म उपभो ता के लए उपयोगी नए आ व कार
क जानकार , व ान के े म कोई अनोखी खोज, कोई अजीबोगर ब वै ा नक योग आ द
शा मल रहते ह : -
बंदर था दो पैर पर चलने वाला पहला जीव
इंसान ने ह सबसे पहले दो पैर पर चलना शु कया ले कन अब इस

94
धारणा को चु नौती मलने लगी है । टश शोधकताओं के मु ता बक, पेड़
पर इधर-उधर कूदने वाले बंदर (ओरगोटग जा त) ह पहले जीव थे,
िज ह ने दो पैर पर चलना शु कया था । व ापन प का साइंस के ताजा
अंक म छपे एक लेख म कहा गया है क बंदर ने पतल टह नय से
फल तोड़ने के लए दो पैर पर चलना शु कया । वैसे इस तरह चलने
के वा ते उसे सहारे के लए अपने हाथ का इ तेमाल करना पड़ता था ।
इस लेख को लवरपूल यू नव सट के रो बन ाम टन, ब मघम
व व व यालय क सूशेनहा थोप और रोजर हो डर ने मलकर लखा है ।
ाम टन ने कहा, 'अब तक दु नया यह मानती आई है क सबसे पहले
इंसान ने ह केवल दो पैर के बूते चलना जाना ।’ अगर हम सच है तो
कसी ाचीन बंदर और शु आती इंसान के जीवा म म अंतर कर पाना
और मु ि कल हो जाएगा ।

5.2.3.5 तर ा समाचार

तर ा संबध
ं ी जानका रय से जु ड़े समाचार इस ेणी म आते ह । ं ी घोटाले,
तर ा संबध
अ सर खोजी प कार के समाचार का मुख वषय रहे ह । ऐसे समाचार दे ते समय यह
सावधानी रखना ज र है क भंडाफोड़ करने के उ साह म कोई ऐसी जानकार का शत न
हो जाए जो दे श क सुर ा के लए खतरा बन जाए ।

5.2.3.6 अपराध समाचार

समाचारप म सवा धक पढ़े जाने वाले समाचार क ेणी म अपराध समाचार ह आते ह
। थानीय एवं े ीय सं करण म अपराध समाचार को सवा धक मह व दया जाता है ।
अपराध समाचार के लए येक दै नक समाचारप म एक रपोटर अलग से नयु त रहता
है जो नय मत प से न सफ पु लस थान व अपने ऐसे ह सू के स पक म रहता है बि क
दुघटनाओं व अ य हादस क जानकार रखने के लए े के अ पताल के भी च कर लगाता
है ।

5.2.3.7 अदालती समाचार

जन च से जु ड़े मह वपूण मु या च चत घटनाओं से जुड़े अदालती फैसल को ाय: सभी


अखबार वारा समाचार के प म छापा जाता है । अदालती फैसल को का शत करते समय
अ य धक सावधानी क ज रत हु आ करती है । समाचारप वारा अदालती समाचार बनाने
का काय ाय: पूणका लक अथवा अंशका लक प से कसी अनुभवी वक ल को स प दया
जाता है ।

5.2.3.8 वा ण य समाचार

समाचारप पाठक का एक बड़ा वग यापार और वा ण य से जु ड़ा होता है । इन पाठक क


िज ासा सबसे पहले यह जानने म रहती है क बाजार क आज या ि थ त है तथा कल

95
के लए वृि त कस ओर है । बाजार क तेजी-मंद , िज स के भाव, थोक व कराणा बाजार,
शेयर माकट, कारपोरे ट जगत आ द से जु ड़े समाचार एक खास भाषा एवं खास तकनीक के
साथ कवर कए जाते ह । इन समाचार को बनाने का काय वशेष एवं अनुभवी रपोटर
वारा ह कया जाता है ।
समाचार के उपरो त कार के अलावा भी वषय एवं बीट के आधार कई अ य कार हो सकते
ह जैसे खेल समाचार, कृ ष समाचार, पयावरण समाचार, सा हि यक एवं सां कृ तक समाचार,
फ म समाचार, शै णक समाचार आ द ।
समाचार का वषय अथवा े चाहे कोई भी हो, इसका मूल उ े य पाठक य िज ासा को शांत
करना ह होता है । य द इस येय को यान म रखा जाए तो ज रत पड़ने पर कोई भी रपोटर,
कैसे भी समाचार को कवर कर सकता है ।
बोध न-
1. यापी समाचार का अथ समझाइये ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……
2. ां तीय समाचार या होते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……
3. वा ण य समाचार कसे कहते है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

5.3 सारांश
पछल इकाई म समाचार के कु छ व श ट भेद एवं इनके वग करण के आधार का अ ययन
करने के बाद समाचार क कु छ बची हु ई े णय का अ ययन हमने इस इकाई म कया ।
हमने जाना क समाचार के वग करण का मु य उ े य समाचारप म समाचार क क म
एवं कृ त के अनुसार, इसके कवरे ज, रचना, लेसमट और तु तकरण क रणनी त बनाना
और इसके अनुसार यव था करना है ।

5.4 श दावल
बीट - रपोटर का काय े ।
कवरे ज - कसी घटना वशेष को इसके मह व के अनुसार समाचारप म जो
थान दया जाता है, इसे कवरे ज कहते ह ।
टारगेट प
ु - लोग का वह समू ह िजसे यान म रख कर समाचार लखा जा रहा
हो ।
डाक ए डशन - समाचारप का वह अंक जो काशन थल से बाहर कसी अ य थान
पर सा रत होता है ।
96
सट ए डशन - समाचारप का वह अंक जो इसके मु ण व काशन वाले शहर म
ह बंटता है ।

5.5 कुछ उपयोगी पु तक


टं मी डया लेखन - ो. रमेश जैन
संवाददाता और समाचार लेखन - हे र ब म
मी डया वमश - रामशरण जोशी
मी डया लेखन : स ांत एवं यवहार - डा. चं काश म
मी डया लेखन - डा. रमेशचं पाठ
मी डया लेखन - डा. सु मत मोहन
इ ू वंग यूज राइ टंग - लाक, राय पीटर
राइ टंग फार पुअर र डस - मरे डोना ड

5.6 अ यासाथ न
1. घटना के मह व के आधार पर समाचार का वग करण कस कार संभव है ।
2. े अथवा थान के आधार पर समाचार के भेद समझाइये ।
3. बीट कसे कहते ह? वषय के आधार पर समाचार क कौन क न सी े णयां हो सकती
ह?

97
इकाई- 6
त भ लेखन
इकाई क परे खा
6.0 उ े य
6.1 तावना
62 त भ लेखन का मह व
6.3 त भ और समाचार
6.4 त भ लेखन के वषय
6.5 त भ क कृ त
6.6 इंटरनेट पर त भ लेखन
6.7 भावी त भ लेखन
6.8 सारांश
6.9 कु छ उपयोगी पु तक
6.10 अ यासाथ न

6.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के बाद व याथ -
 तंभ लेखन के व वध पहलु ओं से प र चत हो पाएंगे ।
 कसी भी समाचारप और प का म तंभ का या थान है और तंभ लेखन के बारे
म पाठक क या त याएं रहती ह, इस बारे म भी यह इकाई उनका मागदशन करे गी

 तंभ लेखन के उ े य और उसक उपयो गता को जान सकगे ।
 तंभ लेखन के लए वषय का चुनाव कैसे कर और अपने लेखन को भावी कैसे बनाएं
इस दशा म भी यह इकाई सहायक स होगी ।
 स य प का रता म तंभ लेखन को अपनाने के इ छुक छा के लए यह इकाई वशेष
प से उपयोगी है ।
 तंभ ओर समाचार के अंतर को समझ सकगे ।
 तंभ लेखन क अधु नातन वृि तय को समझ सकगे ।

6.1 तावना
समाचारप अथवा प का म अ य साम ी के साथ का शत होने वाले तंभ का भी अपना
अलग मह व है । एक बड़ा पाठक वग ऐसा है, जो नय मत तौर पर का शत होने वाले
तंभ का अ ययन करते ह । बड़ी सं या उन पाठक क भी है, जो अ य साम ी से भी अ धक
मह व कसी तंभ को दे ते ह । समाचारप म का शत होने वाले तंभ य द भावी और
नरपे ह, तो नि चत तौर पर पाठक के दल म अपना थान बनाते ह । त यपरक,

98
वचारपूण और एक नई राह सु झाने वाले तंभ अ य का शत साम ी के बीच अपनी अलग
पहचान रखते ह । साधारण तौर पर यह माना जाता है क बु वग के पाठक ह तंभ पढ़ते
ह, पर हर मामले म यह बात लागू नह ं क जा सकती । बड़ी सं या ऐसे साधारण पाठक
क भी है, जो समाचार और फ चर साम ी के साथ नय मत का शत होने वाले तंभ भी
पढ़ते ह । अ धकांश पाठक का मानना है क समाचारप म का शत समाचार के बीच अगर
वचार कह ं िजंदा है, तो वह तंभ लेखन म ह है । वतमान दौर म तंभ लेखन क वधा
का उपयोग पाठक क संवेदनाओं को जा त करने के लए भी कया जाता है । रोजमरा के
समाचार के बीच कई बार पाठक क संवेदनाएं सूख जाती ह और वे तु त घटना म को
लेकर अ यंत न वकार भाव से त या य त करते ह । ऐसी सू रत म तंभ लेखक उनक
संवेदनाओं को पश करता हु आ उनके वचार को एक नई राह दखाता है ।

6.2 त भ लेखन का मह व
अनेक प कार ऐसे ह, जो समाचार और फ चर लेखन क तुलना म तंभ लेखन को अपनाते
ह । इसके पीछे वचार यह है क समाचार लेखन धीरे-धीरे एक ट न का काम बन जाता
है और इस वजह से उसम वै व य नह ं आ पाता है । यादातर प कार के सामने इसके अलावा
कोई वक प नह ं होता क वे स
े कां स या कसी दूसरे आयोजन से जु ड़े समाचार को य
का य लख द । उ ह अपने वचार य त करने क गु ज
ं ाइश नह ं होती और समाचार लेखन
क जो पारं प रक शैल है, उ ह उसे ह अपनाते हु ए अपना लेखन तुत करना होता है ।
इसी तरह फ चर लेखन म भी उ ह फ चर क शैल का अनुसरण ह करना होता है और फ चर
का जो अनुशासन है , उसक अनुपालना करते हु ए उ ह अपना लेखन कम पूरा करना होता
है । दूसर तरफ तंभ लेखन म उ ह अ भ यि त क वतं ता मलती है और अपनी राय,
अपने वचार वे एक यापक पाठक वग के सम रख सकते ह ।

6.3 त भ और समाचार
जहां तक समाचार लेखन का सवाल है, तो यह माना जाता है क नय मत अ ययन के अलावा
गहन श ण और नरं तर अ यास के बाद कोई भी इस वधा म पारं गत हो सकता है । इसी
तरह, अगर आप सह फामूल का चयन कर ल, तो फ चर लेखन को भी आसानी से अपनाया
जा सकता है । ले कन तंभ लेखन को सबसे मु ि कल वधा माना जाता है, य क इस दौरान
आपको नरं तर वचार मंथन क या से गुजरना पड़ता है । हर पल अपने आपको अपडेट
करना होता है और नय मत और मब अ ययन क वृि त को वक सत करना होता है
। हालां क तंभ लेखन म लेखक के वचार का ह सवा धक मह व होता है, ले कन इसका
यह आशय नह ं क तंभ लेखक अपने अता कक वचार का चार- सार करने क चे टा करे
। यह आव यक है क वचार सुसंगत, वाहमान और तक क कसौट पर खरा उतरते ह
। और साथ म उनका पठनीय होना तो आव यक है ह । जब तक वचार चपूण और मब
तर के से तु त नह ं कए जाएंग,े तब तक वे पाठक म दलच पी जगाने म सफल नह ं
ह गे । इन अथ म तंभ लेखक क भू मका कसी वक ल जैसी होती है । उसे अपनी दल ल

99
से पाठक को आ व त करना होगा क उसका मु वि कल यानी उसका मंत य सह राह का
अनुसरण कर रहा है ।

6.4 त भ लेखन के वषय


तंभ कसी भी वषय पर हो, पर एक बात नि चत है क पाठक का एक बड़ा वग उससे
ज र भा वत होता है । इस ि ट से यह कहा जा सकता है क कसी भी प -प का म तंभ
लेखक अ यंत मह वपूण भू मका नभाता है । तंभ कसी भी वषय पर आधा रत हो सकता
है, ले कन उसके यापक भाव से इनकार नह ं कया जा सकता । तंभ लेखन के लए हम
न न ल खत वषय म से कसी एक का चु नाव कर सकते ह-

6.4.1 राजनी तक

इस तंभ के तहत ताजा राजनी तक ग त व धय पर फोकस कया जाता है । क


और रा य म स ता के लए या उठापटक चल रह है और राजनी तक ग लयार
म कसका पलड़ा भार है और कसका पलड़ा हलका चल रहा है और कौन-सा दल
कस नेता के सहारे अपनी राजनी तक मह वाकां ाएं पूर करने का य न कर रहा
है, इस तरह क साम ी इस तंभ म शा मल क जाती है । अखबार का राजनी तक
संवाददाता या व र ठ संपादक य सहयोगी इस तंभ को लखता है ।

6.4.2 खेलकू द

खेल क दु नया से जु ड़ी ग त व धय पर क त इस तंभ के बारे म यह माना जाता


है क इसे सवा धक सं या म पाठक मलते ह । इस तंभ म समसाम यक घटनाओं
पर फोकस कया जा सकता है और दै नक काशन म का शत होने वाल साम ी
से इतर कुछ व श ट साम ी को थान दया जाए तो इसक लोक यता थायी तौर
पर कायम रखी जा सकती है ।

6.4.3 बागवानी

तंभ लेखक के लए यह अपे ाकृ त नया वषय है, ले कन इस वषय म संभावनाएं


अपार ह । आजकल शहर प रवार म भी अपने घर म बागवानी का चलन बढ़ता
जा रहा है और यह तंभ उनके लए उपयोगी सा बत हो सकता है ।

6.4.4 संगीत

इस तंभ का कलेवर ट न के कला-सं कृ त संबध


ं ी आयोजन से भ न होता है ।
इसम ल ध ति ठत कलाकार पर आधा रत रपोताज लखने के साथ नए और
तभाशाल कलाकार के बारे म भी नय मत तौर पर लखा जा सकता है । पर
यह तंभ शहर म स ताहभर म होने वाले सांगी तक आयोजन क रपोट बनकर
न रह जाए इस बात का यान रखना आव यक है । इस तंभ म फ मी और गैर
फ मी यूिजक एलबम क समी ा भी शा मल क जा सकती है ।

100
6.4.5 पु तक

पु तक समी ा का तंभ लगभग हर समाचारप और प का म का शत होता है


। कई बार संपादक थानीय या बाहर समालोचक का एक पैनल तैयार रखते ह और
इसी पैनल म शा मल कसी समालोचक या लेखक को समी ा का िज मा स पा जाता
है । इनके बीच कु छ लेखक ऐसे भी होते ह, जो नय मत तौर पर पु तक समी ा
लखते ह । पु तक समी ा का तंभ न सफ पाठक समु दाय के बीच, अ पतु लेखक
समु दाय के म य भी लोक य होता है ।

6.4.6 हास-प रहास

तंभ लेखन का यह ऐसा े है, िजसम भरपूर संभावनाएं न हत ह । लगभग येक


समाचारप अथवा प का अपने काशन को नीरसता से बचाने के लए हास-प रहास
से भरपूर साम ी का काशन भी नय मत तौर पर करते ह । इस तरह के तंभ
कई बार इतने लोक य होते ह क अखबार हाथ म आते ह पाठक इस तंभ को
तलाश करते ह । यात यं यकार शरद जोशी का कॉलम ' त दन' पूरे एक दशक
तक 'नवभारत टाइ स' म लगातार छपा । अं तम पृ ठ पर का शत होने वाले इस
तंभ को पाठक सबसे पहले पढ़ते थे, य क शरद जोशी इस तंभ के मा यम से
समसाम यक घटनाओं पर करारा यं य करते थे ।

6.4.7 सेहत

लोग को वा य संबध
ं ी जानकार दे ने वाले इस तंभ क पठनीयता भी असं द ध
है । ाय: येक काशन वा य संबध
ं ी जानकार से भरपूर साम ी को थान दे ता
है । इस तंभ म पाठक क भागीदार सु नि चत करने के लए वशेष क सलाह
को भी थान दया जा सकता है ।

6.4.8 फटनैस

इसे हम वा य संबध
ं ी तंभ से भ न प म तु त करना होगा और एक तंभ
लेखक के लए यह सबसे बडी चु नौती है । आज क भाग-दौड़ भर िजंदगी म फटनैस
क चाहत हर कसी को होती है । तंभ लेखक को चा हए क वह अपने े के पाठक
क ाथ मकताओं को समझकर उनके लए उपयु त साम ी का चु नाव इस तंभ
के लए करे ।

6.4.9 सनेमा

सनेमा से संबं धत साम ी के पाठक क सं या असी मत होती है, इस लहाज से


सनेमा पर तंभ लखने वाले लेखक क िज मेदार भी बहु त अ धक हो जाती है
। फ म उ योग म हर पल घटने वाल घटनाओं के बीच अपने पाठक वग के लए
उपयोगी साम ी का चु नाव करना और उसे शाल न भाषा म तु त करना उसका
दा य व होता है । वतमान दौर म टे ल वजन चैनल क बढ़ती लोक यता के कारण

101
सनेमा संबध
ं ी तंभ म ह ट वी काय म से संबं धत साम ी शा मल क जा सकती
है ।

6.4.10 ेरक संग

समाचारप म ेरक संग और लोक कथाओं के तंभ भी बहु त लोक य होते ह


। इन तंभ क लोक यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है क 'नवभारत
टाइ स' जैसा रा य समाचारप रे क संग का तंभ अपने संपादक य पृ ठ पर
का शत करता है ।

6.4.11 व तीय

वा ण य और व तीय समाचार पर आधा रत इस तंभ का पाठक वग हालां क


सी मत होता है, ले कन इस तंभ के लए साम ी का चयन बड़ी सूझ-बूझ के साथ
कया जाना चा हए । आम तौर पर वा ण य और व तीय समाचार नीरस आकड़
से भरपूर होते ह, ले कन तंभ लेखक से यह अपे ा क जाती है क वह नीरस साम ी
म से पाठक के मतलब क जानकार खोज कर उसे अलग अंदाज म उनके सम
तु त करे ।

6.4.12 कला

कला संबध
ं ी ग त व धय पर आधा रत इस तंभ को लखने वाले प कार क छ व
एक कला समी क क बन जाती है, ले कन इस तंभ को लखने से पूव लेखक को
अपने वषय का गहराई से ान होना चा हए । उसम नरं तर अ ययन क वृि त
का होना भी आव यक है और कला जगत क व भ न धाराओं का भी उसे पया त
ान होना चा हए ।

6.4.13 रं गमंच

इस तंभ म रं गमंच से जु ड़ी ग त व धय को थान दया जाता है । इसम नाटक


ं ी कायशालाओं, से मनार और वचार- वमश को भी
क समी ा के साथ रं गमंच संबध
पया त थान दया जाना चा हए । थानीय रं गमंच से जु ड़े कलाकार क तभा
को सामने लाने क ि ट से ऐसे तंभ का मह व सव व दत है ।

6.4.14 कानूनी सलाह

इस तंभ म पाठक के व धक न का उ तर व ध वशेष दे ते ह । चू ं क ऐसे


तंभ पाठक क व धक सम याओं का समाधान तु त करते ह, इस लए इनक
उपयो गता से इनकार नह ं कया जा सकता । पर ऐसे तंभ के लए न का चयन
करने म अ यंत सावधानी रखनी चा हए और सफ ऐसे न ह शा मल करने चा हए
िज ह व धस मत ठहराया जा सके ।

102
6.4.15 पा रवा रक उलझन

आम तौर पर इस वषय से संबं धत तंभ म हलाओं क प काओं म ह का शत


होते ह । इनम म हला पाठक अपने जीवन क उलझन को तंभ लेखक के साथ
शेयर करती ह और इन अथ म तंभ लेखक क भू मका एक पा रवा रक म के
समान होती है ।

6.4.16 धम और अ या म

पाठक का एक बड़ा वग धम और अ या म से संबं धत साम ी नय मत तौर पर


पढ़ना पसंद करता है । खास तौर पर छोटे शहर और क ब के पाठक धा मक
ग त व धय से संबं धत साम ी म अ धक दलच पी रखते ह । इसी लए आजकल
अ धकांश समाचारप धम और अ या म पर पया त साम ी का काशन करते ह
। ऐसे तंभ म हम ाचीन धम गु ओं के बारे म ेरक साम ी का काशन करना
चा हए और साथ म उनके वचन और श ाओं को भी थान दया जाना चा हए।

6.4.17 यो तष और रा शफल

ाय: सभी काशन म यो तष और रा शफल के तंभ त दन का शत होते ह


। दै नक रा शफल के साथ सा ता हक रा शफल का काशन भी कया जाता है । वष
के अंत म वा षक रा शफल का काशन भी समाचारप और प काओं म कया जाता
है ।

6.5 त भ क कृ त
तंभ लेखन के लए वषय का चयन करने के दौरान इन बात का यान भी रखा जाना चा हए-
जानकार - यू ं तो अनेकानेक वषय ऐसे ह, िजन पर तंभ लेखन कया जा सकता है, ले कन
असल सवाल यह है क या आप संबं धत वषय के ाता ह? वषय के हर पहलू क आपको
कतनी जानकार है? या आप उस वषय पर अ धकारपूवक चचा कर सकते ह? कहने का
आशय यह क आप िजस वषय का चयन कर, उससे जु ड़ी हर छोट -बड़ी बात क जानकार
आपको होनी ह चा हए । जानकार के साथ-साथ वषय क समझ हा सल कए बना आप
जो कु छ लखगे, उसम चू क होने क आशंका लगातार बनी रहे गी । याद रहे क त य और
वषयव तु के तु तीकरण म जरा-सी चूक भी आपक छ व धू मल कर सकती है और आपके
तंभ क व वसनीयता को खं डत कर सकती है ।
ासं गकता - वषय का चु नाव करते समय ासं गकता का पहलू अव य यान म रख । जब
तक वषयव तु ासं गक नह ं होगी, पाठक उस तंभ से अपना तादा य था पत नह ं कर
पाएंगे । इसके अलावा, अपने तंभ लेखन को पठनीय बनाए रखने के लए भी ासं गकता
के प को यान म रखना आव यक है । लेखन से पहले यह अव य दे ख क संबं धत वषय
वतमान दौर म कतना ासं गक और पठनीय है । कहने का आशय यह क अगर आप व ान
से जु ड़े वषय पर तंभ लेखन करते ह और लोबल वा मग जैसे वलंत मु े पर कुछ लखना
चाहते ह, तो ऐसा लेखन भीषण गम के दौर म कया जा सकता है और अगर आप कड़कड़ाती

103
सद के दन म इस वषय पर कलम चलाते ह, तो पाठक इस वषय से कदा प नह ं जु ड़
पाएंगे ।
शोध और अ ययन - तंभ लेखक म शोध और अ ययन क वृि त का होना भी आव यक
है । जब भी कसी वषय पर लखने क तैयार कर, तो ज र है क हम उस वषय से संबं धत
पहलु ओं क यापक जानकार के लए शोध के तर पर अ ययन कर । इस तरह हम कसी
भी सम या या मु े क गहराई तक पहु ंच सकगे और पाठक को भी इस बात का एहसास
होगा क जो तंभ आलेख उ ह ने पढ़ा है, उसने उ ह वषय क पया त जानकार द है ।
इसी तरह अगर हम नय मत अ ययन का अ यास रखगे, तो पाठक को कसी भी वषय
के बारे म सवाग जानकार दे पाएंगे । याद रख क लखने से भी यादा ज र है पढ़ना ।
नई पीढ़ के प कार म अ ययन क वृि त कम दखाई दे रह है और अ सर वे गवेषणा
और शोध जैसे यास से बचते ह । जब क नय मत अ ययन से न सफ उनका ववेक तर
ऊंचा होगा, अ पतु उनका भाषा ान भी समृ होगा ।
त य का संकलन - य य प तंभ लेखन म लेखक य वचार क धानता रहती है, तथा प
त य से पूर तरह मु ँह नह ं मोड़ा जा सकता । इस लए तंभ लेखक को त य का संकलन
करने के लए हमेशा त पर रहना चा हए । ामा णक त य से यु त तंभ लेखन पाठक के
लए अपना अ भमत वक सत करने म सहायक सा बत होता है । इसके अलावा, त य के
सहारे तंभ लेखक अपने वचार को अ धक भावी शैल म पाठक तक पहु ंचा सकता है ।
त य को अपडेट भी करते रह, ता क ु ट र हत लेखन कया जा सके । त य के सं हण
के लए उसे सरकार योजनाओं और द तावेज का भी नय मत अ ययन करना चा हए । साथ
ह उसे सभी मुख कानून और नयम क अ यतन जानकार भी होनी चा हए ।
तंभ लेखन चू ं क लेखक के नजी अनुभव और यि तगत वचार का त बंब है, इस लहाज
से यह ज र है क िजस वषय पर वह तंभ लख रहा है, उस वषय क उसे गहर समझ
हो । सफ दलच पी के आधार पर ह कसी वषय का चयन कर लेना युि तसंगत नह ं कहा
जा सकता । संबं धत वषय से जु ड़े येक पहलू क पया त जानकार आपके पास होनी ह
चा हए । इसके अलावा, तंभ लेखन शु करने के बाद भी अपने वषय से संबं धत जानकार
लगातार जु टाने का य न करना चा हए । इस तरह आप अपने पाठक को अपडेट जानकार
भी दे पाएंगे और अपने तंभ को लंबे समय तक पठनीय और उपयोगी बनाए रख सकगे ।
याद र खए संपादक भी आपके तंभ म तब तक ह दलच पी दखाएंग,े जब वे आ व त
हो जाएंगे क पाठक के बीच आपके तंभ लेखन क अ छ चचा है और इसक वजह से पाठक
समाचारप को अ धक पठनीय मानते ह । और जब पाठक आपके तंभ को काट कर अलग
रखना शु कर द और उस पर चचा करने लग, तो मान ल िजए क आपने उस तर को छू
लया है, िजसक अपे ा एक कॉलम राइटर से क जाती है । वतमान दौर म यादातर तंभ
सामािजक या राजनी तक वषय पर ह आधा रत ह, ले कन खेल, व ान, पयावरण, धम,
सनेमा और संगीत से संबं धत वषय पर आधा रत तंभ भी पाठक वारा सराहे जाते ह
। संगीत से संबं धत तंभ लेखन म हम ताजा सांगी तक ग त व धय क जानकार दे ने के

104
साथ कलाकार के अनूठे योग और गुणी ोताओं और पाठक के झान का उ लेख भी कर
सकते ह । पछले दशक तक हंद प -प काओं म संगीत समी ा के तंभ नय मत तौर
पर का शत कए जाते थे । धीरे -धीरे इनका काशन कम हु आ और मौजू दा दौर म तो ऐसे
काशन क गनती उं ग लय पर क जा सकती है, िजनम संगीत समी ा का तंभ नय मत
तौर पर का शत कया जाता है । इसी तरह व ान और पयावरण भी ऐसे वषय ह, िज ह
तंभ लेखन म शा मल करने का साहस आम तौर पर हंद के प कार नह ं करते । हंद के
काशन म व ान और पयावरण पर आलेख या फ चर भी यदा-कदा ह मलते ह, ऐसी सूरत
म तंभ लेखन क बात दूर क कौड़ी नजर आती है । सनेमा संबध
ं ी तंभ लेखन क वधा
वतमान दौर म सबसे लोक य है । नए और पुराने प कार सनेमा को अपने लेखन का वषय
बनाना चाहते ह, तो इसका कारण यह है क सनेमा सबसे यादा पढ़ा जाने वाला वषय है
। न सफ फ मी प -प का, बि क सामा य प -प काओं म भी सनेमा संबध
ं ी साम ी क
भरमार है । पर सनेमा पर तंभ लखने वाले प कार अ सर गंभीर और संजीदा लेखन से
बचते ह । आम तौर पर वे सनेमा पर सतह लेखन से ह काम चलाते ह और इसके पीछे
उनका तक यह होता है क पाठक यह सब कु छ पढ़ना चाहते ह । यह ठ क वैसा ह है जैसा
क अ सर हमारे फ मकार तक दे ते ह क वे उसी तरह क फ म बनाते ह, जैसी क दशक
दे खना चाहते ह । पर इस सवाल से शायद सब बचना चाहते ह क पाठक और दशक क
च अगर वाकई गलत दशा म मु ड़ गई है, तो इसे प र कृ त करने क िज मेदार आ खर
कसक है । यह सवाल इस लए भी मह वपूण हो जाता है , य क अ सर पाठक अपने वचार
का वाह उसी दशा म मोड़ लेते ह, जो दशा उ ह तंभ लेखक के वचार से मलती है ।
इस लहाज से तंभ लेखक का दा य व और भी बढ़ जाता है । कोई भी मंत य और वचार
य त करने से पहले उसे चा हए क वह यह बात ि टगत रखे क एक बड़ा पाठक वग उसके
वचार का अनुसरण कर सकता है । इन वचार के काश म हम तंभ लेखन के यापक
मह व को इन बंदओ
ु ं के अंतगत य त कर सकते ह
 तंभ लेखन सम साम यक मह व के कसी भी मसले पर पाठक के अ भमत को य त
करता है । हालां क तंभ म य त वचार सफ लेखक के मंत य को प ट करते ह,
ले कन यह नि चत है क पाठक का एक बड़ा वग भी उसी मंत य को अपना लेता है।
 तंभ लेखन कसी ऐसे मसले क तरफ लोग का यान आकृ ट करता है, िजसका संबध

यापक जन समु दाय से हो ।
 तंभ लेखन से पाठक के अ भमत को त दन या एक नि चत आवृि त पर नई दशा
मलती ।
 नय मत और तयशु दा थान पर का शत होने से कई बार कोई तंभ कसी काशन
क पहचान भी बन जाता है ।
 तंभ लेखक क पहचान भी अपने कॉलम के साथ जु ड़ी होती है । यह पहचान कई बार
पाठक के लए सहायक सा बत होती है क वे लेखक को कस नज रए से दे खते ह ।

105
6.6 इंटरनेट पर त भ लेखन
कं यूटर और इंटरनेट ने आज हर कसी के सामने लेखक बनने का सु गम और सु वधाजनक
रा ता खोल दया है । अपनी दशा खोिजए और उस दशा म लेखन का यास शु कर द िजए
। तंभ लेखन के लए अब सफ समाचारप अथवा प का पर ह नभर रहने क आव यकता
नह ं है । नए प कार के लए अब इंटरनेट भी तंभ लेखन का अ छा मा यम सा बत हो
रहा है । कु छ अथ म तो यह मा यम समाचारप और प का से भी यादा भावी सा बत
हो रहा है । इसका आधारभू त कारण यह है क समाचारप और प का के मुकाबले इंटरनेट
के ज रए अ धक लोग तक पहु ंचना आसान हो गया है । इंटरनेट पर अपलोड कया गया कोई
भी तंभ पूर दु नया म एक साथ हजार -लाख लोग वारा पढ़ा जा सकता है, वह भी तुरंत
। ऐसी सु वधा तो समाचारप म भी उपल ध नह ं है ।
इंटरनेट पर तंभ लेखन का सबसे बड़ा लाभ यह है क आपको अपने लेखन के बारे म बड़ी
सं या म त याएं मल जाती ह । एक साथ बड़े पाठक वग तक पहु ंचने क मता के
कारण इंटरनेट पर अपलोड कया गया कोई भी कॉलम त काल त याएं जु टा लेता है ।
इसके अलावा, ता का लक मह व के तंभ के लए इंटरनेट मानो वरदान सा बत हु आ है ।
तेजी से बदलती दु नया म आज कोई भी वषय या संग कुछ ह अस म अपनी धार खो
बैठता है । लगाता चौबीस घ टे समाचार और दूसरे काय म पेश करने वाले टे ल वजन चैनल
के कारण कई बार कसी घटना या संग के हर पहलू का इतनी अ धक बार व लेषण कया
जाता है क फर समाचारप अथवा प काओं म इस बारे म कॉलम लखने का कोई औ च य
नह ं रह जाता । ऐसी सू रत म इंटरनेट आपके लए मददगार के प म सामने आता है, जहां
आप अपने वचार के वाह को अनवरत रख सकते ह ।

6.6.1 तंभ क कृ त

य द आपने तंभ लेखन का न चय कर लया है तो सव थम यह तय कर क आप


कस वषय पर लेखन करना चाहते ह । अथात ् आपके तंभ क कृ त कैसी होगी
। कृ त से हमारा आशय उसक संरचना और वषयव तु से है । तंभ राजनी तक
वषय पर आधा रत होगा अथवा सामािजक, आ थक या अ य कसी वषय पर ।
तंभ म पाठक को सफ कोई नई जानकार दे ने का य न कया जाएगा अथवा
लेखक य ट पणी के साथ उ ह अपना अ भमत वक सत करने का य न भी कया
जाएगा । जब हम तंभ क कृ त का नधारण कर, तो इसम यह भी तय कर ल
क हम अपने लेखन के मा यम से पाठक को कैसी दशा दे ना चाहते ह । भले ह
इंटरनेट के कारण तंभ लेखन अब अपे ाकृ त आसान हो गया है, परं तु इसका यह
आशय कदा प नह ं क हम अपने वचार को बेलगाम तर के से सा रत करते रह
। येक श द का अपना मह व है और उसका भ न- भ न भाव पाठक पर पड़
सकता है । अ पतु इंटरनेट क सव यापकता के कारण समाचारप के मुकाबले श द
का सार अ धक ती ग त से हो सकता है । इस ि ट से तंभ लेखक को अपने
तंभ क कृ त के बारे म युि तसंगत तर के से नणय करना होगा ।

106
6.6.2 तंभ लेखन क शु आत

िजस तरह एक खलाड़ी त दन अ यास के सहारे अपने खेल म नरंतर सुधार लाने
का यास करता है, ठ क उसी तरह तंभ लेखक भी अपने त दन के लेखन के
साथ अपनी शैल म नरंतर सुधार कर सकता है । कसी भी नए तंभ लेखक के
लए यह सु झाव दया जा सकता है क वह सा ता हक तंभ के साथ शु आत करे
। उसे यह बात समझ लेनी चा हए क था पत तंभ लेखक के एक-एक श द के
पीछे वष का अनुभव और अ ययन छपा है । कसी भी नवो दत तंभ लेखक को
ारं भ म त दन आवृि त वाला तंभ लेखन नह ं करना चा हए । त दन कोई तंभ
लखने के कारण उसे नय मत अ ययन के लए समय नह ं मलेगा और अगर उसने
नय मत अ ययन क वृि त वक सत नह ं क , तो वह अपने लेखन को समृ नह ं
कर पाएगा । तंभ लेखन क या शु करने के लए आपको न नां कत चार
चरण से गुजरना होगा-
पहला - थानीय, ादे शक और रा य समाचारप का गहन अ ययन कर । दे ख
क समाचारप कस कार के कॉलम का शत कर रहे ह और या वह तंभ आपक
और दूसरे पाठक क ज रत को पूरा कर रहा है । यह भी दे ख क समाचारप के
अपने तंभ लेखक ह अथवा वह कसी संडीकेशन एजसी के ज रए तंभ का शत
कर रहा है । जो समाचारप संडीकेशन एजसी के ज रए तंभ का शत कर रहा
है, उसे अगर थानीय तर पर कोई तंभ लेखक मले, तो शायद वह अपना
ए स लू सव कॉलम शु कर सकता है । आम तौर पर संडीकेशन के मा यम से
ा त होने वाले तंभ म थानीयता का पुट नह ं होता और एक से अ धक काशन
म छपने के कारण उसक व श टता भी समा त हो जाती है ।
दूसरा - समाचारप का अ ययन करने के बाद चु नंदा अखबार के संपादक को प
लख और थायी प से तंभ लखने के अपने ताव का उ लेख कर । साथ म
नमू ने के तौर पर एक या दो तंभ भी लख कर भेज, ता क संपादक आपक लेखन
मता और वषय के बारे म आपक तब ता तथा जानकार का अनुमान लगा
सक । संपादक को संबो धत करते हु ए जो प लखा जाए उसम अपनी यो यता और
अपने लेखन संबध
ं ी अनुभव का उ लेख करना न भूल ।
तीसरा - इस बात के लए तैयार रह क संपादक आपको ायो गक तौर पर कुछ तंभ
लखने के लए कह सकते ह । कई बार संपादक अपनी आ वि त के लए या फर
अपने पाठक क च को परखने के लए आपको अ थायी तौर पर तंभ लेखन के
लए कह सकते ह । भले ह ऐसा लेखन नमू ने के तौर पर ह कया जाए ले कन
तब ता, जानकार और वचार के तर पर उसे कह ं भी कमजोर नह ं होना चा हए
। इसके अलावा, डेडलाइन का पालन करना भी अ यंत आव यक है । एक बार अगर
आपने संपादक क आव यकता के अनु प लेखन क शु आत कर द , तो आगे रा ते
खु लने म भी वलंब नह ं होगा ।

107
चौथा - तंभ लेखन क शु आत पहले थानीय तर पर कर, उसके बाद अपने शहर
और रा य के बाहर ि थत समाचारप से संपक कर । वतं प से काम करने
वाले तंभ लेखक कसी एक समाचारप के साथ जु ड़ने क बजाय एका धक
समाचारप म तंभ लख सकते ह । इस ि थ त म यान रखने यो य बात यह
है क थानीय तर पर एक से यादा अखबार म समान तंभ नह ं लख ।

6.6.3 तंभ लेखक के सम चु नौ तयां

अलग- अलग लेखक के सामने चु नौ तय का तर भी अलग ह होगा । फर भी


कु छ चु नौ तयाँ ऐसी ह, िजनका सामना लगभग हर लेखक को करना पड़ता है । इनम
से मुख चु नौ तयां इस कार ह-
 अपने तंभ के बारे म पाठक क त या बहु त कम ा त हो पाती है । इस कारण
लेखक को इस बात क ठ क-ठ क जानकार नह ं मल पाती क उसके तंभ लेखन का
उ े य पूरा हो रहा है या नह ं ।
 तंभ लेखन एक नय मत या है और एक नि चत आवृि त पर इसे लखना ह है
। ले कन हमेशा ऐसा नह ं होता क तंभ लेखक के पास नई जानकार उपल ध हो ।
इस कारण कई बार त य क पुनरावृि त भी हो जाती है । पुनरावृि त से बचने के लए
तंभ लेखक को सलाह द जाती है क वे अपने लेखन को ासं गक और ताजा बनाए
रखने का य न करते रह ।
 साधारण तौर पर तंभ लेखक को बहु त कम पा र मक मल पाता है । इस लए अगर
वह इसे जी वका बनाना चाहे, तो उसे एक से अ धक काशन के साथ संपक कायम करना
पड़ेगा । एका धक काशन से जु ड़ने पर उसे हर काशन के पाठक वग को यान म
रखते हु ए अपने तंभ को आगे बढ़ाना होगा ।
 लगातार एक ह धारा पर लेखन कम करते हु ए एकरसता के खतरे का सामना भी उसे
करना होगा । इस लए यह आव यक है क तंभ लेखन अपने लेखन म दलच प और
उपयोगी जानका रयां भी शा मल कर । यदा-कदा हास-प रहास का सहारा भी लया जा
सकता है ।
 नय मत तंभ लेखन के लए तब ता, लगन, मेहनत और समयब अनुशासन क
ज रत होती है । एक ह यि त म इन सभी गुण का मलना थोड़ा मु ि कल ह है ।
बोध न-
1. तं भ ले ख न का या मह व है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……
2. तं भ और समाचार म या अं त र है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. तं भ ले ख न क ारं भक तै यार कै से कर ?

108
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……
4. इं ट रने ट पर तं भ ले ख न के या लाभ ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……
5. तं भ ले ख न से सं बं धत चु नौ तय क चचा कर ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………… ……

6.7 भावी त भ लेखन


1. प ट और वचार धान - तंभ लेखक को अपने वचार सु प ट तर के से तुत करने
चा हए । तंभ लेखक को सावज नक मह व के कसी भी वषय पर वचार य त करने
का अ धकार है, पर यह आव यक है क उसके वचार सु संगत और व वसनीय ह । कसी
भी वषय से संबं धत हरे क पहलू का समावेश अपने तंभ म करना चा हए ता क पाठक
के सामने संतु लत त वीर उपि थत हो सके ।
2. ल य पर नशाना - तंभ लेखक का काम कसी कुशल नशानेबाज के समान है । उसे
हमेशा अपने ल य पर नगाह रखनी चा हए । कहने का आशय यह है क अपने तंभ
के ज रए उसे अपने ल त पाठक के लए कम से कम इस तरह क साम ी तु त
करनी चा हए िजसक सहायता से पाठक को नई दशा मले और कसी वषय पर वे
अपनी राय था पत कर सक ।
3. तप ी वचार को भी सु न - तंभ लेखक को अपने वचार अ भ य त करने के साथ-साथ
तप ी वचार को भी पया त मह व दे ना चा हए तभी वह कसी भी वचार को यादा
भावी शैल म पाठक के स मु ख तु त कर पाएगा । प और तप के वचार को
संतु लत शैल म तु त करने के यास से पाठक क ि ट म उसक व वसनीयता
बढ़े गी ।
4. ामा णक और सुसंगत त य - तंभ लेखन म जहां कह ं त य का तु तकरण कया
जाए वहाँ यह अव य यान रखा जाए क सभी त य ामा णक और सुसंगत प म ह
। कसी भी त य को बदला नह ं जाए । यह भी यान रख क िजस ोत से त य जु टाए
जाएं उसक ामा णकता और व वसनीयता भी असं द ध हो ।
5. समालोचक क ि ट - तंभ लेखक को हमेशा समालोचक क ि ट का अनुसरण करना
होगा, ऐसे तंभ आम पाठक वारा अ धक पसंद कए जाते ह । यथासंभव ववाद से
बचा जाए ले कन जहां आव यक हो, तंभ लेखक को समालोचना से नह ं बचना चा हए
। कई बार समालोचक क ि ट से लखा गया कोई तंभ भी पाठक को नई राह दखा
सकता है ।
6. जीवंत रपो टग - य य प तंभ लेखक का रपोटर होना आव यक नह ं है, ले कन अपने
कॉलम को अ धक पठनीय और जीवंत बनाने के लए उसे नय मत तौर पर रपो टग
109
का सहारा भी लेना चा हए । अपने नजी अनुभव का वणन करते हु ए वह अपने लेखन
को और व वसनीय बना सकता है । रपो टग पर आधा रत तंभ पाठक के मृ त पटल
पर लंबे समय तक अं कत रहते ह ।
7. थानीयता का पुट - अपने तंभ लेखन म थानीयता का यान भी रख, य क अपने
आस-पास घटने वाल घटनाओं से जुड़े वचार पाठक को अ धक आक षत करते ह । कसी
भी थानीय वषय को तुत करते समय अपने अनुभव का नचोड़ भी उसम शा मल
कर ।
8. आंकड़ से बच - तंभ लेखन के दौरान जब भी कह ं तुलना मक अ ययन तु त करना
चाह, तो यथासंभव आंकड़ से बच । अपनी साम ी को रसपूण बनाएं और आंकड़े इ या द
ट न के रपोताज के लए छोड़ द ।
9. उपाय भी सुझाएं - अ धकांश मामल म तंभ लेखक कसी सम या वशेष क चचा तो
करते ह, ले कन उसे दूर करने क दशा म या कया जा सकता है, इस बारे म कोई
रा ता नह ं सु झाते । साधारण तौर पर पाठक यह भी अपे ा करता है क अगर कोई वलंत
मु ा उठाया गया है, तो उसका युि तसंगत उपाय भी साथ ह दया जाना चा हए ।
10. वचार का ती वाह - तंभ लेखन म पूर तरह न प ता बरत , ले कन आपक लेखनी
वचारो तेजक होनी चा हए अ यथा कॉलम पाठक को जरा भी भा वत नह ं कर पाएगा
। लेखन और अ भ यि त क वतं ता के अ धकार का योग कर, ले कन संतल
ु न कायम
रखते हु ए । यह यान रख क आपके लेखन से समाज का पारं प रक मेल-जोल और
दो ताना भा वत ना होने पाए । संवेदनशील वषय पर लखने के दौरान रा हत को
सव प र रख और भावनाओं के वाह म ना आएं ।

6.7.1 तंभ लेखक के गुण

एक तंभ लेखक का काम उतना ह मह वपूण है , िजतना अ य लेखक या प कार


का । अ पतु कु छ अथ म तो तंभ लेखक का काम दूसर से कह ं यादा मह वपूण
है, य क उसके तंभ के सहारे बड़ी सं या म पाठक उस काशन के साथ अपना
भावना मक र ता कायम कर पाते ह । समाचारप म का शत समाचार आधा रत
साम ी के साथ पाठक का इस तरह का कोई र ता नह ं होता । तंभ के साथ पाठक
का र ता सतत ् चलता रहता है । पाठक भी तंभ लेखक के वचार म अपने अ भमत
क झलक तलाशते ह । इस लहाज से एक तंभ लेखक को वचार क अ भ यि त
के लए अपने आपको अपडेट करना होगा और यह संभव होगा नई जानका रय के
त खु द को अनुकूल बनाने से । यह आव यक है क तंभ लेखक ताजा और नवीन
प रवतन के त सचेत रहे और अधु नातन जानकार से अपने वचार का तर हमेशा
और ऊँचा करने का य न करता रहे ।
नवीन प रवतन क जानकार के लए एक तंभ लेखक को दे श- वदे श के काशन
का अ ययन तो करना ह होगा, साथ म उसम एक बेहतर न ोता के गुण भी होना
चा हए । कहा जा सकता है क एक अ छा ोता ह अ छा वचारक बन सकता है

110
। अलग-अलग लोग के वचार को सु नने से तंभ लेखक क लेखक य ि ट वक सत
होती है और इस तरह वह अपने लेखन को समृ बना सकता है । नए तंभ लेखक
के लए तो यह और भी आव यक है । उ ह अपने वषय से संबं धत वचारक क
तकपूण बात के सहारे अपनी लेखन शैल को वक सत करने का अवसर मल सकता
है । नए तंभ लेखक अपने आदश लेखक के वचार का नय मत अ ययन कर
और उनके वचार के वाह को समझते हु ए अपनी अलग लेखन शैल वक सत कर,
तो यह उनके के रयर लहाज से भी अ छा होगा । सीखने का कोई तयशु दा फामू ला
नह ं है और हम अपने दै नं दन क लेखन या म ह बहु त कु छ सीख लेते ह ।
एक अ छा तंभ लेखक वह बन सकता है, जो इस या को अपने यवहार का
ह सा बना ले । कई तंभ लेखक कसी भी मह वपूण मु े पर धारावा हक प से
लेखन करते ह और येक नए तंभ के साथ उस मु े के हरे क पहलू का खुलासा
करते जाते ह । ऐसी ि थ त म पाठक को भी नय मत आवृि त पर आने वाले तंभ
का इंतजार रहता है । इस लहाज से तंभ लेखक क िज मेदार भी बढ़ जाती है
क वह पाठक क अपे ाओं को यथासंभव पूरा करे । इन अपे ाओं को पूरा करने
के लए तंभ लेखक म न नां कत गुण का होना आव यक है -
1. तंभ लेखक के लए यह आव यक है क वह पाठक क अ भ च को समझे
। येक काशन के पाठक क अ भ च भ न- भ न हो सकती है । हर वग
के पाठक भी कसी तंभ से अलग-अलग अपे ा कर सकते ह । इस लहाज
से यह ज र है क तंभ लेखक समकाल न दौर के पाठक क दलच पी का
भल -भां त यान रखे ।
2. तंभ लेखक का भाषा पर पूरा अ धकार होना आव यक है । अपनी भाषा के
श द स दय के साथ वह उसके ला णक मु हावर तथा लोकोि तय का इ तेमाल
अपने लेखन म करता है, तो पूरा तंभ रसपूण बनेगा और पाठक चाव के साथ
उसे पढ़गे । तंभ क भाषा कु छ ऐसी हो क साधारण पाठक भी लेखक का आशय
आसानी से समझ जाए ।
3. तंभ क तु त भी अपना अलग मह व रखती है । सीधा-सपाट लेखन अ धक
दन तक पाठक को बाँध कर नह ं रख सकता । इस लए ज र है क लेखन
का या मक और स दय से प रपूण हो । इन अथ म यह भी कहा जा सकता
है क तंभ लेखक फ चर के कु छ त व का समावेश भी अपने लेखन म कर
सकता है ।
4. लेखन म तु लना मक अ ययन तु त कया जा सके, तो पाठक को और आसानी
रहती है । कसी भी मसले पर तंभ लेखन से पूव अगर हम उस मसले के सभी
ज र पहलू पाठक के सम तु त कर पाएंग,े तो नि चत तौर पर पाठक
क नजर म हमारे तंभ क व वसनीयता बढ़ जाएगी ।
5. तंभ लेखन का वषय चाहे जो हो, ले कन तंभ लेखक के ान का तर
बहु आयामी होना चा हए अथात ् उसे अ धक से अ धक वषय क पया त

111
जानकार होनी चा हए । कई बार बहु आयामी जानकार से तंभ लेखन को सम
कया जा सकता है और पाठक को भी एक ह पहलू से संबं धत पूर जानकार
द जा सकती है ।
6. कहा जाता है क लेखन वह सफल है, िजसम क पना और वा त वकता का
सु ंदर सम वय नजर आता हो । यह बात तंभ पर भी लागू होती है । एक सफल
तंभ लेखक वह है, जो अपने लेखन को यथाथपरक बनाए रखते हु ए उसम
क पना के सु ंदर रं ग का संयोजन भी करे ।
7. वतमान दौर तेज र तार का दौर है और जा हर है क ऐसे समय म पाठक के
पास भी समय का अभाव है । ऐसी ि थ त म कसी तंभ को नय मत तौर
पर बहु त अ धक समय दे ना उनके लए संभव नह ं होगा, इस लए आव यक है
क हम अपने लेखन को सं त और सारग भत बनाए रख । कम श द म
अपनी बात कहने क कला का इ तेमाल तंभ लेखन म कया जा सकता है।

6.8 सारांश
सं प
े म कहा जा सकता है क प -प का म का शत साम ी के बीच कसी भी तंभ क
अपनी व श ट पहचान होती है । समाचार क भीड़ के बीच एक यह साम ी ऐसी है, िजसम
वचार को जी वत रखा जा सकता है । समाचार के लेखन और तु तीकरण म वचार का
समावेश करने क छूट नह ं द जा सकती, ले कन तंभ लेखन के सहारे न सफ वचार का
सतत वाह जार रखा जा सकता है, अ पतु पाठक के लए भी एक नई राह श त क जा
सकती है । अ धकांश मामल म दे खा गया है क कसी तंभ म य त वचार के सहारे पाठक
अपना अ भमत बनाते ह । इन अथ म जनमत का नमाण करने म भी तंभ लेखन क
उपयो गता से इनकार नह ं कया जा सकता । तंभ लेखन के लए वषय क कोई कमी नह ं
है और वषय म भी इतनी व वधता है क नए 'प कार अपनी अ भ च का वषय चु न सकते
ह । समाचारप के लेखक के बीच तंभ लेखक क त ठा भी अ धक होती है और इसका
एक बड़ा कारण यह है क वह पाठक के साथ नय मत तौर पर संवाद कायम करता है ।
इस तरह समाचारप के पाठक के एक बड़े वग के साथ उसका र ता थायी प से कायम
हो जाता है । नय मत तौर पर का शत होने वाले तंभ कई बार समाचारप या प का क
पहचान बनाने म भी सहायक होते ह ।

6.9 कुछ उपयोगी पु तक


1. The Art of Column Writing – Suzzette Martinez Standring
2. Become a Columnist
3. समाचार संपादन और पृ ठ स चा - डॉ. रमेश जैन

6.10 अ यासाथ न
1. तंभ लेखन क व वध वृि तय क चचा क िजए । समाचार क तुलना म तंभ लेखन
कस कार भ न है?

112
2. एक तंभ लेखक से पाठक या अपे ाएं कर सकते ह?
3. तंभ लेखन के लए वषय का चु नाव कैसे कया जा सकता है?
4. भावी तंभ लेखन के मूलभूत त व कौन-से ह?
5. समाचारप म छपने वाले अपनी पसंद के कसी तंभ क चचा क िजए और उसके
गुणावगुण का िज करते हु ए उसक उपयो गता प ट क िजए ।

113
इकाई-7
फ चर लेखन
इकाई क परे खा
7.0 उ े य
7.1 तावना
7.2 फ चर या है?
7.3 फ चर क वशेषताएं
7.3.1 िज ासा और नौ र न
7.3.2 दूसर व याओं के उपादान
7.3.3 संवेदनशीलता
7.4 फ चर का मूल व प
7.4.1 समाचार फ चर
7.4.2 व श ट फ चर
7.5 फ चर लेखन
7.5.1 फ चर लेखक क यो यताएं
7.5.2 फ चर लेखन क तैयार
7.5.3 भाषा, शैल और आ त रक गठन
7.5.4 शीषक
7.5.5 भू मका
7.5.6 व लेषण
7.5.7 उपसंहार
7.5.8 च ांकन
7.6 व भ न वधाओं से तुलना
7.6.1 नबंध, लेख और फ चर
7.6.2 समाचार और फ चर
7.6.3 कम और फ चर
7.6.4 कहानी और फ चर
7.6.5 संपादक य और फ चर
7.6.6 अ य वधाएं और फ चर
7.7 फ चर के वषय
7.7.1 यि त व फ चर
7.7.2 समाचार फ चर
7.7.3 यौहार स ब धी फ चर
7.7.4 रे डयो फ चर

114
7.7.5 च ा मक फ चर
7.7.6 यं या मक फ चर
7.7.7 या ा फ चर
7.7.8 मानवीय च वषयक फ चर
7.7.9 ऐ तहा सक फ चर
7.8 सारांश
7.9 श दावल
7.10 कु छ उपयोगी पु तक
7.11 अ यासाथ न

7.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप
 फ चर का अथ समझ सकगे,
 फ चर क वशेषताओं के बारे म जानकार ा त कर सकगे,
 फ चर-लेखन क ाथ मक आव यकताओं से प र चत हो सकगे,
 फ चर के व प को समझ सकगे,
 फ चर क व वध कार का प रचय ा त कर सकगे,
 समाचारप के व भ न तंभ और फ चर का अंतर समझ सकगे
 और आप एक अ छे फ चर-लेखक बन सकगे ।

7.1 तावना
समाचार म सभी े क घटनाओं के समाचार तो होते ह ह, इसके अलावा संपादक य, वशेष
आलेख, हा य- यं य, काटू न और फ चर भी होते ह जो समाचारप का च र और यि त व
करते ह । व भ न अखबार म बहु त से समाचार एक जैसे होते ह । संवाद स म त से आए
समाचार का पाठ थोड़े बहु त अंतर के साथ सभी अखबार म एक जैसा हो सकता है । संवाद
स म त का समाचार न हो तो भी वह कौन-कब-कह ं आ द ककार या समाचार के याकरण
म बंधा होता है । ले कन दूसरे तंभ पर यह बात नह ं लागू होती। इनम फ चर का थान
सव प र है । स अमे रक प कार एले सस मैकनी के अनुसार सामा य समाचार आधारभू त
े कौन, कब, कहाँ, य और कैसे (छह ककार) से बाहर अथवा परे हटकर संघात करने
वाला लेखन फ चर है । फ चर म मु यत: कसी मा मक प का तपादन होता है । समाचार
म यह प ाय: नह ं आ पाता । अब तो हर अखबार को शश करता है क हर दन कुछ समाचार
फ चर शैल म लख जाएं । अगर समाचार अखबार का शर र है तो फ चर उसक आ मा ।
इस पाठ म हम फ चर के सभी प का व लेषण करगे ।

115
7.2 फ चर या है ?
फ चर (Feature) श द लै टन के फै ा (Factura) से बना है । फ चर के अनेक अथ ह
। वे टर के नए श दकोश के अनुसार फ चर का कुछ अथ ह-
1. यि त या व तु का व प
2. चेहरे अथवा चेहरे के अंग वशेष , जैसे आँख, नाक, मु ँह आ द का व प
3. समाचारप या प का म का शत व श ट रचना
4. पूर लंबाई का चल च आद
फ चर को ह द म कुछ व वान ने '' पक'' भी कहा है । यह श द का यशा के अलंकार,
य-का य और नाटक के अथ म ढ़ हो चु का है । फ चर का इ तेमाल बहु त हो रहा है ।
रे डयो फ चर, फोटो फ चर आ द धड़ ले से चलते ह इस लए यह श द इसी प म यव त
करना समीचीन होगा । प का रता म फ चर से ता पय समाचारप तथा प काओं म का शत
व श ट आलेख से है, जो हम जानकार दे ने के अलावा आनं दत और फुि लत भी करते
ह । इन लेख म वषय का तु तीकरण इस कार कया जाता है क उनका वा त वक अथ
और व प सा ात ् व य हो उठता है । इसी लए ये फ चर कहे जाते ह ।
प रभाषा
फ चर क कोई सवमा य प रभाषा नह ं क जा सक है । अनेक व वान ने फ चर क व वध
ि टय से जो प रभाषाएं क ह, वे फ चर के गुण का प ट करण करती ह -
सर. खा डलकर क ि ट म, ''फ चर वे लेख ह जो पाठक को यह बताएं क कोई घटना य
हु ई तथा उसका प रणाम या होगा ।''
डॉन डंकन के अनुसार ''फ चर जीवन के त एक नवीन ि टकोण, दै नक जीवन क क णा,
उसक नाटक यता और प रहास प को हण करके उसका च ण करने क एक व ध है
। फ चर एक ''सड वच'' के समान है, िजसके दोन पा व श कर क परत से ढंके हु ए केक
के टु कड़े तथा बीच म मसालेदार मांस तथा आलू भरे रहते ह ।''
जे स बे वस के अनुसार, ''फ चर समाचार को नया आयाम दे ता है, उसका पर ण करता है,
व लेषण करता है तथा उस पर नया काश डालता है । फ चर का सव े ठ कार वह है जो
साम यक हो तथा समाचार से जु ड़ा हु आ हो ।''
मु ख लेखक डॉ. ववेक राय के अनुसार समाचारा मक नबंध पक है और वह व भ न े
क नवीनतम हलचल का श द- च होता है । पी.डी. टं डन के अनुसार फ चर एक कार का
ग य गीत है । यं य लेखक ीकृ ण च शमा के लए फ चर कसी वचार (मा यता),
यि त, घटना आ द का वध शाि दक च ण है िजसे थायी प दे दया गया हो ।
इन प रभाषाओं म फ चर को व भ न ि टय से दे खने का यास कया गया है । येक
प रभाषा उसक कसी न कसी एक वशेषता पर बल दे ती है । फ चर को सम प से समझने
के लए कोई एक प रभाषा पया त नह ं है । फर भी कहा जा सकता है क ''फ चर’’ व तु त:
वृि तय और भावनाओं का सरस, मधुर और अनुभू तपूण वणन है । फ चर लेखक गौण है,

116
वह मा एक मा यम है जो फ चर वारा पाठक क िज ासा, उ सु कता और उ कंठा को शांत
करता हु आ समाज क व भ न वृि तय का आकलन करता है । इस कार फ चर म साम यक
त य का यथे ट समावेश तो होता ह है ले कन अतीत क घटनाओं तथा भ व य क
स भावनाओं से भी वह जु ड़ा रहता है । उसम समय क धड़कन गू ज
ं ती ह ।

7.3 फ चर क वशेषताएं
फ चर ि थ त का वहंगावलोकन ह नह ं करता, वह न का उ तर भी दे ता है और अ ात
का ान भी कराता है । फ चर मानो कसी घटना क दूरबीन से जाँच करता है । अ छे फ चर
के गुण क जब हम बात करते ह, तो उसके मूल चार आधार पर हमारा यान जाना आव यक
है । ये ह- िज ासा, स यता, यो यता और व वास ।

7.3.1 िज ासा और नौ र न

वह फ चर न:सार है, जो थम वा य से ह पाठक के मन म उ तरो तर िज ासा


उ प न न कर सके । फ चर जानकार क यास पैदा करे और उसे बुझाता भी रहे
। फ चर स य पर आधा रत हो । उसम ऐसी कोई क पना भी न क जाए, जो कसी
आधार पर टक न हो, का लदास के थ
ं के ट काकार मि लनाथ का कहना है- लेखक
को यह सदै व याद रखना चा हए- ''नामू लं ल यते कं चतं', अथात ् िजस बात का
आधार नह ं हो उसे लखना नह ं चा हए । यो यता, लेखक के वा याय, त य के
ेषण और शैल के दय ाह व प म समा हत है । व वास लेखक और पाठक
दोन के लए ज र है । आ म- व वास के साथ और व वास क शैल म लखा
गया फ चर पाठक म भी व वास उ प न करे गा । फ चर पढ़कर य द पाठक को लगा
क बात जंची नह ,ं तो फ चर का उ े य ह पूरा नह ं होता । पाठक को मला संतोष,
लेखक वारा उ प न व वास का ह पांतर है । अत: पाठक को संतु ट करना परम
आव यक है । बहु धा लेखक कृ त के त अपने आपको संतु ट मानकर उसक े ठता
आंक लेते ह । व वास का गुण दूसरे क तुला पर तुलता है , अपने पर नह ं ।
फ चर लेखक िजन बात से अपने आलेख को अ धक आकषक बना दे ता है, उनम
से चु ने हु ए ''नौ र न'' इस कार ह-
1. मोहकता
2. सामा य त य का आकषक प
3. यि तय क वशेष जानकार
4. तकसंगत ि टकोण
5. ग तशील शैल
6. व च ता
7. यापकता-भाव और भाव का दायरा सी मत न हो
8. त य और उसके भाव के मह व पर जोर
9. ान और भावना क शि त का वकास

117
7.3.2 दूसर वधाओं के उपादान

टाइ स ऑफ इि डया ( द ल ) के भूतपूव समाचार संपादक ी व वंभरनाथ कुमार


के अनुसार भावना और आलोचना फ चर के आव यक अंग ह । फ चर म भावना
क या या क जाती है । काशी प कार संघ क वशेष अ नयतका लक मा रका
''प कार (1972) के पूव उ तर दे श अंक म '' ह द म फ चर लेखन' पर डॉ.
ववेक राय का लेख ट य है । डॉ. ववेक राय का कहना है क फ चर आधु नकता
का अ नवाय आ ह है । िजन नबंधेतर वधाओं के साथ जु ड़कर व वध प म उसक
रचना होती है, उसक ता लका न न ल खत है-
(क) पसनल ऐसे (ल लत नबंध)
(ख) केच (रे खा च )
(ग) रपोताज ( ववर णका)
(घ) फटे सी ( वैर- वधा)
(ङ) शाट टोर (लघु कथा)
(च) प , डायर और वाता आ द
इस कार डॉ. ववेक राय के मतानुसार फ चर सब कुछ है और सब म उसक याि त
है । य द हम फ चर को इतना अ धक यापक कर दगे, तब तो उसका अपनापन
तथा उस वधा क वशेषता या होगी, उसका बोध कराना क ठन हो जाएगा । हम
फ चर को य द उसक सीमाओं म दखे, तो अ धक उपयु त होगा । फ चर को खचड़ी
बनाने से उसका मह व कह ं का न रहे गा और न उसक कसौट भी तैयार हो सकेगी
। एक अ य ि टकोण व र ठ प कार पी.डी. टं डन का है । फ चर के वषय म टं डनजी
के जो वचार 1952-53 म थे, वह 1976 म ह । उनक मा यता है क फ चर एक
कार का ग यगीत है । फ चर हमारा मनोरंजन करता है । फ चर मु य प से ववेक
और आनंद के लए लखा जाता है । अव य ह तीस वष पहले फ चर को उसी कसौट
पर परखा जाता था, िजसका संकेत टंडनजी ने अपने लेख म कया है । पर तु फ चर
क परख के नयम अब बहु त बदल गये ह । अब फ चर केवल मनोरं जन और वनोद
का साधन नह ं है । कई ऐसे वषय पर भी फ चर लखे जाते ह जो अपने वभाव
से ह मनोरंजक नह ं होते । फ चर को िजस रस म सरोबार करना हो, कया जा सकता
है । अब फ चर को ग यगीत मानना उसके मह व को कम करना है ।
सं ेप म हम यहां इतना ह कहना चाहते ह क फ चर आधु नक प का रता क वह
वधा है जो मा मक ढं ग से समाचार क वतमान भू म पर खड़ी होकर अतीत पर
ि ट डालती हु ई, भ व य क ओर इं गत करने म स म है । फ चर म लेखक का
यि त व सामने नह ं आता । उसका लेखक तो प कार क तरह पद के पीछे रहकर
पाठक के लाभाथ घटनाओं और यि तय का वतमान, भू त और भ व य के प रवेश
म मू यांकन करता है । फ चर न रे खा च है, न पक और न ग यगीत, फ चर
है । फ चर है कसी समाचार के यापक भाव का दशन और मू यांकन ।

118
फ चर म वशेष और अनोखे स य का व लेषण मलता है । फ चर पाठक क िज ासा,
सहानुभू त, आशंका, वनोद, सं ास और आ चय का उ यीपन करता है । प का रता
वशयक अनेक पु तक के लेखक जाज फा स मोर का वचार है क फ चर का ाण
संवेदना है ।

7.3.3 संवेदनशीलता

डेनवर व व व यालय के प का रता वभाग के अ य एलमो कॉट वाटसन क


मा यता है क फ चर कसी भावना के इद- गद च कर काटता है । समाचार को ऐसा
प दया जाता है क वह और आकषक बने, पाठक का यान खींचे और सामा य
पाठक क भावनाओं को छू जाए । कारण यह है क पाठक समाचार के मह व से
उतना आंदो लत नह ं होता, िजतना मानवीय संवेदना ( ेम, घृणा आ द) से । कसी
अ छे फ चर को पढ़ने के बाद पाठक को कसी न कसी तरह का संतोष ा त होता,
तो मनोरं जन, जानकार अथवा श ा के प म हो सकता है ।
'' यूज राइ टंग'' पु तक के लेखक जाज ए. हग का वचार है क फ चर म सामा यत:
उसी कार क मानव कृ त और वैसी ह प रि थ तय का व लेषण होता है िजनका
हम न य त अनुभव करते ह और जो कसी के जीवन म घट सकती है । उसके
मतानुसार फ चर यह याद दलाता है क हम सब समान अनुभव के भागीदार ह ।
फ चर के ल ण के वषय म ''मास क यु नकेशन एंड जन ल म इन इि डया’’ के
लेखक डी.एस. मेहता का कहना है क “फ चर म उस त य को उभारा जाता है, जो
मह व का होते हु ए भी प ट नह ं होता और उसका तुतीकरण ह फ चर के
यि त व, उसक शि त और उसके औ च य का बोध दे ता है । अ ययन, अनुसंधान
और सा ा कार के बल पर फ चर म त य का व तार कया जाता है । फ चर कसी
वषय के जानकार और अ ानी पाठक के लए श क और पथ- दशक का काम
करता है ।” “संपादन के स ा त” पु तक म डॉ. रामच तवार का मत है क
फ चर लेखक अपने आँख, कान, भाव , अनुभू तय , मनोवेग और अ वेषण का सहारा
लेकर उसे चकर, आकषक और दय ाह बनाता है ।
ी व वनाथ संह का कहना है क फ चर-लेखक पाठक को व थ तथा गंभीर
मनोरं जन दे ता है । इसका भाव णक या अ थाई नह ं होता । यह पाठक के मन
तथा वचार को एक झटका दे ता है । उसे एक वशेष ढं ग से सोचने- वचारने के लए
े रत करता है और तब अपना एक वतं वचार बनाने का अवसर भी दान करता
है । डॉ. जभू षण संह ‘आदश’ का कहना है- “अ छा पक (फ चर) कसी वषय
क पा वभू म म समाचार के पीछे समाचार का व लेषण, चचा तथा प ट करण
तु त करता है । वह ात अथवा अ प ात घटना क समी ा कर लेखब च
तु त कर पाठक को नवीन त य से अवगत कराता है । वह अ वेषण करता है
तथा वषय-व तु को अनावृ त कर व वसनीय सा य से अपनी थापनाओं को पु ट

119
बनाता है । वह घटनाओं के भाव का पूवानुमान करता है तथा संभा वत प रणाम
क ओर यानाक षत करता है ।”
फ चर के त ऐसा आकषण य ? समाचार नयी जानकार दे ता है । इस नवीनता
के कारण सामा य पाठक उसको पढ़ना चाहता है । फ चर म समाचार और सम या
आ द के रह य क वशेष जानकार के साथ आ मीयता, भावना और ववेचना के
गुण का समावेश होता है । इन त व के कारण ह पाठक क उससे भावना मक
संतु ि ट होती है । पाठक क यह संतु ि ट उसके आकषण का मू ल कारण है । इस
संतु ि ट क उपलि ध फ चर म समा व ट उसके अनेक मूल त व के कारण होती है।
बोध न- 1
1. फ चर कसे कहते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. फ चर को कौनसे नौ त व आकषक बनाते ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. फ चर समाचार का सरस , यापक सं द भयु त मोहक व तार है । या आप इससे
सहमत ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

7.4 फ चर का मू ल व प
7.4.1 समाचार फ चर

समाचारयु त फ चर म दै नक समाचार को मनोरंजक ढं ग से तु त कया जाता है


। वे अ पका लक मह व के होते ह । िजन घटनाओं का या तो उसके कसी प का
समाचा रक मह व नह ं होता, पर तु जो पाठक को आकषक लगने वाल होती ह,
उ ह ं को ज द और सं ेप म मनोरंजक तथा आकषक ढं ग से लखकर फ चर का
प दे दया जाता है । उदाहरण के तौर पर कसी ी का ब चा नद म डू बकर मर
गया । यह तो समाचार हु आ । दु खया ी को सपना आया । उसने नद के कनारे
अपने पु के कपड़े दे खे । उ ह वहाँ जाकर पहचाना और इस कार पु के डू बकर
मरने क पुि ट हु ई । पु - वयोग, व न- ान और सबके साथ जु ड़ी हु ई मातृ व क
भावना को काश म ला दे ने से सं त समाचार फ चर तैयार हो गया ।
ता का लक समाचार फ चर लखने के लए न न ल खत बात को यान म रखना
ज र है । यह एक ऐसी पेशबंद है, िजससे फ चर क पकड़ आसान हो जाती है और
िजससे लेखन भी सरल हो जाता है-
1. दै नक घटनाओं और समाचार म मानवीय प क खोज ।

120
2. जीवन के सु खांत और दुखांत पहलु ओं पर वचार ।
3. अ धक याद रहने वाल कहानी ह पाठक को अ धक छूती है ।
4. क ण फ चर को सरल और संयत रखा जाए ।
5. छछले हा य और बाजा भाषा का योग न कर ।
6. धम, जा त और रा यता पर आ ेप न हो ।
7. श द के चयन पर वशेष यान रखा जाए ।
8. घटना के आकषक पहलुओं पर यान दया जाए, लेखक उ ह अपने मन से न
गढ़ ।
9. फ चर म बनावट त य को भरने क को शश न क जाए । बनावट त य से
फ चर को औप या सक प दे ना उपयोगी नह ं । त य प व है, नाटक यता नह ।ं

7.4.2 व श ट फ चर

व श ट फ चर के लए साम ी एक क जा सकती है । कुछ साम ी लेखक के पास


है । पुरानी एक साम ी भी काम म आ सकती है । पुरानी मृ तय को ताजा कया
जा सकता है और उ ह पुन : आकषक ढं ग से तुत कया जा सकता है ।
नयतका लक वषय पर लखे गए फ चर थोड़े हेरफेर के साथ कभी भी काम म आ
सकते ह, उ सव , ऋतु ओ,ं पयटन- थल , ऐ तहा सक थान , महापु ष ,
चर मरणीय घटनाओं तथा जीवन के शा वत न पर लखे गए फ चर सदै व ताजा
रहते ह । उ ह सदा पसंद कया जाता है ।
इस कार के फ चर तैयार करने के लए पहले से तैयार करनी पड़ती है । इ ह लखने
के लए साम ी जु टानी पड़ती है और वा याय जार रखा जाता है । नोट बुक म
यथा थान लखना चालू रहता है । समाचारप क कतरन वषयवार एक त करनी
पड़ती है । अत: फ चर के लेखक को इन बात पर वशेष प से यान रखना पड़ता
है-
1. लेखक को कौन-कौन से वषय चकर ह, उसका कन- कन वषय पर अ धकार
है और उन वषय के बारे म लेखक को अ य सा ह य जु टा सकने क सु वधा
है तथा ानवधन का कोई और साधन भी संभव है अथवा नह ?
ं इन सब बात
पर वचार करने के प चात ् फ चर का वषय नि चत करना चा हए ।
2. जो-जो फ चर के वषय हमने सोचे ह, उनके बारे म हमारा अनुभव कतना है
और उस अनुभव को और कतना अ धक बढ़ाया जा सकता है ? दूसर के अनुभव
के आधार पर अ छा फ चर नह ं लखा जा सकता । जब तक हमारे पास कु छ
अपने अनुभव नह ं ह गे, तब तक दूसरे यि तय के अनुभव के खरे -खोटे होने
का पता भी तो नह ं लग सकता ।
3. फ चर लेखक म नर ण-शि त का होना अ त आव यक है । नर ण-शि त
का अथ केवल दे ख सकना ह नह ,ं कसी व तु को दे खकर उसके भाव को
दयंगम करना भी होता है । नर ण-शि त क सहायता से लेखक उन त य

121
तक पहु ंच सकता है, िजन तक सामा य पाठक कभी नह ं पहु ँ च पाता ।
नर ण-शि त के अभाव म फ चर के लेखक म अपनापन नह ं आता । फ चर
का न अपना यि त व नखरता है और न लेखक का यि त व ह बनता है
। पैनी नगाह से दे खने, उस पर मनन करने तथा अपने न कष पर पहु ंचने
का सतत अ यास ज र है ।
4. फ चर का मू ल आधार समाचार है । समाचार केवल पढ़े ह न जाएं, बि क फ चर
के उपयु त लगने वाले समाचार क कतरन भी एक होती रह । समाचार फ चर
के त य को आधार बनाकर जब लेखक व न के रह य, उनक स यता, उनम
तारत य का गठन, दुघटनाओं और व न का ताल-मेल मनोरंजक ढं ग से इस
कार तु त करता है क वे दय को छू जाएं, तब वह स पूण फ चर बन जाता
है । इस कार का फ चर तैयार करने म कु छ समय तो लगता ह है । स पूण
फ चर तु रत-फुरत का लेखन नह ,ं वह तो अ ययन, अ यवसाय और
लेखन-चातुर का चम कार होता है । स पूण फ चर साम यक , थानीय,
दे श यापी, सवदे शीय, नयतका लक और शा वत हो सकते ह । व श ट फ चर
म लेखक के सा हि यक तथा वै ा नक तर क के साथ-साथ खर वणन शैल
और नाटक यता का आ य लेकर त य-क य को अ धक व तृत , संवेदनशील,
आकषक तथा मनोरंजक बनाया जता है । लेखक उसके मा यम से पाठक को
श ण भी दे ता है, पर तु अ य प म जब क समाचार फ चर म कसी कार
अथवा कसी प म श ण समा हत नह ं होता ।

7.5 फ चर लेखन
7.5.1 फ चर लेखक क यो यताएं

फ चर लेखक क कलम म रवानगी होनी चा हए, िजसके लए तभा, प र म और अनुभव


क वशेष आव यकता है । अ छे फ चर-लेखक म न न वशेषताएं अव य होनी चा हए-
1. फ चर लेखक का भाषा पर पूण अ धकार होना चा हए । य द भाषा लेखक के इशार
पर थरकती रहे गी तो फ चर म ला ल य और तरलता का समावेश हो सकेगा ।
2. फ चर लेखक का ान बहु आयामी भी होना चा हए । धम, दशन, सं कृ त, समाज,
सा ह य, इ तहास आ द क समझ फ चर को पूण तथा तकसंगत बनाती है ।
3. फ चर को भावकार तथा मनोरं जक बनाने के लए आव यक है क फ चर लेखक
के पास क व-सा दय, समी क-सा ौढ़ चंतन, इ तहासकार-सा इ तहास-बोध,
वै ा नक-सी ता ककता, समाजशा ी-सा समाज-बोध तथा युग टा क भां त
भ व य को परखने क शि त हो ।
4. आधु नक फ चर कला म च कला तथा फोटो ाफ का वशेष थान है । अत:
फ चर-लेखक को रे खांकन तथा छाया च क गहर पकड़ होनी चा हए, ता क अपने
फ चर क वषयव तु के अनु प वह उसम रे खा च का समायोजन कर सके।

122
5. फ चर लेखक को प रवेश के त सजग तथा समसाम यक प रि थ तय के त
जाग क होना चा हए, ता क वह उन व वध वषय को अपनी सू म ि ट से दे ख
सके, िजन पर रोचक फ चर लखे जा सकते ह ।
6. फ चर लेखक को अपनी आंत रक वृि त , ान और अनुभव पर व वास होना चा हए

7. फ चर लेखक को अपनी आख तथा कान पर व वास रखते हु ए भाव , अनुभू तय ,
एवं नर ण-शि त का सहारा लेकर फ चर तैयार करने चा हए ।

7.5.2 फ चर लेखन क तैयार

1. फ चर लेखक दूसरे लोग से सा ा कार भी करता है और लोग के अनुभव क


जानकार ा त कर आलेख तैयार करता है । सा ा कार पर आधा रत लेख म
अनेक त य जीवन के नचोड़ के प म मल जाते ह । अत: अपने और अ य
लेखक के सा ा कार वषयक लेख क कतरन जमा करनी चा हए । ये फ चर
लेखन म बड़े उपयोगी स होती ह ।
2. सरकार और वभागीय रपोट क व तृत जानकार तो समाचारप म का शत
नह ं हो पाती । अनेक रपोट म ऐसे त य अ का शत रह जाते ह, जो बड़े मा मक
और भावशाल होते ह ।
3. मान सक आधार पर गहन चंतन कए बना थूल आधार पर आडंबर और
पु तक के अ ययन पर लगाया गया समय बेकार ह रहता है । इस मान सक
आधार को पु ट करने के लए फ चर लेखक को न न ल खत बात पर वशेष
यान दे ना आव यक हो जाता है -
(1) फ चर का वषय ऐसा होना चा हए जो चकर हो, लोकमानस को छूने वाला
हो, इसके लए यह ज र है क वषय समयो चत हो ।
(2) कुछ वषय ऐसे होते ह िजनका दायरा व तृत होता है और कुछ का केवल
थानीय । थानीय वषय के फ चर म थानीय बात को ाथ मकता द
जाती है, उ ह ं को उभार दया जाता है । थानीय वषय से हटकर पाठक
क च को यान म रख जो फ चर लखे जाते ह, उनका ि टकोण व तृत
होता है । उनम संदभ भी ऐसे नह ं दए जाते जो केवल थानीय मह व
के ह । ऐसे फ चर क भाषा म ऐसे मु हावर का आना भी उ चत नह ,ं जो
केवल आंच लक कहे जा सकते ह ।
(3) कस प -प का के लए फ चर लखा जा रहा है, इसका वचार लेखक के
मन म रहना चा हए । येक प -प का का अपना अलग यि त व होता
है । उसके अपने पाठक होते ह । अ यास के कारण उन पाठक क एक
कार क च बन जाती है । उनके दमाग कसी खास सांचे म ढल जाते
ह । अत: यह आव यक है क फ चर-लेखक कसी वशेष प के लए फ चर

123
लखते समय उसके पाठक क वृि त , च और प क नी त का भी यान
रखे ।
(4) पाठक क च और प क नी त का यान रखते समय लेखक को इस
त य पर भी नजर रखनी चा हए क फ चर सामा य पाठक के लए है, न
क वशेष के लए । सामा य बु के पाठक क सं या अ धक होती है
और उ ह ं से कसी प क लोक यता आंक जाती है । सामा य पाठक
ने फ चर पसंद कया, तो सम झए क फ चर लेखक क कदर बढ़ने क
संभावना संभावना है ।
(5) जहां तक फ चर के आकषण का न है वह बहु मुखी हो, न क अ त सी मत
। आकषण का आधार एकांगी होने से पाठक क सं या सी मत होगी और
वह उ ह कम चेगा । मानव वभाव बहु रं गी है । उसक कृ त एक पता
से ज द ऊब जाती है । उसे व वधता म मजा आता है । इसी रह य को
यान म रखकर फ चर म आकषण क व वधता लाने का यास कया जाता
है ।
(6) फ चर का पाठक उसम समा हत स य और अनुभव का पर ण करने को
आतु र हो जाता है । अत: फ चर म जो बात लखी जाएं, वे पूण प से
यावहा रक होनी चा हए । वे ऐसी का प नक न ह , िजनका कसी धरातल
पर पर ण न हो सके । य द ऐसा हु आ तो पाठक का लेखक पर से व वास
उठ जाएगा और उसक कृ त भ व य म लोक यता खो दे गी ।

7.5.3 भाषा, शैल और आंत रक गठन

जब हम लखगे तो हमारा लखने का अपना कोई ढं ग होगा । वह ढं ग बेढंगा भी हो सकता


है और अ छा भी । लेखन का अ छा ढं ग ह शैल बन जाता है । ''लेखन कला'' पु तक के
लेखक आचाय सीताराम चतु वद के अनुसार- ''लेखन क अ छ शैल वह है, जो लोक- योग
से समि वत हो, जो अपनी, और अपने दे श क जान पड़े, िजसम श द का योग श ट और
भावो पादक, हो, पाठक िजसे भल कार समझ सक ।''
संपादकाचाय बाबू बालमु कु द गु त ने एक संग म लखा है - '' लखने क भाषा भी वह अ छ
समझी जाती है जे बोलचाल क भाषा हो, मनगढ़ं त न हो, उसी को मुहावरा भाषा कहते ह
। मुहावरे का अथ बोलचाल है । भाषा का एक दोष ज टलता भी है । िजस वा य म “अथात ्
” क ज रत पड़ती है, उसको सरल- व छ भाषा म लखने वाले कभी पस द नह ं करते
। एक अ य थान पर गु तजी ने वचार कट कया है - '' कसी दे श क भाषा उस समय तक
काम क नह ं होती, जब तक उसम उस दे श क मूल भाषा के श द बहु तायत के साथ शा मल
नह ं होते ।”

124
भाषा और भाव के उ चत सं म ण से शैल बनती है । कसी व वान क मा यता है क भावह न
भाषा से भाव क सृि ट नह ं हो सकती । बना संयत भाषा के अ भ ेत भाव भी य त नह ं
होता ।
मोटे तौर पर शैल के दो कार ह-वणना मक और भावा मक । एक म लेखन का ढं ग वणन
कर प लेता है और दूसरे म भाव क धानता होती है । इन दोन शै लय का म ण भी
हो सकता है । फ चर लेखन म म त शैल का योग ह अ धक उपयु त होता है । हमारे
ग य क भाषा लया मक होनी चा हए । उसम लय-ला ल य होगा, तब वह आनंददायक होगी
। भाषा-शैल को गौण समझना उ चत नह ं । पहले तो इस बात का मह व है क जो कु छ
कहा जा रहा है वह कैसे, कस ढं ग से, कस चतुराई से और वह कैसा चम कार उ प न करने
वाला है । उसके प चात ् '' या कहा जा रहा है” के मह व क गणना होती है ।
शैल के आव यक गुण ह - सरलता, प टता, सजीवता, मम प शता और भावो पादकता
। इनके साथ “ वनोद”का पुट हो, तो वह सोने म सु हागे का काम करता है । बालकृ ण भ
ने एक थान पर लखा है- “सच पूछो तो हा य ह लेख क आ मा है । लेख पढ़कर कं ु द
क कल के समान दांत न खल उठ, तो वह लेख ह या ।”
इसके साथ ह यह कहना भी पूर तरह ठ क नह ं क यि त ह शैल है अथवा शैल ह यि त
है । व वनाथ साद (“भाषा”, ववेद मृ त अंक , अग त 1964) क मा यता है क शैल
के पूण वकास के लए यह आव यक है क लेखक या क व अपने वषय म अपने आपको
ब कु ल डु बो कर, अपने आपको ब कुल भूलकर रम जाए । वषय के वणन म आ म वभोर
हु ए बना शैल का नखार कहाँ? शैल कार तो अपने यि त व का होम करके ह , अपने को
ब कु ल खपा करके, वातावरण के व प अथवा वानुभू त का यथावत अंकन कर पाता है।
फ चर लेखन क शैल म यि त व का दशन नह ,ं उसका गोपन अ धक आव यक अंग माना
जाता है । वषय, संग, प रि थ त और करण के अनु प ह फ चर लेखक श द का चयन
और वा य का गठन करता है । यह लचीलापन ह शैल को नखारता है और यह उसम साद
गुण क वृ करता है ।
फ चर लेखन क शैल के बारे म के.पी. नारायण का वचार है – “'वह छोट नद के वाह
जैसी होनी चा हए । फ चर के लए भावा मक शैल का योग अ धक उपयु त है ।”'
फ चर लेखन क भावो पादक शैल के लए सं ेप म आव यक गुण इस कार ह-
1. “अरथु अ मत अ त आखर थोरे ” - तु लसीदास
2. साद गुण, आसानी से समझ म आ जाए
3. सा हि यक पुट लए टकसाल तथा ओजपूण भाषा
4. श द तथा वा य के अथ गौरव का ान और उसका शु योग
5. कहने का अपनापन जो नवीन, चटक ला, सट क और मनोरंजक हो
6. मु हावरे, कहावत और सूि तय का सह योग
7. वा य का गठन सरल हो, पर तु ढ लापन लए हु ए नह ं
8. वा य के गठन म अनेक पता

125
9. श द , वा य और वचार क पुनरावृि त न हो
10. पैरा न तो बहु त छोटे ह और न अ धक ल बे ह
11. जहां तक संभव हो पैरा के थम वा य म ह मह वपूण नवीन वचार को थम थान
मल जाए
12. येक पैरा के गठन म भी व वधता जान पड़े
13. येक वा य और पैरा म कथन का तारत य बना रहे
14. अनाव यक कुछ न हो, न भाव और न वा य
15. वषय के अनु प कथन का प हो
16. तकनीक तथा दु ह वा यावल तथा श द का कम से कम योग कया जाए
17. ामीण श द का योग न कया जाए तो अ छा । संगानुसार उनका कह ं योग कर
भी दया जाए तो बुरा नह ं
18. भाव और भाषा म उलझन न जान पड़े
19. अनुवाद भाषा का पूण प र याग
20. भाव और भाषा के सं कार क र ा का यान
21. शैल प रमाजन के लए रचना का बार-बार पठन ।

7.5.4 शीषक

शीषक का नयापन, उसक ताजगी और आकषण फ चर के स दय क अ भवृ म


वशेष सहायक होता है । शीषक लगाना क टसा य काय है । अनेक बार यह दे खा
गया है क हम नबंध, फ चर आ द तो लख लेते ह, क तु स टक शीषक दे ते समय
काफ परे शानी महसूस करते ह । घंट तक शीषक नह ं सू झता । व तुत : शीषक थोड़े
से श द का समु चय है, िजसम स पूण फ चर का मू ल क य या भाव हमारे सामने
कट हो जाता है । शीषक वयं म स पूण फ चर क वषयव तु को संजोए रखता
है । सामा सकता अ छे शीषक का मु ख गुण है । आज के इस यां क एवं ग तशील
जीवन म पाठक के पास अ धक समय नह ं ह । शीषक का ताजापन ह उसक च
एवं चेतना को फ चर को पढ़ने पर मजबूर कर सकेगा । शीषक का साज-स जा क
ि ट से भी मह वपूण थान है । पृ ठ को आकषक तथा सु चपूण बनाने म भी
शीषक का वशेष योगदान होता है । अत: इस े म फ चर लेखक को अपने ान
और अनुभव का पूरा उपयोग करना चा हए । शीषक चु नते समय इस बात का यान
रखना चा हए क उसम पूणता हो । अपूण तथा अ प ट शीषक फ चर के भाव को
कम कर दे ते ह । कु छ लेखक या संपादक उपशीषक का भी योग करते ह । उपशीषक
से फ चर क वषयव तु शी ह प ट हो जाती है । अत: सूझबूझ के साथ इनका
योग भी करना चा हए ।

7.5.5 भू मका

भू मका, आमु ख या 'इं ो' फ चर का ाण है । यह फ चर का मु खार वंद है, चेहरा


है । फ चर का सार त व या मु य त य का उ घाटन इस खंड म तुत करने क
126
सामा य परं परा है । अ छा 'इं ो' ह पाठक को पूरा फ चर पढ़ने के लए मजबूर करे गा
। घ टया या साधारण तर का 'इं ो' अ छे से अ छे फ चर का “काल” बन जाता
है । “'इं ो” क नाटक यता, मनोरंजकता, भावना मकता अथवा आलंका रता अनायास
ह फ चर म सजीवता का संचार कर दे ती है । पाठक क िज ासा-वृि त को जागृत
करने वाले, थम पंि त म ह पाठक को आकृ ट कर लेने वाले तथा फ चर के मू ल
उ े य को प ट करने वाले इं ो ह े ठ तथा तर य माने जाते ह ।
िजस कार कसी मनु य से थम सा ा कार के समय उसके मु ख-मंडल को दे खकर
उसके यि त व का अनुमान करते ह और उसक छ व हम अपने दय म अं कत
कर लेते ह, उसी कार आमुख के मा यम से हम फ चर क आ मा से सा ा कार
करते ह ।

7.5.6 व लेषण

आमु ख के बाद व तु ववेचन या व लेषण म फ चर क मूल संवेदना या क य क


या या क जाती है, इसी क य भाव को ि टगत करता हु आ तथा वचार के
ताने-बाने बुनता हु आ लेखक व भ न प र छे द म लययु त म से अपनी बात-कहता
चलता है । भाव या वचार क व खृं लता फ चर को ह का व भावह न कर दे ती
है । अत: लेखक को इस बात का सदै व यान रखना चा हए क उसक भाव या
वचार-चेतना मू ल त य या वषय पर ह क त रहे । वषय को अ धक पु ट एवं
ामा णक बनाने वाले त य एवं वचार का ह इस खंड म आकलन, संकलन व थ
ं न
होना चा हए । असंब तथा वषयेतर संग के समावेश से फ चर पाठक क ि ट
क पकड़ खो दे ता है । अत: इस बारे म नवो दत फ चर-लेखक को वशेष जाग क
रहना चा हए ।

7.5.7 उपसंहार

फ चर का अं तम भाग उपसंहार या न कष कहा जाता है । इस खंड म लेखक कसी


न कष पर पहु ंचता हु आ पाठक क िज ासाओं का समाधान कर दे ता है या दशा
संकेत दे कर बात समा त कर दे ता है । उपसंहार भावो पादक होना चा हए ।

7.5.8 च ांकन

फ चर के साथ उसक वषयव तु के अनु प न शे , च या रे खा च दे ने से आकषण


ं ी काटू न , च
और भावो पादकता बढ़ जाती है । अत: फ चर लखते समय त संबध
आ द का योग करना चा हए । आजकल रे खा च , च तथा काटू न का चलन
बहु त बढ़ गया है । अत: यह आव यक है क फोटो ाफ क सामा य जानकार लेखक,
प कार और संपादक को हो, िजससे क वह च का चयन या उनको खंचवाने क
यव था वय कर सके ।

127
7.6 व भ न वधाओं से तु लना
फ चर और संपादक य, लेख, नबंध, कहानी आ द म मौ लक अंतर है, हालां क कु छ वधाओं
के त व फ चर म भी होते ह ।

7.6.1 नबंध, लेख और फ चर

नबंध, (अं ेजी पयाय “ऐसे”) का अथ कसी वषय अथवा वचार से संबं धत साम ी
को बांधना या एक करना है । नबंध मु त अथवा व छं द रचना है । ांसीसी
लेखक- माइकेल दमानतेन 'ऐसे' या नबंध के जनक माने जाते ह । वह नबंध के
मा यम से अपने “म” को सच, सहज और सामा य तर के से य त करते ह । उ ह ं
का अनुकरण कर नबंध लेखक का “म” खु लकर खेलता रहा । बाद म नबंध म “म”
बहु त कुछ लु त हो गया । अब उसम दु नया का सब कु छ होता है, सफ “म” नह ं
। लेखक को मनमानी करने क छूट होती है । वह वषय या वचार का बंधन नह ं
मानता । नबंध लेखन मनमाने या अनाड़ी ढं ग से श द का खलवाड़ नह ं है । वह
ग य म अ भ यि त क ऐसी स और ऐसा कला मक सं ेषण है, िजसम लेखक
अपने जीवनानुभव और उपलि धय को जाने या अनजाने इस कार रखता है क
पाठक उसी भाव-भू म पर संचरण करने लगता है । उसम लेखक का “अपनापन” प ट
झलके । वषय तो यि तगत अ भ यि त क बैशाखी मा है ।
लेख आधु नक श द है । इसका योग अं ेजी श द “आ टकल” के पयाय के प म
होता है । यह श द प का रता के वकास के साथ जु ड़ा हु आ है । लेख म मु यत:
नवयि तक ढं ग से कसी वषय का ववेचन होता है । नबंध और लेख म वशेष
अंतर नह ं है । नबंध म पां ड य का प अ धक नखरा हु आ और भार भरकम होता
है । लेख बहु त कु छ ह कापन लए होता है । नबंध थायी सा ह य का अंग बन
सकता है और बन जाता है । लेख क ि ट साम यक है । वह तुरत-फुरत वाले सा ह य
क को ट म आता है ।
नबंध, लेख और फ चर क तु लना कर तो पाएंगे क नबंध और फ चर दोन म ेठ
ग य के दशन होते ह । दोन थायी सा ह य क को ट म पहु ँ चने क को शश म
रहते ह । दोन म आधारभूत वषय-चयन क कोई सीमा नह ं । नबंध म “म” कसी
न कसी प म झलकता है । फ चर म “म” होता ह नह ं और होना भी नह ं चा हए
। नबंध म पां ड य क झलक अव य होती है । फ चर म पां ड य का लेशमा दशन
नह ं होता ।
लेखक और फ चर प का रता से अ धक संब ह । लेख और फ चर दोन का ह आधार
साम यक को ट का होता है । फ चर तथा लेख अ छे ग य के नमू ने होने चा हए
। दोन सूचनापरक ह और इनका अपने-अपने कार से आकषक होना ज र है ।
लेख के वषय व तृत और गहन होते ह । लेख एक वषय को छूता हु आ अनेक
वषय को अपने दायरे म समेट लेता है । लेख म व व ता का पुट होता है । वह

128
शैल और तपादन करने म अ धक गंभीर होता है, पर नबंध क तु लना म कम,
लेख औपचा रक होता है । कसी त य का तपादन करते समय अपना मत कट
करना लेखक का पूण अ धकार ह नह ं है , उससे उसक अपे ा क जाती है । फ चर
अनौपचा रक ढं ग से लखा जाता है । फ चर लेखक अपनी राय सं त प म ह
कट करता है । आलोचना करने का उसका तर का सीधा न होकर अ य होता
है ।
लेख म त य , तार ख और आंकड़ का बाहु य हो सकता है । लेख क सीमा पर
कोई तबंध नह ं । य द सीमा है, तो प -प का के आकार और संपादक क इ छा
के अनुसार ।
फ चर का वषय नि चत और संकु चत होता है । उसम अ धक त य और आंकड़
का दया जाना ज र नह ं । लेख म च आव यक नह ं । च और काटू न फ चर
के आव यक अंग ह । अनेक फ चर च - धान होते ह । फ चर म रं गीनी और
नाटक यता होनी ह चा हए । फ चर-लेखन क शैल गंभीर न होकर वनोद होती
है । मन पर चोट और उस पर अ धका धक भाव डालने का गुण उसम होना ज र
है । फ चर का व प छोटा ह होना चा हए ।
कसी एक वषय पर लेख के लए िजतनी तैयार क ज रत है, उससे कह ं अ धक
मसाला फ चर के लए जु टाना पड़ता है । लेख के कारण, वृि त और वचारधारा
पर अ धक रोशनी नह ं डाल जाती । फ चर तो अ धकतर घटनाच और
लोक- त या पर क त रहता है ।
सं ेप म कहा जा सकता है क लेख और नबंध मि त क क उपज है तो फ चर
दय क । लेख और नबंध मानस-पु ह । फ चर है दयतं ी क झनकार ।

7.6.2 समाचार और फ चर

समाचार घटना का ववरण है । घटना वयं म समाचार नह ं । दूसर तरफ फ चर


का आधार समाचार है । फ चर समाचार नह ं है । व लयम एल. रवस ने “द मास
मी डया” नामक अपनी पु तक म वचार य त कया है क फ चर का जाल समाचार
से बड़ा होता है । फ चर लेखक पठनीय अनुभव तुत करता है । उसम सूच ना को
उतना मह व नह ं दया जाता, िजतना शैल , ला ल य और वनोद को ।
“इंवे ट गे टव रपो टग” पु तक के लेखक ो. कर टस डी. मैकडेगल दोन म उ े य
का भेद मानते ह । फ चर समाचार को आ छा दत कर लेता है । खोजी और
या या मक समाचार पर भी फ चर छा जाता है । समाचारप म भी समाचार क
तु लना म फ चर को अ धक मह व दया जाता है ।
समाचार त यपरक होता है, फ चर उस समाचार को नया आयाम दे ता है । उसक
पर ा और श य- या भी कर डालता है । दोन क लेखन-शैल म भेद होता है ।
समाचार सं त और खाई लए है, पर फ चर उसक तुलना म अ धक रं गीन और
सजा-धजा । इन दोन के तु तीकरण म भी भेद है । समाचार को “अ य पु ष”

129
के प म लखा जाता है । फ चर को उ तम, म यम अथवा अ य पु ष के प म
लख सकते ह । फ चर म त य रं गीन और सजीव होते ह । चु ट ल तथा भावो पादक
भाषा उसम पृ ठभू म, तपादन और भावा मक तु तीकरण का आधार होती है ।
फ चर लेखक अ धक वमशक होता है और समाचार लेखक अ धक वणना मक ।
फ चर का शा वत त व समाचार क णभंगरु ता को लांघने वाला होता है ।

7.6.3 कम और फ चर

कम श द प का रता े म बहु त यु त होता है । इस श द का योग दूरदशन


अथवा आकाशवाणी पर यगत के वणन के साथ समी ा के प म होता है । अं ज
े ी
का कमट श द ट का- ट पणी के अथ म यु त होता है । इस श द से कम श द
बना है । उसका अथ है “ कसी त य का वणन करते हु ए आलोचना, समी ा या ट का
करना ।” यन नक स का कहना है क फ चर का बांकपन उसम न हत भावुकता
और ट का म ह । कम म वणन और ट का है, पर भावुकता नह ं । लेखन अथवा
मौ लक वणन म त यपरक आलोचना का थोड़ा बहु त अंश हो, तो पाठक या ोता
को अ छा लगता है । कम म भावुकता को थान दे ना उ चत नह ं । फ चर म
त य क या या और ट का के साथ भावुकता का वशेष पुट होना आव यक है ।

7.6.4 कहानी और फ चर

फ चर त य पर आधा रत है, पर कहानी क पना पर । फ चर व वसनीय है, कहानी


नह ं । कहानी लेखन भी सभी घटनाओं पर आधा रत हो सकता है, पर उसे इतना
तोड़ा-मरोड़ा और व पत कर दया जाता है क न वह इ तहास रहती है और न फ चर।

7.6.5 संपादक य और फ चर

व लयम एल. रवस क मा यता है क संपादक य, समी ा तथा अ य वचार लेख


से फ चर अलग होता है । यह भेद है केवल “राय” क अ भ यि त के कार म ।
तकसंगत नणय और वकालत म जो भेद है, वह ं फ चर और संपादक य आ द म
। फ चर-लेखक त य को तोलता है, उनके आधार पर वकालत नह ं करता । वह पाठक
को फुसलाता नह ,ं वरन ् उसके ान म वृ करता है ।
संपादक य से फ चर कह ं मेल खाता है, कह ं नह ं । उनका मेल तो वह ं तक है, जब
वे समाचार के त य का व लेषण करते, व श टता दान करते अथवा उ ह छपाते
ह । फ चर संपादक य से तब भ न हो जाता है, जब उसम त य का न प ता से
सव ण कया जाता है । संपादक य म लेखक के वचार और मत पर वशेष जोर
रहता है । फ चर इसके वपर त है । उसका लेखन अपने वचार का धनी तथा अपने
मत का ढ़ता से तपादक नह ं जान पड़ता है । सब कुछ होते हु ए भी उसम
“अपनापन” नह ं होता । संपादक य “लोकनेता” है, फ चर “जनसेवक” ।

130
7.6.6 अ य वधाएं और फ चर

फ चर क तु लना कहानी, नाटक, सं मरण और रपोत ज से कदा प नह ं क जा सकती


। हां, यह अव य है क लेखन क इन वधाओं क झलक फ चर म यथा संग आ
सकती है । ऐसा करने से फ चर अ धक रोचक और भावी बन जाता है । पर फ चर
म इनका योग बहु त ह कम मा ा म और उपयु त करण को अ धक नखारने
के साधन के प म करना चा हए । जैसे मुख का स दय ललाट, कपोल अथवा चबुक
के एक दो तल बढ़ा दे ते ह, वैसे ह इन वधाओं म एक दो का सं त योग फ चर
क शोभा क वृ कर दे ता है । मु ख पर छाए अ धक तल िजस कार उसको कु प
कर दे ते ह ।
उसी तरह फ चर म ऊपर द गयी वधाओं क अ धक मा ा उसक व श टता को
समा त कर दे ती है । य द हम यह कह क जैसे मु ख और तल क तु लना करना
हा या पद है, वैसे ह फ चर क कहानी, नाटक, सं मरण और रपोताज से कसी
तरह क तुलना करने का यास भी ।
बोध न- 2
1. मा मकता और सं वे द नशीलता फ चर का ाण है । इस कथन से या आप सहमत
ह ? तक स हत उ तर द िजए ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. फ चर ले ख न शै ल के आव यक गु ण बनाइए ।
………………………………………………………………………………………………………………………… …………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. नबं ध और ले ख से फ चर क तु लना क िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

7.7 फ चर के वषय
प रवेश क यापकता के कारण फ चर लेखन के लए भी व भ न वषय चु ने जा सकते ह
। मानवीय जीवन के व वध पहलुओं पर फ चर लखे जा सकते ह , तथा जन च के अनेक
े को फ चर का वषय बनाया जा सकता है । सामािजक, आ थक, राजनै तक, धा मक,
सां कृ तक पौरा णक आ द े के व भ न वषय पर े ठ फ चर लखे गए ह । च ा मक
तथा यं या मक फ चर आज वशेष लोक यता अिजत कर रहे ह । के. ह । के.पी. नारायणन
ने फ चर के तीन मु ख भेद का ववेचन कया है - यि त व फ चर, यौहार फ चर तथा
च ा मक फ चर । पी.डी. टं डन ने पौरा णक फ चर का भी उ लेख कया है ।

131
ेमनाथ चतु वद ने फ चर के दो मु ख भेद कए ह -समाचार धान और व श ट तथा इ ह ं
दो भेद म सम त कार को समा हत कया है । यावहा रक ि ट से फ चर के अनेकानेक
भेद कए जा सकते ह । कुछ मु य भेद क चचा यहाँ क जा रह है-

7.7.1 यि त व फ चर

येक युग म ऐसे महान पु ष ने ज म लया है , िज ह ने े वशेष म मह वपूण


उपलि धयां ा त क है । उन पर फ चर लखने का सामा य चलन है ।

7.7.2 समाचार फ चर

ऐसे फ चर का मू ल आधार समाचार ह होता है । ये फ चर कथा मक गठन के कारण


लोक य होते ह । घटना का पूण ववेचन- व लेषण इसके अंतगत कया जाता है
। समाचार तो अपने आप म सू चना मक होता है, कं तु समाचार फ चर उस समाचार
के संदभ म यापक जानकार , उसके व वध प एवं वृि तय को समा हत करते
हु ए दे ता है ।

7.7.3 योहार संबध


ं ी फ चर

हमारे दे श क सं कृ त यौहार बहु ल सं कृ त है । व भ न जा तय, सं दाय के


अपने-अपने यौहार एवं पव ह, िजनके पीछे एक सु द ध सां कृ तक परं परा रह है
। होल , द पावल , ईद, समस आ द पव पर ऐसे फ चर लखे जाते ह । इनम
पव क मूल संवेदना एवं उनके पौरा णक संदभ को तु त करके आधु नक संदभ
म उसक या या- व लेषण करने क वृ त रहती है ।

7.7.4 रे डयो फ चर

रे डयो फ चर समाचारप तथा प काओं म का शत होने वाले फ चर से सवथा


भ न वधा है । इसक शैल एवं व प म भी पया त भ नता है । इस भ नता
का मुख कारण यह है क जहां प -प काओं म का शत फ चर पढ़ने के लए होते
ह, वह ं रे डयो फ चर सारण के लए होते ह । इस कारण इसम संगीत तथा व न-प
काफ बल होता है । लारस म लयम ने फ चर को “व तु का रे डयो नाटक य
तु तीकरण” (रे डयो म
ै े टक ज
े टे शन ऑफ एि ट वट ) कहा है । लु ई मैकनीस क
धारणा है- रे डय फ चर कसी ग त व ध का नाटक य तु तीकरण है । कं तु इसम
लेखक क रपोटर या फोटो ाफर से कु छ और अ धक होना चा हए, उसे अपनी यथाथ
साम ी का चयन काफ ववेक से करना चा हए तथा उसके बाद उसे इस कार
नयं त करना चा हए क वह एकल नाटक य भाव के अनुकू ल हो सके ।
भारत म ऑल इं डया रे डयो क रपोट म फ चर क प रभाषा इस कार द गयी
है- “फ चर काय म सूचनाओं तथा मनोरं जन को तु त करने के सभी उपल ध
साधन एवं सारण के तर क को चकर प से तुत करने क व ध है ।” हंद
सा ह य कोश म “'रे डयो फ चर” का इ तहास इस कार दया गया है- “फे लयस

132
फे टन के अनुसार बी.बी.सी. म “फ चर” नाम “डाकुम ” के लए यव त होता है
। आज से लगभग 30 वष पहले बी.बी.सी. म “फ चर' नाम क रचनाएं नह ं होती
थी, ले कन बी.बी.सी. का नाटक वभाग रे डयो टे कनीक के संबध
ं म नए-नए योग
कर रहा था । उसे वशेष अवसर के लए काय म का आयोजन करना पड़ता था
। इन काय म क सूचनाएं “रे डयो हाइलाइट” या वशेष काय म शीषक से
समाचारप म द जाती थी । उसी कार बी.बी.सी. के वशेष काय म क सू चनाएं
प म नकलती थी । इ ह लोग “फ चड ो ाम” कहते थे । बोलचाल म “'फ चड”
के “ड” का लोप हो गया और उसे “फ चर” ो ाम कहने लगे ।”
रे डयो फ चर का े अ यंत यापक है । इसके मा यम से हम महापु ष क जीवनी,
े - वशेष क सां कृ तक जीवन-झांक , ऐ तहा सक, थान का प रचय आ द पा
सकते ह ।

7.7.5 च ा मक फ चर

च के मा यम से अपनी बात कहने क वृि त आज पाठक म काफ लोक य


हो रह है । ऐसे फ चर म च ह अपनी बात कहते ह, श द क आव यकता काफ
कम पड़ती है । च का चयन इस कार से कया जाता है क िजससे वे वत:
ह अपनी कथा या मू लकथा को प ट कर दे ते ह । च को आपस म जोड़ने के
लए तथा कथा का तारत य बनाए रखने के लए कभी-कभी च के साथ शीषक
दे दए जाते ह । ले कन यहाँ च ह धान होते ह, शीषक नह ं ।

7.7.6 यं या मक फ चर

सामािजक ओर राजनै तक जीवन म घ टत होने वाल घटनाओं पर यं य करते हु ए


सरस और चु ट ल भाषा म हा य का पुट दे कर लखे गए फ चर इस को ट म आते
ह । इनके पीछे एक वशेष ल य या उ े य रहता है । ये यं य मा छ ंटाकशी या
च र -हनन का यास न होकर सामािजक, राजनै तक जीवन क वषमता, व प
ू ता
और असंग त दखाने के लए लखे जाते ह । इनके मू ल म सुधार क भावना रहती
है । “' ठठु रता हु आ गणतं ” ह रशंकर परसाई का ऐसा ह यं य फ चर है ।

7.7.7 या ा फ चर

या ा फ चर के कई प और उ े य होते ह । सैला नय को दशनीय थल और


सु वधाओं क जानकार दे ने के लए लखे गए फ चर के मु काबले मानसरोवर या ा
के दौरान हु ई अनुभू तय का वणन- व लेषण अ धक साथक और पठनीय होगा । यह
लेखन या ी पर नभर करता है क वह या ा के दौरान या दे खता सु नता है, उसक
उस पर या त या होती है और उसे वह यापक संदभ से कैसे जोड़ता है । यह
जु ड़ाव ह फ चर को व श ट बनाता है ।

133
7.7.8 मानवीय च वषयक फ चर

मानवीय पहलू पर लखे गये फ चर आज वशेष लोक य हो रहे ह । व लयम रवस


के अनुसार “मानवीय च के फ चर वे ह, िजनसे पाठक भावना मक प से जु ड़ा
हो और जो पाठक को उ तेिजत या हतो सा हत करे , ो धत या स न कर ओर
उसम सहानुभू त या अ च उ प न कर ।“
मानवीय च के अनुकूल लखे गए फ चर भाव धान होते ह, जो का णक, मा मक
तथा अनुभू तपूण हो सकते ह । ये फ चर पाठक क संवेदनाओं को उ ी त करते ह
। व तु त: यह े अ यंत यापक एवं व तृत है तथा अपराध, ेम, रोमांस, फैशन,
वा य, मानवीय सम याओं आ द वषय पर लखे गये फ चर इसक लोक य
हो सकते ह ।

7.7.9 ऐ तहा सक फ चर

अतीत क घटनाओं के त मनु य के दय म वाभा वक उ सु कता रहती है ।


ऐ तहा सक यि तय , घटनाओं और मारक आ द पर भावपूण ऐ तहा सक फ चर
लखे जा सकते ह ।
इन भेद के अ त र त फ चर के कु छ और भेद कए जा सकते ह । जैस-े राजनी तक
फ चर, ं ी फ चर, पौरा णक फ चर आ द ।
ड़ा जगत संबध

7.8 सारांश
सामा य समाचार के आधारभू त े या न कौन, या, कब, कहाँ, य और कैसे के बाहर
अथवा परे हटकर जानकार दे ने वाला और मानवीय प को वृह तर प र े य म तु त
संवदे नशील रचना को फ चर कह सकते ह । इसम त य रं गीन और सजीव होते ह । भाषा
चु ट ल और असरदार होती है । फ चर कसी भी वषय पर लखा जा सकता है । संदभ और
वृि तय क ओर संकेत करने वाला अनुभवा त यह लेखन मम पश होता है । पाठक
घटना- धान समाचार को आसानी से भूल जाता है ले कन अ छे फ चर को नह ं । ये फ चर
समाचारप को जानदार और अ धक पठनीय बनाते ह ।

7.9 श दावल
फ चर (Feature) - पक, फ चर का शाि दक अनुवाद हो सकता है और अनेक लेखक पक
लखते भी है, ले कन पक अलंकार और नाटक के अथ म ढ़ हो चु का है । फ चर श द चलन
म आ गया ह । इस लए फ चर को फ चर ह कहना और लखना चा हए ।
इं ो (intro) - समाचार क तरह फ चर का भी आमु ख या इं ो होता है ।
उप-शीषक (Sub-Heading) - समाचार म उप-शीषक दे ने क परं परा नह ं है । ले कन फ चर
म बीच-बीच म उप-शीषक दये जा सकते ह, हालां क यह अ नवाय नह ं है ।
फोटो फ चर - फोटो फ चर म फोटो- च मु ख होते ह और शीषक या सं त आलेख गौण,
ये अ त र त जानकार दे ने और च को एक सू म बांधने का काम करते ह ।

134
7.10 कुछ उपयोगी पु तक
फ चर लेखन- ेमनाथ चतु वद , काशन वभाग, भारत सरकार, नई द ल
पक लेखन - डॉ. जभू षण संह आदश, म. . हंद ं अकादमी, भोपाल

संपादन कला - के.पी. नारायणन, म. . हंद ं अकादमी, भोपाल,

Feature With Flair - Brin Nichalls, Vikas Publications, New Delhi.
Feature Writing for Newspapers - Demiel R. Williamson
Writing and Selling Feature Articles – Helen M. Paterson
Mass Communication and Journalism in India – D.S. Mehta, Allied
Publications, New Delhi.

7.11 अ यासाथ न
1. फ चर के व प को प ट करते हु ए समझाइए क नबंध से वह कसी प म भ न
ह?
2. आपसी ि ट म आदश फ चर क मु ख वशेषताएं या ह?
3. फ चर को वषयानुसार कन वग म बांटा जा सकता है?
4. अपनी च के कसी वषय पर सं त फ चर ल खए ।

135
इकाई-8
समी ा लेखन
इकाई क परे खा
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 समी ा-अथ एवं व प
8.3 समी क से अपे ाएँ
8.4 समी ा कैसे कर?
8.4.1 समी ा लेखन का मा यम
8.4.2 समी ा लेखन क या
8.5 समी ा लेखन के कार
8.5.1 या या मक समी ा
8.5.2 ऐ तहा सक समी ा
8.5.3 आ मच रतमू लक समी ा
8.5.4 मनो व लेषणा मक समी ा
8.5.5 भाववाद समी ा
8.5.6 समाजशा ीय समी ा
8.5.7 सौ दया वेषी समी ा
8.6 मी डया म समी ा लेखन
8.6.1 पु तक समी ा
8.6.2 फ म समी ा
8.6.3 ना य समी ा
8.6.4 कला समी ा
8.7 सारांश
8.8 कु छ उपयोगी पु तक
8.9 अ यासाथ न

8.0 उ े य
इस इकाई म आप 'समी ा लेखन' के मह व एवं तकनीक के संबध
ं म व तार से जान सकगे
। इकाई के अ ययन के बाद आप-
 'समी ा' के अथ एवं व प को जान सकगे ।
 समी क से या अपे ाएं रखी जा सकती है, इससे प र चत हो सकगे ।
 समी ा लेखन ' कैसे कर, इस वधा को जान पाएंगे ।

136
 समी ा का मा यम और समी ा क या से अवगत हो सकगे ।
 'समी ा' के व भ न कार को समझ सकगे ।
 मी डया के व भ न मा यम के लए समी ा लेखन के व प को जान सकगे ।
 आप समी ा लेखन म कुशलता ा त कर एक यो य समी क बन सकगे ।

8.1 तावना
'समी ा' श द क न प त 'सम' उपसग के साथ 'ई दशने' धातु से भाव वाचक 'आ' यय
से हु ई है िजसका अथ 'स यक् दशन' है । समी ा के अ य च लत श द आलोचना,
समालोचना, मीमांसा, ववेचन, परामश, त या वेषण, गुण -अवगुण पर ा, जांच, परख,
समावलोकन, मानदं ड, पैमाना आ द ह । 'समी क' का आशय आलोचक, कला समालोचक,
कला समी क, पर क, पारखी, ववेचक, वमश और समालोचक से है । आलोचना श द
सं कृ त क 'लुच'् धातु से बना है । लुच ् के अनेक अथ ह- 1. दे खना (ने से), 2. इं य
मा से या मन से हण करना या समझना, 3. का शत करना । अथात ् िजससे दे खा जाए
िजससे कु छ प ट हो या का शत हो, उसे 'लोचन' कहते ह । लोचन के पूव 'आ क' उपसग
लगता है िजसम अ क ‘ क’ का लोप हो जाने से 'आलोचना' श द बनता है । 'आ' का अथ
है चार ओर से । अत: समालोचन का अथ है कसी वषय क पूण जानकार ा त करना,
उस पर वचार- वमश करना, उसको प ट करना तथा गुण-दोष का ववेचन कर अपना मत
कट करना । आलोचना म 'सम' उपसग से 'समालोचन' श द बनता है, िजसका अथ है स यक्
प से आलोचना करना । अं ेजी के ' ट स म' श द क मू ल धातु ' ाइटस' है िजसका
आशय अलग करना, नणय करना या मू यांकन करना है । व तु त: यह समी ा का मू ल
आधार है ।
मी डया म 'समी ा लेखन' का अपना व श ट थान है । समी ा लेखन ह वह मा यम है
िजसके वारा कसी कृ त वशेष का मू यांकन कर उसके वचार से पाठक को अवगत कराया
जाता है ।

8.2 समी ा - अथ एवं व प


समी ा का ता पय कसी पु तक अथवा कृ त का अ ययन कर उसके गुण-दोष का ववेचन
करना है । इस या म समी क अपने मत का भी, उ लेख करता है । एनसाइ लोपी डया
ऑफ टे नका के अनुसार समी ा, सा ह य अथवा ल लत कला के कसी स दया मक प
क वशेषताओं तथा मू य से नधारण क कला है । यह उ त नधारण को यवि थत करने
तथा उसक समथ अ भ यि त म न हत है । व तु त: समी ा का काय रचनाकार के उ े य ,
कृ त के गुण-दोष तथा रचना के वारा मन पर पड़े भाव का अंकन है । समी ा इस कार
का मा यम है, िजसके वारा कृ त वशेष का व भ न भावभू मय और मनोभावनाओं के आधार
पर मू यांकन कया जाता है और उसम न हत संदेश तथा वचार को पाठक के स मु ख कट
कया जाता है ।

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'समी ा' के अथ एवं व प को भारतीय और पा चा य व वान ने इस कार प रभा षत कया
है-
“सा ह य े म थ
ं को पढ़कर उसके गुण और दोष का ववेचन करना और उसके संबध

म अपना मत कट करना आलोचना कहलाता है । य द हम सा ह य को जीवन क या या
माने तो आलोचना को उसक या या क या या मानना पड़ेगा ।”
डॉ. याम सु ंदर दास
“ थाई समी ा वह ं होती है िजसम क व क वचारधारा म डू बकर उसक वशेषताओं का
द दशन तथा उसक अंतवृि तय क छानबीन क जाती है ।”
पं. रामचं शु ल
“ कसी व तु या वषय के सभी अंश पर अ छ तरह वचार करना ह समी ा है ।”
- आचाय महावीर साद ववेद
“स यं, शवं, सु ंदरम का समु चत अ वेषण, पृथ करण तथा अ भ यंजना ह स ची समी ा
है ।''
- आचाय नद दुलारे वाजपेयी
“आलोचक क थापना एक कार से नणायक क थापना है ।''
- रचडसन
सारांश म कहा जा सकता है क 'समी ा' के मा यम से हम कृ तकार के उ े य , कृ त के
गुण -दोष तथा रचना क मन पर पड़ी त या को य त करते ह ।

8.3 समी क से अपे ाएं


समी क सा ह य का हर होता है । कसी कृ त क समी ा करना आसान काय नह ं है ।
समी क को अपने प रवेश के त पूण जाग क रहते हु ए अंतच ुओं के मा यम से कृ त
क अंतरा मा म वेश करना होता है । समी ा लेखन म समी क से न न अपे ाएं क जा
सकती ह-
1. समी क म क व क -सी कोमलता, चंतन क गहनता और भाव हता होनी चा हए ता क
वह कृ त वशेष के त य को भल भां त समझ कर उसे य त कर सके ।
2. समी ा क ता ककता, पूणता तथा स यक् ववेचना समी क के यापक अ ययन एवं
वषय- ान पर नभर करती है । अत: आव यक है क वह व वध शा एवं वषय
का ाता होता हो ।
3. समी क को पूवा ह से मु त होना चा हए ।
4. समी क सा ह य क ात-अ ात साम ी से पाठक को प र चत कराता है । वह लेखक य
वचार और संवेदनाओं को भी कट करता है ।
5. समी ा को भावी बनाने के लए आव यक है क समी क क शैल ला ल यपूण, सरस,
भाव धान एवं गंभीर हो ।
6. समी ा सहज मानवीय मू य क कसौट पर आधा रत होनी चा हए ।

138
7. पु तक-समी क, नाटक समी क और फ म समी क को नभ क होना चा हए ।
वैयि तक च-अ च से ऊपर उठकर उसे वा त वक मू यांकन करने का यास करना
चा हए ।
पा चा य व वान ने समी क म न न ल खत गुणआव यक माने ह- 1. सु नि चतता,
2. वातं य, 3. सूझ, 4. े ठ वचार, 5. उ साह, 6. हा दक अनुभू त, 7. गंभीरता, 8.
ान, 9. अथक प र म ।

8.4 समी ा कैसे कर?


‘समी ा लेखन’ का काय सरल एवं सु गम नह ं है । समी क पं डत होने के साथ-साथ रस
भी होता है । अ भनव गु त और व वनाथ ने समी क को 'स दय' कहा है । राजशेखर के
श द म- “समी क म क व के वामी, म , श ट, आचाय आ द होने के मता होनी चा हए
।'' समी ा लेखन के लए कोई नि चत नयम या वधान नह ं है । यह समी क क तभा
एवं उसक लेखन-शैल पर ह नभर करता है ।

8.4.1 समी ा लेखन का मा यम

समी ा के लए सव थम यह यान रखना आव यक है क वह कस मा यम के


लए क जा रह है अथात ् वह दै नक समाचारप के लए है या सा ता हक अथवा
मा सक प के लए । समी ा य द रे डयो के लए है तो उसे रे डयो क आव यकताओं
के अनु प लखा जाएगा । दै नक समाचारप म सामा यत: र ववार को समी ाओं
का काशन कया जाता है । समी ा से पूव यह यान रखा जाना चा हए क
समाचारप वशेष साधारणत: समी ा के लए कतना थान नधा रत करते ह ।
सी मत थान होने पर आव यक है क कम श द म ह समी ा का मूल क य कट
कर दया जाए ।
सा ता हक एवं मा सक प हे तु समी ा के लए भी समाचारप क नी त का पूव
ान आव यक है । रे डयो एवं टे ल वजन के लए समी ा हे तु ाय: दस मनट का
समय दया जाता है, िजसम एक से तीन पु तक क समी ा कराई जाती है । य द
समी ा हेतु तीन पु तक ह तो मह वपूण पु तक क समी ा पहले क जानी चा हए
तथा उसे अ धकतम पाँच मनट तक का समय दया जा सकता है । इले ॉ नक
तथा मु त मा यम क समी ा-प त म वशेष अंतर होता है । इस अंतर को भी
समी क को यान म रखना चा हए । समी ा करते समय यह भी यान रखा जाना
चा हए क हम कस समू ह या वग के लए समी ा लख रहे ह ।

8.4.2 समी ा लेखन क या

समी ा करते समय हम वतमानकाल न प रवेश को यान म रखते हु ए कृ त वशेष


के रचना-काल पर वचार करना चा हए । सामा यत: पु तक पढ़ते समय आव यक
नो स अलग से एक कागज पर लख लेने चा हए ता क पु तक को बार-बार पढ़ने
क आव यकता न पड़े । पु तक पढ़ते समय उसके मूल क य को पकड़ने या खोजने

139
का य न करना चा हए । पु तक िजन उ े य को लेखर लखी गई है , उसके नवाह
म लेखक क सफलता कस सीमा तक रह है, यह भी मह वपूण प है । यह
बात नाटक एवं फ म समी ा करते समय यान म रखना चा हए ।
लेखक के वचार के अ त वरोध, नवीन योग, उसक यावहा रकता, भाषागत वाह,
अ भ यि त, अथ-बोध आ द प पर वचार करते हु ए समी क को कृ त का
मू यांकन करना चा हए । प टत: समी ा का े अ य त यापक है तथा समी क
का काय बहु त दा तय वपूण है । कसी कृ त क अ त न हत मू ल चेतना समी क
वारा उ घा टत होती है ।

8.5 समी ा लेखन के कार


डॉ यामसु दर दास के श द म “सा ह य जब अपने व प का व लेषण करने लगता है तब
समी ा का ज म होता है ।'' समी ा क अनेक प तयां सं कृ त क सा हि यक पर परा म
दे खने को मलती है । इनम आचाय-प त, ट का-प त, शा ाथ-प त, सू ि त-प त,
खंडन-प त, लोचन-प त आ द मु ख है । समी ा लेखन को हम दो भाग म बांट सकते
है-पहला सै ाि तक तथा दूसरा यावहा रक । सै ां तक समी ा सा हि यक स ांत पर
आधा रत होती है, िजसम भारतीय का यशा के मुख स ांत यथा अलंकार- स ांत,
व ोि त- स ांत, र त- स ांत, औ च य- स ांत, व न- स ांत आ द मु ख है । यावहा रक
समी ा म समी य रचना के वषय- व प, जीवन- ि ट, उ े य, मौ लकता, दे शकाल,
रचनाकार क जीवनी, का य का कला-प एवं भाव-प आ द व वध प क ववेचना क
जाती है । इसम समालोचना क ऐ तहा सक, जीवनच र मूलक, मनोवै ा नक, समाजशा ीय,
भावा भ यंजक आ द समी ा-प तयां आती ह ।
सं ेप म कु छ मु ख समी ा लेखन प तयां इस कार है-

8.5.1 या या मक समी ा

सभी कार क समालोचना-प तय के वकास का मूल या या ह रह है । या या


वारा ह आलोचक सामा य स ांत नधा रत करते है और या या वारा ह
नधा रत स ांत क कसौट पर कसी कृ त का मू यांकन करते ह । इस कार क
समी ा म आलोचक यायाधीश क भां त काय न कर एक अ वेषक क भां त काय
करता है तथा कलाकार वारा कृ त वशेष म य त त य को प ट करता चलता
है ।

8.5.2 ऐ तहा सक समी ा

सा ह यकार के समाज- नरपे तथा एकाि तक यि त व क क पना नह ं क जा


सकती । य क उसक मनोभावनाओं के नमाण म दे श क त काल न सामािजक,
राजनी तक, आ थक और सां कृ तक प रि थ तय तथा वातावरण का योग रहता है
। अं ेजी इ तहास- लेखन टे न ने यह माना है क जा त, प रि थ त और व श ट

140
युग क चेतना से े रत होकर सा ह यकार अपने सृजन-संसार म वेश करता है ।
व भ न समय म लेखन के रचना- वधान म वै व य का कारण व भ न युग -चेतनाएँ
ह ह । टे न क यह ि ट ऐ तहा सक समी ा-प त क मू ल भि त है ।

8.5.3 आ मच रतमू लक समी ा

डॉ. जानसन ने आलो कय क वय के जीवन का समय कृ तय के साथ जोड़ा है ।


से ट यूव ने कहा क िजस कार फल पे ड़ के मूल का व तार है , उसी कार कृ त
भी उसके रच यता क मान सकता का मू त व प है । अत: यह समी ा-प त इस
त य को वीकार करती है क जब तक लेखक क जीवनी का अ ययन नह ं कया
जाता तब तक कृ त क समी ा के साथ याय नह ं हो सकता । आ मच रत-मूलक
समी ा लेखक के उस जीवन- म को समझाने म सहायक होती है, िजससे कृ त वशेष
क रचना संभव हो सक है ।

8.5.4 मनो व लेषणा मक समी ा

मनो व ान के आधार पर आलोचक ने कृ तकार और उसके च र का व लेषण करने


का यास कया है । इस आधार पर उ ह ने उन त य क खोज क है िजनसे े रत
होकर लेखक ऐसे सा ह य का सृजन करने म स म होता है । इस प त के आलोचक
ायड क वचारधारा से वशेष भा वत ह’ ।

8.5.5 भाववाद समी ा

इस प त म आलोचक समी य कृ त के अपने मानस पर पड़े भाव को अ भ यि त


दे ने लगता है । कृ त के बा य एवं आ त रक प प पर उसका वशेष यान केि त
नह ं होता है ।

8.5.6 समाजशा ीय समी ा

मा सवाद से हमारा जीवन काफ भा वत हु आ है । सा ह य का मू यांकन भी जब


मा सवाद धाराओं के प र े य म होने लगा तो इस समी ा-प त का वकास हु आ।

8.5.7 सौदया वेषी समी ा

कसी रचना के स दय से भा वत होकर स दयशा के नयमानुसार उसका मू यांकन


इस प त के अंतगत कया जाता है ।

8.6 मी डया म समी ा लेखन


टं मी डया एवं इले ॉ नक मी डया म समी ा लेखन को यापक थान मलने लगा है ।
आज पाठक समी ा लेखन के मह व को जानने लगा है । समी ा जीवन तथा सृजन के स य
का सा ा कार है । उसका े उतना ह यापक है िजतना जीवन का । जीवन क भां त समी ा
नर तर ग तशील रहती है और दे श तथा काल के अनुसार उसका प बदलता रहता है । सृजन
और समी ा के मू य पर पर टकराहट के साथ वक सत और संशो धत होते रहते ह । जैसे-जैसे

141
समाज और राजनी त बदलती है अथवा ान- व ान का समाजशा और अथशा बदलता
है, वैस-े वैसे समी ा ि ट भी बदलती रहती है । समी ा लेखन का सामा य अथ है कसी
व तु, यि त, कृ त, घटना, सम या, न, व श ट सा ह य आ द पर सोचना, समझना,
दे खना, परखना, नणय करना, आ वादन करना और मू य नधारण । इस कार समी ा
लेखन म तीन मह वपूण बाते ह-
1. कलाकृ त का आ वादन
2. ववेचन- व लेषण क गहनता
3. मू य नधारण क मता
हम यहाँ पर समी ा लेखन के अंतगत मी डया म वशेष प से च लत पु तक समी ा, नाटक
समी ा, फ म समी ा और कला समी ा पर ह ववेचना करगे ।

8.6.1 पु तक समी ा

पु तक समी ा के अंतगत कसी पु तक क स यक पर ा और व लेषण कया


जाता है । इससे पाठक को पु तक वशेष के बारे म जानकार ा त होती है । पु तक
समी ा का आशय केवल पु तक का प रचय या उसक वषय-व तु का सार मा
नह ं है । उसम समी क क आलोचना मक ि ट भी होती है । त व वशेष के आधार
पर पु तक समी ा के अनेक कार हो सकते ह- 1. प रचया मक, 2. मू यांकनपरक,
3. व लेषणा मक, 4. सं त या व तृत , 5. मी डया के आधार पर ।
1. प रचया मक पु तक समी ा- पु तक-समी ा क यह सरल और लोक य प त
है । इसम पु तक का प रचय ह मु य प से दया जाता है । आलोचना और
मू यांकन पर अ धक बल नह ं दया जाता । वैसे सं त पु तक-प रचय तो
सभी कार क पु तक-समी ाओं म रहता है, पर तु इस कार क समी ा म
यह त व मु यत: होता है । अत: इस कार क समी ा को प रचया मक
पु तक-समी ा कहते ह ।
2. व लेषणा मक पु तक समी ा- इसम पु तक के सं त के साथ व णत वषय,
तु तीकरण और भाषा-शैल को लेकर व लेषण तु त कया जाता है । इस
कार क समी ा वारा पु तक क व तृत जानकार द जाती है । समी क
इस कार क समी ा म पु तक क वशेषताओं और उसक सीमाओं का भी
रे खांकन करता है । व लेषण करते समय वह अपनी वयं क जानकार का
भी उपयोग करता है ।
3. मू यांकनपरक पु तक समी ा- इस कार क समी ा म सं त पु तक-प रचय
एवं सं त व लेषण के साथ मु यत: पु तक का मू यांकन हो सकता है, परं तु
वहाँ वह मु य त व के प म नह ं होता । मू यांकन का अथ यह नह ं है क
समी क यायाधीश क तरह अपना नणय दे दे । मू यांकन के अंतगत वह
तक पूण ववेचन तु त करता है ।

142
4. सं त या व तृत समी ा पु तक- समी ा आकार क सं त भी हो सकती
है और व तृत भी । आकार के आधार पर वह सं त या व तृत पु तक समी ा
कहलाएगी ।
5. मी डया के आधार पर पु तक समी ा- पु तक-समी ा य द प -प का म
काशन हे तु तैयार क जाती है तो वह काशनाथ समी ा होती है और का शत
हो जाने पर ' का शत समी ा' कहलाती है । दूरदशन और आकाशवाणी पर
पु तक-समी ा का सारण कया जाता है । अत: वह ' सा रत समी ा' होती
है ।
एक अ छ और सफल पु तक समी ा म न नां कत वशेषताओं का होना अपे त है -
1. तट थता, 2. व तु न ठता, 3. क ब दु, 4. ासं गकता, 5. भाषा शैल , 6. सौह ता
और 7. नजता ।
1. तट थता- एक अ छ पु तक समी ा म तट थता का होना आव यक है । उस पर
समी क क वशेष वचारधारा एवं पूवा ह का भाव नह ं होना चा हए ।
2. व तु न ठता- पु तक समी ा म व तु न ठा ह होना आव यक है । समी ा का
क - ब दु पु तक को होना चा हए । ऐसा न हो क समी क आलोचना शा ,
तकजाल, व- व वता, लेखक क न दा- तु त आ द के बयावान म भटक कर रह
जाए ।
3. क - ब दु- समी क पु तक के क - ब दु पर यान रखे । उसे इस क - ब दु से
बहु त दूर नह ं चले जाना चा हए । क - ब दु को उभारने का लगातार यास उसे करना
चा हए ।
4. ासं गकता- समी ा का ासं गक होना वां छत है । बहु त पुरानी कताब क समी ा
ाय: नह ं करनी चा हए नई कताब क समी ा भी य द दे र से का शत या सा रत
होती है तो पाठक क उसम अपे त च नह ं रहती ।
5. भाषा शैल - पु तक समी ा सरल, परं तु तर य भाषा-शैल म तु त क जानी चा हए
। सामा य पाठक, ोता, दशक उसे सहज क समझ सके, इस बात का यान रखा
जाना चा हए ।
6. सौह ता- पु तक समी ा म सौह यता का होना अपे त है । पु तक समी ा के भाव
म आकर ह कोई उस पु तक को पढ़ने या न पढ़ने क सोचना है । अत: समी ा
म सौह यता का गुण होना चा हए ।
7. नजता- हर समी क क लेखन शैल , समी ा-प त, ि टकोण, व लेषण का
तर का भ न होता है । यह समी क क अपनी नजता होती है । नए समी क
को अपने आप म इस गुण को वक सत करना चा हए ।
एक यो य और कु शल पु तक समी क बनने के लए उसम क तपय गुण या
वशेषताओं का होना ज र है । न न ल खत गुण को नर तर अ ययन, अ यास,
नर ण, वचार- वमश आ द के मा यम से वक सत कया जा सकता है- 1.

143
वशेष ता, 2. सामा य ान संप नता, 3. तट थता, 4. रचना मक ि टकोण, 5.
व तु न ठ मू यांकन, 6. तकनीक का ान ।
अ धकांश समाचारप -प काओं म समी ा का यह सामा य नयम है क समी य
पु तक क दो तयाँ प के कायालय म े षत क जाएँ । साधारणत: पु तक क
एक त कायालय के पु तकालय हे तु रखी जाती है तथा दूसर समी क के पास
भेजी जाती है । कु छ ति ठत प क नी त भ न कार क है । ये प समी ा
हे तु पु तक आमं त नह ं करते वरन ् समय-समय पर वयं े ठ पु तक का चयन
करके उनक समी ा करवाने का बंध करते ह । समी ा का व प भी भ न- भ न
प काओं म भ न- भ न होता है । कह -ं कह ं समी ा काफ सं त द जाती है
(दै नक प म वशेष प से) तो कह ं व तारपूवक आलोचना मक पर ण कया
जाता है । इस े म आकाशवाणी क भू मका भी उ लेखनीय है । नई कृ तय क
समी ा का सारण करने क यव था आकाशवाणी के अनेक क पर है ।
'समी ा- त भ' पृ ठ क स जा भी व भ न प म दे खने को मलती है । कु छ
प काओं म समी य पु तक का ववरण- जैसे पु तक का नाम , संपादक या लेखक
का नाम, काशक, मू य, पृ ठ-सं या आ द पृ ठ के नीचे दया जाता है तो कह ं
समी ा-साम ी के म य म भी दो समाना तर रे खाएँ खींचकर यह तु त कया जाता
है । स जा क भावो पादकता के अनु प इसका थान नधा रत कया जा सकता
है । कह -ं कह ं समी य पु तक का सं त लाक भी का शत कया जाता है ।
समी ा करते समय समी य पु तक क मूल संवेदना का यंजक शीषक भी कभी-कभी
दे दया जाता है ।
वतमान युग म समाचारप -प काओं के काशन क बाढ़ सी आ गई है । लगभग
सभी मुख दै नक समाचारप - सा ता हक, पा क, मा सक, म
ै ा सक आ द
प काएं समी ा के नए प रव तत तेवर तु त कर रह है । राज थान क व श ट
समी ा मक प काओं म 'मधु मती', 'लहर', 'शोध-प का', 'वरदा', 'म भारती',
'राज थान भारती' आ द का अपना व श ट थान है । वह रा य प -प काओं
म दै नक ह दु तान, ह दु तान टाइ स, नवभारत टाइ स, जनस ता, राज थान
प का, टाइ स ऑफ इं डया, इं डयन ए स ेस आ द के र ववार य एवं अ य वशेष
सं करण तथा ानोदय, हंस, इं डया टु डे, अहा! िजंदगी, आलोचना, नवनीत,
सा ा कार, आजकल, कादि बनी आ द प काएँ समी ा-सा ह य को वक सत,
ो सा हत एवं े रत करती हु ई और मह वपूण दा य व नभाती हु ई
स सा ह य- नमाण के माग को श त कर रह है । ' कर' आ द कु छ प काएँ तो
मा समी ाओं का ह काशन करती ह ।

8.6.2 फ म समी ा

फ म मी डया का एक सश त मा यम है । आज केबल के वारा टे ल वजन घर-घर


म पहु ँ च गया है, फर भी फ म क लोक यता म कोई कमी नह ं आई है । फ म

144
समी ा का मह व दशक क च को प र कृ त करने म भी है और वह जानकार
दे ने का भी एक मु ख ोत है । बहु त से लोग फ म समी ा को चार मा यम
से जोड़ दे ते ह । समी क को चारक मानकर उस पर दबाव डाले जाते ह ।
फ म समी ा के लए न न त व को यान म रखना आव यक है । ये ह- 1.
कथा वचार (Theme of the Story), 2. कथा सार (Short Story), 3. पा
(Character), 4. पटकथा (Script), 5. संवाद (Dialogrie) । फ म-मी डया म
इंटर यू वधा का मु य थान है । एक सफल मी डयाकम वह है, जो फ म वधा
के व भ न प से जु ड़े लोग का इंटर यू ले सके । फ म समी ा भी इंटर यू वधा
से समृ होती है । फ म जगत ् म इंटर यू लेना एक चु नौतीपूण काय है । अ धकांश
अ भनेता इंटर यू दे ते रहते ह ता क उ ह चार मले ।
फ म समी क ब कचन ीवा तव के श द म ''एक जाग क फ म समी क को
फ म इ तहास के साथ-साथ सा ह य, कला, संगीत, च कला, नाटक, जन-जीवन
आ द का भी अ छा ान होना चा हए । फ म कैसे बनती है? इसका भी ान होना
अ नवाय है । उसे कथा और पटकथा का अंतर पता होना चा हए । उसे ात होना
चा हए क आउटडोर शू टंग और इनडोर शू टंग म या अंतर है? लोज अप और
लांग शाट कसे कहते ह? भारतीय भाषाओं म बन रह फ म बनाने वाल क आ थक
ि थ त, कला मक झान, पृ ठभू म आ द क आव यक जानकार होनी चा हए ।''
इधर गा सप फ मी लेखन का चार- सार अ धक हो रहा है । गा सप का अथ है-ग प
। व वभर म फ म जगत ् के बारे म सबसे अनगल लखा जाता है । लोग इसे चाव
से पढ़ते ह। एक अ छे फ म प कार को गा सप लेखन और समी ा से बचना चा हए।

8.6.3 ना य समी ा

भरत मु न वारा ना य शा म द गई नाटक क प रभाषा के अनुसार सम त अंग ,


उपांग और ग तय को कम से यवि थत कर िजसका अ भनय कया जाए वह नाटक
है । भारते दु ह र चं के अनुसार नाटक श द का अथ है - “नट लोग क या, िजसे
अ भनय कहते ह ।'' बाबू गुलाबराय के अनुसार , ''नाटक जीवन क श दगत अनुकृ त
है िजसे सजीव पा के मा यम से एक चलते- फरते स ाण प म तुत कया जाता
है ।'' आधु नक धारणा के अनुसार नाटक जीवन क या या है, जो हमार सम याओं
और उनके हल को हमारे स मुख तु त करता है । नाटक मानवीय अ भ यि त
का े ठ साधन है ।
भारतीय धारणा के अनुसार नाटक के न न मूल त व ह-
1. वषय व तु
2. कथानक
3. च र - च ण
4. दे श-काल
5. कथोपकथन

145
(अ) ना य भाषा एवं (ब) संवाद
6. शैल
ना य समी क कसी भी नाटक क समी ा करते समय नाटक के उपयु त मू ल त व को
ह ि टगत रखते हु ए अपनी समी ा के प रणाम पर पहु ँचता है तथा लगभग इ ह ं त व को
अपनी समी ा का आधार बनाता है । ना य समी ा के लए ना य लेखन एवं रं गमंच क
जानकार ज र है । समी क का मन संवेदनशील होना चा हए तथा तक मता के साथ उसे
ना य कला का यापक ान तथा उसक पृ ठभू म क जानकार होनी चा हए । ना य रचना
के व वध त व और प का वयं पठन अथवा दशन कर दूसर के लए उसे ट य बनाना
ह समी क का कम है । समी क को अपनी ि ट म न प होना चा हए ।
समी ा का अथ है- स यक् ई ा अथात ् अ छ तरह दे खना अथवा पड़ताल करना । कसी
कला, रचना या वषय के संबध
ं म तपा दत स ांत के आधार पर येक त व का ववेचन
करना अथात ् व भ न पहलु ओं से उसक पड़ताल यानी समी ा करना । जब नाटक के संबध

म उसक रचना, उसके व प, उसके व भ न त व , गुण -दोष तथा श प आ द का ववेचन
कया जाता है, तो उसे ना य समी ा कहते ह । ना य समी क के लए ना य लेखन एवं
रं गमंच क जानकार ज र है । समी क का मन संवेदनशील होना चा हए तथा तक- मता
के साथ उसे ना य कला का यापक ान तथा उसक पृ ठभू म क जानकार होनी चा हए
। ना य रचना के व वध त व और प का वयं पठन अथवा दशन कर दूसर के लए उसे
ट य बनाना ह समी क का कम है । समी क को अपनी ि ट म न प होना चा हए।
ना य समी ा स ांत- डॉ र तारानी पाल वाल ने ना य समी ा के स ांत को इस कार
रे खां कत कया है-
ना य समी ा के स ांत का आधार मु यत: नाटक के मूल त व अथात ् वषय व तु, कथानक,
चर च ण, दे श, काल, कथोपकथन तथा शैल ह ।
नाटक क समी ा दो ि ट से क जानी चा हए-
1. ना य-रचना, और
2. ना य योग
ना य-रचना क समी ा म हम इन न का उ तर दे ना चा हए-
1. नाटककार ने कस उ े य से नाटक क रचना क है तथा नाटक के वषय के चु नाव के
पीछे उसक ि ट?
2. उस उ े य क पू त के लए नाटककार ने कस कार का कथनाक बुना या गढ़ा है ; कस
कार के कतने पा और घटनाओं का समावेश कया है?
3. कस कार नाटककार ने घटनाओं और पा के संयोजन म कुतू हल का नवाह करते हु ए
पा और घटनाओं का सामंज य था पत कया है?
4. कतने पा का योग कया गया है? उनम से कतने ऐसे ह िजनका संयोजन अ नवाय
है?

146
5. कतने पा ऐसे ह िजनके बना भी ना य- यापार सरलता और सु चा प से संचा लत
कया जा सकता है?
6. कतनी घटनाएं ऐसी ह, जो पा के च र - वकास और कथा- वाह के संवधन क ि ट
से उ चत और अप रहाय थीं?
7. उनम से कतनी घटनाएं स भव, वाभा वक और आव यक ह?
8. नाटककार ने जो प रणाम नकाला है, वह उसके उ े य क ि ट से कहाँ तक संगत है?
9. उस घटना के प रणाम को कसी दूसरे प म तु त करने से उस उ े य क स हो
सकती थी या नह ?

10. वाभा वक होते हु ए भी वह प रणाम कहाँ तक वांछनीय और घटनाओं के वाह म अनुकूल
ह?
व भ न पा के च र - च ण के लए यु त भाषा-शैल का भल भाँ त पर ण करते हु ए ना य-समी क
को यह दे खना चा हए क-
1. वभ न ेणी के पा कसी भाषा का योग करते ह; वह भाषा उ त ेणी के पा क
मयादा के अनुकूल है या नह ?

2. भाषा के योग म संभावना और आव यकता के साथ-साथ वाभा वकता तथा औ च य
का भी वचार कया गया है या नह ?
ं औ च य से ता पय यह क संवाद म पर पर
जोड़-तोड़, उ तर- यु तर क संग त और म ठ क है या नह ं ?
3. उसका कतना अंश कथा- वाह को आगे बढ़ाने तथा पा का च र प ट करने के लए
आव यक है?
4. कतना भाग ऐसा है िजसे नकाल दे ने से नाटक के सौ दय और कथा- वाह म कसी
कार क कोई ु ट उपि थत नह ं होगी?
5. नाटक के संवाद को सु नकर दशक सरलता से उ ह समझ सकगे या नह ?

दशक को नाटक का आनंद लेने म सबसे अ धक सहायता उसके संवाद से मलती है । अत:
समी क वारा संवाद का पर ण इसी ि ट से करना चा हए । इसके अ त र त यह भी
दे खना चा हए क गीत, नृ य और वा य आ द का संयोजन कहाँ तक उ चत , उपयु त और
आव यक हु आ है?
योग- ि ट से नाटक क समी ा करते समय यह दे खना चा हए क-
1. नाटककार ने य- वधान इस म से रखा है या नह ं क नाटक क कथा- धारा का म
नबाध बना रहे?
2. नाटककार ने जो रं ग नदश दए ह, वे असंभव तथा अ वाभा वक तो नह ं ह?
3. रं ग- नदश म रं गद पन तथा अ भनेता के लए प ट नदश ह या नह ?

4. नाटककार ने अ भनेता के वा चक, आं गक और साि वक अ भनय के लए पया त अवसर
दए ह या नह ?

147
5. समी क को न प भाव से यह दे खना चा हए क नाटक िजन दशक के लए लखा
गया है, उनक समझ म आ सकेगा या नह ?

6. नाटक का कथा- म ऐसा तो नह ं है क दशक को उसके समझने म क ठनाई हो?
7. य- वधान दु ह तो नह ं है क ना य- यो ता उसे तु त ह नह ं कर सके?
8. पा - वधान ज टल तो नह ं है?
9. संवाद- वधान क ठन तो नह ं है क अ भनेता उसम अ भनय क संभावनाएं ह न पा सके?
नाटक िजस रं गमंच के लए लखा गया है, उसके लए उपयु त भी है अथवा नह ं? दशक
पर नाटक का या भाव पड़ता है? या नाटककार अपने उ े य म सफल हु आ?
10. उपरो त सभी न का उ तर दे ने पर ह ना य-समी ा पूण होती है ।

8.6.4 कला समी ा

कला समी ा म कसी कला व या या कला से संबं धत आयोजन या घटना या कला


पु तक का स यक व लेषण कया जाता है अथवा कला के व भ न प पर स म त
द जाती है । कला समी ा वा तव म कला क व भ न अवधारणाओं के संदभ म
कसी भी कला से संबं धत दशन, आयोजन, अ भ यि त आ द क छानबीन करने
क एक या है । इस या म कला के व भ न प क आलोचना, उसक
क मयां या अ छाइयाँ, पूणता या अपूणता का मू यांकन भी शा मल है । इस कार
समी क कला वषय पर अपनी स म त या राय य त करता है ।
व र ठ जनसंपककम रामकु मार ने कला समी क के लए न न गुण को अ नवाय
बताया है । उनक मा यता है इ ह ं ब दुओं के आधार पर एक अ छ समी ा क
जा सकती है । ये ह- 1. वषय वशेष ता, 2. व तृत सामा य ान, 3. पूवा ह
मु त, 4. ि ट संप न, 5. व तु न ठ, 6. संतु लत लेखन, 7. सामािजक दा य व
बोध, 8. भाषा एवं शैल गत वशेषताएं ।
1. वषय वशेष ता- एक अ छे और यो य समी क के लए पहल शत यह है
क वह उसी वधा क समी ा करे िजससे वह भल भां त प र चत हो । हर वधा
के अपने-अपने व वध प होते ह और वधा वशेष म पारं गत न भी हो तो
उसके येक प क गहराई तक पहु ँचने क एक समी क म यो यता और
मता होनी चा हए । संगीत, ना य, श प, थाप य, च कला आ द व भ न
कला- वधाओं क समी ा के प र े य म यह भी आव यक है क एक वधा वशेष
के बारे म जानकार के साथ इन व वध वधाओं के आपसी र त और इनक
सृजन- या या दशना मक, तु त आ द प का भी ान होना चा हए।
2. व तृत सामा य ान- कसी वशेष कला- वधा म नपुणता के साथ समी क
से यह भी अपे ा क जाती है क उसका सामा य ान भी व तृत हो ।
समसाम यक कला के बारे म पु ता जानकार के साथ सामािजक , राजनी तक,
आ थक एवं सां कृ तक प रवेश एवं सामािजक सोच के बारे म भी सामा य ान

148
होना आव यक है, य क इससे समी ा समृ होती है । कला और जीवन का
आपस का नकट संबध
ं है । इस लए कला के व भ न े म एक-दूस रे पर
पर पर नभर होते ह ।
3. पूवा ह मु तता- संतु लत एवं वै ा नक आधार पर समी ा लेखन के लए
समी क का पूवा ह से मु त होना आव यक है । पूवा ह यि तगत भी हो
सकता है और वषय से संबं धत भी । समी ा कम म यि तगत पूवा ह सवथा
या य है । समी क को अपने आप म एक न ल त भाव और सोच वक सत
करने का पूरा यास करना चा हए जहाँ उसके लए न कोई म है और न ह
कोई श ु । पूव ह का याग कए बना समी क के प म सफलता पाना क ठन
है ।
4. ि ट-संप नता- समी क क ि ट खुल होनी चा हए, ि टगत संक णता
समी ा को दुबल बनाती है । ि टगत संक णता के मु य दो कारण होते ह-
अ ान और कसी मत या वाद वशेष के त आ हशील होना । अ ानता कसी
यि त के ि टकोण को वभावत: संक ण बना दे ती है । दूसर ओर अगर कोई
यि त कसी वशेष वचारधारा म व वास रखता है और अपनी वचारधारा के
अलावा कसी अ य वचारधारा का स मान नह ं करता तो उसके लेखन म
वैचा रक पूवा ह पैदा हो जाता है ।
5. व तु न ठता- कला समी क को पूवा ह तथा दुरा ह को छोड़कर, तट थता
के साथ कसी भी कला व या का व तु न ठ मू यांकन करना चा हए । राग- वेष
से र हत होकर व या- वशेष का नरपे प से ववेचन करना ह समी क का
दा य व है । इसके अ त र त कला समी क को िजस कला के आयोजन, दशन
या तु त क समी ा करनी है उसको सह प र े य म रखकर जांचना चा हए
। समी क को आ म न ठ नह ं होना चा हए । व तु न ठता अपना लेने से
आ म न ठता एवं पूव ह के खतर को टालना संभव है ।
6. संतु लत लेखन- समी ा म संतु लत लेखन का वशेष मह व है । इसका संबध

पूवा ह मु तता, ि ट संप नता और व तु न ठता से है । कसी भी वधा क
अनाव यक नंदा या बुराई करने का काम समी ा-कम म बाधा उ प न करता
है । न प ता के साथ, तकपूण एवं श टता शैल म कसी भी कला के दुबल
या सबल प क आलोचना या शंसा संतु लत ढं ग से करनी चा हए । स यक्
मू यांकन, संतु लत भाषा, तक-संगत ढं ग और सह प र े य के साथ क गई
समी ा, लेखन क सबलता के साथ समी क के संतु लत प म लेखन करने
के गुण का भी प रचय दे ती है ।
7. सामािजक दा य व बोध- समी क समाज का एक अंग है । समाज के त उसका
एक उ तरदा य व है । कला क व वध धाराओं, वधाओं और कलाकम से आम
े क, पाठक या लोग को प र चत करवाना और कलाकम एवं कला के त
स मान रखने वाल के बीच एक संवाद क ि थ त पैदा करना, समी क का

149
सामािजक काय है । कला के साथ जु ड़ने और कला हलचल म आम जनता को
े रत करने क दशा म समी क क मह वपूण भू मका होती है । समी क का
काय समाज को कला के मा यम से उ कृ ट वातावरण तैयार करने क ओर भी
उ पे रत करना है ।
8. भाषा एवं शैल गत वशेषताएं- कला समी क क भाषा सरल, सहज, और
स े य होनी चा हए । कला के तकनीक मु हावर या कलाकम से संबं धत श द
का योग करते समय यह यान रखना आव यक है क येक पाठक क समझ
म आने वाले श द और भाषा का योग कया गया है । भाषा एवं शैल रोचक
और या मक हो ता क पाठक के मि त क म कला क कोई भी घटना या
तु त च क तरह सजीव हो उठे । समी ा पढ़ने म उसका झान बड़े ।
कला वधा के अनु प श द और भाषा होनी चा हए । सारांश म कहा जा सकता
है क सहज और सरल होकर गंभीर बात करना, उसम रोचकता पैदा करना,
समी क का जहाँ गुण है , वहाँ यह समी ा क वशेषता है ।
बोध न-
1. समी ा का अथ या है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. समाजशा ीय समी ा या है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. समी कसे मु य अपे ा या है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
4. अ छ समी ा के या गु ण है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

8.7 सारांश
समी ा चाहे कला क हो, सा ह य कृ त क हो या कसी अ य व तु क उसम एक कार
क व तु न ठता और ग तशीलता का होना आव यक है । समी क के सामने समय और
बदलाव क तेज ग त ने अनेक चु नौ तयां पैदा कर द है ह । अत: समी क को अपनी जड़
को पकड़े रहने के साथ-साथ समय क ग त के साथ ग तशील होकर एक व तृत प रवेश और
यापक ढांचे म समी ा कम करने और समय के तेवर को समझने क चु नौती का सामना
करने के लए तैयार रहना चा हए ।

150
मी डया म पु तक समी ा, फ म समी ा, ना य समी ा और कला समी ा लोक य और
अ धक च लत है । पु तक समी ा प का रता और सा ह य का एक अ नवाय अंग है । प कार
और लेखक को उसका ान होना आव यक है । फ म समी क क आंख के ज रए सने
दशक फ म को दे खना सीखते ह । फ म न समाज को बदल सकती है, न ां त ला सकती
है ले कन वह समाज के एक बहु त बड़े वग म वैचा रक ां त के बीज अव य बो सकती है
। ना य समी ा का अथ है- नाटक और रं गमंच क समी ा, सै ां तक और यावहा रक
स दयशा का नधारण, आंकलन और मू यांकन । ना य समी ा म कला मक ि ट अथवा
आ ह तुत होना चा हए यि तगत प पात अथवा पूवा ह नह ं । ना य समी ा साथक
और मू लपरक होनी चा हए । कला समी ा म कला क परख करना और उसका व लेषण
करना, एक आसान काय नह ं है । कला क व वधता एवं शै लयां आ द का फलक अ य त
ह यापक है । कला क गहराइय म जाने क या, समु म डु बक लगाने के समान है।

8.8 कुछ उपयोगी पु तक


1. टं मी डया लेखन - ो. रमेश जैन, मंगलद प पि लकेश स, जयपुर
2. इले ॉ नक मी डया लेखन - ो. रमेश जैन, मंगलद प पि लकेश स जयपुर
3. जनसंचार व वकोश - ो. रमेश जैन, नेशनल पि ल शंग हाउस, जयपुर एवं द ल
4. रे डयो लेखन- डा. मधुकर गंगाधर
5. टे ल वजन लेखन- असगर वजाहत, भात रंजन, राजकमल काशन, नई द ल
6. भारतीय ना य पर परा - ने मचं जैन
7. पटकथा लेखन - मनोहर याम जोशी, राजकमल काशन, नई द ल

8.9अ यासाथ न
1. ‘समी ा लेखन' से आप या समझते ह?
2. समी ा करते समय समी क से या अपे ाएं करनी चा हए ।
3. समी ा लेखन का मा यम और या पर अपने वचार य त क िजए ।
4. समी ा के व भ न कार का सं त म उ लेख क िजए ।
5. सं त ट प णयां ल खए-
(अ) पु तक समी ा
(ब) ना य समी ा
(स) कला समी ा
(द) फ म समी ा

151
इकाई-9
रे डयो समाचार लेखन
इकाई क परे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 समाचार क प रभाषा
9.3 रे डयो समाचार
9.3.1 रे डयो समाचार क व श टता
9.4 रे डयो समाचार या ा
9.4.1 वदे श समाचार
9.4.2 े ीय समाचार
9.4.3 अ य समाचार
9.4.4 समसाम यक काय म
9.5 आकाशवाणी का समाचार तं
9.5.1 समाचार सेवा भाग
9.5.2 समाचार क (जी.एन.आर)
9.5.3 पूल यव था
9.5.4 हंद पूल
9.6 समाचार के ोत
9.7 रे डयो समाचार का लेखन व संपादन
9.7.1 यता
9.7.2 न प ता और सरलता
9.7.3 मयादा
9.7.4 समाचार क संरचना
9.8 रे डयो समाचार क भाषा
9.8.1 श द चयन
9.8.2 वा य रचना
9.8.3 अनुवाद क चु नौती
9.9 सारांश
9.10 कु छ उपयोगी पु तक
9.11 अ यासाथ न

9.0 उ े य
इस पाठ को प ने के बाद आप :

152
 दे श म समाचार के सारण क शु आत और उसके बदलते प क जानकार ा त कर
सकगे।
 समाचार क प रभाषा और रे डयो के मह व को समझ सकगे ।
 समाचार क क काय णाल को जान सकगे ।
 समाचार संकलन के ोत से प र चत हो जाएंगे ।
 समाचार के लेखन और संपादन का श प सीख सकगे ।
 आकाशवाणी के समाचार सेवा भाग क ग त व धय क जानकार हा सल कर सकगे।
 समाचार क भाषा और उनके अनुवाद के व भ न पहलु ओं को जान सकगे ।

9.1 तावना
हमारे दे श म इस समय टे ल वजन के नए-नए समाचार चैनल खु ल रहे ह । एक वकासशील
दे श म इतनी बड़ी सं या म ट .वी. समाचार चैनल होना सचमु च एक अभूतपूव घटना है ।
ले कन टे ल वजन के अ ज इले ॉ नक मा यम रे डयो समाचार का केवल एक ह सारण
संगठन है और वह है आकाशवाणी । आकाशवाणी का समाचार सेवा भाग त दन समूचे
दे श और वदे श म 500 से अ धक समाचार बुले टन सा रत कर रहा है । ये बुले टन हंद
े ी के अलावा मु ख भारतीय भाषाओं, बो लय और वदे शी भाषाओं म होते ह । भारत
और अं ज
म समाचार सारण उतना ह पुराना है िजतना खु द रे डयो सारण य क 1923 म रे डयो
सारण क शु आत ह समाचार सु नाने के उ े य से हु ई थी । वष1936 को समाचार सारण
का मह वपूण पड़ाव माना जाता है जब द ल क ने काम करना शु कया । इससे पहले
मु ंबई से एक अं ेजी और एक हंद ु तानी म और कलक ता से एक बंगला बुले टन ह सा रत
कया जाता था । वतीय व वयु छड़ने के बाद सरकार को अपनी बात लोग तथा सै नक
तक पहु ंचाने क आव यकता महसू स हु ई िजसके फल व प रे डयो के व तार का सल सला
चल पड़ा ।
समाचार सारण को वा त वक बढ़ावा आजाद के बाद ह मला, जब रे डयो सारण का उ े य
राजनी तक और सै नक न रहकर रा य और सामािजक हो गया । आजाद के प चात ् चला
व तार अ भयान आज तक जार है । इस दौरान टे ल वजन के आगमन से रे डयो सारण
तक त वं वी मला ले कन रे डयो समाचार के संचालक संगठन समाचार सेवा भाग ने
ह मत नह ं हार और समाचार बुले टन म व वधता व रोचकता लाने और उ ह अ धक
आकषक तथा भावकार बनाने के उपाय करके इस चु नौती का सफलतापूवक मु काबला कया
। एफ.एम. टे नोलोजी अपना लए जाने से इन यास को बल मला और नजी ट .वी. चैनल
तथा दे श भर म खुल रहे समाचार चैनल क जोरदार बाढ़ के बावजू द रे डयो समाचार के पांव
नह ं उखड़े । अब रे डयो समाचार ने काफ हद तक अपनी पुरानी ग रमा फर से ा त कर
ल है । अ याधु नक सूचना टे नोलोजी के उपकरण और क यूटर करण क मदद से ोताओं
को रे डयो समाचार के साथ जोड़ने क को शश रं ग ला रह ह और गंभीर समाचार म च
लेने वाले ोता रे डयो के समाचार को ह व वसनीय मानने लगे ह । बड़ी सं या म एफ.एम.
टे शन चालू हो जाने से रे डयो फर से आम जीवन का अंग बन गया है । रे डयो क लोक यता
का एक कारण यह भी है क इसके समाचार म सरल और आम भाषा का इ तेमाल कया

153
जाता है और इसक रचना भी सरल और सरल शैल म ह क जाती है ता क हर वग के लोग
इ ह आसानी से समझ सक । रे डयो समाचार लेखन अखबार के समाचार से अलग होता
है । नजी एफ.एम चैनल को अभी समाचार सारण क अनुम त नह ं है । इस बारे म क
जा रह जोरदार मांग मान लए जाने पर रे डयो समाचार क लोक यता कई गुना बढ़ जाएगी
। इस तरह रे डयो समाचार इ क सवीं सद म अपनी उ लेखनीय भू मका नभाने को पूर तरह
क टब दखाई दे रहा है ।

9.2 समाचार क प रभाषा


रे डयो समाचार के संकलन, लेखन और संपादन के बारे म जानने से पहले समाचार या है,
उसके बारे म जानना आव यक है । अनेक व वान , लेखक और प कार ने इसक
भ न- भ न प रभाषा द है । समाचार को अं ेजी भाषा म ' यूज ' (NEWS) कहते ह । यूज
के चार अ र चार दशाओं North (उ तर), East (पूव ), West (पि चम), South (द ण)
के सूचक ह । मतलब यह हु आ क जो बात चार दशाओं का बोध कराए वह समाचार है ।
जाज एच. मो रस ने “समाचार को ज द म लखा गया इ तहास” बताया है । यह कथन समाचार
क ता का लकता क ओर इशारा करता है ।
जे.जे. स लर ने समाचार क प रभाषा इस कार द है, “'पया त सं या म मनु य िजसे जानना
चाहे वह समाचार है । शत यह है क वह सु च तथा त ठा के नयम का उ लंघन नह ं
करे ।''
व लयम एम.मा सवाई ने कहा है, '' कसी समय होने वाल मह वपूण घटनाओं का सह और
प पातर हत ववरण समाचार है ।''
इन सभी प रभाषाओं म समाचार क कुछ वशेषताओं का ह वणन है । सच तो यह है क
समाचार क कोई सवमा य प रभाषा नह ं हो सकती । जैसा क एम.वी.कामथ ने लखा है
क “समाचार क कोई भौगो लक सीमा नह ं होती । समाचार सदा कुछ य त करता है ।
यि तय क च समाचार है । समाचार तो बस समाचार है ।”

9.3 रे डयो समाचार


जो समाचार, समाचारप के लए उपयोगी हो सकता है, आव यक नह ं क वह रे डयो के
लए भी उतना ह उपयोगी हो । समाचारप म का शत होने वाला येक समाचार रे डयो
पर नह ं दया जा सकता य क रे डयो पर सा रत समाचार का असर शी होता है । अत:
रे डयो पर हंसा, लू टपाट, बला कार, ह या आ द के समाचार बहु त सोच समझ कर दये जाते
ह । वैसे भी, रे डयो पर सा रत समाचार क अव ध कम होती है, िजसक वजह से एक बुले टन
म शा मल कये जाने वाले समाचार क पंि तयाँ व श द अपे ाकृ त बहु त कम होते ह ।

9.3.1 रे डयो समाचार क व श टता

भारत जैसे दे श म जहां लगभग 70 तशत लोग गाँव म रहते ह और सा रता


क दर काफ कम है, रे डयो समाचार का मह व और अ धक बढ़ जाता है । पढ़ना
तो कम लोग ह जानते ह, ले कन सु न सभी सकते ह । दूर-दराज के े म जहां
154
समाचारप तीन-चार दन दे र से पहु ंचते ह, ताजा समाचार के लए रे डयो ह एकमा
मा यम है । रे डयो स ता भी है सवसु लभ भी । इस लए यह सबसे अ धक लोक य
है ।
दु नया म आज िजस ग त से प रवतन हो रहे ह, और हर ण जो नई-नई घटनाएं
हो रह ह, ऐसी ि थ त म रे डयो एक ऐसा मा यम है जो लोग खास कर अनपढ़
और दूरदराज के इलाक के लोग को सभी कार क जानकार तु र त उपल ध कराके
लोग क समाचार जानने क उ कंठा का समाधान कर सकता है, समाचारप , रे डयो
और टे ल वजन वतमान युग के समाचार तथा सूचना दे ने के मुख साधन ह । तु र त
सू चना दे ने के लये रे डयो सबसे मह वपूण है । कह ं भी कोई खतरा या संकट हो,
रे डयो के मा यम से लोग को फौरन चेतावनी दे कर सावधान कया जा सकता है
। उसके संचार का े भी समाचार-प क अपे ा व तृत होता है । उप ह क
सहायता से रे डयो सारण क पहु ंच और भी अ धक व तृत हो गई है । आप घर
म, द तर म, कारखाने म, दुकान म या खेत-ख लहान म कोई भी काम कर रहे
ह और आपका रे डयो चलता रह सकता है । रे डयो वारा संसार भर क सूचनाएं
आप तक पहु ँच जाती ह । इस इले ॉ नक मा यम क यह बहु त बड़ी व श टता
है क इसका लाभ उठाने के लये आपको अपने हाथ का काम छोड़ने क आव यकता
नह ं । आप चाहे कह ं भी ह , सड़क पर ह , बाहर खुले मैदान म , रे ल म ह या बस
म, कायालय म या कारखाने म, आप रे डयो सु न सकते ह और समाचार बुले टन
के ज रए व भ न घटनाओं क तु र त जानकार ा त कर सकते ह । डी.ट .एच. सेवा
से समाचार सारण क यापकता और बढ़ गई है ।

9.4 रे डयो समाचार या ा


जैसा क पहले बताया गया है क भारत म रे डयो समाचार का ज म रे डयो सारण के ीगणेश
के साथ ह हो गया था । कं तु समाचार सारण को वा त वक और अथपूण व प 1936
म मला जब मु ंबई और कोलकाता के बाद द ल म सारण क खु ला । 1936 म ह सारण
संगठन को आल इं डया रे डयो नाम मला । इससे पहले रे डयो सारण इं डया ाडकाि टं ग
कंपनी के नाम से होता था । एक अग त 1937 को समाचार क दे खरे ख के लए आल इं डया
रे डयो म स ल यूज आगनाइज का गठन कया गया जो बाद म समाचार सेवा भाग बन
गया । माच 1939 तक बुले टन क सं या 3 से बढ़कर 15 हो गई ।
दूसरा व वयु छड़ने पर नए समाचार बुले टन शु कए गए । 1939 म अं ेजी, ह दु तानी
और बंगाल के अलावा अ य भाषाओं- त मल, गुजराती, तेलु ग,ु मराठ , प तू आ द म बुले टन
सा रत कए जाने लगे । बाद म अ य भाषाओं म भी समाचार का सारण होने लगा । इस
समय द ल से 14 भारतीय भाषाओं म रा य समाचार रले कए जाते ह । तीन भाषाओं-
संधी, क नड़ और तेलु गु क इकाइयां े ीय क म थानांत रत क जा चु क ह । कुछ अ य
इकाइय को भी मश: े ीय क को भेजने का ताव है । नव बर 1939 म मानीट रंग
सेवा आरंभ क गई जो वदे शी सारण संगठन के समाचार हण करती थी । आजाद के

155
बाद आकाशवाणी के क के साथ-साथ समाचार बुले टन क सं या म तेजी से बढ़ोतर हु ई
। इस समय आकाशवाणी का समाचार सेवा भाग 82 भारतीय भाषाओं/बो लय तथा वदे शी
भाषाओं म 52 घंट क अव ध के 509 बुले टन सा रत करता है । एफ.एम. चैनल पर भी
व भ न अव धय के समाचार बुले टन सा रत होते ह ।

9.4.1 वदे श समाचार

वदे श समाचार बुले टन दूसरे महायु के कारण आरं भ कए गए । शु म वदे श


सारण समाचार संगठन का ह ह सा था । 1948 म वतं वदे श सेवा भाग
का गठन हो गया । कं तु वदे श सेवा म सा रत होने वाले समाचार बुले टन मूल
प से आज तक समाचार सेवा भाग बनाता है । पहला वदे श समाचार बुले टन
4 दसंबर 1939 को फारसी भाषा म सा रत हु आ । बाद म अ य भाषाओं म भी
बुले टन शु होते गए । 15 अग त 1947 को 31 वदे श बुले टन सा रत हो रहे
थे । धीरे -धीरे इनम अ य भाषाओं के बुले टन जुड़ते गए और इस समय वदे श सेवा
के तहत 26 भारतीय और वदे शी भाषाओं म 9 घंटे क अव ध के 65 समाचार बुले टन
सा रत कए जाते ह ।

9.4.2 े ीय समाचार

जैसा क पहले पढ़ चु के ह आजाद के समय तीन नगर द ल , मु ंबई और कोलकाता


से सफ तीन भाषाओं म समाचार सुनाए जाते थे । कं तु 1950 के दशक म व भ न
क पर े ीय समाचार इकाइयां था पत क गई जहां से थानीय भाषाओं म
बुले टन का सारण शु कया गया । इस अ भयान क शु आत 1953 म लखनऊ
और नागपुर से हु ई । अगले साल कोलकता, मु ंबई और चे नई से भी े ीय समाचार
बुले टन सा रत होने लगे । इस समय 44 े ीय समाचार इकाइयां थानीय भाषाओं,
बो लय म खबर सा रत करती ह । कु छ क से वदे श बुले टन भी सा रत कए
जाते ह । लगभग सभी रा य और क शा सत दे श से बुले टन सा रत हो रहे
ह ।

9.4.3 अ य समाचार

समाचार सारण क घरे लू सेवा म सामा य बुले टन के साथ-साथ व श ट ोताओं


के लए तथा खास अवसर पर व श ट बुले टन सा रत कए जाते ह । द ल से
त दन शाम को अं ेजी और हंद म खेल समाचार सा रत कए जाते ह । इसी
तरह युववाणी चैनल पर युवा वग क च और मह व के समाचार के युवा बुले टन
का सारण होता है । एफ.एम. गो ड पर खेल े मय के लए 15 मनट का
पो कैन और यापा रक मामल म दलच पी रखने वाले ोताओं के लए 15
मनट का माकट मं काय म होता है । इनम समाचार के साथ-साथ वशेष से
बातचीत होती है और फोन लाइन पर ोताओं से सीधे संपक कया जाता है । ये
दोन बुले टन एफ.एम. गो ड के अ यंत लोक य काय म म शुमार ह ।

156
इनके अलावा बजट पेश होने और लोकसभा व वधानसभाओं के चु नाव के मौके पर
वशेष बुले टन सा रत कए जाते ह । संसद के अ धवेशन के दौरान नई द ल से
संसद-समी ा और रा य वधानसभाओं के स के दौरान संबं धत े ीय इकाइय
वारा वधानमंडल समी ा सा रत होती है । ाकृ तक आपदा के दौरान पी ड़त लोग
के लए वशेष बुले टन पेश कए जाते ह । साक दे श के लए द ल से हर र ववार
को वशेष साक बुले टन सा रत कया जाता है ।

9.4.4 समसाम यक काय म

समाचार सेवा भाग समाचार के साथ-साथ उन पर आधा रत वाताएं, ट प णयां,


अंग के प म भी हो सकती ह और वतं काय म के प म भी । सवेरे के मु य
बुले टन म समाचार-प क सु खयां सा रत क जाती ह तो दोपहर और शाम के
बुले टन म समाचार फ चर या वाताएं शा मल क जाती ह । वतं प से 'साम यक
और पाटलाइट वाताएं’, त दन और 'चचा का वषय है तथा करट अफेयस' काय म
सा ता हक आधार पर सा रत कए जाते ह । चु नाव जैसे अवसर पर वशेष
प रचचाओं और लाइव रे डयो ज काय म का सारण कया जाता है । वदे श
बुले टन और कु छ भाषाई बुले टन म भी कमटर का सारण होता है ।
बोध न - 1
1. रे डयो समाचार के मह व को प ट क िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………………
2. आकाशवाणी से सा रत होने वाले समाचार का सं े प म वग करण क िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………………
3. े ीय बु ले टन कब शु हु ए और उनक या उपयो गता है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………………………………………………….....
4. आकाशवाणी के समसाम यक काय म पर ट पणी ल खए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

9.5 आकाशवाणी का समाचार तं


आपने अब तक जाना क आकाशवाणी का समाचार तं लगभग 60 साल से नवीनतम घटनाओं
क खबर और उन पर वैचा रक त याएं और व लेषण दे श- वदे श के ोताओं तक पहु ंचा
रहा है । आपने यह भी पढ़ा क दे शभर म फैल े ीय समाचार इकाइय से थानीय भाषाओं
म े ीय मह व के समाचार सा रत कए जाते ह । इन सभी समाचार बुले टन तथा वाता
काय म के संयोजन, संकलन, लेखन व संपादन का वराट काय जो संगठन संभालता है,

157
वह है समाचार सेवा भाग । जब हम समाचार लेखन क बात करते ह तो उसम समाचार
ा त करना, उसक ि ट बनाना, उसका संपादन करना, रका डग करना, वायस ओवर
करना आ द याएं शा मल ह । समाचार के लेखन, संकलन, संपादन को समझने के लए
समाचार सेवा भाग के व प तथा उसक काय प त को जानना आव यक

9.5.1 समाचार सेवा भाग

समाचार सेवा भाग आकाशवाणी का एक वतं वभाग है जो महा नदे शक


(समाचार) के नदशन म काम करता है । यह आजाद से पहले ह एक अलग वभाग
के प म कायरत है । हंद , अं ेजी और भारतीय व वदे शी भाषाओं के लए सभी
तरह के समाचार का संकलन, संपादन इसी भाग के संपादक करते ह । े ीय
समाचार इकाइयां भी इसी भाग के नदशन म काम करती ह । वदे श सारण सेवा
के अ तगत सा रत होने वाले समाचार बुले टन भी समाचार सेवा भाग तैयार करता
है । वशेष अवसर पर वशेष बुले टन भी इसी भाग वारा सा रत कए जाते ह
। 1937 म स ल यूज आगनाइजेशन बना जो बाद म समाचार सेवा भाग म बदल
गया ।
समाचार सारण क या मोटे तौर पर तीन तर पर चलती ह । ये ह समाचार
का संकलन, संपादन और सारण या तुतीकरण । इन सभी याओं क धु र है
समाचार क ।

9.5.2 समाचार क (जी.एन.आर.)

आकाशवाणी से सारण सभी बुले टन का के जनरल यूज म(जी.एन.आर.) है


। यह आकाशवाणी के समाचार तं क धुर है । चौबीस घंटे काम करने वाले इस
क के बारे म कहा जाता है क इसक यूबलाइट पछले लगभग 65 साल से कभी
बुझी नह ं ह ।

9.5.3 पूल यव था

यहां पर चार पा रय म काम होता है और हर पार को समाचार का एक पूल तैयार


करती है । जैसे ात:पूल, दोपहर पूल , सायं पूल और रा पूल । इसके बाद पूल
बुले टन के समाचार का ोत होता है जो समाचार पूल म शा मल कर लए जाते
ह केवल वह समाचार व भ न बुले टन के संपादक वारा अपने-अपने बुले टन क
आव यकता के अनु प इ तेमाल कए जा सकते ह । जी.एन.आर. म पूल यव था
1947 म शु हु ई । पूल के लए समाचार का चयन करते समय यह यान रखा
जाता है क समाचार न प और दलगत वचार से र हत होना चा हये । इसम
त या मक और वणना मक ववरण हो न क उ तेजक । रे डयो सनसनीखेज खबर
सा रत करके दहशत और सनसनी फैलाने से सदा बचता है । इस लये रे डयो
संवाददाता को अपराध, यौन ज नत और यथ के ववाद से दूर रहना चा हए । रा य
मह व को यान म रखते हु ए उसे सां कृ तक, सामािजक और सा हि यक े म

158
व तृत गवेषणा का यास करना चा हये । समाचार सं त , साधारण और दलच प
हो । वषय इतना प ट हो क ोता सु नकर असमंजस म न पड़े ।
समाचार म ऐसे ववरण क पूण उपे ा क जानी चा हये जो तु छ, अनुपयु त ,
गैर-िज मेदार, खतरनाक और वअथ ह । पुराने , घ टया कार के तथा चारा मक
और व ापनपरक समाचार को रे डयो पर दे ने से पूण प से बचना चा हए ।
आकाशवाणी आचार सं हता और दशा- नदश का पालन करते हु ए, रे डयो समाचार
म म दे श क आलोचना, कसी धम या जा त पर हार नह ं कया जाना चा हये,
िजससे कसी जा त वशेष या समु दाय के यि तय म उ ता या वैमन य उ प न
हो । कोई आपि तजनक, मानहा नपूण कटु ता पैदा करने वाला या कानून क यव था
भंग करने वाला अथवा यायालय क मान-हा न करने वाला,
रा प त, रा यपाल और यायपा लका पर लांछन लगाने वाला अथवा कसी व श ट
राजनी तक दल पर हार करने वाला समाचार नह ं होना चा हये । यि त वशेष,
सं था वशेष अथवा यावसा यक सं था के चारा मक समाचार को मह व दे ना भी
बलकुल उ चत नह ं है । इसका अथ यह नह ं क इस कार क घटनाओं को समाचार
बुले टन म सि म लत ह न कया जाये, क तु यह आव यक है क इनम सावधानी
एवं संयम से काम लया जाये ।

9.5.4 हंद पूल

जी.एन.आर. के व तार के प म हंद समाचार क और भारतीय भाषा समाचार


इकाइयां ह । हंद समाचार क भी जी.एन.आर. क तरह चार पा रय म काम करता
है और यहां जी.एन.आर. से ा त समाचार तथा संवाददाताओं व हंद संवाद
स म तय के ा त समाचार के आधार पर वतं हंद पूल तैयार होता है । इसी
पूल म शा मल आइटम हंद के व भ न बुले टन म लए जाते ह । हंद म पूल
यव था वष 1993 म ारंभ हु ई ।
भारतीय भाषाओं के बुले टन पहले अं ज
े ी म जी.एन.आर. म तैयार होते ह और
व भ न भाषाओं के समाचार वाचक अपनी भाषा म उनका अनुवाद करके उ ह
सा रत करते ह । इनम हंद पूल के आइटम भी इ तेमाल कए जाते ह ।
समसाम यक काय म के लए समाचार वाता एकांश है जो अं ेजी व हंद म सम
साम यक काय म का संयोजन, संपादन, रका डग आ द का काम दे खती ह ।

9.6 समाचार के ोत
समाचार के कई ोत ह । के सरकार का प सूचना कायालय, रा य सरकार के सूचना
एवं जनसंपक वभाग, अ य सरकार वभाग, मु ख संगठन वारा जार क जाने वाल
व ि तयां आ द समाचार के ोत ह । व भ न वभाग और राजनी तक तथा गैर राजनी तक
संगठन वारा आयोिजत प कार स मेलन और स
े ी फं ग से व भ न ग त व धय क
जानकार द जाती है । पु लस नयं ण क , यायालय आ द से नि चत कार के समाचार

159
ा त कये जा सकते ह । संसद और वधानसभाओं के अ धवेशन, मक संगठन, औ यो गक
त ठान, समाज सेवी सं थाएं और सा हि यक-सां कृ तक सं थाएं आ द भी समाचार के ोत
ह ।
इसके अलावा दे श और वदे श क मु ख समाचार एज सयां समाचार क बहु त बड़ी ोत ह
। समाचार क पी.ट .आई, भाषा, यू.एन.आई., यूनीवाता जैसी संवाद स म तय का भरपूर
इ तेमाल करता है ।
आकाशवाणी के अपने संवाददाता सबसे व वसनीय और सु ढ़ ोत ह । समाचार सेवा भाग
के दे श भर म लगभग 90 नय मत संवाददाताओं के अलावा लगभग 400 अंशका लक
संवाददाता ताजा घटनाओं क सूचनाएं भेजते रहते ह । मु यालय म अलग से रपो टग इकाई
काम करती है । वदे श म भी आकाशवाणी के संवाददाता नयु त ह ।
एक िज मेदार समाचार संगठन के त न ध के नाते संवाददाताओं को कई सावधा नयां बरतनी
पड़ती ह । संवाददाता को समाचार क व वसनीयता क जांच करने के उपरा त ह समाचार
दे ना चा हए । ाकृ तक आपदाओं जैसे सू खा, बाढ़ आ द के समाचार इस कार दये जाएं िजससे
लोग का मनोबल नह ं गरे तथा उनको राहत संबध
ं ी काय आ द क पूर जानकार मले ।
ं ी समाचार के साथ उस यि त क , सं
मृ यु संबध त जीवनी दे ना भी ज र है । समाचार
संकलन करते समय सारण संगठन क नी त और आचार सं हता का पालन आव यक है ।
आकाशवाणी समाचार क भू मका तट थ और रचना मक रहनी चा हए ।

9.7 रे डयो समाचार का लेखन व संपादन


समाचार का संकलन और लेखन एक दूसरे से जु ड़ा हु आ है । इस या म यह यान रखना
ज र है क समाचार सु नने यो य होने चा हए न क पढ़ने यो य । रे डयो पर सा रत समाचार
एक बार सु नने म ह समझ म आ जाए य क समाचारप म का शत समाचार को कई
बार पढ़ा जा सकता है । ले कन रे डयो पर सा रत समाचार पर यह बात लागू नह ं होती ।
समाचार क तु त इस कार होनी चा हए क ोता यह अनुभव कर सके क घटना उसके
सामने घट रह है ।

9.7.1 यता

रे डयो एक अ य समाचारप के समान है और उसका संपादक ऐसे वषय के


समाचार का चयन करता है जो क अ धका धक सु नने वाल का यान आक षत
करे । रे डयो के समाचार एक ह थान पर कई लोग सु न सकते ह, िजनम बूढ़े और
युवा , बालक और बा लकाएं, पढ़े - लखे और अनपढ़ सभी कार के लोग हो सकते
ह । संपादक को ऐसे सभी ोताओं क समझ तथा दलच पी को यान म रखना
पड़ता है । अगर कोई समाचार कसी पुराने समाचार पर आधा रत हो तो पूव घ टत
घटना क पृ ठभू म को यान म रखना आव यक है ।
रे डयो के समाचार लेखक को श द बोलने व लखने म जो अ तर है, उसका यान
रखना पड़ता है । उसम उलझे हु ए मामल को ोताओं के लए आसान प म तु त

160
करने क मता होनी चा हए । रे डयो म समाचार कान के लए लखना होता है
न क आख के लये ।
समाचार लखने से पहले उसक पृ ठभू म को जानना आव यक है । साथ ह , समाचार
म रे डयो के ोता के लायक समाचार त व क पहचान करना मह वपूण है । समाचार
लेखन एक व श ट कला है । े ठ समाचार वह हो सकता है जो सूचना मक हो
तथा उसम त य को इस तरह संक लत कया गया हो क पाठक घ टत घटना का
ववरण, सह प र े य म समझ सके । समाचार लेखक अपनी वशेष प कार य
तकनीक का योग कर उसे रोचक तथा भावी बना दे ता है । अत: समाचार लखने
े नशीलता, क पनाशीलता, रचना मकता
के लये समाचार त व के अ त र त संवद
जैसे गुण का होना आव यक है ।

9.7.2 न प ता और सरलता

रे डयो संवाददाता और संपादक को अपने े क गहन जानकार तो होनी ह चा हए,


साथ ह उसके लए सामािजक प रवतन के दौर म मनोवै ा नक आधार और मनु य
क कृ त को जानना और समझना अ नवाय है । उसम शी और सह न कष
नकालने क यो यता यानी यु प नम त होना ज र है । साथ ह सू चना दे ने वाल
वारा द गई सू चना क जांच करने क मता भी होनी चा हए । उसम अफवाह
को पहचानने क भी समझ होनी चा हए । यह भी आव यक है क व तु परकता,
स यता, प टता और सु च को भी यान म रखा जाए । समाचार म स चाई हो,
कसी पूवा ह या प पात से समाचार नह ं लखा जाए । समाचार को समझने म
ोताओं को क ठनाई नह ं होनी चा हए । समाचार म तारत य बनाए रखना भी बहु त
आव यक है । समाचार लखते समय या, कहां, कब, कौन और कैसे, (Five W’s
and H) का पारं प रक नयम भी यान म रखना आव यक है । रे डयो समाचार
म समय क कमी के कारण समाचार सं त प म दे ना होता है ।

9.7.3 मयादा

संसद य और वधानसभा के समाचार के लेखन और संपादन म बहु त सावधानी बरतने


क आव यकता है । समाचार इस कार दया जाए िजससे संसद या वधानसभा या
वधान प रषद क मयादा का उ लंघन नह ं हो । समाचार म ऐसी कोई बात नह ं
हो िजससे, सद य के वशेषा धकार का हनन हो । संसद और वधानसभाओं क
कायवाह का समाचार लखते समय न प ता क ओर वशेष यान दे ना आव यक
है । इसी तरह क सावधानी र ा और वदे श मं ालय तथा अदालती कारवाई से जु ड़ी
खबर म बरतनी पड़ती है । सं वधान क मयादाओं का यान रखना भी आव यक
है ।

161
9.7.4 समाचार क संरचना

समाचार मु यतया तीन भाग म बंटा होता है- आमु ख (इं ो या ल ड), म य तथा
अंत भाग । इनम सबसे मह वपूण इं ो है । इं ो सं त ले कन सारपूण होना चा हए
। इं ो समाचार का पूवाभास कराता है , अत: यह इस कार लखा जाए क ोता
पूरा समाचार सु नना चाहे । समाचार के म य भाग म ोता को समाचार वशेष क
मु य-मु य घटनाओं, त य आ द क सं त जानकार कराई जानी चा हए ।
समाचार के अंत म सबसे कम मह व क बात हो, िजससे अगर वह अंश समयाभाव
के कारण पढ़ा नह ं जा सके तब भी ोता को समाचार अधू रा नह ं लगे और पूर बात
समझ म आ जाए ।
बोध- न-2
1. आकाशबाणी के समाचार क का या काय है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………….....……………
2. समाचार के ोत कौन-कौन से ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………… ...………
3. रे डयो समाचार के ले ख न म कन बात का यान रखना आव यक है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………………………………………………… ...…
4. पू ल यव था का या उ े य है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………...………………………………………………………………
5. समाचार क सं र चना का वणन क िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………… ...……

9.8 रे डयो समाचार क भाषा


जैसा क आप पढ़ चुके ह क रे डयो समाचार को कम पढ़े तथा एकदम नर र लोग भी सु न
सकते ह, इस लए इनम भाषा का बहु त मह व है । य द भाषा ज टल और बो झल होगी तो
कौन उसे यान से सु नेगा । इस लए समाचार क भाषा सरल और सब तरह के ोताओं को
समझ म आने वाल होनी चा हए । सरल भाषा को सामा य तथा व वान, नर र तथा सा र
और ब चे व बड़े समान प से समझ लेते ह । सा रत समाचार मु त साम ी क भां त
नह ं होता, िजसका कोई अंश समझ न आने पर पछले पृ ठ को पलट कर संदभ जोड़ सकते
ह अथवा क ठन श द का अथ जानने के लए श दकोश के पृ ठ उलट सकते ह । न ह ोता
इस ि थ त म होता है क कसी व वान या ानी यि त से परामश कर सके । एक बार
162
जो वा य अथवा श द सा रत हो गया, वह हवा के झ के क भां त आगे नकल जाता है
। इस लए सफल समाचार सारण क बु नयाद आव यकता है भाषा क सरलता ।

9.8.1 श द चयन

अब न यह है क सरल भाषा का व प या हो? ह द को ह ल । एक मत


यह है क उदू के व त, फ , महसू स, मौजू द, कसम, अफसोस, खु शी, सद ,
सल सला, कज, खास, जो खम, ताल म, दावत, चीज, फजू ल जैसे श द का ह द
के समाचार या वाताओं म योग कया जाए । दूसरा प यह है क ह द य क
सं कृ त से नकल है तथा अ य भारतीय भाषाएं भी सं कृ त के नकट ह, अत:
सं कृ त न ट श द यथा उ मू लन, मान च , ो साहन, यथाव यक, व तु ि थ त,
सव ण, ावधान, व वसनीय, प रि थ त, शताि द, उपि थत, मश: नम ण,
वतं ता, को ठ, प रवतन, सवा धक, व लेषण तथा इसी कार के श द योग
कए जाएं । वा तव म दोन प अपनी-अपनी जगह सह ह । क तु भाषा क सरलता
और यता का मापद ड है उसका अ धक से अ धक लोग वारा बोला व समझा
जाना और बोलचाल म यु त कया जाना । इस लए उदू के जो श द ह द म
बोलचाल के अंग बन गए ह, उनका योग करना यथे ट है तथा सं कृ त के जो श द
ल बे समय से योग म आ रहे ह, उ ह लेना हतकर है ।
उदाहरण के लए “' ो साहन”, और “बढ़ावा”, “ वशेष” और “खास”, “भाग लया”, तथा
“ ह सा लया”, “उपि थत” तथा “'हािजर”, “उ तर” तथा “'जवाब”, “ यास” तथा
“को शश”, “ स नता” तथा “खुशी” दोन कार के श द का योग कया जा सकता
है । आधार है श द का च लत होना । समाचार के लेखक और संपादक से यह
अपे त है क उसे इस बात का ान हो क कौन से श द सामा य यि त वारा
समझे जा सकते ह । यह कारण है क आकाशवाणी म “ क तु”, “अ पतु”, “'एवं”
“अ यथा” “य य प” “य द” “तथा प” क बजाय मश: ले कन, बि क, और नह ं तो,
हालां क, “अगर”, “तो भी” आ द का योग अ धक होता है । इसी कार “उपरांत,”
“'प चात ्”, “'पूव ”, “स मु ख”, पुन : के थान पर “बाद”, “पहले”, “सामने”, “ फर”
श द के योग को बेहतर माना जाता है । श द का चयन करते समय यह भी यान
रखा जाता है क इ ह बोलने के लए वाणी को ाणायाम न करना पड़े । उदाहरण
के लए पुनरो थान, णय, व श टता जैसे श द से बचा जाना चा हए ।
ऐसी ह सम या अं ेजी श द को लेकर पैदा होती है । कसौट अं ेजी श द के बारे
म भी यह है क अ धक से अ धक लोग समझ सक तथा भाषा क आ मा भी न ट
न हो । बटन, टे ल फोन, रे ल, क यूटर , पु लस , साई कल, बस, कार, कू टर, कापी,
प सल, पेन, रे डयो, टे ल वजन, बजट, फोटो जैसे अं ेजी श द का योग समाचार
म सहज प से कया जा सकता है । ले कन कभी-कभी अं ज
े ी श द के अंधाधु ध

योग से अपनी भाषा को पहचानना मु ि कल हो जाता है । ऊपर हमने अनेक अं ेजी

163
श द का उ लेख कया है जो बोलचाल म ह द श द के अपने श द बन चुके ह
। दूसर ओर ऐसे श द भी ह, जो अं ेजी तथा ह द श द को मलाकर बने ह ।
न वे पूर तरह अं ेजी श द ह और न ह त व ह । यह ह, रे लगाड़ी, टे ल फोन के ,
बस अ डा, डाक टकट आ द । यहां यह यान रखने क बात है क एक भी समाचार
या बुले टन म कसी श द का बार-बार योग करना रोचकता म बाधक होता है ।
इस लए कसी अथ म एक बार ह द श द और दूसर बार उसका च लत अं ज
े ी
पयाय इ तेमाल कर लया जाता है । उदाहरण के लए थाना और पु लस टे शन,
कू ल तथा व यालय, कालेज और महा व यालय, े और समाचारप , बल और

वधेयक, स म त और कमेट , इकाई और यू नट, बे झझक योग कए जाते ह ।
क तु इसका मतलब यह नह ं क व व व यालय के थान पर यू नव सट , कमचार
के लए ए लाई, सद य के लए मे बर, अ वीकार क बजाय रजे ट, खलाड़ी क
जगह लेयर या पु लस चौक के थान पर पु लस पो ट श द भी इ तेमाल कए
जा सकते ह । सम या तब आती है जब ऐसे अं ेजी श द का योग करना हो िजनका
अपनी भाषा म कोई पयाय च लत ह न हो । उस श द क सं त या या स हत
मू ल श द भी साथ म बोलना चा हए ता क ोता अथ भी समझ ले और नए श द
से भी प र चत हो जाए ।

9.8.2 वा य रचना

श द भाषा क मूल इकाई है , पर तु वा य से पृथक उनका कोई अि त व नह ं होता


। इस लए वा य ऐसे लखे जाएं, जो सीधे ोता क समझ पी झोल म चले जाएं
। ोता को वा य का अथ नकालने के लए बौ क कसरत न करनी पड़े । वा य
य द ज टल ह गे तो सरल श द क नय त क चड़ म गरे फूल से अ धक नह ं होगी
। इसके लए सबसे बड़ी आव यकता है वा य का छोटा होना । ल बे वा य म उलझा
दे ने से ोता अथ का अनथ समझ लेगा तथा सारण का ल य ह वफल हो जाएगा
। िजस बात को मु त या ल खत मा यम म एक वा य म कह कर चम कार उ प न
करने का यास कया जाता है, उसे सरल और सु बोध बनाने के लए सारण मा यम
म दो या तीन वा य म कहा जा सकता है । इसका उदाहरण दे ख, “रा प त ने
आज पटना व व व यालय के द ांत समारोह म युवक से समय क चु नौती का
डटकर मुकाबला करने का आ वान कया तथा लोग को अलगाववाद शि तय से
सावधान रहने क चेतावनी द ।” संवाद स म त वारा ल खत इस वा य म याकरण
क ि ट से कोई ु ट नह ं है और न ह इसम बहु त क ठन श द का योग कया
गया है । पर तु यह वा य सारण के लए ठ क नह ं है । आकाशवाणी का संपादक
इस समाचार को इस कार बनाएगा, “रा प त ने लोग से कहा है क वे अलगाववाद
शि तय से सावधान रह । वे आज पटना व व व यालय के द ा त समारोह म
बोल रहे थे । उ ह ने युवक को समय क चु नौती का डटकर मुकाबला करने का भी
आ वान कया ।”

164
कई बार वा य छोटे तो होते ह, क तु उनक रचना इतनी ज टल होती है क समझने
के लए मि त क पर दबाव डालना पड़ता है । कसी समाचारप म छपा यह वा य
सह लगता है व तमं ी ी चद बरम ् के बजट ने कर सुधार के युग का सू पात
करके अथ यव था को नई दशा द है, जो तीन दशक से बनी हु ई उस “'ि थ त
के वपर त” है, िजसक समाजवाद के वरोधी “पर मट कोटा राज” कह कर न दा
करते रहे ह ।
यह वा य बहु त बड़ा नह ं है, क तु ज टल होने के कारण सु नने पर त काल समझ
म नह ं आता । इसे सरल बनाने के लए दो वा य म तोड़ना हतकर है । हालां क
कम समय म अ धक बात कहना सारण का मूल स ा त है क तु अ प ट तथा
अबूझ बात कहना तो समय क ह बबाद है । इस लए समाचार को सु बोध बनाने
के लए य द कु छ सै कं ड अ धक खच करने पड़ तो संकोच नह ं करना चा हए । इस
वा य को रे डयो संपादक य कहे गा; ी चदं बरम के बजट से अथ यव था म कर
सु धार के युग का सू पात हु आ है । यह नई दशा पछले तीन दशक से चले आ
रहे पर मट कोटा राज के वपर त है ।

9.8.3 अनुवाद क चु नौती

आकाशवाणी को समाचार स म तय तथा अ य ोत से सू चनाएं अं ेजी म भी मलती


ह । अं ेजी म ा त समाचार का ह द म अनुवाद करना होता है । अनुवाद करते
समय यह बात यान रखने यो य है क येक भाषा क एक वतं कृ त तथा
शैल होती है और उसम भाव यंजना क कुछ व श ट णा लयां होती ह । अनुवाद
व तु त: वह अ छा होता है, िजसम मूल क सब बात य क य आ जाएं । अनुवाद
म, दूसरा गुण यह होना चा हए क वह कह ं से अनुवाद न जान पड़े । सब कार
से मूल का आन द दे । वा य रचना को अं े जी के भाव से बचाना चा हए । उ त
दोन गुण म से पहला गुण उस भाषा के ठ क-ठ क ान पर आ त है िजससे अनुवाद
कया जाता है, और दूसरा गुण इस भाषा क कृ त या व प के उ कृ ट ान से
ा त होता है िजसम अनुवाद कया जाता है । अनुवाद करते समय श दाथ क ओर
अ धक यान न दे कर भावाथ क ओर अ धक यान दे ना चा हए ।

9.9 सारांश
इस पाठ म हमने आपको समाचार के यापक प तथा रे डयो समाचार क व श टता और
मह व के बारे म बताया । आपने यह भी जाना क भारत म सा रता दर कम है इस लए
रे डयो लोग को व भ न घटनाओं, योजनाओं, नी तय , काय म , क तु र त और सह
जानकार का मु य मा यम है ।
आकाशवाणी के समाचार सेवा भाग का सं त ववरण दे ते हु ए बताने का यास कया गया
क समाचार का संकलन कैसे कया जाता है तथा उसके लेखन और स पादक क मू लभू त
आव यकताएं या है? रे डयो समाचार म ऐसी बात नह ं आनी चा हए िजससे सं वधान द त

165
सं थाओं और संवध
ै ा नक पद क मयादा को ठे स पहु ंचे । रे डयो म सनसनीखेज और भड़काने
वाले समाचार सा रत नह ं कये जाने चा हए ।
रे डयो क भाषा सरल और आसानी से समझ म आने वाल होनी चा हए । रे डयो समाचार
वण यो य होने चा हये य क वे कान के लये लखे जाते ह न क आख के लये । भाषा
शु हो और इसम याकरण क कोई गलती नह ं हो, अनुवाद करते समय भाषा को कृ म
और दु ह होने से बचाना चा हए । बोलचाल क भाषा ह रे डयो क भाषा है ।

9.10 कुछ उपयोगी पु तक


1. भारतीय इले ॉ नक मी डया - डॉ. दे व त संह, भात काशन, द ल , 2007
2. समाचार : अवधारणा और लेखन या - ोफेसर सुभाष धू लया एवं आनंद धान,
स पा.
3. भारतीय जनसंचार सं थान, नई द ल , 2004
4. रे डयो सारण - कौशल शमा, तभा त ठान, नई द ल , 2004
5. सारण प का रता - डा. सु रेश यादव, म य दे श ह द ं अकादमी, भोपाल, 2004

6. ाइम रपोटर - हषदे व, भारतीय जनसंचार सं थान, नई द ल , 2005
7. इले ॉ नक मी डया लेखन - ोफेसर रमेश जैन, मंगल द प पि लकेश स, नई द ल ,
2004

9.10 अ यासाथ न
1. रे डयो समाचार के मह व पर एक सारग भत ट पणी ल खए ।
2. रे डयो समाचार के लेखन व संपादन के मु य पहलुओं पर काश डा लए ।
3. रे डयो समाचार के लेखन म कन मयादाओं को यान म रखना आव यक है?
4. समाचार क क काय णाल का वणन क िजए ।
5. रे डयो समाचार क भाषा पर सं त लेख ल खए ।

166
इकाई-10
रे डयो लेखन के स ांत
इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना
10.2 रे डयो सारण के उ े य
10.3 रे डयो क व श टता
10.4 रे डयो लेखन क सीमाएं और संभावनाएं
10.4.1 रे डयो लेखन क परं परा
10.4.2 रे डयो क भाषा
10.4.3 आचार सं हता
10.5 रे डयो लेखन के आयाम
10.5.1 समाचार
10.5.2 वाता
10.5.3 प रचचा
10.5.4 सा हि यक रचनाएं
10.5.4.1 कहानी
10.5.4.2 क वता
10.5.5 हसन
10.5.6 रे डयो पक
10.5.7 रे डयो नाटक
10.6 संगीत के लए लेखन
10.6.1 गीतमाला 1
10.6.2 गीत भर कहानी
10.6.3 संगीत सभाएं
10.7 उ घोषणाएं
10.7.1 सू चनाएं
10.7.2 संदेश
10.7.3 लोगन/ ोमो
10.8 सारांश
10.9 कु छ उपयोगी पु तक
10.10 अ यासाथ न

167
10.1 उ े य
इस पाठ म रे डयो क व भ न वधाओं के लए लेखन से जु ड़े पहलुओं क चचा क जाएगी।
इसके अ ययन के बाद आप -
 रे डयो सारण के उ े य के बारे म जानकार ा त कर सकगे ।
 रे डयो तथा अ य मा यम के लए लेखन म अंतर को समझ सकगे ।
 रे डयो क व भ न वधाओं के लए लेखन करते हु ए यान म रखी जाने वाल बात के
बारे म जान सकगे ।
 रे डयो क आचार सं हता का ान ा त कर सकगे ।
 रे डयो लेखन क परं परा से अवगत हो सकगे ।
 नाटक, पक जैसे काय म के लए लेखन क शैल क जानकार ा त कर सकगे ।
 समाचार लेखन और संपादन के व वध पहलुओं को समझ सकगे ।
 संगीत म लेखन क संभावनाओं और उनसे जु ड़े त व को पहचान सकगे ।

10.1 तावना
रे डयो जनसंचार का एक मु ख मा यम है जो अ य मा यम , टे ल वजन और मु त मा यम
या न प -प काओं से कई मायन म भ न है । यह य मा यम है इस लए श त-अ श त
सभी वग के लए सुलभ और बोधग य है । रे डयो स ता तो है ह अब एफ.एम. टे नोलोजी
के इ तेमाल के बाद इसक व या मक गुणव ता भी बेहतर हो गई है । एफ.एम. सारण
के नजीकरण करने के सरकार के फैसले के फल व प बड़ी सं या म एफ.एम. चैनल खु ल
रहे ह जो थानीय तभा का उपयोग करके े ीय भाषाओं या बो लय म काय म सा रत
करके बड़े पैमाने पर ोताओं को रे डयो वण से जोड़ रहे ह ।
आप पछले पृ ठ म पढ़ चु के ह क भारत म रे डयो सारण का मु य संगठन आकाशवाणी
है जो समू चे दे श म फैले अपने सारण तं के ज रए हंद , अं ेजी और मु ख भारतीय और
वदे शी भाषाओं म काय म सा रत करके दे श के वकास और रा य एकता क दशा म
मह वपूण भू मका नभा रहा है । 1927 म शु हु आ रे डयो सारण शु के दो चार वष को
छोड़कर सरकार नयं ण म ह रहा है । टश काल म रे डयो को सरकार ने अपने सा ा यवाद
को सु ढ़ करने के साधन क तरह इ तेमाल कया कं तु वतं भारत क सरकार ने नयं ण
के बावजूद रे डयो को दे श के वकास, जन-जागरण, मनोरंजन और लोकतं का एक मजबूत
तंभ मानते हु ए जहां इसके संरचना मक तं का तेजी से व तार कया वह ं दे श क व वध
सं कृ त और बहुभाषायी व प के अनु प गीत, संगीत, सा ह य, समाचार, श ा, कृ ष,
उ योग, रोजगार से संबं धत जानकार दे ने वाले तरह-तरह के रोचक और ानवधक काय म
शु कए । आकाशवाणी अपने 225 के क मदद से लगभग 99 तशत े तथा 91
तशत आबाद तक अपने काय म पहु ँ चा सकने क मता ा त कर चुका है । 1980 के
बाद दूरदशन क लोक यता बढ़ जाने और बाद म नजी टे ल वजन चैनल के स य होने
पर आकाशवाणी के ोताओं क सं या शहर े म कम होने लगी ले कन आकाशवाणी के
काय म के रं ग- प म बदलाव आने और एफ.एम. चैनल के नजीकरण के फल व प लोग

168
फर से रे डयो क ओर लौटने लगे ह और रे डयो आज भारत म जनसंचार के सबसे भावशाल
मा यम के प म नई ऊँचाइयाँ छूने क ओर बढ़ रहा है ।

10.2 रे डयो सारण के उ े य


भारत क भौगो लक वशालता, तथा सां कृ तक व वधता और सा रता व आ थक संप नता
के अभाव म प -प काएं पढ़ पाने म अ धसं य जनसं या क असमथता के चलते रे डयो
सबसे सु लभ, स ता और भावशाल मा यम है । रे डयो सारण मोटे तौर पर कसी भी अ य
मी डया क तरह ह तीन उ े य को लेकर चलता है । ये ह सू चना, श ण और मनोरंजन
। सूचना से अ भ ाय है ोताओं को इ तहास , भू गोल, धम, अ या म, कला, सा ह य जैसे
जीवनोपयोगी वषय और दे श- वदे श म घटने वाल घटनाओं से बराबर अवगत कराते रहना
। इसके लए समाचार, समसाम यक काय म तथा ान- व ान पर चचाएं, प रचचाएं आ द
सा रत क जाती ह । श ण का मतलब लोग को इस लायक बनाना है क वे अपने, प रवार,
समाज, दे श और मानव मा के लए अ छे -बुरे का फैसला कर सक । इसके लए कला, सा ह य,
नै तकता तथा अ य मानवीय गुण क जानकार दे ने तथा अ छे काय क रे णा दे ने वाले
काय म सा रत कए जाते ह । मनोरं जन के अ तगत गीत, संगीत, नाटक, हसन, पक
आ द काय म सा रत कए जाते ह । मनोरं जन का मानव-जीवन म बहु त मह व है य क
मनोरं जन हमारे तन-मन से बो रयत और तनाव हटाकर हम फर से तरोताजा, स य और
चु त बनाता है । रे डयो के सभी काय म इस तरह लखे और तैयार कए जाते ह क
मानव- वकास के इन तीन उ े य को ा त कया जा सके ।

10.3 रे डयो क व श टता


रे डयो के काय म तैयार करना एक चु नौती है य क एक मा यम के प म यह अ य संचार
मा यम से काफ भ न है । इसम श द और उ चारण के मा यम से ह पूर बात सं े षत
करनी होती है । यह टे ल वजन और अखबार क तरह नह ं िज ह यि त एका और सम पत
होकर दे खता या पढ़ता है । रे डयो आप अ य काम करते हु ए सु न सकते ह और फर इसे
कसान, र शेवाला, दतर का बाबू मजदूर , गृ हणी , यापार , छा , ोफेसर, वै ा नक सभी
वग के लोग एक साथ सु नते ह । ांिज टर और कार रे डयो के मा यम से रे डयो के संदेश
या ा करते हु ए, सैर-सपाटे के दौरान और ाइव करते हु ए भी सु ने जा सकते ह । इस कार
ोताओं के तर तथा वषय के चयन और उनक तु त सभी ि टय से रे डयो व श ट
मा यम है । अखबार केवल श त लोग पढ़ते ह और टे ल वजन म अ धक मह व वजुअल
यानी च का होता है । च के ज रए कसी वषय को समझना आसान हो जाता है । कं तु
रे डयो म केवल सु नकर वषय हण कया जा सकता है ।

10.4 रे डयो लेखन क सीमाएं और संभावनाएं


आपने पढ़ा क रे डयो एक सरल, सुलभ और स ता मा यम है िजसक ेषण या अ य
मा यम टे ल वजन और अखबार से भ न है । इसी कारण रे डयो लेखन चु नौतीपूण हो जाता
है । जब हम रे डयो के लए लेखन क बात करते ह तो उससे अ भ ाय: केवल ऐसे लेखन

169
से नह ं होता जैसा काशन के लए कोई लेख, कहानी या क वता लखी जाती है । रे डयो
एक उ च रत मा यम है । इसम सभी काय म पूव ल खत प म तैयार नह ं होते । बहु त
से काय म बातचीत या सा ा कार प म सीधे बोलकर रकाड या सा रत कए जाते ह ।
अत: रे डयो लेखन म वह सब साम ी भी शा मल है िजसे ए टपोर अथात ् बना तैयार के
सीधे बोला जाता है । जो काय म पहले ल खत प म तैयार कए जाते ह उनक भाषा और
तु तीकरण क शैल को भी बोलचाल के लायक बनाया जाता है ता क ोताओं को उ ह
समझने म क ठनाई न हो और एक बार सु नकर ह वे वषय को हण कर ल । इस लए रे डयो
काय म क भाषा के साथ-साथ वषय के तु तकरण को भी सरल, प ट और रोचक रखना
ज र होता है । रे डयो म समाचार से लेकर संगीत तक व वध कार के काय म का सारण
होता है और येक वधा के लेखन और तु तकरण म अलग तरह क शैल अपनाई जाती
है । श द और वा य का चयन करते हु ए यह भी दे खना होता है क उ ह बोलना सरल हो
और वे कणमधु तथा असरदार भी ह य क रे डयो म समूचा ेषण श द व व नय और
उनक तु त के ज रए ह कया जाता है । रे डयो लेखन एक कला है िजसके लए लेखन
म वषय और वधा वशेष क स यक जानकार , बोलचाल क भाषा क समझ और ोताओं
क चय क पूर पहचान होनी चा हए । रे डयो लेखन करने वाले को समय के साथ ोताओं
क बदलती अ भ चय , भाषा के नए प और तु तकरण क नई टे नोलोजी और शै लय
के त सजग और संवेदनशील होना चा हए । उदाहरण के लए कसी राजनी तक या आ थक
घटना पर कसी वाता और कसी एफ.एम. चैनल पर फ मी गाने के लए क जाने वाल
उ घोषणा क भाषा और व प म दन-रात का अंतर होगा । रे डयो के काय म के बदलते
व प के साथ-साथ रे डयो लेखन क शैल , अंदाज और भाषा म भी प रवतन होता रहा है।

10.4.1 रे डयो लेखन क परं परा

दे श म रे डयो सारण के ारं भक दौर म रे डयो का उ े य औप नवे शक स ता को


मजबूत बनाने के यास करना था और ोता मु यतया अं ज
े या अं ज
े ी जानने
वाले भारतीय बाबू होते थे इस लए उस समय रे डयो काय म क भाषा मु यतया
अं ेजी थी और लेखन शैल एकदम औपचा रक होती थी । उसका तेवर आदे शा मक
होता था य क तब रे डयो शासक का मुखयं था । काय म भी बहु धा राजनी तक
और शासक य क म के होते थे । सरकार नणय और आदे श क सूचना दे ने वाले
समाचार सा रत कए जाते थे । उनक भाषा पूर तरह सधी हु ई और सपाट होती
थी । हंद ु तानी म समाचार बुले टन शु हु ए तो उनक भाषा भी कठोर और
अरबी-फारसी क शासक य श दावल से प रपूण होती थी । उस दौर म भारतीय
सा ह यकार , कलाकार और बु जी वय का रे डयो के साथ बहु त कम जु ड़ाव था
। इस लए रे डयो काय म म भारतीय प , सं कृ त और तेवर क मौजू दगी नग य
सी थी । मनोरं जन के लए पि चमी संगीत ह परोसा जाता था ।
वतं ता के प चात ् इस मा यम को सां कृ तक वरासत से जोड़ा गया । डॉ0 केसकर,
बालकृ ण राव एवं जगद श च माथुर जैसे कलाधम और रचनाधम जब रे डयो

170
क शास नक सेवा म आये तो रे डयो म नया माहौल बना । तब येक भाषा के
े ठ सा ह यकार, क व, संगीतकार, नाटककार, गायक, कलाकार रे डयो से जु ड़ गए
। रे डयो म अ खल भारतीय सा ह य समारोह आयोिजत कए गए । सवभाषा क व
स मेलन क पर परा चल पड़ी । रे डयो के मा यम से रचनाध मय को मह वपूण
ढं ग से तु त कया जाने लगा । भारतीय शा ीय संगीत और फ मी संगीत रे डयो
पर सु नाई दे ने लगा ।
1967 म ' व वध भारती' के नाम से अ खल भारतीय काय म ारं भ कया गया ।
समय के साथ युवा पीढ़ बदलता मानस जो रे डयो सीलोन के लोक य फ म संगीत
म रमने लगा था, उसे पुन : आकाशवाणी क ओर आकृ ट करने के लए यह काय म
शु कया गया । इसम ऐसे जन य काय म क ोताओं क पसंद भी शा मल
क गई । ऐसे जन य काय म क भाषा वभावत: सरल और अपे ाकृ त
अनौपचा रक रहती थी ।
1970 के आस-पास नई पीढ़ के कलाकार और लेखक रे डयो से जु ड़ने लगे तो रे डयो
क भाषा और शैल म और प रवतन आने लगा । सा हि यक और तकनीक वषय
के काय म म भले ह धीर-गंभीर शैल और श दावल का चलन होता रहा ले कन
अ य काय म म धीरे -धीरे लचीलापन आता गया । 1990 के दशक के बाद रे डयो
काय म के व प और तेवर म आमूल प रवतन आ गया और एफ.एम. चैनल ने
तो रे डयो क भाषा और लेखन या तु तकरण को एकदम नया प दे दया । यहां
तक क समाचार क तु त और संपादन ने नई करवट ल और एफ.एम. गो ड
पर सा रत होने वाले समाचार बुले टन का व प अनौपचा रक और बातचीत जैसा
हो गया । समाचार पर आधा रत वाताएं जो पहले लखकर समाचार वाचक वारा
पढ़ जाती थी वे धीरे -धीरे इंटरे ि टव यानी संवाद प म प रव तत हो गई और वत:
ह उनम बोलचाल क भाषा और शैल का पदापण हो गया । जब कोई काय म
सोच-सोच कर लखा जाता है तो उसम न चाहते हु ए भी भाषा का ल खत प झलक
आता है कं तु जब आप पूरा काय म ह बातचीत क शैल म तु त करगे तो भाषा
का व प और श दावल वत: ह सरल, वाभा वक और भावकार बन जाती है
। इस कार समय के साथ आकाशवाणी के काय म के व प म बदलाव के अनु प
भाषा और तु त या न लेखन म प रवतन क या भी जार रहती है ।

10.4.2 रे डयो क भाषा

आप पढ़ चु के ह क रे डयो य मा यम है और इसके सभी काय म सु नकर हण


कए जाते ह और श द ह ेषण या का मु य त व ह । इस लए रे डयो म भाषा
का सबसे अ धक मह व है । यह तो बताया ह गया है क रे डयो लेखन म भाषा
सरल और बोधग य होनी चा हए । वा य छोटे ह और नए वषय का वतन करते
हु ए अपे ाकृ त अ ात और तकनीक श दावल का य का य योग करने से बचना
चा हए । नए और अ च लत श द का योग य मा यम म वजनीय होता है य क
एक तो रे डयो के ोताओं के नर र और कम पढ़े - लखे भी होते ह और दूसरा श द
171
एक बार नकल गया तो उसे समझने के लए काय म को रवाइंड करके फर से
नह ं सु ना जा सकता । इसके अलावा भाषा का तर काय म के वषय के अनु प
होना चा हए । व श ट वषय या वशेष ोता वग को संबो धत काय म म क ठन
या तकनीक श द का य का य इ तेमाल कया जा सकता है य क उसके ोता
उस वषय के जानकार होते ह कं तु समाचार वाताओं, मनोरं जन धान या सामा य
ोताओं के लए सा रत होने वाले काय म म कसी नई अवधारणा या वचार को
खोल कर और सरल भाषा म समझा कर लखा या बताया जाना चा हए ।
भाषा के व प को लेकर कसी तरह क दु वधा नह ं होनी चा हए । रे डयो क आदश
भाषा का एक ह मापदं ड है क वो सामा य ोताओं को समझ म आनी चा हए ।
इसम उदू अं ेजी या थानीय श द या उि तय का यथासंभव योग कया जा सकता
है । अं ेजी या उदू-फारसी, पंजाबी, मराठ , बंगाल , गुजराती जैसी भाषाओं या हंद
क उपभाषाओं और बो लय के जो श द हमारे सा ह य प -प काओं और बोलचाल
म योग होने लगे ह और सामा य लोग उ ह समझ लेते ह उनके योग को बढ़ावा
दे ना चा हए । रे डयो का मू ल धम है वषय का ेषण । रे डयो का सारक न तो
भाषा वै ा नक है न ह वैयाकरण । उसके लए भाषा का वह प वीकाय है जो
सीधे जनता तक जाता है । पहले गांधी जी क वचारधारा के लए गांधीवाद श द
का योग होता था । एक फ म के ज रए 'गांधी गर श द लोग क जु बान पर आ
गया तो उसके योग म हचक नह ं होनी चा हए । बि क यह श द नई पीढ़ को
अ धक अपील करने वाला है । एक और उदाहरण ले सकते ह । पहले अं ज
े ी के
Accused श द के लए हंद म 'अ भयु त' श द योग होता था । पछले कुछ
वष से अखबार और ट .वी. चैनल इसके लए 'आरोपी' श द का इ तेमाल करने लगे
ह और आम लोग ने इसे अपना लया है तो रे डयो के समाचार और अ य काय म
म इसका इ तेमाल कया जाने लगा है । व वध भारती काय म से भाषा म
लचीलापन और अनौपचा रकता का पुट आने लगा था क तु जब एफ.एम. चैनल
के एंकर या आर.जे. लोग ने नए अंदाज म काय म तु त करने शु कए तो
उनके सामने व वध भारती क भाषा और अंदाज अब औपचा रक लगने लगे ह ।
वषय और काय म के व प के अनु प ह उसक भाषा और तु त म बदलाव
लाकर ह हम सारण को जी वत रख सकते ह । इस संदभ म अ सर यह पंि त
ृ क जाती है : “िजस तरह तू बोलता है उस तरह तू लख ।”'
उ त
रे डयो लेखन या सारण क भाषा और शैल के संदभ म यह पंि त द प तंभ क
तरह हमारा माग दशन करती रहे गी ।

10.4.3 आधार सं हता

आप जान चु के ह क भारत म रे डयो का मु य संगठन आकाशवाणी सरकार नयं ण


म है और उसे लोक सारक का दजा मला हु आ है । वह संसद और दे श क जनता
के त जवाबदे ह है । उसे अपने काय म का नमाण और सारण करते हु ए वशेष
दा य व और मयादाओं को यान म रखना पड़ता है । य तो सभी सारण संगठन
172
के लए कुछ नै तक और यवसाय से जु ड़े नयम व मयादाओं का पालन करना
आव यक है, कं तु आकाशवाणी को इस दशा म वशेष प से सावधान रहने क
ज रत है । इस संबध
ं म आचार सं हता नधा रत है िजसका ान होना रे डयो के
लए लखने और काय म का संपादन और सारण करने वाल के लए आव यक
है । आकाशवाणी के लए लेखन म न न ल खत बात से परहे ज रखना ज र है-
 म दे श क आलोचना
 कसी धम या स दाय वशेष पर आ ेप
 कु छ भी अ ल ल तथा मानहा न यो य
 हंसा को ो साहन या ऐसा कु छ जो कानून और यव था के खलाफ हो ।
 ऐसा कुछ, िजससे यायालय क अवमानना होती हो ।
 ऐसा कुछ, जो रा प त, सरकार एवं यायालय क मयादा के तकूल हो ।
 राजनै तक दल पर नाम लेकर आ ेप ।
 कसी रा य अथवा के क आ ामक आलोचना ।
 ऐसा कुछ भी जो सं वधान के त अमयादा दखलाता हो ।
रे डयो लेखन म समय का नयं ण बहु त मह वपूण है । आलेख नि चत समय के
लए तैयार कया जाता है अत: समय क सीमा म अपनी बात पूणता के साथ कह
जाना आलेख क सफलता है । एक ह श द क बार-बार पुनरावृि त से बचना चा हए
। यह भी आव यक है क वषय का तारत य न टू ट पाये ।
बोध- न - 1
1. रे डयो अ य जनसं चार मा यम से कस कार भ न है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. रे डयो ले ख न म कन बात का यान रखना आव यक है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. रे डयो काय म क भाषा पर सं त ट पणी ल खए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

10.5 रे डयो लेखन के आयाम


रे डयो से करोड़ ोताओं के लए काय म सा रत कए जाते ह िजनक चयां व वध और
अलग-अलग होती ह । ोता गंभीर काय म चाहते ह तो कुछ दलच पी ह के-फु के मनोरं जन
धान ो ाम म भी होती है । कई ोता संगीत को अ धक तरजीह दे ते ह तो अ य ोताओं
को खेल काय म या फ मी काय म पसंद आते ह । कु छ ोताओं को धम, अ या म, दशन
क चचा अ छ लगती है तो कु छ लोग चु टकु ले, हा य संग या हसन सु नकर आनं दत होते
ह । इसी कार ोता कभी समाचार सुनने के इ छुक होते ह तो कभी सा हि यक काय म

173
के लए रे डयो ऑन करते ह । इन व वध चय वाले ोताओं को संतु ट करने के लए रे डयो
को उनक पसंद के काय म सा रत करने पड़ते ह । इन सभी काय म का व प, भाषा
या तु तकरण क शैल एक समान नह ं हो सकती । सभी वधाओं के लेखन, संपादन या
तु तकरण म व श ट ोता वग क अपे ाओं को यान म रखा जाता है । अब हम रे डयो
से सा रत मु ख वधाओं के काय म के लए लेखन या का व लेषण करगे ।

10.5.1 समाचार

समाचार कसी भी सारण संगठन का मह वपूण अंग होता है । आकाशवाणी के


काय म म लोक यता के हसाब से संगीत के बाद समाचार का ह थान है ।
आकाशवाणी के ाइमर चैनल तथा एफ.एम. चैनल पर त घंटे हंद या अं ेजी
म छोटे -बड़े समाचार बुले टन सा रत कए जाते ह । ादे शक के से े ीय
भाषाओं म और वदे श के लए हंद तथा अं ेजी के अलावा कु छ भारतीय भाषाओं
और वदे शी भाषाओं के समाचार बुले टन और समाचार पर आधा रत वाता काय म
सा रत कए जाते ह । समाचार के बारे म उ लेखनीय बात यह है क कुछ अपवाद
को छोड़कर इनका सारण लाइव यानी सीधे टू डयो से होता है और इनम रकॉ डड
साम ी बहु त कम होती है जब क अ य काय म अ धकांशत: रकॉ डड होते ह ।
इस लए समाचार लेखन सबसे अ धक चु नौतीभरा काम है य क इ ह त काल
सा रत करना होता है । कई बार तो लखने के बाद इ ह दोबारा पढ़ने का समय
नह ं रहता ।
समाचार ाि त के लए रे डयो अपने संवाददाताओं, समाचार स म तय तथा अ य
ोत पर नभर करता है । समाचार क म टे ल टं र, टे ल फोन, क यूटर, फै स
आ द पर समाचार ा त होते रहते ह । इन ा त समाचार म से संपादक मह वपूण
समाचार का चयन कर समाचार बुले टन का आलेख तैयार करते ह , िजसे
समाचार-वाचक पढ़ते ह । समाचार क भाषा के संदभ म कुछ यान रखने यो य
बात न न ल खत ह :
1. भाषा सरल और आम आदमी के लए बोधग य हो
2. वा य छोटे होने के साथ अ भ यि त उलझन भर न हो
3. च लत मु हावर का योग कया जाना चा हए
4. भाषा म नाटक य उतार-चढ़ाव नह ं बि क सहजता अपे त है
समाचार सारण क अव ध नि चत होती है जैसे एक, पांच, दस, प ह या तीस
मनट । ऐसी ि थ त म समाचार का चयन करना और चय नत समाचार म से यह
तय करना क समाचार को मु खता के आधार पर या म दया जाए यह सब
संपादक के ववेक पर नभर करता है ।
अब समाचार म वशेष , नेताओं तथा कसी घटना से भा वत लोग के साउं ड
बाइट भी शा मल कए जाते ह, िजन पर समाचार क का अपना नयं ण नह ं होता
। हाँ उनका आव यक संपादन कया जाता है । इन साउं ड बाइ स क भाषा संबं धत

174
लोग क अपनी होती है िजनम कभी-कभी उ चारण दोष या अं ेजी का योग खलता
है कं तु इससे समाचार क व वसनीयता बढ़ती है य क हम घटना क स चाई या
उसके भाव क जानकार संबं धत यि त के अपने मुह
ँ से ा त करते ह ।
इसी कार समाचार बुले टन म घटना को कवर करने वाले संवाददाता क अपनी
आवाज म वायस ड पैच लए जाते ह । वायस ड पैच य क संवाददाता वयं तैयार
करता और बोलता है इस लए उनम सरल और बोलचाल क भाषा रहती है । कभी-कभी
टू डयो म बैठा एंकर या समाचार वाचक सीधे घटना थल पर मौजू द संवाददाता से
घटना के बारे म फोन पर बात करता है जो समाचार के साथ त काल सा रत हो
जाती है । ऐसी बातचीत क भाषा भी सरल तथा बोलचाल क होती है । इन नए
त व के इ तेमाल से रे डयो के समाचार बुले टन बनाना ज टल अव य हो गया है
कं तु वे सरल, बोधग य और अ धक व वसनीय बन गए ह ।

10.5.2 वाता

वाता रे डयो सारण क व श ट वधा है । ये समाचार आधा रत भी होती है और


सा हि यक, सां कृ तक, वै ा नक व आ थक वषय क भी हो सकती है । समाचार
पर आधा रत वाता के साथ साथ अब डायलाग या संवाद का सारण भी होता है िजसम
एक वशेष से समाचार संपादक अथवा संवाददाता कसी ता का लक वषय पर
अपनी बात करके उनसे व तृत जानकार लेने का यास करता है । कभी-कभी दो
वशेष आपस म बातचीत के ज रए वषय के व भ न पहलुओं का व लेषण करके
ोताओं तक नई जानकार पहु ंचाते ह ।
कसी भी वाता के दो प होते ह- व ता और ोता । वाताकार के पास अ भ यि त
के लए मा वाणी है और ोता के पास वण । एक अ छ वाता के लए वाता
को ोताओं से तादा मय था पत करना पड़ता है । ोताओं क मान सकता को अपने
साथ बाँध लेना ह वाताकार क सफलता है । रे डयो वाता को बोधग य बनाने के
संदभ म न न ल खत बात आव यक ह :-
 वषय का रोचक होना
 पु तक य ग य-शैल क अपे ा सहज और सजीव शैल
 वचार को टांत से समझाना
 वाता का वकास तकसंगत र त से करना
 मु य-मु य बात पर वशेष जोर दे ना
 क ठन श दावल से बचना
 संयु त और म वा य से परहे ज करना
 बोलने क ग त सामा य रखना
वाता लखना और तु त करना एक कला है । लेखन बहु त अ छा हो और उसे तुत
करने क शैल ठ क न हो तो अ छा लेख भी असरदार नह ं हो पाता है । इसी तरह
कभी कभी मामूल से आलेख को भी वाचक असरदार बना दे ता है । अत: लेखन और

175
वाचन दोन मलकर वाता को सजीव बनाते ह । वाताकार को ोताओं के साथ
नकटता का भाव उ प न करना पड़ता है ।
वाताओं के कई कार ह । कुछ वाताय काय म वशेष के लए तैयार क जाती ह-
जैसे युवाओं के लए, म हलाओं के लए, ब च के लए, व या थय के लए, कसान
के लए । इसके अलावा सं मरणा मक और आ मकथा मक वाताएं भी होती ह ।
ऐसी वाताओं म कथात व भी होता है जो ोताओं को बाँधता है ।

10.5.3 प रचचा

प रचचा म कसी वषय पर बहु प ीय चचा होती है । अत: प रचचा वचार- वमश
है । प रचचा का नयामक वषय और तभा गय का प रचय दे कर वषयगत कसी
एक न को एक तभागी पर उछाल दे ता है और इस तरह प रचचा आर भ हो
जाती है । य द अ य तभागी आव यक समझे तो वे बीच म ह त ेप कर अपनी
बात रख सकते ह । हां, नयामक प रचचा को आगे बढ़ाने म एक कड़ी का काय
करता है । वह दूसरा न अ य तभागी के सम रखता जाता है । इसम तीन
से पांच तभागी भाग ले सकते ह । इससे अ धक तभागी होने पर ोताओं के
मत हो जाने क आशंका रहती है ।
प रचचा म वषय से भटक जाने क गु ज
ं ाइश भी रहती है । अत: वषय को स पूणता
से तुत करने एवं वचार का सल सला बनाये रखने के लए तभा गय और
नयामक को नो स बना लेने चा हए । य द तभा गय म सरलता और अ भ यि त
म पैनापन नह ं हु आ तो प रचचा बेजान और नीरस हो जाएगी ।

10.5.4 सा हि यक रचनाएं

आकाशवाणी सा ह य के सारण को ारंभ से ह मह व दे ता रहा है । सा ह य मनु य


को सं का रत करता है और उनम उदा त चेतना का संचार करता है । यह सह है
क अ धकतर ोता ह के-फु के काय म सु नना पसंद करते ह ले कन बड़ी सं या
म ऐसे ोता भी ह जो सा हि यक रचनाएं सु नने को उ सु क रहते ह । रे डयो से मु यत:
क वता और कहानी का सारण होता है ।

10.5.4.1 कहानी

सा ह य म कहानी का जो प च लत है वैसा ह रे डयो पर भी वीकृ त है । रे डयो


कहानी म आचार सं हता का यान रखा जाता है । कहानी म व णत घटना, थान,
यि त ववादा पद न ह । यावसा यक व तु ओं के नाम आ द से भी बचा जाए
। जैसे कहानी का नायक य द कसी व तु का उपयोग करता है तो उस व तु का
नाम कसी े ड-नेम के प म न लखा जाए । चू ं क रे डयो कहानी का वण बहु सं यक
ोताओं वारा होता है और एक ह प रवार के ब चे, बूढ़े , जवान, म हलाएं एक साथ
रे डयो कहानी सु न सकते ह, अत: रे डयो कहानी म अ ल लता या उ ी त वासना
क कतई गु ज
ं ाइश नह ं होती ।

176
रे डयो कहानी सरल और सु बोध भाषा क अपे ा रखती है । कहानीकार अपनी बात
सीधे, सरल और रोचक ढं ग से कहे न क घुमा फराकर नह ं तो ोता बोधग यता
और रोचकता के अभाव म व ता के साथ तादो मय नह ं कर पाएंगे । हाँ उसम
नाटक यता अव य होनी चा हए तभी वह सु नने म रोचक हो सकेगी ।

10.5.4.2 क वता

सा ह य म क वता का मुख थान है । रे डयो उसक अ भ यि त का सश त मा यम


रहा है । सन ् 1954 के बाद जब सु म ानंदन पंत, ह रवंश राय ब चन, अ ेय, दनकर
जी और नागाजु न जैसी महान ् वभू तयां रे डयो से जुड़ीं तो सा ह य क ग रमा से
भरा क वताओं का एक सैलाब सार के प म बहा जो आज भी बहता रहता है ।
इसके साथ रे डयो समय-समय पर क वताओं के लए नए क वय को भी आमं त
करता है । का यपाठ और क व गो ठ के प म क वताओं का सारण होता है ।
गणतं दवस पर सवभाषा क व स मेलन आयोिजत कया जाता है िजसक रकॉ डग
आकाशवाणी के सभी क रले करते ह ।
ाय: दे खा जाता है क क व स मेलन म पढ़ गई क वता जो मंच पर रकॉड क
जाती है उसका बड़ा अंश स पा दत होकर ह सा रत हो पाता है । यह कारण है
क अनेक ववाद के कारण दस म से चार क वताएं ह छं टकर रे डयो म पढ़ने लायक
होती ह । सारणकता का सा ह य ान से स प न होना अपे त है ।

10.5.5 हसन

हसन या झलक हा य- यं य धान वधा है । य द रे डयो क वजनाओं को यान


म रखते हु ए हा य- यं य वाता का लेखन कया जाए तो नि चत ह यह रे डयो क
असरदार शैल है । रे डयो के लए लखे जाने वाले हा य- यं य के लए न न ल खत
बात यान दे ने यो य ह :-
 वषय ऐसा चु ना जाए िजससे कसी जा त, यि त स दाय आ द क भावनाओं
को चोट न पहु ंचे ।
 भाषा और मु हावर के योग म अ ल लता और फूहड़पन से बचा जाए
 वषय ऐसा हो, िजसका आन द समाज का वशाल वग ले सके
 उपमा और पक इस कार यवहार म लाये जाएं क उ ह सवसाधारण ज द
और अ छ तरह समझ सके
 साम यक वषय पर हा य- यं य अ धक कारगर होता है ।
झलक लेखन म कथाव तु, च र एवं संवाद का बहु त मह व है । कथा व तु के
लए लेखक को कह ं भटकना नह ं पड़ता न ह पो थय म डु ब कयां लगानी पड़ती
ह । वह तो रोजमरा के जीवन म अपने आसपास मल सकती है । समाज म आपको
पग-पग पर वदूषक मल सकते ह और उनके अटपटे कायकलाप अब भी चलते ह।

177
झलक म संवाद बड़े पैने और चु त होते ह । संवाद म हा य- यं य का पुट हो िजससे
ोताओं का भरपूर मनोरं जन हो सके । इतना सब होते हु ए भी झलक उ े य र हत
नह ं होती, वह समाज म फैल कु र तय पर चोट करती है ।

10.5.6 रे डयो पक

पक रे डयो क अपनी वधा है । पहल बार जॉन गयसन ने 1926 ई. म डा यूम


श द का योग पक के साथ कया था िजसे ह द म आलेख- पक कहा जाता है
। जॉन गयसन के अनुसार 'यह जीव त य और जी वत त य का फोटो ाफ है।'
समाचारप एवं प काओं म का शत होने वाले पक से रे डयो पक बलकुल भ न
है । यह वाता तथा नाटक से भी भ न है । वाता म सपाट बयानी होती ह, पक
म सपाट बयानी के साथ नाटक यता भी होती है । नाटक म मा नाटक यता होती
है, पक म नाटक यता के साथ सपाट बयानी होती है । पक त याधा रत होता
है, नाटक क पना-आधा रत । पक क त यपरकता ोता के तक को बाँधती है
और उसम यु त नाटक के त व संवद
े ना को ।
रे डयो पक म त य क कथा-ज र है जो ोता को बाँधती है, क तु इस कथा-त व
का योग बड़े कला मक ढं ग से कया जाना चा हए । वषय चयन तो कु छ भी हो
सकता है ।
पक क भाषा अ य त सधी हु ई, सरल सुकोमल भाव से स प न , ग रमामयी व
संगानुसार होनी चा हए । पक म व न और संगीत का बड़ा मह व है िजससे भाव
और वातावरण न मत होते ह । रे डयो पक का े व तृत है । पक आलेख
वाचन के लए ाय: दो नेरेटर लए जाते ह एक नार वर, दूसरा पु ष वर । इससे
पक म एकरसता नह ं आती तथा रोचकता बनी रहती है । ना य अंश या कसी
अनुगूिं जत वर के लए अ य आवाज का भी इ तेमाल कया जाता है ।

10.5.7 रे डयो नाटक

रे डयो नाटक सारण क एक सश त वधा है । इसके अंतगत मंचीय और सा हि यक


नाटक को रे डयो नाटक म पांतरण भी कया जा सकता है और वतं प से रे डयो
नाटक भी लखे जाते ह । दूसर वधा का सारण सरल और अ धक भावकार माना
गया है ।
रे डयो नाटक क कु छ सीमाएं भी ह । पहल सीमा यह है क वह केवल माइक पर
नभर करता है । माइक ह उसे जीवन दे ता है । दूसर सीमा यह है क यह केवल
श द को मा यम बनाता है । ोताओं को बाँधने के लए यहाँ पर य केवल वण
करने के लए श द ह । तीसर सीमा यह क रे डयो का ोता एका चत होकर नह ं
बैठता न ह कोई बैठकर उसका इ तजार करता है । अ य काय म लगे रहकर ह
ाय: ोता रे डयो सु नते ह ।
य द रे डयो क संभावनाओं पर गौर कर तो इसने थान काल आ द क सीमाएं लांघ
डाल ह । एक ह पा अनेक थान, भ न- भ न समय म संवाद बोलता हु आ तु त

178
कया जा सकता है । रे डयो नाटक अ धकतर सम या मूलक होते ह जो आज समाज
म या त कु र तय , वकृ तय का पदाफाश करते ह ।

10.6 संगीत के लए लेखन


संगीत रे डयो क सबसे सरल और लोक य वधा है । आकाशवाणी ने भारत के शा ीय संगीत
को जी वत रखने और उसे जन-जन तक पहु ंचाने म उ लेखनीय भू मका नभायी है । सु गम
संगीत और फ मी संगीत के ोता भी करोड़ क सं या म ह । आकाशवाणी के कुल सारण
समय का सबसे अ धक ह सा संगीत को सम पत है । एफ.एम. चैनल तो पूर तरह सं गीत
का ह , वशेषकर फ मी संगीत का सारण करते ह ।
संगीत, सुर और वा य का खेल है इस लए इसम लेखन क गु ज
ं ाइश बहु त कम रहती है ।
केवल संगीत के काय म क तु त और संगीत के घरान , राग या संगीतकार के प रचय
आ द के लए लेखन होता है । इसके अलावा संगीत के वशेष काय म गीतमाला, संगीत
तयो गताओं, अं या र काय म आ द के लए एंकर और तु तकता को आलेख तैयार
करने पड़ते ह या मौ खक प से तु त दे नी होती है ।

10.6.1 गीतमाला

कसी वशेष काय म म कसी खास वषय, अवसर या राग के गीत क तु त


गीतमाला कहलाती है । इस तरह के काय म रे डयो के सभी चैनल से सा रत होते
ह और ये बहु त लोक य ह य क इसम गीत बखरे हु ए न होकर एक सू म बंधे
रहते ह । इसम व भ न गीत का प रचय दे ने और उ ह पर पर जोड़ने तथा पूरे
काय म को समि वत प से एक इकाई के प म तु त करने के लए आलेख
तैयार कया जाता है । ये आलेख नैरेशन के प म भी हो सकते ह और कथा प
म भी । इसके लए संगीत के गहन ान के साथ-साथ भाषा का अ छा अ धकार
होना ज र है । ऐसे सरस आलेख म कु छ अंश ना य अंश के प म भी रहता है
। कसी वशेष भाव को चरम सीमा तक अनुभू त कराने के लए बीच बीच म फ मी
गीत सु नवाए जाते ह । ये गीत भी उसी भाव भू म पर आधा रत होते ह िजन भाव
को आलेख म परोया गया है ।
ऐसे काय म जीवन के मधुर भावप को कट करते ह, अत: इनक भाषा बड़ी सरस
और चताकषक होना ज र है । युवा वग के ोताओं म यह वधा बहु त लोक य
है ।

10.6.2 गीत भर कहानी

गीत भर कहानी व तु त: रे डयो कहानी ह है, फक केवल इसके तु तीकरण म


न हत है । रे डयो कहानी क तु त म जब ये अनुभव कया गया क कभी-कभी
ोता कु छ सी मत वषय पर कहानी सु नते-सु नते अपना मानस बो झल महसू स करने
लगते ह तो खासकर युवा मानस को इस वधा के साथ रोचकता के ढं ग से जोड़ने
का यास कया गया ।

179
गीत भर कहानी के कथानक म बीच-बीच म कसी भाव को भावी बनाने के लए
कोई फ मी गीत बजा दया जाता है । इस तरह गीत सु नवाए जाते ह और साथ
ह कथानक भी चलता रहता है । गीत के चयन म सावधानी अव य चा हए य क
भाव वशेष से गीत का गहरा संबध
ं ह । कथानक क भावभू म और गीत क भावभू म
एक ह हो िजससे भाव ोता के मन को गहराई तक छुए ।
इस काय म क भाषा बहु त मधु र और सहज अ भ यि त भर होनी चा हए । कोई
भी ोता संगीत क फुहार म भीगने के बाद नीरस आलेख क अ भ यि त वीकार
नह ं कर पाएगा । व तु त: यहां संगीत के साथ भाषा क चु नौती लेखक को वीकार
करनी पड़ती है । वा य सीधे और सरल ह कोई बात घुमा फरा कर न कह जाए,
नह ं तो ोता का भाव-तादा मय टू ट सकता है ।
इसम ना य अंश का भी योग कया जा सकता है । जैसे कथानक म दो पा क
कथा बढ़ती है तब ना य अंश के प म उन दो पा क थोड़ी सी झलक दे ने के
लए तु त कर दया जाता है ता क भाव वशेष पा और संवाद के साथ जीवंत
एवं भावी बन सक ।

10.6.3 संगीत सभाएं

आकाशवाणी क के त वावधान म समय-समय पर संगीत सभाओं का आयोजन


कया जाता है । इस आयोजन के मु यत: दो उ े य होते ह- पहला यह क ोता
रे डयो काय म से य प से जु ड़कर आन द का अनुभव करे और रे डयो के त
उसका अपन व जा त हो । दूसरा इन सभाओं म भ न- भ न आच लक सं कृ तय
का संगम होता है । दे श के भ न- भ न क से यहां कलाकार आमं त कए जाते
ह, जो े ीय भाषा म भजन, लोकगीत, गजल आ द तुत करते ह । कला और
सं कृ तय के इस सरस समागम म ोता भारत क रा य एकता का दशन करते
ह ।
ये आयोजन अवसर वशेष के अनुकूल होते ह िजसे सावनी सं या, होल संगीत सभा,
लोक भजन क संगीत सभा, सु गम संगीत सभा, शामे गजल या क वाल आ द ।
इन संगीत सभाओं का संचालन बड़े ह कला मक और सरस ढं ग से कया जाता है
ता क उपि थत ोता मं मु ध होते हु ए काय म तु त से जुड़ सक । इसके लए
व धवत आलेख तैयार कया जाता है । आर भ म काय म का प रचय और
आग तु क ोताओं का अ भन दन कया जाता है । इसके बाद संगीत सभा क
प रचया मक भू मका, अ त थ कलाकार का प रचय दया जाता है ।
येक गीत गायन से पहले गीत क भावभू म और कलाकार का प रचय दया जाता
है । बीच-बीच म संगीत तु तय और कलाकार क वशेषताएं बताते हु ए ोताओं
के साथ तादा मय बनाए रखना होता है । ऐसे आलेख के लेखन व तु तकरण के
लए संगीत क अ छ समझ और भाषा पर पकड़ क आव यकता है ।

180
10.7 उ घोषणाएं
रे डयो म उ घोषणा और काय म का अ भ न संबध
ं ह । काय म सु नने क च ोताओं
म उ घोषणा सु नकर ह जागृत होती है । उ घोषणा िजतने रोचक ढं ग से क जायेगी ोता
उतने ह सु नने के लए आकु ल हो जाएंगे । एक ह बात को अलग-अलग उ घोषक अपनी
शैल से असरदार बना दे ते ह । अत: उ घोषणा के लए अ छा वर, सधे हु ए अथपूण श द
और साफ-साफ उ चारण होना आव यक है । उ घोषणा म कु छ बात ज र होती ह जैस-े कौन
सा के है, काय म कौन सा है, समय के साथ य द कोई वशेष सूचना है । एक अ छ
उ घोषणा म सूचना, उ सु कता और रोचकता तीन गुण पाए जाते ह । उ घोषक या उ घोषणा
लेखक इन तीन बात को कु छ वा य म परो लेता है ।

10.7.1 सू चनाएं

रे डयो पर सूचनाएं नधा रत काय म के बीच म कसी भी समय सा रत कर द


जाती ह । आपने कभी-कभी रे डयो पर सु ना होगा- अगले काय म सु नने से पहले
एक सूचना सु नए । ाय: कसी न कसी काय म के बाद म एकाध मनट शेष बच
ह जाता है, इस समय का सदुपयोग मह वपूण सूचनाओं के प म होता है । ये
सू चनाएं कभी काय म संबध
ं ी होती ह तो कभी कसी वशेष घटना के संबध
ं म और
कभी खोए हु ए यि त के संबध
ं म । यद धानमं ी या रा प त का संदेश रा
के नाम सा रत होने वाला है तो सू चत कया जाएगा- आज रा आठ बजे रा
के नाम धानमं ी का संदेश सा रत कया जाएगा । एफ.एम. चैनल पर मौसम,
ै फक, पर ा प रणाम , सां कृ तक आयोजन आ द क ताजा सू चनाएं सु नाई जाती
ह ।
इन सू चनाओं म िजस बात क जानकार द जाती है, उसका प ट वणन और उ े य
सं त म लखा जाता है । आलेख क भाषा ऐसी होती है जो आम आदमी के लए
बोधग य है । कसी के से जब कोई नया काय म ार भ कया जाता है तो उसक
भी पूव सूचना ोताओं को द जाती है । ऐसी सूचनाओं म काय म का सं त प रचय
भी होता है । कभी-कभी सीधे माइक पर ह जाना होता है और ल खत आलेख तैयार
नह ं हो पाता । इसक भाषा सरल और आम बोलचाल क होनी चा हए ।

10.7.2 संदेश

वशेष अवसर पर दे श के गणमा य यि त समाज और रा को स बो धत करने


के लए अपने संदेश सा रत कया करते ह । ऐसे सारण रा य संकट या रा य
पव के अवसर पर भी कए जाते ह । ये संदेश सभी वग के लोग के लए होते
ह । आम आदमी इससे स ब होता है ।
संदेश म बात सं ेप म कारगर ढं ग से कह जाती है । संकटकाल क ि थ त म संबोधन
क भाषा भावना मक, सां वना भर , अपन व से ओत ोत होना ज र है । इसका
येय जन मन म साहस का संचार करना होता है । ले कन रा य अवसर पर संदेश

181
उ लासपूण भावना से भरे होते है । हाँ, संदेशदाता को समयानुसार संदेश क भाषा
को वर म ढालना होता है । भावनाओं को न छू पाने क ि थ त म संदेश बेजान
हो जाता है । यह काय क ठन अव य है । इसम बड़ी सावधानी क आव यकता है
। उपरो त बात को यान म रखते हु ए जब आलेख तैयार कए जाएं तो संदेशदाता
के यि त व क ग रमा को भी यान म रखना होगा ।

10.7.3 लोगन ोमो

सारण म समय का बहु त बड़ा मह व होता है । यह कारण है क अलग-अलग


काय म का समय और म नि चत होता है । समय के इस नधारण को 'चैक'
कहा जाता है । य द कसी काय म के लए दस म नट समय नधा रत होता है
तो काय म नौ म नट का रकाड कया जाता है य क उ घोषणा के लए एक
म नट छोड़ दया जाता है । फर भी पहले से रकाड कर लये काय म कभी-कभी
टे प डेक म पीड-वे रएशन होने के कारण नि चत समय से कम हो जाता है या बढ़
जाता है तब बचे हु ए समय क पू त के लए लोगन या नार का योग बहु त उपयोगी
होता है ।
जरा सो चए आप काय म सु न रहे ह और काय म के समापन क उ घोषणा के
बाद पांच दस सेक ड का पाज आये तो नि चत ह आपको यह खाल पन अखरे गा
। य द इस खाल समय को भरने के लए यूिजक, फलर का इ तेमाल कया जाए
जैसा क कभी-कभी कया जाता है तो भी वह नरथक योग है । अत: लोगन का
इ तेमाल सो े य और साथक होता है । नारा इतना सहज और बोधग य हो क सु नते
ह ोता को याद हो जाए । इसम बोल-चाल क भाषा अ धक कारगर स होती है
। एक छोटा सा नारा य द असरदार है तो ल बे भाषण से यादा अपील करे गा ।
यह कारण है क एक नारा हमार स पूण वचारधारा, योजना, उ े य आ द को य त
कर दे ता है ।
लोगन क तरह ोमो भी कभी-कभी फलर क तरह और कभी-कभी योजनाब
तर के से सा रत कए जाते ह । ोमो एक तरह का आंत रक व ापन होता है िजसम
चैनल या क के अपने कसी काय म या वयं चैनल का प रचय और वशेषताएं
चारा मक ढं ग से रकाड रहती है । इसे अथपूण श द , संगीत और व न के म ण
से रोचक और भावशाल बनाया जाता है । नजी चैनल म ोमो धड़ ले से बजाए
जाते ह । इनम यह यान रखा जाना चा हए क ये त य से परे और अ त योि तपूण
न ह ।
बोध- न -2
1. समाचार ले ख न म या- या सावधा नयां बरतना आव यक है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2. रे डयो आचार सं हता या है ?

182
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3. रे डयो नाटक के मु य त व को प ट कर ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
4. आकाशवाणी के सं गीत काय म म ले ख न के मह व पर काश डा लए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

10.8 सारांश
इस पाठ म हमने आपको रे डयो सारण के उ े य को प ट करते हु ए रे डयो क व भ न
वधाओं के लए लेखन और तु तीकरण से जु ड़े पहलु ओं क जानकार द । आकाशवाणी लोक
सारण संगठन है इस लए इसके काय म के लेखन म अनेक मयादाओं का पालन करते हु ए
कई तरह क सावधा नयां बरतनी पड़ती ह । य मा यम होने के कारण काय म क भाषा
सरल, बोधग य और तुर त समझ म आ जाने वाल होनी चा हए । यह भी बताया गया है
क समाचार लखना सबसे चु नौतीपूण काय है ।

10.9 कुछ उपयोगी पु तक


1. भारतीय इले ॉ नक मी डया - डॉ. दे वद त संह, भात काशन, द ल , 2007
2. समाचार : अवधारणा और लेखन या - सु भाष धू लया एवं आनंद धान, स पा.
भारतीय जनसंचार सं थान, नई द ल , 2004
3. रे डयो सारण - कौशल शमा, तभा त ठान, नई द ल , 2004
4. सारण प का रता - डॉ. सुरेश यादव, म य दे श ह द ं अकादमी, भोपाल, 2004

5. ाइम रपोटर - हषदे व, भारतीय जनसंचार सं थान, नई द ल , 2005
6. इले ॉ नक मी डया लेखन - ो. रमेश जैन, मालद प पि लकेश स, नई द ल , 2004

10.10अ यासाथ न
1. जनसंचार मा यम के प म रे डयो क व श टता का व लेषण क िजए ।
2. रे डयो लेखन के व वध आयाम तथा परं परा का वणन क िजए ।
3. 'रे डयो क व भ न वधाओं म समाचार लेखन सबसे चु नौतीपूण काय है' इस कथन क
समी ा क िजए ।
4. रे डयो नाटक और रे डयो पक म अंतर प ट क िजए ।
5. रे डयो लेखन म भाषा के मह व पर सं त नबंध ल खए ।
6. सा हि यक रचनाओं क रे डयो तु त पर काश डा लए ।
7. रे डयो सारण म संगीत के मह व को रे खां कत करते हु ए इसके काय म लेखन और
तु तकरण क संभावनाओं का ववेचन क िजए ।

183
इकाई-11
टे ल वजन समाचार लेखन
इकाई क परे खा
11.0 उ े य
11.1 तावना
11.2 टे ल वजन समाचार का मह व
11.3 भारत म टे ल वजन समाचार का इ तहास
11.3.1 दूरदशन समाचार
11.3.2 नजी समाचार चैनल
11.4 टे ल वजन समाचार लेखन
11.4.1 समाचार क संरचना
11.4.2 घटना म
11.4.3 च ा मकता
11.4.4 सं तता
11.4.5 भाषा क सरलता
11.4.6 अनुवाद
11.5 टे ल वजन समाचार बुले टन
11.5.1 व प और या
11.5.2 म नधारण
11.5.3 मु य समाचार
11.5.4 लैश
11.5.5 पूरक समाचार
11.6 टे ल वजन समाचार के या मक त व
11.6.1 मू वी च
11.6.2 लाइ ेर /फाइल च
11.6.3 ि टल फोटो
11.6.4 सी.जी. (करै टर जेनरे शन)
11.6.5 ा फ स और एनीमेशन
11.6.6 लॉगो
11.7 व या मक त व
11.7.1 साउं ड बाइट
11.7.2 वायसका ट
11.7.3 लाइव ड पैच
11.7.4 फोन-इन
11.7.5 पीस टू कैमरा
184
11.8 सारांश
11.9 उपयोगी पु तक
11.10 अ यासाथ न

11.0 उ े य
इस पाठ को पढ़ने के बाद आप :
 आज के युग म टे ल वजन समाचार के मह व और भारत म टे ल वजन समाचार के इ तहास
क जानकार पा सकगे।
 टे ल वजन समाचार लेखन क या और उसके व भ न प को समझ सकगे ।
 टे ल वजन समाचार क संरचना और उसक बु नयाद वशेषताओं के बारे म जान सकगे ।
 समाचार बुले टन के व प क जानकार पा सकगे ।
 टे ल वजन समाचार के च ा मक और व या मक त व को समझ सकगे ।
 टे ल वजन समाचार क मौजू दा चु नौ तय के बारे म जान सकगे ।

11.1 तावना
समूचे व व म संचार मा यम के े म अभू तपूव ग त और ां त के इस दौर म सू चना
एक शि त के प म उभर है । जनसंचार मा यम सम सामािजक और आ थक वकास
के अ नवाय साधन और मापदं ड बन चुके ह । जनसंचार मा यम के प म सबसे पहले टं
मी डया यानी प -प काओं का पदापण हु आ, ले कन पछल सद के पूवाध म इले ॉ नक
मी डया के उदय के उपरांत दु नया कर ब आ गई है । उप ह संचार णाल ने तो टे ल वजन
और रे डयो संदेश को एकदम सवसु लभ बना दया है । इंटरनेट ने ान और सूचना णाल
का व प ह बदल दया है । टे ल वजन य तो मु यतया मनोरं जन का मा यम रहा है कं तु
सू चना और समाचार के मा यम के प म भी इसक भू मका कम उपयोगी नह ं है । 24 घंटे
के समाचार चैनल तो कसी भी मह वपूण घटना के न केवल त य को बि क उससे जु ड़े अ य
पहलु ओं तथा उसके अतीत के साथ-साथ उसके संभा वत प रणाम के अनुमान भी हमारे सामने
त काल तुत कर दे ते ह । आतंकवाद घटना हो या कसी उप ह या अंत र यान को छोड़ना,
समु के गभ म होने वाला पनडु बी यु हो या आकाश क ऊँचाइय म हो रहा हवाई यु ,
संकट म फंसे कसी यि त या ब चे क सहायता का अ भयान हो अथवा ू रता के घृ णत
य ये सभी त य स च प म त काल हम तक पहु ंच जाते ह । टे ल वजन समाचार सारण
इतना आगे बढ़ आया है क हमारे दे श म भी, जहाँ टे ल वजन और टे ल वजन समाचार क
या ा इतनी लंबी नह ं है, समाचार के व प, ामा णकता और सामािजक औ च य पर न
उठने लगे ह । नजी समाचार चैनल के बीच बढ़ती होड़ के कारण समाचार भी बकाऊ व तु
का प लेता जा रहा है । हंद के अ धकतर ट .वी. समाचार चैनल पर व ापन लोलु पता
और धन कमाने तथा एक दूसरे से आगे बढ़ने क अंधी होड़ म समाचार क मयादाओं का
उ लंघन करने के आरोप लगने लगे ह । यहां तक क उनके नयं ण और नयमन के लए
कसी तरह क कानूनी या आंत रक नयमन यव था तक ह मांग होने लगी है । यह ि थ त
टे ल वजन समाचार क लोक यता और मह व क भी प रचायक है । इस लए टे ल वजन

185
समाचार के लेखन और तु त के सै ां तक और यावहा रक प का गहन ववेचन और
व लेषण आव यक हो गया है ।

11.2 टे ल वजन समाचार का मह व


आपने पढ़ा क टे ल वजन आज के युग म सूचना और समाचार का एक सश त मा यम है
। आप यह भी कह सकते ह क टे ल वजन सूचना का सबसे अ धक भावशाल मा यम है
। इसका सबसे बड़ा कारण यह है क य और य मा यम होने के कारण भारत जैसे दे श
म, जहां अब भी करोड़ लोग नर र या कम पढ़े - लखे ह, यह मा यम सबसे अ धक भावकार
है । इसे दे खने के लए श त या सा र होने क आव यकता नह ं है । फर हर खबर च
और शाि दक यौरे के साथ उपल य होने के कारण इसे समझना सरल होता है । साथ ह
टे ल वजन समाचार रे डयो से सा रत या अखबार म छपी खबर क तुलना म अ धक रोचक
और आकषक होते ह । टे ल वजन स नल उप ह के ज रए ा त होने से इनक गुणव ता
काफ अ छ रहती है । उप ह संचार णाल क कृ पा से व व के कसी भी ह से म होने
वाल घटना के च ण म उपल ध हो जाते ह । भारत म टे ल वजन के अ धकतर चैनल
नजी सारक या कंप नय वारा संचा लत होते ह, इस लए इनके समाचार का चयन और
तु तीकरण दूरदशन से भ न है । केबल नेटवक और डायरे ट दू होम यानी डी.ट .एच.
टे नोलोजी क बदौलत उपभो ता चाहे िजतने चैनल अपने ट .वी. सैट पर दे ख सकते ह िजससे
दशक के पास वक प मौजू द ह । इंटरनेट पर उपल ध हो जाने से कसी भी चैनल के समाचार
जब चाहे दे ख-े सु ने जा सकते ह । इन सभी पहलुओं के चलते टे ल वजन समाचार रे डयो और
अखबार के मुकाबले अ धक रोचक, आकषक और भावशाल ह तथा अ धक व रत प से
दशक तक पहु ंचते ह ।

11.3 भारत म टे ल वजन समाचार का इ तहास


एक मा यम के प म टे ल वजन का अवतरण अमर का और यूरोप म 20वीं शता द के पूवाध
म हो गया था ले कन भारत म टे ल वजन क शु आत बहु त छोटे तर पर 15 सतंबर 1959
को हु ई । उस समय केवल एक घंटे का काय म द ल और उसके आसपास के े के लए
सा रत कया जाता था और टे ल वजन आकाशवाणी का ह एक अंग था । दूरदशन के नाम
से अलग से टे ल वजन संगठन 1976 म बना । टे ल वजन समाचार के सारण क शु आत
1965 म हु ई । तब रात को केवल 10 मनट का एक हंद बुले टन तु त कया जाता था,
जो आकाशवाणी म ह तैयार होता था । 1972 म मु बई और उसके बाद कोलकाता तथा अ य
शहर म टे ल वजन के खु लने से े ीय भाषाओं म भी समाचार दए जाने लगे । दूरदशन
सू चना और सारण मं ालय के अंग के प म काम करता है, इस लए इस पर आरोप लगता
रहा है क इसम केवल वह समाचार दखाए जाते ह जो शासक प या सरकार को पसंद ह
। समय-समय पर इसे नगम का प दे कर वाय त बनाने के भी यास हु ए क तु मोटे तौर
पर दूरदशन सरकार का ह मा यम बना रहा । 1991 म दे श म आ थक सुधार तथा उदार करण
क हवा चल तो टे ल वजन के े म भी नजीकरण आया और कु छ संगठन को दूरदशन
पर अपने समाचार बुले टन तथा सम साम यक वषय के काय म सा रत करने क अनुम त

186
द गई । केबल ट .वी. आने के बाद नजी संगठन को भी अपने चैनल चलाने और समाचार
सा रत करने क छूट मल । 1995 के बाद अलग से समाचार चैनल भी काम करने लगे
। इस समय दूरदशन के समाचार चैनल और अनेक े ीय समाचार इकाइय के साथ-साथ
लगभग 75 नजी समाचार चैनल चल रहे ह, जो हंद , अं ेजी और े ीय भाषाओं म खबर
और समाचार पर आधा रत काय म सा रत कर रहे ह ।

11.3.1 दूरदशन समाचार

आपने पढ़ा क दूरदशन के समाचार का सारण 1965 म ारं भ हुआ । उस समय


10 मनट का केवल एक समाचार बुले टन हंद म सा रत होता था । तब समाचार
म य साम ी बहु त कम रहती थी । असल म ट.वी. बुले टन पूर तरह रे डयो
बुले टन क ह तरह बनाए जाते थे और िजन समाचार के बारे म वजुअल यानी
फ म ि ल पंग उपल ध होती थी, उनके साथ फ म संपा दत करके दखा द जाती
थी । आज क तरह साउं ड बाइड, वायसका ट तथा अ य सु वधाएं नह ं थीं । समाचार
वाचक बुले टन पढ़ता था और दो-तीन समाचार के लए फ म या ि टल फोटो दखा
दए जाते थे । दूरदशन समाचार म वा त वक नखार 1982 म आया जब टे ल वजन
रं गीन हो गया और रा य चैनल का सू पात हु आ । तब द ल से हंद और अं ज
े ी
म 20-20 मनट के रा य समाचार बुले टन का सारण शु हु आ, िज ह अ य
के भी सा रत करते थे । कुछ क से ादे शक समाचार भी सा रत होने लगे
। यह भारत म ट .वी. समाचार क पहल अंगड़ाई थी । तभी टे ल वजन समाचार
बुले टन का व प भी बदला और उसम रोचकता, व वधता और गंभीरता का समावेश
हु आ । 1987 तक दूरदशन से रात को ह समाचार सा रत कए जाते थे । 23
फरवर 1987 को ातःकाल न रा य बुले टन और 26 जनवर 1989 को दोपहर
का समाचार बुले टन शु हो गया । ये दोन बुले टन हंद और अं ेजी म थे और
इनक अव ध 10 मनट थी । इनके अलावा संसद के अ धवेशन के दन म संसद
समाचार भी सा रत कए जाने लगे ।
3 नव बर 2003 को दूरदशन से 24 घंटे के समाचार चैनल का शुभारंभ हो जाने
के बाद से सु बह से शाम तक 5, 10, 15 और 30 मनट के बुले टन सा रत होते
रहते ह । इसके अलावा आ थक समाचार, खेल समाचार, संसद समाचार तथा
कभी-कभी वशेष बुले टन और वाताएं भी सा रत क जाती ह । बीच-बीच म
साम यक वषय पर चचाओं और भटवाताओं का भी सारण होता रहता है । इस
कार 1965 से 1981 तक दूरदशन समाचार का नि य काल था तो 1982 से
1995 तक का समय उसका स य या वण युग था ।

11.3.2 नजी समाचार चैनल

आपने पढ़ा क पछल सद के अं तम दशक म उदार करण क या के सू पात


के बाद अथ यव था क तरह जनसंचार के े म भी खुलापन और उदार वातावरण

187
छाने लगा । इसका भाव समाचार सारण पर भी पड़ा । जैसा क आपने पढ़ा ारं भ
म नजी सारक दूरदशन से ह अपने समाचार काय म सा रत करते थे । आज
के 'एन डी ट वी’ और 'आज तक' चैनल ने अपनी आख दूरदशन क गोद म ह
खोल थीं । धीरे -धीरे अ य उप ह चैनल से आं शक प से समाचार का सारण
होने लगा । बीसवीं सद के अं तम वष म वतं समाचार चैनल अि त व म आ
गए जो केवल खबर और समाचार आधा रत काय म के सारण को सम पत ह
। इससे हंद समाचार क लोक यता बढ़ने लगी और समाचार और समाचार
बुले टन के व प, उ े य और संरचना म तेजी से बदलाव आ गया । दूरदशन के
समाचार के व प म भी तदनु प प रवतन आया कं तु उसे वो आजाद और खु लापन
उपल य नह ं है, जो नजी उप ह चैनल के पास है । दूरदशन य क लोक सारक
क भू मका भी नभाता है इस लए उसे सनसनीखेज और उ तेजक समाचार से बचना
पड़ता है और अपने सामािजक, संवध
ै ा नक और राजनी तक सरोकार क भी चंता
करनी पड़ती है ।
दूसर ओर तकनीक और तु तीकरण क े ठ शै लयां अपनाने के बावजूद 75 से
अ धक उप ह ट .वी. समाचार चैनल अपनी ोफेशनल िज मेदा रय और मयादाओं
क उपे ा करते हु ए केवल शहर और संप न वग के हत और च के अनु प
समाचार सा रत करने लगे ह और समाचार संगठन के प म अपने दा य व नभाने
क राह से भटक गए ह । यह ि थ त आदश समाचार सारण क ि ट से सोचनीय
है । ये चैनल वा त वक समाचार चैनल न रहकर ट .आर.पी. बढ़ाने के उ े य से
नकारा मक, मनोरंजक, फूहड़ और स ते काय म के सारण पर उतर आए ह ।
ये समाचार के नाम पर तं -मं और जादू-टोने क खबर, पा रवा रक कलह के क से,
लतीफे-चुटकुले और फ मी क से-कहा नय व अधन न व फूहड़ नाच-गान पर
आधा रत काय म परोसकर समाचार क ग रमा गरा रहे ह ।
बोध न - 1
1. टे ल वजन समाचार का या मह व है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………...………………………………………………
2. भारत म टे ल वजन समाचार क या ा का सं त यौरा द िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………… .....…
3. दू र दशन और नजी चै न ल के समाचार म या अं त र है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………………………………………………… ..…

188
11.4 टे ल वजन समाचार लेखन
आपने पढ़ा क टे ल वजन मा यम के अखबार और रे डयो से भ न होने के कारण इसके
समाचार का व प और संरचना भी इन दोन मा यम के समाचार से भ न होती है । य
मा यम होने के चलते जहां इसम श द क भू मका अपे ाकृ त कम है, वह ं भाषा को सरल
और सु बोध रखना आव यक है, य क इसे नर र और अ प श त लोग भी दे खते-सु नते
ह । समाचार का मु य ोत संवाद एज सयां ह, जो ाय: अखबार क आव यकता को यान
म रखकर समाचार तैयार करती ह । इन समाचार को टे ल वजन पर सारण यो य बनाने
के लए इनका यापक संपादन कया जाता है और इ ह उपल ध च और व न साम ी
के अनु प ढाला जाता है ।
यहां यह प ट कर दे ना ज र है क टे ल वजन के लए समाचार लेखन से ता पय केवल
आलेख लखने से नह ,ं बि क समू चा समाचार यानी यूज आइटम तैयार करने से है । हम
इसे समाचार लेखन क बजाय समाचार रचना भी कह सकते ह । इसके अंग ह आलेख, यानी
भाषा, च और व न । इन तीन म साथक और रोचक सम वय और संतल
ु न ह टे ल वजन
समाचार का सार है । यह ं आकर टे ल वजन समाचार संपादन क कला सामा य समाचार
संपादन से भ न हो जाती है ।

11.4.1 समाचार क संरचना

जैसा क हम ऊपर बता आए ह क वह ं संपादक या प कार टे ल वजन के लए सफल


संवाद रचना कर सकते ह, िज ह भाषा, शैल पर अ धकार के साथ-साथ उपल ध
य साम ी तथा त य क मब ता क सै ां तक जानकार , यावहा रक अनुभव
एवं आ म व वास होगा । आप जो कुछ च के मा यम से दखाना चाहते ह, वह
आपको श द के मा यम से कहना भी होगा । समाचार का आमु ख घटना के मवार
यौरे तथा अ य संबं धत जानकार को च के म के मुता बक लखा जाता है
। इसी कार च को समाचार क मांग के हसाब से संपा दत कया जाता है । च
और श द दोन म िजतना अ धक सम वय होगा, समाचार उतना ह भावशाल
होगा।
टे ल वजन म कसी घटना के पूरे समाचार को 'पैकेज' कहा जाता है । इससे आशय
यह है क इस पैकेज म सबसे पहले तो एंकर समाचार को ' क
ै ' करता या करती
है । इसके बाद वाइस ओवर के साथ वजुअ स आते ह, लोग भी बाइ स होती है
और संवाददाता वयं घटना थल से रपोट दे ता है िजसे पीस-टू -कैमरा कहते ह ।

11.4.2 घटना म

अखबार या रे डयो के लये समाचार लखते समय यह सु नि चत करना आव यक


नह ं होता क कसी घटना को उसी म म ल पब कया जाए िजस म म वह
घट है । परंतु ट .वी. के लए समाचार बनाते समय ऐसा करना सामा यतया आव यक
होता है । बाद क बात को पहले दखाना अजीब लगता है । उदाहरण के लए कसी
189
क मृ यु हो जाने पर अं तम सं कार को पहले तथा पा थव शर र पर पु प मालाय
चढ़ाने का य बाद म नह ं दखाया जा सकता । इसी कार कसी नेता या मं ी
को भाषण दे ते हु ए पहले दखाकर उसे काय म के उ घाटन के लए द प जव लत
करते हु ए बाद म दखाना अटपटा लगेगा । भाव यह है क समाचार का वणन मश:
होता है, जब क रे डयो, अखबार म मह व के अनुसार घटना का म रखा जा सकता
है ।
सं ेप म कह सकते ह टे ल वजन समाचार ' या हु आ', 'कैसे हु आ' और 'आगे या
होने जा रहा है' यह टे ल वजन समाचार क संरचना है ।

11.4.3 च ा मकता

यह वशेषता ट .वी. समाचार को अ य मा यम से एकदम पृथक व प दान करती


है । जहां अ य मा यम के समाचार म आव यक सूचनाओं को उनके मह व के आधार
पर शा मल करना आव यक है, वहां ट .वी समाचार म श द का कम से कम इ तेमाल
करके ' च को बोलने' का अवसर दे ना अ छ संपादन कला का ल ण है । इस लए
समाचार लखते समय उसके उन अंश को अ धक उजागर कया जाता है, िजनम
च का इ तेमाल करने क संभावनाएं ह । टे ल वजन समाचार म च का मु ख
थान है, जब क श द सहायक भू मका नभाते ह । य द कसी रपोट या मा भाषण
आ द का ऐसा समाचार हो िजसके बारे म कोई भावशाल फ म अथवा कैमरा कवरे ज
उपल ध न हो तो उस घटना क पृ ठभू म से संबं धत कसी पुरानी फ म का
इ तेमाल करके शु क समाचार को च मय बना दया जाता है । यह नह ं, जब कसी
घटना का च त काल उपल ध न हो सके तो उस यि त या घटना' का कोई आकाइव
च दखाकर उसे च ा मकता दान क जा सकती है । उदाहरण के लए ऊजा से
जु ड़े स मेलन का समाचार दखाते हु ए ऊजा के उ पादन, वतरण तथा उपयोग से
संबं धत च दखाए जा सकते ह । इ ह फाइल या लाइ रे च भी कहा जाता है।

11.4.4 सं तता

जैसा क ऊपर बताया गया है टे ल वजन के समाचार म च बोलते ह, अत: समाचार


के आलेख एकदम सं त होने चा हये, य क अ धक श द कभी-कभी च ा मक
अ भ यि त म बाधक स होने लगते ह । घटना का व तृत ववरण दे ना आव यक
नह ं है य क दशक पूर घटना को च के प म वयं ह दे खकर सब कु छ समझ
लेता है । कभी-कभी केवल एक-दो वा य के आलेख और समाचार से संबं धत
वायसका ट और साउं डबाइट क तु त से पूण समाचार दशक तक पहु ंचाया जा
सकता है । उदाहरण के लए वतं ता दवस पर धानमं ी के एक घंटे का भाषण
केवल 10-15 वा य के आलेख के मा यम से सा रत हो सकता है य क हर वा य
के बाद हम उनका वषय से जु ड़ा साउं डबाइट यानी उनके भाषण का अंश शा मल
कर सकते ह । साथ ह समारोह के च जैसे क लाल कले क ाचीर, उपि थत

190
जनसमू ह, मह वपूण यि त या भाषण के वषय से संबं धत फाइल च दखाकर
समाचार को रोचक और भावशाल बनाया जा सकता है । आलेख को सं त रखने
क मता अ छे संपादक का अ नवाय गुण है ।

11.4.5 भाषा क सरलता

जैसा क आप पढ़ चु के ह क भाषा क सरलता ट .वी. समाचार का आव यक गुण


है य क हमारे दे श म इसके दशक , खासकर हंद समाचार के दशक म कम
पढे - लखे लोग भी शा मल ह । भाषा का ल खत या मु त प बदलकर उसे मौ खक
यानी पोकन प दे ना होता है । जैसा क समाचार क संरचना अनुभाग म भी बताया
गया है क च अपने आप बोलता है । अत: कम से कम श द म अ धक से अ धक
जानकार य त करने क कला ह अ छे ट .वी. समाचार संपादक क मु य वशेषता
है । ट .वी. समाचार क भाषा क कुछ मु य बात इस कार ह :-
 वा य सरल और सं त होने चा हये ।
 यास यह कया जाये क एक वा य म एक ह बात कह जाए ।
 ज टल वा य का यभासंभव कम से कम योग करना वांछनीय है ।
 बोलचाल के श द तथा मुहावरे योग कए जाने चा हए ता क सभी तर व वग
के लोग समझ सक ।
 ह द समाचार तैयार करते हु ए अं ज
े ी के च लत श द , यथा- टे शन,
इंजी नयर, कू ल, टे ल फोन, बस, कार, प सल, कापी, पैन, रे ल, क यूटर तथा
इसी कार के अ य श द व अ य भारतीय भाषाओं, वशेषकर उदू के सहज
योग म आने वाले श द को अपनाने म संकोच नह ं करना चा हए ।
 िजन श द के उ चारण के लए वाचक को ाणायाम करना पड़े, उनक बजाय
उनके सरल वैकि पक श द का योग करना बेहतर है ।
 च क सा, इंजी नयर , उ योग तथा अ य व श ट यवसाय से संबं धत
तकनीक अं ेजी श द के अ च लत क ठन ह द पयाय इ तेमाल करने के लोभ
का संवरण करना चा हए ।
 श द म व वधता रहनी चा हये । एक ह समाचार म कसी एक श द का बार-बार
योग अखरता है । कोई नाम भी बार-बार नह ं बोला जाना चा हए ।
 समाचार लख लेने के प चात ् य द समय हो तो उसे दोबारा पढ़कर भाषा को
प रमािजत करना चा हए ।
 समाचार लखते हु ए नाम , सं याओं, थान , त थय , पदनाम क वशेष प
से जांच कर लेनी चा हए ।

11.4.6 अनुवाद

ह द तथा अ य भारतीय भाषाओं क प का रता क एक ववशता यह है क उसे


अनुवाद का काफ आ य लेना पड़ता है । टे ल वजन के समाचार ाय: ज द म तैयार
कए जाते ह । अत: अनुवाद के बंधन का दबाव इन पर अ धक होता है । फर भी

191
य द शाि दक अनुवाद से बचते हु ए भावानुवाद पर बल दया जाए तो ज टलता एवं
कृ मता से कुछ हद तक मु ि त पाई जा सकती है । अं ज
े ी क वा य रचना ज टल
है और उसम एक ह वा य म योजक श द क सहायता से कई बात शा मल कर
ल जाती ह । इस कार के वा य को दो या तीन लघु और सरल वा य म तोड़
कर लखा जाना चा हए । इस कार अं ेजी के मुहावर को य का य ह द म
पांत रत कर दे ने से भाषा क वाभा वकता पर आंच आती है । कं तु ऐसा करते
समय च क अनु पता और समय सीमा का यान भी रखना आव यक है । नजी
समाचार चैनल क भाषा दूरदशन समाचार क भाषा के मु काबले अ धक सरल, सु बोध
और लचील होती है । इन चैनल म आम बोलचाल क भाषा इ तेमाल होती है ।
अं ेजी श द और वा य तक का खु लकर योग कया जाता है । कु छ आलोचक
क शकायत है नजी समाचार चैनल समाचार के व प के साथ-साथ समाचार क
भाषा को भी दू षत कर रहे ह । ले कन समाचार क भाषा िजतनी सरल व लचील
होगी, समाचार उतने ह आकषक और ा य ह गे ।

11.5 टे ल वजन समाचार बु ले टन


कोई भी समाचार अकेले या वतं प से तु त नह ं कया जाता । समाचार 5, 10, 15
या 30 मनट के बुले टन के अंत गत ह सा रत होते ह । अनेक समाचार का गुलद ता ह
बुले टन कहलाता है । िजस तरह टे ल वजन समाचार क रचना एक कार क व श टता क
मांग करती है, उसी कार समाचार बुले टन के संपादन, सारण के लए व श ट कला और
नपुणता क आव यकता होती है । समाचार बुले टन अपने आप म एक इकाई होनी चा हए
िजसम उस समय तक के सभी रं ग व कार के समाचार को सि म लत कया जाना चा हए
। असल म ट .वी. समाचार बुले टन के व प म तेजी से बदलाव आता जा रहा है । साथ
ह संपादक क अवधारणा भी धू मल होती जा रह है । अलग-अलग समाचार चैनल अपने
बुले टन के रोचक और आकषक, नाम रखकर उनके लए अलग-अलग या, अपना रहे
ह । हम यहां समाचार बुले टन या समाचार काय म के मु य संचालक क ि ट से एक
परं परागत या का यौरा दे रहे ह । व रत प रवतन के दौर म कोई नि चत फारमेट
अपनाना अब संभव नह ं रह गया है ।

11.5.1 व प और या

बुले टन संपादक का सबसे पहला काम है उपल ध और अपे त समाचार तथा


उपल ध च ा मक साम ी यानी फ म , कैमरा कवरे ज आ द और संभा वत साम ी
को यान म रखते हु ए अपने बुले टन क परे खा तैयार करना । वह यह भी दे खता
है क पछले दन और उससे पछले बुले टन म या- या सा रत हो चु का है । यह
बुले टन म शा मल कये जाने वाले समाचार के मह व के अनुसार उनका म
नधा रत करता है और उसी के अनु प च ा मक और व या मक साम ी का म
तय करता है । संपादक च ा मक साम ी दे खने के बाद उसम समाचार के मुता बक
कांट-छांट यानी संपादन करने का परामश दे ता है और यह भी संकेत दे ता है क

192
समाचार वशेष के लए कतनी अव ध के च या अ य साम ी अपे त है । बुले टन
का तु तकता यानी ो यूसर, संपादक के परामश के अनुसार च का संपादन करता
है । संपादक च के अनुसार समाचार लखता है तथा पृ ठ सं या अं कत करके
समाचार वाचक या एंकर को दे ता है । अब तो संपादक वयं एंकर भी बन रहे ह
। यह सारा काम क यूटर पर ह होता है । क यूटर से ह टे ल ो पटर क मदद
से एंकर समाचार पढ़ता है । हर समाचार पर आव यक संकेत या नदश अं कत रहते
ह । इसके अलावा जब बुले टन पढ़ने वाले दो यि त ह तो येक पृ ठ पर एंकर
या वाचक का नाम भी अं कत कया जाता है । क यूटर येक आइटम क अव ध
वत: सू चत कर दे ता है िजससे बुले टन क नि चत अव ध के अनुसार ह आइटम
तैयार करना सरल रहता है । सारण के समय तु तकता क मु य भू मका रहती
है । वह पैनल पर बैठकर माइक से टू डयो म लोर मैनज
े र के मा यम से समाचार
वाचक /एंकर , कैमरामैन तथा अ य य/ व न साम ी के दशन के संबध
ं म कमांड
दे ता है ।

11.5.2 म नधारण

य तो बुले टन म समाचार का म नधारण उनके मह व के अनुसार कया जाता


है क तु य द सभी समाचार च मय न ह तो यह यान रखा जाता है क एक साथ
कई शु क समाचार लगातार न रखे जाएं, बि क च मय समाचार के बीच-बीच म
उ ह रखा जाये । यह इस लए कया जाता है ता क शु क समाचार अ धक दे र तक
लगातार सा रत होने से बुले टन अ चकर न बन जाए । जहां तक समाचार के वषय
के अनुसार म का न है , यह अब हर चैनल अलग-अलग आधार पर तय करता
है ।
बुले टन को नधा रत समय से अ धक चलाना यानी 'ओवर कैर ' अथवा समय से
पहले समा त करना यानी 'अंडर कैर ' करना समाचार संपादक का दोष माना जाता
है । पर तु कई बार बीच म कसी मह वपूण 'गैर च मय' समाचार को लेना अ यंत
आव यक हो जाता है । इसे दे खते हु ए बुले टन के अंत म ाय: कम मह वपूण
समाचार को रखा जाता है ता क य द उ ह न पढ़ा जाये अथात ् वे ' ाउड आउट'
हो जाएं तो वशेष अंतर न पड़े । समाचार के सारण के दौरान भी क यूटर पर
संपादक म बदल सकता है या कोई समाचार ऐड या डल ट कर सकता है । यह
बात च और व न पर भी लागू होती है ।

11.5.3 मु य समाचार (हे ड लाइन)

बुले टन अथवा समाचार काय म के ारं भ तथा अंत म उसके मु ख समाचार दए


जाते ह । य य प ये सबसे पहले तु त कए जाते ह क तु इ ह तैयार करने का
काम आमतौर पर बुले टन पूरा होने से कु छ समय पहले कया जाता है ता क सभी
उपल ध समाचार म से मु य समाचार का चयन कया जा सके । मु य समाचार
को अ त सं त, चु त और सु बोध बनाया जाता है । कसी बुले टन म तीन से आठ

193
तक मु य समाचार बनाने क परं परा है । बजट बुले टन जैसे वशेष समाचार बुले टन
म इससे अ धक मु य समाचार भी रखे जाते ह । य द कोई मह वपूण समाचार
बुले टन के सारण के दौरान ा त होने पर लैश के प म शा मल कया जाता है
तो उसे अंत म दोबारा पढ़े जाने वाले मु य समाचार म उसके मह व के अनुसार
म पर रखकर पढ़ाया जाता है । कभी-कभी यह नया समाचार अंत म दुबारा पढ़े
जाने वाले मु य समाचार का 'ल ड' समाचार भी बन जाता है । मु य समाचार के
साथ संबं धत च भी दए जाने चा हए । ये आमतौर पर रकॉड कर लए जाते ह
ता क आलेख और च का सम वय भल कार हो जाए ।

11.5.4 लैश

जब बुले टन का सारण ारंभ हो जाने के बाद कोई ऐसा मह वपूण समाचार आ


जाता है जो पहले दए गए कसी समाचार क अगल कड़ी है या बुले टन म सा रत
हो चुके समाचार का खंडन करता है तो उसे 'लैश’ या 'अभी-अभी मले समाचार' के
प म बुले टन म थान दया जाता है ता क ोताओं/दशक को मालू म हो जाए क
यह समाचार बाद म आया है । इसके अलावा कोई नया अ त मह वपूण समाचार
आने पर भी उसे लैश के प म सा रत कया जा सकता है ।

11.5.5 पूरक समाचार

टे ल वजन के समाचार संपादक पर समय क पाबंद क तलवार हमेशा लटक रहती


है । 5, 10, 15 और 30 मनट क नि चत अव ध के बुले टन के लए उसे सभी
समाचार नाप-तोल कर बनाने होते ह । कभी-कभी तकनीक कारण से च न चल
पाने अथवा णाल के असफल हो जाने से नधा रत समय से पहले बुले टन पूरा
हो जाने क ि थ त बन जाती है । ऐसी हालत से नपटने के उ े य से पूरक समाचार
तैयार रखना उ चत रहता है । दो या तीन ऐसे समाचार, जो अपे ाकृ त कम मह वपूण
ह वैकि पक उपयोग के लए रन डाउन या म म शा मल रखने चा हये । इ ह पूरक
आइटम कहा जाता है ।
बोध- न -2
1. टे ल वजन समाचार ले ख न क या का वणन क िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………………………..……………….……………
2. टे ल वजन समाचार ले ख न क मु य वशे ष ताएं या ह ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………..…………
3. ट .वी. समाचार बु ले टन म मु य समाचार और म नधारण का या मह व है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………..…….…………

194
4. समाचार के आले ख क भाषा कै सी होनी चा हए ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………………

11.6 टे ल वजन समाचार के या मक त व


ऊपर प ट कया गया है क च ा मकता या या मकता टे ल वजन समाचार का ाण है
। यह वह त व है जो ट .वी. समाचार को व श ट और अ य मा यम के समाचार से भ न
तथा अ धक रोचक व भावकार बनाता है । यह या मकता कई साधन से लाई जा सकती
है ।

11.6.1 मू वी च

टे ल वजन समाचार का सबसे आव यक व मह वपूण त व है मू वी फोटो ाफ । यह


सजीव और थल च पूर घटना को व वसनीय और ामा णक प से दशक के
स मु ख पेश कर दे ते ह । इनम घटना के थान, यि त, आस-पास का माहौल सभी
कु छ य तुत हो जाता है । समाचार क आव यकता, अव ध आ द के अनु प
इनका संपादन कया जाता है । इन च म मौके क व नयां, संवाद और संबं धत
प से अलग से लए गए सा ा कार भी शा मल रहते ह िजससे ट .वी. समाचार
अखबार के समाचार क तुलना म अ धक व वसनीय और सह लगते ह ।

11.6.2 लाइ ेर /फाइल च

जैसा क आपने पहले पढ़ा क समाचार को च ा मक बनाने के लए फाइल च


का भी आ य लया जाता है । येक ट .वी. समाचार मा यम म एक फ म लाइ रे
होती है िजसम व भ न वषय , मु ख यि तय , सं थाओं आ द से संबं धत मू वी
च का सं ह, वी.सी.आर, सीडी., डी.वी.डी. आ द के प म कया जाता है । ताजा
घटना के मू वी च उपल ध न हो पाने क ि थ त म और घटना क पृ ठभू म तु त
करने के उ े य से इन लाइ रे च को दखाया जाता है िजससे दशक के सामने
यह प ट हो जाता है क इससे पहले कब-कब और कस कार घटना घट चुक
है । उदाहरण के लए रे ल-दुघटना या आतंकवाद हमला होने पर पछल घटनाओं
का यौरा दे ते हु ए फाइल च दखाए जा सकते ह । क तु ट.वी. न पर यह
संकेत दे ना आव यक है क ये च पुराने ह, नह ं तो समाचार क व वसनीयता
और चैनल क छ व आहत होगी ।

11.6.3 ि टल फोटो

कसी घटना क मू वी फोटो ाफ त काल उपल ध न हो पाने या उसक गुणव ता


सह न होने क ि थ त म उस अवसर पर खींचे गए ि टल च दखाना उपयोगी
होता है । ये च एक या उससे अ धक हो सकते ह । घटना के वकास- म के अनुसार
च बदल कर या कोलाज प म दखाए जा सकते ह । कसी यि त के बारे म

195
कोई समाचार दे ते हु ए उस यि त का च न पर आने से समाचार क
सं ेषणीयता बढ़ जाती है । यि त क कसी उपलि ध, बयान, मृ यु आ द क खबर
दे ते हु ए भी इन च का उपयोग कया जाता है । इसके अ तर त भवन जैसे क
संसद भवन, उ चतम यायालय, वधानसभा भवन, नवाचन आयोग आ द के ि टल
च से उनसे संबं धत समाचार को ासं गकता दान क जाती है । ि टल च
को इंटरनेट या अ य ोत से डाउन लोड करके अपने क यूटर म संक लत कर लया
जाता है ।

11.6.4 सीजी (कैरे टर जनरे शन)

इस तकनीक म समाचार के मह वपूण अंश को, वशेषकर सं याओं व नाम को न


पर सु पर कया जाता है । कई बार दशक आकड़ को यान से नह ं सु न सकता या
मत हो सकता है । इसी लए जब वे सु नने के साथ-साथ उसे ल खत और अं कत
ु ी हो जाती है । आ थक समाचार ,
प म दे खते भी ह तो उस अंश क सं ेषणीयता दुगन
खेल के कोर, चु नाव और सदन म मत वभाजन के समय व भ न प क ि थत
को दशाने के लए कैरे टर जेनरे शन यानी सी.जी. तकनीक का पया त इ तेमाल कया
जाता है । यह तकनीक क यूटर कृ त है । इस तकनीक क एक मह वपूण उपयो गता
यह भी है क जब कोई यि त कसी भ न भाषा म बोल रहा हो तो बुले टन क
भाषा म उसका पांतरण सं त प म सी.जी. करके दशक तक वह भाषण सं े षत
कया जा सकता है । समाचार के दौरान कसी संबं धत यि त, संवाददाता और
समाचार वाचक का नाम सु पर करने के लए सी.जी. प त को काम म लया जाता
है । इस तकनीक का इ तेमाल ि प- यूज यानी प का समाचार म भी कया जाता
है । मु य समाचार दे खने के साथ-साथ दशक प का म ल खत प म अ य या
नए समाचार भी दे ख सकते ह ।

11.6.5 ा फ स और एनीमेशन

िजस थान, िजला, ांत, दे श आ द के संबं धत समाचार दया जा रहा हो, उसका
मान च दखाने से घटना और थान के बीच संबध
ं जोड़ने म सरलता हो जाती है
। एनीमेशन श प क मदद से मान च म यह भी दखाया जा सकता है क घटना म
कस थान से ारंभ होकर कहाँ तक पहु ंचा । उदाहरण के लए वमान अपहरण का
समाचार दे ते हु ए ए शया मान च म वमान के च तथा तीर क मदद से यह दखाया
जा सकता है क वमान का अपहरण अमृतसर म हु आ, वहाँ से वमान लाहौर ले
जाया गया और वहां से काबुल होता हु आ वह द ल म उतरा । यह पूरा माग एनीमेशन
के ज रए न पर अं कत हो जाता है । मौसम क जानकार दे ते हु ए वषा,
ओलावृि ट , बादल आ द के थान व ग त को दखाने के लए यह व ध अपनाई
जाती है । कई बार काटू न या एनीमेशन से तैयार च या जंगल, सड़क, रे लगाड़ी,

196
वमान आ द के च बनाकर घटना को साकार कर दया जाता है । सार या
क यूटर कृ त होने के कारण त काल उपयोग म लाई जा सकती है ।

11.6.6 लॉगो

कसी सं था, तयो गता, काय म अथवा आयोजन के 'लॉगो' या तीक च ह का


योग भी समाचार को च ा मक बनाने क एक व ध है । उदाहरण के लए ओलं पक
खेल का नि चत “लॉगो” या शु भक
ं र दखा दे ने से दशक को पता रहता है क वह
ओलं पक खेल से संबं धत समाचार दे ख रहा है । इसी कार अलग-अलग खेल हाँक ,
केट, फुटबॉल, बॉि संग, कु ती, टे नस आ द के तीक के प म ि टल अथवा
वी.सी.आर. “लॉगो” तैयार करके उ ह क यूटर म डाल दया जाता है और आव यकता
पड़ने पर उनका इ तेमाल कया जाता है । व भ न सं थाओं के अलग-अलग “लोग ”
ह, िजनका इ तेमाल समाचार सारण म कया जाता है ।

11.7 व या मक त व
आप पढ़ चु के ह क टे ल वजन सबसे अ धक भावशाल और रोचक मा यम इसी लए है क
यह या मक, व या मक, और मु त एक साथ हो सकता है । आप च और मु त या
ल खत प म सू चना सारण क सी.जी. प त के बारे म पढ़ चु के ह । अब हम उन त व
का अ ययन करगे जो व या मक ह और कभी-कभी य के साथ मलकर च व वन
दोन का म त भाव छोड़ते ह । व न से यहां अ भ ाय समाचार के उस उ च रत अंश
से है जो वाचक या एंकर वारा बोले गए श द से अलग होता है ।

11.7.1 साउं ड बाइट

समाचार म च के साथ-साथ व न का कला मक उपयोग इसे अ धक व वसनीय,


सु बोध और रोचक बनाता है । दशनी या पव यौहार जैसे समाचार म च के
साथ-साथ संगीत क वरलह रय को सु नाने अथवा काय म के थान पर बजाए
गए यं क व न का इ तेमाल करके समाचार म चार चाँद लगाए जा सकते ह
। इसी कार य द कसी गो ठ और भाषण से संबं धत समाचार हो तो व ता के
संभाषण के मह वपूण व संगत अंश को सु ना दे ना चा हये । इसे साउं ड बाइट कहते
ह । इसम कसी घटना वशेष पर कसी वशेष या घटना से भा वत लोग के
कथन भी शा मल ह । समाचार वाचक क बजाय घटना से भा वत या संबं धत
यि त के अपने मुख से कहा गया अंश दशक के लए न चय ह अ धक व वसनीय
होता है । इससे बुले टन म व वधता और रोचकता भी आती है ।

11.7.2 वायसका ट

समाचार को वायसका ट प म तुत करना भी उसे रोचक और व वसनीय बनाता


है । इस शैल के अ तगत कसी समाचार को उसक पृ ठभू म तथा अ य पहलुओं
के साथ च मय प म संवाददाता अथवा कसी अ य यि त क आवाज म तु त
कया जाता है । इसम कम समय तथा कम श द म अ धक साम ी व जानकार
197
े षत क जा सकती है । ट .वी. समाचार क लोक यता का मु ख कारण यह भी
है क इनम समाचार वाचक बहु त कम बोलते ह और अ धकतर समाचार संवाददाताओं
क अपनी आवाज म सु नाए व दखाये जाते ह । वायसका ट म साउं डबाइट भी शा मल
कए जाते ह ।

11.7.3 लाइव ड पैच

इसम कसी घटना या काय म क मौके पर कसी संवाददाता वारा रपोट पेश क
जाती है । यह तकनीक ट .वी. समाचार सारण क सबसे अ धक ामा णक व ध
है । इसम एंकर घटना के थान पर मौजूद संवाददाता या कसी वशेष से सीधे
वातालाप करता है और संवाददाता का ववरण अथवा वशेष क ट पणी का सीधा
सारण समाचार के ह से के प म होता रहता है । इसम घटना के च और
संवाददाता/ वशेष क आवाज साथ-साथ दशक तक पहु ंचते ह और उसे घटना या
काय म का ामा णक यौरा मल जाता है ।

11.7.4 फोन-इन

जब कसी घटना का च ा मक यौरा उपल ध न हो तो संवाददाता से फोन पर घटना


का यौरा लया जाता है और न पर उसका फोटो और नाम दखाकर समाचार
के भाग के प म सु नाया जाता है । यह मू लत: रे डयो समाचार सारण क शैल
है क तु टे ल वजन समाचार सारण म भी इसका खू ब इ तेमाल होता है । वशेष
क ट प णयां या घटना से जु ड़े यि तय के कथन भी फोन-इन से सा रत कए
जाते ह । यह लाइव होता है इस लए इससे समाचार क ामा णकता बढ़ती है ।

11.7.5 पीस टू कैमरा

यह वशु प से टे ल वजन क तकनीक है । जब कोई संवाददाता कसी थान से


रकॉ डड वायस ड पैच दे ता है तो उसम उस घटना के च या अ य य साम ी
द शत क जाती है । कं तु घटना के ारंभ, बीच या अंत म जब रपोट का कु छ
अंश वह अपनी आवाज म कैमरे पर पेश करता है तो उसे पीस टू कैमरा कहते ह
। इससे यह पता चलता है क संवाददाता घटना थल से ह अपनी रपोट दे रहा
है । इसम संवाददाता ऐसे थान पर बैठकर या खड़े होकर रपोट करता है जो घटना
या काय म क पहचान था पत कर सकता है । उदाहरण के लए संयु त रा के
बाहर लगे नाम प के सामने खड़े होकर पीस टू कैमरा दे ने से दशक समझ जाएंगे
क संवाददाता संयु त रा के मु यालय से ह बोल रहा है । यह यान रखा जाए
क पीस दू कैमरा बहु त लंबा न हो । इससे दशक बोर हो सकते ह ।
बोध न - 3
1. टे ल वजन समाचार के या मक त व का सं त यौरा द िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
...………………………………………………………………………………………………………………………………

198
2. ा फ स और एनीमे श न का टे ल वजन समाचार सारण म या मह व है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
...………………………………………………………………………………………………………………………………
3. साउं ड बाइट और वायसका ट म या अं त र है ?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
...………………………………………………………………………………………………………………………………

11.8 सारांश
इस पाठ म आपको आज के युग म टे ल वजन समाचार क साथकता, मह व और चु नौ तय
के बारे म बताया गया । आपको टे ल वजन के लए लखे जाने वाले समाचार क संरचना
से अवगत कराते हु ए ट.वी. समाचार बुले टन के व प तथा उसक या समझाने का यास
कया गया । कैमरा शू टंग से ा त च के अलावा ल खत समाचार को या मक प दान
करने के अ य सहायक त व का भी ववरण दया गया । ट .वी. समाचार के व या मक
प पर काश डालते हु ए यह बताया गया क ट.वी. समाचार क भाषा को कैसे सरल और
सु बोध बनाया जा सकता है तथा अनुवाद क ि थ त म उसे कृ मता तथा ज टलता जैसे दोष
से कैसे बचाया जा सकता है । संरचना के हसाब से टे ल वजन समाचार एक 'पैकेज' होता
है िजसम एंकर लंक, वॉइस ओवर, बाइ स और रपोटर के पीस-टू -कैमरा का समावेश होता
है ।

11.9 उपयोगी पु तक
1. जनमा यम और प का रता - वीण द त, सहयोगी सा ह य सं थान, कानपुर
2. भारतीय सारण व वध आयाम - मधुकर गंगाधर, वीण काशन, नई द ल
3. दूर दशन: वाय तता और वतं ता- सुधीश पचौर , स चन काशन, नई द ल

11.10 अ यासाथ न
1. टे ल वजन सारण म समाचार का या थान है?
2. समाचार क संरचना पर सं त नबंध ल खए ।
3. टे ल वजन समाचार, अखबार तथा रे डयो समाचार से कस तरह भ न है?
4. समाचार को च ा मक बनाने के सहायक साधन का यौरा द िजए ।
5. टे ल वजन समाचार के धव या मक त व का ववेचन क िजए ।
6. 'टे ल वजन समाचार क भाषा' वषय पर नबंध ल खए ।
7. इस समय भारत म टे ल वजन समाचार के सामने या- या चु नौ तयां ह?
8. दूरदशन और नजी चैनल के समाचार क तुलना क िजए ।
9. “ नजी समाचार चैनल खबर के नाम पर स ता मनोरंजन परोस कर समाचार क ग रमा
कम कर रहे ह ।” इस कथन का व लेषण क िजए ।
10. न न ल खत पर ट प णयां ल खए

199
 लैश
 वायसका ट
 साउं ड बाइट
 फोन-इन
 पीस टू कैमरा

200
इकाई - 12
टे ल वजन के लए पटकथा लेखन
इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 पटकथा का अथ
12.3 पटकथा का इ तहास
12.4 पटकथा क प रभाषा
12.5 आलेख के कार
12.6 पटकथा लेखन
12.7 पटकथा लखने का ा प
12.8 पटकथा के नमू ने
12.9 नदशक का आलेख
12.10 सारांश
12.11 व-मू यांकन
12.12 श दावल
12.13 कु छ उपयोगी पु तक
12.14 अ यासाथ न

12.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप यह जान पायगे-
 पटकथा या है?
 पटकथा कैसे लखी जाती है?
 अलग- अलग काय म क 'पटकथा' म या अ तर होता है?
 टे ल वजन क 'भाषा' या होती है?
 टे ल वजन म यु त होने वाले व भ न आलेख अ य मा यम से अलग कैसे और य
है?
 'पटकथा' लखने का ा प और शैल ।
 नदशक का आलेख ।
 टे ल वजन म यु त तकनीक श दावल का अ ययन ।
 नमू ने क पटकथा के आधार पर पटकथा लखने क मता का नमाण ।

12.1 तावना
कोई भी नमाण काय आरं भ करने से पूव उसक नयोिजत परे खा बनाना आव यक होता
है । ठ क इसी कार दूरदशन अथवा टे ल वजन म भी येक काय म न मत (Production)

201
कसी न कसी कार आलेख (Script) पर नभर करती है । टे ल वजन म येक काय म
का अपना अलग ' ा प' (Format) होता है, इस लए उसके आलेख अथवा Script का व प
भी भ नता लए होता है ।
यू ं तो, कसी भी काय म नमाण से पूव उसका आलेख अथवा नमाण संबध
ं ी ' परे खा' नमाता
(Producer) के मि त क म ह न हत होती है । अ सर यह कहा जाता है क कोई भी
काय म नमाण से पहले ह वह ' नमाता' (Producer) के मि त क म आकार ले चु का होता
है । इस लये कई बार, कई काय म के 'आलेख' औपचा रक प से लखे ह नह ं जाते ।
ले कन इसका यह ता पय कदा प नह ं है क टे ल वजन म 'आलेख ' का मह व कम है । इसके
वपर त िजतना मह व, उपयो गता और आलेख क व वधता टे ल वजन म ि टगत होती
है, उतनी अ य शायद ह कह हो ।
टे ल वजन म व भ न कार के आलेख काय म क व भ न ' कृ त' (Nature) के अनुसार
उपयोग म लाये जाते ह । कु छ सं त होते ह, तो कु छ स व तार, ले कन होते अव य ह।
भले ह कोई लेखक हो, या ना हो मगर ' ोड शन ट म' के येक सद य से इतनी उ मीद
अव य क जाती है क वे काय म के ' ा प' (Format) और वषय व तु (Content) और
उसक नमाण या संबध
ं ी व वध बात क जानकार अव य रखता हो । अथवा कसी
ल खत आलेख को ट .वी. ो ाम म पा त रत (Translate) करने म मददगार सा बत हो
सक।
'पटकथा' लेखन एक अलग या है । इसे लेखन के लए वशेष ावी य अथवा कौश य
क आव यकता होती है । 'पटकथा' म मु यत: कसी ' संग' वशेष (Situation) को व तार
दे ने (Develop करने) कहानी के अनुसार च र (Characters) अथवा पा को कम अ धक
करने, नये नमाण करने ओर पा ानु प संवाद लखने, उनक ग त व धय को रे खां कत करने
आ द अनेक मह वपूण त व सि म लत होते ह । इन सभी त व को एक साथ 'गू थ
ं कर' एक
सफल काय म नमाण करने के लये भी अनुभव और कौश य अ नवाय होता है । कु छ सेकं स
क व ापन फ म से लेकर तीन साढ़े तीन घंटे क फ म तक क पटकथा, अपने वषय
ओर व तार के कारण अलग अलग होती है ।
'पटकथा' वा तव म एक ऐसा ' केलेटन' या 'ढाँचा' होता है, िजसम फ मकार धीरे -धीरे ाण
फूँ कता है । उसको मानवीय प म पा यत करता है । और फर मानवीय संवेदनाओं- जैसे,
हा य, वषाद, हष. आ द से प रपूण हँसती, गाती, बोलती, नाचती फ म तैयार करता है ।

12.2 पटकथा का अथ
'पटकथा' या है? कैसे लखी जानी चा हए? टे ल वजन और फ चर फ म क 'पटकथा' म
या कोई बु नयाद अ तर होता है ? आ द न पर वचार करने से पहले यह जान लेना
आव यक है क िजसे आज हम 'पटकथा' अथात अं ेजी म Screen Play कहते ह, उसक
पूव पी ठका या है ?

202
'पट' या न 'परदा' और 'कथा' का अथ तो आप सभी जानते ह है । इससे यह प ट होता
है क 'पटकथा' या न 'परदे ' क कथा । यह तो हु आ इसका साधारण व प ववेचन ।

12.3 पटकथा का इ तहास


हमारा दे श लोककलाओं का महासागर है । यहां हरे क दूसर जा त, स दाय, गाँव, ढाणी, दे श
क अपनी-अपनी व भ न कला शै लयाँ है । यहाँ केवल दो दे श क केवल एक लोककला
का उ लेख करना चाहू ंगा ।
फ म के आने से पहले से ह हमारे दे श म 'पटकथाओं’ का चलनन था और आज भी है
। आपको यह जानकर और भी आ चय होगा क इन 'पटकथाओं ' का तु तकरण लगभग
आधु नक फ मी शैल से मलता जु लता था और है । अपनी बात और अ धक प ट करने
के लये तुत है , ये उदाहरण -
आपने राज थानी फड वाचन को तो दे खा ह होगा । इस वधा को हमारे राज थान के लोकदे वता
'पाबूजी' के नाम से भी जाना जाता है, जैसे 'पाबूजी क फड' ।
आपने दे खा होगा, एक ल बे कैनवास पर च त व भ न च क च ंखला के सामने
जलते हु ए द पक के काश म, 'भोपा' अपने हाथ म 'रावण ह था' लये एक एक च के
आगे क- क कर 'कहानी' सु नाता है, नाचता है, गाता है और द ये क रोशनी म कहानी को
आगे बढ़ाता है । इस काय म 'भोपी' भी उसका साथ दे ती है ।
अब इसी य को फ मी नज रये से दे ख-
य नं. 1 (फड पर अं कत च ) पर रोशनी (द वट का काश)
पा व म संगीत - रावणह था
गीत - भोपा- भोपी का गायन
अ भनय - नृ य
फ म म भी तो यह होता है-
लाईट (Light)
साउं ड (Sound)
कैमरा (Camera)
ए शन (Action)
फडवाचन और फ म म सफ इतना सा फक है क 'फडवाचन' म िजस च पर रोशनी
डाल जाती है, वह नज व होता है और फ म म जो ' य' फ माया जाता है, वह जी वत
होता है । बाँक 'तकनीक' तो एक सी ह होती है ।
दूसरा उदाहरण 'बंगाल' का है । बंगाल म भी 'पटकथा' पठन क ाचीन पर परा है । यहाँ
इसे 'पटकथा' ह कहते ह ।
इस 'पटकथा' का एक बड़ा सा 'रोल' तैयार कया जाता है । जैसे क यूटर से आने से पहले
ज म-कं ु ड लयां बनती थी । 'रोल' क हु ई अथवा राजा महाराजाओं के दरबार म भेजे जाने वाले
'प ' 'रोल' कये हु ए होते थे । ठ क इसी तरह बंगाल 'पटकथा' का भी 'रोल' होता था ।

203
सनेमाघर म ' ोजे ट न ट' पूर फ म ोजे टर वारा ' ोजे ट' करता है अथात ् हॉल म बैठे
हु ए दशक को दखाता है । इसी तरह बंगाल 'पटकथा' म एक आदमी 'पूरा रोल ' संभालता
है ओर नीचे बैठा हु आ एक आदमी च ंखला के आधार पर (ठ क फड वाचन क तरह)
कथावाचन करता है ।
ये 'रोल' कब 'र ल' म बदल गये पता ह नह ं चला । ले कन यह पर परा हमारे दे श म ाचीन
काल से ह व यमान रह है । इसी 'पटकथा' अथवा फड शैल का प रमािजत व प हम
फ मी पटकथा म पा त रत होता हु आ दे ख सकते ह ।

12.4 पटकथा क प रभाषा


'पटकथा' क कोई एक प रभाषा करना क ठन काय है । य क 'पटकथा' को लेखनीय काय
मानते हु ए भी यह नदशक के हाथ क कठपुतल होती है । कई बार खराब पटकथा पर भी
बहु त अ छ फ म नदशक क कु शलता का प रचय दे ती ह, तो कई बार एक अ छ पटकथा
भी क चे नदशक के हाथ खराब फ म के प म सामने आती है । दरअसल 'पटकथा' कागज
पर उतारा हु आ वह ' लान' है, जो नदशक के वारा परदे पर 'संजीव' कया जाता है ।
पटकथा म 'कथाव तु' का मह वपूण थान होता है । बना 'कथाव तु' के पटकथा का लखा
जाना असंभव होता है । ले कन, 'पटकथा' अपने आप म फ म नह ं होती । पटकथा के फ म
बन जाने तक 'पटकथा' के ं ाईश रहती है । कई बार '
ा प म कई बार प रवतन क गुज य'
क माँग के अनुसार प रवतन कया जाता है, तो कई बार तकनीक कारण से । जैस-े ा य
च ांकन के समय ' काश' । कहते ह ी राजकपूर को अपनी फ म 'स यम ् शवम ् सु दरम'्
के एक ' य' के च ांकन के लये कई दन तक ती ा करनी पड़ी थी । य क वे जब
तक 'लोकेशन' पर पहु ँचते, 'सू य' या तो बादल से ढँ का मलता या बहु त उपर चढ़ आया होता,
'भोर' के उस य के लये िजस ' काश' क उ ह ज रत थी वह कई दन के प र म के
बाद उ ह मल सका ।
कसी भी 'पटकथा' म प रवतन केवल समय क बा यता और धन के अप यय से बचने के
लये कया जाता है । फर भी एक 'चु त' पटकथा, कसी भी फ म के लये अ नवाय होती
है । 'पटकथा' चाहे कसी भी वषय या कथाव तु पर लखी गई हो, उसम मु यत: न न
बात पर अव य वचार कया जाता है -
1. मू ल वचार (Concept)
2. कथा व तु (Story Line)
3. सांके तक (One line order of the sequences)
4. पटकथा (Screen Play)
बाद म संवाद और शू टंग (Script) लखी जाती है । पटकथा के 'संवाद' आते ह वह बोलने
लगती है । एक-एक पा अपने-अपने 'च र ' के अनुसार 'ब तयाने' लगते ह ।
कई पटकथाकार यह मानते ह क पटकथा म कट, फेड इन, फेड आऊट, डसॉ व आ द फ म
स पादन (Editing) क तकनीक का योग अ नवाय नह ं होता, यह नदशक और स पादक

204
का काय है । फर भी य द पटकथाकार इन बात का उ लेख अपनी पटकथा म करता है तो
फ म क अव ध (Duration) का पूवानुमान लगाना आसान हो जाता है ।
येक पटकथाकार को 'कथाव तु' के आधार पर 'पटकथा' लखने क कु छ वतं ता होती
है । 'कु छ' इस लए क अ धकांश कहा नय म कई नये पा गढ़ने पड़ते ह । कई बार अनाव यक
'कथा व तार' क काट-छॉट करनी पड़ती है । और पटकथा म ऐसा 'पंच' या 'तनाव' नमाण
(Create) करना पड़ता है, क दशक त ध होकर फ म को दे खे और आगे ' या होगा?'
क चंता करने लगे । कई बार ऐसी Situation नदशक के साथ चचा करके भी Create
क जाती है । पटकथा लेखन को कसी सा हि यक वधा के प म भले ह मा यता न मल
हो, फर भी पटकथा लेखन शू य से आरंभ होकर एक नई दु नया का सृजन करती है , इस लए
लेखक य कौशल तो होता ह है, लेखक क जीवन ि ट, दूर ि ट, अनुभव और सामािजक
चेतना का प रचय तो अव य होता है ।
पटकथा लेखन को कसी ' वधा' का नाम न दे ने के कारण इसका कोई ' वधान' भी सवस मत
नह ं है । फर भी 'कथानक' के अनुसार येक य म घ टत होने वाल घटनाओं का मवार
उ लेख ह पटकथा क ेणी म आता है । पटकथा को 'सीने रय ' भी कहा जाता है ।
उपरो त व लेषण के प चात ् सं ेप म हम कह सकते ह क (पटकथा) का अथ ह मूल कथा
का ग तशील वकास, मूल वचार क र ा तथा भटकाव से बचाकर रचना को अपने हे तु तक
पहु ँ चाना । इसी बात को अगर हम दूसरे श द म कहना चाह तो कह सकते ह क- 'कहानी
सु नाने के लये आव यक भौ तक, या मक, पा ानु प और संवादा मक त व को जो एक
साथ संक लत करती है, उसे 'पटकथा' कहते ह ।

12.5 आलेख के कार


टे ल वजन जैसा क आप सभी जानते ह, एक य (Visual) मा यम है । इस लये इसक
भाषा, य संरचना और ा प अ य मा यम से भ न होते ह । यह कारण क टे ल वजन
के लये लखना ' ट म डया' के लये लखने जैसा काय नह ं है । इस लये टे ल वजन आलेख
के कार भी काय म के अलग-अलग प के अनुसार अलग-अलग वग म वग कृ त कये
जा सकते ह । जैसे-

12.5.1 नाटक य आलेख (Dramatic Script)

इस तरह के आलेख म नाटक, कसी कहानी का ना य- पा तर, पटकथा एवं


धारावा हक के लए लखे जाने वाले आलेख आ द आते ह ।

12.5.2 व ापन आलेख (Commercial Script)

व ापन फ म क 'पटकथा' भी ठ क उसी तरह क हो सकती ह, जैसे अ य


पटकथाय लखी जाती ह, ले कन चू ं क, कु छ सेकं स के ' पॉट' म एक व श ट संदेश

205
दशक तक पहु ँचाना होता है, इस लये व ापन फ म क पटकथा अ यंत 'चु त'
एवं सं त होते हु ए भी 'संपण
ू ' होती है ।

12.5.3 समाचार आलेख News Script)

टे ल वजन म 'समाचार बुले टन' वह आलेख होता है, जो त दन लखा जाता है


। समाचार का आलेख शी एवं प का रता क कसौट पर कसकर लखा जाता है
। उसम क पना के बजाय त या मक ववरण होता है ।
इसके अलावा समाचार तु तकता के पास एक अलग आलेख या Script होती है
। िजसे टे ल वजन क भाषा म 'वी.सी.आर.-ऑडर' कहा जाता है । िजसके आधार
पर तु तकता (Producer) समाचार दखाए जाने वाले ' य ' (Visual) का म
नि चत करता है । इस तरह समाचार वाचक और तुतकता के बीच 'संवाद' था पत
होता है ।

12.5.4 सा ा कार आलेख (Interview Script)

टे ल वजन म येक काय म क एक अव ध (Duration) नि चत होती है ।


इस लए सा ा कार क ता (Interviewer) को अपनी Script बहु त पहले से ह तैयार
रखनी पड़ती है, य क अवां छत बात के लए टे ल वजन म समय का अभाव होता
है । दूसर ओर मह वपूण बात दशक क च बनाए रखना भी होती है ।
इस लये 'टॉक-शो' आ द क पूव तैयार तथा आलेख इस तरह से तैयार कया जाता
है क दशक क च नरं तर बनी रह ।

12.5.5 शै णक सारण आलेख (Educational Broadcast Script)

शै णक सारण के आलेख वषय- वशेष (Subject-experts) के साथ बैठकर


लखे जाते ह । कस कार के वषय के अनुसार कैसे य होने चा हये आ द पहले
से ह नधा रत कया जाता है ।

12.5.6 नाटक य आलेख का व लेषण

अब नाटक य (Dramatic) आलेख का स व तार व लेषण करते ह -


1. नाटककार नाटक लखता है । अथात ् नाटक म केवल 'संवाद' होते ह ।
2. ट .वी. पर तु तीकरण करते समय उसम 'प रवतन' करना आव यक होता है
। जैसे
2.1 सेट पर उपि थत च र /पा क ' ला कं ग'
2.2 कौन सा पा कहाँ (खड़ा/बैठा) रहे गा, कैसे पोिजशन लेगा, कहाँ से संवाद बोलेगा,
कैसा अ भनय करे गा-आ द पहले से ह नधा रत करना पड़ता है ।
2.3 य क, टे ल वजन म येक पा के अनु प काश (Light) एवं वन
(Sound) का वशेष यान रखना पड़ता है ।

206
2.4 कस 'पा ' क कतनी 'दूर ' से कतनी हाई पीच होगी, यह पहले ह तय करना
पड़ता है।
2.5 फर आता है, कैमरा! वैसे तो फ म नमाण के समय भी इ ह अ धकांश बात
का यान रखा जाता है, ले कन अ धकांश फ म 'एक कैमरा सैटअप’ होती है
। कई बार यु - संग आ द को फ माने के लये एक से अ धक कैमर के
उपयोग म लाये जाने के भी उ लेख मलते ह ।
ले कन, टे ल वजन टू डयो म एक से अ धक 'कैमरा सैटअप' होने के कारण
इस बात का यान रखना ज र होता है क, कौनसा पा कस कैमरे क ओर
दे ख कर संवाद बोलेगा । और कौनसा कैमरा कस पा का ‘ र-ए शन-टे क'
करे गा ।
2.6 इसके बाद क सार िज मेदार आरं भ होती है नमाता (Producer) क ।
य क यहाँ से आरंभ होती है टे ल वजन क भाषा ।
2.7 टे ल वजन क भाषा केवल मौ खक श दावल ह नह ं होती, इसके अलावा भी,
इस भाषा के कई प होते ह । जैसे - कैमरे क भाषा,
2.8 कौनसा कैमरा, 'शॉट', कस 'एंगल’ से लेगा, यह 'कमांड' उसे (अथात ् कैमरामैन
को) नमाता दे ता है ।
2.9 कैमरे के बाद व न (Sound) एवं व न भाव (Sound effects)
2.10 ा फ स अथवा वशेष भाव

12.6 पटकथा लेखन


टे ल वजन मे यु त होने वाले आलेख से आपका प रचय तो हो ह गया होगा । आइए अब
कु छ आलेख (Scripts) क लेखन या संबध
ं ी बात कर ।
वृ त च (Documentary) का आलेख लखने का ा प (Format) टे ल वजन के लए लखे
जाने वाले ा प से ब कुल भ न होता है ।
वृ त च के लये सबसे पहले आता है - वषय (Subject) । कस वषय पर वृ त च बनाया
जाये । फर उसके संशोधन (Research) कया जाता है । िजसम मु यत च करण
(Shooting) के थल / व भ न लोकेश स/उसक वशेषताय आ द का ववरण होता है । वषय
से संबं धत जानकार दे नेवाले व वान आ द मोट -मोट बात क एक सं त परे खा तैयार
करने के बाद Shooting क जाती है । Shooting के बाद स व तार (Detailed Script)
लखी जाती है जो बाद म कसी अ छे उ घोषक क आवाज म रकॉड करके य के
समाना तर और पा व म द जाती है । िजसे नवेदन (Narration) या (Voice-over) कहते
ह ।
उदाहरण के लए एक 'वृ त च ' क सं त परे खा तु त है-
1. शीषक - 'या दे व सव भू तेषु...'
(राज थान के मु ख शि त थल पर आधा रत वृ त च )

207
2. शू टंग थल
1. शाक भर दे वी का मं दर (उदयपुरवा टका, झु ंझन
ु )ू
2. शीला दे वी का मं दर (आमेर, जयपुर )
3. राज थान के मु ख दे वी मं दर
4. व भ न दे वी म डप
5. शहर के व भ न दे वी मं दर
6. …………..के पुजार से बातचीत
7. ………....के भ त से बातचीत
8. ..........भजन ( रकाड थल मं दर ांगण)
इसके ठ क वपर त टे ल फ म के लये लखते समय न न बात का यान रखना पड़ता
है ।
1. शीषक (Title)
2. अव ध (Duration)
3. पटकथा (Screen Play)
4. शू टंग ि ट (इसे Director’s Script भी कहते ह)
टे ल वजन क पटकथा के साथ न न सू चयाँ अलग-अलग पृ ठ पर अव य संल क
जानी चा हये ।
1. कलाकार तथा पा -प रचय
(अ) मु य कलाकार
(ब) सहयोगी कलाकार
(स) कोरस अथवा भीड़ के कलाकार
2. वेशभू षा - पा के च र के अनुसार, उनक पोशाक/उनके रं ग/दाढ़ मूछ/उनक
साईज/ टाईल/दाढ़ मु छ के रं ग/भ ह इ या द ।
3. मेकअप - मेकअप कतने कार का है । साधारण है या च र के अनुसार
(Characteristic) है । इसक संपण
ू जानकार ।
4. ोपट – 1. आउटडोर-बा य च ांकन थल (Location) होने पर या- या अ नवाय
ोपट क आव यकता होगी । 2. इनडोर पर या- या अ नवाय ोपट क आव यकता
होगी । इन सभी बात का स व तार वणन
5. प स जा - हे अर टाईल इ या द ।
6. लोकेश स - कहानी एवं पटकथा के अनुसार लोकेश स का चयन कया जाता है ।

12.7 पटकथा लखने का ा प

208
शीषक……………………………… पृ ट सं या..............
अनु म य संवाद वन भाव वशेष

12.8 पटकथा के नमू ने


यहाँ तु त है, पटकथा के दो नमू ने-
एक धारावा हक क पटकथा है, तो दूसर एक 'टॉक-शो' का 'नमू ना' है । इन 'पटकथाओं' को
अं तम न समझ । येक पटकाथाकार का अनुभव, जीवन ि ट (Ideology) शैल एवं भाषा
ान पर नभर करता है क वह कस ' य' को कस प म दे खकर, उस पर अपनी कैसी
त या (React) य त करता है ।

12.8.1 आज क शाम आपके नाम (टॉक-शो)

ऐ पसोड- 1
नवेदक - हमारे सभी दशक को नम कार, सलाम, आदाब । पेश है आज
क यह खू बसूरत रं गीन शाम बतौर खास आपके नाम । हम
उ मीद है
नवे दका - उ मीद से और आप?
नवेदक इतनी बड़ी उ मीद से नह ।ं हम आपसे उ मीद है ।
नवे दका - हमसे? ये कैसे संभव है?
नवेदक - आप इसी तरह हलती रह , तो दशक क यह शाम, जो हमने
उनके ह नाम कर द ..है..हो जाएगी ना
नवे दका - हराम । तो दशक माफ क िजए-दशक
नवेदक - दशक ....दशक
नवे दका - हाँ-हाँ हम भी जानते ह-जैसे, दशक कहते ह, जैसे फश को कहते
ह,
- उसी तरह दशक कहते ह-जो आदश का.. वो या कहते है ना

209
कु छ लगता है ।
नवेदक - मा क िजए । ये आज कुछ.... खैर छो ड़ये.....
- मु झे एक शेर याद आ रहा है - अज कया है.....
नवे दका - शेर अज भी दे ता है? हमने तो सु ना है क शेर.....
नवेदक - शेर सु नाने से पहले ऐसे ह कहते ह....
नवे दका - कौन कहते ह?
नवेदक - शायर..... या न जो शायर करते ह ।
नवे दका - तु ह कैसे पता? तु म शायर तो हो ह नह ं सकते.....
नवेदक - (गु से म) कसी और के शेर तो पढ़ कर सु ना ह सकता हू?ँ
नवे दका - अ छा । अब समझी । आप चोर भी करते ह ।
नवेदक - ये चोर नह ं कहलाती ।
नवे दका - अ छा! सीनाजोर कहलाती है?
नवेदक - (झु ंझलाकर).... कस उ लू के प े ने आपको यहाँ बुलाया है ?
नवे दका - म या जानू..ं ? वैसे ो यूसर क पी.ए. का फोन आया था-
नवेदक - बुलाओ उस ो यूसर को......?
नवे दका - म य बुलाऊं? तु म बुलाने जाओ....
नवेदक - F.M. Please, Producer को यहाँ बुलाईये । ये लड़क सारा
ो ाम चौपट कए जा रह है ।
F.M. - ओ.के. सर
नवेदक - जब तक ो यूसर नह ं आते आप ऐसा कर (दशक क ओर दे खते
हु ए) आप यह सीन दे ख ल..... ....Cut....

12.8.2 एक का प नक धारावा हक क पटकथा का नमू ना

शीषक - भसप त क वपि त


ऐ पसोड नं. - 2
थान - यमपुर
समय - यहाँ कोई समय नह ं होता, सारे काय असमय ह होते ह ।
.सं य संवाद वन भाव वशेष
1. यमराज का संगीत दरबार
लगा है ।
2. यमराज का काला और भार नगाड़ का वशेष
भरकम शर र – वन भाव
3. मोट -मोट मू ंछे - खू न सनी
लाल लाल आँख,
4. हाथ म, एक मोटा सा

210
''फरसा''
5. दोन तरफ भस क कतार
-
कु छ खू बसू रत लड़ कयाँ
बैठ , लेट व भ न मु ाओं
म- बाल खु ले और बखरे
हु ए ...
6. एम.डी. का वेश
यमराज म. एम.डी. बादल के गरजने
आजकल क आवाज और
अपनी यूट बज लय के
ठ क तरह से कड़कड़ाने क
नह ं दे रहे ह । आवाज आँधी और
तू फान का भाव
एम.डी. ( सर झुकाये
खड़े ह ।)
यमराज कहाँ रहे इतने
दन.... या
''शो कॉज'
नो टस जार
करना पड़ेगा ।
दो मह ने से
एक भी केस
अ व
ू ल करके
नह ं भेजा....।
एम.डी. - सर. कैसे
करता । हसाब
रखते-रखते
सारा टाफ
बीमार हो गया
सर.. उफ्
हद होती है
पैदा करने क
भी! एक-एक
के तेरा-तेरा
मु झे तो लगता

211
है सर,
लोग मरने से
इंकार न कर दे
.... भारत का
एक क सा हो
तो बयान
कर-वहाँ तो
सारा ह
गड़बड़झाला है
। जा त, धरम
और पता नह ं
कस कस के
नाम पर पैदा
कए जा रहे
ह....

यमराज - तु ह अपना काय


तेजी से करना चा हए
– चाहो तो कु छ
कै यूवल टाफ रख
लो अपने साथ .....
एम.डी. – सर, कै यूवल टाफ
से काम नह ं चलने
वाला । हम अपना
वाहन भी बदल दे ना
चा हए, हमार सवार
है ये – Cut to भसा
और उनके पास ह
कू टर, मोटर – कार
.... (Cut to
धरतीeith traffic
जाम shot) और तो
और इधर सु ना है क
उ ह ने तो चाँद पर भी
चढ़ाई कर डी है,
उनक दौड़ म हम

212
शा मल नह ं हो सकते
सर... वे दौड़ जाते ह
ओलि पक और
हमारा वाहन उसके
सामने या बीन और
या अ शर...
यमराज - ओह येस It is very
serious Matter
हम अपना वाहन तो
change नह ं कर
सकते य क, भैसा
हमारा रा य पशु है
। कतने ह थोर – थोर
पु ष ने हमारे इस
रा य पशु को अपने
आचरण म शा मल
कर लया है । कतने
ह नेताओं के च र
तीक म कतई अ तर
दखाई नह ं दे ता ।
एम.डी. – You are right
sir….
यमराज - हं ेड एंड वन
परस टे ज क बात
बोला ... तुम ऐसा
करो अपना भेष बदल
कर धरती के घर म
घुसपैठ करो ... कोई
तु ह पहचानेगा भी
नह ं और भाग भी नह ं
सकेगा ।
एम.डी. – ओ.के. सर, थ यू...
यमराज - यू केन गो नाऊ .....!
(एम.डी. का थान)
यमराज - दरबार क कायवाह
जार रहे गी । संगीत

213
एक और दूत ताल
बजता है
(नाचने वाल लड़ कय का वेश । व श ट मु ाओं वाला नृ य – दशन)

…Cut…

12.9 नदशक का आलेख


शू टंग का एक नमू ना
यह भी नदशक य (Director) सू झबूझ, वभाव एवं अनुभव पर नभर करता है क वह कस
तरह कस य को फ माना चाहता है । ' रय लि टक' अथवा ' तीका मक' तर के से ।
य क, येक ‘शॉट' (Shot) जो फ चर फ म अथवा टे ल फ म म उपयोग म लया जाता
है, उसका एक 'अथ' होता है । उस 'शॉट' के मा यम से नदशक कु छ कहना चाहता है । इस लये
कु छ 'शॉट' तीका मक होते ह और कुछ ' रय लि टक' । उदाहरण के लए-
1. फूल पर मँडराने वाले भ रे का Shot - तीका मक
2. आग या बाढ़ के य - रय लि टक

12.9.1 शीषक – “भसप त क वपि त”

सीन - नं. 1
अ.न. य

1. यमराज का दरबार लगा है - E.L.S.(establishing shot)


2. यमराज का काला और भार भरकम शर र - L.S.
3. ँ े - E.C.U.
मोट मोट मू छ
4. खू न सनी लाल - लाल आँख - E.C.U.
5. हाथ म मोटा सा 'फरशा' - M.S.
6. दोन तरफ भस क कतार - Planning L to R
7. कु छ खूबसूरत लड़ कयाँ - L.S.
अ. बैठ - L.S.
ब. लेट - M.S.
स. व भ न मु ाओं म ( येक मु ा का) – C.U.
द. बाल खुले - C.U.
य. बखरे हु ए बाल - C.U.
पटकथा के अनुसार 'सीन' म 'संवाद' आरं भ होने से पहले, Shorts को इस तरह वभािजत
कया जाता
है । कृ पया यह यान रख, यह केवल 'नमू ना’ (Sample)है अं तम ' ा ट' (Draft) नह ं है।

214
12.10 सारांश
इस इकाई म हमने पटकथा का अथ, उसक प रभाषा, आलेख के कार, पटकथा लखने क
तकनीक, पटकथा लखने का ा प, नमू ने क पटकथाओं के मा यम से वषय- व लेषण,
नदशक का आलेख आ द का अ ययन कया है । साथ ह पटकथा के इ तहास के मा यम
से लोक जीवन म च लत लोक वधाओं का भी व लेषण कया हे ।
इस इकाई के अ ययन के प चात ् आप भी 'पटकथा' लेखन म कौश य ा त कर सकते ह।
बोध न- 1
1. आले ख कतने कार के होते ह ?
...................................................................................................
...................................................................................................
2. समाचार के आले ख और वृ त च के आले ख म या अ तर है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
3. ' पटकथा ' का या ता पय है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
4. ' पटकथा ' का लोकजीवन से या स ब ध है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
बोध न-2
1. कसी एक ' वृ त च ' क ' पटकथा ' लख ।
...................................................................................................
...................................................................................................
2. कसी भी कहानी के कसी एक ' य ' को ' पटकथा ' के ा प के अनु सार तु त कर।
...................................................................................................
...................................................................................................
3. टे ल फ म क ' पटकथा ' के साथ कौन-कौन सी सू चयाँ सं ल क जाती ह ?
...................................................................................................
...................................................................................................
4. ' मे क अप ' कतने कार का होता है ? सोदाहरण प ट कर ।
...................................................................................................
...................................................................................................
बोध न- 3
1. नाटक य आले ख को तु त करते समय कन- कन बात का यान रखा जाता है ।

215
...................................................................................................
.................................................................... ...............................
2. ' टे ल वजन क भाषा के वल ' मौ खक ' नह ं होती । ' इस उ रण को प ट कर ।
...................................................................................................
................................................. ..................................................
3. न न श द के पू ण प लख – LS, MS, ECU, CU, b.g.
...................................................................................................
...................................................................................................

12.11 व-मू यांकन


आप इस इकाई का यानपूवक पठन कर, मनन और च तन कर । ऐसा करने से आप वयं
यह जान पायगे क पटकथा या है, कैसी लखी जाती है, नदशक का आलेख या होता
है । पटकथा म कस तरह कसी संग वशेष अथवा कहानी को प रव तत कया जा सकता
है ।

12.12 श दावल
वैसे तो अ धकांश श द के अथ ह द और अं ेजी म दये गये ह फर भी कुछ श द ऐसे
ह, िजनका व लेषण अ नवाय है –
1. ELS- Extreme Long shot
2. LS- Long Shot
3. ECU- Extreme Close-up
4. MS- Medium Shot
5. Panning L to R- Panning Left to Right
Or R to L- Right to Left
6. CU- Close up
7. b.g.- Background
8. f.g.- Foreground
9. F.M.- Floor Manager

12.13 कुछ उपयोगी पु तक


1. Film Script Writing. A Practical Manual- by Dwight V.Swain.N.Y.
Hastings House Publication, 1976.
2. Script Writing for Short Films. by James A.Beveridge. Paris Unesco,
1969.
3. Scripting for Video and Audio–visual Media - by Dwight V.Swain.
Landon. Focal Press, 1981.
216
4. Visual Scriptinged - by John Halas London, Focal Press, 1976.
5. Film, Complete Scenerio, Illustrations Production shots with an essay
on Directing Films
- by Samual Backelt. London – Faber, 1972.
6. पटकथा का सच - भु नाथ संह आजमी, मेघा बु स , द ल - 2006.
7. बॉबी ( फ म न ले) - टार पॉकेट बु स, नई द ल ।

12.14 अ यासाथ न
1. 'पटकथा' या है? पटकथा का प रचय दे ते हु ए, इसक अ नवायता पर काश डाल ।
2. टे ल वजन म यु त होने वाले व भ न आलेख के कार तथा उनक लेखन प त का
व लेषण कर।
3. नदशक का आलेख और पटकथा म या अ तर होता है । सोदाहरण प ट कर ।

217
इकाई – 13
साइबर मी डया के लए लेखन
इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 साइबर मी डया के लए लेखन
13.3 साइबर लेखन क वशेषताएं
13.4 साइबर लेखन के कार
13.5 भारत म साइबर लेखन क ि थ त
13.6 भारत म साइबर लेखन का मह व एवं संभावनाएँ
13.7 सारांश
13.8 व-मू यांकन
13.9 श दावल
13.10 कुछ उपयोगी पु तक
13.11 अ यासाथ न

13.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप जान पाएंगे क -
 साइबर मी डया के लए लेखन या और कैसा है?
 साइबर लेखन क वशेषताएं या ह?
 साइबर मी डया कतने कार का होता है?
 भारत म साइबर लेखन क या ि थ त है?
 भारत म इस कार के मा यम लेखन के वकास क या संभावनाएं ह?

13.1 तावना
पछल सद व भ न कार के संचार मा यम क ईजाद क सद रह है । यह वजह है क
लेखन और संभाषण के िजतने कार लोग ने पछल सद म सीखे उतने इससे पहले कभी
नह ं सीखे । मौ खक और ल खत अ भ यि तय का श ण ल बे समय से होता आ रहा
था ले कन पछल सद म रे डयो, फ म, टे ल वजन और इंटरनेट जैसे मा यम के सतत ्
वकास क वजह से इ ह ं दो ाथ मक अ भ यि तय के व भ न कार का वकास हु आ
और लोग को उनम बाकायदा श ण लेना पड़ा । इस इकाई म हम साइबर मा यम के लए
लेखन के कार क व भ न वशेषताओं और कार का व लेषण करगे और उ ह सीखने
का यास करगे ।

218
13.2 साइबर मी डया के लए लेखन
क यूटर, दूरसंचार और सेटेलाइट के संबं होने से साइबर मी डया अि त व म आया । साइबर
मी डया क वाहक ौ यो गक इंटरनेट है िजसके मा यम से दु नयाभर म संपक कया जा
सकता है और तमाम तरह क जानका रयां हा सल क जा सकती ह ।
सावज नक साइबर कैफे जैसे थान पर बैठे-बैठै व वभर क सू चनाएं ा त कर सकते ह या
व व म कह ं भी बैठे अपने म और र तेदार से संपक कर सकते ह । इंटरनेट पहले केवल
लखी हु ई भाषा के पाठ पर आधा रत था । आज तेजी से बदलते हु ए प र य म व व यापी
संजाल (World Wide Web - www) कहलाता है जो ल खत पाठ के अ त र त य,
व नयाँ और चल च या ए नमेशन के मा यम से सूचनाओं के सारण का एक सश त मा यम
बन गया है । व व म अनेक छोटे -बड़े संगठन क अपनी वेबसाइट होती है और इनम उनके
बारे म तमाम तरह क जानकार और आलेख होते ह । इसके अलावा साइबर लेखन कसी
एक यि त का लखा हु आ लॉग भी हो सकता है, कसी व ापन एजसी का वेब पर दया
गया व ापन भी हो सकता है और कसी समाचारप का ऑन लाइन सं करण भी हो सकता
है । उन सभी कार के लेखन क अपनी वशेषताएं ह िजनक चचा हम इस इकाई म आगे
करगे ।

13.3 साइबर लेखन क वशेषताएं


साइबर लेखन के दो मु ख कार ह । पहला तो वह जो केवल ल खत भाषा के मा यम से
वचार को अ भ य त करता है और दूसरा बहु मा यम आधा रत लेखन है जो अपनी
अ भ यि त के लए पाठ, य, भ य एवं चल च का उपयोग करता है । भाषा का वा त वक
व प डिजटल है िजसम बात को एक वशेष म म रखा जाता है । भाषा के रे खीय म
यव था ने इसम मौ लकता क अपार संभावनाएं पैदा क ले कन इंटरनेट के वेब पृ ठ क
यव था ने हाइपर लंक क जो सु वधा दान क उसने भाषा के इस रे खीय म को कुछ
हद तक तोड़ा और इस नव लेखन प त ने मौ लकता को एक और नया आयाम दया । इसी
प त के वकास के व प िजस भाषा म हम वेब के लए लेखन करते ह उसे एचट एमएल
(हाईपर टे ट ल वेज) कहते ह ।
उधर दूसर तरफ इंटरनेट के लोक य होने से पहले कं यूटर के े म जो वकास हु ए थे,
उनम बहु मा यम कं यूटर (multimedia Computers) का वकास एक मह वपूण कड़ी था
। इन कं यूटर ने आरं भक दन म च , रे खांकन , व नय , श द और चल च के मा यम
से पाठ को और अ धक आकषक बनाने का काम कया । बाद म डिजटल ऑ डयो, व डयो
और ए नमेशन को ल खत पाठ से वाय तता मल और लोग ने अनेक ऐसे काय म बनाए
िजनम से पाठ लगभग नदारद था । यह बहु मा यम ौ यो गक आने वाले दन म व ड
वाइड वेब क आधार बनी और िजन वेब पोटल या साइट का आज हम अवलोकन करते ह
उनम अनेक कार के त व होते ह जो कु छ य आधा रत होते ह तो कुछ य आधा रत
होते ह ।

219
इसी बीच व भ न मा यम के क वजस क वजह से वेब आधा रत संचार के कु छ नए आयाम
भी उभर कर आए िजनम वेब रे डयो और वेब टे ल वजन मुख ह । इस कार कइ वेब सारण
म भाषा के नए आयाम खोजने क आव यकता नह ं है, य क वह तो पारं प रक रे डयो या
टे ल वजन के ह व तार ह ।
वेब के लये या साइबर लेखन क वशेषताएं यह ह क पहले तो इसम कसी भी समाचार
को सफ शीषक और सं त प से दया जा सकता है और लंक के मा यम से पूरे समाचार
को पढ़ा जा सकता है । इस लए सं ेप म समाचार लखने क कला साइबर लेखन के लए
सबसे मह वपूण है । जैसा क पहले बताया गया है साइबर मी डया एक म ट मी डया है िजसम
व न, च ा फ स आ द सभी का योग होता है । साइबर लेखन को भावशाल बनाने
के लए इस म ट मी डया पैकेज म सभी त व क समझ होनी चा हए । यह भी यान रखना
ज र है क इस लेखन को दु नया भर म कोई कसी भी समय पढ़ता है- इसे पढ़ने, दे खने
या सु नने वाल का कोई नधा रत समूह नह ं होता । इस ि ट से भी लेखन शैल को ढालना
होता है ।

13.4 साइबर लेखन के कार


साइबर मी डया के अनेक प ह । इन दन िजसक सबसे अ धक चचा है उसे हम लॉग
के नाम से जानते ह । कु छ ह द म लॉग लखने वाल ने इसे एक ह द नाम भी दया
है । वह इसे च ा कह रहे ह । लॉग वेब लाग का सं त प है । वेब लॉग से ता पय
यह है क आप कसी ऐसी वेब साइट पर जाइए जो आपको अपने यहाँ लखने क सु वधा
दान करती है और फर जो कुछ आप कहना चाहते ह उसे उस साइट पर द गई जगह पर
लख द िजए । कुछ साइट ऐसी होती है िजनम आपको अपने को पंजीकृ त कराना होता है िजसके
बाद आप अपने लए एक पासवड तय करते ह । इस पासवड क मदद से आप उस साइट
पर लॉग इन करते ह । कु छ वेब साइट ऐसी भी होती ह िजनम आपको लॉग इन करने क
भी आव यकता नह ं होती । ऐसे थल पर लखने के लए आपको लखकर अ भ य त करना
तो आना ह चा हए मगर आपको उसे कं ु जीपटल क मदद से टं कत करना भी आना चा हए
। साइबर लेखन का यह सबसे लोक य कार और सबसे सरल तर का है ।
साइबर लेखन के लए इसके बाद िजस क ठन कार क हम चचा करगे वह वेब पेज बनाना
है । वेब पेज तैयार करना एक वशेष कार का लेखन है िजसके लए आपको अपने लखे
हु ए को एचट एमएल म नब करना ह नह ं आना चा हए बि क वेब पर दखने वाले पूरे पृ ठ
क प स जा । उसम यु त होने वाले य का थान तय करने और आव यकता पड़ने
पर वजुअल बे सक और 'सी' भाषा जैसी कं यूटर क भाषाओं का भी ान होना चा हए ।
इसके अलावा वेब पेज बनाने वाल को ल खत पाठ, य और य साम ी के व भ न
फारमेट का ान भी होना चा हए । उदाहरण के लए एक फोटो ाफ का हम सामा यतया
जे.पी.जी. फारमेट म संर त करते ह । फोटो ाफ खींचते समय अगर हमने उसके रजो यूशन
को अ धक रखा तो वह अ धक जगह घेरेगा । फोटो के रजो यूशन 96 प सेल से लेकर 10
मेगा प सेल या उससे भी यादा हो सकता ह । इसी तरह टफ (TIFE) फारमेट म संर त
कए गए च को भी अ धक जगह चा हए । सबसे कम जगह िजफ (JIF) म संर त च

220
लेते ह । अत: वेब पेज क संक पना करने वाले को इस बात का भी यान रखना पड़ता है
क उसका पेज पाठक के कं यूटर म ज द से ज द तु त हो सके अथात ् डाउन लोड को
सके ।
वेब पेज वेब साइट का एक ह सा मा होता है । सामा य तौर पर लोग वेब पर साम ी दे ने
के लए एक आध पेज बनाते ह ले कन य द साम ी बहु त अ धक है तो उ ह एक पूर वेब
साइट बनानी पड़ती है िजसम अनेक वेब पेज होते ह । ऐसी ि थ त म सभी पेज हाइपर लंक
क मदद से एक
दूसरे से जोड़ दए जाते ह । हाइपर लंक का इ तेमाल करके दो व भ न वेबसाइट के पृ ठ
को भी एक दूसरे से जोड़ा जा सकता है । वेब पर द जाने वाल साम ी जब एक सीमा से
अ धक हो जाती है तो हम वेब पोटल बनाने क क पना करने लगते ह ।

13.5 भारत म साइबर लेखन क ि थ त


इन दन ौ यो गक के और अ धक यो ता आधा रत होते जाने का ह प रणाम है क इन
दन वेब लॉ गंग क बाढ़ आई हु ई है । वेब लॉ गंग व श ट से लेकर आम यि त को भी
अ भ यि त क वतं ता दान करता है य क साधारण और आम यि त भी इस
ौ यो गक के ज रए अपने वचार नेट पर लोग के पढ़ने के लए रख पाने का सुख भोग
रहा है ।
आरं भक दन म केवल बड़े अखबार ने ह अपने अखबार के सं करण वेब पर डालने आरंभ
कए थे । इनके लए वेब पर काम करने के लए श त प कार क सेवा ह ल जाती
थी, ले कन जैसे ह वेब ला गंग क सु वधा लोग को मलनी आरंभ हु ई वैसे ह भारत म प कार,
सा ह यकार के अलावा उन सभी के लॉग लखने आरं भ कर दए िज ह ह द म टं कण के
साथ-साथ कं यूटर एवं इंटरनेट पर काम करना आना था ।
आज इंटरनेट पर उपल ध ह द के लॉग म लोग क नजी डायर से लेकर क वता, कहानी,
ट प णयाँ, च एवं वचार सभी कु छ मौजूद है । उधर समाचारप ई अखबार का व प
भी मु त समाचारप क डिजटल त ल प से बहल कर अ धका धक ऑनलाइन हो गई है
और कई लोग तो अपनी रचनाएं, वचार आ द पु तकाकार ई-बुक म भी दज कर रहे ह ।
अ धकांश लॉग लेखक आज अपने लेखन को अ धक से अ धक सु च धान एवं पठनीय
बनाने के लए ऐसे कई त व को अपने लेखन म ला रहे ह जो आज से कु छ ह वष पहले
म ट मी डया म ह हो सकता था । ऐसे अनेक लॉग लेखक ह जो अपने लेखन म न केवल
च बि क वी डयो ओर ऑ डयो साम ी भी इ तेमाल कर रहे ह ।

13.6 भारत म साइबर लेखन का मह व एवं संभावनाएं

221
हालां क हमारे दे श म अभी क यूटर और इंटरनेट का सार सी मत है , पर इसका तेजी से
व तार हो रहा है
। छोटे -छोटे
नगर -क ब म
साइबर कैफे खुल
रहे ह और इसके
उपभो ताओं क
सं या बढ़ रह है
। समाचारप
सं थान ने अपने
अखबार नेट पर
डालने आरंभ कए
ह और वशेष कर
िजस तरह
बु जी वय ने लॉग अपना कर साइबर लेखन आरंभ कया है वह उस बात का योतक है
क आने वाले दन म जैस-े जैसे इंटरनेट क सु वधा आम लोग तक पहु ँ चेगी वैस-वै
े से साइबर
लेखन का मह व बढ़े गा और उसक पहु ँच भी व तृत होगी ।
साइबर लेखन क संभावना भी उसके सार क तरह अनंत ह । वेबसाइट से लेकर ई-पु तक
तक अनेक व प म यह लोग को उपल ध होगा । िजस तरह डाकघर आ त च य क
जगह दन - दन ई-मेल का योग बढ़ रहा है उसी तरह आने वाले दन म साइबर लेखन का
योग भी बढ़े गा ।

13.7 सारांश
प ट है क साइबर लेखन ने अपने को एक वतं लेखन वधा क तरह था पत कर लया
है और इसके व प एवं चार- सार म दन - दन नए योग, नई तकनीक और नए क य
क संभावनाएं बढ़ रह ह । े डंग, ई-मेल, ई-पु तक , वेब अखबार, लॉग और यहाँ तक क
एस.एम.एस. भी साइबर लेखन के व भ न कार ह ।
भारत म इस कार का लेखन आरं भक दन म केवल अं ेजी तक सी मत रहा ले कन बाद
के दन म जैस-े जैसे भारतीय भाषाओं का सम वयन इंटरनेट म हु आ है वैसे-वैसे साइबर
काशन म भारतीय भाषाओं क ह से दार भी बढ़ है । भारत सरकार क ई- शासन क
नी तय ने भी साइबर लेखन को बढ़ावा दया है । ई- श ा, ई- वा य एवं ई-कृ ष क भी
यह माँग है क अ धका धक लोग साइबर लेखन को अपनाएं एवं नेट पर अ धका धक साम ी
उपल ध हो सके ।
बोध न-
1. साइबर या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................

222
2. वे ब साइट या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
3. लॉग या है ?
...................................................................................................
. ...................................................................................................

13.8 व मू यांकन
इस इकाई को पढ़ कर आप ने जाना होगा क साइबर मा यम के लए कस कार का लेखन
कया जा रहा है । इस वषय के बारे म अपना ान और अ धक बढ़ाने के लए आपको चा हए
क आप इंटरनेट पर जाकर उस कार क िजनक अ धक वेब साइट दे ख ता क आपको य
ान ा त हो क इंटरनेट पर कस कार का लेखन कया जा रहा है । आप ने इस इकाई
से या कु छ सीखा है यह जानने के लए एवं अपना मू यांकन वयं करने के लए आपको
सलाह द जाती है क इकाई के अंत म द गई पु तक को पढ़ने का यास क िजए एवं दए
न को यान से हल क िजए ।

13.9 श दावल
म ट मी डया ऐसा कं यूटर िजसम ल खत पाठ, य, य चल च एवं ए नमेशन
का योग कया जाता है।
एच.ट .ट .पी. हाइपर टे ट ांस मशन ोटोकॉल वह प त है िजससे वेब पृ ठ का
ेषण एवं ा त करना संभव होता है ।
एच.ट .एम.एल. हाइपर टे ट मेनटे नस ल वेज वह भाषा है िजसके मा यम से वेब
पर लखे जाने वाले पृ ठ के व भ न त व को समायोिजत कया
जा सकता है ।
हाइपर लंक कस वेब पृ ठ को अ य पृ ठ या अ य वेब साइट से जोड़ा जा सकता
है ।
जेपीजी डिजटल व प म च का संक लत एवं सा रत करने क एक
प त ।
टफ च एवं ए नमेशन के नेट पर डालने का एक वशेष फामट ।
िजफ यो ता के लए बनाया गया या मक इंटरफेस ।
लॉग वेब ला गंग अथात ् नधा रत वेब साइट पर जाकर पंजीकरण कराने
के प चात कया जाने वाला लेखन ।
ई-बुक डिजटल तर के से तैयार क गई पु तक िजसे इंटरनेट के अलावा
मोबाइल फोन या ई-बुक र डर आ द म पढ़ा जा सके ।

223
13.10 कुछ उपयोगी पु तक
1. जगद श च वत (2003) साइबर मी डया जन ल म : इमिजग टे नोलॉजी, फायरवाल
मी डया, द रयागंज, नई द ल
2. कुट रोहर (1998) : माक टंग इन द साइबर एज, जे वल
3. हे रक डे नस, (2003) : मी डया मैनेजमट इन द एज ऑफ जाएंटस, लेकवेल पि ल शंग,
यूयॉक
4. Om Gupta and Ajay S. Jasra (2002) : Internet Journalism in India,
Kanishka Publisher, New Delhi

13.11 अ यासाथ न
1. वेब पेज के उ व और वकास पर एक सं त लेख ल खए ।
2. हाइपर टे ट भाषा और वेब पेज लेखन के संबध
ं का ववेचन क िजए।
3. भारत म साइबर मी डया लेखन के वकास और उसक उपयो गता क चचा क िजए ।

224
225

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