You are on page 1of 191

उराखड मु त िवविवालय

हानी
DVS-103

गृह िनमाण िववेचन


मानिवक िव ाशाखा
योितष िवभाग
तीनपानी बाईपास रोड, ॉसपोट नगर के पीछे
उराखड मु िविवालय, ह!"ानी, नैनीताल - 263139
फोन नं .05946- 261122 , 261123
टॉल #$ न0 18001804025
Fax No.- 05946-264232, E-mail- info@uou.ac.in
http://uou.ac.in
अययन बोड (फरवरी-2020)
अय
ोफे सर देवी
साद िपाठी
कुलपित, उराखड म ु त िवविवालय अय, वातश ु ा िवभाग, ी लालबहादरु शाी
हानी राि"#य सं कृ त िवापीठ, नई िद ली।


ोफे सर एच.पी. शुल - (सयं ोजक)
ोफे सर िवनय कुमार पाडेय
िनदेशक, मानिवक िवाशाखा *योितष िवभागाय, सं0िव0ध0िव संकाय,
उ0म0ु िव0िव0, ह ानी काशी िह.दू िवविवालय, वाराणसी।

डॉ. नदन कुमार ितवारी


ोफे सर रामराज उपायाय
अिसटे ट ोफे सर एवं समवयक, योितष िवभाग अय, पौरोिह2य िवभाग, LBS, नई िद ली
उराखड मु त िवविवालय, ह ानी।

पाठ्य#म स$पादन, संयोजन एवं समवयक


डॉ. नदन कुमार ितवारी
अिसटे.ट 5ोफे सर एवं सम.वयक, *योितष िवभाग
उराखड मु त िवविवालय, ह ानी
इकाई ले ख न खड इकाई सं )या

ोफे सर िवनय कुमार पाडेय 1 1,2,3


अय, *योितष िवभाग
सं0िव0ध0िव0संकाय, काशी िह.दू िवविवालय
वाराणसी।
डॉ. नदन कुमार ितवारी 2 1,2,3,4
अिसटे.ट 5ोफे सर एवं सम.वयक, *योितष िवभाग
उराखड मु त िवविवालय, ह ानी

डॉ. गणेश िपाठी 3 1,2,3,4


सहायक 5ायापक, *योितष
शासकय रामान.द सं कृ त महािवालय
लालघाटी- भोपाल
कापीराइट @ उराखड म8 ु िव9िवालय

काशन वष-2021
काशक - उराखड मु त िवविवालय, ह ानी।
मु-क: - सहारनपुर इलेिक ेस, बोमन जी रोड, सहारनुपर ISBN NO. -
नोट : - ( इस पु तक के समत इकाईय के लेखन तथा कॉपीराइट संबंधी िकसी भी मामले के िलये संबंिधत इकाई लेखक िजमेदार होगा । िकसी भी
िववाद का िनतारण नैनीताल िथत उ$च &यायालय अथवा ह)*ानी स+ीय &यायालय म, िकया जायेगा।)
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
अनुम

थम खड – वा0तुशा0 म2 गृहिनमाण पृ5-2


इकाई 1: राह मख
ु पु छ िवचार एवं खात िविध 3-19
इकाई 2: िशला यास िविध 20-38
इकाई 3: गृहक$ िव यास 39-58
ि6तीय खड - गृहिनमाण िविध एवं मुह9: िवचार पृ5- 59
इकाई 1: गृहिनमा&ण म( मासािद िवचार 60-74
इकाई 2: गृहार िवचार 75-93
इकाई 3: गृहार+भ िविध 94-111
इकाई 4: गृहार+भ महु -& 112-126
तृतीय खड - अय िवचार पृ5- 127
इकाई 1: कु+भ च. िवचार 128-139
इकाई 2: गृहवेश महु -& 140-158
इकाई 3: वृषभवा1तु च. 159-170
इकाई 4 : वा1तपु जू न िविध 171-187
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

वातु शा म
िड लो
(DVS-20)
ततृ ीय प
गहृ िनमाण िववेचन
DVS-103


उराखड मु त िवविवालय 1


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103


खड -1
वातुशा म गहृ िनमाण


उराखड मु त िवविवालय 2


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 -1 राहमख
ु पु
छ िवचार एवं खात िविध
1.1 तावना
1.2 उ े य
1.3 राह" एवं राह"मख
ु प&ु छ का सामा*यप+रचय
1.3.1 िदशा के अनसु ार राह"मखु प&ु छ क/ िथित
1.3.2 गृह िनमा ण म1 राह"मख
ु प&ु छ िवचार
1.3.3 देवालय िनमा ण म1 राह"मख ु प&ु छ िवचार
1.3.4 जलाशय िनमा ण म1 राह"मख ु प&ु छ िवचार
1.3.5 य5वेदी िनमा ण म1 राह"मख ु प&ु छ िवचार
अ7यास 8
1.4 त िविध
1.4.1 खात परी:ण
1.4.2 खातार;भ महु =
1.4.3 खात खनन म1 राह"मख ु प&ु छ का फल
अ7यास 8
1.5
 
1.6 पा+रभािषक शAदावली
1.7 अ7यास 8C के उर
1.8 स*दभ E*थ सचू ी
1.9 सहायक पाठ्यसामEी
1.10 िनब*धाLमक 8

उराखड मु त िवविवालय 3


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
1. तावना
िजस शाM के अ*तग त आकाश म1 िवमान Eह-न:Oािद िपडC क/ गित-िथित एवं उनके
Pारा इस भपू Rृ पर पड़ने वाले भावािद का 5ान िकया जाता है उसे UयोितषशाM कहते हW। यह
Uयोितष शाM िसYा*त, संिहता, होरा [पी तीन क*धC म1 िवभ\ होकर सृ]्यLु पि काल से ही Eह
न:O रािशयC के परपर स;ब*धC Pारा इस भपू Rृ पर पड़ने वाले सामिू हक/साव भौिमक एवं
_यि\िनR फलC का िवMृत िववेचन करते ह"ए ाणीमाO के क`याणाथ समिु चत _यवथा देता है।
िजनके अ*तग त शभु ाशभु फलC के िनधा रण क/ अनेक िविधयाँ विण त हW िजनम1 शकुन, अङ्गिवा,
अक ं िवा, 8िवा, गोचर, ज*मकुडली एवं वातिु वाओ ं का महLवपणू थान है। इनम1 भी
ज*मकुडली के अित+र\ वातु िवा का िवशेष भाव एवं योग स;ित िदखाई देता  
िवभाजन के eम म1 Uयोितष शाM म1 संिहता क*ध के अ*तग त ही वातश ु ाM क/ चचा ाf होती
है इसिलए पर;परा म1 इसे भी हम Uयोितष के अगं के [प म1 वीकार करते हW। यिप कुछ आधिु नक
आचायg ने इसे वत*O िवषय के [प म1 भी थािपत करने का यास िकया है पर*तु यह यिु \ सगं त
तीत नहh होता है।
वातु का शािAदक अथ िनवास करने या बसने/रहने से है अथा त मानव के िनवास योjय भिू म एवं
भवन को वातु शAद से जानते हW। कारा*तर से िजस शाM म1 भिू म एवं भवन के िनयमC, िसkदा*तC
तथा िविधयC का ितपादन िकया जाता है उसे वातु शाM कहते हW। पवू क/ इकाई म1 आप लोगC
ने वातु शाM के अनेक िवषयC का अkययन िकया है तथा अब ततु थम खड क/ इस थम
इकाई म1 राह" मखु प&ु छ एवं खातिविध से स;बि*धत िवषयC का आप लोग िवतृत अkययन कर1 ग।1
िजससे इसके पहले िकए गए अkययन क/ प+रपणू त ा होगी तथा आगे के अkययन का माग भी
शत होगा।
1.2 उ े य
यह इकाई आप के वातु 5ान क/ महLवपूण इकाई है। अतः ततु इकाई का अkययन करने के
  
• राह" मख
ु प&ु छ क/ उपयोिगता को समझ सके ग1।
• िदशा के अनसु ार राह"मख
ु पु&छ िथित का 5ान कर सके ग1।
• गृहिनमा ण म1 राह"मख
ु प&ु छ का िवचार कर सके ग1।
• देवालय िनमा णाथ खातार;भ थान का 5ान कर सक1 ग1।
उराखड मु त िवविवालय 4
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

• जलाशय िनमा ण हेतु राह" मख


ु का 5ान कर सक1 ग1।
• खातिवचार िकसे कहते हW आप यह सरलता से बता सके ग1।
• खात आर;भ म1 िदशा िनण य कहाँ से होता है इसका 5ान कर सके ग1।
• खात हेतु महु =त का िवचार कर सके ग1।
• खात खनन म1 राह"मख
ु पु&छ के शभु ाशभु फल का िवचार कर सके ग1।

1.3 राह एवं राहमुखपुछ का सामाय परचय-


भारतीय UयोितषशाM क/ 5ान पर;परा म1 सयू ा िदEहC के अ*तग त राह" एवं के तु को सव O
वीकार नहh िकया गया है। यCिक सैYाि*तक िनयमानसु ार राह" एवं के तु कोई Eह िपड नहh अिपतु
सयू एवं च*nमा के oमण वृC के स;पात हW िजनका योग के वल सयू एवं च*nमा के Eहण स;ब*ध
म1 िकया जाता है। यिप eाि*त वृ के साथ सभी EहC के oमण वृC का स;पात उस Eह का राह"
एवं के तु िसY होता है पर*तु आवयकता क/ pि] से के वल च*noमणवृ के eाि*त वृ के साथ
होने वाले स;पात को राह" एवं के तु के [प म1 मानते हW जो िक सयू Eहण एवं च*nEहण म1 मखु घटक
होते हW।
एवं चय यौ पातौ ताो राहसंकः।
ितीयः के तुसंतौ ाहकौ च-सूययोः।।
इसके अित+र\ िसYा*त Uयोितष म1 राह" एवं के तु का उपयोग कहh भी प]तया िदखाई
नहh देता पर*तु फलादेश पर;परा के अ*तग त संिहता एवं होरा क*ध म1 राह"-के तु का या f वण न
pि]गत होता है। सिं हता क*ध के मख ु E*थ बृहLसिं हता म1 वत*O [प म1 राह"चाराkयाय एवं
के तचु ाराkयाय इसके Lय: माण हW। इसी eम म1 वातिु वा के अ*तग त भी इससे स;बि*धत
शभु ाशभु फलC का आकलन कर हमारे पवु ज महिष यC न1 गृहिनमा णाथ अभी] भख ु ड पर खातार;भ
करने के समय राह" के मख ु प&ु छ का िवतृत िवचार िकया है यC िक माणानसु ार राह" के सपा कार
   खातार;भ से िनमा ण होने वाले गृह एवं गृहपित क/ शभु ता नहh होती है। पौरािणक
मा*यताओ ं के अनसु ार समnु म*थन से ाf अमृत का वेश बदलकर पान कर लेने के कारण राह"
नामक दैLय भगवान िवsणु के चe से िशर एवं धड़ [पी दो भागC म1 िवभ\ होकर भी मृत नहh ह"आ
तथा दो [पC म1 अमर होकर िशर भाग के तु एवं धड़ भाग राह" के [प म1 िवtयात होकर u;हा जी के
वरदान से EहC िक गणना म1 सि;मिलत ह"आ 
उराखड मु त िवविवालय 5
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
िसंिहकातनयो राहरिपत"चामृतं पुरा ।
िशरि"छनोिप न 'ाणै*य+ोसौ हतां गतः।।
पर*तु इ*ह1 िसYा*त E*थC म1 सयू तथा च*nमा के स;पात िब*दु के [प म1 दिश त िकया
गया है पर*तु मता*तर से एक कथानक म1 धड़ [प राह" को u;हा के वरदान/vाप से सपा कार होने का
भी वण न ाf होता है जैसा िक बृहLसिं हतं ा क/ टीका म1 भwोLपल न1 विश] का वचन उYतृ करते ह"ए
   -
भषट्कात1रतो राहः सुयाचसावुभौ।
छादय*युरगाकारो वरदानात् वय3भुवः।।
यिप सनातन वैिदक कम काड पर;परा म1 नवEहC के अ*तग त अपने अिधदेवता काल
तथा Lयिधदेवता सप के साथ राह" सव O शभु कमg म1 पिू जत होता है पर*तु वराहिमिहर न1
राह"चाराkयाय के Eहण स;बि*धत शाxत वण न के eम म1 इस सपा कार राह" का खडन िकया है
तथािप वातश ु ाM के अ*तग त सपा कार राह" का वण न एवं उपयोग सभी वातु E*थC म1 ाf होता है
तथा इसके मख ु प&ु छ एवं पृR के आधार पर वातु योग तथा शभु ाशभु फलC का वण न िकया गया
है । ततु सङ्ग म1 वातश ु ाM के ायः सभी आचायg एवं वातु स;बि*धत महु =ता िद क/ िववेचना
करने वाले महु =त शाM के E*थकारC न1 अपने-अपने कृ ितयC म1 इसक/ िवतृत िववेचना ततु क/ है
!" वातु के ारि;भक िवषय भचू यना*तर गृहिनमा णाथ तािवत खातखनन म1 इसके Pारा गृह एवं
गृह वामी के शभु ाशभु Lव का िवचार करते ह"ए खात खनन आर;भ करने हेतु शभु थानC का
िविभ*न िनमा ण भेदC के आधार पर वण न िकया है, अथा त् िनवासाथ गृहिनमा ण, देवितRा हेतु
देवालय िनमा ण म1 एवं जलाशय ितRा हेतु जलाशय िनमा ण म1 एक ही काल एवं थान म1 भी
#"$-पृथक राह" के मख ु , प&ु छ एवं पृR क/ िथित का ितपादन शाMC म1 ाf होता है।
1.3.1 िदशा के अनुसार राह के मुख, पु"छ एवं पृ: क; िथित-
जैसा हम जानते है िक वैिदक पर;परा म1 पवू , पिyम, उर, दि:ण इन चार िदशाओ,ं
आjनेयकोण, ऩैऋLयकोण, वाय_यकोण, और ईशानकोण क/ चार िविदशाओ ं तथा उkव (उपर),
अधः (नीचे) के साथ िदशाओ ं क/ संtया दश होती है पर*तु ततु ् सङ्ग म1 चार िविदशाओ ं
($&'&) का ही िवचार राह" के मख ु , प&ु छ एवं पृR 5ानाथ वातश
ु ाM म1 िकया गया है। यह िथित
सयू के रािश oमण को आधा+रत कर िवचा+रत होती है। अतः हम पहले सयू के रािश oमण िथित
को समझेग।1 सयू के एक अंश भोग काल को सौर िदन तथा तीस अश ं भोग काल को सौर (
$!)
हW अथा त् सयू जब एक रािश से दसू रे रािश पर जाता है तो वह सौर सe ं ाि*त होती है और सयू का

उराखड मु त िवविवालय 6


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
एक रािश पर oमण काल ही सौरमास होता है +सं=ा*याः सौरमु"यते। वातश ु ाM के अ*तग त
राह"मखु प&ु छ क/ िथित के िवचार म1 सयू के Pादश रािशयC के भोग काल अथा त् Pादश सe ं ाि*तयC
का उपयोग िकया जाता है । वततु ः भारतीय वातुशाM म1 देवालय, जलाशय, तथा गृहवातु म1
राह"मख ु प&ु छ क/ िथित पृथक-पृथक रािश eम से िवचा+रत होती है अतः राह" के मख ु , पु&छ एवं
पृR िवचार के पवू हमारे िलए यह िनधा +रत करना परमावयक होता है िक देवालय िनमा ण या गृह
िनमा ण अथवा जलाशय िनमा ण म1 िकसके िनमा ण हेतु हम राह"मख ु प&ु छ क/ िथित का िवचार कर
रहे हW और उसके बाद उपय \ ु सयू संeाि*त के Pारा राह"मख
ु प&ु छ के िथित का 5ान करते हW। राह" क/
! परीत होने से इसक/ मख ु प&ु छािद क/ गणना भी िवपरीत eम (वामeम) से ही होती है तथा
िजस िदशा म1 राह" का मख ु होता है उससे िवपरीत गणना म1 ाf िविदशाओ ं म1 मkय एवं पु&छ तथा
इन तीनC को छोड़कर अविश] चौथी िविदशा म1 पृR िसY होता है। जैसे यिद ईशान कोण म1 राह" का
मख ु िसY ह"आ तो वाय_य कोण म1 उसका मkय तथा नैऋLय म1 प&ु छ होगा। अतः मख ु , मkय एवं
प&ु छ क/ eमशः ईशान, वाय_य एवं नैऋLय िविदशाएं छोडकर आjनेय िविदशा म1 राह" का पृR भाग
होगा तथा उसके पृR भाग अथा त् आjनेय कCण म1 ही खात खनन शभु होगा। इसी कार सभी
िविदशाओ ं म1 राह" के मखु , प&ु छ एवं पृRािद का िवचार िकया जाता है। ततु स*दभ म1 वातश ु ाM
के वत क आचाय िवxकमा ने प] [प म1 िलखा है िक-
ईशानतः सपित कालसपः िवहाय सृि@ं गणयेद् िविदA।ु
शेषय वातोमुखमBयपु"छं यं प1र*यCयखने"चतुथम।् ।
(िवकमा काश)

अथा त् eमशः ईशान, वाय_य, नैऋLय एवं आjनेय कCण म1 िविभ*न रािशयC म1 सयू क/ िथित होने
पर राह" का मखु , मkय एवं प&ु छ होता है। अतः इन तीनC को छोड़कर चतथु कCण क/ िदशा म1 खात
शभु होता है। इसी कार आचाय रामदैव5 ने महु =त िच*तामिण E*थ म1 देवालय ,गृह एवं जलाशय इन
तीनC के िनमा ण म1 य\ु राह" मखु ािद के िवचार के िनयमC को एक साथ स;मिलत करते ह"ए िलखा
 $ -
देवालये गेहिवधौ जलाशये राहोमुखं श3भुिदशो िवलोमतः।
मीनाकिसंहाकमृगाकतिFभे खाते मुखा*पृ@िविदGछुभो भवेत।् ।
(मुहतिचतामिण वातु करण)

अथा त् देवालय िनमा ण म1 मीनािद रािशयC म1 तीन-तीन रािशयC के सयू होने पर ईशानिद
कोणC म1 तीन-तीन रािशयC के eम से, गृहिनमा ण म1 िसहं ािद से गणना कर तीन-तीन रािशयC के सयू

उराखड मु त िवविवालय 7


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
म1 तथा जलाशय िनमा णाथ मकरािद रािश से आर;भ कर तीन-तीन रािशयC के eम से ईशानािद
िवपरीत गणना के िविदशाओ ं म1 राह" का मख ु होता है। मtु य थान से िवपरीत गणना म1 ाf कोण
िदशा (पीछे क/ िदशा) म1 मkय तथा उसके बाद क/ िविदशा म1 प&ु छ होता है। इसके अित+र\ जो
-."   होगी वहh राह" का पृR भाग होगा। जैसे यिद ईशान कCण म1 राह" का मख ु ह"आ तो वाय_य
कCण म1 मkय तथा नैऋLय कCण म1 राह" का पृR होगा। अतः इस िनयमानसु ार पृR भाग का िवचार कर
खातार;भ शभु होता है।
1.3.2 गृहिनमाण मI राहमुखपु"छ िवचार-
भवनिनमा ण म1 खातार;भ हेतु राह"मखु प&ु छ क/ िथित का िवचार परमावयक होता है यC
िक यिद राह"मख ु प&ु छ का िवचार िकये िबना ही भवन िनमा ण िक िeया आर;भ क/ जाती है तो
गृहवामी को िविवध अशभु फलC क/ ािf होती है तथा उस गृह के िनमा ण िeया म1 भी अनेक
कार के _यवधान उपिथत होते हW। जैसे तैसे भवन िनमा ण हो जाने के बाद भी उस गृह म1 सख ु ,
शाि*त, समृिkद नहh रहती एवं उस गृह म1 िनवास करने वालC को अनेक कार क/ िवषम
परीिथितयC का सामना करना पड़ता है। जैसा िक हम लोगC न1 पहले पढ़ा है िक सयू क/ संeाि*त
वशाद् ही सपा कार राह" के मख ु प&ु छ का िवचार होता है, यC िक शाMC के वचनानसु ार सयू के
रािशचार के अनसु ार ही सपा कार राह" क/ िथित म1 प+रवत न होता है तथा UयोितषशाM म1 विण त
उपय \ ु िनयमानुसार सयू क/ िथित एवं िदशा के आधार पर उसका िवचार करते हW। राह"मख ु या
प&ु छ िदशा म1 गृहिनमा णाथ खात खनन शभु नहh होता है। अतः इसके अित+र\ पृR िदशा म1
खातार;भ करते हW। जैसा िक हमन1 पवू म1 पढ़ा है िक िदशाएं दश होती है पर*तु राह"मख ु के eम म1
ईशान, वाय_य, नैऋLय, आjनेय के भेद से ितिRत चार िविदशाओ ं म1 ही सयू क/ Pादश संeाि*तयC
को िवभ\ कर थािपत िकया है अथा त् एक िविदशा म1 तीन संeाि*तयाँ थािपत होती हW।
गृहिनमा णाथ खात खनन म1 िसंहरािश से गणना Pारा चारC िविदशाओ ं म1 eमशः तीन-तीन रािशयC म1
सयू रहने पर ईशान कCण से आर;भ कर िवपरीत गणना से ईशान, वाय_य, नैऋLय और आjनेय कCण
म1 राह"मखु होता है अथा त् गृहिनमा ण के स;ब*ध म1 िसंह, क*या, तल ु ा रािशयC का सयू होने पर
ईशान कोण म1, वृिyक, धन,ु मकर रािशयC का सूय होने पर वाय_य कोण म1, कु;भ, मीन, ()
रािशयC का सयू होने पर नैऋLय कोण म1 तथा वृष, िमथनु , कक रािशयC का सयू होने पर आjनेय
कोण राह" का मख ु होता है। महु =त िच*तामिण E*थ म1 विण त मीनाकिसहं ाकमृगाकतिFभे
वचनानसु ार गृहिनमा ण म1 राह"मखु िसंहािद रािशयC के सयू म1 ईशानािद कोणC म1 होता है। इस (! $&
और भी प] करते ह"ए अ*य आचायg न1 कहा है िक-

उराखड मु त िवविवालय 8


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
िसंहे कयातुलायां भुजगपितमुखं श3भुकोणेऽयखातं
वायKयं याLदाय अिलधनुमकरे ईशखातं वदित।
कु3भे मीने च मेषे िनऋित िदिशमुखं खातवायKयकोणे
चाNनेः कोणे मुखं वै वृषिमथुनगते ककटे रAखातम।् ।
गृहिनमा णाथ राह"मख
ु प&ु छ िवचार सङ्ग म1 ईशानािद िवपरीत eम से िविदशाओ ं िक
'1 $ 
 !1-तीन रािशयाँ मख ु म1 थािपत होती है, अथा त् िसंह, क*या, तलु ा रािश का
सयू हो तो राह" का मखु ईशान कोण म1, उदर वाय_य कोण म1 एवं पु&छ ऩैऋLय कोण म1 होगा अतः
इन तीन िविदशाओ ं के अित+र\ चौथी आjनेय िविदशा म1 राह" का पृR भाग होगा। वृिyक, धन,ु
मकर रािश का सयू होने पर वाय_य कोण म1 राह" का मख ु , नैऋLय कोण म1 उदर तथा अिjन कोण म1
प&ु छ तथा ईशान कोण म1 राह" का पृR भाग होगा। कु;भ, मीन तथा मेष रािश का सयू होने पर नैऋLय
कोण म1 राह" का मख ु , अिjन कोण म1 राह" का उदर, ईशान कोण म1 राह" का प&ु छ तथा वाय_य कोण म1
राह" का पृR भाग होगा। वृष, िमथनु , कक रािश का सयू होने पर राह" का मखु अिjन कोण म1, ईशान
कोण म1 राह" का उदर, वाय_य कोण म1 राह" का प&ु छ तथा नैऋLय कोण म1 राह" का पृR होगा। इनम1
मख ु , मkय एवं प&ु छ को छोड़कर राह" के पृR भाग म1 खातार;भ शभु होता है ।
गृह िनमाणाथ खातखनन मI राहमुख ानाथ च=म्-
राहप:ृ
सूय क; रािश राहमुख राहउदर राहपु"छ (

शुभ थान)
िसहं ,कया, तुला ईशानकCण वाय_यकCण नैऋLयकCण अिjनकCण
वृिQक,धनु,मकर वाय_यकCण नैऋLयकCण अिjनकCण ईशानकCण
कु3भ, मीन, मेष नैऋLयकCण अिjनकCण ईशानकCण वाय_यकCण
वृष, िमथुन, कक अिjनकCण ईशानकCण वाय_यकCण नैऋLयकCण

1.3.3 देवालय िनमाण मI राहमुखप"ु छ िवचार-


देवालय अथा त् देवता का िनवास थान, इस भल ू ोक म1 देवता िजस भवन म1 िनवास करते
हW उस भवन को देवालय कहा जाता है। वततु ः देवता सा:ात िकसी घर म1 पृिथवी लोक पर िनवास
नहh करते अिपतु यथा िविध शाMो\ िनयमानसु ार उनक/ ितमाएं बनाकर म*O शि\ Pारा उन
ितमाओ ं म1 ाण का आधान करते ह"ए ाणितRा पवू क उ*ह1 जहाँ थािपत िकया जाता है उसे

उराखड मु त िवविवालय 9


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
देवालय कहते हW। देवालय िनमा ण के िलए भी गृहिनमा ण क/ तरह राह"मख ु प&ु छ का िवचार करना
आवयक होता है यC िक िबना राह"मख ु प&ु छ का िवचार िकये देवालय िनमा ण भी शभु नहh होता है
तथा वहाँ देवतLव क/ भी पणू ितRा नहh होती है इसिलए यहां भी राह"मख ु प&ु छ िवचार आवयक
हो जाता है। देवालय िनमा ण के िलए अभी] राह"मख ु प&ु छ िवचाराथ आचाय़g न1 कहा है िक मीना
!1तीन रािशयC का सयू होने पर ही eमशः ईशानािद कोणC म1 राह" का मख ु होता है यिद सयू
मीनािद तीन रािशयC म1 अथा त् मीन, मेष तथा वृष रािश म1 हो तो राह" का मख ु ईशान कोण म1,
वाय_य कोण म1 राह" का उदर, नैऋLय कोण म1 राह" का प&ु छ तथा अिjन कोण म1 राह" का पृR होता है
अतः मख ु , उदर, प&ु छ के अित+र\ पृR भाग म1 खात खनन होगा। िमथनु , कक एवं िसंह का सयू
होने पर वाय_य कोण म1 राह" का मखु , नैऋLय कोण म1 राह" का उदर, अिjनकोण म1 राह" का प&ु छ तथा
ईशान कोण म1 राह" का पृR होगा। क*या, तल ु ा तथा वृिyक का सयू होने पर राह" का मखु नैऋLय
कोण म1, उदर अिjनकोण म1, प&ु छ ईशानकोण म1 तथा पृR भाग वाय_य कोण म1 होगा। धन,ु मकर एवं
कु;भ रािश का सयू होने पर अिjनकोण म1 राह" का मखु , ईशान कोण म1 राह" का उदर, वाय_य कोण म1
राह" का प&ु छ तथा नैऋLयकोण म1 राह" का पृR होगा। अ*य क/ तरह यहाँ भी पृR िविदशा म1 ही
खातार;भ करना लाभद होता है।
देवालयिनमाण मI राह के मुख क; प@ िथित ानाथ च=-
सयू िथित राहमुख राहउदर राहप"ु छ राहप:ृ
 , , ईशानकCण वाय_यकCण नैऋLयकCण अिjनकCण
िमथुन,कक,िसंह वाय_यकCण नैऋLयकCण अिjनकCण ईशानकCण
कया,तुला,वृिQक नैऋLयकCण अिjनकCण ईशानकCण वाय_यकCण
धनु,मकर,कु3भ अिjनकCण ईशानकCण वाय_यकCण ऩैऋLयकCण

1.3.4 जलाशयिनमाण मI राहमुखपु"छ का िवचार-


# 1मा ण एवं देवालय िनमा ण क/ तरह ही जलाशय िनमा ण म1 भी राह"मख ु प&ु छ का
िवचार आवयक होता है। यC िक राह"-( 3 -प&ु छ का िवचार िकए िबना ही यिद जलाशय खनन
क/ िeया आर;भ होती है तो उस खनन म1 अनेक तरह के अनावयक _यवधान उपिथत होते हW
तथा यथे&छ जल क/ ािf भी नहh होती यिद इसका िनमा ण िकसी कार से कर िलया जाय तथा
उसम1 यथे&छ जल भी आ जाय तो भी अिधक समय तक जलाशय क/ उपयोिगता नहh रह पाती है।
इसीिलए मनsु य को चािहए िक जलाशयार;भ हेतु राह"मख
ु का िवचार करने के बाद ही खनन आर;भ

उराखड मु त िवविवालय 10


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
कर1 । जलाशय िनमा ण म1 भी मनsु यालय और देवालय िनमा ण क/ भांित सौरमास का ही Eहण िकया
जाता है जैसा िक आप लोगC को पहले ही बताया गया िक सयू क/ एक सe ं ाि*त से दसु रे सe
ं ाि*त
तक के गमन काल को सौरमास कहते हW तथा जलाशय िनमा ण म1 भी राह" मख ु प&ु छ का 5ान इन सयू
संeाि*तयC Pारा ही िकया जाता है। जलाशय िनमा ण म1 राह"मख ु प&ु छ के स;ब*ध म1 आचाय कहते हW
$ ($  !1तीन रािशयC म1 सयू के होने पर राह" का मख ु eमशः ईशानािद िवपरीत कCणो म1
होता है। अतः यिद सयू मकरािद तीन रािशयC म1 हो अथा त् मकर, कु;भ एवं मीन, रािश का सयू हो
तो राह" का मखु ईशानकCण म1, उदर वाय_य कCण म1, प&ु छ नैऋLय कCण तथा अिjन कCण म1 राह" का
पृR होता है अतः मख ु , उदर, प&ु छ इनके अित+र\ अिjन कCण म1 खात का खनन करना शभु होता
है। मेष,वृष,िमथनु ,रािश का सयू हो तो राह" का मख
ु वाय_य कCण, नैऋLय कCण म1 राह" का उदर,
अिjन कCण म1 राह" का प&ु छ तथा ईशान कोण म1 राह" का पृR होता है अतः खात का आर;भ
ईशानकCण म1 करते हW। कक , िसंह, क*या रािश का सयू हो तो राह" का मखु नैऋLय कCण, उदर अिjन
कCण म1, ईशान कCण म1 राह" का प&ु छ तथा पृR वाय_य कCण म1 होता है। अतः खात का खनन
वाय_य कCण म1 करने से शभु होता है। इसी कार यिद सयू तल ु ा, वृिyक, धनु रािश का हो तो ऱाह"
का मख ु अिjन कCण म1, राह" का उदर ईशान कCण म1, राह" का प&ु छ वाय_य कCण म1 तथा राह" का पृR
नैऋLय कCण म1 होने से खात को नैऋLय कCण से आर;भ करते हW।

जलाशयिनमाण मI राह मुखािद प@ िथित ानाथ च=-


सूयिथित राहमुख राहउदर राहपु"छ राहपृ:
मकर,कु3भ,मीन ईशानकCण वाय_यकCण नैऋLयकCण अिjनकCण
,,  वाय_यकCण नैऋLयकCण अिjनकCण ईशानकCण
कक,िसहं ,कया नैऋLयकCण अिjनकCण ईशानकCण वाय_यकCण
तुला,वृिQक,धनु अिjनकCण ईशानकCण वाय_यकCण ऩैऋLयकCण

1.3.5 यवेदी िनमाण के िलए राह का मुख प"ु छ िवचार -


महु =त िच*तामिण E*थ म1 आचाय रामदैव5 न1 तो के वल गृह, दे  4 5   $)
िनमा ण हेतु ही राह" के मखु , प&ु छािद का वण न िकया है पर*तु अ*य आचायg के अनसु ार वैिदक
िeया के अ*तग त य5ािद अनRु ान म1 भी िजस वेदी का िनमा ण का िकया जाता है उस वेदी के
िनमा ण म1 भी राह" के मखु ािद का िवचार िकया जाता है। यC िक य5ािद म1 वेदी िनमा ण से पवू यिद

उराखड मु त िवविवालय 11


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
राह" के मख ु ािद का िवचार नहh करते है तो य5ािद से ाf होने वाले के शभु फल या इ] कामना क/
पिू त नहh होती है अतः वेदी िनमा ण म1 भी राह" के मखु व प&ु छ का िवचार कर लेना चािहए। य5ािद
के वेदी िनमा ण म1 गगा िद अ*य आचायg ने वरिचत E*थC म1 कहा है िक 
वृषाकािदिकं वेां िसंहािद गणयेद् गृहे।
        
अथा त् िजस कार देवालयािद म1 राह" के मख ु प&ु छ का िवचार करते हW उसी कार य5ािद
वेदी िनमा ण म1 वृषािद ती1-तीन रािशयC म1 सयू के होने पर राह" का मखु ईशानािद िवपरीत eम क/
िविदशाओ ं म1 होता है यहां भी राह" के पृR िविदशा म1 वेदी के खात का खनन आर;भ करना चािहए।
अथा त् वेदh िनमा णाथ खात खनन म1 वृष, िमथनु एवं कक रािश का सयू होने पर राह" का मख ु ईशा1
कCण म1, वाय_य म1 मkय, नैऋLय म1 प&ु छ तथा आjनेय म1 पृR होगा। िसंह, क*या एवं तल ु ा रािशगत
सयू होने पर वाय_य म1 मखु , नैऋLय म1 मkय, आjनेय म1 पु&छ तथा ईशान म1 पृR होता है। वृिyक, धनु
तथा मकरथ सयू होने पर नैऋLय म1 मख ु , आjनेय म1 मkय, ईशान म1 प&ु छ तथा वाय_य म1 पृR होगा
इसी तरह कु;भ, मीन तथा मेष का सयू हो तो अिjनकCण म1 मख ु , ईशान म1 मkय, वाय_य म1 प&ु छ
तथा नैऋLय म1 पृR होगा। यहां भी अ*य क/ तरह खातार;भ म1 पृR भाग म1 ही शभु होता है।
वेदीिनमाण मI राह मुखािद प@ िथित ानाथ च=-
सयू िथित राहमुख राहउदर राहप"ु छ राहप:ृ
वृष,िमथुन,कक ईशानकCण वाय_यकCण नैऋLयकCण अिjनकCण
िसंह,कया,तुला वाय_यकCण नैऋLयकCण अिjनकCण ईशानकCण
वृिQक,धनु,मकर नैऋLयकCण अिjनकCण ईशानकCण वाय_यकC'
कु3भ,मीन,मIष अिjनकCण ईशानकCण वाय_यकCण नैऋLयकCण

अTयास 'U 1 -
1. मीनािद तीन रािशयC म1 सूय होने पर देवालय िनमा ण म1 खात का आर;भ िकस िदशा म1 करना
-4
2. वृिyकािद तीन रािशयC म1 सयू के होने पर गृहार;भ म1 खात का खनन िकस िदशा म1 होता है।
3. राह" का मख
ु आjनेय म1 हो तो पृR कहां होगा ?
4. खातार;भ राह" के प&ु छ भाग म1 करना चािहए।

उराखड मु त िवविवालय 12


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
5.वृषािद तीन रािशयC के सयू म1 राह" मख
ु ईशान म1 िकसके आर;भ हेतु होगा।
6.जलाशय म1 राह" के मखु भाग से खातार;भ होता है।

1.4 खात  -


  !"# " देवालय िनमा ण के िलए, # िनमा ण के िलए एवं जलाशय िनमा ण के िलए
चयिनत िकए गए भख ू डं पर िशला अथा त् नhव थापन के िलए भू खनन क/ आवयकता पड़ती है
परंतु शाMो\ िनिyत थानC से खनन आरंभ करने से ही िनमा ण म1 शभु ता रहती है !" $&7
अनावयक _यवधान उपिथत नहh होता इसिलए तािवत भख ू डं पर गृह िनमा ण म1, देवालय
िनमा ण म1 तथा जलाशय िनमा ण म1 खात क/ िदशा का िनधा रण करने के िलए आचाय न1
राह"मखु प&ु छ का िवचार िकया है। सपा कार राह" भख
ू डं पर शरीर िवतार िकए ह"ए िथत &!  !"
सयू क/ रािश संचरण के अनुसार उसका मख ु प&ु छ देवालय आिद िनमा ण हेतु प+रवित त होता रहता
है यCिक देवालय िनमा ण म1, गृह िनमा ण म1 तथा जलाशय िनमा ण म1 सपा कार राह" के मख ु म1
िभ*नता होती है। सपा कार राह" के मख
ु क/ िदशा का आरंभ सयू संeांित वशात् ईशान कोण से होता
, अतः यहां आचायg न1 िविदशाओ ं का ही Eहण कर मख ु प&ु छ एवं पृR5ान क/ _यवथा दी है।
िजसम1 सपा कार राह" ईशान कोण से वामावत कोणC म1 प+रoमण करता है। अतः देवालय आिद के
खात िव*यास म1 राह" का मख ु िजस कोण म1 होता है उससे पृR भागC म1 खात ( भिू म शोधन के िलए
गड्ढा ) शभु होता है जैसे राह" का मख
ु ईशान कोण म1 हो तो उसका पृR अिjन कोण म1 होगा और
उस कोण म1 खात करना शभु माना जाता है उसका िवतृत अkययन आपने पहले कर िलया है।
1.4.1 खात परीAण %
खात का परी:ण भिू म शोधन के िलए िकया जाता है। िजससे िक भिू म क/ अनक ु ू लता और
ितकूलता का 5ान हो सके अथा त् कौन सी भिू म िनवास योjय एवं कौन सी भिू म Lयाग योjय है
इसके िलए भिू म का परी:ण अवय करना चािहए। वातु के Eथं C म1 भिू म परी:ण क/ अनेक
िविधयां दी गई हW। िजसम1 से कुछ चिलत िविधयC का वण न आपके अkययन के िलए िकया जा रहा
है। िवxकम काश म1 आचाय कहते हW िक -
खातं भूिमपरीAणे करिमतं त*पुरयेत् तमृदा।
हीने हीनफलं समे समफलं लाभो रजो वधने।।
अथा त् भिू म परी:ण के समय भू वामी अथवा भू वािमनी (यिद भू वामी क/ एक से अिधक
पिLनयां हो तो UयेR पLनी) के हाथ से एक हाथ लंबा एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा खात कर1 ।
13 8 9
खात से िनकाली ह"ई िमwी को उसी खात म1 डाल1 िमƒी यिद अ`प हो जाए अथा त्
िनकाली ह"ई िमwी से पनु ः वह खात परू ा न भरे तो उस भिू म म1 िनवास का फल अशभु तथा िमwी

उराखड मु त िवविवालय 13


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

पणु त ः समान हो जाती है अथा त् न कम हो और न ही अिधक िमwी हो तो मkयम फल दायक होता है


पर*तु यिद िमwी खात पणू करने के बाद भी अविश] रह जाए अथा त् िमwी अिधक हो जाए तो उस
भिू म म1 िनवास करना अLय*त शभु द होता है। कारा*तर से भमू ी वािम के हत के त`ु य ल;बा
चौड़ा और गहरा खात करके उस खात को जल से पणू भर द1 और 100 $(  : 5$ 13 8 

आए और उस जल पणू खात का परी:ण कर1 अब यिद खात पहले जैसा ही जल से भरा ाf हो तो
उस भिू म का उम फल, चौथाई जल बच जाए !& मkयम फल तथा खात जल िवहीन हो जाए तो
;<( = &!  "-
*कृ*वा जलपूणमाऽऽशतपदं ग*वपरीWयं पुनः।
पादोनाऽXिवहीनके ऽथिनभृते मBयाधमे@ा3बुिभ:।।
वातु रLन नामक E*थ म1 भी भिू मशोधन के िलए खात परी:ण क/ जो िविध कही गई है 9
$)
अनसु ार गृहपित के हतमाण के त`ु य गहरा खात करके खात को जल से पणू कर द1, $3>
(
बाद जाकर परी:ण कर1 यिद खात जल से पणू हो तो शभु , जल पणू करते ही खात सखू जाए तो
अशभु एवं जल भरते समय यिद जल िथर रहे तो उस थान पर गृह क/ िथरता जाननी चािह4
आचाय नारायण भw ने कुछ कारांतर से खात परी:ण का उ`लेख करते ह"ए कहा है िक सयू ा त
काल म1 एक हाथ लंबा, -.?, गहरा खात करके उसको पानी से भर द1 तथा ातः काल आकर
उस खात का परी:ण कर1 यिद ातः काल तक उस खात म1 कुछ जल शेष रहे रह तो शभु , कुछ 
जल उस खात म1 नहh रहे तो मkयम तथा उस खात मे दरार1 पड़ी हC तो अशभु होता है। " -
व[ं हतिमतं खनेिदह जलं पूण\ िनशाये यसेत।्
'ात]@जलं थलं सदजलं मBयं *वस*फािटतम।् ।
: ( &<1 के िलए खात परी:ण करने के बाद वातक ु ारC ने खात खोदते समय उसक/ िमwी म1
िमलने वाले पाषाण आिद पदाथg (वत)ु के Pारा भी सभी शभु अशभु फलC का उ`लेख िकया है।
" -
खायमाने यदा भूमौ पाषाणं 'ा^यते तदा
धनायुिQरता वै यािद@कासु धनागम:।।
कपालाङ्गारके शादौ Kयािधना पीिडतो भवेत।्
अथा त् खात खोदने पर यिद खात म1 से पLथर िनकले तो उस भिू म पर वासकता के धन एवं आयु
क/ वृिY होती है, यिद ईट1 िमले तो धनागम होता है परंतु यिद कपाल, @A@, $& , $)
आिद िमले तो वास कता को रोग और पीड़ा कहनी चािहए। कुछ आचायg का मत है िक खात म1
यिद पLथर िमले तो वण $ , इि]का िमले तो समृिY, n_य िमले तो सुख और ता„ आिद

उराखड मु त िवविवालय 14


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

धातु िमले तो सभी कार क/ वृिY होती है।यथा -


खाते यदाaमा लभते िहरbयं तथे@कायां च समृिXर।
Kयं च र3यािण सुखािन धLे ताcािद धातुयिद त वृिXः।।
अTय़ास 'U 2 -
1-5 शय िनमा ण म1 मकर रािश का सयू हो तो राह" मख ु िकस िदशा म1 होगा?
2-देवालय िनमा ण म1 मीनािद तीन रािशयC म1 सयू होने पर राह" के प&ु छ क/ िथित िकस कोण म1
&?
3-गृहार;भ म1 कंु भािद तीन रािशयC म1 सयू होने पर राह" मखु िकस िदशा म1 होता है?
4-जलाशयार;भ म1 राह" का मख ु यिद वाय_य कोण म1 हो तो राह" के प&ु छ क/ िथित िकस कोण म
&?
5-य5 वेदी िनमा ण म1 वृषािद तीन रािशयC म1 सयू हो तो राह" के प&ु छ क/ िथित िकस कोण म1 होगी?
6-देवालय िनमा ण म1 क*यािद तीन रािशयC म1 सयू हो तो राह" के मख ु क/ िथित कहां होगी?
7- गृहार;भ म1 वृिyकािद तीन रािशयC म1 सयू हो तो राह" के प&ु छ क/ िथित $
$&'
म1 होगी?
8-जलाशय िनमा ण म1 तुलािद तीन रािशयC म1 सयू होने पर राह" मख ु िकस कोण म1 होता है?
9- ह" के िकस भाग म1 खात खनन शभु होता है।
1.4.2 खातार3भ मुहeL -
देवालय आिद िनमा ण म1 खात िवचार के बाद ही िशला*यास क/ पजू न िविध स;प*न क/ जाती है।
अतः वातक ु ारC ने खात हेतु महु =त के िवचार eम म1 कहा है क/ खात का आरंभ गृह िनमा ण म1 कहे
4  - ग शिु Y से य\ ु शभु महु =त म1 ही करना शभु होता है। सामा*य [प से खात का आरंभ भnा,
ग…ु , शeु का अत बालLव, वृYLव काल एवं धनु तथा मीन क/ सe ं ािं त काल से रिहत िदनC म1
पाप Eह यिु त तथा eूर EहC के वेधािद से रिहत न:OC म1 शभु होता है। गृह आरंभ के संबंध म1
सव थम उ`लेख िमलता है िक िवsणु बोधनी एकादशी के पyात और ह+रशयनी एकादशी के
पवू सव दा गृहार;भ करना चािहए। "-
आरंभं च समािgं च 'ासादपरु सhनाम।्
उि*थते के शवे कुयान 'सुgे कदाचन।।
खातार;भ के िलए पंचांग शिु Y अथा त् मास, प:, !",  , न:Oािद का वण न महु =त संबंधी
EंथC म1 िवतृत [प से िमलता है। आचाय नारद ने कहा है िक माग शीष , फा`गनु , वैशाख, माघ,
vावण और काित क मास म1 गृहारंभ कराने से गृहवामी को पOु लाभ और आरोjयता िमलती

उराखड मु त िवविवालय 15


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

" -
&'3यफाiगनु वैशाखमाघkावणकाितका:।
मासा: युगहिनमा
ृ णे पुारोNयफल'दा:।।
अत: खातार;भ वातु Eंथो\ एवं महु =त Eंथो\ शभु मासC म1 ही करना शभु होता है। कुछ आचायg
का मत है िक काित क, चैO, UयेR, आषाढ़, भाnपद और आिxन मास म1 गृहार;भ करना अथवा
खातारंभ करना शभु नहh होता है। आचाय रामदैव5 ने सयू संeांित स;बि*धत सौरमास एवं चा*n
मासC क/ समवेत् गणना करते ह"ए िलखा है िक फा`गनु , vावण, ., वैशाख और माग शीष मास
म1 गृह आरंभ व खातारंभ शभु होता है। गृह आरंभ म1 प: िवचार के सबं धं म1 वातु रLनावलीकार
कहते हW िक -
शुGलपAे भवे*सौlयं कृmणे तकरतो भयम।्
तमाद् िवचाय कतKयं यदी"छे "छुभमा*मन:।।
अथा त् शु ल प: म1 गृहारंभ व खात आरंभ करने से सख ु क/ ािf और कृ sण प: म1 चोरी का भय
बना रहता है। ग…ु और शe ु क/ उिदत अवथा होने पर ही शु ल प: के िदन म1 खातारंभ करना
चािहए। िनिषY ितिथयC म1 खातारंभ करने से ाf होने वाले अशभु फलC का वण न करते ह"ए
आचाय बृहPातमु ाला म1 कहते हW िक ितपदा ितिथ म1 द+रnता, चतथु ‡ म1 धन:य, अ]मी म1
उ&चाB1, नवमी म1 शM आिद से घात, अमावया म1 राजभय तथा चतदु श ी ितिथ म1 खात आरंभ
करने से Mी क/ हािन होती है। आचाय भृगु का मत है िक गृहारंभ म1 +र\ा ितिथ (4-9-14) अ]मी
एवं अमावया ितिथयC तथा रिव, चnं एवं मगं लवार िदनC का Lयाग करना चािहए। खात आरंभ म1
न:O शिु Y के िवषय म1 आचाय माड_य न1 कहा है िक अधोमख ु सं5क न:O म1 ही खातार;भ
$ 1 -4 " -
अधोमुखैभnिवदधीतखातं िशलां तथैवोBवमुखैmय पoम।् ।
तीनC पवु ा , आˆे षा, भरणी, कृ िका, मलू , मघा और िवशाखा ये नव न:O
;धोमख ु सं5क हW।
" -
"पवू ायं सापयमािNनिधmbयमधोमुखमं ूलमघािवशाखा"
पवू ‰\ ितिथयC को छोड़कर शेष अ*य ितिथयC म1 जैसे िPतीया, !#!, - (,षRी, सfमी,  (,
4$ , Pादशी, और Oयोदशी ितिथ म1 खातार;भ करना अिधक vेयsकर होता है। सf !
योगC म1 िवsकंु भ और _यितपात योग का Lयाग करके अ*य योगC म1 खातार;भ करना शभु होता है।
आचाय रामदैव5 ने पंचांग शिु Y और लjन शिु Y के िवषय म1 कहते हW िक रिववार और मगं लवार को

उराखड मु त िवविवालय 16


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

छोड़कर अ*य वारC म1 +र\ा ितिथ अमावया और सfमी ितिथ को छोड़ अ*य ितिथयC म1 चर लjन
$& (1-4-7-10) को छोड़कर शेष लjनC म1 अथा त िथर लjन (2-5-8-11) तथा िPवभाव लjन
(3-6-8-12) म1 शभु होता है। पŠचक न:OC को छोड़कर अ]म और Pादश भाव शिु Y य\ ु लjन म1
शभु Eह क1 n और िOकोण म1 िथत हो तथा िOषडाय (3-6-11) म1 पाप Eह य\ ु हो तो खातार;भ
3 &!  " -
भौमाक1र+ामाुने चरोनाङ्गे िवपpचके ।
Kय@ा*याथै शभ ु ैगqहार3भFया1रगै: खलै:।।
1.4.3 खात खनन मI राहमुखपु"छ का फल -
आप ने इस इकाई म1 पहले ही यह पढ़ िलया है िक देवालय आिद िनमा ण म1 राह" मख ु पु&छ का
िवचार िकया जाता है, यCिक राह" Lयेक भख ू डं पर सपा कार अपने शरीर को फै लाए ह"ए िवमान
रहता है तथा शरीर भाग पर खातार;भ करने से अशभु फल दायक होता है। अतः देवालय आिद
िनमा ण म1 सपा कार राह" क/ िथित जानकर खात खनन के समय राह" के शरीर के अंगC (मख ु , मkय,
प&ु छ) पर हार करने से बचना चािहए। यCिक यिद सपा कार राह" के शरीर पर हार करते हW तो
गृहवामी को अनेक कार के अशभु फलC का सामना करना पड़ता है। यथा सपा कार राह" के शीष
पर हार होने से मातृ - िपतृ:य, &3 छ पर हार करने से अनेक कार के रोग,पीठ पर हार करने से
हािन एवं भय तथा कुि: पर हार करने से पOु आिद का लाभ होता है। यथा -
शीषq मातृिपतृAय: 'थमतो खाते rज: प"ु छके ।
पृ:े हािनभय च कुिA खनने यात् पुधायािदकम।् ।

1.5
 -
1वEहC के अतं ग त सयू एवं चंnमा सिहत राह" एवं के तु का वण न महिष _यास रिचत अ]ादश
परु ाणC म1 अनेक थलC पर ाf होता है। समnु मथं न के समय भी राह" नामक रा:स ने अमृत पान
कर िलया परंतु भगवान िवsणु उसके सर धड़ को अलग कर िदया िजसम1 शीष भाग को राह" तथा
धड़ भाग को के तु के नाम से जाना जाता है। u‹ा ने राह" को सप भाग से जोड़ िदया इसिलए लोग
इसे सपा कार राह" कहते हW। सप कार का राह" होने से उसके मख
ु प&ु छ का िवचार वातु शाM म1
िकया जाता है। देवालय िनमा ण जलाशय िनमा ण तथा गृह िनमा ण म1 राह" मख ु प&ु छ का िवचार
सव थम करना चािहए। यिद इसका िवचार िकए िबना गृह आरंभ होता है तो गृहवामी के िलए
अिन] कारक होता है। राह" मख ु के िवपरीत िदशा म1 प&ु छ क/ िथित होती है। ईशानािद िदशाओ ं
के अनसु ार राह" के मख
ु पु&छ क/ िथित बताई गई है। यिद राह" का मख
ु ईशान कोण म1 होता है तो

उराखड मु त िवविवालय 17


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

प&ु छ क/ िथित नैऋLय कोण म1 जाननी चािहए। गृह िनमा ण के िलए कहा गया है िक यिद सयू
िसंहािद तीन रािशयC म1 हो तो राह" मख
ु ईशान कोण तथा प&ु छ क/ िथित नैऋLय कोण म1 होता है
अतः यहां खात खनन आjनेय कोण म1 करना चािहए। देवालय िनमा ण म1 मीनािद तीन-तीन रािशयC
म1 सयू क/ िथित के अनसु ार ईशानािद कCणC म1 खात खनन का िवचार करते हW तथा जलाशय
िनमा ण म1 मकरािद तीन रािशयC म1 सयू होने पर ईशानािद म1 राह" मख
ु िनिyत कर ! 11 $
िवचार करते हW। यिद मकरािद तीन रािशयC म1 सयू हो तो राह" मख
ु ईशान कोण म1 तथा पु&छ नैऋLय
कोण परंतु खात पृR भाग (आjनेय) म1 करते हW। िकस िदशा से खाता आरंभ करना चािहए? 
राह" का मtु य ईशान कोण म1 हो तो प&ु छ क/ िथित नैऋLय कोण म1 होती है। अतः खातार;भ पृR
भाग अथा त आjनेय कोण म1 कर1 । यिद वाय_य म1 राह" मख ु हो तो प&ु छ आjनेय म1 तथा पृR भाग
ईशान म1 होता है अतः ईशान कोण म1 होगा अतः वाय_य म1 खातार;भ करना चािहए। राह" मख ु यिद
नैऋLय कोण म1 हो तो प&ु छ ईशान कोण म1 तथा पृR वाय_य म1 खातार;भ करना चािहए। यिद राह"
$ (ख 3 आjनेय कोण म1 हो तो प&ु छ वाय_य कोण म1 होता है। अतः खातार;भ नैऋLय कोण
अथा त् पृR भाग म1 कर1 ।
1.6 पारभािषक श&दावली 
शBु द भाव- िजस भव म1 कोई भी Eह न हो।
- @AE
अधोमुख नA- कुछ न:OC क/ सं5ा िवशेष।
1.7 अ,यास -. के उ/र -
अTयास 'U ('थम)
1- आjनेय कोण म1।
2- ईशान कोण म1।
3- नैऋLय म1।
4- 1 $ 1 -4
5- वेदी िनमा ण
6- असLय
अTयास 'U (ितीय)-
1- ईशान कCण म1।
2- नैऋLय कCण म1।
3- नैऋLय कCण म1।

उराखड मु त िवविवालय 18


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

4- अिjनकCण म1।
5- नैऋLय कCण म1।
6-नैऋLय कCण म1।
7- आिjनकोण म1।
8- अिjनकोण म1।
9- पृRभाग म1।

1.8 संदभ1 2ंथ सच


ू ी
1- महु =त िचतं ामिण:- रामदैव5 : < B$ (&!  1

थम सं करण-  '
-
1972
2- बृहदवातमु ाला
3- वातरु Lनावली

1.9 सहायक पाठ्यसाम2ी


भारतीय Uयोितष - शक ं र बालकृ sण दीि:त
वातसु ौtयम् -आचाय कमलाकांत शु ला
वातु बोधनी- @F ; &$ " 
भारतीय वातमु ाला- ो. शकु देव चतवु दŒ ी

1.10 िनबधा9म  न
1-राह"मख
ु प&ु छ का सामा*य प+रचय दीिजए।
2-िदशा के अनसु ार राह"मख
ु प&ु छ िथित पर काश डािलए।
3-गृह िनमा ण के िलए राह"मखु प&ु छ का िवतारपवू क
वण न कर1
4-य5 वेदी िनमा ण के िलए राह"मख ु प&ु छ का वण न कर1 ।
5-खातपरी:ण कै से िकया जाता है िवतृत वण न कर1 ।
6-खात खनन म1 राह"मख ु प&ु छ के फल पर काश डािलए।

उराखड मु त िवविवालय 19


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 - 2 िशलाया


() क; &* -
2.1 तावना
2.2 उ े य
2.3 िशला*यास <
2.3.1 िशला*यास प+रचय
2.3.2 णा िद eम
)   $ माण
2.3.3 िशला*यास म1 ! -
2.3.4 #हार;भ (िशला*यास) महु =
2.3.5 िशला*यास <1
2.3.6 िशला*यास 5: 1
2.4
 
2.5 पा+रभािषक शAदावली
2.6 अ7यास 8C $) उर
2.7 संदभ E*थ
-: 
2.8
$ पाठ्यसामEी
2.9 िनब*धाLमक 8

उराखड मु त िवविवालय 20


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
2.1 तावना -
वातु शाM $) व…प 4 महLव $&    G!
(H!) हW I
 ()  िवxास 
; !$ 1) : ( $) $ कार
! -: 1 $) िसYा*त $& J  ;  ततु
K$7 $) अ*तग त िशला*यास $) स;पणू <1 $& समझ1ग1 K
 4 K
K$7 $ शीष क
“िशलायास #” 
(
 51!) हW $ 1 िनमा ण म1 िशला*या
$ अLयंत महLवपणू थान  िशला*यास $
शािAदक अथ &!    $ *यास $ 1 अथा त् 1 िनमा ण )!3 5: 1 पवू क " <
  $ थम *यास  थापन $ 1  िशला*यास < 3 महु = म1  स;प*न क/ 5!
हW, यCिक 3 महु = म1  *यास पवू क
# िनमा ण
)  # म1

3 शाि*त
(#िY 1 !
 !"
1!1 धमा नु[प (1 51 $)  ( लय प…ु षाथ चत]ु य क/ ािf  &!  ;!8
िशला*यास $) िवतृत महLव 4 < $ अkययन ( ततु K$7 $) माkयम
) कर1 गे
2.2 उ े य 
ततु K$7 $) अkययन $)   –
 िशला*यास $) महLव
) ;! हCगे।
 िशला*यास म1 य\ ु क/ 51)   िविभ*न  L $)  ) म1 51$  ाf
कर1 ग।े
 िशला*यास क/ 5: 1 िeया
) ;! हCगे।
 िशला*यास $) 3 महु = $& जान1ग।े
 िशला*यास $)
( य\ ु क/ 51)   सामEी
) ;! हCगे।
2.3 िशलायास  -
2.3.1 िशलायास प1रचय – : ( -1 $) उपरा*त िशला*यास Lयेक 1 $) िनमा ण क/
थम ;" आरि;भक िeया  K
िeया $&  :  $ 1) )!3 सव थम िनमा ण &1)  )
#-भवनC $) व[प $ $ 1 $ 1 आवयक &!  यC $ तदनु[प    $)
 म1 वातुशाMो\ - ाf &!)  " -
/0
कLKया !/0&*
!12 !12 पीठQे@के चे@का मृतः।। 1

ϭ
म , .

उराखड मु त िवविवालय 21


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
भावाथ   $ ' 1 पLथर $) >&B)->&B) टुकड़C
) िनिम त &1)  ) #  1
$) िशला*यास म1 पLथर क/ >&B    1 -4  1 पव तखड (?)-?)
$ )
) िनिम त &1)  ) #-1 म1 िशला*यास )!3 #!A   M 7B
) िनमा ण
)!3 तािवत # $) िनमा ण म1 िशला*यास )!3 7B क/   $  योग $ 1 -4
िमwी 4 Oृणािद
) िनिम त &1)  ) # )!3 िशला*यास क/ _यवथा !& शाM म1 नहh 
7  िक*तु जनसामा*य $& K
!  $) िनमा णार;भ $&  1 $ मरण $ $) $ 1
-4 िशला*यास )!3 स*ु दर, अखिडत 4 pढ़   $  योग उम &!  यC
$ खिडत, B)J-()J   सव था अशभु Lव $& )1)   &!  K
 4 सल ु :णा
   नhव )!3 उम (1 7  5
 $ िवxकमा न1 $  -
अखिbडतानां सु]ढ़ी  * सुलAणानां हणं िनr+म् 2
िशला*या
म1 य\ ु &1)   " < : 5! G-  L $& अिjन $&' $& ! म1
उर-पवू $) $&' (7 1)
) आर;भ $ दि:णा eम
) थािपत $ 1 -4 "-
उLरपूवq "0 कृ*वा /2* !* यसे*'थमम् 
! 3 'दिAणेन त3भाQैवं समु*था^याः 3
ततु ् < $) अ*तग त ! म1 थािपत &1)   K1 G-  L $) 1( 
शाMC म1 विण त  िजनम1 E*था*तर
) मता*तर  ाf &!) , िक*तु  ) िवमश‰परा*त
लय 4$  िसY &!  K1 G-  L $) 1( िवxकम काश म1 K
$ $) 4
हW-
नदा भा 2 1र+ा पूणाना3नी  =मम् 

अथा त् 1- 1 , 2- भnा, 3- 5, 4- +र\ा, 5- पणू ा िशला*यास क/ G-


 4G &!  K
E*थ $) ;1
3  K1 G-  L $& 7 1 eम
) ! म1 थािपत
$ 1) क/ !  $ 7  पर*तु $3> आचायg 1) आjनेयािद eम
) इ*ह1 थािपत $ 1) $
) $  आjनेय M 7 1 $&'
) स*दिभ त  -थापन $ िवमश $ 1)  बह"शः
आचायg $ (! 7 1$&' eम
)  ाf &!  "-
)!  =मेणैव था^या सवाथिसXये 


Ϯ
म , .

ϯ
   , .

उराखड मु त िवविवालय 22


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
अथा त् सवा थ- िसिY $)  4 7 1 eम
)   L क/ थापना खाता*तग त
$ 1 -4 $3> आचायg न1 वण eम
) !& $3> आचायg 1)
 वगg $& आjनेय $&'

) आर;भ $ दि:ण eम
)    क/ थापना $ 1) $& $ 
"    $
 $ # िनमा ण क/ समािf दि:ण   म1 नहh &1 -4 यC $ I
 $ 1)
) !&
<1, Mी M पOु ािद $ 1 &!  "-
आNनेयी 1 वणानामाNनेयािद =मेण  
उपय \ु मता*तर
) अिभाय   $ खाता*तग त 7 1 eम
)    $ थापन
$ 1 !" 7 1 $&'
) आर;भ $ दि:ण eम
) # $) ारि;भक त;भ ( )
$ 5&?1  सव था 3 4 vेR &!  K
 4 !& 'न*दािद'  L $&  L
म1 1(1
3  थापन $ 1) $ िनदŒश     "-
नदेित सूि+ः  !"0 हताशनाlये !   चाया 
& 4 नैऋतभागसंथा भङ्करी माrतकोणयाता 4
अथा त् 7 1 $&' क/   ‘न*दा' $ 1( 'शु ला' , आjनेय $&' क/   'भnा'
$ 1( '
3 ', नैऋ Lय $&' क/   ‘5' $ 1( '
(3 NA  4 वाय_यकोण क/  
'+र\ा' $ 1( ‘भnकरी'  M K1   eम
) िथत  L $) मkय क/   'पणू ा '
$ 1( '< '  '< ' शAद
) िवsणु $ &< &1 वाभािवक !  पजू नाथ
 L  ;NA$! )!L $) 1( 4 िचŽाङ्िकत उपकरणC $& 1-) चe Pारा दिश त
$ 5   "-
! !   5* िचह   !
1  शु ला $( u‹ा 7 1
भnा 3  

1 िवsणु आjनेय
5
(3   !& ' …n नैऋLय
+र\ा भnकरी $>3 7 1 वाय_य
पणू ा < िवsणु   मkय

ϰ
म , .

उराखड मु त िवविवालय 23


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
उपय \
ु िवषयC $ िवमश $ 1)
)  िसY &!  $  L  उपय \ ु िचOC $
;NA$1 स;भव नहh &! K
  4 I
 िथित म1 वण कार $) G
) वण - 5! <!L 3
)
िनिम त $>3, )1, िवsणु ितमा $& $ 9
 क/ 5:  खातिथत  L  $
$ क/ 5!   था 5$ चलन म1  िशला*यास )!3   $
 & !" ) $!1)
माण क/ ल;बी--.? &, इसक/  चचा वातEु *थC म1  A [प
) क/ 7  िक*तु 5
$)
( म1 राजत*O   _यवथा !&  नहh। यC $ K
!  क/ 7B 5L  साम*तC $)
( - ासाद  म1 1) )!3 15 !.  14 5!) ")  $3> 
<1EA & 
") 5& 3 7B  $ िनमा ण $  $  # 1!) ") )$1 वत मान
( म1 15 7B-
भwा $ िनमा ण-खच K!1 #!A &   $ 
 ( लोगC
) स;भव नहh  I

िथित म1 ?)-?) 7B-भƒा
ठीके दारC Pारा सŠचािलत भƒे
) 7B  $ #-िनमा ण $ 5
  I
 िथित म1 शाMो\ ई]कािद िपडमाण $!1 शY ु &, 
 & 51

$!) हW  K
 4  (11  $ 5&  7B  उपलAध &, 9
 म1
) pढ़ 4 सपु व 7B
$ -1 $
 उपलAधता सिु निyत $ ल1। िक*तु kयान ) $  ) [प
) िशला*यास
(<  ) म1 य\ ु &1)    L $ प+रमाण *यनू ािधक (>&B-?) 1 &
" 
सपु व   $ स*ु दर & !" $ )  $ ई]कािद 1 &  5
 $ $  -
6#  ! 'कi^या, ]ढ़ा मनोा प1रमाणयु+ा 
सiलAणा चाप1रमाणमाना, # यूनतरा कृmणा 5
2.3.2 वणािद =म & !  'माण – 
) !& ायोिगक [प म1 िशलामाण क/
ासङ्िगकता 1  यC $ वत मान प+रेय म1 $
 _यि\  )  वण  ) $)  4
 L $ िनमा ण 1 &! ;!3 4$ िनिyत ( म1 िनिम त  L $
 $)  4
योग &!  !" शाMो\ वण न  उपिथत $ रह1  यC $ $&7 _यि\  शाMो\
माण
) _यि\गत ईि]का $ िनमा ण $ 1 -) !&  $ 
$!  ततु सङ्ग म1
uा‹णािद वणg $)  L $ माण eमश: OP, PQ, PR 4 S ; 3 ल;बा ! 
है।अथा त् िववण  वालC $)  4 OP, :िOय वण $)  4 PQ, वैय $)  4 PR, !"
शnू वण $)  4 S, पर*तु वत मान म1 _यवहार म1 
 नहh &!
 वण $) ईटC ( )
$ माण 4$  &! 
िशला'माणं =मशः 'िद@ं वणानुपूयqण 4    
51*!* घनिवvनदा िवतारके Kयासिमतं तदधम् 76

ϱ
म, .

उराखड मु त िवविवालय 24


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 सा1रणी  माBयम & –
wाxण Aिय वैaय शू वण
4$
T1 िवx 1*द   $ दैय शAदC म1
21 ; 3 17 ; 3 13 ; 3 09 ; 3 ं C म1 ( 7)
  $ दैय अक
10-1/2 8-1/2 6-1/2 4-1/2
  $ िवतार (-.?7)
; 3 ; 3 ; 3 ; 3
5-1/4 4-1/4 3-1/2 2-1/4
 @$ ((&B7)
; 3 ; 3 ; 3 ; 3
अ*य (!
) ईि]$  U कार क/ &! " 91$) 1( 
 3 , ( , 5 4
िनम ला ) eमश: OR, PQ, PV 4 PO ; 3 माण क/ &! हW।
2.3.3 िशलायास मI   -  : @ $) $
  म1 ! (11 ) $ आर;भ $
54 K
$ 5ान राह" $) ( 3 प&ु छ $) 5ान $) <  $ 5!  5
 $  1) K
$)
पवू क/ 7$7 म1 J  राह" $) (
3 प&ु छ क/ िथित सूय $)  oमण $) ;1
3  !  
सपा कार राह" क/ िथित 5ात $ 11 $)
( K
$)  $) अगं C  हार $ 1)
) -1
-4 यCिक K
$)   $4 4 हार $) $ ' गृहवामी $& < कार $) ; 3
फलC क/ ािf &!  K
  4 वातश ु ाM $) आचायg 1) सपा कार राह" $) ( 3 , मkय 4 प&ु छ
$& >&?$ पृR  म1 खातार;भ $ 1) $ )     ) (  िनमा ण, #
िनमा ण 4 5   िनमा ण )!3 सयू क/  $) ;1
3  राह" $ ( 3 प&ु छ 5ान #"$ -#"$
&!  )  (मि*दर), #, M 5   $) िनमा ण म1 eम
) (1, 
 M ($ 

) !1-!1 रािशयC म1 सयू $) 1)  राह" $ ( 3 7 1 $&'


) आर;भकर  ! eम
)
चारC कोणC म1 &!  "- (1, (), #  $) सयू म1 )  $) िनमा ण म1 राह" $ ( 3
7 1 $&' म1, ("13 , कक , 
  $) सूय म1 वाय_य $&' म1, क*या-!3 -वृिyक  $)
सयू म1 नैऋLयकोण म1 ! <1-3 ($ M कु;भथ सयू म1 राह" $ ( 3 अिjन $&' म1 &! 
K
 कार # $) िनमा ण म1 
 -क*या M !3 
) आर;भकर, !" 5   $)
िनमा ण म1 ($ -कु;भ M (1
) आर;भकर 7 1  ! eम
) कोणC म1 राह" $ ( 3
&!  5
$&' म1 राह" $ ( 3 & 9

) पृR  म1 िथत $&' म1 ! (1&1)) $


ϲ
म, .

उराखड मु त िवविवालय 25


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
आर;भ $ 1 -), "- राह" $ (
3 नैऋLय $&' म1  !& ! $ काय वाय_य $&'
म1 आर;भ करे ग1 ;!8 Lयेक $) 11 क/   $ 5ान ( िन;न चe $) माkयम
) $
$!)
हW –

राह= $) 7 1 वाय_य नैऋLय आjनेय सयू क/


(
3 क/ (राह= $ (राह= $ (राह= $ (राह= $ 
  (3 ) (3 ) (3 ) (3 ) िथित
(1 , () ("13 , कक , क*या, !3 , <13 , ($ ,
)  सयू िथित
,# 
 वृिyक कु;भ

 , क*या, वृिyक , <1,3 कु;भ, (1, #, ("13 ,
# सयू िथित
!3  ($ () कक
($ , कु;भ, (), #, कक , 
, !3 , वृिyक,
5   सयू िथित
(1 ("13 क*या <13
! )!3
उपय\ु आNनेय )! वायKय नैऋ*य
 

" –
  
#' 2! राहोमुखं !* !" " 3 
मीनाकिसहाकमृगाकतिFभे   पृ:िविदक् !   77
!11 $) 
(*यतः िशला*यास आjनेय $&' (पवू - दि:ण) म1 $ 5! 
सव थम " < 5:  $ $) आjनेय $&' म1 थम िशला*यास $ $) )  L $ 9

! म1 दि:ण eम
) थापना क/ 5!  "
दिAणपूवq "0 कृ*वा /2* !* यसेत् 'थमम् 
! 3 'दिAणेन त3भाQैव 'ितथा^याः 8
िशलायास  &   थािपत क; 2  वतुएँ -

ϳ
ातुमाला ोक 104
ϴ
ातुमाला ोक 124

उराखड मु त िवविवालय 26


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
िशला*यास $)
( !  @A@) म1 ! ) $) बत न ($ ) म1 िमwी,
&1, 7B,
पंचरLन (G- कार $) रLन-
&1,  , (&!,  3 5 4 1 (), सfधा*य (
! $ $)
धा*य- 5.(), ! , -1,
  , $ 1, ( : , <1, गेह=)ँ , 4 1 $)
) $& नhव म1
1 -4, वत मान म1 4$ <1    क/ 1 म1 -  
&1) क/ <!3 $ 1
11 $ 5&? 4 क&छप   5!  यC $ . '$ मा*यताओ ं $) ;1
3  )1
क&छ $) पृR  !" )1 $) ='   पणू वातु [पी  पृवी िवमान  ;!8 9

तीक $& ( ;1) वातु $  < 1$ $) क&छप 4 )1 क/ $# ! $& 1
म1 थािपत $ !)  !" 9
$) 9   थापन पवू क # िनमा ण $ 5!  9
$) पyात्
5

) (िमwी, 7B  पLथर)   11 & 9


) 1 म1 @ 1 -4 K
कार
िशला*यास म1 उपय \ ु सामEी @  5!  "-
मृिद@का-वण-र*न-धाय-!1&*   
ताcपािथतं सव\ खातमBये  "2  9
2.3.4. गृहार3भ (िशलायास) मुहeL– $
 काय क/
= ! $  ) म1 आर;भ $ 
पणू [प म1 ाf &!  ;!8 गृहार;भ (िशला*यास) काय  शाMो\ 3 महु = म1  $
51 -4 K
$)  4 कालशिु kद अपेि:त &! , K
$) अ*तग त सव थम ग…ु -शe ु $
अत,  Lव 4 वृkदLव, :यमास, ;<(
, मीनाक 4 ध*वक - ' &!  यC $
उपय \ ु $ शिु kद 1)   (
, प:, !",  , न:O $) सामŠजय
) महु = 4 लjन
$ - &!  (
- $) eम म1 गृहार;भ )!3
. 4 चा*n दोनC (सC $ 9&
$ !) ह"ए K1 दोनC $) सामŠजय पवू क 3  3 मासC $ िनधा रण $ !) ह"ए रामदैव5 1)  
 $ कु;भ $) सयू म1 फा`गनु (1 म1, कक 4 
  $) सयू म1 vावण !" ($  $)
सयू म1 . (
म1 पवू 4 पिyम   $) Pार  ) गृहC $ आर;भ $ 1 -4 K
 ाकर
उर 4 दि:ण   $) आर;भ )!3 ()-# $) सयू म1   (
!" !3 , वृिyक $) सयू
म1 माग शीष (
3 &!  मता*तर
) (), #, कक , 
 , !3 , वृिyक, ($ 4 कु;भ
रािशयC $) सयू म1 eमशः चैO, UयेR, J, भाnपद, आिxन, काित क, . M (T मासC म1
गृहार;भ 3 &!  अथा त् () $) सयू म1 चैO, # म1 UयेR, कक !) सयू म1 J, 
 $)
सयू म1 भाnपद, !3  $) सयू म1 आिxन, वृिyक $) सयू म1 काित क, ($ $) सयू म1 . M
कु;भ $) सयू म1 (T (
म1 गृहार;भ 3 &!  पर*तु क*या $) सयू म1 काित क 4 <13 $) सयू
म1 (T (
म1 गृहार;भ $ 1 3 नहh &! वत मान म1   eम
) िनधा +रत मासC $) ;1
3 


ϵ
बृहातुमाला ोक 143

उराखड मु त िवविवालय 27


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
नहh ;!3
  L $) Pार  ) गृहC $)  4 उपय \ ु मासC $ योग चलन म1 K
$)
  , न:O, !", $ ' 4 योगC $) परपर स;ब*ध Pारा िनिम त 3 महु = $ -
अवय $ 1 -4 K
$) अ*तग त .( 4  $& >&?$ ) वारC म1, +र\ा !"
(4, 9, 14), अमावया M ितपदा ितिथयC $& >&?$ ) !" म1 - लjन
((),कक ,!3 ,($ लjन) $& >&?$ ) लjनC म1 पŠचक (धिनRा, !, W: W, 9W
W, ) !) न:OC
) ! अ*य विण त न:OC म1, लjन
) 8 M 12 भावC $) अित+र\ अ*य
भावC म1 शभु EहC !" !#!-षR-4$ भावC म1 पापEहC $) िथत 1)  गृहार;भ 3 &!
 5
 $ महु = िच*तामिणकार न1 $ –
भौमाक1र+ामाङ्ने " 4 िवपpचके ।
Kय@ा*यथैः शुभैगqहार3भFाया1रगैः 13 7
गृहार;भ म1 पŠचक (<1Rा, !, W: W, 9W W 4 ) ! K1 G- न:OC $&
पŠचक न:O $ 5! ) $ प+रLयाग $ 1) $)  4 ˆोक म1 $   पर*तु
“zुवमृदुवrणवाितववकपुmयैः” $) ;1
3  9X=X, 9XX, 9XX, &', मृगशीष ,
िचOा, ;1 3 <, !, वा!, धिनRा, हत 4 पsु य K1 गृहार;भ $) न:OC म1,  
धिनRा, !, 9W W M ) ! न:OC $ Eहण $   I
 िथित म1 K1 न:OC
$) स;ब*ध म1 स*देह उLप*न &1 वाभािवक  पर*तु K
$
(<1 $ !) ह"ये आचाय 1)
महु =त िच*तामिणE*थ $) िमता:राटीका म1 माड_य $ -1 उYतृ $ !) ह"ए    $ -
"धिन:ा पpचके 1 कुयात् त3भसमु"{यम् 
सूधार-िशलायास-'ाकारािदसमारभेत् 7"
अथा त् धिनRािद पŠचक न:OC म1 त;भारोपण !" गृहा&छादन िनिषY &!   *तु
िशला*यासािद अ*य
 काय $) 5
$!) हW।
#  म1 पच
ं ागशिु Y $) अ*तग त 3 ितिथयC $) िन[पण $ !) ह"ए $   $
िPतीया, पŠचमी, !#!, षRी, सfमी,  (, 4$ , Pादशी, Oयोदशी !" पिू ण मा !"G
गृहार;भ म1 3 = )1)   &! हW पर*तु ितपदा दा+रn्य $& )1)  , चतथु ‡ <1 क/ 1
$ 1)  , अ]मी उ&चाटन $ 1)  , 1( धा*य $ 1 $ 1)  , अमावया 5
$& )1)   M चतदु श ी िMयC $ 1 $ 1)   !" अमावया 5 )1)   &!
 
ितीया पpचमी मुlया  षि:का 
सgमी !  1 ादaये कादशी  7
योदशी पpचदशी 3 युः ! 
3

उराखड मु त िवविवालय 28


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
दा1र्यं 'ितप*कुया"चतुथ| धनहा1रणी 7
अ@3यु"चाटनं 1   शयघाितनी।
दशq 2* ेयं   !  710
& प@ गृहार3भ मुहeL ानाथ सा1रणी-
ग…ु -शeु $) अत, बालLव, वृkदLव, ;<(
, :यमास, ध*वक 4 मीनाक $)
कालशिु kद
अित+र\ $ 3 
 , vावण, माग शीष , फा`गनु चा*nमास vेR
3 (

(), #, कक , 
 , वृिyक, ($ , कु;भ $) सयू म1 vेR
3 !"G O, R, V, Q, PX, PP, PO, PR 4 PV 
3  च*n, <3 , बृहपित, शe ु 4 1
9X=X, 9XX, 9XX, &', मृगशीष , िचOा, ;1 3 <, वाती, धिनRा,
शभु न:O
हत 4 पsु य (चeशkु द)
शभु लjन O, R, V, Y, Q, Z, PP, PO ;1) वामी 4 3 EहC
) p] &1)  
लjन
) P, U, Q, PX, S, V म1 शभु Eह R, Y, PP म1 पापEह !" Z, PO Eह
लjनशिु kद
विज त 1)  3 
अ*य LयाUय भnा, $3&, अ]मथ च*n, : ( 1 $) न:O।

गहृ ार3भ मI सgसकारयोग – 1 िनमा ण )!3 शाMC म1 महु = ज*य 4$ मख ु & !
 , िजसम1  # $   $ 5!  !&  अLयंत 3 $ &!  9
& $
1(  सfसकार &  वातु दीप $) ;1
3  सf
$ &- 1 , वाती न:O, 

लjन, शु लप:, सfमी !", 3 &, vा' (
K1
! सकारC $) & म1 $ 
वातक ु म पOु पौOािद, 55$ !" <1-धा*यािद $& )1)   &!  " -
! ' वाती िसंहलNनं शुGलपAQ सgमी।
!
"3 kावणQ &3 सgक;ितताः 7
सgानां "" वातुः पुिवL'दः &
2v धनधायािदिन*यं ित:ित सवतः 711


10
वातरु नाकर गेहारंभकरण ोक23-25
11
बृहातुमाला गणनािवचार ोक 80-81
उराखड मु त िवविवालय 29
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
मुहeL}पयु+  !  नA 9* उनक; :/" - सयू $) न:O
) च*nमा $) न:O
!$ '1
)  5, 7, 9, 12, 19, 26 संtया ाf & !& K1 च*n न:OC म1 : ( 1
&!  अथा त् सयू 5
न:O म1 िथत !  9

) उपय \ ु सtं या  ) च*n न:O म1 : (


1 $ !  5
)  सयू अिxनी न:O म1 & !& अिxनी
) पाँचवh (# , सांतवh पनु व स,ु
नौवh आˆे षा, बारहवh उरा फा`गनु ी, उ*नीसवां (: !" छAबीसवां उराभाnपद न:O &
;!8 इनम1 : ( 1 & अथा त् सयू िथत न:O
) उपय \ ु सtं या  ) चnं न:O म1 : (
1 (1 54  K
: ( सfु म1 ($1 11, !?, , $: इLयािद 11 3 नहh
&! "-
'ोतना*पpचनगाङ्कसूयनवेदुषड्िवंशिम    
! 
 1 
* # * / * शतम् 712
गृहार3भ मI वृषवातुच= – #  )!3 महु = - $) eम म1 वृषवातु चe $ -
$ 5!  K
$) ;1
3  सयू ा िधिRत न:O
) (अथा त् सयू 5
न:O म1 & 9

))
!
न:O (अथा त् च*n न:O  #  $ 1 न:O) # (चe) $) शीष (
)  अिjनदाह
$ 1)  ), 9
$)  $) 4 न:O अिEम पैरC म1 श*ू य (िनsफल), तदन*तर - न:O > ) पैरC
म1 िथरता दान $ 1)  ), 9
$)  !1 न:O [  vी (<1) )1)  ,) 9
$)  $)
- न:O दि:ण कुि: म1  )1)  ), तदन*तर !1 न:O प&ु छ म1 वामीनाश $ $, !!8
- न:O वामकुि: म1 िनध नता )1)  ,) 9
$)  $) !1 न:O ( 3 म1 िनर*तर ? (क])
)1)  ) &!) हW। िनsकष [प म1 सयू न:O
) च*n न:O !$ '1 $ 1)
) 7 न:O ; 3 , 11
न:O 3 !" 10 न:O ; 3 &!) हW। गृहार;भ म1 Eा‘ न:O  उ\ # चe $) ;1
3 
3 = - $ (सयू न:O
) आठव1 न:O'
) 18व1 न:O पय *त) न:OC म1 & !& # िनमा ण
$ 1 -)
! )!3 # वातु चe देख1
 वातु च=
अपा पृ:पा दिAणकु  
5* शीष पृ: पु"छ 
  िA िA
सूयनA
& 0  3 4 4 3 4 3 4 3
िथर वामीना
; 
शूय kीः  दा1र्य /<
 !

12
वातुरनाकर गेहारंभकरण ोक 42
उराखड मु त िवविवालय 30
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
िनmकष 7 5!
11 !
10 !

-
गेहाार3भेऽकभा*सशीषq रामैदाहो वेदभैरपादे 
शूयं  13 पृ:पादे िथर*वं  13 पृ:े kीयुगैदAकुAौ 7
"  13 पु"छगैः वािमनाशो वेदैनःवं वामकुAौ मुखथैः 
 13 / सततं वाकिधmbयादvै rैिदिNभr+ं ~स*सत् 713
अTयास'U – 1
िन;निलिखत 8ो म1 सLय  असLय $ -1 क/िजये -
1. 7B
) # $) िनमा ण म1 िशला*यास )!3 7B क/   &1 -4 
2. 7 1 $&' क/   ‘न*दा' $ 1( 'शु ला' ,
3. :िOय वण क/   25 ; 3 क/ &1 -4 
4. सयू न:O
) 14 ) न:O म1 : ( 1 &!  
5. 1 िनमा ण म1 
  $) सयू &1)  ह= $ (3 7 1 $&' म1 &! 
गृहार3भ मI /2    9* /2 'कार - तािवत 1 $) िनमा ण $)  4 गृहार;भ
;" िशला*यास )!3 5
: ( $ ( -1 $ !) हW  िनमा ण $)
( पृवी $ 4$ >&B
B3$? माO 1 &$ समत u‹ाड $ ितिनिधLव $ !  ;!: इसम1 वातु प…ु ष $ [प
&1 वत:  ामािणक & 5!  K
 $ ' हम1 गृहार;भ $)
(  वातु प…ु ष $ 5: 1
अच न $ 1 अिनवाय & 5! 
'सादे   /  वा^यां  
जीण}Bदारपुरेषु यागभवन'ार3भिनवतने।। वातोः
/2 * &  * /2* = 
 3 राजबलभम डनम् 2.2

वातश
ु ाMानसु ार 1, $
3 1  $
  कार $) िनमा ण )!3  - eमC म1 वातु 5: 1 $
ावधान 
(१) थम खातास;भ पवू क
: ( 5: 1/गृहार;भ  िशला*यास $) [प म1
(२) सOू पात $)
(
(३) Pार थापना $ म1

ϭϯ
महु !त"िचंतामिण वातुकरण ोक -13-14

उराखड मु त िवविवालय 31


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
(४) त;भ 9[!)
(
(५) # वेश $)
(  
5
 $ विण त  –
गृहार3भे सूपाते ारं त3भसमु"चये।
'वेश &    पpचशोवातु /2  14
K1 पांचC 5: 1 $)  4 3 महु = क/ आवयकता &!  5& $ >) ! 5 -$
3 
 वातव म1 1 क/ नhव 1  िशला*यास $ 5!  िशला*यास <! 4
शाMो\ 1(1
3   $ 1 -4 यCिक 1 क/ Oिु टयC $& !& ( $-!  म1 

<3 
$!) हW पर*तु िशला*यास म1  Oिु ट &  !& K
$ $&7
(<1  म1 नहh &!
 1 हम1 $(
) $( POW वष $)  4 आvय )!  ;!: G < क/ संि:fता 
शी’ता नहh $ 1 -4
िशला*यास
) पवू सव थम : ( $&
(! $ उसक/ शिु kद $ )1 -4 : (
शिु kद क/ - < वातु E*थC म1 विण !  5
$& $ 1)
) $
  कार क/ : ( शkु द
& 5!  ततु सङ्ग म1 आचायg 1)    $-
स3माजनोपाpजनेन सेकेनोiलेखनेन 
*  प1रवाशेन  3 शुBित पpचधा।।

ू ड $& िनLय माज न (H@:) $ व&छ $ 1)


), &
) &!7 $ 1)
),
अथा त् भख
भख ू ड क/ 
-7 $ 1)
), 3 7 $ 1) !" $3>
( !$ भख ू ड म1 गायC $) 
$ 1)
)
भखू ड शkु द & 5!  तLपyात् ! )!3 वातश
ु ाMो\ 1(1
3  @AJ &1 -4
5
$ थान सयू क/  13
 Lयेक ( म1 िभ*न-िभ*न &!   
, )  4
5   )!3 िभ*न-िभ*न &! , K
$ वण न  ) $ 5 -$ 3   K
कार
) 5 (
! $&
   म1 & ल1गे ! िशला*यास आर;भ & राह" $) ( 3 -प&ु छ $ -
$ !) ह"ए ! 11 $) अन*तर पवू - दि:ण कCण अथा त् अिjनकCण म1 िशला*यास $ 1 -4
2.3.5 िशलायास # –
िशला*या
म1 सव थम उम : ( $ -1 $ $) F F-  L ;" ईwC (न*दा, भnा,
5, +रता M पणू ा स5ं क) !" -
9  L $& पवू   म1 अिjन $&' म1 था1
$ आर;भ म1 &@ &- <
) ') 
! "< वातु )! $ 5: 1
उराखड मु त िवविवालय 32
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
$  L $ :51 $ 1 -) वातु )! $) :51 eम म1 !G) $) $ म1 -F $
सप , क&छ, स“त<!3  @ $ म*O Pारा अिभमि*Oत $ : ( $) अ*द था! $ 1
-) K

) गृहार;भ काय 
1 पवू क स;प*न & 5!  िशला*या
कम गृहार;भ काय म1
;! आवय$ 
5
 $ वृहLसं! म1 ितपािदत 
दिAणपवू q "0 कृ*वा /2* !* य&  'थमम।्
! : 'दिA0 त3भांaचै 'ितथा^या:
छग3ब : #/ / : समु*था^या:
त3भत1 काय} ारो"€ा: 'य*ने 
अथा त् न*दा G-  L म1
)     अिjनकोण म1, <: , ( ,  , 9 
दि:णा
) 5:  $ $) था! $ 1 -) तदन*त ) िशलाय1 दि:णा $) eम
) था!
$ 1 -) 5G िशला*या
$ & वहh  त;भ 9[1) $ $( कर1 । ख;बा 9[!)
(
छO, ( , व”, <: -, ग*धा:त दान $ $) िनमा ण काय $ 1) $ <1 !  
 K
<
) Pार !)
(  5:  $ 1 -)
िशलाया&   संभारांaचोपकiप 
समुजािन र*ना सवु ण 2* 
सवबीजाित गधाaच !  दभात1 
शुGला  & &: सिप: के तक; # "   
6 *   मं ; # 
Aीरोदनं पण ू कु3भा  "0 "0 'दापयेत।् ।
 # भWया0 /  # 
ह*वािNनं #  मुहeत "/  

"0  सवqषु /2* कृ*वा # :
: पुbया
?" 0 िशलाया&* 'कi^ये 
@! : कृ*वा 'ाNदािAbये िवय& 
5 1 # त3भारावरोहणम।् ।
वातुिवािवधान:   & & 
:
िशलायासमोA* िनिदmटो  : / 
अथा त् G आचाय $"1  $ िशला*या
$ म1 ;1)$ कार $) वतL ु "
समnु
) उLप*न < रLन, सवु ण , -G, सव बीज, ग*ध, , दभ , T#!, के तक/पsु प,

उराखड मु त िवविवालय 33


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
(< 3 &-1, (, म, <= ,  4 जलपणू क लशC $& Lये$ कोनC म1 था! कर1 ।
अिjन म1 <!A आह"ितयाँ )$ महु =ा न[ ु प # $) कोनC म1
 क/ <1
) 5: 1 $ 1
-) तLपचा!A पु या-1  T& $)
" िशला*या
$ 1) $ <1  G
सव थम 7 1$&'
) आर;भ $ पवू

) दि:णा eम म1 था! $ 1 -)


आचाय कयप 1)  ;1
 ! म1 पवू दि:ण $&' म1 अथा त अिjन $&' म1  िशला*यास
$ 1) $ ) $ 
सूिभिLिशलाया&: त3भया"/0* 
पूवदिAणयोमBये कुयािद*या
कaय/:
अथा त् सOू , िभि, िशला*या
, त;भ &' $ ार;भ पवू - दि:ण $&' अिjनकोण
) $ 1
-4, I
 महिष कय $ -1 
2.3.6 िशलाया& /2 -   थापन $ 1)   5(1 गृहिनमा ण )!3 तािवत : ( $)
आjनेय   म1 &) ) : ( $) पिyम क/ L पवू ा िभमख ु &$ [$ -(1 ाणायाम
 कर1 । तदन*तर वित -1  $ !) ह"ए िन;निलिखत <
) संक`प कर1 ।
) $ . सक ं /Lय ;($
3 &Oोऽमक ु शमा ऽहं क+रsयमाण वातोः शभु तािसYाथ– िनिव kनतया #-
(ासाद)-िसYयथ मायरु ारोjयैxयािभवृदk् यथ– - वातोतय : (5: 1 िशला*यासŠच क+रsये
!NA!: vीगणपLयािदपजू नम् क+रsये। ') , &@ (!#$, नवEह  $ " < 5: 1
कर1  K
$)  आचाय \ अपसप *तु !) !:  ) !:  भिू मसंिथताः ) !:  िवनकता रते
नय*तु िशवा5या  K
मOं
)   सरसC चारC L >B$ पंचग_य
) : ( $& पिवO $
$ 3 &' म1  -  L $& थािपत कर1 । K
$)  सपा कार वातु $ 1 $ - \
वातोsपते ितजानीहामा*वावेशोऽनमीवो  18 यLवेमहे ित त*नो जषु व श*नो  िPपदे
चतsु पदे  K
मOं
) 5:  $  M ! $  ) 13 8 1 क/ 5:  $ ) \ 
3 $
धृतराs—Šच कक‰टकधन .  त:कै रावतौ - कालेबामिणभnकौ  K

) आठC 1गC $)  4
#"$-#"$ ;" 4$ 
" 1( मOं C
) 1 5: 1 कर1  13 8 धम [प # $
1 5: 1 $ " 5&?$ ाथ ना कर1 -
C धम}िस धमदैव*यवषृ प नमोतु  
& *  
# *  
 
पुमनुLमम।् ।


 #*  
वृषप नमोतु  
6 वृिXं  धायं  आरोNयं  
'भो।।
आरोNयं भायाया / & * &

उराखड मु त िवविवालय 34


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
[ातृणां / * सौlयं पुणां सौlयमेव 
सववं  
िवmणो! 
&*!* 'भो!
नवहयुतां  * पालयव वर'द!

13 8 पŠचिशलाओ ं $&- \ 8 शY ु ा u‹[पाः पावयि*त जगLवायम।् चािभरि˜ः


  ”ा“य थापयािम 3 ) थले।  J$ शY ु 5
) :ालन कर1 । 13 8 \
गजाxरयाव`मीकसि˜मृि Yः िशले]कान् :ालयािम शदु k् यथ– गृहिनमा णकम िण। K
) J$
सfमृितका
) :ालन कर1  13 8 पŠचग_य,  M तीथ $) 5
) <&$ शY ु वM
) पCछ द1
M 91  L $ $3($3( च*दन
) )1 $ वितक िच*ह 1$ वM
) E$$ म*O
पढ़1 –(1)\ न*दायै 1(8, (2)\ भnा 1(8, (3)\ 5 1(8, (4) \ +र\ायै 1(8,
(5)\ पणू ा यै 1(8 K1  L $) ) पांचC कु;भC (T?) क/ थापना $ )- (1)ॐपšाय
1(8, (2)\ महापšाय 1(8, (3)\   1(8, (4)\ ($  1(8, (5)\ समnु ाय 1(8
9
$)  आचाय EAE) क/ : ( $& )$ क:ा $) [ $) ] िथत xेत वण  ) -
53 L म1 T?.  , चe M : < ' $) : ( $ kयान $ )  (1)ॐकूमा य 1(8 K!
कूम मम,् (2)\ अन*ताय 1(8 K! अन*तम,् (3)\   1(8 K!  (,A K
कार
1, 5: 1 $ दोनC घटु नC
) पृवी $ पश $ 5 , <: , ! , अ:त 5., सरसC M
पsु प अय पाO म1 $ : ( $) िनिम मOं
) अय द1- \ िहरयगभŒ 
<3 ) शेषयोप+र
1  उYतृ ािस  )'
 1$11  ासादं (# ) कारया;य Lवदनू शभु ल:णम।् ।
#' ( दं स*ना 3   भ;ू यै 1(8 इदमय– समप यािम  13 8 आ„    $)
पे $) ] $
! T M ! क/  )$ ाथ ना कर1 - \ समnु मेखले )
पव ततनमडले  िवsण-ु पिLन नमत7ु यं ! :मव () इ]ं मेLवं य&छे ]ं Lवामहं '
!8 पOु दारधनायsु य-धम विृ Yकरी   13 8 @AE) म1 !) @ $ 9
$) ]
=)  सरसC
>&?)
म*O- \ भतू ेतिपशाचाा अपeाम*तु रा:साः।थानादमादu् ज*Lव*यLवीकरोिम 3 िLवमाम।् ।
9
$) ]   B - 9? क/  )$ 9
$) ] 7 पे थािपत $ 4 9
$)
]   ; 3 &) क/ क/ल ? द1  म*O- \ िवश*तु !: ) 1: लोकपालाy सव तः।
अिमन् थानेxितR*तु आयबु लकराः
  9
$) ] (<,3 T,  , सवु ण (;" …पया)
E$) ह"ए (
3  ) ता„ 
) िनिम त पš 1($ कु;भ म1 पŠचरLन , च*दन $ वM
 B$ मkय म1  द1 !" 9
 ना+रयल   द1। K
 कार पवू   L म1 -

उराखड मु त िवविवालय 35


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
T? थािपत कर1 । पवू ा िद $) eम
) महापš,  , ($ , समnु , क/ 5:  $ कु;भ $)  
िमwी )$ अ:त >&?)  13 8 अ&छे महु = म1
3 : 5! 'पणू ा 1($ 7B थािपत कर1  म*O- पणू Œ
Lवं सव दा भnे! सव स*दोहल:णे। सव– स;पणू म वे ाO कु…sवाङ्िगरसः
!3 ) तदन*तर पवू   ()-
\ न*दे Lवं नि*दनी 
3  LवामOा थापया;यहम।् अिमन् र:ा Lवया काया– ासाद !& ((A 
तदन*तर दि:ण   म1- \ भnे! Lवं सव दा भnं &$1 कु… कायिप। आयदु ा $( ) !

 3  -
  पिyम   म1- \ 5) ! Lवं सव दा ) ितR Lवं थािपता ( िनLयं
5 भLू यै - वािमनो!  भाग िव।। उर   म1-+र\े Lव+र\े दोषने िसिYवृिYदे 3 ) !
सव दा सव दोषने ितRािम*मम् मि*दरे ।। K
मOं
) थािपत $ पणू ा िद 1( म*OC
) ग*धािद Pारा
5:  कर1 । 13 8 चारC L िदपालC क/ 5:  $ $ $)
" , 9? 4 ! क/  द1।
िवxकम णे 1(8 K
कार <3 क/ 5:  $ ाथ ना कर1 - \ अ5ाना5ानतो  &8 यy ु
यद˜ ु वाः। नाशय*Lविहता*सवा न् िवxकम *नमोऽतु !) 9
$)  =?) क/ 5:  $ ाथ ना
$ ) - \ Lवs—ा Lवं िनिम तः पूव– &$1 िहतका;यया। : 5!&^
खिनOा ! Lवं िसिYदो  1&
›वु म।् । sतोsपित, मृLयŠु जय  )!L $) 5 )!3 ित5ा संक`प कर1 -
अेLयाु Lवा अनविधवषा वि&छ*नबह"कालपय *तं पOु कलOारोjय-धनािदसमृिYािfकामो
गृहिनमा णाथ– कत _यिशलाथापनाLवेन वातदु वे तामृLयŠु जयािदसादलाभाय यथासtं याप+रिमतं
uा‹णPारा 5( कारियsये।
 ' सामEी )$ -अेLयािद गृहिनमा णाथ– कत _यिशलाथापनांगभतू uा‹णPारा- वातोsपितजपं
कारियतमु िे भव रणn_यैरमक
ु ामक
ु गोOान् अमक
ु ामक
ु शम णः uा‹णान् जपकतृ Lवेन यsु मानहं #')
तदन*तर िमRान ! ' कर1 ।
उपय \

 काय eम $
 सिु व5 $ Pारा स;प*न $ 1 -4 5

) $ $&7 Oुिट 1 
5)
अTयास'U – 2
+र\ थान क/ पिू त क/िजये –
1- 1 $) िशला*यास म1 ............................ L (संtया) $ *यास $
5! 
2- सामा*यतः िशला*या
................................$&' म1 $ 5! 
3- सयू न:O
) #  1 $ न:O  -  & !&  .....................=
$ &! 

उराखड मु त िवविवालय 36


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
4- 1(1
3  uा‹ण वण $)  4  L $ माण ......................; 3 $
&1 -4
5- ........................& म1 #  अLयतं 3 $ (1  
2.4
-
ततु K$7 $) माkयम
) (1) 51  $ िशला*यास < $ शाMीय व[प या
 िशला*यास (नhव  3 1) Lयेक िनमा ण क/ थम आरि;भक िeया   िशला*यास
)!3 ! म1 *यास $ 1) )!3 K1 G-  L $) 1( eमशः 1 , भnा, 5, +र\ा 4 पणू ा
 िशला*यास )!3 स*ु दर, अखिडत 4 pढ़   $&  -13 $ )1 -4 खिडत, B)J-
()J   सव था अशभु Lव $& )1)   &!  K
 4 सल ु :णा    नhव )!3 उ(
(1 7  सवा थ -िसिY $)  4 7 1 eम
)  L क/ थापना खाता*तग त क/ 51
-4 $3> आचायg 1)
 वगg $& आjनेय $&'
) दि:ण eम म1   क/ थापना
$ 1) $& $ 
"    $  $ # िनमा ण क/ पणू त ा दि:ण   म1 नहh &1
-4 uा‹णािद वण $) eम
)  L $ माण eमश: OP, PQ, PR 4 S ; 3
!   पर*तु वत मान _यवहार म1 
  नहh &!
 वण $) ईटC ( ) $
माण 4$  &!   : @ $) $
  म1 ! (11)  िशला*यास $ 54 K
$
5ान राह" $) (3 प&ु छ 5ान $) <  $ 5!  राह" $) (3 प&ु छ क/ िथित सयू $)
 oमण $) ;1
3  !  सपा कार राह" क/ िथित 5ात $ 11 $)
( K
$)  $)
अगं C  हार $ 1)
) -1 -4 यCिक K
$)   $4 4 हार $) $ ' गृहवामी
$& < कार $) ; 3 फलC क/ ािf &!  िशला*यास $)
( !  @A@) म1 ! )
$) बत न म1 िमwी,
&1, 7B, पंचरLन (G- कार $) रLन), सfधा*य (
! कार $) धा*य 
;15), 4
) 1 म1 1 -4 4 <! 5: 1 िeया $) ;1
3  िशला*यास
$ 51 -4
2.5 पारभािषक श&दाबली
िशला*यास- : (5: 1    $ थम *यास (थापना) 
!- : ( $& 11 (&1)) $ 1) क/ िeया 
सfसकार- I
 & 51$ िनमा ण
वण
) &!  अथा त्
वण $)  
)
!
 ) िथित 4$ 1 म1 &1)
) संबि*धत &
2.6 अ,यास -.  उ/र
अTयास 1-

उराखड मु त िवविवालय 37


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
1- सLय, 2 –सLय, 3- असLय, 4- असLय, 5- सLय 
अTयास -2
1- G-  L $, 2- आjनेय $&', 3- ; 3 , 4 – 21 ; 3 , 5 –
सfसकार 
2.7 संदभ1 2थ

() (: )$ – िवxकमा , स;पा$ 4 B$$ –महिष ; काLयायन ,
िवxकम काशः(OWPR), -. 
3  ! काशन,  '
 |
() (: )$ – vीरामिनहोर िPवेदी
$ !, B$$ –@ u‹ान*द िOपाठी 4
@  शमा , वृहPातुमाला(OWPZ ) , -. 
3  ! काशन,  '
 
() (: )$ – vीरामदैव5, B$$ – ो. रामच*n पाडेय,
महु =त िच*तामिणः(OWWS) वातु करण , चौख;बा कृ sणदास ;$(,  '
 
1&B -अ*य संदभ‰ $ उYरण Lयेक संदभ $) पृR   
2.8
  पाठ्यसाम2ी -
((!(A – ((3 1
बृहLसिं हता –  (
वातसु ारः – ो. देवीसादिOपाठी
2.9 िनबधा9मक -
1- िशला*यास < $ शाMीय <1  4
2- #  (िशला*यास ) महु = $& !K)
3- िशला*यास म1 ! - $)  ) म1  4
4- िशला*यास 5: 1 िeया $& !K)
5- ततु K$7 $
  ;1) शAदC म1  4

उराखड मु त िवविवालय 38


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 - 3  िवया
इकाई क; संरचना-
3.1 तावना
3.2 उ े य
3.3 गृहक: िव*यास
3.3.1 गृह क: िव*यास का शाMीय िवधान
3.3.2 त मान काल म1 चिलत क: िव*यास
3.4
 
3.5 पा+रभािषक शAदाबली
3.6 अ7यास 8C के उर
3.7 सदं भ E*थ
-: 
3.8 सहायक पाठ्यसामEी
3.9 िनब*धाLमक 8

उराखड मु त िवविवालय 39


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
3.1 तावना -
आप सभी वातु शाM के सामा*य 5ान से प+रिचत है एवं वातु शाM के महLव को 
भलीभाँित समझते हW ऐसा मेरा िवxास है। ततु इकाई का शीष क गृह क: िव*यास से स;बि*धत 
जसम1 आप िकसी भी गृहिपड म1 िनयमानुसार बनन1 वाले क:C के थान का िवचार पढ़ेग।1 (

जानते हW िक वातश
ु ाM गृहिपड म1 िदशािधपित के अिधकार :ेO $) ;*तग त 1)  )  $&
लय कर िदशाओ ं म1 गृहक:ािद क/ _यवथा करने का िनदŒश दान करता है। इस _यवथा के पीछे
अनेक गढ़ू रहय िछपे ह"ए हW। यिद िदशाओ ं म1 िदशािधपित के अिधकार से स;बि*धत क: बनाए
जाएँ तो िदशावामी का बल तथा उनक/ नैसिग क ऊजा का बल उस गृहवामी को सदैव ाf होता
!  तथा गृहपित अपन1 जीवन म1 उLसाह पवू क कम करते ह"ए सभी सफलताओ ं को ाf करता
है पर*तु अगर ऐसा न हो तो िदशािधपित के कोप (eोध) से उLप*न द]ु फल का ितभागी बनकर
वामी को अनेक कार का दःु ख भोगना पड़ता है । भाव यह िक यिद आप िदशािधपित के :ेO म1
!1$ 3 : #क: का िनमा ण करते हW तो उन देवताओ ं से स;पोिषत पदाथ ,   ऊजा का लाभ
सहज िथित म1 अनव ! ( ! ) K
 4  -िदशापित क/ कृ ित-वभाव एवं
संर:णाLमक वृि को kयान रखकर ही गृहमडल म1 तदन[ ु प क:ािद के िनमा ण से स;बि*धत
िवषयC का उ`लेख बह"त प] [प से वातु शाM के E*थC म1 िकया गया है। इसी िवषय से सबं ि*धत
िवषयC का अkययन हम इस इकाई म1 िवतृत [प से कर1 गे
3.2 उ े य 
ततु इकाई के अkययन के बाद आप 
 वातु शाM के अनसु ार गृह म1 क: िव*यास के शाMीय िवधान से अवगत हCगे
 वत मान काल म1 चिलत गृह क: के िव*यास को भी समझ जाएँगे
 क:C क/ वैकि`पक िथित से अवगत हCगे
 $:C के िनषेध थान को समझ1गे
 गृह म1 क: िव*या

) सबं ि*धत दोषC को समझ पाय1गे
3.3 गृहक= िवयास का शा>ीय िवधान 

 : ( म1 िनिम त होने वाले भवन क/ िकस िदशा म1 कौन सा क: होना चािहए यह
अLयंत मख ु िवषय होता है यCिक िकसी भी गृह िपड क/ आ*त+रक _यवथा ही उस गृह का
(: < &!  K
$) स*दभ म1 आचाय रामदैव5 न1 महु = िच*तामिण E*थ म1 िलखा है िक -
उराखड मु त िवविवालय 40
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
नानािNनपाकशयनाFभुजQ धायभाbडारदैवतगृहािण च पूवतः युः।
तमBयततु मथनाCयपुरीषिवाTयासाlयरोदनरतौषधसवधाम।।
अथा त् पवू ा िद िदशाओ ं सिहत आjनेयािद िविदशाओ ं तथा िदशा एवं िविदशाओ ं के मkय
म1 eमशः पवू िदशा म1 लमी # अथवा नानगृह, आjनेय कोण म1 रसोई क:, दि:ण िदशा म1
शयन क:, नैऋLय कोण म1 शMागार, पिyम िदशा म1 भोजन करने का क:, वाय_य कोण म1
<1 , उर िदशा म1 n_य रखने का थान (!5& ), ईशान कोण म1 देवता गृह या पजू ा क:
1 51 -4 K
$)
"
" 5& $&ण और िदशाओ ं के मkय म1 थान होता है उसके िलए
भी आचायg ने बताया है िक पवू और आjनेय कोण के बीच म1 दही मथने के गृह का िनमा ण िकया
जाना चािहए एवं दि:ण M आjनेय कC' के मkय म1 घी रखने का थान, दि:ण एवं नैऋLय के
मkय म1 शौचालय का िनमा ण, 1_Lय और पिyम िदशा के मkय म1 वाkयाय या अkययन करने का
क:, पिyम एवं वाय_य कोण के बीच म1 कोप भवन (रोदन क:), वाय_य कCण और उर कोण के
बीच म1 रित गृह एवं ईशान तथा पवू के मkय समत वतओ ु ं के सEं ह करने का क: बनाना चािहए।
ाचीन काल म1 K
 $) अनसु ार क: _यवथा क/ जाती " पर*तु वत मान काल म1 इनम1 से $3> 
क:C का िनमा ण &!  1 $) u‹ थान (मkय के *n) म1 िकसी भी कार का िनमा ण काय नहh
$ 51 -4 K
 1( $) योग का आदेश ायः वातु शाM के सभी E*थC म1 ाf होता
है। बृहPातमु ालाकार न1 इसक/ िवतृत _याtया करते ह"ए िलखा है िक 

पवू यां kीगृहं 'ो+माNनेƒयां यामहानसम् । शयनं दिAणयां च नैऋ*यामायुधाkयम् ।


भोजनं पिQमायां च वायKयां धनसpचयम् । उLरे Kयसंथानमैशायां देवतागृहम् ।
इाNयोमथनं मBये यमाNयोघ तृ मिदरम् ॥ यमराAसयोमBये परु ीष*यागमिदरम् 
राAसजलयोमBये िवाTयासय मिदरम् ॥ तोयेशािनलयोमBये रोदनय  मिदरम् ।
 "/"! * वायKयोLरयोगहम ृ ् ॥ कौबेरेशानयोमBये िचिक*सामिदरं & 
परु दरेशयोमBये सववतषु ु सं हम् ॥ सदनं कारयेदेवं =मादु+ािन "! 14
K
कार िकसी भी गृह िपड म1 वातु शाM के आचायg न1 उपर िलखे ह"ए षोडश क:C क/
_यवथा को दशा या है िज*ह1 इस िचO के माkयम से सरलता पवू क

(H 5
$! 


ϭϰ
बृहातम
ु ाला ोक 1(2/1)156- (2/1)50

उराखड मु त िवविवालय 41


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

 पवू  आ नेय

<(" 1
5: T भडं ारक: नानक: रसोई क:
क:

घी तेल भडं ार क:
औषिध क:
उर दिण
<1 u‹थान
शयन क:
($& )
!# .- 
&51 अkययन
 3   &1 # शM, 9$ ' @ 
क: क:

नैऋय
वायय िम

इसके अित+र\ भी अनेक कार का वण न E*था*तरC म1 ाf होता है। वराहिमिहर न1 बृहLसंिहता के
वातिु वाkयाय म1 के वल चार क:C का वण न करते ह"ए ईशान म1 पजू ागृह, आjनेय म1 भोजनालय,
नैऋLय म1 भडारगृह तथा वाय_य म1 धा*यािद रखने का गृह बनाने का आदेश िकया है। अ*य क:C
का िव*यास वातु चe म1 थािपत देवताओ ं क/ वृि के आधार पर सिु निyत होता है।

अTयास'U % 1
िन;निलिखत 8ो म1 सLय या असLय का चयन क/िजये -
6. पजू ा गृह भवन के ईशान कोण म1 बनाना शभु दायक होता है।

उराखड मु त िवविवालय 42


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
7. भोजन क: पवू म1 बनाना चािहए।
8. आjनेय कोण म1 जल का थान शभु माना जाता है।
9. u‹ थान +र\ रहना चािहए।
10. दि:ण एवं पिyम के मkय का कोण नैऋLय कोण होता है।
11. वातक
ु ारC न1 गृह िपड म1 20 क:C क/ प+रक`पना क/ है।

3.3.2 वतमान काल मI 'चिलत कA िवयास - आज के समय म1 इन PY क:C क/ न तो


आवयकता है और न ही >&B)-छोटे भख ू डC पर अपनी आिथ क िथित के अनसु ार मkयम वग‡य
_यि\ को इतने क: बनाने क/ सिु वधा ;!8 व (1 स*दभ िन;निलिखत अLयावयक क:C म1 से
अपनी आिथ क स;प*नता एवं आवयकतानसु ार वरीयता eम म1 चयन करते ह"ए िनमा ण कराया जा
सकता है िजसम1 देवगृह, भोजनगृह, शयनगृह, शौचालय, भडारगृह, ब&चC का क:, माता-!
का क:, भोजन थान, अितिथगृह, साव जिनकक:, अkययनक:, _यायामक: एवं मनोरंजनक:
मख ु हW ।
/2? - सीय भवन म1 पजू ा, 9
1   <1 $)  4 7 1 कोण म1 पजू ागृह बनाया
जाता है । इस िदशा के वामी भगवान् िशव हW, जो 5ान एवं िवा के अिधRाता हW। यिप Lयौहार
एवं िवशेष अवसरC क/
(: $ 5: , हवन मांगिलक कृ Lय  घर के आँगन म1 िकये जाते हW,
यCिक यह u‹ा जी का थान है, 51$) मख ु से चारC वेदC का उपदेश ह"आ है। िफर भी दैिनक पजू ा
या िनLय िनयम के िलए ईशान कCण म1 पजू ाघर बनाना उिचत &!  दैिनक पजू ा म1 िजन म*OC का
5 $ 5! , उनके उपदेशक या आिद ग…ु भगवान् िशव हW। ईशान म1 पजू ागृह क/ थापना के
>) 4$ $ '    $ ात:कालीन सयू क/ पिवO एवं वायद रिमयाँ इस िदशा/भाग
$& शY ु एवं पिवO करती हW। पजू ाघर म1 देवी देवताओ ं क/ मिू त याँ या िचO पवू या उर क/ L
दीवार के पास रखने चािहए। इ*ह1 काR क/ चौक/ या िसं 
1  1 9-! &!  5: T $)
पवू ‡ या उरी भाग म1 देवताओ ं क/ मिू त या िचOC का मखु उर क/ ओर नहh रखना चािहए। यCिक
I
 $ 1)
) पजू ा करने वाल का मख ु दि:ण क/ ओर हो जायेगा 5& ;13 -!  T $) दि:ण 
म1 पजू ाघर नहh बनाना चािहए। और ;1) 1 क: म1  देवताओ ं क/ मिू त याँ थािपत नहh करनी

-4 5:  # $) ] -1-)  


-पास म1 शौचालय या नानघर नहh बनाना चािहए । 5: 
के कमरे म1 दीपक रखने का थान, हवन कुड या य5वेदी आjनेय कोण म1 बनानी चािहए  5:  $

उराखड मु त िवविवालय 43


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

(1 1) $)  ए आलमारी पिyम या दि:ण क/ ओर दीवार म1 बनानी चािहए  5:  T $)


 5)  दहलीज अवय बनानी चािहए और दरवाजे के कपाट (िकवाड़) अ&छी लकड़ी के और
दो प`ले वाले होने चािहए  इस कार शाMो\ िनयमानसु ार पजू ा गृह का िनमा ण करान1 से घर म1
सकाराLमक ऊजा $
- 1 ! 
नानघर  नान घर का िकसी भी भवन म1 अLय*त महžव है। वत मान म1 नानगृह M .- 
संय\ु [प से शयनक: के साथ बनाने का चलन है जो सामा*यतः वातश ु ाMीय pि]कोण से
दोषपणू है पर*तु आज कल क/ Ÿलैट संकृ ित म1 जब नानागार और शौचालय शयन क: के साथ
बनाने क/ ही पर;परा है तो भी नानागार का िनमा ण वातश ु ाM के मtु य िसYांतC के <  
करना चािहए। नानगृह एक ऐसा थान है जहाँ _यि\ रािO के आलय को दरू करने और िदन भर
$) िलए फूित ाf करने हेतु शारी+रक शिु Y हेतु जाता है। अत: वातसु ;मत नानगृह मानव क/ न
िसफ शरी+रक शिु Y अिपतु मानिसक शिु Y म1 भी सहायक होता है । वातEु *थC के अनसु ार
नानागार भवन के पवू ‡ खड म1 बनाना चािहए यCिक ातःनान करते समय खल ु े शरीर पर सयू
क/ रिमयाँ ?), जो वाय के िलए लाभद हW अत: पवू ‡ भाग म1 िनिम त नानागार शारी+रक
और मानिसक आरोjयद होता है। इसके अित+र\ नानागार का िनमा ण करते समय िन;निलिखत
वातश ु ाMीय िसYा*तC का अनपु ालन करना चािहए। यथा-
 नान गृह का िनमा ण भख ू ड (भवन ) के पवू ‡ भाग म1 करना चािहए।
 यिद शयनक: के साथ नानाघर बनाना हो तो वह भी क: के पवू ‡भाग म1 बनाना चािहए
 यिद नानघर और शौचालय संय\ ु हो तो शौचालय सदैव नैऋLय कोण से हटकर दि:ण
क/ तरफ बनाना चािहए।
 नानघर म1 नल, G 4  )
1  व: ‡ या उरी भाग म1 लगवाने चािहए।
 गम पानी हेतु गीजर या हीटर क/ _यवथा नानागृह के आjनेय कोण म1 करना शभु द &!

 नानगृह म1 िखडिकयाँ या झरोखे पवू , उर या ईशान भाग म1 रखने चािहए।
 नानगृह म1 बाथटब दि:ण से उर क/ ओर या पवू से पिyम क/ ओर रखवाना चािहए।
टब म1 नान करते समय िसर कभी भी उर क/ तरफ नहh करना चािहए।
 नानघर म1 वाय_य कोण म1 कपड़े बदलने का थान बनाना शभु है।
 नानघर का वेश Pार पवू या उर म1 रखना उम होता है।

उराखड मु त िवविवालय 44


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

&") ? - रसोई मकान का महLवपूण भाग है। रसोई म1 बनाया गया भोजन प+रवार के सभी सदय
Eहण करते है एवं वह उनके भौितक व मानिसक वाय को भािवत $ !  । गृह वािम1
अपना अिधकतर समय रसोई म1 िबताती है इसिलए रसोई उसके िलए अLय*त महLवपणू होता है।
भोजन का मन एवं मितsक से सीधा सबं धं है। अ*न से (  !1, मन और चैत*य िनिम त होता है,
इसिलए भारत के ाचीन रहयदश‡ 'अ*नं u‹' का उ ोष करते हW। स;यक् अ*न Eहण करते ह"ए
आप u‹ का बोध कर सकते हW। सOू के वल इतना है िक आप स;यक् आहार ल1, एक िनम ल
भावदशा म1 ल1 M K
 $&  : ) आन*द से िनिम त कर1 । यिद कोई साध-ु स*यासी तामसी
वृि का आहार Eहण करे तो उसके kयान म1 बाधा अवय आती है। ऐसे _यि\ सािLवक वृि
$ आहार Eहण करते हW। मन क/ वासनाओ ं और इ&छाओ ं को भोजन के Pारा िनयंिOत $ 5
सकता है। आजकल सव O असिहsणतु ा का वातावरण है। उसके िलए <3 1$  -
आचरण ही िज;मेदार हW। िजसम1 भोजन एवं भोजनक: क/ महLवपणू भिू मका तीत होती है। भवन
का आjनेय कोण रसोई के िलए सवा िधक उपय\ ु थान है। यिद ऐसा संभव न हो तो रसोई वाय_य
कोण म1  17 5
$!   तु ऐसा करने से रसोई म1 िदनभर खाना बनता रहेगा। इसके कारण
खच अिधक होने लगता है। भोजन िनमा ण करते समय गृिहणी का मख ु पवू या उर िदशा म1 रहना
चािहए। वातु शाMानसु ार रसोई घर क/ आतं +रक सUजा िन;न कार से क/ जा सकती 

उराखड मु त िवविवालय 45


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

उर

पवू
पि म


ड़क

 रसोईघर म1 गैस/च`ू हे रखने क/ पwी पवू िदशा म1 होनी चािहए िजससे िक गैस च`ू हा पवू या

दिण
; ( 
1

ि¡ज / पेयजल 

टोव

; ( 

उराखड मु त िवविवालय 46


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
आjनेय कोण म1 रखकर भोजन बनाते समय महंु पवू िदशा म1 रखा जा
$) । ऐसा स;भव
नहh होने पर उर मख
ु करके भी भोजन पकाया जा सकता है।
 रसोईघर म1 जलािद क/ _यवथा ईशान कोण म1 सव‰म है।
 रसोईघर म1 वाश-वेिसन का िनमा ण ईशान कोण का कुछ भाग छोड़कर उर क/ तरफ करना
-4
 रसोईघर म1 ि¡ज रखने के िलए पिyम या दि:ण िदशा तथा िमसी, टोटर, 5
: 5

सामान रखने के िलए वाय_य कोण उम है।
 रसोईघर म1 जल का िनकास पवू या उर से करना चािहए।
 रसोईघर के ऊपरी िहसे म1 परछी आिद का िनमा ण दि:ण तथा पिyम म1 करना चािहए।

&7T $  5: T , शयनक:, शौचालय या नानागार के िब`कुल साथ, ] 
नीचे नहh बनाना चािहए।
 भवन के ईशान कोण म1 रसोईघर का िनमा ण पOु स*तित के िलए हािनकारक है।
 भवन के नैऋLय कोण म1 पाकशाला का िनमा ण पा+रवा+रक कलहद होता है।
 यिद आjनेय म1 पाकशाला का िनमा ण संभव न हो तो पवू या वाय_य कोण म1 रसोईघर
11 -4
 रसोईघर म1 िखड़िकयाँ आिद पवू तथा उर मे रखनी चािहए।
 रसोईघर का तल पवू ‰र और ईशान म1 बने क:C क/ अपे:ा कुछ ऊँचा रख सकते हW।

शयनकA- मकान के मिु खया का शयनक: दि:ण म1 और यवु ा द;पि का शयनक: वाय_य एवं
उर के बीच म1 बनाया जाता है। ब&चC का कमरा वाय_यकोण म1 बनाया जा सकता है। िक*तु ईशान
या आjनेय कोण म1 शयनक: कभी भी नहh बनाना चािहए। यCिक ईशान कोण म1 बेड[म बनाने से
<1 1, काम म1 बाधा और क*या के िववाह म1 िवल;ब तथा आjनेय म1 बनाने से दा;पLय $ ,
अिनnा एवं िच*ताएँ घेरती है। अपने से UयेR _यि\ एवं माता-िपता का क: अपने क: से पिyम-
दि:ण म1 शभु होता है। यिद मकान दो या अिधक मिं जल का हो तो मकान क/ पहली मिं जल पर
नैऋLयकोण म1 प+रवार के मिु खया या बजु गु का शयन क: बनाया जाता है। यह क: का प+रवार के
सबसे बड़े पOु के िलए भी उपयोग िकया जा सकता है। िक*तु छोटे लोगC एवं ब&चC के िलए नहh।
सामा*यतया पलंग का िसरहाना पवू या दि:ण क/ ओर रखना उम होता है। इससे सौर एवं
उराखड मु त िवविवालय 47
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
च;ु बक/य ऊजा से शि\ िमलती है। शयनक: का Pार दि:ण म1 नहh खल ु ना चािहए। इस क: म1
िखड़िकयC पवू एवं उर िदशा म1 होनी चािहए। यिद शयनक: के साथ शौचालय/नानागार सलं jन
करना हो तो उर या पिyम म1 बनाना चािहए। शयन क: का नैऋLय कोना खाली नहh रखना
-4

K
कोण म1 आलमारी या भारी फन‡चर रखना चािहए। शयन क: म1 मि*दर या पजू ा का थान नहh
बनाना चािहए। के वल अपने इ]देव या कुलदेव का िचO लगा सकते हW। शयन क: म1 पलंग के ऊपर
छत क/ बीम या मोटी पwी नहh होनी चािहए। नगदी-आभषू ण एवं म`ू यवान वतएु ँ रखने के िलए
ितजोरी इस क: क/ पिyमी या दि:णी दीवार के सहारे या दीवार म1 इस कार रख1 िक वह उर या
पवू क/ ओर खलु े । दि:ण क/ ओर ितजोरी के खल ु ने से धन का :य होता है और पिyम क/ ओर
खल ु ने से बचत नहh होती। शयन क: म1 टी.वी, B , हीटक*वेटर आिद आjनेय कोण म1,
कूलर/एयर कडीशनर पिyम व उर म1, वाड रोब (वMC क/ आलमारी) नैऋLय या वाय_य म1
 1)-पढ़ने क/ टेबल ु पिyम म1 और ¢ेिसगं टेबल
ु पवू म1 लगानी चािहए  िन;न िचO के अनसु ार
शयन क: क/ आतं +रक सUजा हम कर सकते हW

उराखड मु त िवविवालय 48


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

उर

ार
िखड़क

#ेिसंग टेबल
पवू
पि म

भोजनकA 

िखड़क

दिण

ाचीनकाल म1 रसोई घर म1 ही बैठकर भोजन करने का चलन था। और आज रसोईघर के पास


भोजन करने के िलए डाइिनंग टेिबल लगाकर खाने का चलन है। आमतौर पर ¢ाइगं [म के एक
भाग म1 रसोई के समीप डाइिनंग टेिबल लगा ली जाती है। यह तीन-चार कमरC के छोटे घर क/ देन है।
यिद _यि\ का सामय हो और वह अलग से भोजन क: बना सके , तो यह क: भवन के पिyम म1
बनाना सव‰म है। " बृहPातमु ाला म1 कहा गया है िक -
भोजनं पिQमाया 
इसके अित+र\ भोजन क: के िनमा ण के स*दभ म1 कुछ महžवपणू तय इस कार है-

उराखड मु त िवविवालय 49


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 भोजनक: भवन के पिyम म1 बनाना चािहए।
 भोजन क: का Pार पवू , उर या पिyम म1 होना चािहए, दि:ण म1 कदािप नहh 
 भोजन करने के िलए डाइिनंग टेिबल आयताकार या वगा कार बनाना चािहए।
 भोजन करने वाले का मख ु पूव क/ ओर होना सव‰म है, पिyम और उर क/ ओर भी
शभु तथा दि:ण क/ ओर होना अशभु है
 भोजन क: का Pार तथा िखड़िकयां पवू , उर या पिyम म1 होने चािहए।
 भोजन क: का तल शेष क:C के तलC से कुछ ऊँचा रखा जाता है ।
!' - नैऋLय एवं दि:ण के बीच म1 शौचालय के िलए सबसे उपय\ ु थान माना जाता है।
;!8 शौचालय यहh बनाना चािहए। िक*तु गटर लाइन और सैि“टक टWक बनाना हो या अ*य क: के
साथ संलjन शौचालय बनाना हो, तो पिyम या उर िदशा म1 वाय_य कोण के िनकट बनाये जा
सकते हW। िक*तु ईशान, आjनेय, पवू एवं भवन के मkय म1 कदािप शौचालय नहh बनाना चािहए।
शौचालय का Pार एवं िखड़िकयाँ दि:ण िदशा को छोड़कर पवू , उर या पिyम क/ ओर बनायी जा
सकती है। शौचालय म1
B (डA`यू सी) उर या दि:ण म1 इस कार लगानी चािहए िक मल-मOू
Lयाग के समय _यि\ का महँु उर या दि:ण क/ ओर रहे। शौच के समय बैठने पर _यि\ का महँु
पवू क/ ओर होना िनिषY है। शौचालय म1 सगं मरमर का उपयोग नहh करना चािहए। चाह1 तो

) ($ BK , जो रफ हो लगाये जा सकते हW। शौचालय म1 पानी का नल या पाO पवू , पिyम या
ईशान म1 रखना उिचत है। आjनेय या नैऋLय म1 नहh रखना चािहए। इसके फश का ढलान ईशान, पवू
या उर क/ ओर रहना चािहए। शौचालय के सैि“टक टWक का गड्ढा कभी भी दि:ण िदशा म1
खोदना/बनाना नहh चािहए 
सैि^टक टI कः- सैि“टक ट1क को मल ू वाय_य म1 न होकर पिyम िदशा रखा जा सकता है। थानाभाव
म1 इसे दि:ण िदशा म1 भी रखा जा सकता है। सैि“टक ट1क को पवू एवं पिyम िदशा िथत क:C क/
दीवारC से दरू रखना चािहए। यह ट1क ईशान कोण, u‹ थान व आjनेय कोण को छोड़कर बनाना
चािहए। इसके िनमा ण म1 िन;न kयान रखना चािहये। सैि“टक ट1क मकान क/ दीवार या चार दीवारी से
सटाकर नहh बनाना चािहए। यिद भवन म1 तलघर अथा त बेसमे*ट हो तो सैि“टक ट1क, ! T
)  :
बनाना चािहये अ*यथा तलघर म1 नमी का भाव बढ़ सकता है। इसक/ ऊँचाई भिू मतल से Uयादा
नहh होनी चािहए। सैि“टक ट1क को पवू - पिyम िदशा म1 उर दि:ण क/ अपे:ा ल;बवत बनाना
-)

उराखड मु त िवविवालय 50


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
टोर कA %
जब मनsु य अपने िलए भवन बनाकर उसम1 रहना श[ ु करता है तो वह अपने जीवन को सिु वधामय
बनाने के िलए अनेक कार के वतओ ु ं का संEह करता है। इनम1 से कुछ वतएु ँ तो इस कार क/
होती है िजनका योग बह"त कम होता है अतः भवन म1 ही इन सभी वतओ ु ं को एक िनिyत थान
पर रखा जाता है तािक आवयकता पड़ने पर इनका योग िकया जा सके , ऐसे थान को ही टोर
कहते हW। टोर का भवन म1 अLय*त महLव है। भवन के नैऋLय कोण म1 टोर बनाने का िवधान है
यCिक इस भाग म1 वातपु …ु ष के पैर होते है अत: यह भाग िज!1   &, िजतना िथर होगा,
वातपु …ु ष का आधार भी उतना ही सpु ढ होगा, टोर का िनमा ण करते समय िन;निलिखत बातC का
kयान रखना चािहए। टोर का Pार ईशान, आjनेय या दि:ण म1 न बनाएँ, टोर म1 कम से कम
िखड़क/ या रोशनदान रखे। टोर :ेOफल क/ pि] से भी Uयादा बड़ा नहh होना चािहए। नैऋLय कोण
म1 भी पिyमी दीवार पर टोर का िनमा ण शयनक: और रसोईघर के साथ संय\ ु टोर का िनमा ण
भी दि:ण-पिyम म1 करना चािहए। टोर को u‹ थल या सीिढयC के नीचे कभी भी नहh बनाना
-4
" - 1 4 बह"म`ू य वतएु ँ (आभषू ण आिद) को रखने के िलए भवन क/ उर िदशा म1
कोषागार बनाना उिचत होता है। िक*तु कोषागार कभी भी भडार के साथ नहh बनाना चािहए।
यCिक इन दोनC क/ कृ ित म1 अ*तर है। भडार म1 रखी वतएु ँ ितिदन या िदन म1 कई बार रखी-
1$  5! हW, जब िक कोषागार म1 कभी-कभी कुछ रखने या िनकालने क/ आवयकता होती
है। इस क: म1 के वल एक मजबतू Pार होता है, जो पवू या उर िदशा म1 रखा जाता है। इसम1 िखड़क/
या रोशनदान नहh होते। कोषागार म1 ितजोरी या बह"म`ू य वतएु ँ रखने क/ आलमारी दि:णी दीवा
के साथ इस कार रखनी चािहए िक वह उर क/ ओर खल ु े। ितजोरी या तो िदवार म1 लगा देनी
-4  
) O-R इचं के अ*तर पर रखनी चािहए। ितजोरी या आलमारी क: के ईशान कोण
म1 कभी भी नहh रखनी चािहए। इससे धन का नाश होता है। और वाय_य कोण म1 रखने से धन क/
िन होती है। सेफ म1 बत न, कपड़े एवं सुगि*धत इO बगैरह नहh रखने चािहए। यिद सेफ/ितजोरी
दीवार म1 लगी हो तो म`ू यवान सामान सबसे ऊपर के खाने म1 नहh रखना चािहए।
आगतुक कA (…ांइगम) - आग*तक ु क: िजसे वागत क: (आधिु नक भाषा म1 ¢ाइगं [म)
कहते हW, भवन का एक महžवपणू क: है। घर म1 िकसी योजन से आने वाले लोग कुछ समय तक
इस क: म1 बैठकर गृह-सदयC के साथ िकसी िवषय पर चचा कर सकते हW। घर के सदय भी
सामिू हक [प से बैठकर इस क: म1 चचा आिद कर सकते हW। आधिु नक समय म1 यह क:

उराखड मु त िवविवालय 51


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
;<$! K
कार से बनाने का +रवाज है िक आने वाले _यि\ को इस क: म1 आते ही स;पणू
घर के िवषय म1 कुछ भी 5ान न हो, वह के वल इस क: तक ही सीिमत रह1, आग*तक ु क: का
िनमा ण करते समय अEिलिखत तय kयात_य हW।
 ¢ाइगं [म का िनमा ण ईशान से पवू क/ ओर तथा उर से वाय_य कोण क/ ओर करना
-4
 ¢ाइगं [प का तल और छत शेष क:C से कुछ नीचा रखना चािहए।
 ¢ाइगं [प म1 िखडिकयां/झरोखे आिद पवू तथा उर म1 रखनी चािहए।
 ¢ाइगं [प का वेश Pार भी पूव या उर म1 रखना चािहए।
 ¢ाइगं [म का िनमा ण नैऋLय कोण म1 हािनकारक हW ।
 ¢ाइगं [म का िनमा ण वगा कार या आयताकार करना चािहए ।
 ¢ाइगं [म म1 सोफा, दीवान इLयािद भारी फन‡चर पिyम और दि:ण िदशा म1 रखना चािहए
 गृहवामी को सदा पवू म ख ु ी या उरमख
ु ी होकर ही बैठना चािहए ।
औषिधकA - घरे लू नु खC से 7 11), दवाइयC का रखने और संeामक रोग से Eत
पा+रवा+रक सदय के िवvाम के िलए मकान के उर और ईशान के बीच म1 औषिधक: बनाया
जाता है। उर-पवू म1 होने के कारण ातः कालीन सयू क/ िकरण1 इसम1 रखी औषिधयC और िवvाम
करने वाले _यि\ को सश\ बनाती है। इन रिमयC क/ जीवाणु नाशक :मता रोगC के वायरस का
न] करती है। फलतः इस क: म1 रखी औषिध और िवvाम करने वाला रोगी ज`दी ही रोग के भाव
से म\ु हो जाता है। यह प+रवार का एक कार का +फट एड से*टर" है । इस क: का सदैव बीमारी
$)  4 9पयोग न आने के कारण अ*य कायg म1 भी इतेमाल िकया जा सकता है।
& 
-पहले संय\ ु प+रवारC म1 सव दाइयC क/ देखरे ख म1 ायः घर म1 ही कराया जाता था।
आज सव घर के बजाय अपताल एवं निस–ग होम म1 होता है। गाँव-देहात म1 जहाँ अपताल या
निस–ग होम क/ सिु वधा नहh है, वहाँ लोग सव के िलए सिू तका को पास के नगर/कबे के
अपताल ले जाते हW अथवा घर म1 दाइयC क/ देखरे ख म1 सव क/ _यवथा करते हW। सव के बाद
एक महीना या सवा महीना तक सिू तका क/ प+रचया के िलए भी एक कमरे क/ आवयकता होती
है। इन सब कायg के िलए घर के ईशान एवं पवू के बीच म1 सिू तका गृह बनाया जाता है। मता*तर से
यह नैऋLय कोण म1 भी बनाया जा सकता है।

उराखड मु त िवविवालय 52


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
अितिथ कA- हम सभी जानते है क/ हमारे देश म1 अितिथ को भगवान के [प म1 माना जाता है ।
+5  "  कहकर अितिथ का स;मान भारत के अित+र\ िकसी भी संकृ ित म1 िदखाई
नहh देता । पणू िन:वाथ भाव से तन, (1, धन से अितिथ क/ सेवा करना हर भारतीय अपना कत _य
मानता है। पर*तु अितिथ के भी कुछ कत _य शाMो\ है। के वल ऐसा अितिथ ही सेवा के योjय है जो
अपने कत _यC के ित जाग…क है जो अितिथ के वल अपना अिधकार समझ कर अितिथ धम
भल ू कर िकसी के घर म1 बह"त समय तक …ककर गृह के सदयC पर बोझ बनने लगे, I
 ;!"
कदािप सेवा के योjय नहh हW, इस प+रिथित को kयान म1 रखते ह"ए हमारे वातुशाM के आचायg ने
भवन के वाय_य कोण म1 अितिथ क: का िनमा ण करने का िनदŒश िकया हW यCिक इस कोण म1 वायु
देव का आिधपLय हW और वायु क/ कृ ित िनLय चलायमान है अत: इस कोण म1 शी’ ही
प+रिथितयC म1 प+रवत न होता रहता हW। वाय_य कोण म1 अितिथ क: का िनमा ण करने से आने
  ;!" ;1) अितिथ धम क/ मया दा भङ्ग होने से पहले ही पणू त या स*त]ु होकर जाता हW,
अितिथ क: के िनमा ण म1 अEिलिखत तय kयात_य हW-
 इस क: के पवू -उर म1 िखडिकयां आिद बनानी चािहए।
 क: के दि:ण और नैऋLय के मkय म1 सयं \ ु शौचालय का िनमा ण करना चािह4
 अितिथ क: म1 पलगं और अलमा+रयC आिद क/ _यवथा दि:ण-पिyम क/ दीवार के

" $ 1 -4
 अितिथ क: म1 हीटर आjनेय कोण म1 तथा एW
W/कूलर आिद पिyम म1 रखना चािहए।
अBययन कA- िवा का हमारे जीवन म1 िकतना महžव है? यह सब जानते हW। िवा मनsु य $&
वातिवक [प म1 मनsु य बनाती हW। िवा से हीन _यि\ अस7य माना जाता है। िवा न के वल हम1
जीवन म1 _यवहार कुशल बनाती हW बि`क हमारे नैितक-उLथान म1 भी मtु य भिू मका िनभाती है।
आधिु नक समय म1 तो िवा ही धनाज न का मल ू है यCिक जो _यि\ िजतना Uयादा िवPान,
5ानवान और शाMिवद् हो, वह उतना ही अ&छा पद ाf करता है। हर माता-िपता क/ यह इ&छा
होती है िक उनक/ स*तान उ&च िश:ा Eहण कर1, उनक/ िवाज न म1 [िच हो,  5&  J), 9
)
पणू मनोयोग से आLमसात् कर1 और आवयकता होने पर उसक/ सफल अिभ_यि\ कर1 । इसी को
kयान म1 रखते ह"ए हमारे आचायg ने नैऋLय और पिyम के मkय म1 अkययन क: बनाने का िनदŒश
िकया हW। यथो\म-्
राAसजलयोमBये िवाTयासय मिदरम्

उराखड मु त िवविवालय 53


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
अथा त् नैऋLय और पिyम के मkय म1 िवा7यास का थान बनाना चािहए। वततु : पदिव*यास क/
pि] से यह थान दौवा+रक और सEु ीव का है। इन पदC पर अkययन क: बनाने से िवाथ‡ म1
िवा7यास और अिभ_यि\ के गणु वत: ही आ जाते है। अkयय: क: के िनमा ण म1 अEिलिखत
तय kयात_य है-
 अkययन के समय अkययनकता का महँु पवू या उर िदशा क/ तरफ रहना चािहए ।
पु तकC क/ आलमारी या रै क उर-पवू क/ दीवार से सटे रख1 या उसी म1 िफस (िथर)
करवा द1। इसके बाद अ*य कोणC म1 या दीवार म1 रै क नहh बनवाना चािहए।
 अkययनक: क/ दीवारC को ह`के नीले सफे दीय\ ु रंग से  करवाना vेR होता है। इससे
अkयवसायी _यि\ क/ एकाEता सिु थर बनी रहती है। साथ ही इस रंग से आkयािLमक एवं
मानिसक शाि*त का उ˜व होता रहता है। अथा त् यह रंग दोनC का तीक माना गया है।
यिप इसके अित+र\ भी कुछ रंग हW; जैसे फ/का हरा, e/म (बा() 5& 3 $ &!)
हW।
 इस क: के ईशान या उर म1 सरवतीजी या अपने इ] का िचO लगाकर पहले उनका
मरण-पजू न कर अkययन हेतु बैठना चािहए । इस क: म1 महान् िच*तकC, महाप…ु षC एवं
वै5ािनकC और िवPानC के िचO या तैलिचOािद लगाव1 ।
 यिद अश\तावश बैठ कर पढ़ने म1 मन न लगता हो तो क:िथत पिyम म1 पलगं या
चारपाई आिद िबछाकर पवू िसरहाने के सहारे अkययन कर1 । िवक`प से दि:ण क/ तरफ
पलंग क/ _यवथा हो सकती है । बशतŒ आपका िसरहाना दि:ण तरफ तथा पैर उर क/
! =  & 
 वाय_य कोण म1 पु तक रखने क/ _यवथा न कर1 अ*यथा यह पु तक चोरी चली जाएगी या
आfजनC से मागं ली जाएगी जो कभी वापस नहh िमलेगी।
 अkययनक: म1 हवा और काश क/ _यवथा समिु चत [प म1 होनी चािहए।
 पु तक को कभी भी गीले फश पर नहh रख1, अ*यथा गीलेपन के भाव से दीमक लगकर
पु तक को :ित पह"चँ ा सकता है।
िकसी भी भवन के अ*तग त शाMो\ षोडश क:C के थान पर उस थान क/ कृ ित, वृि एवं
आवयकतानसु ार शाM एवं आवयकता के मkय सामŠजय थािपत करते ह"ए शाMो\
भोजनालय, दिधम*थन एवं घी क: के थान पर भोजनालय एवं खाभडारण, शयन एवं

उराखड मु त िवविवालय 54


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
शौचाक: को यथावत रख1ग1 यC िक ये दोनC क: आज भी उतने ही आवयक है िजतना पहले थे।
अkययन एवं शMागार के थान पर अkययन एवं _यायामशाला, कोप एवं भोजन क: के थान पर
भोजन थान, बेिसन, जठू ा वत न रखने का थान या अिववािहत पOु /पOु ी का क: बनाया जा सकता
है। पवू ‰\ अ*य क: एवं रित क: के थान पर बह= का क: एवं छोटा टोर बनाया जा सकता है।
औषिध क: एवं भडार के थान पर अितिथक:, आग*तक ु क: (डाइगं [म) या ब&चे का क:
बना सकते है। पजू ा के थान पर पजू ा का ही थान बनाय1। सव वतु और नान क: के थान पर
नान क:, बैठक या अितिथ क: आिद का िनमा ण िकया जा सकता है। िजसका मल ू आधार
वातश ु ाM के E*थ ही हW।
&EF - सोपान (सीिढयाँ) िकसी भी भवन का महžवपणू अङ्ग &! हW यCिक यह भवन के एक
! $& 
: ) !
) 5&?!  - M ;- )
)  & कार का &! - 5* 
चलं चैव िधा सोपानमी1रतम् ((1
 ), िजसम1 चल सोपान अिधकतर लकड़ी के होते हW
िज*ह1 सरलता से अपनी सिु वधा के अनसु ार एक थान से दसू रे थान पर ले जाया जा सकता है -
सोपान स;ित लोहे एवं ए`मिू नयम के भी बन रहे हW। अचं ल सोपान भवन म1 एक ही थान पर िथर
होते हW !" यह अिधकतर ईटं और पLथर
) बनाए जाते हW। कहh-कहh &)
)  ) ;-
&1
बनते हW। सीिढयC के िनमा ण के िलए भवन का पवू ‡ और दि:णी भाग सव‰म &! हW। सीिढयC का
घमु ाव सदैव दि:णा eम से अथा त् दांई तरफ होना चािहए। सीिढ़यC का िनमा ण करते समय
िन;निलिखत तयC का िवशेष kयान रखना चािहए-
 सीिढ़यC म1 सदैव & Pार रखने चािहए, िजनम1 से एक वेश Pार और 
:  िनग म Pार।
िनग म Pार वेश Pा
)
 PO   $( &1 -4
 सीिढ़यC क/ चौडाई एक हाथ से तीन हाथ तक रखनी चािहए। इनक/ वृिY Y ; 3 $)
िहसाब से करनी चािहए। सीिढ़यC म1 पायादान (टै“स) िज*ह1 प+wका कहा जाता है,
संtया तीन से आर;भ कर एक सौ तेईस तक रखी जा सकती है। इनक/ वृिY O $)
;1
3  $ 1 -4
 पायदानC क/ संtया सदैव िवषम होनी चािहए जैसे PP, PR, PV, PQ, PS, OP 
 सोपान के मkय म1 िवvाम थल का िनमा ण अवय करना चािहए। ये िवvाम थल
(Platfarm) ;1
3 < $) अनसु ार पाँच या सात पायदानC के अन*तर बनाने
-4

उराखड मु त िवविवालय 55


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 7 न कोण म1 कभी भी सीिढ़यC का िनमा ण नहh करना चािहए।
 सीिढ़याँ कभी भी घर के मtु य Pार के सामने नहh बनानी चािहए।
 सीिढ़याँ घर म1 नकाराLमक ऊजा का थान है अत: सीिढ़यC के नीचे नकाराLमक ऊजा के
थान जैसे शौचालय, टोर, और कूडा रखने का थान नहh बना1 -4
 सीिढ़यC के नीचे कभी भी मि*दर नहh बनाना चािहए।
 भवन क/ बेसमे*ट एवं ऊपर क/ मिं जल पर जाने वाली सीिढयाँ िभ*न-िभ*न थान से
&1 -4
 सीिढयC क/ दीवारC पर उम pयC का अङ्कन करना चािहए।
 घमु ावदार सीिढ़यC का घमु ाव हमेशा दि:णा eम से ही 1 -4
अ,यास-  2
+र\ थान क/ पिू त क/िजये 
6- भवन के ............................के बीच म1 औषिधक: बनाया जाता है ।
7- भोजनक: भवन के ...................म1 बनाना चािहए।।
8- सैि“टक ट1क सामा*यतः ...............................को छोड़कर ब11 -4 
9- आjनेय कोण म1 भोजन बनाते समय गृिहणी का मख ु ........................ होना चािहए ।
10-उर एवं पिyम के मkय का कोण ......................................... कहलाता है ।
3.4
 -
ततु इकाई के माkयम से हमने जाना क/ गृह क: िव*यास का शाMीय व[प या है एवं वत मान
काल म1 चिलत भवन म1 क:C का व[प कै सा होना चािहए । साम*य[प से शाMीय िवधान के
अतं ग त 16 तरह के क:C का िव*यास शाMC म1 बताया गया है । ाचीन काल म1 षोडश क:ाLमक
1 का िनमा ण करना चिलत था। लोगC के पास भवन-िनमा णाथ भख ू ड भी पया f होते थे !"
घर म1 रहने वाले सभी सदयC के vम-सहयोग से आिथ क संगठन क/ समया  आड़े नहh आती
" पर*तु वत मान समय म1 लोगC के पास पया f ल;बा-चौड़ा भख ू ड उपलAध नहh  M

लCगC क/ आिथ क समृYता  1 ! ;!8 आजकल संय\ ु प+रवार का िवघटन होने एवं
अथ हीनता के कारण छोटे-छोटे भखू डC म1 थानाभाव को pि] म1 रखते आवयकतान[ ु प गृह का
िनमा ण होने लगा है। अत: समय के साथ कृ ित-वृि एवं मनोभावािद समत िeयाLमक प+रpय
म1 बदलाव होना वाभािवक िeया ही तो है। पवू ा चायg के िनदŒशानसु ार गृह का िनमा ण वत मान म1
उराखड मु त िवविवालय 56
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
स;भव से कुछ परे अवय है। पर*तु वातशु ाM के मल ू भतू िसkदा*तC के साथ सामŠजय थािपत
करते ह"ए आज भी भवन िनमा ण िकया जा सकता है। िव5ान क/ िनLय-नयी योगाLमक िवधा का
समŠजय आिक टेचरC Pारा आधिु नकता के प+र:ेO म1 ऐसे िबठा िदया गया है िक कम जगह म1
आवयकतानु[प क:ािद का िनमा ण हो जा रहा है। ताLपय यह िक क:ािद का िनमा ण हो, उसम1
आधिु नकता भी हो। िक*तु िनमा ण यिद शाM क/ मया दा का पालन करते ह"ए हो तो वैसे गृह म1
िनवास करने वाला वामी सख ु -समृिY से पणू तथा शाि*तमय जीवन जीता है । यह तभी स;भव है
जब आप शाM से स;ब*ध रख1गे और उसम1 िवxास पैदा कर1 ग।े अतः हमेशा गृह िनमा ण वातु
शाM के िनयमानसु ार ही करना चािहए िजससे ;<कािधक शभु फल क/ ािf हो सके 
3.5 पारभािषक श&दाबली
क:-िव*यास-भवन म1 क:C क/ िथित।
u‹थान-भवन (वातु / िपंड) का मkय थान।
शMागार-शाMC को रखने का थान
3.6 अ,यास -. के उ/र
अTयास 1-
2- सLय , 2 असLय, 3- असLय, 4- सLय, 5- सLय, 6- असLय।
अTयास -2
1- उर और ईशान, 2- पिyम, 3- 7 1 $&', u‹ थान व आjनेय कोण, 4पवू ,
5 वाय_य।
3.7 संदभ1 2थ सूची
(?) (: )$  िवxकमा , स;पादक एवं टीकाकार  महिष अभय काLयायन,
िवxकम काशः(OWPR), -. 
3  ! काशन, वाराणसी |
(4) (: )$  vीरामिनहोर िPवेदी संकिलत, टीकाकार डा u‹ान*द िOपाठी एवं डा
रिव शमा , वृहPातमु ाला(OWPZ ) , चौखबं ा सरु भारती काशन, वाराणसी |
() (: )$  vीरामदैव5 , टीकाकार  ो. रामच*n
पाडेय,महु =त िच*तामिणः(OWWS) वातु करण , चौख;बा कृ sणदास अकादमी,
 '
 |
1&B -अ*य संदभ‰ का उYरण Lयेक संदभ के पृR पर है |

उराखड मु त िवविवालय 57


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
3.8 सहायक पाठ्यसाम2ी -
((!(A  ((3 1
#Lसंिहता   (
वातसु ारः  ो. देवीसादिOपाठी
3.9 िनबधा9मक -
6- गृह क: *यास का शाMीय िवधान िलिखए
7- पजू ा घर के बारे म1 िलिखए।
8- रसोई घर क/ आतं +रक सरचना के बारे म1 िलिखए।
9- शयन क: के बारे म1 बताइये
10-ततु इकाई का सारांश अपने शAदC म1 िलिखए ।

उराखड मु त िवविवालय 58


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

खड -2
गृहिनमाण िविध एवं मुह िवचार

 

उराखड मु त िवविवालय 59


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 -1 गृहिनमाण म मासािद िवचार
() क; &* 

1.1 ता1
1.2 उ े य
1.3 गृह िनमा ण म1 मास िवचार
1.3.1 गृहिनमा ण म1 प: शिु Y िवचार
1.3.2 गृहिनमा ण म1 न:O शिु Y िवचार
1.3.3 गृहिनमा ण म1 लjन शिु Y िवचार
1.4 गृहिनमा ण म1 पंचांग शिु Y िवचार
1.5
 
1.6 पा+रभािषक शAदा 
1.7 बोध नC के उर
1.8 स*दभ E*थ
-: 
1.9 सहायक पाठ्यसामEी
1.10 िनब*धाLमक न

उराखड मु त िवविवालय 60


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
1.1 ता
ततु इकाई वातशु ाO म1 िड“लो( (DVS-20) पाठ्यeम के तृतीय पO- गृहिनमा ण
िववेचन के िPतीय खड क/ थम इकाई गृहिनमा ण म1 मासािद िवचार से स;बि*धत है। इससे पवू
क/ इकाई म1 आपने गृहिनमा ण म1 राह" मख ु -प&ु छ - , खात िविध, िशला*यास एवं गृहक:
िव*यास आिद िवचार का अkययन कर िलया है। अब आप गृह िनमा ण म1 मासािद का िनण  $
)
$ !) ? इसका अkय1 $ 1) 5 ) 
गृह िनमा ण िeया म1 (
िनण य आवयक होता है। मास 5ान के िबना गृहिनमा ण
िeया म1 बाधा उLप*न हो सकती है। अत: वातश ु ाO के वक‰ एवं आचायg Pारा मासािद
- !    गृह िनमा ण म1 मास का शभु ाशभु भाव भी पड़ता है।
;!: K4 ; हम सब वातश ु ाO के अ*तग त आचायg Pारा ितपािदत गृह िनमा ण म1
(
 -  से स;बि*धत िवषयC का िवतार पवू क अkययन करते हW।
1.2 उ े य
K
इकाई के अkय1 $) पचात् आप जान लेग1 िक 
 गृहिनमा ण म1 कौन सा मास उम होता 
 गृहिनमा ण म1 (
 िवचार िकस कार िकया जाता 
 (
का शभु ाशभु भाव या &! 
 वातु शाO के अ*तग त गृहिनमा णा*तग त मास, प:, ;1 4 _!3 $ - $
) $ !)

 वातशु ाO म1 मास के अित+रत $.1-कौन सा िवचार मखु 
1.3 गृहिनमा1ण म@ मास 
गृहिनमा ण Lयेक मानव के भौितक जीवन का अिभ*न िहसा  मानवC के रहने का या
िनवास करने का था1 $& # नाम से स;बो<! $ 5!  यिप (
 51!)  $
Lयेक जीव रहने हेतु व# िनमा ण करता है पर*तु मख
ु ता के pि]कोण से G ( $)  (1
जीवन से जड़ु े वातश
ु ाOी स;बि*धत गृहिनमा ण का अkययन कर1 ग।े वातश ु ाO के अ*तग त हमारे
ाचीन ऋिषयC ने गृहिनमा ण के पवू ;1)$ िवचार उपथा! $) हW। उ*हh िवचारC म1 से एक

उराखड मु त िवविवालय 61


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 - (
 - 
सव थम (
$& G
(H!)  (
$
) $!) ? (
$!1) &!) ? $.1-कौन से मख ु
(
? गृहिनमा ण म1 मासािद का िवचार कै से करते हW? आइए हम सभी इन समत नC $) उर
को यहाँ जानने का यास करते हW।
िOशं त् िदनाLमकं मासमेकम् अथा त् RW िदनC का एक मास होता है। 
 1) चैOािद Pादश
(PO) मासC का नाम अवय 
13  & इन मासC का हम1 $ 1( भी वेदC म1 ा“त &!
है। मख ु ता एवं _यावहा+रक pि]कोण से सौर मास एवं चा*nमास दो कार के मासC का सवा िधक
चलन िदखलाई पड़ता है।
सयू के Pारा एक रािश (RW ; ) $ & $ 
. (
 के नाम से जाना जाता है। अमा*ताA
अमा*तं यावत् चा*nमास:। अथा त् एक अमा*त से दसू रे अमा*त पय *त चा*n(
 होता है। चैOािद
(
क/ गणना चा*nमास म1 ही होता 
मास‡  1  - (<,3 (<, शe ु , 3 -, 1:, तपय, K, ]जा , माग , , !
,
तपय
'चिलत मास‡ का नाम  चैO,  , Uयेsठ, J, vावण, भाnपद, आिxन, काित $,
माग शीष , ., (T, फा`ग1ु 
; गृह िनमा ण म1 मास िवचार के अ*तग त अkययनोपरा*त हम1 अलग-; ग मत ा“त होते हW।
आइए हम सब उनका यहाँ अवलोकन करते हW।
महिष  जी के मत मI ह ार3भ के अतगत &' &  -
पौषफाiगुनवैशाखमाघkावणकािLकाः 
&3 युगृहिनमाणे पुारोNयशुभ'दाः 
अथा त् महिष नारद जी के अनसु ार ., फा`गनु ,  , (T, vावण, काित क ) समत
.
(
#-िनमा ण म1 पOु , पौO, आरोjय  3 = )1)  ) &!) हW। अत: गृहार;भ म1 इन मासC
का Eहण $ 1 -4
kीपित   & गृहार3भ के अततगत चामास  -
!"" धायं मृितपशुˆती KयवृिXिवनाशो
युXं भृ*यAितरथ # * kीQ व‰भय*वम।्
लWमी'ािgभवित भवनार3भकLुः =मेण

उराखड मु त िवविवालय 62


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
चैादूचे मुिन1रित ;* वातुशाFोपिद@  
vीपित $) ;1
3  चैOािद चा*nमासC म1 गृहार;भ
) eमशः &$, धा*य, मृLयु,  3 ',
n_यवृिY, 1 , यYु भय, भृLय-:ित, <1 , vीािf, अिjनभय  लमीािf &! , I

बतलाया गया है। पsटता के िलए आप नीचे :ेO म1 देखकर समझ सकते हW 
गृहार3भ मI GH मास‡  ; 
चै  येठ 
ाव भा आिन काितक माग.   फागु


 धा'य मृयु   )*य  य+
ु भय भृय ,ित  -ी: अि0न ल1मी
ि+   ! ाि2

हिनमाण मI &"  5 -


पाषणे@यािदगेहािद िन3मासे  
तृणदागहृ ार3भे &"" िवते 
!#'  $? $) # म1 (
& नहh &! ; िक*तु ', 7B  (B# -$ # िन*
मासC म1 नहh 11 -4 ऐसा ऋिषयC का मत है। अत: इसका गृहिनमा ण म1 kया1 1
-4
गृहिनमाण मI आचाय लiल   -
# िनमा ण आर;भ करने के पवू आचाय ल`ल का कथन है िक यिद न काल म1 कता
िजस अगं का पश कर न $ ! &, कालप[ ु ष का वह अगं यिद शभु Eह से यतु या psट & !&
उसे गृहार;भ का आदेश करना चािहए अथवा नहh। यथा 
कालनरय यदगं ं सौ3यहवीिAतं युतं वाA/
त"चे*प! ृ  'mटा तदायिनमाणमिदaय  
वृX नारद ारा गृहिनमाण मI कालशुिX िवचार %
आर3भं च समािgं च 'ासादपुरसhनाम।्
:  के शवे कुयान 'स^ु ते  
अथा त् ासाद, परु और गृह का आर;भ अथवा समािf भगवान िवsणु के जाEतावथा म1 ही
करना चािहए उनके शयन काल म1 नहh।
गृहार3भ मI मास स3बिधत अय  -
चैे !"* 
* यामाधवेऽथ' 
उराखड मु त िवविवालय 63
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
Cये:े मृ*युकरं ! ' /!
* तृिXदं kावणे।।
शूयं भापदेि*वषे * भृ*यAयं क;ितके ।
धायं मागसहययोदहनभीमाघे िkयं फाiगनु े।।
गृहार;भ  चैO (

) $ 5 !& &$ &! ,   म1 <1- , UयेRमास म1
मृLयदु ायक, J (
म1  3 1, vावण म1 पशवु िृ Y, भाnपद म1 श*ू यता (िनिseयता,
;
), आिxन (
म1 $ , काित–क म1 भृLयनाश, माग शीष , M . (
म1 अ*नलाभ
(T(
म1 अिjनभय, M फा`गनु (
म1 गृहार;भ $ 1)
)  &!  K
सदं भ म1 िन;न
ˆो$  n]_य -
!"" धायं  पशहु यती Kयविृ Xिव\नांशो।
युXं भृ*यAितरथफलं kीQवहेभंयं 
लWमी'ाितभंवित भवनार3भकतुः =मणे।
चैादूचे मुिनिभरसकृातुशाFेषु िवैः।।
 ारा किथत मासशुिXः -
सौ3यफाiगुनवैशाखमाघkावणकाित\काः।
&3 युगहिनमा
ृ णे पुारोNय फल'दाः।।
माग शीषं, फा`गनु ,  , (T, vावण M कािक ं (
म1 गृहार;भ $ 1)
) पOु M
आरोjयता ाf &! 
अय  -
वैशाखे kावणे मागq माघे फाiगु  
कयायुNमधनुम|निभने सूयq गृहं शुभम।् ।
 , vावण, माग शीष, माघ और फा`गनु मास तथा क*या, ("13 , <13 M (1 $)
सयू को छोड़कर गृहिनमा ण शभु होता हW।
*याCय & मI मतात -
आषाढ चैाaवयुजोजमाघCयेmठे षु स'ौmठ/   
    * ?I * /0*  aवरचायमते न शत  
E, चैO, आिxन, काित क, (T, Uयेsठ, और भाnपद ये मास योगेवराचाय $)
मतानसु ार गृहिनमा ण म1 शभु द नहh होते हW।

उराखड मु त िवविवालय 64


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 मत मI &*=ाितवशेन 'शत &:-
गृहस
ं था/ * सूयq मेष‹ो ! *  
वषृ थे धनवृिX: यािमथुने मरणं zुवम।् ।
ककटे शुभदं 'ोGत िसंहे भृ*यवधनम्
कया"*  ले सौlयं वृिQके धनवधनम् 
कामुके तु महाहािनमकरे याXनागम:
कु3भे तु र*न: यामीने सद3भयावहम् ।।
मेष के सयू म1 गृहथापन शभु द होता है। वृष के सयू म1 धनवृिY, िमथनु के सयू म1 मृLयु,
कक के सयू म1 सुभ, िसह के सयू म1 भLु यC क/ वृिY, क*या के सयू म1 रोग, तल
ु ा के सयू म1 सखु ,
वृिyक के सयू म1 धनवृिY, धनु के सयू म1 महL 1, मकर के सयू म1 धनागम, कु;भ के सयू म1
रLनलाभ और मीन के सयू म1 गृहार;भ  )1)   &!  
उपय ु त लोक के अनसु ार मेs, #, कक , 
, तलु ा वृिyक मकर और कु;भ के सयू म1
गृह िनमा ण शत होता है। मेष के सयू फा`गनु चैO मास म1 वृष के सयू वैशाख और Uयेsठ मास म1,
कक के सयू vावण मास म1, िसंह के सयू भाnपदमास म1, तुला के और वृिyक के सयू काित क और
माग शीष मास म1, मकर कु;भ के माघ और फा`गनु मासC म1 होते हW। इस कार चा*n और और मासC
म1 िवरोधाभास उ*प*न होने से गृहिनमा ण काय म1 कौन मास Eाहय हो इसके िनण य हेतु राम दैव5 का
यह वचन nsट_य  
कु3भेAकq फाiगनु े 'ागपरमुखगहृ ं kावणे िसहं कGय}:
/' न=े च या3योLरमुखसदनं गोA2 Aकq च राधे।।
मागq जूकािलगे सद् zुवमृदुवणवाितववकपुmयै:
सतू ीगेह*वसिद*यां ह1रभिविधभयोत शत: 'वेश:।।
अथा त् फा`गनु मास म1 कु;भ $) , vावण मास म1 कक और िसहं के , तथा पौष मास म1 मकर
के सयू होने से पवू - पिyम िदशा म1 Pारवाले गृह का िनमा ण कराना शभु है। वैशाख मास म1 मेष-#
$) , माग शीष मास म1 तुला और वृिvक के सयू हC तो उLत -दि:ण Pार वाले गृह का िनमा ण शभु द
हW। ›वु , (#,3 !, वा!, वसु (धिनsठात) अक (हत) और पsु य न:OC म1 jहार;भ 3  &!
 
: !$# $ 1मा ण पनु व सु म1 ार;भ करना चािहए तथा vवण अथवा अिभिजत न:O उसम1
म1 वेश करना चािहए।
उराखड मु त िवविवालय 65
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
   न 
1. 4$ मास म1 िकतने िदन होते हW?
$. OW .Q .RW T.RYV
2. अमा*ताद अमा*तं !A $ !?
$. सौरमास: ख. चा*n(
: .  (
: T. ( (
:
3. सयू क/ दैिनक गित िकतनी है?
$. PW $  . P ; . R ; T. RW ;
4. vीपित के अनसु ार वैशाख मास म1 गृहार;भ का या = ?
$. पOु ािf ख. धा*य ािf ग. रोग घ. भय
5. िवsणश ु यन म1 गृहार;भ 1)<    $
$ (! ?
$. vीपित ख. रामदैव5 ग. वृY नारद घ. िववकमा
6. कु;भ के सयू म1 गृहिनमा ण कै सा होता है?
$. शत ख. अशभु ग. मkयम घ. कोई नहh

kीपित   -
किकनGतह1रकु3भतेऽकq पूवपिQममुखािन गृहािण ।
तौिलमेषबृषवृिवaवतेदिAणोतरमुखािन च कुयात् ।।
अयथा यिद करोित दुमितKयािधशोकधननाश नमaनु 
 /  4  कारये गृहमेव भाक 
पवू - पिyमािभमख
ु गृह का िनमा ण, कक , ($ , िसंह और कु;भ $)
य: म1,
या;मोLतरािभमख ु गृह का िनमाण तल
ु ा, वृिyक, मेष और वृष के सयू म1 करना शभु द होता है। इनसे
K! (1, <1,3 िमथनु और क*या के सयू म1 गृहिनमा ण कराने वाला _यि\, &, &$ और धन:य
से कsट &! 
रामदैव   -
कै िQमे' घौ वृषभगे Cयेmठ शुचौ ककटे ।
भाे िसहगते घटऽaवयुिज चोजqऽलौ मृगे पौषके ।।
माघे नGतघटे शुभं िनगिदतं गेहं तथोजq न स* 

उराखड मु त िवविवालय 66


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
कयायां च तथा धनुmय/ &*कृmणा &   
िकसी के मतानसु ार मेष के सयू चैOमास मे, वृष के सयू Uयेsठ मास म1, कक के सयू हC तो
आषाढ़ मास म1, िसंह के सयू भाnपद मास म1, तल ु ा के सयू अिxन मास म1, वृिyक के सूय काित क
मास म1, मकर के सयू पौष मास म1, तथा मकर या कु;भ के सयू यिद माघ मास म1 हC तो ये मास
गृहार;भ के िलए शभु द होते हW। काित क माघ मास म1 क*या का तथा माघ मास म1 धनरु ािश के सयू
गृहार;भ म1 LयाUय होते हW। मासC क/ गणना कृ ण प: से ही करनी चािहए।
इस संदभ म1 विशsठ का वचन भी nsट_य  -
& तपये तपिस माधवे नभिस ि*वषे
उजq च गृहिनमाणं पुपौधन'दम् 
जीणगहृ िनमाणे मासशिु X: -
जीण}Xारे जलाNया: / 

kावणोजq तथा माघे कारये*सु* 
 
जल अथवा अिjन से पितत जीण गहृ ोYार vावण, काित क और माघ मास म1 करने से गृह
का सख
ु कLता को ा“त &! 
 * डागaच वािटकोXरणं गृहम् 

&"* शतं माघेऽिप मुिनस*त 
) , ! , बाग आिद का उYार काय गृहार;भ के मासC म1 तथा माघ मास म1 करना
3  &! 
तृणदागहृ ार3भे मास दोषो न िवते।
पाmाणेmट
 िन &   
शतं पशुगृहं Cयेmठे चािvने धाय  
/ ! माघे चैे धारागहृ ं तथा ।।
तृण और दा[ (काsठािद) के गृह िनमा ण म1 माम शिु Y आवयक नहh पLथ M 7B $)
गृह का िनमा ण LयाUय मासC नहh करना चािहए। Uयेsठ मास म1 पशश ु ाला आिxन मास म1
धा*यभडा , माघ मास म1 पौशाला आिद का िनमा ण, तथा जलधारा गृह का िनमा ण चैO मास म1
$ 1 -4

उराखड मु त िवविवालय 67


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
1.3.1 गृहार3भ मI पAशुिX   -
शुGलपAे भवे*सौlयं कृmणे तक"  
महिष विशmठ   -
गीवाणपवू गं ीवाणमिणो]aय  "
शुGलपAेिदवाकायं न िनमाणञरािषु।।
शु ल प: म1 गृहार;भ करने से सखु क/ ािf होती है। कृ णप: म1 गृह िनमा ण से चोरी का
 ! 
ग[
ु शe ु के उिदत होने पर शु लप: के िदन म1 गृहार;भ $ 1 -4 1 $ रािO म1।
G रािO शAद से मkय रािO के दो हर माO ही Eहण करना चािहए न िक स;पणू रािO।
5
 $ $  - '(1  तु िव5ेया मkयमं हरम् ' !"-
अतदोषोऽिप नो ाहाय: पितदैविसको बुधै:।
नातदोष: सदा भानोमnे चेदोननीचता।।
गृहार3भ मI िनिषX ितिथ -
दा1रयं 'ितप*कुया"चतुथ| धनहा1रणी।
अmट3यु"चाI  ेया नवमी श? 
आमायां राजभीितया"चतुदaयां िया: Aय:।
ितपदा ितिथ म1 गृहार;भ द+रnता, चतथु ‡ म1 धन:य, अsटमी म1 उ&चाB1, 1( !" म1
शOा
) T!, अमावया म1 राजभय तथा चतदु श ं ी ितिथ म1 गृहार;भ $ 1) से Oी क/ हािन होती

 /-
1रGताmटमीदशरवीदुभौमािववजनीया िबदुषा 'य*न:
+रता!"G (4914), अsट(, अमावाया ितिथयC तथा रिव, च*n M .( रC को
यLनपवू क
Lया )1 -4 
1.3.2 गृहार3भ मI नA शुिX  -
िचानरु ाधामृगरेवतीषु वातौ च ितmये च तथो*त&
wाहयो धिनmठा!कासु गेहािदकार3भणमानित।।

उराखड मु त िवविवालय 68


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
िचOा, ;1 3 <, (# , ) !, वा!, पsु य,, उLतराOय, &', धिनRा और शतिभष,
इन न:OC म1 गृहार;भ 3  &! 
िचाशतिभषGवाती हत: पुmयपुनवसु ।
"
0 ममूल kवणो*तरफाiग ु 
धिनmठाचो*तराषाढ़ा तथा भाो*तरािवता।
वातु पूजनमेतेषु नAेषु करोित य: ।
समा^नो " लWमीिमित 'ाह पराशर:।।
िचOा, !, वा!, हत, पsु य, पनु व स,ु &', ) !, (: , vवण उLतराफा`ग1ु , धिनsठा,
उLत E, उLतरभाnपद, अिxनी, मृगशीष तथा अनरु ाधा न:O म1 वातु पजू न करने वाला _यि\
लमी को ा“त $ !  I
   $ (! 
गग ने भी ऐसा ही कहा है-
यु*तरेऽिप च रोिहbयां पु^ये मैे करे।
धिनmठािदतये पौmणे गृहार3भ: 'शय 
अय  -
हतािद*यशशाङकपुmयपवन'ाCयेशिमो*त:
िचािvkवणेषु विृ Qकघटौ *यव*वा िव1रGते'
शु=ाचायशनैaचरशिशनो वारेऽनुकूले िवधौ।
सिTदवqaम &गृहिविध: Aेमंकर: क;ितत:।।
हत, 13 
3, (# , पsु य, वा!, &', ;1 3 <, उLतराOय, िचOा, अिxनी और
vवण न:O म1, वृिyक और कु;भ लjन तथा +रता ितिथयC (4914) को Lयाग कर अ*यितिथयC
ु , वृहप!, 1, बधु और सोमवार को च*nमा अनुकूल होने पर उपय ु त न:OC म1 गृहार;भ
म1 शe

: !$# $ 1मा ण क`या'$ $ &! 
वातुराजवiल थ  5 &  -
वातो: कमिण िधmbययोऽिvय*तराणां िकम् 
हतािदयमैवतोयिमदं पुmयो " "
0
िनौभूसुतभाकरौ च शुभदा पूणा च नदा:
 * 1#!गbडप1रघKयाघातवा अिप।।

उराखड मु त िवविवालय 69


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
वातकु म म1 Eा‘ न:O वार ितिथयC को कहता ह=।ँ अिxनी उLतराOय, हत, िचOा, वा!,
;1 3 <, Uयेsठा, पsु य, (# M &' ) 3   , भौम वार छोड़कर अ*य वारC म1,
न*दा और पणू ा (9।6।99।5।10।15) ितिथयC म1, <# !, : , गड, प+रघ, _याघत और व¥योगC
को छोड़कर अ*य योगC म1 वातु कम शु  &! 
अय  -
िवmकु3भKय/'  ! ' ": / !" :
शतं नागववाlयतैितलगरं युNमां ितिथं वजयत् 
मौहeत *वथ िवaवमmटनवमं पंचिरागािकम् 
kेmठं च िदतयं तुलावृषघटौ युNमं धनु: कय 
िवsकु;भ और _या!! &ग को छोड़ अ*य योग शभु द हW। नाग, , !! ,  , $ '
भी vेsठ हW। समितिथयC को Lया )1 -4 35678913 !"G !" !3 , #, कु;भ,
("13 , धनु और क*या लjन vेsठ &! 
म*य/ 0  5 &  -
वKयाघातशूलेषु Kयितपाताितगbड":
िवmकु3भगbडप1रघे चाmट"   
िवaवकम'काश थ  5 & -
वातीमैेऽथ माहेे गाधवq भगरोिहणे।
त3भो"छायािदकतKयमय प1रवजयेत् ।।
वा!, ;1 3 <, Uयेsठा, घिनsठा, पवू फ
ा`ग1ु , &', त;भ क/ ऊचाई आिद काय
$ 1 -4। अ*य न:OC म1 नहh।
1.3.3 गृहिनमाण मI लNनशिु X  -
यङगेवा िथरभे च सौ3यसिहते लNने शुभैव|िAते।
सौ3यैव|यसमिवतैaच दशमे िनमाणमाहबुधा:।
तैवाधीनवके गै: सफ ु लदं पापैिFषmठा1:
=ू रोहयmटमसंिथतोऽिप मरणं कु*तुिवध*ते   
शभु EहC से युत या दsु ट, िथर अथवा िPभाव लjन म1 वातक
ु म शभु होता है। अथवा
िजस लjन से के *n (1।4।7।10 भावC) म1 अथवा िOकोण (4/9 भाव) म1 शभु Eह, और िOषडाय

उराखड मु त िवविवालय 70


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
(3/6/11 भाव) म1 पाप Eह िथत हC उस लjन म1 वातक
ु म शभु होता हैा अsटमभाव यिद पापाeा*त
& !& गृहश
े क/ मृLयु &! 
kीपित क; स3मित भी कुछ इसी 'कार है-
ङगेिथरे वा भवने िवलNने सौ3यहैयुGतिनरीिAते च।
कमिथतैव|ययुतैaचसौ3यैिनमाणमाहभवनयसत: 
पापैिFषडायगतैिFकोणे के ािkतैसाधुिभरालयय
वदितिनमाणिमहाmटमथ: =ुरतु कतुमरणं करोित।।

1.4 गृहिनमा1ण म@ !  " शुिA 


रामदैव  5 & -
भौमाक1रGता ? " 4 /* 
Kयmटा*यथै: शुभैगqहार3भाया1रगै: खलै: ।।
 M .( , +रता (4914) अमावाया और स“तमी ितिथयC, चरलjन M
वाणपंचक को छोड़कर अsटम और Pादश क/ शिु Y हो, के *n, िOकोण शभु ाि*वत हो िOषडाय पाप
3 त & I
) लjन म1 गृहार;भ 3  &! 
गृहार;भ म1 पंचक का प+रLयाग करने के िलए उत लोक म1 कहा गया है। पर*तु इससे पवू गृहार;भ
न:OC म1 धिनsठा, !, 900 और रे वती न:OC का Eहण िकया गया है। ऐसी िथित म1 इन
न:OC के स;ब*ध म1 स*देह उLप*न होना वाभािवक है। इसका समाधान करते ह"ए आचाय ने
िमता:रा टीका म1 माड_य _ $ -1 $  
धिनmठा पंचके नैव कुयात् त3भसमु"€ 
सूधार िशलायास 'कारािद समारभेत।् ।
अथा त् धिनsठा पंचक न:OC म1 त;भारोपण तथा गृहा&छादन िनषेध है। पर*तु अ*य सभी काय िकए
जा सकते हW।
गृहार3भ मI नA और वार का फल %
पुmयzुवेदुह1रसपजलै: सजीवै
तासरेण च कृतं सतु राCयदं या
ीशािvतAवसुपािशिशवै: सशु=ै

उराखड मु त िवविवालय 71


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
वारे िसतय  हं धनधायदं या 
अथा त् ग…ु से यु त पsु य, ›वु सं5क तीनC उरा, &', (# , vवण, आले 4 0: 0,
न:OC म1 तथा ग…ु वार को आर;भ िकया गया गृह पOु और राUय सख ु को देने वाला होता है। शe
ु से
यु त  , अिxनी, -Oा, धिनsठा, शतिभषा और आnा न:OC तथा शe ु वार को आर;भ
$  # <1-धा*य $& )1)   &! 
अ*य = 
&1: करेCया*यमघा3बु 1:
कौजेऽिŽवेaमािNनसुताितदं या 
सै: कदाायमतAहतै
यै रे सुखपुदं या 
.( से यु त हत, पsु य, ) !, (T, 0: 0, मल
ू न:OC म1 तथा मगं लवार को आर;भ $
गया गृह अिjनभय एवं पOु को कsट देने वाला होता है। बधु से यु त &', अिxनी, 90=0,
िचOा और हत न:OC म1 तथा बधु वार को िनिम त गृह सख ु और पOु देने वाला होता है।
1.5

इस इकाई के अkययन के पचा!A 1) 51    $ गृहिनमा ण Lये$ (1 $)
भौितक जीवन का अिभ*न िहसा  मानवC के रहने का या िनवास करने का था1 $& # 1(
से स;बो<! $ 5!  यिप (
 51!)  $ Lयेक जीव रहने हेतु व# िनमा ण करता
 पर*तु मखु ता के pि]कोण से यहाँ हम के वल मानव जीवन से जड़ु े वातश ु ाOी स;बि*धत
गृहिनमा ण का अkययन कर1 गे। वातश ु ाO के अ*तग त हमारे ाचीन ऋिषयC ने गृहिनमा ण के पवू
अनेक िवचार उपथािपत िकये हW। उ*हh िवचारC म1 से एक है - मासािद िवचार। िOंशत् िदनाLम$
मासमेकम् अथा त् RW िदनC का एक मास होता है। आप सभी ने चैOािद Pादश (PO) मासC का नाम
अवय ही सनु ा होगा। इन मासC का हम1 $ 1(  वेदC म1 ा“त होता है। मख ु ता एवं
_यावहा+रक pि]कोण से सौर मास एवं चा*nमास दो कार के मासC का सवा िधक चलन िदखलाई
पड़ता है। सयू के Pारा एक रािश (RW ; ) $ & $ 
. (
 $) 1(
) 51 5! 
अमा*ताद् अमा*तं यावत् चा*nमास:। अथा त् एक अमा*त से दसू रे अमा*त पय *त चा*n(
 &!
है। चैOािद मास क/ गणना चा*nमास म1 ही होता है। महिष नारद जी के अनसु ार ., फा`गनु ,

उराखड मु त िवविवालय 72


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 , (T, vावण, काित क ) समत
. (
#-िनमा ण म1 पOु , पौO, आरोjय  3
= )1)  ) &!) हW। अत: गृहार;भ म1 इन मासC का Eहण करना चािहए।
1.6 पारभािषक श&दा#
स=ं ाित - प+रवत न

 T
&' &  सयू के Pारा एक रािश भोग काल सौर मास कहलाता है।
चा &  एक अमा*त से दसू रे अमा*त पय *त चा*n(
&! 
&  चैOािद 12 मास होते हW।
गृहार3भ  गृह िनमा ण का आर;भ
1.7 बोध  न. के उ/र
1. 
2. 
3. 
4. 
5. 
6. $
1.8
दभ1 2थ

वात
ु  :  ोफे सर देवीसाद िOपाठी
वृहPात(ु    B$$  डॉ. ह+रशक ं र पाठक
महु =ि च*ता('  रामदैव5, B$$  आचाय रामच*n पाडे
वातरु Lना$ -
1.9 सहायक पाठ्यसाम2ी
वातरु ाजव`ल
((!(A
वातु बोिधनी
महु =ि च*ता('
वृहLसं!
उराखड मु त िवविवालय 73
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
1.10 िनबधा9मक  न
1. मास का प+रचय दीिजये।
2. गृहार;भ िनमा ण म1 िविवध मास िवचार फल िलिखये।
3. (
 - $ (!-मता*तर ततु क/िजये।
4. गृहिनमा ण म1 प:, मास एवं लjनशिु Y का ितपादन क/िजये।
5. गृहिनमा ण म1 पंचांग शिु Y िवचार का लेखन क/िजये।

उराखड मु त िवविवालय 74


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 - 2 गृह"ार िवचार
() क; &* 

2.1 ता1
2.2 उ े य
2.3 # Pार -
2.3.1 िदशाओ ं का Pार फल िवचार
2.3.2 Pार वेध का फल
2.3.3 Pार स;बि*धत उपnव फल
2.3.4 Pारथापन चe
2.3.5 Pारथापन म1 ितयािद िनण य िवचार
2.4
 
2.5 पा+रभािषक शAदा 
2.6 बोध नC $) उर
2.7 स*दभ E*थ
-: 
2.8 सहायक पाठ्यसामEी
2.9 िनब*धाLमक न

उराखड मु त िवविवालय 75


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
2.1 ता
ततु इकाई वातश ु ाO म1 िड“लो( (DVS-20) पाठ्यeम के तृतीय पO- गृहिनमा ण
िववेचन के िPतीय खड क/ िPतीय इकाई गृहPार िवचार से स;बि*धत है। इससे पवू क/ इकाई म1
आपने गृहिनमा ण म1 मासािद िवचार का अkययन कर िलया है। अब आप गृह िनमा ण म1 Pार का
िनण य कै से करते है? इसका अkय1 $ 1) 5 ) 
$
 भी गृह के िनमा ण िeया म1 Pार िनण य का अLय*त महLवपणू प: होता है। Pार
िकस िदशा क/ ओर होनी चािहए। Pार कै सा होना चािहए। Pार का दैय -िवता $!1 &1
-4  इLयािद समत िवषय गृहPार िवचार के अ*तग त आते हW।
K4 हम सब वातश ु ाO के अ*तग त आचायg Pारा ितपािदत गृह Pार िवचार
)
स;बि*धत िवषयC का िवतार पवू क अkययन करते हW।
2.2 उ े य
K
इकाई के अkययन के पचात् आप जान लेग1 िक 
 गृहPार $
) $!) 
 गृहिनमा ण म1 Pार का िनण य कै से िकया जाता है।
 # Pार का दैय -िवता $!1 &1 -4
 Pार $ 3 शभु भाव या &! 
 वातशु ाO म1 गृहPार का िनण य िकस कार िकया गया है।
2.3 गृहCार िवचार
वातशु ाO $) वक‰ Pारा गृहिनमा ण िeया म1 Pार का िवचार अLय*त महLवपूण
बतलाया गया है। गृहPार का शभु ाशभु फल Lय:तया गृहवामी पर पड़ता है। अतएव गृहिनमा ण
पर;परा म1 आचायg ने गृहPार का महLव ितपािदत िकया है।
# का मtु य Pार कै सा होना चािहए? िकस िदशा म1 होना चािहए? उसका दैय - िवता
$!1 &1 -4? गृहिनमा ण म1 Pार शिु Y, न:O शिु Y आिद इLयािद समत िवषयC का
ितपादन इस इकाई म1 आपके 5ानाथ त!ु $ 5   गृहय Pारं गृहPारम।् सामा*य!
गृहPार का अथ होता है  घर का मtु य Pार। गृहPार के अkययनोपरा*त 
 $& ;1)$ (!-
मता*त  )1) $& (ल1ग।े तो आइए हम एक-एक उसका अkय1 $ !) 
उराखड मु त िवविवालय 76
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
िविभन रािश वाल‡ के िलए गृह ार िनणय %
पूवq wाxणराशीनां वैaयानां दिAणेशुभम।्
शू ाणां पिQमे ारं नृपाणामुLरेमतम।् ।
uा‹ण  (कक , वृिyक, (1) वालC के िलए गृह Pार पवू म1, :िOय रािश (#, क*या 4
($ ) वालC के िलए उर म1, वैय  (("13 , !3 , कु;भ) वालC के िलए दि:ण म1 तथा शnू
 ((), 
 4 <1)3 वालC के िलए पिyम िदशा म1 गृह Pार बनाना शभु फल देने वाला होता
है। राजाओ ं के िलए उर िदशा म1 गृहPार बनाना उम होता है।
6 पर*वेन ार िनणय %
सवारइहBवजोवणिदNा* च िह*वा ह1र:।
'ाNा"  " गजो यम सरु ेशाशामुख: या"छु:
अथा त् kव5 आय वाले गृह म1 सभी िदशाओ ं म1 Pार रखना शभु द होता है। िसंह आय के  4
पिyम से इतर िदशाओ ं म1, वृष आय के िलए पवू िदशा म1, गज आय के िलए पवू और दि:ण
िदशाओ ं म1 Pार शभु होता है।
वणायपर*वे गृहार िनणय %
Bव2 'ती"यां मुखमजानामुदगं मुखं भूिमभृतां च िसंहे।
!" 'ाNवदनं गजेतु शू य 3यां िह समामनित।।
uा‹ण वण और kवज आय वाले गृह म1 पिyम क/ ओर, :िOय वण और िसंह आय के िलए उर
िदशा म1, वैय वण और वृष आय के िलए पूव िदशा म1 और शnू वण और गज आय के िलए दि:ण
िदशा म1 गृह Pार करना शभु फलदायी है।
गृह Pार ल;बाई और चौड़ाई म1 ही बनाना उम होता है। कोणC म1 Pार नहh बनाना चािहए। वह
; 3 =  &!  5
 $ $   
ारमायात: काय\ पुपौधन'दम।्
िवता"0* ारं यद् दु:खशोकभय'दम।् ।
 के मkय म1 Pार बनाना आचायg Pारा िनषेध िकया गया है। साथ ही Pार के उपर भी Pार नहh
11 -4 "  िभिLमBये कृतं ारं Kयधाय !  6
 
* !"*
नारीवा स3'   ारयोपरियद्ारं ारं ारयस3मु 
काय\ Kययदं य"च संकटं त1रकृत।् ।

उराखड मु त िवविवालय 77


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
माbडKय   & ारथापन -
* 
* कृ*वा /**  दिAणे।
िभागमुLरे 
* काय\ ! * ारं 'क;िततम1् 
T $) 5
 म1  5 11 & 9
 म1 9 $  )$ G-  दि:ण
M !1  उर म1 >&?$ अविश]  म1 Pार 1 -4
 )- G (, दि:ण  ($1
) 1$ !)
( $ )1 -4 $ 
दि:णाड्.: सव§ ौ\ो मि*दराि*नःसृते
! & भयू ा ि:णे ) () भयू ाLस ( K!
नवगुणसूिवभ+ाय@गुणेनाथवा चतुष@ेः।
ारािण     * ;"/ 32 
81  वातु म1 चारC  L म1 9 - 9 कोRक &!) हW, )$1 64  म1 8 -8 कोRक
!) हW। दोनC  प+रिथितयC म1 8 Pार 4$   म1 &
$!) हW। ! चारC  L म1 8×4=32
Pार &
$!) हW। T म1 5
)! $) थान   5 & 9
$ = ) $) ˆोक म1 !
5  
2.3.1 !K * का ार फल िवचार -
पूवार ; 
5 * Fीजम 'भूतधनता नरIतो लिधः।
=ोधािधक*वमनृतं =ौधं चौय =मा*पूवq3 
पवू   $) थम  5) $ 1(   &! , इसम1  5 1)  3 $ 
&!  
: ) $ पज *य, इसम1 11)  क*या $ ज*म &!  !
) $ 1( जय*त &! 
इसम1  5 1)  <1 क/ ;<$! &!  -.") $ 1( इ*n , इसम1 1) 
राजियता &!  पाँचव1 $ 1(
य: !  इसम1 11)  eोध क/ ;<$! &!  >[)
$ 1( सLय &! &! । इसम1 इसम1 असLयता, सातव1 $ 1( # &! , इसम1 eुरता M
आठव1 $ 1( अ*त+र: होता है उसम1 दरवाजा बनाने पर चोरी होती है।

1. वातु दीपे। Uयो. 1. 172 #. 10 ˆो.।


2. #.
. 52/69
3. तOैव ˆो. 70
उराखड मु त िवविवालय 78
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

वृह*संिहता थ मI 'ितपािदत गृहार फल


दिAण ार फल -
अiपसतु *वं 'ैmयं नीच*वं भWयपानसतु विृ Xः।
रौं, कृत‘नमधनं सुतवीय‘नं  या3येन 
दि:ण म1 ;1  म1 Pार & !& $( पOु , :   म1 & !& 
, !" म1 & !&
1- कम  1- - ', वृहL:त  & !& अ*न क/ बह"तायात  पOु वृिY, (  & !&
; 3 , ग*धव  & !& कृ तनता, # 5  & !& िनध नता M (#  & !& पOु क/ शि\
$ ¨ास &! 
पिQमारफलम्
& / 1रपवु ृिXन सतु धनािgः सतु ाथफलस3पत।्
धनस3पिLनृपितभयं धनAयो " इ*यपरे 
!  Pार & !& पOु C $ क], दौवा+रक  & !& शOु वृिY, सEु ीव  म1 Pार & !&
<1  पOु वृिY, पsु पद*त म1 Pार & !& सतु ाथ फल, व[णपद म1 & !& धनािf ;
3  & !&
5, &  & !& <1 1 !" पापयमा  म1 Pार & !& & &! 
उLरारफलम्
वधबधो 1रपुवृिXः & # 3 समतगुणस3पत।्
पु धनािgवnरं & "3 िFया नैःवम् 
उर   म1 &   Pार & !& मृLयु ब*ध1, सप पद म1 Pार & !& शOु वृिY, मtु य 
म1 Pार & !& <1  पOु $ , भ`लाट  Pार & !&
 '3  स;पियाँ,
&(  Pार &
!& पO
) Pेष, - $   Pार & !&
!3 & ;!  म1 Pार & !& Mी Pारा क], ! म1
Pार & !& िनध नता &! 
!3 , (), #, #िyक  $) सयू म1 दि:ण, उर   म1  5) $ (
3 1 -4 K
$)
 ! रािशयC $) सयू म1 (1-<1-3 क*या म1 5& ($1 1!   बिु Yहीन &  &$ य\ ु
&! 
महिष गग   & ार नA -
िLकाभगमैं  !  पनु वसःु ।
उराखड मु त िवविवालय 79
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
ितmयो हततथाऽऽा\  =मात् पूवqषु िनिदशेत।् ।
िचा ! पौmणं  नैऋतं  1 
वैvदेवािvनं मैं =माद् दिAणसिं kतम।् ।
/ * 'ो:पदाय3णमाषाढं  िदैवतम।्
वाणािvनसािवं =मा पिQम संिkतम।् ।
वा*या’े षािभिज*सौ3यं वैmणवं &* 
या3यं wाxं =मात् सौ3यारेषु  िविनिदशेत।् ।
पवू   म1 7 1
) - $ दि:ण eम
) कृ िका, .: =., UयेRा  , पनु व स,ु
पsु य, हत, आnा ) पवू   $) Pा न:O हW। िचOा,  , ) !, (: ,  ', 9. .,
अिxनी, ;1 3 < ) दि:ण   $) Pार न:O हW। (T, 9. . 9. =. 9. .  ,
!, अिxनी, हत, ) पिyम   $) Pार न:O हW। वाती, ˆे षा, ;5!,A (# ,
vवण, UयेRा,  ', &' ) उर   $) Pार न:O हW। Pार न:O  # वामी
) च*nमा 
!  क/ ;1$ 3 : ! )$ Pार िनिyय $ 1 -4  $ - (kवजािद)  आवयक

2.3.2 Cारवेध  %# -
मागतकोणकूपत3भ[मिवXमशुभदं ारम।्
उ"€ाया िगुणिमतां *यG*वा  * " 
 5) $)
(1) माग (
< Vertical   ), )?, $&1, $3G, ख;भा, 1
1$ 1) $ थान (1 ) & !& ; 3 &!  )$1  5) क/ ]G-7
) 3 1  :   उ\
चीज1 हC !& )< &$ $ नहh (1 5!    :  1 क/ ]G-7 क/ 3 1 1 &$
 5) क/ ]G-7
) 3 1 &1 -4
0  मI -
कोणाBव[मकूपकद - मतातंभदेवेिAतं।
सhो"चं िगण ु ािधकांतरभवे  # "3 
माग , oम ($3  चeािद), $3, क/चड़, वृ: Pार*तर, ख;भा, देवमि*दर
) िवY T
$ (3 नहh 11 -) M T क/ ]G-7
) : 1  :  &1)  ) & ! नहh &!) हW।
ारो"€ायिगुिणतां  * *यG*वा =
3 िथतः।
उराखड मु त िवविवालय 80
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
" भवेेधो गृहय 
0"A 
Pार क/ ]G-7
) िPगिु णत : ( $& >&?$  क/ : (  Pा )< नहh &!  )<

) ताLपय [$
(1) &1)
)   5) $)
(1) ? रे खाLमक िथित & !&  , 1  
)< &$ $ &! 
र‹यािवXं ारं !  "* तणा।
/.कारे !"" Kययोऽ3बुिनःFािविण 'ो+ः।।
कूपेनापमारो  िवनाशQ देवतािवXे।
त3भेन Fीदोषाः   !" wxणािभमुखे 
  )
) < & !& गृहवामी $)  4 1 $ $ )?
) < & !& T $) बालकC
$)  4 & $ $, क/चड़  1 $) थान
) < & !& &$ $ $ !" 1  $ )< & !&
: <1 _यय &!  $3G & !& (1
$ अिथरता, िमग‡   5) $) [$
(1) )
ितमा & !& गृहवामी $ 1  ख;बा & !& िMयC $)  4 & $ $ u‹ा थान (!

))   u‹ा क/ ितमा


) )< & !& $3 1 &! 
2.3.3 CारसDबिधत उपEव फल -
उमादः वयमु“ािटतेऽथ /
 वयं   !3
 # /* दयुभयं Kयसनमेव   
ारं ारयोप1र यL ! &.I* य"च।
आKयाLं Aु यदं कुजं   ! * 
पीडाकरमितपीिडतमतिवनतं  
बाˆािवनते 'वासो िदN[ाते दयुिभः /
T $)  5) 1 $
 5ात $ ' $)  वयं 3 1) लग1 !& उ*माद ((1
$
$ ) वयं ब*द होने लग1 तो कुल का नाश होता है। मान या नाप से अिधक हC तो राजप: से भय
!" 1
) $( & !& -& , िवपि व द:ु ख होता है। दरवाजे के ठीक उपर अ*य  5 & !&
शभु नहh होता है। कम चौड़ा दरवाजा भी अशभु होता है। बह"त चौड़ा या खड़ी ह"ई ढोल के समान
Pार हो तो भख
ु मरी, ितरछा या झक ु ा ह"आ Pार हो तो वश ं नाशक होता है। दरवाजे के उपर िशरोदल
के पास वाला भाग अथा त् देहली के ठीक िवपरीत चौड़ाई वाला भाग अिधक भारी या चौड़ा हो !&
? $ $, घर म1 भीतर क/ ओर झक ु ा Pार हो तो सब कार से धन-जन क/ हािन, बाहर क/ ओर
उराखड मु त िवविवालय 81
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
झकु ा हो तो अिधक वास, िजस िदशा म1 लगा हो, उससे िभ*न िदशा म1 झक
ु ाव हो या खल
ु ता हो
तो दयु $ $ &! 
ार सCजा %
ारं नायैारैरिभसदधीत पXया।
घटफलप'मथािदिभaच तमंगलैिQनुयात।् ।
धान Pार के [प व सौ*दय के समान घर के शेष PारC को न बनाय1। मtु य Pार को कु;भ, = ,
प`ल,   ', ना+रके ल, !, हसं आिद क/ ितकृ ितयC से ससु िUजत करना चािहए।
दै‘यq नवांशा: पदम सKया
ारं शुभं 'ािGचतुथभागे।
चतुथषmठे िदिश दिAणयां
पaचा"च : /*  "

(: $ Pार क/ _यवथा म1 दीघ या िजस िदशा म1 Pार करना हो, उसके िवतार म1 नव भाग करके
पवू ा िद िदशा eम से Pा $ 5, पवू म1 तीसरे --.") , दि:ण म1 चौथे-छठव1, उर व पिyम
म1 चौथे- पाँचव1 भाग म1 Pार शभु होता है।
 मत मI ार वेध %
wxथा तु िवXेन नागदतथ 
मृािभगवाAैaच खातमागnत1 
ारैaच िLिभaचैव मBय1: * 
वा " मरणं त दु:खं यादुLरोLरम।् ।
अथा त् u‹थान से वेध नहh होना चािहए (मkय भाग का Pार u‹ वेध होता है)। नागद*त (BG: 
आिद के थानC से), (#!A (िमwी क/ ढेरी), वृ:, 5 , ! @AE, राता, Pार, िभि के वेध से
गृहवामी क/ मृLयु व उरोर द:ु ख बढ़ता जाता है, u‹थान से देवथान का Eहण उिचत है,
यCिक दसू रे पš म1 मkय भाग से िवता -दीघ के बीच का भाग Eहण है।
अथ ारवेधफलम् -
मागतकोणकूपत3भ[मिवमशुभदं ार3 
उ"छायािगुणिमतां *यG*वा  * " 149

उराखड मु त िवविवालय 82


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
माग , वृ:, $&', $:, त;भ, चe, आिद से वेिघत Pार अशभु होता है। िक*तु आवय$
होने पर Pार से िPगिु णत ऊँचाई के अ*त  11) से वेध दोष नहh होता है।
!  ; -
‹यािवं ारं नाशाय कुमारदोषद तणा।
/4ारे शोकोKययोऽ3बुिन:ािविण'ोGत:
कूपेनापमारो भवित िवनाशaच देवतािवे।
त3भेन ी":  नाशो wाxणािभमुखे।।
माग से िवY Pार वामी का नाश करता हW, वृ: से िवY Pार गृहे के बालकC को कsट )!
, पिं \ से िवY Pार होने से शोक देता है, जलिनग म नाली आिद से िवY होने पर Pार घन:य
$ ! ; कूय1 से िवY होने पर अपमार मृगC रोग देता है, देविवEह से िवY Pार िवनाशक होता है।
त;भिवY Pार Oी $&  3 चा+रणी बनाता है। और uा‹ण से िवY होने प $3 $ 1 $ ! 

बोध  न : -
1. uा‹ण  G $.1-$.1
 ?
$. कक , वृिyक, (1 . #, कक , (1 . !3 , <1,3 $ 3  T. (), ("13 , 

2. uा‹णC के िलए गृह Pार $
  म1 रखना उम होता है?
$. पवू म1 ख. पिyम म1 ग. उर म1 घ. दि:ण म1
3. राजाओ ं के िलए गृह Pार िकस िदशा म1 रखने को बतलाया गया है?
क. उर ख. दि:ण ग. पवू घ. पिyम
4. अिxनी िकस िदशा का Pार न:O है?
$. पिyम ख. दि:ण ग. पवू घ. उर
5. Pार के उपर Pार बनाना कै सा होता है।
क. शभु ाशभु ख. शभु ग. अशभु घ. कोई नहh
6. पिyम िदशा म1 सEु ीव पद पर Pार हो तो या = &! 
क. पOु व धन लाभ ख. रोग ग. द:ु ख घ. मान वृिY

उराखड मु त िवविवालय 83


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
अय  -
उमाद: वयमु“ािटतऽथिपिहते व*   !:
 # /* युभयं Kय&   
ार ारयोप1र य*तन ! &*I य"च
आKया*तं Aुयदं कुजं   ! * 
पीडाकरमितपीडीतमत*   
वाहायिवनते 'वासो िदN[ाते दयु: /
गृह का Pार यिद वयमेव खल ु जाता हो तो वह उ*माद कारक होता है। यिद वयं ब*द &
5! हो तो कुल का नाश करने वाला होता हW। Pारमान से अिधक Pारहो तो राजभय और मान से
कम होने पर चौरभय और _य
1 $ $ &! 
Pार के ऊपर Pार हो तो वह िवपि कारक होता है। कपाटC क/ मोटाई अिधक अथवा अ`प
हो तो वह :धु ा और पीड़ा कारक होता है। यिद कपाट टेढ़ा & !& $3 1 $ &!  
कपाटC मे जोड़ हो तो वह गृहशे को पीड़ा देता है। गृह के भीतर क/ ओर यिद कपाटC का झक ु ाव हो
तो गृहश
े को मारता है। बाहर क/ ओर यिद झक ु ा हो तो वह वासी बनाता हW।अ*य िदशा म1 झकु ाव
&1)
) -.  &! 
! : -
मूलारं नायंारैरिभसदधीत पXया।
घटफलप'मथािदिभk तमड.गलैिQनुयात् ।।
धान या मtु य Pार जैसा अ*य Pार नहh बनाना चािहए (अथा L अ*य- Pारा क/ सजावट
मtु य Pार से हीन होनी चािहए।) घट, = , पO लतािद, िसंहािद (िभि िचOC से) से मtु य Pार $&
 ; @A.$# ! $ 1 -4
अय: -
पृmठत: पाaवयोवािप न वेधं िचतये”ुध:।
'ासदेवा गृहे वािप वेधमे िविनिदशे* 
'थमा*ययामवCय िि'हरस3भ
छायावृAयादीनां सदादु:ख'दाियनी ।।
ासाद अथवा गृह के पृsठ और पाव भाग म1 वेध नहh होता (स;मु  )< &! )
थम और अि*तम हर को छोड़कर िPतीय और तृतीय हर म1 (गृह के पास लगाये गये वृ:C क/)

उराखड मु त िवविवालय 84


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
>  #  ?)!&  $3ल को कsट$ &! 
नव भागं गृहक
ं ृ *वा पंचभागं तु दिAणे।
िभागमु*तरे काय\ शेषं ारं 'क;िततम् ।।
गृह के िजस भाग म1 (गृह क/ ल;बाई अथवा चौड़ाई म1) म1 Pार बनाना हो उसके नव समान
खड कर दािहनी ओर से पाँच खड >&?$ >[) खड म1 Pार बनाना चािहए।
दि:ण और वाम भाग के िनण याथ वातरु ाजव`लभ म1 यह मानक िनधा +रत िकया है-
दिAणाङ्ग: स वै 'ोGतो मिदरािन:सृ &
यो भूयादिAणे भागे वामे भूया*स  :
गृह से िनकलते समय दािहने हाथ क/ ओर दािहना भाग और बाय1 हाथ क/ ओर वाम भाग
&! 
नवगुणसूिवभGतायmटगण ु ेनाऽथवा चतु: षmठे 
ारा0     * ;"/ :
अनलभयं ीजननं 'भूतधनतां नरेवाiलTय  
=ोधपरता नृत*वं =ौय\ चौय\ च पूवqण ।।
अiपसतु *वं 'ैmयं, नीच*वं भWयपानसतु वृिX:।
रौं कृत‘न # * सुतवीय‘नं च या3ये 
सुतपीडा1रपुवृिXनसुतधनािg: सुताथफलस3प
धनस3पनृ/* धनWायो राग इ*प 
बधवधो1रपुवृिX: सुतधनलाभ: समतगुणस3प
पुधनािgवnरं सुतेन: दोषा: िFयां नै:व  

नव गिु णत सOू म1 िवभािजत कर 69 पद म1 अथवा अsटगिु णत सOू से 64 पद म1 िश


आिद देवताओ ं के िवभाग होते हW। उनम1 Pार बनाने के फल कहते हW।
पवू िदशा म1 थम िशिख भाग म1 Pार बनाने से अिjनभय 2- पय *त भाग म1 Pार बनाने से
क*याओ ं का ज*, 3- जय*त भाग म1 Pार बनानेसे चरु धन लाभ, 4- इ*n के भाग म1 Pार ब11)
)
5$# , 5- सयू भाग म1 Pार बनाने से eोधािधय, 6- सLय भाग म1 Pार बनाने से झठू क/
;<$!, 7- भृश भाग म1 Pार बनाने से eुरता, 7- आकाश भाग म1 Pार करने से चौरभय होता है।

उराखड मु त िवविवालय 85


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

दि:ण िदशा म1 1- वायु भाग म1 Pार बनाने से स*तित क/ अ`प!, 2- पषू ा या पौsण भाग म1
Pार बनाने से दास वृि, 3- िवतथ भाग म1 Pार बनाने से नीच वृि, 4- वृहL:तभाग म1 Pार बनाने से
भय, पान और पOु C क/ वृिY होती है। 5- यम के भाग म1 Pार बनाने से अशभु फल क/ ािf, 6-
गधं व के अशं म1 Pार बनाने से कृ तन!, 7- भृड.गराज के भाग म1 Pार करने से दा+रnय, 8- (# $)
भाग म1 Pार बनाने से स*तित और पराeम क/ हािन होती है।

पिvम िदशा म1 1- िपतृ भाग म1 Pार बनाने से संतित कsट, 3- दौवा+रक म1 बनाने से शOओ
ु ं
क/ वृिY, 3- सEु ीव भाग म1 Pार बनाने से धन और पOु क/ अािf, 4- कुसमु द*त नामक भाग म1
बनाने से पOु ािद तथा धनधा*य क/ अिभवृिY, 5- व[ण भाग म1 बनाने से धन ािf, 6- ;
3 
म1 बनाने से राजभय, 7- शोष भाग म1 बनाने से धन:य 8- पाप प:मा भाग म1 बनाने से & $
 &! 

उLतर िदशा म1 1- रोग भाग म1 Pार बनाने से वध और ब*धन क/ ािf होती है। 2- साप भाग
म1 Pार बनाने से शOवु िृ Y 3- मtु य भाग म1 Pार बनाने से धनलाभ 4- भ`लाट भाग म1 Pार बनाने से
गणु और स;पि का लाभ 5- सौ;य भाग म1 बनाने से पOु धन क/ वृिY, 6- भौजड.ग नामक भाग म1
Pार बनाने से पOु से िवरोध, 7- आिदLय भाग म1 Pार बनाने से Oी को कsट 8- िदित भाग म1 Pार
बनाने से िनध नता होती है।

उराखड मु त िवविवालय 86


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
ािंशद् (MH) ार‡ का शुभाशुभ*व %
पवू
      


 

 




 

 

 

     
 
 

पिyम
9 RO PारC का eमश: फल कहा गया है। जैसे िक पवू म1 थम िशिख भाग म1 Pार बनाने से भय
O म1 पय *त भाग म1 Pार बनाने से क*या
!!, R जय*त भाग म1 चरु धन लाभ आिद समत = ,
पsट  आप सभी समझ ही गये हCगे उपर :ेO म1 दािहन1 ओर दि:ण तथा बाय1 और उर िद 
Eहण करना चािहए।
उपयुGत संदभ मI िन3न बचन भी mटKय
1-
पूवाbयैशायां या3याNनेरययां दिAणािनजानीयात् 
ारािण नैऋता* पिQमायुदGथािनवायKया  
आNनेयमिNनभयं पाजयंी'सूितदं ारम् 
'चुरधनदं जयतं नृपवiलभका1र माहे  
शौयq=ोध: 'चुर: स*यऽनतृ वािदतं भृशेकौयम् 

उराखड मु त िवविवालय 87


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
चौय\ तथात1रAे 'ाNारािण 'िदmटा 
वायKयेऽiपसुत*वं 'ैmयं पीmणेA   
ब‰पानपु ं वृह*Aते या3यािप रौम् 
गाधवq गध* नृपचौयभयाय भृंगराजाlय  
मृगमिप सुतवीय‘नं दिAणतो ारिनदqश: ।।
िपये शरीरपीडा दौवा1रकसंिते च 1रपुवृिX:।।
सुीव धनहािन: पुधनाढयं कुसुमदत  
वाणमथ िनचयदं नृपभयदं चासुर िविनिदmं ट  
!"* #
िनकरं बहरोगं पापयWमाlय  
रोगमखं बधबधदमा*मजवैरािभविृ Xदं नागम् 
मुlयं # & िXदमनेककiयाणदं च भiलाI  
सौ3यं धनपुकरं भौजड.गे पुवैर1रपुवृिX:
अिदतौ ी"षा: यिु दतौ धनं सAयं याित
2.3.4 Cार चGम् -
सयू Aाुगभै:िशरय;* लWमीत: "01-
नागैसनं ततो गजिमतै: शाखासु सौlयं   
देहiयां गुणभैमृितगहपते
ृ मBयिथतैवqदभै:
सौlयं च=िमदं िवलोGय सिु धया ारं िवधेयंशुभम् ।।
सयू न:O से िगनकर 4 न:O िशर म1 उसके बाद के 8 न:OC को कोणC म1 अगले 8 न:O
शाखा म1, 3 न:O देहली म1, M 13 : 4 न:O मkयभाग म1 था! $ 1 -4  ,  M
मkय के न:Oो म1 Pार थापन करने से लमी ािf ओर सख ु क/ ािf होती है। कोण और देहली म1
पड़ने वाले न:OC म1 eमश: उPास और मृLयु &! 
पmटाथ ार च=म्
था1  $&'  )  मkय
न:O सं0 4 8 8 3 4
= लमी उPास सौtय (#! सौtय
ािf
महु =Lत क`पnुम म1 भी इसी कार का वचन उपलAध 
उराखड मु त िवविवालय 88
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
सयू Aा‘गनागाmट 0 1: ! !   
!: "0ारशाखादेहली मBयगै: =मात् 
Uयोितिन ब*ध$ $) ;1
3  -
ारच=ं 'वWयािम भािषतं िवaवकमणा ।
सूयभां चतुmकं तु िशरयोप1र िवय&  
े े कोणे 'दातKये शाखायुNमे यं यम् 
अधaच ीिण देयािन वेदामBये 'िति:ता ।।
राCयं यादूBवनAे कोणेषू ासनं भवेत् 
!* तेलWमी अधaचै *   
मBयभेषु लभे*सौlयं िचत * & =# 1: 
अ*य वचन भी nsट_य  -
िदनकरिकरणा =ातAतोारच=े युगयुगयमवेद ि ि वेदि 1
िममुडुगणभागं िवयसेदूBवतोत यममिखलिदNगं ना^य: #"0*& 
ारथा/  -
ारथापननAाbयु"यतेऽिvिनचो*त:
वातौ पूिmण च रोिहbयां ारशाखावरोपणम् 
अिxनी, उLतराOय, वा!, ) !&, &', ये न:O Pारथापन के िलये शभु द होते हW ।
मतात-
अिvनी चो*तरा हतपुmयkुितमृगेषु च ।
रोिहbयां वाितभेऽ*ये च ारशाखां 'रोपयेत् 
इस मत से अिxनी, उLतराOय, हत, पsु य, vवण, (# , &', M ) !
Pारथापनाथ शत न:O हW
2.3.5 Cारथा! म@ ितHयािद िनण1य: -
/च* मी धनदा चैव मुिननद&' !  
'ितप*सु न कतKयं कृते दु:खमवा^नु 
ितीयायां Kयहािन: पशुपुिवनाशनम्
तृतीया रोगदा े  थ| भ….का1रणी
 लAयं तथा षmठी !  # ! 
उराखड मु त िवविवालय 89
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
िवरोधकृदमापूणा न या"छा"/0  
पंचमी म1 Pार संथा1 $ 1)
) <1 , स“त(, अsटमी तथा नवमी ितिथयो म1 Pार
थापन शभु द होता है। ितपदा म1 Pार थापन से कsट होता है। िPतीया म1 n_य1 M  3 1
तृतीया ितिथ म1 रोग और चतुथ‡ म1 Pारथापन करने से िवEह, षsठी ितिथ म1 Pार था1 $ 1)
)
कुल का नाश होता है। दशमी ितिथ म1 थापन करने से धन का नाश होता है। अमावया और पिू ण मा
ितिथयC म1 Pारथापन करने से िवरोध होता है। अत: अशभु ितिथयC म1 Pारशाखा आिद का था1
नहh करना चािहए ।
मूहe*तमुGतवiया  थ मI -
भवे*पmू णी मैेच पmु ये च शा=े करेदिचािनलौचािदतौ च ।
गुkशु=ाकसौ3ये   ' नदपूणाजयाारशाखा ।।
) !, ;1 3 <, पsु य, Uयेsठा, हत, अिx1, िचOा, वा!, और पनु व सु न:OC म1, ,

&(, <3 , बृहपित और शe ु वारC म1, न*दा (1611), पणू ा (51015), M 5 (4914)
ितिथयC म1 Pार था1 3  &! 
zुवभे शभु वारे च िथरलNन !  
ारं थापनं मृगं िचं वगस3पिवXनम् 
चरे िथरे च नAे बुधशु=िदने ित'
शुभे कपाटयोग: याद् िव" 

›वु न:O (उLतराOय और रोिहणी) 3 !", वार और िथर लjन म1 Pार था1 $ 1
चािहए। मृगिशर और िचOा न:O कुल और स;पि क/ वृिY करने वाले है। चर और िथर न:OC
(उLतराOय, रोिहणी िथर और वा!, 13 
,3 vवण, घिनsठा, !, चर) बधु शe ु वार,
शभु ितिथ और िP-वभाव लjन म1 कपाट 1 3  &!  

माbडKय   -
सू शङ्िगशलाारं तुला"छदनपवू कम् 
कायत3भ'ितmटोGते िधmbये  '  
सOू , @A.$3, िशला*या
, Pारथा1, गृह&छादन त;भितsठा  $)  4 !
ितिथ न:O वारC म1 $B 1 3  &! 

उराखड मु त िवविवालय 90


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
9  

1-
चरेिथरे च नAे बुधशु=िदनेितथौ
!
/I": याद् िव" 

अथा त् चर और िथर न:OC (वा!, पनु व स,ु vवण, <िनsठा, ! M &',
उLतराeम), <3 -शeु वारC और शभु ितिथयC (1235710111315) म1 और िPवभावलjन
म1 कपाट लगाना शभु द होता है।

2.5

K
इकाई के अkययन के पचा!A 1) 51    $ वातश ु ाO $)
वक‰ Pारा गृहिनमा ण िeया म1 Pार का िवचार अLय*त महLवपूण बतलाया गया है। गृहPार का
शभु ाशभु फल Lय:तया गृहवामी पर पड़ता है। अतएव गृहिनमा ण पर;परा म1 आचायg ने गृहPार
का महLव ितपािदत िकया है।
# का मtु य Pार कै सा होना चािहए? िकस िदशा म1 होना चािहए? उसका दैय - िवता
$!1 &1 -4? आिद इLयािद समत िवषयC का ितपादन इस इकाई म1 आपके 5ानाथ
त!ु $ 5  
सामा*य! गृहPार का अथ होता है  घर का मtु य Pार। गृहPार के अkययनोपरा*त 
 $&
;1)$ (!-मता*तर भी देखने को िमल1ग।े तो आइए हम एक-एक उसका अkय1 $ !) 
रािश वाल‡ के िलए गृह ार िनणय %
पूवq wाxणराशीनां वैaयानां दिAणेशुभम।्
शू ाणां पिQमे ारं नपृ ाणामुLरेमतम।् ।
uा‹ण  (कक , वृिyक, (1) वालC के िलए गृह Pार पवू म1, :िOय रािश (#, क*या 4
($ ) वालC के िलए उर म1, वैय  (("13 , !3 , कु;भ) वालC के िलए दि:ण म1 तथा शnू
 ((), 
 4 <1)3 वालC के िलए पिyम िदशा म1 गृह Pार बनाना शभु फल देने वाला होता
है। राजाओ ं के िलए उर िदशा म1 गृहPार बनाना उम होता है। इसी कार गृहPार िनण य के िलए
; -;  $7 <G, (!-मता*तर आचायg Pारा ितपािदत िकया है।

उराखड मु त िवविवालय 91


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
2.6 पारभािषक श&दा#
गहृ िनमाण - T 11
ार  घर का मtु य वेश था1
! !   3 M ; 3
दै‘य%िवता - ल;बा7 4 -.?7
Aिय !  2,6,10  G
/  5

2.7 बोध  न. के उ/र


1. $
2. $
3. $
4. 
5. 
6. $
2.8
दभ1 2थ

वात
ु   ोफे सर देवीसाद िOपाठी
वृहPात(ु    B$$  डॉ. ह+रशक ं र पाठक
महु =ि च*ता('  रामदैव5, B$$  आचाय रामच*n पाडे
वातु बोिधनी @F. ; &$ " 
2.9 सहायक पाठ्यसाम2ी
वातरु ाजव`ल
((!(A
वातु बोिधनी
महु =ि च*ता('
वृहLसं!

उराखड मु त िवविवालय 92


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
2.10 िनबधा9मक  न
1. रािशपरLवेन एवं आयपरLवेन गृहPार िनण य का उ`लेख क/िजये
2. गृह Pार का िवतृत वण न क/िजये
3. Pार क/ महा पर काश डािलये
4. Pािवशं ित (RO) PारC का शभु ाशभु Lव का वण न क/िजये
5. Pार संबंिधत उपnवC का फल िलिखये।

उराखड मु त िवविवालय 93


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 - 3 गृहार#भ


() क; &* 

3.1 ता1
3.2 उ े य
3.3 #र;भ <
3.3.1 गृहार;भ से पवू िवचारणीय िवषय
3.3.2 गृहC के नाम व न:Oानुसार शभु ाशभु िवचार
3.3.3 # िनमा ण का फल, #  - 4  
) 3  3 $"1
3.3.4 # िनमा णार;भ एवं ितयािद शिु Y
3.3.5 िशला*या

3.4 : (
&<1
3.4.1 गृहार;भ म1 िनषेध
3.4.2 गृहार;भ से न:O और वार से िवशेष फल
3.4.3 # वेश महु =
3.4.4 #  ! पजू न व महLव
3.5
 
3.6 पा+रभािषक शAदा 
3.7 बोध नC के उर
3.8 स*दभ E*थ
-: 
3.9 सहायक पाठ्यसामEी
3.10 िनब*धाLमक न


उराखड मु त िवविवालय 94


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
3.1 ता
ततु इकाई वातश ु ाO म1 िड“लो( (DVS-20) पाठ्यeम के तृतीय पO- गृहिनमा ण
िववेचन के िPतीय खड क/ तृ! K$7 गृहार;भ < से स;बि*धत है। इससे पवू क/ इकाई म1
आपने गृहिनमा ण म1 मासािद िवचार, Pार िनण य आिद का अkय1 $    ;  #
िनमा ण का आर;भ $
) $ !) ? इसका अkय1 $ 1) 5 ) 
# Lये$ मानव जीवन का अिभ*न िहसा है। यCिक मनsु य 5G 1
$ !  M
;1 51 1 $ ! , उस थान का नाम है गृह। अत: गृहिनमा ण म1 गृहार;भ क/ या <
होनी चािहये। इसका वातशु ाOीय 5ान हम इस इकाई म1 करने जा रहे है।
K4 हम सब वातश ु ाO के अ*तग त आचायg Pारा ितपािदत गृहार;भ <
)
स;बि*धत िवषयC का िवतार पवू क अkययन करते हW।
3.2 उ े य
K
इकाई के अkययन के पचात् आप जान लेग1 िक 
 गृहार;भ $
) $!) 
 गृहिनमा ण $ आर;भ $
) $ 5! 
 #र;भ करने से पवू या-या महLवपणू काय करना चािहए
 गृहार;भ के या-या
&1 
 गृहार;भ म1 िवचारणीय िवषय या 
3.3 गृहारDभ 


 $& ! है िक गृह का महLव मानव माO के िलए िकतना आवय$ 
यC$ 1 # $) 51-1 म1 ाणी-माO $& ;
3 < &!  वातु शाO म1 गृह का
महLव ितपािदत करते ह"ए आचाय कथन है िक 
गहृ थय ि=या: सवा न िसXयित गहृ ं िवना।
यततमा गृहार3भ कम चाािभधीयते।।
अथा त् # $) 1 गृहथ के समत मात व वैिदक काय सफल नहh होते हW या अ`प =  )

उराखड मु त िवविवालय 95


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
होते हW, इसिलए यहाँ गृहार;भ के बारे म1 बतलाया जा रह है। ) $!)  $ 
: ) $) T  $
ह"आ vौत व मात कम िनsफ & 5! , यCिक दसू रे के घर म1 कृ त काय का फल गृहश े या
गृहवा( $&  ( !  " -
/
: सवा: kौतमाLि=या शुभा:।
िनmफ: युयततासां भूिमश: फलमaनु 
;!:
 $& वयं का गृह िनमा ण करना चािहए। यह अलग बात है िक Lयेक मनsु य ;1) 51
म1 हर संभव यास करता है िक वह अपने गृह का िनमा ण कर1 , पर*तु इस काय म1 कई तो सफल हो
जाते हW और कई असफल भी रह जाते हW।
उत लोक म1 एक न 9[! है िक यिद कोई धन देकर िकसी दसू रे के गृह म1 िकरायेदार के [प म1
1
$  &, !& भी या उसके Pारा िकये गये धािम क काय (पु या) $ = #! $&
( )? तो इसका उर है िक नहh, जब तक आप िकसी दसू रे के गृह म1 धन देकर रह रहे है तो
आपका पु य $ = $&  ( 1 -4, 1 $ # ! $& यC$  1) $)  4
ितमास गृहवामी को भगु तान कर रहे है। इससे आप उस िनवास था1 $ (<1 )1) $) $ !$)
वामी माने जाय1गे। I
 ()  (! 

'शंसा मI आचाय कथन %
ीपुािदकभोगसौlय2 * धमाथकाम'दं
जतू   * सुखापदिमतं शीता3बुघमापहम।् ।
वापीदैवगृहािदपुbय * गेहा*समु*पते ।

* पूवमुशित तेन िवबुधा: kीिवaवकमादय:।।
अथा त् गृह Oी, पOु ािद के भोग सख
ु का जनक, धम , अथ , $( $& )1)  , जीवC का िनवास
था1, सखु का था1, ठड, वषा और गम‡ से बचाने वाला होता है। गृह िनमा ण करने से वापी, )
मि*दर आिद िनमा ण का समत = ( ! है। इसिलए पवू ा चाय िववकमा िद ने सव थम भवन
11) $ )  
गृहारDभ  -
ारशुिXं िनरीWयादौ भशुिXं वृषच=त:
िनmपंके िथरे लNने यंगे वालयमारभेत् 
*यG*वा कुजाकयोaचांशं पmृ ठे चाे िथतं िवधमु ्

उराखड मु त िवविवालय 96


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
बूधेCयरािशगं चाक\ कुयाद् गेहं शुभा^त 
सव थम Pारशिु Y का िवचार कर वृषचe के अनसु ार न:O शिु Y देखना चािहये। - $ न:OC
(धिनsठा
) ) ! !$) छोड़कर िथर अथवा िPव लjन म1 गृहार;भ $ 1 -) ( M
सयू का अशं , आगे तथा पीछे का च*nमा एवं िमथनु , क*या, <13 4 (1  $) सयू को छोड़कर
गृहार;भ अथा त् गृहिनमा ण आर;भ $ 1) $ <1 
3.3.1 गृहारDभ के पूव1 िवचारणीय िवषय 
ामादेरनुकूल*वं िदशो भूतहय 
गहृ िधmbया* शX ु ं वीWयायKय *!  
& 
* रचयेXीमान् वातुशााA &:
गृहार;भ के पवू सव थम Eाम (5G # 11 &) क/ अनक ु ू लता िफर िदशा क/ अनकु ू लता उसके
बाद भिू म क/ अनक ु ू लता का और तLपचात् िपड, , वार न:Oािद का शाOा1
3  -
करके गृह िनमा ण का काय आर;भ $ 1 -4
अय  %
6' भूिमपरीAणं शुभिदने पaचा"च वातवचनं।
 : !"# * "Aिप िविधव*पाषाणतोयात  
पQाेaम&   पादसंथा/ *
काय\ लNनशशांकशाकुनबलै: kेmठे  # 
अथा त्  ) शभु िदन म1 भिू म क/ परी:ा करके बाद म1 वातपु जू न पवू क
तह पय *त या पानी पय *त
: ( $ &<1 करके उसके बाद लjन, च*n(, शकुन का बल देख कर शभु महु = म1 पादसं था1
(#हार;भ) बिु YमानC को करना चािहये।

गहृ ार3भ मI कालशिु X  


गृहेशत*ीसुतिव*त !"Aकq ीCयशु=े िवबलेAत  
कतु: िथितन} िवधवु ातुनोभq पुर:िथते पृmठगते खिन: या 
अथा त् सयू , च*n, ग[ु और शe ु के िनब ल, अत और नीच रािश म1 िथत होने पर e(
)
गृहवामी, गृहशे क/ पLनी,
3 M <1 $ 1 &! । अथा त् यिद सयू िनब ल, एवं नीच
रािशगत हो तो गृहवामी का, च*nमा िनब ल एवं नीच हो तो Oी का, ग[ ु िनब ल अत 4 1-
 ! & तो सख ु का तथा शe ु यिद िनब लअत M 1- & !& <1 $ 1 &! 

उराखड मु त िवविवालय 97


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
चा*n न:O और वातु न:O दोनC के गृह के स;मख ु िदशा म1 रहने से गृहवा( $ 1
9
#
म1 नहh होता तथा उत दोनC न:OC के गृह के पृsठभाग म1 िथत रहने पर चौर भय होता है

3.3.2 गृह. के नाम व न=Jानुसार शुभाशु'  


zुवधाये जयनदौ खरकातमनोरमं सुमुख दुमुखों च
1रपदु ं िव*तद नाशे चा=द िवपल ु िवजयाlयं या 
1. ›वु 2. धा*य, 3. 5 4. न*द 5.  6. का*त 7. मनोरम 8. समु ख ु 9. दमु ख
ु , 10.
उE 11. +रपदु 12. िवLत 13. 1 14. आe*द 15. 3 16. 5य ये eमा13
 16
संtयाLम$ गृहC के नाम है
›वु ािद नाम साधन। गृह म1 पवू और उLतर Pार अभीsट । अत: शाला ›वु ांक योग 1 + 8 = 9, 9
+ 1 = 10 योग संtया 10 । अत: दसव1 गृह का नाम उE दो अ:रC वाला ह"आ
;
<1  पवू स ािधत _य  1, ›वु ािद गृह क/ नामा:र सtं या  2 गृहिपड - 101, 1 + 2 =
3 + 101 = 104 ÷ 3 = ) 2 ;!: म अंश ह"आ
वातरु Lनावली म1 यह कहा गया है िक ज*म न:O के अनुसार भी गृह म1 या नगर म1 वास करना
-)
अभीsट 1  Gव के न:O से गणना कर इस कार न:O थािपत करके देख1 जहॉं अपना ज*म
न:O पड़े। तदनसु ार शहर म1 िनवास का शभु ाशभु िवचार कर1 

प
ु षाकृित ाम वास च= %
5* मत$ (
3 )B  [ 1 3  F F
" "
नA 5 3 5 6 1 4 1 1 1
;  <1 <1 Oी 1 स;पि  यYु  
1 धा*य 1 ?

उदाहरणाथ - िकसी _यि\ का ज*म न:O आnा है। िद`ली का न:O प0ू भा0 है। पवू ा भाnपद से
गणना करने पर आnा नौवॉं न:O आया । जो पेट पर पड़ता है । अत: धन धा*य #िY िद`ली म1 रहने
$ = 
अथव Eाम न:O से 7 -7 न:O eमश: मत$, [, ©दय व पैरC पर मान कर देख1। मतक म1
धन व मान, पृsठ म1 हािन व िनध नता ©दय पर सख ु स;पि व पैरC पर अिथरता रहती है F
;पने नाम न:O से देखा जायेगा। उदाहरण म1 िद`ली के न:O से िवचारणीय _यि\ शभु दश न का

उराखड मु त िवविवालय 98


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
नाम न:O शतिभषा पवू ा भाnपद से गणना करने पर अि*तम स“तक अथा त् पैरC पर पड़ता है जो $
मन क/ अिथरता का ोतक है

3.3.3 गृह िनमा1ण का %#, "(   )  #


 *' *' + -
कोिट‘नं णजे पुbयं मृbम !&* 0 
ऐि@के शतकोिट‘नं !1 Aनतं ;* 
 
पण शाला बनाने से कोिट गणु , िमwी का घर बनाने से दस करोड़ गणु , ईटं का गृह बनाने से सौ करोड़
'3  और पLथरC Pारा घर बनाने से अन*त फलC क/ ािf होती है

!   मेष म1 अिxनी से न:O, िसंह म1 मघा से 3 न:O व धनु म1 मल ू से 3 न:O होते
। अ*य
  F " eम 2.2 न:OC क/ होती है
अिvयािद यं मेषे िसंहे 'ोGतं मघा यम्
ितयं चापे शेषभेषु यं यम् 
! & ! !  - बा`कनी, वेश लॉबी, ऑगन कहॉं बनाय1 यह kया1 1 -) K

)
 3  3 &! । यिद उत चीज1 न हC तो गृह म1 िजधर बाहर खल ु ने वाले दरवाजे बनाय1 9

)
 - $ 5
$! 
पवू , दि:ण, पिyम, तथा उLत Kस eम से 1,2,4,8 ये ›वु ांक है। िजधर शाला हो उसके ›वु ांको म1
1 जोड़कर जो संtया बने, वही िन;ना1
3  # $ 1( या सं5ा होती है !1
3  = 3 1(
)
3  ; 3
) ; 3 & 
1. ›वु
2. धा*य
3. 5
4. न*द
5. 
6. का*त
7. (1& (
8. मख ु
9. दमु ख

10. eूर
11. +रपदु
12. <1

उराखड मु त िवविवालय 99


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
13. :य
14. आeा*द
15. 3
16. 5
kयात_य हो िक यिद चारC िदशाओ ं म1 Pार शालािद बनती हो तब यह पवू ‰त िवचार नहh करना है
उत उदाहरण वाले _यि\ शभु दश न के Ÿलैट म1 यथोिचत प+रवत न :ेOफल म1 करवा िद  
अब दरवाजा व बा`कनी उLतर व दि:ण पवू के कोने म1 िनमा ण करवानी है
पवू ा–क 1 + दि:ण िदशाकं 8 = 9 + 1 अित+रत !& 10 F घर eूर होगा। यह ठीक नहh है ;!:
हम शभु दश न जी को सलाह देते हW िक आप अपने गृह मं स;भव हो तो बा`कनी दि:ण पिyम म1 या
पवू िदशा म1 अिjनकोण से हटाकर बनाय1 तो शभु होगा
यिद मकान बनवाते समय कुशल वातिु वद् Uयोितषी से सलाह लेते है, तो िनिyत ही क`या'$ 
िसY होगा

   न : -
1. िन;न म1 से िकसके अभाव म1 गृहथ के समत मात व वैिदक काय सफल नहh होते हW?
$. 5 . &51 . # T. <1
2. परगेह से या ताLपय है?
$. वातु # . 
: ) $ T . ;1 # T. #!
3. गृहार;भ से पवू िकसका िवचार करना चािहए?
$. थान ख. िदशा ग. िपडािद का घ. उपय ु त

4. पादसंथापन का या अथ है?
$. िशला*यास ख. गृहार;भ ग. गृहिनमा ण घ. कोई नहh
5. काित क मास गृह िनमा ण के िलए कै सा माना गया है?
$. उम ख. मkय( . ;<( T.

6. गृहC के िकतने 1( $) ) ?
$. PW .PP .PV T.PY
7. पLथरC Pारा गृह िनमा ण का या = ?
$. 
'3  . PWW गणु ा ग. करोड़ गणु ा घ. अन*त =

3.3.4 "( िनमा1णा1रDभ एवं ितHयािद शिु A -


गृह िनमाणार3भ   , vावण, माग शीष , माघ, फा`गनु मासC म1 3,6,9 रािशयC क/ संeाि*त
को छोड़कर गृहार;भ $ 1 -)। काित क मास िनमा णार;भ के िलये मkय( 

उराखड मु त िवविवालय 100


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
1,4,9,14,30 ितिथयC को छोड़कर शेष वारC म1, जहॉं तक हो सके शु ल प: म1 अिjन, मृLयु,
बाणािद क/ शिु Y )$  : ( 1 1 &ने पर गृह िनमा णार;भ कर1 
वेधरिहत िचOा, अनरु ाधा, मृगिशरा, रे वती, वाती, पsु य, तीनC उLतरा, रोिहणी, धिनsठा, हत,
पनु व स,ु शतिभषा, न:OC म1 पवू व त् लjन शिु Y देखकर गृहार;भ $ 1 -)। चर लjन $& गृहार;भ
म1 विज त करना चािहये
ितHयािद शुिA 
भौमाक1रGतामाूने चरोने4 /* 
Kयmठा*यथै: शुभेगqहार3भयाया1रगै: खलै:
मगं ल और रिववार को छोड़कर अ*य वारC म1 4,9,14,30,1 तथा िकसी के मत से अsट( $& 
Lया $ ) !"यC म1, चर लjन मे, क, त,ु म, रिहत लjन म1, बाण पंचक पsट सयू के भु तां
2,11,20,29 हC तो अिjन दोष रिहत काल म1, लjन से शभु Eह 12,8 से अित+रत थान म1 और
पापEह 3,6,11 वे हो तो गृह िनमा णार;भ 3 

गृहार;भ िविध म1 िशला*यास एक अLय*त महLवपणू घटक है। गृहिनमा ण काय आर;भ करने के पवू
आचायg Pारा िशला*यास करने का िवधान बतलाया गया है। आइए हम सब िशला*या

) 
प+रिचत होते हW।
3.3.5 िशलाया

िशलायास मI िशला का अथ है % प*थ। िशला को या ईsट को थािपत कर गृहार;भ म1 पजू न


क/ जाती है, तLपचात् गृहिनमा ण का काय आर;भ $ 5! । िविदत हो िक िशला*या
$)
पवू Eाम रािश से शभु ाशभु थान का िवचार करना आवयक है, इसी के आधार पर गृह िनमा ण हेतु
उस थ पर िशला*यास कम करना चािहये
िशलायास मुहK9त1 
अधोमुखैaच नAै: क*तKयं  !"#  
िशलायास: 'क*तKयो गृहाणां kवणे मृगे ।।
पौmणे हते च रोिहbयां पुmयािvयु*तराये ।
 - zुवै: शुभं कुडयिम*युGतं िवaवकमणा ।।
लो$ $ अथ है िक आलेषा, मल ू , िवशाखा, कृ िका, तीनC पवू ा , भरणी और मघा इन न:OC
म1 भिू मशोधन खात, vवण, मृगिशरा, रे वती, हत, रोिहणी, पsु य, अिxनी और तीनC उLतरा म1
िशला*यास तथा मृगिशरा, रे वती, िचOा, अनरु ाधा, तीनC उLतरा रोिहणी इन न:OC म1 िद< 

उराखड मु त िवविवालय 101


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
का िनमा ण करना शभु है
गृहार;भ क/ शभु वेला म1 खिनत नhव को ततु िशला*यास महु =Lत के िदन िविधवत् पLथरC से प+ू रत
कर देना चािहये । तदथ Eा‘ ितयािद शिु Y इस कार है 
  1 ितिथ कृ sणप: 2,3,5,7,10,11,12,13 शु लप: क/ ितिथयाँ
  च*nवार, बधु वार, ग[ ु वार, शe
ु वार एवं शिनवार ।
नA  अिxनी, रोिहणी, मृगिशरा, पनु व स,ु पsु य, तीनC उLतरा, हत, vवण एवं रे वती ।
!   स;यक् समय म1 u‹ा, वातपु [ ु ष, पंचलोकपाल, कूम , गणेश तथा था1 )!L $
िशsटाचार पवू क पजू न एवं वित  पु याहवाचनािद के साथ तथा वण एवं गगं ािद पु य थानC क/
रे णु सिहत मtु य िशला का उिचत कोण म1 थापन कर1 । तदन*तर, दि:ण eम से अ*य पLथरC को
5(1 -)
ायोिगक Lप म@ िशलाया
 
िशला*यास म1 सव थम उLतम भिू म का चयन करके उस था1  G- िशलाओ ं व ईwC को पवू
िदशा म1 अिjन कोण म1 था1 कर आर;भ म1 षोडशोपचार िविध से गणेशािद देवता, वातु )!
का पजू न करना चािहये, तत् पचा!A  L $ :51 $ 1 -)। उसी eम म1 वातु )!
$ 5: 1 $ !)
(य तॉंबे के कलश म1 चॉदी का नाग नागीन, क&छप, स“त<!3  @ $
म*O Pारा अिभमि*Oत कर भिू म के अ*दर था! $ 1 -)। इससे गृहार;भ काय आसा1
पवू क
स;प*न & 5! । िशला*यास कम #र;भ काय म1 अित आवय$ 
3.4 ' ,


भूिम मI खनन का अिधकार -
वािमहत'माणेन Cयेmठप*नी 0 
हतमां खनेद भूिमं नृणां 'ोGतं /  1:
जलातं 'तरातं वा पुषात / 
Aें सश
ं ोBय चोXृ*य शiयं &    
गृहिनमा ण कता के हाथ से अथवा उसक/ पLनी के हाथ से एक हाथ गहरी भिू म को खोदकर परी:ा
करे या जल िनकलने तक, या पLथर िनकलने तक या एक प[ ु ष के माण क/ गहराई तक भिू म को
खोदकर उसका शोधन कर श`य 1$ $ #ह िनमा ण ार;भ $ 1 -)
मुहe*तिचतामिण मI खातिविध %
  
#' 2! राहोमुखं शु3भु! " :
उराखड मु त िवविवालय 102
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
मीनाकिसंहाकमृगाकतिभे खाते मुखात् पृmठ !   
देव मि*दर के िनमा ण म1 मीन से 3 रािश के सयू हो तो ईशान कोण म1, िमथनु से 3 रािश म1 वाय_य
कोण म1, क*या
) 3 रािश म1 नैऋLय कोण म1 और धन से 3 रािश म1 अिjन कोण म1 राह" का मख ु रहता

गृह िनमा ण म1 िसंह से 3 रािश म1 ईशान कोण म1, वृिyक से 3 रािश म1 वाय_य कोण म1, कु;भ
) 3
रािश म1 नैऋLय कोण म1 और वृष से 3 रािश म1 अिjन कोण म1 राह" का मख ु रहता है
जलाशय िनमा ण म1 मकर से 3 रािश म1, ईशान कोण म1 मेष से 3 रािश म1, वाय_य कोण म1 कक से 3
रािश म1 नैऋLय कोण म1 और तल ु ा से 3 रािश म1 अिjनकोण म1 राह" का मख ु रहता है । अत: मख ु से
िपछले कोण म1 खात शभु होता है
 "Nकं वेां िसहं ािद गणयेद् गहृ े
        
गगा चाय के मत से वेदी म1 वृषा क म1 3 रािश, गृह म1 िसहं के सयू से 3 रािश, गृह म1 िसहं के सयू से 3
रािश, देवालय म1 मीन के सयू से 3 रािश, तडाग आिद म1 कमकर के सयू से 3 रािशयC म1 राह" का
(3 &! 
Oिवaवकम'काशP मI भूिम संशोधन'कार %
खातं भूिमपरीAणे करिमतं त*पूरये*तमृ


नफलं समे समफलं लाभो रजोवXने
त*कृ*वा जलपूणमाAAशतपदं ग*वा परीWयं / :
/" AXिवहीनके A  मBयाधमेmटा3बु :
िनखनेXतमाेण पनु ते 1 / 
पांशुनािधकमBयोनkेmठमBयाधमा: =मात् 
भिू म परी:ण के समय भू वामी या उसक/ धान पLनी $) "
) 4$  एक हाथ ल;बा, -.?,
  गड्ढा खोदकर उसको पानी से भर द1। तLपचा!A 9

) 100 $(  : 5$ 9


: ( $) 

लौट आय1 िफर परी:ा कर1 यिद गत भरा हो तो उLतम, चौथाई जल सूख जाये तो मkय( <)
) 
$( ) !& ;<(
(H)
अथवा उसी िमwी से उस गड्ढा को भरे यिद िमwी बच जाये तो उLतम, बराबर हो तो मkय(, TB
5) !& ;<(
(H)
Oवातुर*नP नामक थ मI भूिम संशोधन %

उराखड मु त िवविवालय 103


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
कतुaच हत'िमतं खिन*वा खातं पयोिभ: प1रपू1रतं चेत्
वसे*सुताथ| प1रपू1रतंस"छुmके भवेत् त*A0  !:
िथरे जले वै िथरता गृहय यािAणाव*तजलेन सौlय 
िA'ं जलं !"
" मृ*युिह वामेन जलेन कतु:
अथवा सवधायािन वापये"च समत:
य नैव 'रोहित तां 'य*नेन वजयेत् 
गृहपित के हाथ भर गहरी खोदी गयी भिू म को जल से भर1 यिद जल भरा रह जाये तो शभु , तLका
सखू जाये तो अशभु और जल भरते समय िथ ) तो गृह क/ िथरता। पानी दि:ण क/ ओर घमू े
तो सख ु , बायh ओर घमू े तो मृLयु $ &! । अथवा िजस भिू म पर िनवास करने क/ इ&छा & 9

पर सभी अ*नC को एक साथ बोय1, जहॉं अक ं ु र न उग1 तो उस थान को िनवास योjय 1


(H), ;!:
उसे LयाUय $ )1 -)
 के मBय मI /0 'ािgफल %
खय  यदा भूमौ पाषाणं 'ा^य 
धनायुिQरता वै यािदmट& #  :
कपालांगारके शादौ Kया#  /"  
भिू म खोदने पर यिद वहॉं पLथर िमल जाये तो धन एवं आयु क/ वृिY होती है, यिद ईटं िम ) !&
<1(, $ , @A@, $& , $) 
) & ? &! 
खाते यदाaमा लभते िहरbयं तथेmटकायां च समृिXर
Kयं च र3यािण सुखािन ध*ते ताcािदधातुयिद त विृ X:
यिद गड्ढे म1 से पLथर िमले तो सवु ण लाभ ईटं से समृिY, n_य से सुख और ता„ािद धातु
)

कार क/ वृिY होती है
OवातुराजवiलP थ मI  /2# %
परीिAतायां भुिव िव‘नराजं समचये"चिbडकया समेतम्
Aेािधपं चाmठिदगीशदेवान् पुmपैaच धूपैबिलिभ: सुखाय
उत कार से भिू म क/ परी:ा करके vीगणेश तथा भगवती दगु ा क/ पजू ा करके :ेOपाल तथा
आठC िदjपालC क/ फल, धू ,  
) 5:  $ 1 -)
गृहिनमाण के िलये इि@का िवचार %
जया मंगला चैव िनमला सुखदेित च

उराखड मु त िवविवालय 104


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
चतुXा चेmटका: 'ोGता गृहे च वणालये
ित‹यं  2 * स^तच1 :
पAेदुिभिनमलायात् सख ु दा रामपAिभ:
'माणिमmटकायाaच गगाैमुिनिभ: मृ:
िवजया, मगं ला, िनम ला, सख ु दा ये चार कार क/ ईट1 # !" 5   $)  ) $ 7  ;
इनके माण होते है  15 ; 3 5, 17 अगं ल ु मगं ला, 12 अंगल
ु िनम ला, 23 अगं ल
ु सखु दा
का माण गगा िद मिु नयC के Pारा किथत है
इmटकाच=म् %
पंचीिण िकं पंच स^त / *  
सौlयं मृ*यु =मेणैव इmटकार3भकमसु ।।
मगं ल के न:O से ईटं रखने के िदन न:O तक का फल िन;न !  
मंगल के नA से गणना फल %
5 3 3 5 7 5
सौtय मृLयु सौtय मृLयु सौtय मृLयु

इmटकोप1र विŽदीपच=म्
स^तपंचमुिनेवेदपंचिभ: शोकलाभजभीितभीसुखम् ।
भौमभा"च गणये*सुधी: सदा इmटकोप1र सुविŽदीपनम् ।।
मंगल के नA से अिNनदीपन नA तक का िवचार च= %
मंगल नA से गणना फल
7 5 7 4 5
&$  & 
3
िशलाया& # %
दिAणपूवq कोणे कृ*वा पूजां िशलां यसेत् 'थमम् ।
शेषा: 'दिAणेन त3भांaचैव 'ितथा^या: 
कोण क/ िविधवत् पजू ा करके पवू दि:ण के कोण म1 थम िशला*या
$ $) ) दि:ण eम से
था1 $ ) 
त3भथा/ %

उराखड मु त िवविवालय 105


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
'ासादेषु च ह3यqषु गृहेmवयेषु सवदा ।
आNनेƒयां 'थमं त3भं थापयेि**# :
ासाद, धिनकC के गृह तथा सामा*य EहC म1 भी सदैव अिjनकोण म1 ही िविधपवू क
त;भ था1
$ 1 -) 
सूिभिLिशलायासं त3भया"/0* 
पूवदिAणयोमBये कुयािद*याह कaय/:
महिष कयप के मत से सOू िभि, िशला*यास तथा थम त;भ था1 पवू दि:ण के मkय म1 ही
$ 1 -)
3.4.1 गहृ ारDभ म@ िनषेध 
गहृ ेशत*ीसतु िव*त !"
Aकq ीCयशु=े िवबलेAत  
कतु: िथितन} िवधुवातुनोभq
पुर: िथते पृmठगते खिन: या 
गृहार;भ के समय गृहकता के सयू , च*nमा, वृहपित और शe ु िनब ल हो, अत &  1- $) &
तो eम से गृहश े , उसक/ Oी, सख ु और धन का नाश होता है । च*nमा न:O तथा वातु न:O
स;मख ु पड़े तो गृहकता का उसम1 वास न हो, यिद पृsठ! ?) !& 1 (-& ) &!  
3.4.2 गृहारDभ म@ न=J और वार से िवशेष फल %
पुmयzुवेदु ह1रसपजलै: सजीवै
तासरेण च कृतं सतु राCयदं या 
ीशािmवतAवसुपािशिशवै: सशु=ै
वारे िसतय च गृहं धनधायदं या 
सारै: करेCया*यमघा3ब ु 1: '2
AिŽ वेaमािNनसुतािवदं या 
सै: कदाायमतAहतैयै
 सुखपुदं या 
अजैकपादिहबुBयश=िमािनलात1 :
समदैमदवारे याAोभतू युते गृहम् 
पsु य, तीनC उLतरा, रोिहणी, मृगिशरा, vवण, आलेषा, पषू ा इनम1 से कोई न:O म1 वृहप! & M
वृहपित वार हो तो गृहार;भ करने से पOु और धन क/ ािf हो, तथा िवशाखा, अिxनी, िचOा,
धिनsठा, शततारा, आnा इनम1 से िकसी न:O से यु त शe ु और शe ु ही के वार म1 गृहार;भ $ 1)

) <1  धा*य$ &!  


उराखड मु त िवविवालय 106
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
हत, पsु य, रे वती, मघा, पषू ा, मल
ू इनम1 से िकसी न:O से यु त ( M (   & !&
गृहार;भ करने से अिjनभय और पOु को पीड़ा हो तथा यिद रोिहणी, अिxनी, उ0=0, िचOा, हत
इनम1 से िकसी न:O से यु त बधु हो और बधु वार भी हो तो गृहार;भ करने से पOु सख
ु होता है ।
0: 0, 900, Uयेsठा, अनरु ाधा, रे वती, वाती, भरणी इनम1 से िकसी न:O से यु त 1 M
शिनवार भी हो तो ऐसे योग म1 गृहार;भ करने से वह गृह रा:स और भतू से यु त &!  
लWमीयुGत 
  " 
वो"चे शु=े लNनगे वा गुरौ वेaम A 
शनौ वो"चे   लW3यायुGतं * 
 
लjन म1 उ&च का शe ु हो या चतथु थान म1 उ&च का वृहपित हो अथवा उ&& $ 1 4$ म1
रहने से गृहार;भ करने पर गृह दीघ काल तक लमी से यु त ! 
गृहिनमा ण पणू होने पर गृहवेश का िवधान बतलाया गया है। यहाँ अब गृहवेश का महु = भी
आपक/ जानकारी के िलए िदया जा रहा है।
3.4.3 गृहवेश का मुहK9त1 
माघफाiगुनवैशाखCयेmठ &  !" :
'वेशो मBयमो ेय: सौ3यकाितकमासयो:
'िवशेनूतनं ह3य\ zुवैमnै: सुखा^त 
यि–खं गृहारं तद्ारAq गृहं िवशेत् 
अथा त् गृहवेश म1 माघ, फा`गनु , वैशाख और Uयेsठ (
3 !" (ग शीष और काित क मास
मkय( । तीनC उLतरा, रोिहणी, मृगिशरा, रे वती, िचOा, अनरु ाधा अथवा Pार के न:O म1 नवीन गृह
म1 वेश करना 3 
!  - पवू ा िद िदशा म1 eम से कृ िकािद सात  सात न:O समझना चािहये । यथा गृह का Pार
पवू िदशा म1 हो तो कृ िका, रोिहणी, मृगिशरा, आnा , पनु व स,ु पsु य और आलेषा ये सात न:O
शत 

3.4.4 "( - !. व मह9व 


5 $
 1, गृह आिद का िनमा ण पणू हो जाता है, 4 गृहवेश के पवू जो पजू न
$ 5! , 9
) 
!* /2 $!)   पजू न एक अLयंत आवयक पजू न है, 5

) #-
वात-ु मडं ल म1 िथत देवता उस मकान आिद म1 रहने वाले लोगC को सख ु ,  !, समृिY देने म1

$ &!) हW। यिद िकसी नये गृह म1 #  ! 5: 1  1 $  54 !& #-वातु -)!
लोगC के िलए सव था एवं सव दा िवkन करते रहते है। गृह,  3 4 देवालय के सOू पात के समय,
: ( &<1, Pारथापन, िशला*यास एवं गृहवेश इन पांचC के आर;भ म1 वातुशांित आवयक है।

उराखड मु त िवविवालय 107


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
#-वेश के आरंभ म1 गृह-वातु क/ शांित अवय कर लेनी चािहए। यह गृह मनsु य के िलए I$
4  &$$
 3 !" शाि*तद बने इस उ े य से गृह वातु शािं त कम का ितपादन ऋिषयC
Pारा िकया गया। कम काड म1 वातश ु ांित का िवषय अLयिधक महLवपूण है यCिक, 5 
 
Oिु ट रह जाने से लाखC एवं करोडC [पये _यय करके बनाया ह"आ गृह ज 
)
( () भतू C का
िनवास अथवा गृहिनमा णकता , िश`पकार अथवा गृहवातु शािं त कराने वाले िवPान के िलए घातक
हो सकता है। वातश ु ांित करवाने वाले योjय  @! $ -13   महLवपणू &! , $ ' $
वातश ु ांित का काय यिद वैिदक िविध Pारा पणू त ः संप*न नहh होता तो गृहिपड एवं गृहवेश का
महु =त भी िनरथ क हो जाता है। अतः गृह िनमा ण कता को कम काडी िवPान का चनु ाव अLयिधक
िवचारपवू क करना चािहए।


!* /2  &
 F -

• यिद गृहवेश के पवू गृहशांित पजू न नहh िकया जाए तो दु व“न आते हW, अकालमृLयु,
;(
$ B  $  ()  ! 
• गृहिनमा ता को भयंकर ऋणEतता, $
(1 $ 1 @! , 4 _'
) >3B$  
ज`दी से नहh िमलता, _' E!  5! 
• घर का वातावरण हमेशा कलह एवं अशािं त पणू रहता है। घर म1 रहने वाले लोगC के मन म1
(1(B3  1 !  $ जीवन भी सुखमय नहh होता।
• 9
T $) & ()  $
 1 $
 ( 
) @! !) , !"  T () 
बीमारीयC का डेरा बन जाता है।
• #हिनमा ता को पOु C से िवयोग आिद संकटC का सामना करना पड सकता है।
• िजस गृह म1 वातु दोष आिद हो!) , उस घर मे बरकत नहh रहती अथा त् धन िटकता नहh
है। आय से अिधक खच होने लगता है।
• िजस गृह म1 बिलदान (5: 1 म1 मगं ल n_या $) तथा uा‹' &51  $ 1
ह"आ हो ऐसे गृह म1 कभी भी वेश नहh करना चािहए। यCिक वह गृह आकिमक
िवपियC को 1 $ ! 

 !* /2  & 

• यिद गृहवामी गृहवेश के पवू गृहशांित पजू न संप*न कराता है, तो वह सदैव सख
ु को ाf

उराखड मु त िवविवालय 108


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
$ ! 
• लमी का थाई िनवास रहता है, गृह िनमा ता को धन से संबंिधत ऋण आिद क/
समयाओ ं का सामना नहh करना पडता है।
• T $ ! '   !, सक ु ू न दान करने वाला होता है। बीमारीयC से बचाव होता है।
• घर मे रहने वाले लोग स*नता, 1   $ ;1 3  $ !) 
• िकसी भी कार के अमग ं ल, अिन] आिद होने क/ संभावना समाf हो जाती है।
• घर म1 वातद ु ोष नहh होने से एवं गृह वातु देवता के स*न होने से हर :ेO म1 सफलता
( ! 
• सस ु िUजत भवन म1 गृह वामी अपनी धम पLनी तथा प+रवारीकजनC के साथ ( !
से य\ु होकर यिद नवीन गृह म1 वेश करता है तो वह अLयिधक vैR फलदायक होता है।

3.5

इस इकाई के अkययन के पचा!A 1) 51    $ 
 $& !
है िक गृह का महLव मानव माO के िलए िकतना आवयक है। यC$ 1 # $) 51-यापन म1
ाणी-माO को असिु वधा होती है। वातु शाO म1 गृह का महLव ितपािदत करते ह"ए आचाय कथन
 $ 
गृहथय ि=या: सवा न िसXयित गृहं िवना।
यततमा गृहार3भ कम चाािभधीयते।।
अथा त् गृह के िबना गृहथ के समत मात व वैिदक काय सफल नहh होते हW या अ`प =  )
होते हW, इसिलए यहाँ गृहार;भ के बारे म1 बतलाया जा रह है। ) $!)  $ 
: ) $) T  $
ह"आ vौत व मात कम िनsफ & 5! , यCिक दसू रे के घर म1 कृ त काय का फल गृहश े या
गृहवा( $&  ( ! 
अत: सभी को वयं का गृह िनमा ण करना चािहए। यह अलग बात है िक Lयेक मनsु य ;1) 51
म1 हर संभव यास करता है िक वह अपने गृह का िनमा ण कर1 , पर*तु इस काय म1 कई तो सफल हो
जाते हW और कई असफल भी रह जाते हW।
उत लोक म1 एक न उठता है िक यिद कोई धन देकर िकसी दसू रे के गृह म1 िकरायेदार के [प म1

उराखड मु त िवविवालय 109


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
1
$  &, तो भी या उसके Pारा िकये गये धािम क काय (पु या) $ = #! $&
( )? तो इसका उर है िक नहh, जब तक आप िकसी दसू रे के गृह म1 धन देकर रह रहे है तो
आपका पु य $ = $&  ( 1 -4, न िक गृह पित को। यC$  1) $)  4
ितमास गृहवा( $& 3 !1 $ )  K

)  उस िनवास था1 $ (<1 )1) $) $ !$)


वामी माने जाय1गे। ऐसा मेरा मत है।
# शसं ा म1 आचाय कथन  $ गृह Oी, पOु ािद के भोग सख
ु का जनक, धम , अथ , $( $& )1)
 , जीवC का िनवास था1, सख ु का था1, ठड, वषा और गम‡ से बचाने वाला &!  #
िनमा ण करने से वापी, देव मि*दर आिद िनमा ण का समत फल िमलता है। इसिलए पवू ा चाय
िववकमा िद ने सव थम भवन बनाने का आदेश िदया है।

3.6 पारभािषक श&दा#


गृहार3भ  गृह िनमा ण का आर;भ

  T
गृहथ  गृह म1 रहने वा 
kौत  $
अनत  िजसका अ*त 1 &

!  गृह का वा(
!  पLथ
3.7 बोध  न. के उ/र
1. 
2. 
3. T
4. 
5. 
6. T
7. T

उराखड मु त िवविवालय 110


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
3.8
दभ1 2थ

 
वात
ु   ोफे सर देवीसाद िOपाठी
वृहPात(ु    B$$  @F. +रशक ं र पाठक
महु =ि च*ता('  रामदैव5, B$$  आचाय रामच*n पाडे
वातरु Lना$  िव*kयेवरी साद िPवेदी
3.9 सहायक पाठ्यसाम2ी
वातरु ाजव`ल
((!(A
वातु बोिधनी
महु =ि च*ता('
वृहLसं!
3.10 िनबधा9म  न
1. गृहार;भ क/ महLता ! K)
2. गृहार;भ िनमा ण म1 िवचारणीय िवषय कौन-$.1
) 
3. गृहार;भ म1 (
 - $ (!-मता*तर ततु क/िजये।
4. गृहिनमा ण म1 $ शिु Y का ितपादन क/िजये।
5. सोदाहरण गृहC के कार का उ`ले क/िजये।
6.   $ 3  3 -  )
7. िशला*यास िविध का वण न क/िजये।

उराखड मु त िवविवालय 111


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 - 4 गृहार#भ महु %&
() क; &* 

4.1 ता1
4.2 उ े य
4.3 #र;भ महु =
4.4
 
4.5 पा+रभािषक शAदा 
4.6 बोध नC के उर
4.7 स*दभ E*थ
-: 
4.8
यक पाठ्यसामEी
4.9 िनब*धाLमक न


उराखड मु त िवविवालय 112


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
4.1 ता
ततु इकाई वातश ु ाO म1 िड“लो( (DVS-20) पाठ्यeम के तृतीय पO- गृहिनमा ण
िववेचन के िPतीय खड क/ चतथु इकाई गृहार;भ महु =  से स;बि*धत है। इससे पवू क/ इकाई म1
आपने गृहिनमा ण म1 मासािद िवचार, Pार िवचार, गृहार;भ िविध आिद का अkय1 $   
अब आप गृह िनमा ण के िलए महु = का िनण य कै से करते है? इसका अkय1 $ 1) 5 ) 
# िनमा ण आर;भ करने के िलए Uयोितष शाO म1 शभु ाशभु महु = का िवधा1 ! 
गया है। अत: शभु महु =ा नसु ार ही गृहार;भ $ 1 -4
K4 हम सब वातुशाO के अ*तग त आचायg Pारा ितपािदत गृहार;भ महु = 
)
स;बि*धत िवषयC का िवतार पवू क अkययन करते हW।
4.2 उ े य
K
इकाई के अkय1 $) चात् आप जान लेग1 िक 
 गृहार;भ के िलए शभु महु = कौन-$.1
) 
 गृहार;भ हेतु अशभु महु = कौन है
 #र;भ म1 िकन-िकन कालC क/ महा है
 वातु शाO म1 नतू न गृहार;भ और जीण गृह या 
 महु = का िनधा रण कै से करते है
4.3 "(हारDभ मुहK/1
सव िविदत है िक वैिदक सनातन पर;परा म1 मानव जीवन के ज*म काल से मृLयु काल पय *त
Lयेक काय के िलए Uयोितष शाO Pारा शभु ाशभु महु = का िवधान बतलाया गया है। शाO $)
ित आथा1 51-
(3  ;1)-अपने जीवन म1 इन शभु ाशभु महु = को जानकर,
(H$ 
_यवहार म1 योग करते हW, ऐसा _यवहार म1 देखा जाता है।

# क/ महा पवू क/ इकाईयC म1 ही आपने समझ िलया है। अब आप गृहार;भ $)  4


शभु ाशभु कालखड अथवा महु =ा िद का 5ान ा“त करने जा रहे हW।

वातश
ु ाO एवं Uयोितष के महु = E*थC म1 हम1 गृहार;भ महु =  का उ`लेख ाय: सभी जगह
 7 ?! 
उराखड मु त िवविवालय 113
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
गृहार3भ मुहeL 
रोिहbयां kवणात् येAिदितयुगये हतये मूलके ।
रेव*युLर फाiगुनीदुतुरगे िमोLराषाढयो:
शतं वातु कुजाकविजतिदने गोकु3भ&
* Q 
कया* िमथुने नभ: शुिचसहोराधोजकं फाiगु 
अथा त् &', vवण, धिनsठा, !, पनु व स,ु पsु य, हत, िचOा, वा!, (: , ) !,
उराफा`ग1ु , अिxनी, ;1 3 <, उराषाढ़ा इन न:OC म1, ( ,  $& >&?$ और िदनC म1,
#, ("13 , 
, क*या, कु;भ, मीन इन लjनC म1 vावण, J, माग शीष ,  , काित क,
फा`गनु इन मासC म1 गृहार;भ (वात)ु 3 &!  अत: उत न:O, वार एवं मासC को kयान म1
$  गृहार;भ $ 1 -4, ऐसा शाO $ ) 
गृहार3भ मI समय शुिX %
कमिसिX: सुखायूंिष िनिमLशकुनािदिभ:।
झा*वा 'mटुगृहार3भे क;तये*स * &# :
अथा त् िनिम शकुन आिद के Pारा नकता के कम क/ िसिY, सख ु और आयु इLया $ -
करके गृहार;भ का महु = Uयोितिव दC का बताना चािहए।
िनिमL शकुन %
कालनरय यदगं ं सौ3यहवीिAतं युतं वािप।
त"चे पशृ ित 'mटा तदाय िनमाणमादेaय  
कालप[ ु ष के िजस अगं को शभु Eह पणू pि] से देखता हो, 9
अगं को पश करके यिद नकता
गृह का िवषय पछ ू े तो गृह का िनमा ण काल बताना चािहए।
आर3भं च समािg च 'ासादपुरवेaम  
उि*थते के शवे कुयान 'स^ु ते  
अथा त् vीिवsणु 1 $) 5!) 1)  (आषाढ़ शु लप: एकादशी से काित क शु लप: क/
4$  !" $) ! ) ासाद (राजमि*दर), परु और मकान इनका आर;भ और वेश करना
चािहए। िवsणु भगवान के शयनावथा म1 गृहार;भ करने का शभु महु = नहh होता है। यह सामा*य
वचन है। अत: गृहार;भ के समय उत िवचार का kया1 1 य$ 
र*न  नामक थ मI गृहार;भ के समय या $ 1 -4? यह बतलाते ह"ए कहते है $ -

उराखड मु त िवविवालय 114


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
िववाहोGताम
"  जािमशुिXत:।
1रGताकुजाकवारौ च चरलNनं *!  
गrु श=ु ाकचेषु वो"चा=!
गुवकq दु=* लBवा गेहार3भ: 'शय 
ारशुिXं िनरीWयादौ भशुिXं वृषच=त:।
िनmपं िथरे लNने यंगे चालयमारभेत।् ।
*यG*वा कुजाकयोaचांशं पृmठे चाे िथतं िवधुम।्
बुधेCय!* चाक\ कुया˜ेहं शुभा^त 
अथा त्  म1 $) ) (&, जािमO, +रता !" (U,S,PU), .( ,  , चर लjन
(P,U,Q,PW), चरलjन का नवमांश इन सभी का LयाUय (>&?$ ) $ $) , ग…ु , शe ु , सयू और
च*nमा इनके वो&चािद बल से यु त 1)  M ;1 
) …3 , सयू और च*n( K1$)  
होने पर ही गृहार;भ $ 1 3 $ &! 
 ) Pार शिु Y और वृषवातुचe देखकर पंचम रािश (
) को छोड़कर िथर (O,Z,PP) सं5क
और िPव R,Y,S,PO लjनC म1 गृहार;भ करना चािहये। बधु और वृहप! $) 
(R,Y,S,PO) के सयू को छोड़कर शभु फलC क/ ािf के िलए गृह बनाना आर;भ $ 1 -)
वातुराजवiल थ के अनुसार गृहार3भ मI *याCय & %
सूयq कामुकमीनगे सुरगुरौ िसंहे िवधौ दुबले।
गbडातKय/1# दNधे '  
शु=ेऽतेAथ गुरौ च पातसमये िवmट्यां  & A# 
चे पापिवलोिकते च सिहते काय\ न िकंिच"छु  
अथा त् धनु और मीन के सयू (., चैO), िसंह के वृहप!, :ीण च*n(, !", न:O और लjन
गडा*त, _य!!, <# !, दjधा!", दjधन:O, ग…ु -शe ु का अत, (!, भnा, ;<(
,
पापEह से psट या यु त च*nमा इनम1 से िकसी के रहने पर गृहार;भ काय करना अशभु बतलाया गया
 ;!: K1$ गृहार;भ म1 LयाUय $ 1 -)
&' & शुिX -
गृहसं था/ * &यq मेषथे ! *  
वृषथे धनवृिX: यािमथुने मरणं zुवम।् ।
ककटे शुभदं 'ोGतं िसंहे भृ*यिववधनम।्

उराखड मु त िवविवालय 115


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
कया* क् तुलं सौlयं विृ Qके धनवधनम।् ।
कामुके च महाहािनमकरे याXनागम:।
कु3भे तु र*नलाभ: यामीने सh भयावहम।् ।
अथा त् () रािश के सयू म1 गृहार;भ $ 1 3 , वृष रािश के सयू म1 धन क/ वृिY, ("13  $)
सयू म1 वा( $ ( ', कक रािश के सयू म1 शभु फलC क/ ािf, िसहं रािश के सयू म1 भृLयC क/
वृिY, क*या रािश के सयू म1 रोग, तल
ु ा रािश के सयू म1 सौtय, वृिyक रािश के सयू म1 धन क/ वृिY,
धनु रािश के सयू म1 महत् हािन, मकर रािश के सयू म1 धन लाभ, कु;भ रािश के सयू म1 रLनC $ 
और मीन रािश के सयू म1 मकान बनाने का आर;भ करने से भयदायक होता है अथा त् िPव
रािशयC R,Y,S,PO के सयू म1 िनिषY और चर तथा िथर रािशयC P,O,U,V, Q,Z,PW,PP के सयू म1
गृहार;भ करना उम होता है।
पmटाथ ="# च=म् %
    कक &*    वृिQ #   

या  3भ
 वृि   भृय  

     रन 
वृि वृि   

चा मास शुिX-


सौ3यफाiगनु वैशाखमाघkावणकाितका:।
&: युगहिनमाणे पुारोNयफल'दा:।।
माग शीष , फा`ग1ु ,  , (T, vावण, काित क इन मासC म1 गृहार;भ करने से पOु , आरोjय
इLयािद क/ ािf होती है।
विशmठ  %
& तपये /िस माधवे नभिस ि*वषे।
ऊजq च गृहिनमाणं पुपौ धन'दम्।।
तपय (फा`ग1ु ), !
((T), (< ( ), 1
(vावण), K (आिxन) M ]ज
(काित क) )
 (
गृहिनमा ण म1 पOु -पौO धन इLयािद क/ वृिY करने वाले होते हW।
र*न  था & %
आषाढ़चैaवयुजोजमाघCयेmठे  स'ोmठ/  
    * घटनं नृपाणां योगेaवराचायमते न शत  
उराखड मु त िवविवालय 116
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
J, चैO, आिxन, काित क, (T, Uयेsठ और भाnपद इन मासC म1 योगेवराचाय के मत म1 गृह
का आर;भ करना िनिषY है।
Oवातु2वiलP थ  5 &  गृहार3भ ; %
चैे शोककरं गृहािदरिचतं यामा# Aथ'द।ं
Cयेmठे मृ*युकरं शुचौ पशुहरं तृिXदं kा0 
शूये भापदे ि*वषे किलकरं भृ*यAयं काितके ।
धायं मागसहययोदहनभीमाघे िkयं फाiगु 
पmटाथ ="# च=म् %
चै  येठ 
ा भा प आिन काित माग   फागु
     शीष 
     शू य  भृय धाय  अि!न "ी
ाि   वृि   

जीण (/  ) गृहिनमाण मI मासशुिX िवचार %


जीण}Xारे जलाNया: / 

kावणोजq तथा माघे कारये*सु* 
 
5 , अिjन और वायु इLयािद के Pारा िगरे ह"ए मकान का जीण‰Yार कराने के िलए vावण, काित क
और माघ म1 आर;भ करने से शभु होता है। इस लोक म1 पsट है िक महु = संकोच से नये ($1 $&
पवू ‰त पC Pारा vावण, काित क और माघ म1 आर;भ करना िलखा है िक*तु माग शीष ,  ,
फा`गनु और Uयेsठ इ*हh U मासC म1 मकान बनवाने का काय आर;भ $ 1 -4
तृणकाmठ आिद के घर मI मास िनयम %
िनिषXेmव/ ऋAेषु वा   !  
तृणदागृहार3भे मासदोषो न िवते।।
पाषाणेmट
 िन &  
तृणदागृहार3भे मासदोषो न िवते।।
अथा त् िनिषY न:OC म1 भी शभु िदन हो और अपने अनक ु ू ल च*nमा हC तो तृण और काठ के Pारा
बने मकान म1 मास-शिु Y का िवचार नहh करना चािहये। पLथ , ईटं इLयािद के मकान को िन*
मासC म1 आर;भ करना अशभु होता है। िक*तु तृण और काsठ के मकान म1 मासदोष का िवचार नहh
&! 

उराखड मु त िवविवालय 117


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
   न -
1. गृहार;भ $ 3 &! ?
$. vावण . J . माग शीष घ.उपय ु त

2. () रािश के सयू म1 गृहार;भ $ 1) का फल या &! ?
क. अशभु ख. शभु ग. मरण घ. धन ािf
3. कृ sणप: म1 गृहार;भ काय आर;भ करने से या &! ?
क. सौtय . -&  . <1 1 T. ( '
4. तृण और काsठािद के मकान म1 िकसका िवचार नहh होता है?
क. प: दोष का ख. मास दोष का ग. ितिथ का घ. कोई नहh
5. जीण गहृ िनमा ण आर;भ $
(
म1 शभु होता है।
क. vावण ख. माघ ग. माग शीष घ. सभी
6. गृहिनमा ण म1 ितपदा ितिथ का फल या ?
क. मरण ख. दा+रnय ग. शभु घ. लमी ािf

पA शुिX -
शGु ल/Aे भवे*सौlयं कृmणे तक"  
तमािचाय कतKयं यदी"छे ि"€यमा*म :
शु लप: म1 गृहार;भ करने से सौtय और कृ sणप: म1 गृहार;भ $ 1)
) -&  &!  K
 4
;1 ! -1)  ) _यि\ को इनका िवचार करके मकान बनवाना चािहये।
/** शुिX %
ितीया पचं मी मुlया  I 
स^त  दशमी चैव ादaये! 
योदशी पंचदशी ितथय: यु: ! 
:
दा1रयं 'ितप*कुया"चतुथ| धनहा1रणी।।
अmट3यु"चाटनं चैव नवमी शय? 
दशq राजभयं ेयं भूते दारिवनाशनम।् ।
K
$ अथ है िक िPतीया,  -(, !#!, षsठी, स“त(,  (, 4$ , Pादशी, Oयोदशी,
पिू ण मा, ये ितिथयाँ गृहार;भ म1 शभु फल देने वाली होती हW। ितपदा दा+रnय को दे1)  , चतथु ‡

उराखड मु त िवविवालय 118


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
धन क/ हािन करने वाली, अsटमी उ&चाB1 $ 1)  , नवमी धा*य $ 1 $ 1)  ,
अमावया राजभय को देने वाली और चतदु श ी िMयC का िवनाश करने वाली होती है।
Cयोितिनबध थ  5 &  नA शिु X %
उLरेिप च रोिहbयां पुmये मैे करये।
धिनmठाितये पौmणे गृहार3भ: 'शय 
तीनC उरा, &', पsु य, ;1 3 <, हत, िचOा, धिनsठा, ! M ) ! K1 PP न:OC म1
गृहार;भ करना शत &! 
थातर मुहeL -
वैे मैेAथ माहेे गाधवq भगरोिहणी।
 वैरोचे सािवे मुहeLq गहृ मारभेत।् ।
अथा त् वा!, ;1 3 <, Uयेsठा, धिनsठा, 0: =0, &', (: , हत K1 Q महु =‰ म1 गृहार;भ
करना उम होता है।
गहृ ार3भ हेतु िविशmट " %
! : वाती िसंहलNनं शुGलपAaच स^त 
! ": kावणaच सकारा: स^त क;ितता:।।
स^ता * योगतो वातु: पुपौ'द: सदा।
गाजाaवधनधाया पुरे ितmठित सवत:।।
1 , वाती न:O, िसहं लjन, शु ल प:, स“त( !", शभु योग और vावण मास ये सात
सकार होते हW। इन सातC के योग से गृहार;भ 5, अव, <1, धा*य, पOु , पौO आिद देने वाला उम
& &! 
गृहार3भ मI लNनशुिX िवचार %
यहाँ नीचे सयू ा िद Lयेक EहC का Pादश भावC म1 गृहार;भ के अ*तग त शभु ाशभु लjन शिु Y िवचार
का चe आप सभी के बोध के िलए िदया जा रहा है 
हा: सयू  च#    "
! गु$ श%
ु #

थम भाव  व%पात    मृयु साम)य ि*वग प*ु ोपि दा-र.य
  !   श*ु य बध  "# धम लाभ $  
%  & '(  )     ) 


उराखड मु त िवविवालय 119


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
चतुथ *   बिु नाश िम*भेद  नृपमाय  +  िम*योग
", - प*ु पीड़ा  काय हािन 4वण ाि िम*ाथ प*ु ाथ लाभ 

ष6ठ . //+  पिु 8  मान9ान कौश;या   िव<ालाभ
स=त 0 कित भगं  िव?ह  /  +  
अ6ट 1 श*जु य      / 4व/ 
 
$:
ाि
 3 धम हािन धातुय साम)य   बिु भा!य मदो$ $(+ 
   वृि
$ 4 धनवृि कोशवृि बलवृि / महसौBय शCयासनािद कित लेप



5$        
ादश !              

गृह'वेश मुहeL: -
सौ3यायने Cयेmठ/"A*य #
याािनवृLौ नृपतेनवे गृहे
याेशनं ा:थमृदुzुवोडुिभ
जमAलNनोपचयोदये िथरे
सयू के उरायण होने पर मकर संeाि*त से िमथनु संeाि*त पय *त, Uयेsठ, (T, फा`ग1ु 4
वैशाख मासC म1 गृह के मtु य Pार क/ िदशा वाले न:OC म1 तथा मृदसु ं5क ((# , ) !, िचOा,
;1 3 <) और ›वु सं5क (90=0, 900, 900, &') न:OC म1 ज*मरािश और ज*मलjन
)
9- (R,Y,PW,PP) भावC म1 िथत लjनC एवं िथर (O,V,Z,PP) लjनC म1 याOा के िनवृि पर
राजा का अपने गृह म1 पनु : वेश (सपवू वेश) तथा नतू न गृह म1 थम वेश (अपवू वेश) 3
&! 
गृह'वेश तीन 'कार का होता है %
P. अपवू गृहवेश
O. सपवू गृहवेश
R. P*Pाभय वेश
$3> िवPानC ने वधू वेश को भी इसी के साथ गणना कर वेश को U कार का बतलाया है।
वततु : गृहवेश तीन कार का ही माना गया है। विसsठ ने तीनC वेशC का ल:ण इस कार

उराखड मु त िवविवालय 120


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
$  
अपवू सं: 'थम'वेशो
याावसाने तु सपवू सं :
ाभय*विNनभयािदजात -
*वे* 'वेशिFिवध: 'िदmट:
अथा त् नतू निनिम त गृह म1 थम वेश अपवू सं5क एक बार महु = से याOा आर;भ कर याOा
क/ समािf पर राजा पनु : महु = के अनसु ार ही राज साद म1 जब वेश करता है 9
)
याOािनवृि म1 पनु : वेश को सपवू सं5क तथा जल, अिjन एवं राजकोप आिद से पीिडत ़ _यि\
िकसी अ*य गृह म1 वेश करता है उसे P*Pाभय वेश कहते हW ।
मृदुzुविA'चरेषु मूलभे वा*वचनं भूतबिलं च कारयेत।्
िकोणके ायधनिगै: शभ ु ैलNने िषmठायगतैaच //1 :
शुXा3बुरzे िवजनुभमृ*यौ Kयकार1रGताचरदशचैे
अेA3बपु ण ू कलशं िजांaच कृ*वा िवशेिaम भकूटशX ु म।् ।
मृदसु ं5क ((# , ) !, िचOा, ;1 3 <) ›वु सं5क (तीनC उरा, &'), चरसं5क
(वा!, पनु व स,ु vवण, धिनsठा, ! ) एवं मल ू न:OC म1 वातु 5: 1 $ !:  )1
चािहये। अन*तर िजस लjन से िOकोण ( V,S) के *n (P,U,Q,PW) PP,O M R भावC म1 शभु
Eह िथत हC , R,Y,PP भावC म1 पापEह गये हC, U,Z भाव शY ु Eहरिहत हC तथा गृहवा( $)
ज*मलjन या ज*मरािश से अsटम रािश वेश लjन म1 न हो,  , .( , +रता U,S,PU
!", - (P,U,Q,PW) लjन अमावया और चैO मास छोड़कर तथा भकूट ( O × PO , V × S
, Y × Z $& >&?$ ) शY ु होने पर , जल से पणू कलश और uा‹ण को आगे कर गृह म1
वेश करना चािहए।
गृहवेश के पवू वातपु जू न का िवधान है। पजू न के अन*त $ , ., uा‹ण,  $)

" ;1)  ;1) $3 - 4 ) - के अनसु ार गृहवेश होता है। विसsठ ने गृहवेश
क/ िविध बतलाते ह"ए िलखा है - शe ु को पीछे तथा सयू को वाम भाग म1 कर, uा‹णC तथा
पUू य प[ु षC का पजू न कर तोरण, ( , =: , िवतान आिद से ससु िUजत कर आगे
पणू क लश, Oी 4 गीत वा के साथ वेश करना चािहये।
गृह'वेशिनदqश %
आदौ सा3या काय\ नववातु 'वेशनम्

उराखड मु त िवविवालय 121


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
राा याािनवृLौ च या 'वेशनम्
िवधाय पूविदवसे वातुपूजां बिलि=यान्
? % फाiग ु - 1! % Cयेmठ &  !" :
'वेशो मBयमो ेय: सौ3यकाितकमासयो:
'वेशे िनणय: 'ोGत: शाै: पूवसू1रिभ:
गृहार3भोिदते मासे िधmbये  !  

िवशे*सौ3या ह3य\ तृणागारे तु सवदा
नवीन गृह म1 वेश उरायण म1 करना चािहये। याOा िनवृि पर राजा का गृहवेश भी उरायण
म1 शभु होता है, P*PाLमक वेश भी उरायण म1 ही करना चािहये।
पहले िदन वातु पजू ा और बिलदान करके माघ फा`ग1ु  , Uयेsठ म1 गृहवेश होता है
तथा काित क, (ग शीष म1 गृहवेश मkय( &! 
गृहार;भ के िलये कहे गये न:O तथा वार के समय सयू उरायण म1 हो तो ईट,ं पLथर िमwी के
गृह म1 वेश करना शभु होता है। तृणिनिम त गृह म1 कभी भी शभु िदन वार म1 वेश िकया जा

$! 
! " िनदqश %
पौmणे धिनmठावथ वाणेषु वायंभुवAqषु िषूLरासु
अAीणचे ! & च ितथाव1रGते च गृह'वेश:
शुभ: 'वेशो देवेCयशु=यो]aय  ":
Kयकावारितिथषु 1रGतामाविज   
ववीCया*येदुवण*वाmšिमिथरोडुषु
   वा राौ 'वेशो मंगल'द:
) !, धिनsठा, !, &', तीनC उरा ये न:O हC, च*nमा :ीण न हो, +रता के अित+रत
ितिथ हो तो गृहवेश शभु होता है।
वृहपित एवं शe ु उदयी हC, , मगं लवार तथा +रता ितिथयC को छोड़ कर धिनsठा, पsु य,
) !, (# , !, िचOा, ;1 3 <, तीनC उरा न:O हो तो ऐसे अवसर पर िदन अथवा
रािO म1 वेश शभु होता है।

उराखड मु त िवविवालय 122


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
जीण का शािAदक अथ है   3 1। जीण गहृ वेश म1 परु ाने गृह का जीण‰Yार करते ह"ए या
पनु िनमा ण करते ह"ए उसम1 वेश करते है K
$ िववेचन करते ह"ए आचाय रामदैव5 जी ने
महु =ि च*तामिण म1 िलखा है 
जीणq गृहेANयािदभयान Aिप माग}जयो: kविणके Aिप सन् या
 !"A3बुपेCयािनलवासवेषु नावaयमता0A
जीण गृह म1 तथा अिjनवृि]  राजकोप आिद से गृह नsट हो जाने पर नविनिम त गृह म1 भी
माग शीष , काित क, और vावण मासC म1 शतिभष, पsु य, वाती तथा धिनsठा न:OC म1 भी गृहवेश
शभु होता है । ऐसी िथित म1 ग[ ु और शe ु के अत  का िवचार आवयक नहh होता है
जीण गृह म1 भी थम वेश क/ आवय$! ?!  । जैसे िकसी िनिम त ाचीन गृह को eय कर
उसम1 वेश करना हो या जीण गृह का जीण‰Yार कर पनु : उसम1 िनवास हेतु वेश करना जीणगहृ
'वेश &! । यिद वषा , J, भक ू ;प, अिjनदाह, राजक/य आदेश आिद से िनिम त गृह kवत
हो जाय तथा उसी थान पर या अ*यO स: नविनिम त गृह म1 भी वेश जीण गहृ क/ तरह ही
उ*हh महु =g म1 कर )1 -)
गृह'वेश मI कु3भ च= िवचार -
वGे भूरिवभा*'वेशसमये कु3भेAिNनदाह: कृता:
'ा"यामुसनं कृतायमगता: लाभ: कृता: पिQमे
kीवqदा: किलLरे युगिमता गभq िवनाशो गुदे
रामा: थैयमत: िथर*व  bठे भवे*सवदा
गृहवेश के समय कु;भ चe बना कर उसके अनसु ार शभु ाशभु का िनण य करके गृहवेश करना
-)। सयू के न:O से कलशचe के मख ु म1 P न:O रख1, इसम1 वेश करने से अिjनदाह,
इसके पवू म1 U न:O उPास , U न:O दि:ण म1 लाभ, U न:O पिyम म1 लमी ािf, U न:O
उर म1, $ , U न:O गभ म1 गभ नाश, R न:O गदु म1 िथरता और R न:O कठ म1
सिु थरता होती है ।
गृहार3भे कु3भच= -
था नA ;
( 3 P अिjनदाह
पवू U उPसन
दि:ण U 

उराखड मु त िवविवालय 123


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
पिyम U लमी
उर U $ 
गभ U 1
;<: R िथरता
कठे R िथर
वातु 'दीप थ मI गृह'वेश िवचार -
1! & Aिप च फाiगु Aिप Cयेmठे 'वेश: शुभदो गृहय
याािनवृLावथवा नवय िमभुजां िभवनिथरेषु
फा`ग1ु ,  , Uयेsठ म1 िPवभाव अथवा िथर लjनC म1 याOा से लौटने के पचा!A ;"
नवीन गृह म1 वेश शभु होता है ।
माbडKयमत मI िवशेष िवचार %
सू शंकु िशला ार तुला"छादनपूवकम् 
कायत3भ'ितmठोGते िधmbये  ' 
सOू , $ 3 , िशला*या
, Pारथा1, गृह&छा1, त;भ ितsठा आिद म1 िनिद sट न:O,
!", , योग लjनC म1 ही उत काय करना चािहये


4.5

इस इकाई के अkययन के पचा!A 1) 51    $ सव िविदत  $ $
1!1
पर;परा म1 मानव जीवन के ज*म काल से मृLयु $ पय *त Lये$ काय के िलए Uयोितष शाO Pारा
शभु ाशभु महु = का िवधान बतलाया गया है। शाO के ित आथा1 51-
(3  ;1)-;1)
जीवन म1 इन शभु ाशभु महु = को जानकर, समझकर ही _यवहार म1 योग करते हW, ऐसा _यवहार म1
) 5!  अथा त् &', vवण, धिनsठा, !, पनु व स,ु पsु य, हत, िचOा, वा!, (: ,
) !, उराफा`ग1ु , अिxनी, ;1 3 <, उराषाढ़ा इन न:OC म1, ( ,  $& >&?$ M
िदनC म1, #, ("13 , 
 , क*या, कु;भ, मीन इन लjनC म1 vावण, J, माग शीष ,  ,
काित क, फा`गनु इन मासC म1 गृहार;भ (वात)ु 3 &!  अत: उत न:O, वार एवं मासC $&
kयान म1 रखकर ही गृहार;भ $ 1 -4, ऐसा शाO $ ) 

उराखड मु त िवविवालय 124


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
िनिम शकुन आिद के Pारा नकता के कम क/ िसिY, सख ु और आयु इLया $ - $ $)
गृहार;भ का महु = Uयोितिव दC का बताना चािहए। कालप[ ु ष के िजस अंग को शभु Eह पणू pि] से
)! &, उस अगं को पश करके यिद नकता गृह का िवषय पछ ू े तो गृह का िनमा ण काल
बताना चािहए। vीिवsणु 1 $) 5!) 1)  (आषाढ़ शु लप: एकादशी से काित क
शु लप: क/ एकादशी ितिथ के भीतर) ासाद (राजमि*दर),  3 M ($1 K1$ आर;भ M
वेश करना चािहए। िवsणु भगवान के शयनावथा म1 गृहार;भ करने का शभु महु = नहh होता है। यह
सामा*य वचन है। अत: गृहार;भ के समय उत िवचार का kयान रखना आवय$  रLन( 
नामक E*थ म1 गृहार;भ के समय या $ 1 -4?  बतलाते ह"ए कहते है $ - म1 कहे
) (&, जािमO, +रता !" (U,S,PU), .( ,  , चर लjन (P,U,Q,PW), चरलjन
का नवमांश इन सभी का LयाUय (>&?$ ) $ $) , ग…ु , शe ु , सयू और च*nमा इनके वो&चा 
से यु त 1)  M ;1 
) ग…ु , सयू और च*nमा इनके बली होने पर ही गृहार;भ $ 1
3 $ &!   ) Pार शिु Y और वृषवातचु e देखकर पच ं म रािश (
 ) को छोड़कर िथर
(O,Z,PP) सं5क और िPव R,Y,S,PO लjनC म1 गृहार;भ करना चािहये। बधु और वृहप! $)
 (R,Y,S,PO) के सयू को छोड़कर शभु फलC क/ ािf के िलए गृह बनाना आर;भ $ 1
-)

4.6 पारभािषक श&दा#


गृहार3भ - गृह िनमा ण का आर;भ
! !
 3 M ; 3
शयनावथा  सोने क/ अवथा
1रGता  U,S,PU !"G
नदा  P,Y,PP !"G
4.7 बोध  न. के उ/र
1. T
2. 
3. 

उराखड मु त िवविवालय 125


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
4. 
5. T
6. 
4.8
दभ1 2थ

 
वात
ु   ोफे सर देवीसाद िOपाठी
वृहPात(ु    B$$  डॉ. ह+रशक ं र पाठक
महु =ि च*ता('  रामदैव5, B$$  आचाय रामच*n पाडे
वातरु Lना$  िव*kयेवरी साद िPवेदी
4.9 सहायक पाठ्यसाम2ी
वातरु ाजव`ल
((!(A
वातु बोिधनी
महु =ि च*ता('
वृहLसं!
4.10 िनबधा9मक  न
1. गृहार;भ का महLव ितपािदत करते ह"ए उसका महु = िलिखये
2. गृहार;भ िनमा ण म1 िविवध मास िवचार फल िलिखये
3. गृहार;भ म1 पंचांग शिु Y तथा लjनशिु Y का वण न क/िजये।
4. गृहवेश से या ताLपय है? पsट करते ह"ए िलिखये।


उराखड मु त िवविवालय 126


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

खड -3
अय 

उराखड मु त िवविवालय 127


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 - 1 कु#भ च( िवचार
bdkbZ dh lajpuk
1-1 izLrkouk
1-2 mn~ns”;
1-3 dqEHk pdz dk egRRo
1-4 dqEHk pdz dk Lo:i
1-5 dqEHk pdz tkuusa dh “kkL=h; fof/k
1-6 dqEHk pdz dk izk;ksfxd mnkgj.k
1-7 lkjka”k
1-8 ikfjHkkf"kd “kCnkoyh
1-9 vH;kl iz”uksa ds mRRkj
1-10 lUnHkZ xzUFk lwph
1-11 lgk;d ikB~;lkexzh
1-12 fucU/kkRed iz”u

उराखड मु त िवविवालय 128


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
1-1 izLrkouk
“kkL=ksDr i)fr ls Hkwfe p;ukfn ds Ik”pkr~ T;ksfr"k “kkL= izfrikfnr x`gkjEHk
eqgwRRkZ esa x`gkjEHk gksusa ds Ik”pkr~ okLrq”kkL=h; O;oLFkk ds vuq:Ik Hkou fuekZ.kkfn dh
izfdz;k izkjEHk dh tkrh gSA Hkou fuekZ.k iw.kZ gksusa ds mijkUr x`gLokeh Lo ifjokj
tuksa ds lfgr ml uwru fufeZr x`g esa fuokl gsrq loZizFke m|r gksrk gSA vius x`g
esa fd;k x;k leLr “kqHk deZ lHkh izdkj ds ,s’o;kasZ dks nsusa okyk gksrk gS rFkk x`gLokeh
ds euksjFkksa dks Hkh iw.kZ djusa okyk gksrk gSA tSlk fd dgk Hkh x;k gS &
x`gLFkL; fdz;k% lokZ% u fln~/;fUr x`ga foukA
;rLrLekn~ x`gkjEHkizos”kle;kS czqosAA
lukru ijEijk esa izk;% lHkh “kqHk dk;Z eqgwRRkZ ns[kdj ds gh fd, tkrs gSaA eqgwRRkZ dk
fu/kkZj.k T;ksfr"k “kkL= }kjk fd;k tkrk gSA eqgwRRkZ “kCn dk rkRi;Z ;g gksrk gS fd
fdz;k dh fufoZ?u iw.kZrk gsrq “kqHkdky dk p;u djukA ”kqHk dky esa fd, x, deZ
fpjdky rd LFkk;h gksrs gSa rFkk vn`"V Qyksa dks Hkh iznku djrs gSaA ftl izdkj ls
x`gkjEHk esa dky”kqf) gsrq vusd pdzks dk rFkk vusd la;ksxksa dk p;u fd;k tkrk gS
Bhd mlh izdkj x`gizos”k gsrq Hkh vusd pdzks dk “kks/ku rFkk dky”kqf) dk p;u fd;k
tkrk gSA T;ksfr"k “kkL= esa izk;% lHkh deksZ gsrq ,d fo”ks"k pdz dh “kqf) ns[kh tkrh gSA
pdz “kqf) gksusa ds Ik”pkr~ gh iapkax “kks/ku dk dk;Z fd;k tkrk gSA ftl izdkj x`gkjEHk
esa o`"kpdz”kqf) ns[kh tkrh gS] HkwxHkZ fLFkr Loknq ty ifjKku gsrq dwipdz dh ”kqf) dh
tkrh gS Bhd mlh izdkj x`gizos”k esa dy”k pdz dh “kqf) ns[kh tkrh gS A pdz “kqf)
dk rkRi;Z ;g gksrk gS fd veqd dk;Z flf) gsrq veqd pdz esa xzg&u{k=&jkf”k dk
fof”k"V la;ksx gksrk gSA ;gh vkdk”kh; fof”k"V la;kssx gh ml dk;Z dh lQyrk dks
|ksfrr djrk gSA
x`g izos”k ,d ekaxfyd d`R; gSA ftlesa vusd izdkj ds eaxy eU=ksa dk ikB gksrk gS
,oa rnuq:Ik gh fdz;k, gksrh gSaA x`gizos”k esa vusd izdkj ds eaxy dy”kksa dk Hkh iz;ksx
fd;k tkrk gSA blh osnksDr eaxy dy”k dh “kqHkrk dks vaxhdkj djrs gq, T;ksfr"k
“kkL= esa dy”k pdz dh “kqf) dk fo/kku fd;k x;k gSA x`g izos”k rHkh djrs gSa tc
dy”k pdz ;k dqEHk pdz dh “kqf) feyrh gSA bl dqEHk pdz dk fuekZ.k fdl izdkj
gksrk gS\ blds }kjk fdl izdkj “kqHkk”kqHkRo dk ifjKku fd;k tkrk gS\ bldk egRRo
D;k gS\ fdl izdkj ls bldks ljy i)fr ls le>k tk ldrk gS \ bu lHkh dk Li"V
fooj.k bl ikB esa fn;k x;k gSA vr% bl ikB dk /;kuiwoZd v/;;u djsaA
1-2 mn~ns”;
izLrqr bdkbZ ds v/;;u ds ckn vki ---

उराखड मु त िवविवालय 129


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 tku ldsaxs fd x`gizos”k esa dqEHk pdz dk D;k egRRo gS A
 tku ldsaxs fd dqEHk pdz dk fuekZ.k fdl izdkj ls gksrk gS A
 le> ldsaxs fd dqEHk pdz dk “kqHkk”kqHkRo fu/kkZj.k fdl izdkj gksrk gS A
 tku ldsaxs fd dqEHkpdz esa u{k=ksa dh LFkkiuk fdl izdkj ls dh tkrh gSA
 le> ldsaxs fd lw;Z vkSj pUnzu{k= dk fof”k"V la;kstu fdl izdkj ls gSA

1-3 dqEHk pdz dk egRRo


izkphu ikSjkf.kd dFkkvksa ds vuqlkj leqnz eUFku }kjk vusd vykSfdd ,oa fnO; oLrq,a
leqnz esa ls fudyh FkhaA ftldksa vusd nsorkvksa us viukdj vius oSHko dks iq"V fd;k
fdUrq leqnz eUFku ls tks lokZHkh"V OkLrq Fkh og Fkk ve`r dy’kA blh ve`r dy’k dks
ikus ds mn~ns’; ls nsork ,oa jk{klx.k ,df=r gq, FksA prqnZ”k jRuksa esa loZJs"B jRu
ve`r dy”k gh FkkA ftldks nsorkvksa ds oS| /kUoUrjh ysdj leqnz ls fuxZr gq, FksaA bl
dqEHk esa ve`r ds lkFk lkFk vusd izdkj dh fnO; vkS"kf/k;ka Hkh FkhA bUgha fnO; vkS"kf/kvksa
ds }kjk nsorkvksa ds oS| /kUoUrjh nsorkvksa dh fpfdRlk djrs FksaA bl ve`r dy”k dks
izkIr djusa ds mn~ns”; ls gh nsorkvksa vkSj nSR;ksa usa leqnz eUFku fd;kA bl ve`r dks
nsorkx.k ihdj vej gks x, vkSj ve`r dh ftl LFkkuksa ij fxjh Fkha ogka ij vkt Hkh
dqEHk dk vk;kstu gksrk gSA vr% gekjs lR; lukru /keZ esa dqEHk dk cgqr gh ekgkRE;
gSA dksbZ Hkh /kkfeZd d`R; fouk dqEHk ds lEHko gh ugha gksrk gSA dksbZ lh Hkh lrkruh;
iwtk i)fr gks ogka ij dy’k iwtu vo”; gksrk gSA ,slk ekU;rk gS fd dy”k esa gh
lHkh nsorkvksa dk okLk gksrk gSA i`Foh ij ftrusa Hkh rhFkZ LFkku gS] unh;ka gS] leqnz gS]
ioZr gS tks dqN Hkh bl i`Foh ij ewY; oku oLrq gS og lHkh dy”k esa lekfgr gSA izk;%
lHkh nsorkvksa ds gkFk esa Hkh dy”k lfUUkfgr gksrk gSA vr% dy’k dk ekgkRE; rks
lukru i)fr esa loksZifj gSA dy”k dh mRifRRk ds izlax esa o.kZu izkIr gksrk gS &
nsonkuo laokns eF;ekus egksn/kkSA
mRiUUkks·fl rnk dqEHk fo/k`rks fo".kquk Lo;e~AA
dy”k esa vaxks esa lHkh nsoksa dk okl gS bl fo"k; esa dgk x;k gS fd &
dy”kL; eq[ks fo".kq% d.Bs :nz% lekfJr%A
ewy RoL; fLFkrks czg~ek e/;s ekr`x.kk% Le`rk%AA
dq{kkS rq lkxjk% losZ lIr }hik olqU/kjkA
vFkkZr~ dy”k ds eq[k esa fo".kq Hkxoku~ dk okl gksrk gSA d.B esa Hkxoku~ f”ko dk okl
gksrk gSA ewy Hkkx esa czg~ek dk okl gksrk gSA e/; Hkkx esa lHkh ekrk, fuokl djrh gSA
dq{k Hkkx esa lHkh lkxj lfgr LkIr }hiorh i`Foh dk okl gksrk gS A bl izdkj dqEHk ds
lHkh vaxksa esa nsorkvksa dk fuokl crk;k x;k gSA blh dks n`f"Vdks.k esa j[krs gq, dqEHk
pdz dh iz/kkurk T;ksfr"k ’kkL= esa Lohdkj dh xbZ gSA

उराखड मु त िवविवालय 130


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
1-4 dqEHk pdz dk Lo:i
Ik`Foh ij izR;sd ikfFkZo oLrq dk dqN u dqN Lo:Ik vo”; gh gksrk gSA blh izdkj
dy”k dk Hkh viuk ,d fof”k"V Lo:Ik gksrk gSA ftlds }kjk mlds vkH;Urj ,oa ckg~;
lajpuk ds vk/kkj ij mlds xq.kksa dk o.kZu fd;k tkrk gSA ftl izdkj ls ekuo “kjhj
esa eq[k] d.B] ukfHk] xqnk] iSj bR;kfn vo;o gksrs gSa Bhd blh izdkj dy”k ds Hkh dqN
vo;o fu/kkZfjr fd;s x;s gS “kkL=ksa esaA vo;o fu/kkZfjr djusa dk rkRi;Z ;g gksrk gS fd
og oLrq ml vo;o ls ghu ugha gksuh pkfg,A vo;o ls ghu oLrq gksusa ij mlds Qyksa
esa U;wurk vk tkrh gSA ftl izdkj dksbZ dkjhxj lqUnj fgj.k dh vkd`fr cuk, fdUrq
mlesa us= LFkkfir u djsa rks og lq”kksfHkr ugha gksrk gS mlh izdkj vaxksa ls ghu oLrq Hkh
“kksHkk;eku izrhr ugha gksrh gSA
dy”k esa eq[; :Ik ls pkj vax gksrs gSA eq[k] d.B] xHkZ vkSj xqnk ;s pkj izeq[k vax
gksrs gSa rFkk pkj izeq[k fn”kk, gksrh gS iwoZ] if”pe] mRRkj vkSj nf{k.kA bUgha vkB
vo;oksa ls ;qDr dqEHk dk ckg~; ,oa vkH;Urj Lo:Ik gksrk gSA dqEHk esa vaxksa dk lekgkj
blh izdkj fd;k tkrk gSA

eq[k

d.B

xHkZ

vHlkl iz”u & 1 xqnk

1- dy'k dh mRRifRRk fdl LFkku ls gqbZ Fkh \


d- leqnz eUFku [k- nso nkuo ;q)
x- czg~ek ls x- buesa ls dksbZ ugha

2- dy”k ds eq[k esa fdl nsork dk okl gksrk gS \


उराखड मु त िवविवालय 131
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
d- f’ko [k- fo".kq
x- czg~ek ls x- x.ks’k

3- i`Foh ij fdrusa }hi gSa \


d- pkj [k- ikap
x- Ng x- lkr

4- buesa ls dkSu lk vax dy’k esa ugha gksrk gS\


d- eq[k [k- d.B
x- xHkZ x- iSj

5- dy’k esa fdruh fn’kkvksa dk lek;kstu gksrk gS\


d- 2 [k- 4
x- 8 x- 10

1-5 dqEHk pdz tkuusa dh “kkL=h; fof/k

mi;qZDr lHkh rF;ksa dks tku ysusa ds Ik”pkr~ dqEHk pdz tkuusadh “kkL=h; fof/k dk
mYYks[k fd;k tk jgk gSA dqEHk pdz ;k dy”k pdz ds fo"k; esa izk;% lHkh “kkL=dkj
,der j[krs gSaA blesa fdlh Hkh izdkj dk er erkUrj ugha izkIr gksrk gS A dqEHk pdz
tkuusa dh tks lokZf/kd izpfyr fof/k gS og gS jkenSoK }kjk fufeZr xzUFk
eqgwRRkZfpUrkef.k A blds =;ksn’k izdj.k x`gizos”k izdj.k esa dy”kokLrq pdz ds Lo:Ik ds
fo"k; esa bl izdkj dgk x;k gS &
oD=s Hkw jfoHkkr~ izos”k le;s dqEHksfXunkg% d`rk%
izkP;keq}lua d`rk ;exrk ykHk% d`rk% if”pes A
JhosZnk% dfy:RRkjs ;qxferk xHksZ fouk”kks xqns
jkek% LFkS;Zer% fLFkjRoeuyk% d.Bs Hkosr~ loZnk AA
x`gizos”k esa dy”k pdz”kqf) gksuh ije vko”;d gS A dy”k pdz dks gh dqEHk pdz ds
uke ls Hkh tkuk tkrk gS ;k dy”k ds ftrusa Hkh Ik;kZ;okph “kCn gSa] mu lHkh ds uke
ls bl dqEHk pdz dks tkuk tkrk gS A tSlk fd igysa crk;k x;k gS fd dqEHk pdz

उराखड मु त िवविवालय 132


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
fopkj izlax esa iwokZfn fn”kkvksa lfgr vkB vo;o eq[; :Ik ls fu/kkZfjr gksrs gSa A bUgha
vkB vo;oksa dk “kqHkk”kqHk Qy fu/kkZfjr fd;k x;k gSA dgusa dk rkRi;Z ;g gS fd
x`gkjEHk esas tc ge Hkwfe ds vUnj uUnkfn f”kykvksa ds mij dy”kksa dh LFkkiuk djrs gSa
rks os lHkh dy”kkf/kf"Br nsork gekjs x`g dh loZnk j{kk djrs gSa A ;fn dy”k pdz dh
“kqf) ds fouk gh x`g esa izos”k fd;k tk, rks fuf’pr :Ik ls dy”k fufnZ"V vax ds
vuqjks/k ls x`gLokeh ds rnax esa ihMk fo’ks"k vo”; gh gksrh gSA vr% ;g dy’k gh
x`gtU; gekjs lq[k vkSj le`f) ds |ksrd gksrs gSaA vr% iz;Ru iwoZd budh ’kqf) vkSj
v’kqf) dk fopkj vo’; gh djuk pkfg, A
dy’k pdz dk fopkj esa eq[; :Ik ls lw;Z vkSj pUnz nksuksa dk xzg.k djrs gSa A lw;Z vkSj
pUnz ds e/; ,d fof’k"V nwjh dk vkuqikfrd la;ksx gh x`gizos’k esa lq[k vkSj nq%[k dk
iznk;d gksrk gS A lw;Z fLFkr u{k= ls pUnz fLFkr u{k= dk fo’ks"k la;ksx gh dqEHk pdz
dk eq[; fo"k; gS A lw;Z ls fdrusa u{k= dh nwjh rd pUnz u{k= ‘’kqHk gksrk gS vFkok
lw;Z u{k= ls fdrusa u{k= dh nwjh rd pUnz u{k= v’kqHk gksrk gS A dsoy blh dk
fopkj dqEHk pdz esa fd;k tkrk gS A dqEHk pdz esa vf’oU;kfn 27 u{k=ksa dh x.kuk dh
tkrh gS fdUrq x`gkjEHk esa o`"k okLrq pdz esa lkfHkftn~ 28 u{k=ksa dh x.kuk dh tkrh gS
A lw;Z 1 u{k= ij yxHkx 12 fnuksa rd jgrk gS rFkk pUnz 1 u{k= ij 1 fnu rd
jgrk gS A bldk fo’ks"k /;ku j[kuk pkfg, A vU;Fkk x.kuk djusa esa =qfV gks tkrh gS A
dk’kh bR;kfn ds ikjEijfjd iapkaxksa esa dy’k pdz ’kqf) okys x`gizos’k eqgwRRkZ fn;s tkrs gS
fdUrq dqN iapkaxksa esa fouk dy’k pdz dh ’kqf) okys eqgwRRkZ fn;s tkrs gS A vr% iapkxksa esa
tks eqgwRrZ fn;s tkrs gS mudk fopkj Lo;a djds rFkk fufnZ"V eqgwRRkZ dk Lofoosd ls
’kks/ku djds gh x`gizos’k gsrq fdlh dks vknsf’kr djuk pkfg, A
dy’k pdz dk fopkj fdl izdkj ls fd;k tkrk gS\ bl lUnHkZ esa vkpk;Z jke nSoK
dgrs gSa fd lw;Z ftl u{k= ij fLFkr gS ml u{k= ls pkUnz u{k= ;fn 1 la[;k rqY;
gks rks og dy’k pdz ds eq[k esa gksrk gS rFkk mldk Qy nkg gksrk gS A dgus dk Hkko
;g gS fd lw;Z ftl u{k= ij gks ;fn mlh u{k= esa x`g izos’k gksrk gS rks x`g esa vfXu
bR;kfn ls nkg dk Hk; x`gLokeh dks ;k x`g ds lnL;ksa dks cuk jgrk gS A dy’k pdz
mnkgj.k vkxs crk;k tk,xk A blh izdkj iqu% lw;Z fLFkr u{k= ls ;fn pkUnz u{k= 4
la[;k rqY; gks rks og dy’k pdz ds iwoZ fn’kk esa jgrk gS A bl le; x`gizos’k djusa
ls x`g esa m}lu gksrk gS vFkkZr~ ?kj esa fuokl djusa dh bPNk ugha gskrh gS vFkok
x`glnL;ksa esa ijLij lkeatL; ugha gksrk gS A dgusa dk Hkko ;g gS fd lw;Z ftl u{k=
ij fLFkr gks mlls nwljs] rhljs]pkSFks vkSj ikapos u{k= ij pUnz gks vkSj bl le;
x`gizos’k fd;k tk jgk gks rks x`gizos’k djusa ls ?kj esa m}kl cuk jgsxk vFkkZr~ bl le;
fd;k x;k x`gizos’k v’kqHk gksrk gS A

उराखड मु त िवविवालय 133


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
iqu% lw;Z fLFkr u{k= ls ;fn pkUnz u{k= 4 la[;k rqY; gks rks og dy’k pdz ds nf{k.k
fn’kk esa gksrk gSA bl le; x`gizos’k djusa ls ykHk gksrk gSA dgusa dk Hkko ;g lw;Z ftl
u{k= ij fLFkr gS mlls ;fn NBs] lkrosa] vkBos vkSj uosa Uk{k= esa pUnz gks rFkk ml
le; x`gizos’k fd;k tk jgk gks rks bl le; fd;k x;k x`gizos’k ykHk dks nsusa okyk
gksrk gSA
iqu% lw;Z fLFkr u{k= ls ;fn pkUnz u{k= 4 la[;k rqY; gks rks og dy’k pdz ds if’pe
fn’kk esa gksrk gSA bl le; x`gizos’k djusa ls y{eh dh izkfIr gSA dgusa dk Hkko ;g lw;Z
ftl u{k= ij fLFkr gS mlls ;fn n’kosa] X;kjgosa] ckjgos vkSjs rsjgosa Uk{k= esa pUnz gks
rFkk ml le; x`gizos’k fd;k tk jgk gks rks bl le; fd;k x;k x`gizos’k y{eh ,oa
,s’o;Z bR;kfn dks nsusa okyk gksrk gSA
iqu% lw;Z fLFkr u{k= ls ;fn pkUnz u{k= 3 la[;k rqY; gks rks og dy’k pdz ds mRRkj
esa gksrk gSA bl le; x`gizos’k djusa ls dyg gksrk gSA dgusa dk Hkko ;g lw;Z ftl
u{k= ij fLFkr gS mlls ;fn pkSngosa] ianzgosa vkSj lksygosa Uk{k= esa pUnz gks rFkk ml
le; x`gizos’k fd;k tk jgk gks rks bl le; fd;k x;k x`gizos’k ?kj esa dyg ,oa
v’kkfUr dks nsusa okyk gksrk gSA
iqu% lw;Z fLFkr u{k= ls ;fn pkUnz u{k= 3 la[;k rqY; gks rks og dy’k pdz ds xHkZ esa
gksrk gSA bl le; x`gizos’k djusa ls xHkZ uk’k gksrk gSA dgusa dk Hkko ;g lw;Z ftl
u{k= ij fLFkr gS mlls ;fn l=gosa] vBkjgosa] vkSj mUUkhlosa Uk{k= esa pUnz gks rFkk ml
le; x`gizos’k fd;k tk jgk gks rks bl le; fd;k x;k x`gizos’k xHkZuk’k dks nsusa okyk
gksrk gS vFkkZr~ ml x`g esa oa”k dh o`f) ugha gksrh gSA
iqu% lw;Z fLFkr u{k= ls ;fn pkUnz u{k= 4 la[;k rqY; gks rks og dy’k pdz ds xqnk esa
gksrk gSA bl le; x`gizos’k djusa ls fLFkjrk gksrk gSA dgusa dk Hkko ;g lw;Z ftl
u{k= ij fLFkr gS mlls ;fn chlosa] ,Ddhlosa] ckbZlosa vkSj rsbZlosa Uk{k= esa pUnz gks
rFkk ml le; x`gizos’k fd;k tk jgk gks rks bl le; fd;k x;k x`gizos’k fLFkjrk dks
nsusa okyk gksrk gS vFkkZr~ ?kj esa loZnk gh /ku /kkU;kfn dh fLFkjrk cuha jgrh gSA
iqu% lw;Z fLFkr u{k= ls ;fn pkUnz u{k= 4 la[;k rqY; gks rks og dy’k pdz ds d.B
esa gksrk gSA bl le; x`gizos’k djusa ls fLFkjrk gksrk gSA dgusa dk Hkko ;g lw;Z ftl
u{k= ij fLFkr gS mlls ;fn pkSchlosa] iPPkhlosa] NCchlosa vkSj lRRkkbZlosa Uk{k= esa pUnz
gks rFkk ml le; x`gizos’k fd;k tk jgk gks rks bl le; fd;k x;k x`gizos’k LFkS;Z dks
nsusa okyk gksrk gS vFkkZr~ ml ?kj esa ges’kk le`f) bR;kfn fLFkjrk cuha jgsxhA bl lHkh
dh Li"Vrk gsrq v/kksfyf[kr pdz izLrqr fd;k tk jgk gSA

उराखड मु त िवविवालय 134


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
dqEHk pdz dk Lo:Ik ,oa “kqHkk”kqHk Qy
LFkku eq[k iwoZ nf{k.k Ikf”pe mRRkj xHkZ xqnk d.B
Lkw;Z 1 4 4 4 4 4 3 3
u{k=
ls
Qy nkg m}kl ykHk Yk{eh dyg Ukk”k fLFkjrk fLFkjrk
Lkkjka”k 5 v”kqHk 8 “kqHk 8 v”kqHk 6 “kqHk

dqEHk pdz dks lkjka”k :Ik esa ;fn ge ns[ksa rks izkIr gksrk gS fd lw;Z ds u{k= ls 5 pkUnz
u{k= v”kqHk gksrs gSaA iqu% 8 u{k= “kqHk gksrs gSaA blh izdkj iqu% 8 u{k= v”kqHk gksrs gSa
vkSj 6 u{k= “kqHk gksrs gSaA blh dks vf/kdka”k yksx lkj :Ik esa Lej.k j[krs gSaA bl
izdkj dy’k pdz ds ek/;e ls x`gizos”k gsrq “kqHkk”kqHk u{k=ksa dk ifjKku fd;k tkrk gSA
blesa Hkh ftl u{k=ksa esa x`gizos”k gksrk gS dsoy mlh u{k=ksa esa gh dy”k pdz dh “kqqf)
ns[kuha pkfg, vU; u{k=ksa esa ughaA vU; u{k=ksa esa ;fn dqEHk pdz dh “kqf) fey Hkh jgh
gks fdUrq x`gizos”k dk u{k= ugha gS rks mlesa x`gizos”k ugha djuk pkfg,A

1-6 dqEHk pdz dk izk;ksfxd mnkgj.k


dqEHk pdz dk izk;ksfxd ifjKku fdl izdkj fd;k tkrk gSA og bl mnkgj.k esa Li"V
:Ik ls crk;k tk jgk gSA ,d mnkgj.k tku ysusa ds Ik”pkr~ blh izdkj loZ= gh dqEHk
pdz dk ifjKku fd;k tkuk pkfg,A
tSls fdlh Hkw[k.M Lokeh dks fodze laor~ 2076 ’kd 1941 QkYxqu ekl] ”kqDy i{k] frfFk
lIreh] lkseokj] jksfg.kh u{k=] rnuqlkj 2 ekpZ 2020 dks x`gizos’k vHkh"V gSA
loZizFke ge bl frfFk ds fnu dqEHk pdz dh ’kqf) ns[ksaxsA ;fn bl fnu dqEHk pdz dh
’kqf) izkIr gksxh rHkh x`g izos’k dk dk;Z fl) gks ldsxkA ,rnFkZ 2 ekpZ dks lw;Z vkSj
pUnz dh u{k= fLFkfr dk voyksdu djsaxsA 2 ekpZ dks lw;Z “krfHk"kk u{k= ij gSA
‘’krfHk"kk u{k= ij lw;Z 20 Qjojh fnu ls gh vkjEHk gks pqdk gSA 1 u{k= ij lw;Z
yxHkx 12 fnuksa rd jgrk gS vr% 4 ekpZ rd rks lw;Z “krfHk"kk u{k= ij gh jgsxkA
lw;Z u{k= fLFkfr tku ysusa ds Ik’pkr~ pUnz u{k= dh fLFkfr dk Kku djuk pkfg,A vr%
iapkax esa voyksdu djusa ij 2 ekpZ dks pUnzek jksfg.kh u{k= ij fLFkfr gS tks jkf= ds
05%44 rd jgsxkA blds ckn e`xf”kjk u{k= izkjEHk gks tk,xkA
dy’k pdz ds “kks/ku ds fy, lw;kZf/kf"Br u{k= ls pUnzkf/k"Br u{k= rd fujfHkftn~
x.kuk djsaxsA x.kuk ds dze esa “krfHk"kk u{k= izFke gqvkA fnrh; iwokZHkknzin gqvkA blh
izdkj x.kuk djusa ij jksfg.kh u{k= dh la[;k 8 gqbZA

उराखड मु त िवविवालय 135


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
vc “kqHkk”kqHk Qy ifjKku gsrq dy”k pdz esa ns[ksaxsa fd fdl vax esa ;g la[;k gS rFkk
mldk Qy D;k gSA
dy”k pdz voyksdu djusa ij ;g Kkr gqvk fd 8 oka u{k= nf{k.k fn”kk esa izkIr gqvk
rFkk mldk Qy ykHk gSA iwokZHkknzink ls ysdj vf”ouh u{k= rd dqEHk pdz “kq) ugha
gS fdUrq Hkj.kh ls ysdj e`xf”kjk u{k= rd dqEHk pdz “kq) gSA x`gizos”k esa Hkj.kh
d`fRRkdk u{k= xzkg~; ugha gS vr% bu nks u{k=ksa esa x`gizos’k ugha fd;k tk ldrk fdUrq
jksfg.kh vkSj e`xf”kjk u{k= esa x`gizos”k gksrk gS vr% bu nksuksa u{k=ksa esa x`gizos”k fd;k
tk ldrk gSA
vr% 2 ekpZ dks jksfg.kh u{k= esa dqEHk pdz dh “kqf) gksusa ls x`gizos”k djuk mRRke
jgsxkA vr% dy[k pdz “kqf)r x`gizos”kksfnr Uk{k= esa gh x`g izos”k djuk “kkL= n`f"V ls
vuqdwy gksrk gS A blh izdkj ls vU;= lHkh txgksa ij dy”k pdz dk voyksdu djuk
pkfg,A

vH;kl iz”u & 2


6- lw;Z 1 u{k= ij yxHkx fdrusa fnuksa rd jgrk gS \
d- 1 fnu [k- 12 fnu
x- 25 fnu ?k- 30 fnu

7- dqEHk pdz esa lkfHkftr~ x.kuk dh tkrh gS ;k fujfHkftr~

8- lw;Z u{k= esa pkUnz u{k= ;fn 8 oka gks rks D;k Qy gksrk gS A
d- nkg [k- m}kl
x- ykHk ?k- Jh

9- lw;Z u{k= esa pkUnz u{k= ;fn 12 oka gks rks D;k Qy gksrk gS A
d- nkg [k- m}kl
x- ykHk ?k- y{eh
10- lw;Z u{k= esa pkUnz u{k= ;fn 26 oka gks rks D;k Qy gksrk gS A
d- y{eh [k- dyg
x- uk”k ?k- fLFkjr
1-7 lkjka”k
Lkukru /keZ esa Xk`gizos”k djuk ,d vR;Ur gh /kkfeZd vkSj ekaxfyd d`R; ekuk tkrk gSA
x`gizos”k gsrq “kkL=ksa esa vusd izdkj dh O;oLFkk, dky “kqf) dks ysdj crkbZ xbZ gSA

उराखड मु त िवविवालय 136


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
mUgha dky “kqf) esa ,d “kqf) gS dy”k pdz dhA blh dy”k pdz ls “kq) gqvk u{k=
gh x`gizos”k esa xzkg~; gksrk gSA x`gizos”kkFkZ ;fn vuqdwy u{k= feys fdUrq dy”k pdz dh
“kqf) u gks rks ml u{k= esa izos”k dFkefi ugha djuk pkfg, vU;Fkk v”kqHk ifj.kke
izR;{kr% ns[kusa dks feyrs gSaA x`gizos”k esa lw;Z vkSj pUnz bu nksuksa xzgksa dk ijLij
“kqHkk”kqHk lEcU/k gh x`g lEcfU/kr lq[k vkSj nq[k dks iznku djusa okyk gksrk gSA lw;Z ds
u{k= ls ;fn pUnz dk u{k= 5 la[;d gks rks v”kqHk Qy nsusa okyk gksrk gSA mlds vkxs
;fn lw;Z ds u{k= ls pUnz dk u{k= 8 la[;d gks rks “kqqHk Qy nsusa okyk gksrk gSA
mlds ckn ;fn lw;Z ds u{k= ls 8 la[;d pkUnz u{k= gks rks v”kqHk Qy nsusa okyk gksrk
gS vkSj ;fn lw;Z ds u{k= ls pkUnz dk u{k= 6 la[;d gks rks og “kqHk dks nsusa okyk
gksrk gSA blh izdkj dy”k pdz dh “kqf) ns[kh tkrh gSA

1-8 ikfjHkkf"kd “kCnkoyh


dqEHk & dy’k
oD= & eq[k
jfoHkkr~ & lw;Z ds u{k= ls
d`r & 4 la[;k
;exr & nf{k.k fn’kk xr
dfy & dyg
jke & 3 la[;k
vuy & vfXu] 3 la[;k dk cks/kd gSA
Hkw & i`Foh] 1 la[;k dk cks/kd gSA
LFkS;Z & fLFkjrk

1-9 vH;kl iz”uksa ds mRRkj

1- d
2- [k
3- x
4- x
5- [k

उराखड मु त िवविवालय 137


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
6- [k
7- fujfHkftr~ x.kuk dh tkrh gS A
8- x
9- ?k
10- ?k

1-10 lUnHkZ xzUFk lwph


d- xzUFk uke & eqgwRRkZ fpUrkef.k
xUFkdrkZ & jkenSOkK
Vhdk uke & ih;w"k/kkjk
Vhdkdkj xksfoUn nSoK
O;k[;kdkj & Jh foU/;s”ojh izlkn f}osnh
lEiknd & Mk czg~ekuUn f=ikBh
izdk'ku o"kZ & 2009
izdk’kd & pkS[kEck lqjHkkjrh izdk’ku] okjk.klh
[k- xzUFk uke & ikSjksfgR; deZ izf’k{kd
lEiknd & Mk lfPPknkuUn ikBd
izdk'ku o"kZ & 2010
izdk”kd & mRRkj izns”k laLd`r laLFkku y[kum

1-11 lgk;d ikB~;lkexzh


1- xzUFk uke & eqgwRRkZ ekrZ.M
xzUFk drkZ & ukjk.k nSoK
O;k[;kdkj & lhrkjke >k
izdk'kd & ekLVj [ksykMh yky ,.M lUl] okjk.klh] laLdj.k 1986

2- xzUFk uke & eqgwRRkZ dYinzqe


xzUFk drkZ & Jh foV~By nhf{kr
उराखड मु त िवविवालय 138
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
lEiknd ,oa O;k[;kdkj & Jh d`".k tqxuq
izdk'kd & pkS[kEck lqjHkkjrh izdk’ku] okjk.klh] laLdj.k 2016

3- iapkx & Jh dk”kh fo”oukFk iapkx] g`"khds’k fgUnh iapkax


izo/kZd & Jh ukxs”k mik/;k;
izdk”ku & fodze iapkax izdk”ku ch 2@95 lh HknSuh] okjk.klh

1-12 fucU/kkRed iz”u


1- Xk`gkjEHk esa dy”k pdz ds egRRo dks Li"V djsaA
2- LodfYir mnkgj.k ds }kjk ,d dqEHk pdz dh “kqf) fy[ksaA

उराखड मु त िवविवालय 139


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
 - 2 हवे महु %&
इकाई क; संरचना
2.1 तावना
2.2 उ े य
2.3 गृहवे क/ प+रभाषा एवं भेद
2.3.1 अपवू वे
2.3.2 सपु वू वे
2.3.3. P*Pा¬ वे
2.4 नतू न गृहवे महु = &<1
2.4.1 वष ि3 Y
2.4.2 (
ि3 Y
2.4.2.1
. (
ि3 Y
2.4.2.2 चा*n मास ि3 Y
2.4.3 प: ि3 Y
2.4.4 न:O ि3 Y
2.4.4.1 िदjPार न:Oोदाहरण
2.4.4.2 सfशला$ )< <
2.4.4.3 सf का चeोदाहरण
2.5 जीणा िद गृहवे महु = &<1
2.6 गृहवे पवू वातु पजू ा महू 
2.7 गृहवे म1 लjन ि3 Y िवचार
2.7.1 लjन ि3 Y का उदाहरण

उराखड मु त िवविवालय 140


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
2.8 गृहवे म1 वार, !" ि3 Y िवचार
2.9
 
2.10 पा+रभािषक शAदावली
2.11 अ7यास नC के उर
2.12 स*दभ E*थ सचू ी
2.13
$ [AसामEी
2.14 िनब*धाLमक न

उराखड मु त िवविवालय 141


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
2.1 तावना
वातु Mो\ िविध से गृह िनमा ण क/ िeया पणू हो जान1 के पचात् Uयोितष M Pारा
ितपािदत काल ि3 Y के अन[ ु प ही नतू न गृह म1 वे करना उमोम होता है । उिचत काल म1
$  गृहवे दीघ समय तक नतू न गृह म1 सुख-समृिY का देता रहता है तथा गृह म1 आन1
   ) 1यC को भी दरू करता रहता है । गृहवे िeया म1 के वल गृह के अ*दर ही वे नहh
करत1 अिपतु वात ु ि*त पवू क
िविवध बिल का िवधान करके देवC को स*तृf करते हW । वे सभी देव
स*न होकर गृह म1 िनवास करन1 वाले सभी सदयC के उपर अपनी अनक ु ू लता बनाए रखते है िजससे
गृह के सभी सदय िनLय उ*नित को ाf करते हW । गृहवे हेतु उिचत महु = 1$ 1  &<1
करना अLय*त जिटल काय है योिक उनम1 अनेक कार के कालC का सं &<1 $ 1 @!  
काल क/ दीघ तम ईकाई से लेकर सू मतम ईकाई का जब हम सं &धन करते हW तब जाकर गृहवे
)!3 Y
3 तम महु =Lत ाf होता है । गृहवे म1 न के वल वष , ;1, (
, प:, !",  , न:O,
योग करणािद क/ शिु Y $ !) हW अिपत इसके अित+र\ वामरिव, $:B ि3 Y, कु;भ चe और वाम
रिव इLयािद का भी िवचार करते हW । इन सभी का िववरण यथा थान िकया जाएगा । ततु इकाई म1
गृहवे थ वषा िद क/ ि3 Y िकस कार से क/ जाती है उसका Mो\ िनदश न $ 5   
;!8 इस इकाई का आप िविधवत् अkययन कर1 ।
2.2 उ े य
ततु इकाई के अkययन के बाद आप
 गृहवे के िविवध कारC के बारे म1 जान सक1 गे ।
 गृहवे हेतु सू म महु =
&धन करने म1 द: हो सक1 गे ।
 जीणा िद गृहवे के पृथक् महु =‰ $)  म1 जान सक1 गे ।
 लjन ि3 Y िकस कार से क/ जाती है, यह जान सक1 गे ।
 वातपु जू ा के महु = के िवषय म1 द: हो सक1 गे ।
 सf लाका वेध िकस कार से िकया जाता है, यह जान सक1 गे ।
2.3 गृहवे कN परभाषा एवं भेद -
भारतीय सनातन पर;परा एवं Uयो! M के अनुसार वातु Mो\ िविध के अनसु ार
गृहिनमा ण होने के पचात् तUज*य सख
ु ािद क/ अनभु िू त हेतु एवं सासं ा+रक कृ LयC के स;पादन हेतु
नविनिम तािद गृह म1 थमािद वे करन1 क/ Mीय एवं सनातनीय िeया को गृहवे $
उराखड मु त िवविवालय 142
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
5! । Uयोितष एवं वातु M म1 विनिम त गृह ही सुखािद को देन1 वाला कहा गया है । यह
गृहवे मtु य [प से तीन कार का बताया गया है । विसR ऋिष के मत म1 तीन कार का
गृहवे अधोिलिखत eम से कहा गया है । जैसा िक आचाय कहते हW -
अपवू स ं5ं थमवेषं याOावसाने च सपवू स ं5म् ।
P*Pा¬यsचािjनभयािदजातLवेवं वेषिMिवधः िद]ः ।।
2.3.1 अपूव 'वे! -
वेश क/ vेणी म1 सव थम अपवू स ं5क गृहवे का वण न ाf होता है । इस अपवू
सं5क गृहवे को उम कोिट का वे माना जाता है । वत मान समय म1 इसी का बह"धा योग
गृहवे थ देखा जाता है । अपवू Aद का िAदक अथ है rrन पवू ः इित अपवू ः rr अथा त् जो
कभी पहले नहh ह"आ है उसको अपवू कहा जाता है तो अपवू गृहवे का अथ यह ह"आ िक िजस
गृह म1 पहले कभी वेष नहh िकया गया हो और सव थम बार वे हो रहा हो वह गृहवे अपवू
स5ं क कहलाता है । इस अपवू गृहवे का पृथक् महु = होता है जो इस इकाई म1 विण त िकया
जाएगा । यह अपवू गृहवे सव‰म कार का माना जाता है ।

2.3.2 सुपूव 'वे! -


वेश क/ vेणी म1 िPतीय वे होता है सपु वू सं5क गृहवे । सपु वू Aद का
िAदक अथ होता है rrसRु " पवू ः इित सपु वू ःrr अथा त् स*ु दर [प से जो पवू म1 हो चक
ु ा है वह सपु वू
स5ं क होता है । अपवू सं5क गृहवेष हो जान1 के पsचात् जब कभी दीघ कािलक याOा इLयािद
सकुषल पूण कर लेन1 के पsचात् िPतीय बार या तृतीय बार या कभी भी जब यािOक वगृह म1 पनु ः
वेष करता है तो उसको सपु वू सं5क गृहवेष कहा जाता है । िजस कार िववाह के पsचात् वधू का
थम बार वपित गृह म1 वेष करन1 को वधू वेष कहा जाता है तथा पनु ः िPतीय बार वपित गृह म1
वेष करन1 को िPरागमन कहा जाता है । उसी कार गृहवामी अपन1 कुटु;बी जन सिहत जब
सव थम वगृह म1 वेष करता है तो अपवू गृहवेष तथा िPतीयािद बार जब याOा इLयािद से िनवृ
होन1 पर वेष करता है तो वह सपु वू सं5क गृह वेष कहलाता है । यह सपु वू सं5क गृह वेष मkयम
vेणी का माना जाता है । वत मान समय म1 यह वेष लोक _यवहार म1 ायः नहh िदखाई देता है िक*तु
कुछ सांकृ ितक देषC म1 यह पYित आज भी जीिवत है । अपवू सं5क गृहवेष महु =­त तथा सपु वू
सं5क गृह वेष महु =­त एक ही होते हW दोनC के िलए पृथक् पृथक् _यवथा नहh है । अतः जो मासािद
षिु Y थम गृहवेष म1 Eा‘ है वही मासािद षिु Y सपु वू सं5क गृहवेष म1 भी Eा‘ है ।

उराखड मु त िवविवालय 143


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
2.3.3. CCाO वे -
अपवू एवं सपु वू गृहवेषC के पsचात् तृतीय वेष P*Pा¬ सं5क होता है । P*Pा¬ का
षािAदक अथ होता है दबु ारा । यह वेष भी मkयम vेणी का माना जाता है योिक इस वेष म1 अपवू
एवं सपु वू से जो भी वेष अविष] है उनको वीकार िकया जाता है । अथा त् यिद कोई गृह परु ाना हो
गया है और वह जीण -षीण अवथा म1 है या िफर अिjन इLयािद से दjध हो गया है अथवा बा+रष
KLयािद से िगर गया है या िकसी ने भय िदखाकर तोड िदया है अथवा वयं ही िगर गया है तो उसके
पsचात् उस भख ू ड पर पनु ः गृहिनमा ण कराना तथा उसम1 वेष करना P*Pा¬ वेष कहा जाता है ।
पहले से िनिम त गृह म1 पनु ः गृह काय कराकर उसको िवतार देना भी P*Pा¬ सं5क माना जाता है ।
इस P*Pा¬ सं5क गृह वेष क/ मासािद षिु Y थोडी पृथक् होती है । बह"त सारी षिु Yयां तो अपवू एवं
सपु वू के समान ही होती हW िक*तु मासािद म1 कुछ अ*तर ाf होता है । अपवू -सपु वू के मास अलग
होते हW तथा P*Pा¬ के मास अलग होते हW अ*य सभी चीज1 समान ही होती है । यथावसर उनका
वण न िकया जाएगा । इस इकाई म1 इन तीनC कार के गृहवेषC के महु =­ता पर िवचार िकया जाएगा ।

2.4 नूतन गृहवे मुहK/1  


नतू न गृहवेश का अथ यहां पर अपवू एवं सपु वू स5ं क वेश से समझना चािहए। वततु ः
त मान समय म1 सपु वू गृहवेश pि]गोचर नहh होता इस कारण से नतू न गृहवेश नाम से ही िवचार
$ 5  । नतू न गृहवेश का अथ होता है सव थम विनिम त गृह म1 वेश करना  !
पYित म1 नतू न गृहवेश म1 कालाशिु Y हेतु Uयोितष शाMो\ महु =‰ क/ _यवथा क/ गई है। तदन[ ु प
ही परु ातन पYित के अनसु ार गृहवेश हेतु अनेक कार के शिु Y क/ _यवथा क/ गई है। वततु ः
महु = &<1 $ 1 अपन1 आप म1 एक जिटल काय है। वत मान समय म1 पंचांगC म1 गृहवेशा $
महु = िदया गया होता है। सामा*य जन उसी को देखकर अपने दैिनक _यवहार म1 लाते हW । पंचांगC म1
द महु = क/ िeया इस पाठ म1 दशा यी 7 पYित के अनसु ार ही क/ जाती है। अतः सव "( (
नतू न गृहवेष हेतु शाMो\ माण का अवलोकन करते हW। इस स*दभ म1 ामािणक E*थ
महु =ि च*तामिण के गृहवे करण म1 अधोिलिखत लो$ $   -
सौ3यायने Cये:तपोऽ*यमाधवे याािनवृLौ नृपतेनवे गृहे ।
याद् वे!नं ाःथमृदुzुवोडुिभजमकलNनोपचयोदये िथरे ।।
इस लोक का महLवपणू प: यह है िक के वल एक ही लोक म1 गृहवेश म1 Eा‘ मासC, न:OC एवं
लjनC का िववरण दान िकया गया है $.1 $.1
)
.र या चा*n मासC म1 गृहवेश $ 1 -4
उराखड मु त िवविवालय 144
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
$.न कौन से न:OC म1 गृहवेश करना चािहए तथा कौन कौन से लjनC म1 गृहवेष करना चािहए ये
सभी प: अLय*त महLवपणू है । िकसी भी कार का जब हम महु = शोधन करते हW तो सव थम
दीघ तम ईकाई से लेकर सू मतम ईकाई तक का िवचार करते हW। काय िवशेष हेतु महु = संशो<1 म1
सव थम वष षिु Y देखते हW उसके बाद मास षिु Y का िवचार करते हW। ततः प: ि3 Y देखते हW उसके
 1:O षिु Y का िवचार करते हW। न:O के बाद ितिथ,  , &, करण लjन एवं महु = का
संषोधन करते हW। इन सभी अवयवC का िविधवत् संशो<1 $ न) 1 के पsचात् ही िकसी काय िव)
का महु =­त िनकाल पाते हW। अतः गृहवेश म1 भी इन सभी क/ शिु Y का िवचार देखते हW उसके बाद
ही समय का िनदŒष करते हW िक अमक ु िदनािद म1 गृहवेश करना चािहए। वषा िद क/ शिु Y
िन;निलिखत कार से िवचार क/ जाती है

2.4.1 वष1 षुिA -


गृह वेष म1 िकसी भी कार क/ वष षिु Y का िवचार नहh िकया जाता है । िजस वष गृह
का िनमा ण पणू हो उसी वष मासािद षिु Y देखकर गृहवेष कर लेना चािहए योिक गृह िनमा ण
बह"त ही प+रvम के पsचात् ाf होता है अतः उसम1 िववाहवत् वष षिु Y का अवलोकन नहh करना
-4 

2.4.2 मास षुिA -


भारतीय Uयोितष म1 िकसी भी कार के महु =­त हेतु मtु य [प से दो कार के मासC का
िववरण ाf होता है । थम है सौर मास तथा िPतीय है चा*n मास । कुछ काय‰ म1 के वल सौर मास
षिु Y का ही िवचार करते हW तथा कुछ काय‰ म1 के वल चा*nमास sषिु Y का ही िवचार करते हW एवं
कुछ काय‰ म1 दोनC कार के मासC क/ षिु Y का अवलोकन करते है । गृहवेष म1 सौर एवं चा*n मास
दोनC कार क/ षिु Y का िवधान Uयोितष षाM म1 ाf होता है ।

2.4.2.1
/ ,
ि* A
गृह वे म1 सबसे महLवपणू प: है िक कौन कौन से सौर मासC म1 या कौन कौन से
चा*nमासC म1 गृहवेष करना चािहए । इस िनण य हेतु षाMकार कहते हW िक सौर मान से उरायण के
सयू म1 गृह वेष करना चािहए । िविदत है िक मकर से ार;भ होकर िमथनु ा*त तक का उरायण
होता है अथा त् आधिु नक मान से हम देख1 तो 14 51 
) 15 जल ु ाई तक का काल उरायण
उराखड मु त िवविवालय 145
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
सं5क होता है । अतः सौर मान से इसी समय म1 गृहवेष करना चािहए । दि:णायन म1 भी गृहवेष
का महु =­त होता है िक*तु वह के वल जीणा िद गृह हेतु य\
ु होता है । इसके अित+र\ इ*हh
कालखडC म1 यिद चा*nमास क/ षिु Y ाf होती हो तभी यह सौर मान Eा‘ है अ*यथा नहh । इसी
कार ग[ ु एवं षe
ु के वृYLव, अत एवं बा`यLव म1 तथा *यनू ािधमास म1, ध*वक म1 गृहवेष नहh
$ 1 -4 

2.4.2.2 चाE मास *िA -


गृहवेष म1 सौर तथा चा*n मास दोनC का Eहण िकया जाता है । सयू जब उरायण म1
हो तभी इ*हh चा*n मासC म1 गृहवेष करना चािहए । गृहवेष हेतु चार चा*n मास अLय*त षभु माने
जाते हW । माघ, फा`गनु , वैषाख एवं UयेR मास ये उम कोिट के मास गृहवेष म1 वीकार िकए जाते
है । उरारण के सयू म1 भी चैO मास म1 गृह वेष नहh करना चािहए । चैO मास गृहवेष म1 िनि*दत
(1 5!   कौन से चा*nमासC म1 गृह वेष करन1 पर या षभु ाषभु फल होता है यह विसR ऋिष
के मत म1 िन;निलिखत कार से िदया गया है ।
माघेऽथलाभः 'थम'वेषे पुाथलाभः खलु फाiगनु े च
चैेऽथहािनधनधायलाभो वैषाखमासे पशुपु3
Cये:े च मासेषु परेषु नूनं हािन'दः षुभय'दmच
! Gले च पAे सुतरां िववृद्Bयै कृmणे च यावत् द!    
अथा त् माघमास और फा`गनु मास म1 गृहवेश करन1 पर पOु और धन का लाभ होता है। चैOमास म1
वेश $ न1 पर धन क/ हािन होती है। वैशाख मास म1 गृहवेश करन1 पर धन और धा*य का ला
&! । UयेR मास म1 पशु और पOु का लाभ होता है। शेष मासC म1 वेष करन1 पर हािन होती है तथा
शOु से भय बना रहता है। अतः के वल इ*हh चार मासC म1 नविनिम त गृह म1 थम बार गृहवेश करना
उमोम माना गया है। कुछ आचाय‰ के मत म1 माग षीष एवं काित क मासC म1 भी गृहवेश $
जा सकता है िक*तु वह मkयम vेणी का होता है। जैसा िक बृहPातमु ाला म1 कहा गया है -
?-फाiगनु -1-Cये:मासेषु !" 3
'वेषो मBयमो ेयः सौ3य-काितकमासयोः
इस कार कुल छह मासC (माघ, फा`गनु , , UयेR, माग षीष एवं काित क) म1 गृहवेष का
िवधान Uयोितष षाM म1 ाf होता है

उराखड मु त िवविवालय 146


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
2.4.3 प= *िA -
उ\ छह मासC म1 ही षु ल प:C म1 तथा कृ sण प:C म1 के वल दषमी तक ही गृहवेष करना
चािहए । इसके अित+र\ कृ sण प: क/ एकादषी से लेकर अमावया तक का िनषेध बताया गया है ।
5
 $ $   -
षु ले च प:े सतु रां िववृदk् यै कृ sणे च यावत् दषमी च तावत् ।।

2.4.4 न=J *िA -


समत षभु कम‰ म1 न:O षिु Y क/ धानता रहती है योिक न:OC के जो गणु धम षाMC म1
बताए गए है उ*हh के गणु धम‰ के अनसु ार िनिद ] गणु धम वाले काय‰ का स;पादन करन1 पर ही
स;बि*धत काय सफलता िनभ र रहती है । अतः िकसी भी sषभु काय म1 न:OC का अवलोकन
अवsय ही करना चािहए । यिद अ*य सभी ितिथ इLयािद षिु Y न िमल1 के वल न:O षिु Y ही िमल
जाए तो भी काय कर लेना चािहए । अतः गृहवेष म1 जो विण त न:O है वह इस कार से Uयोितष
षाM म1 बताए गए है । के वल मृदसु ं5क एवं ›वु सं5क न:OC म1 ही गृह वेष करना चािहए अथा त्
(# , ) !, िचOा, ;1 3 <, उरा फा`गनु ी, उराषाढा, उराभाnपद् एवं रोिहणी इन आठ
न:OC म1 के वल नतू न गृहवेष को ही करना चािहए ।
इसके अित+र\ भी गृह के मtु य Pार के अनसु ार कुछ िविष] न:OC म1 भी गृहवेष िकया जाता है
। यिद गृह का मtु य Pार पवू म1 है तो पवू िदषा वाले न:OC म1 भी गृहवेष िकया जा सकता है । यिद
गृह का मtु य Pार दि:ण म1 है तो दि:ण िदषा वाले न:OC म1 भी गृह वे $ 5
$!   
गृह का मtु य Pार पिsचम म1 है तो पिsचम िदषा वाले न:OC म1 भी गृहवेष िकया जा सकता है और
यिद गृह का मtु य Pार उर िदषा म1 है तो उर िदषा वाले न:OC म1 भी गृहवेष िकया जा सकता है
िक*तु यिद गृह का मtु य Pार पवू म1 है तो अ*य िदषाओ ं वाले न:OC म1 कथमिप गृहवेष नहh करना
चािहए । पवू ा िद िदषाओ ं वाले न:O अधोिलिखत कार से विण त हW ।
सPतशलाका चG / िदRCार न=J

उराखड मु त िवविवालय 147


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
पूविदNनA

d` jks e` vk iqu iq vk”ys

Ek
Hk
mRRkj
Ikw nf{k.k
fnX}kj v
u{k= m fnX}kj
js u{k=
g
m
fp
iw
Lok
’k fo
/k J vfHk m iw ew T;s vuq
Lok

पिSमिदRन=J

2.4.4.1 िदRCार न=Jोदाहरण -


5
)  $सी के गृह का मtु य Pार पवू िदषा म1 है तो ऐसा गृहवामी के िलए कृ िका से
लेकर sलेषा तक के न:OC म1 गृहवेष का महु =  5
$! है। इसम1 कोई आपि नहh होगी।
यह षाMिनिद ] है। इसी कार दि:णािद िदjPार न:OC म1 भी दि:णािद मtु यPार वाले गृहC म1 वेष
$ 5
$!   ) < है जो के वल Pारािभमख ु ािvत है। पवू म1 उ\ आठ न:OC म1
िकसी भी मtु यPारािvत गृह का वेष िकया जा सकता है िक*तु पवू ा िद िदjन:OC म1 के वल पवू ा िद
Pारधान गृहC म1 ही वेश िकया जाता है
2.4.4.2 सT#   
िदjPार न:O चe को सfषलाका चe भी कहते हW। सfषलाका वेध चe म1 िकसी भी पापEह से
वेिधत न:O को षभु काय‰ म1 छोड िदया जाता है। गृहवेश म1 भी पापEह दिू षत न:O और पाप Eह
)<! न:OC को Lयाग िदया जाता है। जैसा िक कहते हW -
उराखड मु त िवविवालय 148
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
eूरEहािधिRतिवYभं च िववज नीयं िOिवधवेषे ।

2.4.4.3 सg!का च=ोदाहरण -


जैसे िकसी गृहवामी को उराषाढा न:O म1 अपन1 गृह म1 वेष करना अभी] है तो ऐसी
िथित म1 यिद उराषाढा न:O म1 कोई पापEह होगा तो इस न:O म1 वेष नहh िकया जा सकता है
योिक यह न:O पापEह दिू षत हो गया। यिद वेष करना Uयादा अभी] है तो पापEह िजस चरण म1
िथत है के वल उसी चरण को Lयाग देना चािहए न िक सभी चरणC को
इसी कार से वेध का प+र5ान भी गृहवेष म1 करना चािहए । सfषलाका वेध चe म1 के वल
स;मख ु ही वेध होता है। जैसे िकसी गृहवामी को उराषाढा न:O म1 वेष करना अभी] है । अतः
उराषाढा के स;मख ु वाला न:O मृगिषरा है। अतः मृगिषरा न:O पर यिद कोई पापEह है तो वह
उराषाढा न:O को वेिधत करे गा। अतः पापEह वेिधत न:O को भी गृहवेष म1 छोड देना चािहए ।
यिद वेष करना Uयादा अभी] है तो चरण वेध के अनसु ार प+रहार करना चािहए । थम चरण म1
िथत Eह चतथु चरण को िवषेष [प से िवY करे गा तथा िPतीय चरण म1 िथत पापEह तृतीय - '
को िवषेष [प से वेिधत करे गा। इसी कार तृतीय चरण म1 िथत पापEह िPतीय चरण को तथा
चतथु चरण म1 िथत पापEह थम चरण को िवषेष [प से वेिधत करे गा
जैसे मृगिषरा न:O के थम चरण म1 यिद पापEह है तो वह उराषाढा न:O के चतथु - ' $&
िवषेष [प से वेिधत करे गा। वेध िवचार म1 षभु EहC का भी वेध देखते हW । ऐसा िसYा*त है िक पापEह
से वेिधत स;पणू न:O का Lयाग कर देते हW तथा षभु Eह से वेिधत न:O के चरणC का के वल Lयाग
$ )!) हW । तो इस कार गृहवेष म1 जो न:O अभी] है वे न:O पापEह से वेिधत और पापEह से
य\ु नहh होन1 चािहए ।

अ,यास  न - 1
1. #वे िकतन1 कार का होता है?
$. 1 . 2
. 3 T. 4

2. कौन से मास म1 गृहवे नहh करना चािहए ?


क. माघ ख. फा`गनु

उराखड मु त िवविवालय 149


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
ग. चैO घ. वैषाख

3.या गृहवामी के ज*मरािष और ज*मलjन से उपचय थान का लjन गृहवेष म1 Eहण करना
चािहए । हां /नहh

4. इनम1 से उपचय थान कौन कौन से हW ?


$. 3 . 6
. 10 T. )


5. गृहवेष हेतु चयिनत न:O पापEह वेध से रिहत होना चािहए। सLय/असLय

2.5 जीणा1िद गृहवे मुहK/1  


िजस कार नतू न गृहवेश महु =­त हेतु अनेक तयC का िवचार करना पडता है ठीक उसी
कार जीणा िद गृहवेष हेतु भी कुछ मtु य तयC का िवचा $ 1 @! । वततु ः बह"त सारे तय
नतू नगृहवेषवत् ही हW तथािप कुछ नये िसYा*तC $  ) - $ 1 &! । जीणा िद गृह वेष
म1 के वल कुछ मासC क/ अिधकता एवं न:OC क/ अिधकता तथा ग[ ु षe
ु के अतािद क/ िविध 
िवषेष [प से िवचारणीय होती । अ*य सभी लjनािद षिु Y िवचार नतू नगृहवेषवत् ही होते हW
आचाय रामदैव5 ने अपन1 महLवपणू E*थ महु =­तिच*तामिण के गृहवेषकरण म1 जीणा िद गृहवेश
)!3 #"$A महु = को ितपािदत िकया है 5
 $ $!) हW -
जीणq गृहेऽNयािदभयानवेऽिप माग}जयोः kाविणके ऽिप सत् यात्
वेषोऽ3बुपेCयािनलवासवेषु नावmयमतािदिवचारणाऽ
जीणा िद गृहवेष क/ प+रभाषा P*Pा¬ वेष के अ*तग त पहले ही कही जा चक ु / है   $) 
जीणा िद गृहवेष हेतु Eा‘ मास, न:O एवं ग[ ु षe
ु क/ अतािद षिु Y का ही िवचार िकया जाएगा
माग षीष , काित क, vावण इन तीन मासो म1 जीणा िद गृहवेष होता है। इसके अित+र\ जो मास नतू न
गृहवेष म1 Eा‘ हW उन मासो म1 भी जीणा िद गृहC का वेष &! । अतः इस कार कुल सात मासC
((T, फा`गनु , , UयेR, माग षीष , vावण एवं काित क) म1 जीणा िद गृहवेष का िवधान
Uयोितष षाM म1 ाf होता है
!, पsु य, वाती, धिनRा न:OC म1 जीणा िद गृहवेष करना उम होता है िक*तु इन चार न:OC
उराखड मु त िवविवालय 150
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
म1 नतू न गृहवेष िनिषY माना गया है। कुछ आचाय‰ के मत म1 नतू न गृहवेष हेतु जो न:O िविहत है
उन न:OC म1 भी जीणा िद गृहवेष िकया जा सकता है
जीणा िद गृहवेष म1 बृहपित-षeु के बा`यLव, अतंगत, बृYLव, ग[ ु के िसंहथ-मकरथ और
लfु संवLसर आिद का दोष नहh लगता है। अतः इन सभी प+रिथितयC म1 भी जीण गृहवेष िकया
जा सकता है िक*तु इन सभी प+रिथितयC म1 नतू नगृहवेष नहh िकया जाना चािहए K1

प+रिथितयC के प+र5ान के िलए आप सहायक E*थसचू ी देख सकते हW

2.6 गृहवे पूव1 वातु पूजा मुहK/1


पार;प+रक [प से यिद हम देख1 तो गृहवेश करान1 हेतु 3 से अिधक िदनC का अनRु ान बृहद्
[प म1 आयोिजत होता है िक*तु वत मान समय म1 यह पYित लfु होकर के  4$ 1 !$ 
सीिमत हो गई है। पवू काल म1 गृहवेश करन1 से पवू वातपु जू ा और भतू बिल आिद का भी महु =
देखा जाता था उसके पsचात् गृहवेश महु = म1 गृहवेश $ जाता था िक*तु आज के वल
गृहवेश महु = म1 ही सभी िeयाए होती है। आचाय रामदैव5 न1 इस बात को प] [प से बताया है
5& इस कार से है -
मृदुzुविA'चरेषु मूलभे वा*वचनं भूतबिलं च कारयेत्
अथा त् गृहवेश के पवू मृगिषरा, ) !, िचOा, ;1 3 <, उरा फा`गनु ी, उराषाढा, उराभाnपद,्
&', हत, अिsवनी, पsु य, वाती पनु व सु, vवण, धिनRा, तिभषा न:OC म1 वातुप[ ु ष का
अच न एवं भतू बिल आिद क/ िeया करनी चािहए। वततु ः गृहवेश म1 िविहत न:OC का Eहण भी
इसी म1 िकया गया है अतः एक ही िदन वातपु [ ु ष पजू न और गृहवेश होता है तो कोई दोषद नहh है
िक*तु इसके अित+र\ जो न:O है उनम1 भी वातपु जू ा आिद क/ िeया क/ जा सकती है िक*तु उन
न:OC म1 वेश नहh िकया जा सकता है। वातपु जू ा एवं भतू बिल के िवषय म1 आप अगली ईकाई म1
पढ1गे

2.7 गृहवे म@ लRन*िA िवचार


गृहवेष म1 लjनषिु Y का बह"त ही माहाL;य है यC$ उिचत लjनषिु Y म1 िकया गया काय
दीघ काल तक सख ु देन1 वाला होता है तथा पारमािथ क लाभ को भी दान करता है । लjन के
माहाL;य के िवषय म1 Uयोितष षाM म1 अनेक सगं ितपािदत िकये गये है । लjनषिु Y होन1 से अनेक
कार के दोषC का भी षमन होता है । अतः कोई भी षभु कम िवना लjन षिु Y के नहh करना चािहए ।
उराखड मु त िवविवालय 151
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
गृहवेष करन1 हेतु िकस कार का लjन चनु ा जाए तथा कौन से Eह िकस थान पर हC, 4 $.1
कौन से भाव षY ु होन1 चािहए, इन सभी के िवषय म1 आचाय रामदैव5 महु =­तिच*तामिण म1 कहते हW
$ -
िOकोण के *nायधनिOगैः भ3 ैल jने िOषRायगतैच $ 8 
Y
3 ा;बरु *›े िवजनभु मLृ यौ _यका र+र\ाचरदष चैOे ।।
Uयोितष षाM म1 वभाव क/ pि] से रािषयC को तीन वग‰ म1 िवभािजत िकया गया है । इन वग‰ $)
आधार पर ही िकसी भी काय क/ कृ ित के अनसु ार लjन का चयन िकया जाता है । मेष-कक -!3 
एवं मकर रािषयां चर वभाव क/ होती है । वृष-
-वृिsचक एवं कु;भ रािषयां िथर वभाव क/
होती हW । िमथनु -क*या-धनु एवं मीन रािषयां िPवभाव कृ ित क/ होती है । इनक/ कृ ित के अनसु ार
ही काय क/ कृ ित जानकर लjन का चयन िकया जाता है । गृहवेष एक िथर कृ ित का काय है ।
अतः िथर लjनC (वृष-
-वृिsचक-कु;भ) म1 ही गृहवेष करना अLय*त षभु माना जाता है तथा
िPवभाव लjनC म1 गृहवेष करना मkयम vेणी का माना जाता है । चर लjनC म1 तो कथमिप गृहवेष
नहh करना चािहए । यिद िथर लjनC म1 Eह षिु Y एवं भाव षिु Y न िमलती हो तो ही िPवभाव लjन
का Eहण करना चािहए । यिद Eह षिु Y एवं भाव षिु Y दोनC, चर लjनC म1 िमल रही हो तो भी चर
लjनC म1 गृहवेष नहh करना चािहए ।
िथर एवं िPवभाव लjनC म1 एक बात और kयान देन1 वाली होती है िक ये लjन गृहवामी के
ज*मरािष से और ज*म लjन से उपचय (3.6.10.11) थान वाले होन1 चािहए । यिद ज*म रािष और
लjन से उपचय थान का िथर या िPवभाव लjन Eहण िकया जाता है तो बह"त ही षY ु तम एवं
सू मतम लjन संषोधन माना जाता है । ज*म रािष या ज*म लjन यिद दोनC से उपचय का िथर या
िPवभाव लjन Eहण िकया जाता है तो बह"त ही उमोम माना जाता है । यिद दोनC से न िमल1 तो
के वल एक से ही िमले तो उम माना जाता है । यिद दोनC से न बनता हो तो के वल िथर लjन Eहण
करना मkयम vेणी का माना जाता है और यिद िथर लjन न िमले तो िPवभाव लjन Eहण करना
अधम vेणी का माना जाता है ।
गृहवेष हेतु लjन चयन करते समय एक बात और kयान रखनh होती है िक गृहवामी के ज*म लjन
और ज*म रािष से अ]म का लjन भी गृहवेष म1 िनिषY माना जाता है ।
लjनC म1 िषिथलता का एक मख ु कारण है िक गृहवेष म1 चतथु एवं अ]मभाव क/ षिु Y मख ु
मानी जाती है । लjन षिु Y कर लेन1 के पsचात् Eहषिु Y एवं भाव षिु Y का िवचार आवsयक [प से
िकया जाता है । ये दोनC भाव षिु Y िजस लjन म1 िमलती हो, उसी को गृह वेष का लjन वीकार कर

उराखड मु त िवविवालय 152


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
गृह वेष करना चािहए । भाव षिु Y का ताLपय यह है िक गृह वेष के लjन म1 इन दोनC भावC म1 कोई
भी Eह नहh होन1 चािहए ।
इसके अित+र\ भाव षिु Y के संग म1 कहते हW िक िOकोण थानC (5.9) और के *nथानC
(1.4.7.10) तथा िPतीय भावC म1 षभु Eह होन1 चािहए एवं षR थान म1 पापEह होन1 चािहए तथा
तृतीय एवं एकादष भावC षभु ाषभु Eह होन1 चािहए । वततु ः िकसी भी लjन म1 सभी EहC क/ उ\
िथितयां िमल पाना अLय*त दsु कर होता है तथािप अिधकािधक EहC का उ\ भावC म1 िथत होने
का लjन चयन करना चािहए ।
2.7.1 लRन*िA का उदाहरण
जैसे अिभषेक (ज*म रािष नाम) नामक िकसी गृहवामी को िवeम संवत् 2076 $ 1941
(T (
, षु ल प:, ितिथ षRी, षe ु वार, रे वती न:O, !1
3  31 51  2020 $& 1!: 1
गृहवेष अभी] है । माघ मास म1 रे वती न:O म1 गृहवेष होता है । इसके पsचात् अब लjन षिु Y
करते हW । अिभषेक क/ ज*मरािष मेष है तथा लjन िसंह है । अतः इन दोनC से सव थम उपचय थान
का लjन चयन करना चािहए । ज*म रािष मेष से उपचय लjन िमथनु , क*या, मकर एवं कु;भ ह"आ
तथा िसंह लjन से उपचय थानथ लjन तल ु ा, ($ , वृष एवं िमथनु ह"आ । इनम1 सव थम िथर
लjन का ही चयन करना होगा । उपय \ ु म1 िथर लjन वृष और कु;भ ह"आ । तदनु उपय \ ु लjनC म1
िPवभाव लjन िमथनु , क*या ह"आ । षेष लjन चर होन1 से अEा‘ है । अतः अिभषेक के िलए 31
जनवरी को गृहवेष हेतु के वल चार लjन ही उपय\ ु है । इसम1 भी दो िथर लjन वृष और कु;भ तो
सव‰म है ।
अब इन लjनC म1 Eहषिु Y देखी जाएगी । िजस लjन म1 चतथु और अ]म भाव म1 कोई Eह न हो तो
उसी लjन का चयन िकया जाएगा ।
; 31 जनवरी क/ Eहिथित को पंचांग म1 देखते हW ।
सयू 09161516
च*n 11275502
( 07223811
<3 10010503
ग[ु 08205424
e 3 1026258
1 08281059

उराखड मु त िवविवालय 153


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
राह" 02122356
$) !3 08122356
सबसे पहले वृष एवं कु;भ लjनC म1 भाव ि3 Y कर1 गे उसके बाद Eह ि3 Y का &धन कर1 गे !
वृष लRन कुDभ लRन2

3 jk 10 lw
1 12

4 2 11 cq]’kq
12 1 9 ’k]c`
pa  ds
11
5 2 8 ea
cq]’kq

6 8 ea 10 3 5 7
lw jk

7 9 ’k]c` ds 4 6

  # jन म1 चतथु भाव तो Y3 है िक*तु अ]म भाव Y 3 नहh है । अतः यह लjन गृहवे
हेतु दोषद है ।
कु;भ लjन म1 चतथु एवं अ]म भाव दोनC षY ु है । अतः कु;भ लjन गृहवेष हेतु सव‰पय\ ु है ।
लjनC का समय थान के अनुसार बदलता रहता है । वाराणसी समयानसु ार कु;भ लjन सुबह 08:25

) 09:56 तक रहेगा । अतः इसी समय म1 गृहवेष करना षाM स;मत रहेगा । इसी कार सव O
लjनािद का षोधन करना चािहए ।
यह कु;भ लjन गृहवामी अिभषेक क/ ज*म रािष मेष तथा ज*म लjन िसंह से अ]म सं5क नहh है ।
;!8  $3;भ लjन अिभषेक के गृहवेष हेतु सव था उपय\ ु है ।
भाव षिु Y के पsचात् Eहषिु Y देखते है । पवू किथत Eहषिु Y तो पणू [प से कु;भ लjन म1 नहh बन
रही है तथािप के *nभाव म1 षeु एवं बधु है आय भाव म1 षभु ाषभु दोनC Eह है । अतः Eह षिु Y 
सामा*य [प से ाf हो रही है । ऐसे समय म1 िकया गया गृहवेष सौभाjय एवं समृिY को देन1 वाला
होगा । इसी कार सव O गृहवेष हेतु षाMो\ कालषिु Y देखी जाती है ।

2.8 गृह'वे! मI वार,  ! िX िवचार

उराखड मु त िवविवालय 154


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
गृहवे म1 वार एवं ितिथ ि3 Y का भी िवषेष िवचार िकया जाता है । ितिथ यिद सामा*य
भी हो तो चल जाता है िक*तु वार अLय*त Y 3 होना चािहए । अषभु वारC म1 कथमिप गृहवे नहh
करना चािहए । Uयोित M के अनसु ार रिववार और मगं ल वार म1 गृहवे नहh करना चािहए ।
कहh-कहh पर 1 $& भी िनिषY माना जाता है पर*तु अनेक आचाय िनवार को वीकार
करते हW । वे ऐसा कहते है िक िनवार के िदन गृहवे $ 1)
) - $  1 !   K
$)
अित+र\ )ष वारC म1 अथा त् सोमवार, <3  , बृहपितवार एवं e 3 वार म1 गृहवे करना बह"त
ही उम (1 5!  
!" ि3 Y के िवषय म1 आचाय कहते हW िक अमावया एवं +र\ा ितिथयC म1 कथमिप गृहवे नहh
करना चािहए । चतथु ‡, नवमी एवं चतदु  ितिथयां +र\ा ितिथयां कहलाती हW । +र\ा एवं
अमावया ितिथयC के अित+र\ )ष ितिथयC म1 गृहवेष करना उपय\ ु माना जाता है । अतः पवू ‰\
सभी तयC का िविधवत् िवचार कर लेन1 के पचात् ही गृहवे )!3 Y 3 तम महु = ाf होता है ।

अ,यास  न - 2
6. या पsु य न:O मे नतू न गृहवे $ 5! ? हां/नहh

7. गृहवामी के ज*मरा  ज*मलjन से कौन सा लjन गृहवे म1 नहh होना चािहए ?


क. चतथु ख. पंचम
ग. अ]म घ. Pाद

8. गृहवे म1 कौन से भाव Y


3 होन1 चािहए ?
क. चतथु ख. अ]म
ग. ये दोनC घ. उपचय

9. िथर लjनC म1 गृहवे िकया जाता है । यह कथन सLय /असLय है ।

10. मगं लवार को गृहवे िकया जाता है । यह कथन सLय /असLय है ।

2.9

उराखड मु त िवविवालय 155
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
नतू न गृहवे )!3 Y 3 तम महु = $
&धन करना बह"त ही किठन एवं जिटल काय है
योिक काल क/ दीघ तम ईकाई से लेकर सू मतम ईकाई का अवलोकन करना सरल काय नहh है ।
गृहवे िद महु = जो पंचांगC म1 िदए जाते हW वे सभी उ\ िसYा*तC पर ही आिvत होते हW । कुछ
पंचांगC म1 गृहवे िद महु = अLय*त Y 3 होते हW तथा कुछ पंचांगC म1 गृहवे िद महु = Y
3 होते
हW। अतः यिद पच ं ागं से गृहवे िद महु = देखना हो तो पवू ‰\ कहे गए सभी िसYा*तC का अनु योग
करके ही िकसी ]ा को महु = देना चािहए । पंचांगC म1 ज*मरािष और लjन से उपचय लjन क/ ि3 Y
एवं अ]म लjन क/ षिु Y नहh होती है । अतः इसका िच*तन दैव5 को वयं करना चािहए । इसके
अित+र\ भी कुछ और तयC का िवचार गृहवे )!3 $ 5!  5
$  ' ) $) [&
म1 िदया गया है । अतः इस ईकाई म1 द सभी प:C का अवलोकन करन1 के पचात् ही गृहवे
)!3 महु = $ &<1 $ 1 -4 
2.10 पारभािषक &दावली
(< -   (
$ &<$  
! - माघ मास का प+रचायक है ।
Pाःथ - Pार न:O का बोधक है ।
9@3 - न:O का प+रचायक है ।
9- - 3,6,10 4 11 भावC को उपचय कहते हW ।
माग - माग ष मास का बोधक है ।
उजा - काित क मास का &<$  
इUय - बृहपित का बोधक है तथा पsु य न:O का प+रचायक है।
;1 - वाती न:O का बोधक है ।

 - धिनRा न:O का बोधक है ।
िOकोण - 5 4 9 भावC को िOकोण कहते हW ।
के *n - 1, 4, 7, 10 भावC को के *n कहते हW ।
अ;बु - चतथु भाव को अ;बु कहते है ।
र*› - अ]म भाव क/ सं5ा र*› है ।
श - अमावया का बोधक है ।
 - ( $& 
)  51 5!  
+र\ा ितिथ - चतथु ‡, नवमी एवं चतदु  ितिथयां +र\ा ितिथयां होती हW ।
उराखड मु त िवविवालय 156
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

2.11 अ,यास  न. के उ/र

अ7यास न 1 क/ उरमाला


1. 
2. 
3. 
4. T
5. सLय
अ7यास न 2 क/ उरमाला
6. नहh
7. 
8. 
9. सLय
10. असLय
2.12 सदभ1 2थ सच
ू ी
1. E*थ नाम - महु =­तिच*तामिण
E*थ कता - आचाय राम दैव5
िसY टीका - : < 
B$$ - vी गोिव*द दैव5
_याtयाकार - vी िव*kयेsवरी साद िमv
काशक - चैख;बा सरु भारती काषन,  '
, पनु मिु nत सं करण 2009
2. E*थ नाम - बृहद् वातमु ाला (संEह E*थ)
संEह कता - vी रामिनहोर िPवेदी
स;पादक - डा u‹ान*द िOपाठी
काशक - -ख;बा सरु भारती काषन,  '
, सं करण 2018

उराखड मु त िवविवालय 157


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
2.13 सहायक पाठ्यसाम2ी
1. E*थ नाम - महु =­त मात ड
E*थ कता - नाराण दैव5
_याtयाकार -
! ( H
काशक - माटर खेलाडी लाल एड स*स,  '
, संकरण 1986
2. E*थ नाम - महु =­त क`पnुम
E*थ कता - vी िवƒल दीि:त
स;पादक एवं _याtयाकार - vी कृ sण जगु नु
काशक - चैख;बा सरु भारती काषन,  '
, संकरण 2016

2.14 िनबधा9मक  न
1. नतू न गृहवे और जीणा िद गृहवेशC म1 अ*तरC क/ _याtया क/िजए ।
2. नतू न गृहवे म1 $.1 $.1
) (
,न:O, ,ितिथ Eा‘ है? इस िवषय पर लघु िनब*ध
 4 
3. गृहवे म1 लjन &<1 4  ि3 Y तथा Eह ि3 Y का िवचार Mो\ pि] से क/िजए
4. अपनी वे&छा से िकसी एक गृहवे का महु = शोधन क/िजए ।

उराखड मु त िवविवालय 158


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
  3   वा*तुच(

3-1 izLrkouk
3-2 mn~ns”;
3-3 o`"k okLrq pdz ifjp;
3-4 x`gkjEHk esa vfHkftn~ Uk{k= dh mikns;rk
3-5 o`"k okLrq pdz dk Lo:Ik ,oa mnkgj.k
3-6 o`"k okLrq Qy cks/kd pdz
3-7 o`"k okLrq pdz dh ljyre fof/k
3-8 ljyre cks/kd pdz
3-9 lkjka”k
3-10 ikfjHkkf"kd ’kCnkoyh
3-11 vH;kl iz”uksa ds mRRkj
3-12 lUnHkZ xzUFk lwph
3-13 lgk;d ikB~;lkexzh
3-14 fucU/kkRed iz”u
 

उराखड मु त िवविवालय 159


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
3-1 izLrkouk
tc okLrq”kkL=ksDr fof/k ls Hkwfe dk p;u ,oa ijh{k.kkfn dk;Z lEiUUk dj fy;k
tkrk gS rc ml Hkw[k.M ij u;s ?kj ds fuekZ.k dh izfdz;k dks izkjEHk fd;k tkrk gSA
Hkw[k.M ij loZizFke Hkoukfn fuekZ.k gsrq f”kykU;kl ;k Hkwfeiwtu dh izfof/k dks gh
x`gkjEHk dgk tkrk gSA ?kj dk vkjEHk f”kykU;kl ;k Hkwfeiwtu vFkok LrEHkksPNzk; dks
ekuk tkrk gSA [kkrkjEHk Hkh x`gkjEHk ds vUrxZr gh ekuk tkrk gS fdUrq [kkrkjEHk dk
i`Fkd~ eqgwRRkZ gksrk gS ftles jkgq eq[k dk fo’ks"k fopkj fd;k tkrk gSA ?kj fuekZ.k dk
izkjEHk f”kykU;kl ls gh ekuk tkrk gSA vr% x`gkjEHk eqgwRRkZ esa eq[; :Ik ls uUnkfn
f”kykvksa dk iwtu fd;k tkrk gSA x`gkjEHk vkSj izos”k ds egRo dks crkrs gq, vkpk;Z
dgrs gSa fd x`gLFk O;fDr;ksa dh lHkh eaxykfn fdz;k, x`g ds fouk lEHko ugha gks ikrh
gSa vr% x`gkjEHk vkSj x`gizos”k ds le;ksa dks “kkL=ksa esa crk;k tk jgk gSA
Xk`gLFkL; fdz;k% lokZ% u fln~/;fUr x`ga foukA
;rLrLekn~ x`gkjEHkizos’kle;kS cqzosAA
Xk`gkjEHkkfn gsrq ’kqHk eqgwRRkZ ds la’kks/ku gsrq fofo/k pdzks dk ijh{k.k djuk egRoiw.kZ gksrk
gSA buds ijh{k.k ds Ik’pkr~ gh x`gkjEHkkfn dk mRRke eqgwRRkZ izkIr gksrk gSA x`gkjEHk ds
fy, ewyr% o`"kokLrq pdz dh “kqf) fopkj.kh; gksrh gSA o`"k okLrq pdz ds }kjk izkIr dky
esa gh x`gkjEHk djuk pkfg,A vr% bl bdkbZ dk vki fof/kor~ v/;;u djsaA

3-2 mn~ns”;
izLrqr bdkbZ ds v/;;u ds ckn vki
 Xk`gkjEHk esa o`"k okLrq pdz ds egRo ds ckjs esa tku ldsaxs A
 Ok`"k okLrq pdz eqgwRRkZ la’kks/ku djus esa n{k gks ldsaxs A
 fdl izdkj ljy :Ik esa o`"k okLrq pdz dk ifjKku fd;k tkrk gS blds fo"k;
esa tku ldsaxs A
 buds ’kqHkk’kqHkRo Qyksa ds ckjs esa tku ldsaxs A
 vfHkftn~ Uk{k= ds okLrfod Lo:Ik ds ckjs esa tku ldsaxs A

उराखड मु त िवविवालय 160


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
3-3 o`"k okLrq pdz ifjp;
ftruk gekjk Hkw[k.M ¼yEckbZ x pkSMkbZ½ gksrk gS] ftl ij x`g fuekZ.k djuk vHkh"V gksrk
gS ml Hkw[k.M ij okLrqiq:"k dh dYiuk djds x`gkjEHk dh izfdz;k dks izkjEHk fd;k
tkrk gSA T;ksfr"k ‘’kkL= esa okLrq iq:”"k dks vusd :iks esa ifjHkkf"kr fd;k x;k gSA
cgqr lkjs vkpk;ksZ ds er esa ;g okLrq iq:"k] ujkdkj esa gksrs gSaA dqN vkpk;ksZ ds er esa
;g dPNikdkj esa gksrs gSa rFkk dqN vkpk;ksZ ds er esa ;g o`"k ds vkdkj esa gksrs gSaA ,sls
cgqr ls okLrq iq:"k ds Lo:iksa dks crk;k x;k gS vkSj izR;sd dk i`Fkd~ i`Fkd~ iz;kstu
Hkh crk;k x;k gSA x`gkjEHk esa Hkw[k.M ij ujkdkj okLrq dh dYiuk djds mlds eeZ
LFkkuksa ij fuekZ.k dk;Z ugha djuk pkfg, rFkk blh x`gkjEHk esa ,oa x`gizos’k esa blh okLrq
iq:"k dh iwtk gksrh gSA
x`gkjEHk gsrq tc dky dk ’kks/ku fd;k tkrk gS rc o`"kkdkj okLrq dk fpUru djuk
vR;Ur egRoiw.kZ gksrk gSA tc bl o`"kkdkj okLrq pdz dh ’kqf) izkIr gksrh gS rHkh
x`gkjEHk djuk pkfg, vU;Fkk ugha djuk pkfg,A iapkaxksa esa ftrusa Hkh x`gkjEHk ds eqgwRRkZ
fn, tkrs gSa os lHkh o`"k okLrq pdz ds vuqlkj ’kq) gksrs gh gSa A vr% x`gkjEHk dky gsrq
o`"k okLrq pdz dk vo’; gha voyksdu djuk pkfg,A ;g okLrq pdz Lo;a Hkxoku~ O;kl
th usa ifjHkkf"kr fd;k gS A tSlk fd dgk x;k gS &
okLrqpdza izo{;kfe ;PPk O;klsu Hkkf"kre~
bl o`"k okLrq pdz esa okLrqiq:"k dks o`"k ds vkdkj esa dfYir fd;k x;k gSA Hkkjrh;
laLd`fr tks d`f"k iz/kkukfRedk gS mlesa o`"k dk egRoiw.kZ ;ksxnku gSA o`"k dk lk{kkr~
lEcU/k Hkwfe ls gSA blfy, Hkw[k.M esa okLrq iq:"k dks o`"kkdkj :Ik esa Hkh |ksfrr fd;k
x;k gSA x`gkjEHk esa blh dh “kqf) dk fo”ks’k fo/kku gSA bl fo"k; esa jkenSoK viusa
xzUFk eqgwRRkZ fpUrkef.k esa dgrs gSa fd &
Xksgk|kjEHks·dZHkk}Rl’kh"ksZ jkeS}kZgks osnHkSjxziknsA
“kwU;a osnS% i`"Bikns fLFkjRoa jkeS% i`"Bs Jh;qZxSnZ{kdq{kkSAA
ykHkks jkeS% iqPNxS% Lokfeuk’kks osnSuSZ%LO;a okedq{kkS eq[kLFkS%A
jkeS% ihMk lUrra pkdZf/k".;kn’oS :nzSfnZfXHk:Dra g~;lRlr~AA

उराखड मु त िवविवालय 161


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
x`g bR;kfn ds vkjEHk ds le; esa bl o`"k okLrq pdz dk mi;ksx djuk pkfg,A bl o`"k
okLrq pdz dk mi;ksx dsoy x`gkjEHk esa gh ugha vfirq nsoky;kjEHk] izklknkjEHk]
rMkxkjEHk] xzkekjEHk] mioukjEHk bR;kfn esa Hkh fd;k tkrk gSA
bl o`"k okLrq pdz fuekZ.k dk eq[; vk/kkj lw;Z vkSj pUnz gksrs gSaA lw;Z vkSj pUnz bu
nksuksa dh ijLij uk{kf=d nwjh ds vuqlkj gh o`"k okLrq pdz dk fuekZ.k gksrk gS A lw;Z
ds u{k= ls pUnz u{k= rd dh tks nwjh gksrh gS mlessa ls dqN nwfj;ka d"Vizn gksrh gSa
rFkk dqN nwfj;ka lq[kizn gksrh gSaA lq[kizn nwfj;ka ;k fLFkfr;ka gh x`gkjEHk esa xzkg~; gksrh
gS rFkk v’kqHkizn nwfj;ka vxzkg~; gksrh gSA
vkdk’kh; xzg fLFkfr;ksa ds vuqlkj lw;Z ,d u{k= ij yxHkx 12 fnu rd jgrk gS rFkk
pUnz ,d u{k= ij yxHkx 1 fnu rd jgrk gSA lw;Z vkSj pUnz ds u{k=ksa dk fooj.k
iapkaxksa esa fn;k jgrk gSA o`"k okLrq pdz lw;Z u{k= ls orZeku pUnz u{k= rd dh
la[;kvksa ij vk/kkfjr jgrk gSA
lw;Z ftl u{k= ij gks ml u{k= ls 3 pUnz u{k= rd o`"k okLrq ds f’kj esa dYiuk djsaA
bl le; x`gkjEHk djusa ls x`g esa vfXu dk Hk; cuk jgrk gS A iqu% mlds ckn 4 u{k=
rd o`"k okLrq ds vxzikn esa dYiuk djuh pkfg,A bl le; x`gkjEHk djusa ls x`g esa
’kwU;rk gksrh gS vFkkZRk~ x`gfuekZ.k gksusa ds Ik’pkr~ Hkh ml ?kj esa dksbZ fuokl ugha dj
ldrkA iqu% mlds ckn 4 u{k=ksa rd o`"k okLrq ds i`"B ikn esa dYiuk djuh pkfg,A
bl le; x`gkjEHk djusa ls x`g esa fLFkjrk cuh jgrh gSA mlds ckn 3 u{k=ksa rd o`"k
okLrq ds ihB ij dYiuk djuh pkfg,A bl le; x`gkjEHk djusa ls x`g esa Jh dh izkfIr
gksrh gSA iqu% mlds ckn 4 u{k= o`"k okLrq ds nkfgusa dq{k ¼dks[k½ esa dYiuk djuh
pkfg,A blesa x`gkjEHk djusa ls ykHk gksrk gSA iqu% blds ckn 3 u{k=ksa esa o`"k okLrq ds
iqPN esa ifjdYiuk djuh pkfg, A bl le; x`gkjEHk djusa ls x`g Lokeh dks d"V gksrk
gSA iqu% blds ckn 4 u{k= o`"k okLrq ds oke dq{k esa dYiuk djuh pkfg,A bl le;
x`gkjEHk djusa ls nzfjnzrk dk okl x`g esa gksrk gSA iqu% blds Ik’pkr~ 3 u{k= o`"k okLrq
ds eq[k esa dYiuk djuh pkfg,A bl le; x`gkjEHk djusa ls ihMk gksrh gSA bl izdkj
o`"k okLrq dh dYiuk lkfHkftr~ djuh pkfg,A vr% 28 u{k=ksa dk blesa lekos’k fd;k
x;k gSA ftlds vk/kkj ij x`gkjEHk ds ’kqHkk’kqHk le;ksa dk fof/kor~ ifjKku fd;k tkrk

उराखड मु त िवविवालय 162


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
gSA
3-4 x`gkjEHk esa vfHkftn~ Uk{k= dh mikns;rk
T;ksfr"k ’kkL= esa dqN LFkkuksa ij 27 u{k=ksa dh x.kuk dh tkrh gS rFkk dqN LFkkuksa ij
28 u{k=ksa dh x.kuk dh tkrh gSA blh dze esa x`gkjEHk esa Hkh lkfHkftn~ v"Vkfoa’kfr
u{k=kRed x.kuk djusa dh i)fr izpfyr gSA blds vfrfjDr Hkh vusd LFkyksa ij 28
u{k=kRed x.kuk djusa dh i)fr gSA tSls tkrd ’kkL= esa tc v"VksRRkjh n’kk dk lk/ku
fd;k tkrk gS rc mlesa lkfHkftn~ v"Vkfoa’kfr u{k= dh x.kuk dh tkrh gSA blh izdkj
vfHkftn~ u{k= dh laKk Hkh vU; u{k=ksa ds /kzqokfn laKkvksa ds tSls gh dh xbZ gSA eqgwRRkZ
“kkL= esa vfHkftn~ u{k= dks f{kiz vkSj y?kq laKk ls cksf/kr fd;k tkrk gSA bl u{k= esa
fd;k x;k dk;Z Rofjr gh Qy dks iznku djrk gSA eqgwRRkZ fpUrkef.kdkj usa vius xzUFk
esa vfHkftn~ ds ckjs esa dgk gS fd &
gLrkf’oiq";kfHkftr% f{kiza y?kq xq:LrFkkA
rfLeu~ i.;jfrKkua Hkw"kkf’kYidykfnde~AA
oLrqr% vfHkftn~ u{k= vU; u{k=ksa ds tSls iw.kZ vfLrRo okyk ugha gS rFkkfi bldh
lRrk fo|eku gSA nks u{k=ksa ds e/; esa gh bldk LFkku fn;k x;k gSA ’kkL=kuqlkj
mRRkjk"kk<k u{k= ds vUR; dh 15 ?kVh rFkk Jo.k u{k= ds vkfn dh 4 ?kVh] dqy
feykdj 19 ?kVh rd dk eku vfHkftn~ u{k= dk gksrk gSA tSlk fd jkenSoK dgrs gSa
&
oS’oizkUR;kaf?kz% JqfrfrfFkHkkxrks·fHkftn~ L;kn~AA
vfHkftn~ u{k= dk ;g eku e/;e xfr ds vuqlkj xzg.k fd;k x;k gSA u{k=kssa ds eku
U;wukf/kD; gksusa ij ;g 19 ?kV~;kRed e/;e eku Hkh U;wukf/kD; gksrk gSA blh izdkj
vfHkftn~ u{k=LFk lw;Z dk Hkh lk/ku djds x`gkjEHk gsrq x.kuk djusa dk fo/kku izkIr
gksrk gSA iapkaxkuqlkj vfHkftn~ u{k= ij lw;Z yxHkx 4 fnu rd jgrk gS vkSj iapkaxksa esa
bldk mYys[k Hkh fn;k jgrk gSA
Uk{k=ksa ds Lokeh o.kZu izlax esa Hkh vfHkftn~ u{k= dk Lokeh czg~ek funsZf’kr fd;k x;k
gSA vr% vfHkftr~ u{k= ij czg~ek dk vf/kdkj gh bldh mikns;rk dks fl) djrk gSA

उराखड मु त िवविवालय 163


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
iqu% u{k=ksa dh tks vU/kkfn laKk oLrq ds ifjKku gsrq crkbZ xbZ gS mlesa Hkh lkfHkftn~
x.kuk djusa dk fo/kku izkIr gksrk gSA blds vUrxZr vfHkftn~ u{k= dks e/; laKk ls
cksf/kr fd;k tkrk gSA bl izdkj T;ksfr"k ‘’’kkL= esa vfHkftn~ u{k= dks ysdj vusd
izlax izkIr gksrs gSa ftlls ;g fl) gksrk gS fd vfHkftn~ u{k= dk xzg.k djuk
’kkL=ksfpr gSA

vH;kl iz”u & 1


1- okLrq iq:"k dk Lo:Ik T;ksfr"k ’kkL= esa fdl :Ik esa gS\
d- dwekZdkj [k- ujkdkj
x- o`"kkdkj ?k- ;s lHkh
2- lw;Z ,d u{k= ij yxHkx fdrus fnuksa rd jgrk gS \
d- 1 fnu [k- 12 fnu
x- 25 fnu ?k- 30 fnu
3- pUnz ,d u{k= ij yxHkx fdrus fnuksa rd jgrk gS \
d- 1 fnu [k- 12 fnu
x- 25 fnu ?k- 30 fnu
4- lw;Z u{k= esa pkUnz u{k= ;fn 8 oka gks rks D;k Qy gksrk gS A
d- nkg [k- ‘’kwU;
x- fLFkjrk ?k- Jh
5- o`"k okLrq pdz esa lkfHkftr~ x.kuk gksrh gS A lR;@ vlR;

3-5 o`"k okLrq pdz dk Lo:Ik ,oa mnkgj.k


Ok`"k okLrq pdz dk Lo:Ik fdl izdkj ls of.kZr gS mldk ,d fp=kRed mnkgj.k
fuEufyf[kr :Ik esa izLrqr fd;k tk jgk gS A
o`"k okLrq pdz Lo:i
v/kksfyf[kr fp= ds vuqlkj o`"kkdkj okLrq pdz dh ’kqf) dk Lo:Ik fufnZ"V gS A

उराखड मु त िवविवालय 164


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

3 Uk{k=
nkg

3 u{k=
Jh
3  3 Uk{k=
ihMk
u{k=
Ukk’k

4u{k=
ykHk
 4u{k=
4u{k= ’kwU;
fLFkjrk 4u{k=
 nfjnzrk

mnkgj.k &
Xk`gkjEHk fdu fdu eklkfn esa fd;k tkuk pkfg, bl fo"k; esa vkiusa iwoZ ds ikBksa esa i<k
gS A ;gka ij mu lHkh dk eqgwRRkZ ’kks/ku u djds dsoy o`"k okLrq pdz dk gh ’kks/ku
fd;k tk jgk gS A
tSls fdlh Hkw[k.M Lokeh dks fodze laor~ 2076 ’kd 1941 QkYxqu ekl] d`".k i{k i{k]
frfFk iapeh] xq:okj] gLr u{k=] rnuqlkj 13 Qjojh 2020 dks x`gkjEHk vHkh"V gS A
loZizFke ge bl frfFk ds fnu o`"k okLrq pdz dh ’kqf) ns[ksaxs A ;fn bl fnu o`"k okLrq
pdz dh ’kqf) izkIr gksxh rHkh x`gkjEHk dk dk;Z fl) gks ldsxk A ,rnFkZ 13 Qjojh dks
lw;Z vkSj pUnz dh u{k= fLFkfr dk voyksdu djsaxs A 13 Qjojh dks lw;Z /kfu"Bk u{k=
ij gS A /kfu"Bk u{k= ij lw;Z 6 Qjojh jkf= ls gh vkjEHk gks pqdk gS A 1 u{k= ij
lw;Z yxHkx 12 fnuksa rd jgrk gS vr% 20 Qjojh rd rks lw;Z /kfu"Bk u{k= ij gh
jgsxk A
lw;Z u{k= fLFkfr tku ysusa ds Ik’pkr~ pUnz u{k= dh fLFkfr dk Kku djuk pkfg, A
vr% iapkax esa voyksdu djusa ij 13 Qjojh dks pUnzek gLr u{k= ij fLFkfr gS tks
fnu ds 02%05 rd jgsxk A blds ckjn fp=k u{k= izkjEHk gks tk,xk A
o`"k okLrq pdz ds ’kks/ku ds fy, lw;kZf/kf"Br u{k= ls pUnzkf/k"Br u{k= rd lkfHkftn~
x.kuk djsaxs A x.kuk ds dze esa /kfu"Bk u{k= izFke gqvk A fnrh; ’krfHk"kk gqvk A blh
izdkj x.kuk djusa ij gLr u{k= dh la[;k 18 gqbZ A
उराखड मु त िवविवालय 165
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
vc ’kqHkk’kqHk Qy ifjKku gsrq o`"k okLrq pdz esa ns[ksaxsa fd fdl vax esa ;g la[;k gS rFkk
mldk Qy D;k gS A
o`"k okLrq pdz voyksdu djusa ij ;g Kkr gqvk fd 18 oka u{k= n{k dq{k esa gqvk rFkk
mldk Qy ykHk gS A vr% 13 Qjojh dks x`gkjEHk djuk mRRke jgsxk A gLr u{k= dks
x`gkjEHk esa xzg.k fd;k tkrk gS A vr% o`"k okLrq pdz ’kqf)r x`gkjEHkksfnr Uk{k= esa gh
x`gkjEHk djuk ’kkL= n`f"V ls vuqdwy gksrk gS A blh izdkj ls o`"k okLrq pdz dh ’kqf)
x`gkjEHk] nsoky;kjEHk] rMkxkjEHk] mioukjEHk] xzkekjEHk] izklknkjEHk] uxjkjEHk bR;kfn esa
ns[kuk pkfg, A

3-6 o`"k okLrq Qy cks/kd pdz


Ok`"k okLrq ds Qyksa dk oxhZdj.k v/kksfyf[kr pdz ds ek/;e ls Li"V :Ik esa le>k tk
ldrk gS A
LFkku Uk{k= la[;k Qy
’kh"kZ 3 vfXu Hk;
vxz iSj 4 ‘’kwU;
Ik`"B iSj 4 fLFkjrk
ihB 3 Yk{eh izkfIr
nf{k.k dq{k 4 ykHk
iqPN 3 Lokfeuk’k
okedq{k 4 fu/kZurk
Ekq[k 3 ihMk

3-7 o`"k okLrq pdz dh ljyre fof/k


Ok`"k okLrq pdz dks ljy :Ik esa Hkh ’kkL=ksa esa crk;k x;k gS A blds ek/;e ls Hkh laf{kIr
:Ik ls ’kqHkk’kqHk dk ifjKku fd;k tkrk gS A iwoZ ds ’yksd esa o`"k okLrq pdz ds izR;sd
vaxks dk D;k i`Fkd~ i`Fkd~ Qy gksrk gS\ og izfrikfnr fd;k x;k gS fdUrq v/kksfyf[kr
’yksd esa dsoy o`"k okLrq tU; ’kqHkk’kqHk dk gh fo/kku fd;k x;k gS A tSlk fd dgrs gSa
o`gn~ okLrqekykdkj &
lw;ZHkkn~ x.k;sr~ okLrqpdza p fnuHkkof/k A
v’o&:nz&n’k{kZa p g~;’kqHka ’kqHkna dzekr~ AA
lw;Z ds u{k= ls orZeku pkUnz u{k= rd x.kuk djsa A igys ds 7 u{k= v’kqHk gksrs gSa
mlds ckn ds 11 u{k= ’kqHk gksrs gSa vkSj mlds ckn ds 10 u{k= v’kqHk gksrs gSa A bl
izdkj e/; ds dsoy 11 u{k= gh x`gkjEHk esa xzkg~; gksrs gSa A bu 11 pkUnz u{k=ksa esa Hkh
x`gkjEHk gsrs tks u{k= fofgr gS mUgha essa gh x`gkjEHk fd;k tkuk pkfg, A ,slk ugha fd

उराखड मु त िवविवालय 166


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
bu 11 u{k=ksa esa Hkh x`gkjEHk fd;k tk ldrk gS A ;g dsoy ’kqHkk’kqHkRo dk cks/kd gS A
bu e/; ds 11 u{k=ksa esa gh x`gkjEHk gsrq mi;qDr u{k=ksa esa gh x`gkjEHk djuk pkfg, A
vr% o`"k okLrq pdz dh ’kqf) ftl x`gkjEHkksDr u{k= esa fey jgh gks rks mlh esa gh
x`gkjEHkkfn dk;Z fd;k tkuk pkfg, A ;gh o`"k okLrq pdz ’kqf) dgh tkrh gS A

3-8 ljyre cks/kd pdz


Ok`"k okLrq pdz dks v/kksfyf[kr lkfj.kh ds ek/;e ls vklkuh ls le>k tk ldrk gS A
Lkw;Z ls pUnz Uk{k= la[;k 7 11 7
Qy v’kqHk ‘”’kqHk v’kqHk

vH;kl iz’uksRRkj & 2


6- Hkkr~ ’kCn dk D;k vFkZ gksrk gS\
d- Uk{k= esa [k- u{k= dks
x- u{k= ds fy, ?k- u{k= ls

7- Xk`gkjEHk esa lw;Z u{k= ls 25oka pkUnz u{k= ’kqHk gksrk gS\ lR;@vlR;

8- Ok`"k okLrq pdz esa ;fn eq[k esa pkUnz u{k= gS rks D;k Qy gksrk gS\
d- YkkHk [k- Lokeh uk’k
x- fu/kZurk ?k- ihMk

9- :nz ’kCn ls fdl la[;k dk cks/k gksrk gS\


d- 5 [k- 7
x- 10 ?k- 11

10- Ok`"k okLrq pdz esa ;fn ’kh"kZ esa pkUnz u{k= gS rks D;k Qy gksrk gS\
d- vfXu Hk; [k- ‘’kwU;
x- fLFkjrk ?k- Jh

3-9 lkjka”k
Xk`gkjEHk ds izdj.k esa o`"k okLrq pdz dk fof’k"Vre LFkku gS A bl pdz ds vuqlkj tc
’kqf) curh gS rHkh x`gkfn dk;Z dk izkjEHk djuk Js"Bre ekuk tkrk gS A x`gkjEHk ds
izk;% ftrusa Hkh eqgwRRkZ iapkaxks esa fn, jgrs gSa os lHkh o`"k pdz ls ’kq) gksrs gSa A lw;Z vkSj
pUnzz ds fof’k"V ;ksx ls fufeZr ;g o`"k okLrq pdz x`gkjEHk le;d vkdk’kh; fof’k"V

उराखड मु त िवविवालय 167


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
xfrfo/kh; lajpuk dks ladsfrr djrk gS A lw;Z vkSj pUnzek gh gekjsa ’kqHkk’kqHk deksZ ds
fo’ks"k :Ik ls lk{kh gksrs gSa A vr% bu nksuksa ds ’kqHk la;ksx ls gh x`gkfn dk vkjEHk djuk
vR;Ur ’kqHk ekuk tkrk gS A ljy ‘’kCnksa esa dgsa rks lw;Z ftl u{k= ij gks mlls 7
pkUnz u{k=ksa esa x`gkjEHkkfn djuk v’kqHk gksrk gS A iqu% mlls 11 u{k=ksa esa x`gkjEHkkfn
djuk ’kqHk gksrk gS vkSj mlls 10 u{k=ksa esa x`gkjEHkkfn djuk v’kqHk gksrk gS A vr% dsoy
11 pkUnz u{k= gh x`gkjEHk esa ’kqHk ekusa tkrs gSa A bl le; x`gkjEHkkfn dk;Z djuk
T;ksfr"k ’kkL= ds vuqlkj vR;Ur ’kqHk ekuk tkrk gS A o`"k okLrq pdz dk mi;ksx dsoy
x`gkjEHk esa gh ugha djuk pkfg, vfirq nsoky;kjEHk] uxjkjEHk] xzkekjEHk]uxjkjEHk]
dwikjEHk] rMkxkjEHk] izklknkjEHk bR;kfn esa Hkh fd;k tkuk pkfg, A

3-10 ikfjHkkf"kd “kCnkoyh


vdZHkkr~ & lw;Z ds u{k= ls A

jke & T;ksfr"k esa ’kCnksa ls la[;k Kkr djusa dh izkphu fof/k gS A iqjk.kksa ds vuqlkj
Hkxoku~ Jh jke] ij’kqjke vkSj cyjke ;s rhu uke jke ls cksf/kr gksrs gSa A vr% T;ksfr"k
esa jke ’kCn ls 3 dk cks/k fd;k tkrk gS A

n{k & nkfgusa Hkkx dk cks/kd gS A

v’o & lw;Z ds 7 ?kksMs gSa] tks Hkxoku~ lw;Z ds jFk dks [khaprs gSa A vr% v’o ’kCn ls 7
dk cks/k fd;k tkrk gS A

:nz & Hkxoku~ ‘’kadj dks :nz dgrs gSa A ftuds 11 vorkj iqjk.kkas esa izfl) gSa vr%
T;ksfr"k esa :nz ‘’kCn ls 11 dh la[;k dks xzg.k djrs gSa A

fnd~ & iwokZfn 10 fn’kk;sa gksrh gSa A iwoZ] if’pe~] mRRkj] nf{k.k ;s pkj eq[; fn’kk, gksrh
gSa rFkk pkj dks.k fn’kk;as vfXu dks.k] uS_R; dks.k] ok;O; dks.k vkSj bZ’kku dks.k rFkk
mij vkSj uhps dh fn’kk;sa A dqy feykdj 10 fn’kk;sa gksrh gSa A vr% fnd~ ’kCn ls 10
dk cks/k djuk pkfg, A

fnuHk & fnu dk u{k= A

Hkkr~ & Hk ’kCn u{k= dk cks/kd gS rFkk bldk iapeh ,dopu esa Hkkr~ :Ik curk gS
ftldk vFkZ gksrk gS u{k= ls A

उराखड मु त िवविवालय 168


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
3-11 vH;kl iz”uksa ds mRRkj
vH;kl iz’uksRRkj & 1
1- ?k
2- [k
3- d
4- x
5- lR;

vH;kl iz’uksRRkj & 1


6- ?k
7- vlR;
8- ?k
9 -?k
10- d

3-12 lUnHkZ xzUFk lwph

1- xzUFk uke & eqgwRRkZfpUrkef.k


xzUFk drkZ & vkpk;Z jke nSoK
izfl) Vhdk & ih;w"k/kkjk
Vhdkdkj & Jh xksfoUn nSoK
O;k[;kdkj & Jh foU/;s’ojh izlkn feJ
izdk'kd & pkS[kEck lqjHkkjrh izdk’ku] okjk.klh] iquZeqfnzr laLdj.k 2009

2- xzUFk uke & c`gn~ okLrqekyk ¼laxzg xzUFk½


laxzg drkZ & Jh jkefugksj f}osnh
lEiknd & Mk czg~ekuUn f=ikBh
izdk'kd & pkS[kEck lqjHkkjrh izdk’ku] okjk.klh] laLdj.k 2018

3-13 lgk;d ikB~;lkexzh


1- xzUFk uke & eqgwRRkZ ekrZ.M
xzUFk drkZ & ukjk.k nSoK
O;k[;kdkj & lhrkjke >k
izdk'kd & ekLVj [ksykMh yky ,.M lUl] okjk.klh] laLdj.k 1986

उराखड मु त िवविवालय 169


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

2- xzUFk uke & eqgwRRkZ dYinzqe


xzUFk drkZ & Jh foV~By nhf{kr
lEiknd ,oa O;k[;kdkj & Jh d`".k tqxuq
izdk'kd & pkS[kEck lqjHkkjrh izdk’ku] okjk.klh] laLdj.k 2016

3- iapkx & Jh dk’kh fo’oukFk iapkx] g`"khds’k fgUnh iapkax


izo/kZd & Jh ukxs’k mik/;k;
izdk’ku & fodze iapkax izdk’ku ch 2@95 lh HknSuh] okjk.klh

3-14 fucU/kkRed iz”u


1- o`"k okLrq pdz dk egRo crkrs gq, blds fuekZ.k dh izfdz;k dks Hkh of.kZRk djsa A
2- x`gkjEHk gsrq fdlh ,d LodfYir mnkgj.k ds }kjk o`"k pdz dh ’kqf) djsa A

उराखड मु त िवविवालय 170


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
  4 वा*तु
 


bdkbZ dh lajpuk

4-1 izLrkouk
4-2 mn~ns”;
4-3 okLrqiwtu dh vko”;drk
4-4 okLrqiwtu esa izeq[k nsokfn dk iwtufo/kku
4-5 “kkfUrikB ,oa ladYi rFkk fnx~ j{k.k
4-6 x.ks”kkfEcdkfn iwtu ,oa mipkj i)fr
4-7 ,dk”khfrin e.My okLrqiq:"k iwtu
4-8 lkjka”k
4-9 gou]xzgiwtu]cfynku]cfy vkSj lekiu
4-10 ikfjHkkf"kd “kCnkoyh
4-11 vH;kl iz”uksa ds mRRkj
4-12 lUnHkZ xzUFk lwph
4-13 lgk;d ikB~;lkexzh
4-14 fucU/kkRed iz”u

उराखड मु त िवविवालय 171


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
4-1 izLrkouk
Hkkjrh; lukru ijEijk esa ewy :Ik ls iap nso mikluk dh fo”ks"k i)fr
izpfyr gSA f”ko&fo".kq&nsoh&x.kifr vkSj lw;Z ;s izeq[k ikap nso vukfn dky ls gh
mikL; jgs gSaA l`f"V vuqorZu ds dky dze esa bu lHkh nsorkvksa dk Lo:Ik vusd :iksa
esa foHkDr gks x;k rFkk czg~ekfn ds }kjk l`f"V izfdz;k ds lapkyukFkZ vusd izdkj dh
pjkpj thoksa dh mRifRRk dh gqbZA ekuo Hkh blh J`a[kyk dh ,d dMh ek= gS ftldk
izeq[k drZO; gksrk gS fd bu LkHkh nsorkvksa ds izfr viuh d`rKrk dks KkfIkr djukA
D;ksfd lHkh izdkj dh LFkkoj taxe mfn~Hkt bR;kfn dh Js.kh;ksa esa ekuo tkfr loksZifj
gS rFkk loZJs"B gksusa ds dkj.k bl ekuo tkfr dk izeq[k drZO; gS fd lHkh izdkj thoksa
tUrqvksa rFkk nsokfn ij viuh vuqdwyrk dk Lej.k djrs jgukA fdlh Hkh izdkj dk
x`gfuekZ.k gks] izklkn fuekZ.k gks] e.Mi fuekZ.k gks] efUnjkfn fuekZ.k gks rks mlesa vusd
izdkj ds nsorkvksa ds iwtu dk fo/kku izkIr gksrk gSA u dsoy x`gizos”kkfn esa “kkfUr
djuh pkfg, vfirq x`gfuekZ.kkfn esa Hkh okLrq “kkfUr djuh pkfg, rFkk iwtu djuk
pkfg,A tSlk fd dgk x;k gS &
fuekZ.ks efUnjk.kka p izos’ks f=fo/ks·fi okA
okLrqiwtk p drZO;k ;LekRRkka dFk;kE;r%AA
vr% x`gkjEHkkfn iwoZ rFkk x`gizos”kkfn iwoZ okLrq iq:"k dk iwtu djusa dk fo/kku oSfnd
i)fr esa izkIr gksrk gSA oSfnd i)fr ls dh xbZ okLrq ’kkfUr djusa ls x`gkfn esa loZnk
lq[k ,oa le`f) gksrh gSA

4-2 mn~ns”;
izLrqr bdkbZ ds v/;;u ds ckn vki ---
 tku ldsaxs fd x`gkjEHkkfn esa okLrqiwtUk dk D;k egRRo gSA
 tku ldsaxs fd okLrqiwtu fdl izdkj ls gksrk gSA
 le> ldsaxs fd okLrqiwtu dh oSfnd iz)fr fdl izdkj gksrh gSA
 tku ldsaxs fd fofo/k nsorkvksa dh LFkkiuk fdl izdkj ls dh tkrh gSA
 le> ldsaxs fd oSfnd fof/k ls lkaxksikax iwtu fdl izdkj gksrk gSA
4-3 okLrqiwtu dh vko”;drk
euq"; ds mij tUe ek= gksusa ls gh rhu izeq[k izdkj ds _.kksa dk oa”kkuqdze
IkzkIr gksrk gSA ;s rhu _.k gSa nso&_f"k vkSj fir`A _.k dk rkRi;Z ;g gksrk gS fd gesa
mldks pqdkuk gS vkSj ;g gekjs mij tUe ls gh gksrk gSA pqdkus dk rkRi;Z ;g gS fd
gesa muds izfr viuh fu"Bk dks fofo/k vk;kstuksa }kjk iznf”kZr djukA blh dze esa nso
_.k gekjs mij tUe ls gh gksrk gS mls m_.k gksusa ds fy, loZnk gh leLr

उराखड मु त िवविवालय 172


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
lq[knq%[kkfn esa nsork dk laLej.k djrs jguk pkfg,A x`gizos”k Hkh ,d lkoZHkkSfed lq[k
dk cks/kd gSA euq"; LoifjJe ls vkSj nSo d`ik ls lEifRRk vftZr djrk gS rFkk x`gkfn
dk midze djrk gSA x`gkfn fuekZ.k esa loZizFke rRlEcfU/kr nsoh nsorkvksa dk iwtu
djus dk fo/kku izkIr gksrk gSA iwtu djusa dk rkRi;Z ;g gS x`glq[kkfn tUkd tks Hkh
nsokfn gksrs gSa os lHkh gekjs vuqdwy gksa vkSj loZnk lq[k ,oa le`f) dh o`f) djrs jgsa
rFkk nq%[kkfn dks nwj djsaA
okLrq “kkfUr dh izfdz;k oSfnd i)fr ds vuqlkj cgqr tfVy ,oa foLr`fr gS orZeku
le; esa ml izfdz;k dk yksi gksrs fn[kkbZ ns jgk gSA vkt ds HkkSfrd ifjos”k esa euq";
ds ikl nsokfn iwtu gsrq Ik;kZIr le; ugha gks ik jgk gS rFkk oSfnd fof/k izfdz;k dks
NksMdj vius euekusa <ax ls iwtu dj jgk gS vkSj mi;qDr ,oa ;ksX; oSfnd czkg~e.k ds
vHkko esa og izfdz;k yqIr izk; gks jgh gSA ;fn “kkL=ksDr oSfnd fof/k }kjk okLrq iwtu
bR;kfn fd;k tk, rks fuf”pr gh x`gtU; lq[k ,oa le`f) esa o`f) gksxh rFkk yksd
dY;k.k Hkh gksxkA
oSfnd fof/k cgqr foLr`r gSA vr% ;gka ij lkj :Ik esa gh okLrq iwtu fof/k crkbZ tk
jgh gSA ;fn vki c`gn~ ,oa foLr`r v/;;u ,oa iwtu djkuk pkgrs gSa rks xzg’kkfUr]
x`gokLrq ’kkfUr iz;ksx bR;kfn xzUFkksa dk v/;;u djsaA

4-4 okLrqiwtu esa izeq[k nsokfn dk iwtufo/kku


okLrq iwtu djuk ;k okLrq “kkfUr djus esa fo”ks"k vUrj ugha gksrk gSA tc ge
loZizFke x`gkjEHk ;k x`gizos”k djrs gSa rks okLrq “kkfUr iwoZd x`gkjEHkkfn djrs gSa rks og
okLrqiwtu dgykrk gS vkSj x`g esa okLrq nks"k ds dkj.k tks “kkfUr dh tkrh gS og okLrq
“kkfUr dgykrh gSA ftl LFkku ij okLrqiwtu djuk gksrk gS ;k ftl x`g esa okLrq
“kkfUr djuh gksrh gS rks ml LFkku ij okLrqiwtu ds iwoZ vusd nsorkvksa dk Hkh iwtu
djuk gksrk gSA oLrqr% x`gizos”kkfn esa 81 okLrq in esa fLFkr vkUrfjd ,oa ckg~; nsorkvksa
dk iwtu djuk izeq[k gksrk gS rFkkfi lkaxksikax iwtu djuk gh eq[; okLrq iwtu gksrk
gSA
loZizFke ftl fnu okLrqiwtu djuk vHkh"V gksrk gS ;k okLrq”kkfUr djuh vHkh"V gksrh
gS ml fnu T;ksfr"k “kkL= }kjk eqgwRRkZ “kks/ku dj ysuk pkfg,A eqgwRrZ “kks/ku dj ysus ds
Ik’pkr~ x`gLokeh vius ifjokj tuksa ds lfgr fuR;dekZfn ls fuo`RRk gksdj “kq) oL=
/kkj.k dj iwoZ ,oa mRRkj fn”kk dh vksj eq[k djds nhid izTofyr djds ladYi djsaA
ladYi djusa ds iwoZ “kkfUrikB djuk vko”;d gksrk gSA “kkfUrikB djus ls ladfYir
iwtu esa “kkfUr izkIr gksrh gS rFkk fo?u nwj gksrk gSA
4-5 “kkfUrikB ,oa ladYi rFkk fnx~ j{k.k
“kkfUrikB esa x.kiR;kfn nsoksa dk laLej.k fd;k tkrk gSA “kkfUrikB oSfnd ,oa ykSfdd
nksuksa izdkj dk gksrk gSA ykSfdd eU= gS &
उराखड मु त िवविवालय 173
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
Lkqeq[k”pSdnUr”p dfiyks xtd.kZdA
yEcksnj”p fodVks fo?uuk”kks fouk;d%AA
/kwezdsrq% x.kk/;{kks HkkypUnzks xtkuu%A
}kn”kSrkfu ukekfu ;% iBsPNzq.kq;knfiAA
fo|kjEHks fookgs p izos”ks fuxZes rFkkA
laxzkes ladVs pSo fo?uLrL; u tk;rsAA
“kqDykEcj/kja nsoa “kf”ko.kZa prqHkqZtaA
izlUUkonua ?;k;sr~ loZfo?uksi”kkUr;sAA
“kkfUrikB ds ikB okLrqiwtu gsrq ladYi fd;k tkrk gSA laf{kIr ladYi fuEufyf[kr gS
&
ee iq=ikS=kfnlfgrL; vfLeu~ uwrux`gs fpjdkylq[kfuoklloZladVukukfo/kjksxkfn
loksZinzo”kkfUrlEink·;qjkjksX;/ku/kkU;f}inprq"in iq=ikS=k|fHko`f)iwoZda
lqo.kZjtrrkez=iqlhldkaL;yksgik"kk.k|"V’kY;esfnuhnks"k vk;O;;k|U;FkkHkou
ukukfo/kfgalknks"kifjgkj}kjk ,rn~ x`g{ks=kofPNUuHkwE;f/kf"Brnsorksijks/ktfurksilxZ
fuo`fRRkiwoZdokLrks% “kqHkrkflf)}kjk Jhijes”ojL; izhR;FkZ x`gizos”kfufeRRkka lxzgde[kka
okLrq”kkfUra x`gizos”kk[;a deZ pkga dfj";sA
rnaxRosu LofLriq.;kgokpua ekr`dkiwtuolks)kZjkiwtua vk;q";eU=tia lkadfYida
ukUnhJk)a p dfj";sA
r=knkS fufoZ?urkfl)~;FkZa x.ks”kkfEcd;ks% iwtua p dfj";sA
ladYi dj ysusa ds ikn eq[;:Ik ls fofo/k nsorkvksa dh izfr"Bk iwtu rFkk gou dh
izfdz;k dks fd;k tkrk gSA ladYi ds ckn loZizFke fd;s tkusa oky okLrqiwtu ;k “kkfUr
deZ esa fo?ufouk”k gsrq x.ks”k vkSj vfEcdk dh izfr"Bk ,oa iwtu fd;k tkrk gSA
x.ks’kkfEcdk iwtu ds iwoZ iwokZfn n”k fn”kkvksa esa fnx~ j{k.k Hkh fd;k tkrk gSA fnx~ j{k.k
dk eq[; mn~ns”; gksrk gS fd nlks fn”kkvksa ls vn`”; Hkwr izsrkfn bl ;K esa fo/oald u
cusa vkSj ml LFkku dks NksM dj vU;= pys tk,A ;g fnx~j{k.k oSfnd vkSj ykSfdd
nksuksa eU=ksa ls gksrk gSA eU= bl izdkj gS %
;n= lafLFkra Hkwra LFkkuekfJR; loZnkA
LFkkua R;DRok rq rRloZa ;=LFka r= xPNrqAA
viliZUrq rs Hkwrk ;s Hkwrk HkwfrlafLFkrk%A
;s Hkwrk fo?udrkZjLrs u”;Urq f”kokK;kAA
vidzkeUrq Hkwrkfu fi’kkpk% loZrks fn’ke~ A
losZ"kkefojks/ksu “kkfUrdeZ lekjHks AA
Hkwrkfu jk{klk okfi ;s·= fr"BfUr dspu A
Rks losZ·I;ixPNUrq okLrq”kkfUra djksE;ge~ AA
4-6 x.ks”kkfEcdkfn iwtu ,oa mipkj i)fr

उराखड मु त िवविवालय 174


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
ftl LFkku ij okLrq’kkfUr dh tkrh gS ;k e.Mi dk fuekZ.k fd;k tkrk gSA ml LFkku
x.ks’kkfn vusd nsorkvksa ds ihB dk fuekZ.k ij izfr"Bk dh tkrh gSA ml iwtu ds dze
esa loZizFke x.ks’kkfEcdk dh izfr"Bk ,oa iwtu fd;k tkrk gSA mlds ckn dy’kksifj
o:.kkfn nsokrkvksa dh izfr"Bk rFkk iwtu fd;k tkrk gSA mlds ckn LofLr iq.;kgokpu]
"kksM’k ekr`dk iwtu] lIr?k`rekr`dk iwtu] vk;q"; eU= ti ,oa ukUnh Jk) deZ fd;k
tkrk gSA bu lHkh dks fof/kor~ dj ysusa ds ckn ,dk’khfr okLrq in fLFkr nsorkvksa dh
izfr"Bk rFkk iwtu ,oa cfy rFkk gou bR;kfn izeq[k deZ fd, tkrs gS vkSj vUr esa
vkjrh dj foltZu fd;k tkrk gSA
x.ks’kkfEcdkfn iwtu fof/k lcdh yxHkx ,d leku gh gSA lHkh nsokrkvksa dh izfr"Bk
dj ysusa ds ckn iapksipkj fof/k ls n’kksipkj fof/k ls ;k "kksM’kksipkj fof/k ;k LolkeFkZ
fof/k ls lepZu fd;k tkrk gSA iwtu esa eq[; :Ik ls "kksM’kksipkj fof/k gh iz;ksx esa ykbZ
tkrh gSA "kksM’kksipkj fof/k ds vfrfjDr laf{kIr iwtu gsrq iapksipkj fof/k iz;ksx esa ykbZ
tkrh gSA "kksM’kksipkj gsrq fuEufyf[kr eU= Lej.kh; gS A
vkokgueklua ik|e?;Zekpeuh;de~ A
Lukua oL=ksiohra p xU/kekY;kuqdzekr~ AA
/kwia nhia p uSos|a p rkEcwya p iznf{k.kk A
iq"ikatfy bfr izksDr% mipkjLrq rq "kksM’k AA
16 izdkj ds mipkj bl pdz ds ek/;e ls vklkuh ls le>k tk ldrk gSA
1 vkokgu 5 vkpeu 9 xU/k 13 uSos|
2 vklu 6 Luku 10 iq"Ik 14 rkEcwy
3 ik| 7 oL= 11 /kwi 15 iznf{k.kk
4 v?;Z 8 ;Kksiohr 12 nhi 16 iq"ikatfy

blh "kksM”kksipkj i)fr ls lHkh nsorkvksa dk iwtu fd;k tkrk gSA mnkg.k :Ik esa
loZizFke nsorkvksa dh eU=ksa ls iwaxhQy bR;kfn ij izk.k izfr"Bk ¼vkokgu½ dh tkrh gSA
blds ckn mudks iSj /kwykus ds mn~ns”; ls ik| gsrq ty fn;k tkrk gSA iqu% mudks
tykfn ls v?;Z fn;k tkrk gSA rr% ty bR;kfn nsdj vkpeu djk;k tkrk gSA iqu%
Luku gsrq vusd izdkj ds inkFkksZ nw/k] ngh] ?kh] e/kq] ’kDdj ls Luku djk;k tkrk gSA
mlds ckn oL= vkSj tusÅ iguk;k tkrk gSA fQj pUnu yxkdj Qwy iguk;k tkrk
gSA iqu% /kwi vkSj nhi fn[kkdj rkEcwy lfgr Hkksx yxk;k tkrk gSA iqu% iznf{k.kk djusa
ds ckn vUr esa vkjrh dh tkrh gS rFkk iq"ikatfy nh tkrh gSA ;gh i)fr lHkh
x.ks’kkfEcdkn nsoksa esa viukbZ tkrh gSA
;fn "kksM’kksipkj i)fr ls iwtu djuk fofgr u gks rks iapksipkj iwtu Hkh fd;k tk
ldrk gSA iapksipkj iwtu esa izfr"Bk ds ckn xU/k] iq"i] /kwi] nhi vkSj uSos| ls nsorkvksa
dk lepZu fd;k tkrk gSA

उराखड मु त िवविवालय 175


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
nsork iwtu ds dze esa loZizFke x.ks’k th dk iwtu vfEcdk ds lfgr fd;k tkrk gS A
blds ckn o:.kkfn nsoizfr"Bk ds fy, dy’k iwtu fd;k tkrk gS A iqu% LofLRk
iq.;kgokpu fd;k tkrk gS A LofLr iq.;kgokpu dh foLr`r fof/k ds fy, xzg’kkfUr
i)fr dk voyksdu djsa A
blds ckn xkS;kZfn "kksM’k ekr`dk iwtu djuk pkfg, A "kksM’k ekr`dkvksa dk uke
v/kksfyf[kr gS A
xkSjh i|k ’kph es/kk lkfo=h fot;k t;k A
nsolsuk Lo/kk Lokgk ekrjks yksdekrj% AA
g`f"V% iqf"V% rFkk rqf"V% vkReu% dqynsork A
x.k’ksukf/kdk g~;srk o`)kS iwT;kLrq "kksM’k AA
"kksM’k ekr`dk iwtu ds ckn lIr ?k`r ekr`dk dk iwtu djuk pkfg, A lIr ?k`r
ekr`dkvksa ds uke fuEufyf[kr gS A
JhyZ{eh /k`fr% es/kk Lokgk izKk ljLorh A
ekaxY;s"kq iziwT;Urs lIrSrk ?k`rekrj% AA
lIr?k`rekr`dk iwtu ds ckn vk;q"; eU= dk ti czkg~e.kksa }kjk fd;k tkrk gS A blds
ckn ukUnh Jk) fd;k tkrk gS A ;g o`f) Jk) gS bldk e`rkREkk gsrq fd;s x, Jk) ls
dksbZ lEcU/k ugha gS A lHkh ekaxfyd dk;ksZ esa ukUnh Jk) fd;k tkuk pkfg, fdUrq vkt
dy cgqr de yksx gh bl Jk) dks djkrs gS A ekaxfyd dk;ksZ esa firjksa dk iwtu
vo’; djuk pkfg, A firj iwtu u djusa ls fir`x.k :"V gks tkrs gS ftlls oa’k o`f)
:d tkrh gS vkSj fir`nks"k mRiUUk gksusa yxrk gS A ukUnh Jk) dj ysusa ds vkpk;kZfn
foizks dk oj.k fd;k tkrk gS A ;s lHkh fdz;k, dj ysusa ds eq[; :Ik c`gn~ :Ik esa
okLrq’kkfUr gsrq okLrqiq:"k dk iwtu fd;k tkrk gS A
vH;kl iz’u & 1
1- _.k fdrusa izdkj dk gksrk gS\
d- 1 [k- 2
x- 3 ?k- 4

2- x`g esa fdrusa in ds okLrqiq:"k dk iwtu djuk pkfg, \


d- 64 [k- 81
x- 100 ?k- 144

3-D;k okLrqiwtu esa ukUnh Jk) djuk pkfg, A gka @ugha

4- fdruh ?k`rekrk;sa gksrh gS \


d- 16 [k- 7

उराखड मु त िवविवालय 176


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
x- 81 ?k- 3

5- x`gizos’kkfn esa okLrqiq:"k dk iz/kku :Ik ls iwtu ugha gksrk gSA lR;@vlR;

4-7 ,dk”khfrin e.My okLrqiq:"k iwtu


Xk`gizos’kkfn deZ gsrq ;k okLrq ’kkfUr gsrq ,dk’khfr in okLrq iq:"k e.My dk iwtu fd;k
tkrk gS A dgusa dk Hkko ;g gS fd tc ge x`gkfn fuekZ.k ftrusa Hkw[k.M esa djrs gSa
mrusa Hkw[k.M ij fufnZ"V LFkkuksa ij dqN nsork fuokl djrs gS rFkk okLrqiq:"k dh mUgha
nsorkvksa ds iwtu gsrq okLrqe.My dk fuekZ.k djrs gSa vkSj mudks LFkku nsrs gS rFkk
iwtu djrs gS A ,d izdkj ls x`gkfn dk tks ekufp= gksrk gS A mlh ds vuqlkj
okLrqiq:"k ds e.My dk fuekZ.k fd;k tkrk gS A ;fn x`gkfn dk ekufp= prqjlzkdkj gS
rks prqjLkzkdkj e.My esa rFkk ;fn x`gkfn dk ekufp= o`RRkkdkj gS rks o`RRkkdkj e.My
esa gh iwtu fd;k tkuk pkfg, A okLrqe.My dk in x`gkfn ds vuqlkj c<rk jgrk gS
A prq%"kf"V okLrqin e.My Hkh gksrk gS ftlesa pkSlB 64 [kkus gksrs gSa A
,dk’khfrokLrqin e.My Hkh gksrk gS ftlesa 81 dks"Bd gksrs gSa A iqu% ’krinokLrqe.My
Hkh gksrk gS ftlesa 100 [kkus gksrs gSa A bl izdkj vusd e.My gksrs gSa ftldk dk;Z ds
vuq:Ik xzg.k fd;k tkrk gS A x`gfuekZ.k rFkk x`gizos’k ,o x`gokLrq’kkfUr esa ,dk’khfr in
okLrqiq:"k e.My dk fuekZ.k dj iwtu fd;k tkrk gS A ,dk’khfr in okLrq e.My dk
Lo:Ik fuEufyf[kr gS vkSj fdl LFkku ij fdu&fdu nsorkvksa dk okl gksrk gS] ;g Hkh
fn;k x;k gS A

उराखड मु त िवविवालय 177


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

उराखड मु त िवविवालय 178


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
iapkax iwtu dj ysusa ds ckn eq[; okLrqiwtu djus gsrq ihB dk fuekZ.k fd;k tkrk gSA
ml ihB ij ’osr oL= izlkj dj iwokZfn vkSj mRRkjkfn n”k n”k js[kk;s djuh pkfg,A
ftlls ,dk”khfr dks"Bd dk fuekZ.k gksrk gSA bu ,dk”khfr dks"Bdks ds mij iznRRk fp=
ds vuqlkj fofo/k v{kr iqatks ls okLrqosnh dk fuekZ.k djuk pkfg,A blds Ik”pkr~ ml
okLrq osnh ij vkH;Urj ds 13 nsork rFkk ckg~; ds 32 nsorkvksa dh rFkk lRo] jt vkSj
re ifjf/k ij 31 nsorkvksa dh LFkkiuk iwaxhQy ij djuh pkfg,A eq[; :Ik ls 45 gh
nsork gksrsa gS okLrq iwtu esaA dqN nsork ,dinkRed gksrs gSa dqN nsork f}inkRed gksrs
gSa rFkk dqN nsork f=inkRed gksrs gSA bl lHkh nsorkvksa ds dkSu dkSu ls uke gksrs gSa
rFkk OkkLrqin e.My esa fdl fdl LFkkuksa ij budk fuokl gksrk gSA bl fo"k; esa dgk
x;k gS fd &
x`ge/;s gLrek=a leUrkRk~ r.Mqyksijh A
,dk’khfr ina dk;Za frySLrqY;a lq’kksHkue~ AA
,df}f=ink% iap pRokfja’kr~ lqjkfpZrk% A
}kf=a’kr~ ckg~;rks o{;ek.kk’pkUrL=;ksn’k AA
rs"kka LFkkukfu ukekfu o{;keh’ojdks.kr% A
r=kfXu% ’kEHkqdks.kLFkLolkS pSdins’oj% AA
rLekf}rh;% itZU;’pklkosdins’oj% A
t;UrsUnzkdZlR;k[;k Hk`’k’p f}ins’ojk% AA
vkdk’kok;w ijr% dzeknsdins’ojkS A
,oa izkP;ka uo KkRok RoSoesokU;fn{kq p AA
vk|k’pkUR;kosdinkS f}ink% iap e/;xk% A
jksxkfnfnR;Urlqjk% lIr lkSE;fnf’k dzekr~ AA
r=k/k%LFk’prq"dks.ks"oh’kkukfn"kq p dzekr~ A
vki% lkfo=fot;:nzk’pSdins’ojk% AA
e/;s uoinks czg~ek rL;S’kkukfndks.kxk% A
vkioRlks·Fk lfork fooq/kkf/kilaKd% AA
jkt;{ek p pRokj% lqjk’pSdins’ojk% A
czg~e.k% iwoZrks fn{kq f=ink’pkejk veh AA
v;Zek p fooLoku~ p fe=% fir`/kj% dzekn~ A
LoLoLFkys"kq nsos"kq LFkkfirs"ohn`’ka Hkosr~ AA
dks.ks"kq iapea pSo prqFkSZdink% lqjk% A
izkxkfn fn{kq f}ink% iap iap ;Fkk dzee~ AA
czg~e.k% iwoZrks fn{kq f=ink% L;q% lehixk% A
fgj.;jsrk itZU;ks t;Ur% ikd’kklu% AA
lw;Z lR;ks Hk`’kkdk’kkS ok;q% iw"kk p oS rFkk AA

उराखड मु त िवविवालय 179


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
x`g{kZr% fir`ifr% xU/koksZ Hk`axjktd% A
e`x% fir`.kk/kh’k% rFkk nkSokfjdkg~o;% AA
lqxzho% iq"inUr’p tyk/kh’kks fu’kkpj% A
‘’kks"k% iki’p jksxksfgeqZ[kks HkYYkkV ,o p AA
lkselikSZ fnR;fnrh }kf=a’knejk% Le`rk A
vki’pSokioRl’p t;ks jU/kzLrFkSo p AA
e/;s uoinks czg~ek rLFkkS rRlehix%A
izkP;ka g~;Urfjrk nsok% ifjrks czg~e.k% Le`rk AA
v;Zek lfork pSo fooLoku~ focq/kkf/ki% A
fe=ks·Fk jkt;{ek p rFkk i`Foh/kj% dzekr~ AA
vkioRlks·"Ve% iappRokfja’kr~ lqjksRRkek% A bfr AA
bu lHkh 76 nsorkvksa dk vkokgu oSfnd eU=ksa ls fd;k tkrk gS A ;fn oSfnd eU=ksa ls
fd;k tkuk lEHko u gks rks dsoy uke xzg.kiwoZd vkokg;kfe LFkki;kfe dgdj Hkh
fd;k tkrk gS A tSls ihB ds bZ’kkudks.k esa 1 ’osr in ij ’kEHkq dh LFkkiuk dh tkrh gS
A vr% vksa HkqHkwZo% Lo% ’kEHkos ue%] ’kEHkqa vkokg;kfe LFkki;kfe dguk pkfg, A blh izdkj
vkxs ds lHkh nsorkvksa dh LFkkiuk ihB ij fufnZ"V LFkkuksa ij djuh pkfg, A LFkkiuk
djusa ds ckn bu LkHkh nsorkvksa dh iapksipkj ls iwtu djuk pkfg, A rnuUrj okLrq
osnh ij e/; esa dy’k LFkkfir djuk pkfg, A dy’k ds mij o:.k dk vkokgu dj
okLrq iq:"k dh izfrek LFkkfir djuh pkfg, rFkk "kksM’kksipkj ls mudk iwtu fd;k
tkuk pkfg, A
okLrqiwtu djusa ds iwoZ ihB ds bZ’kkukfn pkjksa dks.kksa esa ;k x`g ds pkjksa dks.kksa esa [kfnj
o`{k ds ydMh dk ’kadq ;k ykSg dhy xkMuk pkfg, A bl eU= ls iwtu Hkh djuk
pkfg, A
fo’kUrq Hkwrys ukxk% yksdikyk’p loZr% A
vfLeu~ x`gs·ofr"BUrq vk;qcZydjk% lnk AA
dhy LrEHku djusa ds ckn rFkk okLrqihB ij nsorkvksa dh LFkkiuk djusa ds iwoZ okLrqosnh
ij okLrqe.My dk fuekZ.k fd;k tkrk gS A fuekZ.k ds dze esa loZizFke iwokZfn rFkk
mRRRkjkfn n’k&n’k js[kk;sa djuha pkfg, ftlls 81 in okyk okLrqe.My fufeZr gksrk gS
A bu LkHkh n’k&n’k js[kkvksa esa Hkh nsorkvksa dk okLk gksrk gS mudh Hkh LFkkiuk djuh
gksrh gS A blfy, Lo.kkZfn ’kykdk ls js[kkvksa dk fuekZ.k djuk pkfg, vkSj nsorkvksa dh
LFkkiuk leU=d djuh pkfg, A os LkHkh js[kk nsork bl izdkj gS A if’pe ls iwoZ dh
vksj js[kk ds nsork mRRkjksRRkj dze ls gS A
1 ‘’kkUrk 2 ;’kksorh 3 dkUrk 4 fo’kkyk 5 izk.kokfguh
6 lR;k 7 lqefr 8 uUnk 9 lqHknzk 10 lqjFkk
nf{k.k ls mRRkj dh vksj c<rs gq, iwokZfn dze ls n’k nsork gS A

उराखड मु त िवविवालय 180


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
1 fgj.;k 2lqozrk 3y{eh 4fo/k`fr 5 foeyk
6fiz;k 7t;k 8Tokyk 9fo’kksdk 10 bMk

lqjFkk lqHknzk uUnk lqefr lR;k izk.kokfguh fo’kkyk dkUrk ;’kksorh ’kkUrk
bMk
fo’kksdk
Tokyk
Tk;k
fiz;k
foeyk
fo/k`fr
y{eh
lqozrk
fgj.;k

js[kk fLFkfr lHkh 20 nsorkvksa dh izfr"Bk ds ckn mudk iapksipkj ls iwtu fd;k tkrk
gS A ;g lHkh iwtu ds ckn okLrqe.MyLFk nsorkvksa dk iwtu fd;k tkrk gS A iwtu dh
i)fr iwoZor~ gh gS A

उराखड मु त िवविवालय 181


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

4-8 gou]xzgiwtu]cfynku]cfy vkSj lekiu


okLrqiwtu ds ckn gou djusa gsrq oSfnd dq”kdf.Mdk fof/k dh tkrh gSA ftlesa
vfXu dk laLdkj fd;k tkrk gS rFkk gou esa iz;qDr lkexzh dh ’kqf) dh tkrh gSA dq.M
;k LFk.Mhy esa Hkwfe ’kqf) gsrq ikap laLdkj fd;k tkrk gSA blds ckn xzgksa dh LFkkiuk
dh tkrh gSA onh ij xzgksa dk e.My cukdj mudk iwoksZDr izdkj ls iwtu fd;k tkrk
gSA lw;kZfn uo xzgksa ds ,d vf/knsork rFkk ,d izR;f/knsork dgs x, gS vkSj iap yksd
iky rFkk n”k fnXiky] ;s lHkh dqy feykdj 43 gksrs gSA xzge.My fuekZ.k esa er
erkUrj Hkh izkIr gksrs gSA xzgksa ds LFkku] muds uke] mudh vkd`fr] vf/knsork]
izR;f/knsork bR;kfn lHkh fooj.k v/kksfyf[kr pdz esa Li"V gSA

उराखड मु त िवविवालय 182


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103

xzgLFkkiuk ds ckn gou fd;k tkrk gS A gou esa loZizFke uokgqfr iznku dh tkrh gS A
mlds Ik’pkr~ x.ks’kkfn vla[;kr :nz Ik;ZUr lHkh nsorkvksa ds fufeRRk vkgqfr iznku dh
tkrh gS A vkgqfr esa ’kkdY; fuekZ.k gsrq fry] r.Mqy] ;o]’kdZjk ] ?k`r bR;kfn gouh;
inkFkksZ dks iz;ksx esa yk;k tkrk gS A blds ckn eq[; :i ls okLrq nsork ds fufeRRk
gou 108 la[;d gou v/kksfyf[kr eU= ls fd;k tkrk gS A
vksa okLrks"irs izfrtkuhg~;LekULokos’kks vueh oks Hkoku% A
;RRosegs izfr rUUkks tq"kLo ’kUUkks Hko f}ins ’ka prq"ins Lokgk AA
blds ckn Hkh okLrq nsork ds vusd eU=ksa ls vkgqfr iznku dh tkrh gS A vkgqfr lekIr
gksusa ds Ik’pkr~ vfXu iwtu djus ds ckn fLo"Vd`r gkse fd;k tkrk gS vFkkZr~ tks
gouh; lkexzh ’ks"k jg tkrh gS mls vfXu esa lefiZr fd;k tkrk gS A iqu% ?k`r dh
uokgqfr djds lekiu fd;k tkrk gS A
gou ds ckn lHkh nsorkvksa ds fy, cfynku fn;k tkrk gS A cfynku dk vFkZ gksrk gS
mudh fiz; oLrqvksa dks lefiZr djuk A loZizFke bUnzkfn tks n’k fnDiky gS muds fy,
nhi] nf/k] mMn vkSj v{kr rFkk ty dks lefiZr fd;k tkrk gS A lHkh ds fy, i`Fkd~
i`Fkd~ iwokZfn n’kks fn’kkvksa esa leU=d cfynku fn;k tkrk gS vkSj izkFkZuk dh tkrh gS fd
gs ifjokj lfgr ] vk;q/k ;qDr] vkSj ’kfDr ;qDr n’k fnDikyksa esjsa ifjOkkj ds fy,
dY;k.k dkjh gksa vkSj ’kkfUrdkjd cusa A izkFkZuk bl izdkj gS &

उराखड मु त िवविवालय 183


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
Hkks Hkks bUnzkfn n’kfnDikyk% lkaxk% lifjokjk% lk;q/kk% l’kfDrdk% ee ldqVqEcL;
lifjokjL; x`gs vk;q%drkZj% {ksedrkZj% ’kkfUrdrkZj% iqf"VdrkZj% rqf"VdrkZj% ojnk Hkor AA
blds ckn uoxzgksa ds fy, Hkh cfynku fn;k tkrk gS vkSj muls dY;k.k dh dkeuk dh
tkrh gS A blds ckn {ks=iky ds fy, Hkh cfynku fn;k tkrk gS A mldh fof/k fdafpr~
vyx gS A ,d ckal dh Vksdjh esa dq’kk fcNkdj mlesa nf/k mMn pkoy vkSj ty
j[kdj irkdk yxkdj pkSeq[kk nhid tykdj flUnwjkfn ls lq’kksfHkr djrs gq,
v/kksfyf[kr eU= ls izkFkZuk djuh pkfg, A
ueks oS {ks=ikyLRoa Hkwrizsrx.kS% lg A
iwtk cfya x`gk.ksea lkSE;ks Hkorq loZnk AA
iq=kUk~ nsfg /kua nsfg nsfg es x`gta lq[ka A
vk;qjkjksX;a es nsfg fufoZ?ua dq: loZnk AA
blds ckn vkSj Hkh cgqr lh vkSipkfjd drZO;rk dh tkrh gS A ftldk foLr`r fooj.k
xzg’kkfUr bR;kfn i)frvksa esa fn;k x;k gS A
iqu% iw.kkZgqfr iznku dh tkrh gS A iw.kkZgqfr gh ;K dh lekfIr dk |ksrd gS A iw.kkZgqfr
ds ckn iz/kku okLrq e.MyLFk lHkh nsorkvksa dks Hkh lqo.kZ rFkk ik;l ds }kjk cfy
lefiZr fd;k tkrk gS A blds Ik’pkr~ vkjrh dh tkrh gS rFkk foizkfn dks ;Fkk ‘’kfDr
nzO;kfn nsdj mudk vk’khokZn fy;k tkrk gS vkSj leLr vkokfgr nsorkvksa dk foltZu
fd;k tkrk gS A bl izdkj okLrq iwtk lekIr gksrh gS A blesa vkSj Hkh cgqr lkjh
fof/k;ka gS fdUrq og cgqr tfVy vkSj Jelk/; gS A foLr`r lHkh fof/k;ksa dks tkuus ds
fy, fdlh ;ksX; oSfnd czkg~e.k dh ’kj.k esa tkuk pkfg, D;ksfd ;s lHkh izk;ksfxd i{k gS
dsoy i< ysusa ls lHkh fdz;k, ugha Kkr gks ldrh gS A blfy, okLrq iwtu fof/k rFkk
okLrq‘’kkfUr i)fr dks oSfnd ;ksX; czkg~e.kksa ls gh djkuk pkfg, A ftlls x`gtU; lq[k
vkSj ,s’o;Z dh izkfIr gksrh gS A
vH;kl iz’u & 2
6- okLrq osnh fuekZ.k ds fy, fdruh iwokZij vkSj ;kE;ksRRkj js[kk;s djuh pkfg,\
d- 8 [k- 9
x- 10 ?k- 11

7- x`g esa fdrusa in ds okLrqiq:"k dk iwtu djuk pkfg, \


d- 64 [k- 81
x- 100 ?k- 144

8-D;k okLrqiwtu esa cfynku djuk pkfg, A gka @ugha

9- okLrq iwtu esa vkH;Urj ds fdrusa nsork gksrs gSa \

उराखड मु त िवविवालय 184


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
d- 13 [k- 32
x- 43 ?k- 45

10- okLrq iwtu esa ckg~; ds fdrusa nsork gksrs gSa \


d- 13 [k- 32
x- 43 ?k- 45

4-9 lkjka”k
Xk`gfuekZ.k vkjEHk esa rFkk x`gkjEHkkfn esa x`g ds vf/kf"Br nsork okLrqiq:"k dk iwtu
fd;k tkrk gSA okLrqiwtu djusa ls x`g esa lq[k vkSj le`f) lnk cuh jgrh gS rFkk ?kj
fuR; mUufr gksrh jgrh gSA ;fn x`gkjEHkkfn esa okLrqiwtu u fd;k tk, rks x`g esa vusd
izdkj ds nq%[kksa dk lkeuk djuk iMrk gS rFkk x`g esa loZnk v’kkfUr jgrh gSA oSfnd
i)fr ls fof/kor~ okLrqiwtu djuk vkt ds le; esa nqYkZHk lk izrhr gksrk gS rFkkfi
dqN ikjEifjd vkpk;Z oSfnd fof/k;ksa ls lEkLr vk;kstuksa dks djokrs gSaA oLrqr% bl
ikB esa cgqr lh oSfnd fof/k;ksa dk lekos”k ugha fd;k x;k gS D;ksfd ;g cgqr cMk vkSj
uhjl ikB gks tkrk rFkkfi tks eq[; i)fr;ka gS okLrqiwtu dh] mu lHkh dks yxHkx
crk fn;k x;k gSA oSfnd i)fr ls ;fn vkidks tkuuk gS rks fdlh lq;ksX; czkg~e.k ds
ikl tkdj gh vkidks Kku izkIr gksrk gksxkA D;ksfd ;g Jqfr gS vFkkZr~ Jo.k djusa ls
vkusa okyh fo|k gSA deZdk.M rks iw.kZ :Ik ls izk;ksfxd i{k ij vk/kkfjr fo/kk gS vr%
dsoy v/;;u dj ysusa ls ;k i< ysusa ls og fo"k; Bhd ls le> esa ugha vk ldsxkA
vr% okLrq “kkfUr ds fy, ;k fQj okLrqiwtu djusa ds fy, lq;ksX; foiz dh egrh
vko”;drk gksrh gSA ;fn oSfnd i)fr ls okLrqiwtu fd;k tk, rks vkthou Ik;ZUr ml
x`g esa lq[k vkSj le`f) cuh jgrh gS rFkk x`g ls lHkh lnL;ksa dks mUUk;u gksrk gSA
x`gfuekZ.k gksusa ds ckn rFkk x`gizos’k gksusa ds ckn Hkh le; le; ij okLrq “kkfUr djkuh
pkfg,A bl dkj.k ls gh izkFkZuk dh tkrh gS okLrqiq:"k dh &
iwftrks·fl e;k okLrks gksek|SjpZuS% ”kqHkS%A
izlhn ikfg fo”os”k nsfg esa x`gta lq[ke~AA
okLrqnso ueLrs·Lrq Hkw’k;~;kfHkjr izHkksA
en~x`ga /ku/kkU;kfnle`)a dq: loZnkAA
izkFkZ;kehR;ga nso “kkyk;k vf/kiLrq ;%A
izk;f”pRRkizlaxsu x`gkFksZ ;Ue;k d`re~AA
4-10 ikfjHkkf"kd “kCnkoyh
fnx~j{k.k & iwtu gsrq fn”kkvkas dk vfHkefU=r fd;k tkrk gS] ftlls Hkwrizsrkfn ml ;K
dk fo/oal u dj ldsaA

उराखड मु त िवविवालय 185


गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
ladYi & iwtu gsrq fd;s tkusa okys dk;ksZ ds izfr ekufld ] okfpd vkSj “kkjhfjd :Ik
ls rRij gksukA
mipkj & iwtu djusa gsrq iz;qDr lkexzh leiZ.k fof/k dks mipkj dgrs gSA
miohr & lw= dk cuk gqvk ;Kksiohr ftls foizkfn o.kZ /kkj.k djrs gSa mldk iz;ksx
iwtu esa fd;k tkrk gSA
uSos| & nsorkvksa dks lefiZZr djusa ds fy, tks [kk| lkexzh Qy bR;kfn viZ.k fd;k
tkrk gS mls uSos| dgrs gSaA
?k`rekrk & iwtu esa lkr ekrk,a ?k`r dh cukbZ tkrh gSA vFkkZr~ lIr fcUnqvksa ij ?k`r dh
/kkjk,a fxjkrs gq, mUgsa izfrf"Br fd;k tkrk gSA blh dks olks/kkZjk Hkh dgrs gSaA
iapkax iwtu & izR;sd oSfnd ;K ;kxkfn esa fu;er% iatkxiwtu djuk vfuok;Z gksrk
gSA iapkaxiwtu esa LofLriq.;kgoku] ekr`dkiwtu] olks/kkZjk iwtu] vk;q";eU= ti] ukUnh
Jk) vkrs gSaA bUgha dk iwtu djuk iapkaxiwtu dgykrk gSA
Ckfynku & nsorkvksa dks tks fiz; oLrq dks lefiZr djuk gh cfynku gSA

4-11 vH;kl iz”uksa ds mRRkj


1- Xk
2- [k
3- gka
4- [k
5- vlR;
6- x
7- [k
8- gka
9- d
10- [k

4-12 lUnHkZ xzUFk lwph


3- xzUFk uke & eqgwRRkZfpUrkef.k
xzUFk drkZ & vkpk;Z jke nSoK
izfl) Vhdk & ih;w"k/kkjk
Vhdkdkj & Jh xksfoUn nSoK
O;k[;kdkj & Jh foU/;s”ojh izlkn feJ
izdk'kd & pkS[kEck lqjHkkjrh izdk”ku] okjk.klh] iquZeqfnzr laLdj.k 2009

4- xzUFk uke & c`gn~ okLrqekyk ¼laxzg xzUFk½


उराखड मु त िवविवालय 186
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
laxzg drkZ & Jh jkefugksj f}osnh
lEiknd & Mk czg~ekuUn f=ikBh
izdk'kd & pkS[kEck lqjHkkjrh izdk”ku] okjk.klh] laLdj.k 2018

4-13 lgk;d ikB~;lkexzh


4- xzUFk uke & xzg”kkfUr i)fr
lEiknd & f”konRRk feJ “kkL=h
izdk'kd & Jh Bkdqj izlkn iqLrd Hk.Mkj] okjk.klh]

5- xzUFk uke & okLrq “kkfUr iz;ksx


lEiknd & Jh vfXu ukjk;.k feJ
izdk'kd & ekLVj [ksykMh yky xSz.M lUl] okjk.klh]

6- xzUFk uke & ikSjksfgR; deZ izf”k{kd


lEiknd & Jh lfPpnkuUn ikBd
izdk”ku & mRRkj izns”k laLd`r laLFkku y[kuÅ

4-14 fucU/kkRed iz”u


1- iatkax iwtu ij laf{kIr fucU/k fy[ksaA
2- "kksM”kksipkj i)fr D;k gS\ fooj.k nsaA
3- okLrq “kkfUr dh fof/k D;k gS\ izdk”k MkysaA

उराखड मु त िवविवालय 187

You might also like