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हानी
DVS-103
ोफे सर एच.पी. शुल - (सयं ोजक)
ोफे सर िवनय कुमार पाडेय
िनदेशक, मानिवक िवाशाखा *योितष िवभागाय, सं0िव0ध0िव संकाय,
उ0म0ु िव0िव0, ह
ानी काशी िह.दू िवविवालय, वाराणसी।
काशन वष-2021
काशक - उराखड मु त िवविवालय, ह
ानी।
मु-क: - सहारनपुर इलेिक ेस, बोमन जी रोड, सहारनुपर ISBN NO. -
नोट : - ( इस पु तक के समत इकाईय के लेखन तथा कॉपीराइट संबंधी िकसी भी मामले के िलये संबंिधत इकाई लेखक िजमेदार होगा । िकसी भी
िववाद का िनतारण नैनीताल िथत उ$च &यायालय अथवा ह)*ानी स+ीय &यायालय म, िकया जायेगा।)
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
अनुम
वातु शा म
िड
लो
(DVS-20)
ततृ ीय प
गहृ िनमाण िववेचन
DVS-103
खड -1
वातुशा म
गहृ िनमाण
अथा त् eमशः ईशान, वाय_य, नैऋLय एवं आjनेय कCण म1 िविभ*न रािशयC म1 सयू क/ िथित होने
पर राह" का मखु , मkय एवं प&ु छ होता है। अतः इन तीनC को छोड़कर चतथु कCण क/ िदशा म1 खात
शभु होता है। इसी कार आचाय रामदैव5 ने महु =त िच*तामिण E*थ म1 देवालय ,गृह एवं जलाशय इन
तीनC के िनमा ण म1 य\ु राह" मखु ािद के िवचार के िनयमC को एक साथ स;मिलत करते ह"ए िलखा
$ -
देवालये गेहिवधौ जलाशये राहोमुखं श3भुिदशो िवलोमतः।
मीनाकिसंहाकमृगाकतिFभे खाते मुखा*पृ@िविदGछुभो भवेत।् ।
(मुहतिचतामिण वातु करण)
अथा त् देवालय िनमा ण म1 मीनािद रािशयC म1 तीन-तीन रािशयC के सयू होने पर ईशानिद
कोणC म1 तीन-तीन रािशयC के eम से, गृहिनमा ण म1 िसहं ािद से गणना कर तीन-तीन रािशयC के सयू
अTयास 'U 1 -
1. मीनािद तीन रािशयC म1 सूय होने पर देवालय िनमा ण म1 खात का आर;भ िकस िदशा म1 करना
-4
2. वृिyकािद तीन रािशयC म1 सयू के होने पर गृहार;भ म1 खात का खनन िकस िदशा म1 होता है।
3. राह" का मख
ु आjनेय म1 हो तो पृR कहां होगा ?
4. खातार;भ राह" के प&ु छ भाग म1 करना चािहए।
आए और उस जल पणू खात का परी:ण कर1 अब यिद खात पहले जैसा ही जल से भरा ाf हो तो
उस भिू म का उम फल, चौथाई जल बच जाए !& मkयम फल तथा खात जल िवहीन हो जाए तो
;<( = &! "-
*कृ*वा जलपूणमाऽऽशतपदं ग*वपरीWयं पुनः।
पादोनाऽXिवहीनके ऽथिनभृते मBयाधमे@ा3बुिभ:।।
वातु रLन नामक E*थ म1 भी भिू मशोधन के िलए खात परी:ण क/ जो िविध कही गई है 9
$)
अनसु ार गृहपित के हतमाण के त`ु य गहरा खात करके खात को जल से पणू कर द1, $3>
(
बाद जाकर परी:ण कर1 यिद खात जल से पणू हो तो शभु , जल पणू करते ही खात सखू जाए तो
अशभु एवं जल भरते समय यिद जल िथर रहे तो उस थान पर गृह क/ िथरता जाननी चािह4
आचाय नारायण भw ने कुछ कारांतर से खात परी:ण का उ`लेख करते ह"ए कहा है िक सयू ा त
काल म1 एक हाथ लंबा, -.?, गहरा खात करके उसको पानी से भर द1 तथा ातः काल आकर
उस खात का परी:ण कर1 यिद ातः काल तक उस खात म1 कुछ जल शेष रहे रह तो शभु , कुछ
जल उस खात म1 नहh रहे तो मkयम तथा उस खात मे दरार1 पड़ी हC तो अशभु होता है। " -
व[ं हतिमतं खनेिदह जलं पूण\ िनशाये यसेत।्
'ात]@जलं थलं सदजलं मBयं *वस*फािटतम।् ।
: (
&<1 के िलए खात परी:ण करने के बाद वातक ु ारC ने खात खोदते समय उसक/ िमwी म1
िमलने वाले पाषाण आिद पदाथg (वत)ु के Pारा भी सभी शभु अशभु फलC का उ`लेख िकया है।
" -
खायमाने यदा भूमौ पाषाणं 'ा^यते तदा
धनायुिQरता वै यािद@कासु धनागम:।।
कपालाङ्गारके शादौ Kयािधना पीिडतो भवेत।्
अथा त् खात खोदने पर यिद खात म1 से पLथर िनकले तो उस भिू म पर वासकता के धन एवं आयु
क/ वृिY होती है, यिद ईट1 िमले तो धनागम होता है परंतु यिद कपाल, @A@, $& , $)
आिद िमले तो वास कता को रोग और पीड़ा कहनी चािहए। कुछ आचायg का मत है िक खात म1
यिद पLथर िमले तो वण $ , इि]का िमले तो समृिY, n_य िमले तो सुख और ता आिद
" -
&'3यफाiगनु वैशाखमाघkावणकाितका:।
मासा: युगहिनमा
ृ णे पुारोNयफल'दा:।।
अत: खातार;भ वातु Eंथो\ एवं महु =त Eंथो\ शभु मासC म1 ही करना शभु होता है। कुछ आचायg
का मत है िक काित क, चैO, UयेR, आषाढ़, भाnपद और आिxन मास म1 गृहार;भ करना अथवा
खातारंभ करना शभु नहh होता है। आचाय रामदैव5 ने सयू संeांित स;बि*धत सौरमास एवं चा*n
मासC क/ समवेत् गणना करते ह"ए िलखा है िक फा`गनु , vावण, ., वैशाख और माग शीष मास
म1 गृह आरंभ व खातारंभ शभु होता है। गृह आरंभ म1 प: िवचार के सबं धं म1 वातु रLनावलीकार
कहते हW िक -
शुGलपAे भवे*सौlयं कृmणे तकरतो भयम।्
तमाद् िवचाय कतKयं यदी"छे "छुभमा*मन:।।
अथा त् शु ल प: म1 गृहारंभ व खात आरंभ करने से सख ु क/ ािf और कृ sण प: म1 चोरी का भय
बना रहता है। ग
ु और शe ु क/ उिदत अवथा होने पर ही शु ल प: के िदन म1 खातारंभ करना
चािहए। िनिषY ितिथयC म1 खातारंभ करने से ाf होने वाले अशभु फलC का वण न करते ह"ए
आचाय बृहPातमु ाला म1 कहते हW िक ितपदा ितिथ म1 द+रnता, चतथु म1 धन:य, अ]मी म1
उ&चाB1, नवमी म1 शM आिद से घात, अमावया म1 राजभय तथा चतदु श ी ितिथ म1 खात आरंभ
करने से Mी क/ हािन होती है। आचाय भृगु का मत है िक गृहारंभ म1 +र\ा ितिथ (4-9-14) अ]मी
एवं अमावया ितिथयC तथा रिव, चnं एवं मगं लवार िदनC का Lयाग करना चािहए। खात आरंभ म1
न:O शिु Y के िवषय म1 आचाय माड_य न1 कहा है िक अधोमख ु सं5क न:O म1 ही खातार;भ
$1 -4 " -
अधोमुखैभnिवदधीतखातं िशलां तथैवोBवमुखैmय पoम।् ।
तीनC पवु ा , आे षा, भरणी, कृ िका, मलू , मघा और िवशाखा ये नव न:O
;धोमख ु सं5क हW।
" -
"पवू ायं सापयमािNनिधmbयमधोमुखमं ूलमघािवशाखा"
पवू \ ितिथयC को छोड़कर शेष अ*य ितिथयC म1 जैसे िPतीया, !#!, - (,षRी, सfमी,
(,
4$
, Pादशी, और Oयोदशी ितिथ म1 खातार;भ करना अिधक vेयsकर होता है। सf
!
योगC म1 िवsकंु भ और _यितपात योग का Lयाग करके अ*य योगC म1 खातार;भ करना शभु होता है।
आचाय रामदैव5 ने पंचांग शिु Y और लjन शिु Y के िवषय म1 कहते हW िक रिववार और मगं लवार को
छोड़कर अ*य वारC म1 +र\ा ितिथ अमावया और सfमी ितिथ को छोड़ अ*य ितिथयC म1 चर लjन
$& (1-4-7-10) को छोड़कर शेष लjनC म1 अथा त िथर लjन (2-5-8-11) तथा िPवभाव लjन
(3-6-8-12) म1 शभु होता है। पचक न:OC को छोड़कर अ]म और Pादश भाव शिु Y य\ ु लjन म1
शभु Eह क1 n और िOकोण म1 िथत हो तथा िOषडाय (3-6-11) म1 पाप Eह य\ ु हो तो खातार;भ
3 &! " -
भौमाक1र+ामाुने चरोनाङ्गे िवपpचके ।
Kय@ा*याथै शभ ु ैगqहार3भFया1रगै: खलै:।।
1.4.3 खात खनन मI राहमुखपु"छ का फल -
आप ने इस इकाई म1 पहले ही यह पढ़ िलया है िक देवालय आिद िनमा ण म1 राह" मख ु पु&छ का
िवचार िकया जाता है, यCिक राह" Lयेक भख ू डं पर सपा कार अपने शरीर को फै लाए ह"ए िवमान
रहता है तथा शरीर भाग पर खातार;भ करने से अशभु फल दायक होता है। अतः देवालय आिद
िनमा ण म1 सपा कार राह" क/ िथित जानकर खात खनन के समय राह" के शरीर के अंगC (मख ु , मkय,
प&ु छ) पर हार करने से बचना चािहए। यCिक यिद सपा कार राह" के शरीर पर हार करते हW तो
गृहवामी को अनेक कार के अशभु फलC का सामना करना पड़ता है। यथा सपा कार राह" के शीष
पर हार होने से मातृ - िपतृ:य, &3 छ पर हार करने से अनेक कार के रोग,पीठ पर हार करने से
हािन एवं भय तथा कुि: पर हार करने से पOु आिद का लाभ होता है। यथा -
शीषq मातृिपतृAय: 'थमतो खाते rज: प"ु छके ।
पृ:े हािनभय च कुिA खनने यात् पुधायािदकम।् ।
1.5
-
1वEहC के अतं ग त सयू एवं चंnमा सिहत राह" एवं के तु का वण न महिष _यास रिचत अ]ादश
परु ाणC म1 अनेक थलC पर ाf होता है। समnु मथं न के समय भी राह" नामक रा:स ने अमृत पान
कर िलया परंतु भगवान िवsणु उसके सर धड़ को अलग कर िदया िजसम1 शीष भाग को राह" तथा
धड़ भाग को के तु के नाम से जाना जाता है। uा ने राह" को सप भाग से जोड़ िदया इसिलए लोग
इसे सपा कार राह" कहते हW। सप कार का राह" होने से उसके मख
ु प&ु छ का िवचार वातु शाM म1
िकया जाता है। देवालय िनमा ण जलाशय िनमा ण तथा गृह िनमा ण म1 राह" मख ु प&ु छ का िवचार
सव थम करना चािहए। यिद इसका िवचार िकए िबना गृह आरंभ होता है तो गृहवामी के िलए
अिन] कारक होता है। राह" मख ु के िवपरीत िदशा म1 प&ु छ क/ िथित होती है। ईशानािद िदशाओ ं
के अनसु ार राह" के मख
ु पु&छ क/ िथित बताई गई है। यिद राह" का मख
ु ईशान कोण म1 होता है तो
प&ु छ क/ िथित नैऋLय कोण म1 जाननी चािहए। गृह िनमा ण के िलए कहा गया है िक यिद सयू
िसंहािद तीन रािशयC म1 हो तो राह" मख
ु ईशान कोण तथा प&ु छ क/ िथित नैऋLय कोण म1 होता है
अतः यहां खात खनन आjनेय कोण म1 करना चािहए। देवालय िनमा ण म1 मीनािद तीन-तीन रािशयC
म1 सयू क/ िथित के अनसु ार ईशानािद कCणC म1 खात खनन का िवचार करते हW तथा जलाशय
िनमा ण म1 मकरािद तीन रािशयC म1 सयू होने पर ईशानािद म1 राह" मख
ु िनिyत कर ! 11 $
िवचार करते हW। यिद मकरािद तीन रािशयC म1 सयू हो तो राह" मख
ु ईशान कोण म1 तथा पु&छ नैऋLय
कोण परंतु खात पृR भाग (आjनेय) म1 करते हW। िकस िदशा से खाता आरंभ करना चािहए?
राह" का मtु य ईशान कोण म1 हो तो प&ु छ क/ िथित नैऋLय कोण म1 होती है। अतः खातार;भ पृR
भाग अथा त आjनेय कोण म1 कर1 । यिद वाय_य म1 राह" मख ु हो तो प&ु छ आjनेय म1 तथा पृR भाग
ईशान म1 होता है अतः ईशान कोण म1 होगा अतः वाय_य म1 खातार;भ करना चािहए। राह" मख ु यिद
नैऋLय कोण म1 हो तो प&ु छ ईशान कोण म1 तथा पृR वाय_य म1 खातार;भ करना चािहए। यिद राह"
$ (ख 3 आjनेय कोण म1 हो तो प&ु छ वाय_य कोण म1 होता है। अतः खातार;भ नैऋLय कोण
अथा त् पृR भाग म1 कर1 ।
1.6 पारभािषक श&दावली
शBु द भाव- िजस भव म1 कोई भी Eह न हो।
- @AE
अधोमुख नA- कुछ न:OC क/ सं5ा िवशेष।
1.7 अ,यास -. के उ/र -
अTयास 'U ('थम)
1- आjनेय कोण म1।
2- ईशान कोण म1।
3- नैऋLय म1।
4- 1 $1 -4
5- वेदी िनमा ण
6- असLय
अTयास 'U (ितीय)-
1- ईशान कCण म1।
2- नैऋLय कCण म1।
3- नैऋLय कCण म1।
4- अिjनकCण म1।
5- नैऋLय कCण म1।
6-नैऋLय कCण म1।
7- आिjनकोण म1।
8- अिjनकोण म1।
9- पृRभाग म1।
1.10 िनबधा9म न
1-राह"मख
ु प&ु छ का सामा*य प+रचय दीिजए।
2-िदशा के अनसु ार राह"मख
ु प&ु छ िथित पर काश डािलए।
3-गृह िनमा ण के िलए राह"मखु प&ु छ का िवतारपवू क
वण न कर1
4-य5 वेदी िनमा ण के िलए राह"मख ु प&ु छ का वण न कर1 ।
5-खातपरी:ण कै से िकया जाता है िवतृत वण न कर1 ।
6-खात खनन म1 राह"मख ु प&ु छ के फल पर काश डािलए।
Ϯ
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4 (11 $ 5& 7B उपलAध &, 9
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) pढ़ 4 सपु व 7B
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उपलAधता सिु निyत $ ल1। िक*तु kयान ) $
) [प
) िशला*यास
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) म1 य\ ु &1)
L $ प+रमाण *यनू ािधक (>&B-?) 1 &
"
सपु व $ स*ु दर & !" $ ) $ ई]कािद 1 & 5
$ $ -
6# ! 'कi^या, ]ढ़ा मनोा प1रमाणयु+ा
सiलAणा चाप1रमाणमाना, # यूनतरा कृmणा 5
2.3.2 वणािद =म & ! 'माण –
) !& ायोिगक [प म1 िशलामाण क/
ासङ्िगकता 1 यC $ वत मान प+रेय म1 $
_यि\
) वण
) $) 4
L $ िनमा ण 1 &! ;!3 4$ िनिyत ( म1 िनिम त
L $
$) 4
योग &! !" शाMो\ वण न उपिथत $ रह1 यC $ $&7 _यि\ शाMो\
माण
) _यि\गत ईि]का $ िनमा ण $1 -) !& $
$! ततु सङ्ग म1
uाणािद वणg $)
L $ माण eमश: OP, PQ, PR 4 S ; 3 ल;बा !
है।अथा त् िववण
वालC $) 4 OP, :िOय वण $) 4 PQ, वैय $) 4 PR, !"
शnू वण $) 4 S, पर*तु वत मान म1 _यवहार म1
नहh &!
वण $) ईटC (
)
$ माण 4$ &!
िशला'माणं =मशः 'िद@ं वणानुपूयqण 4
51*!* घनिवvनदा िवतारके Kयासिमतं तदधम् 76
ϱ
म, .
ϲ
म, .
" –
#' 2! राहोमुखं !*!" "
3
मीनाकिसहाकमृगाकतिFभे
पृ:िविदक् ! 77
!11 $)
(*यतः िशला*यास आjनेय $&' (पवू - दि:ण) म1 $ 5!
सव थम " < 5: $$) आjनेय $&' म1 थम िशला*यास $$)
)
L $ 9
! म1 दि:ण eम
) थापना क/ 5! "
दिAणपूवq "0 कृ*वा /2* !* यसेत् 'थमम्
!3 'दिAणेन त3भाQैव 'ितथा^याः 8
िशलायास &
थािपत क; 2 वतुएँ -
ϳ
ातुमाला ोक 104
ϴ
ातुमाला ोक 124
ϵ
बृहातुमाला ोक 143
(), #, कक ,
, वृिyक, ($, कु;भ $) सयू म1 vेR
3 !"G O, R, V, Q, PX, PP, PO, PR 4 PV
3 च*n, <3 , बृहपित, शe ु 4
1
9X=X, 9XX, 9XX, &', मृगशीष , िचOा, ;13 <, वाती, धिनRा,
शभु न:O
हत 4 पsु य (चeशkु द)
शभु लjन O, R, V, Y, Q, Z, PP, PO ;1) वामी 4
3 EहC
) p] &1)
लjन
) P, U, Q, PX, S, V म1 शभु Eह R, Y, PP म1 पापEह !" Z, PO Eह
लjनशिु kद
विज त 1)
3
अ*य LयाUय भnा, $3&, अ]मथ च*n, : (
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गहृ ार3भ मI सgसकारयोग – 1 िनमा ण )!3 शाMC म1 महु = ज*य 4$ मख ु & !
, िजसम1 # $ $ 5! !& अLयंत
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1, वाती न:O,
लjन, शु लप:, सfमी !",
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वातक ु म पOु पौOािद, 55$ !" <1-धा*यािद $& )1) &! " -
! ' वाती िसंहलNनं शुGलपAQ सgमी।
!
"3 kावणQ &3 सgक;ितताः 7
सgानां "" वातुः पुिवL'दः &
2v धनधायािदिन*यं ित:ित सवतः 711
10
वातरु नाकर गेहारंभकरण ोक23-25
11
बृहातुमाला गणनािवचार ोक 80-81
उराखड मु त िवविवालय 29
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
मुहeL}पयु+
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वातु च=
अपा पृ:पा दिAणकु
5* शीष पृ: पु"छ
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सूयनA
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िथर वामीना
;
शूय kीः दा1र्य /<
!
12
वातुरनाकर गेहारंभकरण ोक 42
उराखड मु त िवविवालय 30
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
िनmकष 7 5!
11 !
10 !
-
गेहाार3भेऽकभा*सशीषq रामैदाहो वेदभैरपादे
शूयं 13 पृ:पादे िथर*वं
13 पृ:े kीयुगैदAकुAौ 7
"
13 पु"छगैः वािमनाशो वेदैनःवं वामकुAौ मुखथैः
13 / सततं वाकिधmbयादvै rैिदिNभr+ं ~स*सत् 713
अTयास'U – 1
िन;निलिखत 8ो म1 सLय असLय $ -1 क/िजये -
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जीण}Bदारपुरेषु यागभवन'ार3भिनवतने।। वातोः
/2 * & * /2* =
3 राजबलभम डनम् 2.2
वातश
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ावधान
(१) थम खातास;भ पवू क
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(२) सOू पात $)
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(३) Pार थापना $ म1
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महु !त"िचंतामिण वातुकरण ोक -13-14
<3
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शीता नहh $1 -4
िशला*यास
) पवू सव थम : ( $&
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शिु kद क/ - < वातु E*थC म1 विण ! 5
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स3माजनोपाpजनेन सेकेनोiलेखनेन
* प1रवाशेन
3 शुBित पpचधा।।
) गृहार;भ काय
1 पवू क स;प*न & 5! िशला*या
कम गृहार;भ काय म1
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5
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6वृिXं धायं आरोNयं
'भो।।
आरोNयं
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3 -
पिyम
म1- \ 5) ! Lवं सव दा ) ितR Lवं थािपता ( िनLयं
5 भLू यै - वािमनो! भाग िव।। उर
म1-+र\े Lव+र\े दोषने िसिYवृिYदे
3 ) !
सव दा सव दोषने ितRािम*मम् मि*दरे ।। K
मOं
) थािपत $ पणू ा िद 1( म*OC
) ग*धािद Pारा
5: कर1 । 13 8 चारC L िदपालC क/ 5: $ $ $)
" , 9? 4 ! क/ द1।
िवxकम णे 1(8 K
कार <3 क/ 5: $ ाथ ना कर1 - \ अ5ाना5ानतो &8 यy ु
यद ु वाः। नाशय*Lविहता*सवा न् िवxकम *नमोऽतु !) 9
$) =?) क/ 5: $ ाथ ना
$) - \ Lवsा Lवं िनिम तः पूव &$1 िहतका;यया। : 5!&^
खिनOा ! Lवं िसिYदो 1&
वु म।् । sतोsपित, मृLयु जय )!L $) 5 )!3 ित5ा संक`प कर1 -
अेLयाु Lवा अनविधवषा वि&छ*नबह"कालपय *तं पOु कलOारोjय-धनािदसमृिYािfकामो
गृहिनमा णाथ कत _यिशलाथापनाLवेन वातदु वे तामृLयु जयािदसादलाभाय यथासtं याप+रिमतं
uाणPारा 5( कारियsये।
' सामEी )$-अेLयािद गृहिनमा णाथ कत _यिशलाथापनांगभतू uाणPारा- वातोsपितजपं
कारियतमु िे भव रणn_यैरमक
ु ामक
ु गोOान् अमक
ु ामक
ु शम णः uाणान् जपकतृ Lवेन यsु मानहं #')
तदन*तर िमRान !' कर1 ।
उपय \
ु
काय eम $
सिु व5 $ Pारा स;प*न $1 -4 5
) $ $&7 Oुिट 1
5)
अTयास'U – 2
+र\ थान क/ पिू त क/िजये –
1- 1 $) िशला*यास म1 ............................
L (संtया) $ *यास $
5!
2- सामा*यतः िशला*या
................................$&' म1 $ 5!
3- सयू न:O
) # 1 $ न:O - & !& .....................=
$ &!
ϭϰ
बृहातम
ु ाला ोक 1(2/1)156- (2/1)50
<(" 1
5: T भडं ारक: नानक: रसोई क:
क:
घी तेल भडं ार क:
औषिध क:
उर दिण
<1 uथान
शयन क:
($&)
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.-
&51 अkययन
3
&1 # शM, 9$' @
क: क:
नैऋय
वायय िम
इसके अित+र\ भी अनेक कार का वण न E*था*तरC म1 ाf होता है। वराहिमिहर न1 बृहLसंिहता के
वातिु वाkयाय म1 के वल चार क:C का वण न करते ह"ए ईशान म1 पजू ागृह, आjनेय म1 भोजनालय,
नैऋLय म1 भडारगृह तथा वाय_य म1 धा*यािद रखने का गृह बनाने का आदेश िकया है। अ*य क:C
का िव*यास वातु चe म1 थािपत देवताओ ं क/ वृि के आधार पर सिु निyत होता है।
अTयास'U % 1
िन;निलिखत 8ो म1 सLय या असLय का चयन क/िजये -
6. पजू ा गृह भवन के ईशान कोण म1 बनाना शभु दायक होता है।
&") ? - रसोई मकान का महLवपूण भाग है। रसोई म1 बनाया गया भोजन प+रवार के सभी सदय
Eहण करते है एवं वह उनके भौितक व मानिसक वाय को भािवत $! । गृह वािम1
अपना अिधकतर समय रसोई म1 िबताती है इसिलए रसोई उसके िलए अLय*त महLवपणू होता है।
भोजन का मन एवं मितsक से सीधा सबं धं है। अ*न से ( !1, मन और चैत*य िनिम त होता है,
इसिलए भारत के ाचीन रहयदश 'अ*नं u' का उ ोष करते हW। स;यक् अ*न Eहण करते ह"ए
आप u का बोध कर सकते हW। सOू के वल इतना है िक आप स;यक् आहार ल1, एक िनम ल
भावदशा म1 ल1 M K
$& : ) आन*द से िनिम त कर1 । यिद कोई साध-ु स*यासी तामसी
वृि का आहार Eहण करे तो उसके kयान म1 बाधा अवय आती है। ऐसे _यि\ सािLवक वृि
$ आहार Eहण करते हW। मन क/ वासनाओ ं और इ&छाओ ं को भोजन के Pारा िनयंिOत $ 5
सकता है। आजकल सव O असिहsणतु ा का वातावरण है। उसके िलए <3 1$ -
आचरण ही िज;मेदार हW। िजसम1 भोजन एवं भोजनक: क/ महLवपणू भिू मका तीत होती है। भवन
का आjनेय कोण रसोई के िलए सवा िधक उपय\ ु थान है। यिद ऐसा संभव न हो तो रसोई वाय_य
कोण म1 17 5
$! तु ऐसा करने से रसोई म1 िदनभर खाना बनता रहेगा। इसके कारण
खच अिधक होने लगता है। भोजन िनमा ण करते समय गृिहणी का मख ु पवू या उर िदशा म1 रहना
चािहए। वातु शाMानसु ार रसोई घर क/ आतं +रक सUजा िन;न कार से क/ जा सकती
उर
पवू
पिम
ड़क
रसोईघर म1 गैस/च`ू हे रखने क/ पwी पवू िदशा म1 होनी चािहए िजससे िक गैस च`ू हा पवू या
दिण
; (
1
ि¡ज / पेयजल
टोव
; (
शयनकA- मकान के मिु खया का शयनक: दि:ण म1 और यवु ा द;पि का शयनक: वाय_य एवं
उर के बीच म1 बनाया जाता है। ब&चC का कमरा वाय_यकोण म1 बनाया जा सकता है। िक*तु ईशान
या आjनेय कोण म1 शयनक: कभी भी नहh बनाना चािहए। यCिक ईशान कोण म1 बेड[म बनाने से
<1 1, काम म1 बाधा और क*या के िववाह म1 िवल;ब तथा आjनेय म1 बनाने से दा;पLय $ ,
अिनnा एवं िच*ताएँ घेरती है। अपने से UयेR _यि\ एवं माता-िपता का क: अपने क: से पिyम-
दि:ण म1 शभु होता है। यिद मकान दो या अिधक मिं जल का हो तो मकान क/ पहली मिं जल पर
नैऋLयकोण म1 प+रवार के मिु खया या बजु गु का शयन क: बनाया जाता है। यह क: का प+रवार के
सबसे बड़े पOु के िलए भी उपयोग िकया जा सकता है। िक*तु छोटे लोगC एवं ब&चC के िलए नहh।
सामा*यतया पलंग का िसरहाना पवू या दि:ण क/ ओर रखना उम होता है। इससे सौर एवं
उराखड मु त िवविवालय 47
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
च;ु बक/य ऊजा से शि\ िमलती है। शयनक: का Pार दि:ण म1 नहh खल ु ना चािहए। इस क: म1
िखड़िकयC पवू एवं उर िदशा म1 होनी चािहए। यिद शयनक: के साथ शौचालय/नानागार सलं jन
करना हो तो उर या पिyम म1 बनाना चािहए। शयन क: का नैऋLय कोना खाली नहh रखना
-4
K
कोण म1 आलमारी या भारी फनचर रखना चािहए। शयन क: म1 मि*दर या पजू ा का थान नहh
बनाना चािहए। के वल अपने इ]देव या कुलदेव का िचO लगा सकते हW। शयन क: म1 पलंग के ऊपर
छत क/ बीम या मोटी पwी नहh होनी चािहए। नगदी-आभषू ण एवं म`ू यवान वतएु ँ रखने के िलए
ितजोरी इस क: क/ पिyमी या दि:णी दीवार के सहारे या दीवार म1 इस कार रख1 िक वह उर या
पवू क/ ओर खलु े । दि:ण क/ ओर ितजोरी के खल ु ने से धन का :य होता है और पिyम क/ ओर
खल ु ने से बचत नहh होती। शयन क: म1 टी.वी, B, हीटक*वेटर आिद आjनेय कोण म1,
कूलर/एयर कडीशनर पिyम व उर म1, वाड रोब (वMC क/ आलमारी) नैऋLय या वाय_य म1
1)-पढ़ने क/ टेबल ु पिyम म1 और ¢ेिसगं टेबल
ु पवू म1 लगानी चािहए िन;न िचO के अनसु ार
शयन क: क/ आतं +रक सUजा हम कर सकते हW
उर
ार
िखड़क
#ेिसंग टेबल
पवू
पिम
भोजनकA
िखड़क
दिण
खड -2
गृहिनमाण िविध एवं मुह िवचार
1.1 ता1
1.2 उ े य
1.3 गृह िनमा ण म1 मास िवचार
1.3.1 गृहिनमा ण म1 प: शिु Y िवचार
1.3.2 गृहिनमा ण म1 न:O शिु Y िवचार
1.3.3 गृहिनमा ण म1 लjन शिु Y िवचार
1.4 गृहिनमा ण म1 पंचांग शिु Y िवचार
1.5
1.6 पा+रभािषक शAदा
1.7 बोध नC के उर
1.8 स*दभ E*थ
-:
1.9 सहायक पाठ्यसामEी
1.10 िनब*धाLमक न
kीपित
-
किकनGतह1रकु3भतेऽकq पूवपिQममुखािन गृहािण ।
तौिलमेषबृषवृिवaवतेदिAणोतरमुखािन च कुयात् ।।
अयथा यिद करोित दुमितKयािधशोकधननाश नमaनु
/
4 कारये गृहमेव भाक
पवू - पिyमािभमख
ु गृह का िनमा ण, कक , ($, िसंह और कु;भ $)
य: म1,
या;मोLतरािभमख ु गृह का िनमाण तल
ु ा, वृिyक, मेष और वृष के सयू म1 करना शभु द होता है। इनसे
K! (1, <1,3 िमथनु और क*या के सयू म1 गृहिनमा ण कराने वाला _यि\, &,
&$ और धन:य
से कsट &!
रामदैव
-
कै िQमे'
घौ वृषभगे Cयेmठ शुचौ ककटे ।
भाे िसहगते घटऽaवयुिज चोजqऽलौ मृगे पौषके ।।
माघे नGतघटे शुभं िनगिदतं गेहं तथोजq न स*
2.1 ता1
2.2 उ े य
2.3 # Pार -
2.3.1 िदशाओ ं का Pार फल िवचार
2.3.2 Pार वेध का फल
2.3.3 Pार स;बि*धत उपnव फल
2.3.4 Pारथापन चe
2.3.5 Pारथापन म1 ितयािद िनण य िवचार
2.4
2.5 पा+रभािषक शAदा
2.6 बोध नC $) उर
2.7 स*दभ E*थ
-:
2.8 सहायक पाठ्यसामEी
2.9 िनब*धाLमक न
) ताLपय [$
(1) &1)
) 5) $)
(1) ? रे खाLमक िथित & !& , 1
)< &$$ &!
रयािवXं ारं !
"* तणा।
/.कारे !"" Kययोऽ3बुिनःFािविण 'ो+ः।।
कूपेनापमारो िवनाशQ देवतािवXे।
त3भेन Fीदोषाः !" wxणािभमुखे
)
) < & !& गृहवामी $) 4 1
$$ )?
) < & !& T $) बालकC
$) 4 & $$, क/चड़ 1 $) थान
) < & !&
&$ $$ !" 1 $ )< & !&
: <1 _यय &! $3G & !& (1
$ अिथरता, िमग 5) $) [$
(1) )
ितमा & !& गृहवामी $ 1
ख;बा & !& िMयC $) 4 & $$ uा थान (!
(: $ Pार क/ _यवथा म1 दीघ या िजस िदशा म1 Pार करना हो, उसके िवतार म1 नव भाग करके
पवू ा िद िदशा eम से Pा $ 5, पवू म1 तीसरे --.") , दि:ण म1 चौथे-छठव1, उर व पिyम
म1 चौथे- पाँचव1 भाग म1 Pार शभु होता है।
मत मI ार वेध %
wxथा तु िवXेन नागदतथ
मृािभगवाAैaच खातमागnत1
ारैaच िLिभaचैव मBय1: *
वा
" मरणं त दु:खं यादुLरोLरम।् ।
अथा त् uथान से वेध नहh होना चािहए (मkय भाग का Pार u वेध होता है)। नागद*त (BG:
आिद के थानC से), (#!A (िमwी क/ ढेरी), वृ:, 5 , ! @AE, राता, Pार, िभि के वेध से
गृहवामी क/ मृLयु व उरोर द:ु ख बढ़ता जाता है, uथान से देवथान का Eहण उिचत है,
यCिक दसू रे प म1 मkय भाग से िवता-दीघ के बीच का भाग Eहण है।
अथ ारवेधफलम् -
मागतकोणकूपत3भ[मिवमशुभदं ार3
उ"छायािगुणिमतां *यG*वा
* " 149
बोध न : -
1. uाण
G $.1-$.1
?
$. कक , वृिyक, (1 . #, कक , (1 . !3 , <1,3 $3 T. (), ("13 ,
2. uाणC के िलए गृह Pार $
म1 रखना उम होता है?
$. पवू म1 ख. पिyम म1 ग. उर म1 घ. दि:ण म1
3. राजाओ ं के िलए गृह Pार िकस िदशा म1 रखने को बतलाया गया है?
क. उर ख. दि:ण ग. पवू घ. पिyम
4. अिxनी िकस िदशा का Pार न:O है?
$. पिyम ख. दि:ण ग. पवू घ. उर
5. Pार के उपर Pार बनाना कै सा होता है।
क. शभु ाशभु ख. शभु ग. अशभु घ. कोई नहh
6. पिyम िदशा म1 सEु ीव पद पर Pार हो तो या = &!
क. पOु व धन लाभ ख. रोग ग. द:ु ख घ. मान वृिY
दि:ण िदशा म1 1- वायु भाग म1 Pार बनाने से स*तित क/ अ`प!, 2- पषू ा या पौsण भाग म1
Pार बनाने से दास वृि, 3- िवतथ भाग म1 Pार बनाने से नीच वृि, 4- वृहL:तभाग म1 Pार बनाने से
भय, पान और पOु C क/ वृिY होती है। 5- यम के भाग म1 Pार बनाने से अशभु फल क/ ािf, 6-
गधं व के अशं म1 Pार बनाने से कृ तन!, 7- भृड.गराज के भाग म1 Pार करने से दा+रnय, 8- (# $)
भाग म1 Pार बनाने से स*तित और पराeम क/ हािन होती है।
पिvम िदशा म1 1- िपतृ भाग म1 Pार बनाने से संतित कsट, 3- दौवा+रक म1 बनाने से शOओ
ु ं
क/ वृिY, 3- सEु ीव भाग म1 Pार बनाने से धन और पOु क/ अािf, 4- कुसमु द*त नामक भाग म1
बनाने से पOु ािद तथा धनधा*य क/ अिभवृिY, 5- व[ण भाग म1 बनाने से धन ािf, 6- ;
3
म1 बनाने से राजभय, 7- शोष भाग म1 बनाने से धन:य 8- पाप प:मा भाग म1 बनाने से & $
&!
उLतर िदशा म1 1- रोग भाग म1 Pार बनाने से वध और ब*धन क/ ािf होती है। 2- साप भाग
म1 Pार बनाने से शOवु िृ Y 3- मtु य भाग म1 Pार बनाने से धनलाभ 4- भ`लाट भाग म1 Pार बनाने से
गणु और स;पि का लाभ 5- सौ;य भाग म1 बनाने से पOु धन क/ वृिY, 6- भौजड.ग नामक भाग म1
Pार बनाने से पOु से िवरोध, 7- आिदLय भाग म1 Pार बनाने से Oी को कsट 8- िदित भाग म1 Pार
बनाने से िनध नता होती है।
पिyम
9 RO PारC का eमश: फल कहा गया है। जैसे िक पवू म1 थम िशिख भाग म1 Pार बनाने से भय
O म1 पय *त भाग म1 Pार बनाने से क*या
!!, R जय*त भाग म1 चरु धन लाभ आिद समत = ,
पsट आप सभी समझ ही गये हCगे उपर :ेO म1 दािहन1 ओर दि:ण तथा बाय1 और उर िद
Eहण करना चािहए।
उपयुGत संदभ मI िन3न बचन भी mटKय
1-
पूवाbयैशायां या3याNनेरययां दिAणािनजानीयात्
ारािण नैऋता* पिQमायुदGथािनवायKया
आNनेयमिNनभयं पाजयंी'सूितदं ारम्
'चुरधनदं जयतं नृपवiलभका1र माहे
शौयq=ोध: 'चुर: स*यऽनतृ वािदतं भृशेकौयम्
&(, <3 , बृहपित और शe ु वारC म1, न*दा (1611), पणू ा (51015), M 5 (4914)
ितिथयC म1 Pार था1
3 &!
zुवभे शभु वारे च िथरलNन !
ारं थापनं मृगं िचं वगस3पिवXनम्
चरे िथरे च नAे बुधशु=िदने ित'
शुभे कपाटयोग: याद् िव"
वु न:O (उLतराOय और रोिहणी)
3 !", वार और िथर लjन म1 Pार था1 $1
चािहए। मृगिशर और िचOा न:O कुल और स;पि क/ वृिY करने वाले है। चर और िथर न:OC
(उLतराOय, रोिहणी िथर और वा!, 13
,3 vवण, घिनsठा,
!, चर) बधु शe ु वार,
शभु ितिथ और िP-वभाव लjन म1 कपाट 1
3 &!
माbडKय
-
सू शङ्िगशलाारं तुला"छदनपवू कम्
कायत3भ'ितmटोGते िधmbये '
सOू ,
@A.$3, िशला*या
, Pारथा1, गृह&छादन त;भितsठा $) 4 !
ितिथ न:O वारC म1 $B 1
3 &!
2.5
K
इकाई के अkययन के पचा!A 1) 51 $ वातश ु ाO $)
वक Pारा गृहिनमा ण िeया म1 Pार का िवचार अLय*त महLवपूण बतलाया गया है। गृहPार का
शभु ाशभु फल Lय:तया गृहवामी पर पड़ता है। अतएव गृहिनमा ण पर;परा म1 आचायg ने गृहPार
का महLव ितपािदत िकया है।
# का मtु य Pार कै सा होना चािहए? िकस िदशा म1 होना चािहए? उसका दैय - िवता
$!1 &1 -4? आिद इLयािद समत िवषयC का ितपादन इस इकाई म1 आपके 5ानाथ
त!ु $ 5
सामा*य! गृहPार का अथ होता है घर का मtु य Pार। गृहPार के अkययनोपरा*त
$&
;1)$ (!-मता*तर भी देखने को िमल1ग।े तो आइए हम एक-एक उसका अkय1 $!)
रािश वाल के िलए गृह ार िनणय %
पूवq wाxणराशीनां वैaयानां दिAणेशुभम।्
शू ाणां पिQमे ारं नपृ ाणामुLरेमतम।् ।
uाण
(कक , वृिyक, (1) वालC के िलए गृह Pार पवू म1, :िOय रािश (#, क*या 4
($) वालC के िलए उर म1, वैय
(("13 , !3 , कु;भ) वालC के िलए दि:ण म1 तथा शnू
((),
4 <1)3 वालC के िलए पिyम िदशा म1 गृह Pार बनाना शभु फल देने वाला होता
है। राजाओ ं के िलए उर िदशा म1 गृहPार बनाना उम होता है। इसी कार गृहPार िनण य के िलए
; -; $7 <G, (!-मता*तर आचायg Pारा ितपािदत िकया है।
3.1 ता1
3.2 उ े य
3.3 #र;भ <
3.3.1 गृहार;भ से पवू िवचारणीय िवषय
3.3.2 गृहC के नाम व न:Oानुसार शभु ाशभु िवचार
3.3.3 # िनमा ण का फल, #
- 4
)
3
3 $"1
3.3.4 # िनमा णार;भ एवं ितयािद शिु Y
3.3.5 िशला*या
3.4 : (
&<1
3.4.1 गृहार;भ म1 िनषेध
3.4.2 गृहार;भ से न:O और वार से िवशेष फल
3.4.3 # वेश महु =
3.4.4 #
! पजू न व महLव
3.5
3.6 पा+रभािषक शAदा
3.7 बोध नC के उर
3.8 स*दभ E*थ
-:
3.9 सहायक पाठ्यसामEी
3.10 िनब*धाLमक न
$& ! है िक गृह का महLव मानव माO के िलए िकतना आवय$
यC$ 1 # $) 51-1 म1 ाणी-माO $& ;
3 < &! वातु शाO म1 गृह का
महLव ितपािदत करते ह"ए आचाय कथन है िक
गहृ थय ि=या: सवा न िसXयित गहृ ं िवना।
यततमा गृहार3भ कम चाािभधीयते।।
अथा त् # $) 1 गृहथ के समत मात व वैिदक काय सफल नहh होते हW या अ`प = )
प
ु षाकृित ाम वास च= %
5* मत$ (
3 )B [ 1 3 F F
" "
नA 5 3 5 6 1 4 1 1 1
; <1 <1 Oी 1 स;पि यYु
1 धा*य 1 ?
उदाहरणाथ - िकसी _यि\ का ज*म न:O आnा है। िद`ली का न:O प0ू भा0 है। पवू ा भाnपद से
गणना करने पर आnा नौवॉं न:O आया । जो पेट पर पड़ता है । अत: धन धा*य #िY िद`ली म1 रहने
$ =
अथव Eाम न:O से 7 -7 न:O eमश: मत$, [, ©दय व पैरC पर मान कर देख1। मतक म1
धन व मान, पृsठ म1 हािन व िनध नता ©दय पर सख ु स;पि व पैरC पर अिथरता रहती है F
;पने नाम न:O से देखा जायेगा। उदाहरण म1 िद`ली के न:O से िवचारणीय _यि\ शभु दश न का
)
3
3 &! । यिद उत चीज1 न हC तो गृह म1 िजधर बाहर खल ु ने वाले दरवाजे बनाय1 9
)
- $ 5
$!
पवू , दि:ण, पिyम, तथा उLत Kस eम से 1,2,4,8 ये वु ांक है। िजधर शाला हो उसके वु ांको म1
1 जोड़कर जो संtया बने, वही िन;ना1
3 # $ 1( या सं5ा होती है !1
3 =
3 1(
)
3 ;
3
) ;
3 &
1. वु
2. धा*य
3. 5
4. न*द
5.
6. का*त
7. (1&(
8. मख ु
9. दमु ख
ु
10. eूर
11. +रपदु
12. <1
न : -
1. िन;न म1 से िकसके अभाव म1 गृहथ के समत मात व वैिदक काय सफल नहh होते हW?
$. 5 . &51 . # T. <1
2. परगेह से या ताLपय है?
$. वातु # .
: ) $ T . ;1 # T. #!
3. गृहार;भ से पवू िकसका िवचार करना चािहए?
$. थान ख. िदशा ग. िपडािद का घ. उपय ु त
4. पादसंथापन का या अथ है?
$. िशला*यास ख. गृहार;भ ग. गृहिनमा ण घ. कोई नहh
5. काित क मास गृह िनमा ण के िलए कै सा माना गया है?
$. उम ख. मkय( . ;<( T.
6. गृहC के िकतने 1( $) ) ?
$. PW .PP .PV T.PY
7. पLथरC Pारा गृह िनमा ण का या = ?
$.
'3 . PWW गणु ा ग. करोड़ गणु ा घ. अन*त =
गृहार;भ िविध म1 िशला*यास एक अLय*त महLवपणू घटक है। गृहिनमा ण काय आर;भ करने के पवू
आचायg Pारा िशला*यास करने का िवधान बतलाया गया है। आइए हम सब िशला*या
)
प+रिचत होते हW।
3.3.5 िशलाया
लौट आय1 िफर परी:ा कर1 यिद गत भरा हो तो उLतम, चौथाई जल सूख जाये तो मkय( <)
)
$( ) !& ;<(
(H)
अथवा उसी िमwी से उस गड्ढा को भरे यिद िमwी बच जाये तो उLतम, बराबर हो तो मkय(, TB
5) !& ;<(
(H)
Oवातुर*नP नामक थ मI भूिम संशोधन %
इmटकोप1र विदीपच=म्
स^तपंचमुिनेवेदपंचिभ: शोकलाभजभीितभीसुखम् ।
भौमभा"च गणये*सुधी: सदा इmटकोप1र सुविदीपनम् ।।
मंगल के नA से अिNनदीपन नA तक का िवचार च= %
मंगल नA से गणना फल
7 5 7 4 5
&$ &
3
िशलाया& # %
दिAणपूवq कोणे कृ*वा पूजां िशलां यसेत् 'थमम् ।
शेषा: 'दिAणेन त3भांaचैव 'ितथा^या:
कोण क/ िविधवत् पजू ा करके पवू दि:ण के कोण म1 थम िशला*या
$$)
) दि:ण eम से
था1 $)
त3भथा/ %
) #-
वात-ु मडं ल म1 िथत देवता उस मकान आिद म1 रहने वाले लोगC को सख ु ,
!, समृिY देने म1
$ &!) हW। यिद िकसी नये गृह म1 #
! 5: 1 1 $ 54 !& #-वातु -)!
लोगC के िलए सव था एवं सव दा िवkन करते रहते है। गृह, 3 4 देवालय के सOू पात के समय,
: (
&<1, Pारथापन, िशला*यास एवं गृहवेश इन पांचC के आर;भ म1 वातुशांित आवयक है।
!* /2 &
F -
• यिद गृहवेश के पवू गृहशांित पजू न नहh िकया जाए तो दु वन आते हW, अकालमृLयु,
;(
$ B $ ()
!
• गृहिनमा ता को भयंकर ऋणEतता, $
(1 $1 @! , 4 _'
) >3B$
ज`दी से नहh िमलता, _' E! 5!
• घर का वातावरण हमेशा कलह एवं अशािं त पणू रहता है। घर म1 रहने वाले लोगC के मन म1
(1(B3 1 ! $ जीवन भी सुखमय नहh होता।
• 9
T $) & ()
$
1 $
(
) @! !) , !" T ()
बीमारीयC का डेरा बन जाता है।
• #हिनमा ता को पOु C से िवयोग आिद संकटC का सामना करना पड सकता है।
• िजस गृह म1 वातु दोष आिद हो!) , उस घर मे बरकत नहh रहती अथा त् धन िटकता नहh
है। आय से अिधक खच होने लगता है।
• िजस गृह म1 बिलदान (5: 1 म1 मगं ल n_या $) तथा uा' &51 $ 1
ह"आ हो ऐसे गृह म1 कभी भी वेश नहh करना चािहए। यCिक वह गृह आकिमक
िवपियC को 1 $!
!* /2 &
• यिद गृहवामी गृहवेश के पवू गृहशांित पजू न संप*न कराता है, तो वह सदैव सख
ु को ाf
3.5
इस इकाई के अkययन के पचा!A 1) 51 $
$& !
है िक गृह का महLव मानव माO के िलए िकतना आवयक है। यC$ 1 # $) 51-यापन म1
ाणी-माO को असिु वधा होती है। वातु शाO म1 गृह का महLव ितपािदत करते ह"ए आचाय कथन
$
गृहथय ि=या: सवा न िसXयित गृहं िवना।
यततमा गृहार3भ कम चाािभधीयते।।
अथा त् गृह के िबना गृहथ के समत मात व वैिदक काय सफल नहh होते हW या अ`प = )
होते हW, इसिलए यहाँ गृहार;भ के बारे म1 बतलाया जा रह है। ) $!) $
: ) $) T $
ह"आ vौत व मात कम िनsफ & 5! , यCिक दसू रे के घर म1 कृ त काय का फल गृहश े या
गृहवा( $& ( !
अत: सभी को वयं का गृह िनमा ण करना चािहए। यह अलग बात है िक Lयेक मनsु य ;1) 51
म1 हर संभव यास करता है िक वह अपने गृह का िनमा ण कर1 , पर*तु इस काय म1 कई तो सफल हो
जाते हW और कई असफल भी रह जाते हW।
उत लोक म1 एक न उठता है िक यिद कोई धन देकर िकसी दसू रे के गृह म1 िकरायेदार के [प म1
4.1 ता1
4.2 उ े य
4.3 #र;भ महु =
4.4
4.5 पा+रभािषक शAदा
4.6 बोध नC के उर
4.7 स*दभ E*थ
-:
4.8
यक पाठ्यसामEी
4.9 िनब*धाLमक न
वातश
ु ाO एवं Uयोितष के महु = E*थC म1 हम1 गृहार;भ महु = का उ`लेख ाय: सभी जगह
7 ?!
उराखड मु त िवविवालय 113
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
गृहार3भ मुहeL
रोिहbयां kवणात् येAिदितयुगये हतये मूलके ।
रेव*युLर फाiगुनीदुतुरगे िमोLराषाढयो:
शतं वातु कुजाकविजतिदने गोकु3भ&
* Q
कया* िमथुने नभ: शुिचसहोराधोजकं फाiगु
अथा त् &', vवण, धिनsठा,
!, पनु व स,ु पsु य, हत, िचOा, वा!, (: , ) !,
उराफा`ग1ु , अिxनी, ;13 <, उराषाढ़ा इन न:OC म1, ( , $& >&?$ और िदनC म1,
#, ("13 ,
, क*या, कु;भ, मीन इन लjनC म1 vावण, J, माग शीष ,
, काित क,
फा`गनु इन मासC म1 गृहार;भ (वात)ु
3 &! अत: उत न:O, वार एवं मासC को kयान म1
$ गृहार;भ $1 -4, ऐसा शाO $ )
गृहार3भ मI समय शुिX %
कमिसिX: सुखायूंिष िनिमLशकुनािदिभ:।
झा*वा 'mटुगृहार3भे क;तये*स
* &# :
अथा त् िनिम शकुन आिद के Pारा नकता के कम क/ िसिY, सख ु और आयु इLया $ -
करके गृहार;भ का महु = Uयोितिव दC का बताना चािहए।
िनिमL शकुन %
कालनरय यदगं ं सौ3यहवीिAतं युतं वािप।
त"चे पशृ ित 'mटा तदाय िनमाणमादेaय
कालप[ ु ष के िजस अगं को शभु Eह पणू pि] से देखता हो, 9
अगं को पश करके यिद नकता
गृह का िवषय पछ ू े तो गृह का िनमा ण काल बताना चािहए।
आर3भं च समािg च 'ासादपुरवेaम
उि*थते के शवे कुयान 'स^ु ते
अथा त् vीिवsणु 1 $) 5!) 1) (आषाढ़ शु लप: एकादशी से काित क शु लप: क/
4$
!" $) !) ासाद (राजमि*दर), परु और मकान इनका आर;भ और वेश करना
चािहए। िवsणु भगवान के शयनावथा म1 गृहार;भ करने का शभु महु = नहh होता है। यह सामा*य
वचन है। अत: गृहार;भ के समय उत िवचार का kया1 1 य$
र*न
नामक थ मI गृहार;भ के समय या $1 -4? यह बतलाते ह"ए कहते है $ -
रन
वृि वृि
पA शुिX -
शGु ल/Aे भवे*सौlयं कृmणे तक"
तमािचाय कतKयं यदी"छे ि"यमा*म :
शु लप: म1 गृहार;भ करने से सौtय और कृ sणप: म1 गृहार;भ $1)
) -& &! K
4
;1 ! -1) ) _यि\ को इनका िवचार करके मकान बनवाना चािहये।
/** शुिX %
ितीया पचं मी मुlया I
स^त
दशमी चैव ादaये!
योदशी पंचदशी ितथय: यु: !
:
दा1रयं 'ितप*कुया"चतुथ| धनहा1रणी।।
अmट3यु"चाटनं चैव नवमी शय?
दशq राजभयं ेयं भूते दारिवनाशनम।् ।
K
$ अथ है िक िPतीया, -(, !#!, षsठी, सत(,
(, 4$
, Pादशी, Oयोदशी,
पिू ण मा, ये ितिथयाँ गृहार;भ म1 शभु फल देने वाली होती हW। ितपदा दा+रnय को दे1) , चतथु
5$
ादश !
गृह'वेश मुहeL: -
सौ3यायने Cयेmठ/"A*य
#
याािनवृLौ नृपतेनवे गृहे
याेशनं ा:थमृदुzुवोडुिभ
जमAलNनोपचयोदये िथरे
सयू के उरायण होने पर मकर संeाि*त से िमथनु संeाि*त पय *त, Uयेsठ, (T, फा`ग1ु 4
वैशाख मासC म1 गृह के मtु य Pार क/ िदशा वाले न:OC म1 तथा मृदसु ं5क ((#
, ) !, िचOा,
;13 <) और वु सं5क (90=0, 900, 900, &') न:OC म1 ज*मरािश और ज*मलjन
)
9- (R,Y,PW,PP) भावC म1 िथत लjनC एवं िथर (O,V,Z,PP) लjनC म1 याOा के िनवृि पर
राजा का अपने गृह म1 पनु : वेश (सपवू वेश) तथा नतू न गृह म1 थम वेश (अपवू वेश)
3
&!
गृह'वेश तीन 'कार का होता है %
P. अपवू गृहवेश
O. सपवू गृहवेश
R. P*Pाभय वेश
$3> िवPानC ने वधू वेश को भी इसी के साथ गणना कर वेश को U कार का बतलाया है।
वततु : गृहवेश तीन कार का ही माना गया है। विसsठ ने तीनC वेशC का ल:ण इस कार
" ;1) ;1) $3 - 4 )
- के अनसु ार गृहवेश होता है। विसsठ ने गृहवेश
क/ िविध बतलाते ह"ए िलखा है - शe ु को पीछे तथा सयू को वाम भाग म1 कर, uाणC तथा
पUू य प[ु षC का पजू न कर तोरण, ( , =: , िवतान आिद से ससु िUजत कर आगे
पणू क लश, Oी 4 गीत वा के साथ वेश करना चािहये।
गृह'वेशिनदqश %
आदौ सा3या काय\ नववातु 'वेशनम्
$!
!" िनदqश %
पौmणे धिनmठावथ वाणेषु वायंभुवAqषु िषूLरासु
अAीणचे !& च ितथाव1रGते च गृह'वेश:
शुभ: 'वेशो देवेCयशु=यो]aय
":
Kयकावारितिथषु 1रGतामाविज
ववीCया*येदुवण*वाmिमिथरोडुषु
वा राौ 'वेशो मंगल'द:
) !, धिनsठा,
!, &', तीनC उरा ये न:O हC, च*nमा :ीण न हो, +रता के अित+रत
ितिथ हो तो गृहवेश शभु होता है।
वृहपित एवं शe ु उदयी हC, , मगं लवार तथा +रता ितिथयC को छोड़ कर धिनsठा, पsु य,
) !, (#
,
!, िचOा, ;13 <, तीनC उरा न:O हो तो ऐसे अवसर पर िदन अथवा
रािO म1 वेश शभु होता है।
4.5
इस इकाई के अkययन के पचा!A 1) 51 $ सव िविदत $ $
1!1
पर;परा म1 मानव जीवन के ज*म काल से मृLयु $ पय *त Lये$ काय के िलए Uयोितष शाO Pारा
शभु ाशभु महु = का िवधान बतलाया गया है। शाO के ित आथा1 51-
(3 ;1)-;1)
जीवन म1 इन शभु ाशभु महु = को जानकर, समझकर ही _यवहार म1 योग करते हW, ऐसा _यवहार म1
) 5! अथा त् &', vवण, धिनsठा,
!, पनु व स,ु पsु य, हत, िचOा, वा!, (: ,
) !, उराफा`ग1ु , अिxनी, ;13 <, उराषाढ़ा इन न:OC म1, ( , $& >&?$ M
िदनC म1, #, ("13 ,
, क*या, कु;भ, मीन इन लjनC म1 vावण, J, माग शीष ,
,
काित क, फा`गनु इन मासC म1 गृहार;भ (वात)ु
3 &! अत: उत न:O, वार एवं मासC $&
kयान म1 रखकर ही गृहार;भ $1 -4, ऐसा शाO $ )
खड -3
अय
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8- lw;Z u{k= esa pkUnz u{k= ;fn 8 oka gks rks D;k Qy gksrk gS A
d- nkg [k- m}kl
x- ykHk ?k- Jh
9- lw;Z u{k= esa pkUnz u{k= ;fn 12 oka gks rks D;k Qy gksrk gS A
d- nkg [k- m}kl
x- ykHk ?k- y{eh
10- lw;Z u{k= esa pkUnz u{k= ;fn 26 oka gks rks D;k Qy gksrk gS A
d- y{eh [k- dyg
x- uk”k ?k- fLFkjr
1-7 lkjka”k
Lkukru /keZ esa Xk`gizos”k djuk ,d vR;Ur gh /kkfeZd vkSj ekaxfyd d`R; ekuk tkrk gSA
x`gizos”k gsrq “kkL=ksa esa vusd izdkj dh O;oLFkk, dky “kqf) dks ysdj crkbZ xbZ gSA
1- d
2- [k
3- x
4- x
5- [k
2.4.2.1
/ ,
ि* A
गृह वे
म1 सबसे महLवपणू प: है िक कौन कौन से सौर मासC म1 या कौन कौन से
चा*nमासC म1 गृहवेष करना चािहए । इस िनण य हेतु षाMकार कहते हW िक सौर मान से उरायण के
सयू म1 गृह वेष करना चािहए । िविदत है िक मकर से ार;भ होकर िमथनु ा*त तक का उरायण
होता है अथा त् आधिु नक मान से हम देख1 तो 14 51
) 15 जल ु ाई तक का काल उरायण
उराखड मु त िवविवालय 145
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
सं5क होता है । अतः सौर मान से इसी समय म1 गृहवेष करना चािहए । दि:णायन म1 भी गृहवेष
का महु =त होता है िक*तु वह के वल जीणा िद गृह हेतु य\
ु होता है । इसके अित+र\ इ*हh
कालखडC म1 यिद चा*nमास क/ षिु Y ाf होती हो तभी यह सौर मान Eा है अ*यथा नहh । इसी
कार ग[ ु एवं षe
ु के वृYLव, अत एवं बा`यLव म1 तथा *यनू ािधमास म1, ध*वक म1 गृहवेष नहh
$1 -4
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अ,यास न - 1
1. #वे
िकतन1 कार का होता है?
$. 1 . 2
. 3 T. 4
3.या गृहवामी के ज*मरािष और ज*मलjन से उपचय थान का लjन गृहवेष म1 Eहण करना
चािहए । हां /नहh
5. गृहवेष हेतु चयिनत न:O पापEह वेध से रिहत होना चािहए। सLय/असLय
3 jk 10 lw
1 12
4 2 11 cq]’kq
12 1 9 ’k]c`
pa ds
11
5 2 8 ea
cq]’kq
6 8 ea 10 3 5 7
lw jk
7 9 ’k]c` ds 4 6
# jन म1 चतथु भाव तो
Y3 है िक*तु अ]म भाव
Y 3 नहh है । अतः यह लjन गृहवे
हेतु दोषद है ।
कु;भ लjन म1 चतथु एवं अ]म भाव दोनC षY ु है । अतः कु;भ लjन गृहवेष हेतु सवपय\ ु है ।
लjनC का समय थान के अनुसार बदलता रहता है । वाराणसी समयानसु ार कु;भ लjन सुबह 08:25
) 09:56 तक रहेगा । अतः इसी समय म1 गृहवेष करना षाM स;मत रहेगा । इसी कार सव O
लjनािद का षोधन करना चािहए ।
यह कु;भ लjन गृहवामी अिभषेक क/ ज*म रािष मेष तथा ज*म लjन िसंह से अ]म सं5क नहh है ।
;!8 $3;भ लjन अिभषेक के गृहवेष हेतु सव था उपय\ ु है ।
भाव षिु Y के पsचात् Eहषिु Y देखते है । पवू किथत Eहषिु Y तो पणू [प से कु;भ लjन म1 नहh बन
रही है तथािप के *nभाव म1 षeु एवं बधु है आय भाव म1 षभु ाषभु दोनC Eह है । अतः Eह षिु Y
सामा*य [प से ाf हो रही है । ऐसे समय म1 िकया गया गृहवेष सौभाjय एवं समृिY को देन1 वाला
होगा । इसी कार सव O गृहवेष हेतु षाMो\ कालषिु Y देखी जाती है ।
अ,यास न - 2
6. या पsु य न:O मे नतू न गृहवे
$ 5! ? हां/नहh
2.9
उराखड मु त िवविवालय 155
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
नतू न गृहवे
)!3
Y 3 तम महु = $
&धन करना बह"त ही किठन एवं जिटल काय है
योिक काल क/ दीघ तम ईकाई से लेकर सू मतम ईकाई का अवलोकन करना सरल काय नहh है ।
गृहवे
िद महु = जो पंचांगC म1 िदए जाते हW वे सभी उ\ िसYा*तC पर ही आिvत होते हW । कुछ
पंचांगC म1 गृहवे
िद महु = अLय*त
Y 3 होते हW तथा कुछ पंचांगC म1 गृहवे
िद महु =
Y
3 होते
हW। अतः यिद पच ं ागं से गृहवे
िद महु = देखना हो तो पवू \ कहे गए सभी िसYा*तC का अनु योग
करके ही िकसी ]ा को महु = देना चािहए । पंचांगC म1 ज*मरािष और लjन से उपचय लjन क/
ि3 Y
एवं अ]म लjन क/ षिु Y नहh होती है । अतः इसका िच*तन दैव5 को वयं करना चािहए । इसके
अित+र\ भी कुछ और तयC का िवचार गृहवे
)!3 $ 5! 5
$ ' ) $) [&
म1 िदया गया है । अतः इस ईकाई म1 द सभी प:C का अवलोकन करन1 के पचात् ही गृहवे
)!3 महु = $
&<1 $1 -4
2.10 पारभािषक &दावली
(< -
(
$ &<$
! - माघ मास का प+रचायक है ।
Pाःथ - Pार न:O का बोधक है ।
9@3 - न:O का प+रचायक है ।
9- - 3,6,10 4 11 भावC को उपचय कहते हW ।
माग - माग
ष मास का बोधक है ।
उजा - काित क मास का &<$
इUय - बृहपित का बोधक है तथा पsु य न:O का प+रचायक है।
;1 - वाती न:O का बोधक है ।
- धिनRा न:O का बोधक है ।
िOकोण - 5 4 9 भावC को िOकोण कहते हW ।
के *n - 1, 4, 7, 10 भावC को के *n कहते हW ।
अ;बु - चतथु भाव को अ;बु कहते है ।
र* - अ]म भाव क/ सं5ा र* है ।
श - अमावया का बोधक है ।
- ( $&
) 51 5!
+र\ा ितिथ - चतथु , नवमी एवं चतदु
ितिथयां +र\ा ितिथयां होती हW ।
उराखड मु त िवविवालय 156
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
2.14 िनबधा9मक न
1. नतू न गृहवे
और जीणा िद गृहवेशC म1 अ*तरC क/ _याtया क/िजए ।
2. नतू न गृहवे
म1 $.1 $.1
) (
,न:O,,ितिथ Eा है? इस िवषय पर लघु िनब*ध
4
3. गृहवे
म1 लjन
&<1 4
ि3 Y तथा Eह
ि3 Y का िवचार
Mो\ pि] से क/िजए
4. अपनी वे&छा से िकसी एक गृहवे
का महु = शोधन क/िजए ।
3-1 izLrkouk
3-2 mn~ns”;
3-3 o`"k okLrq pdz ifjp;
3-4 x`gkjEHk esa vfHkftn~ Uk{k= dh mikns;rk
3-5 o`"k okLrq pdz dk Lo:Ik ,oa mnkgj.k
3-6 o`"k okLrq Qy cks/kd pdz
3-7 o`"k okLrq pdz dh ljyre fof/k
3-8 ljyre cks/kd pdz
3-9 lkjka”k
3-10 ikfjHkkf"kd ’kCnkoyh
3-11 vH;kl iz”uksa ds mRRkj
3-12 lUnHkZ xzUFk lwph
3-13 lgk;d ikB~;lkexzh
3-14 fucU/kkRed iz”u
3-2 mn~ns”;
izLrqr bdkbZ ds v/;;u ds ckn vki
Xk`gkjEHk esa o`"k okLrq pdz ds egRo ds ckjs esa tku ldsaxs A
Ok`"k okLrq pdz eqgwRRkZ la’kks/ku djus esa n{k gks ldsaxs A
fdl izdkj ljy :Ik esa o`"k okLrq pdz dk ifjKku fd;k tkrk gS blds fo"k;
esa tku ldsaxs A
buds ’kqHkk’kqHkRo Qyksa ds ckjs esa tku ldsaxs A
vfHkftn~ Uk{k= ds okLrfod Lo:Ik ds ckjs esa tku ldsaxs A
3 Uk{k=
nkg
3 u{k=
Jh
3 3 Uk{k=
ihMk
u{k=
Ukk’k
4u{k=
ykHk
4u{k=
4u{k= ’kwU;
fLFkjrk 4u{k=
nfjnzrk
mnkgj.k &
Xk`gkjEHk fdu fdu eklkfn esa fd;k tkuk pkfg, bl fo"k; esa vkiusa iwoZ ds ikBksa esa i<k
gS A ;gka ij mu lHkh dk eqgwRRkZ ’kks/ku u djds dsoy o`"k okLrq pdz dk gh ’kks/ku
fd;k tk jgk gS A
tSls fdlh Hkw[k.M Lokeh dks fodze laor~ 2076 ’kd 1941 QkYxqu ekl] d`".k i{k i{k]
frfFk iapeh] xq:okj] gLr u{k=] rnuqlkj 13 Qjojh 2020 dks x`gkjEHk vHkh"V gS A
loZizFke ge bl frfFk ds fnu o`"k okLrq pdz dh ’kqf) ns[ksaxs A ;fn bl fnu o`"k okLrq
pdz dh ’kqf) izkIr gksxh rHkh x`gkjEHk dk dk;Z fl) gks ldsxk A ,rnFkZ 13 Qjojh dks
lw;Z vkSj pUnz dh u{k= fLFkfr dk voyksdu djsaxs A 13 Qjojh dks lw;Z /kfu"Bk u{k=
ij gS A /kfu"Bk u{k= ij lw;Z 6 Qjojh jkf= ls gh vkjEHk gks pqdk gS A 1 u{k= ij
lw;Z yxHkx 12 fnuksa rd jgrk gS vr% 20 Qjojh rd rks lw;Z /kfu"Bk u{k= ij gh
jgsxk A
lw;Z u{k= fLFkfr tku ysusa ds Ik’pkr~ pUnz u{k= dh fLFkfr dk Kku djuk pkfg, A
vr% iapkax esa voyksdu djusa ij 13 Qjojh dks pUnzek gLr u{k= ij fLFkfr gS tks
fnu ds 02%05 rd jgsxk A blds ckjn fp=k u{k= izkjEHk gks tk,xk A
o`"k okLrq pdz ds ’kks/ku ds fy, lw;kZf/kf"Br u{k= ls pUnzkf/k"Br u{k= rd lkfHkftn~
x.kuk djsaxs A x.kuk ds dze esa /kfu"Bk u{k= izFke gqvk A fnrh; ’krfHk"kk gqvk A blh
izdkj x.kuk djusa ij gLr u{k= dh la[;k 18 gqbZ A
उराखड मु त िवविवालय 165
गृह िनमा ण िववेचन DVS-103
vc ’kqHkk’kqHk Qy ifjKku gsrq o`"k okLrq pdz esa ns[ksaxsa fd fdl vax esa ;g la[;k gS rFkk
mldk Qy D;k gS A
o`"k okLrq pdz voyksdu djusa ij ;g Kkr gqvk fd 18 oka u{k= n{k dq{k esa gqvk rFkk
mldk Qy ykHk gS A vr% 13 Qjojh dks x`gkjEHk djuk mRRke jgsxk A gLr u{k= dks
x`gkjEHk esa xzg.k fd;k tkrk gS A vr% o`"k okLrq pdz ’kqf)r x`gkjEHkksfnr Uk{k= esa gh
x`gkjEHk djuk ’kkL= n`f"V ls vuqdwy gksrk gS A blh izdkj ls o`"k okLrq pdz dh ’kqf)
x`gkjEHk] nsoky;kjEHk] rMkxkjEHk] mioukjEHk] xzkekjEHk] izklknkjEHk] uxjkjEHk bR;kfn esa
ns[kuk pkfg, A
7- Xk`gkjEHk esa lw;Z u{k= ls 25oka pkUnz u{k= ’kqHk gksrk gS\ lR;@vlR;
8- Ok`"k okLrq pdz esa ;fn eq[k esa pkUnz u{k= gS rks D;k Qy gksrk gS\
d- YkkHk [k- Lokeh uk’k
x- fu/kZurk ?k- ihMk
10- Ok`"k okLrq pdz esa ;fn ’kh"kZ esa pkUnz u{k= gS rks D;k Qy gksrk gS\
d- vfXu Hk; [k- ‘’kwU;
x- fLFkjrk ?k- Jh
3-9 lkjka”k
Xk`gkjEHk ds izdj.k esa o`"k okLrq pdz dk fof’k"Vre LFkku gS A bl pdz ds vuqlkj tc
’kqf) curh gS rHkh x`gkfn dk;Z dk izkjEHk djuk Js"Bre ekuk tkrk gS A x`gkjEHk ds
izk;% ftrusa Hkh eqgwRRkZ iapkaxks esa fn, jgrs gSa os lHkh o`"k pdz ls ’kq) gksrs gSa A lw;Z vkSj
pUnzz ds fof’k"V ;ksx ls fufeZr ;g o`"k okLrq pdz x`gkjEHk le;d vkdk’kh; fof’k"V
jke & T;ksfr"k esa ’kCnksa ls la[;k Kkr djusa dh izkphu fof/k gS A iqjk.kksa ds vuqlkj
Hkxoku~ Jh jke] ij’kqjke vkSj cyjke ;s rhu uke jke ls cksf/kr gksrs gSa A vr% T;ksfr"k
esa jke ’kCn ls 3 dk cks/k fd;k tkrk gS A
v’o & lw;Z ds 7 ?kksMs gSa] tks Hkxoku~ lw;Z ds jFk dks [khaprs gSa A vr% v’o ’kCn ls 7
dk cks/k fd;k tkrk gS A
:nz & Hkxoku~ ‘’kadj dks :nz dgrs gSa A ftuds 11 vorkj iqjk.kkas esa izfl) gSa vr%
T;ksfr"k esa :nz ‘’kCn ls 11 dh la[;k dks xzg.k djrs gSa A
fnd~ & iwokZfn 10 fn’kk;sa gksrh gSa A iwoZ] if’pe~] mRRkj] nf{k.k ;s pkj eq[; fn’kk, gksrh
gSa rFkk pkj dks.k fn’kk;as vfXu dks.k] uS_R; dks.k] ok;O; dks.k vkSj bZ’kku dks.k rFkk
mij vkSj uhps dh fn’kk;sa A dqy feykdj 10 fn’kk;sa gksrh gSa A vr% fnd~ ’kCn ls 10
dk cks/k djuk pkfg, A
Hkkr~ & Hk ’kCn u{k= dk cks/kd gS rFkk bldk iapeh ,dopu esa Hkkr~ :Ik curk gS
ftldk vFkZ gksrk gS u{k= ls A
4-1 izLrkouk
4-2 mn~ns”;
4-3 okLrqiwtu dh vko”;drk
4-4 okLrqiwtu esa izeq[k nsokfn dk iwtufo/kku
4-5 “kkfUrikB ,oa ladYi rFkk fnx~ j{k.k
4-6 x.ks”kkfEcdkfn iwtu ,oa mipkj i)fr
4-7 ,dk”khfrin e.My okLrqiq:"k iwtu
4-8 lkjka”k
4-9 gou]xzgiwtu]cfynku]cfy vkSj lekiu
4-10 ikfjHkkf"kd “kCnkoyh
4-11 vH;kl iz”uksa ds mRRkj
4-12 lUnHkZ xzUFk lwph
4-13 lgk;d ikB~;lkexzh
4-14 fucU/kkRed iz”u
4-2 mn~ns”;
izLrqr bdkbZ ds v/;;u ds ckn vki ---
tku ldsaxs fd x`gkjEHkkfn esa okLrqiwtUk dk D;k egRRo gSA
tku ldsaxs fd okLrqiwtu fdl izdkj ls gksrk gSA
le> ldsaxs fd okLrqiwtu dh oSfnd iz)fr fdl izdkj gksrh gSA
tku ldsaxs fd fofo/k nsorkvksa dh LFkkiuk fdl izdkj ls dh tkrh gSA
le> ldsaxs fd oSfnd fof/k ls lkaxksikax iwtu fdl izdkj gksrk gSA
4-3 okLrqiwtu dh vko”;drk
euq"; ds mij tUe ek= gksusa ls gh rhu izeq[k izdkj ds _.kksa dk oa”kkuqdze
IkzkIr gksrk gSA ;s rhu _.k gSa nso&_f"k vkSj fir`A _.k dk rkRi;Z ;g gksrk gS fd gesa
mldks pqdkuk gS vkSj ;g gekjs mij tUe ls gh gksrk gSA pqdkus dk rkRi;Z ;g gS fd
gesa muds izfr viuh fu"Bk dks fofo/k vk;kstuksa }kjk iznf”kZr djukA blh dze esa nso
_.k gekjs mij tUe ls gh gksrk gS mls m_.k gksusa ds fy, loZnk gh leLr
blh "kksM”kksipkj i)fr ls lHkh nsorkvksa dk iwtu fd;k tkrk gSA mnkg.k :Ik esa
loZizFke nsorkvksa dh eU=ksa ls iwaxhQy bR;kfn ij izk.k izfr"Bk ¼vkokgu½ dh tkrh gSA
blds ckn mudks iSj /kwykus ds mn~ns”; ls ik| gsrq ty fn;k tkrk gSA iqu% mudks
tykfn ls v?;Z fn;k tkrk gSA rr% ty bR;kfn nsdj vkpeu djk;k tkrk gSA iqu%
Luku gsrq vusd izdkj ds inkFkksZ nw/k] ngh] ?kh] e/kq] ’kDdj ls Luku djk;k tkrk gSA
mlds ckn oL= vkSj tusÅ iguk;k tkrk gSA fQj pUnu yxkdj Qwy iguk;k tkrk
gSA iqu% /kwi vkSj nhi fn[kkdj rkEcwy lfgr Hkksx yxk;k tkrk gSA iqu% iznf{k.kk djusa
ds ckn vUr esa vkjrh dh tkrh gS rFkk iq"ikatfy nh tkrh gSA ;gh i)fr lHkh
x.ks’kkfEcdkn nsoksa esa viukbZ tkrh gSA
;fn "kksM’kksipkj i)fr ls iwtu djuk fofgr u gks rks iapksipkj iwtu Hkh fd;k tk
ldrk gSA iapksipkj iwtu esa izfr"Bk ds ckn xU/k] iq"i] /kwi] nhi vkSj uSos| ls nsorkvksa
dk lepZu fd;k tkrk gSA
5- x`gizos’kkfn esa okLrqiq:"k dk iz/kku :Ik ls iwtu ugha gksrk gSA lR;@vlR;
lqjFkk lqHknzk uUnk lqefr lR;k izk.kokfguh fo’kkyk dkUrk ;’kksorh ’kkUrk
bMk
fo’kksdk
Tokyk
Tk;k
fiz;k
foeyk
fo/k`fr
y{eh
lqozrk
fgj.;k
js[kk fLFkfr lHkh 20 nsorkvksa dh izfr"Bk ds ckn mudk iapksipkj ls iwtu fd;k tkrk
gS A ;g lHkh iwtu ds ckn okLrqe.MyLFk nsorkvksa dk iwtu fd;k tkrk gS A iwtu dh
i)fr iwoZor~ gh gS A
xzgLFkkiuk ds ckn gou fd;k tkrk gS A gou esa loZizFke uokgqfr iznku dh tkrh gS A
mlds Ik’pkr~ x.ks’kkfn vla[;kr :nz Ik;ZUr lHkh nsorkvksa ds fufeRRk vkgqfr iznku dh
tkrh gS A vkgqfr esa ’kkdY; fuekZ.k gsrq fry] r.Mqy] ;o]’kdZjk ] ?k`r bR;kfn gouh;
inkFkksZ dks iz;ksx esa yk;k tkrk gS A blds ckn eq[; :i ls okLrq nsork ds fufeRRk
gou 108 la[;d gou v/kksfyf[kr eU= ls fd;k tkrk gS A
vksa okLrks"irs izfrtkuhg~;LekULokos’kks vueh oks Hkoku% A
;RRosegs izfr rUUkks tq"kLo ’kUUkks Hko f}ins ’ka prq"ins Lokgk AA
blds ckn Hkh okLrq nsork ds vusd eU=ksa ls vkgqfr iznku dh tkrh gS A vkgqfr lekIr
gksusa ds Ik’pkr~ vfXu iwtu djus ds ckn fLo"Vd`r gkse fd;k tkrk gS vFkkZr~ tks
gouh; lkexzh ’ks"k jg tkrh gS mls vfXu esa lefiZr fd;k tkrk gS A iqu% ?k`r dh
uokgqfr djds lekiu fd;k tkrk gS A
gou ds ckn lHkh nsorkvksa ds fy, cfynku fn;k tkrk gS A cfynku dk vFkZ gksrk gS
mudh fiz; oLrqvksa dks lefiZr djuk A loZizFke bUnzkfn tks n’k fnDiky gS muds fy,
nhi] nf/k] mMn vkSj v{kr rFkk ty dks lefiZr fd;k tkrk gS A lHkh ds fy, i`Fkd~
i`Fkd~ iwokZfn n’kks fn’kkvksa esa leU=d cfynku fn;k tkrk gS vkSj izkFkZuk dh tkrh gS fd
gs ifjokj lfgr ] vk;q/k ;qDr] vkSj ’kfDr ;qDr n’k fnDikyksa esjsa ifjOkkj ds fy,
dY;k.k dkjh gksa vkSj ’kkfUrdkjd cusa A izkFkZuk bl izdkj gS &
4-9 lkjka”k
Xk`gfuekZ.k vkjEHk esa rFkk x`gkjEHkkfn esa x`g ds vf/kf"Br nsork okLrqiq:"k dk iwtu
fd;k tkrk gSA okLrqiwtu djusa ls x`g esa lq[k vkSj le`f) lnk cuh jgrh gS rFkk ?kj
fuR; mUufr gksrh jgrh gSA ;fn x`gkjEHkkfn esa okLrqiwtu u fd;k tk, rks x`g esa vusd
izdkj ds nq%[kksa dk lkeuk djuk iMrk gS rFkk x`g esa loZnk v’kkfUr jgrh gSA oSfnd
i)fr ls fof/kor~ okLrqiwtu djuk vkt ds le; esa nqYkZHk lk izrhr gksrk gS rFkkfi
dqN ikjEifjd vkpk;Z oSfnd fof/k;ksa ls lEkLr vk;kstuksa dks djokrs gSaA oLrqr% bl
ikB esa cgqr lh oSfnd fof/k;ksa dk lekos”k ugha fd;k x;k gS D;ksfd ;g cgqr cMk vkSj
uhjl ikB gks tkrk rFkkfi tks eq[; i)fr;ka gS okLrqiwtu dh] mu lHkh dks yxHkx
crk fn;k x;k gSA oSfnd i)fr ls ;fn vkidks tkuuk gS rks fdlh lq;ksX; czkg~e.k ds
ikl tkdj gh vkidks Kku izkIr gksrk gksxkA D;ksfd ;g Jqfr gS vFkkZr~ Jo.k djusa ls
vkusa okyh fo|k gSA deZdk.M rks iw.kZ :Ik ls izk;ksfxd i{k ij vk/kkfjr fo/kk gS vr%
dsoy v/;;u dj ysusa ls ;k i< ysusa ls og fo"k; Bhd ls le> esa ugha vk ldsxkA
vr% okLrq “kkfUr ds fy, ;k fQj okLrqiwtu djusa ds fy, lq;ksX; foiz dh egrh
vko”;drk gksrh gSA ;fn oSfnd i)fr ls okLrqiwtu fd;k tk, rks vkthou Ik;ZUr ml
x`g esa lq[k vkSj le`f) cuh jgrh gS rFkk x`g ls lHkh lnL;ksa dks mUUk;u gksrk gSA
x`gfuekZ.k gksusa ds ckn rFkk x`gizos’k gksusa ds ckn Hkh le; le; ij okLrq “kkfUr djkuh
pkfg,A bl dkj.k ls gh izkFkZuk dh tkrh gS okLrqiq:"k dh &
iwftrks·fl e;k okLrks gksek|SjpZuS% ”kqHkS%A
izlhn ikfg fo”os”k nsfg esa x`gta lq[ke~AA
okLrqnso ueLrs·Lrq Hkw’k;~;kfHkjr izHkksA
en~x`ga /ku/kkU;kfnle`)a dq: loZnkAA
izkFkZ;kehR;ga nso “kkyk;k vf/kiLrq ;%A
izk;f”pRRkizlaxsu x`gkFksZ ;Ue;k d`re~AA
4-10 ikfjHkkf"kd “kCnkoyh
fnx~j{k.k & iwtu gsrq fn”kkvkas dk vfHkefU=r fd;k tkrk gS] ftlls Hkwrizsrkfn ml ;K
dk fo/oal u dj ldsaA