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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL-204

उराखड मु िविवालय
मानिवक िवाशाखा
तुलनामक एवं भारतीय सािहय

उराखंड मु िविवालय,हानी
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL-204
िवशेष सिमित
ो0 एच0पी0 शु ला ो0 स यकाम
िनदेशक, मानिवक िवाशाखा, िहदी िवभाग
उराखड म ु िव िवालय, इ"न,ू नई िद%ली
ह%&ानी, नैनीताल
ो.आर.सी.शमा'
िहदी िवभाग
अलीगढ़ िव िवालय,अलीगढ़
डा0 शशांक शु ला डा0 राजे+ कै ड़ा
अिस/ट1ट ोफे सर, िहदी िवभाग एके डेिमक एसोिसएट
उराखड म ु िव िवालय, िहदी िवभाग,
ह%&ानी, नैनीताल उराखड म ु िव िवालय,
ह%&ानी, नैनीताल
पाठ्यम समवयक, सयं ोजन एवं संपादन
डा0 शशांक शु ला डा0 राजे+ कै ड़ा
अिस/ट1ट ोफे सर, िहदी िवभाग, एके डेिमक एसोिसएट
उराखड म ु िव िवालय, िहदी िवभाग,
ह%&ानी, नैनीताल उराखड म ु िव िवालय,
ह%&ानी, नैनीताल

उराखंड मु िविवालय,हानी
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL-204
इकाई लेखक इकाई संया
डा0 शशांक शु ला 1,2,3,4,5
अिस/ट1ट ोफे सर, िहदी िवभाग,
उराखड मु िव िवालय, ह%&ानी, नैनीताल
डा. सषु मा देवी 6,7
िहदी िवभाग, िववेकविध'नी महािवालय
जामबाग हैदराबाद
डा0 हेमच+ दबु े 8,9
िहदं ी िवभाग,रा./ना.महािवालय ग6ड़
बागे र, उराखडं
डा0 नागे+ साद 7यानी 10,11
उप-िनदेशक, उराखडं भाषा स/ं थान
देहरादनू
डा0 राजे+ िसहं टोक 12
अ7य: िहदी िवभाग
ए.एस.कॉलेज खना, पंजाब
डा.मीता शमा' 13
अ7य:,िहदी िवभाग
वध'मान महावीर खल ु ा िव िवालय, कोटा ,राज/थान
कापीराइट@उराख ड मु" िव#िव$ालय
सं/करण: 2014
सीिमत िवतरण हेतु पवू ' काशन ित
काशकः उराखड म ु िव िवालय, ह%&ानी ,नैनीताल -263139
म+ु क : ीिमयर िंिटंग ेस, जयपरु
उराखड म ु िव िवालय, ह%&ानी ,नैनीताल -263139
ISBN - 978-93-84632-74-8

उराखंड मु िविवालय,हानी
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL-204
ख ड 1 – तुलनामक सािहय पृठ संया
इकाई 1 तुलनामक सािहय क अवधारणा 1-9
इकाई 2 तुलनामक अययन पितयाँ 10-18
ख ड 2 – भारतीय सािहय क अवधारणा पृ ठ स
ं या
इकाई 3 भारतीय सािहय क अवधारणा 19-26
इकाई 4 भारतीय सािहय क यापकता 27-38
इकाई 5 भारतीय सािहय का इितहास 39-52
ख ड 3 – भारतीय सािहय : !ायोिगक उप%म पृ& सं या
इकाई 6 तेलगु ु सािहय का इितहास एवं प रचय (1) 53-88
इकाई 7 तेलगु ु सािहय का इितहास एवं प रचय (2) 89-115
इकाई 8 कुमाऊँ नी लोक सािहय का इितहास एवं $व%प 116-133
इकाई 9 कुमाऊँ नी लोकगीत: इितहास, $व%प एवं सािहय 134-151
इकाई 10 गढ़वाली लोक सािहय का इितहास एवं $व%प 152-166
इकाई 11 गढ़वाली लोक सािहय का वत'मान $व%प एवं सम$याएँ 167-181
इकाई 12 पजं ाबी सािहय का इितहास एवं प रचय 182-208
इकाई 13 राज$थानी सािहय का इितहास एवं प रचय 209-238

उराखंड मु िविवालय,हानी
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई 1 तुलनामक सािहय क अवधारणा
इकाई क परे खा
1.1 तावना
1.2 पाठ का उेय
1.3 तल ु नामक सािहय क अवधारणा
1.3.1 तल ु नामक सािहय: प रभाषा
1.3.2 तल ु नामक सािहय: वप
1.4 तल ु नामक सािहय का इितहास
1.5 तल ु नामक सािहय क िवशेषता / मह#व
1.6 तल ु नामक सािहय: सां कृ ितक काय&
1.7 सारांश
1.8 श(दावली
1.9 अ+यास ,- के उ.र
1.10 संदभ& /0थ सचू ी
1.11 सहायक/उपयोगी पाठ्य साम/ी
1.12 िनबंधामक ,

उतराखड मु त िवविवालय 1
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1.1 तावना
तल
ु नामक पित सािहय और अकादिमक जगत क बह!चिलत पित है।
तलु नामक पित के कारण सािहय के अतं ज(गत और सािहय जगत दोन* का िव+तार होता है।
तल ु नामक सािहय क अवधारणा पर िलखते हए डॉ. इ/0नाथ चौधरु ी ने िलखा है, तल ु नामक
सािहय अं4ेजी के ‘क5पैरेिटव िलटरे चर’ का िह/दी अनवु ाद है । एक +वत7ं िवाशाखा के 9प
म: िवेदेश के िविभ/न िव<िवालय* म: इसे अ=ययन- अ=यापन के काय( को आजकल िवशेष
मह?व िदया जा रहा है। तल ु नामक सािहय का सव(!थम !योग मै@यम ऑन(Bड ने सन् 1848
म: अपने एक प7 म: सबसे पहले िकया था। व+ततु ः तल ु नामक सािहय म: दो देश, दो भाषा या
दो रचनाकार* क कृ ितय* को एक दसू रे के सापेF रखकर देखाजाता है। तल ु नामक पित का
मल ू उGेय सां+कृ ितक पHर!ेIय म: एक दसू रे को रखकर नई अथ(वKा क तलाश करना होता है।
इस ढंग से तल ु नामक पित साधन है, सा=य नहM। हैनरी एच.एच. रे माक( ने भी तुलनामक
सािहय क िवशेष ताओ ं के +पO िकया है। उनके अनसु ार सािहय क िवशेष त?व* को +पO
िकया है। उनके अनसु ार एकक राPQ* क पHरिध से परे दसू रे राPQ* के सािहय के साथ
तल ु नामक अ=ययन है तथा यह अ=ययन कला, इितहास, समाज िवRान, धम(शाS आिद Rान
के िविभ/न Fे7* के आपसी सबं धं * का Rान है । रे माक( ने दो राPQ के सदं भ( म: तल ु नामक
सािहय क उपयोिगता िनधा(Hरत क है। िक/तु यह एक राPQ, दो भाषा या एक ही भाषा के दो
किवय*/लेखक* पर भी लागू हो सकती है। Tयापक 9प से दो िवधाओ ं क कृ ितय* के वगUकरण
को भी इसम: समेट िलया जाता है।
तल ु नामक सािहय के इितहास के संदभ( म: यिद हम बात कर: तो एक अनुशासन के 9प म:
इसका िवकास पिVम म:, आधिु नक काल म: हआ। हाँलािक यह सािहियक !वृिK !ाचीन काल
से ही िमलनी शु9 हो जाती है।
1.2 पाठ का उेय
‘तल
ु नामक एवं भारतीय सािहय’ संबंधी पाठ्य प+ु तक क यह !थम इकाई है। इस इकाई के
अ=ययन से आप जान:गे िक-
• तलु नामक शZद के मल ू अथ( से पHरिचत हो सक: गे।
• तल ु नामक सािहय क अवधारणा से पHरिचत हो सक: गे।
• तल ु नामक सािहय पर िविभ/न िव[ान* के मत* को जान सक: गे।
• तल ु नामक सािहय के इितहास का पHरचय !ा\ कर सक: गे।
• तल ु नामक सािहय क िवशेष ता से पHरिचत हो सक: गे।
• तल ु नामक सािहय और सं+कृ ित के अतं स(5ब/ध को समझ सक: गे।

उतराखड मु त िवविवालय 2
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1.3 तुलनामक सािहय क अवधारणा
1.3.1 तल ु नामक सािहयः परभाषा
Rान के अ/य अनश ु ासन* के समान तल ु नामक सािहय क भी या कोई मक ु 5मल
पHरभाषा दी जा सकती है? हर Tयि_, अ=येता अपनी `िO को पHरभाषा म: जोड़ देता है, इसिलए
हर पHरभाषाएँ िभ/न-िभ/न +व9प को !ा\ हो जाती है। यहाँ हम भारतीय और पाVाय कुछ
!मख ु िव[ान* क पHरभाषाओ ं के सदं भ( म: तल ु नामक सािहय को समझने का !यास कर: ग:।
लाइव +कॉट के अनसु ार- ‘‘ तल ु नामक सािहय म: िविभ/न भाषाओ ं म: िलिखत सािहय*
अथवा उनके संिF\ घटक* क सािहियक तल ु ना होती है और यही उसक आधार तव है। इस
पHरभाषा के अनसु ार सािहियक !ितमान* के आधार पर सािहय क तल ु ना क जाती है। रे माक
ने तल ु नामकता को वह सांeेिषक `िO बताया है िजसके [ारा भौगोिलक एवं जातीय +तर पर
सािहय का अनसु ंधानामक िवeे षण संभव हो पाता है। इस पHरभाषा म: दो िविभ/न सं+कृ ितय*
के +तर पर एक स+ं कृ ित दसू रे से िकस !कार िभ/न है और उसके कारण या हf। इसी !कार एक
पHरभाषा !ो. लेन कपरू क है। उनके अनसु ार तल ु नामक सािहय, सािहय के तुलनामक
अ=ययन क पंि_ अिभTयि_ है। यह पHरभाषा भी अपया(\ व अधूरी है, य*िक इससे यह +पO
नहM होता िक तल ु ना िकस 9प म: और िकनके बीच ? सािहय क तल ु ना के मापदड या
ह*गे? यह भी +पO नहM है। हाँलािक एक पHरभाषा म: यह संभव भी नहM है। सैाि/तक 9प से
तल ु नामक सािहय के कुछ मापदड है। जैसे एक ही भाषा म: िलिखत दो किवय*/लेखक* क
तलु ना , एक ही सं+कृ ित क दो भाषाओ ं के सािहय क तल ु ना या दो स+ं कृ ितय* क दो
भाषाओ ं या सािहय क तुलना ..... इसम: दसू री व तीसरी ि+थित ही तल ु नामक सािहय के
िलए उपयोगी है। डॉ. इ/0नाथ चौधरु ी ने अपनी पु+तक ‘तल ु नामक सािहय’ भारतीय पHर!ेF’
म: उलHरच वाइन+टाइन क प+ु तक का संदभ( िकया है, िजसम: तल ु नामक सािहय क
पHरभाषाओ ं को दो वगg म: बाँटा गया है। (क) वग( म: पॉल वा िटगहैम, hयाँ-माHर कारे तथा
माHरओस iां+वास गईु याद( जैसे िव[ान हf। इस वग( क पHरभाषाओ ं के अनसु ार तल ु नामक
सािहय को सौ/दय(मूलक !ितमान* के आधार पर नहM बिBक ऐितहािसक अनश ु ासन के 9प म:
देखने का !यास िकया गया है। (ख) वग( म: रे ने वेलेक, रे माक, ऑि+टन वारे न तथा !ावर जैसे
िव[ान हf । िज/ह*ने तल ु नामक सािहय के अ=ययन को ऐितहािसक अनुशासन* से इतर
काTयशाSीय या सौ/दय(शाSीय !ितमान* के आधार पर देखने क पहल क है।
1.3.2 तुलनामक सािहय: वप
तलु नामक सािहय से संबिं ध पHरभाषाओ ं का आपे अ=ययन िकया। पHरभाषाओ ं क
पर5परा के kम म: आपने देखा िक तुलनामक सािहय म: िविभ/न भाषा एंव सं+कृ ित को
ऐितहािसक एवं सािहियक !ितमान* के आधार पर जाँचा जाता है और उस बहाने दो भाषा -
स+ं कृ ित का अ=ययन िकया जाता है। इस !कार हम देखते हf िक तल ु नामक सािहय क िन5न
ि+थितयाँ !कट होती है।-

उतराखड मु त िवविवालय 3
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
तल
ु नामक सािहय
1. एक ही भाषा के अतं ग(त तल ु नामक अ=ययन
2. दो भाषा के अतं ग(त तल
ु नामक अ=ययन(एक सं+कृ ित)
3. दो भाषा के अतं ग(त तलु नामक अ=ययन (दो सं+कृ ित एक भाषा पHरवार)
4. दो भाषा के अतं ग(त तल ु नामक अ=ययन (दो स+ं कृ ित दो भाषा पHरवार)
इसी !कार तुलनामक सािहय क पHरभाषाओ ं को दो वगl म: Hर_ िवभ_ िकया गया है-

तल
ु नामक सािहय
(क) (ख)
ऐितहािसक अनुशासन सौ/दय(शाSीय अनुशासन
(पॉल वां िटगहैम, hयाँ-माHर कारे , (रे ने वेलेक, रे माक,
माHरओस iां+वास गइु याद() ऑि+टन वारे न, !ावर)
तल ु नामक सािहय क अवधारणा और +व9प पर mम इस कारण भी है य*िक एक
अनश ु ासन के 9प म: यह अपेFाकृ त नया है, और +पO 9प से इस पर कोई +पO राय नहM बन
पाई है। मोटे 9प म: सािहियक िब/द,ु सम+या को वैRािनक और िवeेषणमक ढंग से िवeेिषत
िकया जाता है। रे िवनाख ने तल ु नामक सािहय पर िटnपणी करते हए िलखा है- िविभ/न
सािहय* के अ/या/य !भाव से य_ ु शोध ही तल
ु नामक सािहय है। यह Fे7ीय भाषाओ ं से
लेकर अ/तरा(PQीय भाषा तक अपना +व9प 4हण कर चुका है। डॉ. इ/0नाथ चौथुरी ने
तल
ु नामक सािहय के +व9प पर िवचार करते हए इसके !मुख Fे7 िनधा(Hरत िकए हf-
1. काTयशाS या सािहय म: काTयशाSीय सौ/दय(मल ू क मूBय* का !योग और उनका
कलापरक िवeे षण ।
2. इसम: सािहियक आ/दोलन* का अ=ययचन एवं उनक मनोवैRािनक, बौिक एवं
शैली-वैRािनक !वृिK य* का अ=ययन .....।
3. सािहय म: अिभTय_ Tयि_व या अम(तू िवचारो के िविभ/न 9पा/तर* क िविभ/न
`िOय* से !योग एवं िवeेषण.....।
4. काTय 9प* का अ=ययन
5. सािहियक स5ब/ध* का अ=ययन।
अयास  1
क- सही / गलत म: उKर दीिजए।
1. तल
ु नामक सािहय अं4ेजी के ‘क5पैरिटव िलटरे चर’ का िह/दी अनवु ाद है।
2. तलु नामक सािहय का सव(!थम !योग मै@यू ऑन(Bड ने िकया।
3. तल ु नामक सािहय का मूल उGेय दो रचनाकार* क तल ु ना करना है।
4. लाइव +कॉट के अनसु ार तल ु नामक सािहय म: िविभ/न भाषाओ ं म: िलिखत
सािहय* अथवा उनके संिF\ घटक* क तल ु ना होती है।

उतराखड मु त िवविवालय 4
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5. तल ु नामक सािहय भारतीय पHर!ेIय’ प+ु तक के लेखक इ/0नाथ चौधुरी है।
ख - िटnपणी िलिखए।
1. तलु नामक सािहय क पHरभाषा
2. तल
ु नामक सािहय के Fे7।

1.4 तुलनामक सािहय का इितहास


तल
ु नामक सािहय के इितहास के !o पर यह समझना उिचत होगा िक सभी देश* म:
इसका िवकास अलग-अलग समय तथा िभ/न-िभ/न पHरि+थित म: हआ है। यहाँ हम !मुख 9प
से भारतीय सािहय के सदं भ( म: तल
ु नामक सािहय के इितहास क 9परे खा !+ततु करने का
!यास कर: ग।े
तल ु नामक सािहय क अवधारणा और िव< सािहय क अपधारणा का िनकट का स5ब/ध है।
इसे इस !कार भी समझ सकते हf िक गेटे के ‘वBड( िलटरे चर’ क पHरकBपना के बाद ही
तलु नामक सािहय और िव< सािहय म: भेद है। रे माक ने दोन* अनुशासन* का भेद +पO करते
हए िलखा है- तल ु नामक सािहय के िलए िकसी भी सािहियक कृ ित, लेखक, !वृिK या थीम
अथवा Rान के दसू रे Fे7* के साथ वा+तिवक तल ु ना आवयक है मगर इसके िवपरीत िव<
सािहय के अतं ग(त शे सपीयर, बाBजॉक, रवी/0नाथ टैगोर जैसे लेखक* क कृ ितय* को
शािमल कर लेते है। कहने का अथ( यह है िक िव< सािहय और तल ु नामक सािहय म: सा5यता
होते हए भी दोनो म: पया(\ अ/तर है। हाल
ं ािक रवी/0नाथ टैगोर ने 1907 म: तल
ु नामक सािहय
के िलए ‘िव< सािहय’ शZद का ही !योग िकया था। उनके तक( के अनसु ार - !येक कृ ित को
उसक संपणू ( इकाई म: देखना चािहए य*िक संपणू ( इकाई या मनPु य क शा<त सृजनशीलता क
पहचान िव< सािहय के [ारा ही हो सकती है।
जहाँ तक भारतीय तल ु नामक सािहय का !o है, उसक िवकास 17वी-18वM सदी म: िवशेष
तौर पर हआ। मै स मल ू र व िविलयम जो/स जैसे िव[ान* ने भारतीय सािहय का अनुवाद
योरोपीय भाषाओ ं म: िकया, िजससे तुलनामक सािहय क !वृिK को बल िमला। सन् 1753
म: राबट( लाउथ ने ‘ऑ सफोड( ले चस( ऑफ पोयQी’ म: िहqू किवता के साथ यनू ानी सािहय
क !वृिK को बल िमला। 19 वM शताZदी तक तल ु नामक सािहय क !वृिK को बल िमलने
लगा था। माइेकल मधसु दू न दK ने वाBमीिक, Tयास, कािलदास, होमर, विज(ल, दांत,े टेसो,
िमBटन.... जैसे सािहयकार* को एक -दसू रे के समाना/तर रख कर देखा है। अपने एक प7 म:
उ/ह*ने िलखा था िक यरू ोपीय नाटक यथाथ( , उदाK आवेग तथा वीरता को लेकर चलते हf तो
भारतीय नाटक !ेम और कोमलता िलए हए हf...........। यह अपने ढंग का पहला भारतीय
!यास था। हांलािक माइके ल ने इसे कोई सैाि/तक +व9प नहM !दान िकया, लेिकन पर5परा
क `िO से उ/ह*ने एक !वत(न अवय िकया है। इसी kम म: 1773 ई. म: बिं कम च/0 चटजU ने
‘शकंु तला , िमरांडा तथा डेसडोमना’ शीष(क एक िनबधं िलखा। बंिकम ने एक ओर जहाँ

उतराखड मु त िवविवालय 5
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
शे सिपयर व कािलदास क तुलना क वहM दसू री ओर वायरन, शैली क किवताओ ं क तुलना
वैिदक गीत* से.....। बिं कमच/0 चटजU ने इसी kम म: भवभिू त और शे सिपयर क तथा
कुमारसंभव तथा पैराडाइज लॉ+ट क तल ु ना क। इसी kम म: आगे चलकर वारे न हैि+टंrस ने
गीता व ईसाई मुि_ भावना क तल ु ना क। उसने गीता व इिलयड , ओडेसी तथा पैराडाइज
लॉ+ट क भी तल ु ना क..... इसी सदं भ( म: राबट( काBडवेल तथा जे.बी5स ने प+ु तक िलखकर
इस संदभ( को Tयवि+थत करने का काय( िकया। 19वM शताZदी के !मख ु कायg को हम इस
!कार देख सकते हf-
• चाBस( ई. 4ोवर - ‘द फोक सsrस ऑफ सदन( इिं डया (1871) तिमल सािहय के साथ
क/नड़, तेलग,ु मलयालम तथा कूग( भाषाओ ं के गीत* का
तल
ु नामक अ=ययन।
• जी0 यू0 पोप कुरल के अनवु ाद - तिमल किवता व यनू ानी किवता का अंतर
• ि!यरंजन सेन - ‘इ/tलएू ंस आफ वे+टन( िलटरे चर इन द डेवलपम:ट ऑफ ब:गाली
नॉवेल (1932)

• आलqेस बेवर - ‘द िह+Qी ऑफ इिं डयन िलटरे चर (1852) - सं+कृ त नाटक /यनू ानी
नाटक क तल ु ना
• मै समूलर - ‘ए िह+Qी ऑफ ए/श:ट सं+कृ त िलटरे चर’ (1859) - सं+कृ त/यनु ानी
सािहय का तल ु नामक अ=ययन
• आलबट( +वाइट्सर - ‘इिं डयन थॉट एडं इट्स डेवलपम:ट’- भारतीय आय(/ईरानी-
यरू ोपीय सं+कृ ित का तल
ु नामक अ=ययन
• ए0बी.कथ -‘द सं+कृ त uामा’ (1924) - कािलदास व सं+कृ त नाटकार* क तुलना
यरू ोपीय नाटक एवं नाटककार* से
1.5 तुलनामक सािहय क िवशेषता/महव
तल
ु नामक सािहय के मह?व को आधिु नक युग म: सभी देश* म: +वीकार कर िलया
गया है। य*िक तल ु नामक सािहय आधिु नक सvयता का !मख ु िवमश( बन गया है।
तलु नामक सािहय या तल ु नामक पित आज क एक !मख ु सािहियक ‘पित है, िजसके
मा=यम से दो भाषा- सं+कृ ित क अतं ित(िहत िवशेषाताओ ं को एक-दसू रे क सापेFता म: रखकर
िवeेिषत िकया जाता है। इस !कार इस पित के मा=यम से सािहियक कृ ितय* को परखने के
स7ू तलाशे जाते हf। तलु नामक सािहय क िवशेषाता से पवू ( हम: यह समझना भी आवयक है
िक तुलनामक सािहय के लेखक के िलए अिनवाय( धम( या है? आजकल Tयावसायीकरण के
दबाब म: !ायः लेखक तुलनामक आलोचना म: !वृK हो जाते हf......इस !कार से यह
तल
ु नामक सािहय क गभं ीरता को देखते हए बहत हBका !यास ही का जा सकता है। तल ु ना

उतराखड मु त िवविवालय 6
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
करने के िलए लेखक को के वल दो भाषा ही आनी अिनवाय( नहM है, वरन् उन भाषाओ ं के
Tयाकरण, अथ( सं+कार व उस Fे7 क सं+कृ ित को जानना भी आवयक है ।
तलु नामक सािहय का मह?व िदन-!ितिदन बढ़ता जा रहा है। राजनीितक िव+तार के
िलये अनवु ाद काय( को छोड़ िदया जाये तो भी तनु ामक सािहय का मह?व कई `िOय* से
मह?व पणू ( है। तल
ु नामक सािहय का सवा(िधक मह?वपणू ( काय(, सािहय के िव+तार क `िO से
है। एक सािहय एक िवशेष !कार क ऊजा( व लोकरंग से िनिम(त होता है। दसू रे देश के सािहय
का पHरवेश उस पर िवचारामक एवं संवेदनागत !भाव डालता है...... इस ढंग से तल ु नामक
सािहय का !ाथिमक काय( सािहियक िव+तार का पHरवेश िनिम(त करना है। तल ु नामक
सािहय के मा=यम से सािहियक !ितमान* के िव+तार को गित िमलती है। आज हम यूनानी
सािहय व अर+तु के नाट्य िववेचन के बाद नाटक क िवशेषताओ ं के नये !ितमान आ चुके हf।
सािहय का एक मह?व पूण( काय( चँिू क स5यता का !सार करना है, तो तल ु नामक सािहय
उसम: हमारी सहायता करता है। सvयता िव+तार के बाद तल ु नामक सािहय का सवा(िधक
महपणू ( काय( सां+कृ ितक िव+तार करना है। दो भाषा, दो पHरवेश, दो !कार का सािहय अपने
सं+कृ ित म: वैिव=य िलये हए होते हf, अतः दोन* को उनक सापेFता म: 4हण कर एक दसू रे को
समझने क `िO का िव+तार िकया जाता है।
1.6 तुलनामक काय : सांकृितक कम
तल
ु नामक सािहय के मह?व व लोकि!यता का सवा(िधक मह?व पणू ( कारण मनPु य
के सा+ं कृ ितक िव+तार क आकाF ं ा है। िदन-!ितिदन हमारा भौितक िव+तार होता जा रहा है.....
मनPु य -मनPु य के िनकट आता जा रहा है.... लेिकन kमश: सां+कृ ितक अवमBू यन का !o भी
तीy होता जा रहा है। सvयता के !सार ने सां+कृ ितक संकट को नये िसरे से खडा कर िदया है,
फलतः सां+कृ ितक समृि व िव+तार के िलए सां+कृ ितक कम( के 9प म: तल ु नामक सािहय क
महKा िदन-!ितिदन बढ़ती जा रही है।
अvयास !o 2
Hर_ +थान क पिू त( किजए।
1. तलु नामक व िव<सािहय म: .........ने भेद िकया है। (रे माक/गेटे/मै समलू र)
2. रवी/0नाथ टैगौर ने ..............ई. म: िव< सािहय शZद का !योग िकया।
(1910/1907/1905)।
3. ‘ऑ फोड( ले चस( ऑफ पोयQी‘ लेखक .............हf। (राबट( लाउथ/गेटे मैFमूलर)
4. भारतीय सािहय म: सव(!थम ............ ने तलनु ामक सािहय से संबंिधत
(बंिकमच/0/रवी/0नाथ/ !ेमच/द)।
5. ‘द फोक सsrस ऑफ सदन( ईिडया’ के लेखक ................है। (ि!यरंजन सेन/चाBस( ई.
4ोवर/गेटे)।

उतराखड मु त िवविवालय 7
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1.7 सारांश
यह !थम इकाई - तल ु नामक सािहय क अवधारणा पर के ि/0त है। इस इकाई के अ=ययन से
अपने जाना िक -
• तल ु नामक सािहय अं4ेजी के क5पेरेिटव िलटरे चर’ का िह/दी अनुवाद है।
• तल ु नामक सािहय पद का सबसे पहला !योग मै@यू ऑन(Bड ने सन् 1848 म: िलखे
एक प7 म: िकया था।
• तल ु नामक पित का मल ू उGेय सां+कृ ितक पHर!ेIय म: दो िभ/न भाषाओ ं क कृ ितय*
को रखकर नई अथ(वKा क तलाश करना होता है।
• तल ु नामक सािहय के कई Fे7 हf, जैसे एक भाषा के अंतग(त, दो भाषा पHरवार के
अतं ग(त दो भाषा एवं दो भाषा पHरवार के अंतग(त दो भाषाओ ं का अ=ययन।
• तल ु नामक सािहय एवं िव< सािहय का िनकट का स5ब/ध है। िव< सािहय पद का
सव(!थम !योग गेटे ने िकया था।
1.8 श"दावली
• क5पैरेिटव िलटरे चर - तल ु नामक सािहय का अं4जी पया(य।
• अनशु ासन - Tयवि+थत तरीका, िवशेष !कार क Tयव+था।
• मक़
ु 5मल - परू ी, पणू (
• घटक - अवयव, तव
• !ितमान - पैमान, आदश(
• सांeेिषक `िO - िवeेश णामक `िO, जो पर+पर तल ु नामक हो।
• भाषा पHरवHर - भाषा वैRािनक तव* के आधार पर कई भाषाओ ं
का एक समहू ।
• भाषा पHरवHर - कला एवं सािहय क सौ/दय( क वृि के कारण*
क खोज करने वाला शाS।
• काTयशाS - सािहय का Tयाकरण, अनश ु ासन
• वBड( िलटरे चर - िव< सािहय।
1.9 अ%यास &' के उ(र
अvयास !o 1
(क) 1. सय
3. सय

उतराखड मु त िवविवालय 8
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
4. असय
5. सय
6. सय
अvयास !o 2
1. रे माक
2. 1907
3. राबट( लाउथ
4. बिं कमच/0
5. चाBस( ई. 4ोवर
1.10 सदं भ *+थ सच
ू ी
1. तलु नामक सािहय भारतीय पHरपेIय-चौधरु ी, इ/0नाथ, वाणी !काशन,ि[तीय
स+ं करण 2010
2. तल ु नामक अ=ययन (भारतीय भाषाएँ और सािहय) - (सं) राजरू कर, भ.ह, बोरा,
राजमल
1.11 सहायक / उपयोगी पाठ्य साम*ी
1. तल
ु नामक अ=ययन +व9प और सम+याएँ - (स)ं राजरू कर, भ.ह. एवं बोरा, राजमल,
वाणी !काशन, सं+करण 2013
1.12 िनबंधामक &
1. तल
ु नामक सािहय क अवधारणा पर िनबंध िलिखए ।
2. तलु नामक सािहय के इितहास क 9परे खा का वण(न किजए।

उतराखड मु त िवविवालय 9
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई 2 तुलनामक अ3ययन प4ितयां
इकाई क प रे खा
2.1 तावना
2.2 उेय
2.3 तल ु नामक अ8ययन प9ितयाँ
2.3.1 तल ु नामक अ8ययन क ि;या
2.3.2 साम/ी िव<े षण ि;या
2.4 तल ु नामक अ8ययन एवं भारतीय सािहय
2.5 तल ु नामक अ8ययन और अनवु ाद का ,
2.6 साराश ं
2.7 श(दावली
2.8 अ+यास ,- के उ.र
2.9 संदभ& /0थ सचू ी
2.10 सहायक / उपयोग पाठ्य साम/ी
2.11 िनब0धामक ,

उतराखड मु त िवविवालय 10
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
2.1 तावना
िपछली इकाई ‘तल
ु नामक सािहय क अवधारणा’ का आपने अ=ययन कर िलया है।
इस इकाई के अ=ययन के मा=यम से आपने तल ु नामक सािहय क पृ{भिू म एवं अवधारणा को
समझ िलया है। इस इकाई म: हम तल ु नामक अ=ययन पितयाँ एवं साम4ी िवeेषण क
!िkया को समझने का !यास कर: गे।
तल
ु नामक अ=ययन पितय* म: तल ु ना करने क पित व !िkया का िवशेष 9प से अ=ययन
िकया जाता है। तुलनामक अ=ययन पित को आज गंभीरता से िलया जाने लगा है, इसे
अनसु ंधान के समकF रखकर देखने क भी पHरपाटी !चिलत होती जा रही है। एक +वत7ं
आलोचना !िविध के 9प म: भी इसका िव+तार हआ है। फलतः तल ु नामक पित के कई
‘+कूल’ !चिलत हो गये हf। जम(न, iांसीसी, अमेHरक...... इयािद। अतः तलु नामक पित ने
वैि<क +व9प 4हण कर िलया है। वैि<क +व9प के 4हण के !o के संदभ( म: ही तुलनामक
सािहय व अनवु ाद का !o भी मह?वपणू ( है। भारत जैसे बहभाषी देश म: जहाँ अलग-अलग
भाषा पHरवार क भाषाओ ं का अि+तव है, वहाँ भी अनुवाद काय( का मह?व है, और वैि<क
पHर`य म: इसक उपयोिगता से तो हम पHरिचत ही है।
2.2 पाठ का उेय
एम0ए0एच0एल0-204 पाठ्य प+ु तक क यह दसू री इकाई है। इस इकाई म: आप तल ु नामक
अ=ययन पितयाँ के बारे म: अ=ययन कर: गे। इस इकाई के अ=ययन के पVात् आप जान:गे िक-
• !मख ु तलु नामक अ=ययन पितयाँ कौन सी है, इसको जान सक: ग:।
• तल ु नामक आलोचना !िkया को समझ सक: गे।
• तलु नामक अ=ययन !िkया के मा=यम से साम4ी िवeे षण को समझ सक: गे।
• तल ु नामक सािहय के स5!दाय के बारे म: जान:ग।े
• तल ु नामक अ=ययन म: अनुवाद क भूिमका को समझ सक: गे।
2.3 तुलनामक अ3ययन प4ितयाँ
2.3.1 तल ु नामक अययन क ि या
तल
ु नामक अ=ययन के संदभ( म: भारी mम यह है िक इसक कोई पित नहM है। िकसी
भाषा दसू री भाषा क कृ ितय* क तल
ु ना कर देने मा7 से ही तल
ु नामक सािहय का काय( परू ा हो
जाता है। लेिकन या वाकई ऐसा है? िजस !कार लेिवस ने आलोचना के िलए !िविध -भरी
(िस+टेिमक) सिु वचाHरत |ृंखला व kम अिनवाय( बताया था। य*िक !िविध के अभाव म:
सािहय अराजकता का के /0 बन जाता है, य*िक !िविध जहाँ एक ओर िवचार व रचना को
अनशु ािसत करती है, वहM दसू री आरे उसे िदशा भी देती है। या पित व सािहय का इतना
अिनवाय( स5ब/ध होता है? सािहय िलखने के पVात् हम उसे िवशेष kम म: Tयवि+थत कर देते

उतराखड मु त िवविवालय 11
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
हf, ऐसा आमतौर पर समझा जाता है, लेिकन सािहय लेखन से पवू ( या लेखक के मि+तPक म:
िवचार kम सTु यवि+थत नहM होते ? िनिVत तौर पर Tयव+था पहले आती है और लेखन बाद म:
होता है। यह तो हई लेखन क !िkया से hयादा Tयव+था क माँग करती है। यहाँ हम
तलु नामक अ=ययन पित के अंतग(त तुलनामक अ=ययन क !िkया को समझने का !यास
कर: गे।
तलु नामक अ=ययन क !िkया का !थम चरण रचना िवषयक चयन/ आलो}य
िवषय (या कृ ित) है। िकसी कृ ित को तुलनामक +व9प के चयन म: भी आलोचक क `िO ही
काम करती है। आलो}य कृ ित य* मह?व पणू ( है? इसे लेखक को +पO करना ही पड़ता है। और
उससे भी मह?वपणू ( !o यह है िक लेखक ने उसका चयन य* िकया है? िकसी भी कृ ित का
चयन लेखक क !ितभा पर !o िच~ लगा देता है। लेखक को सव(!थम चयिनत रचना के
मह?व और उसके चुने जाने के कारण* का औिचय िस करना पड़ता है। िफर इस !िkया म:
एक नहM दो रचनाएँ होती है। !थम रचना का दसू री रचना से स5ब/ध िकस !कार +थािपत हो
रहा है या नहM हो पा रहा है ? यह !o भी मह?वपणू ( है। िवषय चयन के िनयम के अंतग(त यह
त@य भी है िक =यान रखने योrय है िक ग और प क रचनाओ ं का तुलना करना उिचत नहM
है, य*िक दोन* िवधाओ ं क रचनर !िkया म: बहत अ/तर है, दोन* दो अनुशासन हf।
तल ु नामक अ=ययन !िkया का दसू रा चरण होता है आलो}य कृ ित का पाठ। पणू ( के सयम म:
लेखक क: 0 म: हआ करना था, आज उसका +थान पाठक ने 4हण कर िलया है। पवू ( क अपेFा
आज पाठ लेखक से +वतं7 हो चक ु ा है..... इसिलए पाठ क अन/त संभावनाएँ होती है। िकसी
कृ ित का पाठ कै से िकया जाये, यह !o मह?वपणू ( है। पाठक भी कई !कार के होते हf।
तल ु नामक अ=ययन +व9प और सम+याएँ (संपादक भ0ह0 राजरू कर एवं राजमल बोरा) म:
पाठक* का वगUकरण इस !कार िकया गया है-
1. असािहियक
2. गैर-सािहियक
3. सािहियक
1- असािहियक पाठक वे होते हf जो रचना का पाठ करते समय सािहियक मम( क
िच/ता नहM करते। ऐसे पाठक रचना म: िछपे घटना kम म: ही hयादा िदलच+पी रखते हf।
2- गैर-सािहियक पाठक से तापय( ऐसे पाठक से है, जो रचना/ पाठ म: अपनी िच
के अनसु ार त@य* क खोज करता हf । ऐसे पाठक* म: भी उ}च सािहियक बोध का
अभाव होता है।
3- सािहियक पाठक का तापय( ऐसे पाठक* से है जो परू ी रचना के आधार पर
स5पणू (ता म: िकसी पाठ का मBू य िनधा(Hरत करते हf। ऐसे पाठक* का =यान पाठ के हर
अश ं पर होता है।
तल ु नामक आलोचना !िविध का तीसरा चरण-त@य चयन होता है। िकसी रचना म:
ढेर* त@य होते हf, जो रचना को Tयवि+थत 9प !दान करने म: अपनी भिू मका िनभाते हf । इस

उतराखड मु त िवविवालय 12
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!िkया म: एक खास ए!ोच/ `िO से आलोचक उस रचना को देखता है। वह ए!ोच िवचारधारा
का भी हो सकता है और िकसी खास त@य का चनु ाव व उसका िव+तार भी। त@य चयन का भी
व+तिु त{ आधार होता है, लेिकन !ायः लेखक आमिन{ ढंग से ही िवeेषण करते हf। सािहय
क आलोचना !िkया म: अ सर ही लेखक* क तल ु ना के संदभ( म: आलोचक एकिन{ `िO के
िशकार हो ही जाते हf। कबीर-तल ु सी, तलु सी-सरू , तलु सी-जायसी कािलदास-भवभिू त,
वाBमीिक-Tयास, !साद-िनराला, पंत-िनराला, मीरा-महादेवी, अRेय-मिु _बोध, वडस(वथ(-
कॉलHरज- जैसे ढेर* उदाहरण हf , जब दो रचनाकर* क तल ु ना के बहाने एक को |े{ िस करना
ही आलोचक का उGेय रहा है।
तलु नामक आलोचना !िविध का चतथु ( चरण त@य* के िवeेषण से जड़ु ा हआ है।
त@य का +व9प कै सा है? त@य के घटक-इितहास और दश(न क `िO से िवeेषण िकया जाता
है। इितहास और दश(न म: रचना के सारे संदभ( को समेट िलया जाता है। इितहास ने अतग(त सारे
त@य (चाहै वह राजनीित, चाहै व समाजशाS या प7काHरता या अ/य िकसी िवधा हो) आ जाते
हf व दश(न के अतं ग(त सारे िवचर व वाद (मा स(वाद, अि+तववाद, मनोिवeेषण, उKर-
आुधुिनकता, आधिु नकता, संरचनावाद या !ाचीन दश(न सभी आ जाते हf)। तल ु नामक
आलोचना !िविध का पंचम चरण/!िkया है- िवषय व+तु एवं िशBप के +तर पर आलो}य
रचनाओ ं क संगित क िवचारणा एवं उनका मूBयांकन करना। िवषयव+तु का स5ब/ध उस
देशकाल-पHरि+थित से अिनवाय( सIू म 9प से जड़ु ा हआ होता है। सािहियक रचना िजतना
कहती है, उतना ही अनकहा रह जाता है...........। इस `िO से रचना के 9प के मा=यम से भी
आलोचक यगु -समाज के पHरवत(न को पकड़़ने का !यास करता है। भारतीय काTयशाS क
सैाि/तक व िशBपगत बारीिकय* को लेकर ही ल5बी चचा( देखने को िमलती है।
2.3.2 साम!ी िव"े षण ि या
पीछे हमने तल
ु नामक अ=ययन !िkया के िविभ/न चरण* का अ=ययन िकया। हमने
अ=ययन िकया िक तुलनामक अ=ययन !िkया म: पाठ चयन, त@य चयन एवं िविशO ए!ोच
इयािद तल ु नामक अ=ययन के िविभ/न चरण हf। अभी हम तल ु नामक अ=ययन !िkया या
उसक !िविध का अ=ययन कर: गे। तल ु नामक सािहय क कोई सिु निVत पित है या नहM, इस
बात को लेकर भी अ=येताओ ं म: मतै य नहM है। रे ने वेलेक जैसे अ=येता जब यह कहते हf िक
तल ु नामक सािहय क कोई िनिVत काय(पित नहM है । उनका तक( है िक सािहय के अ/दर
तल ु नामक तव सिkय रहता ही है, उसक अलग !िविध का !o उिचत नहM है। kमशः
तलु नामक सािहय क तीन `िO या पHर!ेIय माने गये हf-
1. iांसीसी-जम(न +कूल का अतं रा(PQीयता के आ|य से सािहय का कालkिमक
अ=ययन- सािहियक िवकासवाद, ऐितहािसक सापेFतावाद तथा ऐितहािसक
पHरि+थित।
2. अमरीक +कूल क 9पवादी `िO- काTयशाSीय सौ/दया(मक, कलापरक तथा
िवeेशणामक अतं `िO

उतराखड मु त िवविवालय 13
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3. समाजशाSीय - सं+कृ ितपरक यथाथ(वादी `िO -
इन तीन पHर!ेIय* को दो िनयम* के अतं ग(त समेटा गया है-
1- सािहयेितहास का अंतरा(PQीय संदभ(
2 - तल ु नामक आलोचना।
1 - सािहयेितहास के अतं रा(िPQीय सदं भ( से आशय दो रचनाओ ं या घटनाओ ं के ि[-आधार
संबंध को +थािपत करने से माना गया है। इसका अथ( यह है िक कलापरक `िO को समाजशाS,
सं+कृ ित एवं इितहास के संदभ( म: दो सािहय* के !भाव-पर+पर एवं उनके सा`य आधार* को
+पO करना।
2 - तल ु नामक आलोचक के िलए तुलना एक सचेत और मल ू भतू पित है।
तलु नामक पित के आ|य से एक से अिधक सािहय* क तुलना करना तुलनामक अ=ययन
है। इस !िkया म: दो सािहय* के सा`य संबधं , पर5परा तथा उनके !भाव* के स7ू * क खोज
क जाती है । अब हम तुलनामक सािहय क कुछ !मख ु !िविधय* का अ=ययन कर: ग:।
सा`य संबंधामक !िविध-
यह !िविध अ/तरा(PQीय संदभ( के अतं ग(त आती है। अतं रा(PQीय संदभ( के आ|य से दो
कृ ितय* का सािहयगत शैली, संरचना, मडू या िवचार का सा`य संबधं ामक अ=ययन होता है।
इस !कार का अ=ययन सा`य या वैश5यमल ू क दोन* हो सकता है। िकसी भी दो बेमेल
िवषयव+तु क सा`यमल ू क अ=ययन पित को पॉलीजेनेिटक पित कहते हf। सा`यमल ू क
पित क सहायता से आलोचक िविभ/न समाज तथा पHरि+थित म: अिभTय_ होने वाले
सािहय का िववेचन करता है और िभ/न-िभ/न !o* क तलाश करता है। िविभ/न
अिभTयि_य* क समानता का कारण या है? तथा वे कै से एक-दसू रे से िभ/न हf, इसका उKर
तल ु नामक आलोचना के सा`य-संबंधामक !िविध म: खोजा जाता है।
तल ु नामक अ=ययन क पर5परा !िविध -
अतं रा(PQीय संदभ(वाद के अंतग(त पर5परा अ=ययन !िविध म: भी दो कृ ितय* का
सा`यमल ू क अ=ययन होता है। इस !िविध क मा/यता के मूल म: यह त@य है िक - रचना, एक
बड़े वग( का अश ं होती है। और जो समान ऐितहािसक, कालानk ु िमक तथा 9पामक बधं न* से
अन+ु युत होती है। इस !िविध म: खास तौर से भाषा तथा सािहय म: !ितफिलत राPQीय चेतना
का अ=ययन िकया जाता है, या उनके संदभ( को भी अिनवाय( 9प से शािमल कर िलया जाता
है। इस !िविध के अ=ययन के संदभ( म: भी दो !+ताव हf। एक, !+ताव यह है िक अ=ययन
!िविध म: परू ी !+ताव है। एक, !+ताव यह है िक अ=ययन !िविध म: परू ी पर5परा के संदभ( म:
अ=ययन िकया जाये, जबिक !ावर जैसे अ=येता इसके िवपरीत यह !+ताव रखते हf िक
अ=ययन के Fे7 को सीिमत करके िकसी एक ऐितहािसक काल अथवा ऐितहािसक `िO से
उभरते हए िकसी एक काTय9प का दो सािहय* के संदभ( म: अ=ययन िकय जाता है। पर5परा
अ=ययन क !णाली म: राPQीयता एवं अंतरा(PQीयता एंव अंतरा(PQीय पर5पराएँ िनकट आ जाती
है।

उतराखड मु त िवविवालय 14
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
भाव िविध-
9थवेन म: !भाव !िविध के दो धरातल बताये हf एक जब शि_शाली Tयि_व का
!भाव, अ=येता को अपनी धारा म: बहा ले जाता है और दसू रा धरातल यह होता है जब उस
शि_शाली Tयि_व के !भाव से अ=येता अपनी `िO को और पHरPकृ त व स5प/न करता
चलता है। साइमन िजयनू ने !भाव को ‘अनक ु रण’ न मानकर ‘!ेरणा’ मानने से !भाव-अ=ययन
के िवरोध म: क गई आलोचना माना है। तल ु नामक सािहया=ययन म: !भाव-स7ू * का अ=ययन
ही उसक के /0ीय पित है। लांद गइु एँ ने इसीिलए !भाव स7ू * के अ=ययन को मनोवैRािनक
!ितभास कहा है। इसे +पO करते हए गइु एँ !यF और अ!यँ !भाव क बात करता है। !यF
!भाव म: आलो}य लेखक और अ!यF !भाव म: सृजनामक पर5परा को शािमल िकया जा
सकता है।
अययन क वीकृित तथा सच ं ारण िविध-
उलHरच वाइ+टाइन ने इस !िविध को +पO करते हए िलखा है- !भावस7ू * का अ=ययन
मल ू तः पHरपणू ( दो सािहियक कृ ितय* को लेकर िकया जाता है िक/तु +वीकृ ित अ=ययन का Fे7
काफ बड़ा होता है। इसम: कृ ितय* के पार+पHरक संबधं * से लेकर उनके आस-पास क
पHरि+थितय*, लेखक, पाठक, समीFक, !काशक तथा !ितवेशी पHरवेश सब कुछ अ=ययन के
िवषय के अंतग(त आता है। इस तरह +वीकृ ित अ=ययन सािहियक समाजशाS अथवा
मनोिवRान क िदशा म: िवशेष 9प से अ4सर होता है। उदाहरण+व9प हम समझ सकते हf िक
ि[वेदी कालीन नैितकता के वल रीितकाल के !ित !ितिkया नहM थी। बिBक स5पणू ( िव टोHरयन
यगु के सािहय क +वीकृ ित भी थी। !ावर ने इसे ‘संचारण अ=ययन’ कहा है। !ावर ने इसक
पHरभाषा देते हए िलखा है- ‘‘संचारण सं+थाओ ं एवं 9प* के स`श है िजसके मा=यम से िवचार,
सचू ना तथा अिभवृिKयां +थानांतHरत अथवा +वीकृ त होती है।’’
तुलनामक अययन क सौभा*य िविध-
अ=ययन क सौभाrय !िविध या है? इसे समझाते हए इ/0नाथ चौधरी ने िलखा है- ‘‘+वीकृ ित
अ=ययन के अंतग(त संचारण िवeे षण के अितHर_ िकसी एक लेखक या कृ ित का ‘सौभाrय’
िवeेषण भी िकया जाता है। िकसी एक िवदेशी लेखक या कृ ित क दसू रे देश म: िक/ही कारण*
से, नोबेल परु +कार िमलने से या आकि+मक मृयु होने से या िकसी सKा का िवरोध करने से
याित के बढ़ जाने पर वह कै से दसू रे लेखक* या सािहियक पHरवेश को !भािवत करता है
इसका अ=ययन ही सौभाrय अ=ययन है।’’ वाBटर म@ु ग ने ‘+टडीज इन द Qेिजक िह+Qी ऑफ
िलटरे चर’ म: जम(न सािहय को !भािवत करने क !िkया म: ‘हैमलेट’ का अ=ययन िकया है।
वाँ िटगहैम, आं0 मोHरजे तथा ग+ु तव 90लर ने +वीकृ ित अ=ययन का िववेचन िकया है।
सबं ंधामक ,-,ामक िविध
डॉ. इ/0नाथ चौधरु ी ने संबंधामक इ/[ामक !िविध को +पO करते हए िलखा है- ‘‘अतं रा(PQीय
संदभ(वाद सािहय को मानवीय Rान के दसू रे Fे7* के साथ भी जोड़त है जैसे दश(न, इितहास,
मनोिवRान, राजनीितशाS, धम(, समाजशाS तथा लिलत कलाएँ।’’

उतराखड मु त िवविवालय 15
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
तल
ु नामक आलोचना क !िविध
तल ु नामक !िविध म: आलोचक सTु यवि+थत ढगं से तल ु नामक आलोचना के अगं 9प म:
तलु ना के तकनीक* का !सार करता है और Tयि_गत लेखक* के [ारा िकए गए !यास* का
अ=ययन आलोचना के मूल अंग द:। इस !िविध म: कालkिमक अ=ययन नहM, समकािलक
अ=ययन होता है।
अयास 
क- सही /गलत म: उKर दीिजए।
1. तलु नामक अ=ययन !िkया का !थम चरण रचना िवषयक चयन है।
2. अमरीक +कूल `िO 9पवादी रही है।
3. iांसीसी-जम(न +कूल क `िO ऐितहािसक रही है।
4. सा`य-संबंधामक !िविध, सािहयेितहास के अतं रा(PQीय संदभ( से जड़ु ा हआ है।
5. तल
ु नामक अ=ययन क पर5परा !िविध का संबंध अंतरा(PQीय संदभ( से जड़ु ा हआ है।
ख- िटnपणी िलिखए
1. तल ु नामक अ=ययन क पर5परा !िविध ?
2.4 तुलनामक अ3ययन एवं भारतीय सािहय
या तुलनामक सािहय और भारतीय सािहय का िकसी !कार का कोई स5ब/ध है?
रवी/0नाथ टैगोर ने जब 1907 ई. म: िव< सािहय शZद का !योग िकया था, तब से तल ु नामक
अ=ययन को भारत म: िवशेष बल िमला। भारतीय सािहय के सदं भ( म: तल ु नामक अ=ययन एंव
सािहय क नई पHरकBपनाएँ सामने आई। इसी उGेय से सन् 1954 ई. म: सािहय अकादमी क
+थापना हई। भारतीय सािहय क !+तावना !+तुत करते हए सव(पBली राधाकृ Pणन ने िलखा
था िक भारतीय सािहय एक है यिप वह बहत-सी भाषाओ ं म: िलखा जाता है। भारतीय
सािहय चँूिक िविभ/न भाषा पHरवार* म:, ‘भारोपीय, चीनी-ितZबती, कमीरी, 0ािवड़ इयािद’-
बांटा हआ है, इसिलए भी इसे Tयापक !चार-!सार !ा\ नहM हो सका। िक/तु भारत क मल ू भतू
सं+कृ ित को िदखाने के िलए भारतीय सािहय क अवधारणा का Tयापक !चार-!सार
आवयक है।
2.5 तुलनामक अ3ययन और अनवु ाद का &
तल ु नामक अ=ययन के मल ू म: यह !o उपि+थत है िक िव+तृत पHर!ेIय म: सािहय
एवं सं+कृ ित का अ=ययन िकस !कार सभं व हो सकता है? इस अ=ययन !णाली म: एक से
अिधक भाषाओ ं के सािहय का !o भी मल ू म: हf य*िक अनवु ाद करने क ि+थित तो दसूरी
भाषाओ ं के संदभ( म: ही उप/न् होती है। तल
ु नामक अ=ययन और अनवु ाद के संदभ( म: कई !o
आज भी अनसल ु झे हf। तल
ु नामक सािहय के सदं भ( म: उिचत ि+थित यह होगी िक अ=येता को
एक-से अिधक भाषाओ ं क जानकारी हो। आन(Bड के अनुसार अपनी भाषा म: रिचत सािहय
के अितHर_ िकसी दसू री भाषा के सािहय से भली भाँित पHरिचत होना आवयक बताया था।

उतराखड मु त िवविवालय 16
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
अनवु ाद सृजन है, या अनुकरण यह !o ही उठाया जाता रहा है। मल ू 9प म: तो अनुवाद
अनक ु रण ही है, िक/तु यांि7क अनवु ाद भी तल
ु नामक सािहय के िलए िकस काम का?
सािहियक अनवु ाद तो सृजनामक ही हो सकता है। य*िक सािहय म: एक शZद के क7ई अथ(
होते हf, इसिलए देश-काल-पHरि+थित-पHरवेश के अनसु ार मूल 9प से अथ( को ही मूल मानना
पड़ता है।
2.6 सारांश
यह एम0ए0एच0एल0-204 क दसू री इकाई, जो तल ु नामक अ=ययन पितय* पर क: ि/0त है-
का आपने अ=ययन कर िलया है। इस इकाई के अ=ययन के उपरा/त आपने जाना िक-
• तल ु नामक अ=ययन एक सिु निVत !िविध एवं |ृखं ला के मा=यम से अपना आकार
4हण करता है।
• तल ु नामक अ=ययन क !िkया के कई चरण हf- !थम चरण है- रचना िवषयक चयन,
दसू रा चरण है- आलो}य कृ ित का पाठ, तीसरा चरण है- त@य चयन, चतथु ( चरण है-
त@य* का िवeे षण करना, पंचम चरण है- िवषय व+तु एवं िशBप के +तर पर आलो}य
रचनाओ ं क संगित क िवचारणा एवं उनका मूBयांकन करना।
• तल ु नामक आलोचना !िkया के िवeेषण !िkया के अतं ग(त- सािहयेितहास के
अतं रा(PQीय संदभ( एवं तुलनामक आलोचना का िवeे षण िकया जात है।
• सािहयेितहास के अतं रा(PQीय संदभ( के अतं ग(त- सा`य-संबंधामक !िविध,
तल ु नामक अ=ययन क पर5परा !िविध, !भाव !िविध, अ=ययन क +वीकृ ित तथा
संचारण !िविध, तल ु नामक अ=ययन क सौभाrय !िविध, संबंधामक [/[ामक
!िविध इयािद आते हf।

2.7 श"दावली
• !िविध- शैली, तरीका
• ए!ोच – `िO
• सिु निVत – िनिVत
• सापेFतावाद - समाज के संदभ( के अनुकूल िवकिसत `िO
2.8 अ%यास &' के उ(र
क-
1. सय
2. सय

उतराखड मु त िवविवालय 17
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3. सय
4. सय
5. सय

2.9 संदभ *+थ सूची


1. तल ु नामक सािहय: भारतीय पHर!ेIय- चौधेरी , इ/0नाथ, वाणी !काशन, ि[तीय
सं+करण 2010
2. तलु नामक अ=ययनः भारतीय भाषाएँ और सािहय ‘ (सं) राजरू कर, भ.ह.एंव बोरा,
राजकमल, वाणी !काशन , ि[तीय सं+करण 2008
2.10 सहायक / उपयोगी पाठ्य साम*ी
1. तल
ु नामक अ=ययन +व9प और सम+याएँ - (सं) राजरू कर, भ.ह. एवं बोरा, राजमल,
आवृिK सं+करण 2013 वाणी !काशन
2.11 िनब+धामक &
1. तलु नामक अ=ययन के िविभ/न चरण* क Tयाया किजए।
2. तल
ु नामक अ=ययन क िविभ/न पितय* का वण(न किजए।

उतराखड मु त िवविवालय 18
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई 3 भारतीय सािहय क अवधारणा
इकाई परे खा
3.1 तावना
3.2 पाठ का उेय
3.3 भारतीय सािहय क अवधारणा
3.3.1 अथ&, प रभाषा
3.3.2 भारतीय, सािहय का वप
3.4 भारतीय सािहय और अ8ययन क सम याएँ
3.5 भारतीय सािहयस और रा?@ीय-सां कृ ितक ,
3.6 सारांश
3.7 श(दावली
3.8 अ+यास ,- के उ.र
3.9 संदभ& /0थ सचू ी
3.10 सहायक/उपयोगी पाठ्य साम/ी
3.11 िनब0धामक ,

उतराखड मु त िवविवालय 19
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3.1 तावना
सामा/य Tयवहार या आम बोलचाल क भाषा म: भारतीय सािहय का आशय भारत
के िविभनन !ा/त क भाषा म: िलखे गये सािहय से है। िक/तु भारतीय सािहय एक अनश ु ासन
के 9प म: आज िवकिसत हो चुका है और स5पूण( भारत के सािहय के अथ( म: समझा जाने लाग
है। भारतवष( बहभाषी समाज रहा है। भारोपीय-0ािवड़, चीनी-ितZबती इयािद भाषा पHरवार* को
समेटे भारत वष( िभ/न-िभ/न सं+कृ ितय* का वाहक रहा है। +वाभािवक ही था िक िभ/न भाषा एवं
सं+कृ ितक क एक समझ बढाने़ का !यन होता, य*िक उसके िबना भारतीय सं+कृ ितक को
समझा ही नहM जा सकता था। भारत के पवू U !देश म:-उिड़सा , बंगला, असिमया, पवू lKर !देश
म:- अ9णाचली, नागालैडी, असिमया, िमजो, उKर !देश म: कमीरी, ड*गरी, िसंधी, क*कणी,
पिVम के !देश म:-राज+थानी, गजु राती, पंजाबी, हHरयाणी एवं दिFण के !देश* म:- मराठी,
तेलगु ,ु क/नड़, तिमल एवं मलयालम भाषाएँ !मख ु ता से बोली और समझी जाती है। इसके
अितHर_ !ादेिशक +तर पर अ/य छोटी-छोटी भाषाओ ं का भी सािहय है.... तो या इतने बड़े
भाषा वैिभ=य वाले !देश म: िकसी एक चेतना को ि+थर िकया जा सकता है? भारतीय सािहय
क अवधारणा म: मूल म: भारतीय जीवन सं+कृ ित एवं भाषागत वैिव=य को समेटने का !यास है।
भारतीय सािहय का Fे7 व सािहय इतना Tयापक है िक !o उठता है िक इसका कौन सा
+व9प िनयत िकया जाये? एक !o भाषागत िभ/नता का है, सां+कृ ितक िभ/नता का है, तो
दसू रा !o भाषा-पHरवार क िभ/नता का है, Tयाकरिणक िभ/नता का है। इतने Tयापक िभ/नता
के बावजदू िकसी एक भारतीय सं+कृ ित के िनमा(ण को बात क जा सकती है? भारतीय सािहय
क अवधारण के मल ू म: ऐसे ढेर* !o हf।
3.2 पाठ का उेय
एम.ए.एच.एल - 204 क यह तीसरी इकाई भारतीय सािहय क अवधारणा पर क: ि/0त है। इस
इकाई का अ=ययन करने के उपरा/त आप-
• भारतीय सािहय क अवधारणा से पHरिचत हो सक: गे।
• भारतीय सािहय के इितहास को जान सक: गे।
• भारतीय सािहय क पHरभाषा एवं उस पर िविभ/न िव[ान* के मतो को जान सक: ग:।
• भारतीय सािहय और उसके अ=ययन क सम+याओ ं से पHरिचत हो सक: ग:।
• भारतीय सािहय और सं+कृ ित के अंतस(5ब/ध कसे समझ सक: गे।
• भारतीय सािहय का पHरचय !ा\ कर सक: गे।

उतराखड मु त िवविवालय 20
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3.3 भारतीय सािहय क अवधारणा
3.3.1 अथ., परभाषा
भारतीय सािहय को पHरभािषत करते हए डॉ. नगे/0 ने िलखा है, ‘‘भारतीय मनीषा क
अिभTयि_ का नाम भारतीय सािहय है और भारतीय मनीषा का अथ( है, भारत के !ब ु मानस
क सामिू हक चेतना-सहSािZदय* से संिचत अनभु िू तय* और िवचार* के नवनीत से िजसका
िनमा(ण हआ है। यह भारतय मनीषा ही भारतीय सं+कृ ित, भारत क राPQीयता और भारतीय
सािहय का !ाणतव है। ’’ (भारतीय सािहय का समेिकत इितहास-सं0 डॉ.नगे/0, पृ{ 10)
अपनी इस पHरभाषा म: डॉ.नगे/0 ने भारतीय सािहय क Tयापक संकBपना क है। ‘भारत के
!ब ु मानस क सामिू हक चेतना, को उ/ह*ने भारतीय सािहय का आधार माना है। भारतीय
मनीषा, भारत क राPQीयता ही भारतीय सािहय के क: /0 म: हf। डॉ.नगे/0 ने अपनी इस पHरभाषा
म: समेिकत 9प म: भारतीय मनीषा को ही स5पूण( भारतीय सािहय का पया(य मान िलया है। इस
पHरभाषा म: अितTयाि\ दोष है । भारत वष( को भौगोिलक एकव के आधार पर रखकर, भारतीय
सािहय क पHरभाषा देते हए िव/टरिनnस ने ‘भारतीय सािहय का इितहास’ नामक पु+तक म:
िलखा है,‘‘भारतीय सािहय का इितहास भाषा के मा=यम से अिभTय_ तीन हजार वष( के
मानिसक िkया-कलाप का िलिपब इितहास है। हजार* वषg तक िनर/तर गितशील इस
मानिसक िkया-कलाप का िवकास Fे7 है वह देश है जो िह/दक ु ु श पव(त से कुमारी अतं Hरप-
लगभग डेढ़ लाख वग(मील तक फै ला हआ है-िजसका Fे7फल 9स को छोड़ सम+त यरू ोप के
बराबर है और िव+तार 8 से 35 उKरी अFांश तक अथा(त् भमू =य रे खा के ऊPणतम !देश* से
लेकर शीतोPण किटबंध तक हf। ’’ इसे अितHर_ िव/टरिनnस ने आगे एक जगह और िलखा है-
‘‘िवषय व+तु क `िO से इसम:, Tयापक अथ( म:, वाङमय के सम+त 9प*-धािम(क और लौिकक
महाकाTय, !गीत-काTय, नाटक, नीित-काTय तथा ग म: रिचत कथा-आयाियका, शाS
आिद का अतं भा(व है।’’ +पO है िक िव/टरिनस ने अपनी पHरभाषा म: सम+त रचना 9प* एवं
भारत के सम+त Fे7 के सािहय को अपनी पHरभाषा म: समेटा है िक िवंटरिनस ने अपनी
पHरभाषा म: सम+त रचना 9प* एवं भारत के सम+त Fे7 के सािहय को अपनी पHरभाषा के
अतं ग(त रखा है। इसी !कार भारतीय वाङमय क भिू मका म: भारतीय सािहय क पHरभाषा इस
!कार दी गई हैः “भारत वष( अनेक भाषाओ ं वाला िवशाल देश हैः उKर-पिVम म: पंजाबी,
िह/दी और उद(,ू पवू ( म: उिड़या, बंगला और असिमया, म=य-पिVम म: मराठी व गजु राती और
दिFण म: तिमल, तेलुग,ु क/नड़ तथा मलयालम। इनके अितHर_ कितपय अ/य भाषाएँ भी है
िजनक सािहियक तथा भाषावैRािनक मह?व कम नहM है। जैसे कमीरी, िसंहली, डोगरी,
क*कणी और त9 ु आिद। इनम: से !येक का-िवशेष कर पहली बारह भाषाओ ं म: से !येक का
अपना सािहय है जो !ाचीनता, वैिव=य, गणु और पिभाषा- सभी क `िO से अय/त समृ है।
यिद आधिु नक भारतीय भाषाओ ं के ही संपणू ( वाƒय से िकसी भी `िO से कम नहM होगा। वैिदक
सं+कृ त, पािल, !ाकृ त तथा अपmंश समूह के वाङमय का समावेश कर लेने पर तो उसका अनंत

उतराखड मु त िवविवालय 21
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िव+तार कBपना क सीमा को पार कर जाता है Rान का अपार भंडार-िहदं महासागर से भी
गहरा, भारत के भौगोिलक िव+तार से भी अिधक Tयापक, िहमालय के िशखर* से भी ऊँ चा। ’’
इस पHरभाषा म: भारतीय क !मखु भाषाओ ं एवं सम+त Rान पर5परा को समेटने का भावामक
!यास िकया गया है।
3.3.2 भारतीय सािहय का वप
भारतीय सािहय क समझ के िलए पहले तो भारतीय Fे7 और उसक भाषाओ ं का
Rान अय/त आवयक है। भारतीय भौगोिलक पHरिध एवं उसक भाषाओ ं को हम एक आरे ख
के मा=यम से समझ सके त हf-
भारत क भाषाएं
1. उKरी Fे7 क भाषाएँ - कमीरी, िसंधी, पहाडी, गढ़वाली-कुमाऊँ नी, नेपाली
2. पिVम Fे7 क भाषाएँ - पंजाबी, हHरयाणी, राज+थानी, गजु राती
3. दिFण-पिVम - मराठी
4. दिFण क भाषाएँ - तेलगु ु, तिमल, क/नड़, मलयालम
5. पवू U Fे7 क भाषाएं - बंगला,उिड़या, असिमया
6. पवू lKर क भाषाएँ - नागालैडी, िमजो, मेघालयी, अ9णाचली

जािहर है भारतीय सािहय क पHरिध बहत Tयापक है। अतः इसीिलए +थल ू 9प म:
भारत क बहिवध भाषाओ ं को इसम: समेट िलया जाता है। इस पHरकBपना के अनसु ार
भारतीय सािहय का तापय( उपरो_ क सम+त भाषाओ ं के स5पणू ( सािहय क संपूण(
!वृिK से है। जैसा िक पवू ( म: भी हमने अ=ययन िकया िक भारतीय सािहय इन सम+त
भाषाओ ं के सम+त सािहय का न तो सं4ह मा7 है और न उसक Tयाया मा7
भारतीय सांिहय का आशय तो सपं ूण( भारत क जातीय अि+मता को तलाशने व
उसको संरिFत करने से है।
अयास  1
(क) िटnपणी िलिखए।
1. भारत क भाषाएँ
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
2. भारतीय सािहय क पHरभाषाएँ
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................

उतराखड मु त िवविवालय 22
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
(ख) सही/गलत का चयन किजए।
1. राज+थानी पिVम भारत क भाषा है।
2. डॉ. नगे/0 ने ‘भारतीय मनीषा क अिभTयि_’ को भारतीय सािहय कहा है।
3. मराठी भारत के दिFण-पिVम क भाषा है।
4. कमीरी, पवू lKर क भाषा है ।
5. मलयालम, दिFण-पिVम क भाषा है।

3.4 भारतीय सािहय और अ3ययन क समयाएँ


भारतीय सािहय के +व9प के अतं ग(त हमने भारतीय सािहय के अ=ययन क
सम+याओ ं का संकेत िकया था। यहाँ हम उसी सम+या के कारण* का िव+तार से अ=ययन कर: गे।
हमने अ=ययन िकया िक भारत म: कई भाषा पHरवार क भाषाएँ बोली जाती है। यहाँ एक आरे ख
के मा=यम से हम भारतीय भाषा पHरवार* क 9परे खा समझने का !यास कर: गे-
भारतीय भाषाएँ और भाषा परवार
1. भारोपीय भाषा पHरवार - अ(मागधी, शौरसेनी, मागधी, पहाडी, ़ िबहारी,
गजु राती, बंगला, उिड़या
2. 0ािवड़ भाषा पHरवार - तेलगु ,ु तिमल, क/नड़, मलायम
3. दरद - कमीरी, िसंधी पतो
4. ितZबती भाषा पHरवार - नागालैड, मिणपरु ी, िमजो इयािद पवू lKर क
भाषाएँ
ऊपर आपने देखा िक भारत म: चार भाषा पHरवार* क भाषाएँ बोली जाती है। ये भाषा पHरवार
अपने Tयाकरिणक गठन म: िभ/न !कार के हf।
बहिवध भाषा पHरवार क उपि+थित पर रामिवलास शमा( क िटnपणी है, ‘‘ अनेक आधुिनक
राPQ और राhय न के वल बहजातीय है वरन् उसम: िनवास करने वाली जाितयाँ एक से अिधक
पHरवार* क भाषाएँ बोलती है। इसिलए भारत म: अनके भाषाओ ं का बोला जाना अथवा उनका
अनेक पHरवार* से स5ब होना कोई अनोखा Tयापार नहM है। ’’ इस `िO से रामिवलास जी
अनेक भाषा पHरवार को भारतीय सािहय के िलए अवरोध नहM माना है। िफर भी !o तो उठता
ही है िक बहसां+कृ ितक पHरि+थितय* म: एक भािषक संकBपना क पिू त( कै से क जा सकती है?
भारत क सां+कृ ितक एकता का संदभ( काफ परु ाना है। भारतीय िमथक* एवं महाकाTय* को
आधार बनाय: तो हमे देखते हf िक उसम: स5पूण( राPQ को आधार बनाया गया है। रामायण म: |ी
राम क उKर से दिFण क या7ा सा+ं कृ ितक एकव के !यन के िसवा और या कहा जा
सकता है? महाभारत म: भी पाडव* के मा=यम से भारत के पवू (-पिVम, उKर-दिFण क या7ा

उतराखड मु त िवविवालय 23
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कराकर लेखक ने अपनी सां+कृ ितक `िO का ही पHरचय िदया है। धािम(क-िमथकय व जातीय
महाकाTयामक सं+कृ ित के ही कारण स5पणू ( भारत म: कम(काड व पजू ा-पित म: लगभग एक
जैसी ही पित अपनाई जाती रही है। अथ( यह है िक भारतीय समाज व सं+कृ ित क साvयता क
ऐितहािसक पर5परा रही है। 0िवड़ भाषा के शZद अग9, अनल, कंु ड, कुंडल, चंदन (पूजा से
शZद) आिद शZद स+ं कृ त भाषा म: भी िमलते हf।
काल िवभाजन क सम+या
जैसा िक हमने अ=ययन िकया िक भारत अपने भौगोिलक एवं बहभािषक वैिव=य क `िO से
फै ला हआ बृहद राhय है। हर Fे7 क अलग-अलग भाषा....और उन भाषाओ ं काअलग
Tयाकरण 9प। सबसे बडी सम+या
़ सभी भाषाओ ं को एक साथ रखकर उनका िववेचन-िवeे षण
करने से है। भारत क िविभ/न भाषाओ ं म: मलू भूत 9प से एकता तो पHरलिFत क जाती है,
लेिकन सािहियक !वृिK य* के िनधा(रण म: काल िवभाजन का !o उठना +वाभािवक ही है।
कारण यह िक एक ही !वृिK अलग-अलग भाषाओ ं म: अलग-अलग समय पर रही है। जैसे
भि_काल को ही हम उदाहरण +व9प ल: तो यह कह सकते हf दिFण का भि_ सािहय पूव( का
है और िह/दी का बाद का.... इसी तरह अ/य !वृिK य* को भी हम ले सकते हf।
3.5 भारतीय सािहय और रा89ीय-सांकृितक &
डॉ. नगे/0 [ारा स5पािदत प+ु तक ‘भारतीय सािहय का समेिकत इितहास’ म: भारतीय
सािहय क अनेक अथ(छायाएँ बताई गयी है। उन अथ(छायाओ ं को हम एक आरेख के मा=यम
से इस !कार देख सकते हf
भारतीय सािहय: िविभ/न अथ(
1. भौगोिलक
2. पHरवेशीय
3. जातीय-सां+कृ ितक
4. जीवन-दश(न
आइए इन अथg को हम समझने का !यास कर: । भौगोिलक का तापय( है - भारत क सीमाओ ं
के अतंग(त बोले जाने वाली भाषाएँ। पHरवेशीय अथ( का तापय( है- यथा(थवादी `िOकोण से।
भारत क सामािजक- राजनीितक के अथ( म: भारतीयता क Tयाया करने से है। जातीय-
सां+कृ ितक `िO से तापय( ऐसी अवधारणा से है जो भारतीयता का पHरचायक हो। जातीय-
सां+कृ ितक म: धािम(क-सां+कृ ितक, आचार-िवचार के सार से है। जीवन-दश(न का तापय( है-
भारत क भौगौिलक-पHरवेशीय-जातीय-सां+कृ ितक मBू य* के िनचोड़ से !ा\ जीवन मBू य। यानी
भारतीय जीवन दश(न* क रसामक अिभTयि_ के रसामक सािहय को ही भारतीय सािहय
कहा गया है। आपने पूण( म: अ=ययन िकया िक भारतीय सािहय क अवधारणा के मूल म:
सां+कृ ितक व राPQीय !o ही है। दरसल इस अवधारणा िक ‘भारतीय सािहय के मा=यम से

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
भारतीय एकता क +थापना कै से क जाये? यही !o भारतीय सािहय क अवधारणा के क: /0
म: हf।
3.6 सारांश
आपने एम.ए.एच.एल-204 क तीसरी इकाई का अ=ययन िकया। यह इकाई भारतीय सािहय
क अवधारणा पर क: ि/0त है। इस इकाई के अ=ययन के पVात आपने जाना िक –
• भारतीय सािहय क अवधारणा के मल ू म: भारतीय राPQ क मल
ू भतू एकता को !कट
करना रहा है।
• भारत बह-भािषक एवं बह-सां+कृ ितक राPQ रहा है। इसक बहभािषकता कई भाषा
पHरवार* पर आधाHरत रही है। भारोपीय भाषा पHरवार, 0ािवड़ भाषा पHरवार। ितZबती
भाषा पHरवार एवं कमीरी भाषा पHरवार। !o यह है िक बह-भािषक समाज म: राPQीय
एकता कै से +थािपत क जाये? भातीय सािहय क अवधारणा के मल ू म: यही !o
के /0 म: रहा है।
• भारतीय सािहय क अवधारणा को पHरभािषत करते हए उसे भारतीय मनीषा क
अिभTयि_ के 9प म: देखा गया है।
• भारतीय सािहय के +व9प क समझ के िलए हम: भारत के उKरी Fे7, पHरVमी Fे7,
दिFण क भाषाएँ, पवू U Fे7 क भाषाएँ एवं पवू lKर Fे7 क भाषाओ ं एवं उनक
सं+कृ ित क समझ भी आवयक है।
3.7 श"दावली
• भाषा-पHरवार - Tयाकरिणक आधार* पर भाषा का समहू ।
• अितTयाि\ - िबना ठोस आधार के Tयापक आयामेां को धारण
करना।
• जातीय चेतना - िकसी !देश-राPQ क मल
ू चेतना।
• महाकाTयामक सं+कृ ितक - Tयापक जीवन आदश( को धारण करने वाली
स+ं कृ ितक।
3.8 अ%यास &' के उ(र
अvयास !o 1
(ख)
1. सय
2. सय
3. सय

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
4. असय
5. असय

3.9 सदं भ *+थ सच


ू ी
1. भारतीय सािहय - ि7पाठी, रामछबीला, वाणी !काशन, सं+करण 2012
2. भारतीय सािहय का समेिकत इितहास - (स)ं नगे/0, िह/दी मा=यम काया(/वय
िनदेशालय, िदBली िव<िवालय, ि[तीय सं+करण 2009
3.10 सहायक/ उपयोगी पाठ्य साम*ी
1. तलु नामक सािहय भारतीय पHर!ेIय, चौधरु ी, इ/0नाथ, वाणी !काशन,ि[तीय
स+ं करण 2010
2. तल ु नामक अ=ययन: भारतीय भाषाएँ और सािहय: (सं)-राजरू कर,भ.ह.,बोरा,
राजकमल, वाणी !काशन, ि[तीय सं+करण 2008।
3.11 िनब+धामक &
1. भारतीय भाषाओ ं का पHरचय !+ततु किजए।
2. भारतीय सािहय क अवधारणा का पHरच !+ततु किजए।

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई – 4 भारतीय सािहय क :यापकता
इकाई क परे खा
4.1 तावना
4.2 पाठ का उेय
4.3 भारतीय सािहय क Aयापकता
4.3.1 भागौिलक िव तार
4.3.2 ऐितहािसक िव तार
4.3.3 भािषक िव तार
4.3.4 सािहय का िव तार
4.4 भारतीय सािहय का सां कृ ितक िव तार
4.5 सारांश/मDू यांकन
4.6 श(दावली
4.7 अ+यास ,- के उ.र
4.8 संदभ& /0थ सचू ी
4.9 सहायक/उपयोगी पाठ्य साम/ी
4.10 िनबंधामक ,

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
4.1 तावना
भारतीय सािहय क अवधारणा से संबंिधत आपने इकाई का अ=ययन िकया। उस
इकाई के मा=यम आपने जाना िक सां+कृ ितक एवं राPQीय पHरकBपना को आधार बना करके ही
भारतीय सािहय क अवधारणा िनिम(त हई है। आपने अ=ययन िकया िक भारतीय सािहय क
कई अथ(छाया है। भौगौिलक, पHरवेशीय, राPQीय सां+कृ ितक एवं जीवन मBू य से म_ ु `िO।
भारतीय सािहय क Tयापकता इतनी hयादा है िक इसे िकसी एक इितहास, एक काल सीमा म:
िनब कर देना किठन काय( है। िकसी एक भाषा के सािहय के ग-प का एक साथ ही
िववरण देना भी संभव नहM है, िफर संपणू ( भारत के सािहय क Tयाया-िववचेना िकस !कार
सभं व हो सकती है? भारतीय सािहय के एकव क `िO से नाथ सािहय, चारण काTय,
संतकाTय, !ेमायानक काTय, वैPणव काTय एवं आधुिनक िवचार दश(न* के !भािवत
सािहियक !वृिKयां !मख ु 9प से सभी !मख ु भारतीय सािहय म: पायी जाती है। भारतीय
सािहय पर िटnपणी करते हए कृ Pण कृ पालनी ने िलखा है-
‘‘भारतीय सvयता क तरह, भारतीय सािहय का िवकास, जो एक !कार से उसक
सटीक अिभTयि_ है, सामािजक 9प म: हआ है। इसम: अनेक यगु ो, !जाितय* और धमg का
!भाव पHरलिFत होता है और सां+कृ ितक चेतना तथा बौिक िवकास के िविभ/न +तर िमलते
है ।’’ एक दसू री जगह कृ Pण कृ पलानी जी ने िलखा है, ‘‘अय/त !ाचीन िवकासkम के
अितHर_ इसम: दो अ/य िवशेषताऐ ं भी हf, जो स5पणू ( भारतीय सािहय के अपणू ( गौरव !दान
करती है। एक है तीन हजार से अिधकािधक वषg तक Tया\ अखंड सृजन पर5परा और दसू री है
वत(मान म: जीिवत अतीत क !ाणवंत चेतना।’’ +पO है ऐितहािसक, भौगौिलक एवं िवषय
िव+तार क `िO से भारतीय सािहय बहत Tयापक है। इसके िवषय िव+तार का संकेत करते हए
िव/टरिनट्स ने िलखा है, ‘‘िवषयव+तु क `िO से इसम: Tयापक अथ( म: वाङ्यम के सम+त 9प*
धािम(क और लौिकक महाकाTय, !गीतकाTय, नाटक, नीितकाTय तथा ग म: रिचत कथा
आयाियका, शाS आिद का अ/तभा(व है।’’
4.2 पाठ का उेय
एम.ए.एच.एल.- 204 क यह चौथी इकाई है। यह इकाई भारतीय सािहय क Tयापकता पर
आधाHरत है। इस इकाई के अ=ययन के उपरा/त आप-
• भारतीय सािहय के भौगोिलक िव+तार को जान पाय:गे।
• भारतीय सािहय के ऐितहािसक +व9प को समझ पाय:गे।
• भारतीय सािहय के िनधा(रक !मखु भाषाओ ं से पHरचय !ा\ कर सक: गे।
• भारतीय सािहय के मा=यम से सां+कृ ितक िव+तार को समझ सक: गे।
• भारतीय सािहय के िव+तार को समझ सक: गे।

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
• भारतीय सािहय से जुड़ी हई पाHरभािषक शZदाविलय* से पHरचय !ा\ कर सक: गे।
4.3 भारतीय सािहय क :यापकता
भारतीय सािहय क अवधारणा एवं +व9प के सदं भ( म: हमने भारतीय भाषाओ ं के
भाषा-वैिव=य एवं िव+तार का अ=ययन िकया था। यहाँ हम भारतीय सािहय क Tयापकता को
भौगोिलक एवं ऐितहािसक संदभg के साथ ही समझने का !यास कर: गे। भारतीय सािहय क
Tयापकता को िब/द9 ु प म: यहाँ हम एक आरे ख के मा=यम से समझने का !यास कर: गे।
भारतीय सािहय क 1यापकता
1.भौगोिलक िव+तार 2.ऐितहािसक िव+तार 3.भािषक िव+तार 4.सािहियक िव+तार
ऊपर हमने भारतीय सािहय के िव+तार के तव* को देखा। अब हम तव* का िव+तार से
अ=ययन कर: ग:।
4.3.1 भौगोिलक िवतार
भौगोिलक िव+तार, भारतीय सािहय का !ाथिमक तव है। जब स5पणू ( भारत क
भाषाओ ं को आधार बना करके भारतीयता क अवधारणा िवकिसत हई है, तो उसके मल ू म:
भारत का भौगोिलक िव+तार ही आधार 9प म: रहा है। भारतीय सािहय के भौगोिलक िव+तार
का संकेत करते हए िव/टरिनट्स ने िलखा है- ‘‘हजार वषg तक िनर/तर गितशील इस मानिसक
िkया-कलाप का िवकास-Fे7 वह देशा है जो िहदं क ु ु श पव(त से कुमारी अतं रीप-लगभग डेढ़
लाख वग(मील तक फै ला हआ है िजसका Fे7फल 9स को छोड़ सम+त यरू ोप के बराबर है और
िव+तार 8 से 35 उKरी अFाश ं तक अथा(त् भमू =यम रे खा के ऊPणतम !देश* से लेकर शीतोPण
किटबंध तक हf।’’ भारत के सम+त भौगोिलक वृK को भारतीय सािहय के भौगोिलक िव+तार
म: शािमल कर िलया गया है। कारण यह िक सम+त भारत म: अलग-अलग !देश* क अलग-
अलग भाषाओ ं का अि+तव है। कमीर से लेकर क/याकुमारी तक भारत का भौगोिलक
िव+तार फै ला हआ है।
4.3.2 ऐितहािसक िवतार
भारतीय सािहय के ऐितहािसक +व9प पर िवचार करते हए िव/टरिनस ने िलखा है,‘‘
भारतीय सािहय का इितहास भाषा के मा=यम से अिभTय_ तीन हजार वष( के मानिसक िkया-
कलाप का िलिपब इितहास है।’’ इस `िO से िवचार िकया जाए तो िव/टरिनस ने भारतीय
सािहय का इितहास लगभग 1000 ईसा पवू ( िनधा(Hरत िकया है। यानी महाकाTयकालीन
स5vयता के बाद के समय को ही उ/ह*ने अपने िववेचन के के /0 म: रखा है। महाकाTयकालीन
सvयता से पवू ( भी भारत का पया(\ सािहय हम: देखने को िमलता है। भारतीय सािहय के
ऐितहािसक +व9प क समझ हम एक आरे ख के मा=यम से समझने का !यास कर: गे।
भारतीय सािहय का ऐितहािसक +व9प (आरे ख)
मै समूलर - 1200 ईसा पवू (
ए. वेबर - 1200 ईसा पवू (

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
जैकोबी - 4500 ईसा पवू (
बालगगं ाधर ितलक - सृिO के !ारि5भक यगु म:
पं0 दीनानाथ शाSी - 3 लाख वष( पवू (
अिवनाशच/0 दास - 25,000 वष( पवू (
भडारकर - 600 ई.प0ू
आिदशंकराचाय( - सृिO के !ारि5भक चरण
Tयास - सृिO के !ारि5भक चरण
चँिू क ससं ार का !ाचीन 4/थ वेद (ऋrवेद) को ही माना जाता है। और वेद* क रचना को लेकर
काल मतै य नहM है। 600 ईसा पवू ( से लेकर करोड़* वषg तक क मा/यता हमारे सामने उपलZध
है। मै समल ू र,ए. वेबर, भडारकर जैकोबी, बालगंगाधर ितलक ने ऐितहािसक !माण* को साIय
मानकर अपना मत ि+थर िकया है तो दयान/द सर+वती, पं0 दीनानाथ शाSी, अिवनाशच/0
दास, आिदशंकराचाय( एवं Tयास ने िमथकय-पौरािणक एवं hयोितषीय आधार पर अपना मत
ि+थर िकया है। आइए ऊपर के अ=येताओ ं के मत* क समीFा कर: ।
मै समूलर के मत के मल ू म: यह अवधारणा रही है िक गौतम ब ु के समय तक वेद* क रचना
पूरी हो चक ु  थी। गौतम ब ु का समय 5-6वM शताZदी ई.पू0 माना गया है। मै समूलर ने अपने
मत क पिु O के िलए वैिदक सािहय को चार !मख ु भाग* म: िवभ_ कर िदया है, तथा !येक के
िलए 200 वष( का समय रखा है-
1. छ/द काल - 1000-1200 ई.पू.
2. म/7 काल - 800- 1000 ई.प.ू
3. qा ण काल - 600-800 ई.पू.
4. स7ू काल - 400- 600 ई.पू.?
ए. वेबर ने वेद* के समय को 1200 ई.पू. तो +वीकार िकया, िक/तु साथ ही वे यह भी जोड़ देते हf
िक यह अनुमािनत समय है। जैकोबी के मत के मल ू म: hयोितष क गणना रही है। hयोितष को
आधार बना करके ही बालगंगाधार ितलक ने भी अपना मत ि+थर िकया है। ितलक ने वैिदक
काल को 4 भाग* म: िवभ_ िकया है-
1. अिदत काल – 4000 - 6000 ई.पू. - ग-पामक म7ं
2. मृगिशरा काल - 2500-4000 ई.पू. - ऋक सू_
3. कृ ितका काल - 1400-2500 ई.प.ू - चार* वेद* का संकलन qा ण 4/थ
4. अिं तम काल - 500-1400 ई.प.ू - स7ू एवं दश(न 4/थ
दयान/द सर+वती एवं अिवनाशच/0 दास ने hयोितषीय आधार पर अपना मत ि+थर िकया है।
4.3.2 भािषक िवतार
भारत बहभािषक राPQ है। इस `िO से इसे बहसां+कृ ित राPQ भी कहा जा सकता है।
लगभग 1652 मातृभाषाएँ हमारे देश म: बोली जाती है तथा !मुख 9प से 25-30 भाषाएँ अपने
समृ सािहय के कारण उBलेखनीय हf। इन भाषाओ ं का संबधं भारतीया स+ं कृ ितक से !मख ु ता

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
से जड़ु ा हआ है। िपछली इकाई म: आपने भािषक िव+तार क `िO से भारतीय सािहय का
अ=ययन कर िलया है। अब हम !मख ु भाषा पHरवार* एवं िलिपय* के मा=यम से भारतीय
सािहय का िव+तार समझने का !यास कर: गे। इिं दरा गांधी राPQीय म_ु िव<िवालय क िह/दी
संरचना क पु+तक म: िलिप और भाषा के स5ब/ध को इस !कार Tय_ िकया गया है।
qा ी िलिप
1. उKरी शैली 2. दिFणी शैली
उKरी शैली के िन5न िलिखत चार भेद हf -
1. ग\ु िलिप 2. कुिटल िलिप 3. शारदा िलिप 4. !ाचीन नागरी िलिप
शारदा िलिप के िन5निलिखत उपभेद हf –
1. कमीरी
2. मंडेआली
3. डोगरी
4. चंबा
5. िसरमौरी
6. जौनसारी
7. कुBलई
8. मुलतानी
9. िसंधी
10. ग9
ु मखु ी आिद
इसी कम( ने !ाचीन नागरी िलिप के पनु ः दो भेद माने गए हf
(क)पवू U नागरी (इसके उपभेद िन5न हf)
1. मैिथली कै थी
2. नेवारी
3. उिड़या
4. बगं ला
5. असिमया
6. !ाचीन मणीपुरी आिद
(ख)पिVमी नागरी
1. गजु राती
2. महाजनी
3. राज+थानी
4. महाराPQी
5. मोडी ़
6. नागरी

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
q ी िलिप के दसू रे भेद अथा(त दिFणी शैली के 6 उपभेद िन5निलिखत हf -
1. तेलगु ु क/नड़ िलिप
2. 4/थ िलिप
3. तिमल िलिप
4. किलगं िलिप
5. म=य िलिप
6. पिVम िलिप
भारतीय सािहय के िव+तार को समझने के िलए िलिप और भाषा के
इस आरे ख को समझना अिनवाय( है। आरे ख म: हम देख सकते हf िक एक ही
मल
ू िलिप (एक ही मल ू सं+कृ ित) qा ी िलिप से ही उKरी एवं दिFणी शैली
का ज/म हआ और उKरी एवं दिFणी शैलीय* से अनेक िलिपयाँ और उनको
अिभTय_ करती अनेक भाषाओ ं का ज/म हआ। इस आरे ख के मा=यम से
जहाँ एक ओर हम: भारतीय सािहय के वैिव=य एवं िव+तार को समझने म:
मदद िमलती है, वहM दसू री एक संकेत भी िमलता है िक मूल 9प से भारतीय
सं+कृ ित एक ही है। अब हम !मख ु भाषा पHरवार* के संदभ( म: भािषक िव+तार
का अ=ययन कर: ग:। पवू ( क इकाई म: हमने भारत के !मख ु भाषा पHरवार* का
अ=ययन िकया। अब हम उनका िव+तार से अ=ययन कर: ग:। संFेप म: िव< के
भाषा पHरवार* क सचू ी यहाँ हम देख: -
िव5 के मुख भाषा परवार िन7न ह8 -
1. भारोपीय सेमेिटक
2. हैमेिटक पHरवार
3. सडू ानी भाषा पHरवार
4. नाइजर- कांगो पHरवार
5. मरू ल-अBटाइक पHरवार
6. 0िवड़ भाषा पHरवार
7. चीनी- तZबती पHरवार
8. आ+Qो-एिशयािटक पHरवार
9. मलाय-पािलनेशयन पHरवार
10. अमेHरक भाषाएँ
भारोपीय पHरवार के अतं ग(त भारतीय भाषाओ ं क अिधंकाश भाषाएँ समेट ली जाती है
या आ जाती है। भारोपीय पHरवार के िव+तार को हम एक आरे ख के मा=यम से इस !कार समझ
सकते हf- भारोपीय परवार

भारोपीय भाषा पHरवार के अतं ग(त भाषा पHरवार िन5निलिखत दो वगg क !धानता हf -

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. क: टुम वग( 2. शतम् वग(

भारत-ईरानी शाखा

िह/दी
भारोपीय भाषा पHरवार के अतं ग(त कमीरी-पतो, फारसी, इयािद भाषाएँ भी आती हf।
इसी शाखा म: !ाचीन सं+कृ त, लैिटन, 4ीक आिद भाषाओ ं के साथ ही िह/दी, पंजाबी, उद(,ू
गजु राती, मराठी, बांगला, ओिड़या, असिमया, लहदं ा, िस/धी जैसी भाषाएँ भी आती है। जहाँ
तक 0िवड़ भाषा पHरवार का !o है। उसम: चार !मख ु भाषाएँ हf-
9िवड़ भाषा परवार
1.तिमल 2. मलयालम 3. क/नड़ 4.तेलगु ु
0िवड़ भाषा पHरवार क चार !मख ु भाषाओ ं के अितHर_ तल ु ु, कोडगु या कूग(, तोडा, ग*डी,
कुई, कुडुख या ओराँव, माBतो इयािद हf। भातीय सािहय का तीसरा भाषा-पHरवार आि+Qक
भाषा पHरवार है। एक आरे ख के मा=यम से इसे हम: इस !कार समझ सकते हf-
आि<क भाषा परवार
आि+Qक भाषा पHरवार के अंतग(त दो वगg को समािहत िकया जाता है -
(क) मान-मेर (ख) मंडु ा
मान-मेर के अ/तग(र खासी (मेघालय), िनकोबारी (िनकोबार)और मंडु ा के अ/तग(त संथाली
मंडु ारी, कुक( , सवर भाषाओ ं का उBलेख िकया जाता है.
भारतीय सािहय का चौथा भाषा-पHरवार चीनी-ितZबती भाषा पHरवार है।
4.3.4 सािहय का िवतार
भारतीय सािहय क Tयापकता के अंतग(त आपने भौगौिलक, ऐितहािसक एंव भािषक
िव+तार का अ=ययन िकया। अब हम भारतीय सािहय के सािहियक िव+तार का अ=ययन
कर: गे। जैसा िक िव/टरिनस ने !+तािवत िकया था िक भारतीय सािहय म:-‘‘िवषय-व+तु क
`िO से इसम:, Tयापक अथ( म: ,वाƒय के सम+त 9प*- धािम(क और लौिकक महाकाTय, !गीत-
काTय, नाटक, नीित-काTय तथा ग म: रिचत कथा-आयाियका, शा†7 आिद का अतं भा(व
है।’’ +पOयतया हम देख सकते हfिक सािहय के सम+त काTय 9प* एवं भारतीय सािहय का
सम+त भाषाएँ इसके अतं ग(त आती है। डॉ. भोलानाथ ितवारी ने भारतीय सािहय के िव+तार पर
िटnपणी करते हए िलखा है-‘‘तिमल, तेलगु ,ु मराठी, बगं ाली, आिद िविभ/न भाषाओ ं के मा=यम
से अिभTय_, िविभ/न सािहय य* एक होकर भारतीय सािहय क संRा पाने के अिधकारी हf,
इसको हम िह/दी सािहय क अपनी संकBपना के मा=यम से समझ सकते हf। जब हम िह/दी
सािहय क आज बात करते हf,तब उसे खडी बोली ़ म: रिचत काTयकृ ितय* तक ही सीिमत नहM

उतराखड मु त िवविवालय 33
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
रखते। इसम: !साद, पंत, िनराला, !ेमच/0, अRेय, यशपाल आिद क रचनाओ ं के साथ-साथ
अवधी, qज, मैिथली आिद भाषाओ ं के सािहयकार जायसी, सरू , तल ु सी, िवापित आिद क
कृ ितय* को भी समािहत करने म: संकोचन नहM करते। इन िविभ/न भाषा/बोिलय* के मा=यम से
अिभTय_ होने वाला सािहय एक है य*िक इनक रचना करने वाले िह/दी भाषाई समाज क
जातीय चेतना एक है।’’
‘‘िजस !कार वृजवासी और अवध-िनवासी Tयि_य* क मातृबोली kमशः qजभाषा और
अवधी है, िफर भी िह/दी भाषाई समदु ाय का एक सद+य होने के नाते अपने Tयि_व के एक
आयाम पर दोन* ही समान 9प से िह/दी भाषाभाषी है, उसी !कार हम यह भी कह सकते हf िक
तिमलनाडु का तिमलभाषी, आं‡ !देश का तेलुगभु ाषी, महाराPQ का मराठी भाषी और बगं ाल
का बँगलाभाषी, अपनी तमाम Fे7ीय िविशOताओ ं के बावजदू अपने Tयि_व के एक वृहत
आयाम पर भारतीय है और उनके [ारा रिचत सािहय अपने सम+त भषा-भेद के उपरा/त भी
एक (भारतीय) सािहय के अंतग(त आते हf, य*िक भारतीय समाज क ऐितहािसक पर5परा,
सां+कृ ितक मBू य और काTय-संवेदना क ऐितहािसक पर5परा, सां+कृ ितक मBू य और काTय-
संवदेना समानधमg है और उसके [ारा रिचत सािहियक कृ ितय* म: काTय-व+तु का संयोजन,
कथा-9िढ़य* का िनवा(ह, भाव-बोध का सं+कार और िशBपगत अिभिव/यास क !कृ ित
सामािसक है।’’
अयास  1
(क) सही/गलत म: उतर दीिजए।
1. भारत का भौगोिलक िव+तार कमीर से लेकर क/याकुमारी तक फै ला हआ है।
2. मै समूलर ने वेद* का समय 1200 ईसा पवू ( का माना है।
3. बालगंगाधार ितलक ने वेद* का रचनाकाल 2000 ईसा पवू ( माना है।
4. दयान/द सर+वती ने वेद* का समय 4000 ईसा पवू ( माना है।
5. Tयास ने वेद* का रचनाकाल सृिO के !ारि5भक चरण को माना है।
(ख) र= थान क पूित. किजए।
1. qा ी िलिप क.............शैिलयाँ !चािलत है। (2/5/7)
2. उKरी शैली क शैली नहM हf ..............। (पिVमी िलिप/गु\ िलिप/कुिटल िलिप)
3. ग9ु मख ु ी िलिप का संबंध है.........से। (शारदा िलिप/4/थ िलिप/ग\ु िलिप)
4. उिड़या का संबधं ...... से है। (पिVमी नागरी/पवू U नागरी/ पिVमी िलिप)
5. 0िवड़ भाषा पHरवार क: अंतग(त भाषा .........नहM है। (उिड़या/मलयालभ/क/नड़)
2- िटnपणी िलिखए।
1. भारोपीय पHरवार
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उतराखड मु त िवविवालय 34
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
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2- चीनी- ितZबती भाषा पHरवार
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4.4 भारतीय सािहय का सांकृितक िवतार
भारतीय सािहय क Tयापकता के अंतग(त हमने उसके भौगोिलक, ऐितहािसक,
भािषक एवं सािहिय िव+तार को समझने का !यास िकया। अब हम भारतीय सािहय के
सां+कृ ितक िव+तार के तव* को समझने का !यास कर: गे।
भारतीय सािहय बनाम राA< क अवधारणा का 
भारतीय सािहय के मल
ू म: राPQ क अवधारणा का !o अनुPयतु है। िकसी भी देश क
राPQीयता व जातीयता का !o भौगोिलक भी हो सकता है और सां+कृ ितक भी। कई बार
राजनीितक भी........। !ाचीन काल म: भारत क राPQीयता क अवधारणा मूल 9प से
सां+कृ ितक !o ही था। भारत, आया(वत( जैसे नामकरण हो या 16 महाजनपद क अवधारणा।
या ये अवधारणाएँ एक राPQ का संकेत नहM करते? इसी !कार 12 hयोित(िलंग एवं चार पीठ
क +थापना या इस बात का सूचक नहM है क स5पणू ( भारत एक राPQ क संकBपना से जड़ु ा
हआ है. राजनीितक !o* ने भारत क सीमाओ ं को कम कर िदया है, और भी इस !कार का
!यास िकया जा रहा है....। िफर सां+कृ ितकता का !o जातीयता से जुड़ा हआ भी है। हर
सं+कृ ित अपनी जातीयत का िनमा(ण करती ही है। भारतीय जातीय चेतना भी एक ही है और वही
उसके एक राPQ का सचू क भी है। महाभारत म: भारत क राPQीयात का संकेत करते हए कहा
गया है- ‘‘इस देश म: गंगा, िसं/धु सर+वती, गोदावरी, नम(दा, िवत+ता, सरय,ू गोमी, कावेरी
आिद निदयाँ !वािहत है। इसम: कु9, पांचाल, शरू सेन, कोसल, किलंग, िवदभ(, पु u, िनषाद,
िनश , कमीर, गा/धार, िसंध-ु सौवीय(, 0िवड़, के रल, कणा(टक, चोल, चिु लक, पिु ल/द,
कुिल/द, क*कण, आ/‡ आिद अनेक जनपद है। इस देश म: आय( ले}छा दोन* रहते हf यवन,
चीन, का5बोज भी इस भारत म: है।’’ +पO है िक राPQ वे देश क अवधारणा का िवकास उस
समय भी हो चुका था।
धम. धानता

उतराखड मु त िवविवालय 35
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
भारतीय सं+कृ ितक के मूल म: धािम(कता है। चाहै वह चार पीठ हो या 12 hयोित(िलंग या 52
शि_पीठ/स5पणू ( म: इसी !कार क धािम(क भावना उसे अपने भीतर समोये हए है।
सिहAणुता और उदारता
भारतीय सं+कृ ित अपनी उदारता और सिहPणतु ा क भावना के िलए िवयात रही है। वेद* म:
‘वसधु ैव कुटु5बकम’् क अवधारणा िमलती है। !ाचीन भारतीय सं+कृ ितक समरसता एवं
साहच(य पर आधाHरत रही है। यानी जाित-धम(, रंग एवं देश क सीमाओ ं से य_
ु होकर मनुPयता
पर िवचार िवमश( करना।
अनेकता मB एकता का 
हमने अ=ययन िकया िक भारत बहिवध भाषा एवं सं+कृ ित का राPQ है। िक/तु इतनी िविवधता के
बावजदू स5पूण( राPQ क जातीय चेतना एक ही है। इसे ही अनेकता म: एकता कहा गया है।

4.5 सारांश
एम.ए.एच.एल-204 क यह चौथी इकाई है। यह खड भारतीय सािहय पर आधाHरत है।
भारतीय सािहय क Tयापकता’ शीष(क इस इकाई का आपने अ=ययन कर िलया है। इस इकाई
के अ=ययन के पVात आपने जाना िक-
• भारतीय सािहय क Tयापकता को भौगोिलक, ऐितहािसक, भािषक एवं
सािहियक सदं भg म: समझने क ज9रत है।
• भारतीय सािहय के ऐितहािसकत +व9प को खोजते हए वेद* क उपिK से
जोड़ा गया है । वेद* का समय !ामािणक 9प से ईसा पवू ( 4000 के आस-पास
माना जा सकता है।
• भारतीय सािहय के भािषक िव+तार को समझने के kम म: आपने अ=ययन
िकया िक qा ी िलिप क उKरी -दिFणी शैिलय* से ही भारत क िविभ/न
भाषाओ ं का ज/म हआ है।
• संसार के भाषा पHरवार* म: चार भाषा पHरवार- भारोपीय, 0िवड़, भाषा
पHरवार, चीनी-ितZबती एवं आ+Qो-एिशयािटक पHरवार, भारतीय सािहय के
अतं ग(त आते हf।
• भारतीय सािहय का !मख ु भारोपीय पHरवार के अंतग(त आता है भारोिपय
पHरवार म: सं+कृ त, िह/दी, पंजाबी, उद,(ू गजु राती, मराठी, बांगला, ओिड़या,
असिमया, जैसी !मुख भाषाएँ आती है।
4.6 श"दावली

उतराखड मु त िवविवालय 36
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
• महाकाTयकालीन सvयता - रामायण-महाभारत जैसे महाकाTय* क
सvयता।
• बहभािषक राPQ - ऐसा राPQ जहाँ कई भाषाएँ (सं+कृ ित)
बोली जाती है।
• भाषा पHरवार - ससं ार क सम+त भाषाओ ं का उनके
Tयाकरिणक संरचना के आधार पर
वगUकरण।
• बृहत आयाम - बड़े संदभ( म: देखने क `िO
• कथा- 9िढ़ - कथा क पर5परागत पित।
4.7 अ%यास &' के उतर
अvयास !o 1
(क)
1. सय
2. सय
3. असय
4. सय
(ख)
1. 2
2. पिVम िलिप
3. शारदा िलिप
4. पवू U नागरी
5. उिड़या।
4.8 संदभ *+थ सूची
1. भारतीय सािहय-ि7पाठी, रीमछबीला, वाणी !काशन, सं+करण 2012
2. भारतीय सािहय का समेिकत इितहास - (सं) नगे/0, िह/दी मा=यम काया(/वय
िनदेशालय, िदBली िव<िवालय, ि[तीय स+ं करण 2009
3. िह/दी भाषा: इितहास और वत(मान - इिं दरा गांधी राPQीय म_ ु िव<िवालय, नई
िदBली अग+त 2010
4. िह/दी सरं चना - इिं दरा गाधं ी राPQीय म_
ु िव<िवालय, नई िदBली अ टूबर 2009
4.9 सहायक/ उपयोगी पाठ्य साम*ी

उतराखड मु त िवविवालय 37
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. तल ु नामक सािहय भारतीय पHर!ेIय:चौधरी, इ/0नाथ, वाणी !काशन, ि[तीय
स+ं करण 2010
2. तलु नामक अ=ययन: भारतीय भाषाएँ और सािहय: (सं)- राजरू कर, भ.ह. एवं बोरा
राजमल, वाणी !काशन, ि[तीय सं+करण 2008
4.10 िनब+धामक &
1. भारतीय सािहय के भािषक िव+तार क 9परे खा !+ततु किजए।
2. भारतीय सािहय क Tयापकता पर !काश डािलए।

उतराखड मु त िवविवालय 38
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई – 5 भारतीय सािहय का इितहास
इकाई क परे खा
5.1 तावना
5.2 पाठ का उेय
5.3 भारतीय सािहय का इितहास
5.3.1 दिEणी सािहय का इितहास
5.3.2 पवू F सािहय का इितहास
5.3.3 पिGमी सािहय का इितहास
5.3.4 िह0दी सािहय का इितहास
5.4 भारतीय सािहय का तल ु नामक अ8ययन
5.5 भारतीय सािहय: उपलि(धयाँ और अ0य ,
5.6 सारांश
5.7 श(दावली
5.8 अ+यास ,- के उतर
5.9 संदभ& /0थ सचू ी
5.10 सहायक/उपयोगी पाठ्य साम/ी
5.11 िनब0धामक ,

उतराखड मु त िवविवालय 39
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5.1 तावना
िपछली इकाइय* म: आपने भारतीय सािहय क अपधारणा एवं Tयापकता से संबंिधत
इकाईय* का अ=ययन िकया। आपने अ=ययन िकया िक स5पणू ( राPQ म: अंतिन(िहत जातीय स7ू *
क तलाश क !िkया म: ही भारतीय सािहय क अवधारणा सामने आई। भारतीय सािहय के
भौगोिलक- ऐितहािसक +व9प से आप पHरिचत हो चुके हf.....।आपने भारतीय सािहय के
भाषा िवकास क !िkया का भी अ=ययन िकया। इस इकाई म: हम भारतीय सािहय के इितहास
का अ=ययन कर: ग:।
भारतीय सािहय म: पवू U- पिVमी-उKरी एवं दिFणी सभी भाषाओ ं के सािहय का अ=ययन
िकया जाता है। भारत क !मुख भाषाओ ं के इितहास एवं उसक िवशेष ताओ ं का अ=ययन कर
तल
ु नामक 9प से भारतीय सािहय क पीिठका तैयार क जाती है। दिFण क भाषाओ ं तेलगु ,ु
तिमल, मलयालम एवं क/नड़ से या भारतीय आय(भाषाओ ं का सां+कृ ितक स5ब/ध ि+थर
िकया जा सकता है? पिVमी भाषाओ ं गजु राती-मराठी से या िह/दी क जातीय चेतना का
स5ब/ध है? और िफर है तो िकस 9प म: ? पवू U भाषाओ-ं बगं ला, ओिड़या, असिमया से या
भारतीय आय(भाषा (िह/दी) का जातीय स5ब/ध है? और है तो िकस 9प म:? और िफर िह/दी
क सामािसक चेतना भी 18 बोिलय* (भाषाओ)ं म: िवभ_ है, उनका तािवक आधार या है?
इन सभी !o* को समझने क `िO से भारतीय सािहय के इितहास का अ=ययन उपयोगी है।
इस इकाई म: हम भारतीय सािहय के तुलनामक अ=ययन के मा=यम से भारतीय सािहय व
स+ं कृ ित क जातीय चेतना को समझने का !यास कर: ग:। साथ ही कुछ अ/य !o* पर भी हम इस
इकाई म: िवचार कर: ग:।
5.2 पाठ का उेय
एम.ए.एच.एल- 204 क यह पांचवी इकाई है। यह इकाई भारतीय सािहय के इितहास पर
के ि/0त है। इस इकाई के अ=ययन के पVात आप-
• भारतीय सािहय के इितहास से पHरिचत हो सक: गे।
• दिFणी भाषाओ ं के सािहय से पHरिचत हो सक: ग:।
• पिVमी भाषाओ ं के सािहय से पHरिचत हो सक: ग:।
• पूवU भाषाओ ं के सािहय से पHरिचत हो सक: गे।
• उKरी भाषाओ ं के सािहय से पHरिचत हो सक: ग:।
• भारतीय सािहय का तुलनामक अ=ययन कर सक: ग:।
• भारतीय सािहय क उपलिZधय* को जान सक: गे।
• भारतीय सािहय से संबिं धत पाHरभािषक शZदाविलय* को जान सक: गे।

उतराखड मु त िवविवालय 40
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5.3 भारतीय सािहय का इितहास
िपछली इकाई म: आपने भारतीय सािहय के मूल वेद-उपिनषद इयािद के ऐितहािसक
िववेचन का अ=ययन िकया। इस इकाई म: हम !मख ु भारतीय भाषाओ ं व सािहय का
ऐितहािसक िववेचन कर: गे/ अ=ययन कर: गे।
5.3.1 दिDणी सािहय का इितहास
आपने अ=ययन िकया िक दिFणी सािहय का संबंध 0ािवड़ भाषा पHरवार से है। इस
भाषा पHरवार म: चार !मख ु भाषाएँ हf। तिमल, मलयालम, क/नड़ एवं तेलगु ु भाषा से िमलकर
यह भाषा पHरवार बना है। सं+कृ त के बाद के भाषा िवकास kम म: ये भाषाएँ आती है। दिFणी
सािहय के इितहास को समझने के िलए !मुख भाषाओ ं का इितहास एवं उसके सािहय को
देखना !ासांिगक होगा।
तिमल भाषा का इितहास
दिFण भारतीय भाषाओ ं म: तिमल भाषा सवा(िधक संप/न मानी जाती है। तिमल भाषा क
रचनाएँ !थम शताZदी से भी पवू ( िमलनी श9 ु हो जाती है, िक/तु इसका भाषा का वा+तिवक
िवकास 7-8 वी शताZदी से िमलता है। तिमल सािहय का काल िवभाजन करते हए उसे
सामा/यतः मोटे तौर पर !ाचीन काल एवं म=यकाल म: िवभािजत िकया गया है। आइए तिमल
सािहय का काल-िवभाजन देख:-
1. ाचीनकाल - 500 ई.पू. से 600 ई. तक
!ाचीनकाल क कृ ितय* को भी तीन भाग* म: िवभ_ िकया गया है।
1. संगम यगु (संघकालीन कृ ितयाँ)
2. संघकालोतर
3. महाकाTय [य
2- मयकाल - 600 ई. से 1200 ई.
म=यकाल क कृ ितय* को अवा/तर 9प से कई भाग* म: िवभ_ कर िदया गया है।-
1. भि_ सािहय - इसम: शैवनायमार और वैPणव आलवार भ_* क कृ ितय* आती है।
2. जैन, बौ !ब/धकाTय एवं क5बन रामायण।
3. उतरकाल- 1200 ई. से 1750 ई. तक
3- परवतU काल -17 वM से 19 वM सदी तक, इसम: !मख ु 9प से मिु +लम सािहय आता
है।
4- आधुिनक काल - 19 वM सदी से अब तक।
1. !ाचीनकाल तिमल सािहय (सगं म सािहय)
तिमल के !ाचीन सािहय म: संगम सािहय सवा(िधक !ाचीन है। संगम सािहय म: लगभग 381
प व 782 वण(नामक !गीत हf। संगम सािहय के संकलन को दो वगg म: रखा गया है- 1-
एट्तो है या अO सं4ही 2- पतपु पाˆ या गीतदशी अO स4ं ही के उ_ आठ संकलन* के पद* म:

उतराखड मु त िवविवालय 41
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
मनPु य क अनुभूितय* एवं !ाकृ ितक का िच7 खMचा गया है। गीतदशी क रचनाओ ं म: मु य 9प
से राजवशं * के पराkम !ेम एवं !कृ ित वण(न का िच7ण िमलता है।
2. सघं कालोतर या नीितकाल
नीितकाTय* का समय 100 से 500 ई. तक माना गया है। नीितकाTय* क रचना के पीछे चेर,
चोल और पाडं ् य राजाओ ं के शासनकाल को अशाि/तकारक बताया गया है। इस यगु म: रिचत
काTय* को ‘पिदनेन-कल-कण कु’ (अठारह लघु नीित 4/थ) कहा गया है। 18 लघु गीत* म: 5
!ेम संबधं ी हf। 18 4/थ* म: दो 4/थ िवशेष 9प से उBलेखनीय हf। 1. ित9ककुरल 2.
नालिडयार।
ित9ककुरल के रचियता ‘ित9वBलवु र’ है। यह साव(भौिमक दश(न का 4/थ है। सहधिम(ता,
धमा(चरण, सांसाHर_ा, !ेम एवं जीवन बोध से समि/वत यह स/ु दर रचना है। नालिडयार, जैन
किवय* के िवरिचत प* का सं4ह हf।
3. महाका1य-,य
तिमल सािहय म: िशnपिदकारम् और मिणमेखला को महाकाTय-[य क संRा !ा\ है।
िशnपिदकारम् (नपू रु काTय) के रचियता इलंगो अिडगल है। इस महाकाTय म: कोवलन एवं
क/नगी के मा=यम से तकालीन समाज का Tयापक िच7 खMचा गया है। मिण मेखलै,
महाकाTय, िशnपिदकारम् के आगे का िव+तार माना गया है। यह महाकाTय कोवलन तथा
माधवी क प7ु ी मिण मेखलै के आ=यािमक जीवन क कहानी है।
2- मयकाल
1. म=यकालीन तिमल सािहय वैPणव भि_ आ/दोलन के िलए िवशेष 9प से !िस
रहा है। शैव नायनमार तथा वैPणव आलवार संत* के भि_पणू ( गीत ही इस यगु के सािहय के
िवशेष गौरव है।
शैव नायनकार* क संया लगभग 63है, िजनम: िवशेष 9प से !िस है- सतं ित9मल ू 9,
ित9Rान स5ब/धर, ित9ना, व करसर, स/ु दरर, मािण यावाचक एवं कारै काल अ5मैयार।्
वैPणव आलवार भ_* का भारतीय सािहय म: िवशेष +थान है। वैPणव आलवार भ_ !याः
िन5न जाितय* से आये हए थे। आलवार भ_* के पद* का संकलन आचाय( नाथमिु न [ारा िकया
गया है। इनका समय 3-9 वM सदी के बीच है। 12 आलवार संत हf- पोइगै आलवार (सरोयोगी),
पूदतालयार (भूतयोगी), पेयालवार (िपशाचयोगी), ित9मिलशै (भि_सार), ित9nपन,
ट*डरिडnपिड, ित9मगं ै (परकाल), कुलशेखर, पेHरयालवार (िवPणिु चत), आडं ाल (गोदादेवी),
ब5मालवार (परांकुश) एवं मधुर किव।
2. जैन, बौF ब-धका1य एवं क7बन रामायण-
जैन तथा बौ साधओ ु ं [ारा िवरिचत महाकाTय िवशेष 9प से चिच(त रहै। इस धारा के मह?व
पूण( महाकाTय है1. पे9मकथै 2. जीवक िच/तामिण 3. चल ू ामिण 4. वलैयापित 5.
कुडलके शी।
क5बन रामायण

उतराखड मु त िवविवालय 42
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
तिमल भाषा म: िवरिचत रामायण को क5ब [ारा रचे जाने के कारण इसे कंब रामायण भी कहते
हf। तिमल सािहय म: इस रचना का िविश{ +थान है। वाBमीिक रामायण क कथा को आधार
बनाते हए भी क5ब ने अपने रचना-कौशल एवं मौिलकता का पHरचय जगह -जगह िदया है।
2. उतरकाल: 1200 ई. से 1750 ई. तक
उतरकाल के !िस किवय* म: ‘‘औवैयार’’ नामक एक महान कविय7ी क गणना
क जाती है। इनके [ारा िलिखत आितचिू ड, मदु रु ै आिद िवशेष लोकि!य है। इसी युग म:
जयनक*डार [ारा िवरिचत किलंगतपु रिण रचना िवशेष लोकि!य है। इसी यगु मे िस नाम से
!िस 18 रचियताओ ं क गीतामक कृ ितयाँ िवशेष 9प से !चिलत है।
3. परवतGकाल-
इस यगु के !िस किवय* म: मीनाFी संदु रम िपBलै हf। इनक कृ ितय* म: 16 पुराण,9 िपBलै एवं
11 अंदािनयाँ िवशेष चिच(त है। इसी यगु म: रामिलंग +वािमगल भी थे।
4. आधिु नक काल
िजस !कार िह/दी भाषा म: नवजागरणवादी चेतना का आगमन हआ, उसी !कार तिमल
सािहय म: भी आधिु नक काल म: नवजागरणवादी !वृिKय* का उदय हआ। तिमल सािहय के
नवजागरणवादी !मख ु किवय* म: सुq‰यम् भारती, भारतीदासन, श ु ान/द भारती, देिशक
िवनायक िपBलै, कोतागंगलम सZु बु, नाम कल रामिलंगम िपBलै एवं कंबदासन आिद !मख ु
है। 1950 ई. के बाद तिमल सािहय म: नई तरह क किवता का (आधिु नक मBू य* से य_ ु )
!ादभु ा(व हआ। इस धारा के !मख ु किवय* म: अचलांिवकै अ5मैयार, नानल, सोम,ू बालभारती,
तरू न, वापणीदासन, के . एम. बालसुq‰यम्, कृ Pणदासन, ि7लोक सीताराम, भा+करन,
दरु ै सामी, कुिलयन, क9णािनिध , के . वी. जग/नाथन, तंगवेलन, अकलन इयािद है।
तेलगु ु भाषा एवं सािहय
दिFण भारतीय भाषाओ ं म: तेलुगु भाषा का अपना िवशाल सािहय है। भाषा के अथ( म: 1000
ई. के बाद इसका िवकास हआ। 1200 ई. के बाद सािहियक दिO से इसका िवशेष !चार एवं
!सार हआ है। तेलगु ु सािहय को तीन काल* म: िवभािजत िकया गया है-
1. आिदकाल 2. मयकाल 3. आधुिनक काल ।
1- आिदकाल- आिदकाल का एक नाम ‘!ाrनवदयुग’ भी है । इसका समय 1000
ई. से 1380 ई. तक माना गया है। न/नय भˆ, ितक/ना एवं एर( ना को तेलगु ु सािहय का किव7य
कहा गया है। न/नय भˆ तेलगु ु के आिद किव कहै गये हf। इ/ह*ने ‘‘आ/‡ महाभारतम्’’ क
रचना क है। आिदकाल क अ/य कृ ितय* म: वासवे<र [ारा ‘वीर शैव धम(’ का !वत(न िकया
गया है। तेलगु ु का !ाचीनतम रामायण गोन ब ु ा रे ड्िड [ारा रिचत ‘रंगनाथ रामायण’ है। पुराण
सािहय पर काय( क `िO से महाकिव |ीनाथ एवं पोत/ना क गणना क जाती है।
2- म=यकाल - म=यकाल को !ब/ध यगु भी कहा गया है। इस नामकरण
का अधार इस यगु म: बहत से !ब/ध* क रचना का होना है। कृ Pणदवं राय के दरबारी किवय* म:

उतराखड मु त िवविवालय 43
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
अBलासािन पेGना, नंिद ित5मना, रामभ0, घूज(टी, मBलना, तैनािल रामकृ Pण, िपंगिलसरू ना और
भˆमिू त( आिद हf।
3- आधिु नक युग- वीरे शिलंगम, वडडािद सुZबाराव जयंित रामŠया, सZु बाराव,
वासदु ेवशाSी, |ीपाद कृ Pणमूित(, िव<नाथ सयनारायण आिद किवय* ने राPQीय मनोवृिKयॉं
िवकिसत करने म: िवशेष भिू मका िनभाई। तेलगु ु सािहय क !मख ु सािहियक !वृिKय* म:
+व}छ/दतावाद, अvयदु य किवता (!गितशील काTया/दोलन), !योगवाद और नई किवता,
साठोतरी किवता इयािद धाराएँ िमलती है।इस `िO से ये िह/दी किवता क तरह ही, उसी kम
से िवकिसत हए हf।
क-नड भाषा एवं सािहय
क/नड़ सािहय का इितहास 2-5 वM सदी के बीच म: िमलता है। क/नड़ सािहय को सिु वधा क
`िO से आिदकाल, म=यकाल एवं आधिु नककाल म: िवभ_ कर सकते हf।
आिदकाल - 950 ई. ’ 1150 ई के बीच के समय का क/नड़ सािहय का +व(णयगु कहते
हf। इस काल िज/ह: रन7यी या किव7य कहा जाता है। पंप ने दो काTय* क रचना क है-
आिदपरु ाण एवं िवkमाज(ुन िवजयम।् पो/न [ारा रिचत कृ ितय* म: ‘शाितपरु ाण’ नाम कृ ित का
िवशेष मह?व है। र/न ने अिजतपरु ाण, गदायुम या सहसभीम-िवजयम् जैसी कृ ितय* का रचना
क है। इस यगु के अ/या लेखक* म: नागच/0, चावडंु , नाग वमा(, के िशराज, नेिमच/0, 90भˆ,
हHं रहर, राघवांक आिद !मखु है।
मयकाल - क/नड़ सािहय का म=यकाल 1200-1400 ई. तक माना जाता है। इस काल
के !मख ु आ/दोलन* म: 12 वM शताZदी के वीरशैववाद क गणना क जाती है। इसके उ!ेरक
बसवे<र थे। इस आ/दोलन के मा=यम से ‘वचन शैली’ का !ादभु ा(व हआ। 12 वM शताZदी से
15 वी शताZदी तक का काल’ वसवयगु ’ कहा जाता है। वंसवे<र इस kाि/त के उ!ेरक थे।
इसी !कार कना(टक म: वैPणव सािहय क भी समृ पर5परा नही है। यहाँ कृ Pणभि_ को
!चाHरत करने म: |ी म=वाचाय( क !मख ु भूिमका है।
आधुिनककाल- 17 वM सदी के बाद क/नड़ सािहय का ‹ास होना !ार5भ होता है। 17-19वM
सदी तक क/नड़ सािहय म: अधं कार काल के नाम से जाना जाता है। 19वM सदी के बाद से
क/नड़ सािहय म: आधिु नक काल का !वेश होता है। बे/0े, मंगलरू , िवनायक कृ Pण गोकाक, |ी
कंठnपा, क. शंकरभˆ ने देशभि_ को क/नड़ सािहय से जोड़ा। क/नड़ सािहय म: +व}छ/द
तावाद (भावगीत), !गितशील चेनता एवं !योगवादी किवता क !वृिKयॉ ं िह/दी सािहय के
kम म: ही देखने को िमलता है।
मलयालम भाषा एवं सािहय का इितहास
मलयालम भाषा, तिमल भाषा क एक शाखा के 9प म: िवकिसत हई है। मलयालम भाषा का
इितहास चौथी सदी से +पO 9प से िदखने लगता है, िक/तु इसका सािहय 13 वM सदी से
Tयवि+थत 9प से िमलना !ार5भ होता है। मलयालम भाषा एवं सािहय को सुिवधानसु ार तीन
काल* म: िवभ_ िकया गया है- 1. आिदकाल 3. म=यकाल 3. आधिु नककाल

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तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. आिदकाल- आिदकालीन मलयालम सािहय म: तीन स5!दाय देखने को िमलते
हf- 1. प}च मलयालम (श ु मलयालम भाषा म: अिभTयि_) 2. तिमल स5!दाय 3. सं+कृ त
स5!दाय। प}च मलयालम म: मुय 9प से लोकगीत है। इसके रचनाकार रामवीर वमा( है।
सं+कृ त स5!दाय म: लीला ितलकम्, संदश े काTय इयािद मह?व पणू ( कृ ितयाँ है।
2. मय काल (भि_काल एवं |ृंगाHरक काTय)
मलयालम के भि_काल म: संतसािहय के कुछ सू7 हम: ‘देवीपाट्डु’ और लोकगीत* म: िमलते
हf । िक/तु !बंध गीितकाTय* म: सबसे !िस रचना ‘कृ Pणगाथा’ है। इसके रचनाकार चेकशेरी
नबं िू तरी है। एषतु }छन [ारा िवरिचत िविलnपाˆ भी इस यगु क मह?व पणू ( रचना है। 14 वM से
लेकर 17 वM शताZदी तक मलयालमक भाषा म: चंपक ू ाTय* क ल5बी पर5परा भी हम: देखने का
िमलता है। इनम: ‘रामायण चंपू’ सबसे !िस है।
19 वM सदी म: वेणिमण नंपिू तHरnपाट ने |ृंगाHरक एवं मािम(क पद* क रचना कर |ृंगाHरक पद*
क श9 ु आत क। ‘!ब/धम्’ वेमिण का |ृंगाHरक काTय है। इसी !कार संदेश काTय पर5परा म:
‘‘उणनु ीिल संदेश’ का भी मह?व पणू ( +थान है
3. आधुिनककाल - 19 वM सदी से करे ल वमा( से मलयालम भाषा म: नई चेतना
का !वेश होता है। के .सी. िपBलई, ए.आर. राजराज वमा( एवं सी.एस. सुq‰य5पोˆी के मा=यम
से नवीन भाव बोध मलयालम सािहय को !ा\ होते हf। इसी !कार 20 वी शताZदी म: कुमार
असन, वBलतोल एवं उBलरू के मा=यम से मलयालम सािहय का !चरु िवकास हआ।
5.3.2 पूवG सािहय का इितहास
पवू U भाषा म: !मख
ु 9प से बंगला, उिड़या एवं असिमया भाषा के सािहय क गणना
क जाती है। यहाँ संFेप म: हम नई भाषाओ ं के इितहास का अ=ययन कर: ग:।
बंगला सािहय का इितहास
बगं ला भाषा का स5ब/ध मागधी अपmश ं से माना जाता है। बगं भाषा क बोली होने कारण
इसका नाम बंगला पड़ा है। बंगला भाषा व सािहय को तीन भाग* म: िवभािजत िकया गया है।
1. !ाचीनकाल या आिदकालीन सािहय (950से 1350ई. तक) 2. म=यकाली बंगला (1350
से 1800 ई. तक) 3. आधिु नक बगं ला सािहय (1800 ई. से आज तक)
1. ाचीनकाल का बंगला सािहय - िस* के चया(गीत* को !ाचीन बगं ला
सािहय का !ाचीनतम सािहय कहा जाता है। बौ- नाथ सािहय के अितHर_ जयदेव कृ त
‘गीत गोिव/द;’ इस काल क िवशेष उपलिZध है।
2. मयकालीन बगं ला सािहय- म=यकालीन बगं ला सािहय क !मख ु कृ ितय* म:
कृ ितवास ओझा क ‘कृ ितवास रामायण’ बंगला सािहय क उपलिZध ही है। मालाधर बसु [ारा
िलिखत, |ी कृ Pण िवजय’ !मख ु !ब/धकाTय है। चडं ीदास रिचत ‘|ीकृ Pण कत(न’ अपने
गीतामकता के कारण उBलेखनीय है। चैत/य महा!मभु [ारा रिचत ‘चैत/यचHरतामृत’ इस यगु
क िविशO कृ ित है। म=यकाल क अ/या उBलेखनीय बगं ला कृ ित म: 16 वM सदी का
मगं लकाTय एवं दौलत काजी रिचत ‘लोरच/0ाणी’ िवशेष उBलेखनीय है।

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तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3. आधुिनककालीन बंगला सािहय-
भारतीय भाषाओ ं म: नवजागरणवादी +वर !दान करने म: बांगला भाषा एवं सािहय क मह?व
पूण( भिू मका रही है। चाहै वह फोट(िविलयम कॉलेज का ग सािहय रहा हो या !थम िह/दी
समाचार प7 उद/त मात(ड। नवजागरणवादी चेतना के !व_ाओ ं म: ई<र च/0गु\, रंगालाल,
मधसु दू न, हैमच/0 एवं नवीनच/0 क मह?व पणू ( भिू मका रही है।
इसी !कार +व}छ/दतावादी !वृिKय* के िवकास म: भी बगं ला सािहय क मह?व पणू ( भूिमका
रही है। िवहारीलाल चkवतU, सरु े /0नाथ मजूमदार, ि[जे/0नाथ टैगोर, देवे/0नाथ सेन,
गोिव/0च/0दास, ि[जे/0लाल राय एवं रवी/0नाथ टैगोर इस !कृ ित के !मख ु किव हf। ग
सािहय म: भी बंगला सािहय का महपण( योगदान रहा है। बंिकमच/0, रवी/0नाथ टैगोर,
ताराशंकर वं ोपा=याय, शरतच/0 चˆोपा=याय, व ु देव वसु इयािद !मख
ु कथाकार रहै हf।

उिड़या भाषा एवं सािहय का इितहास


उिड़या भाषा का ऐितहािसक साIय लगभग 1000 वष( परु ाना है। सुिवधा क `िO से
इसे भी तीन काल* म: िवभािजत िकया गया है।-
1. आिदकाल 2. मयकाल 3. आधुिनककाल
1. आिदकाल- िस*- नाथ* क कुछ रचनाएँ बंगला के साथ ही उिड़या भाषा म: भी
िमलती हf। ‘बौगान ओ दोहा’ के किव-लुइपा, क/हपा एवं शबरपाद उकल (उिड़या) के ही
थे। उिड़या सािहय म: सरलादास के ‘महाभारत’ का िवशेष गौरव है। इस रचना ने उिड़या जनता
क चेतना, उनके आदश( व जातीय चेतना को उभारने म: सवा(िधक योग िदया है। उिड़या सािहय
म: इस यगु को पंचसखा- बलरामदास, जग/नाथदास, अनंतदास, यशवंतदास, अ}चुतानंददास-
के नाम से भी जाना जाता है। इसी !कार जग/नाथ दास के भागवत को भी उिड़या समाज म:
‘‘उिड़या जनता क बाइिबल’’ क सRं ा !ा\ है।
2. मयकाल - धनजं यभजं को म=यकाल का !ित{ापक कहा जाता है। धनंजयभजं
क ‘रघनु ाथ िवलास’ !िस रचना है। ‘नीलाि0- महोसव’ इनक एक अ/य !िस कृ ित है।
इ/हM के समकालीन दीनकृ Pणदास का ‘रसकBलोल’ !िस रचना है। उपे/0भंज म=यकाल के
!िस किव है। इनक रचनाओ ं म: लावयवती, कोिटq‰ंड सु/दरी, आिद !मख ु रचनाएँ हf। इस
काल के अ/य !िस किवय* म: - सदान/द किव सयू (q‰ा, के शव पटनायक, qजनाथ बलचैना,
कृ Pणिसहं , िव<5भर दास, किव सयू ( बBदेव रथ, गोपाल (कृ त गीतवली), भीमा भाँई आिद हf।
3. आधिु नककाल- 1879 ई. म: आधिु नक उिड़या सािहय का !वत(न हआ । 1873 ई.
म: राधानाथ, मधसु दू न क किवतावली !कािशत हई, 1873 ई. म: उकलदप(ण !कािशत हआ।
रामशंकर ने !थम उप/यास िलखा। आधिु नक उिड़या सािहय म: राधानाथ, मधसु दू न और
फकरमोहन का िविशO +थान है। राधानाथ क िचिलका, मधसु दू न राव क किवताएँ तथा
फकर मोहन सेनापित को छमाण, आठ गु ठ, भामू लछमा, !ायिVत काल के अ/या उिड़या
सािहयकार* म: गोपब/धदु ास का िविश{ +थान है। गोपब/धदु ास दास [रा िवरिचत

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
‘राPQीयसयवादी बनिवालय’ का उिड़या सािहय के िवकास म: kाि/तकारी मह?व है।
उिड़या के अ/य किवय* म: िचतं ामिण महित, कंु तलाकुमारी, लIु मीकांत महापा7,
कृ पािस/धुिम7, च/0मिणदास आिद उBलेखनीय है। सन् 1935 ई. के बाद म: भगवती चरण
पािण4ही ने’ नवयगु सािहय संसद’ नामक सं+था क +थापना क और ‘आधिु नक’ शीष(क से
एक मािसक प7 का !काशन भी िकया। कािलदं ीचरण पािण4ही और बैकंु ठनाथ अतीि/0य ने
उिड़या किवता म: kाि/त का +वर तेज िकया।

असिमया भाषा एवं सािहय का इितहास


असम !देश म: बोली जाने वाली भाषा होने के कारण इसका नाम असिमया पडा है। इसका
अ/य नाम !ाrhयोितश व काम9प भी है। असमी भाषा का समZ/ध मागधी अपmंश से है।
असिमया सािहय को चार काल* म: िवभािजत िकया गया है।
1. ाIवैAणकाल 2. वैAणवकाल 3. बरु ंजी गKकाल 4. आधिु नककाल।
1. ाIवैAणकाल- सातवM शताZदी के चीनी या7ी छे नसांग ने असिमया भाषा का
उBलेख िकया है। म+ये/0नाथ तथा सरहपाद क ज/म काम9प (आसाम) ही माना गया है।
िस* [ारा िवरिचत चया(पद / चया(गीत* का कुछ स5ब/ध आसाम से भी है। असाम के
रचनाकार डाक क सूि_य* पर वैPणव िवचारधारा का पया(\ !भाव है। ‘!ा वैPणवकाल’
नामकरण के पीछे यही तक( िदया गया है। माधव कंदली इस काल के |े{ किव है- उनक
रामायण व देविजत काTय !मुख रचनाएँ हf। हैम सर+वती क ‘‘हरगौरीसंवाद’’ म: जय0थ-वध
क कथा को आधार बनाय गया है।
2. वैAणवकाल - वैPणवकाल म: |ी शंकरदेव व उनके िशष् माधवदेव क कृ ितयाँ
िवशेष 9प से उBलेखनीय हf इनके माधम से असिमया सािहय म: पनु जा(गरण का !वेश माना
जाता है। शंकरदेव एवं माधवदेव क रचनाओ ं म: असिमया सािहय को सवा(िधक !भािवत
िकया। शंकरदेव [ारा !वित(त ‘शरिणया पंथ’ ने सव(मा/य क एकता पर बल िदया। माधवदेव ने
वरगती, चोरधरा, िप5परा, गचु ुवा आिद नाटक* के मा=यम से वैPणव भि_ का !चार िकया।
अन/त क/दली और राम सर+वती इसी काल के !िस किव थे।
3. बुरंजी गKकाल-qजबिु ल िमि|त ग को ही बरु ं जी ग कहा गया है। असिमया ग
का !ारंिभक स7ू शंकरदेव और माधवदेव के नाटक* म: िमलता है। भˆदेव ने भगवतपरु ाण और
भगवŒीता का, गोपालच/0 ि[ज ने भि_रनाकर का, रघनु ाथ मह/त क कथारामायण अRात
लेखक क पपुराण, कृ Pणान/द का सयता तं7 और कथाघोषा !िस ग रचनाएँ हf।
4. आधुिनक काल- असिमया सािहय म: आधिु नकता का !ेवश 19वM शताZदी
म: हआ। आन/दराम ढेिकयाल फूकन ने असिमया सािहय को राPQीय नवजागरण एवं गौरव से
जोड़ा । इसके बाद च/0कुमार अ4वाल, लIमीका/त, बेजब9आ, हैमच/0 गो+वामी, पनाथ
गोहांई ब9आ जैसे लेखक आधिु नक असिमया सािहय के िनमा(ता कहै जाते हf।

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तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5.3.3 पिLमी सािहय का इितहास
पिVमी सािहय म: !मख ु 9प से मराठी, गजु राती एवं पंजाबी सािहय का अ=ययन
िकया जाता है। यहाँ संFेप म: हम इन भाषाओ ं का इितहास देखने का !यास कर: गे।
मराठी भाषा एवं सािहय का इितहास-
मराठी का सबं ंध महाराPQी !ाकृ त से बाताया गया है। मराठी भाषा का !ाचीनतम समय 9 वM
सदी म: ि+थर िकया गया है। िक/तु सािहय के 9प म: इसका समय 12 वM शताZदी के आस-पास
ि+थर िकया गया है। मराठी के आिदकिव हf। इनका 4/थ िववेकिस/धु है।
मराठी सािहय का काल िवभाजन-
मराठी सािहय को !मख ु 9प से दो काल* म: िवभ_ िकया गया है-
1. ाचीनकाल (1000-18000 ई. तक)
2. आधुिनककाल - 1800 ई. के बाद का सािहय
1. !ाचीनकाल मराठी सािहय को 6 वगg म: िवभािजत िकया गया है- महानभु ावकाल,
Rाने<र-नामदेवकाल, एकनाथकाल, तुकाराम- रामदासकाल, मोरोपंतकाल, !भाकर राम
जोशीकाल

गज ु राती भाषा एवं सािहय का इितहास


गरु जराती !ेदश म: बोली जाने के कारण इसे गजु राती कहा गया है। माना जाता है िक गजु राती का
िवकास गजु राती के नागर अपmंश से हआ है।
गुजराती सािहयः काल िवभाजन
गजु राती सािहय को तीन काल* म: िवभ_ िकया गया है-
1. आिदकाल (हैमयगु , रासयगु ) सन् 1000 से 1500 तक।
2. मयकाल: (नरिसंहयगु , नाकर यगु , यामल यगु , !ेमान/द यगु , दयारामयगु ) सन्
1500 से 1850 तक
3. आधुिनक कालः (दलपत- नम(दयगु , गोव(न यगु , गांधीयगु आिद।) सन् 1850 से
आज तक
गजु राती भाषा के !मख ु सािहयकार* म: धनपाल, हैमच/0, शािलभ0सHू र, नरिसंहमेहता,
मीराबाई, भालण, पदमनाथ, मांडण, नाकर, !ेमान/द, शामल भˆ, !ीतमदास, दयाराम,
दलपतराम, नम(दाशंकर, गोवध(नराम, महामा गाधं ी, काका कालेकर, क/हैयालाल मश ंु ी इयािद
हf।

पजं ाबी भाषा एवं सािहय का इितहास-


पंजाब !देश म: बोली जानेवाली भाषा होने के कारण इस भाषा का नाम पंजाबी पड़ा है। पंजाबी
का अथ( है- पाँच निदय* का देश। पंजाबी भाषा क िलिप ग9
ु मख
ु ी है।
पंजाबी सािहय का काल िवभाजन

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तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. आिदकाल 2. मयकाल एवं 3. आधुिनक काल
1. आिदकाल पंजाबी सािहय म: उBलेखनीय सािहय नहM है। िस-नाथ सािहय का
एक िह+सा पंजाबी से ज9र संबिं धत रहा है।
2. मयकाल-
म=यकाल का पंजाबी सािहय िवशेष उBलेखनीय रहा है। म=यकाल म: पजं ाबी क चार काTय
पर5पराएँ देखने को िमलती है- सफ ू  पर5परा, ग9ु नानक क संत पर5परा, िक+सा और वार।
सफ ू  पर5परा म: शेख फरीद, शाह हसैन बBु लेशाह और िसहरफ आिद !मख ु 9प से
उBलेखनीय हf।
िस ख गु9ओ ं क पर5परा का आधार 4/थ ‘‘ 4/थ सािहब’’ है। 4/थ सािहब िस ख गु9ओ ं
क वािणय* का संकलन है। इस पर5परा म: ग9 ु नानक, अगं द, अमरदास, रामदास, अज(ुन एवं
ग9ु तेग बहादरु क रचनाएँ संकिलत है।
िक+सा और वार !मख ु तः !ेमकथा है। बुBलेशाह और वाHरस शाह इस पर5परा के !मख ु किव
हf।
3. आधुिनक काल-
19 वM शताZदी के बाद से पंजाबी भाषा एवं सािहय म: आधिु नकता का !वेश हआ। भाई
वीरिसंह , परू निसंह, धनीराम इयािद इस युग के चिच(त रचनाकार हf।

5.3.4 िह-दी सािहय का इितहास


िह/दी सािहय का इितहास
शािZदक 9प म: भले ही िह/दी शZद का !योग पांचबी-सातवM शताZदी से िमलने लगता है,
िक/तु सािहय के 9प म: इसका इितहास 7वM शताZदी से माना जाये या 10वM-11वM शताZदी
से, यह !o अवय िववािदत रहा है। अपmश ं क रचनाओ ं को िह/दी सािहय म: सि5मिलत
िकया जाये िक नहM, यह !o िववािदत ही रहा है। िफर भी मोटे 9प म: 10वM-11वM शताZदी से
अिधकांश लोगां ने िह/दी सािहय का !ार5भ माना है। िह/दी भाषा का िवकास शौरसेनी
अपmंश से माना जाता है। सं+कृ त-पािल-!ाकृ त-अपmंश -िह/दी का भाषा िवकास kम ि+थर
िकया गया है।
िह/दी भाषा एवं सािहय के इितहास के 4 भाग* म: िवभ_ िकया गया है।
आिदकाल - 1000-1400 ई.
भि=काल - 1400-1650 ई.
रीितकाल - 1650 - 1850 ई.
आधुिनक काल - 1850 ई. से अब तक

अयास  1
िटnपणी किजए।

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. तिमल सािहय का काल िवभाजन
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
2. मराठी सािहय का काल िवभाजन
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
अयास  2
Hर_ +थान* क पिू त( किजए।
1. तिमल सािहय के !ाचीन यगु को.......कहा गया है। (संगमकाल/परवतU
काल/उतरकाल)
2. िशnपिदकाराम.् .............सािहय का महाकाTय है। (तेलगु /ु मलायलम/तिमल)
3. तेलगु ु आिदकाTय का एक नाम ...... है। (!ब/धयुग/!ाrनबदयगु /म=यकाल)
4. क/नड़भाषा के रन7य नहM हf। (पंप/पोप/बसवे<र)
5. मलायलम भाषा म: ......... काल माने गये हf। (5/3/10)
सय / असय का चुनाव किजए।
1. बंिकमच/0 चटजU बगं ला भाषा के सािहयकार है।
2. जग/नाथदास क भागवत को उिड़या क बाइिबल कहा गया है।
3. शंकरदेव तिमल भाषा के सािहयकार हf।
4. मराठी पिVमी सािहय के अतं ग(त आता है।
5. हैमच/0 गुजराती भाषा के सािहयकार हf।
5.4 भारतीय सािहय का तुलनामक अ3ययन
!मखु भारतीय भाषाओ ं का तुलनामक अ=ययन करने पर हम देखते हf िक कुछ ऐसे
तव हf जो !ायः भारतीय भाषाओ ं म: िमलते हf सव(!थम समानता का तव है भाषाओ ं का काल
िवभाजन। !ायः भाषाएँ आिदकाल, म=यकाल एवं आधिु नककाल म: िवभ_ है। हाँ इस संदभ( म:
सािहय के !ार5भ होने का समय अवय अलग है, लेिकन आधुिनककाल का समय !ायः
भाषाओ ं म: समान है। इसका अथ( यह है िक आधिु नक चेतना का आगमन भारतीय भाषाओ ं क
यह है िक भि_कालीन !वृिKयाँ !ायः भाषाओ ं म: पाई जाती है। िह/दी, पंजाबी, मराठी, बंगला
जैसी भाषाओ ं के तो कालkम म: भी काफ सामनता है। तीसरी समानता ग के +तर पर है। ग
का Tयापक 9प म: !योग भी आधिु नक काल म: देखने को िमलता है, जो !ायः भाषाओ ं म: हम

उतराखड मु त िवविवालय 50
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
देख सकते हf। इसी !कार +व}छ/दतावादी, !गितवादी एवं यथा(थवादी !वृिKय* म: भी काफ
हद तक सा5य देखने को िमलता है।
5.6 सारांश
एम.ए.एच.एल-204 क यह पांचवी इकाई है। यह इकाई भारतीय सािहय के इितहास
से संबंिधत है। इस इकाई का आपने अ=ययन कर िलया है। इस इकाई के अ=ययन के उपरा/त
आपने जाना िक-
• भारतीय सािहय के इितहास म: दिFणी, उKरी , पवू U एवं पिVमी भाषाओ ं के
सािहय एवं भाषा के इितहास का अ=ययन िकया जाता है।
• आपने अ=यन िकया िक !येक भाषा म: महाकाTय* क समृ पर5परा रही है।
चाहै वह तिमल सािहय हो, िह/दी सािहय हो या तेलुगु सािहय।
• रामायण एवं महाभारत जैसे जातीय महाकाTय भारत क कई भाषाओ ं म:
रिचत हए हf। तिमल, तेलगु ु, उिड़या, मराठी, बंगला जैसी भाषाओ ं ने इन
महाकाTय* को अपनी सं+कृ ित के अनु9प रचा है।
• भारतीय भाषाओ ं म: बहत िभ/नता है है, लेिकन !ायः भाषाओ ं के िवकास
kम को आिदकाल, म=यकाल एवं आधिु नक के अतं ग(त रखकर ही िवeेिषत
िकया गया है।
• आधिु नक !वृिKय* का आगमन मोटे 9प म: !ायः भारतीय भाषाओ ं म: थोडे-
बहत काल के अ/तराल म: देखने को िमलता है।
5.7 श"दावली
• जातीय चेतना - िकसी भाषा एवं !देश क मूलभूत िवशेषताओ ं से
य_ ु चेतना।
• साव(भौिमक - Tयापक जीवन का बोध कराना।
• किव7य - एक ही भावधारा से य_
ु तीन किवय* का समूह।
• !ब/ध - कथा िवकास को लेकर चलने वाली िवधा।
• नवजागरण - आधिु नक Rान-िवRान से य_
ु चेतना
• !ाक् - पवू ( का
• qजबिु ल - qज, असिमया - उिड़या से िमि|त भाषा।

उतराखड मु त िवविवालय 51
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204

5.8 अयास न के उतर


अvयास !o 2
(1)
1. संगमकाल
2. तिमल
3. !ाrनबदयगु
4. बसवे<र
5. 3
(2)
1. सय
2. सय
3. असय
4. सय
5. सय

5.9 संदभ थ सच


ू ी
1. भारतीय सािहय -ि7पाठी, रामछबीला, वाणी !काशन, सं+करण 2008।
2. भारतीय सािहय का समेिकत इितहास - (स)ं नगे/0, िह/दी मा=यम काया(/वय
िनदेशालय, िदBली िव<िवालय, सं+करण 2009।

5.10 सहायक/उपयोगी पाय सामी


1. तल
ु नामक अ=ययन - (सं) राजरू कर, भ.ह. एवं बोरा, राजमल

5.11 नबधामक न


1. दिFण के !मख ु भाषाओ ं का ऐितहािसक िवकास kम विण(त किजए।
2. पवू U Fे7 क भाषाओ ं का िवकास kम िनधा(Hरत किजए।

उतराखड मु त िवविवालय 52
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204

इकाई 6 तेलग
ु ु सा ह य का इतहास एवं परचय -
1
इकाई क परे खा
6.1 तावना
6.2 उेय
6.3 तेलुगु सािहय का इितहास
6.3.1 ांग न0नय यगु /पूव& न0नय यगु (तेलुगु सािहय का आिदकाल)
6.3.2 तेलुगु सािहय का काAय यगु (सन् 1000 से 1850)
6.3.3. तेलगु ु सािहय का आरंिभक काल (सन् 1001 से 1150 तक)
6.3.4 तेलगु ु सािहय का पवू & म8यकाल (सन् 1151 से 1500)
6.3.5 तेलगु ु सािहय का उ.र म8यकाल (सन् 1501 से 1700)
6.3.6 तेलुगु सािहय का तृतीय काल (सन् 1701से 1850)
6.3.7 तेलुगु गI सािहय का िवकास (न0नय से सन् 1850 ई. तक)
6.3.8 तेलुगु सािहय के िविवध काAय प
6.4 सारांश
6.5 श(दावली
6.6 संदभ& /0थ सचू ी
6.7 िनबंधामक ,

उतराखड मु त िवविवालय 53
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204

6.1  तावना
तेलगु ु सािहयेितहास एवं उसके िविवध काल* का िववेचन िकया गया है। तेलुगु
सािहय लेखन क पर5परा सं+कृ त के ‘महाभारत’, ‘रामायण’, ‘भागवत’ तथा अ/य परु ाण*
आिद को आधार बना कर शु9 क गयी। सं+कृ त के िवषय* को लेकर तेलगु ु सािहयकार* ने
अपनी अि[तीय !ितभा के [ारा िवषय को सव(था नवीन बना िदया। तेलगु ु सािहयकार* क
!ितभा को देखकर ही सािहयोितहास लेखक* ने किवय* के आधार पर काल, िवभाजन िकए।
जैसे- !ांग न/नय, न/नय, िशव किव, ित कना, एईना, |ीनाथ आिद के नाम पर काल िवभाजन
िकया गया है। तेलगु ु सािहय म: ग 9प !ारंभ से ही !ा\ होती है। तेलगु ु सािहय म: ग 9प
!ारंभ स ही !ा\ होती है। आिद किव न/नय भˆ [ारा चपं ू शैली अपनाये जाने के बाद लगभग
सभी सािहयकार इस शैली को अपनाते हए सािहय सज(ना करते हf। तेलगु ु का आधिु नक ग,
प 9प सतत् िवकासमान है।

6.2 उ"ेय
इस इकाई के अ=ययन के आप-
• तेलगु ु सािहयेितहास से पHरिचत ह*गे।
• तेलगु ु सािहय के चपं ू काTय से अवगत ह*गे।
• तेलगु ु सािहय के िविवध काTय 9प क जानकारी िमलेगी।
• तेलगु ु सािहय रचना के मल ू िवषय क जानकारी !ा\ होगी।
• तेलगु ु के अि[तीय किवय* से पHरिचत ह*गे।

6.3 तेलग
ु ु सा&हय का इतहास
आिदकाल से अब तक तेलगु ु भाषा तीन नाम* से जानी जाती है। ‘आ/‡’, ‘तेलगु ’ु
और ‘तेनगु ु’ नाम आिदकिव न/नय और न/नेचोड्ड ने अपनी काTय-भाषा हेतु !य_ ु िकया था।
ित क/ना ने ‘तेनगु ’ु और ‘तेलगु ’ु दोन* शZद !य_ ु िकए थे। जबिक कृ Pणदेवराय ने
‘देशभाषाल/दु तेलुग’ु (देशी भाषाओ ं म: तेलगु ु |े{ है) कहकर तेलगु ु क िमठास को +पO िकया
है। यिप !ाचीन काल म: तेलुगु शZद तेलंगु , ि7िलंग, ितलंग, तेिलंग, तेलंग आिद 9प* म: !य_ु
होता रहा तथािप तेलगु ु शZद के िवकास को गिं टजोिग सोमयाजी ने अपनी कृ ित ‘आ‡ं भाषा
िवकासम’ु म: दशा(या है। वत(मान म: राजनीितक जागृित और राPQीय भावना के उथान के कारण
‘आ/‡’ शZद क जनि!यता बढी ़है िकंतु तेलगं ाना और रायलसीमा आिद िजल* म: ‘आं/‡’
क जगह ‘तेलगु ’ु और ‘तेलगनं ा’ शZद का मोह है। भारतीय राhय* का भाषायी आ/ं ‡!देश
पहला उदाहरण है। आं/‡!देश क भाषा तेतु (ड) गु और तेतु (ड) गु धातु 9प क !ाचीनता
सव(Rाता है।

उतराखड मु त िवविवालय 54
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
6.3.1 ांग न-नय युग/पूव. न-नय युग (तेलुगु सािहय का आिदकाल)
ईसा पवू ( क !थम शती से लेकर ईसा क rयारहवM शतM तक इस भाषा म: अनेक लोक
कथाय:, लोकगीत, ताŽप7 एवं िशला लेख !ा\ हए है। बारह सौ वषg के दीघ(काल को तेलगु ु
सािहय का आिदकाल माना जा सकता है। आं‡ !देश क सामािजक, सां+कृ ितक सु9िच का
पता इस बात से चलता है िक इस काल म: भौितक सख ु -सिु वधाओ ं से ऊपर उठकर परोF-जगत्
क चचा( मनीिषय* म: होती रहती थी। दैिनकचया( जब लेाकगीत* के 9प से फूट पडे़ तो उस
समाज क उ/नित का सहज अनमु ान लगाया जा सकता है। बारहवM शती म: जो सोमनाथ कृ त
‘बसव परु ाण’ म: उस काल के पद म: ‘गोिवदं पद, बोलशुपद, वेलल,ु जोललु, त5ु मेद-पदमल ु ु’
जैसे पद* क !यिु _ का उBलेख िकया है। इस काल के िशलालेख* के दान !ा\ करने वाले
Tयि_ का जाित समेत नाम तथा देने वाले के ‘िव9द’ु (उपािध), पद, !ित{ा के साथ ही देय
व+तु का +पO उBलेख िमलता है। यिप इस काल क भाषा ि+थर नहM थी तथािप Tयवहार म:
!य_ ु भाषा को Tयाकरिणक िनयम रिहत !योग िकया जाता था। िजससे वय(-िवषय म: दोष
देखा गया है। चोल* और चालु य* के िशलालेख* के अ=ययन पवू ( होने पर ही इस काल क
भाषा का +व9प िनिVत िकया जा सकता है। आिदकिव न/नय भˆ से 25-30 वष( पूव( के !ा\
िशलालेख* म: सं+कृ त का शZदतः अनक ु रण िकया गया है। ‘पडरंग (सेनानी) के िशलालेख* म:
सीसप का !योग हआ है तो िवजयवाड़ा के मछु दमBलु के िशलालेख* म: ‘म=या कर’ छंद का
, जो तेलगु ु के अपने छंद हf। इस !कार !ाचीन िशलालेख* म: सीसम,ु त9वोज, अ कर, गाितका
(तेलगु )ु आिद छंद !य_ ु हए हf। अतः िशलालेख* के आधार पर न/नयभˆ से पवू ( भी तेलगु ु
सािहय का अि+तव +वीकार िकया जाता है। नवM से rयारवM शताZदी म: बीच क/नड़ के किव
प5प कृ त ‘िवkमाज(नु िवजय’, नामक प+ु तक जो 942 ई. म: समा\ हई, अय/ं त महपूण( है।
प5प एवं किव रन ने +वयं को ब:गी देश के िनवासी अथा(त् तेलगु ु भाषी कहा है। न/नय भˆ ही
तेलगु ु के !थम किव िस होते हf। तेलुगु म: उस समय तक जो कुछ िलखा गया, उसी को आधार
बनाकर न/नय भˆ ने ‘महाभारत’ क रचना क । इस काल म: बौ एवं जैन सािहय न के
बराबर !ा\ हए हf, जो कुछ िमले हf वे िशलालेख* के 9प म: । अतः आं‡ भाषा को काTय 9प
म: !िति{त करने वाले सव(!थम किव न/नय भˆ ही हf ।
6.3.2 तेलुगु सािहय का का1य युग (1000-1850)
उKर भारत जहाँ राजनैितक िवnलव* से सदा आkांत रहा वहM दिFण भारत शांित
काल म: पBलिवत होता रहा। राजा भोज का ‘चपं ू रामायण’ उनक !ितभा को सहज +पO करता
है। राजा भोज के दश(न मा7 से काTय-+फुHरत हो उठता था। !ाचीन काल म: कमीर म: !िति{त
स+ं कृ त को राजा भोज ने इस काल म: !ित{त िकया। ऐसे समय म: जबिक सं+कृ त भाषा क ततू ी
बोल रही हो तेलुगु भाषा म: क गयी +वतं7 रचनाय: इसक िजजीिवषा को +पO करती है । तेलगु ु
काTय क दो पितय* का उBलेख है।
1. माग( काTय 2. देशी काTय

उतराखड मु त िवविवालय 55
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
माग. का1य - इसके अतं ग(त तेलगु ु किवय* [ारा अपनाई गई शैिलय* को =यान म: रखा गया है।
इसम: रस, अलंकार, छंद आिद के साथ िशO-जन-स5मत भाषा का उपयोग िकया गया है। इस
काTय का !धान लFण है रस। शZदशि_य* म: अिभधाथ( क जगह इसम: लIयाथ( और Tयंrयाथ(
पर अिधक आसि_ होती है।
देशी का1य - इसम: किव अपनी 9िच के अनुसार जन-रंजन के िवषय* क चुनते हएु िकसी भी
घटना या कहानी को वय( िवषय बना सकता है। जनता का मन-रंजन तथा परमािथ(क उपदेश
इसका मु य उेय होता है। लोक-ि!यता ही इन किवय* के छंद क श ु ता मानी गई है। देशी
काTय क Tयंजना ताल, लय, मृदगं , भाव-भंिगमा पर आि|त है।
माग. का1य क दो धारायB - माग( काTय क एक |ेणी का नेतृ व न/नय ने और दसू री का
ित कना ने िकया। न/नय और उनके परवतU किवय* ने तेलगु ु म: अिधकृ त और िशO-जन-स5मत
शZद* के साथ है। सं+कृ त क शZद संपदा का भी !योग िकया। इ/ह*ने तेलगु ु के देशी शZद*,
छंद* के साथ स+ं कृ त के उपमान*, परु ाण क !तीकामक कथाओ ं और अलक ं ार* का
मिणकांचन !योग िकया। दसू री |ेणी के किव ित कतना आिद ने सं+कृ त के सािहय-शाS के
िसा/त* को पणू (तः बिहPकृ त करते हए देशी शZदावली, देशी छंद और देशी उपमान* को काTय
म: !मखु ता दी। इस !कार देखा जाय तो आिदकाल से लेकर अतन काल तक का तेलगु ु
सािहय न/नय भˆ और ित कना क शैिलय* का एक समान 9प से उKरािधकारी है।
मयम माग. - इन दान* परंपराओ ं से इतर कुछ तेलगु ु किवय* ने छंद, अलंकारािद के संबंध म:
ित कना का और भाषा के संबंध म: न/नय भˆ का अनगु मन िकया। म=यम माग( के !मख ु किव
|ीनाथ है।
तेलुगु सािहय का ांरिभक काल और सामािजक राजनीितक परिथितयाँ - सािहय
अपनी समसामियक पHरि+थितय* क ऊपज होती है। हष(वध(न के पVात् क उKर भारतीय
अराजकता और मगु ल* का शासनारंभ समूल भारतीय आचार-िवचार, परंपराओ ं पर Tयापक
9प से असरकारी था। ऐसे म: आं‡!देश म: सातवाहन* के बाद क राजनैितक अि+थरता
चालु य* के उदय से दरू हो गयी थी। काकतीय राhय के पतन और मुसलमान* के आगमन के
समय उप/न अि+थरता िवजयनगर क +थापना से दरू हो गयी थी। ऐसे ही सTु यवि+थत
वातावरण म: सािहयािद कलाओ ं का पBलवन हआ। दसवM शती से पवू ( आं‡ क जनभाषा का
!योग अयBप ही हआ िकंतु दसवM शती के पVात् राhया|य पाकर तेलगु ु भाषा सािहय को
मान* बल िमल गया गया हो।
िवजयनगर साŽाhय के पतन के पVात् आ‡ं पराधीनता के दंश को झेलते हए िवखंिडत
होता गया। तेलगु ु सािहय का यह अधं कारपणू ( यगु था। अं4ेज* के आगमन और नTय Rान-
िवRान के पHरचय से तेलगु ु सािहय क त0ं ा भगं हई तो राPQीय आदं ोलन के झ*के ने उसके
आम-स5मान को झकझोर कर रख िदया।
तेलगु ु सािहय के Tयि+थत अवलोकन हेतु चार भाग* म: बाँटा गया हf, जो िन5नांिकत
हf-

उतराखड मु त िवविवालय 56
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. आरंिभक काल (सन् 1001ई. से 1150 ई. तक)
2. पवू (-म=य काल (सन् 1151 ई. से 1500 ई. तक)
3. उKरम=यकाल (सन् 1501 ई. से 1700 ई. तक)
4. तृतीय काल (सन् 1701 ई. से 1850 ई. तक)

6.3.3 तेलुगु सािहय का आरंिभक काल (सन् 1001 से 1150 तक)


इस काल म: आं‡ पर चालु य* का Tयि+थत शासन +थािपत था। चार* ओर शांित,
सTु यव+था का अलभग 450 वषg तक वातावरण बना रहा। इस काल म: !ाकृ त क जगह देशी
भाषा तेलगु ु का !योग होने लगा था। चालु य नरे श राजराजा नरे /0 सं+कृ त के राजा भोज क
तरह तेलगु ु म: !िस है। क/नड़ ‘महाभारत’ से !ेHरत होकर सव(!थम तेलगु ु म: ‘महाभारत’
िलखने हेतु उ/ह*ने आिद किव न/नय भˆ से !ाथ(ना क । इस !कार तेलगु ु क िनयब और
पHरPकृ त पहली किवता तपोिन{, yती-महामा क साधना से मख ु Hरत हई।
न-नय भO - आं‡ के िव+तृत भाषा के सामा/य 9प को न/नय भˆ ने सं+कृ त भाषा के Rान और
तेलगु ु क !कृ ित [ारा ि+थर िकया। न/नय भˆ को ‘महाभारत’ क रचना म: नारायणभˆ क
सहायता !ा\ हई। िज/ह: वे महाभारत के कृ Pण क भांित मानते हए +Tयं को अज(नु माना है।
उनक इस पिं _ म: यही लिFत हआ है- ‘‘पायक पाकशासिनिक भारत घोररणबं नं दं ु
नारायणभट्ल’ु ’। न/नय भˆ ने सं+कृ त औद देशी छंद* को अपनाते हए लोकसािहय परंपरा को
अपनी कृ ित म: यथोिचत +थान िदया।
इस काल म: इन धमg का !भाव िशिथल हो चुका था। महाभारत के !णयन [ारा
वणा(|म धम( क परु +थापना तथा वेदशाSसार [ारा िह/दू आ+थाओ ं को `ढ़ता !ा\ हई। न/नय
ने जैिमनी और कुमाHरल क मा/यताओ ं क पिु O कम(कांड क पनु +था(पना [ारा क । न/नय भˆ
क मूल भावना श ु सािहियक सज(ना से ही !ेHरत थी। आं‡ म: पंिडत-पHरश द क !ाचीन
परंपरा रही है। पंिडत का घर गु9कुल क तरह होता था। इन पHरश द* म: नये काTय* के गणु -दोष*
का िववेचन िकया जाता था। पिं डत-पHरश द न/नय के महाभारत से पवू ( स+ं कृ त काTय* पर चचा(
करते हए उपयोगी कृ ितय* को अ=ययन-अ=यापन का मा=यम बनाती थी। िक/तु न/नय के
‘महाभारत’ सभी िव[ान* ने ‘रमणीय’ माना, यह किव क सम/वयामक बिु  का पHरचायक है।
आिदकिव न/नय ने महाभारत के कई !संग* को छोड़ा भी है, उ/ह*ने मानव-!कृ ित िवश मताओ ं
और अतं [([* को सु/दररतापवू (क िचि7त िकया है। तेलगु ु म: उ/ह*ने कुछ नये काTय-िसा/त* को
गढा है़ । काTय के !ारंभ म: और आ<ास के अंत म: छः पंि_य* म: अपने आ|यदाताओ ं का गणु -
िववेचन िकया है। न/नय भˆ ने तेलगु ु सािहय का |ीगणेश चपं ू काTय से िकया। यथा अवसर
ग-प के !योग से किवता !वाहमान बनी रही। न/नय के पVात् ित कना ने भी ‘महाभारत’
को चंपू शैली म: पूण( िकया। इस !कार आिद किव ने सािहय सज(ना के [ारा उनके िलए भी माग(
!श+त कर िदया जो किव न थे िकंतु सािहय सेवा के आकांFी थे । कुछ िव[ान न/नय को

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तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
‘‘आं‡ भाषा वागानु शासनडु ु ’’ (आं‡ भाषा के अनुशासक) उनक Tयाकरण कृ ित ‘आं‡ शZद
िच/तामिण के आधार पर मानते हf।
न-नेचोड़ - तेलगु ु सािहय म: न/नय भˆ क परंपरा से इतर देशी शZद* और देशी उपमान* को
बढावा़ देने वाल* म: न/नेचोड़ का !मख ु +थान है। यह शैली तेलुगु सािहय म: वत(मान काल तक
!य_ ु हो रही है। न/नेचोड़ के ‘कुमार स5भव’ कृ ित को कुछ िव[ान महाभारत से पवू ( क कृ ित
मानते हf। न/नेचोडे़ ने सं+कृ त काTय-लFण* के +थान पर आं‡ क लोक -शैली को अपनाया है।
इ/ह*ने Fे7ीय तथा +थानीय शZद*, महु ावर* और लोकोि_य* का अिधकािधक !योग ‘कुमार
संभव म: िकया। इस !कार भाषा, भाव और शेली क देशी परंपरा तेलगु ु सािहय म: तब तक
चलती रही जब तक िक सोमनाथ ने ‘बसवपरु ाण’ नहM िलखा।
वेमल ु वाड़ भीम किव - इस युग क तीसरी काTय-धारा के !वत(क इ/हे ही माना जाता है। ‘राघव
पांडवीय’, ‘शत कंठ रामायण’ और ‘नृिसंह परु ाण’ के !वत(क भी किव को eेषालंकार शैली म:
रामायण और महाभारत को एक ही कृ ित म: !+तुत करने के कारण !िसि िमली। लेिकन
इनक चाटुकाHरता क !वृिK से इ/ह: सािहियक आदर न िमल पाया। इस काल म: पावल ु ु9 4ाम
के पटवारी मBल/ना क ‘गिणत सार सं4ह’ कृ ित को गिणत क उBलेखनीय रचना मानी गयी
है। इीसके अलावा भी कुछ अ/य प+ु तक: िलखी गयी। न/नय भˆ क मृयु के साथ ही इस यगु
का अवसान होता है।
6.3.4 तेलुगु सािहय का पूव. मयकाल (सन् 1151 से 1500)
राजराजा नरे /0 क मृयु के पVात् चालु य साŽाhय िवखंिडत होने लागा। ऐसे समय म: अिं तम
चालु य नरे श भल ू ोकमBलु को मार कर उसका सेना पित िवhजल पिVमी चालु य साŽाय का
शासक बना। िवhजल काकतीय साŽाhय का सं+थापाक तथा वीरशैवमत का !चारक था।
िवhजल के मं7ी वसवे<र ने इस मत का खबू !चार िकया। िकंतु भंि_ आदं ोलन के !चार से यह
मत 9 हो गया।
मिPलकाज.ुन - पवू ( म=यकाल का सू7पात 0ाFाराम के मिBलकाज(नु पंिडत ने िकया। इनक
!मख ु कृ ित देशी छंद ‘कंदमु’ म: िलखी गयी। ‘िशवतव-सार’ है।
पाPकुरिक सोमनाथ - सोमनाथ कृ त ‘बसवपरु ाण’ धम( ही नहM सािहियक `िO से भी एक
मह?व पूण( रचना है। तेलगु ु के ‘ि[पद’ छंद म: िलखी गयी िशवभि_ क तथा िशवभ_* क
अ/यतम !+तिु त इसम: हइ( ं है। तेलगु ु के सहS* अ!य_ ु शZद* को इस 4थं म: +थान !ा\ हआ है।
यिप आकि+मक घटना के पHरपाक म: किव सफल नहM हो पाये तथािप !+तिु त का
संFेपीकरण किव क कुशलता को +पO करती है। पाBकुHरिक सोमनाथ ने इसके अितHर_
‘पंिडतारा=य चHर7’, चे/नमBलु सीसमल ु ु,’ ‘वृषािधप शतकम्’ ‘अनभु व सारम’् ,
‘बसवोदाहरणम’् , ‘बसव रागड़’, आिद तेलगु ु म: तथा सं+कृ त म: सोमनाथ ‘90भाPय’ क रचना
क। वीरशैव किवय* क देशी परंपरा से भाषा को िनखार !ा\ हआ। 4ामीण किवय* क तरह
उ}चकोिट के सािहयकार भी िSय* हेतु गीत सज(ना करने लगे थे। !कार शैवकिवय* [ारा

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लोकसािहय को खूब बढावा़ िदया गया। यहाँ तक िक माग( किव भी लोक परंपरा का अनुसरण
करने लगे।
रंगनाथ रामायण - रंगनाथ ने अपने रामायण म: िलंगायत* के ि[पद छंद म: वाBमीिक रामायण
का अनुकरण िकया है। किव [ारा इसम: लोककथाओ ं का भरपरू !योग िकया गया है िजससे
सामा/य जनता म: यह खबू लोकि!य हआ। इस !कार तेलगु ु म: रामायण क परंपरा किव रंगनाथ
के [ार शु9 हई।
समु ित शतक- तेलगु ु के शतक सािहय के !णेता किव बेना ने ‘समु ित शतक’ क रचना क।
बेना किव महामडले<र* म: +थान पाते हf। इनकमे ‘समु ित शतक’ के िबना बालक* क िशFा
अधूरी मानी जाती थी।
!ोलराजू [ारा िनिम(त काकतीय साŽाhय के !थम आं‡ राजा !ताप90 देव (!थम) ने
1158 ई. से 1195 तक शासन िकया। इनक मृयु के बाद इनके भाई महादेवराज ने चार वष(
तक शासन िकया और िफर गणपितदेव के शासन काल म: आं‡ पनु ः एकस7ू म: बधं गया।
गणपितदेव के बाद उनक पु7ी 90ा5बा और 90ा5बा के पVात् उनका प7ु !ताप90देव
(ि[तीय) ने शासन क बागडोर संभाली। सन् 1140 से सन् 1321 ई. तक के तीन सौ वषg के
काकतीय शासन Tयव+था म: तेलुगु सािहय म: सतत् िनखार हआ। बBलभामाय कृ त
‘kडािभराममु’ म: काकतीय शासन के ओ9गBलु के िशिBपय* का जीवन `OTय है। गणपितदेव
के मं7ी िशवदेवŠया (ि[तीय) क रचना ‘िशवतव सार’ और यथावा कुल अ/नŠया क कृ ित
‘सव<र शतक’ म: तेलुगु क जातीयता देखी जा सकती है। इनके अलावा भा+कर, किव भBलट,
किव राFस, ित कना, गोनबुारे ड्डी, 90देव, अŠयलाय(, मंचेना, बेना, रंगनाथ,
िशवदेवŠया, मिBलकाज(नु भˆ, मारना, के तना, अथण(व !भृित ने सर+वती क !चरु अराधना
क । अथण(व आं‡ Tयाकरण के ‘कायायन’ माने जाते हf। काकतीय साŽाhय क सम/ु नत
िशBपकला को आज भी रामŠया देवालय और सहS +तभं मंडप के 9प म: देखा जा सकता है।
महाकिव ितIकना - किव ित कना और उनके भाई खड़्ग-ित कना नेBलरू जनपदवासी थे जो
सािहय, राजनीित, धम(, य ु , सामािजक िवश यािद के Fे7 म: !िस थे। ित कना हHरहर के
उपासक एवं दश(नशाS के !कांड पंिडत थे। उ/ह*ने ‘‡मा[ैत’ स5!दाय क +थापना के [ारा
िशव और िवPणु क एकता का !ितपादन िकया। वे राजा मनमु िसि के म7ं ी एवं दरबारी किव
थे। उ/ह*ने अपनी ‘िनवचनो/तर रामायण’ कृ ित मनमु िसि को समिप(त क । ित कना ने न/नय
भˆ के ‘महाभारत’ के ढाई पव( के बाद क अधरू ी कृ ित को पूण( करने का दाियव लेते हए
प/0हवषg क रचना क । न/नय और ित कना के बीच सैकडो ़ वषg के अतं राल म: तेलगु ु
सािहय और भाषा के Fे7 म: कई पHरवत(न हए। ित कना के आ|यदाता राजा मनुमिसि
अपने ही सामतं काटमराजु से य ु म: परािजत हो गये थे। ऐसी ि+थित म: ित कना ने काकतीय
राजा गणपितदेव से ओ9गBलु म: पहचँ कर अपनी कृ ित ‘महाभारत’ सनु ाकर !भािवत िकया,
िजससे उ/ह*ने अपनी सेना भेजकर पनु ः मनुमिसि को राhय िदलाया। इस घटना के बाद से

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तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
ित कना ‘किव-q ित कना के 9प म: समचू े आं‡ म: !िस हो गये । ित कना के समय के
किवय* ने बहजन िहताय का लIय लेकर सं+कृ त के शZद* का तेलगु क ू रण िकया।
तेलगु ु महाभारत म: कई !संग ऐसे आये हf जहाँ किव के पा7 िनजी ि+थित से असंतिु O
Tय_ करते हf वहाँ किव क वाणी आग उगलने लगती है। घटनाओ ं का kिमकिवकास, पा7*
का सIू मितसIू म चHर7-िच7ण और कBपना के सम/वय से किव क भाव-!वणता ‹दयहारी
बन पडी है़ । सम+त भारत म: रामायण को मह?व िमला है, िकंतु आ‡ं म: महाभारत को न/नय
एवं ित कना ने मह?व पूण( बना िदया। आधिु नक समीFक* क कसौटी पर कसकर ही ‘किव-
q ’ के 9प म: ित कना !िस हए है। न/नय भˆ क भाषा क सम+या ित कना के समय म:
नहM थी। न/नय क सम+त शि_ भाषा के ि+थरीकरण म: लग गयी थी। ित कना के समय म: ही
आं‡ मनीषी !बधं -काTय शैली म: रचना करने लगे थे। उKर म=य काल म: चलकर यह !वृिK
‘हत !बंध काTय* के यगु ’ के 9प म: !िस हई।
किव के तना - तेलगु ु म: !बधं काTय परंपरा क नMव के तना के ‘दशकुमार चHर7’ से पडी। ़ मलू
दशकुमार चHरत’ ग को के तना ने प म: ढाल कर ‘ अिभनव दडी’ क उपािध पंिडत समाज
से !ा\ क । के तना ने अपने गु9 ित कना को अपनी कृ ित समिप(त क। जहाँ ित कना क पुराण
शैली ‘महाभारत’ म: लिFत हई है वहM ‘दशकुमार चHर7’ म: महाकाTयामक शैली को के तना ने
!मख ु ता दी है। के तना ने याRवB य क +मृित को ‘िवRानिन<रीयम्’ नाम से िलखा है। उनका
‘आं‡ भाषा-भश ू ण’ नामक Tयाकरण 4थं भी उBलेखनीय है।
भाकर रामायण - भा+कर रामायण’ क किव भा+कर के अितHर_ अnपलायड(ु ु ,
मिBलकाज(नभˆ, !भसु ुत और कुमार 90देव आिद ने पूण( िकया। यह अलग-अलग किवय* क
एक उKम कृ ित है।
किव मारना क वतु किवता - मारना क किवता को ‘व+तु किवता’ के नाम से अिभिहत
िकया जाता है। इसम: तदभव और देशी शZद* तथा तेलुगु क लोकि_य* और महु ावर* का
सवं ादामक शैली म: कथा को !+तिु तकरण िदया गया है। इसम: !य_ ु भाषा को ‘जानु तेलगु ु’
कहते हf।
मारना के अितHर_ िच5मपिू ड अमरे <र और रािवपािट ि7परु ा/तक का नाम उBलेखनीय है।
ि7परु ा/तक क देशी किवता माग( शैली म: ‘ि7परु ा/तकोदाहरण’ और अिं बका शतक नामक
कोमलकांत पदावली यु_ रचना है। इस !कार पवू (म=यकाल क कई !वृिKय* को इन वा य* म:
देख सकते हf-
1. वीरशैवतमत का !चार तथा आं‡ म: सामािजक धािम(क kािं त का का सािहय पर
!भाव अवलोकनीय है।
2. काकतीय साŽाhय ने तेलगु ु सािहय संवध(न म: योगदान िदया।
3. तेलगु ु के मौिलक शZद*, कहावत*, महु ावर* का सािहय म: अयिधक !योग होने लगा।
4. तेलगु ु किवय* [ारा देशी परंपरा म: लFण 4थं * क रचना क गयी।
5. किव ित क/ना [ारा नTय सािहियक परंपरा का स7ू पात हआ।

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6. ‘दशकुमार चHर7 से !बंध काTय शैली का िवकास हआ।
7. काTय का िवश मु यतः ‘महाभारत’, ‘रामायण’ तथा ‘परु ाण’ ही रहा।
8. काTय म: !साद गणु य_ु कोमलकांत पदावली को मह?व िमला।
9. काTय के साथ ही Tयाकरण, लFण-4/थ , +मृित 4थं ािद क रचनाय: भी हई।
इस !कार तेलुगु सािहय म: यह काल ‘!बंध युग’ के नाम से !िस है।
6.3.5 तेलुगु सािहय का उRर मयकाल (सन् 1501 से 1700)
काकतीय साŽाhय के पराभव तथा िवजयनगर साŽाhय क +थापना के म=य तेलगु ु सािहय
पनपता रहा। िवजयनगर के अितHर_ तीन और छोटे राhय थे जो कृ Pणा और पे/ना नदी के म=य
भाग म: ि+थत थे। औ9गBलु से |ीशैलम तक रे चल( था, िजसक राजधानी राचक*डा म: थी।
क*डवीडु सीमा क राजधानी अGं िक रे ड्डी वंश [ारा शािसत थी। तीसरा ‘िवानगर’ राhय था।
काकतीय शासन के पतन के बाद राचकोणा के गजपित नरे श ने दोन* राhय* को अपने राhय म:
िवलीन कर िलया।
ऐसी राजनीितक उठापटक म: भी तेलगु ु म: उकृ O सािहय रचे जाते रहे । रे चल( राजा
वेलमवंशी सं+कृ त के !काणड पंिडत थे। उ/ह: ‘िसंगम नायुडु’, ‘सव(R’, क उपािध !ा\ थी।
किव माधवरायडु ु इ/हM के दरबारी किव थे, िजनक ‘|ीम0रामायण’ कृ ित उBलेखनीय है
कुमारिगHर रे ड्डी कृ त ‘वसतं राजीयम’् नाट्यशाS क अुत रचना है। कुमारवेमा रे ड्डी क
‘अम9क’ क टीका तथा उसको साले काढय वेमारे ड्डी ने कािलदास के तीन* नाटक* क
टीकाय: िलखM। िवजयनगर के शासक हHरहर और बु काराय के समय सायन माधवाचाय( थे।
+वामी िवारण [ारा वेद भाhय इसी समय िलखा गया था। इस यगु म: अनेक धािम(क व
सामािजक पHरवत(न हए। काकतीय वश ं का पतन शैव मत के पराभव का कारण बना। न/नय भˆ
क शैली पनु ः इस यगु म: पनपने लगी। तेलगु ु - सं+कृ त म: सम/वय क !वृिK इस यगु म: खबू
िवकिसत हई। इ काल म: तेलुगु म: नाट्यशाS का !ादभु ा(व हआ। किव पोतना क ‘भागवतम्’
तेलगु ु क अमBू य िनिध है। ‘हHरवंश,’ ‘महाभारत’, ‘माक( डेय परु ाण’ इस यगु क पौरािणक
शैली का िवकसन करती है।
+वण(यगु - यह युग तेलुगु सािहय के चहमख ु ी िवकास के कारण +वण(युग कहा जा सकता है।
इस यगु म: तेलुगु सािहय शरद ऋतु स`श था। सम+त आ‡ं !देश भाव-पPु प से सवु ािसत हो उठा
था तथा सािहय - गोि{य* और िव[पHरश द* को िवजयनगर नरे श* को पणू ( स5मान !ा\ था।
इस यगु के चार !मख ु किव नाचन सोमना, एरा(!ेगडा, |ीनाथ और पोतना आिद ने अपने िनराले
शैली म: वा य-िव/यास िकया।
काTय म: वृिKयाँ, रीित, शैली और भाषा-चयन का अयिधक मह?व होता है।
आरंिभक काल के यगु किव न/नयभˆ और पवू म( =यकाल के यगु किव ित कना क शांित उKर
म=यकाल म: शैली क नवीनता और अिभनय !णाली के आधार पर |ीनाथ को यगु किव माना

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जा सकता है। िवजयनगर साŽाhय क राजधानी कना(टक म: भी िजससे तेलगु ु और क/नड़
सािहय के िवकास को समान गित िमली।
भि= आंदोलन - तेलगु ु सािहय का यह काल भि_ आदं ोलन के साथ श9 ु होता है। िवPण-ु
भि_ और भागवत भि_ क !ेरणा से अनेक उकृ O रचनाय: हई, िजनका उBलेख िन5नतः िकया
जा सकता है।
नाचन सोमना (उRर हरवश ं )- सोमना क कृ ित उKर हHरवश ं से इस यगु क श9ु आत होती है
जो संिF\ होकर भी कृ Pण के जनरंजनकरी 9प के कारण जनि!य बनी। इस !कार सोमना [ारा
िवPणतु व क अुत महानता कृ Pण9प म: !कट करने के कारण ही उ/ह: ‘नवीनगणु सनाथ’ तथा
‘सिं वधान चkवतU क उपािध िमली। सोमना ने अलंकार* के पोश ण हेतु ‘कृ Pण/वय’,
उि_वैिच‘य’ क सज(ना क ।
एरा.ेगडा - इस काल के एक अ/य किव एरा(!ेगड़ा सं+कृ त के !काड पंिडत थे। ‘महाभारत’
के ढाई पव( न/नय और शेष प/0ह पव( ित कना [ारा िलखे गये। ऐरा(!ेगड़ा ने शेषांश अरय पव(
क रचना क। किव7य क भाषा-शैली के आधार पर ही तेलुगु Tयाकरण क रचना हई है। ऐर( /ना
को शZद* पर अुत अिधकार होने के कारण ही ‘शZद q वेता’ क उपािध िमली थी। ऐर( /ना ने
भाषा म: न/नय का और शैली म: ित कना का अनुसरण िकया। अरय पव( के शेषांक के
अितHर_ ऐर( /ना ने ‘हHरवंश’ और ‘नृिसंह परु ाण’ ने नयी शैली का !योग हआ है। उनक कृ ितय*
म: िनत नयी शैली के !योग देखे जा सकते हf। प-रचना ि लO, सरल, गंभीर, सक ु ु मार आिद
कई शैिलय* म: क गई है। ऐर( /ना क बची कसर को |ीनाथ और पोतना ने परू ी कर दी। इनमके
अितHर_ अ/य किवय* म: िपBलमHर( िपनवीर भ0/ना, ज कना, अनंतामाय, दrु गपु िBल दुrग/ना
तथा ‘िवPणु परु ाण’ के !णेता वे/नलक
ं ं िट सरू नाथ( गौरना, आिद उBलेखनीय तेलगु ु किव है।
िपनवीर भ9-ना - तेलगु ु सािहय म: भ0/ना ‘q‰ के अवतार’ माने जाते हf। भ0ना ने ‘‘जैिमनी
महाभारत’’ हेतु उKर कु9 म: यRा< क घटना को मु य 9प से चनु ा है। भािषक !ौढ़ता यु_ यह
रचना सहज बोधग5य है। किव ने माग( काTय क िवशेषताओ ं को अपनाते हए भी लोक सािहय
के जनि!य तव* का समावेश िकया है। िपनवीर भ0/ना ने महाकिव कािलदास के नाटक क
शकुतला पा7 को काTय का आधार बनाया। भ0/ना ने कािलदास क कहानी म: िकंिचत
पHरवत(न िकया है। उ/ह*ने महिष( Tयास कृ त ‘महाभारत क शकंु तला का अश ं 4हण करते हए
एक अि[तीय काTय 4थं ‘शकंु तला’ का !णयन िकया। िजसे िव[ान* ने सस5मान अपनाया।
महाकिव Sीनाथ - तेलगु ु सािहय म: |ीनाथ क अपूव( !ितभा उस काल से आज तक
िव[समाज के िलए आVय(िमि|त कुतहू ल बना हआ है। |ीनाथ वेमारे ड्डी नरे श के
िशFािधकारी थे। वे बचपन म: ‘मयरू ’ के ‘सयू (शतक’ एवं मुराHर कृ त ‘अनघ(राघव’ को कंठ+थ
कर चक ु े थे। िवजयनगर के िडंडमभˆ को शाSा’ म: परािजत कर उ/ह*ने भˆ के सम+त स5मान
को अपने नाम कर िलया। आजीवन सािहय साधना करने वाले |ीनाथ का सािहियक अवधान
इन रचनाओ ं म: `OTय है। ‘पंिडतारा=य चHर7,’ ‘|ृंगार नैशध’, ‘काशीखंड’, ‘भीमखंड’,
‘हHरिवलास’, ‘िशवराि7 माह5य’ एवं ‘पलनािट वीर चHर.’ आिद।

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
‘kड़ािभराम’ कृ ित को कुछ िव[ान |ीनाथ क मानते हf तो कुछ वBलभामाय क यह
तेलगु ु के दश9पक* म: वीथी 9पक के 9प म: !िस है। इसम: काकतीय साŽाhय के पतन के
बाद ओ9गBलु के िशिBपय* क जीवनचया( को ममा“तक 9प म: !+तुत िकया गया है। |ीनाथ
अपनी रचना म: पHरPकृ त, !ांजल भाषा के साथ समािसकता को अपनाते हf । इनक शैली न/नय
के अिधक िनकट है। उ/ह*ने अपने सीसप के चरणा/त म: तेलगु ु के िkया पद* का !योग िकया
है। |ीनाथ क कृ ित ‘|ृगं ार नैश ध’ म: मल ू ‘नैश ध चHर7’’ क द9 ु हता न होकर पHरPकृ तता
औा 4ा‰ता देखी जा सकती है। |ीनाथ क कृ ित ‘‘पलनािट वीर चHर7’ म: कु कुट य ु क
वीरगायामक शैली म: वण(न हआ है। दो मगु g क लडाई को लेकर आ‡ं के नरे श दो दल म: बटं
गये थे। |ीनाथ के िशव म: शील, सsदय( और साम@य( क ि7वेणी बहती थी, िजनम: किव का
लIय िवशवव पर क: ि0त रहती थी।
भ= पोतना - भ_ पोतना को पाकर तेलुगु सािहय ध/य हो उठा । पोतना एक साधारण
िकसान थे। किवता पोतना का साधन नहM अिपतु साधना थी। उ/ह*ने अ/य किवय* क तरह
अपनी रचनाय: िकसी राजा को समिप(त नहM क। पोतना क कृ ित ‘भागवत’ तेलगु ु सािहय क
अमBू य नीिध है। पोतना का सरल Tयि_व भागवत के तुलना क भी अनमु ित नहM देता।
भागवत म: अं यानु!ास के कारण माधयु ( भाव का !ाचयु ( है। पोतना क भि_गगं ा से िस_ होकर
तेलगु ु जनता भि_रस म: डूब गयी। भागवत का दशम +कंध , जो कृ Pणलीला से संब है उसे
पोतना ने सरल वाणी म: !+तुत िकया है।
अ-नमाचाय. - ये एक कत(नकार के 9प म: जाने जाते हf। इसी यगु म: कई शतक सािहय िलखे
गये। जैसे- ‘समु ितशतक’ (बेेना), ‘वृषािधप शतक’ (सोमनाथ) ‘व:कटे<र शतक’
(अ/नमाचाय() आिद। इनके वंशज िच/न”ा भ_ यागराज से पवू ( के महान् संगीतR थे। इस काल
के अ/य किव है ज कना, (िवkमाक( चHर7), अन/तामाय, (भोजराज चHर7), दrु गना
(नािचके तोपायान), तथा नंिद मBलŠया और घटं िसंगŠया ने िमलकर ‘!बंध चं0ोदय’ क
रचना क। यबू गटंु नारायण किव का ‘पच ं त7ं ’ भी इस काल क उBलेखनीय रचना है। इस काल
तेलगु ु सािहय क मधरु ता को देखकर ही यह उि_ !िस हई िक- ‘‘ तेलगु ु भाषा मधु से भी
अिधक मधरु है।’’
कृAणदेवराय - तेलगु ु को कृ Pणदेवराय क अनपु म देन है। कृ Pणदेवराय ने कहा था,‘देश भाश
लंदु तेलगु ु ले+स’। (तेलगु ु सभी देशी भाषाओ ं म: उKम है) कृ Pणदेव राय ने चार* ओर से राhय को
बढाया़ ही नहM अिपतु सTु यवि+थत भी िकया। सन् 1515 से इ/ह*ने सािहय-गो{ी का आयोजन
श9 ु कर तेलगु ,ु स+ं कृ त, क/नड़ आिद सभी को समा`त िकया। अपनी सािहियक !ितभा-!ेम
के कारण इ/ह: ‘आं‡ भोज’’ क उपािध !ाि\ हई। कृ Pणदेवराय क सभा म: ‘अO- िदrगज’ थे।
वस/तोसव के आयोजन [ारा सािहय और भी सपं Oु होता था। िवजयनगर के शासक वैPणव थे।
क/नड़ सािहय से शैव तथा तिमल सािहय से बैPणव मत का तेलगु ु सािहय म: सम/वय हआ।
आमु=माPयदा - कृ Pणदेवराय सािहयकार* के आ|यदाता ही नहM अिपतु सािहय के मम(R
भी थे। उनक कृ ित ‘आम_ ु माBयदा’ को ‘िवPणिु च/तीयमु’ भी कहते हf। च+ु त भाषा और !ब/ध

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तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
शैली म: िलखी गयी इस काTय म: !कृ ित क छटा, उ!ेFा, 9पक का समुिचत !योग काTय के
|े{ता म: चार चाँद लगाते हf।
अT िद*गज - कृ Pणदेवराय के राजसभा के अO िदrगज* क याित तेलगु ु सािहय म: िवशेष
9प से है। ये है- अBसािन पेद/् ना, नंिद ित5मना, धूज(िट, अŠयलरातु रामच/0 किव, रामराजभश ू
ण, संकुसाल नृिसंह किव, कंसािल 90देव एवं तेबिल रामकृ PणŠया !भृित।
अPलसािन पेUना - कृ Pणदेव राय के इस महान किव को इनक उकृ O !ितभा हेतु ‘आ/‡
किवता िपतामह’ क उपािध दी गयी है। +वयं कृ Pणदेवराय ने इनके पाँव म: ‘गंडप:डेरम्’ पहनाकर
पालक म: बैठाया था तथ अपने कंधे पर पालक उठाया था। किवता या तो Tयजं ना य_ ु होती है
अथवा लFणा। तेलगु ु सािहय म: लFणा काTय का !ाधा/य है। न/नय भˆ के बाद पेGना ने
Tयंजना शैली अपनाते हए ‘+वारोिचश मनचु Hर7’ महाकाTय क रचना क। पेGना के इस मनु
पा7 का ज/म एक अnसरा से हआ था। इस अnसरा ने मानव और दवे के बीच तल ु ना कर मानव
को अपना +नेह-पा7 बनाया था। पेGना अपनी लेखनी के [ारा परमाथ( भाव को पोिषत करते हए
सृिO के आरंभ क कथा !बंधा5क शैली म: !+ततु करते हf। !ायः रसपाHरपाक के िलए किव ने
शैली िविवधता को अपनाया है। पेGना के पद* क Tयंजकता तथा समासय_ ु पदावली उनक
रचना को लोकि!य बनाते हf।
भOVमूित. - इनका वा+तिवक नाम रामराज भश ू ण है। ये भाट वंशज संगीतR थे, इसीिलए उ/ह:
‘संगीत रह+य कलानीिध’ के नाम से जाना जाता है। इनक कृ ित ‘वसचु Hर7’’ का कथानक
‘शुि_मित नदी’ और कोलाहल पव(त’ के !ेम स5ब/ध* से उप/न क/या का वसरु ाज के साथ
िववाह से संबंिधत से उप/न क/या का वसुराज के साथ िववाह से संबिं धत है। इस कृ ित क
गेय-पामकता एवं गामकता को तेलगु ु के िपंगल शाSी भी िकंिचत जानते ह*गे या नहM यह
कहा नहM जा सकता िकंतु कृ ित म: शZद और अथ( के +थान पर लय और +वर ने िवजय पायी
है।
निं दित7मना - निं द ित5मना कृ Pणदेवराय क पनी िच7मांबा के साथ दहैत के 9प म: िवजयनगर
आये थे। इनक कृ ित ‘पाHरजात पहरण’ कृ Pण-9ि मणी-सयभामा ढंग से बनु ा गया है। नारदमिु न
+वग( से पाHरजातपPु प लाते हf, िजसे कृ Pण को देते हf। कृ Pण वह पPु प 9ि मणी के देते हf, िजसे
सयभामा क दासी देख लेती है । सयभामा इस बात से नाराज हो जाती है और िफर कृ Pण [ारा
सयभामा को मनाने क !िkया क कहानी है। ‘नाक’ के संदभ( म: इनका एक पद लािलय
देखते बनता है- ‘चंपा पPु प के पास भँवरा नहM आता था अतः दःु खी होकर पPु प ने तप+या क
तो वह नाक और उसके दोन* ओर आँख भँवरा बनकर हमेशा के िलए रहने लगे। इस पद को
अपने काTय म: !योग करने हेतु भˆमिू त( ने मूBय देकर इनसे िलया था। ‘पाHरजातापहरण’ के अतं
म: सयभामा ने नारदमिु न को कृ Pण का दान कर िदया। इस तरह यह एक नाट्यामक प भी बन
जाता है।
धूज.टी - धजू (टी अपनी भाषा क मधरु ता और मृदल ु ता के साथ ही भाव-सौ{व के िलए भी
!िस है। कृ Pणेदवे राय वैPणव थे, िकंतु शैव किवय* के भी आ|यदाता थे। धूज(टी एक शैव भ_

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
किव थे। वे िशव के Rानमय 9प क उपासना करते हए भी राजसेवा क िनंदा करते हf। इनक
कृ ित ‘फालहि+त महायम’् तथा ‘काल ह+ती<रशतकम्’ उपलZध है। दिFण के 0ाFाराम,
|ीशैलम,् अमरावती, पेदकBलेपBली और कालहि+त आिद शैव तीथ( दिFण काशी कहलाते
है। उनके ‘कालिह+त महायम् ’ से भि_ रस का !वाह तीy हआ । |ी-काल-हि+त का शZदाथ(
है- मकडी, ़ सप(, हाथी, इन तीन* के मोF क कथा धजू (टी ने कलामक ढंग से इसम: !+तुत क
है।
िपंगिल सरू चना - तेलगु ु सािहय म: अब तक धािम(क-पौरािणक रचनाय: होती रही, िकंतु
िपगं िल सरू ना से तेलगु ु सािहय म: कBपना आधाHरत रचनाओ ं को मा/यता िमली िजस काल म:
सरू ना ने िलखा, उस समय उ/ह: वह याित न िमली। िकंतु वीसवM शती के आरंभ म: इ/ह: खबू
यश !ा\ हआ। इनक !मख ु कृ ितयां राघव पाडवीयमु’, कलापूणlदयम’ु पाVाय काTय -
कBपना क िवशेष ता िलये हए हf, उस समय पिVमी देश यहाँ आये भी न थे। इसम: |ृंगार रस
क !धानता हf कलापणू lदय म: सुगा7ी-शालीन (पनी-पित) क |ृंगाHरकता का मनोवैRािनक
वण(न है। सुगा7ी क |ृंगाHरकता शालीन को िवर_ करती है जबिक उसक सादगी से अनरु _
शालीन +वयं को िनयंि7त नहM कर पाता है। ‘!भावती !ु5नमु’ म: !ु5न का !भावती के !ित
रित-भाव !कट हआ है।
सक ं ु साल नृिसहं किव - अOिदrगज* म: नृिसंह किव का िवशेष मह?व है। इनक कृ ित ‘माधं ता
चHर7म’ु ‘किवकण(रसायनमु’ के नाम से िलखा गया था। !बधं शैली म: !ौढ़ भाषा एवं शैली म:
िलखा गया यह महाकाTय पाठक* के कण( के िलए रसायन का काम करता है। इन सबके
अितHर_ कंदक ु ू री 90या, तेनािल रामकृ Pण तथा मादŠयगाHर मBलना आिद अ/य उBलेखनीय
किव है। क/दक ु ू Hर 90Šया इqाहीम कुतबु शाह का दरबारी किव था। इनक कृ ितयां हf-
‘िनरंकुशोपाठयानमं’ु , ‘जनाद(नाOकमु’, ‘स4ु ीव िवजयमु’ आिद।
तेनािल रामकृAणा - अकबर-बीरबल क तरह तेनािल रामकृ Pणा एवं कृ Pणदेवराय क कई
कहािनयाँ !चिलत है। इनक कृ ित ‘पाडं ु रंग महा5यमु’, ‘उटारा=य चHर7मु’ मानी जाती है।
महाराPQ के बारकरी सं!दाय िवPणु को ‘पाडुरंग’ के 9प म: पजू ती है। तेनािल क वkोि_ शैली
इनक कृ ित को अनोखा 9प !दान करतीहै। तेनािल क स+ं कृ तिन{ तेलगु ु उ/ह: अ/य किवय* म:
अ4गय बनाती है। तेलगु ु सािहय म: सोमना, कृ Pणदेवराय, तेनािल इन तीन* के छंद* म:
पHरPकरण और आकष(ण का उदाहरण अ/य7 दल ु (भ है। तेनािल रामकृ Pण के पVात् !ब/ध
काTय* का यगु लगभग सामप\ !ाय हो गया।
अXयलराजु रामभ9 - इ/ह*ने तेलगु ु के मल ू शZद* [ारा ित कना क शैली को पनु जUिवत करते
हएु ‘रामा5यदु यमु’ क रचना क मधुर तथा !ांजल भाषा म: सुकुमार ढगं से इसक !+तिु त को
पाठक सहज ही अपना लेते हf।
मोPल - मोBल नामक कविय7ी कंु भार के घर म: ज/मी थी। इ/ह*ने ‘रामायण’ को अयतं सिं F\
!बंधामक 9प म: !+ततु िकया है। इस !कार यह यगु सािहय सज(ना म: उ}च-िन5न वग( के

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
भेदभाव से परे था। Sी-प9
ु श क Rान Fे7 म: सहभािगता +व+थ समाज क भावना को !दिश(त
करता है।
तारगYड बBकमा7बा - इनका नाम श_ किवय* म: स5मान के साथ िलया जाता है। ब:कमा5बा
बाल-िवधवा थM। इनक कृ ितयाँ हf- ‘व:कटे<र माह5यमु’, ‘राजयोगसारमु’ और ‘योग
वािशOम’, आिद म: kमशः |ृंगार भि_ वण(न और ई<र, जीव एवं !कृ ित का िववेचन िकया
गया है।
ित7मIका - भ_ अ/नमŠया क पनी ित5म का ने ‘सभु 0ा कBयाणमु’ 4थं क रचना क थी।
एलकूिच बाल सरवती - इ/ह*ने ‘राघव, यादव, पाडवीयम’् 4थं क रचना क । इसम: राम,
कृ Pण और पाडव* का एक साथ वण(न है। इसके अितHर_ ‘आ‡ं शZद िच/तामिण’ नामक
Tयाकरण क टीका भी इ/ह*ने िलखी थM।
मादŠयागHर मBल/न कृ त ‘राजशेखर चHर7म’ु , चHरक*डा धम(/ना ने ‘चि7-भारतम’ु , क
रचना क तथा तेलगु ु ‘शतावधान’ काTय परंपरा का |ीगणेश िकया। शतावधान म: सौ Tयि_य*
को kम से िबठाकर किव !सेक को पृथक-पृथक् प क एक-एक पंि_ िलखाता है। पुनः नयी
पंि_ और पद का kम करते हए चार चरण परू े कराता है, िजससे !सेक के पास एक-एक +वत7ं
पद तैयार होता है। अंत म: शतावधानी से छnपनवाँ पद सनु ाने का आ4ह करते हए |ोता क
इ}छानुसार िकसी भी संया का पद सुनाने का आ4ह िकया जाता है।
कुमार धूज.टी - ये धजू (टी के पौ7 थे। इनक कृ ित ‘कPणराय’ िवजयमु’ तेलगु ु सािहय के
ऐितहािसक रचनाओ ं म: िगनी जाती है। इनके अितHर_ कई अ/य किव भी है िजनक रचनाय:
उBलेखनीय बन पडी ़ है इनम: अGंिक गंगाधर (तपती संवरणमु), िपडुपित( सोमनाथ (बसव
पुराणम)ु तेनािल अ/नŠया (सुदिFण पHरणयमु’), तHरगोnपल ु मBलना (च0ं मानु चHर7म)ु , शंकर
(हHरV/0ोपायानमु), सारंगु त5मŠया (वैजयंती िवलासमु’) हHरभˆ (वराह पुराणम)् आिद !मख ु
हf।
लDण !थ ं और 1याकरण - इस काल म: कई लFण 4थं एवं Tयाकरण भी िलखे गये। भˆमिू त(
क ‘नरस भपू ालीयमु’, यादवामाय क ‘लFणिशरोमिण’, ित5मना क ‘सल ु Fण सार’, मुGराज
रामना क ‘किव संजीवनी’, वेBलंिक तातम् भˆ क ‘किव िचंतामिण’, अnप किव क
‘अnपकवीयमु’ आिद उBलेखनीय लFण एवं Tयाकरण रचनाय: हf।
इस !कार इस काल क कई !वृिKयाँ देखी गयी है। !बंध काTय, Tयाकरण-लFण 4थं
, राजा-!जा क धािम(क सािहPणुता, धनवान सामंत, शतक परंपरा का िन9पण आिद उBलेय
है। शतककिव, किव के साथ-साथ राजदतू भी होते थे।
वेमना - वेमना ने देशी शैली क किवता से शZदावली तथा शाSीय किवता है छंद लेकर
भाव-Tयंजना म: नवीनता का अनसु रण िकया। वेमना ने सािहय को रस, छंद, अलंकार तक ही
नहM बिBक समाजोपयोगी बनाने क कोिशश क। इ/ह*ने किवता का िवषय सामािजक 9िढ़य*
का खंडन तथा धम( का सामा/यीकरण अपने छोटे-छोटे पद* के [ारा िकया है। उनके पद
आधिु नक समाज-सधु ारक* के िलए िकसी अS से कम नहM है।

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तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कंचेल. गोप-ना - तालीकोट यु}छ (1565) के बाद आं‡ का अिधकांश भाग गोलकोडा
कुतबु शाही के अधीन हो गया। कुतबु शाही वश ं के अिं तम तानाशाह शासक अबल ु हसन के
राhय के किव कचेल( गोप/ना (रामदास) ने राज+व म: िमली अपनी संपित धम(-काय( म: खच( कर
िदया था। यह समाचार सनु कर तानŠया (अबल ु हसन) ने उ/ह: गोलकोडा म: ब/दी बना िलया।
इनक मह?व पणू ( कृ ित ‘दशरथी शतकमु’ रामभि_ का अजS सागर है।
सिं धकाल - तािलकोट य ु के बाद आ‡ं का अिधकांश भाग मिु +लम शासक* के अधीन हो
गया। िकंतु पेनुक*डा और चं0 िगHर म: सन् 1650 ई. तक िवजयनगर के उतरािधकारी शासन
करते रहै। तंजौर और मदु रु ा दोन* तेलगु ु राhय थे। तंजौर सािहय कला का क: 0 था तो मदरु ा
राजनीितक दाँव-प:च का । मदरु ा के राजा ित9मल नायकने मयदानव के सभा- भवन के आधार
पर ‘महासभा भवन’ बनवाया था। इन राhय* पर पांडय और चोल राजाओ ं का अिधकार था।
तंजौर के रघनु ाथ नायक और िवजय राघव नायक किवय* के आ|यदाता एवं +वयं अ}छे किव
थे। रघुनाथ ने ही वीणा वा को िवकिसत िकया था। रघनु ाथ ने अपने िपता क जीवनी को
पव िकया था तथा उनके पु7 िवजय राघव ने ‘रघनु ाथाvयदु यम’ु नामक यFकाTय क सज(ना
क। वंश परंपरा के अनसु ार िवजय राघव के प7ु म/नारदास नेअपने िपता क जीवनी को सािहय
9प िदया। सर+वती महल’ नामक िवशाल पु+तकालय इ/हM नायक राजाओ ं क देने है।
चेमकूर वBकटकिव - चेमकूर व:कटकिव तंजौर के किव-िशरोमिण कहै जाते हf, इनक ‘िवजय
िवलासम’ु म: अज(नु क तीथ(या7ा का वण(न िकया गया है। उलपू ी, िच7ांगदा, सुभ0ा के साथ
अज(नु के िववाह कथानक को eेश शैली म: भाषा क सहजता के साथ िदखाया गया है। इस
काTय का यमक - सsदय( इस प म: `OTय है-:
‘मीरददं ु न9गा न9गान9गा’ (आप लोग कही-कहM पहचँ ने पर अज(ुन को देय नहM सक: गे) व:कट
किव क ‘सारंगधर चHर7म’ु कृ ित भी उBलेखनीय है। इनका !येक शZद सुगिं धत तथा मीठी
!तीत होती है।
दीिDत किव - रामभ0 दीिFत क कृ ित ‘जानक पHरणयमु’, (नाटक), लीलाशुक का ‘कृ Pण
कणा(मतृ म्’ आिद रचनाएँ दीिFत किवय* क सं+कृ तिन{ता को Tय_ करती है।
िवजय राघव नायक - इनक कृ ितयाँ रघनु ाथ नायकाvयदु यमु’ (नाटक), ‘कालीयमद(न’
(नाटक), !•ाद चHर7, पतू ना हरण, िव|नारायण चHर7मु’ (काTय) आिद मह?व पूण( है। िवजय
राघव इतना गव( करता था िक +वयं को महाकिव मानकर अपने पैर म: ‘गडेपेडेरमु’ पहनता
था। इनके दरबारी किव च:गBव काल ने ‘राजगोपाल िवलासमु’ काTय क सज(ना करते हए
तेलगु ु म: नाियका भेद आरंभ िकया। इसम: कृ Pण क आठ रािनय* का िशख वण(न है।
रंगाज7मा - आठ भाषाओ ं क Rाता रगाज5मा का नाम ‘पसपु ल ु ेिट’ था। इनक कृ ितयाँ
‘म/ना9दास िवलासमु’, ऊषा पHरणयमु, ‘रामायण-सं4ह’, ‘भारत सं4ह’ और ‘भागवत सं4ह’
आिद है। इनक कृ ितयाँ सािहय भारती क कप(रू वित(का आरती स`श है।
यDगान - ‘वीधी’ नाटक* को तेलुगु म: ‘यFगान’ कहा जाता है। आगे चलकर ‘यFगान’ और
‘बरु ( कथा’ के 9प म: वीधी नाटक !चिलत हए। यFगान म: लय के साथ तोहरलु, कत(न, प,

उतराखड मु त िवविवालय 67
तल
ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
ग का समावेश होता गया। इस !कार तंजौर शासन काल म: तेलगु ु सािहय, संगीत, नृय का
चहमँ ख
ु ी िवकास हआ। तेलगु ु सािहय का संkमण काल इ/हM के कारण मह?व पणू ( बना रहा।
6.3.6 तेलुगु सािहय का तृतीय काल (सन् 1701से 1850)
rयारहवM शती से लेकर स7हवM शती तक चालु य, काकतीय, िवजयनगर साŽाhय म: तेलगु ु
सािहय खबू फला-फूला। इसके बाद क राजनीितक िव|ृंखलता के बाद शासन तजं ौर, मदरु ा
तक सीिमत हो गयी। मदरु ाराhय म: िवजयरंग चो कानाथ के समय समुखमु व:कट कृ Pणnपनायक
ने ‘जैिमनी भारतम’ु नायक ग रचना क। मैसरू राhय के सेनापित कुलवे वीरराजु ने ‘महाभारत’
को ग म: िलखा। आ‡ं राजा अनेक छोटे-छोटे शासन क: /0* म: िवभािजत था। राजमहै/0वरम,
पेGपरु म, िवजयनारम् बोिZबली, िपठापरु म् आिद चार सामंत राhय* म: तेलुगु सािहय िवकिसत
होता रहा। तृतीय काल के !मख ु किवय* और उनक रचनाओ ं का अवलोकन इस संदभ( म:
अपHरहाय( है।
कूिचमंिच ित7मकिव - इ/ह*ने कई शतक, दडक एवं !बंध काTय* क रचनाय: क। इनक
रचनाओ ं म: ‘नीला संदु री पHरणय, ‘राजे<र िवलास’, रिसक जन मनोिभरामम’ु , ‘सव(लFण सार
सं4ह’ ‘अ}च रामायण’ आिद महपूण( है। अ}च का तेलुगु अथ( ठे ठ होता है, िजसम: पकार,
शकार का !योग नहM होता है। ित5मकिव क !ितभा से अिभभूत होकर िव[ान* ने इ/ह: ‘किव
साव(भौम’ क उपािध दी थी। भाषा, छंद, अलंकार पर पणू ( अिधकार रखते हए भी
भावािभTयंजना म: ये चक ू गये हf। उ/ह*ने कंद नामक छंद म: पHरवत(न कर उसे !भावशाली
बनाया।
कंकंिट पापराजु - पापरातु ने ित कना के ‘उKर रामा यणमु’ को अपनी वदशU शैली म: पनु ः
िलखा। तेलगु ु भाषा का जो 9प !ारंिभक काल तथा म=यकाल म: िनखरा था वह कुतबु शाही
जैसे मिु +लम शासक* के समय बदल चक ु ा था। िजसे पनु ग(िठत करने क आवयकता थी। भाषा
म: फारसी, अरबी, के कई शZद !वेश पा चुके थे। इसीिलए तृतीय काल के िव[ान* ने लFण
4थं *, िनघंटु (आं‡ भाषा सव(+वम)ु आिद का !णयन िकया। आचार-Tयवहार के Fे7 म: धम(4थं *
का पनु !(णयन िकया गया। आं‡ पर मसु लमान* के आkमण के समय परशरु ाम पतं ल ु ु िलगं मिू त(
ने आ‡ं म: योगिवा का !चार िकया। िलगं मिू त( ने ‘सीतारामांजनेय सवं ादम’ु कृ ित क रचना
करके इसका मह?व !ितपािदत िकया।
िलंगमिू त( के प7ु राममिू त( ने ‘शुक चHर7’ क रचना कर अपने िपता के िवचारो का संवध(न
िकया।
Sृंगारक रचनाएँ - पनायक वंश के राजा वैPणव थे। इनके उपा+यदेव कृ Pण थे। अतः कुछ
किवय* ने आ|यदाता क !शंसा म: कृ Pण क रिसक 9प Tयंजना क है। सव(Rिसहं भपू ाल कृ त
‘रनपच ं ािशका’ 9पक नाटक* म: िशखर पर िगनी जाती थी। तंजौर के कई अ/य किवय* ने भी
|ृंगाHरक रचनाएँ क। मGु ुपलिन कृ त ‘रािधका सा/वनम’ु , कामे<र क ‘सयभामा सांवनमु’,
समख ु मु व:कट कृ Pणnप नायक के ‘अहBया संkदनीयमु’ और शेश मु व:कटपित के

उतराखड मु त िवविवालय 68
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
‘ताराशांकमु’, अhजपरु पेHरयािलंग क ‘तोडयानंिव िवलास’ आिद |ृंगार रचनाय: कही-कहM
अeीलता क सीमा लाँघ गई है। िबBहण क कहानी को ते/नू9 शोभानाि0 ने ‘पणू ( चं0ोदय’,
चेBलपBली नरसकिव का ‘यािमनीपणू ि( लका िवलास’, िशवराम किव का काम कला िनिध’
आिद कामशाS का िववेचन ही !तीत होता है।
ज*गकिव - इस काल के कूिचमंिच, जrगकिव का |ृंगार वण(न म: नाम िलया जा सकता है।
जrगकिव ने राजा क रखेली च/0रे खा पर ‘च/0रे खा िवलास’ क रचना क । िक/तु राजा के
ितर+कार से दःु खी होकर यह कृ ित उ/ह*ने जलाकर ‘च/0रे खा िवलाप’ क रचना क।
िदUकिव नारायण - इनके ‘रंगराय चHर7’ म: बोZबिल के य ु का ऐितहािसक वण(न है। भˆ!भु
क ‘कुचेलोपायान’, ‘सरु ामडे<र’ कृ ित को खबू !िसि िमली। इस काल म: |ृगं ाHरक काTय
के अितHर_ शतक सािहय, !शंसामक किवता (चाटु किवता) का भी खबू िवकास हआ।
चौडZप शतक - इस शतक म: मा7 ‘कंद’ छंद (सं+कृ त के ‘आय(’ छंद का पHरवित(त तेलगु ु 9प)
का !योग िकया जाता है। चौडnपा ने छंद क पोत/ना शैली को अपनाया।
इ/ह*ने नीित काTय के साथ-साथ िन/दा काTय क भी रचनाय: क।
गोगुलपािट कूम. - इ/ह*ने सीस छंद म: ‘वेणगु ोपाल शतकम’ु , ‘िसंहा0ी नारिसंह शतकम’ु क
रचना क है। इसक काल म: ‘कालवु ाय शतकमु’, ‘मदनगोपाल शतकम’ु , ‘लावय शतकमु’,
‘इदं शु तकमु (इसम: पित िवयोग म: मrु धा नाियका च/0मा से कृ Pण और गोिपय* क कुशल पछ
ू ती
है।) आिद |ृंगाHरक काTय भी िलखे गये।
कासल ु पुषोRमकिव - इनक रचना ‘आं‡नायक शतक’ का !येक पद Tयाजिनंदा से भरा
हआ है। TयावहाHरक भाषा म: सटीक अिभTयि_ इस रचना क िवशेष ता है।
चाटुकिवता - इस काल के कुछ किवय* ने !बधं काTय और लFण काTय के साथ चाटु
किवताय: भी िलखी। लेिकन कुछ ऐसे भी किव हf जो मा7 चाटुकिवता के आधार पर ही !िस
हए, इनका उBलेख !ासंिगक होगा।
अिडदमु सरू किव - इ/ह*ने ‘आ‡ं च/0ालेाकमु’, ‘आ‡ं नाम शेश म’ु , ‘किव संशय िव}छे दम’ु
आिद लFण-4थं तथा ‘किव जनरंजन’ नामक तीन आ<ास* वाला काTय िलखा है।
चाटुकिवता के Fे7 म: इनको खबू !िसि िमली।
िपंिडोलु ल[मण किव - इनक ‘रावण द5भीय’ अथवा ‘लंका िवजय’ नामक कृ ित इनके
नीजी जीवन से जुडी है़ । जमMदार [ारा 9O होकर इनका खेत छMन िलया जाता है, फलतः उ_
दयिथ( काTय सज(ना करते हf। मृयजंु य किव क धरामजा पHरणयमु म: कही भी ओ{्य अFर*
का !योग नहM िकया गया है। लIमण किव ने अपने काTय हेतु इितहास, परु ाण और सामािजक
घटनाओ ं को चनु ा है जो इनक कृ ित को कालम_ ु !िस देती है।
पद अथवा कत.न - Fे7Šया किव के भि_ पणू ( |ृंगार रसपूण( काTय जयदेव क समानता करते
हf। इनक कृ ित ‘मZु ब गोपाल पद’ म: मछलीपGनम् के गोपाल +वामी क +तिु त के साथ -साथ
नाियक भेद पर !काश डाला गया है।

उतराखड मु त िवविवालय 69
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
आ‡ं के कुछ qा ण िनयोगी और वैिदक कहलाते थे। िनयोगी qा ण राजाओ ं के
!धान म7ं ी पद* पर काय(रत थे जबिक वैिदक qा ण* क वेदो}चारण के Fे7 म: िवशेष !िसि
थी । ऐसे वैिदक qा ण* म: पंिडतराज जग/नाथ को कौन नहM जानता। तृतीय काल के कई किव
िनयोगी qा ण थे। इस काल के कुछ वैिदक qा ण* ने तेलुगु म: िलखने का !यन िकया था।
िशO कृ Pणमिू त( शाSी, िपठापरु म् के राजा के समय के िव[ान थे। इ/ह: ‘चाटुकिव चkवतU’ क
उपािध चाटुकिवय* ने दी थी। इनक कृ ित ‘राजगोपाल िवलास काTय’ है। वैिदक qा ण* को
राhया|य न िमलने के कारण उ/ह: अपने भरण-पोषण के िलए अ/य िदशाओ ं म: भी !यन करना
पड़ा।
िन-दामक किवता - िन/दामक किवता, चाटुकिवता क परू क है। वेमल ु वाड़ा भीम किव,
रामराज भषू ण, मेधावी भˆ, तुरगा राम आिद किवय* क िन/दामक काTय !+तिु त ने बड़े-बड़े
राजाओ ं को झुका िदया। आं‡ म: यह लोकोि_ !िस हो गयी िक पेGापरु ाम का नाश किवय* के
कुछ होने से हआ।
भत.हु र के शतक और वाPमीिक रामायण - ने भत(हु Hर के eोक* का तथा गोपीनाथ ने
वाBमीिक रामायण को ‘गोपीनाथ रामायण के नाम से तेलगु ु अनवु ाद िकया उKर म=य काल म:
तेलगु ु ग क गित अयंत धीमी थी,जो इस काल म: खूब िवकिसत हई।
तृतीय काल क िवशेष ताएं - इस काल के किवय* का =यान भाव क अपेFा भाषा पर
के ि/0त था। वय(-िवषय को छोड़ द: तो कBपना, शैली, भाषा, छंद, और अलंकार क `िO से
यह काल मह?व पणू ( है। एक तरह से काTय का िवकास बा‰ 9प म: हआ िकंतु आतं Hरक पF
उपेिFत रहा । न//य भˆ ने ही तेलगु ु ग का आरंभ कर िदया था, िक/तु उसका िवकास तृतीय
यगु म: खूब हआ। इस समय का सािहय यथाथ( के करीब था।
कुछ आलोचक* ने सन् 1710 ई. से सन् 1800 ई. तक के समय को अंधकार यगु का
नाम िदया है।
मुसलमानी भाव - काकतीय शासन के समय मसु लमान* ने आkमण िकया था, लेिकन वे
यहाँ के सािहय और समाज पर िवशेष !भाव नहM डाल पाये। तृतीय काल म: आं‡ पर
मसु लमान* का पणू ( अिधकार +थािपत हो चुका था। तेलगु ु भाषी सामतं इ/हM मसु लमान शासक*
क कृ पा कर िनभ(र थे। आं‡ म: इन शासक* के कारण उKर भारतीय िह/दी क बोिलय* का
!वेश हआ, इनक भाषा को ‘तरु कल माटा’ (तुकU क भाषा) कहा जाता था। अरबी, फारसी
िमि|त िह/दी सािहय के मगं लाचरण और राज!शंसाओ ं का अनक ु रण अब तेलगु ु सािहय म:
भी होने लगा था। तेलगु ु सािहयकार अपनी भाषा, शैली, छंद क िवशिु  हेतु नानािवध सािहय
!योग करने लगे थे।
6.3.7 तेलुगु गK सािहय का िवकास (न-नय से सन् 1850 ई. तक)
तेलुगु गK - िशलालेख* के आधार पर तेलुगु ग न/नय से पवू ( ही !चिलत था। आं‡ देश म:
सन् 625 ई. म: पवू U चालु य* के शासन काल म: िशलालेख पाया गया है, जो ग 9प म: है।

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तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
तकालीन बोलचाल क भाषा म: !ाकृ त के कई शZद िमि|त थे। जयिसंह बBलभ के ‘िवघटटु’
और मंिगयवु राज के लIमीपरु म् वाले िशलालेख पवू U चालु य* के समय के है। चालु य भीम के
‘कोरिव’ के िशलालेख म: मधरु संभाश ण शैली का !योग हआ है।
जब कोई भाषा रंजक शैली म: सरस पित म: उKम भाविभTयि_ करने लगे तो उसे
काTय कहते हf। काTय म: छंद, लय, तक ु , अलंकार होता है, िकंतु जब इन सबसे म_ ु +वछंद
भाषा 9प क रसपपू ण( भावािवTयि_ हो तो ग कहलाती है तथा ग और प िमि|त रचना
चंपू कही जाती है। भारतीय भाषाओ ं म: तेलुगु तीसरी सबसे अिधक बोले जाने वाली भाषा है जो
िह/दी और बगं ला के बाद आती है। तेलगु ु अपनी मधरु ता के कारण ही पाVाय िव[ान* [ारा
‘‘इटिलयनल ऑफ दी ई+ट’ (पवू ( क इतालवी भाषा) कही जाती है।
न-नय भOारक -
चालुIय - वंश के चkवतU राजा राजराज नरे /0 के !ोसाहन पर न/नय भˆ ने चंपू शैली के
‘स+ं कृ त ‘महाभारत’ का आ‡ं ीकरण िकया। यह रचना शZद- चयन, सरस शैली म: किव7य
(न//य, ित कना, एरा(!ेगड़ा) [ारा पवू ( हई। !ायः तेलगु ु भाषी शZदालंकार ि!य होते हf। यहM
कारण है िक ऐसे शZदालंकार और पद-रचना के िनयम* से पूव( भाषा िव<- वाड्मय म: दल ु (भ है।
सं+कृ त म: यित और !ास का िनयम नहM है, जबिक अं4जी म: Rhyme (अंयनु!ास) है। न/नय
से लेकर चेमकूर व:कटकिव तक (सन् 1020 से सन् 1620 तक) के वल चंपू काTय ही अिधक
िलखे गये। नायक राजाओ ं के समय म: ग क मह?व को समझते हए इसे अपनाया। न/नय का
ग Tयायामक, भावपणू ,( है। न/नेचौड़ क ग रचना चमकारपणू ( है। ित कना रिचत भारत -
सािव7ी’ नामक ग4थं का आं‡ नाHरय* [ारा िनय पठन िकया जाता है।
18वM शती ग रचना का +वण(यगु कहा जाता है। तेलगु ु ही नहM अं4जे ी, i: च, आिद के िलए
यह युग +विण(म था। मैसरू के िच कदेवराय के सेनापित कलुवे वीरराजु ने ‘महाभारत’ को ग म:
िलखा। |ी तुपाकुल अनंतभपू ाल ने ‘भीPम पव(’, ‘िवPणुपरु ाणे, ‘रामायण-, का संदु रकांड’ ग म:
िलखा था। |ी नारायणŠया का ‘शािं तपव(’ जीवतं ग 4थं !तीत होता है। ‘रामायण’ को |ी
याम किव, िशंगरात’ु , दKा7ेय, पैिडपािट पायŠया ने तो ‘भागवत’ को व:कट सुZबŠया, पPु पिगHर
ित5मना ने ग म: भाषांतHरत िकया। नंदरातु का ‘हाला+य महा5य’, |ीिवजयरंग चो क भपू ाल
ने ‘|ीरंग महाकाTय’, कामे<र ने ‘धेनमु हा5य’, व:कट कृ Pणnपै ने ‘जैिमनी भारत’ आिद को ग
9प म: ही !+ततु िकए।
भि= वचन - भि_ पूण( पशतक* क तरह 105 वचन* क माला बनाकर इOदेवता को
समिप(त करने क परंपरा इस काल म: खबू !चिलत थी। !मख ु वैPणववचन है- ‘व:कटे<वचन’,
‘शतकोिटिव/नपमुल’ु , ‘कृ Pणमाचाय( कत(न,’ ‘चिू ण(क’, आिद। ‘शैवचिू ण(क’ आिद उBलेख है।
इितहास - |ी कृ Pणदेवराय का इितहास ‘रायवाचक’, काकतीय राजवंशावली का
‘!तापचHर7’, हैदर टीपू सBु तान का ‘सारंगधर चHर7’ आिद !मख ु इितहास 4/थ इस यगु को
धरोहर है।

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तल
ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कथाएँ - qाउन साहब का ‘ताताचाय(ल ु ु कथBलु’, शुकशहराती, ‘तोते क कथाएँ, कर बहतरी
कथाएँ, हसं िवंशाित, ‘पंचतं7कथलु’, ‘छािवंशित’, ‘सालभंिजका कथाएँ, पHरश पादषु ा
कथल,ु िवनोद कथल,ु गोलक*ड नवाब कथल ु ’ु , आिद के अितHर_ ‘च/0हसा चHर7म’ु
आिदउBलेख कथाएँ हf।
या]ा वृRांत - तेलगु ु सािहय म: या7ावृKांत क परंपरा भी खूब पायी जाती है। कुछ !मखु या7ा
वृतातं हf ।- ‘नीलिगHर या7ा चHर7’ (कोला शेषाचल किव), ‘काशीया7ा चHर7 (|ी एनगु ल ु
वीरामŠया) आिद।
तेलुगु सािहय को मBकBती और ^ाउन महाशय क देन - चौथे मfसरू य ु म: टीपू सुBतान को
हराकर मfक:जी ने क/याकुमारी से िचलका झील तक पाँच वषg तक पय(वेFण िकया। उ/ह*ने
!मखु घटनाओ ं िवशेषताओ ं तथा इितहास का सं4ह कर म0ास !ा}य प+ु तकालय म: सुरिFत
िकया। qाउन ने तेलुगु सीख कर िजला गजेट और म0ास राhय का गजे़ट तैयार कराया जो मह?व
पूण( है।
6.3.8 तेलुगु सािहय के िविवध का1य प
तेलगु ु किवय* ने वण(नामक रचना हेतु प तथा िववरणामक हेतु ग का !योग करते हए ग
का भंडार संिविध(त िकया। इसके अितHर_ तेलगु ु काTय के िविवध 9प हf, िज/ह: इन चरण* म:
िवeेिषत िकया जा सकता है।
शतक सािहय - शतक सािहय !बंध यगु के बाद क तेलगु ु क मौिलक िवधा है।शतक
सािहयकार* क सरल, +वाभािवक !+तिु त अपढ़ Tयि_ के िलए भी इसे वोधग5य बना देती है।
यह सािहय लोक सािहय और शाSीय सािहय क बेजोड़ !+तिु त है। िव/नकोिट पे[ना ने
सव(!थम इसे ‘F0ु ’ सािहय क संRा देते हए शतक सािहय को सािहय क |ेणी म: रखा।
आधिु नक यगु के +वगUय है बगं Hू र सZु बाराव ने शतक सािहय क वृहद् समीFा क। शतक
सािहय तथा अं4जे ी के !गीत-म_ ु क (िलHरक) म: पया(\ सा5य हf । य*िक दोन* म: काTय के
अतं प(F क कलामक अिभTयि_ हई है। शतक् सािहय के िलए िवषय क कोई सीमा नहM है।
नीित, भि_, |ृंगार, हा+य आिद कोई भी िवषय शतक के िलए िलया जा सकता है।
तेलगु ु के कुछ शतक* का दशक* म: वगUकरण हआ है जैस‘े - नारायण शतक (नाम
दशक, आिददशक Rानिवंशित, अवतार दशक) , म/ना9कृ Pणशतक (दाससंग दशक, गोपालन
दशक) रामच0ं शतक आिद।
तेलगु ु भाषा के शतक से पहले सं+कृ त, !ाकृ त भाषा म: समृ शतक परंपरा रही ह:
‘अवदान’ नामक शतक !ाकृ त भाषा म: पाया गया है जो बौ-धम( से स5बि/धत है। सं+कृ त का
‘िदTयवदान शतक ‘गिनि{त, समासय_ ु शैली म: िलखा गया है। इस अवदान क कुछ
कथाओ ं को चनु कर ‘कBप ‡माZदन माला’ नामक 4थं का !णयन हआ। इसी तरह
‘अशोकावदानमाला’ और ‘ रनावदान माला’ भी है। िशव और िवPण+ु तो7 क भांित ब ु
स5ब कई Sोत सं+कृ त म: िमले हf। जैसे- ‘कBयाणपंच िवशितका, ‘स!ु भांत +तवन’’, ‘परमाथ(

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तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
नाम संकत(न’, लोके <र शतक’, आिद म: श यमिु न ब ु और बोिधव* क +तिु त क गयी है।
अवलोिकते<र क पनी तारादेवी से संबंिधत +तो7 ‘आय( धारा Srधरा +तो7’ किव सव(R िम7
[ारा िलखा गया है। एक qा‰ण को यRपशु बनने से बचाने हेतु किव सव(R रFा क। च/0गोिम
वे भी ‘तारासाध’ नामक शतक िलखा था तथा ितZबती भाषा म: भी 62 +तो7* का अनुवाद !ा\
होता है। ‘अम9क’, ‘|ृंगार ितलक’, ‘भतृ(हHर सभु ािवत’, ‘मूक पंचशित, आिद मह?व पणू (
शतक काTय है। शंकराचाय( का ‘िशवानदं लहरी’, सsदय( लजहरी’’, मयरू किव का ‘सयू ( शतक’
तथा कुलशेखर का ‘मक ु ु /दमाला’ आिद शतक काTय कहै जाते हf। सं+कृ त म: ‘पंचक’, (पाँच
पंि_ के eोक), अOक (आठस पंि_ के eोक), ‘शतक’ (सौ पंि_ क eोक किवता) आिद।
इस !कार सं+कृ त म: धम(, नीित, |ृगं ार और वैराrय क उKम शतक रचनाओ ं क परंपरा रही है।
तेलगु ु का शतक सािहय भतृ(हHर के शतक* से !भािवत है। तेलगु ु शतक सािहय के !येक पद
म: किव ई<र के साथ +वयं को भी संबोिधत िकया गया है। िह/दी म: मीरा के पद म: ‘मीरा के !भु
िगHरधर नागर’ यह चरण आया है। तेलगु ु म: इसे ‘मक ु ु ट’ कहा जाता है। इन मक ु ु ट* के आधार पर
‘शतक*’ का नामकरण िकया गया है। तेलगु ु म: पाBकुHरिक सोमनाथ का ‘वृषािधप शतक’
‘मुकुट’ परंपरा का बेजोड़ नमूना है। यह शतक ‘जानु तेलगु ु’ (िवश ु तेलगु )ु म: िलखा गया है।
अ/नमŠया का ‘सव<र शतक’ भी इस संदभ( म: उBलेख है। ‘समु ित शतक’ के रचियता का
नाम िस नहM हो पाय है। वेमना शतक से मेल के कारण वेमना क रचना मानी जाती है।
बे/नेलकंिट ज/नय क ‘देवकनंदन शतक’, अŠयलरातु ि7परु ांतक क ‘ओिटमेˆ रघवु ीर शतक’,
धजू (िट क ‘|ी कालह+तीक<र शतकमु’, तथा ताBलपाक अ/नमाचाय( क ‘|ृंगारवृK प
शतक’, ‘व:कटे<र शतक’ आिद महवपू ूण( शतक है।
चौडnपा का चौडnप शतक (|ृंगाHरक शतक), गोप/ना का ‘दाशरथी शतक’ तथा अRात किव
कृ त ‘भा+कर शतक’ आिद उBलेखनीय है। स7हवM शती म: अnप किव के ‘ब–पंजर’,
‘म9नंदन’ का उBलेख तो है िकंतु यह उपलZध नहM हो सका है। गणपवरमु व:कटकिव का
‘यमं क’ तथा ‘किठन!ास’ शतक, लFण 4थं कार अnप किव का ‘|ी नागिध शतक’ अब तक
नहM िमल पाया है। अठरहवM शती तथा उसके बाद के कई शतक !ा\ हए हf.
यDगान - ‘यF’ शZद का अपmंश 9प है- ज कु। यFगान `य काTय तेलगु ु म: !ाचीन समय
से ही !चिलत था, िक/तु इसका िलिखत 9प सव(!थम किव 90य के ‘स4ु ीव िवजय’ से !ा\
होता है। इसके रचना का समय सन् 1050 ई. है। !ोलगु िं ट चे/नकिव ने ि!यद छंद म: ‘ग भारत’
‘नरिसंह परु ाण’, आिद क रचना कर ‘अOभाषा पंिडत’ क उपािध पायी।
तंजौर शासक* ने !ायः यFगान रचियताओ ं को ही आ|य िदया। दिFणा/‡ यगु मानो
यFगान हेतु +वण( यगु बन गया है। आिदवासी कुरवंजे नृय ने धािम(क या7ा (जातरा) का
अनक ु रण कर गीितनाट्य का 9प धारण कर िलया। वनवासी कुरब, च:चु जाितय* [ारा गाँव एवं
नगर म: व+तओ ु ं को बेचने के साथ ही नृय, मनोरंजन भी िकया जाता था। 4ामीण नृय और
अिभनयकता(ओ ं क जाित ‘ज कुल’ ने गीित-नाट्य का 9प िदया (धीरे -धीरे गीितनाट्य म: नृय
का अंश कम होते-होते यह ‘यFगान’ कहा जाने लगा) धमlपदेश के साथ मनोरंजन का मेल

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तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
होने से जनता का आकष(ण, धम( के !ित बढ़ने लगा। !ारंिभक मूकािभनय आगे चलकर
यFगान’ का 9प धाHरत करने लगा। सािहय संगीत, नृय के सम/वय से ‘यFगान’ या
‘ज कुल’ु और ‘पाटा’ का उव हआ। परु ाण* म: यF* का उBलेख िमलता है। !ाचीन यFगान
‘ि[पद छंद’ म: िलखे जाते थे। कुछ िव[ान सं+कृ त क ि[पिदका से इसक उपिK मानते हf।
ि[पद के चार चरण होते हf शZद, खड मा7ा और स5पणू ( आिद। सोमना किव ने देशी छंद म:
काTय सज(ना कर यFगान का माग(दश(न िकया। तिमल के उला!बंध पित पर तेलुगु यFगान
क रचना मानी जाती है। यFगान का नाटक से कोई स5ब/ध नहM है। इसके साथ ही सं+कृ त
नाटक* के !भाव से अछूता भी नहM है तेलगु ु यFगान । तलजराज के ‘िशवकाम संदु री पHरणय’
म: नाटक* क तरह ‘नादं ी’ और !+तावना दान* ही है। िवजय राघव का ‘पतू ना हरण’ मातृभतू न
का ‘पHरजातापहरण’ आिद नाटक* के अंक !णाली का अनुसरण करता है।
अगं ंजर के - आपेरा’ और सं+कृ त के ‘उपनाटक*’ से यFगान’ पया(\ सा5य रखता है।
यFगान क रचना तेलगु ु ‘रगड़ा’ नामक देशी छंद म: क जाती हf । इसम: छंद के छोटे-छोटे भेद
पाये जाते हf, जैसे- ईललु, जोललु, सZबाललु, आरतल ु ु धTवमलु ु, चंदमामा सुदत् ल
ु ु, िवलािल
पदमल ु ु, वे/नेल पदमुलु, ि7पदल,ु चौपदल,ु शट्पदलु, मंजु9लु, ज कुलु, रे कुलु आिद। कुछ
यFगान* म: काTय* वाले छंद !य_ ु हए हf। जैसे- सु4ीव िवजय म: सीसमु, तेटगीित, उपलमाता,
ि7पटु , जंप,े कु9चजंपे, आट एकतालमु, एलल,ु धबलाथ(, चि/0कल,ु ि[पदलु आिद। यFगान
म: पा7* के !वेश करने और कथा क रंिध -सचू नाथ( ग का !योग हआ है। |ी कंकिट पापरातु
का ‘िवPणुमाया िवलासमु’, अ कणामाय का ‘कृ Pण िवलास-, ‘भीमसेन िवजय,’ |ी व:कटाि0
का ‘वासंितका पHरणयम’, ‘िवPणमु ाया िवलास’, िवजयराघव का िव!नारायण चHर7’ आिद
मह?वपणू ( यFगान है।
हाय रस - इसम: हा+य रस क !मख ु ता होती है। qा ण* और rवाल* के स5भाषण [ारा हा+य
रस उप/न िकया गया है। कलापमु म: ‘िवदषू क’ को ‘माघिवगाडु’ कहा गया है। य*िक वह
समभामा क सखी का वेश धारण करता है। ‘गोBलकलाप म: स/कुरी रंगŠया का हा+य
गदु गदु ाता अवय है।
!थम यFगान ‘स4ु ीव िवजय’ के बाद कई यFगान िलखे गये, िजसम: !ोलगु ंिट चे/नकिव का
‘सौभHर चHर7’ उBलेखनीय है। चे/नकिव को ‘अOभाषा किव’ क उपािध िमली थी। तंजौर के
नायक राजाओ ं के बाद मराठा शासक* ने भी यFगान को बढावा िदया। प9 ु षोKम दीिFत के
‘तंजापरु ा/नदान महानाटक’, म/नारदेव के हैमाZज नाियका +वयवं र’ मह?वपणू ( यFगान है।
िवजयराघव के मृयु के 17वषg बाद तंजौर पर मराठी शासक एकोजी के प7ु शाहजी
(!थम) का शासन +थािपत हआ। शाहती के 21यFगान !ा\ हए, वे हf- जलkड़ाएँ, िकरात
िवजय, कPणिवलास, सतीदान शरू , सीता कBयाण, सती पितदान िवलास शांता कBयाण, िवPणु
पBलक, सेवा !बधं , शक ं रपBलवी सेवा !बधं , शचीपरु ंदर, बBली कBयाण, िव—ने<र कBयाण,
9ि मणी- िवनोद चHर7, पाव(ती पHरणय, रितकBयाण, रामपˆािभश क, गंगा पाव(ती संवाद,
0ौपदी कBयाण, यागराज िवनोद चHर7 आिद। शाहजी के दरबारी किव िगHरराज ने राजक/या

उतराखड मु त िवविवालय 74
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
पHरणय, राजमोहन कोरवंिज, लीलावती कBयाण, वादजय नाटक, सवा“गसु/दरी िवलास, शाहै/0
िवजय, किव सुZब/ना का ‘लीलावती’, शाहजीय, शेषा चलपित का शाहराज िवलास, सर+वती
कBयाण, तक ु डोिजराजा, का ‘िशवकामस/ु दरी पHरणय’, आिद लोकि!य यFगान है। मदरु ा के
ित9मल किव का ‘िच7कूट महा5य’, मैसरू के किव गोगल ु पािट कम(नाथ का ‘मृयजंु य
िवलास’ तथा अRात किव का िच कदेवराय िवलास’, ओबयम/7ी का ‘गड़ाचल’ (चेचु
नाटक) अ क !धान का ‘कृ Pण िवलास’, ‘भीमसेन िवजय’, च:ग+वनराय का ‘गोBल कथा’,
सरू Šया का ‘िववेक िवजय’, कृ Pण िम| का ‘!बोध च/0ोदय’ आिद उBलेखनीय यFगान है, जो
तेलगु ु सािहय को समृ बनाते हf।
लोकगीत परंपरा अथवा तेलगु ु गीित सािहय - !ाचीन काल से लेकर अब तक
मानव मनोभाव* क अिभTयि_ छंद तथा गीत के मा=यम से करता रहा है। !कृ ित के !ािणय* म:
मनPु य क सsदय( िपपासा और आम-िवकास क !वृिK, उसे िनत -नये !योग हेतु !ेHरत करती
है। उसके मनोभाव =विन के मा=यम से गीत* के 9पम म: !कट हए हf। तेलुगु म: लोकगीत* क
+व+थ परंपरा रही है। तेलुगु के लोकगीत* को तीन भाग* म: बाँटा जा सकता है। सव(!थम वे लोक
गीत है िजनका िकसान, चरवाहा, बैलगाड़ी हांकने वाला, च क पीसनेवाली आिद के [ारा
!योग िकया जाता है, इन लोकगीत* का िवभाजन इस !कार िकया है-
कोत गीतमु (फसल का गीत), ऊतगीतमु (मजदरू का गीत), बालेशपु दमु (मजदरू का
गीत), पव(तपदमु (पहाडी गीत),
़ रोकिट पाट (धान कूटते समय गाया जाने वाला गीत), वे/नेल
पाट (चाँदनी का गीत,) प:िड़ल पाट (िववाह का गीत), जाजर पाट (िSय* का गीत), आिद म:
समय के साथ -साथ पHरवत(न होता रहा। इन गीत* म: Fे7ीयता, +थानीय भाषा क !चरु मा7ा
पायी जाती है। दसू रे !कार के लोकगीत िलिखत 9प म: पाये गये हf, जो वीर प9 ु ष* के चHर7,
!ेम कथाओ ं और हा+य-िवनोद के 9प म: !ा\ होत हf। तीसरे !कार के लोकगीत ईशभि_ से
संबं हf इन गीत* को तेलगु ु म: कत(न कहते हf। तेलगु ु म: 12वM शती से िलिखत लोकगीत !ा\
होते हf। सोमनाथ के ‘बसवपरु ाण’ म: भी कुछ लोकगीत* का उBलेख है - सगं र माया +तवमल ु ु,
!भात पद, पव(त पद, त5ु मेद पाटल,ु आन/दपद, शंकर पद, िनवािलपद, छालेशु पद, गोिZबललु
पाटल,ु वे/नेलपद, सhज पद आिद बढे, बालक* और यवु ा के िलए िलखे गये लोकगीत है।
तेलगु ु म: ि[पद कंद, तेटगीत, आटबेलदी, सीसमुलु, त9वोजल ु ु आिद छंद गेय होते हf। तेलगु ु म:
बालक से लेकर वृ तक के िलए गीत* क परंपरा रहM है जैस-े लोHरयाँ, गोपी गीत, ओखली
गीत, कालीय मद(न, जलkडा देवर भाभी, कुशलव कथा, िमलन गीत, समु ंगली गीत, नािवक
गीत, धान क रोपाई के गीत , 9ई क धनु ाई आिद के गीत अयिधक मह?वपणू ( है।
|ीनाथ कृ त ‘पBनािट वीर चHर7म’ु म: सािहियकता का पया(पत पटु है। िव+तृत
कथानक को गीत के 9प म: िपरोना +चयं म: महपणू ( घटना है। |ीनाथ के बाद अठारवहवM शती
म: ‘बोिZबिल कथा’ का उBलेख िमलता है। इसम: बोिZबिल वेलमा लोग* क ओर से रंगारायडु ु
व:गलरायडु ु तांu पापŠया और मBलम देवी के शौय( क गाथा है। तेलगु ु म: बरु ( कथाओ’ं का पया(\
!चार रहा है। उKर भारत क रामलीला, रासलीला क तरह यह आं‡वािसय* से !चिलत थी।

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बरु ( कथाओ ं म: |ृंगार, वीर, हा+य, शांत आिद रस* का !योग िकया जाता था। !मख ु बरु ( कथाय:
हf- काम5म कथा, िच/न5म कथा, क5मवाHर पडित कथा, लIम5म कथा, वीर5म पेरंटालु आिद।
इन बरु ( कथाओ ं म: सती, पितyता, सतं ित हेतु किठन तप करने वाली िSय* का उBलेख है।
बरु ( कथाओ ं क उदा/त भावना के कारण ही यह आधिु नक काल म: भी !चिलत है।
तेलगु ु म: !ेम काTय* का संय_
ु पHरवार क `िO से खबू मह?व रहा ह: देवर-भाभी, पित-
पनी, !ेमी-!ेिमका साली-जीजा आिद के !ेम कई बार इन गीत* म: वासनामक 9प भी धारण
कर लेते हf। उदाहरण के िलए एक यवु ती का !ेमी मर जाता है। लेिकन शम( के कारण वह अपने
आँसू को रोके रहती है लेिकन सयं ागे से उसके घर का बछड़ा मर जाता है तो वह उसके मा=यम
से अपना दःु ख िवगिलत करती है। ‘चल मोहन-रंगा’ लोकगीत क एक पिं _ का अथ( है- ‘‘मेरे
मोहन, ऐसा कोई नहM िजसे हम अपना कह सके । अतः नदी के तट पर जीवन मधरु बनाय:ग:
लेिकन मेरे आसं ुओ ं से ही मेरी गगरी भर गई हf”...................। इस !कार लोकगीत* म: !कृ ित
िच7ण भी जीवंत हो उठा है। भजन-कत(न आिद क परंपरा भी लोकगीत* के 9प म: रही है।
तेलगु ु का संगीत - कत(न सािहय - यागराज ने कहा था- !ाण और अनल के संयोग से !णव
स\ +वर* म: Tय_ हआ है। वे कहते हf‘- ‘‘न नादने िबन, गीतमु, न नादेन िबना +वरम् न नादेन
िबना रागम् त+मा/नादामकम् जगत् है।’’ कत(न के िवकास म: जनपद गेय* का बहत मह?व है।
तेलगु ु भाषा क सहज मधुरता, !साद गणु संगीत को और अिधक ‹दय4ाही बना देती है। तेलगु ु
संगीत के िलए कणा(टक शब् का !योग िकया जाता है। महाकिव |ीनाथ और कृ Pणदेवराय ने
तेलगु ु के िलए ‘कणा(ट’ शZद का !योग िकया है। तेरहवM शती म: कित(न गीत के िलखे जाने का
उBलेख है। जानपद गीत* म: अथ( क अपेFा शZद का मह?व होता है। जबिक कत(न म: +वर ही
अथ( म: हो जाते हf। कत(न म: अन+ु वार का अभाव तथा अ/य मु0ा का !ाचयु ( होता है।
कृAण किव - ताल, +वर िमि|त गीत* के रचनाकार* म: कृ Pण किव का नाम अ4गय है। इनक
कृ ित ‘िसंहिगHर वचन, ‘त9गंिध वचन’ आिद म: राग और ताल तो है िकंतु ‘पBलिव (संचाHर
‘अनपु Bलिव’ (अनु+वर) और ‘चरण’ (+वर) का िवभाजन नहM हf।
ताPलपाक अ-नमाचाय. - (सन् 1424 ई. से 1502 ई.) इनके कत(न क जनि!यता ने ही इ/ह:
‘पद किवता िपतामह’ और ‘संकत(नाचा( क उपािध िदलाई। ित9पित के गफ ु ा म: ताŽ प7 पर
इनक रचना और मिू त( दस वष( पवू ( !ा\ हई है। इ/होनं 32 हजार पद* क रचना थी, िजसम: 12
हजार ही !ा\ हए हf। ित9पित के अिध{ाता भगवाम व:कटे<र और उनक पनी
अिलवेलमु गं 5मा के पर+पर !ेम को उ/होन: अपने पद* म: िदखाया है। कणा(टक के संगीतकार* म:
अ/नयमŠया अ4णी है। क/नड़ म: भ_ परु ं दरदास इनक शेली का अनसु रण करते हf। अ/नमŠया
ने तेलुगु म: ‘कत(न लFण’ 4ंथ िलखे थे। िजसे |ी राBलपBली अन/त कृ Pण शमा( ने अ/नमŠया
के कुछ पद +वर‘िलिप !कािशत िकया है।
Dे]Xया - आ‡ं के मTु वा गांव म: ज/मे Fे7Šया ने अपने आिधकांश पद 4ामदेवता गोपाल को
समिप(त िकए। इ/ह*ने 40 राग* म: 18 देवताओ ं से स5बि/धत गीत िलखे है। अ/नमŠया, Fे7Šया

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क शैली म: कई अ/य किवय* ने भी संगीत िलखे हf - शोभनिगHर, बोBलवरमु, गˆपBले, धन
सीनŠया, वेणिं ग, सरांगपािण आिद। सीनŠया का ‘िशवदीFाप9रालतु’ आज भी गाया जाता है।
भ9ाचल रामदास - रामदास अथवा कंचेल( गोप/ना ने गोलकोडा नरे श [ारा कै द िकए जोने के
बाद कारावास म: अपने आरा=य क +तिु त मािम(क शZद* म: क है।
स^ु _`य और उनके कत.न - इनके कत(न गीत ‘आ=याम रामायण कत(न’ के नाम से
संकिलत िकया गया है। यह कत(न पाव(ती क िजRासा पर िशव [ारा कही गया रामकथा पर
आधाHरत है।
यागराज - गायक - िशरोमिण यागŠया का ज/म् 1759 म: ित9वैयार 4ाम म: हआ था।
कणा(टक संगीत का पणू ( िवकास इ/हM के कारण हो पाया। िकंवदतं ी है िक +वयं नाद मिु न ने इ/ह:
संगीत क िशFा दी थी। उ/ह*ने अनेक धुन लेकर पद-गीत िलखे हf । उ/ह*ने संगीत म: सािहय
को भी उिचत अवसर िदलाया। इनक रचनाएँ आ=यािमकता से भरपरू है। ‘कोबर पंचरन’,
पचं रन’, ‘धनराग पच ं रन’ िवशेष 9प से उBलेखनीय ह:
aयाम शाbी - इ/ह*ने दवेी मीनाFी ‘नव रन मािलक’, कत(न िलखा। आनंद भैरवी राग म: ये
िसह+थ थे। कांभोज राग, शंकरा भरण राग का ‘सरोजदल- ने7’ और कBयाणी राग का
‘तBली िन/ने नेर नि5मनानु’ गीत मह?व पणू ( है।
इनके अितHर_ कई अ/य कत(नकार और उनके कत(न मह?व पणू ( है। मतु Šै या+वामी,
वीण कुnपयर (व:कटे<र पंचरन, जगदिभराम, कोिनयािडन, नापै’’ पंत पराड्मख ु िमले,
कालह+तीश आिद) सुZबराम शाSी (जननी िनतु िबना, िननु सेिविं चित) +वाित ित9नाल
(पाHˆपाव(ती, सरस सािभदान’) आिद। तिमल किव |ीिनवास अŠयंगार क ‘िवजय गोपाल’,
सामज वरं दा, (सावेHर राग) नेरि5मत (कानड़ राग) सरगनु पािलचं (के दार गोल राग) तथा
पBलिव शेश Šया क ‘एद9 ु गा’, (खमाज राग), इकन/नु qोव ’ (भैरवी राग) ‘अलनाडु िव/नपंबु
(तोडी राग),
़ महाि7परु आिद महवपू ण( कत(न गीत है।
कत(न के कई भेद होते हf, जो उनक उपयोिगता को बोधग5य बनाते हf- समदु ाय,
कत(न, उसव कत(न, नवाण(-नव4हपंचिलंग कृ ित, देवी +तो7, शतरन मािलका, कालह+ती
व:कटे<र पंचक, मिण!वाल शली कत(न आिद।
आधिु नक समय म: अनेक लेखक न किव है जो और उनके कत(न िविवध राग* म:
कत(न-रचना करते हf। !मख ु कत(नकार हf - पट्नम् सुq‰य अŠयर (समयिनदे) िनnनदास वरदा,
नीपदमल ु े, िन/नजिू च ध/यडु ैित आनŠया, च:गBव राय शाSी, राम+वािम िशव/न, कंु डुकुिड
कPणराŠया, पापनािश िशवŠया, मतु ैŠया भागवतार (नीमीद चBलगं ), मैसरू वासदु वे ाचाय( (qोचे
बारे व9रा) कHरिगर राम, किव कुजर भारती, िचि/न कृ Pणदास, तचHू र िसंगराचाय( (देवी मीनाFी),
रामनाथ शा†7ी, ित9पित नारायणŠया (पराके ल सर+वती), व:कटेश शाSी, सर+वती शेश
शाSी, िलगं रातु दोर+वामी (|ृगं ार लहरी), कुnप+ु वामी !भृित। 19वM शती के !मखु कत(नकार
हf - |ी पलु गु िु त लIमीनरसमाँबाने (मंगल हारित) सव( |ी परंकुशदास िबटठ रामदास, ताHरग*ड
ब:कमांबा (|ी लIमी ि+थतांग िच0प िच/मया िशवनुत शभु ांग), पिु लमेल राघवाय(, कािकनाडा

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पानाभदासु , एBलHु र मिBलकाज(नु , सर+वतुल सुZबारायडु, मािल व:कट नरिसंहहडु, वीर
भ0Šया, अBलHू र रंगाराव,ु मैलवरपु रामŠया आिद।
अचल बोध – सं दाय इस आ+था को मानने वाले पजू ा, स=ं या जैसे िनय कमg को उपेFा
करते हए हह योग िkयाओ ं का समथ(न करते हf। अचल बोध या अचलत सं!दाय के
सं+थापक हf - पातल ु Hू र वी q‰म।् इनके कई िशPय, !िशPय हए िजनम: िसGŠया और नासरŠया
मिु +लम थे तथा अ/य िशPय* म: कालव कोदŠया, ित9मलेिसकोटŠया, पोकल शेश चल
नायडु, इHर( नारायडु ु , सातािन कृ PणŠया (श0ू जाित) चीराल वीर5मा, वेदा/तम कोट5मा, िशवराम
भागवतल ु ु आिद मु य है। इन किवय* का आमजनता से धिन{ स5ब/ध था।
तेलुगु - 1याकरण, छंद, कोश -
Tयाकरण - Tयाकरण िवा के [ारा भाषा के शZद*, 9प* और !योग* का Rान होता है। यह
शZद* क Tयु पिK, अथ( तथा !योग-पित को +पO करने वाला िववरण है। इसके कई भ( हf,
जैसे- अनश ु ासिनक, वण(नामक, ऐितहािसक, तल ु नामक, एकदेशी, िवाथU Tयाकरण आिद।
तेरहवM, शती म: आं‡ भाषा – भूषण’ Tयाकरण 4थं क रचना क/नड़ के नागवमा( कृ त ‘कना(टक
भाषा – भषू ण’ के आधार पर क गयी। इसके बाद के सभी Tयाकरण ‘ िसा/त कौमदु ी’ के
आधार पर िलखे गये। तेलगु ु का !थम Tयाकरण न//य भˆ कृ त ‘आ/‡ शZद िच/तामिण’ को
कुछ िव[ान मानते हf। जबिक 13वM शती !ा\ के तना कृ त ‘आं‡ भाषा भषू ण’ को बहत से
िव[ान तेलुगु का !थम Tयाकरण मानते हf। के तना ने तेलगु ु भाषा के शZद* के तसम, तव,
शु तेलगु ु, देशज, 4ा5य आिद भाग* म: बाँटा है। इसम: कुल 190 पद है। दोन* वैयाकरण 4/थ
एक दसू रे क परू क !तीत होती है।
िव-नकोट पेUना - 14वM शती म: पेद/ना [ारा िलखा गया 4थं ‘काTयालंकार चड़ू ामिण; म:
अलंकार शाS का िववेचन है। इसम: संRा, अज/त, हल/त, संिध, िवभि_, समाज, तित,
िkया आिद का संिF\ उBलेख हf। 1435 ई. म: अनंत क ‘छ/द’ नामक कृ ित म: छंद, छंदोभंग,
िवसि/ध, पनु 9ि_, सश ं य आिद दशिवध दोष* का उBलेख हf। संिध-भेद, समास, िkया-िवशेष ,
िवेशेश णािद पर भी !काश डाला गया है। इ/ह*ने तेलगु ु म: अ!य_ ु अTयय* को वृथ ’ कहा है।
1480 म: वेBलिं क तातम भˆ ने। किव िच/तामिण’ के चार म: से दो अिधकार Tयाकरण से संब
है। मGु रातु रामना क कृ ित किवजन सजं ीवनी’ (1550ई.) क !थम तरंग छंद तथा शेश तीन
तरंग* म: शZद समास और संिधय* क Tयाया क गई है। रघनु ाथŠया क ‘लFण दीिपका’
अथवा ‘सव(लFण सार सं4ह’ (1600ई.) म: रे फ पर चचा( क गई है। ि7िलगं शZदानुशासन’ को
कुछ िव[ान मडं लIमीनरिसंह किव क रचना मानते हf तो कुछ तेरहवM शती के अथव(ण क
रचना मानते हf। ‘ि7िलंग शZदानश ु ासन’ म: कव, पुPपद/त, रावण, सोम आिद को वैयाकरण* के
9प म: उBलेख िकया गया है। गणपवरमु व:कट किव कृ त ‘सव(लFण िशरोमिण’ एक िवशाल
4/थ है। इसम: छंद, अलंकार, कोश आिद के बारे म: िलखा गया एक िवषय 4थं के समान है।
िसा/त कौमदु ी के आधार पर इसका ‘आं‡ कौमदु ी’ नाम रखा गया है। 1700ई. म: गािल
नरसŠया ने इसका अनुकरण कर किव िशरोमिण’ भाPयकृ ित क रचना क। इसम: Tयाकरण के

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सIू मितसूIम बात* क Tयाया क गयी है। ‘किविशरोमिण’ को अहोबल पंिडतीय’ भी कहते
हf। नरसŠया ने ‘िवकृ त’ िववेक’ सं+कृ त म: िलखा।
पˆािभराम शाSी ने 1825 ई. म: ‘आ‡ं Tयाकरण’ (पGािभ राम पंिडतीय) क रचना क
। धातु माला’ इनक दसू री Tयाकरण कृ ित है। रािवपािट ग9 ु मिू त( शाSी ने 1852 म:
!oोKरा/‡Tयाकरण’ !oोKर शैली म: िलखा तथा 1856 म: व:कटमरमण शाSी ने ‘लघु
Tयाकरण’ स7ू पित पर िलखा। तेलगु ु का सवा“गीण और Tयि+थत Tयाकरण परव+तु
िच/नरासHू र ने िलखा। इनक कुद आठ Tयाकरण 4ंथ हf, िजसम: ‘बाल Tयाकरण’ को छोड़ सभी
अधूरी कृ ितयाँ है जैसे- ‘आ/‡ शZद शासन-, ‘सं+कृ त स7ू ांध Tयाकरण’,‘आं/‡ शZद
िच/तामिण क Tयाया’, ‘शZद लFण सं4ह’, ‘पा/‡ Tयाकरण’, आ/‡ धातनु ाममाला,
िवभि_ बोिधनी’ आिद। बाल Tयाकरण के अनक ु रण पर बहजनपBली सीतारामाचाय( ने ‘पौढ़
Tयाकरण’ क रचना क। ये दोन* एक दसू रे क परू क भी कही जा सकती है। !ौढ़ Tयाकरण’ को
‘ि7िलगं लFण शेष’ भी कहा जाता है। सं+कृ त म: Tयाकरण,अलंकार को काTय-!ाण माना गया
है। जबिक तेलगु ु म: छंद ही काTय !ाण है। छंद शाS क रचना प रचना के साथ ही होता था।
तंजौर के सर+वती महल (!ाचीन प+ु तकालय) म: िपंगल पु+तक: , सरु िFत सं4िहत हf।
क+तHू र रंग किव (1740ई.) ने तथा उनसे 250 वष( पवू ( काचनस बमवना ने ‘किव सप(
ग9ड़’ म: न/नय के ‘लFण सा’ का उBलेख िकया है। छंद शाS के लेखक* म: न/नय के बाद
मिBलय रे चना का नाम आता है। रे चना क कृ ित ‘किव जन|य’ (छंद 4थं ) क रचना म: भीमना
के जे{ प7ु वाचकाभरण ने सहयोग िदया था। अथव(णाचाय( को महाभारत के िवराट पव( का
अनवु ादक माना जाता है। 1520-60 के म=य ‘अथव(णस छंद’ !ा\ हआ, िजसम: शभु -अशभु
अFर* के पHरणाम, यित, !ास का िववेचन हआ है। ित कना कृ त ‘किव बाrबधं ’ म: अFर* के
कुल,गणु गण* के +व9प, गणािधदेवता, वणा(िधदेवता, गणरािश, रािश अिधपित, अFर* का
श7ु और िम7, यित, !ास आिद क िववेचना हई है।
1320 ई. म: |ीधर का ‘|ीधर छंद’ 1380 ई. म: ‘किव राFस छंद’ (अ!ा\ 4थं ),
िव/नकोट पेGना ‘कायालंकार चड़ू ामिण’ के नौ म: से छ उBलास अलंकार* से तथा दो छंद* से
तथा एक Tयाकरण से संब उBलास है। 1480 ई. म: वेBलिं क तातम भˆ का ‘छंदोदप(ण’,
अनतं किव का ‘छदोदप(ण’ (अन/तामाय छंद) आिद के छंद से सबं िं धत कई 4/थ हf। अ/य छंद
4/थ िन5नतः `Pयमान है-
प+ु तक लेखक समय
1 किव गजाकुश (किवराज गजांकृश) भैरव 15वM शती
2 लFण दीिपका गोरना 15वM शती
3 किव सप( ग9डमु (अपणू ( उपलZध) काचन बसवना 1470ई.
4 !योगसार (अपणू ( उपलZध) काचन बसवना 1470 ई.
5 किव वणा(मतृ (कुकिव कण(कठोर) कौलHू र आंजनेय किव 1590 ई.
6 किव कंठाभरण (अपणू ( !ा\) काचन वासना 16वM शती

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7 लFण िवलास (यित !ास िवलास) वनमु िू त( व:कटाचाय( 17वM शती
8 लFण दीिपका रघनु ाथŠया 16वM शती
9 वादांग चड़ू ामिण (अपणू ( !ा\) मBलना 17वM शती
10 लFण चूड़ामिण क+तिू त रंग किव 1740 ई.
11 किव लFण सार सं4ह रनाकर गोपाल किव 17वM शती
12 किव संशय-िव}छे दमु आिडदमु सचू ना 1760 ई.
13 कृ Pण भपू ालीयम चं0 किव 1819 ई.
14 वीर भपू ालीयमु ित5म किव 18वM शती
15 सरला/‡ वृKरनाकर वेBलHू र िलगं म/7ी 19वM शती
16 सकल लFण सार अGनHू र रामदास किव 19 वM शती
17 सव( लFण सार रंग किव 19 वM शती
18 सक ु िवजन मनोरंजन कुिचमंिच व:कटराय 19 वM शती
19 किवता लFण सार ओ9गिट रामŠया 19 वM शती
20 किव िचंतामिण वेBलंिक तातम भˆ 1480 ई.
21 छंदोवप(ण वेBलंिक तातम भˆ 1550 ई.
22 लFण सार सं4ह किव पेGना 1560 ई.
23 सल ु Fण सारमु िलंगमगंटु किव 1560 ई.
24 बालबोध छंदमु िलंगमगंटु किव 1560 ई.
इस काल के |े{ छंद शािSय* म: अnप किव, गणपलरमु व:कटकिव का नाम |े{ छंद
शािSय* म: िलया जाता है। इनक कृ ित ‘सव(लFण िशरोमिण’ म: अFर तथा गण, यित, वृत
!ास, यFगण चाटु संGिल, पGिल, कBयाण, िव9दाविल आिद क िववेचना है। 19वM शती म:
निडम:िट व:कटपित ने ‘िच7ब/ध दप(ण’ म: िच7 ब/ध के स5ब/ध म: िलखा है। आधिु नक यगु म:
बोिZबिल राhय के किव मडं पाक पाव(तीयशम शाSी ने ‘!बधं संबधं बधं िनबधं न’ नामक
लFण 4थं क रचना करके इस कमी को परू ा िकया।
अलंकार- तेलगू ु सािहय म: अलक ं ार पर बहत ही कम +वत7ं 4/थ !ा\ है। 12वM शती म: !ा\
किव जना|य कृ ित म: छंद के साथ अलंकार* क िववेचना क गयी है। 1402 ई. म: पेGना कृ त
‘काTयालंकार चूड़ामिण’ के नौ म: से छः उBलास* म: अलंकार िववेचन है। अन/त किव कृ त
‘रसाभरण’ (रसालंकार) म: काTय!काश (म5मट,सािहय दप(ण (िव<नाथ पंचानम) !ताप 90
भश ू ण (िवानाथ) के मु य बात* को िलय गया है। गौरना क ‘लFण दीिपका’ म: लFण
सिहत अलंकार* का िववेचन है। वेBलंिक तातम भˆ क ‘िच/तामिण’ 1480 ई. म: िलखा गया।
भˆमिू त( का ‘काTयालंकार सं4ह’ 16वM शती का !ामािणक 4/थ माना जाता है। लेखक [ारा
इसे राhया|यदाता को समिप(त करने के कारण ‘इसे नरस भपू ालीय’ भी कहते हf। इसम: 18
|ृंगार चेOाओ ं का उBलेख है। िच/न किव पेGना ने सप(!थम 1550 ई. म: ‘लFण सार सं4ह’ म:
नाटक के लFण* का उBलेख है। किव रघनु ाथŠया ने 1600 ई. म: लFण दीिपका म: नांदी, किव,

उतराखड मु त िवविवालय 80
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
नायक, महाकाTय, खंडकाTयािद पर िवचार िकया है। गणपवरमु व:कट किव ने 1676ई. म: ‘सव(
लFण िशरोमिण’ म: अलंकार से संबंिधत अ=याय को ‘आ/‡ !ताप 90 यशोभूश ण नाम िदया
गया है। इसके अितHर_ रस, छंद क िव+तृत Tयाया क गयी है। 1700ई. म: गिु डपािट कोदड
किव ने भानिु म7 के सं+कृ त म: ‘रस मंजनी’ को तेलगु ु म: !+ततु िकया है। 1750 ई. म: नारायण
किव ने |ृंगार 4थं ‘रंस मंजरी’ का !णयन िकया। अिडदमु सूरना ने 1760 ई. म: ‘च/0ालोक’ क
रचना क। किटकनेिन राम किव ने ‘कुवलयानदं !कािशका’ का !णयन अnपय दीिFत के
‘कुबलयानंद’ के आधार पर िकया। इस !कार सं+कृ त के माग( से तेलगु ु सािहय !ौढ़ता को !ा\
करती रही।
कोश - 1550 म: ‘सीस प िनघटं ु ’ कृ ित िलखकर चौडnपा ने !थम तेलगु ु कोश तैयार िकया।
िकंतु गणपवरमु ‘सव(लFण सं4ह’ का ि[तीय उBलास ‘ब:कटेशा/‡’ तेलगु ु का !थम
पया(यवाची शZदकोश माना गया है। नदु ल ु पिट व:कटताय( के ‘आ/‡ भाषाण(वम’ु म: शZद* का
िवभाजन कर !ाचीन शZद* को अथ( 4ाही बनाया गया है। पैिडपाित लIमण किव का ‘आ/‡
नाम सं4ह’ आ/‡ नाम कोश क रचना ‘आं‡ नाम सं4ह’ के आधार पर क । 18वM शती म:
क+तHू र रंग किव क ‘सांब िनघंटु’, स/यासी किव के ‘सवा(/‡ सार सं4ह’ 1840 म: बरू प राजु के
‘आ/‡ पदाकर’ आिद म: सं+कृ त के अमर कोश का अनुकरण िकया गया है।
अ4ं ेज* के कोष* का अनुकरण करते हए तेलगु ु म: !थम कोश मािमिड व:कŠया के [ारा
अकारािद kम म: ‘आ/‡ दीिपका’ (अपणू )( क रचना क िजसम: ग म: अथ( िदया गया है।
कf पबेल नामक अं4जे ने ‘कै पबेल िड शनरी’ , ‘qाउन ने ‘qाउन कोश ’ या ‘qाउन िडशनरी’
क रचना कर तेलुगु भाषेतर लोग* हेतु तेलगु ु 4ा‰ बनाया। कक( बािड िनघटंु ु के लेखक का नाम
अRात है। 1875म: |ी परव+तु िच/नयसHू र ने िनघटं ु ओ ं के शZद* का अकारािदkम से !+तिु त
का काम शु9 िकया िजसे उनके िशPय |ी बडु ानपिBल सीतारामाचाय( ने ‘शZद रनाकरमु नाम
से पणू ( िकया।
ओिगराल जग/नाथ किव का ‘आ/‡ पदपाHरजातम् महक ं ािल सुZबरामशाSी का
शZदाथ( चंि0का’, कोट लIमीनारायण का ‘लIमीनारायणीय’, िशरे भूश णमु रंगाचाय(ल ु ु का
‘शZद कौमदु ी’, नादेBला प9 ु षोKम का ‘प9
ु षोKममीयमु’, कोटयामल कामशाS का ‘आ/‡
वाच+पयम’् कनुमित( व:कQाम|ी िवानदं नाथ का ‘सं याथ( नाम !कािशका’, सं यावाचक’,
िचंतासंदु र शाSी का ‘सं+कृ त शZद9प रह+यदश(न आिद उBलेखनीय शZदकोश हf। पीठापरु
Hरयासत के महाराज ने कई िव[ान* के [ारा वृहत् शZदकोश तैयार करवाया। |ी मोरे पिBल
रामच/ं 0 शाSी का ‘निु डकडिव’ (अपणू )( म: शZद* क उपिK पर !काश डाल गया है। इस
!कार तेलगु ु कोश क समृ परंपरा का िवकास समय के !वाह के साथ होता रहा।
धम.शाb - भारत जैसे धम(!ाण देश म: दिFण भारत अयिधक धािम(क !ांत माना जाता है।
अचल वेदातं के बाद परशरु ामपतं ल ु िलंगमिू त( क कृ ित ‘सीतारामांजनेय सवं ाद’ म: साय योग
तथा वेदांत के तव* का िववेचन हआ है। सुq‰यम् का ‘आ=याम रामायण’, |ी नागे<र राव
पंतलु ु का आं‡ बाड्मय चHर7, ‘नारद परमेि{ संवाद आिद उBलेखनीय धम(शाS कृ ित हf।

उतराखड मु त िवविवालय 81
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
वेिगनािट क*डŠया कृ त ‘िनण(य िसंधु’, मल ू घिटक के तना का ‘िवRाने<रीयमु’, ‘Sी धना=याय’,
परमानंद तीथ( का ‘q‰ िवा सधु ाण(वमु’, आिद मह?व पणू ( धम(शाS है।
गिणत - पावल ु Hू र मBलनाय( का गिणत शाS - तेलगु ु का !ाचीनतम गिणत शाS माना जाता है।
‘दशिवध गिणत’ को िव[ान वीराचाय( के सं+कृ त 4थं का अनवु ाद मानते हf । कई ह+तिलिखत
!ा}य प+ु तक भडार म: सं4िहत है। कोडू9 बBलभामाय का ‘लीलावती गिणत, िपंगली
व:कटाि0 का ‘Fे7 गिणत’ आिद महवपू ण( हf।
cयोितष - तेलुगु म: फिलत hयोितष का अयिधक मह?व रहा है। क*िटकलपिू ड़ कोदंडराम
िसांती का ‘आय(भˆ िसा/त Tयायानमु’ मह?व पूण( hयोितष 4थं !ा}य प+ु तक भडार म:
सरु िFत है। धम(, गिणत, hयोितष के अितHर_ आयवु द, धनिु व(ा, आयधु आिद पर भी 4थं
िलखे गये। मनुमंिच भˆ का ‘अ<लFणसार’ बहत परु ाना गंथ है। आयधु परीFा’, ‘धनिु व(ा
िवलास’ ‘तपु ािक शाS (बंदक ू से स5बि/धत) आिद भी मह?व पूण( है। पे9माणमल ु
गणपयामाय का ‘वा+तसु ार स4ं ह’ वा+तु शाS का उKम 4थं है। अिभनय दप(ण’ को ‘दिु rगपाल
गोपाल कृ PणŠया ‘डा टर आनंद तथा के 0 कुमार +वामी ने इrं लैड से !कािशत िकया था।
‘अिभनय लFण’, ‘नाट्य लFण’ भी उBलेखनीय है। ग/ु नमाय( का ‘मन िशBप शाSमु’, िशBप
कला का उKम 4थं है।
िवdान !ंथ (1850-1925) - अं4जी शासन काल के समय अ/य भाषा-भािषय* क तरह
तेलगु ु के लोग* म: भी जागृित आई। +व0 कंदक ु ू Hर वीरे शिलंगम पंतल
ु ु ने तेलुगु का यगु !वत(न
िकया। आयवु द संबंधी 4ंथ* पर इ/ह*ने िवशेष =यान िदया। +वगUय कोमरा(ज व:कट लIमणराव
पंतलु ु ने ‘िवRान चि/0का 4/थ माला’, आयवु द मात(ड गोपालाचाय( का ‘आयवु दा|म 4थं
माला तथा चरक’, स|ु ुत रस !दीिपका’, जैसी !ाकृ ितक िचिकसा से संबंिधत 4थं * का !णयन
हआ। !ाकृ ितक धम(-पHरषद क +थापना हई। ‘!कृ ित िचिकसा सार’ और ‘सयू ( िकरण
िचिकसक* इस पHरश द के [ारा ही !कािशत हआ। +वगUय उमर अलाशा तथा हकम
रहमतBु ला वेग का ‘इलाजल ु -गBु फा’ यनु ानी िचिकसा से स5बिं धत 4थं है । कबूतरम् |ीराम
शाSी का ‘पािथ(व पदाथ( िचिकसा’, |ीमाडू गणपितराव का ‘सा9nयौशध शाSमु’,
‘होिमयोषैथी से स5बि/धत 4ंथ है। िचBलीरगे |ीिनवास राव का ‘आंrलेय वै िच/तामिण’,
उBलेखनीय एलोपैथी 4/थ है। उnपल ु 9ु पˆािभरामा राव एवं वी.वी.एन. आचारी का 4/थ सम+त
िचिकसा शाS के एककृ त एवं तल ु नामकता के िलए मह?वपणू ( है। येज:ड्ल |ी रामल ु ु चौधरी
का ‘अनभु व पशु वै िच/तामिण’, महु 5मद कुतुब ु ीन का ‘अ< िचिकसा सार’, अडिव
सांबिशवराव का ‘अ< लFण सार सं4ह’ मह?व पणू ( है। नारायण म7ं ी का ‘सहदेव शाS (1885
ई. मह?व पणू ( ) पशिु चिकसा 4थं है।
आयवु िदक िनघंटु म: बािबBल व:कटे<र शाSी का ‘व+तगु ुण महोदिव’ उBलेखनीय है।
फिलत hयोितष पर िलिखत 4थं ‘बृहजातक’ के लेखक का नाम अRात है। इसके अितHर_
‘hयोितषाण(व नवीनत’’, ‘सयू ( सामिु 0क शाS’ मह?व पणू ( है।

उतराखड मु त िवविवालय 82
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
दश.न - धािम(क 4थं * म: कामशाSी का ‘धम(िसंधु , रामच/0ाचाय( का गो7 !वर सं4ह’,
कनपु ित(म, माक( डेय शमा( ने पाराशर +मृित’, को अनिु दत िकया। नारायण भˆ का याFवBTय
+मृित’, िवRाने<र क ‘िमताFरी’ को, आिदनारायण शा†7ी ने बौ धम(स7ू * पर भाPय िलखा।
कंदाड( शेषाचाय( ने रामानुजाचाय( के |ी भाPय’ का अनवु ाद िकया। परु ाणपंड मBलव शाSी ने
‘शंकर भाPय’ तथा हांडे रामराव ने ‘मा=वाचाय( के भाPय का अनवु ाद !+ततु िकया। भारतीय
दश(न का दश(न ‘के वBय नवनीत-, िवचार सागर- 4थं म: देखा जा सकता है। गोHर सqु ‰यम
शाSी ने ितलक का ‘गीता रह+य’, तेलगु ु म: अनिु दत िकया। वीरे शिलंगम पंतल ु ु का ‘तक( सं4ह’
उBलेखनीय दश(न 4/थ है।
तेलगु ु दैिनक ‘आ/‡ पि7का’, मािसक ‘शारदा भारती’ के [ारा कई लेखक अवतीण(
हए। मBलािद व:कटरनम् का ‘nलेटो राजनीित शाSमु-, गोपालŠया का ‘सल ु भ पाक शाS’
बल ु मु रामजोिगराव का ‘योग Tयायायमु’, नर िसंह नायडु ु का ‘िशBपशाSमु’, ग9 ु नाथ शाSी,
सरŠया शाSी का ‘वा+तु शाSम’ु , जोिगराजु िपगं िल व:कŠया का ‘कृ िष शाSत’ु , चBला लIमी
नृिसंह शाSी का ‘िखलांगिल शाSम’ु , पसमु ित( यR नारयण का ‘नट !कािशक-, सHू रशाSी का
‘नाट्योपलमु परु ाणं’, आिद तेलगु ु सािहय को समृ करते हf। ‘इिडयन पीनल कोड’ का
अनवु ाद तेलगु ु म: िकया गया। डा टर िचलक ु ू Hर नारायणराव ने तेलगु ु को आय( कुलीय िस
करते हए ‘आं‡ भाषा चHर7’ (दो भाग) 4थं क रचना क।
तेलुगु का सािहियक इितहास - ग9 ु जाड़ |ीराममिू त( और वीरे शिलंगम् पंतुलु आिद ने नये-
नये िवषय* को Tय_ करने के िलए हजार* नये पाHरभािषक शZद बनाये। भाषा क सव(तोमख ु ी
उ/नित का !यन िकया गया।
अथ.शाb और राजनीित - nलेट* के ‘पॉिलिट स’ का अनुवाद तेलगु ु म: अनवु ाद िकया गया।
आमकूHर गोिव/दाचाय( को ‘भारतीय अथ(शाSमु’ तथा भारतीय राhयोग शाSतु’ जैसी कृ ितय*
क रचना कर अथ(शाS और राजनीितशाS के िलए नये पाHरभािषक शZद गढे।
दडं क रचनाएँ - तेलगु ु सािहय क एक िवधा ‘दडं क’ है। दडं क रचनाय: सं+कृ त म: भी है। तेलगु ु
सािहय म: तीन !कार क दंडक रचनाय: है। उनका संिF\ िववरण इस !कार देखा जा सकता है।
भि= दडं क - सव(!थम तेलुगु म: न/नय के ‘िशवदडं क’ का उBलेख होता है। ‘िकरातज(ुनीय
कथा’ म: हय दडं क !य_ ु हआ है। 14वM शती म: ज कना ने अपने िवkमाक( चHर7 म: ‘देवी
दडं क’ िलखा। |ीनाथकिव का ‘काशी दंडमु’ क रचना क है। इस !कार इसका !योग काTय*
म: समय के अनसु ार होता रहा।
Sगृं ार दडक ं - अ5मेर पोतनामाय का ‘भोिगनी दडं क’, |ृगं ार दडं कम’ु (ताBलपाक पेद
ित9मला पाय(ुलु 1530 ई. म:) , |ीकालह+ती<री दडं कमु (धूज(टीकिव 1500 ई. म:) ‘िवावती
दडं कमु गणपवरमु’ (व:कट किव, 1670 ई. म:), मोिहनी दडं कमु’ (मोहनी, 1650 ई.,बृह/नाियका
दडं कम’ु ) नद9 ु मािट व:क/ना, 1730 ई. म: च/0ानना दडं कम’ु (सा5बिशव किव, 1800 ई. म: )
च/0ानना दडं कमु (िचदबं र किव, 1830 ई.) आिद उBलेखनीय |ृंगार दडं क हf।

उतराखड मु त िवविवालय 83
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कण.क दडं क - ताBलपाक के ‘अOभाषा दंडकमु’ म: सं+कृ त, !ाकृ त, शौरसेनी, पैशाची,
मागधी, !ाची, अव/ती, सव(दश े ी आिद भाषाओ ं म: |ी व:कटे<र क +तिु त क गयी है। जबिक
आधुिनक दडंक Tयrं य रचना (पैरोडी) के 9प म: िलखी जाने लगी है। िज/ह: !कण(क दंडक भी
कहते हf, जैसे तंबाकू, िसगरे ट आिद को लेकर िलखी जाने वाली दंडक। इस तरह तेलुगु सािहय
सैकडो ़ दडं क* से भरी हई है। कलगु ोडु अ<यनारायणराव का 7000 पंि_य* वाला ‘दडं क
रामयण’ आज िवल\ु है। िकंतु तेलगु ु भाषी ‘सयू ( दडं क’ से िदन क श9 ु आत करते हए
‘!स/नांजनेय दडं क’ तक अपने िदन को िवराम देते हf।
(1) अयास  -
(क) ‘हाँ’ या ‘नहM’ पर यह िनशान लगाकर उKर दीिजए।
1. तेलगु ु का आिदकाTय ‘महाभारत’ है। (हाँ/नहM)
2. तेलगु ु म: ‘शतक सािहय का अभाव है। (हाँ/नहM)
3. तेलगु ु म: यFमान क समृ परंपरा रही है। (हाँ/नहM)
4. तेलगु ु म: चंपू काTय रचनाओ ं का अभाव रहा है। (हाँ/नहM)
5. तेलगु ु के आिदकिव ित कना है। (हाँ/नहM)
6. तेलगु ु सािहय म: चलिच7 गीत लेखनकार नहM हf। (हाँ/नहM)
7. तेलगु ु म: पया(\ कित(न सािहय िलखे गये हf। (हाँ/नहM)
8. तेलगु ु म: हेतुवादी सािहय !चुरता के साथ िलखे गये हf। (हाँ/नहM)
2 - िन5निलिखत िवकBप* म: से सही िवकBप चनु कर उसीक संया को{क म: िलिखए।
1. तेलगु ु के आिदकिव कौन है?
1- ित कना
2- न/नय भˆ
3- एई/ना
4- |ीनाथ
2. न/नय-ित कना-एई/ना ने िकस 4/थ क रचना क?
1- रामायण
2- महाभारत
3- भागवत
4- शंकुतला नाटक
3. तेलगु ु नाटक के शे सिपयर कौन है?
1- िचलकमिू त( नरिसंहम
2- पनुगंिट लIमीनरिसंहम
3- धम(वरम रामकृ Pणमाचय(ल ु ु
4- गरु जाड़ा अnपाराव
4. आम_ ु माBयदा’ िकसक रचना है?

उतराखड मु त िवविवालय 84
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1- ित5मना
2- |ीकृ Pण देवराय
3- अBलसािन पेGना
4- वेमना
5. ‘मनचु Hर7’ !बंध काTय के किव कौन है?
1- कंदक ु ू Hर बीरे शिलगं म पतं ल
ु ु
2- काशी कृ Pणाचाय(
3- अBलसािन पेGना
4- |ीिनवासाचाय(
6. तेलगु ु क !िस सािहियक-सािहयेŸ◌ार िवधा कौन सी है?
1- दडं क रचनाय:
2- अवधान
3- शतक काTय
4- यFगान
7. ‘!बंध परमे<र’ क उपािध िकसे !ा\ है?
1- ित कना
2- एर( ना
3- ित कना
4- न/नयभˆ
6.4 सारांश
!+ततु इकाई को पढ़ने के पVात आप –
 तेलगु ु सािहय के kमब िवकास का पHरचय !ा\ कर चुके ह*गे
 तेलगु ु सािहयेितहास के िविभ/न काल* का Rान !ा\ कर चुके ह*गे
 तेलगु ु काTय-सािहय के kमवार िवकास को समझ चुके ह*गे
 तेलगु ु सािहय के िविवध काTय-9प* का पHरचय !ा\ कर चुके ह*गे

6.5 श"दावली
 तं0ा - आल+य, नMद
 अवसान - अतं होना, खम होना
 अनसु रण - पीछे -पीछे चलना
 संवध(न - िवकास, उ/नित
 अवलोकन - देखना
उतराखड मु त िवविवालय 85
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
 अ4गय - आगे रहने वाला , |े{
 सं+थापक - +थापना करने वाला, बनानेवाला
6.6 अ%यास &' के उ(र
(क) ‘हाँ’ या ‘नहM’ पर यह िनशान लगाकर उKर दीिजए।
1. हाँ
2. नहM
3. हाँ
4. नहM
5. नहM
6. नहM
7. हाँ
8. हाँ
2- िन5निलिखत िवकBप* म: से सही िवकBप चनु कर उसीक सं या को{क म: िलिखए।
2- न/नय भˆ
2. न/नय-ित कना-एई/ना ने िकस 4/थ क रचना क?
2- महाभारत
3. तेलगु ु नाटक के शे सिपयर कौन है?
2- पनुगंिट लIमीनरिसंहम
4. आम_ ु माBयदा’ िकसक रचना है?
2- |ीकृ Pण देवराय
5. ‘मनचु Hर7’ !बंध काTय के किव कौन है?
3- अBलसािन पेGना
6. तेलगु ु क !िस सािहियक-सािहयेतर िवधा कौन सी है?
2- अवधान
7. ‘!बधं परमे<र’ क उपािध िकसे !ा\ है?
2- एर( ना

6.7 उपयोगी पाठ्य साम*ी


1. तेलगु ु सािहय का इितहास - !ो0 के लIमी रंजनम् (सं)
2. सहS वषg का तेलगु ु सािहय - आचाय( याल(गड्डालIमी!साद (सपं ादक)
3. आ/‡ किवय चHर7 - बसवरातु अnपाराव
4. नया/‡ सािहय वीथुलु- कु9गंिट सीतारमŠया

उतराखड मु त िवविवालय 86
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5. आ/‡ कबल ु चHर7मु (दो भाग)- िनडदबोलु व:कटराव
6. िवजय नगर साŽाhया/ध चHर7तु - ठे कुलमBल अ}युतराव

6.8 िनबंधामक &


1. न/नय भˆ के सािहियक अवदान को +पO किजए।
2. तेलगु ु सािहय के अOिदrगज* का संिF\ पHरचय दीिजए।
4. शतक सािहय परंपरा पर !काश डािलए तथा साथ ही तेलगु ु के आधुिनक ग
िवधाओ ं क िववेचना किजए।

उतराखड मु त िवविवालय 87
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204

इकाई 7 तेलुगु सा ह य का आधुनक काल


(गय सा ह य) (सन ् 1850 से अब
तक) - 2
इकाई क प रे खा
7.1 तावना
7.2 उेय
7.3 तेलगु ु कहानी का िवकास
7.4 तेलगु ु उप0यास का िवकास
7.5 तेलुगु नाटक, एकांक का िवकास
7.6 तेलुगु क पिJकाएँ एवं समीEा
7.7 तेलुगु िनबंध का िवकास
7.8 तेलुगु सािहय मK चलिचJ गीत लेखन
7.9 तेलुगु का अवधान सािहय
7.10 सारांश
7.11 श(दावली
7.12 स0दभ& /0थ सचू ी
7.13 िनब0धामक न

7.1 तावना
एम0ए0एच0एल – 204 क यह सातवM इकाई है । िपछली इकाई म: आपन: तेलगु ु
सािहय के प का अ=ययन िकया है । इस इकाई म: हम तेलगु ु सािहय के ग सािहय का
अ=ययन कर: ग: । तेलगु ु का सािहय का आधुिनक काल- ग सािहय (1850 ई. से अब तक)
तेलगु ु म: आिदकाल से आधिु नक काल तक !चरु ग िलखे गये िक/तु आधिु नक यगु म: अ/य
भारतीय भाषाओ ं क तरह तेलुगु ग िवधाओ ं क इ/0धनुषी छटा सािहय को मानो पर ही लगा
देती है। ग िवधा के िवकास म: िवदेशी संपक( एवं छापेखाने, !ेस के अिवPकार ने महवपणू (
भिू मका िनभाई। नवीन Rान-िवRान को प क अपेFा ग म: अिधक सगु मता से Tय_ िकया

उतराखड मु त िवविवालय 88
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
जा सकता है। तेलुगु सािहय-‘िनमा(ण म: सािहियक भाषा और बोलचाल क भाषा का
सािहियक 9प बहत महवपणू ( है।

उतराखड मु त िवविवालय 89
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
7.2 उेय
एम0 ए0 एच0 एल – 204 क यह सातवM इकाई है । इस इकाई के अ=ययन के पचात्
आप –
• तेलगु ु उप/यास सािहय से पHरिचत हो सक: गे ।
• तेलगु ु कहानी सािहय के इितहास का पHरचय !ाnत कर सक: गे ।
• तेलगु ु के नाटक एवं अ/य ग िवधाओ ं का पHरचय !ाnत कर सक: गे ।
• तेलगु ु सािहय के !मख
ु प7 – पि7काओ ं का पHरचय !ाnत कर सक: गे ।
• तेलगु ु ग क !मख ु िवशेष ताओ ं को समझ सक: गे ।
7.3 तेलुगु कहानी का िवकास
आरंिभक ग उ/नायाक* म: परव+तु िच/नयसHू र (1806-1862) को क*ड व:कट रनम्
पंतलु , (1842-1915), और कंदक ु ू Hर वीरे शिलंगम पंतल
ु ु (1858-1919) आिद ि7मिू त(य* का
महवपणू ( +थान है। यिप तेलुगु सािहय म: आरंभ से ही ग िवधा का (चंपू काTय ) का !योग
हआ है। 19 वM शती का उतरा( आं‡ सािहय का ग युग कहा जाता है। तेलगु ु ग सािहय
के िवकास म: सहायक कारक* का पHरचय िन5नतः `Oांिकत है-
िच-नयसू र - िच/नयसूHर ने ‘नीित-चिं 0का’ नामक अपनी कृ ित को फोट( स:ट जाज(
कालेज के स:kेटरी ए0जे0 अवेथनार को समिप(त क पंचतं7 पर आधाHरत यह 4/थ अपूण(
(िम7-लाभ, िम7 भेद) 9प म: ही िवयात हो गया। िच/नयसूHर के असमय देहांत तेलुगु सािहय
के िलए एक बडी Fित ़ िस हई।
चाPस. िफलीप^ाउन- qाउन ने 1882 म: ताताचाय( नामक Tयि_ से कहािनयाँ सुनी थी,
िजसे उ/ह*ने अं4ेजी म: िलखा था। qाउन तेलगु ु क दोनो भाषाओ ं का आदर करते थे। उनके [ारा
अ4ं ेजी को तेलगु ु िसखाने क !िkया छोटी-छोटी कहािनयां के मा=यम से अपनायी गयी, जो
!शंसनीय है। िगडुगु सममिू त( पंतलु ु का ‘ग-िच/तामिण (1899 ई. म: !कािशत) के पृ0 92,
293,240,256 आिद पृ{* म: तेलगु ु भाषा को द9 ु ह बनाने क !िkया का उBलेख िकया गया
है। म=यकाल म: सं+कृ त, !ाकृ त से प 9प म: िलखी गयी रचनाओ ं को ग म: अनिू दत िकया
गया। हसं िवंशती, शक ु स\क, ताताचाय( क कहािनयाँ, ‘परमानंदŠयागHर कथल ु ु’ (1865 ई.)
आिद क जरि!यता +वयिं स है। परव+तु के रंगाचाय( क 1875 ई. पे ‘परमानदं Šया िशPयल ु
कथा’ जनभाषा म: िलखी उकृ Pट कृ ित है।
ईसाई धम. चार - अं4जे * ने ईसाई धम( के !चाराथ( 1880 ई. म: ‘ओBड टे+टम:ट
कथल ु ’ु तेलगु ु म: सी0वी0इ9 सोसाइटी क ओर से छपवाया, िक/तु बाइिबल क तेलगु ु
आमजनता के िलए अपनी न वन सक।

उतराखड मु त िवविवालय 90
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
चार दरवेश - 1893 ई. म: एन0ए0 मिू त( ने ‘अरे िबयन नैट्स कथलु’ अ4ं ेजी से अनवु ाद िकया
जो लोग* [ारा खबू पसदं क गई। अमीर खसु र* क ‘चार दरवेश’ नामक कहानी मीर उ5मन [ारा
1801 ई. म: फारसी म: िलखा गया। 1811 ई. म: ि+मत-नामकक अं4जे ने इसे अं4ेज* म: अनिू दत
िकया। इसके बाद 1856 म: एHर( िमिBल मिBलकाज(नु ने ‘चार दरवेश ’ नाम से इसे अनिू दत
िकया।
तड़कमBल व:कट कृ Pणाराव (1825-1890) क कई कृ ितयाँ है। िजनम: 1879 ई. म:
‘|ीमदा/‡ किवता विध(नी िवलासमु’ किBपत कहानी खबू !िस हई। 19 वी शती के उतरा(
म: चदं लवाड़ सीताराम शाSी ने ‘द कन पवू ( कथल’ु , ‘दशकुमार चHर7’, ‘स+ं कृ त नाटक
कथलु’ म: सहज शैली अपनाते हए ‘जनिवनोिदनी’ पि7का का संपादन भी िकया। |ी
एनमिचंतल संजीवराय शाSी का ‘दशकुमार चHर7’ (1886 ई.) तथा |ी वेदम व:कटराय शाSी
का !ताप90ीय नाटक कथलु (1888 ई.) सरस शैली क कृ ितय* का उतम उदाहरण है।
19 वM शती के उतरा( के कुछ !मख ु लेखक हf, िज/ह*ने ने तेलुगु ग सािहय के
िवकास म: महपूण( योगदान िदया। |ी दासु |ी रामुलु का ‘अिभनवप ग !बधं ’ (1892 ई.),
वेदम व:कटशाSी का ‘कथा सHरसागर’ (1881ई.), िचलकपािट व:कटरामनजु शमा( का ‘भ*ज
कािलदास कथनु ु’, ‘चमकार कथा कBलोिलनी’ आिद उBलेख कृ ितयां हf। |ी मिधर सुZब7
दीFतल ु ु का ‘काशीमिजली कथल ु ु (1895) भी इस संदभ( म: उBलेखनीय है।
गुजाड़ Sीराम मूित. - इ/ह*ने तेलगु ु !बंध काTय ‘कला पूणा(दयमु’ को ‘कला पणू lदय कथा
सं4ह’ के 9प म: तथा अरे िबयन नाइट्स को ‘िच7 रनाकरमु’ के 9प म: गानुवाद !+ततु िकया।
उ/नीसवM शती के उतरा( म: काBपिनक िकंतु मौिलक कथाओ ं का !णयन तेलगु ु सािहय को
खबू होने लगा। पनnपपकम अन/नचाय( का ‘मजवु ाणी िवजयमु’ (सन् 1892 ई.), कोमडूHर
अन/ताचाय( का ‘पलूकिन पावती कथा’ (मूक पावती को दो भाग* म: कहानी) 1899 ई. म:
!कािशत हई। पी. |ीिनवासाचाय( का ‘सोमशमा(5यदु यमु’ (1894 ई.) इमाम साहब तथा क+तHु र
रंगŠया ने ‘गलु -बकावली’ (दो भाग, 1895 ई.) आिद के [ारा कथा सािहय क वृि क।
वीरेशिलंगम पंतुलु - वीरे शिलंगम पंतल ु ु आधुिनक युग के सािहियक और सामािजक
िनमा(ताओ ं म: अ4णी माने जाते हf। उ/ह*ने ग के अ/य अंग* क तरह कथा सािहय के िवकास
म: योगदान िदया। वीरे शिलंगम ने ‘िवkमाकु(िन कथुल’, ‘पंचत/7, ‘काशी मिजली’, आिद को
सािहियक नहM माना है। यिप अपना सािहियक जीवन किवता से श9 ु करने के पVात् भी
उ/ह*ने ग िवधा क |ीवृि क। िच/नयसHू र क ‘नीित चि/0का’ के तीसरे अ=याय ‘िव4ह’
(1874 ई.) को वीरे शिलंगम पंतल ु ु ने 4ांिथक भाषा म: परू ा िकया। 1872 म: ही !कािशत कर
िलया था। को कोड़ व:कटरनम् और वीरे शिलंगम !ार5भ म: अिभ/न थे, िकंतु बाद म: दोन*
िवरोधी बन गये । कारण यह राह िक वीरे शिलंगम समाज सधु ारक िवधवा िववाह के पFधर,
एके <रवादी थे जबिक व:कटरनम 9िढ़वादी थे। भाषा-िवषयक `िOकोण भी दोन* के िवपरीत
थे। वीरे शिलगं म का भाषा िवषयक `िOकोण उनक आमकथा म: अिभTय_ हआ है। वे भाषा
क सरल, सहज शैली म: !+ततु करने के पFधर थे। शे सिपयर ने नाटक* के अनवु ाद म: पा7* के

उतराखड मु त िवविवालय 91
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
नाम* का भारतीय करण कर िदया। उ/ह*ने िSय* म: उ}चादश( के +थापनाथ( ‘सयवती चHर7’
(1882 ई.), हHरशच/0 क पनी च/0मती पर च/0मीत कथा (1884 ई.), ‘सयसजं ीवनी’
(1887 ई.) जैसी कहािनयां िलखी ।
बBलपं ािट व:कट सुZबया कहते हf, ‘‘औोिगक सvयता [ारा आधुिनक संसार को दी गई
महवपणू ( देन है‘- कहानी।’’ आधिु नक तेलगु ु कहानी का ज/म् दीघ( िवराम के बाद हआ। सन्
1819 म: रािवपािट गु9मिू त( शाSी के ‘िवkमाक( कहािनय* से सन 1990 के पनnपाकम
|ीिनवासचाय(ु वु के ‘भोजसतु ा पHरणयम् तक तेलगु ु कहानी अनवु ाद, अनक ु रण के 9प म: ही
िवकिसत होती रही। 20 शती म: सन 1921 म: पानगु िं ट का ‘कानगु चेˆ’, और गरु जाड़ा
आnपाराव के ‘िवGवाटु’ (1910 ई.) से आधिु नक कहानी का |ीगणेश होता है। सन् 1921 म:
िचंता दीिFततल ु ु का सुगाली कुटुंबमु’, जी. रामकृ Pण का ‘िचरंजीवी’ (1947 ई.) आिद
उBलेखनीय !ारंि5भक कहािनयां हf।
सध ु ार युग - समाज सधु ार आदं ोलन के बयार को कहानीकार* ने बखबू ी बपनी कहािनय* म:
समेटा है। लंडा9 अ}चामांबा क ‘Sी-िवा’, ‘धन7योदिश’, ग9 ु जाडा अnपाराव का ‘मी
पेरेिमिट’, ‘पेGमसीद’ु आिद समाज-सधु ार से जुडी ़ कहािनयां हf। अ/या !मख ु कहािनयां हf;
‘अHरकाBल िक/द मंटलु, ‘इBलु बHˆन वेधवाडपडुचु’, तिBल!ाणमा’, (|ीपाद सqु ‰य
शाSी), ‘शेश 5मा’, िवतंतुव’ु (चलम), ‘तेिलिव’ कालम किBप/येमाप(’ु , (मGु क ु ृ Pणा), पVात
यपम’ु , (िशवरामŠया), ‘ि[तीयम (कोडविटगंिट कुटुंबराव), ‘पडुचु पेBलाम’ (राघराव),
‘4हचारम’ (यनमuं सांबिशवराव), ‘राजŠया सोमयाजल ु ु’ (बी |ीिनवास शमा(,) ‘बािलका
िवलापमु’, (नरिसंहाराव),’ कलपु ु मो कलु’ (|ीपाद), ‘इलांिट तTवाई व+ते’ (|ीपाद),
‘अŠयोपापम,’ (गोटटु मु कल मंगाय5मा) ‘ईरŠया’ (अ< व:कट+वामी)’, मािदगवाडु’ (लीला
सरोिजनी), ‘4ु के डु नीBलु’ (बंदा कनकिलंग<े र राव) ‘धम(तिBल (चं◌ुडू9 रमादेवी) आिद
!मख ु समाज-सधु ार िवषयक कहािनयां है।
देशभि= और तेलुगु कहानी - तेलुगु कहािनय* म: !थम एवं ि[तीय िव<य ु के बाद िव<
+तर पर Tया\ म0ु ा+फित को तेलगु ु कहािनय* म: सजीवता के साथ बताया गया है। एसे
कहानीकार* ‘म:’ िड!ेशन चे5बकु’ के लेखक वेलHू र िशवरामशाSी !मख ु है। अ/य कहानीकार
हf- पे5मराजु राजगोपाल (अkमिवभागम) िचतलपािट |ीरामल ु ु (अिव यु पु रोजुल)ु , kोिZबिड
लIम5मा (िवजयोसवमु,), ि7परु नेिन गोपीचंद (िपHरिकवाडु), चागिं ट सोमयाजुलु (भBलक ू
+वnनम)ु आिद।
20वी शती के !ार5भ म: देशभि_पणू ( भावनाओ ं से यु_ रचनाय: !चरु मा7ा म: रची
गयी। Tयि_गत िहत क जगह देशिहत क बात कहािनयां म: ‘+पOत’ देखी जा सकती है। !मख ु
कहानी कार है।- मैदवालु पावती (यािगनी), गिु डपािट व:कटाचलम (सश ु ीला), व:कट
राhयलIमी (एवHरद0ुOम) गु5मिददला दगु ा(वाई (ने ध/यनैितिन), तािडनाग5म (कथकाद)ु , क9ण
कुमार (सेवा धम(म, आकिल मटलु, को/त चेnपुल,ु व:क/ना), िचंता दीिFतलु (सरु ासीती
ब:◌ीक जैलु !ेवशम,ु ‘एकादशी’, सHू र, सीित विं क, दशमी (1940), बटीरावु कथलु आिद ।

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इस काल क अ/य मह?वपणू ( कहािनयां हf-
‘कुटीर लIमी’ (कनपित( वरलIम5मा), ‘अिनव(चनीय याित’ (जी0वी0 कृ Pणा राव), ‘नारी
‹दयम’ु (पे5मराजु राजगोपालम)‘!ेवेिदकमीदा (चं0कला) ‘नीवेणी’ (रायसम व:कटिशवडु ु )
‘मोदिह दािड’ (|ीपाद) आिद।
तेलुगु कहानी और अयुदय (गितशील) आदं ोलन-
मा स(वादी िवचारधारा से !भािवत होकर भारतीय ही नहM अिपतु िव< सािहय क
िदशा पHरवित(त होने लगी थM। ऐसे म: तेलगु ु सािहय का यह पHरवत(न अvयदु य यगु के नाम से
जाना जाता है। आिथ(क समानता, शोषण और जाितगत भेद भाव का खडन, य ु सं+कृ ित का
िवरोध, मजदरू * का िहत, शांित क अिभलाषा और िव< `िO आिद अvयदु य युग क रचनाओ ं
क िवशेषता है। वगUय मानिसकता और मानव-संबंध* पर अथ( सं+कृ ित के !भाव कहानी िवधा
अछूती न रह सक। !मख ु कहािनयाँ हf- ‘दासHर पाटा’, ‘सगु ाली कुटुंबमु’ (िचंता दीिFतल ु )ु
‘आम: यागम’, ओ पTु वु पिू संिद’, ‘आराि7’, ‘जलसी’ (चलम), ‘कŠया कालबु ’, ‘पशबु ल ु
कोˆम’, ‘िपBलल मोलताडु’, ‘को/त चेnपल ु ु’ (क9ण कुमार) ‘नTु वल ु ु तेलगिपंिड’, ‘इतं लो
उि/द’, ‘कुल[ेश मु’, को/त-जीिवतम’ु , ‘ट्यटू र’ (कोडविटगंिट कुटुंबराव) आिद। इन कहािनय*
के मा=यम से लेखक* ने यथाथ( सामािजक पHरवेश को िचि7त िकया है। दिलत*, कृ श क* का
शोश ण, Tय+था के िव9 िव0ोह को पा7ा नक ु ू ल भाषा म: कहानीकार* ने !+ततु िकया है।
!मख ु कहानीकार हf- रािव शाSी (िपपीिलकम), रािवशाSी (आ9 सारा कथलु’, बु कुल’ु )
कोलकलHू र इनाक (ऊ9बािव, तBलेनोडु, िपडीकृ तशिट, आकिल) पेिGभोट्ला, सी.एस.राव
(मसु ल5मा मरणम कBलजोडु’) ितलक (आशा िकरणम), गोखले (बBलकटु पापŠया) आिद ।
इन कहानीकार* ने कलम के माधम से समाज को !गितगामी बनाया।
तेलुगु कहानी और तेलंगाना मुि=- आदं ोलन- 4 जुलाई सन् 1946 को किडव:िड 4ाम म:
जमMदार* क सेना [ारा आम लोग* पर गोली चलवाया गया। िजसम: बधं वु ा मज़दरू ी का िवरोध
करने वाले दोड्िड कोमरŠया क मृयु हो गयी। िजससे यह िव0ोह hवालामख ु ी बन गया। िव0ोह
क आग को शZद* का 9प देकर लेखक* ने उKम कहानी सज(ना क। !मख ु कहािनयां है-
‘रहीम भाई’ (पी.व:कटे<रराव), नवजागृित (!याग), अमर वी9लु (के 0 एल नरिसहं राव), मीरे
गेल+ु ताक (तु5मल व:कट रामŠया) महाशि_ (ते/नेिट सूHर) मनमे नयम (कालोजी नारायण राव)
आिद। इन कहािनय* म: तेलंगाना !ांत के लोग* क जीवन- ि+थितय* का िच7ण है।
तेलगु ु कहानी एवं kांितकारी आदं ोलन-
तेलंगाना मिु _ आ/दोलन को सन् 1951 म: िवराम िमला। उसके पVात् 1969 ई. म:
तेलंगाना आंदोलन न सल आंदोलन से जड़ु कर अपने उ4तम 9प म: !कट हआ। तेलंगाना मिु _
चेतना को जाग9क करने वाली कई कहािनयाँ िलखी गयी, िजनम: !मख ु हf- 1964 म:
कालीपट्णम रामाराव क कहानी ‘यRम’, रावी शाSी क ‘िपपीिलकम’, कोलकलHू र का
‘ऊ9बावी’, आिद। सन् 1968 म: जमMदार* के िव9 सशS आंदोलन व:कटापसु यम और
आिद भट्ल कै लाशम के नेतृ व म: श9 ु हआ। िजसे कहानीकार* क लेखनी का पणू ( समथ(न

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!ा\ हआ। !मख ु कहािनयाँ हf- ‘माप(’ु (अBलम राजŠया), ‘मनषु ल ु बेटा’ (िकरण), ’पंचािद’
(उnपल नरिसंहा) ‘भिू म’ (उnपल), पोि किल’ (!काश), राजु (अBलम राजŠया), ‘िप}चोडु’
(कािम(का), ‘बोrगपु ोरBलो’ (तु5मेिट)’ िनव9 ु गिnपन िनnपु’ (सम0ु ु डु) आिद।
लेखक* ने kांितकारी चेतना के साथ जन-जाित के लोग* पर कई कहािनयाँ िलखM।
वी0एस0 रामल ु ु क अंडिवलो वे/नेल’, तोडसजं /ग’ु , राजŠया क ‘मिनिषलोपिल िव=वंसम’,
गोपी भाrलIमी क ‘जंगबु ाई’, त5ु मेिट क ‘जाडा’, आिद म: मिनषेध, जनजाित के शोषण को
मु य 9प से िचि7त िकया गया है।
तेलुगु कहानी और दिलत वाद- तेलगु ु !ांत दिलत* पर उ}च वगUय लोग* [ारा अयाचार
को एक आंदोलन के 9प म: िवरोध िकया गया है। सन् 1925 म: ‘!बु=दां‡’ पि7का म: |ीपादा
क ‘पBु लमु राजु’ कहानी को !थम दिलत कहानी माना जाता है। इसके बाद एक ल5बी परंपरा
दिलत कहािनय* क है जो अब तक चल रही है। !मख ु दिलत कहािनयाँ है- गोिGमु कल-
मंगाय5मा क ‘अŠयोपापम’ (1935), एंड्लHू र सुधाकर क मBलेमोrगल गोडुगु’, संदु र राजु क
‘मािदगोडृ ’, ‘माऊHर मैस5मा’, पी0 कनकŠया क ‘रद9 ु चपु ’ु , ‘मोिमट्लंडु म’, जाजल
ु गौरी क
‘मHˆबTु वा’’ कोकलसूHर इनका क ‘अ+पृय गंगा’, शांितनारायण क ‘उ कुपादम’, न/नपरु े िडु
व:कट रािमरे ड्डी क ‘अटं ु ’ पी कनकŠया क ‘एद9 ु चपु ’ु , वी0आर0 रासानी क होमम्’, +वामी
क ‘!शांव’ आिद के [ारा दिलत सािहय को नलये आयाम !ा\ हए हf।
तेलुगु कहानी और bीवाद - तेलगु ु कहानी ने Sी को व+तवु ादी `िOकोण से ही !+तुत करना
शु9 िकया। िपछले तीन दशक* म: लेिखकओ ं [ारा +7ी क सम+याओ ं को Sीवादी `िOकोण के
साथ !+ततु िकया जाने लगा। वोBगा क ‘!योग’ कोडेयिू ड़ िनम(ला क ‘श7ु+पश(’ सी सुजात
क ‘’ी इन वन’, पी0 सयवती क ‘इBललकगाने’, अZबूHर छ7योदेवी क ‘तनमाग(म’
मिु दगंिट सुजाता रे ड्डी क ‘िवसरु ा(ई’, फुिnपिल पा क ‘मिसगडु डा’, वी0 !ितमा क ‘जातरा’,
डॉ. भाग(वी राव का ‘नरू े Bल पटं ा’, आिद म: नारी Tयि_व को पणू ( अिभTयि_ क गयी है।
तेलुगु कहानी और मुिलम वाद -
तेलगु ु म: मुि+लमवादी कहािनयाँ क सज(ना 6 िदसंबर, सन् 1992 के बाबरी मि+जद क
घटना के बाद से अिधक होने लगी। इससे पवू ( 1982 ई. म: सयं का ‘पािचकल’ु (स4ं ह) िलखा
जा चुका था। मिु +लम* के मन से असरु Fा के भाव को िनकालने के िलए कई कहािनयाँ िलखी
गयी, िजनम: महवपणू ( कहािनयाँ है- नेBल9 ू काशव+वामी का ‘चारमीनार’, गीतांजी क
‘ब}चेदानी’, ‘पहचान’, अली क ‘हर एक माल’, रहमतBु ला क ‘बा’, मोह5मद खािदर बाबू
क ‘दगा(िमˆा’, पnपजु ान क ‘बरु खा और हराम’, ‘िसलिसला’, ‘िखZला’, मौBवी साहैब’ तथा
‘जमीन’, ‘पथर’ आिद म: मुि+लम पHरवार क िविवध पाHरवाHरक, सामािजक, आिथ(क,
धािम(क िवकृ ितय* का उBलेख िकया गया है।
तेलुगु कहािनयY मB Dेि]यतावाद- तेलगु ु कहािनय* ने सामािजक संघषg को वाणी देने मे
स‹दयता, ओजि+वता का पया(\ पHरचय िदया। Fे7ीय िवषय* को लेकर चं0लता के [ारा
‘रे गिZ_लु उप/यास को ‘ताना’ से परु +कृ त िकया गया । Fे7ीयता से जडु ी ़ कुछ महवपणू (

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कहािनयां हf- बी0 एस0 रामल ु ु क ‘दFयRमु’, कालवु मBलŠया क ‘अTवतोडुिगिद तेलंगाना’
पल
ु मु |ु ीिनवास क ‘सक ं र िव/तलु ’ु , कासुल !तपा रे ड्डी क ‘मटल’ु , जक
ू ं िट जग/नाथ क
‘वलसा’, पुिलकंिट कृ Pण रे ड्डी क ‘बंगा9 संकेल’ु , बी0वी0एस0 +वामी क ‘कंठनम’, सभा
क ‘पाताल गंगा’, िसंगमनेिन नारायण क ‘अडुस’ु , शांित नारायण क ‘दलारी’, +वामी क
‘नीBल’ु , |ीिनवास मिू त( क ‘मेडमीद वेलाडे काि/त’ आिद कहािनयाँ आ‡ं के िविवध +थान*
के लोग* क जीवन शैली को उšािटत करते हf।
अपनी ही जमीन पर परायेपन का अहसास Fे7ीयता को उ4 9प !दान करती है।
िचलक ु ू Hर देवप7ु ा क ‘सिमधल’ु , ‘आयधु वा’’, दिलत* क Tयथा कहती है तो ‘वंशधारा
कथलु’, ‘नागवBली कथलु’, जझावती कथलु’, आिद Fे7ीयतावाद को उजागर करती है। गंटेडा
गे9नायुडु क ‘ओक राि7 रे डुं +वnनालु’, अˆाड अnपलनायउु ु क ‘!या5नायम’ म: अपनी ही
जमीन के मािलक से मजदरू बनते तेलांगाना जनता क Tयथा-कथा है।
1.8.2 जीवन चर]-
जीवन चHर7 पाठक* पर िवशेष !भव डालते हf। किवय* के जीवन-चHर7 लेखक* म:
वीरे शिलंगम पंतुलु, ग9
ु जाड़ |ीराममिू त( का नाम उBलेखनीय है। वीरे शिलगं म पंतल
ु का ‘कबल ु
चHर7’ (3 भाग 1887 ई.) उनके अ=यवसाय का !ितफल है। उ/ह*ने देश-िवदेश के महापु9ष*
क भी जीविनयां िलखी। 1913 म: ईसामसीह का जीवन चHर7 िलखा। उतम चHर7 के िवकास
हेतु िSय* के िलए ‘उतम चHर7 के िवकास हेतु िSय* के िलए ‘उतम Sी चHर7’ िलखा,
िजसम: ‘ 4ेसडिल“ग गल(,’ जोन आफ आक( ,’ ‘मेरी कापटर’, ‘एिलजाबेथ लेडीजान’ आिद का
उBलेख है। राजाराम मोहनराय पर आधाHरत जीवनी भी उBलेखनीय है।
गुजाड़ Sीराममूित.- इ/ह*ने ‘किव जीिवतमल ु ु’ ‘व:डपिू ड अ/नय मंि7 चHर7 (सन् 1896
म:), ‘ित5म9सु चHर7’ (सन् 18898 म:), ‘रायन भा+कर मिं 7 चHर7’ (सन् 1899 म:) ‘वैयाकरण
अnपय दीिFत क जीवनी’ सन् 1897 म: आिद किवय*, मंि7य* के जीवन पर आधाHरत है।
आं‡ के कुछ राhय* के इितहास भी इ/ह*ने अपनी जीवनी कृ ित म: िदया है। इनके अितHर_ के
रामनजु ाचाय( और वीर रंगŠया ने 1885 म: ‘चाण य चHर7’, व:कट रंगŠया’ ने कबल ु चHर7 म:
!ाचीन किवय* क जीवनी िलखा।
तेलुगु कहानी और वै5ीकरण- वै<ीकरण क उड़ान म: मँहु के बल िगरे िव< अथ(Tय+था ने
+थानीय सम+याओ ं क सदैव उपेFा क । ऐसे म: बेरोजगारी, कारीगर, िकसान* क आम
हयाएँ, िशFण सं+थान* का कुकुरमु ते क तरह फै लना, िशFा का +तर िगरना आिद सम+याओ ं
को लेकर कहानी -सज(ना क। !मख ु कहािनयाँ हf- कुिnपिल पा क ‘इ/+ट:ट लैफ’, मोह5मद
खदीर बाबू क ‘खदर लेडु’, ‘/यू बा5बे टैलस(’, ‘व:डेम् शोड़ा शॉप’, पेिGिट अशोक कुमार क
‘कलबो5मल’ु , बोBगा क’ कोकाकोला’, वी.चं0शेखर राव क ‘गीताजंिल’, िवजन 2020’,
‘आमहयल ऋतवु ’ु , िव<नाथ रे ड्डी क ‘िव9पम’, पंजाल जग/नाथम क ‘Tयापार मृगम’,
+वामी क ‘तेBल देŠयम’ आिद। इन कहािनय* म: वै<ीकरण के दPु पHरणाम* को मानव जीवन के

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िविवध कोण* से िवeेिषत िकया गया है। एन0आर0आई. शािदय* का दोश आHर सीतारमŠया
के ‘गˆ तेिगना चे9व’ु म: `OTय है। जी0 िवजय-लIमी का ‘+वणा(/‡’, नrन मिु न क ‘िवलोम
कथल ु ’ बी0आर0इ/0ा क ‘रावण hयो+यमु’आिद म: नये !योग हए हf।
इस !कार तेलुगु कहानी, उप/यास िवधा क तरह आशातीत वृि िवकास
करती रही। सन् 1952 म: ‘गिलवाना’ कहानी को अतं रा(PQीय परु +कार िमलने के बाद ऐसी
सैकडो कहािनयाँ
़ िलखी गयी जो तेलगु ु कहानी क उतरोतर !गित क घोतक हf।
‘भ0ाचल रामदासु चHर7’ (1878 ई.) पी0 दिFणामिू त( का ‘िपंगिल सरू ना चHर7’ (1893 ई.)
राजा मृयजंु य िनःशंक बहादरु का ‘क*ड जाित चHर7’ (1971 ई.) तथा भBलनारायण चHर7’
(1897 ई.) महवपणू ( जीविनयाँ है। |ी व:कट िशवराव पंतल ु ु का ‘का4ेस सं+थ लघु चHर7’
(1897 ई.), पनnपाकम |ी िनवा साचाय(ल ु ु का ‘महामना मदन मोहन मालवीय का जीवन
चHर7’ (1894 ई.), भ_ वसल नायडू का ‘काटम राजु का जीवन चHर7’ (1889) आिद !मख ु
जीवनी कृ ितयाँ है। वीरे शिलंगम के सािहियक सामािजक औछाय 9प को तोलेिट व:कट
सZु बाराव ने ’वीरे शिलंगम किव चHर7’ म: िदखाया है। एन0 ब:कटराव कृ त ‘व:कट महीपती
गंगाधर राज चHर7’ (1871 ई.) मृयजंु य राव का ‘चैत/य महा!भु क जीवनी (1893 ई.), |ी
व:कटरमणŠया’ का ‘िशवाजी चHर7 (1899) आिद तेलगु ु सािहय क जीवनी िवधा के !ौढ़तम
उदाहरण हf।
इस !कार जीवन-चHर7 के तीन* 9प तेलुगु सािहय म: िवकिसत हए हf। पहला-+वीय
चHर7 जो +वयं क आमकथा होती है। दसू रा महाप9 ु ष*, सािहियक*, साव(जिनक
काय(कता(ओ ं के जीवन वृत तथा तीसर- महाप9 ु ष* क दैनंिदनी। वीरे शिलंगम के ‘+वीय
चHर7’ को उतम आमकथा का +थान !ा\ हf। टंगटु ू Hर !काशम का ‘ना जीिवत या7ा’ उनक
िनPपF राजनीितक जीवन को 9पाियत करती है। |ी के सरी का ‘ना िच/ननािट म}ु चट्लु, वेटूHर
!भाकर शाSी का ‘!Rा !भाकरमु’ बडं ा9 अ}चमांबा का ‘अबला स}चाHर7 रनमाला’
(1902 ई.) पालेपु सुZबाराव का ‘आ/‡ पु9षल ु जीिवतमलु ’ (1913ई.), वािवBल व:कटे<र
शाSी का ‘अिनिवस:टु जीवन चHर7’, मBलंपिBलसोमशेबर शमा( का ‘देशोारकुल’ु ,
िचलकमिू त( लIमी नरिसहं मु का ‘महाप9 ु षल
ु जीिवतमल’ु (1909ई.) आिद तेलगु ु ग सािहय
क जीवन चHर7 िवधा को स5बिध(त करने वाली कृ ितयाँ है।

7.4 तेलग
ु ु उपयास का )वकास
तेलुगु उप/यास सािहय ने 1872 से 2013 तक के 141 वषg का दीघ(तम माग( तय करते हए
िवकास के नये-नये आयाम को गढा है़ । तेलगु ु उप/यास सािहय के िवकास -kम को िविभ/न
यगु * म: अवलोिकत िकया जा सकता है।
आरंभयुग (1872-1905) नरहHर गोपालकृ Pणम शेˆी का ‘|ी रंगराज चHर7मु’ को तेलगु ु का
पहला उप/यास माना जाता है, जो ‘िकववेकविध(नी’, पि7का म: धरावािहक 9प म: !कािशत
हआ। इसे ‘सोनाबाई पHरणयम’ तथा ‘िववेक चंि0का’ भी कहते हf। कंु दकु ू Hर वीरे शिलंगम पंतल
ु ु

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के ‘राजरोयर’ उप/यास म: अंधिव<ासी qा‰ण राजशेखर के [ारा सामािजक 9िढ क बिखया
उधेडी ़ गई है। वीरे शिलगं म का ‘सय राजा पवू (दश े ी या7ाल’ु तथा ‘आडुमलयालम’ भी
उBलेखनीय उप/यास है। 1891 म: /यापित सुZबाराव के साथ िमलकर वीरे शिलगं म पंतल ु ु ने
‘िचंतामिण’ पि7का के मा=यम से कई उप/यास लेखन !ितयोिगता का आयोजन िकया। इनम:
खडविBल रामच/0ुडु का ‘धम(वती िवलासम’, तBला!गड़ा सयू न( ारायण का ‘संजीवराय
चHर7म’ु , िचलकमूित( का ‘रामच”द िवजयम’ु , गोटेिट कनकरातु का ‘िववेक िवजयमु’, पी0
|ीिनवास चायल (ु ु का ‘सोमे<राvयदु यम’ु , नंबू9 ित9नाराध+वामी का ‘!णय मिहममु ु’ टेकुमBल
राजगोपाल राव का ‘ि7िवkम िवलासम’ु , खडविBल रामच0ं ुडु का ‘मालतीराघवम’ु ,
िचलकमिू त( का ‘हैमलता’, खडविBल रामचं0ुडु का ‘लIमी संदु र िवजयमु आिद को 1892 से
96 के बीच !थम और ि[तीय परु +कार िदये गये। इन उप/यास* समथ(न, मBू य +थापना के साथ
ही अधं िव<ास*का खंडन मुय िवषय था।
अनवु ाद यगु - (1900-1920) उप/यास के िलए यह समय कुछ िव[ान* के मत म:
ऐितहािसक’ तो कुछ क `िO म: ‘अनवु ाद यगु ’ है। बंगाली, अ4ं जे ी आिद के तेलगु ु 9पांतHरत
उप/यास* क दीघ( परंपरा रही। बंिकम क ‘कपाल कुडला ’ को दोर+पामŠया ने 1899 म: तेलगु ु
अनवु ाद िकया। इसके अितHर_ ‘आनंद मठ’ (1907), ‘कमला कोमल’ (1908) का भी इ/ह*ने
अनवु ाद िकया। कन9वBली भा+करराव का ‘!फुBल मख ु ी’ (1909), िचBलHरग |ीिनवास राव
का ‘कृ Pणकातिु न मरणशासनम’ (1910), तBला!गड़ा सूय(नारायण का ‘शैवािलनी चं0शेखरमु
(1910), चागिं ट शेषŠया का ‘राधाराणी’ (1910), ‘दगु (शनंिदनी’ (1911), नवाबनु ंिदनी
(1915), व:कट पाव(ती<र किव[य का ‘जयिसंह’ (1915) ‘मगु ांगुलीयकम’ु आिद बगं ला के
उतम अनिु दत तेलगु ु उप/यास है।
अनिु दत के साथ ऐितहािसक मौिलक उप/यास भी िलखे गये। धरण!गड़ व:कट
िशवराज जी [ारा िशवाजी पर ‘काच ं न माला’, भोगराजु नारायण मिू त( [ारा च0ं ग\ु मौय( पर
‘िवमला देवी’, व:कट पाव(ती<र किव[य का ‘वसमु ित वसंतम’, रनाकरम व:कटnपा और
त5ु मगोडी के शवराव का ‘सयबाई’, व:कट पाप(ती<र का ‘!मदावनम’, |ीपादजी का
‘आrं लराhय +थापनल’ु , ताBला!गड़ा सयू (नारायण का ‘हैलावली’ (1913), व:कट पाव(ती<र
किव[य का ‘मात् मिं दरम’ु (1918) आिद म: सामािजक अयव+था और वण(-Tयवथा के िव9
आवाज उठाई गयी है।
के तवरपु का ‘रायच9 ु ’ यु म’ (1913), भोगराजु का ‘आ/‡ राhपम’ु , दिु rगराला
राघवचं0 चौधरी का ‘िवजयनगर साŽाhयमु’, िचलक ु ू Hर वीरभ0राव का ‘कण( साŽाhयमु’ आिद
इस यगु क उBलेखनीय उप/यास कृ ितयाँ हf।
िवकास युगः (1920-1992)- इस यगु राजनीितक सामािजक पHरवत(न उप/यास* म: +पOः
सलकता है। तेलगु ु !देश को इितहास को लेकर तथा पHरवार, सामज म: होने वाल पHरवत(न* को
उप/यास का िवषय बनाया गया हf। इस यगु के !मख ु उप/या एवं उनक कृ ितयाँ िन5नतः `OTय
हf-

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िचलकमिू त( का ‘कृ Pणवेणी’ और ‘सुवण( गु\डु ु ’, उ/नव लIमीनारायण का
‘मालपBली’, ‘सघं िवजयम’ु , िव<नाथ सयनारायण का ‘अतं रामा’ (1918), ‘एकवीरा’
(1925), ‘वोिमपडगलु, माबाब,ु चेिलयिलकˆा,’ बद›् सेनानी’, ‘धम(चk आिद िविवधमख ु ी
उप/यास है।
चलम क ‘शिशरे खा;’ (1918), देविमि}चन भाया(,‘ मैदानम’, ‘हपं ीक/यल’ु ,
‘जीवतादश(म’, qा‰णीकम’ आिद आधिु नक िवचार* से य_ ु उप/यास है। बािपराजु का,
‘िहमिबदं ’ु , मोना ग/नारे ड्डी’, नारायणराव’, कोनंगी’, ‘तफ ू ान’, रागिमBका’, ‘जािलमिBल’
और ‘सरू ीड’ आिद !मख ु ऐितहािसक सामािजक उप/यास है। िव<नाथ सयनारायण, मो पािट
नपरिसंह शाSी, |ीपाद सुq‹मण, मिु नमािण यम नरिसंह राव आिद !िस उप/यासकार है।
मो कपािट को ‘बाHर+टर पाव(तीशम’ (1925), एकोद9लु’ (1931) मिु नमािण यम का ‘कांतम
कथलु’, ‘दीिFतल ु ु’, 9_िBल, ित9मािलग आद हा+य-Tयंrय, क9ण आिद िवषय* पर आिद
िवषय* पर आधाHरत है।
मनौवैdािनक युग (1941-1960)-iायड के अनसु ार तेलुगु कथा-व+तु क संयोजना म: कई
पHरवत(न िकए गये। बिु }चबाबू , जी.वी0 कृ Pणराव, गोपीचंद, रािवशाSी आिद मनोवैRािनक
उप/यासकार* म: अ4णी है। बिु }चबाबु का ‘िचवHरिक िमिगलेिद’ गोपीचंद का ‘पHरवत(न’,
‘असमथ(ुिन जीवन या7ा’, मे9फुल मरकलु’, ‘िपBलित5मेरा’, पंिडत परमे<रशाSी वीलनु ामा’,
‘गिडयपडिन तलुपुलु,’ ‘!ेमोहपनुल’ु , िशिथलाल यम’, धीकिट गदल ु ु’, यमपाशम’, जी0वी0
कृ Pणराव का ‘कलबु ो5मल’ु , रािव शाSी का ‘अBपजीवी’, बिलवाडा कांताराव का गोडमीद
बो5मा’, ‘बिू च’ ‘सगु णु ा’, भा+करभट्ला कृ Pणाराव का ‘युग संिध’, ‘िविच7 !णयम’,
आर0एस0 सुदश(नम का ‘मBली वसंलमु’, नोHर नरिसंह शाSी का ‘नारायण भट्डु,’ ‘90मा
देवी’, ‘मBला रे ड्डी’ ‘किव साव(भौमडु ू ’, किव[यम’, ते/नेिट सूHर का ‘चंगेजखाँ’ आिद उ_
मनोवैRािनक ऐितहािसक उप/यास* के बाद इस यगु का सामािजक उप/यास भी महवपणू ( है।
इस यगु के !मख ु सामािजक उप/यास* म: हf- रावHू र सयनारायण राव का ‘नेलवंका’,
बोिBलमंतु िशवरामकृ Pणा का ‘मु यजु यलु’, ‘बHˆकोट अBवा9 +वामी का !जल मिनिष’,
पोतकूिच सांबिशव राव का ‘उदयिकरणाल’ु , आिद। इस !कार इस यगु म: कालजयी
मनौवैRािनक, ऐितहािसक सामािजक उप/यास िलखे गये।
समकालीन युग (1960 से अब तक)- सन् 1958 के लगभग ‘आं‡ पि7का’ ने उप/यास
लेखन क परु ानी !िkया श9 ु करते हए !ितयोिगता आयोिजत िकया। समय-समय पर
आयोिजत इन !ितयोिगताओ ं का सफ ु ल इन उप/योसं के 9प म: तेलगु ु सािहय को िमला।
उप-यास उप-यासकार िवषय
1 क*त अBलडु ु |ी कोडविटगिं ट कुटुंगबराव िविवध
2 क*त कोडलु |ी कोडविटगंिट कुटुंगबराव िविवध
3 ‘अनभु व’ |ी कोडविटगंिट कुंटुबराव िविवध
4 ितिमगं लम वेटा ’’ ’’

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5 गोडिमिद बो5मा ’’ ’’
6 सगु णु ा ’’ ’’
7 दगापिडन त5मडु ु ’’ ’’
8 सिखया स/ु दरी ’’ ’’
9 चदं िु नको नलथु ोगु परु ाण सqु यम ’’
10 िवशाल ने7ालु िपलका गणपित ’’
11 कतल ु वंतेना महीधर राममोहन राव राजनीितक
12 ओनमालु ’’ ’’
13 कोBलािय गHˆतेनेिम ’’ िविवध
14 +वयंवरम ’’ वैवािहक सम+या
15 मंिच-चेडु |ीमती इिBलंदल सर+वती नारी-जीवन
16 अnप+वरालु ’’ ’’
17 पंकुिटBलु को5मHू र वेणगु ोपाल राव सामािजक
18 हाउस सज(न ’’ ’’
19 जीवन गमा पुराणम !काश राव ’’
20 मानेमनुश तु ’’ ’’
21 मनंिमिगलां कंदकु ू Hर िलंगराजु ’’
22 आदश(लु - आंतया(लु िसंगराजु िलंगमिू त( ’’
23 जा9डु मेट्लु मंज|ु ी ’’
24 +वगा(रोहन ’’ ’’
25 न9ू शर/तल ु ु ’’ ’’
26 चीकिटलो चीिलकलु गोलपिू ड मा9ितराव ’’
27 सगटु मिनिष आिद िवPणु ’’
28 िम@या ’’ ’’
29 तोिल मजली शीला वीरा(जु ’’
30 इG9 ओ कटे ’’ ’’
31 आिद !o इिद जवाबु अवसराल रामकृ Pण राव
32 इG5माियलु मगु rगरु Zवाियलु मBु लपिू ड व:कटरमणा

समकालीन यगु म: आंचिलक उप/यास क भी |ीवृि हई। !मख ु आंचिलक उप/यास


है- दाशरथी रंगाचाय(ल
ु ु का ‘िचBलर देवBु ल’ु , पोरंिक ‘दिFणामिू त( का ‘मु याल पिं दHर’
(तेलंगाना क बोिलय* पर), ‘वेलगु ु वे/नेल’, ‘गोदावरी’ (पवू U !ांत क बोिलय* का !योग),
पालगिु 5म परातु का ‘बितिकन काले’, नBलरे गिड’, क*डमिू द |ीराम- मिू त( का ‘क9णा’,

उतराखड मु त िवविवालय 99
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पोला!गड का ‘संघ चेिसन मिनिष’, ‘कौसBया’, ताBलHू र नागे<र राव का ‘कोिKियBलु’,
‘एिदगी एदगित पZु ब’ु , ‘जीवन hयोित’ आिद।
यह यगु मिहला-लेखना का +विण(म यगु है। |ीदेवी, बीनादेवी, मालती चंदरू , लता
(पदिवहीन, मोहनवंशी, महानगरंलो Sी), कोडूHर कौसBयादेवी (चkवाकम, चkनेिम) मnु पाल
रंगनायक5मा (बिलपीठं, पेकमेडल,ु +वीट होम), ि[वेदल ु िवशालIमी (वैकुठ पाली, 4हणम
िविडिचंिद ,वारिदमाHरन िवलवु ल)ु , यGनपिू ड सल ू ोचना रानी (सेkटरी, िवजेता), डॉ. सी0
आनंदरामं (संपंिग पोदलु, ‘आमबिल, िचकिट कडुपुन कांित) उ/नव िवजयलIमी, िनम(ला
!भावती, ए0 यामला देवी, कोलपाक राममणी, डी0 कामे<री, पावनी, पHरमला सोमे<र
आिद।
दाशरिथ ने गोिदगपल ु ु’, ‘जनपद’ उप/यास म: तेलंगाना के लोग* क सम+याओ ं को
उके रा है। सीतादेवी वािसरे ड्डी ने ‘समता’ म: राजनीितक mOाचार क बिखया अधेडी है। साथ
ही ‘मHˆमिनिष’, ‘मरीिचका’ म: न सलवाद के दPु पHरणाम को बताया है। बीनादेवी का ‘हfग भी
ि वक’, रािवशाSी का ‘रातु मिहिष’, ‘गोवल ु ु व+त/ु नािय’, ‘र/तालु-रांबाब’ु , नवीन का
‘मBु लपोदलु’, चीकिट रोगल ु ु’, पसपु ल ु ेिट मिBलकाज(ुन ‘पFल ु ’ आिद म: िविवध सम+याओ ं का
जीवतं िच7ण हआ है।
!योगधमU तेलगु ु उप/यास* म: नवीन का ‘अपं शŠया’, िवनक ु *डा का ‘ऊिबलो द/ु ना’,
महीधर राममोहन राव का ‘रथचkालु’, ‘क/तुल बंतेना’ आिद म: राजनीितक सम+या को
समािवट िकया गया है। एन0 आर0 नंिद का ‘नैिमशारय’, बिलवाड़ा कांताराव का ‘दगा
पिडन त5मडु ु ’, गोBलपिू ड मा9ित राव का ‘चीकिटला चीिलकलु’, पालगिु 5म परात’ु
बितिकन कालेज’, ‘नBलरे गिड’ आिद िविशO उप/यास कृ ितयाँ हf। 9सी उप/यास* को लेकर
गोरा जी ने समरं-शांित’, ‘अ/ना के रे िनन’ नाम से अनवु ाद िकया। रवी/0 के उप/यास: को ‘नौका
भगं म’, ‘तपोवन’, ‘ईटा-वयटा’ नाम से 9पातं Hरत िकया गया। कोमरमु भी का ‘सHरहटु’
(1970), यंडमूHर का ‘मरणमृदगं म’, राFसुडु, नBलंचु तेBल चीरा’, ‘तल ु सीदल’, कामोरा’
जैसे सडू ो साईस उप/यास* क रचनाये हई।
दिलत उप/यास* म: डॉ. के शवरे ड्डी का ‘F0ु देवता’ (1976), ‘+मशान द/ु ने9’
(1971), ‘िचवHरगिु डसे’ (1999) मापBले (1974), रािव शाSी का ‘मडू ु कथल बगं ारम’ु आिद
सामािजक चेतना से जडु े़ उप/यास हf। नारी मिु _ से जुडी ़ ओBगा क ‘+वे}छा, आकाशंलो
सगं ’ं , ‘खाक बतकु ल’ु , िचलक ु ू Hर देवप7ु ा का ‘पचं म’, जी0 कBयाणराव का ‘अटं रािनवसतं ’ं ,
एले स हैली का ‘एडु तरालु’, कBयाण राव का ‘मैलरु ािय’, बेमHू र एBलŠया का ‘क का’,
‘िस’आिद दिलत उप/यास का बेजोड़ उदाहरण हf।
इस !कार इन वषg म: (1872-2013) सहS* उप/यास िलखे गये,जो तेलगु ु सािहय क
िविवध रंगीितय* को !+तुत करते हf।
7.5 तेलुगु नाटक, एकांक का िवकास

उतराखड मु त िवविवालय 100


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
20वM शती तक आ/ं ‡ वाƒय म: नाटक िवधा का अभाव बना रहा। तेलगु ु किवय* ने सं+कृ त को
!बधं -काTय हेतु चनु ा। अपवाद+व9प 13वM शती म: मचं ना का के यरू बाह चHर7 (|Tय काTय)
को आधार बना कर राजेशखर ने ‘सालभंिजका’ नाटक क रचना क। 15वM शती म:
िपBललमHर( िपनवीर म0ुडु का ‘|ृगांर शाकंु तलम’’ काTय 9प म: !+ततु हआ। सं+कृ त म:
कृ Pणिम| कृ त ‘!ब/ध च0ं ोदय’ का निं द मBल/ना, धटं ा िसगं ना ने काTय नाट्य !+ततु िकया।
ित5म भूपालडू ु का ‘मुराHर अनघ(रावघव’ वोङ्ड चल( ित5मना का ‘!स/न राघव’, |ी भा+कर
का ‘उ/म/त राघव’, पशपु ित नायडु ु का ‘मदन िवलास बाणमु’, गंगाधर किव का ‘महाभारतम’ु ,
िव<नाथ किव का ‘सौगिं धकापहरणम’ु , व:कट =वHर का ‘!5ु नानदं ’, रािवपािट ि7परु ांतकुडु का
‘!ेमािशरामम’् , धम(सHू र का ‘नरकासरु िवजयमु,’ रावु सव(Rिसंग भूपालुडु का ‘रन पांचािल;,
|ीकृ Pण देवरायलु का ‘जांबवती पHरणय’ आिद सं+कृ त नाटक तेलगु ु किवय* [ारा िलखे गये।
नाट्य रचना के साथ रंगमचं ीय िनदशन का तेलगु ु किवय* ने िवशेष =यान िदया।
रामराजुभश ू णडु ु को ‘वसचु Hर7’ के चौथे अ=याय म: पद के उपयोग के बारे म: बताया गया है।
सं+कृ त नाटक राजमहल तक सीिमत थे। सव(साधारण के मनोरंजनाथ( यFगान, वीथी-‘भागवत
नाटक, कठपुतली‘-खेल थे। ित कना का ‘भारतमु’ (संचर नाटक ) उBलेख है।
तेलगु ु सािहय के !ार5भ से लेकर सन् 1860 तक ‘यFगान’, ‘गोBलकलापम्’, वीि@R
भागवतम्,’ ‘भामा कलापम्’ जैसे नाट्य 9प का िवकास हआ जबिक सन् 1860 से 1960 तक
का काल आधिु नक तेलगु ु नाटक िवकास युग माना जाता है।
तेलुगु नाटकY का िवकास - म-
तेलगु ु का पहला मौिलक नाटक कोराड़ा रामचं/0 शाSी का ‘मंजरी मधुक वीयमु’ (1860) को
माना जाता है। इनके [ारा 9पांतHरत नाटक ‘वेणी संहारम’ु अ!कािशत ही रह गया। को क*ड
व:कटरनं पंतल ु ु’ का ‘नरकासरु िवजय Tयायोगमु’ (सन् 1871) सं+कृ त नाटक का आ/‡ी करण
है। ‘अिभRान शाकुंतलम’ के 20 भी अिधक तेलगु ु अनवु ाद िकए गये। पड्डािद सुZबाराव का
‘वेणी संहराम’ (1886) ‘चंडकािसकम’ (1900 ई.), वािवलाल वासदु वे शाSी का ‘उKरराम
चHरत’ (1889 ई.) सुसल( अनंत रा का ‘म0ु ा राFस’ (सन् 1890), वेदवं क : ट राय शाSी का
‘नागनदं म’, (1891 ई. ) ित9पित व:कट किव का ‘मृ}छकिटकम’ (1890 ई.), ‘म0ु ाराFस’
(1908), दासु |ीरामल ु ु का ‘महावीर चHर7’ (1902)’ मालत माधवम’, मBलिद सूय(नारायण
शाSी का ‘उतररामचHर7’ (1908), वेटूHर !भाकर शा†7ी का ‘!ितमा’, बल ु सु ु व:कटे<र का
‘अिभषेक’, !ितभा’ आिद तेलगु ु नाटक सं+कृ त [ारा 9पांतHरत िकया गया।
वािवलाल वासदु वे शाSी का ‘सीजर चHर7म’ु (1875) पहला अं4जी नाट्यानवु ाद
माना जाता है। 1880 म: ‘नंदक राhयम’ु मौिलक नाट्य रचना िकया।
नाट्य-मंचनीयता-
कंदक
् ू Hर वीरे शिलंगम पंतलु ु ने ‘िवाथU’ नाटक समाज’ क +थापना कर +वरिचत
नाटक* का !दश(न िकया। धारवाड़ म: ‘धारवाड़-संया’, गंटु ू र म: ‘िह/दू नाटक समाज,’ बंद9 म:

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‘िह/दू नेशनल िथयोिटकल सोसायटी’ आिद सं+थाओ ं के अ=यF तथा िनदशक +वयं
नाटककार रहै।
वीरे शिलंगम पंतल
ु ु ने ‘कॉमेठी ऑफ एरस(’ को ‘चमकार रनावली’ (1881ई.) नाम से
लेखन एवं !दश(न करवाया। क*डमदल ् ा सुq‰यम शाSी [ारा नाटक* का ऐितहािसक,
पैरािणक !णयन एवं मच ं न करवाया। नादेBल प9 ु षोKम किव [ारा ‘रामदासु चHर7ा’ ‘सय
हHरV/0ं’ क रचना तथा मंचन कराया गया।
आधुिनक तेलगु नाटक* का िवकास-
बBलरी के धम(वरम राम कृ Pणमाचाय(ल ु ु ने तेलगु ु म: दःु खातं , नाटक* क श9
ु आत क।
सन् 1886 म: ‘सरल िवनोिदनी सभा’ क +थापना क। इनक ‘िच7नलीयम’ (1887), ‘िवषाद
सारंगधर’ (1889) कृ ितयाँ खूब चिच(त हई। इनके नाटक म: !ोलाग, ऐिपलाँग के साथ अंक* का
िवभाजन भी हआ है। ‘चं0हास’ (नमक कर का िवरोध), ‘!मीलाज(नु ीयम’ (Sी +वत/7ता का
समथ(न) क रचना कर उसका !दश(न कराया। धम(वरम राम को ‘आ/‡ नाटक िपतामह’ कहा
जाता है।
बBलारी के वकल कोलाचलम |ीिनवास राजु का ‘समु नोहर कथा’, ‘वाणी
िवलासम’ु (1905 ई.), ‘िवजयनगर राhय पननमु’, ‘सBु लाना चाँद’, ‘च/0िगHर अvयदु यमु’,
मैसरू राhयमु आिद महवपणू ’( ऐितहािसक कृ ितय* के कारण इ/ह:, ‘चाHरि7क िपतामहल’ु ,
(ऐितहािसक िपतामह) कहा जाता है। ‘पादक ु ा पˆािभषेकमु’, ‘!•ाद चHर7’ तथा ‘!पंच नाटक
चHर7ा (िव< नाटक का इितहास) आिद उBलेखनीय है। ‘दी uमेिटक िह+टरी ऑफ दी वBड(’ के
ये ही लेखक है।
िचलकमिू त( नरिसंहम का ‘गयोपायानम्’ क एक लाख !ितयाँ िवक थी। ‘!स/न
यादवम्’,‘पाHरजातापहरणम’ु , ‘!•ाद चHर7’ आिद इनक अ/यकृ ितयाँ है। उनक
आयानामक, Tयrयामक शैली उनक लेखनी को जीवतं बनाती है। ‘आ/‡ शे सपीयर’
पानगु ंिट लIमी नरिसंहम ने रामायण को चार नाटक* म: (‘कBयाण राघवम्’, ‘पादक ु ा
पˆािभषेकम्’, ‘वनवास राघवम्, िवजय राघवम्) म: बाँटते हए िलखा। इनके अ/य मुय नाटक*
म: ‘कंटाभरणम’् (हा+य रस !धान) का नाम िलया जाता है। कोिकल, सर+वती, वृ-िववाह;
राित +तंभ (पाषाण +तंभ), !चंड चाण य, चड़ू ामिण, ब ु बोध सधु ाआिद पानगु ंिट
लIमीनरिसंहœाव के उBलेखनीय नाटक हf।
महाभारत क कथा को ‘पाडं वोयोग िवजयम’ (1911 ई.) नाम से अुत शैली म:
पामक नाट्य !+तुित करने वाले ित9पित व:कट कवल ु ु जनि!य नाटकार हf। बिलजेपिBल
लIमीकांतम् का ‘सय हHरचं/0यमु’ रसपणू ( पामक शैली म: !+ततु िकया गया नाटक हf।
इनके [ारा मRानघाटका वण(न कोिकला जशआ ु क कृ ित ‘माशान वािटका’ (खडं काTय) से
पाया(\ सा5प रखता है। ऐितहािसक नाटकार* म: वेदांत व:कटराय शाSी का नाम बड़े आदर के
साथ िलया जाता है। इनका ‘नागानंद’, ‘शाकंु तलम्’ ‘ि!यदिश(का’, ‘मालिवकािrनिम7’
‘उतररामचHरत, ‘िवkमोव“शीय’, ‘रनावली’ आिद अनिू दत नाटक है तथा ‘!ताप90ीयम’,

उतराखड मु त िवविवालय 102


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
उसा पHरणयम’, बोिZबिल यु’ आिद मौिलक नाटक है। िजनम: पा7ानक ु ू ल भाषा का !योग
हआ है। गिु डम:टा व:कट सZु बाराव का ‘िखलजी राhय पतनम’ु , इ}छापरु मु यRनारायण का ‘रस
पु7 िवसयम’ु ‘िसंहगडमु’ आिद उBलेखनीय है।
श*िठ भ0ाि0 रामशाSी (1850-1915) ने सं+कृ त नाटक* का (वेणी संहार
िवkमोव(शीयम, कंु दमाला, मिBलका मा9त) अनवु ाद सश_ शैली म: !+ततु िकया।
ताडूHर लIमी नरिसंह राय का ‘|ृंगार भूषण’, ‘उ/मत राघव’ ‘9ि मणी +वयवं र’, ‘जयंती
रामŠया पंतल ु ु का ‘उतर रामचHरत’ ,‘काशीभˆ शाSी का ‘मंगतािय’, ‘सौधववध’, ‘च0ं हास
चHर7, ‘अहBयासk ं ं नीयम’ु ‘0ौपदीवSापहरण’, ‘सारंगधर’, ‘पाHरजातापणम,ु ’ |ीदासु
|ीराकिव का अनिू द नाटक (मालती-माधव महावीर चHरत’, मालिवकािrन7म, रनावली आिद)
इ/ह: |Tय नाटककार के 9प म: याितलाभ कराता है।
सामािजक नाटक- 1897 म: !कािशत ‘क/याशुBकमु’- गरु जाड़ा अnपाराव (1965-1915)
कृ त !थम सामािजक नाटक है, िजसम: बाल-िववाह का जीवंत िच7ण है। तीन साल क ब}ची
का साठ साल के वृ से िववाह तपVात िवधवा होना िदखाया गया है। इसम: वेयाओ ं क,
िवधवाओ ं क िववशता, पु9श वग( का उन पर अयाचार, पिु लस का kूरतम 9प आिद स5याय:
जीवतं ता के साथ 9पाियत हई है। अnपाराव से !ेHरत होकर काBलकूHर नारायणराव का
‘िचंतामिण’, ‘वर िवkमम’ु नाटक िलखा गया।
दादाजु पंडु रीकाFडु ु का ‘ गांधी िवजयम,ु पांचाली पराभवमु, ‘ 4िथ सुZबारायडु ु का
‘आं‡माता’, दोणराजु सीता रामाराव का ‘आ/‡ पताकम’, दZु विू ड रािमरे ड्डी का
‘कुमराणा’आिद िविवध िवषय से स5बि/ध नाटक हf। तेलगु ु के Rानपीठ परु +कार से परु +कृ त |ी
िव<नाथ सयनारायण का ‘नत(नशाला’,‘ ि7शल ू म’ (दःु खातं ), अनाक( ली आिद उतम नाट्य
कृ ित है। 1929 ई. पनारस गोिवदराव ने ‘आ/‡ नाटक कला पHरश द’ क +थापना करते हए
‘नाट्यकला’ नामक 7ैमािषक पि7का िनकाला । 1938 म: हरीशच/0 चटजU ने वेलHू र च/0शेखर
क ‘कांचनमाला’ का !दश(न सशकत 9प म: कराया। ‘आ/‡ नाटक कला पHरश द’ के [ारा
!ोसािहत नाटक लेखक एवं अिभनय काय(कता(ओ ं ने नाटक म: खूब !योग िकए। नाटक* म:
बालचाल क भाषा के साथ ही आचिलकता ने भी !वेश पाया। नैितक नाटक* म:, ‘भाrय रे खा’
(कोपेBला व:कटराव), ‘वे/नेला’ (चाँदनी) तथा मनोवैRािनक नाटक* म: ‘आमवंचना’
(बिु }चबाबु), ‘कnपलु’ ‘भयम’ ‘एन0जी0ओ0 (आ7ेय) नाटक खबू पसंद िकए गये। |ी
ि7परु नेिन रामशाSी का ‘शभं क ू बध’ ‘जाित’,आक ं चला( गोपालराव का ‘िहरयकिशपडु ु ’,
गिु डपािट व:कटा चलम क ‘सािव7ी’, जी0वी कृ Pणराव का िभFापा7’ आिद उBलेखनीय
धािम(क एवं पौरािणक तेलुगु नाटक है।
जमMदार* और िकसान* के बीच सघं स( को प|ी बोिय भीम/ना ने ‘पाले9’,
‘कूिलराजु’, ‘आिद नाटक* म: िचि7त िकया है। तेलगु ु के जाससू ी नाटक* म: पी0 |ीराम मित( क
‘फिण’ और ‘कालराि7’ !िस है तो सुZबाराव क शेशनआरा’, ‘राणा!ताप’, ‘शशांक’,
िपगं िल क ‘जेबिु /नसा’ ‘िवाराणी’, ‘ना रज’ु आिद उBलेखनीय सािहियक धरोहर है। इस

उतराखड मु त िवविवालय 103


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!कार मा7 50 से 60 वषl मे ही 3000 से भी अिधक िविवधताओ ं से भी तेलगु ु नाट्य-रचना
को देकार उसक !गित का अनमु ान लगाया जा सकता है। नाटक* के माप=यम से समाज
सधु ार को लIय बनाकर वीरे शिलंगम पंतल ु ु ने ‘चतकार रनावली’ (कामेडी आफ एर( स(’ का
अनवु ाद) ‘िववेक दीिपका-, ‘!•ाद’ ‘दिFण गो4हण’, ‘हHरV/0’, ‘ितथ( िrव[/महासभा’,
‘महारय परु िधपयमु ’ु आिद नाटाक* को अपना हिथयार बनाया। अतः तेलगु ु नाटक* म:
िविवधता को और उसके उhजवल भिवPय क अपेFा क जा सकती है।
तेलगु ु एकांक-
तेलगु ु सािहय म: नाटक* का स7ू पात स+ं कृ त से हआ तथा एकाक ं  का िवकास अगं ेजी
के ‘‘Tदम ।बज }संल’’ से हआ। सन् 1912 म: ‘uामास इन िसिव स’ 4/थ म: किव सवा(रायडु ु
क कृ ित ‘गार् म कचेरी’ को +थान िमला। इसके बाद ‘भारती’ , शारदा’ आिद पि7काओ ं [ारा
कई एकांक !कािशत हए। पाVाय नाटककार इZसन के सुधारामक नाटक* के तज( पर तेलगु ु म:
देशी किवता मंडली के [ारा पी0वी0 राजम/नार के 15 नाटक* (राजम/नार नािटकाएँ) का
!काशन हआ। इसके बाद तेलुगु एकांिकय* ने भी जोर पकड़ा तो कभी पीछे मुड़कर नहM देखा।
तेलगु ु क !गितशील एकांिकयाँ गिु डपािट व:कटाचलम क ‘भानमु ती’
‘नरिसंहावतारमु’, ‘सािव7ी आिद उBलेखनीय है। |ीपाद सुq‰ण शाSी क ‘9िपकलु’
(एंकांक) दो सं4ह* म: (कलम पोटु’, ‘टी पाटM’) !कािशत हई। िव<नाथ किवराजु का ‘लेता
िवडाकुलु’, ‘ड*कलो श राबु’, मो कपािट नरिसंह शाSी ने ‘मो कुश िड’, िचंता दीिFतलु का
‘दीिFतल ु ु क एकांिकयां’ (|ीकृ Pणडु अहBया’, ‘जटायवु ’ु , ‘दशहरा िदZबा’, ‘मानवडु ु ’,
‘व9िधनी’) आिद महवपूण( है।
हा+य एकांिकय* म: ‘कचटतपलु’ ‘एnपडू इतं े’ (भिमिडपािट कामे<र राव) ‘कांतम’,
(मिु नमािण यम नरिसंहराव), ‘एंिक-नायडु ु बावा ‘ब}ु च5मा िगरीशम’ गरु जाड़ा अnपाराव के
नाट्यपा7* पर आधाHरत एकांक सुZबाराव [ारा िलखे गये।
मBलािद व:कटकृ Pणशया( ने ‘सरु िभ नाटक सं+था’ हेतु कई एकांिकयाँ िलखी,अतः उ/ह: नाटक
समाज ने ‘आ+थान किव’ (दरबारी किव) क उपािध [ारा स5मािनत िकया। उस समय के
एकांक म: लेखक ‘िबना Sी पा7* क एकांक’ िलखा करते थे। इसी वा य को Tयंrय बनाकर
व:कट कृ Pण ने एकांक िलखा था। इसी समय ऐितहािसक एकांिकया भी िलखे गये । !मख ु
ऐितहािसक एकांक हf- आंकचल( गोपालराव क ‘मBलमदेवी उस9 ु ’ मारे मंडा रामाराव क
‘नैवेम’, ‘!तीकाराम’, जी0वी0 कृ Pणाराव क ‘तोलबु ो5मल’ु , नाल( व:कट<र राव का
‘कोतगडु ् डा’ आिद।
तेलगु ु एंकाककार* ने अ/य भाषाओ ं से भी एकांिकय* को 9पांतHरत िकया। !मख ु
अनिु दत एकांक हf - ‘चेnपडु ु माटल’ु (क/नड़ से - ित9मल रामच0ं ), ‘तीरिन बाक’ (मलयालम
से - पटु ् पित( नारायणाचायु(लु), ‘नवनािटकल’ु (तिमल से |ीवा+तव) आिद। इस !कार एकांक,
गीत नाटक, नाटक, लघनु ाटक, संगीत 9पक आकद िविवधमख ु ी नाट्य रचनास: !चरु मा7ा म:
क गयी।

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
गेय नाटक- तBलावझ(ल िशशंकर शाSी [ारा सन् 1933 म: ‘पावती चरण-चरण चkवतU’?
नाम से गेय नाटक जयदेव के गीत गोिवदं के आधार पर िलखा गया। इसके बाद तो इनक !ेरणा
से कई गेय नाटककार (सी.नारायण रे ड्डी, वािवलाला सोमयाजुलु, पापु रे ड्डी, एव.वी.
जोगाराव, बोिय भीम/ना, मBलवरमु िव<े<र राव आिद) उभरे । डॉ. सी. नारायण रे ड्डी का
‘रामnपा’ सगं ीत 9पक अतं रा(PQीय +तर पर सराह गया, इ/ह: Rानपीठ परु +कार भी !ा\ हआ।
रेिडयो नाटक - तेलगु ु सािहय म: रे िडयो नाटक क समृ पर5परा रहM रे िडयो नाटक के Fे7
म: |ी मˆु कृ Pणा क ‘अनारकली’ सव(!थम है। किपल काशीपित क ‘िपंगिल सरू /ना’,
‘किवतायRम’ु , ‘िशलFरम;ु ’, राजग9 ु व’ु , ‘!ित{ानम’ु आिद महपणू ( रे िडयो नाटक है।
देवलु पिBल कृ PणशाSी क ‘शिम({ा’ सं4ह (गौतमी’, ‘वेणक ु ंु जम’, ‘एड़ािद पोडुगनु ा’, ‘यमनु ा
िबहारी’) ‘धनरु दास’ु सं4ह (‘सायhु यमु’, ‘गडु ् डु’, ‘िप Fे7Šया’, ‘धनरु दास’ु आिद) पाठक* ने
खबू पंसद िकए। मिु नमािण यं नरिसंहराव का ‘क9परु ाजBु लो कांतम5मा’, ‘इिं टलो q‰राFसी’
(घर म: q राFसी), ‘राजबंदी’,‘मटू ल द*गा’, ‘ (गिडडय* का चोर), ‘ िपदश ु कुडु’ आिद
उBलेखनीय हा+य रे िडयो नाटक है। !गितवादी लेखक |ी |ी का रे िडयो नाटक - ‘चतरु Sम’,
‘मरो!पंचमु’, ‘अतंरपा7ा’ ‘गमु ा+ता कला’, ‘गणेश’, ‘ओटं Hरबािव’, ‘भतू ाल कोिलिम’,
4ामफोन Hरकाडु(ल ित9गुबाटु’ आिद। इनके अितHर_ गोरा शाSी (आशा खरीदु
अणा),गोपीचंद (तवमिस) आिद का नाम भी सफल रे िडयो नाटककार के 9प म: िलया जाता
है। आकाशवाणी के /0 म: ‘अ/नŠया’ /यापित राघवराव’, ‘अ कŠया /यापित कामे<री के नाम
से !िसऋ है। इ/ह*ने बाल हा+य नाटाक*, बाल पौरािणक नाटक* क रचना क। ‘नागल ु ु’, ‘मडु ु
पेिBलBलु’ आिद गेय नाटक इ/ही के हf। अ/य !मुख बाल नाट्यकार* के ना उBलेखनीय हf-
वी0वी0 नरिसंहराव जी (पूलावाललु’, ‘बालललोकम’, ‘उतराल संतŠया’, ‘ऋतरु ाणी’,
‘ि!यदिश(नी’,), ‘इिBलंदल सर+वती (बाल वी9लु’, ‘सहवास दोश मु, ‘पटाटोमप’, ‘बो5मल
पेिBल’, ‘अपकाHरिक उपकारमु’,) के सभा, एिडदा रामे<र राव, नाल( िचरंजीवी, मिु Gपट्ला
व:कटराव, सोमंिच रामम,् िपBला सुZबाराव शाSी, मBलपिBल डमामहै<र राव, उ/नव सेतु
माधव राव, िव< !साद, !याग नरिसंह शाSी, िवंजमHू र िशव रामाराव आिद ने !चरु ता के साथ
बाल नाट्य 9पक* क सज(ना क। तेलगु ु नाट्यपर’ नाटकांतम िह सािहयम ’ क सिू _ पणू (तः
चीरताथ( होती है। एम0 रजनी के आलोचनामक 4/थ ‘तेलुगु म:बाकल नािटकलु’ (सन 1982)
म: 165 !कािशत नाटक* क समीFा क गयी है। नाट्य सािहय पर |ी राम अnपाराव का
‘आ‡ं नाटक िककासम’ु महवपणू ( 4थं है। इस !कार लेखक* क लेखनी सतत् चलायमान है।
अतः नाट्य सािहय क !गित िनिVत है।

7.6 तेलग
ु ु क* प+,काएँ एवं समी/ा-
समाज क गितिविधय* का समाचार देना तथा उसक Tयाया करना प7काHरता का
काय( होता है। प7काHरता के कई सोपान है- दैिनक, ‘पीHरयािडकBस’, ‘सा\ािहक’[ ‘पािFक’,
‘मािसक’, ‘[ैमािसक, 7ैमािसक, अ(वािष(क, वािष(क आिद।

उतराखड मु त िवविवालय 105


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
तेलगु ु का !थम दैिनक ‘कना(टक kािनकल (1932 ई.) को माना जाता है। इसके पवू (
इसाई धम( !चारक* [ारा ‘सयदतू ’ (सन् 1835) तेलगु ु म: !कािशत हो चक ु ा था। िकंतु कुछ
िव[ान सन् 1838 म: !कािशत पि7का ‘वृतांितिन’को मानते हf जो मंिडगल व:कट राय शाSी
[ारा संपािदत होता था। सन् 1842 म: ‘वत(मान तरंिगिण’ पि7का म: काTय, !बंध शतक* क
सचू ी आिद पTु वाड़ा व:कटराव [ारा संपािदत होने लगा। सन् 1848 म: ‘िदनवत(मान’ ‘िहतवादी’
म: सािहियक लेख* का !काशन हआ। सन् 1862 म: ‘सृजन रंजनी’, ‘|ी चिFिण’,
‘तवबोिधनी’, ‘आं‡ भाषा संजीवनी’ आिद पि7काओ ं म: खगू लेख , सािहय आिद !कािशत
हए।
सन् 1872 म: ‘प9 ु षाथ( !दाियनी’ (उमा रंगनायकुलु संपादक) प7 म: महु ावरे ,
लोकोि_य*, !ाचीन सूि_य* आिद का !काशन हआ। तेलगु ु भाषा के िवकास हेतु, ‘+वध(म
!कािशनी’, ‘सुिधरंजनी’, ‘सकल िवािभविध(नी’ आिद का !काशन हआ। सन् 1874 म:
िववेक विध(नी’ (कंदक ु ू Hर वीरे शिलंगम पंतलु ु), |ी िचंतामिण’ ‘सयवादी’, ‘सतिहतबोिधनी’
आिद पि7काओ ं [ारा तेलुगु सािहय को चहओर !कािशत िकया। इसके अितHर_ ‘जन
िवनोदनी’, ‘िहदं ू संदु री’ (1902), ‘वंदमे ातरम् (1970), तेलगु ’ु (िगडुगु राममिू त( पंतुलु [ारा
संपािदत), ‘ब–ायधु म्’ (|ीपाद कृ Pणमिू त() ‘मनोरमा’, देशमता’ (राजमहै/0वरम), आं‡ पि7का
(1908 काशी नाथिु न नागे<रराव) [ारा संपािदत क गयी। ‘आ/‡ भारती’ (1910), ‘आं‡
सािहय पHरपुPपि7कका’ (1912), ‘ि7िलंग’ (1912), ‘मु याला सर+वती’ (1923), आं‡
सव(+मम्’ ‘सार+वत सव(+म्’ 1924, ‘!ब ु ांध(’, (1924, िगडुगु राममिू त() पि7काओ ं [ारा
िविवध सािहियक िवधाओ ं का !काशन िकया गया। काTय भाषा के !चाराथ(, व–ायधु म
(1925 |ीपाद कृ Pणमिू त() रे ड्डी राणी’ (1924) पि7का म: रे ड्डी राजाओ ं के शासनकाल क
रचनाएँ !कािशत हई।
तेलगु ु ग के !चाराथ( सन् 1923 म: ‘|ी साधन* ‘शारदा’ (1922), ‘कला’ (1924),
‘भारती’ (1924), ‘गोलकोडा’ (1924 म: सुरवरम !तापरे ड्डी [ारा), ‘आ/‡ भिू त’ (1937 म:
आंuशेश िगHर राव [ारा)’, उदियनी’ (1935, [ैमािसक) ‘!ितभा’, ‘वीणा’ (1936), ‘आं‡’
(1946) आिद पि7काओ ं का !काशन हआ। पहली क5यिु न+ट पि7का ‘!भा’ (1935) गGे
िलगŠया ने संपािदत क । ‘+वत/7 भारत’ (1939-42)’, जनता’ (1948-1950), ‘आं‡ !भा’
(1938) आिद म: राPQ!ेम से पणू ( रचनाओ,ं लेख: को !कािशत िकया जाता था। ‘अvयदु य’
(मािसक), ‘सय साची’ (1959) ‘सदं श े म’, (1950,) ‘सवं ेदना’ (1965 7ैमािसा) आिद
पि7का संपादन अvयदु य रचनाकार* [ारा िकया गया। ‘!जाशि_ 1942, ‘िवशालां‡ा’ (1953,
ित9मल रामचं/0 एवं कोदडं रामŠया [ारा संपािदत), ‘आं‡ hयोित (1960 नाल( व:कटे<र राव)
‘आ‡ं भिू त’ (1960, गोरा शाSी तथा गhजल मBलारे ड्डी [ारा संपािदत ) आिद पि7काओ ं ने
पि7काओ ं के इितहास म: kांित के परचम लहराये। इन पि7काओ ं म: उप/यास* तथा अ/य
िवधाओ ं का अयिधक !काशन हआ।

उतराखड मु त िवविवालय 106


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
राPQो/नित का िवषय लेकर ‘ईनाडु’ (1974, ए0बी0 के 0 !साद [ारा संपािदत) का !काशन
हआ, जो अतं राPQीय +तर पर !िति{ हई। ‘उदयम’ (1984, दासरी नारायणराव [ारा संपािदत
पि7का) म: लघु कथाएँ, किवताएँ आिद खबू !कािशत हई। ‘वाता(; (1996) दैिनक म:
राजनीितक, वैRािनक, Sी, ब}च* आिद से संबिं धत िवषय* को !कािशत िकया जाता है।
अ/य !ि7काओ ं म: समकालीन िवषय* को !मख ु त के साथ !कािशत िकया जाता है।
‘भारित’ (काशीनाथिु न नागे<र राव), ‘चतरु ा’, िषपल ु ा’ ‘इिडया टूडे’, (मािसक से पािFक
सा\ािहक) पि7काओ ं ने समाज, धम(, राजनीित, सां+कृ ितक, सािहियक िवषय* का !मख ु ता के
साथ !कािशत िकया। तेलगु ु सािहय को उ/नित के िशखर तक पहचँ ाने म: पि7काओ ं के साथ-
साथ समीFा आिद का भी िवशेष योगदान है।
समीDा- तेलगु ु आलोचना के साथ ही समीFा शाS म: सािहय के सम+त अग* पर िवस्◌ृत
`िPकोण के साथ िवeेषण िकया गया। !मख ु सीFक* म: हf- कोराड राकृ PणŠया (सार+वत
Tयासमल ु ु’) काशीभट्ल सुZबŠया शाSी (सािहय कला), मिु तमािण यम नरिसंहा राव (सािहय
Tयासम)ु , िशOा रामकृ PणशाSी (िवमश( Tयासमल ु )ु , राBलपिBल अनंत कृ Pण शमा( (सार+व
तोप/या समल ु ु), जो/नल गडु सयनारायण मिू त( (सािहय िवमश(न), वेमHू र व:कटरामनाथम
(सौ/दय( िनबधं , भाषण , आलोचना आिद क संतिु लत `िO से Tयाया क है।
भारतीय एवं यरू ोपीय शाS* के तुलनामक अ=ययन से !भािवत होकर कई लेखक* ने
समीFा क नयी `िO अपनाई। इनम: !मख ु हf- परु ाणम् सूHरशाSी। इनक ‘नाट्योपलम’ु , ‘9पक
रसालम’, ‘िवमशा(क पHरजातमु’ आिद महवपूण( तल ु नामक समीFा कृ ित है। बरु ा( शैश
िगरHरराव का ‘िवमशा(दश(मु’ 1971 ई., गोर पाट व:क सुZबŠया का ‘अFररािभषेकमु’ (1952 ई.)
महु 5मद कािसम खं का ‘कथािनका रचना’ श*िठ कृ Pणमूित( का ‘कथलु रायटमेला’, आिद
कहानी िवधा से स5बि/धत समीFा कृ ित है। तेलुगु के वष( भर म: !कािशत ‘सािहय
समालोचना’ को |ीवा+तव [ारा !कािशत िकया जाता है।
सन् 1919 म: कोराड रामकृ PणŠया का ‘आ/‡ भारत किवता िवमश(नमु’ म: तेलुगु के किव7य
(न/नय-‘ित कना, एर( ना) पर आधाHरत उतम समीIय कृ ित है। इनक ‘कािलदासिु न कला
!ितमल’ु , दिFण देश सार+वतमल ु ’ु (1949 ई..) भी महवपणू ( कृ ित है, जो तेलगु ु समीFा शाS
क शोभा बढाते़ हf।

7.7 तेलग
ु ु नबंध का )वकास-
िनबधं - तेलगु ु िनबधं का आर5भ कुछ लेखक* ने 19 वM शती से शु9 िकया। आर5भ म: इन
िनबंध तथा लेख* का उेय िकसी अ/य लेखक क कृ ित क आलोचना करना रहा। इन
आलोचनामक िनब/ध* के साथ ही िनब/ध जलेखन क शु9आत होती है। !ायः सीमारिहत
बड़े-बड़े लेख जाते थे। ऐसी ि+थित म: लेखक िनजी िवषय* तक पहचँ कर मया(दाहीन भी हो
जाता है।

उतराखड मु त िवविवालय 107


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िनबधं का दसू रा पड़ाव समाज -सधु ार जैसे िवषय* को लेकर िलखे जाने वाले िनबंध
थे। इन िनब/ध* म: ल5बे-चौड़े वा य, उपमा , 9पक, `Oातं आिद क !चरु ता रहती थी। समाज
!धान वा य िव[ता क पहचान माने जाते थे। !ायः िव[ान* के वाद-िववादोपरांत िनबंध सज(ना
होती थी। तेलुगु क अ/य ग िवधाओ ं क अपेFा िनबधं िवषय क !गित मंथर गित से हो रही
थी। प7-पि7काओ ं म: !कािशत कुछ िनबधं * का सिं F\ पHरचय िन5नािं कत हf
‘िहतसूिचनी’ को तेलगु ु का !थम िनबधं माना जाता है। +वािमनेिन मGु ुनरिसंह नायडु ु के
इस िनबधं संकलन को उनके प7ु ने सन् 1962 म: !कािशत कराया। इसम: लेखक ने जन- भाषा
म:, िववरणामक शैली के साथ उपेदश !धान िनबधं िलखे है। नरिसंह नायडु ु के बाद सीरे श
िलंगम पंतल ु ु ने समाज सुधार का उेय लेकर इस िवधा को आगे बढ़ाया। िनबंध* का 9प
ि+थर करने के साथ ही उसक मया(दा +थािपत करने का गु9भार वीरे शिलंगम ने उठाया। इ/ह*ने
िSय* से स5बि/धत लेख* को ‘-सती िहत बोिधनी’ नाम से !कािशत िकया। तेलगु ु के कुछ
!िस िनबधं कार* का उBलेख िन5मनतः िकया गया है- िपंगिल लIमीका/तम् (गौतमी
Tयासलु’- 1952 ई..) गु9जाड़ा अnपाराव (‘Tयास चि/0का’- 1953 ई.0), ित9पित व:कट
किव[य (कथलु गाथलु ‘ 1949 ई.) आिद। िनबंध िवधा के Fे7 म: तेलुगु सािहय आिधक
िवकास नहM कर पाया है। िकंतु प7-पि7काओ ं म: छपने वाले िनयिमत लेख िनबंध क कमी का
आभास नपहM होने देते। धीरे -धीरे इस िवधा क ओर िनबंधकार* क 9िच बढ़ती जा रही है,
अतः अिधक िनबधं लेखन क अपेFा क जा सकती है।
भाषा-िवdान, 1याकरण, कोश - तेलगु ु ग के िवकास म: भाषा-िवRान, Tयाकरण आिद के
िनयमन ने भी महवपणू ( योग िदया। ‘अमुि0त 4थं िच/तामिण’ म: नाटक* क भाषा, िलिप,
शZद* के !योग आिद पर िवचार िकया जाता था। शZद[य िवचार, रे फ [य आिद िवषय* को
लेकर वािववाल वासदु ेव शाSी ने कई लेख िलखे (सं+कृ त, अ4ं जे ी, तेलगु ु भाषा के Rाता
वासदु ेव शाSी तेलगु ु के उव तथा िवकास पर !काश डाला। टी0 एम0 शेश िगHर शाSी का
‘अा(न+ु वार तवमु’ (1893 ई.), ‘आ/‡ शZदतवमु’ आिद म: अनु+वार तथा 0िवड़ कुल क
भाषाओ ं का िवRान स5मत िववेचन !+तुत िकया गया है।)
तेलगु ु कोश िनमा(ण के Fे7 म: चाBस( िफिलप qाउन का योगदान अिव+मरणीय है।
1853 ई. इ/ह*ने तेलुगु Tयाकरण िलखा। तेलगु ु और इतालवी भाषा का तल ु नामक Tयाकरण
उBलेखनीय है। qाउन का ‘इिं rलश तेलगु ु िनघंठु’ (1845 ई.), तेलगु ु अं4जे ी कोश ‘महवपूण( है।
1955 ई. म: िवदेश वापस जाकर भी कोश िनमा(ण काय( जारी रखा। ‘‘ए िड शनी आफ दी
िम +ड डायले ट्स एड फारे न वडस( यhू य इन तेलगु ु’’ म: फारसी, तेलगु ,ु अं4जे ी, बोल चाल
आिद शZद: को +थान िदया। इ/ह*ने /यायालय से स5बि/धत छोटे-छोटे कोश का भी िनमा(ण
िकया। परव+तु िच/नय सHू र का बाल-Tयाकरण’ (1855 ई.) तथा बहनपिBल सीतारामाचायल (ु ु
का ‘!ौढ़ Tयाकरण;, ि7िलंग लFण शेश मु’ (1885 ई.) शZद रनाकर’ (1885) उBलेखनीय
Tयाकरण 4/थ है।

उतराखड मु त िवविवालय 108


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
वीरे शिलंगम पंततल ु ु ने शZद* क सूची मल
ू अं4जी शZद के साथ अपनी पु+तक* के अंत म:
िदया है। धीरे -धीरे अनेक वैRािनक िवषय* पर 4थं िलख जोने लगे। 1821 ई. म: ‘उपय_ ु 4थं
करण सथा’ का !काशन वैRािनक िवषय* क जानकारी के िलए हआ। वीरे शंिलगम पंतुलु का
‘पदाथ( िवRान शाS’ (सन् 1878), शरीरशाS’ (सन् 1888 ई.‘ देहारोrय धम( बोिधनी’ (1889
ई.)‘hयोितष शाS सं4ह’ (1895) ‘ज/तु +वभाव चHर7’ (1896 ई.) आिद लेखक के पHरPकृ त
वैRािनक `िOकोण का पHरचायक है।
र: टाल व:कट सुZबाराव ने ‘पFी शाS’ 4/थ के [ारा जीविवRान के Fे7 म: उBलेखनीय
काय( िकया। पी.सयू (नारायण का ‘कृ िष चि/0का’ (1894 ई.0) धनकोिट राजू का ‘आरोrय
शाS’ (1889 ई.) आिद के अितHर_ िशलालेख, ताŽ-प7, म0ु ािद का शोध एवं संकलन और
उनका !काशन िकया गया। िजसके आधार पर कई रचनाय: हई।

ु -ु सा&हय म0 चल1च, गीत-लेखन


7.8 तेलग
rयारहवM शती म: न/नया के माग(दशे ी पर5परा के साथ तेलगु ु को सं+कृ त सािहय के
समान महव िमला। इसके बाद तेलगु ु सािहय रचना ने िविवध आयाम* को !ा\ िकया। इनम:
!मख ु हf- महाभारत-यगु , परु ाण-यगु , सामगान -यगु , गंधव(-यगु , आयान-यगु , ‡वु गान-यगु ,
सभा सा!दान-यगु , हHरकथा युग, देश-भाषा, संकत(न-यगु , यFगान-यगु , धातु कBपना, पHरणाम
यगु आिद।
चलिच] गीत का िवकास - सन् 1931 म: इपं ीHरयल कंपनी [ारा एच0एम. रे ड्डी के िनदशन
म: पहली ‘टाँक चलिच7 ‘भ_ !•ाद’ का िनमा(ण हआ। डॉ. पैिडपाला सयनारायण रे ड्डी के
‘तेलगु ु चिलिच7 गीत’ को सव(!थम िच7गीत कृ ित मानी जाती है। तेलगु ु चलिचगीत क
िवकास या7ा भि_ से श9 ु होकर सामािजक सम+याओ ं तक िव+तार पाता है। तेलुगु का !थम
सामािजक चलिच7 गीत है- गडू विBल रामq‰ का ‘मालपBली’ (सन् 1938)। समु0ाला
राधवाचारी क ‘गृहलIमी’, कोसराजु राघवŠया चौधरी का ‘रै तिु बड्डा’, िपगं िल नागे/0राव का
‘भBलेपेिBल’ आिद सफल चलिच7 है।
सन् 1931-37 के चलिच7 रचना काल को ‘अ9णोदय-‘यगु ’ कहा जाता है। इस काल
म: ‘रामदास’ु , ‘सािव7ी’ सीता कBयाणम’ संपणू ( रामायणम’ आिद चलिच7* म: कत(न सािहय
का उपयोग िकया गया था। सन् 1938-50 का काल ‘भावोदय’ काल पणू (तः सामािजक
कुरीितय* को दरू करने वाले चलिच7* से भरा हआ है। देश -भि_ के गीत* क चलिच7* म:
उपयोग िकया जाने लगा था। देश-भि_ के गीत* को चलिच7* म: उपयोग िकय जाने लगा था।
|ी |ी का ‘महा!+थानम’ गीत, ‘कालचkम’ िच7 गीत के नाम से !+ततु हआ। |ी री अपने
‘पाडवोयी भारतीयड़ु ा म: ‘!ेमय जनन मरण लीला को !थम चलिच7 गीत मानते हf। छठे दशक
म: चलिच7 गीत को काTय-गौरव िमला। देवल-ु पिBल कृ PणशाSी के ‘मBले<री;’ िच7गीत
जन-जन के िज‹ा और ‹दय म: बस गयी थी। ‘िनदlषी’ (|ी |ी), ‘बीदल पाट्लु’ (आ90ा),

उतराखड मु त िवविवालय 109


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
‘आकाशरजु’ (िव<नाथ सयनारायण) ‘पाताल भैरवी’ (िपगिल) आिद गीत जनता के िजžा पर
राग छे ड़ते हf।
सन् 1961-70 के गीत सािहय ‘रसोदय’ के नाम से जाने जाते हf। य*िक इस काल म:
िच7 गीत अयंत सरस और संुदर 9प म: िलखे गये। कोसराजु के लोक पद* ने जनता म: खूब धमू
मचाई। डॉ. सी0 नारायण रे ड्डी ने दाशरची व गल ु ेबकावली के कथा‘ वाrदान’ पर िच7गीत
िलखा तथा |ी |ी का ‘वेलगु ु नीडगु’ चलिच7 के िलए िलखे गीत खबू पस/द िकए गये।
देबलु पिBल [ारा ‘सख ु दःु खात’ु चलिच7 के िलए ‘इिद वे/नेल वेलयनी’ गती भावक ु ता म:
रिसक* को सराबोर कर देता है। िच7गीत का ‘च0ं ोदय यगु ’ (सन् 1971-78) !ेम मय गीत* के
िलए जाना जात है। आ90ा का ‘मु यमंता पसपु ु मख ु मंत छाया’, ‘दसराबBु नोडु’, ‘!ेमनगर’
आिद चलिच7* के िलए िलखा गया िच7गती मानवीय आवेग* क सश_ अिभTयि_ !तीत
होती है। देवल ु पिBल कृ PणशाSी [ारा ‘राजे<री िवलास काफ लब’ हेतु ‘ना दाHर एड़ाHर ना
पे9 िभखारी। िच7गीत िलखा गया। |ी |ी के ‘अBलHू र सीताराम राजु’ चलिच7 गीत के िलए
राPQीय परु +कार िमला। 4ामीण सsदय( को अपने चलिच7 म: +थान देने वाले मBलेमाला का
‘नायडु ु बाबा गीत जनता ने खूब पसंद िकया। जालािअ ने ‘!ाण खीद’ु , ‘पBलेसीमा’ गीत िलखे
,जो जनता म: खूब लोकि!य हए। राज|ी का ‘बBु ले5मा बुBलोह’, ‘िशवरंजनी। चलिच7 के
िलए िलख: गेय गीत तथा गोपाल कृ Pण [ारा ‘ओ सीता कथा’ चलिच7 के िलये िलखे गीत,
वेदHू र स/ु दर राममिू त( के [ारा ‘ िसHरिसHरमTु वा’ के गीत िलखे गये। इस काल म: गीत* का
दीवानापन इतना बढ़ गया िक सािहियकता ढूँढे़ से भी नहM िमलती थी। ऐसे म: बालसुq‰यम
के गीतापालपन से वैिव=य का !वेश हआ िजससे यह काल चलिच7 यगु का +वण(काल बन
गया।
डॉ. पेिडपाला ने सन् 1979-91 तक के चलिच7 काल को ‘अ+तTय+त काल’ कहा
है। मादाला रंगाराव [ारा kांितकारी गीत* का दौर श9 ु हआ। (िवnलवशख ं म,’ नवोदयम,
!जाशि_’, एर( मBलेत’ु नवोदयम, !जाशि_)। इन kांितकारी भाव* से mOाचार तथा कुिटल
राजनीित के िव9 िव0ोह का +वर फूका गया। िसिख/नेला सीताराम शाSी, वेटूHर, सािहित,
वे/नेलकंिट, जो/निव/तनु ला, भवु नच/ं 0 आिद ने सरु !धान गीत रचना क। चलिच7 गीत म:
पHरवत(न का दौर सन 1992 से सामािजक !योजन क ओर मुड़ गयां इस दौर के !मख ु चल‘-
िच7 गीतकार है- रिविकरण, भा+कर भट्ला रिवकुमार, चंQबोस, आिद इनके गीत* म:
सामािजक, सां+कृ ितक राजनीितक तथा आिथ(क अंश* से पHरपणू ( िवषय* क !धानता रही।
समकालीन समाज म: Tया\ असमानताओ ं क गीतकार* ने अपने गीत* म: जीव/ता के साथ
+थान िदया।

7.9 तेलग
ु ु का अवधान सा&हय-
सािहय के Fे7 म: ‘गृह किवय*’ क संया हजार है तो ‘सभा-किव’ सौ-पचास से
अिधक नहM िमलते। अवधान िवधा तेलगु ु तथा सं+कृ त के अितHर_ अ/य भारतीय भाषाओ ं म:

उतराखड मु त िवविवालय 110


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
न के बराबर ही है। अवधान का अथ( है- ‘िचत क िवशेष एका4ता’ अथवा ‘िच?त को एक ही
समय म: अनेक अंश* पर के ि/0त करना’। गृह किव, घर म: बैठकर सोच-समझकर 4थं कोशािद
क सहायता से जब सािहय सज(ना करे तो वह सामा/य काTय सज(क होते हf। िकंतु िकसी सभा
म: ‘आश9 ु प’ म: छंदोब काTय बोलने वाले किव जब !o कता(ओ ं के नाम !o सिहत बताये
तथा कई िदन* बाद भी +वयं के प को अचानक पछ ू े जाने पर बताये तो वे ‘अवधानी होते हf।
आ/‡ !देश म: ‘अवधान’िवधा 13 वM , 14वM शती से ही !चिलत है। अतन
अवधानी ित9पित‘-व:कट किवय* [ारा इस िवधा को चार चाँद लगाये गये हf। अवधान म: रंजन
ही नहM अिपतु उŸोधन क भी Fमता है। 1285 ई. से तेलगु ु अवधान के अि+तव का पता
चला है । ज कन तात पे दैŠया ने (सन् 1285 म:) अपनी कृ ित ‘िवkमाक( चHर7 म: +वयं को
‘अनेकावधान* म: दF कहा था। सन् 1350 ई. के !िस नाचन सोमना ‘अOावधान’ म:
िसह+त थे। 15 वM शती के रामराजभूषण (भˆमिू त(’) ने +वयं को ‘सकल भाषा िवशेष
िन9पमानावधान शारदामिू त(’ कहा था। गणपरपु व:कट किव (1620-1660) 20 !कार के
‘अवधान कायg’ म: िनपुण थे। अवधान िवधा के चार पड़ाव है। आरंभ (सन् 1050 से 1850
तक), िवकास (1850 से 1950 ई.) ि+थर यगु (1950 से 1985तक) उथान यगु (1985 से
अब तक) आिद । अवधान मु यतः 21 !कार के सािहियक तथा चार !कार के सािहयेहर
अवधान है। तथा पाँच धारणावधान, तेरह सांकेितक संबधं ी अवधान, चार वैRािनक, पाँच कला
संबंधी अवधान है, इन अवधान* को िन5नतः िवeेिषत िकया जा सकता है-
क- सािहियक अवधान (21)
1. अOावधान
2. दशावधान
3. अOदशावधान
4. शतावधान?
5. सहSावधान
6. ि[सहSावधान
7. पच
ं सहSावधान
8. नवरस नवाधान
9. अलंकार अOावधान
10. सािहय !िkयावधान
11. वचन किवता !धान
12. घिटका शत 4थं िनमा(ण
13. समय लेिखनी
14. शतलेिखनी प संधान िनमा(ण
15. चतिु व(ध किवव िवावधान
16. अOभाषा Tय+ताFरावधान

उतराखड मु त िवविवालय 111


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
17. हा+यावधान
18. नवघटं ा लेखन
19. काTयावधान
20. अFरावधान
21. धारणावधान आिद।
ख- सािहयेतर अवधान (04)-
1. धारण स5ब/धी अवधान
2. सांकेितक स5ब/धी अवधान
3. शाS स5ब/धी अवधान
4. कला स5ब/धी अवधान
ग- धारण संब/धी अवधान (05)-
1. रामायणावधान
2. भगवŒीतावधान
3. शतकसशावधान
4. सहSनामावधान
5. शZदावधान
घ- सांकेितक स5ब/धी अवधान (13)-
1. ने7ावधान
2. पPु पावधान
3. शPु कावधान
4. तृणावधान
5. गमनावधान
6. खड्गावधान
7. भरकसावधान
ू्
8. भजु ावधान
9. ह+तावधान
10. अगं Oु ावधान
11. घटं ावधान
12. चkावधान
13. अF+मुिOकावधान
ङ- वैRािनक अवधान (04)-
1. गिणतावधान
2. hयोितषावधान
3. वैRाOावधान

उतराखड मु त िवविवालय 112


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
4. अFरगिणतावधान
च- कला स5ब/धी अवधान (05)-
1. नाट्यावधान
2. संगीताOावधान
3. िच7कलाOावधान
4. =व/यनक ु रणावधान
5. चतरु ं गावधान आिद।
अवधान Tयि_ िवशेष क बौिक !ितभा क होती है। !ाचीन अOावधानी िन5न आठ
!िkयाओ ं से गजु रते थे।
1. Tय+ताFरी - प के कुछ वणg के Tय+त 9प म: टुकडे-़ टुकडे़ करने के बाद उनको
kम म: रखकर अवपधानी को बताने के िलए कहा जाता है।
2. गणना- अवधानी क पीठ पर सपु ारी 9क-9क कर कई बार मारते हf। और अंत म:
उनक संया बताने को कहा जाता है।
3. आरोहण-अवरोहण- प को अरोहण या अवरोहण म: बताना पडता है।
4. लेखन-कुशलता – !oकता(ओ ं क माँग के अनुसार प को िलखना पड़ता था।
5. अ4 प 4हणिभि_- िकसी भी काTय म: को प कहने पर तरु ं त पूव( प को अवधानी
बताता है।
6. अनवलोिकत शाHरकािभलेखन रीित- कलम िहलने - डुलने क रीित देखकर पढ़ना या
+पश( रे खाओ ं के अनु9प अFर या पद को बताना पड़ता हf ।
7. सम+या- िकसी सम+या से स5बि/धत !o पछ ू ने उतर देना पड़ता है।
8. समदु 4नेिFत चतरु ं ग बलके िल- आंखे बदं करके एक से अिधक Tयि_य* शतरंज
खेलना पड़ता है।
वत(मान समय म: अवधानी को इन आठ अंश* से बढ़ना पड़ता है।
1. किवता िनमा(ण
2. Tय+ताFरी
3. िनषेधाFरी
4. सम+यपिू त(
5. चतरु ं ग िवनोद
6. ताश
7. वाता(लाप
8. पPु प गणन।
वत(मान तेलुगु अवधान म: 50 के लगभग अंश शािमल है। अवधानी को कई बार िफBम* के
शबद अथवा अं4जे ी के शZद देकर उनसे प रचना करवाया जाता है। अवधानी को शाSाथ(
करने हेतु िविवध िवषय* पर पणू ( अिधकार रचना पड़ता है। इस !कार अवधान म: सािहयेक एवं

उतराखड मु त िवविवालय 113


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
सािहयेकर अंश पणू (तः िवामान रहते हf। |ी सी.वी0 सZु ब/ना !िस अOावधानी तथा
शतावधानी थे। सहSावधानी को हजार* !oकता( के हजार !o* का हजार प िनमा(ण पकरना
पड़ता है। |ीमती एम0 के !भावती एवं कुलशेखराचाय( !िस अOावधानी तथा शतावधानी थे।
सहSावधानी को हजान* !oकता( के हजार !o* का हजार प िनमा(ण करना पड़ता है। |ीमती
एम. के !भावती एवं कुलशेखराचाय( !िस अOावपधानी है। नाग फिण शमा(, गHरकपािट
नरिसंहराव, मेडसािन मोहन आिद सहSावधानी के 9प म: !िस हf इस !कार तेलुगु सािहय
अपनी इस मौिलक िवधा पर आममrु ध ह* सकता है। य*िक अ/य भाषाओ ं म: यह परंपरा न के
बराबर है।

7.10 सारांश
एम0एच0एल0 204 क सातवM इकाई तेलगु ु ग सािहय पर के ि/0त है । इस इकाई का आपन:
अ=ययन कर िलया है । इस इकाई के अ=ययन के पचात् आपने जाना िक –
• तेलगु ु कहानी भारतीय सािहय क समृ कहानी पर5परा को अपने म: समेटे हये है ।
भाव पF हो या िवचार पF सभी `िOय* से तेलगु ु कहानी समृ है ।
• तेलगु ु उप/यास के िविवध पF है । आर5भ यगु , िवकास यगु , मनोवैRािनक यगु से होते
हये यह समकालीन यगु तक क या7ा कर चुका है । कुल िमलाकर तेलगु ु उप/यास क
पर5परा अय/त समृ है ।
• तेलगु ु नाटक एवं एकांक सािहय भी पया(nत समृ है । अपनी सामािजक चेतना और
रंगमचं ीय िवधान के कारण तेलगु ु नाटक पया(nत समृ है ।
• तेलगु ु सािहय के िवकास म: प7 पि7काओ ं का िविशPट योगदान रहा है । इस `िO से
तेलगु ु क प7 पि7काय: अपना िविशPट +थान रखती है ।

7.11 श3दावल4

• अ4गय - सबसे आगे रहने वाला


• अिनव(चनीय - िजसक Tयाया न क जा सके
• शोश ण – अयाचार
• िव0ोह – 9िढय* से मिु _ का !यास
• Fे7ीयता – अपने Fे7 के !ित िवशेष राग
• वैवीकरण – िच/तन क `िO का वैि<क स/दभ(

उतराखड मु त िवविवालय 114


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204

7.12 सदभ थ सच


ू ी
तेलगु ु सािहय का इितहास – !ो. रंजनम, के लIमी
सह वषg का तेलगु ु सािहय - स5पादक – आचाय( लIमी!साद, याल(गड्डा

7.13 नबधामक न


1. तेलगु ु कहानी क िवकास पर5परा को रे खांिकत किजये ।
2. तेलगु ु नाटक सािहय क िवशेष ताओ ं का पHरचय दीिजये ।
3. तेलगु ु क !मख
ु प7 पि7काओ ं का िववरण दीिजये ।

उतराखड मु त िवविवालय 115


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204

इकाई 8 कुमाउनी लोकगीत: इतहास, वप एवं


सा ह य
इकाई क परे खा
8.1 तावना
8.2 उेय
8.3 कुमाउनी लोकगीत- का इितहास एवं वप
8.3.1 कुमाउनी लोकगीत : वप िववेचन
8.3.2 कुमाउनी लोकगीत- का वगFकरण
8.4 कुमाउनी लोकगीत- का भावपEीय वैिशM्य
8.4.1 कुमाउनी लोकगीत- क िवशेष ताएँ
8.4.2.कुमाउनी लोकगीत- का मह#व
8.5 कुमाउनी लोकगीत- का संिEN प रचय
8.6 साराश ं
8.7 श(दावली
8.8 अ+यास ,- के उ.र
8.9 संदभ& /ंथ सचू ी
8.10 सहायक /ंथ सूची
8.11 िनबंधामक ,

उतराखड मु त िवविवालय 116


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
8.1 तावना
िपछली इकाइ( म: आप ने कुमाउनी लोकसािहय के इितहास +व9प का अ=ययन िकया
है। !+ततु इकाई कुमाउनी लोकसािहय क अनठू ी िवधा लोकगीत पर आधाHरत है।
लोकसािहय का पणू ( Rान रखने वाले Tयि_ के िलए लोकगीत* को समझना आसान होगा,
य*िक लोकसािहय क एक िवधा लोकगीत भी है। लोकगीत आरंिभक काल से लोक क
गहन अनभु िू त को !कट करते रहै हf। लोकमानस क जमीन से जड़ु ी यथाथ(ता +वतः लोकगीत*
म: !+फुिटत हई है। इस इकाई म: हम लोकगीत* के दीघ(कालीन इितहास पर `िO डाल:गे तथा
इसके +व9प का िववेचन करते हए इसके मह?वपणू ( पF* को समझ सक: गे। कुमाउनी लोकगीत*
के मह?व को समझकर उनक सामािजक !ासिं गकता का Rान !ा\ कर पाएगं े। कुमाउनी
लोकगीत* के वगUकरण से अलग अलग !कार के लोकगीत* का पHरचय !ा\ हो सके गा। इकाई
के उKराध( म: कुमाउनी लोकगीत* का संिF\ पHरचय !+ततु िकया गया है, िजसके मा=यम से
हम िविवध कुमाउनी लोकगीत* म: िनिहत अनभु िू त एवं अिभTयि_ िवधान सिहत +व9प को
भिल भाँित जान सक: गे।
8.2 उेय
!+ततु इकाई के अ=ययन के बाद आप -
• कुमाउनी लोकगीत* का !ादभु ा(व एवं इितहास को समझ सक: गे ।
• आप बता पाय:गे िक कुमाउनी लोकगीत आरंभ से लोगो क जबु ान पर िकस !कार
अवि+थत रहै हf ।
• कुमाउनी लोकगीत* के वगUकरण से आपको कुमाउनी सािहय का सम4 बोध हो
सके गा ।
• कुमाउनी रचनाकार* के अनभु ूत Rान का आपको Rान !ा\ हो सके गा ।
• आप जान सके गे िक िकस तरह लोकगीत हमारे लोकजीवन क अपवू ( व+तु है ।
• कुमाउनी लोकगीत* क गेयता से आप एक गूढ़ अि+तव का भान कर सक: गे।
• इन लोकगीत* के सामािजक पF से उšािटत होने वाली समरस सरल `िO का
अनश ु ीलन कर पाएँगे ।

8.3 कुमाउनी लोकगीत का इतहास एवं व6प


कुमाऊँ म: लोकगीत !ारंभ से !चिलत रहै हf। कुछ लोकगीत युगो से चली आ रही
परंपरा को !दिश(त करते हf तथा काला/तर म: पHरिनि{त सािहय के िवकास के साथ ही
लोकगीत* का अिभनव िनमा(ण िकया जाने लगा। िलिखत सािहय के इितहास म: कुमाउनी
लोकगीत* के रचियता Rात हf। !ारंभ से चले आ रहै लोकगीत लोकमानस का +व}छंद !वाह हf

उतराखड मु त िवविवालय 117


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!ायः इनके िनमा(ता अRात रहते हf। आपने िजस इकाई का पवू ( म: अ=ययन िकया है उसम:
कुमाउनी सािहय के उव एवं िवकास के अ/तग(त Rात रचनाकार* क रचनाओ ं का पHरचय
िदया गया है। यही लोकगीत* का इितहास भी है। उ/हM िवकास के चरण* म: लोकगीत* क
ऐितहािसक `िO हम: !ा\ होती है। कुमाऊँ म: लोकगीत* का !चलन तो आरंिभक काल से रहा
है। िलिखत सािहय के 9प म: उपलZध लोकगीत* को हम ऐितहािसक 9प से +वीकार कर: गे, डॉ
ि7लोचन पाडे ने कुमाउनी िलिखत सािहय को िन5निलिखत कालkमानसु ार िवभािजत िकया
है-
(1) 19वM सदी का सािहय
(2) 20वM शताZदी के पवू ा(( का सािहय
(3) 20वM शताZदी के उKरा( का सािहय
हम उपय(_ ु काल िवभाजन को लोकगीत* के kम म: मान सकते हf य*िक उपय(_ ु
काल िवभाजन म: अ+सी फसदी लोकगीत* वाली साम4ी हम: !ा\ होती है। गमु ानी किव को
सबसे !ाचीनतम किव माना जाता है। इनका परु ाना नाम लोकरन पंत था, इ/होन: लगभग 18
4थं िलखे िजनम: ‘रामनाम पंच पंचािशका ,गंगाशतक, कृ PणाOक, नीितशतक !मख ु हf, इनका
काल सन् 1790 से 1846 ई.तक माना जाता है। बैर और भगनौल िवधा के कुशल !णेता कृ Pणा
पाडे (सन् 1800-1850) का ज/म अBमोड़ा के पािटया नामक 4ाम म: हआ था, Tयव+था क
बदहाली का वण(न उनक किवताओ ं का मुय िवषय था। इनक !मुख काTय रचना ’कृ Pणा
पाडे को किलयुग‘ है।
नयनसख ु पाडे अBमोड़ा के िपलखा नामक 4ाम म: ज/मे थे। पहाड़ी Sी क मनोदशा
पर इ/ह*ने कई किवताएं िलखी। 19वM शताZदी के अवसान काल म: गौरीदK पाडे का !ादभु ा(व
हआ। इनका ज/म भी अBमोड़ा के बBदीगाड नामक +थान म: हआ था। इनक रचना गीदड़
िसयार के गीत से !िस हf। इसके अितHर_ इस काल के किवय* म: hवालादK जोशी, लीलाधर
जोशी, िच/तामिण जोशी का नाम उBलेखनीय है। बीसवM शताZदी के पूवा(( के किवय* ने प
रचनाओ ं के िनमा(ण म: अभतू पवू ( योगदान िदया। िशवदK सती इस यगु के !ितिनिध किव हf।
इनका ज/म 1870 ई. म: फBदाकोट रानीखेत म: हआ था। इनक !मख ु रचनाओ ं के नाम हf-
बिु !वेश, िम7 िवनोद, गोपीगीत, नेपाली भाषा के गीत, गोरखाली गीत, भाबर के गीत।
गौरीदK पाडे गौदा( (सन् 1872-1939) का ज/म अBमोड़ा के पािटया 4ाम म: हआ था। इनक
रचनाओ ं म: गाधं ी दश(न क +पO झलक िमलती है। इनक रचना गौरी गटु का नाम से !िस है।
िशरोमिण पाठक (सन् 1890-1955) का ज/म +थान शीतलाखेत है। इनके [ारा झौड़े ,चांचरी
तथा भगनौल िलखे गए। इसके अितHर_ इस काल के किवय* म: यामाचरण दK पंत, रामदK
पतं , च/0लाल वमा( चौधरी ,जीवनच/0 जोशी, तारादK पाडे, जय/ती देवी पतं , पाव(ती उ!ेती,
दगु ा(दK पाडे, दीनानाथ पंत, तथा लIमी देवी के नाम !मख
ु है।
+वतं7ता के बाद अथा(त 20वM शताZदी के उKरा( म: सामािजक जीवन के यथाथ( से
जड़ु ी चीज: कुमाउनी लोकगीत* के मा=यम से !कट होने लगी। भाषा भी अपने पHरPकार तथा

उतराखड मु त िवविवालय 118


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
पHरमाज(न क तरफ अ4सर हई। +वतं7ता आंदोलन के बाद िलखी गई कुमाउनी किवताओ ं म:
वैयि_क चेतना के अितHर_ सामािजक सधु ार के +वर अिधक मख ु Hरत हए। इस काल के !मख ु
किवय* म: चा9च/0 पाडे !थम किव माने जाते हf। इनका ज/म सन् 1923 ई. को हआ। qजे/0
लाल साह का नाम भी 20वM शताZदी के उKराध( के किवय* म: आदर के साथ िलया जाता है।
इनक रचनाओ ं म: लोकजीवन क मधरु तम छिव िदखाई देती है। कुमाउनी रामलीला को गेयपणू (
ढंग से इ/होन: िलखा। इस काल को अतन तक माना जाता है। शेर िसंह िबO ‘अनपढ़ इस समय
के !यात रचनाधमU रहै। इनक काTय !ितभा लोग* के मन म: नए उसाहपणू ( +वर जा4त करती
है। शेरदा अनपढ़ क !मख ु रचनाएं , मोHर लिट पिट, जांिठक घडु ु र, हसणै बहार हf। बधं ीधर
पाठक िजRासु का ज/म सन् 1934 को हआ। ये एक कुशल आकाशवाणी के कलाकार थे।
इनक कुमाउनी रचना ‘िससsण’ यगु ीन पHरि+थितय* का जीता जागता उदाहरण है। इसके
अितHर_ देवक महरा,गोपाल दK भˆ ,िकसन िसंह िबO, कयरू ी, रतन िसंह िकरमोिलया, देव
िसंह पोखHरया, शेर िसंह िबO, िदवा भˆ, बालम िसंह, जनोटी, ि7भुवन िगरी, बहादरु बोरा,
|ीबधं ु, दीपक काकU एम0डी0अडोला, दामोदर जोशी, देवांशु, िविपन जोशी ,याम िसंह
कुटौला, देवकनंदन काडपाल ने 20वM शताZदी के उKराध( म: पHरिनि{त कुमाउनी लोकगीत*
का !णयन िकया।
8.3.1 कुमाउनी लोकगीतः वप िववेचन
लोकगीत शZद का िनमा(ण लोक और गीत शZद* से िमलकर हआ है। लोकमानस क तरंगाियत
लयब अिभTयि_ को लोकगीत कहा जाता हf। लोक जीवन म: Tयि_ अनेक उतार-चढ़ाव* का
सामना करता है। जीवन जीने क यही संघष(पणू ( अव+था म: Tयि_ का िववके या मानस उसे कुछ
रचने के िलए !ेHरत करता है। अनभु िू तय* को Tयि_ [ारा शZद* वा य* के 9प म: पाHरभािषत
करने से लोकगीत* का िनमा(ण हआ है। डॉ. देविसंह पोखHरया ने लोकगीत* के संबंध म: अपना
मत इस !कार Tय_ िकया है- ‘लोकमानस क सख ु दखु ामक अनुभिू त ही अनपढ़ गेय और
मौिखक 9प म: लोकगीत के 9प म: फूट पड़ती है। सािहियक `िO से काTयामक गणु * क
अिभजायता के अभाव म: भी इनका अपना अलग ही नैसिग(क सौ/दय( होता है। ये लोकजीवन
क धरती से +वतः +फूत( जलधार क तरह होते हf। इनम: लोकमानस का आिदम और जातीय
संगीत सि/निहत रहता है। लोक जीवन के िविवध िkयाकलाप* म: रसR रंजन करने वाली
अिभवृिK को लोकगीत माना जा सकता है।
कुमाउनी लोकगीत* के िनमा(ण के पीछे यहां क !कृ ित क सक ु ु मारता तथा िनछल
जनजीवन का बहत बड़ा हाथ है। अपनी माटी, अपने लोग तथा अपनी सं+कृ ित के संवाही सुर*
ने लोकगीत* क समिO रची है। हमारे कुमाउनी आिदकालीन आशु किव अपने अ/तम(न क
िवचाराधारा को बड़ी लयामक अिभTयि_ के साथ समाज के समF रखते थे। वही िनछल एवं
गेय पूण( शैली लोकगीत* के सृजन म: उपादेय िस हई। यहाँ हम जान पाएंगे िक लोकगीत* म:
मानवीय संवेदनाओ ं का पटु रहता है तथा ये सरस जीवन शैली के आधारभतू उपागम भी होते हf।
लोकगीत शZद का िनमा(ण लोक और गीत शZद* से िमलकर हआ है। लोकमानस क तरंगाियत

उतराखड मु त िवविवालय 119


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
लयब अिभTयि_ को लोकगीत कहा जाता हf। लोक जीवन म: Tयि_ अनेक उतार-चढ़ाव* का
सामना करता है। जीवन जीने क यही संघष(पणू ( अव+था म: Tयि_ का िववके या मानस उसे कुछ
रचने के िलए !ेHरत करता है। अनभु िू तय* को Tयि_ [ारा शZद* वा य* के 9प म: पाHरभािषत
करने से लोकगीत* का िनमा(ण हआ है। डॉ. देविसंह पोखHरया ने लोकगीत* के संबंध म: अपना
मत इस !कार Tय_ िकया है- ‘लोकमानस क सख ु दख ु ामक अनभु िू त ही अनपढ़ गेय और
मौिखक 9प म: लोकगीत के 9प म: फूट पड़ती है। सािहियक `िO से काTयामक गणु * क
अिभजायता के अभाव म: भी इनका अपना अलग ही नैसिग(क सौ/दय( होता है। ये लोकजीवन
क धरती से +वतः +फूत( जलधार क तरह होते हf। इनम: लोकमानस का आिदम और जातीय
संगीत सि/निहत रहता है।
लोक जीवन के िविवध िkयाकलाप* म: रसR रंजन करने वाली अिभवृिK को लोकगीत
माना जा सकता है। डॉ. सदािशव कृ Pण फड़के ने लोकगीत को पाHरभािषत करते हए िलखा है-
लोकगीत िवादेवी के ¡ान के कृ ि7म फूल नहM, वे मानो अकृ ि7म िनसग( के <ास !<ास है।
सहजानंद म: से उप/न होने वाली |ुित मनोहरव से सहजानंद म: िवलीन हो जाने वाली
आनंदमयी गफ ु ाएं हf।
रामनरे श ि7पाठी के िवचार* को हम यहां समझ सकते है िक 4ामगीत !कृ ित के उŒार हf। इसम:
अलंकार नहM के वल रस है। छंद नहM के वल लय है। लािलBय नहM के वल माधयु ( हf। सभी मनPु य
के Sी प9 ु ष* के म=य म: ‹दय नामक आसन पर बैठ कर !कृ ित गान करती है। !कृ ित के वे ही
गान 4ा5य गीत है।
कुमाउनी लोकगीत* के िनमा(ण के पीछे यहां क !कृ ित क सुकुमारता तथा िनछल
जनजीवन का बहत बड़ा हाथ है। अपनी माटी, अपने लोग तथा अपनी सं+कृ ित के संवाही सुर*
ने लोकगीत* क समिO रची है। हमारे कुमाउनी आिदकालीन आशु किव अपने अ/तम(न क
िवचाराधारा को बड़ी लयामक अिभTयि_ के साथ समाज के समF रखते थे। वही िनछल एवं
गेय पूण( शैली लोकगीत* के सृजन म: उपादेय िस हई। यहाँ हम जान पाएंगे िक लोकगीत* म:
मानवीय संवेदनाओ ं का पटु रहता है तथा ये सरस जीवन शैली के आधारभतू उपागम भी होते हf।
8.3.2 कुमाउनी लोकगीतY का वगGकरण
कुमाउनी लोकगीत* के स5यक अ=ययन के िलए हम उनका वगUकरण कर: गे। पवू ( मे
लोक सािहयकार* [ारा िकए गए वगUकरण को आधार मानकर उनका िवषयव+तुगत भाषायी,
!कृ ित, तथा जाितगत आिद आधार* पर वगUकरण िकया जाना समीचीन !तीत होता है। डा.
पोखHरया ने कुमाउनी लोकगीत* का वगUकरण करते हए िलखा है- ‘वय( िवषय, भाषा Fे7 और
काTय 9प आिद क `िO से लोकगीत* के िन5न आधार हो सकते हf-
(1) िवषयगत आधार (2) Fे7ीय आधार (3) भाषागत आधार (4) काTय 9प गत आधार
(5) जाितगत आधार (6) अव+था भेद (7) िलंगगत आधार (8) उपयोिगता का आधार (9)
!कृ ित भेद

उतराखड मु त िवविवालय 120


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कुमाउनी के आिधकाHरक िव[ान* , िवशेष R* तथा शोधकता(ओ ं ने सामा/यतया िवषयव+तु
स5मत आधार को ही अपनाया है। वय( िवषय को +वीकारते हए हम अ/य िवान* के
वगUकरण को इस !कार समझ पाएंगे-
डॉ. ि7लोचन पाडे का वगUकरण
म_ु क गीत
I. नृय !धान -झोड़ा चांचरी छपेली
II. अनभु ूित !धान- भगनौल तथा /यौली
III. तक( स5मत- बैर
IV. संवाद !धान तथा +फुट
(2) सं+कार !धान
I. अिनवाय(
II. िवशेष
(3) ऋतगु ीत
(4) कृ िषगीत
(5) देवीदेवता yत योहार के गीत
(6) बाल गीत
डा. कृ Pणानंद जोशी ने कुमाउनी लोकगीत* का वगUकरण इस !कार िकया है-
(1) धािम(क गीत
(2) सं+कार गीत
(3) ऋतु गीत
(4) कृ िष संबंधी गीत
(5) मेल* के गीत
(6) पHरसंवादामक गीत
(7) बाल गीत
लोकसािहय तथा कुमाउनी भाषा सािहय के िवान भवानीदK उ!ेती ने िवषय+तगु त आधार
को वगUकरण के िलए उपय_ ु माना है-
(1) सं+कार गीत
(2) +तिु त पजू ा और उसव गीत
(3) ऋतु गीत
(4) जाित िवषयक गीत
(5) Tयवसाय संबधं ी गीत
(6) बाल गीत
(7) म_ ु क गीत

उतराखड मु त िवविवालय 121


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िविभ/न िव[ान* [ारा िकए वगUकरण से +पO होता है िक लगभग सभी िव[ान* ने िवषय को ही
वगUकरण का आधार माना है। यहां हम वगUकरण के िलए िवषयव+तगु त आधार का चयन कर: गे
तथा िविभ/न लोकगीत* क मौिलक !वृिKय* से अवगत हो सक: गे।
धािम(क परु ाण कालीन संदिभ(त लोकगीत- परु ाण काल क कथाओ ं एवं आयान* को आरंिभक
दौर से लोकगीत* के मा=यम से अिभTय_ िकया जाता रहा है। कृ Pणानदं जोशी ने धािम(क गीत*
के िवषय म: िलखा है- इन गीत* म: सव(!थम वे गीत आते हf, िजनक िवषयव+तु पौरािणक
आयान से संबंिधत है। इसी !कार के एक गीत म: विण(त है वह Fण जब सृिOकार ने महाश/ू य
म: हसं का एक जोड़ा !कट िकया और हिं सनी का अंडा िगरकर फूटने से एक खडं से आकाश
बना और दसू रे से धरती।इसी !कार महाभारत काल के कौरव पाडव* क कथा के अश ं
लोकगीत* के मा=यम से !कट िकए जाते रहै हf। रामचHरत मानस म: उिBलिखत |ीरामच/0 जी
कथा का वण(न भी इन गीत* के मा=यम से देखे जा सकते हf।
उदाहरणाथ(
बाटो लागी गया मिु न तपिसन
जै िपरथी राजा को रै छ एक पतू
ितनरा देश वैछ बार िबसी हिलया, बार बीसी बौसीया
रोपन का खेत भगवान कूल टुटी भसम पड़ी गेछ,
लोकमानस क महाभारत कालीन !+तिु त इन पंि_य* म: देखी जा सकती है-
पांडवन क लछण िबराली, कौरवन क पहाड़ी कुकुड़ी,
तेरी िबराली कुकुड़ी Zयजू बैरछ िबराली कुकुड़ी मारी दीयो ।
इन गीत* म: पौरािणक कथा सार क अिभTयि_ को हम सरलता से समझ सकते हf।
सं कार गीत- मनुPय के जीवन म: सं+कार* का बड़ा मह?व है। ब}चे के ज/म से लेकर मृयु तक
िविवध सं+कार स5प/न िकए जाते हf। कुमाउनी सं+कार गीत* म: ज/म छठी, नामकरण उपनयन
िववाह आिद के गीत सि5मिलत हf, ये गीत !ायः मिहलाओ ं [ारा गाए जाते हf। सं+कार* म: होने
वाली पजू ा अनु{ान के अनुसार इन गीत* को गाया जाता है। यहां हम कुछ कुमाउनी सं+कार
गीत* को संFेप म: जानने का !यास कर: ग।े कुमाऊँ म: !येक सअ
ु वसर पर शकुनांखर सगणु
(सगनु ) के गीत गाने क परंपरा है।
=यायनु भयै, =यायनु भैय,े थाित को थयाल
=यायनु भयै , =यायनु भैय ,भईु को भ5ू याल
ब}चे के ज/म के अवसर पर यह गीत गाया जाता है।
धन क धौताला, धन क धौ,
धन क धौताला धन क धौ,
यरबा िसर िसड़ जोड़ िसरिसड़
पाडTवा बाबै जोड़ जोड. बावै
िववाह के समय फाग के गीत* क िवशेष परंपरा देखी जा सकती है।

उतराखड मु त िवविवालय 122


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
पैिलक सगनु िपडली िपठाक
उित है सगनु दई दई माछ।
िपड.ली िपठाक कुटल है
खनल पनीया =वेज उखल कुटल
ऋतु गीत- िविभ/न ऋतओ ु ं के आगमन पर कुमाऊं म: लोकगीत !चिलत हf, बसतं ऋतु के
आगमन पर लोग* का तनमन सुवािसत हो जाता है। उसी !कार वषा( ऋतु के आगमन पर भी मन
म: उठने वाली तरंगे नया आभास जगाती है। ऋतु गीत* म: िवरह वेदना !कृ ित के नाना 9प* का
वण(न समिवO रहता है। आप ऋतरु ाज बसं त के यौवन को इस गीत म: देख सकते हf।
Hरतु ऐ गे हैरी फे री ओ गरमा Hरत,ु
मारीया मानीख पलटी नी ऊंनो।
इन गीत* म: अपने ि!यजन* क +मृित, िनराशा तथा भावक ु ता देखी जा सकती है।
कृिष िवषयक गीत- कुमाऊँ म: कृ िष िवषयक गीत* को हड़क बौल के नाम से जाना जाता है।
!ाचीन िवचाराधारा के अनसु ार कृ िष कायl म: तपरता तथा एका4ता के िलए मनोरंजक गीत
सनु ाए जाने का !चलन है। हड़क बौल म: एक Tयि_ हड़के क थाप पर गाता हआ आगे बढ़ता
रहता है तथा कृ िष काय( िनराई गुड़ाई या रोपाई करने वाले लोग काय( करते हए बड़ी लगन से
बौल लगाने वाले के +वर को दहु राते हf, इसम: काय( भी जBदी स5प/न हो जाता है तथा मनोरंजन
के [ारा लोग* को थकान का अनभु व नहM होता है। हड़िक बैल म: ऐितहािसक लघु गाथाएं गायी
जाती हf।
लोकोसव एवं पव. सबं ंधी गीतः- लोक के िविवध उसव*, पवl पर जो गीत गाए जाते हf,
उनम: लोक मनोिवRान तथा लोकिव<ास के लFण पाए जाते हf। +थानीय पवg फूलदेई तथा
घघु िु तया को !थागत आदशl के साथ मनाया जाता है। फूल संkाि/त के अवसर पर ब}चे गांव
के !येक घर के दरवाजे पर सरस* तथा फूलदेई के फूल अिप(त करते हए कहते हf-
फूल देई छममा देई
भरभकार दैणी [ारा
जतक ु ै िदछा उतक ु ै सई
फूल देई छ5मा देई
घघु िु तया (मकर संkाि/त) को ब}चे आटे के बने घुघतु * क माला गले म: डालकर !ातः कौवे
को बल ु ाते हf-
‘काले कौवा काले काले काले
घघु तु ी मावा खाले खाले खाले
तु िBह जा बड़ 5यकै िदजा सनु ु घड़
काले कौवा काले काले काले
कुमाऊँ म: हरे ला पव( हHरयाली का !तीत है। हरे ले के यौहार म: हरे ला आशीश के 9प म: िसर
पर रखा जाता है। इस अवसर पर आशीव(चन देते हए कहते हf-

उतराखड मु त िवविवालय 123


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
हया(ली रे हया(ली हHरया बण जाली
दबु ड़ी कf छ दबु ै चिड़ जल ू ो
चेली कf छ मf मैतिु ल जंल ू ो, आओ चेिल िखलकन मैत
तमु ारे बाबू घर, तमु ारे भइयन घर हरयाली को यार
िविभ/न !कार के पवlसव* पर गाए जाने वाले इन गीत* म: उŸोधन तथा आशीवा(द के भाव* को
देखा जा सकता है।
मेलY के गीतः- मेला शZद क उपिK मेल से हई है। कुमाऊँ म: िविभ/न !कार के मेले
आयोिजत होते आए हf। इन मेल* म: लोग पार+पHरक मेल िमलाप करते हf। !ाचीन काल से Rानी
लोग मेले म: अपनी किवव शि_ का !दश(न करते आए हf। इनम: सामिू हक नृयगीत भी शािमल
हf। यहां पर हम देख:गे िक मेल* के मा=यम से सामूिहक गायन पित से लोग मनोरंजन करते हf।
इन गीत* म: झोड़ा, चांचरी, छपेली, भगनौल और बैर का !चलन है। हड़के क थाप पर लोग
एक दसू रे से |ृंखलाब होकर िथरकते िदखाई देते हf। इन लोकगीत* म: +थानीय देवी देवताओ ं
क +तिु त के साथ-साथ !ाचीन वैिदक कालीन संदभ( कथाओ ं का गायन भी िकया जाता है।
झोड़ा और चाँचरी म: गोल घेरे म: कदम से कदम िमलाकर नृय िकया जाता है। इसम: लयब
तरीके से गायन पित अपनाई जाती है।
चौकोटै िक पारवती +कूल िन जािन बली इ+कूला िन जानी ,
मासी का परताप लsडा +कूल िन जािन बली इ+कूलिन जाना।
छपेली नृय म: 0ुत गायन शैली अपनाई जाती है। ओहो करके गीत शु9 िकया जाता है। भगनौल
म: पामक उि_य* को आरोह अवरोह के साथ !+तुत िकया जाता है। इन उि_य* को गेयपद*
म: जोड़ने वाली गीत शैली जोड़ के 9प म: जानी जाती है। बैर म: य ु * का वण(न िकया जाता है।
इसम: तािक( क कथन* के [ारा एक दसू रे को िनKर करने क !ितयोिगता होती है।
परसवं ादामक गीत- संवाद शैली से य_ ु गायन पित को पHरसंवादामक गीत* क |ेणी म:
रखा जाता है। इन गीत* म: संवाद* के मा=यम से िविभ/न पा7* के कौशल को जाना जा सकता है।
डॉ कृ Pणानंद जोशी के अनसु ार- ‘हHरयाला का यौहार आने पर एक माँ अपनी िबिटया को
मायके बल ु ाने का अनरु ोध करती है- क/या के िपता के जाते समय के अपशकुन माँ के ‹दय को
दिु खत कर देते हf। बेटी के ससुराल जाकर िपता को बताया जाता है िक ‘रघी’ घास लकड़ी लाने
जंगल गई हई है, पानी भरने गई हई है आिद। रघी के िपता बेटी क !तीFा म: बैठे रहते हf। उस
रघी को, जो अब कभी नहM लौटेगी, गीत के दसू रे भाग म: वह `य ‘tलैश बैक’ के 9प म:
!+ततु िकया गया है। िजसम: रघी क ननद अपनी माँ से अनरु ोध करती है िक पोटली म: रखे
}यल ू े उसने खाए हf। रघी ने नहM, रघी को मत पीटो। ओ kूर माँ! तमु ने रघी को मारकर उसका
शव तक गोठ म: िछपा िदया ।
खाजा कुटुरी मैले लुकैछ ईजू पािपणी बोिज नै मार,
पाना मारीछ गोठ लुकैछ, ईजू पािपणी बोिज नै मार।
साग काटछ राम करे ली, ईजू पािपणी बोिज नै मार।

उतराखड मु त िवविवालय 124


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इन गीत* म: लोक जीवन क ममा(/तक पीड़ा का भाव देखा जा सकता हf। हम: पता चलता है िक
तकालीन पHरि+थितय* म: मानवीय Tयवहार के तौर तरीक* म: िकतनी असvयता थी। कुछ
ऐितहािसक लोक कथाओ ं के आयान भी हम इन संवाद !धान गीत* के मा=यम से जान सक: गे।
बाल गीत - Tयि_ के जीवन क शु9आत बचपन से होती है। बालपन म: िशशु का मन िनछल
होता है। वह खेलना पसं द करता है। जीवन के गभं ीर उतार चढ़ाव* से अनिभR िशशु अपनी
िकलकाHरय* म: ही खेल का अनभु व करता हf। ब}च* [ारा आपस म: खेले जाने वाले खेल* म: ही
गीत िवकिसत होते हf। इन गीत* का िनमा(ण +वत: +फूत( माना जाता है। यथा -
ड क ड क मु का पड़ौ
ओ पाने hयू vयो पड़ो
सात सम/ु दर गोपी च/दर
बोल मेरी मछली िकतना पानी
(दसू री कहती है) इतना पानी
ब}चे गीत* के साथ साथ अपने भाव* को हाथ िहलाकर भी !कट करते हf। कहना उिचत होगा
िक बालगीत ब}च* के सुकोमल मनोिवRान क +व}छंद सरल अिभTयि_ है। िजनम: िकसी
गंभीर िवषय बोध क सदा अनुपि+थित रहती है।
बोध !o
क - सही िवकBप को चिु नए -
1. ’फूल देई छ5मा देई’ लोकगीत क िकस कोिट म: आता है?
I. बालगीत
II. नृयगीत
III. पव( संबधं ी गीत
IV. भगनौल
2. ’गौरी गटु का’ नामक रचना है -
I. गमु ानी पंत
II. रामदK पतं
III. गौरीदK पाडे
IV. शेरिसहं िवO
3. ऋतओ ु ं का वण(न िकस गीत म: िमलता है ?
I. सं+कार गीत
II. ऋतु गीत
III. कृ िष सबं धं ी गीत
IV. पव( उसव संबंधी गीत
ख - 20 वM शताZदी के पूवा(( के लोकगीत* का इितहास संFेप म: िलिखए।
ग - लोकगीत या हf ? िवषयगत आधार पर लोकगीत* का वगUकरण किजए ।

उतराखड मु त िवविवालय 125


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
घ - ’झोड़ा’ और ’भगनौल’ पर संिF\ िटnपणी िलिखए।
8.4 कुमाउनी लोकगीत' का भावप;ीय वैिश=्य
हम सब जानते हf िक लोकगीत लोकमानस क वह तरं गाियत अिभTयि_ है, जो िनयित और
मानवीय सKा के िविवध 9प* को समािहत िकए रहती है। मानव ने भौितक िवकास के सापेF
मानिसक िवकास के [ारा समाज म: अपने अि+तव को मख ु र िकया हf। लोकगीत लोकमानस के
सवं ेदना के मौिलक तव हf। अनभु िू त तथा Rान क लयब अिभTयि_ !ायः लोकगीत* के
मा=यम से !कट होती है।
भावपF क `िO से हम देखते हf िक गीत* का िनमा(ण ही भाव भिू म पर हआ है। ये वही
भाव हf, जो !कृ ित के नाना 9प* म:, Tयथा, वेदना, हष( ,िवषाद आिद के 9प* म: शZद* म: +वत:
उतर आते हf। इनक यही लयामक !वृिK इनक* रोचक बनाए हए है। लोकगीत* म: TयिO और
समिO का अपवू ( िम|ण होता है, जो समाज के चेतनामल ू क फलक को !भािवत कर उसे सरस
बना देता है। अत: हम कह सकते हf िक Tयि_ क सख ु दख ु ामक ि+थितय* म: अ/तम(न से जो
वाणी फूट पड़ती है तथा लोक के िलए एक 9िचकर शैली बन जाती है, वही लोकगीत
कहलाता है।
8.4.1 कुमाउनी लोकगीतY क िवशेष ताएँ
कुमाउनी लोकगीत कुमाऊँ के जनमानस क Tयापक संवेदनशीलता को !कट करते हf। वािचक
तौर पर वषg से जीिवत इन गीत* म: अपनी माटी क सुगंध िनिहत हf। ये गीत मानव को मानव से
जोड़ने म: यकन रखते हf। कहM कहM आप पाएँगे िक इन गीत* म: पौरािणक चHर7* का िच7ण भी
हआ है। वैिदक कालीन समाज Tयव+था तथा !मख ु पा7 एवं घटनाओ ं से संबिं धत आयान इन
लोकगीत* के आधार बन: हf। सय क अनभु ूित लोकगीत* के मा=यम से +पO झलकती है।
इन गीत* म: पहाड़ के पशपु िFय* तथा !ाकृ ितक सौ/दय( का वण(न देखने को िमलता है। ’/योली’
नामक लोकगीत एक िवरही पFी पर आधाHरत है। /योली एक पहाड़ी !जाित क कोयल को
कहा जाता है। इसे िवरह का !तीक माना जाता है। ऐसी धारणा है िक /यौली अपने पित के
िवयोग म: िदन रात ममा(/तक +वर* से जंगल को गंजु ायमान बनाती िफरती है। लोकमानस ने उस
पFी को अपने संवेदना के धरातल पर उके रा है।सामा/य अथg म: /यौली का अथ( ’नवेली’ ’नई’
से िलया जाता है।
कुमाउनी लोकगीत िविभ/न धािम(क सं+कार* के संवाहक हf।
गभा(धान,नामकरण,अ/न!ाशन, जनेऊ, िववाह आिद सं+कार* म: गाए जाने वाले लोकगीत यगु *
से चली आ रही वािचक परंपरा के सयानुभतू कथन हf। लोकगीत* क िवशेष ता उनके
लयामक गायन शैली म: िनिहत है। !ेम, क9णा िवरह आिद क अव+थाओ ं पर कई लोकगीत
समाज म: !चिलत हf।
डॉ. ि7लाचन पाडे ने कुमाउनी लोकगीत* क िवशेष ता को बताते हए कहा है - ’कुमाऊँ
म: जमीदार !था तो नहM है, िफर भी कुछ लोग* के पास बहत जमीन हो गई है। दसू रे लोग बटाई

उतराखड मु त िवविवालय 126


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
पर काम करते हf। जमीन भी ’तलाऊँ ’, मलाऊँ, आबाद,बंजर कई !कार क है। निदय* क
घािटय* वाली भिू म अिधक उपादक होती है, िजसे ‘+यारा’ कहते हf। दलदली भिू म ‘िसमार’
कहलाती है। इसक उपादक Fमता को =यान म: रखकर जो लगान वषg पवू ( अं4जे * [ारा
िनधा(Hरत िकया गया या उसम: समय पर पHरवत(न होते गए। अब कुछ वष( पवू ( भूिम नाप संबंधी
नई योजना !ारंभ हई तो कुछ लोग अपनी जमीन बढ़ा चढ़ाकर िलखाने लगे। कुछ पीछे रह गए।
गीतकार* ने इस ि+थित क सटीक Tयाया क है।’
इस !कार आप देख:गे िक कुमाउनी लोक गीत +वंय म: अनेक िवशेष ताओ ं को समेटे हf।
लौिकक Rान क धरातल से जड़ु ी !+तिु तयाँ इन गीत* के मा=यम से होती है। इन गीत* म:
कBपना भी चरम सीमा पर होती है। इन गीत* म: अपने समय क सजीवता है। मानव Tयवहार के
तौर तरीक* तथा समाज मनोिवRान के कई त@य इन गीत* [ारा अिभTय_ होते आए हf। !कृ ित
के नाना 9प* का वण(न इन गीत* का !मख ु !ितपा होता है। लोक सय के उšाटन म: ये गीत
अ4णी हf। !ाचीन काल क रोचक एवं Rानवध(क Rान क समािविO इन गीत* का +वभाव है।
अत: कहा जा सकता है िक कुमाउनी लोकगीत* क िवशेष ता यहाँ के जनमानस क
सांगीितक !+तिु त है। ये िवषय वैिव=य का लFण !दिश(त करते हf। वगUकरण के आधार पर
अलग अलग िवषय* के लोकगीत* म: तकालीन पHरि+थितय* का वण(न हआ हf, िजनके [ारा
समाज को मानिसक जगत म: बहत लाभ !ा\ हआ है।
8.4.2 कुमाउनी लोकगीतY का महgव
कुमाउनी लोकगीत* [ारा मनPु य के भाव* को !कट करने क तरल Fमता !कट होती है
। ये लोकगीत समाज का उिचत मनोरंजन करते हf। साथ ही इनम: अपने समय को Tय_ करने क
पया(\ Fमता होती है। !ोफे सर देविसहं पोखHरया ने ‘कुमाउनी सं+कृ ित के िविवध आयाम’
पु+तक म: संतराम अिनल के िवचार* को !कट करते हए िलखा है – ‘लोकगीत सािहय क
अमBू य और अनपु म िनिध हf। इनम: हमारे समाज क एक एक रे खा , सामियक बोध क एक एक
अव+था, सामिू हक िवजय पराजय , !कृ ित क गित, िविध, वृF ,पश,ु पFी और मानव के
पार+पHरक संबंध बिल,पजू ा, टोने टुटके , आशा,िनराशा,मनन और िच/तन सबका बड़ा ही
मनोहारी वण(न िमलता है।’
लोकगीत* के मह?व को िन5निलिखत िब/दओ ु ं [ारा समझा जा सकता है -
(1) लोकगीत* म: युगीन पHरि+थितय* का वण(न िमलता है।
(2) ये गीत मानवी सवं ेदना के हष( - िवषाद, सख ु दःु ख तथा काBपिनकता को
अिभवृ करते हf।
(3) लोकगीत* म: सामािजक पHरवेश को सरस बनाने क कला होती है।
(4) लोकगीत* म: गीित तव तथा लय होने से ये वािचक परंपरा के मनोहारी आयान कहै
जाते हf।
(5) लोकगीत मानव समाज को आिदम परंपरा से सvय समाज क तरफ अ4सर
करते हf।

उतराखड मु त िवविवालय 127


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(6) लोकगीत* म: मौिलकता होती है, जो Tयि_ के जीवन के यथाथ( +व9प को
सामने लाती है।
(7) कुमाऊँ म: !चिलत लोकगीत* म: !येक युगानुसार उनक िवकासवादी धारणा को
समझा जा सकता है।
(8) ये काय( सपं ादन के तरीक* म: !य_ ु होकर काय( का िनPपादन वHरत गित से
करते हf।
+पOत: लोकगीत* म: समाज के िविभ/न जाितय* , धमg,अन{ु ान* तथा उनके तौर तरीक* पर
!काश पड़ता है। हम लोकगीत* के मा=यम से समाज क तकालीन ि+थित को सरलता से जान
सकते हf।
बोधामक 
क - नीचे िदए गए !o* म: सही िवकBप चनु कर िलिखए -
1. लोकगीत क वह पित िजसम: Sी प9 ु श एक दसू रे के कंधे म: हाथ डालकर गोलाकार
भाग म: कदम िमलाकर चलते है कहलाती है -
I. बैर
II. जागर
III. झोड़ा
IV. जोड़
2 - संवादक मूलक लोकगीत है -
I. झोड़ा
II. छपेली
III. चाँचरी
IV. बैर
3. सं+कार* के अवसर पर गाए जाने वाले गीत हf -
I. छपेली
II. भगनौल
III. फाग
IV. होली के गीत
(4) लोकगीत* के मह?व पर !काश डािलए
(5) कुमाउनी लोकगीत* के वगUकरण का सबसे सरल और TयावहाHरक आधार कौन
सा है ? लोकगीत* का वगUकरण !+ततु किजए।
8.5 कुमाउनी लोकगीत' का संि;> प?रचय
कुमाउनी लोकगीत !ाचीन काल से वत(मान काल तक लोकजीवन म: िनबा(ध 9प से
!चिलत रहै हf।आरंिभक काल से चली आ रही लोकगीत* क परंपरा म: यहाँ क: जनमानस क

उतराखड मु त िवविवालय 128


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!कृ ितपरक , मानवीय संवेदना, िवरह एवं मनोरंजन का पटु +पO झलकता है। पव(तीय जीवन
शैली को आप इन सरु धाराओ ं म: आसानी से पा सकते हf। पशु पिFय* का आलबं न लेकर उसे
मानवीय सKा से जोड़कर लोकगीत* को मम(+पशU बनाया गया है। कुमाऊँ Fे7 म: !चिलत
लोकगीत* म: समय के साथ आए बदलाव को भी परखा जा सकता है। लोकवाणी क तज( पर
िजन !ाचीन गीत* म: !कृ ित स5मत आयान िमलते हf, वहM आधिु नक लोकगीत* म: नए जमाने
क व+तओ ु ं ,फै शन का उBलेख िमलता है। नए लोकगीत Tयावसाियक `िOकोण से बनाए तथा
गाए जाते हf। इन गीत* का =विनम0ु ण उ}च इले Qॉिनक तकनीक पर आधाHरत होता है। इसका
एक !मख ु कारण यह भी है िक कुमाऊँ वासी पहाड़ को छोड़कर मैदानी इलाक* को पलायन कर
रहै हf। मैदानी शहरी िज/दगी म: उ/ह: ये लोकगीत पहाड़ी भाषा क मनोरंजक +मृित मा7 का सख ु
देते हf। िफर भी कुछ लोग मौिलक !ाचीन वािचक परंपरा को अपनाने म: ही िव<ास रखते
हf।कुमाउनी लोकसािहय के मम(R डॉ. देविसहं पोखHरया तथा डॉ. डी. डी. ितवारी ने अपनी
संपािदत पु+तक ’कुमाउनी लोकसािहय’ म: /योली ,जोड़, चाँचरी, झोड़ा, छपेली, बैर तथा फाग
का िवशद वण(न िकया है। यहाँ हम इन लोकगीत* को संFेप म: समझने का !यास कर: गे।
-यौली - /यौली एक कोयल !जाित क मादा पFी है । ऐसा माना जाता है िक यह /यौली
अपने पित के िवरह म: िनिवड़ जंगल म: भटकती रहती है। शािZदक अथ( के 9प म: /यौली का
अथ( नवेली या नये से लगाया जाता है। कुमाऊँ म: नई बह¢ को नवेली कहा जाता है। सदु रू घने
बांज, बरु ांश के जंगलो म: /यौली क सरु लहरी को स‹दय* ने मानवीय संवेदनाओ ं के धरातल पर
उतारने का !यास गीत* के मा=यम से िकया है।/यौली क गायनपित म: !कृ ित, ऋतएु ँ, नाियका
के नख िशख भेद िनिहत हf। छंदशाS के `िOकोण से /यौली को चौदह वणg का म_ ु क छंद
रचना माना जाता है।
/यौली का उदाहरण -
चमचम चमक छी यार नाकै क फूली
धार म: धेकािल भै छै , जिन िदशा खल ु ी
(तेरे नाक क फूली चमचम चमकती है, तमु िशखर पर !कट या हई ऐसा लगा िक जैसे िदशाएँ
खल ु गई ह* )
जोड़ - जोड़ का अथ( जोड़ने से है । गिणत म: दो और दो चार होता है। कुमाउनी लोकसािहय म:
जोड़ का अथ( पद* को लयामक ढ़ग से Tयवि+थत करना है। संगीत या गायन शैली को देखते
हए उसे अथ(लय म: ढाला जाता है। जोड़ और /यौली लगभग एक जैसी िवशेष ता को !कट
करते हf। 0ुत गित से गाए जाने वाले गीत* म: हBका िवराम लेकर ’ जोड़’ गाया जाता हf। जोड़
को लोकगायन क अनठू ी िवधा कहा जाता है।
उदाहरण -
दातलु ै िक धार दातल
ु ै क धार
बीच गंगा छोिड़ rयैयै नै वार नै पार
(अथा(त दराती क धार क तरह बीच गगं ा म: छोड़ गया, जहाँ न आर है न पार )

उतराखड मु त िवविवालय 129


तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
चाँचरी - चाँचरी शZद क उपिK सं+कृ त के ’चच(री’ से मानी गई है। इसे नृय और ताल के
सयं ोग से िनिम(त गीत कहा जाता है। कुमाऊँ के कुछ भाग* म: इसे झोड़ा नाम से भी जाना जाता
है। ’चाँचरी’ !ायः पव(,उसव* और +थानीय मेल* के अवसर पर गाई जाती है। यह लोकगीत
गोल घेरा बनाकर गाया जाता है, िजसम: Sी प9 ु श पैर* एवं संपणू ( शरीर को एक िवशेष लय
kमानसु ार िहलाते डुलाते नृय करते हf। चाँचरी !ाचीन लोकिवधा है। मौिखक परंपरा से समृ
हई इस शैली को वत(मान म: भी उसी 9प म: गाया जाता है। चाँचरी म: िवषय क गहनता का बोध
न होकर +व+थ मनोरंजन का भाव होता है, जो लोग* को शा◌ीरHरक और मानिसक 9प से
लाभ पहचँ ाता है।
उदाहरण - काठ को किलज* तेरो छम
( वाह! का कलेजा तेरा या कहने )
चाँचरी म: अतं और आिद म: ’छम’ का अथ( बलपवू (क कहने क परंपरा है। छम का अथ( घघु 9ँ
के बजने क आवाज को कहा जाता है। छम’ कहने के साथ ही चाँचरी गायक पैर व कमर को
झक ु ाकर एक हBका बलपवू (क िवराम लेता है।
झोड़ा - जोड़ अथा(त जोड़ा का ही दसू रा Tयव‹त 9प है झोड़ा। कुमाउनी म: ’झ’ वण( क
सरलता के कारण ’ज’ वण( को ’झ’ म: उ}चHरत करने क परंपरा है। झोड़ा या जोड़ गायक दल*
[ारा गाया जाता है। एक दसू रे का हाथ पकड़कर झमू ते हए यह गीत गाया जाता है। इसे सामूिहक
नृय क संRा दी गई है। िकसी गाथा म: +थानीय देवी देवताओ ं क +तिु त या िकसी गाथा म:
िनिहत पराkमी चHर7* के िच7ण क वृिK िनिहत होती है।
उदाहरण -
ओ घटै बजु ी बाना घटै बजु ी बाना
पिट म: पटवाHर हछँ ौ गs म: पधाना
आब जै के हँ छै खणयणंू ी बिु ड़यै क hवाना
(नहर बांध कर घराट (पनच क) चलाई गई पˆी म: पटवारी होता है गांव म: होता है !धान अब
तू बूढ़ी हो गई है कै से होगी जवान)
छपेली - छपेली का अथ( होता है िF! गित या वHरत अथवा 0ुत वाकशैली से उूत गीत ।
यह एक नृय गीत के 9प म: !चिलत है। लोक के तक( पूण( मनोिवRान क झलक इन गीत* म:
आप आसानी से पा सकते हf। लोकोसव*, िववाह या अ/य मेलो आिद के अवसर पर लोक
सां+कृ ितक !+तिु त के 9प म: इन नृय गीत* को देखा जा सकता है। छपेली म: एक मल ू गायक
होता है। शेश समहू के लोग उस गायक के गायन का अनक ु रण करते है। Sी प9 ु श दोन*
िमलकर छपेली गाते हf। मल ू गायक !ायः प9 ु श होता है, जो हड़का नामक लोकवा के
मा=यम से अिभनय करता हआ गीत !+ततु करता है।
छपेली म: संयोग िव!ल5भ |ृंगार क !धानता होती है। !ेम क स}ची भावना को सुमधुर ढ़ग से
गायक म: अिभTय_ िकया जाता है।
उदाहरण - भाबरै िक लाई

उतराखड मु त िवविवालय 130


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
भाबरै क लाई
कै ले मेHर साई देिख
लाल सािड़ वाई
(भाबर क लाही भाबर क लाही िकसी ने मेरी लाल साड़ी वाली साली देखी)
बैर - बैर शZद का !योग !ायः दु मनी से िलया जाता है। लोकगायन क परं◌ेपरा म: बैर का
अथ( ’[/[’ या ’संघष(’ माना गया है। बैर तािक( क !oोKर* वाली वाक् य ु पूण( शैली है। इसम:
अलग अलग पF* के बैर गायक गूढ़ रह+यवादी !o* को दसू रे पF से गीत* के मा=यम से पछ ू ते
हf। दसू रा पF भी अपने सिं चत Rान का समšु ाटन उKर के 9प म: रखता है। बैर गायक िकसी भी
घटना , व+तिु +थित अथवा चHर7 पर आधाHरत सवाल* को दसू रे बैHरय* के समF रखता है।
अ/य बैर गायक अपनी वHरत बुि Fमता से इन !o* का ताबड़तोड़ उKर देकर उसे िन9Kर
करने का !यास करते है। कभी कभार इन बैHरय* म: जबरद+त क िभड़/त देखने को िमलती है।
हार जीत के लIय पर आधHरत इस गीत का पर+पर संवादी kम बड़ा ही रोचक होता है। इनके
!o* म: ऐितहािसक चHर7 एवं घटना तथा मानवीय !कृ ित के िविवध 9प समािवO रहते हf।
फाग - कुमाउनी सं+कृ ित म: िविभ/न सं+कार* के अवसर पर गाए जाने वाले मांगिलक गीत* को
’फाग’ कहा जाता है। कही कही होली के मंगलाचरण तथा धनू ी के आशीवा(द लेते समय भी
फाग गाने क परंपरा िवमान है। शभु मंगल कायg यथा ज/म एवं िववाह के अवसर पर
’शकुनाखर ’ और फाग गाने क अ!ितम परंपरा है। ’फाग’ गायन के वल िSय* [ारा ही होता है।
होली के अवसर पर देवालय* म: ’फाग’ प9 ु श गाते हf। कुमाऊँ म: सं+कार गीत* क दीघ(कालीन
परंपरा को हम ’फाग’ के 9प म: समझते हf। फाBगनु मास के आधार पर ही ’फाग’ का !ादभु ा(व
माना जाता है। मनPु य के गभा(धान,ज/म, नामकरण, यRोपवीत, चड़ू ाकम(
िववाह आिद सं+कार* के अवसर पर यR अन{ु ान के साथ इन गीत* का वाचन िकया जाता है।
गीत गाने वाली बुजगु ( मिहलाओ ं को ’गीदार’ कहा जाता है।
उदाहरण - शकूना दे, शकूना दे सब िसि
काज ए अित नीको शकूना बोल दईणा
(शकुन दो भगवान शकुन दो सब काय( िस हो जाएँ सगनु आखर से सारे काज स/ु दर ढ़ग से
स5प/न हो जाएँ )
बोध !o
अित लघउु Kरीय !o
1- ’/यौली’ का एक उदाहरण दीिजए।
2- फाग िकस 9प म: गाए जाते हf ?
3- झोड़ा िकस !कार गाया जाता है ?
4- चाँचरी से या तापय( है ?

उतराखड मु त िवविवालय 131


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
8.6 सारांश
!+ततु इकाई का अ=ययन करने के उपरांत आप -
a कुमाउनी लोकगीत* का अथ( +व9प तथा इितहास समझ गए ह*गे।
a आपने समझ िलया होगा िक िवषयव+तगु त आधार पर वगUकरण करने से
आपके अ=ययन क 9परे खा सरल और +पO हो गई है।
a कुमाउनी भाषा और बोिलय* के लयामक +व9प को जान गए ह*गे।
a कुमाऊँ म: !चिलत लोकगीत* क िवशेष ताएँ और मह?व को समझ चक
ुे ह*गे।
a !मखु कुमाउनी लोकगीत* का पHरचय !ा\ कर चुके ह*गे।

8.7 श"दावली
आशु - मौिखक
उŒार - !कट होने वाले भाव
िनछल - छल रिहत
उपोदय - उपयोगी
+फुट - अ/य, !कण(
सि/निहत - समाया हआ
गीदार - गीतकार
शकुनाखर - सगनु के आखर
/यौली - नवेली, नई
अ!ितम - अनठू ी, अनोखी
फाग - सं+कार गीत
बैर - सघं ष(
छपेली - िF!गित वाली
8.8 अ%यास &' के उ(र
8.3 के उKर
1- पव( सबं धं ी गीत
2- गौरीदK पाडे
3 - ऋतु गीत
8.4 के उKर
क (1) झोड़ा
(2) बैर
(3) फाग

उतराखड मु त िवविवालय 132


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
8.9 संदभ *+थ सच
ू ी
1. जोशी, कृ Pणानंद , कुमाउनी लोकसािहय , धािम(क गीत ,112
2. पवू l_ , स+ं कार गीत (1)
3. पाडे ि7लोचन ,कुमाऊँ का लोकसािहय , पृ -124,
4. पवू l_ , पृ - 126
5. अचल, जल ु ाई 1938, |ेणी - 1, |ृगं - 6,
6. इिं डयन एंटी वेरी ,िजBद 14 (1885)
7. धम(यगु , अ टूबर 31, 1954 ,
8. िलिं rवि+टक सव ऑफ इिं डया, खडं 9, भाग 4 ,पृ -167.
9. कुमाउनी लोकसािहय , देविसहं पोखHरया , डी.डी. ितवारी , पृ 2- 12
10. पाडे, ि7लोचन ,कुमाउनी भाषा और उसका सािहय, उKर !देश ,िह/दी
स+ं थान, पृ - 190- 211
11. बटरोही , कुमाउनी सं+कृ ित, पृ - 13-25
12. पोखHरया, देविसंह , कुमाउनी सं+कृ ित के िविवध आयाम, पृ- 13- 15
8.10 उपयोगी / सहायक *ंथ सूची
1- /यौली सतसई , डॉ.देविसहं पोखHरया, अBमोड़ा बकु िडपो
2- कुमाउनी किव गौदा( का काTय दश(न, सं. चा9च/0 पाडे
3- कुमाउनी भाषा , डॉ. के शव दK 9वाली
4- कुमाउनी िह/दी शZद कोश, डॉ. नारायण दK पालीवाल
5- कुमाऊँ का लोक सािहय , डॉ. ि7लोचन पाडे
6- कुमाउनी भाषा का अ=ययन, डॉ. भवानी दK उ!ेती
8.11 िनबंधामक &
1. कुमाउनी लोकगीत* क िवशेष ताएँ बताते हए इसके मह?व पर !काश
डािलए।
2. कुमाउनी लोकगीत* के िवषयगत आधार पर िव+तृत वगUकरण !+ततु
किजए।
3. लोकगीत या हf ? कुमाउनी लोकगीत* क िविवध िवधाओ ं का वण(न
किजए।

उतराखड मु त िवविवालय 133


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई 9 कुमाउनी लोकगीत: इितहास, व@प एवं
सािहय
इकाई क परे खा
9.1 तावना
9.2 उेय
9.3 कुमाउनी लोकगीत- का इितहास एवं वप
9.3.1 कुमाउनी लोकगीत : वप िववेचन
9.3.2 कुमाउनी लोकगीत- का वगFकरण
9.4 कुमाउनी लोकगीत- का भावपEीय वैिशM्य
9.4.1 कुमाउनी लोकगीत- क िवशेष ताएँ
9.4.2.कुमाउनी लोकगीत- का मह#व
9.5 कुमाउनी लोकगीत- का संिEN प रचय
9.6 सारांश
9.7 श(दावली
9.8 अ+यास ,- के उ.र
9.9 संदभ& /थं सचू ी
9.10 सहायक /थं सचू ी
9.11 िनबधं ामक ,

उतराखड मु त िवविवालय 134


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
9.1 तावना
िपछली इकाइ( म: आप ने कुमाउनी लोकसािहय के इितहास +व9प का अ=ययन िकया
है। !+ततु इकाई कुमाउनी लोकसािहय क अनठू ी िवधा लोकगीत पर आधाHरत है।
लोकसािहय का पणू ( Rान रखने वाले Tयि_ के िलए लोकगीत* को समझना आसान होगा,
य*िक लोकसािहय क एक िवधा लोकगीत भी है। लोकगीत आरंिभक काल से लोक क
गहन अनभु िू त को !कट करते रहै हf। लोकमानस क जमीन से जड़ु ी यथाथ(ता +वतः लोकगीत*
म: !+फुिटत हई है। इस इकाई म: हम लोकगीत* के दीघ(कालीन इितहास पर `िO डाल:गे तथा
इसके +व9प का िववेचन करते हए इसके मह?वपणू ( पF* को समझ सक: गे। कुमाउनी लोकगीत*
के मह?व को समझकर उनक सामािजक !ासिं गकता का Rान !ा\ कर पाएगं े। कुमाउनी
लोकगीत* के वगUकरण से अलग अलग !कार के लोकगीत* का पHरचय !ा\ हो सके गा। इकाई
के उKराध( म: कुमाउनी लोकगीत* का संिF\ पHरचय !+ततु िकया गया है, िजसके मा=यम से
हम िविवध कुमाउनी लोकगीत* म: िनिहत अनभु िू त एवं अिभTयि_ िवधान सिहत +व9प को
भिल भाँित जान सक: गे।
9.2 उेय
!+ततु इकाई के अ=ययन के बाद आप -
• कुमाउनी लोकगीत* का !ादभु ा(व एवं इितहास को समझ सक: गे ।
• आप बता पाय:गे िक कुमाउनी लोकगीत आरंभ से लोगो क जबु ान पर िकस !कार
अवि+थत रहै हf ।
• कुमाउनी लोकगीत* के वगUकरण से आपको कुमाउनी सािहय का सम4 बोध हो
सके गा ।
• कुमाउनी रचनाकार* के अनभु ूत Rान का आपको Rान !ा\ हो सके गा ।
• आप जान सके गे िक िकस तरह लोकगीत हमारे लोकजीवन क अपवू ( व+तु है ।
• कुमाउनी लोकगीत* क गेयता से आप एक गूढ़ अि+तव का भान कर सक: गे।
• इन लोकगीत* के सामािजक पF से उšािटत होने वाली समरस सरल `िO का
अनश ु ीलन कर पाएँगे ।
9.3 कुमाउनी लोकगीत' का इितहास एवं व@प
कुमाऊँ म: लोकगीत !ारंभ से !चिलत रहै हf। कुछ लोकगीत युगो से चली आ रही
परंपरा को !दिश(त करते हf तथा काला/तर म: पHरिनि{त सािहय के िवकास के साथ ही
लोकगीत* का अिभनव िनमा(ण िकया जाने लगा। िलिखत सािहय के इितहास म: कुमाउनी
लोकगीत* के रचियता Rात हf। !ारंभ से चले आ रहै लोकगीत लोकमानस का +व}छंद !वाह हf
!ायः इनके िनमा(ता अRात रहते हf। आपने िजस इकाई का पवू ( म: अ=ययन िकया है उसम:
उतराखड मु त िवविवालय 135
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कुमाउनी सािहय के उव एवं िवकास के अ/तग(त Rात रचनाकार* क रचनाओ ं का पHरचय
िदया गया है। यही लोकगीत* का इितहास भी है। उ/हM िवकास के चरण* म: लोकगीत* क
ऐितहािसक `िO हम: !ा\ होती है। कुमाऊँ म: लोकगीत* का !चलन तो आरंिभक काल से रहा
है। िलिखत सािहय के 9प म: उपलZध लोकगीत* को हम ऐितहािसक 9प से +वीकार कर: गे, डॉ
ि7लोचन पाडे ने कुमाउनी िलिखत सािहय को िन5निलिखत कालkमानसु ार िवभािजत िकया
है-
(1) 19वM सदी का सािहय
(2) 20वM शताZदी के पवू ा(( का सािहय
(3) 20वM शताZदी के उKरा( का सािहय
हम उपय(_ ु काल िवभाजन को लोकगीत* के kम म: मान सकते हf य*िक उपय(_ ु
काल िवभाजन म: अ+सी फसदी लोकगीत* वाली साम4ी हम: !ा\ होती है। गमु ानी किव को
सबसे !ाचीनतम किव माना जाता है। इनका परु ाना नाम लोकरन पंत था, इ/होन: लगभग 18
4थं िलखे िजनम: ‘रामनाम पंच पंचािशका ,गंगाशतक, कृ PणाOक, नीितशतक !मख ु हf, इनका
काल सन् 1790 से 1846 ई.तक माना जाता है। बैर और भगनौल िवधा के कुशल !णेता कृ Pणा
पाडे (सन् 1800-1850) का ज/म अBमोड़ा के पािटया नामक 4ाम म: हआ था, Tयव+था क
बदहाली का वण(न उनक किवताओ ं का मुय िवषय था। इनक !मुख काTय रचना ’कृ Pणा
पाडे को किलयुग‘ है।
नयनसख ु पाडे अBमोड़ा के िपलखा नामक 4ाम म: ज/मे थे। पहाड़ी Sी क मनोदशा
पर इ/ह*ने कई किवताएं िलखी। 19वM शताZदी के अवसान काल म: गौरीदK पाडे का !ादभु ा(व
हआ। इनका ज/म भी अBमोड़ा के बBदीगाड नामक +थान म: हआ था। इनक रचना गीदड़
िसयार के गीत से !िस हf। इसके अितHर_ इस काल के किवय* म: hवालादK जोशी, लीलाधर
जोशी, िच/तामिण जोशी का नाम उBलेखनीय है। बीसवM शताZदी के पूवा(( के किवय* ने प
रचनाओ ं के िनमा(ण म: अभतू पवू ( योगदान िदया। िशवदK सती इस यगु के !ितिनिध किव हf।
इनका ज/म 1870 ई. म: फBदाकोट रानीखेत म: हआ था। इनक !मख ु रचनाओ ं के नाम हf-
बिु !वेश, िम7 िवनोद, गोपीगीत, नेपाली भाषा के गीत, गोरखाली गीत, भाबर के गीत।
गौरीदK पाडे गौदा( (सन् 1872-1939) का ज/म अBमोड़ा के पािटया 4ाम म: हआ था। इनक
रचनाओ ं म: गांधी दश(न क +पO झलक िमलती है। इनक रचना गौरी गुटका नाम से !िस है।
िशरोमिण पाठक (सन् 1890-1955) का ज/म +थान शीतलाखेत है। इनके [ारा झौड़े ,चांचरी
तथा भगनौल िलखे गए। इसके अितHर_ इस काल के किवय* म: यामाचरण दK पंत, रामदK
पंत, च/0लाल वमा( चौधरी ,जीवनच/0 जोशी, तारादK पाडे, जय/ती देवी पंत, पाव(ती उ!ेती,
दगु ा(दK पाडे, दीनानाथ पतं , तथा लIमी देवी के नाम !मख
ु है।
+वतं7ता के बाद अथा(त 20वM शताZदी के उKरा( म: सामािजक जीवन के यथाथ( से
जड़ु ी चीज: कुमाउनी लोकगीत* के मा=यम से !कट होने लगी। भाषा भी अपने पHरPकार तथा
पHरमाज(न क तरफ अ4सर हई। +वत7ं ता आदं ोलन के बाद िलखी गई कुमाउनी किवताओ ं म:

उतराखड मु त िवविवालय 136


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
वैयि_क चेतना के अितHर_ सामािजक सुधार के +वर अिधक मुखHरत हए। इस काल के !मख ु
किवय* म: चा9च/0 पाडे !थम किव माने जाते हf। इनका ज/म सन् 1923 ई. को हआ। qजे/0
लाल साह का नाम भी 20वM शताZदी के उKराध( के किवय* म: आदर के साथ िलया जाता है।
इनक रचनाओ ं म: लोकजीवन क मधरु तम छिव िदखाई देती है। कुमाउनी रामलीला को गेयपणू (
ढगं से इ/होन: िलखा। इस काल को अतन तक माना जाता है। शेर िसहं िबO ‘अनपढ़ इस समय
के !यात रचनाधमU रहै। इनक काTय !ितभा लोग* के मन म: नए उसाहपणू ( +वर जा4त करती
है। शेरदा अनपढ़ क !मख ु रचनाएं , मोHर लिट पिट, जांिठक घुडुर, हसणै बहार हf। बंधीधर
पाठक िजRासु का ज/म सन् 1934 को हआ। ये एक कुशल आकाशवाणी के कलाकार थे।
इनक कुमाउनी रचना ‘िससsण’ यगु ीन पHरि+थितय* का जीता जागता उदाहरण है। इसके
अितHर_ देवक महरा,गोपाल दK भˆ ,िकसन िसंह िबO, कयरू ी, रतन िसंह िकरमोिलया, देव
िसंह पोखHरया, शेर िसंह िबO, िदवा भˆ, बालम िसंह, जनोटी, ि7भुवन िगरी, बहादरु बोरा,
|ीबधं ु, दीपक काकU एम0डी0अडोला, दामोदर जोशी, देवांशु, िविपन जोशी ,याम िसंह
कुटौला, देवकनंदन काडपाल ने 20वM शताZदी के उKराध( म: पHरिनि{त कुमाउनी लोकगीत*
का !णयन िकया।
9.3.1 कुमाउनी लोकगीतः वप िववेचन
लोकगीत शZद का िनमा(ण लोक और गीत शZद* से िमलकर हआ है। लोकमानस क तरंगाियत
लयब अिभTयि_ को लोकगीत कहा जाता हf। लोक जीवन म: Tयि_ अनेक उतार-चढ़ाव* का
सामना करता है। जीवन जीने क यही संघष(पणू ( अव+था म: Tयि_ का िववके या मानस उसे कुछ
रचने के िलए !ेHरत करता है। अनभु िू तय* को Tयि_ [ारा शZद* वा य* के 9प म: पाHरभािषत
करने से लोकगीत* का िनमा(ण हआ है। डॉ. देविसंह पोखHरया ने लोकगीत* के संबंध म: अपना
मत इस !कार Tय_ िकया है- ‘लोकमानस क सख ु दख ु ामक अनुभिू त ही अनपढ़ गेय और
मौिखक 9प म: लोकगीत के 9प म: फूट पड़ती है। सािहियक `िO से काTयामक गणु * क
अिभजायता के अभाव म: भी इनका अपना अलग ही नैसिग(क सौ/दय( होता है। ये लोकजीवन
क धरती से +वतः +फूत( जलधार क तरह होते हf। इनम: लोकमानस का आिदम और जातीय
सगं ीत सि/निहत रहता है। लोक जीवन के िविवध िkयाकलाप* म: रसR रंजन करने वाली
अिभवृिK को लोकगीत माना जा सकता है।
डॉ. सदािशव कृ Pण फड़के ने लोकगीत को पाHरभािषत करते हए िलखा है- लोकगीत िवादेवी
के ¡ान के कृ ि7म फूल नहM, वे मानो अकृ ि7म िनसग( के <ास !<ास है। सहजानदं म: से उप/न
होने वाली |िु त मनोहरव से सहजानंद म: िवलीन हो जाने वाली आनंदमयी गफ ु ाएं हf। रामनरे श
ि7पाठी के िवचार* को हम यहां समझ सकते है िक 4ामगीत !कृ ित के उŒार हf। इसम: अलंकार
नहM के वल रस है। छंद नहM के वल लय है। लािलय नहM के वल माधयु ( हf। सभी मनPु य के Sी
पु9ष* के म=य म: ‹दय नामक आसन पर बैठ कर !कृ ित गान करती है। !कृ ित के वे ही गान
4ा5य गीत है।

उतराखड मु त िवविवालय 137


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कुमाउनी लोकगीत* के िनमा(ण के पीछे यहां क !कृ ित क सुकुमारता तथा िनछल
जनजीवन का बहत बड़ा हाथ है। अपनी माटी, अपने लोग तथा अपनी सं+कृ ित के सवं ाही सरु *
ने लोकगीत* क समिO रची है। हमारे कुमाउनी आिदकालीन आशु किव अपने अ/तम(न क
िवचाराधारा को बड़ी लयामक अिभTयि_ के साथ समाज के समF रखते थे। वही िनछल एवं
गेय पणू ( शैली लोकगीत* के सृजन म: उपादेय िस हई। यहाँ हम जान पाएगं े िक लोकगीत* म:
मानवीय संवेदनाओ ं का पटु रहता है तथा ये सरस जीवन शैली के आधारभतू उपागम भी होते हf।
लोकगीत शZद का िनमा(ण लोक और गीत शZद* से िमलकर हआ है। लोकमानस क तरंगाियत
लयब अिभTयि_ को लोकगीत कहा जाता हf। लोक जीवन म: Tयि_ अनेक उतार-चढ़ाव* का
सामना करता है। जीवन जीने क यही संघष(पणू ( अव+था म: Tयि_ का िववके या मानस उसे कुछ
रचने के िलए !ेHरत करता है। अनभु िू तय* को Tयि_ [ारा शZद* वा य* के 9प म: पाHरभािषत
करने से लोकगीत* का िनमा(ण हआ है। डॉ. देविसंह पोखHरया ने लोकगीत* के संबंध म: अपना
मत इस !कार Tय_ िकया है- ‘लोकमानस क सख ु दख ु ामक अनुभिू त ही अनपढ़ गेय और
मौिखक 9प म: लोकगीत के 9प म: फूट पड़ती है। सािहियक `िO से काTयामक गणु * क
अिभजायता के अभाव म: भी इनका अपना अलग ही नैसिग(क सौ/दय( होता है। ये लोकजीवन
क धरती से +वतः +फूत( जलधार क तरह होते हf। इनम: लोकमानस का आिदम और जातीय
संगीत सि/निहत रहता है।
लोक जीवन के िविवध िkयाकलाप* म: रसR रंजन करने वाली अिभवृिK को लोकगीत
माना जा सकता है। डॉ. सदािशव कृ Pण फड़के ने लोकगीत को पाHरभािषत करते हए िलखा है-
लोकगीत िवादेवी के ¡ान के कृ ि7म फूल नहM, वे मानो अकृ ि7म िनसग( के <ास !<ास है।
सहजानंद म: से उप/न होने वाली |ुित मनोहरव से सहजानंद म: िवलीन हो जाने वाली
आनंदमयी गफ ु ाएं हf।
रामनरे श ि7पाठी के िवचार* को हम यहां समझ सकते है िक 4ामगीत !कृ ित के उŒार हf। इसम:
अलंकार नहM के वल रस है। छंद नहM के वल लय है। लािलBय नहM के वल माधयु ( हf। सभी मनPु य
के Sी प9 ु ष* के म=य म: ‹दय नामक आसन पर बैठ कर !कृ ित गान करती है। !कृ ित के वे ही
गान 4ा5य गीत है।
कुमाउनी लोकगीत* के िनमा(ण के पीछे यहां क !कृ ित क सुकुमारता तथा िनछल
जनजीवन का बहत बड़ा हाथ है। अपनी माटी, अपने लोग तथा अपनी सं+कृ ित के संवाही सुर*
ने लोकगीत* क समिO रची है। हमारे कुमाउनी आिदकालीन आशु किव अपने अ/तम(न क
िवचाराधारा को बड़ी लयामक अिभTयि_ के साथ समाज के समF रखते थे। वही िनछल एवं
गेय पूण( शैली लोकगीत* के सृजन म: उपादेय िस हई। यहाँ हम जान पाएंगे िक लोकगीत* म:
मानवीय सवं ेदनाओ ं का पटु रहता है तथा ये सरस जीवन शैली के आधारभतू उपागम भी होते हf।
9.3.2 कुमाउनी लोकगीतY का वगGकरण
कुमाउनी लोकगीत* के स5यक अ=ययन के िलए हम उनका वगUकरण कर: गे। पवू ( मे
लोक सािहयकार* [ारा िकए गए वगUकरण को आधार मानकर उनका िवषयव+तगु त भाषायी,

उतराखड मु त िवविवालय 138


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!कृ ित, तथा जाितगत आिद आधार* पर वगUकरण िकया जाना समीचीन !तीत होता है। डा.
पोखHरया ने कुमाउनी लोकगीत* का वगUकरण करते हए िलखा है- ‘वय( िवषय, भाषा Fे7 और
काTय 9प आिद क `िO से लोकगीत* के िन5न आधार हो सकते हf-
(1) िवषयगत आधार (2) Fे7ीय आधार (3) भाषागत आधार (4) काTय 9प गत आधार
(5) जाितगत आधार (6) अव+था भेद (7) िलगं गत आधार (8) उपयोिगता का आधार (9)
!कृ ित भेद
कुमाउनी के आिधकाHरक िव[ान* , िवशेष R* तथा शोधकता(ओ ं ने सामा/यतया िवषयव+तु
स5मत आधार को ही अपनाया है। वैश ियक तथा वय( िवषय को +वीकारते हए हम अ/य
िवान* के वगUकरण को इस !कार समझ पाएंगे-
डॉ. ि7लोचन पाडे का वगUकरण
म_ु क गीत
V. नृय !धान -झोड़ा चांचरी छपेली
VI. अनभु ूित !धान- भगनौल तथा /यौली
VII. तक( स5मत- बैर
VIII. संवाद !धान तथा +फुट
(2) सं+कार !धान
III. अिनवाय(
IV. िवशेष
(3) ऋतगु ीत
(4) कृ िषगीत
(5) देवीदेवता yत योहार के गीत
(6) बाल गीत
डा. कृ Pणानंद जोशी ने कुमाउनी लोकगीत* का वगUकरण इस !कार िकया है-
(1) धािम(क गीत
(2) स+ं कार गीत
(3) ऋतु गीत
(4) कृ िष संबंधी गीत
(5) मेल* के गीत
(6) पHरसंवादामक गीत
(7) बाल गीत
लोकसािहय तथा कुमाउनी भाषा सािहय के िवान भवानीदK उ!ेती ने िवषय+तगु त आधार
को वगUकरण के िलए उपय_ ु माना है-
(1) सं+कार गीत
(2) +तिु त पजू ा और उसव गीत

उतराखड मु त िवविवालय 139


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(3) ऋतु गीत
(4) जाित िवषयक गीत
(5) Tयवसाय संबधं ी गीत
(6) बाल गीत
(7) म_ ु क गीत
िविभ/न िव[ान* [ारा िकए वगUकरण से +पO होता है िक लगभग सभी िव[ान* ने िवषय को ही
वगUकरण का आधार माना है। यहां हम वगUकरण के िलए िवषयव+तगु त आधार का चयन कर: गे
तथा िविभ/न लोकगीत* क मौिलक !वृिKय* से अवगत हो सक: गे।
धािम(क परु ाण कालीन संदिभ(त लोकगीत- परु ाण काल क कथाओ ं एवं आयान* को आरंिभक
दौर से लोकगीत* के मा=यम से अिभTय_ िकया जाता रहा है। कृ Pणानंद जोशी ने धािम(क गीत*
के िवषय म: िलखा है- इन गीत* म: सव(!थम वे गीत आते हf, िजनक िवषयव+तु पौरािणक
आयान से संबंिधत है। इसी !कार के एक गीत म: विण(त है वह Fण जब सृिOकार ने महाश/ू य
म: हसं का एक जोड़ा !कट िकया और हिं सनी का अंडा िगरकर फूटने से एक खंड से आकाश
बना और दसू रे से धरती।इसी !कार महाभारत काल के कौरव पाडव* क कथा के अश ं
लोकगीत* के मा=यम से !कट िकए जाते रहै हf। रामचHरत मानस म: उिBलिखत |ीरामच/0 जी
कथा का वण(न भी इन गीत* के मा=यम से देखे जा सकते हf।
उदाहरणाथ(
बाटो लागी गया मिु न तपिसन
जै िपरथी राजा को रै छ एक पतू
ितनरा देश वैछ बार िबसी हिलया, बार बीसी बौसीया
रोपन का खेत भगवान कूल टुटी भसम पड़ी गेछ,
लोकमानस क महाभारत कालीन !+तिु त इन पिं _य* म: देखी जा सकती है-
पांडवन क लछण िबराली, कौरवन क पहाड़ी कुकुड़ी,
तेरी िबराली कुकुड़ी Zयजू बैरछ िबराली कुकुड़ी मारी दीयो ।
इन गीत* म: पौरािणक कथा सार क अिभTयि_ को हम सरलता से समझ सकते हf।
सं कार गीत- मनुPय के जीवन म: सं+कार* का बड़ा मह?व है। ब}चे के ज/म से लेकर मृयु तक
िविवध सं+कार स5प/न िकए जाते हf। कुमाउनी सं+कार गीत* म: ज/म छठी, नामकरण उपनयन
िववाह आिद के गीत सि5मिलत हf, ये गीत !ायः मिहलाओ ं [ारा गाए जाते हf। सं+कार* म: होने
वाली पजू ा अनु{ान के अनुसार इन गीत* को गाया जाता है। यहां हम कुछ कुमाउनी सं+कार
गीत* को संFेप म: जानने का !यास कर: ग।े कुमाऊँ म: !येक सअ
ु वसर पर शकुनांखर सगणु
(सगनु ) के गीत गाने क परंपरा है।
=यायनु भयै, =यायनु भैय,े थाित को थयाल
=यायनु भयै , =यायनु भैय ,भईु को भ5ू याल
ब}चे के ज/म के अवसर पर यह गीत गाया जाता है।

उतराखड मु त िवविवालय 140


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
धन क धौताला, धन क धौ,
धन क धौताला धन क धौ,
यरबा िसर िसड़ जोड़ िसरिसड़
पाडTवा बाबै जोड़ जोड. बावै
िववाह के समय फाग के गीत* क िवशेष परंपरा देखी जा सकती है।
पैिलक सगनु िपडली िपठाक
उित है सगनु दई दई माछ।
िपड.ली िपठाक कुटल है
खनल पनीया =वेज उखल कुटल
ऋतु गीत- िविभ/न ऋतुओ ं के आगमन पर कुमाऊं म: लोकगीत !चिलत हf, बसंत ऋतु के
आगमन पर लोग* का तनमन सुवािसत हो जाता है। उसी !कार वषा( ऋतु के आगमन पर भी मन
म: उठने वाली तरंगे नया आभास जगाती है। ऋतु गीत* म: िवरह वेदना !कृ ित के नाना 9प* का
वण(न समिवO रहता है। आप ऋतरु ाज बंसत के यौवन को इस गीत म: देख सकते हf।
Hरतु ऐ गे हैरी फे री ओ गरमा Hरत,ु
मारीया मानीख पलटी नी ऊंनो।
इन गीत* म: अपने ि!यजन* क +मृित, िनराशा तथा भावक ु ता देखी जा सकती है।
कृिष िवषयक गीत- कुमाऊँ म: कृ िष िवषयक गीत* को हड़क बौल के नाम से जाना जाता है।
!ाचीन िवचाराधारा के अनसु ार कृ िष कायl म: तपरता तथा एका4ता के िलए मनोरंजक गीत
सनु ाए जाने का !चलन है। हड़क बौल म: एक Tयि_ हड़के क थाप पर गाता हआ आगे बढ़ता
रहता है तथा कृ िष काय( िनराई गुड़ाई या रोपाई करने वाले लोग काय( करते हए बड़ी लगन से
बौल लगाने वाले के +वर को दहु राते हf, इसम: काय( भी जBदी स5प/न हो जाता है तथा मनोरंजन
के [ारा लोग* को थकान का अनभु व नहM होता है। हड़िक बैल म: ऐितहािसक लघु गाथाएं गायी
जाती हf।
लोकोसव एवं पव. सबं ंधी गीतः- लोक के िविवध उसव*, पवl पर जो गीत गाए जाते हf,
उनम: लोक मनोिवRान तथा लोकिव<ास के लFण पाए जाते हf। +थानीय पवg फूलदेई तथा
घघु िु तया को !थागत आदशl के साथ मनाया जाता है। फूल संkाि/त के अवसर पर ब}चे गांव
के !येक घर के दरवाजे पर सरस* तथा फूलदेई के फूल अिप(त करते हए कहते हf-
फूल देई छममा देई
भरभकार दैणी [ारा
जतुकै िदछा उतुकै सई
फूल देई छ5मा देई
घघु िु तया (मकर संkाि/त) को ब}चे आटे के बने घुघतु * क माला गले म: डालकर !ातः कौवे
को बल ु ाते हf-
‘काले कौवा काले काले काले

उतराखड मु त िवविवालय 141


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
घघु तु ी मावा खाले खाले खाले
तु िBह जा बड़ 5यकै िदजा सनु ु घड़
काले कौवा काले काले काले
कुमाऊँ म: हरे ला पव( हHरयाली का !तीत है। हरे ले के यौहार म: हरे ला आशीश के 9प म: िसर
पर रखा जाता है। इस अवसर पर आशीव(चन देते हए कहते हf-
हया(ली रे हया(ली हHरया बण जाली
दबु ड़ी कf छ दबु ै चिड़ जूलो
चेली कf छ मf मैतिु ल जल ंू ो, आओ चेिल िखलकन मैत
तमु ारे बाबू घर, तमु ारे भइयन घर हरयाली को यार
िविभ/न !कार के पवlसव* पर गाए जाने वाले इन गीत* म: उŸोधन तथा आशीवा(द के भाव* को
देखा जा सकता है।
मेलY के गीतः- मेला शZद क उपिK मेल से हई है। कुमाऊँ म: िविभ/न !कार के मेले
आयोिजत होते आए हf। इन मेल* म: लोग पार+पHरक मेल िमलाप करते हf। !ाचीन काल से Rानी
लोग मेले म: अपनी किवव शि_ का !दश(न करते आए हf। इनम: सामिू हक नृयगीत भी शािमल
हf। यहां पर हम देख:गे िक मेल* के मा=यम से सामूिहक गायन पित से लोग मनोरंजन करते हf।
इन गीत* म: झोड़ा, चांचरी, छपेली, भगनौल और बैर का !चलन है। हड़के क थाप पर लोग
एक दसू रे से |ृंखलाब होकर िथरकते िदखाई देते हf। इन लोकगीत* म: +थानीय देवी देवताओ ं
क +तिु त के साथ-साथ !ाचीन वैिदक कालीन संदभ( कथाओ ं का गायन भी िकया जाता है।
झोड़ा और चाँचरी म: गोल घेरे म: कदम से कदम िमलाकर नृय िकया जाता है। इसम: लयब
तरीके से गायन पित अपनाई जाती है।
चौकोटै िक पारवती +कूल िन जािन बली इ+कूला िन जानी ,
मासी का परताप लsडा +कूल िन जािन बली इ+कूलिन जाना।
छपेली नृय म: 0ुत गायन शैली अपनाई जाती है। ओहो करके गीत शु9 िकया जाता है। भगनौल
म: पामक उि_य* को आरोह अवरोह के साथ !+तुत िकया जाता है। इन उि_य* को गेयपद*
म: जोड़ने वाली गीत शैली जोड़ के 9प म: जानी जाती है। बैर म: य ु * का वण(न िकया जाता है।
इसम: तािक( क कथन* के [ारा एक दसू रे को िनKर करने क !ितयोिगता होती है।
परसवं ादामक गीत- संवाद शैली से य_ ु गायन पित को पHरसंवादामक गीत* क |ेणी म:
रखा जाता है। इन गीत* म: सवं ाद* के मा=यम से िविभ/न पा7* के कौशल को जाना जा सकता है।
डॉ कृ Pणानंद जोशी के अनसु ार- ‘हHरयाला का यौहार आने पर एक माँ अपनी िबिटया को
मायके बल ु ाने का अनरु ोध करती है- क/या के िपता के जाते समय के अपशकुन माँ के ‹दय को
दिु खत कर देते हf। बेटी के ससुराल जाकर िपता को बताया जाता है िक ‘रघी’ घास लकड़ी लाने
जंगल गई हई है, पानी भरने गई हई है आिद। रघी के िपता बेटी क !तीFा म: बैठे रहते हf। उस
रघी को, जो अब कभी नहM लौटेगी, गीत के दूसरे भाग म: वह `य ‘tलैश बैक’ के 9प म:
!+ततु िकया गया है। िजसम: रघी क ननद अपनी माँ से अनरु ोध करती है िक पोटली म: रखे

उतराखड मु त िवविवालय 142


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
}यलू े उसने खाए हf। रघी ने नहM, रघी को मत पीटो। ओ kूर माँ! तमु ने रघी को मारकर उसका
शव तक गोठ म: िछपा िदया ।
खाजा कुटुरी मैले लुकैछ ईजू पािपणी बोिज नै मार,
पाना मारीछ गोठ लुकैछ, ईजू पािपणी बोिज नै मार।
साग काटछ राम करे ली, ईजू पािपणी बोिज नै मार।
इन गीत* म: लोक जीवन क ममा(/तक पीड़ा का भाव देखा जा सकता हf। हम: पता चलता है िक
तकालीन पHरि+थितय* म: मानवीय Tयवहार के तौर तरीक* म: िकतनी असvयता थी। कुछ
ऐितहािसक लोक कथाओ ं के आयान भी हम इन सवं ाद !धान गीत* के मा=यम से जान सक: गे।
बाल गीत - Tयि_ के जीवन क श9 ु आत बचपन से होती है। बालपन म: िशशु का मन िनछल
होता है। वह खेलना पंसद करता है। जीवन के गंभीर उतार चढ़ाव* से अनिभR िशशु अपनी
िकलकाHरय* म: ही खेल का अनभु व करता हf। ब}च* [ारा आपस म: खेले जाने वाले खेल* म: ही
गीत िवकिसत होते हf। इन गीत* का िनमा(ण +वत: +फूत( माना जाता है। यथा -
ड क ड क मु का पड़ौ
ओ पाने hयू vयो पड़ो
सात सम/ु दर गोपी च/दर
बोल मेरी मछली िकतना पानी
(दसू री कहती है) इतना पानी
ब}चे गीत* के साथ साथ अपने भाव* को हाथ िहलाकर भी !कट करते हf। कहना उिचत होगा
िक बालगीत ब}च* के सुकोमल मनोिवRान क +व}छंद सरल अिभTयि_ है। िजनम: िकसी
गंभीर िवषय बोध क सदा अनुपि+थित रहती है।
बोध !o
क - सही िवकBप को चिु नए -
1. ’फूल देई छ5मा देई’ लोकगीत क िकस कोिट म: आता है?
V. बालगीत
VI. नृयगीत
VII. पव( संबधं ी गीत
VIII. भगनौल
2. ’गौरी गटु का’ नामक रचना है -
V. गमु ानी पंत
VI. रामदK पंत
VII. गौरीदK पाडे
VIII. शेरिसहं िवO
3. ऋतओ ु ं का वण(न िकस गीत म: िमलता है ?
V. स+ं कार गीत

उतराखड मु त िवविवालय 143


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
VI. ऋतु गीत
VII. कृ िष सबं धं ी गीत
VIII. पव( उसव संबंधी गीत
ख - 20 वM शताZदी के पूवा(( के लोकगीत* का इितहास संFेप म: िलिखए।
ग - लोकगीत या हf ? िवषयगत आधार पर लोकगीत* का वगUकरण किजए ।
घ - ’झोड़ा’ और ’भगनौल’ पर संिF\ िटnपणी िलिखए।
9.4 कुमाउनी लोकगीत' का भावप;ीय वैिश=्य
हम सब जानते हf िक लोकगीत लोकमानस क वह तंरगाियत अिभTयि_ है, जो िनयित और
मानवीय सKा के िविवध 9प* को समािहत िकए रहती है। मानव ने भौितक िवकास के सापेF
मानिसक िवकास के [ारा समाज म: अपने अि+तव को मख ु र िकया हf। लोकगीत लोकमानस के
संवेदना के मौिलक तव हf। अनभु िू त तथा Rान क लयब अिभTयि_ !ायः लोकगीत* के
मा=यम से !कट होती है।
भावपF क `िO से हम देखते हf िक गीत* का िनमा(ण ही भाव भिू म पर हआ है। ये वही
भाव हf, जो !कृ ित के नाना 9प* म:, Tयथा, वेदना, हष( ,िवषाद आिद के 9प* म: शZद* म: +वत:
उतर आते हf। इनक यही लयामक !वृिK इनक* रोचक बनाए हए है। लोकगीत* म: TयिO और
समिO का अपवू ( िम|ण होता है, जो समाज के चेतनामल ू क फलक को !भािवत कर उसे सरस
बना देता है। अत: हम कह सकते हf िक Tयि_ क सख ु दख ु ामक ि+थितय* म: अ/तम(न से जो
वाणी फूट पड़ती है तथा लोक के िलए एक 9िचकर शैली बन जाती है, वही लोकगीत
कहलाता है।
9.4.1 कुमाउनी लोकगीतY क िवशेष ताएँ
कुमाउनी लोकगीत कुमाऊँ के जनमानस क Tयापक संवेदनशीलता को !कट करते हf। वािचक
तौर पर वषg से जीिवत इन गीत* म: अपनी माटी क सुगंध िनिहत हf। ये गीत मानव को मानव से
जोड़ने म: यकन रखते हf। कहM कहM आप पाएँगे िक इन गीत* म: पौरािणक चHर7* का िच7ण भी
हआ है। वैिदक कालीन समाज Tयव+था तथा !मख ु पा7 एवं घटनाओ ं से संबिं धत आयान इन
लोकगीत* के आधार बन: हf। सय क अनभु िू त लोकगीत* के मा=यम से +पO झलकती है।
इन गीत* म: पहाड़ के पशपु िFय* तथा !ाकृ ितक सौ/दय( का वण(न देखने को िमलता है। ’/योली’
नामक लोकगीत एक िवरही पFी पर आधाHरत है। /योली एक पहाड़ी !जाित क कोयल को
कहा जाता है। इसे िवरह का !तीक माना जाता है। ऐसी धारणा है िक /यौली अपने पित के
िवयोग म: िदन रात ममा(/तक +वर* से जंगल को गंजु ायमान बनाती िफरती है। लोकमानस ने उस
पFी को अपने संवेदना के धरातल पर उके रा है।सामा/य अथg म: /यौली का अथ( ’नवेली’ ’नई’
से िलया जाता है।
कुमाउनी लोकगीत िविभ/न धािम(क सं+कार* के सवं ाहक हf।
गभा(धान,नामकरण,अ/न!ाशन, जनेऊ, िववाह आिद सं+कार* म: गाए जाने वाले लोकगीत यगु *

उतराखड मु त िवविवालय 144


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
से चली आ रही वािचक परंपरा के सयानुभतू कथन हf। लोकगीत* क िवशेष ता उनके
लयामक गायन शैली म: िनिहत है। !ेम, क9णा िवरह आिद क अव+थाओ ं पर कई लोकगीत
समाज म: !चिलत हf।
डॉ. ि7लाचन पाडे ने कुमाउनी लोकगीत* क िवशेष ता को बताते हए कहा है - ’कुमाऊँ
म: जमीदार !था तो नहM है, िफर भी कुछ लोग* के पास बहत जमीन हो गई है। दसू रे लोग बटाई
पर काम करते हf। जमीन भी ’तलाऊँ ’, मलाऊँ, आबाद,बंजर कई !कार क है। निदय* क
घािटय* वाली भिू म अिधक उपादक होती है, िजसे ‘+यारा’ कहते हf। दलदली भिू म ‘िसमार’
कहलाती है। इसक उपादक Fमता को =यान म: रखकर जो लगान वषg पवू ( अं4जे * [ारा
िनधा(Hरत िकया गया या उसम: समय पर पHरवत(न होते गए। अब कुछ वष( पवू ( भूिम नाप संबंधी
नई योजना !ारंभ हई तो कुछ लोग अपनी जमीन बढ़ा चढ़ाकर िलखाने लगे। कुछ पीछे रह गए।
गीतकार* ने इस ि+थित क सटीक Tयाया क है।’
इस !कार आप देख:गे िक कुमाउनी लोक गीत +वंय म: अनेक िवशेष ताओ ं को समेटे हf।
लौिकक Rान क धरातल से जुड़ी !+तिु तयाँ इन गीत* के मा=यम से होती है। इन गीत* म:
कBपना भी चरम सीमा पर होती है। इन गीत* म: अपने समय क सजीवता है। मानव Tयवहार के
तौर तरीक* तथा समाज मनोिवRान के कई त@य इन गीत* [ारा अिभTय_ होते आए हf। !कृ ित
के नाना 9प* का वण(न इन गीत* का !मख ु !ितपा होता है। लोक सय के उšाटन म: ये गीत
अ4णी हf। !ाचीन काल क रोचक एवं Rानवध(क Rान क समािविO इन गीत* का +वभाव है।
अत: कहा जा सकता है िक कुमाउनी लोकगीत* क िवशेष ता यहाँ के जनमानस क
सांगीितक !+तिु त है। ये िवषय वैिव=य का लFण !दिश(त करते हf। वगUकरण के आधार पर
अलग अलग िवषय* के लोकगीत* म: तकालीन पHरि+थितय* का वण(न हआ हf, िजनके [ारा
समाज को मानिसक जगत म: बहत लाभ !ा\ हआ है।
9.4.2 कुमाउनी लोकगीतY का महgव
कुमाउनी लोकगीत* [ारा मनPु य के भाव* को !कट करने क तरल Fमता !कट होती है
। ये लोकगीत समाज का उिचत मनोरंजन करते हf। साथ ही इनम: अपने समय को Tय_ करने क
पया(\ Fमता होती है। !ोफे सर देविसहं पोखHरया ने ‘कुमाउनी स+ं कृ ित के िविवध आयाम’
पु+तक म: संतराम अिनल के िवचार* को !कट करते हए िलखा है – ‘लोकगीत सािहय क
अमBू य और अनपु म िनिध हf। इनम: हमारे समाज क एक एक रे खा , सामियक बोध क एक एक
अव+था, सामिू हक िवजय पराजय , !कृ ित क गित, िविध, वृF ,पश,ु पFी और मानव के
पार+पHरक संबंध बिल,पजू ा, टोने टुटके , आशा,िनराशा,मनन और िच/तन सबका बड़ा ही
मनोहारी वण(न िमलता है।’
लोकगीत* के मह?व को िन5निलिखत िब/दओ ु ं [ारा समझा जा सकता है -
(1) लोकगीत* म: युगीन पHरि+थितय* का वण(न िमलता है।
(2) ये गीत मानवी संवेदना के हष( - िवषाद, सख ु दःु ख तथा काBपिनकता को
अिभवृ करते हf।

उतराखड मु त िवविवालय 145


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(3) लोकगीत* म: सामािजक पHरवेश को सरस बनाने क कला होती है।
(4) लोकगीत* म: गीित तव तथा लय होने से ये वािचक परंपरा के मनोहारी आयान कहै
जाते हf।
(5) लोकगीत मानव समाज को आिदम परंपरा से सvय समाज क तरफ अ4सर
करते हf।
(6) लोकगीत* म: मौिलकता होती है, जो Tयि_ के जीवन के यथाथ( +व9प को
सामने लाती है।
(7) कुमाऊँ म: !चिलत लोकगीत* म: !येक यगु ानसु ार उनक िवकासवादी धारणा को
समझा जा सकता है।
(8) ये काय( संपादन के तरीक* म: !य_ ु होकर काय( का िनPपादन वHरत गित से
करते हf।
+पOत: लोकगीत* म: समाज के िविभ/न जाितय* , धमg,अन{ु ान* तथा उनके तौर तरीक* पर
!काश पड़ता है। हम लोकगीत* के मा=यम से समाज क तकालीन ि+थित को सरलता से जान
सकते हf।
बोधामक 
क - नीचे िदए गए !o* म: सही िवकBप चनु कर िलिखए -
1. लोकगीत क वह पित िजसम: Sी पु9श एक दसू रे के कंधे म: हाथ डालकर
गोलाकार भाग म: कदम िमलाकर चलते है कहलाती है -
V. बैर
VI. जागर
VII. झोड़ा
VIII. जोड़
2 संवादक मूलक लोकगीत है -
V. झोड़ा
VI. छपेली
VII. चाँचरी
VIII. बैर
3. स+ं कार* के अवसर पर गाए जाने वाले गीत हf -
V. छपेली
VI. भगनौल
VII. फाग
VIII. होली के गीत
(4) लोकगीत* के मह?व पर !काश डािलए

उतराखड मु त िवविवालय 146


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(5) कुमाउनी लोकगीत* के वगUकरण का सबसे सरल और TयावहाHरक आधार कौन सा है
? लोकगीत* का वगUकरण !+ततु किजए।
9.5 कुमाउनी लोकगीत' का संि;> प?रचय
कुमाउनी लोकगीत !ाचीन काल से वत(मान काल तक लोकजीवन म: िनबा(ध 9प से
!चिलत रहै हf।आरंिभक काल से चली आ रही लोकगीत* क परंपरा म: यहाँ क: जनमानस क
!कृ ितपरक , मानवीय संवेदना, िवरह एवं मनोरंजन का पटु +पO झलकता है। पव(तीय जीवन
शैली को आप इन सरु धाराओ ं म: आसानी से पा सकते हf। पशु पिFय* का आलंबन लेकर उसे
मानवीय सKा से जोड़कर लोकगीत* को मम(+पशU बनाया गया है। कुमाऊँ Fे7 म: !चिलत
लोकगीत* म: समय के साथ आए बदलाव को भी परखा जा सकता है। लोकवाणी क तज( पर
िजन !ाचीन गीत* म: !कृ ित स5मत आयान िमलते हf, वहM आधुिनक लोकगीत* म: नए जमाने
क व+तओ ु ं ,फै शन का उBलेख िमलता है। नए लोकगीत Tयावसाियक `िOकोण से बनाए तथा
गाए जाते हf। इन गीत* का =विनम0ु ण उ}च इले Qॉिनक तकनीक पर आधाHरत होता है। इसका
एक !मख ु कारण यह भी है िक कुमाऊँ वासी पहाड़ को छोड़कर मैदानी इलाक* को पलायन कर
रहै हf। मैदानी शहरी िज/दगी म: उ/ह: ये लोकगीत पहाड़ी भाषा क मनोरंजक +मृित मा7 का सख ु
देते हf। िफर भी कुछ लोग मौिलक !ाचीन वािचक परंपरा को अपनाने म: ही िव<ास रखते
हf।कुमाउनी लोकसािहय के मम(R डॉ. देविसहं पोखHरया तथा डॉ. डी. डी. ितवारी ने अपनी
संपािदत पु+तक ’कुमाउनी लोकसािहय’ म: /योली ,जोड़, चाँचरी, झोड़ा, छपेली, बैर तथा फाग
का िवशद वण(न िकया है। यहाँ हम इन लोकगीत* को संFेप म: समझने का !यास कर: गे।
-यौली - /यौली एक कोयल !जाित क मादा पFी है । ऐसा माना जाता है िक यह /यौली
अपने पित के िवरह म: िनिवड़ जंगल म: भटकती रहती है। शािZदक अथ( के 9प म: /यौली का
अथ( नवेली या नये से लगाया जाता है। कुमाऊँ म: नई बह¢ को नवेली कहा जाता है। सदु रू घने
बांज, बरु ांश के जंगलो म: /यौली क सरु लहरी को स‹दय* ने मानवीय संवेदनाओ ं के धरातल पर
उतारने का !यास गीत* के मा=यम से िकया है।/यौली क गायनपित म: !कृ ित, ऋतएु ँ, नाियका
के नख िशख भेद िनिहत हf। छंदशाS के `िOकोण से /यौली को चौदह वणg का म_ ु क छंद
रचना माना जाता है।
/यौली का उदाहरण -
चमचम चमक छी यार नाकै क फूली
धार म: धेकािल भै छै , जिन िदशा खल ु ी
(तेरे नाक क फूली चमचम चमकती है, तमु िशखर पर !कट या हई ऐसा लगा िक जैसे िदशाएँ
खल ु गई ह* )
जोड़ - जोड़ का अथ( जोड़ने से है । गिणत म: दो और दो चार होता है। कुमाउनी लोकसािहय म:
जोड़ का अथ( पद* को लयामक ढ़ग से Tयवि+थत करना है। संगीत या गायन शैली को देखते
हए उसे अथ(लय म: ढाला जाता है। जोड़ और /यौली लगभग एक जैसी िवशेष ता को !कट

उतराखड मु त िवविवालय 147


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
करते हf। 0ुत गित से गाए जाने वाले गीत* म: हBका िवराम लेकर ’ जोड़’ गाया जाता हf। जोड़
को लोकगायन क अनठू ी िवधा कहा जाता है।
उदाहरण -
दातलु ै िक धार दातल ु ै क धार
बीच गगं ा छोिड़ rयैयै नै वार नै पार
(अथा(त दराती क धार क तरह बीच गगं ा म: छोड़ गया, जहाँ न आर है न पार )
चाँचरी - चाँचरी शZद क उपिK सं+कृ त के ’चच(री’ से मानी गई है। इसे नृय और ताल के
सयं ोग से िनिम(त गीत कहा जाता है। कुमाऊँ के कुछ भाग* म: इसे झोड़ा नाम से भी जाना जाता
है। ’चाँचरी’ !ायः पव(,उसव* और +थानीय मेल* के अवसर पर गाई जाती है। यह लोकगीत
गोल घेरा बनाकर गाया जाता है, िजसम: Sी प9 ु श पैर* एवं संपणू ( शरीर को एक िवशेष लय
kमानसु ार िहलाते डुलाते नृय करते हf। चाँचरी !ाचीन लोकिवधा है। मौिखक परंपरा से समृ
हई इस शैली को वत(मान म: भी उसी 9प म: गाया जाता है। चाँचरी म: िवषय क गहनता का बोध
न होकर +व+थ मनोरंजन का भाव होता है, जो लोग* को शा◌ीरHरक और मानिसक 9प से
लाभ पहचँ ाता है।
उदाहरण - काठ को किलज* तेरो छम
( वाह! का कलेजा तेरा या कहने )
चाँचरी म: अतं और आिद म: ’छम’ का अथ( बलपवू (क कहने क परंपरा है। छम का अथ( घघु 9ँ
के बजने क आवाज को कहा जाता है। छम’ कहने के साथ ही चाँचरी गायक पैर व कमर को
झक ु ाकर एक हBका बलपवू (क िवराम लेता है।
झोड़ा - जोड़ अथा(त जोड़ा का ही दसू रा Tयव‹त 9प है झोड़ा। कुमाउनी म: ’झ’ वण( क
सरलता के कारण ’ज’ वण( को ’झ’ म: उ}चHरत करने क परंपरा है। झोड़ा या जोड़ गायक दल*
[ारा गाया जाता है। एक दसू रे का हाथ पकड़कर झमू ते हए यह गीत गाया जाता है। इसे सामूिहक
नृय क संRा दी गई है। िकसी गाथा म: +थानीय देवी देवताओ ं क +तिु त या िकसी गाथा म:
िनिहत पराkमी चHर7* के िच7ण क वृिK िनिहत होती है।
उदाहरण -
ओ घटै बजु ी बाना घटै बजु ी बाना
पिट म: पटवाHर हछँ ौ गs म: पधाना
आब जै के हँ छै खणयणूं ी बिु ड़यै क hवाना
(नहर बांध कर घराट (पनच क) चलाई गई पˆी म: पटवारी होता है गांव म: होता है !धान अब
तू बूढ़ी हो गई है कै से होगी जवान)
छपेली - छपेली का अथ( होता है िF! गित या वHरत अथवा 0ुत वाकशैली से उूत गीत ।
यह एक नृय गीत के 9प म: !चिलत है। लोक के तक( पूण( मनोिवRान क झलक इन गीत* म:
आप आसानी से पा सकते हf। लोकोसव*, िववाह या अ/य मेलो आिद के अवसर पर लोक
सां+कृ ितक !+तिु त के 9प म: इन नृय गीत* को देखा जा सकता है। छपेली म: एक मल ू गायक

उतराखड मु त िवविवालय 148


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
होता है। शेश समूह के लोग उस गायक के गायन का अनक ु रण करते है। Sी प9ु श दोन*
िमलकर छपेली गाते हf। मल ू गायक !ायः प9 ु श होता है, जो हड़का नामक लोकवा के
मा=यम से अिभनय करता हआ गीत !+तुत करता है।
छपेली म: संयोग िव!ल5भ |ृंगार क !धानता होती है। !ेम क स}ची भावना को सुमधुर ढ़ग से
गायक म: अिभTय_ िकया जाता है।
उदाहरण - भाबरै िक लाई
भाबरै क लाई
कै ले मेHर साई देिख
लाल सािड़ वाई
(भाबर क लाही भाबर क लाही िकसी ने मेरी लाल साड़ी वाली साली देखी)
बैर - बैर शZद का !योग !ायः दु मनी से िलया जाता है। लोकगायन क परं◌ेपरा म: बैर का
अथ( ’[/[’ या ’संघष(’ माना गया है। बैर तािक( क !oोKर* वाली वाक् य ु पूण( शैली है। इसम:
अलग अलग पF* के बैर गायक गूढ़ रह+यवादी !o* को दसू रे पF से गीत* के मा=यम से पछ ू ते
हf। दसू रा पF भी अपने संिचत Rान का समšु ाटन उKर के 9प म: रखता है। बैर गायक िकसी भी
घटना , व+तिु +थित अथवा चHर7 पर आधाHरत सवाल* को दसू रे बैHरय* के समF रखता है।
अ/य बैर गायक अपनी वHरत बुि Fमता से इन !o* का ताबड़तोड़ उKर देकर उसे िन9Kर
करने का !यास करते है। कभी कभार इन बैHरय* म: जबरद+त क िभड़/त देखने को िमलती है।
हार जीत के लIय पर आधHरत इस गीत का पर+पर संवादी kम बड़ा ही रोचक होता है। इनके
!o* म: ऐितहािसक चHर7 एवं घटना तथा मानवीय !कृ ित के िविवध 9प समािवO रहते हf।
फाग - कुमाउनी सं+कृ ित म: िविभ/न सं+कार* के अवसर पर गाए जाने वाले मांगिलक गीत* को
’फाग’ कहा जाता है। कही कही होली के मंगलाचरण तथा धनू ी के आशीवा(द लेते समय भी
फाग गाने क परंपरा िवमान है। शभु मंगल कायg यथा ज/म एवं िववाह के अवसर पर
’शकुनाखर ’ और फाग गाने क अ!ितम परंपरा है। ’फाग’ गायन के वल िSय* [ारा ही होता है।
होली के अवसर पर देवालय* म: ’फाग’ प9 ु श गाते हf। कुमाऊँ म: सं+कार गीत* क दीघ(कालीन
परंपरा को हम ’फाग’ के 9प म: समझते हf। फाBगनु मास के आधार पर ही ’फाग’ का !ादभु ा(व
माना जाता है। मनPु य के गभा(धान,ज/म, नामकरण, यRोपवीत, चड़ू ाकम(
िववाह आिद सं+कार* के अवसर पर यR अन{ु ान के साथ इन गीत* का वाचन िकया जाता है।
गीत गाने वाली बजु गु ( मिहलाओ ं को ’गीदार’ कहा जाता है।
उदाहरण - शकूना दे, शकूना दे सब िसि
काज ए अित नीको शकूना बोल दईणा
(शकुन दो भगवान शकुन दो सब काय( िस हो जाएँ सगनु आखर से सारे काज स/ु दर ढ़ग से
स5प/न हो जाएँ )
बोध !o
अित लघउु Kरीय !o

उतराखड मु त िवविवालय 149


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1- ’/यौली’ का एक उदाहरण दीिजए।
2- फाग िकस 9प म: गाए जाते हf ?
3- झोड़ा िकस !कार गाया जाता है ?
4- चाँचरी से या तापय( है ?
9.6 सारांश
!+ततु इकाई का अ=ययन करने के उपरातं आप -
• कुमाउनी लोकगीत* का अथ( +व9प तथा इितहास समझ गए ह*गे।
• आपने समझ िलया होगा िक िवषयव+तगु त आधार पर वगUकरण करने से
आपके अ=ययन क 9परे खा सरल और +पO हो गई है।
• कुमाउनी भाषा और बोिलय* के लयामक +व9प को जान गए ह*गे।
• कुमाऊँ म: !चिलत लोकगीत* क िवशेष ताएँ और मह?व को समझ चुके
ह*गे।
• !मखु कुमाउनी लोकगीत* का पHरचय !ा\ कर चुके ह*गे।
9.7 श"दावली
आशु - मौिखक
उŒार - !कट होने वाले भाव
िनछल - छल रिहत
उपोदय - उपयोगी
+फुट - अ/य, !कण(
सि/निहत - समाया हआ
गीदार - गीतकार
शकुनाखर - सगनु के आखर
/यौली - नवेली, नई
अ!ितम - अनठू ी, अनोखी
फाग - सं+कार गीत
बैर - सघं ष(
छपेली - िF!गित वाली
9.8 अ%यास &' के उ(र
9.3 के उKर
1- पव( सबं धं ी गीत
2- गौरीदK पाडे

उतराखड मु त िवविवालय 150


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3 - ऋतु गीत
9.4 के उKर
क (1) झोड़ा
(2) बैर
(3) फाग
9.9 संदभ *+थ सूची
1. जोशी, कृ Pणानंद , कुमाउनी लोकसािहय , धािम(क गीत ,112
2. पवू l_ , सं+कार गीत (1)
3. पाडे ि7लोचन ,कुमाऊँ का लोकसािहय , पृ -124,
4. पवू l_ , पृ - 126
5. अचल, जल ु ाई 1938, |ेणी - 1, |ृंग - 6,
6. इिं डयन एटं ी वेरी ,िजBद 14 (1885)
7. धम(यगु , अ टूबर 31, 1954 ,
8. िलंिrवि+टक सव ऑफ इिं डया, खंड 9, भाग 4 ,पृ -167.
9. कुमाउनी लोकसािहय , देविसहं पोखHरया , डी.डी. ितवारी , पृ 2- 12
10. पाडे, ि7लोचन ,कुमाउनी भाषा और उसका सािहय, उKर !देश ,िह/दी सं+थान, पृ -
190- 211
11. बटरोही , कुमाउनी स+ं कृ ित, पृ - 13-25
12. पोखHरया, देविसंह , कुमाउनी सं+कृ ित के िविवध आयाम, पृ- 13- 15
9.10 उपयोगी / सहायक *थ
ं सच
ू ी
1- /यौली सतसई , डॉ.देविसहं पोखHरया, अBमोड़ा बकु िडपो
2- कुमाउनी किव गौदा( का काTय दश(न, स.ं चा9च/0 पाडे
3- कुमाउनी भाषा , डॉ. के शव दK 9वाली
4- कुमाउनी िह/दी शZद कोश, डॉ. नारायण दK पालीवाल
5- कुमाऊँ का लोक सािहय , डॉ. ि7लोचन पाडे
6- कुमाउनी भाषा का अ=ययन, डॉ. भवानी दK उ!ेती
9.11िनबंधामक &
1-कुमाउनी लोकगीत* क िवशेष ताएँ बताते हए इसके मह?व पर !काश डािलए।
2-कुमाउनी लोकगीत* के िवषयगत आधार पर िव+तृत वगUकरण !+ततु किजए।
3-लोकगीत या हf ? कुमाउनी लोकगीत* क िविवध िवधाओ ं का वण(न किजए।

उतराखड मु त िवविवालय 151


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई - 10 गढ़वाली लोक सािहय का इितहास एवं
व@प
इकाई क परे खा
10.1 तावना
10.2 उेय
10.3 गढ़वाली लोक सािहय का इितहास एवं वप
10.3.1 गढ़वाली और गढ़वाली लोक मानस
10.3.2 गढ़वाली लोक सािहय के संरEक
10.3.3 गढ़वाली लोक सािहय का ;िमक िवकास
10.3.4 गढ़वाली लोक सािहय का वगFकरण
10.3.5 गढ़वाली लोक सािहय क भाषा
10.3.6 गढ़वाली का काAयामक (गेय) लोक सािहय
10.3.7 गढ़वाली का नाट्य सािहय
10.4 लोकवाता& के प मK ाN सािहय
10.5 सारांश
10.6 अ+यास ,
10.7 पा रभािषक श(दावली
10.8 अ+यास ,- के उ.र
10.9 संदभ& /ंथ सचू ी
10.10 सहायक उपयोगी पाठ्य साम/ी
10.11 िनब0धामक ,

उतराखड मु त िवविवालय 152


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
10.1 तावना
लोक का अपना एक +वतं7 अि+तव होता है उसके !भामंडल क पHरसीमा म: उसक
स+ं कृ ित, कलाएं , िव<ास, भाषा और इितहास-धम( सब कुछ आ जाता है । इ/ह: लोक से अलग
करके नहM देखा जा सकता है । डॉ. गोिव/द चातक के अनुसार, ‘लोक मानस क उावना म:
इसके साथ ही सामिू हक जीवन-पित का बड़ा हाथ होता है ।’ उसम: यथाथ( और कBपना म: भेद
करने क !वृिK पर बल नहM होता, इसिलए जड़-चेतन क समान अवधारणा पर उसका िव<ास
बना रहता है । लोक सािहय म: यही लोक मानस बोलता है । मोहनलाल बाबल ु कर ‘गढ़वाली
लोक सािहय क !+तावना’ प+ु तक क भिू मका म: इस बात को और अिधक +पO करते हए
िलखते हf िक, “साधारण जनता िजन शZद* म: गाती है, रोती है, हॅसती है और खेलती है । इन
सबको लोक सािहय के अ/तग(त रखा जा सकता है । वे लोक सािहय क !ाचीनता के िवषय
म: उBलेख करते हf िक, ‘ऋrवेद म: अनेक लोक कथाएं उपलZध हf । शतपथ qाहमण और एतरे य
qाहमण म: ऐसी ही गाथाएं ं !ा\ होती हf । भारतीय नाट्य शाS ने भी लोक !चिलत नाटक* को
अपना िववे}य िवषय बनाया है । गणु ाढ्य क वृहकथा , सोम देव के ‘कथा सHरत सागर’ म:
लोक मानस ही विण(त है । म=य यगु ीन िनजंधरी कथाओ ं म: भी मल ू 9प से लोक कथाएं ही हf’ ।
लोकगीत*, लोकनाट्य*, लोककथाओ,ं लोक गाथाओ ं यहाँ तक िक लोक भाषाओ ं म: भी
लोक,रसा-बसा रहता है । लोक का !देय ही लोक सािहय है । यही करण है िक लोक को और
उसके सािहय को अलग करके नहM देखा जा सकता है । िनPकष(तः लोक का सािहय ही लोक
सािहय है ।
लोक को जानने - पहचानने के िलए सािहय के इितहास को जानना भी ज9री है! य*िक लोक
जैसे -जैसे आगे बढ़ता है, उसक सं+कृ ित िवकिसत होती चली जाती है और उसका इितहास भी
सं+कृ ित का अनगु मन करता हआ आगे बढ़ता रहता है । इस तरह से भाषा का सं+कृ ित का और
लोक Tयवहार का 9प सदैव बदलता रहता है वे िनरंतर पHरPकार पाते रहते हf ।लोक के इन
घटक* के साथ-साथ लोक सािहय भी अनपु द चलता रहता है । और उसके साथ-साथ सािहय
का इितहास भी सृिजत होता रहता है । अतएव ’लोक’ को जानने के िलए उसक परंपराएं,
रीितHरवाज, जातीय िव<ास िमथक, आिद को जानना ज9री होता है । िबना इ/ह: जान: आप
लोक को नहM समझ पाएंग: । लोक को समझन: म: लोक सािहय पथ !दश(क का काय( करता है ।
अतः लोक सािहय के +व9प को जानना भी हमारे िलए परम आवयक हो जाता है । लोक
सािहय के +व9प के अ/तग(त, लोक सािहय क भाषा, उसक !कृ ित, सभी ग-प नाटक
आिद िवधाएं ,उसक सृजन !िkया भेद-उपभेद, और सs/दय( तव* का ग5भीर अ=ययन
आवयक होता है । अतएव लोक सािहय के +व9प के साथ-साथ उसके kिमक वृिंगत
इितहास पर भी आपक `िO रहनी चािहए ।

उतराखड मु त िवविवालय 153


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
10.2 उेय
‘गढ़वाली लोक सािहय’ अ/य भारतीय !देश* के लोक सािहय क तरह रोचक और
लोक मानस का !ितिनिधव करता है । अतएवं ‘गढ़वाली लोक मानस’ के लोक सािहय के
kिमक इितहास को समझना ही इस इकाई लेखन का मु य उGेय है । इस का अ=ययन करने से
आप गढ़वाली लोक मानस के +वभाव उनक !वृिKय*, उनके लोक सािहय म: लोक िव<ास*,
िमथक* तथा उनके लोक सािहय क बनावट व बनु ावट के बारे म: जान सक: ग: तथा साथ ही
आप गढ़वाली लोक सािहय के उव एवं िवकास के kमब इितहास को भी जान सक: गे.
10.3 गढ़वाली लोक सािहय का इितहास एवं व@प
10.3.1 गढ़वाल और गढ़वाली लोक मानस
हHरकृ Pण रतड़ू ी के अनसु ार, “बावन गढ़* के कारण इस !देश का नाम गढ़वाल पड़ा है ।
लगभग 1500 ई. म: राजा अजयपाल ने इन बावन गढ़* को जीतकर सबक* अपने राhय म: िमला
िदया । तब से इस पूरे पव(तीय !देश को िजसम: वे बावनगढ़ थे गढ़वाल कहा जाने लगा ।,
एच0जी बाBटन ने अपनी प+ु तक ’िqिटस गढ़वाल गजेिटयर’ म: बहत सारे गढ़* वाला अच ं ल
(गढ़वाल) !कारा/तर से कहा है । पातीराम ने अपनी िकताब ’गढ़वाल ए/से/ट एंड माड(न’ म:
’गढ़पाल से गढ़वाल’ नाम पड़ा +वीकार िकया है । डॉ. हHरदK भˆ शैलेश’ ने अपनी पु+तक
गढ़वाली भाषा और उसका सािहय म: िलखा है, ‘मेरी मा/यता है िक गढ़वाल शZद गडवाल से
िनकला है । ’गड् और वाड’ ये दोन* शZद वैिदक सं+कृ त के हf । और इनका गढ़वाली भाषा म:
!चुर मा7ा म: !योग हआ है’ ।
‘गाड़’ बड़ी नदी और ‘गड़’ छोटी निदय* जैसे -दु गड, लोधगड आिद। यहाँ अनेक गड़ छोटी
निदयाँ हf । इसिलए गड़वाल छोटी-छोटी असंय निदय* का !देश गढ़वाल हआ । वाल-वाला ।
वाल शZद गढ़वाली म: बहत !य_ ु होता है । जैसे -सेमवाल, डंगवाल आिद ।
किववर भश ू ण ने भी अपनी एक किवता म: इस भभू ाग के िलए ’गडवाल’ शZद का !योग िन5न
प म: िकया है-
“सयु स ते भलो मुख भश ू ण भनैगी वािट
गडवाल राhय पर राज जो बखानगो ।’’
यहां के मूल िनवासी कौन थे, यह कहना किठन है । !ागैितहािसक काल म: यहां कF-िक/नर,
ग/धव(, नाग, िकरात, कोल, तंगण,कुिल/द, खस आिद जाितयॉ ं िनवास करती थी । इस के म=य
भाग म: कोल, भील और राज+थान, गजु रात,महाराPQ् और बगं ाल से यहां बसी हई जाितयॉ
िनवास करती है। िज/ह: अब गढ़वाली कहते हf । वत(मान म: उKर भारत के अनेक नगर* म: रहने
वाले लोग यहाँ बसने के िलए ललाियत रहने लगे हf । यह यहाँ क सं+कृ ित ,!ाकृ ितक छटा और
शा/त वातावरण का !भाव माना जा सकता है । गढ़वाली लोक मानस, भोला-भाला,
आि+तक,!कृ ित !ेमी, शा/त और पर5परावादी है । वह लोक अन|ु िु तय*, 9िढ़य*,देवीदेवताओ ं
क पजू न क िविवध पर5पराओ ं और वीर योाओ,ं !ेिमय*, धािम(क* के चHर7 से !भािवत

उतराखड मु त िवविवालय 154


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
रहता है । अनेक वा‰ समागत* के गढ़वाल म: बस जाने पर अब गढ़वाली जनमानस उनक
स+ं कृ ित को भी अपनाने लग गया है । िववाह के अवसर* पर ‘पजं ाबी भाँगडा’ गजु राती ‘गरबा’
राज+थानी नृयगान भी लाकि!य हाते जा रहै हf । बाहर से आए वा वादक, बfड क धुन म:
गढ़वाली गीत* को ऐसे गाते और बजाते हf जैसे वे वषl से यहM बसे ह* । गढ़वाली जनमानस ने
अपनी पर5पराओ ं के साथ, देव पजू न आिद म: और योहार* क रीित नीितय* म: भी भारी
पHरवत(न करके अपने िमलनशील +वभाव और घुलनशील सं+कृ ित का पHरचय दे िदया है ।
गढ़वाली लोक मानस क भाषा का नाम भी इस !देश के नाम के अनसु ार ’गढ़वाली’ ही है ।
गढ़वाल क भाषा गढ़वाली । गढ़वाली म: वैिदक सं+कृ त, और शौरसेनी !ाकृ त के शZद अिधक
संया म: िमलते हf । 0िवड़ भाषा के शZद ओैर उद(,ू अ4ं ेजी, िह/दी तथा राज+थानी,
गजु राती,महाराPQी भाषाओ ं के अनेक शZद* को गढ़वाली जनमानस ने अपनी भाषा म: +थान
िदया है । अब वे इस भाषा म: ऐसे घलु -िमल गए हf िक उनका +वतं7 अि+तव सरलता से पता
नहM लगता है । भाषा के साथ यहॉ का सािहय भी बंगाली, राज+थानी,ओैर गजु राती सािहय से
आंिशक !भािवत जान पड़ता है ।
यहाँ क वीरगाथाएं, लोककथांएं और पवाड़* का +वर सरगम बहत कुछ राज+थानी से !भािवत
लगता है । वीरता, !ेम, !ितRा पालन, धम( रFा, दैवीशि_य* पर िव<ास, जाद-ू टोना, नृयगान
म: अिभ9िच आिद इसके !माण हf । !कृ ित!ेमी गढ़वाली लोक मानस क गंगा जी और
चार*धाम* (ब0ीनाथ, के दार नाथ, गंगो7ी और यमनो7ी) म: अगाध |ा है । देश क सीमा पर
आज भी यहाँ के वीर सैिनक तैनात हf जो िक देशभि_, और कत(Tयपरायणता के !तीक बनकर
गढ़वाली लोक मानस क एक िदTय छिव, देश और िव< के आगे रखते हf । तथािप
शराबखोरी,अकम(यता आिद दगु (णु * से भी यहां का लोकमानस म_ ु नहM माना जा सकता है.
10.3.2 गढ़वाली लोक सािहय के सरं Dक
गढ़वाली का लोक सािहय गामक और पामक दो 9प* म: !ा\ होता है । बहत-
सा अिलिखत सािहय |िु त पर5परा से बाजिगय*, व पंिडंत* [ारा रटा-रटाया होने से सरु िFत है ।
यहाँ के लोक ने वीर* क गाथाओ ं को पर5परा से गा-गाकर सरु िFत रखा, नानी ओर दािदय* ने
लोक कथओ,ं बालगीत* (लोHरय*) और ऐणा-मेणा (पहैली और लोकोि_य*) को ब}च* को
सनु ा-सनु ाकर जीिवत रखा है। साथ ही जागHरय*, और पवाडा गायक* ने देव गाथाओ ं तथा |ंगार
वीरता से भरे , गीत* तथा वाता(ओ ं व कथास7ू * को सरु िFत रखकर अपने कत(Tय का पालन
िकया है। गढ़वाली के िलिखत सािहय को खोजने का काम अ4ं जे िव[ान* तथा अिधकाHरय* ने
सव( !थम िकय।, म=य पहाड़ी और गढ़वाली बोली लोक सािहय के संकलन म: एटिक/सन के
साथ उनके गढ़वाली िव[ान* का अवदान सराहनीय रहा है । िजनम: +व0 तारादK गैरोला’ पादरी
िम+टर ओकले, भजन िसंह, िसंह, डॉ. गोिव/द चातक आिद का नाम अ4गय कहा जा सकता
है । डा0 गोिव/द चातक ने जहॉं लोक गीत- और लोक कथाओ ं तथा लोक गाथाओ ं का
संकलन िकया, वहM मोहनलाल बाबल ु कर ने गढ़वाली लोक सािहय का िववेचन करके उसके
+व9प तथा िवकास को दशा(या है । इ/ह*ने ही पहली बार लोक सािहय का वैRािनक िववेचन

उतराखड मु त िवविवालय 155


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!+ततु िकया । चातक जी ने गढ़वाली लोक सािहय को एक साथ अनेक पु+तक* म: िह/दी
अनवु ाद के साथ !+ततु िकया है । डॉ. हHरदK भˆ ‘शैलेश’ ने गढ़वाली के भाषा तव पर
अनसु ंधानपरक 4ंथ िलखे (गढ़वाली भाषा और उसका सािहय) उनक उBलेखनीय प+ु तक है ।
स!ु िस लेखक भजन िसंह,िसंह, जनाद(न काला, अबोध बंध।ु बहगणु ा, डॉ. महावीर !सार
लखेड़ा, क/हैयालाल डंडHरयाल,डॉ. !याग दK जोशी,डॉ. जगद5बा!साद कोटनाला और
डॉ.न/दिकशोर ढ£िडयाल ने गढ़वाली लोक सािहय के लेखन एवं संवध(न म: उBलेखनीय काय(
िकया है ।
10.3.3 गढ़वाली लोक सािहय का िमक िवकास
मोहनलाल बाबल ु कर ने अपनी प+ु तक गढ़वाली लोक सािहय क !+तावना म:
गढ़वाली लोक भाषा के िलिखत िवकास के पाँच चरण माने हf ।(1) आरि5भक यगु (2)
गढ़वाली यगु (3) िसंह यगु (4)पॉधरी यगु (5)आधिु नक यगु । वे िलखते हf, िक गढवाली भाषा
म: िलिखत परंपरा सन् 1800 से !ार5भ हई !तीत होती है । इस संदभ( म: भी िव[ान* के अनेक
मत हf। कई िव[ान गढवाली भाषा क िलिखत पर5परा सन् 1850, तो कोई 1852, तथा कोई
1900 ई. को आधिु नक यगु ,अथवा आरि5भक युग मानते हf । !ार5भ क रचनाएं हHरकृ Pण
दौगा(दिK, हष(परु ी लीलान/द कोटनाला क हf । सन् 1892 म: गढवाली भाषा म: िमिशनHरय* ने
बाईिबल !कािशत क, और गोिव/द !साद िघिBडयाल क गढ़वाली िहतोपदेश छापी ।
!ारि5भक यगु क दो किवताय: , चेतावनी,और ‘बरु ो संग’(हष(परु ी) जी क है । गढवाली यगु
गढवाली प7 के !काशन से !ार5भ होता है । 1905 म: गढवाली के अंक म: !कािशत ‘उठा
गढ़वािलय*’ सयशरण रतड़ू ी क रचना थी, िजसने गढवाली मानस को झकझोर िदया था ।
च/0मोहन रतूड़ी, आमाराम गैरोला, तारादK गैरौला, िगHरजादK नैथानी, िव<5भर दK च/दोला
बBदेव !साद शमा( ‘दीन’ क रामी तारादK गैरोला क सदेई और योगे/0 परु ी क फुलकंडी,
चkधर बहगणु ा क रचना मोछंग तोताकृ त गैरोला का !ेमीपिथक भवानीदK थिपिलयाल के ,
जयिवजय और !हलाद नाटक ने गढ़वाली के प और नाट्य सािहय क |ीवृि क ।
गढवाली छ/दमाला (लीलान/द कोटनाला) तथा गढ़वाली पखाणा(शाली4ाम वैPणव) क
कालजयी कृ ितयाँ हf । भजन िसहं ‘िसंह’ अपने कृ ितव से एक यगु !वत(क किव और लेखक के
9प म: गढवाली लोक सािहय म: अवतHरत हए । उनका यगु उनके नाम से ही (‘िसंह यगु ’)
कहलाने लगा. इस कालखंड के लोक सािहयकार* म: भजनिसंह,िसंह के अितHर_ कमल
सािहयलंकार , िवशालमिण शमा(, लिलता!साद ‘ललाम’ सयशरण रतड़ू ी उBलेखनीय हf ।
पांथरी यगु के कण(धार भगवती !साद पांथरी थे । उनक रचना बजवासरु ी के बाद भगवतीचरण
‘िनमlही’ क िहलांश प9 ु षोKम डोभाल क वास/ती तथा भगवती!साद पांथरी िलिखत नाटक
भतू * क खोह, पाँचफूल उBलेखनीय कृ ितयाँ हf । इस यगु के +वनाम ध/य किवय* म: अबोधब/धु
बहगणु ा, क/हैयालाल डंडHरयाल, िगरधारी !साद कंकाल सदु ामा!साद !ेमी, सि}चदान/द
कांडपाल, उमाशंकर ‘सतीश’ डॉ. प9 ु षोKम डोभाल , आिदय राम ददु पड़ु ी, महावीर !साद
गैरोला, जीतिसहं नेगी और डॉ. गोिव/द चातक उBलेखनीय हf । आधिु नक यगु के गढवाली

उतराखड मु त िवविवालय 156


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
लोक सािहयकार* म: नरे /0 िसंह नेगी, मधसु दू न थपिलयाल,कुटुज भारती, िनरंजन
सयु ाल,लोके श नवानी, रघवु ीर िसंह रावत ‘अयाल’ , महै/0 =यानी और च/0 िसहं राही !मख ु हf
10.3.4 ’गढ़वाली लोक’ सािहय का वगGकरण
(क) लोक गाथा - गढवाली लोक सािहय को िवशेष कर लोक गाथाओ ं को डॉ. गोिव/द
चातक ने चार भाग* म: बाँटा है-
(1) धािम(क गाथाएं (2) वीरगाथाएं (3) !णय गाथाएं (4) चैती गाथाएं । इनम: अिधकांश
धािम(क गाथाओ ं का आधर पौरािणक है । वीरगाथाओ ं म: तीलरू ौतेली, लोदी Hरखोला, कालू
भडं ारी,रणरू ौत, माधोिसंह भडारी क !मख ु गाथाएं हf। !णय गाथाओ ं म:, ितBलोगा (अमरदेव
सजवाण) राजल ु ा मालूशाही तथा धािम(क गाथाओ ं म: पाडव गाथा, कृ Pण गाथा,कु0ू-िवनता,
और सृिOउपिK गाथा मुय है ।
(ख) लोक कथा - कथा शZद सं+कृ त क ‘कथ’् धातु से बना है । िजसका अथ( है ‘कहना’ ।
कहना से ही कहानी बनी है । कथसे ’कथा’शZद िनPप/न हआ है । लोक अपनी बात को अपने
कथन को िजस िविध से कहता है वही लोककथा है । लोक कथा म: लोक मानस क अपनी
Tयथा-कथा और कBपना, तथा रह+य-रोमांच, िव<ास,रीित- Hरवाज Tयव+था, 9िढ़ और िमथक
(लोक िव<ास) काय( करते हf । इ/हM से लोक का ‹दय कथा बनु ता है । उसम: !ाण डालता है
और लोक ही उसे मा/यता भी देता है । लोक कथाएं लोक का !ितिनिधव करती हf । गढवाली
म: कथा-कानी, बारता तीन* शZद* का Tयवहार होता है । गढ़वाली क लोक कथाएं अपने वय(
िवषय के कारण िन5नवत् वगUकृ त हf -1 ‘देवी-देवताओ ं क कथाएं , 2 पHरय*, भतू *,!ेत* क
कथाएं 3 आँछHरय* क कथाएं 4 वीरगाथाएं 5 पशु पिFय* क कथाएं 6 ज/मा/तर-पनु ज(/म
क कथाएं 7 9पक और !तीक कथाएं 8 लोकोि _ अnसराओ ं क कथाएं । पिFय* क
गढ़वाली कथाएं िन5न 9प* म: वगUकृ त क गई हf -
पFीकथाएं - चोली, िघडूडी,घमु ती, कौआ, पता परु कनी, िज+ता, हाथी-िटट*, सम0ु भट्कुट9,
करf , कठफोड़वा, सतरपथा-परु ै -परु ै , सौयापतू परु फुरै , ितल9, +याल ।
पशुकथाएं - +याल हाथी क कथा /+याल बाघ क कथा/+याल भगवान क कथा/ ऊॅट हाथी
क कथा , बाघ और बटोही क कथा/िहरण +याल और कौआ/ +याल और तीतर ।
Rान नीित क कथाएं -अ}छी सलाह / दख ु ः म: िचतैक, वफादार कुKा,मह?वाकांFा आिद इस
!कार लोक कथा के अ/तग(त कितपय लोक कथाएं (देव िवषयक) भी िगनी जा सकती हf ।
yत कथाएं - पणू म( ासी,बैकुठं चतदु श ( ी, िशवरा7ी, सक ं टचौथ आिद क कथा भी गढ़वाली लोक
सािहय म: !कारा/तर से !ा\ होती है ।
Tयंrय कथाए - क/हैयालाल डंडHरयाल क हा+य Tयंrय कथा के अ/तग(त ‘सयनारायण क
कथा’ इसका उदाहरण है । वत(मान समय म: |ी नरे /0 कठै त क Tयगं ामक कथाएं /कहािनयाँ
बहचिच(त हो रही हf िजसम: उनक ‘धनिसंगै बागी फ+ट’ कुBला-िपचकरी,कृ ितयाँ उBलेय हf।

उतराखड मु त िवविवालय 157


तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
10.3.5 गढ़वाली लोक सािहय क भाषा
गढ़वाली के लोक सािहय से पहले हम आपको गढ़वाली भाषा के िलिखत 9प से
पHरिचत कराएंग: । गढ़वाली भाषा क पहली िवशेष ता यह है िक गढ़वाली उकार बहला भाषा
है और इसक उपिK शौरसेनी अपmंश से हई है । गढ़वाली भाषा के आरि5भक िलिखत 9प
का पता देव!याग मंिदर के सन् 1335 के महाराजा जगतपाल के दान पा7 से चलता है यह
िववरण गढ़वाली भाषा म: िन5नवत् है -
“|ी संवत1् 412 शाके 1377 चै7मासे शु ल पFे चतथु U ितथौ रिववासरे जगतीपाल रजवार
ले0 शंकर भारती कृ Pण भˆ कs रामच/0 का भˆ सव(भिू म जािषनी कती जी यांटो मट
िसलापट”।
अब देवलगढ़ म: महाराज अजयपाल (1460-1519) का लेख देिखए
’अजैपाल को धरम पाथो भंडारी करs उक’ ।
अब महाराजा पृ@वीशाह (1664) का गढ़वाली म: िलखा लेखांश !+तुत है “|ी महाराजा
पृ@वीपित hयू का राhय समये |ी माधोिसंह भंडारी सुत |ी गजेिसंह hयू क पिल परम् िविच7
|ी मथरु ा वौराणी hयूल तथा तप7ु अमरिसंह भंडारी hयूल पाट चढ़ाया !ित{ा कराई......” इन
लेख* म: दी गई गढ़वाली भाषा को पढ़कर अब आप जान गए ह*गे िक इसम: गढ़वाली के साथ
सं+कृ त शZद* क भरमार है
‘ि4यस(न’ ने गढ़वाली के िवषय म: िलखा है िक “यह +थान-+थान पर बदलती है ।
यहाँतक क परगनै क बोली का भी अपना िभ/न 9प है, !येक का अपना +थानीय नाम भी है
िफर भी गढ़वाली का अपना एक आदश(9प (+टैडड() है’।’’ ि4यस(न ने गढ़वाली के आठ भेद
माने हf जो िन5निलिखत हf -
1- |ीनगरी 2- नागपुHरया 3-बधांणी, 4-दसौBया 5-राठी 6- िटहHरयाली 7- सलाणी 8-माझ-
कुमैŠया ।
“िकसी आदमी के दो लड़के थे’’ इस वा य म: इन भाषाओ ं के 9प देिखये-
1- |ीनगरी- कै आदमी का [ी नो/याल छया ।
2- नागपHु रया- कै वैख का दईु लsडा छया ।
3- दसौBया- कई आदमी का दईु लडीक छया ।
4- बधाणी- कै आदमी का ि[ िछचौड़ी िछया ।
5-राठी- कै मनख क [ी लौड़ छाया ।
6- िटहHरयाली- एक झणा का [ी नौ/याल थया ।
7-सलाणी- कै झणा का दईु नौना छया ।
इस उदाहरण से आप समझ गए ह*ग: िक गढ़वाली क िkयाएं एवं वा य +थान-+थान
व (!येक िजले) म: िभ/न हf । िफर भी वे अ}छी तरह समझ म: आ जाती हf । सं+कृ त से िबगडे़
हए तव और शौरसेनी !ाकृ त से ये 9प !भिवत !तीत होते हf । अब हम आपको गढ़वाली के
िलिखत लोक सािहय क संिF\ िक/तु सारगिभ(त जानकारी दे रहै हf ।

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तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
10.3.6 गढ़वाली का का1यामक (गेय) लोक सािहय
हष(परु ी जी िजनके िवषय म: आप पहले भी अ=ययन कर चक ु े हf उनके [ारा िलिखत
किवता ‘बरु ोसंग’ गढ़वाली म: िलिखत पहली गेय किवता है । िजसक बानगी (+व9प) इस
!कार है-
“ अकुलौ माँ मायाँ करी कै क बी नी पार तरी ।
बार िवधा िसर थरी,वैकु िव कू रोय:द” ।।
इ/हM का एक िवरह गीत देिखए -
“आयो चैतर मास सणु ा दs मेरी ले सास ।
वण-वणडू े सबी मौलM गैन चीटे मौिलगfन घास ।।
+वामी मेरो परदेश गै तो [ी तीन होई गैन मास ।
अhयू तई सणु ी नीमणी hयू को žेगे उपास ।।
जौ का +वामी ध9 छन तsको होयंु छ िवलास ।
रंग-िबरंगे चादरे -ओढ़ी अड़ोस-पड़ोस-सहु ास” ।।
सन् 1905 म: गढ़वाली प7 के !काशन के बाद का कालखंड “गढ़वाली यगु ” के नाम से जाना
जाता है । गढ़वाली यगु के किव सयशरण रतड़ू ी क किवता 0OTय है ।
“ उठा गढ़वािलय*, अब त समय यो सेण को नीछ
तजा यही मोह-िन0ा कू अजs तf जो पड़ी हM छ ।
अलो! अपणा मल ु क क यM छुरावा दीघ( िन0ा कु
िसरा का तमु ् इनी गेहरी खड़ा या जMन गेर याBये
अहो ! तुम भरे त देखा कभी से लोक जrयां छन
जरा सी ऑख त वाला कनोअब घाम चम यँछ ू ”।
तोता कृ Pण गैरोला के !ेमी पिथक म: कBपना और रसाि/वित इतनी सु/दर है िक किवता म:
!कृ ित का िबबं +पO `िO गोचर होने लगता है म/दाkा/ता छ/द न: उनक किवताओ ं पर चार
चाँद लगा िदए हf -
चदं ा आध सरद पर थै सक( णी बादBयमँू ा
कॉसी क-सी थकुिल रड़नी खखली खूBयाँमा ।
िन/योर ये िनजन बण का नौवBया गीत गाणी
शद रातf शरिद लगणी, शीतली पौन-पाणी ।।
अथा(त् आधा च/0मा आसमान म: बादल* के बीच म: कॉसे क थाली के समान रगड़ खाते हए
चल रहा है । नीचे धरती म: िन5यारे
िझBलीयॉ िनज(न वन म: (झन-झन करते हए) नए नवेली के गीत गा रहै हf । शरद क रात* म:
सदU बढ़ जाने से पानी और हवा भी ठंडी हो गई है ।
िसंह यगु अथवा समाज सधु ार यगु - इस यगु के मधू (/य किव भजन िसंह ’िसंह’ थे । उनके नाम
से गढ़वाली किवता सािहय का यह यगु िसंह यगु कहलाया । इस यगु क किवताएं छ/दब,

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
अलंकृत औेर समाज सधु ार क भावना से ओत- !ोत हf । किववर भजन िसंह ’िसंह’ के
िसंहनाद क किवता उदाहरणाथ( !+ततु है -
iांस क भिू म जो खनू से लाल छ
उख िलयॅू खनू से नाम गढ़पाल छ
रf िद िच/ता बडs तै बड़ा नाम क
काम क िफक( रf दी न ईनाम क
राठ मा गोठ मs को अमर िसंह छयो
iासं को लाम या भित( žै क गयो ।
hयs करी धर मंू लाम पर दौिड़गे
iांस मा, +वािम का काम पर दौिड़गे ।
नाम लेला सभी माइ का लाल को
जान देक रखे नाम गढ़वाल को ।
इस तरह िसंह यगु क सभी किवताएं !ायः देशभि_ ओैर बिलदान के साथ ही !कृ ित िच7ण
तथा समाज सुधर-उम, प9 ु षाथ( आिद से ओत !ोत हf । आमाराम गैरोला ‘गढ़वाली यगु ’
क एक |े{ काTय िवभूित माने जाते हf । उनक किवता “पंछीपंचक’’ से उदाहरण !+ततु है -
अरे जागा कागा कब िबिट च कागा उिड़ उड़ी
करी काका काका घर घर जागोणू तमु सणी ।
उठी गैन पंछी करण लिग गैन जय-जय
उठा भाय* जागा भजन िबच लागा !भुिज का ।
घुमतू ी घूगतू ी घगु ित घगु ता क अित भली
भली मीठी बोली मधरु मदमाती मदु मयी ।
rढ़वाली म: रिचत यह किवता बहत बड़ी है और िशखरणी छ/द म: रची गई है । इसक
काTयामक लय और शZदावली सं+कृ त के !भाव को िलए है ।
बलदेव !साद ’दीन’ संवाद काTय िलखने म: अिधक सफल रहै हf, उनक लोक ि!य रचना
‘रामी’ (बाटा गोडाई) औेर जसी आज भी गढ़वाली जनता के मख ु से सनु ी जा सकती है । रामी
का संिF\ काTय9प !+ततु है -
बाटा गोडाई या तेरो नs छे , बोल बौरािण कख तेरो गs छ?
बटोही-जोगी ! न पछ ू मैकू। के कु पछ
ु िद, या चfद वैकू ?
रौतु क बेिट छs, रामी नौछ । सेठु क Zवारी छs,पािल गsछ।।
िवरह गीत िलखने म: गढ़वाली किव अिधक सफल हए हf य*िक पव(तीय नारी क िववसता
पित के परदेश जाने के कारण और बढ़ जाती है । गढ़वाल का !ाकृ ितक सौदय(, िवरहणी
नाियकाओ ं (नविववािहताओ)ं को अिधक सताता है । किवय* ने इन गढ़वाली िबरिहिणय* के
‹दय क चीकार और कम(Tयथा को िन+स/देह अपनी किवताओ ं और काTय 9प* (खड

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
काTय) (गीित काTय) या (गीितनाट्य) म: !खर +वर िदया है । प9 ु श क िवरह दशा का वण(न
चkधर बहगणु ा ने अपने किवता सं4ह मोछंग क छै ला किवता म: इस !कार िकया है -
िजकुिड़ धड़क धड़क कदी, अपिण नी छ वाणी ।
छै ला क याद करी उलHरगे परागी ।
पखन जखन सरग िगिडके , +यां +यां के िवजिु ल सरके
ढॉडु पड़ं तड़-तड़ के ,9ण झुण के पाणी
छै ला क याद करी उलिगरे पराणी ।।
पाथं री यगु - भगवती !साद पाथं री क कृ ित ‘बजबांसल
ु ी’ से यह यगु श9
ु होता है । इस पर5परा
म: ‘भगवतीचरण’ िनमlही’ क ‘िहलांस’ काTयव क `िO से उ}च कोिट क कृ ित मानी गई है।
कहानी सं4ह भी इस युग म: खबू िनकले ’पाँच फूल’ पांथरी जी का कहानी सं4ह है । भूत* क
खोह, ‘वास/ती’आिद उनक उBलेखनीय कृ ितयाँ हf । इस यगु के लेखक* म: अबोधव/धु
बहगणु ा ने ‘ितड़का,मडाण,घोल’ अि/तमगढ़ आिद !यात रचनाओ ं से अपनी िवशेष
पहचान बनाई थी । उ/ह*ने गढ़वाली का पहला महाकाTय “भ5ू याल’’ भी रचा। क/हैयालाल
डंडHरयाल का महाकाTय नागरजा’ इसी यगु का !देय है । भले ही यह काTय बहत बाद म:
!कािशत हो पाया। कुएड़ी, अhवाल,मंगतु उनक |े{ काTय कृ ितयाँ हf । उनके गढ़वाली नाटक
जो अभी तक अ!कािशत हf िदBली और मु5बई म: मिं चत िकए गये । उनका Tयrय ‘बागी
उnपन क लड़ै’ लोक ि!य खड काTय है । उनका ‘नागरजा’ एक कालजयी गढ़ावाली
महाकाTय है । िगरधारी !साद ‘कंकाल’, सि}}दान/द कांडपाल, डॉ. हHरदK भˆ ‘शैलेश’ डॉ.
गोिव/द ‘चातक’ डॉ.प9 ु षोKम डोभाल, जीत िसंह नेगी आिद इस यगु के |े{ गढ़वाली
सािहयकार माने जाते हf। इस काल खड म: मोहनलाल बाबुलकर एक समीFक के 9प मे उभरे
हf । इस यगु म: गढ़वाली सािहय म: िशBप क `िO और वय( िवषय* क िविवधता से एक
kाि/तकारी पHरवत(न आया । गढ़वाली म: िलखे नाटZक* क संया के िवषय म: बाबल ु कर जी
का मत है िक “इनक संया लगभग 67 है। नाटक लेखक* म: लिलत मोहन थपBयाल, +व9प
ढौिडयाल, अबोध ब/धु बहगणु ा, क/हैयालाल डंडHरयाल, महावीर !साद गैरोला, उमाशंकर
सतीश और िनयान/द मैठानी !मख ु हf ।
आधुिनक यगु :- डॉ. जगद5बा !साद कोटनाला इसे चतथु ( चरण कहते हf । इस कालखंड म:
च/0िसंह राही का ‘रमछोल’ 2382 !काश म: आया । आमाराम फो/दानी का गीत सं4ह
‘रै मोडी’ के गीत* ने लोकरंजन िकया उसके बाद ‘िच/मय सायर’ मधसु दू न !साद थपिलयाल,
िनरंजन सयु ाल, कुटजभारती के काTय !काश म: आए । मधुसूदन !साद थपिलयाल ने गढ़वाली
म: गजल िवधा को आर5भ िकया । उनक काTय प+ु तक: ‘कस-कमर’ और ‘हिष(-हिव(’ लोक
ि!य रही हf । हा+य Tयंrय िवधा म: क/हैयालाल डंडHरयाल [ारा बनाए काTय माग( पर सव( !थम
(रघवु ीर िसंह ‘अयाल’) चले । अयाल जी के दो काTय गुढयार (1988) पूणत( ः हा+य -Tयंrय के
छलकते रस कलश हf । हा+य Tयंrय िवधा को लिलत के शवान ने ‘िदयांिदन तnयांघाम’
(1994) रचकर चरम िशखर तक पहचं ाने का !यास िकया है । लोके श नवानी क ‘कभी िदBली

उतराखड मु त िवविवालय 161


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िनजs’ स!ु िस लोक ि!य रचना +वीकारी गई । कितपय नए रचनाकार भी लगातार वत(मान
काल क सम+याओ ं को अपनी हा+य-Tयrं यमय किवताओ ं को Tयजं ना और वkोि_ [ारा
अिभTय_ करने म: सफल हो रहै हf । नरे /0 कठै त का सािहय इसका !माण है । बाल सािहय
क कमी गढ़वाली म: पहले से ही बनी रही है । अबोध ब/धु के ‘अख
ं -पंख’ के बाद कोई उकृ O
बाल रचनाएं !ा\ नहM हई है । नए लेखक भी इसक उपेFा कर रहै हf
इस कालखड के सािहय क सचू ी आपके सरल अ=ययन हेतु !+ततु क जा रही है ।
कृित का नाम किव/लेखक काशन वष.
1- [ी ऑसू सदु ामा !साद !ेमी सन् 1962
2- गढ शतक गोिव/द राम शाSी ’’ 1963
3- उhयाली िशवान/द पाडे ’’ 1963
4- रंत रै वार गोिव/द चातक ’’ 1963
5- िवरिहणी शैलबाला पानदेव भार[ाज ’’ 1964
6- वट्वे सदु ामा!साद !ेमी ’’ 1971
7- अrयाल सदु ामापसाद !ेमी ’’ 1971
8- माया मेBवड़ी भगवान िसंह रावत ’’ 1977
9- िपत9कू रै वार गोकुलान/द िकमोठी ’’ 1979
10- गढ़गीितका बलव/त िसंह रावत ’’ 1980
11- समलौण जrगू नौिटयाल ’’ 1980
12- कुयेड़ी क/हैयालाल डंडHरयाल ’’ 1990
13- िसंह सतसई भजन िसंह ‘िसंह’ ’’ 1985
14- गंगू रमोला बृजमोहन कविटयाल ’’ 1997
15- पाव(ती अबोधब/धु बहगुणा ’’ 1994

10.3.7 गढ़वाली का नाट्य सािहय


उसव ि!य गढ़वाली जन-मानस का िचK जहां रमणीय अथ(वाली गीितकाओ ं से
आनि/दत होता रहा है, वहM नाटक* म: जो `यऔर |Tय दोन* होते हf से सवा(िधक !भािवत रहा
है । नाटक देखने के िलए िजतनी भीड़ जटु ती है उतनी किवता सनु ने के िलए नहM । महाकिव
कािलदास ने इसी िलए नाटक को मह?व !दान करते हए िलखा है, ‘काTयेषु नाटकं र5यं’ अथा(त्
काTय* म: नाटक रमणीय है । महिष( भरत ने, ‘लोकःिव|ाि/त जनन नाट्यं- लोक क थकान
िमटाने वाला,आन/द !दान करने वाला, TयवहाHरक Rान देने वाला, तव नाटक को माना है ।
गढ़वाली का नाट्य लेखन भवानी दK थपBयाल के ‘जय िवजय’ और !•ाद नाटक से श9 ु
माना जाता है । िव5भर दK उिनयाल का ‘बस/ती’, ई<रीदK जयु ाल का पHरवत(न भगवती
!साद पांथरी के दो नाटक (क) भतू ो क खोह (ख) अधः पतन, तथा गोिव/द चातक का
‘जगं ली फूल’ अबोध ब/धु के नाटक- ‘कचिवडाल’ ‘अि/तमगढ़’ माई को लाल िनयान/द

उतराखड मु त िवविवालय 162


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
मैठानी क ‘चौडडी’ !ेम लाल भˆ का ‘बॅटं ् व9’ क/हैयालाल डंडHरयाल के नाटक-
क/सानk ु म, राजे/0 ध+माना का ‘अध(4ामे<र’ िव<मोहन बडोला का ’चैतक एक रात’
लिलतमोहन थपिलयाल का नाटक ‘एककरण’ तथा उिम(ल थपिलयाल का ‘खाडू लापता’
आिद सु!िस गढ़वाली नाटक हf । इनके अितHर_ जीत िसंह नेगी का नाटक ‘डॉडा क
अएड’ गोिव/द राम पोिखHरयाल ‘मलेथा क कूल’ आिद उBलेय हf।
10.3.8 कहानी एवं उप-यास
गढ़वाली म: सवा(िधक संया म: कहानी िलखी गई हf । कहानीकार* म: रमा!साद पहाड़ी,
भगवती !साद जोशी ‘िहमवतं वासी’ डॉ. उमेश चमोला, हष( पव(तीय आिद उBलेखनीय हf । डॉ.
गोिव/द चातक ने सवा(िधक काय( नाटक* पर िकया है । अब हम आपके अ=यनाथ( गढ़वाली
नाटक* क भाषा के कुछ अंश संFेप म: !+ततु कर रहै हf -
!हलाद नाटक क भाषा:-
‘कालजगु ी,माराज मी पर ग+ु सा न होवन । सरकार, मfत सब ताड़नाकर चु यॅू । ये पर
बार-बार अर गु9 जी न िभ ये तf िदखाये खबू धुधकार-फुटकार,। पर/तु ये न जरा भर िभन छोिड
बोलणा, नारे ण-हHरकता(र! यां ते महा!भ!ु कुछ आपही कराये को िबचार हमते होई गयां ये ते
िबलकुल लाचार।’’ -
अब िव5भर उिनयाल के वस/ती नाटक क काTयभाषा !+तुत है -
“िदिद, देख दs हम ल*गू या कतना बरु ो Hरवाज छ िक नौ/यंू को Zयौ बडु यो से कर द:दन। भई इना
करण से त जf िदन न*िन िनजै वे िदन िह दतेरे ोन त अ}छो हो । िजंदगीभर का रोण-धोण से िन
होण िह भलो’’ ।
अब भगवती!साद पांथरी के नाटक ‘अधःपतन’ के संवाद देिखए -
“नैनु य सोनािक कंु जी िह nयार को दरवाजू खोल सकदी? पर य कंगाल िक ‹दय िक
अिभलाषा धूल मा िह िलपटण का हो/दी? वे का nयारक कुलाई िक डािल या दसु 9ं का सख ु
क होिल । जTनौण का िह लपकिद?’’
राजे/0 ध+माना के ‘अध(4ामे<र’ क भाषा देिखए -
स7ू धार- “अब Zवनु या च माराज स/ु दरता मा यडू ा िद छन हमHर Zवनाच अब खणु f भrयान
व न/दा तै भrयान िभ िछन,अर गरीब Zवल/दा ते गरीब हई अर एक िचत िदखे जा ।
इस !कार गढ़वाली नाटक* क भाषा सश_ और अपनी मांटी क सsधी गंध िलए हए
है ।
10.4 लोकवाता के @प मB ा> सािहय
लोकवाता(एं के वल देवी-देवताओ ं के जागर म: नृयमयी उपासना के बीच सनु ाई जाती है ।
!ायःरात ही उसके िलए उपयु_ होती हf रात म: देवता का नृय देखने के िलए एक7 हए लोग*
के मनोरंजन के िलए कभी वाता(एं आवयक समझी जाती थM । आज भी लोकवाता( का मह?व
वैसे ही बना हआ है जैसे पहले था । लोकवाता( का काई भी Rाता Tयि_ मंडाण अथा(त् देववाता(

उतराखड मु त िवविवालय 163


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
सनु ने और देवता का नृय देखने के िलए एक समहू के बीच म: बैठते हf और अवसर पाते ही
समहू के बीच से उठकर दोन* हाथ* से अपने कान* को दबाकर या उनके िछ0* म: उंगली डालकर
संगीत के +वर* म: कोई वाता( छे ड़ता है वह वाता( के आमुख के 9प म: ढ़ोल या डम9(डsर)
बजाने वाले औेजी (वादक) को संबोिधत करता है ।
देवी देवताओ ं क वाता( के समय सभी |ोता एवं दश(क भि_भाव से बैठे रहते हf ।
देवी-देवताओ ं के समान ही अिनO काHरणी शि_य* जैसे (भतू ,आँछरी) आिद क मनौती के
िलए भी उ/ह: नचाने खेलवाने के िलए नृय के साथ गीत गाए जाते हf । उन वाता(ओ ं म: कथा का
अश ं बहत होता है औेर उसको रासं ो कहा जाता है । डॉ. गािव/द चातक इसे ‘रासो’ से उप/न
मानते हf उनका मानना है िक बोल-चाल म: रासो का अथ( धम( कथा होता है । कहानी का =येय
मल ू तः मनारंजन होता है लेिकन रासो मनPु य* को देवताओ ं और आँछरी,आिद के भय से िनम(_ु
करने क नृयमयी उपासना है । लोकवाता( के 9प म: !ा\ सािहय के अ/तग(त -गढ़वाली का
वृहत अिलिखत सािहय लोकवाता( के 9प म: आज भी मौजूद है । एटिक/सन ने भी गढ़वाल के
इितवृK लेखन म: लाकवाता( सािहय क मदद ली । उसने यहां क धािम(क गाथाओ,ं तथा यहाँ
के ऐितहािसक अनैितहािसक वीर*, राजाओ,ं महाराजाओ,ं वीरांगनाओ ं के गीत* को लोग* के
मखु से सनु ा और उनसे यहां क सvयता-सं+कृ ित व भाषा का िवeे षण िकया । गढ़वाली
लोकवाता(एं राज+थान,गजु रात, पंजाब, महाराPQ, बंगाल के लोकवाता( सािहय के समकF है ।
गढ़वाल क देव गाथाओ ं म: भूगोल के साथ-साथ इितहास क जानकारी भी िमलती है । िवशेष
कर तं7 मं7 और देव गाथाओ ं म: पौरािणक भगू ोल का वण(न िमलता है जैसे - देवलोक जाग
नागलोक जाग ! खारा सम0ु जाग, अ/तHरF लोक जाग । इनके साथ ही गढ़वाल के !मख ु
पव(त,नदी,घाटी, गफ ु ाएं वन आिद का वृता/त िमलता है । यहां के भड़* ओैर राजाओ ं क
िव9दावली व वंशानुचHरत भी गढ़वाली लोकवाता( के अ/दर िमल जाते हf ।
10.5 सारांश
!+ततु इकाई के अ=ययन के पVात आप –
• गढ़वाली लोक सािहय से पHरिचत हो गए ह*गे.
• गढ़वाली लोक सािहय के इितहास से भी पHरिचत हो गए ह*गे
• गढ़वाली लोक सािहय का kिमक िवकास !ा\ कर चक ु े ह*गे
• गढ़वाली लोक सािहय क िविभ/न िवधाओ ं को जान गए ह*गे
• गढ़वाली लोक सािहय के िविभ/न यगु *(काल-खंड*) को जान गए ह*गे
10.6 श"दावली
1. सृिजत - बनना , िनिम(त होना
2. आि+तक - ई<र पर आ+था रखने वाला
3. मानस - मन, दय
उतराखड मु त िवविवालय 164
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
4. मधू (/य - बड़ा, िवशेष
5. चीकार - चीखना, िचBलाना
6. उकृ O - अ}छा, सव(|े{
10.7 अ%यास &' के उ(र
!0उ0 1 (क) सोमदेव (ख) गुणाड्य (ग) पातीराम (घ) योगे/0 परु ी
!0उ0 2 (क ) िमथक -परु ाने लोक िव<ास*,पौरािणक कथा एवं गाथाओ ं को ’िमथक’ सािहय
कहा जाता है । िमथक म: सय का िव+थापन होता है । जैसे हम कह: उषा के बाद सुयlदय होता
है तो िमथक कार उसे कहता है -सयू ( उषा का पीछा करता है ।
!0उ0 3 तीन !मख ु पFी कथाएँ िन5निलिखत हf:-
(1)भटकुटु9 (2) चोली (3)सतर पथा-परु ै -परु ै (4) पता-पुरकनी ।
!0उ0 4 - अजयपाल का धम(पाथो (अनाज मापने का बत(न ) भंडाHरय* के यहॉ है।’
!0उ0 5 - ि4यस(न ने गढ़वाली भाषा के िवषय म: कहा है िक ‘यह +थान-+थान पर बदलती है ।
यहां तक िक परगने क बोली का भी अपना िभ/न 9प है । !येक का अपना +थानीय नाम भी
है । और गढ़वाली का अपना एक आदश( (+टैडड() 9प है । ि4यस(न ने गढ़वाली के आठ भेद
माने हf ।
!0उ0 6 – “िकसी आदमी के दो लड़के थे’’। इसका 9प नागपरु ी और बधाणी म: िन5नवत्
होगा -
(क) नागपHु रया बोली म: - कै बैख का दईु लsडा छया ।
(ख) बधाणी बोली म: -कै आदमी का िदव् िछचौड़ी िछया ।
!0उ0 7 ‘िसंह युग’ क गढ़वाली किवताओ ं क 4 िवशेष ताएं िन5निलिखत हf -
(1) सधु ारवादी `िOकोण (2)छ/दब किवताएं व गीत (3) लोक से जुड़ी गढ़वाली भाषा का
काTयामक !योग (4) संवाद परकता ।
!oोKर 8- बाटागोडाई (रामी) लोक गीत - लोक काTय के +विचता का नाम है -बBदेव शमा(
‘दीन’ ।
10.8 संदभ *+थ सूची
1. गढ़वाली लोककथाएं- डॉ. गोिव/द चातक, !थम सं+करण 2396, तFिशला
!काशन, असं ारी रोड़, दHरया गंज, नई िदBली।
2. गढ़वाली भाषा और उसका सािहय- डॉ. हHरदK भˆ ‘शैलेश‘, !थम सं+करण
2007, तFिशला !काशन, 98 ए, अंसारी रोड़, दHरया गंज, नई िदBली।
3. उKराखड क लोककथाएं- डॉ. गोिव/द चातक, !थम सं+करण 2003, तFिशला
!काशन, 98 ए, असं ारी रोड़, दHरया गजं , नई िदBली।
4. गढ़वाली लोक सािहय क !+तावना- मोहनलाल बाबुलकर, !थम सं+करण अ!ैल
2004, भागीरथी !काशन गृह, बौराड़ी, नई िटहरी।

उतराखड मु त िवविवालय 165


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5. गढ़वाली काTय का उव िवकास एवं वैिशO्य- डॉ. जगद5बा !साद कोटनाला, !थम
स+ं करण 2011, !काशक- िवजय जयु ाल, 558/1, िवजय पाक( , देहरादनू ।
6. गढ़वाली लोक गीत िविवधा- डॉ. गोिव/द चातक, !थम सं+करण 2001 !काशक
(तेज िसंह) तFिशला !काशन, असं ारी रोड़, दHरया गंज, नई िदBली।
10.9 िनबंधामक &
1. गढ़वाली लोक सािहय के इितहास को िव+तारपवू (क समझाइए .
2. गढ़वाली लोकसािहय के kिमक िवकास क िववेचना किजए .

उतराखड मु त िवविवालय 166


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई 11 गढ़वाली लोक सािहय का वतमान व@प
एवं समयाएं
इकाई क परे खा
11.1 तावना
11.2 उेय
11.3 गढ़वाली लोक सािहय का वत&मान वप
11.3.1 गढ़वाली काAय मK काAय त#व और सौ0दया&नभु िू त
11.3.2 गढ़वाली लोक सािहय के समE सम याएं
11.3.3 गढ़वाली लोक सािहय क िवधाएं
11.4 सारांश
11.5 अ+यास ,
11.6 श(दावली
11.7 अ+यास ,- के उ.र
11.8 संदभ& /ंथ सचू ी
11.9 सहायक उपयोगी पाठ्य साम/ी
11.10 िनब0धामक ,

उतराखड मु त िवविवालय 167


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
11.1 तावना
गढ़वाली लोक सािहय भारत के अ/य !ादेिशक/आंचिलक लोक सािहय* क
अपेFा समृ और िवकासशील +वभाव वाला सािहय है। इसका कारण इसक !ाचीन
(पौरािणक िवरासत) और िहमालयी वातावरण म: सम+त भारत के लोग* क युग-यगु से आ+था
तथा यहां बसने क आमीय (अिभलाषा) भी !मख ु है। यही कारण है यहां के लोक सािहय म:
धम( सिहPणतु ा, सामािजक साव और कणा तथा मै7ी के साथ, !ेम और य ु वीरता तथा
याग के अनेक उदहारण िमलते है। यहां के लोक सािहय म: सभी धमl के पित !ेम और साव
के कारण, उसके अ/दर कबीर, दाद,ू नानक, मोह5मद, गोरखनाथ, राम-कृ Pण, मीरा और रै दास
को समान भाव से सािहय म: +थान िमला है। !ाचीन लोक सािहय म: ‘कृ Pण’ और पाडव
!भतू मा7ा म: विण(त है। म/दा भगवती, राजराजे<री होने के कारण यहां के लोक सािहय क
आधेय और आधार है, वह देवी के प म: लोक सािहय क !येक िवधा म: +थान पाए है।
काTय, लोककथा, लोकगाथा, लोकनाट्य और लोकगीत* म: िहमालयी !कृ ित, देवता, िपतर,
यF, ग/ध¥(, िक/नर, नाग और नर तथा राFस भी आदर के साथ सािहय म: +थान पाए िदखते
है। यहां के पशु-पFी और वृF लताएं भी मानव के सहचर है। वे यहां के लोक के अिवि}छत
अगं है। उ/ह: यहां के लोकमानस से अलग हटाकर नहM देखा जा सकता है।
इसके मौिखक सािहय म: ढोल सागर अनेक अ|तु जागर गाथाएं, पवाड़े, िवद आज भी अपने
सं4हकता(ओ ं क बाट जोह रहै हf। इन कलाओ ं को बहत कुछ मा7ा म: कुछ परु ख* ने अपनी
पोिथय* म: िलखकर सरु िFत िकया तो कुछ को पर5परा से आवजी और परु ोिहत* ने अपनी वाणी
से रटकर सरु िFत कर रखा है।
11.2 उेय
‘गढ़वाली लोक सािहय का वत(मान +वप एवं सम+याएं’, नामक इस इकाई का
अ=ययन करने के उपरा/त आप गढ़वाली लोक सािहय से स5बि/धत िन5निलिखत बात* को
जान सक: गे-
1. गढ़वाली लोक सािहय का वत(मान +व9प कौन सा है ?
2. इसके अ/दर लोक सािहय क िकन-िकन िवधाओ ं म: काय( हो रहा है ?
3. पर5परागत लेखन और वत(मानकालीन नए लेखन म: िकन-िकन बात* म: मूलभूत अ/तर
आ रहा है ?
4. गढ़वाली लोक सािहय के आगे वत(मान म: या- या चनु ौितयां आड़े आ रही है ?
5. गढ़वाली म: रिचत !मख
ु महाकाTय-खडकाTय, गीित और म_ ु क काTय कौन-कौन से
है ?

उतराखड मु त िवविवालय 168


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
11.3 गढ़वाली लोक सािहय का वतमान व@प
गढ़वाली लोक सािहय क खोज के िलए अं4ेज सवFक* िवलयम कुक व िगय(सन
आिद के अवदान को कभी भल ु ाया नहM जा सकता है। म=य पहाड़ी बागली पर एटिक/सन के
[ारा िकए गए काय( को मह?वपणू ( माना गया है। यहां के सािहय को िलिपब करने और उसक
सम4 जानकारी एक7 करके पनु ः उसक समीFा टीका करके िफर शोधपणू ( िववेचना के साथ
!कािशत करने वाले िव[ान* के अवदान को कभी भल ु ाया नहM जा सकता है। इन िव[ान* म:
तारादK गैरोला, पादरी िम+टर ओकले, आमाराम गैरोला, यमनु ादK वैPणव, गोिव/द !साद
िघिBड़याल, िशवनारायण िबO, भजन िसंह ‘िसंह’, डॉ. गोिव/द चातक, डॉ. हHरदK भˆ
‘शैलेश’ मोहनलाल बाबल ु कर, िशवान/द नौिटयाल और महावीर !साद लखेड़ा अ4गय है।
इन िव[ान* के !यास से इनक पु+तक* से गढ़वाली लोक सािहय के !ाचीन एवं अवा(चीन
सािहय क जानकारी िमलती है।
गढ़वाली लोक सािहय पर अनेक शोध !ब/ध भी िलखे गये है। सव(!थम डॉ. न/द िकशोर
ढौिडयाल ने जागर गीत* पर शोध !+तुत िकए तदन/तर डॉ. !याग जोशी ने पहली बार कुमाऊं
और गढ़वाल क लोक गाथाएं संिशBO िववेचन !+ततु त िकया। उ/ह*ने लोक गाथाओ ं म: बहत
कुछ नया जोड़ा है। डॉ. उमाशक ं र ‘सतीश’ ने जौनसारी भाषा का िववेचनामक अ=ययन
!+ततु त िकया, मोहनलाल बाबल ु कर ने पिVमी पहाड़ी क उप बोली जौनपरु ी (जौनसारी) के
लोक सािहय एवं कला पर पहली िववेचनामक अ=ययन !+ततु िकया, िवPणदु K कुकरे ती ने
नाथ पथं और गढ़वाल तथा बिु राम बडोनी ने गढ़वाल के लोक काTय पर !शसं नीय काय(
िकया है। इसी |ृंखला म: ‘गढ़वाली के सां+कृ ितक और सौ/दय( शाSीय पHर!ेIय’ िवषय पर
|ीमती आन/दी जोशी ने तथा गढ़वाल के सािहय-सं+कृ ित पर +क/दपरु ाण का !भाव तथा
च/0शेखर बडोला ने गढ़वाली कहावत* का सािहियक, सां+कृ ितक अ=ययन उBलेखनीय काय(
करके गढ़वाली लोक काTय सािहय को जीव/तता !दान क है।
गढ़वाली लोकभाषा म: आज िविवध िवाओ ं म: सािहय उपलZध है। गढ़वाल प म: गीत
सं4ह, काTय और िनब/ध !भतू मा7ा म: उपलZध है। इनका परु ाना सािहय भी !चरु ता से
उपलZध है। प िवा म: 1822 से 1900 तक सं+कृ त का !भाव लिFत होता है। गीत और
किवता के परु ाने लेखक* म: तोताकृ Pण गैरोला, आमाराम गैरोला, चkधर बहगुणा, भगवती
!साद िनमlही, अबोध ब/धु बहगणु ा, क/हैयालाल डंडHरयाल, मनोहर उिनयाल ‘|ीमन‘,
सदान/द जखमोला ‘स/तत’, िवशालमिण शमा( का नाम उBलेखनीय है। कहानी और िनब/ध
लेखक* म: डॉ. गोिव/द चातक, डॉ. महावीर !साद गैरोला, मोहनलाल नेगी, !ेमलाल भˆ, दगु ा(
!साद िघिBडयाल !िस है। नाटक िवा के Fे7 म: पु षोKम डोभाल, सदु ामा !साद ‘!ेमी’
लिलतमोहन थपBयाल, +वप ढौिड़याल, क/हैयालाल डंडHरयाल, अबोध ब/धु बहगणु ा,
िनयान/द मैठानी और गोिव/द चातक उBलेखनीय है। गढ़वाली लोक सािहय के अ/य
ह+ताFर* म: जीत िसंह नेगी, नरे /0 िसंह नेगी, िगHरधारी !साद ‘कंकाल’, लिलत के शव,

उतराखड मु त िवविवालय 169


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
उमाशंकर ‘सतीश’, शेर िसंह ‘गढ़देशी’ और जीवान/द |ीपाल का नाम आदर के साथ िलया
जाता है। गढ़वाली ग सािहय म: Tयrं य लेखन के अ!ितम ह+ताFर नरे /0 कठै त सािहय पथ
पर एक मील के पथर िस हो रहै है।
+वत/7ता !ाि\ के बाद सामािजक पHर`य बदला, आधी सदी से भी अिधक के इस
समया/तराल म: गढ़वाली काTय ने बहआयामी िव+तार पाया और गढ़वाली सािहय लेखन म:
भी उBलेखनीय !गित हई। इस काल खड म: सैकड़* काTय कृ ितयां !काश म: आई, कला क
`िO से नौबत 1953 चkधर बहगणु ाः ितड़का (1956), रणभंजण (1963), पाव(ती (1966),
धोल (1977), भ5ू याल (1977), एवं दैसत (1996) सभी अबोध ब/धु बहगणु ा िच7 काTय एवं
रो/देडु (1995), अ|ुमाला (1958) एवं ददु िु भः िडमिडम (1965) |ीधर जमलोक नवांण
(1956) एवं फुर िघडुडी (1957) िगरधारी !साद ‘कंकाल‘। ढांगा से साFाकार (1988), ने7
िसंह असवाल, पसीन क खुशबू (1989) एवं ितमला फूल (1977) िच/मय सायर। कॉढ्यो मा
औण से पैिल (1994), देवे/0 !साद जोशीः खुचकडी (1991) एवं ‘गाPयंू क गंगा +यायू का
समोदर’ (1999) नरे /0 िसंह नेगी। कमेड़ा आखर (1996) वीना ब:जवाल गढ़वाली काTय क
+वात/7योKर उBलेखनीय काTय कृ ितयां है। इस काल खड म: िविभ/न किवय* के संय_ ु
किवता संकलन भी खूब छपे है िजनम: ‘tयंल ू ी’ (1953), मौBयार (1963), छम घं◌ुघ
बाजला (1964), खंदु ेड़ गीत सागर (1964) रॅ त रै बार (1963), बरु ांस (1965) ‘छf ‘ (1980)
और गंगा जमनु ा का मैत बिट (1978) !मख ु है। इनके अितHर_ ‘बाहली’, िहडबांस, मैती,
बrु याल, बरु ांस, िच¦ी प7ी और धादा (1978) !मख ु गढ़वाली प7-पि7काएं है। िज/ह*ने
गढ़वाली काTय सािहय को िदशा !दान करने म: बहमूBय योगदान िदया है।
+वत/7ता के बाद सामािजक पHर`य बदल जाने पर किवता क भाव-भिू म भी बदल गई,
ितड़का, tयंल ू ी क तथा रौ/देडु सामािजक बदलाव के काTय है। डॉ. कोटनाला का मत है िक
इसके आगे अिधक गहरी पैठ बनाकर समाजवाद काTय चेतना के जन पFीय संघष( को किवता
म: पHरणत करने का !यास िकया गया। भ5ू याल लोकताि/7क, सामािजक मBू य* का काTय है।
इसी समाजवादी `िOकोण से रिचत, अhवाल, धf, एक ढांगा क आमकथा, ढांगा से
साFाकार, कमेडा आखर, कॉठ्यो मा ओण से पौिल, ितमला फूल आिद जनसंघषU रचनाएं हf।
पया(वरणीय िच/ताओ ं ने किवय* को सदैव उ[ेिलत िकया है। !कृ ित के साFाकार से य_ ु
+वत/7योKर रचनाओ ं म: सदान/द जखमोला का रै बार, गढ़गणु याली उBलेखनीय है। पहली
पीढ़ी के किवय* के सभी गढ़वाली काTय रसानभु िू त के काTय है। इसम: |ृंगार क कोमल
भावनाएं और गढ़वाली भाषा का सौ{व चरम पर पहचं ा है। दसू री पीढ़ी के किवय* म: िगरधारी
!साद ‘कंकाल‘ तथा जीत िसंह नेगी !ेम के किव रहै है। जब नरे /0 िसंह नेगी को !ेम गीत* के
अितHर_ !कृ ित और आ/दोलन के गीत िलखने म: अिधक सफलता िमली है। उनके काTय* म:
सािहियक का पुट भी देखने म: आता है। उनक कृ ित ‘खचु कडी’ इस `िO से पढ़नीय है। नरे /0
िसंह नेगी के साथ ही छ/द िवधान को दु +त करने म: चkधर बहगणु ा, क/हैयालाल डंडHरयाल,
िगरधारी !साद ‘कंकाल’ का अिव+मरणीय योगदान रहा है। इ/ह*ने नए छ/द* का भी सृजन

उतराखड मु त िवविवालय 170


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िकया है। िशBप क `िO से भी नए-नए !योग क/हैयालाल डंडHरयाल क अॅजवाल और अबोध
ब/धु बहगणु ा के काTय* म: सव(7 िदखते है। अॅजवाल ने तो इतना नवीन िशBप अपनाया िक वह
वत(मान के कई किवय* का वय( और अिभTयि_ क शैली ही बन बैठा है। डॉ जगद5बा !साद
कोटनाला ने दो टूक शZद* म: िह/दी काTय िशBप के !धान को िन5नवत् अिभTय_ िकया है-
‘लोकधमU काTय कला को छोड़कर िह/दी काTय िशBप ने गढ़वाली काTय िशBप को
अयिधक !भािवत िकया है’। गढ़वाली छ/द मु_ काTय िशBप ने जैसे िह/दी क नई किवता के
िशBप को अपना िलया है।
िनPकष(तः +वात/‘योKर काTय सािहय समाजवादी िवचार धारा और !योगधमU काTय कला से
अन!ु ािणत हआ है।
महाकाTय - अब तक गढ़वाली म: दो ही महाकाTय !काश म: आ सके हf। अबोध ब/धु बहगणु ा
[ारा रिचत ‘भ5ू याल’ िजसे ‘िहमालय कला संगम’ ने सन् 1977 म: !कािशत िकया तथा दसू रा
क/हैयालाल डंडHरयाल [ारा रिचत ‘नागरजा’ चार भाग* म: !कािशत हf। नागरजा भाग 1 व 2
को गढ़वाली सािहय पHरश द-् कानपरु ने सन् 1993 ई. म: तथा 2000 ई. म: दसू रा सं+करण
!कािशत िकया तथा भाग 3 व 4 को किव के प7ु हHरकृ Pण डंडHरयाल ने qज मोहन िसंह राणा
के सहयोग से सन् 2009 म: !कािशत कराया। इन दो महाकाTय* के अितHर_ तीसरा महाकाTय
अभी देखने म: नहM आया है। गढ़वाल म: िवPणु को नागरजा तथा नरिसंह दोन* 9प* म: सव(7 पूजा
जाता है। जबिक िशव को िनरंकार के प म: पजू ते है। गढ़वाल क िटहरी जनपद के सेम-मुखेम म:
नागरजा का मि/दर है तथा सभी गढ़वाली उसक तीथ( या7ा करते है। िकंवद/ती है िक सेम-
मखु ेम का नागरजा का मि/दर गंगू रमोला ने बनवाया था। नागरजा !ब/धकाTय गणेश् और q ा
क व/दना से आर5भ होता है। q ाड, रज, पु श , काल, मह?व, अहक ं ार, आकाश, शZद,
वाय,ु तेज, !काश, ग/ध, भमू डल, पंचभतू देवता, q ा-िवPणु, आिद के वण(न के साथ !थम
उपखड समा\ होता है। उपखड दो तथा तीन म: िशव-सती तथा िशव-पाव(ती !सगं * म: ही
किव का वा+तिवक किवव मख ु र हआ है। किववर डंडHरयाल ने िशव और सती के कथानक
को गढ़वाली लोक जीवन के अनु प विण(त िकया है। इस काTय म: िशव न/दी बैल को चगु ाते है
तो सती गाय के िलए घास लाती है। यF, िक/नर और गहु Šक गढ़वाली पHरधान पहनकर दF
यR म: जाते है। सती के दF यR म: भ+म होने पर दF को िशव0ोह और अहक ं ार का िनम(म फल
िमलता है। उनके kोध को देखकर सब 0 क व/दना करते है िक-
है दयामय दीनब/धु, पाप का भाडं ा छवा।ं
जीव हम ब/धन मंगा, !भु कम( का खांडम छवां।।
संसार थf स/माग( दीणौ तमु ये लीला करदवा।
िनिव(कारी शभं ु तमु सतं ाप जगती हरदवा।।
दैणो žेजा ई<र, है भिू म भू5याल
गौब/द मख ु मा तृण Bहे, भ:ट धरी अrयाल।।

उतराखड मु त िवविवालय 171


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
अथा(त- है दयामय दीनब/धु ई<र! हम पाप के भांडे है। हम जीव कम( के ब/धन* म: फंसे है। संसार
को स/माग( देने के िलए तमु यह लीला रचते हो। है िनिव(कारी श5भ!ु तमु जगत के स/तापहारी
हो। है भिू म के भू5याल अब !स/न हो जाओ। हम गोब/द (अित सरल, िनPकपट) होकर तृण
मखु म: लेकर तेरी अrयाल (पूजा/न) भ:ट लेके खडे़ है।
इस महाकाTय म: किव भगवती जगद5बा क आराधना िन5नवत् करता है-
तू Zवै छf हम लिड़क छवां, अदं ािल लगी rय* तेरी।
खिु चिल पकिड़ Bहे खदु लगM, मं◌ुडिल मलासी मेरी।।
अ/तर !ेम प§यािण क !कट žाय भवािन।
आिदशि_ मां भगवती, सेवा हमारी मािन।।
अथा(त - तू मां है हम तेरे प7ु हf। तू हम: अपनी गोद म: लेकर हमारे िसर पर अपना हाथ फे रकर
अपना आशUवाद द:। िशव लीला के वण(न म: किव ने |ृंगार, हा+य, रौ0, वीभस, आिद रस* का
समुिचत !योग िकया है।
नागरजा भाग-2 म: नागरजा कृ Pण क लीला का भि_मय वण(न है। इस सग( म: किव ने कंगािलयां
भाट (एक पा7) क अवतारणा क है। जो कंु ठाओ,ं कुवृिKय*, Tयिभचार और +वाथ( िसि के
िलए छवेशी धािम(क कर समाज को mO कर देता है। इस सग( म: भगवान कृ Pण कंगाली भाट
को नटखट संदु री बनकर Rान, कला और सौ/दय( के बल पर मोिहत कर उसे जगत कBयाण का
स/देश देते है। किव ने एक किBपत पा7 कंठी दादा के मा=यम से जीव जगत, ई<र, तप-याग,
सगणु -िनग(णु आिद दाश(िनक शंकाओ ं का िववेकपणू ( ढंग से कंठी दादा के मा=यम से समाधान
कराया है।
िनPकष(तः इस काTय क शैली अलंकृत और सरस है। इसम: ठे ठ गढ़वाली शZद* का ठाठ देखने
म: आता है। महाकाTय के सभी लFण नागरजा म: !ा\ होते हf। नागरजा म: गीितका, हHरगीितका,
किवK, सवैया, भजु गं !यात, उपजाित, इ/0ब–ा, उपे/0ब–ा, ताटंक, दोहा, चौपाई आिद छ/द*
को !य_ ु िकया गया है।
‘भ5ू याल’ खडकाTय - भ5ू याल का !काशन सन् 1977 म: हआ। इसम: भूिम, उलार, द/दोल,
िमलन, कम(, िवरह, औळ, ममता, िवहार, पHरणय, द/ु द, रोपणी, िवलाप, थप(, जलेथा और
उपसंहार कुल 16 सग( है। काTय का नायक लोक!िस उGाK वीर भड़ जीतू बगड़वाल है तथा
नाियका भरणा है। काTय का मुय संदश े सामजवादी लोकताि/7क Tयव+था क !ित+थापना है।
इसम: अनेक मौिलक छ/द* का सृजन िकया गया है।
11.3.1 गढ़वाली का1य मB का1य तव और सौ-दया.नुभिू त
गढ़वाली काTय, रसतव क !धानता के कारण अलग पहचाने जाते है। |ृंगार, वीर,
हा+य, कण और अुत इन रस* क गढ़वाली किवता म: सव(7 ि+थित देखी जा सकती है।
वीरगाथाएं यिद |ृंगार, कणा और वीर रस से भरी है तो लोककथाएं, अुत रस और अ/य रस*
क अनगु ािमनी है। लोकगीत* म: सव(7 |ृंगार और !कृ ित िच7ण, कण रस तथा सामािजक
जीवन के िच7 (िब5ब) िमलते है। अलक ं ार* का !योग किववर |ीयाल क अ/याFरी किवता म:

उतराखड मु त िवविवालय 172


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अिधक िदखता है। डंडHरयाल जी का ‘नागराजा‘ भी अलंकृत काTय है। अ/य किवय* म: नरे /0
िसंह नेगी, को छोडकर !ायः काTयालंकार* के !ित मोह नहM िदखाई देता है।
उ/ह*ने रस को ही !धानता दी है। भजन िसंह ‘िसंह‘ और उनके यगु के किव सामािजक
सम+याओ ं के िच7ण म: अिधक सफल हए है। +वात/7योKर !गितवादी चेतना भी इन काTय*
क पृ{भिू म म: काय( कर रही है। देश भि_, वीरता, याग और सधु ार क भावना, िसंह यगु के
किवय* क काTयागत िवशेष ता हf। उदाहरणाथ( -
iा/स क भिू म जो खून से लाल च,
उख िलय* खनू से नाम गढ़वाल च,
रf द िच/ता बड़ी तै बड़ा नाम क,
काम को िफk रf द न ईनाम क।
भािषक !योग म: नवीनता - िह/दी, सं+कृ त, अ4ं र् े जी, उद(ू के शZद* का !योग भी इस कालखड
के किवय* ने बेिहचक िकया है। उनम: गढ़वाली शZद* के !योग क अपनी बानगी तो है ही जैसे-
चोली, छै ला, डूडो, फाला, धौली, बसगाल, tय*ली, िजकुड़ी, गैBया, दवु ारो, hयू का कालू
आिद। शZदरािश का बाहBय गढ़वाली किवता क अपनी अिभTयि_ को अपना सा बनाने म:
सहायक हई है। अपने शZद* (Zवे क बोली) क अपनी िमठास अलग ही होती है।
!कृ ित िच7ण - गढ़वाली किवता एवं उसका काTय सािहय !कृ ित िच7ण के िबना अधूरा जान
पड़ता है। !कृ ित िच7ण ही गढ़वाली काTय सािहय क एक िविशO पहचान है। िह/दी किवता म:
!कृ ित िच7ण, छायावादी !भाव क देन माना जात है। भले ही उससे पहले भी !कृ ित िच7ण को
किवता के !मख ु अगं के प म: +वीकारा जा चक ु ा था। एक गढ़वाली किवता म: |ृंगार से भरे
नारी के सौ/दय( को दशा(ता काTय को िन5न देिखए -
‘‘अFत उंदकार चुलिखय* मा,
रतTयोणी मा !ेम क भाHर भख ू ी,
जख रोज ही +वnन शरीर धारी,
वारी तिण +याणी परी िदख:दन।
काTयालंकार- 9पक और उ!ेFा अलंकार का !योग पाकृ ित वण(न म: अितशयोि_ क
अितरंजना, वीर भड़* के शारीHरक सौ{व एवं पराkम वण(न म:, स/ु दHरय* के देहाकष(ण म: सव(7
`यमान है। उदाहरणाथ(- महाकिव क/हैयालाल डंडHरयाल के अॅhवाल किवता सं4ह क उBय
िजकुडी किवता म: आये अलंकार* के िविवध िब5ब-!ितिब5ब !+ततु है-
+यदंू सी सैण मा क कूल, +वाित क बंदू सी ढ्वलीने
झमु िक सी तड़ु तुड़ी मंगHर, मखमिल हHर सी अगं िड
फBवय(ू हलकदी धौपल ं ी, घगंु टी सी लौकिद कुयेड़ी
उपय(_ ु प म: समतल खेत* क गल ू को मांग के स`श, आंसू को +वाित के बंदू , पानी को
पतली धारा को झुमक*, हरे मैदान* को अंगड़ी, और उड़ते कोहरे क चादर को घघू ंट के समान

उतराखड मु त िवविवालय 173


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
बताकर किव ने !कृ ित का िच7ण िकया है। भ5ू याल महाकाTय म: किववर नागे/0 बहगणु ा
‘अबोध ब/ध‘ु क उपमाएं उनके अलंकृत किव होने के !माण है।
डांडा को वी तण हाथी सी लrयंू म+त बाटा
हर तप( बिट स/ु दरता ‹दय मा, बौला को पािण सी कगार कटिण
िहरणी क ब}ची सी कंु गिल िचफली भरी िन सकिण हो चौकड़ी hवा
5वारी सी माधुय( भरM च गगंू ी चखुली सी hवा टुपHर उड़ िन सकदी

इन पिं _य* म: रा+ते म: चलते तण हाथी के समान जीतू के मन म:, भरणा क स/ु दरता ऐसे समा
रही है जैसे गल ू के िकनार* क िमˆी काटती बारीक पानी क धारा, जीतू क गोद म: समिप(त
भरणा िहरणी क कोमल ब}ची, मधभु री मधमु खी, या आकष(क िचिड़या के समान िदखाई दे
रही है। उ_ प म: मालोपमा अलंकार है। उमाल के किव !ेमलाल भˆ ने भी कुछ ऐसी ही
उपमाओ ं को काTय म: अपनाया है।
िमथे उय(ला क धाण सी, वी धौिल गै वी कूिट गै
िनिन बोतल को नशा सी मf, किख कोणा लमड्यंू रै गयंू
किख !ीत वी िमिल छई, नौनो का बांठा िक भिK सी,
फंु ड फे िक ो ये समाज न, िम फुकM िचलम को तमाखु सी
इन पंि_य* म: किव ने सामािजक hयादितय* को ओखली म: कूटे जाने के समान, खाली बोतल
या जले हए त5बाकू क चटु क के समान िनरथ(क तथा !ीत को ब}चे के िह+से क खीर के
समान नई उपमाएं दी है।
1. नए !तीक* के !योग- आधुिनक समय के स!ु िस गीतकार नरे /0 िसंह नेगी ने अपने
गीत* म: !तीक* को चनु ा है। उ/ह*ने िजन !तीक* को चनु ा व: लोक जीवन अथवा लोकभाषा म:
!चिलत है। जैसे- उकाल-उंदार गीत म: उकाल जीवन संघष( और उंदार आसान या पतनोमख ु
जीवन के !तीक है। ‘हsिसया उमर’ गीत म: बसगBया /यार, पोड मा को पाणी, धार मा को बथs,
¨यतू ू तेरी जमादरी म: ¨यतू ू शि_ या राजसKा का !तीक, अगं ठू ा िघसै- अनपढ़ तथा लटुली
फूली गैिन गीत म: पके हए बाल समय गजु र जाने के !तीक है। किव के गीत सं4ह गायंू क
गंगा-+यायंू का समोदर क कुछ पंि_यां !+ततु है िजनम: गढ़वाली !तीक* के !योग क !वृिK
िदखाई देती है-
खैHर का अधं ेर* मा खhु ययुं बाटु
सख ु का उhयाला मा िबरिड़ गयंू
आंखा बिू जिक खल ु िदन गेड़
आख ं ा खोिलिक अलिझ गयंू
उमर भnये क बादल बिणग:
उड़दा बादल हैिद( रयं।ू
hवािन मा जर सी हfसी खते छै

उतराखड मु त िवविवालय 174


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
उमर भर आंसू िटिnद रयंू
प का फ: ण मा िसंवाल िन देखी
ख+स रौडू अर रड[िद गयंू
इन पंि_य* म: अधं ेरा - परे शानी का, उजाला सुख का, गेड-मानिसक गुथी का, उलझना-
परे शानी म: पड़ना, बादल- बढ़ु ापा का, हसं ी- खशु ी का, आसं -ू दख
ु का, फे ण- प क चमक तथा
िसंवालु- (कायी) आकष(ण म/द पड़ने का !तीक है। !तीक क `िO से किव िगरधारी !साद
‘कंकाल‘ एवं अबोध ब/धु बहगणु ा !मख ु किव है। अ/य किवय* म: गोिव/द चातक व |ीधर
जमलोक उBलेखनीय है। किव कंकाल के गीत सं4ह नवाण क तमु बता और अमर +वर
आिद किवताएं !तीकामक है। इस काTय म: बांसरु ी जीवन क आती-जाती सांसां◌े का !तीक
है। भोर का तारा रतTयोयां ज/म का, फूलो का रस, रंग व ग/ध जीवन के िविभ/न सख ु -
उBलास* क !तीक, जेठ क दपु हरी, जवानी अथवा जीवन क िkयाशीलता का !तीक एवं
खिलहान म: बैल* के फे रे ज/म-मृयु के !तीक के प म: !य_ु िमलते है। उदाहरण !+तुत है-
बजणी छ बांसुळी, धार मा देखा रतTयोयां ऐगे
भांित-भांित का रस, रंग लैगे, फूल* मा ग/ध रसधार फलू मा भरणी छ बांसुळी।।
जीवन िमट जालो +वर यख राला, दायM जिस फे रा रीिट क आला
बसrयािळ गंगा बिण क आयंू मा- तरणी छ बांसुळी
िगरधारी !साद कंकाल ने िघडंवा (नर गौरे या) तथा िघडुड़ी (मादा गौरे या) को नर-नारी के !तीक
के प म: चुनकर गरीब पव(तीय द5पिK क कथा-Tयथा को मनोरंजक ढ़ंग से अिभTय_ िकया है।
किव चkधर बहगणु ा ने भी !तीक* म: अपनी बात कही है। नौबत सं4ह क दीवा किवता म:
िदया-चेतना का, अ/धकार चेतना का, hयोित Rान का, तेल िववेक का, घानी संघष( का, और
बाती याग का !तीक है। सदान/द जखमोला के रै बार काTय म: िब5ब* क भरमार है। जैसे-
भMचळ ू * सी ितगुड़ी ढसको, nयार पMदी धमेल, भैलो िखBदा िनत5ब* मा, चिंु ट फंू दा भrयान
मछा(णी को अतुल गित से छांछ छुªद* िकलोल, प/ु यो से ही दरश परश् पव( काल सुकाळ*।
मंगतू काTय म: किव डंडHरयाल ने मगं तू क गरीब पाHरवाHरक ि+थित के अनेक िब5ब उतारे है।
2. छ/द िवधान - गढ़वाली किवय* ने पर5परागत और शाSीय छ/द* म: रचना क है। मगं तू
म: बीस मा7ा के छ/द को अपनाया गया है।- िकलै मेHर ईजत िगरM इतग रै /दी,
5यरा बाब जी जो हममु छै ि/द ह¢/दी।।
5यरा बाब जी तमु यखा आइ जावा।
nवड्यंू गौ का Bयाख मी देिख जावा।।
tयूंली क किवताओ ं म: नये छ/द* का वैिव=य िवमान है- फुर-िघंडुडी आजा, पदानु का छाजा,
चाड नी जो §वी लगउं, के कु तेरा नेडु अउं, इि/न समिझ ति/न छउं, कुछ नी ते काजा, पदानु
का छाजा।
उमाशंकर ‘सतीश’ के गीत* का सं4ह खदु ड़े सन् 1956 गीतामक शैली म: िलखा गया है। इसम:
एक किवता छ/द म_ ु शैली म: है- है रां/दैव/कनी होली भrयानी/मैतास,ु मेरी िजकुड़ी का/टूक

उतराखड मु त िवविवालय 175


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
ह*दा/नी ओदंू सरील, जगा पर/मेरी भल ु ी/दीदी, िजया/डांडा का काफल, कन होला/ खायेणा/मेHर
Zवे ह*दी/मf मैतु बल
ु sिद/ है रां! दैव।
िनPकष(तः गढ़वाली किवय* म: पार5पHरक छ/दो के साथ ही मनमोहक मौिलक छ/द* का भी
िनमा(ण िकया। उनक `िO मु_ छ/द वाली किवता क ओर भी आकृ O हई है। गढ़वाली
लोकगीत* म: समय-समय पररचे जाने वाले देश, काल और पHरि+थित क !ेरणा से उूत घटना
मलू क और इितवृKामक गीत* क संया बहत है। सय यह है िक लोक मानस अपने आस-
पास क घटनाओ ं के !ित अिधक आकिष(त होता है। फलतः जो भी वैसी घटना घटी, झट से
उस पर गीत बन जाया करते है। कुछ घटनाय: ऐसी होती है िजनम: इितहास का िनमा(ण होता है
िक/तु कभी बहत सामा/य घटनाएं भी गीत* म: बधं जाती है। लोक क `िO म: उनकर भी उतना
ही मह?व होता है।
!ाचीन काल के घटनामल ू क गीत अब शेश नही रह पाए है। कुछ मग़ु ल और गोरखा आkमण
के गीत बचे है। आजादी के िलए जो जन आ/दोलन हए है उनक अिभTयि_े गीत* मे कई बार
हई है। गांधी, नेह, नेताजी सुभाश च/0 बोस, समु न आिद के गीत एक समय बहत लोकि!य
रहै है। पचं ायती राज आ जाने के बाद लोक म: जो राPQीय चेतना क लहर आई वह भी अनेक
गीत* म: बोलती है। +वत/7ता आ/दोलन के ऐितहािसक दौर के गीत* म: गांधी, नेह, सभु ाश क
!शंसा तथा +वत/7ता के बाद क बदलती ि+थितय*, जमाने के बदलते रंग*, गरीबी, बेरोजगारी,
मंहगाई, अकाल जैसी दैवी आपदाओ,ं िSय* [ारा क जाने वाली आमहयाओ,ं अिधकाHरय*
के हथकंड* आिद कई घटनाओ ं पर गढ़वाल म: समय-समय पर लोक सािहय क रचना होती
रही है। इस कालखड म: बालगीत भी खूब रचे गये। बालगीत अब िमटते जा रहै है। परु ानी
वीरगाथाएं (पवाड़े) लु\!ाय हो रहै है। वत(मान सम+याओ ं का िच7ण करने पाले गढ़वाली के नए
लेखक पौरािणक एवं ऐितहािसक सािहय के लेखन म: िच नही ले रहै हf। इसका कारण उनका
अपनी जड़* से हट जाना ही माना जा सकता है। इसका !भाव गढ़वाली भाषा पर भी पड़ा है।
उसके मूल शZद खोते जा रहै है। गढ़वाली लोक सािहय क पर5परा म: भी भारी बदलाव आने
लगा है। वैRािनक !गित तथा आधिु नक Rान-िवRान और रहन-सहन ने पुराने िमथक* को =व+त
कर िदया है। अतः आधिु नक पाठक और रचनाकार/लेखक !ाचीन पर5पराओ ं (िमथ*) पर
अिव<ास जतलाने लगे है। व: कBपना क अपेFा यथाथ( को मह?व दे रहै है। यही कारण है
गढ़वाली का कBपना से अितरंिजत लोक सािहय धीरे -धीरे समा\ होता जा रहा है।
11.3.2 गढ़वाली लोक सािहय के समD समयाएं
गढ़वाली म: आधुिनक सािहियक िवधाओ ं िनब/ध, Tयंrय, लेख, सं+मरण तथा जीवनी
आिद म: भी काम !गित पर है। जो मुय प से पि7काओ: के मा=यम से !कािशत होते रहते है।
इसके अलावा अनेक स5पािदत 4/थ भी गढ़वाली म: उपलZध है। गढ़वाली िनब/ध लेखन क
शुआत पांचव:-छठे दशक से हई। !मख ु िनब/ध सं4ह इस !कार है - गढ़वाली का िनब/ध
(गोपे<र कोिठयाल), समौण (उमाशंकर सतीश), धरती का फूल, या गोHर या सsिळ (डॉ.
गोिव/द चातक) आिद। अबोध ब/धु बहगणु ा क कृ ित ‘एक कsिळ िकरण‘ ग गीत, सं+मरण,

उतराखड मु त िवविवालय 176


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िनब/ध तथा या7ा वृता/त* का सं4ह स !कािशत (2006 ई) हआ है। इनके अलावा बांसुळी
(भगवती !साद पाथं री), मगना nवM (बलदेव !साद नौिटयाल) भी ग गीत और हा+य रस के
लेखक है। राम !साद िघिBडयाल ‘पहाड़ी’ [ारा च/0िसंह गढ़वाली क जीवनी ‘बड़ा भैजी’
उBलेखनीय कृ ित है। नए लेखक* म: सवश जयु ाल, भगवती !साद नौिटयाल, देवे/0 !साद
जोशी, मदन डुकलान, लोके श नवानी, वीरे /0 पवं ार, िवमल नेगी, नरे /0 िसहं नेगी, और नरे /0
कठै त आिद !मख ु है। ये आधुिनक रचनाकार !ाचीन और नवीन दोन* काTय पर5पराओ ं को
लेकर चल रहै है। गढ़वाली म: कहािनयां अिधक िलखी जा रही है। उप/यास एक आध िदखने म:
आते है। नाटक िलखे जा रहै है लेिकन सवा(िधक लेखन किवता के Fे7 म: हो रहा है। म_ ु क
किवताएं अिधक रची जा रही है जो िक सामियक सम+याओ ं का वण(न करती है। खडकाTय
कम देखने म: आ रहै है। नागरजा और भ5ू याल महाकाTय* के बाद कोई तीसरा महाकाTय अभी
रचा नही गया है। गढ़वाली नाटक* का मंचन बहत कम होता है। इस कारण जनता म: अपनी
भाषा को बचाने और सं+कृ ित का संरFण करने क भावना नही पनप पा रही है। यह RातTय है
िक गढ़वाली लोक सािहय का समार5भ नाटक* से ही !ार5भ हआ था। भवानी दK थपिलयाल
[ारा गढ़वाली म: िलखे पहले नाटक !हलाद क आज भी चचा( होती है। लेिकन उसके बाद कोई
ऐसा सां+कृ ितक नाटक नही िलखा जा सका जो नाट्यकिम(य* को तथा दश(क* को !ेHरत कर
सकता। क/हैयालाल डंडHरयाल [ारा िलखे गये नाटक अभी तक अ!कािशत है। वत(मान
गढ़वाली लोक सािहय म: नाटक, उप/यास, िनब/ध और आमवृK आिद िवधाओ ं का अभाव
खटकता जा रहा है। नए रचनाकार इस ओर =यान नही दे रहै है या उनक िच इन िवधाओ ं म:
नही है। यह गढ़वाली सािहय के भिवPय पर एक !oिच~ है। कुछ एक गढ़वाली िफBम* को
छोड़कर िफर कोई उBलेखनीय िफBम नही बन पाई है। जो गढ़वाली सािहयकार*/नाट्यकिम(य*
को !ेHरत कर पाती।
11.3.3 वत.मान लोक सािहय क िवधाएं
वत(मान समय म: गढ़वाली लोक सािहय म: किवता, कहानी, िनब/ध, आलोचना,
रे िडयो पक, नाटक/एकांक, हा+य-Tयंrय, उप/यास और Hरपोता(ज िवधाएं िवकिसत हो रही है।
नए लेखक* और किवय* ने अपना िशBप और काTय वत(मान िह/दी सािहय के अनक ु रण पर
िबBकुल ताजा और तीखे +वाद वाला अथा(त अिभधामक िक/तु Tयंrय से भरपरू (िबहारी के
दोह* क तरह) लघु आकार !कार िक/तु तीखी मार वाला िशBप, और वण(न कौशल को
अगं ीकार कर िलया है। परु ानी पर5परा का नीितपरक सािहय अब बीते यगु क बात हो चक ु ा है।
वत(मान काTय िवा के अ/तग(त पामक अिभTयि_ क ओर नए लेखक* का अिधक झान
है ।
11.4 सारांश
गढ़वाली म: आधिु नक सािहियक िवधाओ ं िनब/ध, Tयrं य, लेख, स+ं मरण तथा जीवनी
आिद म: भी काम !गित पर है। जो मुय प से पि7काओ: के मा=यम से !कािशत होते रहते है।

उतराखड मु त िवविवालय 177


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इसके अलावा अनेक स5पािदत 4/थ भी गढ़वाली म: उपलZध है। गढ़वाली िनब/ध लेखन क
शु आत पांचव:-छठे दशक से हई। !मख ु िनब/ध सं4ह इस !कार है - गढ़वाली का िनब/ध
(गोपे<र कोिठयाल), समौण (उमाशंकर सतीश), धरती का फूल, या गोHर या सsिळ (डॉ.
गोिव/द चातक) आिद। अबोध ब/धु बहगुणा क कृ ित ‘एक कsिळ िकरण‘ ग गीत, सं+मरण,
िनब/ध तथा या7ा वृता/त* का सं4ह स !कािशत (2006 ई) हआ है। इनके अलावा बांसळ ु ी
(भगवती !साद पांथरी), मगना nवM (बलदेव !साद नौिटयाल) भी ग गीत और हा+य रस के
लेखक है। राम !साद िघिBडयाल ‘पहाड़ी‘ [ारा च/0िसंह गढ़वाली क जीवनी ‘बड़ा भैजी‘
उBलेखनीय कृ ित है। नए लेखक* म: सवश जयु ाल, भगवती !साद नौिटयाल, देवे/0 !साद
जोशी, मदन डुकलान, लोके श नवानी, वीरे /0 पंवार, िवमल नेगी, नरे /0 िसंह नेगी, और नरे /0
कठै त आिद !मख ु है। ये आधुिनक रचनाकार !ाचीन और नवीन दोन* काTय पर5पराओ ं को
लेकर चल रहै है। गढ़वाली म: कहािनयां अिधक िलखी जा रही है। उप/यास एक आध िदखने म:
आते है। नाटक िलखे जा रहै है लेिकन सवा(िधक लेखन किवता के Fे7 म: हो रहा है। म_ ु क
किवताएं अिधक रची जा रही है जो िक सामियक सम+याओ ं का वण(न करती है। खडकाTय
कम देखने म: आ रहै है। नागरजा और भ5ू याल महाकाTय* के बाद कोई तीसरा महाकाTय अभी
रचा नही गया है। गढ़वाली नाटक* का मंचन बहत कम होता है। इस कारण जनता म: अपनी
भाषा को बचाने और सं+कृ ित का संरFण करने क भावना नही पनप पा रही है। यह RातTय है
िक गढ़वाली लोक सािहय का समार5भ नाटक* से ही !ार5भ हआ था। भवानी दK थपिलयाल
[ारा गढ़वाली म: िलखे पहले नाटक !हलाद क आज भी चचा( होती है। लं◌ेिकन उसके बाद
कोई ऐसा सां+कृ ितक नाटक नही िलखा जा सका जो नाट्यकिम(य* को तथा दश(क* को !ेHरत
कर सकता। क/हैयालाल डंडHरयाल [ारा िलखे गये नाटक अभी तक अ!कािशत है। वत(मान
गढ़वाली लोक सािहय म: नाटक, उप/यास, िनब/ध और आमवृK आिद िवधाओ ं का अभाव
खटकता जा रहा है। नए रचनाकार इस ओर =यान नही दे रहै है या उनक िच इन िवधाओ ं म:
नही है। यह गढ़वाली सािहय के भिवPय पर एक !oिच~ है। कुछ एक गढ़वाली िफBम* को
छोड़कर िफर कोई उBलेखनीय िफBम नही बन पाई है। जो गढ़वाली सािहयकार*/नाट्यकिम(य*
को !ेHरत कर पाती।
11.5 श"दावली
मोछंग - छोटा वा य/7
माल - बहादरु /मBल
भोट - ितZबत
नागरजा - कृ Pण
ढ़साक - हBका +पश(
hयदंू ाल - म/7 [ारा फ: के गये चावल
जागरी - जागर गीत* के िवशेष R (गायक/वादक)

उतराखड मु त िवविवालय 178


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
अhं वाल - अंजिु ल
खक( - भैस* के रहने का +थान
खंदु ेड़ - एक !कार के गीत
कळकळी - उकंठा से उप/न गले पर एक !कार क अुत अनभु ूित
औजी - ढोल, दमामा बजाने वाले हHरजन
गदरा - छोटी नदी
णक-झणु क - चपु के -चपु के म/द =विन करते हए
म/ु यास* - पगड़ी
कुखड़ी - मगु U
दगड्या - दो+त
बोकट्या - बकरा

11.6 अ%यास & एवं उ(र


1. िन5न !ब/ध िकसके [ारा िलखे गये है ?
क गढ़वाल के सािहय सं+कृ ित पर +क/द परु ाण का !भाव
ख नागरजा महाकाTय
ग नाथपंथ और गढ़वाल
घ जौनसारी भाषा का िववेचनामक अ=ययन

2. आधिु नक गढ़वाली कथा के िक/ही तीन लेखक* के नाम िलख* ?


3. गढ़वाली नाटक िवधा पर सबसे मह?वपणू ( काय( िकस िव[ान ने िकया है ?
4. !थम चरण के गढ़वाली काTय* के नाम िलिखए।
5. िन5निलिखत आधुिनक किवता सं4ह* के लेखक* के नाम बताइये।?
क गायू क गंगा, +यायू का समोदर,
ख मेरी अrयाल
ग हfसदा फूल िखलदा पात
घ कुयेड़ी
6. िन5न रचनाएं िकस किव क है ?
अhं वाल, चांठो का —वीड़, मंगत,ू
7. गढ़वाली !ब/धकाTय पर संिF\ म: िटnपणी िलिखए।
8. आधिु नक समालोचना ‘बM‘ के लेखक का नाम बताओ।
9. नरे /0 िसहं नेगी के बस/त पर िलखे हए गढ़वाली गीत के बोल िलख*।
उRर

उतराखड मु त िवविवालय 179


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
उKर 1
क च/0शेखर बडोला
ख क/हैयालाल डंडHरयाल
ग डॉ. िवPणदु K कुकरे ती
घ डॉ. उमाशक ं र ‘सतीश‘
उKर 2
1. नरे /0 कठै त
2. िहमव/तवासी
3. अबोध ब/धु बहगणु ा
उKर 3 डॉ. गोिव/द चातक
उKर 4 !थम चरण के गढ़वाली काTय िन5निलिखत है-
1. बाटा गोडाई
2. जय-िवजय
3. पंछी पंचक
4. फुलकडी
5. मोछंग
6. !हलाद नाटक
उKर 5
क नरे /0 िसंह नेगी
ख ऋिषवBलभ कडवाल
ग लिलत के शवान
घ क/हैयालाल डंडHरयाल
उKर 6 अंhवाल, चांठो का —वीड़, मंगत,ू उ_ तीन* रचनाएं क/हैयालाल डंडHरयाल जी क है।
उKर 7 गढ़वाली !ब/ध काTय
!ब/धकाTय के अ/तग(त खडकाTय और महाकाTय दोन* िवधाएं आ जाती है।
गढ़वाली म: अभी तक दो ही महाकाTय !ा\ हए है। पहला महाकाTय अबोध ब/धु रिचत
भ5ू याल और दसू रा क/हैयालाल डंडHरयाल रिचत नागरजा है। गढ़वाली म: अनेक गीत एवं
सवं ादामक खडकाTय भी रचे गय है। िजनम: जय-िवजय, !हलाद नाटक दोन* भवानीदK
थपिलयाल रिचत गीतामक !ब/ध नाट्य काTय है। इनक शैली नाटकय होने से लोग इ/ह:
नाटक ही मानते है। बाटा गोडाई बलइेव !साद दीन का गीत संवादामक खडकाTय है। िजसे
रामी नाम से जाना जाता है। भजन िसहं ‘िसंह‘ क वीर देवक तथा तारादK गैरोला कृ त सदेई
दोन* खडकाTय है। क/हैया लाल डंडHरयाल का मंगतू तथा सदान/द जखमोला का रै बार और
अ|ुमाला कृ ितयां खडकाTय के अ/तग(त है।
उKर 8 आधिु नक समालोचना ‘बM‘ के लेखक |ी वीरे /0 पवं ार है।

उतराखड मु त िवविवालय 180


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
उKर 9 नरे /0 िसंह नेगी का बस/त पर आधाHरत गढ़वाली गीत िन5निलिखत है-
णक ु -झणु कु ऋतु बसि/त गीत लगांिद ऐगे,
बसंत ऐगे हमार डांडा साय(ू मा
ठुमुक-ठुमक ु गंदु यली खटु ् यनू िहटी क ऐगे,
बस/त ऐगे िलपM पोतM िडंडBयंू मा।
मखु ड्यूं मा हैसणू च िपंगलू मौBयार,
गBवड्यंू मा सल ु गै गे ललंगा अंगार
आं यंू मा चमू ाण सिु प/या बस/ती
उ¬या िजकुड्यंू मा छलके णू nयार
िसंणका सतू कंु गिल कंदिु ड़- नकुड्यंू मा पैरेगे
बस/त ऐगे हमार गांदी चौठ्यू मा।
11.7 स+दभ *+थ सूची
1. उKराखड क लोक कथाएं, गोिव/द चातक, तFिशला !काशन, दHरयागंज,
अ/सारी रोड़, नई िदBली- !थम सं+करण 2003
2. गढ़वाली लोककथाएं, डॉ. गोिव/द चातक, !थम सं+करण 1996, तFिशला
!काशन, असं ारी रोड़, दHरया गंज, नई िदBली
3. गढ़वाली भाषा और उसका सािहय, डॉ. हHरदK भˆ ‘शैलेश‘, !थम सं+करण
2007, तFिशला !काशन, 98 ए, असं ारी रोड़, दHरया गंज, नई िदBली।
4. उKराखड क लोककथाएं, डॉ. गोिव/द चातक, !थम सं+करण 2003, तFिशला
!काशन, 98 ए, असं ारी रोड़, दHरया गंज, नई िदBली।
5. गढ़वाली लोक सािहय क !+तावना, मोहनलाल बाबल ु कर, !थम सं+करण अ!ैल
2004, भागीरथी !काशन गृह, बौराड़ी, नई िटहरी।
6. गढ़वाली काTय का उव िवकास एवं वैिशO्य, डॉ. जगद5बा !साद कोटनाला, !थम
सं+करण 2011, !काशक- िवजय जयु ाल, 558/1, िवजय पाक( , देहरादनू ।
7. गढ़वाली लोक गीत िविवधा, डॉ. गोिव/द चातक, !थम सं+करण 2001 !काशक
(तेज िसंह) तFिशला !काशन, असं ारी रोड़, दHरया गंज, नई िदBली।
11.8 िनबंधामक &
1. गढ़वाली लोक सािहय के वत(मान +व9प पर िव+तृत िनब/ध िलिखए .

उतराखड मु त िवविवालय 181


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204

इकाई – 12 पंजाबी सा ह य का इतहास एवं


परचय
12.1 तावना
12.2 उेय
12.3 पंजाबी सािहय का काल िवभाजन: िविभ0न RिMकोण
12.4 पंजाबी सािहय का काल िवभाजन
12.5 आिदकाल (850 ई. से 1500 ई. तक)
12.5.1 नाथ योिगय- का काAय
12.5.2 बाबा फ़रीद श करगंज
12.5.3 लोक सािहय
12.5.4 वार काAय
12.6 म8यकाल (1500 ई. से 1850 ई. तक)
12.6.1. गरु मत काAय
12.6.2. गरु मत काAय के ितिनिध किव
12.6.3. Sी ग ु /ंथ सािहब
12.6.4. सफ़ ू  काAय
12.6.5. सफ़ ू  काAय के ितिनिध किव
12.6.6. िक सा काAय
12.6.7. िक सा काAय के ितिनिध किव
12.6.8. वार काAय
12.6.9 गI सािहय
12.7 आधिु नक काAय (1850 ई. अब तक)
12.7.1 ईसाई िमशन रय- का पजं ाबी भाषा और सािहय को योगदान
12.7.2 िसंह सभा का योगदान
12.7.3 पंजाबी किवता
12.7.4 उप0यास-सािहय
12.7.5 कहानी-सािहय
12.7.6 िनब0ध
12.7.7 आलोचना
उतराखड मु त िवविवालय 182
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
12.7.8 नAयतर गI िवधाएँ
12.8 सारांश
12.9 अ+यास न

12.1.  तावना
इस इकाई म: हम पंजाबी सािहय पर एक `िO डालते हए इसका पHरचय !ा\ कर: ग।े
इसके अ=ययन से हम: यह Rात होगा िक भारतीय सािहय के इस खड़ िवशेष का या मह?व
है और इसके सािहय क कौन-कौन सी िवशेषताएँ हf िजसके कारण इसका अ=ययन उतना ही
आवयक है िजतना अ/य भारतीय भाषाओ ं के सािहय का। आप यह भी जान:गे िक पंजाब
िकतना !ाचीन है और इसके सािहय क जड़: कहाँ तक जा पहचँ ी हf। आपको यह भी Rान होगा
िक पजं ाबी भाषा का उव कहाँ से हआ।
nयारे िवािथ(यो ! यह तो आपको पता ही है िक पंजाब भारत के उKर पिVम म: ि+थत इलाके
का नाम है। इस इलाके (Fे7) म: बोली जाने वाली भाषा को पंजाबी कहते हf। पंजाबी श Zद
फ़ारसी का है, िजसका अथ( है पाँच निदय* (पच ं +आब) का !देश । ये पाँच निदयां हf - सतलजु ,
Tयास, रावी, जेहलम एवं चनाव। यह नाम मग़ु ल* के [ारा रखा गया था। इससे पहले इसे पंचनद,
स\िसंधु आिद नाम* से बल ु ाया जाता था। यह भी आपको +पO होना चािहए िक बृहतर पंजाब
का अब एक िह+सा पािक+तान म: चला गया है। भारत म: भी इस का एक िह+सा िहमाचल !देश
बन गया तो दसू रा हHरयाणा। पंजाबी क तीन उप-बोिलयाँ हf - माझी (अमृतसर), दोआबी
(होिशयारपरु ) और मलवई (पिटयाला)। डॉ. उदयनारायण ितवारी के अनुसार इसका िवकास
‘ट क’ अपmंथ से हआ है और इस पर शौरसेनी अपmश ं का !भाव है। डॉ. भोलानाथ ितवारी
का मानना है िक इसका िवकास पैशाची या कै कय अपmंश से हआ है। पंजाबी के !िस
िव[ान डॉ. !ेम !काश भी कै कयी !ाकृ त अपmंश से इसका िवकास मानते हf। आपको यह
बात भी यहM जान लेनी चािहये िक िजस !कार िह/दी क िलिप को देवनागरी कहा जाता है,
उसी !कार पंजाबी िलिप को ‘गु मख ु ी’ कहा जाता है िजसे गु अगं द देव ने Tयवि+थत िकया।
हाँ, पािक+तान म:, पंजाबी फ़ारसी िलिप म: िलखी जाती है। करनैल िसंह िभंद ने अपनी पु+तक
‘पजं ाब दा लोक िवरसा’ म: +पOतः यह माना है, ”पजं ाबी का वैिदक स+ं कृ त, !ाकृ त* और
अपmंष* से Tयाकरण एवं श Zद* आिद क `िO से तल ु ना करके यह बात +पO हो जाती है िक
िह/दी, गजु राती और मराठी आिद भाषाओ ं क भांित ही पंजाबी भी िह/दी-आय( भाषा पHरवार
क आधिु नक भाषा है।“
पंजाब क समृ सािहियक पर5परा का अवलोकन करने से पवू ( यह जान लेना भी
आवयक है िक पुरातन खोज* के अनुसार पंजाब क सvयता अयंत !ाचीन-िस/धु घाटी क
सvयता तक जाती है। 1921-22 ई. म: हडnपा और मोहनजोदड़* क खदु ाई से यह बात िस हो
चक ु  है। हडnपा, मोहनजोदड़ो और संघोल इसके !मख ु के /0 थे। पंजाब बा‰ आkमण* का
उतराखड मु त िवविवालय 183
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
के /0 भी रहा। िसकंदर ने अरब* के िसंध के राजा दाहर पर आkमण करके आगामी मसु लमान
आkमणकाHरय* के िलये रा+ता खोल िदया। इसके बाद सबु कत दीन, महमदू ग़ज़नवी, महु 5मद
ग़ौरी के लगातार आkमण हए। 1000 ई. तक परू ा पंजाब मुसलमान* के कZज़े म: आ गया। यहाँ
गलु ाम, िखलजी, तुगलक, लोधी आिद वंश* ने राhय िकया िफर बाबर के आkमण से मुग़ल*
का राhय +थािपत हो गया। इसके बाद अं4ज़े * का आगमन हआ। मग़ु ल* के साथ भी पजं ाब का
स5ब/ध कभी सौहाद(पणू ( तो कभी असौहाद(पणू ( रहा। सदा आkमणकाHरय* का सामना करने के
कारण पंजाब के लोग* म: अ खड़ता, लडाकूपन देखने को िमलता है।
इतनी !ाचीन सvयता होते हए भी पंजाबी का सािहय 1000 ई. के लगभग देखने को
िमलता है। पंजाबी तब तक अपना आज का +व9प लगभग 4हण कर चुक थी। इसे श ु और
एक9पता देने का काम ग9 ु अंगद देव ने अवय िकया।

12.2 उ"ेय
एम0ए0एच0एल – 204 क यह बारहवM इकाई है । इस इकाई म: आप पंजाबी भाषा के सािहय
से पHरिचत ह*गे । इस इकाई के अ=ययन के पचात् आप –
• पजं ाबी सािहय के काल िवभाजन से पHरिचत हो सक: गे ।
• पजाबी सािहय क िवशेषताओ ं को समझ सक: गे ।
• पंजाबी सािहय के !मखु किवय*, लेखक* से पHरिचत हो सक: गे ।
• पंजाबी सािहय के योगदान को समझ सक: गे ।

12.3 पंजाबी सा&हय का काल )वभाजन: )व8भन 9ि;टकोण


अभी तक हमने पजं ाब और पजं ाबी भाषा के बारे म: जाना है। अब पजं ाबी सािहय के
िवभाजन के बारे म: जान:गे। !ायः सािहयेितहास को िलखना किठन रहा है। इसका मु य कारण
इसके स5पणू ( सािहय का िवभाजन है। प और ग का िवभाजन तो सामा/य सा िवभाजन है।
मलू सम+या मानव क िचKवृिKय* का अंकन करने वाले सािहय ही क है। इसका िवभाजन
िव[ान* ने अपने-अपने `िOकोण से िकया है।
यह बात तो अब तक आपको +पO हो चुक है िक पंजाबी सािहय का इितहास बहत पुराना है।
इसे Tयवि+थत 9प म: िलखने क पर5परा का !ार5भ बीसवM सदी म: ही हआ है। ये
सािहयेितहास Tयि_गत और सं+था के +तर पर िलखे गये हf। इन इितहास* के `िOकोण अलग-
अलग रहै िजसके कारण अभी तक कोई सतं ोश जनक इितहास !ा\ नहM होता। पजं ाबी सािहय
का अ=ययन करने से पवू ( इसके सािहयेितहास लेखन क पर5परा हो जानना आवयक है।
पंजाबी सािहय का पहला इितहास ‘बावा बधु िसंह’ [ारा रिचत तीन पु+तक* म:
िमलता है। चिंू क यह पहला इितहास है इसिलये इसम: सािहय िवभाजन क कई किमयाँ देखने

उतराखड मु त िवविवालय 184


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
को िमलती ह:। उनके िवभाजन से यह +पO नहM होता िक उ/ह*ने अपने िवभाजन के िलये िवषय,
9प, !वृिK, धारा, राजनैितक घटना म: से िकसे आधार बनाकर िलखा। िसख मज़हवी िलटरे चर,
मसु लमान मज़हबी िलटरे चर, िह/दू िलटरे चर, ईसाई िलटरे चर, दिु नयाबी िलटरे चर और नया
िलटरे चर उनके िवभाजन का मुय आधार है। मज़हब के आधार पर िकसी भाषा के सािहय का
िवभाजन न वैRािनक है और न तक( के आधार पर ही उिचत कहा जा सकता है।
डॉ. मोहन िसंह दीवाना ने सािहयेितहास से स5बिं धत प+ु तक: िलखM - इन प+ु तक* के
काल-खड िवभाजन म: पया(\ अ/तर है। उदाहरणाथ( 1. प+ु तक म: पहले काल खंड को ‘पवू (
नानक काल’ कहा तो दसू री प+ु तक म: इसे ‘नाथ योिगय* का यगु ’ कहा। 1. म: ‘गोरख नाथ का
समय’ कहा तो दसू री प+ु तक म: ‘पवू ( नानक काल’ या ‘गोरख काल’ कहा। इस !कार उनके
इितहास म: िनिPचतता नहM है, ि+थरता नहM है। दसू रे उ/ह*ने िवभाजन राज घरान* को आधार
बनाकर िकया जैसे ‘मगु ल काल, रणजीत िसंह काल’ - यह सािहयेितहास का आधार नहM हो
सकते। डॉ. गोपाल िसंह ददU एवं !ो. nयारा िसंह पोगल [ारा रिचत इितहास* पर !ो. मोहनिसंह
के इितहास का +पO !भाव देखने को िमलता है।
डॉ. सरु े /0 िसंह कोहली ने पंजाबी सािहय का इितहास िलखते हए धाराओ ं को आधार
बनाया जैसे ‘लोक गीत और सािहियक झुकाव, पं0हवी सदी, गरु मत का सािहय, िनम(ल साधु
‘सफ ू  सदी’ आिद। इसम: एकरसता के साथ-साथ धाराओ ं का उव, िवकास एवं समाि\ का
उBलेख नहM है। इसी !कार सुHर/दर िसंह न9ला का ‘पंजाबी सािहय का इितहास’ भी 7िु टरिहत
नहM है। उ/ह*ने मह?व हीन को मह?व पणू ( बना िदया और मह?व पूण( को मह?व हीन बना िदया
जैसे पहले काल को ‘वीर गाथा काल’ कहकर उ/ह*ने उन ‘वार काTय*’ को मह?व िदया जो
उपलZध ही नहM हए और नाथ* िस* एवं बाबा फरीद क रचनाओ ं को िनकाल ही िदया है।
Rानी हीरा िसंह दद( ने जो इितहास 1954 ई. म: िलखा उसम: इसके सािहय के दो भाग
िकए - ‘पुराना काल’ एवं ‘नया काल’ और यह भी माना िक अ4ं ज़े * के आने पर ही पजं ाबी
सािहय म: नया मोड़ आता है। यह कथन दोश पणू ( भी है और तक( हीन भी। इसका अथ( तो यही
िनकलता है िक 1850 ई. से पहले पंजाबी सािहय म: कोई पHरवत(न ही नहM आया। वैसे भी
‘परु ाना काल’ पजं ाबी के मह?व पणू ( सािहय को कहना उिचत नहM।
डॉ. जीतिसंह सीतल ने 1973 ई. म: ‘पंजाबी सिहत दा आलोचनामक इितहास म:
‘ग9 ु नानक’ को आधार बनाकर इसका िवभाजन िकया जैसे ‘पवू ( नानक काल’, ‘नानक
काल’, ‘उKर नानक काल’। इसम: सदं हे नहM िक ग9 ु नानक क वाणी !भावशाली और मह?व
पूण( है, मगर उ/ह*ने न के वल बाबा फरीद का मह?व घटा िदया, एक रचनाकार को काल
िवभाजन का आधार बनाकर और 1850 ई. के बाद के सािहय को ‘पHरवत(न काल’,
‘आधिु नक काल’ कहकर इससे मिु _ पा ली। अतः यह मानदडं दोश पणू ( है। यही नहM !ारि5भक
काल के बारे म: ग़लत जानकारी भी दी गई है - जैसे इस काल म: कोई !ामािणक रचना ही नहM
हई, अतः पंजाबी सािहय का कोई आिदकाल नहM। यह बात त@याधाHरत नहM है।

उतराखड मु त िवविवालय 185


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
ईशर िसंह तांध ने अपने ‘पंजाबी सािहत दा परू ण-मल
ू ांकन’ म: सािहियक धाराओ ं को
आधार अवPय बनाया। जैसे ‘वीर रस काTयधारा, |ृगं ार काTयधारा, भि_ काTयधारा’ आिद।
यह इितहास 19वM सदी तक होने के कारण अधरू ा है।
िकरपाल िसंह के सल, परिमंदर िसंह एवं गोिब/दिसंह लांबा ने ‘पंजाबी सािहत दी
उपिK अते िवकास’ नाम से जो इितहास िलखा है, वह िव[ान* [ारा !षिं सत है। इ/ह*ने काल
खंड के मुय तीन भाग िदये हf - आिद काल, म=य काल, आधिु नक काल। इन काल खंड* को
िफर उपखंड* म: बांटा और काTय धाराओ ं एवं सािहय 9प* के आधार पर समझने का !यन
िकया गया है। यह इितहास पंजाबी सािहय को समझने म: सहायक िस हआ है। लेिकन इस
सािहयोितहास क सबसे बड़ी िवड5बना यह है िक नये सं+करण म: ‘आिदकाल’ को
‘म=यकाल’ के अ/तग(त िबना िकसी तक( संगत कारण के समािवO कर िदया गया है।
पंजाबी सािहय के इितहास लेखन का काय( भाषा िवभाग, पंजाब (दो भाग), पंजाब
िवविवालय, चडीगढ़ (पाँच भाग), पंजाबी िवविवालय, पिटयाला (तीन भाग), ग9 ु
नानक देव िवPविवालय, अमृतसर (तीन भाग) एवं पंजाबी अकादमी, िदBली (14 भाग) ने
अपने-अपने धरातल पर िकया है। इन सं+थागत इितहास* म: 7िु टयाँ रह गई हf िजसके कारण ये
इितहास कहM पणू त( ा !ा\ नहM कर पाये। इ/ह: संतोष जनक नहM माना जा सकता।

12.4 पंजाबी सा&हय का काल )वभाजन


अभी तक हमने पंजाबी सािहयेितहास क पर5परा और `िOय* का सF
ं ेप पHरचय म:
!ा\ िकया है। अब हम पंजाबी सािहय का काल-िवभाजन कर: गे जो अिधकांश िव[ान* [ारा
अनमु ोिदत है:-
आिदकाल (850 ई. से 1500 ई. तक)
(क) नाथ योिगय* का काTय
(ख) बाबा फ़रीद शकरगंज (सूफ़ काTय)
(ग) लोक सािहय
(घ) वार काTय
म=यकाल (1500 ई. से 1850 ई. तक)
(क) गरु मत काTय
(ख) गरु मत काTय के !ितिनिध किव
(ग) |ी ग9ु 4थं सािहब
(घ) सूफ़ काTय
(च) सूफ़ काTय के !ितिनिध किव
(छ) िक+सा काTय
(ज) िक+सा काTय के !ितिनिध किव
(झ) वार काTय

उतराखड मु त िवविवालय 186


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(घ) ग सािहय
आधिु नक काTय (1850 ई. अब तक)
(क) ईसाई िमश नHरय* का पंजाबी भाषा और सािहय को योगदान
(ख) िसंह सभा का योगदान
(ग) पजं ाबी किवता
(घ) उप/यास-सािहय
(च) कहानी-सािहय
(छ) िनब/ध
(ज) आलोचना
(झ) नTयतर ग िवधाएँ

अब हम इस िवभाजन का संFेप म: अ=ययन कर: गे।

12.5 आ&दकाल (850-1500 ई. तक)


nयारे िवािथ(यो ! पजं ाब के आिदकालीन सािहय का अ=ययन करने से पवू ( उस काल
क पंजाब क ि+थित पर िवचार करना आवयक है। पंजाब क भौगोिलक ि+थित ही ऐसी रही
है िक सभी आkमणकाHरय* के िलये यह !वेश [ार रहा। तुकg, ग़ािज़य* के आkमण होत: रहै।
महमदू ग़जनबी ने 1001 ई. म: िह/दू राजा जैपाल को हराया। जैपाल के प7ु आन/दपाल के साथ
उसका य ु 1008-09 ई. म: हआ। आन/दपाल क दो तीन राजाओ ं क िमली-जल ु ी सेना को
उसने हरा िदया। इस !कार पंजाब म: ग़जनबी राज +थािपत हो गया। ग़जनबी का मल ू उGेय
भारत के मंिदर* को लटू ना था। सोमनाथ मिं दर को भी उसने लटू ा। 1030 ई. म: उसक मृयु हई।
उसका प7ु मसऊद कमज़ोर िस हआ। अतः उसका साŽाhय के वल ग़जनी और पंजाब तक
सीिमत हो गया। इधर राजपतू * का दबदबा बढ़ा और उ/ह*ने पंजाब म: अपना साŽाhय +थािपत
कर िलया। मगर वे ग़जनिबय* को बाहर न िनकाल सके । ग़ज़नी पर जब मइु जGु ीन महु 5मद िजसे
महु 5मद गौरी के नाम से जाना जाता है, ने कZजा िकया तो ग़ज़निबय* को मार भगाया। पृ@वीराज
चौहान को हराने के बाद उसने कुतबु Gु ीन ऐवक को राज-!बंध सsप िदया। इस !कार पंजाब म:
तकु g का राhय +थािपत हो गया। इस !कार यहाँ गुलाम, िखलजी, तगु लक, लोधी आिद ने वषg
राhय िकया। मसु लमान* के !वेश के कारण दो सं+कृ ितय* का मेल हो रहा था। qा णवाद क
कˆरता और ब ु मत क दबु (लता ने योिगय* का !भाव बढ़ा िदया।
12.5.1 नाथ योिगयY का का1य
इस काल को कुछ िव[ान ‘पवू ( नानक काल’ भी कहकर पुकारते हf। जैसे िक पहले ही आपको
बताया जा चुका है िक इस काल म: पंजाबी का पहला 9प ‘िस माि7क’ िलिप म: िलखा जा
रहा था जो बाद म: संशोिधत होकर वत(मान ‘गु मख
ु ी’ िलिप कहलाई। ‘िस माि7क’ िलिप का

उतराखड मु त िवविवालय 187


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
पहला !योग िस नाथ योिगय* ने ही िकया। इनसे और बाबा फ़रीद क वाणी से पंजाबी
सािहय का !ार5भ माना जाता है। ये नाथ िस योगी सभी पजं ाब म: अपने मठ +थािपत करने
वाले थे। इन योिगय* ने आम जनता को िवषय-िवकार* से म_ ु करवाने का !यन िकया।
राजाओ ं को भी ऐŠयायशी से म_ु करके अपना िशPय बनाया। इनम: जलधं र नाथ, मछंदर नाथ,
गोरख नाथ, चरपट नाथ, चौरंगी नाथ, रतन नाथ, भतृहरी नाथ आिद !मख ु हf। इन नाथ* क
वाणी म: अपmंश !धान पंजाबी देखने को िमलती है। इन नाथ* के दोह*, पद*, शZद* और
लोक* म: Tयंrय !धान सािहय का 9प देखने को िमलता है। डॉ. रािज/दर िसंह सेख* ने ‘पंजाबी
सािहत दा नवीन इितहास’ म: कहा है, ”िनदं ा और उपदेश इस सािहय के !मख ु साधन हf। इन
किवय* का सारा सािहय भैरव, रामकली और गऊड़ी राग म: है।“ इसम: आ=याम क िवशेष
श Zदावली का !योग हआ है।
12.5.2 बाबा फ़रीदश करगंज (सफ़ ू  का1य) (1173 ई.-1266 ई.)
इ/ह: पंजाबी सािहय का िपतामह कहा जाता है। इनक वाणी ‘|ी गु 4थं सािहब’ म: संकिलत
होने के कारण िवकृ त होने से बच गई है और अपने श ु 9प म: है। ‘|ी गु 4थं सािहब’ म: इनके
132 लोक तथा राग आसा और सहू ी म: दो शZद हf। इनके 112 लोक ही हf शेष 20 लोक ,
पहले, तीसरे और पाँचवे गु ने िटnपणी के 9प म: िदये हf। बाबा फ़रीद पहले ऐसे पंजाबी किव हf
िजनक रचना श ु और ठे ठ पंजाबी म: है और ये आज क पंजाबी के बहत िनकट है। इनक
सभी रचनाओ ं म: सदाचार क, आ=याम क िशFा िमलती है िजसे कलामक, सरल एवं
सयं िमत ढगं से अिभTय_ िकया गया है। फरीद एक िनपणु कलाकार है िजनक वाणी क अनेक
पंि_याँ आज महु ावरा बन कर लोग* क जबु ान पर हf। डॉ. दीवान िसंह का कहना है, ”िशखर पर
पहचँ ा आ=याम और रह+यवादी अनभु व यथाथ( से ऐसे घुल िमल गया है जैसे संसार क ठोस
व+तओ ु ं म: पवन सि5मिलत होता है।“
12.5.3 लोक सािहय
यह बात +मरणीय है िक !येक भाषा के सािहय का पहला 9प लोक सािहय ही होता है,
िजसम: लोक गीत बझु ारत:, कह मुकHरयाँ और दो सुखने आिद होते हf ‘कह-मुकHरयाँ’ उन
बझु ारत* को कहते हf िजनम: जवाब भी इनम: ही िदया जाता है। दो सुखने म: सवाल दो भाषाओ ं म:
होता है जवाब उस शZद [ारा िदया जाता है जो दोन* भाषाओ ं म: साझं ा हो। ये सब रचनाएँ
अमीर खसु रो के नाम के साथ जड़ु ी हई हf। ये सब रचनाएँ लोक वाणी [ारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी होती
हई ंबदले 9प रंग म: हम तक पहचँ ी हf।
12.5.4 वार का1य
वार काTय या वारां पंजाबी म: वीर काTय को कहते हf। जैसा िक पहले भी कहा जा चक ु ा है िक
पजं ाब क भौगोिलक ि+थित ही ऐसी है िक यहां के िनवािसय* को आिदकाल से ही बाहर के
आkमण* का सामना करना पड़ा है। वीर काTय वीर* को य ु Fे7 म: वीरता िदखाने क !ेरणा

उतराखड मु त िवविवालय 188


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
हेतु रचे जाते थे। इस काल के वार-किवय* का पता नहM। हाँ पंिडत तारा िसंह नरोKम ने अपनी
िकताब ‘गरु मत िनण(य सागर’ म: इन वार* के नमनू े !+ततु िकए हf। इ/हM के आधार पर |ी गु
4थं सािहब म: दज( वार* को गाने का ह म िदया गया।
फुटकर के अ/तग(त ‘ग’ का !ारि5भक 9प आता है िजसका वण(न ‘ग सािहय’ म: िकया
जायेगा।

12.6 म?यकाल (1500 ई.-1850 ई. तक)


कुछ िव[ान इसे दो भाग* म: बांट कर देखते हf - पवू ( म=यकाल (1500-1700 ई.) और
उKर म=यकाल (1701-1850 ई.)। कुछ िव[ान इसे ‘ग9 ु नानक काल’ और ‘उKर ग9 ु नानक
काल’ कहकर भी पुकारते हf। इस काल को पंजाबी का ‘+वण( युग’ कहकर पक ु ारा जाता है।
इसके अ=ययन से पवू ( इसक पHरवेश गत ि+थित पर `िOपात करना आवयक है।
ग9 ु नानक के ज/म के समय लोधी और पठान* का राhय था। यह राhय mOाचार, बईमानी और
बेइ/साफ से भरा हआ था। सामािजक दषा भी ऊँच-नीच, जाित-भेद, बहम*-mम*, झठू े र+म,
Hरवाज* का िषकार थी। बाबर ने इqािहम लोधी को हराकर अपना राhय कायम िकया। मगु ल* के
भारत म: कZजा करने पर कई सिदय* के बाद लोग* को षाि/त !ा\ हई। िह/दओ ु ं पर अयाचार
कम हए। बाबर नानक का समकालीन था तो औरंगज़ेब दसव: गु9 गोिब/दिसंह का। अकबर को
छोड़कर सभी राजाओ ं क गु9ओ ं से ठनी रही है। जहांगीर, शाह जहां, औरंगज़ेब सभी ने
ग9ु ओ ं को !ताड़ना दी। यह सब होते हए भी मगु ल* के दौर म: कोई बड़ी बग़ावत नही हई, न ही
कोई बाहर से आkमण हआ। औरंगज़ेब का राhय अवPय िव0ोह का अखाड़ा बना। ग9 ु
तेग़बहादरु क श हीदी के बाद 1699 ई. म: गु9 गोिब/द िसंह ने ‘खालसा पंथ’ क नMव रखी
तािक धम( क रFा क जा सके । 1707 ई. म: औरंगज़ेब क मृयु के बाद उनका बेटा मअ ु ज़म,
जो बहादरु शाह कहलाया, गGी पर बैठा। इधर बंदा बहादरु ने पंजाब म: मग़ु ल* क नाक म: दम
कर िदया। 1716 ई. म: बंदा बहादरु क श हीदी के बाद 30 वष( तक िसख* पर अकथनीय,
असहनीय अयाचार हए। 1739 ई. म: इरान के राजा नािदरशाह ने आkमण करके
महु 5मदशाह रंगीले क कमर तोड़ दी। 1757 ई. को अहमदशाह अZदाली ने के ि/0य श ि_
यानी मग़ु ल श ि_ को कमज़ोर कर िदया। िसख* का मूलनाश करने के !यन हए। िसख* ने
हौसला करके 12 संगठन बना िलये िज/ह: ‘बारह िमसले’ कहकर पुकारा जाता है। इ/हM िमसल*
म: ‘षकू रचिकया’ िमसल के सरदार रणजीत िसंह ने पहले 1801 ई. म: लाहौर पर कZज़ा कर
िलया और िफर धीरे -धीरे 1839 ई. तक परू े पजं ाब तक अपनी हद* का िव+तार कर िलया।
लेिकन आपसी झगड़* और रणजीत िसंह क मौत के बाद िसख शि_ समा\ हो गई और 1849
ई. तक पंजाब पर अं4ेज़* का कZज़ा हो गया।

उतराखड मु त िवविवालय 189


तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
12.6.1. गुरमत का1य
लौिकक एवं अलौिकक ससं ार से स5बिं धत ग9 ु ओ ं और ‘ |ी ग9 ु 4थं सािहब’ म: दज़(
वाणीकार* क िवचारधारा को समचू े 9प म: गरु मत काTय कहा जाता है। इस काल म: रचे गये
स5पणू ( काTय म: सव(|े{ काTय ग9ु ओ ं का ही है िजसे ‘आिद 4थं ’ म: संकिलत िकया गया है।
डॉ. परिमदं र िसहं का इस स5बधं म: कहना है, ”पजं ाबी सािहय म: गरु मत काTय धारा सबसे श
ि_शाली कही जा सकती है य*िक इस काल क अ/य सभी सािहियक !ाि\य* से, जहाँ
आकार म: यह सबसे अिधक है, वहाँ लोक भावनाओ ं क भी यह सबसे अिधक Tयाया करती
है। सभी ग9 ु ओ ं ने समाज को आ=यािमक भाईचारा, सदाचार और सvयाचार आिद िभ/न-
िभ/न पF* से िवकिसक करने के िलये सािहय को एक साधन के 9प म: जीवन के ठोस िवकास
का साधन िस िकया।“ ग9 ु नानक, ग9 ु अंगद देव, ग9 ु अमरदास, ग9 ु रामदास, ग9ु अज(नु
देव, ग9ु तेग बहादरु एवं ग9ु गोिब/द िसंह क वाणी आ=यािमक और कलामक `िO से
िनःसंदेह उदाK जीवन `िO क पHरचायक है। ये सारी वाणी संगीत ब है।
12.6.2. गुरमत का1य के ितिनिध किव
ि!य िवािथ(यो ! अभी तक हमने गरु मत काTय का संिF\ पHरचय !ा\ िकया है। अब
हम इसके !मख ु काTय* का पHरचय !ा\ कर: ग:। इस अ=ययन को करते समय सदैव +मरण रख:
िक पंजाब क सं+कृ ित का यह मल
ू आधार है और सभी किवय* का वण(न यहाँ नहM िदया जा
सकता है।
12.6.2.1. गु नानक (1469 - 1539 ई.)
ग9
ु नानक पंजाब के ही नहM समचू े भारत म: समा`त हf। उनक !ामािणक वाणी ‘|ी
ग9 ु 4थं सािहब’ म: संकिलत है। 2949 बदं * म: समािहत उनक वाणी 19 राग* म: िनब है। |ी
ग9ु 4थं सािहब म: संकिलत उनक वाणी ग9 ु अजु(न देव को छोड़कर सबसे अिधक है। उनक
वाणी के बारे म: डॉ. परिमंदर िसंह का कहना है - ”इस अमर सािहय क सबसे बड़ी खबू ी यह है
िक गहरे से गहरे , ग5भीर से ग5भीर और सIू म आ=यािमक िवषय* को लोक अनभु व के अिधक
से अिधक िनकट रखा और उसे लोक भाषा के मा=यम से 9पाियत िकया।“ पंजाबी सािहय के
नये यगु का !ार5भ करने वाले, सािहय को लोक-जीवन से जोड़ने क नयी पर5परा डालने वाले
ग9
ु नानक 24 वष( तक देश देषाटन करते रहै। उनक वाणी म: जपजु ी साहब, तख ु ारी राग का
बारहमासा, बाबर वाणी !िस है।
12.6.2.2. गु अज.नु देव (1563 - 1606 ई.)
ग9 ु अज(नु देव क पंजाब को सबसे बड़ी देन तो ‘|ी ग9 ु 4थं साहब’ का स5पादन है िजसका
पHरचय आपको पहले िदया जा चुका है। इस 4थं म: उनक स5पणू ( वाणी संकिलत है।
‘सख ु मनी’, ‘बारमहासा’, ‘फुहने’ और 6 वार: उनक !िस रचनाएँ हf। आप क भाषा श ु एवं
ठे ठ पंजाबी है। !ाकृ त, सं+कृ त एवं qज भाषा म: भी आपने रचनाएँ क हf। दाश(िनक िच/तन

उतराखड मु त िवविवालय 190


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
आप से पहले के गु9ओ ं से अलग नहM, मगर सभी रचनाओ ं पर आपके Tयि_व क छाप है।
काTय क िमठास, !वाह और स/ु दर शZद- योजना आपक रचनाओ ं का |े{ गणु है। ‘सख
ु मनी’
पंजाबी !बंध-काTय का उकृ O नमनू ा है।
12.6.2.3. गु तेग बहादुर (1666 - 1708 ई.)
ग9ु तेग बहादरु क वाणी पHरमाण म: कम है के वल 59 पद और 57 लोक। इनक
वाणी को गु9 गोिब/द िसंह ने |ी गु9 4थं साहब म: दज( करवाया। ग9ु जी क वाणी म: संसार
क नPवरता और वैराrय का +वर !मख ु है। संसार, मानवीय स5बधं सब अि+थर हf। मनPु य +वाथ(
के चलते सबसे स5बंध बनाता और तोड़ता है - उनक स5पणू ( वाणी इस बात को दोहराती है।
12.6.32.4. गु गोिब-द िसंह (1666 -1707 ई.)
ग9ु गोिब/द िसंह क स5पणू ( वाणी ‘दश म 4थं ’ म: संकिलत है। ‘|ी ग9
ु 4/थ सािहब’ म: एक
दोहा ही है। आपक वाणी ‘चडं ी दी वार’ एवं दो शZद* को छोड़ कर, qज भाषा म: है। ‘चडी दी
वार’ िलखने का उGेय जन-साधारण म: आिमक बल के साथ-साथ वीरता क भावना भर कर
उ/ह: अयाचार और अ/याय के िव9 खड़े होने के िलये !ेHरत करना है। उनक यह रचना
िव[ान* के अनसु ार पंजाबी क पहली !ामािणक वीर रस क रचना है। ‘िमKर nयारे न’ू उनक
पंजाबी क उकृ O रचना है।
12.6.2.5. भाई गुरदास (1543 - 1637 ई.)
भाई गरु दास को डॉ. परिमंदर िसंह ने ‘म=यकाल के सारे किवय* म: िशरोमिण’ कहकर
पुकारा है। आपने 39 बार: पंजाबी म: और 600 से ऊपर किवK एवं सवैये qज भाषा म: रचे। ‘ग9

अज(नु देव’ ने इनक रचना को ‘|ी ग9 ु 4थं साहब क कंु जी’ कहकर स5मान िदया था। पंजाबी
म: सबसे अिधक वारे िलखने का |ेय भी इ/ह: ही !ा\ है। आपक रचनाओ ं म: गु9वाणी क
िव+तार पवू (क Tयाया और गुरमत क िवचारधारा को तक( एवं उदाहरण* से +पO िकया।
12.6.3. Sी गु !ंथ सािहब
यहाँ इस बात का उBलेख अयंत मह?व पणू ( है िक इन सम+त ग9 ु ओ ं क वाणी िबना
िकसी िमलावट के ठीक उसी 9प म: हम तक पहचँ ी है िजस 9प म: उ/ह*ने रची थी। इसके ष ु
9प का सारा |ेय ‘ |ी गु9 4थं सािहब’ को है िजसे ग9 ु अज(ुन देव ने 1604 म: अनथक मेहनत
से तैयार िकया और जो आज भी hय* का य* िसख* का एकमा7 आधार 4ंथ है। िवPव के सभी
धमg म: संभवतः यह एक अके ला 4थं है जो ष ु ता क `िO से !ामािणक है। |ी ग9ु 4थं सािहब
म: दज( वाणी बह-भावी और Tयापक है। इसिलये इसे स5पूण( भारत क सांझी िवरासत +वीकार
िकया जाता है। ग9 ु अज(नु देव ने 6 ग9
ु ओ ं के अितHर_ उन भ_*, संत*, सफ़ ू  किव षेख़ फ़रीद
को भी श िमल िकया िजनका िवचार गरु मत के अन9 ु प है। इस 4थं म: भले ही भाई गरु दास और
ग9ु गोिब/द िसंह श िमल नहM लेिकन इसका अथ( यह नहM िक ये गरु मत िवचार धारा से अलग
हf। दोन* गरु मत िवचार धारा का िह+सा है। गु9 गोिब/द िसंह क अिधकांश रचनाएँ qज भाषा

उतराखड मु त िवविवालय 191


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
म: है - ‘चडी दी वार’ को छोड़कर। उनक वाणी ‘दश म 4थं ’ म: संकिलत है। |ी गु9 4थं
सािहब के ग9 ु नानक, ग9 ु अगं द देव, ग9ु अमरदास, ग9 ु रामदास, ग9
ु अज(नु देव, ग9

तेगबहादरु के अितHर_ िजन भ_* क वाणी संकिलत है वे हf - कबीर, नामदेव, रिवदास,
ि7लोचन, फ़रीद, बेनी, ध/ना और जयदेव। उBलेखनीय है िक इस 4थं म: 11 भाट* क रचनाएँ
भी संकिलत हf। सामा/यतः भाट वो किव होते हf जो राजाओ ं और कुलीन वग( के लोग* क
!शंसा म: ‘वार: ’ रचते थे या उन के जीवन वृता/त सुनाते थे। इनक वाणी म: िसख सं+था के
मह?व का वण(न है। स5पूण( |ी गु9 4थं साहब को संगीत क अलग-अलग राग-रागिनय* म:
गाने का आदेश है। ग9ु [ार* म: जो गायन होता है वह इसी ग9
ु आRा का पालन है।
12.6.4. सफ़ ू  का1य
इ+लाम के भारत म: !वेश के साथ ही सूफ िवचारधारा का !वेश हआ । पंजाब के
सामािजक जीवन, सं+कृ ित, भाषा, लोकछंद, अलंकार, !तीक िब5ब पंजाबी सफ ू  किवता का
|ृंगार बने । यह किवता इ+लाम क कˆर पHरिध से बाहर आकर पंजािबय* के जीवन का अगं
बन गई। ‘सफ ू ’ शZद ‘अरबी’ शZद ‘सफ ू ’ से बना है िजसका अथ( है ‘ऊन’। हजरत महु 5मद के
समकालीन सफ ू  ऊन के कपड़े पहनते थे। जो लोग सांसाHरक मोह-माया को छोड़कर
आ=यािमक रा+ते पर चल पड़ते थे वो काले कपड़े पहनकर फकर बन जाते थे। वे ही सूफ थे।
पंजाबी सूफ़ धारा बारहवM सदी से आर5भ होकर स7हवM सदी म: अपने िषखर पर
पहचँ ती है और उ/नीसवM सदी के पहले म=य म: अपने पतन को !ा\ होती है। इस अविध म:
इPक़, राझं ा और िवरह इनके +थाई आधार रहै। शेख़ फ़रीद को पहला पंजाबी किव और पहला
सफ ू  किव माना जाता है। इसने अपने ‘शZद* और लोक*’ के मा=यम से परमामा और मौत’
से इक को जोडा। शाह हसैन ने ‘काफ’ और सल ु तान बाह¢ ने ‘िसहरफ’ के मा=यम से िवरहा
और बौिकता से इसम: रंग भरा। बBु लेशाह का काTय तो पंजाबी काTय क सीमाओ ं का लांध
कर देश -Tयापी हो गया है। उसे !ायः सभी उ}चकोटी के गायक* ने गाया है। बBु लेशाह म:
म+तमौलापन भी है, कबीर सी अ खडा भी, पाखंड िवरोध भी, इक म: एकिन{ता और
तBलीनता भी। अली हैदर, सैŠयद गल ु ाम कादर शाह, शाह हबीब, फद( फकर, िमयाँ जान
महु 5मद, गल ु ाम जीलानी रोहतक, मौलाना अZदल ु रिहमन खुलदी, हाश म, कादर ब¯ष बेिदल
उफ़( बेिदल फ़कर, िहदायतBु ला, गल ु ाम फरीद ने भी अपने सूफ काTय से पंजाबी किवता को
आगे बढ़ाया। सफ़ ू  काTय जहां वेदातं और गरु मत िवचारधारा से !भािवत हआ वहां गरु मत को
अपनी उपलिZधय* से !भािवत िकया।
12.6.5. सफ़ ू  का1य धारा के ितिनिध किव
सफ़ू  काTय का पHरचय !ा\ कर लेने के बाद इस ल5बी पर5परा के कुछ !ितिनिध किवय* का
पHरचय !ा\ कर लेना आवयक होगा। यहाँ यह +मरण रखना आवयक होगा िक पंजाबी म:
सफ़ ू  काTय का !ार5भ फ़रीद शकरगजं से माना जाता है - जो म=यकाल से पहले हए और
िजनका वण(न हम पहले कर चुके हf।

उतराखड मु त िवविवालय 192


तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
12.6.5.1.शाह हVसैन (1539 - 1593 ई.)
शाह हसैन क 163 कािफ़याँ राग* म: हf। डॉ. सHु र/दर िसहं कोहली शाहहसैन को ‘नई पजं ाबी म:
िलखने वाला पहला सूफ़’ मानते हf। इनक कािफय* म: सूफ़ काTय के सभी !मख ु लFण देखने
को िमलते हf। अपने िवचार* और िसा/त* म: वह पणू (तया भारतीय हf। उसके सफ़ ू  रह+यवाद म:
भारतीय और ईरानी िवचार* का स/ु दर िम|ण है। सदाचार ओर दाश(िनक `िO से आपक
किवता मह?व पणू ( है। शाह हसैन को िवरह का किव भी कहा जाता है। उसने ईPवरीय !ेम,
िजसे ‘इक हकक’ कहा जाता है, अयंत वेगपणू ( भाव* म: Tय_ िकया है। साह हसैन के
काTय से सफ़ ू  िवचारधारा अपने एक ऐितहािसक िवकास क नई मिं ज़ल तक पहचँ जाती है।
19.6.5.2. बBु लेशाह (1680 - 1758 ई.)
बBु लेशाह वाHरसशाह क भांित पंजाब और समय क सीमा पार करके आज भी
सवा(िधक लोकि!य किवय* म: एक है। इसका वा+तिवक नाम अZदBु ला था। इनायत शाह का
भरी जवानी म: िशPय बनकर बBु लेसाह ने सूफ़ मत का !चार िकया। अपने ‘मुश’ (उ+ताद) क
मृयु के बाद तीस वष( तक बBु लेसाह ने उनक गGी पर बैठ कर लोग* को सूफ़ मत क ओर
!ेHरत िकया। बBु लेशाह ने सूफ़ काTय को यौवन तक पहचँ ा िदया। डॉ. असलम राना ने
बBु लेशाह को ‘पंजाबी का बेबाक शायर’ कहा है य*िक बुBलेशाह िजतना +पO वादी सफ़ ू 
था, वैसा कोई नहM था। वह बेिझझक होकर पांखिड़य* को खरी-खरी सुना देता था - जैसे कबीर।
दोन* ही ‹दय से िनPछल थे। बुBलेशाह के काTय म: अ[ैत िवचारधारा +पO 9प से !कट होती
है। इसी को सूफ़ शZदावली म: ‘वहदतुल वजु ूद’ कहा जाता है। इस अव+था म: िकसी व+तु म:
कोइ भेद नहM रह जाता। सब ईवरमयी हो जाता है। बBु लेशाह क किवता का यही मूलाधार
है। बBु लेशाह ने 158 कािफयाँ रिच जो सवा(िधक !चिलत हf। उ/ह*ने 48 दोहरे , 40 गडं ां, 3
िसहिफ( याँ, 1 अठवारा तथा 1 बारमासा रचM। छंद क `िO से इ/ह: काफ, बfत, दोहरे, गीत आिद
म: बाटं ा जा सकता है। इन सब रचनाओ ं म: सूफ़ रह+यवादी अनभु व को बBु लेशाह ने अयतं
सघु ड़ श Zदावली म: अिभTय_ िकया है। बBु लेशाह ने अपने सभी िबंब, अपने अलंकार,
!तीक साधारण जन-जीवन एवं !कृ ित से लेकर अपने काTय को लोक-काTय के िनकट पहचँ ा
िदया। इसिलये वह सवा(िधक लोकि!य है।
12.6.5.3. वजीद (1550-1660 ई.)
डॉ. मोहन िसंह दीवाना ने मगु लकाल के उतरा( के तीन !िस सफ़ू  किवय* म: इ/ह:
एक माना है। वजीद क पंजाबी म: रचनाओ ं क संया 77 मानी जाती है। वजीद पहला पंजाबी
किव है िजसके काTय म: नाटकय, Tयंrय और हा+य िमलता है। वजीद सामािजक असमानता
और दHर0ता के िलये परमामा को भी ताने देने क िह5मत करता है। वजीद क सभी रचनाएँ
‘बाबा वजीद’ के नाम से !कािशत हो चुक हf। वजीद ने अ/य सिू फ़य* से अलग समाज सुधार
का माग( अपनाया। संभवतः इसिलये उसक वाणी म: कटाF और Tयंrय देखने को िमलता है।
इस `िO से वह सूफ़ होकर भी यथाथ(वादी है।

उतराखड मु त िवविवालय 193


तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
12.6.6. िकसा का1यधारा
पजं ाब म: िक+सा काTय का !ार5भ म=यकाल म: माना जाता है। िव[ान* का मानना है
िक ये फ़ारसी क मसनवी के आधार पर रचे गये। के वल +थानीय रंग और 4ामीण 9प पंजाबी
का है। शेष ढांचा फारसी मसनवी का है। फ़ारसी म: ल5बी कहानी को मसनवी कहा जाता है।
पजं ाबी म: िक+सा उस छंदब वृता/त रचना को कहा जाता है िजसम: कथानक का स5बधं !ेम,
रोमांस आिद के साथ हो। अब ये नाम !ेम, रोमांस के साथ 9ढ़ हो गया है। पंजाब के !िस
िक+साकार* म: दमोदर (िक+सा स+सी प/ु नू, यसु फ
ु जल
ु ैखा) अहमद गजु र (बfत छंद म: हीर रांझा
का िक+सा) मक ु बल (िक+सा हीर), वाHरसशाह (िक+सा हीर राझं ा), हामद (िक+सा हीर
रांझा), हाश म (िक+सा स+सी प/ु न)ू , इमाम ब¯श (शाह वहराम), कादर यार (परू ण भगत,
सोहणी मिहवाल) आिद का नाम िवशेष उBलेखनीय है। इनम: वाHरसशाह क हीर -जो िक
पंजाबी िक+सा काTय का !मुख आधार है -अपनी लोकि!यता म: अि[तीय है।
12.6.7. िकसा का1य के ितिनिध किव
nयारे िवािथ(यो ! यह बात +मरण रखनी चािहये िक आ=यािमक काTय के बाद
म=यकाल क सबसे अिधक !ितिनिध धारा िक+सा काTय ही है। इनके !मख ु किवय* का
संिF\ पHरचय इस !कार है।
12.6.7.1. दमोदर
दमोदर से पंजाबी िक+सा काTय का !ार5भ होता है। दमोदर के ज/म मृयु का इितहास
!ामािणक नहM है। इतना ही पता चलता है िक वह बहलोल लोधी और शेरशाह सरू ी के समय
यवु ा और अकबर के समय बढू ा था। दमोदर का एक ही िक+सा ‘हीर रांझा’ िमलता है जो
‘दवइया छंद म: है, िजसक 28 मा7ाएँ होती हf। उBलेखनीय है िक पजं ाबी म: ‘हीर राझं े’ का
िक+सा िलखने वाले लगभग दो सौ किव हf। अतः कह सकते हf िक यह िवषय किवय* का ि!य
िवषय है। दमोदर का ‘िक+सा हीर रांझा’ कई िव[ान* ने स5पािदत करवाया है और इसके 950 से
990 तक बदं हf। इसक बोली लहदं ी पजं ाबी या झांगी है। इसम: फारसी के तसम श Zद देखने
को िमलते हf। यह िक+सा सवाल-जवाब या नाटकय ढंग से िलखा गया है। किव ने कई +थान*
पर अपना बयान भी दज( िकया है। दमोदर के काTय म: संयम, संFेप और संकोच है। कला क
`िO से यह िक+सा वाHरसशाह से कम नहM। इसम: |ृंगार, वीर एवं क9णा रस क !धानता है।
अलंकार* का !योग भी किव के काTय-कौश ल का पHरचय देता है। पंजाबी म: इस िक+से का
िवशेष मह?व है।
12.6.7.2. पीलू
पीलू अकबर और जहांगीर (1556 से 1627 ई.) के समय था। ‘िमरजा सािहबा’
िलखने वाला वह पहला किव है। उसक रचना लोग* क जुबान से होती हई !कािशत हई। पीलू
का यह िक+सा अधरू े 9प म: !ा\ है िजसक कडी भी कई बार टूटती है। पीलू का यह िक+सा
लोग* को इतना ि!य है िक इसका आधा िह+सा तो सभी को याद है और गायक जब इसे गाते हf

उतराखड मु त िवविवालय 194


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
तो िदल* को िहला कर रख देते हf। पंजाबी के !ारि5भक आलोचक बावा बधु िसंह ने पीलू के
िक+से को ‘जटका’ (सतही) कहा है जबिक मौला ब¯ष कुPता ने इस िक+से म: सोज़, !तीक,
संकेत और !वाह पाया है। इसम: संदहे नहM िक ‘िमरजा सािहबा’ हीर के बाद पंजाबी लोग* म:
अयंत लोकि!य है।
12.6.7.3. वारस शाह
वHरस शाह पंजाब के उन सौभाrयषाली किवय* म: से एक है जो पंजाब क सीमा, काल क
सीमा को पार करके परू े भारत के ि!य हए और आज भी हf। वाHरसशाह क ‘हीर’ क
लोकि!यता का अब तक कोई मक ु ाबला नहM कर सका। वाHरस ने ‘हीर’ का िक+सा घर-घर
पहचँ ा िदया। वाHरसशाह के ज/म एवं मृयु के बारे म: िववाद रहा है। मगर यह माना जाता है िक
उसका ज/म 1720 ई. म: और मृयु 1792 ई. म: हई तथा उसने अपना यह िक+सा 1766-67 ई.
म: पणू ( िकया। वाHरसशाह ने अपना यह ‘िक+सा हीर वाHरस’ बfत छंद म: िलखा और इस छंद
को अपनी |े{ता तक पहचँ ाया। इस िक+से म: उसन: उस समय क सामािजक, धािम(क और
राजनैितक ि+थितय* का बड़ी लगन से वण(न िकया है। उस समय के समाज के रीित, Hरवाज,
िववाह आिद का बड़ा सजीव वण(न िमलता है। वह इक मजाज़ी क बातश9 ु करके उसे
‘इक हकक’ क ओर मोड़ देता है। ऐसा करके भी वह यथाथ( पर परदा नहM डालता। वाHरस
क सबसे बड़ी िवशेष ता उसक !भावशाली भाषा है। अनुभव क िवशालता और वण(न क
अुत Fमता उसे |े{ता !दान करती है। के /0ीय और पिVमी पंजाबी का संदु र सि5म|ण उसक
भाषा म: है। फारसी श Zदावली का उसने खुलकर !योग िकया है। िववकोषीय Rान उसक एक
और बड़ी खूबी है। जीवन क हर ि+थित के बारे म: वाHरस का Rान हैरान करने वाला है। `य का
िच7ण करने और नखिशख वण(न म: वह बेजोड़ है। िशnले ने अपनी पु+तक ‘एनसाइ लोपीिड़या
ऑफ िलQेचर’ म: वाHरसशाह को पंजाब का सबसे बड़ा किव और ‘हीर’ को उसक सव(|े{
रचना कहा है।
12.6.7.4 हाश म (1752 - 1829 ई.)
हाश म महाराजा रणजीत के समय का सबसे |े{ िक+सा किव है। इसके िक+से
‘सोहणी मिहवाल’, ‘हीर रांझे क िबरती’, ‘स+सी प/ु न’ू , ‘|ी-फरहाद क बारता’ आिद हf
िजनम: उस यगु के सरोकार* का भी वण(न है। इनक !िस रचना ‘िक+सा स+सी प/ु नू’ है। हाश
म से पहले िलखे इस िक+से को वो !िसि नहM िमली जो हाश म को !ा\ हई। इस िक+से म:
126 छंद हf। दवइया छंद म: रिचत यह िक+सा नाटकय षैली म: िलखा होने के कारण कथाव+तु
क कमी अनभु व नहM होने देता। ‘सोहणी मिहवाल’ म: आलोचक चमक और रस नहM पाते जो
‘स+सी प/ु नू म: है। हाँ ‘सोहणी’ के िवरह का वण(न !भावषाली है। िक+स* के अितHर_ हाश म ने
फुटकर काTय भी िलखा।
12.6.7.5. कादरयार (1802 - 1892 ई.)
कदरयार का वा+तिवक नाम कादर ब¯ष था। उसक कई रचनाएँ हf - परू ण भगत,
िक+सा सोहणी मिहवाल, रोज़ानामा, वार रानी कोिकलां, वार हरी िसहं नलआ ू आिद। जैसे

उतराखड मु त िवविवालय 195


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
वाHरस का शाह कार ‘हीर’ है, हाश म का ‘ससी हाश म’ है, ठीक उसी !कार कादरयार क
रचना ‘परू ण भगत’ है िजसे उ/ह*ने बfत छंद म: िलखा। यह िक+सा उसने अपने समकालीन जाट*
को ऊँ चा उठाने के िलये िलखा। इसम: उसने मां क ममता के गौरव और मिहमा को विण(त िकया
है। इस रचना से !भािवत होकर ही िषवकुमार बटालवी ने ‘लणू ा’ िलखी। इस रचना म: iायड के
‘इिडपस क5पले स’ के रे षे भी `िOगोचर होते हf। ‘सोहणी मिहवाल’ म: कादरयार क काTय
कला और िनखरी है। इसम: िवरह का वण(न, भाषा क िमठास और षैली क रवानगी +पO
िदखाई पड़ती है।
12.6.7.6. फ़ज़लशाह (1828 - 1890 ई.)
फ़ज़लशाह अपने समय के एक |े{ िक+सा काTयकार थे। अरबी, फारसी का गहरा
Rान उनक रचनाओ ं म: देखने को िमलता है। इनके पाँच िक+सा काTय िमलते हf - सोहणी
मिहवाल (1846 ई.), स+सी प/ु नू (1862 ई.), हीर रांझा (1866 ई.), लैला मजनू (1870 ई.)
और यसु फ ु जलु ैखा (1870 ई.)। सोहणी मिहवाल इ/ह*ने बीस वष( क आयु म: रचा और यही
उनक सव(|े{ रचना मानी जाती है। इसम: किव ने कथानकगत कई नये त@य शािमल िकए हf।
इसको िलखने क !ेरणा भी इसे िनजी िवयोग क पीड़ा से िमली। शZद* का जादगू र होने के
कारण इसने अपनी किवता क पहचान बनाई। बfत छंद का सु/दर !योग और श Zदालंकार* क
बहतायत इनके काTय क िवशेष ता है। इसने अपने सभी िक+स* म: इक -ए-मजाज़ी से इक -
ए-हकक क या7ा करवाई है। लेिकन जहाँ भी इसे अवसर िमला है इसने इ+लाम धम( क
!शंसा करके इसका !चार िकया और यँू धम( िनरपेFा क !वृिK को ध का पहचँ ाया।
12.6.8 वार का1यधारा
जैसा िक पहले कहा जा चुका है िक वार काTय* का !ार5भ आिदकाल म: ही हो गया
था। मगर म=यकाल तक आते-आते इसके कई 9प हो गये। सांसाHरक वार* के साथ
आ=यािमक वार: लोक वार: , ऐितहािसक वार: , िमथ वार: , नवीन वार: आिद िलखी जाने लगM। |ी
ग9
ु 4थं सािहब म: 22 वार: हf। 39 वार: भाई गुरदास ने और 2 वार: दसू रे गरु दास के नाम पर
!चिलत हf। इस यगु के !मखु वीर रस के किव हf अZदल ु ा, पीर महु 5मद हािफज़ बरखरु दार और
ग9ु गोिब/दिसंह। ग9
ु गोिब/दिसंह क ‘चडी दी वार’ से वीर काTय िषखर पर पहचँ ता है।
हािफत बदखुरदार [ारा रिचत जंगनामा भी इसी काल म: रचा गया। वीर काTय पंजाबी सािहय
क अपनी िवशेष ता है। पंजाब क भौगोिलक ि+थित, इसक !ाचीन िवरासत, पर5परा,
इितहास, पंजाबी चHर7- सब िमलकर इस धारा को जीिवत रखे हए हf।
12.6.9 गK सािहय
कुछ िव[ान* का मानना है िक पंजाब म: ग लेखन आिदकाल म: ही श9 ु हो गया था लेिकन
कुछ उदाहरण* को छोड़ कर कोई रचना नहM िमलती। अतः म=यकाल म: यह ग न के वल
आकार, बिBक िवषय, 9प और !कार* क िभ/नता के कारण अपना मह?व रखता है। ज/म
सािखयाँ, टीका, परमाथ(, वचन, महाम, गोO* और ह मनाम: इस काल क ग के !मख
ु 9प हf।

उतराखड मु त िवविवालय 196


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
ये ग पर5परा मूलक हf। इसंम: दाश(िनक, वृता/त, वण(न, Tयाया या वाता(लाप आिद 9प* म: हf।
इस यगु म: ‘परु ातन ज/मसारणी’, ‘गोOो’ ग9ु नानक क, परमारथ, हाज़रनामा, !मख ु हf। !धान
ग 9प ज/म सािखय* का है। इस काल म: फारसी, सं+कृ त से अनुवाद भी हए िजनम: आिद
रामायण, िवPणु परु ाण, पारस भाग (फारसी म:) िसंहासन बतीसी, Rान !बोध उदय च/द नाटक,
भागवत महापरु ाण, भागवत गीता (स+ं कृ त) आिद।

12.7. आधुनक काल (1850 से अब तक)


nयारे िवािथ(य* ! अभी तक आपने पंजाबी सािहय के आिदकाल और म=यकाल का
पHरचय !ा\ िकया है। अब आधिु नक काल के िवषय म: जान:गे। इस काल म: पंजाबी सािहय का
बहिवध िवकास हआ है और अनेक ऐितहािसक पHरवत(न हए हf। पंजाबी सािहय के इस
िवकास को जानने के िलये कुछ बात* का पHरचय !ा\ कर लेना आवयक है।
पजं ाबी के आधिु नक सािहय का आर5भ उ/नीसवM सदी से माना जाता है। 1849 ई. म: िसख*
क दसू री लड़ाई के बाद अं4जे भारत म: Tयापार करने क गरज़ से आये, अ4ं जे * ने, अ/य
इलाक* क भांित, पंजाब को भी अपने राhय म: िमला िलया। इस !कार पंजाब िफर गल ु ाम हो
गया। 1857 ई. क भारत क +वत7ं ता सं4ाम क लड़ाई म: अ4ं ेज़* क जीत ने पजं ाब म: उनके
पैर और मज़बतू कर िदये। इसके पHरणाम +व9प यहां पिVमी !भाव पड़ने लगा। अं4ेज़* क
साŽाhयवादी नीितयाँ जहाँ पंजाब के िनवािसय* को दो फाड़ करने का !यन कर रही थी, वहाँ
इसके कुछ अ}छे पHरणाम भी हए। यह बात यहाँ +मरण रखना आवयक है िक अ4ं ेज़* ने जो
सामािजक, आिथ(क, राजनैितक सधु ार िकए वे के वल और के वल अपने TयापाHरक िहत* को
सामने रखकर िकए। उ/ह*ने जो Tयव+था क वह आधिु नक थी। नहर*, िशFा िवभाग*, +कूल,
कालेज, यिू नविस(िटय* क +थापना क। रे ल*, सड़क*, डाक-तार आिद क Tयव+था क। इस
!कार भौितकवादी सुिवधाओ ं ने समाज और सािहय दोन* को !भािवत िकया। यथाथ(वादी
सोच और प7-पि7काओ ं के !वेश ने ग का बहिवध िवकास िकया। इस !कार पंजू ीवाद ने
अपना !भाव िदखाया जो बीसवM सदी के म=य म: अपने वा+तिवक 9प म: !कट हो गया। इस
पूंजीवाद ने म=य |ेणी के साथ-साथ शहरीकरण क !वृिK, आमके ि/0ता क !वृिK को ज/म
िदया। सािहय म: िवधा-9पगत पHरवत(न तो हए ही।
एक बात िवािथ(य* सदैव आपको +मरण रहनी चािहये िक सािहय म: पHरवत(न एकदम िकसी
िनिVत तारीख म: नहM होता। यह पHरवत(न अयंत धीमी गित से होता है। अतः राजनैितक
पHरवत(न* के बावजदू कुछ पुरानी !वृिKयाँ चलती रहती हf। पजं ाब म: अ4ं ज़े * के आने से जो
पHरवत(न हए उसके बावजूद कुछ पर5परा से चली आ रही !वृिKयाँ चलती रहM। इनम: िक+सा
काTय और पुराने ढंग का ग !मख ु है। इस यगु के िक+सा काTयाधार के !मख किवय* म:
फ़ज़लशाह (िजसका पHरचय पहले िदया जा चुका है) महु 5मद बश (1830-1904 ई.), गगं ा
राम (1835-1902 ई.), िकश न िसंह आHरफ़ (1830-1900 ई.), महु 5मद बटू ा, भगवान िसंह

उतराखड मु त िवविवालय 197


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(1842-1902 ई.), मौलवी गल ु ाम रसूल (1840-1892 ई.), कालीदास गुजरांवािलया (1865-
1944 ई.) आिद ने म=यकालीन इस िवधा को अपने हनर से जीिवत रखा।
जहाँ तक इस समय के ग का !o है तो अं4ज़े * के !भु व के कारण ग का परु ाना 9प समा\
होने लगा। अं4ज़े ी ग के 9प* को अपनाया गया। पाठय पु+तक: , लेख, कहानी, नावल, नाटक
और षोध आिद िलखे जाने लगे। वा य िव/यास, शZद-िनमा(ण तक म: अतं र आ गया। पजं ाबी
प7काHरता अि+तव म: आई। 1867 ई. म: अमृतसर से ‘|ी दरबार सािहब’ िनकलने लगा।
1880 ई. म: लाहौर से गरु मखु ी समाचार प7, 1886 ई. म: यहM से ‘खालसा अखबार’, 1896 ई.
म: ‘िसंध सभा गजट’ और 1894 ई. म: भाई वीर िसहं ने अमृतसर से ‘खालसा समाचार’
िनकाला। इस काल के !मख ु गकार* म: |ाराम िफBलौरी (1807-1881 ई.), Rानी Rान िसंह
(1822-1925 ई.), िबहारी लाल परु ी (1830-1885 ई.), Rानी िदK िसंह (1853-1901 ई.),
डॉ. चरन िसंह (1853-1908 ई.) आिद का नाम उBलेखनीय है।
12.7. 1 ईसाई िमशनरयY का योगदान
इसम: संदेह नहM िक ईसाई िमशनHरय* का मूल उGेय अपने धम( का !चार करना था और
इसीिलये इनका ज/म भी हआ। मगर इस काय( क िसि के िलये !ांतीय भाषा का पया(\ Rान
अपेिFत था। इसी हेतु पंजाबी Tयाकरण, कोश , पाठ्य प+ु तक* का उ/ह: िनमा(ण करना पड़ा।
पंजाबी ग के िवकास म: उनका इस `िO से मह?वपणू ( योगदान है। 1834 ई. म: इसक +थापना
लिु धयाना म: हई और !ेस शु9 क तथा ढेर सारा ईसाई सािहय पंजाब म: िलखा और छापा जाने
लगा। 1851 ई. म: /यटू न ने ‘पजं ाबी 4ामर’ और 1854 ई. म: जैनिवअर क सहायता से पहली
पंजाबी-अ4ं ेज़ी िड शनरी छापी। इसी !कार इ+डल लेअर ने, जोहन बी/ज ने भी पंजाबी 4ामर
पर काम िकया। सर कै 5पवैल ने पंजाबी शZद* पर !शंसनीय काम िकया तो लायल साहब ने
कागं डे क कहावत* को एकि7त िकया। इसी !कार िवBसन, फालन और ट:पल, वॉकर डेन
आिद ने कोश और ‘Hरपोट(’ तैयार करके पंजाबी क शZदावली और कहावत* पर काम िकया।
इसी !कार ओबराइन, Hरचड( ट:पल, Q5प, 4ीयस(न आिद ने इस काम को आगे बढाया। बीसवM
सदी के !ार5भ म: मैकािलफ़, 4ाहम बेली, एच.जे. रोज़, ि+वनट(न, पादरी हैअरज़ ने पंजाबी
इितहास, 4ामर कोश रोमांसवादी कथाओ ं आिद पर काम िकया। ईसाई िमशनHरय* ने ही 1854
के िनकट पंजाबी का पहला प7 िनकाला। यही नहM इन िमशनHरय* ने अपनी देखरे ख म: पंजाब
के िव[ान* से प+ु तक: भी िलखवाई।ं इनम: |ाराम िफBलौरी, भाई िवश नदास परु ी, माया िसंह
का नाम िलया जा सकता है। |ाराम िफBलौरी क ‘िसख राज दी िविथया’ एवं ‘पंजाबी
बातचीत’ तो आधिु नक पंजाबी ग क पहली प+ु तक मानी जाती है।
ईसाई िमश नHरय* का जहाँ यह योगदान था, वहM लोग* के अदं र यह चेतना भी जागी िक हम
अपनी सं+कृ ित क रFा य* नहM कर सकते। उनके अदं र भी अपने धम(-!चार क भावना पैदा
हई। इसी भावना ने पंजाब म: सधु ारवादी लहर को ज/म िदया और पंजाब म: ‘िसंह सभा जैसा
िमशनरी सगं ठन अि+तव म: आया।

उतराखड मु त िवविवालय 198


तल
ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
12.7.2 िसहं सभा का पंजाबी सािहय को योगदान
िसंह सभा पंजाबी भाषा और िसख धम( के पF वाले िव[ान* क ऐसी स+ं था थी जो ईसाई िमश
नHरय* के िसख धम( के िव9 !चार के िवरोध म: अि+तव म: आई थी। इस सभा के तीन !मख ु
उGेय थे - धम( सधु ार, ग9 ु [ारा सुधार (पजु ारीवाद क िवरोधता) िसख* और िSय* क िशFा।
इन तीन* सधु ार* के साथ पजं ाबी सािहय का जो िवकास और जो पHरवत(न हआ, वह अुत है।
िसंह सभा ने सबसे पहले ‘गुरमत 4/थ !चारक सभा’ क +थापना करके िसख इितहास से
स5बंिधत कुछ !ामािणक प+ु तक* को !कािशत करवाया िजसम: ‘गरु पव( !काश , गरु मत
िसा/त’, ‘गरु !णाली’ आिद !मख ु हf। िफर ‘खालस टे +ट सोसाइटी’ ने छोटी-छोटी
जीविनयाँ !कािशत क। गरु वाणी क Tयाया गरु मत आशय के अनुकूल !ा\ नहM थM। अतः
सभा ने िविभ/न िव[ान* से गरु वाणी के आदश( टीके तैयार करवाये। समाज-सधु ार का काय( करने
के िलये इस सभा ने छुआ-छूत, बाल िववाह, िवधवाओ ं क ि+थित, सित-!था और नशे के
िव9 भी कई पु+तक: !कािशत करवाई और एक मह?व पूण( काय( म: सहयोग िदया।
िसंह सभा ने जहाँ ग9ु [ारे बनाये, वहाँ ‘खालसा +कूल*’ क +थापना भी क, जहाँ िसख धम( क
िशFा के साथ-साथ िSय* क पढ़ाई का !बंध िकया। यही नहM सरकार पर दवाब डालकर सभी
सरकारी +कूल* म: पंजाबी अिनवाय( करवाई। इ/ह*ने पु+तकालय* क +थापना भी क िजससे
इनका सािहय िलखे जाने लगे। यँू पंजाबी भाषा िलखे जाने वाली भाषा के 9प म: भी +थािपत
हो गई। 1885 ई. म: िसंह सभा ने ‘खालसा !ेस’ भी लगा िलया, िजससे खालसा समाचार
अख़बार भी िनकलने लगा। िसंह सभा का पंजाबी बोली पर जो सबसे बडा और मह?व पणू (
!भाव पडा वह था पंजाबी का सािहियक बोली म: बदलना। पहले इसे गंवार* क भाषा ही
समझा जाता था। इसके िवकास का िकसी ने !यन ही नहM िकया। िसंह सभा से िव[ान जुडे तो
पंजाबी भाषा का बहमख ु ी िवकास हआ । िसंह सभा ने पंजाबी किव स5मेलन* का आयोजन ही
नहM शु9 िकया, किवय* के िलये ईनाम* क Tयव+था भी क। िवदेषी !भाव+व9प उप/यास,
कहानी, नाटक आिद के िवकास का माग( खोला। इस !कार िसंह सभा का योगदान
अिव+मरणीय है।
ईसाई िमशनHरय* और िसहं सभा क लहर के साथ-साथ आय( समाज क लहर, अहमिदया
लहर, नामधारी लहर, िनम(ल स5!दाय आिद ने पंजाबी लोग* क चेतना को जा4त करने, िशFा
के Fे7 को िवकिसत और समथ(न देने और !यF एवं परोF 9प से पंजाबी सािहय को
िवकिसत करने म: मह?वपणू ( भिू मका िनभाई ।
12.7.3 पंजाबी किवता
अभी तक हमने आधिु नक काल क पृ{भिू म म: पजं ाबी सािहय के िवकास के !ेरक तव* का
पHरचय िदया है। अब आधिु नक पंजाबी काTय का पHरचय !ा\ कर: गे ।
आधुिनक पंजाबी किवता के कई पड़ाव हf िज/ह: अलग-अलग बाँट कर देखा जाना चािहए।
िव[ान* ने अलग-अलग भाग िकए भी हf। पहली पीढ़ी, दसू री पीढ़ी जैसा िवभाजन भी िकया है।

उतराखड मु त िवविवालय 199


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कुछ िव[ान* ने 1947 ई. को िवभाजन रे खा बांट कर भी िवभाजन िकया है। हमने संFेप म: सभी
भाग* को एक +थान पर एकि7त कर िदया है।
!ायः सभी िव[ान आधिु नक किवता का !ार5भ भाई वीर िसंह से मानते हf। पिVमी !भाव के
फल+व9प पंजाबी किवता ने अपना रंग 9प बदला। इ/ह*ने पंजाबी का िक+सा काTय क परु ानी
पर5परा से िनकालकर पिVमी रंग का नवीन 9प िदया। संभवतः इसिलये कुछ िव[ान इसे ‘नवीन
काल’ कह कर भी पुकारते हf। इस यगु के किवय* का मलू उGेय किवता को नवीन 9प रंग देना
था। इनम: से कुछ पर िसंह सभा लहर का !भाव भी रहा। इनम: भाई वीर िसंह (1872-1957 ई.),
लाला धनी राम चातHरक (1876-1954 ई.), !ो.परू ण िसंह (1881-1931 ई.), कृ पा सागर
(1879-1939 ई.), चरन िसंह श हीद (1891-1935 ई.), डॉ. मोहन िसंह (1899-1984 ई.),
दीवान िसंह कालेपानी (1894-1944 ई.) आिद !मख ु हf। काTय म: नवीन चेतना का िवकास
इ/हM किवय* ने िकया। उ/नीसवM और बीसवM सदी म: जो पHरवत(न होता है उसम: ‘डािव(न’ के
‘िवकासवाद’, िसंगमंड iायड के ‘मनोिवRान’, मा स( के ‘[/[ामक भौितकवाद’ का और
‘hयां पाल सा7(’ के ‘अि+तववाद’ का बहत बड़ा हाथ है। ई<र के अि+तव पर इन सबने !o
िच~ लगाया। भाई वीर िसंह ने ‘नव रह+यवाद’ का !ार5भ िकया तो !ो. परु ण िसंह ने
‘रोमांसवादी’ किवता क नMव रखी। यही धारा आगे चल कर !गितवाद म: बदल गई। इस धारा
के अ/य !मख ु किव !ायः रोमांसवाद से िनकल कर आये थे – शायद इसिलये इ/ह: ‘रोमांसवादी
!गितवादी काTय !वृिK’ कह कर पुकारा जाता है। 1936 ई. म: चली !गितवादी धारा का सबसे
पहला !भाव संतिसंह सेख* और !ो. मोहन िसंह ने 4हण िकया। बाद म: बहत से किवय* ने इसे
अपनाया। इनम: अमृता !ीतम, बाबा बलवंत, !ीतम िसंह सफ़र का नाम िवशेष 9प से िलया जा
सकता है। !ो. मोहन िसंह और बाबा बलबंत ने जहाँ सामा/य जन और शोषक समाज क बात
क वहाँ अमृता !ीतम ने Sी के उस दोहरे संताप को अिभTयि_ दी जो उसे पंजू ीवादी और
पु9श !धान Tयव+था का िह+सा होते हए भोगनी पड़ी। सफ़र ने गले सडे !ाचीन िवचार* को
याग कर kांित, पHरवत(न का समथ(न िदया।
1947 ई. म: भारत िवभाजन अं4ज़े * क साŽाhयवादी और ‘फूट डालो और राज करो’ क नीित
का +पO उदाहरण है। भारत िवभाजन का सबसे अिधक !भाव पजं ाब पर पड़ा य*िक पजं ाब
िवभािजत हो गया। जो लटू -पाट, क़ल, बलाकार और धमा(/धता का पािPवक नृय दोन* तरफ
हआ और लोग* को अपना घर-बार छोड़कर पलायन करना पड़ा। सािहयकार क संवदे ना उसे
अिभTय_ िकए िबना न रही। !ो. मोहन िसंह, अमृता !ीतम, डॉ. हरभजन िसंह, गोपाल िसंह
ददU, लाल िसंह कंवल ने इस िवभाजन से स5बंिधत रचनाएँ कM। पािक+तान के अहमद राही,
अहमद सलीम का नाम लेना भी यहाँ आवयक है िज/ह*ने इस िवभाजन क पीड़ा को वहाँ
अिभTय_ िकया।
!गितवाद म: बार-बार एक ही !कार के !तीक* और िवचार* के दोहराव ने पंजाबी म: !योगवादी
(1961-1970 ई.) किवता को ज/म िदया। इसका !ार5भ 1961 ई. म: ‘पंजाबी सािहय !योग
अकादमी’ के [ारा माना जाता है िजसे 1962 ई. को जालंधर श हर म: !योगवादी किवय* ने

उतराखड मु त िवविवालय 200


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
और +पO िकया। !योगवाद क कोई ल5बी पर5परा नहM रही। भले ही डॉ. रािज/दर िसंह सेख* ने
इसे एक बख ु ार कहा है मगर इस स}चाई से इनकार नहM िकया जा सकता िक नया काTय 9प,
नया िबंब िवधान और आधुिनक मनPु य क नई सम+याओ ं को अिभTयि_ इसी काTय से िमली।
यह भी सच है िक ये किवता आम इ/सान के होने और सोचने से कोसो दरू है। इस यगु के
किवय* म: सख ु पाल वीर हसरत, जसवीर िसंह आहलवू ािलया, रवी/0 रिव, अजायब कमल
आिद हf। इस काTयधारा को आगे के किवय* ने ‘काग़ज़ का गभ(पात’ और ‘कलम क नोक’ को
‘बांझ’ कहा है। संभवतः इसिलये इस काTयधारा के िवरोध म: ‘जुझारवादी’ काTयधारा (1970-
80 ई.) !चिलत हई। इसका !ार5भ अवतार िसहं संधू उफ( ‘पाश ’ के काTय-स4ं ह से हआ।
इसके !मख ु किव ‘लाल िसंह िदल’, ‘संतराम उदासी’, ‘दश(न खटकड़’, ‘ओम !काश श मा(’
तथा ‘अमरजीत च/दन’ हf। इस काTयधारा ने बंगाल क न सलवादी लहर से !ेरणा या आधार
!ा\ िकया। इन किवय* का मल ू ाधार राजनीितक Tयव+था म: पHरवत(न लाना था। ये किवता
ज़मीन से जडु ी यथाथ(वादी किवता है जो बैल* क पीठ पर पड़ी लाश:, िपचके गाल*, िपता क
समा\ हो चक ु  श राब और बेिटय* के समा\ हो चुके हा+य क बात करती हf। इस काTयधारा
का किव ‘पाश ’ पंजाबी म: नयी अिभTयि_ Fमता लेकर आया। कुछ पF* से उसे िह/दी के
‘धिू मल’ के समकF रखा जा सकता है। जुझारवादी काTयधारा िजसे कुछ िव[ान नव !गितवाद
भी कहते हf से संवाद रचाती एक और काTयधारा चलती है िजसे आधिु नकतावादी या
सsदय(वादी किवता (सोहजवादी) कह कर पुकारा जाता है। इसे !योगवादी किवता का अगला
पड़ाव भी कहा जाता है। इसे गहरे रंग देने का काम हरभजन िसंह और िषवकुमार बटालवी ने
िकया। बटालवी पंजाबी के सवा(िधक लोकि!य किवय* म: से एक है और उनक किवता का
मल ू भाव ‘िवयोग या दःु ख’ है। इसे और अिधक आधिु नक बनाने का काम िव<नाथ ितवारी,
सित/दर िसंह नरू , मोहनजीत, मनजीत िटवाना, तारा िसंह कािमल, सोहन िसंह मीषा ने िकया।
इन पर सा7(, कामू, बैकेट आिद का !भाव है। ये लोग वत(मान को जीने म: नहM ‘भोगने’ म:
िव<ास करते हf।
आठव: दशक के अंत म: आतंकवाद ने ख़ािल+तान का नाम लेकर िसर उठाया। ‘बंदक ू ’
(आतंक) और ‘बैBट’ (पिु लस) के बीच आम आदमी का जीवन किठन हो गया। ऐसी ि+थित
म: पंजाबी किवता आम आदमी क पीड़ा क अिभTयि_ का साधन बनी। एक दशकचले इस
आतंकवादी संकट पर !ायः सभी किवय* ने किवता क। कुछ नये किव भी जुड़े िजनम: धम(
किमयाना, अमरजीत कोके , गरु तेज कुहारवाला, +वण(जीत सटी !मखु हf। नव: दशक के बाद जब
9स के िकले िबखरे और भारत ने उदारीकरण, िनजीकरण और वै<ीकरण क नीित अपनाई तो
पूंजीवाद को खुल-खेलने का अवसर िमला। ऐसे म: जहाँ आम आदमी भूमडं लीकरण का िह+सा
बना वहM उसका घर उसका गाँव शहरीकरण क भ:ट चढ़ा। Tयि_ अपनी संवेदना, स}चाई को
बचाने क िफk्र करता रहा। ऐसी ि+थित म: जो किवता रची गई उसे ‘समकालीन’ अथवा
‘उKर आधिु नक’ किवता कहा जाता है। बीसवM और इ कसवM सदी क किवता क मुय
िवशेषता +वके ि/0कता है। अब किव बाहर क नहM अपने अदं र क य ु भिू म म: य
ु लड़ता है।

उतराखड मु त िवविवालय 201


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उसका पHरवेश उसके भीतर समा गया है - इसी से वह संवाद रचाता है। इस य ु भिू म म: वह
अपना िवरोधी +वयं है। ऐसे समय के किवय* म: सरु जीत पातर, रिव/दर रिव, अजायब कमल,
सख ु िव/दर, अमृत, मोहनजीत, जसवंत दीद, गुरभजन िसंह िगल, इ/0जीत हसनपरु ी, दष(न बटू र,
रिव/0 भ°ल आिद के नाम िलये जा सकते हf।
पजं ाबी किवता के साथ-साथ पजं ाबी ग़ज़ल भी िलखी जाती रही है।श9 ु म: मचं ीय किवय* ने
इसे अपनाया लेिकन वे इसे उ}च +तरीय न बना सके । !गितवािदय* म: !ो. मोहन िसंह, बावा
बलवंत ने इसे िवकिसत करने म: योगदान िदया। बाद म: त¯त िसंह, दीवान िसंह िमषा, िषवकुमार
बटालवी, जगतार और सरु जीत पातर ने इसे बल ु िं दय* तक पहचँ ाया। डॉ. रािज/दर िसहं सोख*
का मानना है िक आज ‘कुछ ही ग़ज़ल: और बहत कुछ ग़ज़ल जैसा’ रचा जा रहा है। कुछ ग़ज़ल
िलखने वाले ग़ज़लकार हf - एस.तरसेम, एस. नसीम, सरु जीत सखी, सख ु िव/दर अमृत, गरु तेज
कुहारवाला, गरु भजन िगल, हरबंस मािछवाडा, जगदीप आिद।
इस !कार आधिु नक पंजाबी किवता ने लधु-किवता, म_ ु छंद किवता, न±म, महाकाTय, ग़ज़ल,
गीत, दोहै, काTय नाटक आिद !ायः सभी काTय-9प* क या7ा क है जो नदी क भांित िनर/तर
!वाहमान है। यहाँ यह उBलेख करना भी आवयक है िक पंजाबी किवता के वल भारत म: ही
नहM पािक+तान, िqटेन, कै नेडा, अमेHरका म: भी रची जा रही है। इसम: !वासी पंजाबी किवता
का अपना िवशेष मह?व है।
12.7.4 पंजाबी उप-यास
ि!य िवािथ(य* अभी तक हमने किवता के िविभ/न पड़ाव* क जानकारी ली है। अब हम ग
सािहय का पHरचय !ा\ कर: गे। यह बात िनिव(वाद है िक भारत म: उप/यास पिVम क देन है।
पंजाबी के पहले मौिलक उप/यास को लेकर िववाद है। !ो. q जीत िसंह, भाई वीर िसंह के
िपता डॉ. चरण िसहं [ारा रिचत ‘महारानी शराब कौर’ (1893 ई.) को पहला उप/यास मानते हf
जबिक डॉ. राजे/0 िसंह सेख* एवं परिम/दर िसंह भाई वीर िसंह रिचत ‘स/ु दरी’ (1898 ई.) से
मानते हf। अिधकांश िव[ान इससे सहमत हf। पंजाबी उप/यास आदश(वाद, यथाथ(वाद से होता
हआ नवीन िवचारधारा से जड़ु ता चला गया है। पहले दौर के उप/यास* पर सधु ारवादी लहर*
का !भाव है। अतः उनके उप/यास* म: आदश(वाद देखने को िमलता है। पहले दौर के !ारि5भक
उप/यासकार* म: भाई वीर िसंह (1872-1957 ई.), मोहन िसंह वैद (1881-1936 ई.), चरण
िसंह श हीद (1881-1935 ई.) !मख ु हf। ये उप/यास कला-पF से कमज़ोर और `िO के +तर पर
तंग दायरे को !+तुत करने वाले उप/यास हf।
दसू रे दौर का उप/यास 1930 ई. के आस-पास शु9 होता है। इसम: रचनाकार का उGेय
सामािजक सम+याओ ं का िच7ण और उनसे म_ ु होने का संदश
े देना है। ये उप/यास रोमानी
झक ु ाव छोड़ कर यथाथ(वादी `िO अपनाते हf। अब लोग भौितक जीवन को धम( के रंगीन चम:
के +थान पर नंगी आँख से देखने लगे थे। इस दौर का !ार5भ पंजाबी के सवा(िधक लोकि!य
उप/यासकार नानक िसहं (िचˆा लह¢, पिव7 पापी, इक 5यान दो तलवारां) से होता है िज/ह*ने

उतराखड मु त िवविवालय 202


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
38 मौिलक और 8 अनवु ािदत उप/यास पंजाबी को िदये। इनके अितHर_ इस दौर के
उप/यासकार* म: सHु र/0 िसहं न9ला (पओ-पतु र, दीन-दिु नया), सतं िसंह सेख* (बाबा उसमान,
लह¢ िमˆी), जसवंत िसंह कंवल (रात बाक है, िसिवल लाइनज़), नHर/दर पाल िसंह (टाप,ू
बामल ु ािहजा होिषयार), सोहन िसंह सीतल (दीवे दी लौ, युग बदल गया), करतार िसंह दrु गल
(हाल मरु ीदां दा, ओदी चकोिडयाँ), अमृता !ीतम (डॉ. देव, नागमिण, जेब कतरे , िदBली दी
गिलयाँ, िपंजर) आिद !मख ु उप/यासकार हf। इ/ह*ने जीवन के यथाथ( को +पO अिभTयि_ दी है।
तीसरे दौर का उप/यास सधु ारवाद और यथाथ(वाद के दायर* से िनकलकर !योगवाद और
आलोचनामक यथाथ(वाद के इद(-िगद( घमू ता है। 1960 के आस-पास ये !वृिKयाँ उभरM।
!योगवादी रचनाकार* म: सुरजीत िसंह सेठी (एक खाली nयाला), नHरजंन त+नीम (खोए अथ(),
सख ु बीर (पानी दा पल
ु , गिद(श ) !मख
ु हf। आलोचनामक यथाथ(वाद को आधार बनाने वाल* म:
दलीप कौर िटवाना (एहो हमारा जीवणां, कथा कहो उव(षी), गरु दयाल िसंह (परसा, अध चाँणनी
रात), राम+व9प अणखी (कोठे खड़क िसंह), अजीत कौर (पो+टमाट(म, फालतू औरत) आिद
!मख ु हf।
आठव: दशकके अतं और नौव: दशक के शु9 म: उKर यथाथ(वादी दौर का उप/यास शु9 हआ।
अब उप/यास म: अ/तिव(रोध का िच7ण होने लगा। नायक क जगह ‘लघु मानव’ ने ले ली और
पर5परागत नायक का +थान !ितनायक ने ले िलया। इस दशकम: परु ाने उप/यासकार* म: गरु दयाल
िसंह, दलीप कौर िटवाना, जसवंत िसंह कंवल, िनरंजन त+नीम ने ऐसे उप/यास रचे। इस दौर के
उप/यासकार* म: इ/दर िसंह खामोश (इक ताजमहल, कािफर मसीहा), िमतर सेन मीत (कौरव
सभा, तफ़तीश ), बलदेव िसंह (लाल बKी, अ/नदात), िनंदर िगल (पल पल मरना, दा+तां
दिलतां दी), बलिव/दर कौर बराड़ !मख ु हf।
पािक+तान और िवदेशी धरती पर भी पंजाबी म: उप/यास िलखे जा रहे हf िजनक उपेFा नहM क
जा सकती।
12.7.5. पज ं ाबी कहानी
वैसे तो लोक कथाएँ कहानी का आर5भ मानी जा सकती हf। पंजाबी म: गु9ओ ं क सािखय* को
भी कथामकता के कारण कहानी कहा जा सकता है मगर सही अथg म: कहानी का िवकास
पिVमी से ही हआ है और पंजाबी म: इसका |ेय भाई मोहन िसंह वैद (1881-1936 ई.) को
िदया जाता है। उसके बाद चरण िसंह शहीद (1891-1935 ई.) ने Tयंrयामक कहािनय* क
रचना क। नानक िसंह, गरु बष िसहं !ीतलड़ी और Rानी गरु मख ु िसंह मसु ािफ़र ने एक +वत7ं
िवधा के 9प म: कहानी को +थािपत कर िदया। इसे आदष(वादी यथाथ(वादी कहानी कहा जाता
है।
पजं ाबी कहानी अपने अगले दौर म: पहचँ कर आधिु नक सं+कार !ा\ कर लेती है। इसे िव[ान
!गितवादी यथाथ(वादी कहानी का नाम भी देते हf। अपनी िवधागत आवयकताओ ं क पिू त( के
साथ-साथ कहानी ने +वयं को समाज के आम आदमी के सरोकार* से जोड़ा। कहानी आदश( का
पBला छोड़कर जीवन के यथाथ( का दामन थामती अपने िवकास का माग( !श+त करती है। ऐसे

उतराखड मु त िवविवालय 203


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
पजं ाबी के कहानीकार* म: –गरु ब श िसंह !ीतलड़ी, करतार िसंह दrु गल, संत िसंह सेखां, सजु ान
िसंह, देवे/0 सयाथU, कुलवतं िसहं िवक( , नौरंग िसहं , महै/0 िसहं जोशी, जसवतं िसहं कंवल,
बलवंत गागU, सख ु बीर, नवतैज िसंह, अमृता !ीतम, गरु दयाल िसंह आिद का नाम िवशेष 9प से
उBलेखनीय है।
कहानी के तीसरे दौर को ‘आधिु नकतावादी कहानी’ कह कर पक ु ारा जाता है य*िक इस दौर
क कहानी बाहर और भीतर से िपछली कहानी से अलग िदखाई देती है। इस दौर क कहानी
साधारण मनPु य के +थान पर लघु मानव को आधार बनाती है जो अनेक सम+याओ ं से िघरा है।
ये कहानी यथाथ( के बहआयामी पF* को उšािटत करती है। इस यगु म: !वासी लेखक भी आ
जड़ु ते हf। इस यगु के !मख ु कहानीकार* म: राम+व9प अणखी, जसवंत िसंह िवरदी, गुलज़ार
संधु, मोहन भडारी, अतरजीत, अजीत कौर, बHरयाम संधु, !ेम !काश , गरु वचन पBु लर का
नाम िलया जा सकता है िज/ह*ने पंजाबी कहानी म: गणु ामक वृि क, पािक+तान म: भी कहानी
िलखी जा रही है िजनम: जावेद गरजाखी, आगा अशरफ़, अफ़जल अहमद रंधावा, मंषा यार,
अफ़ज़ल तौसीफ, ज़मील अहमद पाल !मख ु हf। अ/य !वासी पंजािबय* ने भी कहानी म:
योगदान डाला है िजनक ल5बी सूची है।
12.7.6. पंजाबी नाटक एवं एकांक
nयारे िवािथ(य* ! अभी तक हमने आधिु नक पंजाबी किवता, उप/यास और कहानी का पHरचय
!ा\ िकया है। अब हम पंजाबी नाटक, एकांक, िनबंध और आलोचना का पHरचय !ा\ कर: गे।
एक बात सदैव +मरण रख: िक नाटक रंगमचं क व+तु है- यही बात इसे उप/यास, कहानी आिद
से अलग करती है। दसू री बात यह +मरण रख: िक ग क सभी िवधाओ ं का ज/म अं4ेज़* के
आने और उनके सािहय से पHरचय के बाद ही हआ है। पंजाबी नाटक भी इसका अपवाद नहM
हf। नोरा Hरचड(ज़ क !ेरणा से पहले, पजं ाबी रंगमच ं कमर* के भीतर ही रहा - िफर ये रंगमचं पर
गया। इ/हM क !ेरणा से ईवरच/0 न/दा के नाटक अि+तव म: आये। उनके नाटक ‘दBु हन’ को
पहला पंजाबी आधिु नक नाटक होने का |ेय !ा\ हआ। ईPवरच/0 न/दा के साथ िजन
नाटककार* ने अपना योगदान िदया उनम: हरचरण िसंह (कमला कुमारी, िह/द दी चादर),
संतिसंह सेख* (कलाकार, वाHरस), बलवंत गागU (लोहा कुˆ, के सरो, सौतन) !मख ु हf। बलवंत
गागU ने पंजाबी नाटक म: मनोिवRािनक िवषय* को +थान िदया। पिVमी नाटक क संकेितकता,
!तीकामकता को उसी ने पजं ाबी नाटक म: !िति{त िकया।
पंजाबी नाटक को 1947 ई. के िवभाजन के कारण लाहौर से िदBली और िशमला म: +थानांतरण
करना पड़ा, िफर 1962, 65 और 71 ई. के य ु * ने उसे नयी िवषयव+तु और संचार मा=यम* से
भी जोड़ा। अतः पजं ाबी नाटक नये िवषय* को अपनाता है और सच ं ार क नयी िविधय* क
खोज करता है। संभवतः इसीिलये कुछ िव[ान इसे ‘!योग का दौर’ कह कर भी पक ु ारते हf।
काTय नाटक और रे िड़यो नाटक तो इस काल म: रचे ही गये - एZसड( िथयेटर, हगं ामी िथयेटर,
एिपक िथयेटर या गाँव का िथयेटर आिद नाट्यशैिलय* को इसने अपनाया। गरु शरण िसहं (जदो

उतराखड मु त िवविवालय 204


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
रोशनी हदं ी है, तंदरू तथा अ/य नाटक, बाबा बोलदा है, कtय()ू जैसे !ितब नाटककार एवं
रंगकमU ने गाँव क ओर मँहु मोड़ कर अयतं स5मान और लोकि!यता !ा\ क। इस समय के
अ/य नाटककार* म: सरु जीत िसंह सेठी (काफ हाऊस, िकंग, िमरजा और सपेरा), कपरू िसंह
घ5ु मन (जैलदार, पतु लीघर), हरशरण िसंह (फुBल कु5लाह गया, उदास लोग), गुरचरण िसहं
जसजू ा (मकड़ी दा जाल, पछतावा, पHरयाँ) आिद !मख ु हf। ये नाटककार !योग करते रहै और
अपने चरमोकष( तक पहचँ े।
इ/हM नाटककार* के साथ-साथ 1975 ई. म: नये नाटककार मैदान म: आते हf। इन म: आमजीत
(HरिPतयाँ दा क रिखये नां, चािबयाँ और अ/य एकांक, शहर बीमार है) तथा अजमेर औलख
(अ/ने िनशानचM, मेरे चिु नंदा एकांक, इक सी दHरया) के नाम िवशेष 9प से िलये जा सकते हf।
इनके अितHर_ के वल धालीवाल, +वराजबीर पाली भूपे/0, कुलदीप िसंह दीप आिद का नाम
भी आज के नाटककार* म: िलया जा सकता है। इन सबने िमलकर नाटक को ऊँचाईय* तक
पहचँ ाया। आज दरू दश(न के धारावािहक* एवं िसनेमा के शि_शाली आkमण के बावजदू यिद
नाटक जीिवत है, तो उसम: पंजाब म: िव<िवालय* [ारा हर वष( +कूल*, कालेज* म: करवाये जा
रहै ‘यवु क मेलो’, भाषा िवभाग क ‘नाट्य !ितयोिगताओ’ं का बड़ा हाथ है।
12.7.7. पंजाबी िनबंध
यह बात पहले ही +पO क जा चक ु  है िक ईसाई िमशनHरय* के और !ेस के आगमन से पंजाबी
ग सािहय का िवकास हआ। िनब/ध का अथ( है अ}छी तरह बांध-संवार कर !+ततु क गई
रचना। इसके पया(य 9प म: पंजाबी म: ‘लेख’ शZद भी !चिलत है।
पंजाबी म: सािहियक एवं !ौढ़ िनब/ध िलखने क पर5परा !ो. पणू ( िसंह (1881-1931 ई.) से
!ार5भ होती है जो िह/दी और पंजाबी म: एक समान समा`त हf। इनके बाद एस.एस. चरण िसंह
श हीद का भी मह?व पणू ( +थान है। भाई जोध िसहं भी इसी दौर के िनब/धकार हf - इनका मु य
िवषय धम(- िवशेषतः िसख धम( रहा है। ि!िं सपल तेजा िसंह को िनबंध* म: िशरोमिण माना जाता
है य*िक उ/ह*ने +तरीय और टकसाली िनबंध िलखे। अनभु व क मौिलकता और अिभTयि_
क सटीकता गरु ब¯ष िसंह !ीतलड़ी म: देखने को िमलती है। डॉ. बलबीर िसंह ने दाश(िनक
एवं काTयशाS से स5बिं धत िनबधं िलखे।
पंजाबी िनबधं के कै नवस को िवषाल करने म: हHर/दर िसंह 9प, एस.एस. अमोल, कपूर िसंह
आई.सी.एस., !ो. जगदीश िसहं , बलराज साहनी, िगयानी लाल िसंह, Rानी गरु िदK िसंह का
नाम िवशेष 9प से मह?व पूण( है। इनके िनबंध* म: िविभ/न िवषय* को विण(त िकया गया है।
हा+य-Tयंrयपरक िनबधं कार* म: !ो. =यान िसंह, डॉ. गरु नाम िसंह धीर का नाम िवशेष 9प से
िलया जा सकता है। पंजाबी म: लिलत िनबधं कार के 9प म: कुलवीर िसहं कंग (1936 ई.) का
योगदान मह?व पणू ( है। पंजाबी म: िनब/ध लेखन प7-पि7काओ ं क भ:ट अिधक हआ है। इस
स5बंध म: अब लेखक जा4त हए हf और इस िवधा का और िवकास होने लगा है।

उतराखड मु त िवविवालय 205


तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
12.7.8. पंजाबी आलोचना
आलोचना का अथ( है िकसी कला या सािहियक कृ ित का सवा“गीण िवPलेश ण। इस `िO से
पंजाबी के कुछ आलोचक ग9 ु नानक या िफर म=यकालीन िक+सा काTयकार* के अपने
पूव(वती काTयकार* के बारे म: क िटnपिणय* को पहली आलोचना मानते हf। यिद इसे छोड़ िदया
जाये और आलोचना के मानक 9प को सामने रखा जाये तो डॉ. रािज/0 िसंह सेख* के अनसु ार
संत िसंह सेख* पहले आलोचक हf। आलोचना क िविभ/न `िOयाँ पंजाबी आलोचना म: िमल
जाती हf जैसे !भाववादी !शंसावादी आलोचना (बाबा बदु िसंह, !ो. परू ण िसंह, ि!. तेजा िसंह,
गोपाल िसंह ददU आिद), मा स(वादी (सतं िसंह सेख*, िकश न िसहं , अतर िसहं , न±म हसैन
सŠयद) 9पवादी संरचनावादी (डॉ. हरभजन िसंह, डॉ. ितरलोक िसंह कंवर, डॉ. आमजीत
िसंह, सHु र/दर िसंह नरू , जगबीर िसंह, डॉ. मिह/दर कौर िगल, डॉ. सित/दर िसंह, अमरीक िसहं
पु/नी, डॉ. हरचरन कौर आिद) नव मा स(वादी (टी.आर िवनोद, रिव/दर िसंह रिव, तेजवंत िसंह
िगल, के सर िसंह के सर, जोिग/दर िसंह राही आिद)।
पंजाबी म: उKर आधिु नक, िवखडवाद, उKर मा स(वाद, उKर संरचनावाद के साथ-साथ दिलत
चेतना और Sी-िवमष( को भी आधार बनाया गया है। िवधागत िवशेष ताओ ं को भी आधार
बनाकर आलोचना हई है। ऐसे आलोचक* म: गरु भगत िसंह, आम िसंह रंधावा, तेजवंत िसंह
िगल, अमरजीत िगल, डॉ. सरु जीत िसंह भˆी, डॉ. सव(जीत िसंह, सित/दर िसंह नरू , बलिव/दर
िसंह आिद का नामोBलेख िकया जा सकता है।
12.7.9. न1यतर गK िवधाएँ
पंजाबी म: नयी ग-िवधाओ ं म: भी लेखन हआ है। आमकथा का !ार5भ नानक िसंह (मेरी
दिु नया) से होता है। उBलेखनीय आमकथाओ ं म: ि!. तेजा िसंह (आरसी) गरु ब¯ष िसंह
!ीतलडी (मेरी जीवन कहानी-तीन भाग) बलराज साहनी (मेरी िफBमी आमकथा), अमृता
!ीतम (रसीदी िटकट), िदलीप कौर िटवाना (नंगे पैरां दा सफर, पीले पयाँ दी दा+तान), बलवंत
गागU (नंगी धपू ) अजीत कौर (खानाबदोश ) हरभजन िसंह (चोला टािकयांवाला) !मख ु हf।
जीवनी मह?व पणू ( Tयि_य* के जीवन को आधार बनाकर िलखी जाती है। पजं ाब के सभी
ग9 ु ओ ं क जीविनय* के अितHर_ महामा गांधी, जवाहरलाल नेह9, सभु ाषच/0 बोस, अZदल ु
कलाम आज़ाद, श हीद भगत िसंह आिद क जीविनयाँ िलखी गई।ं लेिकन ये सारी जीविनय* म:
|ा और भावक ु ता अिधक है।
1960 ई. के बाद क जीविनय* म: यह तव Fीण होता है और धम( के Fे7 म: भी उनक 9िच
कम हई है। सामािजक राजनैितक एवं सािहियक जीविनयाँ िलखी गई। इनम: संत िसंह सेख*
(जहु ¢ दा मोती, बलराज साहनी), वHरयाम संधु का (कुती दा ‡वु तारा), बलवंत गागU का
‘पंजाब दे कलाकार’ का उBलेख िकया जा सकता है।
पंजाबी म: ‘रे खािच7’ िवधा को भी रचनाकार* ने अपनाया है। पहले रे खािच7 िनब/धनमु ा
रे खािच7 थे। सही अथg म: ‘रे खािच7’ िलखने वाले पहले लेखक बलवंत गागU हf। ‘िन5म दे

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
पKे’, ‘सरु मे वाली आँख’, ‘हसीन चेहरे ’ उनके रे खािच7 सं4ह हf। कुलवीर िसंह कंग ने ‘बGलां
दे रंग’, ‘पथर लकर’, ‘पकक इटं :’ जैसे रे खािच7 स4ं ह िदये। जीत िसहं सीतल के ‘िम7 मेरे
वो’, अमृता !ीतम का ‘िकरमची लकर: ’, जसवंत िसंह िवरदी’ क ‘माता तुम महान’, अजीत
कौर का ‘तिकए दा पीर’, कुलदीप िसंह का ‘दHरआवां दी दो+ती’, करतार िसंह दrु गल का ‘याद
करते हए’, सरवन िसहं क ‘पजं ाबी िखलाड़ी’, दलीप कौर िटवाना क ‘जीने योrय’ आिद के
रे खािच7 सं4ह मह?व पूण( हf।
इन नयी िवधाओ ं के साथ-साथ डायरी, इ/टरTय,ू सफ़रनाम: भी पंजाबी म: रचे गये । इन िवधाओ ं
म: सफ़रनाम* म: पजं ाबी के लेखक* ने अिधक 9िच ली है। षोध एवं कोश काय( भी
िवPविवालय* क सहायता से पया(\ हआ है। पंजाबी म: अनुवाद काय( भी हआ है - सरकारी
!काश न* [ारा भी, गै़र सरकारी !काश न* [ारा भी। ये अनुवाद अं4ेज़ी, सं+कृ त, फारसी और
िह/दी से हए हf। इसने पंजाबी सािहय क |ीवृि म: मह?व पूण( योगदान िदया है।

12.8. सारांश
उपय(_
ु अ=ययन से आपको न के वल पंजाबी सािहय का पHरचय !ा\ हआ होगा, इसके Fे7*,
इसक Fमता क भी जानकारी िमली होगी। आधिु नक यगु से पहले पजं ाबी क मल ू धारा
किवता रही है जो अपने चरमोकष( तक पहचँ ी है। आधिु नक काल क सबसे बड़ी देन ग का
िव+तार है और नावल, कहानी, नाटक, आमकथा, रे खािच7, सफऱनाम:, षोध और कोश जैसी
नई िवधाओ ं का ज/म एवं िवकास हआ है। काTय म: भी एक +पO पाथ( य िदखाई पड़ता है और
यह िनिव(वाद 9प से कहा जा सकता है िक पिPचम क िच/तन धाराओ ं के साथ पंजाबी कदम से
कदम िमलाकर आगे बढ़ रही है। !वासी लेखक भी इसम: मह?व पूण( योगदान डाल रहै हf।

12.9 श3दावल4

• ग9 ु मखु ी – पंजाबी भाषा क िलिप


• सािहयेितहास – सािहय का इितहास
• िचतवृिK – ‹दय क अिभ9िच
• एकरसता – एक समान ि+थित
• 7िु ट - गलती

12.10 सदभ थ सच


ू ी
1. भाषा िवRान कोश : भोलानाथ ितवारी
2. िह/दी और उसक िविवध बोिलयाँ: दीपच/द जैन, डॉ. कै लाश ितवारी
3. िह/दी का राPQभाषा के 9प म: िवकास: डॉ. िशवराज वमा(

उतराखड मु त िवविवालय 207


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
4. िह/दी भाषा का +व9प िवकास: अवधेवर अ9ण
5. भारतीय भाषाओ ं के सािहय का इितहास: के ि/0य िह/दी िनदेशालय
6. आज का भारतीय सािहय: सं. सव(पBली राधाकृ Pणन

12.11 नबधामक न


1. पजं ाबी सािहय के आिदकाल पर !काश डािलए तथा गरु मत काTय िकसे कहते हf?
इसका पHरचय दीिजए।
2. पजं ाबी सािहय का िव+तृत िववेचन किजये तथा पजं ाबी सािहय के िवकास म: ईसाई
िमशनHरय* के योगदान का उBलेख किजए।
िन7निलिखत पर िटZपणी िलिखए:-
1. |ी ग9ु 4थं सािहब
2. वीर काTय अथवा वार काTय

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204

इकाई 13 राजथानी सा ह य का इतहास एवं


परचय
इकाई क परे खा
13.1 तावना
13.2 उेय
13.3 राज थानी भाषा और बोिलयाँ
13.3.1 िडंगल और िपंगल
13.3.2 राज थानी भाषा क िलिप (देवनागरी और मुिड़या िलिप)
13.3.3 राज थानी भाषा क िविवध बोिलयाँ
13.4 राज थानी सािहय का इितहास: नामकरण और काल िवभाजन
13.5 राज थानी सािहय का आिदकाल
13.5.1 आिदकालीन प रवेश
13.5.2 आिदकालीन राज थानी सािहय क वृि.याँ
13.5.2.1 िवषयव तगु त (संवेदनागत) वृि.याँ
13.5.2.2 भाषा एवं िशDपगत वृि.याँ
13.6 राज थानी सािहय का म8यकाल
13.6.1 म8यकालीन राज थानी सािहय का प रवेश
13.6.2 म8यकाल के ितिनिध किव और रचनाएँ
13.6.3 म8यकालीन राज थानी सािहय क वृि.याँ
13.6.3.1 िवषयव तगु त (संवेदनागत) वृि.याँ
13.6.3.2 भाषा एवं िशDपगत वृि.याँ
13.7 राज थानी सािहय का आधिु नककाल
13.7.1 आधिु नक कालीन प रवेश
13.7.2 आधिु नक कालीन राज थानी काAय
13.7.2.1 वत0Jता से पवू & काAय एवं वृि.यां
13.7.2.2 वात0Uयो.र काAय एवं वृि.याँ
13.7.3 गI क िविवध िवधाएँ: प रचय
13.8 सारांश
13.9 स0दभ& /0थ सचू ी
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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
13.10 िनब0धामक ,

13.1  तावना
भारत देश के पHर`य म: राज+थान का सां+कृ ितक वैभव और सािहियक िवरासत
अमBू य है। इस !देश क भौगोिलक, ऐितहािसक और !ाकृ ितक िविवधता अनोखी है।
यागमयी ललनाओ,ं साहसी वीर* और गHरमामयी सं+कृ ित के इस Fे7 म: दरू - दरू फै ली
अरावली क |ृंखलाएं है, जो हरीितमा म: वैभव से पणू ( है तो दसू री और िवराट म9+थल, म9
(रे त) के टील* का अखड साŽाhय। उKर म: गंगानगर से लेकर दिFण म: डूंगरपरु , बाँसवाड़ा तक
और पूव( म: अलवर, भरतपुर से लेकार पिVम म: जैसलमेर तक फै ला यह !देश आकार म: ही
नहM है, वरन !ाकृ ितक स5पदा, कलामक वैभव, रहन-सहन, वेश-भषू ा, बोली-भाषा, धम( दश(न
ओर सािहय आिद इसे सां+कृ ितक `िO से उ}चतम िशखर पर ले जाते है। आधुिनक राज+थानी
सािहय के महान किव क/हैयालाल सेिठया ने िलखा है -
या तो सरु गा नै सरमावै, ई ंपर देव रमण नै आवै
ई रो जस नर-नारी गावे, धरती धोरां री, धरती वीरां री।
भाषा स+ं कृ ित एवं सािहय का मल ू आधार होता है, सामािजक एवं सां+कृ ितक समरसता के
िलए भाषा एक !भावी मा=यम है इसिलए सािहय के इितहास लेखन म: भाषा भी एक !मख ु
घटक है। राज+थानी सािहय को भिलभाँित समझने के िलए राज+थानी भाषा का Rान ज9री है।
राज+थानी भाषा क उपिK शौरसेनी अपmश ं (गजु (री 9प) से मानी जाती है। राज+थानी भाषा
क !मख ु बोिलयाँ हf, - मारवाडी-मेवाड़ी (पिVमी राज+थानी), ढॅूंढाडी-हाड़ौती (पवू U
राज+थानी), मेवाती (उKरी राज+थान), मालवी (दिFणी राज+थान) इयािद। राज+थान भाषा
पहले मिु डया िलिप (महाजनी) म: िलखी जाती थी अब यह देव नागरी िलिप म: िलखी जाती है
िजसम: ळ (ल) जैसे अFर भी मा/य है।
सािहय इितहास लेखन के िलए तकालीन यगु , पHरवेश, !वृिKयाँ, भाषा, +वयं का िववेक एवं
अ=ययन, रचनाकार और उनक कृ ितयाँ आिद िविवध आधार होते हf, सािहय यगु ीन वातावरण
से !भािवत होता है अतः उसका अ=ययन भी यगु िवशेष और उसके स/दभ( म: ही होना चािहए।
!+ततु इकाई म: इन सभी आधार* को =यान रखते हए राज+थानी सािहय के इितहास का काल
िवभाजन और नामकरण करने का !यास िकया गया है। राज+थान सािहय के इितहास का
!मख ु तः आिदकाल म=यकाल और आधिु नक काल इन तीन भाग* म: बाँटा गया है। िह/दी
सािहय के इितहास के !थम काल के नामकरण एवं काल िवभाजन म: िजस !कार िव[ान* म:
मत िविभ/नता रही उसी तरह राज+थानी सािहय के इितहास के इस !ारि5भक काल म: रही। !ो.
नरोKम दास +वामी इसका !ार5भ िव.सं. 1150 से मानते है तो हीरालाल माहै<री िव.सं.
1100 से, सीताराम लालस िव.सं. 800 से और एल.पी. तै+सीतरी सन् 1250 से। राज+थान का
आिदकालीन सािहय अपने यगु क सभी !वृिKय* और काTय शैिलय* को समेटे हए है । िस,

उतराखड मु त िवविवालय 210


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
नाथ किवय* क वाणी जैन सािहय, वीर शृंगार आिद िविवध भाव* को अिभTयि_ िमली है।
आिदकालीन राज+थानी सािहय अपmश ं और गजु राती से !भािवत रहा है। उस व_ म9ं-गजु (र
अपmंश से िनकली भाषा राज+थानी और गजु राती दोन* ही थी। राज+थानी सािहय का
म=यकाल मु य 9प से 1450 से 1850 ई. तक माना जाता है। यह काल राज+थानी भाषा और
सािहय क `िO से महवपणू ( काल है। दिFण भारत से चलकर भि_ भावना क जो लहर उKर
म: आलवार भ_* के साथ आई उसम: सारा जन-मानस सराबोर हो गया था। भगवान राम और
कृ Pण के लोकरFक ओर लोकरंजन 9प क अराधना और समृ सािहय रचा गया। जहाँ
आिदकाल म: य ु व शृगं ार का +वर !धान था, वहाँ म=यकाल म: वीर शृगं ार के साथ-साथ भि_
भावना क गँजू थी पर/तु आधुिनक काल के सािहय म: किवता और ग क िविवध िवधाओ ं
का सरु दोन* काल* से िभ/न रहा था । 1857 का +वतं7ता सं4ाम +वत/7ता से पवू ( और पVात
के पHरवेश से इस काल म: राPQीय चेतना, !गितशीलता, हा+य Tयंrय, समकालीन बोध क
अिभTयि_ किवताओ ं और ग के िविवध िवधाओ ं म: हई है। राज+थान सािहय िवशाल शZद
स5पदा, मौिलक छ/द शाS, काTय शैिलय* और काTयशाS के कारण िवशेष 9प से
उBलेखनीय है।

13.2 उ"ेय
इस इकाई के अ=ययनोपरा/त आप:-
1. राज+थानी सािहय क जानकारी से पवू ( राज+थान के भौगोिलक और सां+कृ ितक
पHरवेश को जान सक: गे।
2. राज+थानी भाषा के उŒम, िडंगल-िपंगल 9प, िलिप और िविवध बोिलय* का पHरचय
!ा\ कर सक: गे।
3. राज+थानी सिहयेितहास के नामकरण और कालिवभाजन को समझ सक: गे।
4. राज+थानी सािहय के आिदकाल, कालगत पHरवेश और सािहियक !वृिKय*
(संवेदनागत और िशBपगत) का अ=ययन कर सक: गे।
5. म=यकालीन राज+थानी सािहय के यगु - पHरवेश, सािहियक !वृिKय*, !ितिनिध
किवय* ओर रचनाओ ं क जानकारी !ा\ कर सक: गे।
6. !मख ु राज+थानी सािहयकार* और उनक कृ ितय* क जानकारी !ा\ कर सक: गे।
7. राज+थानी सािहय के आधुिनक कालीन पHरवेश, काTय और ग क िविवध िवधओ ं
क जानकारी !ा\ कर सक: गे।
8. आधिु नक काल क सािहियक !वृिKय* का अ=ययन और िवeेषण कर सक: गे।
9. राज+थानी सािहय के इितहास को सांगोपांग समझ सके ग:।

उतराखड मु त िवविवालय 211


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204

13.3 राज थानी भाषा और बो8लयाँ


भारत यरू ोपीय (इडो यरू ोपीय) भाषा पHरवार क !मखु भाषा है राज+थानी भाषा । यह
राज+थान और मालवा क मातृभाषा है। राज+थानी भाषा का !ाचीन नाम म9भाषा था । य*िक
8 वM सदी म: कुवलयमाला नामक 4/थ म: भारत क 18 भाषाओ ं म: म9देश क भाषा का भी
उBलेख िकया गया है। भारतीय आय( भाषाओ ं के सबसे !ाचीन 9प को वैिदक सं+कृ त कहा
जाता है वैिदक से सं+कृ त का िवकास हआ। स+ं कृ त से !ाकृ त िवकिसत हई। ब ु और महावीर
के समय सं+कृ त और !ाकृ त म: पया(\ अ/तर हो गया था। !ाकृ त से अपmंश का िवकास हआ।
!ाकृ त क भाँित अपmंश म: भी !ा/तीय भेद रहै है। सािहय म: Fे7 म: पिVमी अपmंश क
!धानता रही। राज+थानी भाषा क उपिK शौरसेनी अपmंश के (गजु (री 9प) से मानी जाती है।
13.3.1 िडगं ल और िपंगल भाषा:
िडंगल और िपगं ल राज+थानी से िभ/न कोई भाषा नहM है। दोन* राज+थानी क ही एक काTयगत
शैली िवशेष है। पिVमी राज+थान, सौराPQ, क}छ आिद !देशो म: चारण* का जोर रहा और पवू U
राज+थान, qजमडल आिद के पवू ( के Fे7* म: भाट* (q भˆ*)का !भु व. चारण और भाट*
दोन* क रचनाएँ वीर रस !धान थी। चारण ने गीत शैली लेकर इस !देश क भाषा राज+थानी म:
काTय रचना क तो भाट* ने िपंगल छंद* व पद* को लेकर qजभाषा म: काTय रचना क साधारण
बोलचाल क भाषा और इनक रचनाओ ं क भाषा म: कुछ अ/तर था चारण* क भाषा िडंगल
भाट* क भाषा िपंगल नाम से अिभिहत क गई। इसी !कार का मत डॉ. नामवरिसंह का भी है।
वे यह मानते है िक पवू U राज+थानी qजभाषा से !भािवत है, जबिक पिVमी राज+थानी गजु राती
से सा5य रखती हf। राज+थानी सािहय म: भी इन दो 9प* को अलग-अलग ‘िपंगल‘ और
‘िडंगल‘ के सािहय म: पहचाना जा सकता है। यहाँ िपगं ल का अिभ!ाय qजभाषा से नहM है,
अिपतु पवू U राज+थानी के सािहियक 9प के नाम से है। इसी !कार िडंगल पिVमी राज+थानी
का सािहय 9प थी। इधर कुछ िव[ान* [ारा िडंगल को ही राज+थानी भाषा का पया(य माना
जाने लगा हf। यिद सोचने-समझाने का तरीका यही रहा तो एक पवू U राज+थानी इससे अलग हो
जायेगी। चॅंिू क भाषा एक िवकासमान व पHरवित(त स5!यय है। आगे चलकर चारण* ने भी
िपंगल को अपनाया। किव सूय(मBल के वंश भा+कर म: िपंगल भाषा का अिधक !भाव है। वीर
रसामक किवता म: वीररस उपयोगी ि[व संय_ ु वणg ट, ठ वण( क आवृिK और समासय_ ु
शZदावली का !योग िवशेष होता था अतः िडंगल किव !ाचीन शZदालवली का !योग और
शZद9प*, वत(नी को सव(था कभी नहM छोड पाए, साथ ही साधारण बोलचाल क भाषा से
िडंगल किवय* ने स5ब/ध िव}छे द भी नहM िकया। अतः िडंगल क भी दो शैिलयां बन गई !थम
जो बोलचाल क भाषा से !भािवत ि[तीय िपंगल से !भािवत।
राज+थानी सािहय तीन शैिलय* म: िलखा गया !थम जैन शैली, ि[तीय चारण शैली और तृतीय
लौिकक शैली। जैन शैली के लेखक !मख ु जैन साधु और यित थे, अनेक !ाचीन शZद और
महु ावरे इस शैली म: है और गजु राती का !भाव अिधक, चारण शैली के लेखक !धानतया

उतराखड मु त िवविवालय 212


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
चारण और गौण 9प से अ/य समाज होता था। िडंगल वा+तव म: अपmंश का ही िवकिसत 9प
हf लेिकन लौिकक शैली अथा(त् लोक सािहय म: सदा ही अपने समय क जन भाषा का उपयोग
िकया गया। साधारण जनता का सािहय इसी म: रचा गया। िडंगल शZद का !योग कभी तो
राज+थानी क चारणी शैली के िलए और कभी सम+त राज+थानी के िलए िकया जाता है। इस
स5ब/ध म: एक मत नहM है।
13.3.2 राजथानी भाषा क िलिप (देवनागरी और मुिड़या िलिप)
(1) देवनागरी िलिप: देवनागरी िलिप को भारतीय संिवधान म: राजभाषा क िलिप के 9प म:
+वीकार िकया गया है। िह/दी क तरह राज+थानी भाषा क िलिप देवनागरी है। देवनागरी एक
आदश( िलिप है आदश( िलिप के सभी गणु देवनागरी िलिप म: पाये जाते है। इस िलिप क !मख ु
िवशेषता यह है िक इसम: जो बोला जाता है वही िलखा जाता है और जो िलखा जाता है वही
बोला जाता है। सम4 =विनय* को संकेत करने क इसम: Fमता है। और =विन और संकेत म:
िनिVतता है। चंिू क आप िह/दी सािहय के िवाथU है और इस िलिप का आपने पवू ( म: अ=ययन
कर िलया है इसिलए इसके बारे म: िव+तार से िलखने क आवयकता नहM है।
(2) मुिड़या िलिप: वैसे राज+थानी भाषा क +वयं क िलिप थी िजसे ‘महाजनी‘, ‘बिणयावटी‘
िलिप का नाम िदया गया था। मिु ड़या िलिप इसी को ही कहा गया है। देवनागरी िलिप क भांित
यह िलिप भी बाय: से दाय: ओर िलखी जाती है। इसे िलखने का तरीका दसू रा है, वह यह है िक
पृ{ पर सबसे पहले लाइन खMच ली जाती है िफर िलखने वाला अपनी बात िलखनी श9 ु करता
है तो वह अपनी कलम तभी उठाता है जब वह खीचM गई लाईन पूरी हो। इससे अFर* म: घसीट
आ जाती है, कलम नहM उठाने से अFर भी मड़ु जाते है। इस िलिप क एक ओर िवशेषता यह है
िक इसम: शZद* को अलग-अलग नहM िलखा जाता, वे लगातार एक ही kम म: चलते है और
वा य पणू ( हो जाता है। पाठक को अपनी बिु  और िववेक से शZद* को तोड़कर वा य को
पढ़ना होता है। सामा/य पाठक इस िलिप को नहM पढ़ सकता है। इसके इस +व9प का !योजन
संदशे *, वाता(ओ ं को गु\ रखने का रहा हो पर धीरे -धीरे इसी 9प म: सािहय का सृजन भी होने
लगा और इस िलिप को राज+थानी िलिप के 9प म: +वीकार कर िलया गया। आज के समय म:
विणक (Tयापारी) वग( अपने Tयापार पित म: भले ही इसका !योग करते ह* लेिकन राज+थानी
सािहय का लेखन, मराठी, िसंधी, नेपाली और अ/य कई भारतीय भाषाओ ं क भांित देवनागरी
िलिप म: ही होता है।
13.3.3 राजथानी भाषा क बोिलयाँ
(1) मारवाड़ी: पिVमी राज+थानी क !धान बोली मारवाड़ी का !चार एवं !सार क `िO
से सवा(िधक मह?व है। ‘म9भाषा‘ नाम से अिभिहत इस बोली का Fे7 पिVमी राज+थान के
जोधपरु , सीकर, नागौर, मेवाड़ , बीकानेर, िसरोही, जैसलमेर आिद िजल* तक िव+तृत हf इसक
अनेक उपबोिलयाँ हf। सािहियक मारवाड़ी को िडंगल कहा जाता है। िवश ु ‘मारवाड़ी‘ जोधपरु
म: बोली जाती है। मारवाड़ी का सािहय अय/त समृ है। ओज, भि_, वीर, नीित एवं लोक

उतराखड मु त िवविवालय 213


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
सािहय िवषयक सािहय का अपार एवं अथाह भडार है। ‘वीर सतसई‘ एवं ‘वेिल‘ वीर और
शृगं ारपरक सािहय के अनठू े उदाहरण हf। इसम: !चरु मा7ा म: सतं सािहय भी !ा\ होता हf।
इसम: सामा/यतः देवनागरी िलिप का !योग िकया जाता है, िक/तु बहीखात* म: महाजनी िलिप
का !योग आज तक होता हf
(2) मेवाड़ी: मेवाड़ी, उदयपरु एवं उसके आसपास के मेवाड़ !देश क बोली है। मेवाड़ी क
अपनी सािहियक पर5परा अयंत !ाचीन है। कित(+त5भ अिभलेख* से +पO होता है िक
महाराणा कु5भा (िव.सं. 1490-1525) [ारा रिचत चार नाटक* म: मेवाड़ी का !योग िकया गया
हf इसी !कार ‘वेिल‘ क भी एक !ाचीन मेवाड़ी !ा\ होती है।
(3) बागड़ी: डॅूगरपरु एवं बाँसवाड़ा का सि5मिलत Fे7 ‘बागड़‘ कहलाता है। यहाँ क
बोली को ही बागड़ी कहा जाता हf। उKर-पवू ( म: इसका Fे7 बीकानेर ओर पंजाब क सीमा तक
िव+तृत हf मेवाड़ के दिFण एवं संधू राhय के उKर म: तथा अरावली !देश एवं मालवे क
पहािड़य* तक इसका िव+तार है। इसम: िह/दी क भतू कािलक सहायक िkया ‘था‘ के +थान पर
‘हतो‘ 9प !चिलत है।
(4) ढॅूढाड़ी: पवू U राज+थानी के म=यपवू U िवभाग क !धान बोली जयपरु ी या ढॅूंढाड़ी है।
कोटपतु ली/शाहपरु ा/िचमनपरु ा को छोडकर परू ा जयपरु , िकशनगढ़, ट*क, लावा एवं अजमेर
मेरवाड़ा के पवू U अंचल* म: यह बोली जाती है। दादपू ंथ का अिधकांश सािहय इसी बोली म:
िलिपब है। ढॅूढाड़ी क !मख ु बोिलयो म: हाड़ौती, िकशनगढ़ी, तोरावाटी, राजावाटी, अजमेरी,
चौरासी, नागरचोल आिद !मुख हf।
(5) हाड़ौती: हाड़ौती का सािहियक मह?व भी है। कोटा-ब/ू दी Fे7 म: !चिलत हाड़ौती
बोली का Fे7 rवािलयर तक िव+तृत हf हाड़ौती पर !चीनकाल म: ह¢ण* एवं गुज(रो के स5पक( का
!भाव भी देखा जा सकता है। जयपरु ी और हाड़ौती म: िवशेष अ/तर नहM है। इसम: वत(मानकाल
के िलए ‘छै ‘ एवं भूतकाल के िलए ‘छी‘, ‘छो‘ का !योग होता है। सव(नाम के ितय(क 9प एक
वचन म: ऊ, ई दरू वाचक ओ, यो, वो तथा Sी 9प आ, या, वा का !योग होता है। जब, कब के
तब िलए जद तद, तथा कद 9प* का Tयवहार `OTय है।
(6) मेवाती: पवू lKरी राज+थानी वग( म: मेवाती बोली का िवशेष मह?व है। यह मेवात Fे7
क बोली है। इस Fे7 को पवू (काल म: मसय जनपद कहा जाता था। इसक सीमा हHरयाणा के
िजला गुढ़गाँव क िझरका-िफरोजपरु , नूह तहसील: तथा वBलभगढ़ एवं पलवल के पिVमी
भाग*, उKर !देश के कोसी, छाता तता मथरु ा के पिVमी अचं ल* एवं राज+थान के िजला
अलवर क िकशनगढ़, ितजारा, रामगढ़ गोवि/दगढ़, लIमणढ लहसील*, िजला भरतपरु क
कामा, डीग तथा नगर तहसील*, के पिVमोKर तक िव+तृत हf। उव और िवकास क `िO से
मेवाती पिVमी िह/दी एवं राज+थानी के म=य सेतु का काय( कर रही है। मेवाती म: कम(कारक म:
‘लू‘ िवभि_ एवं भतू काल म: हा, हो, ही, सहायक िkया का !योग िवशेष उBलेखनीय हf।
(7) अहीरवाटी: पवू lKरी राज+थानी वग( क दसू री महवपणू ( बोली अहीरवाटी है। व+ततु ः
अहीरवाटी बागं 9, (हHरयाणवी) एवं मेवाती के म=य सिं ध+थल क बोली कही जा सकती है।

उतराखड मु त िवविवालय 214


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इसका Fे7 राज+थान म: िजला अलवर क तहसील बहरोड, मुडावर तथा िकशनगढ़ का
पिVमी भाग हHरयाणा म: िजला गडु गाँव क तहसील रीवाड़ी महे/0गढ़ क तहसील नारनौल,
िजला जयपु र क तहसील कोटपतू ली का उKरी भाग तथा िदBली के दिFणी भाग तक िव+तृत
है। !ाचीन काल म: ‘अभीर‘ जाित क एक पˆी इस Fे7 म: आबाद हो जाने से यह Fे7
अहीरवाटी या हीरवाल कहा जाने लगा है। इस बोली म: पिVमी राज+थानी के !भाव से ‘न‘ का
‘ण‘ बोला जाता है।

13.4 राज थानी सा&हय का इतहास: नामकरण और काल


)वभाजन
आप सभी जानते है िक सािहय समाज का !ितिब5ब होता है। समाज म: िवमान
पHरवेश, सं+कृ ित, पृ{भिू म से सािहय का लेखन !भािवत होता है। िकसी भी भाषा का सािहय
इितहास, समाजगत पृ{भिू म व सािहियक !वृिKय* के आधार पर िकया जाता है। राज+थानी
सािहय के इितहास लेखन का आधार बना है:- एक यगु म: रचा सािहय, सािहय क िवधाएँ,
!वृिKयाँ, यगु का वातावरण, काTयधाराऐ,ं रचनाकार और उनक रचनाएँ। वीरता, भि_, नीित,
!ेम-|ृंगार आिद राज+थानी जन-जीवन क मल ू भावनाएँ सिदय* से रही है, यही कारण है िक
सारा राज+थानी सािहय इ/हM मल ू भावनाओ ं म: डूबता-उतरता रहता है। राज+थानी सािहय
राज+थानी जन-जीवन क सं+कृ ित और सvयता का िचतेरा है।
राज+थानी जग म: !िस समृ और +वत7ं भाषा है। ऐसा माना जाता है िक िवkम क
नवM शताZदी सवंत् 835 म: जब जैन किव उोतन सHू र क अपनी पोथी म: कुवलपमाला म: उस
समय क 18 देश भाषाओ ं म: आज क राज+थानी भाषा के िलए मसमासा 9प िलखा िमला
तब से इसका सािहयेितहास सामने आता है यथा ;
अnपा त\ु ा भिण रै अह पेचछह मा9ए (म9भाषा) तK*
उपलZध सािहय क `िO से िवkम संवत् 1200 के आसपास राज+थानी !ाचीन जैन काTय
िमले है। शािलभ0 सHू र रिचत ‘भरते<र बाहबिलरास‘ का रचना काल सं. 1241 िव. है। !िस
िव[ान सनु ीित कुमार चटजU के मतानसु ार राज+थानी क उपिK नागर अपmंश से हई है। किव
जंबू +वामी रिचत ‘+थल ू भ0 रास‘, इसी तरह ‘रे वंतािगHर रास‘, ‘आबरू ास‘ इयािद से !माण
िमले हf िक 13 वM सदी म: राज+थानी भाषा ने िवकिसत होकर सािहियक 9प धारण कर िलया
था िविभ/न िव[ान* के मतानसु ार राज+थानी सािहय के इितहास का कालिवभाजन और
नामकरण िन5नानसु ार है
(1) आचाय. नरोRम दास के अनस ु ार
(अ) !ाचीन काल (सं. 1150 से 1550 तक)
(ब) म=यमाल (सं. 1551 से 1875 तक)
(स) अवा(चीन काल (सं. 1875 से िनर/तर)

उतराखड मु त िवविवालय 215


तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(2) डॉ. मोतीलाल मे नारया: डॉ मोितलाल मेनाHरया +वयं के 4/थ (पोथी) राज+थानी
भाषा का सािहय म: राज+थानी सािहय का िवभाजन िन5नानसु ार करते है -
(अ) !ारि5भक काल - संवत् 1045 से 1460
(ब) पवू ( म=यकाल - संवत् 1461 से 1600
(स) उKर म=यकाल - सवं त् 1601 से 1900
(द) आधिु नक काल - संवत् 1900 से आज तक
(3) डॉ. हीरालाल माहै5री के अनस ु ार -
(अ) !ाचीन पिVमी राज+थानी का आिदकाल सवं त 1100 से 1500 तक
(ब) !ाचीन पिVमी राज+थानी से नवीन काल संवत् 1501 से िनर/तर
(4) सीताराम लालस के अनुसार -
(अ) आिदकाल - िव. संवत् 800 से 1460 तक
(ब) म=यकाल - िव. संवत् 1461 से 1900 तक
(स) आधुिनक काल - िव. संवत् 1901 से िनर/तर
(5) डॉ. कPयाण शे खावत के मतानुसार -
(क) आरि7भक काल
(अ) अिभलेखीय काल िव. क 8 वM सदी से 12 वM सदी तक
(ब) आिदकाल (वीरगाथा काल) िव. सं. 1201 से 1450 तक
(ख) मयकाल
(अ) पवू ( म=यकाल (भि_काल) - िव.सं. 1450 से 1650 तक
(ब) उKर म=यकाल (रीितकाल) - िव.सं. 1651 से 1850 तक
आधुिनक काल -
(अ) पहला चरण - ई सन् 1851 से 1920 तक
(ब) दसू रा चरण - सन् 1921 से 947 तक
(स) तीसरा चरण - सन् 1948 से आज तक
राज+थानी भाषा के िवकास kम म: चार शैिलय* के नमनू े िमले हf - जैन शैली, िडंगल
शैली, िपंगल शैली, लौिकक शैली। िडंगल तो अपmंश से ही िवकिसत हई, िपंगल म: राज+थानी
और qज का िमला जुला 9प िदखता है। वा+तव म: राज+थानी का !ाचीन नाम म9भाषा थ जो
19 वM सदी म: िडगं ल और िपंगल दो धाराओ ं म: बँट गया। 19 वM सदी म: चारण किव साइया
झलू ा कृ त ‘नागदमण‘ 4/थ िडंगल का नामी 4ंथ है िजसम: दोन* काTय भाषाओ ं का उBलेख इस
!कार है -
कािलया नाग म: नाथण का वण(न ‘
‘‘फुणा रा धणां रा हवै फूतकारा।
उ0ै डMगल पMगल रा अंगारा।।‘‘

उतराखड मु त िवविवालय 216


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इस !कार िविभ/न िव[ान* [ारा राज+थानी सािहय के इितहास का काल िवभाजन िकया गया
है। िजस !कार से िह/दी सािहय के आिदकाल के नामकरण एवं काल िवभागजन के स5ब/ध म:
िविवध मत िदखाई देते है उसी तरह राज+थानी इितहास म: भी इस काल को लेकर मत वैिभ/न
रहा है। राज+थानी सािहय के आिद काल म: वीरगाथामक रासो सािहय भरपरू िलखा गया
और साथ ही साथ जैन सािहय लौिकक सािहय, चारण सािहय, qा णी सािहय, लोक
सािहय क िविवध धाराएँ !वाह मान रही अतः सािहय के िविवध 9प* को देखते हए
राज+थानी सािहयेितहास के !थम काल को ‘आिदकाल‘ नामकरण िकया जाना उिचत ही है।

13.5 राज थानी सा&हय का आ&दकाल (10वीं शद4 से


14वीं शद4 तक)
‘आिद‘ का अथ( है आर5भ (!ार5भ), राज+थानी सािहय का !ारि5भक काल। यहाँ
यह बात +पO करना ज9री है िक आिदकाल क समय सीमा के बारे म: िव[ान एक मत नहM,
बहत से िव[ान 10 वM शती से राज+थानी सािहय क श9 ु आत मानते है, पर/तु सीताराम
लालस जैसे िव[ान िव.सं. 8 800 से ही राज+थानी सािहय का आिदकाल +वीकार करते है।
जैसा िक पहले भी उBलेख िकया जा चुका है िक 8 वM शती रिचत उातन सूHर के कथा 4/थ
कुवलयमाला म: अठारह देश-भाषाओ ं के अ/तग(त म9देश क भाषा का उBलेख है। इन सभी
िववाद* से परे 10 वM सदी से 14 वM सदी तक के सािहय को राज+थानी सािहय के आिदकाल
के अ/तग(त माना जाता है और आिदकाल क रचनाओ ं को भी आिदकाTय कहा गया है।
13.5.1 आिदकाल और परिथितयाँ:-
(1) राजनैितक परिथितयाँ - राजनीित से समाज, धम(, सं+कृ ित, अथ( इयािद से भी
!भािवत होते है। भारतीय सािहय के अ/तग(त आिदकाल राजनैितक अि+थरता का काल माना
जाता है। इितहासकार* क धारणा है िक सŽाट हष(वध(न के िनधन (सन् 648) के पVात भारत
क संपणू ( ि+थितयाँ बदली, राजाओ ं क आपसी लडाई, बैर-[ैषभाव, जाँित पाँित और अ/य
9िढ़य* का लाभ उठाकर भारत म: उKर पिVम सीमा से इ+लामी सैिनक* ने हमला !ार5भ िकया।
सन् 712 म: महु 5मद िबन कािसम, सन् 986 म: सुब_ ु गीन, 1000 ई. म: महमदू गजनवी, 1178
म: मोह5मद गौरी के हमले हए। मोह5मद िबन कािसम के हमले के समय राज+थान म: !ितहार,
परमार चौहान और गहलोत राजपतू * ने िवदेिशय* से लडने क तैयरी क थी। 733 म: बnपा
रावल ने िचKौड पर कZजा कर गहलोत शासन क नMव रखी थी, इसी वश ं म: आगे चलकर
राणा कंु भा, राणा सांगा, महाराणा !ताप जैसे शरू वीर हए, िज/ह*ने राज+थान क कित( पताका
पहराई। इस समय भारत म: के /0ीय शासन नाम क कोई चीज नहM थी। राज+थान, महाराPQ और
कना(टक म: शि_शाली राhय थे पर/तु महाराPQ और कना(टक के राPQकूट राजाओ ं म: िनर/तर
झगडा चलता रहता था। सन् 1193 म: तराईन के यु म: पृ@वीराज चौहान के हार से सारी
ि+थितयाँ बदल गयी थी कुतबुGीन ऐबक से लेकर गुलाम वंश (1206 ई.), िखलजी वश ं (1290

उतराखड मु त िवविवालय 217


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
- 1320) और तगु लक वंश (1320-1414 ई.) इयािद वंश* ने देश म: िसफ( य ु व नाश का
वातावरण बनाया।
इन आkमणकाHरय* का मुकाबला करने के िलए देशभ_ वीर वीरांगनाएं, उनके ब}चे सभी कूद
पड़े। बाप ने बिलदान िदया तो बेटा मायड़भोम (मातृभिू म राज+थान) के िलए +वयं को अप(ण को
तैयार िमला, इसी पHरि+थित म: राज+थानी सािहय का आिदकाल िवकिसत होता रहा। वीरता
और देशभि_ के भाव जा4त करने हेतु वीरगाथाएं रची गई।
(2) सामािजक परिथितयाँ - जैसा राजा वैसी !जा के अनसु ार सामािजक ि+थितयाँ भी
िनिम(त होत है, जाितपाँित वण( Tयव+था, लटू पाट के माहौल के बीच सामतं शाही Tयव+था म: भी
कई बरु ाईयाँ पनप रही थी। वीरता के साथ-साथ अहक ं ार और भोगिवलास क !कृ ित भी जोर
मार रही थी। इ+लामी आkमण* से सामा/यजन को hयादा नुकसान भोगना पड़ता था।
(3) धािम.क व सांकृितक परिथितयाँ - यह काल धािम(क `िO से संkमण काल रहा।
बौ और जैन धम( म: िवभाजन हो गया। बौ धम( हीनयान, महायान, yजयान, सहजयान,
म7यान इयािद कम(काड* म: फै ल चुका था। तं7मं7 वाम माग(, जाप और अंधि<ास इयािद
कायl से अकम( पनप रहा था। इसम: शक नहM है िक धािम(क आचाय( धम( के स}चे +व9प को
जनता के समF रख रहै थे पर/तु िन5न वग( के लोग इन वामाचार* के कृ य* फै ल चुके थे।
धम(, आ=याम व सं+कृ ित के इस पHरवेश ने आिदकालीन सािहियक पHरवेश को अवय
!भािवत िकया है। िजसका अ=ययन अगले िब/दु मे िकया जा रहा है।
आिदकालीन सािहय क िविवध धाराएँ -
आिदकालीन सािहय क पृ{भूिम का अभी आपने अ=ययन िकया। सािहियक रचना अपने
वातावरण से ही !भािवत होती है। राजनीितक सामािजक, धािम(क एवं सां+कृ ितक आपाधापी
के यगु म: भी िकसी न िकसी तरह आिदकालीन सािहय िन5नांिकत िविवध 9प* म: िदखाई देता
है -
(क) जैन सािहय (ख) चारण सिहय (ग) लौिकक सािहय, (घ) ग सािहय
(क) जैन सािहय - जैन किवय* ने !ाकृ त एवं अपmश भाषा म: कई 4/थ* क रचना क।
िजन!भ सHू र, शैले/0 सHू र, धनपाल इयािद किवगण* ने राज+थानी सािहय के भडं ार भरण म:
कोई कसर नहM छोडी। जैन सािहय, चHर7 काTय, उसव, नीित काTय और +तिु त काTय इन
चार 9प* म: िमलता है। जैन सािहय ग-प 9प म: रहा और सािहय सदाचार, सिहPणतु ा,
याग, सयं म आिद मु य िवषय रहै। जैन किवय* |ीराम और कृ Pण को नायक बनाकर अपने
िसा/त* का वण(न िकया। इ/ह: धम( और समाज दोन* का संरFण !ा\ हआ।
(ख) चारण सािहय - चारण सािहय म: वीर और शृंगार रस !धानता है। चारण किव योा
और लेखक दोन* ही रहै, इसिलए यह सािहय वीर* के य ु * और वीरता के बखान का सािहय
है। चारण किव तलवार व लेखनी दोन* के धनी थे और िवशेष बात यह है िक इसम: सनु ी सुनाई
कथाओ ं का वण(न नहM वरन् आँख* देखी िज/दगी और मौत से जझू ते य ु * का वण(न काTय और

उतराखड मु त िवविवालय 218


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
ग 9प* म: देखने को िमलता है य*िक ये किव य ु भूिम जोश उप/न करने के साथ-साथ खदु
जझू ते थे। का/हड़दे !ब/ध म: का/हड़देव अलाउGीन के य ु का `य देिखए -
डूंगर तणा िशशर डगमगइ, थयॅंअू जआल सायर लगइ।
अथा(त डॅूंगर भी िहलने लगे और सागर भी उफनने लगा।
चारण शैली क सव(!थम रचनाएं |ीधर कृ त ‘रंणमBल छंद, चारण िशवदास कृ त ‘अचलदास
खMची री वचिनका‘ अय/त !िस है। इस शैली म: वीररस व शृंगार !धान रास* काTय िलखा
गया िजसम: चंदबरदाई कृ त ‘पृ@वीराज रासs‘, नरपित नाBह का बीसलदेव रासौ आिद !मुख है।
वेिल पर5परा का पहला 4/थ रांउलवेल इसी शैली म: िलखा गया है िजसमे 46 प है और छः
नाियकाओ ं का नख िशख वण(न है।
(ग) लौिकक सािहय - लौिकक सािहय जनमानस का सािहय है, जनता क भाषा म:
िलखा गया है। राज+थान म: लोक सािहय क िविवध िवधाओ ं म: अनेकानेक िवषय* तथा
घटनाओ ं से स5बि/धत लौकगीत, जनकाTय लोकगाथा, लोकनृय, लौकनाट्य, लोक कहावते
कथाएं सि5मिलत है। यह लोक सािहय लोकमानस क मख ु र एवं जीव/त अिभTयि_ राज+थान
ढोला मा9 रा दोहा !िस लोककाTय है।
(घ) गK सािहय - इस काल म: राज+थानी ग क शु9आत हो चुक थी, इसका +व9प
अय/त !ाचीन है। !ाचीन दानप7*, परवान*, वाता(ओ ं एितहािसक अिभलेख* म: ग का !ाचीन
9प् संरिFत है। राज+थान म: वात और यात दोन* क/ही 9पो का उBलेख िमलता है। वात
कहानी को कहते है। इितहास और वंश स5बि/धत पोिथय* को यात कहते है । वात म:
ऐितहािसक, धािम(क, लौिकक रीित नीित स5बि/धत कथाएँ, अलौिकक तव* व मनोिवRान के
साथ उपि+थत होती है। लोक जीवन का स}चा +व9प वात-सािहय म: नजर आता है।
13.5.2 आिदकालीन राजथानी सािहय क वृिRयाँ
आिदकालीन राज+थानी सािहय म: धािम(क, लौिकक, वीरगाथामक और शृंगार परक
चारण सािहय आिद काTयधाराएं देखने को िमलती है और साथ ही साथ ग का +व9प भी।
भारते<र बाहबली रास (शािलभ0 सHू र), पृ@वीराज रासौ (च/दबरदायी), बीसलदेव रास (नरपित
नाBह), ढोलामा9 रा दोहा (लौिकक काTय), अचलदास खMची री वचीिनका (चारण किव
िशवदास गाडण), आिद इस काल क !ितिनिध रचनाएं है। अचलदास खMची री कथािनक ग-
प िमि|त (च5पकू ाTय) है।
13.5.2.1 िवषयवतगु त (सवं ेदनागत) वृिRयाँ
आिदकालीन सािहय क िवषय व+तु स5बि/धत िवशेषताएं िन5नांिकत है -
(1) वीरगाथामकता और Sृंगारकता: इस काल के सािहय म: वीर रस और शृंगार रस
का साथ-साथ और +वतं7 9प से भी िच7ण हआ है। चारण शैली क रचनाओ ं म: इितहास के
साथ-साथ कBपना का समावेश कर योाओ ं क वीरता का बखान तो नाियकाओ ं के नखिशख
का वण(न भी िकया है। पृ@वीराज रासौ म: वीर और शृगं ार रस एक साथ चले है। ‘इिं }छनी Zयाह‘

उतराखड मु त िवविवालय 219


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
‘शिशबाला Zयाह‘ और ‘संयोिगता हरण‘ इन तीन* अवसर* म: य ु के साथ !ेम !संग का वण(न
है। क/नौज य ु के समय +वयं पृ@वीराज सयं ोिगता के महल म: मछिलय* को मोती चगु ा रहै हैः-
भल ू उं नृप ितिह रंग तिह जु िव9 सह।
मंगू ित मीनन मिु त लहिं त लPष दह।
अथा(त !ेम रंग म: राजा (पृ@वीराज) य ु को भलू गए है। मछिलय* के िलए वे मोती
छोड़ते है तो दस लाख मछिलयां उ/ह: खाने के िलए दौड़ती है। सौ/दय( का वण(न इस महाकाTय
म: मनभावन है। पावती का सौ/दय( देिखए:-
‘सेत वS सौहै सरीर नष +वाित बदंू जस।
mमर भवित मुBलिह खमु ाव मकरंद वास रस।।‘
अथा(त पावती <ेत वS म: सुशोिभत है, उनका नख +वाित बंदू जैसा उजला है, उनम: शरीर क
खश ु बू से भँवरे क रस लेने आते है और चार* तरफ च कर काट रहै है। ‘बीसलदेव रासो‘ म:
िवयोग शृंगार का वण(न है। इसम: भोज परमार क बेटी राजमती और अजमेर के राजा बीसलदेव
चौहान (तृतीय) के शादी के बाद िवयोग होने पर राजमती के िवरह क भावानभु िू त का िच7ण है।
राजमती के िवरह वण(न को बारह मासा िच7ण से भी बताया गया है। जैसे -
‘‘फागनु फरया किपया 9ष।
चमिक उिनिस नMद न भूष।।‘‘
अथा(त् फाBगनु के महीने म: हवा के तेज झsके आते है; वृF काँप रहै है। िबजली (बीजळी) क
तरह मन चंचल है और नMद और भख ू दोन* ही समा\ हो गई है। इस काTय म: नारी जीवन क
लाचारी, याग, बिलदान, कोमलता और िवरह भावना को मािम(कता के साथ िचि7त िकया
गया है। इसी तरह ‘ढोला मा9 रा दहू ा‘ भी िवयोग शृंगार से भरा परू ा है। मारवणी को जब ढोला
व मालवणी के िववाह क सचू ना िमलती है तो वह िवरह म: डूब जाती है और हवा से कहती है -
िजिण दसे सhजन बसइए, ितिण िदिस वhजऊ वाउ।
उआं लागे मो लगासी ऊ ही लाख पसाऊ।।
अथा(त िजस देश मे मेरे साजन (भरतार) बसे है, है हवा! तू उसी िदशा म: चल, य*िक उनको
छूकर तू मझु े +पश( करे गी तो वह ही मेरे िलए लाख इनाम होगा। इसी तरह वह बादल से िवनती
करती है -
िवhजिु लंय नीलिhजयां, जलहHर तू ही लिhज।
सनू ी सेज िवदेश ि!य मधरु इ मधरु इ गिhज।।
अथा(त ये िबजिलयाँ तो िनल(hज (बेशम() है, है बादल! तू ही लाज रख। मेरे ि!य िवदेश म: है,
मेरी तो सेज सूनी है, इसिलए तू धीरे -धीरे गज(ना कर। मारवणी के उजले सौ/दय( का वण(न इस
!कार है -
गित गंगा मित सरसती सीता सील सभाई।
मिहला सरहर मा9ई, अवर न दजू ी काई।

उतराखड मु त िवविवालय 220


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
अथा(त िजसक गंगा के समान गित (चाल) है, सर+वती जैसी बिु  और सीता के समान शील
(शीतल) +वभाव है, ऐसी मिहला |े{ मारवणी के समान कोई दसू रा नहM है।
(2) आ=यािमकता नैितकता - जैन किवय* [ारा रिचत सािहय म: आ=यािमकता व
नैितकता के दश(न होते है। जैन किवय* ने हमेशा सादा जीवन उ}च िवचार का आदश( सामने
रखा। इन किवय* ने !ब/ध और म_ ु क के मा=यम से नैितक व आ=यािमक जीवन क सीख दी
है। राज+थानी काTय के िवकास म: इन किवय* का उBलेखनीय योगदान रहा है। हैमच/द सHू र का
‘शZदानश ु ासन‘ और ‘कुमार पाल चHरत‘, स!ु िस रचनाएं है। जैन किवय* ने तीथ(कर* क
जीविनयाँ, स/यास, धम(, याग, अिहसं ा आिद का वण(न िकया है। यह सही है िक जैन किवय* ने
अपनी पोिथय* और पाडुिलिपय* को सुरिFत रखने का हर संभव !यास िकया था, इसिलए
आिदकालीन भारत का सां+कृ ितक इितहास भाषा िवकास क जानकारी इन 4/थ* म: उपलZध
है। आिदकालीन राज+थानी भाषा िवकास क जानकारी इन 4/थ* मे िमलती है।
ऐितहािसकता: जैन किवय* ने िसफ( नैितकता आ=यािमकता का वण(न ही नहM िकया वरन्
ऐितहािसक काTय क रचना भी करी। हैमच/द कृ त, ‘कुमारपाल चHरत‘, सोम !ेम सूHर कृ त
‘कुमारपाल !ितबोध‘, धम(सूHर कृ त ‘ज5बू +वामी रास‘, ई<र सHू र कृ त ‘लिलतांग चाि◌त‘,
िवजय सेन सूर का रे वतिगHर रास इयािद काTय म: इितहास क घटनाओ ं का सही 9प म: िचि7त
िकया गया है।
डॉ. हजारी !साद ि[वेदी ने कहा है ‘‘राhय|य, धमा(|य और लोका|य इन तीन* कारण* से
सािहय सुरिFत रहता है।‘‘ जैन किवय* के 4/थ (पौिथयाँ) भी धम(|य के कारण नO नहM हो
सके , और इसक रचनाएँ !मािणक रह सक। चारण 4/थ ‘अचलदास खMची री वचिनका‘ म:
भी इितहास क परू ी रFा मानी जाती है। यिप यह वीररस !धान रचना है और ग प मय
शैली म: िलखी अचलदास और मांडू के सुलतान हशंग गौरी के य ु का वण(न है। चारण शैली
क इस ऐितहािसक रचना का सािहय म: ऊँ चा +थान है।
13.5.2.2 भाषा एवं िशPपगत वृिRयाँ
(1) भाषा: आिदकालीन राज+थानी सािहय म: काTय रचना तीन भाषाओ ं म:
होती थी 1. अपmंश से !भािवत राज+थानी, 2. िडंगल भाषा और 3. िपगं ल। जैन, किवय* िस[
नाथ किवय* क रचनाओ ं म: अपmंश िमि|त राज+थानी भाषा का 9प देखने को िमलता है
िजसके कई उदाहरण हमने पहले के िब/दओ ु ं म: पढ़ िलए है‘।
िडंगल !ाचीन राज+थानी क शैली है। इसका !योग अिधकतर चारण किवय* [ारा
िकया गया। कहा जाता है िक िडंगल शZद का !योग किवराजा बांकदास [ारा िकया गया तब
से यह शZद मारवाड़ी सािहय के िलए काम म: िलया जाने लगा। िडंगल िपंगल से भी !ाचीन
भाषा है। िडंगल ओजपणू ( काTय क भाषा िजसम: य ु के सजीव वण(न के साथ-साथ वीर और
|ृंगार का वण(न भी िविवध काTय 9प* म: हआ है। िपंगल, मधरु स और !साद गुण से य_ ु भाषा
है। िपंगल का एक अथ( छंदशाS भी है, राज+थान म: िडंगल और िपंगल दोन* म: सािहय रचा
गया है।

उतराखड मु त िवविवालय 221


तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(2) का1य प: िडंगल के काTय 9प* म: रास, रासौ और वचिनका !मख ु है। जैन किवय*
ने रास के 9प म: तो चारण किवय* ने रासs 9प म: !ब/ध काTय िलखे और वचिनकाऐ ं भी िलखी
है। िपंगल भाषा के !भाव से इस काल म: कई छ/द सामने आए, दहू ा (दोहा), वेल, नीसाणी,
चौपाई, छnपय वेल, किवK, सवैया, सोरठा, रोला आिद छ/द* का !योग पृ@वीराज रासs और
अ/य 4/थ* म: हआ। छ/द* के नाम से भी रचनाएं हई जैस - ‘राउलवेल‘, ‘नीसाणी िववेक
वारता‘ और ‘ढोला मा9 रा दोहा‘ इयािद। नीित स5बि/धत दोह* क भी !चरु ता थी जेसे - हसं
गया, सारस गया, बगु ला गया िवलाय। स5मन अब इण 9ंख पर, कागा बैठा आय।।
(3) शैली: यह सािहय तीन िविभ/न शैिलय* म: िलखा हआ है - 1. जैन शैली, 2. चारण
शैली और, 3. लौिकक शैली। ग-प शैली (च5पू काTय) ‘अचलदास री क वचिनका‘
नामक 4/थ म: िवमान है। कथामक शैली म: कथानक 9िढ़य* जैसे शुक शुक संवाद, हसं -
कबतू र जैसे संदेश िभजवाना, आकाशवाणी बारहमासा आिद !य_ ु होती रही।
(4) गेयता: राज+थानी सािहय म: गीितव भी िवमान है। रास काTय 9प म: इसक
!धानता है। पृ@वीराज रासs, ‘बीसलदेव रास‘, ‘ढोलामा9 रा दोहा‘ आिद 4/थ इसके उदाहरण
है।

13.6 राज थानी सा&हय का म?यकाल (सन ् 1450 से 1850


तक)
राज+थानी सािहय का म=यकाल सामा/यतः 1450 से 1850 तक माना जाता है। इस
सदं भ( म: भी िव[ान* म: एक मत नहM है। कई िव[ान इसका !ार5भ 1350 ई. से मानते है तो कई
िव[ान महाराणा सांगा के खानवा य ु (1527 ई) म: हार से म=यकाल का !ार5भ मानते है।
सामा/यतः म=यकाल 14 वी सदी से 19 वM सदी के म=य तक माना जा सकता है। राज+थानी
भाषा और सािहय दोन* ही `िO से म=यकाल अय/त महवपणू ( रहा। इस काल म: राज+थानी
भाषा का +व9प िनखरा। शौरसेनी अपmंश के मा9 गुज(र +व9प से राज+थानी और गजु राती
अलग-अलग भाषाएँ बनी। राज+थानी सािहय का यह काल भि_ से सरोबोर रहा।
िह/दी सािहय के म=यकाल को दो भाग* म: 1. भि_काल (सं. 1375 से 1700 तक) और
रीितकाल (संवत् 1700 से 1900 तक) बाँटा गया है पर/तु राज+थान का म=यकाल (सं. 1450
से 1850 तक) दोन* काल* क िवशेषतओ ं को साथ लेकर चला है। क@य और भाषा शैली क
`िO से इस सािहय का योगदान उBलेखनीय रहा।
13.6.1 मयकालीन राजथानी सािहय का परवेश
इस काल क सािहयक !वृिKय* और काTय धाराओ ं क जानकारी से पवू ( इस क पHरि+थितय*
को समझना आवयक है, जो िन5नानसु ार है -
(1) राजनीितक परवेश: कहा जाता है िक खानवा के य ु ( िव.सं. 1584 ई.) म: राणा
सांगा क बाबर से हार ने राज+थान का ही नहM, भारत का इितहास बदल िदया। डॉ. रघवु ीर िसंह

उतराखड मु त िवविवालय 222


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
आधुिनक राज+थान नाकम 4/थ म: िलखते है िक राणा सांगा क हार से जनता क सोच बदल
गई। िह/दू जनता िनराशा, भय और आम rलािन को दरू करने के िलए भि_ क ओर मडु गई।
भ_* और संतो ने इस संकट बेला को टालने के िलए भि_ सािहय रचना शु9 िकया।
राज+थान म: आिदकाल म: गहलोत राजवंश का !भाव था पर/तु म=यकाल म:
िससोिदया राजवश ं का !भाव बढ़ गया था। मगु ल साŽाhय क +थापना, उसका िवकास,
अ4ं ेजी शासन के बीच और राजपतू * से स5ब/ध यह सभी म=यकाल म: नये युग व हलचल क
ओर संकेत है। जोधपुर म: रावजोधा और बीकानेर म: राव बीका ने शासन शु9 िकया था। अ/ततः
राज+थान क Hरयासत* को पहले मगु ल* से और बाद म: अ4ं जे ो से संिध करनी पड़ी। वैभव
िवलािसत और िवभृत सामंतशाही के कारण यह सब हआ।
(2) सामािजक परवेश: इ+लाम धम( के पVात् सामािजक ि+थितयाँ भी बदली। जाित
पाँित, छूआछूत, पदा(!था आिद कु!थाओ ं का जोर बढता गया, हताश 4+त जनता को संतो के
मा=यम से भगवत भि_ व नैितक मBू य* का संदेश िमला। भि_ धारा के !बल वेग के कारण इस
काल म: संत सािहय और सगणु (राम कृ Pण) काTय क रचनाएँ !कट हई। मगु लशासन म:
ि+थरता के िवकास के पVात वैभव िवलािसता जोर पकड़ने लगी, आ|यदाताओ ं क !शंसा
हेतु लFण 4/थ और शृंगाHरक रचनाओ ं का सृजन होने लगा और रीित काTय पर5परा के 9प म:
उपि+थत हआ।
समाज ऊँचा व िन5न दो भाग* म: बँटा हआ था। समाज म: Tयापारी (विण(क) वग( का
दबदबा था। Tयापारी जमMदार और ठाकुर* तक को कजा( देता था तो दसू री ओर िन5न वग(
भखू मरी, बेरोजगारी, पेट भरने के िलए भटकता रहता था।
(3) धािम.क एवं सांकृित परवेश: धम(, राजनीित और समाज के मेलजोल का असर
सं+कृ ित पर होता है। राज+थान क सvयता व सं+कृ ित क पहचान िनराली ही हf बड़े गढ, मोटी
मोटी हवेिलयां, मि/दर +थापयकला, मिू त(कला, िच7कला, नृयकला म: िवकास और पHरवत(न
म=यकाल म: देखने को िमलता है। म=यकाल म: जब बदलाव क बीन बजनी श9 ु हई तब
राज+थान के समाज और सं+कृ ित पर महवपणू ( !भाव पड़ा। िह/दू धम( पर होने वाले आkमण*
से मनPु य क आ+था लड़खडाने लगी थी राजपHरवार* म: िवभाजन होने लगा था, सvयता व
सं+कृ ित पर मिु +लम और िवदेशी शैली का !भाव दीखने लगा था। शैव, वैPणव और शा_ धमl
का !चलन वषl से चलता रहा है, पर/तु पाखड और अनाचार भी साथ म: बढते गए। इसी बीच
म=यकाल म: भि_ क दो धाराएँ श9 ु हई - िनग(णु भि_ और सगणु भि_। मगु ल* के अिधकार
से मुि+लम धम( का भी फै लाव हआ।
राज+थानी सिहय का +वण(युग भी म=यकाल ही माना जाता है। इस काल के म=य
भि_ सािहय के सगणु भ_ उपासक राम-कृ Pण को अपना आरा=य, ई<र के नाना िवध +व9प*
का बखान करते है। इधर िनग(ुण उपासक संत पथ के िलए लेखनी चला रहै थे, संत*, िव[ान* के
कारण सद Tयवहार, सदाचरण, सील, संयम, आमसंतोष जनता के म=य िवमान रहा। इस
काल म: राज+थानी समाज म: नया जागरण नारी के !ित |ा और !ेमभाव, सदाशयता, q क

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
सKा क Tयापकता के कारण भि_ क शि_ बढ़ गई। भि_ क शि_ से जनमानस म: शाि/त,
सरु Fा और आनदं का अनभु व होने लगा था।
13.6.2 मयकाल के ितिनिध किव और रचनाएँ
इस काल म: मीराबाई, राठौड पृ@वीराज, ईसरदास, दरु सा भाढ़ा, बाकं दास, कृ पाराम,
छंद राव जैत सी जैस यातनाम !र् ितिनिध किव हए िजनका संिF\ पHरचय इस !कार है -
(1) मीराबाई: मेड़ता !देश के राव ददू ा क पोती और रतन िसंह क बेटी मीरांबाई बचपन
से ही कृ Pण भि_ म: लीन थी। उनका िववाह मेवाड़ के राणा सागं ा के बेटे भोजराज से हआ जो
अBपायु म: ही मारा गया था। मीरा बाई म: कृ Pण भि_, नारी िवयोग और कृ Pण के !ित अन/य
!ेम स5बि/धत कई पद* का सृजन िकया। मीरा सगणु भि_ के साथ-साथ िनग(ुण भि_ भावना से
जड़ु ी रही, पर/तु सगुण साकार ई<र क परम भ_ रही जैसे -
5हारा तो िगरधर गोपाल दसू रा ना कोई
दसू रा ना कोई साधां सकल लोक जोई
मीरां कृ Pण !ेम क दीवानी थी, मीरां काTय म: समाज क ददू श
( ा और वेदनानभु ूित और दद( का
सजीव िच7ण हआ है -
हैरी 5हासंू हHर िबन र‰ो न जाय।
सास लड़ै ए मेरी न/द िखजावै, राणा र‰ा िखजाय।
पहरो भी राय*, चौक िबठारयो, ताला िदयो जड़ाय।
पवू ( जनम क !ीत परु ाणी, सो यू छोड़ी जाय।।
मीरां के !भु िगरधर नागर, अव9 न आवै 5हारी दाय।
मीरां क भाषा के स5ब/ध म: डॉ. भपू ितराम साकाHरया िलखते है िक ‘‘मीरा के पद राज+थानी म:
है। +पO बात तो यह है िक मीरा ने मातृभाषा के िकसी दसू री भाषा म: पद* क रचना नहM क।
अपने भाव* के महव के कारण राज+थानी के कुछ किव स5पणू ( भारत के हो गई जैसे िक मीरा
बाई। वैसे मीरा बाई के पदो म: िह/दी, िडंगल, िपंगल, qज, सं+कृ त, सधु कड़ी आिद िमि|त
भाषाओ ं का !योग हआ है।‘‘
(2) राठौड़ पृjवीराज: म=यकालीन राज+थान के सव(|े{ किवय* म: !मख ु राठौड
पृ@वीराज क िडंगल शैली म: िलिख काTय कृ ित ‘िkसन 9कमणी री वेली‘ अय/त महवपणू (
रचना है। बीकानेर नरे श रावकBयाण के सपु 7ु राठौड पृ@वीराज का ज/म राठौड राजवंश म: सन्
1543 म: हआ था। इनके बड़े भाई महाराजा रायिसंह अकबर के !मख ु सेनापित थे और
दानवीरता के िलए !िस थे। +वयं राठौड़ पृ@वीराज अकबरी दरबार के नौ रन* म: से एक थे।
पृ@वीराज बहमख ु ी !ितभा के धनी वीर होने के साथ भ_ और !थम |ेणी के किव थे। उनके
समकालीन किववर नाभजी ने ‘भ_माल‘ म: उनका उBलेख िकया है जो इस !कार है -
‘‘सवया गीत सलोक वेिल दोहा गुण नव रस
िपगं ल काTय !माण िविवध िविध गाय* हHरजान

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
9कमणी लता वरणन अनपु वागीस वदन कBयाण-सवु
नर - देव उभै-भाषा िनपणु , पृ@वीराज किव-राज हव।‘‘ (भ_माल)
राठौड पृ@वीराज ने ‘िkसन-9कमणी री वेिल‘ के अितHर_ ‘ठाकुरजी रा दहू ा‘, ‘गंगा जी दहू ा‘,
‘महाराणा !ताप रा दहू ा‘ ‘िव¦ला रा दहू ा‘, राधाकृ Pण का नख-िशख |ृंगार वण(न इयािद
रचनाएँ िलखी पर/तु सवा(िधक उनक याित िkसन-9कमणी क वेिल से हई। राज+थानी
इितहास के !िस लेखक कन(ल टॉड और राज+थानी भाषा और सिहय के महापंिडत डा टर
तैसीतोरी जैसे िव[ान* ने भी इस रचना को िडंगल काTय क सव(|े{ रचना बताया है और
तैसीतोरी ने तो इसके रचना राज+थानी सािहय का सबसे जगमगाता रन कहा है। मोतीलाल
मेनाHरया ने िलखा है ‘‘काTय-सौ{व, अलंकार चातयु (, भाव गा5भीय(, भाषा लािलय, अथ(
गौरव आिद सभी `िO से ‘िkसन-9कमणी री वेिल 4/थ अनठू ा है। वेिल के कथानक म:
सरसता, उनक किवत म: कोमलता, उनके !ाकृ ितक वण(न म: कBपना क कमनीयता, उसक
भाषा म: !ांजलता एवं भाव* म: मौिलकता है।‘‘ वेिल मल ू 9प से !बधं काTय है और िkसन-
9कमनी के Zयाह का वण(न है। भागवत से कथासू7 4हण कर किव ने 9कमणी का सौ/दय(-
िच7ण, 9कमणी-स/देश, !कृ ित वण(न और य ु वण(न म: अनठू ा काTय सौ/दय( भरा है। वसंत
9पी बालक का स/ु दर िच7ण `OTय है। आचाय( रामच/0 शु ल क पहचान, पवू ा(वर संबधं
िनवा(ह और +थानीयता ये तीनो वेिल के कथानक म: िवमान है।
वसंत 9पी बालक का सु/दर िच7ण `OTय है -
िविध सेणी वधावे वसंत वधायउ
भािलम िदिन िदिन वढ़ भरण।
हळरावणे फािग हळराय
त9 गहवHरया िथय त9ण।
अथा(त इस िविध से बसंत 9पी ब}च* को बधावो (गीत*) से बधाया गया। इसक सु/दरता िदन-
!ितिदन बढ़ने लगी। उसको फाग 9पी लोHरय* से दल ु ारा गया और फाग क ठडी-हावाएँ उसे
लोHरयाँ सुना-सनु ा कर दल ु राती गई। िफर धीरे -धीरे वृF हरे -भरे और सघन हो गए। ऐसा !तीत
होता है िक बसंत 9पी ब}चा जवान हो गया है। इस वेिल म: भि_, |ृगं ार और रस तीनो का
स/ु दर (फूठारा) वण(न है।
(3) ईसरदास: म=यकालीन राज+थानी सािहय म: वीर और भि_ रस के !मुख किव
ईसरदास का नाम अय/त आदर के साथ िलया जाता है। वीर रस !धान इनक !मख ु कृ ित है -
‘‘हालां-झालां री कुडिलयां‘‘ िजसम: ‡ागंधा नरे श झाला रायिसंह और, ‡ोत राhय के हाला
जसवंत िसंह के य ु का वण(न है। भि_रस क रचनाओ ं म: उनक !मख ु कृ ित है ‘हHररस घणी‘
िजनका पाठ आज भी गजु रात और राज+थान म: बहत से Tयि_ करते है। यह एक म_ ु म काTय
है।
(4) दुरसा आढ़ा: म=यकाल के किव दरु सा आढ़ा किव के साथ एक योा के 9प म: भी
!िस रहै। राज+थानी क जनता को जागरण का सदं ेश िदया। दरू सा जी क रचनाओ ं म: ‘िव9

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िछहतरी‘, ‘राव सरु ताण रा झलू णा‘, ‘राव अमरिसंह रा झल ू णा‘, ‘दहू ा सोलंक‘ ‘वीरमदे रा
िकरतार बावनी‘ आिद !मख ु है। ‘िव9 िछहतरी‘ म: महाराणा !ताप का गणु गान है।
उदाहरणाथ(-
‘‘अकबर समदं अथाह, ितंह डूबा िह/दतू रु क।
मेवाडी ितण माह, पोयण फूल !ताप सी”।
अथा(त् अकबर के साŽाhय 9पी सम0ु म: िह/दू तक ु ( सब डूब गए लेिकन उसके भीतर मेवाड़ी
महाराणा !ताप फूल के समान तैर रहै है। यहाँ !ताप क वीरता, +वाभीमान और +वातं‘य भाव
का उBलेख हआ है।
(5) छंद राउ जैतसी रो: किव बीडू सूजई रउ [ारा रिचत ‘छंद राउ जैतसी रो‘ एक वीर
रसामक काTय रचना है। िजसम: बीकानेर नरे श राव जैतसी के धरती !ेम, वीर भावना, धम( क
रFा, साथ म: अ=यामक भि_ का सौ/दय( भी िवमान है। इस ऐितहािसक काTय को सव(!थम
तैसीतरी [ारा ई संवत् 1629 क ह+तिलिखत !ित के आधार पर स5पािदत िकया गया। भाषा
शैली क `िO से यह िडंगल क अुत रचना है। अपmंश के !भाव के साथ तसम, तव,
देशज और अरबी-फारसी के शZद भी िवमान है। अलक ं ार व छंद क वयणसगाई का अनठू ा
!योग किव ने िकया हf। इस काTय क खास घटना है - रावजैतसी को बाबर प7ु कामरान के
िव9 जीत।
(6) कृपाराम िखिडया: कृ पाराम िखिडया सीकर के राजा देवी िसंह के आ|यदाता किव
थे। इनक लोकि!यता का मुय आधार रहा ‘रािजया रा दहू ा‘ कृ ित। रािजया इनम: चाकर और
कोई प7ु न होने के कारण अय/त दख ु ी रहते थे। दखु कम करने के िलए कृ पाराम रािजया को
स5बोिधत करके दोहै करते थे िजसम: जीवन के आचार िवचार, रीित नीित का +पO िच7ण होता
था। आज कृ पाराम को रािजया रा दहू ा के कारण याद िकया जाता है,
डदाहरणाथ( -
दाम न होय उदास, मतलब गणु गाहक िमनख
ओखद री कड़वास, रोगी िगणे न रािजया।
यहाँ +वाथU मनPु य के िलए Tयrं य करते हए किव कहते है िक मतलबी मनु Pय का कोई
+वािभमान नहM िजस तहर रोगी रोग को दरू करने के िलए दवा क कड़वास भी पचा जाता है
उसी तरह मतलबी मनPु य भी िकसी बात का बरु ा नहM मानता है। सरल, सीधी िडंगल म: िलखे ये
दोहै TयावहाHरक जीवन क बात बताते हf और आज भी !ासंिगक है।
(7) माधवदास दधवािडया: माधवदास दधवािड़याँ कृ त ‘रामरासौ‘ एक कालजयी
महाकाTय है। माधवदास का ज/म िव. सं. 1615 के आसपास माना जाता है। इनके िपता का
नाम चडंू ा दधवािडया और माता का नाम च/0ावल वरसड़ा था। इनके पवू (ज देवल गौ7 के
चारण थे, मारवाड़ के 9ंण िठकाने के राजकिव थे और उ/ह: दंधवाड़ा नामक 4ाम जागीर म:
िमला था, इसी कारण ये देवल दधवािडया कहलाए।

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माधवदास दधवािडया बहमख ु ी !ितभा के धनी थी। काTयशाS, संगीत, Tयाकरण, छंद
अलंकार, इितहास, hयोितष, त7ं िवा, भाषाओ ं के Rाता थे। कृ Pण के अन/य उपासक
करमान/द उनके आ=यािमक ग9 ु थे, िजनके माग(दश(न से इ/ह*ने वाBमीिक रामायण, भागवत,
महाभारत, परु ाण आिद धम( 4/थ* का अ=ययन िकया। सािहय साधना के पथ पर अ4सर होते
हए माधवदास ने जो रचनाएँ क उनम: राम रासौ एक उकृ Oतम कृ ित है। यह भि_ और वीर रस
से भरपरू है। इस सािहियक रचना के िलए जोधपुर के ताकालीन महाराज सरू ज िसंह ने संवत
1654 म: सोजन परगने का नापावास 4ाम जागीर म: !दान कर स5मािनत िकया था। माधवदास
क ई<र के !ित िनPकाम भि_ भाव व अिडग आ+था रही।
राज+थानी सािहय म: मनPु य ज/म क साथ(कता +वािमभि_, कO-सिहPणतु ा, उदारता, वीरता,
धरती!ेम, जाFीय गौरव, वीरगित का मोह, धम( म: आ+था, कK(Tय परायण, वचन बता आिद
आदशl के िनवा(ह म: िनिहत मानी गई है। इन सभी का उBलेख ‘रामरासौ‘ कृ ित म: होता है,
इसीिलए यह कालजयी रचना हो सक है।
(8) बांकदास (1781 - 1833 ई. तक): किव बांकदास ने राPQीय भावना से ओत-!ोत
रचनाएँ िलखी। उ/ह*ने िह/दू मिु +लम सं+कृ ित क एकता को बढ़ावा िदया और अं4ेजी शासन से
जझू ने के िलए वाणी दी। इस `िO से आधिु नकता का पहला +वर बांकदास के काTय मे िमलता
है -
‘‘आयो इगं रे ज मुलक रै , ऊपर आहसं लीधा खैिच उरां।
छािगयां मरै न दीधी धरती, धिणया, ऊभां गई धरा।।‘‘
बंकदास क रचनाँ बांकदास 4/ं थावली म: संकिलत है। यात सािहय म: ‘बाँकदास री यात‘
इितहास क `िO से महवपणू ( ग रचना है।
13.6.3 मयकालीन राजथानी सािहय क वृिRयाँ
13.6.3.1 िवषयवतु (भावगत-वृिRयाँ):-
इस काल म: भी िवषय व+तु क िविवधता िवमान रही है यित म=यकाल भि_ सािहय से
सराबोर रहा तथािप चारण सािहय, जैन सािहय, ग सािहय, लोक सािहय और लFण
4/थ* क भी रचना बराबर होती रही -
(1) चारण (ऐितहास) का1य: आिदकाल क तरह म=यकाल म: भी चारण काTय
क काफ रचनाएँ सामने आई। इन रचनाओ ं से तकालीन इितहास, समाज और सं+कृ ित का
िच7ण िमलता है। राजपतू ो के शौय( व वीरता का िच7ण िडंगल-िपंगल शैली मे िवमान है।
पसाइन राव Hरणम कृ त ‘गणु जोधायण‘, ‘रावरणमल के दोहै‘, भांडउ Tयास कृ त ‘ह5मीरायण‘
सजू ा जी बीलू कृ त ‘राव जैतसी रो छंद‘, बारठ आसोजी कृ त ‘भिटयाणी उमादे रा Tयि_‘,
ईसरदास कृ त ‘हालाझाला री कुडिलयाँ‘, दरु सा आढा कृ त ‘िकरतार बावणी‘ और ‘िव9
िछहतरी‘, जोधराज कृ त ‘ह5मीद रासौ‘ आिद उBलेखनीय है।

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(2) भि=का1य: इस काल म: तकालीन देश म: चार* ओर भि_ आ/दोलन का
!भाव िदखाई देता है। िनग(णु और सगणु भि_ क भावना म=यकालीन राज+थानी सािहय क
!मख ु !वृिK के 9प म: सामने आई। राज+थान म: वीर रसामक काTय के साथ पौरािणक,
धािम(क भि_ काTय रचनाओ ं क भी !चरु ता हf। इस काल म: भि_ काTय क दो धाराएं
िवमान रही।
(क) िनग(णु भि_काTय धारा (ख) सगणु भि_ काTय धारा
(क) िनग(णु भि_काTय: सािहय म: िनग(ुण भि_ काTय धारा का !वत(न राज+थान संत
किवय* ने िकया। संतो ने अपनी वािणय* के मा=यम से जाित-पाँित, ऊँच नीच, छूआ छूत,
पाखड, बा‰ आड5बर आिद का िवरोध कर जन-समाज को शांित और भाईचारे का संदेश
िदया। दादू क वाणी है -
‘‘दादू देखा दयाल क, एकल रहा भरपरू ।
रोम-रोम म: बिस रइयो, तू िजिन जाने दरू ।।‘‘
संतो ने नाम+मरण, ग9 ु क मिहमा, ससंग क मिहमा, नैितक मBू य*, अहक ं ार और मन के
िवकार* के याग, रह+य भावना पर जोर िदया। कुछ उदाहरण इस !कमार है -
डदाहरण इस !कार है -
(1) ‘आपो मेटै, हHर भजै, तन-मन तजै िवकार
िनखैरी सब जीव सं,ू दादू यह मत सार।‘ (अहक ं ार का याग - संत दाददू याल)
(2) लालजी सािहब सत ग9 ु एक है, याम: संसय नािहं
सतगु9 िबन पावै नहM, Rान, =यान क राह।
(सतगु9 क मिहमा, संत लालदास)
(3) िह/दू तरु ह है दोउन का, येकिह राम रहीम खदु ाजी
(नाम-+मरण व िह/द-ू मिु +लम एकता - सतं लालदास)
(4) जब जब दरसन राम दे, तब मांगो सतसंग
चाहो पदवी भगत क, चढ़े सुनवधा रंग (संतसंग क मिहमा - संत चारणदास)
(5) काम, kोध, अिभमान, कुपह काटा मत लावौ।
अलख भजन उर घरौ, मरो मित मौत चक ु ावौ।
(नैितकता पर जोर - संत हHरदास)
इसी तरह सतं जा5बोजी, सदंु रदास, पीपाजी आिद ने महवपणू ( वािणयां देकर समाज
सधु ार Rान माग( को बढ़ावा िदया।
उपय(_
ु उBलेिखत संतो का िकसी न िकसी स5!दाय से जड़ु े हf। राज+थानी संत सािहय
के िवकास मे िन5न चार स5!दाय* का िवशेष योगदान रहा।
(1) नाथ स5!दाय: इसका खास !चार गोरखनाथ ने िकया।
(2) रिसक स5!दाय: इसक गGी रै वास (सीकर) सं आ4दास इसके सं+थापक थे।
(3) िवoोई स5!दाय: इसक +थापना सतं जा5भोजी ने नागौर म: क थी

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तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(4) जसनाथी स5!दाय: संत जसनाथ ने इस स5!दाय क +थापना बीकानेर म: क
राज+थान के अ/य स5!दाय* म: िनरंजनी स5!दाय (!वत(क हHरदास), िन5बाके
(परसरु ाम), दादसू 5!दाय (दाददू याल), चरणदासी (!वत(क चरणदास), लालदासी (!वत(क
लालदास) आई पंथ (जीजीबाई) इयािद !मख ु हf।
(ख) सगणु भि_काTय: िह/दी सािहय के भि_काल क भाँित इस म=यकालीन
राज+थानी सिहय म: भी राम भि_ काTयधारा और कृ Pण भि_ काTयधारा ये दो 9प सगणु
भि_ म: िवमान रहै। िजनका संिF\ पHरचत इस !कार है -
(1) रामभि_ काTय धारा: आरा=य भगवान राम को आधार बनाकर अनेक 4/थ*
का सृजन हआ। यह काTय धारा सांय, दा+य, अनगु हृ , पिु O, Rान और !ेम आिद भि_ के सभी
!कार* को साथ लेकर चली। राम मया(दा प9 ु षोKम 9प का बखान कर इस काTय धारा ने शील,
शि_ और सौ/दय( तीन* म: सम/वय िदखाया। भारतीय सं+कृ ित के आदशl और मूBय* क
+थापना करने का !यास रामभ_ किवय* ने िकया जो उस गणु क परम आवयक थी। यह
काTय धारा सगुण-िनग(णु , [ैत-अ[ैत, शैव-वैPणव, Rान-भि_, राजा-!जा म: सम/वय +थािपत
करने म: सफल रही। राज+थान के रामभ_ किवय* म: मेहोजी, ‘माधवदास‘, ‘दधवािडया‘,
‘ईसरदास‘, ‘अBलनू ाथ किवया‘, ‘पृ@वीराज राठौड‘ एकिलंगनाथ इयािद !मख ु है िज/ह*ने
भगवान राम क मिहमा का बखान िकया। माधोदास दधवािडया का सिहय इितहास म: नाम राम
रासौ नामक 4/थ के कारण अमर हो गया। यह िडंगल भाषा शैली क सश_ रचना है◌ै।
उदाहरणतः
‘‘िसध सिह एक सािध। वसै संचरै चरै विन।
मरै न कोय अळ िŽित। ताप दख ु Tयािध न कायंतिन।।‘‘
अथा(त राम राhय मे िसंह और गाय kमश अिहसं क और अभय होकर वन म: एक साथ
चरते हए िवचरण करते हf। !जाजन* म: कोई अकाल मृयु का िशकार नहM होता और न ही
िकसी को िकसी !कार का शारीHरक कO होता है। जैन किव q िजनदास और कुशललाभ ने
भी भगवान राम पर पोिथय* क रचना क है।
कृ Pणभि_ काTय धारा: |ी राम के साथ कृ Pण भि_ म: भी कई 4/थ रचे गए। भगवान
का लोकरFक और लोकरंजन दोन* 9प* का वण(न िकया गया। वासBय और सयभाव क
भि_ क !धानता रही है। पिु OभागUय भि_ भावना के अनसु ार q औरजीव क अिभ/नता
!कट हई है। इस काTयधारा के !मख ु किव है - ईसरदास, मीराबाई, सायां झल
ू ा, जrगा िखिडया,
पृ@वीराज राठौड, अBलनू ाथ आिद। |ी कृ Pण क मिहमा का िच7ण अBलू नाथ ने इस !कार
िकया है।
गोवरधन ऊधरण, 4ाह भारण गज तारण।
जरािसंध िससपाल िभडे, भ-ू भार उतारण।।
इसी तरह िkसन-9कमणी री बेिल म: 9कमणी कृ Pण के दश(न से +वयं को ध/य मानती
है।-

उतराखड मु त िवविवालय 229


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
वदना रिवंद गोिवंद वीिखभई
आळोचई आप-आप-सँू
िहव 9कमणी िkतारथ हइ+यइ
हवउ िkतारथ पािहल ह¢ँ । (पृ@वीराज राठौड़)
जैन काTय: जैन किवय* के आयान काTय, आ=यािमक पोिथय* से भी म=यकाल का
सािहय समृ हआ। इनम: कुशललाभ और दौलत िवजय िवशेष 9प से उBलेखनीय किव है।
दौलतिवजय कृ त ‘खमु ाण रासौ‘, रासौ 4/थ* म: अय/त लोकि!य है। इसम: िचKौड़ के बnपा
रावल से लेकर रतन िसहं तक के राजाओ ं का वण(न है। खमु ाण रासौ म: पावती क घटना के
साथ-साथ राज+थान के जन-जीवन तीज यौहार* का भी वण(न है। उदाहरणाथ(
िपउ िचKौड न आिवउ, सावण पहली तीज।
जोवै बाट िवरिहणी, िखण िखण अणवै खीज।
ग सािहय: म=यकाल म: यात सािहय, वचिनका, वात् वंशाविलयां, पˆावली
इयािद ग के िविवध 9प* के दश(न होते है। म=यकाल म: पृ@वीराज चHरत (किव मािण य चंद
सHू र) वचिनका राठौड रितन िसंह महैश दासोत री (िखिडया जrगा), माताजी वचिनका
(जतीq च/द) मंहु ता नैणसी री यात (महु णौत नेणसी) इयािद उBलेखनीय िविवध ग 9प
है।
लFण 4/थ: इस काल म: छंद, अलंकार, िडंगलकोश आिद पर 4/थो क रचना क
गई। कुशललाभ कृ त ‘िपंगल िशरोमणी‘, राज+थानी भाषा का पहला लFण 4/थ माना गया।
िजसम: छंद, अलंकार िडंगल गीत कोश (नाममाला), पहैली इयािद िवषय* का वण(न है। इसके
अितHर_ हमीरदान रतनू कृ त ‘हमीर नाम माला‘, िपंगल !काश, मंछाराम कृ त ‘रघनु ाथ 9पक‘,
आढ़ा िकसना कृ त ‘रघवु र जस !कास‘ और मरु ाHरदान कृ त ‘िडंगलकोश‘ इयािद कई रचनाएँ
िमलती है।
13.6.3.2 भाषा - िशPपगत वृिRयाँ:
िवषयव+तु (भावपF) के साथ इस काल का राज+थानी सािहय काTय कला और
िशBप क `िO से भी अय/त समृ रहा है। इस काल क भाषा-िशBपगत िवशेषताएँ
िन5निलिखत है -
(1) काTय भाषा: इन किवय* ने लोक !चिलत िडंगल शैली म: अिधकांशतः 4/थ*
का !णयन िकया था। इस समय तक िडंगल भाषा िवकिसत होकर एक पिति{त व स/ु दर भाषा
बन चक ु  थी। इसम: मारवाड़ी 9प ने सवा(िधक !भािवत िकया। इसके ढूढाणी हाडौती, मेवाडी
आिद बोिलय* म: भी सािहय रचना होने लगी थी।
(2) काTय 9प: इस काल म: !बधं और म_ ु क दोन* काTय 9प* म: काTय सृजन
हआ। !ब/ध काTय* म: वेिल, आयान, रासौ, आिद 9प* म: 4/थ* का िनमा(ण हआ है। वैिल
सािहय राज+थानी क समृ पर5परा है जो िवषय क `िO से तीन भाग* म: बँटी हई है - 1.
चारणी वेिल सािहय, 2. जैन वेिल सािहय, 3. लौिकक वेिल सािहय। म=यकाल म: नायक-

उतराखड मु त िवविवालय 230


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
नाियकाओ ं को लेकर वैिल, रासौ, वचिनका, !कास, िवलास किवK, छंद इयिद काTय 9प*
क रचना हई। िजनका नामोBलेख पवू ( म: िकया जा चुका है।
(3) छंद अलंकार: राज+थानी सािहय म: दहू * छ/द सवा(िधक ि!य रहा है। नीित,
वीर, शृंगार, !कृ ित वण(न और अ/य अिभTयि_ के वा+ते िडंगल किवय* ने दहू ो छंद का
9िचपवू क ( !योग िकया है। अपmश ं सािहय से लेकर िह/दी सािहय तक यह ि!य छ/द रहा है।
‘दहू ‘ै के स5ब/ध किववर क/हैयालाल सेिठया ने िलखा है -
देस नी म9देस सो, मृगमद िजसौ न गंध।
सरु सत रै भंडार म:, दहू ै िजसौ न छंद।
राज+थानी सािहय म: दोहै छ/द के भी अनेक भेद है िजसम: एक ‘सृ दहू ौ‘ िह/दी के
दोहै छ/द के समान ही है। इस छ/द म: भी िवषय चरण* म: 13-13 मा7ाएँ और सम चरण* म: 11-
11 मा7ाएँ और अंत म: ग9 ु लघु होता है।
उदाहरणाथ( -
इळा ने देणी आपणी, - 13 मा7ाएं
हालHरया हलराय । - 11 मा7ाएं
पूत िसखावै पालणै - 13 मा7ाएं
मरण बड़ाई माये।। - 11 मा7ाएं
उपय(_
ु स0ु दहू ा छनद के उदाहरण म: तुकांत म: गु9लघु (5 - 1) है। इसके अितHर_
बड़ो दहू * (!थम चतथु ( चरण म: 11-11 मा7ाएं तथा ि[तीय-तृतीय चरण म: 13-13 मा7ाएं),
और तुंवेरी दहू ो (बड़ौ दहू * का उलटा 9प) भी दोहा छंद के अ/य भेद होते है।
दोहै के अितHर_, सोरठा (स ु दहू ै का िवपरीत) वेिलय* और नीसाणी नामक
िडंगल गीत छ/द* का भरपरू !योग इस काल क रचनाओ ं म: हआ है।
अलंकार: इस काल म: शZदगत और अथ(गत दोन* !कार के अलंकार* का !योग म:
हआ हf। अनु!ास, यमक, eे ष, उपमा, उ!ेFा, 9पक, अितशयोि_ आिद अलंकार* का !योग
हआ है। 9पक अलंकार का उदाहरण `OTय है।
‘‘घघू र पाखर धमकती, िसंधरु काजळ सार।
िविच7 घड़ा आई वरण, धज लज घघू रा।‘‘
अथा(त घड़ा (सेना) 9पी स/ु दरी, पाखर 9पी घूघरा धमकावती, िसंधरु (हािथय*), 9पी कालळ
सारती और =वजा 9पी लhजा का घघू ट धारण कर वरण के िलए य ु भिू म म: आ गई है। यह
उदाहरण 9पक के साथ-साथ आधुिनक मानवीकरण अलंकार को भी !+ततु करता है।
वैण सगाई (वयण सगाई): यह राज+थान का मौिलक और मह?वपणू ( अलंकार है िजसका !योग
िडंगल काTय म: अिनवाय( 9प से हआ है। नाद सौ/दय( और कण(ि!यता इस अलंकार म: िवमान
होते हf। यह शZदालंकार हf और इसम: पंि_ के !थम शZद का !ार5भ और अंितम शZद का
!ार5भ एक एक ही वण( से होता है जैसे -
कमला-पित तणी कहैवा करती (क वण()

उतराखड मु त िवविवालय 231


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
आदर करे जु आदरी (आ वण()
वयण सगाई शZद ‘वरण सगाई‘ (वणl के स5ब/ध (मेल)) से बना है। छंद के िकसी
चरण* म: पहला और अंितम अFर का मेल िदखता है वहाँ वयण सगाई होता है।
रस: ‘वा यं रसामकं काTयं‘ के अनुसार रस काTय क आमा है। म=यकालीन राज+थानी
सािहय म: वीर, शृगं ार और शातं रस क !चरु ता `OTय है। िजनका उBलेख िविवध उदाहरण*
[ारा पवू ( म: िकया जा चुका है।

13.7 राज थानी सा&हय का आधुनक काल (1850 से


अCयतन)

13.7.1 आधिु नक कालीन परवेश


राज+थानी सािहय का आधिु नक काल 1850 से लेकर अतन माना जाता है। सन् 1857 के
!थम +वतं7ता आ/दोलन से राPQीयता, +वत7ं ता, भावातमक एकता इयािद भावनाओ ं का
hवर फूटा। देश के इितहास ने नई करवट ली। सािहय म: भी बदलाव आया। आधुिनक काल के
इस परू े चरण को दो चरण* - (1) +वतं7ता पवू ( का राज+थानी सािहय तथा (2) +वतं7ता
पVात का राज+थानी सािहय। म: बाँटा गया है। म=यकाल तक राज+थानी सािहय म: य ु , शौय(
िच7ण और भि_ उदगार उस समय मुय +वर थे, पर/तु आधुिनक काल म: पHरि+थितयां बदली
और सािहय आजादी क लड़ाई से जुड गया अं4जे ी सािहय का !भाव भी इस पर पड़ा।
अ4ं ेजो के शासन ने देश को आिथ(क 9प से पंगु बना िदया था। कुटीर उोग ध/धे नO हो गए
िकसान - मजदरू बेकार हो गए थे। राज+थान म: तो सामंतो के अयाचार से जनता अयिधक
दखु ी थी। िबजौिलया ओर बेगंू आ/दोलन से राज+थान भी दख ु ी जनता का अनमु ान लगाया जा
सकता है। लगान व सदू खोरी क !था से शोिषत और शोषक वग( म: गहरी खाई बनती जा रही
थी। इस युग म: ि[वेदी यगु , छायावाद, मा स(वाद, !तीकवाद, राह+यवाद, हालावाद, !योगवाद,
नयी किवता अि+तववाद, मनोिवRान िच/तन, इयािद का असर राज+थानी सािहय पर िदखाई
देता है। राज+थानी काTय और ग क सभी िवधाएं नवीन पHरवेश से !भािवत हई है।
ग-प क नई िवधाऐ ं िवकिसत हई। राज+थानी सािहयकार पर5परागत +वभाव एवं तेवर को
छोडकर य ु िवरोधी बन गए। अणु परमाणु यं7ो से उपजी बेरोजगारी से 7+त जनता से नाता
जोडा, +वत7ं ता के पVात मोहभंग सािहय भी !भािवत हआ। अब धम( और अ=याम क
जगह यगु बोध और सामािजक सरोकार से जड़ु कर राज+थानी सािहय ने नई पहचान बनाई।
13.7.2 आधुिनक कालीन राजथानी का1य
13.7.2.1 वत-]ता से पवू . का1य एवं विृ Rयां
(1) पर7परागत राजथानी का1य - 1850 से 1947 तक के काTय को इस |ेणी म: रखा
जा सकता है। इस संबधं म: सूयम( Bल िम|ण के काTय से आधिु नक राज+थानी किवता का

उतराखड मु त िवविवालय 232


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!ार5भ माना जाता है। ये जनकिव थे और 1857 के +वतं7ता सं4ाम म: राजाओ ं क कायरता
देखकर अय/त दख ु ी हए थे। वीर सतसई िलखकर उ/ह*ने जनता म: राPQीयता ओर देशभि_ के
भाव उप/न िकए थे। वीरसतसई म: वीर सपतू * और वीर माताओ ं का सटीक िच7ण िकया गया
है। उदाहरण -
इळा न देवी आपणी, रण खेतां िभड जाए
पतू िसखावै पालणै, मरण बड़ाई माय।
गोठ गया सेब गेह रा, वणी (दु मन) अचानक आय।
िसंधण जायी िसधं णी, लीधी तेग (तलवार) उठाय।
सयू (मBल िम|ण के अितHर_ अमरदान लालस, महाराजा चतरु िसंह, के सरीिसंह बारहठ,
रामनाथ किवया आिद राPQीय धारा के किव रहै है। दसू री |ेणी के किवय* म: िवजयिसंह पिथक,
मािण यलाल वमा(, जयनारायण Tयास आिद भी शािमल थे। Tयास जी ने िलखा , -
कह दो आ डंके री चोट मारवाड नहM रहसी ठोटं
इसी तरह नाथूदान मिहयाHरया ने वीर सतसई, गांधी शतक चंडी शतक आिद कृ ितय* के मा=यम
से राPQीयता के नए िवचार* को अिभTयि_ दी हf वीर सतसई म: राPQीय का !भावी िच7ण है -
‘‘सतू मHरया िहत देस म:, हरयौ बंधु समाज।
मां नह हरखी जनम ने िजतरी हरखी आज।‘‘
13.7.2.2 वात-kयोRर का1य एवं वृिRयाँ
(1) जागरण का वर: (!गतितशील किवता) !ार5भ म: गाँधीवादी चेतना
िविवध समाज सुधार आ/दोलन, समाजवादी चेतना के फल+व9प जागरण और चेतना परक
काTय िलखा गया। आजादी के पVात किवय* के सामने दोगनु ी चनु ौितयाँ थी। राज तो िमल गया
पर सुराज नहM !ा\ हआ था। आधुिनक काTय पर सा5यवाद और समाजवाद का जबरद+त
!भाव पड़ा हf। इनसे !भािवत किवता म: !गितवादी +वर िवमान रहा। इनम: िकसानो, मजदरू *
और गरीबो क पीड़ा और दख ु को उजागर िकया गया है। रे वतदान चारण नंदभार[ाज, सुमनेश
जोशी, आईदान िसंह भाटी, याम महिष(, च/0!काश देवल और चेतन +वामी आिद !मख ु
!गितशील किव रहै है। रे वत दान चारण ‘माrं या खेत िमळे नM करसा’ क वाणी से िकसान* को
चेताया तो जमना !साद ठाडा ‘जाग-जाग री ब+ती’ किवता के मा=यम से जागरण का +वर भरा।
(2) वीर, भि= और नीित धान का1य: यिप आधिु नक काल क किवता म:
!गितशीलता का +वर गंजु ाHरत हो रहा था तथािप वीर, भि_ और नीित स5बि/धत पर5परागत
काTय रचनाएँ भी िलखी जाती रही है। य*िक वत(मान म: संदभl म: भी इनक महKा है। आज के
यगु म: कौरे उपदेश से काम नहM हो सकता। जहाँ मनPु य को स}ची िशFा िमलती है वहां किवता
!भािवत करती है। रमिणया रा सोरठा (क/हैयालाल सेिठया) म: जीवन क स}चाई इस तरह
Tय_ हई है।
‘‘अि+थर है संसार, गरब न कजै भूल कर
ले hयोसी जण }यार रथी बणकर रमिणया।।‘‘

उतराखड मु त िवविवालय 233


तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(3) कृित का1य:- !कृ ित मानव क िचरसह चाHरणी रही है। !कृ ित अपने कोमल और
कठोर दोन* 9प* से मानव को !भािवत करती रही है। राज+थानी काTय म: !कृ ित का सोवणा
मोवणा िच7ण िमलता है। बादळी के िलए किव चं0ािसंह ने िलखा है -
आस लगायां म9धरा, देख रही िदन रात।
भागी आ तंू बादळी आई 9त बरसात।।
|ी रे वतदान चारण क किवता िबरखा-बMनणी किवता घणी !िस है -
लमू -झमू मदमाती मन िबलमाती सौ बळखाती।
गीत !ीत रा गातीए हसं ती आवै िबरखा बMनणी।।
(4) हाय 1य*ं य धान किवता: आधिु नक राज+थानी किवता म: +वत/7ता पVात क
पHरवित(त राजनीितक, सामािजक पHरवेश के !ित असंतोष को Tयंrय के मा=यम से Tय_ िकया
गया है -
बध बध होगी घेर घमु ेर, छाया फै ली }या9ँ मेर
आई ऊमर के औसाण, द=ू या नीमड़ी
खदु का जोबण संू उणजांग द=ू या नीमड़ी।
गणेशीलाल Tयास उ+ताद क ‘राज बदलrयौ कहानै काई’ और ‘खाय गधेड़ा के सर यारी’
जैसी रचनाएँ Tयंrय के उदाहरण है। सामािजक िवषमताओ ं mOाचार, काला बाजरी, अधं िव<ास
और सामािजक पHरि+थितय* पर Tयंrय िकया गया है।
(5) गीितका1य:- राज+थानी के आधुिनकताल किवता के गीतामक +व9प का अ}छा
िवकास हआ है। गीतकार* ने किवताओ ं को मंचो के मा=यम से देश िवदेश म: पहचं ाया । इन
गीत* म: क/हैयालाल सेिठया का ‘पातल और पीथळु‘ और ‘धरती धोरा री’ रचना अमूBय िनिध
है और आज तक पाठक और |ोताओ ं क जुबान पर है।
अरे घास री रोटी नू, जद बन िबलावड़ा ले भाrयो।
ना/हो सो अमयl चीख पड्य*, राणा रो सोयो दख ु जाrय*।
ह¢ं लड्य* घणो, ह¢ं स‰ो घणो, मेवाडी आण बचावणनै।
पण पाछ नही राखी रण म:, बैरया रो खणू बहावणनै।
जद याद क9ँ, हळदीघाटी नैणा संू रगत उतर आवै।
सख ु दखु रो साथी चेतकडो, सोती सी ह¢कं जगा जावै। (पातल और पीथळ)
इसी तरह मेघराज मक ु ु ल क ‘सैनाणी’ इसी तरह क !िस रचना है। गीतकाTय के दो 9प (1)
भावनापरक िनजीगीत और (2) समाजचेतना परक सां+कृ ितक गीत म: से दसू रा 9प hयादा
!चिलत रहा है। इन गीत* क भाषा, लय, =व/यातमकता, भावामकता और अनभु िू त क
तीyता बेजोड़ है। इन गीतकार* म: सय!काश जोशी, रघनु ाथ िसंह हाडा, शाि/त भार[ाज,
भीमपांिडया !ेम जी !ेम, हरीश भादानी जैसे !िस नाम है। इसी kम म: नवगीतकार* म:,
दगु ा(दान िसंह गोड़, मुकुट गिणराज, आईदान िसंह भाटी, वीरे /0 लखावत, राजे/0 सोलंक आिद
नाम उBलेखनीय है।

उतराखड मु त िवविवालय 234


तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(6) नयी किवता और समकालीन किवता: +वतं7ता के पVात् धीरे -धीरे सािहयकार
नये जीवन दश(न पHरवेश, समाज म: सरोकार* से जडु े। िवRान और तकनीक के !भाव+व9प
उपि+थत पHरवत(न को खल ु ी आँख* से देखा और +वीकार िकया। नयी किवता नए जीवन क
धडकन है। आज क किवता सभी Tयव+थाओ ं से मोहभंग क किवता है। नयी किवता िबखरते
जीवन मBू या सं7ास, अजनबीपन, मानव क घटु न, पीडा, हताशा, अके लापन को Tय_ करती
है। मोहन आलोक, याम महिष(, नंदभार[ाज गणपित च/0 भडारी, डॉ. शि_दान किवया,
सांवर दइया, डॉ. अज(नु देव चारण मालचंद ितवाड़ी, अि5बका देव आिद क गणना नऐ किवय*
म: क जाती है। इसके अितHर_ क/हैयालाल सेिठया क ‘लीलटासं ‘ नारायण िसहं भाटी
‘िमनख रो समझावणौ दौरा है, भगवतीलाल Tयास ‘सबदराग‘, हरीश भादाणी ‘बाथां म: भगू ोल‘
याम महिष( ‘अड़वौ‘, अज(नु देव चारण ‘Hरंधरोही‘ आईदान भाटी ‘हसतोड़ा होठा रो साच‘,
न/दभार[ाज ‘अधार पंख‘, ‘बोल डूंगरी ढब ढबूक‘, अतल ु कनक ‘आवां बातां करा‘ मीठे श िन
मlही आपै रे आळै दौळै आिद नई किवता के !िस किव और उनक रचनाएँ है िज/होने
आधुिनक राज+थानी काTय धारा को समृ िकया है।
(7) आधुिनक राजथान का1य क भाषा शैली - राज+थानी काTय का शZद भडार
अय/त समृ है। आधिु नक राज+थानी काTय क भाषा म: अपने Fे7 के अनसु ार मारवाड़ी,
मेवाड़ी, ढूढाडी, हाडौती बोली के 9प देखने को िमलते है। राज+थानी भाषा का शZद भडार
अय/त समृ है। राज+थानी भाषा म: िविवध बोिलय* के अनसु ार शZद* का चयन हआ है।
भाषा सरस सरल व !वाहमयी है। सं+कृ त, अरबी, फारसी, अ4ं ेजी जैसी भाषाओ ं म: शZद भी
राज+थानी काTय म: आये है। आधिु नक राज+थानी भाषा काTयशाS के बंधनो से दरू है। भाषा म:
िब5बामकता व !तीकामकता िवमान है। किवता के साथ गीत और गजल* म: भाषा क
!वा=यमता, सरसता आधिु नक और =यनयातमकता िवमान है राज+थानी भाषा नए भाव बोध
को !भावी 9प से Tय_ करने म: सFम है।
13.7.3 गK क िविवध िवधाएँ: परचय
(1) उप-यास: कथा सािहय म: ग लेखन का सबसे बड़ा +व9प उप/यास है। िजस !कार
प म: महाकाTय का +थान है उसी !कार ग म: उप/यास का है राज+थानी उप/यास* म:
राज+थान क सं+कृ ित, समसामियक पHरवेश व मBू य* का वण(न िमलता है। साथ ही
आंचािलकता के मा=यम से माटी क गंध का मनोहारी िच7ण है। उप/यास लेखन म: सव(!थम
नाम आता है |ीलाल नथमल जोशी। 1956 म: !कािशत इसका उप/यास ‘आभैपटक‘ ने नए
यगु क शु9आत क। इसके पVात 1966 ई. !कािशत अ/नाराम सदु ामा कृ त ‘मैकती काया
मळु कती धरती‘, ‘अचक ू इलाज‘ ‘मैवे रा 9ख‘ यादवे/0 शमा( च/0 कृ त ह¢ं गौरी िकण पीव क‘,
िवजयदान देथा कृ त ‘आठा राजकंु वर‘ ‘मा रौ बदळौ‘, ‘तीडौराव‘, करणीदान बारहठ ‘म7ं ी क
बेटी‘ बडी बहनजी आिद उBलेखनीय कृ ितयाँ है। राज+थानी उप/यास* म: िवषय-व+तु क
िविवधता रही है। ऐितहािसक मनौवैRािन आंचिलक, आदश(वादी यथाथ(वादी, सामािजक सभी

उतराखड मु त िवविवालय 235


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!कार के उप/यास* का सृजन हआ है। ‘मैकती काया मल ु कती धरती‘ उप/यास आमकथामक
शैली म:, तो तीडौराव म: !तीक शैली है।
(2) कहानी:- राज+थान के जनजीवन म: !कृ ित नए भावबोध के अनसु ार नई कहािनयाँ नए
िशBप म: िलखी गई है। राज+थानी कहानीकार* म: मिणकधुकर (पगफे रो), चेतन +वामी (धांय,
गगंू ली, पु याई और पान लागrयो), डॉ. प9 ु षोKम छागं ाणी (िबचालै कहानी सं4ह), मीठे स
िनरमोही (बानगी), भरल ओला (जीवन री जात कहानी सं4ह), मिहला कथाकार डॉ. जबा
रसीद (नांव िवह¢णा िकसता, कहानी सं4ह), डॉ. चांद कौर जोशी (सांचो सपु नौ), पPु पलता
कयप (मैला हाथ-उजला हाथ) आिद कहानीकार अपनीकृ ितय* म: आधिु नक काल क संवेदना
और िशBप को बखबू ी Tय_ िकया है।
(3) िनब-ध: आधुिनककाल म: िनब/धकार* ने समसामियकता को =यान म: रखते हए रचना
क। िविवध भाव, िवचार, Tयंrय, िवनोद से जुड़े भाव आिद लेखन म: आधार रहै है। रानी
लIमीकुमारी चूडावत, डॉ. मनोहर शमा(, रावत सार+वत, समु ेरिसंह शेखावत, डॉ. िकरण
नाहटा, अमोलकचंद जांिगड, डॉ. कBपना िसंह शेखावत आिद उBलेखनीय है। आधुिनक काल
म: !मख ु िनब/ध सं4ह है रोिहडै रा फूल (डॉ. मनोहर शमा(), ससु र तो कथता भला (सयू (शंकर
पारीक), राज+थानी सं+कृ ित रा िचतराम (जह¢र खां मेहर), भळ लवू ां बाजो कती (डॉ. िकरण
नाहटा), माटी संू मजाक (बी.एल. माली अशांत) मिणमाला (डॉ. कBयाणिसंह शेखावत) आिद।
(4) नाटक - एकांक: आधिु नक ग िवधाओ ं क तरह नाटक और एकांक (सेकाक) के
Fे7 म: कई कृ ितयां सामने आई। आधिु नक यग म: िसनेमा के !चार-!सार के कारण नाटक लेखन
क ओर 9झान कम होने लगा था। सािहियक नाटक* म: डॉ. आRाच/द भडारी कृ त पं/नाधाय
गोवि/दलाल माथुर कृ त ‘दहैज‘, यादवे/0 शमा( कृ त ‘तास रौ घर‘ िनमlही Tयास कृ त ‘ओळम*‘
भीखो ढोली ‘सांवतो‘ आिद। इस काल म: गीत नाट्य भी !चिलत रहा।
इस काल म: नाटको क अपेFा एकांक िवधा का िव+तार हआ। 1966 म: राज+थान
सािहय अकादमी [ारा स5पािदत एकांिकय* के संकलन म: इन लेखको के एकांक िलए गए थे।
पारीक जी का ‘बौळापण‘ लIमीकुमार चूडावत का ‘सामधरमीमाजी‘, डॉ शि_दान किवयो
का वीरमती डॉ आRाच/द भडारी का देस भगत भामासा, दामोदर !साद जी का ‘कामरान क
आंखड़Bया‘ बेजनाथ पॅवार का ‘आपणो खास आदमी‘, अ5बालाल जोशी का िमनखपणौ और
यादवे/0 च/द जी का ‘देवता‘ इयािद का सि5मिलत है। |ी गणपित लाल डांगी और |ीमतं
Tयास भी अ}छे एकांककार रहै है।
(5) रेखािच]: िकसी मनPु य, व+त,ु घटना या भावना का कम से कम शZद* म: जीव/त िच7
अक ं न करना रे खािच7 कहलाता है। राज+थानी सािहय म: यह ग िवधा िह/दी सािहय से आई
है। मरु लीधर Tयास ओर मोहन लाल परु ोिहत ने ‘जनू ां जीवता िचतराम‘ शीष(क से रे खािच7
िलखा। इसके अितHर_ |ी नथमल जोशी कृ त ‘सबड़का‘, भंवर लाल नाहटा कृ त बानगी,
िशवराज छंगाणी कृ त ‘उिणयारा‘ qजनारायण पुरोिहत कृ त अटाखां और !ो. नेमनारायण जोशी
कृ त कूदण बाबो आिद रे खािच7 िवधा से स5बि/धत रचनाऐ ं है।

उतराखड मु त िवविवालय 236


तल
ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
(6) जीवनी: राज+थानी म: जीवनी सािहय आजादी के बाद िलखा गया और तकालीन
प7-पि7काओ ं जैसे ‘मसवाणी‘ ‘आळमो‘ और ‘हरावल‘ आिद म: !कािशत भी हआ। |ी लाल
नथमल जोशी क गाँधी जी क जीवनी आपणा बापू जी डॉ. िकरण नाहटा क ‘िशवच/द
भरितया‘ दीनदयाल ओझा क ‘देस रा गौरव‘ भारत रा िनमा(ता आिद उBलेखनीय रचनाएं है।
इसके अितHर_ इस काल म: स+ं मरण, या7ा सािहय और Hरपोता(ज इयािद अ/य ग
िवधाओ ं का भी िवकिसत 9प देखने को िमलता है।

13.8 सारांश:
!+ततु इकाई म: राज+थानी सािहय के इितहास के िविवध काल* और !येक काल क
पृ{भिू म सािहियक !वृिKयाँ, रचनाकार* ओर रचनाओ ं क जानकारी आपने !ापत क है।
शौरसेनी अपmंश के नागर (गुज(र) 9प से राज+थानी भाषा का िवकास हआ। भारतीय संिवधान
म: उBलेिखत भाषाओ ं म: राज+थानी भी सव(!मख ु भाषा है जो मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढाणी,
हाडौती, मेवाती, मालवी बागड़ी आिद !मख ु बोिलय* के साथ परू े !देश (राज+थान) म: बोली
और िलखी जाती है। इन !मुख बोिलय* म: राज+थानी सािहय का सृजन हआ है। िडंगल और
िपगं ल राज+थान क एक िवशेष काTय शैली है। िजसका 9प आिदकाल और म=यकाल म: वीर,
भि_ और शृंगार !धान काTय* म: िमलता है। राज+थान के आिदकाल व म=यकाल म: िडंगल
बोलचाल क राज+थानी से अलग एक सािहियक भाषा थी। राज+थानी सािहय का
आिदकाल जैनकिवय* से श9 ु होकर लोकजीवन से जुडकर चारण किवय* के हाथ* म: सजधज
कर आगे बढ़ा ओर म=यकाल म: और पिु Pपत पBलिवत हआ। 15 वM सदी से 19 वM सदी का
राज+थानी सािहय का म=यकाल िवषय व+तु ओर िशBप (काTय-कला) दोन* `िO से
उपलिZधपणू ( रहा है। िkसन-9कमणी री वैली, राम रासौ, हाला झाला री कुडिलयां, मीरां के
पद, रािजया रा दहू ा दाद-ू वाणी (अनमैवाणी ओर काया वेिल) जैसी रचनाओ ं से इस काल का
सािहय पHरपणू ( है। काTय भाषा काTय 9प* (रास, रासौ, वेिल, वचिनका, िवलाज, यात) और
छंद अलंकार* (वयण सगाइ इयािद) लFण 4/थ* क `िO से सवlकृ O रचनाओ ं का सृजन
िकया गया। राज+थानी सािहय के आधुिनक काल (1850 से अतन) म: राज+थानी ग और
गय क िविवध िवधाओ ं के Fे7 म: देशकाल व पHरि+थितय* के अनसु ार उKरोKर िवकास व
पHरवत(न देखने को िमलता है। इस काल को +वत/7ता पवू ( और +वतं7ता पVात दो काल* म:
िवभािजत िकया है। क@य और िशBप दोन* `िO से इस काल म: पर5परागत और आधुिनक
भावबोध का िनवा(ह िकया गया है। जहाँ पर5परागत वीर, भि_ ओर नीित !धान काTय है, तो
!गितशील +वर नई किवता, समकालीनता, हा+य Tयंrय गीत-गजल आिद िविवध +वर
आधुिनक किवता म: `Pय है। राज+थानी सािहय का आधिु नक काल ग और प दोन* 9प*
क िविवध िवधाओ ं म: जीवन के सभी पF* और समसामियक समाज के सरोकार* के साथ
आगे बढ़ रहा है।

उतराखड मु त िवविवालय 237


तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204

13.9 संदभ थ सच


ू ी
1. !ो. (डॉ.) कBयाण िसंह शेखावत: राज+थानी भाषा, सािहय और सं+कृ ित, राज+थानी
4/थागार, जोधपरु , 1989
2. बी.एल. माली ‘अशांत‘: राज+थानी सािहय का इितहास रचना !काशन, जयपरु
2004
3. डॉ. िकरण नहटा: आधिु नक राज+थानी सािहय: !ेरणा Sोत और !वृिKयाँ, िच/मय
!काशन, बीकानेर।
4. डॉ. मोतीलाल मेनाHरया: राज+थानी भाषा और सािहय।
5. डॉ. हीरालाल माहै<री: राज+थानी भाषा और सािहय, जयपरु ।
6. डॉ. शि_दान किवया: िडंगल के ऐितहािसक !बंध काTय, राज+थानी 4/थागार,
जोधपरु सन् 2007
7. डॉ. जगमोहन िसंह पHरहार: राज+थानी भाषा सािहय का आलोचनामक इितहास,
जोधपरु सन् 1987।
8. माधवदास दधवािड़या: राम रासौ, सािहय अकादमी, नई िदBली 2005।
9. नरोKमदास +वामी: िkसन-9कमणी री वेली, राज+थानी 4/थागार, जोधपरु सं. 2009।
10. !ो. कBयाण िसंह शेखावत: राज+थानी भाषा और सािहय, ि7वेणी !काशन, जयपरु ।
11. !ो. सोहनदान चारण: ईसरदास 4/थावली, सािहय अकादमी, जयपरु ।

13.10 नबधामक न


1. राज+थानी सािहय के इितहास पर एक लेख िलिखए।
2. राज+थानी सािहयेितहास का कालिवभाजन किजए तथा आिदकालीन राज+थानी
सािहियक पHरवेश पर !काश डािलए।
िटZपणी िलिखए -
(1) आधुिनक राज+थानी ग म: उप/यास लेखन
(2) आधिु नक राज+थानी किवता म: !गितशीलता
(3) माधवदास दधवािड़या
(4) +वात/‘योKर राज+थानी काTय

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