Professional Documents
Culture Documents
उराखड मु िविवालय
मानिवक िवाशाखा
तुलनामक एवं भारतीय सािहय
उराखंड मु िविवालय,हानी
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL-204
िवशेष सिमित
ो0 एच0पी0 शु ला ो0 स यकाम
िनदेशक, मानिवक िवाशाखा, िहदी िवभाग
उराखड म ु िव िवालय, इ"न,ू नई िद%ली
ह%&ानी, नैनीताल
ो.आर.सी.शमा'
िहदी िवभाग
अलीगढ़ िव िवालय,अलीगढ़
डा0 शशांक शु ला डा0 राजे+ कै ड़ा
अिस/ट1ट ोफे सर, िहदी िवभाग एके डेिमक एसोिसएट
उराखड म ु िव िवालय, िहदी िवभाग,
ह%&ानी, नैनीताल उराखड म ु िव िवालय,
ह%&ानी, नैनीताल
पाठ्यम समवयक, सयं ोजन एवं संपादन
डा0 शशांक शु ला डा0 राजे+ कै ड़ा
अिस/ट1ट ोफे सर, िहदी िवभाग, एके डेिमक एसोिसएट
उराखड म ु िव िवालय, िहदी िवभाग,
ह%&ानी, नैनीताल उराखड म ु िव िवालय,
ह%&ानी, नैनीताल
उराखंड मु िविवालय,हानी
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL-204
इकाई लेखक इकाई संया
डा0 शशांक शु ला 1,2,3,4,5
अिस/ट1ट ोफे सर, िहदी िवभाग,
उराखड मु िव िवालय, ह%&ानी, नैनीताल
डा. सषु मा देवी 6,7
िहदी िवभाग, िववेकविध'नी महािवालय
जामबाग हैदराबाद
डा0 हेमच+ दबु े 8,9
िहदं ी िवभाग,रा./ना.महािवालय ग6ड़
बागे र, उराखडं
डा0 नागे+ साद 7यानी 10,11
उप-िनदेशक, उराखडं भाषा स/ं थान
देहरादनू
डा0 राजे+ िसहं टोक 12
अ7य: िहदी िवभाग
ए.एस.कॉलेज खना, पंजाब
डा.मीता शमा' 13
अ7य:,िहदी िवभाग
वध'मान महावीर खल ु ा िव िवालय, कोटा ,राज/थान
कापीराइट@उराख ड मु" िव#िव$ालय
सं/करण: 2014
सीिमत िवतरण हेतु पवू ' काशन ित
काशकः उराखड म ु िव िवालय, ह%&ानी ,नैनीताल -263139
म+ु क : ीिमयर िंिटंग ेस, जयपरु
उराखड म ु िव िवालय, ह%&ानी ,नैनीताल -263139
ISBN - 978-93-84632-74-8
उराखंड मु िविवालय,हानी
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL-204
ख ड 1 – तुलनामक सािहय पृठ संया
इकाई 1 तुलनामक सािहय क अवधारणा 1-9
इकाई 2 तुलनामक अययन पितयाँ 10-18
ख ड 2 – भारतीय सािहय क अवधारणा पृ ठ स
ं या
इकाई 3 भारतीय सािहय क अवधारणा 19-26
इकाई 4 भारतीय सािहय क यापकता 27-38
इकाई 5 भारतीय सािहय का इितहास 39-52
ख ड 3 – भारतीय सािहय : !ायोिगक उप%म पृ& सं या
इकाई 6 तेलगु ु सािहय का इितहास एवं प रचय (1) 53-88
इकाई 7 तेलगु ु सािहय का इितहास एवं प रचय (2) 89-115
इकाई 8 कुमाऊँ नी लोक सािहय का इितहास एवं $व%प 116-133
इकाई 9 कुमाऊँ नी लोकगीत: इितहास, $व%प एवं सािहय 134-151
इकाई 10 गढ़वाली लोक सािहय का इितहास एवं $व%प 152-166
इकाई 11 गढ़वाली लोक सािहय का वत'मान $व%प एवं सम$याएँ 167-181
इकाई 12 पजं ाबी सािहय का इितहास एवं प रचय 182-208
इकाई 13 राज$थानी सािहय का इितहास एवं प रचय 209-238
उराखंड मु िविवालय,हानी
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई 1 तुलनामक सािहय क अवधारणा
इकाई क परे खा
1.1 तावना
1.2 पाठ का उेय
1.3 तल ु नामक सािहय क अवधारणा
1.3.1 तल ु नामक सािहय: प रभाषा
1.3.2 तल ु नामक सािहय: वप
1.4 तल ु नामक सािहय का इितहास
1.5 तल ु नामक सािहय क िवशेषता / मह#व
1.6 तल ु नामक सािहय: सां कृ ितक काय&
1.7 सारांश
1.8 श(दावली
1.9 अ+यास ,- के उ.र
1.10 संदभ& /0थ सचू ी
1.11 सहायक/उपयोगी पाठ्य साम/ी
1.12 िनबंधामक ,
उतराखड मु त िवविवालय 1
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1.1 तावना
तल
ु नामक पित सािहय और अकादिमक जगत क बह!चिलत पित है।
तलु नामक पित के कारण सािहय के अतं ज(गत और सािहय जगत दोन* का िव+तार होता है।
तल ु नामक सािहय क अवधारणा पर िलखते हए डॉ. इ/0नाथ चौधरु ी ने िलखा है, तल ु नामक
सािहय अं4ेजी के ‘क5पैरेिटव िलटरे चर’ का िह/दी अनवु ाद है । एक +वत7ं िवाशाखा के 9प
म: िवेदेश के िविभ/न िव<िवालय* म: इसे अ=ययन- अ=यापन के काय( को आजकल िवशेष
मह?व िदया जा रहा है। तल ु नामक सािहय का सव(!थम !योग मै@यम ऑन(Bड ने सन् 1848
म: अपने एक प7 म: सबसे पहले िकया था। व+ततु ः तल ु नामक सािहय म: दो देश, दो भाषा या
दो रचनाकार* क कृ ितय* को एक दसू रे के सापेF रखकर देखाजाता है। तल ु नामक पित का
मल ू उGेय सां+कृ ितक पHर!ेIय म: एक दसू रे को रखकर नई अथ(वKा क तलाश करना होता है।
इस ढंग से तल ु नामक पित साधन है, सा=य नहM। हैनरी एच.एच. रे माक( ने भी तुलनामक
सािहय क िवशेष ताओ ं के +पO िकया है। उनके अनसु ार सािहय क िवशेष त?व* को +पO
िकया है। उनके अनसु ार एकक राPQ* क पHरिध से परे दसू रे राPQ* के सािहय के साथ
तल ु नामक अ=ययन है तथा यह अ=ययन कला, इितहास, समाज िवRान, धम(शाS आिद Rान
के िविभ/न Fे7* के आपसी सबं धं * का Rान है । रे माक( ने दो राPQ के सदं भ( म: तल ु नामक
सािहय क उपयोिगता िनधा(Hरत क है। िक/तु यह एक राPQ, दो भाषा या एक ही भाषा के दो
किवय*/लेखक* पर भी लागू हो सकती है। Tयापक 9प से दो िवधाओ ं क कृ ितय* के वगUकरण
को भी इसम: समेट िलया जाता है।
तल ु नामक सािहय के इितहास के संदभ( म: यिद हम बात कर: तो एक अनुशासन के 9प म:
इसका िवकास पिVम म:, आधिु नक काल म: हआ। हाँलािक यह सािहियक !वृिK !ाचीन काल
से ही िमलनी शु9 हो जाती है।
1.2 पाठ का उेय
‘तल
ु नामक एवं भारतीय सािहय’ संबंधी पाठ्य प+ु तक क यह !थम इकाई है। इस इकाई के
अ=ययन से आप जान:गे िक-
• तलु नामक शZद के मल ू अथ( से पHरिचत हो सक: गे।
• तल ु नामक सािहय क अवधारणा से पHरिचत हो सक: गे।
• तल ु नामक सािहय पर िविभ/न िव[ान* के मत* को जान सक: गे।
• तल ु नामक सािहय के इितहास का पHरचय !ा\ कर सक: गे।
• तल ु नामक सािहय क िवशेष ता से पHरिचत हो सक: गे।
• तल ु नामक सािहय और सं+कृ ित के अतं स(5ब/ध को समझ सक: गे।
उतराखड मु त िवविवालय 2
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1.3 तुलनामक सािहय क अवधारणा
1.3.1 तल ु नामक सािहयः परभाषा
Rान के अ/य अनश ु ासन* के समान तल ु नामक सािहय क भी या कोई मक ु 5मल
पHरभाषा दी जा सकती है? हर Tयि_, अ=येता अपनी `िO को पHरभाषा म: जोड़ देता है, इसिलए
हर पHरभाषाएँ िभ/न-िभ/न +व9प को !ा\ हो जाती है। यहाँ हम भारतीय और पाVाय कुछ
!मख ु िव[ान* क पHरभाषाओ ं के सदं भ( म: तल ु नामक सािहय को समझने का !यास कर: ग:।
लाइव +कॉट के अनसु ार- ‘‘ तल ु नामक सािहय म: िविभ/न भाषाओ ं म: िलिखत सािहय*
अथवा उनके संिF\ घटक* क सािहियक तल ु ना होती है और यही उसक आधार तव है। इस
पHरभाषा के अनसु ार सािहियक !ितमान* के आधार पर सािहय क तल ु ना क जाती है। रे माक
ने तल ु नामकता को वह सांeेिषक `िO बताया है िजसके [ारा भौगोिलक एवं जातीय +तर पर
सािहय का अनसु ंधानामक िवeे षण संभव हो पाता है। इस पHरभाषा म: दो िविभ/न सं+कृ ितय*
के +तर पर एक स+ं कृ ित दसू रे से िकस !कार िभ/न है और उसके कारण या हf। इसी !कार एक
पHरभाषा !ो. लेन कपरू क है। उनके अनसु ार तल ु नामक सािहय, सािहय के तुलनामक
अ=ययन क पंि_ अिभTयि_ है। यह पHरभाषा भी अपया(\ व अधूरी है, य*िक इससे यह +पO
नहM होता िक तल ु ना िकस 9प म: और िकनके बीच ? सािहय क तल ु ना के मापदड या
ह*गे? यह भी +पO नहM है। हाँलािक एक पHरभाषा म: यह संभव भी नहM है। सैाि/तक 9प से
तल ु नामक सािहय के कुछ मापदड है। जैसे एक ही भाषा म: िलिखत दो किवय*/लेखक* क
तलु ना , एक ही सं+कृ ित क दो भाषाओ ं के सािहय क तल ु ना या दो स+ं कृ ितय* क दो
भाषाओ ं या सािहय क तुलना ..... इसम: दसू री व तीसरी ि+थित ही तल ु नामक सािहय के
िलए उपयोगी है। डॉ. इ/0नाथ चौधरु ी ने अपनी पु+तक ‘तल ु नामक सािहय’ भारतीय पHर!ेF’
म: उलHरच वाइन+टाइन क प+ु तक का संदभ( िकया है, िजसम: तल ु नामक सािहय क
पHरभाषाओ ं को दो वगg म: बाँटा गया है। (क) वग( म: पॉल वा िटगहैम, hयाँ-माHर कारे तथा
माHरओस iां+वास गईु याद( जैसे िव[ान हf। इस वग( क पHरभाषाओ ं के अनसु ार तल ु नामक
सािहय को सौ/दय(मूलक !ितमान* के आधार पर नहM बिBक ऐितहािसक अनश ु ासन के 9प म:
देखने का !यास िकया गया है। (ख) वग( म: रे ने वेलेक, रे माक, ऑि+टन वारे न तथा !ावर जैसे
िव[ान हf । िज/ह*ने तल ु नामक सािहय के अ=ययन को ऐितहािसक अनुशासन* से इतर
काTयशाSीय या सौ/दय(शाSीय !ितमान* के आधार पर देखने क पहल क है।
1.3.2 तुलनामक सािहय: वप
तलु नामक सािहय से संबिं ध पHरभाषाओ ं का आपे अ=ययन िकया। पHरभाषाओ ं क
पर5परा के kम म: आपने देखा िक तुलनामक सािहय म: िविभ/न भाषा एंव सं+कृ ित को
ऐितहािसक एवं सािहियक !ितमान* के आधार पर जाँचा जाता है और उस बहाने दो भाषा -
स+ं कृ ित का अ=ययन िकया जाता है। इस !कार हम देखते हf िक तल ु नामक सािहय क िन5न
ि+थितयाँ !कट होती है।-
उतराखड मु त िवविवालय 3
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
तल
ु नामक सािहय
1. एक ही भाषा के अतं ग(त तल ु नामक अ=ययन
2. दो भाषा के अतं ग(त तल
ु नामक अ=ययन(एक सं+कृ ित)
3. दो भाषा के अतं ग(त तलु नामक अ=ययन (दो सं+कृ ित एक भाषा पHरवार)
4. दो भाषा के अतं ग(त तल ु नामक अ=ययन (दो स+ं कृ ित दो भाषा पHरवार)
इसी !कार तुलनामक सािहय क पHरभाषाओ ं को दो वगl म: Hर_ िवभ_ िकया गया है-
तल
ु नामक सािहय
(क) (ख)
ऐितहािसक अनुशासन सौ/दय(शाSीय अनुशासन
(पॉल वां िटगहैम, hयाँ-माHर कारे , (रे ने वेलेक, रे माक,
माHरओस iां+वास गइु याद() ऑि+टन वारे न, !ावर)
तल ु नामक सािहय क अवधारणा और +व9प पर mम इस कारण भी है य*िक एक
अनश ु ासन के 9प म: यह अपेFाकृ त नया है, और +पO 9प से इस पर कोई +पO राय नहM बन
पाई है। मोटे 9प म: सािहियक िब/द,ु सम+या को वैRािनक और िवeेषणमक ढंग से िवeेिषत
िकया जाता है। रे िवनाख ने तल ु नामक सािहय पर िटnपणी करते हए िलखा है- िविभ/न
सािहय* के अ/या/य !भाव से य_ ु शोध ही तल
ु नामक सािहय है। यह Fे7ीय भाषाओ ं से
लेकर अ/तरा(PQीय भाषा तक अपना +व9प 4हण कर चुका है। डॉ. इ/0नाथ चौथुरी ने
तल
ु नामक सािहय के +व9प पर िवचार करते हए इसके !मुख Fे7 िनधा(Hरत िकए हf-
1. काTयशाS या सािहय म: काTयशाSीय सौ/दय(मल ू क मूBय* का !योग और उनका
कलापरक िवeे षण ।
2. इसम: सािहियक आ/दोलन* का अ=ययचन एवं उनक मनोवैRािनक, बौिक एवं
शैली-वैRािनक !वृिK य* का अ=ययन .....।
3. सािहय म: अिभTय_ Tयि_व या अम(तू िवचारो के िविभ/न 9पा/तर* क िविभ/न
`िOय* से !योग एवं िवeेषण.....।
4. काTय 9प* का अ=ययन
5. सािहियक स5ब/ध* का अ=ययन।
अयास 1
क- सही / गलत म: उKर दीिजए।
1. तल
ु नामक सािहय अं4ेजी के ‘क5पैरिटव िलटरे चर’ का िह/दी अनवु ाद है।
2. तलु नामक सािहय का सव(!थम !योग मै@यू ऑन(Bड ने िकया।
3. तल ु नामक सािहय का मूल उGेय दो रचनाकार* क तल ु ना करना है।
4. लाइव +कॉट के अनसु ार तल ु नामक सािहय म: िविभ/न भाषाओ ं म: िलिखत
सािहय* अथवा उनके संिF\ घटक* क तल ु ना होती है।
उतराखड मु त िवविवालय 4
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5. तल ु नामक सािहय भारतीय पHर!ेIय’ प+ु तक के लेखक इ/0नाथ चौधुरी है।
ख - िटnपणी िलिखए।
1. तलु नामक सािहय क पHरभाषा
2. तल
ु नामक सािहय के Fे7।
उतराखड मु त िवविवालय 5
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
शे सिपयर व कािलदास क तुलना क वहM दसू री ओर वायरन, शैली क किवताओ ं क तुलना
वैिदक गीत* से.....। बिं कमच/0 चटजU ने इसी kम म: भवभिू त और शे सिपयर क तथा
कुमारसंभव तथा पैराडाइज लॉ+ट क तल ु ना क। इसी kम म: आगे चलकर वारे न हैि+टंrस ने
गीता व ईसाई मुि_ भावना क तल ु ना क। उसने गीता व इिलयड , ओडेसी तथा पैराडाइज
लॉ+ट क भी तल ु ना क..... इसी सदं भ( म: राबट( काBडवेल तथा जे.बी5स ने प+ु तक िलखकर
इस संदभ( को Tयवि+थत करने का काय( िकया। 19वM शताZदी के !मख ु कायg को हम इस
!कार देख सकते हf-
• चाBस( ई. 4ोवर - ‘द फोक सsrस ऑफ सदन( इिं डया (1871) तिमल सािहय के साथ
क/नड़, तेलग,ु मलयालम तथा कूग( भाषाओ ं के गीत* का
तल
ु नामक अ=ययन।
• जी0 यू0 पोप कुरल के अनवु ाद - तिमल किवता व यनू ानी किवता का अंतर
• ि!यरंजन सेन - ‘इ/tलएू ंस आफ वे+टन( िलटरे चर इन द डेवलपम:ट ऑफ ब:गाली
नॉवेल (1932)
• आलqेस बेवर - ‘द िह+Qी ऑफ इिं डयन िलटरे चर (1852) - सं+कृ त नाटक /यनू ानी
नाटक क तल ु ना
• मै समूलर - ‘ए िह+Qी ऑफ ए/श:ट सं+कृ त िलटरे चर’ (1859) - सं+कृ त/यनु ानी
सािहय का तल ु नामक अ=ययन
• आलबट( +वाइट्सर - ‘इिं डयन थॉट एडं इट्स डेवलपम:ट’- भारतीय आय(/ईरानी-
यरू ोपीय सं+कृ ित का तल
ु नामक अ=ययन
• ए0बी.कथ -‘द सं+कृ त uामा’ (1924) - कािलदास व सं+कृ त नाटकार* क तुलना
यरू ोपीय नाटक एवं नाटककार* से
1.5 तुलनामक सािहय क िवशेषता/महव
तल
ु नामक सािहय के मह?व को आधिु नक युग म: सभी देश* म: +वीकार कर िलया
गया है। य*िक तल ु नामक सािहय आधिु नक सvयता का !मख ु िवमश( बन गया है।
तलु नामक सािहय या तल ु नामक पित आज क एक !मख ु सािहियक ‘पित है, िजसके
मा=यम से दो भाषा- सं+कृ ित क अतं ित(िहत िवशेषाताओ ं को एक-दसू रे क सापेFता म: रखकर
िवeेिषत िकया जाता है। इस !कार इस पित के मा=यम से सािहियक कृ ितय* को परखने के
स7ू तलाशे जाते हf। तलु नामक सािहय क िवशेषाता से पवू ( हम: यह समझना भी आवयक है
िक तुलनामक सािहय के लेखक के िलए अिनवाय( धम( या है? आजकल Tयावसायीकरण के
दबाब म: !ायः लेखक तुलनामक आलोचना म: !वृK हो जाते हf......इस !कार से यह
तल
ु नामक सािहय क गभं ीरता को देखते हए बहत हBका !यास ही का जा सकता है। तल ु ना
उतराखड मु त िवविवालय 6
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
करने के िलए लेखक को के वल दो भाषा ही आनी अिनवाय( नहM है, वरन् उन भाषाओ ं के
Tयाकरण, अथ( सं+कार व उस Fे7 क सं+कृ ित को जानना भी आवयक है ।
तलु नामक सािहय का मह?व िदन-!ितिदन बढ़ता जा रहा है। राजनीितक िव+तार के
िलये अनवु ाद काय( को छोड़ िदया जाये तो भी तनु ामक सािहय का मह?व कई `िOय* से
मह?व पणू ( है। तल
ु नामक सािहय का सवा(िधक मह?वपणू ( काय(, सािहय के िव+तार क `िO से
है। एक सािहय एक िवशेष !कार क ऊजा( व लोकरंग से िनिम(त होता है। दसू रे देश के सािहय
का पHरवेश उस पर िवचारामक एवं संवेदनागत !भाव डालता है...... इस ढंग से तल ु नामक
सािहय का !ाथिमक काय( सािहियक िव+तार का पHरवेश िनिम(त करना है। तल ु नामक
सािहय के मा=यम से सािहियक !ितमान* के िव+तार को गित िमलती है। आज हम यूनानी
सािहय व अर+तु के नाट्य िववेचन के बाद नाटक क िवशेषताओ ं के नये !ितमान आ चुके हf।
सािहय का एक मह?व पूण( काय( चँिू क स5यता का !सार करना है, तो तल ु नामक सािहय
उसम: हमारी सहायता करता है। सvयता िव+तार के बाद तल ु नामक सािहय का सवा(िधक
महपणू ( काय( सां+कृ ितक िव+तार करना है। दो भाषा, दो पHरवेश, दो !कार का सािहय अपने
सं+कृ ित म: वैिव=य िलये हए होते हf, अतः दोन* को उनक सापेFता म: 4हण कर एक दसू रे को
समझने क `िO का िव+तार िकया जाता है।
1.6 तुलनामक काय : सांकृितक कम
तल
ु नामक सािहय के मह?व व लोकि!यता का सवा(िधक मह?व पणू ( कारण मनPु य
के सा+ं कृ ितक िव+तार क आकाF ं ा है। िदन-!ितिदन हमारा भौितक िव+तार होता जा रहा है.....
मनPु य -मनPु य के िनकट आता जा रहा है.... लेिकन kमश: सां+कृ ितक अवमBू यन का !o भी
तीy होता जा रहा है। सvयता के !सार ने सां+कृ ितक संकट को नये िसरे से खडा कर िदया है,
फलतः सां+कृ ितक समृि व िव+तार के िलए सां+कृ ितक कम( के 9प म: तल ु नामक सािहय क
महKा िदन-!ितिदन बढ़ती जा रही है।
अvयास !o 2
Hर_ +थान क पिू त( किजए।
1. तलु नामक व िव<सािहय म: .........ने भेद िकया है। (रे माक/गेटे/मै समलू र)
2. रवी/0नाथ टैगौर ने ..............ई. म: िव< सािहय शZद का !योग िकया।
(1910/1907/1905)।
3. ‘ऑ फोड( ले चस( ऑफ पोयQी‘ लेखक .............हf। (राबट( लाउथ/गेटे मैFमूलर)
4. भारतीय सािहय म: सव(!थम ............ ने तलनु ामक सािहय से संबंिधत
(बंिकमच/0/रवी/0नाथ/ !ेमच/द)।
5. ‘द फोक सsrस ऑफ सदन( ईिडया’ के लेखक ................है। (ि!यरंजन सेन/चाBस( ई.
4ोवर/गेटे)।
उतराखड मु त िवविवालय 7
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1.7 सारांश
यह !थम इकाई - तल ु नामक सािहय क अवधारणा पर के ि/0त है। इस इकाई के अ=ययन से
अपने जाना िक -
• तल ु नामक सािहय अं4ेजी के क5पेरेिटव िलटरे चर’ का िह/दी अनुवाद है।
• तल ु नामक सािहय पद का सबसे पहला !योग मै@यू ऑन(Bड ने सन् 1848 म: िलखे
एक प7 म: िकया था।
• तल ु नामक पित का मल ू उGेय सां+कृ ितक पHर!ेIय म: दो िभ/न भाषाओ ं क कृ ितय*
को रखकर नई अथ(वKा क तलाश करना होता है।
• तल ु नामक सािहय के कई Fे7 हf, जैसे एक भाषा के अंतग(त, दो भाषा पHरवार के
अतं ग(त दो भाषा एवं दो भाषा पHरवार के अंतग(त दो भाषाओ ं का अ=ययन।
• तल ु नामक सािहय एवं िव< सािहय का िनकट का स5ब/ध है। िव< सािहय पद का
सव(!थम !योग गेटे ने िकया था।
1.8 श"दावली
• क5पैरेिटव िलटरे चर - तल ु नामक सािहय का अं4जी पया(य।
• अनशु ासन - Tयवि+थत तरीका, िवशेष !कार क Tयव+था।
• मक़
ु 5मल - परू ी, पणू (
• घटक - अवयव, तव
• !ितमान - पैमान, आदश(
• सांeेिषक `िO - िवeेश णामक `िO, जो पर+पर तल ु नामक हो।
• भाषा पHरवHर - भाषा वैRािनक तव* के आधार पर कई भाषाओ ं
का एक समहू ।
• भाषा पHरवHर - कला एवं सािहय क सौ/दय( क वृि के कारण*
क खोज करने वाला शाS।
• काTयशाS - सािहय का Tयाकरण, अनश ु ासन
• वBड( िलटरे चर - िव< सािहय।
1.9 अ%यास &' के उ(र
अvयास !o 1
(क) 1. सय
3. सय
उतराखड मु त िवविवालय 8
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
4. असय
5. सय
6. सय
अvयास !o 2
1. रे माक
2. 1907
3. राबट( लाउथ
4. बिं कमच/0
5. चाBस( ई. 4ोवर
1.10 सदं भ *+थ सच
ू ी
1. तलु नामक सािहय भारतीय पHरपेIय-चौधरु ी, इ/0नाथ, वाणी !काशन,ि[तीय
स+ं करण 2010
2. तल ु नामक अ=ययन (भारतीय भाषाएँ और सािहय) - (सं) राजरू कर, भ.ह, बोरा,
राजमल
1.11 सहायक / उपयोगी पाठ्य साम*ी
1. तल
ु नामक अ=ययन +व9प और सम+याएँ - (स)ं राजरू कर, भ.ह. एवं बोरा, राजमल,
वाणी !काशन, सं+करण 2013
1.12 िनबंधामक &
1. तल
ु नामक सािहय क अवधारणा पर िनबंध िलिखए ।
2. तलु नामक सािहय के इितहास क 9परे खा का वण(न किजए।
उतराखड मु त िवविवालय 9
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई 2 तुलनामक अ3ययन प4ितयां
इकाई क प रे खा
2.1 तावना
2.2 उेय
2.3 तल ु नामक अ8ययन प9ितयाँ
2.3.1 तल ु नामक अ8ययन क ि;या
2.3.2 साम/ी िव<े षण ि;या
2.4 तल ु नामक अ8ययन एवं भारतीय सािहय
2.5 तल ु नामक अ8ययन और अनवु ाद का ,
2.6 साराश ं
2.7 श(दावली
2.8 अ+यास ,- के उ.र
2.9 संदभ& /0थ सचू ी
2.10 सहायक / उपयोग पाठ्य साम/ी
2.11 िनब0धामक ,
उतराखड मु त िवविवालय 10
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
2.1 तावना
िपछली इकाई ‘तल
ु नामक सािहय क अवधारणा’ का आपने अ=ययन कर िलया है।
इस इकाई के अ=ययन के मा=यम से आपने तल ु नामक सािहय क पृ{भिू म एवं अवधारणा को
समझ िलया है। इस इकाई म: हम तल ु नामक अ=ययन पितयाँ एवं साम4ी िवeेषण क
!िkया को समझने का !यास कर: गे।
तल
ु नामक अ=ययन पितय* म: तल ु ना करने क पित व !िkया का िवशेष 9प से अ=ययन
िकया जाता है। तुलनामक अ=ययन पित को आज गंभीरता से िलया जाने लगा है, इसे
अनसु ंधान के समकF रखकर देखने क भी पHरपाटी !चिलत होती जा रही है। एक +वत7ं
आलोचना !िविध के 9प म: भी इसका िव+तार हआ है। फलतः तल ु नामक पित के कई
‘+कूल’ !चिलत हो गये हf। जम(न, iांसीसी, अमेHरक...... इयािद। अतः तलु नामक पित ने
वैि<क +व9प 4हण कर िलया है। वैि<क +व9प के 4हण के !o के संदभ( म: ही तुलनामक
सािहय व अनवु ाद का !o भी मह?वपणू ( है। भारत जैसे बहभाषी देश म: जहाँ अलग-अलग
भाषा पHरवार क भाषाओ ं का अि+तव है, वहाँ भी अनुवाद काय( का मह?व है, और वैि<क
पHर`य म: इसक उपयोिगता से तो हम पHरिचत ही है।
2.2 पाठ का उेय
एम0ए0एच0एल0-204 पाठ्य प+ु तक क यह दसू री इकाई है। इस इकाई म: आप तल ु नामक
अ=ययन पितयाँ के बारे म: अ=ययन कर: गे। इस इकाई के अ=ययन के पVात् आप जान:गे िक-
• !मख ु तलु नामक अ=ययन पितयाँ कौन सी है, इसको जान सक: ग:।
• तल ु नामक आलोचना !िkया को समझ सक: गे।
• तलु नामक अ=ययन !िkया के मा=यम से साम4ी िवeे षण को समझ सक: गे।
• तल ु नामक सािहय के स5!दाय के बारे म: जान:ग।े
• तल ु नामक अ=ययन म: अनुवाद क भूिमका को समझ सक: गे।
2.3 तुलनामक अ3ययन प4ितयाँ
2.3.1 तल ु नामक अययन क ि या
तल
ु नामक अ=ययन के संदभ( म: भारी mम यह है िक इसक कोई पित नहM है। िकसी
भाषा दसू री भाषा क कृ ितय* क तल
ु ना कर देने मा7 से ही तल
ु नामक सािहय का काय( परू ा हो
जाता है। लेिकन या वाकई ऐसा है? िजस !कार लेिवस ने आलोचना के िलए !िविध -भरी
(िस+टेिमक) सिु वचाHरत |ृंखला व kम अिनवाय( बताया था। य*िक !िविध के अभाव म:
सािहय अराजकता का के /0 बन जाता है, य*िक !िविध जहाँ एक ओर िवचार व रचना को
अनशु ािसत करती है, वहM दसू री आरे उसे िदशा भी देती है। या पित व सािहय का इतना
अिनवाय( स5ब/ध होता है? सािहय िलखने के पVात् हम उसे िवशेष kम म: Tयवि+थत कर देते
उतराखड मु त िवविवालय 11
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
हf, ऐसा आमतौर पर समझा जाता है, लेिकन सािहय लेखन से पवू ( या लेखक के मि+तPक म:
िवचार kम सTु यवि+थत नहM होते ? िनिVत तौर पर Tयव+था पहले आती है और लेखन बाद म:
होता है। यह तो हई लेखन क !िkया से hयादा Tयव+था क माँग करती है। यहाँ हम
तलु नामक अ=ययन पित के अंतग(त तुलनामक अ=ययन क !िkया को समझने का !यास
कर: गे।
तलु नामक अ=ययन क !िkया का !थम चरण रचना िवषयक चयन/ आलो}य
िवषय (या कृ ित) है। िकसी कृ ित को तुलनामक +व9प के चयन म: भी आलोचक क `िO ही
काम करती है। आलो}य कृ ित य* मह?व पणू ( है? इसे लेखक को +पO करना ही पड़ता है। और
उससे भी मह?वपणू ( !o यह है िक लेखक ने उसका चयन य* िकया है? िकसी भी कृ ित का
चयन लेखक क !ितभा पर !o िच~ लगा देता है। लेखक को सव(!थम चयिनत रचना के
मह?व और उसके चुने जाने के कारण* का औिचय िस करना पड़ता है। िफर इस !िkया म:
एक नहM दो रचनाएँ होती है। !थम रचना का दसू री रचना से स5ब/ध िकस !कार +थािपत हो
रहा है या नहM हो पा रहा है ? यह !o भी मह?वपणू ( है। िवषय चयन के िनयम के अंतग(त यह
त@य भी है िक =यान रखने योrय है िक ग और प क रचनाओ ं का तुलना करना उिचत नहM
है, य*िक दोन* िवधाओ ं क रचनर !िkया म: बहत अ/तर है, दोन* दो अनुशासन हf।
तल ु नामक अ=ययन !िkया का दसू रा चरण होता है आलो}य कृ ित का पाठ। पणू ( के सयम म:
लेखक क: 0 म: हआ करना था, आज उसका +थान पाठक ने 4हण कर िलया है। पवू ( क अपेFा
आज पाठ लेखक से +वतं7 हो चक ु ा है..... इसिलए पाठ क अन/त संभावनाएँ होती है। िकसी
कृ ित का पाठ कै से िकया जाये, यह !o मह?वपणू ( है। पाठक भी कई !कार के होते हf।
तल ु नामक अ=ययन +व9प और सम+याएँ (संपादक भ0ह0 राजरू कर एवं राजमल बोरा) म:
पाठक* का वगUकरण इस !कार िकया गया है-
1. असािहियक
2. गैर-सािहियक
3. सािहियक
1- असािहियक पाठक वे होते हf जो रचना का पाठ करते समय सािहियक मम( क
िच/ता नहM करते। ऐसे पाठक रचना म: िछपे घटना kम म: ही hयादा िदलच+पी रखते हf।
2- गैर-सािहियक पाठक से तापय( ऐसे पाठक से है, जो रचना/ पाठ म: अपनी िच
के अनसु ार त@य* क खोज करता हf । ऐसे पाठक* म: भी उ}च सािहियक बोध का
अभाव होता है।
3- सािहियक पाठक का तापय( ऐसे पाठक* से है जो परू ी रचना के आधार पर
स5पणू (ता म: िकसी पाठ का मBू य िनधा(Hरत करते हf। ऐसे पाठक* का =यान पाठ के हर
अश ं पर होता है।
तल ु नामक आलोचना !िविध का तीसरा चरण-त@य चयन होता है। िकसी रचना म:
ढेर* त@य होते हf, जो रचना को Tयवि+थत 9प !दान करने म: अपनी भिू मका िनभाते हf । इस
उतराखड मु त िवविवालय 12
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!िkया म: एक खास ए!ोच/ `िO से आलोचक उस रचना को देखता है। वह ए!ोच िवचारधारा
का भी हो सकता है और िकसी खास त@य का चनु ाव व उसका िव+तार भी। त@य चयन का भी
व+तिु त{ आधार होता है, लेिकन !ायः लेखक आमिन{ ढंग से ही िवeेषण करते हf। सािहय
क आलोचना !िkया म: अ सर ही लेखक* क तल ु ना के संदभ( म: आलोचक एकिन{ `िO के
िशकार हो ही जाते हf। कबीर-तल ु सी, तलु सी-सरू , तलु सी-जायसी कािलदास-भवभिू त,
वाBमीिक-Tयास, !साद-िनराला, पंत-िनराला, मीरा-महादेवी, अRेय-मिु _बोध, वडस(वथ(-
कॉलHरज- जैसे ढेर* उदाहरण हf , जब दो रचनाकर* क तल ु ना के बहाने एक को |े{ िस करना
ही आलोचक का उGेय रहा है।
तलु नामक आलोचना !िविध का चतथु ( चरण त@य* के िवeेषण से जड़ु ा हआ है।
त@य का +व9प कै सा है? त@य के घटक-इितहास और दश(न क `िO से िवeेषण िकया जाता
है। इितहास और दश(न म: रचना के सारे संदभ( को समेट िलया जाता है। इितहास ने अतग(त सारे
त@य (चाहै वह राजनीित, चाहै व समाजशाS या प7काHरता या अ/य िकसी िवधा हो) आ जाते
हf व दश(न के अतं ग(त सारे िवचर व वाद (मा स(वाद, अि+तववाद, मनोिवeेषण, उKर-
आुधुिनकता, आधिु नकता, संरचनावाद या !ाचीन दश(न सभी आ जाते हf)। तल ु नामक
आलोचना !िविध का पंचम चरण/!िkया है- िवषय व+तु एवं िशBप के +तर पर आलो}य
रचनाओ ं क संगित क िवचारणा एवं उनका मूBयांकन करना। िवषयव+तु का स5ब/ध उस
देशकाल-पHरि+थित से अिनवाय( सIू म 9प से जड़ु ा हआ होता है। सािहियक रचना िजतना
कहती है, उतना ही अनकहा रह जाता है...........। इस `िO से रचना के 9प के मा=यम से भी
आलोचक यगु -समाज के पHरवत(न को पकड़़ने का !यास करता है। भारतीय काTयशाS क
सैाि/तक व िशBपगत बारीिकय* को लेकर ही ल5बी चचा( देखने को िमलती है।
2.3.2 साम!ी िव"े षण ि या
पीछे हमने तल
ु नामक अ=ययन !िkया के िविभ/न चरण* का अ=ययन िकया। हमने
अ=ययन िकया िक तुलनामक अ=ययन !िkया म: पाठ चयन, त@य चयन एवं िविशO ए!ोच
इयािद तल ु नामक अ=ययन के िविभ/न चरण हf। अभी हम तल ु नामक अ=ययन !िkया या
उसक !िविध का अ=ययन कर: गे। तल ु नामक सािहय क कोई सिु निVत पित है या नहM, इस
बात को लेकर भी अ=येताओ ं म: मतै य नहM है। रे ने वेलेक जैसे अ=येता जब यह कहते हf िक
तल ु नामक सािहय क कोई िनिVत काय(पित नहM है । उनका तक( है िक सािहय के अ/दर
तल ु नामक तव सिkय रहता ही है, उसक अलग !िविध का !o उिचत नहM है। kमशः
तलु नामक सािहय क तीन `िO या पHर!ेIय माने गये हf-
1. iांसीसी-जम(न +कूल का अतं रा(PQीयता के आ|य से सािहय का कालkिमक
अ=ययन- सािहियक िवकासवाद, ऐितहािसक सापेFतावाद तथा ऐितहािसक
पHरि+थित।
2. अमरीक +कूल क 9पवादी `िO- काTयशाSीय सौ/दया(मक, कलापरक तथा
िवeेशणामक अतं `िO
उतराखड मु त िवविवालय 13
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3. समाजशाSीय - सं+कृ ितपरक यथाथ(वादी `िO -
इन तीन पHर!ेIय* को दो िनयम* के अतं ग(त समेटा गया है-
1- सािहयेितहास का अंतरा(PQीय संदभ(
2 - तल ु नामक आलोचना।
1 - सािहयेितहास के अतं रा(िPQीय सदं भ( से आशय दो रचनाओ ं या घटनाओ ं के ि[-आधार
संबंध को +थािपत करने से माना गया है। इसका अथ( यह है िक कलापरक `िO को समाजशाS,
सं+कृ ित एवं इितहास के संदभ( म: दो सािहय* के !भाव-पर+पर एवं उनके सा`य आधार* को
+पO करना।
2 - तल ु नामक आलोचक के िलए तुलना एक सचेत और मल ू भतू पित है।
तलु नामक पित के आ|य से एक से अिधक सािहय* क तुलना करना तुलनामक अ=ययन
है। इस !िkया म: दो सािहय* के सा`य संबधं , पर5परा तथा उनके !भाव* के स7ू * क खोज
क जाती है । अब हम तुलनामक सािहय क कुछ !मख ु !िविधय* का अ=ययन कर: ग:।
सा`य संबंधामक !िविध-
यह !िविध अ/तरा(PQीय संदभ( के अतं ग(त आती है। अतं रा(PQीय संदभ( के आ|य से दो
कृ ितय* का सािहयगत शैली, संरचना, मडू या िवचार का सा`य संबधं ामक अ=ययन होता है।
इस !कार का अ=ययन सा`य या वैश5यमल ू क दोन* हो सकता है। िकसी भी दो बेमेल
िवषयव+तु क सा`यमल ू क अ=ययन पित को पॉलीजेनेिटक पित कहते हf। सा`यमल ू क
पित क सहायता से आलोचक िविभ/न समाज तथा पHरि+थित म: अिभTय_ होने वाले
सािहय का िववेचन करता है और िभ/न-िभ/न !o* क तलाश करता है। िविभ/न
अिभTयि_य* क समानता का कारण या है? तथा वे कै से एक-दसू रे से िभ/न हf, इसका उKर
तल ु नामक आलोचना के सा`य-संबंधामक !िविध म: खोजा जाता है।
तल ु नामक अ=ययन क पर5परा !िविध -
अतं रा(PQीय संदभ(वाद के अंतग(त पर5परा अ=ययन !िविध म: भी दो कृ ितय* का
सा`यमल ू क अ=ययन होता है। इस !िविध क मा/यता के मूल म: यह त@य है िक - रचना, एक
बड़े वग( का अश ं होती है। और जो समान ऐितहािसक, कालानk ु िमक तथा 9पामक बधं न* से
अन+ु युत होती है। इस !िविध म: खास तौर से भाषा तथा सािहय म: !ितफिलत राPQीय चेतना
का अ=ययन िकया जाता है, या उनके संदभ( को भी अिनवाय( 9प से शािमल कर िलया जाता
है। इस !िविध के अ=ययन के संदभ( म: भी दो !+ताव हf। एक, !+ताव यह है िक अ=ययन
!िविध म: परू ी !+ताव है। एक, !+ताव यह है िक अ=ययन !िविध म: परू ी पर5परा के संदभ( म:
अ=ययन िकया जाये, जबिक !ावर जैसे अ=येता इसके िवपरीत यह !+ताव रखते हf िक
अ=ययन के Fे7 को सीिमत करके िकसी एक ऐितहािसक काल अथवा ऐितहािसक `िO से
उभरते हए िकसी एक काTय9प का दो सािहय* के संदभ( म: अ=ययन िकय जाता है। पर5परा
अ=ययन क !णाली म: राPQीयता एवं अंतरा(PQीयता एंव अंतरा(PQीय पर5पराएँ िनकट आ जाती
है।
उतराखड मु त िवविवालय 14
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
भाव िविध-
9थवेन म: !भाव !िविध के दो धरातल बताये हf एक जब शि_शाली Tयि_व का
!भाव, अ=येता को अपनी धारा म: बहा ले जाता है और दसू रा धरातल यह होता है जब उस
शि_शाली Tयि_व के !भाव से अ=येता अपनी `िO को और पHरPकृ त व स5प/न करता
चलता है। साइमन िजयनू ने !भाव को ‘अनक ु रण’ न मानकर ‘!ेरणा’ मानने से !भाव-अ=ययन
के िवरोध म: क गई आलोचना माना है। तल ु नामक सािहया=ययन म: !भाव-स7ू * का अ=ययन
ही उसक के /0ीय पित है। लांद गइु एँ ने इसीिलए !भाव स7ू * के अ=ययन को मनोवैRािनक
!ितभास कहा है। इसे +पO करते हए गइु एँ !यF और अ!यँ !भाव क बात करता है। !यF
!भाव म: आलो}य लेखक और अ!यF !भाव म: सृजनामक पर5परा को शािमल िकया जा
सकता है।
अययन क वीकृित तथा सच ं ारण िविध-
उलHरच वाइ+टाइन ने इस !िविध को +पO करते हए िलखा है- !भावस7ू * का अ=ययन
मल ू तः पHरपणू ( दो सािहियक कृ ितय* को लेकर िकया जाता है िक/तु +वीकृ ित अ=ययन का Fे7
काफ बड़ा होता है। इसम: कृ ितय* के पार+पHरक संबधं * से लेकर उनके आस-पास क
पHरि+थितय*, लेखक, पाठक, समीFक, !काशक तथा !ितवेशी पHरवेश सब कुछ अ=ययन के
िवषय के अंतग(त आता है। इस तरह +वीकृ ित अ=ययन सािहियक समाजशाS अथवा
मनोिवRान क िदशा म: िवशेष 9प से अ4सर होता है। उदाहरण+व9प हम समझ सकते हf िक
ि[वेदी कालीन नैितकता के वल रीितकाल के !ित !ितिkया नहM थी। बिBक स5पणू ( िव टोHरयन
यगु के सािहय क +वीकृ ित भी थी। !ावर ने इसे ‘संचारण अ=ययन’ कहा है। !ावर ने इसक
पHरभाषा देते हए िलखा है- ‘‘संचारण सं+थाओ ं एवं 9प* के स`श है िजसके मा=यम से िवचार,
सचू ना तथा अिभवृिKयां +थानांतHरत अथवा +वीकृ त होती है।’’
तुलनामक अययन क सौभा*य िविध-
अ=ययन क सौभाrय !िविध या है? इसे समझाते हए इ/0नाथ चौधरी ने िलखा है- ‘‘+वीकृ ित
अ=ययन के अंतग(त संचारण िवeे षण के अितHर_ िकसी एक लेखक या कृ ित का ‘सौभाrय’
िवeेषण भी िकया जाता है। िकसी एक िवदेशी लेखक या कृ ित क दसू रे देश म: िक/ही कारण*
से, नोबेल परु +कार िमलने से या आकि+मक मृयु होने से या िकसी सKा का िवरोध करने से
याित के बढ़ जाने पर वह कै से दसू रे लेखक* या सािहियक पHरवेश को !भािवत करता है
इसका अ=ययन ही सौभाrय अ=ययन है।’’ वाBटर म@ु ग ने ‘+टडीज इन द Qेिजक िह+Qी ऑफ
िलटरे चर’ म: जम(न सािहय को !भािवत करने क !िkया म: ‘हैमलेट’ का अ=ययन िकया है।
वाँ िटगहैम, आं0 मोHरजे तथा ग+ु तव 90लर ने +वीकृ ित अ=ययन का िववेचन िकया है।
सबं ंधामक ,-,ामक िविध
डॉ. इ/0नाथ चौधरु ी ने संबंधामक इ/[ामक !िविध को +पO करते हए िलखा है- ‘‘अतं रा(PQीय
संदभ(वाद सािहय को मानवीय Rान के दसू रे Fे7* के साथ भी जोड़त है जैसे दश(न, इितहास,
मनोिवRान, राजनीितशाS, धम(, समाजशाS तथा लिलत कलाएँ।’’
उतराखड मु त िवविवालय 15
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
तल
ु नामक आलोचना क !िविध
तल ु नामक !िविध म: आलोचक सTु यवि+थत ढगं से तल ु नामक आलोचना के अगं 9प म:
तलु ना के तकनीक* का !सार करता है और Tयि_गत लेखक* के [ारा िकए गए !यास* का
अ=ययन आलोचना के मूल अंग द:। इस !िविध म: कालkिमक अ=ययन नहM, समकािलक
अ=ययन होता है।
अयास
क- सही /गलत म: उKर दीिजए।
1. तलु नामक अ=ययन !िkया का !थम चरण रचना िवषयक चयन है।
2. अमरीक +कूल `िO 9पवादी रही है।
3. iांसीसी-जम(न +कूल क `िO ऐितहािसक रही है।
4. सा`य-संबंधामक !िविध, सािहयेितहास के अतं रा(PQीय संदभ( से जड़ु ा हआ है।
5. तल
ु नामक अ=ययन क पर5परा !िविध का संबंध अंतरा(PQीय संदभ( से जड़ु ा हआ है।
ख- िटnपणी िलिखए
1. तल ु नामक अ=ययन क पर5परा !िविध ?
2.4 तुलनामक अ3ययन एवं भारतीय सािहय
या तुलनामक सािहय और भारतीय सािहय का िकसी !कार का कोई स5ब/ध है?
रवी/0नाथ टैगोर ने जब 1907 ई. म: िव< सािहय शZद का !योग िकया था, तब से तल ु नामक
अ=ययन को भारत म: िवशेष बल िमला। भारतीय सािहय के सदं भ( म: तल ु नामक अ=ययन एंव
सािहय क नई पHरकBपनाएँ सामने आई। इसी उGेय से सन् 1954 ई. म: सािहय अकादमी क
+थापना हई। भारतीय सािहय क !+तावना !+तुत करते हए सव(पBली राधाकृ Pणन ने िलखा
था िक भारतीय सािहय एक है यिप वह बहत-सी भाषाओ ं म: िलखा जाता है। भारतीय
सािहय चँूिक िविभ/न भाषा पHरवार* म:, ‘भारोपीय, चीनी-ितZबती, कमीरी, 0ािवड़ इयािद’-
बांटा हआ है, इसिलए भी इसे Tयापक !चार-!सार !ा\ नहM हो सका। िक/तु भारत क मल ू भतू
सं+कृ ित को िदखाने के िलए भारतीय सािहय क अवधारणा का Tयापक !चार-!सार
आवयक है।
2.5 तुलनामक अ3ययन और अनवु ाद का &
तल ु नामक अ=ययन के मल ू म: यह !o उपि+थत है िक िव+तृत पHर!ेIय म: सािहय
एवं सं+कृ ित का अ=ययन िकस !कार सभं व हो सकता है? इस अ=ययन !णाली म: एक से
अिधक भाषाओ ं के सािहय का !o भी मल ू म: हf य*िक अनवु ाद करने क ि+थित तो दसूरी
भाषाओ ं के संदभ( म: ही उप/न् होती है। तल
ु नामक अ=ययन और अनवु ाद के संदभ( म: कई !o
आज भी अनसल ु झे हf। तल
ु नामक सािहय के सदं भ( म: उिचत ि+थित यह होगी िक अ=येता को
एक-से अिधक भाषाओ ं क जानकारी हो। आन(Bड के अनुसार अपनी भाषा म: रिचत सािहय
के अितHर_ िकसी दसू री भाषा के सािहय से भली भाँित पHरिचत होना आवयक बताया था।
उतराखड मु त िवविवालय 16
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
अनवु ाद सृजन है, या अनुकरण यह !o ही उठाया जाता रहा है। मल ू 9प म: तो अनुवाद
अनक ु रण ही है, िक/तु यांि7क अनवु ाद भी तल
ु नामक सािहय के िलए िकस काम का?
सािहियक अनवु ाद तो सृजनामक ही हो सकता है। य*िक सािहय म: एक शZद के क7ई अथ(
होते हf, इसिलए देश-काल-पHरि+थित-पHरवेश के अनसु ार मूल 9प से अथ( को ही मूल मानना
पड़ता है।
2.6 सारांश
यह एम0ए0एच0एल0-204 क दसू री इकाई, जो तल ु नामक अ=ययन पितय* पर क: ि/0त है-
का आपने अ=ययन कर िलया है। इस इकाई के अ=ययन के उपरा/त आपने जाना िक-
• तल ु नामक अ=ययन एक सिु निVत !िविध एवं |ृखं ला के मा=यम से अपना आकार
4हण करता है।
• तल ु नामक अ=ययन क !िkया के कई चरण हf- !थम चरण है- रचना िवषयक चयन,
दसू रा चरण है- आलो}य कृ ित का पाठ, तीसरा चरण है- त@य चयन, चतथु ( चरण है-
त@य* का िवeे षण करना, पंचम चरण है- िवषय व+तु एवं िशBप के +तर पर आलो}य
रचनाओ ं क संगित क िवचारणा एवं उनका मूBयांकन करना।
• तल ु नामक आलोचना !िkया के िवeेषण !िkया के अतं ग(त- सािहयेितहास के
अतं रा(PQीय संदभ( एवं तुलनामक आलोचना का िवeे षण िकया जात है।
• सािहयेितहास के अतं रा(PQीय संदभ( के अतं ग(त- सा`य-संबंधामक !िविध,
तल ु नामक अ=ययन क पर5परा !िविध, !भाव !िविध, अ=ययन क +वीकृ ित तथा
संचारण !िविध, तल ु नामक अ=ययन क सौभाrय !िविध, संबंधामक [/[ामक
!िविध इयािद आते हf।
2.7 श"दावली
• !िविध- शैली, तरीका
• ए!ोच – `िO
• सिु निVत – िनिVत
• सापेFतावाद - समाज के संदभ( के अनुकूल िवकिसत `िO
2.8 अ%यास &' के उ(र
क-
1. सय
2. सय
उतराखड मु त िवविवालय 17
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3. सय
4. सय
5. सय
उतराखड मु त िवविवालय 18
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई 3 भारतीय सािहय क अवधारणा
इकाई परे खा
3.1 तावना
3.2 पाठ का उेय
3.3 भारतीय सािहय क अवधारणा
3.3.1 अथ&, प रभाषा
3.3.2 भारतीय, सािहय का वप
3.4 भारतीय सािहय और अ8ययन क सम याएँ
3.5 भारतीय सािहयस और रा?@ीय-सां कृ ितक ,
3.6 सारांश
3.7 श(दावली
3.8 अ+यास ,- के उ.र
3.9 संदभ& /0थ सचू ी
3.10 सहायक/उपयोगी पाठ्य साम/ी
3.11 िनब0धामक ,
उतराखड मु त िवविवालय 19
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3.1 तावना
सामा/य Tयवहार या आम बोलचाल क भाषा म: भारतीय सािहय का आशय भारत
के िविभनन !ा/त क भाषा म: िलखे गये सािहय से है। िक/तु भारतीय सािहय एक अनश ु ासन
के 9प म: आज िवकिसत हो चुका है और स5पूण( भारत के सािहय के अथ( म: समझा जाने लाग
है। भारतवष( बहभाषी समाज रहा है। भारोपीय-0ािवड़, चीनी-ितZबती इयािद भाषा पHरवार* को
समेटे भारत वष( िभ/न-िभ/न सं+कृ ितय* का वाहक रहा है। +वाभािवक ही था िक िभ/न भाषा एवं
सं+कृ ितक क एक समझ बढाने़ का !यन होता, य*िक उसके िबना भारतीय सं+कृ ितक को
समझा ही नहM जा सकता था। भारत के पवू U !देश म:-उिड़सा , बंगला, असिमया, पवू lKर !देश
म:- अ9णाचली, नागालैडी, असिमया, िमजो, उKर !देश म: कमीरी, ड*गरी, िसंधी, क*कणी,
पिVम के !देश म:-राज+थानी, गजु राती, पंजाबी, हHरयाणी एवं दिFण के !देश* म:- मराठी,
तेलगु ,ु क/नड़, तिमल एवं मलयालम भाषाएँ !मख ु ता से बोली और समझी जाती है। इसके
अितHर_ !ादेिशक +तर पर अ/य छोटी-छोटी भाषाओ ं का भी सािहय है.... तो या इतने बड़े
भाषा वैिभ=य वाले !देश म: िकसी एक चेतना को ि+थर िकया जा सकता है? भारतीय सािहय
क अवधारणा म: मूल म: भारतीय जीवन सं+कृ ित एवं भाषागत वैिव=य को समेटने का !यास है।
भारतीय सािहय का Fे7 व सािहय इतना Tयापक है िक !o उठता है िक इसका कौन सा
+व9प िनयत िकया जाये? एक !o भाषागत िभ/नता का है, सां+कृ ितक िभ/नता का है, तो
दसू रा !o भाषा-पHरवार क िभ/नता का है, Tयाकरिणक िभ/नता का है। इतने Tयापक िभ/नता
के बावजदू िकसी एक भारतीय सं+कृ ित के िनमा(ण को बात क जा सकती है? भारतीय सािहय
क अवधारण के मल ू म: ऐसे ढेर* !o हf।
3.2 पाठ का उेय
एम.ए.एच.एल - 204 क यह तीसरी इकाई भारतीय सािहय क अवधारणा पर क: ि/0त है। इस
इकाई का अ=ययन करने के उपरा/त आप-
• भारतीय सािहय क अवधारणा से पHरिचत हो सक: गे।
• भारतीय सािहय के इितहास को जान सक: गे।
• भारतीय सािहय क पHरभाषा एवं उस पर िविभ/न िव[ान* के मतो को जान सक: ग:।
• भारतीय सािहय और उसके अ=ययन क सम+याओ ं से पHरिचत हो सक: ग:।
• भारतीय सािहय और सं+कृ ित के अंतस(5ब/ध कसे समझ सक: गे।
• भारतीय सािहय का पHरचय !ा\ कर सक: गे।
उतराखड मु त िवविवालय 20
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3.3 भारतीय सािहय क अवधारणा
3.3.1 अथ., परभाषा
भारतीय सािहय को पHरभािषत करते हए डॉ. नगे/0 ने िलखा है, ‘‘भारतीय मनीषा क
अिभTयि_ का नाम भारतीय सािहय है और भारतीय मनीषा का अथ( है, भारत के !ब ु मानस
क सामिू हक चेतना-सहSािZदय* से संिचत अनभु िू तय* और िवचार* के नवनीत से िजसका
िनमा(ण हआ है। यह भारतय मनीषा ही भारतीय सं+कृ ित, भारत क राPQीयता और भारतीय
सािहय का !ाणतव है। ’’ (भारतीय सािहय का समेिकत इितहास-सं0 डॉ.नगे/0, पृ{ 10)
अपनी इस पHरभाषा म: डॉ.नगे/0 ने भारतीय सािहय क Tयापक संकBपना क है। ‘भारत के
!ब ु मानस क सामिू हक चेतना, को उ/ह*ने भारतीय सािहय का आधार माना है। भारतीय
मनीषा, भारत क राPQीयता ही भारतीय सािहय के क: /0 म: हf। डॉ.नगे/0 ने अपनी इस पHरभाषा
म: समेिकत 9प म: भारतीय मनीषा को ही स5पूण( भारतीय सािहय का पया(य मान िलया है। इस
पHरभाषा म: अितTयाि\ दोष है । भारत वष( को भौगोिलक एकव के आधार पर रखकर, भारतीय
सािहय क पHरभाषा देते हए िव/टरिनnस ने ‘भारतीय सािहय का इितहास’ नामक पु+तक म:
िलखा है,‘‘भारतीय सािहय का इितहास भाषा के मा=यम से अिभTय_ तीन हजार वष( के
मानिसक िkया-कलाप का िलिपब इितहास है। हजार* वषg तक िनर/तर गितशील इस
मानिसक िkया-कलाप का िवकास Fे7 है वह देश है जो िह/दक ु ु श पव(त से कुमारी अतं Hरप-
लगभग डेढ़ लाख वग(मील तक फै ला हआ है-िजसका Fे7फल 9स को छोड़ सम+त यरू ोप के
बराबर है और िव+तार 8 से 35 उKरी अFांश तक अथा(त् भमू =य रे खा के ऊPणतम !देश* से
लेकर शीतोPण किटबंध तक हf। ’’ इसे अितHर_ िव/टरिनnस ने आगे एक जगह और िलखा है-
‘‘िवषय व+तु क `िO से इसम:, Tयापक अथ( म:, वाङमय के सम+त 9प*-धािम(क और लौिकक
महाकाTय, !गीत-काTय, नाटक, नीित-काTय तथा ग म: रिचत कथा-आयाियका, शाS
आिद का अतं भा(व है।’’ +पO है िक िव/टरिनस ने अपनी पHरभाषा म: सम+त रचना 9प* एवं
भारत के सम+त Fे7 के सािहय को अपनी पHरभाषा म: समेटा है िक िवंटरिनस ने अपनी
पHरभाषा म: सम+त रचना 9प* एवं भारत के सम+त Fे7 के सािहय को अपनी पHरभाषा के
अतं ग(त रखा है। इसी !कार भारतीय वाङमय क भिू मका म: भारतीय सािहय क पHरभाषा इस
!कार दी गई हैः “भारत वष( अनेक भाषाओ ं वाला िवशाल देश हैः उKर-पिVम म: पंजाबी,
िह/दी और उद(,ू पवू ( म: उिड़या, बंगला और असिमया, म=य-पिVम म: मराठी व गजु राती और
दिFण म: तिमल, तेलुग,ु क/नड़ तथा मलयालम। इनके अितHर_ कितपय अ/य भाषाएँ भी है
िजनक सािहियक तथा भाषावैRािनक मह?व कम नहM है। जैसे कमीरी, िसंहली, डोगरी,
क*कणी और त9 ु आिद। इनम: से !येक का-िवशेष कर पहली बारह भाषाओ ं म: से !येक का
अपना सािहय है जो !ाचीनता, वैिव=य, गणु और पिभाषा- सभी क `िO से अय/त समृ है।
यिद आधिु नक भारतीय भाषाओ ं के ही संपणू ( वाय से िकसी भी `िO से कम नहM होगा। वैिदक
सं+कृ त, पािल, !ाकृ त तथा अपmंश समूह के वाङमय का समावेश कर लेने पर तो उसका अनंत
उतराखड मु त िवविवालय 21
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िव+तार कBपना क सीमा को पार कर जाता है Rान का अपार भंडार-िहदं महासागर से भी
गहरा, भारत के भौगोिलक िव+तार से भी अिधक Tयापक, िहमालय के िशखर* से भी ऊँ चा। ’’
इस पHरभाषा म: भारतीय क !मखु भाषाओ ं एवं सम+त Rान पर5परा को समेटने का भावामक
!यास िकया गया है।
3.3.2 भारतीय सािहय का वप
भारतीय सािहय क समझ के िलए पहले तो भारतीय Fे7 और उसक भाषाओ ं का
Rान अय/त आवयक है। भारतीय भौगोिलक पHरिध एवं उसक भाषाओ ं को हम एक आरे ख
के मा=यम से समझ सके त हf-
भारत क भाषाएं
1. उKरी Fे7 क भाषाएँ - कमीरी, िसंधी, पहाडी, गढ़वाली-कुमाऊँ नी, नेपाली
2. पिVम Fे7 क भाषाएँ - पंजाबी, हHरयाणी, राज+थानी, गजु राती
3. दिFण-पिVम - मराठी
4. दिFण क भाषाएँ - तेलगु ु, तिमल, क/नड़, मलयालम
5. पवू U Fे7 क भाषाएं - बंगला,उिड़या, असिमया
6. पवू lKर क भाषाएँ - नागालैडी, िमजो, मेघालयी, अ9णाचली
जािहर है भारतीय सािहय क पHरिध बहत Tयापक है। अतः इसीिलए +थल ू 9प म:
भारत क बहिवध भाषाओ ं को इसम: समेट िलया जाता है। इस पHरकBपना के अनसु ार
भारतीय सािहय का तापय( उपरो_ क सम+त भाषाओ ं के स5पणू ( सािहय क संपूण(
!वृिK से है। जैसा िक पवू ( म: भी हमने अ=ययन िकया िक भारतीय सािहय इन सम+त
भाषाओ ं के सम+त सािहय का न तो सं4ह मा7 है और न उसक Tयाया मा7
भारतीय सांिहय का आशय तो सपं ूण( भारत क जातीय अि+मता को तलाशने व
उसको संरिFत करने से है।
अयास 1
(क) िटnपणी िलिखए।
1. भारत क भाषाएँ
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
2. भारतीय सािहय क पHरभाषाएँ
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
उतराखड मु त िवविवालय 22
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
(ख) सही/गलत का चयन किजए।
1. राज+थानी पिVम भारत क भाषा है।
2. डॉ. नगे/0 ने ‘भारतीय मनीषा क अिभTयि_’ को भारतीय सािहय कहा है।
3. मराठी भारत के दिFण-पिVम क भाषा है।
4. कमीरी, पवू lKर क भाषा है ।
5. मलयालम, दिFण-पिVम क भाषा है।
उतराखड मु त िवविवालय 23
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कराकर लेखक ने अपनी सां+कृ ितक `िO का ही पHरचय िदया है। धािम(क-िमथकय व जातीय
महाकाTयामक सं+कृ ित के ही कारण स5पणू ( भारत म: कम(काड व पजू ा-पित म: लगभग एक
जैसी ही पित अपनाई जाती रही है। अथ( यह है िक भारतीय समाज व सं+कृ ित क साvयता क
ऐितहािसक पर5परा रही है। 0िवड़ भाषा के शZद अग9, अनल, कंु ड, कुंडल, चंदन (पूजा से
शZद) आिद शZद स+ं कृ त भाषा म: भी िमलते हf।
काल िवभाजन क सम+या
जैसा िक हमने अ=ययन िकया िक भारत अपने भौगोिलक एवं बहभािषक वैिव=य क `िO से
फै ला हआ बृहद राhय है। हर Fे7 क अलग-अलग भाषा....और उन भाषाओ ं काअलग
Tयाकरण 9प। सबसे बडी सम+या
़ सभी भाषाओ ं को एक साथ रखकर उनका िववेचन-िवeे षण
करने से है। भारत क िविभ/न भाषाओ ं म: मलू भूत 9प से एकता तो पHरलिFत क जाती है,
लेिकन सािहियक !वृिK य* के िनधा(रण म: काल िवभाजन का !o उठना +वाभािवक ही है।
कारण यह िक एक ही !वृिK अलग-अलग भाषाओ ं म: अलग-अलग समय पर रही है। जैसे
भि_काल को ही हम उदाहरण +व9प ल: तो यह कह सकते हf दिFण का भि_ सािहय पूव( का
है और िह/दी का बाद का.... इसी तरह अ/य !वृिK य* को भी हम ले सकते हf।
3.5 भारतीय सािहय और रा89ीय-सांकृितक &
डॉ. नगे/0 [ारा स5पािदत प+ु तक ‘भारतीय सािहय का समेिकत इितहास’ म: भारतीय
सािहय क अनेक अथ(छायाएँ बताई गयी है। उन अथ(छायाओ ं को हम एक आरेख के मा=यम
से इस !कार देख सकते हf
भारतीय सािहय: िविभ/न अथ(
1. भौगोिलक
2. पHरवेशीय
3. जातीय-सां+कृ ितक
4. जीवन-दश(न
आइए इन अथg को हम समझने का !यास कर: । भौगोिलक का तापय( है - भारत क सीमाओ ं
के अतंग(त बोले जाने वाली भाषाएँ। पHरवेशीय अथ( का तापय( है- यथा(थवादी `िOकोण से।
भारत क सामािजक- राजनीितक के अथ( म: भारतीयता क Tयाया करने से है। जातीय-
सां+कृ ितक `िO से तापय( ऐसी अवधारणा से है जो भारतीयता का पHरचायक हो। जातीय-
सां+कृ ितक म: धािम(क-सां+कृ ितक, आचार-िवचार के सार से है। जीवन-दश(न का तापय( है-
भारत क भौगौिलक-पHरवेशीय-जातीय-सां+कृ ितक मBू य* के िनचोड़ से !ा\ जीवन मBू य। यानी
भारतीय जीवन दश(न* क रसामक अिभTयि_ के रसामक सािहय को ही भारतीय सािहय
कहा गया है। आपने पूण( म: अ=ययन िकया िक भारतीय सािहय क अवधारणा के मूल म:
सां+कृ ितक व राPQीय !o ही है। दरसल इस अवधारणा िक ‘भारतीय सािहय के मा=यम से
उतराखड मु त िवविवालय 24
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
भारतीय एकता क +थापना कै से क जाये? यही !o भारतीय सािहय क अवधारणा के क: /0
म: हf।
3.6 सारांश
आपने एम.ए.एच.एल-204 क तीसरी इकाई का अ=ययन िकया। यह इकाई भारतीय सािहय
क अवधारणा पर क: ि/0त है। इस इकाई के अ=ययन के पVात आपने जाना िक –
• भारतीय सािहय क अवधारणा के मल ू म: भारतीय राPQ क मल
ू भतू एकता को !कट
करना रहा है।
• भारत बह-भािषक एवं बह-सां+कृ ितक राPQ रहा है। इसक बहभािषकता कई भाषा
पHरवार* पर आधाHरत रही है। भारोपीय भाषा पHरवार, 0ािवड़ भाषा पHरवार। ितZबती
भाषा पHरवार एवं कमीरी भाषा पHरवार। !o यह है िक बह-भािषक समाज म: राPQीय
एकता कै से +थािपत क जाये? भातीय सािहय क अवधारणा के मल ू म: यही !o
के /0 म: रहा है।
• भारतीय सािहय क अवधारणा को पHरभािषत करते हए उसे भारतीय मनीषा क
अिभTयि_ के 9प म: देखा गया है।
• भारतीय सािहय के +व9प क समझ के िलए हम: भारत के उKरी Fे7, पHरVमी Fे7,
दिFण क भाषाएँ, पवू U Fे7 क भाषाएँ एवं पवू lKर Fे7 क भाषाओ ं एवं उनक
सं+कृ ित क समझ भी आवयक है।
3.7 श"दावली
• भाषा-पHरवार - Tयाकरिणक आधार* पर भाषा का समहू ।
• अितTयाि\ - िबना ठोस आधार के Tयापक आयामेां को धारण
करना।
• जातीय चेतना - िकसी !देश-राPQ क मल
ू चेतना।
• महाकाTयामक सं+कृ ितक - Tयापक जीवन आदश( को धारण करने वाली
स+ं कृ ितक।
3.8 अ%यास &' के उ(र
अvयास !o 1
(ख)
1. सय
2. सय
3. सय
उतराखड मु त िवविवालय 25
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
4. असय
5. असय
उतराखड मु त िवविवालय 26
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई – 4 भारतीय सािहय क :यापकता
इकाई क परे खा
4.1 तावना
4.2 पाठ का उेय
4.3 भारतीय सािहय क Aयापकता
4.3.1 भागौिलक िव तार
4.3.2 ऐितहािसक िव तार
4.3.3 भािषक िव तार
4.3.4 सािहय का िव तार
4.4 भारतीय सािहय का सां कृ ितक िव तार
4.5 सारांश/मDू यांकन
4.6 श(दावली
4.7 अ+यास ,- के उ.र
4.8 संदभ& /0थ सचू ी
4.9 सहायक/उपयोगी पाठ्य साम/ी
4.10 िनबंधामक ,
उतराखड मु त िवविवालय 27
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
4.1 तावना
भारतीय सािहय क अवधारणा से संबंिधत आपने इकाई का अ=ययन िकया। उस
इकाई के मा=यम आपने जाना िक सां+कृ ितक एवं राPQीय पHरकBपना को आधार बना करके ही
भारतीय सािहय क अवधारणा िनिम(त हई है। आपने अ=ययन िकया िक भारतीय सािहय क
कई अथ(छाया है। भौगौिलक, पHरवेशीय, राPQीय सां+कृ ितक एवं जीवन मBू य से म_ ु `िO।
भारतीय सािहय क Tयापकता इतनी hयादा है िक इसे िकसी एक इितहास, एक काल सीमा म:
िनब कर देना किठन काय( है। िकसी एक भाषा के सािहय के ग-प का एक साथ ही
िववरण देना भी संभव नहM है, िफर संपणू ( भारत के सािहय क Tयाया-िववचेना िकस !कार
सभं व हो सकती है? भारतीय सािहय के एकव क `िO से नाथ सािहय, चारण काTय,
संतकाTय, !ेमायानक काTय, वैPणव काTय एवं आधुिनक िवचार दश(न* के !भािवत
सािहियक !वृिKयां !मख ु 9प से सभी !मख ु भारतीय सािहय म: पायी जाती है। भारतीय
सािहय पर िटnपणी करते हए कृ Pण कृ पालनी ने िलखा है-
‘‘भारतीय सvयता क तरह, भारतीय सािहय का िवकास, जो एक !कार से उसक
सटीक अिभTयि_ है, सामािजक 9प म: हआ है। इसम: अनेक यगु ो, !जाितय* और धमg का
!भाव पHरलिFत होता है और सां+कृ ितक चेतना तथा बौिक िवकास के िविभ/न +तर िमलते
है ।’’ एक दसू री जगह कृ Pण कृ पलानी जी ने िलखा है, ‘‘अय/त !ाचीन िवकासkम के
अितHर_ इसम: दो अ/य िवशेषताऐ ं भी हf, जो स5पणू ( भारतीय सािहय के अपणू ( गौरव !दान
करती है। एक है तीन हजार से अिधकािधक वषg तक Tया\ अखंड सृजन पर5परा और दसू री है
वत(मान म: जीिवत अतीत क !ाणवंत चेतना।’’ +पO है ऐितहािसक, भौगौिलक एवं िवषय
िव+तार क `िO से भारतीय सािहय बहत Tयापक है। इसके िवषय िव+तार का संकेत करते हए
िव/टरिनट्स ने िलखा है, ‘‘िवषयव+तु क `िO से इसम: Tयापक अथ( म: वाङ्यम के सम+त 9प*
धािम(क और लौिकक महाकाTय, !गीतकाTय, नाटक, नीितकाTय तथा ग म: रिचत कथा
आयाियका, शाS आिद का अ/तभा(व है।’’
4.2 पाठ का उेय
एम.ए.एच.एल.- 204 क यह चौथी इकाई है। यह इकाई भारतीय सािहय क Tयापकता पर
आधाHरत है। इस इकाई के अ=ययन के उपरा/त आप-
• भारतीय सािहय के भौगोिलक िव+तार को जान पाय:गे।
• भारतीय सािहय के ऐितहािसक +व9प को समझ पाय:गे।
• भारतीय सािहय के िनधा(रक !मखु भाषाओ ं से पHरचय !ा\ कर सक: गे।
• भारतीय सािहय के मा=यम से सां+कृ ितक िव+तार को समझ सक: गे।
• भारतीय सािहय के िव+तार को समझ सक: गे।
उतराखड मु त िवविवालय 28
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
• भारतीय सािहय से जुड़ी हई पाHरभािषक शZदाविलय* से पHरचय !ा\ कर सक: गे।
4.3 भारतीय सािहय क :यापकता
भारतीय सािहय क अवधारणा एवं +व9प के सदं भ( म: हमने भारतीय भाषाओ ं के
भाषा-वैिव=य एवं िव+तार का अ=ययन िकया था। यहाँ हम भारतीय सािहय क Tयापकता को
भौगोिलक एवं ऐितहािसक संदभg के साथ ही समझने का !यास कर: गे। भारतीय सािहय क
Tयापकता को िब/द9 ु प म: यहाँ हम एक आरे ख के मा=यम से समझने का !यास कर: गे।
भारतीय सािहय क 1यापकता
1.भौगोिलक िव+तार 2.ऐितहािसक िव+तार 3.भािषक िव+तार 4.सािहियक िव+तार
ऊपर हमने भारतीय सािहय के िव+तार के तव* को देखा। अब हम तव* का िव+तार से
अ=ययन कर: ग:।
4.3.1 भौगोिलक िवतार
भौगोिलक िव+तार, भारतीय सािहय का !ाथिमक तव है। जब स5पणू ( भारत क
भाषाओ ं को आधार बना करके भारतीयता क अवधारणा िवकिसत हई है, तो उसके मल ू म:
भारत का भौगोिलक िव+तार ही आधार 9प म: रहा है। भारतीय सािहय के भौगोिलक िव+तार
का संकेत करते हए िव/टरिनट्स ने िलखा है- ‘‘हजार वषg तक िनर/तर गितशील इस मानिसक
िkया-कलाप का िवकास-Fे7 वह देशा है जो िहदं क ु ु श पव(त से कुमारी अतं रीप-लगभग डेढ़
लाख वग(मील तक फै ला हआ है िजसका Fे7फल 9स को छोड़ सम+त यरू ोप के बराबर है और
िव+तार 8 से 35 उKरी अFाश ं तक अथा(त् भमू =यम रे खा के ऊPणतम !देश* से लेकर शीतोPण
किटबंध तक हf।’’ भारत के सम+त भौगोिलक वृK को भारतीय सािहय के भौगोिलक िव+तार
म: शािमल कर िलया गया है। कारण यह िक सम+त भारत म: अलग-अलग !देश* क अलग-
अलग भाषाओ ं का अि+तव है। कमीर से लेकर क/याकुमारी तक भारत का भौगोिलक
िव+तार फै ला हआ है।
4.3.2 ऐितहािसक िवतार
भारतीय सािहय के ऐितहािसक +व9प पर िवचार करते हए िव/टरिनस ने िलखा है,‘‘
भारतीय सािहय का इितहास भाषा के मा=यम से अिभTय_ तीन हजार वष( के मानिसक िkया-
कलाप का िलिपब इितहास है।’’ इस `िO से िवचार िकया जाए तो िव/टरिनस ने भारतीय
सािहय का इितहास लगभग 1000 ईसा पवू ( िनधा(Hरत िकया है। यानी महाकाTयकालीन
स5vयता के बाद के समय को ही उ/ह*ने अपने िववेचन के के /0 म: रखा है। महाकाTयकालीन
सvयता से पवू ( भी भारत का पया(\ सािहय हम: देखने को िमलता है। भारतीय सािहय के
ऐितहािसक +व9प क समझ हम एक आरे ख के मा=यम से समझने का !यास कर: गे।
भारतीय सािहय का ऐितहािसक +व9प (आरे ख)
मै समूलर - 1200 ईसा पवू (
ए. वेबर - 1200 ईसा पवू (
उतराखड मु त िवविवालय 29
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
जैकोबी - 4500 ईसा पवू (
बालगगं ाधर ितलक - सृिO के !ारि5भक यगु म:
पं0 दीनानाथ शाSी - 3 लाख वष( पवू (
अिवनाशच/0 दास - 25,000 वष( पवू (
भडारकर - 600 ई.प0ू
आिदशंकराचाय( - सृिO के !ारि5भक चरण
Tयास - सृिO के !ारि5भक चरण
चँिू क ससं ार का !ाचीन 4/थ वेद (ऋrवेद) को ही माना जाता है। और वेद* क रचना को लेकर
काल मतै य नहM है। 600 ईसा पवू ( से लेकर करोड़* वषg तक क मा/यता हमारे सामने उपलZध
है। मै समल ू र,ए. वेबर, भडारकर जैकोबी, बालगंगाधर ितलक ने ऐितहािसक !माण* को साIय
मानकर अपना मत ि+थर िकया है तो दयान/द सर+वती, पं0 दीनानाथ शाSी, अिवनाशच/0
दास, आिदशंकराचाय( एवं Tयास ने िमथकय-पौरािणक एवं hयोितषीय आधार पर अपना मत
ि+थर िकया है। आइए ऊपर के अ=येताओ ं के मत* क समीFा कर: ।
मै समूलर के मत के मल ू म: यह अवधारणा रही है िक गौतम ब ु के समय तक वेद* क रचना
पूरी हो चक ु थी। गौतम ब ु का समय 5-6वM शताZदी ई.पू0 माना गया है। मै समूलर ने अपने
मत क पिु O के िलए वैिदक सािहय को चार !मख ु भाग* म: िवभ_ कर िदया है, तथा !येक के
िलए 200 वष( का समय रखा है-
1. छ/द काल - 1000-1200 ई.पू.
2. म/7 काल - 800- 1000 ई.प.ू
3. qा ण काल - 600-800 ई.पू.
4. स7ू काल - 400- 600 ई.पू.?
ए. वेबर ने वेद* के समय को 1200 ई.पू. तो +वीकार िकया, िक/तु साथ ही वे यह भी जोड़ देते हf
िक यह अनुमािनत समय है। जैकोबी के मत के मल ू म: hयोितष क गणना रही है। hयोितष को
आधार बना करके ही बालगंगाधार ितलक ने भी अपना मत ि+थर िकया है। ितलक ने वैिदक
काल को 4 भाग* म: िवभ_ िकया है-
1. अिदत काल – 4000 - 6000 ई.पू. - ग-पामक म7ं
2. मृगिशरा काल - 2500-4000 ई.पू. - ऋक सू_
3. कृ ितका काल - 1400-2500 ई.प.ू - चार* वेद* का संकलन qा ण 4/थ
4. अिं तम काल - 500-1400 ई.प.ू - स7ू एवं दश(न 4/थ
दयान/द सर+वती एवं अिवनाशच/0 दास ने hयोितषीय आधार पर अपना मत ि+थर िकया है।
4.3.2 भािषक िवतार
भारत बहभािषक राPQ है। इस `िO से इसे बहसां+कृ ित राPQ भी कहा जा सकता है।
लगभग 1652 मातृभाषाएँ हमारे देश म: बोली जाती है तथा !मुख 9प से 25-30 भाषाएँ अपने
समृ सािहय के कारण उBलेखनीय हf। इन भाषाओ ं का संबधं भारतीया स+ं कृ ितक से !मख ु ता
उतराखड मु त िवविवालय 30
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
से जड़ु ा हआ है। िपछली इकाई म: आपने भािषक िव+तार क `िO से भारतीय सािहय का
अ=ययन कर िलया है। अब हम !मख ु भाषा पHरवार* एवं िलिपय* के मा=यम से भारतीय
सािहय का िव+तार समझने का !यास कर: गे। इिं दरा गांधी राPQीय म_ु िव<िवालय क िह/दी
संरचना क पु+तक म: िलिप और भाषा के स5ब/ध को इस !कार Tय_ िकया गया है।
qा ी िलिप
1. उKरी शैली 2. दिFणी शैली
उKरी शैली के िन5न िलिखत चार भेद हf -
1. ग\ु िलिप 2. कुिटल िलिप 3. शारदा िलिप 4. !ाचीन नागरी िलिप
शारदा िलिप के िन5निलिखत उपभेद हf –
1. कमीरी
2. मंडेआली
3. डोगरी
4. चंबा
5. िसरमौरी
6. जौनसारी
7. कुBलई
8. मुलतानी
9. िसंधी
10. ग9
ु मखु ी आिद
इसी कम( ने !ाचीन नागरी िलिप के पनु ः दो भेद माने गए हf
(क)पवू U नागरी (इसके उपभेद िन5न हf)
1. मैिथली कै थी
2. नेवारी
3. उिड़या
4. बगं ला
5. असिमया
6. !ाचीन मणीपुरी आिद
(ख)पिVमी नागरी
1. गजु राती
2. महाजनी
3. राज+थानी
4. महाराPQी
5. मोडी ़
6. नागरी
उतराखड मु त िवविवालय 31
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
q ी िलिप के दसू रे भेद अथा(त दिFणी शैली के 6 उपभेद िन5निलिखत हf -
1. तेलगु ु क/नड़ िलिप
2. 4/थ िलिप
3. तिमल िलिप
4. किलगं िलिप
5. म=य िलिप
6. पिVम िलिप
भारतीय सािहय के िव+तार को समझने के िलए िलिप और भाषा के
इस आरे ख को समझना अिनवाय( है। आरे ख म: हम देख सकते हf िक एक ही
मल
ू िलिप (एक ही मल ू सं+कृ ित) qा ी िलिप से ही उKरी एवं दिFणी शैली
का ज/म हआ और उKरी एवं दिFणी शैलीय* से अनेक िलिपयाँ और उनको
अिभTय_ करती अनेक भाषाओ ं का ज/म हआ। इस आरे ख के मा=यम से
जहाँ एक ओर हम: भारतीय सािहय के वैिव=य एवं िव+तार को समझने म:
मदद िमलती है, वहM दसू री एक संकेत भी िमलता है िक मूल 9प से भारतीय
सं+कृ ित एक ही है। अब हम !मख ु भाषा पHरवार* के संदभ( म: भािषक िव+तार
का अ=ययन कर: ग:। पवू ( क इकाई म: हमने भारत के !मख ु भाषा पHरवार* का
अ=ययन िकया। अब हम उनका िव+तार से अ=ययन कर: ग:। संFेप म: िव< के
भाषा पHरवार* क सचू ी यहाँ हम देख: -
िव5 के मुख भाषा परवार िन7न ह8 -
1. भारोपीय सेमेिटक
2. हैमेिटक पHरवार
3. सडू ानी भाषा पHरवार
4. नाइजर- कांगो पHरवार
5. मरू ल-अBटाइक पHरवार
6. 0िवड़ भाषा पHरवार
7. चीनी- तZबती पHरवार
8. आ+Qो-एिशयािटक पHरवार
9. मलाय-पािलनेशयन पHरवार
10. अमेHरक भाषाएँ
भारोपीय पHरवार के अतं ग(त भारतीय भाषाओ ं क अिधंकाश भाषाएँ समेट ली जाती है
या आ जाती है। भारोपीय पHरवार के िव+तार को हम एक आरे ख के मा=यम से इस !कार समझ
सकते हf- भारोपीय परवार
भारोपीय भाषा पHरवार के अतं ग(त भाषा पHरवार िन5निलिखत दो वगg क !धानता हf -
उतराखड मु त िवविवालय 32
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. क: टुम वग( 2. शतम् वग(
भारत-ईरानी शाखा
िह/दी
भारोपीय भाषा पHरवार के अतं ग(त कमीरी-पतो, फारसी, इयािद भाषाएँ भी आती हf।
इसी शाखा म: !ाचीन सं+कृ त, लैिटन, 4ीक आिद भाषाओ ं के साथ ही िह/दी, पंजाबी, उद(,ू
गजु राती, मराठी, बांगला, ओिड़या, असिमया, लहदं ा, िस/धी जैसी भाषाएँ भी आती है। जहाँ
तक 0िवड़ भाषा पHरवार का !o है। उसम: चार !मख ु भाषाएँ हf-
9िवड़ भाषा परवार
1.तिमल 2. मलयालम 3. क/नड़ 4.तेलगु ु
0िवड़ भाषा पHरवार क चार !मख ु भाषाओ ं के अितHर_ तल ु ु, कोडगु या कूग(, तोडा, ग*डी,
कुई, कुडुख या ओराँव, माBतो इयािद हf। भातीय सािहय का तीसरा भाषा-पHरवार आि+Qक
भाषा पHरवार है। एक आरे ख के मा=यम से इसे हम: इस !कार समझ सकते हf-
आि<क भाषा परवार
आि+Qक भाषा पHरवार के अंतग(त दो वगg को समािहत िकया जाता है -
(क) मान-मेर (ख) मंडु ा
मान-मेर के अ/तग(र खासी (मेघालय), िनकोबारी (िनकोबार)और मंडु ा के अ/तग(त संथाली
मंडु ारी, कुक( , सवर भाषाओ ं का उBलेख िकया जाता है.
भारतीय सािहय का चौथा भाषा-पHरवार चीनी-ितZबती भाषा पHरवार है।
4.3.4 सािहय का िवतार
भारतीय सािहय क Tयापकता के अंतग(त आपने भौगौिलक, ऐितहािसक एंव भािषक
िव+तार का अ=ययन िकया। अब हम भारतीय सािहय के सािहियक िव+तार का अ=ययन
कर: गे। जैसा िक िव/टरिनस ने !+तािवत िकया था िक भारतीय सािहय म:-‘‘िवषय-व+तु क
`िO से इसम:, Tयापक अथ( म: ,वाय के सम+त 9प*- धािम(क और लौिकक महाकाTय, !गीत-
काTय, नाटक, नीित-काTय तथा ग म: रिचत कथा-आयाियका, शा7 आिद का अतं भा(व
है।’’ +पOयतया हम देख सकते हfिक सािहय के सम+त काTय 9प* एवं भारतीय सािहय का
सम+त भाषाएँ इसके अतं ग(त आती है। डॉ. भोलानाथ ितवारी ने भारतीय सािहय के िव+तार पर
िटnपणी करते हए िलखा है-‘‘तिमल, तेलगु ,ु मराठी, बगं ाली, आिद िविभ/न भाषाओ ं के मा=यम
से अिभTय_, िविभ/न सािहय य* एक होकर भारतीय सािहय क संRा पाने के अिधकारी हf,
इसको हम िह/दी सािहय क अपनी संकBपना के मा=यम से समझ सकते हf। जब हम िह/दी
सािहय क आज बात करते हf,तब उसे खडी बोली ़ म: रिचत काTयकृ ितय* तक ही सीिमत नहM
उतराखड मु त िवविवालय 33
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
रखते। इसम: !साद, पंत, िनराला, !ेमच/0, अRेय, यशपाल आिद क रचनाओ ं के साथ-साथ
अवधी, qज, मैिथली आिद भाषाओ ं के सािहयकार जायसी, सरू , तल ु सी, िवापित आिद क
कृ ितय* को भी समािहत करने म: संकोचन नहM करते। इन िविभ/न भाषा/बोिलय* के मा=यम से
अिभTय_ होने वाला सािहय एक है य*िक इनक रचना करने वाले िह/दी भाषाई समाज क
जातीय चेतना एक है।’’
‘‘िजस !कार वृजवासी और अवध-िनवासी Tयि_य* क मातृबोली kमशः qजभाषा और
अवधी है, िफर भी िह/दी भाषाई समदु ाय का एक सद+य होने के नाते अपने Tयि_व के एक
आयाम पर दोन* ही समान 9प से िह/दी भाषाभाषी है, उसी !कार हम यह भी कह सकते हf िक
तिमलनाडु का तिमलभाषी, आं !देश का तेलुगभु ाषी, महाराPQ का मराठी भाषी और बगं ाल
का बँगलाभाषी, अपनी तमाम Fे7ीय िविशOताओ ं के बावजदू अपने Tयि_व के एक वृहत
आयाम पर भारतीय है और उनके [ारा रिचत सािहय अपने सम+त भषा-भेद के उपरा/त भी
एक (भारतीय) सािहय के अंतग(त आते हf, य*िक भारतीय समाज क ऐितहािसक पर5परा,
सां+कृ ितक मBू य और काTय-संवेदना क ऐितहािसक पर5परा, सां+कृ ितक मBू य और काTय-
संवदेना समानधमg है और उसके [ारा रिचत सािहियक कृ ितय* म: काTय-व+तु का संयोजन,
कथा-9िढ़य* का िनवा(ह, भाव-बोध का सं+कार और िशBपगत अिभिव/यास क !कृ ित
सामािसक है।’’
अयास 1
(क) सही/गलत म: उतर दीिजए।
1. भारत का भौगोिलक िव+तार कमीर से लेकर क/याकुमारी तक फै ला हआ है।
2. मै समूलर ने वेद* का समय 1200 ईसा पवू ( का माना है।
3. बालगंगाधार ितलक ने वेद* का रचनाकाल 2000 ईसा पवू ( माना है।
4. दयान/द सर+वती ने वेद* का समय 4000 ईसा पवू ( माना है।
5. Tयास ने वेद* का रचनाकाल सृिO के !ारि5भक चरण को माना है।
(ख) र= थान क पूित. किजए।
1. qा ी िलिप क.............शैिलयाँ !चािलत है। (2/5/7)
2. उKरी शैली क शैली नहM हf ..............। (पिVमी िलिप/गु\ िलिप/कुिटल िलिप)
3. ग9ु मख ु ी िलिप का संबंध है.........से। (शारदा िलिप/4/थ िलिप/ग\ु िलिप)
4. उिड़या का संबधं ...... से है। (पिVमी नागरी/पवू U नागरी/ पिVमी िलिप)
5. 0िवड़ भाषा पHरवार क: अंतग(त भाषा .........नहM है। (उिड़या/मलयालभ/क/नड़)
2- िटnपणी िलिखए।
1. भारोपीय पHरवार
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
उतराखड मु त िवविवालय 34
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
2- चीनी- ितZबती भाषा पHरवार
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
4.4 भारतीय सािहय का सांकृितक िवतार
भारतीय सािहय क Tयापकता के अंतग(त हमने उसके भौगोिलक, ऐितहािसक,
भािषक एवं सािहिय िव+तार को समझने का !यास िकया। अब हम भारतीय सािहय के
सां+कृ ितक िव+तार के तव* को समझने का !यास कर: गे।
भारतीय सािहय बनाम राA< क अवधारणा का
भारतीय सािहय के मल
ू म: राPQ क अवधारणा का !o अनुPयतु है। िकसी भी देश क
राPQीयता व जातीयता का !o भौगोिलक भी हो सकता है और सां+कृ ितक भी। कई बार
राजनीितक भी........। !ाचीन काल म: भारत क राPQीयता क अवधारणा मूल 9प से
सां+कृ ितक !o ही था। भारत, आया(वत( जैसे नामकरण हो या 16 महाजनपद क अवधारणा।
या ये अवधारणाएँ एक राPQ का संकेत नहM करते? इसी !कार 12 hयोित(िलंग एवं चार पीठ
क +थापना या इस बात का सूचक नहM है क स5पणू ( भारत एक राPQ क संकBपना से जड़ु ा
हआ है. राजनीितक !o* ने भारत क सीमाओ ं को कम कर िदया है, और भी इस !कार का
!यास िकया जा रहा है....। िफर सां+कृ ितकता का !o जातीयता से जुड़ा हआ भी है। हर
सं+कृ ित अपनी जातीयत का िनमा(ण करती ही है। भारतीय जातीय चेतना भी एक ही है और वही
उसके एक राPQ का सचू क भी है। महाभारत म: भारत क राPQीयात का संकेत करते हए कहा
गया है- ‘‘इस देश म: गंगा, िसं/धु सर+वती, गोदावरी, नम(दा, िवत+ता, सरय,ू गोमी, कावेरी
आिद निदयाँ !वािहत है। इसम: कु9, पांचाल, शरू सेन, कोसल, किलंग, िवदभ(, पु u, िनषाद,
िनश , कमीर, गा/धार, िसंध-ु सौवीय(, 0िवड़, के रल, कणा(टक, चोल, चिु लक, पिु ल/द,
कुिल/द, क*कण, आ/ आिद अनेक जनपद है। इस देश म: आय( ले}छा दोन* रहते हf यवन,
चीन, का5बोज भी इस भारत म: है।’’ +पO है िक राPQ वे देश क अवधारणा का िवकास उस
समय भी हो चुका था।
धम. धानता
उतराखड मु त िवविवालय 35
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
भारतीय सं+कृ ितक के मूल म: धािम(कता है। चाहै वह चार पीठ हो या 12 hयोित(िलंग या 52
शि_पीठ/स5पणू ( म: इसी !कार क धािम(क भावना उसे अपने भीतर समोये हए है।
सिहAणुता और उदारता
भारतीय सं+कृ ित अपनी उदारता और सिहPणतु ा क भावना के िलए िवयात रही है। वेद* म:
‘वसधु ैव कुटु5बकम’् क अवधारणा िमलती है। !ाचीन भारतीय सं+कृ ितक समरसता एवं
साहच(य पर आधाHरत रही है। यानी जाित-धम(, रंग एवं देश क सीमाओ ं से य_
ु होकर मनुPयता
पर िवचार िवमश( करना।
अनेकता मB एकता का
हमने अ=ययन िकया िक भारत बहिवध भाषा एवं सं+कृ ित का राPQ है। िक/तु इतनी िविवधता के
बावजदू स5पूण( राPQ क जातीय चेतना एक ही है। इसे ही अनेकता म: एकता कहा गया है।
4.5 सारांश
एम.ए.एच.एल-204 क यह चौथी इकाई है। यह खड भारतीय सािहय पर आधाHरत है।
भारतीय सािहय क Tयापकता’ शीष(क इस इकाई का आपने अ=ययन कर िलया है। इस इकाई
के अ=ययन के पVात आपने जाना िक-
• भारतीय सािहय क Tयापकता को भौगोिलक, ऐितहािसक, भािषक एवं
सािहियक सदं भg म: समझने क ज9रत है।
• भारतीय सािहय के ऐितहािसकत +व9प को खोजते हए वेद* क उपिK से
जोड़ा गया है । वेद* का समय !ामािणक 9प से ईसा पवू ( 4000 के आस-पास
माना जा सकता है।
• भारतीय सािहय के भािषक िव+तार को समझने के kम म: आपने अ=ययन
िकया िक qा ी िलिप क उKरी -दिFणी शैिलय* से ही भारत क िविभ/न
भाषाओ ं का ज/म हआ है।
• संसार के भाषा पHरवार* म: चार भाषा पHरवार- भारोपीय, 0िवड़, भाषा
पHरवार, चीनी-ितZबती एवं आ+Qो-एिशयािटक पHरवार, भारतीय सािहय के
अतं ग(त आते हf।
• भारतीय सािहय का !मख ु भारोपीय पHरवार के अंतग(त आता है भारोिपय
पHरवार म: सं+कृ त, िह/दी, पंजाबी, उद,(ू गजु राती, मराठी, बांगला, ओिड़या,
असिमया, जैसी !मुख भाषाएँ आती है।
4.6 श"दावली
उतराखड मु त िवविवालय 36
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
• महाकाTयकालीन सvयता - रामायण-महाभारत जैसे महाकाTय* क
सvयता।
• बहभािषक राPQ - ऐसा राPQ जहाँ कई भाषाएँ (सं+कृ ित)
बोली जाती है।
• भाषा पHरवार - ससं ार क सम+त भाषाओ ं का उनके
Tयाकरिणक संरचना के आधार पर
वगUकरण।
• बृहत आयाम - बड़े संदभ( म: देखने क `िO
• कथा- 9िढ़ - कथा क पर5परागत पित।
4.7 अ%यास &' के उतर
अvयास !o 1
(क)
1. सय
2. सय
3. असय
4. सय
(ख)
1. 2
2. पिVम िलिप
3. शारदा िलिप
4. पवू U नागरी
5. उिड़या।
4.8 संदभ *+थ सूची
1. भारतीय सािहय-ि7पाठी, रीमछबीला, वाणी !काशन, सं+करण 2012
2. भारतीय सािहय का समेिकत इितहास - (सं) नगे/0, िह/दी मा=यम काया(/वय
िनदेशालय, िदBली िव<िवालय, ि[तीय स+ं करण 2009
3. िह/दी भाषा: इितहास और वत(मान - इिं दरा गांधी राPQीय म_ ु िव<िवालय, नई
िदBली अग+त 2010
4. िह/दी सरं चना - इिं दरा गाधं ी राPQीय म_
ु िव<िवालय, नई िदBली अ टूबर 2009
4.9 सहायक/ उपयोगी पाठ्य साम*ी
उतराखड मु त िवविवालय 37
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. तल ु नामक सािहय भारतीय पHर!ेIय:चौधरी, इ/0नाथ, वाणी !काशन, ि[तीय
स+ं करण 2010
2. तलु नामक अ=ययन: भारतीय भाषाएँ और सािहय: (सं)- राजरू कर, भ.ह. एवं बोरा
राजमल, वाणी !काशन, ि[तीय सं+करण 2008
4.10 िनब+धामक &
1. भारतीय सािहय के भािषक िव+तार क 9परे खा !+ततु किजए।
2. भारतीय सािहय क Tयापकता पर !काश डािलए।
उतराखड मु त िवविवालय 38
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई – 5 भारतीय सािहय का इितहास
इकाई क परे खा
5.1 तावना
5.2 पाठ का उेय
5.3 भारतीय सािहय का इितहास
5.3.1 दिEणी सािहय का इितहास
5.3.2 पवू F सािहय का इितहास
5.3.3 पिGमी सािहय का इितहास
5.3.4 िह0दी सािहय का इितहास
5.4 भारतीय सािहय का तल ु नामक अ8ययन
5.5 भारतीय सािहय: उपलि(धयाँ और अ0य ,
5.6 सारांश
5.7 श(दावली
5.8 अ+यास ,- के उतर
5.9 संदभ& /0थ सचू ी
5.10 सहायक/उपयोगी पाठ्य साम/ी
5.11 िनब0धामक ,
उतराखड मु त िवविवालय 39
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5.1 तावना
िपछली इकाइय* म: आपने भारतीय सािहय क अपधारणा एवं Tयापकता से संबंिधत
इकाईय* का अ=ययन िकया। आपने अ=ययन िकया िक स5पणू ( राPQ म: अंतिन(िहत जातीय स7ू *
क तलाश क !िkया म: ही भारतीय सािहय क अवधारणा सामने आई। भारतीय सािहय के
भौगोिलक- ऐितहािसक +व9प से आप पHरिचत हो चुके हf.....।आपने भारतीय सािहय के
भाषा िवकास क !िkया का भी अ=ययन िकया। इस इकाई म: हम भारतीय सािहय के इितहास
का अ=ययन कर: ग:।
भारतीय सािहय म: पवू U- पिVमी-उKरी एवं दिFणी सभी भाषाओ ं के सािहय का अ=ययन
िकया जाता है। भारत क !मुख भाषाओ ं के इितहास एवं उसक िवशेष ताओ ं का अ=ययन कर
तल
ु नामक 9प से भारतीय सािहय क पीिठका तैयार क जाती है। दिFण क भाषाओ ं तेलगु ,ु
तिमल, मलयालम एवं क/नड़ से या भारतीय आय(भाषाओ ं का सां+कृ ितक स5ब/ध ि+थर
िकया जा सकता है? पिVमी भाषाओ ं गजु राती-मराठी से या िह/दी क जातीय चेतना का
स5ब/ध है? और िफर है तो िकस 9प म: ? पवू U भाषाओ-ं बगं ला, ओिड़या, असिमया से या
भारतीय आय(भाषा (िह/दी) का जातीय स5ब/ध है? और है तो िकस 9प म:? और िफर िह/दी
क सामािसक चेतना भी 18 बोिलय* (भाषाओ)ं म: िवभ_ है, उनका तािवक आधार या है?
इन सभी !o* को समझने क `िO से भारतीय सािहय के इितहास का अ=ययन उपयोगी है।
इस इकाई म: हम भारतीय सािहय के तुलनामक अ=ययन के मा=यम से भारतीय सािहय व
स+ं कृ ित क जातीय चेतना को समझने का !यास कर: ग:। साथ ही कुछ अ/य !o* पर भी हम इस
इकाई म: िवचार कर: ग:।
5.2 पाठ का उेय
एम.ए.एच.एल- 204 क यह पांचवी इकाई है। यह इकाई भारतीय सािहय के इितहास पर
के ि/0त है। इस इकाई के अ=ययन के पVात आप-
• भारतीय सािहय के इितहास से पHरिचत हो सक: गे।
• दिFणी भाषाओ ं के सािहय से पHरिचत हो सक: ग:।
• पिVमी भाषाओ ं के सािहय से पHरिचत हो सक: ग:।
• पूवU भाषाओ ं के सािहय से पHरिचत हो सक: गे।
• उKरी भाषाओ ं के सािहय से पHरिचत हो सक: ग:।
• भारतीय सािहय का तुलनामक अ=ययन कर सक: ग:।
• भारतीय सािहय क उपलिZधय* को जान सक: गे।
• भारतीय सािहय से संबिं धत पाHरभािषक शZदाविलय* को जान सक: गे।
उतराखड मु त िवविवालय 40
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5.3 भारतीय सािहय का इितहास
िपछली इकाई म: आपने भारतीय सािहय के मूल वेद-उपिनषद इयािद के ऐितहािसक
िववेचन का अ=ययन िकया। इस इकाई म: हम !मख ु भारतीय भाषाओ ं व सािहय का
ऐितहािसक िववेचन कर: गे/ अ=ययन कर: गे।
5.3.1 दिDणी सािहय का इितहास
आपने अ=ययन िकया िक दिFणी सािहय का संबंध 0ािवड़ भाषा पHरवार से है। इस
भाषा पHरवार म: चार !मख ु भाषाएँ हf। तिमल, मलयालम, क/नड़ एवं तेलगु ु भाषा से िमलकर
यह भाषा पHरवार बना है। सं+कृ त के बाद के भाषा िवकास kम म: ये भाषाएँ आती है। दिFणी
सािहय के इितहास को समझने के िलए !मुख भाषाओ ं का इितहास एवं उसके सािहय को
देखना !ासांिगक होगा।
तिमल भाषा का इितहास
दिFण भारतीय भाषाओ ं म: तिमल भाषा सवा(िधक संप/न मानी जाती है। तिमल भाषा क
रचनाएँ !थम शताZदी से भी पवू ( िमलनी श9 ु हो जाती है, िक/तु इसका भाषा का वा+तिवक
िवकास 7-8 वी शताZदी से िमलता है। तिमल सािहय का काल िवभाजन करते हए उसे
सामा/यतः मोटे तौर पर !ाचीन काल एवं म=यकाल म: िवभािजत िकया गया है। आइए तिमल
सािहय का काल-िवभाजन देख:-
1. ाचीनकाल - 500 ई.पू. से 600 ई. तक
!ाचीनकाल क कृ ितय* को भी तीन भाग* म: िवभ_ िकया गया है।
1. संगम यगु (संघकालीन कृ ितयाँ)
2. संघकालोतर
3. महाकाTय [य
2- मयकाल - 600 ई. से 1200 ई.
म=यकाल क कृ ितय* को अवा/तर 9प से कई भाग* म: िवभ_ कर िदया गया है।-
1. भि_ सािहय - इसम: शैवनायमार और वैPणव आलवार भ_* क कृ ितय* आती है।
2. जैन, बौ !ब/धकाTय एवं क5बन रामायण।
3. उतरकाल- 1200 ई. से 1750 ई. तक
3- परवतU काल -17 वM से 19 वM सदी तक, इसम: !मख ु 9प से मिु +लम सािहय आता
है।
4- आधुिनक काल - 19 वM सदी से अब तक।
1. !ाचीनकाल तिमल सािहय (सगं म सािहय)
तिमल के !ाचीन सािहय म: संगम सािहय सवा(िधक !ाचीन है। संगम सािहय म: लगभग 381
प व 782 वण(नामक !गीत हf। संगम सािहय के संकलन को दो वगg म: रखा गया है- 1-
एट्तो है या अO सं4ही 2- पतपु पा या गीतदशी अO स4ं ही के उ_ आठ संकलन* के पद* म:
उतराखड मु त िवविवालय 41
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
मनPु य क अनुभूितय* एवं !ाकृ ितक का िच7 खMचा गया है। गीतदशी क रचनाओ ं म: मु य 9प
से राजवशं * के पराkम !ेम एवं !कृ ित वण(न का िच7ण िमलता है।
2. सघं कालोतर या नीितकाल
नीितकाTय* का समय 100 से 500 ई. तक माना गया है। नीितकाTय* क रचना के पीछे चेर,
चोल और पाडं ् य राजाओ ं के शासनकाल को अशाि/तकारक बताया गया है। इस यगु म: रिचत
काTय* को ‘पिदनेन-कल-कण कु’ (अठारह लघु नीित 4/थ) कहा गया है। 18 लघु गीत* म: 5
!ेम संबधं ी हf। 18 4/थ* म: दो 4/थ िवशेष 9प से उBलेखनीय हf। 1. ित9ककुरल 2.
नालिडयार।
ित9ककुरल के रचियता ‘ित9वBलवु र’ है। यह साव(भौिमक दश(न का 4/थ है। सहधिम(ता,
धमा(चरण, सांसाHर_ा, !ेम एवं जीवन बोध से समि/वत यह स/ु दर रचना है। नालिडयार, जैन
किवय* के िवरिचत प* का सं4ह हf।
3. महाका1य-,य
तिमल सािहय म: िशnपिदकारम् और मिणमेखला को महाकाTय-[य क संRा !ा\ है।
िशnपिदकारम् (नपू रु काTय) के रचियता इलंगो अिडगल है। इस महाकाTय म: कोवलन एवं
क/नगी के मा=यम से तकालीन समाज का Tयापक िच7 खMचा गया है। मिण मेखलै,
महाकाTय, िशnपिदकारम् के आगे का िव+तार माना गया है। यह महाकाTय कोवलन तथा
माधवी क प7ु ी मिण मेखलै के आ=यािमक जीवन क कहानी है।
2- मयकाल
1. म=यकालीन तिमल सािहय वैPणव भि_ आ/दोलन के िलए िवशेष 9प से !िस
रहा है। शैव नायनमार तथा वैPणव आलवार संत* के भि_पणू ( गीत ही इस यगु के सािहय के
िवशेष गौरव है।
शैव नायनकार* क संया लगभग 63है, िजनम: िवशेष 9प से !िस है- सतं ित9मल ू 9,
ित9Rान स5ब/धर, ित9ना, व करसर, स/ु दरर, मािण यावाचक एवं कारै काल अ5मैयार।्
वैPणव आलवार भ_* का भारतीय सािहय म: िवशेष +थान है। वैPणव आलवार भ_ !याः
िन5न जाितय* से आये हए थे। आलवार भ_* के पद* का संकलन आचाय( नाथमिु न [ारा िकया
गया है। इनका समय 3-9 वM सदी के बीच है। 12 आलवार संत हf- पोइगै आलवार (सरोयोगी),
पूदतालयार (भूतयोगी), पेयालवार (िपशाचयोगी), ित9मिलशै (भि_सार), ित9nपन,
ट*डरिडnपिड, ित9मगं ै (परकाल), कुलशेखर, पेHरयालवार (िवPणिु चत), आडं ाल (गोदादेवी),
ब5मालवार (परांकुश) एवं मधुर किव।
2. जैन, बौF ब-धका1य एवं क7बन रामायण-
जैन तथा बौ साधओ ु ं [ारा िवरिचत महाकाTय िवशेष 9प से चिच(त रहै। इस धारा के मह?व
पूण( महाकाTय है1. पे9मकथै 2. जीवक िच/तामिण 3. चल ू ामिण 4. वलैयापित 5.
कुडलके शी।
क5बन रामायण
उतराखड मु त िवविवालय 42
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
तिमल भाषा म: िवरिचत रामायण को क5ब [ारा रचे जाने के कारण इसे कंब रामायण भी कहते
हf। तिमल सािहय म: इस रचना का िविश{ +थान है। वाBमीिक रामायण क कथा को आधार
बनाते हए भी क5ब ने अपने रचना-कौशल एवं मौिलकता का पHरचय जगह -जगह िदया है।
2. उतरकाल: 1200 ई. से 1750 ई. तक
उतरकाल के !िस किवय* म: ‘‘औवैयार’’ नामक एक महान कविय7ी क गणना
क जाती है। इनके [ारा िलिखत आितचिू ड, मदु रु ै आिद िवशेष लोकि!य है। इसी युग म:
जयनक*डार [ारा िवरिचत किलंगतपु रिण रचना िवशेष लोकि!य है। इसी यगु मे िस नाम से
!िस 18 रचियताओ ं क गीतामक कृ ितयाँ िवशेष 9प से !चिलत है।
3. परवतGकाल-
इस यगु के !िस किवय* म: मीनाFी संदु रम िपBलै हf। इनक कृ ितय* म: 16 पुराण,9 िपBलै एवं
11 अंदािनयाँ िवशेष चिच(त है। इसी यगु म: रामिलंग +वािमगल भी थे।
4. आधिु नक काल
िजस !कार िह/दी भाषा म: नवजागरणवादी चेतना का आगमन हआ, उसी !कार तिमल
सािहय म: भी आधिु नक काल म: नवजागरणवादी !वृिKय* का उदय हआ। तिमल सािहय के
नवजागरणवादी !मख ु किवय* म: सुqयम् भारती, भारतीदासन, श ु ान/द भारती, देिशक
िवनायक िपBलै, कोतागंगलम सZु बु, नाम कल रामिलंगम िपBलै एवं कंबदासन आिद !मख ु
है। 1950 ई. के बाद तिमल सािहय म: नई तरह क किवता का (आधिु नक मBू य* से य_ ु )
!ादभु ा(व हआ। इस धारा के !मख ु किवय* म: अचलांिवकै अ5मैयार, नानल, सोम,ू बालभारती,
तरू न, वापणीदासन, के . एम. बालसुqयम्, कृ Pणदासन, ि7लोक सीताराम, भा+करन,
दरु ै सामी, कुिलयन, क9णािनिध , के . वी. जग/नाथन, तंगवेलन, अकलन इयािद है।
तेलगु ु भाषा एवं सािहय
दिFण भारतीय भाषाओ ं म: तेलुगु भाषा का अपना िवशाल सािहय है। भाषा के अथ( म: 1000
ई. के बाद इसका िवकास हआ। 1200 ई. के बाद सािहियक दिO से इसका िवशेष !चार एवं
!सार हआ है। तेलगु ु सािहय को तीन काल* म: िवभािजत िकया गया है-
1. आिदकाल 2. मयकाल 3. आधुिनक काल ।
1- आिदकाल- आिदकाल का एक नाम ‘!ाrनवदयुग’ भी है । इसका समय 1000
ई. से 1380 ई. तक माना गया है। न/नय भ, ितक/ना एवं एर( ना को तेलगु ु सािहय का किव7य
कहा गया है। न/नय भ तेलगु ु के आिद किव कहै गये हf। इ/ह*ने ‘‘आ/ महाभारतम्’’ क
रचना क है। आिदकाल क अ/य कृ ितय* म: वासवे<र [ारा ‘वीर शैव धम(’ का !वत(न िकया
गया है। तेलगु ु का !ाचीनतम रामायण गोन ब ु ा रे ड्िड [ारा रिचत ‘रंगनाथ रामायण’ है। पुराण
सािहय पर काय( क `िO से महाकिव |ीनाथ एवं पोत/ना क गणना क जाती है।
2- म=यकाल - म=यकाल को !ब/ध यगु भी कहा गया है। इस नामकरण
का अधार इस यगु म: बहत से !ब/ध* क रचना का होना है। कृ Pणदवं राय के दरबारी किवय* म:
उतराखड मु त िवविवालय 43
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
अBलासािन पेGना, नंिद ित5मना, रामभ0, घूज(टी, मBलना, तैनािल रामकृ Pण, िपंगिलसरू ना और
भमिू त( आिद हf।
3- आधिु नक युग- वीरे शिलंगम, वडडािद सुZबाराव जयंित रामया, सZु बाराव,
वासदु ेवशाSी, |ीपाद कृ Pणमूित(, िव<नाथ सयनारायण आिद किवय* ने राPQीय मनोवृिKयॉं
िवकिसत करने म: िवशेष भिू मका िनभाई। तेलगु ु सािहय क !मख ु सािहियक !वृिKय* म:
+व}छ/दतावाद, अvयदु य किवता (!गितशील काTया/दोलन), !योगवाद और नई किवता,
साठोतरी किवता इयािद धाराएँ िमलती है।इस `िO से ये िह/दी किवता क तरह ही, उसी kम
से िवकिसत हए हf।
क-नड भाषा एवं सािहय
क/नड़ सािहय का इितहास 2-5 वM सदी के बीच म: िमलता है। क/नड़ सािहय को सिु वधा क
`िO से आिदकाल, म=यकाल एवं आधिु नककाल म: िवभ_ कर सकते हf।
आिदकाल - 950 ई. ’ 1150 ई के बीच के समय का क/नड़ सािहय का +व(णयगु कहते
हf। इस काल िज/ह: रन7यी या किव7य कहा जाता है। पंप ने दो काTय* क रचना क है-
आिदपरु ाण एवं िवkमाज(ुन िवजयम।् पो/न [ारा रिचत कृ ितय* म: ‘शाितपरु ाण’ नाम कृ ित का
िवशेष मह?व है। र/न ने अिजतपरु ाण, गदायुम या सहसभीम-िवजयम् जैसी कृ ितय* का रचना
क है। इस यगु के अ/या लेखक* म: नागच/0, चावडंु , नाग वमा(, के िशराज, नेिमच/0, 90भ,
हHं रहर, राघवांक आिद !मखु है।
मयकाल - क/नड़ सािहय का म=यकाल 1200-1400 ई. तक माना जाता है। इस काल
के !मख ु आ/दोलन* म: 12 वM शताZदी के वीरशैववाद क गणना क जाती है। इसके उ!ेरक
बसवे<र थे। इस आ/दोलन के मा=यम से ‘वचन शैली’ का !ादभु ा(व हआ। 12 वM शताZदी से
15 वी शताZदी तक का काल’ वसवयगु ’ कहा जाता है। वंसवे<र इस kाि/त के उ!ेरक थे।
इसी !कार कना(टक म: वैPणव सािहय क भी समृ पर5परा नही है। यहाँ कृ Pणभि_ को
!चाHरत करने म: |ी म=वाचाय( क !मख ु भूिमका है।
आधुिनककाल- 17 वM सदी के बाद क/नड़ सािहय का ास होना !ार5भ होता है। 17-19वM
सदी तक क/नड़ सािहय म: अधं कार काल के नाम से जाना जाता है। 19वM सदी के बाद से
क/नड़ सािहय म: आधिु नक काल का !वेश होता है। बे/0े, मंगलरू , िवनायक कृ Pण गोकाक, |ी
कंठnपा, क. शंकरभ ने देशभि_ को क/नड़ सािहय से जोड़ा। क/नड़ सािहय म: +व}छ/द
तावाद (भावगीत), !गितशील चेनता एवं !योगवादी किवता क !वृिKयॉ ं िह/दी सािहय के
kम म: ही देखने को िमलता है।
मलयालम भाषा एवं सािहय का इितहास
मलयालम भाषा, तिमल भाषा क एक शाखा के 9प म: िवकिसत हई है। मलयालम भाषा का
इितहास चौथी सदी से +पO 9प से िदखने लगता है, िक/तु इसका सािहय 13 वM सदी से
Tयवि+थत 9प से िमलना !ार5भ होता है। मलयालम भाषा एवं सािहय को सुिवधानसु ार तीन
काल* म: िवभ_ िकया गया है- 1. आिदकाल 3. म=यकाल 3. आधिु नककाल
उतराखड मु त िवविवालय 44
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. आिदकाल- आिदकालीन मलयालम सािहय म: तीन स5!दाय देखने को िमलते
हf- 1. प}च मलयालम (श ु मलयालम भाषा म: अिभTयि_) 2. तिमल स5!दाय 3. सं+कृ त
स5!दाय। प}च मलयालम म: मुय 9प से लोकगीत है। इसके रचनाकार रामवीर वमा( है।
सं+कृ त स5!दाय म: लीला ितलकम्, संदश े काTय इयािद मह?व पणू ( कृ ितयाँ है।
2. मय काल (भि_काल एवं |ृंगाHरक काTय)
मलयालम के भि_काल म: संतसािहय के कुछ सू7 हम: ‘देवीपाट्डु’ और लोकगीत* म: िमलते
हf । िक/तु !बंध गीितकाTय* म: सबसे !िस रचना ‘कृ Pणगाथा’ है। इसके रचनाकार चेकशेरी
नबं िू तरी है। एषतु }छन [ारा िवरिचत िविलnपा भी इस यगु क मह?व पणू ( रचना है। 14 वM से
लेकर 17 वM शताZदी तक मलयालमक भाषा म: चंपक ू ाTय* क ल5बी पर5परा भी हम: देखने का
िमलता है। इनम: ‘रामायण चंपू’ सबसे !िस है।
19 वM सदी म: वेणिमण नंपिू तHरnपाट ने |ृंगाHरक एवं मािम(क पद* क रचना कर |ृंगाHरक पद*
क श9 ु आत क। ‘!ब/धम्’ वेमिण का |ृंगाHरक काTय है। इसी !कार संदेश काTय पर5परा म:
‘‘उणनु ीिल संदेश’ का भी मह?व पणू ( +थान है
3. आधुिनककाल - 19 वM सदी से करे ल वमा( से मलयालम भाषा म: नई चेतना
का !वेश होता है। के .सी. िपBलई, ए.आर. राजराज वमा( एवं सी.एस. सुqय5पोी के मा=यम
से नवीन भाव बोध मलयालम सािहय को !ा\ होते हf। इसी !कार 20 वी शताZदी म: कुमार
असन, वBलतोल एवं उBलरू के मा=यम से मलयालम सािहय का !चरु िवकास हआ।
5.3.2 पूवG सािहय का इितहास
पवू U भाषा म: !मख
ु 9प से बंगला, उिड़या एवं असिमया भाषा के सािहय क गणना
क जाती है। यहाँ संFेप म: हम नई भाषाओ ं के इितहास का अ=ययन कर: ग:।
बंगला सािहय का इितहास
बगं ला भाषा का स5ब/ध मागधी अपmश ं से माना जाता है। बगं भाषा क बोली होने कारण
इसका नाम बंगला पड़ा है। बंगला भाषा व सािहय को तीन भाग* म: िवभािजत िकया गया है।
1. !ाचीनकाल या आिदकालीन सािहय (950से 1350ई. तक) 2. म=यकाली बंगला (1350
से 1800 ई. तक) 3. आधिु नक बगं ला सािहय (1800 ई. से आज तक)
1. ाचीनकाल का बंगला सािहय - िस* के चया(गीत* को !ाचीन बगं ला
सािहय का !ाचीनतम सािहय कहा जाता है। बौ- नाथ सािहय के अितHर_ जयदेव कृ त
‘गीत गोिव/द;’ इस काल क िवशेष उपलिZध है।
2. मयकालीन बगं ला सािहय- म=यकालीन बगं ला सािहय क !मख ु कृ ितय* म:
कृ ितवास ओझा क ‘कृ ितवास रामायण’ बंगला सािहय क उपलिZध ही है। मालाधर बसु [ारा
िलिखत, |ी कृ Pण िवजय’ !मख ु !ब/धकाTय है। चडं ीदास रिचत ‘|ीकृ Pण कत(न’ अपने
गीतामकता के कारण उBलेखनीय है। चैत/य महा!मभु [ारा रिचत ‘चैत/यचHरतामृत’ इस यगु
क िविशO कृ ित है। म=यकाल क अ/या उBलेखनीय बगं ला कृ ित म: 16 वM सदी का
मगं लकाTय एवं दौलत काजी रिचत ‘लोरच/0ाणी’ िवशेष उBलेखनीय है।
उतराखड मु त िवविवालय 45
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
3. आधुिनककालीन बंगला सािहय-
भारतीय भाषाओ ं म: नवजागरणवादी +वर !दान करने म: बांगला भाषा एवं सािहय क मह?व
पूण( भिू मका रही है। चाहै वह फोट(िविलयम कॉलेज का ग सािहय रहा हो या !थम िह/दी
समाचार प7 उद/त मात(ड। नवजागरणवादी चेतना के !व_ाओ ं म: ई<र च/0गु\, रंगालाल,
मधसु दू न, हैमच/0 एवं नवीनच/0 क मह?व पणू ( भिू मका रही है।
इसी !कार +व}छ/दतावादी !वृिKय* के िवकास म: भी बगं ला सािहय क मह?व पणू ( भूिमका
रही है। िवहारीलाल चkवतU, सरु े /0नाथ मजूमदार, ि[जे/0नाथ टैगोर, देवे/0नाथ सेन,
गोिव/0च/0दास, ि[जे/0लाल राय एवं रवी/0नाथ टैगोर इस !कृ ित के !मख ु किव हf। ग
सािहय म: भी बंगला सािहय का महपण( योगदान रहा है। बंिकमच/0, रवी/0नाथ टैगोर,
ताराशंकर वं ोपा=याय, शरतच/0 चोपा=याय, व ु देव वसु इयािद !मख
ु कथाकार रहै हf।
उतराखड मु त िवविवालय 46
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
‘राPQीयसयवादी बनिवालय’ का उिड़या सािहय के िवकास म: kाि/तकारी मह?व है।
उिड़या के अ/य किवय* म: िचतं ामिण महित, कंु तलाकुमारी, लIु मीकांत महापा7,
कृ पािस/धुिम7, च/0मिणदास आिद उBलेखनीय है। सन् 1935 ई. के बाद म: भगवती चरण
पािण4ही ने’ नवयगु सािहय संसद’ नामक सं+था क +थापना क और ‘आधिु नक’ शीष(क से
एक मािसक प7 का !काशन भी िकया। कािलदं ीचरण पािण4ही और बैकंु ठनाथ अतीि/0य ने
उिड़या किवता म: kाि/त का +वर तेज िकया।
उतराखड मु त िवविवालय 47
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5.3.3 पिLमी सािहय का इितहास
पिVमी सािहय म: !मख ु 9प से मराठी, गजु राती एवं पंजाबी सािहय का अ=ययन
िकया जाता है। यहाँ संFेप म: हम इन भाषाओ ं का इितहास देखने का !यास कर: गे।
मराठी भाषा एवं सािहय का इितहास-
मराठी का सबं ंध महाराPQी !ाकृ त से बाताया गया है। मराठी भाषा का !ाचीनतम समय 9 वM
सदी म: ि+थर िकया गया है। िक/तु सािहय के 9प म: इसका समय 12 वM शताZदी के आस-पास
ि+थर िकया गया है। मराठी के आिदकिव हf। इनका 4/थ िववेकिस/धु है।
मराठी सािहय का काल िवभाजन-
मराठी सािहय को !मख ु 9प से दो काल* म: िवभ_ िकया गया है-
1. ाचीनकाल (1000-18000 ई. तक)
2. आधुिनककाल - 1800 ई. के बाद का सािहय
1. !ाचीनकाल मराठी सािहय को 6 वगg म: िवभािजत िकया गया है- महानभु ावकाल,
Rाने<र-नामदेवकाल, एकनाथकाल, तुकाराम- रामदासकाल, मोरोपंतकाल, !भाकर राम
जोशीकाल
उतराखड मु त िवविवालय 48
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. आिदकाल 2. मयकाल एवं 3. आधुिनक काल
1. आिदकाल पंजाबी सािहय म: उBलेखनीय सािहय नहM है। िस-नाथ सािहय का
एक िह+सा पंजाबी से ज9र संबिं धत रहा है।
2. मयकाल-
म=यकाल का पंजाबी सािहय िवशेष उBलेखनीय रहा है। म=यकाल म: पजं ाबी क चार काTय
पर5पराएँ देखने को िमलती है- सफ ू पर5परा, ग9ु नानक क संत पर5परा, िक+सा और वार।
सफ ू पर5परा म: शेख फरीद, शाह हसैन बBु लेशाह और िसहरफ आिद !मख ु 9प से
उBलेखनीय हf।
िस ख गु9ओ ं क पर5परा का आधार 4/थ ‘‘ 4/थ सािहब’’ है। 4/थ सािहब िस ख गु9ओ ं
क वािणय* का संकलन है। इस पर5परा म: ग9 ु नानक, अगं द, अमरदास, रामदास, अज(ुन एवं
ग9ु तेग बहादरु क रचनाएँ संकिलत है।
िक+सा और वार !मख ु तः !ेमकथा है। बुBलेशाह और वाHरस शाह इस पर5परा के !मख ु किव
हf।
3. आधुिनक काल-
19 वM शताZदी के बाद से पंजाबी भाषा एवं सािहय म: आधिु नकता का !वेश हआ। भाई
वीरिसंह , परू निसंह, धनीराम इयािद इस युग के चिच(त रचनाकार हf।
अयास 1
िटnपणी किजए।
उतराखड मु त िवविवालय 49
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. तिमल सािहय का काल िवभाजन
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
2. मराठी सािहय का काल िवभाजन
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
अयास 2
Hर_ +थान* क पिू त( किजए।
1. तिमल सािहय के !ाचीन यगु को.......कहा गया है। (संगमकाल/परवतU
काल/उतरकाल)
2. िशnपिदकाराम.् .............सािहय का महाकाTय है। (तेलगु /ु मलायलम/तिमल)
3. तेलगु ु आिदकाTय का एक नाम ...... है। (!ब/धयुग/!ाrनबदयगु /म=यकाल)
4. क/नड़भाषा के रन7य नहM हf। (पंप/पोप/बसवे<र)
5. मलायलम भाषा म: ......... काल माने गये हf। (5/3/10)
सय / असय का चुनाव किजए।
1. बंिकमच/0 चटजU बगं ला भाषा के सािहयकार है।
2. जग/नाथदास क भागवत को उिड़या क बाइिबल कहा गया है।
3. शंकरदेव तिमल भाषा के सािहयकार हf।
4. मराठी पिVमी सािहय के अतं ग(त आता है।
5. हैमच/0 गुजराती भाषा के सािहयकार हf।
5.4 भारतीय सािहय का तुलनामक अ3ययन
!मखु भारतीय भाषाओ ं का तुलनामक अ=ययन करने पर हम देखते हf िक कुछ ऐसे
तव हf जो !ायः भारतीय भाषाओ ं म: िमलते हf सव(!थम समानता का तव है भाषाओ ं का काल
िवभाजन। !ायः भाषाएँ आिदकाल, म=यकाल एवं आधिु नककाल म: िवभ_ है। हाँ इस संदभ( म:
सािहय के !ार5भ होने का समय अवय अलग है, लेिकन आधुिनककाल का समय !ायः
भाषाओ ं म: समान है। इसका अथ( यह है िक आधिु नक चेतना का आगमन भारतीय भाषाओ ं क
यह है िक भि_कालीन !वृिKयाँ !ायः भाषाओ ं म: पाई जाती है। िह/दी, पंजाबी, मराठी, बंगला
जैसी भाषाओ ं के तो कालkम म: भी काफ सामनता है। तीसरी समानता ग के +तर पर है। ग
का Tयापक 9प म: !योग भी आधिु नक काल म: देखने को िमलता है, जो !ायः भाषाओ ं म: हम
उतराखड मु त िवविवालय 50
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
देख सकते हf। इसी !कार +व}छ/दतावादी, !गितवादी एवं यथा(थवादी !वृिKय* म: भी काफ
हद तक सा5य देखने को िमलता है।
5.6 सारांश
एम.ए.एच.एल-204 क यह पांचवी इकाई है। यह इकाई भारतीय सािहय के इितहास
से संबंिधत है। इस इकाई का आपने अ=ययन कर िलया है। इस इकाई के अ=ययन के उपरा/त
आपने जाना िक-
• भारतीय सािहय के इितहास म: दिFणी, उKरी , पवू U एवं पिVमी भाषाओ ं के
सािहय एवं भाषा के इितहास का अ=ययन िकया जाता है।
• आपने अ=यन िकया िक !येक भाषा म: महाकाTय* क समृ पर5परा रही है।
चाहै वह तिमल सािहय हो, िह/दी सािहय हो या तेलुगु सािहय।
• रामायण एवं महाभारत जैसे जातीय महाकाTय भारत क कई भाषाओ ं म:
रिचत हए हf। तिमल, तेलगु ु, उिड़या, मराठी, बंगला जैसी भाषाओ ं ने इन
महाकाTय* को अपनी सं+कृ ित के अनु9प रचा है।
• भारतीय भाषाओ ं म: बहत िभ/नता है है, लेिकन !ायः भाषाओ ं के िवकास
kम को आिदकाल, म=यकाल एवं आधिु नक के अतं ग(त रखकर ही िवeेिषत
िकया गया है।
• आधिु नक !वृिKय* का आगमन मोटे 9प म: !ायः भारतीय भाषाओ ं म: थोडे-
बहत काल के अ/तराल म: देखने को िमलता है।
5.7 श"दावली
• जातीय चेतना - िकसी भाषा एवं !देश क मूलभूत िवशेषताओ ं से
य_ ु चेतना।
• साव(भौिमक - Tयापक जीवन का बोध कराना।
• किव7य - एक ही भावधारा से य_
ु तीन किवय* का समूह।
• !ब/ध - कथा िवकास को लेकर चलने वाली िवधा।
• नवजागरण - आधिु नक Rान-िवRान से य_
ु चेतना
• !ाक् - पवू ( का
• qजबिु ल - qज, असिमया - उिड़या से िमि|त भाषा।
उतराखड मु त िवविवालय 51
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
उतराखड मु त िवविवालय 52
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इकाई 6 तेलग
ु ु सा ह य का इतहास एवं परचय -
1
इकाई क परे खा
6.1 तावना
6.2 उेय
6.3 तेलुगु सािहय का इितहास
6.3.1 ांग न0नय यगु /पूव& न0नय यगु (तेलुगु सािहय का आिदकाल)
6.3.2 तेलुगु सािहय का काAय यगु (सन् 1000 से 1850)
6.3.3. तेलगु ु सािहय का आरंिभक काल (सन् 1001 से 1150 तक)
6.3.4 तेलगु ु सािहय का पवू & म8यकाल (सन् 1151 से 1500)
6.3.5 तेलगु ु सािहय का उ.र म8यकाल (सन् 1501 से 1700)
6.3.6 तेलुगु सािहय का तृतीय काल (सन् 1701से 1850)
6.3.7 तेलुगु गI सािहय का िवकास (न0नय से सन् 1850 ई. तक)
6.3.8 तेलुगु सािहय के िविवध काAय प
6.4 सारांश
6.5 श(दावली
6.6 संदभ& /0थ सचू ी
6.7 िनबंधामक ,
उतराखड मु त िवविवालय 53
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
6.1 तावना
तेलगु ु सािहयेितहास एवं उसके िविवध काल* का िववेचन िकया गया है। तेलुगु
सािहय लेखन क पर5परा सं+कृ त के ‘महाभारत’, ‘रामायण’, ‘भागवत’ तथा अ/य परु ाण*
आिद को आधार बना कर शु9 क गयी। सं+कृ त के िवषय* को लेकर तेलगु ु सािहयकार* ने
अपनी अि[तीय !ितभा के [ारा िवषय को सव(था नवीन बना िदया। तेलगु ु सािहयकार* क
!ितभा को देखकर ही सािहयोितहास लेखक* ने किवय* के आधार पर काल, िवभाजन िकए।
जैसे- !ांग न/नय, न/नय, िशव किव, ित कना, एईना, |ीनाथ आिद के नाम पर काल िवभाजन
िकया गया है। तेलगु ु सािहय म: ग 9प !ारंभ से ही !ा\ होती है। तेलगु ु सािहय म: ग 9प
!ारंभ स ही !ा\ होती है। आिद किव न/नय भ [ारा चपं ू शैली अपनाये जाने के बाद लगभग
सभी सािहयकार इस शैली को अपनाते हए सािहय सज(ना करते हf। तेलगु ु का आधिु नक ग,
प 9प सतत् िवकासमान है।
6.2 उ"ेय
इस इकाई के अ=ययन के आप-
• तेलगु ु सािहयेितहास से पHरिचत ह*गे।
• तेलगु ु सािहय के चपं ू काTय से अवगत ह*गे।
• तेलगु ु सािहय के िविवध काTय 9प क जानकारी िमलेगी।
• तेलगु ु सािहय रचना के मल ू िवषय क जानकारी !ा\ होगी।
• तेलगु ु के अि[तीय किवय* से पHरिचत ह*गे।
6.3 तेलग
ु ु सा&हय का इतहास
आिदकाल से अब तक तेलगु ु भाषा तीन नाम* से जानी जाती है। ‘आ/’, ‘तेलगु ’ु
और ‘तेनगु ु’ नाम आिदकिव न/नय और न/नेचोड्ड ने अपनी काTय-भाषा हेतु !य_ ु िकया था।
ित क/ना ने ‘तेनगु ’ु और ‘तेलगु ’ु दोन* शZद !य_ ु िकए थे। जबिक कृ Pणदेवराय ने
‘देशभाषाल/दु तेलुग’ु (देशी भाषाओ ं म: तेलगु ु |े{ है) कहकर तेलगु ु क िमठास को +पO िकया
है। यिप !ाचीन काल म: तेलुगु शZद तेलंगु , ि7िलंग, ितलंग, तेिलंग, तेलंग आिद 9प* म: !य_ु
होता रहा तथािप तेलगु ु शZद के िवकास को गिं टजोिग सोमयाजी ने अपनी कृ ित ‘आं भाषा
िवकासम’ु म: दशा(या है। वत(मान म: राजनीितक जागृित और राPQीय भावना के उथान के कारण
‘आ/’ शZद क जनि!यता बढी ़है िकंतु तेलगं ाना और रायलसीमा आिद िजल* म: ‘आं/’
क जगह ‘तेलगु ’ु और ‘तेलगनं ा’ शZद का मोह है। भारतीय राhय* का भाषायी आ/ं !देश
पहला उदाहरण है। आं/!देश क भाषा तेतु (ड) गु और तेतु (ड) गु धातु 9प क !ाचीनता
सव(Rाता है।
उतराखड मु त िवविवालय 54
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
6.3.1 ांग न-नय युग/पूव. न-नय युग (तेलुगु सािहय का आिदकाल)
ईसा पवू ( क !थम शती से लेकर ईसा क rयारहवM शतM तक इस भाषा म: अनेक लोक
कथाय:, लोकगीत, ताप7 एवं िशला लेख !ा\ हए है। बारह सौ वषg के दीघ(काल को तेलगु ु
सािहय का आिदकाल माना जा सकता है। आं !देश क सामािजक, सां+कृ ितक सु9िच का
पता इस बात से चलता है िक इस काल म: भौितक सख ु -सिु वधाओ ं से ऊपर उठकर परोF-जगत्
क चचा( मनीिषय* म: होती रहती थी। दैिनकचया( जब लेाकगीत* के 9प से फूट पडे़ तो उस
समाज क उ/नित का सहज अनमु ान लगाया जा सकता है। बारहवM शती म: जो सोमनाथ कृ त
‘बसव परु ाण’ म: उस काल के पद म: ‘गोिवदं पद, बोलशुपद, वेलल,ु जोललु, त5ु मेद-पदमल ु ु’
जैसे पद* क !यिु _ का उBलेख िकया है। इस काल के िशलालेख* के दान !ा\ करने वाले
Tयि_ का जाित समेत नाम तथा देने वाले के ‘िव9द’ु (उपािध), पद, !ित{ा के साथ ही देय
व+तु का +पO उBलेख िमलता है। यिप इस काल क भाषा ि+थर नहM थी तथािप Tयवहार म:
!य_ ु भाषा को Tयाकरिणक िनयम रिहत !योग िकया जाता था। िजससे वय(-िवषय म: दोष
देखा गया है। चोल* और चालु य* के िशलालेख* के अ=ययन पवू ( होने पर ही इस काल क
भाषा का +व9प िनिVत िकया जा सकता है। आिदकिव न/नय भ से 25-30 वष( पूव( के !ा\
िशलालेख* म: सं+कृ त का शZदतः अनक ु रण िकया गया है। ‘पडरंग (सेनानी) के िशलालेख* म:
सीसप का !योग हआ है तो िवजयवाड़ा के मछु दमBलु के िशलालेख* म: ‘म=या कर’ छंद का
, जो तेलगु ु के अपने छंद हf। इस !कार !ाचीन िशलालेख* म: सीसम,ु त9वोज, अ कर, गाितका
(तेलगु )ु आिद छंद !य_ ु हए हf। अतः िशलालेख* के आधार पर न/नयभ से पवू ( भी तेलगु ु
सािहय का अि+तव +वीकार िकया जाता है। नवM से rयारवM शताZदी म: बीच क/नड़ के किव
प5प कृ त ‘िवkमाज(नु िवजय’, नामक प+ु तक जो 942 ई. म: समा\ हई, अय/ं त महपूण( है।
प5प एवं किव रन ने +वयं को ब:गी देश के िनवासी अथा(त् तेलगु ु भाषी कहा है। न/नय भ ही
तेलगु ु के !थम किव िस होते हf। तेलुगु म: उस समय तक जो कुछ िलखा गया, उसी को आधार
बनाकर न/नय भ ने ‘महाभारत’ क रचना क । इस काल म: बौ एवं जैन सािहय न के
बराबर !ा\ हए हf, जो कुछ िमले हf वे िशलालेख* के 9प म: । अतः आं भाषा को काTय 9प
म: !िति{त करने वाले सव(!थम किव न/नय भ ही हf ।
6.3.2 तेलुगु सािहय का का1य युग (1000-1850)
उKर भारत जहाँ राजनैितक िवnलव* से सदा आkांत रहा वहM दिFण भारत शांित
काल म: पBलिवत होता रहा। राजा भोज का ‘चपं ू रामायण’ उनक !ितभा को सहज +पO करता
है। राजा भोज के दश(न मा7 से काTय-+फुHरत हो उठता था। !ाचीन काल म: कमीर म: !िति{त
स+ं कृ त को राजा भोज ने इस काल म: !ित{त िकया। ऐसे समय म: जबिक सं+कृ त भाषा क ततू ी
बोल रही हो तेलुगु भाषा म: क गयी +वतं7 रचनाय: इसक िजजीिवषा को +पO करती है । तेलगु ु
काTय क दो पितय* का उBलेख है।
1. माग( काTय 2. देशी काTय
उतराखड मु त िवविवालय 55
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
माग. का1य - इसके अतं ग(त तेलगु ु किवय* [ारा अपनाई गई शैिलय* को =यान म: रखा गया है।
इसम: रस, अलंकार, छंद आिद के साथ िशO-जन-स5मत भाषा का उपयोग िकया गया है। इस
काTय का !धान लFण है रस। शZदशि_य* म: अिभधाथ( क जगह इसम: लIयाथ( और Tयंrयाथ(
पर अिधक आसि_ होती है।
देशी का1य - इसम: किव अपनी 9िच के अनुसार जन-रंजन के िवषय* क चुनते हएु िकसी भी
घटना या कहानी को वय( िवषय बना सकता है। जनता का मन-रंजन तथा परमािथ(क उपदेश
इसका मु य उेय होता है। लोक-ि!यता ही इन किवय* के छंद क श ु ता मानी गई है। देशी
काTय क Tयंजना ताल, लय, मृदगं , भाव-भंिगमा पर आि|त है।
माग. का1य क दो धारायB - माग( काTय क एक |ेणी का नेतृ व न/नय ने और दसू री का
ित कना ने िकया। न/नय और उनके परवतU किवय* ने तेलगु ु म: अिधकृ त और िशO-जन-स5मत
शZद* के साथ है। सं+कृ त क शZद संपदा का भी !योग िकया। इ/ह*ने तेलगु ु के देशी शZद*,
छंद* के साथ स+ं कृ त के उपमान*, परु ाण क !तीकामक कथाओ ं और अलक ं ार* का
मिणकांचन !योग िकया। दसू री |ेणी के किव ित कतना आिद ने सं+कृ त के सािहय-शाS के
िसा/त* को पणू (तः बिहPकृ त करते हए देशी शZदावली, देशी छंद और देशी उपमान* को काTय
म: !मखु ता दी। इस !कार देखा जाय तो आिदकाल से लेकर अतन काल तक का तेलगु ु
सािहय न/नय भ और ित कना क शैिलय* का एक समान 9प से उKरािधकारी है।
मयम माग. - इन दान* परंपराओ ं से इतर कुछ तेलगु ु किवय* ने छंद, अलंकारािद के संबंध म:
ित कना का और भाषा के संबंध म: न/नय भ का अनगु मन िकया। म=यम माग( के !मख ु किव
|ीनाथ है।
तेलुगु सािहय का ांरिभक काल और सामािजक राजनीितक परिथितयाँ - सािहय
अपनी समसामियक पHरि+थितय* क ऊपज होती है। हष(वध(न के पVात् क उKर भारतीय
अराजकता और मगु ल* का शासनारंभ समूल भारतीय आचार-िवचार, परंपराओ ं पर Tयापक
9प से असरकारी था। ऐसे म: आं!देश म: सातवाहन* के बाद क राजनैितक अि+थरता
चालु य* के उदय से दरू हो गयी थी। काकतीय राhय के पतन और मुसलमान* के आगमन के
समय उप/न अि+थरता िवजयनगर क +थापना से दरू हो गयी थी। ऐसे ही सTु यवि+थत
वातावरण म: सािहयािद कलाओ ं का पBलवन हआ। दसवM शती से पवू ( आं क जनभाषा का
!योग अयBप ही हआ िकंतु दसवM शती के पVात् राhया|य पाकर तेलगु ु भाषा सािहय को
मान* बल िमल गया गया हो।
िवजयनगर सााhय के पतन के पVात् आं पराधीनता के दंश को झेलते हए िवखंिडत
होता गया। तेलगु ु सािहय का यह अधं कारपणू ( यगु था। अं4ेज* के आगमन और नTय Rान-
िवRान के पHरचय से तेलगु ु सािहय क त0ं ा भगं हई तो राPQीय आदं ोलन के झ*के ने उसके
आम-स5मान को झकझोर कर रख िदया।
तेलगु ु सािहय के Tयि+थत अवलोकन हेतु चार भाग* म: बाँटा गया हf, जो िन5नांिकत
हf-
उतराखड मु त िवविवालय 56
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1. आरंिभक काल (सन् 1001ई. से 1150 ई. तक)
2. पवू (-म=य काल (सन् 1151 ई. से 1500 ई. तक)
3. उKरम=यकाल (सन् 1501 ई. से 1700 ई. तक)
4. तृतीय काल (सन् 1701 ई. से 1850 ई. तक)
उतराखड मु त िवविवालय 57
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
‘‘आं भाषा वागानु शासनडु ु ’’ (आं भाषा के अनुशासक) उनक Tयाकरण कृ ित ‘आं शZद
िच/तामिण के आधार पर मानते हf।
न-नेचोड़ - तेलगु ु सािहय म: न/नय भ क परंपरा से इतर देशी शZद* और देशी उपमान* को
बढावा़ देने वाल* म: न/नेचोड़ का !मख ु +थान है। यह शैली तेलुगु सािहय म: वत(मान काल तक
!य_ ु हो रही है। न/नेचोड़ के ‘कुमार स5भव’ कृ ित को कुछ िव[ान महाभारत से पवू ( क कृ ित
मानते हf। न/नेचोडे़ ने सं+कृ त काTय-लFण* के +थान पर आं क लोक -शैली को अपनाया है।
इ/ह*ने Fे7ीय तथा +थानीय शZद*, महु ावर* और लोकोि_य* का अिधकािधक !योग ‘कुमार
संभव म: िकया। इस !कार भाषा, भाव और शेली क देशी परंपरा तेलगु ु सािहय म: तब तक
चलती रही जब तक िक सोमनाथ ने ‘बसवपरु ाण’ नहM िलखा।
वेमल ु वाड़ भीम किव - इस युग क तीसरी काTय-धारा के !वत(क इ/हे ही माना जाता है। ‘राघव
पांडवीय’, ‘शत कंठ रामायण’ और ‘नृिसंह परु ाण’ के !वत(क भी किव को eेषालंकार शैली म:
रामायण और महाभारत को एक ही कृ ित म: !+तुत करने के कारण !िसि िमली। लेिकन
इनक चाटुकाHरता क !वृिK से इ/ह: सािहियक आदर न िमल पाया। इस काल म: पावल ु ु9 4ाम
के पटवारी मBल/ना क ‘गिणत सार सं4ह’ कृ ित को गिणत क उBलेखनीय रचना मानी गयी
है। इीसके अलावा भी कुछ अ/य प+ु तक: िलखी गयी। न/नय भ क मृयु के साथ ही इस यगु
का अवसान होता है।
6.3.4 तेलुगु सािहय का पूव. मयकाल (सन् 1151 से 1500)
राजराजा नरे /0 क मृयु के पVात् चालु य सााhय िवखंिडत होने लागा। ऐसे समय म: अिं तम
चालु य नरे श भल ू ोकमBलु को मार कर उसका सेना पित िवhजल पिVमी चालु य सााय का
शासक बना। िवhजल काकतीय सााhय का सं+थापाक तथा वीरशैवमत का !चारक था।
िवhजल के मं7ी वसवे<र ने इस मत का खबू !चार िकया। िकंतु भंि_ आदं ोलन के !चार से यह
मत 9 हो गया।
मिPलकाज.ुन - पवू ( म=यकाल का सू7पात 0ाFाराम के मिBलकाज(नु पंिडत ने िकया। इनक
!मख ु कृ ित देशी छंद ‘कंदमु’ म: िलखी गयी। ‘िशवतव-सार’ है।
पाPकुरिक सोमनाथ - सोमनाथ कृ त ‘बसवपरु ाण’ धम( ही नहM सािहियक `िO से भी एक
मह?व पूण( रचना है। तेलगु ु के ‘ि[पद’ छंद म: िलखी गयी िशवभि_ क तथा िशवभ_* क
अ/यतम !+तिु त इसम: हइ( ं है। तेलगु ु के सहS* अ!य_ ु शZद* को इस 4थं म: +थान !ा\ हआ है।
यिप आकि+मक घटना के पHरपाक म: किव सफल नहM हो पाये तथािप !+तिु त का
संFेपीकरण किव क कुशलता को +पO करती है। पाBकुHरिक सोमनाथ ने इसके अितHर_
‘पंिडतारा=य चHर7’, चे/नमBलु सीसमल ु ु,’ ‘वृषािधप शतकम्’ ‘अनभु व सारम’् ,
‘बसवोदाहरणम’् , ‘बसव रागड़’, आिद तेलगु ु म: तथा सं+कृ त म: सोमनाथ ‘90भाPय’ क रचना
क। वीरशैव किवय* क देशी परंपरा से भाषा को िनखार !ा\ हआ। 4ामीण किवय* क तरह
उ}चकोिट के सािहयकार भी िSय* हेतु गीत सज(ना करने लगे थे। !कार शैवकिवय* [ारा
उतराखड मु त िवविवालय 58
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
लोकसािहय को खूब बढावा़ िदया गया। यहाँ तक िक माग( किव भी लोक परंपरा का अनुसरण
करने लगे।
रंगनाथ रामायण - रंगनाथ ने अपने रामायण म: िलंगायत* के ि[पद छंद म: वाBमीिक रामायण
का अनुकरण िकया है। किव [ारा इसम: लोककथाओ ं का भरपरू !योग िकया गया है िजससे
सामा/य जनता म: यह खबू लोकि!य हआ। इस !कार तेलगु ु म: रामायण क परंपरा किव रंगनाथ
के [ार शु9 हई।
समु ित शतक- तेलगु ु के शतक सािहय के !णेता किव बेना ने ‘समु ित शतक’ क रचना क।
बेना किव महामडले<र* म: +थान पाते हf। इनकमे ‘समु ित शतक’ के िबना बालक* क िशFा
अधूरी मानी जाती थी।
!ोलराजू [ारा िनिम(त काकतीय सााhय के !थम आं राजा !ताप90 देव (!थम) ने
1158 ई. से 1195 तक शासन िकया। इनक मृयु के बाद इनके भाई महादेवराज ने चार वष(
तक शासन िकया और िफर गणपितदेव के शासन काल म: आं पनु ः एकस7ू म: बधं गया।
गणपितदेव के बाद उनक पु7ी 90ा5बा और 90ा5बा के पVात् उनका प7ु !ताप90देव
(ि[तीय) ने शासन क बागडोर संभाली। सन् 1140 से सन् 1321 ई. तक के तीन सौ वषg के
काकतीय शासन Tयव+था म: तेलुगु सािहय म: सतत् िनखार हआ। बBलभामाय कृ त
‘kडािभराममु’ म: काकतीय शासन के ओ9गBलु के िशिBपय* का जीवन `OTय है। गणपितदेव
के मं7ी िशवदेवया (ि[तीय) क रचना ‘िशवतव सार’ और यथावा कुल अ/नया क कृ ित
‘सव<र शतक’ म: तेलुगु क जातीयता देखी जा सकती है। इनके अलावा भा+कर, किव भBलट,
किव राFस, ित कना, गोनबुारे ड्डी, 90देव, अयलाय(, मंचेना, बेना, रंगनाथ,
िशवदेवया, मिBलकाज(नु भ, मारना, के तना, अथण(व !भृित ने सर+वती क !चरु अराधना
क । अथण(व आं Tयाकरण के ‘कायायन’ माने जाते हf। काकतीय सााhय क सम/ु नत
िशBपकला को आज भी रामया देवालय और सहS +तभं मंडप के 9प म: देखा जा सकता है।
महाकिव ितIकना - किव ित कना और उनके भाई खड़्ग-ित कना नेBलरू जनपदवासी थे जो
सािहय, राजनीित, धम(, य ु , सामािजक िवश यािद के Fे7 म: !िस थे। ित कना हHरहर के
उपासक एवं दश(नशाS के !कांड पंिडत थे। उ/ह*ने ‘मा[ैत’ स5!दाय क +थापना के [ारा
िशव और िवPणु क एकता का !ितपादन िकया। वे राजा मनमु िसि के म7ं ी एवं दरबारी किव
थे। उ/ह*ने अपनी ‘िनवचनो/तर रामायण’ कृ ित मनमु िसि को समिप(त क । ित कना ने न/नय
भ के ‘महाभारत’ के ढाई पव( के बाद क अधरू ी कृ ित को पूण( करने का दाियव लेते हए
प/0हवषg क रचना क । न/नय और ित कना के बीच सैकडो ़ वषg के अतं राल म: तेलगु ु
सािहय और भाषा के Fे7 म: कई पHरवत(न हए। ित कना के आ|यदाता राजा मनुमिसि
अपने ही सामतं काटमराजु से य ु म: परािजत हो गये थे। ऐसी ि+थित म: ित कना ने काकतीय
राजा गणपितदेव से ओ9गBलु म: पहचँ कर अपनी कृ ित ‘महाभारत’ सनु ाकर !भािवत िकया,
िजससे उ/ह*ने अपनी सेना भेजकर पनु ः मनुमिसि को राhय िदलाया। इस घटना के बाद से
उतराखड मु त िवविवालय 59
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
ित कना ‘किव-q ित कना के 9प म: समचू े आं म: !िस हो गये । ित कना के समय के
किवय* ने बहजन िहताय का लIय लेकर सं+कृ त के शZद* का तेलगु क ू रण िकया।
तेलगु ु महाभारत म: कई !संग ऐसे आये हf जहाँ किव के पा7 िनजी ि+थित से असंतिु O
Tय_ करते हf वहाँ किव क वाणी आग उगलने लगती है। घटनाओ ं का kिमकिवकास, पा7*
का सIू मितसIू म चHर7-िच7ण और कBपना के सम/वय से किव क भाव-!वणता दयहारी
बन पडी है़ । सम+त भारत म: रामायण को मह?व िमला है, िकंतु आं म: महाभारत को न/नय
एवं ित कना ने मह?व पूण( बना िदया। आधिु नक समीFक* क कसौटी पर कसकर ही ‘किव-
q ’ के 9प म: ित कना !िस हए है। न/नय भ क भाषा क सम+या ित कना के समय म:
नहM थी। न/नय क सम+त शि_ भाषा के ि+थरीकरण म: लग गयी थी। ित कना के समय म: ही
आं मनीषी !बधं -काTय शैली म: रचना करने लगे थे। उKर म=य काल म: चलकर यह !वृिK
‘हत !बंध काTय* के यगु ’ के 9प म: !िस हई।
किव के तना - तेलगु ु म: !बधं काTय परंपरा क नMव के तना के ‘दशकुमार चHर7’ से पडी। ़ मलू
दशकुमार चHरत’ ग को के तना ने प म: ढाल कर ‘ अिभनव दडी’ क उपािध पंिडत समाज
से !ा\ क । के तना ने अपने गु9 ित कना को अपनी कृ ित समिप(त क। जहाँ ित कना क पुराण
शैली ‘महाभारत’ म: लिFत हई है वहM ‘दशकुमार चHर7’ म: महाकाTयामक शैली को के तना ने
!मख ु ता दी है। के तना ने याRवB य क +मृित को ‘िवRानिन<रीयम्’ नाम से िलखा है। उनका
‘आं भाषा-भश ू ण’ नामक Tयाकरण 4थं भी उBलेखनीय है।
भाकर रामायण - भा+कर रामायण’ क किव भा+कर के अितHर_ अnपलायड(ु ु ,
मिBलकाज(नभ, !भसु ुत और कुमार 90देव आिद ने पूण( िकया। यह अलग-अलग किवय* क
एक उKम कृ ित है।
किव मारना क वतु किवता - मारना क किवता को ‘व+तु किवता’ के नाम से अिभिहत
िकया जाता है। इसम: तदभव और देशी शZद* तथा तेलुगु क लोकि_य* और महु ावर* का
सवं ादामक शैली म: कथा को !+तिु तकरण िदया गया है। इसम: !य_ ु भाषा को ‘जानु तेलगु ु’
कहते हf।
मारना के अितHर_ िच5मपिू ड अमरे <र और रािवपािट ि7परु ा/तक का नाम उBलेखनीय है।
ि7परु ा/तक क देशी किवता माग( शैली म: ‘ि7परु ा/तकोदाहरण’ और अिं बका शतक नामक
कोमलकांत पदावली यु_ रचना है। इस !कार पवू (म=यकाल क कई !वृिKय* को इन वा य* म:
देख सकते हf-
1. वीरशैवतमत का !चार तथा आं म: सामािजक धािम(क kािं त का का सािहय पर
!भाव अवलोकनीय है।
2. काकतीय सााhय ने तेलगु ु सािहय संवध(न म: योगदान िदया।
3. तेलगु ु के मौिलक शZद*, कहावत*, महु ावर* का सािहय म: अयिधक !योग होने लगा।
4. तेलगु ु किवय* [ारा देशी परंपरा म: लFण 4थं * क रचना क गयी।
5. किव ित क/ना [ारा नTय सािहियक परंपरा का स7ू पात हआ।
उतराखड मु त िवविवालय 60
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
6. ‘दशकुमार चHर7 से !बंध काTय शैली का िवकास हआ।
7. काTय का िवश मु यतः ‘महाभारत’, ‘रामायण’ तथा ‘परु ाण’ ही रहा।
8. काTय म: !साद गणु य_ु कोमलकांत पदावली को मह?व िमला।
9. काTय के साथ ही Tयाकरण, लFण-4/थ , +मृित 4थं ािद क रचनाय: भी हई।
इस !कार तेलुगु सािहय म: यह काल ‘!बंध युग’ के नाम से !िस है।
6.3.5 तेलुगु सािहय का उRर मयकाल (सन् 1501 से 1700)
काकतीय सााhय के पराभव तथा िवजयनगर सााhय क +थापना के म=य तेलगु ु सािहय
पनपता रहा। िवजयनगर के अितHर_ तीन और छोटे राhय थे जो कृ Pणा और पे/ना नदी के म=य
भाग म: ि+थत थे। औ9गBलु से |ीशैलम तक रे चल( था, िजसक राजधानी राचक*डा म: थी।
क*डवीडु सीमा क राजधानी अGं िक रे ड्डी वंश [ारा शािसत थी। तीसरा ‘िवानगर’ राhय था।
काकतीय शासन के पतन के बाद राचकोणा के गजपित नरे श ने दोन* राhय* को अपने राhय म:
िवलीन कर िलया।
ऐसी राजनीितक उठापटक म: भी तेलगु ु म: उकृ O सािहय रचे जाते रहे । रे चल( राजा
वेलमवंशी सं+कृ त के !काणड पंिडत थे। उ/ह: ‘िसंगम नायुडु’, ‘सव(R’, क उपािध !ा\ थी।
किव माधवरायडु ु इ/हM के दरबारी किव थे, िजनक ‘|ीम0रामायण’ कृ ित उBलेखनीय है
कुमारिगHर रे ड्डी कृ त ‘वसतं राजीयम’् नाट्यशाS क अुत रचना है। कुमारवेमा रे ड्डी क
‘अम9क’ क टीका तथा उसको साले काढय वेमारे ड्डी ने कािलदास के तीन* नाटक* क
टीकाय: िलखM। िवजयनगर के शासक हHरहर और बु काराय के समय सायन माधवाचाय( थे।
+वामी िवारण [ारा वेद भाhय इसी समय िलखा गया था। इस यगु म: अनेक धािम(क व
सामािजक पHरवत(न हए। काकतीय वश ं का पतन शैव मत के पराभव का कारण बना। न/नय भ
क शैली पनु ः इस यगु म: पनपने लगी। तेलगु ु - सं+कृ त म: सम/वय क !वृिK इस यगु म: खबू
िवकिसत हई। इ काल म: तेलुगु म: नाट्यशाS का !ादभु ा(व हआ। किव पोतना क ‘भागवतम्’
तेलगु ु क अमBू य िनिध है। ‘हHरवंश,’ ‘महाभारत’, ‘माक( डेय परु ाण’ इस यगु क पौरािणक
शैली का िवकसन करती है।
+वण(यगु - यह युग तेलुगु सािहय के चहमख ु ी िवकास के कारण +वण(युग कहा जा सकता है।
इस यगु म: तेलुगु सािहय शरद ऋतु स`श था। सम+त आं !देश भाव-पPु प से सवु ािसत हो उठा
था तथा सािहय - गोि{य* और िव[पHरश द* को िवजयनगर नरे श* को पणू ( स5मान !ा\ था।
इस यगु के चार !मख ु किव नाचन सोमना, एरा(!ेगडा, |ीनाथ और पोतना आिद ने अपने िनराले
शैली म: वा य-िव/यास िकया।
काTय म: वृिKयाँ, रीित, शैली और भाषा-चयन का अयिधक मह?व होता है।
आरंिभक काल के यगु किव न/नयभ और पवू म( =यकाल के यगु किव ित कना क शांित उKर
म=यकाल म: शैली क नवीनता और अिभनय !णाली के आधार पर |ीनाथ को यगु किव माना
उतराखड मु त िवविवालय 61
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
जा सकता है। िवजयनगर सााhय क राजधानी कना(टक म: भी िजससे तेलगु ु और क/नड़
सािहय के िवकास को समान गित िमली।
भि= आंदोलन - तेलगु ु सािहय का यह काल भि_ आदं ोलन के साथ श9 ु होता है। िवPण-ु
भि_ और भागवत भि_ क !ेरणा से अनेक उकृ O रचनाय: हई, िजनका उBलेख िन5नतः िकया
जा सकता है।
नाचन सोमना (उRर हरवश ं )- सोमना क कृ ित उKर हHरवश ं से इस यगु क श9ु आत होती है
जो संिF\ होकर भी कृ Pण के जनरंजनकरी 9प के कारण जनि!य बनी। इस !कार सोमना [ारा
िवPणतु व क अुत महानता कृ Pण9प म: !कट करने के कारण ही उ/ह: ‘नवीनगणु सनाथ’ तथा
‘सिं वधान चkवतU क उपािध िमली। सोमना ने अलंकार* के पोश ण हेतु ‘कृ Pण/वय’,
उि_वैिचय’ क सज(ना क ।
एरा.ेगडा - इस काल के एक अ/य किव एरा(!ेगड़ा सं+कृ त के !काड पंिडत थे। ‘महाभारत’
के ढाई पव( न/नय और शेष प/0ह पव( ित कना [ारा िलखे गये। ऐरा(!ेगड़ा ने शेषांश अरय पव(
क रचना क। किव7य क भाषा-शैली के आधार पर ही तेलुगु Tयाकरण क रचना हई है। ऐर( /ना
को शZद* पर अुत अिधकार होने के कारण ही ‘शZद q वेता’ क उपािध िमली थी। ऐर( /ना ने
भाषा म: न/नय का और शैली म: ित कना का अनुसरण िकया। अरय पव( के शेषांक के
अितHर_ ऐर( /ना ने ‘हHरवंश’ और ‘नृिसंह परु ाण’ ने नयी शैली का !योग हआ है। उनक कृ ितय*
म: िनत नयी शैली के !योग देखे जा सकते हf। प-रचना ि लO, सरल, गंभीर, सक ु ु मार आिद
कई शैिलय* म: क गई है। ऐर( /ना क बची कसर को |ीनाथ और पोतना ने परू ी कर दी। इनमके
अितHर_ अ/य किवय* म: िपBलमHर( िपनवीर भ0/ना, ज कना, अनंतामाय, दrु गपु िBल दुrग/ना
तथा ‘िवPणु परु ाण’ के !णेता वे/नलक
ं ं िट सरू नाथ( गौरना, आिद उBलेखनीय तेलगु ु किव है।
िपनवीर भ9-ना - तेलगु ु सािहय म: भ0/ना ‘q के अवतार’ माने जाते हf। भ0ना ने ‘‘जैिमनी
महाभारत’’ हेतु उKर कु9 म: यRा< क घटना को मु य 9प से चनु ा है। भािषक !ौढ़ता यु_ यह
रचना सहज बोधग5य है। किव ने माग( काTय क िवशेषताओ ं को अपनाते हए भी लोक सािहय
के जनि!य तव* का समावेश िकया है। िपनवीर भ0/ना ने महाकिव कािलदास के नाटक क
शकुतला पा7 को काTय का आधार बनाया। भ0/ना ने कािलदास क कहानी म: िकंिचत
पHरवत(न िकया है। उ/ह*ने महिष( Tयास कृ त ‘महाभारत क शकंु तला का अश ं 4हण करते हए
एक अि[तीय काTय 4थं ‘शकंु तला’ का !णयन िकया। िजसे िव[ान* ने सस5मान अपनाया।
महाकिव Sीनाथ - तेलगु ु सािहय म: |ीनाथ क अपूव( !ितभा उस काल से आज तक
िव[समाज के िलए आVय(िमि|त कुतहू ल बना हआ है। |ीनाथ वेमारे ड्डी नरे श के
िशFािधकारी थे। वे बचपन म: ‘मयरू ’ के ‘सयू (शतक’ एवं मुराHर कृ त ‘अनघ(राघव’ को कंठ+थ
कर चक ु े थे। िवजयनगर के िडंडमभ को शाSा म: परािजत कर उ/ह*ने भ के सम+त स5मान
को अपने नाम कर िलया। आजीवन सािहय साधना करने वाले |ीनाथ का सािहियक अवधान
इन रचनाओ ं म: `OTय है। ‘पंिडतारा=य चHर7,’ ‘|ृंगार नैशध’, ‘काशीखंड’, ‘भीमखंड’,
‘हHरिवलास’, ‘िशवराि7 माह5य’ एवं ‘पलनािट वीर चHर.’ आिद।
उतराखड मु त िवविवालय 62
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
‘kड़ािभराम’ कृ ित को कुछ िव[ान |ीनाथ क मानते हf तो कुछ वBलभामाय क यह
तेलगु ु के दश9पक* म: वीथी 9पक के 9प म: !िस है। इसम: काकतीय सााhय के पतन के
बाद ओ9गBलु के िशिBपय* क जीवनचया( को ममातक 9प म: !+तुत िकया गया है। |ीनाथ
अपनी रचना म: पHरPकृ त, !ांजल भाषा के साथ समािसकता को अपनाते हf । इनक शैली न/नय
के अिधक िनकट है। उ/ह*ने अपने सीसप के चरणा/त म: तेलगु ु के िkया पद* का !योग िकया
है। |ीनाथ क कृ ित ‘|ृगं ार नैश ध’ म: मल ू ‘नैश ध चHर7’’ क द9 ु हता न होकर पHरPकृ तता
औा 4ाता देखी जा सकती है। |ीनाथ क कृ ित ‘‘पलनािट वीर चHर7’ म: कु कुट य ु क
वीरगायामक शैली म: वण(न हआ है। दो मगु g क लडाई को लेकर आं के नरे श दो दल म: बटं
गये थे। |ीनाथ के िशव म: शील, सsदय( और साम@य( क ि7वेणी बहती थी, िजनम: किव का
लIय िवशवव पर क: ि0त रहती थी।
भ= पोतना - भ_ पोतना को पाकर तेलुगु सािहय ध/य हो उठा । पोतना एक साधारण
िकसान थे। किवता पोतना का साधन नहM अिपतु साधना थी। उ/ह*ने अ/य किवय* क तरह
अपनी रचनाय: िकसी राजा को समिप(त नहM क। पोतना क कृ ित ‘भागवत’ तेलगु ु सािहय क
अमBू य नीिध है। पोतना का सरल Tयि_व भागवत के तुलना क भी अनमु ित नहM देता।
भागवत म: अं यानु!ास के कारण माधयु ( भाव का !ाचयु ( है। पोतना क भि_गगं ा से िस_ होकर
तेलगु ु जनता भि_रस म: डूब गयी। भागवत का दशम +कंध , जो कृ Pणलीला से संब है उसे
पोतना ने सरल वाणी म: !+तुत िकया है।
अ-नमाचाय. - ये एक कत(नकार के 9प म: जाने जाते हf। इसी यगु म: कई शतक सािहय िलखे
गये। जैसे- ‘समु ितशतक’ (बेेना), ‘वृषािधप शतक’ (सोमनाथ) ‘व:कटे<र शतक’
(अ/नमाचाय() आिद। इनके वंशज िच/ना भ_ यागराज से पवू ( के महान् संगीतR थे। इस काल
के अ/य किव है ज कना, (िवkमाक( चHर7), अन/तामाय, (भोजराज चHर7), दrु गना
(नािचके तोपायान), तथा नंिद मBलया और घटं िसंगया ने िमलकर ‘!बंध चं0ोदय’ क
रचना क। यबू गटंु नारायण किव का ‘पच ं त7ं ’ भी इस काल क उBलेखनीय रचना है। इस काल
तेलगु ु सािहय क मधरु ता को देखकर ही यह उि_ !िस हई िक- ‘‘ तेलगु ु भाषा मधु से भी
अिधक मधरु है।’’
कृAणदेवराय - तेलगु ु को कृ Pणदेवराय क अनपु म देन है। कृ Pणदेवराय ने कहा था,‘देश भाश
लंदु तेलगु ु ले+स’। (तेलगु ु सभी देशी भाषाओ ं म: उKम है) कृ Pणदेव राय ने चार* ओर से राhय को
बढाया़ ही नहM अिपतु सTु यवि+थत भी िकया। सन् 1515 से इ/ह*ने सािहय-गो{ी का आयोजन
श9 ु कर तेलगु ,ु स+ं कृ त, क/नड़ आिद सभी को समा`त िकया। अपनी सािहियक !ितभा-!ेम
के कारण इ/ह: ‘आं भोज’’ क उपािध !ाि\ हई। कृ Pणदेवराय क सभा म: ‘अO- िदrगज’ थे।
वस/तोसव के आयोजन [ारा सािहय और भी सपं Oु होता था। िवजयनगर के शासक वैPणव थे।
क/नड़ सािहय से शैव तथा तिमल सािहय से बैPणव मत का तेलगु ु सािहय म: सम/वय हआ।
आमु=माPयदा - कृ Pणदेवराय सािहयकार* के आ|यदाता ही नहM अिपतु सािहय के मम(R
भी थे। उनक कृ ित ‘आम_ ु माBयदा’ को ‘िवPणिु च/तीयमु’ भी कहते हf। च+ु त भाषा और !ब/ध
उतराखड मु त िवविवालय 63
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
शैली म: िलखी गयी इस काTय म: !कृ ित क छटा, उ!ेFा, 9पक का समुिचत !योग काTय के
|े{ता म: चार चाँद लगाते हf।
अT िद*गज - कृ Pणदेवराय के राजसभा के अO िदrगज* क याित तेलगु ु सािहय म: िवशेष
9प से है। ये है- अBसािन पेद/् ना, नंिद ित5मना, धूज(िट, अयलरातु रामच/0 किव, रामराजभश ू
ण, संकुसाल नृिसंह किव, कंसािल 90देव एवं तेबिल रामकृ Pणया !भृित।
अPलसािन पेUना - कृ Pणदेव राय के इस महान किव को इनक उकृ O !ितभा हेतु ‘आ/
किवता िपतामह’ क उपािध दी गयी है। +वयं कृ Pणदेवराय ने इनके पाँव म: ‘गंडप:डेरम्’ पहनाकर
पालक म: बैठाया था तथ अपने कंधे पर पालक उठाया था। किवता या तो Tयजं ना य_ ु होती है
अथवा लFणा। तेलगु ु सािहय म: लFणा काTय का !ाधा/य है। न/नय भ के बाद पेGना ने
Tयंजना शैली अपनाते हए ‘+वारोिचश मनचु Hर7’ महाकाTय क रचना क। पेGना के इस मनु
पा7 का ज/म एक अnसरा से हआ था। इस अnसरा ने मानव और दवे के बीच तल ु ना कर मानव
को अपना +नेह-पा7 बनाया था। पेGना अपनी लेखनी के [ारा परमाथ( भाव को पोिषत करते हए
सृिO के आरंभ क कथा !बंधा5क शैली म: !+ततु करते हf। !ायः रसपाHरपाक के िलए किव ने
शैली िविवधता को अपनाया है। पेGना के पद* क Tयंजकता तथा समासय_ ु पदावली उनक
रचना को लोकि!य बनाते हf।
भOVमूित. - इनका वा+तिवक नाम रामराज भश ू ण है। ये भाट वंशज संगीतR थे, इसीिलए उ/ह:
‘संगीत रह+य कलानीिध’ के नाम से जाना जाता है। इनक कृ ित ‘वसचु Hर7’’ का कथानक
‘शुि_मित नदी’ और कोलाहल पव(त’ के !ेम स5ब/ध* से उप/न क/या का वसरु ाज के साथ
िववाह से संबंिधत से उप/न क/या का वसुराज के साथ िववाह से संबिं धत है। इस कृ ित क
गेय-पामकता एवं गामकता को तेलगु ु के िपंगल शाSी भी िकंिचत जानते ह*गे या नहM यह
कहा नहM जा सकता िकंतु कृ ित म: शZद और अथ( के +थान पर लय और +वर ने िवजय पायी
है।
निं दित7मना - निं द ित5मना कृ Pणदेवराय क पनी िच7मांबा के साथ दहैत के 9प म: िवजयनगर
आये थे। इनक कृ ित ‘पाHरजात पहरण’ कृ Pण-9ि मणी-सयभामा ढंग से बनु ा गया है। नारदमिु न
+वग( से पाHरजातपPु प लाते हf, िजसे कृ Pण को देते हf। कृ Pण वह पPु प 9ि मणी के देते हf, िजसे
सयभामा क दासी देख लेती है । सयभामा इस बात से नाराज हो जाती है और िफर कृ Pण [ारा
सयभामा को मनाने क !िkया क कहानी है। ‘नाक’ के संदभ( म: इनका एक पद लािलय
देखते बनता है- ‘चंपा पPु प के पास भँवरा नहM आता था अतः दःु खी होकर पPु प ने तप+या क
तो वह नाक और उसके दोन* ओर आँख भँवरा बनकर हमेशा के िलए रहने लगे। इस पद को
अपने काTय म: !योग करने हेतु भमिू त( ने मूBय देकर इनसे िलया था। ‘पाHरजातापहरण’ के अतं
म: सयभामा ने नारदमिु न को कृ Pण का दान कर िदया। इस तरह यह एक नाट्यामक प भी बन
जाता है।
धूज.टी - धजू (टी अपनी भाषा क मधरु ता और मृदल ु ता के साथ ही भाव-सौ{व के िलए भी
!िस है। कृ Pणेदवे राय वैPणव थे, िकंतु शैव किवय* के भी आ|यदाता थे। धूज(टी एक शैव भ_
उतराखड मु त िवविवालय 64
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
किव थे। वे िशव के Rानमय 9प क उपासना करते हए भी राजसेवा क िनंदा करते हf। इनक
कृ ित ‘फालहि+त महायम’् तथा ‘काल ह+ती<रशतकम्’ उपलZध है। दिFण के 0ाFाराम,
|ीशैलम,् अमरावती, पेदकBलेपBली और कालहि+त आिद शैव तीथ( दिFण काशी कहलाते
है। उनके ‘कालिह+त महायम् ’ से भि_ रस का !वाह तीy हआ । |ी-काल-हि+त का शZदाथ(
है- मकडी, ़ सप(, हाथी, इन तीन* के मोF क कथा धजू (टी ने कलामक ढंग से इसम: !+तुत क
है।
िपंगिल सरू चना - तेलगु ु सािहय म: अब तक धािम(क-पौरािणक रचनाय: होती रही, िकंतु
िपगं िल सरू ना से तेलगु ु सािहय म: कBपना आधाHरत रचनाओ ं को मा/यता िमली िजस काल म:
सरू ना ने िलखा, उस समय उ/ह: वह याित न िमली। िकंतु वीसवM शती के आरंभ म: इ/ह: खबू
यश !ा\ हआ। इनक !मख ु कृ ितयां राघव पाडवीयमु’, कलापूणlदयम’ु पाVाय काTय -
कBपना क िवशेष ता िलये हए हf, उस समय पिVमी देश यहाँ आये भी न थे। इसम: |ृंगार रस
क !धानता हf कलापणू lदय म: सुगा7ी-शालीन (पनी-पित) क |ृंगाHरकता का मनोवैRािनक
वण(न है। सुगा7ी क |ृंगाHरकता शालीन को िवर_ करती है जबिक उसक सादगी से अनरु _
शालीन +वयं को िनयंि7त नहM कर पाता है। ‘!भावती !ु5नमु’ म: !ु5न का !भावती के !ित
रित-भाव !कट हआ है।
सक ं ु साल नृिसहं किव - अOिदrगज* म: नृिसंह किव का िवशेष मह?व है। इनक कृ ित ‘माधं ता
चHर7म’ु ‘किवकण(रसायनमु’ के नाम से िलखा गया था। !बधं शैली म: !ौढ़ भाषा एवं शैली म:
िलखा गया यह महाकाTय पाठक* के कण( के िलए रसायन का काम करता है। इन सबके
अितHर_ कंदक ु ू री 90या, तेनािल रामकृ Pण तथा मादयगाHर मBलना आिद अ/य उBलेखनीय
किव है। क/दक ु ू Hर 90या इqाहीम कुतबु शाह का दरबारी किव था। इनक कृ ितयां हf-
‘िनरंकुशोपाठयानमं’ु , ‘जनाद(नाOकमु’, ‘स4ु ीव िवजयमु’ आिद।
तेनािल रामकृAणा - अकबर-बीरबल क तरह तेनािल रामकृ Pणा एवं कृ Pणदेवराय क कई
कहािनयाँ !चिलत है। इनक कृ ित ‘पाडं ु रंग महा5यमु’, ‘उटारा=य चHर7मु’ मानी जाती है।
महाराPQ के बारकरी सं!दाय िवPणु को ‘पाडुरंग’ के 9प म: पजू ती है। तेनािल क वkोि_ शैली
इनक कृ ित को अनोखा 9प !दान करतीहै। तेनािल क स+ं कृ तिन{ तेलगु ु उ/ह: अ/य किवय* म:
अ4गय बनाती है। तेलगु ु सािहय म: सोमना, कृ Pणदेवराय, तेनािल इन तीन* के छंद* म:
पHरPकरण और आकष(ण का उदाहरण अ/य7 दल ु (भ है। तेनािल रामकृ Pण के पVात् !ब/ध
काTय* का यगु लगभग सामप\ !ाय हो गया।
अXयलराजु रामभ9 - इ/ह*ने तेलगु ु के मल ू शZद* [ारा ित कना क शैली को पनु जUिवत करते
हएु ‘रामा5यदु यमु’ क रचना क मधुर तथा !ांजल भाषा म: सुकुमार ढगं से इसक !+तिु त को
पाठक सहज ही अपना लेते हf।
मोPल - मोBल नामक कविय7ी कंु भार के घर म: ज/मी थी। इ/ह*ने ‘रामायण’ को अयतं सिं F\
!बंधामक 9प म: !+ततु िकया है। इस !कार यह यगु सािहय सज(ना म: उ}च-िन5न वग( के
उतराखड मु त िवविवालय 65
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
भेदभाव से परे था। Sी-प9
ु श क Rान Fे7 म: सहभािगता +व+थ समाज क भावना को !दिश(त
करता है।
तारगYड बBकमा7बा - इनका नाम श_ किवय* म: स5मान के साथ िलया जाता है। ब:कमा5बा
बाल-िवधवा थM। इनक कृ ितयाँ हf- ‘व:कटे<र माह5यमु’, ‘राजयोगसारमु’ और ‘योग
वािशOम’, आिद म: kमशः |ृंगार भि_ वण(न और ई<र, जीव एवं !कृ ित का िववेचन िकया
गया है।
ित7मIका - भ_ अ/नमया क पनी ित5म का ने ‘सभु 0ा कBयाणमु’ 4थं क रचना क थी।
एलकूिच बाल सरवती - इ/ह*ने ‘राघव, यादव, पाडवीयम’् 4थं क रचना क । इसम: राम,
कृ Pण और पाडव* का एक साथ वण(न है। इसके अितHर_ ‘आं शZद िच/तामिण’ नामक
Tयाकरण क टीका भी इ/ह*ने िलखी थM।
मादयागHर मBल/न कृ त ‘राजशेखर चHर7म’ु , चHरक*डा धम(/ना ने ‘चि7-भारतम’ु , क
रचना क तथा तेलगु ु ‘शतावधान’ काTय परंपरा का |ीगणेश िकया। शतावधान म: सौ Tयि_य*
को kम से िबठाकर किव !सेक को पृथक-पृथक् प क एक-एक पंि_ िलखाता है। पुनः नयी
पंि_ और पद का kम करते हए चार चरण परू े कराता है, िजससे !सेक के पास एक-एक +वत7ं
पद तैयार होता है। अंत म: शतावधानी से छnपनवाँ पद सनु ाने का आ4ह करते हए |ोता क
इ}छानुसार िकसी भी संया का पद सुनाने का आ4ह िकया जाता है।
कुमार धूज.टी - ये धजू (टी के पौ7 थे। इनक कृ ित ‘कPणराय’ िवजयमु’ तेलगु ु सािहय के
ऐितहािसक रचनाओ ं म: िगनी जाती है। इनके अितHर_ कई अ/य किव भी है िजनक रचनाय:
उBलेखनीय बन पडी ़ है इनम: अGंिक गंगाधर (तपती संवरणमु), िपडुपित( सोमनाथ (बसव
पुराणम)ु तेनािल अ/नया (सुदिFण पHरणयमु’), तHरगोnपल ु मBलना (च0ं मानु चHर7म)ु , शंकर
(हHरV/0ोपायानमु), सारंगु त5मया (वैजयंती िवलासमु’) हHरभ (वराह पुराणम)् आिद !मख ु
हf।
लDण !थ ं और 1याकरण - इस काल म: कई लFण 4थं एवं Tयाकरण भी िलखे गये। भमिू त(
क ‘नरस भपू ालीयमु’, यादवामाय क ‘लFणिशरोमिण’, ित5मना क ‘सल ु Fण सार’, मुGराज
रामना क ‘किव संजीवनी’, वेBलंिक तातम् भ क ‘किव िचंतामिण’, अnप किव क
‘अnपकवीयमु’ आिद उBलेखनीय लFण एवं Tयाकरण रचनाय: हf।
इस !कार इस काल क कई !वृिKयाँ देखी गयी है। !बंध काTय, Tयाकरण-लFण 4थं
, राजा-!जा क धािम(क सािहPणुता, धनवान सामंत, शतक परंपरा का िन9पण आिद उBलेय
है। शतककिव, किव के साथ-साथ राजदतू भी होते थे।
वेमना - वेमना ने देशी शैली क किवता से शZदावली तथा शाSीय किवता है छंद लेकर
भाव-Tयंजना म: नवीनता का अनसु रण िकया। वेमना ने सािहय को रस, छंद, अलंकार तक ही
नहM बिBक समाजोपयोगी बनाने क कोिशश क। इ/ह*ने किवता का िवषय सामािजक 9िढ़य*
का खंडन तथा धम( का सामा/यीकरण अपने छोटे-छोटे पद* के [ारा िकया है। उनके पद
आधिु नक समाज-सधु ारक* के िलए िकसी अS से कम नहM है।
उतराखड मु त िवविवालय 66
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कंचेल. गोप-ना - तालीकोट यु}छ (1565) के बाद आं का अिधकांश भाग गोलकोडा
कुतबु शाही के अधीन हो गया। कुतबु शाही वश ं के अिं तम तानाशाह शासक अबल ु हसन के
राhय के किव कचेल( गोप/ना (रामदास) ने राज+व म: िमली अपनी संपित धम(-काय( म: खच( कर
िदया था। यह समाचार सनु कर तानया (अबल ु हसन) ने उ/ह: गोलकोडा म: ब/दी बना िलया।
इनक मह?व पणू ( कृ ित ‘दशरथी शतकमु’ रामभि_ का अजS सागर है।
सिं धकाल - तािलकोट य ु के बाद आं का अिधकांश भाग मिु +लम शासक* के अधीन हो
गया। िकंतु पेनुक*डा और चं0 िगHर म: सन् 1650 ई. तक िवजयनगर के उतरािधकारी शासन
करते रहै। तंजौर और मदु रु ा दोन* तेलगु ु राhय थे। तंजौर सािहय कला का क: 0 था तो मदरु ा
राजनीितक दाँव-प:च का । मदरु ा के राजा ित9मल नायकने मयदानव के सभा- भवन के आधार
पर ‘महासभा भवन’ बनवाया था। इन राhय* पर पांडय और चोल राजाओ ं का अिधकार था।
तंजौर के रघनु ाथ नायक और िवजय राघव नायक किवय* के आ|यदाता एवं +वयं अ}छे किव
थे। रघुनाथ ने ही वीणा वा को िवकिसत िकया था। रघनु ाथ ने अपने िपता क जीवनी को
पव िकया था तथा उनके पु7 िवजय राघव ने ‘रघनु ाथाvयदु यम’ु नामक यFकाTय क सज(ना
क। वंश परंपरा के अनसु ार िवजय राघव के प7ु म/नारदास नेअपने िपता क जीवनी को सािहय
9प िदया। सर+वती महल’ नामक िवशाल पु+तकालय इ/हM नायक राजाओ ं क देने है।
चेमकूर वBकटकिव - चेमकूर व:कटकिव तंजौर के किव-िशरोमिण कहै जाते हf, इनक ‘िवजय
िवलासम’ु म: अज(नु क तीथ(या7ा का वण(न िकया गया है। उलपू ी, िच7ांगदा, सुभ0ा के साथ
अज(नु के िववाह कथानक को eेश शैली म: भाषा क सहजता के साथ िदखाया गया है। इस
काTय का यमक - सsदय( इस प म: `OTय है-:
‘मीरददं ु न9गा न9गान9गा’ (आप लोग कही-कहM पहचँ ने पर अज(ुन को देय नहM सक: गे) व:कट
किव क ‘सारंगधर चHर7म’ु कृ ित भी उBलेखनीय है। इनका !येक शZद सुगिं धत तथा मीठी
!तीत होती है।
दीिDत किव - रामभ0 दीिFत क कृ ित ‘जानक पHरणयमु’, (नाटक), लीलाशुक का ‘कृ Pण
कणा(मतृ म्’ आिद रचनाएँ दीिFत किवय* क सं+कृ तिन{ता को Tय_ करती है।
िवजय राघव नायक - इनक कृ ितयाँ रघनु ाथ नायकाvयदु यमु’ (नाटक), ‘कालीयमद(न’
(नाटक), !ाद चHर7, पतू ना हरण, िव|नारायण चHर7मु’ (काTय) आिद मह?व पूण( है। िवजय
राघव इतना गव( करता था िक +वयं को महाकिव मानकर अपने पैर म: ‘गडेपेडेरमु’ पहनता
था। इनके दरबारी किव च:गBव काल ने ‘राजगोपाल िवलासमु’ काTय क सज(ना करते हए
तेलगु ु म: नाियका भेद आरंभ िकया। इसम: कृ Pण क आठ रािनय* का िशख वण(न है।
रंगाज7मा - आठ भाषाओ ं क Rाता रगाज5मा का नाम ‘पसपु ल ु ेिट’ था। इनक कृ ितयाँ
‘म/ना9दास िवलासमु’, ऊषा पHरणयमु, ‘रामायण-सं4ह’, ‘भारत सं4ह’ और ‘भागवत सं4ह’
आिद है। इनक कृ ितयाँ सािहय भारती क कप(रू वित(का आरती स`श है।
यDगान - ‘वीधी’ नाटक* को तेलुगु म: ‘यFगान’ कहा जाता है। आगे चलकर ‘यFगान’ और
‘बरु ( कथा’ के 9प म: वीधी नाटक !चिलत हए। यFगान म: लय के साथ तोहरलु, कत(न, प,
उतराखड मु त िवविवालय 67
तल
ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
ग का समावेश होता गया। इस !कार तंजौर शासन काल म: तेलगु ु सािहय, संगीत, नृय का
चहमँ ख
ु ी िवकास हआ। तेलगु ु सािहय का संkमण काल इ/हM के कारण मह?व पणू ( बना रहा।
6.3.6 तेलुगु सािहय का तृतीय काल (सन् 1701से 1850)
rयारहवM शती से लेकर स7हवM शती तक चालु य, काकतीय, िवजयनगर सााhय म: तेलगु ु
सािहय खबू फला-फूला। इसके बाद क राजनीितक िव|ृंखलता के बाद शासन तजं ौर, मदरु ा
तक सीिमत हो गयी। मदरु ाराhय म: िवजयरंग चो कानाथ के समय समुखमु व:कट कृ Pणnपनायक
ने ‘जैिमनी भारतम’ु नायक ग रचना क। मैसरू राhय के सेनापित कुलवे वीरराजु ने ‘महाभारत’
को ग म: िलखा। आं राजा अनेक छोटे-छोटे शासन क: /0* म: िवभािजत था। राजमहै/0वरम,
पेGपरु म, िवजयनारम् बोिZबली, िपठापरु म् आिद चार सामंत राhय* म: तेलुगु सािहय िवकिसत
होता रहा। तृतीय काल के !मख ु किवय* और उनक रचनाओ ं का अवलोकन इस संदभ( म:
अपHरहाय( है।
कूिचमंिच ित7मकिव - इ/ह*ने कई शतक, दडक एवं !बंध काTय* क रचनाय: क। इनक
रचनाओ ं म: ‘नीला संदु री पHरणय, ‘राजे<र िवलास’, रिसक जन मनोिभरामम’ु , ‘सव(लFण सार
सं4ह’ ‘अ}च रामायण’ आिद महपूण( है। अ}च का तेलुगु अथ( ठे ठ होता है, िजसम: पकार,
शकार का !योग नहM होता है। ित5मकिव क !ितभा से अिभभूत होकर िव[ान* ने इ/ह: ‘किव
साव(भौम’ क उपािध दी थी। भाषा, छंद, अलंकार पर पणू ( अिधकार रखते हए भी
भावािभTयंजना म: ये चक ू गये हf। उ/ह*ने कंद नामक छंद म: पHरवत(न कर उसे !भावशाली
बनाया।
कंकंिट पापराजु - पापरातु ने ित कना के ‘उKर रामा यणमु’ को अपनी वदशU शैली म: पनु ः
िलखा। तेलगु ु भाषा का जो 9प !ारंिभक काल तथा म=यकाल म: िनखरा था वह कुतबु शाही
जैसे मिु +लम शासक* के समय बदल चक ु ा था। िजसे पनु ग(िठत करने क आवयकता थी। भाषा
म: फारसी, अरबी, के कई शZद !वेश पा चुके थे। इसीिलए तृतीय काल के िव[ान* ने लFण
4थं *, िनघंटु (आं भाषा सव(+वम)ु आिद का !णयन िकया। आचार-Tयवहार के Fे7 म: धम(4थं *
का पनु !(णयन िकया गया। आं पर मसु लमान* के आkमण के समय परशरु ाम पतं ल ु ु िलगं मिू त(
ने आं म: योगिवा का !चार िकया। िलगं मिू त( ने ‘सीतारामांजनेय सवं ादम’ु कृ ित क रचना
करके इसका मह?व !ितपािदत िकया।
िलंगमिू त( के प7ु राममिू त( ने ‘शुक चHर7’ क रचना कर अपने िपता के िवचारो का संवध(न
िकया।
Sृंगारक रचनाएँ - पनायक वंश के राजा वैPणव थे। इनके उपा+यदेव कृ Pण थे। अतः कुछ
किवय* ने आ|यदाता क !शंसा म: कृ Pण क रिसक 9प Tयंजना क है। सव(Rिसहं भपू ाल कृ त
‘रनपच ं ािशका’ 9पक नाटक* म: िशखर पर िगनी जाती थी। तंजौर के कई अ/य किवय* ने भी
|ृंगाHरक रचनाएँ क। मGु ुपलिन कृ त ‘रािधका सा/वनम’ु , कामे<र क ‘सयभामा सांवनमु’,
समख ु मु व:कट कृ Pणnप नायक के ‘अहBया संkदनीयमु’ और शेश मु व:कटपित के
उतराखड मु त िवविवालय 68
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
‘ताराशांकमु’, अhजपरु पेHरयािलंग क ‘तोडयानंिव िवलास’ आिद |ृंगार रचनाय: कही-कहM
अeीलता क सीमा लाँघ गई है। िबBहण क कहानी को ते/नू9 शोभानाि0 ने ‘पणू ( चं0ोदय’,
चेBलपBली नरसकिव का ‘यािमनीपणू ि( लका िवलास’, िशवराम किव का काम कला िनिध’
आिद कामशाS का िववेचन ही !तीत होता है।
ज*गकिव - इस काल के कूिचमंिच, जrगकिव का |ृंगार वण(न म: नाम िलया जा सकता है।
जrगकिव ने राजा क रखेली च/0रे खा पर ‘च/0रे खा िवलास’ क रचना क । िक/तु राजा के
ितर+कार से दःु खी होकर यह कृ ित उ/ह*ने जलाकर ‘च/0रे खा िवलाप’ क रचना क।
िदUकिव नारायण - इनके ‘रंगराय चHर7’ म: बोZबिल के य ु का ऐितहािसक वण(न है। भ!भु
क ‘कुचेलोपायान’, ‘सरु ामडे<र’ कृ ित को खबू !िसि िमली। इस काल म: |ृगं ाHरक काTय
के अितHर_ शतक सािहय, !शंसामक किवता (चाटु किवता) का भी खबू िवकास हआ।
चौडZप शतक - इस शतक म: मा7 ‘कंद’ छंद (सं+कृ त के ‘आय(’ छंद का पHरवित(त तेलगु ु 9प)
का !योग िकया जाता है। चौडnपा ने छंद क पोत/ना शैली को अपनाया।
इ/ह*ने नीित काTय के साथ-साथ िन/दा काTय क भी रचनाय: क।
गोगुलपािट कूम. - इ/ह*ने सीस छंद म: ‘वेणगु ोपाल शतकम’ु , ‘िसंहा0ी नारिसंह शतकम’ु क
रचना क है। इसक काल म: ‘कालवु ाय शतकमु’, ‘मदनगोपाल शतकम’ु , ‘लावय शतकमु’,
‘इदं शु तकमु (इसम: पित िवयोग म: मrु धा नाियका च/0मा से कृ Pण और गोिपय* क कुशल पछ
ू ती
है।) आिद |ृंगाHरक काTय भी िलखे गये।
कासल ु पुषोRमकिव - इनक रचना ‘आंनायक शतक’ का !येक पद Tयाजिनंदा से भरा
हआ है। TयावहाHरक भाषा म: सटीक अिभTयि_ इस रचना क िवशेष ता है।
चाटुकिवता - इस काल के कुछ किवय* ने !बधं काTय और लFण काTय के साथ चाटु
किवताय: भी िलखी। लेिकन कुछ ऐसे भी किव हf जो मा7 चाटुकिवता के आधार पर ही !िस
हए, इनका उBलेख !ासंिगक होगा।
अिडदमु सरू किव - इ/ह*ने ‘आं च/0ालेाकमु’, ‘आं नाम शेश म’ु , ‘किव संशय िव}छे दम’ु
आिद लFण-4थं तथा ‘किव जनरंजन’ नामक तीन आ<ास* वाला काTय िलखा है।
चाटुकिवता के Fे7 म: इनको खबू !िसि िमली।
िपंिडोलु ल[मण किव - इनक ‘रावण द5भीय’ अथवा ‘लंका िवजय’ नामक कृ ित इनके
नीजी जीवन से जुडी है़ । जमMदार [ारा 9O होकर इनका खेत छMन िलया जाता है, फलतः उ_
दयिथ( काTय सज(ना करते हf। मृयजंु य किव क धरामजा पHरणयमु म: कही भी ओ{्य अFर*
का !योग नहM िकया गया है। लIमण किव ने अपने काTय हेतु इितहास, परु ाण और सामािजक
घटनाओ ं को चनु ा है जो इनक कृ ित को कालम_ ु !िस देती है।
पद अथवा कत.न - Fे7या किव के भि_ पणू ( |ृंगार रसपूण( काTय जयदेव क समानता करते
हf। इनक कृ ित ‘मZु ब गोपाल पद’ म: मछलीपGनम् के गोपाल +वामी क +तिु त के साथ -साथ
नाियक भेद पर !काश डाला गया है।
उतराखड मु त िवविवालय 69
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
आं के कुछ qा ण िनयोगी और वैिदक कहलाते थे। िनयोगी qा ण राजाओ ं के
!धान म7ं ी पद* पर काय(रत थे जबिक वैिदक qा ण* क वेदो}चारण के Fे7 म: िवशेष !िसि
थी । ऐसे वैिदक qा ण* म: पंिडतराज जग/नाथ को कौन नहM जानता। तृतीय काल के कई किव
िनयोगी qा ण थे। इस काल के कुछ वैिदक qा ण* ने तेलुगु म: िलखने का !यन िकया था।
िशO कृ Pणमिू त( शाSी, िपठापरु म् के राजा के समय के िव[ान थे। इ/ह: ‘चाटुकिव चkवतU’ क
उपािध चाटुकिवय* ने दी थी। इनक कृ ित ‘राजगोपाल िवलास काTय’ है। वैिदक qा ण* को
राhया|य न िमलने के कारण उ/ह: अपने भरण-पोषण के िलए अ/य िदशाओ ं म: भी !यन करना
पड़ा।
िन-दामक किवता - िन/दामक किवता, चाटुकिवता क परू क है। वेमल ु वाड़ा भीम किव,
रामराज भषू ण, मेधावी भ, तुरगा राम आिद किवय* क िन/दामक काTय !+तिु त ने बड़े-बड़े
राजाओ ं को झुका िदया। आं म: यह लोकोि_ !िस हो गयी िक पेGापरु ाम का नाश किवय* के
कुछ होने से हआ।
भत.हु र के शतक और वाPमीिक रामायण - ने भत(हु Hर के eोक* का तथा गोपीनाथ ने
वाBमीिक रामायण को ‘गोपीनाथ रामायण के नाम से तेलगु ु अनवु ाद िकया उKर म=य काल म:
तेलगु ु ग क गित अयंत धीमी थी,जो इस काल म: खूब िवकिसत हई।
तृतीय काल क िवशेष ताएं - इस काल के किवय* का =यान भाव क अपेFा भाषा पर
के ि/0त था। वय(-िवषय को छोड़ द: तो कBपना, शैली, भाषा, छंद, और अलंकार क `िO से
यह काल मह?व पणू ( है। एक तरह से काTय का िवकास बा 9प म: हआ िकंतु आतं Hरक पF
उपेिFत रहा । न//य भ ने ही तेलगु ु ग का आरंभ कर िदया था, िक/तु उसका िवकास तृतीय
यगु म: खूब हआ। इस समय का सािहय यथाथ( के करीब था।
कुछ आलोचक* ने सन् 1710 ई. से सन् 1800 ई. तक के समय को अंधकार यगु का
नाम िदया है।
मुसलमानी भाव - काकतीय शासन के समय मसु लमान* ने आkमण िकया था, लेिकन वे
यहाँ के सािहय और समाज पर िवशेष !भाव नहM डाल पाये। तृतीय काल म: आं पर
मसु लमान* का पणू ( अिधकार +थािपत हो चुका था। तेलगु ु भाषी सामतं इ/हM मसु लमान शासक*
क कृ पा कर िनभ(र थे। आं म: इन शासक* के कारण उKर भारतीय िह/दी क बोिलय* का
!वेश हआ, इनक भाषा को ‘तरु कल माटा’ (तुकU क भाषा) कहा जाता था। अरबी, फारसी
िमि|त िह/दी सािहय के मगं लाचरण और राज!शंसाओ ं का अनक ु रण अब तेलगु ु सािहय म:
भी होने लगा था। तेलगु ु सािहयकार अपनी भाषा, शैली, छंद क िवशिु हेतु नानािवध सािहय
!योग करने लगे थे।
6.3.7 तेलुगु गK सािहय का िवकास (न-नय से सन् 1850 ई. तक)
तेलुगु गK - िशलालेख* के आधार पर तेलुगु ग न/नय से पवू ( ही !चिलत था। आं देश म:
सन् 625 ई. म: पवू U चालु य* के शासन काल म: िशलालेख पाया गया है, जो ग 9प म: है।
उतराखड मु त िवविवालय 70
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
तकालीन बोलचाल क भाषा म: !ाकृ त के कई शZद िमि|त थे। जयिसंह बBलभ के ‘िवघटटु’
और मंिगयवु राज के लIमीपरु म् वाले िशलालेख पवू U चालु य* के समय के है। चालु य भीम के
‘कोरिव’ के िशलालेख म: मधरु संभाश ण शैली का !योग हआ है।
जब कोई भाषा रंजक शैली म: सरस पित म: उKम भाविभTयि_ करने लगे तो उसे
काTय कहते हf। काTय म: छंद, लय, तक ु , अलंकार होता है, िकंतु जब इन सबसे म_ ु +वछंद
भाषा 9प क रसपपू ण( भावािवTयि_ हो तो ग कहलाती है तथा ग और प िमि|त रचना
चंपू कही जाती है। भारतीय भाषाओ ं म: तेलुगु तीसरी सबसे अिधक बोले जाने वाली भाषा है जो
िह/दी और बगं ला के बाद आती है। तेलगु ु अपनी मधरु ता के कारण ही पाVाय िव[ान* [ारा
‘‘इटिलयनल ऑफ दी ई+ट’ (पवू ( क इतालवी भाषा) कही जाती है।
न-नय भOारक -
चालुIय - वंश के चkवतU राजा राजराज नरे /0 के !ोसाहन पर न/नय भ ने चंपू शैली के
‘स+ं कृ त ‘महाभारत’ का आं ीकरण िकया। यह रचना शZद- चयन, सरस शैली म: किव7य
(न//य, ित कना, एरा(!ेगड़ा) [ारा पवू ( हई। !ायः तेलगु ु भाषी शZदालंकार ि!य होते हf। यहM
कारण है िक ऐसे शZदालंकार और पद-रचना के िनयम* से पूव( भाषा िव<- वाड्मय म: दल ु (भ है।
सं+कृ त म: यित और !ास का िनयम नहM है, जबिक अं4जी म: Rhyme (अंयनु!ास) है। न/नय
से लेकर चेमकूर व:कटकिव तक (सन् 1020 से सन् 1620 तक) के वल चंपू काTय ही अिधक
िलखे गये। नायक राजाओ ं के समय म: ग क मह?व को समझते हए इसे अपनाया। न/नय का
ग Tयायामक, भावपणू ,( है। न/नेचौड़ क ग रचना चमकारपणू ( है। ित कना रिचत भारत -
सािव7ी’ नामक ग4थं का आं नाHरय* [ारा िनय पठन िकया जाता है।
18वM शती ग रचना का +वण(यगु कहा जाता है। तेलगु ु ही नहM अं4जे ी, i: च, आिद के िलए
यह युग +विण(म था। मैसरू के िच कदेवराय के सेनापित कलुवे वीरराजु ने ‘महाभारत’ को ग म:
िलखा। |ी तुपाकुल अनंतभपू ाल ने ‘भीPम पव(’, ‘िवPणुपरु ाणे, ‘रामायण-, का संदु रकांड’ ग म:
िलखा था। |ी नारायणया का ‘शािं तपव(’ जीवतं ग 4थं !तीत होता है। ‘रामायण’ को |ी
याम किव, िशंगरात’ु , दKा7ेय, पैिडपािट पायया ने तो ‘भागवत’ को व:कट सुZबया, पPु पिगHर
ित5मना ने ग म: भाषांतHरत िकया। नंदरातु का ‘हाला+य महा5य’, |ीिवजयरंग चो क भपू ाल
ने ‘|ीरंग महाकाTय’, कामे<र ने ‘धेनमु हा5य’, व:कट कृ Pणnपै ने ‘जैिमनी भारत’ आिद को ग
9प म: ही !+ततु िकए।
भि= वचन - भि_ पूण( पशतक* क तरह 105 वचन* क माला बनाकर इOदेवता को
समिप(त करने क परंपरा इस काल म: खबू !चिलत थी। !मख ु वैPणववचन है- ‘व:कटे<वचन’,
‘शतकोिटिव/नपमुल’ु , ‘कृ Pणमाचाय( कत(न,’ ‘चिू ण(क’, आिद। ‘शैवचिू ण(क’ आिद उBलेख है।
इितहास - |ी कृ Pणदेवराय का इितहास ‘रायवाचक’, काकतीय राजवंशावली का
‘!तापचHर7’, हैदर टीपू सBु तान का ‘सारंगधर चHर7’ आिद !मख ु इितहास 4/थ इस यगु को
धरोहर है।
उतराखड मु त िवविवालय 71
तल
ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कथाएँ - qाउन साहब का ‘ताताचाय(ल ु ु कथBलु’, शुकशहराती, ‘तोते क कथाएँ, कर बहतरी
कथाएँ, हसं िवंशाित, ‘पंचतं7कथलु’, ‘छािवंशित’, ‘सालभंिजका कथाएँ, पHरश पादषु ा
कथल,ु िवनोद कथल,ु गोलक*ड नवाब कथल ु ’ु , आिद के अितHर_ ‘च/0हसा चHर7म’ु
आिदउBलेख कथाएँ हf।
या]ा वृRांत - तेलगु ु सािहय म: या7ावृKांत क परंपरा भी खूब पायी जाती है। कुछ !मखु या7ा
वृतातं हf ।- ‘नीलिगHर या7ा चHर7’ (कोला शेषाचल किव), ‘काशीया7ा चHर7 (|ी एनगु ल ु
वीरामया) आिद।
तेलुगु सािहय को मBकBती और ^ाउन महाशय क देन - चौथे मfसरू य ु म: टीपू सुBतान को
हराकर मfक:जी ने क/याकुमारी से िचलका झील तक पाँच वषg तक पय(वेFण िकया। उ/ह*ने
!मखु घटनाओ ं िवशेषताओ ं तथा इितहास का सं4ह कर म0ास !ा}य प+ु तकालय म: सुरिFत
िकया। qाउन ने तेलुगु सीख कर िजला गजेट और म0ास राhय का गजे़ट तैयार कराया जो मह?व
पूण( है।
6.3.8 तेलुगु सािहय के िविवध का1य प
तेलगु ु किवय* ने वण(नामक रचना हेतु प तथा िववरणामक हेतु ग का !योग करते हए ग
का भंडार संिविध(त िकया। इसके अितHर_ तेलगु ु काTय के िविवध 9प हf, िज/ह: इन चरण* म:
िवeेिषत िकया जा सकता है।
शतक सािहय - शतक सािहय !बंध यगु के बाद क तेलगु ु क मौिलक िवधा है।शतक
सािहयकार* क सरल, +वाभािवक !+तिु त अपढ़ Tयि_ के िलए भी इसे वोधग5य बना देती है।
यह सािहय लोक सािहय और शाSीय सािहय क बेजोड़ !+तिु त है। िव/नकोिट पे[ना ने
सव(!थम इसे ‘F0ु ’ सािहय क संRा देते हए शतक सािहय को सािहय क |ेणी म: रखा।
आधिु नक यगु के +वगUय है बगं Hू र सZु बाराव ने शतक सािहय क वृहद् समीFा क। शतक
सािहय तथा अं4जे ी के !गीत-म_ ु क (िलHरक) म: पया(\ सा5य हf । य*िक दोन* म: काTय के
अतं प(F क कलामक अिभTयि_ हई है। शतक् सािहय के िलए िवषय क कोई सीमा नहM है।
नीित, भि_, |ृंगार, हा+य आिद कोई भी िवषय शतक के िलए िलया जा सकता है।
तेलगु ु के कुछ शतक* का दशक* म: वगUकरण हआ है जैस‘े - नारायण शतक (नाम
दशक, आिददशक Rानिवंशित, अवतार दशक) , म/ना9कृ Pणशतक (दाससंग दशक, गोपालन
दशक) रामच0ं शतक आिद।
तेलगु ु भाषा के शतक से पहले सं+कृ त, !ाकृ त भाषा म: समृ शतक परंपरा रही ह:
‘अवदान’ नामक शतक !ाकृ त भाषा म: पाया गया है जो बौ-धम( से स5बि/धत है। सं+कृ त का
‘िदTयवदान शतक ‘गिनि{त, समासय_ ु शैली म: िलखा गया है। इस अवदान क कुछ
कथाओ ं को चनु कर ‘कBप माZदन माला’ नामक 4थं का !णयन हआ। इसी तरह
‘अशोकावदानमाला’ और ‘ रनावदान माला’ भी है। िशव और िवPण+ु तो7 क भांित ब ु
स5ब कई Sोत सं+कृ त म: िमले हf। जैसे- ‘कBयाणपंच िवशितका, ‘स!ु भांत +तवन’’, ‘परमाथ(
उतराखड मु त िवविवालय 72
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
नाम संकत(न’, लोके <र शतक’, आिद म: श यमिु न ब ु और बोिधव* क +तिु त क गयी है।
अवलोिकते<र क पनी तारादेवी से संबंिधत +तो7 ‘आय( धारा Srधरा +तो7’ किव सव(R िम7
[ारा िलखा गया है। एक qाण को यRपशु बनने से बचाने हेतु किव सव(R रFा क। च/0गोिम
वे भी ‘तारासाध’ नामक शतक िलखा था तथा ितZबती भाषा म: भी 62 +तो7* का अनुवाद !ा\
होता है। ‘अम9क’, ‘|ृंगार ितलक’, ‘भतृ(हHर सभु ािवत’, ‘मूक पंचशित, आिद मह?व पणू (
शतक काTय है। शंकराचाय( का ‘िशवानदं लहरी’, सsदय( लजहरी’’, मयरू किव का ‘सयू ( शतक’
तथा कुलशेखर का ‘मक ु ु /दमाला’ आिद शतक काTय कहै जाते हf। सं+कृ त म: ‘पंचक’, (पाँच
पंि_ के eोक), अOक (आठस पंि_ के eोक), ‘शतक’ (सौ पंि_ क eोक किवता) आिद।
इस !कार सं+कृ त म: धम(, नीित, |ृगं ार और वैराrय क उKम शतक रचनाओ ं क परंपरा रही है।
तेलगु ु का शतक सािहय भतृ(हHर के शतक* से !भािवत है। तेलगु ु शतक सािहय के !येक पद
म: किव ई<र के साथ +वयं को भी संबोिधत िकया गया है। िह/दी म: मीरा के पद म: ‘मीरा के !भु
िगHरधर नागर’ यह चरण आया है। तेलगु ु म: इसे ‘मक ु ु ट’ कहा जाता है। इन मक ु ु ट* के आधार पर
‘शतक*’ का नामकरण िकया गया है। तेलगु ु म: पाBकुHरिक सोमनाथ का ‘वृषािधप शतक’
‘मुकुट’ परंपरा का बेजोड़ नमूना है। यह शतक ‘जानु तेलगु ु’ (िवश ु तेलगु )ु म: िलखा गया है।
अ/नमया का ‘सव<र शतक’ भी इस संदभ( म: उBलेख है। ‘समु ित शतक’ के रचियता का
नाम िस नहM हो पाय है। वेमना शतक से मेल के कारण वेमना क रचना मानी जाती है।
बे/नेलकंिट ज/नय क ‘देवकनंदन शतक’, अयलरातु ि7परु ांतक क ‘ओिटमे रघवु ीर शतक’,
धजू (िट क ‘|ी कालह+तीक<र शतकमु’, तथा ताBलपाक अ/नमाचाय( क ‘|ृंगारवृK प
शतक’, ‘व:कटे<र शतक’ आिद महवपू ूण( शतक है।
चौडnपा का चौडnप शतक (|ृंगाHरक शतक), गोप/ना का ‘दाशरथी शतक’ तथा अRात किव
कृ त ‘भा+कर शतक’ आिद उBलेखनीय है। स7हवM शती म: अnप किव के ‘बपंजर’,
‘म9नंदन’ का उBलेख तो है िकंतु यह उपलZध नहM हो सका है। गणपवरमु व:कटकिव का
‘यमं क’ तथा ‘किठन!ास’ शतक, लFण 4थं कार अnप किव का ‘|ी नागिध शतक’ अब तक
नहM िमल पाया है। अठरहवM शती तथा उसके बाद के कई शतक !ा\ हए हf.
यDगान - ‘यF’ शZद का अपmंश 9प है- ज कु। यFगान `य काTय तेलगु ु म: !ाचीन समय
से ही !चिलत था, िक/तु इसका िलिखत 9प सव(!थम किव 90य के ‘स4ु ीव िवजय’ से !ा\
होता है। इसके रचना का समय सन् 1050 ई. है। !ोलगु िं ट चे/नकिव ने ि!यद छंद म: ‘ग भारत’
‘नरिसंह परु ाण’, आिद क रचना कर ‘अOभाषा पंिडत’ क उपािध पायी।
तंजौर शासक* ने !ायः यFगान रचियताओ ं को ही आ|य िदया। दिFणा/ यगु मानो
यFगान हेतु +वण( यगु बन गया है। आिदवासी कुरवंजे नृय ने धािम(क या7ा (जातरा) का
अनक ु रण कर गीितनाट्य का 9प धारण कर िलया। वनवासी कुरब, च:चु जाितय* [ारा गाँव एवं
नगर म: व+तओ ु ं को बेचने के साथ ही नृय, मनोरंजन भी िकया जाता था। 4ामीण नृय और
अिभनयकता(ओ ं क जाित ‘ज कुल’ ने गीित-नाट्य का 9प िदया (धीरे -धीरे गीितनाट्य म: नृय
का अंश कम होते-होते यह ‘यFगान’ कहा जाने लगा) धमlपदेश के साथ मनोरंजन का मेल
उतराखड मु त िवविवालय 73
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
होने से जनता का आकष(ण, धम( के !ित बढ़ने लगा। !ारंिभक मूकािभनय आगे चलकर
यFगान’ का 9प धाHरत करने लगा। सािहय संगीत, नृय के सम/वय से ‘यFगान’ या
‘ज कुल’ु और ‘पाटा’ का उव हआ। परु ाण* म: यF* का उBलेख िमलता है। !ाचीन यFगान
‘ि[पद छंद’ म: िलखे जाते थे। कुछ िव[ान सं+कृ त क ि[पिदका से इसक उपिK मानते हf।
ि[पद के चार चरण होते हf शZद, खड मा7ा और स5पणू ( आिद। सोमना किव ने देशी छंद म:
काTय सज(ना कर यFगान का माग(दश(न िकया। तिमल के उला!बंध पित पर तेलुगु यFगान
क रचना मानी जाती है। यFगान का नाटक से कोई स5ब/ध नहM है। इसके साथ ही सं+कृ त
नाटक* के !भाव से अछूता भी नहM है तेलगु ु यFगान । तलजराज के ‘िशवकाम संदु री पHरणय’
म: नाटक* क तरह ‘नादं ी’ और !+तावना दान* ही है। िवजय राघव का ‘पतू ना हरण’ मातृभतू न
का ‘पHरजातापहरण’ आिद नाटक* के अंक !णाली का अनुसरण करता है।
अगं ंजर के - आपेरा’ और सं+कृ त के ‘उपनाटक*’ से यFगान’ पया(\ सा5य रखता है।
यFगान क रचना तेलगु ु ‘रगड़ा’ नामक देशी छंद म: क जाती हf । इसम: छंद के छोटे-छोटे भेद
पाये जाते हf, जैसे- ईललु, जोललु, सZबाललु, आरतल ु ु धTवमलु ु, चंदमामा सुदत् ल
ु ु, िवलािल
पदमल ु ु, वे/नेल पदमुलु, ि7पदल,ु चौपदल,ु शट्पदलु, मंजु9लु, ज कुलु, रे कुलु आिद। कुछ
यFगान* म: काTय* वाले छंद !य_ ु हए हf। जैसे- सु4ीव िवजय म: सीसमु, तेटगीित, उपलमाता,
ि7पटु , जंप,े कु9चजंपे, आट एकतालमु, एलल,ु धबलाथ(, चि/0कल,ु ि[पदलु आिद। यFगान
म: पा7* के !वेश करने और कथा क रंिध -सचू नाथ( ग का !योग हआ है। |ी कंकिट पापरातु
का ‘िवPणुमाया िवलासमु’, अ कणामाय का ‘कृ Pण िवलास-, ‘भीमसेन िवजय,’ |ी व:कटाि0
का ‘वासंितका पHरणयम’, ‘िवPणमु ाया िवलास’, िवजयराघव का िव!नारायण चHर7’ आिद
मह?वपणू ( यFगान है।
हाय रस - इसम: हा+य रस क !मख ु ता होती है। qा ण* और rवाल* के स5भाषण [ारा हा+य
रस उप/न िकया गया है। कलापमु म: ‘िवदषू क’ को ‘माघिवगाडु’ कहा गया है। य*िक वह
समभामा क सखी का वेश धारण करता है। ‘गोBलकलाप म: स/कुरी रंगया का हा+य
गदु गदु ाता अवय है।
!थम यFगान ‘स4ु ीव िवजय’ के बाद कई यFगान िलखे गये, िजसम: !ोलगु ंिट चे/नकिव का
‘सौभHर चHर7’ उBलेखनीय है। चे/नकिव को ‘अOभाषा किव’ क उपािध िमली थी। तंजौर के
नायक राजाओ ं के बाद मराठा शासक* ने भी यFगान को बढावा िदया। प9 ु षोKम दीिFत के
‘तंजापरु ा/नदान महानाटक’, म/नारदेव के हैमाZज नाियका +वयवं र’ मह?वपणू ( यFगान है।
िवजयराघव के मृयु के 17वषg बाद तंजौर पर मराठी शासक एकोजी के प7ु शाहजी
(!थम) का शासन +थािपत हआ। शाहती के 21यFगान !ा\ हए, वे हf- जलkड़ाएँ, िकरात
िवजय, कPणिवलास, सतीदान शरू , सीता कBयाण, सती पितदान िवलास शांता कBयाण, िवPणु
पBलक, सेवा !बधं , शक ं रपBलवी सेवा !बधं , शचीपरु ंदर, बBली कBयाण, िवने<र कBयाण,
9ि मणी- िवनोद चHर7, पाव(ती पHरणय, रितकBयाण, रामपािभश क, गंगा पाव(ती संवाद,
0ौपदी कBयाण, यागराज िवनोद चHर7 आिद। शाहजी के दरबारी किव िगHरराज ने राजक/या
उतराखड मु त िवविवालय 74
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
पHरणय, राजमोहन कोरवंिज, लीलावती कBयाण, वादजय नाटक, सवागसु/दरी िवलास, शाहै/0
िवजय, किव सुZब/ना का ‘लीलावती’, शाहजीय, शेषा चलपित का शाहराज िवलास, सर+वती
कBयाण, तक ु डोिजराजा, का ‘िशवकामस/ु दरी पHरणय’, आिद लोकि!य यFगान है। मदरु ा के
ित9मल किव का ‘िच7कूट महा5य’, मैसरू के किव गोगल ु पािट कम(नाथ का ‘मृयजंु य
िवलास’ तथा अRात किव का िच कदेवराय िवलास’, ओबयम/7ी का ‘गड़ाचल’ (चेचु
नाटक) अ क !धान का ‘कृ Pण िवलास’, ‘भीमसेन िवजय’, च:ग+वनराय का ‘गोBल कथा’,
सरू या का ‘िववेक िवजय’, कृ Pण िम| का ‘!बोध च/0ोदय’ आिद उBलेखनीय यFगान है, जो
तेलगु ु सािहय को समृ बनाते हf।
लोकगीत परंपरा अथवा तेलगु ु गीित सािहय - !ाचीन काल से लेकर अब तक
मानव मनोभाव* क अिभTयि_ छंद तथा गीत के मा=यम से करता रहा है। !कृ ित के !ािणय* म:
मनPु य क सsदय( िपपासा और आम-िवकास क !वृिK, उसे िनत -नये !योग हेतु !ेHरत करती
है। उसके मनोभाव =विन के मा=यम से गीत* के 9पम म: !कट हए हf। तेलुगु म: लोकगीत* क
+व+थ परंपरा रही है। तेलुगु के लोकगीत* को तीन भाग* म: बाँटा जा सकता है। सव(!थम वे लोक
गीत है िजनका िकसान, चरवाहा, बैलगाड़ी हांकने वाला, च क पीसनेवाली आिद के [ारा
!योग िकया जाता है, इन लोकगीत* का िवभाजन इस !कार िकया है-
कोत गीतमु (फसल का गीत), ऊतगीतमु (मजदरू का गीत), बालेशपु दमु (मजदरू का
गीत), पव(तपदमु (पहाडी गीत),
़ रोकिट पाट (धान कूटते समय गाया जाने वाला गीत), वे/नेल
पाट (चाँदनी का गीत,) प:िड़ल पाट (िववाह का गीत), जाजर पाट (िSय* का गीत), आिद म:
समय के साथ -साथ पHरवत(न होता रहा। इन गीत* म: Fे7ीयता, +थानीय भाषा क !चरु मा7ा
पायी जाती है। दसू रे !कार के लोकगीत िलिखत 9प म: पाये गये हf, जो वीर प9 ु ष* के चHर7,
!ेम कथाओ ं और हा+य-िवनोद के 9प म: !ा\ होत हf। तीसरे !कार के लोकगीत ईशभि_ से
संबं हf इन गीत* को तेलगु ु म: कत(न कहते हf। तेलगु ु म: 12वM शती से िलिखत लोकगीत !ा\
होते हf। सोमनाथ के ‘बसवपरु ाण’ म: भी कुछ लोकगीत* का उBलेख है - सगं र माया +तवमल ु ु,
!भात पद, पव(त पद, त5ु मेद पाटल,ु आन/दपद, शंकर पद, िनवािलपद, छालेशु पद, गोिZबललु
पाटल,ु वे/नेलपद, सhज पद आिद बढे, बालक* और यवु ा के िलए िलखे गये लोकगीत है।
तेलगु ु म: ि[पद कंद, तेटगीत, आटबेलदी, सीसमुलु, त9वोजल ु ु आिद छंद गेय होते हf। तेलगु ु म:
बालक से लेकर वृ तक के िलए गीत* क परंपरा रहM है जैस-े लोHरयाँ, गोपी गीत, ओखली
गीत, कालीय मद(न, जलkडा देवर भाभी, कुशलव कथा, िमलन गीत, समु ंगली गीत, नािवक
गीत, धान क रोपाई के गीत , 9ई क धनु ाई आिद के गीत अयिधक मह?वपणू ( है।
|ीनाथ कृ त ‘पBनािट वीर चHर7म’ु म: सािहियकता का पया(पत पटु है। िव+तृत
कथानक को गीत के 9प म: िपरोना +चयं म: महपणू ( घटना है। |ीनाथ के बाद अठारवहवM शती
म: ‘बोिZबिल कथा’ का उBलेख िमलता है। इसम: बोिZबिल वेलमा लोग* क ओर से रंगारायडु ु
व:गलरायडु ु तांu पापया और मBलम देवी के शौय( क गाथा है। तेलगु ु म: बरु ( कथाओ’ं का पया(\
!चार रहा है। उKर भारत क रामलीला, रासलीला क तरह यह आंवािसय* से !चिलत थी।
उतराखड मु त िवविवालय 75
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
बरु ( कथाओ ं म: |ृंगार, वीर, हा+य, शांत आिद रस* का !योग िकया जाता था। !मख ु बरु ( कथाय:
हf- काम5म कथा, िच/न5म कथा, क5मवाHर पडित कथा, लIम5म कथा, वीर5म पेरंटालु आिद।
इन बरु ( कथाओ ं म: सती, पितyता, सतं ित हेतु किठन तप करने वाली िSय* का उBलेख है।
बरु ( कथाओ ं क उदा/त भावना के कारण ही यह आधिु नक काल म: भी !चिलत है।
तेलगु ु म: !ेम काTय* का संय_
ु पHरवार क `िO से खबू मह?व रहा ह: देवर-भाभी, पित-
पनी, !ेमी-!ेिमका साली-जीजा आिद के !ेम कई बार इन गीत* म: वासनामक 9प भी धारण
कर लेते हf। उदाहरण के िलए एक यवु ती का !ेमी मर जाता है। लेिकन शम( के कारण वह अपने
आँसू को रोके रहती है लेिकन सयं ागे से उसके घर का बछड़ा मर जाता है तो वह उसके मा=यम
से अपना दःु ख िवगिलत करती है। ‘चल मोहन-रंगा’ लोकगीत क एक पिं _ का अथ( है- ‘‘मेरे
मोहन, ऐसा कोई नहM िजसे हम अपना कह सके । अतः नदी के तट पर जीवन मधरु बनाय:ग:
लेिकन मेरे आसं ुओ ं से ही मेरी गगरी भर गई हf”...................। इस !कार लोकगीत* म: !कृ ित
िच7ण भी जीवंत हो उठा है। भजन-कत(न आिद क परंपरा भी लोकगीत* के 9प म: रही है।
तेलगु ु का संगीत - कत(न सािहय - यागराज ने कहा था- !ाण और अनल के संयोग से !णव
स\ +वर* म: Tय_ हआ है। वे कहते हf‘- ‘‘न नादने िबन, गीतमु, न नादेन िबना +वरम् न नादेन
िबना रागम् त+मा/नादामकम् जगत् है।’’ कत(न के िवकास म: जनपद गेय* का बहत मह?व है।
तेलगु ु भाषा क सहज मधुरता, !साद गणु संगीत को और अिधक दय4ाही बना देती है। तेलगु ु
संगीत के िलए कणा(टक शब् का !योग िकया जाता है। महाकिव |ीनाथ और कृ Pणदेवराय ने
तेलगु ु के िलए ‘कणा(ट’ शZद का !योग िकया है। तेरहवM शती म: कित(न गीत के िलखे जाने का
उBलेख है। जानपद गीत* म: अथ( क अपेFा शZद का मह?व होता है। जबिक कत(न म: +वर ही
अथ( म: हो जाते हf। कत(न म: अन+ु वार का अभाव तथा अ/य मु0ा का !ाचयु ( होता है।
कृAण किव - ताल, +वर िमि|त गीत* के रचनाकार* म: कृ Pण किव का नाम अ4गय है। इनक
कृ ित ‘िसंहिगHर वचन, ‘त9गंिध वचन’ आिद म: राग और ताल तो है िकंतु ‘पBलिव (संचाHर
‘अनपु Bलिव’ (अनु+वर) और ‘चरण’ (+वर) का िवभाजन नहM हf।
ताPलपाक अ-नमाचाय. - (सन् 1424 ई. से 1502 ई.) इनके कत(न क जनि!यता ने ही इ/ह:
‘पद किवता िपतामह’ और ‘संकत(नाचा( क उपािध िदलाई। ित9पित के गफ ु ा म: ता प7 पर
इनक रचना और मिू त( दस वष( पवू ( !ा\ हई है। इ/होनं 32 हजार पद* क रचना थी, िजसम: 12
हजार ही !ा\ हए हf। ित9पित के अिध{ाता भगवाम व:कटे<र और उनक पनी
अिलवेलमु गं 5मा के पर+पर !ेम को उ/होन: अपने पद* म: िदखाया है। कणा(टक के संगीतकार* म:
अ/नयमया अ4णी है। क/नड़ म: भ_ परु ं दरदास इनक शेली का अनसु रण करते हf। अ/नमया
ने तेलुगु म: ‘कत(न लFण’ 4ंथ िलखे थे। िजसे |ी राBलपBली अन/त कृ Pण शमा( ने अ/नमया
के कुछ पद +वर‘िलिप !कािशत िकया है।
Dे]Xया - आं के मTु वा गांव म: ज/मे Fे7या ने अपने आिधकांश पद 4ामदेवता गोपाल को
समिप(त िकए। इ/ह*ने 40 राग* म: 18 देवताओ ं से स5बि/धत गीत िलखे है। अ/नमया, Fे7या
उतराखड मु त िवविवालय 76
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
क शैली म: कई अ/य किवय* ने भी संगीत िलखे हf - शोभनिगHर, बोBलवरमु, गपBले, धन
सीनया, वेणिं ग, सरांगपािण आिद। सीनया का ‘िशवदीFाप9रालतु’ आज भी गाया जाता है।
भ9ाचल रामदास - रामदास अथवा कंचेल( गोप/ना ने गोलकोडा नरे श [ारा कै द िकए जोने के
बाद कारावास म: अपने आरा=य क +तिु त मािम(क शZद* म: क है।
स^ु _`य और उनके कत.न - इनके कत(न गीत ‘आ=याम रामायण कत(न’ के नाम से
संकिलत िकया गया है। यह कत(न पाव(ती क िजRासा पर िशव [ारा कही गया रामकथा पर
आधाHरत है।
यागराज - गायक - िशरोमिण यागया का ज/म् 1759 म: ित9वैयार 4ाम म: हआ था।
कणा(टक संगीत का पणू ( िवकास इ/हM के कारण हो पाया। िकंवदतं ी है िक +वयं नाद मिु न ने इ/ह:
संगीत क िशFा दी थी। उ/ह*ने अनेक धुन लेकर पद-गीत िलखे हf । उ/ह*ने संगीत म: सािहय
को भी उिचत अवसर िदलाया। इनक रचनाएँ आ=यािमकता से भरपरू है। ‘कोबर पंचरन’,
पचं रन’, ‘धनराग पच ं रन’ िवशेष 9प से उBलेखनीय ह:
aयाम शाbी - इ/ह*ने दवेी मीनाFी ‘नव रन मािलक’, कत(न िलखा। आनंद भैरवी राग म: ये
िसह+थ थे। कांभोज राग, शंकरा भरण राग का ‘सरोजदल- ने7’ और कBयाणी राग का
‘तBली िन/ने नेर नि5मनानु’ गीत मह?व पणू ( है।
इनके अितHर_ कई अ/य कत(नकार और उनके कत(न मह?व पणू ( है। मतु ै या+वामी,
वीण कुnपयर (व:कटे<र पंचरन, जगदिभराम, कोिनयािडन, नापै’’ पंत पराड्मख ु िमले,
कालह+तीश आिद) सुZबराम शाSी (जननी िनतु िबना, िननु सेिविं चित) +वाित ित9नाल
(पाHपाव(ती, सरस सािभदान’) आिद। तिमल किव |ीिनवास अयंगार क ‘िवजय गोपाल’,
सामज वरं दा, (सावेHर राग) नेरि5मत (कानड़ राग) सरगनु पािलचं (के दार गोल राग) तथा
पBलिव शेश या क ‘एद9 ु गा’, (खमाज राग), इकन/नु qोव ’ (भैरवी राग) ‘अलनाडु िव/नपंबु
(तोडी राग),
़ महाि7परु आिद महवपू ण( कत(न गीत है।
कत(न के कई भेद होते हf, जो उनक उपयोिगता को बोधग5य बनाते हf- समदु ाय,
कत(न, उसव कत(न, नवाण(-नव4हपंचिलंग कृ ित, देवी +तो7, शतरन मािलका, कालह+ती
व:कटे<र पंचक, मिण!वाल शली कत(न आिद।
आधिु नक समय म: अनेक लेखक न किव है जो और उनके कत(न िविवध राग* म:
कत(न-रचना करते हf। !मख ु कत(नकार हf - पट्नम् सुqय अयर (समयिनदे) िनnनदास वरदा,
नीपदमल ु े, िन/नजिू च ध/यडु ैित आनया, च:गBव राय शाSी, राम+वािम िशव/न, कंु डुकुिड
कPणराया, पापनािश िशवया, मतु ैया भागवतार (नीमीद चBलगं ), मैसरू वासदु वे ाचाय( (qोचे
बारे व9रा) कHरिगर राम, किव कुजर भारती, िचि/न कृ Pणदास, तचHू र िसंगराचाय( (देवी मीनाFी),
रामनाथ शा7ी, ित9पित नारायणया (पराके ल सर+वती), व:कटेश शाSी, सर+वती शेश
शाSी, िलगं रातु दोर+वामी (|ृगं ार लहरी), कुnप+ु वामी !भृित। 19वM शती के !मखु कत(नकार
हf - |ी पलु गु िु त लIमीनरसमाँबाने (मंगल हारित) सव( |ी परंकुशदास िबटठ रामदास, ताHरग*ड
ब:कमांबा (|ी लIमी ि+थतांग िच0प िच/मया िशवनुत शभु ांग), पिु लमेल राघवाय(, कािकनाडा
उतराखड मु त िवविवालय 77
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
पानाभदासु , एBलHु र मिBलकाज(नु , सर+वतुल सुZबारायडु, मािल व:कट नरिसंहहडु, वीर
भ0या, अBलHू र रंगाराव,ु मैलवरपु रामया आिद।
अचल बोध – सं दाय इस आ+था को मानने वाले पजू ा, स=ं या जैसे िनय कमg को उपेFा
करते हए हह योग िkयाओ ं का समथ(न करते हf। अचल बोध या अचलत सं!दाय के
सं+थापक हf - पातल ु Hू र वी qम।् इनके कई िशPय, !िशPय हए िजनम: िसGया और नासरया
मिु +लम थे तथा अ/य िशPय* म: कालव कोदया, ित9मलेिसकोटया, पोकल शेश चल
नायडु, इHर( नारायडु ु , सातािन कृ Pणया (श0ू जाित) चीराल वीर5मा, वेदा/तम कोट5मा, िशवराम
भागवतल ु ु आिद मु य है। इन किवय* का आमजनता से धिन{ स5ब/ध था।
तेलुगु - 1याकरण, छंद, कोश -
Tयाकरण - Tयाकरण िवा के [ारा भाषा के शZद*, 9प* और !योग* का Rान होता है। यह
शZद* क Tयु पिK, अथ( तथा !योग-पित को +पO करने वाला िववरण है। इसके कई भ( हf,
जैसे- अनश ु ासिनक, वण(नामक, ऐितहािसक, तल ु नामक, एकदेशी, िवाथU Tयाकरण आिद।
तेरहवM, शती म: आं भाषा – भूषण’ Tयाकरण 4थं क रचना क/नड़ के नागवमा( कृ त ‘कना(टक
भाषा – भषू ण’ के आधार पर क गयी। इसके बाद के सभी Tयाकरण ‘ िसा/त कौमदु ी’ के
आधार पर िलखे गये। तेलगु ु का !थम Tयाकरण न//य भ कृ त ‘आ/ शZद िच/तामिण’ को
कुछ िव[ान मानते हf। जबिक 13वM शती !ा\ के तना कृ त ‘आं भाषा भषू ण’ को बहत से
िव[ान तेलुगु का !थम Tयाकरण मानते हf। के तना ने तेलगु ु भाषा के शZद* के तसम, तव,
शु तेलगु ु, देशज, 4ा5य आिद भाग* म: बाँटा है। इसम: कुल 190 पद है। दोन* वैयाकरण 4/थ
एक दसू रे क परू क !तीत होती है।
िव-नकोट पेUना - 14वM शती म: पेद/ना [ारा िलखा गया 4थं ‘काTयालंकार चड़ू ामिण; म:
अलंकार शाS का िववेचन है। इसम: संRा, अज/त, हल/त, संिध, िवभि_, समाज, तित,
िkया आिद का संिF\ उBलेख हf। 1435 ई. म: अनंत क ‘छ/द’ नामक कृ ित म: छंद, छंदोभंग,
िवसि/ध, पनु 9ि_, सश ं य आिद दशिवध दोष* का उBलेख हf। संिध-भेद, समास, िkया-िवशेष ,
िवेशेश णािद पर भी !काश डाला गया है। इ/ह*ने तेलगु ु म: अ!य_ ु अTयय* को वृथ ’ कहा है।
1480 म: वेBलिं क तातम भ ने। किव िच/तामिण’ के चार म: से दो अिधकार Tयाकरण से संब
है। मGु रातु रामना क कृ ित किवजन सजं ीवनी’ (1550ई.) क !थम तरंग छंद तथा शेश तीन
तरंग* म: शZद समास और संिधय* क Tयाया क गई है। रघनु ाथया क ‘लFण दीिपका’
अथवा ‘सव(लFण सार सं4ह’ (1600ई.) म: रे फ पर चचा( क गई है। ि7िलगं शZदानुशासन’ को
कुछ िव[ान मडं लIमीनरिसंह किव क रचना मानते हf तो कुछ तेरहवM शती के अथव(ण क
रचना मानते हf। ‘ि7िलंग शZदानश ु ासन’ म: कव, पुPपद/त, रावण, सोम आिद को वैयाकरण* के
9प म: उBलेख िकया गया है। गणपवरमु व:कट किव कृ त ‘सव(लFण िशरोमिण’ एक िवशाल
4/थ है। इसम: छंद, अलंकार, कोश आिद के बारे म: िलखा गया एक िवषय 4थं के समान है।
िसा/त कौमदु ी के आधार पर इसका ‘आं कौमदु ी’ नाम रखा गया है। 1700ई. म: गािल
नरसया ने इसका अनुकरण कर किव िशरोमिण’ भाPयकृ ित क रचना क। इसम: Tयाकरण के
उतराखड मु त िवविवालय 78
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
सIू मितसूIम बात* क Tयाया क गयी है। ‘किविशरोमिण’ को अहोबल पंिडतीय’ भी कहते
हf। नरसया ने ‘िवकृ त’ िववेक’ सं+कृ त म: िलखा।
पािभराम शाSी ने 1825 ई. म: ‘आं Tयाकरण’ (पGािभ राम पंिडतीय) क रचना क
। धातु माला’ इनक दसू री Tयाकरण कृ ित है। रािवपािट ग9 ु मिू त( शाSी ने 1852 म:
!oोKरा/Tयाकरण’ !oोKर शैली म: िलखा तथा 1856 म: व:कटमरमण शाSी ने ‘लघु
Tयाकरण’ स7ू पित पर िलखा। तेलगु ु का सवागीण और Tयि+थत Tयाकरण परव+तु
िच/नरासHू र ने िलखा। इनक कुद आठ Tयाकरण 4ंथ हf, िजसम: ‘बाल Tयाकरण’ को छोड़ सभी
अधूरी कृ ितयाँ है जैसे- ‘आ/ शZद शासन-, ‘सं+कृ त स7ू ांध Tयाकरण’,‘आं/ शZद
िच/तामिण क Tयाया’, ‘शZद लFण सं4ह’, ‘पा/ Tयाकरण’, आ/ धातनु ाममाला,
िवभि_ बोिधनी’ आिद। बाल Tयाकरण के अनक ु रण पर बहजनपBली सीतारामाचाय( ने ‘पौढ़
Tयाकरण’ क रचना क। ये दोन* एक दसू रे क परू क भी कही जा सकती है। !ौढ़ Tयाकरण’ को
‘ि7िलगं लFण शेष’ भी कहा जाता है। सं+कृ त म: Tयाकरण,अलंकार को काTय-!ाण माना गया
है। जबिक तेलगु ु म: छंद ही काTय !ाण है। छंद शाS क रचना प रचना के साथ ही होता था।
तंजौर के सर+वती महल (!ाचीन प+ु तकालय) म: िपंगल पु+तक: , सरु िFत सं4िहत हf।
क+तHू र रंग किव (1740ई.) ने तथा उनसे 250 वष( पवू ( काचनस बमवना ने ‘किव सप(
ग9ड़’ म: न/नय के ‘लFण सा’ का उBलेख िकया है। छंद शाS के लेखक* म: न/नय के बाद
मिBलय रे चना का नाम आता है। रे चना क कृ ित ‘किव जन|य’ (छंद 4थं ) क रचना म: भीमना
के जे{ प7ु वाचकाभरण ने सहयोग िदया था। अथव(णाचाय( को महाभारत के िवराट पव( का
अनवु ादक माना जाता है। 1520-60 के म=य ‘अथव(णस छंद’ !ा\ हआ, िजसम: शभु -अशभु
अFर* के पHरणाम, यित, !ास का िववेचन हआ है। ित कना कृ त ‘किव बाrबधं ’ म: अFर* के
कुल,गणु गण* के +व9प, गणािधदेवता, वणा(िधदेवता, गणरािश, रािश अिधपित, अFर* का
श7ु और िम7, यित, !ास आिद क िववेचना हई है।
1320 ई. म: |ीधर का ‘|ीधर छंद’ 1380 ई. म: ‘किव राFस छंद’ (अ!ा\ 4थं ),
िव/नकोट पेGना ‘कायालंकार चड़ू ामिण’ के नौ म: से छ उBलास अलंकार* से तथा दो छंद* से
तथा एक Tयाकरण से संब उBलास है। 1480 ई. म: वेBलिं क तातम भ का ‘छंदोदप(ण’,
अनतं किव का ‘छदोदप(ण’ (अन/तामाय छंद) आिद के छंद से सबं िं धत कई 4/थ हf। अ/य छंद
4/थ िन5नतः `Pयमान है-
प+ु तक लेखक समय
1 किव गजाकुश (किवराज गजांकृश) भैरव 15वM शती
2 लFण दीिपका गोरना 15वM शती
3 किव सप( ग9डमु (अपणू ( उपलZध) काचन बसवना 1470ई.
4 !योगसार (अपणू ( उपलZध) काचन बसवना 1470 ई.
5 किव वणा(मतृ (कुकिव कण(कठोर) कौलHू र आंजनेय किव 1590 ई.
6 किव कंठाभरण (अपणू ( !ा\) काचन वासना 16वM शती
उतराखड मु त िवविवालय 79
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
7 लFण िवलास (यित !ास िवलास) वनमु िू त( व:कटाचाय( 17वM शती
8 लFण दीिपका रघनु ाथया 16वM शती
9 वादांग चड़ू ामिण (अपणू ( !ा\) मBलना 17वM शती
10 लFण चूड़ामिण क+तिू त रंग किव 1740 ई.
11 किव लFण सार सं4ह रनाकर गोपाल किव 17वM शती
12 किव संशय-िव}छे दमु आिडदमु सचू ना 1760 ई.
13 कृ Pण भपू ालीयम चं0 किव 1819 ई.
14 वीर भपू ालीयमु ित5म किव 18वM शती
15 सरला/ वृKरनाकर वेBलHू र िलगं म/7ी 19वM शती
16 सकल लFण सार अGनHू र रामदास किव 19 वM शती
17 सव( लFण सार रंग किव 19 वM शती
18 सक ु िवजन मनोरंजन कुिचमंिच व:कटराय 19 वM शती
19 किवता लFण सार ओ9गिट रामया 19 वM शती
20 किव िचंतामिण वेBलंिक तातम भ 1480 ई.
21 छंदोवप(ण वेBलंिक तातम भ 1550 ई.
22 लFण सार सं4ह किव पेGना 1560 ई.
23 सल ु Fण सारमु िलंगमगंटु किव 1560 ई.
24 बालबोध छंदमु िलंगमगंटु किव 1560 ई.
इस काल के |े{ छंद शािSय* म: अnप किव, गणपलरमु व:कटकिव का नाम |े{ छंद
शािSय* म: िलया जाता है। इनक कृ ित ‘सव(लFण िशरोमिण’ म: अFर तथा गण, यित, वृत
!ास, यFगण चाटु संGिल, पGिल, कBयाण, िव9दाविल आिद क िववेचना है। 19वM शती म:
निडम:िट व:कटपित ने ‘िच7ब/ध दप(ण’ म: िच7 ब/ध के स5ब/ध म: िलखा है। आधिु नक यगु म:
बोिZबिल राhय के किव मडं पाक पाव(तीयशम शाSी ने ‘!बधं संबधं बधं िनबधं न’ नामक
लFण 4थं क रचना करके इस कमी को परू ा िकया।
अलंकार- तेलगू ु सािहय म: अलक ं ार पर बहत ही कम +वत7ं 4/थ !ा\ है। 12वM शती म: !ा\
किव जना|य कृ ित म: छंद के साथ अलंकार* क िववेचना क गयी है। 1402 ई. म: पेGना कृ त
‘काTयालंकार चूड़ामिण’ के नौ म: से छः उBलास* म: अलंकार िववेचन है। अन/त किव कृ त
‘रसाभरण’ (रसालंकार) म: काTय!काश (म5मट,सािहय दप(ण (िव<नाथ पंचानम) !ताप 90
भश ू ण (िवानाथ) के मु य बात* को िलय गया है। गौरना क ‘लFण दीिपका’ म: लFण
सिहत अलंकार* का िववेचन है। वेBलंिक तातम भ क ‘िच/तामिण’ 1480 ई. म: िलखा गया।
भमिू त( का ‘काTयालंकार सं4ह’ 16वM शती का !ामािणक 4/थ माना जाता है। लेखक [ारा
इसे राhया|यदाता को समिप(त करने के कारण ‘इसे नरस भपू ालीय’ भी कहते हf। इसम: 18
|ृंगार चेOाओ ं का उBलेख है। िच/न किव पेGना ने सप(!थम 1550 ई. म: ‘लFण सार सं4ह’ म:
नाटक के लFण* का उBलेख है। किव रघनु ाथया ने 1600 ई. म: लFण दीिपका म: नांदी, किव,
उतराखड मु त िवविवालय 80
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
नायक, महाकाTय, खंडकाTयािद पर िवचार िकया है। गणपवरमु व:कट किव ने 1676ई. म: ‘सव(
लFण िशरोमिण’ म: अलंकार से संबंिधत अ=याय को ‘आ/ !ताप 90 यशोभूश ण नाम िदया
गया है। इसके अितHर_ रस, छंद क िव+तृत Tयाया क गयी है। 1700ई. म: गिु डपािट कोदड
किव ने भानिु म7 के सं+कृ त म: ‘रस मंजनी’ को तेलगु ु म: !+ततु िकया है। 1750 ई. म: नारायण
किव ने |ृंगार 4थं ‘रंस मंजरी’ का !णयन िकया। अिडदमु सूरना ने 1760 ई. म: ‘च/0ालोक’ क
रचना क। किटकनेिन राम किव ने ‘कुवलयानदं !कािशका’ का !णयन अnपय दीिFत के
‘कुबलयानंद’ के आधार पर िकया। इस !कार सं+कृ त के माग( से तेलगु ु सािहय !ौढ़ता को !ा\
करती रही।
कोश - 1550 म: ‘सीस प िनघटं ु ’ कृ ित िलखकर चौडnपा ने !थम तेलगु ु कोश तैयार िकया।
िकंतु गणपवरमु ‘सव(लFण सं4ह’ का ि[तीय उBलास ‘ब:कटेशा/’ तेलगु ु का !थम
पया(यवाची शZदकोश माना गया है। नदु ल ु पिट व:कटताय( के ‘आ/ भाषाण(वम’ु म: शZद* का
िवभाजन कर !ाचीन शZद* को अथ( 4ाही बनाया गया है। पैिडपाित लIमण किव का ‘आ/
नाम सं4ह’ आ/ नाम कोश क रचना ‘आं नाम सं4ह’ के आधार पर क । 18वM शती म:
क+तHू र रंग किव क ‘सांब िनघंटु’, स/यासी किव के ‘सवा(/ सार सं4ह’ 1840 म: बरू प राजु के
‘आ/ पदाकर’ आिद म: सं+कृ त के अमर कोश का अनुकरण िकया गया है।
अ4ं ेज* के कोष* का अनुकरण करते हए तेलगु ु म: !थम कोश मािमिड व:कया के [ारा
अकारािद kम म: ‘आ/ दीिपका’ (अपणू )( क रचना क िजसम: ग म: अथ( िदया गया है।
कf पबेल नामक अं4जे ने ‘कै पबेल िड शनरी’ , ‘qाउन ने ‘qाउन कोश ’ या ‘qाउन िडशनरी’
क रचना कर तेलुगु भाषेतर लोग* हेतु तेलगु ु 4ा बनाया। कक( बािड िनघटंु ु के लेखक का नाम
अRात है। 1875म: |ी परव+तु िच/नयसHू र ने िनघटं ु ओ ं के शZद* का अकारािदkम से !+तिु त
का काम शु9 िकया िजसे उनके िशPय |ी बडु ानपिBल सीतारामाचाय( ने ‘शZद रनाकरमु नाम
से पणू ( िकया।
ओिगराल जग/नाथ किव का ‘आ/ पदपाHरजातम् महक ं ािल सुZबरामशाSी का
शZदाथ( चंि0का’, कोट लIमीनारायण का ‘लIमीनारायणीय’, िशरे भूश णमु रंगाचाय(ल ु ु का
‘शZद कौमदु ी’, नादेBला प9 ु षोKम का ‘प9
ु षोKममीयमु’, कोटयामल कामशाS का ‘आ/
वाच+पयम’् कनुमित( व:कQाम|ी िवानदं नाथ का ‘सं याथ( नाम !कािशका’, सं यावाचक’,
िचंतासंदु र शाSी का ‘सं+कृ त शZद9प रह+यदश(न आिद उBलेखनीय शZदकोश हf। पीठापरु
Hरयासत के महाराज ने कई िव[ान* के [ारा वृहत् शZदकोश तैयार करवाया। |ी मोरे पिBल
रामच/ं 0 शाSी का ‘निु डकडिव’ (अपणू )( म: शZद* क उपिK पर !काश डाल गया है। इस
!कार तेलगु ु कोश क समृ परंपरा का िवकास समय के !वाह के साथ होता रहा।
धम.शाb - भारत जैसे धम(!ाण देश म: दिFण भारत अयिधक धािम(क !ांत माना जाता है।
अचल वेदातं के बाद परशरु ामपतं ल ु िलंगमिू त( क कृ ित ‘सीतारामांजनेय सवं ाद’ म: साय योग
तथा वेदांत के तव* का िववेचन हआ है। सुqयम् का ‘आ=याम रामायण’, |ी नागे<र राव
पंतलु ु का आं बाड्मय चHर7, ‘नारद परमेि{ संवाद आिद उBलेखनीय धम(शाS कृ ित हf।
उतराखड मु त िवविवालय 81
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
वेिगनािट क*डया कृ त ‘िनण(य िसंधु’, मल ू घिटक के तना का ‘िवRाने<रीयमु’, ‘Sी धना=याय’,
परमानंद तीथ( का ‘q िवा सधु ाण(वमु’, आिद मह?व पणू ( धम(शाS है।
गिणत - पावल ु Hू र मBलनाय( का गिणत शाS - तेलगु ु का !ाचीनतम गिणत शाS माना जाता है।
‘दशिवध गिणत’ को िव[ान वीराचाय( के सं+कृ त 4थं का अनवु ाद मानते हf । कई ह+तिलिखत
!ा}य प+ु तक भडार म: सं4िहत है। कोडू9 बBलभामाय का ‘लीलावती गिणत, िपंगली
व:कटाि0 का ‘Fे7 गिणत’ आिद महवपू ण( हf।
cयोितष - तेलुगु म: फिलत hयोितष का अयिधक मह?व रहा है। क*िटकलपिू ड़ कोदंडराम
िसांती का ‘आय(भ िसा/त Tयायानमु’ मह?व पूण( hयोितष 4थं !ा}य प+ु तक भडार म:
सरु िFत है। धम(, गिणत, hयोितष के अितHर_ आयवु द, धनिु व(ा, आयधु आिद पर भी 4थं
िलखे गये। मनुमंिच भ का ‘अ<लFणसार’ बहत परु ाना गंथ है। आयधु परीFा’, ‘धनिु व(ा
िवलास’ ‘तपु ािक शाS (बंदक ू से स5बि/धत) आिद भी मह?व पूण( है। पे9माणमल ु
गणपयामाय का ‘वा+तसु ार स4ं ह’ वा+तु शाS का उKम 4थं है। अिभनय दप(ण’ को ‘दिु rगपाल
गोपाल कृ Pणया ‘डा टर आनंद तथा के 0 कुमार +वामी ने इrं लैड से !कािशत िकया था।
‘अिभनय लFण’, ‘नाट्य लFण’ भी उBलेखनीय है। ग/ु नमाय( का ‘मन िशBप शाSमु’, िशBप
कला का उKम 4थं है।
िवdान !ंथ (1850-1925) - अं4जी शासन काल के समय अ/य भाषा-भािषय* क तरह
तेलगु ु के लोग* म: भी जागृित आई। +व0 कंदक ु ू Hर वीरे शिलंगम पंतल
ु ु ने तेलुगु का यगु !वत(न
िकया। आयवु द संबंधी 4ंथ* पर इ/ह*ने िवशेष =यान िदया। +वगUय कोमरा(ज व:कट लIमणराव
पंतलु ु ने ‘िवRान चि/0का 4/थ माला’, आयवु द मात(ड गोपालाचाय( का ‘आयवु दा|म 4थं
माला तथा चरक’, स|ु ुत रस !दीिपका’, जैसी !ाकृ ितक िचिकसा से संबंिधत 4थं * का !णयन
हआ। !ाकृ ितक धम(-पHरषद क +थापना हई। ‘!कृ ित िचिकसा सार’ और ‘सयू ( िकरण
िचिकसक* इस पHरश द के [ारा ही !कािशत हआ। +वगUय उमर अलाशा तथा हकम
रहमतBु ला वेग का ‘इलाजल ु -गBु फा’ यनु ानी िचिकसा से स5बिं धत 4थं है । कबूतरम् |ीराम
शाSी का ‘पािथ(व पदाथ( िचिकसा’, |ीमाडू गणपितराव का ‘सा9nयौशध शाSमु’,
‘होिमयोषैथी से स5बि/धत 4ंथ है। िचBलीरगे |ीिनवास राव का ‘आंrलेय वै िच/तामिण’,
उBलेखनीय एलोपैथी 4/थ है। उnपल ु 9ु पािभरामा राव एवं वी.वी.एन. आचारी का 4/थ सम+त
िचिकसा शाS के एककृ त एवं तल ु नामकता के िलए मह?वपणू ( है। येज:ड्ल |ी रामल ु ु चौधरी
का ‘अनभु व पशु वै िच/तामिण’, महु 5मद कुतुब ु ीन का ‘अ< िचिकसा सार’, अडिव
सांबिशवराव का ‘अ< लFण सार सं4ह’ मह?व पणू ( है। नारायण म7ं ी का ‘सहदेव शाS (1885
ई. मह?व पणू ( ) पशिु चिकसा 4थं है।
आयवु िदक िनघंटु म: बािबBल व:कटे<र शाSी का ‘व+तगु ुण महोदिव’ उBलेखनीय है।
फिलत hयोितष पर िलिखत 4थं ‘बृहजातक’ के लेखक का नाम अRात है। इसके अितHर_
‘hयोितषाण(व नवीनत’’, ‘सयू ( सामिु 0क शाS’ मह?व पणू ( है।
उतराखड मु त िवविवालय 82
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
दश.न - धािम(क 4थं * म: कामशाSी का ‘धम(िसंधु , रामच/0ाचाय( का गो7 !वर सं4ह’,
कनपु ित(म, माक( डेय शमा( ने पाराशर +मृित’, को अनिु दत िकया। नारायण भ का याFवBTय
+मृित’, िवRाने<र क ‘िमताFरी’ को, आिदनारायण शा7ी ने बौ धम(स7ू * पर भाPय िलखा।
कंदाड( शेषाचाय( ने रामानुजाचाय( के |ी भाPय’ का अनवु ाद िकया। परु ाणपंड मBलव शाSी ने
‘शंकर भाPय’ तथा हांडे रामराव ने ‘मा=वाचाय( के भाPय का अनवु ाद !+ततु िकया। भारतीय
दश(न का दश(न ‘के वBय नवनीत-, िवचार सागर- 4थं म: देखा जा सकता है। गोHर सqु यम
शाSी ने ितलक का ‘गीता रह+य’, तेलगु ु म: अनिु दत िकया। वीरे शिलंगम पंतल ु ु का ‘तक( सं4ह’
उBलेखनीय दश(न 4/थ है।
तेलगु ु दैिनक ‘आ/ पि7का’, मािसक ‘शारदा भारती’ के [ारा कई लेखक अवतीण(
हए। मBलािद व:कटरनम् का ‘nलेटो राजनीित शाSमु-, गोपालया का ‘सल ु भ पाक शाS’
बल ु मु रामजोिगराव का ‘योग Tयायायमु’, नर िसंह नायडु ु का ‘िशBपशाSमु’, ग9 ु नाथ शाSी,
सरया शाSी का ‘वा+तु शाSम’ु , जोिगराजु िपगं िल व:कया का ‘कृ िष शाSत’ु , चBला लIमी
नृिसंह शाSी का ‘िखलांगिल शाSम’ु , पसमु ित( यR नारयण का ‘नट !कािशक-, सHू रशाSी का
‘नाट्योपलमु परु ाणं’, आिद तेलगु ु सािहय को समृ करते हf। ‘इिडयन पीनल कोड’ का
अनवु ाद तेलगु ु म: िकया गया। डा टर िचलक ु ू Hर नारायणराव ने तेलगु ु को आय( कुलीय िस
करते हए ‘आं भाषा चHर7’ (दो भाग) 4थं क रचना क।
तेलुगु का सािहियक इितहास - ग9 ु जाड़ |ीराममिू त( और वीरे शिलंगम् पंतुलु आिद ने नये-
नये िवषय* को Tय_ करने के िलए हजार* नये पाHरभािषक शZद बनाये। भाषा क सव(तोमख ु ी
उ/नित का !यन िकया गया।
अथ.शाb और राजनीित - nलेट* के ‘पॉिलिट स’ का अनुवाद तेलगु ु म: अनवु ाद िकया गया।
आमकूHर गोिव/दाचाय( को ‘भारतीय अथ(शाSमु’ तथा भारतीय राhयोग शाSतु’ जैसी कृ ितय*
क रचना कर अथ(शाS और राजनीितशाS के िलए नये पाHरभािषक शZद गढे।
दडं क रचनाएँ - तेलगु ु सािहय क एक िवधा ‘दडं क’ है। दडं क रचनाय: सं+कृ त म: भी है। तेलगु ु
सािहय म: तीन !कार क दंडक रचनाय: है। उनका संिF\ िववरण इस !कार देखा जा सकता है।
भि= दडं क - सव(!थम तेलुगु म: न/नय के ‘िशवदडं क’ का उBलेख होता है। ‘िकरातज(ुनीय
कथा’ म: हय दडं क !य_ ु हआ है। 14वM शती म: ज कना ने अपने िवkमाक( चHर7 म: ‘देवी
दडं क’ िलखा। |ीनाथकिव का ‘काशी दंडमु’ क रचना क है। इस !कार इसका !योग काTय*
म: समय के अनसु ार होता रहा।
Sगृं ार दडक ं - अ5मेर पोतनामाय का ‘भोिगनी दडं क’, |ृगं ार दडं कम’ु (ताBलपाक पेद
ित9मला पाय(ुलु 1530 ई. म:) , |ीकालह+ती<री दडं कमु (धूज(टीकिव 1500 ई. म:) ‘िवावती
दडं कमु गणपवरमु’ (व:कट किव, 1670 ई. म:), मोिहनी दडं कमु’ (मोहनी, 1650 ई.,बृह/नाियका
दडं कम’ु ) नद9 ु मािट व:क/ना, 1730 ई. म: च/0ानना दडं कम’ु (सा5बिशव किव, 1800 ई. म: )
च/0ानना दडं कमु (िचदबं र किव, 1830 ई.) आिद उBलेखनीय |ृंगार दडं क हf।
उतराखड मु त िवविवालय 83
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कण.क दडं क - ताBलपाक के ‘अOभाषा दंडकमु’ म: सं+कृ त, !ाकृ त, शौरसेनी, पैशाची,
मागधी, !ाची, अव/ती, सव(दश े ी आिद भाषाओ ं म: |ी व:कटे<र क +तिु त क गयी है। जबिक
आधुिनक दडंक Tयrं य रचना (पैरोडी) के 9प म: िलखी जाने लगी है। िज/ह: !कण(क दंडक भी
कहते हf, जैसे तंबाकू, िसगरे ट आिद को लेकर िलखी जाने वाली दंडक। इस तरह तेलुगु सािहय
सैकडो ़ दडं क* से भरी हई है। कलगु ोडु अ<यनारायणराव का 7000 पंि_य* वाला ‘दडं क
रामयण’ आज िवल\ु है। िकंतु तेलगु ु भाषी ‘सयू ( दडं क’ से िदन क श9 ु आत करते हए
‘!स/नांजनेय दडं क’ तक अपने िदन को िवराम देते हf।
(1) अयास -
(क) ‘हाँ’ या ‘नहM’ पर यह िनशान लगाकर उKर दीिजए।
1. तेलगु ु का आिदकाTय ‘महाभारत’ है। (हाँ/नहM)
2. तेलगु ु म: ‘शतक सािहय का अभाव है। (हाँ/नहM)
3. तेलगु ु म: यFमान क समृ परंपरा रही है। (हाँ/नहM)
4. तेलगु ु म: चंपू काTय रचनाओ ं का अभाव रहा है। (हाँ/नहM)
5. तेलगु ु के आिदकिव ित कना है। (हाँ/नहM)
6. तेलगु ु सािहय म: चलिच7 गीत लेखनकार नहM हf। (हाँ/नहM)
7. तेलगु ु म: पया(\ कित(न सािहय िलखे गये हf। (हाँ/नहM)
8. तेलगु ु म: हेतुवादी सािहय !चुरता के साथ िलखे गये हf। (हाँ/नहM)
2 - िन5निलिखत िवकBप* म: से सही िवकBप चनु कर उसीक संया को{क म: िलिखए।
1. तेलगु ु के आिदकिव कौन है?
1- ित कना
2- न/नय भ
3- एई/ना
4- |ीनाथ
2. न/नय-ित कना-एई/ना ने िकस 4/थ क रचना क?
1- रामायण
2- महाभारत
3- भागवत
4- शंकुतला नाटक
3. तेलगु ु नाटक के शे सिपयर कौन है?
1- िचलकमिू त( नरिसंहम
2- पनुगंिट लIमीनरिसंहम
3- धम(वरम रामकृ Pणमाचय(ल ु ु
4- गरु जाड़ा अnपाराव
4. आम_ ु माBयदा’ िकसक रचना है?
उतराखड मु त िवविवालय 84
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
1- ित5मना
2- |ीकृ Pण देवराय
3- अBलसािन पेGना
4- वेमना
5. ‘मनचु Hर7’ !बंध काTय के किव कौन है?
1- कंदक ु ू Hर बीरे शिलगं म पतं ल
ु ु
2- काशी कृ Pणाचाय(
3- अBलसािन पेGना
4- |ीिनवासाचाय(
6. तेलगु ु क !िस सािहियक-सािहयेŸ◌ार िवधा कौन सी है?
1- दडं क रचनाय:
2- अवधान
3- शतक काTय
4- यFगान
7. ‘!बंध परमे<र’ क उपािध िकसे !ा\ है?
1- ित कना
2- एर( ना
3- ित कना
4- न/नयभ
6.4 सारांश
!+ततु इकाई को पढ़ने के पVात आप –
तेलगु ु सािहय के kमब िवकास का पHरचय !ा\ कर चुके ह*गे
तेलगु ु सािहयेितहास के िविभ/न काल* का Rान !ा\ कर चुके ह*गे
तेलगु ु काTय-सािहय के kमवार िवकास को समझ चुके ह*गे
तेलगु ु सािहय के िविवध काTय-9प* का पHरचय !ा\ कर चुके ह*गे
6.5 श"दावली
तं0ा - आल+य, नMद
अवसान - अतं होना, खम होना
अनसु रण - पीछे -पीछे चलना
संवध(न - िवकास, उ/नित
अवलोकन - देखना
उतराखड मु त िवविवालय 85
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
अ4गय - आगे रहने वाला , |े{
सं+थापक - +थापना करने वाला, बनानेवाला
6.6 अ%यास &' के उ(र
(क) ‘हाँ’ या ‘नहM’ पर यह िनशान लगाकर उKर दीिजए।
1. हाँ
2. नहM
3. हाँ
4. नहM
5. नहM
6. नहM
7. हाँ
8. हाँ
2- िन5निलिखत िवकBप* म: से सही िवकBप चनु कर उसीक सं या को{क म: िलिखए।
2- न/नय भ
2. न/नय-ित कना-एई/ना ने िकस 4/थ क रचना क?
2- महाभारत
3. तेलगु ु नाटक के शे सिपयर कौन है?
2- पनुगंिट लIमीनरिसंहम
4. आम_ ु माBयदा’ िकसक रचना है?
2- |ीकृ Pण देवराय
5. ‘मनचु Hर7’ !बंध काTय के किव कौन है?
3- अBलसािन पेGना
6. तेलगु ु क !िस सािहियक-सािहयेतर िवधा कौन सी है?
2- अवधान
7. ‘!बधं परमे<र’ क उपािध िकसे !ा\ है?
2- एर( ना
उतराखड मु त िवविवालय 86
तल ु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5. आ/ कबल ु चHर7मु (दो भाग)- िनडदबोलु व:कटराव
6. िवजय नगर सााhया/ध चHर7तु - ठे कुलमBल अ}युतराव
उतराखड मु त िवविवालय 87
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
7.1 तावना
एम0ए0एच0एल – 204 क यह सातवM इकाई है । िपछली इकाई म: आपन: तेलगु ु
सािहय के प का अ=ययन िकया है । इस इकाई म: हम तेलगु ु सािहय के ग सािहय का
अ=ययन कर: ग: । तेलगु ु का सािहय का आधुिनक काल- ग सािहय (1850 ई. से अब तक)
तेलगु ु म: आिदकाल से आधिु नक काल तक !चरु ग िलखे गये िक/तु आधिु नक यगु म: अ/य
भारतीय भाषाओ ं क तरह तेलुगु ग िवधाओ ं क इ/0धनुषी छटा सािहय को मानो पर ही लगा
देती है। ग िवधा के िवकास म: िवदेशी संपक( एवं छापेखाने, !ेस के अिवPकार ने महवपणू (
भिू मका िनभाई। नवीन Rान-िवRान को प क अपेFा ग म: अिधक सगु मता से Tय_ िकया
उतराखड मु त िवविवालय 88
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
जा सकता है। तेलुगु सािहय-‘िनमा(ण म: सािहियक भाषा और बोलचाल क भाषा का
सािहियक 9प बहत महवपणू ( है।
उतराखड मु त िवविवालय 89
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
7.2 उेय
एम0 ए0 एच0 एल – 204 क यह सातवM इकाई है । इस इकाई के अ=ययन के पचात्
आप –
• तेलगु ु उप/यास सािहय से पHरिचत हो सक: गे ।
• तेलगु ु कहानी सािहय के इितहास का पHरचय !ाnत कर सक: गे ।
• तेलगु ु के नाटक एवं अ/य ग िवधाओ ं का पHरचय !ाnत कर सक: गे ।
• तेलगु ु सािहय के !मख
ु प7 – पि7काओ ं का पHरचय !ाnत कर सक: गे ।
• तेलगु ु ग क !मख ु िवशेष ताओ ं को समझ सक: गे ।
7.3 तेलुगु कहानी का िवकास
आरंिभक ग उ/नायाक* म: परव+तु िच/नयसHू र (1806-1862) को क*ड व:कट रनम्
पंतलु , (1842-1915), और कंदक ु ू Hर वीरे शिलंगम पंतल
ु ु (1858-1919) आिद ि7मिू त(य* का
महवपणू ( +थान है। यिप तेलुगु सािहय म: आरंभ से ही ग िवधा का (चंपू काTय ) का !योग
हआ है। 19 वM शती का उतरा( आं सािहय का ग युग कहा जाता है। तेलगु ु ग सािहय
के िवकास म: सहायक कारक* का पHरचय िन5नतः `Oांिकत है-
िच-नयसू र - िच/नयसूHर ने ‘नीित-चिं 0का’ नामक अपनी कृ ित को फोट( स:ट जाज(
कालेज के स:kेटरी ए0जे0 अवेथनार को समिप(त क पंचतं7 पर आधाHरत यह 4/थ अपूण(
(िम7-लाभ, िम7 भेद) 9प म: ही िवयात हो गया। िच/नयसूHर के असमय देहांत तेलुगु सािहय
के िलए एक बडी Fित ़ िस हई।
चाPस. िफलीप^ाउन- qाउन ने 1882 म: ताताचाय( नामक Tयि_ से कहािनयाँ सुनी थी,
िजसे उ/ह*ने अं4ेजी म: िलखा था। qाउन तेलगु ु क दोनो भाषाओ ं का आदर करते थे। उनके [ारा
अ4ं ेजी को तेलगु ु िसखाने क !िkया छोटी-छोटी कहािनयां के मा=यम से अपनायी गयी, जो
!शंसनीय है। िगडुगु सममिू त( पंतलु ु का ‘ग-िच/तामिण (1899 ई. म: !कािशत) के पृ0 92,
293,240,256 आिद पृ{* म: तेलगु ु भाषा को द9 ु ह बनाने क !िkया का उBलेख िकया गया
है। म=यकाल म: सं+कृ त, !ाकृ त से प 9प म: िलखी गयी रचनाओ ं को ग म: अनिू दत िकया
गया। हसं िवंशती, शक ु स\क, ताताचाय( क कहािनयाँ, ‘परमानंदयागHर कथल ु ु’ (1865 ई.)
आिद क जरि!यता +वयिं स है। परव+तु के रंगाचाय( क 1875 ई. पे ‘परमानदं या िशPयल ु
कथा’ जनभाषा म: िलखी उकृ Pट कृ ित है।
ईसाई धम. चार - अं4जे * ने ईसाई धम( के !चाराथ( 1880 ई. म: ‘ओBड टे+टम:ट
कथल ु ’ु तेलगु ु म: सी0वी0इ9 सोसाइटी क ओर से छपवाया, िक/तु बाइिबल क तेलगु ु
आमजनता के िलए अपनी न वन सक।
उतराखड मु त िवविवालय 90
तलु नामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
चार दरवेश - 1893 ई. म: एन0ए0 मिू त( ने ‘अरे िबयन नैट्स कथलु’ अ4ं ेजी से अनवु ाद िकया
जो लोग* [ारा खबू पसदं क गई। अमीर खसु र* क ‘चार दरवेश’ नामक कहानी मीर उ5मन [ारा
1801 ई. म: फारसी म: िलखा गया। 1811 ई. म: ि+मत-नामकक अं4जे ने इसे अं4ेज* म: अनिू दत
िकया। इसके बाद 1856 म: एHर( िमिBल मिBलकाज(नु ने ‘चार दरवेश ’ नाम से इसे अनिू दत
िकया।
तड़कमBल व:कट कृ Pणाराव (1825-1890) क कई कृ ितयाँ है। िजनम: 1879 ई. म:
‘|ीमदा/ किवता विध(नी िवलासमु’ किBपत कहानी खबू !िस हई। 19 वी शती के उतरा(
म: चदं लवाड़ सीताराम शाSी ने ‘द कन पवू ( कथल’ु , ‘दशकुमार चHर7’, ‘स+ं कृ त नाटक
कथलु’ म: सहज शैली अपनाते हए ‘जनिवनोिदनी’ पि7का का संपादन भी िकया। |ी
एनमिचंतल संजीवराय शाSी का ‘दशकुमार चHर7’ (1886 ई.) तथा |ी वेदम व:कटराय शाSी
का !ताप90ीय नाटक कथलु (1888 ई.) सरस शैली क कृ ितय* का उतम उदाहरण है।
19 वM शती के उतरा( के कुछ !मख ु लेखक हf, िज/ह*ने ने तेलुगु ग सािहय के
िवकास म: महपूण( योगदान िदया। |ी दासु |ी रामुलु का ‘अिभनवप ग !बधं ’ (1892 ई.),
वेदम व:कटशाSी का ‘कथा सHरसागर’ (1881ई.), िचलकपािट व:कटरामनजु शमा( का ‘भ*ज
कािलदास कथनु ु’, ‘चमकार कथा कBलोिलनी’ आिद उBलेख कृ ितयां हf। |ी मिधर सुZब7
दीFतल ु ु का ‘काशीमिजली कथल ु ु (1895) भी इस संदभ( म: उBलेखनीय है।
गुजाड़ Sीराम मूित. - इ/ह*ने तेलगु ु !बंध काTय ‘कला पूणा(दयमु’ को ‘कला पणू lदय कथा
सं4ह’ के 9प म: तथा अरे िबयन नाइट्स को ‘िच7 रनाकरमु’ के 9प म: गानुवाद !+ततु िकया।
उ/नीसवM शती के उतरा( म: काBपिनक िकंतु मौिलक कथाओ ं का !णयन तेलगु ु सािहय को
खबू होने लगा। पनnपपकम अन/नचाय( का ‘मजवु ाणी िवजयमु’ (सन् 1892 ई.), कोमडूHर
अन/ताचाय( का ‘पलूकिन पावती कथा’ (मूक पावती को दो भाग* म: कहानी) 1899 ई. म:
!कािशत हई। पी. |ीिनवासाचाय( का ‘सोमशमा(5यदु यमु’ (1894 ई.) इमाम साहब तथा क+तHु र
रंगया ने ‘गलु -बकावली’ (दो भाग, 1895 ई.) आिद के [ारा कथा सािहय क वृि क।
वीरेशिलंगम पंतुलु - वीरे शिलंगम पंतल ु ु आधुिनक युग के सािहियक और सामािजक
िनमा(ताओ ं म: अ4णी माने जाते हf। उ/ह*ने ग के अ/य अंग* क तरह कथा सािहय के िवकास
म: योगदान िदया। वीरे शिलंगम ने ‘िवkमाकु(िन कथुल’, ‘पंचत/7, ‘काशी मिजली’, आिद को
सािहियक नहM माना है। यिप अपना सािहियक जीवन किवता से श9 ु करने के पVात् भी
उ/ह*ने ग िवधा क |ीवृि क। िच/नयसHू र क ‘नीित चि/0का’ के तीसरे अ=याय ‘िव4ह’
(1874 ई.) को वीरे शिलंगम पंतल ु ु ने 4ांिथक भाषा म: परू ा िकया। 1872 म: ही !कािशत कर
िलया था। को कोड़ व:कटरनम् और वीरे शिलंगम !ार5भ म: अिभ/न थे, िकंतु बाद म: दोन*
िवरोधी बन गये । कारण यह राह िक वीरे शिलंगम समाज सधु ारक िवधवा िववाह के पFधर,
एके <रवादी थे जबिक व:कटरनम 9िढ़वादी थे। भाषा-िवषयक `िOकोण भी दोन* के िवपरीत
थे। वीरे शिलगं म का भाषा िवषयक `िOकोण उनक आमकथा म: अिभTय_ हआ है। वे भाषा
क सरल, सहज शैली म: !+ततु करने के पFधर थे। शे सिपयर ने नाटक* के अनवु ाद म: पा7* के
उतराखड मु त िवविवालय 91
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
नाम* का भारतीय करण कर िदया। उ/ह*ने िSय* म: उ}चादश( के +थापनाथ( ‘सयवती चHर7’
(1882 ई.), हHरशच/0 क पनी च/0मती पर च/0मीत कथा (1884 ई.), ‘सयसजं ीवनी’
(1887 ई.) जैसी कहािनयां िलखी ।
बBलपं ािट व:कट सुZबया कहते हf, ‘‘औोिगक सvयता [ारा आधुिनक संसार को दी गई
महवपणू ( देन है‘- कहानी।’’ आधिु नक तेलगु ु कहानी का ज/म् दीघ( िवराम के बाद हआ। सन्
1819 म: रािवपािट गु9मिू त( शाSी के ‘िवkमाक( कहािनय* से सन 1990 के पनnपाकम
|ीिनवासचाय(ु वु के ‘भोजसतु ा पHरणयम् तक तेलगु ु कहानी अनवु ाद, अनक ु रण के 9प म: ही
िवकिसत होती रही। 20 शती म: सन 1921 म: पानगु िं ट का ‘कानगु चे’, और गरु जाड़ा
आnपाराव के ‘िवGवाटु’ (1910 ई.) से आधिु नक कहानी का |ीगणेश होता है। सन् 1921 म:
िचंता दीिFततल ु ु का सुगाली कुटुंबमु’, जी. रामकृ Pण का ‘िचरंजीवी’ (1947 ई.) आिद
उBलेखनीय !ारंि5भक कहािनयां हf।
सध ु ार युग - समाज सधु ार आदं ोलन के बयार को कहानीकार* ने बखबू ी बपनी कहािनय* म:
समेटा है। लंडा9 अ}चामांबा क ‘Sी-िवा’, ‘धन7योदिश’, ग9 ु जाडा अnपाराव का ‘मी
पेरेिमिट’, ‘पेGमसीद’ु आिद समाज-सधु ार से जुडी ़ कहािनयां हf। अ/या !मख ु कहािनयां हf;
‘अHरकाBल िक/द मंटलु, ‘इBलु बHन वेधवाडपडुचु’, तिBल!ाणमा’, (|ीपाद सqु य
शाSी), ‘शेश 5मा’, िवतंतुव’ु (चलम), ‘तेिलिव’ कालम किBप/येमाप(’ु , (मGु क ु ृ Pणा), पVात
यपम’ु , (िशवरामया), ‘ि[तीयम (कोडविटगंिट कुटुंबराव), ‘पडुचु पेBलाम’ (राघराव),
‘4हचारम’ (यनमuं सांबिशवराव), ‘राजया सोमयाजल ु ु’ (बी |ीिनवास शमा(,) ‘बािलका
िवलापमु’, (नरिसंहाराव),’ कलपु ु मो कलु’ (|ीपाद), ‘इलांिट तTवाई व+ते’ (|ीपाद),
‘अयोपापम,’ (गोटटु मु कल मंगाय5मा) ‘ईरया’ (अ< व:कट+वामी)’, मािदगवाडु’ (लीला
सरोिजनी), ‘4ु के डु नीBलु’ (बंदा कनकिलंग<े र राव) ‘धम(तिBल (चं◌ुडू9 रमादेवी) आिद
!मख ु समाज-सधु ार िवषयक कहािनयां है।
देशभि= और तेलुगु कहानी - तेलुगु कहािनय* म: !थम एवं ि[तीय िव<य ु के बाद िव<
+तर पर Tया\ म0ु ा+फित को तेलगु ु कहािनय* म: सजीवता के साथ बताया गया है। एसे
कहानीकार* ‘म:’ िड!ेशन चे5बकु’ के लेखक वेलHू र िशवरामशाSी !मख ु है। अ/य कहानीकार
हf- पे5मराजु राजगोपाल (अkमिवभागम) िचतलपािट |ीरामल ु ु (अिव यु पु रोजुल)ु , kोिZबिड
लIम5मा (िवजयोसवमु,), ि7परु नेिन गोपीचंद (िपHरिकवाडु), चागिं ट सोमयाजुलु (भBलक ू
+वnनम)ु आिद।
20वी शती के !ार5भ म: देशभि_पणू ( भावनाओ ं से यु_ रचनाय: !चरु मा7ा म: रची
गयी। Tयि_गत िहत क जगह देशिहत क बात कहािनयां म: ‘+पOत’ देखी जा सकती है। !मख ु
कहानी कार है।- मैदवालु पावती (यािगनी), गिु डपािट व:कटाचलम (सश ु ीला), व:कट
राhयलIमी (एवHरद0ुOम) गु5मिददला दगु ा(वाई (ने ध/यनैितिन), तािडनाग5म (कथकाद)ु , क9ण
कुमार (सेवा धम(म, आकिल मटलु, को/त चेnपुल,ु व:क/ना), िचंता दीिFतलु (सरु ासीती
ब:◌ीक जैलु !ेवशम,ु ‘एकादशी’, सHू र, सीित विं क, दशमी (1940), बटीरावु कथलु आिद ।
उतराखड मु त िवविवालय 92
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
इस काल क अ/य मह?वपणू ( कहािनयां हf-
‘कुटीर लIमी’ (कनपित( वरलIम5मा), ‘अिनव(चनीय याित’ (जी0वी0 कृ Pणा राव), ‘नारी
दयम’ु (पे5मराजु राजगोपालम)‘!ेवेिदकमीदा (चं0कला) ‘नीवेणी’ (रायसम व:कटिशवडु ु )
‘मोदिह दािड’ (|ीपाद) आिद।
तेलुगु कहानी और अयुदय (गितशील) आदं ोलन-
मा स(वादी िवचारधारा से !भािवत होकर भारतीय ही नहM अिपतु िव< सािहय क
िदशा पHरवित(त होने लगी थM। ऐसे म: तेलगु ु सािहय का यह पHरवत(न अvयदु य यगु के नाम से
जाना जाता है। आिथ(क समानता, शोषण और जाितगत भेद भाव का खडन, य ु सं+कृ ित का
िवरोध, मजदरू * का िहत, शांित क अिभलाषा और िव< `िO आिद अvयदु य युग क रचनाओ ं
क िवशेषता है। वगUय मानिसकता और मानव-संबंध* पर अथ( सं+कृ ित के !भाव कहानी िवधा
अछूती न रह सक। !मख ु कहािनयाँ हf- ‘दासHर पाटा’, ‘सगु ाली कुटुंबमु’ (िचंता दीिFतल ु )ु
‘आम: यागम’, ओ पTु वु पिू संिद’, ‘आराि7’, ‘जलसी’ (चलम), ‘कया कालबु ’, ‘पशबु ल ु
कोम’, ‘िपBलल मोलताडु’, ‘को/त चेnपल ु ु’ (क9ण कुमार) ‘नTु वल ु ु तेलगिपंिड’, ‘इतं लो
उि/द’, ‘कुल[ेश मु’, को/त-जीिवतम’ु , ‘ट्यटू र’ (कोडविटगंिट कुटुंबराव) आिद। इन कहािनय*
के मा=यम से लेखक* ने यथाथ( सामािजक पHरवेश को िचि7त िकया है। दिलत*, कृ श क* का
शोश ण, Tय+था के िव9 िव0ोह को पा7ा नक ु ू ल भाषा म: कहानीकार* ने !+ततु िकया है।
!मख ु कहानीकार हf- रािव शाSी (िपपीिलकम), रािवशाSी (आ9 सारा कथलु’, बु कुल’ु )
कोलकलHू र इनाक (ऊ9बािव, तBलेनोडु, िपडीकृ तशिट, आकिल) पेिGभोट्ला, सी.एस.राव
(मसु ल5मा मरणम कBलजोडु’) ितलक (आशा िकरणम), गोखले (बBलकटु पापया) आिद ।
इन कहानीकार* ने कलम के माधम से समाज को !गितगामी बनाया।
तेलुगु कहानी और तेलंगाना मुि=- आदं ोलन- 4 जुलाई सन् 1946 को किडव:िड 4ाम म:
जमMदार* क सेना [ारा आम लोग* पर गोली चलवाया गया। िजसम: बधं वु ा मज़दरू ी का िवरोध
करने वाले दोड्िड कोमरया क मृयु हो गयी। िजससे यह िव0ोह hवालामख ु ी बन गया। िव0ोह
क आग को शZद* का 9प देकर लेखक* ने उKम कहानी सज(ना क। !मख ु कहािनयां है-
‘रहीम भाई’ (पी.व:कटे<रराव), नवजागृित (!याग), अमर वी9लु (के 0 एल नरिसहं राव), मीरे
गेल+ु ताक (तु5मल व:कट रामया) महाशि_ (ते/नेिट सूHर) मनमे नयम (कालोजी नारायण राव)
आिद। इन कहािनय* म: तेलंगाना !ांत के लोग* क जीवन- ि+थितय* का िच7ण है।
तेलगु ु कहानी एवं kांितकारी आदं ोलन-
तेलंगाना मिु _ आ/दोलन को सन् 1951 म: िवराम िमला। उसके पVात् 1969 ई. म:
तेलंगाना आंदोलन न सल आंदोलन से जड़ु कर अपने उ4तम 9प म: !कट हआ। तेलंगाना मिु _
चेतना को जाग9क करने वाली कई कहािनयाँ िलखी गयी, िजनम: !मख ु हf- 1964 म:
कालीपट्णम रामाराव क कहानी ‘यRम’, रावी शाSी क ‘िपपीिलकम’, कोलकलHू र का
‘ऊ9बावी’, आिद। सन् 1968 म: जमMदार* के िव9 सशS आंदोलन व:कटापसु यम और
आिद भट्ल कै लाशम के नेतृ व म: श9 ु हआ। िजसे कहानीकार* क लेखनी का पणू ( समथ(न
उतराखड मु त िवविवालय 93
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
!ा\ हआ। !मख ु कहािनयाँ हf- ‘माप(’ु (अBलम राजया), ‘मनषु ल ु बेटा’ (िकरण), ’पंचािद’
(उnपल नरिसंहा) ‘भिू म’ (उnपल), पोि किल’ (!काश), राजु (अBलम राजया), ‘िप}चोडु’
(कािम(का), ‘बोrगपु ोरBलो’ (तु5मेिट)’ िनव9 ु गिnपन िनnपु’ (सम0ु ु डु) आिद।
लेखक* ने kांितकारी चेतना के साथ जन-जाित के लोग* पर कई कहािनयाँ िलखM।
वी0एस0 रामल ु ु क अंडिवलो वे/नेल’, तोडसजं /ग’ु , राजया क ‘मिनिषलोपिल िव=वंसम’,
गोपी भाrलIमी क ‘जंगबु ाई’, त5ु मेिट क ‘जाडा’, आिद म: मिनषेध, जनजाित के शोषण को
मु य 9प से िचि7त िकया गया है।
तेलुगु कहानी और दिलत वाद- तेलगु ु !ांत दिलत* पर उ}च वगUय लोग* [ारा अयाचार
को एक आंदोलन के 9प म: िवरोध िकया गया है। सन् 1925 म: ‘!बु=दां’ पि7का म: |ीपादा
क ‘पBु लमु राजु’ कहानी को !थम दिलत कहानी माना जाता है। इसके बाद एक ल5बी परंपरा
दिलत कहािनय* क है जो अब तक चल रही है। !मख ु दिलत कहािनयाँ है- गोिGमु कल-
मंगाय5मा क ‘अयोपापम’ (1935), एंड्लHू र सुधाकर क मBलेमोrगल गोडुगु’, संदु र राजु क
‘मािदगोडृ ’, ‘माऊHर मैस5मा’, पी0 कनकया क ‘रद9 ु चपु ’ु , ‘मोिमट्लंडु म’, जाजल
ु गौरी क
‘मHबTु वा’’ कोकलसूHर इनका क ‘अ+पृय गंगा’, शांितनारायण क ‘उ कुपादम’, न/नपरु े िडु
व:कट रािमरे ड्डी क ‘अटं ु ’ पी कनकया क ‘एद9 ु चपु ’ु , वी0आर0 रासानी क होमम्’, +वामी
क ‘!शांव’ आिद के [ारा दिलत सािहय को नलये आयाम !ा\ हए हf।
तेलुगु कहानी और bीवाद - तेलगु ु कहानी ने Sी को व+तवु ादी `िOकोण से ही !+तुत करना
शु9 िकया। िपछले तीन दशक* म: लेिखकओ ं [ारा +7ी क सम+याओ ं को Sीवादी `िOकोण के
साथ !+ततु िकया जाने लगा। वोBगा क ‘!योग’ कोडेयिू ड़ िनम(ला क ‘श7ु+पश(’ सी सुजात
क ‘ी इन वन’, पी0 सयवती क ‘इBललकगाने’, अZबूHर छ7योदेवी क ‘तनमाग(म’
मिु दगंिट सुजाता रे ड्डी क ‘िवसरु ा(ई’, फुिnपिल पा क ‘मिसगडु डा’, वी0 !ितमा क ‘जातरा’,
डॉ. भाग(वी राव का ‘नरू े Bल पटं ा’, आिद म: नारी Tयि_व को पणू ( अिभTयि_ क गयी है।
तेलुगु कहानी और मुिलम वाद -
तेलगु ु म: मुि+लमवादी कहािनयाँ क सज(ना 6 िदसंबर, सन् 1992 के बाबरी मि+जद क
घटना के बाद से अिधक होने लगी। इससे पवू ( 1982 ई. म: सयं का ‘पािचकल’ु (स4ं ह) िलखा
जा चुका था। मिु +लम* के मन से असरु Fा के भाव को िनकालने के िलए कई कहािनयाँ िलखी
गयी, िजनम: महवपणू ( कहािनयाँ है- नेBल9 ू काशव+वामी का ‘चारमीनार’, गीतांजी क
‘ब}चेदानी’, ‘पहचान’, अली क ‘हर एक माल’, रहमतBु ला क ‘बा’, मोह5मद खािदर बाबू
क ‘दगा(िमा’, पnपजु ान क ‘बरु खा और हराम’, ‘िसलिसला’, ‘िखZला’, मौBवी साहैब’ तथा
‘जमीन’, ‘पथर’ आिद म: मुि+लम पHरवार क िविवध पाHरवाHरक, सामािजक, आिथ(क,
धािम(क िवकृ ितय* का उBलेख िकया गया है।
तेलुगु कहािनयY मB Dेि]यतावाद- तेलगु ु कहािनय* ने सामािजक संघषg को वाणी देने मे
सदयता, ओजि+वता का पया(\ पHरचय िदया। Fे7ीय िवषय* को लेकर चं0लता के [ारा
‘रे गिZ_लु उप/यास को ‘ताना’ से परु +कृ त िकया गया । Fे7ीयता से जडु ी ़ कुछ महवपणू (
उतराखड मु त िवविवालय 94
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
कहािनयां हf- बी0 एस0 रामल ु ु क ‘दFयRमु’, कालवु मBलया क ‘अTवतोडुिगिद तेलंगाना’
पल
ु मु |ु ीिनवास क ‘सक ं र िव/तलु ’ु , कासुल !तपा रे ड्डी क ‘मटल’ु , जक
ू ं िट जग/नाथ क
‘वलसा’, पुिलकंिट कृ Pण रे ड्डी क ‘बंगा9 संकेल’ु , बी0वी0एस0 +वामी क ‘कंठनम’, सभा
क ‘पाताल गंगा’, िसंगमनेिन नारायण क ‘अडुस’ु , शांित नारायण क ‘दलारी’, +वामी क
‘नीBल’ु , |ीिनवास मिू त( क ‘मेडमीद वेलाडे काि/त’ आिद कहािनयाँ आं के िविवध +थान*
के लोग* क जीवन शैली को उािटत करते हf।
अपनी ही जमीन पर परायेपन का अहसास Fे7ीयता को उ4 9प !दान करती है।
िचलक ु ू Hर देवप7ु ा क ‘सिमधल’ु , ‘आयधु वा’’, दिलत* क Tयथा कहती है तो ‘वंशधारा
कथलु’, ‘नागवBली कथलु’, जझावती कथलु’, आिद Fे7ीयतावाद को उजागर करती है। गंटेडा
गे9नायुडु क ‘ओक राि7 रे डुं +वnनालु’, अाड अnपलनायउु ु क ‘!या5नायम’ म: अपनी ही
जमीन के मािलक से मजदरू बनते तेलांगाना जनता क Tयथा-कथा है।
1.8.2 जीवन चर]-
जीवन चHर7 पाठक* पर िवशेष !भव डालते हf। किवय* के जीवन-चHर7 लेखक* म:
वीरे शिलंगम पंतुलु, ग9
ु जाड़ |ीराममिू त( का नाम उBलेखनीय है। वीरे शिलगं म पंतल
ु का ‘कबल ु
चHर7’ (3 भाग 1887 ई.) उनके अ=यवसाय का !ितफल है। उ/ह*ने देश-िवदेश के महापु9ष*
क भी जीविनयां िलखी। 1913 म: ईसामसीह का जीवन चHर7 िलखा। उतम चHर7 के िवकास
हेतु िSय* के िलए ‘उतम चHर7 के िवकास हेतु िSय* के िलए ‘उतम Sी चHर7’ िलखा,
िजसम: ‘ 4ेसडिलग गल(,’ जोन आफ आक( ,’ ‘मेरी कापटर’, ‘एिलजाबेथ लेडीजान’ आिद का
उBलेख है। राजाराम मोहनराय पर आधाHरत जीवनी भी उBलेखनीय है।
गुजाड़ Sीराममूित.- इ/ह*ने ‘किव जीिवतमल ु ु’ ‘व:डपिू ड अ/नय मंि7 चHर7 (सन् 1896
म:), ‘ित5म9सु चHर7’ (सन् 18898 म:), ‘रायन भा+कर मिं 7 चHर7’ (सन् 1899 म:) ‘वैयाकरण
अnपय दीिFत क जीवनी’ सन् 1897 म: आिद किवय*, मंि7य* के जीवन पर आधाHरत है।
आं के कुछ राhय* के इितहास भी इ/ह*ने अपनी जीवनी कृ ित म: िदया है। इनके अितHर_ के
रामनजु ाचाय( और वीर रंगया ने 1885 म: ‘चाण य चHर7’, व:कट रंगया’ ने कबल ु चHर7 म:
!ाचीन किवय* क जीवनी िलखा।
तेलुगु कहानी और वै5ीकरण- वै<ीकरण क उड़ान म: मँहु के बल िगरे िव< अथ(Tय+था ने
+थानीय सम+याओ ं क सदैव उपेFा क । ऐसे म: बेरोजगारी, कारीगर, िकसान* क आम
हयाएँ, िशFण सं+थान* का कुकुरमु ते क तरह फै लना, िशFा का +तर िगरना आिद सम+याओ ं
को लेकर कहानी -सज(ना क। !मख ु कहािनयाँ हf- कुिnपिल पा क ‘इ/+ट:ट लैफ’, मोह5मद
खदीर बाबू क ‘खदर लेडु’, ‘/यू बा5बे टैलस(’, ‘व:डेम् शोड़ा शॉप’, पेिGिट अशोक कुमार क
‘कलबो5मल’ु , बोBगा क’ कोकाकोला’, वी.चं0शेखर राव क ‘गीताजंिल’, िवजन 2020’,
‘आमहयल ऋतवु ’ु , िव<नाथ रे ड्डी क ‘िव9पम’, पंजाल जग/नाथम क ‘Tयापार मृगम’,
+वामी क ‘तेBल देयम’ आिद। इन कहािनय* म: वै<ीकरण के दPु पHरणाम* को मानव जीवन के
उतराखड मु त िवविवालय 95
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िविवध कोण* से िवeेिषत िकया गया है। एन0आर0आई. शािदय* का दोश आHर सीतारमया
के ‘ग तेिगना चे9व’ु म: `OTय है। जी0 िवजय-लIमी का ‘+वणा(/’, नrन मिु न क ‘िवलोम
कथल ु ’ बी0आर0इ/0ा क ‘रावण hयो+यमु’आिद म: नये !योग हए हf।
इस !कार तेलुगु कहानी, उप/यास िवधा क तरह आशातीत वृि िवकास
करती रही। सन् 1952 म: ‘गिलवाना’ कहानी को अतं रा(PQीय परु +कार िमलने के बाद ऐसी
सैकडो कहािनयाँ
़ िलखी गयी जो तेलगु ु कहानी क उतरोतर !गित क घोतक हf।
‘भ0ाचल रामदासु चHर7’ (1878 ई.) पी0 दिFणामिू त( का ‘िपंगिल सरू ना चHर7’ (1893 ई.)
राजा मृयजंु य िनःशंक बहादरु का ‘क*ड जाित चHर7’ (1971 ई.) तथा भBलनारायण चHर7’
(1897 ई.) महवपणू ( जीविनयाँ है। |ी व:कट िशवराव पंतल ु ु का ‘का4ेस सं+थ लघु चHर7’
(1897 ई.), पनnपाकम |ी िनवा साचाय(ल ु ु का ‘महामना मदन मोहन मालवीय का जीवन
चHर7’ (1894 ई.), भ_ वसल नायडू का ‘काटम राजु का जीवन चHर7’ (1889) आिद !मख ु
जीवनी कृ ितयाँ है। वीरे शिलंगम के सािहियक सामािजक औछाय 9प को तोलेिट व:कट
सZु बाराव ने ’वीरे शिलंगम किव चHर7’ म: िदखाया है। एन0 ब:कटराव कृ त ‘व:कट महीपती
गंगाधर राज चHर7’ (1871 ई.) मृयजंु य राव का ‘चैत/य महा!भु क जीवनी (1893 ई.), |ी
व:कटरमणया’ का ‘िशवाजी चHर7 (1899) आिद तेलगु ु सािहय क जीवनी िवधा के !ौढ़तम
उदाहरण हf।
इस !कार जीवन-चHर7 के तीन* 9प तेलुगु सािहय म: िवकिसत हए हf। पहला-+वीय
चHर7 जो +वयं क आमकथा होती है। दसू रा महाप9 ु ष*, सािहियक*, साव(जिनक
काय(कता(ओ ं के जीवन वृत तथा तीसर- महाप9 ु ष* क दैनंिदनी। वीरे शिलंगम के ‘+वीय
चHर7’ को उतम आमकथा का +थान !ा\ हf। टंगटु ू Hर !काशम का ‘ना जीिवत या7ा’ उनक
िनPपF राजनीितक जीवन को 9पाियत करती है। |ी के सरी का ‘ना िच/ननािट म}ु चट्लु, वेटूHर
!भाकर शाSी का ‘!Rा !भाकरमु’ बडं ा9 अ}चमांबा का ‘अबला स}चाHर7 रनमाला’
(1902 ई.) पालेपु सुZबाराव का ‘आ/ पु9षल ु जीिवतमलु ’ (1913ई.), वािवBल व:कटे<र
शाSी का ‘अिनिवस:टु जीवन चHर7’, मBलंपिBलसोमशेबर शमा( का ‘देशोारकुल’ु ,
िचलकमिू त( लIमी नरिसहं मु का ‘महाप9 ु षल
ु जीिवतमल’ु (1909ई.) आिद तेलगु ु ग सािहय
क जीवन चHर7 िवधा को स5बिध(त करने वाली कृ ितयाँ है।
7.4 तेलग
ु ु उपयास का )वकास
तेलुगु उप/यास सािहय ने 1872 से 2013 तक के 141 वषg का दीघ(तम माग( तय करते हए
िवकास के नये-नये आयाम को गढा है़ । तेलगु ु उप/यास सािहय के िवकास -kम को िविभ/न
यगु * म: अवलोिकत िकया जा सकता है।
आरंभयुग (1872-1905) नरहHर गोपालकृ Pणम शेी का ‘|ी रंगराज चHर7मु’ को तेलगु ु का
पहला उप/यास माना जाता है, जो ‘िकववेकविध(नी’, पि7का म: धरावािहक 9प म: !कािशत
हआ। इसे ‘सोनाबाई पHरणयम’ तथा ‘िववेक चंि0का’ भी कहते हf। कंु दकु ू Hर वीरे शिलंगम पंतल
ु ु
उतराखड मु त िवविवालय 96
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
के ‘राजरोयर’ उप/यास म: अंधिव<ासी qाण राजशेखर के [ारा सामािजक 9िढ क बिखया
उधेडी ़ गई है। वीरे शिलगं म का ‘सय राजा पवू (दश े ी या7ाल’ु तथा ‘आडुमलयालम’ भी
उBलेखनीय उप/यास है। 1891 म: /यापित सुZबाराव के साथ िमलकर वीरे शिलगं म पंतल ु ु ने
‘िचंतामिण’ पि7का के मा=यम से कई उप/यास लेखन !ितयोिगता का आयोजन िकया। इनम:
खडविBल रामच/0ुडु का ‘धम(वती िवलासम’, तBला!गड़ा सयू न( ारायण का ‘संजीवराय
चHर7म’ु , िचलकमूित( का ‘रामचद िवजयम’ु , गोटेिट कनकरातु का ‘िववेक िवजयमु’, पी0
|ीिनवास चायल (ु ु का ‘सोमे<राvयदु यम’ु , नंबू9 ित9नाराध+वामी का ‘!णय मिहममु ु’ टेकुमBल
राजगोपाल राव का ‘ि7िवkम िवलासम’ु , खडविBल रामच0ं ुडु का ‘मालतीराघवम’ु ,
िचलकमिू त( का ‘हैमलता’, खडविBल रामचं0ुडु का ‘लIमी संदु र िवजयमु आिद को 1892 से
96 के बीच !थम और ि[तीय परु +कार िदये गये। इन उप/यास* समथ(न, मBू य +थापना के साथ
ही अधं िव<ास*का खंडन मुय िवषय था।
अनवु ाद यगु - (1900-1920) उप/यास के िलए यह समय कुछ िव[ान* के मत म:
ऐितहािसक’ तो कुछ क `िO म: ‘अनवु ाद यगु ’ है। बंगाली, अ4ं जे ी आिद के तेलगु ु 9पांतHरत
उप/यास* क दीघ( परंपरा रही। बंिकम क ‘कपाल कुडला ’ को दोर+पामया ने 1899 म: तेलगु ु
अनवु ाद िकया। इसके अितHर_ ‘आनंद मठ’ (1907), ‘कमला कोमल’ (1908) का भी इ/ह*ने
अनवु ाद िकया। कन9वBली भा+करराव का ‘!फुBल मख ु ी’ (1909), िचBलHरग |ीिनवास राव
का ‘कृ Pणकातिु न मरणशासनम’ (1910), तBला!गड़ा सूय(नारायण का ‘शैवािलनी चं0शेखरमु
(1910), चागिं ट शेषया का ‘राधाराणी’ (1910), ‘दगु (शनंिदनी’ (1911), नवाबनु ंिदनी
(1915), व:कट पाव(ती<र किव[य का ‘जयिसंह’ (1915) ‘मगु ांगुलीयकम’ु आिद बगं ला के
उतम अनिु दत तेलगु ु उप/यास है।
अनिु दत के साथ ऐितहािसक मौिलक उप/यास भी िलखे गये। धरण!गड़ व:कट
िशवराज जी [ारा िशवाजी पर ‘काच ं न माला’, भोगराजु नारायण मिू त( [ारा च0ं ग\ु मौय( पर
‘िवमला देवी’, व:कट पाव(ती<र किव[य का ‘वसमु ित वसंतम’, रनाकरम व:कटnपा और
त5ु मगोडी के शवराव का ‘सयबाई’, व:कट पाप(ती<र का ‘!मदावनम’, |ीपादजी का
‘आrं लराhय +थापनल’ु , ताBला!गड़ा सयू (नारायण का ‘हैलावली’ (1913), व:कट पाव(ती<र
किव[य का ‘मात् मिं दरम’ु (1918) आिद म: सामािजक अयव+था और वण(-Tयवथा के िव9
आवाज उठाई गयी है।
के तवरपु का ‘रायच9 ु ’ यु म’ (1913), भोगराजु का ‘आ/ राhपम’ु , दिु rगराला
राघवचं0 चौधरी का ‘िवजयनगर सााhयमु’, िचलक ु ू Hर वीरभ0राव का ‘कण( सााhयमु’ आिद
इस यगु क उBलेखनीय उप/यास कृ ितयाँ हf।
िवकास युगः (1920-1992)- इस यगु राजनीितक सामािजक पHरवत(न उप/यास* म: +पOः
सलकता है। तेलगु ु !देश को इितहास को लेकर तथा पHरवार, सामज म: होने वाल पHरवत(न* को
उप/यास का िवषय बनाया गया हf। इस यगु के !मख ु उप/या एवं उनक कृ ितयाँ िन5नतः `OTय
हf-
उतराखड मु त िवविवालय 97
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
िचलकमिू त( का ‘कृ Pणवेणी’ और ‘सुवण( गु\डु ु ’, उ/नव लIमीनारायण का
‘मालपBली’, ‘सघं िवजयम’ु , िव<नाथ सयनारायण का ‘अतं रामा’ (1918), ‘एकवीरा’
(1925), ‘वोिमपडगलु, माबाब,ु चेिलयिलका,’ बद् सेनानी’, ‘धम(चk आिद िविवधमख ु ी
उप/यास है।
चलम क ‘शिशरे खा;’ (1918), देविमि}चन भाया(,‘ मैदानम’, ‘हपं ीक/यल’ु ,
‘जीवतादश(म’, qाणीकम’ आिद आधिु नक िवचार* से य_ ु उप/यास है। बािपराजु का,
‘िहमिबदं ’ु , मोना ग/नारे ड्डी’, नारायणराव’, कोनंगी’, ‘तफ ू ान’, रागिमBका’, ‘जािलमिBल’
और ‘सरू ीड’ आिद !मख ु ऐितहािसक सामािजक उप/यास है। िव<नाथ सयनारायण, मो पािट
नपरिसंह शाSी, |ीपाद सुqमण, मिु नमािण यम नरिसंह राव आिद !िस उप/यासकार है।
मो कपािट को ‘बाHर+टर पाव(तीशम’ (1925), एकोद9लु’ (1931) मिु नमािण यम का ‘कांतम
कथलु’, ‘दीिFतल ु ु’, 9_िBल, ित9मािलग आद हा+य-Tयंrय, क9ण आिद िवषय* पर आिद
िवषय* पर आधाHरत है।
मनौवैdािनक युग (1941-1960)-iायड के अनसु ार तेलुगु कथा-व+तु क संयोजना म: कई
पHरवत(न िकए गये। बिु }चबाबू , जी.वी0 कृ Pणराव, गोपीचंद, रािवशाSी आिद मनोवैRािनक
उप/यासकार* म: अ4णी है। बिु }चबाबु का ‘िचवHरिक िमिगलेिद’ गोपीचंद का ‘पHरवत(न’,
‘असमथ(ुिन जीवन या7ा’, मे9फुल मरकलु’, ‘िपBलित5मेरा’, पंिडत परमे<रशाSी वीलनु ामा’,
‘गिडयपडिन तलुपुलु,’ ‘!ेमोहपनुल’ु , िशिथलाल यम’, धीकिट गदल ु ु’, यमपाशम’, जी0वी0
कृ Pणराव का ‘कलबु ो5मल’ु , रािव शाSी का ‘अBपजीवी’, बिलवाडा कांताराव का गोडमीद
बो5मा’, ‘बिू च’ ‘सगु णु ा’, भा+करभट्ला कृ Pणाराव का ‘युग संिध’, ‘िविच7 !णयम’,
आर0एस0 सुदश(नम का ‘मBली वसंलमु’, नोHर नरिसंह शाSी का ‘नारायण भट्डु,’ ‘90मा
देवी’, ‘मBला रे ड्डी’ ‘किव साव(भौमडु ू ’, किव[यम’, ते/नेिट सूHर का ‘चंगेजखाँ’ आिद उ_
मनोवैRािनक ऐितहािसक उप/यास* के बाद इस यगु का सामािजक उप/यास भी महवपणू ( है।
इस यगु के !मख ु सामािजक उप/यास* म: हf- रावHू र सयनारायण राव का ‘नेलवंका’,
बोिBलमंतु िशवरामकृ Pणा का ‘मु यजु यलु’, ‘बHकोट अBवा9 +वामी का !जल मिनिष’,
पोतकूिच सांबिशव राव का ‘उदयिकरणाल’ु , आिद। इस !कार इस यगु म: कालजयी
मनौवैRािनक, ऐितहािसक सामािजक उप/यास िलखे गये।
समकालीन युग (1960 से अब तक)- सन् 1958 के लगभग ‘आं पि7का’ ने उप/यास
लेखन क परु ानी !िkया श9 ु करते हए !ितयोिगता आयोिजत िकया। समय-समय पर
आयोिजत इन !ितयोिगताओ ं का सफ ु ल इन उप/योसं के 9प म: तेलगु ु सािहय को िमला।
उप-यास उप-यासकार िवषय
1 क*त अBलडु ु |ी कोडविटगिं ट कुटुंगबराव िविवध
2 क*त कोडलु |ी कोडविटगंिट कुटुंगबराव िविवध
3 ‘अनभु व’ |ी कोडविटगंिट कुंटुबराव िविवध
4 ितिमगं लम वेटा ’’ ’’
उतराखड मु त िवविवालय 98
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
5 गोडिमिद बो5मा ’’ ’’
6 सगु णु ा ’’ ’’
7 दगापिडन त5मडु ु ’’ ’’
8 सिखया स/ु दरी ’’ ’’
9 चदं िु नको नलथु ोगु परु ाण सqु यम ’’
10 िवशाल ने7ालु िपलका गणपित ’’
11 कतल ु वंतेना महीधर राममोहन राव राजनीितक
12 ओनमालु ’’ ’’
13 कोBलािय गHतेनेिम ’’ िविवध
14 +वयंवरम ’’ वैवािहक सम+या
15 मंिच-चेडु |ीमती इिBलंदल सर+वती नारी-जीवन
16 अnप+वरालु ’’ ’’
17 पंकुिटBलु को5मHू र वेणगु ोपाल राव सामािजक
18 हाउस सज(न ’’ ’’
19 जीवन गमा पुराणम !काश राव ’’
20 मानेमनुश तु ’’ ’’
21 मनंिमिगलां कंदकु ू Hर िलंगराजु ’’
22 आदश(लु - आंतया(लु िसंगराजु िलंगमिू त( ’’
23 जा9डु मेट्लु मंज|ु ी ’’
24 +वगा(रोहन ’’ ’’
25 न9ू शर/तल ु ु ’’ ’’
26 चीकिटलो चीिलकलु गोलपिू ड मा9ितराव ’’
27 सगटु मिनिष आिद िवPणु ’’
28 िम@या ’’ ’’
29 तोिल मजली शीला वीरा(जु ’’
30 इG9 ओ कटे ’’ ’’
31 आिद !o इिद जवाबु अवसराल रामकृ Pण राव
32 इG5माियलु मगु rगरु Zवाियलु मBु लपिू ड व:कटरमणा
उतराखड मु त िवविवालय 99
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
पोला!गड का ‘संघ चेिसन मिनिष’, ‘कौसBया’, ताBलHू र नागे<र राव का ‘कोिKियBलु’,
‘एिदगी एदगित पZु ब’ु , ‘जीवन hयोित’ आिद।
यह यगु मिहला-लेखना का +विण(म यगु है। |ीदेवी, बीनादेवी, मालती चंदरू , लता
(पदिवहीन, मोहनवंशी, महानगरंलो Sी), कोडूHर कौसBयादेवी (चkवाकम, चkनेिम) मnु पाल
रंगनायक5मा (बिलपीठं, पेकमेडल,ु +वीट होम), ि[वेदल ु िवशालIमी (वैकुठ पाली, 4हणम
िविडिचंिद ,वारिदमाHरन िवलवु ल)ु , यGनपिू ड सल ू ोचना रानी (सेkटरी, िवजेता), डॉ. सी0
आनंदरामं (संपंिग पोदलु, ‘आमबिल, िचकिट कडुपुन कांित) उ/नव िवजयलIमी, िनम(ला
!भावती, ए0 यामला देवी, कोलपाक राममणी, डी0 कामे<री, पावनी, पHरमला सोमे<र
आिद।
दाशरिथ ने गोिदगपल ु ु’, ‘जनपद’ उप/यास म: तेलंगाना के लोग* क सम+याओ ं को
उके रा है। सीतादेवी वािसरे ड्डी ने ‘समता’ म: राजनीितक mOाचार क बिखया अधेडी है। साथ
ही ‘मHमिनिष’, ‘मरीिचका’ म: न सलवाद के दPु पHरणाम को बताया है। बीनादेवी का ‘हfग भी
ि वक’, रािवशाSी का ‘रातु मिहिष’, ‘गोवल ु ु व+त/ु नािय’, ‘र/तालु-रांबाब’ु , नवीन का
‘मBु लपोदलु’, चीकिट रोगल ु ु’, पसपु ल ु ेिट मिBलकाज(ुन ‘पFल ु ’ आिद म: िविवध सम+याओ ं का
जीवतं िच7ण हआ है।
!योगधमU तेलगु ु उप/यास* म: नवीन का ‘अपं शया’, िवनक ु *डा का ‘ऊिबलो द/ु ना’,
महीधर राममोहन राव का ‘रथचkालु’, ‘क/तुल बंतेना’ आिद म: राजनीितक सम+या को
समािवट िकया गया है। एन0 आर0 नंिद का ‘नैिमशारय’, बिलवाड़ा कांताराव का ‘दगा
पिडन त5मडु ु ’, गोBलपिू ड मा9ित राव का ‘चीकिटला चीिलकलु’, पालगिु 5म परात’ु
बितिकन कालेज’, ‘नBलरे गिड’ आिद िविशO उप/यास कृ ितयाँ हf। 9सी उप/यास* को लेकर
गोरा जी ने समरं-शांित’, ‘अ/ना के रे िनन’ नाम से अनवु ाद िकया। रवी/0 के उप/यास: को ‘नौका
भगं म’, ‘तपोवन’, ‘ईटा-वयटा’ नाम से 9पातं Hरत िकया गया। कोमरमु भी का ‘सHरहटु’
(1970), यंडमूHर का ‘मरणमृदगं म’, राFसुडु, नBलंचु तेBल चीरा’, ‘तल ु सीदल’, कामोरा’
जैसे सडू ो साईस उप/यास* क रचनाये हई।
दिलत उप/यास* म: डॉ. के शवरे ड्डी का ‘F0ु देवता’ (1976), ‘+मशान द/ु ने9’
(1971), ‘िचवHरगिु डसे’ (1999) मापBले (1974), रािव शाSी का ‘मडू ु कथल बगं ारम’ु आिद
सामािजक चेतना से जडु े़ उप/यास हf। नारी मिु _ से जुडी ़ ओBगा क ‘+वे}छा, आकाशंलो
सगं ’ं , ‘खाक बतकु ल’ु , िचलक ु ू Hर देवप7ु ा का ‘पचं म’, जी0 कBयाणराव का ‘अटं रािनवसतं ’ं ,
एले स हैली का ‘एडु तरालु’, कBयाण राव का ‘मैलरु ािय’, बेमHू र एBलया का ‘क का’,
‘िस’आिद दिलत उप/यास का बेजोड़ उदाहरण हf।
इस !कार इन वषg म: (1872-2013) सहS* उप/यास िलखे गये,जो तेलगु ु सािहय क
िविवध रंगीितय* को !+तुत करते हf।
7.5 तेलुगु नाटक, एकांक का िवकास
7.6 तेलग
ु ु क* प+,काएँ एवं समी/ा-
समाज क गितिविधय* का समाचार देना तथा उसक Tयाया करना प7काHरता का
काय( होता है। प7काHरता के कई सोपान है- दैिनक, ‘पीHरयािडकBस’, ‘सा\ािहक’[ ‘पािFक’,
‘मािसक’, ‘[ैमािसक, 7ैमािसक, अ(वािष(क, वािष(क आिद।
7.7 तेलग
ु ु नबंध का )वकास-
िनबधं - तेलगु ु िनबधं का आर5भ कुछ लेखक* ने 19 वM शती से शु9 िकया। आर5भ म: इन
िनबंध तथा लेख* का उेय िकसी अ/य लेखक क कृ ित क आलोचना करना रहा। इन
आलोचनामक िनब/ध* के साथ ही िनब/ध जलेखन क शु9आत होती है। !ायः सीमारिहत
बड़े-बड़े लेख जाते थे। ऐसी ि+थित म: लेखक िनजी िवषय* तक पहचँ कर मया(दाहीन भी हो
जाता है।
7.9 तेलग
ु ु का अवधान सा&हय-
सािहय के Fे7 म: ‘गृह किवय*’ क संया हजार है तो ‘सभा-किव’ सौ-पचास से
अिधक नहM िमलते। अवधान िवधा तेलगु ु तथा सं+कृ त के अितHर_ अ/य भारतीय भाषाओ ं म:
7.10 सारांश
एम0एच0एल0 204 क सातवM इकाई तेलगु ु ग सािहय पर के ि/0त है । इस इकाई का आपन:
अ=ययन कर िलया है । इस इकाई के अ=ययन के पचात् आपने जाना िक –
• तेलगु ु कहानी भारतीय सािहय क समृ कहानी पर5परा को अपने म: समेटे हये है ।
भाव पF हो या िवचार पF सभी `िOय* से तेलगु ु कहानी समृ है ।
• तेलगु ु उप/यास के िविवध पF है । आर5भ यगु , िवकास यगु , मनोवैRािनक यगु से होते
हये यह समकालीन यगु तक क या7ा कर चुका है । कुल िमलाकर तेलगु ु उप/यास क
पर5परा अय/त समृ है ।
• तेलगु ु नाटक एवं एकांक सािहय भी पया(nत समृ है । अपनी सामािजक चेतना और
रंगमचं ीय िवधान के कारण तेलगु ु नाटक पया(nत समृ है ।
• तेलगु ु सािहय के िवकास म: प7 पि7काओ ं का िविशPट योगदान रहा है । इस `िO से
तेलगु ु क प7 पि7काय: अपना िविशPट +थान रखती है ।
7.11 श3दावल4
8.7 श"दावली
आशु - मौिखक
उार - !कट होने वाले भाव
िनछल - छल रिहत
उपोदय - उपयोगी
+फुट - अ/य, !कण(
सि/निहत - समाया हआ
गीदार - गीतकार
शकुनाखर - सगनु के आखर
/यौली - नवेली, नई
अ!ितम - अनठू ी, अनोखी
फाग - सं+कार गीत
बैर - सघं ष(
छपेली - िF!गित वाली
8.8 अ%यास &' के उ(र
8.3 के उKर
1- पव( सबं धं ी गीत
2- गौरीदK पाडे
3 - ऋतु गीत
8.4 के उKर
क (1) झोड़ा
(2) बैर
(3) फाग
इन पिं _य* म: रा+ते म: चलते तण हाथी के समान जीतू के मन म:, भरणा क स/ु दरता ऐसे समा
रही है जैसे गल ू के िकनार* क िमी काटती बारीक पानी क धारा, जीतू क गोद म: समिप(त
भरणा िहरणी क कोमल ब}ची, मधभु री मधमु खी, या आकष(क िचिड़या के समान िदखाई दे
रही है। उ_ प म: मालोपमा अलंकार है। उमाल के किव !ेमलाल भ ने भी कुछ ऐसी ही
उपमाओ ं को काTय म: अपनाया है।
िमथे उय(ला क धाण सी, वी धौिल गै वी कूिट गै
िनिन बोतल को नशा सी मf, किख कोणा लमड्यंू रै गयंू
किख !ीत वी िमिल छई, नौनो का बांठा िक भिK सी,
फंु ड फे िक ो ये समाज न, िम फुकM िचलम को तमाखु सी
इन पंि_य* म: किव ने सामािजक hयादितय* को ओखली म: कूटे जाने के समान, खाली बोतल
या जले हए त5बाकू क चटु क के समान िनरथ(क तथा !ीत को ब}चे के िह+से क खीर के
समान नई उपमाएं दी है।
1. नए !तीक* के !योग- आधुिनक समय के स!ु िस गीतकार नरे /0 िसंह नेगी ने अपने
गीत* म: !तीक* को चनु ा है। उ/ह*ने िजन !तीक* को चनु ा व: लोक जीवन अथवा लोकभाषा म:
!चिलत है। जैसे- उकाल-उंदार गीत म: उकाल जीवन संघष( और उंदार आसान या पतनोमख ु
जीवन के !तीक है। ‘हsिसया उमर’ गीत म: बसगBया /यार, पोड मा को पाणी, धार मा को बथs,
¨यतू ू तेरी जमादरी म: ¨यतू ू शि_ या राजसKा का !तीक, अगं ठू ा िघसै- अनपढ़ तथा लटुली
फूली गैिन गीत म: पके हए बाल समय गजु र जाने के !तीक है। किव के गीत सं4ह गायंू क
गंगा-+यायंू का समोदर क कुछ पंि_यां !+ततु है िजनम: गढ़वाली !तीक* के !योग क !वृिK
िदखाई देती है-
खैHर का अधं ेर* मा खhु ययुं बाटु
सख ु का उhयाला मा िबरिड़ गयंू
आंखा बिू जिक खल ु िदन गेड़
आख ं ा खोिलिक अलिझ गयंू
उमर भnये क बादल बिणग:
उड़दा बादल हैिद( रयं।ू
hवािन मा जर सी हfसी खते छै
12.1. तावना
इस इकाई म: हम पंजाबी सािहय पर एक `िO डालते हए इसका पHरचय !ा\ कर: ग।े
इसके अ=ययन से हम: यह Rात होगा िक भारतीय सािहय के इस खड़ िवशेष का या मह?व
है और इसके सािहय क कौन-कौन सी िवशेषताएँ हf िजसके कारण इसका अ=ययन उतना ही
आवयक है िजतना अ/य भारतीय भाषाओ ं के सािहय का। आप यह भी जान:गे िक पंजाब
िकतना !ाचीन है और इसके सािहय क जड़: कहाँ तक जा पहचँ ी हf। आपको यह भी Rान होगा
िक पजं ाबी भाषा का उव कहाँ से हआ।
nयारे िवािथ(यो ! यह तो आपको पता ही है िक पंजाब भारत के उKर पिVम म: ि+थत इलाके
का नाम है। इस इलाके (Fे7) म: बोली जाने वाली भाषा को पंजाबी कहते हf। पंजाबी श Zद
फ़ारसी का है, िजसका अथ( है पाँच निदय* (पच ं +आब) का !देश । ये पाँच निदयां हf - सतलजु ,
Tयास, रावी, जेहलम एवं चनाव। यह नाम मग़ु ल* के [ारा रखा गया था। इससे पहले इसे पंचनद,
स\िसंधु आिद नाम* से बल ु ाया जाता था। यह भी आपको +पO होना चािहए िक बृहतर पंजाब
का अब एक िह+सा पािक+तान म: चला गया है। भारत म: भी इस का एक िह+सा िहमाचल !देश
बन गया तो दसू रा हHरयाणा। पंजाबी क तीन उप-बोिलयाँ हf - माझी (अमृतसर), दोआबी
(होिशयारपरु ) और मलवई (पिटयाला)। डॉ. उदयनारायण ितवारी के अनुसार इसका िवकास
‘ट क’ अपmंथ से हआ है और इस पर शौरसेनी अपmश ं का !भाव है। डॉ. भोलानाथ ितवारी
का मानना है िक इसका िवकास पैशाची या कै कय अपmंश से हआ है। पंजाबी के !िस
िव[ान डॉ. !ेम !काश भी कै कयी !ाकृ त अपmंश से इसका िवकास मानते हf। आपको यह
बात भी यहM जान लेनी चािहये िक िजस !कार िह/दी क िलिप को देवनागरी कहा जाता है,
उसी !कार पंजाबी िलिप को ‘गु मख ु ी’ कहा जाता है िजसे गु अगं द देव ने Tयवि+थत िकया।
हाँ, पािक+तान म:, पंजाबी फ़ारसी िलिप म: िलखी जाती है। करनैल िसंह िभंद ने अपनी पु+तक
‘पजं ाब दा लोक िवरसा’ म: +पOतः यह माना है, ”पजं ाबी का वैिदक स+ं कृ त, !ाकृ त* और
अपmंष* से Tयाकरण एवं श Zद* आिद क `िO से तल ु ना करके यह बात +पO हो जाती है िक
िह/दी, गजु राती और मराठी आिद भाषाओ ं क भांित ही पंजाबी भी िह/दी-आय( भाषा पHरवार
क आधिु नक भाषा है।“
पंजाब क समृ सािहियक पर5परा का अवलोकन करने से पवू ( यह जान लेना भी
आवयक है िक पुरातन खोज* के अनुसार पंजाब क सvयता अयंत !ाचीन-िस/धु घाटी क
सvयता तक जाती है। 1921-22 ई. म: हडnपा और मोहनजोदड़* क खदु ाई से यह बात िस हो
चक ु है। हडnपा, मोहनजोदड़ो और संघोल इसके !मख ु के /0 थे। पंजाब बा आkमण* का
उतराखड मु त िवविवालय 183
तुलनामक एवं भारतीय सािहय MAHL - 204
के /0 भी रहा। िसकंदर ने अरब* के िसंध के राजा दाहर पर आkमण करके आगामी मसु लमान
आkमणकाHरय* के िलये रा+ता खोल िदया। इसके बाद सबु कत दीन, महमदू ग़ज़नवी, महु 5मद
ग़ौरी के लगातार आkमण हए। 1000 ई. तक परू ा पंजाब मुसलमान* के कZज़े म: आ गया। यहाँ
गलु ाम, िखलजी, तुगलक, लोधी आिद वंश* ने राhय िकया िफर बाबर के आkमण से मुग़ल*
का राhय +थािपत हो गया। इसके बाद अं4ज़े * का आगमन हआ। मग़ु ल* के साथ भी पजं ाब का
स5ब/ध कभी सौहाद(पणू ( तो कभी असौहाद(पणू ( रहा। सदा आkमणकाHरय* का सामना करने के
कारण पंजाब के लोग* म: अ खड़ता, लडाकूपन देखने को िमलता है।
इतनी !ाचीन सvयता होते हए भी पंजाबी का सािहय 1000 ई. के लगभग देखने को
िमलता है। पंजाबी तब तक अपना आज का +व9प लगभग 4हण कर चुक थी। इसे श ु और
एक9पता देने का काम ग9 ु अंगद देव ने अवय िकया।
12.2 उ"ेय
एम0ए0एच0एल – 204 क यह बारहवM इकाई है । इस इकाई म: आप पंजाबी भाषा के सािहय
से पHरिचत ह*गे । इस इकाई के अ=ययन के पचात् आप –
• पजं ाबी सािहय के काल िवभाजन से पHरिचत हो सक: गे ।
• पजाबी सािहय क िवशेषताओ ं को समझ सक: गे ।
• पंजाबी सािहय के !मखु किवय*, लेखक* से पHरिचत हो सक: गे ।
• पंजाबी सािहय के योगदान को समझ सक: गे ।
12.8. सारांश
उपय(_
ु अ=ययन से आपको न के वल पंजाबी सािहय का पHरचय !ा\ हआ होगा, इसके Fे7*,
इसक Fमता क भी जानकारी िमली होगी। आधिु नक यगु से पहले पजं ाबी क मल ू धारा
किवता रही है जो अपने चरमोकष( तक पहचँ ी है। आधिु नक काल क सबसे बड़ी देन ग का
िव+तार है और नावल, कहानी, नाटक, आमकथा, रे खािच7, सफऱनाम:, षोध और कोश जैसी
नई िवधाओ ं का ज/म एवं िवकास हआ है। काTय म: भी एक +पO पाथ( य िदखाई पड़ता है और
यह िनिव(वाद 9प से कहा जा सकता है िक पिPचम क िच/तन धाराओ ं के साथ पंजाबी कदम से
कदम िमलाकर आगे बढ़ रही है। !वासी लेखक भी इसम: मह?व पूण( योगदान डाल रहै हf।
12.9 श3दावल4
13.1 तावना
भारत देश के पHर`य म: राज+थान का सां+कृ ितक वैभव और सािहियक िवरासत
अमBू य है। इस !देश क भौगोिलक, ऐितहािसक और !ाकृ ितक िविवधता अनोखी है।
यागमयी ललनाओ,ं साहसी वीर* और गHरमामयी सं+कृ ित के इस Fे7 म: दरू - दरू फै ली
अरावली क |ृंखलाएं है, जो हरीितमा म: वैभव से पणू ( है तो दसू री और िवराट म9+थल, म9
(रे त) के टील* का अखड सााhय। उKर म: गंगानगर से लेकर दिFण म: डूंगरपरु , बाँसवाड़ा तक
और पूव( म: अलवर, भरतपुर से लेकार पिVम म: जैसलमेर तक फै ला यह !देश आकार म: ही
नहM है, वरन !ाकृ ितक स5पदा, कलामक वैभव, रहन-सहन, वेश-भषू ा, बोली-भाषा, धम( दश(न
ओर सािहय आिद इसे सां+कृ ितक `िO से उ}चतम िशखर पर ले जाते है। आधुिनक राज+थानी
सािहय के महान किव क/हैयालाल सेिठया ने िलखा है -
या तो सरु गा नै सरमावै, ई ंपर देव रमण नै आवै
ई रो जस नर-नारी गावे, धरती धोरां री, धरती वीरां री।
भाषा स+ं कृ ित एवं सािहय का मल ू आधार होता है, सामािजक एवं सां+कृ ितक समरसता के
िलए भाषा एक !भावी मा=यम है इसिलए सािहय के इितहास लेखन म: भाषा भी एक !मख ु
घटक है। राज+थानी सािहय को भिलभाँित समझने के िलए राज+थानी भाषा का Rान ज9री है।
राज+थानी भाषा क उपिK शौरसेनी अपmश ं (गजु (री 9प) से मानी जाती है। राज+थानी भाषा
क !मख ु बोिलयाँ हf, - मारवाडी-मेवाड़ी (पिVमी राज+थानी), ढॅूंढाडी-हाड़ौती (पवू U
राज+थानी), मेवाती (उKरी राज+थान), मालवी (दिFणी राज+थान) इयािद। राज+थान भाषा
पहले मिु डया िलिप (महाजनी) म: िलखी जाती थी अब यह देव नागरी िलिप म: िलखी जाती है
िजसम: ळ (ल) जैसे अFर भी मा/य है।
सािहय इितहास लेखन के िलए तकालीन यगु , पHरवेश, !वृिKयाँ, भाषा, +वयं का िववेक एवं
अ=ययन, रचनाकार और उनक कृ ितयाँ आिद िविवध आधार होते हf, सािहय यगु ीन वातावरण
से !भािवत होता है अतः उसका अ=ययन भी यगु िवशेष और उसके स/दभ( म: ही होना चािहए।
!+ततु इकाई म: इन सभी आधार* को =यान रखते हए राज+थानी सािहय के इितहास का काल
िवभाजन और नामकरण करने का !यास िकया गया है। राज+थान सािहय के इितहास का
!मख ु तः आिदकाल म=यकाल और आधिु नक काल इन तीन भाग* म: बाँटा गया है। िह/दी
सािहय के इितहास के !थम काल के नामकरण एवं काल िवभाजन म: िजस !कार िव[ान* म:
मत िविभ/नता रही उसी तरह राज+थानी सािहय के इितहास के इस !ारि5भक काल म: रही। !ो.
नरोKम दास +वामी इसका !ार5भ िव.सं. 1150 से मानते है तो हीरालाल माहै<री िव.सं.
1100 से, सीताराम लालस िव.सं. 800 से और एल.पी. तै+सीतरी सन् 1250 से। राज+थान का
आिदकालीन सािहय अपने यगु क सभी !वृिKय* और काTय शैिलय* को समेटे हए है । िस,
13.2 उ"ेय
इस इकाई के अ=ययनोपरा/त आप:-
1. राज+थानी सािहय क जानकारी से पवू ( राज+थान के भौगोिलक और सां+कृ ितक
पHरवेश को जान सक: गे।
2. राज+थानी भाषा के उम, िडंगल-िपंगल 9प, िलिप और िविवध बोिलय* का पHरचय
!ा\ कर सक: गे।
3. राज+थानी सिहयेितहास के नामकरण और कालिवभाजन को समझ सक: गे।
4. राज+थानी सािहय के आिदकाल, कालगत पHरवेश और सािहियक !वृिKय*
(संवेदनागत और िशBपगत) का अ=ययन कर सक: गे।
5. म=यकालीन राज+थानी सािहय के यगु - पHरवेश, सािहियक !वृिKय*, !ितिनिध
किवय* ओर रचनाओ ं क जानकारी !ा\ कर सक: गे।
6. !मख ु राज+थानी सािहयकार* और उनक कृ ितय* क जानकारी !ा\ कर सक: गे।
7. राज+थानी सािहय के आधुिनक कालीन पHरवेश, काTय और ग क िविवध िवधओ ं
क जानकारी !ा\ कर सक: गे।
8. आधिु नक काल क सािहियक !वृिKय* का अ=ययन और िवeेषण कर सक: गे।
9. राज+थानी सािहय के इितहास को सांगोपांग समझ सके ग:।
13.8 सारांश:
!+ततु इकाई म: राज+थानी सािहय के इितहास के िविवध काल* और !येक काल क
पृ{भिू म सािहियक !वृिKयाँ, रचनाकार* ओर रचनाओ ं क जानकारी आपने !ापत क है।
शौरसेनी अपmंश के नागर (गुज(र) 9प से राज+थानी भाषा का िवकास हआ। भारतीय संिवधान
म: उBलेिखत भाषाओ ं म: राज+थानी भी सव(!मख ु भाषा है जो मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढाणी,
हाडौती, मेवाती, मालवी बागड़ी आिद !मख ु बोिलय* के साथ परू े !देश (राज+थान) म: बोली
और िलखी जाती है। इन !मुख बोिलय* म: राज+थानी सािहय का सृजन हआ है। िडंगल और
िपगं ल राज+थान क एक िवशेष काTय शैली है। िजसका 9प आिदकाल और म=यकाल म: वीर,
भि_ और शृंगार !धान काTय* म: िमलता है। राज+थान के आिदकाल व म=यकाल म: िडंगल
बोलचाल क राज+थानी से अलग एक सािहियक भाषा थी। राज+थानी सािहय का
आिदकाल जैनकिवय* से श9 ु होकर लोकजीवन से जुडकर चारण किवय* के हाथ* म: सजधज
कर आगे बढ़ा ओर म=यकाल म: और पिु Pपत पBलिवत हआ। 15 वM सदी से 19 वM सदी का
राज+थानी सािहय का म=यकाल िवषय व+तु ओर िशBप (काTय-कला) दोन* `िO से
उपलिZधपणू ( रहा है। िkसन-9कमणी री वैली, राम रासौ, हाला झाला री कुडिलयां, मीरां के
पद, रािजया रा दहू ा दाद-ू वाणी (अनमैवाणी ओर काया वेिल) जैसी रचनाओ ं से इस काल का
सािहय पHरपणू ( है। काTय भाषा काTय 9प* (रास, रासौ, वेिल, वचिनका, िवलाज, यात) और
छंद अलंकार* (वयण सगाइ इयािद) लFण 4/थ* क `िO से सवlकृ O रचनाओ ं का सृजन
िकया गया। राज+थानी सािहय के आधुिनक काल (1850 से अतन) म: राज+थानी ग और
गय क िविवध िवधाओ ं के Fे7 म: देशकाल व पHरि+थितय* के अनसु ार उKरोKर िवकास व
पHरवत(न देखने को िमलता है। इस काल को +वत/7ता पवू ( और +वतं7ता पVात दो काल* म:
िवभािजत िकया है। क@य और िशBप दोन* `िO से इस काल म: पर5परागत और आधुिनक
भावबोध का िनवा(ह िकया गया है। जहाँ पर5परागत वीर, भि_ ओर नीित !धान काTय है, तो
!गितशील +वर नई किवता, समकालीनता, हा+य Tयंrय गीत-गजल आिद िविवध +वर
आधुिनक किवता म: `Pय है। राज+थानी सािहय का आधिु नक काल ग और प दोन* 9प*
क िविवध िवधाओ ं म: जीवन के सभी पF* और समसामियक समाज के सरोकार* के साथ
आगे बढ़ रहा है।