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अहमदनगर का िकला
किठन श दाथ:
पृ सं या 1- दजू – शु ल प का दसू रा िदन, शु ल प – पं ह िदन क यह अविध जब चाँद सायक ं ाल िनकलता है, कारावास – जेल,
थायी – लंबे समय तक, सहचर – साथ चलने वाला।
पृ सं या 2- बागवानी – बाग-बगीचे लगाना, अवशेष – बचे हए पदाथ, अतीत – परु ाना, दरू िभसंिधयाँ – दु मन या गलत इराद से क गई
सिं ध, अहिमयत – िवशेषता, िव – िखलाफ नेतृ व, मजं रू ी – अनमु ित, कुदाल – फावड़ा, कम – काय।
पृ सं या 3- पैगंबर – ई र का दतू , अि तयार – अिधकार, िव ापणू – पांिड य, राहत – आराम, वा रस – उ रािधकारी,
भावी – आनेवाला, मन म घर करना, पश – छूना।
पाठ-सारांश
इस पाठ म नेह जी क नव जेल या ा का वणन है। इस पाठ के मा यम से नेह जी का कहना है िक मनु य के मानस पटल पर अपनी
सं कृ ित और स यता क जो परु ानी छाप है रहती है, वह अ छी और बुरी दोन प म भािवत करती है। अहमदनगर के िकले म नेह जी
को 1942-45 तक रखा गया था, यह पाठ उसका का सं मरण है।
1.1 अतीत का भार
अतीत का भार नेह जी को बागवानी का शौक था। उ ह अं ेज़ी सरकार ारा िजन जेल म रखा गया वहाँ उ ह ने अपने शौक को पूरा िकया।
दसू री जेल क तरह उ ह ने अहमद नगर के िकले म भी बागवानी शु कर दी थी। वे ितिदन धपू म भी फूल के िलए या रयाँ बनाते थे।
वहाँ क ज़मीन क िम ी काफ़ खराब थी। यह िम ी परु ाने मलबे से भरी हई थी। इस िम ी ने अनेक यु और गु संिधयाँ देखी ह। इसिलए
इसे ऐितहािसक जगह भी कहा जाता है। यहाँ क एक मह वपूण घटना चाँद बीबी क याद नेह जी को आती है। उसी चाँद बीबी ने इस िकले
क र ा के िलए अकबर क मगु ल सेना के िव यु लड़ा था। उसी चाँद बीबी क ह या उसी के िव ासी आदमी ने क थी।
जेल म बागवानी के िलए खदु ाई करते समय नेह जी को सतह के काफ़ नीचे परु ानी दीवार के िह से, गंबु द और इमारत के ऊपरी िह से
िमले। लेिकन जेल अिधकारी सीिमत थान से आगे बढ़ने क इजाजत नह देते थे। इसिलए उ ह ने कुदाल छोड़कर कलम हाथ म उठाई और
उ ह ने यह ण िलया जब तक देश आज़ाद नह हो जाता है, वे देश क आजादी के िलए िलखते रहगे। वे भिव य के बारे म इसिलए नह
िलख सकते, य िक वह िकसी पैग बर क भिू मका म नह ह। अब बचा अतीत के बारे म इितहास व िव ान क तरह िलखने म स म नह
थे। वे के वल वतमान िवचार और ि याकलाप के साथ सबं धं थािपत करके ही उसके बारे म कुछ िलख सकते ह। गेटे के अनसु ार, इस तरह
का इितहास लेखन अतीत के भारी बोझ से एक सीमा तक राहत िदलाता है।
1.2 अतीत का दबाव
मनु य के मि त क पर स यता के अतीत का दबाव चाहे भला हो या बरु ा दोन तरह से अिभभतू करता है। यह दबाव कभी-कभी दमघोटू होता
है।
नेह जी बराबर सोचा करते थे िक आिखर इनक िवरासत या है ? वे िकन बात के उ रािधकारी ह? िफर वयं ही उनका मानना है िक
मानवता के िजन मू य को हजार वष से ा िकया गया, जीत का उ लास, हार का दख ु व मानव के साहसी कारनामे ये सभी उनके साथ
जुड़े ह। वे इ ह सबके सतं ान ह।
नेह जी ने अपने िवचार म अपनी घटना का भी उ लेख िकया है िक भारतवािसय क िवरासत क िवशेष बात यह है िक ये आपको
अपना-पराया का भेद-भाव नह करते। यह िवचार हमारे अंदर कूट-कूट कर भरा हआ है। यही िवचार हम एकसू म बाँधकर रखते ह। इन
आधार पर वतमान और भावी प बनेगा।
लघु उ रीय
1. इस पाठ म िकसक कौन-सी या ा का वणन है?
उ र: इस पाठ म पं. जवाहर लाल नेह क नव जेल या ा का वणन हआ है। यह जेल अहमदनगर िकले म थी। इस जेल म उ ह बीस महीने
गज़ु ारना पड़ा था।
2. नेह जी ने चाँद को अपना सहचर य कहा? उ ह वह या सीख देता तीत होता है?
उ र: वहाँ का चाँद लेखक को अपना सहचर इसिलए तीत होता है य िक वह िदन ितिदन िनि त समय पर आकर एक-एक िदन का
अहसास करवाता था। साथ यह अहसास िदलाता है िक अंधेरे के बाद उजाला होता है। यानी दख
ु के बाद सख
ु
दीघ उ रीय
1. अतीत का दबाव कै सा होता है?
उ र: अतीत का दबाव अ छा हो या बुरा दोन प म अिभभतू करता है। मनु य के मि त क पर स यता और सं कृ ित क जो छाप रहती है,
और जो लोग ाचीन स यताओ ं से जड़ु े ह जब उनक स यता िवकृ त होती है तो वे ज दी ही िवचिलत हो उठते ह।
3. चाँद बीबी कौन थी? उनसे सबं ंिधत कौन-सी घटना याद क जाती है?
उ र: चाँद बीबी अहमदनगर म रहने वाली मिहला शािसका थी। उसने िकले क र ा के िलए अकबर क शाही सेना के िव यु िकया
और सेना का नेतृ व िकया। अतं म उसक ह या उसके अपने ही एक आदमी ने कर िदया।
2. तलाश
किठन श दाथ:
पृ सं या 4.
िव ेषण – सही गलत का िवचार करना, अवधारणा – िवचार, आलोचक – सही गलत दोन धारणाएँ कट करने वाला, अतीत – िपछला,
ाचीन, शंकाएँ – संशय, खा रज – समा , जीवंत – सदा रहने वाला, िटकाऊ – मज़बूत, प का, बजदू – आधार।
पृ सं या 5.
टीला – िम ी या रे त के जमाव से बना एक ऊँचा थान, ठे ठ – परू ी तरह से, आ यचिकत – हैरान, प रवतनशील – बदलाव करनेवाला,
िवकास समान – उ नित क ओर बढ़ना, संपक – संबंध, तेजि थता – काशमय, सदु रू – बहत दरू , सि य – ि याशील होना, समृि –
संप नता, परा मी – वीर, दा तान – आपबीती, िमथक – अिव सनीय घटनाएँ।
पृ सं या 6.
दतं कथाएँ – लोग ारा कही जाने वाली कहािनयाँ, िवशाल – बड़ा, रमणीय – संदु र, मनोरम, तादाद – बड़ी सं या, पौरािणक – परु ानी,
ाचीन, भ नावशेष – परु ानी चीज के टूटे-फूटे बचे टुकड़े, परु खे, पव – योहार , हैरत – हैरानी, आ य, बल – मज़बूत।
पृ सं या 7.
आ था – िव ास, अंत ि – अंदर तक पहचान पाने क शि , बोध – ान, त काल – उसी समय, फासला – दरू ी, अिभिलिखत – िलिखत
सबूत, पाषाण तंभ – प थर के खंभे। िशलालेख – प थर पर िलखे गए लेख। स ाट – राजाओ ं के राजा, िज ासु – जानने क इ छा,
शा त – िनरंतर, िचर, परंपरा – रीित- रवाज, ोत – ा य थान, पतन – िगरावट, ज़माना – एक यगु लबं ा समय, गित – उ नित, ज़माने –
संसार।
पृ सं या 8.
चेतना – बिु , मानिसकता – सोचने क शि , कौशल – हनर, ीण – कमज़ोर, अनक ु रण – दसू रे का काय देखकर करना, िकसी के पीछे
चलना, यास – कोिशश, श दाडंबर – श द का आवरण, लैस – ससु ि जत, भा यकार – भाषा पर अिधकार रखनेवाला, भ य – संदु र,
न काशी – हाथ से क गई मीनाकारी, अलंकृत – अलंकार से यु , जिटल – किठन, सार चलन, संक ण िढ़वािदता – दिकयानुसी
िवचार, लु – समा , िवकट – किठन, मछू ा – बेहोश, ास – पतन, सव ण – यौरा, वसं ावशेष – खिं डत बची हई व तएु ँ, ममय –
िसलिसले का टूटना, िनरंतरता – एक पता, पनु जागरण – नवीन िवचार क जागृित आना।
पृ सं या 9.
सामजं य – तालमेल, अतं व तु – अदं र का आधार, आ मसात – अपनाना, साम य – कुछ करने क िह मत, िवगत – बीता हआ, दगु ित –
बुरी दशा, िविच – अजीब, तर क – उ नित, र द देना – अि त व-ख म करना, बुि जीिवय – नई िवचारधाराओ ं से िवचार करनेवाले।
पृ सं या 10.
अहिमयत – िवशेष मह व देना, संदेह – शक, वं -यु , अवधारणा – िवचारधारा, अपे ाएँ – कुछ पाने क इ छाएँ, ढ़ता – मज़बूती, अंत-
शि – अंदर का बल, साथक – सही अथ म, िनरथक – जो सही अथ न रखते हो, अिन कारी – िवनाशकारी।
पृ सं या 11.
ोता-सनु ने वाले, चचा-एक दसू रे से िवचार-िवमश, सं थापक-शु करनेवाले, दमदार-ज़ोरदार, भावी।
पृ सं या 11.
बाबत – बारे म, संघष – प र म, कज – उधार, अ याचार – गलत यवहार, हकूमत – शासन, आरोिपत – थोपना, अखंड – िजसके टुकड़े
न िकए जा सक, िवराट – बड़ा, मनोरंजक – मनभावन, अटूट – घिन ।
पृ सं या 12.
यल – कोिशश, महु यै ा – दान करते ह।
पृ सं या 12.
िविवधता – िभ नता, अ ु त – अजीब, तालक ु – संबंध, गमक – छाप, तमाम – अनेक, अचरज – हैरानी।
पृ सं या 13.
सीमातं – सीमावत , व त – न , अवशेष – बचे हए, कमोबेश – कम-अिधक, ज ब – सभा, त काल – उसी समय, आरोिपत – थोपा
हआ, ो साहन – उ साह, मानक करण – शदु त् ा, सिह णतु ा – स दयता, ो साहन – बढ़ावा।
पृ सं या 14.
घिन – प का, मल ू – वा तिवक, अनभु िू त – महससू , मतभेद – िवचार म िभ नता, अनिगनत – असं य।
पृ सं या 15.
संचार – नया प भरना, नवजात – नए, सहेजकर – संभालकर।
पृ सं या 15.
पृ भिू म – आधार, िमथक – मनगढंत, परु ा – ाचीन, िनर र – अनपढ़, लोक मानस – लोग के िदमाग से, समृ – उ नत-संप न, देहाती –
गाँव के ।
पृ सं या 16.
संवेदनशील – मन को भावक ु करनेवाले, बिल – बलशाली, देह – शरीर, लाव य – संदु रता, अवसाद – दखु ।
पाठ-सारांश
इस पाठ के मा यम से नेह जी कहने का यास कर रहे ह िक भारत के अतीत म ऐसी ढ़ शि रही है। िक उसे कोई िडगा नह सकता है।
यिद हम पाँच हज़ार साल के पीछे मड़ु कर देख तो पाते ह िक भारत का मक
ु ाबला परू ा ससं ार नह कर सकता। जनसं या का िवशाल समहू
होने के बावजदू भारत म मज़बूती के साथ एकजुटता िदखाई देता है।
2.1 भारत क अतीत क झाँक
भारत क अतीत क झाँक नेह जी इस पाठ के मा यम से कहते ह िक बीते साल म उनका यह यास रहा है िक वे भारत को समझ और
उसके ित उनके िति याओ ं का िव े षण कर। कभी-कभी उनके मन म यह भी िवचार आता था िक आिखर भारत या है? यह भूतकाल
क िकन िवशेषताओ ं का ितिनिध व करता था? उसने अपनी ाचीन शि को कै से खो िदया? भारत उनके खून म रचा-वसा था। उ ह ने
भारत को शि शाली रा के प म देखा था। या अब वह अपनी शि को खो िदया है? इतना िवशाल जन समहू होने के बावजूद भारत के
पास कुछ ऐसा है िजसे जानदार कहा जा सके । इस आधिु नक यगु म तालमेल िकस प म बैठता था।
उस समय नेह जी भारत के उ र पि म म ि थत िसधं ु घाटी म मोहनजोदड़ो के एक टीले पर खड़े थे। इस नगर को 5000 वष पहले का
बताया गया है। यह एक पणू िवकिसत स यता थी। इसका ठे ठ भारतीयपन हमारी आधिु नक स यता का आधार है। भारत ने फारस, िम ,
ीस, चीन, अरब, म य एिशया तथा भूम यसागर के लोग को भािवत िकया तथा वयं भी उनसे भािवत हआ। नेह जी ने आने वाले
िवदेशी िव ान या ी जो चीन, पि मी व म य एिशया से आए थे, उनके ारा िलिखत सािह य का अ ययन िकया। उ ह ने पवू एिशया,
अंगकोर, बोरोबुदरु और बहत सी जगह से भारत क उपलि धय के बारे म जाना। िहमालय पवत व उनसे जुड़ी ाचीन कथाओ ं को भी
उ ह ने जाना। वे िहमालय म भी घूमते रहे िजसका पुराने िमथक और दंत कथाओ ं के साथ िनकट का सबं ंध है। पहाड़ के ित िवशेषकर
क मीर के ित उनका िवशेष लगाव रहा। भारत क िवशाल निदय ने भी उ ह आकिषत िकया। इडं स या िसधं ु के नाम पर हमारे देश का नाम
इिं डया और िहदं ु तान पड़ा। यमनु ा के चार ओर नृ य और नृ य उ सव और नाटक से सबं न जाने िकतनी पौरािणक कथाएँ एक ह। भारत
क नदी गंगा ने भारत के दय पर राज िकया है। ाचीन काल से आधिु नक यगु तक गंगा क गाथा भारत क स यता और सं कृ ित क
कहानी है।
भारत के अतीत क कहानी को व प देनेवाली अजंता, एलोरा, ऐिलफटा क गुफाएँ व िद ली तथा आगरा क िवशेष इमारत ने भी नेह
जी को भारत के अि त व के बारे म अवगत करवाया।
जब भी वे अपने शहर इलाहाबाद या िफर ह र ार म महान- नान पव कंु भ के मेले को देखते तो उ ह एहसास होता था िक हज़ार वष पवू से
उनके पवू ज भी इस नान के िलए आते रहे ह। िवदेिशय ने भी इन पय के िलए बहत कुछ िलखा। उ ह इस बात क हैरानी थी िक वह कौन-
सी बल आ था है जो भारतीय को कई पीिढ़य से भारत क इस िस नदी क ओर ख चती रही है। उनक या ाओ ं ने अतीत म देखने क
ि दान क । उ ह स चाई का बोध होने लगा। उनके मन म अतीत के सैकड़ िच भरे पड़े थे। ढाई हजार वष पहले िदया महा मा बु का
उपदेश उ ह ऐसा लगता जैसे बु अपना पहला उपदेश अभी दे रहे ह , अशोक के पाषण तंभ अपने िशलालेख के मा यम से अशोक क
महानता कट करते, फतेहपरु सीकरी म अकबर सभी धम म समानता को मानते हए मनु य क शा त सम याओ ं का हल खोजता िफरता है।
इस कार नेह जी को ाचीन पाँच हज़ार वष पवू से चली आ रही सां कृ ितक परंपरा क िनरंतरता म िवल णता साफ़ और प तथा
वतमान के धरातल पर सजीव तीत होती है।
सरल, सजीव और समृ भाषा क जगह अलक ं ृ त और जिटल सािह य-शैली िवकिसत हई। िववेकपणू चेतना लु होती चली गई और
अतीत क अंधी मिू त पजू ा ने उसक जगह ले ली। इस हालत म भारत का पतन होने लगा जबिक इस समय म िव के दसू रे िह से लगातार
गित करते रहे।
इन उपरो बात के साथ-साथ यह भी नह कहा जा सकता है िक इतना कुछ होने पर भी भारत क मज़बूती, ढ़ता और अटलता को िहला
नह सका। ाचीन भारत का व प तो परु ाने प म रहा लेिकन अंदर क गितिविधयाँ बदलती रह , भले ही नए ल य ख चे गए लेिकन
परु ानी व नई सामजं य थािपत करने क इ छा बराबर बनी रही। इसी लालसा ने भारत को गित दी और परु ाने के जगह नए िवचार को
आ मसात करने का साम य िदया।
2.3 भारत क तलाश
नेह जी क सोच यह थी भारत का अतीत जानने के िलए पु तक का अ ययन, ाचीन मारक तथा भवन का दशन, सां कृ ितक
उपलि धय का अ ययन तथा भारत के िविभ न भाग क पद या ाएँ पया होगी, पर इन सबसे उ ह वह संतोष न हो सका िजसक उ ह
तालाश थी। उ ह ने भारत के नाम पर भरत नाम क ाचीनता बताई। उ ह ने उ ह सदु रू -उ र-पि म म खैबर पास से क याकुमारी या के प
कै मो रन तक अपनी या ा के बारे म बताया। उ ह ने देश के िकसान क िविभ न सम याओ ं गरीबी, कज, िनिहत वाथ, जम दार, महाजन,
भारी लगान और पिु लस अ याचार पर चचा क । उन लोग को ाचीन महाका य , दतं कथाओ ं क परू ी जानकारी थी। ामीण अभाव म
रहते हए भी भारत क शान थे। जो बात उनम थी वह भारत के मा यम वग म न थी। के वल उ ेजना के भाव रहते थे।
नेह जी इस बात से भी अप रिचत न थे िक भारत क त वीर कुछ-कुछ बदल रही है य िक हमारा देश 200 वष से अं ेज के अ याचार
झेल रहे थे। काफ़ कुछ तो उसी कारण समा हो गया लेिकन जो मू य या धरोहर बच गई है वह साथक है। लेिकन बहत कुछ ऐसा भी है जो
िनरथक व अिन कारी है।
2.4 भारत-माता
नेह जी सभी भारतीय िकसान को संदेश देना चाहते थे िक भारत महान है। हम इसक मह ा को समझना चािहए। वे जब भी िकसी भी सभा
म जाते तो लोग को अवगत कराते िक इस िवशाल भारत क आज़ादी के िलए संघष कर रहे ह। इसका भाग अलग-अलग होते हए भी सभी
को िमलाकर भारत बना है। उ र से दि ण व पवू से पि म तक यह एक ही व प रखता है। उ ह ने उ ह सदु रू उ र-पि म म खैबर पास से
क याकुमारी या के प के मो रन तक अपनी या ा के बारे म बताया। उ ह ने िकसान क िविवध सम याओ ं गरीबी, कज, िनिहत वाथ,
जम दार, महाजन, भारी लगान और पिु लस अ याचार पर चचा क । उन लोग को ाचीन महाका य दंत कथाओ ं क परू ी जानकारी थी।
लोग जब ‘भारत माता क जय’ के नारे लगाते तब नेह जी उनसे पछू ते थे िक भारत माता क जय इसका या अथ है ? इसका इ ह सही-
सही उ र नह सझू ता था। एक यि ने उ र िदया – भारत माता हमारी धरती है, भारत क यारी िम ी। भारत तो वह सब कुछ है भारत के
पहाड़ और निदयाँ, जंगल, खेत और भारत क जनता। भारत माता क जय का अथ है- इसी जनता जनादन क जय। यह िवचार उनके िदमाग
म बैठता जाता था। उनक आख चमकने लगती थ मानो उ ह ने एक नई महान खोज कर दी हो।
नेह जी का कहना है िक वे जब भी भारत के बारे म सोचते ह तो उनके सामने दरू -दरू तक फै ले मैदान, उन पर बसे अनिगनत गाँव, व शहर व
क बे िजनम वे घमू े, वषा ऋतु क जादईु बरसात िजससे झल
ु सी हई धरती का स दय और ह रयाली िखल जाए, िवशाल निदयाँ व उनम बहता
जल, ठंडा देश खैबर, भारत का दि ण प, बफ ला देश िहमालय या वसतं ऋतु म क मीर क कोई घाटी फूल से लदी हई व उसके बीच
से कल-कल छल-छल करते बहते झरने क त वीर बन जाती है, िजसे वे सहेजकर रखना चाहते ह।
2.6 जन सं कृित
भारत क तलाश के म म नेह जी जब भारतीय जनता के जीवन क गितशीलता को देखते तो उसका संबंध अतीत से जोड़ते थे, जबिक
इन लोग क नज़र भिव य पर टीक रहती थी। लेखक को हर जगह एक सं कृ ित पृ भिू म िमली िजसका जनता के जीवन पर गहरा असर था।
इस पृ भिू म म लोक चिलत दशन परंपरा, इितहास, िमथक, परु ा-कथाओ ं का स मेलन था। ये कथाएँ आपस म इस कार से िमली हई थी
िक इसे एक दसू रे से अलग करना असभं व था। भारत के ाचीन महाका य रामायण और महाभारत जनता के बीच िस थे। वे ऐसी कहानी
का उ लेख करते थे िजससे कोई नैितक उपदेश िनकलता था। लेखक के मन म िलिखत इितहास और त य का भडं ार था। गाँव के रा ते से
गजु रते हए लेखक क नज़र मनोहर पु ष या संदु र ी पर पड़ती थी िजसे देखकर वह िव मय िवमु ध हो जाता था। चार ओर अनिगनत
िवपि याँ फै ली हई थ । लेखक को इस बात से हैरानी होती थी िक तमाम भयानक क के बावजदू , आिखर यह स दय कै से िटका और बना
रहा। भारत म ि थितय को समिपत भाव से वीकार करने क वृि बल थी।
भारत म न ता, यह सब कुछ होने के बाद भी ि थित को वीकारने क बल वृि थी जो हज़ार साल क सं कृ ित िवरासत क देन थी
और इसे दभु ा य भी न िमटा पाया था। यानी भारतीय सं कृ ित के आधारभूत त व म कोई प रवतन नह हआ था।
1. मोहजोदड़ो क स यता िकतने वष परु ानी है?
(i) 3000 वष (ii) 5000 वष
(iii) 6000 वष (iv) 4000 वष
उ र: (ii) 5000 वष
लघु उ रीय
1.नेह जी ने भारत को िकस नज़ रए से देखना शु िकया और य ?
उ र: नेह जी ने भारत को एक आलोचक क ि से देखना शु िकया। वे एक ऐसे आलोचक थे जो वतमान को देखते थे पर अतीत के
बहत से अवशेष को नापसदं करते थे। वे ऐसा इसिलए करते थे िजससे वे अतीत के पसदं एवं नापसदं दोन पा का अवलोकन करना चाहते
थे।
2.लेखक ने िवदेिशय ारा िलखे गए भारतीय सािह य का अ ययन य करना चाहा?
उ र: नेह जी ने िवदेिशय ारा िलखे गए भारतीय सािह य का अ ययन करना चाहा तािक भारत क िवशेषताओ ं क बारीिकय का
अ ययन कर सक।
9. नेह जी पर भारत के इितहास और िवशाल ाचीन सािह य क िकन बात ने भाव डाला?
उ र: नेह जी पर िवचार क तेजि वता, भाषा क प ता, सि य मि त क क समृि ने गहरा भाव डाला।
22. इस पाठ के आधार पर आिथक तंगी म जीते भारतीय क दशा का िच ण तथा उनक िवशेषताओ ं का वणन क िजए।
उ र: इस पाठ के अ ययन से पता चलता है िक भारतीय जनता काफ आिथक तगं ी से जूझ रही थी। उनको आभाव म जीने क मज़बूरी थी।
चार ओर भूखमरी, गरीबी और बहत-सी परे शािनय से यहाँ क जनता त थी। उनके इन परे शािनय को साफ़-साफ़ चेहरे पर देखा जा
सकता था। समाज म चार तरफ ाचार और असरु ा क भावना या थी। उनक िजंदगी िवकृ त होकर भयंकर प धारण कर चुक थी।
दीघ उ रीय
3. भारत म शि य के पतन ने लोग के ि कोण सािह य तथा िनमाण कला पर या भाव डाला?
उ र: भारत क शि य का पतन होने पर भी लोग का ि कोण है िक लोग म रचना मक वृि क कमी आयी तथा अनक ु रण करने क
वृि को बढ़ावा िदया। जो लोग कृ ित और ांड के रह य जानने क इ छा रखते थे, उनक िच सािह य क ओर झुक । सजीव, सरल,
समृ , भावशाली क जगह किठन सािहि यक शैली का योग होने लगा। भ य मिू तकला िनमाण क जगह पर प चीकारी वाली कारीगरी
क जाने लगी।
पाठ-सारांश
इस पाठ के मा यम से हम िसधं घु ाटी स यता म भारत के अतीत जानकारी िमलती है। िजसके िच िसधं ु म मोहनजोदड़ो और पि म पंजाब म
हड़ पा म िमले। इनक खदु ाइय के मा यम से हम इितहास के बारे म पया जानकारी िमलती है।
खदु ाई एवं खोज से भी इस बात का पता चलता है िक यह स यता पि म म किठयावाड़ और पंजाब के अंबाला िजले तक फै ली हई थी। इस
स यता का िव तार गंगा नदी तक था, इसिलए यह स यता िसफ िसधं ु घाटी क स यता नह कहा जा सकता है। अबं ाला िजला अब पंजाब
म नह बि क ह रयाणा म िवलय कर िदया गया है।
िसंधु घाटी के खदु ाई के दौरान हम जो अवशेष ा हए ह उसके आधार पर कहा जा सकता है िक यह स यता पणू तः िवकिसत थी। उसे इस
तरह िवकिसत होने म हजार वष लगे ह गे। धािमक अवशेष के िमलने के आधार पर यह कहा जा सकता है िक यह स यता पणू तः
धमिनरपे थी। भिव य म यह स यता भारतीय सं कृ ित एवं व प क अ दतू बनी। इस स यता ने फारस, मेसोपोटािमया और िम क
स यताओ ं के साथ संपक थािपत कर यापा रक संबंध थािपत िकए। यहाँ यापारी वग काफ़ धनी थे। खदु ाई के अवशेष से पता चलता है
िक सड़क पर छोटी-छोटी दक ु ान क कतार थ ।
िसंधघु ाटी स यता के उ म के बारे म सही-सही जानकारी हम उपल ध नह है लेिकन खदु ाई के आधार पर यह कहा जा सकता है िक इस
स यता का उदय लगभग छह सात हज़ार वष पवू हआ है। यिद आज के वतमान यगु क स यता से तुलना क जाए तो ाचीन िसंधुघाटी
स यता और वतमान स यता के बीच काफ़ प रवतन आए। भले इसम अदं र ही अदं र िनरंतता क ऐसी शृख ं ला चली आ रही है जो भारत को
सात हजार वष परु ानी स यता से जोड़े रखती है। मोहनजोदड़ो और हड़ पा सं कृ ित हम त कालीन रहन-सहन रीित- रवाज, द तकारी तथा
पोशाक के फै शन क जानकारी दान करती है।
3.2 आय का आना
आय कौन थे? वे कहाँ से आए? इसका कोई प का सबूत हम नह िमलता है लेिकन इसके बारे म इस स यता क खदु ाई से पता चलता है िक
इनक उ पि दि ण भारत क िवड़ जाितय से हई ह गी। य िक आय एवं दि ण भारतीय िवड़ म कुछ समानताएँ िमलती ह। ये
मोहनजोदड़ो म कई हज़ार वष पूव आए ह गे। अतः इन आधार पर इ ह हम भारतीय ही कह सकते ह।
यह भी इितहासकार का मानना है िक आय उ र-पि मी िदशा से एक के बाद एक आए। कुछ इितहासकार का मानना है िक आय का वेश
िसधं ु घाटी म एक हजार वष पहले से हआ था। ये सभं वतः पि म-उ र िदशा से भी भारत म वे कबीले और जाितयाँ आती रही और भारत म
बसती चली गई। पहला सां कृ ितक सम वय आय एवं िवड़ जाितय के बीच हआ जो िसधं ु घाटी स यता के ितिनिध थे। इन सब आधार
पर हम कह सकते ह िक आय भारत के ही मल ू िनवासी थे।
अ यिधक बाद और मौसम प रवतन के भाव के चलते िसंधु घाटी स यता का अंत हआ होगा। ऐसा अनुमान लगाया गया िक मौसम
प रवतन से ज़मीन सख ू ती गई हो और खेत पर रे िग तान छा गया हो और खेत रे िग तान म बदल गया। मोहनजोदड़ो के खंडहर इस बात के
माण ह िक उन पर एक के बाद एक बालू क परत छाई ह। िजससे अनुमान लगाया गया िक शहर क ज़मीन ऊँची उठती गई और
नगरवािसय ने परु ानी नीव पर ऊँचाई पर मकान, बनाए इसिलए खदु ाई के दौरान हम तीन-तीन मंिजले मकान िमले ह।
िसधं ु घाटी क स यता के बाद आने वाली स यता म शु आत म कृ िष पर अिधक बल िदया गया। िकसान खेती पर अिधक बल देते थे।
लोग का मख ु यवसाय कृ िष पर ही आधा रत था।
सबसे बड़ा सां कृ ितक सम वय और मोल-जोल बाहर से आने वाले आय एवं िवड़ जाितय के लोग के बीच हआ। बाद के यगु म बहत-
सी जाितयाँ आई।ं सबने अपनी-अपनी स यता क छाप छोड़ी और सभी घुल-िमल गए।
भारतीय वेद पर ईरान क परू ी छाप है। माना जाता है िक आय अपने साथ उसी कुल के िवचार को लाए िजससे ईरान म अवे ता धािमक ंथ
क रचना हई थी। वेद और अवे ता क भाषा म भी समानता है। अवे ता क रचना ईरान म हई थी।
3.4 वेद
वेद क उ पि ‘िवद’ धातु से हई है िजसका अथ है, जानना। वेद का सीधा सबं धं है- अपने समय के ान का सं ह करना। इनम मिू त पजू ा
और देव-मंिदर के िलए कोई थान नह है। आय ने अपने उमंगपणू जीवन म ‘आ मा’ पर बहत कम यान िदया, मृ यु के बाद िकसी
अि त व म वे कम िव ास करते थे। वेद यानी ऋगवेद मानव-जाित क पहली पु तक है। इसम मानव-मन के आरंिभक उ ार िमलते ह।
का य- वाह िमलता है। इसम कृ ित के स दय एवं रह य के ित खश ु ी तथा मनु य के साहिसक कारनाम का उ लेख िमलता है। यह से
भारत क लगातार खोज शु हई। इन खोज से भारत म स यता क बहार आई। तब ऐसे हर दौर म जीवन और कृ ित म लोग ने िदलच पी
ली। इसके साथ कला, संगीत और सािह य साथ नाचने-गाने क कला, िच कला, रंगमंच आिद सबका िवकास हआ। इन सब बात के
आधार पर यह कहा जा सकता है िक भारत क सं कृ ित जीवतं सं कृ ित थी न िक पारलौिककता म िव ास करने वाले।
य िप इसी समय म सामािजक कुरीितय के प म छूआछूत देखने को िमलती है जो बाद म असहाय हो जाती है, बाद म जाित यव था का
िवकास हआ। इस था से कई जाितय म समाज बँट गया और समाज म ऊँच-नीच वग म भेद-भाव होने लगा।
इस था ारा समाज को भािवत करने के बावजदू भी भारत हर े म िवकास के पथ पर बढ़ता रहा व बाहरी जाितय ईरािनय , यनू ािनय ,
चीनी, म य एिशयाई व अ य लोग से उसके सपं क लगातार बने रहे।
3.6 उपिनषद
उपिनषद का समय ईसा पवू 800 के लगभग माना जाता है। उपिनषद से आय के िवषय म काफ़ जानकारी िमलती है। इन उपिनषद से हम
उनके खोज म मदद िमलती है। साथ ही साथ स य क खोज और इनम वै ािनक त व मौजूद ह। तथा आ मबल पर जोर िदया गया है और
आ मा और परमा मा के बारे म जानकारी भी िमलती है। उपिनषद का झुकाव अ ैतवाद यानी िकसी धम िवशेष को न मानना था। इनका
मु य उ े य लोग को आपसी मतभेद को कम करना था। लोग म जादू टोना के िव ास को कम करके कम पर िवशेष बल देना था।
उपिनषद के मा यम से पजू ा-पाठ को बेकार बताया गया। इनक मु य िवशेषता थी ‘स चाई पर बल देना’ इनका मु य उ े य था िक –
अस य से स य क ओर चल, अंधकार से काश क ओर बढ़े, मृ यु से अमर व क ओर चल, इनम मनु य क इ छा को परू ा करने के िलए
ई रीय स ा को संबोिधत िकया गया है व मनु य को े रत िकया गया है। मनु य को े रत करते हए ऐतरे य ा ण म कहा गया है चरै वेित,
चरै वेित – यानी चलते रहो, चलते रहो।।
जब गांधी देश क आजादी के िलए सं ाम क शु आत क , तो उनके िवचार म भी यही िवशेषता थी िक समाज जाित बंधन से मु हो
और वे व थ शरीर, व छ मन ारा सयं म, आ मपीड़न और आ म याग क भावना से काय कर।
3.8 भौितकवाद
भौितकवाद के सािह य क रचना आरंिभक उपिनषद के बाद हई। हमारा ाचीन सािह य ताड-प या भोज-प पर िलखा गया था। कागज
पर िलखने का चलन बाद म हआ। लेिकन यनू ान, भारत और दसू रे भाग म िव के ाचीन सािह य का बड़ा िह सा खो गया है। बहत-सी
ऐसी पु तक ह िजसका चीनी और ित बती भाषा म अनुवाद िमल गया, पर वे भारत म नह िमली। कई पु तक क आलोचना मक पु तक
उपल ध ह लेिकन मल ू पु तक ा नह होती।
भारत म वष तक भौितकवादी चलन रहा और जनता पर उसका गहरा असर था। इसका सा य कौिट य ारा िलखी गई ‘अथशा ’ है।
इसम दाशिनक िस ातं का वणन है। इसक रचना ई.प.ू चौथी शता दी म हई थी।
भारत म भौितकवाद के बहत से सािह य को परु ोिहत और धम के पुराणपंथी िवचार म िव ास रखने वाले लोग ने समा कर िदया।
भौितकवािदय ने िवचार, धम, ा णवािदता, जाद-ू टोने और अधं िव ास का घोर िवरोध िकया। वे परु ानी यव था से िनकलकर वयं को
मु करना चाहते थे। जो माण हम य प म िदखाई नह देता। वे का पिनक देवी-देवताओ ं क पजू ा म िव ास नह रखते थे। न वग है
और न नरक है और न ही शरीर से अलग कोई आ मा। जीवन क वा तिवक स ा ही उनके सम स य थी।
भारतीय सभी कथाएँ महाका य तक सीिमत नह ह। उनका इितहास वैिदक काल तक जाता है। इनम वीरगाथाओ ं क कहािनयाँ अिधक
िमलती ह। किवय व नाटककार ने त य और क पनाओ ं का संदु र योग करके अपनी रचनाओ ं क रचना क । इनम स य वचन का पालन
करने, जीवनपयत व मरणोपरांत वफादारी, साहस और लोकिहत के िलए सदाचार और बिलदान क िश ा दी गई है।
भारतीय इितहासकार ने यनू ािनय , चीिनय और अरबवािसय क तरह ितिथय व काल म सिहत या या नह क । इससे घटनाएँ इितहास
क भलू भल ू यै ा म, खोकर रह गई ह। क हण क रचना राजतरंिगनी नामक ाचीन ंथ म क मीर का इितहास है। इसक रचना ईसा क
बारहव शता दी म क गई। अ य ऐितहािसक रचनाओ ं को िव तार से जानने के िलए समकालीन अिभलेख , िशलालेख , कलाकृ ितय ,
इमारत के अवशेष , िस क व सं कृ त सािह य के िवशाल सं ह से सहायता लेनी पड़ती है। इसके अलावा िवदेशी याि य के िववरण से
भी हम इसक जानकारी िमलती है।
ऐितहािसक ान क कमी के कारण जनता ने अतीत के िवषय म अपनी सोच का िनमाण पीढ़ी-दर पीढ़ी िमली िवरासत से कर िलया। इससे
लोग को एक मज़बूत और िटकाऊ सां कृ ितक पृ भिू म िमल गई।
3.10 महाभारत
महाभारत का थान िव क महानतम रचनाओ ं म है। यह रचना परंपरा और दंत कथाओ ं का तथा ाचीन भारत क राजनैितक और
सामािजक सं थाओ ं का िव कोश है।
भारत म इस समय िवदेिशय का आगमन होने के बाद िवदेिशय क परंपराएँ तथा अनेक रवाज यहाँ के बसे आय क परंपराओ ं के साथ
मेल नह खाते थे। इस ि थित से िनपटने के िलए बुिनयादी एकता पर बल देने क कोिशश क गई। महाभारत का यु 11व शता दी के
आसपास हआ होगा। महाभारत म एक िवराट गृह यु का वणन है िजसम अखंड भारत क अवधारणा क शु आत हई। महाभारत ंथ से
यह भी प होता है िक आधिु नक अफगािन तान का एक बहत बड़ा िह सा भारत म शािमल था िजसका नाम गधं ार था। इसी आधार पर
भारत के धान शासक क प नी का नाम गंधारी पड़ा। िद ली व इसके आसपास के इलाके का नाम भी पहले हि तनापरु और इं थ था।
उस समय इं थ भारत क राजधानी मानी जाती थी। महाभारत म कृ ण सबं ंिधत आ यान भी है और िस का य-भगवद गीता भी। इस
थं म मु य प से उस समय के शासनकाल और सामा य प से जीवन के नैितक और यवहार सबं धं ी िस ातं पर जोर िदया गया है। धम
को इसम मह वपूण थान िदया गया है और कहा गया है िक धम के िबना मनु य को स चे सख ु क ाि नह हो सकती है। वे समाज म
एकता से नह रह सकते। इसका ल य है पूरे िव का लोकमंगल। यह ंथ हम यह सदं श े देता है िक िहसं ा करना अमानवीय है लेिकन िकसी
मकसद या लोक क याण के िलए यु लड़ा जाए तो वह गलत नह माना जाएगा।
इस ंथ म हम पा रवा रक और सामािजक सम याओ ं के िनदान क जानकारी दी गई है। इस कार महाभारत से हम िन निलिखत िश ाएँ
िमलती ह।
दसू र के साथ ऐसा यवहार न कर जो आपको बरु ा लगे। स चाई, आ मसयं म, तप या, उदारता, अिहसं ा, धम का िनरंतर पालन ही जीवन क
सफलता क कंु जी है। जीवन म मनु य को स चे सख ु क ाि चािहए तो इसके िलए पहले दख ु भोगना आव यक है। धन के पीछे दौड़ना
यथ है। इसके अलावे इस ंथ म शासन, कला और सामा य प से जीवन के नैितक और आचार सबं ंधी िस ांत पर जोर िदया गया है।
महाभारत एक ऐसा िवशाल भडं ार है िजसम अनेक अनमोल चीज़े ढूँढ़ी जा सकती ह।
भारत म िलखने का चलन बहत परु ाना है। पाषाण यगु क िम ी के परु ाने बतन पर ‘ ा ी िलिप’ के अ र िमले ह। ा ी िलिप से ही
देवनागरी तथा अ य िलिपय क उ पि हई। छठी या सातव शता दी म पािणिन ने सं कृ त भाषा म िस याकरण क रचना क । इसे
आज भी सं कृ त याकरण का आिधका रक ंथ माना जाता है। इस समय तक सं कृ त का प ि थर हो चक ु ा था। औषिध िव ान क
पाठ्यपु तक भी थ और अ पताल भी। औषिध पर चरक क तथा श य िचिक सा पर सु तु क पु तक िमलती ह। महाका य के इस यगु म
वन म ि थित िव िव ालय तथा महािव ालय का भी वणन िमलता है। चरक स ाट किन क के दरबार म राज वैदय थे। उनक पु तक म
अनेक रोग के इलाज का वणन है। श य िश ण के दौरान मदु क चीर-फाड़ कराई जाती थी। सु तु ारा अगं को काटना, पेट काटना,
ऑपरे शन से ब चे को ज म िदलाना आिद का वणन है।
कुछ वष तक छा महािव ालय एवं िव िव ालय म िश ण लेकर घर वापस आकर गृह थ जीवन यतीत करते थे। बनारस हमेशा िश ा
का क रहा। त िशला िव िव ालय भी िस था। यह बौ काल म बौ ान का क बन गया था।
इस कार हम कह सकते ह िक औषिध िव ान व श य िचिक सा के े म भारत िव म अपना िवशेष थान रखता था। वतमान िचिक सा
का आधार ाचीन भारत ही है। अतं म इन जानका रय के आधार हम कह सकते ह िक वे खल ु े िदल के , आ मिव ासी और अपनी
पर पराओ ं पर गव करने वाले, रह य के ित िज ासु तथा जीवन म सहज भाव से आनंद लेने वाले लोग थे।
रा यािभषेक के समय राजा को इस बात क शपथ िदलायी जाती थी िक वह जा क सेवा करे गा तथा जा के िहत एवं इ छा को यान म
रखेगा। यिद कोई राजा अनीित करता है तो उसक जा को अिधकार है िक उसे हटाकर िकसी दसू रे को उसक जगह बैठा दे।
3.17 अशोक
चं गु मौय ारा थािपत मौय सा ा य का उ रािधकारी 273 ई.प.ू म अशोक बना। इससे पहले अशोक पि मो र देश का शासक था
िजसक राजधानी त िशला थी। इस समय तक इस सा ा य का िव तार म य एिशया तक हो चक ु ा था। अशोक संपणू भारत को एक शासन
यव था म लाना चाहता था। भारत को एक शासन यव था दान करने के िलए अशोक ने पवू तट के किलंग देश को जीतने क ठान ली।
किलंग के लोग ने बहादरु ी से यु िकया लेिकन अशोक क सेना िवजयी हई। इस यु म लाख लोग मारे गए तथा घायल हए। जब इस बात
क खबर अशोक को िमली तो उसे बहत लािन हई और उसे यु से िवरि हो गई तथा वह बौ धम का अनुयायी बन गया। अशोक के
काय और िवचार क जानकारी हम िशलालेख से िमलती है, जो परू े भारतवष म उपल ध है।
बु क िश ा के भाव से उसका मन िहसं ा को छोड़कर जन क याणकारी काय करने क ओर आगे बढ़ा। इसके बाद उसने बु धम के
िनयम का उ साहपवू क पालन करना शु कर िदया। उसने अपने एक संदेश म कहा िक- वह ह या या बंदी बनाए जाने को सहन नह करे गा।
उसका कहना था िक स ची िवजय कत य और धम पालन करके लोग के िदल को जीतने म है। यिद उसके साथ कोई बरु ाई करे गा तो वह
जहाँ तक संभव होगा उसे झेलने का यास करे गा। उनक इ छा थी िक जीव मा क र ा हो, लोग म आ मसंयम हो, उ ह मन क शािं त
और आनंद ा हो। वयं उसने बु क िश ा के चार तथा जा क भलाई वाले काय के िलए अपने आपको अिपत कर िदया, वयं वह
बौ धमावलबं ी थे लेिकन सभी धम का आदर करते थे।
अशोक बहत बड़ा िनमाता भी था। उसने अनेक बड़ी इमारत का िनमाण कराया। बड़ी-बड़ी इमारत को बनाने म मदद के िलए िवदेशी
कारीगर को भी रखा। मिू तकला व दसू रे अवशेष पर भारतीय कला परंपरा क छाप प प से िदखाई पड़ती है लेिकन तभं पर िवदेशी
छाप भी िमलती है। 41 साल तक शासन करने के बाद ई. प.ू 232 म अशोक क मृ यु हई। उसका नाम आदर के साथ िलया जाता है। उसने
अनेक महान काय िकए िजनके कारण उनका नाम वो गा से जापान तक आज भी आदर के साथ िलया जाता है।
3. आय क मु य जीिवका या थी?
(i) पशपु ालन (ii) कृ िष
(iii) यापार (iv) उनम कोई नह
उ र: (ii) कृ िष
7. उपिनषद क उ पि कब हई थी?
(i) ई. प.ू 500 (ii) ई. प.ू 800
(iii) ई. प.ू 1000 (iv) ई. प.ू 1200
उ र: (ii) ई. प.ू 800
16. ाचीन काल म िकसान अपने कृ िष उ पादन का िकतना िह सा कर के प म राजा को देते थे?
(i) एक चौथाई (ii) आधा
(iii) दशांश (iv) छठा
उ र: (iv) छठा
5. आय का मु य यवसाय या था?
उ र: आय का मु य यवसाय खेती था।
14. िसंधु घाटी ने िकन-िकन स यताओ ं के साथ संबंध थािपत िकए और यापार िकए।
उ र: िसधं ु घाटी ने फारस, मेसोपोटािमया और िम क स यताओ ं से सबं धं थािपत िकया और यापार िकया।
2. िसधं ु घाटी क स यता िकतनी ाचीन है? इससे हम िकन-िकन चीज़ क जानकारी िमलती है?
उ र: िसंधु घाटी क स यता छह-सात हज़ार वष परु ानी है। यह हम मोहनजोदड़ो व हड़ पा के मा यम से उस समय के लोग के रहन-सहन,
लोकि यता रीित रवाज , द तकारी व पोशाक आिद के फै शन के बारे म भी जानकारी उपल ध कराती है।
6. ाचीन सािह य खोने को दभु ा य य कहा गया है? इन सािह य के खोने के कारण या हो सकते ह?
उ र: ाचीन सािह य खोने को दभु ा य इसिलए कहा जाता है य िक इन सािह य के अभाव म अभी वतमान समय म हम ाचीन इितहास
क ामािणक जानकारी उपल ध नह हो पाती है। यह सािह य इसिलए खोया होगा य िक इन सािह य क रचना भोज-प या ताड़-प पर
क जाती थी िजसे सँभालकर रख पाना आसान नह । अतः रख-रखाव के अभाव म ये सािह य न हो गए ह गे।
7.भौितकवाद क या िवशेषता थी?
उ र: भौितकवादी ायः वा तिवक अि त व म िव ास करने वाले थे। वे का पिनक देवी-देवताओ,ं वग-नरक, शरीर से अलग आ मा के
िवचार, जादू टोन , अंधिव ास िवचार, धम और परु ोिहतपंथी के िवरोधी थे। इनके अनुसार िवचार और िव ास, बंधनमु होना चािहए।
अतीत क बेिड़य , बोझ और बंधनमु होकर जीना चािहए।
8.भारतीय इितहास क कई ितिथयाँ अिनि त ह? इनक सही जानकारी के िलए हम िकन-िकन का सहारा लेना पड़ता है?
उ र:भारतीय इितहासकार ने यनू ािनय , चीिनय और अरबवािसय क तरह ितिथयाँ िनि त कर काल म के अनुसार इितहास क रचना
नह थी। इसिलए इितहास को समझने के िलए ितिथय क सम या आती है। इसक िनि तता के िलए इितहास के समकालीन अिभलेख ,
िशलालेख , कलाकृ ितयाँ, इमारत के अवशेष , िस क , सं कृ त सािह य एवं िवदेशी याि य के सफ़रनाम का सहारा लेना पड़ता है।
9. महाभारत अनमोल चीज़ के अित र ान का समृ भडं ार होने के साथ नैितक िश ा का कोष भी है। आशय प कर।
उ र: महाभारत से हम बहमू य चीज़ के अित र नैितक िश ा भी िमलती है, जो िन निलिखत है-
दसू र के साथ वह आचरण मत करो जो तु ह खदु पसंद न हो। धन-दौलत के िलए परे शान होना बेकार है। जनक याण के िवरोध म जो बात
ह उसे करना नह चािहए। असतं ोष गित का ेरक है।
4 यगु का दौर
किठन श दाथ:
पृ सं या 46.
अवसान – समाि , चेतना – िवचारधारा, सरहदी – सीमा, लाट – तंभ, ज ब – हण।
पृ सं या 47.
कारनाम – काय , सावजिनक – सभी के िलए समान प से, िज़ – बताना, यइू -िचय – खाना बदोश लोग, जरथु – पारसी धम,
सश – मज़बूत, गोबी रे िग तान – एिशया का सबसे बड़ा रे िग तान जो चीन और मंगोिलया म फै ला हआ है, तोहफ़े – उपहार,
िविश – िवशेष।
पृ सं या 48.
भारतीयकरण – भारतीय रवाज , परंपराओ ं आिद को वीकार कर लेना, संर क – र ा करने वाले, बलताकतवर, िनिमत – बना हआ।
पृ सं या 49.
रा वादी – रा के िहत को सव प र रखने वाला, सक ं णता – सोच का दायरा अ यतं छोटा रखना, पनु जागरणबार – बार उ सािहत करते
हए बनाए रखने का यास, उ ता – ोधपणू सोच, तेजि वता – ओज, अि तयार करना – अपनाना, समृ – धनी, संप न।
पृ सं या 50.
मेहरबान – कृ पा करने वाला, दमन – कुचलना।
पृ सं या 51.
परो – य प म, राजगीर – भवन िनमाण करने वाले कारीगर, िश पी – िडजाइन एवं िच कारी करने वाले, आ मणकारी – हमला
करने वाले, यौरा – िववरण, लेखा जोखा, ह त ेप – दखलअदं ाजी, ामक – म पैदा करने वाला, अवनित – िगरावट, पराका ा –
उ चतम िबंदु पर।
पृ सं या 52.
उदय – कट होना, यि वाद – यि को अिधक मह व देना, सामदु ाियक – समदु ाय के िनयम के अधीन, आ मसात – हण करना,
सम वय – तालमेल, सतही – ऊपरी।
पृ सं या 53.
िनरंकुश – िजस पर िनयं ण न हो, वैधािनक – काननू ी, उ म – उ पि , पैदाइश, आम – साधारण, सं हएकि त िकया हआ।
पृ सं या 54.
पांडुिलपी – हाथ से िलिखत पु तक, आवेग – ोध, ेयसी – ेिमका, ि यतमा, ती – तेज़।
पृ सं या 55.
िवशु – परू ी तरह से शु , पौरािणक – परु ाण से संबंिधत, ासंिगक – मह व रखने वाला, ास – िगरावट, अिभजात – उ च या अमीर
लोग, सरोकार – संबंध।
पृ सं या 56.
समृ – धनी, संप न, अलंकृत – अलंकार से सजी – धजी, पतन – अवनित, िगरावट, उ कृ – उ चकोिट का, प र कृ त – शु , जननी –
माँ, अिभ यि – तुत करना, साथक – िजसका कुछ अथ या मतलब हो, अित मण – उ लंघन करना, बढ़ाना।
पृ सं या 57.
वृह र – बड़ा फै ला हआ, अतं िवरोध – अ य प से िवरोध, वृ ातं – वणन, िशलालेख – प थर पर िलखे लेख, ता प – ताबे के प
पर िलखा हआ, समृ – संप न, भावानुवाद – भाव का प ीकरण, िविश – िवशेष।
पृ सं या 58. यौरे वार – पणू प से, बंदरगाह – जहाँ सामु ी जहाज़ खड़े िकए जाते ह, िभि – दीवार पर खदु ,े तकरीबन – लगभग,
राजक य – राजकाय से सबं ंिधत, पदिवयाँ – उपािधयाँ।
पृ सं या 59.
मृितकार – याद िकए जाने वाले, मनु – सृि कता, संिहताब – सही मब , वा तुकला – भवन िनमाण कला, उ क ण – प प से
दशाना, न काशी – हाथ से नमनू े, वृ ाकार – बूढ़े प म, देवतु य – ई र के समान मोहक अपनी ओर से आकिषत करने वाली, ठे ठ – शु
प का।
पृ सं या 60.
हेर-फे र – अदल-बदल, फौजदारी – मार पीट संबंधी, सहराना – शंसा करना, िनमाता – बनाने वाला आ मिन वयं को खश ु करने वाली,
तादा य – सबं धं मेल-जोल, पवू ा ह – पहले से बनी धारणा, पाषण ितमा – प थर क मिू त।
पृ सं या 61.
कृ ितवाद – कृ ित का संदु र िच ण, बोिधस व – महा मा बु का एक नाम।
पृ सं या 62.
खंिडत – टूटी हई, भीमाकार – बड़े आकारवाली, सृजन – िनमाण, आ ान – पक ु ारना, ितिबंब – परछाई, शांित – शांितपूण, परे – दरू ,
परम – अ यिधक।
पृ सं या 63.
िनयं ण – काबू, आयात – बाहर से मँगाना, फ़ौलाद – लोहे का एक प।
पृ सं या 64.
भ म – राख, पचं ागं – ऐसी पु तक िजसम महीन और ितिथय का वणन हो, खगोलशा – ाडं का अ ययन, मिं डयाँ – बाज़ार।
पृ सं या 65.
कपाट – दरवाजे, उ लेखनीय – मह वपूण, माण – सबूत।
पृ सं या 66.
यापक – फै ला हआ, िव तृत।
पृ सं या 67.
शािं त – दसू र को सतं ोष दान करने वाला, आ मिव ास – वयं पर िव ास, आ मािभमान – वयं पर गव, दीि – चमक, उमगं – साहस
कुछ करने क इ छा, ास – िगरावट, पतन क ओर, बबर – ू रता, परा मी – वीर, ित ा – इ ज़त, वैयाकरण – याकरण का ाता,
भेषज – खाने वाली औषिध।
पृ सं या 68.
सि य – िनरंतर कायरत।
पृ सं या 69.
उ कष – उभरकर आना, तेजि वता – ान, तंिभत – ठहराव, मदं – धीमी, िवकृ त – िबगड़ा हआ, परा त – हराकर, ितभा – यो यता,
गितरोध – कावट।
पृ सं या 70.
िवघटन – िगरावट क ओर, कायाक प – व प बदलना, अतं तल – अदं र क भावना, व त – समा होते, क रपन – प का,
गैरिमलनसारी – िकसी से न िमलना, रचना मक – कुछ कर िदखाना, अधीन – अिधकार म।
पृ सं या 71.
गटु – दल, बृह र – बड़ा व प, पु तैनी – परु ख के , वृि – इ छा/चाह, वंिचत – ा न कर पाना, प ित – तरीका, अखंडता –
एक पता, संकुिचत – छोटी, ढ़ता – प क , बािधत – बंधी।
पाठ-सारांश
इस पाठ के मा यम से बताया गया है िक मौय सा ा य का अतं हआ और उसक जगह शगंु ने िलया। इनक सा ा य क सीमा काफ़ कम
थी। दि ण भारत म बड़े-बड़े रा य क थापना हई। उ र भारत म काबुल से पंजाब तक यनू ािनय का सा ा य का िव तार हो गया। यनू ानी
आ मणकारी मेनाडं र ने पाटलीपु पर आ मण कर िदया लेिकन उसक वहाँ हार हई। इसके बाद उसने बौ धम अपना िलया। इस तरह
यनू ानी और बौ कला का ज म हआ और भारतीय यनू ानी कला एवं सं कृ ितय का ज म हआ।
4.2 दि ण भारत
दि ण म मौय सा ा य के पतन होने के प ात बड़े रा य हज़ार साल तक फलते-फूलते रहे। दि ण भारत द तकारी और समु ी यापार का
क बना रहा। समु के रा ते यहाँ यापार होता था। यनू ािनय ने यहाँ अपनी बि तयाँ भी बनाई। रोमन िस के भी दि ण भारत म पाए गए।
उ र भारत म िवदेशी आ मण से तंग आकर कई िश पकार एवं द तकार लोग जैसे राजगीर, िश पी और कारीगर दि ण भारत म आकर
बस गए। इसके प रणाम व प दि ण भारत कला मक परंपरा का क बना।
शासन स ा बदलते रहे, राजा आते-जाते रहे, पर यव था न व क तरह कायम रही। इस कार येक त व जो बाहर से आए उसे भारत ने
अपना िलया। भारत को कुछ िदया और उससे बहत कुछ िलया। इस तरह यहाँ समदु ाय और यि दोन क वतं ता सरु ि त रहती थी। यहाँ
आनेवाले हर िवदेशी त व को अपने म समा िलया। िजसने अलग-थलग रहने का यास िकया वह न हो गया और उसने वयं को या भारत
को ही नुकसान पहँचाया।
4.5 भारत का ाचीन रंग-मंच
भारतीय रंगमंच मु य प से िवचार और िवकास म परू ी तरह वतं था। इसक उ पि ऋगवेद क ऋचाओ ं से हई है और इसक जानकारी
भी हम इसी से िमलती है। रंगमंच क कला पर रिचत ‘नाट्यशा ’ क ई. पवू तीसरी शता दी म रचना हई थी। इितहासकार का मत है िक
िनयिमत प से िलखे सं कृ त नाटक ई.प.ू तीसरी शता दी तक िति त हो चक ु े थे। उ ह म से एक नाटककार ‘भास’ था। भास ारा िलखे
तेरह नाटक का सं ह िमला है। सं कृ त नाटक म सबसे ाचीन नाटक अ घोष के ह। उ ह ने ‘बु च रत’ नाम से बु क जीवनी िलखी।
उनक यह रचना भारत, चीन, ित बत म काफ लोकि य हई। सं कृ त सािह य म कािलदास को सबसे बड़ा किव और नाटककार माना जाता
है। वह चं गु िव मािद य के शासन काल के नवर न म से एक थे। ‘मेघदतू ’ उनक लंबी किवता है। उनक रचनाओ ं म जीवन के ित ेम
व ाकृ ितक स दय क गहरी झलक िमलती है। ‘शकंु तला’ किलदास का िस नाटक था िजसका बाद म कई भाषाओ ं म अनुवाद हआ।
शू क का नाटक ‘मृ छकिटकम् यानी िम ी क गाड़ी एक िस रचना है। िवशाखद का नाटक ‘मु ारा स’ था। राजा हष ने तीन नाटक
क रचना क य िक वे भी एक महान नाटककार थे। 19व शता दी म नाट्य शैली का लगभग पतन होने लगा। अब नाटक का थान छोटी-
छोटी रचनाओ ं ने ले िलया। अब नाटक अिभजात वग तक ही सीिमत रहा। इसके अित र सािहि यक रंगमंच के साथ-साथ लोकमंच भी
िवकिसत होता रहा। इसी आधार पर भारतीय परु ाकथाएँ, महाका य क गाथाएँ। अ य छोटे-छोटे नाटक का दशन लोकमच ं पर लगातार
होता रहा।
4.6 सं कृत भाषा क जीवंतता और थािय व
ाचीन काल से ही सं कृ त भाषा अपने आप म अ यतं िवकिसत एवं पणू प से समृ है। यह सभी भारतीय भाषाओ ं का आधार एवं जननी
है। यह भाषा उस याकरण से यु है िजसका िनमाण ढाई हज़ार वष पवू पािणिन ने िकया था। आजतक इसके व प म कोई बदलाव नह
आया है। इस भाषा से कई भाषा क उ पि होती चली गई लेिकन सं कृ ित आज भी अपने वा तिवक व प म यथावत है। इस भाषा का
लगातार िव तार होते चला गया। और अपने मल ू प म आज भी जीिवत है। सर िविलयम ज स के अनसु ार ाचीन होने के साथ अ ु त
बनावट वाली सं कृ त यनू ानी एवं लातीनी के मकु ाबले अिधक उ कृ है। लेिकन ये तीन भाषाएँ िमलती-जुलती ह। उनका मानना है िक इन
भाषाओ ं क उ पि का ोत एक ही है।
4.7 दि ण-पवू एिशया म भारतीय उपिनवेश और सं कृित
उपिनवेश का अथ है-दसू रे देश म अपने देश के यापार व सं कृ ित को बढ़ावा देने के िलए बनाए गए नए क । भारत ने अपने यापार एवं
सं कृ ित का चार- सार अ य देश म भी बाहर जाकर िकया।
इसका माण हम भारतीय ाचीन पु तक, याि य ारा िलखे गए िववरण, चीन से ा ऐितहािसक िववरण, परु ाने िशला-लेख, ता -प
जावा और बाली का समृ सािह य िजनम भारतीय महाका य और परु ाणकथाओ ं का अनुवाद है, यनू ानी और लातीनी ोत क सचू नाएँ व
अगं कोर और बोरोबुदरू मिं दर के ाचीन खडं हर इस बात क पिु करते ह। ाचीन भारत का यापार व सं कृ ित बाहर के देशो म फै ली। इनके
काफ़ उपिनवेश थे।
ईसा क पहली शता दी से लगभग 900 ई. तक उपिनवेशीकरण के चार मख ु क िदखाई पड़ते ह। इन साहिसक अिभयान क सबसे
िविश बात यह थी िक इसका संचालन मु यतः रा य ारा िकया जाता था। इन उपिनवेश का नामकरण ाचीन भारतीय नाम के आधार
पर िकया गया िजसे अब लोग कंबोिडया कहते ह। जो एक-एक िवशेष कार का अ न है िजसके आधार पर जौ का टापू आज ‘जावा’
कहलाता है। इन उपिनवेश के नाम खिनज, धातु िकसी उ ोग या खेती क पैदावार के आधार पर होता था। इससे हमारा यान अपने यापार
क ओर जाता था। इस कार उपिनवेश यापार बढ़ाने के सफल क रहे य िक यापारी वहाँ जाकर अपने यापार को बढ़ावा देते थे।
सं कृ त, यनू ानी और अरबी म ा सािह य से इस बात का पता चलता है िक भारत और सदु रू परू ब के देश म बड़े पैमाने पर समु ी यापार
होता था। ाचीन काल म भारत म जहाज़ उ ोग भी लगातार बढ़ा। हम भारतीय उपिनवेश के साथ-साथ भारतीय बंदरगाह का भी वणन
िमलता है। दि ण भारतीय िस क व अजंता के िभि िच पर भी जहाज़ के िच पाए गए ह।
उपिनवेश म यापा रय के साथ-साथ धम चारक भी पहचं े। यह समय अशोक के शासनकाल क है। बौ धम का बढ़-चढ़कर सार इसी
कारण हआ।
उपिनवेश का मु य- थान एिशया के देश बमा एवं महा ीप देश पर चीन का भाव अिधक तथा टापओ
ु ं और मलय ाय ीप पर भारत क
छाप अिधक िदखाई देती है।
भारतीय उपिनवेश का इितहास ईशा क पहली-दसू री शता दी से ारंभ होकर पं हव शता दी तक यानी तेइह सौ साल का रहा है।
भारतीय कला का भारतीय दशन और धम से बहत गहरा संबंध है। अंगकोर और बोरोबुदरु क इमारत और मंिदर अ ु त कला के अनुसार
तैयार िकए गए ह। जावा के बोरोबुदरु म बु का जीवन कई थान पर साफ़ िदखाई पड़ता है। अगं कोर, ीिवजय, और इनके आस-पास के
थान पर पणू तया भारतीय कला क छाप है। यहाँ के थान पर दीवार पर क गई न काशी म िव ण, राम और कृ ण क कथाएँ अंिकत ह।
कंबोिडया के राजा जयवमन ने अंगकोर को िनखारा था। यह भी िवशु प से भारतीय राजा का नाम था। भारतीय संगीत जो यरू ोपीय संगीत
से िमला है, का तरीका बहत िवकिसत था। मथरु ा के सं हालय म बोिधस व क एक िवशाल शि शाली और भावशाली पाषाण ितमा है।
भारतीय कला अपने शु आत काल म ाकृ ितवाद से भरी है। भारतीय कला पर चीनी भाव िदखाई देता है।
गु काल भारत का वण यगु कहलाता है। इस काल म थाप य कला म काफ़ िव तार हआ। अजतं ा, एलोरा एिलफटा एवं बाग और बादामी
क गुफाएँ इसी काल क ह। अजंता क गुफाओ ं का िनमाण बौ िभ ओ
ु ं ने क थी। इसम संदु र ि याँ, राजकुमा रयाँ, गाियकाएँ, नतिकयाँ
बैठी ह।
भारतीय कला सातव -आठव शता दी म ठोस च ान को काटकर एलोरा क िवशाल गफ ु ाएँ तैयार क गई।ं एिलफटा क गुफाओ ं म नटराज
क मिू त खंिडत के प म है िजसम िशव नृ य मु ा म ह। ि िटश सं हालय म िव का सृजन और नाश करते हए िशव क एक और मिू त है।
रे शमी कपड़ा भी बनता था। कपड़े रंगने क कला म उ लेखनीय गित हई। भारत म रसायन शा का िवकास अ य देश क तुलना म काफ़
अिधक हआ था। भारतीय फौलाद और लोहे क दसू रे देश म बहत क क जाती थी। इसका योग यु के काम जैसे हिथयार आिद बनाने
के िलए िकया जाता था। इसके अित र भारतीय को धातुओ ं क भी काफ़ जानकारी थी। इन धातुओ ं के िम ण से औिषधयाँ तैयार क
जाती थ ।
इसके अलावा शरीर रचना व शरीर िव ान के बारे म भी भारतीय पूणतया प रिचत थे। खगोलशा , जो िव ान म ाचीनतम है,
िव िव ालय के पाठ्य म िनयिमत थे। एक िनि त पंचागं भी तैयार िकया गया था। जो अब भी चिलत है। ाचीन समय से ही जहाज़
बनाने का उ ोग चरम ऊँचाईय पर था। यह देश कई शताि दय तक िवदेशी मंिडय को अपने वश म करके रखा हआ था।
4.11िवकास और ास
ईसवी सन् के पहले हज़ार वष म भारत ने आ मणकारी त व और आंत रक कलह के बावजदू भी सभी िदशाओ ं म अपना सार करते हए
ईरान चीन यनू ानी जगत म य एिशया म शि बढ़ाया। भारतीय उपिनवेश क थापना कर सभी े म िवकास िकया। गु काल भारत का
वणकाल रहा। आने वाले समय म वह कमज़ोर पड़कर ख म हो जाता है। नव शता दी म िमिहर भोज एक संयु रा य कायम करता है।
11व शता दी म एक दसू रा भोज सामने आता है। भीतरी कमज़ोरी ने भारत को जकड़ रखा था। भारत छोटे-छोटे रा य म बँटा हआ था, पर
जीवन यहाँ समृ था।
उ र भारत आ मणका रय से अिधक भािवत रहा य िक सभी आ मणकारी इसी िदशा से आते रहे। दि ण भारत म भी िवदेिशय का
आगमन यापक पैमाने पर होता रहा।
लेिकन इन जाितय का भाव कम रहा। भारत समय के साथ पतन के कारण मशः अपनी ितभा और जीवन शि को खोता जा रहा था।
यह ि या धीमी थी और सिदय तक चलती रही। इितहासकार डॉ. राधाकृ ण के अनुसार भारतीय दशन ने अपनी शि राजनीितक
वतं ता के साथ खो दी। येक स यता के जीवन म पतन और िवनाश के दौर आते रहते ह। लेिकन भारत ने उनसे बचकर नए िसरे से अपना
कायाक प कर िलया। भारत के सामािजक यव था ने भारतीय स यता को मज़बूती दी। चार तरफ पतन हआ। िवचार म, दशन म, राजनीित
म, यु प ित म और बाहरी दिु नया के बारे म ान और सपं क म आए।
भारत क अखंडता के थान पर सामतं वाद और े ीयवाद क भावनाएँ बढ़ने लग । यही समाज आगे चलकर जाित यव था म अ यिधक
िव ास करने लगा। ऊँची जाित के लोग अपने से नीचे जाित के लोग को नीची नज़र से देखा करते थे। नीची जाित के लोग को िश ा तथा
िवकास से विं चत रखा जाता था। इस सामािजक ढाँचे ने एक और अ ु त ढ़ता तो दी परंतु इससे समाज के एक बड़े तबके के लोग समाज क
सीढ़ी म नीचे दज म रहने को िववश हो गए।
इन सब आधार पर हम कह सकते ह िक देश के लोग म, िवचार म, दशन म, राजनीित म तथा यु के तरीके म चार तरफ से पतन हआ।
इन सबके बावजूद भारत म जीवन शि और अ ु त ढ़ता, लचीलापन और वयं को ढालने क मता शेष थी। भारत क जीवन शि और
अ ु त ढ़ता अभी भी जीिवत थी। इसके अलावे भारतीय सं कृ ित का लचीलापन और अपने को ढालने क मता। इससे िवचारधाराओ ं का
लाभ उठा सका और कुछ िदशाओ ं म गित कर सका। यह िवकास अतीत के अवशेष से जकड़ी रही और बािधत होती रही।
3. चं गु ने िकस सा ा य क न व रखी?
(i) गु सा ा य (ii) मौय सा ा य
(iii) कुषाण सा ा य (iv) अ य
उ र: (i) गु सा ा य
4. हषवधन ने अपनी राजधानी कहाँ बनाया?
(i) कनाटक (ii) जयपुर
(iii) इं थ (iv) उ जियनी
उ र: (iv) उ जियनी
लघु उ रीय
1.मौय सा ा य के बाद स ा िकसने सँभाली? इसके बाद भारत को िकन-िकन प रि थितय से गुज़रना पड़ा?
उ र:मौय सा ा य के पतन के बाद शासन स ा शगुं वश ं ने सभं ाली। इनका शासन े काफ़ सीिमत हो गया था। दि ण म बड़े रा य उभर
रहे थे। उ र म काबुल से पंजाब तक यनू ािनय का सा ा य था।
15. चं गु मौय के शासन काल के रिचत नाटक ‘मु ारा स’ क या िवशेषता है?
उ र: नाटक ‘मु ारा स’ उस समय क पणू राजनीितक गितिविधय से अवगत करवाता है।
दीघ उ रीय
8. िकन-िकन आधार से मालमू होता है िक भारत ने दि ण-पवू एिशया तक उपिनवेश कायम िकए?
उ र: भारतीय ाचीन पु तक , अरब याि य क रचना के ारा चीन से ा ऐितहािसक िववरण, परु ाने िशलालेख, ता -प , जावा बाली
का सािह य, भारतीय महाका य व परु ाणकथाओ,ं यनू ानी और लाितनी ोत , एवं अंगकोर और बोरोबुदरु के ाचीन खंडहर से यह
जानकारी िमलती है िक भारत ने िवदेश म अपने उपिनवेश कायम िकए।
10. भारत म गिणत क िविभ न शाखाओ ं का योग कै से होता था? इसम भा कर ि तीय का गिणत के े म क या- या योगदान रहा?
प क िजए।
उ र: भारत म यािमित, अकं गिणत और बीजगिणत का उ व बहत ाचीन काल म हआ था। वैिदक वेिदय पर आकृ ितयाँ बनाने के िलए
यािमतीय बीजगिणत का योग िकया जाता था। अंकगिणत और बीजगिणत म भारत आगे बना रहा। शू यांक और थान मू य वाली
दशमलव िविध को वीकार िकया गया। भा कर ि तीय ने खगोलशा , बीजगिणत और अंकगिणत पर तीन पु तक क रचना क ।
अकं गिणत पर िलखी उनक पु तक लीलावती सरल एवं प शैली म है। यह छोटी उ वाल के िलए बहत उपयोगी है। कुछ सं कृ त
िव ालय म आज भी पठन-पाठन के िलए इनक शैली का योग िकया जाता है।
पाठ-सारांश
इस पाठ के मा यम से भारत म हष क स ा एवं शासन और इ लाम धम का चार भारत म िकस कार हआ का वणन है। भारत म इ लामी
सा ा यवाद का िव तार कै से हआ इसक जानकारी हम िमलती है।
5.1 अरब और मगं ोल
अरब और मंगोल जब हष उ र भारत म शि शाली शासक था उस समय अरब म इ लाम अपना चार एवं सार कर रहा था। उसे उस
समय से भारत आने म 60 वष लग गए। जब उसने राजनीितक िवजय के साथ भारत म वेश िकया तब उसम काफ़ बदलाव आ चक ु ा था।
धीरे -धीरे िसधं बगदाद क क ीय स ा से अलग हो गया और अलग स ा के प म कायम िकया। समय बीतने के साथ अरब और भारत के
संबंध बढ़ते गए। दोन देश के याि य का आना जाना लगा रहा। राजदतू क आपस म अदला बदली होती रही। भारतीय गिणत खगोल
शा क पु तक बगदाद पहँची। अरबी भाषा म इन पु तक का अनुवाद हआ। इसके अलावे कई भारतीय िचिक सक बगदाद गए।
भारत के दि ण के रा य खासकर रा कूट ने भी यापार व सां कृ ितक संबंध बगदाद के साथ बनाए। धीरे -धीरे भारतीय को इ लाम धम
क जानकारी होती गई। इ लाम धम के चारक का वागत हआ। मि जद का िनमाण का दौर शु हआ। अतः यह िन कष के प म हम
कह सकते ह िक भारत आने से पहले इ लाम ने धम के प म िव िकया।
िद ली को जीतने के बाद भी दि ण भारत शि शाली बना रहा। 14व सदी के अंत म तुक-मंगोल तैमरू ने उ र भारत क ओर से आकर
िद ली क स तनत को व त कर िदया। दभु ा यवश वह बहत आगे नह बढ़ सका। 14व शता दी क शु आत म दो बड़े रा य कायम हए-
गलु बग, जो बहमनी रा य के नाम से िस है और िवजयनगर का िहदं ू रा य।
मिु लम शासन काल म भारत का चहँमख ु ी िवकास हआ। सैिनक सरु ा, उ म रखने के िलए यातायात साधन म सधु ार िकया। शेरशाह सरू ी
ने उ म मालगुजारी यव था क , िजसका अकबर ने िवकास िकया। इस काल म यापार उ ोग भी गित पर रहा। अकबर के लोकि य
राज व मं ी टोडरमल क िनयिु शेरशाह ने क थी। वा तुकला क नई शैिलय का िवकास हआ। खाना-पहनना बदल गया। गीत-संगीत म
भी सम वय िदखाई पड़ने लगा फारसी भाषा राजदरबार क भाषा बन गई। जब तैमरू के हमले से िद ली क सलतनत कमज़ोर हो गई तो
जौनपरु म एक छोटी सी मिु लम रयासत खड़ी हई। 15व शता दी के दौरान यह रयासत कला सं कृ ित और धािमक सिह णतु ा का क रही।
यहाँ आम भाषा िहदं ी को ो सािहत िकया गया तथा िहदं ू और मसु लमान के बीच सम वय का यास िकया गया। इसी समय ऐसे काम के
िलए एक क मीरी शासक जैनल ु आबदीन को बहत यश िमला।
अमीर खसु रो तुक थे। वे फारसी के महान किव थे और उ ह सं कृ त का भी ान था। कहा जाता है िक िसतार का आिव कार उ ह ने ही िकया
था। अमीर खसु रो ने अनिगनत पहेिलयाँ िलखी। अपने जीवन काल म ही खसु रो अपने गीत और पहेिलय के िलए िस थे। उनक
लोकि यता आज भी कायम है। पं हव सदी म दि ण म रामानंद और उनसे भी अिधक ि य कबीर हए। कबीर क सािखयाँ और पद आज
भी िस ह। उ र म गु नानक हए; जो िसख धम के सं थापक माने जाते ह। पूरे िहदं ू धम सधु ारक के िवचारक का भाव पड़ा।
इसी समय कुछ समाज सधु ारक का उदय हआ िज ह ने इस सम वय का समथन तथा वण- यव था क उपे ा क । पं हव शता दी म
रामानंद और उनके िश य कबीर ऐसे ही समाज सधु ारक थे। कबीर क सािखयाँ और पद आज भी जनमानस म लोकि य ह। उ र भारत म गु
नानक देव ने िसख धम क थापना क । िहदं ू धम इन सधु ारक के िवचार से भािवत हआ।
अमीर खसु रो भी फारसी लेखक म काफ िस थे। वे फारसी लेखक के साथ-साथ फ़ारसी किव भी थे। भारतीय वा यं िसतार उनके ारा
ही आिव कृ त है। उ ह ने धम, दशन, तकशा आिद िवषय पर िलखा। उनके िलखे लोकगीत और अनिगनत पहेिलयाँ आज भी काफ़
लोकि य ह।
अकबर भारत म मगु ल सा ा य का तीसरा शासक था। वह बाबर का पोता था। वह आकषक, गुणवान, साहसी, बहादरु और यो य शासक
एवं सेनानायक था। वह िवन और दयालु होने के साथ-साथ लोग का िदल जीतना चाहता था। 1556 ई. से आरंभ होने वाले अपने लंबे
शासन काल 50 वष तक रहा। उसने एक राजपूत राजकुमारी से शादी क । उसका पु जहाँगीर आधा मगु ल और आधा िहदं ू राजपतू था।
जहाँगीर का बेटा भी राजपतू , माँ का बेटा था। राजपतू घरान से संबंध बनाने म सा ा य बहत मज़बूत हआ। राणा ताप ने मगु ल से ट कर
ली। इसके बाद अकबर को मेवाड़ के राणा ताप को अधीन बनाने म सफलता नह िमली। अकबर क अधीनता वीकार करने के बजाए वे
जगं ल म िफरते रहे।
अकबर ने ितभाशाली लोग का समदु ाय एकि त िकया। इनम फै जी, अबुल फजल, बीरबल, राजा मानिसंह, अ दल
ु रहीम खानखाना मख
ु
थे। उसने दीन-ए-एलाही नामक नए धम क थापना कर मगु ल वंश को भारत के वंश जैसा ही बना िदया।
इसक िति या म पणू जागरण िवचार पनपने लगे। मगु ल सा ा य क आिथक ि थित दयनीय हो गई। जो पतन का एक मख ु कारण बना।
इसी समय 1627 ई. म िशवाजी के प म िहदं ओ
ु ं का एक नेता उभरा। उनके छापामार द त ने मगु ल क नाक म दम कर िदया। उ ह ने
अं ेज क कोिठय को लटू ा और मगु ल सा ा य के े पर चौथ कर लगाया। मराठा परू ी शि पा गए। 1680 म िशवाजी क मृ यु हो गई।
लेिकन मराठा शि का िव तार होते चला गया। वह भारत पर अपना एकािधकार करना चाहती थी।
18व शता दी म भारत पर अपना आिधप य करने के िलए मख ु चार दावेदार थे-
(i) मराठे , (ii) हैदर अली और उसका बेटा टीपू सु तान (iii) ांसीसी (iv) अं ेज़। ांसीसी और अं ेज़ िवदेशी दावेदार थे। इसी बीच
1739 म ईरान का बादशाह नािदरशाह िद ली पर आ मण कर िदया। उसने काफ़ खनू खराबा िकया और लटू पाट मचाई। बेशमु ार दौलत
लटू ी। वह त ते ताऊस भी ले गया। बँगाल म जालसाजी और बगावत को बढ़ावा देकर लाइव ने 1757 म लासी का यु जीत िलया।
1770 म बंगाल तथा िबहार म अकाल पड़ा, िजसम एक ितहाई जनसं या क मौत हो गई। दि ण म अं ेज और ांसीिसय के बीच यु म
ांसीिसय का अंत हो गया। भारत पर अपना सा ा य थािपत करने के िलए मराठे , अं ेज़ और हैदर अली रह गए थे। इससे भारत पर
िवशेष भाव नह पड़ा। 1799 म अं ेज ने टीपू सु तान को हरा िदया। इसके बाद अं ेज़ काफ़ शि शाली हो गए और उनक राह और
आसान हो गई।
मराठे सरदार म आपसी रंिजश थी। 1804 म अं ेज ने उ ह अलग-अलग यु म हरा िदया। अं ेज ने भारत को अ यव था और
अराजकता से बचाया। 1818 तक के अंत तक उ ह ने मराठ को हराकर भारत पर क जा कर िलया। अब अं ेज़ भारत म सु यवि थत ढंग से
शासन करने लगे। अब आतंक यगु क समाि हो गई यानी मारकाट बंद हो गया लेिकन यह कहा जा सकता है िक आपस म भेदभाव,
आपसी रंिजश भुलाकर काम करते तो अं ेज क सहायता के िबना भी भारत म शांित और यवि थत शासन क थापना क जा सकती थी।
5.8 रणजीत िसहं और जयिसंह
आतंक के उस दौर म दो मख ु भारतीय िसतारे उभरे , उनके नाम थे – रणजीत िसंह और जयिसंह।
महाराजा रणजीत िसंह एक जाट िसख थे। पंजाब म उ ह ने अपना शासन कायम िकया। राजपतू ाने म जयपरु का सवाई जयिसंह था। जयिसंह ने
जयपुर, िद ली, उ जैन, बनारस और मथरु ा म बड़ी-बड़ी बेधशालाएँ बनवाई।ं जयपरु क नगर योजना उ ह क देन है। उ ह ने मानवीय
िवचार को आधार बनाया तथा खनू -खराबे को नापसदं िकया। यु के िसवा उ ह ने िकसी क जान नह ली। वह बहादरु यो ा, कुशल
राजनियक होने के साथ गिणत, खगोल िव ानी, नगर िनमाण करने वाले तथा इितहास म िच रखने वाले थे।
उस समय अमे रका इं लड के चंगल ु से वतं हआ था। अमे रका म नई शु आत के िलए भी रा ते साफ़ थे। जबिक भारतीय ाचीन
परंपराओ ं म जकड़े हए थे। इसके बावजूद यह स य है िक यिद ि टेन मगु ल के शि खोने पर भारत का बोझ न उठाता तो भी भारत देश
अिधक शि शाली और समृ होता।
लघु उ रीय
1.भारत म कौन-कौन सी िवदेशी जाितय का आगमन हआ?
उ र:हषवधन के शासन म अरबी, तुक व अफगानी जाितय ने भारत म आगमन िकया।
10. औरंगजेब कौन था? उसक नीितयाँ रा वाद के िवकास म िकस कार सहायक िस हई?ं
उ र: औरंगजेब मगु लवंश का शासक था और वह अकबर का पौ था। उसक नीितय के कारण देश के दरू -दरू ांत म आतंक फै ल गया।
उसक िहदं ू िवरोधी नीितय के कारण िसख और मराठे उसके िव हो गए। इससे लोग म असतं ोष क भावना का ादभु ाव हआ और
पनु जागरणवादी िवचार का उदय हआ िजसके प रणाम व प धमवाद और रा वाद का उ थान हआ।
11. जयिसंह ने िकस रा य का िनमाण करवाया? उस नगर योजना को आदश य समझा जाता था?
उ र: जयिसहं ने जयपरु रा य का िनमाण करवाया इस नगर क िवशेषता थी िक इसका िनमाण िवदेशी न श के आधार पर िकया गया था।
न शे के आधार पर सु यवि थत ढंग से बसाने के कारण नगर योजना को आदश समझा जाता है।
दीघ उ रीय
1. भारत और अरब के बीच सबं ंध िकस कार मज़बूत हए?
उ र: भारत और अरब के बीच एक दसू रे के यहाँ आने जाने का काय म चलता रहा। राजदतू के आवास क अदला-बदली हई। भारत से
गिणत और खगोलशा क पु तक बगदाद पहँची। इन पु तक का अनवु ाद अरबी भाषा म िकया गया। कई भारतीय िचिक सक बगदाद गए।
यह सबं ंध उ र भारत एवं दि ण भारत के साथ भी रहा। यापार क शु आत भी आपस म हई।
2. महमूद गज़नवी कौन था? उसके आ मण से िहदं ओ ु ं के मन पर या भाव पड़ा?
उ र: महमूद गज़नवी अफ़गािन तान का तुक आ मणकारी था। उसने भारत के उ री भारत पर ू रता के साथ आ मण िकया। उसने भारत
से बहत बड़ा खजाना लटू ा और उसे ले गया। महमदू ने पंजाब और िसधं को अपने रा य म िमला िलया। उसने भारत म खनू खराबा का
तांडव मचाया। िहदं ू उसके इस हरकत से काफ़ इधर-उधर िबखर गए। बचे हए िहदं ओ
ु ं के मन म मसु लमान के ित गहरी नफ़रत पैदा हो गई।
6 अंितम दौर-एक
किठन श दाथ:
पृ सं या 92.
गलु ाम – दास, सचं ालन – चलाना, िवघटन – खेम म बँट जाना, पछु ला – पीछे रह जाना, अनुसरण – िकसी अ य के कहने पर काम करना,
अिभ न – एक समान ।
पृ सं या 93.
सु ढ़ – प का, महकम – िवभाग , पटवारी – ज़मीन क पैदाइश करने वाले, िश ण – ेिनगं , कै िपटेशन चाज – सेना के िश ण के िलए
िकया जाने वाला खच, मायसू ी – उदासी, ोध – गु सा, िश ािवद – िश ा का ाता, ा य – िव ा, िवशारद् – एक कार क शै िणक
उपािध, िचंतन – िवचार, लक – द तर म काम करनेवाला साधारण कमचारी, चेतना – बुि ।
पृ सं या 94.
आघात – चोट, कारगर – भावी, वयैि क – िनजी, आघात – चोट, कारगर – भावी, ढ़ता – मज़बूती, मु – आज़ाद।
पृ सं या 95.
वतक – सं थापक, वािम व – अिधकार, सम वयवादी – िवचार का आदान- दान, िव जनीय – िव म िस , क र – प का,
पनु जागरण – नई चेतना जा त करना, वृि – इ छा, असंतोष – संतु न होना।
पृ सं या 96.
बगावत – िव ोह, िनयत – िनि त, जनांदोलन – जनता का आंदोलन, अनुयायी – मानने वाला, अवशेष – बचे हए, सावजिनक – समान
प से, सारी जनता का, मरण – याद।
पृ सं या 97.
सव म – सबसे बिढ़या, त काल – उसी समय, ज त – क जे म करना, झकझोर – िहला देना, पनु गठन – िफर से सगं िठत होना, िख न –
दखु ी, आ था – िव ास।
पृ सं या 98.
िनषेध – मनाही, दिलत – िन न, धम ाण – धम को मानने वाला, आ म सा ा कार – वयं को परखना, त व ािनय – िवचारक , बहरंगी
साँचे – िविभ न प, सां दाियकता – धम के नाम पर होने वाले दंगे।
पृ सं या 99.
सेतु – पल ु जोड़ने वाला, व ा – बोलने वाला, सजं ीवनी – ाणदायी औषिध, जीवतं ता – जीने क चाहत, समभाव – एक समान ि से
देखना, बलवती – मज़बूत, िनरथक – बेमतलब, अभय – िबना डर के , दबु लता – कमज़ोरी, आ याि मक – ई रीय।
पृ सं या 100.
नाि तक – ई र को न मानने वाला, ीण – कमज़ोर, बदा त – सहन, िखताब – उपािध, ओत- ोत – लवरे ज, भराहआ।
पृ सं या 101.
संक ण – संकुिचत, िमज़ाज – वभाव, सवहारा – जो सब कुछ हार चक ु ा हो, अनवरत – लगातार, कमठता – काम क लगन, उदीयमान –
उभरता हआ, नैरा य – िनराशा।
पृ सं या 102. बोध – ान, साझी – िमली-जुली, वंिचत – ा न होना, सां वना – धैय बाँधना, मनीषी – ानी, मनु ािसब – उिचत।
पृ सं या 103. उ े य – ल य, अलगाववादी – अलग रहने को ाथिमकता देनेवाला।
पृ सं या 104.
परंपरागत – रीित- रवाज के अनुसार, ितभाशाली – िवशेष यो यता वाला, उ ेजना – उ ता, तेजि वता – ओजपूण, गंजु ाइश – संभावना।
पृ सं या 105. परु ानपंथी – परु ानी िवचारधाराएँ रखने वाला, भौह चढ़ाना – नाराज़ होना।
पृ सं या 106.
ौढ़ – अधेड़ उ का, आ ामक – उस िवचारधारा वाला, अव ाकारी – सरकारी नीितय का उ लंघन करने वाला, सजक – जाग क,
बहसं यक – अिधक सं या म।
6.1 भारत राजनीितक और आिथक ि से पहली बार एक अ य देश का पुछ ला बनता है-
अं ेजी सा ा य क थापना के बाद भारत के िलए एकदम से नई घटना थी। नया पँजू ीवाद सारे िव म जो बाज़ार तैयार कर रहा था उससे हर
हालत म भारत के आिथक ढाँचे पर भाव पड़ा। भारत अब अं ेज़ी आिथक ढाँचे का गुलाम बन गया और िकसान भी उनके गुलाम बनकर
रह गए। अं ेज के आने से बड़े ज़मीनदार पैदा हए। उनका मु य उ े य लगान अिधक से अिधक मा ा म वसल ू करना था।
इस तरह अं ेज ने ऐसे वग को ज म िदया िजनके वाथ अं ेज से िमलते-जुलते थे। यह वग ये राजा, जमीनदार सरकार के िविभ न िवभाग
के पटवारी, गाँव के धान व उ च अिधकारी थे। ये वग भी आम जनता का अं ेज़ क तरह खून चसू ने वाले थे। अं ेज़ ने येक िजले म
कले टर क भी िनयिु िकए, ये वग आम जनता से मँहु -माँगी टै स वसल
ू कर अं ेज़ का खजाना भरते थे।
इस कार भारत क आम जनता को ि टेन के अनेक खच उठाने पड़ते थे। उनम सेना पर िकए खच िजसे ‘कै िपटेशन चाज’ कहा जाता था,
देना पड़ता था। इसके अित र अ य खच का बोझ भी भारत के कंध पर था।
6 .2 भारत म ि िटश शासन के अंतिवरोध राममोहन राय – बगं ाल म अं ेज़ी िश ा और समाचार प
बंगाल म अं ेज़ी िश ा के कई समाज सधु ारक प थे। इसके अलावे िश ािवद् अं ेज़ ा य िव ा िवशारद प कार िमशनरी और कुछ अ य
लोग ने पा ा य सं कृ ित को भारत म लाने के िलए काफ़ यास िकया। य िप अं ेज़ भारत म िश ा का चार- सार नापसंद करते थे
य िक वे चाहते थे िक िश ण- िश ण के मा यम से लक तैयार िकया जाए तािक कम वेतन पर उनसे काम कराया जा सके । िश ा के
मा यम से िशि त लोग म नई चेतना जाग उठी। वे गुलामी से मु होने के िलए तड़पने लगे लेिकन नई तकनीक , रे लगाड़ी, छापाखाना,
दसू री मशीन ये सब ऐसी बात थ िजसक उपे ा नह क जा सकती थी। ऐसे ही व म 18 व शता दी म एक सामािजक सधु ारक एवं
अ यंत शि शाली यि व का उदय हआ। इसका नाम था-राजा राम मोहन राय। वह एक नई सोच का यि था। भारतीय िवचारधारा और
दशन क उ ह काफ़ ान था। उ ह अनेक भाषाओ ं का भी ान था। उ ह ने अं ेजी सरकार के गवनर जनरल को गिणत, भौितक , िव ान,
रसायन, शा , जीव-िव ान और अ य उपयोगी िव ान क िश ा क आव यकता पर जोर िदया और अं ेज़ी को लागू करने के िलए भी
िलखा।
राजा राम मोहन राय ईसाई व मिु लम दोन धम के संपक म रहे और इससे वे भािवत भी रहे। वे भारतीय धािमक कुरीितय व कु थाओ ं से
भारत को मु करवाना चाहते थे। इसके फल व प अं ेजी सरकार ने सती था पर रोक लगा दी।
वे भारतीय प का रता के वतक भी थे। उनका कहना था िक समाचार प एवं पि काएँ मनु य के िवचार को जाग क करने का मा यम ह।
अतः उनके नेतृ व म 1818 म पहली बार एक अं ेज़ी का समाचार प िनकला िजसका संपादन भारतीय ने िकया था। इसके अित र
बगं ाली म एक सा ािहक व एक मािसक समाचार प कािशत हआ। धीरे -धीरे देश म, कलक ा, म ास और मबंु ई म तेजी से और भी
समाचार प िनकलने लगे।
उनक सोच थी िक भारत म पणू जागरण के िबना प रवतन लाना असभं व है। बहत से लोग ने उनका समथन िकया िजनम रव नाथ का
प रवार उनका समथक था। वे िद ली स ाट क ओर से इं लड गए। दभु ा य से उ नीसव शता दी क शु आती वष म ि टल म उनक मृ यु
हो गई।
1893 ई. म िशकागो म अंतरा ीय धम स मेलन म भाग िलया। िववेकानंद ने भारत के दि णी छोर म क याकुमारी से िहमालय तक अपने
िस ांत को फै लाया। 1902 ई. म 39 वष क आयु म उनक मृ यु हो गई। िववेकानंद के समकालीन रव नाथ ठाकुर थे। टैगोर प रवार ने
बंगाल के सधु ारवादी आंदोलन म बढ़-चढ़कर भाग िलया। उ ह ने जिलयाँवाला कांड के िवरोध म अपनी ‘सर’ क उपािध लौटा दी। िश ा
के े म ‘शांित िनके तन’ उनक मख ु देन थी। वे सी ांित के शंसक थे िवशेष उसम िश ा के सार, सं कृ ित, वा य और समानता
क चेतना के । उनका मानना था िक यही त व यि के उसके उददे य क पिू त म सहायक होता है। टैगोर और गांधी दोन मानवतावादी थे।
इ ह ने लोग को संक ण िवचारधाराओ ं से बाहर िनकालना चाहा। गांधी जी िवशेष प से आम जनता के आदमी थे, जो भारतीय िकसान के
प म थे। टैगोर मल
ू तः िवचारक थे और गांधी अनवरत कमठता के तीक थे। उस समय ऐनी बेसट का भी बहत भाव पड़ा। बहत-सी बात
मसु लमान जनता म भी समान प से चिलत थ । इन दोन ने अपनेअपने तरीके से जनता म नई िवचारधारा का सचं ार करना चाहा।
ीमती एनी बेसट आयरलड क रहने वाली मिहला थी। उ ह ने भारत म होम ल चलाया िजसका उ े य अं ेज से भारतीय को आंत रक
वतं ता िदलाया था। 1857 के िव ोह के बाद भारतीय मसु लमान यह तय नह कर पा रहे थे िक घर जाएँ। अं ेज ने उनके साथ अ यिधक
दमनपणू रवैया अपनाया था। सन् 1870 के बाद सतं ुलन बनाने के िलए अं ेजी सरकार अनुकूल हो गई। इसम सर सैयद अहमद म मह वपूण
भिू मका िनभाई थी। उ ह यह िव ास था िक ि िटश स ा के सहयोग से मसु लमान क ि थित बेहतर हो सकती है। उ ह ने मसु लमान म
ि िटश िवरोधी भावना कम करने क कोिशश क । सर सैयद अहमद खा का भाव मसु लमान म उ च वग के कुछ लोग तक ही सीिमत था।
1912 म मसु लमान के दो नए सा ािहक िनकले-उदू म ‘अल िहलाल’ और अं ेज़ी म ‘कामरे ड।’ अबुल कलाम आजाद का अलीगढ़
कॉलेज म सर सैयद खाँ से संबंध था। अबुल कलाम आजाद ने पुरातन पंथी और रा िवरोधी भावना के गढ़ पर हमला िकया िजससे बुजुग
नाराज हए पर यवु ा पीढ़ी म उ ेजना भर चक
ु थी।
ए. ओ. हयमू ने 1885 म रा ीय कां ेस क थापना क थी। जब 1885 म िनिमत नेशनल कां ेस अपनी ौढ़ाव था म आई तो इसके नेतृ व
का ढंग बदल गया। जब इसके संर क बने थे वे अ यिधक आ मणकारी व अव ाकारी थे और िन न वग छा व यवु ा लोग के ितिनिध
थे। उसम कई तरह के यो य ओज वी नेता उभरकर आए। इसके स चे ितिनिध थे- महारा के बालगगं ाधर ितलक और गोखले मख ु थे।
संघष का परू ा माहौल तैयार हो गया था िजसे बचाने के िलए दादा भाई नोरोजी लाए गए। 1907 ई. म हए संघष म उदार दल क जीत हई
लेिकन बहसं यक समाज के लोग ितलक के प म थे। इस समय बंगाल म िहसं क घटनाएं हो रही थ ।
6. थम वतं ता सं ाम क शु आत कब हई थी?
(i) 1805 ई. म (ii) 1826 ई. म
(iii) 1850 ई. म (iv) 1857 ई. म
उ र: (iv) 1857 ई. म
लघु उ रीय
1. अं ेज़ी रा य क थापना के बाद भारत म कै सी यव था से बँध गया?
उ र: अं ेज़ी रा य क थापना के बाद भारत एक ऐसी राजनीितक और आिथक यव था के साथ जड़ु गया िजसका संचालन भारत देश
बाहर इं लड से होने लगा।
2. अं ेज़ का ल य या था?
उ र: अं ेज का ल य था – लगान के प म भारतीय से अिधक मा ा म टै स वसल
ू ना और मनु ाफ़ा कमाना।
7 अंितम दौर-दो
किठन श दाथ:
पृ सं या 106.
िवभाजन – बँटवारा, गरमदल – गरम िवचार वाला, नरमदल – नरम िवचार वाला, ितबंध – रोक, दमनदारी – न करने वाला,
आवेश – उ ेजना, िनमम – िनदय, द बू, डरने वाला।
पृ सं या 107.
सव ामी – सबको िनगल लेने वाला, आकाश ीप – आकाश म चमक िबखेरने वाले, सोचनीय – खराब, िचंताजनक, दगु ित – बुरी ि थित,
बल – मज़बूत, खिु फया – जासूस, का रंदा – जम दार के िलए काम करने वाला, लाबादा – ढीलाढाला ऊपरी पोशाक आंिशक अधूरा।
पृ सं या 108.
लोकतांि क – लोग के भु व वाला, हैिसयत – औकात, सि यता – ि याशील होना, िवक प – तरीके , ऊजा – शि , िश – स य,
आ ान – े रत करना।
पृ सं या 109.
बुिनयादी – नीव /आधार, िखताब – पदवी, उपहासा पद – मज़ाक उड़ाने यो य, अभ – अिश , वेशभषू ा – पहनावा, िनि य – काय न
करना, िनवृि माग – मिु के माग को अपनाने वाले, पैठाने – थान देने।
पृ सं या 110.
मतभेद – िवचार एक न होना, धम ाण – धािमक, अंतरतनम – मन क गहराइय से, अवधारणा – िवचार, ढ़ – प का, अिहसं ा – िबना
िहसं ा के अनु प, मिदरा – शराब, एक नशीला पेय।
पृ सं या 111.
लगन – गहरी िच, गौण – तु छ, कम मह वपूण, अलंकार – सजावट का सामान, आकां ा – इ छा, स मोिहत – अपनी ओर आकिषत
कर लेना, तट थ – िकसी िवशेष प का साथ न देनेवाला, भु व – भाव।
पृ सं या 112.
सां दाियक सम या – धम के आधार पर बनाई हई सम या, संर ण – सहारा, बढ़ावा, भािषक – भाषा सबं ंधी।
पृ सं या 113.
वाधीनता – वतं रहने क भावना, एक – एकता, बिनयादी – आधारभतू , अिडग – ढता से अपने मत पर ि थर रहना, भड़काना – उ ता
को बढ़ावा देना, ख लम खु ला – खले प म, सामंती – जम दारी, िवभाजन – बँटवारा, अ वीकार – अमा य, खु लमखु ला – प प
से सबके सामने, एकता क बिल – एकता को तोड़ना।
पृ सं या 114.
ो सािहत – उ सािहत, अतीत – बीता हआ, बहरा ीय – बहत से रा ।
पाठ-सारांश
इस पाठ के मा यम से भारतीय वतं ता सं ाम म भारतीय रा ीय कां ेस के अंितम दो दौर का वणन िकया गया है।
ऐसे म भारत क बिल देना और लोकतं का याग करना देश के िलए अिहतकर था। अं ेज़ क नीित िहदं ू और मिु लम एकता को कमज़ोर
करना रहा। वे फूट डालो रा य करो क नीित को अपनाते थे। ऐसे म कां ेस ऐसा कोई हल न ढूँढ़ सक िजससे सां दाियक सम या को
सल
ु झाया जा सके ।
अब हर हाल म िहदं ू और मसु लमान म दीवार खड़ी करना चाहता थे। वे िहदं -ू मिु लम के मत-भेद को सां दाियक रंग देने का यास करने
लगा।
मिु लम लीग के नेता िज ना क माँग का आधार एक नया िस ांत था- भारत म दो रा ह- िहदं ू और मसु लमान। अब मिु लम लीग के
अगुवा िज ना ने िहदं ू और मसु लमान के िलए दो अलग रा क घोषणा क । इससे देश म भारत और पािक तान के प म िवभाजन क
अवधारणा िवकिसत हई। इससे दो रा क सम या का हल न हो सका य िक िहदं ू व मसु लमान परू े रा म ही थे।
1. भारत म आज़ादी के िलए िकन दो गुट ने ज म िलया?
(i) उ और नरम (ii) नरम दल और गरम दल
(iii) ती और भेद (iv) मु य और गौण
उ र: (ii) नरम दल और गरम दल
लघु उ रीय
1. थम िव यु के समय राजनीितक ि थित या थी?
उ र: थम िव यु के समय राजनीितक ि थित उतार पर थी।
4. माशल लॉ या था?
उ र: ‘माशल लॉ’ अं ेज़ी सरकार ारा बनाया गया एक ऐसा कानून था िजसम िकसी भी यि को िकसी भी समय पिु लस व यायालय क
आदेश के बगैर गोली का िनशाना बनाया जा सकता था।
दीघ उ रीय
8 तनाव
किठन श दाथ:
पृ सं या 116.
िवशद – बड़ा िव तृत, ितिनिध व – नेतृ व अगवु ाई, अपील – माँग, ाथना, अप रहाय – अित आव यक, िजसे रोका न जा सके ,
समापन – समाि , अंततः – आिखरकार अिहसं क िबना िकसी मारकाट के , समापन – समाि ।
पाठ-सारांश
8.1 भारत म तनाव का बढ़ना
इस पाठ के मा यम से बताया गया है िक िकस कार 1942 ई. म अिखल भारतीय कां ेस के ताव ‘अं ेज भारत छोड़ो’ से तनाव का
वातावरण फै ला।
कां ेस कमेटी ने संसार क आज़ादी के िलए संयु रा से अपील क । अपने भाषण म अ य मौलाना अबुल कलाम आजाद और गांधी
जी ने प कर िदया िक ि िटश सरकार के ितिनिध वायसराय से मलु ाकात कर संयु रा के मु य अिधका रय से एक स मानपणू
समझौते के िलए अपील करगे।
कमेटी के कड़े यास व अपील के बाद 8 अग त सन् 1942 को यह ताव पास हो गया। जन आंदोलन के शु आत होते ही अग त क
सबु ह-सबु ह िगर ता रयाँ ारंभ हो गई।ं इसी िगर तारी म जवाहर लाल नेह व अ य नेता अहमदनगर के िकले म बंदी बनाए गए।
लघु उ रीय
भारत क इस ददु शा को देखकर िव ान भारत के भिव य को लेकर सोचते थे िक अं ेज के जाने के बाद भारत का व प कै सा होगा य िक
भारत क दगु ित का कोई अतं उ ह िदखाई नह दे रहा था।
9.4 भारत क सजीव साम य
अकाल और यु के बाद कृ ित अपना कायाक प करती है। इस संबंध म नेह जी का कहना है िक अकाल और यु के बाद कृ ित अपना
कायाक प कर लेती है। यानी उनम प रवतन आता है। उदाहरण के तौर पर िजस बंजर यु भिू म म कल लड़ाई हई थी आज उसम फल और
हरे -भरे घास िदखाई पड़ते ह। मनु य के पास मृित का िवल ण गुण होता है। वह कहािनय और याद के सहारे अतीत म िवचरण करता है।
इसी गुण के आधार पर वह अपना भीषणतम समय भल ू कर आगे बढ़ता जाता है। आज, जो बीते हए कल क संतान है, खदु अपनी जगह
संतान, आने वाली कल को दे जाता है। कमज़ोर आ मा वाले समपण कर देते ह और वे हटा िदए जाते ह। बाक बचे बहादरु लोग देश का
नेतृ व करते ह। आने वाले िह मत के साथ जीवन पथ पर आगे क ओर बढ़ते ह।
लघु उ रीय
1.1942 म नेताओ ं क िगर तारी का जनता पर या भाव पड़ा?
उ र: 1942 म रा वादी नेताओ ं क िगर तारी और गोलीबारी से देश क जनता त होकर भड़क गई। तब उ ह ने ि िटश सरकार के
िखलाफ िहसं क और शांितपणू आंदोलन िकया। उ ह ने तोड़-फोड़ करना भी शु िकया।
उपसंहार
किठन श दाथ:
पृ सं या 121.
क पना – सोचना, चे ा कोिशश, पंजु – गु छा, अ य – जो िदखाई दे, अपराजेय – िजसे जीता न जा सके , अनु प – अनुसार, सराबोर –
भरा हआ, जाग क – सचेत।
पृ सं या 122.
स मोहन – आकिषत करना, य – हािन, बुिनयाद – न व, बंदरगाह – जहाँ समु ी जहाज़ खड़े ह , कंु िठत – कम, गित – उ नित,
आ मसात – अपनाना, सामिू हक – िमलकर।
पाठ-सारांश
इस पाठ के मा यम से लेखक ने भारत क खोज का िन कष बताया है।
भारत क खोज के बारे म लेखक का कहना है िक- भारत के पद को उठाकर उसने झाँकने का यास िकया था। यह क पना करना िक भारत
वतमान प म या है और उसका इितहास या रहा होगा, यह मेरी अिधकार से बाहर क चे ा है। इसक िविभ नता म सां कृ ितक एकता है।
यह िव का एक ऐसा पजुं है जो मज़बतू और अ य सू से बँधा है। बार-बार आ मण के बावजदू उसक आ मा कभी जीती नह जा
सकती। यह आज भी अपरािजत है।
ऐसा तीत हो रहा है िक भारत का परु ाना जादू अब समा हो रहा है। वह वतमान के ित जाग क हो रहा है। समयानसु ार यह प रवतन
ज़ री भी था, इसके बाद भी उसम जनता को वश म करने का तरक ब मालमू रहेगा। हम अतीत और सदु रू क खोज म देश के बाहर नह
जाना है। हमारे पास भारत के अतीत बहतायत ह। हम अपने सं कृ ित और परंपराओ ं पर गव है। हम कमजो रय और असफलताओ ं को कभी
नह भलू ना चािहए। हमारे पास समय कम है और दिु नया तेज़ गित से बढ़ती जा रही है। अतीत म भारत दसू री सं कृ ितय का वागत कर उ ह
अपने म समा लेता था। आज इस बात क और भी अिधक ज़ रत है।
हम िकसी मामलू ी देश के नाग रक नह ह। हम अपने रा पर, अपने देशवािसय पर, अपनी सं कृ ित और परंपराओ ं पर गव है। यह गव ऐसे
रोमांचक अतीत के िलए नह होना चािहए। हम अभी बहत लंबा रा ता तय करना है। हम आ मिनभर होकर दसू र का सहयोग करगे तभी हम
स चे भारतीय, अ छे अंतरा ीयतावादी तथा िव नाग रक ह गे।
2.भारत क या िवशेषताएँ ह?
उ र: भारत क िवशेषताएँ ह- िविभ नता म एकता। बार-बार के आ मण के बावजदू इसक आ मा को नह जीता जा सका। यह अपराजेय
है। बदलते समय के साथ यह ढल जाता है।
दीघ उ रीय
1.हम कै सी दिु नया क ओर बढ़ रहे ह ?
उ र:हम एक ऐसी दिु नया क ओर बढ़ रहे ह। जहाँ रा ीय सं कृ ितयाँ मानव जाित क अंतरा ीय सं कृ ित घल
ु िमल जाएगी। हम समझदारी
और सहयोग से काम लेना है। हम िव का नाग रक बनना है।
भारत क खोज
-अ यास
(पाठ्यपु तक से)
1. ‘आिखर यह भारत है या? अतीत म यह िकस िवशेषता का ितिनिध व करता था? उसने अपनी ाचीन शि को कै से खो िदया?
या उसने इस शि को परू ी तरह खो िदया है? िवशाल जनसं या का बसेरा होने के अलावा या आज उसके पास ऐसा कुछ बचा है िजसे
जानदार कहा जा सके ?’ ये अ याय दो के शु आती िह से से िलए गए हअब तक आप पूरी पु तक पढ़ चक ु े ह गेआपके िवचार से इन
के या उ र हो सकते ह? जो कुछ आपने पढ़ा है उसके आधार पर और अपने अनुभव के आधार पर बताइए
उ र : भारत म िवशाल जनसं या का बसेरा होने के अलावा अभी बहत कुछ ऐसा बेचा है, िजसे जानदार कहा जा सकता हैभारत िव के
ाचीनतम देश म से एक हैइसक स यता एवं सं कृ ित ाचीन एवं समृि शाली हैिव क महान स यताओ ं के न होने के बाद भी यह
अपना अि त व बचाए हए हैअनेक हमलावर ने इसे न करने का यास िकया पर वे इससे भािवत होकर यह के होकर रह गएआज भी
भारत क गणना िव के िवकासशील देश म क जाती है
2. आपके अनसु ार भारत यरू ोप क तल ु ना म तकनीक िवकास क दौड़ म य िपछड़ गया था?
उ र : मेरे िवचार से िजस समय यरू ोप म तकनीक िवकास हो रहा था तथा इं लड म औ ोिगक ांित का आरंभ हो चुका था, उस समय
भारत पर िनरंतर हमले हो रहे थेहमल के कारण भारत का यान अपना अि त व बचाने, यहाँ के लोग क सरु ा म लगा थासंसाधन होने के
बाद भी उसका यान खोज तथा आिव कार से दरू रहा और वह यरू ोप क तल ु ना म िपछड़ गया
3. नेह जी ने कहा िक-”मेरे याल से, हम सब के मन म अपनी मातृभिू म क अलग-अलग तसवीर ह और कोई दो आदमी िबलकुल
एक जैसा नह सोच सकते।’ अब आप बताइए िक
आपके मन म अपनी मातृभिू म क कै सी तसवीर है?
अपने सािथय से चचा करके पता करो िक उनक मातृभिू म क तसवीर कै सी है और आपक और उनक तसवीर (मातृभिू म क छिव) म या
समानताएँ एवं िभ नताएँ ह?
उ र : हमारे दय म अपनी पावन मातृभूिम क स मानजनक, पालन-पोषण करने वाली, िवपि म धैय का सबक िसखाने वाली तथा
ममतामयी तसवीर है
हमारे सािथय के मन म भी अपनी मातृभिू म के ित बहत ही गहरा लगाव हैवे इसक सेवा तथा र ा के िलए अपना तन-मन-धन अिपत करने
को त पर हकुछ साथी ऐसे भी ह जो अवसर िमलने पर िवदेश म जाकर बसना चाहते ह य िक उ ह पि मी रहन-सहन और वहाँ के तौर-
तरीके पसंद ह
4. जवाहरलाल नेह ने कहा, “यह बात िदलच प है िक भारत अपनी कहानी क इस भोर-बेला म ही हम एक न ह ब चे क तरह नह ,
बि क अनेक प म िवकिसत सयाने प म िदखाई पड़ता है।” उ ह ने भारत के िवषय म ऐसा य और िकस सदं भ म कहा है?
उ र : नेह जी ने भारत के िवषय म ऐसा इसिलए कहा य िक भारतीय स यता एवं सं कृ ित िपछले पाँच-दस वष क नह हैयह अ यतं
ाचीन तथा िव िस है ाचीनकाल म यह िश ा का क थाभारत पहले से ही गिणत, खगोलशा , योितष, औषिधिव ान, मिू तकला
तथा अनेक िश पकलाओ ं म िवकिसत हो चक ु ा था
5. िसधं ु घाटी स यता के अंत के बारे म अनेक िव ान के कई मत हआपके अनसु ार इस स यता का अतं कै से हआ होगा, तक सिहत
िलिखए
उ र : िसंधु घाटी क स यता के अंत के बारे म मेरे दो िवचार ह
िसंधु नदी जो अपने बाढ़ के िलए िस थीहो सकता है िक इस नदी म भयंकर बाढ़ आयी हो और िसंधु घाटी को भी अपनी चपेट म लेकर
सब कुछ न कर िदया हो
िसंधु घाटी क स यता म हिथयार नह िमलने से पता चलता है िक यह स यता शांिति य थीशायद इस स यता का अंत बाहरी आ मण से
हो गया होगा
6. उपिनषद म बार-बार कहा गया है िक- “शरीर व थ हो, मन व छ हो और तन-मन दोन अनुशासन म रहआप अपने दैिनक ि या-
कलाप म इसे िकतना लागू कर पाते ह? िलिखए
उ र : म अपने दैिनक ि या-कलाप म भी अनुशासन का पालन करने क कोिशश करता हँइसके अलावा तन तथा मन व थ रखने के िलए
ात: ज दी उठना, यायाम करना, योग क ाओ ं म जाना, िनयिमत प से यायामशाला (िजम) जाना आिद करता हँइसके अलावा अपना
काम समय पर करने का यास करता हँ।
7. नेह जी ने कहा िक-“इितहास क उपे ा के प रणाम अ छे नह हए।” आपके अनसु ार इितहास लेखन म या- या शािमल िकया
जाना चािहए? एक सचू ी बनाइए और उस पर क ा म अपने सािथय और अ यापक से चचा क िजए
उ र : अतीत वह आईना होता है, िजसके ारा हम उसके अ छे -बुरे का ान ा करते ह तािक हम गलितय से बच सकइससे हम अपना
भिव य सँवार सकते हमेरे िवचार से इितहास लेखन म अिभलेख , िशलालेख , खडं हर के अवशेष, त कालीन सािह य (यिद उपल ध हो),
िवदेशी याि य के या ा िववरण, िस के आिद क जानकारी को आधार बनाना चािहएइसके अलावा उस समय क सामािजक, धािमक और
आिथक ि थितय का यान रखना चािहए
8. “हम आरंभ म ही एक ऐसी स यता और सं कृ ित क शु आत िदखाई पड़ती है जो तमाम प रवतन के बावजदू आज भी बनी हई है।”
आज क भारतीय सं कृ ित क ऐसी कौन-कौन सी बात/चीज ह जो हजार साल पहले से चली आ रही ह? आपस म चचा करके पता
लगाइए
उ र : भारतीय सं कृ ित म हजार साल से चली आने वाली अनेक चीज/बात हजैस-े स य, अिहंसा, परोपकार एवं याग क भावना,
आि तकता, अितिथ स कार क भावना, गु जन का आदर, ज मभिू म से यार, अनेकता म िछपी एकता, अनेक परु ानी मा यताएँ तथा रीित-
रवाज आिद
9. आपने िपछले साल (सातव क ा म) बाल महाभारत कथा पढ़ीभारत क खोज म भी महाभारत के सार को सू ब करने का यास
िकया गया है दसू र के साथ ऐसा आचरण नह करो जो तु ह खदु अपने िलए वीकाय न हो।” आप अपने सािथय से कै से यवहार क
अपे ा करते ह और वयं उनके ित कै सा यवहार करते ह? चचा क िजए
उ र : म अपने सािथय से अपे ा करता हँ िक वे मेरे साथ अ छा यवहार करवेहमेशा ेम, िम ता तथा स ाव रखवे अपने यवहार म
वाथपरता न लाएँआव यकता या मसु ीबत के समय एक दसू रे क खल ु कर मदद करम भी अपने सािथय के साथ वह यवहार नह करता जो
मझु े अपने साथ पसदं नह म कोिशश करता हँ िक अपने यवहार से सािथय का िदल न दखु ाऊँ।
10. ाचीन काल से लेकर आज तक राजा या सरकार ारा जमीन और उ पादन पर ‘कर’ लगाया जाता रहा हैआजकल हम िकन-िकन
व तुओ ं और सेवाओ ं पर कर देते ह, सचू ी बनाइए।
उ र : आजकल हम िन निलिखत व तुओ ं और सेवाओ ं पर कर देते ह-आय पर आयकर, उ पादन पर उ पादशु क, व तुओ ं क िब पर
िब कर, आयात िनयात पर कर, सीमाशु क, गृह कर, वैट आिद
12. पृ सं या 34 पर कहा गया है िक जातक म सौदागर क समु ी या ाओ ं यातायात के हवाले भरे हए हिव /भारत के मानिच म
उन थान /रा त को खोिजए िजनक चचा इस पृ पर क गई है
उ र : भारत का यापार दि ण पवू एिशया अथात् इडं ोनेिशया, जावा, बाली, समु ा ा, चीन, पि म म िम से रोम तक फै ला थाउ र म
अफगािन तान तथा ईरान जैसे देश से भी भारतीय के सबं ंध थेनोट-छा वयं िव के मानिच पर इस थान को खोज
13. कौिट य के अथशा म अनेक िवषय क चचा है, जैस,े “ यापार और वािण य, कानून और यायालय, नगर- यव था, सामािजक
रीित- रवाज, िववाह और तलाक, ि य के अिधकार, कर और लगान, कृ िष, खान और कारखान को चलाना, द तकारी, मंिडयाँ,
बागवानी, उ ोग-धधं े, िसचं ाई और जलमाग, जहाज और जहाजरानी, िनगम जनगणना, म य-उ ोग, कसाईखाने, पासपोट और जेल-सब
शािमल हइसम िवधवा िववाह को मा यता दी गई है और िवशेष प रि थितय म तलाक को भी।”वतमान म इन िवषय क या ि थित है?
अपनी पसंद के िक ह दो-तीन िवषय पर िलिखए।
उ र : वतमान म इन िवषय क ि थित म पया सधु ार हआ हैकुछ क ि थित तो िब कुल ही बदल गई हैइनम से कुछ िवषय क ि थित इस
कार है-
सामािजक रीित- रवाज – भारत िविभ न जाितय , धम , सं दाय , मत को मानने वाल का पंजु हैयहाँ लोग म भाषा, धम, ांत, खान-
पान, पहनावा आिद सबं धं ी िविवधता िदखाई पड़ती है परंतु वे एकता क अ य डोर से बँधे ह और अतं तः भारतीय हयहाँ ामीण समाज म
आज भी अनेक कुरीितयाँ-परदा- था, बाल-िववाह, िढ़वािदता, धािमक अंधिव ास, वथ, भाई-भतीजावाद, ाचार आिद प प से
िदखाई देती ह
कृिष – कृ िष धान देश क ामीण जनता के जीवनयापन का मख ु साधन कृ िष हैकृिष क दशा म बहत सधु ार हआ हैउ नतशील बीज,
खाद, कृ िष यं , िसंचाई के साधन के िवकास से कृ िष क ित हे टेयर उपज बढ़ी है ामीण े म कुछ ऐसे भी गरीब िकसान ह िजनक
दशा दयनीय है इसके अलावा बढ़ती जनसं या के कारण कृ िष क उपज हर वष कम पड़ती जाती है
ि य के अिधकार – ि य क दशा म आजादी के बाद बहत सधु ार हआ हैउनम िश ा का चार- सार होने से आ मिव ास म वृि तथा
आिथक समृि व वतं ता बढ़ी है परदा- था, बाल िववाह आिद म कमी आई हैरोजगार तथा नौक रय म वे पु ष के साथ कंधे से कंधा
िमलाकर चल रही ह
14. आजादी से पहले िकसान क सम याएँ िन निलिखत थ -गरीबी, कज, िनिहत वाथ, जम दार, महाजन, भारी लगान और कर,
पिु लस के अ याचार…’ आपके िवचार से आजकल िकसान क सम याएँ कौन-कौन सी ह?
उ र :भारतीय िकसान क जोत का िदन ितिदन छोटा होता जाना, खाद, उ नत बीज का समय पर न िमल पाना, कृ िष के उपकरण का
महँगा होना, उपज का भरपूर मू य न िमल पाना, ाकृ ितक आपदाएँ-बाढ़, सख
ू ा आिद के कारण फसल न होना आिद मख ु सम या हैकृिष
से पया आय न होने के कारण उनम गरीबी, ऋण तता आिद सम याएँ भी हसरकारी सहायता का समय पर उन तक न पहँच पाना या
उनको परू ी मा ा म न िमल पाना उनक गरीबी को बढ़ाता है
15. सावजिनक काम राजा क मज के मोहताज नह होते, उसे खुद हमेशा इनके िलए तैयार रहना चािहए।” ऐसे कौन-कौन से
सावजिनक काय हिज ह आप िबना िकसी िहचिकचाहट के करने को तैयार हो जाते ह?
उ र :बहत से ऐसे सावजिनक काय ह जो हम िबना िकसी िहचिकचाहट के करने को तैयार हो जाते हउनम से कुछ िन निलिखत ह
अपनी कॉलोनी या आसपास क सरु ा का यान रखना।
शाम के समय आसपास के गरीब ब च को िन:शु क पढ़ाना
आस-पास खाली पड़ी जमीन म वृ ारोपण करना
गरीब ब च के िलए िकताब-कािपयाँ आिद का िवतरण करना
अपने आसपास क सफाई का याल रखना
उ ान , पाक को न होने के बचाने का यास तथा सरकारी संपि क देख-रे ख करना
16. महान स ाट अशोक ने घोषणा क िक वह जा के काय और िहत के िलए ‘हर थान पर और हर समय हमेशा उपल ध हहमारे
समय के शासक/ लोक-सेवक इस कसौटी पर िकतना खरा उतरते ह? तक सिहत िलिखए
उ र : भारत जैसे लोकतांि क देश म यह बड़े दखु क बात है िक हमारे लोक सेवक अथात नेताओ ं क करनी-कथनी म कोई समानता नह
हैवे चनु ाव के िदन म आम जनता के क याण के िलए लंबी-चौड़ी घोषणाएँ तथा वायदे करते ह, पर एक बार जीत जाने के बाद वे िविश
बन जाते ह तथा अपने िकए वायद को भल ू कर भी परू ा करने नह आतेदबु ारा चनु ाव आने पर ही वे जनता के बीच आते ह और चनु ाव जीतने
के बाद अपनी ि थित सधु ारने के िलए धनलोलपु ता, ाचार, र तखोरी आिद म आकंठ डूब जाते ह
17. ‘औरत के परदे म अलग-थलग रहने से सामािजक जीवन के िवकास म कावट आईकै से?
उ र : औरत के पद म रहने से यानी अलग-थलग रहने से सामािजक जीवन के िवकास म बाधा उ प न हईउ ह िश ा से वंिचत रहना पड़ावे
जीवन म कोई भी िनणय लेने के िलए वतं न थ वे हर काम के िलए पु ष पर आि त थ पदा- था के कारण उनका वा य भािवत
हआइससे सामािजक सहभािगता म भी कमी आई पु ष के अिधकार तथा वच व बढ़ते गएइससे समाज के िवकास म कावट आई
18. म यकाल के इन संत रचनाकार क अनेक रचनाएँ अब तक आप पढ़ चक ु े ह गेइन रचनाकार क एक-एक रचना अपनी पसंद से
िलिखए ( अमीर खसु रो,कबीर,गु नानक,रहीम )
उ र : म यकाल के इन सतं रचनाकार ने अपनी रचनाओ ं ारा सामािजक चेतना फै लाने तथा कुरीितयाँ दरू करने का यास िकया हैइनक
रचनाओ ं से समाज म नई ऊजा का संचार हआ हैइन रचनाकार क एक-एक रचना िन निलिखत है
2. कबीर – कबीर उ चकोिट के समाज सधु ारक थे, िज ह ने समाज म या त कालीन कुरीितय पर जमकर हार िकया
रचना –
मोको कहाँ ढूढ़े बंद,े म तो तेरे पास म।
ना म देवल ना म मि जद, ना काबे कै लास म
ना तो कौने ि याकम म, नाह योग बैराग म।
खोजी होय तो तुरतै िमिलह , पल भर क तलास म।
कह कबीर सनु भई साधो, सब वाँस क वाँस म।
3. गु नानक
रचना –
चा र नदी अगनी असराला
कोई गु मिु ख बुझे सबिद िनराला।
साकत दरु मित डूबिहं दाझिह।ं
गु र राखे ह र िलव राता है।
4. रहीम
रचना –
रिहमन यिह संसार म सबसे िमिलयो धाइ।
ना जाने के िह भेस म नारायण िमिल जाई॥
19. बात को कहने के तीन मख
ु तरीके अब तक आप जान चक ु े ह गे
( अिभधा, ल णा, यंजना )
बताइए, नेह जी का िन निलिखत वा य इन तीन म से िकसका उदाहरण है? यह भी बताइए िक आपको ऐसा य लगता है? “यिद ि टेन
ने भारत म यह बहत भारी बोझ नह उठाया होता (जैसा िक उ ह ने हम बताया है) और लंबे समय तक हम वरा य करने क वह किठन
कला नह िसखाई होती, िजससे हम इतने अनजान थे, तो भारत न के वल अिधक वतं और अिधक समृ होता…. बि क उसने कह
अिधक गित क होती।”
उ र : उपयु वा य जो नेह जी ारा कहे गए ह, उनम यंजना हैअं ेज ने वा तव म हमारा बोझ उठाया नह बि क और भी थोपा था,
िजससे मु होने म हम बहत लंबा समय लगाना पड़ा
20. “नई ताकत ने िसर उठाया और वे हम ामीण जनता क ओर ले गईपहली बार एक नया और दसू रे ढंग का भारत उन यवु ा
बिु जीिवय के सामने आया…” आपके िवचार से आजादी क लड़ाई के बारे म कही गई ये बात िकस नई ताकत’ क ओर इशारा कर रही
ह? वह कौन यि था और उसने ऐसा या िकया िजसने ामीण जनता को भी आजादी क लड़ाई का िसपाही बना िदया?
उ र : इस वा य म ‘नई ताकत’ म यम वग म आई राजनीितक चेतना क ओर सक ं े त कर रही हैपं. जवाहरलाल नेह ही वह यि थे,
िज ह ने म यम वग म नई ऊजा का सचं ार िकयाउ ह उनके अिधकार तथा कत य के ित सजग िकयाइससे म यम वग म राजनीितक चेतना
जाग उठी और यह वग भारत क आजादी के िलए सजग हो उठाइससे यह वग एकजटु होकर आजादी क लड़ाई का िसपाही बन गया
21. भारत माता क जय’-आपके िवचार से इस नारे म िकसक जय क बात कही जाती है? अपने उ र का कारण भी बताइए
उ र : भारत माता क जय’ नारे म भारत क पावन भूिम, निदयाँ, पहाड़, वन,
झरने, पश-ु प ी तथा यहाँ रहने वाले सभी मनु य के जय क बात कही गई हैकारण यह है िक इ ह सबको िमलाकर भारत माता क तसवीर
परू ी होती है | यह भारत माता िकसी थान िवशेष क भिू म का नाम नह है
22. भारत पर ाचीन काल से ही अनेक िवदेशी आ मण होते रहेउनक सचू ी बनाइएसमय म म बनाएँ तो और भी अ छा रहेगा
आपके िवचार से भारत म अं ेजी रा य क थापना इससे पहले के आ मण से िकस तरह अलग है?
उ र : भारत पर होने वाले आ मण को िन निलिखत प म सूचीब िकया जा सकता है
आय का आ मण
तक
ु शासक का आ मण
अफगािनय का आ मण
मंगोल का आ मण
मगु ल का आ मण
अं ेज (ि िटश) का आ मण
भारत म अं ेजी शासन क थापना से पवू िजन िवदेशी जाितय ने आ मण िकया, वे हमलावर के प म आए तथा उ ह ने यहाँ क अपार
धन सपं दा को लटू ाजन-धन, मंिदर आिद क अपरू णीय ित पहँचाई और वापस चले गएउनम कुछ यह बसकर यह के हो गएअं ेज भारत
म यापारी बनकर आएभारतीय को यापार के बहाने लटू कर यहाँ क स ा पर क जा िकया और भारतवासी अपने ही देश म गुलाम बनकर
रह गए
23. अं ेजी सरकार िश ा के सार को नापसदं करती थी य ?
िश ा के सार को नापसंद करने के बावजूद अं ेजी सरकार को िश ा के बारे म थोड़ा-बहत काम करना पड़ा य ?
उ र : अं ेजी सरकार िश ा के सार को इसिलए नापसंद करती थी य िक अं ेज को डर था िक भारतीय पढ़-िलखकर जाग क बन
जाएँगेउनम नई चेतना तथा अपनी आजादी के ित लगाव पैदा होगािजसक वे माँग करगे, ऐसे म उन पर (भारतीय पर) शासन करना किठन
हो जाएगा
अं ेजी सरकार को िश ा के बारे म थोड़ा-बहत सोचना पड़ा य िक
वे अपना काम कराने के िलए कम वेतन पर काम करने वाले लक तैयार कर सक
भारतीय को िशि त करके ही वे उ ह पि मी स यता से भािवत कर सकते थे
24. ि िटश शासन के दौर के िलए कहा गया िक-‘नया पँजू ीवाद सारे िव म जो बाजार तैयार कर रहा था उससे हर सरू त म भारत के
आिथक ढाँचे पर भाव पड़ना ही था।” या आपको लगता है िक अब भी नया पँजू ीवाद परू े िव म जो बाजार तैयार कर रहा है, उससे भारत
के आिथक ढाँचे पर भाव पड़ रहा है? कै से?
उ र : अब भी नया पँजू ीवाद परू े िव म जो बाजार तैयार कर रहा है, उससे िन:सदं ेह भारत के आिथक ढाँचे पर भाव पड़ रहा हैइस पँजू ीवाद
और तैयार बाजार से वतमान पीढ़ी िकसी भी तरह से या कोई भी साधन अपनाकर धन कमाने क लालसा रखती हैइससे समाज म
अमीरीगरीबी क खाई बढ़ रही हैधनी और धनी तथा गरीब और भी गरीब होते जा रहे हइसके अलावा युवा पीढ़ी को इस बाजार म पि मी
या िवदेशी व तुएँ आसानी से िमल रही हऐसे म वदेशी व तुओ ं से उनका मोहभंग हो रहा हैइससे वदेशी उ ोग भािवत हो रहा है।
25. गाधं ीजी के दि ण अ का से लौटने पर िन निलिखत म िकस तरह का बदलाव आया, पता क िजए
कां ेस संगठन म
लोग म िव ािथय , ि य , उ ोगपितय आिद म
आजादी क लड़ाई के तरीक म।।
सािह य, सं कृ ित, अखबार आिद म
उ र : गाधं ीजी के दि ण अ का से लौटने पर िन निलिखत प म बदलाव आया
कां ेस संगठन म-गांधीजी के कां ेस म आने से संगठन क मजबूती बढ़ीइसम िकसान एवं मजदरू वग भी शािमल होकर नए जोश के साथ
काय करने लगे
लोग म िव ािथय , ि य , उ ोगपितय आिद म-गाधं ीजी के कां ेस म आते ही िव िव ालय के िव ाथ इसम शािमल हो गएअनेक ि याँ
तथा उ ोगपित उ सािहत होकर ि िटश सरकार के िव आवाज उठाने लगे
आजादी क लड़ाई के तरीक म ि िटश सरकार के िखलाफ लड़ाई म गांधीजी ने स य और अिहसं ा को मख ु हिथयार बनायाउ ह ने सिवनय
अव ा आदं ोलन तथा बातचीत के मा यम से सम याएँ सल ु झाने
को ाथिमकता दी
सािह य, सं कृ ित, अखबार आिद म गांधी जी के जुड़ने के बाद सािह य, सं कृ ित और अखबार म छपी ि िटश सरकार िवरोधी खबर से
जनमानस सजग हो उठाअं ेज क दमन नीित क खबर अखबार म मख ु ता से छपने लग इस सरकार क स चाई का पता लगते ही लोग
म अपनी मातृभिू म क वतं ता के ित ललक जाग उठी
26. “अकसर कहा जाता है िक भारत अतं िवरोध का देश है।” आपके िवचार से भारत म िकस-िकस तरह के अतं िवरोध ह? क ा म
समहू बनाकर चचा क िजए(संकेतः अमीरी-गरीबी, आधिु नकता-म ययगु ीनता, सिु वधा-सप न-सिु वधा िवहीन आिद)
उ र : इसम कोई दो राय नह िक भारत अतं िवरोध का देश है यहाँ सकारा मक तथा नकारा मक प साथ-साथ चलते रहते हभारत म कुछ
लोग बहत ही धनवान ह जो ऐशो-आराम एवं िवलािसता का जीवन जी रहे हजबिक कुछ इतने िनधन ह िक वे पेट भर भोजन भी नह पाते
हयहाँ कुछ लोग आधिु नकता म जी रहे ह तो कुछ अब भी म ययगु ीनता म जी रहे ह। कुछ लोग अपने जीवन म नाना कार क सिु वधाओ ं के
मा यम से उ म जीवन जी रहे ह तो ऐसे लोग क भी कमी नह है जो सिु वधा िवहीन ह तथा वे िन न तरीय जीवन जीने को िववश ह।
27. पृ सं या 122 पर नेह जी ने कहा है िक-“हम भिव य क उस ‘एक दिु नया’ क तरफ बढ़ रहे ह जहाँ रा ीय सं कृ ितयाँ मानव
जाित क अंतरा ीय सं कृ ित म घल ु िमल जाएँगी।”आपके अनुसार उस ‘एक दिु नया म या- या अ छा है और कै से-कै से खतरे हो सकते ह?
उ र : नेह जी ने ‘एक दिु नया’ कहकर उस दिु नया क ओर सकं े त िकया है जहाँ गित क ओर बढ़ते हए हम समझदारी, ान, िम ता, और
सहयोग िमलेगा। इससे भारत िव म मह वपूण शि बनकर उभरे गा। इस पर पर सहयोग से कोई देश अलग-थलग नह रह पाएगा। एक-दसू रे
से मेल-िमलाप बढ़ेगा तथा सभी उ नित के माग पर आगे बढ़ते जाएँगे। इससे हम भारतीय अ छे िव नाग रक बन सकगे। इस मेल-जोल
और सं कृ ितय के िमलन के फल व प पि मी स यता का अंधानुकरण, अधनंगापन, धनलोलुपता आिद बढ़ेगी िजससे भारतीय सं कृ ित
एवं स यता अ भािवत नह रह सके गी।