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जा तवाद श शाली प ारा क जाने वाली वो अंधाधुंध


अवहेलना ह जो क व थ समाज के लए आव यक त व जैसे
समानता,भाईचारे को ख म करती ह. - काका कालेकर
1. जा तवाद ामीण भारत क एक अजीब बुराई है। यह जा त
व था के साथ नकटता से जुड़ा आ है। इस लए,
जा तवाद मूल प से पुरानी ामीण सम या है और यह
केवल एक प या कसी वशेष जा त के प म कण
वफादारी के कारण मौजूद है।
2. जा त श द क उ प क बा ’श द से ई है। इसम
वंशानुगत और वसाय के आधार पर मानव समूह क
र कग णाली को दशाया गया है। भारत म पारंप रक जा त
व था समाज को संग ठत करने के लए एक कठोर
तरीका है। समाज म इसक काय मता अ य धक
आ यजनक है य क इसम कई क मयां ह। भारत म
जा त व था क कठोर संरचना स दय से चली आ रही
है। जा त के लए भारतीय श द ’जा त’ है। पूरे भारत म
हज़ार ’jatis’ बखरे ए ह। येक जा त का अपना
शासन, री त- रवाज, परंपरा, धम, नयम और जीवन
शैली है। पूवज ने भारतीय समाज को चार समूह म
वभा जत कया- अथात् ा ण जो सीखने के पुजारी
समूह से आए थे, श ुय जो समाज के यो ा और शासक
वग थे, वै य जो ापारी, ापारी और कसान थे; और
शू जनम मज र और वन कसान शा मल थे। अछू त
या पंचम को शू क ेणी म रखा गया था। भारतीय जा त
व था के पदानु म क भारत और भारत के बाहर के
मानवीय कोण के साथ गत प से आलोचना क
गई है। जब एक वशेष जा त-समूह के सद य अपने हत
को सुर त करना चाहते ह और अ य जा तय के हत के
खलाफ आँख बंद करके काम करते ह, तो जा तवाद क
उप ई। इस लए, जा तवाद एक जा त के त
भावना मक झुकाव को संद भत करता है। ले कन जस
समाज म यह एक व श सामा जक थ त का तीक है,
वहां जा त क भावना का अ त व जा तवाद से संबं धत
नह है। जा त क भावना केवल जा तवाद म बदल जाती
है,जब कसी वशेष जा त के सद य खुद को े मानते ह
और अ य जा तय के लए अपने वयं के जा त
वरोधाभास के हत को सुर त करना चाहते ह।
जा तवाद या है? जा तवाद को कई व ान ारा व भ
तरीक से लोक य प से प रभा षत कया गया है।
जा तवाद क मह वपूण प रभाषा न न ल खत है। काका
कालेकर के अनुसार, "एक अ तउ साही, अंध और सव च
समूह न ा म जा तवाद जो याय, न प खेल, समानता
और सावभौ मक भाई के वा य सामा जक मानक क
उपे ा करता है।" R.N.Sharmasays "जा तवाद एक
क अपनी जा त या उप-जा त के त एक अंध
समूह न ा है जो अ य जा तय के हत क परवाह नह
करता है और अपने वयं के समूह के सामा जक, आ थक,
राजनी तक और अ य हत का एहसास करना चाहता है।"
K.M.Panikkar प रभा षत करते ह "जा तवाद
राजनी तक म अनुवा दत उप-जा त के त वफादारी है।"
D.N.Prasad "जा तवाद राजनी त म अनुवा दत जा त के
त एक न ा है।" इस तरह जा तवाद को “ वद” और
“काय थवाद” जैसे जा तवाद के प म राजनी तक े म
ख च लया गया है।
3. जा तवाद के वग।
1. सामा जक असमानता: सामा जक असमानता जा त
व था क घृणा पूण अ भ है। जा त व था
के तहत, पूरे ह समाज को दो ापक समूह , उ च
और न न जा तय म वभा जत कया गया है। एक
जा त शा सत समाज म उ च जा त के लोग सभी
वशेषा धकार का आनंद लेते ह, जब क न न जा त
के लोग सभी कार क वकलांगता से पी ड़त
होते ह। यह दो जा त समूह के बीच सामा जक
असमानता क ओर जाता है। यह जा तगत
असमानता जा तवाद का मूल कारण है।
2. सामा जक री: येक भारतीय जा त को मूल प से
बंद समूह के प म जाना जाता है। य क इसम
सद य के बीच ग तशीलता का अभाव है। हर े म,
जा तय के बीच एक बड़ी सामा जक री है। जा त
व था वसाय, ववाह, भोजन, पेय, सामा जक
संभोग आ द पर कुछ तबंध लगाती है। इस लए,
एक जा त ामीण भारत म सरी जा त से सामा जक
प से भ है। वयं जा त के सद य अ य जा तय
क सं कृ त, धम, मानदं ड और मू य को नह छू
सकते ह। उनका कोण केवल अपनी जा त क
सीमा के भीतर क त है। जसके प रणाम व प
उनके बीच एक मजबूत जा त क भावना वक सत
होती है। यह भावना धीरे-धीरे जा तवाद म प रव तत
हो गई,।
3. नर रता और ढ़वाद: ामीण लोग इतने अनपढ़
और अ ानी ह क वे संक ण सोच और अंध व ास से
ब त ढ़वाद और गहराई से े रत ह। वे पुराने
री त- रवाज , परंपरा , लोकगीत म गहराई से
व ास करते ह। अ धक मानदं ड और इतने पर।
ामीण लोग अपने वभाव म ब त ढ़वाद ह। वे
समाज म कसी भी बदलाव का पुरजोर वरोध करते
ह। कठोर री त- रवाज और परंपरा से भा वत
होने के कारण, ामीण लोग अपनी जा त को े
मानते ह। यह जा तवाद को ज म दे ता है।
4.औ ो गक करण और शहरीकरण:औ ो गक करण और
शहरीकरण आधु नक करण क दो याएं ह। ये दोन
याएँ भारत म जा तवाद को काफ हद तक ो सा हत करती
ह। औ ोगीकरण के कारण, दे श के व भ ह स म वभ
कार के कारखाने और उ ोग था पत ए। जसके
प रणाम व प व भ जा तय के लोग वहां काम करते ह और
जा त के आधार पर व भ संगठन का नमाण करते ह जससे
जा तवाद होता है। सरी ओर, शहरीकरण ने ामीण े से
शहरी े के लोग को नकाल दया। एक वशेष जा त के
लोग को शहर म बड़ी सं या म एकजुट होने का मौका मला।
प रणाम व प व भ जा तय के लोग ने जा त के सद य का
अ धकतम लाभ लेने के लए व भ संघ का गठन कया और
शहरी भारत म जा तवाद क ओर अ सर ए।
5.प रवहन और संचार का वकास: अतीत म, संचार के साधन
क कमी ने भारत म जा तवाद के वकास को काफ हद तक
रोक दया। ले कन अब एक दन, प रवहन के वकास के साथ,
एक वशेष जा त के सद य आसानी से एक सरे को आ मसात
कर सकते थे और उनके बीच जा त का बंधन मजबूत हो गया।
इसी तरह, पो ट, टे ली ाफ, रे डयो, टे ली वज़न, अख़बार आ द
जैसे बड़े पैमाने पर मी डया संचार के वकास के कारण, एक
जा त के लोग आसानी से एक सरे के साथ संवाद कर सकते ह
और अपने जा त संगठन को मजबूत कर सकते ह। ये सभी
जा तवाद को ज म दे ते ह।

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