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संपादक-प रचय
‘ द इंिडयन गल, 1920-1942’ नेताजी सुभाष चं बोस ारा वतं ता
सं ाम का एक मुख राजनीितक अ ययन है, िजसम उनक वयं अपनी एक
मुख भूिमका थी। यह पु तक असहयोग और िखलाफत आंदोलन के घुमड़ते
बादल से लेकर तूफान का प लेनेवाले ‘भारत छोड़ो’ तथा आजाद हंद
आंदोलन तक का िवशद और िव ेषणा मक िवमश उपल ध कराती है। यु के
बीच क अविध म ई राजनीितक उठापटक क कहानी तब और भी समृ हो
उठती है, जब नेताजी भारतीय इितहास के मु य िवषय पर िवचार करते ह
और इसम महा मा गांधी क भूिमका का अंतत: गहराई म जाकर आकलन
करते ह। बोस ने यूरोप म िनवासन म रहने के दौरान इस पु तक का थम
भाग 1920-1934 के दौरान िलखा। वे पु तक म उस एक साल का िज करते
ह, जब वे बुरी तरह बीमार थे। इतना ही नह , जैसा क उ ह ने अपनी मूल
तावना म वयं उ लेख कया था, पु तक म व णत ऐितहािसक िवमश मु य
प से उ ह ने अपनी मृित के आधार पर िलखा, य क िवयना म उस समय
उनके पास पया मा ा म संदभ साम ी उपल ध नह थी। पु तक को लाॅरस
एंड िवशहाट ने लंदन म 17 जनवरी, 1935 को कािशत कया था। ि टश
ेस म पु तक क अ छी समी ा कािशत ई और यूरोपीय सािहि यक तथा
राजनीितक समाज ने इसका काफ गमजोशी के साथ वागत कया। हालाँ क
भारत म ि टश सरकार ने, लंदन म भारतीय मामल के िवदेश मं ी क
अनुमित से, िबना एक ण गँवाए भारत म इस पु तक के वेश को ितबंिधत
करने क अिधसूचना जारी कर दी। भारतीय मामल के िवदेश मं ी सै युअल
होरे ने हाउस ऑफ कॉम स म आरोप लगाया क यह कदम इसिलए उठाया
गया है, य क पु तक आमतौर पर आतंकवादी तौर-तरीक और सीधी
काररवाई के िलए उकसाती है। पु तक के पहले काशन के बाद एक दशक से
भी अिधक समय तक यह भारतीय पाठक तक नह प च ँ पाई। तो ऐसे म इस
पु तक को लेकर ई या- ित या का हम के वल अनुमान लगा सकते ह।
ले कन यहाँ इस बात को याद करना काफ रोचक हो सकता है क ि टेन और
यूरोपीय महा ीप म पु तक को कस तरह से िलया गया? पु तक क समी ा
पेश करते ए ‘दी मैनचे टर गा डयन’ ने िन आकलन तुत कया—
यह भारतीय राजनीित पर एक भारतीय राजनेता ारा िलखी गई अब तक
क संभवत: सवािधक रोचक पु तक है...हालाँ क इसका िपछले 14 साल का
इितहास प प से वामपंथ के नज रए से िलखा गया है, ले कन इसके
बावजूद यह सभी प के साथ लगभग उतनी िन प ता का वहार करता
है, िजतनी िन प ता क एक स य राजनेता से ता कक तर पर उ मीद क
जा सकती है...उनक िच ेड यूिनयन आंदोलन , कसान िव ोह और
समाजवाद के िवकास म है...यह सब िमलाकर पु तक हम उस मोड़ पर लाकर
छोड़ती है, जहाँ हमारे भीतर से एक इ छा बलवती होती है क भारतीय
राजनीित क कमान ीमान बोस अपने हाथ म ले ल...
‘संडे टाइ स’ ने ‘दी इं िडयन गल’ को वैचा रक बोधन के िलए एक
मह वपूण पु तक के प म देखा है—इसम एक वैचा रकता है, िजसक ि टश
मानिसकता के िलए ा या करना मुि कल है, ले कन यह पु तक भारतीय
आंदोलन का पूरी सटीकता के साथ वणन करती है, िजसे अनदेखा नह कया
जा सकता। ‘दी डेली हेरा ड’ के राजनियक मामल के संवाददाता इसे एक
‘शांत, संयत, िन प , िनरपे ’ िववेचना के प म पाते ह और कहते ह क
मौजूदा भारतीय राजनीित पर उ ह ने अब तक जो भी पढ़ा है, यह पु तक उन
सबम े तम क ेणी म आती है। इस पु तक म कसी कार क क रता नह
है, बि क यह एक समझदार और गहरी सोचवाले दमाग क देन है, यह पु तक
एक ऐसे ि के मनीषी ि व और रचना मक मेधा शि क उपज है,
जो अभी 40 साल का भी नह आ है और ऐसा इनसान कसी भी देश के
राजनीितक जीवन क संपि और उसका आभूषण होगा। दी पे टेटर ने
समकालीन इितहास के द तावेज के प म इसे एक मू यवान् पु तक के प म
पाया। ‘दी यूज ॉिनकल’ ने बोस को ‘ ांितकारी के िलए िवल ण प से
िवचारशील एवं बुि मान’ के प म प रभािषत कया और साथ ही िलखा—
एक भारतीय नज रए से बोस ारा ख ची गई गांधी क तसवीर काफ
रोचक है। इस तसवीर को पूरी दृढ़ता और प ता के साथ आकार दया गया
है। उ ह ने राजनेता क ‘िहमालय िजतनी ऊँची गलितय ’ को नजरअंदाज
कए िबना इस संत के शानदार गुण के साथ पूण याय कया है...
बोस जब इस पु तक को िलख रहे थे तो उ ह ने रब नाथ टैगोर के साथ
प ाचार कया और ब ड रसेल तथा एच.जी. वे स जैसे ि टश बुि जीिवय
से प रचय क बात कही। एक समय तो यह उनक दली इ छा थी क ऐसी
कोई एक ह ती उनक पु तक क तावना िलख। बाद म या तो उ ह ने यह
िवचार छोड़ दया या यह योजना िसरे नह चढ़ सक । इसके बावजूद
समकालीन ेस रपोट से यह प है क भारत म पु तक को ितबंिधत कए
जाने के बाद वामपंथी ि टश राजनेता और बुि जीिवय म एक हलचल
थी। जॉज लांसबरी ने बोस को एक संदश े भेजकर पु तक के िलए उनका
ध यवाद कया, िजससे वे ‘ब त-कु छ सीख’ रहे थे।
यूरोप से पु तक पर सबसे अिधक रोचक ट पणी ांसीसी रोमेन होलांद क
ओर से आई, िज ह ने नेताजी को 22 फरवरी, 1935 को िलखे प म कहा—
...पु तक इतनी रोचक तीत होती है क मने एक और कॉपी का ऑडर कर
दया है, य क मेरी प ी और मेरी बहन के पास भी एक ित होनी चािहए।
भारतीय आंदोलन के इितहास पर यह एक शानदार पु तक है। इसम आपने
एक इितहासकार के े गुण का दशन कया है— प ता और उ दज क
वैचा रक समानता। ऐसा िवरले ही होता है क आप जैसा एक स य ि
िबना कसी दलगत भावना के इतनी सटीकता से घटना के साथ याय
करता है। म आपक यादा तारीफ नह कर रहा ,ँ ले कन मने यह पाया है क
आप इसके हकदार ह। गांधी ारा िनभाई गई भूिमका और उनक कृ ित म
आप िजस त ै वाद क बात करते ह, उसने मुझ पर ब त गहरा असर कया है।
प है क यही त ै वाद उनके ि व को इतना मौिलक बनाता है। ...म
आपक दृढ़ राजनीितक सोच क सराहना कर रहा ।ँ यह कतनी दयनीय
ि थित है क भारतीय सामािजक आंदोलन के सबसे यो य नेता या तो जेल क
सलाख के पीछे ह या िनवासन म ह, जैसे क आप और जवाहरलाल नेह ...
आयरलड के रा पित डी वेलरा ने पु तक को काफ िच के साथ पढ़ा और
इस संदश े के साथ इसका समापन कया—
‘म उ मीद करता ँ क िनकट भिव य म भारतीय लोग को आजादी और
खुशी ा होगी।’
रोम म बोस ने खुद मुसोिलनी को पु तक क एक ित भट क थी, िज ह ने
बदले म भारतीय िहत के ित सहानुभूित जताई थी। ऐसी रपो स थ क
वहाँ काशक तुरंत इसके इतालवी सं करण म िच दखाने लगे थे। अंतत:
‘इटािलयन इं टीट् यूट ऑफ िमडल एंड फॉर ई टन अफे यस’ के त वावधान म
1942 म इसका इतालवी सं करण जारी कया गया। ि तीय िव यु क पूव
सं या पर पु तक के पहले भाग का जापानी सं करण और फर यु के दौरान
अगला सं करण कािशत आ। यह माना जाता है क जमन सं करण क
योजना बनाई गई थी और नेताजी क यूरोप क अंितम या ा के दौरान इसक
तैयारी चल रही थी, ले कन यह योजना कामयाब नह हो सक । पु तक का
दूसरा भाग ‘1935-1942’ भी पहले भाग के पूरा हो जाने के आठ साल बाद
यूरोप म ही िलखा गया था। नेताजी पु तक क पांडुिलिप अपनी प ी एिमली
शकल के पास िवयना म छोड़ गए थे, िज ह ने यु क समाि पर इसे
उपल ध कराया। 1935 के लंदन काशन का एक पुन: मु ण पहली बार 1948
म भारत म जारी कया गया तथा इसका बाक िह सा ‘1935-42’ अलग से
1952 म कािशत आ। ‘नेताजी रसच यूरो’ ने पहला संयु सं करण 1964
म जारी कया और उसके बाद 1981 म नेताजी के संकलन सं करण 2 के प
म इसे पुन: कािशत कया गया।
यह ब त ही सावधानी से पुन: संपा दत कया गया शता दी सं करण है।
पाठक के िहत म नेताजी के िवमश को पेश करते ए इसम अ याय के शीषक
म मामूली बदलाव भर कए गए ह। मूल लंदन सं करण म शािमल प रिश
को इस सं करण म ‘उपसंहार 1934’ के प म िलया गया है और यह अ याय
‘भिव य क एक झलक’ के प ात् आने के बजाय पहले आया है। प रिश म
हमने जनवरी 1938 म लंदन म बोस के साथ एक सा ा कार क रपोट को
कािशत कया है, िजसम ‘भिव य क एक झलक’ शीषकवाले अ याय म
फासीवाद और सा यवाद के संदभ म उनका प ीकरण तुत कया गया है।
नेताजी के प , भाषण और उस समय के लेख, िज ह ‘दी इं िडयन गल,
1920-1942’ म शािमल कया गया है, उ ह कलेि टड व स के 3 से 11व
सं करण म देखा जा सकता है। इस पु तक क िवषय-व तु अग त 1942 म
जाकर इस ट पणी के साथ समा होती है—‘भारत क आजादी क लड़ाई के
इितहास म एक नया अ याय शु हो चुका था।’ जो अनकहा रह गया था, वह
यह था क ‘भारत का संघष’ के अंितम अ याय म नेताजी एक िनणायक
भूिमका िनभाने क तैयारी म थे। अपनी पु तक के दूसरे भाग म संशोधन का
काय पूरा करने के तुरंत बाद वे खतरनाक पनडु बी या ा से दि ण-पूव
एिशया के िलए रवाना हो गए, जहाँ उ ह ने अंितम भारतीय वतं ता सं ाम
म आजाद हंद फौज क अगुआई क ।
—िशिशर कु मार बोस
—सुगत बोस
आभार
ह म संपादक य परामश के िलए ो. कृ णा बोस और ो. िलयोनाद ए. गोडन का तथा
सिचवालय सहायता के िलए ीमान का तक च वत का, अिभलेखागार सहयोग के िलए
ीमान नगा सुंदरम् का और यूरो के काशन िवभाग के संचालन म ावहा रक मदद के
िलए मनोहर मंडल एवं मुंशी के अनथक यास के िलए आभार करते ह। हम
काशन या को व रत एवं भावी तरीके से सँभालने के िलए ऑ सफोड यूिनव सटी
ेस के ित भी अपना आभार दज कराना चाहते ह। इस मौके पर हम एक बार फर से
नेताजी क धमप ी ऐिमली शकल और उनक पु ी अिनता फाफ के ित दल क
गहराइय से आभार जताना चाहते ह, िज ह ने नेताजी के काय का कॉपीराइट नेताजी
रसच यूरो को स पा है।
—िशिशर कु मार बोस
—सुगत बोस
अनु म
संपादक-प रचय
आभार
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