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सुभाष चं बोस

संपादक-प रचय
‘ द इंिडयन गल, 1920-1942’ नेताजी सुभाष चं बोस ारा वतं ता
सं ाम का एक मुख राजनीितक अ ययन है, िजसम उनक वयं अपनी एक
मुख भूिमका थी। यह पु तक असहयोग और िखलाफत आंदोलन के घुमड़ते
बादल से लेकर तूफान का प लेनेवाले ‘भारत छोड़ो’ तथा आजाद हंद
आंदोलन तक का िवशद और िव ेषणा मक िवमश उपल ध कराती है। यु के
बीच क अविध म ई राजनीितक उठापटक क कहानी तब और भी समृ हो
उठती है, जब नेताजी भारतीय इितहास के मु य िवषय पर िवचार करते ह
और इसम महा मा गांधी क भूिमका का अंतत: गहराई म जाकर आकलन
करते ह। बोस ने यूरोप म िनवासन म रहने के दौरान इस पु तक का थम
भाग 1920-1934 के दौरान िलखा। वे पु तक म उस एक साल का िज करते
ह, जब वे बुरी तरह बीमार थे। इतना ही नह , जैसा क उ ह ने अपनी मूल
तावना म वयं उ लेख कया था, पु तक म व णत ऐितहािसक िवमश मु य
प से उ ह ने अपनी मृित के आधार पर िलखा, य क िवयना म उस समय
उनके पास पया मा ा म संदभ साम ी उपल ध नह थी। पु तक को लाॅरस
एंड िवशहाट ने लंदन म 17 जनवरी, 1935 को कािशत कया था। ि टश
ेस म पु तक क अ छी समी ा कािशत ई और यूरोपीय सािहि यक तथा
राजनीितक समाज ने इसका काफ गमजोशी के साथ वागत कया। हालाँ क
भारत म ि टश सरकार ने, लंदन म भारतीय मामल के िवदेश मं ी क
अनुमित से, िबना एक ण गँवाए भारत म इस पु तक के वेश को ितबंिधत
करने क अिधसूचना जारी कर दी। भारतीय मामल के िवदेश मं ी सै युअल
होरे ने हाउस ऑफ कॉम स म आरोप लगाया क यह कदम इसिलए उठाया
गया है, य क पु तक आमतौर पर आतंकवादी तौर-तरीक और सीधी
काररवाई के िलए उकसाती है। पु तक के पहले काशन के बाद एक दशक से
भी अिधक समय तक यह भारतीय पाठक तक नह प च ँ पाई। तो ऐसे म इस
पु तक को लेकर ई या- ित या का हम के वल अनुमान लगा सकते ह।
ले कन यहाँ इस बात को याद करना काफ रोचक हो सकता है क ि टेन और
यूरोपीय महा ीप म पु तक को कस तरह से िलया गया? पु तक क समी ा
पेश करते ए ‘दी मैनचे टर गा डयन’ ने िन आकलन तुत कया—
यह भारतीय राजनीित पर एक भारतीय राजनेता ारा िलखी गई अब तक
क संभवत: सवािधक रोचक पु तक है...हालाँ क इसका िपछले 14 साल का
इितहास प प से वामपंथ के नज रए से िलखा गया है, ले कन इसके
बावजूद यह सभी प के साथ लगभग उतनी िन प ता का वहार करता
है, िजतनी िन प ता क एक स य राजनेता से ता कक तर पर उ मीद क
जा सकती है...उनक िच ेड यूिनयन आंदोलन , कसान िव ोह और
समाजवाद के िवकास म है...यह सब िमलाकर पु तक हम उस मोड़ पर लाकर
छोड़ती है, जहाँ हमारे भीतर से एक इ छा बलवती होती है क भारतीय
राजनीित क कमान ीमान बोस अपने हाथ म ले ल...
‘संडे टाइ स’ ने ‘दी इं िडयन गल’ को वैचा रक बोधन के िलए एक
मह वपूण पु तक के प म देखा है—इसम एक वैचा रकता है, िजसक ि टश
मानिसकता के िलए ा या करना मुि कल है, ले कन यह पु तक भारतीय
आंदोलन का पूरी सटीकता के साथ वणन करती है, िजसे अनदेखा नह कया
जा सकता। ‘दी डेली हेरा ड’ के राजनियक मामल के संवाददाता इसे एक
‘शांत, संयत, िन प , िनरपे ’ िववेचना के प म पाते ह और कहते ह क
मौजूदा भारतीय राजनीित पर उ ह ने अब तक जो भी पढ़ा है, यह पु तक उन
सबम े तम क ेणी म आती है। इस पु तक म कसी कार क क रता नह
है, बि क यह एक समझदार और गहरी सोचवाले दमाग क देन है, यह पु तक
एक ऐसे ि के मनीषी ि व और रचना मक मेधा शि क उपज है,
जो अभी 40 साल का भी नह आ है और ऐसा इनसान कसी भी देश के
राजनीितक जीवन क संपि और उसका आभूषण होगा। दी पे टेटर ने
समकालीन इितहास के द तावेज के प म इसे एक मू यवान् पु तक के प म
पाया। ‘दी यूज ॉिनकल’ ने बोस को ‘ ांितकारी के िलए िवल ण प से
िवचारशील एवं बुि मान’ के प म प रभािषत कया और साथ ही िलखा—
एक भारतीय नज रए से बोस ारा ख ची गई गांधी क तसवीर काफ
रोचक है। इस तसवीर को पूरी दृढ़ता और प ता के साथ आकार दया गया
है। उ ह ने राजनेता क ‘िहमालय िजतनी ऊँची गलितय ’ को नजरअंदाज
कए िबना इस संत के शानदार गुण के साथ पूण याय कया है...
बोस जब इस पु तक को िलख रहे थे तो उ ह ने रब नाथ टैगोर के साथ
प ाचार कया और ब ड रसेल तथा एच.जी. वे स जैसे ि टश बुि जीिवय
से प रचय क बात कही। एक समय तो यह उनक दली इ छा थी क ऐसी
कोई एक ह ती उनक पु तक क तावना िलख। बाद म या तो उ ह ने यह
िवचार छोड़ दया या यह योजना िसरे नह चढ़ सक । इसके बावजूद
समकालीन ेस रपोट से यह प है क भारत म पु तक को ितबंिधत कए
जाने के बाद वामपंथी ि टश राजनेता और बुि जीिवय म एक हलचल
थी। जॉज लांसबरी ने बोस को एक संदश े भेजकर पु तक के िलए उनका
ध यवाद कया, िजससे वे ‘ब त-कु छ सीख’ रहे थे।
यूरोप से पु तक पर सबसे अिधक रोचक ट पणी ांसीसी रोमेन होलांद क
ओर से आई, िज ह ने नेताजी को 22 फरवरी, 1935 को िलखे प म कहा—
...पु तक इतनी रोचक तीत होती है क मने एक और कॉपी का ऑडर कर
दया है, य क मेरी प ी और मेरी बहन के पास भी एक ित होनी चािहए।
भारतीय आंदोलन के इितहास पर यह एक शानदार पु तक है। इसम आपने
एक इितहासकार के े गुण का दशन कया है— प ता और उ दज क
वैचा रक समानता। ऐसा िवरले ही होता है क आप जैसा एक स य ि
िबना कसी दलगत भावना के इतनी सटीकता से घटना के साथ याय
करता है। म आपक यादा तारीफ नह कर रहा ,ँ ले कन मने यह पाया है क
आप इसके हकदार ह। गांधी ारा िनभाई गई भूिमका और उनक कृ ित म
आप िजस त ै वाद क बात करते ह, उसने मुझ पर ब त गहरा असर कया है।
प है क यही त ै वाद उनके ि व को इतना मौिलक बनाता है। ...म
आपक दृढ़ राजनीितक सोच क सराहना कर रहा ।ँ यह कतनी दयनीय
ि थित है क भारतीय सामािजक आंदोलन के सबसे यो य नेता या तो जेल क
सलाख के पीछे ह या िनवासन म ह, जैसे क आप और जवाहरलाल नेह ...
आयरलड के रा पित डी वेलरा ने पु तक को काफ िच के साथ पढ़ा और
इस संदश े के साथ इसका समापन कया—
‘म उ मीद करता ँ क िनकट भिव य म भारतीय लोग को आजादी और
खुशी ा होगी।’
रोम म बोस ने खुद मुसोिलनी को पु तक क एक ित भट क थी, िज ह ने
बदले म भारतीय िहत के ित सहानुभूित जताई थी। ऐसी रपो स थ क
वहाँ काशक तुरंत इसके इतालवी सं करण म िच दखाने लगे थे। अंतत:
‘इटािलयन इं टीट् यूट ऑफ िमडल एंड फॉर ई टन अफे यस’ के त वावधान म
1942 म इसका इतालवी सं करण जारी कया गया। ि तीय िव यु क पूव
सं या पर पु तक के पहले भाग का जापानी सं करण और फर यु के दौरान
अगला सं करण कािशत आ। यह माना जाता है क जमन सं करण क
योजना बनाई गई थी और नेताजी क यूरोप क अंितम या ा के दौरान इसक
तैयारी चल रही थी, ले कन यह योजना कामयाब नह हो सक । पु तक का
दूसरा भाग ‘1935-1942’ भी पहले भाग के पूरा हो जाने के आठ साल बाद
यूरोप म ही िलखा गया था। नेताजी पु तक क पांडुिलिप अपनी प ी एिमली
शकल के पास िवयना म छोड़ गए थे, िज ह ने यु क समाि पर इसे
उपल ध कराया। 1935 के लंदन काशन का एक पुन: मु ण पहली बार 1948
म भारत म जारी कया गया तथा इसका बाक िह सा ‘1935-42’ अलग से
1952 म कािशत आ। ‘नेताजी रसच यूरो’ ने पहला संयु सं करण 1964
म जारी कया और उसके बाद 1981 म नेताजी के संकलन सं करण 2 के प
म इसे पुन: कािशत कया गया।
यह ब त ही सावधानी से पुन: संपा दत कया गया शता दी सं करण है।
पाठक के िहत म नेताजी के िवमश को पेश करते ए इसम अ याय के शीषक
म मामूली बदलाव भर कए गए ह। मूल लंदन सं करण म शािमल प रिश
को इस सं करण म ‘उपसंहार 1934’ के प म िलया गया है और यह अ याय
‘भिव य क एक झलक’ के प ात् आने के बजाय पहले आया है। प रिश म
हमने जनवरी 1938 म लंदन म बोस के साथ एक सा ा कार क रपोट को
कािशत कया है, िजसम ‘भिव य क एक झलक’ शीषकवाले अ याय म
फासीवाद और सा यवाद के संदभ म उनका प ीकरण तुत कया गया है।
नेताजी के प , भाषण और उस समय के लेख, िज ह ‘दी इं िडयन गल,
1920-1942’ म शािमल कया गया है, उ ह कलेि टड व स के 3 से 11व
सं करण म देखा जा सकता है। इस पु तक क िवषय-व तु अग त 1942 म
जाकर इस ट पणी के साथ समा होती है—‘भारत क आजादी क लड़ाई के
इितहास म एक नया अ याय शु हो चुका था।’ जो अनकहा रह गया था, वह
यह था क ‘भारत का संघष’ के अंितम अ याय म नेताजी एक िनणायक
भूिमका िनभाने क तैयारी म थे। अपनी पु तक के दूसरे भाग म संशोधन का
काय पूरा करने के तुरंत बाद वे खतरनाक पनडु बी या ा से दि ण-पूव
एिशया के िलए रवाना हो गए, जहाँ उ ह ने अंितम भारतीय वतं ता सं ाम
म आजाद हंद फौज क अगुआई क ।
—िशिशर कु मार बोस
—सुगत बोस
आभार
ह म संपादक य परामश के िलए ो. कृ णा बोस और ो. िलयोनाद ए. गोडन का तथा
सिचवालय सहायता के िलए ीमान का तक च वत का, अिभलेखागार सहयोग के िलए
ीमान नगा सुंदरम् का और यूरो के काशन िवभाग के संचालन म ावहा रक मदद के
िलए मनोहर मंडल एवं मुंशी के अनथक यास के िलए आभार करते ह। हम
काशन या को व रत एवं भावी तरीके से सँभालने के िलए ऑ सफोड यूिनव सटी
ेस के ित भी अपना आभार दज कराना चाहते ह। इस मौके पर हम एक बार फर से
नेताजी क धमप ी ऐिमली शकल और उनक पु ी अिनता फाफ के ित दल क
गहराइय से आभार जताना चाहते ह, िज ह ने नेताजी के काय का कॉपीराइट नेताजी
रसच यूरो को स पा है।
—िशिशर कु मार बोस
—सुगत बोस
अनु म
संपादक-प रचय
आभार
प रचय

1. घुमड़ते बादल (1920)


2. लो, आ गया तूफान (1921)
3. िवरोधी चरमो कष (1922)
4. वराजवा दय का िव ोह (1923)
5. देशबंधु सी.आर. दास स ा म (1924-25)
6. पतन (1925-27)
7. बमा क जेल म59 (1925-27)
8. मौसम सुहावना आ (1927-28)
9. तूफान के आसार (1929)
10. तूफान (1930)
11. गांधी-इरिवन समझौता और उसके बाद (1931)
12. महा मा गांधी यूरोप म (1931)
13. फर िछड़ उठी लड़ाई (1932)
14. पराजय और समपण (1933-34)
15. ेत-प और सां दाियक फै सला/अिधिनणय135
16. भारतीय इितहास म महा मा गांधी क भूिमका
17. बंगाल क ि थित
18. उपसंहार (1934)
19. भिव य क एक झलक
20. 1857 के बाद से भारत : एक िवहंगम अवलोकन151
21. जनवरी 1935 से िसतंबर 1939 तक
22. िसतंबर 1939 से अग त 1942 तक
प रिश : भारत का संघष : सवाल-जवाब161
संदभ सूची
प रचय
I. भारतीय राज व था क पृ भूिम
ारं िभक काल से लेकर भारत के इितहास क स ी तसवीर पेश करने के यास के वल
िपछले तीन दशक के दौरान ही कए गए ह। इससे पहले, ि टश इितहासकार के िलए
ि टश काल से पूव के भारतीय इितहास के युग को नजरअंदाज करने क एक रवायत-सी
ही चली आ रही थी। चूँ क उ ह ने ही सबसे पहले भारत क राजनीित क यूरोप के सम
ा या क थी, तो ऐसे म यह ब त वाभािवक था क आधुिनक यूरोप भारत के बारे म
सोचते ए एक ऐसी धरती क क पना करता, जहाँ वतं स ाधारी मुख आपस म ही
एक-दूसरे से लड़-मर रहे थे और ि टश शासक के आने तक यह ऐसे ही चलता रहा तथा
उ ह ने ही इस धरती को जीतकर यहाँ शांित और व था कायम क तथा पूरे देश को
ि टश शासक ही एक राजनीितक शासन के तहत लेकर आए।
हालाँ क भारत को समझने के िलए शु आत म ही दो मह वपूण त य को यान म
रखना ब त ज री है। पहला, भारत के इितहास क गणना दशक या स दय म नह ,
बि क हजार साल म करनी होगी। दूसरी बात, के वल ि टश शासन के अधीन आने के
बाद ही पहली बार भारत ने अपने इितहास म यह महसूस करना शु कया क उस पर
कसी का आिधप य थािपत हो गया है। अपने लंबे इितहास और िवशाल भू े के कारण
भारत िविभ उतार-चढ़ाव से गुजरा है। न ही एक ि के िलए और न ही एक रा के
िलए यह संभव होता है क वह गित और समृि क मंिजल को िबना बाधा के हािसल
कर सके । इसी के प रणाम व प, भारत को अपने इितहास क गित और समृि के
पड़ाव से गुजरते ए बीच-बीच म िवघटन और यहाँ तक क अराजकता का भी सामना
करना पड़ा। और िवघटन क इस या म सं कृ ित और स यता का उ तर इसक
चा रि क िवशेषताएँ रह । अगर कोई यह कहे क के वल ि टश शासन के तहत ही भारत
ने पहली बार राजनीितक एकजुटता का अनुभव करना शु कया तो वह या तो अ ानी है
या पूव ह से िसत है। वा तिवकता तो यह है क अपने फायदे के िलए ेट ि टेन भारत
को एक राजनीितक शासन के तहत लेकर आया और हर जगह राजभाषा के प म लोग
पर अं ेजी को जबरन थोप दया गया। लोग को िविभ आधार पर बाँटने म कोई कसर
बाक नह रखी गई।
य द इसके बाद भी आज देश म एक शि शाली रा वादी आंदोलन है और एकजुटता क
एक मजबूत भावना है तो इसका ेय पूरी तरह इस त य को जाता है क लोग ने पहली
बार अपने इितहास म यह महसूस करना शु कया है क उ ह अधीन कर िलया गया है
और इसी के साथ ही उ ह इसके घातक भाव भी समझ आने लगे थे—सां कृ ितक प से
भी और भौितक प से भी—जो राजनीितक उदारता के बाद सामने आए थे।
हालाँ क भौगोिलक, जातीय और ऐितहािसक दृि से देखा जाए तो भारत कसी भी
पयवे क के सम एक असीम िविवधता संप रा के प म सामने आता है—इसके
बावजूद, इस िविवधता के नीचे कह गहराई म एक मौिलक एकता है। ले कन जैसा क
िव सट ए. ि मथ ने कहा है—‘यूरोपीय लेखक, एक िनयम के तहत, भारत क एकजुटता के
िवपरीत उसक िविवधता के ित अिधक सजग रहे ह...तमाम संदह े से परे भारत म एक
गहरी अंत निहत मौिलक एकता है, जो क भौगोिलक अलगाव या राजनीितक पराधीनता
से कह अिधक गहरी है। यह एकता र , रं ग, भाषा, पहनावे, तौर-तरीक और धम क
असं य िविवधता को पार करते ए आगे बढ़ती जाती है।’1 भौगोिलक प से भारत
एक आ म-सीिमत इकाई के प म शेष िव से अलग-थलग नजर आता है। उ र म
िवशाल िहमालय और दोन ओर से असीम महासागर से िघरा भारत भौगोिलक इकाई
का े उदाहरण कहा जा सकता है। भारत क जातीय िविवधता कभी कोई सम या नह
रही—अपने संपूण इितहास म भारत िविभ न ल को वयं म समािहत करने और उ ह
एक साझा सं कृ ित तथा परं परा म बाँधने म स म रहा है। इस या म हंद ू धम
सवािधक मह वपूण संयोजक कारक रहा है। उ र या दि ण, पूव या पि म, आप कसी
भी दशा म सफर पर िनकल जाइए, आप समान धा मक िवचार, समान सं कृ ित और
समान परपंरा को पाएँग।े सभी हंद ू भारत को एक पिव भूिम के प म देखते ह।
पिव शहर क तरह पिव न दयाँ पूरे देश म फै ली ई ह।2 य द एक धमपरायण हंद ू के
प म आपको अपनी तीथया ा प र मा संप करनी हो तो आपको सुदरू दि ण म
सेतुबंध-रामे रम् से लेकर उ र म िहमालय क िहमा छा दत पहािड़य के दय म ि थत
बदरीनाथ क या ा करनी पड़ेगी। महान् आचाय , िज ह ने देश को अपने धम म
प रव तत करने क इ छा रखी, उ ह हमेशा संपूण भारत क या ा करनी पड़ी और इनम
सबसे महान् थे शंकराचाय, जो आठव सदी म भारत म ए थे। उ ह ने भारत के चार
कोन म चार ‘आ म’ थािपत कए थे, िजनका आज भी ब त महा य है।
भारत म हर थान पर समान धम ंथ पढ़े जाते ह और उनका अनुसरण कया जाता है
और आप जहाँ भी जाएँगे, आपको महाका ‘महाभारत’ एवं ‘रामायण’ समान प से
लोकि य िमलगे। मुसलमान के आगमन के साथ धीरे -धीरे एक नई कार क संरचना
सामने आने लगी। हालाँ क उ ह ने हंद ू धम को वीकार नह कया, ले कन उ ह ने भारत
को अपना घर बना िलया और लोग के साझा सामािजक जीवन म—उनक खुशी म, उनके
दु:ख म घुल-िमल गए। इस कार आपसी सहयोग से एक नई कला और एक नई सं कृ ित
िवकिसत ई, जो पुरानी कला और सं कृ ित से िभ थी, ले कन वह िविश प से
भारतीय थी। वा तुिश प, िच कला, संगीत के े म नई रचनाएँ रची ग , जो
सं कृ ितय क दो धारा के सुखद सि मलन का तीक थ । इसके अलावा, मुसिलम
शासक के शासन ने लोग के दैिनक जीवन म कोई ह त ेप नह कया और साथ ही
ामीण समुदाय क पुरानी व था पर आधा रत थानीय वशासन म भी कोई
दखलअंदाजी नह क । ले कन ि टश शासन के साथ एक नया धम, एक नई सं कृ ित और
एक नई स यता भारत म आई, जो पुरानी के साथ मेल-िमलाप क इ छु क नह थी। इसके
िवपरीत, उसक इ छा देश को पूरी तरह अपने भु व म लेने क थी। पुराने
आ मणका रय के िवपरीत, ि टश लोग ने भारत को अपना घर नह बनाया। उ ह ने
राहगीर क तरह भारत को क े माल के साधन और तैयार माल के बाजार के प म
देखा। के वल यह पर िवराम नह लगा। ि टश शासक ने मुसिलम शासक के िनरं कुश
शासन क नकल करने क कोिशश क , ले कन उ ह ने थानीय मामल से पूरी तरह दूरी
बनाकर रखने क उनक सूझ-बूझपूण नीित का अनुसरण नह कया।
इसका प रणाम यह आ क भारतीय लोग ने अपने इितहास म पहली बार इस बात
को महसूस करना शु कया क सां कृ ितक, राजनीितक और आ थक प से उन पर ऐसे
लोग ने क जा जमा िलया था, जो उनके िलए पूरी तरह दूसरे ह के ाणी थे और िजनके
साथ उ ह कसी भी बात म समानता नजर नह आती थी। इसिलए भारत म ि टश
भु व के िखलाफ िव ोह क भयावहता अिधक सघन थी।
भारत के मौजूदा राजनीितक आंदोलन को उिचत प र े य म समझने के िलए यह
ज री हो जाता है क पूव म उसके राजनीितक सं थान और राजनीितक िवचार का एक
संि सव ण कर िलया जाए। भारत क स यता ब त अिधक पुरानी नह भी मानी
जाए तो भी 3000 ईसा पूव पुरानी तो है ही और उसके बाद से इसक सं कृ ित और
स यता म एक िनरं तरता रही है, जो क अपने आप म एक ब त ही उ लेखनीय आधार है।
स यता और सं कृ ित क यह िनबाध एवं िनरं तर धारा वािहत होना भारतीय इितहास
क सवािधक मह वपूण िवशेषता है और यही िवशेषता लोग क सश जीवन-शि ,
उनक सं कृ ित और स यता क गहराई क ा या करती है। उ र-पि मी भारत के
मोहनजोदड़ो और हड़ पा म ताजा पुराताि वक खुदाई ने पूरी सटीकता के साथ यह
सािबत कर दया है क अगर ब त पहले नह तो भारत 3000 ईसा पूव स यता के बेहद
उ तर पर प च ँ चुका था। यह संभवत: भारत पर आय ारा जीत दज कए जाने से
पहले था। यह कहना अभी ज दबाजी होगी क इस खुदाई से समकालीन भारतीय
इितहास पर या रोशनी पड़ेगी, ले कन आय ारा भारत को िवजय कए जाने के बाद से
अब अिधक त य और ऐितहािसक साम ी उपल ध है। शु आती वै दक सािह य म सरकार
के गैर-राजतं ा मक व प का िज िमलता है। जहाँ इस कार क व था थी, वहाँ
जनजातीय लोकतं क मौजूदगी थी। उस काल म वै दक समुदाय के बीच ‘ ाम’ सबसे
छोटा और ‘जन’ सव सामािजक और राजनीितक संगठन था।3 बाद के महाका
सािह य, जैसे क ‘महाभारत’ म सरकार के गणतं व प का प उ लेख है।4 इस बात
का भी सबूत है क पुराने समय से ही लोक शासन के संबंध म लोकि य बैठक होती थ ।
पूरे वै दक सािह य म आप दो कार क बैठक के संबंध म उ लेख पाते ह—सभा और
सिमित (िज ह संगित या सं ाम भी कहा जाता था)। ‘सभा’ क ा या कु छ चु नंदा लोग
क सलाहकार प रषद् के अथ म क गई है, जब क ‘सिमित’ को एक पूरे समुदाय क बैठक
के संदभ म प रभािषत कया गया है। ‘सिमित’ क बैठक शाही रा यािभषेक, यु या
रा ीय आपदा आ द अवसर पर होती थी।5 राजनीितक िवकास के अगले चरण म, भारत
म आय के भाव के िव तार के बाद राजतं ीय शि के िवकास क ओर एक खास क म
क वृि िमलती है।
उस समय भु व हािसल करने के िलए उ र भारत के वतं रा य के बीच अकसर
यु ए ह गे। इन यु म मु ा राजनीितक िव तार नह , बि क परािजत प ारा
िवजेता प क अधीनता को वीकार करना रहा होगा। ऐसे यु म िवजय पताका
फहरानेवाले राजा को ‘च वत ’ या ‘मंडले र’ कहा जाता था और ऐसी िवजय का उ सव
मनाने के िलए िवशाल पैमाने पर ‘राजसूय’ या ‘वाजपेय’ या ‘अ मेध’ समारोह कए
जाते थे। भारतीय इितहास के वै दक और महाका युग के दौरान से लेकर छठी शता दी
आर.सी. तक स ा के क ीकरण क यह वृि मजबूत ई। भारत के राजनीितक
एक करण के आंदोलन ने एक िनि त प ले िलया। अगले काल के दौरान यह आंदोलन
अपनी संपूणता को ा आ—िवशेष प से बौ या मौय काल म—जब मौय स ाट्
पहली बार भारत को राजनीितक प से एकजुट कर पाने म सफल ए और उ ह ने एक
सा ा य क थापना क । िसकं दर महान् के भारत से पीछे हटने के बाद चं गु मौय उस
समय तक 322 ईसा पूव म अपने सा ा य क थापना कर चुका था और उसके बाद भी
भारत म कई गणतं ए। मालव, ु क, िल छवी तथा अ य जनजाितय का गणतांि क
गठन हो चुका था। के .पी. जायसवाल ने अपनी पु तक ‘ हंद ू पॉिलटी’ म ऐसे गणतं क
एक लंबी सूची दी है। इस बात म कोई संदह े नह है क जब भारत एक स ाट् के तहत
राजनीितक प से एकजुट था तो ये गणतं एक स ाट् के आिधप य को वीकार करते ए
वाय प से फलते-फू लते रहे। इसके अित र , भारतीय इितहास के उस काल के दौरान
लोकि य सभा एक सु थािपत सं था थी। मौय स ाट म सबसे महान् अशोक था, जो
चं गु का पौ था और जो 273 ईसा पूव संहासन पर बैठा था। अशोक के सा ा य म न
के वल आधुिनक भारत, बि क अफगािन तान, बलूिच तान और ईरान के भी कु छ िह स
तक फै ला आ था। मौय सा ा य के तहत, लोक शासन ब त उ तर पर भावी था।
सै य संगठन उस समय के िहसाब से संपूण था। सरकार को िविभ मंि य के तहत अलग-
अलग िवभाग म बाँटा गया था। आधुिनक पटना के िनकट राजधानी पाटिलपु का
नगरपािलका शासन सराहनीय था। सं ेप म, पूरा देश पहली बार एक मजबूत शासन
के तहत राजनीितक प से एक कृ त था और जब अशोक ने बौ धम हण कर िलया तो
पूरा रा य तं बौ धम क शरण म चला गया।
अशोक के वल राजनीितक सं भुता या के वल अपने सा ा य क सीमा के भीतर बौ
धम का सार करने से संतु नह थे और इसिलए उ ह ने पूरे एिशया म—एक ओर
जापान से लेकर दूसरी ओर तुक तक—बौ धम के उदा िस ांत के चार के िलए
भेजा। ब त से लोग ारा इस काल को भारतीय इितहास का वण काल माना जाता रहा
है, जब जीवन के सभी े म एक समान और च म ँ ुखी िवकास आ।6 कु छ समय बाद
पतन ने पाँव जमाने शु कए और म यांतर के प म अराजकता फै ल गई—धा मक,
सां कृ ितक और राजनीितक अराजकता।
मु य प से अपने अितवादी वैरा य के कारण भारतीय लोग पर बौ धम क पकड़
ढीली हो गई और ा णवादी हंद ू धम पुनज िवत हो उठा। दाशिनक प क ओर वेदांत
दशन, िजसे पहले उपिनषद म ितपा दत कया गया था, उसे उसक खोई ई ित ा
पुन: दान क गई। सामािजक प क ओर देखा जाए तो वण- व था पुनज िवत ई
तथा अवसान काल क ओर बढ़ते बौ धम के ण पड़ चुके वैरा य का थान यथाथवाद
क एक नई लहर ने ले िलया। गु सा ा य के उ व ने राजनीितक अराजकता पर िवराम
लगा दया, जो क चौथी और पाँचव शता दी ईसवी म फला-फू ला था। गु स ाट म
सबसे महान् स ाट् समु गु ए, जो 330 ईसवी म संहासन पर बैठे थे। गु काल के
दौरान, रा को न के वल राजनीितक प से एकजुट कया गया, बि क कला, सािह य और
िव ान ने भी काफ गित क 7 और एक बार फर से रा ने उ कृ ता के नए मानक को
छु आ। इस पुनजागरण ने ा णवादी हंद ू धम के भाव के तहत आकार िलया और
इसिलए इस काल को परं परावादी या ढ़वादी हंद ू इससे पूव के बौ काल के मुकाबले
अिधक उ म काल मानते ह। मौय स ाट के राज म भारत ने एक बार फर से एिशयाई
देश और कु छ यूरोपीय देश , जैसे क रोम के साथ स य सां कृ ितक और वािणि यक
संबंध थािपत कए थे। पाँचव सदी के बाद गु स ाट क राजनीितक शि तो समा
हो गई, ले कन सां कृ ितक पुनजागरण िनबाध प से जारी रहा और पुन: यह 640 ईसवी
म अपने चरमो कष को ा आ, जब राजा हष के शासन के अधीन देश एक बार फर से
राजनीितक प से एकजुट हो गया।
काल म क यह गित अिधक समय तक नह रही और कु छ समय बाद फर से पतन के
संकेत उभरने लगे। त प ात्, भारतीय इितहास म एक नया ही आयाम सामने आया—
मुसिलम आ ांता। म य भारत म उनके हमले दसव शता दी म ही शु हो गए थे, ले कन
देश पर फतह हािसल करने म उ ह कु छ समय लगा।8 14व शता दी म मोह मद िबन
तुगलक पहली बार देश के एक बड़े िह से को एक शासन के तहत लाने म सफल हो गया,
ले कन संपूण रा को आिधप य म लेने क तारीख मुगल शासक के नाम ही िलखी जानी
थी। 16व और 17व शता दी म मुगल शासक के शासन के तहत भारत एक बार फर
तर और समृि के शीष पर प च ँ गया। इनम सबसे महान् मुगल स ाट् अकबर था,
िजसने 16व शता दी के उ राध म देश पर राज कया था। अकबर को के वल देश के
राजनीितक एक करण का ही ेय नह जाता है, बि क उससे भी अिधक यह बात मायने
रखती है क उसने पुरानी सं कृ ित के साथ नई सं कृ ित का मेल कराने के िलए एक नई
क म का सां कृ ितक ताना-बाना तैयार कया और नई सं कृ ित क न व रखी।9 अकबर ने
िजस रा य तं का िनमाण कया, वह भी हंद ू और मुसिलम समुदाय के बीच
समरसतापूण सहयोग पर आधा रत था। मुगल शासक के बीच आिखरी महान् स ाट्
औरं गजेब था, िजसक मृ यु 1707 म ई और उसके जाने के बाद मुगल सा ा य क चूल
धीरे -धीरे िहलनी शु हो ग ।
उपरो ऐितहािसक िवमश से यह प होगा क ाचीन समय म भी भारत म सरकार
का लोकतांि क गणरा य व प मौजूद था। वे आमतौर पर सजातीय कबीले या जाित पर
आधा रत होते थे। महाभारत म इन जनजातीय लोकतं को ‘गण’ के प म जाना जाता
है।10 इन पूणकािलक गणतं के अलावा, राजतं ीय या राजशाही रा य म भी जनता को
एक बड़ी सीमा तक वतं ता ा थी, य क राजा एक कार से संवैधािनक राजा होता
था। यह त य, िजसक ि टश इितहासकार ने लगातार अनदेखी क , उसे भारतीय
इितहासकार ारा अब ापक शोध के साथ पूरी तरह थािपत कया जा चुका है।
राजनीितक मामल के अलावा अ य मामल म भी लोग ब त अिधक वतं ता का
आनंद उठा रहे थे। ाचीन समय का भारतीय सािह य ऐसे उ रण से भरा आ है, जहाँ
लोक इकाइय को ‘पुर’ और ‘जनपद’ कहा जाता था। ‘पुर’ हमारी आधुिनक
नगरपािलका के समान थे तो ‘जनपद’ संभवत: एक कार क गैर-शहरी नगर इकाइयाँ
रही ह गी। इतना ही नह , जाित- व था के अि त व को देखते ए, लोग सामािजक
मामल म वशािसत थे, जो क ‘पंचायत’ के िनयं ण के अधीन एक जातीय लोकतं
व था थी।11 भारत म ाचीन समय से ही लोकि य ‘पंचायत’ पाँच रही ह, िजनका
काम न के वल गाँव के शासन को चलाना था, बि क जातीय िनयमन और जाित के भीतर
अनुशासन को बनाए रखना भी था। उसके बाद के बौ काल म जनता ने ापक पैमाने
पर वशासन शि य का उपयोग कया। इस काल के दौरान, ‘सभा’ और ‘मत’ लोकि य
सं थाएँ थ । मौय सा ा यवाद के आगमन ने इन शि य पर अित मण नह कया और न
ही उन गणतं को न कया, जो उस समय भी फल-फू ल रहे थे। गु और हष सा ा य
ने भी इसी नीित का अनुसरण कया। मुसिलम शासक के राज म, हालाँ क बेलगाम
िनरं कुशता हावी थी, ले कन क ीय सरकार िवरले ही ांतीय या थानीय मामल म दखल
देती थी। एक ‘सूबे’ या ांत के गवनर क िनयुि िनि त प से स ाट् ारा क जाती
थी, ले कन जब तक शाही खजाने म राज व िनयिमत प से प च ँ ता रहता था, ांतीय
शासन कसी भी प म ह त ेप नह करता था। कभी-कभार कोई क र शासक
धमातरण के यास करता था, ले कन कु ल िमलाकर जनता को धा मक, सां कृ ितक और
सामािजक मामल म पूण वतं ता हािसल थी। उ ह इस बात से कोई फक नह पड़ता था
क द ली के त त पर कसका राज है? ि टश इितहासकार िबना कसी अपवाद के इस
त य को अनदेखा करने के अपराधी ह और जब वे हलके अंदाज म िपछले िनरं कुश शासन
क बात करते ह, िजसके राजा-महाराजा आदी थे, तो वे भूल जाते ह क िनरं कुश शासन के
इस लबादे के पीछे जनता ने बड़े पैमाने पर वतं ता का उपभोग कया, जो क उनसे
ि टश शासन म छीन ली गई थी। ले कन भारत को आय ारा जीते जाने से पहले और
उसके बाद वाय ामीण सं थान भारत म लगातार लोक जीवन क िवशेषता बने रहे।
यह उ र म आय सा ा य और दि ण म तिमल सा ा य िजतना ही स य है।12 ले कन
ि टश शासन के तहत इन सं था को न कर दया गया और नौकरशाही के लंबे हाथ
दूर-दराज के गाँव तक प च ँ गए। एक वगफ ट भी जगह ऐसी नह बची, जहाँ के लोग यह
महसूस करते ह क अपने मामल का बंधन करने के िलए वे वतं ह। राजनीितक
सािह य के संदभ म भी देख तो ाचीन भारत के पास गव करने के िलए काफ कु छ था।
‘महाभारत’ राजनीित िव ान के छा के िलए ान तथा सूचना का भंडार है। सहायक
सािह य के प म धमशा भी अनमोल है। ले कन सवािधक रोचक है कौ ट य का
‘अथशा ’, जो संभवत: चार ईसवी पूव समय से ता लुक रखता है। अपने िवमश को आगे
जारी रखते ह। मुगल सा ा य का धीरे -धीरे पतन हो रहा था तो सवाल पैदा होता है क
उसक जगह कौन सी शि लेगी? उस समय तक दो वदेशी ताकत ने अपना भु व
कायम करने का यास कया—म य भारत से मराठा शि और उ र-पि म से िसख
शि । मराठा शि को िशवाजी ने (1627-80) संग ठत कया, जो वयं एक महान्
सेनापित होने के साथ ही महान् शासक भी थे। उनक मृ यु के प ात् मराठा शि 18व
सदी के अंत तक कायम रही। 1761 ईसवी म इसके िव तार पर पानीपत क तीसरी लड़ाई
म िवराम लग गया, जहाँ मराठा को पराजय का सामना करना पड़ा और अंतत: 1818
म ि टश शासक ने उ ह उखाड़ फका। हालाँ क मराठा ने िनरं कुश शासन कया,
ले कन उसका आधार परोपकार था, ले कन साथ ही उसक अित कु शल सेना और शानदार
नाग रक शासन ने भी उसके उ थान म मह वपूण भूिमका अदा क थी। िसख शि क
कमान महाराजा रं जीत संह (1780-1839) के हाथ म थी, िज ह ने अपने जीवनकाल म
एक शानदार सेना का िनमाण कया और उनका नाग रक शासन भी आला दज का था।
ले कन उनक मृ यु के बाद उनके जैसा कोई शि शाली और मतावान नेतृ व उनक
खाली जगह को नह भर सका और जब िसख एवं ि टश शासक के बीच यु िछड़ा तो
िसख को स ा से बाहर कर दया गया। यह भारत का दुभा य ही रहा क जब वह
राजनीितक अराजकता के दौर से गुजर रहा था और एक नई सामािजक एवं राजनीितक
व था िवकिसत करने का यास कर रही थी तो उसी सं मण काल म वह यूरोपीय
शि य के हाथ का िखलौना बन गया। पहले पुतगाली, फर डच, उसके बाद ांसीसी
और फर ि टश बारी-बारी से भारत म घुसते चले गए। ये सब भारत के साथ के वल
ापा रक संबंध और धम के चार मा से संतु नह थे और इ ह ने आपस म लड़ते
राजा से राजनीितक स ा हिथयाने क कोिशश क ।
काफ व बीत जाने के बाद ांसीिसय और ि टश के बीच भीषण संघष आ। ले कन
इसम क मत ने ि टेन का साथ दया। इतना ही नह , ि टेन क कू टनीित अिधक
चतुराईपूण और उनक रणनीित अिधक सूझ-बूझवाली थी। ि टेन म स ासीन सरकार ने
उनका पूरा-पूरा साथ दया, जब क ांसीिसय को अपने देश से ऐसा कोई सहयोग नह
िमला। ांसीिसय ने दि ण भारत को अपने संचालन का आधार बनाया था और उ ह ने
दि ण से ही संपूण भारत को अपने अिधकार म लेने का यास कया। ि टश या
ि तािनय ने बंगाल पर क जा जमाने के बाद शेष भारत को अपने आिधप य म लेने के
िलए उ र भारत से ही संचालन क ऐितहािसक परं परा का अनुसरण कया और ऐसा
करते ए वे ांसीिसय के मुकाबले अिधक सफल रहे। भारतीय इितहास के एक-एक प े
का अ ययन करने के बाद हम िन सामा य प रणाम िनकाल सकते ह—
(1) उ थान के बाद पतन काल आया और उसके बाद फर से उठा-पटक का एक नया दौर
शु आ।
(2) पतन मु य प से भौितक और बौि क थकान का प रणाम होता है।
(3) गित और नव उ कष, नए िवचार के आगमन और कई बार नए खून के नए िवचार
म मेल से लाया जाता है।
(4) हर नए युग का सू पात उन लोग ारा कया जाता रहा है, जो महान् बौि क शि
या े तम सै य-कौशल के वामी रहे ह।
(5) संपूण भारतीय इितहास म सभी िवदेशी त व को हमेशा धीरे -धीरे भारतीय समाज ने
अपने म समािहत कया। इस संदभ म ि तानी लोग पहले और एकमा अपवाद ह।
(6) क ीय सरकार के तर पर बदलाव के बावजूद, लोग ापक पैमाने पर वा तिवक
आजादी म जीने के अ य त रहे ह।
II. भारत म ि टश शासन क युगांतरकारी घटनाएँ
इं लड ने सव थम ई ट इं िडया कं पनी के मा यम से भारत म अपने पैर जमाए। इस
कं पनी को एक रॉयल चाटर दान कया गया था, िजसने उसे ापार के मामल म
एकािधकार और जमीन हािसल करने जैसे मामल म ापक शि याँ दान कर दी थ ।
ई ट इं िडया कं पनी, एक े डंग कं पनी के तौर पर 17व सदी क शु आत म वयं को भारत
म थािपत करने म सफल हो गई। धीरे -धीरे कं पनी और थानीय भारतीय शासक म
मतभेद पैदा होने लगे और इसके प रणाम व प, कु छ थान , जैसे क बंगाल म, सश
संघष िछड़ गए। ऐसे ही संघष म से एक संघष के दौरान बंगाल के त कालीन शासक
नवाब िसराजु ौला को कं पनी और िसराजु ौला के िखलाफ सािजश रचनेवाले भारतीय
ग ार क संयु सेना ने परािजत कर दया। ावहा रक प से देखा जाए तो यह
भारत पर राजनीितक िवजय क शु आत थी। कु छ साल बाद, 1765 म, द ली के
बादशाह शाह आलम, जो उस समय भारत के नाममा के शासक थे, उ ह ने बंगाल,
िबहार और उड़ीसा क दीवानी ई ट इं िडया कं पनी को स प दी। दीवानी स पने का अथ
था क इन सभी इलाक से ा होनेवाला राज व और इनका िव ीय शासन कं पनी के
हाथ म चला गया। इस कार ई ट इं िडया कं पनी, एक ापार कं पनी होने के साथ ही
एक शासिनक इकाई भी बन गई। अगले कु छ साल के दौरान कं पनी के अिधका रय के
बीच ाचार और कु शासन क िशकायत सामने आने लग । इसिलए 1773 म एक ऐ ट
पा रत कया गया, िजसे ‘लॉड नाॅ स रे युलेशन ऐ ट’ कहा गया। इस ऐ ट के ज रए ई ट
इं िडया कं पनी के नीितगत और शासिनक मामल पर ि तानी सरकार का िनयं ण हो
गया। इस ऐ ट के पा रत होने के साथ ही जो मु य शासिनक बदलाव आ, उसके तहत
बंगाल, बॉ बे और म ास, जो क एक-दूसरे से वतं थे, उ ह एक गवनर जनरल के अधीन
कर दया गया। गवनर जनरल चार काउं सलर क मदद से इस सारे े पर शासन
करनेवाले थे और गवनर जनरल का मु यालय बंगाल म बनाया गया। जो नई व था
पेश क गई थी, उसम अनिगनत खािमयाँ थ और इसके अलावा, गवनर जनरल वारे न
हे टं स के शासन के िखलाफ ाचार के गंभीर आरोप थे। इसिलए कु छ समय बाद,
एक और ऐ ट, िप स इं िडया ऐ ट-1784 म पा रत कया गया, िजसम बोड ऑफ कं ोल
का ावधान कया गया। इस बोड म कै िबनेट मंि य को शािमल कया गया तथा ई ट
इं िडया कं पनी का पूरा संचालन इसके िनयं ण म आ गया। इस बोड म कु छ िह सेदारी
मंि य क थी, ले कन बोड ऑफ कं ोल क िनयुि से अंतत: भारत पर ि टश संसद् का
भु व थािपत हो गया।
ई ट इं िडया कं पनी को समय-समय पर चाटर का नवीनीकरण करवाना पड़ा। 1833 का
चाटर ऐ ट कं पनी के दज और उसक काय णाली म एक उ लेखनीय बदलाव लेकर
आया। इस ऐ ट के पा रत होने से ई ट इं िडया कं पनी का कारोबारी दजा सीिमत हो गया
और वह िवशु प से राजनीितक और शासिनक इकाई बन गई। इस कार कं पनी
ि टश राजशाही के नाम पर भारत पर राज करने लगी। ऐ ट के ावधान के तहत,
संपूण नाग रक और सै य शासन क कमान तथा कानून बनाने क पूरी शि याँ काउं िसल
म गवनर जनरल के पद म िनिहत हो ग । 20 साल बाद, 1853 म जब चाटर ऐ ट का
नवीनीकरण कया गया तो कं पनी पर सरकार का िनयं ण और मजबूत हो गया। ऐ ट के
तहत यह अिनवाय ावधान कर दया गया क कं पनी के कोट ऑफ डायरे टस के एक-
ितहाई सद य को ि टश त त ारा नािमत कया जाएगा। जहाँ तक भारत का संबंध
था, कु छ और शासिनक बदलाव कए गए। बंगाल को लेि टनट गवनर के अधीन एक
अलग ांत बना दया गया और भारत सरकार इस कार ांतीय सरकार से अलग हो
गई। ऐ ट के तहत भारत के िलए लेिज ले टव काउं िसल क व था क गई, िजसम 12
सद य को शािमल कया गया और इनम सभी अिधकारी थे। 1853 म हाउस ऑफ कॉम स
म चाटर के नवीनीकरण पर चचा के दौरान जॉन ाइट ने ब त कड़े श द म कं पनी के
शासन के िखलाफ अपनी बात रखी। उनका कहना था क कं पनी शासन ने रा य म बड़े
पैमाने पर अ व था और ाचार पैदा कया है तथा लोग को गरीबी एवं बदहाली क
गत म धके ल दया है। उ ह ने माँग क क ि टश त त को भारत म शासिनक
िज मेदारी सीधे अपने हाथ म ले लेनी चािहए। इस सलाह पर कोई यान नह दया गया
और कु छ साल बाद बगावत फै ल गई (िजसे अं ेजी इितहासकार ने ‘िसपाही िव ोह’ कहा
और भारतीय रा वा दय ने इसे ‘ वतं ता का थम सं ाम’ क सं ा दी)। इस िव ोह को
कु चलने के बाद, 1858 म एक नया ऐ ट गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट नाम दया गया। इस
ऐ ट के मा यम से ि तानी राजशाही ने ई ट इं िडया कं पनी से भारत के संपूण शासन को
अपने हाथ म ले िलया। इस ऐ ट के पेश होने के साथ ही महारानी िव टो रया ने एक
शाही फरमान जारी कया, िजसे गवनर जनरल, लॉड कै नंग ने 1 नवंबर, 1858 को
इलाहाबाद म पढ़कर सुनाया।
ि टश संसद् के ित ि टश कै िबनेट क िज मेदारी के म ेनजर, ि टश संसद् एक
कार से भारत क राजनीितक िनयित क सवसवा बन गई। अगला मह वपूण कदम
1861 म इं िडयन काउं िसल ऐ ट को पा रत करते ए उठाया गया। इस ऐ ट के तहत
ावधान कया गया क गवनर जनरल क लेिज ले टव काउं िसल, िजसम व था क गई
थी क 12 से अिधक और 6 से कम सद य नह ह गे, उसम आधे सद य गैर-सरकारी ह गे।
स ल लेिज ले टव काउं िसल के अलावा, ो वंिशयल काउं िसल क भी व था क गई,
िजसम कु छ गैर-सरकारी सद य ह गे और इनक िनयुि सरकार ारा कए जाने का
ावधान कया गया। इस कार 1862 म बंगाल म, पि मो र ांत और अवध (अब
िजसे यूनाइटेड ांत कहा जाता है) म 1886 म ो वंिशयल लेिज ले टव काउं िसल थािपत
क गई।
1857 क बगावत के िवफल होने से एक जवाबी काररवाई का दौर चला और इस दौर
म भारत म ि टश िवरोधी सभी आंदोलन को बेरहमी से कु चल दया गया। हालाँ क इन
आंदोलन म भाग लेनेवाले लोग पूरी तरह िनह थे थे। शता दी के अंितम दन क ओर
बढ़ते ए 80 के दशक म राजनीितक दमन ख म हो चुका था और जनता एक बार फर से
अपनी आवाज उठाने लगी थी। इस बार आजादी पसंद और गितवादी भारतीय क
नीित और रणनीित 1857 के मुकाबले काफ िभ थी। सश ांित का तो सवाल ही नह
था, इसके थान पर संवैधािनक आंदोलन का िवक प रखा गया। इस कार संवैधािनक
साधन ारा अपनी वयं क सरकार क माँग को आगे बढ़ाने के िलए 1885 म भारतीय
रा ीय कां ेस क थापना क गई। भारतीय रा ीय कां ेस ारा कए गए आंदोलन ने
भारत सरकार को यह सोचने पर मजबूर कर दया क राजनीितक प से मामले म आगे
बढ़ना ज री है। इसिलए 1892 म एक और ऐ ट पा रत कया गया, िजसे इं िडयन
काउं िस स ऐ ट ऑफ 1892 कहा गया। इस ऐ ट के तहत, लेिज ले टव काउं िस स
(िवधान प रषद्) को सवाल पूछने और बजट पर चचा करने का अिधकार दान कया
गया। हालाँ क बजट पर मत िवभाजन क अनुमित नह दी गई। सरकार ारा एक गैर-
सरकारी िनयुि के िलए िवधाियका म आगे ावधान कया गया। गवनर जनरल क
लेिज ले टव काउं िसल म भी सद य क सं या बढ़ाकर 16 कर दी गई।
वतमान सदी का उदय होते ही भारत और बंगाल म बड़े पैमाने पर एक रा ीय जागरण
शु हो गया, जो क ि टश गुलामी से सवािधक लंबे समय तक पीिड़त रहा था। बंगाल से
ही इस नए आंदोलन क शु आत ई। 1905 म लाॅड कजन ने ांत के िवभाजन का फरमान
जारी कर दया। इसे शासिनक तर पर ता कािलक आव यकता करार दया गया,
ले कन यह तो सरकार का कहना था, जब क लोग महसूस कर रहे थे क बंगाल म नव
पुनजागरण क जड़ खोदने के िलए सरकार ने यह कदम उठाया था। बंगाल के िवभाजन के
िखलाफ तूफानी आंदोलन बंगाल म शु हो गया और इसके बाद आंदोलन क यह आग पूरे
देश म फै ल गई। इस दौरान सरकार के िखलाफ बदले क काररवाई के प म ि टश
व तु के बिह कार के यास कए गए। आंदोलन गित पकड़ चुका था और इस आग पर
पानी डालना ि तानी सरकार क मजबूरी थी। िलहाजा उसने एक लोकि य आंदोलन को
दबाने के िलए कु छ मु ी भर रयायत देने क कोिशश क और इसका प रणाम ‘माल- मंटो
सुधार ’ के प म सामने आया। ‘माल- मंटो सुधार योजना’ क सव थम घोषणा दसंबर
1906 म क गई और अंतत: इ ह इं िडयन काउं िसल ऐ ट ऑफ 1909 के प म पा रत कर
दया गया। घोषणा कए जाने से कु छ महीने पहले क बात है। इससे उ सािहत होकर
आगा खान के नेतृ व म मुसिलम नेता का एक ितिनिधमंडल 1 अ ू बर, 1906 को
वायसराय से िमलने गया। आस सुधार के संबंध म उ ह ने माँग रखी क मुसिलम
समुदाय के िलए कु छ सीट आरि त क जानी चािहए और इन सीट के िलए मतदान
भारतीय मतदाता क आम सभा ारा नह , बि क के वल मुसिलम मतदाता ारा हो।
मुसिलम नेता क इस माँग, िजसे भारत म ‘अलग िनवाचक मंडल’ के प म जाना
जाता है, को मान िलया गया और इसे 1909 के इं िडयन काउं िसल ऐ ट म शािमल कर
िलया गया। इस ऐ ट ने ांत के साथ ही क म भी िव ता रत िवधान प रषद क
व था क । अनुपूरक करने, ताव पेश करने और बजट पर चचा करने जैसे मामले
म सद य को अित र शि याँ दान क ग । हालाँ क चुनाव का तरीका अपरो था
और इसिलए कई भारतीय ने कई मायन म 1892 के इं िडयन काउं िसल ऐ ट के मुकाबले
इसे ितगामी उपाय के तौर पर िलया। िनवाचन े ब त छोटे थे और इनम सबसे बड़े
िनवाचन े म के वल 650 मतदाता थे।13
माल- मंटो सुधार को पेश कए जाने के बाद, एक भारतीय को पहली बार वायसराय
क ए जी यू टव काउं िसल का सद य िनयु कया गया और सर (बाद म लाॅड) एस.पी.
िस हा यह स मान पानेवाले पहले भारतीय थे। त प ात्, महाराजा जॉज पंचम ने भारत
क या ा क और उनक ाचीन भारत क परं परा के अनुसार द ली म स ाट् के तौर पर
उनक ताजपोशी क गई। इस ताजपोशी समारोह के बंधन क मु य िज मेदारी
वायसराय लाॅड हा डग क थी और साथ ही भारत क राजधानी को कलक ा से द ली
थानांत रत करने का फै सला भी उ ह का था। लाॅड हा डग क ऐितहािसक समझ और
सूझ-बूझ गजब क थी तथा उ ह ने सोचा था क इन उपाय से भारत म ि टश शासन क
जड़ और गहरी हो जाएँगी। पूव वायसराय लॉड कजन क तरह दूसरे लोग इन नई पहल
के िखलाफ थे और इसके िवपरीत उनका यह सोचना था क द ली कई सा ा य क
क गाह रही थी। ले कन महाराजा के दसंबर 1911 के भारत दौरे और िवभाजन र होने
से जनता क भावना को शांत करने म मदद िमली और सरकार िवरोधी आंदोलन भी
काफ हद तक ठं डा पड़ गया। उधर भारतीय रा ीय कां ेस म 1907 म िवभाजन हो गया,
िजससे ‘रा वा दय ’ (या ‘चरमपंिथय ’) को इकाई से बाहर का रा ता दखा दया गया।
इतना ही नह , कां ेस क वाम शाखा के कई नेता जेल जाने के कारण कु छ समय के िलए
राजनीितक प रदृ य से गायब हो गए, जैसा क पूना के लोकमा य बी.जी. ितलक के
मामले म आ या कु छ वैि छक िनवासन म चले गए, जैसे क बंगाल के सर अर बंदो
घोष। महायु िछड़ने तक चीज काफ सामा य थ । ले कन उसके बाद ांितकारी पाट ,
जो इस सदी के पहले दशक म ग ठत ई थी, वह काफ स य हो उठी। उधर िव यु
िछड़ चुका था और इधर भारत म जनता देश म ि टश शासन क नीित के संबंध म
ि टश सरकार क ओर से एक घोषणा क माँग करने लगी। यह माँग इसिलए भी अिधक
बल हो उठी थी, य क ि टेन ने यह संदशे दया था क वह छोटे और पीिड़त रा क
आजादी के िलए लड़ रहा है। भारतीय िवचार को शांत कराने के िलए 20 अग त, 1917
को, भारत मामल के िवदेश मं ी ई.एस. म टे यू ारा एक घोषणा क गई। उ ह ने ऐलान
कया क महामिहम क सरकार क नीित है क वह शासन क हर शाखा म भारतीय
क भागीदारी बढ़ाएगी तथा देश म धीरे -धीरे वशासन सं था का िवकास कया
जाएगा। इसके पीछे िवचार यह दया गया क ि टश सा ा य के एक अिभ अंग के तौर
पर भारत म एक िज मेदार सरकार थािपत क जाए। इस घोषणा के बाद म टे यू भारत
क या ा पर आए और भारत के िवदेश मामल के मं ी तथा त कालीन वायसराय लॉड
चे सफोड ने भारतीय संवैधािनक सुधार के सवाल पर एक संयु रपोट तैयार क ।
‘म टे यू-चे सफोड रपोट’ म तािवत सुधार को गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट-1919 म
शािमल कया गया। इस ऐ ट म सवािधक मह वपूण एक नई पहल क गई थी, जो क
सरकार क व था पर थी, िजसे ‘ि शासन’ कहा गया। ांत म बननेवाली सरकार के
दो भाग तय कए गए—पहला ‘ह तांत रत’ और दूसरा ‘आरि त।’ ह तांत रत िवभाग
जैसे—िश ा, कृ िष, आबकारी और थानीय व-सरकार का शासन मंि य ारा सँभाला
जाना था, जो क लेिज ले टव काउं िसल के िनवािचत सद य होने चािहए और िज ह वह
काउं िसल मतदान के ज रए हटा सके गी। आरि त िवभाग, जैसे क पुिलस, याय और िव
िवभाग का शासन गवनर क ए जी यू टव काउं िसल के सद य सँभालगे, िजनक
िनयुि महामिहम क सरकार ारा क जाएगी और वे लेिज ले टव काउं िसल के मतदान
से वतं ह गे। इस कार गवनर क कै िबनेट का गठन ‘ह तांत रत’ िवभाग के मंि य
और ‘आरि त’ िवभाग का शासन ए जी यू टव काउं िसल के सद य को िमलाकर
कया जाना था। क सरकार म कोई ि शासन नह होना था। सभी िवभाग क
िज मेदारी गवनर जनरल क ए जी यू टव काउं िसल के सद य ारा सँभाली जानी थी
और ये क ीय िवधाियका—िन सदन, िजसे इं िडयन लेिज ले टव असबली कहा गया और
उ सदन, िजसे काउं िसल ऑफ टेट कहा गया, उनके मतदान से वतं ह गे। क ीय
िवधाियका का गठन के वल ि टश भारत के ितिनिधय और भारतीय राजा ारा
शािसत भारतीय रयासत ारा कया जाना था और ये अपने अंद नी शासन म क
सरकार से वतं रहगे तथा उनके तथा ि टश सरकार के बीच होनेवाली संिधय के
ावधान के अधीन ह गे। ये सुधार अपया थे और इसी के चलते ि टश शासन के सश
बल ने 1919 म पंजाब पर अ याचार कए और साथ ही गठबंधन शि य ारा तुक को
खंड-खंड करने क कोिशश क गई। इसका नतीजा यह आ क महा मा गांधी के नेतृ व म
भारत म 1920 म एक शि आंदोलन उठ खड़ा आ। ले कन देश के अभूतपूव प से जाग
उठने के बावजूद ि टश सरकार ने कोई और राजनीितक रयायत नह दी।
गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट-1919 म रॉयल कमीशन क िनयुि का एक ावधान
समािहत था, दस साल बाद, 1929 म इस दशा म कदम बढ़ाया गया, िजसका मकसद यह
िनधा रत करना था क अगर वशासन क दशा म कसी कार क कोई और रयायत दी
जानी है तो वह या होनी चािहए? इस ावधान के अनुसार, 1927 म सर जॉन साइमन
क अ य ता म एक रॉयल कमीशन क िनयुि क गई। कमीशन ने 1930 म अपनी
रपोट दी। इसके बाद ि टेन तथा िि टश सरकार ारा नािमत भारतीय ितिनिधय का
एक गोलमेज स मेलन बुलाया गया, िजसम नए संिवधान के योरे क परे खा तय क
जानी थी। गोलमेज स मेलन के तीन स के बाद, सरकार नए संिवधान के संबंध म अपने
ताव को लेकर आगे आई। इन ताव को माच 1933 म एक त े -प म कािशत
कया गया। ेत-प को भारतीय संसद् के दोन सदन क संयु सिमित के सम
िविधवत् प से िवचाराथ पेश कया गया।14
III. भारत म नई जागृित
इं लड जैसे एक छोटे से देश ारा भारत क राजनीितक फतह पर िवचार करते ए
कसी के भी दमाग म जो सबसे पहला िवचार क धेगा, वह यह क ऐसा संभव ही कै से हो
सकता है? ले कन अगर कोई भी भारतीय कृ ित और भारतीय परं परा को जानता है,
उसके िलए इसे समझना मुि कल नह होगा। भारतीय लोग क िवदेिशय के ित कभी
कोई खराब या िवरोध क भावनाएँ नह रही थ । यह मानिसकता कु छ तो लोग के
दाशिनक नज रए से िवकिसत ई थी और कु छ इस बात से क भारत एक िवशाल भूभाग
है, जो इस बात को संभव बनाता है क वह, चाहे िजतनी भी सं या म िवदेशी आ जाएँ,
उनके वागत को तैयार रहता है। पूव म भारत पर नए कबील और लोग ने बार-बार
आ मण कए थे। ले कन भले ही वे िवदेिशय के प म आए थे, ले कन ज द ही वे
थानीय समुदाय म घुल-िमल गए और उ ह ने भारत को अपना घर बना िलया। इससे
अजनबीपन क भावना समा हो गई और िवदेशी भारत का िह सा बनते चले गए। कु ल
िमलाकर िवदेिशय के आने के बाद कभी भी कोई अंतर-धा मक टकराव नह आ।
एक आपसी समझ ज द ही बन जाती थी और इस कार िवदेशी एक िवशाल भारतीय
प रवार के सद य बनते चले गए। यही कारण रहा क जब यूरोपीय न ल के लोग —
पुतगाली, डच, ांसीसी और अं ेज—ने पहली बार भारत क सरजमीन पर कदम रखे तो
उनके आगमन से कसी कार का संदह े , वैरभाव या श ुता पैदा नह ई। भारत के
इितहास म यह कोई नई वृि नह थी—कम-से-कम लोग ऐसा ही सोचते थे। एक त य
यह भी था क अिधसं य िवदेशी या तो शांितपूण िमशनरी थे या ापारी, िजसके चलते
उनका कोई िवरोध नह आ। उ ह सुिवधाएँ दान क ग और यहाँ तक क अपनी
शांितपूण ापा रक गितिविधय को आगे बढ़ाने के िलए उ ह भूभाग अिधगृहीत करने क
अनुमित तक दी गई। यहाँ तक क जब िवदेिशय ने कसी राजनीितक िववाद म भी
िह सा िलया तो वे हमेशा बड़ी सावधानी से जनता के एक िह से का प लेते रहे, ता क
सारे लोग एक साथ उनके िखलाफ न हो जाएँ। इस संदभ म ि टश कू टनीित काफ हद
तक सही है। यहाँ सवाल यह पैदा होता है क भारतीय लोग के एक वग ने अपने अंद नी
िववाद म िवदेिशय से मदद य माँगी? इसका जवाब पहले ही ऊपर दया जा चुका है।
भारत के िवपरीत, अफगािन तान, ित बत और नेपाल जैसे पड़ोसी देश, अभी भी पूरी
तरह वतं बने ए ह, य क इन देश के लोग हमेशा िवदेिशय के ित संदह े ा पद और
श ुता का भाव िलये रहते ह। उनक कू टनीित के अलावा, एक और कारक है, िजसने
यूरोपीय लोग क सफलता म योगदान दया। यह था उनका े सै य-कौशल। भारत का
यह दुभा य है क जो देश 16व और 17व सदी तक अपने ान और िव ान तथा यु
कला म आधुिनक िव के सामने सीना तानकर खड़ा था, वह 18व और 19व सदी म
काफ िपछड़ चुका था। उसक भौगोिलक ि थित ने उसे आधुिनक यूरोप से अलग-थलग
रखा था। यूरोप म 17व , 18व और 19व सदी म ए यु ने िव ान और लड़ाई के तौर-
तरीक तथा आयुध म काफ सुधार कया था और यूरोपीय न ल जब पूव क ओर आ तो
उ ह इससे काफ फायदा िमला। भारतीय और यूरोिपय के बीच पहले सीधे संघष ने
दखा दया था क सै य-कौशल के मामले म भारतीय, यूरोपीय के मुकाबले उ ीस थे,
बीस नह ।
यह बात काफ मह वपूण है क भारत पर ि टेन ारा क जा जमाए जाने से पहले,
भारतीय शासक क सेना और नौसेना म यूरोपीय सैिनक अपनी सेवाएँ दे रहे थे और
उनम से कई काफ ऊँचे ओहद तक भी प च ँ े थे। ि टेन को भारत म पहली बड़ी सफलता
बंगाल म िमली थी। बादशाह िसराजु ौला एक युवक था, जो अभी-अभी कशोराव था से
बाहर िनकला था। ले कन इसका ेय इस ि को दया जाना चािहए क ांत म वह
एकमा ऐसा इनसान था, िजसने इस बात को महसूस कर िलया था क ि टश कतनी
बड़ी मुसीबत थे और उसने उ ह देश से बाहर खदेड़ने के िलए अपनी ओर से पूरी कोिशश
करने क कसम उठा रखी थी। जो ज बा उसके दल म देशभि को लेकर था, वैसी ही
चतुराई अगर उसक कू टनीित म भी होती तो ब त संभव था क वह भारतीय इितहास
का ख बदल सकता था। िसराजु ौला को स ा से बेदखल करने के िलए अं ेज ने उसके
भावशाली मीर जाफर को अपनी ओर िमला िलया और बदले म उसे त तनश करने का
वादा कर िलया। मीर जाफर और अं ेज क फौज से िसराजु ौला क फौज का कोई
मुकाबला ही नह था। ले कन मीर जाफर को इस बात का अहसास होने म यादा व
नह लगा क उसे अं ेज ने एक मोहरे क तरह इ तेमाल कया था और उनक खुद क
नीयत राजनीितक ताकत हािसल करने क थी। िसराजु ौला को 1757 म उखाड़कर फक
दया गया, ले कन देश के िविभ िह स पर अपनी कू मत कायम करने म अं ेज को कई
दशक का समय लग गया। इस बीच बाक भारत, जो अभी तक वतं था, उसे ि टेन क
जीत के खतरे का जरा भी आभास तक नह आ। ावहा रक प से देखा जाए तो
ि टश शासन के तहत सबसे पहले आनेवाला भारत का भूभाग बंगाल ही था और यह से
उ ह ने अपनी स ा को मजबूत करना शु कया था। पुराने शासन को समा कए जाने
से वाभािवक था क कु छ समय अराजकता क ि थित रही और ि टेन को वहाँ व था
कायम करने म कई साल का समय लग गया। 18व सदी के अंत तक, सुचा व था
थािपत क जा चुक थी और उसके बाद सरकार को एक ठोस और थायी न व पर अपने
शासन का िनमाण करने के सवाल का सामना करना पड़ा।
इतने िवशाल देश का शासन चलाने के िलए वाभािवक था क सरकार को अपनी
िवचारधारा के अनु प लोग के एक नए वग को िशि त करना था, जो उनके िलए एजट
के प म काम करने म स म होते। ि टश कारोबारी घराने भी ि टश िवचारधारा के
अनुसार िशि त और िशि त भारतीय को चाहते थे। इसी दौरान ि टश िमशनरी भी
भारतीय लोग पर अपनी सं कृ ित और अपने धम का मुल मा चढ़ाने क कोिशश म काफ
स य थे।
इन अलग-अलग ोत से ि टश शासक के भीतर भारत म एक सां कृ ितक या लोग
को स य बनाने का िमशन चलाने क चेतना पैदा ई। यही कारण था क इससे भारतीय
के बीच पहला िव ोह पैदा हो गया। जब तक अं ेज के वल कारोबारी थे, तब तक कसी ने
भी उन पर यान नह दया था, य क उनक नजर म वे छोटे-मोटे ापारी थे। और
जब तक वे के वल शासन कर रहे थे तो तब भी लोग ने उनक कोई परवाह नह क ,
य क पूव म भी भारतीय ऐसे ब त से राजनीितक बदलाव के गवाह रह चुके थे और
सरकार म प रवतन होने से उनके दैिनक जीवन म कोई बदलाव नह आता था— य क
पूव म कसी भी सरकार ने थानीय वशासन म कोई ह त ेप नह कया था। स यता म
बदलाव के इस िमशन क चेतना से भारतीय लोग के जीवन के हर पहलू का
‘अं ेजीकरण’ करने के यास कए जाने लगे। अपने धम के चार के िलए िमशनरी काफ
स य हो उठे थे। उ ह ने तथा रा य सरकार ने भी बंगाल के िविभ िह स म ि टश
मॉडल पर िश ण सं थान क थापना क । पूरी िश ण व था का िनमाण ि टश
मॉडल को आधार बनाकर कया गया तथा अं ेजी को न के वल िव िव ालय, बि क
मा यिमक कू ल म भी िश ण का मा यम बना दया गया। कला और वा तुिश प म भी
देश पर ि टश मॉडल थोप दया गया। वा तिवकता यह है क नई िश ा व था का
सू पात करते ए सरकार ने जानबूझकर यह कहा था क उनका मकसद एक ऐसे रा को
िशि त करना है, जो के वल न ल को छोड़कर हर बात म अं ेज होगा। नए कू ल म
छा ने ठीक उसी कार से सोचना, बोलना, कपड़े पहनना और खाना-पीना सीखना शु
कर दया, जैसा क एक अं ेज करता। इन कू ल से िनकली नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से
एकदम अलग थी। अपने तौर-तरीक म वे भारतीय नह , बि क अं ेज थे। एक नए धम
और एक नई सं कृ ित का िशकार बनने के कारण लोग क आ मा िव ोह कर उठी। इस
िव ोह के सबसे पहले प तीक राजा राममोहन राय थे और उ ह ने िजस आंदोलन को
ज म दया, उसे ‘ समाज आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है। राममोहन राय धा मक
पुनजागरण के ई रीय दूत के प म सामने आए थे। उ ह ने लोग से वेदांतवाद के मूल
िस ांत क ओर लौटने क अपील क । उ ह ने लोग को जाग क करने का यास कया
क वे बाद के समय म हंद ु व म घुसपैठ कर चुक सभी धा मक और सामािजक अशुि य
को पूरी तरह यागकर वेदांतवाद क ओर लौटे। उ ह ने सामािजक और रा ीय जीवन के
च म ँ ुखी पुनजागरण और यूरोप के आधुिनक जीवन क सभी उपयोगी और लाभदायक
बात को अपनाने क भी वकालत क ।
इसिलए राजा राममोहन राय एक नवयुग- वतक के प म भारत म इस नवजागरण के
उदय के िखलाफ खड़े थे। उनके बाद यह कमान रब नाथ टैगोर के िपता देव नाथ टैगोर
ने समाज के मुख के तौर पर सँभाली। देव नाथ टैगोर ने अ यंत साि वक और शु
जीवन तीत कया था। उ ह देखकर ाचीन समय के कसी ऋिष या संत का आभास
होता था, इसिलए जनता ने उ ह ‘मह ष’ क उपािध दान क थी। उनके बाद इस
दािय व को 19व सदी के उ राध के सवािधक िविश ि व म शािमल के शव चं
सेन ने हण कया। अपने जीवन के शु आती दन म के शव चं सेन ईसा मसीह के कथन
और िश ा से े रत जान पड़ते थे और अपने सावजिनक जीवन म उ ह ने समाज सुधार
पर अ यिधक जोर दया। वे भावशाली ि व के वामी थे और अपने िवचार को
याि वत करने म इतने अिधक उ साही थे क समाज म िवभाजन हो गया। पुरानी
पीढ़ी के लोग, िजनके िवचार इतने क र नह थे, उ ह ने वयं को आ द या मौिलक
समाज कहा। बाक सद य म एक और िवभाजन हो गया। के शव चं सेन के समथक वयं
को नव िवधान या नई व थावाला मानने लगे, जब क शेष सद य ने वयं को साधारण
समाज कहना शु कर दया। हालाँ क समाज क सभी शाखा के कु छ साझा
िस ांत थे। वेदांत दशन वह मूल िस ांत था, िजस पर वे सभी टके ए थे। वे सभी
धा मक पूजा-पाठ म छिवय के उपयोग क नंदा करते थे और वे सभी समाज म जाित के
उ मूलन के पैरोकार थे। समाज आंदोलन पूरे भारत म फै ल गया तथा कु छ थान पर
इसे िभ -िभ नाम से जाना जाने लगा। उदाहरण के िलए, बॉ बे ेजीडसी म इसे
‘ ाथना समाज’ के प म जाना गया। अं ेजी म िशि त नई भारतीय पीढ़ी पर
समाज का अ छा-खासा भाव था और वे लोग भी, िज ह ने समाज को नह
अपनाया था, उ ह ने भी उन सुधार और तर क भावना को वीकार कया, िजन पर
यह समाज आधा रत था। ले कन समाज के अित आधुिनक िवचार ने पुराने पंिडत के
बीच एक िवकषण का भाव पैदा कर दया। इन लोग ने हंद ू धम और हंद ू समाज क पूँजी
को यायोिचत ठहराने का यास कया, ले कन यह ित यावादी आंदोलन नौजवान क
नई पीढ़ी को रास न आ सका।
इस समय तक, अंितम सदी के 80व दशक म दो मुख धा मक ि व जनमानस के
सम अवत रत ए, िजनका नवजागरण पर भिव य म गहरा भाव पड़ना तय था। वे थे
—संत रामकृ ण परमहंस और उनके िश य वामी िववेकानंद। गु रामकृ ण का लालन-
पालन ढ़वादी हंद ू तरीके से आ था, ले कन उनका िश य एक िव िव ालय म
िशि त युवक था, जो क अपने गु से िमलने से पहले तक अनी रवादी था। रामकृ ण ने
सभी धम को एकजुटता क िश ा दी और अंतर-धा मक तनाव को समा करने क
अपील क । उ ह ने स े अथ म आ याि मक जीवन तीत करने के िलए याग, चय
और तप क आव यकता पर जोर दया। समाज के िवपरीत, उ ह ने धा मक पूजा-
पाठ म तीकवाद क आव यकता क पैरवी क और समाज क अ याधुिनक नकल
क कृ ित क नंदा क । अपनी मृ यु से पूव उ ह ने अपने िश य को यह महती काय संप
करने क िज मेदारी स पी क वे भारत तथा िवदेश म उनक धा मक िश ा का सार
करगे और अपने देशवािसय के बीच जागृित पैदा करगे। यही कारण था क वामी
िववेकानंद ने भारत और िवदेश, िवशेष प से अमे रका म, हंद ू धम का उसके िवशु प
म चार करने एवं उसे जीवन म उतारने के िलए ‘रामकृ ण िमशन’ क थापना क ।
इतना ही नह , उ ह ने हर कार से व थ रा ीय गितिविध को े रत करने म स य प
से भाग िलया। उनके िलए धम रा वाद का ेरक था। उ ह ने नई पीढ़ी म भारत के अतीत
को लेकर एक गव क भावना, भारत के भिव य को लेकर आ था क भावना,
आ मिव ास तथा आ मस मान क भावना पैदा करने क कोिशश क । हालाँ क वामीजी
ने कभी भी कोई राजनीितक संदशे नह दया, ले कन उनके या उनके लेखन के संपक म जो
भी आया, उसके भीतर एक रा भि और राजनीितक सोच का िवकास अव य आ। जहाँ
तक बंगाल का सवाल है, वामी िववेकानंद को आधुिनक रा वादी आंदोलन का
आ याि मक जनक कहा जा सकता है। ब त ही अ प आयु म, 1902 म उनक मृ यु हो गई,
ले कन उनक मृ यु के बाद से ही उनका भाव और अिधक बढ़ा है। बंगाल म िजस समय
रामकृ ण परमहंस का भाव बढ़ रहा था, उसी काल म उ र-पि मी भारत म एक और
मुख धा मक ि व का भी उदय हो रहा था। वह थे वामी दयानंद सर वती—आय
समाज के सं थापक। पंजाब और संयु ांत म आय समाज आंदोलन के बड़ी सं या म
अनुयायी थे। समाज क भाँित आय समाज ने भी ारं िभक हंद ू धम ंथ क ओर
लौटने क वकालत क और इसने बाद म पैदा ई संचय क वृि तथा अशुि य क
नंदा क । समाज के समान ही आय समाज भी जाित- व था के उ मूलन का
पैरोकार था, जो क पुरातन समय म अि त व म नह थी। सं ेप म, वामी दयानंद
सर वती के अनुसार, लोग को शु आय धम म वापस जाकर पुरा काल के आय का
जीवन जीना था। उनका एकमा मं था—‘वेद क शरण म’। समाज और आय
समाज—दोन ने ही लोग को अपने-अपने मत क ओर आक षत करने क कोिशश क ,
ले कन रामकृ ण िमशन ने कभी ऐसा कोई यास नह कया, य क रामकृ ण एक नए
पंथ क रचना के िखलाफ थे। ले कन समाज जहाँ कु छ सीमा तक पि मी स यता और
ईसाइयत से भािवत था, वह आय समाज ने अपनी सारी ेरणा वदेशी ोत से ा
क थी। इन तीन ही समाज का कोई राजनीितक िमशन नह था। बावजूद इसके , जो कोई
भी उनके भाव म आया, उसके भीतर ब त तेजी से आ मस मान और रा भि क
भावना िवकिसत ज र ई।
समाज क थापना 1828 म क गई थी। उस समय तक देश के एक बड़े िह से पर
ि टश राज अपने पाँव पसार चुका था और लोग को धीरे -धीरे यह महसूस होना शु हो
गया था क नए आ ांता िपछले आ मणका रय से िभ थे। ये के वल पैसा कमाने या धम
का चार करने नह आए थे, बि क देश को जीतने और राज करने आए थे—और पुराने
दौर के आ मणका रय के िवपरीत, ये भारत को अपना घर नह बनानेवाले थे, बि क ये
िवदेिशय क तरह भारत पर राज करने के िलए आए थे। इस रा ीय आपदा का भान होते
ही जनता-जनादन आस खतरे के ित तेजी से उठ खड़ी ई। इसी के चलते 1857 क
ांित क वाला भड़क उठी। यह कसी भी तरह से के वल िसपािहय क बगावत
—‘िसपाही िव ोह’ नह था। अं ेजी इितहासकार इस बात को नह कहगे क यह एक
वा तिवक रा ीय ांित थी। यह एक ऐसी ांित थी, िजसम हंद ु और मुसिलम ने
एकजुट होकर िव ोह का झंडा उठाया और उ ह ने एक मुसलमान के झंडे के तले अपनी
लड़ाई लड़ी। उस ण ऐसा तीत आ था क अं ेज को देश से िनकाल बाहर कर दया
जाएगा। ले कन बस क मत क बात है क वे जीत गए। ांित क िवफलता के कई अ य
कारण म से कु छ अहम कारण थे, जैसे क पंजाब के िसख का समथन नह िमलना और
नेपाल के गोरखा का उदासीन रवैया। िव ोह को जब कु चल दया गया तो अं ेज के
आतंक का नया प सामने आया और देश को एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक िनह था
कर दया गया।
अं ेज के अ याचार ह तक को कँ पानेवाले थे और लंबे समय तक इसक ित या
देखी गई। इस दौरान कसी ने भी अपना िसर उठाने का दु साहस नह कया। आिखरी
सदी के 80व दशक तक आते-आते, एक बदलाव नजर आने लगा। लोग फर से अपना
खोया आ साहस हािसल करने लगे थे और आधुिनक िव के बारे म अपने ान क
बदौलत उ ह ने िवदेिशय से तालमेल िबठाने के नए साधन खोजने शु कर दए थे। इस
कार 1885 म भारतीय रा ीय कां ेस का ज म आ, िजसका मकसद एक और ांित के
िलए संग ठत होना नह , बि क संवैधािनक माग पर चलते ए होम ल के िलए संघष
करना था। पि म भारत म पुनजागरण, उ र भारत के िवपरीत, धा मक आंदोलन के
बजाय शै िणक और समाज सुधार आंदोलन के प म अिधक सामने आया। इस जागृित के
पुरोधा थे यायमू त एम.जी. रानाडे, िज ह बाद म जी.के . गोखले के प म एक यो य
िश य िमल गया। 1884 म बी.जी. ितलक, जी.जी. अगरकर और वी.एस. आ टे ने ‘द न
एजुकेशन सोसाइटी’ क थापना क । ज द ही गोखले सोसाइटी म शािमल हो गए। बाद
म लोकमा य ितलक और गोखले के बीच मतभेद पैदा हो गए। ितलक, गोखले क तरह
समाज सुधार म िच नह रखते थे और वे राजनीितक पाठशाला क ‘चरमपंथी’ धारा
यानी क गरम दल से ता लुक रखते थे, जब क गोखले मुख ‘उदारवादी’ यानी क नरम
दल के नेता म से एक थे। 1905 म गोखले ने ‘सव स ऑफ इं िडया सोसाइटी’ क
थापना क , िजसका ल य ‘भारत क सेवा के िलए रा ीय िमशन रय को िशि त
करना तथा सभी संवैधािनक उपाय के ज रए भारतीय लोग के स े िहत को आगे बढ़ाना
था।’ जनमानस को जा त् करने के िलए लोकमा य ितलक ारा अपनाए गए िविभ
उपाय म गणपित उ सव को नए िसरे से शु करना भी शािमल था। यह एक धा मक
उ सव था, िजसे ितलक ने एक नई रा ीय प रभाषा दान कर दी—साथ ही महारा के
महान् नायक िशवाजी क जयंती पर हर साल ‘िशवाजी उ सव’ मनाया जाने लगा।
दि ण भारत म मैडम लावा क और कनल ओलकोट ारा म ास के समीप अडयार म
1886 म ‘िथयोसो फकल साेसाइटी’ क थापना क गई। सोसाइटी ने सामािजक और
जनजीवन म मह वपूण भूिमका अदा क । ीमती बेसट 1893 म इस सोसाइटी म शािमल
और 1907 म वे इसक अ य बन ग । इस पद पर वे 1933 म अपनी मृ यु होने तक
रह । ीमती बेसट सभी हमल के िखलाफ हंदव ू ाद क एक महान् पैरोकार बनकर
उभर । यहाँ तक क हंदव ू ाद क खािमय और बुराइय क आलोचना करने के बजाय वे
अपने तक से उनके प म रहती थ । इस कार, उ ह ने लोग के दल म अपनी ही
सं कृ ित और स यता के ित आ था लौटाने म मदद क , जो क पि म के भाव से बुरी
तरह कु चली जा चुक थी। अपने धा मक और शै िणक काय के ज रए वे अपने चार ओर
शंसक क भारी सं या जुटाने म कामयाब रह और ये शंसक उनके िलए 1916-1917
म उस समय उनके िलए एक ब त बड़ी ताकत और मू यवान सािबत ए, जब उ ह ने
राजनीित म स य प से भाग लेना शु कया और भारत के िलए होम ल क माँग
करते ए बड़े पैमाने पर एक जोरदार अिभयान चलाया।
इस मौजूदा सदी क शु आत म िवदेशी सरकार भारत क िम ी म अपनी जड़ को और
गहरा करने म सफल हो चुक थी। ाचीन समय क तरह शासन क शाखा को
वाय ता दान करते ए राजनीितक शासन क ीकृ त सरकार के प म नह था।
इसका थान एक ब त ही पेचीदा व था ले चुक थी, िजसका भाव हर शहर और
गाँव-गाँव तक आ। देश पर नौकरशाही का कड़ा कानून लागू था और इस नौकरशाही को
क का वरदह त ा था। लोग को इितहास म पहली बार यह महसूस होना शु हो
गया क िवदेशी कू मत के असल म मायने या होते ह। 20व सदी क शु आत म दि ण
अ का के बोअस अपनी आजादी के िलए ि टेन के िखलाफ संघष कर रहे थे, नव जागृित
के दौर म जापानी अपने अि त व और सुर ा के िलए िसय का मुकाबला कर रहे थे तथा
सी जनता अपनी रोटी और वतं ता के िलए सवशि शाली जार से संघष कर रही थी।
यह वह दौर था, जब शासक का दप और अहंकार अपनी सीमा को लाँघ चुका था तथा
बंगाल म गंभीर राजनीितक अशांित के संकेत िमलने लगे थे। इस अशांित को शु आत म
ही कु चल देने के िलए त कालीन वायसराय लॉड कजन ने ांत के टु कड़े करने का आदेश
जारी कर दया। यह एक रा ापी बगावत के िलए संकेत था और हर जगह लोग को यह
महसूस होना शु हो गया क संवैधािनक आंदोलन पया नह है। लोग ने बंगाल के
िवभाजन को एक चुनौती क तरह िलया। इसका मुँहतोड़ जवाब देने के िलए ि टश
भारतीय इितहास म पहली बार ि टश व तु का बिह कार करने के िलए एक आंदोलन
चलाया गया। इस राजनीितक आंदोलन ने रा ीय कला, रा ीय सािह य और रा ीय
उ ोग के िवकास को काफ मजबूती दान क । उसी के साथ-ही-साथ ऐसे सं थान क
शु आत ई, जहाँ रा ीय िश ा दी जा सकती थी और नए उ ोग को शु करने के िलए
वै ािनक और इं जीिनयर िशि त कए जा सकते थे। वाभािवक-सी बात थी क सरकार
को नया आंदोलन रास नह आया और इसे दबाने के िलए उसने कदम उठाने शु कर दए।
इस सरकारी दमन के िखलाफ युवक उठ खड़े ए। उ ह ने बम और रवाॅ वर हाथ म
उठा ली तथा पहला िव फोट 1907 म आ। यह 20व सदी के ांितकारी आंदोलन क
शु आत थी, िजसे दबाने के िलए सरकार ने 1909 म एक अिधसूचना जारी क और बंगाल
म युवा को शारी रक िश ण दान करनेवाले कई सं थान को गैर-कानूनी घोिषत
कर दया गया। इधर ांितकारी आंदोलन आकार ले रहा था तो वह उसी के समानांतर
भारतीय रा ीय कां ेस दो फाड़ हो गई। पूना के वामपंथी नेता लोकमा य ितलक और ी
अर बंदो घोष तथा बंगाल के बी.सी. पाल कां ेस क योजना के तहत ि टश व तु का
बिह कार को अपनाना चाहते थे और वे ि टश सा ा य के भीतर वशासन के ल य मा
से संतु नह थे। दूसरी ओर दि णपंथी नेता बॉ बे के सर फरोजशाह मेहता, पूना के
जी.के . गोखले और बंगाल के (बाद म िज ह ‘सर’ क उपािध िमली) सुर नाथ बनज
अिधक उदारवादी नीित अपनाए जाने के प म खड़े थे। पंजाब के लाला लाजपत राय ने
इस लड़ाई म म य माग अपनाया आ था। 1907 म सूरत कां ेस म यह दरार एकदम
साफ-साफ नजर आ गई, जब वामपंथी (िज ह रा वादी या गरम दल भी कहा जाता था)
नेता क हार ई और कां ेस संगठन दि णपंथी (िज ह उदारवादी कहा जाता था)
नेता के हाथ म चला गया। अभी यादा व नह बीता था क लोकमा य ितलक को
रा ोह के मामले म छह साल जेल क सजा हो गई, सर अर बंदो घोष को जबरन
िनवािसत कर िलया गया, जब क बी.सी. पाल ने गरम दल क राजनीित से वयं को अलग
कर िलया। कां ेस ारा हािशए पर डाले जाने, सरकार ारा दंिडत कए जाने और नेता
के अभाव म वामपंथी (या गरम दल) धड़े को 1915 तक बुरे व का सामना करना पड़ा।
यह वह दौर था, जब उदारवा दय क जय-जयकार हो रही थी। 1909 के ‘माल- मंटो
सुधार ’ का उदारवा दय ने वागत कया, जब क चरमपंिथय ने इसक नंदा क । ये
सुधार राजनीितक आंदोलनका रय को अ थायी प से शांत कराने के िलए लाए गए थे।
िव यु िछड़ने और लोकमा य ितलक के जेल से बाहर आने पर भारतीय दृि से
राजनीितक हालात म िनणायक सुधार आ। 1916 म भारतीय रा ीय कां ेस के लखनऊ
स म कां ेस के दोन धड़ के बीच एक समझौता आ और एक बार फर से गरम दल
तथा उदारवादी एक मंच पर नजर आए।
इसके साथ ही लखनऊ म एक और समझौता कां ेस तथा ऑल इं िडया मुसिलम लीग के
बीच आ। इस समझौते क सबसे अहम बात यह थी क कां ेस और मुसिलम लीग ने
वशासन क समान माँग सामने रखी और संिवधान म सुधार के तहत िवधाियका म
‘पृथक् िनवाचक मंडल’ के आधार पर मुसिलम को ितिनिध व दान करने के बारे म
दोन के बीच सहमित बनी। इस समय तक भारतीय राजनीित म मोहनदास करमचंद
गांधी के प म एक नया त व उभरकर सामने आया, जो दसंबर 1914 म दि ण अ का
से भारत लौटे थे। दि ण अ का सरकार के िखलाफ ितरोध आंदोलन म अपनी भूिमका
को लेकर वे पहले ही अपने िलए काफ शंसा हािसल कर चुके थे। लखनऊ कां ेस के बाद
लोकमा य ितलक, ीमती एनी बेसट और एम.ए. िज ा ने भारत के िलए होम ल क
माँग करते ए एक सघन अिभयान चलाया। इस संबंध म ीमती बेसट को 1917 म
सरकार ने िहरासत म ले िलया, ले कन जनांदोलन का दबाव बढ़ने पर कु छ महीने बाद
उ ह रहा कर दया गया। गरम दल कलक ा म भारतीय रा ीय कां ेस के अगले स के
िलए ीमती बेसट को अ य बनाना चाहते थे, ले कन उदारपंथी इसके िखलाफ थे।
आिखरी ण म एक समझौता आ और दोन प के समथन से ीमती बेसट को अ य
बना दया गया। हालाँ क यह आिखरी कां ेस स था, िजसम उदारवा दय क भागीदारी
रही थी। अगले साल, उ ह ने अपना रा ता अलग कर िलया और वयं का पृथक् संगठन
ग ठत कर िलया, िजसे ‘ऑल इं िडया िलबरल फे डरे शन’ नाम दया गया। 1917 म
भारतीय मामल के िवदेश मं ी म टे यू ने ि टश सरकार क ओर से एक बयान दया क
भारत म ि टश शासन का ल य एक िज मेदार सरकार वा तिवक प म दान करना
था। इसके तुरंत बाद म टे यू भारत आए और वायसराय, लॉड चे सफोड के साथ आगामी
सुधार पर एक रपोट तैयार क , िजसे ‘म टे यू-चे सफोड रपोट’ कहा गया। इस रपोट
पर कां ेस के बॉ बे म आयोिजत िवशेष स म िवचार कया गया। इस स क अ य ता
वग य हसन इमाम ने क थी, जो क पटना के एक िति त अिधव ा और उ यायालय
के पूव यायाधीश थे। कां ेस ने इस रपोट को अ वीकाय बताते ए खा रज कर दया।
म टे यू-चे सफोड रपोट के आधार पर एक नए संिवधान क परे खा तैयार क गई, िजसे
ि टश संसद् ने पा रत कर दया। इसे गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट-1919 नाम दया गया
था। भारत म रा वादी िवचार रखनेवाल ने इस संिवधान को अपया और असंतोषजनक
करार दे दया। एक ओर तो भारत को वशासन के माग पर ले जाने के यास कए गए,
तो दूसरी ओर सरकार ने लोग के पैर म बेिड़याँ डालने के िलए नया ष ं रचा। ती
िवरोध के बीच सरकार ने एक नया ऐ ट पा रत कया, िजसके तहत लोग को राजनीितक
आधार पर िबना सुनवाई के अिनि तकाल के िलए जेल म बंद कया जा सकता था। इस
ऐ ट के िखलाफ देश भर म आंदोलन शु हो गया, िजसक अगुआई महा मा गांधी ने क ।
पंजाब म आंदोलन को कु चलने के िलए अमृतसर म जनरल डायर ने भीषण नरसंहार को
अंजाम दया। अमृतसर नरसंहार ने आ ोश क ऐसी वाला भड़का दी क न के वल भारत,
बि क इं लड म सभी यायोिचत सोचवाले लोग म इसे लेकर गु सा भर उठा। अमृतसर
क घटना के बाद दो जाँच सिमितय का गठन कया गया, एक कां ेस ारा और दूसरी
सरकार ारा। दोन सिमितय ने सै य काररवाई क कड़ी नंदा क । हालाँ क कां ेस जाँच
सिमित नंदा करने के मामले म कड़े श द से कह अिधक आगे बढ़ गई। ले कन सरकार
ारा पीिड़त को राहत देने और दोिषय को दंिडत करने के िलए क गई काररवाई
नग यता क सीमा तक नाकाफ थी। दसंबर 1919 म अमृतसर कां ेस म फै सला कया
गया क असंतोषजनक कृ ित का होने के बावजूद नए संिवधान पर काम कया जाए,
ले कन जब अमृतसर नरसंहार के ित सरकार का रवैया सामने आया तो पता चला क
लोकि य भावना का भारी ितर कार कया गया था। इस बीच एलाइड पावस यानी क
िम रा के तुक को िवभािजत करने के यास से भारतीय मुसिलम के बीच असंतोष
और िवरोध क भावना पैदा हो गई और वे सरकार के िखलाफ उठ खड़े ए। तुक के
सु तान, जो क इसलािमक चच के मुख या ‘खलीफा’ भी थे, उनके समथन म भारतीय
मुसिलम ने ‘िखलाफत आंदोलन’ के नाम से एक आंदोलन छेड़ दया। उस समय िखलाफत
नेता और कां ेस नेता गांधी के बीच एक समझौता हो गया। िसतंबर 1920 म कोलकाता
म कां ेस का िवशेष अिधवेशन आ, िजसका एजडा सुधार , िवशेष प से उस वष नए
संिवधान के तहत होनेवाले चुनाव के ित कां ेस का रवैया तय करना था। गांधी के कहने
पर कां ेस ने नए संिवधान के ित असहयोग क नीित अपनाने का फै सला कया।
इस फै सले के पीछे तीन मह वपूण बात थ —पंजाब म अ याचार, तुक के ित ेट
ि टेन का रवैया और नए संवैधािनक सुधार का अपया होना। भारत के पूव वायसराय
लॉड इरिवन का मानना है क भारत म, इं लड और उपिनवेश म िज मेदार सरकार के
िवकास क दशा म हर कदम एक समान या कम अंतराल पर आ है। उदाहरण के िलए,
उ ह ने इस बात का उ लेख कया है क चाटर ऐ ट-1833, इं िडयन काउं िसल ऐ ट-1861,
इं िडयन काउं िसल ऐ ट-1892 और इं िडयन काउं िसल ऐ ट-1909 के बाद पहले इं लड
तथा ि टश सा ा य के अ य िह स म लोकि य आंदोलन ए ह। लॉड इरिवन जो कहते
ह, उस बात म काफ दम है। ले कन इससे आगे जाकर कहना यह चािहए क भारतीय
आंदोलन मूल प से आजादी के िलए िव आंदोलन के साथ जुड़ा है। भारत म, बाक
अ य जगह क तरह, 19व सदी क शु आत एक मह वपूण पड़ाव थी। 1848 क िव
ांित के म ेनजर 1857 क ांित ई। भारतीय रा ीय कां ेस का ज म उस समय आ,
जब िव के अ य िह स म इसी कार क उथल-पुथल चल रही थी। 1905 का आंदोलन
दि ण अ का के बोअर यु के साथ-साथ ही था और यह 1905 क सी ांित का भी
समकालीन था। िव यु के समय ांित का यास एक ऐसी घटना थी, जो पूरी दुिनया म
नजर आई और लगभग उसी समय पर। और अंत म 1920-21 का आंदोलन आयरलड क
‘िसन फन ांित’ के समकालीन ही घ टत आ। उस समय तुक अपनी आजादी के िलए
लड़ रहे थे और इसके तुरंत बाद ांितयाँ , िजनसे पोलड और चेको लोवा कया जैसे
देश को आजादी हािसल ई। इसिलए इस बात म कोई संदह े नह है क भारत म जागृित
जैिवक प से िपछली और मौजूदा सदी के दौरान पूरी दुिनया म ई उथल-पुथल से जुड़ी
ई थी।
IV. संगठन, दल और ि व
आजादी के िलए भारत के संघष क कहानी को सही तरीके से समझने के िलए भारत के
िविभ संगठन , दल और ि व के बारे म कु छ समझ होना ज री है।
भारत म सबसे मह वपूण दल या संगठन भारतीय रा ीय कां ेस है, िजसक थापना
1885 म क गई थी। भारत भर म इसक शाखाएँ ह। पूरे देश के िलए इसक एक क ीय
सिमित है, िजसे ‘अिखल भारतीय कां ेस सिमित’ कहा जाता है और इसम करीब 350
सद य ह। यह सिमित साल के िलए एक कायकारी सिमित का चुनाव करती है, िजसे
‘कायकारी सिमित’ कहा जाता है। हर ांत म एक ांतीय कां ेस सिमित है और इस
सिमित के नीचे वहाँ िजला, खंड (तहसील या तालुका), यूिनयन और ाम कां ेस
सिमितयाँ ह। िविभ कां ेस सिमितय का गठन िनवाचन के िस ांत पर होता है। कां ेस
का ल य ‘सभी शांितपूण और वैधािनक तरीक से पूण वतं ता हािसल करना है। कां ेस
के नेता15 महा मा गांधी ह—जो क सही मायने म एक तानाशाह ह। 1929 से ही कायकारी
सिमित का चुनाव उनके िनदश के अनुसार होता आ रहा है और कोई भी ऐसा ि उस
सिमित म थान नह पा सकता, जो उनके तथा उनक नीित के ित नतम तक न होता
हो। कां ेस के भीतर एक मजबूत वामपंथी धड़ा है, जो सामािजक और आ थक सवाल
पर, जैसे क जाित संबंधी सवाल, जम दार बनाम कसान संबंधी सवाल और पूँजी बनाम
म संबंधी सवाल पर उ िवचार रखता है। यह समूह राजनीितक आजादी हािसल करने
के िलए अिधक जोरदार और स य नीित क भी वकालत करता है। ऐसी सभी सम या
पर महा मा गांधी अिधक समझौतावादी ख रखते ह। कु छ साल पहले, वामपंथी समूह के
मुख सद य म म ास के पूव महािधव ा तथा कां ेस के पूव अ य ीिनवास आयंगर,
इलाहाबाद के पं. जवाहरलाल नेह , जो क पहले पेशे से वक ल थे और दवंगत पं.
मोतीलाल नेह के पु ह, लाहौर के एक भावशाली मुसिलम नेता एवं वक ल डॉ.
मोह मद आलम, पारसी स न और पेशे से वक ल बॉ बे के के .एफ. नरीमन और लाहौर के
मुसिलम रा वादी डॉ. एस. कचलू और मौजूदा लेखक शािमल थे। डॉ. कचलू पेशे से
वक ल भी ह।
ले कन 1930 से ीिनवास आयंगर कां ेस से सेवािनवृ हो चुके ह और अपवाद के प
म डॉ. कचलू और लेखक16 को छोड़कर बाक सद य को महा मा ने अपने पाले म कर
िलया है। कहना न होगा क कई बड़े नेता के न होने के बावजूद वामपंथी धड़ा काफ
मजबूत है। इस संबंध म पं. जवाहरलाल नेह क ि थित बड़ी रोचक है। उनके िवचार
तथा नज रया क रपंथी कृ ित का है और वे वयं को पूरी तरह समाजवादी कहते ह,
ले कन वहार म वे महा मा के वफादार अनुयायी ह। यह कहना संभवत: उिचत होगा
क उनका दमाग तो वामपंिथय के साथ है, ले कन उनका दल महा मा गांधी के साथ है।
अ य नेता म खान अ दुल ग फार खान (जो सीमांत गांधी के नाम से लोकि य ह),
सीमांत ांत के एक मुसिलम नेता ह, जो इस समय ब त अिधक लोकि य ह, ले कन अभी
उनके राजनीितक वभाव को प रभािषत करना ज दबाजी होगी। पी.डी. टंडन तथा
संयु ांत के अ य कां ेसी नेता पं. जवाहरलाल नेह के अनुयायी ह, हालाँ क वे वामपंथ
क ओर झुकाव रखते ह। म य ांत के नेता म सेठ गो वंद दास और पं. ारका साद
िम ा का भी वामपंथ क ओर झान है। िजन नेता ने 1920 से पूव रा ीय आंदोलन म
मह वपूण भूिमका अदा क , उनम पूना के लोकमा य ितलक, कलक ा से बी.सी. पाल,
कलक ा से सर एस.एन. बनज , पूना से जी.के . गोखले और बॉ बे से सर फरोजशाह
मेहता अब इस दुिनया म नह ह। इनम से पहले दो नेता वामपंथ से संबंध रखते थे, जब क
बाक दि णपंथी थे। 1920 से िजन नेता ने अहम भूिमका अदा क थी, उनम से आगे
िजन नाम का उ लेख कया गया है, वे इस दुिनया को अलिवदा कह चुके ह। इनम लाहौर
के लाला लाजपत राय, कलक ा के देशबंधु सी.आर. दास, इलाहाबाद के पं. मोतीलाल
नेह , कलक ा के जे.एम. सेनगु ा और बॉ बे के िव लभाई पटेल शािमल ह। कां ेस से
सेवािनवृ हो चुके, ले कन अभी जो जंदा ह, उन मुख नेता म कलक ा के ी अर बंद
घोष च पांिडचेरी म 1909 से धा मक जीवन तीत कर रहे ह। म ास के ीिनवास
आयंगर 1930 से ही स य राजनीित से सेवािनवृ हो चुके ह।
मई 1934 के बाद से ही कई वामपंथी नेता ने िमलकर ‘ऑल इं िडया कां ेस सोशिल ट
पाट ’ बना ली। इस पाट को अभी तक संयु ांत और बॉ बे म सबसे ापक समथन
िमला है—ले कन पूरे देश से लोग इसके समथन म आ रहे ह। अभी यह कहना ज दबाजी
होगी क भिव य म यह राजनीितक पाट कै से आकार लेगी, य क अिधकतर ऐसे नेता,
िज ह ने मह वपूण भूिमका िनभाई, वे इस समय या तो जेल म बंद ह या देश से बाहर ह।
इस समय दल क अदला-बदली चल रही है और ज द ही राजनीित म पुन नमाण होगा।
भारतीय रा ीय कां ेस के ही भीतर एक मह वपूण और भावशाली मुसिलम समूह है
और इस समूह के ितिनिध कां ेस कै िबनेट म ह, जो क कायकारी सिमित है। इस समूह म
कलक ा के मौलाना17 अबुल कलाम आजाद, द ली के डॉ. एम.ए. अंसारी तथा लाहौर के
डॉ. मोह मद आलम ह।18 कां ेस के हंद ू नेता म कु छ ऐसे भी ह, िजनका झुकाव हंद ू
महासभा क ओर अिधक है। उदाहरण के िलए, बनारस के पं. मदनमोहन मालवीय और
बेरार के एम.एस. अने।
1918 से पहले, कां ेस म दो समूह थे—गरम दल (या दि णपंथी) और नरम दल (या
उदारपंथी)। 1907 म, चरमपंिथय को कां ेस से बाहर का रा ता दखा दया गया, ले कन
1916 म लखनऊ कां ेस म दोन प के बीच सुलह समझौता हो गया। 1918 म कां ेस म
गरम दल के सद य के मुकाबले नरम दल, यानी क उदारवा दय क सं या कम हो गई
और उ ह ने कां ेस से अलग होकर ऑल इं िडया िलबरल फे डरे शन क शु आत कर दी।
िलबरल पाट के मौजूदा नेता म इलाहाबाद के सर तेज बहादुर स ू, बॉ बे के सर
िचमनलाल िसताईवाद और सर फरोज सेथना, म ास से वी. ीिनवास शा ी और सर
िशव वामी अ यर, इलाहाबाद से चंतामिण और कलक ा से जे.एन. बासु शािमल ह।
मौजूदा समय के कां ेस नेता म जो महा मा गांधी के वफादार समथक ह, उनम गुजरात
के सरदार व लभ भाई पटेल, द ली के डॉ. एम.ए. अंसारी, पटना के डॉ. राज साद,
लाहौर के डॉ. मोह मद आलम और सरदार सरदुल संह, इलाहाबाद के पं. जवाहरलाल
नेह , म ास के राजगोपालाचारी, यात कविय ी ीमती सरोिजनी नायडू ह।
कलक ा के मौलाना अबुल कलाम आजाद, नागपुर के अभयंकर, कराची के जयरामदास
दौलतराम और कलक ा के डॉ. बी.सी. रॉय शािमल ह। इन सबम पं. जवाहरलाल नेह
के बारे म एक आम राय यह है क उनक लोकि यता सबसे अिधक है।
उपरो राजनीितक दल , िजनम सभी समुदाय के सद य शािमल ह, के अलावा
सां दाियक संगठन भी ह, िजनका मु य ल य अपने समुदाय के सद य को ि गत
लाभ प च ँ ाना है। मुसिलम के बीच ऑल इं िडया मुसिलम लीग सबसे मह वपूण संगठन
है, िजसक शु आत 1906 म ई थी। 1920 से 1924 के दौरान मुसिलम लीग पर ऑल
इं िडया िखलाफत कमेटी अिधक भारी थी। ले कन 1924 म िखलाफत को ख म कए जाने
के बाद, भारत म िखलाफत आंदोलन ढह गया और मुसिलम लीग ने अपना पुराना तबा
फर से हािसल कर िलया। मुसिलम लीग के अलावा, हाल म कु छ और संगठन भी उभरकर
सामने आए ह, िजनम ऑल इं िडया मुसिलम कॉ स भी है। मुख मुसिलम मजहबी
नेता म आगा खाँ, एम.ए. िज ा (जो 1920 तक कां ेस नेता थे), लाहौर के सर मोह मद
इकबाल, संयु ांत के सर मोह मद याकू ब और पटना के शाह दाउदी शािमल ह।
मौलाना शौकत अली, जो क कभी एक मुख कां ेस और िखलाफत नेता आ करते थे, वे
कई मौक पर खुद को सां दाियक मुसलमान के साथ जोड़ चुके ह। सर अ दुर रहीम एक
ओर सां दाियक नेता और दूसरी ओर रा वादी मुसिलम नेता के बीच म कह खुद को
पाते ह।
ऑल इं िडया मुसिलम लीग का मुँहतोड़ जवाब देने के िलए हंद ू महासभा अि त व म आ
चुक है और इसका एकमा ल य हंद ु के अिधकार का संर ण करना है। भारत के कु छ
िह स म इसे अ छा-खासा समथन हािसल है। इसके मुख नेता म कलक ा के रामानंद
चटज (‘मॉडन र ू’ के संपादक), नागपुर के डॉ. बी.एस. मुंजे, लाहौर के भाई परमानंद,
पूना के एन.सी. के लकर। पं. मदनमोहन मालवीय हालाँ क कां ेस के साथ काफ करीब से
जुड़े ह, ले कन हंद ू महासभा म भी काफ मह वपूण भूिमका िनभाते ह। मुसिलम लीग
और हंद ू महासभा के अलावा भी यहाँ कई अ य सां दाियक दल ह।
उदाहरण के िलए, एं लो-इं िडयंस, इं िडयन ि यंस, द िसख (पंजाब) तथा हंद ु के
बीच दबे-कु चले लोग के िहत क र ा के िलए उनक अपनी पा टयाँ ह। इनका ल य
यादा-से- यादा अपने समुदाय के लोग के िहत को आगे बढ़ाना है। इन सभी दल म एक
ऐसा दल है, िजसने तुलना मक प से मह वपूण भूिमका का िनवाह कया है, इसका नाम
है—जि टस पाट ऑफ म ास। ‘दी जि टस पाट ऑफ म ास’ म हाल तक गैर- ा ण
लोग शािमल रहे ह और भारतीय रा ीय कां ेस के मुकाबले इसक नीित सरकार समथक
है। वंिचत और पीिड़त वग के बीच भारत म हर जगह एक मजबूत रा वादी लॉक है, जो
कां ेस के साथ कं धे-से-कं धा िमलाकर काम कर रहा है। ‘दी िसख ऑफ दी पंजाब’ कु ल
िमलाकर प े रा वादी ह।
िजन राजनीितक दल के बारे म हमने पहले बात क , उनका एक राजनीितक काय म है
और वे सरकार के िखलाफ कसी-न- कसी तरह का आंदोलन या िवरोध करते रहते ह।
सां दाियक दल का सरोकार उन टु कड़ को आपस म बाँटने से यादा है, जो सरकारी
िवभाग ारा उनक ओर फके जाते ह। समुदाय को आपस म बाँटने क रणनीित के तहत
सरकार ऐसे दल को ब त अिधक ो सािहत करती है—और सरकार यह सब के वल
भारतीय रा ीय कां ेस से ष े भाव रखने और उसके भाव को कमजोर करने के मकसद
से करती है। 1930 और उसके बाद यह प प से नजर आया था, जब गोलमेज स मेलन
के िलए भारतीय ितिनिधय का चयन, भारतीय लोग के मत ारा नह कया गया,
बि क उ ह ि टश सरकार ने नािमत कया और ये नामांकन करने म सां दाियक दल को
बढ़ा-चढ़ाकर मह व दया गया, जब क राजनीितक आजादी के संघष से उनका कोई लेना-
देना नह था। स ाई तो यह थी क जब भी अवसर क माँग ई है, ि टश सरकार ने
रातोरात नेता पैदा कर दए ह और उस पर करे ला और नीम चढ़ा यह क ि टश ेस ने
ऐसे नेता के नाम को पूरी दुिनया म लोकि य भी बना दया। जब गवनमट ऑफ इं िडया
ऐ ट-1919 िवचाराधीन था तो उस समय के कां ेस नेता के िखलाफ म ास के वग य
डॉ. टी.एम. नायर को लंदन म नेता बना दया गया। 1930 म और उसके बाद ि टश
सरकार ने डॉ. आंबेडकर पर नेतृ व थोप दया, य क रा वादी नेता को श मदा करने
के िलए उनक सेवाएँ आव यक थ । भारतीय रा ीय कां ेस के बाद मह व के अनुसार
िमक और कसान दल ह।
कसान के संगठन के मुकाबले िमक संगठन ने अिधक तर क है। दी ऑल इं िडया
ेड यूिनयन कां ेस क सबसे पहले शु आत 1920 म ई थी और एन.एम. जोशी उस
संगठन के सं थापक म से एक थे। उसके बाद से ेड यूिनयन कां ेस ने बड़ी तूफानी बढ़त
हािसल क है। 1929 म नागपुर अिधवेशन म, िजसक अ य ता पं. जवाहरलाल नेह ने
क थी, एक िवभाजन आ। एन.एम. जोशी, वी.वी. िग र, िशवा राव, आर.आर. बखाले
और अ य सद य क अगुआई म दि णपंथी कां ेस से अलग हो गए और उ ह ने ेड
यूिनयन फे डरे शन नाम से अलग सं था ग ठत कर ली। दी ेड यूिनयन फे डरे शन अब
ि टश ेड यूिनयन कां ेस के साथ हाथ िमलाकर काम कर रही है और यह इं टरनेशनल
फे डरे शन ऑफ ेड यूिनयंस ऑफ ए टडम से संब है। इस सं था क राजनीित के तार
ब त करीब से िलबरल पाट क राजनीित से जुड़े ह। 1931 म ेड यूिनयन कां ेस के
कलक ा अिधवेशन म, िजसक अ य ता लेखक ने क थी, उसम एक और िवभाजन आ,
िजसके प रणाम व प अितवादी धड़े ने अलग होकर रे ड ेड यूिनयन कां ेस शु कर दी।
ऐसा आरोप है क यह धड़ा क युिन ट इं टरनेशनल से े रत होकर काम करता है, ले कन
इस संगठन ने अपनी शु आत के बाद से ही कोई अिधक स यता नह दखाई है। मौजूदा
ेड यूिनयन कां ेस, िजससे लेखक जुड़े ए ह, वह ेड यूिनयन फे डरे शन और रे ड ेड
यूिनयन कां ेस के बीच क ि थित पर खड़ी है। दूसरे श द म, िनि त प से यह
समाजवादी है, ले कन यह थड इं टरनेशनल क नीित और कू टनीित का िवरोध करती है।
ले कन न तो यह यू रख म सेकड इं टरनेशनल से संब है और न ही ए टडम म
इं टरनेशनल फे डरे शन ऑफ ेड यूिनयन से। ेड यूिनयन फे डरे शन के िवपरीत, ेड यूिनयन
कां ेस क ि टश े स यूिनयन कां ेस और भारतीय राजनीित म कोई आ था नह है।
ेड यूिनयन कां ेस, िलबरे शन फे डरे शन के मुकाबले वयं को भारतीय रा ीय कां ेस के
अिधक करीब पाती है। इस समय कां ेस के अ य कानपुर के पं. ह रहर नाथ शा ी और
सिचव कलक ा के संहनाथ बनज ह। यह अंदाजा काफ रोचक है क एम.एन. रॉय,
जो क पहले क युिन ट इं टरनेशनल के साथ थे, वे भारत म भिव य म कामगार के
आंदोलन और राजनीितक आंदोलन म या भूिमका अदा करगे? हालाँ क ब त से लोग
ारा उ ह अभी भी समाजवादी ही समझा जाता है। ले कन उनक िपछली गितिविधय ,
संबंध और लेखन को देखते ए, क युिन ट वयं उ ह ांित िवरोधी बुलाते ह। अपनी
िपछली गितिविधय को लेकर इस समय वे भारत म छह साल जेल क सजा काट रहे ह,
ले कन इस बीच, बॉ बे म उनके कामगार संगठन म उनके समथक ेड यूिनयन कां ेस म
और रे ड ेड यूिनयन कां ेस के िवरोध म काम कर रहे ह, िजसके बारे म ब त से लोग का
आरोप है क यह एक क युिन ट इकाई है। एम.एन. रॉय ारा क युिन ट इं टरनेशनल के
साथ अपने संबंध को समा कए जाने के बाद से ही कामगार के उन नेता म िवभाजन
हो चुका है, िजन पर पूव म क युिन ट होने के आरोप लगे थे। बॉ बे के डांगे क अगुआई
वाले समूह ने एम.एन. रॉय के िलए घोषणा कर दी है, जब क दूसरा समूह ांित िवरोधी
करार देते ए उनक नंदा करता है।
1920 से भारत भर म कसान म चेतना आ रही है और इस चेतना के ज म के िलए
सीधे तौर पर भारतीय रा ीय कां ेस िज मेदार है। ले कन अभी तक कोई अिखल
भारतीय संगठन ग ठत नह कया गया है। संयु ांत म कसान का आंदोलन ब त
मजबूत है और वहाँ ‘ कसान लीग’ के नाम से इसका आयोजन हो चुका है। ांत के
वामपंथी कां ेसी काफ करीब से कसान के आंदोलन से जुड़े ह और उनका सामा य
नज रया क रपंथी है। गुजरात म भी, जहाँ महा मा गांधी का ब त यादा भाव है, वहाँ
भी मजबूत कसान आंदोलन है—ले कन यह आंदोलन पूरी तरह कां ेस के भाव के तहत
है और महा मा के दािहने हाथ, सरदार पटेल, कसान के नेता ह। गुजरात म कसान का
आंदोलन अभी तक वग चेतना के आधार पर िवकिसत नह आ है, ले कन ब त ज द
आंदोलन म प रवतनकारी मोड़ आना तय है। पंजाब म क त (कामगार) कसान पाट
भावशाली है और इस पाट म कु छ त व क युिन ट िवचार के भाव म ह। अगर कोई
मुख ह ती इस पाट क कमान सँभालती तो यह पाट ब त तेजी से तर कर सकती
थी। बंगाल म कसान के आंदोलन ने अिधक ती ता के साथ अपनी जड़ जमाई और फै लाई
ह और इसे ‘कृ षक सिमित’ नाम से संग ठत कया गया है, ले कन ईमानदार और स म
नेता के अभाव म यह पाट अपंग महसूस कर रही है। अभी तक बंगाल म राजनीितक
आंदोलन ने े और कािबल कामगार दए ह, ले कन भारतीय राजनीित म ज द ही
आकार लेने जा रहे नए समीकरण के म ेनजर ऐसी संभावना नह है क भिव य म
कसान के आंदोलन के िलए कामगार क कमी होगी। म य भारत म भी कसान का
आंदोलन काफ मजबूत है, ले कन दि ण भारत म (म ास ेसीडसी म) यह काफ पीछे है।
म ास ेसीडसी के उ री िह से म के वल कु छ भाग म, िजसे ‘आं ’ कहा जाता है, यह
आंदोलन मजबूत है।
छा और भारत के युवा के बीच एक वतं आंदोलन है। समय-समय पर छा और
युवा क अिखल भारतीय कां ेस का आयोजन होता रहा है—ले कन इन गितिविधय म
सम वय और तालमेल कायम करने के िलए कोई थायी अिखल भारतीय सिमित नह है।
ये दोन आंदोलन आमतौर पर ांतीय आधार पर संचािलत हो रहे ह। सारे ांत म से
बंगाल म छा का आंदोलन मजबूत है। छा क िपछली अिखल भारतीय कां ेस दसंबर
1929 म लाहौर म ई थी। युवा आंदोलन िविभ ांत म िविभ नाम से संग ठत होता
है। बंगाल म यह ‘युवा सिमित’ या ‘त ण संघ’ के नाम से लोकि य है। पंजाब और संयु
ांत म ‘नौजवान भारत सभा’ नाम अिधक चलन म है। थम ‘कां ेस ऑफ यूथ’ दसंबर
1928 म कलक ा म आयोिजत क गई थी, िजसक अ य ता बॉ बे के कां ेसी नेता
नरीमन ने क थी। दूसरी और अंितम कां ेस माच 1931 म कराची म संप ई थी और
इसक अ य ता लेखक ने क थी। छा और युवा संगठन भारतीय रा ीय कां ेस के साथ
करीबी सहयोग से काम करते ह। यह अलग बात है क उनका अपना नज रया और
काय म अिधक क रपंथी है।
और आिखर म, आज के भारत के सावजिनक जीवन म मिहला का आंदोलन एक
मह वपूण कारक है। यह आंदोलन िपछले 14 साल के दौरान ब त तेज गित से आगे बढ़ा
है। िजन चम कार का ेय महा मा को जाता है, उनम से यह जागृित भी एक चम कार है।
यह आंदोलन ब त घिन ता के साथ भारतीय रा ीय कां ेस से जुड़ा आ है और इतना ही
नह , देश भर म वतं मिहला सिमितयाँ अि त व म आ चुक ह। सामा य प से कह तो
यह आंदोलन ांतीय आधार पर संग ठत आ है और कई ांत म—जैसे क बंगाल म—
समय-समय पर ांतीय कां ेस का आयोजन होता है। भारत म सभी कां ेस सिमितय म
मिहला का अब एक स मािनत थान है और कां ेस क सव कायकारी—कायकारी
सिमित म कम-से-कम एक मिहला ितिनिध है। भारतीय रा ीय कां ेस के दो हािलया
वा षक अिधवेशन क अ य ता मिहला ारा क जा चुक है—1917 म ीमती बेसट
ारा और 1925 म ीमती सरोिजनी नायडू ारा।
मिहला के उपरो राजनीितक संगठन के अलावा, अ य संगठन भी ह, जो पूरी तरह
से सामािजक और शै िणक ल य के साथ काम कर रहे ह। ये संगठन अिखल भारतीय
तर पर संचािलत ह और समय-समय पर इनके अिखल भारतीय स मेलन होते रहते ह।
इन संगठन म एक है ‘ऑल इं िडया वीमस कॉ स’, िजसका िपछला अिधवेशन 1933 के
उ राध म कलक ा म आ था।
अंत म, भारतीय रा ीय कां ेस आज भारत म सवािधक मह वपूण संगठन है। यह न
के वल पूरे देश और सभी समुदाय क बात करता है, बि क यह रा ीय जीवन के च म ँ ुखी
िवकास और सभी सामािजक कु रीितय के उ मूलन का ल य रखता है। सां दाियक दल
एक अपवाद है, अ यथा देश के सभी अ य संगठन या दल कु ल िमलाकर कां ेस के ित
िम ता रखते ह और उसके साथ िमलकर काम करते ह। आज कां ेस के िन ववाद नेता
महा मा गांधी ह—ले कन कां ेस के भीतर एक क र वामपंथी समूह है।19 पूँजी और म,
जम दार और कसान, साथ ही जाित के सामािजक सवाल जैसे सभी सवाल पर महा मा
अभी तक म य माग अपनाए ए ह। वामपंथी समूह हालाँ क सामािजक और आ थक मु
पर अिधक क रपंथी और समझौता नह करने क नीित के िलए काम कर रहे ह और यह
असंभव नजर नह आता क ब त ज द कां ेस इसके िवचार को वीकार करे गी।

1
घुमड़ते बादल (1920)
भा रतीय रा ीय कां ेस का वा षक अिधवेशन दसंबर 1919 म पंजाब के अमृतसर म
आयोिजत कया गया था। यह अिधवेशन वहाँ उसी वष ए भयानक अ याचार क
पृ भूिम म आ था। बंगाल के नेता सी.आर. दास, बी.सी. पाल और बी. च वत के
िवरोध के बावजूद नए संिवधान (िजसे गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट-1919 नाम दया गया
था) पर काम करने के प म एक ताव पा रत कया गया। साथ ही भारत मामल के
िवदेश मं ी म टे यू का भी ध यवाद कया गया, िज ह ने इसे लाने म इतनी मह वपूण
भूिमका अदा क थी। अमृतसर कां ेस म िलये गए फै सले के िलए काफ हद तक गांधी
िज मेदार थे, उ ह ने गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट-1919 को सहमित देते ए शाही
उ ोषणा का वागत कया था और अपने सा ािहक प ‘यंग इं िडया’ म 31 दसंबर,
1919 को िलखा था—
‘सुधार ऐ ट और साथ ही उ ोषणा, यह दखाता है क भारत के ित याय करने क
ि टश लोग क मंशा कतनी ईमानदार है और इससे संदह े दूर हो जाना
चािहए...इसिलए हमारा यह दािय व बनता है क हम सुधार क आलोचना करने के
बजाय शांित से काम करना शु कर द, ता क उ ह सफल बनाया जा सके ।’
ले कन अगले नौ महीन म घटना म अचानक नाटक य ढंग से घ टत आ। हक कत म
आ या था, इसे गांधी वयं अपने श द म अिधक बेहतर तरीके से बता सकते ह। उ ह ने
अपने समाचार-प म एक लेख िलखा, िजसे ि टश सरकार ने रा ोही कृ ित का पाया।
और जब इस मामले म माच 1922 म ि टश जज ूमफ ड उनके िखलाफ रा ोह के
मामले क सुनवाई कर रहे थे तो गांधी ने एक ब त ही शानदार व दया। और इस
व म उ ह ने िव तार से बताया क जीवन भर ि टश सरकार के साथ सहयोग करने
के बावजूद आिखर म वे य उसके िखलाफ होने को मजबूर ए? इसम उ ह ने कहा—
‘पहला सदमा रॉलेट ऐ ट के प म लगा, एक ऐसा कानून, जो लोग से उनक सारी
असली आजादी लूटने के िलए बनाया गया था। मेरे भीतर से एक आवाज आई क मुझे इस
कानून के िखलाफ सघन आंदोलन का नेतृ व करना चािहए। उसके बाद पंजाब का
खौफनाक मंजर, िजसक शु आत जिलयाँवाला बाग (अमृतसर) नरसंहार से शु ई,
उसके बाद रगने के आदेश, सावजिनक प से कोड़े बरसाना और भी ऐसी ही अनेक
अपमानजनक घटनाएँ, िजनक ा या नह क जा सकती। मने यह भी पाया क तुक क
अखंडता तथा इसलाम के पिव थल के संबंध म भारत के मुसलमान के सामने
धानमं ी ारा याचनापूवक बोले गए श द का मान नह रखा गया, धानमं ी ने
अपना वादा पूरा नह कया। ले कन दो त क गंभीर चेताविनय और भिव यवािणय के
बावजूद, 1919 म अमृतसर कां ेस म मने म टे यू-चे सफोड सुधार के ित सहयोग और
काम करने के िलए लड़ाई लड़ी और यह लड़ाई इस उ मीद के साथ लड़ी थी क धानमं ी
भारतीय मुसलमान के साथ कया गया वादा िनभाएँगे... क पंजाब के घाव भरे
जाएँगे...और सुधार के अपया और असंतोषजनक होने के बावजूद यह उ मीद लगाई क
इससे भारत के जीवन म आशा के एक नए युग का सू पात होगा। ले कन यह सारी उ मीद
चकनाचूर हो ग । िखलाफत का वादा पूरा नह आ। पंजाब के अपराध पर घिड़याली
आँसू बहाकर खानापू त कर दी गई और अिधकतर दोिषय को सजा देना तो दूर, वे उलटे
सेवा म बने रहे और कु छ तो भारतीय खजाने से पशन तक पाते रहे...कु छ मामल म तो
उ ह इनाम भी दए गए। मने यह भी देखा क सुधार से कोई दय प रवतन नह आ,
उलटा यह पाया क यह सुधार भारत क संपदा क और लूट-खसोट करने का के वल एक
नया तरीका थे। उसक गुलामी को और लंबे समय तक ख चने का साधन थे।
जैसा क प रचय ‘भारत म नवजागरण’ के अनुभाग III म पहले ही संकेत दया गया है,
नया कानून, िजसे ‘रॉलेट ऐ ट’ के नाम से अिधक जाना जाता है, उसे 18 माच, 1919 को
लागू कया गया था। इस कानून के ज रए भारत सरकार को थायी प से यह अभूतपूव
शि याँ दान क गई थ क वह यु कालीन आपात अ यादेश िनर त होने के बाद लोग
को िगर तार कर और िबना सुनवाई के जेल म बंद कर सकती थी। फरवरी 1919 म गांधी
ने रॉलेट ऐ ट20 (या काला कानून) के िखलाफ आंदोलन छेड़ दया। उस समय इस ऐ ट को
इं पी रयल लेिज ले टव काउं िसल21 म पेश कया गया था। पंजाब म इस आंदोलन को
कु चलने के िलए शाही त त के सैिनक ने र गटे खड़े कर देनेवाले अ याचार कए। 13
अ ैल को अमृतसर के जिलयाँवाला बाग म िनह थे पु ष , मिहला और ब को
गोिलय से छलनी कर दया गया, जो वहाँ एक जनसभा के मौके पर एक ए थे। इसके
बाद तो जैसे बबरता ने अपनी सारी हद पार कर द । माशल लॉ के तहत ब त से लोग को
सरे आम कोड़े बरसाकर ल लुहान कर दया गया, जब क अ य लोग के िलए फरमान
जारी कर दया गया क वे कु छ खास सड़क से गुजरते ए वहाँ से पेट के बल रगकर
िनकलगे। इन घटना क जाँच के िलए दो सिमितय क िनयुि क गई—भारतीय
रा ीय कां ेस ारा िनयु एक गैर-सरकारी सिमित और एक भारत सरकार ारा िनयु
सरकारी सिमित, िजसे ‘हंटर सिमित’ कहा जाता है। कां ेस ारा ग ठत सिमित ने शाही
त त के सैिनक ारा ढहाए गए नृशंस अ याचार संबंधी अिधकतर मामल म अभे
सा य कािशत कए। इन अ याचार म मिहला के िखलाफ क गई बबरता भी शािमल
थी। दूसरी ओर हंटर सिमित के त य कां ेस जाँच सिमित िजतने प नह थे, ले कन
कहने क ज रत नह क कसी भी सरकार को नुकसान प च ँ ाने के िलए वे पया थे। इन
दोन रपोट के कािशत होने के बाद जनता क यह उ मीद वाभािवक थी क
संवैधािनक सुधार ारा एक नए युग के सू पात को देखते ए, भारत सरकार िह मत
दखाते ए दोिषय को कड़ा दंड देगी और मारे गए, घायल या कसी भी अ य तरह से
तािड़त कए गए लोग को पया मुआवजा देगी।
1920 के म य आते-आते यह प था क भारत सरकार ने ऐसी कोई काररवाई करने
का कोई ताव नह कया था।22 जनता को यही महसूस आ क सरकार का रवैया और
आचरण लोग पर ढहाए गए सारे जु म-ओ-िसतम से आँख मूँद लेने जैसा था। इससे पूरे
देश म आ ोश पैदा हो गया, भावना का वार उबलने लगा, यहाँ तक क उन हलक म
भी, जो अभी तक सरकार और नए संिवधान के ित समथन का ख अपनाए ए थे। इस
बात म जरा भी संदहे नह है क अगर भारत के गवनर जनरल और त कालीन वायसराय
ने 1920 म पंजाब म अ याचार को अंजाम देनेवाल के िखलाफ कड़ी काररवाई क होती
तो गांधी को असहयोग आंदोलन का माग अपनाने को मजबूर नह होना पड़ता, जो क
ामािणक प से ‘सह-संचालक’ थे; और न ही भारतीय रा ीय कां ेस दसंबर 1919 म
अमृतसर अिधवेशन म पा रत कए गए ताव को हािशए पर डालती।
तो इस तरह से भारतीय मामल के िवदेश मं ी म टे यू ने 1917-18 म अपनी भारत-
या ा के दौरान सहानुभूित क आड़ लेकर और बड़े पैमाने पर सािजश रचकर आपसी
सहयोग का जो कला बनाया था, वह जिलयाँवाला बाग कांड क चीख से ढह गया। यह
एक खुला रह य था क जब म टे यू और लॉड चे सफोड नए संवैधािनक सुधार पर अपने
संयु ापन क तैयारी के म ेनजर भारत का दौरा कर रहे थे तो म टे यू नए संिवधान
को लेकर जनता का समथन जुटाने म लगे ए थे। 1918 म भारत से जाने से पहले म टे यू
भारतीय रा ीय कां ेस म उदारवादी समूह को अपने प म करने म सफल हो चुके थे।
जब 1918 म बॉ बे म रा ीय कां ेस का एक िवशेष अिधवेशन आयोिजत कया गया,
िजसम ‘म टे यू-चे सफोड रपोट’ पर िवचार कया जाना था तो उदारवादी कां ेसी, सर
सुर नाथ बनज और ीिनवास शा ी क अगुआई म अिधवेशन से अनुपि थत रहे और
उसके बाद ज द ही उ ह ने कां ेस से अलग होकर ‘ऑल इं िडया िलबरे शन फे डरे शन’ के
नाम से एक नया राजनीितक दल ग ठत कर िलया और नए सुधार पर काम करने क
ितब ता जताई। 1918 म बॉ बे म आयोिजत िवशेष अिधवेशन म ‘म टे यू-चे सफोड
रपोट’ को अ वीकाय करार दे दया गया। इतना ही नह , दसंबर 1919 म अमृतसर
कां ेस ने उस रपोट के आधार पर तैयार संिवधान के मसौदे पर काम करने का संक प
िलया और साथ ही म टे यू का ध यवाद भी कया। इस कार, 1919 क सभी दुभा यपूण
घटना के बावजूद म टे यू अपने िनजी भाव क बदौलत कां ेस को िवरोध के रा ते से
लौटाने म कामयाब रहे। पंजाब म ए अ याचार के ित यह के वल भारत सरकार का
रवैया ही था, िजससे स का बाँध टू टनेवाला था।
1934 म एक ि टश राजनीित वाभािवक प से यह जाँच-पड़ताल करे गा क जब
यह साफ हो गया था क भारतीय रा ीय कां ेस िवप वाद क नीित क ओर बढ़ रही थी
तो 1920 म मुसिलम समुदाय का भरोसा जीतने के यास य नह कए गए? इस बंद ु
पर म टे यू खामोश नह बैठे थे और उ ह ने ि टश कै िबनेट को भािवत करने क अपने
तर पर हरसंभव कोिशश क थी, ले कन व उनके िखलाफ था। िव यु के दौरान
भारतीय मुसलमान ने इस बात को लेकर अपनी बेचैनी जािहर कर दी थी क जब शांित
शत पर िवचार-िवमश करने का समय आएगा तो तुक के ित ि टेन क या नीित
रहेगी? उ ह पुचकारने के िलए त कालीन ि टश धानमं ी लॉयड जॉज ने 5 जनवरी,
1918 को एक सुलह समझौतेवाला बयान दया। इस बयान म उ ह ने अ य बात के
अलावा कहा था क ेट ि टेन बदले क नीित को आगे नह बढ़ाएगा और उसक एिशया
माइनर तथा ेस क समृ भूिम से तुक को वंिचत करने क कोई मंशा नह है, जो क एक
तुक ब ल इलाका था। ले कन यु समा होने पर जब यह प हो गया क सहयोगी
तुक के पूण िनर ीकरण से कम कसी बात पर राजी नह ह तो तुक के िहत पर अपील
करने के िलए भारतीय मुसिलम का एक ितिनिधमंडल माच 1920 म यूरोप भेजा गया।
इस ितिनिधमंडल क अगुआई अली बंधु म से सबसे छोटे मौलाना मोह मद अली कर
रहे थे और यह दल भारतीय मामल के िवदेश मं ी म टे यू के तमाम यास के बावजूद
कु छ भी हािसल करने म कामयाब नह आ। 1920 आधा बीत चुका था और भारतीय
मुसिलम को यह अहसास होना शु हो गया था क तुक एक वतं रा नह रह पाएगा
—जो क इसलािमक चच का मुख था और खलीफा, जो क तुक के सु तान थे, उ ह भी
यूरोप और एिशया म अपने े से वंिचत कर दया जाएगा और इसलाम के पिव
थान को गैर-मुसिलम के हाथ म स प दया जाएगा। अब महसूस हो चला था क यह
एक ऐसी आपदा है, िजससे बचना संभव नह होगा और इसी के चलते भारत म मुसिलम
समुदाय के हर वग म इसे लेकर आ ोश क िचनगारी भड़क उठी। ले कन उनका आ ोश
और नाराजगी कतनी भी गहरी य न रही हो, ले कन वे जीत हािसल कर चुक ि टश
सरकार के िखलाफ हिथयार उठाने क ि थित म नह थे। ऐसे म, वे के वल इतना सोच
सकते थे क नए संिवधान पर काम करने का िवरोध कया जाए।
1920 के म य तक भारत क बाक आबादी क तुलना म मुसिलम के बीच ि टेन
िवरोधी भावनाएँ ब त मजबूत हो चली थ । म टे यू रा वादी ताकत को िवभािजत करने
म सफल रहे थे, ले कन वे मुसिलम समुदाय के एक भी तबके को जीतने म िवफल रहे।
हालाँ क उ ह ने मुसिलम को पुचकारने म अपनी तरफ से कोई कसर बाक नह रखी थी
और अंतत: उ ह इस समुदाय क नाराजगी को हवा देने के िलए कै िबनेट से इ तीफा देना
पड़ा।23 मुसिलम ने ‘ऑल इं िडया िखलाफत कमेटी’ नामक संगठन का गठन कया,
िजसका मकसद ‘खलीफा’, जो क इसलािमक चच के मुख थे, को िव यु से पहले क
बतौर तुक के सु तान उनक शीष स ा को बहाल करवाना था। इस िखलाफत आंदोलन
क कमान अली बंधु ने थाम रखी थी—मौलाना मोह मद अली छोटे, ले कन यादा
भावशाली और बड़े मौलाना शौकत अली, दोन ऑ सफोड से ैजुएट थे। मौलाना
मोह मद अली प कार रह चुके थे और मौलाना शौकत अली भारत सरकार के उ पाद
शु क िवभाग म ब त मोटी तन वाह पानेवाले अिधकारी थे। यु के समय ि टश सरकार
के िखलाफ दु चार करने और तुक का प लेने के िलए नजरबंद कर दया गया। उ ह कै द
कए जाने के बाद आंदोलन आ, िजसने जनता क नजर म दोन को खास बना दया
और जब िखलाफत आंदोलन शु आ तो यह वाभािवक था क आंदोलन के नेतृ व क
कमान उ ह के हाथ म स पी जानी चािहए थी। इतना ही नह , उनका रहन-सहन,
पहनावा ढ़वादी मुसिलम खयालात के िहसाब से था, िजससे मुसिलम अवाम उनक
ओर आक षत ई और दोन को बेहद लोकि य बना दया।
पंजाब म ढहाए गए अ याचार और उसके बाद के घटना म ने गांधी को िव ोही बना
दया, जो कभी ि टश सरकार के ित सहयोगपूण रवैया रखते थे। गांधी ने ही दसंबर
1919 म अमृतसर म सहयोग क याचना क थी और वे कां ेस को अपनी धारा म बहा ले
जाने म सफल भी ए थे, ले कन वही गांधी 1920 म ि टश सरकार के िखलाफ बगावत
के िलए अपनी ताकत को एकजुट करने म जुट गए थे। 1914 म भारत लौटने से पूव
उ ह ने दि ण अ का म दि ण अ क सरकार के िखलाफ भारतीय के अिधकार क
अपनी लड़ाई म सिवनय अव ा को ब त मददगार पाया था। फरवरी 1919 म, रॉलेट
िवधेयक के कानून का प लेने से पूव, उ ह ने उसी नीित पर इन िवधेयक के िखलाफ
एक आंदोलन शु कया था, िजसे ‘स या ह’24 आंदोलन नाम दया गया। ले कन कु छ
समय के िलए यह आंदोलन िवफल सािबत होनेवाला था, य क गांधी ि टश सरकार के
िव एक अ हंसक बगावत को अंजाम देने के इसी तरीके को फर से इ तेमाल करने के
िलए वयं को पूरी तरह तैयार कर चुके थे। उ ह ने क द जीवन के िलए अपने शरीर और
मि त क को अनुशािसत कर िलया था। इतना ही नह , वे अपने दि ण अ का से अपने
िन ावान समथक के एक समूह को भी साथ लेकर आए थे और भारत म अपने छह साल
के वास के दौरान, गांधी ने अपने िहत के िलए ब त से समथक का दल जीत िलया था।
अब वे भारतीय रा ीय कां ेस के नेतृ व को क जाने म स म होने के िलए के वल और
अिधक सहयोगी चाहते थे। इस समय तक अली बंधु तथा अ य मुसिलम नेता िखलाफत
आंदोलन शु करने क तैयारी म थे और उ ह भी सहयोिगय क दरकार थी। इस बात से
यादा उ ह और या खुशी हो सकती थी क देश का एक मुख रा वादी संगठन तुक के
िहत म अपनी आवाज बुलंद करे गा? तो गांधी और अली बंधु के बीच दो मु को लेकर
तुरंत एक समझौता हो गया। पहला मु ा था; पंजाब पर अ याचार और दूसरा, िखलाफत
से जुड़ी िशकायत। अली बंधु और उनके समथक एक अलग संगठन—ऑल इं िडया
िखलाफत कमेटी—को बनाए रखते ए भारतीय रा ीय कां ेस म शािमल हो गए और
पंजाब तथा िखलाफत संबंधी गलितय के समाधान और राजनीितक आजादी हािसल
करने के िलए आंदोलन शु कर दया। उनक राय थी क राजनीितक आजादी ही भिव य
म इस कार के अ याचार के िखलाफ सुर ा क गारं टी है। दूसरी ओर, भारतीय रा ीय
कां ेस देश म िखलाफत संगठन को अपना पूरा समथन देने के साथ ही िखलाफत या तुक
क िशकायत के समाधान के िलए आंदोलन करनेवाली थी।25
नए संिवधान, िजसे गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट-1919 कहा गया था, उसके तहत
िवधानसभा के चुनाव नवंबर 1920 म होनेवाले थे। अमृतसर कां ेस ने दसंबर 1919 म
इस संिवधान के िलए काम करने क ितब ता जताई थी, ले कन इस बीच जनमत म
काफ अिधक बदलाव आ चुका था। इसी के चलते िसतंबर 1920 म लाला लाजपत राय,
जो क पंजाब के एक जाने-माने नेता थे, क अ य ता म कलक ा म कां ेस का एक िवशेष
अिधवेशन आ त कया गया। गांधी, जो इस बात से पूरी तरह अवगत थे क सुधरे ए
संिवधान का िवरोध करने क उनक नई नीित कां ेस म एक भावशाली धड़े ारा
वीकार नह क जाएगी, इसिलए उ ह ने मुसिलम नेता और ऑल इं िडया िखलाफत
कमेटी के साथ गठजोड़ ारा वयं क ि थित को मजबूत कया। व तुि थित तो यह है क
उ ह देश के भीतर अपनी ि थित के बारे म एक बात िनि त प से पता थी क अगर
कां ेस ने अ हंसक, असहयोग आंदोलन क उनक योजना को खा रज भी कर दया तो वे
िखलाफत संगठन के समथन से अपना अिभयान शु कर सकते थे। ले कन मामला यहाँ
तक नह प च ँ ा। मुसिलम नेता के अलावा, गांधी के पास पं. मोतीलाल नेह के जैसा
एक शि शाली सहयोगी था, जो क इलाहाबाद के एक मुख अिधव ा और संयु ांत
के नेता थे। गांधी क योजना का िवरोध कलक ा के िति त वक ल और बंगाल के नेता
सी.आर. दास, पं. मालवीय और ीमती बेसट, जो क दोन कां ेस के पूव अ य रह चुके
थे, ारा ायोिजत था। पं. मालवीय और ीमती बेसट को कई ांत से अ छा-खासा
भावी समथन हािसल था। कलक ा अिधवेशन से कु छ ही समय पूव, लोकमा य ितलक
का िनधन हो गया। वे गांधी के एकमा संभािवत ित ं ी थे और उनके िनधन के समय,
कोई िनि त प से यह नह कह सकता था क अगर उ ह ने कलक ा कां ेस म िह सा
िलया होता तो वे या रवैया अपनाते? अमृतसर कां ेस म उ ह ने म य माग अपनाया था।
उस समय गांधी ने असहयोग का ताव रखा तो बी.सी. पाल, बी. च वत तथा सी.आर.
दास ने ताव का िवरोध कया था। लोकमा य ितलक का कहना था क उिचत रवैया
उ रदायी सहयोग का होना चािहए। दूसरे श द म, कां ेस को नए संिवधान म जो
उपयोगी और लाभदायक है, उसे वीकार कर उसके िलए काम करना चािहए और जो
बेकार या नुकसानदायक है, उसे नामंजूर कर देना चािहए। लोकमा य ितलक के करीबी
समथक ने उनक मृ यु के बाद से ही ऐलान कर दया क अपनी आिखरी साँस तक वे
अपने इसी दृि कोण पर कायम थे। अपने पूरे सावजिनक जीवन म लोकमा य ितलक
भारतीय रा ीय कां ेस क दि णपंथी शाखा के िवपरीत, वाम शाखा के नेता रहे थे, िजसे
चरमपंथी या रा वादी भी कहा जाता था। दि णपंिथय को उदारवादी या नरमपंथी भी
कहा जाता था। ितलक कांड पंिडत और असीम साहस तथा बिलदान क भावना के धनी
थे। सुदरू बमा क जेल म छह साल क कै द काटने के बाद तो उनके तेज तथा लोकि यता म
और इजाफा हो चुका था। य द वे कलक ा कां ेस म वयं को गांधी के िखलाफ मैदान म
उतार देते तो गांधी ब त मुि कल म पड़ जाते। ले कन लोकमा य ितलक के िनधन से गांधी
के रा ते म कोई अड़चन नह आई। उ ह ने गितशील अ हंसक असहयोग क नीित को
अपनाकर उसे आगे बढ़ाया, जो सरकार ारा दी गई उपािधय को लौटाने और ितहरे
बिह कार (िवधानसभा , अदालत और िश ण सं था का बिह कार) से शु होकर
कर अदा नह करने पर समा होती थी। इस ताव के प म कु ल 2,728 म से 1,885
वोट पड़े।
कलक ा म िवशेष अिधवेशन म लाया गया यह ताव नागपुर म दसंबर 1920 म
आयोिजत सामा य वा षक अिधवेशन म िवचार के िलए आया। उस समय अिधवेशन क
अ य ता म ास से आनेवाले व र कां ेस नेता िवजय राघवाचाय कर रहे थे। दास और
उनके समथक ने एक बार फर से गांधी से मुकाबला करने क उ मीद म नागपुर म अपने
समथक को मजबूती के साथ एकजुट कया। ले कन गांधी ने हालात को बड़ी चतुराई से
सँभाला और उनके तथा दास के बीच एक सहमित कायम हो गई। िवधानसभा का
िवरोध, िजसका दास ने मुखता के साथ िवरोध कया था, वह अब कोई मु ा नह रह
गया था, य क चुनाव पहले ही हो चुके थे। इसिलए दास को समझौते के िलए राजी
करना संभव हो पाया। इस काय को संप कए जाने के बाद असहयोग ताव को
ावहा रक सवस मित से मंजूर कर दया गया। हालाँ क पं. मालवीय, ीमती बेसट,
िज ा और बी.सी. पाल इसके क र िवरोध म ही रहे।
िवधानसभा , कानून क अदालत और शै िणक सं थान के बिह कार समेत
गितवादी असहयोग संबंधी ताव को मंजूर करने के अलावा नागपुर कां ेस ने भारतीय
रा ीय कां ेस के संिवधान म बदलाव का एक मह वपूण कदम उठाया। अब तक कां ेस का
ल य, जैसा क संिवधान म प रभािषत कया गया था, ‘ि टश सा ा य के भीतर
वशासन’ था। इसका वे सभी कां ेसी िवरोध कर रहे थे, जो ि टेन से अलग होने म यक न
रखते थे या िज ह ने सा ा य के साथ गठबंधन से इनकार कर दया था। वामपंिथय को
कां ेस म वापस लाने क व था करने के िलए कां ेस का ल य ‘ वराज’ (अथात् श दश:
वशासन) घोिषत करना था और यह येक कां ेसी पर छोड़ दया गया था क वह अपने
तरीके से ‘ वराज’ को प रभािषत करे । हालाँ क गांधी ने ‘ वराज’ को य द संभव हो तो
सा ा य के भीतर ‘ व-सरकार के प म और ज री हो तो सा ा य के बाहर’ प रभािषत
कया।
नागपुर बैठक से पूव कां ेस के कामकाज म एक कार क अ व था थी। उसक के वल
बड़े शहर म शाखाएँ थ और पूरे साल एक योजनाब तरीके से कोई काम नह कया
जाता था। नागपुर म फै सला कया गया क कां ेस को रा ापी आधार पर फर से
संग ठत कया जाए। सबसे छोटी इकाई ाम कां ेस सिमित होगी। इसी कार क कई
सिमितयाँ िमलकर एक क ीय कां ेस सिमित का गठन करगी। उसके बाद तालुका या
तहसील, िजला, ांतीय और अिखल भारतीय कां ेस सिमितयाँ आकार लगी। अिखल
भारतीय कां ेस सिमित करीब 350 सद य क एक इकाई होगी, िजसम िविभ ांत के
ितिनिध शािमल ह गे। यह सिमित 15 सद य क एक कायसिमित का चुनाव करे गी,
जो क पूरे देश के िलए कां ेस क शीष कायका रणी होगी। इससे आगे ांत को भाषायी
आधार पर पुन: संग ठत कया गया। उदाहरण के िलए, म ास ेसीडसी को आं , जो क
तेलुगुभाषी है और तिमलनाडु , जो क तिमलभाषी है, म बाँट दया गया। कां ेस के नए
संिवधान का आधार एक लोकतांि क और संसदीय कृ ित का था। एक नया संिवधान तय
करने के अलावा, नागपुर कां ेस म आगामी वष के िलए एक िनि त काययोजना बनाई
गई।
वराज हािसल करने के िलए कां ेस ारा अपनाए जानेवाले साधन के संबंध म
संिवधान म एक बदलाव कया गया। अभी तक कां ेस ‘संवैधािनक’ साधन से बँधी ई
थी, ले कन भिव य म कां ेस ‘सभी शांितपूण और वैध’ साधन को अपना सकती थी। यह
बदलाव इसिलए कया गया, ता क कां ेस असहयोग का रा ता अपना सके , जो क
असंवैधािनक समझा जा सकता था। ल य और साधन, दोन के संबंध म नागपुर कां ेस का
िनणय पं. मालवीय और िज ा जैसे दि णपंिथय के िवचार और 1920 म पहली बार
कां ेस म शािमल होनेवाले युवा वामपंथी िवचार के बीच क सुनहरी रे खा का
ितिनिध व था। युवा वामपंिथय क इ छा थी क कां ेस का ल य संपूण आजादी होना
चािहए और इसे सभी संभािवत साधन के ज रए हािसल कया जाए। ले कन गांधी थे, जो
अपने जबरद त भाव और लोकि यता के आधार पर वामपंिथय को हािशए पर रखने म
सफल रहे। नागपुर म जो संिवधान अंगीकार कया गया और जो आज भी कायम है, वह
ावहा रक प से उनका अपना मसौदा था। एक साल पहले अमृतसर म उ ह कां ेस ने
पाट के मौजूदा संिवधान म संशोधन करने के िलए अिधकृ त कया था।
पा रत कए गए अ य ताव म हथकरघे यानी हाथ से कताई और हाथ से बुनाई
(बुनकर), हंद ु के बीच अ पृ यता26 तथा दवंगत लोकमा य ितलक क याद म एक
करोड़ पए क धनरािश एक करने के ताव भी शािमल थे। (कपड़े का उ पादन कु टीर
उ ोग के प म करने के िलए ाचीन चरखे को दोबारा इ तेमाल म लाने का िवचार
गांधी को एक साल पहले आया था)। हालाँ क उपरो ताव म सभी उपयोगी या
लाभदायक कृ ित के थे, ले कन एक ताव ऐसा भी था, िजसे एक भयंकर भूल माना
जाना चािहए। और यह भारतीय रा ीय कां ेस क ि टश शाखा को बंद करने तथा इसके
अंग पेपर इं िडया को बंद करने का ताव था। इस ताव के भाव म आने के साथ ही
भारत के बाहर कां ेस के चार का एकमा क बंद हो गया।
कलक ा कां ेस क तरह ही नागपुर कां ेस गांधी के िलए ब त बड़ी जीत रही। यह
उनका बनाया संिवधान और उनक काययोजना थी, िजसे वहाँ पा रत कया गया। सभा म
अभूतपूव भीड़ थी, 20 हजार लोग ने कां ेस म भाग िलया। जनता का उ साह अपने चरम
पर था तथा कां ेस म शािमल होनेवाली िविश हि तय म ि टश संसद् के दो लेबर
सद य बेन सूपर और कनल वेजवुड भी थे। भारतीय रा वादी आंदोलन म नागपुर कां ेस
एक मह वपूण मील का प थर रही। इसम उदारवा दय के साथ पूरी तरह संबंध समा
करने क बात कही गई, ले कन यह चरमपंिथय क पूरी तरह जीत भी नह थी।
चरमपंथी, जो क हम आनेवाले समय म देखगे, उ ह कां ेस को अपने िवचार से सहमित
के बंद ु तक लाने म कई साल तक कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी। िन प प से िवचार
कया जाए तो जो योजना गांधी ने कां ेस और देश के सम रखी थी, वह भारत के
हािलया इितहास म कोई एकदम नई चीज नह थी। बंगाल के लोग ने 1905 म त कालीन
वायसराय लॉड कजन ारा उनके ांत का िवभाजन कए जाने के िखलाफ, सरकार के
िव जो संघष कया था, उस संघष और 1920 म गांधी के नेतृ व म शु कए गए
अ हंसक असहयोग आंदोलन म ब त सी साझा बात थ । 1905 म बंगाल ने ि टश
व तु और सरकारी वािम ववाले िश ण सं थान का बिह कार का रा ता अपनाया था
और उसी के साथ ही रा ीय उ ोग और रा ीय कू ल-कॉलेज का िवकास आ था, जो
कसी भी कार के सरकारी ह त ेप से मु थे। इतना ही नह , बी.सी. पाल जैसे नेता
ने ि टश कानून अदालत के सम इस आधार पर सबूत देने से इनकार कर दया था क
वे उनके याियक े ािधकार को मा यता नह देते ह। इससे भी कई दशक पूव, देश एक
और आंदोलन का गवाह रह चुका था और इसे भी गांधी के असहयोग आंदोलन का
पूवगामी कहा जा सकता है। यूरोप के वै ािनक ारा कृ ि म प से नील का उ पादन
करना सीखे जाने से पूव बंगाल नील का एक मह वपूण आपू तकता था। उस जमाने म
नील क खेती पर ि टश लोग का अिधकार था और ये िवदेशी जम दार अपने का तकार
के साथ ब त ही बबर और दमनकारी वहार करते थे। जब इन ि टश जम दार के
अ याचार ने सारी सीमाएँ लाँघ ल और ये बरदा त से बाहर हो गए तो जेसोर और
ना दया के का तकार ने कानून को अपने हाथ म ले िलया। उ ह ने कर देने से इनकार कर
दया, नील क खेती बंद कर दी और ि टश जम दार के िलए वहाँ रहना और उन पर
अ याचार करना असंभव बना दया। (इन घटना का एक ा फक िववरण िस
बंगाली लेखक दीनबंधु िम क ‘नील-दपण’ पु तक म देखा जा सकता है।) इस तरह से
लोग जहाँ यह पाते थे क सरकार अपने कत क अवहेलना कर रही है, वे वयं अपनी
आवाज उठाकर अ याचार से मुि पाना सीख चुके थे।
यह एक सविव दत त य है क गांधी अपने शु आती जीवन म ईसा मसीह क िश ा
और िलयो टॉल टाॅय के िवचार से ब त अिधक भािवत थे। इसिलए इस बात का दावा
नह कया जा सकता क वे अपने िवचार म पूण पेण मौिलक या वहार म वयं के
माग िनमाता थे। उनक असली यो यता दोगुना थी। उ ह ने ईसा मसीह क िश ा और
टॉल टाॅय तथा थोरो के िवचार को वा तिवक जीवन म अपनाया और यह दखाया क
हंसा का रा ता अपनाए िबना भी आजादी के िलए संघष संभव है। सबसे पहले उ ह ने न
के वल थानीय िशकायत के िनवारण के िलए ‘असहयोग’ का उपयोग कया, बि क
रा ीय आजादी को जीतने के िलए भी। और उ ह ने एक कार से यह द शत कया क
एक िवदेशी सरकार के नाग रक शासन को पंगु करना और सरकार को घुटने टेकने के
िलए मजबूर कर देना संभव है। कई त व के सुखद मेल ने गांधी को 1920 म अि म मोरचे
पर लाने म मदद क । िव यु के समय ांित का यास िवफल हो चुका था और
‘ रवॉ यूशनरी पाट ’ को कु चल दया गया था। इसका प रणाम यह आ क 1920 म एक
और ांित क संभावना नह थी। इतना ही नह , देश कां ेस क ओर से एक साहसी और
धमाके दार नीित चाहता था और ऐसे म के वल एक ऐसे ही वैकि पक आंदोलन क ज रत
थी, जैसा गांधी ने शु कया था। दूसरा मह वपूण कारक, कलक ा कां ेस क पूवसं या
पर लोकमा य ितलक का िनधन। ितलक क मृ यु ने गांधी के एकमा संभािवत ित ं ी
को मैदान से हटा दया था। तीसरा कारक, लंबे समय से और सावधानीपूवक क गई
तैयारी के प रणाम व प गांधी 1920 म िन ववा दत प से भारतीय रा ीय कां ेस का
नेतृ व सँभालने के िलए पूरी तरह से तैयार थे। एक तप वी के अनुशासन और संयम क
साधना म वयं को िनपुण कर गांधी जीवन क पीड़ा को झेलने म स म हो चुके थे और
1914 से 1920 के दौरान भारतीय राजनीित म अपने िश ण काल के दौरान वे अपने
चार ओर वफादार और िव ासपा अनुयाियय क फौज खड़ी करने म कामयाब रहे थे।
चौथा कारक था, उ ह ने ‘स या ह’ के हिथयार का इ तेमाल कर एक अनुभव हािसल
कया था। हालाँ क 1919 म रॉलेट ऐ ट िबल के िखलाफ उनका आंदोलन िवफल सािबत
हो चुका था, ले कन उ ह दि ण अ का म मह वपूण जीत हािसल हो चुक थी। इससे भी
अिधक, 1919 से पूव उनके पास कई अवसर थे, जब उ ह ने भारत म पाँच बार स या ह
का योग कया और उसके काफ अ छे प रणाम सामने आए थे। और अंत म, उ ह ने
अपने चार ओर एक संत क तरह से एक ऐसा पिव आभामंडल पैदा कर िलया था, जो
एक ऐसे देश म अनमोल था, जहाँ जनता कसी लखपित या गवनर से अिधक मह व एक
संत को देती थी और जो उसके िलए पूजनीय था।
नागपुर म भारतीय रा ीय कां ेस के लोकतांि क संिवधान के बावजूद गांधी एक कार
से कां ेस के तानाशाह के तौर पर उभरे । इसके अलावा, गांधी को जनता ने अनायास ही
‘महा मा’ (शाि दक अथ है—परम संत) कहना शु कर दया। यह भारत क जनता ारा
उ ह दया गया सव स मान था।
1919 का पूरा साल उथल-पुथलवाला रहा। भारत के राजनीितक आसमान पर
िबजिलयाँ क धती रह और गजना सुनाई देती रही—ले कन साल बीतते-बीतते आसमान
से बादल छँटने लगे और ऐसा तीत आ क अमृतसर कां ेस के साथ ही शांित और
ि थरता के एक नए युग का सू पात हो चुका है। ले कन अमृतसर म कए गए वादे पूरे नह
ए और एक बार फर से बादल घुमड़ने लगे और 1920 क समाि तक आसमान घनघोर
काले बादल से आ छा दत हो गया। यह पूरा दृ य ब त ही डरावना था। नए साल का
सूरज उगते-उगते भीषण बवंडर उठा और उसने तूफान का प ले िलया। इस च वाती
तूफान क क ं ार पर नके ल कसने और उसे एक दशा देने का िज मा िनयित ने िजस
इनसान के हाथ म स पा था, वे महा मा गांधी थे।

2
लो, आ गया तूफान (1921)
उ दारवा दय के कां ेस से अलग होने का कारण कु छ सीमा तक इस इकाई
म बौि कता का तर कम होने के िलए िज मेदार था। ले कन कां ेस के झंडे
तले िजस तरह से िवशाल जनसमूह एक हो रहा था, उससे इस नुकसान क
भरपाई हो गई थी। इससे भी यादा, महा मा गांधी को कु छ व र कां ेिसय
के प म अपने िव ासपा सहकम िमल गए थे, िजनक देश म ब त ऊँची
ित ा थी और जो अब कां ेस को अपना पूरा समय देने के िलए अपने-अपने
पेशेवर दािय व से अलग हो चुके थे। सी.आर. दास27 कलक ा बार के नेता
थे, जो भारतीय राजनीित के साथ ही बंगाली सािह य म ब त नाम कमा चुके
थे। वे ब त ऊँचे दज का शाही वेतन पाते थे, ले कन धन और नाम दोन को
छोड़कर वे असहयोग आंदोलन म कू द पड़े। इलाहाबाद से पं. मोतीलाल नेह ,
जो क इलाहाबाद बार के नेता थे, उ ह ने भी वकालत छोड़ दी और आंदोलन
से जुड़ गए। उनके साथ उनके पु पं. जवाहरलाल नेह भी शािमल हो गए,
जो क िपता क तरह वकालत के पेशे म थे। नेह आनेवाले दन म देश के
इितहास म अपना एक अलग मुकाम हािसल करनेवाले थे। पंजाब से लाला
लाजपत राय, जो क अपने शु आती पेशेवर दौर म वक ल रहे थे और िज ह
पंजाब का ‘िबना ताज का राजा’ कहा जाता था, वे भी महा मा गांधी के साथ
कदम िमलाने के िलए आगे आ गए। बॉ बे ेसीडसी से महा मा को पटेल बंधु
का समथन िमला—िव लभाई और व लभभाई, दोन पेशे से वक ल थे—और
पूना से एन.सी. के लकर, जो क महारा (बॉ बे ेसीडसी का दि णी और पूव
िह सा) से लोकमा य ितलक के उ रािधकारी थे। महा मा गांधी के साथ कं धे-
से-कं धा िमलाकर चलने के िलए आगे आए म य ांत के नेता म डॉ. म जे,
जो क एक ने िच क सक थे और पेशे से वक ल अभयंकर शािमल थे। िबहार
से राज साद कां ेस के िलए काम करने के वा ते पटना बार म अपना बेहद
संभावना से भरा अिधव ा का पेशा और एक मोटी आमदनी छोड़कर आए
थे। म ास ेसीडसी के तिमलभाषी इलाके से राजगोपालाचारी, एम.आर.
रं गा वामी आयंगर और स यमू त तथा तेलुगुभाषी इलाके से टी. काशम् भी
महा मा गांधी के हाथ मजबूत करने के िलए प च ँ गए थे। ये सभी पेशे से
अिधव ा थे। कां ेस क शीष कायका रणी म अली बंध— ु मौलाना मोह मद
और मौलाना शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आजाद, जो क मुसिलम
जगत् के सवािधक िव ान् और द नेता थे। साथ ही द ली से डॉ. अंसारी
भी इसम शािमल थे। ये सभी मुसिलम नेता भारतीय मुसिलम के बीच एक
नई चेतना का ितिनिध व करते थे, इसिलए आंदोलन क शु आत म इसे इस
प म देखा गया क महा मा गांधी अपनी एक यो य टीम का चुनाव करने म
सफल ए थे।
कां ेस क पुकार पर अपने काम-धंध और पेशे को यागनेवाल म वक ल
ने सवािधक मह वपूण भूिमका अदा क थी। वक ल और शाहजादे सरीखे
देशबंधु दास और पं. मोतीलाल नेह जैसे िविध िवशेष और महान्
िवभूितय का भाव यह रहा क देश भर से वकालत के पेशे से जुड़े िव जन
एक साथ आ जुड़े और इसका प रणाम यह रहा क कां ेस के छ के नीचे
भावशाली और िव ान् नेता के प म पाट के पास पूणकािलक प से
अपना सव व योछावर करनेवाले खर सेनापित मोरचे पर आन डटे थे।
कानून क अदालत का बिह कार करने के कां ेस के आ वान को अ छी-खासी
सफलता िमली। एक ओर जहाँ बड़ी सं या म वक ल ने रा िहत म अपनी-
अपनी वकालत को ितलांजिल दे दी थी तो वह लोग को ि टश िविध
अदालत म जाने से रोकने के िलए ापक तर पर गहन अिभयान चलाया
गया और उ ह अपने िववाद को म य थता के ज रए सुलझाने को राजी कया
गया। त य क बात तो यह है क कां ेस के िनयं ण के तहत देश भर म पंचाट
बोड अि त व म आ गए और इसके असर से सरकार को मुकदम से होनेवाला
राज व काफ कम हो गया। अदालत के बिह कार के साथ ही संयम को
ो सािहत करने और सभी कार के नशीले पदाथ के इ तेमाल को रोकने के
िलए एक और अिभयान चलाया गया। इस अिभयान क सफलता पूरे भारत म
ब त उ लेखनीय रही और कई ांत म आबकारी राज व (जो क शराब और
अ य नशीले पदाथ के कारोबार से ा होता है) पूव के मुकाबले एक-ितहाई
तक घट गया। िबहार जैसे कु छ ांत म सरकार को इसक काट के िलए और
राज व बढ़ाने के मकसद से शराब एवं अ य नशीले पदाथ के सेवन को
लोकि य बनाने के िलए अिभयान तक चलाना पड़ा। ‘संयम आंदोलन’ जनता
के बीच अ यिधक लोकि य आ। जनता ने इसे नैितक ल य के साथ ही
आ थक उ े य क पू त के िलए भी अपनाया। इतना ही नह , इससे सरकार को
काफ श मदगी उठानी पड़ी।
इस आंदोलन के साथ ही अ पृ यता उ मूलन के िलए एक और अिभयान भी
चलाया गया। भारत के कु छ िह स म, िवशेष प से दि ण भारत म, कु छ
जाितय जैसे क मेहतर, िसर पर मैला ढोनेवाल आ द से अछू त क तरह
वहार कया जाता था। यानी अ य जाितय के लोग इन लोग के साथ
भोजन नह करते थे, उनके ारा परोसा गया भोजन या पानी हण नह करते
थे और कु छ े म उ ह मं दर म वेश क अनुमित नह थी। यह एक ऐसा
कारक था, जो भारतीय लोग क एकजुटता के िखलाफ काम करता था।
नैितकता और मानवता के नाते भी यह ब त अ यायपूण था, इसिलए यह
कां ेस के िलए वाभािवक था क जब उसने भारत के िलए राजनीितक
आजादी जीतने का अिभयान शु करने का दृढ़ फै सला कया है तो उसे हर
क म के सामािजक बंधन क बेिड़य से जनता को मु कराने का भी बीड़ा
उठाना चािहए।
जनता को आ थक राहत उपल ध कराने के कु छ उपाय के तहत कां ेस ने
िवदेशी कपड़ का बिह कार करने और हथकरघा तथा बुनकर के बड़े पैमाने
पर पुन ार क वकालत क । िवदेशी व के याग का यह िवचार कोई नया
नह था— य क साल पहले 1905 म पहली बार बंगाल म ि टश व का
बिह कार करने क क ं ार लगाई गई थी। बुनकर को अपने पैर पर खड़ा करने
का भी ताव नया नह था, य क भारतीय हथकरघा उ ोग ने इसी के
चलते िवदेशी और भारतीय िमल क ित पधा के िखलाफ पहले ही अपनी
पकड़ मजबूत बना ली थी। ले कन हाथ से कताई का िवचार अपने आप म नया
और साहसपूण था, य क यह परं परा ावहा रक प से चलन से बाहर हो
चुक थी। सबसे पहले तो ऐसे पु ष और मिहला का पता करना ही मुि कल
काम था, जो दूसरे लोग को सूत कातना िसखा सक। महा मा वयं चरखे पर
ब त ही ब ढ़या कातते थे। उ ह ने मिहला और पु ष के ऐसे ज थे बनाए,
जो वयं सूत कातने के साथ ही कताई का िश ण उपल ध करा सकते थे।
ज द ही इन हजार पु ष और मिहला को दूर-दराज के गाँव सिहत देश के
िविभ िह स म लोग , ामीण को कताई िसखाने के िलए भेज दया गया।
ारं भ म तो एक चरखा खरीदना या लेना भी एक मुि कल काम था। चरख
को शहर म बनाया जाता और उ ह गाँव म भेजा जाता। यह िसलिसला तब
तक चलता रहा, जब तक क गाँव के बढ़ई वयं उ ह एक बार फर से बनाना
नह सीख गए। हाथ से काते गए सूत से हथकरघे पर बने कपड़े को ‘खादी’ या
‘ख र’ नाम दया गया। खादी का कपड़ा िमल म बने कपड़े से अिधक खा
होता था। जैसे-जैसे खादी का उ पादन बढ़ता गया, इसने वत: ही भारत म
सभी कां ेस सद य क वरदी का प ले िलया।
कां ेस सद य के िलए यह ज री था क वे जनता के सामने एक उदाहरण
थािपत करने के िलए िमल म िन मत मुलायम कपड़े को यागकर वे छा से
मोटा ख र पहन।
उपरो काय के िलए लोग और धन दोन क ज रत थी। इसिलए महा मा
ने रा से कां ेस के िलए एक करोड़ सद य क अपील क और इस कार एक
करोड़ पए (13½ पए=लगभग एक पाउं ड) क रािश एक क गई। इस
अपील क ित या ब त ही उ साहजनक रही, ले कन देशभर म घूम-घूमकर
पैसा जमा करने और सद य के नाम दज करने के िलए सबसे पहले
कायकता क ज रत थी। इस ज रत को छा समुदाय से पूरा करना पड़ा
और 1921 म कू ल और कॉलेज के बिह कार के िलए एक ापक और गहन
आंदोलन चलाया गया। छा ने बड़ी सं या म इस अिभयान से वयं को जोड़
िलया और सबसे बेहतर ित या बंगाल से िमली, जहाँ देशबंधु सी.आर. दास
ारा कए गए बिलदान ने युवा क क पनाशीलता को तूफान म बदल
दया। ये छा कायकता थे, जो देश के हर कोने म कां ेस का संदश े लेकर गए,
िज ह ने चंदा एक कया, सद य के नाम दज कए, बैठक का आयोजन
कया, दशन कए, लोग को संयम क िश ा दी, पंचाट बोड क थापना
क , लोग को सूत कातना िसखाया और वदेशी उ ोग को पुनज िवत करने
के िलए लोग को ो सािहत कया। इन छा कायकता के िबना महा मा
गांधी का भाव देश के इतने दूर-दराज के इलाक तक नह प च ँ सकता था।
1921 म छा को िश ण सं थान से वापस बुलाने क नीित क काफ
आलोचना ई है। कहना नह होगा क अगर कोई िनरपे भाव से 1920-21
म देश क प रि थितय क समी ा करे तो इसी िनणय पर प च ँ ेगा क कां ेस
अगर अपने ताव को अमलीजामा पहनाना चाहती थी तो उसके पास इसके
िसवाय कोई और िवक प उपल ध नह था। यहाँ यह भी कहना चािहए क
कां ेस ने ‘रा ीय’ सं थान क थापना का काय मूल प से अपने हाथ म
नह िलया था, ले कन बाद म जब ऐसे सं थान देश भर म शु हो गए तो िजन
छा को सरकारी या सरकार ारा िनयंि त सं थान से असहयोग आंदोलन
के तहत िनकाला गया था, ले कन जो अब और अिधक क ठन प रि थितय म
अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, वे इन नए शु कए गए रा ीय सं थान
म शािमल होकर अपनी िश ा को जारी रख सकते थे। इस कार के सं थान
बॉ बे, अहमदाबाद (बॉ बे ेसीडसी), पूना (बॉ बे ेसीडसी), नागपुर (म य
ांत), बनारस (संयु ांत), पटना (िबहार म), कलक ा और ढाका (बंगाल)
म थािपत कए गए। इनम से कु छ सािहि यक िश ा के िलए थे, जब क अ य
तकनीक या िच क सा िश ा के िलए—ले कन इन सभी म सूत कातना
अिनवाय था। ब त सी जगह पर बािलका के िलए पृथक् सं थान थे। इनम
से कु छ सं थान आज भी मौजूद ह और इनम से कु छ ब त ही समृ हालत म
ह। इन िश ण सं थान के अित र , देश भर म कु छ अ य सं थान भी
अनायास अि त व म आ गए थे। इ ह ‘आ म’ कहा जाता था, िजनका िनमाण
ाचीन समय के आ म के मॉडल पर कया गया था। ये पूणकािलक
राजनीितक कायकता के िलए घर के समान थे। नए भरती ए कायकता
को वहाँ िश ण दान कया जाता और अकसर कां ेस पाट का थानीय
कायालय इ ह आ म के प रसर म होता था। ये आ म कभी-कभी कताई
और बुनाई के क के प म भी इ तेमाल होते थे। इन क से क ी कपास
और सूत चरखा कातनेवाल तथा बुनकर के बीच िवत रत कया जाता था
और बदले म उनसे सूत तथा बुना आ कपड़ा ा कया जाता। कई आ म म
कां ेस कायकता और थानीय जनता के िलए अ ययन क और पु तकालय
भी होते थे।
नागपुर म दसंबर 1920 म वीकार कए गए गितवादी असहयोग
काय म म ितहरे बिह कार के अित र सरकार ारा द सभी उपािधय
और पद का याग करना भी शािमल था। बड़ी सं या म लोग ने अपनी
उपािधयाँ छोड़ द , ले कन उसक तुलना म काफ कम लोग ने अपनी
नौक रय से इ तीफा दया और उनम से एक म भी था। मने इं लड म 1920 म
इं िडयन िसिवल स वस परी ा पास क थी, ले कन मने पाया क एक ही समय
म दो उ ताद क सेवा करना संभव नह होगा—एक ि टश सरकार और एक
मेरा देश—तो इसिलए मने मई 1921 म पद से याग-प दे दया और रा ीय
संघष म अपने कत का िनवाह करने के िलए तुरंत भारत लौट चला, जहाँ
वतं ता सं ाम पूरे चरम पर था। म 16 जुलाई को बॉ बे प च ँ ा और उसी
दन दोपहर बाद मने महा मा गांधी से मुलाकात के िलए समय तय कर िलया।
महा मा गांधी से मुलाकात करने का मेरा मकसद उस अिभयान के नेता से
मुलाकात करना था, िजसम म शािमल होने जा रहा था। म उनक काययोजना
क अवधारणा के बारे म प प से जानना चाहता था। िपछले कु छ साल
म, मने िव के अ य िह स म ांितकारी नेता ारा अपनाए गए तौर-
तरीक और रणनीितय के बारे म कु छ अ ययन कया था।
और उस ान के आलोक म, म महा मा के िवचार और उनके ल य को
समझना चाहता था। उस दन दोपहर बाद के दृ य मुझे प प से याद ह।
मिण भवन प च ँ ने पर, जो क बॉ बे वास के दौरान महा मा का िनयिमत
आवास होता था, मुझे एक क म ले जाया गया, िजसम भारतीय कालीन
िबछे थे। क के लगभग म य म दरवाजे क ओर मुँह कए महा मा अपने कु छ
करीबी समथक से िघरे थे। सभी ने वदेशी खादी पहन रखी थी। जैसे ही मने
क म वेश कया, अपने िवदेशी प रधान के कारण मने वयं को उस प रवेश
म अप रिचत-सा पाया। म इसके िलए माफ माँगे िबना न रह सका। महा मा
ने हा दक मुसकान के साथ मेरा वागत कया। यह मुसकान उनके च र क
खास िवशेषता थी। ज द ही उ ह ने मुझे उस नए प रवेश म सहज होने म
मदद क और तुरंत ही बातचीत का िसलिसला शु हो गया। म उनक योजना
के योरे को प प म समझना चाहता था—जानना चाहता था क कस
कार आगे बढ़ा जाएगा, िवदेशी नौकरशाही से स ा को अंतत: अपने हाथ म
लेने के िलए कन- कन चरण से होकर गुजरगे? इसिलए मने एक के बाद एक
सवाल क झड़ी लगा दी और महा मा ने अपनी आदत के अनुसार संयम के
साथ उनका जवाब दया। तीन बंद ु ऐसे थे, िजनक ा या क ज रत थी।
पहला, कां ेस ारा चलाई जा रह िविभ गितिविधयाँ अिभयान के अंितम
चरण म कस कार संप ह गी, जैसे क कर का भुगतान नह करना? दूसरा,
के वल कर का भुगतान नह करने या सिवनय अव ा से सरकार कै से पीछे
हटेगी और या इतने मा से वह हम आजाद करके इस देश से चली जाएगी?
तीसरा, महा मा कै से एक साल के भीतर ‘ वराज’ (होम ल) का वादा कर
सकते ह—जैसा क वे नागपुर कां ेस के बाद से ही कर रहे थे? मेरे पहले सवाल
का जो जवाब उ ह ने दया, म उससे संतु था। एक करोड़ सद य और एक
करोड़ पए क उनक अपील संतोषजनक पाई गई थी और वे योजना म अपने
अगले कदम क ओर बढ़ चुके थे—जो क िवदेशी उ पाद का बिह कार व
वदेशी खादी को बढ़ावा देना था। अगले कु छ महीन म उनके यास खादी
अिभयान पर क त रहगे। और वे उ मीद कर रहे थे क जैसे ही सरकार को
यह अहसास होगा क कां ेस क शांितपूण रचना मक गितिविधयाँ सफल हो
रही ह, वह कां ेस पर हमले क पहल करे गी। और जब सरकार यह कदम
उठाएगी, तो सरकारी आदेश क अव ा करने और जेल जाने का समय आ
जाएगा। जेल पहले ही कै दय से भरी ह गी और उसके बाद आंदोलन का
अंितम चरण आएगा—कर का भुगतान नह करना।
बाक दो सवाल पर महा मा के जवाब से म सहमत नह था। मने उनसे
पूछा क या वे यह उ मीद लगा रहे ह क बिह कार आंदोलन से लकशायर म
इतनी अफरातफरी फै ल जाएगी क संसद् पर दबाव पड़ेगा और कै िबनेट भारत
के साथ शांित समझौता कर लेगी? ले कन महा मा ने मुझे समझाया क वे
ऐसा नह मानते क ये ऐसे उपाय ह, जहाँ सरकार को कां ेस क बात मानने
के िलए मजबूर कया जा सके । म यह नह समझ पाया क उनक असली
उ मीद या थी? या तो वे समय से पहले अपने सभी प े नह खोलना चाहते
थे या उनके पास रणनीितय क प अवधारणा नह थी, जहाँ सरकार को
झुकाया जा सके ।28 कु ल िमलाकर दूसरे सवाल पर उनका जवाब िनराशाजनक
था और तीसरे सवाल का भी कोई बेहतर जवाब नह िमला। उनके िलए
आ था का सवाल या था—जैसे क एक साल के भीतर वराज हािसल कर
िलया जाएगा—यह कसी भी तरह से मुझे प नह आ और अपनी बात
क ँ तो म कह अिधक लंबे समय तक काम करने के िलए तैयार था। एक घंटे
क इस बातचीत के बाद मने जो कु छ सीखा था, उसके िलए आभारी होने के
अलावा मेरे पास और कोई चारा नह था। हालाँ क मने उस समय अपने आप
पर ब त जोर डालने और यह समझाने क कोिशश क क ज र मेरे ही भीतर
समझ क कोई कमी रही होगी, मेरी तकशि बार-बार मुझे साफ-साफ कह
रही थी क महा मा ने जो योजना का खाका तैयार कया है, उसम आलोचना
क सीमा तक प ता का अभाव था और यह भी क उ ह वयं अिभयान के
अगले चरण के बारे म कु छ प िवचार नह था, िजससे क भारत आजादी
के अपने ल य को हािसल कर सके गा।
म हताश और िनराश था क म या क ँ ? महा मा ने मुझे सलाह दी क
कलक ा प च ँ ने पर म देशबंधु सी.आर. दास से जाकर िमलूँ। म कि ज से
पहले ही देशबंधु सी.आर. दास को प िलख चुका था क म िसिवल स वस से
इ तीफा दे चुका ँ और मने राजनीितक आंदोलन म शािमल होने का फै सला
कर िलया है। हमारे पास इं लड म ये खबर प च ँ चुक थ क वे बार म अपने
शाही कॅ रयर को याग चुके थे और अपनी पूरी संपि रा के नाम करते ए
अपना पूरा समय राजनीितक काय म देने जा रहे थे। म इस महान् ि से
िमलने को उ सुक था और इसी उ सुकता म म महा मा गांधी से अपनी
मुलाकात के िनराशाजनक भाव से उबर गया और उसी उ साह और जोश के
साथ बॉ बे से रवाना हो गया, िजस उ साह के साथ म यहाँ आया था।
कलक ा प च ँ ने पर म सीधा देशबंधु दास के घर जा प चँ ा। एक बार फर
मुझे िनराशा ई। वे ांत के सुदरू और भीतरी इलाके म लंबे दौरे पर गए ए
थे और मेरे पास उनक वापसी का इं तजार करने के िसवाय और कोई रा ता न
था। जब मने सुना क वे लौट आए ह, तो म फर से जा प च ँ ा। उस समय वे
बाहर गए ए थे, ले कन उनक प ी बसंती देवी ने ब त ही उदारता और
स ावना के साथ मेरा वागत कया। काफ देर बाद वे लौटे...अपने दमाग
क आँख से आज भी म उ ह देख सकता ।ँ कतना िवशाल ि व था...वे
मेरी ओर बढ़ रहे थे। ये वह ीमान दास नह थे, िजनसे एक बार म कोई
सलाह माँगने गया था। उस समय वे कलक ा बार के नेता म से एक थे और
म एक छा था, िजसे राजनीितक कारण से िव िव ालय से िन कािसत कर
दया गया था। अब वह, वो ीमान दास नह रहे थे, जो एक दन म हजार
पए कमाते थे और एक घंटे म हजार पए खच कर देते थे। हालाँ क उनका
घर अब महल नह रह गया था, ले कन वे वही ीमान दास थे, जो हमेशा
युवक के िम रहे थे, उनक आकां ा को समझ सकते थे और उनके दु:ख म
उनके साथ सहानुभूित जता सकते थे। बातचीत का िसलिसला चल िनकला
और उस दौरान मुझे यह महसूस होना शु आ क म एक ऐसे इनसान के
सामने बैठा ,ँ जो जानता है क वह या है—जो अपना सबकु छ योछावर कर
सकता है और िजसके कहने पर दूसरे अपना सबकु छ योछावर कर सकते ह—
एक ऐसा इनसान, िजसके िलए युवाव था कोई कमी नह , बि क एक गुण है।
जब तक बातचीत ख म ई, म अपना मन बना चुका था। मने महसूस कया
क मुझे एक नेता िमल गया है और मुझे उनका अनुसरण करना है।
कलक ा म टकने के बाद म देश के हालात, िवशेष प से बंगाल ांत का
हालचाल जानने िनकला। देश भर म अपार उ साह था। ‘ितहरा बिह कार’
काफ सफल रहा था। हालाँ क िवधानसभाएँ खाली नह थ , ले कन कोई
कां ेसी वहाँ नह गया था। कु ल िमलाकर वक ल से काफ अ छी ित या
िमली थी और छा समुदाय ने तो कमाल कर दया था।29 कां ेस क सद यता
और धन जुटाने क अपील रं ग लाई और महा मा इससे ब त अिधक उ सािहत
थे। इसी उ साह म उ ह ने जुलाई म िवदेशी व के बिह कार और कताई
तथा बुनाई को पुनज िवत करने के िलए आंदोलन छेड़ दया। 1 अग त, 1921
को लोकमा य ितलक क बरसी पर देश भर म िवदेशी व क होली जलाई
गई। कां ेस नेता ने देश क सारी गंदगी और सभी कार क कमजो रय को
भी इस अि म वाहा करने का तीक प म चार कया। असहयोग
आंदोलन का यह एक नया िवचार था और इसम मुसिलम समुदाय ने पूरे दल
से समथन दया, िजससे आंदोलन म और मजबूती आ गई। साथ ही ‘एक साल
के भीतर वराज’ के नारे ने ब त से लोग को मैदान म उतरने के िलए े रत
कया, जो लंबे समय से ताड़ना झेल रहे थे।
ऐसे म बंगाल म दो मह वपूण घटनाएँ —असम-बंगाल रे लवे हड़ताल
और िमदनापुर िजले म नो टै स अिभयान। रे लवे क हड़ताल ने ई ट बंगाल
और असम म संपूण रे ल और टीमर यातायात को पंगु कर दया। हड़ताल का
आ वान बंगाल कां ेस सिमित के नेतृ व म कया गया था और शु आती चरण
म यह इतनी सफल रही क इसने लोग को उनक ताकत का अहसास करा
दया। जनता को महसूस आ क अगर वे शासन के िखलाफ एकजुट हो जाएँ
तो वे अपनी ताकत का परचम लहरा सकते ह। ले कन समय रहते कोई
समझौता नह होने के कारण हड़ताल लंबे समय तक खंच गई और अंतत:
िवफल हो गई। रे लवे को भारी नुकसान आ। इसी हड़ताल के िसलिसले म
जे.एम. सेनगु ा पहली बार जनता क नजर म मुखता से आए। दूसरी
मह वपूण घटना िमदनापुर िजले म नो टै स अिभयान थी। 1919 म सर
एस.पी. िस हा (बाद म लॉड िस हा), जो क गवनर ऑफ बंगाल क
ए जी यू टव काउं िसल के सद य थे, उनके कहने पर एक ऐ ट पा रत कया
गया, िजसका मकसद गाँव म वशासन क व था को पेश करना था—
िजसके तहत ांत म गाँव के हर एक समूह के िलए एक यूिनयन बोड ग ठत
कया जाएगा। इस कदम क दो आधार पर कड़ी आलोचना ई—पहली, जो
शि ामीण को दी जानी चािहए थी, वह अभी भी िजला अिधका रय के
हाथ म थी। उदाहरण के िलए, ाम पुिलस को िनयु और बरखा त करने क
शि । दूसरी, यूिनयन बोड क थापना से अित र कराधान क
आव यकता थी, ले कन इसके बदले म कोई लाभ नह िमलनेवाला था। ऐ ट
म यह ावधान कया गया था क ांतीय सरकार कसी भी िजले म इस
व था को लागू कर सकती थी या हटा सकती थी। बी.एन. ससमाल, जो क
पेशे से वक ल थे, उनके नेतृ व म िमदनापुर के लोग ने उनके िजले से इस ऐ ट
को वापस िलये जाने क माँग करते ए आंदोलन शु कर दया। अपनी माँग
को और मजबूत करने के िलए उ ह ने नवग ठत यूिनयन बोड ारा थोपे गए
कर का भुगतान करने से भी इनकार कर दया। िजले पर नए ऐ ट को जबरन
लादने के िलए पारं प रक दमनकारी उपाय का सहारा िलया गया। ामीण
क संपि को बलपूवक ज त कया जाने लगा, उन पर मुकदमे चलाए गए और
तािड़त कया गया, सेना, पुिलस और सैिनक को बुलाकर उ ह डराया-
धमकाया गया—हरसंभव कोिशश क गई, ले कन कोई सफलता नह िमली।
1921 म साल भर यह दमनच चला, ले कन आिखरकार 1922 म शासन
को इस ऐ ट को वापस लेना पड़ा। इस नो टै स आंदोलन क सफलता से
िमदनापुर के लोग को ब त ताकत िमली और उनम गजब का आ मिव ास
पैदा हो गया तथा उनके नेता बी.एन. ससमाल को इस आंदोलन ने लोकि य
बना दया। यहाँ हम अपने िवमश को िवराम देना ज री हो गया है, ता क हम
1921 म शासन ारा अपनाए गए रवैए पर चचा कर सक।
शु आत म, वायसराय लॉड चे सफोड ने महा मा गांधी को गंभीरतापूवक
नह िलया। जनवरी म ूक ऑफ कनॉट, जो क वतमान राजा के चाचा ह,
भारत या ा पर आए। उनक या ा का मकसद नई संसद् का उ ाटन करना
था। भारतीय रा ीय कां ेस ने उनक या ा का बिह कार कया और जहाँ भी
ूक गए, उनका बिह कार करते ए दशन कए गए। इन दशन से भारत
सरकार आगबबूला हो गई, उसका उदासीन तट थता का भाव धीरे -धीरे
बदलना शु हो गया। अ ैल म लॉड री डंग, इं लड के ितभाशाली पूव लॉड
चीफ जि टस, लॉड चे सफोड के उ रािधकारी बनकर भारत आए। उनके
आगमन के तुरंत बाद ही, मई के महीने म, उनके और महा मा गांधी के बीच
मुलाकात तय क गई। इस मुलाकात म लॉड री डंग ने महा मा को आ ासन
दया क जब तक कोई हंसा नह होगी, वे कां ेस के कामकाज म कोई दखल
नह दगे। उ ह ने आगे कहा क महा मा के दािहने हाथ मौलाना मोह मद
अली ने अपने एक भाषण म हंसा का सहारा लेने क अपील क थी और
सरकार उन पर मुकदमा चलाने क सोच रही थी। महा मा ने वादा कया क
वे इस मामले को देखगे। मौलाना ने सावजिनक प से आ ासन दया क वे
हर कार क हंसा से दूर रहगे और इस वादे को िविधवत् तरीके से पूरा भी
कया गया। इस पूरे मामले म कु छ भी गलत या अपमािनत करनेवाला नह था
और जनता क नजर म इस मामले को इस तरीके से देखा गया क चतुर
वायसराय ने महा मा और मौलाना दोन को साध िलया था। हालाँ क
मौलाना मोह मद अली पर मुकदमा चलाने का िवचार तो इस मुलाकात के
बाद छोड़ दया गया, ले कन उ ह और अ य मुसिलम नेता को अग त म
कराची म िखलाफत कॉ स म उनक भागीदारी को लेकर िसतंबर म
िगर तार कर िलया गया। सभी को दो साल के ‘स म कारावास’ क सजा
सुनाई गई। इस कॉ स म सभी मुसिलम से हर तरह क सरकारी नौकरी,
चाहे िसिवल हो या सेना क , छोड़ने का आ वान करते ए एक ताव पा रत
कया गया और ऐसा करना कानून का उ लंघन था। अली बंधु और उनके
सहयोिगय को दोषी करार दए जाने के बाद चुनौती का सामना करने के िलए
महा मा गांधी सामने आए। इसी कार के ताव पर कां ेस के 46 सद य ने
ह ता र कए और उसे कािशत कया गया। भारत भर म हजार मंच से
यही ताव दोहराया गया, ले कन सरकार ने एक भी िगर तारी नह क और
कां ेस क इस अव ा का कोई सं ान नह िलया। िसतंबर महीने म, भारतीय
लेिज ले टव असबली-क ीय संसद् क थापना नए संिवधान के तहत क गई।
क ीय संसद् ने 1929 से पहले के संिवधान क जाँच-पड़ताल और संशोधन क
अपील करते ए एक ताव पा रत कया। सरकार क ओर से इस पर त काल
कोई उ र नह आया, ले कन अगले साल भारतीय मामल के िवदेश मं ी
लॉड पील ने इस िवषय म 3 नवंबर, 1922 को भेजी डाक म कहा क संिवधान
म संशोधन पर िवचार करना ब त ज दबाजी होगी।
उपरो िवमश से ऐसा तीत हो सकता है क 1921 के दौरान महा मा
गांधी एक लहर के िशखर पर सवार थे और उनके रा ते म कोई बाधा नह
आई थी। ऐसा भाव पूरी तरह सही नह था। इस बात म कोई संदह े नह था
क उनके प म भारी जनमत था—ले कन जहाँ तक बुि जीवी वग क बात है
तो कु छ त व उनके िखलाफ थे। सबसे पहले तो भारतीय उदारवादी हर जगह
उनके िखलाफ मोचाबंदी कए ए थे और अिधकतर ांत म उ ह ने मं ी पद
वीकार कर िलये थे। उदारवा दय का वहार सीधे म टे यू के यास का
प रणाम था, जो भारतीय मामल के िवदेश मं ी थे। जब तक वे पद पर रहे—
जो क माच 1922 तक था, उदारवा दय ने पूरे उ साह के साथ संिवधान का
समथन कया। ि टश कै िबनेट से उनके इ तीफे के बाद उदारवादी नेता म
कु लबुलाहट होनी शु हो गई। उ ह महसूस होने लगा था क अपने सहयोग
को जारी रखना अब उनके िलए मुि कल होता जा रहा है। अ ैल 2022 म सर
तेज बहादुर स ू ने वायसराय क ए जी यू टव काउं िसल से इ तीफा दे दया
और मई 1923 म चंतामिण, जो क संयु ांत के उदारवादी नेता थे, उ ह ने
उस ांत म िश ा मं ी के पद से इ तीफा दे दया। धीरे -धीरे उदारवादी
सरकार के िखलाफ हो गए और 1927 आते-आते प रवतन इतना िवशाल
आकार ले चुका था क जब साइमन कमीशन को िनयु कया गया तो कां ेसी
और उदारवादी एक मंच से बिह कार का भाषण दे सकते थे।
मानिसक प से और वैचा रक तर पर भी भारतीय उदारवा दय के साथ
बेहद करीब से जुड़े िव िव ालय को िश ण सं थान के कां ेस क
बिह कार क नीित से सवािधक नुकसान आ। असहयोग क उठती लहर के
कारण कु छ समय के िलए उनका भाव ख म हो चला था, ले कन वे अभी भी
कां ेस के िखलाफ अपने बचे-खुचे भाव का इ तेमाल करने म जुटे ए थे। इन
यास म उ ह और कसी नह , बि क डॉ. रब नाथ टैगोर जैसी ह ती का
समथन िमला था। किव टैगोर लगभग जुलाई के म य म यूरोप से बॉ बे प च ँ े
थे। सच बात तो यह है क मने उनके साथ उसी जहाज म सफर कया था।
हमारी या ा के दौरान, मुझे उनके साथ कां ेस ारा अपनाई गई असहयोग
क नीित पर चचा करने का मौका िमला। वे कसी भी तरह से कां ेस के
िवचार के िखलाफ नह थे। वे के वल इस बात के िलए उ सुक थे क रचना मक
कार क गितिविधयाँ अिधक होनी चािहए, ता क पूरी तरह लोग के सहयोग
और समथन से अंतत: एक रा के भीतर रा का िनमाण कया जा सके ।
उ ह ने जो सुझाव दया, वह आय रश िसन फे ती आंदोलन के रचना मक प
के अनु प था और पूरी तरह से मेरे िवचार से मेल खाता था। ले कन भारत
आगमन के तुरंत बाद उ ह लोग के एक ऐसे समूह ने घेर िलया, जो असहयोग
आंदोलन के िखलाफ थे और िज ह ने उनको इस आंदोलन का के वल
नकारा मक प दखाना शु कर दया—साथ-ही-साथ आधुिनक िव ान और
आधुिनक मेिडिसन पर महा मा के िनजी िवचार से भी—िजनका कां ेस के
राजनीितक काय म से कोई संबंध नह था। रब नाथ टैगोर पर इसका यह
भाव पड़ा क असहयोग आंदोलन पि मी िव ान, सािह य और स यता से
संबंध तोड़ने के ल य को लेकर चल रहा है और इसी भाव के चलते उ ह ने
कलक ा म एक जबरद त भाषण दया, िजसका शीषक ही था—‘यूिनटी ऑफ
क चर’। उ ह ने भारत को शेष िव क सं कृ ित और स यता से अलग-थलग
कए जाने के कसी भी यास तथा साथ ही िश ण सं थान के बिह कार क
भी नंदा क । कां ेस खेमा इस हमले को बरदा त नह कर सका, ले कन टैगोर
के हमले का उसी अनुपात म जवाब देने के िलए कां ेस के िलए उतने ही
िवशाल कद के कसी ि व को तलाश पाना असंभव था। हालाँ क बंगाल के
मुख उप यासकार, शरत चं चटज ने ‘दी कॉ फिल ट ऑफ क चस’
(स यता का संघष) शीषक से इसका जवाब देने का साहस कया। उनके
भाषण का मु य प यही था क भले ही सं कृ ित का एक वैि क, सावभौिमक
आधार था, ले कन येक देश क अपनी िविश सं कृ ित थी, जो उसक
रा ीय ितभा क रचना थी। भारत भूिम को अपनी वयं क सं कृ ित का
संर ण और िवकास करना होगा और य द ऐसा करते ए उसे िश ण
सं थान का भी बिह कार करना पड़े, जो क ि टश भाव म थे, तो इसम कु छ
भी आपि जनक नह है। टैगोर का यह हमला महा मा को ब त ही अवांछनीय
लगा, खासतौर से इसिलए भी, य क दि ण अ का से गांधी के लौटने के
बाद से ही दोन के बीच ब त अ छी िम ता थी। इसिलए टैगोर को मनाने के
िलए महा मा को कई बार उनके साथ बैठक करनी पड़ी। समय बीतने के साथ
टैगोर का िवरोध पूरी तरह समा हो गया और वे उसके बाद के अपने
अिभयान म महा मा के धुर समथक के तौर पर सामने आए।
महा मा क असहयोग नीित का िवरोध बुि जीवी तबके ने कया था तो
उनके अ हंसा के पंथ का िवरोध एक अ य तबके क ओर से कया गया और यह
थी रवॉ यूशनरी पाट । िव यु के दौरान हजार ांितका रय को सलाख
के पीछे डाल दया गया और उनम से अिधकतर को 1919 म घोिषत आम
माफ के प रणाम व प बाद म रहा भी कर दया गया। इन ांितका रय म
से ब त से ऐसे थे, िज ह ने बदले क काररवाई या कह क अ हंसा के िस ांत
का अनुमोदन नह कया, य क उ ह आशंका थी क अ हंसा क नीित लोग
का मनोबल िगराएगी और ितरोध क उनक शि को कमजोर कर देगी।
संभावनाएँ कु छ ऐसी थ क पूव ांितकारी, एक वग के तौर पर वैचा रक
मतभेद के आधार पर कां ेस के िखलाफ चले जाएँग।े वा तिवकता तो यह है
क उनम से एक वग ने पहले ही बंगाल म असहयोग आंदोलन के िखलाफ
चार शु कर दया था।
यह अपने आप म काफ अजीब है क इसके िलए ि टश मकटाइल
क युिनटी ारा ‘िसटीजंंस ोटे शन लीग’ नाम के तहत धन उपल ध कराया
था। इस धन का िवतरण एक भारतीय वक ल के मा यम से करवाया गया,
िजसने धन के ोत का खुलासा नह कया। देशबंधु सी.आर. दास
ांितका रय के आ ोश को शांत करने को उ सुक थे और संभव हो तो कां ेस
के आंदोलन के िलए उनका स य समथन हािसल करना चाहते थे। इसिलए
उ ह ने िसतंबर महीने म ांितका रय और महा मा के बीच एक मुलाकात का
बंदाेब त कया, िजसम वे वयं भी उपि थत थे। पूव ांितका रय ने महा मा
के साथ दल खोलकर बात क । महा मा तथा देशबंधु ने उ ह इस बात से
सहमत करने का भरसक यास कया क अ हंसा और असहयोग आंदोलन
लोग को कमजोर या हतो सािहत करने के बजाय भावी ितरोध क उनक
ताकत को और धार देगा। इस मुलाकात का प रणाम यह रहा क बैठक म
माैजूद सभी ने वराज के िलए कां ेस के यास को पूरा मौका देने का वादा
कया और साथ ही वादा कया क कां ेस के काय म वे कोई बाधा नह
प चँ ाएँग।े उनम से कई ने तो िन ावान और स य सद य के प म कां ेस
संगठन म शािमल होने पर भी सहमित जता दी।
महा मा और पूव ांितका रय के बीच यह मुलाकात िसतंबर 1921 म बंद
दरवाज के पीछे ई थी। उस समय महा मा तथा कां ेस कायसिमित के अ य
सद य, देशबंधु सी.आर. दास के मेहमान के तौर पर ठहरे ए थे। यह पहला
अवसर था, जब मुझे कां ेस के मुख नेता के िनजी संपक म आने का मौका
िमला था। देशबंधु के अित र उस समय कां ेस के महान् नेता म पं.
मोतीलाल नेह , लाला लाजपत राय और मौलाना मोह मद अली थे। यह
कहना मुि कल है क 1921 म इन नेता के स य समथन के िबना महा मा
कतने सफल हो पाते। लालाजी और देशबंधु के मह व को समझने तथा महसूस
करने के िलए पंजाब और बंगाल म उनक अनुपि थित म राजनीितक हालात
क क पना भर करना काफ है। और 1921 म नेह जूिनयर (पं. जवाहरलाल
नेह ) कोई जाना-पहचाना चेहरा नह थे या उ ह इतना अनुभव नह था क
वे अपने िपता का थान ले पाते। पहले तीन नेता का अपने-अपने ांत म
ब त भाव था, ले कन इसके अलावा भी उनका कद इस त य के चलते भी
ऊँचा था क वे कां ेस के तीन उ कृ ेणी के बौि क द गज थे। बतौर एक
राजनीितक नेता, महा मा ने कई भयंकर भूल क । य द ये तीन नेता उ ह
सलाह देने क ि थित म रहे होते तो इन भयानक भूल से बचा जा सकता था।
इन तीन महान् िवभूितय के िनधन के बाद कां ेस का नेतृ व बौि कता के
तर के िलहाज से रसातल म चला गया। आज क तारीख म कां ेस
कायसिमित म िन संदह े भारत क कु छ उ कृ को ट क ितभाएँ शािमल ह
—ऐसे ि व, िजनम च र और साहस है तथा रा भि और बिलदान क
भावना कू ट-कू टकर भरी ई है। ले कन उनम से अिधकतर को चुनने का मुख
कारण महा मा के ित उनक ‘अंध’ भि है—और उनम से कु छ िगने-चुने ही
ऐसे ह, िजनके भीतर वयं के बारे म सोचने क मता है या महा मा के
िखलाफ उस ि थित म बोलने क इ छा है, जब उनके कोई गलत कदम उठाने
क संभावना होती है। ऐसी प रि थितय म कां ेस कै िबनेट आज ‘वन मैन शो’
हो गई है।
1921 म इन तीन नेता के अलावा अली बंधु (मौलाना मोह मद और
मौलाना शौकत अली) का जनता के बीच एक अलग ही दजा था और इसका
कारण कु छ हद तक उनक अपनी गितिविधयाँ और िव यु के दौरान उनक
पीड़ा थी—और कु छ वजह मुसिलम के बीच एक नई जागृित थी। ले कन इसम
ब त-कु छ योगदान महा मा ारा उनके प म चलाया गया चार भी था।
महा मा क उनके साथ घिन ता इस हद तक थी क दोन को महा मा का
दािहना और बायाँ हाथ समझा जाने लगा था। महा मा ने उ ह साथ लेकर देश
का दौरा कया और कोई भी इस बात को अ छी तरह याद कर सकता है क
उन दन एक बड़ा ही लोकि य नारा लगाया जाता था, ‘महा मा गांधी क
जय’ और इस नारे के साथ ही दूसरा नारा लगता था, ‘अली भाइय क जय’।
हालाँ क कु छ साल के बाद अली बंधु ने महा मा को अलिवदा कह दया
और अपना रा ता अलग कर िलया। मुझे नह लगता क अली बंधु के साथ
इतने घिन संबंध म महा मा म कोई ि कमी िनकाल सकता है। मेरे
िवचार से असली गलती अ य रा ीय मु से िखलाफत मु े को जोड़ना नह
थी, बि क असली गलती भारतीय रा ीय कां ेस से अलग देश भर म एक
वतं संगठन के प म िखलाफत सिमितय क थापना को मंजूरी देना थी।
इसका प रणाम यह आ क आगे चलकर जब गाजी मु तफा कमाल पाशा ने
तुक के नए नेता के तौर पर सु तान को खलीफा के पद को पूरी तरह छोड़ने
और समा करने का दबाव डाला तो िखलाफत का सवाल अपना अथ और
मह व खो बैठा।
इसका यह भी प रणाम आ क िखलाफत संगठन के सद य जातीय,
ित यावादी और ि टश समथक संगठन म जा िमले। य द अलग से
िखलाफत सिमितय का गठन नह कया गया होता और सभी िखलाफतवादी
मुसिलम को भारतीय रा ीय कां ेस म शािमल होने के िलए मनाया जाता तो
ब त संभव है क िखलाफत मु े के अ ासंिगक होने के बाद वे कां ेस का
िह सा बन जाते। साल आधा बीत चुका था और राजनीितक हालात तनावपूण
होने शु हो चुके थे। उस समय न तो सरकार और न ही कां ेस को इस बात
का भान था क तूफान कब आएगा, ले कन देश के िविभ िह स म संघष शु
होने के संकेत आने शु हो गए थे। इन सारे घटना म के बीच जनता
आ ामक हो उठी और सरकार बचाव क भूिमका म आ गई। बंगाल के
िमदनापुर िजले म ‘नो टै स अिभयान’ के बारे म िज पहले ही कया जा
चुका है। कराची म िखलाफत कॉ स के बाद िसतंबर म अली बंधु को कै द
कर िलये जाने के बाद कां ेस नेता का आचरण भी ितरोध का भाव िलये
ए था। इससे भी सरकार पर नकारा मक असर पड़ा।
दो अ य घटना का िज करना ज री है—पंजाब म ‘अकाली’ आंदोलन
और दि ण के मालाबार म ‘मोपला’ यानी क ‘माि पला’ िव ोह। अकाली,
ईसाइय के बीच यू रटन के समान िसख का एक वग था। मु य प से वे
िसख पूजा- थल /गु ार के शासन म सुधार चाहते थे। ये अिधकतर गु ारे
काफ समृ थे और इनका शासन कु छ ‘म य थ ’ ारा कया जाता था,
िजनक िज मेदारी के वल यािसय के प म थी और िजनसे तप वी और
संयमी जीवन जीने क उ मीद क जाती थी, ले कन ये लोग जनता के पैसे पर
ऐश क जंदगी जी रहे थे। अकाली चाहते थे क इन महंत को हटाकर गु ारे
का बंधन लोकि य सिमितय को स पा जाए। जैसा क हमेशा एक गुलाम देश
म होता है, सरकार ने अपने िनिहत वाथ के चलते महंत के ऊपर अपना
हाथ रख दया। इस कार ज द ही एक आंदोलन, जो महंत के िखलाफ था,
वह सरकार के िखलाफ आंदोलन म बदल गया। अकािलय क रणनीित कां ेस
के अ हंसक असहयोग आंदोलन क नीित के अनु प थी और उ ह ने गु ार
को अपने अिधकार म लेने के िलए मिहला तथा पु ष के ज थ को भेजना
शु कर दया। उ ह िगर तार कर जेल म डाल दया गया या बेरहमी से पीटा
गया और जबरन खदेड़ दया गया।
यह आंदोलन नवंबर 1922 तक जारी रहा तो उसके बाद सरकार को होश
आया। उसने अकािलय क माँग को वीकार करते ए पंजाब िवधानसभा म
एक िवधेयक पेश कया। मालाबार के मोपला या माि पला मुसिलम समुदाय
का ही एक िह सा थे। इनक बगावत थानीय हंद ु के िखलाफ थी; कहने क
ज रत नह क यह भी सरकार पर हमला था और यह उनके िलए काफ
बेचैनी तथा परे शानी का कारण बन गया था। यह इसिलए भी मह वपूण है,
य क हंद-ू मुसिलम एकता क जड़ पर यह पहला आघात था।
‘एक साल के भीतर’ वराज का वादा पूरा होने क बात तो ब त दूर थी,
उलटे िव ोह क इन अलग-अलग घटना के बावजूद देश ापी संघष भड़कने
के कोई संकेत नह थे, इसिलए कां ेस के गिलयार म घबराहट और िनराशा
बढ़ने लगी थी। तभी सरकार बचाव के िलए आगे आई। ऐलान कया गया क
ंस ऑफ वे स भारत-या ा पर आएँगे और वे 17 नवंबर को बॉ बे प च
ँ गे।
जािहर सी बात है क इस या ा के पीछे का मकसद जनता के उबलते आ ोश
पर ठं डा पानी डालना और सरकार के प म जन-समथन जुटाना था। कां ेस
कायसिमित ने तुरंत ंस क या ा का बिह कार करने का िनदश जारी कर
दया। इसके िलए आधार यह बताया गया, हालाँ क जनता ंस के िखलाफ
नह है, ले कन चूँ क वे नौकरशाही के हाथ मजबूत करने आ रहे ह, िजसके
िखलाफ जनता संघष कर रही है तो उनके पास ंस क या ा का िवरोध करने
के िसवाय और कोई िवक प नह है। इस बिह कार क ओर पहला कदम बढ़ाते
ए 17 नवंबर को ‘हड़ताल’ का आ वान कया गया। उस दन देशभर म सारा
कारोबार पूरी तरह थम जाना चािहए था। उस दन बॉ बे म बिह कार दशन
सफल नह आ। सरकार समथक और कां ेस समथक के बीच संघष िछड़
गया और इसका प रणाम यह आ क दंगा भड़क उठा। ले कन उ र भारत म,
िवशेषकर कलक ा म दशन अभूतपूव प से सफल रहा और इसका पूरा ेय
िखलाफत संगठन के बढ़-चढ़कर कए गए सहयोग को जाता है। कलक ा म
दशन को इतनी शानदार सफलता िमली क एं लाे इं िडयन समाचार-प ,
‘ टे समैन’ और ‘इं गिलशमैन’ ने अगले दन िलखा क शहर पर कां ेस के
वयंसेवक ने क जा जमाया। सरकार ने कां ेस के वयंसेवक के िखलाफ तुरंत
और कड़ी काररवाई क माँग क ।
24 घंटे के भीतर बंगाल क सरकार ने उ ह गैर-कानूनी घोिषत करते ए
एक अिधसूचना जारी क । देश के अ य िह स म भी इसी कार क
अिधसूचनाएँ जारी कर दी ग । हम कलक ा म संघष कर रहे थे तो हम तीन
बार सरकारी अिधसूचना दी गई। आमजन का िवचार तो इस सरकारी चुनौती
का त काल जवाब दए जाने के प म था, ले कन हमारे नेता देशबंधु सतक थे।
वे ांत म अपने समथक क ि थित का जायजा लेने और महा मा तथा
कायसिमित से िवचार-िवमश करने के िलए कु छ समय चाहते थे। तुरंत ही ांत
के िविभ िह स म गोपनीय प भेजे गए, िजसम इस बात पर राय माँगी गई
थी क अगर कां ेस सरकारी ितबंध क सावजिनक अव ा शु करे तो उसे
जनता का कतना समथन िमलेगा? एक स ाह से भी कम समय के भीतर
िजल से उ साहजनक रपो स आनी शु हो ग । नवंबर बीतने को था और
भिव य क काररवाई का फै सला करने के िलए बंद दरवाज के पीछे बंगाल क
ांतीय कां ेस सिमित क बैठक आ त क गई। सिमित म करीब 300 सद य
बंगाल के कां ेस संगठन का ितिनिध व कर रहे थे। तब तक म इस इकाई का
सद य बन चुका था और उसके िवचार-िवमश म भाग लेने का पा हो गया
था। बैठक म एक राय से सिवनय अव ा शु करने का फै सला कया गया और
आपाति थित के म ेनजर सिमित क सभी शि याँ इसके अ य देशबंधु दास
म िनिहत कर दी ग और साथ ही उ ह आगे अपना उ रािधकारी नािमत
करने के िलए भी अिधकृ त कर दया गया। इस कार उ ह ांत के िलए कां ेस
का सवसवा िनयु कर दया गया—यह एक ऐसी या थी, िजसे उसके
बाद देश भर म अपनाया गया।
पाट के जवान खून क सलाह के िवपरीत नेता ने आंदोलन क हलक
शु आत करने का फै सला कया। नौजवान वग तो िवशाल पैमाने पर दशन
शु करने के हक म था। उ ह ने कहा था क वे आंदोलन को धीरे -धीरे आगे
बढ़ाना और लड़ाई को के वल एक प मु े तक सीिमत रखना चाहते थे। यह
मु ा था—य द पाँच-पाँच वयंसेवक के ज थे खादी के कपड़े बेचने के िलए
िनकल तो या सरकार काररवाई करे गी—वरदी म नह , जैसा क हमने सुझाव
दया था, बि क मु ती म! य द वे ऐसा करगे तो जनता सरकार क इस
काररवाई को मनमानी और अ यायपूण के तौर पर देखेगी तथा इसके बाद
सभी वग कां ेस के समथन म आ जाएँग।े इस मु े पर संघष शु हो गया और
मुझे अिभयान का मुिखया बना दया गया। नेशनल कॉलेज के ंिसपल के पद
पर म अपनी िज मेदा रय का िनवहन नह कर सकता था और ऐसा इसिलए
भी यादा था, य क कु छ छा और टाफ के कु छ सद य अिभयान म
शािमल होने को उ सुक थे। हमने वयंसेवक के िलए एक अपील जारी क क
हम ऐसे लोग क ज रत है, जो सरकारी ितबंध क अवहेलना करगे और
उसके सभी कार के नतीज को वीकार करने के िलए तैयार रहगे। इसक
ित या हतो सािहत करनेवाली रही। जािहर तौर पर, जनता अभी भी जोश
म नह आई थी और उसे झकझोरने के िलए कसी ेरक क आव यकता थी।
नेता ने सुझाव दया क उनके बेटे और प ी को दूसर के िलए उदाहरण पेश
करने के वा ते वयंसेवक के प म बाहर जाना चािहए। हमने इस आधार पर
इस िवचार का िवरोध कया क जब तक एक भी पु ष शेष है, तब तक कसी
मिहला को बाहर जाने क अनुमित नह दी जानी चािहए। ले कन नेता अपने
फै सले पर अिडग थे। इस कार, अगले दन युवक दास, जो क करीब मेरे ही
हमउ थे, वयंसेवक के मुख के तौर पर िनकले और तुरंत ही उ ह जेल म
डाल दया गया।30 वातावरण म अचानक से प रवतन आ और वयंसेवक क
सूची म नाम बढ़ने लगे, ले कन बावजूद इसके इतना काफ नह था। तो अब
बारी ीमती दास क आई। अपनी भाभी/ननद ीमती उ मला देवी तथा एक
अ य सहयोगी सुनीित देवी के साथ वे वयंसेवक के प म बाहर िनकल ।
जब शहर म यह खबर फै ल क ीमती दास और अ य मिहला को जेल ले
जाया गया है तो एक भारी उ ेजना क लहर दौड़ गई। अचानक भड़क आग
क तरह युवा और बुजुग तथा अमीर और गरीब—सब वयंसेवक के तौर पर
आगे बढ़ने के िलए दौड़ पड़े। शासन चौक ा था और उसने शहर को सश
िशिवर म बदल दया। ले कन हमारी लड़ाई आधी जीती जा चुक थी।
उ ेजना और उ साह क यह वाला के वल जनता तक सीिमत नह रही,
बि क वफादार पुिलस के रक तक जा प च ँ ी। पुिलस टेशन म जैसे ही ीमती
दास जेल क गाड़ी म बैठ , जेल ले जाए जाने के िलए कई पुिलस कॉन् टेबल
उनके पास आए और ित ा क क वे उसी दन अपनी नौक रय से इ तीफा
देने जा रहे ह। सरकारी गिलयार म तो जैसे सनसनी फै ल गई। उस समय कोई
नह जानता था क यह कै से एक सं मण क तरह इतनी दूर तक फै ल जाएगा।
सरकार ारा त काल ही पुिलस कॉन् टेबल क पगार म अ छी-खासी
बढ़ोतरी करने के आदेश जारी कर दए गए। उसी शाम को गवनमट हाउस म
एक िडनर पाट म बड़ा ही उ ेजना का माहौल था। एस.एन. मिलक, जो क
एक मुख उदारवादी राजनेता थे (जो बाद म भारत के िवदेश मामल के
सिचव प रषद् के सद य बने), जैसे ही उ ह ने ीमती दास क िगर तारी क
खबर सुनी, वे िवरोध व प तुरंत गवनमट हाउस से उठकर चले गए। माहौल
म इतना आ ोश और सनसनी फै ली ई थी क सरकार को आधी रात होने से
पहले ही ीमती दास तथा उनक सहयोिगय को रहा करने का आदेश जारी
करना पड़ा और जनता को यह संदश े देने का यास कया गया क ये
िगर ता रयाँ कसी चूकवश हो गई थ । अगले दन से हजार छा और
फै टरी कामगार ने वयंसेवक के प म नाम दज करना शु कर दया और
कु छ ही दन के भीतर, शहर क दो बड़ी जेल राजनीितक कै दय से भरी ई
थ । इसके बाद िशिवर म जेल बनाई ग , ले कन ये भी तुरंत भर ग । सरकार
ने इसके बाद अित कठोर काररवाई कर डाली। देशबंधु दास और उनके करीबी
सहयोिगय क िगर तारी के आदेश जारी कर दए गए और 10 दसंबर,
1921 क शाम होते-होते, हम सब जेल के भीतर थे।
ले कन इन िगर ता रय ने आग म घी डालने का काम कया और बड़ी
सं या म लोग को िगर तार कया गया। कै दय क सं या इतनी अिधक हो
गई क जेल शासन को सँभालना मुि कल हो गया। राजनीितक कै दय को
बड़ी सं या म रहा करने के आदेश दए गए, ले कन कोई भी जेल से बाहर
नह गया। इतना ही नह , राजनीितक कै दय क सं या इतनी अिधक थी क
उनक पहचान तक करना असंभव था। कई बार उ ह जेल कायालय म इस
बहाने से ले जाया गया क उ ह कसी दूसरी जेल म थानांत रत कया जा
रहा है या उनके र तेदार उनसे मुलाकात के िलए आए ह और इस तरह ले
जाकर उ ह रहा कया जाने लगा। जब इस चालबाजी का पता चला तो
कै दय ने जेल अिधकारी ारा बुलाए जाने पर अपनी कोठरी से बाहर
िनकलने से ही मना कर दया। इस पर कै दय को जबरन जेल ार पर ले
जाकर उ ह आजाद कर दया गया। जेल के बाहर रणनीित बदली ई थी।
िगर ता रयाँ बंद हो गई थ और पुिलस को आदेश दए गए थे क भीड़ और
दशनका रय से िनपटने के िलए एकदम खुले हाथ से लाठी-डंड का इ तेमाल
कया जाए। कु छ मामल म तो दशनका रय को पुिलस क गािड़य म
भरकर शहर से कोई 30 मील दूर ले जाकर छोड़ दया गया और उनसे पैदल
घर लौटने को कहा गया। दशनका रय पर ऐसे ठं ड के मौसम म पानी क
बौछार भी क ग ।
ले कन हर कसी को यह प था क इस कार के फौरी इं तजामात और
चालबािजय से कु छ होनेवाला नह है। सरकारी नज रए से देखा जाए तो
हालात बेकाबू हो रहे थे। कां ेस ने जो नए-नए तरीके अपनाए थे, उनसे
सरकार भौचक थी। िनि त प से वे आंदोलन को दबाने के िलए बबर तरीके
इ तेमाल कर सकते थे, जैसा क उ ह ने बाद म कया भी, ले कन वे उस समय
भारत म ंस ऑफ वे स क मौजूदगी के समय आंदोलन भड़कने से श मदा थे।
ंस ऑफ वे स को 24 दसंबर को कलक ा आना था, जो क 1921 के तूफान
का क था। और उनके प च ँ ने से करीब एक स ाह पहले वायसराय लॉड
री डंग वहाँ प च
ँ गए। कलक ा बार के सद य पहले उ ह भोज म आमंि त
करने को राजी हो गए थे, य क वे इं लड के पूव लॉड चीफ जि टस रहे थे,
ले कन देशबंधु दास क िगर तारी के म ेनजर उ ह ने इसे र कर दया।
गवनमट ऑफ इं िडया ब त बुरी ि थित म फँ स चुक थी, य क उ ह हर जगह
िवरोध का सामना करना पड़ा। सबसे पहले तो सिवनय अव ा आंदोलन
बंगाल म ब त मजबूत था, ले कन ऊपरी भारत म भी इसका अ छा-खासा
जोरदार असर था और कोई ांत इसके भाव से मु नह था। इसके
अित र , पंजाब म अकाली आंदोलन, बंगाल के िमदनापुर िजले म ‘नो टै स’
आंदोलन और दि ण भारत म मालाबार म मोपला िव ोह ने संकट को और
गहरा दया था। भारत के बाहर आयरलड म िसन फन आंदोलन कु ल
िमलाकर सफल रहा था और 6 दसंबर, 1921 को ेट ि टेन के साथ एक संिध
पर ह ता र कए जा रहे थे। इससे कु छ महीने पहले, अफगािन तान ने
मु तफा कमाल पाशा के साथ एक संिध क थी और इसके बाद एक संिध
फारस तथा सोिवयत स के बीच ई। िम म, सैयद जघलोल पाशा क
नेशनिल ट वफद पाट मजबूत और स य थी। इस तरह यह प था क पूरा
मुसिलम जगत् ेट ि टेन के िखलाफ एकजुट हो रहा था और इसका भारत के
मुसिलम पर भाव पड़ना लािजमी था। ऐसी प रि थितय म इस बात म
कोई आ य नह था क लॉड री डंग क सरकार कां ेस के साथ एक समझौता
करने के िलए बेचैन थी। ऐसे म पं. मदनमोहन मालवीय, जो क एक व र
रा वादी नेता थे, उनम शांितदूत क भूिमका देखी गई। वे अपने ही कारण के
चलते 1921 के आंदोलन से दूर रहे थे। वे वायसराय क ओर से एक संदश े
लेकर ेसीडसी जेल म देशबंधु दास से िमलने के िलए गए। वे वायसराय क
इस पेशकश के साथ आए थे क य द कां ेस त काल सिवनय अव ा आंदोलन
को ख म करने पर सहमत हो जाए, ता क ंस क भारत या ा का जनता
बिह कार न करे तो सरकार इसके साथ ही कां ेस के वयंसेवक को गैर-
कानूनी घोिषत करनेवाली अिधसूचना को वापस ले लेगी और साथ ही इस
आधार पर िगर तार कए गए सभी लोग को रहा कर दया जाएगा। वे आगे
भारत के भिव य के संिवधान को वि थत करने के िलए सरकार और कां ेस
के ितिनिधय का एक गोलमेज स मेलन बुलाएँग।े
नेता क कलक ा के मुख मुसिलम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद और
पं. मालवीय के साथ लंबी वा ा ई। कु छ और बंद ु पर भी फै सला कया
गया, िजसम अली बंधु और उनके सहयोिगय क रहाई का भी सवाल था,
िज ह िसतंबर म कराची म दो साल के कड़े कारावास क सजा सुनाई गई थी।
इस सवाल पर आिधका रक जवाब यह था क चूँ क उ ह सिवनय अव ा
आंदोलन के िसलिसले म िगर तार नह कया गया था, तो कां ेस को समझौते
क शत के तहत उनक रहाई क माँग पर जोर नह देना चािहए। ले कन
वायसराय यह आव ासन देने को तैयार थे क दरअसल समय आने पर उ ह
रहा कर दया जाएगा। जब देशबंधु दास हम लोग के पास यह मु ा लेकर
आए और हमारी राय माँगी तो युवा वग, िजसम म भी शािमल था, ने पुरजोर
श द म उन शत पर संघषिवराम के िवचार का िवरोध कया। इसिलए
उ ह ने हम लोग के साथ ब त ही िव तार से चचा क और अपने िवचार के
समथन म इन तक को पेश कया क समझौता तुरंत होना चािहए। उ ह ने
कहा, सही या गलत, महा मा एक साल के भीतर वराज का वादा कर चुके थे।
वह साल समाि क ओर बढ़ रहा था। मुि कल से एक पखवाड़ा बचा था और
कां ेस को फजीहत से बचाने तथा वराज के संबंध म महा मा का वादा पूरा
करवाने के िलए इस अ पाविध म ही कु छ-न-कु छ हािसल तो करना ही था।
ऐसे म वायसराय क पेशकश उनके िलए ई र का वरदान बनकर आई थी।
य द 31 दसंबर से पहले समझौता हो जाता है और सारे राजनीितक कै दय
को भी रहा कर दया जाता है तो यह कां ेस के िलए बड़ी जीत होगी, जैसा
क एक लोकि य क पना थी। गोलमेज स मेलन सफल भी हो सकता था और
नह भी, ले कन य द यह िवफल हो जाता है और सरकार लोकि य माँग को
वीकार करने से इनकार कर देती है तो कां ेस कसी भी समय अपना संघष
फर से जारी कर सकती थी और जब वह ऐसा करे गी तो उसक ित ा कई
गुना बढ़ चुक होगी और जनता का उस पर ब त अिधक भरोसा कायम हो
जाएगा।
उपरो तक म तो दम था और मने भी वयं को इससे सहमत महसूस कया।
देशबंधु दास और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने संयु ह ता र कए और
महा मा गांधी को समझौते क तािवत शत को वीकार करने क
िसफा रश करते ए एक टेली ाम भेजा गया। इसका जवाब आया और उसम
समझौते क शत के प म अली बंधु तथा उनके सहयोिगय क रहाई पर
जोर दया गया था, साथ ही गोलमेज स मेलन के गठन और तारीख के संबंध
म भी घोषणा क बात कही गई थी। दुभा य से, वायसराय आगे और कोई
बातचीत करने के मूड म नह थे और तुरंत फै सला चाहते थे। ऐसी
प रि थितय म देशबंधु के वल इतना ही कर सकते थे क उ ह ने अपने िम
से, जो क जेल के बाहर थे, उनसे अपील क क उ ह कसी-न- कसी तरह से
महा मा को राजी करना चािहए। िम ने यही कया और कलक ा तथा
साबरमती, जो क अहमदाबाद के िनकट महा मा का आवास था, के बीच कई
टेली ाम का आदान- दान आ। आिखरकार महा मा राजी हो गए, ले कन
तब तक देर हो चुक थी। गवनमट ऑफ इं िडया इं तजार करते-करते थक गई
थी और उसने अपना िवचार बदल िलया। देशबंधु ब त गु से म थे और साथ
ही नाराज भी।
उ ह ने कहा क ऐसा अवसर जीवन म एक बार िमलता है, ले कन वही गँवा
दया गया था। राजनीितक कै दय और कां ेस के िविभ नेता के बीच यही
भावना थी क महा मा ने ब त ही भयानक भूल क है। के वल मु ी भर लोग,
जो उनके अंधभ थे, के वल उ ह ने ही कोई भी ट पणी करने से इनकार कर
दया था। ले कन चूँ क मौका हाथ से िनकल चुका था तो ऐसे म िबगड़े हालात
को बेहतरीन तरीके से सुधारने के िसवाय और कोई िवक प नह था। देशबंधु
को आगामी कां ेस स मेलन के िलए अ य िनवािचत कया जा चुका था, जो
दसंबर के अंितम स ाह म अहमदाबाद म होना था। उनका अधूरा लेख, जो क
असहयोग आंदोलन के िस ांत और तौर-तरीक के ित समथन था, वह
कां ेस को भेज दया गया और अ य के आसान पर उनक अनुपि थित म
द ली के मुख नेता हा कम अजमल खान बैठे।
अहमदाबाद कां ेस म गजब का उ साह था और मु य ताव म संपूण रा
से ि गत और ापक तर पर सिवनय अव ा क नीित अपनाने का
आ वान कया गया था। हर ी-पु ष से ‘नेशनल वॉलं टयर कोर’ म शािमल
होने, आपातकालीन अ यादेश क अव ा करने और अदालती िगर ता रयाँ
देने का आ वान कया गया। कां ेस ने महा मा को पूरे देश का िड टेटर िनयु
कर दया, जैसा क बंगाल कां ेस सिमित म कया गया था, जहाँ देशबंधु को
ांत का सवसवा बना दया गया था। अहमदाबाद कां ेस म एक बड़ी रोचक
घटना ई। संयु ांत के एक भावशाली मुसिलम नेता मौलाना हसरत
मोहानी ने एक ताव पेश कया, िजसम कहा गया था क भारतीय रा ीय
कां ेस के उ े य को एक गणतं (यूनाइटेड टेट ऑफ इं िडया) के ित ान क
तरह संिवधान म प रभािषत कया जाना चािहए। उनका भाषण इतना
भाव वण था और ोता क उसके ित ित या भी इतनी जबरद त थी
क कोई भी सोच सकता था क ताव ब मत से पा रत हो जाएगा। ले कन
महा मा ताव का िवरोध करने के िलए खड़े ए और बड़े संयम के साथ
ताव के िवरोध म तक पेश कए, इसका नतीजा यह आ क ताव खा रज
हो गया। ले कन इस ताव को बार-बार कां ेस स मेलन म पेश कया जाता
रहा और अंतत: 1929 म इसे लाहौर कां ेस म वीकार कर िलया गया। ले कन
उस कां ेस म ताव को पेश करनेवाले कोई और नह , बि क वयं महा मा
थे। कां ेस क सभा के िवसजन के साथ ही साल 1921 समा हो गया। 31
दसंबर से पहले तक कोई च कानेवाली घटना नह ई।
वादे के मुतािबक वराज भी नह आया। कु छ ही महीने पहले, बंगाल के पूव
ांितका रय के साथ बैठक म महा मा ने साल समा होने से पूव वराज ा
होने का पूरा प ा भरोसा जताया था। उ ह ने खुद यह कहा था क साल ख म
होने से पूव वराज िमलने का उ ह इतना गहरा िव ास है क अगर यह
हािसल नह आ तो वे 31 दसंबर के बाद वयं जीिवत नह रहगे। उ ह ने
आगे कहा था क क सरकार म ांतीय वाय ता और ध ै शासन तो के वल
कहने भर से उ ह िमल सकता है, ले कन वे पूण डोिमिनयन का दजा चाहते थे
और य द यह उ ह िमल गया होता तो वे अपने आ म पर यूिनयन जैक को
फहराने के िलए तैयार ह गे।
31 दसंबर, 1921 अ तांचल क ओर बढ़ गया और ये श द मेरी आँख के
सामने कसी सपने क तरह तैर रहे थे। साल क समाि से पूव, के वल महा मा
गांधी को छोड़कर अ य सभी मह वपूण नेता जेल म थे। असल बात तो यह थी
क देशबंधु और वायसराय के बीच सुलह समझौते के समय कोई भी मुख
बुि जीवी नेता महा मा को यह सलाह देने क ि थित म नह था क उ ह कौन
सा उिचत रा ता अपनाना चािहए? अगर वे ऐसा कर पाते तो ब त संभावना
है क घटना म कु छ और ही आकार लेता। इस बात म कोई संदह े नह हो
सकता था क 12 महीने म देश ने ब त गित क थी और इसका यादातर
ेय महा मा को जाता था, ले कन इस बात के िलए पछताना पड़ेगा क नाजुक
समय आने पर वे एक पया कू टनीित और समझदारी नह दखा सके थे। इस
संबंध म मुझे देशबंधु क बात याद आती है, जो वे अकसर महा मा गांधी के
नेतृ व क खूिबय और खािमय के बारे म कहते थे। उनके अनुसार, ब त
शानदार तरीके से एक आंदोलन को शु करते ह, उसे आगे बढ़ाने म बेजोड़
नर का इ तेमाल करते ह; फर सफलता क सी ढ़याँ चढ़ते चले जाते ह और
यह िसलिसला आंदोलन के िशखर पर प च ँ ने तक जारी रहता है, ले कन उसके
बाद वे संतुलन खो बैठते ह और लड़खड़ाने लगते ह।
इससे पूव क हम इस अ याय को बंद कर, इस वष क उपलि धय और
िवफलता पर एक नजर डालना वांछनीय है। िन संदह े साल 1921 ने देश
को एक बेहद संग ठत पाट संगठन दया था। उससे पहले कां ेस के वल एक
संवैधािनक दल था और के वल बात करनेवाली इकाई के प म इसक पहचान
थी। महा मा ने न के वल इसे एक नया संिवधान और रा ापी आधार दया,
बि क इससे भी कह अिधक मह वपूण है क उ ह ने इसे एक ांितकारी
संगठन म बदल दया। रा ीय ितरं गे झंड— े लाल,31 हरा और सफे द—को पूरे
देश म अपनाया गया और इसने ब त ही मह वपूण थान हािसल कर िलया।
हर जगह एक जैसे नारे लगाए जाने लगे और एक समान नीित तथा
िवचारधारा ने देश के एक कोने से दूसरे कोने तक अपनी प च ँ कायम कर ली।
अं ेजी भाषा अपना मह व खो बैठी और कां ेस ने हंदी ( हंद ु तानी) को पूरे
देश क लोकभाषा के प म अपना िलया। अपने आप ही खादी सभी
कां ेिसय क आिधका रक यूिनफॉम बन गई। सं ेप म, एक आधुिनक
राजनीितक पाट क सभी िवशेषताएँ भारत म दखाई दे रही थ । ऐसी
उपलि धय का ेय वाभािवक प से आंदोलन के नेता महा मा गांधी को
जाता था। यह दुभा य क बात है क वे कई गंभीर और भीषण गलितय के
दोषी रहे ह—अगर उनके श द म कह तो ‘िहमालयी चूक’। और स ाई यह है
क आज भी वे अपने देशवािसय के दल पर राज करते ह, ले कन इसका अथ
यह कदािप नह है क उ ह अपनी भूल के िलए माफ दे दी गई है। कहना न
होगा क उनक सकारा मक उपलि धयाँ इतनी अ यिधक महान् रही ह क
देशवासी उनक गलितय को माफ करने के िलए तैयार ह।
इस संबंध म यह ज री है क आंदोलन क शु आत से ही िवरासत म िमली
खािमय का भी कु छ िज हो जाए, जो क समय बीतने के साथ ही वयं
बेनकाब हो ग । सबसे पहले ब त अिधक ताकत और िज मेदारी एक ि
को स प दी गई। जब देशबंधु सी.आर. दास, लाला लाजपत राय और पं.
मोतीलाल नेह जीिवत थे तो ऐसी ि थितय का नुकसान ब त अिधक नह
था, य क वे कु छ सीमा तक महा मा को िनयंि त कर सकते थे। ले कन
उनक मृ यु के बाद कां ेस का पूरा बुि जीवी और सुलझी सोचवाला वग एक
आदमी का गुलाम होकर रह गया और िज ह ने सावजिनक तौर पर वतं प
से आवाज उठाने का दु साहस कया, उ ह महा मा और उनके समथक ने
पथ करार दे दया और उनके साथ वैसा ही वहार भी कया गया। दूसरी
बात, एक साल के भीतर ‘ वराज’ का वादा न के वल अिववेकपूण, बि क
बचकाना भी था। इसने कां ेस को सभी ता कक सोचवाले लोग के सम
बेवकू फ के प म दरशाया। संदह े नह क महा मा के अनुयाियय ने बाद म
यह कहते ए प ीकरण देने क कोिशश क क देश शत को पूरा नह करता
था और इसिलए एक साल के भीतर वराज ा नह कया जा सका। यह
प ीकरण उतना ही असंतोषजनक था, िजतना क वराज का वादा
अिववेकपूण था, य क इसी तरीके से तक देते ए कोई भी नेता कह सकता
था क य द आप कु छ शत को पूरा करते ह तो आप एक घंटे के भीतर आजाद
हो सकते ह। राजनीितक भिव यवाणी करते समय, हालाँ क कोई भी नेता नाम
लेने लायक नह है, ले कन उसे असंभव शत नह थोपनी चािहए। उसे यह
अंदाजा करना चािहए क कन शत के पूरा होने क संभावना है और कु छ
िनि त हालात म या प रणाम ा होने क संभावना है? तीसरी बात,
भारतीय राजनीित म िखलाफत के सवाल को पेश करना दुभा यपूण था।
जैसा क पहले ही िज कया जा चुका है, य द िखलाफतवादी मुसिलम अलग
संगठन शु करने के बजाय भारतीय रा ीय कां ेस म शािमल हो गए होते तो
प रणाम इतने अवांछनीय नह होते। ऐसे मामले म जब तुक क खुद क
काररवाई ने िखलाफत मु े को ख म कर दया तो िखलाफतवादी मुसिलम को
पूरी तरह रा वा दय क जमात म शािमल हो जाना चािहए था।
तूफान, जो 1920 म घुमड़ रहा था, वह दरअसल नवंबर 1921 म आकर फट
पड़ा। नवंबर और दसंबर के दौरान यह इतनी तेजी से और ऐसे भीषण प म
आया क जब नए साल क सुबह ई तो यह भिव यवाणी करना असंभव था
क यह कब तक जारी रहेगा? हालाँ क साल 1922, उ मीद के िवपरीत,
िनराशाजनक रहा, जैसा क हम अभी देखगे।

3
िवरोधी चरमो कष (1922)
इ तना लंबा समय बीत जाने के बाद उस जुनून और उस आवेग क ती ता को समझ
पाना संभव नह है क 1921 म उस समय भारत के लोग ने कतनी िश त के साथ यह
भरोसा कर िलया था क साल ख म होने से पहले वराज आ जाएगा! यहाँ तक क
अिभजा य वग क भी इन उ मीद म िह सेदारी थी। मुझे याद आता है क एक बार मने
एक िव ान् बंगाली वक ल का एक जनसभा म 1921 म दया गया भाषण सुना था।
वक ल स न ने पूरी गंभीरता के साथ कहा था—‘िनि त ही हम इस साल के ख म होने
से पहले ही वराज हािसल करने जा रहे ह। य द आप मुझसे सवाल करगे क हम कै से इसे
जीतगे तो म जवाब नह दे सकता। ले कन प ा हम इसे हािसल करने जा रहे ह।’ 1921 म
एक अ य अवसर पर म महा मा ारा जारी कए गए कु छ िनदश पर कलक ा के एक
असाधारण प से स म राजनेता से िवचार-िवमश कर रहा था। उ ह ने ऐलान कर दया
था क कां ेस के पास जो भी धन है, उसे साल के ख म होने से पहले खच कया जाना
चािहए और अगले साल के िलए कु छ भी बचाकर नह रखना चािहए। कोई भी ता कक
सोच का इनसान उनक इस बात को अनुिचत बताता, ले कन महा मा का बचाव करते
ए उन िम महोदय ने कहा था, ‘हमने जानबूझकर 31 दसंबर के बाद पीछे मुड़कर नह
देखने का फै सला कया है।’ इस समय यह पागलपन लग सकता है; ले कन इससे एक
अंदाजा लग सकता है क देश उस साल कस हद तक सपने के साकार होने को िनि त
मानकर उ साह और आशावाद म जी रहा था।
साल 1922 क नई सुबह होने के साथ ही महा मा ने जनता के उ साह को और धार देने
का िवशेष यास कया। इसिलए यह फै सला कया गया क उनक योजना के अंितम बंद ु
क ओर बढ़ा जाए—जो था लगान न चुकाना, यानी क कर का भुगतान नह करना। 1
फरवरी, 1922 को उ ह ने वायसराय लॉड री डंग को एक अ टीमेटम भेजा, िजसम कहा
गया था क य द सरकार ने सात दन के भीतर अपना दय प रवतन नह कया तो वे
गुजरात (बॉ बे ेसीडसी का उ री िह सा) के बारदोली म कर का भुगतान नह करने को
लेकर आंदोलन शु करगे। यह बताया गया था क बारदोली उपमंडल म ब त से लोग ह,
िज ह ने दि ण अ का के िनि य ितरोध आंदोलन म महा मा गांधी के साथ काम
कया था और वे इस कार के काम का अनुभव हािसल कर चुके थे। बारदोली म लगान
नह चुकाने संबंधी आंदोलन क शु आत, देशभर म इसी कार का आंदोलन कए जाने का
संकेत होगी। साथ-ही-साथ बंगाल म भी ‘लगान नह ’32 अिभयान चलाने के िलए ापक
बंदोब त कए गए, संयु ांत और आं (म ास ेसीडसी का उ री िह सा) भी इसी
कार का आंदोलन चलाने के िलए पूरी तरह तैयार थे। महा मा गांधी के अ टीमेटम से पूरे
देश क जनता पर उ माद-सा छा गया। हर कोई साँस रोके बीतते व क घिड़याँ िगन
रहा था। तभी अचानक एक ऐसा झटका लगा, िजसने लोग को हत भ कर दया और वे
अवाक् रह गए। यह झटका था चौरा-चौरी क घटना।
4 फरवरी को संयु ांत के चौरा-चौरी नामक थान पर गु साए ामीण ने बेहद
आ ोश म आकर एक पुिलस थाने को फूँ क डाला और कु छ पुिलसक मय क भी ह या कर
दी। जब यह खबर महा मा तक प च ँ ी तो वे घटना म के इस कार आकार लेने से
भयभीत हो गए और उ ह ने तुरंत बारदोली म कां ेस कायसिमित क बैठक बुलाई। उनके
कहने पर सिमित ने देशभर म अिनि तकाल के िलए सिवनय अव ा आंदोलन (जो क
कानून और सरकारी आदेश का उ लंघन था, िजसम लगान नह चुकाना भी शािमल था)
को िनलंिबत करने का फै सला कया। इसके साथ ही फै सला कया गया क सभी कां ेस
कायकता वयं को शांितपूण रचना मक काय तक सीिमत कर ल। ‘रचना मक काय ’ म
हाथ से चरखा कातना, हथकरघा चलाना, अ पृ यता उ मूलन, सं दाय के बीच म एकता
को ो सािहत करना, मादक पदाथ क त करी को रोकना, रा ीय िश ा का सार,
मुकदमेबाजी को कम करना तथा पंचाट बोड क थापना करना शािमल था—ये सभी
काय उस समय लागू सरकारी अ यादेश या कसी भी कानून का उ लंघन कए िबना करने
थे।
तानाशाह के फरमान क उस समय तामील क गई, ले कन कां ेस खेमे म आए दन
बगावत हो रही थी। कोई भी यह समझ नह पा रहा था क चौरा-चौरी क एक अके ली
घटना का इ तेमाल कर महा मा ने य देशभर म आंदोलन का गला घ टा। नाराजगी इस
बात को लेकर और भी यादा थी क महा मा ने िविभ ांत के ितिनिधय से सलाह-
मशिवरा करने क कोई ज रत नह समझी और चूँ क कु ल िमलाकर देश के हालात
सिवनय अव ा आंदोलन क सफलता के प म अिधक थे। जनता का जोश जब अपने
चरम पर था, उस समय उसे पीछे हटने को कहना कसी रा ीय आपदा से कम नह था।
महा मा के मुख िसपहसालार देशबंधु दास, पं. मोतीलाल नेह और लाला लाजपत राय,
जो सब उस समय जेल म थे, उ ह ने जना ोश से सहमित जताई। उस समय म देशबंधु के
साथ था और िजस तरीके से महा मा गांधी एक के बाद एक गलितयाँ कर रहे थे, उससे वे
गु से और दु:ख से काँप रहे थे। अभी उ ह ने दसंबर क भीषण चूक को भूलना शु कया
ही था क उसी समय बारदोली स या ह से पीछे हटने का फरमान भूकंप क तरह पैर के
नीचे क जमीन िखसका गया। लाला लाजपत राय भी कु छ ऐसी ही भावना के भँवर म
फँ से ए थे और बताया जाता है क उ ह ने अित आ ोश म जेल से महा मा को 70 पृ का
प िलखा।
कु छ ऐसी भी अपु चचाएँ रह क महा मा गांधी के फै सल म अचानक इस उतार-
चढ़ाव के पीछे कु छ और कारण थे। यह आरोप भी है क बारदोली म उनके लगान नह ,
आंदोलन को िवफल करने के िलए सरकार ारा गोपनीय प से ापक बंदोब त कए
गए थे और लगान क अगली क त का काफ िह सा पहले ही वसूल िलया गया था। ये तो
गैर-आिधका रक बात ह, ले कन आिधका रक प से देखा जाए तो महा मा गांधी से
सहानुभूित रखनेवाल ने सरकार ारा अपनाए गए ितरोधी उपाय के संबंध म गोपनीय
सूचना महा मा गांधी तक प च ँ ा दी थी और उ ह चेता दया था क अगर उ ह ने आंदोलन
कया तो वह िवफल भी हो सकता है। जब महा मा गांधी का इन त य से आमना-सामना
कराया गया तो उ ह हालात के िनराशाजनक होने का अहसास आ। वे सोच रहे थे क
बारदोली म सफल अिभयान के िबना, वे देशभर म इस आंदोलन को आगे नह बढ़ा सकते
और इसी के म ेनजर उ ह ने चौरा-चौरी घटना क आड़ लेकर सिवनय अव ा आंदोलन
को वापस लेने का फै सला कया। जो लोग महा मा गांधी को और यादा करीब से जानते
ह, वे इस प ीकरण को वीकार नह करगे।
उनके समथक और अनुयायी ‘तानाशाह’ के िखलाफ आगबबूला थे और उधर चतुर-
चालाक पूव लॉड चीफ जि टस ऑफ इं लड खाली नह बैठे थे। 1921 म सालभर उ ह ने
महा मा को काफ ढील दे रखी थी, ले कन अहमदाबाद कां ेस के बाद से वे उनक
गितिविधय पर लगाम लगाने का मौका ढू ँढ़ रहे थे। अपने सा ािहक समाचार-प ‘यंग
इं िडया’ म महा मा ने कु छ लेख िलखे थे—ये उनके अब तक के बेहतरीन लेख थे और उनके
े रत लेखन म वे हमेशा शीष पर रहगे—िज ह सरकार रा ोह मानती थी। इस कार ये
लेख उनक िगर तारी के िलए पया हो सकते थे और उ ह सजा देकर लंबे समय के िलए
जेल म डाला जा सकता था। ले कन उ ह इस बात को यान म रखना पड़ा क ऐसी कसी
काररवाई का जनता पर गहरा असर होगा, जो महा मा को अपना आदश मानती थी।
बताया जाता है क लॉड री डंग इस बात से डरते थे क तानाशाह ने अ हंसा को लेकर जो
तमाम तरह के वचन दए थे, उनके बावजूद महा मा क िगर तारी से बड़े पैमाने पर
अ व था फै ल जाएगी, दंगे भड़क उठगे और र पात होगा। और वे लॉड चे सफोड के
बाद आए थे, िजनके शासन के दौरान अमृतसर म भयानक नरसंहार आ था। ऐसे म
उनक 1919 के भीषण घटना म को दोहराने क कोई इ छा नह थी। इसिलए वे बेस ी
और बेचैनी के साथ घात लगाकर बैठे ए थे क महा मा खुद कोई ऐसा िव वंसक कदम
उठाए, िजसके प रणाम पूरे देश के िलए घातक ह और िजससे वयं कां ेस के भीतर भी
बगावत हो जाए, तभी उ ह महा मा पर वार करने का मौका िमलेगा। काररवाई करने के
िलए लॉड री डंग के पास मनोवै ािनक प से यह एकदम उिचत अवसर था, बशत क
भारतीय मामल के िवदेश मं ी म टे यू उनके रा ते क बाधा न बन। भारत सरकार के
िलए क मत अ छी थी क इं लड म कै िबनेट के साथ मतभेद के चलते म टे यू ने इ तीफा
दे दया। इस कार रा ते क आिखरी बाधा भी हट गई और 10 माच को महा मा गांधी
को कै द कर िलया गया।
महा मा गांधी पर चला मुकदमा एक ऐितहािसक घटना थी। मुकदमे क काररवाई क
ा या करते ए देशबंधु सी.आर. दास ने दसंबर 1922 म गया कां ेस म अपने अ य ीय
भाषण म इसक तुलना प टयस िपलातुस के सामने ईसा मसीह पर मुकदमा चलाए जाने
से क थी। वाई.एम.सी.ए. के एक जाने-माने नेता दवंगत के .टी. पॉल33 ारा भी इसी
कार क समानता का िज कया गया था। सुनवाई के दौरान महा मा ने वयं को एक
कसान और बुनकर बताते ए इस संबंध म लंबा बयान दया क कस कार ‘एक संपूण
िन ावान’ और सहयोगी से म समझौता नह करनेवाला असंतु वादी बन गया ँ और
उ ह ने अपने बयान का अंत इन श द से कया था—‘जज और मू यांकनकता, य द
आपको महसूस होता है क िजस कानून को लागू करने क िज मेदारी आप पर है, वह एक
बुराई है और वा तव म म िनद ष ँ तो आपके पास के वल एक ही रा ता शेष है—या तो
आप अपने पद से इ तीफा दे द और इस बुराई से वयं को अलग कर ल या य द आप
िव ास करते ह क िजस व था और कानून को लागू करने म आप सहायक ह, वह इस
देश के लोग के िलए अ छा है और मेरी गितिविधयाँ जनक याण के िलए खतरनाक ह तो
आप मुझे कड़ी-से-कड़ी सजा द।
अं ेज जज ूमफ ड ने उ ह छह साल क सजा सुनाई।
म टे यू का इ तीफा धानमं ी लॉयड जॉज क गठबंधन क कै िबनेट म कं जरवे टव क
बढ़ती ताकत का संकेत था। टोरी सद य के दबाव म लॉयड ने अग त म अपना िस
‘ टील े म’ भाषण दया, िजसम उ ह ने बताया क िसिवल सेवा भारतीय शासन का
इ पात का साँचा है, जो हर हालत म ि टेन के अधीन रहना चािहए, इस पर भारत म
होनेवाले बदलाव से कोई फक नह पड़ता। इस भाषण से भारत म ापक तर पर
नाराजगी पैदा हो गई, य क लोग उस दन के इं तजार म बैठे थे क एक दन िसिवल
स वस क ताकत और प रलि धय को सीिमत कर दया जाएगा और लोग को उनके
अपने देश के शासन म उनका वािजब हक दया जाएगा। इस समय तक भारत के िलए
नए उपिवदेश मं ी लॉड वंटरटन भारत दौरा कर चुके थे। उनक इस या ा का मकसद
भारतीय राजा और स ा ढ़ मुख के संबंध म एक नई नीित का आगाज करना था।
इससे एक साल पहले, ंस ऑफ वे स भारत या ा पर आए थे और उ ह ने ि टश भारत
तथा भारतीय रयासत म अपने वागत के तौर-तरीक को लेकर काफ अंतर देखा था।
ि टश भारत म जहाँ जनता ने उनक या ा का बिह कार कया था तो वह रयासत म
ऐसी कोई नागवार गुजरनेवाली घटना नह ई थी। उस ण के बाद से ही ि टश सरकार
राजे-महाराज के ित एक नया रवैया अपनाने को े रत ई—ब त ही गहरी दो ती और
स ावना का रवैया। राजे-महाराज ने इस मौके का फायदा उठाते ए भारत सरकार पर
ि टश भारत क ओर से उनके िखलाफ आंदोलन और दु चार को दबाने के िलए िवधेयक
पेश करने का दबाव बनाया। उसी के अनुसार, िसतंबर 1922 को असबली म ‘इं िडयन
टे स’ ( ोटे शन अग ट िड फे क् शन) िबल पेश कया गया। असबली ने इस िवधेयक को
खा रज कर दया, ले कन वायसराय ने इसे ‘ब त आव यक’ करार देते ए इसक पुि
कर दी और यह कानून बन गया। इस संबंध म यहाँ यह उ लेख करना मह वपूण है क
भारत के नए उपिवदेश मं ी लॉड वंटरटन ने वायसराय तथा बंगाल, बॉ बे और म ास के
गवनर के साथ अपनी मुलाकात म रयासत के राजकु मार के ित इस नए रवैए क
वकालत क और उनके दौरे के बाद भारत सरकार के ितिनिधय ने हरसंभव अवसर पर
राजकु मार का गुणगान करना आरं भ कर दया।
अ ू बर म इं लड म आम चुनाव ए। गठबंधन सरकार टू ट गई और स ा कं जरवे टव के
हाथ म आ गई। बोनार लॉ उनके मुख थे और िव काउं ट पील और लॉड वंटरटन
भारतीय मामल के मश: मं ी और उपमं ी बनाए गए। अगले महीने सर बािसल लैकेट
को गवनमट ऑफ इं िडया के िव सद य के प म भारत भेज दया गया। भारत म
ित या तेजी से मजबूत होती जा रही थी। भारतीय उदारवादी नेता , िज ह ने म टे यू
के भाव म आकर संिवधान के िलए काम कया था और मं ी पद को वीकार कया था।
उ ह ने पाया क दनो दन उनक ि थित मुि कल होती जा रही है। सर तेज बहादुर स ू
माच म म टे यू के इ तीफा देने के बाद अ ैल म पहले ही वायसराय क ए जी यू टव
काउं िसल से इ तीफा दे चुके थे और माच 1923 म जब हालात उनके िलए एकदम
बरदा त से बाहर हो गए तो संयु ांत के िश ा मं ी चंतामिण ने याग-प दे दया।
1922 के पूरे साल म, सरकार ने िगने-चुने जो कु छ अ छे काम कए थे, उनम बंगाल म
िमदनापुर िजले के लोग और पंजाब म अकाली िसख क माँग को वीकार करना था।
िमदनापुर म नया ाम वशासन अिधिनयम, िजसके िखलाफ लगान नह देने का
आंदोलन चलाया गया था, उसे वापस ले िलया गया और पंजाब म एक नया कानून पा रत
कया गया, िजसके तहत सभी िसख गु ार का िनयं ण महंत के हाथ से लेकर
लोकि य सिमितय को स प दया गया। हम यहाँ अपने िवमश को िवराम देते ए इस
बात क पड़ताल करनी चािहए क इस बीच म हमारे नेता या कर रहे थे?
दसंबर 1921 के पहले स ाह म लाला लाजपत राय और उनके अिधकतर मुख
सहक मय को पंजाब कां ेस सिमित क एक बैठक के दौरान घेर िलया गया था। इसके
कु छ दन बाद, देशबंधु दास और उनके अिधकतर सहयोिगय को, िजनम बंगाल कां ेस
सिमित के सिचव बी.एस. ससमाल और मुझे भी िगर तार कर िलया गया था। इसके बाद
पं. मोतीलाल नेह और संयु ांत के मह वपूण कां ेसी नेता को जेल म डाल दया
गया था। असहयोग के िनयम के अनुसार, कसी भी कां ेसी कायकता को ि टश कानून
क अदालत के सम अपना बचाव नह करना था। प रणाम व प हर जगह पर
अिभयोजना ब त आसान या थी। यादातर मामल क सुनवाई म कु छ ही िमनट का
समय लगता और एक ही मिज ेट एक दन म दोपहर बाद सैकड़ मामल का िनपटारा
कर देता था। देशबंधु दास के मामले म, हालाँ क मुकदमा दो महीने खंच गया और चूँ क
ससमाल और मुझे उसी मामले म सह-आरोपी बनाया गया था तो इसिलए हम भी
अनाव यक प से सुनवाई लंबी खंचने का खािमयाजा भुगतना पड़ा। उस समय खुलेआम
इस बारे म चचा होती रहती थी क देशबंधु क ित ा और भाव के कारण ही मिज ेट
िबना कसी कानूनी आधार के उ ह दोषी करार देने के इ छु क नह थे। इसिलए
अिभयोजन प को उनके िखलाफ मामला तैयार करने क खाितर सबूत जुटाने के िलए
बार-बार समय दया गया। अिभयोजन प का मामला कु छ नो टस के आधार पर टका
था, जो किथत प से देशबंधु ारा ह ता रत थे, जो क सरकारी उ ोषणा का उ लंघन
था, िजसके तहत सभी वैि छक संगठन को गैर-कानूनी करार देते ए उन पर ितबंध
लगाया गया था। बंगाल कां ेस सिमित के कायालय म जो लोग काम करते थे, वे इस
स ाई को जानते थे क इन नो टस पर उ ह ने ह ता र नह कए थे। हालाँ क ह तलेख
के आिधका रक िवशेष ने शपथ लेकर यह सबूत दया क ह ता र देशबंधु के ही थे और
इसी तथाकिथत िवशेष के सबूत क मजबूती के आधार पर उ ह दोषी ठहराते ए छह
महीने क जेल क सजा सुनाई गई। सुनवाई के अंत म उ ह ने एक बयान दया, िजसम
उनक िगर तारी से संबंिधत तथा अ य गैर-कानूनी गितिविधय का अदालत के सामने
िज कया गया। इस बयान के ज रए उ ह ने यह सािबत करने का यास कया क
सरकार को जब अपने िलए फायदा नजर आता है तो वह कानून तोड़ने से कभी नह
िहचकती। सजा सुनाए जाने से पूव अिभयोजन प क ओर से एक संदश े भेजा गया,
िजसम कहा गया था क अगर वे सिवनय अव ा आंदोलन को िनलंिबत करने के संबंध म
बारदोली ताव को वीकार करते ह तो सरकार उ ह तुरंत रहा कर देगी, ले कन उ ह ने
ऐसे कसी भी ताव को वीकार करने से इनकार कर दया।
हमारी दोष िसि के तुरंत बाद हम कलक ा क एक दूसरी जेल, अलीपुर स ल जेल म
थानांत रत कर दया गया, जहाँ हमारे पास बंगाल के सभी िजल से आए अ य
ितिनिधय से मुलाकात का अवसर था। िसवाय महा मा के क र समथक को छोड़कर,
जो अ प सं या म थे, बाक लोग म बारदोली फै सले पर नाराजगी का भाव था।
नाराजगी का यह भाव महा मा के िव यादा था, य क वे अिखल भारतीय कां ेस
सिमित के सवसवा थे और बारदोली ताव उनके कहने पर पा रत कया गया था।
बारदोली से पीछे हटने को एक संपूण त य के प म वीकार करते ए देशबंधु ने रणनीित
म बदलाव करते ए एक बार फर से जनता के उ साह को े रत करने का साधन
िवकिसत करने क कोिशश क । इस कार उ ह ने िवधानसभा म असहयोग क अपनी
योजना तैयार क । इस योजना के अनुसार, कां ेसी नेता चुनाव का बिह कार करने के
बजाय बतौर उ मीदवार चुनाव लड़गे और िनवािचत सीट पर क जा करने के बाद वे
सरकार का लगातार िवरोध करने क एक समान नीित का अनुसरण करगे। िवधानसभा
का बिह कार, जैसा क 1920 म कलक ा कां ेस ारा िवचार पेश कया गया था, िवफल
सािबत होना ही था। रा वादी जब िवधानसभा से दूर थे तो अवांिछत लोग ने इन
सं था पर क जा कर िलया। इन लोग ने देश म लोकि य आंदोलन को मदद करने के
बजाय सरकार को अपना समथन दया। उनक मदद से सरकार दुिनया को यह दरशाने म
स म हो गई क उनक दमनकारी नीितय को िवधानसभा के िनवािचत ितिनिधय
का समथन हािसल था। देशबंधु के अनुसार, एक ांितकारी संघष म बढ़त हािसल करने के
रा ते, दु मन के िलए खाली नह छोड़ने चािहए। इसिलए िवधानसभा म सभी
िनवािचत सीट , साथ ही सावजिनक िनकाय (जैसे क नगरपािलका, िजला बोड आ द)
पर कां ेस नेता ारा क जा कया जाना चािहए, ता क जहाँ कह भी ठोस सृजना मक
काय करने क गुंजाइश हो, वहाँ वे उ ह कर सक। ले कन ऐसा करने म िवफल रहने पर भी
वे सरकार और उसके एजट सद य का कम-से-कम वि थत तरीके से िवरोध तो कर ही
सकते ह, और इस कार वे उन लोग को कोई भी गैर-ज री हरकत करने से रोक सकते
ह। इसके अलावा, चुनाव- चार से कां ेस को देशभर म अपना चार करने का भी मौका
िमलेगा। इस नई नीित को अंगीकार करने का अथ यह नह है क कां ेसी नेता कायकता
पाट क अ य गितिविधय को छोड़ दगे, बि क इसका सीधा अथ यह था क कां ेस क
गितिविधय का िव तार हो जाएगा और उसम िवधानसभा तथा सभी सावजिनक
िनकाय म िनवािचत सीट पर क जा करना भी शािमल रहेगा। इस नई योजना के संबंध
म अलीपुर स ल जेल म रोजाना सघन िवचार-िवमश चल रहा था।
ज द ही ऐसा तीत होने लगा क इन सभी चचा म िवरोिधय का मु य मु ा यही
रहता था क गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट-1919 ने िवधानसभा के भीतर साथक िवप
के िलए बमुि कल ही कोई जगह छोड़ी थी। ि टश लोग और सरकार ारा मनोनीत अ य
सद य के दबाव को देखते ए िनवािचत सद य के िलए भारतीय िवधानसभा (स ल
लेिज लेचर) या ांतीय िवधानसभा म ब मत म आना असंभव नह तो मुि कल अव य
हो गया था। इससे भी आगे, पहले के मामले म वायसराय और दूसरे के मामले म गवनर
को वीटो और माणन क शि याँ ा थ , जहाँ वे हमेशा िवधाियका के फै सले को
पलट सकते थे। इसका जवाब यह था क भले ही िनवािचत सद य के पास ब मत नह
था, इसके बावजूद वे लगातार सरकार का िवरोध कर सकते थे और इस कार
िवधाियका के बाहर अपने आंदोलन को मजबूती दान कर सकते थे। दूसरा, इससे
िनवािचत सद य के िलए कम-से-कम कु छ िवधाियका म ब मत हािसल करना संभव
हो सके गा और य द वायसराय या गवनर कसी िवधानमंडल के फै सले को दर कनार भी
करते ह तो सरकार क भारत के भीतर और बाहर जनता के दरबार म नंदा क जाएगी।
और अंत म, मौजूदा संिवधान के तहत मंि य या उनके िवभाग के िखलाफ मत को कसी
रा य के गवनर ारा खा रज नह कया जा सकता था और य द ांतीय िवधाियका
मंि य के वेतन को नामंजूर करती ह तो उ ह वत: ही पद से हटा दया जाएगा तथा
संिवधान के कामकाज को िनलंिबत करना होगा। इस कार क चचाएँ कई स ाह तक
चलती रह और अलीपुर जेल म राजनीितक कै दय के बीच दो दल बन गए, जो भिव य
के ‘ वराज’ और ‘नो चज’ पा टय के िलए मह वपूण सािबत होनेवाले थे। मई 1922 म
चटगाँव म कां ेिसय का वा षक स मेलन आ, िजसे ‘ ांतीय स मेलन’ नाम दया गया
था। ीमती सी.आर. दास ने िपछले साल के आंदोलन म मह वपूण भूिमका का दशन
कया था और इसिलए उ ह इस स मेलन का अ य चुना गया। अपने अ य ीय भाषण म
उ ह ने कहा क कां ेस को संभवत: अपनी रणनीितय म बदलाव करने पर िवचार करना
होगा। अ य बात के अलावा, िवधाियका के भीतर असहयोग क नीित िवचार करने
यो य है। उनके भाषण के पीछे क ेरणा कौन रहा होगा और यह िवचार उनके भाषण म
कै से आया, इसका अंदाजा लगाना मुि कल नह है। यह संदशे उनके पित ारा भेजा गया
था और इसके तुरंत बाद पूरे देश म िववाद ने तूफान का प ले िलया। इसिलए यह प
था क महा मा के ढ़वादी अनुयायी उनक िगर तारी से पूव उनके ारा तैयार क गई
योजना से हटने के बारे म सोचगे भी नह और कां ेस ारा नई योजना वीकार कए जाने
से पूव कड़ा मुकाबला होगा। इस संभावना ने हमारे हौसले प त करने के बजाय हमारे
उ साह को और बढ़ा दया। जेल म देशबंधु अपने समथक के साथ लगातार चचाएँ करते थे
और उ ह ने काफ िव तृत प से अपने भिव य क काररवाई क परे खा तय क थी।
उ ह ने िजन उपाय पर िवचार कया था, उनम अं ेजी तथा भारतीय भाषा म दैिनक
समाचार-प का काशन शु करना भी था और इस कार इन अटकल से उनके दैिनक
‘फॉरवड’ का ज म आ, जो 1923 म शु आ और ज द ही भारत म उसने मुख
रा वादी प म अपना नाम दज करा िलया।
1922 म राजनीितक कै दय और जेल शासन के बीच भारत क कई जेल म संघष
आ। बंगाल म दो जेल —बारीसा और फरीदपुर म मामला काफ गंभीर हो गया था। इन
जेल म राजनीितक कै दय ने शासन से कै दय के साथ स य तरीके से पेश आने क माँग
क और साथ ही भारतीय जेल म कै दय के साथ सामा य तौर पर कए जानेवाले
अपमानजनक वहार के सामने झुकने से इनकार कर दया। ले कन शासन िजद पर
अड़ा था और उसने कोड़े बरसाना शु कर दया, ले कन इससे भी राजनीितक कै दय क
रीढ़ नह तोड़ी जा सक । इस बीच कोड़े मारे जाने क खबर से जनता का आ ोश गरम
लावे क तरह फू ट पड़ा। यहाँ तक क अं ेज क पालतू बंगाल िवधान प रषद् म भी
काररवाई क माँग बलवती होने लगी और सरकार के भीतर ही वैचा रक मतभेद पैदा हो
गए। जेल भारी सर अ दुर रहीम राजनीितक कै दय को कोड़े मारे जाने के िखलाफ थे,
ले कन वे सरकार को इस बात से सहमत नह कर सके । िवरोध व प उ ह ने जेल भारी
मं ी के अपने पद से इ तीफा दे दया और उनका थान बंगाल सरकार के त कालीन गृह
सद य सर यूग टीफसन ने ले िलया।
माच म महा मा गांधी क िगर तारी के बाद कां ेस कायसिमित को समझ नह आ रहा
था क अब वह या करे ? इसिलए एक सिमित का गठन कया गया, िजसे ‘सिवनय अव ा
जाँच सिमित’ नाम दया गया। इस सिमित को िज मेदारी स पी गई क वह पूरे देश का
दौरा कर सिवनय अव ा आंदोलन को फर से शु कए जाने क संभावना के बारे म
रपोट दे। इस सिमित के सद य के बीच एक सामा य भावना यह थी क इतनी ज दी
सिवनय अव ा आंदोलन शु करना संभव नह है, ले कन इस मु े का समाधान मुि कल
लग रहा था क इस बीच कां ेस को या करना चािहए? या कां ेस को अपने शांितपूण
रचना मक काय को जारी रखने मा से संतु हो जाना चािहए या उसे देशबंधु ारा
सुझाई गई नई योजना को वीकार कर लेना चािहए? सिमित ने देश का सघन दौरा कया
और कु छ महीने बाद एक रपोट स पी। सिमित के सद य अपने-अपने िन कष को लेकर
समान प से बँटे ए थे। हक म अजमल खान ( द ली), पं. मोतीलाल नेह (इलाहाबाद)
और िव ल भाई जे. पटेल (बॉ बे) िवधाियका म वेश करने क देशबंधु क योजना को
वीकार कए जाने के प म थे और डॉ. एम.ए. अंसारी34 ( द ली), के .आर. आयंगर
(म ास) और सी. राजगोपालाचारी (म ास) इसके िखलाफ थे।
रपोट को कां ेस के गया स से कु छ समय पहले ही कािशत कया गया था और इस
स क अ य ता देशबंधु दास ारा क जानी थी। रपोट से उनके हाथ मजबूत ए।
िसतंबर 1922 के अंितम दन क बात है। बंगाल के उ री िजल म अचानक से बाढ़ आ
गई, िजसक कसी ने क पना तक नह क थी। हालाँ क आज के भारत म बाढ़ और अकाल
अकसर आते रहते ह, ले कन 1922 क बाढ़ ब त ही भीषण थी। बंगाल के चार बड़े िजले
बाढ़ से भािवत ए थे, फसल न हो ग , घर बह गए और मवेशी मारे गए। बाढ़ का
नतीजा यह आ क बड़ी सं या म लोग मारे भी गए। गाँव म जहाँ तक नजर जाती थी,
पानी-ही-पानी था। कां ेस संगठन ने पूरे ांत म राहत क अपील पर तुरंत हरकत म आते
ए काम शु कर दया और राहत काय का बंधन करने के िलए बाढ़ त इलाके म
जानेवाले पहले ज थे म म भी शािमल था। िस के िम ट और राहत सिमित के अ य
सर पी.सी. रॉय के यास और जनता क उदारता क बदौलत 4,00,000 पए से यादा
का चंदा उगाह िलया गया था। इसके अलावा, ापक पैमाने पर कपड़े, खा -साम ी और
चारा (मवेिशय के िलए) भी एक कर िलया गया था। इस मौके पर बंगाल सरकार ने
20,000 पए का योगदान दया था और सरकार क कं जूसी को यायोिचत ठहराते ए
बदवान के महाराजा, जो क गवनर क ए जी यू टव काउं िसल के सद य थे, उ ह ने कहा
था क सरकार कोई खैरात बाँटनेवाली सं था नह है।
सरकार से कसी कार क सहायता के िबना चलाया गया राहत अिभयान इतना सफल
रहा क इससे कां ेस क ित ा म ब त इजाफा आ, िजसके सद य मु य प से उनके
िलए िज मेदार थे। दरअसल हमारी क मत अ छी थी क बंगाल के गवनर लॉड िलटन ने
बाढ़ त इलाक का िनरी ण करने के दौरान वयं हमारे काय क सराहना क थी।
उसके बाद से ही कां ेस ने बाढ़ और अकाल के मौके पर राहत अिभयान का संचालन
करने म हमेशा मुख भूिमका िनभाई है। अग त और दसंबर के बीच दो और उ लेखनीय
घटनाएँ घट । पहली घटना थी, लाहौर म अिखल भारतीय ेड यूिनयन कां ेस क बैठक,
िजसक अ य ता देशबंधु दास ने क थी। अपने अ य ीय भाषण म उ ह ने प श द म
ऐलान कया क िजस वराज को जीतने के िलए वे संघष कर रहे ह, वह एक वग के लोग
के िलए नह है, बि क आम आदमी के िलए है, जो आबादी म 98 फ सदी क िह सेदारी
रखता है। इस बैठक से पहले और बाद म उ ह ने हमेशा ेड यूिनयन आंदोलन म गहन िच
ली थी और कु छ समय तक जमशेदपुर म लेबर एसोिसएशन ऑफ दी टाटा आयरन एंड
टील कं पनी के अ य रह चुके थे। दूसरी घटना थी, कलक ा म यंग मै स कॉ स क
बैठक, जो क ांत म युवा आंदोलन का नतीजा थी। इस कॉ स म युवा वग क भारतीय
रा ीय कां ेस से पूरी तरह अलग अपना वयं का एक आंदोलन और एक संगठन होने क
इ छा कट क गई थी। नवंबर के अंितम दन क बात है।
कलक ा म अिखल भारतीय कां ेस सिमित क बैठक ई, िजसम देशबंधु और महा मा
के समथक के बीच सं याबल को लेकर मुकाबला आ। यह कां ेस के सालाना स का
पूवा यास था। दसंबर के अंितम स ाह म उ ेजना के चलते तनावपूण माहौल म गया म
भारतीय रा ीय कां ेस का पूण अिधवेशन आयोिजत कया गया। शु आती
भिव यवािणय के अनुसार, दास क योजना को िवफल कए जाने क संभावना थी।
ले कन उस समय कोई यह नह बता सकता था क मत िवभाजन कै से होगा? हालाँ क यह
प था क दास को सभी ांत , िवशेषकर बंगाल, संयु ांत, पंजाब, म य ांत और
महारा (बॉ बे ेसीडसी का िह सा) से भावशाली समथन ा होगा।
िवषयवार सिमितय म गरमागरम बहस के बाद, मामला मतदान के िलए कां ेस के
खुले स म सामने आया। ीिनवास आयंगर, म ास के एक मुख नेता, जो म ास बार के
नेता थे और म ास के महािधव ा पद से इ तीफा दे चुके थे, उ ह ने एक संशोधन पेश
कया, िजसके अनुसार कां ेस के ितिनिधय को चुनाव लड़ना चािहए, ले कन
िवधाियका के भीतर कामकाज म भाग नह लेना चािहए। इस संशोधन पर मु य
मतदान आ और इसका नतीजा महा मा के समथक के बड़े ब मत के प म सामने
आया। उनका उ साह सातव आसमान पर था और उस दन के नायक म ास के नेता
राजगोपालाचारी थे, जो कां ेस के सम गांधीवाद के दूत बनकर खड़े ए थे।
दास क ि थित ब त खराब हो गई थी। वे कां ेस के अ य थे, ले कन उ ह ने िजस
योजना क वकालत क थी, वह नामंजूर हो चुक थी। भिव य क काररवाई का फै सला
करने के िलए उ ह ने अपने समथक क एक बैठक बुलाई। यह फै सला कया गया क उ ह
कां ेस क सद यता से इ तीफा देकर ‘ वराज पाट ’ नाम से अपनी पाट ग ठत करनी
चािहए। अगले दन जब अगले साल यानी 1923 के िलए काय म क परे खा तय करने
के मकसद से अिखल भारतीय कां ेस सिमित क बैठक ई तो पं. मोतीलाल नेह
‘ वराज पाट ’ के गठन के बारे म एक घोषणा करने के िलए खड़े ए। इस घोषणा ने
अचानक एक बड़ा झटका दया और महा मा के समथक के चेहरे पर मुदनी छा गई, जो
कु छ देर पहले तक खुशी से सराबोर थे। अिधकतर मुख बुि जीवी देशबंधु क ओर थे और
इस बात म कोई संदह े न था क उनके िबना कां ेस अपनी यादातर ताकत और मह व खाे
देगी। जो घोषणा पहले पं. मोतीलाल नेह ने क थी, उसक पुि दास ने अपना भाषण
समा करते ए कर दी। उ ह ने अ य पद से अपना इ तीफा स प दया, य क उनक
इ छा सरकारी ताव के िवरोध म काय करने क थी और इसके पीछे उनका उ े य देश
को अपनी काययोजना वीकार करने के िलए राजी करना था।
गांधीजी के समथक गया से अपनी जीत क संतुि के साथ लौटे, ले कन िवघटन से वे
खुश नह थे। वराजवादी पराजय के भाव के साथ अलग ए थे, ले कन उनका इरादा
लड़ने और जीतने का था।

4
वराजवा दय का िव ोह (1923)
व राजवादी नेता गया से अपने-अपने ांत को लौट गए। उनके सामने एक ठोस
काययोजना थी। आम समझ यह थी क देशबंधु दास को बंगाल, म य ांत और दि ण
भारत म चार करना चािहए; पं. मोतीलाल नेह को ऊपरी भारत म तथा िव लभाई
पटेल को बॉ बे ेसीडसी म। रा वादी ेस कु ल िमलाकर वराजवा दय क िवरोधी थी।
इसिलए वराजवा दय को चार के साधन के प म मु य प से भाषण पर िनभर
रहना पड़ रहा था। हमने कलक ा म चार पृ का दैिनक समाचार-प ‘बांिगयार कथा’
कािशत करना शु कया, िजसका मकसद हमारे चार म मदद करना था और मुझे नेता
के आदेश पर रातोरात इस समाचार-प का संपादक बनना पड़ा। म ास म, ए. रं गा वामी
आयंगर, जो हंद ू के त कालीन संपादक थे, काफ मददगार रहे। उनका तिमल दैिनक
‘ वदेशिम म्’ वराजवादी नीित का व ा बन गया और उ ह ने हमारे चार म मदद
करने के िलए इसी नाम से अं ेजी सा ािहक प शु कर दया। पूना म अ यिधक
भावशाली मराठी दैिनक ‘के सरी’ हमारे िहत का पैरोकार बन गया। लोकमा य ितलक
के िनधन के बाद के लकर ‘के सरी’ के संपादक रहे थे और जैसे ही वे वराज पाट के धुर
समथक बने तो उनके दैिनक ‘के सरी’ के संसाधन को पाट के हाथ म स प दया गया।
जब देशबंधु गया कां ेस के बाद बंगाल लौटे तो उ ह ने अपनी ि थित को काफ कमजोर
पाया। कां ेस क व था हमारे राजनीितक िवरोिधय के हाथ म चली गई थी, िज ह
अब ‘बदलाव िवरोधी’ के प म जाना जा रहा था। जब हमने पहली बार अपने समथक
का जायजा िलया तो हमने पाया क हम अ पसं यक थे। सबसे पहले तो हमारे िलए कोष
जुटाना मुि कल था, य क हमने कां ेस के आिधका रक काय म के िखलाफ बगावत क
थी। हम अनुशािसत और ितब कायकता थे और इस असीिमत उ साह के साथ हमने
वयं को अपने काम म झ क दया। उस समय हमने जो रणनीितयाँ अपना , उनम से एक
देशभर म कां ेस संगठन क बैठक का आयोजन करने क थी। इन बैठक म गया कां ेस
म पा रत कए गए ताव को वापस लेने को कहा जाना था। पहले तो इस कार क
बैठक म हमारी पाट परािजत होती रही, ले कन हम धीरे -धीरे आगे बढ़ते रहे और जब
हमारी पाट कसी एक थान पर ब मत पा लेती तो इस खबर से दूसरे थान पर हमारे
साथी कायकता का हौसला बढ़ता था।
देशभर म शु आती चार जब कर िलया गया तो वराजवा दय क पहली कॉ स
इलाहाबाद म पं. मोतीलाल नेह के घर म ई। कॉ स म वराज पाट का संिवधान
और चार योजना का खाका तैयार कया गया। जब संिवधान पर चचा हो रही थी तो
वराज पाट के अंितम ल य के संबंध म एक िववाद उठ खड़ा आ। डोिमिनयन टेटस
पाट का ल य होगा या पूण आजादी? इस बंद ु पर कां ेस का संिवधान प नह था।
इसम मा इतना कहा गया था क वराज हमारा ल य है, ले कन यह ा या नह क
गई थी क वराज का या अथ है? चूँ क वराज पाट यादा ावहा रक थी, यह प
प से वराज को प रभािषत करना चाहती थी, ले कन इस सवाल पर पूण समझौता
संभव नह था, य क वराजवा दय के बीच दो धड़े थे। इसिलए एक समझौते के प म
यह फै सला कया गया क संिवधान म यह घोिषत कर दया जाए क पाट का ‘त काल’
उ े य डोिमिनयन टेटस ा करना था। इस कार युवा और बुजुग के बीच फलहाल
के िलए इस मु े का समाधान हो गया।
वराजवा दय क कॉ स समा हो गई और दास दि ण भारत के लंबे दौरे पर िनकल
गए। यह ब त ही क ठन काम था। उस समय म ास ेसीडसी गांधीवाद के गढ़ म से एक
थी और दास ने जानबूझकर सबसे पहले इस कले को फतह करने क ठानी थी। दि ण
भारत क झुलसाती गरमी के बावजूद उनका दौरा काफ सफल रहा। वहाँ पर उनक
सफलता का देश के अ य िह स म भी भाव पड़ा। कलक ा लौटने के बाद उ ह ने बंगाल
म चार क कमान सँभाल ली और उसके ब त अ छे प रणाम रहे। उस समय तक पाट
अिखल भारतीय कां ेस सिमित क ज द-से-ज द बैठक बुलाने का फै सला कर चुक थी।
हर अगली बैठक म यह पाया गया क वराजवा दय के वोट बढ़ते जा रहे ह। 1923 का
आधा साल बीतते-बीतते इतनी सफलता िमल चुक थी क कायकारी सिमित (कां ेस क
कै िबनेट), िजसम पूरी तरह ‘बदलावरोधी’ छाए ए थे, अब वे अिखल भारतीय कां ेस
सिमित म ब मत म नह रहे थे और इसिलए उ ह याग-प देना पड़ा। ले कन ‘नो चजस’
इतने मजबूत नह थे क पद पर बने रह सक, ले कन वराज पाट भी ऐसी ि थित म नह
थी। तो ऐसे म एक पाट , िजसे कसी नाम के अभाव म ‘सटर पाट ’ कह सकते ह, वह
पदासीन हो गई। इस पाट ने वराजवा दय क योजना को वीकार नह कया, ले कन वे
क र गांधीवादी भी नह थे। उ ह ने कां ेस के दोन ित ं ी धड़ के बीच एक कार क
आपसी समझदारी क वकालत क । उसी समय के आसपास ‘नो चजस’ क बंगाल म भी
हार हो गई और बंगाल कां ेस सिमित म सटर पाट पदासीन हो गई, जो वराजवा दय
के भाव म थी। इस व था के तहत, मौलाना अकरम खान बंगाल कां ेस सिमित के
अ य बन गए। ले कन पूव सिचव, डॉ. पी.सी. घोष ने पदभार स पने से इनकार कर
दया। इसिलए दो ित ं ी कां ेस सिमितय ने एक साथ काम करना शु कर दया, हर
कोई वयं को ितिनिध इकाई बता रही थी। कायसिमित ारा संवैधािनक सवाल का
िनपटारा कए जाने से पूव कु छ महीने बीत चुके थे, जब मौलाना अकरम खान क
अ य ता वाली सिमित के प म फै सला दया गया।
सभी ांत म, िवशेषकर बंगाल म, दोन दल के बीच ब त यादा कड़वाहट क भावना
भर गई थी, हालाँ क दोन का ल य साझा था—भारत के िलए वराज जीतना। दोन के
बीच इस कड़वाहट ने िज मेदार कां ेस नेता को इस िवषय पर गंभीरता से सोचने को
मजबूर कर दया क दोन िवरोधी धड़ के बीच कै से कसी कार का समझौता करवाया
जा सकता है? तब यह सुझाव आया क िसतंबर 1923 म द ली म कां ेस के एक िवशेष
स का आयोजन कया जाए। यह फै सला गांधीजी के समथक के िलए एक करारा झटका
था, य क वराजवा दय के बारे म यह प ा था क वे द ली कां ेस म एक बार फर से
अपनी योजना पर दबाव डालगे और गया के मुकाबले यहाँ उनके पास जीतने के बेहतर
अवसर थे। सवािधक बु और िति त मुसिलम नेता म से एक मौलाना अबुल कलाम
आजाद को द ली कां ेस के िलए अ य चुना गया और अपने अ य ीय भाषण म उ ह ने
चुनाव लड़ने और िवधाियका के भीतर अपनी लड़ाई जारी रखने क वराजवा दय क
नीित क वकालत क ।
द ली कां ेस से कु छ ही समय पहले अली बंधु म छोटे और यादा भावशाली
मौलाना मोह मद अली और जाने-माने पंजाबी नेता डॉ. कचलू को जेल से रहा कर
दया। ‘नो चजस’ पाट ने उनके आगमन का वागत कया, िजसक नीित और काररवाई
को उ ह ने अपना समथन दया था। कहना न होगा क वराजवा दय ने इतनी गित कर
ली थी क उ ह कोई अब यादा रोक नह सकता था। देशबंधु दास ने ितिनिधय के बड़े
दल के नेता के प म भाग िलया और बंगाल के वोट ने उनके प म हवा का ख पलट
दया। जैसे ही यह प हो गया क वराजवादी जीत जाएँगे, ‘नो चजस’ पाट समझौते
के िलए राजी हो गई। इतना ही नह , मौलाना मोह मद अली ने दावा कया क उ ह
महा मा क ओर से एक गु संदश े (िजसे उ ह ने वायरलेस संदश
े कहा था) ा आ है,
िजसम उनसे कां ेस के दोन ित ं ी धड़ के बीच समझौता कराने को कहा गया है।
इसिलए यादा कोई हील- त/मोल-भाव कए िबना िसतंबर 1923 म द ली म िवशेष
कां ेस स म एक समझौता ताव पा रत कया गया, िजसम ावधान कया गया क
कां ेस नेता को आगामी चुनाव म भाग लेने क अनुमित होगी और िवधाियका के
भीतर रहते ए सरकार के िव एकसमान, लगातार और सतत िवरोध क नीित
अपनाई जाएगी, ले कन बतौर एक संगठन कां ेस क इस मामले म कोई िज मेदारी नह
होगी।
वराजवादी खुशी से उछलते ए द ली से लौटे। कड़े िवरोध और ापक अलोकि यता
के बीच नौ महीन तक कड़ी मेहनत करने के बाद यह जीत उनके िह से म आई थी। ले कन
उनके पास सु ताने का समय नह था। आगामी चुनाव क तैयारी के िलए उनके पास
मुि कल से दो महीने का समय बचा था और उनके सामने मुकाबला कड़ा होनेवाला था।
ले कन क मत बहादुर का साथ देती है और उसने वराजवा दय का साथ दया।
िवपरीत और िनराशाजनक भिव यवािणय के बावजूद उ ह ने शानदार सफलता हािसल
क । म य ांत म चुनावी नतीजे काफ शानदार रहे और यह प था क अपनी अवरोधक
रणनीित क बदौलत वराजवादी थानीय िवधान प रषद म कामकाज को अव करने
म स म ह गे। बंगाल के िलए भी चुनावी नतीजे काफ उ साहजनक रहे और भारतीय
िवधान प रषद् म वराजवा दय का एक मजबूत दल लौट आया। आपसी समझौते के
तहत यह तय पाया गया क पं. मोतीलाल नेह भारतीय िवधान प रषद् म वराज पाट
का नेतृ व करगे तो वह देशबंधु बंगाल िवधान प रषद् म कमान सँभालगे, जहाँ उ ह
उ मीद थी क वे संवैधािनक गितरोध पैदा करने म सफल ह गे।
म य और ांतीय िवधाियका म िनवािचत सीट पर वराजवा दय क सफलता क
कहानी अ य े म भी दोहराई गई। संयु ांत म 1923 म थानीय िनकाय
(नगरपािलका और िजला बोड) के चुनाव ए और पं. मोतीलाल नेह के िनदश के
तहत वराज पाट को उस ांत म अ छी-खासी सफलता ा ई और इसके
प रणाम व प कई नगरपािलकाएँ और िजला बोड वराजवा दय के िनयं ण म आ गए।
प का रता के े म भी वराजवा दय ने काफ गित क । कलक ा म देशबंधु ने द ली
म अपनी िवजय के तुरंत बाद ही अ ू बर म अपना दैिनक समाचार-प ‘फॉरवड’ शु
कया। दैिनक प के कु छ आयोजक को िबना सुनवाई के अचानक जेल म डाल दया गया।
ऐसे म मुझे दैिनक क िज मेदारी स प दी गई। हालाँ क दैिनक क शु आत के समय हम
लोग को कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी, ले कन इसके बाद इसने रातोरात सफलता हािसल
क और दैिनक पाट क बढ़ती लोकि यता तथा मजबूती के साथ कदम िमलाने लगा।
ब त ही अ पाविध म ‘फॉरवड’ देश के रा वादी जनल के बीच अपनी मजबूत ि थित
बनाने म कामयाब हो गया। इसम कािशत लेख म ताकत थी, इसक समाचार सेवा म
िविवधता और नयापन था तथा इसने सरकारी गोपनीय बात को खोजकर और उ ह
बेनकाब करने का एक खास कौशल िवकिसत कर िलया था।
1923 के दौरान आंदोलन कु ल िमलाकर संवैधािनक कृ ित का था, िजसम नागपुर म
सिवनय अव ा (या स या ह) आंदोलन एक अपवाद था। नागपुर म ािधकरण/ शासक
ने शहर क कु छ सड़क पर रा वज लेकर िनकलने पर ितबंध लगा दया था। इस
आदेश के िवरोध व प ितबंिधत इलाक म वज आ द के साथ जुलूस िनकाले गए। यह
अिभयान कु छ महीन तक चला और बड़ी सं या म लोग को जेल म डाल दया गया।
ज द ही यह रा ीय मु ा बन गया, य क िजस आदेश पर सवाल उठाए जा रहे थे, वह
रा ीय वज का अपमान समझा गया और इस आदेश का उ लंघन करने तथा लोग को
जेल भेजे जाने के िखलाफ देश के सभी िह स से लोग जुटना शु हो गए। अंतत: गवनमट
हाउस म सलाहकार को स बुि आई और एक समझौता आ, िजसके तहत इस संबंध म
लोग क माँग को काफ हद तक वीकार कर िलया गया।
इस उपरो अिभयान के संबंध म इस बात पर भी यान दया जाना चािहए—आमतौर
पर िजसे ‘नागपुर वज स या ह अिभयान’ के प म जाना गया, उसे ढ़वादी
गांधीवा दय ने संचािलत कया था, जो यह दखाने को बेचैन थे क गांधी का तरीका
भोथरा नह आ है और अभी भी यह देश म भूचाल लाने क मता रखता है।
1923 म ढ़वादी गांधीवा दय के िखलाफ िव ोह का िबगुल बजानेवाली मु य इकाई
वराजवादी थे, ले कन उसी साल गांधीवाद के िखलाफ एक और बगावत शु हो गई,
िजसने आनेवाले साल म काफ अहिमयत हािसल कर ली थी। गांधीवादी िवचारधारा से
असंतु एक छोटे से समूह ने बॉ बे म डांगे35 के नेतृ व म समाजवादी सािह य का अ ययन
शु कर दया। उनका अपना एक लब था और वे समाजवाद का पाठ पढ़ाने के िलए एक
सा ािहक जनल कािशत करते थे। कां ेसी नेता के बीच उस समय उनके के वल
एकमा संर क दवंगत िव लभाई पटेल थे। उ ह ने बॉ बे म ज द ही एक िमक संगठन
को अपना िलया और कई साल बाद, वे भारत म सा यवा दय का पहला समूह बनकर
उभरे । बॉ बे के बाद इसी कार का एक समूह बंगाल म शु हो गया, िजसका नाम था
‘वकस एंड पीजट पाट ’, ले कन यह कभी भी बॉ बे म शु ए समूह िजतना मह व
हािसल करते ए उतना आगे नह बढ़ पाया। इसका कारण समझना मुि कल नह है।
बंगाल म कलक ा उसका दल और दमाग दोन था और वह काफ लंबे समय से
रा वादी आंदोलन के मजबूत गढ़ म से एक रहा था। वहाँ यह आंदोलन भावशाली और
रा भ बुजुआ वग पर टका आ था। साथ ही बंगाल म बॉ बे क तरह वदेशी और
भावशाली पूँजीवादी वग नह था। इसका प रणाम यह आ था क बॉ बे म वगभेद
उतना ती ण और सटीक प म कभी नह उभर पाया, िजतना वह बंगाल म पैदा हो चुका
था। और साथ ही बंगाल के मुकाबले रा ीय आंदोलन बॉ बे म हाल ही म यादा ती आ
था। ऐसी प रि थितय म इस बात म कोई हैरानी नह है क बॉ बे म गांधीवाद के
िखलाफ बुि जीवी वग के िव ोह को एक सा यवादी या क युिन ट प ले लेना चािहए।
दूसरी ओर, बंगाल म गांधीवादी के िखलाफ बगावत ने क युिन ट प के बजाय
ांितकारी प ले िलया। इस वृि पर हम अ याय ‘बंगाल क ि थित’ म चचा करगे।
हम िपछले अ याय म यह पहले ही देख चुके ह क जब माच 1922 म म टे यू ने कै िबनेट
से इ तीफा दया तो ित यावादी ताकत को दोन जगह, इं लड और भारत म बढ़त
िमल गई। लॉयड जॉज क कोएिलशन कै िबनेट का ज द ही पतन हो गया और अ ू बर
1922 म आम चुनाव ए, िजसम कं जरवे टव के हाथ म स ा आ गई। नवंबर 1922 म सर
बािसल लैकेट को गवनमट ऑफ इं िडया का िव ीय सद य िनयु कया गया। जब
उ ह ने अपना पहला बजट पेश कया तो उनका सबसे पहला काम फरवरी 1923 म नमक
कर को दोगुना करना था। भारत म इस समय नमक कर काफ कु यात था—कु छ इस
वजह से, य क लोग को उ ह कृ ित- द जल या िम ी से नमक बनाने से कानून ारा
रोक दया गया था और कु छ इस वजह से क नमक कर से गरीब पर सबसे अिधक मार पड़
रही थी। इसिलए सरकार अगर कोई ब त बुरा कदम उठा सकती थी तो वह था—नमक
कर को दोगुना करना। भारतीय िवधानसभा ने िव सद य के इस ावधान को तुरंत
खा रज कर दया, ले कन वायसराय लॉड री डंग ने तुरंत अपने माणन क शि का
इ तेमाल करते ए इसे बहाल कर दया। जून म सरकार ने एक और गलती क । उसने ली
आयोग के नाम से एक आयोग िनयु कया, िजसे ऑल इं िडया स वसेज क ि थित और
िशकायत क जाँच करने क िज मेदारी स पी गई। इस सेवा म मु य प से ि टश लोग
ही ह। उस समय सभी ने यह महसूस कया क इस आयोग क िनयुि से के वल एक ही
प रणाम िनकलेगा क भारत म ि टश अिधका रय के वेतन भ म इजाफा कर दया
जाएगा।36 इस कार सरकार ने अं ेज को खुश करने के िलए और अिधक धन खच करने
के िलए अपनी तैयारी का दशन कया। अं ेज अिधकारी अनाव यक खच को कम करने
को राजी नह थे। हालाँ क इं चके प कमेटी ने इस संबंध म कई उपयोगी िसफा रश क थ ।37
इस कदम के अलावा, गवनमट ऑफ इं िडया ने एक और कदम उठाया, िजसक उस समय
अ यिधक आलोचना क गई और िजसके चलते देश के कु छ िह स म नाराजगी पैदा हो
गई। यह कदम था—नाभा के महाराजा को ग ी से हटाना। हालाँ क सरकार ने अपनी इस
काररवाई को यायोिचत ठहराने के िलए महाराजा के िखलाफ कई आरोप लगाए थे,
ले कन देश म यह भावना काफ बल थी क नाभा के महाराजा भारत के अ य
महाराजा से न तो बेहतर थे और न ही खराब और यह भी क उ ह के वल इस कारण से
संहासन से हटाया गया था क उनके रा वादी िवचार ब त ही साहसपूण थे। चूँ क
महाराजा िसख थे और उनके बारे म कहा गया था क वे अकाली आंदोलन के साथ
सहानुभूित रखते ह, ऐसे म उ ह स ा युत करने से िसख समुदाय के भीतर गहरा रोष पैदा
हो गया।
आिधका रक हलक म जब ित यावादी ताकत मजबूत हो रही थ और वराजवादी
नौकरशाही के अभे कले पर बड़ी काररवाई क तैयारी कर रहे थे, इं िडयन लेिज ले टव
असबली (भारतीय िवधानसभा) के पास रा वा दय के न होने के बावजूद, न तो उसके
पास समय था और न ही वह िनि य थी। साल के दौरान, संवैधािनक गित क दशा म
तेजी से आगे बढ़ने क माँग करते ए दो बार ताव पा रत कए गए। इतना ही नह ,
अपने कायकाल क समाि पर प च ँ कर असबली ने डॉ. (अब सर) एच.एस. गौड़ ारा
पेश रे िस ॉिसटी िबल पा रत कर दया। यह िवधेयक ि टश सा ा य के डोिमिनयन और
उपिनवेश को लि त करके लाया गया था। यह उन े के िलए था, जहाँ भारतीय को
समान अिधकार दान नह कए गए थे। इसम उन सभी देश के िखलाफ जवाबी
काररवाई का ावधान कया गया था, जो भारतीय को अपा बनाता था, उन देश म
भारतीय को िजन असमानता का सामना करना पड़ता था, वही असमानता भारत म
उनके नाग रक पर लागू होती थ । यह िवधेयक अ का म के या क ाउन कॉलोनी म
भारतीय के साथ हो रहे अ याय का प रणाम था। के या म, जहाँ भारतीय बा शंद ने एक
के मुकाबले तीन से गोरे बा शंद को पीछे धके ल दया था। गोरे सारी राजनीितक शि य
को अपने हाथ म लेकर भारतीय को इससे पूरी तरह बाहर रखना चाहते थे। के या क
िवधाियका म उ ह ने एक कानून पा रत करके 21 साल से ऊपर के सभी गोरे लोग को
वोट का अिधकार दे दया। उ ह ने पहले तो भारतीय लोग को वोट देने से इनकार कर
दया, ले कन अंतत: उ ह ने भारतीय को अलग से मतदाता के प म पेशकश क , ले कन
इसम मतािधकार ब त अिधक सीिमत था। भारतीय ने इस पेशकश को ठु करा दया,
य क इससे उनके ऊपर दोयम दज के नाग रक होने का ठ पा लग जाता। के या के
भारतीय ने भारत से इस मामले म मदद क अपील क और अ ैल 1923 म माननीय
वी.एस. शा ी38 हाइट हॉल म अथॉ रटी के सम उनका मामला रखने के िलए एक
िश मंडल लेकर इं लड गए। इं िडया ऑ फस और कोलोिनयन ऑ फस के बीच एक
यायोिचत प से संतोषजनक समझौते क परे खा तैयार क गई, िजसे ‘वुड वंटरटन39
ए ीमट’ कहा जाता है, ले कन टौरी कै िबनेट ने इसे मंजूर नह कया। इसिलए शा ी को
िनराश होकर लौटना पड़ा। उनके भारत लौटने के बाद डॉ. एच.एस. गौड़ ारा असबली म
रे िस ॉिसटी िबल पेश कया गया।
1923 म भारत क उपरो तसवीर उन कु छ सां दाियक फसाद का िज कए िबना
पूरी नह होगी, जो 1923 म उभर आए थे और जो आनेवाले साल म अिधक बीभ स प
धारण करनेवाले थे। 1923 म यादातर सम याएँ पंजाब म पेश आई थ । साल क
शु आत म वहाँ मु तान म हंद-ू मुसिलम फसाद हो गया था और इसके बाद ऐसा ही
फसाद अमृतसर म 1919 म हो चुके जिलयाँवाला बाग नरसंहार के समीप ही आ। उस
समय तक (अब सर) िमयाँ फािजल सैन पंजाब म मं ी बन गए थे। लोकसेवा म
िनयुि य के मामले म उ ह ने मुसिलम का जबरद त प िलया और इससे िसख तथा
हंद ु के बीच ब त यादा असंतोष पैदा हो गया। उसी साल म आगे जाकर भारतीय
रा ीय कां ेस के िवरोध म भारतीय मुसिलम के बीच एक आंदोलन शु आ—‘तंजीम
और तबलीग’—िजसका मकसद मुसिलम को एक मजबूत और बहादुर समुदाय के प म
संग ठत करना था। इस आंदोलन ने कु छ समय के िलए तो लोग को े रत कया, ले कन
ज द ही यह मतभेद का िशकार हो गया और इसका थान सां दाियक या एक अलग
क म के जातीय संगठन ने ले िलया। िजस समय उपरो आंदोलन चल रहा था, हंद ू भी
हाथ-पर-हाथ धरे नह बैठे थे। उनके सां दाियक संगठन— हंद ू महासभा—ने भी वयं को
मजबूत करने क दशा म कदम बढ़ाना शु कर दया। अग त म अपनी सालाना बैठक म
हंद ू महासभा ने फै सला कया क वंिचत और दबे-कु चले वग को भी ऊँची जाितय के
समान ही सभी अिधकार, िवशेषािधकार और सुिवधाएँ दान क जाएँ। मुसिलम के बीच
‘तंजीम और तबलीग’ आंदोलन के समान ही हंद ु के बीच ‘संगठन’ नामक आंदोलन क
शु आत ई। इतना ही नह , कसी-न- कसी वजह से हंद ू समुदाय का याग करनेवाले
हंद ु को वापस लाने के िलए ‘शुि ’ आंदोलन भी चलाया गया। शुि क र म के साथ
गैर- हंद ु के िलए भी हंद ू बनना संभव हो गया। इस आंदोलन के पुरोधा वामी
ानंद40 थे, जो क हंद ू महासभा के एक अ यंत स मािनत नेता थे। उनके भाव से
हजार गैर- हंद ु , िजनम मुसिलम और ईसाई भी शािमल थे, उ ह हंद ू धम म धमात रत
कर दया गया। इस समय तक वामी ानंद म काना राजपूत को पुन: धमात रत करने
के यास म लगे थे। म काना राजपूत मूल प से हंद ू थे, ले कन बाद म चलकर उ ह ने
इसलाम धम कु बूल कर िलया था। यह यास कई मुसिलम नेता को नागवार गुजरा।
भारत म सां दाियक तूफान उफान पर था, ले कन अली बंधु अपनी रा वादी न ल के
ित वफादार बने रहे। छोटे भाई मौलाना मोह मद अली को म ास के कोकोनाडा म
कां ेस के सालाना स क अ य ता करने के िलए चुना गया। गया कां ेस क तरह यहाँ
िववाद का कोई गरमागरम मु ा नह था और बेहद सौहादपूण वातावरण म िवचार-
िवमश आ। हालाँ क वहाँ हंद-ू मुसिलम सवाल पर थोड़ी सुगबुगाहट-सी थी, ले कन
सौभा य से वह कसी बवंडर म त दील नह ई। देशबंधु दास ने बंगाल म सां दाियक
सवाल को सुलझाने के िलए एक हंद-ू मुसिलम समझौते का खाका तैयार कया था और
उनक इ छा थी क कां ेस इस पर अपनी सहमित क मोहर लगा दे। ले कन कोकोनाडा
कां ेस ने ऐसा नह कया और समझौते को इस किथत आधार पर खा रज कर दया गया
क यह मुसिलम के ित प पात दरशाता है और रा वाद के िस ांत का उ लंघन
करनेवाला है। सां दाियक सवाल के िनपटारे के िलए लाला लाजपत राय और डॉ. एम.ए.
अंसारी ारा भी एक अ य समझौता तैयार कया गया था, उसे कोकोनाडा कां ेस ने
िवचार के िलए अिखल भारतीय कां ेस को ेिषत कर दया गया। ये समझौते इस बात का
संकेत थे क कां ेस के भीतर सही समझ रखनेवाले नेता ने सां दाियक दरार क
आशंका को महसूस करना शु कर दया था और साथ ही उ ह यह भी समझ आ रहा था
क इस दरार को और चौड़ा होने से पहले मु े को सुलझाने क खाितर कु छ ज री
काररवाई करनी होगी। ले कन पया प से व रत या बड़ी काररवाई नह क गई। और
इसका प रणाम यह आ क मतभेद और यादा गहराते चले गए। इतना ही नह , ि थित
इतनी गंभीर हो गई क जून 1925 म देशबंधु दास के िनधन के बाद जैसे ही वराज पाट
ारा पैदा कया गया राजनीितक तनाव कम आ, देश को सां दाियक तूफान का सामना
करना पड़ गया।
रा वा दय के नज रए से साल 1923 क शु आत खराब ई थी, ले कन इसका अंत
अ छा रहा था। जनवरी म मतभेद और अवसाद था। दसंबर म उ मीद और िव ास था।
यहाँ-वहाँ सां दाियक अशांित के संकेत के बावजूद राजनीितक पारा चढ़ना शु हो गया
था। इं लड म भी ित यावादी ताकत को अ थायी तौर पर झटका लगा था। मई 1923
म बा डिवन ने बोनार लॉ के थान पर धानमं ी का पद सँभाल िलया था और उसी साल
नवंबर म उ ह ने संर णवाद बनाम मु ापार के मु े पर देशवािसय से अपील क थी।
प रणाम व प कं जरवे टव को कायालय से िनकाल बाहर कर दया गया और 1924 म
ि टेन के इितहास म पहली बार लेबर सरकार स ा म आई। िपछली कै िबनेट क ‘दी
नीयर ई ट पॉिलसी’ िवफल हो गई। 1922 क समाि से पूव, मु तफा कमाल पाशा
अनातोिलया से यूनािनय को खदेड़ने म सफल रहे। साल 1923 क समाि से पहले, उ ह
कॉ ट टनोपल से गठबंधन बल को भी िनकाल बाहर करने म सफलता हािसल हो गई
और माच 1924 तक उ ह ने वयं को पया प से इतना मजबूत महसूस कया क
उ ह ने िखलाफत का ही सफाया कर दया और एक नए तथा ताकतवर तुक को दुिनया के
सामने लेकर आए।

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देशबंधु सी.आर. दास स ा म (1924-25)
सा ल 1924 क शु आत च ओँ र से नई उ मीद के साथ ई, ले कन वराजवा दय के
पास आराम करने का समय नह था। कलक ा नगर िनगम, जो क भारत क सबसे बड़ी
नगरपािलका है, उसके माच म चुनाव होनेवाले थे। थानीय वशासन सरकार के मं ी सर
सुर नाथ बनज को इस बात का ेय जाता है क उ ह ने 1923 म कलक ा नगरपािलका
अिधिनयम म संशोधन करवाया था। इससे काफ शि याँ नगरपािलका को िमल गई थ ,
मतदाता क सं या भी काफ बढ़ गई थी और िनवािचत त व क ि थित मजबूत ई
थी। य द चुनाव म जीत हािसल हो जाती है तो संिवधान के तहत वराज पाट के िलए
नगरपािलका शासन पर क जा जमाना संभव था। इसिलए 1924 क शु आत म ही गहन
चार अिभयान चलाया गया, िजसका मकसद िनवािचत सीट हािसल करना था।
वराजवादी नेता क जनसभा म हजार लोग क भीड़ जुट रही थी। उ साह के ऐसे
आलम को देखते ए चुनाव क ब त ही सकारा मक भिव यवािणयाँ क ग । हक कत यह
है क वराज पाट ब त ही सुरि त ब मत के साथ लौटी और कई सारे सफल
वराजवादी उ मीदवार मुसिलम थे। ये चुनाव प रणाम इसिलए और यादा मह वपूण थे
क चुनाव पृथक् िनवाचन मंडल के आधार पर कराए गए थे, जहाँ हंद ु ने हंद ू
उ मीदवार के िलए और मुसिलम ने मुसिलम उ मीदवार के प म वोट डाला था।
नविनवािचत नगर पाषद क पहली बैठक म देशबंधु दास को मेयर और शहीद सुहरावद ,
जो क एक मुसिलम स न थे, उ ह उपमेयर चुना गया। िनगम ने तुरंत बाद ही मुझे मु य
कायकारी अिधकारी िनयु कर दया, जो क पािलका शासन का मुख होता है।41
हालाँ क मा 27 साल क उ म इस मह वपूण पद पर मेरी िनयुि को वराजवा दय
के दायरे म सहमित ा थी, ले कन पाट के भीतर कु छ हलक म लोग के सीने पर साँप
भी लोट रहे थे। सरकार को इससे िचढ़ ई और काफ आगा-पीछा करने के बाद उ ह ने
इसे मंजूरी देने का फै सला कया और िवधान के अनुसार उ ह ऐसा करना ही था।
नए संिवधान के तहत मेयर पद पर देशबंधु का चुनाव कलक ा नगरपािलका पर हमारे
क जे का तीक था। नई व था के तहत, व रत काररवाई करते ए नाग रक के फायदे
के िलए सोच-समझकर नए उपाय को लागू कया गया। नविनवािचत वराजवादी पाषद
और यहाँ तक क मेयर समेत सभी शीष पदािधकारी खादी पहनकर आने लगे।
नगरपािलका के कमचा रय के बीच खादी सरकारी वरदी बन गई। कई सड़क और पाक
के नाम भारत के महान् नेता के नाम पर रखे गए। पहली बार एक िश ा िवभाग क
शु आत क गई तथा कि ज के एक िव यात भारतीय ैजुएट42 को इसका भारी बनाया
गया। पूरे शहर म बालक और बािलका को िन:शु क ाथिमक िश ा देने के िलए कू ल
खुल गए। लोग के बीच वा य चार के िलए लोक सेवा क भावना के साथ नाग रक ने
हर वाड म वा य संघ शु कर दए, िजनका िव पोषण नगरपािलका ारा कया गया।
गरीब को िन:शु क िच क सा उपचार उपल ध कराने के िलए िविभ िजल म
नगरपािलका ारा औषधालय खोले गए। कराना दुकान पर वदेशी उ पाद को
ाथिमकता दी जाने लगी। नई िनयुि य म पहली बार मुसिलम और अ य अ पसं यक
समुदाय के उ मीदवार के दाव को मा यता दी गई। शहर के िविभ भाग म नवजात
िशशु औषधालय थािपत कए गए और हर ऐसे औषधालय के साथ एक दु ध-रसोईघर
को जोड़ा गया, ता क गरीब लोग के ब को िन:शु क दु ध आपू त क जा सके । इतना ही
नह , नगरपािलका ने शहर म पधारने पर महा मा गांधी, पं. मोतीलाल नेह और वी.जे.
पटेल जैसे रा वादी नेता के िलए नाग रक वागत समारोह का आयोजन करना शु
कर दया और इसके साथ ही वायसराय, गवनर और सरकारी अिधका रय के स मान म
नाग रक वागत समारोह के आयोजन क पुरानी परं परा को हमेशा के िलए बंद कर
दया। नाग रक के क याण के िलए अपनाए गए इन उपरो उपाय से एक नए क म
क नाग रक चेतना का उ व आ।43
लोग ने पहली बार नगरपािलका को अपने सं थान तथा नगरपािलका अिधका रय
और कमचा रय को पहली बार नौकरशाह के बजाय लोक सेवक के प म देखना शु
कया। ले कन ि टश शासक के शहर को लेकर अपने िनिहत वाथ थे और उ ह महसूस
आ क उनका मह व कम हो रहा है और अब वे अिधक समय तक नगरपािलका पर
अपना भु व नह रख सकते। उस समय एक-दो अपवाद को छोड़कर लगभग सभी
िवभाग के मुख ि टश अिधकारी थे और मुझे उनके साथ काम करने म कोई मुि कल
पेश नह आई। उनम से ब सं यक वराजवा दय के नए शासन के ित िन ावान थे
और कु छ तो इसक काफ उ साह से सराहना करते थे। कु छ ही महीन के भीतर शासन
क काय-कु शलता म काफ वृि ई और नाग रक क िशकायत का पहले के मुकाबले
तुरंत िनपटारा होने लगा, ले कन िनगम म सरकारी महकमे और सरकार ने भी िवरोध क
अपनी नीित को जारी रखा, िजसका नतीजा यह आ क दोन प के बीच म लगातार
टकराव रहने लगा। िनयुि य के मामले म, वे अ पसं यक के साथ याय करने क
वराजवा दय क नीित के िखलाफ थे। शहर क जल िनकासी क सम या के संबंध म भी
उनका वराजवा दय के साथ टकराव था। नई जल िनकासी व था के िलए जो योजना
सरकार ने ायोिजत क थी, उसे अवै ािनक और अनुपयोगी करार देते ए
वराजवा दय ने खा रज कर दया। इस मामले म उ ह नगरपािलका के जल िनकासी
इं जीिनयर दवंगत ओ.जे. िवि क सन तथा जन वा य िनदेशक डॉ. सी.ए. बटले का
समथन ा था, जब क मु य इं जीिनयर जे.आर. को स सरकार क तरफ थे। जल
िनकासी िववाद नगरपािलका और सरकार के बीच लंबे समय तक चलता रहा और
सरकार को जल िनकासी के सवाल पर नगरपािलका क बात को वीकार करने म दस
साल लग गए।44
कलक ा नगरपािलका म वराज पाट के काय से सरकार को इतनी फजीहत नह
उठानी पड़ती, ले कन स ाई यह थी क उस पर कई ओर से दबाव था। भारतीय
िवधानसभा म वराज पाट काफ मजबूत थी और पाट क ओर से महा मा गांधी क
रहाई क माँग करते ए एक ताव का नो टस दया गया। महा मा गांधी 12 जनवरी
को काफ बीमार हो गए थे और उनका ऑपरे शन करना पड़ा। यह खबर देश के एक कोने
से दूसरे कोने तक जंगल क आग क तरह फै ल गई और लोग म एक बेचैनी तथा चंता क
लहर दौड़ गई। इसके चलते जनता उनक रहाई क पुरजोर माँग करने लगी। 5 फरवरी
क सुबह, िजस दन उपरो ताव पेश कया जाना था, महा मा को चुपचाप रहा कर
दया गया। कु छ दन बाद 8 फरवरी को पं. मोतीलाल नेह , जो क असबली म वराज
पाट के नेता थे, उ ह ने एक पूण िज मेदार सरकार क थापना के मकसद से भारत के
िलए एक संिवधान का खाका तैयार करने के िलए गोलमेज स मेलन बुलाने क माँग को
लेकर एक ताव पेश कर दया। ताव म साथ ही माँग क गई थी क नए संिवधान को
एक नविनवािचत भारतीय िवधानमंडल के सम पेश कया जाए और इसे सांिविधक तौर
पर कानून का प देने के िलए ि टश संसद् को स पा जाए। गवनमट ऑफ इं िडया क ओर
से इस ताव का जवाब देते ए सर मै कोम हैली ने वादा कया क वे संिवधान क
आलोचना और उसके िखलाफ िशकायत क जाँच करवाएँगे। य द जाँच के बाद यह पाया
जाता है क अिधिनयम के दायरे के भीतर रहते ए संिवधान म सुधार क संभावना है तो
सरकार को इस संबंध म ि टश कै िबनेट को िसफा रश करने म कोई आपि नह होगी।
ले कन अगर संिवधान म और सुधार के िलए गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट-1919 म संशोधन
करना शािमल आ तो सरकार इस चरण पर कसी काररवाई का वादा नह कर सकती।
यह उ र ब त ही िनराश करनेवाला था और इसका मुँहतोड़ जवाब देते ए असबली ने
कु छ अनुदान माँग को खा रज कर दया और साथ ही पूरे िव िवधेयक को ही पेश करने
क अनुमित देने से इनकार कर दया। इसके चलते िव िवधेयक को वायसराय म िनिहत
मंजूरी दान करने क िवशेष शि य क मदद से पुन: थािपत कया गया।
गोलमेज स मेलन क माँग पर बहस के बाद िन संदभ शत के साथ एक सिमित ग ठत
क गई, िजसम गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट-1919 के कामकाज क खािमय या उससे
उ प सम या क जाँच; ऐसी सम या और खािमय के समाधान क ावहा रकता
और वांछनीयता क जाँच क जाएगी; और साथ ही इसम यह भी शत थी क यह जाँच
अिधिनयम के ढाँच,े नीित और उ े य के अनु प होगी और ऐसा अिधिनयम के तहत
काररवाई के ारा या अिधिनयम म ऐसे िनयम या ऐसे संशोधन के ज रए होगा, जो
कसी भी शासिनक खामी को दु त करने के िलए आव यक तीत होता है। इस सिमित
क अ य ता गृह सद य, सर अले जडर मु ीमैन ारा क गई और इसके सद य म सर
तेज बहादुर स ू (इलाहाबाद), सर िशव वामी अ यर (म ास), एम.ए. िज ा (बॉ बे) और
डॉ. परांजपे (पूना) शािमल थे—ये सभी उदारवादी (नरम दल) राजनेता थे, िज ह ने एक
अ पसं यक रपोट स पी। कु ल िमलाकर सिमित ने यह रपोट दी क संिवधान और िजस
तरह से यह काम कया गया था, उसम गंभीर खािमयाँ थ । ब सं यक सद य , िजनम
अिधकतर अिधकारी शािमल थे, उ ह ने कई छोटे-मोटे सुधार क िसफा रश क , िजससे
संिवधान क काय णाली म मदद िमलेगी। अ पसं यक सद य ने रपोट दी क संिवधान
म इस कार के सुधार से कोई ब त बड़ा मकसद हल नह होगा और संिवधान क
संतोषजनक काय णाली तभी संभव होगी, जब इसम ांत म िज मेदार सरकार पेश
करने के िहसाब से संशोधन कया जाए। इस संबंध म इस बात पर गौर करना होगा क
वराज पाट ने असबली म मु ीमैन सिमित के साथ कसी तरह से सहयोग नह कया
और वराजवा दय के नज रए से सिमित क रपोट पूरी तरह िनराशाजनक थी।
मु य मु को वराज पाट के सद य ारा असबली म ही िनपटाया जा रहा था,
ले कन वराज पाट सभी ांतीय िवधानसभा म अड़चन डालनेवाली रणनीित अपना
रही थी। असबली म बाधा डालने या गितरोध पैदा करने क मुि कल से ही कोई गुंजाइश
थी, य क यहाँ वायसराय अपनी ‘वीटो’ और ‘अनुमोदन’ क िवशेष शि य का
इ तेमाल कर असबली को अनदेखा कर सकते थे। इतना ही नह , स ल गवनमट (क
सरकार) के सभी िवभाग का शासन उन सद य ारा सँभाला जाता था, जो सीधे
वायसराय के पूण िनयं ण म थे और ये न तो असबली के िनवािचत सद य थे और न ही
उ ह असबली ारा मत िवभाजन के मा यम से हटाया जा सकता था। दूसरी ओर, ांत म
िजन िवभाग को ‘ थानांत रत’ िवभाग कहा जाता था, उनका शासन ‘मंि य ’ ारा
सँभाला जाता था, जो क ांतीय िवधानसभा के िनवािचत सद य थे और उस सं था के
मत के अधीन थे—जब क अ य ‘आरि त’ िवभाग क िज मेदारी वतं सद य के हाथ
म थी, जो िवधानसभा के वोट के अधीन नह थे।45 ांतीय िवधानसभा म
वराजवा दय क रणनीित इसिलए मंि य और उनके ‘ थानांत रत’ िवभाग पर हमले
क थी। मंि य का वेतन या तो पूरी तरह खा रज कर दया जाए और ऐसे मामले म कसी
मं ी क िनयुि ही नह हो सकती थी—या फर मंि य को अिव ास ताव के ज रए
बार-बार हटा दया जाएगा, ता क मं ी लंबे समय तक अपने पद पर न रह सक। इसके
साथ ही थानांतरण िवभाग के बजट को नामंजूर कए जाने के यास कए जाते, िजसे
िवशेष शि के मा यम से मंजूरी नह दी जा सकती थी। इस कार के हथकं डे अपनाने से
ांत के गवनर थानांतरण िवभाग के कामकाज को िनलंिबत कर उसका शासन अपने
हाथ म लेने को मजबूर होना पड़ता। इस तरह गवनर उसी कार शासन चलाता, िजस
कार सुधार से पहले के दन म होता था। म य ांत िवधान प रषद् म जहाँ
वराजवा दय को पूण ब मत ा था—िबना कसी परे शानी के पूरा बजट ही उठाकर
फक दया जाता और ऐसा करने से कोई मं ी ही िनयु नह कया जा सकता था। बंगाल
क ि थित कु छ-न-कु छ म य ांत जैसी ही थी। मंि य के वेतन को खा रज कर दया जाता
और उ ह बहाल करने के बार-बार कए जानेवाले यास भी नाकाफ सािबत होते। ऐसे म
मंि य को अपने पद से याग-प देना पड़ता। इस कार म य ांत और बंगाल म
संिवधान क काय णाली के तहत शासन चलाना असंभव हो गया था। ऐसे म जब इन
दोन ांत म ध ै शासन- णाली को परा त कर दया गया तो जनता के उ साह और
जोश क कोई सीमा न थी। इसे वराजवा दय क भारी जीत के प म देखा गया और
इस जीत से देशभर म उ साह क भावना पैदा हो गई। 1920 म कां ेस ने चुनाव का
बिह कार करते ए नए संिवधान को पंगु करने के यास कए थे, ले कन ये यास िवफल
रहे, य क एक भी सीट खाली नह बची थी और अवांिछत लोग िवधाियका म भर गए
थे। 1924 म दूसरी ओर वराजवादी अपनी लड़ाई को िवधाियका के भीतर ले जाकर
संिवधान क कमर तोड़ने म कामयाब हो गए, कम-से-कम कु छ ांत म ही सही।
िलबरल पाट से संबंध रखनेवाले लोग और यहाँ तक क ‘नो चजर’ कां ेस नेता भी कई
बार संवैधािनक अवरोध खड़े करने क वराजवा दय क इस नीित क उपयोिगता को
समझ नह पाते ह। वे तक देते थे क य द मंि य को उनके पद पर बने रहने दया जाएगा
तो वे यादा अ छा काम कर सकते ह, बजाय उस ि थित के क उ ह पद से हटाकर उनके
िवभाग क कमान गवनर और उसके अिधका रय के हाथ म आ जाए। इसके िवरोध म
वराजवा दय का तक था क तीन साल के अनुभव (1920-1923) ने यह दखाया था क
1919 के संिवधान के तहत एक मं ी के काम करने के िलए मुि कल से ही कोई गुंजाइश
बची है। जन सुर ा, याय, जेल, िव आ द अ य मह वपूण िवभाग क कमान
अिधका रय के हाथ म है और इन िवभाग के िलए बजट का आवंटन भी पहले कया
जाता है। बाक जो बचता है, वह मंि य को दया जाता है और यह रािश इतनी कम होती
है क उनके अपने िवभाग के िलए भी पया नह है, यह तो भूल ही जाइए क उससे
उिचत पैमाने पर रा -िनमाण के काय शु कए जा सकगे। इतना ही नह , मंि य के
अधीन कायरत मु य अिधकारी, िजनम उनके सिचव भी शािमल ह, उनके िखलाफ
मं ीगण अनुशासना मक काररवाई नह कर सकते और अपने वेतन तथा भ आ द के
मामले म वे िवधाियका से वतं ह। यही कारण है क वे लोकि य भावना पर काम
नह करते। इन प रि थितय म संिवधान का िनबाध कामकाज देश को कसी भी तरीके से
लाभ दान नह कर सकता—जब क साथक बाधा न के वल सरकार को दबाव म लाती है,
बि क कु ल िमलाकर देश म एक ितरोध क भावना भी िवकिसत करती है। हक कत यह
है क जब वराज पाट के संिवधान का पहली बार माच 1923 म खाका ख चा गया तो
इसक तावना म प प से कहा गया था क वराजवा दय क नीित का ल य
नौकरशाही के ित ितरोध का एक वातावरण तैयार करना था, िजसके िबना सरकार को
लोकि य माँग के िलए जवाबदेह नह बनाया जा सकता।
जब वराजवादी अपनी पहली जीत क खुशी मना रहे थे तो भारतीय मामल के म
सिचव लॉड ऑिलिवयर ने हाउस ऑफ लॉ स म एक जोरदार भाषण दया, िजसम
उ ह ने भारत म वराजवाद के ज म के कारण का िव ेषण कया। उ ह ने जो कारण
िगनाए, उनम सबसे पहला कारण हाउस ऑफ लॉ स ारा जिलयाँवाला बाग नरसंहार
क गाथा िलखनेवाले जनरल डायर के समथन म ताव पा रत करना था; दूसरा कारण,
धानमं ी लॉयड जॉज ारा 1922 म दया गया ‘ टील े म भाषण’, िजसम इं िडयन
िसिवल स वस क तारीफ क गई थी; तीसरा, 1923 म भारी जनिवरोध और इं िडयन
लेिज ले टव असबली के ितकू ल वोट के बावजूद गवनमट ऑफ इं िडया ारा नमक कर
को दोगुना करना; और चौथा, अ का म के या क ाउन कॉलोनी म भारतीय के साथ
कया गया अ याय। भारत म फै ली अशांित और उसके चलते वराज पाट के ज म के
कारण के इस समझदारी और सहानुभूितपूण िव ेषण ने यह दरशाया क कम-से-कम एक
बार ही सही, लंदन म इं िडया ऑ फस भारत म जन भावना और जनमत क सराहना
करने म स म आ था। इसिलए इस बात का प ा ाप होता है क इस सहमित पर
उिचत काररवाई नह क गई।
देशबंधु िवधाियका, नगरपािलका और अ य मंच पर अपनी गितिविधय से संतु नह
ए थे और उ ह ने उस समय एक और मह वपूण आंदोलन शु कर दया—ताराके र
स या ह आंदोलन। कलक ा से कु छ दूर एक जगह है तारके र, जहाँ ‘बाबा तारकनाथ’
या ‘िशव’ का एक पुराना मं दर है। बाक दूसरे पिव मं दर क तरह इस मं दर के पास
भी काफ संपि थी, जो मं दर क देखरे ख पर खच होती थी। हंद ू परं परा के अनुसार,
वहाँ एक सं यासी था, िजसे ‘महंत’ कहा जाता है। वह मं दर तथा उससे संब संपि का
भारी था। हालाँ क महंत से एक संयमी और पिव जीवन जीने क उ मीद क जाती है,
ले कन तारके र मं दर के महंत के िखलाफ उनके च र और साथ ही मं दर क धमाथ
संपि के बंधन को लेकर भी आरोप थे। चूँ क तारके र बंगाल म सवािधक लोकि य
धा मक थल म से एक है और हर साल ांत के सभी िह स से बड़ी सं या म लोग यहाँ
आते ह, इसिलए महंत के िखलाफ लगे आरोप के बारे म सबको जानकारी थी। पंजाब म
अकाली आंदोलन क सफलता के बाद बंगाल कां ेस सिमित पर भी तारके र म इसी
कार का आंदोलन शु करने का दबाव बढ़ने लगा। महंत को नो टस भेजकर उनसे अपने
आचरण म सुधार करने को कहा गया, ले कन चूँ क ऐसे यास का कोई नतीजा नह
िनकला तो अ ैल 1924 म देशबंधु ने मं दर तथा उससे जुड़ी संपि के शांितपूण अिध हण
के िलए एक आंदोलन शु कया, िजसम उनका ल य मं दर तथा उसक संपि को एक
लोक सिमित के शासन के अधीन लाना था। महंत ने सरकार से मदद क अपील क और
जैसे-जैसे वयंसेवक ने मं दर और महंत के महल क ओर बढ़ना शु कया, पुिलस
प रदृ य म उभर आई। सामा य स या ह के समान ही वहाँ तारके र म ि थितयाँ पैदा हो
ग —शांितपूण वयंसेवक एक दशा से बढ़ रहे थे तो पुिलस दूसरी दशा से उन पर
िनममतापूवक हमला करने के साथ ही बीच-बीच म लोग को िगर तार भी कर रही थी।
सरकार के ह त ेप के चलते इस मु े ने राजनीितक प ले िलया। एक बार फर से, जनता
के सम एक उदाहरण पेश करने के िलए, देशबंधु ने अपने बेटे को जेल भेज दया। कु छ ही
समय के भीतर आंदोलन अ यंत लोकि य हो गया और उसका ांत के हर कोने म वागत
कया गया।46
मई 1924 म िसराजगंज नामक थान पर बंगाल कां ेस नेता क सालाना सभा ई,
िजसे ‘ ांतीय कॉ स’ कहा जाता है। इससे पूव हंद ु और मुसिलम के बीच धा मक
और साथ ही राजनीितक सवाल को लेकर एक समझौता तैयार कया गया था, ले कन
दसंबर 1923 म कोकोनाडा कां ेस म इसे इस आधार पर खा रज कर दया गया क इसम
मुसिलम का अिधक प िलया गया है। इस समझौते को, िजसे ‘बंगाल समझौते’ के नाम
से जाना जाता है—इसे पुि के िलए िसराजगंज कॉ स के सामने रखा गया। इस समझौते
पर ब त ही गरमागरम बहस ई और देशबंधु के राजनीितक िवरोिधय के साथ ही कु छ
ित यावादी हंद ु ने भी िमलकर इसका कड़ा िवरोध कया। ले कन नेता के अ यिधक
भाव वण और वा पटु ता से प रपूण भाषण के सामने िवरोिधय के पैर उखड़ गए और
भारी ब मत से ‘बंगाल पै ट’ (समझौते) को पा रत कर दया गया। इसके बाद एक अ य
ताव पर चचा ई और उसे भी पा रत कर दया गया। यह ताव आनेवाले दन म
मधुम खी के छ े म हाथ डालनेवाला िस होने जा रहा था। यह था गोपीनाथ साहा
ताव। कु छ महीने पहले एक युवा छा , गोपीनाथ साहा ने कलक ा के पुिलस किम र
सर चा स टेगाट क ह या करने क कोिशश क थी। ले कन गलत पहचान के कारण उसने
एक अ य अं ेज डे क गोली मारकर ह या कर दी। कलक ा हाईकोट म मामले क
सुनवाई के दौरान साहा ने एक ऐसा बयान दया, िजससे सनसनी फै ल गई। साहा ने बयान
दया क उसक मंशा सही मायने म ही पुिलस किम र क ह या करने क थी। उसने
गलत आदमी क ह या करने के िलए पूरी गंभीरता के साथ दु:ख जताया। अपने जीवन का
बिलदान देकर वह खुश था और उसे उ मीद थी क उसके र क एक-एक बूँद हर
भारतीय घर म आजादी के बीज बोएगी। साहा को हाईकोट ने मौत क सजा सुनाई और
उसे फाँसी दे दी गई। ले कन इस घटना के बाद बंगाल म कई बैठक म उसके साहस और
बिलदान क भावना क सराहना करते ए ताव पा रत कए गए। हालाँ क उसक
काररवाई क नंदा क गई। इसी कार का एक ताव िसराजगंज कॉ स म सवस मित
से पा रत कया गया और इससे सरकार ब त िबफर गई।
बंगाल म इस कार क उ ेजक घटनाएँ हो रही थ तो अ य जगह पर भी रोचक
घटना म आकार ले रहा था। जैसा क हम पहले ही देख चुके ह क महा मा गांधी को 5
फरवरी को रहा कर दया गया था। वे आराम करने और हवा-पानी बदलने के िलए बॉ बे
के समीप समु कनारे ि थत एक रजॉट म चले गए। कु छ स ाह बाद वे फर से
सावजिनक मामल म िच लेने लायक हो गए थे और धीरे -धीरे उनक सामा य
गितिविधयाँ शु हो ग । ऐसी अटकलबाजी भी शु हो गई क वराज पाट के संबंध म
गांधी या ख अपनाएँगे? सै ांितक प से िनि त ही वे ‘काउं िसल म वेश’ क
वराजवादी नीित के स त िखलाफ थे। इसके बावजूद उ ह ने श ुतापूण रवैया नह
अपनाया। इसका यह भी कारण हो सकता है क उ ह ने देख िलया था क देश म
वराजवा दय क ि थित इतनी अिधक मजबूत थी क उ ह बाहर नह फका जा सकता
था और इसिलए वे हालात के आगे झुक गए, या फर संभवत: उ ह ने यह महसूस कया
क देश म बदले ए हालात रणनीित म भी बदलाव क माँग कर रहे थे। कारण जो भी हो,
उ ह ने वराजवादी नेता देशबंधु दास और पं. मोतीलाल नेह से मुलाकात क और
उनके साथ एक सहमित पर प च ँ ।े इस समझौते को ‘गांधी-दास समझौते’ के प म जाना
जाता है, िजसके तहत यह सहमित बनी क गांधी वयं को खादी अिभयान को सम पत
करगे, जब क दास राजनीितक अिभयान के सवसवा रहगे। कां ेस या वराज पाट के
कसी ह त ेप के िबना अपने काम को आगे बढ़ाने के िलए महा मा को अब ‘अिखल
भारतीय सूत कताई संघ’ नामक एक वाय संगठन क थापना क शि ा थी। इस
संघ का अपना अलग कोष और अपना सिचवालय बनाया जाना था।
दूसरी ओर वराज पाट भी अपने वाय िनकाय का कामकाज कां ेस के ह त ेप के
िबना चलानेवाली थी और उसका भी अपना सिचवालय होना था।47 इस कार महा मा
और वराज पाट के बीच आ समझौता समय-समय पर महा मा ारा दए गए
सौहादपूण बयान के चलते दो ती म बदल गया। उदाहरण के िलए, एक अवसर पर
उ ह ने अपने िचर-प रिचत अंदाज म कहा था, ‘मेरा राजनीितक अंत:करण
वराजवा दय के वश म है।’ बताया जाता है क एक अ य अवसर पर उ ह ने ट पणी क
थी—‘म वराजवा दय से उसी तरह िचपक जाऊँगा, जैसे एक िशशु अपनी माँ से िचपका
रहता है।’
वराज पाट के साथ अपनी समझ के ज रए कां ेस खेमे के भीतर शांित थािपत करने
के बाद महा मा ने एक अ य बड़ी सम या पर यान देना शु कया। 1923 से ही भारत के
िविभ िह स म हंद-ू मुसिलम मतभेद पैदा हो रहे थे और महा मा गांधी के पास इतनी
दूरदृि थी क उ ह ने इसे भाँप िलया था क अगर इस बुराई को शु आत म ही समा
नह कया गया तो ज द ही यह बढ़कर रा ीय आपदा का प ले लेगी। वराजवा दय का
अिभयान जोर पर था और इसके रहते सां दाियक कहर टू टने क आशंका न के बराबर
थी, य क इसे हंद ू और मुसिलम दोन का समथन ा था, ले कन जैसे ही यह अिभयान
ठं डा पड़ेगा तो िनि त ही शैतान अपना िसर उठा लेगा। इसिलए िसतंबर 1924 म उनके
कहने पर द ली म एकजुटता स मेलन का आयोजन कया गया। स मेलन म बड़ी सं या म
लोग ने भाग िलया, यहाँ तक क एंजिलकन मे ोपोिलटन ऑफ इं िडया तथा ि टशस इन
इं िडया के ितिनिध भी इसम शािमल ए। इस स मेलन के समय महा मा ने िविभ
समुदाय के सद य ारा कए गए ऐसे गलत काय , िजससे भारत म अंतर-सां दाियक
शांित बािधत ई थी, उनके वघोिषत ायि के िलए तीन स ाह का उपवास शु
कया। स मेलन सफल रहा। भारत म िविभ समुदाय के बीच एकता को ो सािहत
करने के िलए एक फॉमूला तैयार कया गया और एक 15 सद यीय समाधान मंडल क
थापना क गई, िजसका काम जहाँ कह भी सां दाियक तनाव पैदा होने पर वहाँ जाकर
उसम ह त ेप करना था। एकता स मेलन क सफलता के बावजूद इसके ावहा रक
प रणाम ा नह ए। माच 1924 म मु तफा कमाल पाशा ने अभूतपूव कदम उठाते ए
िखलाफत को ही ख म कर दया।
िखलाफत आंदोलन के िलए समथन जुटाने क इ छा से जो मुसिलम भारतीय रा ीय
कां ेस से जुड़े थे, अब उनक कां ेस से िम वत् रहने क कोई इ छा नह रही थी। वयं
िखलाफत कमे टयाँ देश के अिधकतर िह स म अि त व खो बैठी थ और ऐसे संगठन के
कभी सद य रहे ब त से लोग कु कु रमु क तरह उगे ित यावादी संगठन से जुड़ गए
थे। इस समय तक ऑल इं िडया मुसिलम लीग फर से उठ खड़ी ई। 1920 तक यह भारत
म मुसिलम के िलए एक मुख संगठन रहा था। उसके बाद ऑल इं िडया िखलाफत कमेटी
ने इसका थान ले िलया था और भारतीय मुसिलम समुदाय के अिधकतर स य सद य
को अपनी ओर ख चने म यह सफल रही थी। खुद तुक ने जब िखलाफत को ख म कर दया
तो इससे भारत म िखलाफत कमे टय पर तगड़ी चोट पड़ी और इसने परो प से ऑल
इं िडया मुसिलम लीग को फर से खुद को थािपत करने म मदद क । दसंबर 1924 म जब
ऑल इं िडया मुसिलम लीग एक बार फर से िमली तो 1920 के बाद से पहली बार
िखलाफितय क हार ई। पुनज िवत ऑल इं िडया मुसिलम लीग, जैसा क हम बाद म
देखगे, 1920 के मुकाबले अब कह अिधक सां दाियक और ित यावादी हो चुक थी।
1924 आधा बीतते-बीतते मामला फर से िबगड़ने लगा। िनि त प से यह संकट अपने
च र को लेकर 1921-22 के संकट से अलग था। सरकार चार ओर से दबाव महसूस कर
रही थी। न के वल बंगाल, बि क पूरे देश म थानीय िनकाय (नगरपािलका, िजला बोड
आ द) रा वा दय के िनयं ण म आ रहे थे और यह दबाव इतना अिधक था क सरकारी
ताकत और भाव समा हो रहा था। सभी िवधानसभा म कड़ा संघष था और दो ांत ,
म य ांत तथा बंगाल म नए संिवधान पर कामकाज बुरी तरह बािधत था। बंगाल म,
तारके र स या ह, जो क भले ही मं दर शासन म सुधार के आंदोलन के प म शु
आ था, ले कन यह ज द ही राजनीितक आंदोलन म बदल गया और धीरे -धीरे इसने
गंभीर प धारण कर िलया। और इस सबके ऊपर सरकार के अनुसार, ांितकारी
गितिविध क एक मजबूत लहर दौड़ रही थी और सरकार िवशेष प से उन ताव से
िचढ़ी ई थी, जो ांितकारी गोपीनाथ साहा क सराहना से भरे ए थे। हालाँ क यह
सराहना सशत कृ ित क थी।
अग त म जब वराज पाट का भाव अपने शीष पर था तो पाट क सालाना बैठक
कलक ा म ई। िविभ ांत के नेता इस मौके पर मौजूद थे। नेता क भारी उपि थित
के साथ ही उ साह भी खूब था। सरकार के िलए यही काररवाई करने का संकेत था। िपछले
12 महीन म, वे खाली नह बैठे थे और करीब से घटना म पर नजर रखे ए थे। िसतंबर
1923 म द ली कां ेस के तुरंत बाद से वराज पाट क बंगाल इकाई से संबंध रखनेवाले
कई कां ेसी कायकता को अचानक िगर तार कर, एक पुराने कानून, िजसे ‘1818 का
रे युलेशन III’ कहा जाता है, उसके तहत िबना सुनवाई के जेल म डाल दया गया था। उस
समय सरकार ने यह प ीकरण दया था क ांितकारी आंदोलन फर से अपना िसर उठा
रहा है और इसिलए तुरंत उ ह दबाने के िलए काररवाई करना ज री था। हालाँ क इन
िगर ता रय पर उस समय काफ रोष पैदा आ था, ले कन इसके बाद कोई और घटना
नह ई और उ साह धीरे -धीरे ठं डा पड़ गया। एक साल बाद, सरकार ने वही चाल फर से
चलने का फै सला कया। उ ह समझ नह आ रहा था क दूसरे कस उपाय से वराज पाट
को दबाया जाए? तारके र स या ह मामले और इसी कार के अ य मामल को छोड़कर
पाट क गितिविधयाँ कानून के दायरे म संचािलत क गई थ । ले कन वे सरकार के िलए
भारी श मदगी का कारण थ ; इतना ही नह , सरकार वराजवा दय के िखलाफ कोई
कानूनी काररवाई भी नह कर सकती थी। तारके र स या ह आंदोलन को दबाने के सभी
यास न के वल िवफल रहे थे, बि क उलटे इससे जनता का उ साह और बढ़ गया था।
गहरी हताशा म सरकार ने इसिलए संगठन क जड़ पर हमला करने का फै सला कया
और चूँ क ऐसा करना कानून क अदालत म सुनवाई के मा यम से संभव नह था तो
उ ह ने वराज पाट के कु छ मुख संगठनकता को िबना सुनवाई के जेल म बंद करने क
ठान ली। 25 अ ू बर, 1924 को तड़के मुँह अँधेरे उ ह ने कलक ा तथा बंगाल के अ य
िह स म बड़ी सं या म कां ेसी नेता क धरपकड़ शु कर दी। ये िगर ता रयाँ आंिशक
प से 1818 के रे युलेशन III और आंिशक प से एक आपात अ यादेश (बंगाल अ यादेश)
के तहत क ग , िजसे वायसराय ने 24 अ ू बर क आधी रात को लागू कया था।
यह अ यादेश बंगाल सरकार को उसी कार िगर तारी तथा जेल म डालने क शि याँ
दान करता है, िजस कार 1818 का रे युलेशन III गवनमट ऑफ इं िडया को यह
अिधकार देता है; और अ यादेश बंगाल म लोग को िगर तार करने एवं िबना सुनवाई के
उ ह जेल म डालने म बंगाल सरकार क मदद करने के िलए जारी कया गया था।
िगर तार कए गए बंगाल लेिज ले टव काउं िसल के दो मुख सद य म अिनल बरन रॉय
और एस.सी. िम ा48 और म वयं था। कु छ वारं ट, जैसा क हम तीन के मामले म था,
रे युलेशन के तहत, जब क दूसरे लोग के मामले म वारं ट नए लागू कए गए बंगाल
अ यादेश के तहत जारी कए गए थे। रे युलेशन के तहत वारं ट पर जुलाई के आिखरी दन
के ह ता र थे। यह उसके एक दन बाद क बात है, िजस दन सरकार मंि य को पद पर
बनाए रखने और ध ै संिवधान पर काम करने के अपने यास म आिखरकार हार गई थी।
अभी तक यह नह बताया गया है क वारं ट करीब तीन महीने तक य नह तामील कए
गए। आमतौर पर अनुमान यह लगाया जाता है क बंगाल सरकार बड़ी सं या म
िगर ता रयाँ करने क मंजूरी िमलने तथा बंगाल अ यादेश के लागू होने का इं तजार कर
रही थी। इससे भी कह यादा, पूरा मामला भारत के म सिचव/मं ी लॉड ऑिलवर के
सम पेश करना ज री था। इसिलए इतनी देर तो लगनी ही थी। इन िगर ता रय के
उ े य के संबंध म उस समय जनता क राय यह थी क थानीय िनकाय (खासतौर से
कलक ा नगरपािलका), िवधानसभा और तारके र मामले म वराजवा दय के दबाव से
सरकार सकते म आ गई थी। और के वल बंगाल म काररवाई करने के पीछे का कारण यह
था क सरकार िवरोधी ताकत उस ांत म सबसे यादा मजबूत थ ।
25 अ ू बर को इतनी बड़ी सं या म ये िगर ता रयाँ अचानक और असंभािवत तरीके से
ऐसे क ग क इससे देशभर म भावना का वार उफनने लगा। सरकारी हलक म यह
बहाना बनाया गया क ांितकारी सािजश रची जा रही थी और कोई भी गंभीर घटना
होने से पूव िगर ता रयाँ करना ज री हो गया था। ले कन जनता को यह समझाना
मुि कल था क जो िगर तार कए गए थे, वे एक ांितकारी सािजश म शािमल थे।
िगर ता रय के िखलाफ जनता का आ ोश लगातार जारी रहा और मजबूत होता रहा।
और इन िगर ता रय के एक महीने बाद, सरकार मेरी रहाई के बारे म गंभीरता से
सोचने लगी। ले कन इसम पुिलस क ित ा आड़े आ रही थी, िजसक िबनाह पर
िगर ता रयाँ क गई थ और इसिलए ताव को दर कनार करना पड़ा। मेरी िगर तारी
को लेकर उस समय रोष सबसे अिधक था, य क जनता सोच रही थी क सरकार का
मकसद नए िनगम म वराजवा दय के शासन पर हमला करना था। अ यिधक वफादार
नेता समेत हर कोई जानता था क म दन-रात नगरपािलका के अपने कत के
िनवहन म जुटा आ था और कलक ा िनगम का मु य कायकारी अिधकारी िनयु कए
जाने के दन से ही राजनीित को मजबूरन मुझे छोड़ना पड़ा था। इसिलए सरकारी और
अध-सरकारी दायरे म ऐसा कोई बहाना जनता के सम पेश करने को नह िमल रहा था,
जो इन िगर ता रय का कोई औिच य समझा सके । कलक ा के आं ल-भारतीय समाचार-
प ‘दी टे समैन’ और ‘दी इं गिलशमैन’ (अब बंद हो चुका है) ने इस संबंध म बयान
कािशत कए क ांितकारी सािजश के पीछे मेरा दमाग था। मेरे वक ल ने तुरंत दोन
समाचार-प के िखलाफ मानहािन क कानूनी काररवाई शु कर दी। काररवाई कई
महीन तक चली और इस बीच म सरकार के प म ेस म मेरे िखलाफ लगाए गए
आरोप को मजबूती दान करने हेतु सबूत तलाशने के िलए मुकदमे म सरकार क मदद
लेने के यास कए गए। चूँ क सरकार मामले म मदद करने के िलए तैयार नह ई, तो
लंदन म इं िडया ऑ फस से सहायता लेने के यास कए गए। उस समय तक इं लड म
कै िबनेट म बदलाव हो चुका था। अ ू बर म आम चुनाव ए और िजनोिवएफ के प से
पैदा ए भय के प रणाम व प कं जरवे टव पाट के प म जबरद त मतदान आ। चुनाव
म लेबर पाट क हार के बाद भारत के म सिचव/मं ी लॉड ऑिलवर को कं जरवे टव
िवदेश सिचव/मं ी लॉड बक हेड के िलए पद खाली करना पड़ा। हालाँ क इं िडया ऑ फस
आं ल-भारतीय समाचार-प के िखलाफ मानहािन के मुकदमे म उनक मदद करना
चाहता था, ले कन वे ांितकारी सािजश म मेरी संिल ता के संबंध म कोई द तावेजी
सबूत हािसल करने म नाकाम थे। कलक ा म वराजवा दय के समाचार-प ‘फॉरवड’
को संयोगवश इस संबंध म लंदन से कलक ा को िलखा गया एक प हाथ लग गया और
उसने इसे कािशत कर दया। इस प म िलखा गया था क इं िडया ऑ फस के एक एजट
ने ऐसा कहा है क मेरे िखलाफ कु छ लोग ारा दी गई मौिखक गवाही के आधार पर मुझे
िगर तार कया गया था। इस प के काशन से सरकार क और कर करी ई।
भारत म देशबंधु से अिधक कसी ने इन अ याचार को महसूस नह कया था। कलक ा
िनगम के मेयर क हैिसयत से दए गए एक शानदार भाषण म उ ह ने उस गहरे आ ोश
को कट कया, िजसने उस समय जनता को िहला दया था। उ ह ने मु य कायकारी
अिधकारी ारा कए गए काय क पूण िज मेदारी वीकार क और सरकार को अपनी
िगर तारी क चुनौती दी। सरकार ने चुनौती वीकार नह क , बि क इसका अलग तरीके
से जवाब दया। उ ह ने पूरे भारतीय सवाल को सुलझाने के िलए उनके साथ सुलह
समझौता या शु क । उस समय महा मा गांधी राजनीितक प से पीछे थे। उ ह ने
वयं को खादी अिभयान तक सीिमत कर िलया था, राजनीितक आंदोलन से कनारा कर
िलया था, जो वराजवादी नेता के िनयं ण म था। दसंबर 1921 म ई सुलह समझौता
वा ा क याद ने सरकार के दमाग पर यह भाव छोड़ा था क य द मु य मु को
ईमानदारी और गंभीरतापूवक सुलझाया जाए तो देशबंधु के साथ एक सहमित पर प च ँ ना
संभव है। लॉड िलटन िनजी प से देशबंधु का ब त आदर करते थे और उस समय बंगाल
के गवनर से अिधक कसी अ य ि ने लोकि य आंदोलन के दबाव को महसूस नह
कया था। उन दन म कां ेस के साथ कसी मामले को सुलझाने का मतलब था क मु े
को देशबंधु सी.आर. दास के साथ सुलझाया जाए। इसिलए बंगाल के गवनर लॉड िलटन
और देशबंधु के बीच कु छ महीन तक सुलह समझौता वा ा चलती रही, िजसक बाहरी
दुिनया को कोई खबर नह थी।
अपनी चतुर राजनीितक समझ का इ तेमाल करते ए देशबंधु ने अ ू बर 1924 क
िगर तारी से पैदा जना ोश का इ तेमाल करने क सोची। उ ह ने तुरंत रा ीय पुन नमाण
के िलए एक कोष क अपील क । देश के आ थक हालात अनुकूल नह थे और कई लोग ने
सोचा क अपील पर जवाब िनराशाजनक होगा। ले कन नेता बेहतर जानते थे। ितकू ल
भिव यवािणय के बावजूद, उ ह ब त अ छी ित या िमली और यह उनके ित जनता
के िव ास का एक और सबूत था। साल के आिखर म, बॉ बे ेसीडसी के बेलगाँव म कां ेस
के सालाना स का आयोजन आ। कां ेस क अ य ता महा मा गांधी ने क और यह
आिखरी कां ेस थी, िजसम देशबंधु शािमल ए थे। बैठक क काररवाइय म महा मा और
वराजवा दय के बीच अ यंत सौहादपूण माहौल रहा। अगले साल के िलए वीकार कए
गए मु य काय म घर म चरखा कातने और घर म बुनाई काय म का िव तार करना
शािमल था। कां ेस का हर सद य इस काय म के तहत अपनी सद यता के िलए एक तय
मा ा म सूत कातकर स होता था। बेलगाम कां ेस क एकमा अ य मह वपूण घटना
ीमती एनी बेसट ारा अपने ‘कॉमनवे थ ऑफ इं िडया िबल’ क कां ेस ारा पुि
करवाने का यास था। यह िबल भारत को होम ल दान करनेवाला था और इसे उ ह ने
वयं तैयार कया था। एनी बेसट क मंशा इसे िनजी िवधेयक के प म ि टश संसद् म
पेश करने क थी। उनका यह मानना था क य द कां ेस उनके पसंदीदा िवधेयक पर अपनी
मंजूरी क मोहर लगा देगी तो इससे उनके हाथ मजबूत हो जाएँगे। ले कन कसी भी
कां ेसी नेता ने उनक बात पर यान नह दया और इसिलए वे बेलगाम कां ेस से
िनराश होकर लौट ।
साल 1925 का जब आगाज आ तो राजनीितक हालात म कोई बदलाव नह था।
देशबंधु दास स ा म बने ए थे। 1925 के पूवाध म बंगाल म सरकार और वराजवा दय
के बीच एक और शि परी ण आ। गवनर जनरल ने अ ू बर 1924 म जो अ यादेश
लागू कया था तथा जो बंगाल गवनर को संि िगर तारी और िबना सुनवाई के जेल म
बंद करने क शि याँ दान करता था, उसक अविध अ ैल 1925 म समा होनेवाली
थी। इसके बाद अगर बंगाल सरकार उन शि य को बनाए रखने क इ छु क थी तो उसे
इससे संबंिधत िवधेयक बंगाल लेिज ले टव काउं िसल म पेश करना था, इसिलए िविधवत्
प से एक िवधेयक पेश कया गया और सरकार ने इसे कानून बनवाने के िलए अपनी पूरी
ताकत झ क दी। लेिज ले टव काउं िसल म वराजवादी चूँ क अ पमत म थे तो सरकार को
उ मीद थी क वह िवधेयक को पा रत करा लेगी। देशबंधु उस समय पटना म आराम कर
रहे थे, य क वे मानिसक प से भारी अवसाद, बेचैनी और तनाव क ि थित से गुजर
रहे थे। ले कन अपने खराब वा य के बावजूद, उ ह ने ि गत प से सरकार को
पटखनी देने का मजबूत इरादा कर िलया था। िनयत दवस पर वे सही समय पर काउं िसल
हॉल म प च ँ ।े उस दन क जीत का सेहरा उनके िसर पर बँधा। िवधेयक को उठाकर फक
दया गया, ले कन संिवधान के तहत गवनर को द अभूतपूव शि य क बदौलत
गवनर िवधेयक को कानून का प देने म स म थे।
इस घटना के तुरंत बाद बंगाल के कां ेसी नेता क एक सालाना बैठक फरीदपुर म
बुलाई गई और देश के गंभीर हालात के म ेनजर देशबंधु दास को अ य चुना गया।
तमाम िच क सा सलाह के िवपरीत वे वहाँ जाने और प रचचा क अ य ता करने पर
अड़े थे। लोग को उस समय समझ नह आया क उ ह ने बैठक म भाग लेने क िजद य
ठान ली थी? अगर वे ेस बयान म भी कु छ कह देते तो उनक बात ब त वजनदार होती
थी और उस पर पूरा यान दया जाता था। ले कन उनके वहाँ जाने के पीछे का असली
कारण यह था क उ ह सरकार के फायदे के िलए अपनी माँग को लेकर एक संकेत देना
पड़ा। इतना ही नह , वे सरकार को यह दखाना चाहते थे क उनके िवचार कां ेस
द गज को वीकाय थे, ता क सरकार को यह महसूस हो क कसी समझौते क ि थित म
प च ँ ने पर देशबंधु काम करके दखाने क ि थित म ह। उस समय सरकार बंगाल ांतीय
कॉ स को ब त मह व देती थी, य क बंगाल तूफान का क था और वहाँ भारतीय
रा ीय कां ेस के कु छ सवािधक क र त व मौजूद थे। इसिलए बंगाल म कोई ताव
पा रत हो जाता है तो बाक जगह पर भी कां ेस नेता ारा उसे वीकृ त कए जाने क
अिधक संभावना रहती थी। देशबंधु दास ने भाषण दया, जो बंगाल के ोता के िहसाब
से काफ उदार क म का था। उ ह ने डोिमिनयन टेटस बनाम वतं ता के सवाल पर
कां ेस के ल य के प म िवचार-िवमश कया और ऐलान कर दया क वे पहले के प म
ह। इसके अलावा, उ ह ने आतंकवाद क नंदा क । उनका भाषण कु ल िमलाकर सरकार के
साथ ही भारतीय के बीच अिधक चरमपंथी त व से एक अपील था क वे समझौतावादी
ख अपनाएँ, ता क कसी समझौते क जमीन तैयार क जा सके । हालाँ क उनका यह
भाषण ोता म मौजूद युवावग के गले नह उतरा और ऐसी संभावना थी क जब
मामले को मत िवभाजन के िलए पेश कया जाएगा तो देशबंधु क हार होगी। ले कन उस
समय उनका ि गत भाव इतना अिधक था और ल य के ित उनक ईमानदारी म
इतनी पारद शता थी क सभा म उनका जयघोष होने लगा। फरीदपुर कॉ स म िवचार-
िवमश कु ल िमलाकर शासन के िलए संतोषजनक रहा, िजनके साथ देशबंधु वा ा म
शािमल थे।
इसके त प ात् लॉड री डंग भारत से लंदन के िलए रवाना हो गए, य क कं जरवे टव
कै िबनेट और भारतीय मामल के िवदेश सिचव लॉड िबरके नहेड उनसे सलाह-मशिवरा
करना चाहते थे। तब तक हवा म यह बात फै ल चुक थी क देशबंधु दास और सरकार के
बीच वा ा चल रही है, हालाँ क शायद ही कसी को इसके योरे क जानकारी थी। इस
बीच घोषणा क गई क लॉड री डंग के साथ मशिवरे के बाद लॉड िबरके नहेड भारत के
संबंध म कोई मह वपूण बयान दगे। भारत म हर कोई उनके भाषण का बड़ी ही उ सुकता
और दलच पी के साथ इं तजार कर रहा था, तभी अचानक एक जोर का झटका लगा।
जून 1925, जब देशबंधु दास बंगाल सरकार क गरिमय क राजधानी दाज लंग म
आराम कर रहे थे तो वे गंभीर प से बीमार पड़ गए... दल का मामूली सा दौरा पड़ा और
यकायक वे चल बसे। पूरा देश गहरे शोक म डू ब गया। देश म िजस समय शोक-सभाएँ और
मृित-सभाएँ हो रही थ , लंदन म ि टश कै िबनेट फै सला कर चुक थी क उसे या करना
चािहए! उनका परम श ु अब ख म हो चुका था; इसिलए चीज अभी कु छ समय के िलए
तो शांत रहनी ही थ । इसी के अनुसार, वे ज दबाजी म कोई फै सला नह करना चाहते थे,
बि क वे घटना म पर नजर रखने का फै सला कर चुके थे। ले कन यह उ ोषणा तो पहले
ही क जा चुक थी क लॉड िबरके नहेड 7 जुलाई, 1925 को भारत के संबंध म कोई
मह वपूण बयान देनेवाले ह। इसिलए कै िबनेट क ओर से बड़ी ही सावधानीपूवक तैयार
कए गए बयान को पूरी तरह दबा देना पड़ा और उसके थान पर लॉड िबरके नहेड ने
पूवघोिषत तारीख पर एक बेजान-सा भाषण दया। सामा य बात के अलावा उ ह ने
के वल लॉड री डंग क भारत क सम या के समाधान संबंधी योजना को ही
दोहराया।
16 जून, 1925 को देशबंधु दास का िनधन भारत के िलए एक रा ीय आपदा था, यह
भूकंप का एक बड़ा झटका था। हालाँ क उनका स य राजनीितक जीवन मुि कल से पाँच
साल का रहा था, ले कन इसी अविध म उनका उ कष अभूतपूव था। एक वै णव भ के
चोले को अचानक यागकर, वे स े दय और स ी आ मा के साथ राजनीितक आंदोलन म
कू द पड़े थे और न के वल उ ह ने इस आंदोलन म वयं क आ ित दी थी, बि क अपना
सव व वराज क लड़ाई म झ क दया था। जब उ ह ने अंितम साँस ली तो उनके पास
उस समय जो भी सांसा रक संपि शेष थी, उसे वे रा के िलए छोड़ गए थे। सरकार उनसे
डरती थी और उ ह सराहती भी थी। सरकार उनक मजबूती से आशं कत रहती थी,
ले कन उनके च र क सराहना करती थी। वह जानती थी क यह इनसान अपनी बात का
प ा था। उसे यह भी पता था क भले ही देशबंधु दास एक स त लड़ाके थे, ले कन वे एक
व छ सेनानी भी थे। इतना ही नह , वे एक ऐसे इनसान थे, िजनके साथ सरकार कसी
समझौते के िलए सौदा कर सकती थी। उनक सोच एकदम प , राजनीितक सूझ-बूझ
बेहद सुदढ़ृ और संघष िन कपट था। महा मा के िवपरीत, वे इस मामले म पूरी तरह सचेत
थे क भारतीय राजनीित म उ ह या भूिमका िनभानी है! कसी अ य के मुकाबले वे
जानते थे क श ु से राजनीितक स ा छीनने के िलए अनुकूल प रि थितयाँ हमेशा नह
िमलती ह और जब िमलती ह तो यादा समय नह रहती ह। इसिलए जब तक संकट है,
सौदा तभी करना होगा। उ ह यह भी पता था क कसी समझौते को समथन देना और वह
भी ऐसे समय म जब जनता का उ साह अपने चरम पर हो, तो ब त अिधक साहस क
ज रत होती है और इस फै सले म कु छ हद तक अपनी लोकि यता भी दाँव पर लग सकती
है। ले कन िनडरता के िसवाय उनके पास कु छ नह था। उ ह अपनी सटीक भूिमका मालूम
थी, िजसे ावहा रक राजनेता कहा जाता है और इसिलए वे कभी भी अलोकि य होने से
नह डरे ।
देशबंधु के िवपरीत, महा मा क भूिमका प नह रही थी। कई मायन म वे कु ल
िमलाकर आदशवादी और वहार-शू य थे, ले कन अ य मामल म वे चतुर राजनीित
थे। कई बार वे कसी क रपंथी क तरह हठधम हो जाते और कु छ मामल म एक बालक
क तरह समपण कर देत।े राजनीितक सौदेबाजी के िलए जो सहज ान या अंत: ेरणा
और प रि थितय को तौलने क जो गहरी समझ ज री होती है, उन सबका उनम अभाव
था। जब सौदेबाजी का असली मौका है तो वे 1921 क तरह छोटी-छोटी चीज पर अड़
जाते ह और सौदेबाजी के सारे मौके गँवा देते ह। जब भी उ ह सौदेबाजी के िलए जाना
होता है तो वे लेने के बजाय दे यादा बैठते ह, जैसा क हम 1931 म देखगे। कु ल िमलाकर
कू टनीित म एक चतुर ि टश राजनीित के मुकाबले वे कह नह ठहरते थे।
देशबंधु दास के िनधन के बाद, महा मा ने कई महीने बंगाल म िबताए और दवंगत नेता
के स मान म एक मृित कोष के िलए धन जुटाने तथा उनके न रहने पर कां ेस मशीनरी
को पुनग ठत करने म मदद करते रहे। हालाँ क उनक सावजिनक गितिविधयाँ, गैर-
राजनीितक व प म जारी रह और देशबंधु क राजनीितक िवरासत पं. मोतीलाल नेह
के हाथ म आ गई, जो क असबली म वराजवादी नेता थे। लॉड री डंग अभी लंदन म ही
थे और बंगाल के गवनर लॉड िलटन, गवनर जनरल ऑफ इं िडया के प म कायभार
सँभाले ए थे, उसी दौरान पंिडत ने उस वा ा को आगे बढ़ाने क कोिशश क , िजसके तार
देशबंधु सरकार के साथ जोड़े गए थे। ले कन लंदन म सरकार पहले ही फलहाल के िलए
वा ा को रोकने तथा घटना म पर नजर रखने का फै सला कर चुक थी। इसिलए पं.
मोतीलाल नेह का यह यास बेनतीजा रहा।
जून 1925 भारत के हािलया इितहास म एक मह वपूण मोड़ सािबत होनेवाला था।
राजनीितक प रदृ य से देशबंधु जैसे िवशाल ि व का लु होना भारत के िलए ब त
बड़ा दुभा य था। वराज पाट उनक कजदार थी और उनके िनधन के बाद वह पंगु हो गई
और धीरे -धीरे पाट के भीतर ही टकराव बढ़ने लगा। कहना नह होगा क उनके िनधन के
समय पाट अपने आप म एक ऐसा सं थान बन चुक थी, िजस पर कसी को भी गव
होता। ि टश वािणि यक िहत के मह वपूण अंग ‘दी कै िपटल ऑफ कलक ा’ समाचार-
प ने उनके िनधन के बाद वराज पाट क तुलना आयरलड क िसन फन पाट से क थी
और िलखा था क अपने अि त व के 40 साल म उसने ऐसा पहले कभी नह देखा था।
समाचार-प ने वराज पाट के अनुशासन को जमन च र का बताया था। वराज पाट
के कमजोर पड़ने से भारत और इं लड म ित यावादी ताकत मजबूत होने लग और
इससे भारत म सां दाियक टकराव बढ़ने लगा, िजसको अभी तक रा वाद क े ताकत
ने रोका आ था। आज जब हम मुड़कर 1925 क ओर देखते ह तो वयं को यह सोचने से
नह रोक पाते क य द ई र देशबंधु को कु छ और साल का समय दे देता तो भारत का
इितहास संभवत: कु छ अलग ही मोड़ लेता! रा के मामले म अकसर ऐसा होता है क
एक अके ले ि व के होने या न होने से ही इितहास म एक नया अ याय िलखा जाता है।
हािलया िव -इितहास म स म लेिनन का, इटली म मुसोिलनी का और जमनी म
िहटलर का यही भाव रहा है।

6
पतन (1925-27)
19 21 और 1922 म महा मा गांधी के भाव को देखते ए वराज पाट के अ युदय
को असाधारण प से उ लेखनीय माना जाना चािहए। हालाँ क पाट के नेता,
पदािधकारी और कायकता महा मा के ि व का सव स मान करते थे, ले कन साफ
कहा जाए तो पाट , गांधी िवरोधी पाट थी और महा मा को राजनीित से वैि छक
सेवािनवृि लेने के िलए मजबूर करने के िलए काफ था। यह सेवािनवृि व तुत: दसंबर
1928 म कलक ा कां ेस तक जारी रही। अब वराज पाट क सफलता का रह य या
था? इसे समझने के िलए एक ि के िलए गांधीवाद ारा अपनाए गए ावहा रक
व प के बारे म अिधक जानना ज री है और यह भी जानना ज री है क 1920-22 के
दौरान ापक पैमाने पर जनता के दमाग ने महा मा के ि व के ित कस कार
ित या क थी?
हालाँ क हंद ू समाज म कभी भी यूरोप क तरह एक थािपत चच कभी नह रहा था
और आम जन अवतार 49, पुजा रय और ‘गु ’50 के भाव के ित अ यिधक
संवेदनशील रहा है। एक आ याि मक पु ष हमेशा भारत के जनमानस पर ापक भाव
रखता आया है और उसे ‘संत’ या ‘महा मा’ या ‘साधु’ कहा जाता है। िविभ कारण से
गांधीजी को जनमानस ने उनके भारत म एक िन ववा दत राजनीितक नेता बनने से पहले
से ही एक महा मा के प म देखना शु कर दया था। दसंबर 1920 क बात है, नागपुर
कां ेस म एम.ए. िज ा ने, जो क उस समय तक एक रा वादी नेता थे, गांधी को ‘िम टर
गांधी’ कहकर संबोिधत कया तो वहाँ मौजूद हजार लोग ने इसका पुरजोर िवरोध कया
और इस बात पर जोर देने लगे क िज ा को गांधी को ‘महा मा गांधी’ कहकर संबोिधत
करना चािहए।
गांधीजी का वैरा य, सं यास और उनका सादा जीवन, उनका शाकाहार, स ाई के ित
उनक िन ा और इन सबके प रणाम व प उनक िनडरता—ये सब िमलकर उनके चार
ओर एक पु या मा के भामंडल का िनमाण करते थे। कमर पर बँधी उनक धोती ईसा
मसीह क याद दलाती थी, जब क ा यान के समय उनक बैठने क मु ा से उनम बु
क झलक िमलती थी। अपने देशवािसय का यान ख चने और उनसे स मान पाने के िलए
ये सब चा रि क िवशेषताएँ उनक ब त बड़ी संपदा थ । जैसा क हम पहले भी देख चुके
ह, एक बड़ा और भावशाली बुि जीवी वग उनके िखलाफ था, ले कन अपार जनसमथन
के चलते यह िवरोध धीरे -धीरे अपना भाव खोता चला गया। जानबूझकर या अनजाने म
ही महा मा ने लोग क भीड़ क मानिसकता को पूरी तरह भुनाया, जैसा लेिनन ने स म,
मुसोिलनी ने इटली म और िहटलर ने जमनी म कया था। ले कन ऐसा करते ए महा मा
एक ऐसे हिथयार का इ तेमाल कर रहे थे, जो िनि त ही पलटकर उ ह पर वार
करनेवाला था। वे अपने देशवािसय क कई च र गत कमजो रय को भुना रहे थे, जो क
काफ हद तक भारत के पतन के िलए िज मेदार रही थ । आिखरकार भौितक और
राजनीितक े म भारत के पतन का या कारण रहा है? यह है—उसका भा य और
अलौ ककता म अ यिधक भरोसा, आधुिनक वै ािनक िवकास के ित उसक उदासीनता,
आधुिनक हिथयार िव ान म उसका िपछड़ापन, बाद के दशनशा ारा थोपी गई
शांितपूण संतुि और अ हंसा का अनुपालन, िजसे क ब त लंबे समय तक वह ढोता रहा
है। 1920 म जब कां ेस ने असहयोग के अपने राजनीितक िस ांत का चार शु कया तो
बड़ी सं या म कां ेसी नेता , िज ह ने न के वल महा मा को एक राजनीितक नेता के प
म वीकार कर िलया था, बि क धा मक गु भी मान िलया था—उ ह ने नए मसीहा के
मत का चार शु कर दया। इसका नतीजा यह आ क ब त से लोग ने मांस और
मछली खाना बंद कर दया, महा मा क तरह कपड़े पहनना शु कर दया, ात: वंदना
और सं या पूजा जैसी उनक रोजमरा क आदत को अपना िलया; इतना ही नह , इन
लोग ने राजनीितक वराज के बजाय आ याि मक मुि क बात करना यादा शु कर
दया। देश के कु छ िह स म महा मा को अवतार क तरह पूजा जाने लगा। देशभर म
इतना उ मादी माहौल हो गया था क एक समय, अ ैल 1923 म बंगाल, जो क
राजनीितक प से काफ सचेत ांत है, वहाँ जैसोर म ांतीय कॉ स म एक ताव पेश
कया गया। ताव म कहा गया था क कां ेस का ल य आ याि मक वराज नह , बि क
राजनीितक वराज है। ले कन यह ताव गरमागरम बहस के बाद नामंजूर हो गया।
1922 क बात है, जब लेखक जेल म थे। जेल िवभाग म सेवारत भारतीय जेलर ने इस
बात पर यक न करने से ही इनकार कर दया था क महा मा को ि टश सरकार जेल म
डाल सकती है। पूरी गंभीरता के साथ उ ह ने कहा क चूँ क गांधीजी एक महा मा ह तो वे
बड़ी आसानी से प ी का प धरकर, िजस भी ण चाह, जेल से िनकल सकते ह। हालात
और भी यादा खराब हो चुके थे। राजनीितक मु पर अब ता कक आधार पर िवचार
नह कया जाता था, बि क उनम अनाव यक प से नैितकता के मु का घालमेल कया
जा रहा था। उदाहरण के िलए, महा मा और उनके अनुयायी ि टश व तु के बिह कार
का समथन नह करगे, य क इससे ि टेन के ित नफरत क भावना पैदा होगी। यहाँ तक
क यात कविय ी और बुि जीवी ि व क वािमनी ीमती स रोजनी नायडू ने
भी दसंबर 1922 म गया कां ेस म वराजवा दय क नीित का इस आधार पर िवरोध
कया क काउं िसल ‘माया’51 है, जहाँ कां ेसी नेता नौकरशाही के बहकावे म फँ सकर
लालच म फँ स जाएँगे। इससे भी भयानक ि थित यह थी क महा मा के ढ़वादी
अनुयायी उनक कही ई हर बात को िबना कसी तक या कारण के वेद वा य/ वा य
मान लेते थे और उनके समाचार-प ‘यंग इं िडया’ को अपनी बाइबल समझते थे।
रह यवाद और अलौ ककता के मकड़जाल म फँ से लोग के िलए राजनीितक मुि क
एकमा उ मीद िवचारशील तकवाद और जीवन के भौितक पहलू के आधुिनक करण के
िवकास म िनिहत थी। इसिलए धीर-गंभीर रा वा दय को यह देखकर ब त हताशा ई
क महा मा के सचेत भाव के मा यम से, भारतीय च र क उपरो म से कु छ खािमयाँ
एक बार फर से िसर उठा रही थ , इसिलए महा मा और उनके दशन के िव तकवादी
िव ोह शु हो गया। जब वराज पाट इस िव ोह क अगुआई कर रही थी तो दि ण और
वामपंथी तबक से कु छ त व, जो महा मा के रा वाद से तंग आ चुके थे, वे इसक ओर
उ मुख ए। दि णपंथी त व के बीच, जो सिवनय अव ा के बजाय संवैधािनक काररवाई
को ाथिमकता देते थे और देशबंधु, जो अपने सामािजक रसूख और वकालत के अपने पेशे
के कारण उनके िव ास को एक दशा देने म स म थे। युवा त व म कां ेस क नौजवान
पीढ़ी के लोग थे, िज ह ने पाया क महा मा क िवचारधारा और उनके तौर-तरीके
आधुिनक िव के िलहाज से पया उ नह थे और वे देशबंधु को भारतीय राजनीित म
कह अिधक उ (या ांितकारी) के प म देखते थे। देशबंधु के ि व क यह एक
अनोखी खािसयत थी क वे ऐसे िभ -िभ त व को एक पाट म सि मिलत कर सकते थे,
ढ़वादी ‘नो चजस’ के हाथ से कां ेस क मशीनरी को छीन सकते थे और साथ ही कई
मोरच पर नौकरशाही के िखलाफ लड़ सकते थे। ले कन उनक अनुपि थित म कोई भी
अपने आप म इतना संपूण नह था क उनक च म ँ ुखी गितिविधय को जारी रख पाता या
वराज पाट के भीतर मौजूद िविभ त व को एकजुट रख पाता। इसका प रणाम यह
आ क वराज पाट के वल तभी तक स ा म रही, जब तक क महा मा अपनी वैि छक
सेवािनवृि से बाहर नह िनकले। जब वे 1929 म सामने आए तो वराजवादी नेता पं.
मोतीलाल नेह ने िबना कोई िवरोध कए समपण कर दया।
देशबंधु सी.आर. दास के िनधन को देश म हर े म पतन का शु आती काल माना जा
सकता है। य द महा मा गांधी अपनी सेवािनवृि से ठीक इसी मोड़ पर बाहर आते तो
इितहास संभवत: कु छ और ही िलखा जाता, ले कन यह भारत का दुभा य रहा क उ ह ने
ऐसा नह कया। अ य बात के अलावा, देशबंधु का ि व ही वराज पाट के भीतर
सबको एकजुट रखनेवाला और हंद-ू मुसिलम र त के संबंध म भी एक शि शाली कारक
था। उ ह के ि व ने पाट को गरम दल का प दया। उनक अनुपि थित म पाट के
भीतर ही फू ट के वर उभरने लगे। इसम सबसे मह वपूण घटना थी—बॉ बे के एम.आर.
जयकर और पूना के एन.सी. के लकर क अगुआई म महारा के वराजवा दय क
बगावत। महारा के वराजवा दय ने कभी भी पूण प से वराज पाट के ‘समान,
िनरं तर और सुसंगत’ िवरोध म िव ास नह कया, ले कन इसके बावजूद उ ह ने अगाध
िन ा के साथ देशबंधु और उनक नीित का अनुसरण कया था। वे ‘उ रादायी सहयोग’ के
िस ांत म यक न करते थे, िजसका ितपादन लोकमा य ितलक ने दसंबर 1919 म
अमृतसर कां ेस के समय कया था। यह िस ांत कहता है क सरकार ारा देशिहत म
उठाए जानेवाले कदम म सहयोग, ले कन जो कदम जनिहत को नुकसान प च ँ ाते ह, उनम
असहयोग या िवरोध का ख अपनाया जाना चािहए। महारा के वराजवादी लोकमा य
के िनधन के समय से ही देशबंधु को अपना नेता मानकर चल रहे थे और इसिलए अपने
िनजी िवचार के बावजूद उ ह ने उनक नीित के ित समथन और िन ा जािहर क थी।
जब पं. मोतीलाल नेह ने वराज पाट क कमान सँभाली तो उनके तथा उनके
महारा ीय समथक के बीच मतभेद फू ट पड़े। दोन प के बीच यह खाई बढ़ती गई और
एक दन बद क मती से वह ण आ ही गया, जब पंिडत का स जवाब दे गया और गु से
ने अचानक उबाल मारा। अचानक यूँ आगबबूला हो उठना उनका चा रि क वभाव था
और इसी ण उ ह ने ऐलान कर दया क ‘ वराज पाट के बीमार अंग (महारा ीय
समूह) को काट देना चािहए’। महारा ीय समूह को यह बयान ब त ही अपमानजनक
लगा और उ ह ने पंिडत तथा वराज पाट के साथ सभी तरह के संबंध तोड़ने और
र पॉि सिव ट पाट क शु आत करने क कसम उठा ली। बाद म चलकर वराज पाट म
और भी कलह बढ़ गई। इन घटना म से संकेत िमलता है क पं. मोतीलाल नेह म
बौि कता का गुण उ तम तर का था और उनका ि व ऐसा था क हर कोई स मान
और सराहना कए िबना नह रह सकता था, ले कन उनम उस भावना मक अपील का
अभाव था, जो अ छे-बुरे समय म पाट को एकजुट रख सकती है। हंद-ू मुसिलम संबंध के
मामले म भी देशबंधु दोन को जोड़नेवाली ताकत थे।
उनका ‘बंगाल समझौता’, िजसे दसंबर 1923 म कोकोनाडा कां ेस ारा नामंजूर कर
दया गया था, ले कन िजसक मई 1924 म ांतीय कॉ स ारा पुि क गई थी, वह
सभी मुसिलम को इस बात के िलए राजी करने म सफल रहा था क देशबंधु उनके असली
दो त थे। ऐसे ि के वराज पाट का मुिखया रहने से पाट के िलए मुसिलम का
समथन जुटाने म मदद िमली। और यह सच है क बंगाल लेिज ले टव काउं िसल म वराज
पाट के ब त से मुसिलम सद य थे, जो पृथक् िनवाचक मंडल के आधार पर चुने गए थे।
देशबंधु के िनधन के बाद मुसिलम समुदाय का अब वराज पाट म वह पहले जैसा भरोसा
कायम नह रहा था। इतना ही नह , वराज पाट ने जो राजनीितक तनाव पैदा कया था
और िजसके चलते सां दाियकता क उठती लहर को काबू म रखा गया था, वह उनक
मौत के बाद कम होता चला गया और देश अंतर-सां दाियक तनाव म िघरता चला गया।
और ये हालात दो साल तक बने रहे। देशबंधु क मृ यु के बाद एक और दुभा यपूण
घटना म आ—पाट का उ रवैया कमजोर हो गया। जब वराज पाट पहली बार
अि त व म आई थी तो इसने दि ण और वाम, दोन ही प के लोग को आक षत कया
था। देशबंधु के जीवनकाल म वाम त व का भु व रहा, य क वे वयं भी वाम से
ता लकु रखते थे। ले कन उनक अनुपि थित म दि णपंथी त व िसर उठाने म स म होने
लगे। अंतर-सां दाियक तनाव के उभार ने उन लोग को सामने आने म मदद क , जो
आमतौर पर राजनीित से दूर रहते थे और कोई भी ऐसा काम करने से परहेज करते थे,
िजसम दु:ख या बिलदान शािमल हो। बंगाल म वामपंथ कु छ समय के िलए घाटे म रहा,
य क उस समूह से संबंध रखनेवाले अिधसं यक कां ेसी नेता 1818 के रे युलेशन III या
बंगाल अ यादेश के तहत जेल म बंद थे।
1925 के म य के बाद से िवशु िवरोध क मूल वराजवादी नीित धीरे -धीरे कमजोर
पड़नी शु हो गई। जून म पं. मोतीलाल नेह ने सेना के भारतीयकरण पर रपोट देने के
िलए सरकार ारा ग ठत ि कन कमेटी म एक पद वीकार कर िलया। कु छ ही समय बीता
था क एस.बी. तांब52
े , जो क म य ांत से वराज पाट के एक मुख सद य थे, उ ह ने
गवनर क ए जी यू टव काउं िसल म बतौर सद य अपनी िनयुि वीकार कर ली और
इस कदम पर एन.सी. के लकर और अ य महारा ीय वराजवादी नेता ने अपनी मंजूरी
क मोहर लगा दी। उस समय तक इं िडयन लेिज ले टव असबली को अपना अ य चुनने
का अिधकार दे दया गया और िव लभाई जे. पटेल, जो क वराज पाट के सबसे यादा
क र, समझौता िवरोधी और बाधा डालनेवाले नेता म से एक थे, वे उ मीदवार के तौर
पर खड़े ए और इस पद के िलए िविधवत् चुन िलये गए। हालाँ क इस पद को वीकार
करने म सरकार का कु छ हद तक सहयोग का ख अपनाना भी शािमल था, पटेल ने
शानदार मता के साथ अपनी िज मेदारी का िनवहन कया और उ ह शानदार सफलता
भी िमली—यह काम उ ह ने मजबूती से कया, उ ह ने हमेशा संिवधान के दायरे म रहकर
काम कया और इतनी यायिन ा एवं िन प ता बरती क उनक ईमानदारी, िन प ता
और वतं तरीके से दी जानेवाली व था से स ा प के लोग तक खौफ खाते थे। अपने
अि त व के समय वराज पाट क जो लोकि यता थी, वह उनके अ य के प म काम
करने के कारण नह थी। एक आधे-अधूरे संिवधान और सहायता के िलए उनके पास कोई
संसदीय परं परा नह थी। ले कन इसके बावजूद पटेल ने उस सदन के सद य के अिधकार
और िवशेषािधकार को बनाए रखा, िजसके वे संर क बन चुके थे और साथ ही उ ह ने
िवप ी पाट और उसके नेता को वही दजा दया, जो उ ह एक लोकतांि क संिवधानवाले
वतं देश म ा होता या िजसके वे हकदार होते।
िसतंबर 1925 म सुधार जाँच सिमित, िजसे ‘मु ीमैन कमेटी’ के नाम से जाना जाता है,
ने अपनी रपोट असबली म रखी। होम मबर, सर अले जडर मु ीमैन ने कमेटी क ब मत
क रपोट को वीकार कर िलया और इस पर वराजवादी नेता पं. मोतीलाल नेह ने
एक संशोधन पेश कया, िजसे ‘नेशनल िडमांड’ कहा जाता है। नेशनल िडमांड का ा प
पंिडत ने तैयार कया था और यह असबली के गैर- वराजवादी सद य के साथ ए
समझौते तथा गैर-सरकारी सद य के बीच ेटे ट कॉमन मेजर समझौते का ितिनिध व
करता था। ‘नेशनल िडमांड’ यह थी क संवैधािनक सुधार, जो क ावहा रक प से तुरंत
डोिमिनयन टेटस दान कए जाने से संबंिधत ह, उ ह ि टश संसद् ारा वीकार कया
जाना चािहए और इन सुधार को लागू करने के तौर-तरीक एवं उपाय पर िवचार-
िवमश करने के िलए ि टश और भारतीय ितिनिधय के बीच एक गोलमेज स मेलन
होना चािहए। इस माँग पर सरकारी व ा ने असबली म उस समय और बाद म
वायसराय ने जो जवाब दया, वह नामंजूर करने के बराबर था।
साल क समाि से पूव, लाला लाजपत राय एक वराजवादी के तौर पर असबली म
शािमल ए और पाट के उपनेता चुने गए। इस समय तक पूववत वराजवादी नेता
एम.आर. जयकर और एन.सी. के लकर क अगुआई म र पॉि सिव ट पाट क शु आत क
जा चुक थी। यह दो मु य बंद ु पर वराज पाट से िभ थी। यह िवधानमंडल म
सरकार का पूरी तरह िवरोध करने क वराज पाट क नीित के िवपरीत चु नंदा िवरोध
क वकालत करती थी। इससे आगे इसने वराज पाट या भारतीय रा ीय कां ेस के
मुसिलम समथक ख क िहमायत नह क और इसके उलट इसने खुद को हंद ू महासभा
क तरफ झुका िलया। 1925 और उसके बाद हंद-ू मुसिलम मतभेद के और गहरे होने पर
यादा सं या म हंद ू कां ेस नेता ने हंद ू महासभा का दामन थाम िलया तथा हंद ू
महासभा क राजनीित, आम भाषा म कह तो र पॉि सिव ट पाट , से मेल खाती थी।
हंद ू महासभा और र पॉि सिव ट पाट दोन ने सोचा क मुसिलम समुदाय सरकार के
साथ सहयोग करके अपनी ि थित तथा अपने िहत को मजबूत करने म स म हो जाएगा
और इससे हंद ू िहत को नुकसान होगा। दूसरी ओर भारतीय रा ीय कां ेस अपने अंधाधुंध
िवरोध क नीित के मा यम से हंद ु के िलए कु छ भी कर पाने म स म नह थी। (अब
सर) िमयाँ फािजल सैन, जो पंजाब म मं ी पद वीकार करके हंद ू और िसख के िहत
को दर कनार करते ए उस ांत म मुसिलम िहत को आगे बढ़ाने म स म हो गए थे,
उनके ऐसे आचरण के कारण यह भावना बलवती होती गई। दसंबर 1925 म अलीगढ़ म
मुसिलम लीग ारा अपनाए ित यावादी और सां दाियक रवैए के कारण हंद ू
महासभा और र पॉि सिव ट पाट क ि थित हंद ू समुदाय क ओर से और समथन ा
होने से मजबूत हो गई। अलीगढ़ बैठक म मौलाना मोह मद अली, एम.ए. िज ा, सर
अ दुल रहीम और सर अली इमाम जैसे मुख नेता ने भाग िलया था।
िवधानमंडल के अगले चुनाव 1926 म होने थे और 1925 म कां ेस के कानपुर म
आयोिजत स म कां ेस ारा इस मौके पर अपनाए जानेवाले ख के बारे म फै सला लेना
था। इस बात पर िवचार करना वांछनीय पाया गया क भारतीय रा ीय कां ेस को चुनाव
लड़ने का काम वराज पाट पर छोड़ने के बजाय खुद अपने हाथ म लेना चािहए। कानपुर
कां ेस क अ य ता ीमती सरोिजनी नायडू 53 ने क और इसम यादा िववाद के िबना
यह फै सला आ, य क उस समय तक महा मा और उनके ढ़वादी अनुयाियय का
िवरोध बेअसर हो चुका था, ले कन िजस सवाल से तूफान उठा, वह यह था क
िवधानमंडल म या नीित अपनाई जाए? या यह िनरं तर िवरोध क नीित होनी चािहए
या असहयोग क , जैसा क मूल प से वराज पाट ने वकालत क थी या चु नंदा िवरोध
—या ित यावादी सहयोग क —जैसा क नवग ठत र पॉि सिव ट पाट ने अपील क
थी?
वराजवादी नीित के समथन म वहाँ पं. मोतीलाल नेह और लाला लाजपत राय थे,
जब क उनके िवरोध म पं. एम.एम. मालवीय, जयकर और के लकर थे। समथक क जीत
ई, ले कन एक साल बीतते-न-बीतते लाल लाजपत राय वराजवादी खेमे को छोड़कर
चले गए और पं. मालवीय54 के साथ िमलकर ‘इं िडपडट पाट ’ का गठन कर िलया, िजसने
उ र भारत म एकदम वही भूिमका िनभाई, जो र पॉि सिव ट पाट ने म य और पि मी
भारत म िनभाई थी। िजस समय लाला लाजपत राय ने वराज पाट छोड़ी, उसी समय
एक अ य मुख ह ती पाट म शािमल हो गई। वे थे ीिनवास आयंगर, म ास के पूव
महािधव ा55 और म ास बार के नेता। 1926 म असबली म लौटने के तुरंत बाद ही उ ह
पाट का उपनेता चुना गया और उसके कु छ समय बाद ही 1926 म असम के गुवाहाटी म
आयोिजत कां ेस स के िलए अ य चुन िलया गया।
देशबंधु दास के िनधन के बाद से ही सरकार का सामा य रवैया कु ल िमलाकर
ित यावादी था। इस संबंध म के वल एक अपवाद उ पाद शु क को समा करने का
मामला था, जो क दसंबर 1925 म ई वागत-यो य घटना थी। उ पाद शु क को सबसे
पहले भारतीय िमल म िन मत कपड़े पर 1894 म कर के प म थोपा गया था। इसका
दखावा तो यह कया गया क यह शु क सरकार के िलए राज व जुटाने के िलए लगाया
गया है, ले कन असली मकसद ि टश व उ ोग को मदद करना था, जो भारत म
वदेशी व उ ोग क तर को समान भाव से नह देखती थी। हालाँ क 1916 से कपड़ा
आयात पर शु क को भारतीय िमल उ पाद पर लगे उ पाद शु क के मुकाबले उ तर पर
रखा गया था, ले कन भारतीय रा वा दय और िवशेष प से भारतीय ापारी समुदाय
ने इसका कड़ा िवरोध कया। शु क समाि का अथ था—भारतीय कपड़ा उ ोग के िहत
को फायदा। इस अिधिनयम के अलावा, कोई अ य मै ीपूण कदम गवनमट ऑफ इं िडया या
इं लड ने नह उठाया। हालाँ क लेबर पाट ने भारत म होम ल लागू करने संबंधी ीमती
बेसट ारा तैयार कए गए कॉमनवे थ ऑफ इं िडया िबल को वीकार कर एक दो ताना
कदम उठाया और जॉज लसबरी को इसे हाउस ऑफ कॉम स म िनजी िवधेयक के प म
पेश करने के िलए अिधकृ त कया। िबल पर थम वाचन दसंबर 1925 म आ, ले कन यह
कवायद िनरथक सािबत ई। ले कन अपने आप म यह कदम ही काफ मायने रखता था।
1926 का इितहास ापक प से हंद-ू मुसिलम तनाव का इितहास है। जैसा क हर
जगह होता है, रा वादी आंदोलन के सु त पड़ने से लोग क सारी ऊजा अंद नी सवाल
और िववाद क ओर मुड़ गई। 1924 म तुक ारा िखलाफत का खा मा कए जाने के
कारण भारत म कई रा वादी मुसिलम नेता ने िखलाफत आंदोलन को छोड़ दया और
अपना पूरा यान रा वादी मु े पर लगा दया। ले कन कु छ रा वा दय के साथ ही अिधक
ित यावादी मुसिलम ने िखलाफत कमेटी को जारी रखा, जैसा क मौलाना शौकत अली
ने बॉ बे म कया और जहाँ ऐसा करना संभव नह था, वहाँ उ ह ने िविभ नाम से
सां दाियक ित यावादी च र वाले अ य संगठन खड़े कर दए। मुसिलम के बीच इस
ित यावादी आंदोलन के चलते हंद ु के बीच भी इसी कार का ित यावादी
आंदोलन शु हो गया और पूरे देश म हंद ू महासभा क शाखाएँ पनपने लग । हंद ू
महासभा म अपने मुसिलम समक संगठन के समान ही न के वल पूववत रा वादी लोग
शािमल थे, बि क काफ बड़ी सं या ऐसे लोग क भी थी, जो कसी राजनीितक आंदोलन
म भाग लेने से डरते थे और अपने िलए एक सुरि त मंच चाहते थे। हंद ु और मुसिलम
के बीच सां दाियक गितिविधयाँ बढ़ने से अंतर-सां दाियक तनाव भी बढ़ने लगा। इस
मौके का तीसरे प ने फायदा उठाया, जो चाहते थे क दोन समुदाय आपस म लड़ते रह,
ता क रा वादी ताकत को कमजोर कया जा सके । अंतर-सां दाियक दंग का कारण
बननेवाले मु े सामा य तौर पर गौवध के होते थे, िजनसे हंद ू भावनाएँ आहत होत ।
नमाज के समय मसिजद के सामने संगीत बजाया जाता, िजससे मुसिलम भावनाएँ भड़क
जात । य द कसी मसिजद या मं दर को अशु कर दया जाता तो भी टकराव पैदा हो
जाता था। एक बार कसी िवशेष इलाके म दोन समुदाय के बीच कोई तनाव पैदा हो
जाता तो इस कार क घटना क िचनगारी से सां दाियक आग आसानी से भड़काई जा
सकती थी और ऐसे म तीसरे प के िलए अपने दलाल को इस गंदे खेल को अंजाम देने के
काम म लगाना मुि कल नह था।
1926 क घटना म सबसे खराब घटना कलक ा म हंद-ू मुसिलम दंगे थे, जो मई म
भड़के और उसके बाद जुलाई म फर से आग सुलग उठी। सम या एक आय समाजी56
जुलूस से शु ई, िजसम एक मसिजद के सामने से गुजरते ए संगीत बजाया गया।
आयसमािजय का दावा था क वे कई साल से िबना कसी सम या के जुलूस िनकालते आ
रहे थे। इसके िवपरीत, मुसिलम ने ऐलान कर दया क संगीत मसिजद के भीतर उनक
नमाज म बाधा प च ँ ा रहा था। इस कार कई दन तक दंगा फै ला रहा और दोन प के
काफ लोग मारे गए। आिखरकार, जब दोन प थक गए तो दोन ने राजीनामा कर
िलया। हालाँ क कलक ा क तरह इस मु े ने बाक जगह पर संकट का प नह िलया
था, ले कन देशभर म हालात ब त तनावपूण हो गए थे। कां ेस पाट के िलए यह अंधकार
का समय था। िवधानमंडल के िलए चुनाव नवंबर म होनेवाले थे और ये चुनाव अब हंद-ू
मुसिलम दंग क छाया म होने जा रहे थे। चुनावी मैदान कां ेस के िलए 1923 क तरह
खुला रहनेवाला नह था। ित यावादी हंद ु और ित यावादी मुसिलम का
ितिनिध व करनेवाले नए संगठन अि त व म आ चुके थे और वे अपने उ मीदवार खड़े
करगे। 1926 के चुनाव के दौरान मुसिलम के एक वग ारा एक बड़ा चार अिभयान
चलाया गया क य द हंद ु ने सरकार के साथ अपना असहयोग जारी रखा तो मुसिलम
का उनसे कोई लेना-देना नह होगा, बि क उ ह संिवधान के िलए काम करना चािहए।
दूसरी ओर हंद ू महासभा ने ह ला मचाया क य द हंद ू असहयोग जारी रखते ह और
मुसिलम सरकार क मदद पा जाते ह तो इस कार हंद-ू मुसिलम के मुकाबले म अपना
गंभीर नुकसान करगे, इसिलए हंद ू महासभा ने असहयोग क वराजवा दय क नीित म
बदलाव क अपील क । हालाँ क हंद ू िनवाचक मंडल म कां ेस का भाव हंद ू महासभा
क तुलना म कह ब त यादा था। ले कन 1926 के आम चुनाव म मुसिलम िनवाचक
मंडल म ित यावादी और सां दाियक संगठन का भाव कां ेस के मुकाबले अिधक
मजबूत सािबत होनेवाला था।
नवंबर 1926 का आम चुनाव वराजवा दय ने कां ेस के नाम पर लड़ा और म ास तथा
िबहार जैसे कई ांतीय िवधानमंडल म उनक सं या म काफ सुधार आ। 1923 म जब
वराज पाट ने चुनाव लड़ा था तो उस समय उसे कां ेस के सभी वग का ऐसा दल
खोलकर दया गया समथन नह िमला था। और यही कारण था क इस बार उसका
दशन काफ अ छा रहा। ले कन एक मामले म यह आम चुनाव 1923 के आम चुनाव से
ब त बुरा सािबत आ। 1923 म बड़ी सं या म रा वादी मुसिलम वराजवा दय के प
म िनवािचत ए थे, ले कन 1926 म उनका थान सामा यत: उनके ित यावादी
सहध मय ने ले िलया था। बंगाल और पंजाब जैसे ांत म, जहाँ मुसिलम क काफ बड़ी
आबादी थी, वहाँ िवधानमंडल के भीतर ि थितयाँ कां ेस पाट के अनुकूल नह थ । म य
ांत, जो वराजवा दय के गढ़ रहे थे और बॉ बे ेसीडसी के कु छ िह स म
र पॉि सिव ट पाट के गठन के कारण रा वा दय क ताकत िवभािजत हो गई। म य
ांत िवधान प रषद् म र पॉि सिव ट पाट के गठन के कारण और बंगाल िवधान प रषद्
म मुसिलम धड़े के कारण सरकार के िलए इन दोन ांत म मंि य को िनयु करना
संभव हो गया, जहाँ तीन साल तक कोई अि त व म ही नह था। इं िडयन लेिज ले टव
असबली म भी रा वा दय क ताकत एक ओर र पॉि सिव ट पाट और दूसरी ओर
मुसिलम धड़े के कारण कु छ-न-कु छ कमजोर हो चुक थी। िपछली असबली के मुकाबले
सरकार के िलए यह समय कु छ आसान था। िवधानमंडल के अलावा, कां ेस म भी कु छ
िबखराव साफ नजर आ रहा था। पंजाब, बॉ बे ेसीडसी और म य ांत जैसे ांत म
ऐसा मु य प से र पॉि सिव ट पाट क गितिविधय के कारण था। बंगाल जैसे ांत म
जहाँ र पॉि सिव ट का मामूली भाव था, वहाँ कां ेस पाट के भीतर ही आपस म
गुटबाजी के कारण िवघटन शु आ। बंगाल म देशबंधु दास के िनधन के बाद महा मा के
भाव और समथन से दवंगत जे.एम. सेनगु ा नेतृ व पाने म सफल रहे। उनके नेतृ व का
िवरोध होने से पूव वे एक साल तक पद पर बने रहे। इस िवरोध को बी.एन. ससमाल के
नेतृ व के तहत आिखरकार ठोस आकार दया गया। ससमाल कभी बंगाल कां ेस हलक म
सवािधक लोकि य हि तय म से एक थे। यह अंद नी संघष 1927 तक जारी रहा। कु छ
समय के िलए बंगाल म दो ित ं ी ांतीय कां ेस कमे टयाँ थ और माच 1927 म जब
कलक ा नगर िनगम के चुनाव ए तो कां ेस के दोन धड़ ने अपने-अपने उ मीदवार खड़े
कए थे। इस संघष म ससमाल क पाट क हार ई और इससे वे कु छ समय के िलए
नेप य म चले गए।
कां ेस के भीतर और बाहर फै ले वैचा रक मतभेद के कारण नेता के िलए 1926 का
साल परी ा क तरह था। एक समय तो ऐसा लग रहा था क पाट के भीतर जो क चड़
जमा हो गया है, उसका कसी भी तरीके से सफाया नह कया जा सकता। िज मेदारी का
खािमयाजा पं. मोतीलाल नेह को उठाना पड़ा, जो महा मा गांधी और देशबंधु दास के
नेतृ व से वंिचत थे, य क महा मा स य राजनीित से सेवािनवृ हो चुके थे और देशबंधु
एक साल पहले ही दुिनया से जा चुके थे। उनके ारा िसतंबर 1925 म असबली म पेश
‘रा ीय माँग’ (नेशनल िडमांड) को सरकार ठु करा चुक थी। ऐसी प रि थितय म वे या
कर सकते थे? वे देश म सिवनय अव ा आंदोलन शु करने क ि थित म नह थे, इसिलए
उ ह ने सरकार के रवैए के िखलाफ िवरोध व प असबली से खुद को अलग करने का
फै सला कया। उस समय इस फै सले क ब त अिधक आलोचना क गई—इस बात म कतई
कोई शंका नह हो सकती क सरकार क नीित म अगाध भरोसा जताने के िसवाय इस
कदम का और कोई िवक प हो ही नह सकता था। माच 1926 म पं. मोतीलाल नेह ने
असबली म एक भाषण दया। भाषण ब त ही ग रमापूण था, ले कन लहजे म हार छु पी
थी। भाषण देकर वे असबली से बिहगमन कर गए और सभी वराजवादी सद य भी उनके
पीछे-पीछे सदन से बाहर आ गए। असबली म इस कदम के बाद वराज पाट ने भी ांतीय
िवधानमंडल से वयं को अलग कर िलया।
ले कन 1926 के घने काले बादल म भी एक उ मीद क करण छु पी थी। अंतर-
सां दाियक मतभेद और अशांित के बावजूद खादी का उ पादन पूरे जोर-शोर से जारी
था। बाक वधान से मु महा मा इस काय पर पूरा यान क त कर पा रहे थे। उनके
नेतृ व म ‘ऑल इं िडया ि पनस एसोिसएशन’ अपनी शाखाएँ देशभर म खोल रही थी। इस
संगठन के मा यम से महा मा एक बार फर से अपनी खुद क पाट बना रहे थे, जो उनके
िलए उस समय बड़े काम क सािबत ई, जब उनक एक बार फर से कां ेस तं पर
क जा करने क इ छा ई। कां ेस पाट म कई िबखराव हो चुके थे और इसक ितपू त के
िलए उस समय तक ीिनवास आयंगर पूरे दल से कां ेस पाट म शािमल हो चुके थे।
म ास ेसीडसी म उनक ब त मान- ित ा थी और उ ह ने अपनी यह संपि कां ेस को
स प दी थी। म ास ेसीडसी म उनक मदद से आंदोलन ब त मजबूत आ और म ास
लेिज ले टव काउं िसल म एक मजबूत कां ेस पाट क थापना क । असबली म उ ह ने
बतौर कां ेस उपनेता क अपनी िज मेदा रय को अपनी पूण मता के साथ िनभाया।
दसंबर 1926 म गुवाहाटी कां ेस क अ य ता करने के बाद उ ह ने अंतर-सां दाियक
एकता को बहाल करने के िलए देश का सघन दौरा कया और उनका यह पूरा काय म
ब त त रहा। इस काय म उनक मदद अली बंधु ने क , जो 1928 तक कां ेस से
स य प से जुड़े ए थे, हालाँ क महा मा के साथ उनका मनमुटाव 1926 म ही शु हो
गया था।57
उस साल का सबसे उ साहजनक संकेत यह था क देशभर के युवा म एक जाग कता
पैदा हो रही थी। वे पुरानी पीढ़ी के संक ण सां दाियकतावाद से तंग आ चुके थे और
सावजिनक जीवन म रा वाद क शु ाणवायु का संचार करना चाहते थे। युवा आंदोलन
िविभ ांत म िविभ नाम से उभरा, ले कन इसके पीछे का ज बा हर जगह एकसमान
था। व था से आती दुगध ने उ ह बेचैनी और िव ोह क भावना से भर दया था—उनके
भीतर एक आ मिव ास क भावना और देश के ित अपनी िज मेदारी क चेतना पैदा हो
रही थी। पंजाब म आंदोलन ‘नौजवान भारत सभा’ के नाम से उभरा और आनेवाले साल
म यह ब त मह वपूण भूिमका िनभानेवाला था। म य ांत क राजधानी नागपुर म
युवा ने वयं क िज मेदारी लेते ए ‘आ स ऐ ट स या ह’ नामक आंदोलन शु कर
दया। इस आंदोलन का उ े य आ स ऐ ट क अव ा करना था, जो क भारतीय को
हिथयार रखने या लेकर चलने से ितबंिधत करता था। इस आंदोलन को एक थानीय
लोकि य कां ेसी नेता, अवारी ने शु कया था, िज ह उनके समथक ने ‘जनरल’ नाम
दया था। आंदोलन क शु आत म ऐलान कया गया क स या ह सरकार के आचरण के
िखलाफ िवरोध व प शु कया जा रहा है, िजसने बंगाल म बड़ी सं या म जनसेवक को
िबना सुनवाई के कारागार म बंद कर दया था।
1926 म कां ेस क कमजोरी का फायदा उठाते ए, सरकार ने 1927 म अपनी
ित यावादी नीित जारी रखी थी। हालाँ क अ ैल 1926 म लॉड इरिवन के प म
भारत को नया वायसराय िमल गया था, जो क अपने पूववत लॉड री डंग से एकदम
अलग था। अ ैल 1927 म ‘ि कन कमेटी’ क रपोट कािशत ई और इसम यह ावधान
कया गया था क भारतीय सेना के आधे िह से का 25 साल म पूरी तरह भारतीयकरण
कर दया जाएगा। कमेटी क रपोट िनराश करनेवाली थी और इस पर पं. मोतीलाल
नेह के ह ता र नह थे, िज ह ने कमेटी क सद यता से रपोट का मसौदा तैयार होने से
पहले ही इ तीफा दे दया था। ले कन कमेटी क मामूली िसफा रश को भी भारत के
िवदेश मामल के सिचव/मं ी लॉड िबरके नहेड के इशारे पर याि वत नह कया गया।
कमेटी क अ य ता हालाँ क भारतीय सेना के चीफ ऑफ टाफ ने क थी। सरकार क
दुभावना इस त य से और प हो जाएगी क वायसराय क ए जी यू टव काउं िसल के
सद य के प म सर तेज बहादुर स ू के कायकाल के दौरान आम टाफ ने एक योजना
तैयार क थी। इस योजना के तहत पूरी सेना का 30 साल के भीतर भारतीयकरण कए
जाने क बात कही गई थी।
सरकार ने 1927 म एक और अवांिछत कदम उठाया और पए को Is. 6d पर ि थर कर
दया, जब क पारं प रक िविनयम दर Is. 4d थी और यह भारत के अनुकूल थी। काफ
िवरोध के बीच सरकार ने पए क क मत साढ़े 12 फ सदी तय कर दी और िव सद य/
मं ी सर बािसल लैकेट ने वत: भारत म आयात पर अिधशु क लगा दया। ले कन भारत
को के वल इतना ही नुकसान नह होना था। नए अनुपात के कारण भारतीय कसान, जो
िव बाजार के िलए क े माल का उ पादन करते थे, उ ह पहले के मुकाबले कम पैसा
िमलने लगा और भारतीय उ पाद के संबंध म उसक य-शि काफ कम हो गई। इस
बात म कोई संदहे नह क नया अनुपात काफ हद तक भारत म आ थक संकट बढ़ाने के
िलए िज मेदार था।
नए अनुपात के साथ ही, सर बािसल लैकेट मु ा को िनयंि त करने के िलए अपनी
योजना के तहत इं िडयन रजव बक क थापना करना चाहते थे, ले कन संबंिधत िबल58
को क मत से असबली ने नामंजूर कर दया और वायसराय ने भी माणन के ज रए इसे
कानून का प नह दया। के वल एकमा ऐसी घटना थी, जो 1927 के शु आती दौर म
संतोषजनक कृ ित क कही जा सकती है और वह थी भारत तथा दि ण अ का के बीच
के पटाउन समझौता। दि ण अ क सरकार, क र रा वादी जनरल हाटजोग क अगुआई
म भारतीय वािसय के वग करण और उनक वतन वापसी के संबंध म एक दोहरी नीित
अपनाना चाहती थी। भारतीय के िहत क पैरवी करने के िलए भारत से एक
ितिनिधमंडल भेजा गया, िजसम सर मोह मद हबीबु लाह, दि णपंथी स मानीय
वी.एस. शा ी और सर जॉज पैिडसन शािमल थे। उनके दबाव डालने से िन िलिखत
समझौता आ। दि ण अ का सरकार ने भारतीय के वग करण या पृथ करण संबंधी
‘दी ए रयाज रजवशन िबल’ को पूरी तरह छोड़ दया। हालाँ क भारतीय के वास को
ो सािहत कया गया क इसके िलए पहले से अिधक बोनस दया जाएगा। दि ण अ का
म जनमे भारतीय, जो उस देश को अपना घर बनाना चाहते ह, उ ह ‘गोर ’ के समान
जीवन- तर हािसल करने म सरकार ारा मदद दी जाएगी। हालाँ क समझौता आंिशक
प से संतोषजनक था, ले कन कु छ भी नह से तो बेहतर था। और लॉड इरिवन ने इस
मामले म भारतीय का पूरा समथन कया। समझौते म ावधान कया गया क भारत
सरकार का एक ‘एजट’ दि ण अ का म िनवास करे गा और शा ी को पहले ‘एजट’ के
प म भारत से भेजा गया।
अंतररा ीय े म, ि टेन ारा 1927 म स से अपने संबंध को ख म करने का जो
कदम उठाया गया, भारत के िलए उसके अपने दु प रणाम होने ही थे। उसके बाद से भारत
म क युिन ट पाट क गितिविधयाँ काफ बढ़ चुक ह। इसे रा वादी ताकत के कमजोर
होने और 1927 तथा 1928 म िमक के आंदोलन के उ होने से मदद िमली थी।

7
बमा क जेल म59 (1925-27)
25 अ ू बर, 1924 क अल सुबह क बात है। मुझे न द से जगाया गया, य क कु छ
पुिलस अिधकारी मुझसे िमलना चाहते थे। कलक ा पुिलस के िड टी किम र मुझसे
िमलने पर बोले, ‘िम टर बोस, मुझे एक बड़ा ही बेकार सा काम करने को दया गया है।
मेरे पास 1818 के रे युलेशन III के तहत आपक िगर तारी का वारं ट है।’ इसके बाद
उ ह ने एक दूसरा वारं ट पेश कया, जो उ ह हिथयार, िव फोटक, गोला-बा द आ द के
िलए मेरे घर क तलाशी लेने का अिधकार देता था। चूँ क कोई हिथयार आ द तो िमलना
नह था, इसिलए उ ह कु छ कागज और प के बंडल से ही संतोष करना पड़ा। जनता
क िनगाह से बचाने के िलए वे मुझे अपनी कार म लेकर गए, ले कन मेरी िगर तारी
इतनी अचानक और पूरी तरह च कानेवाली थी क रा ते म मुझे जो भी जानने-
पहचाननेवाले लोग िमले, उ ह ने सोचा भी नह था क मुझे अलीपुर म महामिहम के
कारागार म ले जाया जा रहा था। अलीपुर यू स ल जेल म मुझे यह देखकर हैरानी ई क
मेरे जैसे और भी लोग वहाँ थे। जेल का शासन हम वहाँ देखकर खुश तो कतई नह था।
बाक कै दय से हम लोग को अलग रखने के िलए अलग से िवशेष बंदोब त भी करना
पड़ा और उनके पास मुि कल से ही कोई अित र इं तजाम करने के साधन उपल ध थे।
दन चढ़ते-चढ़ते, हम लोग क सं या भी बढ़ने लगी और हम यह देखकर ब त खुशी ई
क जब शाम को लॉकअप का समय आ तो हम लोग क सं या 18 हो चुक थी (जेल म
साथी िमल जाने से ब ढ़या वागत और कु छ नह हो सकता)।
चूँ क उस समय म कलक ा नगर िनगम का चीफ ए जी यू टव ऑ फसर (मु य
कायकारी अिधकारी) था, तो मेरी अचानक िगर तारी होने से नगरपािलका का काम
गड़बड़ा गया, इसिलए सरकार को िवशेष आदेश जारी करना पड़ा क दसंबर शु होने
तक म जेल म रहते ए अपना कायालय का कामकाज कर सकता ँ और मेरा सिचव
ऑ फस क फाइल तथा द तावेज लेकर समय-समय पर मुझसे िमलने आ सकता है। इन
सभी मुलाकात म एक जेल ऑ फसर के साथ ही एक पुिलस अिधकारी भी पास रहेगा।
और आमतौर पर कु छ सबसे बुरे पुिलस अिधका रय को ऐसी मुलाकात के समय ूटी पर
लगाया जाता था। मुझे उनसे अकसर परे शानी होती थी और ि थित कई बार इतनी
असहज हो जाती थी क मुझे उ ह उनक बेस ी के िलए डाँटना तक पड़ जाता था। ऐसे म
बतौर सजा मुझे ांत के सुदरू इलाके म एक अ य जेल (बरहमपुर जेल) म थानांत रत
कए जाने का आदेश हो गया। वहाँ लोग का मुझसे िमलना मुि कल होगा। ले कन न तो
अलीपुर और न ही बरहमपुर म मुझे जेल कमचा रय से कोई द त ई थी। सरकार के
कु छ आदेश िनि त प से अपमानजनक थे, ले कन उसके िलए म जेल के कमचा रय को
दोष नह देता। हालाँ क बरहमपुर म भी पुिलस अिधका रय के साथ मेरा झगड़ा-झंझट
बना रहा। वहाँ मेरा अिधकतर समय पढ़ने म बीतता और हम लोग आपस म उस काम के
बारे म योजना पर चचा करते, जो हम जेल से बाहर िनकलने के बाद करने थे। दनो दन
िगर ता रयाँ बढ़ रही थ और हम अपने सािथय क सं या बढ़ती देखकर खुशी हो रही
थी। बहरमपुर म मेरा वास दो महीने से अिधक का नह रहा। 25 जनवरी, 1925 को
अचानक मुझे कलक ा थानांत रत कए जाने का आदेश ा आ। रा ते म यह जानकर
मुझे बड़ी हैरानी ई क मेरी असली मंिजल अपर बमा म मांडले जेल थी। आधी रात के
करीब म कलक ा प च ँ ा और मुझे रातभर रहने के िलए लालबाजार पुिलस टेशन ले
जाया गया। पुिलस टेशन का कमरा सड़ाँध मार रहा था और ऊपर से म छर भी भरपूर
थे। ऐसे म णभर क न द लेना भी संभव न था। साफ-सफाई का कोई इं तजाम नह था
और िनजता तो कतई नह थी। तब मुझे उस स ाई का अहसास आ, जो दूसरे लोग कहते
थे, यही क अगर धरती पर कह नरक है तो वह लालबाजार का पुिलस टेशन है। म लेटा
आ समय िबताने के िलए छत म लगी किड़याँ िगन रहा था क तभी बगलवाले कमरे से
कु छ जानी-पहचानी सी आवाज सुनाई दी। तो भली सरकार ने यहाँ भी मेरे िलए साथी
भेज दए थे! अगली सुबह मुँह अँधेरे ही एक पुिलस अिधकारी नमूदार आ। ये िम. लॉमैन
थे, अिस टट इं पे टर जनरल ऑफ पुिलस (सहायक पुिलस महािनरी क), िजनके बारे म
हम बाद म पता चला क वे हम मांडले ले जानेवाले थे। कारागार के दरवाजे खोले गए
और सात जाने-पहचाने चेहरे बाहर िनकले, सभी एक ही मंिजल के हमराही थे। सच म
आ य आ!
घने अँधेरे म हिथयारबंद सुर ाक मय से िघरे ए हम लोग पुिलस टेशन से बाहर
िनकले। ठीक सामने जेल क दाे गािड़याँ खड़ी थ और िनमं ण देते उनके दरवाजे खुले ए
थे। एक गाड़ी म हमारा सामान रखा गया और दूसरी म हम लोग को बैठा दया गया।
तूफान क गित से जेल क गािड़याँ हम लोग को लेकर जेल प रसर से िनकल और अँधेरे
म एकाकार हो ग , जो अभी भी काफ घना था। कु छ देर बाद दोन गािड़याँ क और
जैसे ही हम लोग नीचे उतरे तो हमने वयं को एक नदी के तट पर पाया। तट के कनारे पर
एक जहाज खड़ा था, ले कन हम सब लोग को एक छोटी मोटर बोट म िबठाया गया। तीन
घंटे तक हमारी मोटर बोट नदी म ही च र काटती रही और जब जहाज के रवाना होने का
समय आ तो हम लोग को चुपचाप दूसरी ओर से जहाज म चढ़ा दया गया। सुबह के नौ
बजने तक हम लोग समु क ओर बढ़ चुके थे। हमारे के िबन के बाहर भारी हिथयार से
लैस सुर ाकम पहरा दे रहे थे, िजससे दूसरे याि य को हैरानी हो रही थी क अंदर कौन
है और य है, िजसके िलए सुर ा के इतने भारी बंदोब त कए गए थे? जब हम गहरे
समु म प च ँ गए तो हमारे के िबन के बाहर खड़े सुर ाक मय को वहाँ से हटा िलया गया
और के वल सादे कपड़े पहने अिधकारी हम लोग क रखवाली के िलए वहाँ रह गए।
हमारी चार दन क यह या ा काफ रोचक थी। लॉमैन काफ खुशिमजाज और बातूनी
इनसान थे तथा हमने चचा के िलए कोई िवषय नह छोड़ा, गवनर , ए जी यू टव
काउं सलस के बारे म अटकलबाजी से लेकर नेता आ द तक, हर िवषय पर चचा क । मने
तो पुिलस ारा राजनीितक कै दय को यातना दए जाने का सवाल भी उठाया। लॉमैन ने
शु म तो इस आरोप से इनकार कया, ले कन आिखर म वीकार कर ही िलया क कु छ
अवसर पर इस कार क गलितयाँ ई ह। कु ल िमलाकर, शु आत म मेरे मन म उनके
ित पूव ह था, ले कन बाद म उनके बारे म मेरी राय काफ अ छी बन गई और उनके
साथ बाद म ई और मुलाकात तथा चचा से मेरा यह िवचार अिधक पु ता हो गया।
रं गून प च
ँ ने से एक रात पहले क बात है। लॉमैन ने एक बुरा सपना देखा था। सुबह
उ ह ने िशकायत क क रात को वे ठीक से सो नह सके , य क उ ह ने सपना देखा क
शाम के समय कु छ सरकारी कै दी जहाज म बगल के झरोखे से िनकलकर भाग गए ह। रं गून
से मांडले तक यह 20 घंटे का लंबा सफर था। बड़ी सं या म पुिलस बल हमारे आगे-पीछे
चल रहा था और रा ते म हम जहाँ भी कते, वे ेन के दोन ओर कतार लगाकर खड़े हो
जाते। िजतना तमाशा वे लोग फै ला रहे थे, उससे कोई भी सोचता क हम या तो ब त ऊँचे
ओहदेवाले सरकारी अिधकारी ह या जंगली जानवर ह!
तब तक मांडले का हम लोग ने के वल नाम सुना था। मुझे थोड़ा-ब त पता था क यह
बमा के अंितम वतं सा ा य क राजधानी थी और यह पर दूसरा बमा यु आ था।
ले कन मुझे यह बात ब त अ छी तरह याद थी क इसी जगह पर लोकमा य ितलक को
करीब छह साल तक और बाद म लाला लाजपत राय को करीब एक साल तक बंदी
बनाकर रखा गया था। इससे हम थोड़ी सां वना िमलने के साथ ही गव क एक अनुभूित
भी ई क हम उ ह के पदिच ह पर चल रहे ह। टेशन से हम कले के भीतर बनी जेल म
ले जाया गया। रा ते म हम उन मकान के सामने से गुजरे , जहाँ लालाजी और सरदार
अिजत संह को उनक नजरबंदी के दौरान रखा गया था। सामने नीले आसमान के बीच
हमने एक खूबसूरत इमारत देखी, िजसके बारे म हम बताया गया क यह महल और पुराने
सा ा य के रा य भवन ह। पुराने सुनहरे दौर क याद अब नह थ और इससे हमारे दल
म एक कसक-सी उठी और हम लोग सोचने लगे क कब बमा पर उसक आजादी का वज
लहराएगा? हमारी गािड़याँ मांडले जेल क लेटी रं ग क दीवार के सामने आकर क ग
और हम एक झटके के साथ अपने सपन क दुिनया से बाहर आ गए। कारागार का िवशाल
दरवाजा जोर क गजना के साथ खुला और हम भीतर समा गए। बमा क जेल भीतर से
भारतीय जेल के मुकाबले कु छ अलग थी। हम कु छ िमनट तक आसपास का जायजा लेते
रहे। सबसे पहले हमारा यान इस बात पर गया क जेल क इमारत प थर या ट से
नह , बि क लकड़ी क खपि य से बनी थ । इमारत कसी िचिड़याघर या सरकस के
पंजड़े क तरह लग रही थ । बाहर से देखने पर और खासतौर से रात म, इन इमारत के
भीतर बंद कै दी जानवर के जैसे नजर आते थे, जो भीतर बेचैनी के साथ च र काट रहा है।
इन ढाँच के भीतर स दय के मौसम म भीषण ठं ड या गरिमय क गरम हवा या मांडले
क उ णक टबंधीय बा रश से बचाव के िलए कोई व था नह थी। हम सब हैरान होकर
सोच रहे थे क यहाँ हम कै से जंदगी काटगे? ले कन कोई फायदा नह आ और हम उस
बदतर हालात से ही तालमेल िबठाना पड़ा। हमारे साथवाले प रसर के बारे म बताया
गया क लोकमा य ितलक ने अपने जीवन के करीब छह साल वहाँ गुजारे थे। जेल के
कमचा रय म हम कई लोग िमले, जो ितलक के वहाँ कै द म रहने के दौरान भी थे। उन
लोग से और बाद म वयं जेल महािनरी क तक से हमने ितलक के बारे म बड़े ही रोचक
क से सुने और यह क जेल म उ ह ने अपने दन कै से िबताए थे। इनम सबसे रोचक
क सा हमारे िलए न बू के पौध का था, जो उ ह ने वयं अपने हाथ से लगाए थे।
सरकारी कै दय म हमसे पहले आनेवाल म से एक थे जीवनलाल चटज , िज ह ने हम
बम भाषा म सबसे पहला पाठ पढ़ाया था। म वहाँ पहले नह आया था और बमा के लोग
मुझे ब त ही यादा अ छे लगने लगे थे। उनम कु छ बात ही ऐसी थी क कोई उ ह पसंद
कए िबना नह रह सकता था। वे ब त ही िमलनसार, साफ और खुशिमजाज थे। हालाँ क
उ ह गु सा ज दी आता है और कई बार तो वे आपा भी खो बैठते ह, ले कन ऐसा तभी
होता है, जब वे गु से म ह । ले कन मुझे यह उनक कोई ब त बड़ी कमी मालूम नह ई।
सबसे यादा मुझे उनक ज मजात कला मक भावना ने भािवत कया था, जो क बमा के
हर ि म होती है। अगर उनम कोई कमी है तो यह है—उनका ब त ही यादा
भोलापन और िवदेिशय के ित कसी भी अहसास का न होना। हक कत म मुझे बाद म
बताया गया क एक बम मिहला अपने समुदाय के पु ष के बजाय िवदेशी के ित ब त
अिधक आक षत होती है।
हमारे सुप रं टडट, कै टन (बाद म मेजर) ि मथ का वहार हम लोग के ित ब त ही
अ छा था और हम लोग के बीच म कभी कोई गलतफहमी नह ई। यहाँ तक क जब हम
सरकार के िखलाफ लड़ना होता या भूख-हड़ताल करनी होती, तब भी हमारे दो ताना
संबंध इससे भािवत नह होते थे। चीफ जेलर के साथ हमारा आए दन झगड़ा-झंझट
चलता रहता था और वे आए दन कोई-न-कोई सम या खड़ी करते रहते। अपनी हरकत
को वे यह कहते ए जायज ठहराने क कोिशश करते क उ ह ऊपर के आदेश का पालन
करना होता है, ले कन आिखर तक म पता नह लगा पाया क हम बार-बार परे शान करने
के िलए असिलयत म कौन िज मेदार था? हालाँ क कु छ समय बाद, जब जेल के िनचले दज
के कमचा रय को पता चला क हम परे शान कया जा रहा है तो उ ह ने सुझाव दया क
हम भी ट का जवाब प थर से देना चािहए। और उनके साथ हमारा वहार इस मामले
को लेकर दो ताना हो गया। जेल िवभाग के मुिखया थे लेि टनट कनल तारापोर, एक
पारसी स न, जो ब त ही चतुर, बुि मान और नेकनीयतवाले अिधकारी थे। हालाँ क
मांडले या बमा क अ य जेल म बंद सरकारी कै दय को अकसर उनके साथ गलतफहमी
हो जाती थी, ले कन मुझे यह वीकार करना चािहए तथा खुशी के साथ इस बात को
मानना चािहए क कु ल िमलाकर वे हमारे साथ अ छा बरताव करने क कोिशश करते थे।
सबसे पहली मुि कल तो उनके िलए यही थी क बंगाल सरकार, जो हम लोग के िलए
अंतत: िज मेदार थी, उसका रवैया बदले क भावना से े रत था। दूसरी सम या यह थी
क गवनमट ऑफ इं िडया, जो क देश का सबसे बड़ा ािधकार थी, वह ब त दूर थी और
उतनी ही उदासीन भी। तीसरी बात यह थी क बमा सरकार भले ही हम लोग के ित
िव षे पूण नह थी, ले कन अपनी िज मेदारी से वह कु छ करना भी नह चाहती थी।
लेि टनट कनल तारापोर जेल सुधार को लेकर काफ उ साही थे और उनक पहल पर ही
बमा सरकार ने इं लड के महामिहम के जेल किम र म से एक पीटरसन को आमंि त
कया था क वे बमा का दौरा कर और उ ह वहाँ जेल सुधार के संबंध म सलाह द। ले कन
अपने सारे उ साह के बावजूद लेि टनट कनल तारापोर ब त अिधक कु छ हािसल नह कर
सके , य क उनका ित यावादी वभाव इसम आड़े आ गया। मुझे याद है क एक ब त
मह वपूण सुधार को उ ह ने लागू करने का यास कया, ले कन दूसरे प के िवरोध के
कारण यह िवचार याग देना पड़ा। बमा के लोग को ब त कम उ म ही तंबाकू पीने क
लत लग जाती है। उनके िलए तंबाकू भोजन से अिधक मह वपूण होता है। चूँ क बमा क
जेल म तंबाकू ितबंिधत था तो कै दी बाहर से इसे मँगवाने के िलए जेल म कई तरह के
अपराध को अंजाम देते थे। ऐसे म जेल महािनरी क ने एकदम सही सोचा क य द
कै दय को कानूनी तरीके से तंबाकू उपल ध करा दया जाए तो इससे जेल के भीतर
होनेवाले अपराध म कमी आएगी और तंबाकू क अवैध त करी भी काफ हद तक बंद हो
जाएगी। इसिलए उ ह ने एक िनयम पेश कया क अ छा वहार करनेवाले कै दय को
ित दन क िनि त मा ा म तंबाकू दया जाएगा। हालाँ क यह सुधार कोई दीघकािलक
भाव डालनेवाला नह था, ले कन इससे मौजूदा हालात म कु छ सुधार आया। यह योग
एक साल तक कया गया, ले कन उसके बाद जेल के अिधकतर अधी क ने इस योग के
िखलाफ रपोट दी और िव िवभाग ने भी इसके िलए कोष मुहय ै ा कराने म मुि कल का
हवाला दया। अंतत: इस सुधार को रोक दया गया। हमारे बमा वास के अंितम दन के
दौरान, उ ह ने एक और मह वपूण सुधार लागू करने का यास कया। कै दय को जेल से
बाहर िनकालकर उ ह सड़क-िनमाण के काम म लगाया गया। उ ह इसके िलए िशिवर म
रखा जाता था और जेल के मुकाबले उ ह यादा आजादी थी। उ ह भोजन के अलावा, एक
िनि त भ ा भी दया जाता था। मुझे नह पता क इस योग का अंितम प रणाम या
रहा, य क िजस समय तक मने बमा छोड़ा, इन िशिवर को चलाने के िलए यो य
अिधका रय को खोजने म द त आ रही थ । हम लोग क जब भी बात होती तो वे
महािनरी क अकसर मुझसे िशकायत करते थे क उनके पास ज री िश ा ा और ऐसे
च र के अिधका रय क कमी है, जो अपने जेल के वातावरण को भूलकर कै दय के साथ
इनसान जैसा बरताव कर सक।
बमा म अपने वास के दौरान, मुझे आपरािधक मनोिव ान और जेल सुधार संबंधी
सम या का अ ययन करने का मौका िमला। हम आव यक सािह य क आपू त कराने म
महािनरी क ने काफ मदद क । बमा क िविभ जेल म कै दय क आबादी ने भी
अ ययन के िलए एक मू यवान् साम ी मुहय ै ा कराई। अपने अ ययन और अवलोकन के
कु छ प रणाम को यहाँ देना न तो संभव है और न ही आव यक, ले कन म वयं को एक
अवलोकन तक सीिमत रखूँगा। आमतौर पर यह सोचा जाता है क ह या के दोषी मानवता
के बीभ स नमूने होते ह और वे पाप मुि क सीमा से परे जा चुके होते ह। इसके
िवपरीत, मेरा अनुभव यह कहता है क कै दय के बीच ह यारे सामा यत: बेहतर क म के
कै दी होते ह। कम-से-कम उन मामल म ऐसा ज र है, जहाँ गु से के आवेश म आकर या
अचानक पागलपन सवार होने से कसी ने ह या क हो। दूसरी ओर, पेशेवर चोर और
पॉके टमार सबसे घ टया क म के लोग होते ह। काल-कोठरी (जहाँ फाँसी दए जाने से पूव
कै दय को रखा जाता है) म मने समय-समय पर इनसािनयत के सबसे े नमून को देखा
था, कई बार तो ऐसे भी मामले थे, िजनम कशोरवय युवक को के वल इतनी सी बात के
िलए फाँसी दी गई क वे कसी एक ण म आपा खो बैठे थे और अचानक आवेश म आकर
कसी क ह या कर बैठे। बमा म हाईकोट िजतनी आसानी से मौत क सजा पर मंजूरी क
मोहर लगाता था, उसे देखकर मुझे हैरानी होती थी। इस त य के म ेनजर हाईकोट का
आचरण तो सबसे अिधक रा सी था क बमा म लोग स दय से कानून को अपने हाथ म
लेने के आदी रहे ह और अपर बमा तथा मांडले 1885 म ही ि टश शासन के अधीन आया
था।
समय-समय पर बड़े ही रोचक क म के लोग हमसे िमलने आते थे, िजनम अिधकारी भी
होते थे। गृहमं ी से लेकर मामूली मिज ेट तक कोई भी हम अनदेखा नह करता था,
य क भारतीय सरकारी बंदी उनके िलए मानवता के सबसे रोचक नमूने थे। इन आगंतुक
म थे पीटरसन, इं लड से आए जेल किम र, िज ह ने ‘भारत के आठ सवािधक खतरनाक
लोग ’ के प म हम लोग का वागत कया था। अकसर वहाँ आनेवाल म एक थे ाउन,
मांडले के िड टी किम र (िजला अिधकारी)। मांडले के लोग के ित उनका जो भी रवैया
रहा हो, ले कन सरकारी कै दय के साथ उनका वहार एक प वादी स न ि जैसा
था। वे बड़े ही स य ि थे और हम लोग को उनके साथ चचा म आनंद आता था।
इतना ही नह , सािहि यक साम ी मुहय ै ा कराने म मदद करने के साथ ही वे जेल
अिधका रय से हमारा झगड़ा होने पर बीच-बचाव भी कराते थे। कै टन ि मथ जब छु ी
पर चले गए तो जेल अिधका रय के साथ हमारे र ते अचानक तनावपूण हो गए। उनके
थान पर आए मेजर फं ले। कै टन ि मथ जहाँ िमलनसार वभाव के ि थे तो वह
मेजर फं ले का ि व ब त ही खा था और उनका वभाव तो ऐसा क जैसे हर व
चेहरे पर 12 ही बजे रहते थे। ज द ही बड़ी तु छ बात पर हम लोग का मेजर फं ले से
झगड़ा हो गया और बात भूख-हड़ताल तक चली गई। हालाँ क ाउन क म य थता से
गलतफहमी को दूर कर िलया गया। इसके बाद, जब हम एक-दूसरे को यादा करीब से
जानने लगे तो मने पाया क वे ब त ही यादा भले और प कहनेवाले इनसान थे। एक
और अिधकारी थे मेजर शैफड, जो कु छ समय के िलए सुप रं टडट बनकर आए थे और उनके
साथ हम लोग का लगातार छ ीस का आँकड़ा रहा। चूँ क वे यादा समय नह रहे तो
मामला कभी यादा िबगड़ा नह ।
सरकारी बं दय क यह हमारी पहली टोली नह थी, िजसे बमा या पत कया गया
था। हम लोग के आने से एक साल पहले एक और टोली को यहाँ लाया गया था। जब
पहला ज था आया तो उसे इसी जेल म नह रखा गया था, बि क बमा क दो अलग-अलग
जेल म भेज दया गया था। उन लोग ने बड़ा मुि कल समय िबताया था और चूँ क उ ह
अलग-अलग कर दया गया था तो वे अपने हालात म सुधार के िलए एकजुट होकर नह
लड़ पाए। इस अविध के दौरान दो सरकारी कै दी, जीवनलाल चटज और भूप कु मार द
ने भारतीय मामल के त कालीन िवदेश मं ी लॉड ऑिलिवयर को एक प भेजकर बंगाल
पुिलस क राजनीितक शाखा, िजसे भारत म इं टेिलजस ांच कहा जाता था, के वहार
क कड़ी आलोचना क थी। इसका मु य िवषय यह था क िनद ष, ले कन अित उ साही
युवक को फँ साने के िलए पुिलस ारा अपराध के िलए उकसानेवाले एजट को भरती
कया जाता था और इं टेिलजस ांच जानबूझकर ांितकारी सािजश क अफवाह फै लाती
थी, ता क उ ह ‘जोिखम भ े’ के प म अित र भ े िमल सक और मुखिबर क सेवाएँ
लेने के िलए उनके पास बड़ी मा ा म धन मौजूद रहे। इस आरोप को सािबत करने के िलए
कु छ त य और आँकड़े दए गए थे। यह प कसी तरह से इं िडयन ेस के पास प च ँ गया
और इसके काशन के बाद, वराजवादी नेता पं. मोतीलाल नेह ने असबली म अपने एक
भाषण म इसका उ लेख कया और िबना सुनवाई के लोग को कै द कए जाने क नीित पर
जमकर हमला बोला। इस प के कािशत होने से सरकार को इतना गु सा आया क उसने
बमा म सरकारी कै दय पर गंभीर क म के ितबंध लगा दए। कु छ समय बाद सरकार
का गु सा ठं डा आ तो सरकारी कै दय को एक जेल म एक साथ आने क अनुमित दे दी
गई। हालाँ क भूप कु मार द का मामला एक अपवाद रहा, िज ह सरकार प के
काशन के िलए दंिडत करना चाहती थी।
जेल म हम लोग को समय-समय पर बमा के राजनीितक कै दय से मुलाकात का मौका
िमलता था, िजनसे हमने बमा क राजनीित क पेचीदिगय के बारे म जाना। वहाँ िजन
लोग से हम िमले, उनम कु छ पुजारी (बमा म िज ह होपॉि गस कहा जाता है) थे। बमा क
जेल म ऐसे िजन पुजा रय से मेरी मुलाकात ई, उ ह मानवता का िचराग कहा जा
सकता है। बमा एक ऐसी धरती है, जहाँ कोई जाित, कोई वग नह है। स के बाहर यह
संभवत: सवािधक वगहीन देश है। बौ धम यहाँ जीवंत धम है और इस धम का पालन
करनेवाले पुजा रय का ब त स मान कया जाता है। स दय से ये पुजारी बालक-
बािलका को िन:शु क ाथिमक िश ा दान कर रहे ह और इसी का यह प रणाम है क
सा रता के मामले म बमा भारत से ब त आगे है। अं ेज ारा बमा को अपने अिधकार म
िलये जाने के बाद से के वल इन पुजा रय ने ही दम तोड़ते रा वाद क वाला को जलाए
रखा था, य क उ ह ने कभी भी ि टश आिधप य या ि टश सं कृ ित को वीकार नह
कया था। उनके नेतृ व म कई साल तक छापामार यु चलता रहा। उनके ारा िवदेशी
सरकार का लगातार िवरोध कए जाने को देखते ए, सभी अं ेज अिधकारी और गैर-
अिधकारी उनसे ब त घृणा करते थे। हैरानी क बात यह है क वे ि टेन िवरोधी ह, ले कन
हमेशा भारत समथक रहे ह। वे भारत से अलगाव का कड़ा िवरोध करते ह। भारत के साथ
उनका जो सां कृ ितक जुड़ाव है, उसके चलते वे महसूस करते ह क भारत से अलग होने पर
उनके िलए अपनी राजनीितक आजादी क खाितर ेट ि टेन से संघष करना और मुि कल
हो जाएगा। बमा के आमजन के बीच पुजा रय का ब त मजबूत भाव है। अं ेजी िशि त
बमा के लोग राजनीितक प से एक िवभािजत समुदाय ह। ब सं यक लोग राजनीितक
प से पुजा रय का िवरोध करते ह, वे भारत िवरोधी और ि टेन समथक ह।60 इनम से
कु छ अ प सं या म लोग हालाँ क राजनीितक प से पुजा रय के साथ जुड़े ह। अं ेजी
िशि त बमा लोग आमतौर पर यह महसूस करते ह क भारत से अलग होने से उ ह ब त
फायदा होगा, ले कन स ाई यह है क ये ि टश लोग ही ह, िजनके पास देश म सबकु छ
बेहतर चीज ह, भारतीय को ये सुिवधाएँ उपल ध नह ह। ‘अं ेजीदाँ’ बम लोग के पास
अपनी आजादी के िलए लड़ने का न तो कोई िवचार है और न ही नीयत तथा वे सोचते ह
क एक बार भारतीय को बमा से बाहर कर दया गया तो उनके िलए सबकु छ ठीक हो
जाएगा। दूसरी ओर, पुजारी राजनीितक बुि रखते ह और वे भारतीय रा ीय कां ेस क
नीित और चाल का अनुसरण करते ह। जब म बमा म था, बमा के िबना ताज के राजा थे
—परम आदरणीय यू ओटामा, जो क एक बौ पुजारी थे।61 वहाँ अपने वास के दौरान म
इस भाव म था क देश म पुजा रय के सबसे अिधक अनुयायी ह। उ ह ने 1920 से बमा
लेिज लेचर का बिह कार कया आ था और वहाँ उनका कोई ितिनिध नह था। इससे
सरकार ने यह सोचा क बम लोग भारत से अलग होना चाहते ह, जैसा क अं ेजी पढ़े-
िलखे बम आमतौर पर कहते थे। हालाँ क हािलया चुनाव ने यह दखाया है क लोग
अलगाव के िव ह। िपछले चुनाव के मह व को सही तरीके से तब समझा जा सके गा,
जब यह याद रखा जाए क ये चुनाव पुरानी मतदाता सूिचय के आधार पर लड़े गए थे
और िवभाजन िवरोधी प क इन मतदाता सूिचय म चुनाव से पूव संशोधन क माँग को
ठु करा दया गया था।
अलगाववा दय (अं ेजीदाँ बमन) और साथ ही अलगाववाद िवरोिधय के बीच कसी
एक पाट का गठन होना ब त मुि कल है, य क बमा म िनजी िहत मह वपूण भूिमका
अदा करते ह। पुजारी, जो अलगाववाद के िखलाफ ह, वे कु ल िमलाकर एक ठोस पाट ह।
जब म बमा म था तो अं ेजी िशि त बम लोग के बीच कई पा टयाँ थ , िजनम सबसे
अिधक मह वपूण पाट थी— वटी वन पाट 62—यह नाम इसिलए था, य क 21 लोग
ने िमलकर इसका गठन कया था। ‘दी नेशनिल ट पाट ’ को बमा म जी.सी.बी.ए. कहा
जाता है, िजसका पूरा नाम ‘जनरल काउं िसल ऑफ बम ज एसोिसएशन’ है और वहाँ कई
जी.सी.बी.ए. ह, य क वहाँ कई पा टयाँ ह। आज ब त से लोग को यह हैरानी होती है
क ि टेन, बमा को भारत से अलग करने के िलए इतना उ सुक य है? ले कन य द कोई
बमा को जानता है तो हैरानी का कोई कारण नह है। ब त से ि टश लोग क सोच यह
है क य द भारत उनका उपिनवेश नह भी रहता है तो भी बमा को उपिनवेश के प म
रखना वांछनीय है। बमा म आबादी इतनी कम है, खिनज पदाथ के मामले म यह इतना
समृ है और कु छ जगह पर तो मौसम इतना खुशनुमा रहता है क अं ेज के िलए इसे
उपिनवेश बनाना सही रहेगा। इसके अलावा, बमा सुदरू पूव का वेश ार है और इसक
मह वपूण रणनीितक ि थित है।
बमा क राजनीित के साथ ही इस देश और इसके लोग म मेरी अिधक िच है। मने बमा
के ाचीन इितहास और दोन देश के बीच ाचीन सां कृ ितक संपक का अ ययन करने म
काफ समय लगाया है। कोई संदह े नह है क ब त से े ीय कबीले भारत से बमा जाकर
बस गए थे। सीलोन और दि ण भारत के लोग क तरह ही वे लोग बौ धम और पािल
सािह य को लेकर बमा आए थे। बमा क सं कृ ित और दशन ापक प से भारत से
भािवत रहा है। अ र सं कृ त से िलये गए ह और यहाँ तक क िलिप भी कु छ भारतीय
िलिपय के समान है। बमा के पगोड़ा (मं दर), िजनक अपने आप म एक खूबसूरती है, वे
भी भारतीय भाव से अछू ते नह ह। बम सं कृ ित के पगान तथा अ य ाचीन क म
आज भी ऐसे ढाँचे देखे जा सकते ह, जो क ठे ठ हंद ू मं दर और ठे ठ बम पगोड़ा के बीच के
सि मलन को दरशाते ह। म पहले ही कह चुका ँ क एक आम बम क कला मक समझ
ब त उ तर क है। इसके िलए मांडले और अ य जेल म कै दय के उ म ह तिश प को
देखना ही काफ है। मांडले म, साल म दो या तीन अवसर पर जेल म अवकाश रहता है।
उस दन सुप रं टडट कै दय को नाच-गाने क अनुमित देते ह। उन दन म कै दी िविभ
कार के काय म आयोिजत करते थे। वे नाटक का मंचन करते और िवशेष प से तैयार
कए गए गीत गाते, रा ीय नृ य करते और उ ह ने तो जेल के आक ा तक म अपनी कला
का योगदान दया था। यह सब के वल उ प से िवकिसत कला मक अिभ िचवाले लोग
के बीच ही संभव था।
अ ू बर 1925 म हमारा रा ीय धा मक उ सव—दुगा पूजा आया तो हमने इसे मनाने
क अनुमित माँगने और चंदे के िलए सुप रं टडट को आवेदन दया। चूँ क इसी कार क
सुिवधा भारतीय जेल म ईसाई कै दय को दी जाती थी तो सुप रं टडट ने सरकार क
मंजूरी का अनुमान लगाते ए हम ज री सुिवधाएँ दान कर द । ले कन सरकार ने न
के वल ऐसी कोई मंजूरी देने से इनकार कर दया, बि क सुप रं टडट, मेजर फं ले को
अपनी मरजी से काररवाई करने के िलए फटकार भी लगाई। इस पर हमने सरकार को
सूिचत कया क उसे अपने फै सले पर पुन: िवचार करना चािहए, अ यथा हम लोग भूख-
हड़ताल पर जाने को मजबूर हो जाएँग।े जवाब न म आया तो हम लोग ने फरवरी 1926
म भूख-हड़ताल शु कर दी। बाहरी दुिनया के साथ हमारा सभी तरह का प ाचार रोक
दया गया। ले कन भूख-हड़ताल शु होने के तीन दन बाद, कलक ा से कािशत
समाचार-प ‘फॉरवड’ ने हमारी भूख-हड़ताल क खबर छाप दी और साथ ही सरकार को
दया गया हमारा अ टीमेटम भी। लगभग उसी समय ‘फॉरवड’ ने भारतीय जेल कमेटी
1919-21 क रपोट के कु छ अंश भी कािशत कर दए। इस कमेटी के सम जेल िवभाग
के एक उ अिधकारी लेि टनट कनल मुलवेनी इस बात के सबूत देते ए कहा था क उ ह
उनके उ अिधकारी इं पे टर जनरल ऑफ ीजन इन बंगाल ने उनक जेल म बंद कु छ
सरकारी कै दय के बारे म भेजी गई वा य रपोट को वापस लेने और उसके थान पर
झूठी रपोट भेजने का दबाव डाला था। इस खुलासे से जनता के बीच आ ोश फू ट पड़ा।
इं िडयन लेिज ले टव असबली, िजसक उस समय द ली म बैठक चल रही थी, वहाँ एक
वराजवादी सद य टी.सी. गो वामी ने मांडले जेल म भूख-हड़ताल को लेकर सदन म
थगन ताव पेश कया।
और साथ ही लेि टनट कनल मुलवेनी के सबूत का भी उ लेख कया क जेल िवभाग
ारा सरकारी कै दय के बारे म झूठी रपोट तैयार क जा रही ह। गृहमं ी ने इस पर वयं
को ब त ही असहज ि थित म पाया और भूख-हड़ताल पर बैठे सरकारी कै दय क
िशकायत का समाधान करने का वादा कया। इस मु े पर बहस समा होते ही यह पता
लगाने के िलए तुरंत एक जाँच बैठा दी गई क ‘फॉरवड’ को काशन के िलए यह साम ी
कहाँ से िमली? हालाँ क सरकार ने िबना कसी देरी के यह आदेश भी जारी कर दया क
वह हमारे ारा खच कए गए धन को मंजूरी देगी और भिव य म हमारी धा मक ज रत
के िलए सुिवधाएँ और कोष मुहय ै ा कराया जाएगा। तो 15 दन क भूख-हड़ताल के बाद,
जीत के साथ हमने हड़ताल समा कर दी।
1926 के उ राध म एक रोचक घटना ई। िवधानमंडल को भंग कर दया गया और
नए चुनाव नवंबर म होने थे। मेरे साथी कै दी, एस.सी. िम ा को इं िडयन लेिज ले टव
असबली का चुनाव लड़ने के िलए बंगाल कां ेस पाट ने सीट क पेशकश क और मुझे
बंगाल लेिज ले टव काउं िसल के िलए कलक ा िनवाचन- े का ताव रखा। हम दोन
ने इसे वीकार करते ए चुनाव म खड़े होने का फै सला कया। िम ा िन वरोध चुन िलये
गए, ले कन मुझे बंगाल म िलबरल पाट के नेता जे.एन. बसु के प म तगड़ा ित ं ी
िमला। िपछले चुनाव म बसु ने वराजवादी उ मीदवार को हराकर यह सीट बरकरार
रखी थी और कां ेस पाट ने सोचा था क उ ह उखाड़ फकने के िलए मुझे उनके िखलाफ
खड़ा करना ज री था। अपने िनवाचन- े म वे ब त लोकि य थे और ब त ही उ दज
के स न ि थे तथा हमारे पास उनके िखलाफ उनक िलबरल राजनीित के अलावा
कु छ नह था। बंगाल म यह साल का मह वपूण चुनाव था और इसिलए पाट ने जीतने के
िलए अपना सबसे मह वपूण दाँव चला था। चुनाव से िसन फन चुनाव क याद ताजा हो
ग , िजसम राजनीितक कै दी उ मीदवार थे और नारा था—‘इसे आजाद करने के िलए इसे
िजताओ।’ पाट ने चुनाव- चार के िलए आधुिनक तौर-तरीक का इ तेमाल कया, िजसम
परचे बाँटने के िलए राॅकेट का इ तेमाल कया गया और उ मीदवार को जेल क सलाख
के पीछे दखाते ए पो टर लगाए गए। मतदाता को यह महसूस आ क मेरी सफलता
मुझम िव ास पर जनता क राय होगी और इससे सरकार को मुझे रहा करने या मुझे
सुनवाई के िलए भेजने को मजबूर होना पड़ेगा। इस कार भारी ब मत से मेरी जीत ई।
ले कन गवनमट ऑफ इं िडया जनता क राय पर काम करने के मामले म आयरलड सरकार
से कम चु त थी और इसिलए मेरी सजा जारी रही।
इस बीच, ितकू ल मौसमी हालात और साल के शु आत म भूख-हड़ताल के म ेनजर
मेरी सेहत ने जवाब देना शु कर दया। 1926 क स दय के दौरान मामला उस समय
गंभीर हो गया, जब मुझे ास नली और फे फड़ संबंधी बीमारी कोिनमोिनया ने घेर
िलया। कोिनमोिनया के बाद बुखार मेरा पीछा ही नह छोड़ रहा था और साथ ही मेरा
वजन भी िगरना शु हो गया। मेिडकल बोड से मेरी जाँच कराने के िलए मुझे रं गून
थानांत रत कर दया गया। मेिडकल बोड म लेि टनट कनल के लसेल और मेरा भाई, डॉ.
सुनील सी. बोस थे, िज ह ने अपनी िसफा रश म कहा क मुझे जेल म नह रखा जाना
चािहए। म रं गून जेल म सरकारी आदेश का इं तजार कर रहा था क मेरा सुप रं टडट मेजर
लाॅवर ू (जो क इस समय बंगाल म जेल िवभाग के इं पे टर जनरल ह) से झगड़ा हो
गया, िजसके चलते मुझे इनसेन जेल म भेज दया गया। इनसेन जेल म भेजा जाना मेरे
िलए ई र का भेजा आशीवाद सािबत आ। वहाँ प च ँ ने पर मने सुप रं टडट मेजर फं ले
को पाया, जो क मांडले जेल म कु छ समय के िलए सुप रं टडट रह चुके थे। मेरी सेहत
देखकर उ ह ब त ही दु:ख आ। तीन स ाह तक मुझे िनगरानी म रखने के बाद उ ह ने
मेरी सेहत को लेकर सरकार को एक ब त ही स त िच ी िलखी। यह प पाने के बाद
सरकार काररवाई करने के िलए मजबूर हो गई। ले कन इसके बावजूद वे मुझे रहा करने
के िवचार के िखलाफ थे। इस बीच उ ह ने बंगाल लेिज ले टव काउं िसल म एक पेशकश क
क य द म अपने खच पर ि व जरलड जाना चा ँ तो वे मुझे रहा कर दगे और मुझे रं गून
म यूरोप जानेवाले जहाज पर चढ़ा दया जाएगा। इस पेशकश को मने नामंजूर कर दया,
कु छ तो इस वजह से क म पेशकश क शत को वीकार नह कर सकता था और कु छ इस
वजह से क मुझे अिनि तकाल के िलए सीधे बमा से यूरोप जाने का िवचार पसंद नह
आया। इस पेशकश को ठु कराए जाने के बाद मुझे सरकार क ओर से जो अगला आदेश ा
आ, वह मुझे संयु ांत म अ मोड़ा जेल म थानांत रत कए जाने का था। एक बार
फर से बेहद गोपनीय तरीके से मेरे थानांतरण क व था क गई। और मई 1927 क
एक सुबह, मुझे इनसेन जेल से िनकालकर रं गून से रवाना ई एक नौका म िबठा दया
गया। चौथे दन, म गली नदी के मुहाने पर डायमंड हाबर प च ँ गया। हमारी नौका के
कलक ा प च ँ ने से पहले उसे रोका गया और मेरी मुलाकात लॉमैन (जो उस समय पुिलस
क इं टेिलजस ांच के मुख थे) से ई, जो चाहते थे क म वहाँ उतर जाऊँ। यह सोचकर
क वे मुझे कलक ा से बाहर भेजना चाहते ह, मने इनकार कर दया। ले कन मुझे
आ ासन दया गया क गवनर ने अपनी नौका हम लोग के िलए दी है, जहाँ हम रखा
जाएगा। मुझे वहाँ एक मेिडकल बोड के सामने पेश होना होगा, जो मेरा इं तजार कर रहा
है। म इस बात पर राजी हो गया। बोड म सर नीलर सरकार, डॉ. बी.सी. रॉय, लेि टनट
कनल स स और गवनर के फिजिशयन मेजर कं ग टन ने मेरा मुआयना कया और
दाज लंग म गवनर को टेली ाम के मा यम से रपोट भेज दी। मने गवनर क नौका म
समय िबताया और अगले दन सुबह लॉमैन हाथ म एक टेली ाम िलये मुझे सूिचत करने
आए क गवनर ने मेरी रहाई का आदेश दे दया है। इतना कहते ए उ ह ने रहाई का
सरकारी आदेश मुझे थमा दया। यह 16 मई, 1927 का दन था, ले कन आदेश पर
ह ता र 11 मई के थे। यह कोई सािजश लग रही थी। मने लॉमैन से पूछा भी क जब
आदेश पर असल म पहले ही 11 मई को ह ता र हो चुके थे तो 15 मई को मेिडकल जाँच
का नाटक य कया गया? शु म उ ह ने कोई जवाब नह दया, ले कन जोर देने पर
उ ह ने कहा क 11 मई को अ य आदेश पर भी ह ता र कर उ ह तैयार रखा गया था,
िजनम मेरा अ मोड़ा थानांतरण का आदेश भी शािमल था। और यह फै सला कया गया
था क गवनर को मेिडकल बोड क रपोट िमलने के बाद, अंितम फै सला दाज लंग से
आएगा। बाद म मुझे पता चला क जब मेिडकल बोड इस बात पर िवचार कर रहा था क
या रपोट बनाई जाए तो पुिलस अिधका रय ने अपनी ओर से भरपूर यास कए क
मेिडकल बोड मेरे अ मोड़ा थानांतरण या मुझे ि व जरलड भेजे जाने के प म रपोट
भेजे। इसका मकसद मेरी रहाई को रोकना था, ले कन मेरी क मत अ छी थी क बोड ने
ऐसा करने से इनकार कर दया। इस कार, यह प था क पुिलस िवभाग ने अंितम ण
तक मेरी रहाई को रोके जाने के यास कए। अगर गवनर कोई और होते तो िनि त प
से वे इसम सफल हो जाते। सौभा य से, नए गवनर सर टैनले जै सन, खुले दमाग के साथ
आए थे और वे ब त मजबूत इनसान थे। एक मँझे ए राजनीित क अचूक सूझ-बूझ के
साथ वे लोग क िशकायत को भाँप लेते थे। आगमन के कु छ ही दन के भीतर उ ह
महसूस हो गया था क जनता अ याचारी पुिलस िवभाग से थोड़ा सा संर ण माँग रही
थी। लॉड िलटन के राज म पुिलस िवभाग का राज चलता था और कलक ा के पुिलस
किम र एक तरह से बंगाल के गवनर थे। यह सब अब बदल चुका था। कायभार सँभालने
के कु छ ही स ाह के भीतर सर टैनले जै सन ने सबको यह समझा दया था क आगे से
बंगाल पर उनका शासन होगा, न क पुिलस किम र का। जब भी कभी जनता और पुिलस
के बीच म कसी कार का िववाद पैदा हो जाता तो वे पुिलस क नाराजगी क क मत पर
भी याय करते थे। अपनी दृढ़ता और सूझ-बूझ से करीब चार साल तक वे सम या को
टालने म स म रहे। के वल जब पूरे भारत म ही उथल-पुथल मचने लगी, तो बंगाल एक
बार फर से भारत के राजनीितक तूफान का क बन गया।

8
मौसम सुहावना आ (1927-28)
19 27 के म य तक बुरा व बीत चुका था और ि ितज पर रोशनी नजर आनी शु हो
गई थी। संक ण सं दायवाद, वाथ और क रता, िज ह ने देशबंधु के िनधन के बाद देश को
अपने िशकं जे म ले िलया था, इनसे िथत जनता ने एक बार फर से आंदोिलत होना शु
कर दया। इस नवजागरण म युवा का योगदान ब त अिधक था। कु ल िमलाकर कां ेस
का नेतृ व कमजोर था। महा मा गांधी गहरे अवसाद म िघरे स य राजनीित से कनारा
कर चुके थे। पं. मोतीलाल नेह कु छ पेशेवर कारण और कु छ अपनी ब के गंभीर प से
बीमार होने के कारण यूरोप रवाना हो गए थे। इन प रि थितय म नेतृ व क िज मेदारी
ीिनवास आयंगर के कं ध पर आ गई और उ ह ने इसे बखूबी िनभाने का य कया।
1927 का अिधकतर समय उ ह ने अंतर-सां दाियक मेलजोल और िम ता को पुन:
थािपत करने के िलए रा - मण म िबताया। उस साल उनक सबसे बड़ी उपलि ध
नवंबर के महीने म कलक ा म यूिनटी कॉ स का सफल आयोजन रही, िजसक अ य ता
उ ह ने वयं क । यह यूिनटी कॉ स देश म भिव य म मचनेवाली उथल-पुथल से र ा के
िलए एक मजबूत माग का िनमाण करनेवाली सािबत होनेवाली थी, जब सभी समुदाय
और दल एक बार फर से साथ आनेवाले थे। बंगाल, जहाँ 1926 के दौरान सां दाियक
वार ने सबसे उ प धारण कया था, अब वहाँ एक नए युग का सू पात होने के संकेत
िमल रहे थे। बंगाल लेिज ले टव काउं िसल (िवधानमंडल) म अिव ास ताव पर मत
िवभाजन के प रणाम व प, अग त म मंि य को एक बार फर से बाहर का रा ता दखा
दया गया। उस समय तक, कलक ा से 70 मील दूर खड़गपुर म बंगाल-नागपुर रे लवे क
सबसे बड़ी वकशॉप म हड़ताल शु हो गई। कामगार का संगठन इतना मजबूत था क
कं पनी को उनक माँग के आगे घुटने टेकने पड़े। नवंबर म कलक ा म यूिनटी कॉ स ने
वातावरण को साफ करने और हंद-ू मुसिलम समुदाय के बीच िम वत् भावना को पुन:
थािपत करने म मदद क थी। उसी महीने म बाद म, जब बंगाल कां ेस कमेटी63 क
सालाना बैठक ई तो बंगाल कां ेस के कायकता म काफ उ साह नजर आया। हालाँ क
नवजागृित के िलए सवािधक ो साहन सरकार क ओर से आया।
नवंबर 1927 म भारतीय रा वा दय के िलए वह ब त ही शुभ समय था, जब
वायसराय लॉड इरिवन ने भारतीय सांिविधक आयोग क िनयुि संबंधी घोषणा क । यह
िनयुि गवनमट ऑफ इं िडया ऐ ट-1919 क धारा-84ए के तहत क गई थी, जो भारत म
राजनीितक ि थित क दशक य समी ा का ावधान करती थी। कु छ हद तक यह ि टश
संसद् ारा ई ट इं िडया कं पनी के चाटर के नवीनीकरण के समय कं पनी के मामल का
राजनीितक सव ण कए जाने क याद दला रही थी। चूँ क सांिविधक आयोग का गठन
1929 म होना था तो ऐसे म यह देखकर हैरानी ई क टोरी सरकार ने आयोग क तारीख
को लेकर तेजी से काम करना शु कर दया। भारतीय रा ीय कां ेस 1920 से ही
संिवधान म संशोधन के िलए गोलमेज स मेलन क माँग कर रही थी, ता क भारत म
डोिमिनयन होम ल ज द लागू कया जा सके , ले कन ि टश सरकार ारा यह माँग
लगातार ठु कराई जाती रही थी। कं जरवे टव पाट ने 1919 के सुधार को लेकर कभी
उदारता नह दखाई थी, िजसके िलए मु य प से िलबरल म टे यू िज मेदार ह। यह
अलग बात है क भारतीय क राय म ये सुधार अपया और असंतोषजनक थे। इसिलए वे
भारत के सवाल को वयं स ा म रहने के दौरान िनपटाना चाहते थे, ता क य द लेबर
पाट उनके बाद स ा म आती भी है तो वह होम ल के िलए भारतीय क माँग पर कोई
और रयायत नह दे पाएगी। इं लड म अगले आम चुनाव 1929 म होने थे तो कं जरवे टव
कै िबनेट को 1927 म सांिविधक आयोग क िनयुि करना ज री लगा।
इस आयोग म सर जॉन साइमन (अ य ), िव काउं ट बनहैम, लॉड ाथकोना, माननीय
एडवड कडोगान, टीफन वा श, मेजर एटली और कनल लेन फॉ स (वा श ने इ तीफा दे
दया और उनके थान पर वम न हाटशोन को िनयु कया गया) सात सद य थे, िजनम
से चार लेबर पाट से, एक (अ य ) िलबरल और बाक कं जरवे टव थे। आयोग को सरकार
क व था के कामकाज, िश ा के िवकास, ि टश भारत म ितिनिध सं थान के
िवकास और उससे जुड़े मु क जाँच करने का िज मा स पा गया। आयोग को साथ ही यह
जाँच भी करनी थी क कस हद तक िज मेदार सरकार के िस ांत को थािपत करना या
उस समय मौजूद िज मेदार सरकार के अिधकार- े को बढ़ाना, संशोिधत करना या
ितबंिधत करना वांछनीय है, िजसम यह सवाल भी शािमल है क ‘ थानीय
िवधाियका के दूसरे सदन क थापना वांछनीय है या नह ?’ सरकार क ओर से यह
कहा गया क भारतीय को आयोग से मजबूरन बाहर रखा गया है, य क यह िविश
प से संसदीय आयोग है और वायसराय ने िन िलिखत श द म एक संसदीय आयोग क
आव यकता को िव तार से बताया है—‘आमतौर पर इस बात से सभी एकमत ह गे क
एक आयोग क ज रत है, जो पूव ह से मु हो और संसद् को सटीक त या मक तसवीर
पेश करने म स म हो; ले कन यह एक ऐसी इकाई भी हो, िजसक िसफा रश पर संसद्
को इन त य का अ ययन करने के िलए जो भी काररवाई उिचत लगे, करने के िलए तैयार
पाया जाना चािहए।’ आयोग क घोषणा के साथ-ही-साथ वायसराय और ांतीय गवनर
ने जनता के कई नुमाइं द को उनके सामने िव तार से यह बताने के िलए आमंि त कया
क सरकार का ल य और मंशा या है? आयोग क थापना 26 नवंबर, 1927 को रॉयल
वारं ट के मा यम से क गई थी और भारतीय मामल के सिचव, लॉड िबरके नहेड ने आयोग
क थापना के महीने म ही हाउस ऑफ लाॅ स म अपने भाषण म भारतीय राजनेता को
चुनौती दी थी क वे भारत के िलए सहमित पर आधा रत संिवधान पेश करके दखाएँ।
सांिविधक आयोग संबंधी घोषणा क देश के सभी िह स से कां ेस नेता और ापक
प से जनता ने एक वर म नंदा क । भारत के िलए आ म-िनणय के िवचार क जनता
इतनी अ य त हो चुक थी क अब वह ि टश संसद् को भारत क िनयित तय करनेवाला
िबचौिलया ही नह मानती थी। इसिलए यह वाभािवक था क कां ेस को िबना कसी
िहचक और देरी के आयोग (जो साइमन कमीशन के नाम से लोकि य है) के बिह कार का
फै सला करना चािहए। यह सरकार के िलए कोई हैरानी क बात नह थी। ले कन भारतीय
उदारवा दय ारा आयोग का बिह कार करने का फै सला उसके िलए ज र हैरानी क
बात थी। यह आ म-िनणय के िस ांत का उ लंघन नह था, िजससे उ ह ने वयं को
अपमािनत महसूस कया था, बि क आयोग म के वल गोर को रखना और भारतीय को
बाहर कर देने से उ ह अिधक पीड़ा ई थी। ि टश सरकार क ओर से इस कार के
असहयोग क सूरत म उदारवादी भारत ि टश सहयोग के अपने पसंदीदा िस ांत को कै से
बरकरार रख सकते थे? दसंबर म इलाहाबाद म ई एक आम सभा म ताव पा रत
कया गया, िजसम उदारवा दय के इस रवैए क ा या क गई थी। इस आम सभा क
अ य ता सर तेज बहादुर स ू ने क थी और इसम इस बात पर िवचार कया गया क
भारतीय को आयोग से बाहर रखना, भारत के लोग का जानबूझकर कया गया अपमान
है और िनि त प से यह न के वल उ ह दोयम दजा देता है, बि क सबसे यादा बुरा यह है
क यह उ ह अपने खुद के देश के संिवधान का िनधारण करने क या म भागीदारी के
उनके अिधकार से वंिचत करता है। उसी साल िलबरल फे डरे शन का दसवाँ स बॉ बे म
आयोिजत कया गया और इसक अ य ता उ ह स न ने क और साइमन कमीशन को
खा रज करने का फै सला िलया गया। नवंबर म यूिनटी कॉ स के बाद, दसंबर म
कलक ा म ऑल इं िडया मुसिलम लीग क बैठक ई। लीग ने यूिनटी कॉ स ारा
अपनाई गई नीित के अनु प हंद-ू मुसिलम एकता क िसफा रश करते ए एक ताव
पा रत कया। लीग के ताव म भी, साइमन कमीशन का बिह कार करने क अपील क
गई और मुसिलम के िलए सीट के आर ण के साथ संयु िनवाचक मंडल के िस ांत को
वीकार कया गया। रा वादी मुसिलम के िलए यह फै सला एक जीत थी और यह के वल
इसिलए संभव हो पाया था क एम.ए. िज ा और अली बंधु जैसे िति त मुसिलम ने
कॉ स म भाग िलया था तथा रा वादी िवचार क वकालत क थी। उसी साल ऑल
इं िडया ेड यूिनयन कां ेस क कानपुर म बैठक ई और पहली बार इसम क युिन ट क
एक ठोस इकाई नजर आई, जो सोशिल ट रपि लक (समाजवादी गणतं ) के प म और
ए टडम म ि टश ेड यूिनयन के साथ िनि त प से अपने संबंध को समा करने के
िलए खड़ी थी। दसंबर समा होने को था और भारतीय रा ीय कां ेस का सालाना स
म ास म आयोिजत कया गया, िजसक अ य ता द ली के रा वादी मुसिलम नेता डॉ.
एम.ए. अंसारी ने क । म ास कां ेस दो कारण से यादगार है। िन संदह े इसम साइमन
कमीशन का ‘हर तर और हर प म’ बिह कार कए जाने संबंधी ताव पा रत कया
गया। ले कन इसके साथ ही एक और ताव भी पा रत कया गया, िजसम सभी दल को
वीकाय, भारत के िलए एक संिवधान क परे खा तैयार करने के म ेनजर अिखल
भारतीय सवदलीय स मेलन आ त करने के ए जी यू टव (कायपािलका) को िनदश दए
गए थे। एक थोड़ा िवरोधाभासी ताव भी मंजूर कया गया, िजसम भारतीय लोग के
िलए ‘पूण वतं ता’ का ल य घोिषत कया गया।
म ास कां ेस क काररवाई प संकेत देती थी क साइमन कमीशन क िनयुि एक
शुभ मु त म क गई थी और लोग के उ साह को जगाने म इसका शानदार भाव पड़ा।
एक िसरे से लेकर दूसरे िसरे तक पूरे देश म एकजुटता थी, जो क हािलया समय म इससे
पूव िवरले ही नजर आई थी। एकजुटता क यह भावना और लॉड बक हेड क हाउस ऑफ
ला स म दी गई चुनौती का मुँहतोड़ जवाब दए जाने क ितब ता ही थी क सवदलीय
स मेलन बुलाने का फै सला कया गया। पूण प से गोर के आयोग क िनयुि से पैदा ए
भाव के अित र एक और कारक था, िजसने उस समय कां ेस पर अिमट छाप छोड़ी
थी। वह था—युवा के बीच एक नई चेतना का संचार। कां ेस म युवा तबका िपछले कु छ
समय से अिधक क रवादी िवचारधारा क माँग करता आ रहा था और उनके भाव के
तहत ांतीय स मेलन म समय-समय पर ताव पा रत कर भारतीय रा ीय कां ेस से
िसफा रश क गई थी क भारतीय जनता के ल य को संपूण रा ीय वतं ता के प म
प रभािषत कया जाना चािहए। इसिलए म ास कां ेस म आजादी64 संबंधी ताव उस
या को उसके ता कक प रणाम तक प च ँ ना था, जो कां ेस के भीतर लंबे समय से चल
रही थी। इस ताव के साथ म ास कां ेस ने कायसिमित म वामपंथ के ितिनिधय को
िनयु करते ए एक मह वपूण कदम उठाया और आगामी वष के िलए महासिचव के
प म पं. जवाहरलाल नेह (नेह जूिनयर), शोएब कु रै शी और लेखक को िनयु कया
गया। इस कार म ास कां ेस को वाम के ित एक िनि त झुकाव के िलए कदम उठाने के
तौर पर देखा जा सकता है।
म ास कां ेस क काररवाई का एक और त व है, जो मह व रखता है और यह था—पं.
जवाहरलाल नेह क यूरोप से वापसी और कां ेस क चचा म उनका भाग लेना। पं.
जवाहरलाल नेह का कॅ रयर ब त रोचक रहा था। कि ज से अपनी पढ़ाई पूरी करने के
बाद उ ह बार म बुला िलया गया था। ले कन जब 1920 म असहयोग आंदोलन शु आ
तो वे अपना पेशेवर कामकाज छोड़कर महा मा से आ जुड़।े दलच प चचा के अनुसार,
पं. मोतीलाल नेह पर भी ऐसा ही करने का दबाव बनाने के िलए काफ हद तक वही
िज मेदार थे। िवधानमंडल के भीतर काम करने के सवाल पर वे वराजवा दय से एक
राय नह थे और जब से वे स ा म आए थे तो वे वैि छक प से कां ेस क प रषद म
िपछली सीट पर चले गए थे। बाद म वे काफ लंबे समय तक अपनी बीमार प ी के साथ
यूरोप म थे और अपने यूरोप वास के दौरान उ ह ने यूरोप और खासतौर से सोिवयत स
के कु छ ताजा घटना म का अ ययन कया था। भारत लौटने के बाद से उ ह ने एक नई
िवचारधारा को अिभ ि दी और वयं को समाजवादी घोिषत कर दया, िजसका
कां ेस म वामपंथी समूह और देश म युवा संगठन ारा दल खोलकर वागत तो कया
जाना ही था। सावजिनक े म उनके नए दौर को म ास कां ेस म पहली बार
अिभ ि िमली।
साइमन कमीशन के िखलाफ िवरोध क जो मजबूत दीवार खड़ी क गई थी, उसने
सरकार क आँख खोल द । उसे समझ आ गया क िवप के तीखे तेवर को नरम करने के
िलए कु छ करना पड़ेगा। इसिलए फरवरी 1928 म भारत आगमन के तुरंत बाद, सर जॉन
साइमन ने वायसराय को प िलखकर सुझाव दया क कमीशन क संरचना ‘संयु मु
स मेलन’ कृ ित क होनी चािहए, िजसम सात ि टश सद य और भारतीय िवधानमंडल
ारा चयिनत एक ितिनिध इकाई शािमल हो। सर शंकरण नायर ारा कए गए सवाल
के जवाब म सर जॉन साइमन ने आगे कहा था क िवधानमंडल ारा िनयु सिमितय
क रपोट आयोग ारा संसद् को स पी जानेवाली मु य रपोट के साथ न थी क जाएँगी।
सर जॉन साइमन ारा सुझाए गए उपरो बदलाव के बावजूद सभी दल के नेता ने
द ली से जारी एक घोषणा-प के ज रए तुरंत घोषणा कर दी क साइमन कमीशन के
िखलाफ उनका िवरोध अभी भी जारी है। इं िडयन लेिज ले टव असबली म लाला लाजपत
राय ने साइमन कमीशन को अ वीकार कए जाने संबंधी ताव पेश कया और यह
िविधवत् कया गया। त नुसार साइमन कमीशन के साथ सहयोग करने के िलए असबली
ारा कोई कमेटी ग ठत नह क गई। ांतीय िवधानमंडल म से के वल क ीय ांतीय
िवधान प रषद् ही कमेटी के गठन का िवरोध कर सक । हालाँ क कां ेस और उदारवादी
दल के िवरोध के बावजूद सभी ांतीय िवधानमंडल ने कमीशन के साथ सहयोग के िलए
कमे टय का गठन कर दया।
फरवरी 1928 म भारत म ‘साइमन सेवन’ के पधारने पर उसका वागत कां ेस
कायसिमित के िनदश पर आयोिजत रा ीय ‘हड़ताल’ या बिह कार और दशन से कया
गया। पूरे देश और िवशेष प से बंगाल म उ साह समु क तूफानी लहर क तरह चरम
पर था। जनता कां ेस नेता से सकारा मक अगुआई क उ मीद कर रही थी, िजससे क
उन लोग को बिह कार का अथ समझ आ सके , िजनके िखलाफ यह था। ले कन कां ेस
मु यालय क ओर से कोई दशा-िनदश नह आया। के वल बंगाल म ांतीय कां ेस कमेटी
ने अपनी वयं क िज मेदारी पर उस दन से ि टश व तु का बिह कार करने के िलए
सघन अिभयान छेड़ दया, िजस दन कमीशन बॉ बे प च ँ ा। इस बात म कोई संदहे नह है
क य द कां ेस कायसिमित ने पूरे साहस से काम िलया होता तो वे 1930 के आंदोलन को
दो साल पहले ही भाँप सकते थे और साइमन कमीशन क िनयुि ऐसे आंदोलन का
शु आती बंद ु हो सकती थी। जब लेखक मई 1928 म साबरमती म महा मा से िमलने गए
तो उ ह ने उनको बताया क कै से कई ांत म जनता म जबरद त उ साह था। उ ह ने
महा मा से हाथ जोड़कर भीख माँगी क वे अपनी सेवािनवृि से बाहर िनकलकर देश को
नेतृ व दान कर। उस समय महा मा का जवाब था क उ ह कोई रोशनी दखाई नह पड़
रही है, हालाँ क ठीक उनक आँख के सामने बारदोली के कसान लगान के िखलाफ
दशन कर रहे थे और बता रहे थे क वे संघष के िलए तैयार ह। साल 1928 और साल
1929 के दौरान िमक जगत् म इतनी अिधक अशांित रही थी क य द उस समय कोई
राजनीितक आंदोलन शु कया जाता तो वह एक सही शु आत होती। इतना ही नह ,
1928 और 1929 म पंजाब तथा बंगाल जैसे ांत म 1930 के मुकाबले जनता म कह
अिधक उ साह और उ ेजना थी। 1930 म जब महा मा ारा आंदोलन शु कया गया तो
काफ हद तक िमक आंदोलन क आग ठं डी हो चली थी तथा कु छ ांत म ि थित पहले
क तुलना म काफ शांत थी। 1930 म आंदोलन क शु आत के बाद महा मा ने अपने
समाचार-प ‘यंग इं िडया’ म कहा था क वे इस आंदोलन को दो साल पहले शु कर
सकते थे। 1928 के हालात का फायदा नह उठाने क िज मेदारी न के वल महा मा, बि क
वराजवादी नेता पर भी उतनी ही थी, िजनके हाथ म उस समय कां ेस तं क कमान
थी, ले कन जो दुभा यवश अपना गितशील आवेग खो चुके थे। उस समय य द देशबंधु दास
जैसा नेता मौजूद रहता तो 1921 म ंस ऑफ वे स क भारत या ा के बिह कार के बाद
का घटना म 1928 म दोहराया गया होता।
तमाम िवरोध से बेपरवाह ‘साइमन सेवन’ ने जगह-जगह क या ा क । जहाँ भी
कमीशन गया, काले झंड से उनका वागत कया गया, दशन कए गए और ‘साइमन,
वापस जाओ’ के नारे लगाए गए। सरकार ने इसक काट के िलए मुसिलम के एक तबके
तथा वंिचत वग के एक तबके क मदद से ितरोध म दशन आयोिजत कराने के यास
कए, ले कन उसे सफलता नह िमली। हालाँ क बिह कार अिभयान को पूरी कड़ाई के
साथ अ हंसा क सीमा के भीतर रखा गया था, जहाँ भी कमीशन गया, वहाँ ापक
बंध कए गए थे और कु छ जगह पर अनाव यक प से कठोर दमन का सहारा िलया
गया। देश के िविभ भाग म िनह थे नाग रक और सश पुिलस बल के बीच ए संघष
म, के वल लाहौर को छोड़कर कह कोई गंभीर घटना नह ई। लाहौर म लाला लाजपत
राय क अगुआई म दशन हो रहा था और दशनका रय पर पुिलस ने लाठी-डंड का
इ तेमाल कया। लाला लाजपत राय, जो दशनका रय क अि म पंि म थे, इस हमले
म गंभीर प से घायल हो गए और उ ह ने कु छ समय के िलए िब तर पकड़ िलया।
शु आत म तो वे थोड़ा ठीक हो गए, ले कन उनके दय को गंभीर आघात लगा था और
फर से उभरी इस बीमारी ने आिखर उनक जान ले ली। लालाजी क मौत से देशभर म
दु:ख और आ ोश क लहर दौड़ गई, य क परो प से उनका यह खून साइमन
कमीशन के िसर पर था। नतीजतन कमीशन लोग के बीच और बदनाम हो गया, जो
पंजाब के इस नेता का ब त स मान करते थे और उ ह अपना आदश मानते थे।
नेता क गितिविधयाँ कमीशन के नकारा मक बिह कार तक ही सीिमत नह थ ।
उनके सामने अभी सबसे बड़ी िज मेदारी, एक सहमितवाला संिवधान पेश कर लॉड
बक हेड ारा दी गई चुनौती का मुँहतोड़ जवाब देने क थी। इस ल य क ाि के िलए
फरवरी और माच 1928 म द ली म एक सवदलीय बैठक ई। इस बैठक का सबसे पेचीदा
मसला नए संिवधान के तहत िवधानमंडल म हंद ु -मुसिलम -िसख के ितिनिध व का
था, िजसे हल करना था। जब यही बैठक पुन: बॉ बे म मई म ई तो माहौल काफ
िनराशाजनक तीत हो रहा था, य क कोई गित नह ई थी। महा मा गांधी के िववेक
को इसका ेय जाता है क बैठक म सावजिनक प से अपनी िवफलता का सं ान लेने के
बजाय भारत के िलए नए संिवधान के िस ांत को तय करने और उस पर एक रपोट का
मसौदा तैयार करने के मकसद से पं. मोतीलाल नेह क अ य ता म एक छोटी सिमित
का गठन कर दया गया। सिमित ने इलाबाहाद म कई बैठक करने के बाद अग त म
आिखरकार अपनी रपोट65 जारी क , जो क सवस मत थी, हालाँ क इसक तावना म
कु छ आपि याँ जोड़ी गई थ । रपोट पर पं. मोतीलाल नेह , सर अली इमाम, सर तेज
बहादुर स ू, एम.एस. एने, सरदार मंगल संह, शोएब कु रै शी, जी.आर. धान और लेखक
के ह ता र थे। इस सिमित क रपोट, जो ‘नेह सिमित’ के नाम से लोकि य है, का देश
के सभी वराजवा दय ने स दयता के साथ वागत कया, य क इसने साइमन कमीशन
के काय को िनरथक कर दया था। महा मा गांधी ने रपोट पर कड़ी मेहनत करने के िलए
पं. मोतीलाल नेह को अपनी शुभकामनाएँ भेज , िजनके िलए यह एक बड़ी उपलि ध
थी। लखनऊ म अग त म सवदलीय स मेलन के समापन स म रपोट को पेश कया गया
और इसे सवस मित से अंगीकार कर िलया गया। इसे पुन: दसंबर 1928 म कलक ा म
सवदलीय स मेलन के सम रखा गया और मुसिलम लीग, िसख लीग तथा हंद ू महासभा
के ितिनिधय ारा बैठक म इस पर आपि याँ उठाई ग । मुसिलम लीग ारा कया गया
िवरोध सवािधक गंभीर था और इसने अ य दो इकाइय को भी िवरोध का मौका दे दया।
नेह रपोट क तावना म कहा गया था क संिवधान के मूल आधार के सवाल पर
सिमित एकमत नह हो सक , य क एक अ पसं यक66 डोिमिनयन टेटस को वीकार
नह कया और उसने संिवधान के आधार के िलए पूण रा ीय आजादी पर दबाव डाला।
नेह सिमित के अिधकतर सद य ने हालाँ क डोिमिनयन टेटस को संिवधान के आधार
के प म वीकार कर िलया। और उ ह ने उन राजनीितक दल क काररवाई क
वतं ता को बािधत कए िबना ऐसा कया, िजनका ल य पूण आजादी था। रपोट म
संिवधान क जो परे खा तय क गई थी, वह के वल ि टश भारत के िलए थी। भारतीय
रा य के संबंध म रपोट म कहा गया था क स ल गवनमट को संिधय या अ यथा से
उ प भारतीय रा य के संबंध म समान अिधकार का योग करना चािहए और उसी
दािय व का िनवहन करना चािहए, जैसा क वतमान गवनमट ऑफ इं िडया ने योग और
िनवहन कया था। हालाँ क जब भी रा य अपने अिधकार का समपण करने के िलए तैयार
ह गे, जो क संघ क आव यकता है, भारतीय रा य को शेष भारत के साथ भिव य म
संघीय संबंध म बाँधने का इं तजार रहेगा। रपोट म ांत के िलए वाय ता क िसफा रश
क गई थी और संध तथा कनाटक को अलग ांत के प म सृिजत कए जाने का सुझाव
दया गया था। ांत और क —दोन म ही कायपािलका िवधानमंडल के ित िज मेदार
होगी। स ल लेिज लेचर का गठन सीनेट और हाउस ऑफ र ेजटे टव से कया जाएगा—
सीनेट का िनवाचन ांतीय िवधानमंडल ारा कया जाएगा। हर वय क, चाहे वह कसी
भी लंग का हो, मतािधकार का हकदार होगा तथा हंद ु , मुसिलम और अ य समुदाय
के िलए संयु िनवाचक मंडल होगा। अ पसं यक समुदाय के िलए के वल दस साल क
अविध के िलए सीट का आर ण होगा। बंगाल और पंजाब म सीट का कतई कोई आर ण
नह होगा। भारत का एक सु ीम कोट होगा, ि वी काउं िसल म अपील पर पूण ितबंध
होगा। िसिवल स वसेज क सरकार के िनयं ण के तहत रहगी। रपोट म आगे उ ीस
मौिलक अिधकार का उ लेख कया गया है, िज ह संिविध म शािमल कया जाना था।
अिविश शि याँ क सरकार के पास रहनी थ ।
नेह सिमित क सबसे बड़ी सफलता तािवत संिवधान के तहत िवधानमंडल म
हंद ु -मुसिलम -िसख के ितिनिध व के सवाल का समाधान करना थी। हाल ही के
अंतर-सां दाियक तनाव को देखते ए इतनी ज द ऐसी उपलि ध संभव नह होती, अगर
साइमन कमीशन क िनयुि ने नई प रि थितय का िनमाण नह कया होता। रपोट म
सभी समुदाय के िलए साझा िनवाचक मंडल क व था क गई थी। अ पसं यक
समुदाय अपनी आबादी के अनुपात म िवधानमंडल म सीट के आर ण के हकदार ह गे
और इसके अित र उ ह अ य सीट के िलए भी चुनाव लड़ने का अिधकार होगा।
हालाँ क आर ण के वल दस साल क अविध के िलए होगा। बंगाल और पंजाब के िलए
सिमित ने कसी कार के आर ण का ावधान नह रखने का फै सला कया था। इन दोन
ांत म हंद ू अ पसं यक थे, ले कन उ ह ने कसी आर ण क माँग नह क , य क ऐसा
करना रा वाद के िस ांत के िवपरीत था—और सिमित ने इसे अनुिचत तथा अता कक
पाया था क ब सं यक समुदाय —जैसे क मुसिलम के िलए सीट का आर ण होना
चािहए। जहाँ तक िसख क बात है, य द अ य दो समुदाय ने ऐसा कया तो वे अपने
समुदाय के िलए सीट का आर ण छोड़ने के िलए तैयार थे—और य द अ य समुदाय ऐसा
नह करते ह तो िसख ने भी अपनी सं या के िहसाब से आर ण क माँग क । यहाँ नेह
सिमित को िस ांत का सवाल जँच गया और ावहा रकता का भी यही तकाजा था क
बंगाल और पंजाब क सम या का े समाधान यही है क वहाँ कोई आर ण ही नह हो।
बंगाल म मौजूदा संिवधान के तहत, मुसिलम के पास 40 फ सदी िनवािचत सीट और
हंद ु के िलए 60 फ सदी सीट थ , जब क मुसिलम आबादी करीब 54 फ सदी और हंद ू
आबादी करीब 46 फ सदी थी। पंजाब म मौजूदा संिवधान के तहत मुसिलम के पास 50
फ सदी िनवािचत सीट, हंद ु के पास 31 फ सदी और िसख के पास 19 फ सदी सीट थ ,
जब क आबादी म मुसिलम 55 फ सदी, हंद ू 34 फ सदी और िसख 11 फ सदी थे। इस
समय चिलत हंद-ू मुसिलम-िसख ितिनिध व ‘कां ेस लीग योजना’ पर आधा रत है,
िजसे 1926 म लखनऊ म भारतीय रा ीय कां ेस और अिखल भारतीय मुसिलम लीग के
बीच ए एक समझौते के प म अपनाया गया था। उनक आबादी के अनुपात म, कां ेस
लीग योजना के तहत बंगाल और पंजाब म मुसिलम का ितिनिध व घट गया था, य क
अ य ांत म मुसिलम को उनक सं या से कह ब त अिधक ितिनिध व िमला था और
हंद-ू मुसिलम िहत म समायोजन अिखल भारतीय आधार पर कया गया था। कां ेस लीग
योजना के तहत द मुसिलम ितिनिध व बंगाल और पंजाब के मुसिलम को अब और
यादा वीकाय नह था। इसके साथ ही नेह सिमित ने पाया क ऐसा एक और अनुपात
तय करना लगभग असंभव है, जो क सभी संबंिधत प को वीकाय हो। इसिलए
ावहा रक दृि से भी सिमित ने यही फै सला करने को सही पाया क बंगाल और पंजाब
म सीट को आरि त न कया जाए।
एक ओर जहाँ नेह सिमित नए संिवधान के िस ांत को अंितम प देने म जुटी थी तो
वह अ य थान पर रोचक घटनाएँ आकार ले रही थ । मई 1928 म मुझे पूना म महारा
ांतीय स मेलन क अ य ता करने के िलए आमंि त कया गया। वहाँ मने जो उ साह
पाया, वह हैरान करनेवाला था। अपने भाषण म मने कां ेस कायकता के िलए कु छ नई
गितिविधय क वकालत क , िजनके बारे म मने बमा म अपनी कै द के दौरान मंथन कया
था। उदाहरण के िलए, मने अपील क क कां ेस को िमक को संग ठत करने का काम
सीधे अपने हाथ म लेना चािहए और युवा तथा छा को अपने िहत को आगे बढ़ाने
और साथ ही रा सेवा के िलए अपने खुद के संगठन शु करने चािहए। मने मिहला के
कां ेस संगठन म भागीदारी िनभाने के अित र उनके िलए भी पृथक् संगठन क अपील
क । पूना से म बॉ बे गया और वहाँ मने पाया क युवा वग वहाँ पहले से ही ‘बॉ बे
ेसीडसी यूथ लीग’ क थापना कर चुका था और वे उस व के िलए रा ीय सेवा क
पहल म भागीदारी िनभाने क तैयारी कर रहे थे, जब कां ेस सिमित उ मीद के अनु प
नेतृ व दान नह कर रही थी। जून के महीने म गुजरात के बारदोली अनुमंडल म ‘लगान
नह ’ आंदोलन पूरे जोर पर था, जहाँ 1922 म महा मा ने पीछे हटने का आदेश जारी
कया था। सरकार भू-राज व आकलन म 20 फ सदी क वृि करने का आदेश दे चुक थी
और कृ षक व लभभाई पटेल (पटेल बंधु म छोटे) क अगुआई म इसका भुगतान करने से
इनकार करने के साथ ही स या ह के रा ते पर िनकल पड़े। ऐेसे म सामा य तौर पर पुिलस
जो दमना मक काररवाई करती है, वह क गई, लोग क संपि और जमीन ज त करना
भी उसी म शािमल था। बारदोली के कृ षक कई महीन से बड़ी ही बहादुरी के साथ
अ हंसक आंदोलन चला रहे थे और अंतत: सरकार को जवाब देना पड़ा। पूरा बॉ बे
ेसीडसी—और िवशेष प से बॉ बे िसटी—ने बारदोली के कसान को भरपूर समथन
दया और मिहला ने आंदोलन म स यता से भागीदारी क । बारदोली आंदोलन तो
1930 म बॉ बे म शु होनेवाली एक बड़ी लड़ाई का आरं भ बंद ु था। व लभभाई पटेल
इस आंदोलन से एक बड़ा कद और ित ा लेकर बाहर िनकले। इससे पूव िनि त प से
उ ह सवािधक मेहनती और महा मा के िन ावान िसपहसालार म से एक के प म जाना
जाता था, ले कन बारदोली क िवजय ने उनको भारत के अि म पंि के नेता म ला
खड़ा कया था। उनके इस वीरतापूण काय क सराहना के प म महा मा ने उ ह ‘सरदार’
(अथात् नेता) क उपािध दी, िजस नाम से अब उ ह आमतौर पर संबोिधत कया जाता है।
अग त म लखनऊ म आयोिजत सवदलीय स मेलन म एक नई घटना घटी। नेह
सिमित ारा सां दाियक सवाल के िनपटारे का जहाँ युवा रा वा दय ने वागत कया,
ले कन सरकार क डोिमिनयन व प संबंधी िसफा रश उ ह वीकाय नह थी, जैसा क
वतं ता संबंधी म ास कां ेस के ताव के बाद आ था। इस कार उनक मंशा लखनऊ
म सवदलीय स मेलन म रपोट को पा रत कए जाने का िवरोध करने क थी। ऐसे कदम
से कां ेस के दु मन क तो बाँछ िखल जात , रा ीय एकता के िलए कायरत ताकत
कमजोर हो जात और ख म करने के बजाय साइमन कमीशन क तो ित ा और अिधक
बढ़ जाती। इसिलए हमारी काररवाई का फै सला करने के िलए लखनऊ म कां ेस क वाम
शाखा के सद य क एक िनजी बैठक ई, िजसम मने और पं. जवाहरलाल नेह ने सुझाव
दया क भीतरी िवभाजन और उसके प रणाम व प सवदलीय स मेलन को आघात
प च ँ ाने के बजाय हम वयं को के वल स मेलन म अपने िवरोध क आवाज उठाने तक
संतु रहना चािहए और उसके बाद वतं ता के समथन म देश म स य चार अिभयान
चलाने के िलए एक ‘इं िडपडस लीग’ का आयोजन करना चािहए। इस सुझाव को वाम
समथक क बैठक म वीकार कर िलया गया और उसके बाद पं. जवाहरलाल नेह तथा
मने वतं ता के सवाल पर सवदलीय स मेलन म अपनी ि थित प कर दी, ले कन हम
सदन म बँटवारे से दूर रहे।
स मेलन के बाद, हमने देशभर म ‘इं िडपडस लीग’ क शाखा का गठन करना शु कर
दया और द ली म ई एक बैठक म औपचा रक प से ‘इं िडपडस लीग’ का उ ाटन कर
दया गया। लखनऊ म शु आ ‘ वतं ता आंदोलन’ एक ऐसे ही अ य आंदोलन का
समकालीन था, अथात् छा आंदोलन। जब फरवरी म साइमन कमीशन का बिह कार
कया गया तो पूरे बंगाल और खासतौर से कलक ा के छा ने इसम स य भागीदारी
िनभाई। इनम से कइय के िखलाफ कॉलेज ािधकरण ने अनुशासना मक काररवाई क
और उसके बाद छा को यह महसूस होना शु हो गया क अपने िहत क लड़ाई के िलए
उनका अपना एक संगठन होना चािहए। इस अनुभव के प रणाम व प बंगाल म छा
आंदोलन का ज म आ। छा का पहला अिखल बंगाल स मेलन अग त म कलक ा म
67

आ और इसक अ य ता पं. जवाहरलाल नेह ने क । स मेलन के बाद पूरे बंगाल म


छा संगठन शु हो गए और कु छ समय बाद अ य ांत म भी इसी कार के संगठन क
शु आत हो गई। छा जगत् म असंतोष के साथ ही िमक जगत् म भी गरम हवा चल रही
थी। एक साल पहले कलक ा से कु छ ही दूरी पर खड़गपुर म रे लवे िमक ने हड़ताल क
थी। 1928 म कलक ा के दि ण-पि म म करीब 160 कलोमीटर दूर जमशेदपुर म टाटा
आयरन एंड टील व स68 म हड़ताल ई थी, िजसम 18,000 िमक शािमल थे। हड़ताल
कई महीने खंच गई। आिखरकार, िमक और बंधन के बीच एक समझौता आ, जो क
ब त अिधक िमक के िहत म था। टाटा म ई हड़ताल से भी अिधक मह वपूण थी बॉ बे
म कपड़ा उ ोग क हड़ताल, िजसम कम-से-कम 60,000 िमक शािमल थे।
हड़ताल को पहले चरण म अपार सफलता िमली और इसने न के वल िमल मािलक ,
बि क सरकार के िलए भी गंभीर श मदगी पैदा कर दी। इसके बाद, कलक ा के समीप
िल लुआह म ई ट इं िडया रे लवे क वकशॉप म हड़ताल ई, िजसम 10,000 कामगार ने
िह सा िलया, जमशेदपुर म टन लेट कं पनी म 4,000 िमक, कलक ा से करीब 20 मील
दूर बज-बज म ऑयल एंड पे ोल व स म 6,000 कामगार और कलक ा के समीप जूट
िम स म करीब 2,00,000 कामगार ने भाग िलया। बॉ बे टे सटाइल म ई हड़ताल
िवशेष उ लेख कए जाने लायक है, य क इसका आयोजन एक पूरी तरह अनुशािसत
पाट क अगुआई म कया गया था, िजन पर किथत प से क युिन ट िवचार को अपनाने
का आरोप था और इनम से कु छ ने तो बाद म मेरठ ष ं मामले म सुनवाई के दौरान
वयं को सम पत स मािनत क युिन ट घोिषत कर दया था। उपरो सभी हड़ताल का
आयोजन ेड यूिनयन कां ेस म अिधक उ िवभाग ारा कया गया था और वे दनो दन
अहिमयत हािसल करते जा रहे थे। साल के अंितम दन क ओर, जब ेड यूिनयन कां ेस
क खनन े म झ रया म बैठक ई तो यह पाया गया क वामपंिथय ने अपनी सं या म
अ छा-खासा इजाफा कर िलया था और उनम से क युिन ट का एक मजबूत और पूण प
से अनुशािसत समूह था। इस कां ेस म एक नया कदम उठाया गया। लीग से संब ेड
69
यूिनयन कां ेस सा ा यवाद के िखलाफ थी।
हमेशा क तरह दसंबर का महीना बैठक और स मेलन का महीना था। इन सबम
सवािधक मह वपूण अिखल भारतीय युवा कां ेस (जो क अपना पहला स आयोिजत
करने जा रही थी), ऑल पाट ज क वशन और भारतीय रा ीय कां ेस थ । युवा कां ेस क
अ य ता बॉ बे के पारसी नेता के .एफ. नरीमन ने क , जो क कां ेस क वामपंथी शाखा म
ब त अिधक लोकि य हो चुके थे। पेशे से वक ल, नरीमन सबसे पहले बॉ बे लेिज ले टव
काउं िसल के वराजवादी सद य थे, जहाँ उ ह ने अपनी पहचान एक स म सेनानी क
बनाई थी। हालाँ क वे बॉ बे गवनमट क बैक बे र लेमेशन क म के प रणाम व प धन
क भारी बरबादी का सावजिनक प से खुलासा करने का यास करने के चलते सु खय
म आए थे। उ ह ने जो आरोप लगाए थे, उनके कारण उ ह अदालत म मानहािन के मुकदमे
का सामना करना पड़ा, ले कन वे बड़ी शान के साथ इस मामले से बरी हो गए। तब से
नरीमन एक िति त ह ती बन गए थे, उनके िवचार चरमपंथी हो गए थे, िजनक वे
समय-समय पर अिभ ि करते रहते थे। ले कन जब महा मा के कहने पर उ ह कां ेस
कायसिमित का सद य बनाया गया तो उनम बदलाव आ गया। युवा कां ेस मह वपूण थी,
य क यह देश के सावजिनक जीवन म एक नए कारक के उभरने का संकेत थी और यह
उस मानिसकता को अिभ करती थी, जो कु छ हद तक उस मानिसकता से अलग थी,
जो रा ीय कां ेस के इद-िगद िव मान थी।70
कां ेस स ाह के दौरान कलक ा म सवदलीय स मेलन का आयोजन कया गया, िजसके
कु छ दुभा यपूण प रणाम ए। वे सभी लोग, िजनका नेह रपोट का मसौदा तैयार करने
म कोई योगदान नह था, उ ह ने अब इसके िखलाफ कड़ा ख अपना िलया। एक साल
पहले कलक ा म मुसिलम लीग कॉ स म गितशील रा वादी िवचार क वकालत
करनेवाले एम.ए. िज ा अब नेह रपोट म शािमल सां दाियक समाधान म संशोधन के
िलए अपने िस ‘14 बंद ु ’ के साथ आगे आए। उ ह ने अ य चीज के अलावा जो माँग
क , उनम इं िडयन लेिज लेचर के दोन सदन म मुसिलम के िलए एक-ितहाई सीट को
आरि त करना, बंगाल और पंजाब म आबादी के आधार पर मुसिलम के िलए सीट का
आर ण, अि◌विश शि य को ांत म िनिहत करना आ द शािमल था। इस रवैए ने
िज ा को अपने ित यावादी सहध मय के बीच लोकि य बना दया, ले कन इसने
नेह रपोट क क मत और मह व को कमजोर कर दया। मुसिलम क देखा-देखी िसख
ने भी अितवादी माँग रख द , जब क हंद ू महासभा ने साफ इनकार कर दया क नेह
रपोट म पहले से ही दी गई रयायत के अलावा और कोई छू ट नह दी जाएगी, उ ह ने
तो नेह सिमित ारा मुसिलम के िलए दी गई छू ट क पहले ही आलोचना क थी।
मुसिलम लीग के भीतर िविभ दल के कारण नेह रपोट के िलए उसका समथन
हािसल करना मुि कल था, य क ये दल िनजी िहत पर टके थे। उदाहरण के िलए,
दवंगत सर मोह मद शाह ने सां दाियकता के सवाल पर असहयोग का रवैया अपनाया
था, ले कन राजनीितक सवाल पर साइमन कमीशन के साथ सहयोग क वकालत क थी।
रा वादी समूह नेह रपोट को पूरे दल से वीकार करने और साइमन कमीशन का पूण
बिह कार करने के प म खड़ा था। िज ा क अगुआईवाले समूह ने सां दाियक सवाल पर
ित यावादी नज रया अपनाया, ले कन साइमन कमीशन के बिह कार का समथन
कया। द ली म माच 1929 म मुसिलम लीग क एक बैठक बुलाई गई, िजसम इस सवाल
पर िवचार कया जाना था और िवरोधी धड़ के बीच टकराव हो गया। नतीजा यह आ
क बैठक हंगामे के बीच समा हो गई।
दसंबर 1927 म, जब म ास कां ेस ने सवदलीय स मेलन आ त करने के प म फै सला
िलया था तो फै सला सही तीत आ था। इस भावना क उस समय पुि ई, जब नेह
सिमित एक सवस मत रपोट पेश करने म स म ई और लखनऊ म अग त 1928 म
सवदलीय कॉ स म इसे अंगीकार कर िलया गया। ले कन उसके बाद का अनुभव दरशाता
है क यह कदम उठाना कां ेस के िलए गलत था क गोलमेज स मेलन म कां ेस का भाग
लेना एक गलती थी, िजसम ऐसे अ य लोग मौजूद थे, िज ह वहाँ होने का कोई अिधकार
नह था। एक संिवधान तैयार करने क िज मेदारी के वल और िवशेष प से उस पाट क
थी, िजसने वतं ता के िलए संघष कया था। सवदलीय सिमित ारा तैयार मसौदा
रपोट का कोई मह व तभी हो सकता है, य द उसक देश के सभी दल ने पुि क है।
ले कन एक ऐसे देश म इस कार क पुि संभव ही नह है, जो कु छ समय के िलए िवदेशी
शासन के अधीन रह चुका हो। ऐसे देश म, ऐसे दल का होना वाभािवक है, जो सरकार के
अँगूठे के नीचे दबे ह और ऐसे दल हमेशा नेह रपोट जैसे एक द तावेज क पुि को
लटका सकते ह। इससे भी आगे, ऐसी पुि का या मह व है, जब अ य दल आजादी क
लड़ाई के िलए लड़ ही नह रहे ह? जो दल संघष करता है, उसे उस संिवधान क रचना के
िलए कसी अ य पाट का मुँह नह ताकना चािहए, िजसके िलए वह अके ले ही संघष कर
रहा है। साल का सवािधक मह वपूण स मेलन भारतीय रा ीय कां ेस का कलक ा म
आयोिजत स मेलन था, िजसक अ य ता पं. मोतीलाल नेह ने क ।
कां ेस के आरं भ से लेकर अब तक कलक ा कां ेस म सवािधक उपि थित थी और इसके
िलए सभी बंध िवशाल पैमाने पर कए गए थे। कां ेस के भीतर दो समूह थे—एक समूह,
जो डोिमिनयन व प क सरकार का सपना पूरा होने भर से संतु हो जाएगा और जो
इसिलए नेह रपोट को संपूणता म वीकार कए जाने के प म थे; और दूसरा समूह,
वामपंथ, जो म ास कां ेस म पा रत कए गए वतं ता ताव का पालन चाहता था और
उसे के वल संपूण रा ीय आजादी के आधार पर ही नेह रपोट वीकाय थी। नवंबर म
द ली म आयोिजत अिखल भारतीय कां ेस सिमित क एक बैठक म पं. मोतीलाल नेह
के यास से दोन समूह के बीच एक समझौता आ। कां ेस के कलक ा स म हालाँ क
महा मा ने द ली फॉमूले को इस आधार पर वीकार करने से इनकार कर दया क यह
अपने आप म िवरोधाभासी है; और इस कार दोन समूह के बीच क दरार एक बार फर
से नजर आने लगी। महा मा और पं. मोतीलाल नेह ारा समझौता कराने के यास कए
गए, ले कन वे िजतनी अिधकतम रयायत दे सकते थे, वह वामपंिथय क यूनतम माँग से
कम थी। हालाँ क वामपंथी नेता सावजिनक प से दो फाड़ करने से बचना चाहते थे,
ले कन दूसरे वामपंथी पदािधकारी कसी समझौते के बारे म नह सोचगे। इस कार,
महा मा गांधी ारा पेश कां ेस के मु य ताव का पूरे वाम धड़े ने िवरोध कया, िजसने
लेखक ारा पेश ताव का समथन कया था। महा मा गांधी के ताव म कहा गया था
क ‘राजनीितक ि थित क ज रत के अधीन कां ेस नेह संिवधान को इसक संपूणता
म वीकार करे गी, बशत इसे ि टश संसद् ारा 31 दसंबर, 1929 या उससे पहले
वीकार कर िलया जाता है तो; ले कन य द इस तारीख तक वीकार नह कया जाता है
या इससे पूव अ वीकार कर दया जाता है तो कां ेस देशवािसय को कर देने से इनकार
करने क सलाह देकर और कसी अ य ऐसे तरीके से, िजसके बारे म फै सला िलया जा
सकता है, अ हंसक असहयोग आंदोलन आयोिजत करे गी।’ इस संबंध म एक संशोधन
लेखक ारा पेश कया गया क कां ेस आजादी से कम कसी चीज पर संतु नह होगी,
िजसम ि टश संबंध-िव छेद का भी संदश े िनिहत था। इस संशोधन ताव को अ य
नेता के साथ ही पं. जवाहरलाल नेह ने भी अपना समथन दया। संशोधन ताव
973 के मुकाबले 1,350 मत से िनर त हो गया—ले कन इस मत िवभाजन को मुि कल से
ही वतं मत िवभाजन कहा जा सकता था, य क महा मा गांधी के समथक ने इसे
िव ास का सवाल बना िलया था और यह संदश े दया क य द महा मा क हार हो जाती
है तो वे कां ेस से सेवािनवृ हो जाएँगे। इसिलए ब त से लोग ने उनके ताव के समथन
म मत दया, य क वे नह चाहते थे क महा मा काे कां ेस छोड़ने के िलए मजबूर करने
का ठीकरा उनके िसर पर फू टे। ले कन यह बताने क ज रत नह है क मत िवभाजन ने
दखा दया था क वाम शाखा मजबूत और भावशाली थी।
म ास कां ेस के बाद कलक ा कां ेस का प रणाम एकदम उ मीद के िवपरीत रहा।
उनके आगमन के दन िनवािचत अ य का िजस कार आलीशान वागत कया गया,
उससे बड़े-बड़े राजा और अिधपितय को ई या होती, ले कन जब वे वहाँ से गए तो हर
कसी के चेहरे पर भारी िनराशा फै ल गई। संपूण रा म अ भुत उ साह का वातावरण था
और हर कोई कां ेस से साहसपूण काररवाई क उ मीद कर रहा था। ले कन जब देश
तैयार था तो नेता तैयार नह थे। दुभा य से महा मा को अपने देशवािसय के िलए रोशनी
नजर नह आई। इस कार कलक ा कां ेस का अ थायी ताव के वल समय क बरबादी
ही सािबत आ। के वल पागलपन और बेवकू फ क हालत म ही कोई यह उ मीद लगा
सकता है क परम शि शाली ि टश सरकार िबना कसी संघष के डोिमिनयन होम ल
क माँग को वीकार कर लेगी! कां ेस क बैठक के दौरान दस हजार िमक का एक
जुलूस रा ीय वतं ता के संघष म अपनी एकजुटता द शत करने और साथ ही भूखे मर
रहे कामगार के मु े का सं ान लेने क अपील करने के िलए कां ेस पंडाल म प च ँ ा,
ले कन उतार-चढ़ाव के इन सभी संकेत का नेता पर कोई असर नह आ। वह फै सला,
जो साइमन कमीशन क िनयुि के तुरंत बाद कया जाना चािहए था—और िनि त प
से कलक ा कां ेस होने के बाद तो अव य—उसे दसंबर 1929 म लाहौर कां ेस तक नह
कया गया। ले कन तब तक ि थित िबगड़ चुक थी।

9
तूफान के आसार (1929)
क लक ा कां ेस का कु ल जमा नतीजा, जैसा क हम देख चुके ह, चीज को पहले क
तरह दु त करना था। ले कन महा मा जैसे एक दूर ा राजनेता व के संकेत को पढ़
सकते थे। कलक ा कां ेस म वाम धड़े का िवरोध िन संदह े अ य था और अगर उनके
नेतृ व को बनाए रखना था तो उ ह िवरोध से, कू टनीितक तरीके से िनपटना होगा। अगले
बारह महीन म महा मा ारा अपनाई गई रणनीित वा तव म शानदार थी। उ ह ने
अगली बैठक म वयं वतं ता क वकालत करके उ पंिथय 71 के हाथ से मौका छीन
िलया JOIN TELEGRAM CHANNEL @EBOOKSIND और वाम धड़े के कु छ
नेता को अपने प म करते ए उनके भीतर फू ट पैदा कर दी। पुराने नेता क जमात
म सभी वग के बीच वाम धड़ा एक मुसीबत बन चुका था— वराजवा दय के साथ ही
‘नो चजस’ के िलए भी और कलक ा कां ेस म देखा गया क साझा खतरे से संघष के िलए
वराजवादी पं. मोतीलाल नेह ‘नो चजस’ महा मा गांधी के साथ कं धे-से-कं धा िमलाकर
खड़े थे। आनेवाले महीन म यह अ थायी गठबंधन और मजबूत आ और वाम धड़े के कु छ
नेता क मदद से महा मा के िलए कां ेस तं और देश म अपनी ित ा पर फर से
पकड़ बना पाना संभव आ।
कलक ा कां ेस क काररवाइय से उनक ित ा बुरी तरह धूल-धूस रत हो गई थी।
कोई भी गंभीरतापूवक यह नह कह सकता क महा मा जैसे चतुर राजनीित ने वा तव
म यह उ मीद क थी क सरकार िबना कसी संघष के झुक जाएगी और डोिमिनयन होम
ल क माँग को वीकार कर लेगी, के वल इसिलए क कां ेस ारा िलिखत म इसके िलए
अ टीमेटम दया गया था। इसिलए कसी को भी यह मानने का अिधकार है क कलक ा
कां ेस म महा मा के वल कु छ समय चाहने के िलए खेल खेल रहे थे, य क िनजी तौर पर
वे भी िनकट भिव य म संघष छेड़ने के िलए तैयार नह थे। स ाई तो यह है क दसंबर
1929 म लाहौर कां ेस होने तक भी महा मा गांधी क सरकार के िखलाफ कसी भी
कार का कोई आंदोलन शु करने क कोई योजना नह थी—भले ही उ ह ने वतं ता के
िलए ताव पेश कया था और उसे कां ेस ने सवस मित से अंगीकार भी कर िलया था।
1930 तक तो नह , अपने दल को काफ टटोलने के बाद उ ह ने देश म सिवनय अव ा
आंदोलन शु करने का फै सला कया, िजसक शु आत नमक उ पादन आंदोलन से ई।
हालाँ क कां ेस ने 1929 के पूरे साल के दौरान देश को साहसी और बुि म ापूण नेतृ व
नह दया, ले कन अशांित क वाला कह भी म म नह पड़ी थी। उलटे, ांित को
बलवती करनेवाली ताकत ित दन मजबूत होती जा रही थ , यह अलग बात है क उिचत
सम वय के अभाव के कारण अिधकतर ऊजा थ जा रही थी। कां ेस के मौजूदा मु य
आंदोलन के अित र उसी समय पर तीन अ य मोच पर भी गितिविधयाँ प नजर आ
रही थ । ांितकारी गितिविध दबे पाँव हो रही थी और उ र भारत म इसका अ छा-
खासा असर था, िमक जगत् क बेचैनी, जो क देश के हर िह से म फै ल चुक थी और
म यमवग य युवा वग म भी एक जाग कता आकार ले रही थी, जो हर दशा म सार पा
रही थी।
ांितकारी आंदोलन क अिभ ि दो घटना से प होती है, जो लाहौर और द ली
म घटी थ । लाहौर म एक अं ेज पुिलस इं पे टर, सांडस क ह या कर दी गई। ऐसी
रपोट िमली थी क ांितकारी सांडस को 1928 म लाहौर म साइमन कमीशन के िखलाफ
दशन के दौरान लाला लाजपत राय पर हमले के िलए िज मेदार मानते थे। इसी हमले के
चलते अंतत: उनक मृ यु हो गई थी। सांडस क ह या उसी हमले का बदला थी। दूसरी
घटना द ली म असबली म बैठक के दौरान बम फकने क थी और दो युवक सरदार भगत
संह तथा बटु के र द को इस संबंध म िगर तार कर िलया गया। सरे आम अंजाम दी गई
इन काररवाइय के बाद देशभर म ब त से युवा को िगर तार कया गया और 1929 के
म य म लाहौर म अिखल भारतीय ष ं मामले क शु आत ई। कसी-न- कसी कारण
से लाहौर ष ं के स म न के वल जनता क दलच पी पैदा ई, बि क साथ ही जनता के
बीच सहानुभूित क लहर भी उठी। कारण संभवत: ये रहे थे क अपनी िगर तारी से पूव,
सरदार भगत संह को पंजाब म युवा आंदोलन (नौजवान भारत सभा) के नेता के प म
जाना जाता था। िनभ कता और दृढ़ता का जो ख भगत संह और उनके सािथय ने
अपनाया था, उससे उनक िगर तारी तथा मामले क सुनवाई के दौरान उसका जनता पर
ब त गहरा असर आ। इतना ही नह , सरदार भगत संह एक जाने-माने देशभ प रवार
से ता लुक रखते थे—वे सरदार अजीत संह के भतीजे थे, िज ह लाला लाजपत राय के
साथ 1909 म बमा या पत कर दया गया था। नौजवान भारत सभा क शु आत पहले
एक रा वादी आंदोलन के प म ई थी, ता क पंजाब म सं दायवाद और धा मक
क रवाद का मुकाबला कया जा सके । अगर सरकारी आरोप पर यक न कया जाए तो
सभा एक ांितकारी संगठन म त दील हो गई और सभा के कु छ सद य उ वादी
गितिविधय क ओर मुड़ गए। स ाई जो भी हो या आरोप जो भी रहे ह , इस बात म कोई
संदह
े नह है क सभा ने प प से समाजवादी वृि अपना ली थी। और संयोगवश,
इसका उ लेख कया जा सकता है क पंजाब म सभी युवा संगठन का एक मजबूत
समाजवादी झुकाव था। माच 1931 म जब कराची म अिखल भारतीय नौजवान भारत
सभा का स आयोिजत कया गया तो पंजाब नौजवान सभा के सद य ने खुलेआम ऐलान
कर दया क वे आतंकवाद के िखलाफ ह और वे समाजवादी तरीके से सामूिहक काररवाई
म यक न रखते ह।
उनक िगर तारी के तुरंत बाद, सरदार भगत संह क अगुआई म लाहौर ष ं मामले
के कै दय ने माँग क क उनके साथ सामा य अपरािधय के मुकाबले इस आधार पर
बेहतर बरताव कया जाना चािहए क वे राजनीितक कै दी ह और उनका मामला
िवचाराधीन है और वा तव म दोष िसि होने तक उ ह िनद ष माना जाना चािहए।
सामा य संवैधािनक तौर-तरीके आजमाने के बाद जब उ ह ने पाया क कोई नतीजा नह
िनकल रहा है तो उ ह ने भूख-हड़ताल कर दी। कै दय म कलक ा का एक नौजवान भी
था—यत नाथ दास, जो शु आत म भूख-हड़ताल के िखलाफ था, य क उसे लगता था
क यह खतरनाक खेल है। ले कन बाक लोग के उ साह ने उसे भी हड़ताल म शािमल होने
को मजबूर कर दया, ले कन ऐसा करने से पहले उसने चेतावनी दी क चाहे जो भी हो,
वह उनक माँग को पूरी तरह वीकार कए जाने तक अपने कदम पीछे नह ख चेगा।
भूख-हड़ताल को लेकर देशभर म ती आंदोलन आ और जनता क ओर से यह माँग उठी
क सरकार को कै दय क उिचत िशकायत का िनवारण करना चािहए और उनक जान
बचानी चािहए। जब कै दय क हालत गंभीर हो गई तो सरकार ने आधे-अधूरे मन से
समझौते के यास कए। उदाहरण के िलए, उसने भूख-हड़ताल करनेवाल को िच क सा
आधार पर बेहतर उपचार क पेशकश क । ले कन उनक माँग के वल अपने िलए नह ,
बि क समान हालात म रह रहे अ य कै दय को भी बेहतर उपचार उपल ध कराने क थी,
य क वे भी राजनीितक कै दी थे। सरकार ने यह माँग नह मानी और हड़ताल जारी रही।
ेस के ती आंदोलन के अित र देशभर म राजनीितक कै दय के साथ मानवीय आधार
पर पेश आने क माँग करते ए देशभर म बैठक और दशन ए। कलक ा म इसी कार
के एक दशन के संबंध म, लेखक समेत कई मुख कां ेस नेता को िसतंबर महीने म
िगर तार कर िलया गया और रा ोह के मामले म सुनवाई के िलए भेज दया गया।
जैसे-जैसे दन बीतते गए, एक-एक करके भूख-हड़ताल करनेवाल क सं या कम होती
गई, ले कन जितन दास डटे रहे। णभर के िलए भी वे न िहचके , न कभी लड़खड़ाए,
बि क सीधे मृ यु और वतं ता के माग पर आगे बढ़ते गए। देश म हर कसी का दल रो
रहा था, ले कन नौकरशाही का दल प थर का था। और 13 िसतंबर को जितन क मृ यु हो
गई। ले कन वे एक शहीद क मौत मरे । मृ यु के बाद पूरे रा ने उ ह ऐसी शानदार और
भावभीनी िवदाई दी क हािलया इितहास म इतना स मान िवरले ही लोग को ा आ
था। जब उनका पा थव शरीर अंितम सं कार के िलए लाहौर से कलक ा लाया गया तो
हर टेशन पर हजार -लाख लोग अपनी ांजिल अ पत करने के िलए जमा थे। उनके
बिलदान ने देश के युवा के िलए गहन ेरक का काय कया और हर जगह युवा एवं छा
संगठन थािपत होने लगे। उनके िनधन पर ब त से ांजिल संदशे ा ए थे, ले कन
िजस संदश े ने हर भारतीय के दल को छू िलया था, वह संदशे टेरस मैकि वनी, लॉड मेयर
ऑफ कॉक के प रवार क ओर से था। टेरस मैकि वनी ऐसे ही हालात म आयरलड म
शहीद हो गए थे। संदश े इस कार था—‘टेरस मैकि वनी के प रवार को बड़े ही दु:ख और
गव के साथ जितन दास क मृ यु के बारे म पता चला। आजादी आएगी।’
अपनी मृ यु के समय जितन दास 25 साल के थे। छा जीवन म ही उ ह ने 1921 के
असहयोग आंदोलन म भाग िलया था और कई साल जेल म िबताए थे। कई साल के
वधान के बाद उ ह ने कलक ा कॉलेज म फर से पढ़ाई शु क थी। 1928 म कलक ा
कां ेस के समय और उसके बाद उ ह ने वयंसेवक को संग ठत तथा िशि त करने म
मुख भूिमका िनभाई और बंगाल वॉलं टयर कोर म वे मेजर के पद पर थे, िजसम लेखक
चीफ ऑ फसर या जी.ओ.सी. थे। बंगाल वॉलं टयर कोर कलक ा कां ेस के समय अि त व
म आई थी। कां ेस और इससे जुड़ी नेशनल एि जबीशन के िलए िवशाल सं या म
वयंसेवक क ज रत थी और कां ेस ािधका रय ने लेखक को कोर के संगठन और
िश ण का िज मा स पा था। हालाँ क कोर एक शांिति य एवं िनर इकाई थी, ले कन
इसके वॉलं टयस को सै य अनुशासन तथा सै य ि ल िसखाई जाती थी तथा उ ह एक
अधसै य वरदी भी दी जाती थी। कां ेस क बैठक समा होने के बाद वॉलं टयर कोर बनी
रही और पूरे ांत म इसक शाखाएँ खुल ग । क ठन प र म क माँग करनेवाले इस काय
म जितन ने मह वपूण भूिमका अदा क । इसिलए वॉलं टयर कोर के अिधका रय और
कायकता ने अंितम सं कार दशन म मुख प से िह सा िलया।
इस संबंध म महा मा गांधी का रवैया समझ से परे था। जािहर सी बात है क जितन
दास क शहादत, िजसने देशवािसय के दल को झकझोर दया था, उसका उन पर कोई
असर नह पड़ा। ‘यंग इं िडया’ के प े सामा य दन क तरह सभी राजनीितक घटना से
भरे पड़े थे और साथ ही वा य, आहार आ द जैसे िवषय पर भी लेख थे, ले कन जितन
दास वाली घटना पर कु छ नह था। जितन के भी करीबी दो त और महा मा के एक
अनुयायी ने उनसे यह पूछने के िलए प िलखा क उ ह ने इस घटना के बारे म कु छ य
नह कहा? महा मा ने इसका जवाब दया क उ ह ने कसी योजन से इस पर ट पणी
करने से वयं को रोका, य क य द वे ऐसा करते तो उ ह कु छ ितकू ल िलखने को बा य
होना पड़ता।
जितन दास के आ म-बिलदान क खबर जब द ली प च ँ ी तो उस समय असबली का
स चल रहा था। एक ण के िलए ऐसा लगा क सरकार के दल क धड़कन बढ़ गई,
ले कन यह िणक था। उस समय जो भावना उभरी, वह ज द ही सरकारी कू टनीित और
दोहरे पन म डू ब गई। सरकार ने राजनीितक कै दय के उपचार के सवाल का सं ान लेने
का वादा कया, ले कन अ यिधक गहन िवचार-िवमश और देरी के बाद। जब जन-उ ेजना
कु छ नरम पड़ी तो उ ह ने अंतत: अपने ताव पेश कए। तब पता चला क उपचार तो
बीमारी से कह अिधक बुरा था। शु आत म ही सरकार ने कसी को भी राजनीितक कै दी
के प म वग कृ त करने से इनकार कर दया—इस कार लाहौर भूख-हड़ताल कै दय क
मु य माँग ही ठु करा दी गई। इसके बजाय सरकार ने यह ताव कया क कै दय को
भिव य म तीन ेिणय म रखा जाएगा—ए, बी और सी िडवीजन (I, II और III)। सी ेणी
के कै दय के साथ एकदम साधारण अपरािधय क तरह बरताव कया जाएगा; बी ेणी
के कै दय के साथ भोजन, िच ी, सा ा कार और अ य सुिवधा के मामले म सी ेणी के
कै दय से बेहतर वहार कया जाएगा, जब क ए ेणी के कै दय को बी ेणीवाले
कै दय से बेहतर सुिवधाएँ िमलगी। वग करण के समय यह िविश ता कै दी के सामािजक
तबे के अनुसार तय क जाएगी। इन िनयम को वहार म लाने पर पाया गया क कम-
से-कम 95 फ सदी कै दी सी ेणी म; करीब 3 या 4 फ सदी बी ेणी म और एक फ सदी से
भी कम ए ेणी के थे। इसिलए नए िनयम का भाव कु छ चु नंदा कै दय को बेहतर
सुिवधाएँ देना था, ता क राजनीितक कै दय क एकजुटता को तोड़ा जा सके । ‘बाँटो और
राज करो’ का िनयम इस कार कै दय के शासन तक िव तार पा गया। नए िनयम क
के वल एक बात वागतयो य थी क इससे कु छ कै दय को ‘यूरोपीय’ क ेणी म वग कृ त
कए जाने का िस ांत समा हो गया, िज ह सव तर के भारतीय के मुकाबले बेहतर
खाना, कपड़े और रहन-सहन क सुिवधाएँ ा होती थ । हालाँ क वहार म लेखक ने
वयं देखा था क बंगाल, म य ांत और म ास समेत कई ांत म ‘यूरोपीय’ कै दय को
पहले जो सुिवधाएँ ा हो रही थ , वे अभी भी िनबाध प से जारी ह। और म ास जेल,
जहाँ लेखक 1932 म दो महीने रहे थे, वहाँ उ ह ने ‘यूरोपीय’ कै दय के वाड के बाहर
‘यूरोपीय वाड’ क त ती लगी देखी थी और उनके इस पर आपि जताने पर इसे हटा
दया गया। इस संबंध म यह वीकार कया जाना चािहए क जब नए िनयम का मसौदा
तैयार कया गया तो वराजवा दय समेत असबली सद य ने उनसे िजस िवरोध क
उ मीद क गई थी, वह उ ह ने नह कया। और िज ा जैसे कु छ सद य, िज ह जेल के
जीवन का कोई अनुभव नह था, उन सद य तक ने यह सोचा था क िनयम बेहतर
सािबत ह गे।
जैसा क पहले ही कहा जा चुका है, 1928 और 1929 म युवा 72 के बीच अभूतपूव
चेतना आई। कलक ा म कां ेस का ठहराव और िवधानमंडल म वराजवा दय ारा
अपनाई गई रणनीित ने युवा के बीच अपनी िज मेदारी के अहसास को ाे सािहत
कया। कलक ा म यूथ कां ेस के पहले स क सफलता ेरणादायक रही और यत नाथ
दास क शहादत ारा थािपत अद य उदाहरण से इसे और बल िमला। 1929 म सालभर
युवा और छा संगठन के गठन का िसलिसला पूरे बंगाल म जारी रहा और ो वंिशयल
यूथ एसोिसएशन और ो वंिशयल टू ड स एसोिसएशन के प म इनक शाखाएँ फै लती
चली ग । समय-समय पर बंगाल के िविभ िजल म राजनीितक स मेलन के आयोजन
के अलावा, युवा और छा के अलग से स मेलन आयोिजत होने लगे थे। अ य ांत म
भी यही चलन देखने को िमल रहा था। महारा के पूना म महारा यूथ कॉ स का
आयोजन आ और पं. जवाहरलाल नेह ने इसक अ य ता क । अहमदाबाद म बॉ बे
ेसीडसी यूथ कॉ स क अ ू बर 1929 म बैठक ई और ीमती कमलादेवी च ोपा याय
ने इसक अ य ता क , जो क ीमती सरोिजनी नायडू क भाभी थ , जो क ब त कम
समय म ही युवा के बीच एक लोकि य ह ती बन गई थ । िसतंबर म पंजाब टू ड स
कॉ स का पहला स लाहौर म आयोिजत कया गया, िजसक अ य ता लेखक ने क ।
इसके बाद स ल ो वंिशयल यूथ कॉ स नवंबर म नागपुर म और बरार टू ड स कॉ स
दसंबर म अमरावती म ई। इन दोन क अ य ता भी लेखक ने क । म ास ेसीडसी म
भी इसी कार क कॉ स आयोिजत क ग । साल के अंत म, कां ेस स ाह के दौरान
लाहौर म एक ऑल इं िडया कां ेस ऑफ टू ड स ई और इसक अ य ता बनारस हंद ू
यूिनव सटी के वाइस चांसलर पं. मदनमोहन मालवीय ने क ।
युवा के बीच चेतना िमक जगत् म ापक पैमाने पर फै ली अशांित के समकालीन
थी और देशभर म हड़ताल हो रही थ । ले कन सरकार के िलए सबसे बड़ा िसरदद 1928
म बॉ बे म ई टे सटाइल हड़ताल थी, य क इसका संचालन सुिशि त मिहला और
पु ष क एक ऐसी ठोस पाट ारा कया जा रहा था, जो क युिन ट िवचार से े रत थे।
कमचा रय और सरकार ने साझा िहत को कारण बताते ए हड़ताल तुड़वाने के यास
कए और इस मकसद के िलए बाहर से उप वी जालसाज को बड़ी सं या म बुलाया गया।
जब हड़ताल कमजोर होती मालूम पड़ी तो सरकार ने जोरदार हार कया। माच 1929 म
देशभर म नए तेवर रखनेवाले ेड यूिनयन नेता क धरपकड़ शु हो गई और उनम से
31 को अिखल भारतीय क युिन ट ष ं मामले म सुनवाई के संबंध म द ली के समीप
मेरठ लाया गया। उ ह देशभर से सुनवाई के िलए मेरठ इसिलए लाया गया था, य क
यह एक छोटा शहर था, वहाँ जन- दशन नह ह गे और यह भी क वहाँ यूरी से मामले
क सुनवाई क माँग नह क जा सके गी। कै दय म तीन अं ेज भी थे और संभवत: इसी के
चलते के स म अ यिधक िच पैदा ई और सभी कार के िवचार रखनेवाले ि टश िमक
हलक के बीच इसे लेकर सहानुभूित भी उपजी। मामले क सुनवाई करीब चार साल तक
चली और इस अविध के दौरान बार-बार अपील कए जाने के बावजूद आरोिपय को
जमानत दान नह क गई। अिभयोजन का मामला यह था क आरोिपय ने महाराज को
भारत क सं भुता से वंिचत करने के िलए ष ं रचा और क युिन ट इं टनेशनल क मदद
से सोिवयत मॉडल पर सरकार क थापना करने का यास कया। 16 जनवरी, 1933 को
फै सला सुनाया गया। तीन आरोिपय को बरी कर दया गया, जब क बाक को अलग-
अलग अविध क सजा सुनाई गई (एक को छोड़कर, िजसक सुनवाई के दौरान मौत हो गई
थी), जो क तीन साल से लेकर आजीवन कारावास तक थी।
मेरठ म िगर ता रयाँ उस समय क गई थ , जब कं जरवे टव स ा म थे, ले कन जून के
आम चुनाव के प रणाम व प लेबर पाट स ा म आई और कै टन वेजवुड बेन को भारत
के मामल का िवदेश मं ी बनाया गया। ऐसी उ मीद थी क लेबर पाट मेरठ के कै दय के
िलए कु छ करे गी, ले कन असिलयत म कु छ नह आ। फर भी, लेबर कै िबनेट ने भारतीय
िमक े को शांत कराने के िलए एक अ य कदम उठाया। साइमन कमीशन के जवाब म
िमक के मु े पर रॉयल कमीशन िनयु कर दया गया और हाइटली को इसका अ य
बना दया गया। कमीशन को भारत म म ि थितय पर रपोट देने के साथ ही संभािवत
सुधार क िसफा रश करनी थी। साइमन कमीशन के बिह कार से ए अनुभव के चलते
लेबर सरकार ने भारतीय ेड यूिनयन नेता को दो सीट क पेशकश क —एन.एम.
जोशी (बॉ बे) और चमनलाल (लाहौर) को। िमक आंदोलन के क रपंथी धड़े से संबंध
रखनेवाले दोन नेता ने इस पेशकश को वीकार कर िलया और इस फै सले ने तुरंत
भारतीय ेड यूिनयन के बीच िवभाजन पैदा कर दया। जब नवंबर म नागपुर म पं.
जवाहरलाल नेह क अ य ता म कां ेस क बैठक ई तो यह पाया गया क ब सं यक
लोग लेबर कमीशन ( हाइटली कमीशन) का बिह कार करने के प म थे। इसके िलए कई
कारक िगनाए गए। बिह कार समय क माँग थी। इतना ही नह , लेबर कै िबनेट मेरठ के
कै दय के िलए कु छ भी करने म िवफल रही थी और यह महसूस कया गया क उसके
ारा िनयु कमीशन से भारत को कोई फायदा नह होगा। तीसरा, िपछले साल माच म
देशभर म जो अंधाधुंध िगर ता रयाँ क गई थ , उ ह ने वाम धड़े के िलए ेड यूिनयन
हलके म सहानुभूित पैदा कर दी थी। जब बिह कार ताव लाया गया तो वहाँ ‘चमनलाल
हाय-हाय’ और ‘जोशी हाय-हाय’ के नारे लगे तथा इससे संबंिधत पो टर भी लहराए गए।
जोशी के िखलाफ इस कार के दशन, िज ह ने भारतीय िमक आंदोलन के िलए ब त
योगदान दया था और िज ह वा तव म आंदोलन के जनक म से एक माना जाता था,
उनके इस अपमान से क रपंथी शाखा के सद य ने ब त अपमािनत महसूस कया और वे
कां ेस से उठकर चले गए। इसके बाद उ ह ने ‘ऑल इं िडया ेड यूिनयन फे डरे शन’ नाम से
अपना एक खुद का संगठन थािपत कर िलया। संबंध-िव छेद के िलए आमतौर पर कारण
यह दया गया क ेड यूिनयन कां ेस ने वयं को सा ा यवाद और पैन—पेिस फक ेड
यूिनयन से े टे रएट के िखलाफ लीग से संब कर िलया था—जो क दोन ही क युिन ट
संगठन थे। ले कन असली कारण हाइटली कमीशन का बिह कार था, िजसे अगर भाव
म लाया जाता तो ीमान जोशी और चमनलाल को इकाई से इ तीफा देना पड़ता। जहाँ
तक सा ा यवाद के िखलाफ लीग से जुड़ने क बात है, तो इस बात का सं ान िलया जाना
चािहए क यह 1928 म ेड यूिनयन कां ेस के झ रया स म कया गया था—ले कन उस
समय क रपंथी ेड यूिनयन नेता इस ताव को पचा गए थे, य क वे से े टे रएट को
अपने काबू म रखने म पया प से स म थे। त य क बात तो यह है क क रपंथी यानी
क राइट वंगस क हाइटली कमीशन के सवाल पर हार ई थी, इसिलए नह क
क युिन ट ब मत म थे, बि क इसिलए क सटर पाट , जो क क युिन ट नह थी, उसने
इस सवाल पर उनका साथ दया था। प रणाम व प, य द दि णपंथी (राइट वंगस)
नागपुर म ेड यूिनयन कां ेस से अलग नह ए होते, तब भी वे एक मह वपूण भूिमका
िनभाते। ले कन उ ह एक नुकसान झेलना पड़ा, िजसके िलए संभवत: वे तैयार नह थे।
उ ह अंतररा ीय म स मेलन के अवसर पर िजनेवा क सालाना या ा से हाथ धोना
पड़ा। ेड यूिनयन कां ेस ने िजनेवा म अंतररा ीय म स मेलन का बिह कार करने के
िलए एक ताव पा रत कया, य क स मेलन का भारतीय िमक को कोई फायदा
नह होना था और उस स मेलन के िलए भारतीय ितिनिधय को गवनमट ऑफ इं िडया ने
िनयु कया था, न क ऑल इं िडया ेड यूिनयन कां ेस ने। हाइटली कमीशन का
बिह कार करनेवाले ताव के समान यह ताव दि णपंिथय (राइट वंगस) को
वीकाय नह था और यह ताबूत म आिखरी क ल क कहावत को सािबत करनेवाला था।
अगर 1929 म राजनीितक आंदोलन शु कर दया गया होता तो चीज इतनी खराब
नह होत । इससे राजनीितक आंदोलन अ य े म चल रहे आंदोलन के साथ-साथ ही
चलता। ले कन ऐसा नह होना था, इसिलए राजनीितक े म सामा य गितिविधयाँ ही
चलती रह । बंगाल म कां ेस पाट बार-बार मंि य को बदलने म लगी रही। पाट क
रणनीितय से तंग आ चुके गवनर ने मई म लेिज ले टव काउं िसल (िवधान प रषद्) को
भंग करने के साथ ही नए िसरे से चुनाव कराने के आदेश दे दए। नतीजा यह आ क
कां ेस पाट कु छ अिधक सं या बल के साथ लौट आई और रा वादी मुसिलम लीग भी
िपछले चुनाव म हार गई, वे अपनी सीट को पुन: हािसल करने म सफल हो गए। चुनाव से
ठीक पहले, रा वादी समाचार-प ‘फॉरवड’ के िखलाफ ई ट इं िडयन रे लवे73 ारा
दािखल मानहािन के एक मुकदमे म फै सला सुनाया गया। यह मामला कलक ा के समीप
एक रे ल हादसे के बारे म कं पनी क ित ा को आहत करनेवाली रपोट कािशत करने से
संबंिधत था। अदालत ने 1,50,000 पए (Rs. 13½=£1 approximately) का भारी जुरमाना
कया और ऐसी उ मीद थी क इससे समाचार-प को मजबूरी म बंद करना पड़ेगा।
हालाँ क अगले दन ‘फॉरवड’ दखना बंद हो गया, ले कन उसक जगह नए दैिनक
समाचार-प ‘िलबट ’ का काशन शु हो गया। इसिलए कां ेस पाट को अपने मुखप
को लेकर कसी कार क परे शानी का सामना नह करना पड़ा।
जून म लेबर पाट स ा म आई थी और वायसराय लॉड इरिवन को िवचार-िवमश के
िलए लंदन आमंि त कया गया, जहाँ वे कु छ महीने रहे। उनके लंदन वास के दौरान
महा मा म अचानक से एक प रवतन आया। जुलाई म कां ेस कायसिमित क एक बैठक म
एक ताव पा रत करते ए सभी कां ेस सद य से िवधानमंडल सीट से इ तीफा देने
का आ वान कया गया। िविभ िवधानमंडल म कां ेस पा टय को कोई नो टस नह
दया गया, न ही उनके िवचार आमंि त कए गए और सबसे आ यजनक चीज पं.
मोतीलाल नेह क मौन वीकृ ित थी, जो क असबली म कां ेस पाट क अगुआई कर रहे
थे। पंिडत ने मई महीने म बंगाल कां ेस पाट को चुनाव लड़ने को ो सािहत कया था
और िवशेष प से कु छ मुसिलम सीट पर पुन: क जा जमाने के िलए उनको आदेश दया
था। उसी महीने म जब इलाहाबाद म अिखल भारतीय कां ेस कमेटी74 क बैठक ई तो
दवंगत जे.एम. सेनगु ा और लेखक ने कड़ा ितरोध दज कराया। दोन ही कां ेस
कायसिमित के सद य थे। इस िवरोध और िविभ िवधानमंडल म कां ेस पा टय ारा
जताए गए असंतोष के प रणाम व प, िवधानमंडल से इ तीफा देने संबंधी ताव
िवखंिडत हो गया और पूरा मामला दसंबर म लाहौर कां ेस तक के िलए थिगत कर
दया गया। अब तक यह हम लोग म से ब त के िलए एक पहेली बना आ है क मई और
जून के बीच म ऐसा या आ क पं. मोतीलाल नेह ने अपना मोरचा बदल िलया? या
िवधानमंडल म कां ेस पाट ारा कए जा रहे काय से उनका अचानक मोहभंग हो गया
था? या असबली म उ ह बगावत का सामना करना पड़ा या अपनी ही पाट के एक धड़े
क नाराजगी झेलनी पड़ी और इसिलए वे इसे भंग करना चाहते थे या फर वे वामपंिथय
(ले ट वंगस) के िखलाफ एक संयु मोरचा खड़ा करना चाहते थे, जो अिधक शि शाली
हो रहे थे और यही कारण था क वे काउं िसल के बिह कार के महा मा के पसंदीदा िस ांत
पर राजी होकर उ ह खुश करना चाहते थे? मामला जो भी रहा हो, इस बात म कोई संदह े
नह है क पं. मोतीलाल नेह के समथन के िबना महा मा कभी भी कां ेस पर अपने
िवचार नह थोपते। और इस बात को बड़े ही अफसोस के साथ दज करना पड़ेगा क पं.
मोतीलाल नेह , जो क उस समय एकमा ऐसे ि थे, जो कसी भी तरीके से महा मा
को भािवत कर सकते थे, उ ह ने िवधानमंडल का बिह कार करने क नीित को
पुनज िवत करने म महा मा का स य समथन कर देश का भारी नुकसान कया। इस
बिह कार का खतरनाक असर आनेवाले साल म यादा-से- यादा प होता गया। ब त
यादा न कहते ए, इतना कहना काफ है क जब नया संिवधान िवचाराधीन था तो
िवधानमंडल के बिह कार का फै सला एक भयानक और बड़ी भारी रणनीितक भूल थी
और वह भी ऐसे म, जब क एक साल पहले ही यह दखा दया गया था क असबली म
कां ेस सद य क उपि थित के कारण ही वह इकाई साइमन कमीशन को अ वीकार करने
म स म ई थी। लेखक उन चु नंदा लोग म शािमल थे, िज ह ने एकदम आिखर तक
बिह कार ताव का िवरोध कया—ले कन पं. मोतीलाल नेह और साथ म दवंगत
जे.एम. सेनगु ा के समथन से महा मा बड़ी आसानी से कां ेस को अपने साथ लेकर बढ़
सकते थे। और यहाँ तक क बंगाल भी अिवभािजत िवरोध नह कर सका, जैसा क जुलाई
म इलाहाबाद म अिखल भारतीय कां ेस सिमित क बैठक म संभव आ था। यह दवंगत
सेनगु ा और लेखक के बीच मनमुटाव होने से पहले क बात है।
अग त म आगामी कां ेस के अ य का फै सला करने के िलए अिखल भारतीय कां ेस
सिमित क एक िवशेष बैठक आ त क गई। कां ेस संिवधान के अनु प ांतीय कां ेस
सिमित के बड़े ब मत ने महा मा गांधी को नािमत कया था, ले कन उ ह ने नामांकन
अ वीकार कर दया। कां ेस हलक म सामा य भावना यह थी क यह स मान सरदार
व लभभाई पटेल को िमलना चािहए। ले कन महा मा ने पं. जवाहरलाल नेह क
उ मीदवारी को समथन देने का फै सला कया। महा मा के िलए उनका यह चुनाव
िववेकपूण था, ले कन कां ेस वाम धड़े के िलए यह दुभा यपूण सािबत होनेवाला था,
य क यह घटना महा मा और पं. जवाहरलाल नेह के बीच राजनीितक तालमेल क
शु आत के प म दज ई और इसके फल व प कां ेस वाम शाखा और पं. जवाहरलाल
नेह के बीच िवलगाव हो गया। 1920 से ही पं. जवाहरलाल नेह महा मा ारा
ितपा दत नीित के समथन म रहे थे और महा मा के साथ उनके र ते हमेशा मै ीपूण रहे
थे। ले कन दसंबर 1927 म यूरोप से लौटने के बाद से पं. जवाहरलाल नेह ने वयं को
समाजवादी कहना शु कर दया था और महा मा गांधी तथा पुराने नेता के ित
श ुतापूण िवचार को अिभ ि दे रहे थे। अपनी सावजिनक गितिविधय म वे कां ेस के
भीतर वामपंथी िवरोध के साथ वयं को जोड़ने लगे थे। ले कन उनक पुरजोर पैरवी के
िलए, ‘इं िडपडस लीग’ के िलए यह संभव नह हो पाता क वह उस मह व को हािसल करे ,
जो उसने कया था। इसिलए महा मा के िलए यह आव यक था क य द वे वामपंिथय के
िवरोध को परा त करना चाहते ह और कां ेस के ऊपर अपनी पहले के जैसी िन ववा दत
बादशाहत चाहते ह तो उ ह पं. जवाहरलाल नेह को अपने पाले म कर लेना चािहए।
ले ट वंगस (वामपंिथय ) को यह िवचार पसंद नह आया क उनके एक सवािधक
ितभाशाली व ा को लाहौर कां ेस क अ य ता वीकार करनी चािहए, य क यह
प था क कां ेस म महा मा ारा अपनी मनमज चलाई जाएगी और अ य के वल एक
पुतला होगा। उनका यह िवचार था क एक वाम नेता को उसी सूरत म अ य पद
वीकार करना चािहए, जब वह अपने काय म को कां ेस ारा मंजूर कराए जाने क
ि थित म हो। ले कन पं. जवाहरलाल नेह क उ मीदवारी का समथन कर महा मा ने
ब त समझदारीपूण कदम उठाया और अ य के प म ए चुनाव ने नेह के सावजिनक
जीवन म एक नया अ याय खोल दया। उसके बाद से पं. जवाहरलाल नेह महा मा के
सतत और िन ावन समथक बने ए ह।
इस बीच साइमन कमीशन अपने काम म त रहा और 16 अ ू बर, 1929 को कु छ पूव
बंध के बाद सर जॉन साइमन ने धानमं ी रै मसे मैकडोना ड को िलखा क उ ह सेवा-
शत म कु छ समय का िव तार चािहए, ता क वे उन तरीक क जाँच कर सक, िजससे
भारतीय रा य और ि टश भारतीय ांत के बीच भिव य के संबंध को फर से
समायोिजत कया जा सके । उ ह ने यह भी सुझाव दया क कमीशन क रपोट के
काशन के बाद महामिहम क सरकार और ि टश भारत तथा रा य के ितिनिधय के
बीच एक कॉ स का आयोजन कया जाना चािहए। दोन सुझाव पर कै िबनेट ने सहमित
जता दी। उसी महीने लॉड इरिवन भारत लौट आए और आने के तुरंत बाद उ ह ने 31
अ ू बर, 1929 को एक बयान जारी कर कहा क महामिहम क सरकार ने उ ह प प
से यह कहने के िलए अिधकृ त कया है क उनके िनणय म, 1917 क घोषणा म यह िनिहत
है क भारत क संवैधािनक गित का वाभािवक मु ा, जैसा क वहाँ िवचार कया गया,
डोिमिनयन टेटस क ाि है। उ ह ने आगे कहा क जैसा क सर जॉन साइमन वयं
सुझाव दे चुके ह, साइमन कमीशन क रपोट कािशत होने के बाद लंदन म एक गोलमेज
स मेलन आयोिजत कया जाएगा।
ि टश कै िबनेट और वायसराय ारा अपनाए इस नए रवैए से जो ि थित पैदा ई, वह
कसी से छु पी नह रही थी। देशबंधु दास क गैर-मौजूदगी म वहाँ कम-से-कम एक ह ती
ऐसी थी, जो तुरंत मौके को लपक सकती थी और क मत से उनके िलए, वे उस समय
वायसराय और जनता के ितिनिधय के बीच म एक म य थ क कू टनीितक ि थित म थे।
यह ि थे िव लभाई पटेल, जो क एक व र कां ेसी नेता थे और 1925 म असबली के
अ य पद के िलए िनवािचत ए थे। अ य पटेल का एक शानदार सावजिनक कॅ रयर
था। पेशे से वक ल थे। उ ह ने राजनीित को अपना पहला ेम बना िलया था। काफ लंबे
समय से वे हर भले-बुरे दौर म कां ेस के साथ रहे थे। वे कई बार अिखल भारतीय कां ेस
सिमित के महासिचव भी रह चुके थे। उसी हैिसयत से वे 1919 के सुधार से पूव इं लड क
या ा करनेवाले कां ेस िश मंडल म रह चुके थे। वे संवैधािनक कानून के ाता थे और
संसदीय या , िवशेष प से अवरोधक रणनीित म उ ह िवशेष ता हािसल थी। लोग
उनके बारे म कहते थे—‘िव लभाई को दुिनया का सबसे संपूण संिवधान दे दो, वे उसक
धि याँ उड़ा दगे।’ अ य के प म भी उनक सफलता इतनी शानदार थी क ि टश
हाउस ऑफ कॉम स म या के बाद 1927 म उ ह पुन: िन वरोध चुन िलया गया।
सरकार के िलए कोई अनाव यक परे शानी पैदा कए िबना वे असबली के मामल का इस
तरीके से संचालन करते थे क कसी भी लोकि य अ य के िलए यह ब त बड़ी बात
होती। 1929 म जब असबली म बम फका गया तो सरकार को लगा क असबली क पूरी
व था को अपने िनयं ण म लेने का यह ब त ब ढ़या अवसर है और सरकार के इन
यास से िनपटने के िलए अ य को काफ संघष करना पड़ा। उ ह असबली से े टे रएट
को अपने िनयं ण म लाने के िलए भी कड़ी मश त करनी पड़ी, जो क पहले गवनमट ऑफ
इं िडया के अधीन था। ले कन अपनी सभी लड़ाइयाँ उ ह ने इतनी ग रमा, समझदारी और
संवैधािनक या के दायरे म रहते ए लड़ क वे वायसराय लॉड इरिवन का भी
स मान पाने म सफल रहे।
िव लभाई पटेल ने वायसराय पर दबाव बनाया क उ ह वयं कां ेस नेता महा मा
गांधी और पं. मोतीलाल नेह से मुलाकात कर उनके साथ एक सहमित बनाने के यास
करने चािहए। वायसराय इसके िलए राजी हो गए और दसंबर म मुलाकात ई। ले कन
इससे पूव, उ ह ने जवाब म नेता क ओर से संकेत दए जाने का बंध कर एक जमीन
तैयार क । इस कार उनक नवंबर म सभी दल के नेता के स मेलन म मुलाकात ई।
स मेलन म अ यािशत ब मत के साथ वायसराय क घोषणा म िनिहत ईमानदारी क
सराहना करते ए एक घोषणा-प जारी करने का िनणय िलया और भारत के िलए एक
डोिमिनयन संिवधान िवकिसत करने के उनके यास म महामिहम क सरकार को सहयोग
दान करने का फै सला कया गया। ह ता रकता ने आगे भी यह उ मीद लगा रखी थी
क तािवत गोलमेज स मेलन यह चचा करने के िलए होगा क डोिमिनयन टेटस कब
थािपत कया जाएगा, बि क यह भारत के िलए एक डोिमिनयन संिवधान क योजना का
खाका तैयार करने के िलए होगा। उ ह ने यह भी अपील क क गोलमेज स मेलन से पहले
आम माफ दी जानी चािहए। घोषणा-प पर महा मा गांधी, नेह (िपता और पु ), पं.
एम.एम. मालवीय, डॉ. अंसारी, डॉ. म जे, सरदार व लभभाई पटेल और दि णपंथी
माननीय वी.एस. शा ी, सर तेज बहादुर स ,ू ीमती बेसट, ीमती नायडू तथा अ य ने
ह ता र कए थे। पं. जवाहरलाल नेह शु आत म अ य नेता से सहमत नह थे और
लेखक के साथ अपना एक अलहदा घोषणा-प जारी करने के इ छु क थे। ले कन बैठक क
समाि के समय महा मा गांधी ने उन पर हावी होते ए इस आधार पर उनसे नेता के
घोषणा-प पर ह ता र करवा िलये क वे लाहौर कां ेस के अ य िनवािचत हो रहे थे
और य द घोषणा-प पर उनके ह ता र नह ए तो यह द तावेज अपना अिधकतम
मू य खो देगा। इसके बाद डॉ. एस. कचलू (लाहौर), अ दुल बारी (पटना) और लेखक ने
डोिमिनयन टेटस को वीकार करने तथा तथाकिथत गोलमेज स मेलन म भाग लेने के
िवचार का भी िवरोध करते ए अलग घोषणा-प जारी कया। घोषणा-प म इस बात
को रे खां कत कया गया क एक वा तिवक गोलमेज स मेलन म के वल संबंिधत पा टय
को ही ितिनिध व दया जाना चािहए और भारतीय ितिनिधय का चयन ि टश
सरकार ारा नह , जैसी क मंशा रही थी, बि क भारतीय लोग ारा कया जाना
चािहए। इसने भारतीय लोग को भी चेताया क वायसराय क घोषणा ि टश सरकार
ारा िबछाया गया एक जाल थी। यह ि टश सरकार ारा कु छ साल पहले आयरलड के
मामले म उठाए गए कदम क याद दलाती थी, जब धानमं ी लॉयड जॉज ने सुझाव
दया था क आयरलड के िलए संिवधान का खाका तैयार करने के िलए सभी प को
शािमल करते ए एक आय रश स मेलन होना चािहए—ले कन िसन फन पाट इतनी
समझदार थी क उसे खेल समझ म आ गया और उसने स मेलन का बिह कार कर दया।
नेता के घोषणा-प ने जनता का यान आक षत कया और बड़े पैमाने पर जनता का
समथन भी िमला। ले कन इसके िवरोधी घोषणा-प का के वल वामपंथी कां ेिसय ने ही
वागत कया और सामा य प से युवा वग ने।
उसी महीने, नवंबर म बंगाल कां ेस सिमित क सालाना बैठक पदािधका रय आ द का
चुनाव करने के िलए ई। उस बैठक म यह पाया गया क सिमित के भीतर दो गुट बन चुके
थे, एक दवंगत सेनगु ा के नेतृ व म आगे बढ़ रहा था तो दूसरा लेखक के नेतृ व म। कड़ा
मुकाबला था और लेखक क पाट आिखरकार ब त कम अंतर से जीत गई। यह बंगाल
िववाद और कां ेस सिमित म िवघटन क शु आत थी, िजससे आगे चलकर युवा और
छा म भी िवघटन हो गया। िबखराव कलक ा कां ेस के समय म ही शु हो गया था,
जब दवंगत सेनगु ा ने महा मा का समथन कया था और चाहते थे क लेखक भी ऐसा ही
कर। उसके बाद से ही दवंगत सेनगु ा के नेतृ व म बंगाल म एक अलग पाट पैदा हो चुक
थी, जो महा मा और उनक नीित के ित िबना कोई सवाल उठाए नतम तक थी। बंगाल
म ब सं यक दल महा मा से उस तरह से नह जुड़ा था और अपने दृि कोण और काय म
म वह कां ेस म महा मा के वामपंथी िवरोध के साथ खड़ा था।
कां ेस नेता महा मा गांधी और पं. मोतीलाल नेह को दसंबर म वायसराय से
मुलाकात करनी थी। उस मुलाकात क पूव सं या पर एक दुभा यपूण घटना घट गई।
वायसराय क ेन को तोड़ने का यास कया गया, ले कन क मत अ छी थी क कु छ
गंभीर हादसा नह आ और लॉड इरिवन चम का रक प से बच गए। बैठक क यह
अिभलाषा तो पूण ई, ले कन कह से भी इसे फलदायी नह कहा जा सकता। कां ेस नेता
चाहते थे क ि टश सरकार या कम-से-कम वायसराय भारत को डोिमिनयन टेटस
दान करने का आ ासन द, ले कन ऐसा कोई आ ासन नह िमला। इसिलए उ ह
वायसराय के यहाँ से काफ िनराश होकर लौटना पड़ा और वे लाहौर कां ेस म प च ँ े तो
75
उनके हाथ खाली थे। देश म माहौल उ पंथी नीित के प म था और पूरे साल देश म
अशांित फै ली रही। सरदार भगत संह और उनके सािथय क िगर तारी के बाद पंजाब म
नौजवान भारत सभा ने उनक ओर से चार- सार शु कर दया था। जितन दास के
आ म-बिलदान ने पहले से आ ोिशत वातावरण म आग म घी डालने का काम कया।
दूसरी ओर, कलक ा कां ेस म हो-ह ला मचानेवाले नेता कु छ भी हािसल कर पाने म
नाकाम रहे थे। महा मा ने बयान देकर अपनी ि थित को और कमजोर कर िलया था।
उ ह ने कहा था क य द सरकार क ओर से 31 दसंबर, 1929 तक कोई जवाब नह
िमलता है तो वे 1 जनवरी, 1930 को वयं को ‘ वतं ’ घोिषत कर दगे। महा मा क तरह
ही उनके ढ़वादी समथक भी अभी तक डोिमिनयन होम ल क वकालत करते आए थे
और वे अपनी उस बात से पीछे नह हटना चाहते थे। ले कन महा मा को यह त य
भलीभाँित समझ आ चुका था क देश म जो वातावरण उस समय बना आ था, उसम
उनके िवरोध के बावजूद वतं ता संबंधी ताव पा रत हो जाएगा और ऐसे म यही
बेहतर है क वे वयं यह ताव पेश कर द।
पं. जवाहरलाल नेह क अ य ता म लाहौर म कां ेस क बैठक ई। जैसा क
पूवानुमान था, अ य के वल दखावा मा था और पूरी काररवाई पर महा मा गांधी का
क जा था, जो वतं ता क पैरवी कर कु छ वामपंिथय को अपनी ओर ख चने म सफल भी
हो गए। म ास कां ेस ने 1927 म हालाँ क वतं ता संबंधी एक ताव पा रत कया था,
ले कन उसने कां ेस के संिवधान म प रभािषत ल य म बदलाव नह कया था और यह
लाहौर म कया गया। महा मा ारा पेश कए गए ताव के एक उपबंध को लेकर काफ
उ ेजना थी। उपबंध म ेन पर ए हमले म वायसराय के चम का रक प से बचने पर
उ ह बधाई दी गई थी।
कां ेस म आम भावना यह थी क एक राजनीितक ताव म इस कार का उपबंध
अवांिछत है, ले कन महा मा ने इसे बनाए रखने पर जोर दया, संभवत: इसिलए क वे
लॉड इरिवन को खुश करने के साथ ही भिव य म सुलह समझौते क जमीन तैयार करना
चाहते थे। चाहे जो भी हो, महा मा ने इसे िव ास का बना िलया और ब त ही कम
अंतर से वे जीत गए। अगला सवाल था, आनेवाले साल म चार क योजना बनाने का।
इस मामले म महा मा िब कु ल भी तैयार नह थे। कां ेस ने अपने सभी सद य से
िवधानमंडल क सीट से इ तीफा देने का आ वान कया और इस कार 1923 म
वराजवा दय क जीत का बदला 1929 म ले िलया गया। इस योजना का सकारा मक
प यह था क कायसिमित ने महा मा के कहने पर एक ताव कया, िजसम ‘ऑल
इं िडया ि पनस एसोिसएशन’ जैसे वाय संगठन ारा अ पृ यता उ मूलन, संयम को
ो सािहत करने तथा म पान एवं नशीले पदाथ आ द के सेवन को बंद करने के िलए
चार अिभयान चलाने क िसफा रश क गई। इसके बाद हर कसी ने यह सवाल उठाया
क देश म कां ेस नेता और कां ेस संगठन के िलए या काम रहेगा? िवषय सिमित के
सम जब वाय बोड के गठन के संबंध म ताव आया तो उसे लेकर काफ िवरोध था
और भावना यह थी क यह काम महा मा के ताव के अनुसार तदथ िनकाय ारा नह ,
बि क कां ेस संगठन ारा कया जाना चािहए। इसिलए ताव िगर गया। वामपंथी
शाखा क ओर से एक ताव लेखक ारा पेश कया गया क कां ेस को देश म समानांतर
सरकार ग ठत करने के ल य पर काम करना चािहए और इस ल य क ाि के िलए उसे
कामगार , कृ षक और युवा को संग ठत करने का काय अपने हाथ म ले लेना चािहए।
यह ताव भी िगर गया और इसका प रणाम यह आ क कां ेस ने अपने ल य के प म
पूण वतं ता क ाि को तो वीकार कर िलया, ले कन इस ल य तक प च ँ ने के िलए
कोई योजना तैयार नह क गई—न ही आनेवाले साल के िलए कोई काय म वीकृ त
कया गया। सावजिनक मामल म इससे अिधक हा या पद ि थित क क पना नह क जा
सकती क कई बार न के वल स ाई को देखने क हमारी समझ कुं द हो जाती है, बि क हम
अपनी सहज बुि भी खो बैठते ह। जब आगामी वष के िलए कायसिमित के चुनाव का
समय आया तो महा मा 15 नाम क एक सूची लेकर आ गए, िजसम ीिनवास आयंगर,
लेखक और अ य ले ट वंगस (वाम धड़ा) के नाम को जानबूझकर हटा दया गया था।
अिखल भारतीय कां ेस सिमित म यह पुरजोर भावना थी क कम-से-कम आयंगर और
लेखक के नाम को तो शािमल कया ही जाना चािहए था। ले कन महा मा ने नह सुनी।
उ ह ने सावजिनक प से यह बात कही क वे एक ऐसी सिमित चाहते ह, जो पूण प से
एकमत हो और साथ ही वे चाहते ह क उनक सूची को एकदम उसी प म पा रत कर
दया जाए। एक बार फर से यह महा मा म िव ास का सवाल पैदा हो गया और चूँ क
सदन उनका िनरादर नह करना चाहता था तो उसके पास कोई िवक प नह था—िसवाय
उनक माँग को वीकार करने के ।
कु ल िमलाकर लाहौर कां ेस महा मा क जीत थी। पं. जवाहरलाल नेह , वाम धड़े के
सबसे मुख व ा म से एक, को महा मा ने अपने पाले म कर िलया था तथा बाक
अ य को कायसिमित से बाहर रखा गया था। अब यहाँ से महा मा अपनी कै िबनेट के भीतर
कसी कार के िवरोध के डर के िबना अपनी योजना के साथ आगे बढ़ सकते थे और जब
भी कै िबनेट के बाहर से कोई िवरोध के वर उठते तो वे हमेशा कां ेस से सं यास लेने या
आमरण अनशन क धमक देकर जनता को मजबूर कर सकते थे। उनके िनजी दृि कोण के
िहसाब से यह सबसे चतुराईपूण कदम था। एक गुलाम कै िबनेट के साथ उनके िलए माच
1931 म लॉड इरिवन के साथ समझौते को संप करना संभव हो गया, िजसके िलए
गोलमेज स मेलन क खाितर उ ह ने वयं को एकमा ितिनिध िनयु कया था,
िसतंबर 1932 म ‘पूना समझौते’ को संप कया और अ य समझौते कए, िज ह ने जनता
का भारी नुकसान कया।
आम जनता के िलए, जो राजनीित क पेचीदिगयाँ नह समझती थी या जो कां ेस के
भीतरी गिलयार म चल रही िसयासत के ित उदासीन थी, उसके िलए लाहौर कां ेस
एक महान् ेरणा थी। 31 दसंबर को आधी रात के बाद कां ेस के अ य वतं ता वज
फहराने के िलए बाहर िनकले। लाहौर क सुइय -सी चुभनेवाली ठं ड के बावजूद वहाँ
िवशाल जूम था और जैसे-जैसे वज ऊपर उठता जा रहा था, जनता के भीतर िबजली क
गित से उ ेजना पैदा हो रही थी। जब कां ेस क बैठक ख म ई तो ि ितज पर उजाला
फै ल रहा था और असबली के सद य एक नई उ मीद और नए संदश े क मशाल लेकर वहाँ
से िवदा ए।

10
तूफान (1930)
न ववष के सवेरे के साथ ही हर कसी के दय म उ मीद और िव ास भरा
था। लोग उ सुकता से कायसिमित क ओर िनहार रहे थे और उसके िनदश का
इं तजार कर रहे थे क ज द-से-ज द वतं ता ाि के िलए या करना है?
महा मा ने वातावरण को एकदम सही से भाँप िलया और उ ह ने कहा
—‘भिव य म बाट जोह रही अराजकता और गु अपराध से देश को के वल
सिवनय अव ा ही बचा सकती है, य क देश म एक हंसक पाट है, जो
भाषण को नह सुनेगी, ताव , स मेलन को नह सुनेगी, बि क वह सीधे
काररवाई म यक न करती है।’ इसिलए उ ह ने रा ीय संघष को अ हंसा क
सीमा के भीतर रखने के िलए वयं ही इस संघष का नेतृ व करने का बीड़ा
उठा िलया। जनवरी के शु आत म पहला आदेश जारी आ। 26 जनवरी को
पूरे भारत म वतं ता दवस मनाया जाना चािहए। उस दन महा मा ारा
तैयार और कां ेस कायसिमित ारा पा रत घोषणा-प हर मंच से पढ़ा
जाएगा और लोग ारा उसे वीकार कया जाएगा। िन िलिखत घोषणा-
प , एक समय वतं ता का घोषणा-प , भारतीय रा ीय कां ेस के ित
िन ा क शपथ और भारत क आजादी के पिव संघष के िलए शपथ था।
‘हमारा यह मानना है क क ह भी अ य लोग के समान ही वतं ता ा
करना, अपनी मेहनत का फल पाना और जीवनोपयोगी व तु क ाि ,
भारतीय लोग का अह तांतरणीय अिधकार है, ता क उ ह िवकास के पूण
अवसर ा हो सक। हमारा यह भी मानना है क य द कोई सरकार लोग को
इन अिधकार से वंिचत करती है और उनका दमन करती है तो लोग को आगे
बढ़कर इसे बदलने या समा करने का भी अिधकार है। भारत म ि टश
सरकार ने न के वल भारतीय लोग को उनक वतं ता से वंिचत रखा है,
बि क जनता के शोषण पर अपना आधार खड़ा कया है और उसने भारत को
आ थक, राजनीितक, सां कृ ितक और अा याि मक प से न कर दया है।
इसिलए हमारा मानना है क भारत को ि टेन से अव य ही अपने संबंध
समा कर लेने चािहए और पूण वराज या पूण आजादी ा करनी चािहए।
‘भारत को आ थक प से तबाह कया जा चुका है। हमारे लोग से जो
लगान वसूल कया जाता है, वह हमारी आय के अनुपात म ब त अिधक है।
हमारा रोजाना क आमदनी सात पैसे (दो पस से भी कम) है और हम ब त
अिधक कर का भुगतान करते ह, 20 ितशत कसान से ा भू-राज व से
उठाया जाता है और 3 फ सदी नमक कर से िलया जाता है, जो क गरीब पर
ब त भारी मार है।
‘ ामीण उ ोग-धंधे जैसे क हथकरघा, उसे बरबाद कर दया गया है, कृ षक
को साल म कम-से-कम चार महीने खाली बैठना पड़ता है, ह तकला के िलए
उनक बुि कुं द हो रही है; और अ य देश क तरह न हो चुक कला के
िलए उनके पास कोई िवक प नह है। कर और मु ा म इतना अिधक हेर-फे र है
क कृ षक पर और बोझ बढ़ गया है। हमारे आयात का बड़ा िह सा ि टश
िन मत उ पाद ह।
‘सीमा शु क साफ तौर पर ि टश िविनमाता के प म है और उनसे ा
राज व का इ तेमाल जनता के बोझ को कम करने के िलए नह , बि क बेहद
खच ले शासन को चलाने के िलए इ तेमाल कया जाता है। िविनयम
अनुपात म हेरा-फे री भी मनमाने तरीके से हो रही है, िजसके प रणाम व प
लाख पया देश से बाहर जा रहा है।
‘राजनीितक प से भारत का दजा कभी इतना कमतर नह कया गया,
िजतना ि टश राज म कया गया है। कसी भी सुधार ने लोग को वा तिवक
राजनीितक शि नह दी है। हमम से सबसे बड़े को भी िवदेशी स ा के सामने
झुकना पड़ता है। िवचार क वतं अिभ ि का अिधकार और वतं प
से जुड़ने के अिधकार से हम लोग को वंिचत रखा गया है तथा हमारे ब त से
देशवासी िनवासन म िवदेश म रहने को बा य ह और वे अपने घर को नह
लौट सकते। सारी शासिनक ितभा ख म कर दी गई और जनता को छोटे-
छोटे ामीण पद और लक के पद से संतु होना पड़ रहा है।
‘सां कृ ितक प से िश ा व था ने हम हमारी जड़ से उखाड़ दया है और
हमारे िश ण ने हम उ ह जंजीर से बँधे रहने को मजबूर कर दया है, जो
हम जकड़े ए ह।
‘आ याि मक प से अिनवाय िनर ीकरण ने हम भी बना दया है तथा
एक अजनबी सेना के क जे ने, िजसका िव वंसक भाव यह आ है क उसने
हमारी ितरोध क भावना को कु चल दया है, हमारे दमाग म यह बैठा दया
क हम वयं अपनी देखभाल नह कर सकते या िवदेशी आ ांता का
मुकाबला नह कर सकते या चोर , डकै त और शरारती त व के हमल से
अपने घर और प रवार क र ा नह कर सकते।
‘हम ऐसे शासन के सम झुकने को मानव और परमा मा के िखलाफ
अपराध मानते ह, िजसने हमारे िलए रा को चौगुनी आपदा म धके ल दया
है। ले कन हम इस बात को मानते ह क अपनी वतं ता को हािसल करने का
सवािधक भावी रा ता हंसा के मा यम से नह है। इसिलए हम वयं को,
जहाँ तक संभव हो सकता है, ि टश सरकार के सभी वैि छक संबंध से पीछे
हटने और लगान/कर का भुगतान नह करने समेत सिवनय अव ा के िलए
तैयार करगे। हम इस बात से सहमत ह क य द हम कसी उकसावे के बावजूद
िबना हंसा का सहारा िलये कर का भुगतान बंद कर सक और अपनी
वैि छक सहायता वापस ले सक तो इस अमानवीय शासन का अंत िनि त
है। इसिलए हम, पूण वराज क थापना के ल य के िलए समय-समय पर
कां ेस ारा जारी िनदश का पालन करने का स यिन ा से संक प उठाते ह।’
देश के िविभ िह स से ा रपोट बता रही थ क वतं ता दवस
समारोह ब त सफल रहा था। हर जगह लोग ने अभूतपूव उ साह दखाया
और महा मा को लगा क वे कसी गितशील काय म पर आगे बढ़ सकते ह।
ले कन उसी ण, उनके भीतर के ावहा रक राजनीित ने जोर मारा।
सिवनय अव ा आंदोलन शु करते ए वे समझौते के िलए दरवाजे खुले
रखना चाहते थे और उ ह लगा क कां ेस का वतं ता ताव अड़चन
सािबत हो सकता है। उ ह ने यह भी महसूस कया क उनके कु छ धनी-मानी
समथक—भारतीय पूँजीवादी—लाहौर कां ेस के ताव को लेकर चंितत
थे। इसिलए कु छ सफाई देना वहाँ ज री हो गया था, खासतौर से इस त य के
म ेनजर क ‘ वतं ता’ श द का अथ ि टश संबंध का िव छेद है। 30 जनवरी
को उ ह ने अपने प ‘यंग इं िडया’ म एक बयान जारी कया, िजसम उ ह ने
कहा क वे ‘ वतं ता के सार’ से संतु ह गे और उ ह ने यह बताने के िलए 11
बंद ु का िज कया क इस अिभ ि से उनका या अिभ ाय: था। उसी
के साथ ही उ ह ने ‘ वतं ता’ श द का एक कार से याग ही कर दया और
इसके थान पर एक अिधक लचीले श द ‘ वतं ता का भाव/सार’ या एक
अ य श द, जो उनका ईजाद कया आ था—‘पूण वराज’ का उपयोग करने
लगे, िजसक वे अपने तरीके से ा या कर सकते थे। उनके ारा दए गए 11
बंद ु ने उन सभी प को आ त कया, जो वतं ता के िवचार से परे शान
थे और इस कार उ ह ने आनेवाले महीन म लंबी सुलह समझौता या का
माग श त कर दया।
ये 11 बंद ु इस कार थे—
1. पूण म िनषेध,
2. अनुपात म कमी ( पए से पाउं ड ट लग) 1 सी लंग 6 डॉलर से 1 सी लंग 4
डॉलर,
3. भू-राज व म कम-से-कम 50 फ सदी क कमी और इसे िवधायी िनयं ण के
तहत लाना,
4. नमक कर का उ मूलन,
5. सै य खच म कमी, शु आत के िलए कम-से-कम 50 फ सदी,
6. कम राज व के अनु प उ ेणी क सेवा के वेतन को आधा या उससे
कम करना,
7. िवदेशी कपड़े पर सुर ा मक शु क,
8. तटीय यातायात आर ण िवधेयक का पा रत होना (भारत के तटीय
यातायात को भारतीय जहाज के िलए आरि त करना),
9. सामा य याियक यायािधकरण ारा ह या या उसके यास के िलए दोषी
ठहराए गए लोग को छोड़कर सभी राजनीितक बं दय क रहाई; सभी
राजनीितक अिभयोजन को वापस लेना; धारा-124 ए (भारतीय दंड
संिहता), 1818 के िविनयम और इसी तरह के िविनयम का िनरसन और
सभी िनवािसत भारतीय को वापसी क अनुमित,
10. सी.आई.डी. का उ मूलन (आपरािधक जाँच िवभाग) या इसका लोकि य
िनयं ण,
11. लोकि य िनयं ण के अधीन आ मर ा के िलए आ ेया का उपयोग
करने के िलए लाइसस जारी करना।
फरवरी क शु आत होते-होते ि थित महा मा के अनुकूल थी। कायसिमित ने
सिवनय अव ा आंदोलन के संचालन के िलए तानाशाही शि याँ उनम िनिहत
कर दी थ । वतं ता दवस पर देशवािसय क ओर से िमली गमजोशीपूण
ित या के कारण, कां ेस पाट से संबंिधत िविभ िवधानमंडल के सद य
ने लाहौर कां ेस के जनादेश का स मान करते ए अपने-अपने इ तीफे स प
दए। जािहर सी बात है क एक बड़ी मुसिलम आबादी स या ह और सिवनय
अव ा के िवचार के िखलाफ थी और अली बंधु ने सावजिनक प से अपने
सहध मय से कां ेस क ाथना को अनसुना करने क अपील क । ले कन
रा वादी मुसिलम पूरे दल से कां ेस का साथ दे रहे थे, ले कन वे ब त ही
सीिमत सं या म थे। उ ह ने और मुसिलम ब ल आबादीवाले पि मो र
सीमांत ांत के मुसिलम कां ेस के आगामी आंदोलन को पुरजोर समथन देने
जा रहे थे। अपने दल को काफ टटोलने के बाद 27 फरवरी को महा मा ने
आंदोलन क अपनी योजना क घोषणा कर दी। अगले कु छ कदम जो महा मा
ने उठाए, वे उनके नेतृ व के सवािधक बुि मानीपूण फै सले थे और उन कदम
ने दखा दया था क संकट के समय म उनक नेतृ व मता कतनी ऊँचाइय
को ा कर सकती है। उ ह ने 27 फरवरी, 1930 को ‘यंग इं िडया’ म िलखा—
‘इस बार मेरी िगर तारी पर कोई मूक िनि य अ हंसा नह , बि क
सवािधक स यता के साथ अ हंसा को ऐसी गित दी जानी चािहए, ता क
भारत के ल य को हािसल करने के िलए अ हंसा म अगाध आ था रखनेवाला
एक भी ि , यास के अंत म वयं को मु या जंदा न पाए...इसिलए जहाँ
तक मेरा संबंध है, मेरी मंशा आंदोलन को के वल आ म म रहनेवाले (अथात्
उनका अपना आ म) लोग और उन लोग के मा यम से शु करने क है,
िज ह ने इसके अनुशासन को अपनाया है, इसके तौर-तरीक क भावना को
आ मसात् कया है।’ वे हंसा भड़कने क ि थित म सिवनय अव ा आंदोलन
को िनलंिबत करने क संभावना का िज कर रहे थे, जैसा क 1922 म आ
था। महा मा ने िलखा—‘ऐसा हरसंभव यास कया जाना चािहए क हंसा
क ताकत पर लगाम लगाई जाए। इस बार एक दफा सिवनय अव ा
आंदोलन शु होने पर रोका नह जा सकता और जब तक एक भी नाग रक
िवरोध करनेवाला आजाद या जंदा बचा रहता है, इसे कना भी नह
चािहए।’ अंितम वा य से उन सभी लोग को पुन: आ त करने म मदद
िमली, िज ह ने चौरी-चौरा म भीड़ क हंसा के बढ़ने पर 1922 म बारदाेली
म पीछे हटने पर कड़ी आपि जताई थी।
महा मा ने इससे आगे नमक कानून तोड़ने क अपनी मंशा का ऐलान कया,
िजसम वे अपने आ म के चु नंदा 78 अनुयाियय को साथ लेनेवाले थे। वे
अहमदाबाद से समु तट—समु क अपनी तीथया ा—के िलए 12 माच को
या ा शु करगे और वहाँ प च ँ ने के बाद सिवनय अव ा आंदोलन शु करगे।
यह पूरे देश के िलए आंदोलन म शािमल होने का संकेत होगा। महा मा ने यह
िवशेष अिभयान चलाने का फै सला कया था, य क यह पूरे देश को और
िवशेष प से गरीब को आक षत करे गा। हजार साल से लोग समु के पानी
या िम ी से नमक बनाते आए थे। ि टश सरकार ने यह अिधकार उनसे छीन
िलया था और अब नमक कानून दोगुना अ याय था। यह कानून लोग को
कृ ित- द नमक को इ तेमाल करने से ि◌तबंिधत करता था और उ ह इसे
िवदेश से आयात करने को मजबूर करता था। इतना ही नह , नमक कर लगाने
से नमक का दाम बढ़ रहा था, िजसे क गरीब-से-गरीब आदमी भी खरीदता है।
इस बंद ु का िव तार से वणन करते ए उ ह ने 2 माच को वायसराय को प
िलखा—
‘अगर आपको इन बुराइय से िनपटने का रा ता नजर नह आता और मेरा
प आपके दय को नह छू ता तो इस महीने के 12व दन, म आ म के ऐसे
सहक मय के साथ आगे बढ़ूँगा, िज ह ले जा सकता ँ और नमक कानून के
ावधान को तोड़ूग ँ ा। म एक गरीब ि क नजर से इस नमक कानून को
सवािधक अ यायपूण समझता ।ँ वतं ता आंदोलन धरती के सबसे गरीब
ि के िलए आव यक है और उसक शु आत इस बुराई से होगी। आ य यह
है क हम इतने लंबे समय तक ू र (नमक) एकािधकार के अधीन रहे ह!’
इसी प म, जो क एक लंबा द तावेज है, महा मा ने वायसराय को यह
समझाने का यास कया क उ ह सिवनय अव ा आंदोलन चलाने के िलए
मजबूर कया जा रहा है। यह प करते ए क प कोई धमक नह है, बि क
एक नाग रक ितरोध के संबंध म एक साधारण और पावन आ ासूचक कत
है, महा मा ने िलखा—‘अपने ब त से देशवािसय के साथ मुझे भी तािवत
गोलमेज स मेलन से एक उ मीद थी क संभवत: यह कोई समाधान देगी।
ले कन जब आपने प प से कह दया क आप ऐसा कोई आ ासन नह दे
सकते क आप या ि टश कै िबनेट पूण डोिमिनयन टेटस क योजना का
समथन करने का वादा नह करगे तो गोलमेज स मेलन संभवत: वह समाधान
उपल ध नह करा सका, िजसके िलए मुखर भारत पूरे होशोहवास म और
लाख गूँगे लोग अचेतन म ही यासे ह। यह कहने क ज रत नह है क संसद्
के फै सले का पूवानुमान लगाने का कोई सवाल ही नह था। वयं को एक
िवशेष नीित के ित वचनब करते ए, संसदीय फै सले क याशा म ि टश
कै िबनेट के उदाहरण क कमी नह है। द ली क बैठक बेनतीजा रहने के बाद
पं. मोतीलाल नेह और वयं मेरे िलए इसके िसवाय कोई अ य िवक प नह
बचा था क हम कलक ा म 1928 म कां ेस ारा पा रत गंभीर संक प को
लागू करने के िलए कदम बढ़ाएँ।’ समझौते के दरवाजे खुले रखने के िलए
सिवनय अव ा आंदोलन शु करने के बावजूद महा मा ने अपनी बात इस
तरह जारी रखी—‘ले कन य द अगर आपक घोषणा म उि लिखत
‘डोिमिनयन टेटस’ श द को इसक वीकाय भावना म उपयोग कया जाता
तो वतं ता का ताव/संक प से कोई चंता पैदा नह होनी चािहए थी। या
िज मेदार ि टश राजनेता ने यह वीकार नह कया है क डोिमिनयन
टेटस आभासी वतं ता है?’
महा मा गांधी के इस प या अ टीमेटम का वायसराय ने एक संि उ र
भेजा, िजसम उ ह ने इस बात पर अफसोस जताया क गांधी कानून तोड़ने क
मंशा रखते ह। अपने घोिषत काय म पर कायम रहते ए महा मा ने अपनी
तीन स ाह क दांडी या ा शु कर दी, जो क एक समु तट पर बसा गाँव है,
जहाँ नमक कानून क अव ा शु होनी थी। उस समय सरकार को या ा के
भाव को लेकर संशय था और उ ह ने महा मा को गंभीरता से नह िलया।
आं ल-भारतीय समाचार-प ने ताने मारनेवाले लेख िलखने शु कर दए
और कलक ा के ‘ टे समैन’ ने अपने एक मुख लेख म यह कहा क महा मा
डोिमिनयन टेटस को ा करने के िलए समु के उबलते ए पानी म भी जा
सकते ह। इस कार क आशंकाएँ कां ेस नेता के एक वग म भी थ । ले कन
कु छ भी हो, दांडी या ा एक मह वपूण ऐितहािसक घटना रही, िजसे ए बा से
लौटने के बाद नेपोिलयन क पे रस या ा या राजनीितक स ा पर क जा
जमाने के िलए मुसोिलनी क रोम या ा के समान तर पर रखकर देखा
जाएगा। सौभा य क बात यह थी क महा मा के पास भारत और उसके बाहर
ब त ही शानदार अ छा ेस था। भारत म या ा क हर दन क खबर पूरे
िव तार से कािशत हो रही थ । वे िजन-िजन गाँव से होकर गुजरे , वहाँ का
जनमानस समु क लहर क तरह उठने लगा और इस कार उ ह पूरे देश क
भावना को जगाने के िलए समय िमल गया। य द दूसरी ओर वे अहमदाबाद
से द ली क ेन पकड़ते, अगले दन वहाँ प च ँ ते तो इस कार न तो वे
गुजरात के लोग को खड़ा कर पाते और न ही उनके पास पूरे देश के िलए काम
करने का समय होता। जब महा मा या ा करते ए गाँव-गाँव से गुजर रहे थे
तो पास-पड़ोस म एक सघन चार अिभयान चलाया गया, लोग से शाही
त त क सेवा को यागने और लगान का भुगतान नह करने के िलए तैयार
रहने को कहा गया, जो क काफ ज द शु होनेवाला था। जहाँ-जहाँ महा मा
के कदम पड़े, उनका अभूतपूव तरीके और बड़ी गमजोशी के साथ वागत कया
गया और इसने सरकार को यह अहसास करवा दया क भावी आंदोलन
िजतना उ ह ने शु आत म सोचा था, उससे कह अिधक गंभीर मसला होगा।
6 अ ैल को समु म शु ीकरण ान के बाद महा मा ने तट पर पड़े नमक के
दान क ओर बढ़ते ए सिवनय अव ा आंदोलन शु कर दया। लगभग उसी
समय, पूरे देश म नमक का अवैध उ पादन शु कर दया गया। जहाँ ऐसे
आंदोलन के िलए अनुकूल प रि थितयाँ नह थ , वहाँ अ य कानून के मामले
म अव ा शु क गई। उदाहरण के िलए, कलक ा म मेयर, दवंगत जे.एम.
सेनगु ा ने एक जनसभा म रा ोही सािह य का पाठ कर सावजिनक प से
रा ोह कानून क अव ा शु क । िवदेशी कपड़ का बिह कार बड़े पैमाने पर
शु हो गया और उसके साथ ही सभी कार के ि टश उ पाद के बिह कार
का अिभयान जोर पकड़ने लगा। शराब तथा अ य नशीले पदाथ का बिह कार
करने के िलए एक और सघन अिभयान चलाया गया। बिह कार को लागू करने
के िलए कां ेस वयंसेवक ने पूरे भारत म धरन का आयोजन कया। दांडी
या ा शु होने के कु छ ही स ाह बाद, महा मा ने भारत क मिहला से एक
िवशेष अपील क (‘यंग इं िडया’, 10 अ ैल, 1930), िजसम उ ह ने कहा
—‘एक अ छी लड़ाई म भागीदार होने के िलए कु छ बहन क बेस ी मेरे िलए
एक व थ संकेत है...इस अ हंसक यु म उनका योगदान पु ष से अिधक
होना चािहए। मिहला को कमजोर वग कहना अपमानजनक है...य द ताकत
का अथ नैितक शि से है तो मिहलाएँ असीम शि क वािमनी ह।’ इसे आगे
बढ़ाते ए महा मा ने मिहला से शराब क दुकान और िवदेशी कपड़ क
दुकान पर धरने देने क अपील क । नशीले पदाथ और म पान िनषेध से
सरकार को 250 िमिलयन पए (13½ = £ 1 लगभग) के राज व का घाटा
होता, जब क िवदेशी कपड़े के बिह कार से करीब 600 िमिलयन पए क
चपत लगती। इतना ही नह , उ ह ने मिहला से अपील क क वे खादी के
उ पादन को बढ़ावा देने के िलए कु छ घंटे चरखा कातने म लगाएँ। िन कष प
म उ ह ने कहा—‘ले कन कु छ बहन यह कह सकती ह क शराब और िवदेशी
कपड़ को लेकर धरना देने म कोई उ साह और रोमांच नह है। अगर वे इस
आंदोलन म पूरे दल से सहयोग करती ह तो उ ह कह यादा रोमांच और
उ साह देखने को िमलेगा। आंदोलन संप होने से पूव ही वे खुद को जेल म भी
पा सकती ह। यह भी संभव है क उनका अपमान कया जाए और शारी रक
प से चोट प चँ ाई जाए। ऐसे अपमान और चोट को बरदा त करना उनके
िलए गव क बात होगी। अगर ऐसी पीड़ा उ ह झेलनी पड़ती है तो अंत म गित
ा होगी।’
अपील पूरे देश म सा रत हो गई और इसका जादुई भाव आ। अित
ढ़वादी और कु लीन/सं ांत प रवार क मिहलाएँ तक को यह बात भीतर
तक छू गई।76 हर जगह हजार क सं या म मिहलाएँ कां ेस के आदेश का
पालन करने के िलए घर से िनकल पड़ । आंदोलन जंगल क आग क तरह
फै ल जाएगा, इसक न के वल सरकार ने, बि क देश क जनता ने भी क पना
नह क थी और हर कोई आ यच कत था। िमस मैरी कपबेल77 जैसे कायकता,
िज ह ने भारत म 40 साल तक काम कया था, वे इस वृि को देखकर दंग
थे। एच.एन. े सफोड और जॉज लोक बे जैसे िवदेशी पयवे क कहते ह क
अगर सिवनय अव ा आंदोलन ने भारत क मिहला क मुि के अलावा
और कु छ हािसल नह भी कया होता तो भी यह अपने आप म पूरी तरह
यायोिचत था। मिहला क ऊजा, उमंग और उ साह ने पु ष को भी जी-
तोड़ यास करने और बिलदान के िलए े रत कर दया। आंदोलन के शु होने
के तीन स ाह के भीतर ही सरकार ने काररवाई का फै सला कर िलया। 27
अ ैल को ेस अ यादेश के नाम से थम आपात अ यादेश लागू कर दया,
िजससे समाचार-प पूरी तरह अिधका रय के िनयं णाधीन हो गए। ब त से
रा वादी समाचार-प ने िवरोध व प लंबे समय तक काशन बंद कर
दया। कां ेस क िविभ गितिविधय के दमन के िलए इसके बाद कई अ य
अ यादेश लागू कए गए। पूरे रा म कां ेस संगठन को गैर-कानूनी घोिषत
कर दया गया और एक अ यादेश जारी कर सरकार को उनक संपि य को
ज त करने का अिधकार दान कर दया गया।
अ यादेश का प रणाम यह रहा क कां ेस अब सावजिनक प से अपनी
गितिविधयाँ संचािलत नह कर सकती थी, जैसे—कोष एक करना,
वयंसेवक क भरती करना आ द। ये सब काय उ ह भूिमगत रहते ए करने
पड़ते थे। ले कन अ यादेश के चलते कां ेस क गितिविधयाँ धीमी पड़ने के
बजाय और तेजी से बढ़ने लग । हर जगह बैठक और दशन पर ितबंध लगा
दया गया था, ले कन सरकारी ितबंध क अवहेलना करते ए ये सब काय
जारी रहे। सरकारी ितबंध के बावजूद समाचार-प , बुले टन, परचे आ द
साम ी का काशन और िवतरण कां ेस एजिसय ारा जारी रहा। बॉ बे
जैसी कु छ जगह पर कां ेस का चार रे िडयो जैसे मा यम से संचािलत होता
रहा और पुिलस यह पता लगाने म िवफल रही क सारण कहाँ से हो रहा है?
अ हंसक िव ोह से मुकाबला होने पर सरकार ने पहले िगर ता रयाँ करना
शु कया, ले कन इससे कोई फायदा नह आ। सरकारी आँकड़ के अनुसार78
60 हजार नाग रक दशनका रय को जेल म डाल दया गया। ब त कम
समय के नो टस पर िवशेष अ थायी जेल का िनमाण करना पड़ा, ले कन तुरंत
ही ये जेल भी भर ग । उपरो गितिविधय के अित र , जो क संपूण भारत
म कु ल िमलाकर एक समान थ , कु छ ांत म कु छ िवशेष गितिविधयाँ भी
संचािलत हो रही थ । उदाहरण के िलए, म य ांत और बॉ बे ेसीडसी के एक
िह से म वन कानून क अव ा शु हो गई और लोग ने मनमाने तरीके से
इमारती लकड़ीवाले पेड़ को काटना शु कर दया। गुजरात, संयु ांत और
बंगाल के कु छ िजल , िवशेष प से िमदनापुर िजले म कर और भू-राज व का
भुगतान बंद कर दया गया। उ र-पि म सीमांत ांत म, खान अ दुल
ग फार खान के यास क बदौलत, िज ह ‘सीमांत गांधी’ के नाम से अिधक
जाना जाता है, सघन सरकार िवरोधी आंदोलन छेड़ दया गया, िजनम कर
का भुगतान नह करना भी शािमल था। उस े म लोग के बीच जंगी
परं परा का इितहास रहा है, ले कन वहाँ भी आंदोलन पूरी तरह अ हंसक
रहा। सीमांत गांधी ने लाल रं ग क वरदीवाले वयंसेवक क एक कोर क
थापना क , िज ह ‘खुदाई िखदमतगार’ या ‘परमा मा के सेवक’ नाम दया
गया। लाल रं ग क कमीजवाले वयंसेवक सरकार क आँख क कर करी बन
गए, य क उनका अिभयान लोग क िन ा को भािवत कर रहा था, जो
पहले भारतीय सेना क सबसे बेहतरीन रे िजमट म योगदान दे चुके थे। इतना
ही नह , सीमांत ांत ( ं टयर ो वंस) क रणनीितक ि थित होने के कारण,
देश के उस िह से म राजनीितक आंदोलन सरकार को फू टी आँख नह सुहाया।
जैसे ही सरकार को आंदोलन क ापकता के गंभीर अनुपात का अहसास
आ, वह उसे दबाने के िलए पूरी तरह बबर-िनमम काररवाई पर उतर आई।
इस संबंध म शाही त त के सैिनक और पुिलस ने जो अ याचार कए, उनक
भयानकता का वणन श द म संभव नह है। यह कहना मुि कल है क कस
ांत पर सबसे अिधक अ याचार ढहाए गए, हर ांत क अपनी र गटे खड़े कर
देनेवाली कहािनयाँ थ । बंगाल के िमदनापुर िजले को सवािधक नृशंसता
झेलनी पड़ी और अं ेज सरकार के जु म-ओ-िसतम जब सारी हद पार कर गए
तो लोग ने अिधका रय के िखलाफ बदले क काररवाई के िलए एक
आतंकवादी आंदोलन को ज म दया। संयु ांत, जहाँ कराए का भुगतान
नह करने संबंधी अिभयान ब त अिधक ताकतवर था, उसे इसका बुरी तरह
खािमयाजा भुगतना पड़ा। गुजरात म जब कृ षक पर ढहाए जानेवाले
अ याचार बरदा त से बाहर हो गए तो वे अपने घर को छोड़कर पड़ोसी रा य
बड़ौदा म चले गए। आंदोलनकारी पूरी तरह अ हंसक थे, ले कन अं ेज सरकार
के एजट ने उ ह कु चलने के िलए ‘गैर-कानूनी’ हथकं डे अपनाए—अंधाधुंध
और बेरहम तरीके से बल- योग, मिहला पर हमले और संपि को न
करना—इसके कु छ उदाहरण ह। स या िहय और मिहला समेत िनह थे
नाग रक पर हमला करने का सामा य तरीका था क चमड़ा मढ़ी ई मजबूत
लाठी और लोहे क मूठवाले डंड से उन पर हार कए जाते। ये ला ठयाँ
इतनी मजबूत होती थ क बड़ी आसानी से कसी क भी खोपड़ी को दो फाड़
कर सकती थ ।79 असहाय स या ही कै दय पर भी हमले कए गए।80
जहाँ ये आतंक फै लाने के िलए पया नह थे, वहाँ कभी-कभार गोली चलाने
का सहारा िलया जाता था। अिधकतर ांत म इस कार क गोलीबारी क
घटनाएँ कभी-कभार होती रहती थ , ले कन सबसे ददनाक पैशािचक घटना
पेशावर (उ र-पि मी सीमांत ांत क राजधानी) म 23 अ ैल को ई, जहाँ
एक ही दन म गोलीबारी क घटना म हताहत क सं या सैकड़ तक प च ँ
गई थी। इसके आँकड़े पया नह ह। वहाँ कु छ थानीय नेता क िगर तारी
के बाद शांितपूण दशन हो रहा था। शासन आपा खो बैठा और कु छ सश
वाहन को भीड़ को िततर-िबतर करने के िलए भेजा, जो उस समय तक अपने-
अपने घर को लौट रही थी। सश वाहन, िजनम सैिनक भरे ए थे, पीछे से,
कोई चेतावनी दए िबना, भीड़ को कु चलते ए आगे बढ़ गए। तीन लोग ने
तुरंत घटना थल पर ही दम तोड़ दया और बड़ी सं या म दशनकारी घायल
हो गए। इस पर बताया जाता है क भीड़ ने उन वाहन म आग लगा दी।
सैिनक तुरंत घटना थल पर प च ँ े और गोली चलाने का आदेश दे दया गया।
ले कन भीड़ भागी नह ; सैकड़ वह सीना तानकर खड़े हो गए और गोलीबारी
का सामना कया। जब त य सामने आए तो जनता ने जाँच क माँग क , िजसे
सरकार ने खा रज कर दया। तब कां ेस क कायसिमित ने िव लभाई पटेल
(जो उस समय तक असबली के अ य पद से इ तीफा दे चुके थे) क अ य ता
म इस गोलीकांड क जाँच करने और रपोट स पने के िलए एक सिमित िनयु
कर दी। इस सिमित को सीमांत ांत जाने क अनुमित नह दी गई, इसिलए
इसे पंजाब म सीमांत ांत के समीप एक थान पर एक होकर वहाँ से त य
जुटाने पड़े। जैसे ही सिमित क रपोट कािशत ई, सरकार ने उस पर
ितबंध लगा दया। ले कन कां ेस संगठन के यास से इसका काफ चार
कया गया।
पेशावर कांड क एकमा शंसनीय बात यह थी क गढ़वाली81 सैिनक क
एक कं पनी ने िनह थी भीड़ पर गोली चलाने से इनकार कर दया था। उनके
इनकार करने पर तुरंत उनके हिथयार उनसे छीन िलये गए और कोट माशल
के सम पेश कया गया, जहाँ से उ ह लंबी सजा देकर जेल म डाल दया गया।
अिधकतर ांत म जहाँ इस कार के अ याचार ढहाए गए, वहाँ जनता
ारा मामले क जाँच और रपोट स पने के िलए थानीय सिमितय का गठन
कया गया। उन रपोट को छापने म ब त व लगेगा और वह इस पु तक के
संदभ के दायरे से बाहर भी हो जाएगा। हालाँ क यहाँ महा मा ारा अपनी
िगर तारी क पूव सं या पर वायसराय को संबोिधत दूसरे प 82 क कु छ
पंि य का िज करना संदभ से परे नह होगा। यह प 8 मई, 1930 को ‘यंग
इं िडया’ म कािशत आ था—
‘मुझे उ मीद थी क सरकार एक स य दशन से स य तरीके से िनपटेगी।
य द सरकार को नाग रक ितरोध से िनपटने म सामा य कानूनी या को
अपनाकर संतुि ई है तो म या कह सकता ?ँ जाने-माने नेता के साथ
कु ल िमलाकर कानूनी औपचा रकता के अनुसार वहार कया गया, ले कन
आम कायकता से जानवर जैसा बरताव कया गया और कु छ मामल म तो
अमानवीय तरीके से उन पर हमला कया गया। अगर ये इ ा-दु ा मामले होते
तो शायद अनदेखे कर दए जाते, ले कन मेरे पास बंगाल, िबहार, उ कल,
संयु ांत, द ली और बॉ बे से रपोट आई ह, िजनम गुजरात के अनुभव क
पुि होती है, िजसके बारे म मेरे पास असं य सबूत ह। कराची, पेशावर और
म ास म ऐसा तीत होता है क िबना कसी उकसावे और आव यकता के
गोलीबारी क गई। हि याँ तोड़ दी ग , गु अंग को भ चा गया, के वल इस
उ े य के िलए क कायकता नमक छोड़ द, िजसका सरकार के िलए कोई मोल
नह है और जो कायकता के िलए अनमोल है। मथुरा के बारे म बताया गया
है क सहायक मिज ेट ने एक दस साल के ब े के हाथ से रा ीय वज छीन
िलया। भीड़ ने जब वज लौटाने क माँग क , िजसे गैर-कानूनी तरीके से ज त
कया गया था, तो भीड़ को बेरहमी से पीटकर भगा दया गया। अपराध-बोध
के चलते वज को बाद म लौटा दया गया। बंगाल म ऐसा तीत होता है क
नमक को लेकर सजा देने और हमला करने के कु छ ही मामले थे, ले कन
कायकता के हाथ से वज छीनने क काररवाई के दौरान अक पनीय
अ याचार ढहाए गए। धान के खेत म आग लगा दी गई और लोग से भो य
पदाथ छीन िलये गए। गुजरात म एक स जी बाजार पर छापा मारा गया,
य क डीलर ने अिधका रय को सि जयाँ बेचने से इनकार कर दया था। ये
घटनाएँ भीड़ के सामने और भीड़ ने कां ेस के आदेश का अनुपालन करते
ए िबना कसी ित या मक काररवाई के समपण कर दया था। संघष का
अभी यह पाँचवाँ ही स ाह था!’
महा मा गांधी क एक अं ेज अनुयायी िमस मेडिलन लेड 6 जून को अपनी
आँख से यह देखने के िलए गुजरात के बलसार ग क वहाँ स या िहय ने
कस कार अ हंसक तरीके से धरसाना नमक िडपो पर छापा मारा और
पुिलस ने उनके साथ कै सा बरताव कया? उ ह ने 12 जून, 1930 के ‘यंग
इं िडया’ के अंक म अपनी रपोट कािशत क । उसम उ ह ने िलखा क उ ह
स या ही कायकता पर िन िलिखत अ याचार के सबूत िमले ह—
1. ला ठयाँ83 िसर पर, सीने पर, पेट म और हि य के जोड़ां◌े पर बरसाई
ग ।
2. पेट के िनचले िह से म, गु ांग म ला ठयाँ घुसेड़ दी ग ।
3. पीटने से पहले पु ष को िनव कर दया गया।
4. धोितयाँ फाड़ दी ग और मल ार म लाठी घुसेड़ दी ग ।
5. एक ि के अंडकोष को दबाया गया और उ ह तब तक भ चा गया, जब
तक क वह ि बेहोश नह हो गया।
6. घायल पु ष को हाथ-पैर से पकड़कर घसीटा गया और इस दौरान पूरे
समय उ ह पीटा जाता रहा।
7. घायल लोग को काँटेदार झािड़य या नमक के पानी म फक दया गया।
8. जमीन पर लेटे या बैठे लोग के ऊपर घोड़े चढ़ा दए गए।
9. लोग के शरीर म सुइयाँ और काँटे चुभाए गए, कई बार तो उनके साथ
बेहोशी क हालत म भी ऐसा कया गया।
10. बेहोश होने के बाद भी लोग को पीटा जाता रहा और इतने जघ य
अ याचार कए गए क उ ह श द म नह बताया जा सकता। इसके
अलावा, सोची-समझी रणनीित के तहत गंदी भाषा और ईश नंदाजनक
बात कह ग , ता क स या िहय क पिव भावना को अिधक-से-
अिधक आहत कया जा सके ।
अब अ य घटना क ओर बढ़ते ह। अ ैल 1930 का महीना सनसनीखेज
घटना से भरा था।
ऐसा लगता था क हर दन एक नई घटना लेकर आया और देश का कोई
िह सा इससे अनछु आ नह था। इं िडयन लेिज ले टव असबली म भी कोई
शांित नह थी, हालाँ क कां ेस सद य इससे बाहर थे। पं. मदनमोहन
मालवीय, जो वहाँ इं िडपडट पाट क अगुआई कर रहे थे, उ ह ने िवप का
नेतृ व सँभाल िलया। अ ैल के शु आत म वे अपने सािथय के साथ कॉटन
टै रफ िबल के संबंध म इं पी रयल ेफरस के िस ांत को लेकर सरकार ारा
असबली पर दबाव बनाने के तरीके के िखलाफ िवरोध जताते ए असबली से
बिहगमन कर गए थे। दो दन बाद उ ह ने अपनी पाट के कु छ अ य सद य के
साथ असबली से इ तीफा दे दया। इसके बाद अ य वी.जे. पटेल ने भी
असबली से इ तीफा स प दया। उ ह ने वायसराय को संबोिधत दो प िलखे,
िजनम उ ह ने कहा क कां ेस पाट और पं. मालवीय क इं िडपडट पाट के
इ तीफा देने के बाद असबली अपना ितिनिध च र खो चुक है और ऐसी
प रि थितय म वे महसूस करते ह क उनक जगह अपने लोग के बीच है।
उ ह ने संवैधािनकता के सवाल पर सरकार के रवैए म बदलाव के िखलाफ भी
िवरोध जताया।
देश के सुदरू पूव िह से म, अ ैल के महीने म एक पूरी तरह अलग क म क
घटना घटी। यह घटना थी पूव बंगाल के चटगाँव म श ागार पर छापे।
सुर य कु मार सेन क अगुआई म एक थानीय ांितकारी पाट से ता लुक
रखनेवाले कु छ युवक ने चटगाँव श ागार पर छापा मारा। उ ह ने ूटी पर
तैनात गाड को गोली मार दी, प रसर पर क जा कर िलया, िजतने हिथयार वे
वहाँ से ले जा सकते थे, ले गए और बाक को न कर दया। इसके बाद वे
पहािड़य म लौट गए और कई दन तक छापामार यु चलाया। आिखरकार
उनको काबू कर िलया गया, अिधकतर मारे गए और बाक को जान बचाने के
िलए भागने पर मजबूर होना पड़ा। इस पाट के फरार सद य ने काफ लंबे
समय तक आतंकवादी गितिविधयाँ जारी रख ।84 इस समय तक उ र-पि म
सीमांत े म अफरीदी कबीले म बेचैनी बढ़ गई थी और उसने ि टश
सरकार के िलए मुि कल खड़ी करना शु कर दया था।
मई के शु आती दन म, महा मा ने वायसराय को दूसरा प िलखा (िजसके
एक िह से को ऊपर उ धृत कया गया है), िजसम उ ह ने कहा—
‘ि य िम , भगवान् क इ छा है, यह मेरा इरादा है क म अपने सािथय के
साथ िनकलूँ और वहाँ प च ँ ूँ...और सा ट व स को स पे जाने क माँग
क ँ ...आपके िलए इस ‘छापे’ को तीन तरीके से रोकना संभव है, जैसा क
मजा कया और शरारतपूण तरीके से इसे नाम दया गया है—
1. नमक कर को ख म करके ।
2. मुझे और मेरी पाट के लोग को तब तक िगर तार करके , जब तक क देश
िगर तार कए गए हर एक ि क जगह लेने के िलए दूसरे को न भेजता
रहे, जैसा क मुझे उ मीद है क देश भेजता ही रहेगा।
3. पूरी तरह गुंडागद के साथ (आतंकवाद), जब तक क हर टू टे ए िसर के
थान पर दूसरा िसर हािजर न हो जाए, जैसा क मुझे उ मीद है, होता
रहेगा...’
‘यंग इं िडया’, 8 मई, 1930
ले कन इससे पहले क महा मा अपनी मंशा पर काम करते, उ ह 5 मई,
1930 को ही कानून के रखवाल ारा िगर तार कर िलया गया और एक
पुराने िनयमन, िजसे क बॉ बे रे युलेशन XXV, 1827 कहा जाता है, उसके तहत
िबना सुनवाई के जेल म बंद कर दया गया।
महा मा गांधी क िगर तारी से भारत भर म जन-उ ेजना फै ल गई, ले कन
बॉ बे ेसीडसी के सोलापुर क बे को छोड़कर कह कसी कार क हंसा नह
भड़क । बड़ी औ ोिगक आबादीवाले इस शहर म लोग बगावत के िलए उठ
खड़े ए और थानीय पुिलस पर क जा कर िलया। उ ह ने शहर पर क जा कर
िलया और रा ीय वज फहराने के साथ ही अपनी वतं ता क घोषणा कर
दी। उ ह ने कु छ समय तक शहर को क जे म िलये रखा, ले कन बॉ बे से
सैिनक को रवाना कया गया और ि टश राज के ािधकार को एक बार
फर से लागू कर दया गया। त प ात् माशल लॉ लागू कर दया गया और
उसके बाद तो जैसे आतंक का राज कायम हो गया। माशल लॉ शासन के दौरान
लोग पर िविभ कार क पाबं दयाँ लगा दी ग और उन पर तरह-तरह के
अ याचार कए गए। उदाहरण के िलए, लोग को सावजिनक प से गांधी
टोपी पहनने क अनुमित नह थी।85 इ ह आमतौर पर कां ेस पाट के सद य
ारा पहना जाता था। जहाँ कह भी रा ीय वज लहराता दखा, उसे उतार
दया गया, िजन लोग पर अशांित फै लाने म मु य भूिमका िनभाने का संदह े
था, उन पर मुकदमे दज कए गए।
उनम से कु छ को फाँसी पर लटका दया गया और अ य को लंबे समय के
िलए जेल म ठूँ स दया गया। िजस समय ये उ िे लत करनेवाली घटनाएँ
आकार ले रही थ और जनता वतं ता के संबंध म सोच रही थी, सरकार के
1927 के काय म को याि वत कया जा रहा था। ांतीय सिमितय क
रपोट और भारतीय क ीय सिमित, िजसे साइमन कमीशन क मदद के िलए
िनयु कया गया था, उनक रपोट 1929 क समाि से पूव कािशत हो
चुक थ । साइमन कमीशन क एक सहायक सिमित, िजसक अ य ता सर
फिलप हट ग ारा क गई थी और िजसे भारत म िश ा के िवकास पर रपोट
देने के िलए िनयु कया गया था, उसने भी अपनी रपोट अ ू बर 1929 म
जारी कर दी थी। के वल साइमन कमीशन क रपोट रोक ली गई, संभवत: जून
1929 म लेबर पाट स ा म आ गई थी। हालाँ क 7 जून, 1930 को कमीशन
क रपोट जारी कर दी गई। इस रपोट क िसफा रश इतनी ित यावादी
थ क चार ओर से इसका पुरजोर िवरोध आ। यहाँ तक क भारतीय
उदारवा दय ने भी माँग रख दी क साइमन रपोट को गोलमेज स मेलन क
चचा का आधार नह बनाया जाना चािहए। और चूँ क इं िडयन लेिज ले टव
असबली रा वादी सद य क गैर-मौजूदगी म भी साइमन रपोट को पूरी
तरह खा रज कर चुक थी तो सरकार के पास माँग पर सहमित जताने के
िसवाय और कोई िवक प न था। एक समय जब सरकार और कां ेस के बीच
क दरार भरने क सीमा से दूर जाती तीत ई तो एक उ मशील ि टश
प कार अपने कौशल का इ तेमाल करने के िलए प रदृ य म उभरकर सामने
आए। बड़ी चतुराई के साथ ‘डेली हेरा ड’ के ितिनिध जॉज लोक बे 19-20
मई, 1930 को पुणे क यरवदा जेल म महा मा गांधी का सा ा कार करने क
अनुमित हािसल करने म सफल हो गए। वे जानना चाहते थे क महा मा कन
शत पर अपना सिवनय अव ा आंदोलन समा करने के िलए राजी ह गे?
महा मा ने कहा क ‘आजादी’ क िनि त गारं टी के िबना आंदोलन को समा
नह कया जा सकता। उ ह ने सिवनय अव ा आंदोलन को िनलंिबत कर
गोलमेज स मेलन म भाग लेने के िलए चार बंद ु पूव शत के प म बताए—
1. गोलमेज स मेलन क संदभ शत म भारत को वतं ता का सार देनेवाले
संिवधान के िनमाण को शािमल करना।
2. नमक कर को समा करने, शराब और अफ म पर ितबंध और िवदेशी
कपड़े पर ितबंध लगाने क माँग पर संतोषजनक आ ासन देना।
3. सिवनय अव ा आंदोलन क समाि के साथ ही राजनीितक कै दय को
आम माफ देना।
4. वायसराय को िलखे प म उठाए गए शेष बंद ु पर भिव य म चचा
करना।
20 जून को लोक बे ने कां ेस अ य पं. मोतीलाल नेह क िगर तारी क
पूव सं या पर उनका सा ा कार कया। पंिडत ने काफ हद तक उस बात क
पुि क , जो महा मा ने लोक बे को बताई थी। 25 जून को लोक बे ने एक
बयान का मसौदा तैयार कया, िजसम सरकार और कां ेस के बीच सुलह
समझौते के आधार क परे खा बनाई गई थी और उनके बयान को पंिडत
ारा अनुमो दत कर दया गया। बयान इस कार था—
‘य द कु छ प रि थितय म ि टश सरकार और भारत सरकार, हालाँ क
गोलमेज स मेलन ारा पूण वतं ता म क जा सकनेवाली िसफा रश का
अनुमान लगाने म असमथ ह या वह रवैया, जो ि टश सरकार ऐसी
िसफा रश के िलए सुरि त रख सकती है, फर भी एक िनजी आ ासन देने के
िलए तैयार ह गे क वे भारत के िलए पूण िज मेदार सरकार क माँग का
समथन करगे और यह भारत क िवशेष ज रत और शत तथा ेट ि टेन के
साथ उसके लंबे जुड़ाव के िलए आव यक पार प रक समायोजन और
ह तांतरण क शत के अधीन होगा तथा पं. मोतीलाल नेह , गांधी और पं.
जवाहरलाल नेह को ि गत प से ऐसा आ ासन या कसी िज मेदार
तीसरे प से ा संकेत क ऐसा आ ासन िमलेगा—लेने का वचन दगे। य द
ऐसा आ ासन दया जाता है और वीकार कया जाता है तो यह सुलह के एक
सामा य उपाय को संभव बनाएगा, िजसम सिवनय अव ा आंदोलन को र
करने के साथ-साथ सरकार क वतमान दमनकारी नीित क समाि और
राजनीितक कै दय के िलए आम माफ का एक उदार उपाय शािमल होगा
तथा इसके प ात् दोन प क आपसी सहमित के आधार पर तय शत के
अनुसार गोलमेज स मेलन म कां ेस भाग लेगी।’
यह बयान लोक बे ारा इस दृि कोण के साथ सर तेज बहादुर स ू और
एम.आर. जयकर को भेजा गया क शांित के काय म उ ह शािमल कया जा
सके । दोन ने इस मामले को उ साह के साथ िलया और जुलाई के शु आती
दन म इस पर लॉड इरिवन के जवाब का इं तजार करने लगे। उ ह ने महा मा
गांधी और पं. मोतीलाल तथा जवाहरलाल नेह से जेल म मुलाकात क
अनुमित ा क । 23 और 24 जुलाई को उ ह ने यरवदा जेल म महा मा से
और उनके ापन के साथ 28 जुलाई को पं. मोतीलाल नेह तथा पं.
जवाहरलाल नेह से इलाहाबाद क नैनी जेल म मुलाकात क । पंिडत य ने
अ य बात के अलावा कहा क महा मा गांधी के साथ िनजी िवचार-िवमश के
िबना कोई अंितम जवाब नह दया जा सकता। नेह य के ापन के साथ
जयकर फर से 31 जुलाई को महा मा से िमलने प च ँ ।े इसके बाद आदेश दए
गए क नेह य को नैनी जैल से यरवदा जेल ले जाया जाए। 13, 14 और 15
अग त को यरवदा जेल म गहन चचा ई, िजसम दोन शांित-िनमाता,
महा मा गांधी, पं. मोतीलाल और पं. जवाहरलाल नेह , ीमती सरोिजनी
नायडू और सरदार व लभभाई पटेल मौजूद थे। 15 अग त को कां ेस नेता
ारा एक संयु बयान जारी कया गया, िजसम कहा गया क कोई भी
समाधान, य द उसम िन बात क गारं टी शािमल नह है, तो न तो वह उ ह
वीकाय होगा और न ही कां ेस को—
1. भारत का अपनी मरजी से अलग होने का अिधकार।
2. र ा और िव ीय मामल के िनयं ण सिहत लोग के ित उ रदायी
रा ीय सरकार क अनुमित।
3. भारत के तथाकिथत सावजिनक ऋण क िन प जाँच के िलए तुत करने
का भारत का अिधकार।
इस बयान को िविधवत् तरीके से वायसराय को ेिषत कर दया गया और
लॉड इरिवन ने 28 अग त, 1930 को दोन शांित-िनमाता को यह कहते ए
अपना जवाब भेजा क 15 अग त के संयु बयान के आधार पर कोई भी
वा ा आयोिजत करना असंभव है। इस कार शांित वा ा िवफल हो गई।
शांित-िनमाता ने नैनी और यरवदा जेल म नेता से मुलाकात कर एक
और यास कया, ले कन नेता का िवचार था क सरकार और कां ेस के
बीच म ऐसी खाई है, िजसे भरा नह जा सकता। वा ा का आिखरी सू भी
टू टने पर पं. मोतीलाल नेह को अचानक 8 िसतंबर को जेल से रहा कर दया
गया, य क वे गंभीर प से बीमार पड़ गए थे। इसके बाद वे के वल पाँच
महीने जीिवत रहे, ले कन इस अविध के दौरान, बेहद खराब वा य के
बावजूद उ ह ने अपना अिधकतर समय और ऊजा देशभर म आंदोलन को
मजबूत करने के यास म लगाई। कलक ा म अपने वास के दन म उ ह ने
काफ समय बंगाल मु े को िनपटाने म लगाया। लाहौर कां ेस के तुरंत बाद,
उ ह ने बंगाल कां ेस सिमित (िजसके लेखक अ य थे) क कायका रणी के
िखलाफ, दवंगत जे.एम. सेनगु ा ारा क गई चुनाव संबंधी िशकायत क
जाँच के िलए कलक ा का दौरा कया था। उ ह ने पहले के प म अपना
फै सला दया, ले कन उनक रवानगी के बाद मतभेद फर से उभर आए।
इसका नतीजा यह आ क कलक ा नगरपािलका के चुनाव म कां ेस के दो
धड़ ने अपने-अपने उ मीदवार मैदान म उतारे । जब सिवनय अव ा आंदोलन
शु आ था तो बंगाल म सिवनय अव ा आंदोलन के संचालन के िलए दो
अलग-अलग सिमितयाँ अि त व म आई थ । कु छ महीने बाद जब कलक ा के
मेयर पद के िलए चुनाव ए तो एक पाट ने िनवतमान मेयर दवंगत सेनगु ा
को उ मीदवार बनाया, जब क दूसरी पाट ने लेखक को—और लेखक जीत
गए। इन मतभेद से ापक तर पर कां ेस क ित ा को आघात लगा।
ले कन पं. मोतीलाल नेह के भाव से दोन सिवनय अव ा आंदोलन
सिमितय म एकता हो गई और अ य मतभेद को भी सुलझा िलया गया—
इसिलए जब वे दसंबर म बंगाल से गए तो कां ेस क ित ा और ताकत को
कु छ हद तक बहाल कर िलया गया था।
जब उपरो घटनाएँ आकार ले रही थ तो नौकरशाही अपनी योजना पर
आगे बढ़ रही थी। जून म साइमन कमीशन क रपोट कािशत ई और 20
िसतंबर को सरकार ने गोलमेज स मेलन पर चचा के िलए ारं िभक कदम के
तौर पर अपना संदश े लंदन भेज दया।
कमीशन क िसफा रश के कु छ मह वपूण बंद ु इस कार थे—
1. नए संिवधान म, जहाँ तक संभव हो, अपने वयं के िवकास के िलए, इसके
भीतर ही ावधान होना चािहए।
2. भारत का अंितम संिवधान संघीय होना चािहए।
3. नए संिवधान से बमा को बाहर रखा जाना चािहए।
4. कानून और व था िवभाग सिहत ांत म पूण वाय ता होनी चािहए—
ले कन रा यपाल को शासिनक प म आंत रक सुर ा, सभी समुदाय क
सुर ा जैसे कु छ मामल म अिधभावी शि याँ दी जानी चािहए।
5. भारतीय रे िजमट म ि टश सैिनक और ि टश अिधका रय क
उपि थित कई वष तक अिनवाय रहेगी। कमांडर-इन-चीफ को वायसराय
क कायकारी प रषद् का सद य नह होना चािहए और उसे िवधानमंडल
म नह बैठना चािहए।
6. ांतीय िवधान प रषद का िव तार कया जाना चािहए।
7. क ीय िवधानमंडल के िनचले सदन को संघीय िवधानसभा (फे डरल
असबली) कहा जाना चािहए। इसका िव तार कया जाना चािहए और
इसके सद य का चयन ांतीय िवधान प रषद ारा कया जाना चािहए।
उ सदन—रा य प रषद्, को उतना ही रहना चािहए, िजतना वह
वतमान म है।
8. ांत क वाय ता का उ लंघन कए िबना उनके िलए पया संसाधन
सुिनि त करने के िलए एक ांतीय कोष का गठन कया जाना चािहए।
9. गवनर जनरल को अपनी कै िबनेट के सद य का चुनाव और िनयुि करनी
चािहए। वह सरकार का वा तिवक और स य मुख होना चािहए और
कु छ मामल म उसक शि याँ ापक होनी चािहए।
(आयोग ने क क िज मेदारी तय करने क िसफा रश नह क )
10. हाईकोट भारत सरकार के शासिनक िनयं ण म होने चािहए।
11. भारत के रा य सिचव क प रषद् के काय और सद यता को कम कया
जाना चािहए।
भारत सरकार के संदशे के कु छ मु य बंद ु िन िलिखत थे—
1. िन िलिखत िवषय ि टश संसद् के िनयं ण म होने चािहए—र ा,
िवदेशी संबंध, आंत रक सुर ा, िव ीय दािय व, िव ीय ि थरता,
अ पसं यक क सुर ा और रा य सिचव ारा भरती सेवा के अिधकार,
अनुिचत आ थक और ावसाियक भेदभाव क रोकथाम।
2. ांत म ध ै शासन के उ मूलन और िज मेदार सरकार (कानून और
व था िवभाग सिहत) क शु आत के िलए सांिविधक आयोग के ताव
को मंजूरी दी गई।
3. अिधका रय को मंि य के प म िनयु करने का अिधकार रा यपाल को
दया जाना चािहए।
4. म ास, बंबई, पंजाब, म य ांत और असम म िवधाियका का एक ही सदन
होना चािहए। बंगाल, संयु ांत और िबहार और उड़ीसा म दो सदन होने
चािहए।
5. बमा के अलगाव को सै ांितक प से मंजूरी दे दी गई है।
6. गवनर जनरल क कायकारी प रषद् के सद य क िनयुि वयं गवनर
जनरल ारा क जानी चािहए। गवनर जनरल क कै िबनेट, एक
‘एका मक’ च र के होते ए और िवधाियका के ित िज मेदार नह होते
ए भी उसम िवधानमंडल के कु छ िनवािचत सद य होने चािहए, जो उस
िनकाय से कु छ समथन ा कर सक।
12 नवंबर, 1930 को लंदन म धानमं ी रै मसे मैकडोना ड क अ य ता म
गोलमेज स मेलन के पहले स का आयोजन कया गया। इसम 89 सद य
शािमल ए, िजनम 16 ि टश दल से, 16 भारतीय रयासत से और 57
ि टश भारत से थे। जािहर सी बात है क कां ेस पाट का इसम कोई
ितिनिध व नह था। स मेलन क ारं िभक बैठक के बाद सम या पर
िव तार से िवचार करने के िलए कई सिमितयाँ िनयु क ग । लॉड सक क
अ य ता म संघीय ढाँचा सिमित, सर िविलयम जॉिवट क अ य ता म
चाइजी एंड स वसेज सिमित, अल रसेल क अ य ता म बमा सिमित,
जे.एच. थॉमस क अ य ता म र ा सिमित, वयं रै मसे मैकडोना ड क
अ य ता म अ पसं यक सिमित ग ठत क ग । यह त य क भारतीय
रयासत को स मेलन म आमंि त कया गया था, इसी से यह बात प हो
जाती है क ि टश सरकार भारतीय रयासत को भी भावी भारतीय
संिवधान के दायरे म लाने को उ सुक थी। इस संबंध म पहला कदम सर जॉन
साइमन उसी समय उठा चुके थे, जब उ ह ने ि टश धानमं ी को ि टश
भारत और भारतीय रयासत के संबंध के सवाल को शािमल करने के
म ेनजर संदभ शत को ापक बनाने के िलए िलखा था। साइमन कमीशन ने
यह भी रपोट दी थी क भारत का अंितम संिवधान संघीय होना चािहए।
एकमा सवाल, जो अभी तक तय नह आ था क ि टश भारत और
भारतीय रा य का एक संघ बनाना कब संभव होगा? ऐसी प रि थितय म
इस बात पर कोई हैरानी नह ई, जब 17 नवंबर को गोलमेज स मेलन क
एक बैठक म महामिहम, बीकानेर के महाराजा ने ऐसे संघ का वागत कर
दया। गोलमेज स मेलन से कई महीने पहले इस िवचार पर संपूणता म चचा
ई थी। इस चरण म ि टश सरकार ारा चला गया संघ के ताव का यह
दाँव सबसे चतुराई भरा कदम था और यह बड़ी दयनीय बात है क सर तेज
बहादुर स ू और एम.आर. जयकर जैसे बुजुग राजनेता इस खेल को तुरंत नह
समझ पाए। हालाँ क ीिनवास शा ी और एम.ए. िज ा को शु आत म इस
िवचार के ित संदह े महसूस आ था। गवनमट ऑफ इं िडया ने 20 िसतंबर के
अपने संदशे म सुर ा मानक का नाममा को उ लेख कया था—वह वे
िवषय ह, िज ह महामिहम क सरकार और ि टश संसद् के िनयं ण के तहत
बनाए रखा जाना चािहए। ले कन उन िवषय का या, जो भारतीय
िवधानमंडल के समी ाधीन रहने थे? ि टश िहत क माँग थी क उस
िनकाय म एक ढ़वादी त व होना चािहए, िजस पर ि टश भारत म
क रपंथी ताकत को रोकने के िलए भरोसा कया जा सके । और भारतीय
राजकु मार को अंदर लाने से बेहतर या हो सकता है, ता क वे क ीय
िवधानमंडल म प थर के प म काय कर सक? महाराजा, ंस ऑफ वे स के
भारत दौरे के बाद ही ि टश सरकार और भारतीय राजा-महाराजा के
बीच मै ी 1922 से ही शु हो चुक थी, जैसा क ि तीय अ याय म पहले ही
देखा जा चुका है। ि टश भारत म रा वादी उथल-पुथल का सामना कर रही
ि टश सरकार सहानुभूित और सहायता के िलए भारतीय महाराजा क
ओर मुड़ गई। दूसरी ओर, महाराजा को भी अपने-अपने े म लोकतांि क
आंदोलन का सामना करना पड़ रहा था, िजसे ि टश भारत के लोग का
समथन हािसल था और वे लोकि य बगावत को काबू करने के िलए ि टश
सरकार क मदद चाहते थे। इस माँग के चलते ही िसतंबर 1922 म इं िडयन
लेिज ले टव असबली म सरकार ने इं िडयन टेट िबल पेश कया और जब
िवधानमंडल ने इसे खा रज कर दया तो वायसराय ने इसे कानून के प म
मंजूरी दान कर दी।
संघ का िवचार इस दो ती का ही नतीजा था—संघ, जो क ि टश सरकार
और भारतीय महाराजा के बीच एक अपिव गठजोड़ था और यह भारत म
जनजागरण को िवफल करने के िलए बनाया गया था। गोलमेज स मेलन के
पहले स का कु ल प रणाम भारत को दो कड़ी गोिलय क पेशकश के प म
सामने आया—सुर ा और संघ। इन गोिलय को िनगलने लायक बनाने के
िलए उ ह ‘िज मेदारी’ क चाशनी म लपेट दया गया। उदारवादी राजनेता
को काफ खुशी महसूस ई, जब धानमं ी ने 19 जनवरी, 1931 को अपने
समापन भाषण म यह घोषणा क क क म एक िज मेदार सरकार दी
जाएगी, बशत वे सुर ा और संघ पर राजी हो जाएँ। उ ह ने कभी यह नह
पूछा क सुर ा और संघ को वीकार कर िलये जाने के बाद वा तिवक
‘िज मेदारी’ का या होगा?
मामले को और िबगाड़ते ए रा वादी िवरोधी मुसिलम, जो गोलमेज
स मेलन म मौजूद थे, उ ह ने ऐलान कर दया क वे िज मेदार सरकार, सुर ा
तथा संघ के िलए राजी हो जाएँग,े बशत सां दाियकता के सवाल का उनके
िहसाब से िनपटारा कर दया जाए। 19 जनवरी, 1931 को गोलमेज स मेलन
अिनि तकाल के िलए थिगत कर दया गया। उदारवादी राजनीित ब त
अिधक स तीत होते थे और लंदन म अपनी उपलि धय को लेकर वे ब त
संतु थे। एक आम आदमी के िलए समु पार से वे के वल एक चीज लेकर आए
थे और वह थी— धानमं ी ारा दया गया यह आ ासन क ‘जनमत के उन
वग के सहयोग को सूचीब करने के िलए कदम उठाए जाएँगे, िज ह स मेलन
से अलग रखा गया था।’

11
गांधी-इरिवन समझौता और उसके बाद
(1931)
19 30 के अंितम दन और 1931 के शु आती दन म, माहौल एक बार
फर से कां ेस और सरकार के बीच सहमित के अनुकूल बन गया। सबसे पहली
बात तो यह क लेबर पाट स ा म थी और कै टन वेजवुड बेन इं िडया ऑ फस
म पदासीन थे। दूसरी बात, महा मा गांधी ने अपनी अनुपि थित से गोलमेज
स मेलन पर ब त भाव डाला था। भारत म एकमा ितिनिध व पाट
कां ेस का उनक सरकार के साथ र ता कड़वाहट भरा था और ऐसे म
मह वहीन तथा वनािमत नेता के साथ वा ा और िवचार-िवमश से
ि टश राजनेता को गोलमेज स मेलन के पहले स क िनरथकता का
अहसास हो चुका था। ऐसे म लेबर राजनेता ने कां ेस के साथ कसी
समझौते पर प च ँ ने का दृढ़ इरादा कया, बशत कां ेस ब त अिधक माँग न
रखे। तीसरी बात थी लॉड इरिवन का भारत का वायसराय और गवनर
जनरल पद पर होना और इस बात को समझने के िलए वे इतने दूर ा थे क
य द सरकार और कां ेस के बीच कोई सहमित बनती है तो महा मा के कां ेस
का नेता रहने तक ऐसा करना उिचत होगा। समझदार अं ेज के अनुसार,
‘अं ेज के िलए गांधी भारत म सबसे वफादार पुिलसवाला था।’86 िन संदहे
तीसरी बात सबसे मह वपूण थी। य द उस समय भारत के स ा के क म कोई
हठी और अिड़यल वभाव का वायसराय होता तो कां ेस के साथ कोई
सहमित संभव नह थी, फर उस समय चाहे हाइटहॉल का रवैया कतना भी
सहानुभूितपूण या न रहता!
ले कन लॉड इरिवन कां ेस के साथ एक समझ कायम करने के िलए इतने
राजी य थे? इस बात म कोई संदह े नह क उनका नज रया कसी भी औसत
ि टश राजनेता से अिधक िव ता रत था और उनके भीतर एक िन प ता
तथा याय क एक चा रि क िवशेषता थी, िजसका क दूसरे लोग म अभाव
था। दवंगत मौलाना मोह मद अली ने एक बार उनके बारे म कहा था—‘वह
लंबा-पतला ईसाई’। िन संदह े वे एक स े ईसाई थे। ऐसा नह होता तो भारत
म गंभीर िवषय के िलए लॉड इरिवन न तो भारत म ‘ टील े म’ और न ही
इं लड म बा डिवन और कं जरवे टव नेता को कभी साथ लेकर चल सकते
थे। आंदोलन पी तूफान का क भारत का वेश ार बॉ बे था। कर नह
चुकाने संबंधी आंदोलन गुजरात, संयु ांत और बंगाल के िह स म काफ
मजबूत था। संपूण भारत म ि टश उ पाद का बिह कार भावी तरीके से
जारी था तथा सिवनय अव ा आंदोलन कसी-न- कसी प म हर ांत म चल
रहा था। बंगाल म आतंकवादी गितिविधयाँ एक गंभीर मुसीबत बन गई थ ।
और आिखर म, उ र-पि मी सीमांत ांत म ि थित चंताजनक थी—और
उस ांत के हालात सीमावत कबील के रवैए को गंभीर प से भािवत कर
रहे थे, जो साधारण प से भारत म राजनीितक घटना म से एकदम अलग
थे। इनम से कई कबील ने ि टश शासन को बताया था क वे उसके साथ
शांित समझौता करने के िलए तैयार ह, ले कन शत के वल एक है क अं ेज
सरकार नंगे फक र (महा मा गांधी) और खान अ दुल ग फार खान (सीमांत
ांत के नेता) को रहा कर दे और भारत को वराज दान कर दे। बादशाह
अमानु ला के ग ी से हटने के कारण अफगािन तान म ि थित थोड़ी आसान हो
गई थी, जहाँ अब एक ऐसी सरकार थी, जो ेट ि टेन के ित िम वत् रवैया
रखती थी। ले कन सरकार यह नह भूली थी क अफगान बादशाह ने कस
कार 1919 म उसक अ य जगह पर तता का फायदा उठाकर उनके
िखलाफ यु छेड़ दया था और कै से वे अपने अनुकूल संिध कराने म सफल हो
गए थे। इसिलए सरकार भारत के घटना म क ओर सीमांत कबील ारा
अपनाए गए रवैए को लेकर असहज थी।
िजस दन धानमं ी रै मसे मैकडोना ड ने गोलमेज स मेलन म अपना
समापन भाषण दया, उसी दन वायसराय ने इं िडयन लेिज ले टव असबली म
अपने संबोधन म कां ेस के सहयोग के िलए एक सावजिनक अपील क । उनक
इस अपील के एक स ाह के भीतर महा मा गांधी तथा कायसिमित के अ य
सद य को गोलमेज स मेलन म दए गए धानमं ी के बयान पर िवचार
करने का अवसर दान करने के िलए िबना शत रहा कर दया गया।
धानमं ी ने संघ और सुर ा के साथ िज मेदारी क पेशकश का िज कए
जाने के बाद अपने भाषण को िन श द के साथ समा कया—‘अंत म, म
उ मीद करता ँ और मुझे िव ास है तथा म ाथना करता ँ क हम सबक
मेहनत से भारत को अब ि टश रा मंडल के बीच उसे डोिमिनयन दजा देने के
िलए िजस एकमा चीज क कमी है, वह उसे ा होगी—उसे अब िजस चीज
क कमी है—वह है, िज मेदारी और देखभाल, बोझ और मुि कल, ले कन साथ
म एक िज मेदार सरकार का गौरव भी।’ भारतीय उदारवादी नेता, जो भारत
के िलए िनकल चुके थे, उ ह ने महा मा गांधी से अपील करते ए एक
के बल ाम भेजा क वे उनक बात सुने िबना सरकार क पेशकश के बारे म
कोई अंितम िनणय न ल और उ ह डर था क कायसिमित धानमं ी क
पेशकश को खा रज कर देगी। उनक आशंका िनराधार नह थी। कायसिमित
के सद य अपनी रहाई के तुरंत बाद इलाहाबाद म िमले, जहाँ पं. मोतीलाल
नेह गंभीर प से बीमार पड़े थे। पेशकश के ित पहली ही ित या
अनुकूल नह थी। 6 फरवरी को उदारवादी नेता , सर तेज बहादुर स ू और
वी.एस. शा ी तथा एम.आर. जयकर प च ँ े और सीधे इलाहाबाद के िलए
िनकल गए। अपनी िगरती सेहत के बावजूद पं. मोतीलाल नेह ने ब त कड़ा
ख अपनाया, ले कन उदारवादी नेता ने महा मा गांधी से कहा क वे
सौहादपूण रवैया अपनानेवाले वायसराय से वा ा कए िबना पेशकश को
नामंजूर न कर। इलाहाबाद म उस समय चार ओर शांित-िनमाता और
सनसनीखेज अफवाह फै लानेवाल का जोर था, िजनम से कु छ लोग का काम
ही के वल इधर क कहािनयाँ उधर प च ँ ाना था। 14 फरवरी को महा मा ने
लॉड इरिवन से मुलाकात के िलए आवेदन दया और उनसे िमलने के िलए
द ली रवाना हो गए। कायसिमित के अिधकतर सद य उनके साथ गए,
िसवाय पं. मोतीलाल नेह को छोड़कर, जो क ब त यादा बीमार थे। यह
एक ब त बड़ा दुभा य था।
द ली म महा मा गांधी को धनी-मानी अिभजा य वग के रईस तथा
नेता ने घेर िलया, जो समझौते के िलए मरे जा रहे थे और कायसिमित क
ओर एक भी ऐसा भावशाली ि व नह था, जो महा मा को अपने
िवचार के भाव म ले सकता। यहाँ तक क पं. जवाहरलाल नेह , जो ऐसा
कर सकते थे, वे भी इस मौके पर िवफल सािबत ए और जहाँ तक कायसिमित
के अ य सद य क बात है, अगर सभी नह तो उनम से अिधकतर समझौते के
िलए खुद महा मा गांधी से कह अिधक उतावले थे। वायसराय और महा मा
के बीच वा ा एक-एक दन करके खंचती रही और महा मा सभी घटना म से
कायसिमित के सद य को अवगत कराते रहे। 4 माच को सुलह समझौता
वा ा समा हो गई और जब महा मा गांधी ने कायसिमित के सम समझौते
क शत रख तो उ ह ने एकदम साफ कर दया क वे उनके सवस मत समथन
के िबना एक कदम भी आगे नह बढ़गे। इस संकट काल म पं. जवाहरलाल
नेह पर ब त बड़ी िज मेदारी आन पड़ी थी। कां ेस अ य होने के
अित र , कायसिमित के वे एकमा सद य थे, िजनसे वाम धड़े के दृि कोण
को समझने और उसक पैरवी करने क उ मीद क जाती थी। और ऐसे म
उनका इनकार, महा मा तथा कायसिमित ारा समझौते क अंितम
वीकायता को रोकने के िलए पया होता। दुभा यवश, उ ह ने मैदान छोड़
दया और समझौते को कायसिमित ने मंजूर कर दया और अगले ही दन, 5
माच को महा मा और लॉड इरिवन ने अपने-अपने ह ता र उस पर कर दए।
जब समझौते के काशन के बाद देश म हंगामा खड़ा हो गया तो पं.
जवाहरलाल नेह ने यह बयान दया क उ ह ने समझौते क कु छ शत को
अनुमित नह दी थी—ले कन एक आ ाकारी सैिनक के नाते उ ह अपने नेता
क आ ा का पालन करना पड़ा। ले कन देश ने उ ह एक आ ाकारी सैिनक से
कह अिधक बड़ा ि व मानकर उनका स मान कया था।
अगली सुबह समझौता—िजसे द ली समझौता या गांधी-इरिवन समझौता
कहा गया—सभी समाचार-प म कािशत आ था। यह एक लंबा-चौड़ा
द तावेज था और कां ेस के नज रए से इसके मसौदे म खामी थी, य क इससे
यह भाव नह पैदा होता था क कां ेस क जीत ई थी। समझौते क शत
को देखकर सभी ‘कां ेसी’ नेता पर मायूसी छा गई। उस समय लेखक
कलक ा क अलीपुर स ल जेल म थे। कई दन तक समाचार-प ने
आनेवाले समझौते क शत के बारे म काफ हद तक सही पूवानुमान कािशत
कए थे। यहाँ तक क महा मा के अंधभ ने भी जब ये पूवानुमान पढ़े तो
उनके मुँह से अचानक िनकला था क यह अक पनीय है क उनके नेता—
अथात् महा मा गांधी—इन शत पर राजी हो गए थे। ले कन अक पनीय
ि थित वा तिवकता म बदलनेवाली थी। ि थित क स ाइय के ित महा मा
अंधे नह थे और समझौते के साथ-साथ जारी एक ेस बयान म उ ह ने इस
बंद ु पर जोर दया था क समझौते का अथ कसी भी प क जीत नह है और
जो अ थायी है, उसे थायी बनाने के िलए वे हर बारीक को ब त यान से
देखगे, ता क समझौता उस ल य क एक कड़ी सािबत हो, िजसके िलए कां ेस
संघष कर रही थी। सं ेप म समझौते क शत इस कार थ —
कां ेस क ओर से महा मा गांधी सहमत ए ह—
1. सिवनय अव ा आंदोलन को थिगत करने के िलए।
2. (क) संघ; (ख) िज मेदारी और (ग) समायोजन तथा सुर ा, जो भारत के
िहत म आव यक हो सकता है, इनके आधार पर भारत के िलए संिवधान
का मसौदा तैयार करने क खाितर आगामी गोलमेज स मेलन म होनेवाले
िवचार-िवमश म भाग लेने के िलए।
3. भारत के िविभ िह स म पुिलस अ याचार के आरोप क जाँच क माँग
करने के िलए।
सरकार क ओर से वायसराय सहमत ए ह—
1. अ हंसक आंदोलन के िसलिसले म जेल म बंद सभी राजनीितक बं दय को
एक साथ रहा करने के िलए।
2. सरकार ारा ज त क गई संपि और जमीन को अगर पहले ही बेचा या
नीलाम नह कया गया है तो उसे उनके मािलक को वापस करने के िलए।
3. आपात अ यादेश को वापस लेने के िलए।
4. समु तट से एक िनि त दूरी के भीतर रहनेवाले लोग को िन:शु क नमक
सं ह या उ पादन क अनुमित देने के िलए।
5. शराब, अफ म और िवदेशी कपड़ क दुकान का शांितपूण घेराव करने क
अनुमित देने के िलए। अंितम व तु का िज ि टश उ पाद के िखलाफ
भेदभाव नह है, बि क यह वदेशी आंदोलन को ो साहन देने के िलए है
(जैसे— वदेशी उ ोग)।
राजनीितक प से िस ह त लोग समझौते क शत का िव ेषण कर सकते
थे और उनके िलए यह ब त बड़ी िनराशा थी। कु ल िमलाकर देखा जाए तो देश
म युवा संगठन भी असंतु थे। ले कन जनमानस के सामने इसे कां ेस क
महान् िवजय के प म दखाया गया। बंगाल एकमा ऐसा ांत था, जहाँ
जनमानस म कोई उ साह नह था और इसके अपने कारण थे, िजनक यहाँ
ा या क जाएगी। शांित समझौते क घोषणा होने के तुरंत बाद कां ेस क
आिधका रक मशीनरी ने ब त ही तेजी और कु शलता के साथ काय आरं भ कर
दया। कायसिमित ने कराची म कां ेस क सालाना बैठक के आयोजन का
फै सला कया और अ य के चुनाव क संवैधािनक या को िनलंिबत करते
ए सरदार व लभभाई पटेल को अ य चुन िलया, जो क उस समय महा मा
के इतने क र समथक और बल अनुयायी थे क वैसा कोई िमलना मुि कल
था। कायसिमित का हर सद य जानता था क उनक ित ा दाँव पर है और
इसिलए कराची स मेलन म अपने ांत से अिधक-से-अिधक सं या म समथक
को लाने के िलए कोई कोर-कसर बाक नह रखी गई। कायसिमित के सद य
के अित र दि णपंथी शाखा के सभी नेता ने कराची कां ेस म समझौते
क पुि सुिनि त करने के िलए एड़ी-चोटी का जोर लगा दया। सभी धनवान
लोग भी शांित समझौते के बाद थायी शांित चाहते थे, ता क वे लोग आराम
से अपना कारोबार कर सक। महा मा का समथन करने के िलए काराची जाने
के इ छु क लोग के िलए धन क कोई कमी नह थी। दूसरी ओर, इसके िवरोधी
भारी नुकसान म थे। उनके कई साथी अभी भी जेल म थे और उ ह उस आम
माफ का लाभ भी नह िमला था, िजसका समझौते म वादा कया गया था।
उनके नेता के पाला बदलने के कारण भी देश म उनक ि थित कमजोर ई
थी और जो कराची कां ेस म भाग लेने क ि थित म थे भी, तो धन क कमी ने
उनके हाथ बाँध दए थे। लाहौर कां ेस के बाद ीिनवास आयंगर सावजिनक
जीवन से सेवािनवृि ले चुके थे। वामपंथी धड़े के अ य नेता के साथ उनके
साथ लाहौर कां ेस अ य और महा मा ारा ब त ही गलत तरीके से
वहार कया गया। महा मा का उ ह कायसिमित से बाहर का रा ता दखाए
जाने म बड़ा हाथ था, जब क वे म ास के ब त ही ितभाशाली नेता थे और
कां ेस के पूव अ य रह चुके थे। इस अपमान क चोट उनके दल पर इतनी
गहरी लगी थी क उ ह ने कसम उठा ली थी क जब तक महा मा गांधी कां ेस
के नेता बने रहगे, उनका कां ेस से कोई लेना-देना नह है। ीिनवास आयंगर
के अित र एक और ि ने पाला बदला था और वे थे, लाहौर के डॉ.
मोह मद आलम, िज ह ने लाहौर कां ेस म मह वपूण भूिमका अदा क थी,
ले कन ‘गांधी-इरिवन समझौते’ के बाद वे महा मा के समथक बन गए थे।
सभी ांत म से बंगाल म समझौते को लेकर सवािधक नाराजगी थी, ले कन
वहाँ भी दवंगत सेनगु ा के नेतृ ववाली एक पाट थी, िजसने महा मा के
समथन क ितब ता जताई।
इन प रि थितय म ले ट वंगस या कर सकते थे? 8 माच को मेरी रहाई
से पूव, मने पता लगाया था क राजनीितक कै दी एक िनयम के तौर पर
समझौते के िखलाफ थे और वाभािवक सी बात है क म भी उनक भावना
को साझा करता था। ले कन बाहर आने के बाद, मने महसूस कया क
समझौता एक ठोस त य था और कराची कां ेस म इसक संपुि को रोकने क
कोई संभावना नह थी। िजस सवाल का हम फै सला करना था, वह यह था क
हम कराची म अपना िवरोध दज कराना चािहए, िजसका कोई मह व नह था
या हम समझौते को नामंजूर करते ए सदन म िवभाजन से बचना चािहए?
कसी फै सले पर प च ँ ने से पहले मने सोचा क ि गत प से महा मा से
िमल लेना सही रहेगा। इसिलए मने बॉ बे क या ा करने का फै सला कया,
िजससे मुझे रा ते से गुजरते ए िविभ ांत म जन भावना को भी
समझने का मौका िमला। बॉ बे म महा मा के साथ मेरी लंबी बातचीत ई।
समझौते क आलोचना करने के बाद िजस बंद ु पर मने अपील क , वह था क
जब तक वे वतं ता के हक म खड़े ह गे, हम उनका साथ दगे, ले कन िजस
ण वे पीछे हटगे ताे उनके साथ संघष करना हम अपना कत समझगे।
आिखरकार, महा मा ने िन िलिखत आ ासन दए87—
1. वे गोलमेज स मेलन म जानेवाले कां ेस िश मंडल के हाथ बाँधने के िलए
कराची कां ेस से आदेश देने को कहगे।
2. आदेश म ऐसा कु छ भी नह होगा, जो वतं ता के दज के अनु प न हो,
िजसक लाहौर कां ेस म घोषणा क गई थी।
3. समझौते से बाहर छोड़े गए लोग के िलए आम माफ सुिनि त कराने के
िलए वे अपने भाव का पूरा इ तेमाल करगे और हर संभावना को
खँगालगे।
बॉ बे से महा मा द ली के िलए रवाना हो गए और मने भी उनके साथ उसी
ेन म सफर कया। इससे न के वल मुझे बॉ बे म हम लोग क बातचीत को
आगे बढ़ाने का मौका िमल गया, बि क यह जानने-समझने को भी िमला क
जनता समझौते पर कस कार ित या दे रही थी। हर जगह िजस तरीके से
महा मा का वागत कया गया, उससे यह एकदम प था क उनक
लोकि यता अपने चरम पर प च ँ चुक थी; यहाँ तक क 1921 के रकॉड को
भी पीछे छोड़ चुक थी। द ली प च ँ ते ही यह खबर हम कसी बम धमाके क
तरह िमली क सरकार लाहौर ष ं कांड म सरदार भगत संह और उनके
दो अ य कामरे ड को फाँसी देने का फै सला कर चुक थी। इन युवा
ांितका रय क जंदिगय को बचाने के िलए महा मा गांधी पर अपने भाव
का इ तेमाल करने का दबाव डाला गया और यह वीकार करना चािहए क
उ ह ने अपनी ओर से पुरजोर कोिशश क । इस अवसर पर मने सुझाव दया
क अगर ज रत पड़े तो उ ह इस सवाल पर वायसराय के साथ संबंध ख म
कर लेना चािहए, य क फाँसी देना ‘ द ली समझौते’ क भाषा के नह तो
भावना के िव ज र था। मुझे िसन फन पाट और ि टश सरकार के बीच
यु िवराम के दौरान एक ऐसी ही घटना याद थी, जब पाट ारा अपनाए गए
स त रवैए के कारण फाँसी क सजा पाए एक आय रश राजनीितक बंदी क
रहाई सुिनि त कराई गई थी। ले कन महा मा, जो नह चाहते थे क
ांितकारी कै दय के साथ उनका नाम जोड़ा जाए, वे इतनी दूर नह गए और
वाभािवक सी बात है क इससे ब त बड़ा फक पड़ा, जब वायसराय ने यह
महसूस कया क महा मा इस सवाल पर संबंध ख म नह करगे। हालाँ क उस
समय लॉड इरिवन ने महा मा काे बताया था क उ ह तीन लाहौर कै दय क
मौत क सजा को कम करने के िलए एक बड़े पैमाने पर ह ता रत यािचका
ा ई है। वे फलहाल फाँसी क सजा को थिगत कर दगे और इस मामले
पर गंभीरता से िवचार करगे, ले कन उस समय वे नह चाहते थे क इससे
अिधक दबाव डाला जाए। वायसराय के इस रवैए से महा मा तथा बाक सभी
लोग ने यह िन कष िनकाला क फाँसी क सजा अंतत: र कर दी जाएगी
और इससे देशभर म ज का माहौल पैदा हो गया, िवशेष प से बंगाल म,
जहाँ कु छ और ांितकारी कै दय को फाँसी दी जानी थी।
इस घटना के करीब दस दन बाद कां ेस क कराची म बैठक होनी थी। एक
सामा य उ मीद लगाई जा रही थी क फाँसी र हो जाएगी, ले कन 24 माच
को जब हम कलक ा से कराची के रा ते म थे तो सबसे दु:खद और असंभािवत
समाचार ा आ—सरदार भगत संह और उनके सािथय को एक रात
पहले फाँसी पर चढ़ा दया गया। फाँसी दए जाने के बाद उनके पा थव शरीर
के साथ जो बरताव कया गया, उसे लेकर पंजाब म तरह-तरह क भयंकर
रपोट फै ल ग । आज पीछे मुड़कर देखने पर दु:ख क उस असहनीय पीड़ा का
अंदाजा लगाना असंभव है, िजसम एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक पूरा देश
गहरे शोक म डू बा आ था। कसी-न- कसी कारण से भगत संह युवा के
बीच नवजागरण का तीक बन गए थे। लोग बार-बार यह सवाल कर रहे थे
क या सच म ही वे उनके िखलाफ लगाए गए ह या के आरोप के दोषी थे?
उनके िलए के वल इतना काफ था क वे पंजाब म नौजवान भारत सभा (युवा
आंदोलन) के जनक थे क उनके एक कामरे ड, जितन दास शहीद क मौत मरे
थे और उ ह ने तथा उनके कामरे ड साथी फाँसी के त ते पर भी सीना तानकर
िनभ कता के साथ खड़े रहे थे। हर कसी को महसूस हो रहा था क कां ेस क
बैठक शोक के माहौल म हो रही है। अ य सरदार व लभभाई पटेल ने बैठक
से पहले दन आयोिजत कए जानेवाले सामा य उ सव को िनलंिबत करने के
आदेश जारी कर दए। ले कन जब महा मा कराची के समीप उतरे तो वहाँ
िवरोध- दशन हो रहा था और कई युवक ने काले फू ल और काले फू ल के
हार के साथ उनक अगवानी क । युवा के एक अ छे-खासे वग के बीच यह
भावना थी क महा मा ने भगत संह और उनके कामरे ड सािथय के साथ
िव ासघात कया।
अिखल भारतीय कां ेस सिमित क बैठक 26 माच और पूण अिधवेशन 29
माच को होना था। फाँसी 23 माच को दी गई थी और ऐसे म समझौते के
समथक के बीच ब त बेचैनी और घबराहट थी और उ ह कां ेस के दो फाड़
होने क आशंका सता रही थी। ले कन पाट के आिधका रक पदािधका रय ने
गहरी सू म दृि के साथ काम कया और सभी ांत से समझौते के समथक
को बड़ी सं या म िश मंडल के तौर पर चुना गया। वाम शाखा, िजससे म
संबंध रखता था, उसने पहले कराची आने क ितब ता उठाई थी, वहाँ
उ ह ने ि थित का जायजा िलया, सावधानीपूवक उन बात पर िवचार कया,
जो महा मा ने मुझे बॉ बे म बताई थ और उनका भिव य का नज रया समझा
तथा उसके बाद उ ह ने अपना अंितम िनणय िलया। कराची म यह पूरी तरह
प था क उ ह िनवािचत ितिनिधय से समथन नह िमलेगा, जो कां ेस म
वोट कर सकते थे—ले कन आम जनता और िवशेष प से युवा के बीच—
उ ह ापक समथन ा था। एक और कारक था, िजस पर िवचार करना
पड़ा। अगर हम लगे रहते और ईमानदार होते तो यह के वल समझौते का
िवरोध करने और फर घर वापस जाने का मामला नह होता। हम सरकार को
नो टस देना होगा और फर से आंदोलन शु करना होगा। अगर हम ऐसा
करते ह तो हम या समथन ा होगा? इस बात म कोई शक नह क
इनसान और पैस के मामले म यह िनराशाजनक रहेगा। इसिलए इस बात क
कोई संभावना नह थी क य द हम संघष जारी रखते ह तो हम महा मा से
अिधक बेहतर प रणाम िमलगे। ऐसी प रि थित म हम सदन को िवभािजत
करने से या फायदा िमलेगा? अगर हम हार जाते, जो क तय था, तो हमारी
ि थित खराब हो जाएगी। य द हम समझौते को खा रज करवाने म सफल रहे,
िजसक क ऐसी प रि थितय म संभावना कम थी, तो हम देश म अिधक कड़ा
आंदोलन चलाने म िवफल रहगे, देश को हमारे िवरोध से कोई फायदा नह
होगा। इतना ही नह , सरदार भगत संह और उनके सािथय को फाँसी दए
जाने को भी यान म रखना पड़ा था। सरकार ने भी यह अहसास करने म देश
के हालात का पया सं ान िलया था क कां ेस क पूव सं या पर फाँसी दए
जाने से कां ेस म िवभाजन होने क संभावना है और इससे समझौता िवरोधी
पाट क ि थित काफ मजबूत हो जाएगी। य द सरकार िवभाजन करवाने के
िलए इतनी उ सुक थी तो इससे बचने के प म भी कु छ कहना होगा। संकट के
समय एक पाट को कई बार अपने नेता के साथ खड़ा होना पड़ता है, जब क
यह सबको पता होता है क वे नेता भयंकर भूल कर रहे ह। रा वादी नेता
और सरकार के बीच समझौते का यह पहला अवसर था। य द कायकता ने
समझौते म शािमल होने के बाद नेता को ठु करा दया तो इससे न के वल
नेता क ित ा आहत होगी, बि क वयं पाट क छिव भी धूिमल हो
जाएगी। सरकार भिव य म यह कह सकने क हालत म होगी क इन नेता के
साथ कसी समझौते का कोई फायदा नह है, य क इ ह इनके समथक ारा
खा रज कए जाने क संभावना है। इन सभी बात को अ छी तरह तौलने के
बाद हमने इस संबंध म एक बयान जारी करने का फै सला कया क कां ेस क
वाम शाखा गांधी-इरिवन समझौते का अनुमोदन नह करती, ले कन उस
समय मौजूद हालात के म ेनजर वे सदन को िवभािजत करने से दूर रहगे। यह
बयान मने कां ेस क िवषय सिमित के सम दया और समझौते के समथक
ने इसका ज मनाया। हालाँ क इससे हमारे यादा उ साही समथक को भारी
िनराशा ई।
सरदार व लभभाई पटेल ने कां ेस क अ य ता क । अपने उ ाटन भाषण
म उ ह ने वतं ता संबंधी लाहौर ताव को मंजूरी दी और भारत के िलए
डोिमिनयन टेटस क पैरवी क । उनका अिधकांश भाषण कृ िष संकट और
सामािजक एवं आ थक सुधार , जो क देश के उ थान के िलए ज री थे, पर
क त था। कां ेस ारा पा रत कए ताव म एक ताव, हंसा क सभी
गितिविधय क नंदा करते ए सरदार भगत संह और उनके सािथय के
साहस एवं आ म-बिलदान क सराहना से संबंिधत था। यह ताव बंगाल
ांतीय कॉ स ारा 1924 म पा रत कए गए ‘गोपीनाथ साहा ताव’ के
ख पर ही आधा रत था, िजसे महा मा ने पुरजोर तरीके से खा रज कर दया
था। कराची के हालात ही कु छ ऐसे थे क इस ताव को उन लोग को भी
वीकार करना पड़ा, जो सामा य प रि थितय म कभी भी यह कदम नह
उठाते। जहाँ तक महा मा का सवाल था, उ ह अपनी अंतरा मा क आवाज को
थोड़ी ढील देनी पड़ी। ले कन इतना काफ नह था। तमाशे को एकदम असल
प देने के िलए सरदार भगत संह के िपता, सरदार कशन संह को मंच पर
बुलाया गया और कां ेस नेता के समथन म भाषण देने को कहा गया।
पदािधका रय ारा चली गई चाल कमाल क थ । कां ेस ारा पा रत कए
गए अ य ताव इस कार थे—
1. गांधी-इरिवन समझौते क पुि ।
2. कां ेस िश मंडल को गोलमेज स मेलन के िलए अिधकृ त कया गया।
3. और भारतीय लोग के मौिलक अिधकार, िजनके िलए कां ेस संघष करे गी।
कां ेस िश मंडल को दया गया अिधकार प /मु तारनामा महा मा ारा
बॉ बे म लेखक को दए गए आ ासन के अनु प था। ‘मौिलक अिधकार
ताव’ कां ेस म समाजवादी त व को खुश करने के िलए था। जहाँ तक
कां ेस िश मंडल के क मय क बात है, कायसिमित को चयन के िलए
अिधकृ त कया गया। स क समाि के समय अगले साल क कायसिमित का
चुनाव कया, य क लाहौर कां ेस म के वल ऐसे लोग का ही चुनाव कया
गया था, जो आँख मूँदकर महा मा का अनुसरण करने को तैयार ह गे। कां ेस
स के दौरान महा मा सुबह के समय सावजिनक ाथना करते थे और उसम
अभूतपूव भीड़ होती थी। जनता का समथन हािसल करने के िलए इससे अिधक
भावी कोई चार नह हो सकता।
कां ेस के स के साथ ही अिखल भारतीय नौजवान भारत सभा (ऑल
इं िडया यूथ कां ेस) का स कराची म आयोिजत कया गया, िजसक
अ य ता करने के िलए लेखक को आमंि त कया गया। उस समय पंजाब और
संध के युवा म एक खास वृि थी क वे भारतीय रा ीय कां ेस से अलग
हो गए थे और अलग संगठन चला रहे थे। मने इस नज रए के िखलाफ कड़ाई के
साथ अपनी बात रखी और अपील क क बिह कार के बजाय कां ेस क
आिधका रक मशीनरी का इ तेमाल कया जाए। गांधी-इरिवन समझौते के
संबंध म मने िन आलोचना मक बंद ु रखे—
1. समझौते म ब त छोटी और अनाव यक बात पर अिधक यान दया गया,
जब क वराज के मु य मु े को छोड़ दया गया।
2. स मेलन वा तव म गोलमेज स मेलन था ही नह , य क कॉ स के
फै सल को लेकर कोई िनणय नह था और पूरे मामले पर ि टश संसद् नए
िसरे से िवचार करे गी। एक असली गोलमेज स मेलन म, जैसा क दि णी
अ क और आय रश मामले म आ था, फै सले हमेशा िनणायक होते ह
और दोन प के िलए बा यकारी होते ह। गोलमेज स मेलन नाम का
इ तेमाल के वल मूख भारतीय नेता क आँख म धूल झ कने के िलए
कया गया।
3. गोलमेज स मेलन के िलए भारतीय िश मंडल का चयन भारतीय लोग
ारा नह , बि क ि टश सरकार ारा कया जाएगा।
4. स मेलन दो संघषरत दल के ितिनिधय तक ही सीिमत नह होगा।
वराज क लड़ाई से िजन लोग का कोई लेना-देना नह है, वे असली
रा वा दय के रा ते म कावट डालने के िलए मौजूद ह गे।
5. रा वादी ि टश भारत और िनरं कुश भारतीय महाराजा के बीच एक
संघ का ताव बेतुका है। महाराजा या उनके नुमाइं दे रा ीय ताकत के
सामने च ान क तरह खड़े हो जाएँग।े
6. ‘िज मेदारी’ जो देती है, उसे ‘सुर ा’ छीन लेती है। भारत के िहत म
महा मा ारा ‘सुर ा’ क बात कया जाना भारी गलती थी। एकमा
सुर ा, जो भारतीय चाहते ह, वह है आजादी। असली ‘सुर ा’ तो अं ेज
ारा माँगी गई है, जो क भारतीय के िहत के िखलाफ है। ऐसे सुर ा
मानक को भारत के िहत म बताकर भारतीय लोग को उ ह वीकार करने
के िलए कहना गलत है।
7. समझौते के तहत उपल ध कराई गई आम माफ अपया है, य क इसम
से िन वग के राजनीितक कै दय को बाहर रखा गया है—
(क) सरकारी कै दी और िबना सुनवाई के जेल म बंद कए गए ‘बंदी’, िजनक
सं या अके ले बंगाल म हजार म थी।
(ख) ांितकारी अपराध के िलए दोषी ठहराए गए कै दी।
(ग) किथत ांितकारी अपराध के िलए िवचाराधीन कै दी।
(घ) मेरठ ष ं कांड के िवचाराधीन कै दी।
(ङ) िमक हड़ताल और अ य िमक िववाद के संबंध म दोषी ठहराए गए
कै दी।
(च) िनह थे नाग रक पर गोली चलाने से इनकार करने के िलए कोट माशल
कए गए और भारी सजा पानेवाले गढ़वाली सैिनक।
(छ) सिवनय अव ा आंदोलन के संबंध म सजा पाए ऐसे कै दी, िजनके िखलाफ
कसी कार क हंसा का आरोप है।
8. सिवनय अव ा आंदोलन क अविध के दौरान पुिलस यादितय क जाँच
क जो मूल माँग महा मा गांधी ने क थी, उसे समझौते से बाहर रखा गया
था।
युवा कां ेस म उपरो आलोचना को सही ठहराया गया और द ली
समझौते क नंदा करते ए एक ताव पा रत कया गया।
द ली समझौता, जैसा क हम बाद म देखगे, आशीवाद नह , बि क एक
अिभशाप सािबत होनेवाला था। िजस तरह क समझ कायम करने का यास
कया गया, उसके िलए वह सही समय नह था। संघष कु छ समय और चलना
चािहए था। समझौते का मसौदा िजस तरीके से तैयार कया गया था, उसक
कोई क मत नह थी। 1929 म सुलह समझौता वा ा शु होने के बाद से ही
कां ेस नेता हमेशा डोिमिनयन टेटस दान कए जाने के संबंध म सरकार से
आ ासन िमलने पर ही जोर देते रहे थे; य क वह आ ासन नह िमल रहा
था तो लड़ाई 1930 म शु करनी पड़ी। इसी कारण के चलते, 1930 म पहले
गोलमेज स मेलन से पूव शांित समझौता वा ा िवफल सािबत ई थी। इस
तरह के आ ासन के िबना लड़ाई को कै से थिगत कया जा सकता है, यह
समझ से परे है। इसका अगर कोई बता सकता है तो के वल एक ही कारण था
क कां ेस कायसिमित म एक भी ि ऐसा नह था, जो महा मा को सही
बात बता सकता और पं. मोतीलाल नेह के िनधन से कां ेस का आिखरी
बुि जीवी नेता चला गया था। अि म पंि के एक नेता म जो भावना मक
अपील करने का कौशल होता है, उसके िहसाब से पं. मोतीलाल नेह फर भी
नेता के नेता थे। अपने समक म उनका िसर सबसे ऊँचा और ि व
सबसे रौबीला था और 1931 म कां ेस कायसिमित म वे अके ले ऐसे नेता थे,
जो भले के िलए महा मा को भािवत कर सकते थे। इसिलए यह दुभा य था
क द ली समझौता वा ा के समय पर वे मृ यु शैया पर थे और माच 1931 म
उनका िनधन कसी रा ीय आपदा से कम नह था।
समझौता असामियक था और ऊपर से कू टनीित तथा राजनीितक कौशल क
कमी भी इसक कु छ खािमय के िलए िज मेदार थी। उदाहरण के िलए, पुिलस
यादितय क जाँच क माँग के संबंध म महा मा को सूिचत कया गया था क
य द वे हठध मता क हद तक अपनी माँग पर अड़े रहे तो सरकार झुक
जाएगी। ले कन उ ह ने वायसराय क एक अपील पर अपनी इस माँग को
वे छा से छोड़ दया। यहाँ तक क माच 1931 म, बेहतर सौदेबाजी करने से
सरकार से काफ कु छ हािसल कया जा सकता था, य क वे समझौते के िलए
वा तव म ब त बेचैन थे। ले कन थायी िवचार वाले लोग राजनीितक
सौदेबाजी करने म मािहर नह होते। जहाँ तक महा मा क बात है, वे कठोरता
और उदारता का िवक प अपनाते रहते ह और इससे भी अिधक ि गत
भाव के मामले म वे ब त भावुक हो जाते ह और ऐसी आदत के साथ
राजनीितक सौदेबाजी म अपने ित ं ी के साथ मुनाफे का सौदा करना
मुि कल हो जाता है। ‘ द ली समझौते’ से सरकार को काफ मदद िमली।
इसने कां ेस क चाल क गहराई से पड़ताल करने और भिव य म उसके
िखलाफ अपने हिथयार क धार पूरी तरह पैनी करने के िलए उसे समय िमल
गया। समझौते का कां ेस पर एक खुमारी का-सा असर आ। लोग का उ साह
ठं डा पड़ने लगा और एक अ हंसक जनांदोलन के िलए जनसमथन तथा धन
जनता के उ साह से ही ा होता है। चूँ क सरकार के पास मानव बल और
धन क कोई कमी न थी तो वह कसी भी समय अपनी गितिविध शु कर
सकती थी, ले कन कां ेस को जनता के उ साह म एक बार फर से उबाल आने
तक इं तजार करना होगा। द ली समझौते के दौरान, उधर लंदन म गोलमेज
स मेलन क बैठक चल रही थी क सरकार इधर, कां ेस पर हमला बोलने के
िलए अपनी योजना को अंितम प देने म लगी थी। उदाहरण के िलए,
अ ू बर 1931 तक अगले साल के िलए आपात अ यादेश पहले ही तैयार कर
िलये गए थे। द ली के रा वादी मुसिलम नेता डॉ. एम.ए. अंसारी के पास
इसके पु ता सबूत थे और उ ह ने ये सबूत िविधवत् प से कां ेस अ य
सरदार व लभभाई पटेल को स प दए थे। भिव य के घटना म क
भिव यवाणी करना सरकार के िलए आसान था, य क वह जानती थी क
कु छ भी ठोस कां ेस के हाथ नह लगने दया जाएगा। ले कन महा मा क
ईमानदारी और प वा दता क नीित से िनदिशत कां ेस ने आगामी संघष के
िलए कोई तैयारी नह क थी। सच तो यह था क लंदन रवाना होने से पूव,
महा मा ने लॉड इरिवन को आ ासन दया क वे वहाँ समझौते के िलए
हरसंभव यास करगे और जब वे लंदन से रवाना ए तो उ ह ने धानमं ी
रै मसे मैकडोना ड को आ त कया क वे श ुता को फर से िसर उठाने से
रोकने के िलए जी-जान लगा दगे और अगर यह असंभव आ तो वे कम-से-कम
जहाँ तक संभव हो सके गा, कड़वाहट से बचने के यास करगे।88 बॉ बे म
उतरने से एक दन पहले महा मा गांधी ने अ यिधक सुलह समझौते का
भावाथ िलये एक रे िडयो संदश े भेजा, िजसे सभी समाचार-प ने त काल
कािशत कर दया। ले कन नए वायसराय लॉड िव लं डन पर इसका कोई
असर नह आ, जो कां ेस के साथ संघष िवराम समझौते के िलए राजी होने
के कारण सरकार को ई मामूली सी बेइ ती का भी बदला लेने के िलए संघष
क तैयारी म जुटे थे। उ ह ने पहले ही अपने सारे इं तजाम कर िलये थे।
समझौते के अपया ावधान के बावजूद, य द इसम किथत अ याचार क
जाँच क व था क गई होती तो भिव य म कदाचार पर एक व थ तरीके
से िनगरानी संभव हो जाती। िपछले 12 महीन के दौरान पुिलस और सेना
ारा पेशावर, गुजरात, संयु ांत और बंगाल के िमदनापुर िजले म कए गए
अ याचार ने नृशंसता क सभी सीमा को पार कर दया था और इसी के
संबंध म जनता ने समाधान क माँग क थी। पेशावर म ई गोलीबारी का हम
पहले ही िज कर चुके ह। गुजरात, संयु ांत और िमदनापुर म शाही सेना
ारा कर नह चुकाने संबंधी आंदोलन को कु चलने के िलए बल योग कया
गया और संयु ांत म िव ोह पर उता मिहला पर हमले के आरोप लगे
थे। इसके अित र , एक हािलया घटना, िजसक याद जनता के दमाग म
अभी तक ताजा थ , वह वतं ता दवस (26 जनवरी, 1931) पर कलक ा म
एक शांितपूण दशन पर कया गया पुिलस का हमला थी। लेखक उस समय
कलक ा के मेयर थे और इस दशन क अगुआई कर रहे थे। अचानक घोड़
पर सवार अं ेज पुिलसक मय ने, िबना कसी चेतावनी के , ला ठय (चमड़ा
मढ़ी मजबूत ला ठयाँ) से हमला कर दया और बेरहमी से ला ठयाँ बरसा ।
लेखक और कई अ य दशनकारी, िजनम िश ा अिधकारी च ोपा याय,
कलक ा नगरपािलका के उप-लाइसस अिधकारी घोषाल भी शािमल थे, इस
हमले म घायल हो गए, हालाँ क दशन आिखर तक शांितपूण और अ हंसक
बना रहा था। अगले दन, लेखक को कलक ा के मु य ेसीडसी मिज ेट ने
दंगा फै लाने के िलए छह महीने89 क जेल क सजा सुना दी। भारत के थम
शहर के मेयर के साथ पुिलस ारा ऐसा बरताव कया जा सकता है, यह कु छ
ऐसी बात थी, जो भारतीय जनता तक के गले नह उतर रही थी। उधर दूसरी
ओर, पुिलस महसूस कर रही थी क वह जो चाहे कर सकती है, य क उ ह
कभी भी जनता के सम जवाबदेही के िलए पेश होने को नह कहा जाएगा।
समझौते के तहत िजस आम माफ का वादा कया गया था, उसके सीिमत
दायरे ने लोग के एक वग के बीच काफ िनराशा पैदा क और इसने महा मा
को ांितका रय , मेरठ बं दय के दो त और समथक समेत ेड यूिनयन
हलक से और दूर कर दया। अगर महा मा इन सभी वग के कै दय के िलए
आम माफ सुिनि त करवा लेते तो वे न के वल रा वा दय के ितिनिध के
तौर पर, बि क ेड यूिनयन और ांितका रय के अगुआ के प म भी खड़े
होते और वे भलाई के िलए वे उन पर अपने भाव का इ तेमाल कर सकते थे।
अगर सरकार ने भी िह मत दखाते ए कारागार के दरवाजे खोल दए होते
तो यह एक बड़ा सदाशतापूण कदम होता, जो सीधे लोग के दल को छू
लेता। और इससे उनका कोई नुकसान नह होना था, य क अगर कोई अपनी
आजादी का दु पयोग करता है तो उसे रे युलेशन और अ यादेश क मदद से
फर से सलाख के पीछे बंद कया जा सकता था। चूँ क महा मा ने वयं को
के वल स या िहय के मु े तक सीिमत कर िलया था तो जेल म बंद
ांितका रय ने लॉड इरिवन को एक प िलखा क महा मा गांधी के साथ
कोई समझौता आव यक प से उनके िलए बा यकारी नह होगा और य द
महामिहम भारतीय सवाल का वा तिवक समाधान चाहते ह तो सरकार को
रवॉ यूशरी पाट के साथ अलग से एक सहमित कायम करनी होगी। यह प
एक मुख भारतीय राजनेता के मा यम से वायसराय के हाथ म प च ँ ा।90
यह यास पूरी तरह िवफल नह गया, य क कु छ महीने बाद बंगाल के
गवनर सर टैनले जै सन ने ांितका रय के साथ एक सहमित बनाने के
यास कए। उनके कहने पर दवंगत जे.एम. सेनगु ा उ र बंगाल म ब सा
बंदी िशिवर म गए और कु छ नेता से बातचीत क । इसका नतीजा
असंतोषजनक नह था। िजन कै दय से बातचीत क गई, उ ह ने कहा क वे
शत पर िवचार-िवमश के िलए तैयार थे, ले कन उ ह ने इस बात पर जोर
दया क सुलह समझौता वा ा कसी पुिलस अिधकारी के मा यम से नह ,
बि क सीधे सरकार के साथ होनी चािहए। उ ह ने शत क एक ारं िभक
परे खा भी दी, िजसके बारे म दवंगत सेनगु ा ने वायसराय को िविधवत् प
से प च ँ ा दया। इसके बाद सरकार ने िशिवर के सुप रं टडट, जो क एक पुिलस
अिधकारी थे, के मा यम से कै दय के साथ बातचीत शु क । ले कन कै दय
ने साफ कह दया क य द सरकार उनके साथ सीधे बातचीत नह करे गी तो वे
एक इं च भी आगे नह बढ़गे।
चूँ क सरकार इसके िलए राजी नह थी तो सुलह समझौता यास धे मुँह
िगरे । ऊपर जो भी िलखा गया है, उसके बावजूद अिशि त जनता के िलए
द ली समझौता महा मा के िलए िवजय तीत हो रहा था। के वल समय
बीतने के साथ ही धीरे -धीरे उनका म दूर होनेवाला था। ब त से बु लोग
का गंभीरतापूवक यह मानना था क िलिखत के अलावा कई अ य अिलिखत
शत भी थ , िजनका खुलासा बाद म कया जाएगा और ब त से लोग जो
समझौते के िखलाफ थे, उनका लगातार यही कहना था क दूसरे गोलमेज
स मेलन क समाि तक महा मा को खूली छू ट दी जानी चािहए। िन संदह े
कराची कां ेस महा मा क लोकि यता और ित ा का चरम थी। मने कु छ
दन उनके साथ या ा क और देखा क कस कार हर जगह भीड़-क -भीड़
उनका वागत करने के िलए खड़ी थी। म यह सोचकर हैरान था क या ऐसा
अ भुत, वत: फू त, शानदार वागत कह भी, कभी भी कसी नेता का आ
होगा? वे लोग के सामने के वल महा मा नह थे, बि क एक राजनीितक संघष
के नायक थे। उस समय मेरे दमाग म इस सवाल ने हलचल मचा दी क
महा मा ने जो अ भुत पदवी पा ली थी, वे उसका कस कार उपयोग करगे?
एक, वे िवजय रथ पर आगे बढ़ते जाएँगे या उनक अवनित का दौर शु
होगा? पहला सदमा उस समाचार क घोषणा से लगा क कायसिमित ने 2
अ ैल को महा मा गांधी को गोलमेज स मेलन के िलए कां ेस का एकमा
ितिनिध चुना है और वे फै सले को वीकार कर चुके ह। इस फै सले क असली
वजह को म कभी समझ नह पाया। या इसके पीछे महा मा का अिभमान था,
जो िव के सामने लाख मूख भारतीय के एकमा ितिनिध के प म पेश
होना चाहते थे? या यह कायसिमित क फै सला लेने म ई एक और चूक थी?
या इस फै सले के िलए कोई और मकसद छु पा था? असली कारण जो भी हो,
ले कन पहले कारण को वीकार करना असंभव है, फै सला अपने आप म पूरी
तरह गलत था। करीब एक सौ लोग क सभा म, िजसम कु छ छु टभैए,
चाटु कार और वयंभू नेता एक ठोस दीवार बनकर उनके िखलाफ खड़े ह गे,
वहाँ वे अके ले उनका मुकाबला करगे तो उ ह भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
इतना ही नह , ित यावादी मुसिलम नेता के साथ संघष म उनका
समथन करने के िलए उनके साथ कोई नह होगा। ले कन इसका कोई समाधान
नह था। महा मा के अंधभ से उनक आलोचना करने क उ मीद नह क
जा सकती और जो उनके क र समथक नह थे, उनक बात का महा मा पर
कोई असर पड़नेवाला नह था, फर चाहे उनका च र , बुि मानी और
अनुभव कतना भी िवशाल य न हो!
कराची कां ेस के बाद महा मा का पहला ही कदम िववेकपूण नह था और
दूसरा कदम एक गलती थी। सावजिनक और िनजी तौर पर उ ह ने यह कहना
शु कर दया था क गोलमेज स मेलन म उनका जाना उससे पहले हंद-ू
मुसिलम के सवाल को सुलझाने क उनक मता पर िनभर करता है। इस
बयान के साथ ही उ ह ने यह भी कहना शु कर दया क य द मुसिलम नए
संिवधान म ितिनिध व, िनवाचक मंडल आ द के संबंध म एकजुट माँग रख
तो वे माँग को वीकार कर लगे। इन बयान का भाव ब त ही ासदीपूण
आ। द ली समझौते के बाद, ित यावादी मुसिलम एक कार से कां ेस के
सं याबल और उसक ताकत से अिभभूत थे और वे ता कक आधार पर कां ेस
के साथ समझौता करने क सोच रहे थे। महा मा के पहले बयान से तुरंत उनके
िवचार बदल गए और उ ह यह महसूस आ क उनक ि थित मह वपूण है,
य क अगर उ ह ने उनके साथ समझौता करने से इनकार कर दया तो वे
उ ह गोलमेज स मेलन म भाग लेने से रोक सकते थे। महा मा के दूसरे बयान ने
ित यादी मुसिलम को यह महसूस करा दया क अगर वे दृढ़ रह और
रा वादी मुसिलम का समथन हािसल कर ल तो महा मा को उनक सभी
अितवादी माँग को मजबूरन वीकार करना ही पड़ेगा। उपरो बयान दए
जाने के बाद, महा मा क द ली म अ ैल के महीने म कु छ ित यावादी
मुसिलम नेता के साथ बैठक ई। उस समय म द ली म था और उसी शाम
बैठक के बाद उनसे िमलने गया था। वे अवसाद से िघरे नजर आ रहे थे, य क
ित यावादी मुसिलम नेता ने महा मा के सामने िज ा क 14 माँग
(िज ह भारत म िज ा के 14 बंद ु के प म जाना जाता है) रखी थ और
महा मा ने महसूस कया था क उस आधार पर समझौता संभव नह होगा।
इस पर मने ट पणी क क कां ेस को के वल रा वादी हंद ु और रा वादी
मुसिलम के बीच समझौते क चंता करनी चािहए और आपसी सहमित से
िनकले समाधान को गोलमेज स मेलन म रा वादी माँग के प म रखा जाना
चािहए तथा कां ेस को इस बात क परवाह करने क ज रत नह है क बाक
रा वाद िवरोधी त व या सोचते या कहते ह? महा मा ने तब मुझसे पूछा क
या मुझे पृथक् िनवाचक मंडल पर कोई आपि है? य क यह तक दया जा
सकता है क तीसरे प क अनुपि थित म िविभ समुदाय एक साथ रहगे
और काम करगे। इस पर मने जवाब दया क पृथक् िनवाचक मंडल रा वाद
के मूलभूत िस ांत के िखलाफ है और यह क इस िवषय पर मेरी मजबूत
भावना यह है क मेरी राय म पृथक् िनवाचक मंडल के आधार पर वराज भी
िमले तो वह मंजूर नह है। हम त लीन भाव से चचा कर रहे थे क डॉ. अंसारी
और कु छ रा वादी मुसिलम, िजनम शेरवानी भी शािमल थे, वहाँ आए और
चचा म सि मिलत हो गए। उनका कहना था क य द कसी कारण से महा मा
हंद ू और मुसलमान, दोन के िलए साझा िनवाचक मंडल क माँग को छोड़ देते
ह और येक समुदाय के िलए पृथक् िनवाचक मंडल क ित यावा दय क
माँग को वीकार कर लेते ह तो वे ित यावादी मुसिलम और साथ ही
महा मा का भी िवरोध करगे, य क वे पूरी तरह इस बात से सहमत थे क
पृथक् िनवाचक मंडल न के वल पूरे देश के िलए, बि क िविभ समुदाय के
िलए भी नुकसानदायक था। महा मा को पृथक् िनवाचक मंडल पर सहमत
होने से रोकने के िलए इस अवसर पर रा वादी मुसिलम का कड़ा ख ापक
प से िज मेदार था और इससे उ ह ने महा मा को उस असहज ि थित से
वयं को िनकालने के िलए बा य कया, िजसम उ ह ने खुद को डाल िलया
था।91 इसके तुरंत बाद महा मा ने यह कहते ए एक सावजिनक बयान दया
क वे क युिन ट मुसिलम नेता ारा रखी गई माँग को वीकार नह कर
सकते, य क रा वादी मुसिलम नेता उनके िखलाफ थे।
द ली म उस समय (उदाहरण के िलए, अ ैल 1931) माहौल ब त ही
ष ं कारी था। हालाँ क लॉड इरिवन पूरी ईमानदारी से चाहते थे क
समझौता हो, ले कन ब त से अिधकारी इसके िखलाफ थे। ये क र त व इस
बात से उ सािहत थे क लॉड इरिवन भारत से िवदा होनेवाले ह और उनके
थान पर लॉड िव लं डन पधारगे, िजनक छिव एक मजबूत ि क थी।
हम द ली म ही थे क एक भरोसेमंद सू के माफत हम तक यह सूचना प च ँ ी
क ि टश सरकार गोलमेज स मेलन म या दाँव-पेच आजमानेवाली है। हम
यह बताया गया क शु आत म ही महा मा गांधी को तु छ मु म घसीटने का
यास कया जाएगा, ता क भारतीय को आपस म ही एक-दूसरे के साथ
लड़वाया जा सके और वे मह वपूण मु पर ि टश सरकार के िखलाफ
एकजुट न हो सक। मने यह सूचना िविधवत् प से महा मा तक प च ँ ा दी क
इसका या करना था? उ ह ने अपने जवाब म कहा क उनक योजना लंदन
प चँ ने के तुरंत बाद संबंिधत ािधका रय से मुलाकात करने और मु य मु
पर उनसे संतोषजनक उ र ाि क कोिशश करने क है। अगर इन पर वे
संतु महसूस करगे तो फर बाद म छोटे मु पर जाएँगे—अ यथा इं लड म
उनका काम वह -के -वह ख म हो जाएगा। दुभा यवश जब महा मा गांधी
इं लड म थे तो गैर-ज री सम या ने ब त यादा अहिमयत अि तयार कर ली
और सभी बेहद ज री मसले दर कनार हो गए। घटनाएँ एकदम उसी तरह से
घ टत होती चली ग , जैसी क द ली म अ ैल म भिव यवाणी क गई थी।
लॉड इरिवन का कायकाल 18 अ ैल को समा हो गया। द ली से िवदा
होने से पूव उ ह ने चे सफोड लब म एक ब त ही स ावनापूण भाषण
दया। हालाँ क वे कं जरवे टव पाट के एक मुख सद य थे, ले कन उ ह ने
वयं को भारत का शुभ चंतक सािबत कर दया था। लॉड रपन के बाद, कसी
भी वायसराय ने भारतीय लोग के ित इस कार का दो ताना रवैया नह
अपनाया था, जैसा लॉड इरिवन का था। वे भारत के िलए अिधक कु छ नह कर
सके थे, य क भारत और इं लड म उनके िखलाफ ित यावादी ताकत
स य थ । लॉड िव लं डन के आगमन के साथ ही सरकार का ख स त होना
शु हो गया। िविभ ांत म अिधका रय ने समझौते को भावी नह कया
था। गुजरात म कृ षक को अपनी ज त क गई जमीन वापस हािसल करने म
भारी द त हो रही थ और महा मा को अपना पूरा व ावहा रक तौर पर
कराची कां ेस और उनके लंदन थान के बीच उनक िशकायत पर यान
देने म तीत करना पड़ा। संयु ांत म हालाँ क सिवनय अव ा आंदोलन
िनलंिबत कर दया गया था, ले कन कृ षक का कहना था क उ ह लगान का
भुगतान करने म असमथ कर दया गया था। यहाँ तक क महा मा क यह
सलाह क उ ह अपने लगान के 50 फ सदी का भुगतान कर देना चािहए—वे
ऐसा नह कर सकते थे। बंगाल म तो हालात और भी बदतर थे। समझौते के
बावजूद, आए दन िबना सुनवाई के लोग को जेल म बंद कया जा रहा था
और इसके िलए यह दलील दी जा रही थी क ांितकारी आंदोलन चल रहा
है। िबना सुनवाई के सलाख के पीछे कै द कए गए हजार सरकारी बं दय म
से एक को भी रहा नह कया गया। ांत म ष ं के मामले पहले क तरह
जारी थे। समय-समय पर सरकारी दमन के िखलाफ बदला लेने के िलए
आतंकवादी काररवाइयाँ भी हो रही थ । समझौते के बाद बंगाल म सरकारी
रवैए म कोई बदलाव नजर नह आया और कु ल िमलाकर भारत म सरकारी
प क ओर से स ावना पहल का पूरी तरह अभाव था।
जुलाई तक कां ेस मु यालय के पास इस बात के अकाट् य सबूत थे क
समझौते के ावधान को लागू नह कया जा रहा है। सरकार क ओर से
समझौते के उ लंघन के आरोप को लेकर एक ‘आरोप-प ’ वयं महा मा ने
िशमला म भारत सरकार के गृह सिचव को स पा था। ऐसी अफवाह का
बाजार गरम था क महा मा लंदन जाने से इनकार करगे। लंदन म बैठा
शासन बेचैन हो गया, य क वे कसी भी क मत पर महा मा को बुलाना
चाहते थे। अब वायसराय पर इस बात के िलए दबाव आन पड़ा क वे उनक
लंदन या ा के िलए हरसंभव कदम उठाएँ। अग त म महा मा क नए
वायसराय के साथ लंबी वा ा ई, िजसके प रणाम व प तनाव म काफ
कमी आई। महा मा चाहते थे क समझौते को लागू नह करने संबंधी
िशकायत क जाँच के िलए एक म य थ िनयु कया जाए, ले कन इसके
िलए वायसराय राजी नह ए, हालाँ क उ ह ने महा मा ारा लगाए गए कु छ
िवशेष आरोप क जाँच कराने का वादा ज र कया। कसी तरह आिखरी
समय म कां ेस नेता और वायसराय के बीच एक समझौता हो गया। महा मा
बॉ बे के िलए एक िवशेष ेन म सवार हो गए और रवाना होने जा रही नौका
पर ‘एस.एस. राजपूताना’ एकदम सही समय पर प च ँ गए। 11 िसतंबर,
1931 को महा मा ने ांसीसी धरती पर कदम रखा। अगले दन वे लंदन म थे।

12
महा मा गांधी यूरोप म (1931)
श रीर पर मा लँगोटी और पैर म च पल पहने तथा खराब मौसम से खुद को बचाने के
िलए के वल एक शॉल िलये महा मा 11 िसतंबर, 1931 को मा सले प च ँ ।े चु नंदा ि टश
और भारतीय िम तथा शंसक का एक छोटा सा समूह वहाँ उनसे िमला और उ ह
लंदन ले गया। वहाँ प चँ ने पर उ ह सीधे स हाउस म एक वागत समारोह म ले जाया
गया। वागत भाषण के जवाब म ि टश सरकार का िज करते ए महा मा ने मजा कया
ट पणी क —‘भारत और इं लड के संबंध को संतुिलत कए िबना, आप ईमानदारी से
बजट को संतुिलत नह कर सकते।’
लेखक उन लोग म से एक थे, िज ह एक समय म यह संदह े था क या महा मा को
उनक िविश लँगोटी म यूरोप जाने क सलाह दी जाएगी? यूरोप क अपनी िपछली
या ा पर िनि त प से उ ह ने अलग तरह से कपड़े पहने थे। ले कन इस अवसर पर
उ ह ने अपने पसंदीदा प रधान म जाने का सही फै सला कया था। उनके प रधान को
लेकर एक रपोटर ने सवाल कया तो महा मा ने िवनोदपूण ट पणी क —‘आप लोग
लस फोर पहनते ह, मेरा प रधान माइनस फोर है।’ इसके बाद उ ह ने अिधक गंभीर वर
म कहा—‘य द म यहाँ एक अं ेज नाग रक क तरह रहने और काम करने आया होता तो
मुझे यहाँ के रीित- रवाज का पालन करना चािहए था और मुझे एक अं ेज क तरह
प रधान पहनने चािहए थे। ले कन मेरा यहाँ आगमन एक महान् और िवशेष अिभयान के
िलए आ है। और य द आप इसक ा या करना चाह तो मेरी लँगोटी, मेरे िस ांत ,
भारत के लोग का प रधान है।’ उनके देशवासी आज इस बात पर गव क अनुभूित करते
ह क वे अपने सै ांितक प रधान पर अिडग रहे और यहाँ तक क ब कं घम पैलेस म
आयोिजत पाट म भी वे यही लँगोटी पहनकर गए।
अपने लंदन वास के दौरान 12 िसतंबर से 1 दसंबर तक महा मा ने 12 दफा गोलमेज
स मेलन को संबोिधत कया92—दो बार पूण अिधवेशन से पहले 30 नवंबर और एक
दसंबर को आठ बार संघीय ढाँचा सिमित को और दो बार अ पसं यक सिमित को संघीय
ढाँचा सिमित के सम अपने पहले संबोधन म 15 िसतंबर, 1931 को वे भारतीय रा ीय
कां ेस क ि थित और कराची कां ेस म िमले जनादेश क ा या करते ए कहते ह
—‘एक समय था, जब मुझे ि टश जा कहलाने पर गव होता था। कई साल पहले ही मने
वयं को ि टश जा कहना बंद कर दया है; म जा के बजाय एक बागी कहलाना अिधक
पसंद क ँ गा। ले कन अब मेरी यह आकां ा रही है—और अभी भी मेरी आकां ा है—एक
नाग रक बनने क , सा ा य का नाग रक नह , बि क रा मंडल का नाग रक, अगर संभव
हो तो एक साझेदारी म, अगर ई र क यही इ छा है तो एक थायी साझेदार क , ले कन
एक के बाद एक रा ारा ऊपर से थोपी गई साझेदारी क नह ।’ (इस भाषण से प है
क वतं ता पर लाहौर ताव के बावजूद महा मा डोिमिनयन टेटस के आधार पर
ि टेन के साथ समझौते का यास कर रहे थे)।
महा मा ारा ‘एस.एस. राजपूताना’ पर ेस को दए सा ा कार से यह प था क वे
अ यिधक आशावान थे। ले कन संघीय ढाँचा सिमित क दूसरी बैठक से पहले, जो क 17
िसतंबर को ई थी, घनघोर िनराशा छाने लगी थी। उ ह इस बात क अनुभूित होनी शु
हो गई थी क गोलमेज स मेलन के सद य कस िम ी के बने थे? इसिलए 17 िसतंबर को
अपने भाषण क शु आत म ही उ ह ने कहा—‘मने िश मंडल क सूची का अ ययन करने
का य कया है, जो क मने पहले नह कया था; और पीड़ा क जो पहली अनुभूित मुझे
ई है, तो मुझे लग रहा है क हम उस रा का चुनाव नह ह, िजसका हम ितिनिध व
करना चािहए, बि क हम सरकार के चुने ए ह। इतना ही नह , अपने अनुभव से भारत म
िविभ दल और समूह को अ छी तरह जानते ए, जो मने िश मंडल क सूची का
अ ययन कया है, म उसम कु छ अ यिधक दृि गोचर होनेवाले अंतराल को देखता 93 ँ और
इसिलए हमारे गठन के संबंध म अवा तिवकता को भाँपते ए म पीिड़त महसूस करता
।ँ ’
महा मा को ि टश नेता का खेल साफ नजर आने लगा था—इसिलए गद उनके पाले
म फकने के उ े य से उ ह ने उनसे ठोस ताव िन मत करने का आ वान कया। (सरकार
ने अ पसं यक सिमित को बुलाकर उन पर पलटवार करने क कोिशश क , जो भारतीय
ितिनिधय के िलए यु का मैदान बनेगी) इसी बैठक म कां ेस के िखलाफ कए गए एक
हमले का जवाब देते ए महा मा ने कहा—‘मौजूदा सरकार ने हालाँ क हम पर
धृ तापूवक एक समानांतर सरकार ग ठत करने का आरोप लगाया है, म अपने तरीके से
उसे वीकार करना चा ग ँ ा। हालाँ क हमने कोई समानांतर सरकार ग ठत नह क है94,
ले कन हम िनि त प से कसी-न- कसी दन मौजूदा सरकार को िव थािपत करने के
आकां ी ह और आनेवाले समय म िवकास के म म उस सरकार क िज मेदारी सँभालगे।’
अ पसं यक सिमित के सम महा मा गांधी का पहला भाषण 8 अ ू बर, 1931 को
दया गया था। 17 िसतंबर को उ ह ने िजस बात क आशंका जताई थी, वह तब तक सच
सािबत हो चुक थी और सां दाियक सवाल पर कसी समझौते पर प च ँ ने के सभी यास
का नतीजा शू य रहा। जब सद य सरकार के चुने ए थे तो इसम कोई आ य नह !
नेता के द ली घोषणा-प के िखलाफ लेखक एवं अ य ारा नवंबर 1929 म जारी
कए गए घोषणा-प म इस प रणाम को प प से इं िगत कया गया था। 8 अ ू बर,
1931 को महा मा ने कहा—‘गहरे दु:ख और गहरे अपमान के साथ मुझे यह घोषणा करनी
पड़ रही है क म आपस म और िविभ समूह के ितिनिधय के साथ अनौपचा रक वा ा
के मा यम से सां दाियक सवाल के एक सहमत समाधान को ा करने म अपनी ओर से
पूरी तरह से िवफल रहा...ले कन यह कहना क हमारी बातचीत पूरी तरह से िवफल हो
गई है, पूरी स ाई नह है। िवफलता के कारण तो भारतीय िश मंडल के गठन म िनिहत
थे। हम लगभग सभी उन दल या समूह के िनवािचत ितिनिध नह ह, िजनका हम
ितिनिध माना गया है...हम यहाँ सरकार के नामांकन ारा मौजूद ह। और न ही वे ह,
िजनक उपि थित यहाँ एक सहमत समाधान के िलए िनतांत आव यक थी। आगे आप मुझे
यह कहने क अनुमित दगे क अ पसं यक सिमित क बैठक बुलाने का यह कोई समय नह
था। इस मामले म इस कार स ाई क भावना का अभाव है क हम नह पता क हम
या िमलनेवाला है...इसिलए म सुझाव देना चाहता ँ क अ पसं यक सिमित को
अिनि तकाल के िलए थिगत कर दया जाए और संिवधान के मूलभूत त व को िजतना
ज द संभव हो सके , आकार दया जाए...तब जब क गोलमेज स मेलन अपने मसा य
अंत पर प च ँ गया है, तो भी समझौते के यास िवफल हो जाएँगे तो म एक याियक
पंचाट िनयु करने के िलए संभािवत संिवधान म एक उपबंध जोड़ने का सुझाव देता ।ँ
यह पंचाट सभी दाव क जाँच-पड़ताल करे गा और ऐसे सभी बंद ु पर अपना अंितम
िनणय देगा, जो अनसुलझे रह सकते ह।’ इस भाषण को पढ़कर कोई भी यह सोचे िबना
नह रह सकता क य द महा मा ‘सरकार ारा चुने गए’ लोग के शरारतपूण कदम क
काट के िलए रा वादी मुसिलम और अ य अ पसं यक समुदाय के ितिनिधय के पूण
िश मंडल के साथ लंदन जाते तो इससे या बदलाव आया होता? इस बात का भी
पछतावा रहेगा क कराची कां ेस के तुरंत बाद द ली म उ ह िमली चेतावनी के बावजूद,
महा मा को यह अहसास नह आ क अ पसं यक सिमित का मु य काय भारतीय
सद य के बीच म पैदा करना और मु य राजनीितक मु से यान भटकाना होगा।
याियक पंचाट का सुझाव देना िनि त प से महा मा क एक और भयंकर भूल थी। यह
तो तय था क पंचाट के िलए िनयुि ि टश सरकार ारा क जाएगी और सवािधक
संभावना इस बात क थी क वह धानमं ी के सां दाियक फै सले जैसा ही कोई द तावेज
पेश करे गी। अगर ि टश सरकार ने महा मा क बात का अनुसरण करते ए एक याियक
पंचाट ग ठत कर दया होता तो आज महा मा क या ि थित होती?
13 नवंबर, 1931 को अ पसं यक सिमित क अगली बैठक से पूव एक रोचक घटना घट
चुक थी। अ पसं यक समुदाय के तथाकिथत ितिनिधय ने सां दाियक सवाल के
समाधान के तौर पर खुद ही एक समझौते को अंितम प दे दया था। यह समझौता, िजसे
‘अ पसं यक समझौता’ नाम दया गया था—इसम उ ह संिवधान का काफ बड़ा िह सा
िमला था। समझौता सरकार क पूण मंजूरी से कया गया था तथा स मेलन म भारत से
आए ि टश सद य ने इसम मुख भूिमका िनभाई थी। हालाँ क िसख ने समझौते म
भाग नह िलया। इस समझौते म शािमल होने से पूव डॉ. आंबेडकर दबे-कु चले वग के
नािमत ितिनिध, महा मा के साथ एक समझौता करना चाहते थे, िजसके तहत हंद ु के
सभी वग के िलए साझा िनवाचक मंडल के आधार पर वंिचत वग के िलए िवधानमंडल
म एक िनि त सं या म सीट को आरि त करने क व था हो। उस व महा मा ने ऐसे
कसी समझौते के बारे म नह सोचा। जब डॉ. आंबेडकर ‘अ पसं यक समझौते’ म शािमल
ए तो उ ह न के वल वंिचत वग के िलए कु छ सीट का आ ासन दया गया, बि क उनके
िलए पृथक् िनवाचन मंडल का भी वादा कया गया। इस बात म कोई संदह े नह है क य द
उस समय डॉ. आंबेडकर के साथ एक समझौता कया जाता तो शत, महा मा के
ऐितहािसक उपवास के बाद, िसतंबर 1932 म ए ‘पूना समझौते’ से कह बेहतर होत ।
13 नवंबर, 1931 को अ पसं यक सिमित क बैठक म इसके अ य रै मसे मैकडोना ड
ने अ पसं यक समझौते का हवाला देते ए दावा कया क यह भारत के 11 करोड़ 50
लाख लोग को वीकाय है। उ ह ने िपछली बैठक म महा मा के हमले का भी जवाब दया
और उसके िवपरीत अपील क क सां दाियक सवाल को सुलझाने क असमथता
संिवधान-िनमाण क गित म बाधा बन रही है। अपने भाषण म महा मा ने पुरजोर श द
म इन दोन दाव को चुनौती दी और पहले के संदभ म उ ह ने दावा कया क कां ेस न
के वल ि टश भारत क , बि क पूरे रा क 85 फ सदी आबादी का ितिनिध व करती है।
इसी भाषण म महा मा ने एक और मह वपूण दावा कया—‘म अपनी पहले कही गई बात
को ही दोहराना चा ग ँ ा क कां ेस हमेशा ऐसे कसी भी समाधान को वीकार करे गी, जो
हंद ु , मुसलमान और िसख को वीकाय हो, कां ेस क ह अ य अ पसं यक के िलए
िवशेष आर ण या िवशेष िनवाचन मंडल म प नह बनेगी।’95 महा मा ने सां दाियक
सवाल पर अंितम फै सला देने के िलए सरकार से एक बार फर से याियक पंचाट िनयु
करने क अपील क ।
संघीय ढाँचा सिमित के सम 23 अ ू बर, 1931 को महा मा गांधी ने भारत के िलए
सु ीम कोट के संबंध म कां ेस का िवचार िविधवत् प से पुरजोर तरीके से रखा। उ ह ने
अपील क क यह संघीय कोट हरसंभव ापक यायािधकार े यु होना चािहए और
इसका दायरा के वल संघीय कानून के शासन से पैदा होनेवाले मामल का िनणय करने
के िलए ही नह हो। उ ह ने दो सु ीम कोट के िवचार का िवरोध कया—एक के वल संघीय
कानून और दूसरा संघीय शासन या संघीय सरकार के दायरे से बाहर के मामल से
िनपटने के िलए। महा मा ने 17 नवंबर, 1931 को सेना तथा िवदेश मामल पर पूण
िनयं ण क कां ेस क माँग के संबंध म बोला। उ ह ने कहा क मौजूदा सेना, चाहे वह
भारतीय हो या ि टश, क जे क सेना है। ‘म जोरदार श द म क ग ँ ा क इससे पहले क
म उन भयानक अवरोध के बीच भारत सरकार को चलाने का भार अपने कं ध पर उठा
सकूँ , िजन अवरोध को हम एक िवदेशी शासन क िवरासत के बोझ क तरह ढो रहे ह,
य द यह सेना मेरे िनयं ण म नह आती है, तो इस पूरी सेना को भंग कर दया जाना
चािहए...अगर ि टश लोग सोचते ह क ऐसा करने से पूव हम एक सदी क ज रत होगी
तो उस सदी के िलए कां ेस जंगल म भटके गी और कां ेस को उस भयानक अि परी ा से
गुजरना ही होगा...और य द यह आव यक हो जाता है और य द परमा मा क यही इ छा
है...गोिलय क बौछार!’
19 नवंबर, 1931 को संघीय ढाँचा सिमित के सामने महा मा ने पहले गोलमेज स मेलन
म पा रत ि टश लोग के िलए वािणि यक सुर ा मानक संबंधी ताव का िवरोध
कया, य क इसका भारतीय लोग के िहत पर नकारा मक भाव होगा। उ ह ने इस
बात पर सहमित जताई क वैसे िवदेिशय के िखलाफ कोई न लीय भेदभाव नह होना
चािहए। उ ह ने यह भी सहमित क क ‘ कसी भी मौजूदा िहत को वैध प से
अ जत नह कया गया है और जो िहत सामा य प से रा के सव म िहत के िवरोध म
नह ह, ऐसे िहत पर िसवाय लागू कानून के अनुसार ह त ेप नह कया जाएगा।’ ले कन
उ ह ने यह प कर दया क भिव य क रा ीय सरकार के िलए ‘वंिचत’ यानी भारत के
लाख भूखे लोग के िहत म ‘अमीर ’ को बेदखल करना आव यक हो सकता है। जब ज री
हो तो मौजूदा िहत याियक जाँच के अधीन होने चािहए—ले कन उसम कोई न लीय
सवाल शािमल न हो। उ ह ने आपरािधक सुनवाई के संबंध म भारत म यूरोपीय समुदाय
के मौजूदा अिधकार 96 का भी िवरोध कया। 25 नवंबर को गोलमेज स मेलन म अपने
अगले भाषण म उ ह ने कहा क भिव य म भारत क रा ीय सरकार ारा हण कए
जानेवाले दािय व क लेखा परी ा और िन प जाँच97 क जानी चािहए। उ ह ने मु ा
को भारतीय लोग क माँग के अनु प, 1 शी लंग 4 पस के बजाय, 1 शी लंग 6 पस के
अनुपात म तय कए जाने क भी आलोचना क । अपनी बात को जारी रखते ए उ ह ने
कहा—‘अगर भारत को क म वा तिवक अथ म िज मेदारी दी जाती है तो म भारतीय
िव पर पूण िनयं ण चा ग ँ ा।’ मेरे िवचार म, ‘य द हमारे अपने बटु ए पर हमारा िनयं ण
नह है, पूण प से िनबािधत तो हम िज मेदारी उठाने म स म नह हो सकगे और न ही
ऐसी िज मेदारी का कोई मह व होगा।’ उसी दन अपने एक अ य भाषण म वे इस बात
पर कायम रहे क सोच-समझकर िवचार करने के बाद वे इस नतीजे पर प च ँ े थे क
ांतीय वाय ता और क ीय िज मेदारी एक साथ होनी चािहए—‘एक िवदेशी ािधकार
ारा शािसत मजबूत क और मजबूत वाय ता ( ांत के िलए) िवरोधाभासी ह।’ क ीय
दािय व के संबंध म उ ह ने कहा—‘जैसा क आप सब जानते ह, म क म वह दािय व
चाहता ,ँ जो मुझे सेना और िव पर िनयं ण दान करे गा। म जानता ँ क यह मुझे
यहाँ अभी ा होनेवाला नह है और म जानता ँ क यहाँ एक भी ि टश ि इसके
िलए तैयार नह है। इसिलए मुझे पता है क मुझे वापस जाना चािहए और इसके बावजूद
देश को और दु:ख झेलने के िलए तैयार रहने को कहना चािहए।’
30 नवंबर को गोलमेज स मेलन के पूण अिधवेशन म दया गया महा मा गांधी का
पहला भाषण एक अनमोल द तावेज है, हालाँ क यह पूरी तरह से मोहभंग होने का
रकॉड है, इसिलए इसे पढ़ना ब त पीड़ादायक है। उ ह ने यह कहते ए अपनी बात शु
क —‘इस बैठक म सभी अ य दल अलग-अलग िहत का ितिनिध व करते ह। अके ले
कां ेस है, जो संपूण भारत और सभी िहत क नुमाइं दगी करने का दावा करती
है...बावजूद इसके , म देखता ँ क कां ेस के साथ भी एक दल क तरह बरताव कया गया
है...मेरी इ छा है क म सारे ि टश लोग , ि टश मंि य को इस बात के िलए सहमत
कर पाता क कां ेस काम करने म स म है।...ले कन नह , हालाँ क आपने कां ेस को
आमंि त कया है, ले कन आप कां ेस पर िव ास नह करते। हालाँ क आपने कां ेस को
आमंि त कया है, ले कन आप पूरे भारत का ितिनिध व करने के उसके दावे को नामंजूर
करते ह।’ सां दाियक सवाल को उ धृत करते ए उ ह ने एक कड़वा सच बताया, ‘जब
तक िवदेशी शासन पी खूँटा समुदाय को समुदाय से और वग को वग से बाँटता है, कोई
वा तिवक समाधान नह होगा, इन समुदाय के बीच वा तिवक िम ता नह होगी।’
रा ीय माँग के सवाल पर उ ह ने कहा, ‘आप िजस नाम से चाहे इसे पुकार, कसी भी नाम
से पुकारने पर गुलाब क खुशबू वैसी ही यारी रहेगी, ले कन यह गुलाब आजादी का
गुलाब होना चािहए, जो म चाहता ँ और ये कोई कृ ि म उ पाद नह होना चािहए।’
इसके बाद वतं ता क अपनी माँग को थोड़ा उदार प देने के िलहाज से उ ह ने इन
श द म अपील क —‘म अं ेज लोग के साथ भागीदार बनना चाहता ;ँ ले कन म ठीक
वैसी ही वतं ता का आनंद उठाना चाहता ,ँ जैसी वतं ता का आनंद आप लोग उठाते
ह और म यह भागीदारी के वल भारत के िलए नह चाहता और न ही के वल आपसी फायदे
के िलए चाहता ।ँ ’ उसके बाद इन सब अपील को िनरथक पाने पर वे आ ोिशत होकर
बोले—‘ या आप इन चरमपंिथय ारा अपने खून से िलखी गई इबारत को नह देखगे?’
और उसके बाद वे बोले—‘नाउ मीदी के बावजूद म उ मीद रखूँगा, अपने रा के िलए एक
स मानजनक समझौता हािसल करने के िलए म कोई कोर-कसर बाक नह रखूँगा...अपने
देशवािसय को उसी क म के संघष के मैदान म ले जाना मेरे िलए स ता और सुिवधा
का मामला नह हो सकता है, ले कन अगर मेरे देशवािसय को एक और अि परी ा से
गुजरना ही है तो म चरम आनंद के साथ और चरम संतोष के साथ वह परी ा दूगँ ा, िजसके
बारे म म महसूस करता ँ क यह सही है और देश वही कर रहा है, जो उसे सही लगता
है।’
1 दसंबर, 1931 को गोलमेज स मेलन के पूण अिधवेशन क अंितम बैठक म धानमं ी
रै मसे मैकडोना ड ने िन घोषणा क —
‘साल (1931) क शु आत म मने त कालीन सरकार क नीित क घोषणा क थी और
मुझे मौजूदा सरकार ने आपको और भारत को िविश आ ासन देने के िलए अिधकृ त
कया है क उसक यह नीित बरकरार है। म उस घोषणा के मु य वा य को दोहराऊँगा।
‘महामिहम क सरकार का िवचार यह है क भारत सरकार क िज मेदारी क ीय और
ांतीय िवधानसभा को दी जानी चािहए और उसम आव यकता के अनुसार ऐसे
ावधान ह , जो सं मणकाल क अविध के दौरान कु छ दािय व के अनुपालन और अ य
िविश प रि थितय को पूरा करने के िलए और साथ ही अ पसं यक को अपने
राजनीितक अिधकार के संर ण के िलए ज री गारं टी दान करते ह । ऐसे सांिविधक
सुर ा उपाय म, जो क सं मणकाल क ज रत को पूरा करने के िलए बनाए जा सकते
ह, यह देखना महामिहम क सरकार क ाथिमक चंता होगी क आरि त शि य को
इस कार तैयार कया जाए और उ ह अ यास म लाया जाए क उनक अपनी सरकार के
िलए पूण िज मेदारी के साथ नए संिवधान के मा यम से भारत क गित को भािवत न
करे ।
‘क सरकार के बारे म यह प कर दया गया है क प रभािषत शत के अधीन, य द
दोन का गठन अिखल भारतीय संघीय आधार पर कया गया है तो महामिहम क पूववत
सरकार िवधाियका के ित कायपािलका क िज मेदारी के िस ांत को मा यता देने के
िलए तैयार थी।
‘िज मेदारी का िस ांत यो यता के अधीन होना था क मौजूदा प रि थितय म र ा
और िवदेश मामल को अव य ही गवनर जनरल के िलए आरि त कया जाना चािहए
और िव के संबंध म ऐसी शत अव य लागू क जानी चािहए, जो रा य के सिचव (भारत
के िलए) के ािधकार के तहत उ प दािय व क पूणता, िनबाध प से िव ीय ि थरता
और भारत क साख को सुिनि त करे ।
‘अंत म, यह हमारा िवचार था क अ पसं यक के संवैधािनक अिधकार क सुर ा और
उनका अनुपालन तथा अंतत: रा य क समरसता को बनाए रखना सुिनि त करने क
अपनी िज मेदारी को पूरा करने म स म बनाने के िलए गवनर जनरल को ज री शि याँ
अव य ही दान क जानी चािहए।’
धानमं ी के ित ध यवाद ापन पेश करते ए महा मा ने कहा क पूण संभावना है
क वे उस मोड़ पर प च ँ गए ह, जहाँ रा ते अलग हो जाते ह, ले कन उ ह उ मीद थी क
अगर लड़ाई अप रहाय थी तो इसे दोन ओर से िबना कसी ष े के देखा जाना चािहए।
तीन दन बाद महा मा ने धानमं ी को नम ते कहा और लंदन से रवाना हो गए। लंदन से
रवाना होने से पूव उ ह ने ेस को दए एक सा ा कार म कहा था क तुरंत रा ापी
तर पर सिवनय अव ा पुन: शु करने का तो सवाल ही नह था—ले कन उ ह बंगाल,
संयु ांत और सीमांत ांत म लागू कए गए अ यादेश के प रणाम व प उ प
अ याय और अ याचार क िविश काररवाइय के िखलाफ िवरोध व प थानीय तर
पर सिवनय अव ा शु करने क संभावना नजर आ रही है।
इं लड म अपने करीब तीन माह के वास के दौरान महा मा काफ त रहे। उनक
दनचया को देखने से यह समझ आ जाएगा क वे वयं को कतना थका दे रहे थे—कई
बार तो कई दन तक उ ह दो घंटे से यादा क न द लेने तक का समय नह िमलता था।
वहाँ उ ह ने हर तरह के लोग से मुलाकात क —सांसद, राजनेता, प कार, िमशनरीज,
मिहला , सामािजक कायकता , सािह यकार , कलाकार , छा , और भी न जाने
कन- कन से! स ाहांत म वे भारत म लोग क िच और सहानुभूित जगाने के िलए
कि ज या ऑ सफोड या लकशायर का दौरा करने िनकल जाते थे। ले कन ऐसा लगता है
क उनक इन सभी गितिविधय म आपसी सम वय और उ ेशहीनता थी। गोलमेज
स मेलन के भारतीय सद य क िशकायत थी क जब उन लोग को महा मा क ज रत
होती थी तो उ ह ढू ँढ़ पाना मुि कल होता था। गोलमेज स मेलन के भारतीय उदारवादी
सद य को िशकायत थी क अके ले मैदान म उतरने के बजाय वे सभी सां दाियकता
िवरोधी ताकत को एकजुट कर सकते थे और एक एकजुट रा वादी पाट 98 के नेता बन
सकते थे। इन आलोचना म जो भी स ाई हो, इस बात म कोई संदह े नह है क महा मा
क इं लड या ा क योजना ब त ही खराब बनाई गई थी—और अगर कोई योजना बनाई
भी गई थी तो—उनके िनजी दल म कोई भी ऐसा सलाहकार नह था, जो नाम िलये जाने
यो य हो। आिखरी ण तक उनका लंदन कॉ स म भाग लेने संबंधी फै सला मु य प से
उनके योजना के अभाव तथा लंदन म देर से प च ँ ने के िलए िज मेदार था, िजससे वे एक
कार से पंगु हो गए थे। उनके िवपरीत, सरकार ने ापक बंदोब त कए थे और उनक
सारी योजनाएँ बड़ी ही सावधानी के साथ पहले ही तैयार कर ली गई थ । के वल लंदन
प च ँ ने के बाद ही उ ह इस बात का अहसास आ क सरकार ारा चुने गए सद य के
साथ स मेलन का या अथ होता है, जहाँ कां ेस वहाँ मौजूद अ य दल म से एक दल थी
और वे कां ेस के अके ले ितिनिध थे। हैरानी क बात यह है क महा मा जैसे चतुर नेता
को इतनी देर से यह बात महसूस ई, जब क भारत म इस बारे म उ ह पहले ही कु छ लोग
ने आगाह कया था!
ले कन लंदन म महा मा क िवफलता के कारण इससे कह अिधक गहराई तक जाते ह।
य द महा मा गोलमेज स मेलन म सहयोग करना चाहते थे तो उ ह 1930 म ही जाना
चािहए था, जो शत उ ह माच 1931 म िमली थ , वे उ ह अग त 1930 म आसानी से ा
कर सकते थे। डोिमिनयन टेटस संबंधी आ ासन, िजसक उ ह ने 1929 और 1930 म
माँग क थी—वे उसे 1931 म भी हािसल नह कर सके और जहाँ तक गांधी-इरिवन
समझौते क अ य रयायत क बात है, ब त संभावना थी क लॉड इरिवन कसी भी
समय उनके िलए सहमत हो चुके होते। 1930 म कां ेस आसानी से स मेलन म आधी सीट
ा कर सकती थी। वहाँ 1931 म जाने से, वह भी अके ले और िबना कसी िम के ,
महा मा को यह एक कू टनीितक नुकसान था, य क वे ऐसे स मेलन म जा रहे थे, जो
कां ेस क भागीदारी के िबना अि त व म आया था और जहाँ उ ह सं दायवादी सद य
ारा रखी गई सां दाियक न व पर िनमाण करना था। 1930 म इं लड म लेबर कै िबनेट
स ा म थी और द ली म लॉड इरिवन थे, ऐसे म कां ेस स मेलन को एक अलग मोड़ दे
सकती थी। 1931 म ि थित पूरी तरह बदल गई थी। लेबर कै िबनेट का थान एक तरह से
कं जरवे टव कै िबनेट ने ले िलया था; लॉड इरिवन लॉड िव लं डन के िलए सीट खाली कर
चुके थे, जब क सर सै युअल होरे इं िडया ऑ फस म कै टन वेजवुड बेन का थान ले चुके
थे। उ मीद क आिखरी करण भी उस समय बुझ गई, जब अ ू बर म ए आम चुनाव म
कं जरवे टव पूण ब मत के साथ स ा म आए (नेशनल गवनमट के नाम पर)।
इन सभी ितकू ल ि थितय के बावजूद, जब महा मा को इं लड जाना पड़ा तो उ ह
सरकार के सभी शरारतपूण कदम को काटने के िलए पूरी तरह स मेलन पर यान क त
करना चािहए था। संभवत: भारतीय समथक अं ेज , जैसे क सी.एफ. एं यूज के भाव म
आकर दुभा यपूण तरीके से उ ह ने यह बात अपने दमाग म िबठा ली क उ ह अं ेज के
बीच भारत के िलए सहानुभूित पैदा करने पर काम करना चािहए। वे इस उ े य के िलए
इं लड नह आए थे और न ही यह इतने कम समय और इतनी सीिमत ऊजा के साथ करना
उनके िलए संभव था। िजन लोग से महा मा िमले, उस सूची पर नजर डाली जाए तो कोई
भी यह महसूस कए िबना नह रह सकता क इनम से अिधकतर लोग से मुलाकात अगर
फजूल नह तो गैर-ज री ज र थी। य द वे सामा य चार दौरे पर आए होते तो उनका
इस कार का काय म काफ मददगार होता और वि थत रहता।
महा मा क िवफलता के िलए िज मेदार एक और गहरा कारण था। इं लड म अपने
वास के दौरान उ ह दो भूिमका का िनवाह करना पड़ा था—एक, राजनीितक नेता क
भूिमका और दूसरी, एक िव गु क भूिमका। कई बार उ ह ने वयं को एक राजनीितक
नेता के प म तुत नह कया, जो श ु के साथ समझौता करने आया था, बि क वयं
को एक गु के प म दखाया, जो नए धम/आ था—अ हंसा और िव शांित—का पाठ
पढ़ाने आया था। अपनी दूसरी भूिमका के कारण उ ह अपना काफ समय ऐसे लोग के
साथ िबताना पड़ा, जो उनके राजनीितक िमशन को आगे बढ़ाने के िलहाज से कसी काम
के नह थे। वयं क पाट के सलाहकार उस व उनके साथ मौजूद नह थे, तो इस शू य
को उनके अं ेज शंसक ने भर दया। यूरोप क धरती पर कदम रखने और वहाँ से उनक
रवानगी तक महा मा ऐसे ही लोग से िघरे रहे। अपनी िन प ता, यायि यता और
वैि क ेम का दशन करने के िलए उ ह ने एक अं ेज मिहला को अपनी मेजबान के प
म वीकार कर िलया। महा मा के िवपरीत, आय रश िसन फन िश मंडल ने 1921 म
अपने लंदन दौरे के दौरान एकदम िभ कार का जीवन िजया था। िश मंडल के सद य
के वल अपने तक सीिमत रहे थे और उ ह ने अं ेज के साथ सभी कार के सामािजक मेल-
िमलाप से वयं को दूर रखा था, हालाँ क उ ह इन सब काय म घसीटने के यास कए
गए थे। इस अलगाव और उदासीनता से ि टश राजनेता महा मा के मै ीपूण वहार के
मुकाबले कह अिधक भािवत ए थे। ले कन एक िव गु होने के नाते महा मा क
अपनी आचार-संिहता थी।
इस बात म कोई संदह े नह क 1930 म जब महा मा जेल म थे तो उ ह ने गोलमेज
स मेलन म अपना ब त अिधक भाव छोड़ा था। स मेलन म भारतीय उदारवादी नेता
ने उनके भाव का भरपूर फायदा उठाया था। ले कन जब वे वयं और अके ले वहाँ गए तो
उनके नाम के साथ जुड़ी आभा खो गई, उनका भामंडल िन तेज हो गया और उनका
चम कार धूिमल पड़ गया। भौितक प से भी वे घाटे म रहे—107 लोग के समूह म एक
अके ला कृ शकाय, कमजोर ि ! य द उ ह ने कां ेस िश मंडल क 15-16 सीट क
सरकार क पेशकश वीकार कर ली होती तो उनक ि थित मजबूत होती। बैठक म उनके
सहयोिगय के होने से ब त मदद िमलती और साथ ही ित यावा दय क मजबूत
आ ामक दीवार को िगराने के िलए तलवार भाँजने म भी आसानी होती। इतना ही नह ,
ऐसा तीत होता है क महा मा एक सौदागर क भूिमका िनभाने के िलए बने ही नह थे।
इसिलए उनका वही ह आ, जो वसाय संिध के समय म रा पित िव सन का आ था।
ोफे सर और अमे रका के रा पित, वे श के जादूगर, लॉयड जॉज के मुकाबले कह नह
ठहरते थे—और न ही भारत के संत-राजनेता, रै मसे मैकडोना ड के सामने कह टकते थे।
ि टश प क ओर से महा मा से बड़ी ही चतुराई के साथ िनपटा गया। वैसे उनका इं लड
म ब त ही िम तापूवक वागत कया गया, िजसे महा मा ने देश से िवदा लेने से पूव
सावजिनक तौर पर वीकार कया था? लंदन म आवाजाही के वा ते उनके िलए खास
सुिवधा क व था क गई। अपने मेहमान क र ा क दलील पर कॉटलड याड के दो
जवान को उनक हािजरी म तैनात कया गया, ता क शासन को उनके दैिनक काय म
और मुलाकात आ द के बारे म जानकारी एक करने म कसी भी कार क परे शानी न
हो। यह मेरी समझ से परे है क महा मा ने कॉटलड याड क तैनाती को य वीकार
कया था। य द उ ह वा तव म र क या पहरे दार क ज रत थी तो लंदन म उनके
असं य शंसक और अनुयायी बड़ी आसानी से यह काम कर सकते थे।
यह बात पहले ही कही जा चुक है क कं जरवे टव के स ा म लौटने के बाद समझौते क
आिखरी उ मीद भी धूिमल पड़ गई थी। भारतीय ि थित और भारतीय नेता के बारे म
उनका आकलन, लेबर पाट के मुकाबले एकदम अलग था। महा मा क अ छाई, उनक
प वा दता, उनक िवन ता और िवरोिधय के ित उनका गहरा स मान—जॉन बुल
इनसे कतई भािवत नह ए, उलटे उनक नजर म ये ि व क कमजो रयाँ थ । मेज
पर अपने सारे प े खोलकर रख देने क उनक आदत भारत और भारतीय के िलए तो
ठीक थी, ले कन इसने ि टश राजनेता के बीच उनक ित ा को ित त कर दया।
िव और िविध संबंधी पेचीदा सवाल पर अपनी अ ानता को वीकार करने क उनक
वणता, सच के आकां ी दाशिनक क संगत म तो ठीक मालूम होती, ले कन ि टश
जनता क नजर म इससे उनक छिव कमतर हो गई, जो अपने नेता को वा तिवकता के
िवपरीत अिधक बुि मान, समझदार, चतुर और ानी देखने क आदी थी। गोलमेज
स मेलन म उनके बार-बार अपने पूण सहयोग के ताव क पेशकश करने से सवािधक
ासदपूण भाव आ और इससे ि टश नेता ने सोचा—‘गांधी अब हिथयार
डालनेवाला है।’ इं लड के एक अनुभवी राजनेता पर इस तरह के बयान का या असर हो
सकता था? ‘म जब तक मेरी ज रत है, म यहाँ र ग ँ ा, य क म सिवनय अव ा आंदोलन
को नए िसरे से शु नह करना चाहता। म द ली म ए समझौते को एक थायी
समाधान म बदलना चाहता ।ँ ले कन ई र के िलए मुझे एक छोटा सा मौका दे दो, म
एक कमजोर आदमी ,ँ बासठ साल गुजर चुके ह।’ उसे और उसके संगठन के िलए िजसका
वह ितिनिध है, उसके िलए एक छाेटा कोना99 ढू ँढ़ दो।100 ले कन इसके िवपरीत, य द
महा मा ने तानाशाह टािलन, ूस मुसोिलनी-II या यूहरर िहटलर क भाषा म बात क
होती तो जॉन बुल को बात समझ म आती और उसने स मान म िसर झुका दया होता!
जैसा क तय था, कं जरवे टव नेता ने यह सोचना शु कर दया—‘लँगोटी पहने यह
कमजोर सा ि इतना दुजय है क शि शाली ि टश सरकार को इसके सामने झुक
जाना चािहए! भारत पर एक ऐसा ि शासन कर रहा था, जो िबशप बनने लायक था
और इसिलए हम इतनी परे शानी ई। य द द ली और इं िडया ऑ फस म हमारा कोई
मजबूत आदमी होता तो सबकु छ ठीक रहता।’ अ ू बर 1931 के आम चुनाव के बाद भारत
क ि थित को ठीक इसी कार देखा गया। और चच क िविश हि तय , ोफे सर के बीच
उनका चार तथा सनक पन भारत के कसी काम का नह था। राजनीितक सौदेबाजी का
राज यह है क आप िजतने मजबूत हो, आपको उससे कह अिधक मजबूत दखना होता है।
भारतीय राजनेता, य द वे अपने ि टश ित िं य का सफलतापूवक मुकाबला करना
चाहते ह तो उ ह ब त सी बात सीखनी पड़गी, जो वे नह जानते और ब त सी बात
भूलनी ह गी, जो वे सीख चुके ह।
गोलमेज स मेलन म महा मा के भाषण को सुननेवाले को हर कदम पर पीड़ा होती है।
शु आत से ही उ ह ने अ य दल के मुकाबले कां ेस पाट के दज के बारे म लंबा-चौड़ा
व दया और बार-बार अपनी ट पिणय को दोहराते रहे, के वल यह दखाने के िलए
कां ेस को पूरी तरह नजरअंदाज करने क एक सािजश रची गई थी। स मेलन म महा मा
ने कहा क िविभ सिमितय ारा स पी गई रपोट म तथाकिथत ब मत के िवचार को
मुखता दी गई, जब क उनके असहमित नोट को इस कार अनदेखा कर उसक नंदा क
गई, जैसे क वह कसी एक ि के िवचार क ित विन हो! लंदन आने के कु छ स ाह
बाद महा मा को ि थित क आशािवहीनता का भान आ। य द उ ह राजनीितक कू टनीित
क समझ थी तो उ ह उिचत अवसर देखकर ज द-से-ज द स मेलन से िनकलकर अमे रका
का सघन दौरा कर वहाँ महा ीप पर जाकर उ ह स मेलन क िनरथकता तथा भारतीय
िहत का चार करना चािहए था। अंत तक स मेलन म बने रहकर उ ह ने अनाव यक प
से एक ऐसी इकाई का स मान कया, िजसे िव के सामने बेनकाब कया जाना चािहए
था।
इं लड से रवाना होने के बाद महा मा कु छ दन पे रस म के । वहाँ उनके िम और
शंसक का एक समूह था, जो क िव को उनके अ हंसा के संदश े म अिधक िच रखते थे,
बजाय भारत क आजादी के उनके संघष म। पे रस म उनके संि वास का अ छा
उपयोग कया गया, ले कन राजनेता —या आधुिनक राजनीितक िव म अहिमयत
रखनेवाले लोग से संपक बनाने का कोई यास नह कया गया। पे रस से वे िजनेवा चले
गए। वहाँ भी उनके िम का एक समूह था, िजसक दलच पी उनक राजनीित के
िवपरीत, उनके दशन म अिधक थी। हालाँ क उ ह ने िजनेवा क या ा क , ले कन उ ह
लीग ऑफ नेशंस के संगठन म अहिमयत रखनेवाले लोग के संपक म लाने क कोई कोिशश
नह क गई। वे अंतररा ीय म कायालय (आई.एल.ओ.) गए और बस इतना ही आ।
हालाँ क ि व जरलड या ा का सवािधक उपयोगी िह सा वह था, जब उ ह ने महान्
ि और िवचारक—भारत और भारतीय सं कृ ित के महान् िम , रोमाँ रोलाँ के
साि य म समय िबताया। भारत का आज अपनी सरहद के पार ऐसी महान् आ मा से
बड़ा कोई िम नह है और इसिलए इस ांसीसी महान् िव ान् क संगत म अपना कु छ
समय देकर महा मा ने भारत क एक महान् जनसेवा क थी। ि व जरलड से महा मा
इटली चले गए। इटली क सरकार और जनता ने उनका गमजोशी के साथ वागत कया
और सरकार के मुख, िस ोर मुसोिलनी ने सभा म वयं उनक अगवानी क । िनि त ही
वह एक ऐितहािसक मुलाकात थी। इटली के तानाशाह ने महा मा के यास म उनक
सफलता के िलए अपनी शुभकामनाएँ द । महा ीप म एकमा यही अवसर था क
महा मा एक ऐसे ि के संपक म आए, जो आधुिनक यूरोप क राजनीित म सही मायने
म बड़ी अहिमयत रखता था। फासीवादी अथॉ रटी के ित महा मा गांधी का दृि कोण,
िजसम क उ ह ने फािस ट वायज (दी बिलला) के एक दशन म भाग िलया था, उसक
फासीवाद िवरोधी तबक म कड़ी नंदा क गई।
ले कन इसम कोई संदह े नह क भारत के नज रए से महा मा ने इटली क या ा कर
एक महान् जनसेवा का काम कया था। के वल एक ही प ा ाप क बात है क उ ह ने वहाँ
लंबा वास नह कया तथा यादा िनजी संबंध नह बनाए। महा मा क यूरोप या ा क
संपूण समी ा क जाए तो कोई भी कहेगा क यह खेदजनक है क उ ह ने इं लड म अिधक
तथा महा ीप म इतना कम समय िबताया। महा ीप म भी उ ह ने पया समय या यान
उन राजनेता , बड़े उ ोगपितय और ऐसे अ य लोग पर नह दया, जो मौजूदा
राजनीित म वा तिवक अथ म मह वपूण थान रखते थे। महा ीप म ब त से देश थे, जो
उनके दौरे का इं तजार कर रहे थे और जहाँ उनका अिधक सौहादपूण एवं गमजोशी से
वागत होता। अगर वे चाहते तो िबना कसी मुि कल के यूरोप के सवािधक मह वपूण
लोग और संगठन से संपक साध सकते थे, िजससे भारत को ब त लाभ होता। ले कन
संभवत: इसम उनक इतनी िच नह थी। भारत के बाहर उ ह एक राजनीित के
अित र एक और भूिमका िनभानी थी, ले कन एक ही ि ारा दो भूिमकाएँ िनभाना
हमेशा इतना आसान नह होता।

13
फर िछड़ उठी लड़ाई (1932)
म हा मा क आदत थी क वे उपल ध साधन म से सबसे िन ेणी के साधन से या ा
करते थे। अपनी इसी आदत के अनुसार वे 28 दसंबर, 1931 को एस.एस. िपल ा के डेक
पैसजर (जहाज पर ऐसा या ी, िजसके पास के िबन न हो) के प म बॉ बे प च ँ ।े बॉ बे
कां ेस सिमित ने उनका एकदम शाही वागत करने के िलए शानदार इं तजाम कए थे।
कां ेस के चार को इस बात का ेय जाता है क लंदन कॉ स म देश के िलए कु छ ठोस
हािसल करने म महा मा क िवफलता का हौसल को प त करनेवाला भाव नह आ।
और अगर उनके वागत म िजस गमजोशी, सौहाद और ेह का दशन कया गया, उसे
देखकर कोई भी ि यही सोचता क महा मा अपने हाथ क अँजुरी म वराज लेकर
लौटे ह। उसी शाम उ ह ने आजाद मैदान म 2,00,000 लोग क जनसभा को संबोिधत
कया। इतने िवशाल जनसैलाब म उनक आवाज के वल लाउड पीकर क मदद से ही
सुनी जा सकती थी। उ सव समा हो चुका था, महा मा अपने काम म लग गए। देश के
िविभ भाग से ा रपोट को उनके सामने िविधवत् तरीके से पेश कया गया। ज द ही
यह प हो गया क जब अग त के अंितम दन म वे बॉ बे से रवाना ए थे, तब से अब
हालात एकदम बदल चुके थे। ऐसा लगता था क जैसे सरकार अपने िनमम दमनच को
शु करने के िलए बॉ बे से महा मा गांधी के रवाना होने का ही इं तजार कर रही थी।
द ली समझौते के दो लेखक भारत से बाहर थे, सरकार उस द तावेज को र ी के कागज
का टु कड़ा समझ सकती थी।
1931 के उस घटना म का सं ेप म पुन: वणन करना आव यक हो जाता है, िजससे
साल क समाि तक संकट पैदा हो गया और सिवनय अव ा आंदोलन को फर से शु
करने क बा यता आन पड़ी। कराची कां ेस के बाद युवा और िमक वग द ली समझौते
क आलोचना करते रहे। संयु ांत क ांतीय युवा कॉ स (नौजवान भारत सभा) मई
म मथुरा म ई, िजसक अ य ता लेखक ने क और इसम नामंजूरी का ताव पा रत
कया गया। जुलाई म कलक ा म ऑल इं िडया ेड यूिनयन कां ेस का स लेखक क
अ य ता म आयोिजत आ और उसम भी इसी कार का ताव पा रत कया गया।
दि णपंथी ेड यूिनयन भी इस बीच थािपत हो गई थी, ले कन सभी यूिनयन कां ेस म
शािमल हो ग ।
वैधता के सवाल पर शु से ही सम याएँ पैदा हो गई थ । 1929 म नागपुर म ेड
यूिनयन कां ेस के स के बाद क युिन ट समझी जानेवाली ेड यूिनयन के बीच िवभाजन
हो गया। ‘क युिन ट इं टरनेशनल’ के भारत के त कालीन ितिनिध एम.एन. रॉय को
इकाई से िन कािसत कर दया गया। इस घटना के बाद मेरठ ष ं मामले म बं दय और
बंबई म उनके समथक के बीच फू ट पड़ गई। एक समूह के बारे म बताया गया क वह
आिधका रक क युिन ट पाट के िनदश का अनुसरण कर रहा था और दूसरा समूह
एम.एन. रॉय के । ‘दी िगरनी कामगार यूिनयन’ (टे सटाइल वकस यूिनयन) बॉ बे पर
पहले दोन समूह के सद य का संयु िनयं ण था, ले कन उसम भी दो फाड़ हो गई और
ेड यूिनयन कां ेस क े डिशयल कमेटी ने रपोट दी क राॅय समूह का यूिनयन पर क जा
है और इसिलए वह ेड यूिनयन कां ेस म ितिनिध व क हकदार है। दूसरे समूह ने इसका
िवरोध कया और उसके बाद यह समूह संवैधािनक बाधाएँ उ प करने पर उतर आया,
िजसका प रणाम अ य के िखलाफ अिव ास ताव के प म आ। यह ताव
परािजत होने के कारण राॅय िवरोधी समूह ने काफ हंगामा पैदा करने के बाद कां ेस से
कदम पीछे ख च िलये और रे ड ेड यूिनयन कां ेस101 क थापना कर दी। इस फू ट के बाद
कां ेस ने चचा-प रचचा जारी रखी। उसने कसी भी अंतररा ीय इकाई के साथ संब
नह होने, ले कन भारतीय कामगार के अिधकार के िलए संघष को िबना समथन के
जारी रखने का संक प िलया। ईकार, नागपुर टे सटाइल वकस यूिनयन के अ य , को
आगामी वष के िलए अ य और कलक ा के एस. मुकुंदलाल को सिचव चुना गया। ेड
यूिनयन आंदोलन म भीतरी मतभेद के बावजूद राइट वंगस, अ य सभी ेड यूिनयन
द ली समझौते के िखलाफ थ । समझौते म कामगार के लाभ संबंधी कोई उपबंध नह था
और न ही िवचाराधीन कै दय और न ही औ ोिगक हड़ताल के संबंध म दोषी करार दए
गए कै दय को आम माफ दए जाने क कोई बात क गई थी। दो दि णपंथी नेता ,
वी.वी.िग र और िशव राव को हालाँ क सरकार ने दूसरे गोलमेज स मेलन के िलए बतौर
सद य नािमत कर दया था।
ेड यूिनयन ने द ली समझौते का के वल मौिखक िवरोध कया, जब क बंगाल म
ांितका रय म सरकार क दमनकारी नीित के ित ब त हताशा और आ ोश था और
उ ह ने ांत म एक गंभीर संकट पैदा कर दया। अ ैल 1930 म चटगाँव म श ागार छापे
आ ामक काररवाई थी, ले कन कु ल िमलाकर यह अपने आप म एक अके ला मामला था।
ले कन उसके बाद बंगाल के अ य िह स म आतंकवादी गितिविधयाँ आ ोश के बजाय
बदले क काररवाई अिधक थ । पूव बंगाल के मु य शहर ढाका म, अग त 1930 म पुिलस
क खु फया शाखा के मुख लॉमैन गंभीर प से घायल हो गए। ले कन इससे पूव ढाका
और मैमन संह िजल म हंद-ू मुसिलम दंगे ए थे, िजसके संबंध म पुिलस का आचरण
गंभीर सवाल खड़े करता था। इतना ही नह , ढाका पुिलस िवदेशी कपड़ और शराब क
दुकान क शांितपूण तरीके से घेराबंदी कर रहे तथा अ य अ हंसक गितिविधय म लगे
स या ही वयंसेवक से ब त ही कठोर और बबर तरीके से िनपट रही थी। 1930 के
उ राध म बंगाल के इं पे टर जनरल ऑफ ीजन, लेि टनट कनल, सं सन क कलक ा
म गवनमट से े टे रयट इमारत म ि थत उनके कायालय म ह या कर दी गई। ले कन इससे
पूव, बंगाल क कई जेल म राजनीितक कै दय के साथ इतना बुरा वहार कया जा रहा
था क उसे श द म बयाँ करना असंभव है। इसके िलए सरकार से अपील भी क ग ,
ले कन कोई फायदा न आ था। िमदनापुर के मिज ेट पे ी क 1931 म और उसके बाद
उनके दो उ रािधका रय क ह या कर दी गई। इसका प रणाम यह आ क िमदनापुर
िजले म शाही बल ने कर का भुगतान नह करने संबंधी अ हंसक आंदोलन को दबाने के
िलए ह कँ पानेवाले अ याचार ढहाए। कलक ा क अवाम ने िजले म पुिलस ारा कए
गए अ याचार क जाँच करके रपोट देने के िलए एक िन प सिमित िनयु क , िजसम
अिधकतर उदारवादी लोग शािमल थे। रपोट िविधवत् प से कािशत कर सरकार के
सं ान म लाई गई। ले कन कोई समाधान सामने नह आया। इसके बाद लोग ने हताशा
और आ ोश म आकर बदले क काररवाई के िलए आतंकवाद का रा ता अि तयार कर
िलया।
इन आतंकवादी घटना से सरकार क भृकु टयाँ तन ग , दमनच और यादा ू र प
लेता गया। माच 1931 म जब द ली समझौता संप आ तो इन खेदजनक हालात पर
िवराम लगाने का एक सुनहरा अवसर आया। ले कन एक नया अ याय शु करने के बजाय
अथॉ रटी ने आयरलड म इ तेमाल कया जा चुका ‘ लैक एंड टैन’ तरीका अपनाने का
फै सला कया। 1931 म जून से अ ू बर के बीच एक के बाद एक तीन बेहद अफसोसनाक
घटनाएँ —चटगाँव, कलक ा से 70 मील दूर, िहजली िहरासत कप और ढाका। चटगाँव
म एक भारतीय पुिलस अिधकारी को मौत के घाट उतार दया गया। अगली सुबह
ड़दंिगय और बदमाश ने शहर म आतंक फै ला दया, पुिलस हाथ-पर-हाथ धरे बैठी थी
और दनदहाड़े शहर म लूटपाट होती रही। इसके पीछे सोच यह थी क चटगाँव के लोग
को ‘नैितकता’ का सबक िसखाया जाए! कलक ा क जनता ारा िनयु जाँच सिमित ने
जाँच के बाद यह नतीजा िनकाला क कु छ थानीय अिधका रय का वहार गंभीर
िच ह लगाता है और दवंगत जे.एम. सेनगु ा ने कलक ा म सावजिनक सभा म
आरोप लगाए। काफ समय बाद, िडवीजनल किम र क रपोट पर कु छ अिधका रय के
िखलाफ आिधका रक काररवाई क गई। िहजली कप म सरकारी कै दय और सश
सुर ाक मय के बीच थोड़ी गलतफहमी थी। इसके चलते, एक रात हिथयार से लैस
जेलर ने सरकारी कै दय क बैरक पर अचानक हमला बोल दया। बैरक म अंधाधुंध
गोिलयाँ चलाने के बाद उ ह ने राइफल के कुं द से हार कए। गोलीबारी के दौरान दो
सरकारी कै दी, संतोष िम ा और तारके र सेन मारे गए तथा 20 कै दी गंभीर प से
घायल हो गए। सरकार ारा हाईकोट के एक जज क अ य ता म ग ठत सरकारी सिमित
खुली जाँच के बाद इस नतीजे पर प चँ ी क गोलीबारी पूरी तरह अ यायोिचत थी। ढाका
म िजला मिज ेट क ह या का िवफल यास कया गया। उसी रात पुिलसक मय के चार
दल शहर के िविभ िह स म गए, स मािनत नाग रक के घर पर छापेमारी क गई,
फन चर तथा अ य सामान तोड़ दया गया, लोग पर हमला कया गया और क मती
सामान क जे म लेने के साथ ही बड़ी सं या म लोग को िगर तार कर िलया गया।
कलक ा क जनता ने एक जाँच सिमित102 भेजी और ज री जाँच करने के बाद उपरो
त य को सही पाया।
सरकार ने नवंबर म एक नया अ यादेश लागू कर दया, जो परो प से चटगाँव िजले
म माशल लॉ लगानेवाला था। इस अ यादेश के तहत लोग पर स ती और जुरमाना लागू
कर दया गया, जैसा क माशल लॉ के तहत उ मीद थी। क यू आदेश जारी कर दए गए,
लोग को पहचान-प लेकर चलने को कहा गया, युवा को साइ कल का इ तेमाल करने
से ितबंिधत कर दया गया, राजनीितक सं द ध के िलए लगातार कई ह त तक घर म
रहने का आदेश जारी आ, िजन गाँव म अकसर ांितका रय क आवाजाही का संदह े
था, उन गाँव पर सामूिहक प से जुरमाना थोप दया गया। इतना ही नह , गाँव के
बीचोबीच से सैिनक क ग त कराई गई और लोग को आदेश दया गया क वे बाहर
आकर उनक अगवानी कर। इसी कार के कई आदेश िमदनापुर और ढाका िजल म जारी
कए गए। यह दोहरा दमनच जारी था, ले कन चटगाँव, िहजली और ढाका क घटना
के िलए िज मेदार अिधका रय को कोई सजा नह दी गई और न ही पीिड़त को कोई
मुआवजा या कसी अ य क म क राहत ही दान क गई। दमनच क आग म घी
डालने के िलए समझौते क अविध के दौरान कु छ ांितकारी कै दय को मौत क सजा दी
गई और फाँसी पर लटका दया गया। सरकारी अ याचार— ांितकारी आतंकवाद103—
सरकारी आतंकवाद—का यह दु च जारी रहा। कलक ा नगर िनगम ने ांितकारी कै दी
दनेश चंद गु ा को फाँसी क सजा दए जाने पर शोक जताते ए एक ताव104 पा रत
कर दया, िजससे क मामला और पेचीदा हो गया। इस उथल-पुथल म बंगाल म कां ेस
क ि थित अवांछनीय थी। सै ांितक प से सरकार और लोग के बीच शांित थी, ले कन
असिलयत म दोन के संबंध म खंचाव और दोन ही तरफ से ‘श ुतापूण’ रवैया था।
ि थित पर िवचार के िलए दसंबर म बरहमपुर म बंगाल ांतीय कॉ स का एक िवशेष
स आ त कया गया। कॉ स ने कहा क सरकार ने द ली समझौते का उ लंघन कया
है और इसिलए कां ेस को चािहए क वह सरकार को औपचा रक नो टस दे और सिवनय
अव ा आंदोलन को पुनज िवत करे । इसम ि टश व तु के बिह कार पर िवशेष जोर
दया गया। उ मीद यह लगाई गई थी क सिवनय अव ा आंदोलन शु होने से युवा क
ऊजा क दशा बदल जाएगी और इससे ांत म आतंकवादी अिभयान को रोकने म मदद
िमलेगी।
ले कन सम या के वल बंगाल म नह थी। महा मा के भारत म न रहने के दौरान सीमांत
ांत और साथ ही संयु ांत म एक संकट उठ खड़ा आ था। सरकारी िशकायत यह थी
क सीमांत नेता खान अ दुल ग फार खान के रे ड शट वॉलं टयस105 िव वंसक गितिविधय
म संिल थे। हालाँ क हक कत यह थी क वे पूरी तरह अ हंसक थे। इस िशकायत के बारे
म कां ेस मु यालय को कोई नो टस नह भेजा गया। अचानक ‘रे ड शट वॉलं टयस’ को
गैर-कानूनी सं था घोिषत करते ए एक अ यादेश जारी कया गया। साथ ही सीमांत
गांधी खान अ दुल ग फार खान और उनके भाई तथा कु छ अ य नेता को िगर तार कर
सुदरू वत जेल म ले जाया गया। ‘रे ड शट’ के सैकड़ लोग को तुरंत जेल म बंद कर दया
गया और कु छ ही महीन म उनक सं या हजार तक प च ँ गई। इसके बाद लोग को
आतं कत करने तथा ‘रे ड शट’ संगठन को भंग करने के िलए सैिनक को दूर-दराज के गाँव
म भेजा गया।
संयु ांत म िपछले कु छ समय से भीषण आ थक संकट रहा था। नवंबर 1930 म जाने-
माने समाजवादी लेखक एच.एन. े सफोड, जो क पूरी तरह वतं पयवे क थे, उ ह ने
कलक ा म लेखक को बताया क संयु ांत म ि थित इतनी दा ण है क कसी भी समय
वहाँ कृ षक ांित हो सकती है। उस समय तक कां ेस ारा ांत म कर नह चुकाने संबंधी
आंदोलन शु कर दया गया था। द ली समझौते के बाद, जब कर नह चुकाने संबंधी
आंदोलन को िनलंिबत कर दया गया तो 1930 के उसी हालात म होने के कारण कसान
अपने लगान का भुगतान नह कर सके थे। मई म महा मा ने इस मामले म म य थता
करने क कोिशश क और कसान को अपने लगान के 50 फ सदी को भुगतान करने क
सलाह दी, ले कन वे इतना भी नह चुका सकते थे। इसके बाद सरकार ने भू-राज व का
एक िह सा छोड़ दया और कहा क इतना काफ है। ले कन कसान दूसरे तरीके से सोच
रहे थे, उनक ओर से ांतीय कां ेस सिमित ने सरकार के साथ सुलह समझौता क कोिशश
जारी रख । नवंबर म मामला संकट म फँ स गया। सरकार ने माँग रखी क समझौते पर
वा ा जारी रहने के बीच कसान को अपने लगान का भुगतान करना चािहए। कसान
क माँग इसके िवपरीत थी क वा ा लंिबत रहने तक लगान वसूली िनलंिबत क जानी
चािहए। ऐसे संकट म ांतीय कां ेस सिमित ने सलाह के िलए कां ेस अ य सरदार
व लभभाई पटेल और महा मा से संपक कया, जो उस समय यूरोप म थे। महा मा ने
मामला सिमित पर छोड़ दया क उसे जो सही लगे, वह करे । संयु ांत क ‘पीज स
लीग’ ( कसान लीग) ने इसके बाद मामले को अपने हाथ म ले िलया और कां ेस सिमित
को सूिचत कर दया क य द उ ह ने लगान नह देने संबंधी आंदोलन को पुन: शु कया
तो कसान लीग इसे शु कर देगी। जनता पर अपनी पकड़ कमजोर पड़ने क आशंका के
चलते ांतीय कां ेस सिमित ने आंदोलन शु करने का फै सला कया। इधर आंदोलन शु
आ और उधर सरकार ने इसे दबाने के िलए एक अ यादेश जारी कर दया। अ यादेश के
तहत बड़े पैमाने पर िगर ता रयाँ क ग और दसंबर के म य तक जब पं. जवाहरलाल
नेह और शेरवानी महा मा गांधी क अगवानी क तैया रय के िसलिसले म इलाबाहाद
से बॉ बे रवाना हो गए तो उ ह ेन म िगर तार कर िलया गया।
जैसा क इस अ याय के शु आत म ही बताया गया था, 28 दसंबर, 1931 को बॉ बे
शहर भारत के अपने ि य नेता के वागत के िलए जोश से भरा था। इतना गमजोशीपूण
वागत इससे पहले कसी राजा या िवजेता बनकर लौटे कसी सेनापित का भी नह कया
गया था। डॉ. आंबेडकर के अनुयाियय और थानीय क युिन ट पाट के लोग ने िवरोध-
दशन का यास कया, ले कन महा मा क जनता पर जो गहरी पकड़ थी, उसके सामने
यह ितनके से भी कमतर था। अगले दन कां ेस कायसिमित क बैठक ई और महा मा
गांधी को अिधकृ त कया गया क वे वायसराय से मुलाकात के िलए आवेदन106 भेज। उसी
के अनुसार उ ह ने िन टेली ाम भेजा—
‘कल जब म जहाज से उतरा तो सीमांत और यू.पी. अ यादेश को पाया, िजनके बारे म
म तैयार नह था, सीमांत म गोलीबारी और हमारे मह वपूण कामरे ड क िगर तारी और
सबसे ऊपर बंगाल अ यादेश, जो मेरा इं तजार कर रहा था। मुझे नह पता क या म इन
घटना को इस बात का संकेत समझूँ क हमारे बीच मै ीपूण संबंध ख म हो गए ह या
अभी भी आप मुझसे उ मीद करते ह क म आपसे िमलूँ और कां ेस को सलाह देने के िलए
म जो माग चुनना चाहता ,ँ उस पर आपसे सलाह-मशिवरा क ँ ?’
वायसराय ने 31 दसंबर को इसका काफ लंबा जवाब दया और अंत म कहा
—‘महामिहम इस बात पर जोर देना अपना कत समझते ह क भारत सरकार ने
महामिहम क सरकार के पूण अनुमोदन के साथ बंगाल, संयु ांत और उ र-पि मी
सीमांत ांत म िजस काररवाई को करना ज री पाया था, उनम से कसी भी उपाय पर वे
आपसे िवचार-िवमश करने के िलए तैयार नह ह गे।’
यह टेली ाम ा होने के तुरंत बाद कायसिमित क 1 जनवरी, 1932 को बैठक ई और
उसम िन ताव पा रत कया गया—
‘...सिमित धानमं ी क उ ोषणा को पूरी तरह असंतोषजनक और अपया पाती है
तथा कां ेस क माँग के संबंध म यह िवचार रखती है क संपूण आजादी को ही कां ेस
संतोषजनक मान सकती है, िजसम र ा, िवदेश मामले और िव पर पूण िनयं ण हो और
साथ ही ऐसे सुर ा उपाय, जो रा िहत म आव यक तीत ह । सिमित सं ान लेती है क
ि टश सरकार गोलमेज स मेलन म पूरे रा क ओर से बात रखने क हकदार के प म
कां ेस को स मान देने के िलए तैयार नह थी। इसके साथ ही सिमित दु:ख के साथ कहती
है क इस स मेलन म सां दाियक समरसता हािसल नह क जा सक । इसिलए सिमित
रा को आमंि त करती है क वह संपूण रा का ितिनिध व करने क कां ेस क मता
का दशन करने के िलए लगातार यास करे और साथ ही ऐसे वातावरण को ो सािहत
करे , िजसम शु प से रा ीय आधार पर िन मत और रा के िविभ समुदाय को
वीकाय संिवधान का िनमाण हो। इस बीच, सिमित सरकार को सहयोग देने के िलए
तैयार है, बशत वायसराय महा मा गांधी को बृह पितवार को भेजे गए अपने टेली ाम पर
पुन: िवचार कर, अ यादेश और उसक हािलया काररवाइय के संबंध म पया राहत दी
जाए, संपूण आजादी के कां ेस के दावे पर आगे बढ़ने के िलए भिव य म कसी भी कार के
सुलह समझौते और िवचार-िवमश क खाितर कां ेस के िलए गुंजाइश छोड़ी गई है, ऐसी
वतं ता ा होने तक देश का शासन लोकि य ितिनिधय के साथ चलाया जाए।
‘पूववत पैरा ाफ के संबंध म सरकार क ओर से संतोषजनक उ र के अभाव म
कायसिमित इसे सरकार क ओर से इस बात का संकेत मानेगी क उसने द ली समझौते
को िनरथक बना दया है।
‘संतोषजनक उ र नह िमलने क ि थित म सिमित सिवनय अव ा आंदोलन बहाल
करने के िलए रा का आ वान करती है।’
उसी दन महा मा ने वायसराय को एक लंबा-चौड़ा जवाब भेजकर उनसे अपने फै सले
पर पुन: िवचार करने और वा ा पर कसी कार क शत थोपे िबना उनसे मुलाकात के
िलए समय देने को कहा। उ ह ने कायसिमित के ताव क एक ित संल क और साथ
ही िलखा—‘य द महामिहम सोचते ह क मुझसे िमलने का कोई अथ है, तो ताव पर
काररवाई हमारी चचा के लंिबत रहने तक िनलंिबत रहेगी, इस उ मीद म क इसके
प रणाम व प ताव को छोड़ा जा सकता है।’
2 जनवरी, 1932 को वायसराय ने महा मा को सूिचत कया क सिवनय अव ा
आंदोलन
क धमक के तहत मुलाकात का सवाल ही नह पैदा होता। महा मा ने इसके यु र म
कहा—‘...िब कु ल सही बात है क ईमानदारी के साथ एक िवचार क अिभ ि क
ा या धमक के प म करना गलत है। म सरकार को यह याद दलाना चाहता ँ क
द ली सुलह समझौते क शु आत और इस पर चचा जारी रहने के दौरान सिवनय अव ा
आंदोलन जारी था और जब समझौता आ तो सिवनय अव ा आंदोलन को बंद नह ,
बि क बीच म रोका गया था। इस बात पर पुन: जोर दया गया था और महामिहम तथा
उनक सरकार ने िपछले साल मेरे लंदन रवाना होने से पूव इसे वीकार कया था...इस
बीच, म सरकार को आ त करना चाहता ँ क कां ेस क ओर से क जानेवाली येक
काररवाई िबना कसी दुभावना के और पूरी कड़ाई के साथ अ हंसक तरीके से क
जाएगी...’
सुलह समझौता संबंधी बातचीत यह समा हो गई। 4 जनवरी को भारत सरकार ने
अपने दृि कोण और आचारण को यायोिचत ठहराते ए एक बयान जारी कया। इसके
साथ ही पूरे भारत म थानीय शासन के िलए आदेश जारी कए गए क कां ेस संगठन
पर तुरंत काररवाई क जाए। भारत सरकार ारा 1931 म, समझौते के दौरान बड़ी
सावधानीपूवक तैयार कए गए अ यादेश को त काल भाव से लागू कर दया गया।
कां ेस नेता सिवनय अव ा आंदोलन शु कर पाते, उससे पूव ही थानीय शासन ारा
िपछली दफा तैयार क गई सूिचय के अनुसार उनक धड़ाधड़ िगर ता रयाँ शु हो ग ।
करीब एक ह ते के भीतर ही कां ेस पाट का हर मह वपूण नेता जेल म था। ले कन
मु यालय से िबना कसी मागदशन के भी आंदोलन जोर पकड़ने के साथ ही िव तार पाता
चला गया। सरकारी आँकड़ के अनुसार, 14,800 लोग को जनवरी और 17,800 लोग को
फरवरी म िगर तार कया गया। सरकार को ज द ही अहसास हो गया क य द इसी
र तार से िगर ता रयाँ जारी रह तो जेल म कै दय क इतनी बड़ी सं या से िनपटना
मुि कल हो जाएगा। इसिलए माच म रणनीित बदली गई और िगर ता रय के बजाय
कां ेस नेता और उनके दशन से िनपटने के िलए बल- योग कया जाने लगा।
थानीय शासन ने पूरे भारत म अ यादेश के तहत अ य काररवाई के अलावा
िन िलिखत कदम उठाए—बैठक और दशन को ितबंिधत करने के िलए आदेश जारी
कए गए; कां ेस संगठन को गैर-कानूनी घोिषत करने के साथ ही कां ेस कायालय को
क जे म ले िलया गया; कां ेस के खाते ज त कर िलये गए; आम जनता के िलए आदेश
जारी कए गए क वे कां ेस क कसी भी कार से मदद नह करगे, न ही कां ेस
वयंसेवक को पनाह दगे, इसका उ लंघन करनेवाले को सजा दी जाएगी; भू-राज व या
अ य कर का भुगतान नह करने पर जमीन और संपि को ज त कर िलया गया; रा ीय
सािह य पर ितबंध; रा वादी ेस को परे शान कया गया; दुकानदार को आदेश दए
गए क वे कां ेस के कहने पर अपनी दुकान को बंद नह करगे; कां ेस के दशन को ख म
कराने के िलए उन पर लाठीचाज और गोलीबारी करने के आदेश दए गए।
इन सभी ितबंध के बावजूद, सिवनय अव ा आंदोलन जोर-शोर से जारी था। कां ेस
क कु छ गितिविधयाँ िन कार से थ —सरकारी ितबंध के बावजूद बैठक और
स मेलन का आयोजन; पुिलस आदेश क अवहेलना करते ए दशन का आयोजन;
िवदेशी कपड़ और शराब क दुकान क घेराबंदी; ि टश उ पाद , बक , बीमा कं पिनय
आ द क घेराबंदी; अनिधकृ त बुले टन, समाचार-प आ द का काशन; सावजिनक प
से रा ीय वज को सलाम करना और सरकारी इमारत पर रा ीय वज फहराना; नमक
का उ पादन; सरकार ारा ज त क गई इमारत पर पुन: क जा करने के यास; भू-
राज व एवं कर का भुगतान नह करना। इन गितिविधय के अलावा, साल के पहले छह
महीन के दौरान, कां ेस अ य या कां ेस कायसिमित के आदेश के तहत रा ीय तर
पर िवशेष अिभयान का संचालन कया गया। 6 अ ैल से 13 अ ैल तक 1919 के अमृतसर
जनसंहार क मृित म ‘रा ीय स ाह’ मनाया गया। इसके बाद कड़ी पुिलस पाबं दय के
बावजूद 24 अ ैल को द ली म कां ेस के 47व स का आयोजन कया गया। द ली
कां ेस के बाद पुिलस ितबंध क अव ा करते ए भारत भर म ांतीय, िजला और
उपमंडल तर पर राजनीितक स मेलन क शृंखला आयोिजत क गई। 15 मई को वडाला
नमक िडपो पर छापा मारने का भी यास आ। वदेशी (उदाहरण के िलए, रा ीय
उ ोग) आंदोलन को गित दान करने के िलए 29 मई को ‘अिखल भारतीय वदेशी107
दवस’ और राजनीितक बं दय के साथ सहानुभूित क अिभ ि के िलए 4 जुलाई को
‘अिखल भारतीय बंदी दवस’ मनाया गया। इलाहाबाद म ‘रा ीय स ाह उ सव’ के
दौरान 8 अ ैल को पं. मोतीलाल नेह क य
े िवधवा क अगुआई म कां ेस के एक
दशन म शािमल दशनका रय को िततर-िबतर करने के िलए पुिलस ने बल- योग का
यास कया। पुिलस के हमले म बुरी तरह घायल होनेवाल म वयं ीमती मोतीलाल
नेह शािमल थ । इस घटना ने देशभर108 म आतंक और आ ोश फै ला दया। द ली
कां ेस का आयोजन ब त सावधानीपूवक कया गया था। हालाँ क अ य चुने गए पं.
मदनमोहन मालवीय को द ली के रा ते म िगर तार कर िलया गया, ले कन पुिलस
कां ेस म भाग लेने के िलए ितिनिधय को बड़ी सं या म प च ँ ने से नह रोक सक ।
सरकार ारा चूँ क कां ेस स पर ितबंध लगाया गया था, इसिलए बेहतर इं तजाम के
अभाव म इसका आयोजन चाँदनी चौक म घंटाघर के समीप कया गया और अहमदाबाद
के रणछोड़दास अमृतलाल ने इसक अ य ता क । यह एक छोटा स था और िवषय
सिमित ारा पा रत ताव क ितयाँ, िज ह पहले से ही छपवा िलया था, जनता के
बीच बाँटी ग । कां ेस ने वतं ता संबंधी ताव को दोहराया, सिवनय अव ा आंदोलन
को पुन: शु करने के कायसिमित के फै सले का अनुमोदन कया और महा मा गांधी के
नेतृ व म पुन: अपनी आ था क पुि क । इसके तुरंत बाद दृ य म पुिलस का आगमन आ,
भीड़ को बल- योग ारा िततर-िबतर कर दया गया और बड़ी सं या म िगर ता रयाँ क
ग ।
पहले चार महीन म कां ेस के आंदोलन क समी ा करते ए पं. मदनमोहन मालवीय
ने 2 मई, 1932 को जारी एक सावजिनक बयान म ऐलान कया—
‘िपछले 20 अ ैल तक चार महीन के दौरान ेस म कािशत रपोट के अनुसार,
66,646 लोग को तािड़त कया गया, अपमािनत कया गया और िगर तार कया गया,
िजनम 5,325 मिहलाएँ और ब े भी शािमल थे। इसम देश के सुदरू गाँव म क गई
िगर ता रय को शािमल करना संभव नह हो सकता और इसिलए कां ेस का अनुमान है
क इस तारीख तक 80,000 से अिधक लोग को बंदी बनाया गया। जेल म राजनीितक
कै दी भरे पड़े ह और इन कै दय को सलाख के पीछे डालने क जगह बनाने के िलए
सामा य कै दय को समय से पहले रहा कया जा रहा है। इसम द ली कां ेस के
ितिनिधय सिहत िपछले दस दन के दौरान क गई िगर ता रय क सं या भी जोड़नी
होगी। ेस म आई रपोट के अनुसार, कम-से-कम 29 मामल म गोलीबारी क गई और
काफ जनहािन ई। 325 थान पर िनह थी भीड़ पर लाठीचाज कया गया। घर म
तलाशी िलये जाने के 633 मामले और संपि को ज त करने के 102 मामले रहे। आंदोलन
के संबंध म दोषी पाए गए लोग पर भारी जुरमाना लगाने क अभूतपूव नीित अपनाई गई
और जुरमाने का भुगतान करने के िलए ज री संपि को छोड़कर बाक संपि को ज त
कर उसे बेच दया गया। ेस का पहली बार इतनी बुरी तरह से गला घ टा गया है। 163
ऐसे मामले दज कए गए ह, जहाँ समाचार-प और सावजिनक ेस को आदेश, ज ती,
सुर ा क माँग और ेस को बंद करने, चेतावनी, संपादक , ंटर या रखवाले क
िगर तारी और िगर तारी के आदेश ारा िनयंि त कया गया है। अ हंसक तरीके से
सावजिनक बैठक और दशन कर रहे पु ष एवं मिहला पर लाठीचाज कया गया और
कई बार गोलीबारी भी क गई।’ (‘इं िडयन रकॉडर’, कलक ा, पृ 271)
उपरो रपोट के संबंध म इस बात का सं ान िलया जा सकता है क समी ा अविध के
दौरान, कराची जेल और सीमांत ांत क ह रपुर जेल म राजनीितक कै दय पर कोड़े
बरसाए गए। बंगाल म राजशाही जेल म राजनीितक कै दय को िविभ तरीक से
अपमािनत कया गया, जैसे क कै दय के पैर म बेिड़याँ डालना, हाथ म हथकड़ी लगाना
आ द। बंगाल क सूरी जेल म मिहला कै दय ने इस बुरे बरताव के िखलाफ भूख-हड़ताल
शु कर दी।109
कु ल िमलाकर, 1932 म कां ेस क गितिविधय क तुलना 1930 क गितिविधय से
ितकू ल प से नह क गई। ले कन हर कां ेस कायकता एक फक को महसूस कर सकता
था। 1930 म कां ेस आ ामक भूिमका म जब क सरकार र ा मक भूिमका म थी। 1932
म इसका एकदम उलटा आ था। इस बात म कोई संदह े नह क द ली समझौते म ब त
सी खािमय के बावजूद, इं लड और भारत म क र लोग ने इसे सवशि शाली ि टश
सरकार क पराजय या अपमान के तौर पर िलया था। पराजय क भावना के तहत वे ब त
पीड़ा महसूस कर रहे थे और खुद बदला लेना चाहते थे। अ ू बर 1931 म आम चुनाव म
कं जरवे टव ारा हािसल कए गए भारी ब मत के चलते उनके हौसले ब त बढ़ गए।
इतना ही नह , महा मा गांधी और इं लड म दए गए उनके बयान ने उनके बीच यह
भाव पैदा कया क महा मा फर से एक लड़ाई लड़ने के िलए अिन छु क या तैयार नह
ह। यह वीकार कया जाना चािहए क महा मा ईमानदारी से एक शांितपूण नीित का
अनुसरण कर रहे थे तथा कतई कोई तैयारी नह करने को उ े य के ित उनक ईमानदारी
के प म देखा जा सकता है। दरअसल, महा मा अपनी शांितपूण मंशा के साथ इतने आगे
बढ़ गए थे क उ ह ने कसी आपाति थित के िलए कोई तैयारी ही नह क थी। स ाई तो
यह थी क एक ओर वायसराय के कोई काररवाई नह करने के रवैए और दूसरी ओर
जनता के बढ़ते आ ोश के चलते उ ह 1932 क लड़ाई म जबरद ती घसीटा गया था। इस
संबंध म यह मह वपूण है क महा मा क अनुपि थित म भारत सरकार ारा उठाए गए
आ ामक कदम को महामिहम क सरकार का पूण अनुमोदन ा था। सरकार के रवैए के
अलावा, दो अ य कारक भी थे, िज ह ने महा मा को संघष पुन: छेड़ने के िलए बा य कया
—जनता का आ ोश और वाम शाखा का भाव। जहाँ तक पहले क बात है, कसी भी
ांत म जनता सरकार के नज रए से संतु नह थी। िज ह ने महा मा से यह उ मीद लगा
रखी थी क गोलमेज स मेलन से कोई ठोस समाधान िनकलकर आएगा, उनका मोहभंग
हो चुका था। इसके अलावा, ले ट वंग कां ेस नेता , यूथ लीगस110 और वामपंथी िमक
नेता ारा तेजी से कए गए चार का भी असर पड़ा था। इं लड वास के दौरान ही
महा मा को समझ आ गया था क अब फर से एक और संघष अप रहाय है, ले कन इसक
िवडंबना यह थी क आंदोलन के िलए कां ेस ने कोई तैयारी नह क थी और न ही पहले से
ही इसके िलए कोई योजना बनाई गई। 1932 का आंदोलन, 1930 के आंदोलन क ही
नकल था और सरकार इस कार के आंदोलन से िनपटने के िलए भावी जवाबी काररवाई
करने क तैयारी कए बैठी थी। य द कां ेस 1932 के आंदोलन को सफल बनाना चाहती
थी तो उसे ऐसी नई रणनीित और चाल तैयार करनी चािहए थ क सरकार एकदम सकते
म आ जाती।
इस बात को आमतौर पर समझा नह जाता क इ ह रणनीितय क वजह से 1930 का
आंदोलन सफल रहा था, ले कन 1932 म कां ेस िवफल य हो गई? इसका कारण यह है
क कां ेस क 1930 क रणनीित से सरकार हैरत म पड़ गई थी। इस बात म संदह े नह क
इसी कार क रणनीित 1921 और 1922 म भी अपनाई गई थी, ले कन फरवरी 1922 म
आंदोलन को अचानक से थिगत करने के कारण कां ेस को अपने सारे प े नह खोलने पड़े
थे। इससे भी यादा मह वपूण बात यह थी क उस आंदोलन को आठ साल बीत चुके थे
और उस आंदोलन से जुड़े रहे अिधकतर लोग अब सरकार क सेवा म नह थे।
प रणाम व प 1930 का अिभयान अपनी संपूण नीयत और उ े य म एक नया आंदोलन
था और सरकार को इसे समझने, जवाबी रणनीित तैयार करने और फर उससे िनपटने म
थोड़ा समय लगा। द ली समझौते ने सरकार को यह काम करने के िलए समय दे दया था
और 1 जनवरी, 1932 को जब कायसिमित ने सिवनय अव ा आंदोलन बहाल करने का
फै सला कया तो सरकारी ताकत तुरंत और बबर तरीके से काररवाई करने के िलए पूरी
तरह तैयार थ । और उ ह ने के वल खुले म आंदोलन चला रहे लोग पर ही हमले नह
कए, बि क इस आंदोलन के पीछे लगे दमाग और धन के ोत पर भी कड़ी काररवाई
क ।111
साल के पहले आठ महीन के दौरान संघष पूरे जोश के साथ चलता रहा। सरकार का यह
ऐलान क कां ेस को ज द ही ने तनाबूद कर दया जाएगा, झूठा सािबत आ। कां ेस
अभी भी जीिवत थी और हाथ-पैर चला रही थी तथा इस बात के कोई संकेत नह थे क
ज द ही उसक समय से पूव मौत हो जाएगी। माच म आंदोलन को और मजबूती ा ई,
य क मुसिलम मौलिवय और उलेमा के अिखल भारतीय संगठन, जमीयत उल उलेमा
ने मु ती कफायतु लाह के नेतृ व म असहयोग का ऐलान कर दया और जमीयत के
नेता ने ज द ही खुद को सलाख के पीछे पाया। जमीयत के इस फै सले से रा वादी
मुसिलम क ि थित काफ मजबूत ई, जो क इतने लंबे समय से कां ेस का अिभ अंग
रहे थे और साथ ही सीमांत ांत के मुसिलम क भी, जो सरकारी दमन के सवािधक बुरे
दौर से गुजरे थे। ले कन हालात कां ेस के िवपरीत थे। बॉ बे म, जो क 1930 म तूफान का
क रहा था, मई म वहाँ हंद-ू मुसिलम दंगे भड़क उठे और करीब छह स ाह तक चले। इस
िव वंस के कारण बॉ बे म कां ेस के आंदोलन को तगड़ा झटका लगा, िजससे वह उबर न
सक । गुजरात म तािड़त, परे शान, मुकदम का सामना कर रहे और भूखे मर रहे कसान
अब उतनी बहादुरी से संघष करने क हालत म नह थे, जैसा वे 1930 म कर सके थे।
संयु ांत म सरकारी दमनच के कारण, कु छ महीन के बाद कर नह चुकाने संबंधी
आंदोलन ब त आगे नह बढ़ सका। बंगाल म सिवनय अव ा आंदोलन से कह अिधक
गंभीर ांितका रय का आतंकवादी आंदोलन था। भले ही आतंकवाद सरकार के िलए एक
शूल था, ले कन इससे लोग पर कहर टू ट पड़ा था। चटगाँव, िमदनापुर और ढाका जैसे कई
िजल म एक तरह से माशल लॉ लगा दया गया और मासूम ामीण को अ ात लोग
ारा अंजाम दए गए गलत काय के िलए भारी सामूिहक जुरमाना भरना पड़ा था। साल
के दौरान कां ेस दशनका रय क भीड़ को भगाने के िलए आ ेया का हलका
इ तेमाल कया गया। भारतीय लेिज ले टव असबली म एक सवाल का जवाब देते ए
भारत सरकार के गृह सद य (अब सर) एच.जी. हेग ने कहा क सभा को भंग करवाने के
िलए बंगाल म 17 बार, संयु ांत म सात बार, िबहार और उड़ीसा म तीन बार, म ास
ेसीडसी म एक बार, सीमांत ांत म एक बार गोलीबारी क गई, जब क बॉ बे ेसीडसी
म गोलीबारी से 34 लोग मारे गए और 91 लोग घायल ए। इस ि थित म जब कां ेस
जीवन और मृ यु के संघष म जुटी थी, एक असंभािवत घटना घटी, िजससे देश म सिवनय
अव ा आंदोलन पूरी तरह पटरी से उतर गया। 20 िसतंबर, 1932 को महा मा गांधी ने
उपवास शु कर दया।
11 माच को महा मा ने सर सै युअल होरे को एक प िलखकर उ ह सूिचत कया था क
13 नवंबर, 1931 को उ ह ने गोलमेज स मेलन, लंदन म जो कहा था क य द पृथक्
िनवाचक मंडल क अनुमित देकर वंिचत तबक को हंद ु क मु य इकाई से अलग कया
गया तो वे इसका अपनी जान देकर भी िवरोध करगे और उसी बात पर कायम रहते ए वे
आमरण अनशन शु करगे। 13 अ ैल को सर सै युअल होरे ने, िबना कसी आ ासन के ,
यह कहते ए प का जवाब दया क सरकार कसी फै सले पर प च ँ ने से पूव मामले पर
पूरी तरह गौर करे गी। इसके बाद 17 अग त को धानमं ी रै मसे मैकडोना ड ारा
‘सां दाियक फै सले’112 क घोषणा कर दी गई। इसम ांतीय िवधानमंडल म वंिचत वग
के िलए एक िनि त सं या म सीट क व था क गई, जो क पृथक् िनवाचक मंडल के
आधार पर भरी जाएँगी। इसके अित र , दबे-कु चले वग के सद य हंद ु के िलए
िचि हत सामा य िनवाचन े से भी चुनाव के िलए खड़े होने के हकदार ह गे और
उनका पंजीकरण अ य हंद ु के साथ एक साझा मतदाता सूची म होगा। फै सले म आगे
ावधान कया गया क य द महामिहम क सरकार इस बात से संतु है क भारत सरकार
के नए िवधेयक के कानून म पा रत होने से पहले गवनर के एक या अिधक ांत के संबंध म
या पूरे ि टश भारत के संबंध म संबंिधत समुदाय पार प रक प से एक ावहा रक
वैकि पक योजना पर सहमत ह, तो वे संसद् को िसफा रश करने के िलए तैयार ह गे क
अब उि लिखत ावधान के िलए िवक प को ित थािपत कया जाना चािहए। 18
अग त को महा मा ने धानमं ी को सूिचत करते ए एक प िलखा क 11 माच को सर
सै युअल होरे को िलखे प के अनुसार वे 20 िसतंबर को दोपहर म आमरण अनशन शु
करने के िलए ितब ह। ‘य द उपवास के दौरान ि टश सरकार वयं या जनता क राय
के दबाव के तहत अपने फै सले म संशोधन करती है और दबे-कु चले लोग , िजनका
ितिनिधय का चुनाव साझा मतदान के तहत सामा य मतदाता ारा कया जाना
चािहए, चाहे वह कतना भी ापक य न हो, के िलए सां दाियक िनवाचन े क
अपनी योजना को वापस ले लेती है तो उपवास को ख म कर दया जाएगा।’ महा मा ने
यह भी कहा क पूरे प ाचार को तुरंत और पूरा चार दया जाए। धानमं ी ने 8
िसतंबर को महा मा के फै सले पर अफसोस जताते ए प का जवाब दया, ले कन जोर
देते ए कहा क इसम दी गई शत के अलावा, फै सले के ावधान म बदलाव नह कया
जा सकता। महा मा को यह जवाब अगले दन ा आ और उ ह ने तुरंत इसका उ र
देते ए कहा क उ ह ने िजस फै सले से पहले ही उनको अवगत करा दया था, वे उस पर
डटे रहने के िलए वयं को बा य महसूस करते ह।
13 िसतंबर को जब अनशन के बारे म समाचार कािशत ए तो देश म एक कोने से
लेकर दूसरे कोने तक जो बेचैनी और चंता थी, उसक ा या नह क जा सकती।
महा मा से उपवास नह करने क पुरजोर अपील क गई, ले कन सारी ाथनाएँ िनरथक
रह । सरकार ने उ ह कु छ शत के साथ रहा करने क पेशकश क , ले कन उ ह ने सशत
रहाई को अ वीकार कर दया। इसिलए फै सला कया गया क उ ह पूना जेल म िबना
परे शान कए ऐसे ही छोड़ दया जाए, ले कन मुलाकात और प ाचार आ द बाधाएँ हटा
दी ग । पं. एम.एम. मालवीय क अपील पर 19 नवंबर को बॉ बे म हंद ू नेता का एक
स मेलन आ, िजसम इस बात पर िवचार-िवमश कया गया क महा मा के जीवन को
कस कार बचाया जा सकता है? शु आती चचा के बाद वहाँ नेता ने बैठक को पूना के
िलए थिगत कर दया, ता क वहाँ महा मा के लगातार संपक म रहा जा सके । लंबे
िवचार-िवमश के बाद, 24 िसतंबर को हंद ू नेता के बीच एक समझौता आ, िजसम
दिलत वग के िलए पृथक् िनवाचक मंडल को व तुत: समा कर दया। इसके बाद इस
समझौते को ‘पूना समझौते’113 के नाम से जाना गया और 25 िसतंबर को हंद ू नेता क
कॉ स और हंद ू महासभा ारा इसक पुि कर दी गई तथा इसे भारत सरकार एवं
धानमं ी को तार भेजकर सूिचत कर दया गया। 26 िसतंबर को महामिहम क सरकार
ने ऐलान कर दया क वे संसद् को पूना समझौते का समथन करने क िसफा रश करने के
िलए तैयार ह। पूरे देश ने राहत क साँस ली। महा मा के जीवन को बचाने के िलए
ाथनाएँ क ग ।
पूना समझौते म हंद ु के सभी वग के िलए एक समान िनवाचक मंडल के आधार पर
दिलत वग के सद य के िलए एक िनि त सं या म आरि त सीट का ावधान कया
गया था। हालाँ क इसके िलए एक पा ता रखी गई थी। एक िनवाचन े म सामा य
मतदाता सूची म पंजीकृ त दिलत वग के सद य एक िनवाचक मंडल का गठन करगे, जो
एकल वोट क िविध से ऐसी येक आरि त सीट के िलए दिलत वग से संबंिधत चार
उ मीदवार के एक पैनल का चुनाव करे गा। दस साल के िलए लागू ाथिमक चुनाव के
िवचार पर डॉ. आंबेडकर (िज ह गोलमेज स मेलन के िलए सरकार ने नािमत कया था) ने
साइमन कमीशन के सामने जोर दया था और पहले गोलमेज स मेलन म उ ह ने सभी
हंद ु के िलए साझा िनवाचक मंडल के आधार पर दिलत के िलए सीट के आर ण क
माँग क थी। दिलत वग के एक मुख नेता एम.सी. राजा इसके िवपरीत, साझा िनवाचक
मंडल के आधार पर अपने समुदाय के िलए सीट के आर ण पर लगातार कायम रहे। साल
क शु आत म वे इस आधार पर हंद ू महासभा के अ य डॉ. मुंजे के साथ एक करार कर
चुके थे। इस करार को ‘राजा-मुंजे करार’ के नाम से जाना जाता है, ले कन डॉ. आंबेडकर
और उनके समथक ने इसका िवरोध कया तथा इसी िवरोध के आधार पर ि टश सरकार
ारा इसे वीकार नह कया गया।
जब तक महा मा उपवास पर रहे, ता कक सोच पूरी तरह ख म हो गई थी और उनके
देश के हर बा शंदे क सोच एक ही थी क उनके जीवन को कै से बचाया जाए? उनक
हालत खतरे से बाहर होने के बाद लोग ने तक क शांत रोशनी म पूना समझौते क
पड़ताल शु क । तब इस बात का अहसास कया गया क ांतीय िवधानमंडल म दिलत
वग के िलए सां दाियक फै सले म 71 सीट का ावधान कया गया था, ले कन पूना
समझौते म 148 सीट उपल ध कराई गई थ । ये अित र सीट उ ह बाक हंद ू समुदाय
क क मत पर दी जाएँगी, बंगाल जैसे ांत म, जहाँ फै सले म हंद ु के साथ पहले ही
अ यायपूण बरताव कया गया था, पूना समझौते को बाक हंद ू समुदाय ारा और
अ याय के प म देखा गया, खासतौर से इस त य के म ेनजर क दिलत वग क सम या
वहाँ मुि कल से ही थी। इतना ही नह , यह भी समझ म आया क पूना समझौते म पृथक्
िनवाचक मंडल को पूरी तरह समा नह कया गया है। लोग ने गंभीरता के साथ यह
सवाल करना शु कर दया था क या महा मा गांधी के िलए ऐसे मु े पर अपनी जान
जोिखम म डालने का कोई मतलब था, िवशेष प से तब, जब सां दाियक फै सला, शु से
आिखर तक लेकर एक आपि जनक द तावेज था?
ले कन पूना समझौते का थायी मोल जो भी रहा हो, इस बात म कोई संदह े नह क
हंद ू समुदाय क चेतना को जगाने म महा मा गांधी के उपवास ने एक थायी और
दूरगामी असर छोड़ा था। यह देखना अपने आप म अ भुत था क कै से पूरे देश का दल
एक ि के िलए धड़क रहा था? हंद ु के सभी वग को स य होने के िलए खड़ा कर
दया था और ऐसा पहले कभी नह आ था। ‘उपवास क इस महागाथा’ का सबसे
मह वपूण प रणाम यह रहा क इसने अ पृ यता उ मूलन आंदोलन क वाला को भड़का
दया। उपवास के दौरान सहानुभूित का महासागर उमड़ पड़ा और यह के वल िनजी प से
महा मा के ित ही नह था, बि क दिलत वग और दबे-कु चले वग के िहत के िलए भी
था। सहानुभूित के इस वार को ‘अिखल भारतीय अ पृ यता िवरोधी लीग’ संगठन के
मा यम से ऊजा के थायी ोत के प म प रव तत न करना बड़ा ही पीड़ादायक होता।
देशवािसय पर महा मा के उपवास का िवल ण भाव आ, ले कन अंतररा ीय े म
यह फायदे का सौदा सािबत नह आ। इसने दिलत वग के मु े को असीिमत तर पर
चा रत कर दया। अभी तक िव भारत से संबंिधत के वल एक ही मु े से प रिचत था—
राजनीितक मु ा—इं लड के िखलाफ भारत क वेदना! अब रा वादी आंदोलन के नेता ने
वयं िव के सम यह उ ोषणा कर दी थी क एक अ य िवषय भी है—आंत रक िवषय
—जो इतना मह वपूण है क उसके िलए वे अपना जीवन भी दाँव पर लगाने को तैयार थे।
और उधर ि टश दु चारक अवसर का फायदा उठाने के िलए घात लगाए बैठे थे।
िसतंबर 1932 म पूरे यूरोप म यह डंका बजा दया गया क महा मा उपवास कर रहे ह,
य क वे अ पृ य 114 को कु छ अिधकार दान कए जाने के िव ह। उसके बाद से ही
यूरोपीय जनता के दमाग म लगातार यह कहािनयाँ भरी जा रही ह क भारत अंद नी
मतभेद से भरी एक ऐसी जमीन है, जहाँ न के वल हंद ू और मुसिलम, बि क वयं हंद ू
आपस म लगातार एक-दूसरे से लड़ते रहते ह और ि टेन के मजबूत हाथ म ही वहाँ शांित
और व था कायम रह सकती है।
उपवास का एक और दुभा यपूण भाव पड़ा, जो अिधक गंभीर सािबत आ। इसने
राजनीितक आंदोलन को ऐसे ज टल समय म दर कनार कर दया, जब सवािधक यान
उसी पर क त कया जाना चािहए था। य द महा मा ने उपवास को समा कर,
अ पृ यता िवरोधी काय को बाहर मौजूद अपने िम को स प दया होता तो उपवास का
भाव इतना हािनकारक नह आ होता। ले कन जब नेता ने वयं जेल क दीवार के
पीछे से अ पृ यता िवरोधी आंदोलन शु कर दया तो उनके अनुयायी या कर सकते थे?
महा मा सदा से ही यह कहते रहे थे क एक स या ही बंदी वयं को ‘नाग रक प से मृत’
समझे और उसे जेल के बाहर हो रहे काय क चंता नह करनी चािहए। ले कन इस बार
वे हमेशा क तरह अपने िस ांत पर कायम नह रहे थे। मामला उस समय और िबगड़
गया, जब उ ह ने उनके सम इस बार रखे गए सवाल के ऐसे जवाब दए, जो िमत
करनेवाले थे या कु छ सवाल के जवाब उ ह ने दए ही नह । उनसे सवाल कया गया था
क राजनीितक काय कया जाना चािहए या सामािजक काय? िमत करनेवाले जवाब से
जनता ने यह सोचा क महा मा राजनीितक काय क तुलना म सामािजक काय को
वरीयता देते ह। वाभािवक था क महा मा के इस सू का उनके अंधभ ारा और
अिधक अनुसरण कया गया और उन लोग ारा भी, जो लंबे समय से जेल म बंद थे और
ताड़ना झेल रहे थे। ये लोग राजनीितक संघष से पीछा छु ड़ाने का कोई सुिवधाजनक
बहाना चाहते थे।
महा मा के आचरण क ा या के िलए एक और योरी आगे बढ़ाई गई है। यह कहा जा
रहा है क उ ह अंतत: आंदोलन क िवफलता का पूवाभास हो गया था और इसिलए वे
इसम से एक ऐसा नया आंदोलन छेड़ना चाहते थे, जो उनके देशवािसय को लाभाि वत
करे गा। इस योरी को वीकार नह कया जा सकता, य क नवंबर 1931 म लंदन म
महा मा दिलत के िलए िवशेष िनवाचक मंडल का अपने जीवन क बाजी लगाकर भी
ितरोध करने क दृढ़ता क बात कह चुके थे। कोई भी यह सोचने को बा य हो सकता है
क सिवनय अव ा आंदोलन को ठं डे ब ते म डालना उस आ मिन ावाद का प रणाम था,
जो समय-समय पर उ ह घेर लेता है और व तुिन वा तिवकता क प ता के ित उ ह
पूरी तरह अंधा बना देता है। गोलमेज स मेलन के बाद से ही उ ह ने दिलत वग क
सम या पर इतनी गहराई से मंथन शु कर दया था क कु छ समय के िलए अ य
सम याएँ नेप य म चली गई थ । वा तिवकता कु छ भी हो सकती है, ले कन इसम कोई
संदहे नह क उपवास ने सिवनय अव ा आंदोलन को कनारे कर दया तथा एक ऐसे
समय म इससे लोग, धन और जनता का उ साह अ पृ यतारोधी (या ‘ह रजन’)115
आंदोलन क तरफ मुड़ गए, जब कां ेस और साथ ही सरकार क ि थित भी ब त मजबूत
नह थी। इसका भाव ठीक वैसा ही आ, जैसे क यु के बीच कोई सेनापित अपने
सैिनक को गाँव के लोग क यास बुझाने के िलए जलापू त क खाितर नहर खोदने का
आदेश दे।
महा मा ारा 26 िसतंबर को क गई अपील के जवाब म देशभर म मं दर और
सावजिनक कु को अ पृ य समाज के लोग के िलए खोलना शु हो गया। वा तव म,
इस अपील का आग क गित से असर आ और ऐसा लगा क अ पृ यता के दानव को कु छ
ही दन म मौत क न द सुला दया जाएगा! ले कन दि ण भारत म गु वयूर म इसका
ितरोध आ, जहाँ मं दर के यासी जमो रन ने पारं प रक और कानूनी द त क दुहाई
देते ए अ पृ य के िलए मं दर के दरवाजे खोलने से इनकार कर दया। इस पर के ला पन,
एक जाने-माने और अ यंत स मािनत कां ेस कायकता ने अ पृ य को मं दर से बाहर
रखने के िखलाफ उपवास शु कर दया। जब उनक हालत गंभीर हो गई तो महा मा ने
उनका जीवन बचाने के िलए ह त ेप कया। महा मा के अनुरोध पर के ला पन ने उपवास
ख म कर दया। इस समय तक यह पाया गया क कई थान पर, कई मं दर के शासक
या यािसय ने अ पृ य के िलए मं दर के ार खाेलने के माग म कानूनी बाधाएँ खड़ी कर
द । इसिलए ऐसी कानूनी अड़चन को एक ही बार म हमेशा-हमेशा के िलए ख म करने के
उ े य से म ास लेिज ले टव काउं िसल और इं िडयन लेिज ले टव असबली म िवधेयक पेश
करने पर िवचार को वांछनीय पाया गया। म ास काउं िसल के िलए तैयार मसौदा िवधेयक
को वायसराय ने मंजूरी देने से इनकार कर दया। इं िडयन लेिज ले टव असबली के िलए
तैयार मसौदा िवधेयक को वायसराय ारा 23 जनवरी, 1933 को पेश कए जाने क
अनुमित दान कर दी गई, ले कन यह प कर दया गया क सरकार िवधेयक के संबंध म
कसी भी तरह से वयं को ितब नह करे गी और इस सवाल पर जनता को अपनी राय
करने का पूरा अवसर देगी। भारत सरकार से मं दर वेश िवधेयक को ज द पा रत
कराने संबंधी व था करने का िवशेष अनुरोध कया गया, ले कन वायसराय ने इस
कार क कसी व था क पेशकश करने से इनकार कर दया और सरकार क
जानबूझकर क गई देरी क बदौलत यह िवधेयक अभी भी लटका आ है। अ पृ य के
िलए मं दर म वेश क माँग को मजबूती दान करने के िलए 25 दसंबर, 1932 को
गु वयूर म मं दर जानेवाल के बीच एक जनमत सं ह कराया गया। हालाँ क गु वयूर को
सामािजक प से िपछड़ी ई जगह माना जाता है, ले कन डाले गए कु ल 20,163 मत म
से 77 फ सदी मत मं दर म वेश के प म थे, 13 फ सदी िवरोध म और दस फ सदी लोग
तट थ थे।
हंद-ू मुसिलम मतभेद को सुलझाने के िलए 26 िसतंबर को महा मा क अपील के बाद
एक और लाभकारी प रणाम आया। इलाहाबाद म एकजुटता स मेलन का आयोजन कया
गया, िजसम पं. मालवीय और मौलाना शौकत अली ने मुख िज मेदारी सँभाली।
िवजयराघव आचाय क अ य ता म 1 नवंबर को स मेलन का अायोजन आ और इसम
बड़ी सं या म हंद ु और मुसिलम के ितिनिधय ने भाग िलया। वातावरण अ यंत
सौहादपूण था। हंद-ू मुसिलम समझौते क दशा म काफ गित ई, ले कन आिखरकार
दो बाधाएँ आन खड़ी । एक ओर तो मुसिलम के सां दाियक धड़े के नेता ने
एकजुटता यास क नंदा क और दूसरी ओर, बंगाल सम या का कोई समाधान नह
दख रहा था, य क यूरोपीय प सां दाियक फै सले के तहत उ ह दी गई सीट म से कोई
सीट नह छोड़गे और मुसलमान कु ल सीट क सं या के 51 ितशत से कम पर संतु नह
ह गे। हालाँ क स मेलन का सफल समापन नह आ, ले कन इसका एक नैितक मू य था
और इसने वातावरण को साफ करने म काफ मदद क थी।
अब हम साल 1932 के दौरान सरकार क काररवाइय क समी ा कर सकते ह। कां ेस
के िखलाफ अ यिधक कठोर कदम उठाते ए वायसराय ने लगातार अपील क क सरकार
साथ-ही-साथ संिवधान िनमाण के काय को भी आगे बढ़ाएगी। जनवरी के म य म एक
सलाहकार सिमित िनयु क गई, ता क वायसराय के मा यम से सरकार को कां ेस को
छोड़कर अ य दल के सभी नेता के करीबी संपक म रखा जा सके और िवशेष प से
मतािधकार, संघीय िव और भारतीय रा य क जाँच सिमित क िसफा रश पर िवचार
करने के िलए। सां दाियक फै सला जारी होने म देरी के चलते सलाहकार सिमित मुसिलम
सद य के कहने पर दो बार थिगत क गई। 27 जून को सरकार ारा घोषणा क गई क
उसने एक ही िवधेयक म ांतीय और संघीय वाय ता दान करने का फै सला कया था
और यह भी क वे गोलमेज स मेलन के तीसरे स को छोड़ दगे। भारतीय उदारवादी
नेता ने गोलमेज स मेलन को छोड़े जाने के िखलाफ त काल कड़ा ितवाद जताया और
उसके बाद ीमान शा ी, जयकर, जोशी और सर तेज बहादुर स ू ने सलाहकार सिमित
से इ तीफा दे दया। इससे सरकार थोड़ा झुक और 7 जुलाई को सर सै युअल होरे ने स ल
एिशयन सोसाइटी के सम दए गए अपने भाषण म िव तार से बताया क या म
बदलाव का अथ नीित म बदलाव नह है। उ ह ने आगे कहा क जब सरकार के ताव
पर िवचार करने के िलए संयु संसदीय सिमित क बैठक होगी तो भारतीय न के वल
गवाह के तौर पर पेश ह गे, बि क सिमित क चचा म भी भाग लेने के हकदार ह गे। भारत
के िलए िवदेश मं ी/सिचव क यह ा या उदारवादी नेता को पया मालूम नह ई
और वे अपने िवरोध पर कायम रहे। 5 िसतंबर को वायसराय ने इं िडयन लेिज ले टव
असबली के सामने नए िसरे से घोषणा क क चूँ क सलाहकार सिमित वह योगदान देने म
स म नह होगी, िजसक उससे उ मीद क गई थी, ऐसे म यह फै सला कया गया है क
मामले पर लंदन म आगे िवचार-िवमश हो। ि टश भारत तथा भारतीय रयासत के
ितिनिधय क एक छोटी इकाई इसके िलए म य नवंबर म लंदन म मुलाकात करे गी। यह
एक तय एजडे के अनु प होगा और कोई सावजिनक स नह होगा। उदारवादी नेता अब
संतु महसूस कर रहे थे क उनका लंदन दौरा बहाल हो गया था। तीसरे गोलमेज स मेलन
ने 17 नवंबर को काम शु करके इसे 24 दसंबर को समा कर दया। अंितम स जनता
के िलए खुला था। लेबर पाट ने इस आधार पर इस स मेलन म िह सा नह िलया क
सरकार सुलह क नीित से पीछे हट गई है। वे यह भी चाहते थे क भारतीय सद य को
बाहर रखा जाए, ले कन यह इ छा पूरी नह ई। सर सै युअल होरे ने स क समाि पर
स मेलन के प रणाम को सं ेप म तुत कया। सरकार ारा िलये गए कु छ िनणय
िन िलिखत ह, िजनका उ ह ने उ लेख कया—
1. जहाँ तक ि टश भारत का संबंध है, संघीय िवधानमंडल म मुसिलम समुदाय का
ितिनिध व 33⅓ ितशत होगा।
2. संघ कब तक काय करे गा, इसक कोई िनि त ितिथ बताना संभव नह ।
3. संध और ओिडशा अलग ांत ह गे।
4. र ा बजट पर मतदान का ावधान नह होगा।
5. भारतीय उ े य से इतर भारत के बाहर भारतीय सैिनक क तैनाती के िलए संघीय
मं ालय और संघीय िवधानसभा का िनणय िलया जाएगा, ले कन भारत क सुर ा के
िलए भारत से बाहर भारतीय सैिनक को तैनात कए जाने पर शाही सरकार को पूण
ािधकार रहेगा।
आिखरकार, सर तेज बहादुर स ू ारा सहयोग क अपील कए जाने के जवाब म सर
सै युअल होरे ने कहा क वे संयु वर सिमित के गोलमेज स मेलन म कोई भी कु रसी
खाली नह देखना चाहते थे।
साल के दौरान ांितकारी आंदोलन बंगाल रा य म काफ बल था। वायसरीगल
अ यादेश के अित र वायसराय ारा बंगाल सरकार को िवशेष शि याँ दान क गई
थ । वायसरीगल अ यादेश, जो सं या म चार थे, उ ह मु य प से सिवनय अव ा
आंदोलन से िनपटने के िलए तैयार कया गया था और इ ह 4 जनवरी, 1932 को जारी
कया गया। 30 जून को, इन चार अ यादेश क अविध समा होने से पूव एक नया,
ले कन सम अ यादेश, िजसे िवशेष शि याँ अ यादेश-1932 कहा जाता है, वह भारत
सरकार ने लागू कर दया। इसके अलावा, नवंबर 1931 म बंगाल आपातकाल शि याँ
अ योदश भी जारी कया गया था, िजसका मकसद बंगाल सरकार को आतंकवादी
आंदोलन को कु चलने के िलए वही समान शि याँ दान करना था, जो माशल लॉ शासन
के अिधकार म होती ह। इस अ यादेश का 29 मई, 1932 को नवीनीकरण कया गया।
भारत सरकार ारा बंगाल इमरजसी पावस (दूसरा संशोधन) अ यादेश-1932 के मा यम
से बंगाल सरकार को 20 जुलाई को और शि याँ दान कर दी ग । 1 िसतंबर को बंगाल
लेिज ले टव काउं िसल ने बंगाल आपरािधक कानून संशोधन अिधिनयम-1932 को पा रत
कर दया, जो कायपािलका को बढ़ी ई शि याँ दान करता था। इसका सबसे मह वपूण
ावधान था क ह या के यास को मृ युदड ं के साथ दंडनीय अपराध बनाया गया था। 6
िसतंबर को एक और अिधिनयम पा रत कया गया, िजसका नाम बंगाल आतंकवाद दमन
अिधिनयम-1932 था, िजसने कायपािलका को इमारत को ज त करने, नाग रक को
आतंकवा दय क मदद करने के िलए सजा देने का आदेश देन,े ामीण पर सामूिहक
जुरमाना लगाने आ द का अिधकार दया। बंगाल िवधान प रषद् म पा रत िवधेयक ने
सरकार को थायी शि य से लैस कर दया, ता क भिव य म आपात अ यादेश आव यक
नह ह गे। वष के दौरान, आतंकवा दय का आ ोश समय-समय पर भड़कता रहा, इनम
सवािधक मह वपूण घटना िमदनापुर के िजला मिज ेट डगलस तथा कोिमिलया के
एिडशनल सुप रं टडट ऑफ पुिलस ऐिलसन क ह या थी। सरकार क ओर से कड़े कदम
उठाए गए। चटगाँव, िमदनापुर और चौबीस परगना िजल म सम या पैदा ई थी। इन
सभी िजल म सैिनक को तैनात कया गया, लोग को िगर तार कया गया और भारी
सामूिहक जुरमाना भी लगाया गया। इतना ही नह , जनता के िवरोध के बावजूद बंगाल
क खाड़ी म अंडमान आइलड पर ांितका रय के िलए छोड़ी गई जेल को फर से खोल
दया गया और राजनीितक कै दय को वहाँ भेज दया गया।
साल के दौरान, दो मह वपूण म स मेलन का आयोजन आ। इं िडयन े स यूिनयन
फे डरे शन (पूव म ेड यूिनयन कां ेस क राइट वंग) का पहला स 15 जुलाई को म ास म
आयोिजत कया गया और इसक अ य ता क कमान वी.वी. िग र ने सँभाली। इस स म
पा रत कए गए ताव म से एक ताव भावी भारतीय संिवधान म म क ि थित को
लेकर था। ऑल इं िडया ेड यूिनयन कां ेस क 12 िसतंबर को म ास म बैठक ई और
इसके अ य जे.एन. िम ा थे। ेड यूिनयन कां ेस ने सां दाियक फै सले और ओटावा
समझौते को कामगार के िहत को नुकसानदायक बताते ए इनक नंदा क । इसम यह
कहते ए एक ताव भी पा रत कया गया क माटुंगा (बॉ बे के समीप), खड़गपुर
(कलक ा से स र मील दूर), िललुआह (कलक ा के समीप), लखनऊ (संयु ांत म)
तथा अ य जगह पर यदा-कदा होनेवाली हड़ताल को देखते ए यह प था क सभी
रे लवे म कामगार आम हड़ताल घोिषत करने के िलए ितब थे और इसे अिनि तकाल
के िलए थिगत करने क िज मेदारी जमनादास मेहता, वी.वी. िग र और एस.सी. जोशी
(दि णपंथी नेता) पर थी, जो रे लवे मै स फे डरे शन क नीित को िनदिशत कर रहे थे। साल
के दौरान ेड यूिनयन फे डरे शन और ेड यूिनयन कां ेस के बीच एकजुटता कायम करने के
यास कए गए, ले कन ये िवफल सािबत ए। हालाँ क रे लवे कामगार के बीच ए एक
मतदान म आम हड़ताल के प म प रणाम ा आ था, ले कन हड़ताल शु नह क
गई। कई क म हालाँ क ि◌छटपुट हड़ताल ई थ और अ ू बर म म ास के समीप
पेरांबूर म एक हड़ताल ई, जो क कु छ महीन तक चली।
भारत म सां दाियक ि थित कु ल िमलाकर काफ संतोषजनक थी—एकमा अपवाद
बॉ बे था, जहाँ मई म हंद-ू मुसिलम दंगे भड़क उठे थे। कु छ भारतीय रयासत म भी
सम या थी। एक साल पहले क मीर म गड़बड़ थी, जहाँ कृ षक (जो क मु य प से
मुसिलम थे) ने हंद ू महाराजा के िखलाफ बगावत कर दी। िशकायत मु य प से आ थक
थ , ले कन ि टश भारत म मुसिलम से सहानुभूित रखनेवाल और वयं कृ षक ने भी,
िज ह ने अपने हंद ू साथी कसान पर कु छ मामल म हमले कए थे, उनके ारा भी इसे
सां दाियक रं ग दे दया गया। ले कन ि टश भारत के सैिनक क मदद से िव ोह को दबा
दया गया, ले कन महाराजा को दी गई सहायता के बदले म क मत चुकाने के िलए ि टश
अिधका रय क िनयुि के मामले म ि टश सरकार क शत को वीकार करना पड़ा।
अपनी जा को खुश करने के िलए महाराजा ने भू-राज व म रयायत देन,े ाथिमक िश ा
का िव तार करने, सभी समुदाय को रा य क िनयुि य म िह सा देने और संवैधािनक
सुधार का एक उपाय पेश करने का बीड़ा उठाया, िजसम िवधानसभा भी शािमल थी।
क मीर िवधानसभा के िलए पहला चुनाव िसतंबर 1934 म आ। मई 1932 म क मीर
जैसी ही सम या अलवर रयासत म पैदा हो गई, अंतर के वल इतना था क सम या
क मीर के मुकाबले सां दाियक अिधक और आ थक कम थी। मुसिलम आवाम क बगावत
को कु चलने के िलए ि टश भारत से सैिनक को बुलाना पड़ा। महाराजा ने इस मदद का
वागत कया, ले कन जब ि टश सरकार ने अपनी शत116 थोपनी चाह तो महाराजा ने
झुकने से इनकार कर दया। महाराजा और ि टश सरकार के बीच कु छ समय तक िववाद
चलता रहा, ले कन अंतत: महाराजा को अपना रा य छोड़ने का आदेश दे दया गया। वह
आदेश आज मायने रखता है।
उस साल नवंबर 1932 म बमा के चुनाव प रणाम आ यजनक घटना रहे। चुनाव यह
फै सला करने के िलए कराए गए थे क या बमा भारत से अलग होने के प म है? एक
साल पहले, बमा कसान िव ोह का दंश झेल चुका था। यह ऐसी गंभीर बगावत थी, जैसी
1857 के िव ोह के बाद से कभी देखी नह गई थी। बगावत एक साल से अिधक समय तक
जारी रही। 1932 म हालात धीरे -धीरे शांत हो गए और आम चुनाव के िलए आदेश जारी
कए गए। इस आधार पर क मतदाता सूिचयाँ 1931 म तैयार क गई थ , जब ब त से
िजल म िव ोह क ि थित थी और अलगाववादी िवरोधी पाट (एंटी से ेशिन ट पाट )
क चुनाव म कोई िच नह थी, अलगाववाद िवरोधी नेता ने नई मतदाता सूिचय क
माँग क । सरकार ने इस अपील को खा रज कर दया और पुराने िनयम के तहत चुनाव
ए। ले कन अलगाववाद िवरोिधय को भारी ब मत िमला। जब नविनवािचत प रषद् क
दसंबर म बैठक ई तो काफ लंबी-चौड़ी बहस के बाद, िबना मत िवभाजन के , यह
ताव पा रत कया गया—
1. यह प रषद् 12 जनवरी, 1932 को बमा गोलमेज स मेलन म धानमं ी के बयान म
उि लिखत एक अलग बमा के िलए संिवधान के आधार पर भारत से बमा को अलग
करने का िवरोध करती है।
2. यह प रषद् भारत के साथ बमा के िबना शत और थायी संघ का जोरदार िवरोध
करती है।
3. यह प रषद् बमा को भारत से अलग करने का िवरोध तब तक करती रहेगी, जब तक क
बमा को कु छ शत (संशोधन म प रभािषत) पर एक संिवधान दान नह कया जाता।
िवक प म प रषद् का ताव है क बमा कु छ िनयम और शत पर भारतीय संघ म
वेश करे गा, िजसम अलग होने का अिधकार भी शािमल है।
4. प रषद् आ ह करती है क बमा के भिव य के संिवधान को प रभािषत आधार पर या
भारतीय संघ म एक इकाई के प म अलग होने के अिधकार के साथ, प रभािषत शत
के अनुसार एक अलग इकाई के प म िनधा रत करने के उ े य से एक स मेलन ज द-
से-ज द बुलाया जाए।
(उपबंध तीन और चार संशोधन थे, िज ह ताव म शािमल कया गया था)।
ले कन सरकार ने इस ताव क ा या एक ऐसे मत के प म क , जो भारत के साथ
िबना शत संघ के िलए नह दया गया था। और इसिलए वे यही कहते रहे क सशत संघ,
अथात् अलग होने के अिधकार के साथ संघ संभव नह था। सरकार क वतमान नीित बमा
को भारत से अलग करने क है और इस नीित के अनुसार, बमा को नवंबर- दसंबर 1932
म गोलमेज स मेलन के तीसरे स म सद य भेजने के िलए आमंि त नह कया गया।
नवंबर समाि क ओर था क एक ब त ही मह वपूण मामला िवचार के िलए इं िडयन
लेिज ले टव असबली के सम लाया गया—ओटावा समझौता। यह समझौता कनाडा के
ओटावा म अग त 1932 म ए इं पी रयल इकोनॉिमक कॉ स म भाग लेनेवाले भारत
सरकार ारा नािमत सद य ने कया था। समझौते का उ े य भारत पर सा ा य
वरीयता क एक योजना को लागू करना था, जहाँ भारत को ेट ि टेन को यह वरीयता
देनी थी क उसके आयात का कम-से-कम छ बीस ितशत कवर करे । ओटावा समझौते क
पुि के िखलाफ देश म काफ आ ोश था। ले कन असबली म रा वादी सद य क
अनुपि थित म समझौते को खा रज करवाना असंभव था। समझौते को वर सिमित को
भेज दया गया तथा सर एच.एस. गौड़ ारा पेश क गई अिधकांश रपोट को असबली ने
पा रत कर दया। समझौते क तीन साल क अविध के िलए पुि क गई थी और इसक
समाि पर मामले को िवचार के िलए फर से असबली के सम पेश करना होगा। साथ ही
यह भी व था क गई थी क सरकार को वरीयता के तहत भारत के आयात-िनयात के
भाव क समी ा करने के िलए एक वा षक रपोट तैयार करनी चािहए तथा इस रपोट
क असबली ारा िनयु 15 सद य क एक सिमित ारा जाँच-पड़ताल क जानी
चािहए। नए ओटावा शु क 16 जनवरी, 1933 से भाव म आए थे।
इस संबंध म इस बात पर गौर कया जाना चािहए क 21 िसतंबर, 1931 को इं लड
ारा गो ड टडड से अचानक बाहर िनकल जाने के कारण बॉ बे से 31 दसंबर, 1932
तक कए गए वण िनयात का कु ल मू य 1,05,27,60,190 पए (Rs. 13 ½ = £1 लगभग)
या करीब 1,053 िमिलयन पए था। चबस ऑफ कॉमस, वसाियय और नेता ने
सरकार से बार-बार अपील क क देश से बाहर हो रहे सोने के इस वाह को रोका जाए,
ले कन कोई फायदा नह आ। उदाहरण के िलए, महारा चबस ऑफ कॉमस ने अ ू बर के
अंितम दन म सरकार को िलखा क बक ऑफ इं लड के उदाहरण का अनुसरण करते ए
भारत को भी सोना खरीद लेना चािहए। चबर के अनुसार, चूँ क 1,752.6 िमिलयन पए
के नोट सकु लेशन के मुकाबले भारत का वण बुिलयन रजव के वल 112.3 िमिलयन पए
है, तो सरकार को यह सलाह देना सही होगा क वह अिधक सोना खरीदे।117
िसतंबर म असबली के सामने एक और मह वपूण मामला आया—आपरािधक कानून
संशोधन िवधेयक-1932। इस िवधेयक का उ े य वायसराय ारा जनवरी म लागू और
जून म िवशेष शि याँ अ यादेश-1932 के प म नवीकृ त अ यादेश को ‘ टैचूट बुक’
(कानून क पु तक) म शािमल करना था। अ यादेश दसंबर म समा हो रहा था तो ऐसे
म इसका या तो फर से नवीनीकरण कया जाना ज री था या इसे थायी प से ‘कानून
क पु तक’ म शािमल कर दया जाना चािहए था। इस िवधेयक के संबंध म, जैसा क
ओटावा समझौते के मामले म आ था, रा वादी सद य क अनुपि थित ब त महसूस क
गई, िज ह ने 1930 म इ तीफा दे दया था। िवधेयक ने पा रत कए जाने के बाद नवंबर म
कानून का प ले िलया।
अग त म ‘इं िडया लीग ऑफ लंदन’ का एक िश मंडल देश म राजनीितक हालात का
अ ययन करने के िलए भारत प च ँ ा, िजसम पूव सांसद िवि क सन और मोिनका हाटव,
िलयोनाड मैटस और कृ णा मेनन (सिचव) शािमल थे। भारत म अपने वास के दौरान
उ ह ने कोई सावजिनक भाषण नह दया और न ही ेस को कोई सा ा कार। के वल एक
बार महा मा गांधी के उपवास के मौके पर उ ह ने अपनी चु पी तोड़ी और ऐलान कया
—‘महा मा गांधी के हटने का अथ है—आधुिनक करण, शांित और ि टेन के ित िम ता
क दशा म काम करनेवाली एक महान् ताकत का अदृ य हो जाना।’
वष 1932 क सम ता से समी ा करनेवाला ि कह सकता है क इसक शु आत
उ साह और जोश के साथ ई थी। ले कन जैसा क महा मा गांधी के आंदोलन के साथ पहले
भी हो चुका था, इसका अंत िनराशा के साथ आ। महा मा का ‘महाउपवास’ एक मोड़ था
और उस ण से आगे सरकार को िनि त प से कां ेस का फायदा िमला। साल समा
होने को आ रहा था, तो उस समय अिधकतर कां ेस सद य के दमाग म यह िवचार
सव ाथिमकता के साथ घूम रहा था क अ पृ यतारोधी आंदोलन को कै से आगे बढ़ाया
जाए? और इसके िलए कां ेस नेता के कहने पर कई मंच से ताव पा रत कए जा रहे
थे, िजनम वायसराय से म ास लेिज ले टव काउं िसल और इं िडयन लेिज ले टव असबली
म मं दर- वेश िवधेयक को मंजूरी दए जाने को कहा गया था। वा तव म सिवनय
अव ा!

14
पराजय और समपण (1933-34)
न ववष क भात वेला म कां ेस नेता , िजनक सोच राजनीितक अिधक थी, उ ह इस
बात का अहसास होना शु हो गया क सिवनय अव ा आंदोलन पर िवफल होने का
खतरा मँडरा रहा है। इसिलए लोग म पुन: जोश भरने के िलए 26 जनवरी, 1933 को
वतं ता दवस समारोह का आयोजन बड़े धूमधाम से कया गया। हर थान पर इसक
उ साहवधक ित या िमली। अके ले कलक ा म ज को लेकर हो रहे दशन को िवफल
करने के िलए बल- योग के अित र पुिलस को 300 लोग को िगर तार करना पड़ा।
बंगाल के गली िजले के आरामबाग परगना के बदनगंज म पुिलस को कां ेसी
दशनका रय को खदेड़ने के िलए गोली चलानी पड़ी। वतं ता दवस समारोह के बाद
मिहला के एक दशन क अगुआई करने के जुम म 7 फरवरी को ीमती गांधी को
गुजरात के बोरसाद म िगर तार कर छह महीने के कारावास क सजा सुनाई गई।
भारतीय संवैधािनक सुधार के संबंध म 17 माच को जैसे ही सरकारी ताव को शािमल
करनेवाले ेत-प क घोषणा क गई, कलक ा म भारतीय रा ीय कां ेस का वा षक
स आ त कर दया गया। पं. मदनमोहन मालवीय इस स के िलए अ य िनवािचत
कए गए थे। 1932 के द ली स क तरह ही तुरंत कां ेस स पर ितबंध लगा दया
गया, ले कन 11 अ ैल को इस स म शािमल होने के िलए देश के सभी िह स से
िश मंडल और नेतागण एक हो गए। मह वपूण कां ेस नेता, िज ह आसानी से पहचाना
जा सकता था, उनम पं. मालवीय, ीमती मोतीलाल नेह , एम.एस. ऐने (म य ांत),
डॉ. आलम (पंजाब), डॉ. सैयद महमूद (िबहार) शािमल थे। ीमती नेह को छोड़कर ये
सभी कां ेस कायसिमित के सद य थे। त प ात् ीमती जे.एम. सेनगु ा 2,500 कां ेिसय
क अ य ता म बैठक आयोिजत करने के िलए िनयत थान पर चली ग और उनक
अ य ता म बैठक आयोिजत क गई। (1) वतं ता का ल य, (2) इस ल य क ाि के
िलए सिवनय अव ा क प ित क भावका रता, (3) िवदेशी कपड़ और सभी कार क
ि टश व तु के बिह कार क पुन: पुि करते ए ताव पा रत कए गए। सवािधक
मह वपूण ताव म पुरजोर श द म ेत-प ताव क नंदा क गई थी। बैठक
समाि से पूव, भारी सं या म पुिलस द ते वहाँ आन प च ँ े और ीमती सेनगु ा तथा 40
अ य मिहला समेत 250 लोग को िगर तार कर िलया और बैठक बलपूवक बंद करा दी
गई। अ य िनवािचत आदरणीय पं. मालवीय के भाषण के िन अंश उस समय देश क
भावना को ित बंिबत करते ह—
‘अनुमान है क िपछले पं ह महीन के दौरान कई हजार मिहला और काफ सं या म
ब सिहत लगभग 1,20,000 ि य को िगर तार कर जेल म डाल दया गया। यह
एक खुला रह य है क जब सरकार ने दमन शु कया था तो उसे उ मीद थी क वह छह
स ाह के भीतर कां ेस को कु चल देगी। पं ह महीन म भी सरकार उस उ े य को ा
करने म स म नह हो सक । दो बार, 15-15 महीने म भी वह ऐसा नह कर पाएगी।’
यह कसी युवा और गरम खूनवाले ि क समी ा नह थी, बि क कां ेस के
सवािधक व र और सवािधक उदारवादी नेता म से एक का िव ेषण था। िलहाजा,
1932 और 1933 म कां ेस क अपील पर देश ने जो जवाब दया था, उसे कसी भी
िलहाज से असंतोषजनक नह कहा जा सकता—बावजूद इसके क तैयारी का अभाव था,
बावजूद इसके क कां ेस पाट के बंधक और फाइनसर को जनवरी 1932 क शु आत
म ही अचानक िगर तार कर िलया गया था, बावजूद इसके क महा मा के िसतंबर 1932
के उपवास तथा अ पृ यता िवरोधी आंदोलन ने मतभेद पैदा कर दए थे—देश क
ित या अभूतपूव थी। ले कन मई क एक सुबह देश ह ा-ब ा रह गया—यह वह या
सुन रहा था?—महा मा ने अचानक सिवनय अव ा आंदोलन थिगत कर दया था!
जेल म रहने के दौरान महा मा ने ायि के तौर पर तीन स ाह का उपवास118 करने
का फै सला कया था, य क उनके अनुयाियय ने अ पृ यता िवरोधी आंदोलन म पया
गित नह क थी। उपवास का उ े य लोग का दय प रवतन करना था—नौकरशाही
म नह , बि क अपने देशवािसय का—जो अ पृ य /अछू त क दयनीय दशा के िलए
िज मेदार थे। सरकार को इस कार के उपवास पर कोई आपि नह थी और त य क
बात यह है क ि टश समाचार एजिसय क बदौलत यूरोपीय ेस119 म उपवास को
ापक चार दया गया, य क इससे भारतीय लोग के अंद नी मतभेद को िव ािपत
करने म मदद िमली। ले कन सरकार ने उ ह रहा करने म ही चतुराई समझी। अपनी
रहाई के एक दन बाद उ ह ने एक घोषणा क , िजसका िज ऊपर कया गया है।120
सबसे पहले सिवनय अव ा आंदोलन को छह स ाह के िलए िनलंिबत कया गया, ले कन
यह िनलंबन और छह स ाह के िलए, जुलाई के अंत तक बढ़ा दया गया। िबना कसी तक
या कारण के अिभयान का अचानक िनलंबन, सामा य प रि थितय म कां ेस संगठन म
ापक िव ोह पैदा करता, ले कन चूँ क वे उपवास के बीच म थे, िजसका अंत घातक हो
सकता था, तो ऐसे म उसका कसी कार से आकलन करना फलहाल के िलए टाल दया
गया। सिवनय अव ा आंदोलन को िनलंिबत करते ए, महा मा ने भारत सरकार से
अ यादेश को वापस लेने और सिवनय अव ा आंदोलन के कै दय क रहाई क अपील
क । ले कन दुभा य से, एक ि थर सरकार नीित क िनरं तरता को बरकरार रखती है और
अपनी नीित को कसी एक ि क तरह रातोरात नह बदल सकती। इसिलए सरकार
का जवाब न म आया। मई 1933 म महा मा के आ मसमपण के बाद, जब भारत म
िज मेदार कां ेसी नेता उनके िखलाफ बोलने से डरते थे या अिन छु क थे तो महा मा के
फै सले क नंदा करते ए दवंगत िव लभाई जे. पटेल121 ने और िवयना से लेखक ने एक
घोषणा-प जारी कया। घोषणा-प म कहा गया क इस फै सले ने एक कार से िपछले
13 साल म कए गए काय और बिलदान पर पानी फे र दया। इसम सिवनय अव ा
आंदोलन क िवफलता के साथ ही महा मा गांधी के नेतृ व क िवफलता को भी रे खां कत
कया गया। इसिलए अब यह अिधक क रपंथी नीित और नेतृ व को अपनाने का समय था।
ले कन जनता महा मा गांधी के वा य क सम या म उलझी थी तो इसके चलते घोषणा-
प का वह भाव नह पड़ा, जो सामा य हालात म पड़ता। यहाँ तक क िम ने भी यही
सोचा क जब उपवास के कारण महा मा का जीवन संकट म था तो ऐसे समय म
आलोचना करना अपमानजनक था।
जुलाई म मह वपूण नेता , जो उस समय जेल से बाहर थे, उनका पूना म एक स मेलन
आ। इसे अिखल भारतीय कां ेस सिमित क अनिधका रक बैठक समझा जा सकता है।
स मेलन म दो समूह थे—एक आंदोलन को पूरी तरह ख म करने के प म, तो दूसरा इसे
पूरे जोश के साथ चलाने के प म। पहला समूह संभवत: ब मत म था और इस समूह के
अिधकतर सद य िवधानमंडल के भीतर संघष करने क वराजवादी नीित को पुनज िवत
करने के पैरोकार थे, जो क दसंबर 1929 म लाहौर कां ेस के बाद से याग दी गई थी।
ले कन अंत म स मेलन म महा मा के प म पीछे हटने का फै सला कया गया। उनके कहने
पर यह फै सला कया गया क महा मा को वायसराय से वा ा का एक और यास करना
चािहए तथा उनके साथ एक कार क समझ कायम करनी चािहए। अगर यह यास
िवफल हो जाता है तो कां ेस को ‘ ि गत सिवनय अव ा’ शु करना चािहए, ले कन
‘ ापक जन’ सिवनय अव ा को पूरी तरह छोड़ दया जाना चािहए। इसका मकसद था
क कां ेस को कोई भी जनआंदोलन आयोिजत नह करना चािहए और कसी भी कानून
को तोड़ने का फै सला ि गत पसंद और ि गत िज मेदारी पर छोड़ देना चािहए।
पूना स मेलन के तुरंत बाद महा मा ने वा ा के िलए वायसराय से संपक कया, ले कन
बदले म उ ह के वल अपमानजनक फटकार ही िमली। इसके चलते महा मा और उनके
करीबी अनुयाियय ने ि गत प से सिवनय अव ा शु कर दया और अग त 1933
तक वे फर से जेल के भीतर थे। इस बार महा मा गांधी को जेल म कै द कए जाने से भी
कोई बड़ी हलचल पैदा नह ई।
‘ ि गत सिवनय अव ा’ को महा मा के क र िन ावान अनुयाियय ने देशभर म
चा रत कया और इसके चलते सैकड़ लोग को पुन: जेल म डाल दया गया। ले कन
नतीजा पहले से ही पता था क जब ापक सिवनय अव ा आंदोलन िवफल हो चुका था
तो ि गत सिवनय अव ा का भी कोई सराहनीय भाव पैदा नह होना था। जेल म
प च ँ ने पर महा मा ने पाया क िसतंबर 1932 म उ ह जेल क दीवार के भीतर से
अ पृ यता िवरोधी आंदोलन चलाने क जो अनुमित दी गई थी, वैसी सुिवधाएँ इस बार
उपल ध नह कराई ग ।122 इसिलए उ ह ने सरकार को नो टस दया क य द वैसी ही
सुिवधाएँ नह दी ग तो उ ह उपवास करने पर मजबूर होना पड़ेगा। महा मा के इस
कार के आचरण को समझ पाना एक आम आदमी के िलए मुि कल है, िजनका क
जीवनभर यह िस ांत रहा है क एक स या ही कै दी को वैि छक प से जेल के
अनुशासन का पालन करना चािहए। ले कन सरकार ने एक बार फर से वयं को असहज
ि थित म पाया। उस समय तक उ ह समझ आ चुका था क ि गत सिवनय अव ा
िवफल होने जा रहा है और इसिलए महा मा को रहा करने म कोई खतरा नह होगा। तो
महा मा एक बार फर से आजाद ि थे। जेल से रहाई के बाद, महा मा ने घोषणा कर
दी क चूँ क उ ह अग त 1933 म एक साल के कारावास क सजा सुनाई गई थी, और
चूँ क उ ह सजा क अविध पूरी होने से पूव ही सरकार ारा रहा कर दया गया था तो वे
वयं को अग त 1934 तक एक कै दी ही मानगे और इस अविध के दौरान वे सिवनय
अव ा नह करगे।
सिवनय अव ा क पेशकश से पूव महा मा ने जुलाई म यह कहते ए एक बयान जारी
कया था क कां ेस के मामल और सिवनय अव ा आंदोलन के बंधन म ब त अिधक
गोपनीयता थी और यह गोपनीयता ही कां ेस क िवफलता का कारण थी। महा मा गांधी
के िवचार म कां ेस संगठन इकाइयाँ बन चुके थे। इसके तुरंत बाद महा मा के कहने
पर कां ेस के कायवाहक अ य , एम.एस. ऐने ने देश म सभी कां ेस संगठन को भंग
करने के आदेश जारी कर दए। म क ि थित और गहरा गई! लोग या करते? एक आम
इनसान क बुि महा मा के तक को समझ नह पा रही थी और िजनसे उ मीद क जाती
थी क वे संकट क इस घड़ी म सीधी-स ी बात कहगे, वे उपल ध नह थे, पं. जवाहरलाल
नेह दो साल क जेल क सजा काटकर रहा ए थे। सभी क िनगाह उन पर जा टक ।
वही एक ि थे, जो महा मा गांधी को भािवत कर सकते थे—जो कां ेस को इस
अराजक ि थित से िनकाल सकते थे, िजसम वह िगर चुक थी। पं. नेह ने महा मा के
साथ लंबी वा ा क और उसके बाद प का आदान- दान आ। यह प ाचार िविधवत्
प से कािशत आ, ले कन अवलोकन करने पर पता चला क यह ावहा रकता के
िवपरीत सै ांितक अिधक था। जनता त काल यह जानने को बेचैन थी क कां ेस को पुन:
जीवनदान और जोश कै से ा हो? उसे इस बात से कोई मतलब नह था क पं.
जवाहरलाल नेह और महा मा गांधी मूलभूत प से कन बात पर एक-दूसरे से सहमित
या असहमित रखते थे! अपनी चार माह क आजादी के दौरान पं. नेह ने अपने
समाजवादी या क युिन ट िवचार के ित खुलकर बोला और िलखा, ले कन कां ेस म
पुनज वन क कोई हरकत नजर नह आ रही थी। एक अ यंत रोचक और सारग भत लेख
म, िजसका शीषक ‘ हाइटर इं िडया?’ था, उ ह ने िवशेष वग के सभी िवशेषािधकार
और िनिहत वाथ क समाि के िलए सामािजक और आ थक समानता क अपील क ,
ले कन इससे कां ेस को कोई फायदा नह आ। लोकि यता के िलहाज से नेह , महा मा
के बाद दूसरे पायदान पर थे, देशवािसय के म य उनक ित ा असीम थी, प दमाग
के साथ े िवचार के वे वामी थे, आधुिनक िव क पल-पल क तमाम घटना का
उ ह ान रहता था—ऐसे ि व के वामी होने के नाते, नेतृ व के आव यक गुण क
ज रत होने पर जहाँ उनका नाम आना चािहए था, फै सले लेने क मता का सवाल होने
पर जब िनगाह उनक ओर उठनी चािहए थ , ज रत पड़ने पर ऐसे नेतृ व म जब
अलोकि यता का भी सामना करने क मता होनी चािहए थी123—तो उ ह ने बेहद
िनराश कया। ले कन इसका कु छ कया नह जा सकता था। नेह से जो उ मीद क गई
थी, वह उ मीद एक ऐसे ि ने पूरी क , िजनका कद उतना बड़ा नह था।
पं. नेह के बाद, बॉ बे के नेता के .एफ. नरीमन को रहा कया गया और िबना कसी
देरी के उ ह ने जुलाई 1933 के पूना स मेलन के फै सले पर अपने िवचार 124 को सावजिनक
प से अिभ करना शु कर दया। वायसराय ने महा मा को िबना शत वा ा से
इनकार कर दया था और इसी के चलते अग त 1933 म सिवनय अव ा आंदोलन शु
करने के महा मा के फै सले का िज करते ए नरीमन ने कहा, ‘वा ा या मौत’ इस समय
का रा ीय नारा है—िपछले अग त म फर से शु क गई लड़ाई वराज के िलए नह है,
न ही राजनीितक-संवैधािनक गित के िलए, बि क िबना शत वा ा के ‘रा ीय अिधकार’
पर दबाव बनाने के िलए है। अगर इस अिधकार को मान िलया जाता है तो संशाेिधत
ि गत संघष को भी समा कर दया जाएगा और कां ेस का राजनीितक मकसद हल
नह आ है, ले कन इसके बावजूद सरकार और जनता के बीच शांित बहाल हो जाएगी।
गोपनीयता क महा मा ारा नंदा कए जाने का िज करते ए उ ह ने ट पणी क
—‘आधुिनक यु या खेल का कौन सा िनयम है, जो कहता हो क हम दु मन को अपनी
योजना और रणनीितय का खुलासा करने के िलए बा य ह? ले कन म भूलता ँ क यह
एक धा मक लड़ाई है, राजनीितक नह ; इसिलए न तो खेल के िनयम और न ही आधुिनक
यु क तोप के िनयम लागू होते ह! अपनी योजना और भावी काररवाइय क
गोपनीयता सभी आधुिनक रा ीय आंदोलन और संघष का मूल है। ‘ ापक’ आंदोलन को
समा करने, ले कन ‘ ि गत’ सिवनय अव ा को जारी रखने के फै सले पर उ ह ने कहा
—‘ या कसी ि को अपनी िज मेदारी से कानून तोड़ने और प रणाम भुगतने के िलए
कहने क खाितर भारतीय रा ीय कां ेस क ज रत है?...अपने चयन के अनु प काय
करने और उसके प रणाम को वहन करने क शा त वतं ता ि को आदम के जमाने
से ा है।’ फर उ ह ने महा मा के इस कथन पर िवचार कया क ‘एक ि ारा भी
इसे (सिवनय अव ा) जारी रखा जाना सुिनि त करता है क यह ऐसे थायी जन
आंदोलन के प म पुनज िवत है क कतना ही दमनच य न चलाया जाए, इसका
दमन नह होगा।’ और नरीमन ने इसके िवपरीत पुरजोर श द म कहा—‘य द यह ‘एक
ि ’ क योरी सही थी तो इस सवािधक ेरणादायी, अिव मरणीय, दल दहला
देनेवाले, रा भि और नायक व के े उदाहरण के बाद भारत के साथ ही आयरलड का
कायापलट हो जाना चािहए था। (वे टेरस मैकि वनी और जितन दास के आ म-बिलदान
का उ लेख कर रहे थे) ...सारी ांित फर से उसी अि थर िस ांत और फसलन भरी न व
पर आधा रत है—‘ दय प रवतन’ योरी का ऊपर पटा ेप हो चुका है क अं ेज का
दल पसीज जाएगा और वे माँग को वीकार कर लगे। सभी कां ेस संगठन को भंग या
िनलंिबत करने के फै सले क आलोचना करते ए उ ह ने कहा—‘लोकि य मतदान ारा
अि त व म आई नेशनल असबलीज को कोई भंग नह कर सकता।’ आिखर म उ ह ने
सवाल कया—‘हम गांधीजी को इस आदत को छोड़ने के िलए कै से समझा सकते ह,
िजसम सुधार लगभग असंभव है...लगातार भूल करते जाना, धम और राजनीित का
घालमेल करना?’ नरीमन का िवचार था क इसका समाधान गांधीजी के िलए दवंगत पं.
मोतीलाल नेह का कोई िवक प ढू ँढ़ने म था, एक और राजनीितक कायपालक—साफ
और सीधी बात बोलनेवाला मुखर, िवशाल ि व...मुँह म दही जमाकर बैठनेवाले
पुतले नह , जो गांधीजी क इ छानुसार मुंडी िहलाते ह , िजधर महा मा चाह, उधर ही
मुँह उठाकर चल पड़ते ह ।’
यह एक ताजा झ के क तरह और दल को छू नेवाला था क चलो, कां ेस कायसिमित म
कम-से-कम एक आदमी तो है, जो िनभ क सोच रखता है और िजसम गलत को गलत कहने
का साहस है! ले कन नरीमन के शानदार िव ेषक होने के बावजूद वे काररवाई करने म
कमजोर थे। मौजूदा गितरोध को दूर करने के िलए अिखल भारतीय कां ेस सिमित क
बैठक बुलाने के उनके सुझाव को पाट महासिचव पं. नेह ने गंभीरतापूवक नह िलया
और जब जनवरी 1934 म पं. नेह को कलक ा म एक किथत प से रा ोही भाषण
देने पर जेल म बंद कर दया गया तो अंधकारमय ि ितज पर कोई रोशनी क करण नजर
नह आ रही थी। ि थित को सँभालने क िज मेदारी द ली के मुसिलम नेता डॉ. एम.ए.
अंसारी पर छोड़ दी गई। 1933 म अपनी इं लड क या ा के दौरान कं जरवे टव नेता के
घमंड और यह कहने से क कां ेस ख म हो चुक है, उ ह बड़ा दु:ख और अपमान महसूस
आ था। भारत लौटने पर जब उ ह ने पाया क कां ेस लकवा त हो चुक है तो अपमान
और पीड़ा क वह भावना और बलवती हो गई। उ ह ने महा मा से कां ेस म फर से जान
फूँ कने क अपील क और कलक ा के डॉ. बी.सी. राॅय के साथ िमलकर उ ह ने अपनी सोच
के अनुसार कां ेस नेता का माच 1934 म द ली म एक स मेलन बुलाया। तब तक
सिवनय अव ा आंदोलन मृत ाय हो चुका था, ले कन कां ेस अ यादेश के चलते
कामकाज नह कर सकती थी और सरकार सिवनय अव ा आंदोलन को िबना शत वापस
िलये जाने तक अ यादेश को वापस नह लेनेवाली थी। इस मुसीबत से िनकलने का के वल
एक ही रा ता बचा था क कां ेस नेता िवन ता के साथ माफ माँग, सिवनय अव ा
आंदोलन को ख म कर और इस कार अ यादेश का िनलंबन या उनक वापसी सुिनि त
कराएँ। िवधानमंडल 125 के चुनाव लड़ने के िलए अिखल भारतीय वराज पाट को
पुनज िवत करने का संक प लेकर द ली कॉ स म इसके िलए आधार तैयार कर दया
गया था। अगले महीने इसी िवषय को आगे बढ़ाने के िलए एक बड़ा स मेलन आ त कया
गया और इसके िलए राँची (िबहार) को चुना गया, य क महा मा उस समय वह ह गे।
कॉ स म अिखल भारतीय वराज पाट को फर से खड़ा करने के संबंध म द ली म िलये
गए फै सले क पुि कर दी गई और मु य तावक डॉ. अंसारी तथा राय महा मा गांधी
का समथन ा करने म सफल रहे। अगले महीने, लगभग तीन साल के अंतराल के बाद,
पटना म अिखल भारतीय कां ेस सिमित क एक बैठक बुलाई गई। बैठक म एक ऐसा
अचरज आ क जनता हैरान रह गई—महा मा गांधी ने वयं यह िवचार पेश कया क
कां ेस नेता को िवधानमंडल म वेश करना चािहए। इस त य के म ेनजर इस फै सले
का मह व था क इसी बीच सरकार ने इं िडयन लेिज ले टव असबली को भंग कर नवंबर म
आम चुनाव कराने का फै सला कया था। अिखल भारतीय कां ेस सिमित ने फै सला कया
क वराज पाट को काम करने क अनुमित देने के बजाय कां ेस को वयं यह िज मेदारी
उठानी चािहए और इस कार चुनाव लड़ने के िलए एक संसदीय बोड क थापना क
गई। सिमित ने इसके साथ ही सिवनय अव ा आंदोलन को बंद करने का फै सला कया,
हालाँ क महा मा के पास सिवनय अव ा126 क पेशकश करने का अिधकार बरकरार रहा।
एक बार फर सरकार को पहले से ही पता चल गया क अिखल भारतीय कां ेस सिमित
का या फै सला होगा और इसिलए सावजिनक प से सिमित क बैठक आयोिजत करने के
रा ते म कोई बाधा नह खड़ी क गई, हालाँ क अभी भी वह गैर-कानूनी इकाई थी। बैठक
के बाद, जब सरकार को महसूस आ क कां ेस क पराजय और अपमान पूरा हो गया है
तो उ ह ने देश म अिधकतर कां ेस संगठन पर से ितबंध वापस ले िलया और उ ह
संचालन क अनुमित दान कर दी।
आगामी चुनाव लड़ने का अिखल भारतीय कां ेस सिमित का फै सला िन वरोध नह था।
एक मजबूत समूह इसके िवरोध म खड़ा था—ले कन इस बार यह पुरानी ‘नो चजस’ पाट
िवरोध नह कर रही थी, य क पाट के नेता, महा मा वयं प रषद् म वेश के ताव
के ायोजक थे—यह िवरोध नवग ठत कां ेस सोशिल ट पाट क ओर से था। जब अिखल
भारतीय कां ेस सिमित िवचार-िवमश कर रही थी तो िवरोधी प अपनी पाट का
अिखल भारतीय स मेलन कर रहा था। इस पाट को भारत के सभी िह स से अ छे-खासे
सहयोग के साथ ही संयु ांत तथा बॉ बे से भी मजबूत समथन हािसल था। जैसी क
सूचना उपल ध है, ऐसा तीत होता है क कां ेस सोशिल ट पाट ने न के वल उन लोग
को एक मंच उपल ध कराया है, जो अपनी आ था और धारणा से सोशिल ट ह, बि क उन
लोग को भी, जो काउं िसल म वेश क कां ेस क नीित से असंतु थे। यह दुभा यपूण है
क काउं िसल म वेश का िवरोध सोशिल ट पाट क ओर से आ, य क य द ऐसी नीित
को अ यथा समीचीन समझा जाता है तो िवधानमंडल के भीतर अपने संघष को जारी
रखने म कु छ भी समाजवादी िवरोधी नह था। ले कन ऐसा हो सकता है क कां ेस म कु छ
क रपंथी ताकत का ितिनिध व करनेवाली सोशिल ट पाट ने सहज प से एक ऐसी
पाट का िवरोध करने क ज रत महसूस क हो, िजसने सभी उदारवादी त व को एक
कर िलया था। और इस बात म कोई संदह े नह है क जो 1934 म वराजवा दय के
पुन थान म मह वपूण भूिमका िनभा चुके ह, वे उस उ वादी समूह से िभ मता के ह,
जो 1923 म वराज पाट क रीढ़ आ करते थे। यहाँ इस बात पर गौर करना रोचक है क
1928 क तरह ही, जब पूववत वराजवा दय और ‘नो चजस’ ने वतं तावाल के
िखलाफ साझा िहत बना िलया था—वैसा ही 1934 म भी आ, ऐसा लगता है क ये दोन
समूह साझा दु मन के िखलाफ एकजुट हो गए ह। हालाँ क कु छ मामल म कां ेस
सोशिल ट पाट चालीस या पचास साल पहले लोकि य रहे िवचार और परं परा का
सहारा लेती रही है, ले कन रा वादी आंदोलन म यह क रपंथी सोच के साथ खड़ी है और
ऐसी पाट का गठन इस समय क सबसे बड़ी आशावादी िवशेषता है। नवीनतम रपोट से
पता चलता है क पाट का संगठन अिधकांश ांत म बढ़त बना रहा है और हाल ही म
बॉ बे कां ेस सिमित के चुनाव म समाजवा दय का दावा है क उ ह ने आधी सीट पर
क जा कर िलया है।
समाजवा दय के खतरे के बावजूद कां ेस के आिधका रक समूह म मेल-िमलाप नह
रहा है। मई म पटना बैठक के बाद, बॉ बे और बनारस म ई कायसिमित क बैठक म
ि टश सरकार के तथाकिथत ‘सां दाियक फै सले’ के ित जो दृि कोण अपनाया जाना
चािहए था, उसे लेकर मतभेद उभरे थे। पं. एम.एम. मालवीय और एम.एस. ऐने का कहना
था क ेत-प क तरह ही सां दाियक फै सले क भी कड़ी नंदा क जानी चािहए। बाक
कायसिमित ने मुसिलम सद य के भाव के चलते कहा क कां ेस को ‘सां दाियक फै सले
को न वीकार करना चािहए और न ही अ वीकार करना चािहए,’ हालाँ क उ ह ने
वीकार कया था क फै सला पूरी तरह बकवास था। यह कहना मुि कल है क कां ेस म
मुसिलम नेता ने यह रवैया य अपनाया है—खासतौर से तब, जब कराची कां ेस के
बाद हर कसी को याद है क ये ही वे लोग ह, िज ह ने अपने कड़े ख के कारण महा मा
को सां दाियक मुसिलम के िलए पृथक् िनवाचक मंडल क माँग को वीकार करने से रोक
दया था? कारण जो भी हो, त य आज भी यही है क उ ह ने कायसिमित पर िप तौल
तानी ई है—और उनके ही जोर देने पर सिमित को मजबूरी म यह हा या पद रवैया
अपनाना पड़ा है क फै सले को न वीकार करा और न ही अ वीकार। आमतौर पर फै सले
को अ वीकार न करने के प म जो तक दया जाता है, वह दोहरा तक है। पहला तक यह
क कां ेस को देश म सभी पा टय का ितिनिध व करना चािहए, िजसम सं दायवादी
मुसिलम भी शािमल ह और दूसरा यह क जब तक पा टयाँ एक वीकाय समाधान पर
नह प च ँ जात , मौजूदा समाधान कायम रहना चािहए। दोन ही तक िम या ह। कां ेस
देश म सभी प क नुमाइं दगी नह करती—उदाहरण के िलए, यह वफादार क
नुमाइं दगी नह करती, चाहे वे हंद ू ह या मुसिलम। दूसरा, यह एक बुरे समाधान को
अ वीकार करना है, जो हम एक अ छे समाधान पर प च ँ ने को मजबूर करे गा। ेत-प
क तरह सां दाियक फै सले को सीधे खा रज कया जाना चािहए— फर चाहे कोई
वैकि पक समाधान त काल उपल ध है या नह । इतना ही नह , यह ‘सभी प ’ वाला
िवचार झूठा और खतरनाक िवचार है। जो पाट वतं ता के िलए संघष कर रही है,
एकमा वही संिवधान तैयार करने के िलए िज मेदार है। और जहाँ तक सां दाियक
सवाल का संबंध है, कां ेस समाधान पहले से ही उपल ध है। वह जैसा भी हो सकता है,
वतमान प रि थितय म कोई भी इस िन कष तक मुि कल से ही प च ँ ेगा क रा वादी
मुसिलम धीरे -धीरे —हो सकता है क अनजाने म ही—अपने सां दाियक सहध मय के
अनु प आ रहे ह। कसी समझौते पर प च ँ ने के सभी यास िवफल हो चुके ह।
पं. मालवीय और ऐने ने कां ेस कायसिमित और संसदीय बोड से इ तीफा दे दया और
एक दल—कां ेस नेशनिल ट पाट —का गठन करने के िलए आगे बढ़ गए, िजसका मकसद
सां दाियक फै सले और ेत-प के िखलाफ संघष करना था। इस पाट ने 19 अग त को
पं. एम.एम. मालवीय क अ य ता म कलक ा म अिखल भारतीय स मेलन का आयोजन
कया— वागत सिमित के अ य सर पी.सी. रॉय थे, जो क एक जाने-माने रसायनिवद्
और परोपकारी ि थे। स मेलन सफल रहा और यह प था क बंगाल म लोग के
िवचार—िवशेष प से हंद ू समुदाय के िवचार—पाट के साथ थे। बंगाल के हंद ु क
एक जायज िशकायत थी, य क सां दाियक फै सले के कारण उ ह नई िवधाियका म 250
म से के वल 80 सीट आवं टत क गई ह, जब क मुसिलम को 119 सीट127 दी गई ह। पूना
समझौता, जो क महा मा के उपवास के दौरान संप आ था, उसम इन 80 सीट म से
दिलत वग को 30 सीट आवं टत क गई थ , जब क सां दाियक फै सले म इनके िलए 10
सीट का ावधान कया गया था। यह तो तब था, जब बंगाल म दिलत का मु ा
बमुि कल ही अि त व म था। इसिलए बंगाल के हंद128 ू इस बात से बेहद अपमािनत
महसूस कर रहे ह क कायसिमित ने सां दाियक फै सले को अ वीकार नह करने का
फै सला कया है। इस समय यह कहना मुि कल है क चुनाव का या नतीजा होगा? यह
भिव यवाणी करना थोड़ा सुरि त हो सकता है क हंद ु के िलए िनवािचत होनेवाली
अिधसं यक सीट पर आिधका रक कां ेस पाट क जा जमा लेगी। भले ही कां ेस
नेशनिल ट पाट के पास कम सीट ह गी, ले कन उनके पास अपने चार और असबली म
अपने कामकाज म हंद ू समुदाय का मजबूत समथन होगा। गैर-सां दाियक मामल म एक
ही लॉबी म दो कां ेस समूह िमलगे। जहाँ तक रा वादी मुसिलम का संबंध है, उनके ठीक-
ठाक सं या म सीट पर क जा जमाने क उ मीद है।
कां ेस कायसिमित और कां ेस संसदीय बोड क िपछली बैठक 8, 9 और 10 िसतंबर को
वधा (म य ांत) म ई थी। अंितम ण म कां ेस के दोन समूह के बीच समझौता
कराने का यास आ, ले कन बात िसरे नह चढ़ सक । इस बैठक म पता चला क महा मा
स य राजनीित से सं यास लेने के बारे म गंभीरता से सोच रहे थे। पहले तो यही संदह े
आ क सां दाियक फै सले को लेकर कां ेस नेता के बीच िवघटन ने उ ह भीतर तक
िवचिलत कर दया था। ले कन उनके एक वफादार िसपहसालार, म ास के
राजगोपालाचारी ने यह कहते ए 7 िसतंबर को एक बयान जारी कया—‘इस अफवाह
का कारण, क गांधीजी कां ेस का नेतृ व छोड़ रहे ह, इस त य म पता लगाया जा सकता
है क गांधीजी कां ेस के संिवधान म सुधार करने के बारे म सोच रहे थे, ता क इसे सभी
कार क हंसा से िनि त प से मु कया जा सके ...य द कां ेस उनके सुधार को नह
अपनाती है तो वे आगामी कां ेस स के बाद यहाँ तक भी तैयार हो सकते ह क एक
वतं संगठन शु कया जाए, िजसके कायकता पूरी कड़ाई के साथ अ हंसक ह ।’ करीब
दस दन बाद, महा मा ने सं यास लेने संबंधी अफवाह क पुि करते ए एक बयान जारी
कया, ले कन कहा क िम के आ ह पर उ ह ने बॉ बे म कां ेस स के बाद तक के िलए
अपना फै सला थिगत कर दया है। उ ह ने कां ेस पदािधका रय म ाचार का उ लेख
कया और ऐलान कया क वे कां ेस के संिवधान म िन तीन संशोधन का ताव करते
ह—
1. कां ेस के उ े य क ाि के साधन के िलए ‘वैधािनक और शांितपूण’ श द के थान
पर ‘स ाई और अ हंसक’ श द को बदलना।
2. चार आना (अ ा एक पए का सोलहवाँ िह सा है; लगभग 13½ = £ 1 लगभग)
सद यता शु क129 के थान पर अब हर कां ेस सद य के िलए यह अिनवाय होगा क
वह 8,000 फ ट अ छी तरह सधे ए सूत के कम-से-कम पं ह काउं ट कातेगा।
3. कां ेस के चुनाव म कोई भी ऐसा ि मतदान का हकदार नह है, जो कां ेस के
रिज टर म छह महीने नह रहा हो और इस अविध के दौरान उसने आदतन ख र नह
पहना हो।
महा मा ने यह आशंका जताते ए अपनी बात समा क क उनका सुझाव अिधकतर
लोग को वीकाय नह होगा, ले कन कु छ रयायत क संभावना है और य द वे लोग उ ह
अपने नेता के तौर पर चाहते ह तो उ ह उनके ताव पर िविधवत् प से िवचार करना
होगा।
भारतीय रा ीय कां ेस का वा षक स बॉ बे म 26, 27 और 28 अ ू बर, 1934 को
होना है और मौजूदा संिवधान के तहत इं िडयन लेिज ले टव असबली के चुनाव नवंबर म
होने ह। जनवरी 1930 म कां ेस पाट क असबली से वयं को अलग करने ने सरकार के
िलए तीन साल के िलए असबली ारा ओटावा समझौते क पुि करना और सिवनय
अव ा आंदोलन को दबाने के िलए अ यादेश को कानून क पु तक म शािमल कराना
संभव बना दया। असबली म एक बार फर से कां ेस क मौजूदगी से सरकार के िलए
फर से श मदगी का कारण बनेगी, ले कन सरकार के पास उस समय उ ह त रखने के
िलए देश म कोई कानून तोड़ने का आंदोलन नह होगा। जहाँ तक आगामी कां ेस स का
संबंध है, दो मु पर तगड़ा संघष होने क संभावना है। पहला, कां ेस नेशनिल ट पाट
अिखल भारतीय कां ेस सिमित और कां ेस के पूण अिधवेशन म सां दाियक फै सले को
अ वीकार करने क अपील करे गी। दूसरा, कां ेस सोशिल ट पाट एक सोशिल ट काय म
अपनाने के िलए दबाव बनाएगी। दोन ही यास का िवफल होना तय है। इन दोन ही
सवाल पर महा मा को अपने अिधकतर पूववत िवरोिधय - वराजवा दय का समथन
िमलेगा। य द वे एक ि के प म उनका िवरोध करते तो उनको उपरो दो मु म से
कसी एक पर परािजत होने का जोिखम उठाना पड़ता। ले कन िवधानमंडल म वेश
संबंधी उनके ताव का समथन कर महा मा ने उनम से अिधकतर को अपने प म कर
िलया था और इस कार कां ेस के भीतर अपनी ि थित मजबूत कर ली। स य राजनीित
से सं यास130 लेने और अपने स या ही संगठन को मजबूत करने या अपने खुद के िवचार
के अनु प कां ेस संिवधान म बदलाव के िवक प क महा मा क मौजूदा मंशा से उन
लोग को कोई आ य नह होगा, जो उ ह अ छी तरह जानते ह। यह 1924 म जेल से
उनके रहा होने के बाद और उस वष बेलगाम कां ेस म उनके ख क याद दलाता है,
जब वे अपने िवरोिधय को अपनी मनमज करने के िलए मैदान छोड़कर चले गए थे।
उनके नेतृ व को िनणायक चुनौती हालाँ क कां ेस सोशिल ट पाट क ओर से पैदा होगी,
न क कां ेस नेशनिल ट पाट क ओर से।131
1933-34 के दौरान, जब कां ेस समपण क दशा म कदम-दर-कदम आगे बढ़ रही थी
तो सरकार को अ य दशा म भी अपनी ि थित को मजबूत करने का मौका िमल गया।
जनवरी 1933 म मेरठ ष ं कांड म ब तीि त फै सला आिखरकार आ गया और 31
आरोिपय म से 27 को कारावास क अलग-अलग अविध क सजा सुनाई गई। इस समय
तक चटगाँव ांितका रय के नेता, सुर य सेन, जो तीन साल से िगर तारी से बच रहे थे,
उ ह पकड़ िलया गया और िवशेष पंचाट के सम मामले क सुनवाई के बाद उ ह अ य
कामरे ड के साथ फाँसी दे दी गई। फरवरी और माच म कु छ वतं सीमांत कबील के
साथ सम या खड़ी हो गई, ले कन िम बादशाह ना दर शाह क अफगान सरकार क
सहायता और हवाई बमबारी क मदद से सरकार सफलतापूवक इस संकट से िनपटने म
कामयाब रही। माच म ेत-प कािशत होने के बाद, असबली ने िन िलिखत ताव
पा रत कया, िजसे िवप के नेता सर अ दुर रहीम ने पेश कया था—
‘जब तक सरकार के क ीय और ांतीय े म लोग के ितिनिधय को अिधक
िज मेदारी और काररवाई क वतं ता देने क दशा म संवैधािनक सुधार के ताव को
पया प से संशोिधत नह कया जाता है, तब तक देश म शांित, संतोष और गित
सुिनि त करना संभव नह होगा।’
यह कहना कोई ज री नह है क सरकार को इस ताव पर कसी कार क श मदगी
महसूस करने क कोई ज रत थी?
राजनीितक कै दय के साथ बुरे बरताव को लेकर थोड़ा-ब त जनआंदोलन आ।
उदाहरण के िलए, 27 अ ू बर, 1932 को नािसक जेल म अमृतलाल मोरारजी, जो क एक
राजनीितक कै दी थे, उ ह पाँच जेल अिधका रय ारा एक कोठरी म ले जाकर डंड से
पीटा गया और तब तक पीटा गया, जब तक क वे बेहोश नह हो गए। जैसे ही यह खबर
बाहर फै ली, लोग का खून खौलने लगा और सरकार को घटना के िलए िज मेदार जेल
अिधका रय पर अिभयोग चलाने का आदेश देना पड़ा। इसी कार, म य ांत म
अमरावती जेल म कु छ राजनीितक कै दय को 22 अ ैल, 1932 को बुरी तरह पीटा गया।
इस मामले म आंदोलन और जाँच करीब एक साल तक चलती रही। आिखरकार, 1 माच,
1933 को सरकार ने अपने दामन पर लगा दाग धोने के िलए एक रपोट जारी क ।
हालाँ क रपोट म शारी रक बल योग क बात वीकार क गई थी और साथ ही सिवनय
अव ा कै दय पर लागू होनेवाले िनयम म सुधार का वादा कया गया था।
माच 1933 म ेत-प कािशत होने के बाद, अ ैल क शु आत म ि टश संसद् ने
दोन सदन के 16-16 सद य को िमलाकर एक संयु वर सिमित िनयु क । दोन
सदन म इस पर बहस ई थी। हाउस ऑफ कॉम स म िवप क अगुआई वं टन च चल
और सर हेनरी पेज ा ट ने क और हाउस ऑफ लाॅडस म लॉड लॉयड तथा लॉड हे सबरी
ने कमान सँभाली। सिमित ने 12 अ ैल को लॉड िलनिलथगो को अ य चुना और भारत
से ‘मू यांकनकता ’ क एक सूची को मंजूरी दी, जो उनके साथ बैठगे, ले कन उ ह कसी
िवषय पर वोट देने का अिधकार नह होगा और न ही संसद् को कोई रपोट स पने का।
भारतीय मू यांकनकता के सहयोग के साथ संयु वर सिमित क बैठक 10 जुलाई को
शु और असामा य प से लंबे समय तक जारी रह । भारत के िवदेश मामल के
मं ी/सिचव ने असामा य कदम उठाया और सरकार क मंशा से सिमित को अवगत कराने
क दृि से सिमित और भारतीय मू यांकनकता के सम गवाह के तौर पर पेश ए।
उनसे पूछताछ कई स ाह तक चली और उ ह ने करीब 16,000 सवाल के जवाब दए।
भारत म संिवधान क गित के िखलाफ 1929 से वं टन च चल के नेतृ व म इं लड म
क रपंिथय ारा कए जा रहे आंदोलन को देखते ए और िवशेष प से माच 1933 म
ेत-प के काशन के बाद से संभावना है क संयु संसदीय सिमित ेत-प के
ावधान को और कमतर कर देगी।132 सिमित क रपोट नवंबर 1934 तक आने क
संभावना है।
साल 1933 के दौरान देश को गंभीर आघात झेलना पड़ा। उसके दो महान् सपूत जे.एम.
सेनगु ा, जो पाँच साल तक कलक ा के मेयर रह चुके थे और 1925 से ही कां ेस
कायसिमित के सद य रहे थे, उनका अचानक 26 जुलाई को आघात के कारण िनधन हो
गया। उस समय वे राँची म 1818 के रे युलेशन III के तहत नजरबंद थे। 22 अ ू बर को
इं िडयन असबली के पूव अ य तथा कां ेस के एक िवल ण नेता िव लभाई जे. पटेल
िजनेवा के समीप एक ि वस लीिनक म दय संबंधी सम या के कारण चल बसे। उनक
अंितम इ छा के अनुसार उनके पा थव शरीर को अंितम सं कार के िलए बॉ बे लाया गया,
जहाँ 2,00,000 लोग का भारी जुलूस उनके अंितम दशन का इं तजार कर रहा था। वे
अपनी सारी संपि (जो 1,00,000 पए से अिधक थी) रा के काय के िलए छोड़ गए थे।
1933 के अंितम दन म लंदन म दूसरा बमा गोलमेज स मेलन आ। पहला स मेलन
नवंबर 1931 म आ था और इसिलए भारतीय गोलमेज स मेलन के दूसरे और तीसरे स
म बमा से ितिनिधय को आमंि त नह कया गया था। चूँ क पहले बमा गोलमेज
स मेलन क परे खा क इस आधार पर कड़ी आलोचना क गई थी क िवभाजन
िवरोिधय को इसम उिचत ितिनिध व नह दया गया था तो सरकार भारत से िवभाजन
के मु े पर बमा म आम चुनाव कराने पर राजी हो गई थी। नवंबर 1932 म चुनाव आ
और िवभाजन िवरोिधय को भारी ब मत िमला, ले कन इस त य का फायदा उठाते ए
क बमा लेिज ले टव काउं िसल ने भारत के साथ िबना शत संघ के िलए वोट नह दया
था। सरकार भारत से अलग होने क अपनी ि य योजना पर आगे बढ़ गई। इसिलए दूसरा
बमा गोलमेज स मेलन 1933 म आ त कया गया और िवभाजन िवरोधी, जो भले ही
बमा म ब मत म थे, उ ह िवभाजनवा दय के मुकाबले कम सीट दी ग । अब यह प ा है
क बमा को भारत133 से अलग कर दया जाएगा और ‘ ांतीय’ तथा ‘क ीय’ िवषय —
दोन को देखने के िलए ि सदनीय िवधानमंडल दया जाएगा।
दसंबर म हमेशा क तरह मह वपूण स मेलन का आयोजन कया गया। ‘दी िलबरल
फे डरे शन’ क म ास म बैठक ई, िजसक अ य ता जे.एन. बसु ने क और ेत-प क
नंदा क । ‘ऑल इं िडया वीमेन कॉ स’ का सफल स कलक ा म आयोिजत कया गया
और िजनेवा म अंतररा ीय सिमितय म ितिनिध व के मामले के साथ ही शै िणक और
समाज सुधार मामल म मिहला ितिनिधय ने गजब का उ साह दखाया। ेड यूिनयन
कां ेस क कानपुर म बैठक ई और अ य ताव के साथ ही बॉ बे ेसीडसी म
टे सटाइल कामगार क िशकायत को सुलझाने तथा अपनी माँग पर दबाव बनाने के
िलए टे सटाइल कामगार क एक आम हड़ताल क आव यकता संबंधी ताव पा रत
कए गए। इस फै सले के बाद 1934 के पूवाध म बॉ बे म टे सटाइल कामगार क हड़ताल
क घोषणा कर दी गई। बॉ बे म आ त हड़ताल पर जोरदार ित या िमली और देश के
अ य भाग म भी सहानुभूित जताते ए हड़ताल का आयोजन कया गया। हड़ताल को
तोड़ने के िलए एक बार फर सा यवाद का हौवा खड़ा कया गया और इस बहाने बॉ बे म
बड़ी सं या म भावशाली मजदूर नेता को जेल म डाल दया गया। बॉ बे का अनुसरण
करते ए पंजाब जैसे अ य ांत म सा यवाद का िपशाच पाँव फै लाने लगा तथा क त
(कामगार), कसान (कृ षक) पाट ऑफ पंजाब को एक क युिन ट इकाई होने के कारण
गैर-कानूनी घोिषत कर दया गया। कामगार के आंदोलन के क रपंथी समूह पर पकड़ को
मजबूत करने के साथ ही सरकार ने ांितका रय के उ वादी अिभयान को कु चलने के
िलए बंगाल म कु छ और कदम भी उठाए। एक साल पहले तक, के वल ह या के यास के
िलए ही मृ युदडं का ावधान कया गया था, 1934 म हिथयार, िव फोटक आ द रखने
जैसे अपराध के िलए भी मौत क सजा तय कर दी गई। हाल ही म बंगाल के गवनर सर
जॉन एंडरसन क ह या का यास, जो क दो साल पहले ए ऐसे ही यास क याद
दलाता है134, दरशाता है क उ वादी आंदोलन अभी ख म नह आ, भले ही जनता क
राय लगातार इसके िखलाफ अिधक-से-अिधक अिभ हो रही है।
कां ेस के समपण और ू र दमन क आिधका रक नीित के ज रए सरकार के िलए
अनुकूल माहौल तैयार कया गया और इसका इ तेमाल भारत म ेट ि टेन के ापार
िहत को आगे बढ़ाने के िलए कया गया। ओटावा समझौते क पुि के संबंध म िज पहले
ही कया जा चुका है, जहाँ िवरोध के बावजूद ‘एंपायर ेफरस’ का िस ांत भारत पर
थोपा गया। इस िवचाराधीन अविध के दौरान भारत के टे सटाइल ापार के संबंध म दो
अ य उपाय भी अपनाए गए—भारत-जापान समझौता और भारत-ि टेन समझौता। दोन
समझौत के संबंध म ापक तक दए जाने के बावजूद भारतीय जनता क राय यह थी
क पहला समझौता भारतीय बाजार के शोषण के िलए ि टश और जापानी उ ोगपितय
क सािजश है और दूसरा समझौता ि टश पूँजीपितय और कु छ भारतीय पूँजीपितय के
बीच गरीब भारतीय उपभो ा का खून चूसने के िलए एक अपिव गठजोड़ है। नेशनिल ट
पाट के पुन: िवधानमंडल म आने तक इन दोन उपाय के ज रए भारत को प च ँ ाए गए
नुकसान को ख म करना संभव नह होगा।
इं िडयन लेिज ले टव असबली के चुनाव इस समय (नवंबर 1934) जारी ह। 1935 के
दौरान भारत क जनता का यान असबली म कां ेस पाट क चाल क ओर गया। अब
इस बात क ब त कम संभावना है क फलहाल और नए संवैधािनक सुधार के उ ाटन के
बीच कोई च कानेवाला घटना म होगा!

15
ेत-प और सां दाियक फै सला/अिधिनणय135
े त-प , जो माच 1933 म जारी कया गया था, उसम शािमल कए गए ताव
ि टश सरकार ारा गोलमेज स मेलन के तीन स म िलये गए िनणय का एक कार से
ितिनिध व करते थे। इस योजना के अनुसार, भारत अब ि टश सरकार ारा सीधे तौर
पर शािसत ि टश भारत और ि टश ताज के आिधप य के तहत भारतीय राजा या
शासक या महाराजा ारा शािसत देश के प म िवभािजत नह रहनेवाला है। भारत,
11 ि टश भारतीय ांत , िजनम संध और उड़ीसा भी शािमल ह, का एक संघ होनेवाला
है, िजसम वे भारतीय रयासत भी िह सा ह गी, जो वे छा से इसका िह सा बनना
चाहगी। वे शासक, जो संघ म शािमल होने क अपनी इ छा जािहर करते ह, उ ह एक
औपचा रक िवलय द तावेज पर ह ता र करने ह गे और इस कार जो शि याँ और
याियक अिधकार- े ह तांत रत कए जाएँगे, उ ह नए संिवधान अिधिनयम के तहत
सृिजत उिचत संघीय व था ारा इ तेमाल कया जाएगा। महामिहम, महाराजा-
राजा ारा जारी क जानेवाली उ ोषणा ारा संघ को अि त व म लाया जाएगा, ले कन
उ ोषणा तब तक नह क जाएगी, जब तक—
1. महामिहम को यह सूचना ा होती है क भारतीय रयासत क कु ल आबादी के कम-
से-कम आधे का ितिनिध व करनेवाली और संघीय उ सदन म रयासत को
आवं टत सीट पर कम-से-कम आधी सीट के हकदार, रयासत के शासक संघ म
शािमल होने क अपनी इ छा नह जताते ह; और
2. ि टश संसद् के दोन सदन महामिहम को संबोिधत एक ाथना पेश करते ह क इस
कार क उ ोषणा जारी क जा सकती है। आगे कहा गया है क पहले संघीय मं ालय
के अि त व म आने से पूव एक फे डरल रजव बक,136 जो क राजनीितक भाव से मु
हो, उसक थापना भारतीय िवधाियका ारा करनी होगी और पहले से ही उसका
सफल संचालन करना होगा।
ेत-प यह भी कहता है क ‘इस बात क संभावना है क क सरकार म बदलाव और
रयासत के वेश से पहले नई ांतीय सरकार को लाना सुिवधाजनक या यहाँ तक क
आव यक पाया जाएगा।’ इसिलए यह प है क ि टश संसद् ारा नए संिवधान
अिधिनयम को पा रत कए जाने के बाद भी संघ के उ ाटन को अिनि तकाल के िलए
थिगत कया जा सकता है। राजकु मार को संवैधािनक तं म लाने का िवचार, संघीय
िवधानमंडल म एक ढ़वादी त व दान करना है, जो ि टश भारत म क रपंथी ताकत
का मुकाबला करे गा। इस उ े य के म ेनजर संघीय िवधानमंडल म ि टश भारत के
ितिनिध लोकि य मतािधकार क मदद से य (या अ य )137 तरीके से पुन:
िनवािचत ह गे। हालाँ क ितबंिधत रा य के ितिनिधय को भारतीय शासक ारा
नािमत कया जाएगा। भारतीय रयासत क जनता, जो क भारत क कु ल आबादी138 का
एक-चौथाई है, उसका संघीय संसद् म कोई ितिनिध व नह होगा। संघीय संिवधान के
कामकाज म ि टश सरकार के ित भारतीय शासक (या उनके नािमत ) का सहयोग
सुिनि त कया जाएगा, य क इसके बदले म ि टश सरकार यह हलफनामा उठाती है
क वह भारतीय रयासत के आंत रक िनरं कुश शासन म कोई ह त ेप नह करे गी।
इस कार य द ेत-प के ताव के अनुसार अंतत: संघ क थापना होती है तो
रयासत क अपने आंत रक मामल म वाय ता बरकरार रहेगी और साथ ही संघीय
तं के कामकाज म भी उनक भूिमका रहेगी। नए संिवधान म भारतीय रयासत म एक
लोकतांि क या लोकि य या संवैधािनक सरकार का कोई ावधान नह होगा। इतना ही
नह , भारतीय रयासत को संघीय कर के मामले म िवशेष रयायत या छू ट का भी लाभ
िमलेगा और संघीय िवधानमंडल म उनका अपनी आबादी क तुलना म कह अिधक
ितिनिध व रहेगा। ि टश सरकार ारा इतना लालच दए जाने के बावजूद कई
भारतीय शासक संवैधािनक नवप रवतन से घबरा रहे ह। ेत-प के अनुसार, वायसराय
और गवनर जनरल के कायालय अलग-अलग ह गे, हालाँ क दोन कायालय एक ही ि
के पास ह गे। गवनर जनरल संघ के कायकारी मुख ह गे और भारत क सेना, नौसेना
तथा वायुसेना के वे सु ीम कमांडर ह गे, जब क वायसराय ि टश त त के ितिनिध ह गे
और भारतीय रयासत तथा संघीय संिवधान के दायरे से बाहर के अ य सभी मामल के
संबंध म वे ि टश त त क शि य का इ तेमाल करगे। गवनर जनरल कु छ आरि त
िवभाग के शासन को वयं देखगे और ये उनके िनयं ण म रहगे, जैस— े र ा, िवदेश
मामले और चच संबंधी मामले। इस शासन म तीन काउं सलर उनक सहायता करगे,
िजनक िनयुि वे वयं करगे और ये (पदेन) दोन सदन के सद य ह गे, ले कन इ ह
मतािधकार ा नह होगा। अ य शि य के उपयोग म गवनर जनरल क मदद करने
और उ ह सलाह देने के िलए एक मं ी प रषद् होगी। मंि य क िनयुि गवनर जनरल
ारा क जाएगी और ये उनक मरजी तक पद पर बने रहगे और इनका संघीय
िवधानमंडल के कसी एक सदन का सद य होना अिनवाय होगा। काउं सलर के वल गवनर
जनरल के ित जवाबदेह ह गे, ले कन मंि य क जवाबदेही िवधानमंडल के ित होगी
और यह गवनर जनरल ारा अपने िवभाग पर कए जानेवाले िनयं ण के अधीन होगा।
शासन के संबंध म गवनर जनरल, अपने िवशेषािधकार/िववेक के तहत, कोई भी ऐसा
िविनयम बनाएँग,े िजसे वह सरकार के कामकाज और उसके संचालन को िनयिमत करने
के िलए आव यक समझते ह। साथ ही, वे अपने िववेक से िव ीय मामल म उनके िवशेष
दािय व म सहायता करने के िलए एक िव ीय सलाहकार क िनयुि करने को सश
ह गे। िव ीय सलाहकार का वेतन गवनर जनरल ारा तय कया जाएगा और वह
िवधानमंडल म मतदान के अधीन नह होगा और न ही वह िवधानमंडल के ित
उ रदायी होगा। आरि त िवभाग क िवशेष िज मेदारी के अित र गवनर जनरल के
पास िन िलिखत मामल के संबंध म ‘िवशेष दािय व’ होने क घोषणा क जाएगी—
(क) भारत या उसके कसी भी िह से क शांित और शांित के ित उ प कसी भी गंभीर
खतरे क रोकथाम।
(ख) संघ क िव ीय ि थरता और साख क सुर ा करना।
(ग) अ पसं यक के वैध िहत क र ा करना।
(घ) संिवधान अिधिनयम ारा लोक सेवा के सद य को द कसी भी अिधकार को
सुिनि त करना और उनके वैध िहत क र ा करना।
(ङ) वािणि यक भेदभाव क रोकथाम।
(च) कसी भी भारतीय रयासत के अिधकार का संर ण।
(छ) गवनर जनरल के िनयं ण के अधीन कसी भी िवभाग के शासन को भािवत
करनेवाला कोई भी मामला।
गवनर जनरल को अपने िववेक से यह िनधा रत करना होगा क यहाँ व णत कोई भी
‘िवशेष िज मेदा रयाँ’ कसी भी प रि थित म शािमल ह या नह ।
राजा-महाराजा ारा गवनर जनरल के िलए जारी कए जानेवाले िनदश म यह
व था रहेगी क गवनर जनरल के िनदश और िनयं ण म, उनक अपनी वयं क
िज मेदारी और उनके िववेक पर संप होनेवाले मामल के शासन म वे भारत के िवदेश
मामल के सिचव के अधीन रहगे। हालाँ क अ य मामल म गवनर जनरल को सामा य
तौर पर अपने मंि य क सलाह से िनदिशत होना चािहए, ले कन य द वे महसूस करते ह
क कानून ारा जो िवशेष िज मेदारी उ ह स पी गई है, उसे पूरा करने म मंि य क
सलाह सही नह है तो वे उनक सलाह को वीकार नह भी कर सकते ह और ऐसे मामले
म गवनर जनरल जैसी ज रत समझ, वैसी काररवाई कर सकते ह और ऐसी काररवाई
भारत के िलए िवदेश मामल के मं ी/सिचव के िनदश के अधीन होगी। यह प होगा क
ऐसे मामल म मंि य क िवधानमंडल के ित िज मेदारी नह है।
गवनर जनरल को छह महीने क अविध के िलए अ यादेश बनाने और उ ह लागू करने
क शि होगी और य द वे इस बात से संतु ह क आरि त िवभाग या उनक कसी
‘िवशेष िज मेदारी’ को पूरा करने के िलए ज री है तो वे अ यादेश को फर से और छह
माह के िलए िव तार दे सकते ह। जब संघीय िवधानमंडल का स नह चल रहा है और
उनके मंि गण इस बात से संतु ह क आपाति थित है, तो उ ह ि टश भारत या कसी
अ य िह से क अ छी सरकार के िलए कसी भी समय अ यादेश बनाने और लागू करने
क भी शि होगी। दोन ही कार के अ यादेश लागू रहने के दौरान िवधानमंडल ारा
िन मत कसी कानून के समान ही सश और भावी ह गे। संिवधान व त होने क
ि थित म गवनर जनरल को यह िववेकाधीन शि ा होगी क वे संघीय सरकार का
भावी संचालन सुिनि त करने के उ े य से, य द आव यक समझते ह तो एक उ ोषणा
करके , कसी भी कानून ारा, कसी भी ािधकार को द क गई सभी शि य को
अपने म िनिहत कर सकगे।
संघीय िवधानमंडल म दो सदन ह गे, िज ह काउं िसल ऑफ टेट (उ सदन) तथा हाउस
ऑफ असबली (िन सदन) के नाम से जाना जाएगा। अगर समय से पूव भंग नह कया
जाता है तो येक काउं िसल ऑफ टेट (उ सदन) का कायकाल सात साल और येक
हाउस ऑफ असबली (िन सदन) का कायकाल पाँच साल के िलए होगा। काउं िसल ऑफ
टेट के सद य क सं या 260 से अिधक नह होगी तथा इसम से 150 सद य ि टश
भारत से िनवािचत कए जाएँगे, 100 सद य भारतीय रयासत के शासक ारा िनयु
ह गे तथा दस सद य को गवनर जनरल अपने िववेक से नािमत करगे। 150 ि टश
भारतीय सीट म से 136 सीट ांतीय िवधानमंडल के सद य के एकल ह तांतरणीय मत
के मा यम से िनवाचन के ज रए भरी जाएँगी, बड़े ांत 18 सीट के और छोटे ांत 5 सीट
के हकदार ह गे। शेष 14 सीट म से यूरोपीय, भारतीय ईसाई और आं ल-भारतीय मश:
7, 2 और 1 सीट के अिधकारी ह गे—जब क कु ग, अजमेर, द ली और बलूिच तान एक-
एक सीट के हकदार ह गे। काउं िसल ऑफ टेट म एक-ितहाई ि टश-भारतीय सीट
मुसिलम समुदाय के िलए आरि त ह गी, हालाँ क उनक आबादी ि टश भारत क कु ल
आबादी का करीब एक-चौथाई है। हाउस ऑफ असबली म 375 से अिधक सद य नह ह गे
और इनम से 250 सद य का चुनाव ि टश भारत से कया जाएगा और 125139 सद य
को भारतीय रयासत के शासक ारा िनयु कया जाएगा। ि टश भारत के िलए
िनधा रत सीट को िविभ समुदाय म इस कार से आवं टत कया जाएगा—दिलत वग
( हंद)ू , 19; िसख, 6; मुसिलम, 82; भारतीय ईसाई, 8; एं लो-इं िडयन, 4; यूरोपीय, 8;
मिहला, 9; वािण य और उ ोग, 11 (िजनम से लगभग 6 यूरोपीय ह गे140); जम दार, 7;
िमक, 10; सामा य ( हंद ू और अ य), 105। दिलत वग क सीट को िसतंबर 1932 म
महा मा गांधी के उपवास के बाद अपनाए गए पूना समझौते म उि लिखत तरीके से भरा
जाएगा। िवधेयक कसी भी सदन म पेश कए जाएँगे, ले कन धन िवधेयक और ‘वो स
ऑफ स लाई’ के वल असबली म ही पेश कए जाएँगे। कोई भी िवधेयक दोन सदन ारा
पा रत कए जाने और गवनर जनरल ारा मंजूरी दए जाने के बाद ही कानून का प
लेगा या आरि त िवधेयक के मामले म काउं िसल म महामिहम ारा अपनी मंजूरी दए
जाने के बाद ही। कोई भी अिधिनयम, िजसे गवनर जनरल ारा मंजूरी दी जा चुक है, उसे
12 महीने के भीतर काउं िसल म महामिहम नामंजूर कर सकते ह। गवनर जनरल का य द
संदशे है क कोई िवधेयक एक िनि त तारीख तक कानून बन जाना चािहए, उसके
बावजूद एक िनि त तारीख तक दोन सदन ारा कसी िवधेयक को पा रत नह कया
जाता है तो गवनर जनरल के पास अपने िववेक से कसी भी िवधेयक को गवनर जनरल
ऐ ट के प म लागू करने क शि होगी। गवनर जनरल ऐ ट का वही बल और भाव
होगा, जो िवधाियका के अिधिनयम का होता है। गवनर जनरल को कई और िववेकाधीन
शि याँ ा ह गी। कसी भी मामले म, िजसम वे समझते ह क एक पेश िवधेयक या पेश
कए जाने के िलए तािवत िवधेयक या उसके कसी भी खंड या कसी िवधेयक म कोई
संशोधन पेश या तािवत उसक िज मेदारी के िनवहन को भािवत करे गा, िनदश द क
उ िवधेयक, खंड या संशोधन पर आगे काररवाई नह क जाएगी। इसे इस कार देखा
जाएगा क गवनर जनरल को कसी भी िवचाराधीन कानून को संशोिधत करने, कानून को
पूरी तरह से रोकने और नए कानून बनाने के मामले म असाधारण प से ापक शि याँ
दान क गई ह। ऐसी शि याँ उनके पास आज तक नह ह।
ेत-प आगे कहता है—‘आरि त िवभाग और इन िवभाग के े ािधकार के बाहर
‘िवशेष िज मेदा रय ’ के अित र मामल क एक तीसरी ेणी है, िजसम गवनर
जनरल, मंि तरीय सलाह माँगने के िलए कसी भी संवैधािनक दािय व के अधीन नह
ह गे। इस उ े य के िलए कु छ िविश शि याँ संिवधान ारा गवनर जनरल को दान क
गई ह और इनक अिभ ि ‘उनके िववेकाधीन’ होगी। ‘िववेकाधीन शि य ’ क इस
ेणी म...महामिहम क सरकार का पूवानुमान है क िन मामल को इसम शािमल
कया जाएगा—
(क) िवधानमंडल को भंग करने, स ावसान करने और आ त करने क शि ।
(ख) िवधेयक को मंजूरी देने या मंजूरी को रोके रखने या िवधेयक को महामिहम क
इ छा के अनु प रोके रखने क शि ।
(ग) कु छ ेणी के िवधायक को पेश करने के िलए पूव मंजूरी दान करने क शि ।
(घ) ऐसे मामल म, जहाँ संवैधािनक अिधिनयम ारा सुझाई गई अविध ख म होने तक
कसी िवषय को थिगत करने के गंभीर प रणाम हो सकते ह, वहाँ आपातकाल के
मामले म िवधानमंडल के संयु स को आ त करने क शि ।
िवधायी या के संबंध म गवनर जनरल को िनयम बनाने क शि होगी—
(क) आरि त िवभाग के शासन या उनके िनयं णाधीन कसी अ य िवशेष िज मेदारी से
उ प या उसे भािवत करनेवाले मामल के संबंध म सदन म काररवाई और काय
संचालन का िनयमन।
(ख) गवनर जनरल क पूव सहमित से उनके िववेक पर दी गई चचा पर रोक लगाने या
पूछने पर रोक—
1. संघीय िवषय के प म रयासत के शासक ारा पद ाि के साधन म वीकार कए
गए मामल के अलावा कसी भी भारतीय रा य से जुड़े मामले; या
2. गवनर जनरल ारा एक गवनर के संबंध म अपने िववेकाधीन से क गई कोई भी
काररवाई;
3. महामिहम या गवनर जनरल या कसी िवदेशी राजकु मार या रा के बीच संबंध को
भािवत करनेवाला कोई भी मामला।
गवनर जनरल ारा बनाए गए िनयम और सदन ारा बनाए गए कसी भी िनयम के
बीच संघष क ि थित म गवनर जनरल का िनयम मा य होगा और सदन का िनयम
असंगित क सीमा तक शू य हो जाएगा।
उपरो से यह प हो जाएगा क ‘िवधाियका के ित कायपािलका क िज मेदारी’ को
शू य करने के िलए न के वल िज मेदा रय के मामले म िविभ कार क रोक लगाई गई
ह, बि क िवधानमंडल क शि य को भी बुरी तरह सीिमत कर दया गया है। इसका कु ल
जमा प रणाम यह है क संघीय िवधानमंडल आज के िवधानमंडल से अिधक िन सहाय
होगा और भिव य का गवनर जनरल आज के गवनर जनरल से अिधक शि शाली होगा।
गवनर जनरल संघ के अनुमािनत राज व और य का िववरण, उन राज व के
िविनयोग के सभी ताव के िववरण के साथ, येक िव ीय वष के संबंध म,
िवधानमंडल के दोन सदन के सम तुत करे गा। राज व के िविनयोग के ताव
िवधानमंडल के कसी भी सदन के मतदान के िलए तुत नह कए जाएँगे, य द वे य
के शीष , जैस— े याज, डू बती िनिध शु क, संिवधान अिधिनयम ारा िनधा रत य
आ द गवनर जनरल के , मंि य के , काउं सलर के , िव ीय सलाहकार आ द के वेतन और
भ े से संबंिधत ह—सामा य, मंि य का, परामशदाता का, िव ीय सलाहकार का
आ द, आरि त िवभाग के िलए आव यक य आ द, संघीय या सव यायालय के
यायाधीश के वेतन और पशन आ द, वेतन और पशन देय या करने के िलए िवभाग, लोक
सेवा के कु छ सद य आ द, आरि त िवभाग आ द के िलए ज री य, संघ या सु ीम
कोट आ द के यायाधीश का वेतन और पशन आ द, िवभाग के देय वेतन और पशन,
लोक सेवा के कु छ सद य आ द141। िविनयोग के ताव का िववरण उन अित र
ताव को िन द करे गा, चाहे वे मतदान यो य ह या गैर-मतदान यो य, िज ह गवनर
जनरल अपने कसी िवशेष उ रदािय व के िनवहन के िलए आव यक मानते ह। उपरो
य मद से संबंिधत ताव और गवनर जनरल ारा अपने दािय व के िनवहन म कए
गए ताव के अलावा राज व के िविनयोग के ताव को असबली के मतदान के िलए
तुत कया जाएगा। काउं िसल ऑफ टेट, िविधवत् पा रत ताव ारा, यह अपे ा कर
सकती है क कोई भी माँग, िजसे असबली ारा कम या अ वीकार कर दया गया है,
अंितम फै सले के िलए उसे दोन सदन के संयु स के सम लाया जाएगा। बजट
काररवाई के समापन पर गवनर जनरल अपने ह ता र से सभी िविनयोग को मािणत
करे गा, चाहे वह मतदान यो य हो या गैर-मतदान यो य। इस कार मािणत िविनयोग म
गवनर जनरल को कसी भी अित र रािश को शािमल करने का अिधकार होगा, िजसे
वह अपने कसी िवशेष उ रदािय व के िनवहन के िलए आव यक समझता है—बशत क
िविनयोग के ताव के िववरण म उस शीष के अधीन कु ल रािश मूल प से िवधाियका
के सम रखी गई रािश से अिधक न हो। इस कार य द कसी अनुदान को िवधाियका
ारा अ वीकार कर दया जाता है तो गवनर जनरल को इसे बहाल करने का अिधकार
होगा। क और ांत के संबंिधत िवधायी े को उन िवषय के संदभ म प रभािषत
कया जाएगा, जो संिवधान अिधिनयम म िनधा रत कए जाएँगे। आगे यह ताव कया
गया है क ांत म िवशु प से थानीय और िनजी कृ ित के कसी भी मामले म कानून
बनाने क सामा य शि को ांतीय सूची म शािमल कया जाए। ले कन इस संभावना को
देखते ए क कोई िवषय, शु आत म िवशु प से थानीय या िनजी कृ ित का मालूम
हो सकता है, ले कन बाद म वह अिखल भारतीय िच का हो सकता है, तो ऐसे म यह
ताव कया जाता है क गवनर जनरल को अपने िववेक के तहत उस िवषय पर कानून
बनाने क शि संघीय िवधानमंडल को देने का अिधकार होगा।
संघीय मंि य क ि थित के संबंध म ेत-प कहता है क ‘मंि य क सं या और
उनके संबंिधत वेतन क रािश का िनयमन संघीय िवधानमंडल के अिधिनयम ारा कया
जाएगा।’142 इतना ही नह , इसम आगे एक और ावधान है क संघीय मंि य के वेतन
और भ को संघीय िवधानमंडल के कसी भी सदन म मतदान के िलए पेश नह कया
जाएगा।143 ( ांतीय मंि य के संबंध म भी समान ावधान ह।)
संघीय यायपािलका के संबंध म ेत-प म एक संघीय अदालत और एक सु ीम कोट
क व था क गई है। संघीय यायालय के पास एक मूल और अपीलीय े ािधकार
होगा और संिवधान अिधिनयम क ा या या उसके तहत उ प होनेवाले कसी भी
अिधकार या दािय व से जुड़े सभी िववाद से िनपटेगा। संिवधान अिधिनयम क ा या
से जुड़े कसी भी मामले म संघीय यायालय के िनणय से प रषद् म महामिहम को अपील
क जाएगी। भारत के िलए एक सु ीम कोट भी होगा, जो ि टश भारत म हाईकोट के
फै सल के िखलाफ अपील के िलए होगा। दीवानी मामल म के वल सु ीम कोट क अनुमित
से ही सु ीम कोट संबंधी मामल म काउं िसल म महामिहम से अपील क अनुमित होगी।
आपरािधक मामल म ऐसी कसी अपील क अनुमित नह होगी। ेत-प के काशन के
बाद, संयु संसदीय सिमित के सम अपनी गवाही म सर सै युअल होरे ने कहा क एक
पृथक् सु ीम कोट के िवचार को छोड़ा जा सकता है और िवधानमंडल को स म बनाते ए
यह ावधान कया जा सकता है क जब कह भी वांछनीय हो तो संघीय यायालय के
याियक े ािधकार का िव तार कया जाए—ता क इसे एक अंितम अपील यायालय
बनाया जा सके और काउं िसल म महामिहम को अपील करने का अिधकार तो हमेशा
रहेगा ही। ेत-प के अनुसार, मु य यायाधीश और संघीय यायालय के यायाधीश
(य द यह अि त व म आता है तो सव यायालय के भी) महामिहम ारा िनयु कए
जाएँगे और अ छे वहार के दौरान पद धारण करगे। उनका वेतन, पशन आ द काउं िसल
म आदेश ारा िनयत कया जाएगा और िवधानमंडल के मताधीन नह होगा।
संिवधान अिधिनयम शु होने के बाद भारत के िलए िवदेश सिचव/मं ी क मौजूदा
काउं िसल भंग हो जाएगी। भारतीय मामल के िवदेश सिचव/मं ी उसके बाद अपनी
सलाहकार काउं िसल/प रषद् क िनयुि करगे, िजसके सद य क सं या तीन से कम और
छह से अिधक नह होगी। संिवधान अिधिनयम के शु होने से पूव िवदेश मं ी/सिचव
ारा क ह भी सेवा म िनयु कए गए ि उस समय उ ह द सभी सेवा
अिधकार से लाभाि वत होना जारी रखगे। संिवधान अिधिनयम क शु आत के बाद
िवदेश सिचव/मं ी भारतीय लोक सेवा, भारतीय पुिलस और ईसाई धम संबंधी िवभाग
म िनयुि याँ करना जारी रखगे और ऐसे ि य को वेतन तथा भ , पशन आ द का
भुगतान, उनका अनुशासन तथा आचरण िवदेश सिचव/मं ी ारा बनाए गए िनयम से
िविनयिमत होगा। िवदेश सिचव/मं ी ारा िनयु येक ि अपनी िनयुि क
तारीख से सभी उपल ध सेवा अिधकार का अिधकारी बना रहेगा। ‘संिवधान अिधिनयम
के ारं भ से पाँच वष क समाि पर िवदेश िवभाग और ईसाई धम संबंधी िवभाग को
छोड़कर उन सेवा के िलए भिव य क भरती के पर एक वैधािनक जाँच क जाएगी।
इस जाँच के प रणाम से, िजससे भारत म सरकार संबंिधत ह, उ ह संब कया जाएगा
और इस पर फै सला महामिहम क सरकार लेगी तथा वह संसद् के दोन सदन के
अनुमोदन के अधीन होगा।’144
इस कार, भारत को तथाकिथत िज मेदारी स पे जाने के बावजूद मह वपूण सेवाएँ
लंदन म भारतीय मामल के िवदेश मं ी/सिचव के िनयं ण म बनी रहगी। संघीय और
ांतीय मंि य के पास अधीन थ के प म अिधकारी ह गे, िजनक िनयित पर उनका
कोई िनयं ण नह होगा और िजनके िखलाफ वे कोई अनुशासना मक काररवाई नह कर
सकगे। अ य सेवा के मामले म संघीय और ांतीय सरकार, संघीय और ांतीय सेवा
म ि य को िनयु करगी और वयं उनक सेवा शत का िनधारण करगी। संघीय और
ांतीय सेवा म िनयुि य के िलए ितयोगी परी ाएँ संचािलत करने के िलए एक
संघीय लोक सेवा आयोग और ांतीय लोक सेवा आयोग ह गे। संघीय लोक सेवा आयोग के
सद य क िनयुि भारतीय मामल के िवदेश सिचव/मं ी ारा और ांतीय लोक सेवा
आयोग के सद य क िनयुि गवनर ारा क जाएगी। सभी लोक सेवा आयोग के
सद य का कु ल वेतन/प रलि धयाँ िवधानमंडल के मतदान के अधीन नह ह गी। इस
कार लोक सेवा आयोग काफ हद तक वतं ह गे।
अं ेज के िहत क सुर ा के िलए कु छ अ य ावधान कए गए ह। भारतीय रजव
बक145 िजसका उ लेख पहले कया गया है, जो क संघ के उ ाटन क शत पर है, वह लंदन
के इशारे पर मु ा और िविनमय का बंधन करे गा। भारतीय रे लवे का उसके िवशाल
संसाधन के साथ शासन चलाने के िलए एक सांिविधक रे लवे बोड होगा, िजसका गठन
इस कार का होगा क वह ‘कारोबार के िस ांत पर अपने कत का िनवाह करे गा और
इसम राजनीितक ह त ेप नह होगा।’ रे लवे बोड के गठन म जनता क कोई भूिमका नह
होगी। अंत म, एक ब त ही मह वपूण ावधान कया गया है, िजसका उ े य ि टश
मकटाइल समुदाय के िनिहत िहत को य -का- य सुरि त रखना है। संघीय िवधाियका
या ांतीय िवधानमंडल को यूनाइटेड कं गडम म अिधवािसत (या िनगिमत कं पनी) कसी
भी ि टश नाग रक के साथ कु छ िविश अिधकार के उपयोग के संबंध म कसी कार क
अ मता या भेदभाव करनेवाला कानून बनाने क कोई शि नह होगी। उदाहरण के
िलए, ि टश भारत के कसी भी िह से म वेश करने, या ा करने या बसने; कसी भी
कार क संपि रखने, ि टश भारत म या उसके िनवािसय के साथ कोई ापार या
वसाय करने और उपरो उ े य म से कसी के िलए िववेकािधकार एजट और नौकर
को िनयु करना। कानून बनाने पर इस कार क पाबं दयाँ तो आज भी नह ह। उदाहरण
के िलए, इं िडयन लेिज ले टव असबली, ापार और कारोबार करने के संबंध म भारतीय
को िवशेष लाभ देते ए कानून बना सकती है, हालाँ क उ ह बाद म गवनर जनरल ारा
रोका जा सकता है। ऐसा तीत होता है क ि टश सरकार इं िडयन को टल िश पंग िबल
जैसे कानून को पूरी तरह से ितबंिधत करना चाहती है, िजसम भारतीय िश पंग कं पिनय
के िलए भारत के तटीय ापार को आरि त करने क माँग क गई थी।
‘मौिलक अिधकार ’ के संबंध म, िजसक भारतीय जनता पुरजोर माँग कर रही थी,
ेत-प कहता है—‘महामिहम क सरकार इस कृ ित क कसी भी ापक घोषणा को
सांिविधक अिभ ि दान करने को गंभीर आपि के साथ देखती है, ले कन वे इस बात
से संतु ह क इस कार के कु छ ावधान , उदाहरण के िलए, िनजी वतं ता और संपि
के अिधकार और जाित, धम आ द के भेद के िबना, सावजिनक पद पर सभी क पा ता
के ावधान को उिचत प से संिवधान ऐ ट/अिधिनयम म थान दया जा सकता है और
दया जाना चािहए।’ इस संबंध म अिभ ि क वतं ता, संघ क वतं ता जैसे
ाथिमक अिधकार आ द का कोई िज नह है और न ही कोई आ ासन दया गया है क
जो थोड़े-ब त अिधकार दान कए जाएँग,े उ ह पूरी तरह से अनु लंघनीय बनाया
जाएगा।146
ेत-प के अनुसार, ांतीय िवधानमंडल और ांतीय शासन तथा अपने मंि य के
संबंध म गवनर के पास एकदम वही शि याँ ह गी, जो क म गवनर जनरल के पास
ह गी। इसिलए उन सभी ावधान को दोहराने क कोई आव यकता नह है। एकमा
अंतर यह होगा क ांत म ‘काउं सलर ’ ारा बंिधत कोई ‘आरि त िवभाग’ नह ह गे,
ले कन उनके समान ‘बिह कृ त े ’ या ‘आंिशक प से बिह कृ त े ’ हो सकते ह,
िजनका शासन िवधानमंडल के िनयं ण से बाहर होगा। अिधकतर ांत म के वल एक
सदन होगा, ले कन बंगाल, संयु ांत और िबहार म दो सदन ह गे। िनचला सदन यानी
क लेिज ले टव असबली का कायकाल पाँच साल और उ सदन यानी ो वंिशयल
काउं िसल का कायकाल सात साल होगा। ो वंिशयल काउं िसल का गठन कु छ सीट पर
गवनर ारा नामांकन के ज रए और कु छ सीट पर चुनाव मुसिलम और गैर-मुसिलम
मतदाता वाले िनवाचन- े से य चुनाव के मा यम से होगा। बंगाल और िबहार म
कु छ सं या म सद य का िनवाचन ो वंिशयल असबली ारा एकल ह तांतरणीय वोट के
तरीके से होगा और बंगाल म एक सद य यो य यूरोपीय मतदाता ारा चुना जाएगा।
ो वंिशयल लेिज ले टव असबली के संिवधान का िव तार म योरा नीचे दया गया है—
ेत-प म सि मिलत मतदान योजना लोिथयन कमेटी क रपोट, धानमं ी के
सां दाियक फै सले और पूना समझौते पर आधा रत है। सामा य तौर पर बात कर तो
मौजूदा ांतीय मतािधकार को संघीय िवधानमंडल के िनचले सदन के िलए मतािधकार
बनाया गया है। मिहला व पु ष मतदाता के मौजूदा अनुपात म कोई बदलाव नह
होगा। सभी ांत म मौजूदा मतािधकार आव यक प से संपि पर आधा रत है। ेत-
प म पु ष और मिहला के िलए सामा य शैि क यो यता ारा संपि यो यता को
पूरक बनाने का ताव है। दिलत वग क आबादी म से करीब दो फ सदी को मतािधकार
दान करने के मामले म एक िभ मतािधकार होगा। ेत-प म ि टश भारत क कु ल
आबादी के 2 से 3 ितशत, यानी लगभग 7 या 8 िमिलयन के बीच संघीय िवधानमंडल के
िलए मतदाता के प म मतािधकार देने का ताव है।
भावी ांतीय असबिलय के िलए मतािधकार मिहला और पु ष दोन के िलए संपि
पर आधा रत है—और य द संपि पर पु ष का अिधकार है तो मिहला के िलए यह
यो यता पर आधा रत है। दिलत वग क दस फ सदी आबादी को मतािधकार दान करने
के िलए एक अलग मतािधकार होगा। वतमान समय म लगभग एक से इ स क तुलना म
मिहला और पु ष मतदाता का अनुपात लगभग एक से सात होगा। ेत-प के अनुसार,
गवनर के ांत म कु ल जनसं या का लगभग 14 ितशत या वय क आबादी का लगभग
27 ितशत का औसत िनवाचन- े होगा।
ांतीय और संघीय िवधानमंडल म िसख , मुसिलम , भारतीय ईसाइय , आं ल-
भारतीय और यूरोपीय िनवाचन े म आवं टत सीट पर चुनाव के िलए मतदान पृथक्
सां दाियक िनवाचक मंडल म मतदाता ारा मतदान से होगा। सभी पा मतदाता,
जो इन िनवाचन- े म से कसी म भी मतदाता नह ह, वे एक ‘जनरल’ िनवाचन- े
म मतदान के अिधकारी ह गे। दिलत वग के िलए, जैसा क िन िलिखत सा रणी म
दरशाया गया है, ‘जनरल सीट ’ म से सीट आरि त ह गी और चुनाव पूना समझौते म
उि लिखत तरीके से होगा—एक साझा िनवाचक मंडल के आधार पर, िजसम हंद ु के
सभी वग शािमल ह गे। हालाँ क यह के वल दिलत वग के मतदाता ारा ाथिमक
चुनाव के अधीन होगा। असबली म मिहला क सीट ांतीय िवधानमंडल के सद य
ारा एकल ह तांतरणीय मत के मा यम से भरी जाएँगी, ले कन ांतीय िवधानमंडल म
सीट के मामले म चुनाव का तरीका िवचाराधीन है। वािण य और उ ोग तथा जम दार
को आवं टत सीट िवशेष िनवाचन े से भरी जाएँगी। िमक को आवं टत सीट गैर-
सां दाियक िनवाचन- े —आंिशक प से ेड-यूिनयन और आंिशक प से िवशेष
िनवाचन- े से भरी जाएँगी। भारतीय ईसाइय और मिहला के संगठन ने एक अलग
सां दाियक िनवाचक मंडल का जोरदार िवरोध कया, ले कन उनक इ छा क
अनदेखी क गई। मुसलमान को बंगाल और पंजाब म ब सं यक समुदाय के िलए एक
सांिविधक ब मत व तुत: दान कया गया है, ले कन हंद ू अ पसं यक को उनक
आबादी के अनुसार ितिनिध व नह दया गया, जैसा क सभी ांत म मुसिलम
अ पसं यक को दया गया है।
उपरो ावधान का भाव यह होगा क ांतीय असबली का गठन िन तािलका म
दरशाए गए तरीके से कया जाएगा—
ेत-प म सि िहत सां दाियक फै सले का पूरा उ े य भारत को और भी िवभािजत
करना तीत होता है, ता क अ प संवैधािनक सुधार के भाव को पया प से
िन भावी कया जा सके । इस तरह से ितिनिध व दान करने का यास कया गया है
क भारतीय लोग के बीच मतभेद के बंद,ु य द कोई ह तो उ ह िवधाियका म
अितरं िजत अिभ ि दी जाएगी, न क उनके समझौते के बंद ु को। पूरी योजना ‘फू ट
डालो और राज करो’ के खतरनाक िस ांत पर आधा रत है। लोग को िवभािजत करने के
यास म वाभािवक प से ऐसे त व को खुश करने के यास कए गए ह, िजनके
सरकारी अनुमान के अनुसार, अ य के मुकाबले अिधक ि टश समथक होने क संभावना
है, उदाहरण के िलए मुसिलम। 19व सदी और इस सदी क शु आत तक इसी कार का
भरोसा सरकार ारा जम दार पर कया गया था और उस जमाने म सरकार हंद ु के
मुकाबले मुसिलम पर अिधक अिव ास करती थी। इस सदी क शु आत से ही जम दार
ने वयं को पया प से वफादार सािबत नह कया है। उदाहरण के िलए, बंगाल म
उ ह ने िवभाजन रोधी और 1905 म ‘ वेदशी’ आंदोलन म भाग िलया। इसिलए भारतीय
को िवभािजत करने के िलए एक नया हिथयार तैयार करना पड़ा। इसिलए 1906 म
वायसराय लॉड मंटो के कहने पर और पहले हो चुक साँठगाँठ ारा कु छ मुसिलम नेता
ने पहली बार पृथक् िनवाचक मंडल का ताव आगे बढ़ाया। इस माँग को त काल भाव
म लाया गया, य क 1909 के माल- मंटो सुधार म ई संवैधािनक गित को िनरथक
करना पड़ा था। िपछले 14 साल का अनुभव दखाता है क पृथक् िनवाचक मंडल के
बावजूद और िवधानमंडल म एक आिधका रक समूह के बावजूद, सरकार को बार-बार
परा त कया जा सकता है। इसिलए ि टश सरकार ने भारतीय समुदाय को और अिधक
िवभािजत करने को आव यक पाया, ता क भावी िवधानमंडल म ि टश सरकार के
िखलाफ एकजुट िवप क संभावना को िजतना अिधक-से-अिधक संभव हो, कम कया
जाएगा। इसिलए मुसिलम , यूरोपीय, आं ल-भारतीय और िसख के अित र भारतीय
ईसाइय , मिहला , दिलत वग आ द के िलए पृथक् िनवाचक मंडल का ताव दया
गया। ‘ रयायत से पहले िवभाजन’ का िस ांत आयरलड म अपनाई गई ऐसी ही समान
नीित क याद दलाता है, जहाँ ि टश सरकार ारा आय रश टेट के संिवधान को
वीकार करने से पूव यूल टर को अलग कर दया गया। भारत के मामले म यह कहने क
ज रत नह है क इतने सां दाियक और ित यावादी आधार पर कोई भी संिवधान
पनप नह सकता।
ेत-प के ताव के उपरो उ लेख से यह एकदम प हो जाता है क िवदेशी
सरकार से भारतीय लोग के हाथ म स ा का ह तांतरण नह होगा। अिधकतर स ा
अभी भी ि टश ताज के नाम पर भारतीय मामल के िवदेश मं ी/सिचव के हाथ म
रहेगी।
दिलत वािण य
वग के और
ांत
िलए ापार,
(आबादी िपछड़े
आरि त भारतीय एं लो- खनन जम दार यूिनव सटी िमक
िमिलयन सामा य े के िसख मुसलमान यूरोपीय
सामा य ईसाई इं िडयन एवं (िवशेष) (िवशेष) (िवशेष)
म को क ितिनिध
सीट योजना
म)
क (िवशेष)
सं या (ए)
152 9
29
म ास (6 (1
30 1 0 (1 मिहला 2 3 6 6 1 6
(45.6) मिहला मिहला
समेत)
समेत) सिहत)
बॉ बे 119 (बी) 30
(5 15 1 0 (1 मिहला 3 2 3 7 2 1 7
(18.0)
मिहला समेत)
समेत)
80 119 4
बंगाल (2 (2 (1
30 0 0 2 11 19 5 2 8
(50.1) मिहला मिहला मिहला
समेत) समेत) समेत)
114 66
संयु
(4 (2
ांत 20 0 0 2 1 2 3 6 1 3
मिहला मिहला
(48.4)
समेत) समेत)
43 86
32 (1
पंजाब (1 (2
8 0 मिहला 2 1 1 1 5 (सी) 1 3
(23.6) मिहला मिहला
समेत)
समेत) समेत)
89
40
िबहार (3
15 7 0 (1 मिहला 1 1 2 4 4 1 3
(32.4) मिहला
समेत)
समेत)
मय
87
ांत
(3
[बरार के 20 1 0 14 0 1 1 2 3 1 2
मिहला
साथ]
समेत)
(15.5)
48 (डी)
असम (1
7 9 0 34 1 0 1 11 0 0 4
(8.6) मिहला
समेत)
उ र-
पि म
सीमांत 9 0 0 3 36 0 0 0 0 2 0 0
ांत
(2.4)
19
34
संध (1
0 0 0 (1 मिहला 0 0 2 2 2 0 1
(3.9) मिहला
समेत)
समेत)
49
ओिड़शा (2
7 2 0 4 1 0 0 1 2 0 1
(6.7) मिहला
समेत)
(क) वैसे िनकाय म कसका कतना ितिनिध व होगा, यह वैधािनक प से िनि त नह है, फर भी अिधकांश
मामल म उनम मुख प से या तो यूरोपीय अिधक ह गे या फर भारतीय। इसके अनुसार ही, येक ांत म यह बता
पाना संभव नह होगा क कतने यूरोपीय या भारतीय चुनाव जीतकर आएँग!े हालाँ क, यह उ मीद क जाती है क
शु आत म सं या इस कार होगी—म ास : 4 यूरोपीय, 2 भारतीय। बॉ बे : 4 यूरोपीय, 1 भारतीय; बंगाल : 14
यूरोपीय, 5 भारतीय; संयु ांत : 2 यूरोपीय, 1 भारतीय; पंजाब : 1 भारतीय; िबहार : 2 यूरोपीय, 2 भारतीय; म य
ांत : 1 यूरोपीय, 1 भारतीय; असम : 8 यूरोपीय, 3 भारतीय; संध : 1 यूरोपीय, 1 भारतीय; ओिडशा : 1 भारतीय।
(ख) इनम से सात सीट मुसिलम के िलए आरि त ह गी।
(ग) इनम से एक सीट तुमानदार क होगी। जम दार क चार सीट को संयु िनवाचन मंडल के साथ िवशेष
िनवाचन े से भरा जाएगा। िनवाचक मंडल के बँटवारे से यह संभावना है क िजन सद य को लाया जाएगा, उनम 1
हंद,ू 1 िसख और 2 मुसलमान ह गे।
(घ) यह सीट िशलांग म एक गैर-सां दाियक िनवाचन े से भरी जाएगी।
ांत म गवनर और क म गवनर जनरल के िनजी े ािधकार के भीतर के सभी मामले
उनके (िवदेश मं ी/सिचव) िनयं ण के तहत ह गे। वे उ सेवा पर अपना िनयं ण जारी
रखगे और भारत म लागू कए जानेवाले सभी कानून पर उ ह ‘वीटो’ का अिधकार होगा।
हाईकोट और फे डरल कोट म यायाधीश तथा संघीय लोक सेवा आयोग के सद य क
िनयुि उनके ारा क जाएगी। भारत म गवनर जनरल को आज के मुकाबले और अिधक
तानाशाह तथा शि शाली बना दया जाएगा। ‘आरि त िवभाग’ या ‘िवशेष िज मेदारी’
या ‘िवशेषािधकार शि ’ जैसे ठ पे लगाकर उ ह आज क तुलना म और अिधक शि याँ
उनके अि तयार म ह गी। यहाँ तक क िवधानमंडल क िनगरानी या िनयं ण के भीतर
आनेवाले सामा य मामल म भी ह त ेप करने क उनके पास ापक संभावना होगी।
कु ल य का 80 फ सदी पर मतदान नह होगा। यहाँ तक क िवधानमंडल क काररवाई
पर भी उनका आज के मुकाबले अिधक िनयं ण होगा। इससे कह यादा संघीय
िवधानमंडल क संरचना आज के क ीय िवधानमंडल के मुकाबले अिधक ित यावादी
होगी। ांत म भी हालात कोई बेहतर नह ह गे और ब चा रत ‘ ांतीय वाय ता’
पंच मा होगी। ऐसी प रि थितय म भारत म एक भी ि ऐसा नह िमलेगा, जो इस
नए संिवधान क शंसा करे गा।

16
भारतीय इितहास म महा मा गांधी क
भूिमका
ए क ि इितहास म जो भूिमका िनभाता है, वह कु छ हद तक उसक
शारी रक और मानिसक मता पर िनभर करती है और कु छ हद तक उस
वातावरण तथा उस समय क ज रत पर िनभर करती है, िजसम वह पैदा
आ है। महा मा गांधी म कु छ ऐसा है, जो भारतीय जनता को आक षत करता
है। कसी अ य देश म पैदा होने पर वे संभवत: पूरी तरह अनुपयु ि हो
सकते थे। उदाहरण के िलए, वे स या जमनी या इटली जैसे देश म या
करते? अ हंसा का उनका िस ांत उ ह फाँसी के त ते पर ले जाता या
मानिसक रोिगय के अ पताल म। भारत म यह िभ बात है। उनका सादा
जीवन, उनका शाकाहारी भोजन, उनका बकरी का दूध, येक स ाह उनका
मौन त, कु रसी पर बैठने के बजाय उनका जमीन पर आलथी-पालथी मारकर
बैठना, उनक धोती—यूँ किहए क उनसे जुड़ी हर चीज, उ ह ाचीन युग के
िवल ण महा मा म से एक के प म पेश करती थी और यही चीज उ ह
उनके लोग के करीब लेकर आई। वे कह भी जाएँ, यहाँ तक क गरीब-से-
गरीब भी यह महसूस करता है क वह भारतीय िम ी म पैदा आ है—उसक
मांस-म ा सब भारतीय है। जब महा मा बोलते ह तो वे ऐसी भाषा म बोलते
ह क लोग समझ पाते ह, वे हरबट पसर और एडमंड बुक क भाषा नह
बोलते; उदाहरण के िलए, सर सुर नाथ बनज तो वही बोलते, ले कन
महा मा भगवत गीता और रामायण क भाषा बोलते ह। जब वे लोग से
वराज के बारे म बात करते ह तो वे ांतीय वाय ता के फायद या संघ का
िज नह करते, बि क वे लोग को रामरा य ( ाचीन समय म राजा राम का
सा ा य) के गौरव क याद दलाते ह और जनता समझ जाती है। और जब वे
ेम और अ हंसा के बल पर जीत क बात करते ह तो वे लोग को बु एवं
महावीर क िश ा क याद दलाते ह और लोग उ ह वीकार करते ह।
ले कन महा मा क शारी रक और मानिसक शि भारतीय लोग क
परं परा और िवचार के अनुकूल है और वह उनक सफलता का, ले कन
के वल एक कारण है। य द वे भारतीय इितहास के कसी अ य कालखंड म पैदा
ए होते तो संभवत: वे वयं के िलए इतनी अिधक िविश ता हािसल करने म
स म नह होते। उदाहरण के िलए, 1857 क ांित के समय वे या करते, जब
लोग के पास हिथयार थे, वे लड़ने म स म थे और एक ऐसा नेता चाहते थे,
जो यु म उनका नेतृ व कर सके ? महा मा क सफलता एक ओर संिवधानवाद
क िवफलता और दूसरी ओर सश ांित के कारण रही है। िपछली सदी के
80 के दशक से ही भारतीय लोग के बीच राजनीितक प से सवािधक खर
बुि के वामी लोग संवैधािनक संघष म उलझे रहे, िजसके िलए मह वपूण
गुण म बहस म कु शलता और भाषण म वाक् पटु ता सवािधक ज री थे। ऐसे
वातावरण म इस बात क संभावना नह है क महा मा को ब त अिधक
ित ा ा होती। मौजूदा सदी का सवेरा होने के साथ ही लोग का
संवैधािनक तौर-तरीक म भरोसा दरकने लगा था। ऐसे म वदेशी (रा ीय
उ ोग का पुनज वन) और बिह कार नए हिथयार बनकर उभरे और उसी के
साथ ही ांितकारी आंदोलन भी पैदा आ। जैसे-जैसे साल बीतते ए
ांितकारी आंदोलन ने जमीन पकड़नी शु कर दी (िवशेष प से उ र भारत
म) और ेट वॉर के दौरान एक ांितकारी यास आ भी। यह यास ऐसे
समय म िवफल आ, जब ि टेन ब त अिधक त था और 1919 क ासद
घटना ने भारतीय लोग के दमाग म यह बात बैठा दी थी क शारी रक बल
याेग का तरीका आजमाने का कोई फायदा नह है। ि टेन आसानी से ऐसे
कसी भी यास को कु चल देगा और इसके बदले म अवणनीय पीड़ा और
अपमान ही ा होगा।
1920 म भारत चौराहे पर खड़ा था। संिवधानवाद दम तोड़ चुका था, सश
ांित के वल पागलपन थी, ले कन मौन वीकृ ित असंभव थी। देश कसी नए
तरीके और एक नए नेता के िलए तड़प रहा था। तभी भारत के िनयती पु ष—
महा मा गांधी का उदय आ, जो इतने साल से व क बाट जोह रहे थे और
खामोशी के साथ वयं को एक महान् काय के िलए तैयार कर रहे थे। वे वयं
को जानते ह—वे अपने देश क ज रत को जानते ह और यह भी जानते ह क
भारत के संघष के अगले चरण के दौरान नेतृ व का सेहरा उनके िसर पर होगा।
वे सादगी का दखावा नह करते—वे दृढ़ आवाज म बोलते ह और लोग उनक
बात का पालन करते ह।
आज क भारतीय रा ीय कां ेस ापक प से उनका सृजन है। कां ेस का
संिवधान उ ह ने तैयार कया है। के वल एक वा ालापी संगठन से उ ह ने
कां ेस को एक जीवंत और संघष करनेवाले संगठन म त दील कर दया है।
भारत के हर क बे और गाँव म इसका भाव है और संपूण रा को एक आवाज
को सुनना िसखाया है। च र म कु लीनता, बड़ पन और पीड़ा सहने क मता
नेतृ वशीलता का वाद चखने के िलए आव यक गुण ह और आज क तारीख
म कां ेस देश का सबसे बड़ा तथा सवािधक राजनीितक ितिनिध ववाला
संगठन है।
ले कन इतने िवकल समय म इतनी बड़ी उपलि ध कै से हािसल कर सकते ह?
उनके एकिन समपण, पवत िशखर जैसी इ छाशि और कभी न
थकनेवाली उनक मशि से यह संभव आ है। इतना ही नह , समय भी
शुभ था और उनक नीित भी िववेक आधा रत थी। हालाँ क वे एक गितशील
बल के समान दखाई देते ह, ले कन अपने ब सं यक देशवािसय के िलए वे
ब त यादा ांितकारी नह थे। अगर वे ऐसे होते तो वे अपने देशवािसय को
े रत करने के बजाय उ ह डराते; उ ह आगे बढ़ाने के बजाय पीछे धके लते।
उनक नीित एक करण क थी। वे हंद ु और मुसिलम को, ऊँची और नीची
जाितय को, पूँजीवा दय और मजदूर को, जम दार और कृ षक को एकजुट
करना चाहते थे।
ले कन इस मानवीय दृि कोण और नफरत से मुि ारा वे अपने श ु खेमे
तक म सहानुभूित पैदा करने म स म रहे थे। ले कन वराज का सपना अभी
भी ब त दूर था। एक नह , बि क लोग ने 14 साल इं तजार कया था। उ ह
अभी और लंबा इं तजार करना था। च र क ऐसी शु ता और अनुयाियय क
इतनी अभूतपूव सं या, महा मा भारत को वतं कराने म िवफल य रहे?
वे इसिलए िवफल रहे, य क एक नेता क ताकत उसके अनुयाियय क
िवशालता म नह ; बि क उसके च र म होती है। इससे कह कम अनुयाियय /
समथक के साथ अ य नेता अपने देश को आजाद कराने म स म रहे ह, जब क
महा मा समथक के ऐसे सैलाब के बावजूद यह नह कर सके । वे िवफल ए,
य क वे अपने लोग के च र को समझ चुके ह, उ ह ने अपने िवरोिधय के
च र को नह समझा है। महा मा का तक वह तक नह है, जो जॉन बुल को
आक षत करे । वे िवफल ए, य क मेज पर अपने सारे प े खोलकर रख देने
क उनक नीित काम नह करे गी। हम जैसे को तैसा जवाब देना होगा—
राजनीितक लड़ाई म कू टनीित क कला के िबना काम नह चल सकता। वे
िवफल ए, य क उ ह ने अंतररा ीय हिथयार का इ तेमाल नह कया।
य द हम अ हंसा के मा यम से अपनी आजादी जीतने क इ छा रखते ह तो
कू टनीित और अंतररा ीय चार आव यक है।
वे िवफल ए, य क िहत क झूठी एकता, जो वाभािवक प से एक-
दूसरे के िवरोधी रहे ह, वह ताकत का ोत नह होती, बि क राजनीितक यु
म ऐसा छ आवरण कमजोरी पैदा करता है। भारत का भिव य िविश प
से उन क रपंिथय और उ वादी ताकत के कं ध पर टका आ है, जो
आजादी ा करने के िलए ज री बिलदान और पीड़ा सहने को तैयार ह गे।
और आिखर म, महा मा िवफल ए ह, य क उ ह एक ि व के साथ दो
च र िनभाने पड़े—गुलाम लोग के नेता का च र और िव गु का च र ,
िजसके पास उपदेश देने के िलए एक नया िस ांत है। इसी ं ने उ ह वंसटन
च चल के अनुसार, एक ही बार म अं ेज का क र दु मन और एलेन
िवि क सन के अनुसार, अं ेज का सबसे अ छा पुिलसकम बना दया है।
भिव य का या होगा? आनेवाले दन म महा मा कौन सी भूिमका
िनभाएँग?े या वे अपने ि य रा को वाधीन करा पाएँग?े कई त य पर
िवचार करना होगा। जहाँ तक उनके वा य और जीवन शि का संबंध है,
इसक ब त संभावना है क वे कई साल तक स य सावजिनक जीवन म
रहगे और अपने देश को आजादी दलाने क दशा म कु छ ठोस ा करने क
उनक ितब ता उनका हौसला बुलंद रखेगी। जहाँ तक उनक लोकि यता
और ित ा का संबंध है तो यह आजीवन बनी रहेगी, य क अ य
राजनीित के मुकाबले महा मा क लोकि यता और ित ा उनके
राजनीितक नेतृ व क मोहताज नह ह, बि क यह उनके च र क देन है।
ले कन हम इस सवाल पर िवचार करना होगा क या महा मा अपनी
राजनीितक गितिविधय को जारी रखगे या वे वैि छक प से वयं को
स य राजनीित से अलग कर लगे—जैसे क इस समय संकेत िमल रहे ह—
और वयं को पूण प से सामािजक और मानवीय काय म सम पत कर दगे?
महा मा के मामले म कोई भिव यवाणी करना एक खतरनाक ताव है।
ले कन एक बात तो प है, महा मा कसी के मातहत नह रहगे। जब तक
उनके िलए संभव होगा, वे राजनीितक आंदोलन को िनदिशत करगे, वे डटे
रहगे, ले कन य द समीकरण या कां ेस क मानिसकता म बदलाव आता है तो
वे संभवत: स य राजनीित से कनारा कर लगे। वे रटायरमट अ थायी या
थायी भी हो सकता है। अ थायी सेवािनवृि रणनीितक प से पीछे हटने के
समान है और इसका कोई यादा मह व इसिलए नह है, य क नायक
िप चर म एक बार फर लौटेगा। स य राजनीित से महा मा के सं यास लेने
का अनुभव पहले भी हम हो चुका है—1924 से 1928 के बीच। महा मा का
थायी प से सेवािनवृ होना या सं यास लेना कम-से-कम कु छ सीमा तक
ि टश सरकार के रवैए पर भी िनभर करता है। अगर वे अपने देश के िलए
कु छ ठोस हािसल करने म स म होते ह तो अपने देशवािसय के बीच उनक
ि थित अभे हो जाएगी। सफलता के समान कु छ भी सफल नह होता और
महा मा क सफलता उनके ि व और उनके अ हंसक असहयोग के हिथयार
म जनता के िव ास क पुि करे गी। ले कन अगर अं ेज का रवैया वैसा ही
मत िभ तावाला बना रहा, जैसा आज है, तो एक राजनीितक नेता के प म
महा मा पर और अ हंसक असहयोग क उनक प ित म जनता का िव ास
काफ हद तक िहल जाएगा। उस ि थित म वे वाभािवक प से एक अिधक
क रपंथी नेतृ व और नीित क ओर मुड़गे।
अपने देशवािसय के बीच महा मा क जो अि तीय लोकि यता और ित ा
है, वह उनके भावी राजनीितक जीवन के िबना भी यथावत् रहेगी, ले कन
इसके बावजूद इसम कोई संदह े नह है क महा मा क अि तीय ि थित उनके
राजनीितक नेतृ व के कारण है। महा मा वयं अपनी जन-लोकि यता और
अपने राजनीितक समथक के बीच अंतर को समझते ह और वे के वल जन-
लोकि यता से कभी संतु नह होते। य द अं ेज का रवैया आज क तरह ही
भिव य म भी अिड़यल बना रहता है तो उस ि थित म या महा मा आनेवाल
म अपना राजनीितक समथन बनाए रख सकगे? यह अिधक कटृ रपंथी नीित
िवकिसत करने क उनक मता पर िनभर करे गा। या वे देश के सभी त व
को एकजुट करने के अपने यास को यागकर साहसपूवक अिधक क रपंथी
ताकत के साथ वयं को खड़े होते देख सकगे? उस ि थित म कोई भी संभवत:
उ ह उखाड़ नह पाएगा। भारत के संघष के आज के चरण का नायक तब अगले
चरण का भी नायक होगा। ले कन संतुलन क संभावना या संकेत करती है?
अिखल भारतीय कां ेस सिमित क मई 1934 म पटना म ई बैठक इस
संबंध म एक रोचक अ ययन करती है। महा मा ने वयं काउं िसल म वेश क
पैरवी करके वराजवा दय क बगावत को टाल दया था। ले कन 1934 के
वराजवादी, 1922-23 के गितशील वराजवादी नह ह। इसिलए एक ओर
जहाँ वे उ ह जीतने म सफल रहे थे, वह वे ले ट वंगस का अलग-थलग होना
नह रोक सके , िजनम से अिधकतर अब िमलकर कां ेस सोशिल ट पाट का
गठन कर चुके ह। यह पहली दफा है क भारतीय रा ीय कां ेस के भीतर
सावजिनक प से इस कार सोशिल ट पाट क शु आत ई है और इस बात
क बल संभावना है क आ थक मु को सामने लाया जाएगा। आ थक मु
पर प ीकरण के साथ कां ेस के भीतर और साथ ही जनता के बीच भी दल
अिधक वै ािनक तरीके से संग ठत ह गे।
कां ेस सोशिल ट इस समय फै िबयन समाजवाद के भाव म तीत होते ह
और उनके िवचार तथा परं पराएँ और िस ांत कई दशक पहले फै शन म थे।
ले कन कां ेस सोशिल ट कां ेस के भीतर एक क रपंथी ताकत का
ितिनिध व करते ह। वे कई लोग, िज ह ने संभवत: स यता के साथ उनक
मदद क होगी, वे इस समय उपल ध नह ह। जब उनक मदद िमलेगी, तो
पाट और अिधक तर करने म स म होगी।
इस समय म महा मा क नीित को एक अ य चुनौती कां ेस के भीतर ही
ठोस आकार ले चुक है और वह है, पं. मालवीय क अगुआईवाली कां ेस
नेशनिल ट पाट । धानमं ी रै मसे मैकडोना ड के सां दाियक फै सले को लेकर
िववाद खड़ा हो गया है। हालाँ क यह मु ा अपे ाकृ त छोटा है, य क
आिधका रक कां ेस पाट और कां ेस नेशनिल ट पाट ेत-प को पूण प
से अ वीकृ त करने पर सहमत ह, िजसका सां दाियक फै सला एक अिभ अंग
है। ले कन के वल आिधका रक कां ेस पाट ही सां दाियक फै सले क खुले तौर
पर नंदा करने से डरती है। चूँ क कां ेस नेशनिल ट पाट , देश म अिधक
क रपंथी ताकत का ितिनिध व नह करती है, इसिलए महा मा के नेतृ व के
िलए अंितम चुनौती उस दशा से नह आ सकती।
इस तर पर एक िनि त भिव यवाणी क जा सकती है, अथात् कां ेस के
भीतर भिव य क पा टयाँ आ थक मु पर आधा रत ह गी। ले ट वंगस
यानी क वामपंिथय के कां ेस मशीनरी पर क जा करने क ि थित म यह
असंभव नह है क दि णपंिथय क ओर से एक और िवभाजन होगा और
आज के इं िडयन िलबरल फे डरे शन जैसे राइट वंगस के एक नए संगठन क
थापना होगी। िनि त प से जनता के दमाग म आ थक मु को प करने
म अभी कु छ साल लगगे, इसिलए पा टयाँ प काय म और िवचारधारा के
आधार पर संग ठत हो सकती ह। मु के प होने तक महा मा गांधी का
राजनीितक वच व अखंड रहेगा, भले ही 1924 क तरह वे अ थायी प से
सं यास ले ल। ले कन एक बार प क करण होने पर उनके राजनीितक
समथक पर ब त असर पड़ेगा। जैसा क पहले ही संकेत दया जा चुका है,
महा मा ने पूव म सभी िवरोधी त व को साथ लाने का यास कया था—
जम दार और कसान, पूँजीवादी और िमक, अमीर और गरीब। यह उनक
सफलता का राज था और िनि त प से यही उनक िवफलता का अंितम
कारक भी होगा। य द सभी िवरोधी त व राजनीितक आजादी के संघष को
आगे बढ़ाने क ित ा कर ल तो आंत रक सामािजक संघष लंबे समय के िलए
टल जाएगा और महा मा का पद धारण करनेवाले पु ष देश के सावजिनक
जीवन पर हावी रहगे। ले कन ऐसा नह होगा। िनिहत वाथ, ‘संप ’ वग
राजनीितक संघष म ‘वंिचत ’ से भिव य म संघष करे गा और धीरे -धीरे
ि टश सरकार क ओर झुकेगा। इसिलए इितहास का तक अपने अप रहाय
माग का अनुसरण करे गा। राजनीितक संघष और सामािजक संघष को साथ-
साथ चलाना होगा। जो पाट भारत के िलए राजनीितक आजादी जीतेगी, वही
पाट जनता के िलए सामािजक और आ थक आजादी भी जीतेगी। महा मा
गांधी ने अपने देश क अभूतपूव सेवा क है और करते रहगे। ले कन उनके
नेतृ व म भारत क मुि नह होगी।

17
बंगाल क ि थित
19 20 से 1934 के बीच क घटना पर गौर कर तो ‘भारत का संघष’ के तमाम
पहलु के साथ याय करना संभव नह आ है। िव ेषण करने पर हम गितिविधय क
िभ -िभ कार क धाराएँ पाते ह। यहाँ एक मु य धारा है—राजनीितक आंदोलन,
जो क भारतीय रा ीय कां ेस के नेतृ व म है। इसके बाद एक सहायक धारा है—ऑल
इं िडया ेड यूिनयन कां ेस के नेतृ व म कामगार का आंदोलन। िविभ ांत म कृ षक का
एक वतं आंदोलन भी है, जो क अभी तक एक क ीकृ त अिखल भारतीय आंदोलन के
प म नह उभर पाया है। मिहला आंदोलन, युवा आंदोलन तथा छा आंदोलन जैसे अ य
सहायक आंदोलन के अित र एक और अ य आंदोलन है, जो कां ेस से काफ वतं है
और जो सरकार के िलए गंभीर सम या बन चुका है। यह है ांितकारी आंदोलन। इस
आंदोलन का भाव कम या यादा पूरे भारतवष पर पड़ा है, ले कन कु ल िमलाकर यह कह
सकते ह क उ र भारत म इसे अ यिधक समथन िमला है और तुलना मक प से बात कर
तो बंगाल इस आंदोलन का गढ़ है। अभी तक इस आंदोलन के पीछे के मनोिव ान को
समझने के िलए कोई गंभीर यास नह कया गया है। सरकार के एक मह वपूण
अिधकारी लेि टनट कनल, बकले िहल, आई.एम.एस., एक जाने-माने मनोरोग
िच क सक, जो साल तक भारत म एक मनोरोग अ पताल के भारी रहे ह, उ ह ने एक
बार सरकार को सुझाव दया था क उ ह इस सम या का वि थत मनोिच क सक
अ ययन करवाने का यास करना चािहए, ले कन उनक सलाह नह मानी गई। उस पर
तुरंत आंदोलन के ित सहानुभूित का आरोप लगाया जाएगा और िबना मुकदमे के जेल म
डाल दया जाएगा। इसिलए जब भारतीय इस सम या पर रोशनी डालने का यास करते
ह तो वे आमतौर पर हा या पद बयान देते ह, िजसका एकमा मकसद शासक को खुश
करना होता है। उदाहरण के िलए, लोग के िलए यह कहना परं परा बन गया है क
ांितकारी आंदोलन म यमवग य युवा के बीच बेरोजगारी का प रणाम है।
ारं भ म ही इस बात को रे खां कत कया जाना चािहए क ांितकारी आंदोलन न तो
कोई अराजकतावादी आंदोलन है और न ही यह मा उ वादी आंदोलन है। ांितका रय
का ल य अराजकता या अ व था पैदा करना नह है। हालाँ क यह एक स ाई है क वे
कभी-कभार उ वाद का भी सहारा लेते ह, ले कन उनका अंितम मकसद उ वाद नह ,
बि क ांित है और ांित का उ े य एक रा ीय सरकार क थापना करना है। हालाँ क
शु आती ांितका रय ने अ य देश म ांित के तौर-तरीक के बारे म कु छ अ ययन कया
था, ले कन यह कहना सही नह होगा क ेरणा िवदेश से आई है। आंदोलन का ज म इस
िव ास से आ था क पि मी लोग के िलए के वल शारी रक बल ही अपील करता है।
अं ेज को सामा य प से यह बात समझ नह आती क भारतीय लोग को शारी रक बल
योग का भाव िसखाने के िलए मु य प से वे वयं िज मेदार ह। दो या तीन दशक
पहले (कु छ मामल म तो आज भी) भारत म एक औसत अं ेज, िवशेष प से जब वह
सेना या पुिलस का सद य होता है, तो भारतीय के ित उसका वहार ब त ही
दादागीरी वाला होता है और िजस भी भारतीय म रं चमा भी आ मस मान है, तो वह
एक िवदेशी सरकार के हाथ वयं को अपमािनत महसूस कए िबना नह रह सकता।
सड़क म, रे लवे म, ाम कार म, सावजिनक थल पर और सावजिनक समारोह म—
दरअसल हर जगह अं ेज यह उ मीद करते ह क भारतीय उनके िलए रा ता छोड़े और
अगर वह ऐसा करने से इनकार करता है तो भारतीय पर हमला होता है। टकराव के
मामल म सरकार क सेना या पुिलस हमेशा अं ेज क तरफ होती है। ऐसे मामले अकसर
होते रहते ह, जहाँ उ पद पर आसीन भारतीय—यहाँ तक क हाईकोट के जज का भी
इस कार अपमान कया गया। ेट वॉर के दौरान भी, जब भारत इं लड क ओर से लड़
रहा था तो कलक ा म भारतीय और अं ेज के बीच टकराव क ऐसी घटनाएँ आए दन
होती रहती थ ।147 ऐसे अपमान के िलए कोई कानूनी या संवैधािनक उपचार उपल ध नह
हो सकता था, न तो पुिलस और न ही अधीन थ कानूनी अदालत याय करती थ । उसके
बाद ऐसा समय आया, जब भारतीय ने पलटकर वार करना शु कर दया और जब
उ ह ने ऐसा कया तो उसका तुरंत और उ लेखनीय असर आ। उसके बाद से ही भारतीय
िजस अनुपात म ‘पलट’ कर मारने म स म ए ह, उसी अनुपात म अब वे अपने देश म
आ मस मान खोए िबना घूम पा रहे ह। यहाँ तक क कलक ा के कॉलेज म भी टाफ के
अं ेज सद य अकसर भारतीय छा के ित अपमानजनक बरताव करने के दोषी रहे ह
और त य यह है क आज ऐसे मामले अकसर देखने म नह आते और उसका कारण यह है
क भारतीय छा भी अपने आ मस मान को बनाए रखने के िलए शारी रक बल का
इ तेमाल करते ह।
ांितकारी आंदोलन के पीछे यही मनोिव ान है, ले कन यह बताने के िलए और िव तार
म जाना ज री है क तुलना मक प से बंगाल ांित का गढ़ य बन गया है? सम या
मैकाले के साथ शु ई। जब वह सरकार के सद य के तौर पर भारत म था तो मैकाले ने
बंगािलय क कड़ी नंदा करते ए उ ह कायर क न ल करार दया था। अपमान का यह
खंजर बंगाली लोग के सीने म भीतर तक धँसता चला गया। उसी समय सरकार ने
बंगािलय को यह कहते ए सेना से बाहर रखने का कदम उठाया क वे पया प से यु
के लायक या बहादुर नह ह। िव फोट तब आ, जब ड मुगल, के डल टन के लॉड कजन ने
बंगािलय के ांत का िवभाजन करके उ ह कु चलने का यास कया। शु आत म लोग ने
वदेशी और बिह कार क मदद ली। ले कन जब पशुता क सीमा तक िगरकर शांितपूण
दशन और बैठक पर बल योग कया गया—जैसा क 1906 म बारीसात म आ था—
तो लोग को समझ आ गया क शांितपूण तरीक से काम नह चलेगा। घोर हताशा म
डू बने के बाद युवक ने बम और बंदकू उठा । इसका असर तुरंत नजर आ गया। अं ेज का
वहार सुधरना शु हो गया। पहली बार यह भाव पैदा होना शु आ क अं ेज
बंगािलय का स मान करते ह। कई ांितका रय को फाँसी दे दी गई, ले कन वे यह बताने
म कामयाब रहे क वे िजस न ल से संबंध रखते ह, वह कायर क न ल नह थी। इसिलए
उ ह ब त से बंगाली घर म शहीद का दजा दया गया और वे बंगाली न ल के ित
खामोश ांजिल थे।
इस धरती पर और इस तरीके से बंगाल म ांितकारी आंदोलन पैदा आ। इसका या
इलाज है? सरकार के पास दो रा ते ह—पहला, लोग को यह जताना क राजनीितक
आजादी जीतने के िलए ांितकारी तरीके अपनाना ज री नह है तथा दूसरा, हर
ांितकारी को शांितपूण और रचना मक तरीके से अपने देश क सेवा करने का अवसर
दान करना। जहाँ तक पहले का संबंध है, सरकार क अदूरदश नीित ने ांितका रय के
तक को मजबूत करने का काम कया। ेट वॉर/िव यु क समाि पर पेश कए गए
सुधार इतने मामूली थे क उससे ापक पैमाने पर असंतोष पैदा आ। यु ख म होने पर
जेल से बाहर आए ांितका रय ने इतने साल क कै द के बाद पाया क िजस आजादी का
वादा कया गया था, वह वादा के वल सपना िनकला। इसके अलावा, शांितपूण और
रचना मक तरीके से देश क सेवा करने का भी कोई माग नह था। ले कन महा मा गांधी
और देशबंधु सी.आर. दास क अपील पर उ ह ने हंसा का रा ता छोड़कर अ हंसा और
असहयोग के नए माग को आजमाने का वादा कया। यह वीकार करना होगा क
अिधकतर लोग ने अपने वादे को िनभाया भी। ले कन सरकार ने या कया? इतने
िवशाल ांत के कसी कोने म हंसा क िछटपुट वारदात क आड़ लेकर सरकार ने 1923
म और फर 1924 म पूरे ांत से ब त से लोग को िहरासत म ले िलया और िबना सुनवाई
के उ ह साल तक जेल म रखा गया। उस समय जनता म यह भावना थी क बंगाल
पुिलस क खु फया शाखा म कु छ ज रत से अिधक ई यालु अिधकारी थे, जो अपनी
नौकरी बचाने और अपने िवभाग क नाक बचाने के िलए िजतना देखते थे, उससे कह
अिधक क पना करते थे। और यहाँ तक िव ास कया जाता था क िनद ष नौजवान को
फँ साने के िलए भड़काऊ काररवाई करने के मकसद से एजट भरती कए गए थे। अगर कोई
वा तव म सम या क जड़ तक जाना चाहता है तो आिधका रक तर पर इसे अनदेखा
करने से काम नह चलेगा और उसे ऐसी सभी िशकायत क खुले दमाग से जाँच करनी
चािहए। कु छ साल बाद, 1927 और 1928 म सरकार ने फर से बं दय क रहाई शु
कर दी, ले कन 1919-20 क तरह ही 1927-28 म वा तिवक आम माफ नह ई। उनक
रहाई से पहले और बाद म हर बंदी को पुिलस ारा ऐसी र गटे खड़े कर देनेवाली
यातनाएँ दी ग क राहत के बजाय उनके दमाग म वे एक कड़वाहट छोड़ ग । य द एक
उदार दय नेतृ व के प म रहाई के आदेश दए जाते तो उसका भाव अलग ही होता।
अगर कु छ िवशेष प रि थितयाँ पैदा नह ई होत तो बंगाल म 1930-34 के ांितकारी
आंदोलन के दौर से संभवत: बचा जा सकता था। पहला तो कलक ा कां ेस म महा मा
गांधी के रवैए का युवा के दमाग पर ितकू ल भाव पड़ा। इससे उनके बीच यह संदश े
गया क महा मा चूक गए ह और कां ेस नेतृ व क कमान म एक जनआंदोलन क कतई
कोई संभावना नह है। इस भावना के चलते नौजवान के एक वग ने ांितकारी सोच के
आधार पर वयं ही काररवाई करने क ठान ली। यही कारण था क चटगाँव श ागार
छापा पड़ा। यह गितिविध हालाँ क एक ब त छोटे से इलाके तक सीिमत रही और जब
महा मा ने 1930 क शु आत म अपना आंदोलन शु कया तो संपूण ांत से युवा उसक
ओर मुड़ गया। उसके बाद बंगाल म ांितकारी घटना म और बार-बार घ टत होनेवाली
उ वादी गितिविधय के िलए कसी और के बजाय सरकार वयं अिधक आरोपी है। चाहे
िमदनापुर हो या ढाका या ट पराह िजला, हर मामले म सरकार के एजट ारा कए गए
अ याचार और जनता का कोई संवैधािनक तरीके से समाधान नह ढू ँढ़ पाने म िवफल
रहना—इनके चलते ही जनता बदले क काररवाई के िलए उ वादी गितिविधय को
अपनाने के िलए उठ खड़ी ई। यहाँ तक क चटगाँव िजले म बाद क उ वादी
काररवाइय के िलए देश म ांित करने क इ छा कोई कारण नह थी, बि क यह उसके
िखलाफ बदले क काररवाई थी, िजसे ांितकारी सरकारी उ वाद मानते थे।
यहाँ सवाल पैदा होता है— या ऐसी प रि थितय म ांितका रय के साथ कोई समझ
कायम करना संभव है? हाँ, संभव है, बशत सही तरीके से संपक साधा जाए और मंशा
वा तव म ईमानदारीपूण हो। सम या को समझने के िलए खुले िवचार और उसे सुलझाने
के िलए साहस क ज रत होती है। पाट के साथ सीधी बातचीत अिनवाय है। य द
महा मा गांधी या कोई अ य नेता वे छा से उनके व ा बनते तो यह आव यकता उ प
नह होती। चूँ क यह संभव नह है, तो सीधी बातचीत एकमा िवक प है।
पुिलस अिधका रय ारा आमतौर पर यह कहा जाता है क ांितकारी कसी कार क
बातचीत के लायक ही नह ह। इसम कोई संदह े नह क ांितकारी आजादी के िलए लड़
रहे ह, ले कन भारतीय रा ीय कां ेस भी यही कर रही है। य द कां ेस के साथ कोई समझ
कायम करने के यास हो सकते ह तो ांितका रय के साथ भी ऐसी कोिशश क जा
सकती है। 1931 म बंगाल के त कालीन गवनर सर टैनले जै सन ने कहा था क ऐसा
यास वांछनीय है और उ ह ने वग य जे.एम. सेनगु ा को म य थ के प म इ तेमाल
भी कया। प रणाम पूरी तरह से िनराशाजनक नह था। यह वा ा उस व िवफल
सािबत ई थी और इसका एकमा कारण यह त य था क सरकार ने ब सा िडटशन कप
के कै दय क अपील नह मानी, िजनका कहना था क सुलह समझौता वा ा सीधे उनके
साथ क जाए, न क कसी पुिलस अिधकारी के मा यम से।
इस कार के यास क सफलता के िलए दो शत ज री ह—सबसे पहले, गवनर को
वा तव म अपनी उदार नीित से यह द शत करने म स म होना चािहए क भारतीय के
िलए हंसा का सहारा िलये िबना अपने राजनीितक अिधकार जीतना संभव है। य द
उनक नीित हमेशा ही आजादी क भारतीय क माँग का िवरोध करने क रहेगी तो कोई
समझौता संभव नह है। दूसरा, सरकार को अव य ही यह देखना चािहए क िज ह
ांितकारी तौर-तरीके यागने ह, उ ह शांितपूण और रचना मक तरीके से अपने देश क
सेवा करने के अ य अवसर दान कए जाएँ। उनके िलए कोई भी रोजगार ढू ँढ़ने से काम
नह चलेगा। यह कहना बेवकू फ है, जैसा क सरकार क खुशामद करने के िलए ब त से
लोग कह रहे ह क म यमवग य बेरोजगारी ांितकारी आंदोलन का कारण है। अगर ऐसा
होता तो खाते-पीते घर के लोग कभी भी इस आंदोलन से नह जुड़ते! ले कन एक ओर
जहाँ यह सच है क म यम वग क बेरोजगारी ांितकारी आंदोलन का कारण नह है, वह
यह भी सच है क य द बंगाल म नौजवान के िलए लोक सेवा म अवसर खुले होते तो
ांितका रय के लोग को भरती करने के यास िवफल हो जाते। सरकार का मौजूदा
िमजाज और उसक नीित जहाँ वह हर नौजवान को एक संभािवत ांितकारी क तरह से
देखती है और फर वैसा ही बरताव करती है तथा ांत म मौजूदा प रि थितयाँ, िजनम
रचना मक तरीके से वराज हािसल करने क कोई उ मीद नजर नह आ रही है तो ऐसे म
ये ांितकारी आंदोलन को हवा देनेवाले सवािधक मह वपूण कारक ह। ांितकारी तौर-
तरीके अपने अंितम िव ेषण म पूरी तरह से िनराशा क अिभ ि ह। य द इस िनराशा
को एक बार हटा दया जाए तो ांितका रय के साथ िनि त प से एक समझ कायम
करना संभव है। इसका यह अथ नह है क वे देशभ नह रहगे या वे रा सेवा करना
छोड़ दगे! इसका के वल यह अथ होगा क वे अपनी गितिविधयाँ अ य मा यम से पूण
करगे।
या िनकट भिव य म उनके साथ कोई समझ कायम हो सकती है? यह पूरी तरह बंगाल
के गवनर सर जॉन एंडरसन के ि व पर िनभर करता है। भारत छोड़ने से पूव, उ ह ने
इससे संबंिधत एक बयान दया था क वे न के वल ांितकारी आंदोलन को समा कर दगे,
बि क इसके पीछे यह दृि कोण होगा क सुलह समझौता कायम करने के िलए य द ज री
आ तो वे इस आंदोलन के गहरे कारण को भी समझगे। दुभा य से, बंगाल म उनके आने
के बाद से ही वा तिवक सुलह समझौते के िलए उ ह ने मुि कल से ही कु छ कया है। न ही
उ ह ने आंदोलन के गहरे कारण को समझने क अपनी इ छा का कोई माण ही पेश
कया है, हालाँ क इस बीच म उ ह ने वह हर काय कया है, जो एक अित ई यालु पुिलस
अिधकारी से करने क उ मीद क जा सकती है। सर जॉन एंडरसन का एक मजबूत ि
होने के कारण स मान कया जाता है और यह ित ा अकारण नह है। के वल एक मजबूत
ि ही इस कार क सम या को सुलझा सकता है, िजसने इतने सारे लोग को परे शान
कर रखा हो। भारतीय िसिवल स वस और भारतीय पुिलस सेवा म क र लोग उन लोग म
से नह ह, जो देश म कसी भी पाट के साथ सुलह समझौते का वागत करगे—एक
ांितकारी दल क तो बात ही छोड़ दीिजए। इसिलए यह दुभा यपूण नह है क बंगाल के
गवनर एक मजबूत ि ह। इसिलए के वल यह उ मीद क जानी चािहए क वे अपने
कायकाल के शेष वष के दौरान, अतीत क तुलना म बेहतर उ े य के िलए अपने मन क
शि और संक प क दृढ़ता का दशन करगे।

18
उपसंहार (1934)
उ परो िलखे जाने के बाद से तीन ऐसी घटनाएँ ई ह, जो सं ान लेने
यो य ह। कां ेस का पूण अिधवेशन 26 अ ू बर, 1934 को बॉ बे म आ।
इं िडयन लेिज ले टव असबली के िलए चुनाव, िजसम कां ेस भाग ले रही है,
नवंबर म शु ए और भारतीय संिवधान सुधार पर संयु संसदीय सिमित
क रपोट 2 नवंबर, 1934 को कािशत ई।
बॉ बे कां ेस ारा पा रत दो मह वपूण ताव म (1) कां ेस के संिवधान
म बदलाव और (2) अिखल भारतीय ामो ोग संघ के गठन का उ लेख है।
दूसरा ताव कां ेस के मौजूदा खादी (कताई और बुनाई) काय म के िव तार
को दरशाता है और इं िगत करता है क कां ेस गैर-राजनीितक काय पर जोर
देना चाहती है। पहले संक प के दो मुख भाग ह—(1) कां ेस के ितिनिधय
और अिखल भारतीय कां ेस कमेटी क सं या म कमी और (2) एक िनयम का
ावधान क कां ेस कायका रणी का सद य चुने जाने के िलए छह महीने के
िलए खादी को आदतन पहनना चािहए। उपरो दोन ताव को महा मा के
दमाग क उपज माना जा सकता है।
तेरह वष से लागू कां ेस संिवधान के अनुसार, कां ेस के पूण अिधवेशन के
िलए चुने जानेवाले ितिनिधय क सं या 6,000 थी, जब क अिखल भारतीय
कां ेस कमेटी क सं या लगभग 350 थी। दसंबर 1929 म लाहौर कां ेस म
महा मा गांधी, पं. नेह और अ य लोग ारा इसे मश: 1,000 और 100
तक कम करने का यास कया गया था, ले कन यह यास िवफल रहा। बॉ बे
कां ेस ने अब इस सं या को मश: 2,000 और 155 कर दया है। यह कदम
ब त मह वपूण थान रखता है। 1920 म जब महा मा ने कां ेस तं को अपने
हाथ म िलया और पुराने नेता को िनकाल बाहर कया था तो लोकतांि क
ताकत उनके प म थ और 1920 क नागपुर कां ेस म 14,000 से कम
ितिनिधय ने िह सा नह िलया था। आज महा मा गांधी को लोकतं क उन
ताकत से डर लगता है, िज ह उ ह ने मजबूत करने म मदद क है, इसिलए
उनका यास न के वल कां ेस के ितिनिधय , बि क अिखल भारतीय और
ांतीय कां ेस सिमितय के भी ख को कमजोर करने का है। असिलयत यह है
क महा मा एक गितशील ताकत नह रह गए ह। संभवत: यह उ का भाव
हो।
ले कन कां ेस ने संवैधािनक संशोधन को कै से हजम कर िलया? कारण
समझना कोई मुि कल नह है। 1933 म महा मा इस तीन स ाह के उपवास
क आड़ म सिवनय अव ा आंदोलन को िनलंिबत करने म स म थे। नवंबर
1934 म, वे कां ेस से सेवािनवृि क आड़ म संिवधान को बदलने म स म थे।
दोन अवसर पर महा मा के िलए इतनी अिधक सहानुभूित पैदा कर दी गई
क भावुक और िबना सोच के लोग ने महा मा क कही हर बात को वीकार
कर िलया, के वल उ ह खुश करने के िलए।
यहाँ सवाल पैदा होता है—‘महा मा सेवािनवृ हो चुके ह? य द ऐसा है तो
य ?’ उनक सेवािनवृि इस अथ म क उनका नाम कां ेस क सव
कायका रणी के सद य क सूची म नह है। ले कन कायका रणी (कायसिमित)
को उनके अंधभ का समथन ा है। मौजूदा कायसिमित तो िपछले साल
क कायसिमित के मुकाबले कह अिधक महा मा के आगे नतम तक है, िजसके
महा मा वयं एक सद य थे। मौजूदा कायसिमित के सद य म वराजवादी
या सांसद क अनुपि थित सु प है। यहाँ तक क एम.एस. ऐने, िज ह ने
सां दाियक फै सले के सवाल पर महा मा से अलग मत रखने क िह मत क , वे
भी अब नह ह। हालाँ क पूव म वे भी वफादार और िसर झुकानेवाल म थे।
और बेचारे नरीमन, जो एक वतं सोच रखते थे, उ ह भी सिमित से बाहर
का रा ता दखाया जा चुका है। 1924 म महा मा वा तव म कां ेस क
राजनीित से सेवािनवृ हो गए थे, य क कां ेस मशीनरी पर उनके
िवरोिधय , वराजवा दय का क जा हो चुका था। आज महा मा के लोग हो
सकता है क सिमित म नह ह , ले कन उनक पाट , आज तक क सबसे
मजबूत ि थित म है। इतना ही नह , कां ेस क भावी गितिविधय से संबंिधत
सवािधक मह वपूण िवभाग— ाम उ ोग संघ—पर उनका सीधा िनयं ण है।
महा मा क तथाकिथत सेवािनवृि से कां ेस मशीनरी पर उनका िनयं ण
कसी भी तरीके से ख म नह होगा, बि क इससे यह होगा क अगले पाँच
साल के दौरान वे आिधका रक कां ेस पाट क िवफलता का पूरी
िज मेदारी से प ला झाड़ने म स म हो जाएँग।े इसिलए सेवािनवृि महा मा
के िलए के वल रणनीितक प से पीछे हटना है, जो क हमेशा से उनक आदत
रही है क जब भी देश म राजनीितक पतन क ि थित हो तो वे वयं को इसी
खोल म समेट लेते ह।
इं िडयन लेिज ले टव असबली के चुनाव क जहाँ तक बात है तो ताजा
रपोट (24 नवंबर, 1934) दरशाती है क आिधका रक कां ेस पाट ने 43
सीट पर, कां ेस नेशनिल ट पाट ने आठ सीट पर और अ य ने करीब 46
सीट पर जीत हािसल क है। इन 46 अ य म से कम-से-कम 10 के करीब 145
सद यीय सदन म 60 के करीब होने क उ मीद है।
भारतीय संवैधािनक सुधार पर संयु संसदीय सिमित क रपोट उसके
िलए कोई आ य क बात नह है, जो ेत-प क िवषय-व तु से प रिचत है।
रपोट को सिमित के 31 ब सं य सद य ने अनुमो दत कया है। सिमित के
िमक सद य ने एक वैकि पक योजना स पी है, जो ब सं यक सद य ारा
अनुमो दत रपोट से कह अिधक उदार है। दूसरी ओर, लॉड सैिलसबरी तथा
चार अ य सद य ने एक अ य रपोट स पी है और रपोट म के वल ांतीय
वाय ता को वीकार कया गया है, ले कन क म िज मेदार सरकार का
िवरोध कया गया है। ब मत क रपोट ने संसद् म क र िवप को शांत करने
क दृि से ेत-प के पहले से ही अपया ताव को और भी कम कर दया
है। इसके चलते ापक प से माना गया है क जब संयु सिमित क रपोट
के आधार पर गवनमट ऑफ इं िडया िबल पेश कया जाएगा तो हाउस ऑफ
कॉम स म इसे भारी ब मत का समथन िमलेगा।
िन िलिखत कु छ मह वपूण बंद ु ह, िजन पर संयु सिमित ने ेत-प
ताव को संशोिधत कया है—
1. ‘कानून और व था’ के संबंध म अित र ावधान िन ानुसार
अनुशंिसत ह—
(i) गवनर ारा अपने िववेक से दी जानेवाली मंजूरी, पुिलस अिधिनयम को
भािवत करनेवाले कसी भी कानून और पुिलस के संगठन या अनुशासन
को भािवत करनेवाले कसी भी िनयम के िलए दी जानी चािहए।
(ii) आतंकवाद से संबंिधत खु फया िवभाग के अिभलेख को पुिलस बल के
बाहर कट नह कया जाना चािहए, िसवाय ऐसे लोक अिधका रय के ,
िज ह गवनर िनदश द।
(iii) आतंकवाद का मुकाबला करने के उ े य से गवनर को सरकार क कसी
भी शाखा को अपने िनयं ण म लेने क शि होनी चािहए, िजसका उस
उ े य के िलए उपयोग करना आव यक हो।
2. सरकार के मंि य और सिचव के िलए आव यक होगा क वे कोई भी ऐसी
बात गवनर के यान म लाएँ, िजसम उनक ‘िवशेष िज मेदा रयाँ’ शािमल
होने क संभावना हो।
3. उ सदन क थापना म ास, बॉ बे, बंगाल, संयु ांत तथा िबहार म क
जानी चािहए।
4. संघीय िनचले सदन का चुनाव ांतीय िनचले सदन के सद य ारा
अ य प से होना चािहए, न क े ीय िनवाचन े म मतदाता
ारा य प से।
5. य द 90 ितशत से कम रा य संघ का पालन करते ह तो अित र रा य
के ितिनिधय को संघीय िवधानमंडल म िनयु कया जाना चािहए,
सीट के बीच आधे अंतर क सीमा तक, िजन पर संघीय रा य आमतौर पर
हकदार ह गे और य द सभी रा य ने वीकार कया तो पूण रा य का
ितिनिध व दया जाना चािहए।
6. अधीन थ यायाधीश क पदो ित और पद थापन पर उ यायालय का
िनयं ण होना चािहए और िजला यायाधीश क िनयुि म गवनर के
पास अंितम िनणय होना चािहए।
7. यूनाइटेड कं गडम से आयाितत माल पर दंडा मक शु क लगाने से रोकने के
िलए गवनर जनरल के पास िवशेष िज मेदारी होनी चािहए।
8. भारत म िवधाियका को, दस वष के बाद महामिहम क सरकार और
संसद् के िवचार के िलए कु छ िविश मामल , जैसे क िवधानमंडल और
मतािधकार क संरचना पर संिवधान म संशोधन क िसफा रश करने के
िलए अिभभाषण तुत करने का संवैधािनक अिधकार होना चािहए।
9. बमा को भारत से अलग करने के साथ दोन देश के बीच एक िनि त समय
के िलए बा यकारी ापार समझौता होना चािहए।
िजतना पता लगाया जा सकता है, भारत म जनता क राय संयु सिमित
क रपोट के अ यिधक ितकू ल है। फर भी, रपोट पर आधा रत िवधेयक के
1935 के अंत से पहले ि टश संसद् के मा यम से रखे जाने क उ मीद है।

19
भिव य क एक झलक
व तमान ि टश हाउस ऑफ कॉम स का कायकाल 1936 म समा हो जाएगा। ऐसे म
भारत के िलए संिवधान िवधेयक को िनि त प से अगले आम चुनाव से पहले संसद् म
पा रत करा िलया जाएगा। इं लड म इस समय एक बड़ा िववाद चल रहा है। एक ओर
ेत-प के समथक ह तो दूसरी ओर वंसटन च चल क अगुआई म क र कं जरवे टव ह।
भारत के िलए इस िववाद म कु छ भी िचकर नह है। जैसा क हम पहले ही देख चुके ह,
ेत-प म मह वपूण कहने के नाम पर कु छ यादा नह है, ऐसे म य द इस योजना को
और कमजोर कया जाता है या यह पूरी तरह व त हो जाता है तो भी भारत म कु छ-एक
लोग को ही इसका दु:ख होगा। ेत-प के संबंध म भारत को य द वा तव म कसी बात
म दलच पी है तो इस त य म है क इसम उन लोग के िलए सहयोग क कोई गुंजाइश
नह छोड़ी गई है, जो लंबे संघष के चलते संभवत: थका आ महसूस कर सकते ह और जो
कसी साथक और रचना मक काय म लगना चाहते ह। इसिलए सरकार क नीित मौजूदा
िवरोध को जारी रखने म ही मदद करे गी।
सरकार को उ मीद है क वह अ पसं यक —मुसिलम , दिलत वग , भारतीय ईसाइय
और आं ल-भारतीय क मदद से देश म रा वा दय के िवरोध को अनदेखा करने या उसे
दबाने म सफल हो जाएगी। ले कन या वे सफल ह गे? संभावना इस बात क है क कु छ
समय के िलए भारत म िविभ समुदाय का एक बड़ा वग सरकार के भाव म रहेगा। यह
सां दाियक फै सले म उ ह दी गई रयायत के बदले म होगा। ले कन यह ि थित हमेशा
नह रह सकती। सां दाियक फै सले म कम-से-कम इन समुदाय को नए संिवधान के तहत
िवधानमंडल म बेहतर ितिनिध व दया गया है। ले कन नया संिवधान कु ल िमलाकर
भारतीय लोग या उनम से कसी समुदाय को कोई शि नह देगा। इसिलए
िवधानमंडल म िविभ समुदाय के ितिनिधय को इस बात का अहसास होने म ब त
अिधक समय नह लगेगा क सरकार ने भले ही उ ह सीट दे दी ह, ले कन उसने उ ह शि
नह दी है। िवधानमंडल म सीट के वल कु छ के िलए ह। ये कु छ लोग ही जनता पर अपना
िनयं ण रख पाएँगे, वह भी के वल तभी, जब वे पूरे समुदाय क बेहतरी के िलए कु छ कर
सकगे। यह संभव नह होगा, य क कोई भी शि वा तव म लोग को ह तांत रत क ही
नह जाएगी। जब िविभ समुदाय को पता चलेगा क उनके ितिनिध उनके िलए कु छ
नह कर सकते ह तो वे िवधानमंडल म दलच पी लेना बंद कर दगे और संिवधान के
िखलाफ जनता का असंतोष बढ़ने लगेगा।
यह असंतोष भारत म आ थक संकट से और भी बढ़ जाएगा और भले ही ेट ि टेन या
कसी अ य देश म सुधार हो, भारत म इसका कोई असर नह होगा। भारतीय आ थक
संकट के वल आंिशक प से िव संकट से भािवत है। यह अपने आप म एक वतं
प रघटना भी है, जो क ापक प से िवदेिशय , िवशेष प से ि टेन और उ ोग ारा
भारतीय संसाधन एवं भारतीय बाजार के शोषण का नतीजा है। साथ ही, यह िवदेशी
ित पधा से मुकाबला करने के िलए अपनी औ ोिगक व था के आधुिनक करण म
उसक अपनी िवफलता भी इसका एक कारण है। भारतीय आ थक ि थित म सुधार के
िलए न के वल िव आ थक ि थित म सुधार क आव यकता होगी, बि क भारत क
औ ोिगक णाली के आधुिनक करण क भी आव यकता होगी। ऐसे और भी कारण ह,
िजनक वजह से भारतीय अ पसं यक समुदाय क मदद ेट ि टेन के िलए यादा
फायदेमंद नह होगी। सबसे पहले, मुसलमान म एक बड़ा और भावशाली वग है, जो
रा वादी है और जो रा वादी हंद ु क तरह सरकार-िवरोधी है। उनका भाव आनेवाले
दन म कम होने के बजाय बढ़ने क संभावना अिधक है। दूसरा कारण, दिलत वग म
आज भी ब सं यक कां ेस के समथक ह। अ पृ यता को पूरी तरह से समा करने का
कां ेस का चार िनि त प से दिलत वग के अिधक सद य को कां ेस के पाले म
लाएगा। तीसरा, भारतीय ईसाई समुदाय पर अब सरकार समथक होने का ठ पा नह
लगाया जा सकता। अपने वा षक स मेलन म उ ह ने बार-बार पृथक् िनवाचक मंडल क
नंदा और संयु िनवाचक मंडल क वकालत क है। हाल के वष म भारतीय ईसाइय क
युवा पीढ़ी के बीच भावना म उ लेखनीय बदलाव आया है। धा मक प पर वे यूरोपीय
ईसाइय के वच व से नाराज होने लगे ह और वे अपने िलए एक रा ीय चच क माँग करते
रहे ह। राजनीितक प क ओर देखा जाए तो भारतीय ईसाइय क युवा पीढ़ी तेजी से
कां ेस समथक होती जा रही है। 1930 म जब लेखक कलक ा क अलीपुर स ल जेल म थे
तो वहाँ उनके साथी कै दय म युवा भारतीय ईसाइय क अ छी-खासी सं या थी, जो
सिवनय अव ा आंदोलन म शािमल हो गए थे और अब वे अपने समुदाय म जाग कता के
तीक थे। इससे आगे, जहाँ तक आं ल-भारतीय का सवाल है, उनम एक िविश बदलाव
दखाई देता है। कु छ समय पहले तक वे सरकार के वफादार समथक और अं ेज के गुग थे।
वे इं लड को अपने आ याि मक घर के प म और खुद को अपनी वचा के रं ग के अलावा
हर चीज म पूरी तरह अं ेज समझते थे। सरकार ने भी उ ह िवशेष सुिवधाएँ और
िवशेषािधकार दान कए थे, जो भारतीय को दान नह कए गए थे। ले कन चीज अब
बदल रही ह। भूिम के कानून के तहत आं ल-भारतीय को भारत का वैधािनक मूल िनवासी
बनाया गया है। समुदाय के नेता लेि टनट कनल सर एच. िग नी ने िपछले ही दन अपने
समुदाय को संबोिधत करते ए उनसे अपील क थी क वे अब भारत को अपना घर समझ
और भारतीय होने पर गव कर। समुदाय म यह भावना तेजी से िवकिसत हो रही है क
उ ह अब और अं ेज के साथ दो ती नह करनी चािहए, बि क धरती-पु के ित समथन
करना चािहए। पाँचव बात, जहाँ तक गैर-सरकारी अं ेज का संबंध है, वे रा वादी
आंदोलन को दबाने के िलए सरकार के िलए और कु छ नह कर सकते ह। इस मामले म
सरकार और गैर-सरकारी अं ेज समुदाय के बीच काफ समय से करीबी सहयोग रहा है,
ले कन इसके बावजूद रा वादी आंदोलन आगे बढ़ रहा है। आनेवाले दन म गैर-सरकारी
अं ेज समुदाय का भाव बढ़ने के बजाय घटने क संभावना है। उदाहरण के िलए, बॉ बे म
बाजार कारोबार पर उनका दबदबा कमजोर पड़ने के साथ ही यह भारतीय के हाथ म
आ गया है। 1932 म बॉ बे म ि टश कं पिनय को एक ताव पा रत कर रा वादी
आंदोलन के साथ सहानुभूित जतानी पड़ी, ता क वे बिह कार और वयं को कु चले जाने से
बचा सक। ओटावा समझौता और भारत-ि टश टे सटाइल समझौता गैर-सरकारी अं ेजी
समुदाय क यथाि थित को बनाए रखने का आिखरी यास था, ले कन रा वाद के चंड
वार को वे कब तक रोक सकते थे?
तो मानव गणना के अनुसार, यह िनि त तीत होता है क सरकार अ पसं यक को
खुश करके भारत म रा वादी ताकत को हमेशा के िलए कमजोर करने म स म हो
जाएगी। हालाँ क नए सुधार लागू होने तक कसी बड़े उतार-चढ़ाव क संभावना नह है।
इसके बाद इसे कु छ साल लगगे—संभवत: दो या तीन साल—तब कह जाकर लोग का
म पूरी तरह दूर होगा। उसके बाद अ य जन आंदोलन क शु आत हो जाएगी। यह उठा-
पटक कस आकार क होगी, इस समय इसका फै सला करना मुि कल है।
अगले कु छ साल के दौरान कां ेस क अंद नी हालत कु छ अि थर-सी होगी, यूँ कह क
कोई भी पाट पया प से इतनी मजबूत नह होगी क वह दूसर को दबा सके ।
सोशिल ट पाट क अभी जो हालत हो रखी है—यह ब त आगे नह बढ़ सकती। पाट क
संरचना म एक पता नह है और उसके कु छ िवचार पुराने पड़ चुके ह। ले कन िजस
भावना से पाट के गठन का आ ह कया गया, वह सही है। इस वामपंथी िव ोह से अंतत:
एक पूण प से नई पाट उभरे गी, िजसक प िवचारधारा, काय म और काययोजना
होगी। इस चरण म इस पाट के काय म और काययोजना क क पना करना संभव नह है
—ले कन के वल एक परे खा पेश करने का यास कया जा सकता है—
1. पाट जनता के िहत के िलए यानी कसान , मजदूर आ द के िहत के िलए खड़ी होगी,
न क िनिहत वाथ के िलए, यानी जम दार , पूँजीपितय और धन उधार देनेवाले
वग के िलए नह ।
2. यह भारतीय लोग क पूण राजनीितक और आ थक आजादी के िलए आवाज बुलंद
करे गी।
3. यह अंितम ल य के प म, भारत के िलए एक संघीय सरकार के िलए खड़ी होगी,
ले कन यह भारत को अपने पैर पर खड़ा करने के िलए आनेवाले कु छ वष के िलए
तानाशाही शि य के साथ एक मजबूत क सरकार म यक न करे गी।
4. यह देश के कृ िष और औ ोिगक जीवन के पुनगठन के िलए रा य-योजना क एक ठोस
णाली म िव ास करती है।
5. यह अतीत के ाम समुदाय के आधार पर एक नई सामािजक संरचना का िनमाण करने
क कोिशश करे गी, िजन पर गाँव ‘पंच’ का शासन था और जाित जैसी मौजूदा
सामािजक बाधा को तोड़ने का यास करे गी।
6. यह उन िस ांत और योग के आलोक म एक नई मौ क और ऋण णाली थािपत
करने का यास करे गी, जो चले आ रहे ह और आधुिनक दुिनया म वतमान म ह।
7. यह जम दारी को ख म करने और पूरे भारत के िलए एकसमान प ेदारी णाली शु
करने क कोिशश करे गी।
8. यह म य िव टो रयाई अथ म लोकतं के िलए नह खड़ी होगी, बि क यह एक
मजबूत पाट क सरकार म यक न करे गी, जहाँ भारतीय मु ह और पूरी तरह अपने
संसाधन पर िनभर है; जो सै य अनुशासन से बँधी होगी, जो क भारत को एकजुट
रखने और अराजकता को रोकने का एकमा उपाय है।
9. यह वयं को भारत के अंदर चार148 तक ही सीिमत नह रखेगी, बि क भारत के
वतं ता के मामले को मजबूत करने के िलए अंतररा ीय चार का भी सहारा लेगी
और मौजूदा अंतररा ीय संगठन का उपयोग करने का यास करे गी।
10. यह सभी क रपंथी संगठन को एक रा ीय कायका रणी के तहत एकजुट करने का
यास करे गी, ता क जब भी कोई काररवाई क जाए तो कई मोरच पर एक साथ
गितिविध हो।
यूरोप म एक सवाल हर कसी क जबान पर है—‘भारत म सा यवाद का या भिव य
है?’ इस संबंध म पं. जवाहरलाल नेह 149 ारा अिभ कए गए िवचार का उ रण
देना उिचत है, जो लेखक के अनुसार, आज भारत म लोकि यता के मामले म महा मा के
बाद दूसरे थान पर ह। 18 दसंबर, 1933 को जारी एक ेस बयान म उ ह ने कहा था
—‘मेरा यह िव ास है क आज िव के सामने मूल प से कु छ क म के सा यवाद और
कु छ क म के फासीवाद के बीच चुनाव का है और म पूरी तरह सा यवाद के प म ।ँ म
फासीवाद को बुरी तरह नापसंद करता ँ और असिलयत म मेरा यह सोचना है क यह
मौजूदा पूँजीवाद का वयं को कसी भी क मत पर बनाए रखने के िलए एक बबर और
नृशंस यास से अिधक कु छ नह है। फासीवाद और सा यवाद के बीच का कोई रा ता नह
है। कसी को भी दोन म से एक को चुनना होगा और म सा यवाद के आदश को चुनता ।ँ
इस आदश के तौर-तरीक और अवधारणा के संबंध म म संभवत: हर उस बात से सहमत
नह होऊँ, जो ढ़वादी सा यवा दय ने कया है। म सोचता ँ क इन तौर-तरीक को
बदलती ि थितय के अनुसार वयं को ढालना होगा और ये िभ -िभ देश म िभ -िभ
हो सकते ह। ले कन म सोचता ँ क सा यवाद क मूल िवचारधारा और इितहास क
इसके ारा क गई वै ािनक ा या ठोस है।’
लेखक के अनुसार, यहाँ कए गए िवचार मूलभूत प से गलत ह। अगर हम
िवकास या के अंितम छोर पर नह ह या हम िवकास को ही पूरी तरह खा रज नह
करते ह, तो इस बात को मानने का कोई कारण नह है क हमारा चयन के वल दो िवक प
तक ही सीिमत नह है। चाहे कोई हेगेिलयन या बगसोिनयन या िवकासवाद के कसी अ य
िस ांत म िव ास करता हो— कसी भी ि थित म हम यह सोचने क आव यकता नह है
क सृजन समाि पर है। हर चीज पर िवचार करते ए कोई भी यह सोचने को मजबूर हो
सकता है क िव इितहास म अगला चरण क युिन म और फासीवाद के बीच मेल-
िमलाप का होगा। और यह आ य क बात होगी, य द यह मेल-िमलाप भारत म आकार
लेगा? प रचय म यह िवचार अिभ कया गया है क भारत के भौगोिलक िवलगाव के
बावजूद भारतीय चेतना के तार िव के अ य िह स म हो रही गित से जुड़े ह और इस
िवचार क पुि के िलए आँकड़ा और त य का उ लेख कया जा चुका है। प रणाम व प,
य द भारत म कोई ऐसा योग आकार लेता है, िजसका वैि क मह व है तो इसम हैरान
होने क ज रत नह है, िवशेष प से तब, जब हम अपनी आँख से देख चुके ह क भारत
म कए गए एक अ य योग (महा मा गांधी) म पूरी दुिनया क िच पैदा हो चुक है।
क युिन म और फासीवाद के बीच िवरोध के बावजूद दोन म कु छ ल ण समान ह।
क युिन म और फासीवाद दोन ही ि पर रा य क सव ता म िव ास करते ह।
दोन संसदीय लोकतं क नंदा करते ह। दोन पाट शासन म िव ास करते ह। दोन
पाट क तानाशाही और सभी असंतु अ पसं यक के िनमम दमन म िव ास करते ह।
दोन देश के सुिनयोिजत औ ोिगक पुनगठन म िव ास करते ह। ये सामा य ल ण नए
मेल का आधार बनगे। इस मेल को लेखक ारा ‘सा यवाद’ नाम दया गया है, जो क एक
भारतीय श द है, िजसका श दश: अथ है—‘संयोग या समानता का िस ांत’। यह संयोग
करना भारत का काम होगा।
कई कारण ह क क युिन म को भारत म वीकार य नह कया जाएगा? सबसे
पहला, आज क युिन म क कसी भी प म रा वाद से कोई सहानुभूित नह है और
भारतीय आंदोलन एक रा वादी आंदोलन है—भारतीय लोग क रा ीय वतं ता का
आंदोलन। (क युिन म और रा वाद के बीच संबंध पर लेिनन क थीिसस को िपछली
चीनी ांित क िवफलता के बाद से छोड़ दया गया लगता है।) दूसरा, स अब र ा मक
हो गया है और िव ांित को भड़काने म उसक न के बराबर िच है। हालाँ क
‘क युिन ट इं टरनेशनल’ अभी भी अपनी पहचान बनाए रखने का यास कर सकता है।
स और अ य पूँजीवादी देश के बीच हाल के समझौत और इस तरह के समझौत म
िनिहत िलिखत या अिलिखत शत , साथ ही लीग ऑफ नेशंस क उनक सद यता ने एक
ांितकारी शि के प म स क ि थित को गंभीर प से नुकसान प च ँ ाया है। इसके
अलावा, स अपने आंत रक औ ोिगक पुनगठन म और अपने पूव िह से पर जापानी
खतरे से िनपटने क तैयारी म ब त त है और भारत जैसे देश म कोई स य िच
दखाने के िलए महान् शि य के साथ मै ीपूण संबंध बनाए रखने के िलए ब त उ सुक
है। तीसरा, क युिन म के कई आ थक िवचार ह, जो भारतीय को ब त अिधक भािवत
करगे, ले कन कु छ अ य िवचार भी ह, िजनका िवपरीत भाव होगा। सी इितहास म
चच और रा य के बीच घिन संबंध तथा एक संग ठत चच के अि त व को देखते ए स
म क युिन म धम िवरोधी और नाि तक के प म िवकिसत हो चुका है। इसके िवपरीत,
भारत म भारतीय के बीच कोई संग ठत चच नह होने के कारण और रा य तथा चच के
बीच कोई संबंध नह होने के कारण धम के िखलाफ ऐसी कोई भावना नह है।150 चौथा,
इितहास क भौितकवादी ा या, जो क युिन ट िस ांत म एक मुख बंद ु तीत होती
है, भारत म िबना शत वीकृ ित नह पाएगी, यहाँ तक क उन लोग म भी, जो सा यवाद
क आ थक िवषय-व तु को वीकार करने के िलए इ छु क ह गे। पाँचवाँ, जब क क युिन ट
िस ांत ने अथशा के े म कु छ उ लेखनीय योगदान दया है (उदाहरण के िलए,
रा य-िनयोजन का िवचार), यह अ य पहलु म कमजोर है। उदाहरण के िलए, जहाँ तक
मौ क सम या का संबंध है, क युिन म ने कोई नया योगदान नह दया है, बि क के वल
पारं प रक अथशा का पालन कया है। हालाँ क हाल के अनुभव संकेत देते ह क दुिनया
क मौ क सम या अभी भी संतोषजनक ढंग से हल होने से ब त दूर है।
हालाँ क यह भिव यवाणी करना सुरि त रहेगा क भारत सोिवयत स का एक नया
सं करण नह बनेगा, कोई भी समान ताकत के साथ कह सकता है क यूरोप और अमे रका
म सभी आधुिनक सामािजक-राजनीितक आंदोलन और योग का भारत के िवकास पर
काफ भाव पड़ेगा। हाल ही म भारत ने, बाहरी दुिनया म या हो रहा है, इसम अिधक-
से-अिधक िच लेना शु कर दया है और भिव य म भी वह इसे जारी रखेगा।
वापस कां ेस पर आते ह। महा मा गांधी और पं. मदनमोहन मालवीय के बीच मौजूदा
िववाद कु छ खास दलच प नह है, य क मामला बेहद मामूली सा है। भिव य म न तो
कां ेस नेशनिल ट पाट और न ही आिधका रक कां ेस संसदीय दल क कोई भूिमका है,
य क दोन ही िबना कसी प िवचारधारा या काय म के िवषम दल ह। अब के वल
भारत म गांधीवाद के भिव य पर िवचार करना बाक है। कभी-कभी यह आ ह कया
गया है क गांधीवाद सा यवाद का एक िवक प है। लेखक के िवचार म यह िवचार गलत
है। महा मा गांधी ने देश (और शायद, दुिनया) को एक नया तरीका दया है—िनि य
ितरोध या स या ह या अ हंसक असहयोग क िविध। उ ह ने अपने देश या मानवता को
सामािजक पुन नमाण का कोई नया काय म नह दया है; जैसा क क युिन म ने कया है
—और क युिन म का िवक प ही सामािजक पुन नमाण का अ य िस ांत हो सकता है।
िन संदह े , महा मा ने आधुिनक दुिनया क ‘मशीन स यता’ क नंदा क है और अ छे-
पुराने दन को सराहा है, जब लोग अपने कु टीर उ ोग से संतु थे और उनक ज रत
कम थ । ले कन यह एक ि गत िव ास या सनक है। जब भी उ ह ने वराज क
िवषय-व तु क ा या क है, उ ह ने म य-िव टो रयन संसदीय लोकतं और पारं प रक
पूँजीवादी अथशा क भाषा म बात क है। ‘ यारह बंद’ु , िजसे उ ह ने 1930 म अपने
‘ वतं ता त व’ के प म ितपा दत कया था, उसे कोई भी भारतीय उ ोगपित िबना
कसी आपि के वीकार कर लेगा। इसिलए यह कहा जा सकता है क य द उ ह अपने देश
पर राजनीितक अिधकार ा करना है तो महा मा आधुिनक औ ोिगक ढाँचे को िगराने
का इरादा नह रखते ह और न ही वे देश का पूरी तरह से औ ोगीकरण करना चाहते ह।
उनका काय म सुधार म से एक है—वे मूल प से एक सुधारवादी ह, ांितकारी नह । वे
मौजूदा सामािजक और आ थक संरचना को यथावत् छोड़ दगे, जैसी वह आज है (वे सेना
को पूरी तरह से समा भी नह करगे) और वयं उन प अ याय और असमानता को
दूर करने भर से संतु रहगे, िजनके िखलाफ उनक नैितक भावना िव ोह करती है। उनके
लाख देशवासी ह, जो प रि थितय के दबाव के कारण उनके तरीके को वीकार करते ह,
ले कन उनके पुन नमाण के काय म को नह और अगर उनके पास शि होती तो वे एक
अलग भारत का िनमाण करना चाहते। जैसा क पहले ही संकेत दया जा चुका है, भारत
का भिव य अंतत: एक प िवचारधारा, काय म और काययोजनावाली पाट के पास है
—एक पाट , जो न के वल आजादी के िलए लड़ेगी और जीतेगी, बि क यु के बाद के
पुन नमाण के पूरे काय म को लागू करे गी—एक ऐसी पाट , जो उस अलगाव को तोड़
देगी, जो भारत का अिभशाप रहा है और उसे रा के समूह म लाएगी—जो इस िव ास
म दृढ़ है क भारत का भा य अटू ट प से मानवता के भा य से जुड़ा आ है।

20
1857 के बाद से भारत : एक िवहंगम अवलोकन151
भा रत पर ि टेन क जीत का िसलिसला 1757 म लासी के यु और बंगाल के वतं
राजा नवाब िसराजु ौला को त त से हटाने के साथ ही शु हो गया था, ले कन संपूण
भारत पर क जा जमाने के िलए ि टेन धीरे -धीरे आगे बढ़ता रहा। उदाहरण के िलए,
लासी के यु के बाद, के वल बंगाल का िव ीय शासन ि टेन के हाथ म गया था—
राजनीितक शासन नवाब मीर जाफर के हाथ म ही रहा—वही मीर जाफर, िजसने
अंितम ण म नवाज िसराजु ौला को धोखा दया और अं ेज के पाले म चला गया था।
के वल चरणब तरीके से ही अं ेज पूरे बंगाल का शासन अपने क जे म ले पाए थे। धीरे -
धीरे क जा जमाने क यह या जब जारी थी, अं ेज ने अभी भी औपचा रक प से
द ली म स ाट् के आिधप य को मा यता दी ई थी। इस बात पर गौर कया जाना
चािहए क भारत को अपने िनयं ण म लेने के िलए ि टेन ने न के वल हिथयार का
इ तेमाल कया, बि क हिथयार से कह यादा उ ह ने र त, िव ासघात और हर
कार के ाचार का सहारा िलया। उदाहरण के िलए, भारत म ि टश सा ा य के
सं थापक राॅबट लाइव, िजसे बाद म लॉड बनाया गया, उसके बारे म इितहासकार ने
यह सािबत कया है क वह जालसाजी का दोषी रह चुका था। इसी कार, भारत के
गवनर जनरल वारे न हे टं स पर हाउस ऑफ कॉम स के सद य एडमंड बुक ने ि टश
संसद् के सम ‘उ अपराध और दुराचार’ का दोषी होने का आरोप लगाया था।
हमारे पूवव तय क यह सबसे बड़ी भूल और मूखता रही क वे भारत आनेवाले अं ेज
के असली च र और उनक भूिमका को शु आत म ही पहचानने म अ म रहे। संभवत:
उ ह ने सोचा था क िजस कार पूव म भी असं य कबीले घूमते-घामते भारत म आ गए
थे और उ ह ने भारत को ही अपना घर बना िलया था, ि टश भी उसी तरह का एक
कबीला है। ब त बाद म जाकर उ ह इस बात का अहसास आ क अं ेज भारत म बसने
नह , बि क उसे फतह करने और लूटने के िलए आए थे। िजतनी ज द यह बात पूरे देश को
समझ म आई, उतनी ही ज द 1857 का िव ोह भड़क उठा, िजसे अं ेज इितहासकार ने
‘िसपाही िव ोह’ का गलत नाम दया है, ले कन भारतीय जनमानस इसे ‘ वतं ता का
थम सं ाम’ ही मानता है। 1857 क महान् ांित म एक समय ऐसा आ प च ँ ा था क
अं ेज को देश से उखाड़कर फका ही जानेवाला था, ले कन कु छ बेहद चतुराई भरी
रणनीित और कु छ अ छी क मत क बदौलत वे आिखर म जीत गए। उसके बाद शु आ
आतंक का दौर, िजसका इितहास म कोई दूसरा उदाहरण िमलना मुि कल है। भारी सं या
म लोग को मौत के घाट उतार दया गया, मृ यु का ऐसा न नृ य क आ मा भी आतं कत
हो उठे —मासूम लोग के हाथ-पैर बाँधकर उ ह तोप के मुँह पर बाँधकर बा द से उड़ा
दया गया।
1857 क ांित के बाद गोर को समझ आ गया क वे के वल बबर बल योग के आधार
पर लंबे समय तक भारत म नह टक पाएँग,े इसिलए उ ह ने देश को िनह था करना शु
कर दया और हमारे पूवज क दूसरी सबसे बड़ी मूखता और गलती यह रही क उ ह ने
अं ेज क इस करतूत को िसर झुकाकर वीकार कर िलया। अगर उ ह ने अपने हिथयार
इतनी आसानी से नह स पे होते तो 1857 के बाद से भारत का इितहास संभवत: आज के
इितहास से िभ होता। देश का पूरी तरह िनश ीकरण करने के बाद अब ि टेन के िलए
यह संभव हो गया था क वे छोटी, ले कन कु शल आधुिनक सेना क मदद से भारत को
क जे म रख सकते थे।
िनश ीकरण के साथ, नवग ठत ि टश सरकार, जो अब सीधे लंदन से िनयंि त थी,
उसने ‘फू ट डालो और राज करो’ क अपनी नीित शु कर दी। यह नीित 1858 से आज
तक ि टश शासन का मूल आधार रही है। 1857 के बाद, लगभग चालीस वष तक इस
नीित को भारत को िवभािजत रखने के िलए लागू कया गया। इसके तहत तीन-चौथाई
लोग को सीधे ि टश िनयं ण म और शेष एक-चौथाई को भारतीय राजकु मार के अधीन
रखा गया। इसके साथ ही, ि टश सरकार ने ि टश भारत म बड़े जम दार के ित
अ यिधक प पात का भी दखावा कया। इस संबंध म 1857 के बाद से भारतीय
राजकु मार के ित ि टश सरकार का रवैया बड़ा दलच प रहा है। 1857 तक अं ेज क
नीित, जहाँ भी संभव हो, राजकु मार से छु टकारा पाने और उनक रयासत का शासन
सीधे अपने िनयं ण म लेने क थी। 1857 क ांित म कई भारतीय शासक, उदाहरण के
िलए, िस िवरांगना झाँसी क रानी अं ेज के िखलाफ बहादुरी से लड़ी थी, कई शासक
तट थ रहे या स यता से उनके प म हो गए थे। ऐसे राजा म नेपाल के महाराजा भी
थे। तभी अं ेज को पहली बार यह िवचार आया क संभवत: मौजूदा राजकु मार को न
छेड़ना ही बेहतर रहेगा। उनसे दु मनी मोल लेने के बजाय उनके साथ गठबंधन संिध और
िम ता करना अिधक फायदे का सौदा रहेगा, ता क अं ेज के िलए कोई परे शानी होने पर
इन महाराजा क मदद ली जा सके । इसिलए भारतीय राजकु मार का प लेने क
मौजूदा ि टश नीित क जड़ 1857 तक जाती ह। वतमान सदी क शु आत तक अं ेज
को यह अहसास हो चुका है क वे के वल राजकु मार और बड़े जम दार को लोग के
िखलाफ इ तेमाल करने मा से यादा लंबे समय तक भारत म अपना भु व कायम नह
रख सकते। तब उ ह ने 1906 म मुसिलम सम या खोज िनकाली, जब लॉड मंटो152
वायसराय थे। उससे पूव, भारत म ऐसी कोई सम या नह थी। 1857 क महान् ांित म
हंद ू और मुसिलम एक-दूसरे के साथ कं धे-से-कं धा िमलाकर अं ेज के िखलाफ लड़े थे और
मुसिलम शासक बहादुर शाह के वज के नीचे भारत का पहला वतं ता सं ाम लड़ा गया
था।
िपछले िव यु के दौरान जब अं ेज ने पाया क भारतीय लोग को और राजनीितक
रयासत देनी पड़गी तो उ ह अहसास आ क बाक आबादी से मुसिलम को िवभािजत
करने क कोिशश करना ही पया नह है और इसिलए उ ह ने वयं हंद ु को ही आपस
म िवभािजत करने का यास शु कर दया। इस तरह से उ ह ने 1918 म जाित क
सम या ढू ँढ़ िनकाली और रातोरात अचानक से तथाकिथत दिलत वग के झंडाबरदार और
मुि दाता बन बैठे। 1937 तक ि टेन को उ मीद थी क वह राजकु मार , मुसिलम और
दिलत के मसीहा के वेश म भारत को ऐसे ही िवभािजत करता रहेगा। ले कन 1935 के
नए संिवधान के तहत ए आम चुनाव म यह देखकर उनक आँख आ य के कारण फटी
रह ग क उनक सारी म ा रयाँ और धूतता िवफल हो ग और एक मजबूत रा वादी
भावना पूरे देश और उसके हर वग म ा थी। नतीजतन ि टश नीित अब अपना
आिखरी दाँव चल रही है। य द भारतीय लोग को दो फाड़ नह कया जा सकता है तो
या—देश को—भारत को दो फाड़ करो—उसे भौगोिलक और राजनीितक प से
िवभािजत करना है। यही योजना है, िजसका नाम पा क तान है—यह योजना एक अं ेज
के खुराफाती दमाग क उपज है, िजसक िमसाल ि टश सा ा य के अ य िह स म
पहले भी देखी जा चुक ह। सीलोन का ही उदाहरण ले ल, जो भौगोिलक और सां कृ ितक
प से भारत से संबंध रखता है, ले कन ब त पहले उसे भारत से अलग कर दया गया।
िपछले िव यु के तुरंत बाद आयरलड, जो क हमेशा से एक एक कृ त रा रहा था, उसे
अ टर और आय रश टेट म बाँट दया गया। 1935 के नए संिवधान के बाद बमा को
भारत से अलग कर दया गया। और य द मौजूदा यु बीच म नह आता तो फिल तीन
कब का पहले ही य दी रा , एक अरब रा और दोन के बीच से गुजरते ि टश गिलयारे
म िवभािजत हो चुका होता! खुद पा क तान के िवचार को पैदा कर—या भारत को
िवभािजत करने क योजना बनाकर—अं ेज अब बड़ी कु शलता से इसके समथन म चार
चला रहे ह। हालाँ क ब सं यक भारतीय मुसिलम एक वतं और आजाद भारत चाहते
ह—हालाँ क भारतीय रा ीय कां ेस के अ य एक मुसिलम, मौलाना अबुल कलाम
आजाद ह—और भले ही भारतीय मुसिलम का एक मु ी भर वग पा क तान के िवचार
का समथन करता है, ले कन ि टेन ारा दुिनया भर म चलाए जा रहे दु चार से यह
भाव पैदा हो रहा है क भारतीय मुसिलम आजादी के रा ीय संघष म साथ नह ह और
वे भारत का बँटवारा चाहते ह। अं ेज वयं जानते ह क वे जो संदश े दे रहे ह, वह एकदम
झूठा है—ले कन इसके बावजूद उ ह उ मीद है क बार-बार एक ही झूठ को लगातार
दोहराते रहने से वे दुिनया को यक न दलाने म सफल हो जाएँगे क यह झूठ ही सच है।
जब पा क तान का मूल प से िवचार सामने लाया गया था तो भारत को एक तथाकिथत
हंद ू भारत और एक तथाकिथत मुसिलम भारत म िवभािजत करने का िवचार था। हो
सकता है क यह योजना ब त शानदार नजर आई हो! उसके बाद से ही अं ेज का शैतानी
दमाग और भी आगे क योजना बना चुका है और अगर वे अपनी सािजश म सफल हो गए
तो वे अब भारत को दो रा म नह , बि क पाँच या छह म बाँटगे। उदाहरण के िलए,
ि टश राजनेता कहते ह क य द भारतीय राजकु मार शेष भारत से अलग होना चाहते ह
तो उ ह राज थान नाम से अलग रा िमलना चािहए। य द िसख अलग होना चाहते ह तो
उनका खािल तान नाम से अलग रा होना चािहए। और ये महाधूत अं ेज, पठान का
सरपर त होने का पंच कर रहे ह, जो भारत के उ र-पि म म रहनेवाले भारतीय
मुसिलम का एक वग है और अं ेज अपील कर रहे ह क भारत के उ र-पि म म
‘पठािन तान’ नाम से एक अलग रा होना चािहए। ऐसा तीत होता है क इस समय
ि टश नेता के िलए ‘पठािन तान’ सवािधक ि य िवषय है। वे उ मीद करते ह क
पठािन तान क इस योजना के मा यम से वे भारत के कु छ सवािधक पीिड़त लोग को
जीतने म सफल हो जाएँगे—पठान भारत के पि मो र सीमांत ांत म रहनेवाले और
भारत तथा अफगािन तान के बीच वतं प से रहनेवाले कबीले ह। इसके साथ ही
अं ेज अफगान लोग क भी सहानुभूित ा करना चाहते ह।
िनि त प से पा क तान एक शानदार योजना और अ ावहा रक समीकरण है और
इसके एक नह , कई कारण ह। भारत भौगोिलक, ऐितहािसक, सां कृ ितक, राजनीितक
और आ थक प से एक अिवभा य इकाई है। दूसरी बात, भारत के अिधकांश िह स म
हंद ू और मुसलमान इस कदर घुले-िमले ह क उ ह अलग करना संभव नह है। तीसरा,
अगर मुसिलम रा य को जबरन थािपत कया गया तो इन रा य म नई अ पसं यक
सम याएँ पैदा हो जाएँगी, जो नई मुि कल पेश करगी। चौथा, जब तक हंद ू और
मुसलमान एकजुट होकर अं ेज से नह लड़गे, वे खुद को आजाद नह कर सकते और
उनक एकता एक वतं और अिवभािजत भारत के आधार पर ही संभव है। एक वतं
पा क तान असंभव है और इसिलए ावहा रक प से देखा जाए तो सबके ऊपर ि टश
भु व सुिनि त करने के िलए भारत को िवभािजत करने का मतलब है पा क तान!
उ लेखनीय है क मुसिलम लीग के अ य और पा क तान के पैरोकार िज ा ने अपने
नवीनतम बयान म वीकार कया है क पा क तान का िनमाण और रखरखाव के वल
अं ेज क मदद से ही संभव है।
अब अपनी कहानी पर आगे बढ़ते ह। भारत म अभी जो संघष चल रहा है, वह वा तव म
1857 क महान् ांित का ही िसलिसला है। उ ीसव सदी के िपछले चार दशक म
भारतीय आंदोलन ने ेस और मंच पर खुद को कया। 1885 म जब भारतीय रा ीय
कां ेस का उ ाटन आ तो इस आंदोलन को एक संगठन म बदल दया गया। इस सदी के
ारं भ म भारत म एक नई जागृित आई और इसके साथ ही संघष के नए तौर-तरीके ईजाद
कए गए। इसिलए शु आती दो दशक म हम एक ओर ि टश व तु का बिह कार और
दूसरी ओर ांितकारी उ वाद देखते ह। ऐसे समय म जब जमनी, ऑि या, हंगरी और
तुक हमारे दु मन से लड़ रहे थे, भारतीय ांितका रय ने िपछले यु के दौरान हिथयार
क मदद से ि टश शासन को उखाड़ फकने का एक जी-तोड़ यास कया, ले कन
भारतीय ांितका रय को कु चल दया गया था। यु के बाद, भारत को संघष के एक नए
हिथयार क आव यकता थी और इस मनोवै ािनक ण म, महा मा गांधी स या ह या
िनि य ितरोध या सिवनय अव ा क अपनी प ित के साथ आगे आए।
िपछले बाईस वष के दौरान, महा मा के नेतृ व म कां ेस ने रयासत समेत पूरे देश म
एक शि शाली संगठन बनाया है। इसने दूर-दराज के गाँव म और लोग के सभी वग के
बीच राजनीितक जागृित पैदा क है। सबसे मह वपूण बात यह है क भारतीय जनता ने
िबना हिथयार के भी शि शाली श ु पर हार करना सीख िलया है और गांधी के नेतृ व
म कां ेस ने दखा दया है क िनि य ितरोध के हिथयार के मा यम से शासन को पंगु
बनाया जा सकता है। सं ेप म, भारत के पास अब एक अनुशािसत राजनीितक संगठन है,
जो दूर-दराज के गाँव तक प च ँ रखता है, िजसके सहयोग से रा ीय संघष कया जा
सकता है और िजसक मदद से आगे चलकर एक नए, वतं रा का िनमाण कया जा
सकता है।
भारत म युवा पीढ़ी िपछले 20 साल के अनुभव से यह सीख चुक है क सिवनय अव ा
आंदोलन एक िवदेशी शासन को बंधक बना सकता है या पंगु तो कर सकता है, ले कन
िबना भौितक बल के यह उसे उखाड़कर नह फक सकता या िन कािसत नह कर सकता।
इस अनुभव से े रत होकर लोग आज वत: सिवनय अव ा या िनि य ितरोध से
स य ितरोध क ओर बढ़ रहे ह। और यही वजह है क आज आप पढ़ते और सुनते ह क
िनह थे भारतीय लोग रे लवे, टेली ाफ और टेलीफोन संचार को व त कर रहे ह—पुिलस
थान , डाकघर और सरकारी इमारत म आग लगा रहे ह तथा ि टश राज को ने तनाबूद
करने के िलए कई अ य तरीक से बल- योग कर रहे ह। एक अंितम चरण आएगा, जब
स य ितरोध सश ांित म िवकिसत हो जाएगा। तब भारत म ि टश शासन का अंत
होगा।

21
जनवरी 1935 से िसतंबर 1939 तक
न वंबर 1934 के आिखरी दन क बात है। अं ेजी म मूल पु तक समा करने के बाद
लेखक भारत चले आए। उ ह उनक माताजी क तरफ से टेली ाम िमला था क उनके
िपता मृ यु-शैया पर ह। वे एक दन क देरी से कलक ा प च ँ े। हवाई अ े पर भारी-
भरकम पुिलस द ता उनक राह देख रहा था, िजसने उनको िगर तार कर िलया। उनका
घर उस समय शोक म डू बा आ था और उ ह छह स ाह के िलए घर म ही नजरबंद कर
दया गया। अपना िच क सा उपचार पुन: शु करने के िलए यूरोप रवाना होने तक वे घर
म ही नजरबंद रहे।
भारत- वास के दौरान लेखक ने पाया क चचा का मु य िवषय हाल ही म भारतीय
िवधानसभा, यानी क भारत क संसद् के िलए ए चुनाव थे। वायसराय लॉड िव लं डन
क उ मीद के िवपरीत, कां ेस पाट ने चुनाव म शानदार सफलता हािसल क । यह प
था क 1932 के बाद से कां ेस पाट के िखलाफ लॉड िव लं डन क सरकार ारा कए गए
दमनकारी उपाय के बावजूद, लोग का िवशाल ब मत भारतीय रा ीय कां ेस के साथ
खड़ा था। यहाँ यह यान दया जाना चािहए क 1923-24 के िवपरीत, कां ेस क संसदीय
गितिविध इस बार गांधी वंग ारा संचािलत क गई थी।
1935 म अगले बारह महीन के िलए कां ेस के अ य राज साद थे, जो महा मा
गांधी के एक ढ़वादी अनुयायी थे, िजनसे उ मीद क जाती थी क वे गांधीवादी नीितय
का स ती से पालन करगे।
1935 के दौरान सबसे मह वपूण राजनीितक घटना, ि टश संसद् ारा भारत के िलए
एक नया संिवधान पा रत करना था, िजसे ‘भारत सरकार अिधिनयम-1935’ कहा जाता
है। इस संिवधान को दो साल बाद 1937 म लागू कया गया था, जब पहला चुनाव आ
था। यह सै ांितक प से अभी भी लागू है, हालाँ क वा तव म िसतंबर 1939 म वतमान
यु िछड़ने के बाद से यह िनलंिबत है। नए संिवधान को भारतीय जनमत और िवशेष प
से कां ेस ारा सवस मित से खा रज कर दया गया था, य क यह वशासन के िलए
नह , बि क भारतीय राजकु मार , सां दाियक, ित यावादी और ि टश समथक
संगठन क मदद से नई राजनीितक प रि थितय म ि टश शासन को बनाए रखने क
योजना थी।
1935 के संिवधान के ावधान म दो भाग थे—संघीय और ांतीय। इसम तािवत
‘संघ’ या ‘फे डरे शन’ एक नया िवचलन है, जो ‘ि टश भारत’ और ‘भारतीय रयासत ’
दोन को िमलाकर एक अिखल भारतीय क सरकार उपल ध कराता है। संघीय क म दो
सदन थे, िजसम राजकु मार को मश: दो बटा पाँच और एक-ितहाई सद य को मनोनीत
करना होता था। िनधा रत समूह , मुसलमान , िसख , अनुसूिचत जाितय , मिहला ,
एं लो-इं िडयन, िमक आ द को सीट आवं टत क ग । उ सदन म 260 म से के वल 75
सीट ही आम चुनाव के िलए खुली थ ; िनचले सदन म 375 म से के वल 86। उ सदन म
िनवाचक मंडल ि टश भारत क जनसं या के लगभग 0.05 तक सीिमत था; िनचले
िह से म यह लगभग एक बटा नौ था। इन िवधाियका क शि याँ बेहद सीिमत थ ।
र ा और िवदेश नीित को वायसराय के अिधकार म रखा गया था; िव नीित, नौकरशाही
तथा पुिलस पर िनयं ण को भी िवधानसभा के अिधकार े से परे रखा गया था। कु छ
िनधा रत िवषय पर कोई िवधेयक पा रत नह कया जा सका। वायसराय को ापक
िविश शि याँ हािसल थ , िजनम कसी भी कानून पर वीटो लगाने का अिधकार,
मंि य को बरखा त करने का अिधकार और िवधानमंडल ारा पा रत कए गए
िवधेयक को नामंजूर करने का अिधकार, िवधानमंडल को भंग करने का अिधकार तथा
संिवधान को िनलंिबत करने का अिधकार भी शािमल था।
के वल ि टश भारत के 11 ांत पर लागू होनेवाला संिवधान का ांतीय खंड कु छ कम
संक ण था। उसम राजकु मार क ओर से कोई िनयुि नह थी। िवधानमंडल पूरी तरह
िनवािचत थे, हालाँ क उ सदन के िलए मतािधकार सीिमत था। खु फया पुिलस को
छोड़कर गवनर के िनयं ण म कोई आरि त िवषय नह था। हालाँ क गवनर य द सोचते
ह क ‘ ांत क समरसता खतरे म है’ तो उनके पास पूण आपात शि याँ थ । इस कार
ांत म लोकि य सरकार क कु छ सीिमत संभावनाएँ रखी गई थ । क क तरह ही
िवधानसभा म सीट का आवंटन सां दाियक समूह को कया गया था, ले कन 11 ांत
म 1585 म से 657 ‘सामा य सीट’ खुली रखी गई थ । इसिलए संिवधान का िवरोध करते
ए रा ीय कां ेस के िलए 1937 के पहले ांतीय चुनाव म िह सा ले पाना संभव आ,
िजसम उसने 11 ांत म से ब सं यक सात (बाद म आठ) ांत म जीत हािसल क ।
जैसा क अ याय-14 ‘भारत का संघष, 1920-34’ के अंत म पहले ही कहा जा चुका है क
साल 1935 से 1936 के दौरान भारत म कोई भी सनसनीखेज घटना नह ई। कां ेस क
संसदीय शाखा ने अपनी गितिविधयाँ जारी रख और धीरे -धीरे वह भाव हािसल करती
चली गई। दूसरी ओर, कां ेस सोशिल ट पाट ने युवा पीढ़ी और कां ेस के अंदर और
अिधक क रपंथी त व तथा सामा य प से भारतीय लोग को जोड़ना शु कर दया
था। कु छ समय के िलए स या ह या सिवनय अव ा और ांितकारी उ वाद—दोन ही
अपना आकषण खो बैठे और इस कार से एक शू य पैदा हो गया। कां ेस सोशिल ट पाट
ने वाभािवक प से इस शू य के बीच अपनी बढ़त बनानी शु कर दी। एक छोटा सा
समूह ‘द क युिन ट पाट ऑफ इं िडया’, िजसे ि टश सरकार ने अवैध घोिषत कर रखा
था, उसने अपने सद य को कां ेस सोशिल ट पाट म शािमल होने और इस कार कां ेस
सोशिल ट पाट के सावजिनक मंच का इ तेमाल कर अपने संगठन और उसके उ े य को
आगे बढ़ाने का िनदश दया। यह समूह छा के एक वग और फै टरी कामगार के बीच
अपना भाव फै लाने म सफल हो गया। बाद म क युिन ट पाट ने सावजिनक प से
अपनी गितिविधय को चलाने के िलए अपना नाम ‘नेशनल ं ट’ रख िलया।
कां ेस सोशिल ट पाट के पास गांधीवादी नेतृ व के थान पर वैकि पक नेतृ व दान
करने का यह एक ऐितहािसक मौका था, य क गांधीवादी नेतृ व ने 1920 से ही
राजनीितक े म अपना एकािधकार थािपत कर रखा था। अगर पं. जवाहरलाल नेह ,
िज ह ने अपना नैितक समथन पाट को दया आ था, वे खुलकर पाट म शािमल हो जाते
और उसके नेतृ व को वीकार कर लेते तो यह काम बड़ी आसानी से हो जाता, ले कन
उ ह ने ऐसा नह कया।
1935 क शरद ऋतु म पं. नेह को अचानक जेल से रहा कर दया गया, ता क वे
यूरोप म मृ यु शैया पर पड़ी अपनी प ी के पास जा सक। उ ह ने अपना अिधकतर समय
जमनी के बैडन े वीलर म िबताया। समय-समय पर वे लंदन और पे रस जाते रहे। यूरोप क
अपनी इस या ा के दौरान उ ह ने लंदन और पे रस म अपने संपक बनाए, जो उनक
भावी नीित को भािवत करनेवाले थे। वे स और आयरलड जैसे देश क या ा पर नह
गए, िज ह उस समय ि टश िवरोधी समझा जाता था। हालाँ क यूरोप के अपने िपछले
दौरे के दौरान वे मा को जा चुके थे। इटली और जमनी जैसे देश म वे कसी से कोई संपक
कायम करने से सावधानीपूवक बचते रहे, फर चाहे उ ह ने ऐसा फासीसादी और रा ीय
समाजवाद को नापसंद करने के कारण कया हो या फर वे इं लड और ांस म अपने
िम को नाराज नह करना चाहते थे। यूरोप वास के दौरान उ ह ने अपनी आ मकथा
कािशत करवाई, िजसने उ ह अं ेजी समाज के उदारवादी धड़े के बीच बेहद लोकि य
बना दया।
1936 म नेह को भारतीय रा ीय कां ेस का अ य चुना गया और उ ह ने अ ैल म
लखनऊ म आयोिजत पाट के वा षक स क अ य ता क । साल क समाि पर उ ह
फर से अ य चुना गया और उ ह ने बॉ बे ेसीडसी म फै जपुर म आयोिजत अगले
सालाना स क कमान सँभाली। अ य के चुनाव म नेह को दोन ही अवसर पर
कां ेस क गांधीवादी शाखा का पूरा समथन हािसल था। बतौर अ य उ ह ने गांधीवादी
शाखा और कां ेस सोशिल ट पाट के बीच का रा ता अपनाया, िजससे दोन म से कसी
को कोई परे शानी नह ई, ले कन उ ह ने कां ेस सोशिल ट पाट को कु छ िनि त उपाय
के ज रए नैितक समथन मुहय ै ा ज र कराया।
1933 और 1936 के बीच, लेखक ने ावहा रक प से स के बाहर पूरे यूरोप का दौरा
कया। ‘वसाय’ के बाद के यूरोप क ि थितय का खुद से अ ययन कया। वे कई बार इटली
और जमनी जा चुके थे और रोम म कई अवसर पर मुसोिलनी ने उनक अगवानी क थी।
उ ह ने एक ओर नई ताकत के िवकास का अ ययन कया, जो अंतत: ‘वसाय क संिध’
ारा थािपत पुरानी व था को चुनौती देनेवाली थ और दूसरी ओर, उ ह ने ‘लीग
ऑफ नेशंस’ का अ ययन कया, जो क पुरानी व था का तीक था। उनक िच िवशेष
प से ‘वसाय क संिध’ ारा लाए गए बदलाव म थी और इस उ े य के िलए उ ह ने
ऑि या, हंगरी, चेको लोवा कया, पोलड और बा कन क या ा करने का फै सला कया।
या ा और अ ययन के ज रए वे न के वल उस समय यूरोप क ि थित को समझने म स म
ए, बि क उ ह आगामी घटना क एक झलक भी हािसल ई। यूरोप के कई देश म वे
भारत के ित िच पैदा करने और भारत के साथ संपक िवकिसत करने के िलए संगठन
को तलाशने म मदद करने म सफल ए। उनका यह दौरा आयरलड क या ा के साथ
संप आ, जहाँ उ ह ने रा पित दा वालेरा और उनक सरकार के अ य मंि य तथा
साथ ही गणतांि क आंदोलन के नेता से भी मुलाकात क ।
लेखक ने अपना कु छ समय 1933 और 1934 म िजनेवा म ‘लीग ऑफ नेशंस’ संगठन का
अ ययन करने और भारत क वतं ता के उ े य को आगे बढ़ाने के िलए लीग के उपयोग
क संभावना तलाशने म िबताया। व र रा वादी नेता वी.जे. पटेल, जो क इं िडयन
लेिज ले टव असबली के पूव अ य रह चुके थे, वे भी इसी उ े य से िजनेवा आए थे।
दुभा य से, पटेल153 आगमन के तुरंत बाद बीमार पड़ गए और अ ू बर 1933 म एक ि वस
सेनेटो रयम म उनक मृ यु हो गई। उनक मृ यु के बाद लेखक अके ले पड़ गए, ले कन
उ ह ने कु छ समय तक िजनेवा म अपना काम जारी रखा। इस अविध के दौरान उ ह ने
भारत संबंधी अंतररा ीय सिमित के सहयोग से काम कया, िजसका मु यालय िजनेवा म
था और उ ह ने भारत पर एक मािसक बुले टन के काशन म मदद क । यह बुले टन तीन
भाषा — च, जमन और अं ेजी—म कािशत कया गया और भारत म िच रखनेवाले
लोग के िलए दुिनया भर म भेजा गया था। िजनेवा म उनके वास का समय समाि क
ओर था और उस समय लेखक को समझ आया क लीग ऑफ नेशंस के तं को पूरी तरह
ि टेन और ांस ारा िनयंि त कया जाता है और ऐसे म भारत क आजादी के िलए लीग
का उपयोग करना असंभव है, यह अलग बात थी क भारत इस इकाई का मूल सद य था।
इसिलए उ ह ने इसके िलए एक आंदोलन शु कया क भारत लीग का सद य बने रहकर
अपना धन बरबाद कर रहा है और उसे ज द-से-ज द इस सं था से इ तीफा दे देना
चािहए। भारतीय जनता ने उनके इस आंदोलन का पुरजोर समथन कया।
यूरोप म वास के दौरान लेखक पर हर जगह ि टश सरकार के एजट ारा नजर रखी
जाती थी, िज ह ने अपनी ओर से इस बात के िलए भरसक यास कए क लेखक िविभ
सरकार और िविभ देश म मह वपूण लोग के साथ संपक कायम न कर सक।
फासीवादी या फासीवाद समथक देश म ि टश एजट ने उनक छिव क युिन ट क
बनाने क कोिशश क । दूसरी ओर, उ ह ने सोशिल ट या लोकतांि क देश म उनको
फासीवादी बताने का यास कया। इन तमाम अवरोध के बावजूद, वे यूरोप म कई देश
म भारतीय वतं ता आंदोलन के िलए सहानुभूित पैदा करने और साथक चार करने म
स म रहे। इनम से कु छ देश म भारत के साथ सां कृ ितक और आ थक संबंध िवकिसत
करने के िलए संगठन शु कए गए।
अ ैल 1946 म लेखक कां ेस के लखनऊ स म भाग लेने क मंशा के साथ बॉ बे लौट
आए। उ ह िवयना म ि टश वािण य दूतावास के मा यम से ि टश सरकार िलिखत म
चेतावनी दे चुक थी क य द वे भारत लौटे तो उ ह िगर तार कर िलया जाएगा, ले कन
बड़े ही जोशपूण जवाब म उ ह ने उस चेतावनी को खा रज कर दया और सरकार को
इससे भी बुरा करने क चुनौती दी। भारत क धरती पर कदम रखते ही उ ह बॉ बे क
जेल म डाल दया गया।
1936 क शरद ऋतु म एम.एन. रॉय, पूव म क युिन ट इं टरनेशनल, को कानपुर म
बो शेिव ट ष ं कांड के संबंध म छह साल क सजा काटने के बाद जेल से रहा कर
दया गया। उनके ांितकारी इितहास और उनके अंतररा ीय अनुभव के कारण एम.एन.
रॉय एक लोकि य और आकषक ि थे, उनके नाम के चार ओर एक भामंडल था।
युवा ने उ ह घेर िलया और ज द ही एक नया समूह ‘राय समूह’ जनता के बीच सु खय
म आ गया।
भारत के िलए नया संिवधान, िजसने बमा को भारत से अलग कया, ि टश संसद् ारा
1935 म पा रत कया गया था। इसने भारतीय लोग को ांत म एक िनि त मा ा म
वाय ता दान क । नए संिवधान के तहत ांतीय चुनाव 1936-37 क स दय म होने
थे। कां ेस क संसदीय शाखा (जो अब गांधीवादी शाखा का पयाय थी) ने इन चुनाव क
तैयारी और उसके बाद ांत म मं ी पद वीकार करने क भी तैयारी शु कर दी। कां ेस
सोशिल ट पाट ने मूल प से इन चुनाव म भागीदारी का िवरोध कया था, उसका यह
रवैया 1922-23 म ढ़वादी गांधीवा दय क ‘नो चज पाट ’ के रवैए क याद दलाता
था। बाद म सी.एस. पाट ने अपने ख म बदलाव कया और चुनाव लड़ने के िवचार का
समथन कया, ले कन वह मं ी पद वीकार करने के िवचार क घोर िवरोधी थी।
सी.एस.पी. के पास एक प ांितकारी प र े य नह था और संभवत: ऐसा इसिलए था
क उस पाट के पदािधका रय म वे पूव गांधीवादी थे, िजनका मोहभंग हो चुका था,
ले कन जो अभी भी गांधीवादी अवधारणा के भाव म थे—जब क पाट म दूसरे अ य
नेता भी थे, जो नेह क भावना मक राजनीित के भाव म थे।
1936-37 म सी.एस. पाट ने ‘मं ालय िवरोधी’ आंदोलन छेड़ दया, िजसका मकसद
कां ेस नेता ारा मं ी पद को वीकार कए जाने का िवरोध करना था। इस कदम का
समथन करनेवाल म पंजाब के सरदार सरदुल संह किवशर154, संयु ांत के रफ अहमद
कदवई155, ीमती वी.एल. पंिडत156 और शरत चं बोस157 (लेखक के भाई) शािमल थे,
ले कन ये सी.एस.पी. के सद य नह थे। पं. नेह ने इस आंदोलन को अपना नैितक समथन
दया था।
रा वा दय को ब मत हािसल करने से रोकने के िलए नए संिवधान म िनिहत सभी
अवरोध और सुर ा उपाय के बावजूद, कां ेस पाट ांतीय संसदीय चुनाव म, ि टश
भारत म 11 ांत म से सात म ावहा रक ब मत के साथ सामने आई। उस समय
मं ालय रोधी आंदोलन मजबूत हो रहा था—ले कन कां ेस के सांसद (या गांधीवादी)
नेता ने ऐसे घाघ कौशल के साथ ि थित को सँभाला क जुलाई 1937 म, उ ह ने
मं ालय िवरोधी आंदोलन को सफलतापूवक हािशए पर सरका दया और अिखल
भारतीय कां ेस कमेटी को ांत म कै िबनेट पद लेने के प म िनणय लेने के िलए मना
िलया।
संसदीय चुनाव समा होने के बाद लेखक को माच 1937 म कलक ा अ पताल से
नजरबंदी से रहा कर दया गया। अगले कु छ महीन म अिधकतर राजनीितक कै दय को
धीरे -धीरे आजाद कर दया गया, िसवाय बंगाल और अंडमान आइलड के कै दय को
छोड़कर। बंगाल म राजनीितक कै दय क सं या हजार म थी, िजनम से अिधकतर को
िबना कसी सुनवाई के जेल म डाला गया था या नजरबंद कया गया था। बंगाल क खाड़ी
म ि थत अंडमान आइलड क जेल म भी कु छ सौ राजनीितक कै दी थे, िज ह लंबी अविध
के िलए कै द कया गया था और इनम अिधकतर बंगाल, पंजाब और संयु ांत से थे।
जुलाई 1937 म कां ेस पाट ने यारह म से सात ांत म कै िबनेट कायालय ले िलया और
इन ांत म ावहा रक प से सभी राजनीितक कै दय को रहा कर दया गया। इसके
तुरंत बाद, अंडमान आइलड के राजनीितक कै दी अपनी रहाई क माँग को लेकर भूख-
हड़ताल पर चले गए। इसके चलते उ ह मु य भूिम क जेल म थानांत रत कर दया
गया।
वे सात ांत, िजनम कां ेस क सरकार थी, उनम सीमांत ांत, संयु ांत, िबहार,
बॉ बे ेसीडसी, म य ांत, म ास ेसीडसी और उड़ीसा थे। पहली सरकार को बाहर का
रा ता दखाए जाने के बाद असम म िसतंबर 1938 म कां ेस क सरकार बन गई। संध158
म कां ेस पाट ारा सम थत कै िबनेट है, िजसका वह िह सा नह है। बंगाल159 म दसंबर
1941 से ही एक नई कै िबनेट है और कां ेस पाट इसम शािमल है। के वल पंजाब म सर
िसकं दर हयात खान क कै िबनेट है, जो हमेशा कां ेस पाट क िवरोधी रही है।
सात ांत म कां ेस पाट के स ा म आने के बाद वहाँ का शासन िविश प से
रा वादी हो गया और कां ेस क ित ा कई गुना बढ़ गई। आमतौर पर लोग को लग
रहा था क कां ेस आनेवाली शि है। ले कन इसके अलावा, कोई खास बदलाव नह
आ। स ा अभी भी ांतीय गवनर और भारतीय िसिवल सेवा के थायी अिधका रय के
हाथ म थी, िजनम से अिधकांश ि टश थे और इसिलए कां ेस पाट शासन म दूरगामी
सुधार नह कर सक । कु छ समय बाद, यह देखा जा सकता था क कां ेिसय का एक बड़ा
वग धीरे -धीरे संसदीय या संवैधािनक मानिसकता से सं िमत हो रहा था और अपना
ांितकारी उ साह खो रहा था।
1934 म कां ेस सोशिल ट पाट का उदय देश म क रपंथी या वामपंथी ताकत के
पुन थान का एक िनि त संकेत था। इसके साथ कसान और छा म और कु छ हद तक
िमक म एक अभूतपूव जागृित आई। पहली बार ‘अिखल भारतीय कसान सभा’ नामक
एक क ीकृ त अिखल भारतीय कसान संगठन का उदय आ, िजसके सबसे मुख नेता
वामी सहजानंद सर वती थे। छा आंदोलन भी, जो अतीत म कई उतार-चढ़ाव से गुजरा
था, ‘अिखल भारतीय छा संघ’ के नेतृ व म एकजुट हो गया था।160 ‘अिखल भारतीय ेड
यूिनयन कां ेस’, िजसने 1929 म नागपुर म और फर 1931 म कलक ा म लगातार दो
िवभाजन का अनुभव कया था, एक बार फर एक संयु नेतृ व के तहत एकजुट हो गई,
जो सभी कार के िवचार का ितिनिध व करती थी। दोन दि णपंथी और वामपंथी।
सािह य जगत् म भी गितशील लेखक को संग ठत करने का यास कया गया।
पं. नेह का अ य पद पर दो बार का कायकाल शीष तर पर अपनी ऊजा और पहल
के िहसाब से उ लेखनीय रहा और कां ेस म क रपंथी ताकत को भी बढ़ावा िमला। इसी
के साथ ही उनके कहने पर कई सोशिल ट को कां ेस के थायी पदािधका रय के प म
िनयु कया गया। ले कन पं. नेह और भी ब त-कु छ हािसल कर सकते थे। 1936-37 के
वष म उनक लोकि यता अपने चरम पर थी और एक िनि त अथ म उनक ि थित
महा मा गांधी क तुलना म अिधक मजबूत थी, य क उ ह पूरे वामपंथ का समथन था,
जो गांधी को नह था। ले कन संगठना मक प से महा मा क ि थित ब त अिधक मजबूत
थी, कां ेस पाट के भीतर उ ह ने अपनी खुद क पाट ‘गांधी शाखा’ का िनमाण कया था
और अपनी संगठना मक ताकत के दम पर वे अपनी पाट पर भु व रख सकते थे। दूसरी
ओर, नेह क अपनी जबरद त लोकि यता के बावजूद, उनक अपनी कोई पाट नह थी।
अगर वे इितहास म जगह बनाना चाहते ह तो उनके िलए दो रा ते खुले थे—या तो वे
गांधीवाद के िस ांत को वीकार कर ल और कां ेस पाट के भीतर ‘गांधी शाखा’ म
शािमल हो जाएँ या ‘गांधी शाखा’ के िखलाफ अपनी खुद क पाट का िनमाण कर? वे
पहला काम नह कर सके , य क भले ही वे ि गत प से महा मा के ित वफादार थे,
उ ह ने गांधीवाद के सभी िस ांत को वीकार नह कया था। दूसरी ओर, उ ह ने अपनी
खुद क पाट नह बनाई, य क इससे गांधी शाखा अपना अपमान समझ सकती थी और
उ ह ने अपने जीवन म कभी भी महा मा के िवरोध म कु छ भी करने का साहस नह कया।
नेह ने भी धारा के साथ बहना शु कर दया, वे दोन प —वाम और दि णपंथी को
खुश करने का यास कर रहे थे। ले कन इस यास के दौरान वे न तो गांधी शाखा म
शािमल ए और न ही कसी अ य क रपंथी पाट म—और इस कार वे कां ेस पाट के
भीतर एक बड़े कद के नेता बने रहे। दसंबर 1942 म आज भी उनक यही ि थित है।
1937 के बाद वे 1939 तक गांधी के करीब आ चुके थे और एक तरह से गांधी शाखा के
सद य ही बन गए थे। इसके िलए महा मा ारा उ ह पुर कृ त भी कया गया, जब उ ह ने
जनवरी 1942 म ऐलान कर दया क वे नेह को अपना उ रािधकारी िनयु कर रहे ह।
अगर नेह िबना कसी सवाल के गांधी के ित इसी कार आ ाकारी रहते तो वे अपनी
इस ि थित को बरकरार रखते। ले कन सर टैफोड स क भारत या ा और भारत तथा
ि टेन के बीच भावी संबंध क सम या को लेकर नेह ने समझौते और सहयोग क नीित
क वकालत क , िजसे महा मा और उनक पाट ने खा रज कर दया। वैचा रक मतभेद के
प रणाम व प, नेह अब एक तरह से अके ले पड़ गए ह और इस बात क ब त अिधक
संभावना है क इस अनुभव के बाद गांधी शाखा आसानी से नेह को महा मा के
उ रािधकारी के प म अपना नेता नह मानेगी।
दसंबर 1937 म लेखक ऑि या म अपने पसंदीदा हे थ रजॉट, बडगा टीन गए और
वहाँ से उ ह ने इं लड क या ा क । इं लड वास के दौरान जनवरी 1938 म उ ह
समाचार ा आ क उ ह सवस मित से कां ेस का अ य चुन िलया गया है। अपनी
इस या ा के दौरान लेखक ने लॉड हैलीफै स और लॉड जेटलड जैसे ि टश कै िबनेट के
सद य के साथ ही लेबर और िलबरल पाट के मुख सद य से भी मुलाकात क , जो उस
समय भारत के ित सहानुभूित रखते थे; उदाहरण के िलए, एटली, आथर ीनवुड, बेिचप,
सर टैफोड स, हैरो ड ला क , लॉड ऐलन आ द।
कां ेस अ य के नाते लेखक ने ि टेन के साथ कसी भी कार के समझौते के ित
कां ेस पाट के िवरोध को मजबूत करने के िलए हरसंभव यास कया और इससे
गांधीवादी हलक म नाराजगी पैदा हो गई, जो उस समय ि टश सरकार के साथ एक
कार क समझ पैदा होने का इं तजार कर रहे थे। बाद म, साल 1938 म उ ह ने
औ ोिगक करण और रा ीय िवकास क एक सम योजना का खाका तैयार करने के िलए
रा ीय योजना सिमित शु क । इससे महा मा गांधी और अिधक नाराज हो गए, जो क
औ ोिगक करण के िखलाफ थे। यूिनख समझौते के बाद, िसतंबर 1938 म लेखक ने
रा ीय संघष क खाितर भारतीय लोग को तैयार करने के मकसद से भारत भर म एक
खुला चार अिभयान शु कर दया, जो यूरोप म आनेवाले यु के साथ-साथ होना
चािहए। हालाँ क आम जनता के बीच यह कदम काफ लोकि य था, ले कन गांधीवा दय
ने इसका िवरोध कया, जो नह चाहते थे क उनके मं ालय संबंधी काय और संसदीय
काय बािधत ह और जो उस समय कसी भी रा ीय संघष के िखलाफ थे।
लेखक और गांधी शाखा के बीच दरार अब चौड़ी हो चुक थी, हालाँ क अभी यह
सावजिनक नह ई थी। इसिलए जनवरी 1939 म अ य पद के चुनाव म गांधी शाखा के
साथ ही पं. नेह ने उनका कड़ा िवरोध कया। ले कन वे आसान ब मत के साथ िवजयी
रहे। 1923-24 के बाद से यह पहली बार था, जब महा मा क सावजिनक हार ई थी और
अपने सा ािहक प ‘ह रजन’ म उ ह ने खुलकर अपनी हार वीकार क थी। चुनाव ने
यह दखा दया क गांधी और नेह दोन के खुले िवरोध म लेखक का पूरे देश म ापक
और भावी समथक वग है।
माच 1939 म कां ेस के सालाना स म अ य ता करते ए लेखक ने एक प ताव
कया क भारतीय रा ीय कां ेस को छह महीने के भीतर आजादी क माँग करते ए
ि टश सरकार को तुरंत एक अ टीमेटम भेजना चािहए और इसके साथ ही रा ीय संघष
के िलए तैयारी करनी चािहए। गांधी शाखा और नेह ने इस ताव का िवरोध कया
और इसे खा रज कर दया। ऐसे म एक ऐसी ि थित उ प हो गई, िजसम लेखक कां ेस के
अ य थे, ले कन पाट ारा ही उनक बात को वीकार नह कया गया। इतना ही नह ,
इसे इस कार भी देखा गया क हर संभािवत अवसर पर गांधी शाखा इस नज रए से
अ य का िवरोध कर रही थी क उनके िलए काम करना ही मुि कल था। इसका नतीजा
आ क कां ेस म कामकाज पूरी तरह ठप हो गया। इस गितरोध को दूर करने के दो तरीके
थे—या तो गांधी शाखा अपनी अवरोधा मक नीित को छोड़े या अ य गांधी शाखा के
आगे घुटने टेक द। कसी संभािवत समझौते पर प च ँ ने के नज रए से महा मा गांधी और
लेखक के बीच सीधी बातचीत ई, ले कन यह यास िवफल सािबत ए। कां ेस के
संिवधान के तहत, अ य आनेवाले साल के िलए कायका रणी (कायसिमित) िनयु करने
का अिधकारी होता है, ले कन यह साफ था क य द कायका रणी उनक पसंद के अनुसार
िनयु नह क गई तो गांधी शाखा लगातार बाधा उ प करती रहेगी। और कां ेस के
भीतर गांधी शाखा क ि थित ऐसी थी क अगर उसने रोड़े अटकाने क ठान ली तो
अ य के िलए वतं तरीके से काम करना एक कार से असंभव हो जाएगा।
गांधी शाखा तय कर चुक थी क वह न तो लेखक का नेतृ व वीकार करे गी और न ही
उ ह कां ेस क मशीनरी को िनयंि त करने क अनुमित देगी और वह उ ह के वल एक
कठपुतली अ य के प म ही बरदा त करे गी। गांधी शाखा को एक कू टनीितक फायदा
यह भी था क वह कां ेस पाट के भीतर एक संग ठत पाट थी, जो क एक क ीकृ त नेतृ व
के तहत काम कर रही थी। कां ेस म वामपंथी त व या क रपंथी त व, िज ह ने जनवरी
1939 म लेखक को पुन: अ य चुनने म भूिमका अदा क थी, वे सं याबल के आधार पर
ब मत म थे—ले कन इस िलहाज से वे नुकसान म थे क वे गांधी शाखा क तरह एक
नेतृ व के तहत संग ठत नह थे। उस समय तक कसी भी पाट या समूह को पूरे वाम धड़े
का िव ास हािसल नह था। हालाँ क उस समय कां ेस सोशिल ट पाट वाम शाखा म
सवािधक मह वपूण पाट थी, ले कन इसका सीिमत भाव था। इतना ही नह , गांधी
शाखा और लेखक के बीच लड़ाई शु होने के साथ कां ेस सोशिल ट पाट तक िहचकने
लगी थी। इस कार, एक संग ठत और अनुशािसत वाम शाखा के अभाव म लेखक के िलए
गांधी शाखा से लड़ना असंभव था। नतीजतन, 1939 म भारत क ाथिमक राजनीितक
ज रत कां ेस म एक संग ठत और अनुशािसत वाम शाखा क थी।
महा मा गांधी और लेखक के बीच सुलह समझौता वा ालाप से यह खुलासा आ क
एक ओर गांधी शाखा लेखक का नेतृ व वीकार नह करे गी और दूसरी ओर, लेखक एक
कठपुतली अ य बनने को राजी नह ह गे। ऐसे म रा ता के वल एक ही बचा था क
अ य पद से ही इ तीफा दे दया जाए। और लेखक ने 29 अ ैल, 1939 को ठीक यही
कया और तुरंत बाद वे कां ेस के भीतर ही एक क रपंथी और गितवादी पाट ग ठत
करने क दशा म बढ़ गए, िजसका मकसद पूरे वाम समूह को एक बैनर के नीचे जुटाना
था। इस पाट को ‘फॉरवड लॉक’ नाम दया गया। लॉक के थम अ य लेखक थे और
उपा य (अब कायकारी अ य ) पंजाब के सरदार सरदुल संह किवशर थे।
1939 से काफ पहले, लेखक इस बात से सहमत थे क िनकट भिव य म यु क श ल
म एक अंतररा ीय संकट पैदा होगा और भारत को अपने िलए आजादी ा करने के
मकसद से इस संकट का भरपूर उपयोग करना चािहए। यूिनख समझौते के बाद से ही,
जो क िसतंबर 1938 म आ था, वे भारतीय जनता को यह बात समझाने का यास कर
रहे थे और वे इस कोिशश म लगे रहे थे क कां ेस को यह बात समझ म आ सके और वह
िवदेशी घटना म के साथ कदमताल करते ए अपनी नीित को आकार दे सके । इस काम
म गांधी शाखा ने उनके रा ते म हर कदम पर काँटे िबछाए, य क गांधी शाखा को
आगामी अंतररा ीय घटना म का कोई भान नह था और वह रा ीय संघष क ज रत
के िबना ि टेन के साथ समझौते के िलए बुरी तरह बेचैन थी। ले कन लेखक यह बात
जानते थे क कां ेस के भीतर और सामा य प से जनता के बीच उनके पास ापक
समथन था तथा उ ह अपने पीछे के वल एक संग ठत और अनुशािसत पाट क ज रत थी।
‘फॉरवड लॉक’ को संग ठत करते ए लेखक को दो उ मीद थ —पहली, गांधी शाखा के
साथ भिव य म कसी टकराव क ि थित म, वे अिधक भावी तरीके से लड़ने म स म
ह गे और वे उ मीद लगा सकते थे क एक दन वे पूरी कां ेस को अपनी बात समझा
सकगे। दूसरा, य द वे अपनी बात समझाने के िलए पूरी कां ेस को जीतने म िवफल भी हो
जाते ह तो वे कसी भी बड़े संकट म गांधी शाखा क उ मीद पर खरा नह उतरने क
सूरत म अपने बूते पर काररवाई कर सकगे। भावी घटना म ने ‘फॉरवड लॉक’ के
सं थापक क उ मीद को पंख लगा दए। जैसे ही ‘फॉरवड लॉक’ क शु आत ई तो
गांधी शाखा का पूरा नजला उस पर िगर पड़ा।
1925 म देशबंधु सी.आर. दास के िनधन के बाद यह पहली मरतबा था क गांधी के
नेतृ व को कोई गंभीर चुनौती पेश आई थी, िजसे वे और उनके अनुयायी बरदा त नह कर
सके । गांधी शाखा के गु से को झेलने के दौरान ही ‘फॉरवड लॉक’ को ि टश सरकार के
हाथ अिभयोजन और ताड़ना का िशकार भी होना पड़ा, य क ि टश सरकार के िलए
‘फॉरवड लॉक’, गांधी शाखा के मुकाबले कह अिधक खतरनाक था।
‘फॉरवड लॉक’ के अि त व म आने से कां ेस म अंद नी संघष तेज हो गया और अब
कसी के िलए भी कसी एक प म खड़े होने से बचे रहना संभव नह रह गया था। इस
अंद नी संकट म जो आदमी सवािधक असहज था, वे पं. जवाहरलाल नेह थे। अभी तक
वे ब त ही कु शलता और मासूिमयत के साथ एक साथ दो घोड़ क सवारी कर रहे थे और
इसिलए गांधी शाखा का समथन ा करने के साथ ही वे वाम समूह के भी िम या
संर क बने ए थे। फॉरवड लॉक ारा चुनौती दए जाने से उ ह अपनी पसंद तय करनी
पड़ी और उ ह ने दि णपंथ—गांधी शाखा—क ओर झुकना शु कर दया। और जैसे-जैसे
गांधी शाखा और फॉरवड लॉक के बीच र ते तनावपूण होते गए, नेह यादा-से- यादा
समथन देने के िलए महा मा के साथ खड़े हो गए।
भारत के िलए सवािधक ब ढ़या बात तो यह होती क गांधी शाखा क अगुआई म पूरी
कां ेस, फॉरवड लॉक क नीित क पैरवी करती। इससे अंद नी संघष के कारण पाट क
ताकत और समय क बरबादी बचती और इससे ि टश सरकार के िखलाफ संघष म
कां ेस क लड़ने क मता बढ़ती। ले कन मानव वभाव अपने ही कानून के तहत काय
करता है। िसतंबर 1938 के बाद से ही महा मा गांधी लगातार अपील कर रहे थे क िनकट
भिव य म एक रा ीय संघष का सवाल ही पैदा नह होता है, जब क लेखक जैसे अ य
लोग, जो उनके मुकाबले कसी भी तरह से कम रा भ नह थे, वे भी उसी समान मा ा
म इस बात से सहमत थे क आंत रक प से देश म इस समय ांित के िलए सबसे सही
हालात ह और आगामी अंतररा ीय संकट भारत को अपनी मुि को हािसल करने का
ऐसा अवसर देगा, जो मानवीय इितहास म दुलभ है। जब गांधी को भािवत करने के सभी
अ य यास िवफल हो गए तो के वल यही रा ता बचा था क फॉरवड लॉक को संग ठत
कर जनादेश जीतने क ओर बढ़ा जाए और इस कार महा मा पर परो दबाव बनाया
जाए। यह तरीका अंतत: भावी सािबत आ। सच तो यह है क अगर ऐसा नह कया
जाता तो गांधी अपने मूल रवैए म बदलाव नह करते और आज भी वे वह खड़े रहते, जहाँ
वे िसतंबर 1939 म यु िछड़ने पर खड़े थे।
लेखक को आज भी अ ैल 1939 म कलक ा म नेह के साथ ई लंबी और रोचक
बातचीत याद है, जब उ ह ने घोषणा क थी क वे कां ेस के अ य पद से इ तीफा देकर
एक नई पाट ग ठत करना चाहते ह। नेह ने तक दया था क इस कार के कदम से
कां ेस के भीतर दो फाड़ हो जाएगा और इससे एक नाजुक समय म रा ीय संगठन
कमजोर पड़ जाएगा। इसके िवपरीत, लेखक ने कहा क िनि यता क ओर ले जानेवाली
एकता तथा अ यिधक भावी काररवाई क ओर ले जानेवाली एकता म भेद कया जाना
चािहए। कां ेस म के वल गांधी शाखा के आगे नतम तक होकर ही दखावटी प से एकता
को संरि त रखा जा सकता है—ले कन चूँ क गांधी शाखा रा ीय संघष के िवचार के
िव है तो ऐसे म य द ऐसी एकता को बनाए रखा जाता है तो भिव य म यह एकता
कां ेस क सभी गितशील गितिविधय को ठ प कर देगी। य द इसके िवपरीत, कां ेस के
भीतर अभी एक गितशील काय मवाली पाट को संग ठत कया जाता है तो वह पाट
एक दन गांधी शाखा और पूरी कां ेस को उ काररवाई के िलए े रत कर सकती है।
इतना ही नह , अभी और नाजुक समय आगे आनेवाला है और िनकट भिव य म यु
िछड़ना ही है। य द कोई ऐसे अंतररा ीय संकट म काररवाई करना चाहता है तो एक ऐसी
पाट होनी चािहए, जो मौके को हिथयाने के िलए तैयार हो। य द गांधी शाखा यह भूिमका
िनभाने क इ छु क नह है तो तुरंत समय रहते एक और पाट ग ठत क जानी चािहए।
य द इस काय को अनदेखा कया गया या थिगत कया गया तो हो सकता है क बाद म
इसे उस समय करना संभव न हो, जब अंतररा ीय संकट वा तव म भारत के दरवाजे पर
आ जाएगा। और अगर आजादी जीतने के िलए, आगामी अंतररा ीय संकट का इ तेमाल
करने के िलए तैयार एक सुसंग ठत पाट नह है तो भारत फर से 1914 क ही गलती को
दोहराएगा।
हालाँ क इस चचा से नेह सहमत नह ए और उ ह ने गांधी शाखा को समथन देना
जारी रखा। ले कन िजतना अिधक उ ह ने ऐसा कया, उतना ही अिधक वे वाम धड़े से
अलग-थलग पड़ते चले गए।
िसतंबर 1938 म लेखक को पहली बार अहसास आ क एक अंतररा ीय संकट क
ि थित म गांधी अवसर का फायदा उठाकर ि टश सरकार पर हमला नह बोलगे। उसी
समय उ ह पहली बार यह भी अहसास आ क गांधी िनकट भिव य म ि टेन के साथ
संघष को संभावना के दायरे से बाहर मान रहे थे (हालाँ क भारतीय ि थित का यह
अनुमान िवशु प से ि परक था—शायद गांधी के बुढ़ापे के कारण।) िसतंबर 1938
म, यूिनख संकट के समय लेखक कां ेस के अ य थे और उ ह ने वाभािवक प से
कां ेस कायसिमित क बैठक क अ य ता क , जो यह तय करने के िलए ई थ क य द
उस समय यूरोप म वा तव म यु िछड़ गया तो या कदम उठाए जाने चािहए? ये बैठक
एक साल बाद िसतंबर 1939 म ई बैठक के पूवा यास क कृ ित क थ , जब वा तव म
यु िछड़ गया था और इन बैठक से महा मा गांधी और कां ेस के अ य मह वपूण नेता
क मानिसकता के बारे म एक प अंतदृि दान क थी।
जब िसतंबर 1938 म यह तीत आ क महा मा गांधी कसी-न- कसी कारण से अपनी
गितशीलता और अगुआई करने क मता खो चुके थे तो भारत म एक वैकि पक नेतृ व
िवकिसत करने क िन िलिखत संभावनाएँ मौजूद थ —
(1) पं. नेह के मा यम से
जैसा क हम पहले ही ऊपर ट पणी कर चुके ह क पं. नेह ने जानबूझकर इस अवसर
क उपे ा क , मु यत: उनक आंत रक कमजोरी, आ मिव ास क कमी और ांितकारी
दृि कोण क कमी के कारण।
(2) एम.एन. रॉय के मा यम से
एम.एन. रॉय ने एक पाट बनाई थी और वैकि पक नेतृ व क बात क थी। ले कन उनके
च र म कु छ खामी थी, िजसके कारण कु छ ही समय म उ ह ने दो त से यादा दु मन
बना िलये। फर भी, उनके पास अभी भी एक भिव य था—ले कन वतमान यु के कोप
के साथ, उ ह ने ि टश सरकार के साथ िबना शत सहयोग क वकालत करना शु कर
दया और इसी से उनका राजनीितक पतन आ।
(3) कां ेस सोशिल ट पाट के मा यम से
1934 और 1938 के बीच इस पाट के पास भिव य क भारत क रा ीय पाट के प म
िवकिसत होने का सबसे ब ढ़या मौका था, ले कन यह िवफल रही। अ याय-18 ‘भारत का
संघष, 1920-34’ म लेखक ने इसका अनुमान लगाया था। सी.एस. पाट के पास शु आत
से ही प ांितकारी प र े य का अभाव था। ांितकारी आंदोलन क अगुआ बनने के
बजाय इसने कां ेस के भीतर संसदीय िवप के प म काम करना शु कर दया था।
िसतंबर 1939 के बाद इस पाट के नेता को गांधी और नेह ने जीत िलया और इससे
पाट का भिव य ख म हो गया।
(4) क युिन ट पाट के मा यम से
जब कां ेस सोशिल ट पाट व पर अपनी िज मेदारी िनभाने म िवफल रही तो
क युिन ट पाट के पास अवसर था—जो उस समय ‘नेशनल ं ट’ के नाम से कायरत थी—
उसे चािहए था क वह आगे बढ़कर मोरचा सँभालती! ले कन क युिन ट पाट सं याबल
म कम होने के अलावा, उसके पास रा ीय दृि कोण का अभाव था और वह रा ीय संघष
के अंग के प म िवकिसत नह हो सक । जड़ से जुड़ी ई नह होने के कारण यह पाट
अकसर कसी िवशेष ि थित का आकलन करने म चूक कर जाती और नतीजतन गलत
नीित अपना लेती।
1938 के दौरान, लेखक ने बार-बार कां ेस सोशिल ट पाट को अपने मंच का िव तार
करने और कां ेस म सभी क रपंथी और गितशील त व को एकजुट करने के िलए एक
वामपंथी लॉक बनाने क सलाह दी। यह पाट ने नह कया। सी.एस. पाट क गलती यह
थी क वह समाजवाद के बारे म ज रत से अिधक चचा म उलझी रही, जो क भिव य क
बात थी। भारत क ता कािलक ज रत ि टश सा ा यवाद के िखलाफ िबना कसी
समझौते के संघष करना थी और उसे महा मा गांधी ारा द संघष के तौर-तरीक से
कह अिधक भावी तरीक क ज रत थी। गांधीवाद को कमजोर पाया गया था, य क
यह अ हंसा से जुड़ा था और इसिलए भारतीय सम या के समाधान के िलए ि टेन के साथ
समझौता करने पर िवचार कया गया। इतना ही नह , इसम अंतररा ीय मामल क
उिचत समझ और भारत क आजादी को ा करने के िलए एक अंतररा ीय संकट के
मह व को समझने क कमी थी। एक ऐसी पाट क ज रत थी, जो इन खािमय का इलाज
कर सकती और भारत के िलए पूण आजादी ला सकती।
फॉरवड लॉक का ता कािलक उ े य भारत क वतं ता को जीतने के िलए ि टश
सा ा यवाद के साथ िबना कसी समझौते के संघष करना था। इस उ े य क ाि के
िलए सभी संभािवत साधन को इ तेमाल कया जाना चािहए और भारतीय लोग को
गांधीवादी अ हंसा जैसे दाशिनक िवचार या नेह के ुवीकरण िवरोधी िवदेश नीित जैसे
भावना मकवाद ारा नह रोका जाना चािहए। लॉक एक यथाथवादी िवदेश नीित और
समाजवादी आधार पर भारत म यु के बाद क व था के िलए खड़ा था।
फॉरवड लॉक एक ऐितहािसक ज रत के जवाब म अि त व म आया। यही वजह रही
क एकदम शु आत से ही आमजन के बीच इसक गहरी पैठ बन गई और इसक
लोकि यता म दन दूनी-रात चौगुनी बढ़ोतरी होने लगी। असली बात तो यह है क कु छ
महीने बाद महा मा ने ट पणी क थी क कां ेस अ य पद से इ तीफा देने के बाद लेखक
क लोकि यता बढ़ गई है।
जब िसतंबर 1939 म यूरोप म यु िछड़ गया तो जो लोग पहले सशं कत थे, वे अब उस
साल के माच म, कां ेस के ि पुरी म ए सालाना स म ि टश सरकार को छह महीने का
अ टीमेटम दए जाने क पैरवी करने के िलए लेखक क राजनीितक दूरदृि के िलए उनक
सराहना कर रहे थे। इससे लॉक क लोकि यता और बढ़ गई।

22
िसतंबर 1939 से अग त 1942 तक
फॉ रवड लॉक का चार अिभयान मई 1939 से जोर पर था। उस साल
जुलाई म गांधी शाखा ने इसक गितिविध पर लगाम लगाने का यास कया।
कसी-न- कसी बहाने से कां ेस कायसिमित ारा लॉक के कु छ सद य के
िखलाफ ‘अनुशासना मक काररवाई’ क गई। ले कन इससे के वल लॉक के
सद य का मनोबल ही ऊँचा आ और जनता के बीच उनक लोकि यता
बढ़ती चली गई।
3 िसतंबर, 1939 को लेखक म ास म समु तट पर िवशाल जनसभा को
संबोिधत कर रहे थे, जहाँ करीब दो लाख लोग जमा थे—उनक यह अब तक
क सबसे बड़ी जनसभा थी—उसी समय दशक म से कसी ने उनके हाथ म
एक सां य दैिनक पकड़ा दया। उ ह ने उसे देखा और पढ़ा क ि टेन का जमनी
के साथ यु शु हो गया है। तुरंत लेखक ने यु पर अपना भाषण मोड़ दया।
ब तीि त संकट आिखरकार आ प च ँ ा था। यह भारत के िलए सुनहरा मौका
था।
िजस दन ि टेन ने जमनी के िखलाफ यु क घोषणा क थी, उसी दन
वायसराय ने ऐलान कर दया क भारत यु रत है और उ ह ने आंत रक
अ व था के दमन के िलए सवािधक स त शि य वाला एक अ यादेश जारी
कर दया। 11 िसतंबर को उ ह ने घोषणा क क 1935 के अिधिनयम के तहत
संघीय संिवधान के उ ाटन को यु जारी रहने तक थिगत कर दया गया है।
6 िसतंबर को महा मा गांधी ने वायसराय लॉड िलनिलथगो से मुलाकात के
बाद एक ेस बयान जारी कर कहा क भारतीय वतं ता के सवाल पर भारत
और ि टेन के बीच मतभेद के बावजूद, भारत को खतरे क इस घड़ी म ि टेन
का सहयोग करना चािहए। यह बयान भारतीय लोग के िलए कोई बम फटने
जैसा था, िजसे क 1927 से ही कां ेस नेता ारा अगले यु के संबंध म यही
पढ़ाया जा रहा था क देश के िलए आजादी जीतने क खाितर यह एक दुलभ
अवसर होगा। गांधी के उपरो बयान के बाद, गांधी शाखा से जुड़े कई नेता
ने इस आशय क सावजिनक घोषणा करना शु कर दया क हालाँ क उ ह ने
भारत के िलए वतं ता क माँग क है, ले कन वे चाहते थे क ि टेन यु जीत
जाए। चूँ क इस तरह के चार का भारतीय जनमत पर ब त दुभा यपूण
भाव पड़ने क आशंका थी। फॉरवड लॉक, जो अब तक एक अिखल भारतीय
संगठन बन चुका था, उसने बड़े पैमाने पर गांधी शाखा के चार को काटने के
िलए ापक जवाबी चार शु कर दया। गांधी शाखा/ वंग के िवपरीत,
फॉरवड लॉक ने वह लाइन पकड़ी, जो कां ेस क 1927 से रही थी—बार-
बार ऐलान करना क भारत को ि टेन के यु म सहयोग नह करना चािहए
और कां ेस को अब अपनी नीित को याि वत करना चािहए। फॉरवड लॉक
के सद य ने खुलेआम यह भी ऐलान कर दया क वे यु म ि टेन को जीतते
नह देखना चाहते, य क के वल पराजय और ि टश सा ा य के िबखरने के
बाद ही भारत आजादी क उ मीद लगा सकता है।
फॉरवड लॉक ारा सामा य चार के अित र लेखक ने देशभर म भाषण
देने के िलए दौरा कया, िजस दौरान उ ह ने दस महीने के भीतर कम-से-कम
एक हजार बैठक को ज र संबोिधत कया होगा। ि टश सरकार को या ऐसे
ि टश िवरोधी और यु िवरोधी दु चार को अनुमित देनी चािहए थी, इससे
लेखक समेत ब त से लोग को हैरानी थी! स ाई यह थी क ि टश सरकार
इस बात से डरी ई थी क य द फॉरवड लॉक के िखलाफ दंडा मक काररवाई
क गई तो इससे कां ेस और आम जनता ि टश सरकार के िखलाफ िनि य
ितरोध आंदोलन छेड़ने के िलए भड़क जाएगी। ि टश सरकार क बेतहाशा
घबराहट के कारण फॉरवड लॉक अपना ि टश-िवरोधी और यु -िवरोधी
चार करने म कामयाब रहा, हालाँ क इस चार के दौरान उसके ब त से
सद य को जेल म डाल दया गया।
फॉरवड लॉक के चार को पूरे भारत म जबरद त ित या िमली।
महा मा गांधी और उनके अनुयाियय को तब जाकर समझ म आया क ि टेन
के साथ सहयोग क नीित को जनता से कोई समथन नह िमलेगा और िनि त
ही इससे उनका भाव और लोकि यता िगर जाएगी। नतीजतन, उ ह ने धीरे -
धीरे अपने ख म प रवतन लाना शु कया।
गांधी के रवैए से अिधक आ य नेह के रवैए को लेकर था। 1927 से 1938
तक कां ेस के सभी यु िवरोधी ताव म उनक मु य भूिमका रही थी। ऐसे
म यह वाभािवक था क जब यु िछड़ा तो जनता उनसे यु -िवरोधी नीित
का नेतृ व सँभालने क उ मीद कर रही थी। कां ेस के िपछले ताव के
अनुसार, कां ेस को िसतंबर 1939 म ि टेन के यु यास म तुरंत असहयोग
करना चािहए था और य द उसके बाद सरकार यु के िलए भारत का शोषण
करती तो कां ेस पाट को चािहए था क ि टश सरकार का स यता से
ितवाद करे । न के वल नेह ने यह नीित याग दी, बि क उ ह ने यु के
दौरान कां ेस के हाथ , ि टश सरकार को श मदगी से बचाने के िलए अपने
भाव का हरसंभव इ तेमाल कया।
कां ेस कायका रणी (कायसिमित) क 8 िसतंबर को वधा म बैठक ई, यह
फै सला करने के िलए क कां ेस को यु के संबंध म या दृि कोण अपनाना
चािहए? लेखक उस समय सद य नह थे, ले कन उ ह बैठक के िलए िवशेष
तौर पर आमंि त कया गया—और उ ह ने फॉरवड लॉक के नज रए को
अिभ कया क वतं ता सं ाम तुरंत शु कया जाना चािहए। उ ह ने
साथ ही कहा क य द कां ेस कायका रणी इस संबंध म आव यक काररवाई
नह करती है तो फॉरवड लॉक को देश के सव े िहत म जो सही लगेगा, वह
उसके अनुसार काररवाई करने के िलए वयं को वतं समझेगा।
गैर-समझौतावादी इस ख का असर पड़ा और गांधी शाखा ने ि टश
सरकार के साथ सहयोग करने का िवचार ही पूरी तरह से याग दया। इसके
बाद लंबी चचा ई और 14 िसतंबर को अंतत: कायसिमित ने एक लंबा-चौड़ा
ताव पा रत करते ए ि टश सरकार से अपने यु के उ े य को घोिषत
करने को कहा। ताव म आगे यह ऐलान कया गया क य द भारत को
आजादी दान क जाती है तो “एक वतं और लोकतांि क भारत खुशी-
खुशी वयं को आ मण के िखलाफ आपसी र ा और आ थक आपसी सहयोग
के िलए अ य वतं रा के साथ संब करे गा।”
यह ताव सार प म, कु छ शत के तहत ि टेन के यु यास म सहयोग
क पेशकश था।
17 अ ू बर को वायसराय ने कां ेस के इस ताव के जवाब म एक बयान
दया, जो लंदन म ‘ हाइट पेपर’ के प म कािशत आ। वायसराय क
पेशकश भारतीय ितिनिधय समेत एक ‘सलाहकार समूह’ क थापना करने
का ताव थी, जो यु संबंधी सवाल पर वायसराय को सलाह देगा। उ ह ने
भिव य म कसी तारीख पर डोिमिनयन टेटस क ित ा क भी पुि क ,
िजसे दस साल पहले त कालीन वायसराय लॉड हैिलफै स (इरिवन) ने पहली
बार कया था।
ि टश सरकार के इस जवाब के अित र भारतीय जनता को सबसे अिधक
गु सा इस बात पर आया क एलाइड फोसज जहाँ ‘ वतं ता और लोकतं ’ के
िलए लड़ने क बात कर रही थ , वह भारत म 1935 के संिवधान को
िनलंिबत कर दया गया था, सभी शि याँ वायसराय के हाथ म क त कर
दी गई थ और भारत म कई थान पर ि गत वतं ता पर कड़े ितबंध
लगा दए गए थे, जैसे—सभी सावजिनक बैठक और दशन पर रोक, िबना
सुनवाई के जेल म बंद करना आ द।
िनि त प से लेखक का िवचार है क कां ेस ने अपनी संपूणता म य द
शु आत से ही दृढ़ िवरोध का साहसी और प रवैया अपनाया होता तो
भारत म ि टेन का यु उ पादन गंभीर प से भािवत होता और ि टश
सरकार के िलए भारतीय सैिनक को भारत से दूर यु के मोरच पर भेजना
इतना आसान नह होता। इसी के प रणाम व प, उनके िवचार म यु के मु े
पर अंितम फै सले को थिगत कर गांधी, नेह और उनके अनुयाियय ने परो
प से ि टश सरकार क मदद क । ले कन यह वाभािवक है क जब कां ेस
ने देश को प नेतृ व नह दया तो भारत म ि टश सा ा यवाद के एजट
भारतीय लोग के कु छ वग का सहयोग जीतने म आंिशक प से सफल होना
चािहए।
29 अ ू बर को कां ेस कायसिमित ने वायसराय क 17 अ ू बर क घोषणा
का जवाब एक ताव से दया, िजसम सिवनय अव ा (या िनि य ितरोध)
क धमक दी गई थी। इसके साथ ही सिमित ने आठ ांत म कां ेस मंि य से
इ तीफा देने का आदेश जारी कर दया। चूँ क वायसराय ि टश सरकार क
यु नीित को लागू करने के िलए ांतीय सरकार को आदेश जारी कर रहे थे,
तो कां ेस मंि य को या तो यु यास म सहयोग करना पड़ता या पद को
यागना पड़ता?
सामा य तौर पर यह उ मीद क गई थी क कां ेस मंि य के पद से याग-
प देने के बाद िनि य ितरोध आंदोलन शु हो जाएगा। ले कन यह
उ मीद पूरी नह ई। ब त से लोग का िवचार है क इसके िलए ि टश
सािजश िज मेदार थी। कां ेस नेता को भािवत करने के मकसद से ि टश
सरकार ने कु छ ि टश िलबरल और डेमो े स को भारत भेजा। उदाहरण के
िलए, अ ू बर 1929 म जाने-माने लेखक एडवड थॉ पसन भारत आए और
उनके बाद दसंबर म सर टैफोड स ने देश क या ा क ।
यु म सहयोग के िखलाफ और आजादी के िलए रा ीय संघष के प म
लगातार जारी चार के अित र फॉरवड लॉक ने इन मु पर जनता का
यान क त करने के िलए समय-समय पर दशन का भी आयोजन कया।
उदाहरण के िलए, अ ू बर 1939 म नागपुर म एक सा ा यवाद िवरोधी
कॉ स आयोिजत क गई, जो काफ सफल रही। और छह माह क समाि
पर लॉक का चार अिभयान माच 1940 म रामगढ़ म एक िवशाल दशन के
साथ संप आ, जहाँ उस समय कां ेस का सालाना स हो रहा था। दशन
को ‘अिखल भारतीय समझौता िवरोधी स मेलन’ नाम दया गया। इसे
फॉरवड लॉक तथा कसान सभा ( कसान संगठन) ारा आ त कया गया था
और यह रामगढ़ म कां ेस क बैठक से ब त अिधक सफल रहा, िजसक
अ य ता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने क थी।
अपनी यु नीित को लेकर कां ेस ने रामगढ़ म कोई फै सला नह कया। छह
महीने तक उसक नीित ढु ल-मुल रही, िजसका नतीजा यह रहा क ि टश
सरकार यु के उ े य से भारत का दोहन करती रही। रामगढ़ म ‘समझौता
िवरोधी स मेलन’ क अगुआई लेखक और कसान नेता वामी सहजानंद
सर वती ने क थी। स मेलन म यु के िवषय और आजादी क भारत क माँग
पर तुरंत संघष शु करने का फै सला कया गया। अ ैल 1940 म (6 अ ैल से
13 अ ैल) रा ीय स ाह के दौरान फॉरवड लॉक ने देश भर म सिवनय
अव ा अिभयान शु कर दया। लॉक के मुख नेता को एक के बाद एक
जेल म डाल दया गया। बंगाल म भी, जहाँ लेखक उस समय रह रहे थे,
अिभयान जोर पकड़ता चला गया और जुलाई के शु आत म लेखक को उनके
सैकड़ सह-कामगार के साथ जेल म बंद कर दया गया।
उ ह जेल म बंद कए जाने से कु छ दन पहले, जून 1940 म लेखक क
महा मा गांधी और उनके मुख िसपहसालार के साथ अंितम लंबी वा ा ई।
भारत को ांस क हार का समाचार िमल चुका था। जमन सैिनक िवजय वज
के साथ पे रस म दािखल हो चुके थे। इं लड और भारत म ि टेन का मनोबल
ढह गया। एक ि टश मं ी ने तो मुँह लटकाने के िलए ि टश जनता को यह
कहते ए फटकार लगाई थी क ‘वे या कसी के मातम म आए ह?’ भारत म
सिवनय अव ा आंदोलन, िजसे फॉरवड लॉक ने शु कया था, वह जारी था
और लॉक के कई नेता पहले ही सलाख के पीछे थे। लेखक ने ऐसे म आगे
आकर िनि य ितरोध का अपना आंदोलन चलाने के िलए महा मा से भावुक
अपील क — य क अब यह प था क ि टश सा ा य को उखाड़कर फक
दया जाएगा और यु म अपनी भूिमका िनभाने के िलए भारत के पास यही
सही समय था। ले कन महा मा अभी तक कु छ तय नह कर पाए थे और
उ ह ने दोहराया क उनक नजर म देश संघष के िलए तैयार नह है और ऐसे
कसी भी यास से भारत को फायदे के बजाय नुकसान अिधक होगा। ले कन
लंबी और हा दक वा ा के बाद उ ह ने लेखक से कहा क य द भारत के िलए
आजादी हािसल करने के उनके (लेखक के ) यास सफल हो जाते ह तो लेखक
को सबसे पहला बधाई टेली ाम उनक ओर (गांधी) से ही ा होगा।
इस मौके पर लेखक क कु छ अ य संगठन के नेता से भी बातचीत ई,
जैसे क मुसिलम लीग के अ य िज ा और हंद ू महासभा के सावरकर। िज ा
उस समय के वल यही सोच रहे थे क ि टेन क मदद से उनक पा क तान
(भारत-िवभाजन) क योजना को कै से साकार कया जाए? भारत क आजादी
के िलए कां ेस के साथ िमलकर साझा लड़ाई लड़ने का िवचार िज ा को कतई
नह जँचा। हालाँ क लेखक ने सुझाव दया था क ऐसे साझा संघष क सूरत म
िज ा आजाद भारत के थम धानमं ी ह गे। सावरकर अंतररा ीय ि थित
से बेखबर तीत होते थे और वे के वल यही सोच रहे थे क हंद,ू कस कार
भारत म ि टेन क सेना म वेश पाकर सै य िश ण हािसल कर? इन दोन
मुलाकात से लेखक मजबूरन इस नतीजे पर प च ँ े क मुसिलम लीग या हंद ू
महासभा—दोन से कोई उ मीद नह क जा सकती।
20 मई, 1940 को पं. नेह ने एक हैरान करनेवाला बयान दया, िजसम
उ ह ने कहा, “ऐसे समय म जब ि टेन जंदगी और मौत क लड़ाई म उलझा
आ है, तब सिवनय अव ा आंदोलन शु करना भारत के स मान के ित
अपमानजनक काररवाई होगा।” महा मा ने भी इसी कार कहा, “हम ि टेन
क तबाही पर अपनी आजादी नह चाहते। यह अ हंसा का माग नह है।” यह
प था क गांधी शाखा/ वंग ि टेन के साथ समझौते पर प च ँ ने के िलए
हरसंभव यास कर रही थी।
27 जुलाई को पूना म अिखल भारतीय कां ेस कमेटी क बैठक म यु म
ि टेन के साथ सहयोग क पेशकश क गई, बशत आजादी क कां ेस क माँग
को वीकार कर िलया जाए! इस बैठक म महा मा शािमल नह ए थे। उस
समय महा मा ने कां ेस नेतृ व से अवकाश ले िलया था, य क अ हंसा म
अपनी आ था के चलते उनके िलए यु यास का समथन करना मुि कल था।
कां ेस के ताव पर वायसराय का जवाब 8 अग त को आया, जब उ ह ने
अपनी कायकारी प रषद् के साथ-साथ अपनी सलाहकार प रषद् म कई
ितिनिध भारतीय को शािमल करने का ताव रखा, ले कन इसम वतं ता
या उसके आसपास क भी कोई चीज नह थी।
इस बीच म, जुलाई 1940 म लेखक को कै द कए जाने के बाद फॉरवड लॉक
का आंदोलन पूरे जोश के साथ जारी रहा। इस आंदोलन ने गांधी शाखा/ वंग के
सभी लोग को िहलाकर रख दया। ऊपर से आदेश थे क गांधी शाखा/ वंग का
कोई भी अनुयायी िनि य ितरोध शु नह करे गा। ले कन इसके बावजूद
कायकता , िवशेष प से वयंसेवक ने कु छ ांत म आंदोलन शु कर
दया। इससे गांधीवादी नेता म भारी हलचल मच गई। उनम से कु छ ने
महा मा पर संघष शु करने का दबाव बनाना शु कर दया। उनका कहना
था क ऐसा नह करने पर उनका देश म भाव और ित ा पूरी तरह िम ी म
िमल जाएगी। कई अ य उनके आदेश का इं तजार कए िबना धीरे -धीरे संघष
म शािमल हो गए। आिखरकार गांधी को मजबूर होना पड़ा। 15 िसतंबर को
कां ेस ने सहयोग क अपनी पेशकश वापस ले ली और महा मा को कां ेस का
नेतृ व सँभालने के िलए आमंि त कया। अ ू बर 1940 म महा मा ने ऐलान
कर दया क उ ह ने ि टश सरकार के यु यास के ित ितरोध शु
करने का फै सला कया है, ले कन बड़े पैमाने पर नह । नवंबर 1940 म गांधी
का आंदोलन शु आ और कु छ समय के भीतर ही आठ ांत के उन कां ेस
मंि य को, िज ह ने आंदोलन म भाग िलया था, सैकड़ अ य भावशाली
नेता के साथ जेल म डाल दया गया।
1940-41 का आंदोलन महा मा ारा उस उ साह और जोश के साथ नह
चलाया गया था, जैसा क 1921 और फर 1930-32 म देखा गया था। हालाँ क
िन प प से देखा जाए तो देश पहले क तुलना म ांित के िलए अिधक
प रप था। जािहर है क गांधी अभी भी समझौते के िलए दरवाजे खुले रखना
चाहते थे— य क य द आंदोलन के दौरान अं ेज के िखलाफ ब त अिधक
कड़वाहट पैदा हो गई तो यह संभव नह होगा। ले कन फॉरवड लॉक खुश था
क गांधी को मजबूरी म ही सही, आगे आना पड़ा। अब कां ेस के दोन वंग—
गांधी शाखा और फॉरवड लॉक—िनि त प से ि टश िवरोधी और यु
िवरोधी नीित के ित ितब थे। अब भारत क आजादी को ा करने के
िलए बड़ी योजना पर िवचार करने का समय था।
तभी लेखक को िबना सुनवाई के जेल म डाल दया गया। काफ अ ययन
और सोच-िवचार के बाद उ ह तीन बात समझ म आ —पहली, ि टेन क यु
म पराजय होगी और ि टश सा ा य ढह जाएगा। दूसरी, संकट क ि थित म
होने के बावजूद, अं ेज भारतीय लोग के हाथ म स ा नह स पगे और
भारतीय जनता को अपनी आजादी क लड़ाई लड़नी पड़ेगी। तीसरा, भारत
यु म ि टेन के िखलाफ अपनी भूिमका िनभाए और ि टेन के िव लड़ रही
शि य के साथ सहयोग करे तो वह अपनी आजादी जीत लेगा। उ ह ने अपने
िलए नतीजा िनकाला क भारत को अंतररा ीय राजनीित म स यता के
साथ वेश करना चािहए।
वे पहले ही 11 बार ि टेन क िहरासत म रह चुके थे, ले कन अब वे महसूस
कर रहे थे क जब अ य जगह पर इितहास बन रहा था तो जेल म उनका
खाली बैठे रहना एक भारी राजनीितक भूल होगी। इस पर उ ह ने कानूनी
तरीके से रहा होने क संभावना को खँगालना शु कर दया, ले कन
उ ह ने पाया क कोई रा ता नह था, य क ि टश सरकार यु जारी रहने
तक उ ह जेल म बंद रखने के िलए कसम खा चुक थी। इसके बाद उ ह ने
सरकार को एक अ टीमेटम भेजा, िजसम कहा गया था क उ ह जेल म बंद
करने का कोई नैितक या कानूनी औिच य नह है और अगर उ ह तुरंत रहा
नह कया गया तो वे आमरण अनशन करगे। वे कसी भी हालत म जेल से
बाहर आने के िलए दृढ़ ित थे— जंदा या मुदा!
सरकार ने उनके अ टीमेटम क िख ली उड़ाई और उसका कोई जवाब नह
दया। अंितम ण म गृहमं ी ने उनके भाई शरत चं बोस, जो क ांतीय
संसद् म कां ेस पाट के नेता थे, से अपील क क यह पागलपन है और सरकार
कु छ नह कर सकती।
देर रात म जेल क उनक कोठरी म उनके भाई उनसे िमलने गए, िज ह ने
उनकाे मं ी का संदशे बताया और साथ ही उ ह सूिचत कया क सरकार का
रवैया ब त ही श ुतापूण है। अगली सुबह पहले क गई घोषणा के अनुसार
अनशन शु हो गया। सात दन बाद, शासन अचानक डर गया, लेखक जेल
म नह मरना चािहए। ज दबाजी म उ अिधका रय क एक गोपनीय बैठक
ई और इसम उ ह रहा करने का फै सला कया गया; ले कन इस मंशा के साथ
क महीने भर बाद, जब उनक सेहत सुधर जाएगी तो उ ह फर से िगर तार
कर िलया जाएगा।
रहाई के बाद लेखक करीब 40 दन तक घर पर रहे और अपने शयनक से
बाहर नह िनकले। इस अविध के दौरान, उ ह ने यु क पूरी ि थित का
सव ण कया और इस नतीजे पर प च ँ े क भारतीय वतं ता सेनािनय को
इस बात क सीधी सूचना होनी चािहए क िवदेश म या हो रहा है और उ ह
ि टेन के िखलाफ संघष म शािमल होना चािहए और उ ह ि टश सा ा य के
अभे कले को व त करने म योगदान करना चािहए। उ ह ने िविभ उपाय
पर िवचार कया, िजससे इसे संभव बनाया जा सके । उ ह वयं िवदेश या ा
पर जाने के िसवाय और कोई िवक प नह िमला। 1941 क बात है, जनवरी
का महीना ख म होने को था। एक दन क बात है। रात ब त गहरा चुक थी।
वे खामोशी के साथ उस अँधेरे म घर से िनकल पड़े। हालाँ क खु फया पुिलस
ारा उन पर हमेशा कड़ी नजर रखी जाती थी, ले कन वे उनक आँख म धूल
झ कते ए भारतीय सीमा पार करने म कामयाब हो गए। ब त लंबे समय
बाद भारत म घटी यह सबसे बड़ी राजनीितक सनसनी थी।
1941 के दौरान सिवनय अव ा आंदोलन जारी रहा—ले कन गांधी और
उनके अनुयाियय क ओर से इसम जोश और ज बे का अभाव था। महा मा ने
यह गिणत बैठाया था क उदार नीित अपनाकर वे अंतत: समझौते क दशा म
एक दरवाजा खोल दगे—ले कन इसम उ ह िनराशा हाथ लगी। उनक अ छाई
को उनक कमजोरी समझा गया और ि टश सरकार यु के मकसद से अपनी
पूरी मता के साथ भारत का दोहन करती रही। सरकार ने ऐसे भे दय का भी
पूरा इ तेमाल कया, जो अं ेज को अपना जमीर बेचने के िलए तैयार बैठे थे,
जैसे क त कालीन क युिन ट नेता एम.एन. राॅय।
आिखरकार, नवंबर 1941 म ि टश सरकार अपनी आ मसंतुि क न द से
जागी, जब सुदरू पूव ि ितज पर यु के बादल मँडराते नजर आए। दसंबर
क शु आत म गांधी शाखा/ वंग से संबंध रखनेवाले कां ेसी नेता को
अचानक रहा कर दया गया। ले कन इसके साथ ही वाम शाखा/ वंग से
संबंिधत नेता को जेल म ठूँ स दया गया। उदाहरण के िलए, सुदरू पूव म जब
यु भड़क उठा तो लेखक के भाई शरत चं बोस को िबना सुनवाई के जेल भेज
दया गया। इसके कु छ समय बाद फॉरवड लॉक के कायवाहक अ य सरदार
सरदुल संह किवशर को जेल म डाल दया गया। सरकार ने शायद सोचा था
क वामपंिथय को िगर तार करने और गांधीवा दय को रहा करने क इस
दोहरी नीित से कां ेस के साथ समझौता हो जाएगा। ि टश सरकार क
कां ेस के साथ समझौता करने क इ छा गांधी शाखा/ वंग ने पूरी कर दी।
16 जनवरी, 1942 को वधा म ई कां ेस कायसिमित क बैठक म एक बार
फर यु - यास म सहयोग का ताव पा रत कया गया। इसके तुरंत बाद,
अथात् फरवरी 1942 म ि टश सरकार के कहने पर माशल यांग काई शेक ने
कां ेस नेता को ि टश सरकार के साथ समझौता करने के िलए े रत करने
के उ े य से भारत का दौरा कया, एक महीने बाद माच 1942 म, एक
अमे रक तकनीक िमशन, कु छ अमे रक राजनियक और प कार और कई
अमे रक सै य इकाइयाँ भारत आ । अ ैल म भारत म ि टश कमांडर-इन-
चीफ को माशल िचयांग काई शेक क मदद लेने और चीनी सैिनक को बमा
लाने के िलए मजबूर कया गया।
एक स ाह क लड़ाई के बाद 15 फरवरी, 1942 को संगापुर के पतन ने
ि टेन और अमे रका म खलबली मचा दी। जब मलय आंदोलन से लड़ने के बाद
जापानी सेना बमा म आगे बढ़ी तो ि टश धानमं ी को एक नई पहल के
िलए मजबूर होना पड़ा और 11 माच को समझौता भाषण देते ए यु
मंि मंडल क ओर से सर टैफोड स क भारत या ा क घोषणा क ।
माच 1942 म सर टैफोड स सकारा मक प रि थितय म भारत प च ँ े।
जापानी बल क तेजी से और शानदार बढ़त के म ेनजर ि टेन सरकार को
साँप सा सूँघ गया था और स के बारे म आम जनता क राय थी क वे इस
काम के िलए सही आदमी ह। ले कन उनके यास िवफल रहे, य क उसके
साथ वे जो कु छ लेकर आए थे, वह था—के वल यु समा होने पर डोिमिनयन
टेटस का वादा। इस वादे के साथ ही यह धमक भी थी क संभवत: यु
समा होने के बाद भारत का िवभाजन कर दया जाएगा। 10 अ ैल को
कां ेस कायसिमित ने इस आधार पर स के ताव को नामंजूर कर दया
क इससे कसी भी तरह से आजादी क भारत क माँग पूरी नह होती। सर
टैफोड स ने 11 अ ैल को भारतीय जनता के नाम अपने िवदाई भाषण का
सारण कया और भारत को िनराश छोड़कर चले गए।
भारत से स के रवाना होने के बाद, कां ेस कायसिमित क 27 अ ैल से
इलाहाबाद म बैठक शु ई। 1 मई को स के ताव को खा रज करते ए
एक ताव पा रत कया गया और साथ ही यह ित ा उठाई गई क य द
कोई भी िवदेशी सेना भारत म वेश करती है तो अ हंसक असहयोग आंदोलन
शु कया जाएगा। ि टेन के साथ कोई समझौता नह होने के कारण जापानी
या कसी भी अ य सेना के िखलाफ ि टेन के प म स यता से लड़ने का तो
सवाल ही नह था।
महा मा गांधी ने इस बैठक म भाग नह िलया था, ले कन उ ह ने एक
ताव का मसौदा सिमित को भेजा था, िजसक नेह तथा कु छ अ य नेता
ने कड़ी आलोचना क । नेह ने ऐलान कया, “मसौदे क पूरी पृ भूिम ऐसी है,
जो अप रहाय प से पूरे िव को यह सोचने पर मजबूर करे गी क हम
िनि य प से ुवीकृ त ताकत के साथ जुड़ रहे ह।” इसके बाद नेह ने एक
और मसौदा तैयार कया, िजसे पहली बार नामंजूर कर दया गया, ले कन
बाद म कां ेस अ य मौलाना अबुल कलाम आजाद क भावना मक अपील के
बाद सवस मित से मंजूर कर िलया गया। कां ेस अ य ने नेह के मसौदे का
समथन करते ए कहा क महा मा के मूल मसौदे और नेह के बाद के मसौदे
के बीच अथ म कोई अंतर नह था और अंतर के वल दृि कोण का था।
अपने मूल मसौदा ताव म महा मा ने अ य बात के साथ-साथ कहा था
—“ि टेन भारत क र ा करने म असमथ है...भारतीय सेना एक पृथक्
िनकाय है, िजसम भारतीय लोग का ितिनिध नह है और जो कसी भी अथ
म इसे अपना नह मान सकते...जापान का भारत के साथ कोई झगड़ा नह है।
वह ि टश सा ा य के िखलाफ लड़ रहा है। य द भारत आजाद होता तो
उसका पहला कदम संभवत: जापान के साथ सुलह समझौता होता। कां ेस क
यह राय है क य द ि टेन भारत से पीछे हट जाता है तो भारत, जापान या
भारत पर आ मण करनेवाले कसी भी आ मणकारी से वयं क र ा करने
म स म होगा।”
इसी मसौदा ताव म सिमित ने जापान सरकार और जनता को आ ासन
दया क भारत, जापान आ द के ित कसी कार क कोई श ुता नह रखता
है। नेह का मसौदा, िजसे कां ेस कायसिमित ारा वीकृ त कया गया, उसम
जापान या भारत क र ा करने म ि टेन क अ मता का कोई उ लेख नह
था।
हालाँ क उपरो मसौदा ताव म कु छ भी आपि जनक नह था और
इसक िवषय-व तु पूरी तरह फॉरवड लॉक ारा लगातार अपनाई जा रही
नीित के अनु प थी।
िजस मसौदा ताव क इतनी आलोचना ई, उसने यह दरशाया था क
गांधी नेह क तरह वैचा रक प से क र नह थे और नेह के मुकाबले
अिधक यथाथवादी थे। कां ेस बैठक क सबसे खास बात कां ेस आंदोलन से
राजगोपालाचारी का थान थी, जो ि टेन के साथ समझौते के मुख
पैरोकार थे।
‘ स िमशन’ क िवफलता के बाद लोग ने धीरे -धीरे यह सोचा क ि टेन
और भारत के बीच समझौते क सभी वा ाएँ अब समा हो गई ह और
इसिलए दोन के बीच समझौता असंभव है। ले कन पं. नेह ने एक चार शु
कर दया क िबना समझौते के भी भारत को ि टेन के साथ िमलकर
फासीवादी ताकत के िखलाफ लड़ना चािहए। ले कन इस िवचार को न तो
महा मा ने, न ही गांधी शाखा/ वंग ने और न ही आम जनता ने वीकार कया।
आिखरकार नेह को पीछे हटना पड़ा और महा मा के िवचार को वीकार
करना पड़ा।
हालाँ क अिधसं यक कां ेस धीरे -धीरे इस नतीजे पर प चँ रही थी क
ि टेन क यु कै िबनेट क कठोरता के म ेनजर ि टेन के साथ संघष
अव यंभावी है, ले कन ि टेन के साथ संभािवत समझौते का िवचार पूरी तरह
मरा नह था। सर टैफोड स क पेशकश से जो गड़बड़ हो चुक थी, उसके
अलावा ि टश सरकार से कोई और उ मीद नह क जा सकती थी और स
क इस पेशकश को कां ेस सवस मित से अ वीकार कर चुक थी।
ऐसे म कां ेस के पास और कोई िवक प नह बचा था क वह त काल
आजादी क कां ेस क माँग को ावहा रक प से अिभ करे । भारतीय
जनमत भी हो रहा था और अब नीितगत भटकाव को जारी रखने क और
संभावना नह थी। कां ेस अपने 14 जुलाई के ताव म वयं कह चुक थी क
‘ि टेन के िखलाफ दुभावना तेजी से और ापक प से फै ल रही है और
जापानी सेना क सफलता को लेकर संतोष बढ़ रहा है।’ ऐसे म कु छ
सकारा मक करने क ज रत थी।
दो महीने क न द से जागकर आिखरकार कां ेस कायसिमित ने 6 जुलाई,
1942 को बैठक क और नौ दन के गहन िवचार-िवमश के बाद 14 जुलाई को
िस ‘भारत छोड़ो’ ताव पा रत कया गया। इसम ऐलान कया गया क
‘भारत म ि टश शासन तुरंत समा होना चािहए।’ इस ‘अपील’ को अनसुना
कए जाने क सूरत म ताव म आगे कहा गया, ‘तब कां ेस गांधी के अटल
नेतृ व म 1920 से जुटाई गई अपनी उस सारी अ हंसक ताकत का न चाहते ए
भी इ तेमाल करने को मजबूर हो जाएगी, जब उसने अपने राजनीितक
अिधकार और आजादी क नीित क पुि के िह से के तहत अ हंसा को
वीकार कया था।’ इस बात म कोई संदह े नह क कां ेस का ताव
भारतीय लोग के ब सं यक िह से क भावना को करीब-करीब अिभ
करता था। यह ताव कां ेस को मूल प से उस दृि कोण के करीब ले आया
था, जो लेखक ने हमेशा ही अपनाया था, जैसे क भारत म ि टश स ा का
िवनाश भारत क सभी सम या के समाधान के िलए अिनवाय शत थी और
भारतीय लोग को इस ल य क ाि के िलए संघष करना होगा।
य िप वधा म कां ेस ारा पा रत ताव को गांधी ारा ‘खुले िव ोह’ के
प म ा याियत कया गया था, ले कन इसने भारत म ि टश शासन के
िखलाफ त काल, अिडग और चौतरफा लड़ाई क िजस नीित क वकालत
लेखक ने क थी, उसके और कां ेस नेतृ व के बीच क खाई को पूरी तरह
समा नह कया। दोन म अभी भी अंतर था। ताव म ही इस कार क
बात का उ लेख, जैसे क कां ेस क ‘यु अिभयोजन म ेट ि टेन या एलायड
पावस को श मदा करने’ या ‘एलायड पावस क र ा मता को पंगु करने’ क
कोई इ छा नह है या य द भारत आजाद हो जाता है तो कां ेस र ा मक
उ े य से गठबंधन देश क सश सेना को भारत म तैनात करने पर
सहमत होगी—यह प दरशाता है क ि टेन के साथ आपसी समझ क इ छा
का िवचार और इस इ छा को फलीभूत करने क संभावना अभी भी कां ेस के
कु छ नेता के दमाग म थी। ये 27 मई को कां ेस कायसिमित को स पे गए
अपने मसौदा ताव म गांधी ारा अपनाए गए ख से कां ेस ारा ब त
अिधक अलग रा ता अपनाने को भी दखाते ह। हम इस बात को दोहरा सकते
ह क यह मसौदा ताव अ य बात के अलावा यह भी घोिषत करता था क
जापान का झगड़ा भारत के साथ नह , बि क ि टश सा ा य के साथ था;
यु म भारत क भागीदारी, भारतीय जनता क सहमित पर आधा रत नह
थी; और य द भारत आजाद हो जाता है तो उसका संभवत: पहला कदम
जापान के साथ सुलह समझौता होगा। दरअसल, कु छ कां ेसी नेता एक म के
साथ यह उ मीद पाल बैठे थे क संयु रा और िवशेष प से अमे रका,
भारत क रा ीय माँग के प म भारतीय मामले म ह त ेप कर सकता है।
हालाँ क ऐसे लोग क सं या ब त ही मामूली थी। यहाँ तक क ि टेन के
साथ समझौते क सबसे अिधक बल इ छा रखनेवाले नेह तक ने वधा बैठक
के बाद िवदेशी संवाददाता ारा पूछे गए सवाल का न म जवाब दया था।
प कार ने सवाल कया था, “अगर यु के बाद भारत को पूण आजादी देने के
ि टेन के वादे क अमे रका गारं टी दे तो या बात बन जाएगी।” नेह ने कहा
था, “कां ेस क िच इस बात म है क आजादी चािहए, यह और इसी व ।”
कोई शक नह क पूरा देश भी यही चाहता था।
कां ेस ारा ‘भारत छोड़ो’ ताव के पा रत कए जाने से ‘ स वा ा’ से
खराब आ देश का राजनीितक माहौल साफ हो गया। यह घोषणा करके क
कां ेस एक सिवनय अव ा आंदोलन शु करे गी, इसने वतं ता क रा ीय
इ छा को आपसी मतभेद के मा यम से कमजोर करने क सभी संभावना
पर िवराम लगा दया। हालाँ क ि टश सरकार ारा सर टैफोड स को
भारत भेजने के पीछे यही मंशा थी। ‘वधा ताव’ को अंितम पुि के िलए
अिखल भारतीय कां ेस सिमित क 7 अग त को बॉ बे म होनेवाली बैठक म
पेश कया जाना था।
ऐसे म ताव पर एक बार फर से िवचार-िवमश करने के िलए कां ेस
कायसिमित ने अग त क शु आत म ही बैठक करने का फै सला कया। अग त
आते-आते देश म राजनीितक पारा चढ़ चुका था, भारत म कायरत ि टश
प कार ने अपनी रपोट म िशकायत क क कां ेस नेता जनता से िव ोह का
आ वान कर ‘देश को धोखा दे रहे ह।’ नरमपंिथय और उदारवा दय ने कसी
भी तरह से गितरोध को समा करने के िलए कोई नया तौर-तरीका तलाश
कए जाने से पूव, अपनी उ म गितिविधय के मा यम से कां ेस को सीधे
काररवाई शु नह करने के िलए राजी कर िलया। कां ेस का यह िनणय
भावी प से देश म ा राजनीितक तनाव के िमक प से िवकिसत होने
क ओर इशारा करता है।
4 अग त को कां ेस कायसिमित ारा पा रत अंितम मसौदा ताव, िजस
पर 7 अग त को अिखल भारतीय कां ेस सिमित म िवचार-िवमश शु होना
था, वह ‘मैनचे टर गा डयन’ के प कार क बात को दरशाता था, िजसने इसे
म य जुलाई म ‘वधा ताव’ के मुकाबले ‘एक अिधक सकारा मक दृि कोण’
वाला बताया था। यह आ ासन क आजाद भारत ‘अपने सारे महान्
संसाधन को’ ि टेन के प म यु म झ क देगा, इस बात का संकेत था क
कां ेस क दृि म भारत कभी अलग शांित के बारे म नह सोचेगा। यह प है
क भारत क आजादी के ल य को ा करने क अपनी िनणायक लड़ाई को
अंतत: शु करने से पहले ही कां ेस, ि टश सरकार को गलबिहयाँ डालने के
मामले म और एक कदम आगे बढ़ गई थी।
8 अग त को अिखल भारतीय कां ेस सिमित ने कायसिमित के ताव को
भारी ब मत से वीकार कर िलया। के वल नग य सं या म कु छ नेता ने इस
ताव के िखलाफ मतदान कया, िजनम क युिन ट और राजगोपालाचारी के
कु छ समथक शािमल थे। प रणाम क घोषणा के बाद, महा मा गांधी ने नौ
िमनट के अपने धुआँधार भाषण म इस संघष को अंजाम तक प च ँ ाने क
अपनी दृढ़ ित ा को अिभ कया और कहा क इस संघष म चाहे पूरी
दुिनया के िखलाफ वे अके ले पड़ जाएँ, ले कन संघष को उसक अंितम प रणित
तक लेकर जाएँग।े
िजस समय यह सब घटना म आकार ले रहा था, ि टश शासन हाथ-पर-
हाथ धरे नह बैठा था। कां ेस पर पहले से तगड़ा वार करने क तैया रयाँ
जोर-शोर से हो रही थ । ले कन भारतीय लोग के िखलाफ अपनी सभी
दमनकारी और गैर-कानूनी गितिविधय को संवैधािनक प से िविधस मत
होने का जामा पहनाने क ि टश सा ा यवादी परं परा को यान म रखते ए
भारत सरकार ने एक लंबा-चौड़ा बयान कािशत कया। यह बयान अिखल
भारतीय कां ेस सिमित ारा ‘भारत छोड़ो’ ताव क पुि कए जाने के
तुरंत बाद कािशत कया गया, िजसम भारत सरकार ने अपने कदम को
यायोिचत ठहराने का आधार तैयार कया था। इस बयान म भारत से ि टश
शि क त काल वापसी क कां ेस क माँग और ‘सवािधक ापक तर पर
अ हंसक प से िवशाल संघष’ शु करने के फै सले का िज करते ए ऐलान
कया गया क ‘सरकार’ “कां ेस पाट ारा गैर-कानूनी और कु छ मामल म
हंसक गितिविधय , अ य बात के अलावा संचार और सावजिनक उपयोिगता
सेवा को बािधत करने, हड़ताल, सरकारी कमचा रय क वफादारी के साथ
छेड़छाड़ और भरती सिहत र ा उपाय म ह त ेप के िलए िनदिशत
खतरनाक तैया रय के बारे म कु छ दन पहले से ही जाग क थी।” यह बयान
ि टश पाखंड का उ कृ नमूना था। इसम आगे कहा गया क भारत सरकार
क नजर म कां ेस क माँग को वीकार करने का मतलब न के वल ‘भारत के
लोग के ित उसक िज मेदा रय के साथ िव ासघात’ होगा, बि क ‘भारत
म या बाहर सहयोिगय के साथ भी िव ासघात’ होगा, खासतौर से स और
चीन के साथ िव ासघात होगा...यह उन आदश के िखलाफ िव ासघात
होगा, िज ह इतना समथन दया गया और िज ह भारत के दल और दमाग से
आज भी समथन दया जा रहा है...।” ले कन सच यह है क ि टश सरकार
भारतीय लोग क आजादी क रा ीय इ छा को नृशंस तरीके से कु चलने क
तैयारी कर रही थी और ऐसा करते ए वह च चल और संयु रा य अमे रका
के रा पित ारा ‘अटलां टक चाटर’ म धूमधाम से ितपा दत, वतं ता के
िस ांत क पूण और सनक तरीके से अवहेलना कर रही थी।
अिखल भारतीय कां ेस कमेटी का स शिनवार रात को संप हो गया।
रिववार को तड़के -ही-तड़के , मुँह अँधेरे, भारत सरकार ने हमला बोल दया।
बॉ बे के ि टश पुिलस किम र महा मा गांधी को िगर तार करने प च ँ े तो
उ ह ने हमेशा क तरह अपनी सुबह क ाथना समा करने के िलए आधे घंटे
क मोहलत माँगी। गांधी ने अपने अंितम संदश े म कहा—“हम आजादी िमले
या हम मौत िमले!” उसी समय पुिलस बॉ बे तथा अ य जगह पर एक ए
कां ेस नेता को िगर तार करने म जुटी थी। कु छ ही घंट के भीतर देश के
कोने-कोने म फै ला पूरा कां ेसी आंदोलन भूिमगत हो गया। च चल ऐमरी और
कं पनी ने वतं ता और लोकतं के महान् पैरोकार होने का अपना पाखंडी
नकाब उतार फका। एक िनमम, आ मािवहीन िवदेशी िनरं कुशता का खौफनाक
चेहरा अपनी न ता के साथ भारतीय लोग के सम खड़ा था। भारत के
वाधीनता सं ाम के इितहास म एक नया अ याय शु हो चुका था।

प रिश
भारत का संघष : सवाल-जवाब161
सवाल : यहाँ रा ीय सरकार के व ा दावा करते ह क भारत म नया
संिवधान एक बड़ी सफलता है और यह क कां ेस ारा मं ी पद क वीकृ ित
इसका माण है। इस दृि कोण पर रा ीय कां ेस क या राय है?
जवाब : पद क वीकृ ित इस बात का कोई माण नह है क कां ेस हमेशा
के िलए संिवधान पर काम करने जा रही है। कां ेस पाट काफ गलत तरीके से
स ा म आई है। ऐसा करने म इसका उ े य दोतरफा है—पहला, अपनी
ि थित को मजबूत करना; और दूसरा, यह द शत करने के िलए क वतमान
संिवधान क शत के भीतर वा तव म कु छ भी बड़ा या मह वपूण हािसल
करना संभव नह है। य द इसक आशंका के िवपरीत, कु छ मह वपूण हािसल
कया जाता है तो यह लोग के वतं ता के संघष म उनके राजनीितक संगठन
को मजबूत करे गा।
सवाल : या कां ेस ारा संिवधान के संघीय भाग को वीकार करने क
कोई संभावना है?
जवाब : कां ेस के अपने िवचार बदलने और संिवधान के संघीय िह से पर
काम करने के िलए सहमत होने क कोई संभावना नह है, जैसा क उसने ांत
के मामले म कया था। ांतीय भाग और संिवधान के संघीय भाग के बीच कोई
सादृ य नह है।
सवाल : आपके िवचार म रा ीय संघष का अगला चरण या है? या यह
सच है क कसान के बीच अशांित और हड़ताल आंदोलन तेजी से फै ल रहा
है?
जवाब : रा ीय संघष का अगला चरण बढ़ती गित से जनचेतना का और
िवकास होगा। कां ेस के िलए सम या इस ताकत को जुटाने और उसे सही
दशा म िनदिशत करने क होगी।
दूसरे श द म, सम या एक ापक सा ा यवाद-िवरोधी मोरचे पर पाट
संगठन का िनमाण करने क होगी। य द हम ऐसा कर सकते ह तो हम भिव य
म हमारे िलए आनेवाले कसी भी संकट का सामना करने के िलए उ मीद और
साहस के साथ तैयार रहगे। कसान अशांित और िमक हड़ताल कां ेस पाट
के स ा सँभालने के बाद से जनचेतना के और अिधक िवकास क अिभ ि
है।
सवाल : या आप िमक और कसान संगठन के इस सामूिहक जुड़ाव ारा
रा ीय कां ेस के जनाधार को एक सव-समावेशी रा ीय मोरचे के प म और
ापक बनाने के प म ह?
जवाब : हाँ, िनि त प से।
सवाल : आप ि टश लेबर पाट या भावी लेबर सरकार को भारत के संबंध
म कौन सी नीित अपनाते ए देखना चाहगे?
जवाब : हम चाहते ह क ि टश लेबर पाट पूरी तरह से कां ेस के उ े य
के िलए खड़ी हो।
सवाल : आपक पु तक ‘द इं िडयन गल’ के समापन भाग म फासीवाद के
संदभ के बारे म कई पूछे गए ह। या आप फासीवाद के बारे म अपने
िवचार पर कोई ट पणी करना चाहगे? उसी खंड म आपक सा यवाद क
आलोचना के बारे म भी कई पूछे गए ह। या आप इस पर कोई ट पणी
करना चाहगे?
जवाब : तीन साल पहले, जब से मने अपनी पु तक िलखी है, तब से मेरे
राजनीितक िवचार और िवकिसत ए ह।
मेरा वा तव म मतलब यह था क हम भारत म अपनी रा ीय वतं ता
चाहते थे और इसे जीतकर हम समाजवाद क दशा म आगे बढ़ना चाहते थे।
जब मने ‘सा यवाद और फासीवाद के बीच मेल’ का उ लेख कया तो मेरा
यही मतलब था। शायद मने जो अिभ ि इ तेमाल क , वह सुखद नह थी।
ले कन म यह बताना चाहता ँ क जब म पु तक िलख रहा था, तब फासीवाद
अपने सा ा यवादी अिभयान पर शु नह आ था और यह मुझे रा वाद का
एक आ ामक प ही तीत होता था।
मुझे यह भी बताना चािहए क सा यवाद, जैसा क यह भारत म इसके िलए
खड़े होनेवाले कई लोग ारा द शत कया गया तीत होता है, वह मुझे
रा -िवरोधी लग रहा था और यह धारणा उस श ुतापूण रवैए को देखते ए
और मजबूत ई, िजसे उनम से कई ने भारतीय रा ीय कां ेस के िलए द शत
कया था। हालाँ क यह प है क आज ि थित मौिलक प से बदल गई है।
मुझे साथ ही यह कहना चािहए क मने हमेशा समझा है और काफ संतु ँ
क सा यवाद, जैसा क मा स और लेिनन के लेखन तथा ‘क युिन ट
इं टरनेशनल’ क नीित के आिधका रक बयान म कया गया है, रा ीय
वतं ता के संघष को पूरा समथन देता है और फर से इसे अपने िव
दृि कोण के एक अिभ अंग के प म मा यता देता है। आज मेरा िनजी
िवचार है क भारतीय रा ीय कां ेस को ापक सा ा यवाद-िवरोधी मोरचे
पर संग ठत कया जाना चािहए और राजनीितक वतं ता हािसल करना तथा
एक समाजवादी शासन क थापना, इसका दोहरा उ े य होना चािहए।

संदभ सूची
1. िव सट ए. ि मथ, ‘दी ऑ सफोड िह टरी ऑफ इं िडया’, प रचय, पृ. 10।
2. ये तथा अ य त य एवं तक ो. राधा कु मुद मुखज क ‘द फं डामटल यूिनटी ऑफ इं िडया’ (लॉ गमैन, 1914) म
िमलगे।
3. ‘डेवलपमट ऑफ हंद ू पॉिलटी एंड पॉिल टकल योरीज’ ारा नारायण चं बं ोपा याय, पृ. 60। च वत चटज
एंड कं पनी िलिमटेड ारा कािशत, 15 कॉलेज े यर, कलक ा।
4. के .पी. जायसवाल, ‘ रपि ल स इन दी महाभारत’ (I.O. and B. Res Soc., Vol. I, pp 173-8)।
5. ‘डेवलपमट ऑफ हंद ू पॉिलटी एंड पॉिल टकल योरीज’ ारा नारायण चं बं ोपा याय, पृ 115-18।
6. यूनानी मेग थनीज जैसे िन प पयवे क ने उपरो त य क गवाही दी है।
7. चीनी तीथया ी और या ी फािहयान इस व क िन प गवाही देते ह।
8. आठव सदी म संध को जीत िलया गया था, ले कन यह एक पृथक् घटना के प म ही दज है।
9. अकबर ने धम का मेल कराने का भी यास कया था। उसने एक उदारवादी धम के प म एक नया धम ‘दीन-ए-
इलाही’ िवकिसत कया था। उसके जीवनकाल म काफ लोग ने इस धम का समथन कया था, ले कन उसक मृ यु
के बाद नया धम अपनी सारी चमक खो बैठा।
10. 1927 तक तो वयं लेखक ने िनजी प से यह अनुभव कया था क पूव र भारत के असम म खासी जनजाित के
बीच ऐसी सं थाएँ फल-फू ल रही थ ।
11. पंचायत, िजसका शाि दक अथ है—पाँच लोग क एक सिमित। यह एक ब त ाचीन सं था है।
12. इस संबंध म दि ण भारत के दसव और 12व सदी के चोल सा ा य का अ ययन करना उपयोगी है।
13. यह सर सुर नाथ बनज ारा अपनी पु तक ‘ए नेशन इन मे कं ग’, पृ 123-25 म कए गए िवचार तीत
होते ह।
14. संयु संसदीय सिमित क रपोट 22 नवंबर, 1934 को कािशत हो चुक है। यहाँ तक क ेत-प के मामूली
ताव म भी संयु सिमित ने कटौती कर दी है।
15. कां ेस का अ य असली नेता नह है। कां ेस के समापन स क अ य ता जो भी करता है, वह अगले स तक
कां ेस अ य पद पर बना रहता है। िविभ ांतीय कां ेस सिमितय ारा कए जानेवाले नामांकन से कां ेस
अ य का चुनाव होता है।
16. कराची के वामी गो वंदानंद भी लगातार वामपंथी ख पर कायम रहे ह।
17. ‘मौलाना’ श द एक िव ान् और द मुसिलम के िलए इ तेमाल होता है, जैसे क एक िव ान् ा ण के िलए
‘पंिडत’ श द। ले कन ‘पंिडत’ श द को भारत के कई िह स म सामा य बोलचाल म भी इ तेमाल कया जाता है,
जैसे क क मीर म सभी ा ण के िलए ‘पंिडत’ श द इ तेमाल कया जाता है, इससे उनक िश ा का कोई संबंध
नह है।
18. इलाहाबाद के शेरवानी, द ली के आसफ अली और लखनऊ के खािलकु ाँ इसी समूह से संबंध रखते ह। पहले दोन
नेता नवंबर 1934 म असबली चुनाव म िनवािचत हो चुके ह।
19. मौजूदा लेखक इस समूह से संबंध रखते ह।
20. सर सुर नाथ बनज के अनुसार, ‘रॉलेट ऐ ट असहयोग आंदोलन का जनक था।’ (‘ए नेशन इन मे कं ग’, 1927, पृ.
300)
21. अब इसे ‘भारतीय िवधानसभा’ कहा जाता है।
22. पंजाब म अ याचार को अंजाम देनेवाले अिधका रय क र ा के िलए इं पी रयल लेिज ले टव काउं िसल म एक
ितपू त अिधिनयम पा रत कया गया। पंजाब के लेि टनट गवनर सर माइकल ओ डायर को जहाँ इस मामले म
कोई आँच तक नह आने दी गई, वह जिलयाँवाला बाग नरसंहार तथा माशल लॉ लागू करने के िलए िज मेदार
जनरल डायर को के वल इतना कहा गया क वे भारत म भिव य म सेवाएँ देने के िलए अयो य ह। इतना ही नह ,
सरकार ने जो नाममा काररवाई क भी थी, उसे हाउस ऑफ लाॅ स ने नामंजूर कर दया और एक अभूतपूव
घटना म के तहत पंजाब ासदी क इबारत िलखनेवाल के िलए सावजिनक प से चंदा उगाहा गया।
23. 1922 म भारत सरकार ने ि टश कै िबनेट से अपील क क ‘ टी ऑफ सेवरस’ को संशोिधत करने क भारतीय
माँग को सावजिनक कया जाना चािहए। इसम सबसे बड़ी माँग यह थी क एिशया माइनर और थेरेस को तुक को
लौटाया जाए; पिव थल पर सु तान क सं भुता बहाल हो और कॉ ट टनोपल से एलाइड सैिनक को बाहर
िनकाला जाए। म टे यू ने सोचा था क उ ह माँग को चा रत करने के िलए कै िबनेट ने अिधकार दया था, ले कन
कै िबनेट ारा उ ह बाहर का रा ता दखाए जाने के कारण उ ह इ तीफा देना पड़ा।
24. ‘स या ह’ का शाि दक अथ ‘स य के ित आ ह’ था। इसे अलग-अलग नाम दए गए, जैसे क असहयोग, सिवनय
अव ा, सिवनय ितरोध। स या ह क ित ा सबसे पहले दि ण अ का के जोहा सबग म 11 िसतंबर, 1906 को
एक सावजिनक सभा म ली गई थी। और यह ित ा ‘एिशया टक लॉ अमडमट ऑ डनस’ के िखलाफ थी। गांधी के
अनुसार, स या ह कसी भी प म हंसा के उपयोग का याग करता है और िवरोधी प को हािन प च ँ ाने का
लेशमा भी िवचार कह दूर-दूर तक नह होता है। गांधी ‘दि ण अ का म स या ह’ क तावना म कहते ह,
‘1919 से पहले उनके पास ऐसे अवसर थे, जब उ ह ने भारत म हंसा भड़कने पर पाँच बार स या ह के योग कए
थे।’
25. नवंबर 1919 म गांधी के मागदशन म द ली म एक िखलाफत कॉ स ई थी, िजसम हंद ु और मुसिलम दोन
ने िशरकत क थी। इस स मेलन म यह िवचार-िवमश कया जाना था क खलीफा (जो क तुक के सु तान भी थे)
क मदद के िलए या कदम उठाए जाने चािहए? इस स मेलन म मौलाना हसरत मोहानी, जो क एक भावशाली
मुसिलम थे, उ ह ने सुझाव दया क ि टश उ पाद का बिह कार कया जाए, जब क गांधी ने सरकार के साथ
असहयोग का ताव दया। ले कन 1920 तक िखलाफत आंदोलन वा तव म शु नह कया गया था।
26. इसके बारे म बाद म बताया गया है।
27. सी.आर. दास क लोकि यता इतनी अिधक थी क उस समय उ ह जनता ारा वत: ही ‘देशबंध’ु क उपािध दे दी
गई। ‘देशबंध’ु का शाि दक अथ है—‘देश का िम ।’
28. आज मुड़कर उस घटना को देखता ँ तो मुझे ऐसा लगता है क संभवत: महा मा उ मीद लगाए ए थे क ि टश
सरकार का ‘ दय प रवतन’ होगा और इससे वे भारत क रा ीय माँग को वीकार कर लगे।
29. लोग ने अ पृ यता उ मूलन और शराब एवं मादक पदाथ के सेवन को बंद करने के अिभयान म पूरे जोश के साथ
भाग िलया था।
30. असहयोग आंदोलन के िनयम के अनुसार, ि टश कानून क अदालत म सुनवाई के िलए पेश कए जाने पर एक
कां ेस कायकता अपना बचाव नह करे गा। इससे अिभयोजन को आसानी होती और मामल के िनपटान म
आमतौर पर कु छ एक िमनट से अिधक समय नह लगता था।
31. रा ीय वज म इस लाल रं ग का थान अब के सरी रं ग ले चुका है।
32. चौक दारी लगान का भुगतान नह करना, जो क उस समय सभी ामीण को ाम पुिलस आ द को बनाए रखने के
िलए चुकाना होता था।
33. ‘दी ि टश कने शन िवद इं िडया’, टी.के . पॉल ारा, लंदन, 1927, पृ. 50।
34. इस त य क रोशनी म यह हैरानी क बात है क डॉ. अंसारी को 1934 म ‘काउं िसल एं ी ताव’ के तावक म से
एक होना चािहए था।
35. डांगे को कानपुर बो शेिवक सािजश मामले म 1925 म और एक बार फर से 1933 म मेरठ क युिन ट सािजश
मामले म करीब चार साल क सुनवाई के बाद दोषी ठहराया गया था।
36. यह आशंका एकदम सही सािबत ई, जब ‘ली आयोग’ ने अपनी रपोट स पी और ‘गवनमट ऑफ इं िडया’ ने बड़े ही
आलीशान तरीके से इसक िसफा रश को लागू कर दया।
37. सरकार ने अथ व था के िलए संभािवत काररवाई का सुझाव देने के िलए लॉड इं चके प क अ य ता म एक ‘छँटनी
सिमित’ का गठन कया था। सिमित ने माच 1923 म अपनी रपोट स पी।
38. वी.एस. शा ी, जो ‘सव स ऑफ इं िडया’ के मुख बने।
39. गोखले के िनधन के बाद सोसाइटी को ि वी काउं िसलर बना दया गया। उस समय म टे यू भारत के मामल के
िवदेश मं ी थे। माननीय एडवड वुड, िज ह लॉड इरिवन और अब लॉड हेलीफै स के नाम से जाना जाता है, वे
उपिनवेश के िलए उपिवदेश मं ी, जब क लॉड वंटरटन भारत के िलए उपिवदेश मं ी थे।
40. त प ात्, एक मुसिलम क रपंथी ने संभवत: ‘शुि आंदोलन’ के ित अपनी नाराजगी के चलते वामी ानंद क
ह या कर दी।
41. कलक ा नगर िनगम के नए संिवधान के तहत काय का बँटवारा था—मु य कायकारी अिधकारी शासन का
मुिखया और मेयर पूरे िनगम का मुख है। पुराने संिवधान म ये दोन काय ‘अ य ’ म िनिहत थे।
42. के .पी. च ोपा याय, जो आज क तारीख तक इस पद पर बने ए ह। इस समय नगर िनगम के कू ल म करीब
40,000 बालक और बािलकाएँ ह।
43. नई चेतना को अिभ ि दान करने के िलए नगरपािलका ारा ‘कलक ा युिनिसपल गजट’ नामक सा ािहक
जनल शु कया गया।
44. जल िनकासी योजना, िजसे अब वीकार कया जा चुका है, उसका खाका भारतीय मु य इं जीिनयर डॉ. बी.एन. डे ने
तैयार कया था, जो क अभी भी सेवारत ह।
45. इस दोहरी व था के कारण ही संिवधान को ‘ ध ै शासन’ प ित कहा जाता था।
46. स या ह अिभयान कई महीन तक चलता रहा। माउं ट को आिखरकार देशबंधु सी.आर. दास के साथ समझौते के
िलए मजबूर होना पड़ा। एक समझौता तैयार कया गया, िजसके तहत मं दर और उसक संपि का यादातर
िह सा एक लोक सिमित को स प दया गया। इस समझौते को अदालत के सम रखा जाना था, ले कन उस समय
एक तीसरा प यानी क ‘ ा ण सभा’ ने इस पर आपि उठाई। जब पूरा मामला िवचाराधीन था तो इसी बीच
देशबंधु चल बसे। उनके दुभा यपूण िनधन के बाद समझौता िनरथक हो गया और स या ह आंदोलन का प रणाम
भी िसफर रहा।
47. इस समझौते क पुि कां ेस के दसंबर म बेलगाम म ए वा षक स म क गई थी, िजसक अ य ता महा मा
गांधी ने क थी।
48. अिनल बरन उसके बाद से राजनीित से सेवािनवृ हो चुके ह और पांिडचेरी म अर बंदो आ म से जुड़ गए ह।
एस.सी. िम ा उसके बाद असबली म शािमल हो गए और 1928 से 1934 के बीच िवप के एक मुख सद य रहे।
49. ब त से हंद ु के अनुसार, भगवान् अ छाई क र ा और बुराई के खा मे तथा धरती पर सच के सा ा य क
थापना के िलए समय-समय पर अवतरण करते ह। इस अवतरण को ‘अवतार’ कहा जाता है। कु छ अ य हंद ु के
अनुसार, ये अवतार दैवीय अवतरण नह ह, बि क ये एक मानवीय आ मा के प म महापु ष ह, परम आ माएँ ह
—कोई मानव आ मा िवकास के उस सव िशखर पर तभी प च ँ ती है, जब वह परमा मा से एकमेक हो जाती है।
चिलत धारणा के अनुसार, अभी तक नौ अवतार ए ह और दसवाँ अवतार इस वतमान कलयुग के अंत म
अवत रत होना है।
50. ‘गु ’ एक धा मक उपदेशक है। भारत म के वल एक स ा आ याि मक ि ही धमगु हो सकता है।
51. ‘माया’ अथात् एक म या कु छ ऐसा झूठ, जो ललचाता और लुभाता है।
52. तांबे बाद म म य ांत के गवनर के कु छ महीन क छु ी पर अपने घर जाने के दौरान कायवाहक गवनर भी बने थे।
53. ीमती नायडू कां ेस क अ य चुनी जानेवाली दूसरी मिहला थ । पहली मिहला ीमती बेसट थ , िज ह ने 1917
म कलक ा कां ेस क अ य ता क थी। एक यात कविय ी, नायडू 1920 से ही असहयोग आंदोलन म महा मा
के साथ काफ करीब से जुड़ी रही थ । वे आज भी उनक घिन अनुयायी ह और लगातार कां ेस कायसिमित क
सद य बनी ई ह।
54. पं. मालवीय, हालाँ क एक व र कां ेस नेता और कां ेस के पूव अ य रह चुके थे, ले कन उ ह वराजवा दय क
नीित वीकार नह थी। 1928-29 क अविध के दौरान वे असबली के सद य थे, ले कन वराज पाट से ता लुक
नह रखते थे। 1926 के आम चुनाव के बाद वे िनदलीय के प म रहे। लाला लाजपत राय क राजनीित म बदलाव
पंजाब म हंद-ू मुसिलम तनाव और हंद ू महासभा के भाव के कारण था।
55. म ास के महािधव ा का पद इं लड म सॉिलिसटर जनरल के पद के बराबर होगा।
56. जैसा क प रचय के भाग III म उ लेख कया गया है, आय समाज हंद ु का सुधारवादी पंथ है और ऊपरी भारत म
इसे माननेवाल क काफ बड़ी सं या है।
57. सामा य तौर पर यह माना जाता है क अली बंधु और महा मा के बीच मनमुटाव क वजह पि मो र सीमा ांत
म कोहाट म ए हंद-ू मुसिलम दंगे थे। इस िववाद म अली बंधु ने मुसिलम का प िलया था और उनक
िशकायत थी क महा मा ने हंद ु क तरफदारी क ।
58. असबली के अ य वी.जे. पटेल ने इस िवधेयक/िबल को पहले खा रज कर दया था, िजसके बाद इसे बदले व प
म फर से पेश कया गया। कां ेस पाट बक के बंधन संबंधी अनुभाग को हटवाने म सफल रही, िजस पर सर
बािसल लैकेट ने िबल को वापस ले िलया।
59. लेखक आठ बार िहरासत म रह चुके ह, ले कन उ ह ने ऐसे एकमा अनुभव को लेखनीब करने का यास कया है,
य क यह बाक सारे अनुभव म सबसे रोचक है।
60. नया संिवधान, िजसक परे खा भारत से अलग होने के आधार पर संयु संसदीय सिमित ारा तैयार क गई है,
वह संभवत: अं ेजी पढ़े-िलखे बम लोग के िलए िनराशाजनक सािबत होगा और हो सकता है क इससे उनके
सामा य रवैए म बदलाव आ सके ।
61. परम आदरणीय यू ओटामा अब कलक ा म िनवािसत जीवन जी रहे ह और उ ह बमा लौटने क अनुमित नह है।
बार-बार क िगर तारी के चलते उनका वा य पूरी तरह िबगड़ चुका है। जब म बमा म था तो एक रोचक घटना
ई। परम आदरणीय यू ओटामा जेल म थे और यह अफवाह उड़ गई क उ ह गोपनीय प से भारत क जेल म भेज
दया गया है। बमा लेिज ले टव काउं िसल म इस मु े पर सवाल कए गए। गृहमं ी, जो क वयं बम ह, उ ह ये
सवाल नागवार गुजरे और उ ह ने जवाब दया क यू ओटामा उनक जेल म बंद दस हजार अपरािधय म से एक थे
और उनसे यह उ मीद नह क जा सकती क उ ह इस बात का पता हो क यू ओटामा को कहाँ बंदी रखा गया है? यू
ओटामा का इस कार अपमानजनक तरीके से उ लेख कए जाने पर लेिज ले टव काउं िसल के सभी गैर-सरकारी
सद य िवरोध म बिहगमन कर गए। उ ह ने अपने अलग-अलग दल को भंग करने और एक नई एकजुट पाट ग ठत
करने क कसम उठाई, िजसे ‘पीपु स पाट ’ नाम दया गया।
62. वटी वन पाट क नीित संिवधान के िलए काम करना है, जब क जी.सी.बी.ए. क नीित इसका बिह कार करना है।
63. बंगाल कां ेस कमेटी क इस बैठक म लेखक को अ य और करण शंकर रॉय को सिचव चुना गया।
64. ताव म ास कां ेस म सवस मित से पा रत हो गया था, ले कन कां ेस संप होने पर महा मा गांधी ने ऐलान कर
दया क ‘यह ज दबाजी म तैयार कया गया और िबना िवचारे पा रत कया गया था।’ लाला लाजपत राय ने
ऐलान कया क यह इसिलए पा रत कया गया, य क ‘ब त से लोग यह यक न करते ह क डोिमिनयन टेटस
का अथ रा ीय आजादी भी है।’ दसंबर 1929 म लाहौर कां ेस म भी महा मा ारा ऐसा ही ताव पेश कया
गया और उसे सवस मित से अंगीकार कर िलया गया।
65. भारत के िलए संिवधान के िस ांत का िनधारण करने के िलए सवदलीय स मेलन ारा िनयु सिमित क रपोट।
भारतीय रा ीय कां ेस, इलाहाबाद ारा 1928 म कािशत।
66. वतमान लेखक उनम शािमल थे।
67. पं. जवाहरलाल नेह और लेखक उन चु नंदा नेता म थे, िज ह ने छा को वयं को संग ठत करने के िलए
ो सािहत कया था।
68. िमक के दबाव के चलते लेखक ने उस समय मोरचा सँभाला, जब हड़ताल टू टने के कगार पर थी। इसके बाद
हड़ताल म नई जान फूँ क गई, उसे मजबूती दान क गई और इसका प रणाम एक स मानजनक समझौते के प
म सामने आया। दुभा यवश, समझौते के बाद िमक म मतभेद फू ट पड़े और इसके िवनाशकारी प रणाम िनकले।
टाटा हड़ताल से लेखक को िमक के आंदोलन म शािमल होने का मौका िमला और उसके बाद से वे आंदोलन के
साथ ब त करीब से जुड़े ए ह।
69. सा ा यवाद के िखलाफ लीग के बारे म सबसे पहले घोषणा क गई थी क यह एक गैर-क युिन ट इकाई होगी और
भारतीय रा ीय कां ेस तथा ऑल इं िडया ेड यूिनयन कां ेस इससे संब थ । बाद म जब लीग एक कार से
क युिन ट इकाई बन गई तो भारतीय रा ीय कां ेस और ेड यूिनयन कां ेस ने खुद को इससे अलग कर िलया।
70. रसे शन कमेटी के अ य के प म अपने भाषण म लेखक ने िनि यतावाद के िवपरीत स यतावाद क वकालत
क थी। महा मा के साबरमती आ म और अर बंदो घोष के पांिडचेरी आ म से िनि यतावाद का चार कया जा
रहा था। उ ह ने जीवन के भौितक प के आधुिनक करण क भी पैरवी क । उनके इस भाषण ने महा मा और
अर बंदो घोष के अनुयाियय के बीच आ ोश पैदा कर दया।
71. उ ह ने कलक ा कां ेस के तुरंत बाद सावजिनक प से यह कहते ए चार शु कया क य द 31 दसंबर, 1929
तक सरकार ने भारत के िलए डोिमिनयन टेटस को वीकार नह कया तो एक जनवरी 1930 से वे ‘आजाद’ हो
जाएँगे। एक साल क यह समय-सीमा उनके 1921 म सालभर के भीतर वराज दलाने के वादे क याद दलाती है।
72. इसके तुरंत बाद मिहला के बीच इसी कार क चेतना आई। बंगाल म देशबंधु ने मिहला को रा -सेवा का
िश ण देने के िलए 1921 म ‘नारी कम मं दर’ क शु आत क थी। उनक मृ यु के बाद यह सं थान मृत ाय हो
गया था। 1928 म जब लेखक ने अपनी सावजिनक गितिविधयाँ शु क तो ‘मिहला रा ीय संघ’ के नाम से
कलक ा म मिहला के िलए एक राजनीितक संगठन शु कया गया और इसके बाद देश भर म कई अ य संगठन
अि त व म आए थे।
73. ई ट इं िडयन रे लवे सरकारी वािम ववाला रे लवे होने के साथ ही भारत म सवािधक मह वपूण रे लवे है।
74. अिखल भारतीय कां ेस सिमित करीब 350 सद य क एक इकाई है, जो भारत के िविभ ांत का ितिनिध व
करती है। ितवष यह इकाई 15 कायकारी सद य का चुनाव करती है, िजसे कायसिमित कहा जाता है।
75. सामा य तौर पर यह माना जाता है क 31 अ ू बर, 1929 को वायसरीगल क घोषणा के तुरंत बाद इं लड म
च चल, लॉड बक हेड, लॉड री डंग और अ य ारा कए गए िवरोध के चलते न तो ि टश सरकार और न ही लॉड
इरिवन महा मा गांधी को कोई आ ासन दे सकते ह।
76. उदाहरण के िलए, पं. मदनमोहन मालवीय जैसे अ यंत स मािनत ा ण और पुरातनपंथी ा ण के प रवार क
मिहलाएँ िबना कसी भय और िहचक के जेल ग ।
77. 22 जुलाई, 1931 के ‘मेनचे टर गा डयन’ म द ली म मिहला के बीच जागरण का उनका योरा कािशत आ।
अके ले द ली म 1,600 मिहला को जेल म बंद कर दया गया था।
78. सरकारी आँकड़ा अनुमान से कम है। लेखक अपने िनजी अनुभव से जानते ह क ब त से लोग को चोरी, डराने-
धमकाने, दंग आ द के आरोप म सजा दी गई, जब क वे पूण प से स या ही थे। चूँ क स या ही अदालत क
कसी काररवाई म भाग नह लेते थे, तो ऐसे म इन आरोप को कभी चुनौती नह दी गई। सरकारी आँकड़े शु प
से राजनीितक अपराध पर आधा रत ह।
79. अिधकतर ांत म कां ेस संगठन को घायल स या िहय क देखभाल के िलए अ पताल क थापना करने के साथ
ही एंबुलस सेवा का भी इं तजाम करना पड़ा। सबसे बेहतर और सभी सुिवधा से यु अ पताल बॉ बे िसटी म
थे और वहाँ घायल स या िहय क सं या कसी भी अ य भारतीय शहर से अिधक थी।
80. अ ैल 1930 म ऐसा हमला कलक ा क अलीपुर स ल जेल म कया गया। हमले का िनशाना बननेवाल म दवंगत
सेनगु ा, कलक ा के त कालीन मेयर, करण शंकर रॉय, बंगाल कां ेस सिमित के सिचव, ो. एन.सी. बनज ,
एस.आर. ब शी, िलबट के संपादक, लेखक और ‘बड़ी सं या म साथी कै दी’ शािमल थे। लेखक, जो अि म पंि म
थे, हमले के दौरान उ ह फक दया गया। वे एक घंटे से अिधक समय तक बेहोश पड़े रहे। जनता ने जाँच क माँग क
और सरकार ने माँग ठु करा दी। आिखरकार सरकार ने डॉ. बी.सी. रॉय और लेि टनट कनल डनहैम हाइट के साथ
एक मेिडकल बोड का गठन कया, िजसने घायल कै दय क जाँच क और उनक शारी रक हालत पर एक रपोट
जारी क गई।
81. गढ़वािलय को िहमालय के साथ लगते संयु ांत के पहाड़ी इलाक से भरती कया जाता है। नेपाल के गोरख ,
पंजाब के िसख और सीमांत ांत के पठान को साथ िमलाकर भारतीय सेना के िलए इनका चुनाव कया जाता है।
82. यह िनि त प से ात नह है क यह प वा तव म वायसराय के हाथ म प च ँ ा था।
83. लाठी एक लोहे क मूठ मढ़ी ई भारी मोटी लकड़ी होती है।
84. छापेमारी के बाद िगर तार कए गए युवक के पहले ज थे को मुकदमे क सुनवाई के िलए भेजा गया। इस के स को
‘चटगाँव आमरी रे ड’ के नाम से जाना जाता है। मुकदमे क काफ लंबी सुनवाई के बाद इनम से अिधकतर को
आजीवन कारावास क सजा सुनाई गई और बंगाल क खाड़ी म अंडमान आइलड भेज दया गया। समूह का नेता
सुर य कु मार सेन लंबे समय तक िगर तारी से बचता रहा, ले कन आिखरकार पकड़ा गया और मुकदमे क सुनवाई
के बाद उसे फाँसी दे दी गई। चटगाँव म 1930 के बाद से ही एक कार से माशल लॉ लगा आ है।
85. खादी से बनी सफे द क तीनुमा टोपी को ‘गांधी टोपी’ कहा जाता है।
86. यह राय पूव सांसद िमस एलेन िवि कनसन ने ‘इं िडया लीग डेपुटेशन’ के सद य के प म 1932 म अपनी भारत-
या ा के बाद क थी।
87. मुझे महा मा से यह भी पता चला क पुिलस अ याचार क जाँच कराने क माँग को उ ह ने वैि छक प से वापस
ले िलया था।
88. अपने आ ासन पर कायम रहते ए, 4 जनवरी, 1932 को 1827 के रे युलेशन 25 के तहत अपनी िगर तारी क पूव
सं या पर महा मा ने एक अपील जारी क , िजसम उ ह ने कहा, ‘अपने दय से हंसा के लेशमा को भी ख म कर
द, हर अं ेज पु ष, मिहला और ब े को संपूण सुर ा द।’
89. इस मौके पर लेखक को 24 घंटे लालबाजार स ल पुिलस टेशन म िबना भोजन-पानी के िबताने पड़े। ज म पर
लगाने के िलए पुिलस टेशन म के वल थोड़ा सा आयोिडन टंचर उपल ध था और वह भी ब त ज द ख म हो गया
और जब उ ह ने फर से माँगा तो उ ह कु छ नह िमला। अगले दन उ ह खून से सने कपड़ और गले म बँधे कपड़े क
मदद से लटक ई बाजू लेकर अदालत म पेश होना पड़ा। उ ह ने पुिलस टेशन म उनके साथ कए गए बरताव को
लेकर मिज ेट के सम बयान दया, िजसे िविधवत् प से रकॉड कया गया। जेल म भेजे जाने के बाद उनका
ए स-रे आ और तब पता चला क उनके दािहने हाथ क दो उँ गिलय क ह ी टू टी ई थी।
90. माच 1931 म जेल से अपनी रहाई के बाद मुझे इन त य के बारे म पता चला।
91. इन त य के आलोक म रा वादी मुसलमान का रवैया 1934 म धानमं ी सां दाियक पुर कार के मामले म समझ
से परे है।
92. दूसरे गोलमेज स मेलन म 107 सद य थे। इनम से 65 ि टश भारत से, 22 भारतीय रयासत से और 20 ि टश
दल से थे। स मेलन क अ पसं यक सिमित म 6 ि टश, 13 मुसिलम, 10 हंद,ू 2 वंिचत तबके से, 2 लेबर से, 2
िसख, 1 फारसी/पारसी, 2 भारतीय ईसाई, 2 भारत म ि टश अिधवासी, 1 आं ल-भारतीय, 3 मिहलाएँ—कु ल
44। मुसिलम, जो क भारतीय आबादी का एक-चौथाई िह सा थे, उ ह सबसे अिधक ितिनिध व िमला था और
उनके बीच के वल एक रा वादी मुसिलम था।
93. यह संदभ अ य के बीच रा वादी मुसिलम के बारे म है, िजनक गैर-मौजूदगी महा मा को अब महसूस होने लगी
थी। कोई भी महसूस कए िबना नह रह सकता क महा मा को इस बात का अहसास देर से आ।
94. लेखक ने 1929 म लाहौर कां ेस म एक ताव पेश कया था क कां ेस को समानांतर सरकार ग ठत करने के ल य
पर काम करना चािहए। यह ताव िगर गया, महा मा के सभी समथक ने इसके िखलाफ मतदान कया था।
95. इस बयान के आलोक म महा मा गांधी ारा िसतंबर 1932 म पूना समझौते का अनुमोदन कया जाना समझ से परे
है, य क पूना समझौते म वंिचत और दबे-कु चले वग के िलए सीट के आर ण का ावधान था।
96. उदाहरण के िलए, सुनवाई म कसी यूरोपीय जज या एक यूरोपीय यूरी को रखने का अिधकार।
97. इस संबंध म 1931 म कराची कां ेस ारा िनयु सावजिनक ऋण जाँच सिमित क रपोट िनिहत है।
98. ये िवचार माननीय वी.एस. शा ी ने जनवरी 1932 के ‘इं िडयन र ’ू म कए थे।
99. यह खेदजनक है क उ ह ने महा मा को सफलतापूवक घेर िलया था।
100. गोलमेज स मेलन म 30 नवंबर, 1931 को पूण अिधवेशन म दया गया महा मा का भाषण।
101. शु आत से ही रे ड ेड यूिनयन कां ेस ने बॉ बे और कलक ा को छोड़कर कोई अिधक स यता नह दखाई थी।
102. लेखक इस सिमित के सद य थे, ले कन जब वे ढाका के समीप प च ँ े तो पुिलस अिधका रय ारा उ ह जबरन, बल
योग करते ए िजले से बाहर कर दया गया। आजाद होते ही वे फर से ढाका के िलए चल दए, ले कन उ ह जेल
म डाल दया गया। बाद म उ ह रहा कर दया गया और उसके बाद उ ह ने जाँच जारी रखी।
103. दसंबर 1931 म दो कू ली छा ा , शांित और सुनीित ने कोिमला के मिज ेट क गोली मारकर ह या कर दी थी।
104. इस ताव का सरकार और साथ ही सभी अं ेज ने िवरोध कया था।
105. इन वयंसेवक को यह नाम उनक वरदी के रं ग के कारण दया गया था। वे कां ेस वयंसेवक थे और उनका
क युिन ट पाट से कोई लेना-देना नह था।
106. लेखक उन लोग म से एक थे, िज ह कायसिमित क इस बैठक म शािमल होने के िलए आमंि त कया गया था।
लेखक ने यह राय जािहर क थी क मौजूदा प रि थितय म मुलाकात के िलए आवेदन करना महा मा के िलए
अपमानजनक होगा, ले कन वहाँ मौजूद बाक लोग का अलग ही सोचना था।
107. कां ेस पर ितबंध लगाए जाने के बाद कानून के दायरे म रहते ए ‘बाय इं िडयन’ लीग का आयोजन कया गया।
108. ीमती नेह क जाँच करनेवाले िच क सा अिधकारी ने िन रपोट दी थी—‘उ ह लाठी जैसी कसी चीज से
चोट लगी ह। उ ह लगभग छह जगह पर चोट लगी ह, िजसम से एक चोट उनके माथे पर लगी है, िजससे बुरी तरह
खून िनकला था।’
109. कई अ य जेल म भी इसी कार क घटनाएँ । राजमुं ी जेल म लाहौर ष ं कांड से जुड़े एक कै दी पर कोड़े
बरसाए गए। बे लारी जेल म राजनीितक कै दय को जेल वाडन ारा ला ठय से पीटा गया। अजमेर के समीप,
देवली िहरासत िशिवर म बंगाल के सरकारी कै दय पर गाड ने हमला कया और उ ह गंभीर प से घायल कर
दया। इन सभी मामल म कै दय के िखलाफ अव ा के आरोप लगाए गए थे।
110. 22 दसंबर, 1931 को लेखक क अ य ता म महारा युवा कॉ स क पूना म बैठक ई और इसम एक ताव
पा रत कर कां ेस कायसिमित से सिवनय अव ा आंदोलन को पुन: शु करने का आ वान कया गया।
111. इस तरीके से िज ह जेल म डाला गया था, उनम बॉ बे के पूव महािधव ा भूलाभाई देसाई तथा कां ेस के एक
अि म पंि के नेता एवं कलक ा के एक मुख अिधव ा शरत सी. बोस शािमल थे, जो कलक ा नगरपािलका के
मेयर भी थे। इस समय (नवंबर 1934) भी वे िहरासत म ह।
112. दूसरे गोलमेज स मेलन के िलए ि टश सरकार ारा नािमत सद य, नए संिवधान के तहत िवधानमंडल म
ितिनिध व, िनवाचक मंडल आ द के सवाल पर कसी समझौते पर नह प च ँ सके तो ि टश धानमं ी ने
सरकार के फै सले क घोषणा कर दी। इस फै सले को ‘सां दाियक फै सले’ के प म जाना जाता है।
113. ‘पूना समझौता’ भी कहा जाता है।
114. यूरोप के कई देश म लेखक ने उन लोग ारा क गई इस ट पणी को सुना, जो भारतीय मामल म िच रखते थे।
पहले उ ह इस ट पणी का मह व समझ नह आया, ले कन बाद म उ ह ने पाया क िसतंबर 1932 म यह कहानी
पूरे यूरोप को सुनाई जा चुक थी।
115. ‘ह रजन’ श द (श दश: अथ होता है—‘ई र पु ’) महा मा ने दिलत वग के सद य या अ पृ य लोग के िलए
दया था।
116. एक शत यह थी क महाराजा को िनयं ण आयोग के सम तुत होना चािहए। मई 1932 क सम या िसतंबर
तक कमजोर पड़ गई, ले कन हंसक क म क कृ षक अशांित जनवरी 1933 म शु हो गई। मई 1933 को महाराजा
को रा य छोड़ने का आदेश दे दया गया।
117. तब से ही िबना कसी िनगरानी के सोने को भारत से बाहर भेजा जा रहा था। 6 अ ू बर, 1934 को बॉ बे म जारी
एक ेस बयान के अनुसार, इं लड के गो ड टडड से बाहर होने के बाद से बॉ बे से िनयात कए गए सोने क क मत
1,97,89,40,886 पए या करीब 1979 िमिलयन पए थी।
118. िसतंबर के लोकि य उपवास के बाद, महा मा ने दसंबर म फर से उपवास रखा, ले कन वह उपवास ब त छोटा
था। वतमान उपवास को उ ह ने ‘ह रजन िहत के संबंध म अ यिधक सावधान और अ यिधक सतक रहने के िलए
मेरे वयं के और मेरे सहयोिगय क शुि के िलए दय से ाथना’ बताया था।
119. जब कॉि टनटल ेस म उपवास के संबंध म समाचार कािशत आ तो लेखक िवयना म थे। 14 महीने क कै द के
बाद जब उनक हालत गंभीर प से चंताजनक हो गई तो लखनऊ म उनका इलाज कर रहे लेि टनट कनल बकली
ने उपचार के िलए उ ह यूरोप भेजे जाने क िसफा रश क । त प ात् भारत सरकार ने उ ह अपने खच पर यूरोप
जाने क अनुमित दे दी। उ ह बॉ बे म रहा कर दया गया और वे जहाज म सवार होकर माच 1933 म िवयना
प च ँ गए।
120. यह कयासबाजी का मामला है क या सरकार जानती थी क य द महा मा को रहा कर दया जाता है तो वे
सिवनय अव ा आंदोलन िनलंिबत कर दगे? 8 मई, 1933 को जब महा मा ने अपना उपवास शु कया तो सरकार
ने एक संदश े जारी कर कहा क उपवास के उ े य क कृ ित और जो वैचा रक दृि कोण कट कया गया था, के
म ेनजर सरकार ने फै सला कया था क महा मा को आजाद कर देना चािहए। उनक रहाई के बाद, कां ेस के
कायवाहक अ य ऐने ने महा मा क िसफा रश पर सिवनय अव ा आंदोलन को िनलंिबत करने का आदेश दे
दया।
121. दवंगत वी.जे. पटेल भारत क ओर से अमे रका म तीन महीने तक सघन और थका देनेवाला चार करने के बाद
लौट आए थे। इस दौरे ने अंतत: उनक जान ले ली। लेखक के साथ ही वे भी उस समय िवयना म उपचार करा रहे
थे।
122. सरकार ारा तक दया गया था क िपछली दफा उ ह िबना सुनवाई के कै द कर िलया गया था, जब क इस बार
उ ह सुनवाई के बाद दोषी ठहराया गया था।
123. पं. जवाहरलाल नेह क यह कमी कई अ य अवसर पर भी देखने को िमली थी, जब कां ेस संकट के समय से
गुजर रही थी। उदाहरण के िलए, 1923-24 के संकट म और उसके बाद 1928-29 के संकट म।
124. उनके िवचार के पूण िववरण के िलए उनक पु तक ‘िवदर कां ेस?’ का संदभ ल। बॉ बे बुक िडपो, िगरगाँव,
बॉ बे; नवंबर 1933-45 नरीमन जनवरी 1930 से कां ेस कायसिमित के सद य रह चुके ह।
125. द ली कॉ स से पूव, पूना के एन.सी. के लकर और बॉ बे के जमनादास मेहता के कहने पर बॉ बे म एक और
कॉ स ई थी, िजसे ‘डेमो े टक वरा य पाट कॉ स’ नाम दया गया। इसका मकसद अगले चुनाव लड़ने के
िवचार को लोकि य बनाना था। इस कॉ स को महारा के सभी िह स का ापक समथन था।
126. 7 अ ैल, 1934 क शु आत म महा मा गांधी ने एक बयान जारी कर सभी कां ेिसय को वराज हािसल करने के
मा यम के तौर पर सिवनय अव ा आंदोलन को िनलंिबत करने क सलाह दी और साथ ही जोर देकर कहा क
मौजूदा हालात म के वल एक ि , यानी क वयं उ ह सिवनय अव ा आंदोलन क िज मेदारी लेनी चािहए। मई
म अिखल भारतीय कां ेस कमेटी और अ ू बर 1934 म बॉ बे कां ेस ने इस हैरानी भरी बात को वीकार कर
िलया।
127. मौजूदा संिवधान के तहत, बंगाल िवधान प रषद् म हंद ु के पास िनवािचत सीट का 60 ितशत िह सा है। यह
1916 के ‘लखनऊ समझौते’ के अनुसार है—भारतीय रा ीय कां ेस और अिखल भारतीय मुसिलम लीग के बीच
आ समझौता।
128. पंजाब के हंद ु का भी यही मामला है। यही कारण है क बंगाल और पंजाब म कई हंद ू िनवाचन े म कां ेस
नेशनिल ट पाट के सद य असबली म लौट आए ह।
129. कां ेस के वतमान संिवधान के अनुसार, येक सद य को कम-से-कम चार आने का वा षक अंशदान देना होता है।
महा मा का िवचार के वल अंशदान देने के बजाय कताई को सद य के िलए एक िज मेदारी बनाना है।
130. उपरो िलखे जाने के बाद महा मा ने कां ेस के पूण अिधवेशन म अपनी सेवािनवृि क घोषणा क , जो 26
अ ू बर, 1934 को बॉ बे म आ था। इस तथाकिथत सेवािनवृि का उ लेख अ याय अठारह म कया गया है।
131. 1 अ ू बर, 1934 को भारत से एक संदश े म कहा गया क कां ेस सोशिल ट पाट का एक स मेलन हाल ही म
बनारस म आयोिजत कया गया था। इसम यह िनणय िलया गया क कां ेस के चुनाव अिभयान म सहायता नह
क जाएगी और न ही कसी ऐसे कां ेस संगठन म पद वीकार कया जाएगा, जो पाट क आ थक नीित को लागू
नह करता है।
132. जब से उपरो िलखा गया है, संयु संसदीय सिमित क रपोट कािशत हो चुक है और लेखक क आशंकाएँ
स य िस ई ह।
133. संयु संसदीय सिमित क रपोट 22 नवंबर, 1934, को कािशत ई और इसम बमा को भारत से अलग करने का
ावधान कया गया है।
134. फरवरी 1932 म एक ैजुएट युवती बीना दास ने यूिनव सटी ऑफ कलक ा के दी ांत समाराेह म बंगाल के
गवनर सर टैनले जै सन को गोली मारने का यास कया था। गवनर बाल-बाल बच गए और दास को नौ साल
क जेल क सजा हो गई।
ताजा समाचार यह है क सर जॉन एंडरसन के कु छ भावी ह यार को फाँसी क सजा सुनाई गई है।
135. यह अ याय ेत-प और सां दाियक फै सले के ावधान का के वल एक आधा-अधूरा िवचार तुत करता है।
बाक िव तृत जानकारी के िलए, जो क आम पाठक क िच अनुकूल नह है, आपको ‘ पोज स फॉर इं िडयन का
कॉि टट् यूशनल रफोम’ 1933 को देखना चािहए, िजसे महामिहम के टेशनरी कायालय, एड ाल हाउस,
कं सवे, लंदन ड यू.सी. 2 ारा मु त और कािशत कया गया है। मू य 2 िस लंग।
136. इं िडयन लेिज ले टव असबली ारा ‘दी रजव बक िबल’ को पहले ही पा रत कया जा चुका है।
137. ेत-प म संघीय असबली (िनचले सदन) के मामले म य चुनाव और काउं िसल ऑफ टेट (उ सदन) के
मामले म अ य चुनाव क िसफा रश क गई थी। संयु संसदीय सिमित हालाँ क दोन ही मामल म अ य
चुनाव क िसफा रश कर चुक है।
138. 1931 क जनगणना म बमा समेत भारत क कु ल आबादी करीब 35 करोड़ 20 लाख है। भारतीय रयासत क
कु ल आबादी करीब 8 करोड़ 10 लाख है।
139. भारत क एक-चौथाई से कम जनसं या के साथ भारतीय रयासत क असबली म 33 ितशत सीट और
काउं िसल ऑफ टेट म 38 ितशत से अिधक सीट ह गी।
140. लगभग 352 िमिलयन क जनसं या म से भारत म यूरोपीय आबादी 1,68,134 है। फर भी उनके पास काउं िसल
(िवधानसभा) म 14 सीट और काउं िसल ऑफ टेट (रा य प रषद्) म 7 सीट होनी चािहए। फर भी उनके पास
िवधानसभा म 14 सीट और रा य प रषद् म 7 सीट ह।
141. िवधायी अनुभव क रोशनी म उ मीद, या यूँ कह क आशंका है क गैर-मतदान यो य मामले कु ल य का करीब
80 फ सदी ह गे।
ेत-प कहता है क गवनर जनरल फै सला करगे क इन शीष के तहत आनेवाला कौन सा िवषय गैर-मतदान यो य है।
142. ेत-प ताव का पैरा ाफ 15।
143. ताव का पैरा ाफ 49।
144. ेत-प ताव, पैरा 189।
145. इं िडया ऑ फस, लंदन ारा 4 अ ू बर, 1934 को एक घोषणा क जा चुक है क 1935 क शु आत म भारतीय
रजव बक का गठन कया जाएगा। गवनर, िड टी गवनर और स ल बोड ऑफ द बक क िनयुि याँ िनि त प से
महामिहम क सरकार ारा क जाएँगी। स ाई तो यह है क कु छ िनयुि याँ पहले ही क जा चुक ह। सर ओ बोन
ि मथ को बक का गवनर िनयु कया गया है; जे.बी. टेलर थम िड टी गवनर और सर िसकं दर हयात खान (कु छ
समय पंजाब के कायवाहक गवनर रहे थे) को ि तीय िड टी गवनर िनयु कया गया है।
146. उदाहरण के िलए, यह प नह है क िबना सुनवाई के जेल म बंद करने को भारत म असंभव बना दया जाएगा,
जैसा क बंदी य ीकरण अिधिनयम के चलते ेट ि टेन म कया जा चुका है।
147. ऐसे कई मामल म लेखक का िनजी अनुभव रह चुका है।
148. 1920 म महा मा गांधी ने जब कां ेस क कमान अपने हाथ म ली, तब उ ह ने लंदन म कां ेस सिमित को भंग कर
दया और उसके समाचार-प ‘इं िडया’ को बंद कर दया, जो क भारत से बाहर उसके िलए चार करने का
एकमा साधन था। हाल ही म उनम एक बदलाव आया तीत होता है। जनवरी 1932 म, अपनी िगर तारी से
ठीक पहले कां ेस कायसिमित ने उनके कहने पर दुिनया के देश के नाम एक अपील जारी करवाई क वे आजादी
क लड़ाई म भारत के ित सहानुभूित और समथन कर।
149. यह पूरी तरह से प कया जाना चािहए क यह पं. नेह क िनजी राय है, भारतीय रा ीय कां ेस क नह । न
ही उनक लोकि यता का यह अथ है क उनके िवचार को कां ेस के हर वग म वीकृ ित िमलती है, जैसे—महा मा
गांधी क अभूतपूव लोकि यता का अथ यह नह है क उनके अनुयायी लँगोटी पहनते ह या बकरी का दूध पीते ह।
150. इसके अलावा, भारत म एक रा ीय जागरण यादातर मामल म एक धा मक सुधार और एक सां कृ ितक
पुनजागरण ारा शु कया गया है।
151. पूववत पृ सन् 1934 म मूल प से अं ेजी म िलखे गए थे और सन् 1934 तक क अविध से संबंिधत थे।
िन िलिखत पृ 1943 म िलखे गए और यह पु तक को अ तन रखते ह—लेखक।
152. लॉड माल, जो ि टश कै िबनेट म भारत के रा य सिचव थे, उ ह ने कहा क लॉड मंटो ने 1906 म ‘मुसिलम हरे
क शु आत क थी’। उस समय लॉड मंटो भारत के वायसराय थे।
153. पटेल उन कु छ चु नंदा भारतीय नेता म से एक थे, जो िवदेशी चार म िच रखते थे। वे डबिलन म ‘भारत-
आय रश लीग’ क थापना के िलए िज मेदार थे।
154. किवशर बाद म ‘ऑल इं िडया फॉरवड लॉक’ के उपा य बने।
155. कदवई बाद म यू.पी. म कां ेस कै िबनेट म गृहमं ी बने।
156. ीमती पंिडत भी यू.पी. म मं ी बन ।
157. बोस बाद म बंगाल िवधानमंडल म कां ेस पाट के नेता बने।
158. संध के कां ेस समथक धानमं ी अ लाह ब श ने भारत म ि टश सरकार क दमनकारी नीित के िवरोध म
अ ू बर 1942 म अपने पद से इ तीफा दे दया और ‘खान बहादुर’ क उपािध भी छोड़ दी, जो उ ह ि टश सरकार
से िमली थी।
159. यह बताया गया है क कु छ महीने पहले कां ेस पाट के मंि य को ांत के ि टश गवनर ारा मंि मंडल से
असंवैधािनक प से इस आधार पर हटा दया गया क वे ‘फॉरवड लॉक’ के साथ गु प से जुड़े थे।
160. दसंबर 1940 म नागपुर म अिखल भारतीय छा संघ म िवभाजन आ। संघ म क युिन ट समूह अलग हो गया
और एक अलग संगठन क थापना क । छा का मु य िनकाय अब ‘फॉरवड लॉक’ के राजनीितक नेतृ व का
अनुसरण करता है।
161. 24 जनवरी, 1938 को ‘डेली वकर’, लंदन म कािशत आर. पा मे द के साथ एक सा ा कार क रपोट।

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