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1965

भारत-पाक यु
क वीरगाथाएँ
रचना िब रावत
भूरी-हरी वरदीवाले उन जवान क िलए,
िजनक कहािनय ने मुझे
वीरता क वा तिवक अथ से प रिचत कराया।
कोई न नह करना ह,
बस, करना ह या मरना ह।
—द चाज ऑफ द लाइट ि गेड
तावना
भारत व पािक तान क बीच ए स 1965 क ऐितहािसक यु को पचास वष पूर हो गए। ‘1965 : तीय
भारत-पाक यु क कहािनयाँ’ उसक मरण का यास मा ह। पाँच दशक पूव 1 िसतंबर, 1965 को पािक तान
ारा ज मू व क मीर क छब िजले पर हमले से ऐसे यु क शु आत ई, िजसम काररवाई व जवाबी काररवाई
क अलावा बड़ पैमाने पर हिथयार व सै य-श का उपयोग िकया गया। यह भारतीय सेना क सैिनक का साहस
व कबािनयाँ ही थ , िजनक ारा हमने पािक तानी घुसपैठ का समुिचत उ र देते ए देश को जबरद त सै य-
िवजय िदलाई।
भारतीय सेना ारा स 1965 क भारत-पाक यु म लड़ी गई पाँच मुख लड़ाइय क वणना मक पुनिनमाण,
पुरालेखी द तावेज व यु म शािमल रह सेवािनवृ सैिनक क सा ा कार ारा उन घटना का भी िववरण
िदया गया ह, िजनका आज तक कभी खुलासा नह आ। इस पु तक म हाजी पीर, असल उ र, बक , डोगराई व
िफ ोरा म ई लड़ाइय क अलावा इनम से येक यु क हमार बहादुर यु नायक से जुड़ी ेरणादायक
कहािनय को भी थान िदया गया ह।
अपने यु -इितहास क लेखन ारा हम अपने उन सैिनक क परा म क शंसा करते ह, जो देश क िलए
अपना जीवन करबान कर हमार गव का कारण बने। इससे हम यह भी याद रहता ह िक हमने इस वतं ता क
क मत चुकाई ह तथा इसे बनाए रखना हमार िलए ब त आव यक ह।
रचना िब रावत ारा रिचत ‘1965 : तीय भारत-पाक यु क कहािनयाँ’ क तावना िलखना मेर िलए
हष का िवषय ह। म भारतीय सेना ारा इस उपयोगी व सु लेिखत पु तक क रचना म क गई पहल क सराहना
करता । मुझे आशा ह िक यह पु तक आपको एक ण क िलए हमारी वतं ता क र ा हतु सीमा को
सुरि त रखनेवाले हमार सैिनक क साहस व बिलदान क याद अव य िदलाएगी।
जय िहद
—मनोहर पा रकर
र ा मं ी
नई िद ी
भूिमका
फरवरी 2015 म म वाइस चीफ ऑफ आम टाफ ले टनट जनरल िफिलप कपोज को अपनी पहली पु तक ‘द
ेव : परम वीर च टोरीज’ क ित उपहार व प देने हतु पगुइन क संपादक रनू अगल क साथ साउथ लॉक
म थी। हम अित र महािनदेशक, सावजिनक सूचना तथा यु सेवा मेडल, सेना मेडल, िविश सेवा मेडल
(अब ले टनट जनरल) एवं ऊजा से भरपूर मेजर जनरल शौक न चौहान क ऑिफस म बैठ थे, िजनक ताव ने
हम च का िदया। वह चाहते थे िक हम स 1965 म भारतीय सेना ारा लड़ गए पाँच सबसे अिधक जीवटवाले
यु का वणन करनेवाली पु तक िलख। वे चाहते थे िक यह पु तक पूर शोध क बाद िलखी जाए। और अग त म
यु क पचासव सालिगरह से पहले तैयार हो जाए। इसका अथ यह था िक मेर पास पढ़ने, शोध करने, मण,
सा ा कार व लगभग 50,000 श द िलखने क िलए कवल चार माह तथा काशक क पास इसक संपादन, टाइप-
सेट, िडजाइन व छपाई क िलए मा एक महीने का समय था। मने व रनू ने एक-दूसर क ओर सशंिकत ि से
देखा। नजर म ही यह संभव नह ह िक अ कट बातचीत क और उनक आँख म ढतापूवक देखते ए इस काम
क िलए हामी भर दी। जनरल मुसकरा िदए। उ ह ने दो और सैिनक को िनयु कर िलया था। मने पहली बार यह
महसूस िकया िक िकस तरह ेरणादायक नेतृ व होने पर य असंभव काय का बीड़ा उठाने पर भी सहमत हो
जाता ह।
इन लड़ाइय पर शोध आरभ करने क बाद मुझे समझ आया िक स 1965 क यु का पूरा सार इ ह म
समािहत ह। इसम थे—साहिसक ि कोण वाला महा नेतृ व तथा ेरणा से भरपूर कदम वाले सैिनक, जो वयं
को सािबत करने क िलए त पर ह । इ ह बात ने उस यु म थितय को अनुकल बनाया। िवपुल सै य-श
तथा दुिनया क नवीनतम हिथयार क बावजूद पािक तान को भारतीय सैिनक क साहस व जीत क प इरादे क
सम घुटने टकने पड़।
इस पु तक म शािमल सभी पाँच लड़ाइय का आधार वे सेवािनवृ सैिनक ह, जो स 1965 क यु म शािमल
थे तथा उसक कहानी बताने क िलए जीिवत रह। उनक कहािनयाँ सुनना मेर जीवन का सबसे यादगार अनुभव
रहा। इन बहादुर सैिनक म एक 4 हॉस क दफदार वीर िसंह ( रटा.) ह, िजनक वचा उस समय बुरी तरह झुलस
गई, जब उनक टक पर एक कोबरा िमसाइल ने हार िकया। वह पूर स मान सिहत बात करते ए बताते ह िक
िफ ोरा क यु म उनक ारा कई टक को व त करने क बाद उन पर ए उस हमले म उनक ा न
कमांडर ‘महावीर च ’ िवजेता मेजर भूिपंदर िसंह भी बुरी तरह झुलस गए थे। जब भारत क त कालीन धानमं ी
लाल बहादुर शा ी मृ यु-श या पर लेट उस सैिनक से िमलने सेना क बेस अ पताल गए तो उस अफसर क
आँख नम हो आई थ । शा ीजी ने याकल होकर कहा िक एक बहादुर िसपाही क आँख म आँसू शोभा नह देते।
तब मेजर भूिपंदर िसंह ने उ र िदया, ‘सर, मेर क का कारण मेर घाव नह ह; ब क म इसिलए दुखी िक म
अपने धानमं ी को सलामी देने क िलए खड़ा नह हो सकता।’ ऐसी घटना से सामना होने क टीस ने मेर िलए
इस पु तक को मा सािह यक म से कछ अिधक बना िदया। पूण साहस व ढ-िन य से प रपूण इन कहािनय
ारा ही मेरा स ी वीरता से प रचय आ।
यह पु तक अंधाधुंध गित से िलखी गई ह। उन य तता भर िदन म मेरा िनजी जीवन पूरी तरह थिगत हो गया
था। मेर िदन या ा , यु क नायक क सा ा कार करने तथा भारतीय संयु सेवा सं थान (यू.एस.आई.) क
लाइ ेरी म बीत रह थे और रात अपने क यूटर पर टाइप करते ए। यह पु तक सावजिनक सूचना क अित र
महािनदेशक व उनक टीम क अफसर क भी ाथिमकता म थी। अ याय िलखे जाते समय ही उसक संपादन का
काय शु हो जाता। तसवीर खोजी जात , आ ा ली जाती, यु कालीन डाय रय को कन िकया जाता। इस
पु तक म िदए गए सभी न शे र ा मं ालय ारा मािणत ह तथा इसम िदए गए दुलभ िच सेना क अिभलेखागार
क अित र सा ा का रत अफसर क िनजी संकलन से भी िलये गए ह।
म चाहती िक इसे पढ़ते समय आप यान रख िक इितहास क कई प ह और हम जैसा पढ़ रह ह, वा तव म
वही घिटत नह आ होता। यु कालीन घटनाएँ अकसर अितरिजत व बढ़ा-चढ़ाकर कही गई होती ह। मने ऐसा न
करने का भरसक यास िकया ह। इन लड़ाइय का वणन उ ह क ारा िकया ह, जो इसम शािमल रह थे।
इसिलए मेर िवचार से, ये हम ात होनेवाले िकसी भी स य क सबसे िनकट ह। सेना ने िनमम ईमानदारी दरशाते
ए मुझे वे सभी घटनाएँ बताई, जहाँ यु कालीन म क चलते हमार टक ने हम पर ही हमला कर िदया या जहाँ
सै य टकि़डय को ऐसे अिभयान पर भेजा गया, जहाँ जीत हािसल करना उनक िलए कड़ संघष या िमत
करनेवाला रहा। मने यह त य िछपाने का कोई यास नह िकया िक गलितयाँ होती ह और यु भी इससे अछते
नह ह। ऐसी भी ब त सी घटनाएँ ह, जहाँ भारत को िकसी भारतीय िसपाही क वीरता क सूचना पािक तानी कपनी
कमांडर ने दी और ऐसा ही भारतीय प ने भी िकया। जब मने उन कहािनय को सुना तो उ ह ने मेरा मन छ
िलया। सैिनक बहादुर का स मान करते ह, िफर चाह वह श ु प का ही य न हो।
यह पु तक आपको पचास वष पूव क एक ऐसे यु े म ले जाएगी, जहाँ से हमार ब त से सैिनक कभी
वापस नह लौट सक। और जो वापस लौट, वे अपने साथ असाधारण साहस व धैय क अिव सनीय कहािनयाँ
लेकर आए; कछ ऐसी िवकलांगता सिहत लौट, िजनक साथ उ ह ने अपना पूरा जीवन सगव यतीत िकया। म उन
सभी को सलाम करती । म यह कहते ए अपनी बात समा करती िक यु म जीत का उ सव नह मनाया
जाता, उसक शंसा क जाती ह। यही इस पु तक का ल य ह। म आशा करती िक आप इसे उसी भावना क
साथ पढ़गे, िजससे इसे िलखा गया ह।
—रचना िब रावत
आभार
म ध यवाद देती —यु म शािमल सभी सेवािनवृ सैिनक , अिधका रय व जवान को, जो अपनी याद म
डबक लगाकर समय या ा ारा मुझे पचास वष पूव वष 1965 क यु े म ले गए।
अित र महािनदेशक, सावजिनक सूचना (ए.डी.जी.पी.आई.) को—भारतीय सेना क इन साहसी जवान क
अ ुत कहािनयाँ िलखने का अवसर देने क िलए।
इस ोजे ट को पूण करने म ए.डी.जी.पी.आई. क टीम ने चुर सहायता व सहयोग दान िकया।
ए.डी.जी.पी.आई. क संपादन अिधकारी को, िज ह ने इस पु तक क थम पाठक व आलोचक होने क अलावा
द तावेज क त या मक शु ता क जाँच का दु कर काय सँभाला।
िस सै य-इितहासकार और पाँच पु तक क लेखक ा न लीडर राना छीना ( रटा.), ‘यूनाइटड सिवस
इ टी यूशन ऑफ इिडया’ क सिचव—‘सटर फॉर आ ड फोसज िह टो रयन रसच, नई िद ी’ को उनक िनदश
व लाइ ेरी क उपयोग क अनुमित देने क िलए। मेर संदेह त होने पर वे न कवल अपनी असाधारण मृित म
गोता लगाकर जानकारी व संपक को िनकालने म समय देते, ब क उ ह ने अपने काड पर पु तक लेने क अलावा
स 1965 क यु पर मेर शोध क दौरान व तुतः यू.एस.आई. कपस म रहने का ही बंध करा िदया।
अपनी पुरानी िम रनू अगल को।
मेरी पु तक-संपािदका अिपता बासु को, उनक अथक संपादन और उन अधराि व रिववार को भेजे गए मे स
क िलए, िजससे मेरा यह िव ास बना रहा िक काय को तय समय म पूरा करने क िलए अपने िनजी जीवन को
ताक पर रखनेवाली कवल अकली म ही नह ।
मेरी बचपन क िम रने ेवाल को, िज ह ने दफदार वीर िसंह क उ रण तथा यु क उ ेख म उपयोग ई
पंजाबी क शु ीकरण का काय िकया।
मेर पित ले टनट कनल मनोज रावत को, मुझे रलवे टशन व हवाई अ तक प चाने का म करने और
ट सी चालक को मेरी सुरि त घर वापसी क ताक द करने क िलए तथा ऐसे गंत य क ओर (गैर) िशकायती
ाइिवंग क िलए, जहाँ हम दोन ही नह जाना चाहते थे। साथ ही रात क उन पल क िलए भी, जब मेर लैपटॉप पर
टाइप करने क दौरान वे अपना िसर तिकए से ढककर सोए थे।
अपने पु सारांश को, िजसने मेरी अनुप थित रहने पर अपने नूडल का कप भरने और सलामी सडिवच लेने का
काय वयं करना सीखा।
अपनी माँ सुशीला िब को, मुझे ेह व वा स य देने क िलए तथा मेर िपता सेना मेडल, िविश सेवा मेडल
से स मािनत ि गेिडयर बी.एस. िब को, िज ह ने ए रयल फॉ ट क 11 पॉइट साइज म छपे ि ंटआउट पढ़कर
समय-समय पर मुझसे कहा िक ‘अ छा िलखा ह, शाबाश!’
हाजी पीर क लड़ाई का िववरण ि गेिडयर अरिवंदर िसंह ( रटा.) और कनल जे.एस. िबं ा ( रटा.) क
सा ा कार ारा संभव आ। ‘महावीर च ’ िवजेता ले टनट जनरल आर.एस. दयाल का वणन ीमती िबरदर
दयाल और ‘महावीर च ’ िवजेता ि गेिडयर कलदीप िसंह चाँदपुरी क सा ा कार ारा िकया गया।
असल उ र क लड़ाई क या या 4 ेनेिडयस क ‘सेना मेडल’ िवजेता ले टनट कनल एच.आर. जानू
( रटा.); 9 हॉस क ‘परम िविश सेवा मेडल’ व ‘सेना मेडल’ िवजेता ले टनट जनरल िजमी वोहरा तथा 3
कवलरी क ले टनट कनल राम काश जोशी ( रटा.) क वणन ारा संभव ई। टक-यु का योरा 3 कवलरी
क ‘सेना मेडल’ िवजेता रसालदार मेजर दयाचंद राठी ( रटा.) तथा कपनी ाटर मा टर हवलदार अ दुल हमीद
का वणन उनक प नी रसूलन बीबी एवं उनक पोते जमील आलम तथा उनक ाइवर व ेनेिडयर मोह मद नसीम
ारा िकया गया।
तीय िव यु क बाद अब तक लड़ गए सबसे बड़ टक यु िफ ौरा क लड़ाई का योरा 4 हॉस क
ि गेिडयर जसबीर िसंह ( रटा.) तथा दफदार वीर िसंह और 5/9 गोरखा राइफ स क मेजर जनरल काितक गांगुली
( रटा.) क सा ा कार क मा यम से िकया गया।
बक क लड़ाई का िववरण तथा शहीद सूबेदार अिजत िसंह का च र -िच ण 16 पंजाब क कनल मनमोहन
िसंह ( रटा.), 4 िसख क ि गेिडयर कवलजीत िसंह ( रटा.) तथा कनल बलदेव िसंह चहल ( रटा.) क सा ा कार
क आधार पर िकया गया।
डोगराई क लड़ाई का िववरण स 1965 म 3 जाट क एडजुटट रह ‘अित िविश सेवा मेडल’ ा मेजर
जनरल बी.आर. वमा ( रटा.) तथा बटािलयन क सेकड-इन-कमांड कनल दुजन िसंह शेखावत ( रटा.) क
सा ा कार क आधार पर िलखा गया। ‘महावीर च ’ िवजेता ि गेिडयर डसमंड ई. हायड क वणन म िनजी
अनुभव तथा कोट ार म वग य ि गेिडयर क ीम ोजे ट ह रटज एकडमी को चला रह ले टनट कनल कवर
अजय िसंह ( रटा.) क साथ बातचीत ारा तैयार िकया गया ह।
हाजी पीर क लड़ाई
हाजी पीर दरा (8,652 फ ट) उड़ी क दि ण म तथा यु -िवराम रखा से 8 िकलोमीटर दूर ह। स 1949 म ए
कराची समझौते म उड़ी-पुंछ माग पािक तान को िदए जाने से भारत इसका उपयोग नह कर सकता था। दोन प
म से िकसी को भी इससे 500 मीटर क िनकट जाने क इजाजत नह थी। वष 1965 क शु आत म यु -िवराम
रखा पर तैनात पािक तानी सै य टकि़डय ने भारत क रसद आपूित दल पर गोलीबारी शु कर दी। पािक तान क
तीन चौिकय ने कारिगल े म ीनगर-लेह राजमाग को काट िदया। मई क शु आत म इन चौिकय पर तैनात
टकि़डय ने राजमाग पर गोलीबारी करते ए आवागमन को अव कर िदया। इससे नाराज होकर भारत ने
पािक तािनय को उनक चौिकय से खदेड़ िदया, लेिकन इसक फौरन बाद क छ क रण पर ए समझौते क तहत
जीते गए े को पुनः पािक तान को स प िदया गया।
जब दोन देश क धानमंि य क बीच िम व कटनीितक प रहास जारी था, उसी दौरान पािक तान क मीर को
हड़पने क धूततापूण योजना पर काम कर रहा था। योजना यह थी िक पािक तान म िशि त एक बड़ गु र ा
सै य दल को छोट दल म िवभािजत कर यु -िवराम रखा पार करवा दी जाए। उसका ल य ीनगर म अराजकता
फलाकर शासन को उखाड़ फकना और वहाँ एक कठपुतली सरकार का गठन करना था। जब भारतीय सेना इस
पर कोई काररवाई करगी तो वह कठपुतली सरकार पािक तान से मदद क गुहार लगाएगी और उनक सेना जवाबी
हमला कर देगी।
सौज य : इितहास िवभाग, र ा मं ालय
उस गु र ा सै य दल को ‘िज ा टर फोसज’ नाम िदया गया तथा उसक कमांड पािक तानी सेना क
िडवीजनल कमांडर मेजर जनरल अ तर सैन मिलक को स पी गई। वष 1965 म अग त क पहले स ाह म
यु -िवराम रखा से 756 िकलोमीटर म फले िविभ थान से िज ा टर फोस भारतीय क मीर म वेश कर गई।
वे मु यतः रात म या ा करते। उ ह ने कई जंगल पार िकए तथा पहाड़ चढ़। उस े म काफ अंदर आने क बाद
वे छोट दल म बँट गए। उ ह ने अपनी बंदूक िछपाने म मदद देनेवाली थानीय लोग जैसी ढीली-ढाली पोशाक
िफरन पहन रखी थी, िजससे वे आसानी से थानीय लोग म िमल गए और इसी तरह ीनगर तक प च गए।
त प ा उ ह ने आगजनी, लूटपाट व ह या ारा घाटी म अशांित फलाना आरभ कर िदया। रिडयो टशन पर
क जा करना, पुल जलाना तथा माग को बािधत करना उनक योजना का ही िह सा था, िजससे वह इलाका शेष
भारत से कट जाए। जब रा य क पुिलस क थान पर कमान भारतीय सेना क हाथ म आई तो वे फौरन समझ गए
िक इसका एकमा हल घुसपैिठय क वेश थल को अव करना ह। भारतीय सेना ने मई म िजन पािक तानी
चौिकय पर क जा िकया था, अब 15 अग त को वे एक बार िफर उन पर कािबज हो गई। कछ िदन बाद
पािक तानी तोप ने सीमा क िनकट आकर िटथवाल, उड़ी व पुंछ क नजदीक थत भारतीय िठकान पर भारी
गोलीबारी आरभ कर दी। इसक बाद ही हाजी पीर दर पर क जा करने का िनणय िलया गया, य िक घुसपैिठए इसी
रा ते का इ तेमाल करते थे।

हाजी पीर क कहानी


स 1965 का यु ए लगभग पं ह वष बीत चुक थे। यु -िवराम रखा पर भारतीय तरफ क उड़ी से टर म
तम पो ट पर वह शर ऋतु का सुहावना िदन था। लगभग पचास वष का खूबसूरत व लंबा िसख अफसर हाजी
पीर क उभार पर पूरी भ यता से फले हाजी पीर दर क िनगरानी कर रहा था। उसक मृित म अँधेरी व बा रश क
बूँद से आ छािदत अग त क वह रात घूम रही थी, जब उसने पहाड़ क चोटी को घेर बादल क बीच से 1 पैरा
क पैरा पस को घुटन व हाथ क बल िफसलनवाली ढलान पर चढ़ते देखा था। उस समय वह चुप रहा, लेिकन
बाद म ‘पैरा पर’ पि का म अपनी पुरानी याद म उस समय क अपने एहसास को य करते ए िलखा—
‘‘वे भी या िदन थे, जब लगभग पं ह वष पहले 28 अग त, 1965 को मने पतीस वष क उ म दो इ फ ी
कपनी क कमांिडग मेजर क प म हाजी पीर दर पर कदम रखा था। वहाँ लौिकक प से अपने पाँव जमाने
क िलए मुझे भारतीय सेना क सबसे पुरानी बटािलयन 1 पैरा क अपने बहादुर जवान क साथ पािक तािनय
को इच-दर-इच खदेड़ने क िलए खूनी जंग लड़नी थी। हम तभी संतु ए, जब हमने दर पर अपने
सफलतापूवक क जे क कोड वड ‘चमक तारा’ को सभी उ तर हड ाटस तक प चा िदया। वह एक सपने
क सच होने जैसा था।’’
उस साहिसक अिभयान क िलए ‘महावीर च ’ पानेवाले ले टनट जनरल रजीत िसंह दयाल का तो कछ वष
पूव कसर से िनधन हो गया, लेिकन 1965 म उनक उस समय सहयोगी रह युवा कपनी कमांडर ि गेिडयर
अरिवंदर िसंह ( रटा.) और तब क बटािलयन एडजुटट कनल जे.एस. िबं ा ने हाजी पीर क लड़ाई को याद करते
ए मेर सम उसका इतना घटनावार वणन िकया, जैसे वह कल ही क बात हो। बेदोरी क लड़ाई म 19 पंजाब
ारा िदखाए गए साहस का वणन मेजर जनरल जे.आर. भ ी ( रटा.) ने िकया ह, जो स 1965 म बटािलयन
का िह सा थे।

यु क योजना
क मीर म िव ोह भड़काने क िलए घुसपैठ क माग को अव करने हतु हाजी पीर दर को पािक तान से छीनने
का िनणय होने क बाद प मी कमांड क सै य कमांडर ले टनट जनरल हरब श िसंह ने हाजी पीर उभार से
पािक तािनय को खदेड़ने क िज मेदारी 68 इ फ ी ि गेड को स पी। हाजी पीर पर हमला करने तथा उसे जीतने क
इस अिभयान को 68 इ फ ी क ि गेड कमांडर ि गेिडयर जोरावर चंद ब शी (‘जो ब शी’ क नाम से िव यात)
क नाम पर ‘ऑपरशन ब शी’ नाम िदया गया। यह इस बात का सूचक ह िक उ ािधका रय को उन पर िकतना
अिधक भरोसा था। जो ब शी ने एक साहिसक योजना बनाई। भारतीय सेना हाजी पीर क दोन ओर से चोटी पर
प चकर श ु को वह मसल देगी। हमला दोन ओर से िकया जाएगा।
हमला करने क िलए चयिनत दोन यूिनट पहले ही उस े म प चकर जगह का मुआयना कर चुक थ । उस
नाले क एक ओर सेब, संतर, िखलादर, धना, चौकस, चबक व कमान टीले पर थत चौिकय पर भारतीय सेना
क सबसे पुरानी यूिनट 1 पैरा मौजूद होगी। वह दूसरी ओर से नई उभरती ई एक वष से भी कम आयुवाली 19
पंजाब जाएगी। िनणय िलया गया िक दर क प मी चोटी पर 1 पैरा क जा करगी, िजसम सक िशखर (पॉइट
9591), सर व लेडवाली गली शािमल थे। जबिक 19 पंजाब पूव चोटी पर क जा करगी, िजसका सबसे
चुनौतीपूण िह सा बेदोरी (12,330 फ ट) था। दर क दोन िकनार पर क जा हो जाने क बाद कारिगल म सफल
दशन कर चुक एक अ य बटािलयन 4 राजपूत आगे बढ़कर हाजी पीर को अपने क जे म ले लेगी।
योजना ब त अ छी थी। लेिकन कई बार सबसे अ छी योजना भी ितकल सािबत होती ह। वह कई बार कवल
इ छा-श व अप र कत साहस क बल पर असंभव िवजय भी ा क गई ह। हाजी पीर पर ये दोन ही बात
घिटत ई। उस अँधेरी, बादल-यु व वषा क संभावना वाली 24-25 अग त क रात को मेजर रजीत िसंह दयाल
और 1 पैरा क पैरा पस ने जब भरपेट भोजन िकया, अपने बैगपैक म सूखे राशन क प म शकरपार व िब कट
रखे, अपने जूत क फ ते बाँधे, अपने हलमेट पहने तथा सक पर अपने पहले हमले क िलए चढ़ाई आरभ क , तब
वे िब कल नह जानते थे िक भिव य क गभ म उनक िलए या िछपा ह।
िपछले दो िदन से लगातार बा रश हो रही थी, िजससे नाला उफान पर था और िम ी भी गीली हो गई थी। इस
कारण 24 अग त को िकए जानेवाले हमले को चौबीस घंट क िलए आगे बढ़ाया गया। लेिकन जब 25 अग त
को भी मौसम खुलने क कोई आसार नह िदखाई िदए तो अंततः हमला करने का आदेश दे िदया गया। चूँिक श ु
ारा कािबज सक व सेब, जहाँ 1 पैरा मौजूद थी, एक ही ऊचाई पर थे, इसिलए हमले क ये तैया रयाँ पािक तानी
सैिनक से िछपी न रह सक । दोन प जानते थे िक ज दी ही एक बेहद खूनी लड़ाई िछड़ने वाली ह।

25-26 अग त क रात
जब अ फा व चाल कपिनय क जवान तथा 1 पैरा ने अपने बैगपैक क प बाँधे, अपने .303 बोर क बो ट-
ए शन पैरा राइफल को उसक पीछ ख सा और झाड़-झंखाड़ क पीछ धीमी गित से आगे बढ़ना शु िकया, उस
समय रात क 10 बज रह थे तथा भूर रग क पहाड़ अिन सूचक काले बादल से पूरी तरह ढक ए थे। उ ह ने
तेजी से ऊपर चढ़कर नाला पार िकया। उनक िम ी भर जूते पानी म छप-छप कर रह थे। उ ह ने चढ़ना आरभ
िकया और सक क ओर बढ़ने लगे। योजना यह थी िक वे रात क अँधेर म िछपकर धीर से आगे बढ़गे और सुबह
क पहली िकरण उगने क पूव ही दु मन पर धावा बोल दगे, िजससे वह भौच ा रह जाएगा।
जब जवान चढ़ाई कर रह थे, उसी समय बादल फट पड़ और उनक ऊपर तेज बा रश िगरने लगी। ज द ही वे
सब पूरी तरह से भीग गए; लेिकन उ ह ने मौसम क परवाह न करते ए िकटिकटाते दाँत और िसर झुकाकर
चलना जारी रखा। उनक नीचे क जमीन िफसलन भरी हो गई थी। वे बार-बार िफसलते, लेिकन िफर से उठकर
चढ़ना आरभ कर देते। दु मन तक प चने का कोई सीधा रा ता न होने क कारण वे सामने क खड़ी चढ़ाई पर
आगे बढ़ रह थे, जो िजतनी किठन थी, उतनी ही खतरनाक भी थी। उनक हाथ जो कछ भी आता, वे उसी क सहार
अपने को आगे ख चते रह और िफसलनी िम ी म अपने जूते धँसाने का यास करते। उस समय बटािलयन का
िह सा रह कनल जे.एस. िबं ा ( रटा.) याद करते ह िक दुभा यवश, वे अँधेर व बा रश से उ प ए म क
कारण रा ता भटक गए। िजस चौक को वे अपने ठीक सामने तथा आसानी से प चने लायक मान रह थे,
अचानक वहाँ तक प चना असंभव जान पड़ने लगा। वे जवान छह घंट से भी अिधक पैदल चल चुक थे और इस
बात पर चिकत थे िक वे अभी तक सक य नह प चे।
लेिकन तभी सुबह क शु आती घंट म मशीनगन क चमक िदखने क साथ ही उनपर फाय रग होने लगी। जब
दु मन ने फाय रग शु क तो सबसे आगे जा रह अ फा कपनी क जवान अभी िफसलन भरी िम ी म अपने पाँव
जमाने म य त थे। उ ह ने पकड़ बनाने क िलए जवाबी फाय रग का यास िकया, लेिकन यह उनक िलए
नुकसानदेह सािबत आ। जवान गोिलय का िशकार होकर िगरने लगे और सारा वातावरण उनक चीख-पुकार से
भर गया। सक म दु मन क एक से अिधक कपिनयाँ मौजूद थ , िजनक पास म यम मशीन गन और 3 इच व 4.2
इच क मोटार भी थे। चालाक दु मन उ ह ऊपर चढ़ते ए देख रहा था और वे जैसे ही गोिलय क जद म आए,
उनपर गोलीबारी शु कर दी गई। कवल एक ही बहादुर जवान चोटी तक प च सका। वह थे बटािलयन क
सव े धावक पैरा पर लाल िसंह। दु मन ने उ ह पकड़ िलया। उनक िनदयतापूवक ह या करक उनक त-
िव त शरीर को नीचे फक िदया, जो 1 पैरा को ब त बाद म िमला।
कई वष बाद इस लड़ाई पर चचा करते ए मेजर दयाल ने एक पि का को बताया, ‘‘उ ह ने (दु मन ने) हम
ऊपर चढ़ते देख िलया था। लेिकन उ ह ने तब तक गोली नह चलाई, जब तक उनक िनकट व खुले म नह आ
गए। यह मपूण यु सुबह 9.30 बजे तक जारी रहा, िजसम पलटन को बुरी तरह हािन प ची और 28 जवान
इसका िशकार बने। हमारा हमला बुरी तरह नाकामयाब रहा और हम पीछ लौटने का संदेश देने क बाद हमसे
संपक तोड़ िलया गया।’’
दोन हमलावर कपिनयाँ वापस लौट आई। उनक बटािलयन ने कवर फायर देकर घायल को वहाँ से िनकाला।
लाल िसंह को नह खोजा जा सका, िज ह लापता क ेणी म रखा गया। स 1965 म ड टा कपनी क कपनी
कमांडर रह ि गेिडयर अरिवंदर िसंह याद करते ह िक जब 26 अग त क सुबह सैिनक घायल को वहाँ से िनकाल
रह थे तो पूरा िदन सक पर तोप से गोलाबारी जारी रखी गई, िजससे श ु अपना िसर न उठा सक। वे कहते ह,
‘‘मने देखा िक मेजर रजीत िसंह दयाल उस सीधी ढलान पर घायल सैिनक को अपनी पीठ पर लादकर वापस ला
रह थे।’’

सक पर दूसरा हमला
26-27 अग त क रात बटािलयन ने एक बार िफर हमला िकया। इस बार क हमलावर म मेजर एच.ए. पािटल क
नेतृ व म ेवो (डोगरा) तथा मेजर अरिवंदर िसंह क नेतृ व म ड टा (अिहर) कपिनयाँ शािमल थ । इस बार िफर
हमले क बागडोर मेजर दयाल क हाथ थी। येक य क िदमाग म कवल एक ही बात थी—िपछली रात क
हार का बदला लेना ह। ि गेिडयर िसंह मुसकराते ए याद करते ह, ‘‘हम जाने क िलए त पर थे; सभी जवान जोश
से भर ए थे। मेजर दयाल ने वतः ही हमार साथ आने क इ छा जताई। वे उस समय पतीस वष क थे। वही ऐसे
प रप व व र मेजर थे, िजनक पास चौदह वष का अनुभव था। म उस समय चौबीस वष का था। पािटल
मुझसे कछ बड़ थे। हम वे साहसी चूजे थे, िजनक कध पर ‘मेजर’ का तमगा लगा आ था।’’ इस बार सैिनक ने
छोट दल म चढ़ना आरभ िकया। दु मन को प त करने क िलए तोप लगातार चोटी पर गोले बरसा रही थ ।
‘‘बा रश नह हो रही थी, लेिकन जमीन अभी भी िफसलन भरी थी। हमने चढ़ाई का अिधकांश िह सा घुटन व
हाथ पर तय िकया। हम बार-बार िफसलते व पीछ प च जाते। हम िफर कछ पकड़ते और अपने आपको ऊपर
ख च लेत।े हमार चेहर व हाथ िम ी म सन गए थे। हमारी वरिदयाँ फट गई थ , लेिकन हमारा जोश अभी भी
बरकरार था और हम लगातार ऊपर चढ़ते रह।’’
हमलावर कपिनयाँ जैसे ही िनयत थान क नीचे प च , दु मन क टकड़ी अपनी खंदक से बाहर िनकली और
उन पर अपने वचािलत हिथयार से गोिलयाँ बरसाने लगी। उनक साथ चल रह फॉरवड ऑ जवशन ऑिफसर
क टन नायड ने आिटलरी फायर क िनदश िदए। उ ह ने गोलीबारी को दु मन क इस औचक कदम से िनपटने क
िलए तैयार िकया। इससे दु मन को ब त नुकसान प चा, लेिकन आिटलरी फायर क िनकट होने क कारण इसका
िचंताजनक भाव 1 पैरा क टकड़ी पर भी पड़ा।
दोन कपिनयाँ धीर-धीर ऊपर चढ़ती रह और अंततः सुबह क पहली िकरण क साथ ही उ ह ने धावा बोल
िदया। आिटलरी फायर ने दु मन क म यम व ह क मशीनगन को खामोश कर िदया था और ज द ही दु मन
अपने पं ह मृत सािथय को पीछ छोड़ते ए वहाँ से भाग िनकले। ि गेिडयर िसंह बताते ह, ‘‘हम वहाँ दु मन क
शव क अित र बड़ी मा ा म हिथयार िमले। प था िक आिटलरी फायर ठीक िनशाने पर लगा, िजससे उ ह
भारी नुकसान प चा। सुबह 7.30 बजे तक हमने सक पर क जा करक सफलता का संकत दे िदया था।’
इसक बाद जवान ने आगे बढ़ते ए चोटी पर थत दो अ य चौिकय पर भी हमला करने का फसला िकया। ये
थ सर व लेडवाली गली। वे बताते ह, ‘‘सुबह 8 बजे हम अगली चौक पर हमला करने क आदेश िमल गए। जब
हम चोटी क सँकर व पथरीले माग पर आगे बढ़ रह थे, उसी समय दु मन ने हम आते देख िलया और उ ह ने हम
पर गोलीबारी शु कर दी। हम जवाबी फायर करते ए लगातार आगे बढ़ते रह। हम वहाँ दु मन क बारह सैिनक
िदखाई िदए, िज ह ने एक ढलवाँ च ान क नीचे बंकर बना रखे थे। हम िजस माग पर आगे बढ़ रह थे, वह कवल
कछ गज ही चौड़ा था, जहाँ वे हम ब त िनकट से गोली मार सकते थे; लेिकन सौभा यवश ऐसा नह आ। वे
अंितम ण तक गोलीबारी करते रह और िफर वहाँ से भाग िनकले। हमने िबना िकसी नुकसान क सर पर क जा
कर िलया। जब हम लेडवाली गली क ओर बढ़ तो वहाँ भी यही आ। दु मन पीछ हटते ए भी हम पर गोिलयाँ
बरसा रहा था। पािक तािनय का िदमाग कछ ऐसा ह िक जब तक वे जीत रह होते ह, तब तक बेहतरीन लड़ाक
होते ह, लेिकन जैसे ही वे हारने लगते ह, फौरन भाग िनकलते ह। इस तेज व साहसपूण आ मण का यह नतीजा
रहा िक तीन घंट क भीतर 1 पैरा ने सक, सार व लेडवाली गली पर क जा कर िलया था। बटािलयन को स पी गई
िज मेदारी सफलतापूवक पूरी कर दी गई थी।

पूव चोटी पर
उड़ी-पुंछ पहाड़ी 4,000 फ ट से 12,000 फ ट क असमान ऊचाइय वाला बीहड़ पवतीय इलाका ह। इसक िशखर
से 8,000 फ ट तक का िह सा वष क अिधकांश समय बफ से ढका रहता ह। 12,330 फ ट पर थत बेदोरी इस
पहाड़ी क सबसे ऊची चोटी ह। पहाड़ी का सबसे ऊचा िह सा होने क अलावा यहाँ से उड़ी से टर पर भी नजर
रखी जा सकती ह।
जो ब शी क योजना क मुतािबक, जब 1 पैरा सक, सार व लेडवाली गली क ओर बढ़ रही होगी तो उसी
बीच 4 राजपूत व 19 पंजाब क जवान का एक सै य दल पॉइट 10,048- पॉइट 11,094-बेदोरी-कथनार दी गली
व हाजी पीर दर क ओर बढ़गा। दोन ओर से बढ़ रह जवान हाजी पीर पर एक हो जाएँग।े
19 पंजाब क टकड़ी को बेस सुरि त करने क अलावा 25 अग त क अिभयान म दु मन पर सहसा आ मण
क िज मेदारी भी स पी गई थी। जब 26 अग त क देर रात 1.30 बजे जहाँ 1 पैरा ारा सक पर क जे क िलए
िकया गया हमला नाकाम रहा, वह 19 पंजाब ने पथरा पर क जा कर िलया था। य िप 4 राजपूत भी बेदोरी पर
क जा करने क अपने काय म नाकाम रही। बहादुर िसपािहय ने जान हथेली पर रखकर जोरदार लड़ाई क ; लेिकन
वह चौक ब त दुगम, पथरीले व खड़ पहाड़ पर थी। उस पथरीले इलाक म खाई खोदना संभव न था, इसिलए
पािक तानी िसपािहय ने प थर क मदद से संगर नामक क े दुग बना िलये और उनक पीछ से फाय रग करने
लगे। कनल िबं ा कहते ह, ‘‘वह इलाका बीहड़ व ब त ढलवाँ था और पािक तािनय ने अपनी सुर ा ब त
मजबूत कर रखी थी। बेदोरी पर क जा करना लगभग असंभव था।’’ इसक अलावा, हमला करने क िलए चुना
गया रा ता ऊचा-नीचा तथा बाहर िनकले प थर क कारण अनुमान से अिधक किठन िनकला। 4 राजपूत को भारी
हािन प ची और अंततः उ ह वापस लौटना पड़ा। ि गेिडयर ब शी ने 27 अग त को 7 िबहार सिहत बेदोरी पर एक
बार िफर आ मण करने का िनणय िलया और 1 पैरा से सक े छोड़कर वहाँ 19 पंजाब को तैनात होने का
आदेश िदया। लेिकन 19 पंजाब क ले टनट कनल (बाद म ि गेिडयर) संपूरन िसंह, जो एक वािभमानी सैिनक
थे, उनको अपनी बटािलयन क िलए ऐसी िन य भूिमका पसंद नह आई। उ ह ने वयं यह ताव रखा िक यिद
उ ह अपने अनुसार हमला करने क छट दी जाए तो वे बेदोरी पर आ मण करना चाहगे। उ ह इसक आ ा िमल
गई। हमले क एक नई योजना तैयार क गई। ले टनट कनल संपूरन िसंह व उनक सहयोगी ले टनट (बाद म
मेजर जनरल) जे.आर. भ ी ने पहले ही बेदोरी जाने का एक वैक पक माग तलाश िलया था, जो क राली व
गगरिहल से होकर बेदोरी झरने तक प चता था। उ ह ने फसला िकया िक 19 पंजाब इसी रा ते पर आगे बढ़गी।

बेदोरी क जीत
तीन िदन बीत गए। 19 पंजाब क सैिनक ने 25 अग त को चलना शु िकया था। उनक पास हिथयार व मोटार
जैसा भारी सामान था। वे बा रश से सराबोर व ठड म काँपते ए चले जा रह थे। आिखर वे भी मनु य ही थे। ज दी
ही थकान उनपर हावी होने लगी। जो राशन वे अपने साथ लाए थे, वह 72 घंट म समा हो गया। इसक बाद वे
पूरी तरह जमीनी आहार पर िनभर थे। लेिकन उस ऊचाई पर कछ नह उगता था। इसिलए उ ह 7,000 फ ट नीचे
खेत से अनाज व मकई लाने क िलए टोिलयाँ भेजनी पड़त । िवमान ारा भेजी गई आहार क एक खेप दु मन क
इलाक म नाले म जा िगरी और भूखे व मजबूर सैिनक उसे वहाँ पड़ा देखते रह। वहाँ से उसे लाने का कोई तरीका
न होने क कारण वे अपनी राह पर आगे बढ़ गए। इसका पूरा ेय उ ह जाता ह िक इन सबक बावजूद जब उ ह
बेदोरी पर एक और हमला करने का आदेश िदया गया तो उ ह ने जरा भी िहचिकचाहट नह िदखाई।
27-28 अग त क रात को जवान ने 10,000 फ ट क ऊचाई पर थत पथरा से 4,000 फ ट पर थत उड़ी
क ओर चलना शु कर िदया। अपने काय क ित ढता और अपनी श क आिखरी बूँद का भी उपयोग करते
ए वे उड़ी म च ान से फटी अपनी वरदी पहने पं ब हो गए। उनक घाव-यु चेहर स त व हमले को
तैयार थे। वे धैयपूवक उन क क ती ा करने लगे, जो उ ह 4,500 फ ट पर थत कौरली तक प चाने वाले
थे। 25 िकलोमीटर क लंबी या ा क बाद आराम व शांित पाने क िलए उनम से ब त से जवान ने अपनी आँख
बंद कर ल । क से उतरने क बाद वे एक बार िफर लंबी या ा पर िनकल पड़। उ ह ने पूरी ढता सिहत िदन भर
चढ़ना जारी रखा। उनका ल य 25 अग त को सूय क अंितम िकरण क पूव 11,500 फ ट पर थत बेदोरी झरने
तक प चना था। अ फा कपनी ने पीछ ककर सक से 1 पैरा को रलीव कर िदया। आधी रात तक ड टा कपनी
ने हमले को अंजाम देने क िलए सुरि त फॉिमग अप लेस (एफ.यू.पी.) बना िलया था। बेदोरी झरने क ओर
बढ़ते समय बटािलयन को बीच म 7 िबहार िमली, िजसका बेदोरी पर िकया गया हमला नाकाम हो चुका था और
वे अपने घायल सिहत वापस लौट रह थे। सैिनक क िलए अपने मृत व घायल सािथय को ढलान पर ले जाया
जाते देखना हतो सािहत करनेवाला था, लेिकन िफर भी उ ह ने अपना काम पूर साहस क साथ अंजाम िदया।
19 पंजाब ने बेदोरी क िलए जो रा ता िलया था, वह इतना सँकरा था िक वहाँ से एक बार म कवल एक कपनी
ही आ मण कर सकती थी। तब पूव िह से क ओर से दोहरा हमला करना िन त आ। पहला हमला मेजर
एस.बी. वमा क नेतृ व म ेवो कपनी को करना था। खूनी संघष क बाद उ ह ने अपने ल य का कछ िह सा
हािसल कर िलया। त प ा मेजर परिमंदर िसंह क नेतृ ववाली चाल कपनी ने िनदयतापूवक वेश िकया और
हमले को सफल बना िदया। अंततः 29 अग त को सुबह 6 बजे बेदोरी पर क जा कर िलया गया। 19 पंजाब को
बेदोरी पर क जे क तीन नाकाम यास क बाद सफलता िमली। इस जीत क पीछ िवशु साहस तथा ‘करो या
मरो’ क इ छा ही थी। ले टनट कनल संपूरन िसंह ने अपना वादा पूरा िकया। इस अिभयान म कच क दौरान 19
पंजाब क जवान ने िबना िव ाम िकए अपने बैगपैक (िजसम रखे राशन, हिथयार व गोला-बा द उनक शरीर पर
लदे थे) सिहत 10,000 फ ट से 4,000 फ ट तक क उतराई तथा पुनः 11,000 फ ट क चढ़ाई करक 12,330
फ ट पर थत बेदोरी पर क जा िकया। इन चौबीस घंट म उ ह ने 40 िकलोमीटर क दूरी पैदल और 25
िकलोमीटर का सफर वाहन म तय िकया था।
इस दौरान वे रसद लेने क िलए कह नह क, य िक इस िवजय म दु मन को च काना मह वपूण कारक था।
बटािलयन का अगला ल य कथनार दी गली थी। उ ह ने तैयारी करनी शु क । सैिनक न कवल थक ए, ब क
भूखे भी थे। बीते कई घंट म उ ह एक बार भी भरपेट भोजन नह िमला था।
यहाँ कहानी एक िदलच प मोड़ लेती ह। रामपुर म तैनात 161 इ फ ी ि गेड क ि गेड मेजर, मेजर (बाद म
ले टनट जनरल) एल.एस. रावत ने वायरलेस संदेश म 19 पंजाब क जवान क भूखे होने क बात सुनी थी।
उ ह ने फौरन उस मामले को अपने हाथ म िलया और थानीय लोग क मदद से 700 सैिनक क िलए पूि़डयाँ
बेदोरी तक प चा द । दुभा यवश, तब तक बटािलयन पहले ही कथनार दी गली क िलए कच कर चुक थी;
लेिकन वहाँ मौजूद एक कपनी तक यह अनपेि त भोजन अव य प च गया। कथनार दी गली और िकरण पर
क जा क बाद जब 1 िसतंबर को 19 पंजाब हाजी पीर दर पर 1 पैरा से िमली, उसक बाद ही यु से थक ए
सैिनक को खाने क िलए उिचत भोजन िमल सका।
लेिकन काम अभी ख म नह आ था। 9 िसतंबर को उ ह ने िदन क उजाले म पूर साहस क साथ िजयारत
चौक पर हमला िकया, त प ा 19 पंजाब क ड टा कपनी एवं 6 डोगरा क एक कपनी ने िमलकर आमने-
सामने क लड़ाई म क ता हाइ स पर थत एक मु कल चौक िगिटयन को सुरि त कर िलया। दोन ही कपिनय
क कमांडर 19 पंजाब क मेजर रणबीर िसंह एवं 6 डोगरा क मेजर ल ी इस भयंकर लड़ाई म खेत रह। उ ह
मरणोपरांत ‘वीर च ’ से स मािनत िकया गया। इन अिभयान क दौरान यूिनट क िविभ ेिणय वाले 21 अ य
जवान भी शहीद ए।
इसक बाद मेजर परिमंदर िसंह क नेतृ व म चाल कपनी पॉइट 8,777 पर हमले को तैयार हो गई। कपनी ने
अपना आंिशक ल य ही हािसल िकया था िक दु मन क जवाबी हमले म उनक पाँव उखड़ गए। जब 19 पंजाब
पुनः एक होकर पॉइट 8,777 पर एक और हमला करने क तैयारी कर रही थी, उसी समय यु -िवराम क
घोषणा हो गई। यु तुरत भाव से समा कर िदया गया। यु -िवराम क बाद जब शहीद सैिनक क शव का
आदान- दान आ तो पािक तानी सेना क 20 पंजाब क मेजर रजवी ने लड़ाई म ‘सी’ कपनी क लांस नायक
लाखा िसंह क बहादुरी का िवशेष प से उ ेख िकया। अपनी गोिलयाँ चुक जाने क बाद लाखा िसंह ने अपनी
संगीन से दु मन को मारना जारी रखा। जब वह भी टट गई तो उ ह ने अपना हलमेट उतार िलया और उससे
दु मन को हताहत करते रह। मेजर रजवी ने यह बात 19 पंजाब क अफसर को वयं बताई।
उस समय बटािलयन एडजुटट मेजर जनरल जे.आर. भ ी ( रटा.) को आज भी याद ह िक लाखा िसंह क
आँख शेर जैसी चमकती थ । अब मेरठ म रह रह मेजर जनरल भ ी याद करते ह, ‘‘लाखा मेरी कपनी व मेरी ही
लाटन म थे। वह लंबे कद क बलवान, मजबूत, साहसी व िनडर िहमाचली थे। मेजर रजवी ने बताया िक उ ह ने
लाखा क जान बचाने का हर संभव यास िकया। उ ह ने अपने जवान को तेज आवाज म आदेश िदया िक अपने
हलमेट से इतनी बहादुरी से लड़ रह िनह थे सैिनक को नह मारना ह। लेिकन यु क कोलाहल म उनका आदेश
अनसुना रह गया और लाखा िसंह को गोली मार दी गई।’’
लाखा िसंह क इस बहादुरी पर सं ान लेते ए सरकार ने उ ह मरणोपरांत ‘वीर च ’ से स मािनत िकया। उसी
दौरान एक अ य िसपाही देवराज को भी ‘वीर च ’ दान िकया गया। देवराज मीिडयम मशीन गन क संचालक
थे, िज ह ने अपने दो सािथय क घायल होने क बावजूद िनरतर गोिलयाँ चलाते ए अपनी जान जोिखम म डाली।
एक महीने बाद ही ले टनट कनल संपूरन िसंह को ‘महावीर च ’ तथा ‘वीर च ’ से अलंकत िकया गया। इस
युवा यूिनट क उपल धय का स मान करते ए उ ह बेदोरी क ‘बैटल उपािध’ व हाजी पीर क ‘िथयेटर उपािध’
से स मािनत िकया गया।

हाजी पीर क लंबी चढ़ाई


1 पैरा ने 27 अग त को सुबह 11 बजे तक उसे स पे गए ल य को पूरा कर िदया। लेिकन पैरा पर अभी भी कछ
और करने को मचल रह थे। ि गेिडयर िसंह याद करते ह, ‘‘हमने अपनी दूरबीन से हाजी पीर दर को देखा तो वहाँ
कोई हरकत नजर नह आई। हम 10,000 फ ट क ऊचाई पर थे। यिद हम नीचे जाकर हदराबादी नाला पार कर
ऊपर क ओर चढ़ते तो हम 8,652 फ ट पर थत हाजी पीर तक प च सकते थे। हम आ मिव ास से भर और
उस इलाक से भलीभाँित प रिचत थे। मेजर दयाल ने इस बार म मुझसे चचा क और हम दोन इस बात पर सहमत
थे िक हम हाजी पीर पर हमला कर देना चािहए।’’
मेजर दयाल हमार कमांिडग अफसर ले टनट कनल भिजंदर िसंह क पास गए और बोले, ‘‘सर, म व मेर
पस भी पूरी तरह से तैयार ह। यिद अनुमित दी जाए तो हम हाजी पीर तक प च सकते ह।’’ जब कनल भिजंदर
िसंह आ त हो गए तो उ ह ने वयं ि गेड को बुलाया और 1 पैरा ारा हाजी पीर पर हमला करने का ताव
रखा। लगभग दो घंट िवचार-िवमश क बाद जनरल जो ब शी ने काररवाई क अनुमित दे दी। 27 अग त को
दोपहर 2 बजे मेजर दयाल को हाजी पीर पर हमला करने का आदेश दे िदया गया। जो हमला पहले पूरी ि गेड को
करना था, अब वह काय कवल एक कपनी क िज मे था।
चूँिक अ फा कपनी ने सक पर पहले हमले म अपने ब त से जवान खो िदए थे, इसिलए मेजर दयाल अपने
साथ ड टा कपनी क एक द ते को ले गए। इन जवान का नेतृ व अपनी ढता व साहस क िलए िव यात किन
कमीशंड अफसर सूबेदार अजन िसंह क हाथ था। आदेश िमलने क आधे घंट क भीतर ही लगभग 100 जवान
लेडवाली गली से नीचे उतर और लगभग पाँच घंट म पैदल जंगल पार कर देर शाम तक हदराबादी नाले तक प च
गए। त प ा वे उस बफ जैसे ठड पानी म उतरकर उसे पार करते ए पानी से सराबोर पतलून , मोज व जूत
सिहत दूसर िकनार प च गए। ि गेिडयर िसंह ने बताया, ‘‘हम उस इलाक से अ छी तरह प रिचत थे। हम जानते
थे िक पानी िकतना ठडा हो सकता ह, इसिलए जवान क िलए ऐसा करना किठन नह था।’’ दूसर िकनार पर
प चते ही जवान ने िबना समय गँवाए हाजी पीर दर क लंबी चढ़ाई चढ़नी शु कर दी।

हाजी पीर का धावा


जनरल दयाल ने ‘पैरा पर’ पि का को बताया था—
‘‘दर पर क जा करने क िलए मुझे ऐसी मजबूत कपनी को नेतृ व स पा गया, िजसम अ फा व ड टा दोन
कपिनय क जवान शािमल थे। 25 अग त को शासिनक टोली म से कपनी बनने से अब तक हम राशन क
प म सीले ए शकरपार व िब कट खा रह थे, बावजूद इसक हम पर जो िव ास जताया गया था, उससे
हमारा मनोबल आकाश छ रहा था। हमने 27 अग त क दोपहर को अपना राशन समा िकया और हदराबादी
नाले क िकनार चलते रह। दु मन हम च काने क िलए बेढब ढग से गोिलयाँ बरसा रहा था, जो प तः
िन भावी रहा। ई र हम पर मेहरबान था। तभी अचानक बा रश शु हो गई, िजससे बादल ब त नीचे आ
गए और हम िछपने का पया साधन िमल गया। इसक बाद दु मन हम नह खोज पाए।’’
रात को ठड ब त थी और सभी सैिनक बा रश व नाले से गुजरने क कारण पूरी तरह भीगे ए थे। बावजूद इसक
उनक जोश म कोई कमी नह आई। इससे पहली िमली सफलता ने उ ह आ मिव ास से प रपूण कर िदया था।
इसिलए लगातार दूसरी रात िबना सोए काटते ए भी उनम लेशमा भी थकान नह थी। मेजर दयाल तीन रात से
नह सोए थे, लेिकन उनका वा य तब भी उ म था। सैिनक का उ साह बढ़ाए रखने क िलए उनक नेतृ व म
होने का त य अपने आप म काफ था।
दर क ओर ऊपर चढ़ते ए सैिनक को एक बहक िमली। यह ऐसी झ पड़ी होती ह, िजसक एक दीवार पहाड़
होता ह। मेजर दयाल को उसम कछ हरकत िदखाई दी। उ ह वह संदेहजनक लगा और उ ह ने जवान से उसे घेर
लेने को कहा। जब उ ह ने अंदर मौजूद लोग को अपने हाथ ऊपर उठाकर बाहर आने को कहा तो पता चला िक
वे पािक तानी सेना का एक क ान तथा यारह सैिनक ह। पािक तानी अफसर क जेब से पैरा पर ने एक न शा
बरामद िकया, िजसम 1 पैरा क थित दरशाई गई थी। पूछताछ पर उस क ान ने वीकार िकया िक उस छोटी सी
टकड़ी को 1 पैरा को बेतरतीब करने क िलए आ मण करने का आदेश िदया गया था। उस क ान क जेब से
एक खत भी िमला, िजसम उसने पािक तान क सेना मुख से मृ यु-श या पर पड़ अपने िपता को देखने जाने क
अनुमित माँगी थी; लेिकन िफर भी उसे इस िमशन पर भेज िदया गया। वह बुरी तरह िख व नाराज था और उसने
सेना मुख को िलखा था िक वो यह सब छोड़ देना चाहता ह।
दु मन क सैिनक से हिथयार ले िलये गए और उ ह भारवाहक क प म साथ लेकर पैरा पस ने हाजी पीर क
ओर अपनी चढ़ाई जारी रखी। बा रश क कारण उनक पैर क नीचे क जमीन िफसलन भरी हो गई थी, इसिलए
उ ह ने अिधकांश रा ता घुटन व हाथ पर चलकर तय िकया। सुबह लगभग 4.30 बजे वे उड़ी-पुंछ माग पर प च
गए। दरा अभी भी 10 िकलोमीटर ऊपर था। मेजर दयाल ने अपने सैिनक को आराम करने को कहा, िजससे वे
आगामी लड़ाई क िलए ऊजा बचा सक। वे सब अँधेर म लगभग दो घंट तक बैठ रह। िनरतर िगरती बा रश उनक
िसर से होती ई पीठ तक प च रही थी।
बटािलयन क यु -डायरी क अनुसार—
‘‘िकसी क भी पास कबल या गरम कपड़ा नह था। अिधकांश जवान क पास कवल वाटर ूफ टोिपयाँ थ ।
िव ाम का आदेश िमलने पर वे सब आगे को उभरी च ान या झुक ए पेड़ क नीचे और कछ लोग खुले म
ही बैठ गए। उ ह ने अपने िसर झुका िलये, िजससे बा रश उनक पीठ पर िगरती रही।’’
सुबह वे दर क प मी बाजू पर थत मीिडयम मशीनगन क जद म आ गए। एक पलटन को उनसे िनपटने क
िलए छोड़कर मेजर दयाल बाक सैिनक को लेकर दर क दािहनी बाजू क ओर बढ़ और नीचे उतरकर हाजी पीर
दर पर प च गए। इस साहिसक हमले से दु मन म पूरी तरह घबराहट फल गई और इसी म क अव था म वे
वहाँ से भाग िनकले। 28 अग त क सुबह 10 बजे तक हाजी पीर दर पर क जा कर िलया गया। वायरलेस पर
जीत क संकत ‘चमक तारा’ क गजना जो ब शी ने स िच कान तक प ची तो सब ओर हष छा गया।
आकाशवाणी ारा यह समाचार देश भर म प च गया और एक घंट क भीतर ही कोर कमांडर मेजर रजीत िसंह
दयाल को ‘महावीर च ’ िदए जाने का समाचार भी सा रत होने लगा। हाजी पीर पर ितरगा फहरा रहा था;
पािक तान इस अपमान को झेल नह सका और ज द ही पैरा पस को अपनी जीत का उ सव मनाने क जगह
जवाबी आ मण का सामना करना पड़ा। मेजर दयाल ने तुरत ही सहायक सेना भेजने को कह िदया।

रग कटर क लड़ाई
ि गेिडयर िसंह ने बताया, ‘‘28 अग त को सुबह लगभग 10 बजे हम मेजर दयाल क कपनी क सहायता हतु
कच करने क आदेश िमले। वे ऊपर चढ़ और 29 अग त को सुबह लगभग 4 बजे हाजी पीर प च गए। अभी पौ
भी नह फटी थी। वह िदन शांितपूवक गुजरा; लेिकन जब रात ई तो सभी अफसर सावधान हो गए, य िक दु मन
जवाबी हमला करने क िलए कभी भी वापस आ सकता था। रग कटर े म भेजी गई 20 जवान क पलटन इस
च कानेवाली
हम नाले से गुजर। साझे का टथ श, दो पहाड़ी बक रयाँ और पूड़ी-आलू।
हाजी पीर पर उप थत पाँच अफसर म से कवल मेजर दयाल क पास ही टथ श था। कई िदन से जारी इस अिभयान क कारण
जवान को दाँत साफ करने का भी अवसर नह िमला था। ि गेिडयर िसंह याद करते ह िक जब वे लालसापूवक मेजर दयाल को मंजन
करता देख रह थे तो उदारमना मेजर दयाल ने मेजर िसंह को अपना टथ श उपयोग करने क पेशकश क । उ ह ने उसका उपयोग िकया
और उसे क टन वासवानी को दे िदया। अंततः सभी पाँच अफसर ने उसी टथ श का इ तेमाल िकया और खाने क ती ा करने लगे।
भूखे जवान ने दो बक रय को पकड़ िलया था तथा उ ह काटकर उस परात म पकाने क िलए रख िदया, जो उ ह बाशान या झ पड़ी म
िमली थी। उ ह वहाँ थोड़ा नमक भी िमला था, जो इतने जवान क िलए पया नह था। इसिलए अफसर क िलए थोड़ा सा गो त नमक
डालकर पकाया गया, जबिक जवान ने बाक िह सा िबना नमक क खा िलया।
31 अग त क सुबह जब ीनगर म तैनात लाइट ले टनट एल.क. द ा (अिभने ी लारा द ा क िपता) को पता चला िक उनक कोस
क साथी मेजर िसंह हाजी पीर म ह और उनक पास खाने क िलए कछ नह ह तो वे वयं ही उन असहाय सैिनक क िलए कछ भोजन लेकर
चल िदए। उस िदन बादल ब त थे, इसिलए वे हलीकॉ टर तो नह उतार सक, लेिकन उ ह ने ताजा खाने क वे पैकट िवमान ारा उनक
पास िगरा िदए। 25 अग त से ताजे भोजन से वंिचत सैिनक ने जब उन पैकट को खोलकर देखा तो उसम उनक िलए पूड़ी-आलू क दावत
मौजूद थी।
खबर क साथ लौटी िक वहाँ भारी सं या म दु मन एक होते िदखाई दे रह ह। इस खबर को सुिन त करने
क िलए मेजर िसंह खुद दो पलटन को लेकर 30 अग त को सुबह 4.30 पर रवाना हो गए। सुबह तड़क वहाँ
प चने पर उ ह ने देखा िक खबर स ी थी। हाजी पीर क हार क बाद पािक तािनय ने दर से 1.4 िकलोमीटर दूर
दि ण-प म म थत रग कटर म अपनी टकि़डय को एकि त करना आरभ कर िदया था।
उ ह अगली चोटी पर खाक वरदी पहने लगभग 35 पािक तानी सैिनक िदखाई िदए। ‘उनम से कछ ने हलमेट
पहन रखे थे, जबिक कछ खंदक खोद रह थे। हम समझ गए िक यिद हमने फौरन कछ नह िकया तो वे हाजी पीर
पर हमला करगे और चूँिक वे ऊचाई पर ह, अतः इसका लाभ उ ह अव य िमलेगा।’ ि गेिडयर िसंह बताते ह िक
हमला करने या वह से वापस लौट जाने का फसला करने क िलए उनक पास कवल कछ ण ही थे। उ ह ने
हमला करने का साहिसक िनणय िलया। ‘हम िपछले पाँच िदन से अिभयान म य त थे। रिडयो क बै ी समा
हो गई थी और मेर पास मेजर दयाल से बात करने का कोई तरीका नह था। जब म वहाँ से चला था तो हमने
सहमित बनाई थी िक यिद मुझे मदद क ज रत होगी तो वे वहाँ प च जाएँग।े मने हमला करने का फसला कर
िलया।’
अहीर यु नाद ‘िकशन महाराज क जय’ पुकारते ए मेजर िसंह और उनक जवान ने दु मन क सैिनक पर
धावा बोल िदया। पािक तानी इस हमले क िलए तैयार नह थे, इसिलए वे त ध रह गए। इसक बाद जो खूनी
संघष आ, उसे ‘ रग कटर क लड़ाई’ क नाम से जाना जाता ह। दोन ओर क सैिनक एक-दूसर पर गोिलयाँ
बरसाने लगे। ेने स फक जा रह थे। सारा वातावरण मरनेवाल व घायल क चीख-पुकार से भर गया।
आिखरकार आमने-सामने क लड़ाई शु हो गई, िजसम सैिनक एक-दूसर को संगीन से भ कने लगे, िजससे वहाँ
क पथरीली भूिम र रिजत हो गई। ि गेिडयर िसंह याद करते ह िक यु क उ ता का कम-से-कम सैिनक पर
तो कोई असर नह होता। वे एक घटना बताते ह, जब वे युवा कपनी कमांडर होने क जोश म एक साहसी अहीर
हवलदार उमराव िसंह क नेतृ ववाले ग ती दल म उनसे आगे िनकल गए थे। ‘‘उ ह ने मुझपर बंदूक तान दी और
बोले, ‘पीछ जाओ! तु हारी मुझसे आगे जाने क िह मत कसे ई!’ और मने अिन छापूवक उ ह पहले जाने िदया।
उसक बाद फौरन हवलदार उमराव िसंह और उनका साथी मशीनगन क गोिलय का िनशाना बन गए।’’ रग कटर
क लड़ाई म ड टा कपनी क सात जवान शहीद ए, जबिक घायल क सं या बाईस थी। मेजर िसंह क पीछ फट
एक मोटार का टकड़ा उनक िपंडली म घुस गया, िजससे वह लड़खड़ाकर जमीन पर िगर गए। चलने म असमथ
होने क बावजूद उ ह ने अपने एक मृत साथी क लाइट मशीन गन उठाई और अपनी कपनी क जीिवत बचे 29
जवान क साथ िमलकर दु मन को वहाँ से खदेड़ िदया।
वे याद करते ह िक कसे पैरा पर हीरा लाल धमाक म घायल होने क बाद भी अपनी ेनेड गन चलाते रह,
जबिक पेट पर लगे गंभीर घाव क कारण उनक अँति़डयाँ शरीर से बाहर लटक रही थ । ‘‘उनका हाल जानने क
िलए जब म उनक पास प चा तो वो बोले, ‘साहब, मने मर जाना ह। तू मेरी परवाह मत कर, आगे जा।’ म आगे
बढ़ गया। इसक बाद उ ह ने शायद एक ेनेड और दागा और िफर िगर पड़ तथा हमेशा क िलए अपनी आँख मूँद
ल ।’’
इसी बीच हाजी पीर पर जब मेजर दयाल ने गोिलय क आवाज क साथ आसमान म गोलाबारी क चमक देखी
तो वे समझ गए िक वहाँ जोरदार लड़ाई जारी ह। उ ह ने अपने नेतृ व म एक छोट द ते क साथ वहाँ चढ़कर जाने
का िनणय िलया। वे डढ़ घंट क भीतर रग कटर प च गए। वहाँ जाकर उ ह ने देखा िक मेजर िसंह का पैर लगभग
फटा आ ह। इसक बावजूद वे जमीन पर लेट ए पूरी बहादुरी क साथ लाइट मशीन गन चला रह थे। मेजर दयाल
ने उनक पास ककर कछ ेरणादायक वा य कह। जब वे वहाँ बैठ थे, तभी िकसी मशीनगन से िनकली गोिलयाँ
उनक टनगन क आवरण पर टकराई और वे गोिलयाँ उनक डिनसन मॉक म िव हो गई। वह चम कारी ढग
से बच गए। उनक वह बंदूक तथा गोिलय से छलनी आ डिनसन मॉक 1 पैरा क नहान थत मेस म पुर कार
क प म दिशत िकया गया ह।
सामना करना
ि गेिडयर िसंह याद करते ह िक स 1971 क यु म उनक ड टा कपनी ने चौदह पािक तािनय को पकड़ा। जब अगले िदन सुबह उ ह पूछताछ
क िलए उनक सामने पेश िकया गया तो उनम से एक ने ठठ पंजाबी म उनसे पूछा, ‘साहबजी तू हाजी पीर पास ते सी?’ जब उ ह ने हामी भरी तो उस
ढीठ पािक तानी यु -बंधक ने उ िसत होते ए बताया, ‘तु सी मेजर दे मेजर ही रह गए, म ते लांस नायक से हवलदार बन गया।’
िदन भर म लड़ाई उ रो र जोर पकड़ने लगी। दु मन रग कटर वापस लेने का बार-बार यास करता, लेिकन
ड टा कपनी क साहसी सैिनक उसे हर बार मुँहतोड़ जवाब देते। ब त से सैिनक क खेत रहने क बावजूद वे मैदान
म डट रह। शाम तक उनक सहायताथ सेना आ प ची। अंततः उ ह ने उस चौक पर क जा बनाए रखा।
घायल िसपाही आठ घंट तक सहायता िमलने क ती ा म वह पड़ रह। आिखरकार 30 अग त क शाम को
राहत वहाँ प च सक । अगले िदन सुबह दो डड क बीच चादर बाँधकर, कामचलाऊ चर बनाकर घायल को
वहाँ से हटाया गया। उतनी ऊचाई से घायल को हटाना भी कोई सरल काय नह था। ि गेिडयर िसंह याद करते ह
िक कसे बटािलयन क सूबेदार मेजर ने चर उठाने क िलए आसपास क घर से थानीय लोग को एकि त
िकया। एक चर क िज मेदारी आठ लोग को स पी गई। उनम से चार चर उठाते और अ य चार उनक साथ
चलते और जब पहले उठानेवाले थक जाते तो वे नए लोग उनक जगह ले लेत।े हम नीचे उड़ी तक लाने म उ ह
पूरा एक िदन लग गया। मेजर िसंह क घाव क सफाई और उन पर प ी बाँधने का काय एक टट म िनिमत
अ थायी िसंग टशन म िकया गया। उनका अ यिधक दद मॉिफन का इजे शन लेने क बाद ही कम हो सका।
वहाँ से उ ह ीनगर थत सेना क बेस अ पताल भेज िदया गया। त प ा उ ह आगरा क िमिल ी अ पताल म
भेजा गया। उ ह पूरी तरह से ठीक होने म कई वष लग गए; लेिकन उ ह इसका कोई अफसोस नह । वे कहते ह,
‘‘हमने जो कछ भी िकया, हम उस पर गव ह। हम जनरल दयाल पर भी गव ह। सामा यतः यह माना जाता ह िक
बटािलयन का सेकड-इन-कमांड (2IC) पीछ रहगा; लेिकन वह ऐसे एकमा सेकड-इन-कमांड ह, जो हर लड़ाई
म सबसे आगे रह।’’
हाजी पीर पर क जा करने म 1 पैरा क बहादुरी को उिचत स मान िमला। उ ह हाजी पीर क ‘बैटल उपािध’ से
नवाजा गया। मेजर दयाल को ‘महावीर च ’, हवलदार उमराव िसंह को मरणोपरांत ‘वीर च ’, जबिक क टन
मदन मोहन पाल िसंह िढ व सूबेदार अजन िसंह को अिभयान म िदखाई गई िविश वीरता क िलए ‘सेना
मेडल से स मािनत िकया गया।
‘महावीर च ’ से स मािनत होनेवाले जनरल दयाल ने ‘पैरा पर’ को घटना म बयान करते ए कहा—
‘‘हमारी 1 पैरा पलटन देश क आँख का तारा बन गई। धानमं ीजी ने हमारी िवशेष प से सराहना क । िफर
चाह वह श शाली दु मन से लड़ना हो या तीन िदन क भूख को िमटाने क िलए पहाड़ी बक रय को पकड़ना,
कक साहब क पलटन (गठन क समय 1 पैरा को इसी नाम से जाना जाता था) ने दल-भावना का सव म
उदाहरण पेश िकया। जब हमारी वीरता क स मानाथ भारत क रा पित ने मेर सीने पर ‘महावीर च ’ लगाया तो
मेर िदल म बरबस ही अपने उन कधे-से-कधा िमलानेवाले सािथय क मृितयाँ उमड़ आई, जो हाजी पीर को
सुरि त करने क िलए रग कटर म शहीद हो गए। हमार कल क िलए उ ह ने अपना आज करबान कर िदया।’’

पािक तान को झटका


हाजी पीर पवत पर क जा होने से ज मू व क मीर म छापेमारी का एक मह वपूण माग अव हो गया। इससे
पािक तान क घुसपैठ का मु य आधार िन भावी होने क अलावा पािक तान का अपने घुसपैठ कर चुक
गु र ा क साथ सीधा संपक भी टट गया। धानमं ी ी लाल बहादुर शा ी ने 3 िसतंबर को िदए एक
साहिसक बयान म कहा, ‘‘अपनी आ मर ा हतु हम मह वपूण चौिकय पर क जा करने क काररवाई क अलावा
घुसपैिठय को जड़ से उखाड़ने क िलए यु -िवराम रखा भी पार कर सकते ह।’’ पािक तािनय क िलए यह ब त
बड़ा झटका था, य िक वे मानते थे िक भारत िकसी भी प र थित म अंतररा ीय सीमा को पार नह करगा। तथािप
यह भी माना जाता ह िक भारत ने यु क मैदान म जो कछ भी जीता था, वह सब उसने ताशकद म खो िदया।
हाजी पीर पवत पर इतनी सारी बटािलयन ने अद य साहस सिहत जो लड़ाई लड़ी, िजसम उसक ब त से वीर
सैिनक ने अपना जीवन करबान िकया, स 1966 म ए ताशकद घोषणा-प म वह सब पािक तान को वापस
लौटा िदया गया। कनल िबं ा याद करते ह िक जब सैिनक अंितम प से हाजी पीर को खाली कर रह थे तो उनक
आँख यु म मार गए अपने सािथय क याद म नम थ ।
q
ले टनट जनरल रणजीत िसंह दयाल
महावीर च , परम िविश सेवा मेडल
भूरी हरी वरदी व लाल पगड़ी पहने वह िसख पैरा पर सावधान क मु ा म खड़ा था। उसक गहरी-भूरी आँख म
चमक व अिन य का भाव था। इसक बाद सेकड-इन-कमांड मेजर रणजीत िसंह दयाल अपनी बटािलयन क पास
प चे। सामियक आ मिव ास से भरपूर उस लंबे-चौड़ कध वाले सरदार मेजर दयाल ने एि़डयाँ खड़कने क
आवाज सुनकर अपना िसर उठाया और अपनी गहरी व चमकदार आँख से सैिनक को कड़क सै यूट करते तथा
‘राम-राम, साहब।’ बोलते देखा।
‘‘तूने एक िसिविलयन को अपनी दाह से मार िदया?’’ उ ह ने पूछा। उनक आवाज म खाई व ठडापन था।
जवान ने अपनी नजर झुकाते ए उ र िदया, ‘‘लड़ाई हो गई थी साहबजी।’’ दयाल उसे घूरते रह। चूँिक 1 पैरा को
हमले क िलए वहाँ से फौरन िनकलने क आदेश थे, इसिलए सामा य िविधक पूछताछ क िलए समय नह था।
‘‘िजस दाह से तूने उस आदमी को मारा ह, उसी दाह को लेकर अब लड़ाई म चल। अपनी बहादुरी मुझे वहाँ
िदखाना।’’

27 अग त को दोपहर लगभग 2 बजे मेजर दयाल को हाजी पीर पर हमला करने का आदेश दे िदया गया। जो हमला पहले पूरी ि गेड को करना था,
अब वह काय कवल एक कपनी क िज मे था। उनक नेतृ व म ए इस साहिसक हमले से दु मन म पूरी तरह घबराहट फल गई और इसी म क
अव था म वे वहाँ से भाग िनकले। 28 अग त क सुबह 10 बजे तक हाजी पीर दर पर क जा कर िलया गया।
मेजर दयाल ने उस दोषी सैिनक से यह बात कहते ए अपना िसर िहलाकर उसे जाने का इशारा िकया। उ ह ने
यह आदेश लगभग बीस वष य बटािलयन एडजुटट क टन जे.एस. िबं ा तक प चा िदया।
पचास वष बाद चंडीगढ़ म अपने घर पर बैठ बह र वष य कनल िबं ा उस घटना को याद करते ए मुँह दबाकर
हस रह थे (हम अपनी करिसयाँ सरकाकर लग पॉइट तक ले आए थे, िजससे मेर सेल क समा होती बैटरी उस
सा ा कार को रकॉड कर सक)।
‘‘जब हमने लड़ाई पर जाने क िलए कच िकया तो उस िसपाही से उसक बंदूक ले ली गई। उसने उस चुनौती को
पूर िदल से वीकार करते ए कहा, ‘साहबजी ने कह िदया तो करगे।’ हमले म वह उसी छर को लेकर गया,
िजससे आमतौर पर वह झाि़डयाँ साफ करता था। वह ब त बहादुरी से लड़ा और सबसे आ यजनक बात यह रही
िक वह सुरि त वापस लौट आया।’’ यह कहते ए रटायड पैरा पर मुसकराने लगे। उ ह ने पूर ेह सिहत याद
करते ए कहा, ‘‘ऐसे आदमी थे मेजर दयाल। वे कवल वयं ही साहसी नह थे, ब क साहसी बनने क ेरणा
भी देते थे।’’
मेजर दयाल क साहस क कहािनयाँ अ ुत ह। उनक संपक म आनेवाले हर य ने कभी-न-कभी इसे
अव य महसूस िकया होगा। हाजी पीर क लड़ाई क दौरान मेजर दयाल क मातहत चौबीस वष क युवा कपनी
कमांडर रह ि गेिडयर अरिवंदर िसंह ( रटा.) ऐसी ही दो कहािनयाँ बताते ह। उनक ारा मुझे सुनाई गई पहली
कहानी अ फा कपनी क कपनी कमांडर मेजर हष यादव से जुड़ी थी। जब बटािलयन को हमले का आदेश िमला,
तब वे हाल ही म िववाह करने हतु छ य पर गए थे। ि गेिडयर िसंह ने बताया, ‘‘सबक छ याँ समा कर दी
गई थ और जो लोग जा चुक थे, उ ह रिडयो पर आदेश देकर वापस बुला िलया गया। मेजर दयाल ने अपने
कमांिडग अफसर से गुजा रश क िक चूँिक यादव अपने िववाह क िलए गए ह, इसिलए उनक छ ी र न क
जाए। जब कमांिडग अफसर ने उनसे यह पूछा िक यादव क अनुप थित म अ फा कपनी क कमान कौन
सँभालेगा, तो बटािलयन क सेकड-इन-कमांड मेजर दयाल ने इसक िलए वयं अपना नाम तािवत िकया। उसी
समय हष यादव को एक तार भेजा गया, िजसम उ ह रिडयो क आदेश को नजरअंदाज करते ए अपनी छ याँ
जारी रखने क िलए कहा गया।’’
दूसरी कहानी 25 अग त क रात को 1 पैरा क अ फा व चाल कपनी ारा सक पर िकए गए पहले आ मण
से जुड़ी ह। सैिनक रा ता भटक गए और पौ फटते ही दु मन ने उ ह देख िलया। ि गेिडयर िसंह याद करते ह,
‘‘हमार जवान भारी गोलाबारी क जद म आ गए। दु मन ऊचाई पर था, इससे हम ब त नुकसान प चा और हम
वापस लौटना पड़ा। मेजर दयाल घायल सैिनक को अपनी पीठ पर लादकर उस ती ढलान से नीचे ले आए। वह
बटािलयन क सेकड-इन-कमांड थे। उनक िलए ऐसा करना आव यक नह था, लेिकन िफर भी उ ह ने यह िकया।
उनका वा य गजब का था, साथ ही वे उतने ही साहसी भी थे।’’ बटािलयन ने उसी रात एक और हमला करने
क योजना बनाई, इस बार िपछली रात क हमले म शािमल कपिनय को आराम देते ए यह िज मेदारी ेवो व
ड टा कपिनय को स पी गई। मेजर दयाल ने इस बात क परवाह िकए िबना िक वे ब त समय से सोए नह ह,
इस बार िफर वे छा से हमले का नेतृ व सँभाल िलया।
मेजर दयाल क इस गुण क सराहना स 1971 क ल गेवाला क लड़ाई म ‘महावीर च ’ ा करनेवाले
उनक िम ि गेिडयर कलदीप िसंह चाँदपुरी भी करते ह। ‘बॉडर’ िफ म म स ी देओल का च र इ ह पर
आधा रत था। वह बताते ह, ‘‘म क इ फ ी कल म हम सेना क अफसर को दूसर को े रत करना िसखाते ह।
या यान देना सरल काय ह, लेिकन वा तिवक जीवन म दूसर को े रत करना ब त किठन ह। यु क दौरान
जब मौत स कट होती ह तो यह काय और भी किठन हो जाता ह। ऐसा करने का कवल एक ही माग होता ह—
अपना य गत उदाहरण पेश करना। दयाल उन िगने-चुने लोग म से ह, जो ऐसा कर सक। आपको याद रखना
होगा िक वे सरदार बहादुर रसालदार राम िसंह दयाल क पु ह, जो वयं भी ब त साहसी थे। यही नह , वह
ओ.बी.आई. भी थे, िजसे उस समय ‘ऑिफसर ऑफ ि िटश इिडया’ कहा जाता था। ऐसी िमसाल ब त कम ही ह,
जहाँ िपता व पु दोन ही वीरता पुर कार िवजेता रह ह ।’’

ज मजात नेतृ वकता


रणजीत िसंह दयाल का ज म 15 नवंबर, 1928 को बमा म आ, जहाँ उनक िपता सरदार बहादुर रसालदार राम
िसंह दयाल तैनात थे। कछ ही समय बाद उनक माताजी भारत लौट आई और अनंतपुर साहब से कछ आगे
िहमाचल देश क ऊना िजले म थत अपने छोट से गाँव काँट म रहने लग । रणजीत िसंह का बचपन वह पर
बीता। वे अपने गाँव क अ य लड़क क साथ 5 मील पैदल चलकर अपने कल प चते। कल ख म होने क बाद
वह अपने िम क साथ दौड़ लगाते ए वापस लौटते, जहाँ उनका रगीन पटका दोपहर क सूय क िकरण म
चमकता रहता। वह बीच म ककर जंगली फल से अपनी कमीज क जेब भर लेते और िफर से दौड़ना आरभ
करते ए अपने से बड़ी उ क लड़क को भी पीछ छोड़ देते।
रणजीत बेहद उ साही बालक थे। वे कभी-कभी जोश म िकसी ब े को लाने क िलए उसक बाल ख च देते,
कभी िकसी क आगे से कमीज ख चकर उसक सार बटन तोड़ देते तो कभी िम ी म क ती लड़ते ए अपने
ित ं ी को हराकर उसक पेट पर बैठकर अपनी जीत का उ सव मनाते। अपने छह ब क देखरख म जुटी
रहनेवाली उनक माँ क पास उनक िशकायत अकसर प च जात । आिखरकार एक िदन अपने बेट क शरारत से
तंग आने पर उ ह ने उनका बैग बाँधा, हाथ थामा और उसे जालंधर क बस म बैठा िदया, जहाँ उस समय बालक
क िपता तैनात थे। उ ह ने घुम ड़ रणजीत को उनक िपता को यह कहते ए स प िदया िक अब उसे सँभालना
उनक बस का रोग नह ह।
रसालदार मेजर राम िसंह ने अपने बेट को अनुशासन म लाने क िलए उ ह तुरत जालंधर कटोनमट क िकग
जॉज रॉयल इिडयन िमिल ी कॉलेज म भरती करा िदया। रणजीत ने कल म बेहतरीन दशन िकया और ज दी ही
वे हड बॉय बन गए। बाद म उनक कल क साथी याद करते ए बताते ह िक कसे वे पगड़ी म आव यक छह
परत न होने पर उ ह वापस भेज देत।े उसी दौरान उनम नेतृ व का गुण िवकिसत होने लगा। इिडयन िमिल ी
एकडमी क वेश क समय भी उनक िज मेदारी उठाने और आदेश का पालन करने क यो यता मौजूद रही। 12
िसतंबर, 1948 को 22 वष क उ म वे कमीशंड ए तथा उ ह 1 पैरा (पंजाब) म तैनात कर िदया गया। वा य
क मामले म वह सव म सैिनक म से थे। इसक अलावा वह िनभ क व साहसी कित क थे, जो िजसे वह सही
मानते उसक प म अंत तक खड़ रहते। सेकड ले टनट रणजीत िसंह दयाल जीवन म कछ बड़ा हािसल
करनेवाले थे। उ ह ने अपनी यूिनट क कमांड हािसल क आम कमांडर बने, त प ा वे जनरल ऑिफसर
कमांिडग-इन-चीफ क पद तक प चे तथा बाद म पुदुचेरी तथा अंडमान व िनकोबार क गवनर भी रह। लेिकन
आज भी वह इस बात क िलए अिधक जाने जाते ह िक जब भारत स 1962 क यु व प मी से टर म
ारिभक असफलता से उबर रहा था, ऐसे समय म वे 1965 क यु क शु आती िदन म ही ‘महावीर च ’ ा
करनेवाले पहले कछ य य म शुमार हो गए थे।
उनक बार म बात तब तक पूरी नह हो सकती, जब तक उस घटना का िज न कर िलया जाए, िजससे ब त
कम ही लोग प रिचत ह। उनक य व क बार म पूरी तरह बयान करनेवाली यह घटना भी स 1965 क यु
से ही संब ह।
सक पर 1 पैरा क असफल हमले और कपनी को जान-माल क भारी ित क बाद उ ािधका रय ने यूिनट क
कपनी कमांडर को उनक पद से हटा िदया और चूँिक दयाल सेकड-इन-कमांड थे, इसिलए यूिनट क िज मेदारी
उ ह स प दी गई। जब तक यह आदेश आए, उससे पहले ही उ ह ने अपनी कपनी का नेतृ व कर हाजी पीर दर पर
क जा कर उसे सुरि त कर िलया था। हालाँिक उ ह ने कपनी क कमान सँभालने से यह कहते ए इनकार कर
िदया िक त कालीन प र थितय को देखते ए वे इसपर सहमत नह िक हमला नाकाम होने का कारण उनक
कमांिडग अफसर क पेशेवर अयो यता थी। वह सेकड-इन-कमांड क तौर पर ही काय करते रह। बाद म ब त
अनुनय क बाद वह अंततः बटािलयन को कमांड करने क िलए राजी ए। मुझे यह कहानी बताते ए कनल िबं ा
ने मुझसे पूछा, ‘िकतने लोग ऐसा कर सकते ह और वह भी तब, जब इसम उनका ही फायदा हो?’ इसका जवाब
उ ह ने खुद ही दे िदया, ‘ब त कम।’

पहली नजर का यार


दयाल साहब क कहानी साहस व ढता क िमसाल ह। शु से ही उनक छिव एक जाँबाज सैिनक व
िचरकािलक अिववािहत क थी। मेस म बैठकर बीयर पीते युवा अफसर क बीच उनक िववाह करने या न करने
क िवषय पर अकसर चचा होती, जो उनक कभी िववाह न करने क अटकल पर समा हो जाती। लेिकन उ क
चौथे दशक म ेम म पड़कर उ ह ने उन सबको गलत सािबत कर िदया। ीमती िबरदर कौर दयाल उन पुराने िदन
को याद करते ए उनसे सांबा म अपनी पहली मुलाकात क कहानी बताती ह। उस समय वे स ाईस वष क थ ।
वह वायुसेना क अफसर क तौर पर सांबा म तैनात अपने जीजा व बहन क घर आई थ । यह रणजीत िसंह दयाल
ने उ ह पहली बार देखा। उनक मुलाकात थल व वायु सेना क िलए सांबा म आयोिजत एक राि भोज क दौरान
ई। िबरदर लंबी, दुबली-पतली व खूबसूरत थ और उस दौरान वे िशमला क सट बेदे कल म टीचर िनंग कर
रही थ । उस शाम वे वहाँ मौजूद लोग क प रिचत नह थ । रणजीत उस समय ततालीस वष क थे। उ ह ने स
1962, 1965 व 1971 क लड़ाई देखी थी और वे ि गेिडयर बन चुक थे।
ीमती दयाल मुसकराते ए बताती ह, ‘‘उ ह ने मुझे देखा। वो हमारी ओर आए और मेर जीजाजी से बोले—
आपने अपनी इतनी खूबसूरत साली सािहबा को कहाँ िछपा रखा था?’’ और िफर वे िवन तापूवक कहती ह,
‘‘हालाँिक म इतनी सुंदर नह थी।’’ कछ िदन बाद उ ह ने उनक बहन से सीधी बात क िक वे उनसे शादी करना
चाहते ह। उनक बहन ने वतं ता सेनानी व वतमान िवधायक अपने िपता करम िसंह क ित से पंजाब म बात क
और लड़क से िमलने को कहा। अपने संभािवत दामाद से िमलकर वे बुजुग न कवल उनक उपल धय से
भािवत ए, ब क उ ह उनक ईमानदारी भी ब त पसंद आई। ‘‘मेर िपता पर उनक इस बात का ब त भाव
पड़ा, जब उ ह ने मेर िपताजी से कहा िक उ ह 1,200 पए वेतन िमलता ह। या उनक बेटी इतने पैस म घर
चला सकगी।’’ िबरदर भी उस खूबसूरत व सजीले सैिनक पर िफदा हो गई थ , जो न कवल िजंदािदल था, ब क
सबसे बढ़कर वह ऐसा पैरा पर था, जो आकाश से कवल एक पैराशूट क सहार नीचे कद सकता था। इसक बाद
लोग क िनगाह म कभी िववाह न करनेवाले य को अचानक ही बेहद खूबसूरत प नी िमल गई। ये उनक
बटािलयन क िलए भी स ता क बात थी, जो इस मामले म उनक ओर से सभी आशाएँ छोड़ चुक थी।
ीमती दयाल ने मुझे अपनी ऐसी ब त सी खूबसूरत याद से ब करवाया, िज ह वे अभी भी सँजोए ए थ ।
‘‘वो पाट क अंत तक अपने माथे पर िगलास रखे नाचते रहते। जब म उनसे कहती िक म थक गई , अब और
नह नाच सकती, तो वो मुझे िझड़कते ए कहते, ‘तुम तो मुझसे ब त छोटी हो, अभी से कसे थक गई?’ और यह
कहते ए मुझे िफर डांस लोर पर ख च लेत।े ’’
‘‘पाट क बाद वो मुझे ही ाइव करने को कहते। वह िफएट कार उ ह ने िववाह क फौरन बाद 17,000 पए क
मोटी रकम देकर खरीदी थी। वो मजाक करते िक वे ऐसे ि गेड कमांडर ह, िजनक कार ाइवर चलाता ह और म
उनसे िशकायत करती िक उ ह ने मुझसे िसफ इसिलए ही शादी क ह, य िक उ ह अपनी कार क िलए ाइवर
चािहए था।’’ जब वो पुदुचेरी और िफर बाद म अंडमान व िनकोबार क गवनर बने, तब भी वे हमेशा यही जोर देते
िक उनक िलए रोटी िबरदर ही बनाएँ। वो अकसर कहते, ‘‘उस एक चपाती म मुझे मजा आ जाता ह।’’ उ ह
अपनी बटािलयन से इतना यार था िक जब वे नहान म तैनात 1 पैरा से िमलने गए तो गवनर होने क बावजूद
उ ह ने कमांिडग अफसर क साथ ही रहने पर जोर िदया। उ ह ने कहा, ‘‘हम एक प रवार ह। म तु हार साथ ही
कगा। मुझे वी.आई.पी. गे ट हाउस म नह ठहरना।’’
उस भूर-हर रग का बंधन
जनरल दयाल एक स त सैिनक, यार करनेवाले पित और अपने प रवार क ित ेह रखनेवाले य थे। हालाँिक अपनी बटािलयन क साथ
उनका बंधन सबसे मजबूत था। वह 1 पैरा को अपना प रवार ही मानते थे। यही कारण ह िक अपने िदवंगत पित क बार म बात करते समय ीमती
िबरदर कौर दयाल क ह ठ पर एक िविच सी मुसकान खेलती रहती ह।
वह अपने पित का नाम नह लेत । उनक संबंध म ‘ये’ या ‘वो’ कहकर बात करते ए उनक आवाज हमेशा नरम व ेह से सराबोर रहती ह। जीवन
क अंितम वष म जनरल दयाल क पूर शरीर म कसर फल गया, िजससे उनक रीढ़ क ह ी कमजोर हो गई और उनक सार शरीर म दद रहता। लेिकन
ीमती दयाल का कहना ह िक उस हालत म भी वे हमेशा सहयोग देते और मुसकराते ए उनक श का आधार बने रह। वह उ ह गो फ खेलने भेजते
और यिद उ ह घर लौटने म देर हो जाती तो उनक थित जानने क िलए वयं उ ह फोन करते। उ ह याद आता ह िक एक अवसर पर उ ह ने अपने
िदलोजान से चहती बटािलयन व अपने िम क बार म उनसे धीमे से कहा था, ‘जब म नह होऊगा, तब भी ये लोग तुझे इतना ही यार दगे। मेरी कमी
महसूस नह होने दगे।’ उनक बात िब कल ठीक िनकली।’’ यह बात कहते ए उनक आँख चमक उठ । उ ह ने कहा, ‘‘मुझे उनक दो त और उनक
बटािलयन से इतना यार िमला िक अब वे सब मेर प रवार का ही िह सा बन गए ह। उ ह ने हर कदम पर मेरा साथ िदया; पर उनक कमी तो महसूस
होती ही ह।’’
वष 2011 म जब 1 पैरा ने अपना 250वाँ थापना िदवस मनाया तो जनरल दयाल खराब सेहत क बावजूद उस
अवसर पर उप थत रह। िजस सैिनक ने सक व िसर क ऊचाई पार करते हाजी पीर पर हमले का नेतृ व िकया
था, आज वह बेहद किठनाई से चल पा रहा था। उनक सार शरीर म दद था, लेिकन तब भी वह वहाँ खड़ ए और
भाषण िदया। तीन माह बाद कसर क कारण उनका िनधन हो गया।
वे अपने पीछ अपनी प नी व बेटी वीन को छोड़ गए, िज ह वे अितशय ेह करते थे। वे पंचकला क एक
खूबसूरत घर म रहते थे, िजसक एक कमर क नाम-प का पर ‘हाजी पीर’ िलखा था। वह अग त क उन वषा
भर िदन क मृित थी, जब 1 पैरा क बहादुर पैरा पस अपने कध पर बंदूक टाँगे रगते ए दर तक प चे थे।
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असल उ र क लड़ाई
1 िसतंबर, 1965 को देश क सुबह आकाशवाणी पर सा रत हो रही बेहद च काने वाली खबर क साथ ई।
उसम कहा जा रहा था िक ‘पािक तान ने ज मू व क मीर क छब से टर म भारी मा ा म गोला-बा द व टक से
लैस एक बड़ हमले क शु आत कर दी ह। अनुमान होता ह िक दु मन का ल य साम रक ि से मह वपूण
अखनूर पुल पर क जा करना ह। धानमं ी ी लालबहादुर शा ी ने िनणय िलया ह िक भारतीय सेना ारा
पािक तान को इसका समुिचत उ र िदया जाएगा।’
बाद म धानमं ीजी क इस व य को उस समय वे टन कमांड क जनरल ऑिफसर कमांड-इन-चीफ तथा
आज ‘वीर च ’ िवजेता ले टनट जनरल हरब श िसंह ( रटा.) ने ‘एक कद म छोट य ारा िलया गया
सबसे बड़ा िनणय बताया।’ ले टनट जनरल हरब श िसंह ने इस समुिचत उ र क सामा य या या भारतीय सेना
ारा पंजाब-राज थान से टर म अंतररा ीय सीमा क िनकट क जमीन पर इस ओर आनेवाले िकसी भी दु मन
को समा करने क प म क । उ ह ने यह भी योजना बनाई िक अंतररा ीय सीमा को पार करते ए दु मन क
िजतना हो सक, उतने इलाक पर क जा कर िलया जाए, तािक यु -समा क बाद होनेवाली अप रहाय
राजनीितक चचा म भारत सौदेबाजी म इससे लाभ ले सक। उस योजना का एक िह सा इ छोिगल नहर पर क जा
करना भी था। पािक तान ने इस 140 फ ट चौड़ और 15 फ ट गहर दुजय जलीय अवरोध का िनमाण कवल
लाहौर क र ा क उ े य से िकया था। जनरल साहब चाहते थे िक थित को पूरी तरह उलटते ए इस नहर पर
क जा करक इसका भारतीय सुर ा हतु उपयोग िकया जाए।
पािक तान ने अंतररा ीय सीमा को पार करते ए ज मू व क मीर क छब से टर म पैटन टक क दो रिजमट
क साथ भारतीय टकि़डय पर हमला कर िदया। हालाँिक उनक योजना क तहत मु य हमला लाहौर क कसूर से
िकया जाना था, जहाँ से वे पंजाब म वेश करक स ल लाइन पर चलते ए खेमकरण-िबखीिवंद माग से यास
नदी तक का इलाका क जाकर भारत पर क मीर छोड़ने का दबाव डाल सक। बाद म उनक व र अफसर क
वाहन से ज त िकए गए न श म वहाँ से िद ी प चने का माग भी िच त आ देखा गया। माना जाता ह िक
पािक तान ने अपनी सभी रिजम स म पैटन टक क तसवीर वाले बड़-बड़ पो टर लगाए थे, िजन पर ‘िद ी क
ओर कच करो’ िलखा था।
अमे रका से पैटन टक क दस रिजमट िमलने क बाद से पािक तान इिडयन आमड कोर क मुकाबले अपनी
श क ित आ त था; य िक तब उसम सच रयन टक तथा शमन टक क कवल तीन रिजमट थ , िजनम
से कछ तीय-िव यु क पुराने टक थे, िजनम उिचत टक-रोधी गन भी नह थ । इस कारण पािक तान को
िव ास था िक उसक सैिनक भारत म आसानी से वेश कर जाएँगे। हालाँिक उस समय उ ह भारतीय सैिनक क
वीरता व संक प-श का िब कल अनुमान नह था।
सौज य : इितहास िवभाग, र ा मं ालय
इस अ पर भारत क पूर साहस सिहत र ा करनेवाली तीन मुख यूिनट म इ फ ी बटािलयन, 4 ेनेिडयस व
दो ब तरबंद रिजमट—9 हॉस व 3 किवलरी शािमल थ । यह इ ह क कहानी ह। इसे बतानेवाल म 4 ेनेिडयस
क ‘सेना मेडल’ से स मािनत ले टनट कनल हरीराम जानू ( रटा.), 9 हॉस क ‘परम िविश सेवा मेडल’ तथा
‘सेना मेडल’ से स मािनत ले टनट जनरल िजमी वोहरा ( रटा.) तथा 3 किवलरी क ले टनट कनल राम काश
जोशी ह। टक क लड़ाई का वणन 77 वष य 3 किवलरी क ‘सेना मेडल’ िवजेता रसालदार मेजर (मानद क टन)
दयाचंद राठी ( रटा.) ने िकया ह।

4 ेनेिडयस
2 िसतंबर, 1965 को यु क दौरान 4 ेनेिडयस बटािलयन को अिभयान पर पंजाब क खेमकरण से टर जाने का
आदेश िमला। उनका पहला काय इ छोिगल नहर क थेह प ू पुल पर क जा करना था।
4 ेनेिडयस क टकड़ी पहले अंबाला कटोनमट म तैनात थी, जहाँ स 1962 क यु म भारी हािन क बाद
उ ह पूव से टर से हटा िदया गया। उ ह एकि त करक पहाड़ पर यु का िश ण िदया गया और चौबीस घंट
क नोिटस पर वहाँ से चल देने क आदेश दे िदए गए। आदेश िमलते ही जवान कच क तैयारी करने लगे। उनक
ितर ा टक-रोधी एवं म यम मशीनगन क संयोजन पर आधा रत थी। टक-रोधी पलटन कमांडर का कायभार
सूबेदार मूलचंद सँभाल रह थे। तीन िदन तक चलनेवाली इस लड़ाई म उनक 1066-एम.एम. क रकोिलस
(आर.सी.एल.) बंदूक ने मह वपूण भूिमका िनभाई।

माच 2015 म, इस यु म जीिवत बचे सैिनक क खोज


जयपुर क ओर जा रही शता दी ए स ेस क िखड़क से खेत म कट रही गे क बािलयाँ वण सागर जैसी लग
रही थ । मुझे भड़क ले रग क साि़डयाँ पहने औरत बड़ी मेहनत क साथ उ ह काटती, समेटती और उनका साफ-
सुथरा ग र तैयार करती िदख रही थ । म 4 ेनेिडयर क ‘सेना पदक’ िवजेता ले टनट कनल हरीराम जानू
( रटा.) से िमलने जा रही । हमने अंबाबारी थत उनक घर म एक पूरा िदन िबताया, जहाँ बह र वष क रटायड
कनल ने मुझे अपनी मृितय व यु काल क पुरानी ेत- याम तसवीर से ब कराते ए अपने जीिवत व
िदवंगत सािथय क पुरानी याद को ताजा िकया। उ ह ने शू य म देखते ए बताया िक आज से पचास वष पूव
उ ह ने अपने सािथय क साथ िमलकर असल उ र का यु लड़ा था। इसक बाद हमारी घंट चली बातचीत म
तब िवराम आया, जब हमार िलए पारप रक राज थानी भोजन लगाया गया। इस दौरान उ ह ने मुझे यु क ऐसी
अिव सनीय कहािनयाँ सुनाई, जहाँ पैदल सैिनक का सामना उन श शाली पैटन टक से आ, िजनक बार म
अमे रिकय का दावा था िक उ ह िव क िकसी भी व तु ारा व त नह िकया जा सकता। उस स र वष य
पु ष ने धीर से कहा, ‘‘हमने उ ह गलत सािबत कर िदया।’’ और इसी क साथ उ ह ने मुड़ा-तुड़ा पुराना िच
िदखाया, िजसम वह क जा िकए गए एक पैटन टक क ऊपर अपनी कमर पर हाथ रखे खड़ थे।

6 िसतंबर, 1965
जब ेिनिडयर भारत-पाक सीमा पर बसे अंितम क बे िड बीपुरा प चे तो िसतंबर क गरमी अपने पूर शबाब पर
थी। उनक आसपास मील दूर तक पक ए कपास तथा उसक चार ओर बने हर-भर ग े क खेत फले ए थे।
जबिक भारत व पािक तान को बाँटने वाली अंतररा ीय सीमा बंजर पड़ी थी। उ ह इ छोिगल नहर क चार ओर
बेतरतीबी से उगे सरकड या हाथी घास िदखाई दे रह थे, जो मोट तौर पर पािक तान क सीमा को िच त कर रह
थे।
बाईस वष क ले टनट हरीराम जानू अपनी .303 राइफल को िसर से ऊपर उठाकर छाती तक गहर पानी म
क चड़ सनी देह पर चाबुक क तरह लग रह सरकड क बीच से पैदल गुजर रह थे। उनक साथ उनक बटािलयन
क 600 अ य जवान भी थे, जो एक-दूसर से 5.5 मीटर क दूरी बनाकर चल रह थे। उन सभी ने अपने श ऊपर
िकए ए थे, िजससे उनक शरीर पर बँधे हिथयार क पैकट पानी क संपक म न आ जाएँ। उनक पास से सीटी क
आवाज करते गुजरनेवाले तोप क गोले उनक िदल क धड़कन तेज कर देते तो वह दु मन क गोिलयाँ उनक िसर
क ऊपर से लगातार िनकल रही थ । इ छोिगल क दूसर िकनार पर बैठ पािक तानी सैिनक ने उ ह देखकर नहर
का पानी खोल िदया, िजससे वह पूरा े पानी से भर गया था। गोिलय को नजरअंदाज करते ए तथा ह य
तक प च रह पानी क परवाह न करते ए उ ह ने पैदल चलना जारी रखा।
उनक यूिनट को अंतररा ीय सीमा पार करक साम रक ि से मह वपूण इ छोिगल नहर पर िनिमत थेह प ू
पुल पर क जा करने का काम स पा गया था। यह हमला िड बीपुरा से सुबह 7 बजे िकया जाना था; लेिकन चूँिक
टकड़ी अंबाला से वहाँ सुबह 8 बजे प च सक थी, इसिलए हमले क समय को भी आगे बढ़ाया गया। िदन क
उजाले म िकए जानेवाले इन हमल क अगुआई जाट क ‘ए’ व ‘बी’ कपनी कर रही थी, िज ह ‘सी’ व ‘डी’
( मशः मुसिलम व डोगरा) कपिनय का सीधा सहयोग हािसल था। इन सैिनक म कपनी ाटर मा टर हवलदार
अ दुल हमीद भी थे, जो कछ िदन बाद यूिनट क गौरव का कारण बननेवाले थे; लेिकन िफलहाल वह अ य
बहादुर सैिनक म से एक थे, जो जान जोिखम म डालकर िनिल भाव से पािक तान को ऐसा पाठ पढ़ाने आए थे,
िजसे वह कभी न भूल सका।
नहर तक प चने पर जवान वहाँ क कड़ी सुर ा देखकर हरान रह गए। पािक तान ने पूरी चालाक िदखाते ए
नहर का भारतीय ओर का िकनारा नीचा रखा था, जबिक अपनी ओर क िकनार पर ठोस सीमट क रोशनदानवाली
दीवार बनाई थी, िजनका उपयोग वे नजर रखने क अलावा गोिलयाँ दागने म भी कर सकते थे। कनल जानू ने थेह
प ू पुल पर आए उस तूफान को याद करते ए बताया, ‘‘वहाँ चार ओर शोर मचा आ था। दु मन हम पर बड़ी
मा ा म गोिलयाँ व तोप क गोले बरसा रहा था; लेिकन सौभा य से वह सब हमार िसर क ऊपर से गुजर रह थे।
मुझे लगा िक ई र हमार साथ ह। हम मामूली सा नुकसान आ, िजसम चार जवान क घायल होने क अलावा
कोई बड़ी ित नह ई। पािक तािनय ारा छोड़ा गया बड़ी मा ा म पानी भी हमार िलए लाभदायक रहा, य िक
उनक ारा दागे गए गोले पानी म िगरकर पूरी तरह िन य हो जाते।’’
थक व पूरी तरह भीगे ए जवान ने मशीनगन क गोिलय क परवाह न करते ए पुल पर हमला बोल िदया।
सीमा पार करने क यु काम कर गई और सुबह 10 बजे तक उ ह ने अपना ल य ा कर िलया। उ ह ने
दु मन क सार िदन जारी रही गोलीबारी का िनिल भाव से सामना िकया। रात को इस पर िवराम लगा। लेिकन
तभी उ ह एहसास आ िक कवल वे ही अपना ल य ा कर सक ह और अब दु मन उन पर दोन ओर से
हमला कर सकता ह। उ ह यह भी पता चला िक दु मन क 1 आमड िडवीजन खेमकरण से टर क ओर बढ़ रही
ह, िजसक मंशा ह रक व यास पुल क बाद अमृतसर पर क जा करने क ह। अगले िदन 4 बटािलयन को वहाँ से
िनकलने और असल उ र गाँव को सुरि त करने पर यान कि त करने का आदेश िदया गया, िजससे पािक तान
खेमकरण-अमृतसर माग क ओर आगे न बढ़ सक।
ले टनट जानू से टकि़डय क वहाँ से िनकलने तक मीिडयम मशीन गन से कवर फायर देने को कहा गया।
सुबह 11 बजे तक वहाँ से िनकलने का काय पूरा आ। दु मन क भारी गोलीबारी क बीच वहाँ से चुपचाप
िनकलनेवाल म अंितम य सूबेदार दरयाव िसंह थे। तभी एक गोला फटा और उसका टकड़ा उनक छाती म
धँस गया। वह वह िगर पड़। उ ह ने ले टनट जानू से उ ह पीछ छोड़कर आगे बढ़ जाने को कहा। लेिकन उस
युवा ले टनट ने उ ह िनकट क एक नाले म ख च िलया। वहाँ उ ह ने उ ह पानी िपलाया और उनक घाव क जाँच
क (जो उ ह ब त गंभीर नह लगा)। इसक बाद उन दोन ने धीर से वहाँ से िनकलकर अपने कमांिडग अफसर
को िकसी गंभीर हािन क िबना वहाँ से िनकल जाने क सूचना दे दी।

असल उ र क लड़ाई
सभी जवान गीली वरिदय म ही पैदल चलते ए 4 िकलोमीटर दूर थत िड बीपुरा प च गए, जहाँ उ ह ने भोजन
हतु िवराम िलया। इसक बाद वे पुनः 7 िकलोमीटर पैदल चलकर चीमा गाँव प च गए। उ ह इसी इलाक क र ा
करनी थी। उन थक-हार व न द से बोिझल जवान ारा खाइयाँ खोदने और उ ह दु मन से िछपाने क िलए खेत
से लाई गई चीनी क बो रय से ढकने म चार ओर अँधेरा छा गया। उ ह ने तीन िदन से कपड़ नह बदले थे। उनक
पानी क बीच से गुजरने क कारण क चड़ व पसीने से सने कपड़ गरमी से झुलसी तथा हवा से सूखी ई वचा से
िचपक ए थे। उ ह ने वह बेचैनी भरी रात अपनी खोदी गई छोटी खंदक म आधा अंदर व आधा बाहर करवट
बदलते ए काटी। खबर थी िक पािक तान अगले िदन हमला करनेवाला ह। उ ह जरा भी अंदाजा नह था िक इसी
थान पर वे तीन िदन तक चलनेवाली र रिजत लड़ाई म पािक तान क 1 आमड िडवीजन क महाबिलय को
ऐसी धूल चटाएँग,े िजसे सै य इितहास म ‘असल उ र क लड़ाई’ क तौर पर याद िकया जाएगा। इस लड़ाई का
असल उ र (अथा समुिचत उ र) गाँव म होने का संयोग भी सैिनक से िछपा नह था।
कनल जानू याद करते ह, ‘‘जब हम चीमा, असल उ र, खेमकरण व िड बीपुरा म दािखल ए, तब तक वे
इलाक भुतहा शहर बन चुक थे। लड़ाई म घायल क सं या को यूनतम रखने क िलए नाग रक शासन से उस
जगह को खाली कराने तथा िकसान को अमृतसर क आसपास बने कप म जाने को कहा गया। वहाँ क अिधकांश
घर या तो बंद थे या खाली पड़ थे। वहाँ न ब े थे और न ही जानवर। सब ओर अजीब सा स ाटा छाया आ
था।’’
बाद म 9 हॉस क ले टनट जनरल िजमी वोहरा ने भी मुझे यही बताया िक उ ह ने देखा था िक िकस तरह सुबह
होने से पहले ही शमन टक बैलगाि़डय क तरह पं ब होकर पु ष , य व ब को लादे ए उ ह सुरि त
थान क ओर ले जा रह थे।

जमीन पर
4 ेनेिडयस को असल उ र व चीमा गाँव क बीच क इलाक को सुरि त रखना था। खेमकरण क ओर जानेवाले
िजस माग से पािक तानी टक क हमले क उ मीद थी, उ ह ने उसक दोन ओर चौिकयाँ बना ली थ ।
8 िसतंबर क सुबह जवान को गहरी गड़गड़ाहट क आवाज सुनाई दी, िजससे उ ह दु मन क टक क आने
क चेतावनी िमल गई। वे िजन झाि़डय क पीछ िछपे थे, वही सड़क पर नजर रखने म बाधक हो रही थ । थोड़ी ही
देर म लाइट मशीन गन वाली चौक पर तैनात िसपािहय ने सचेत िकया िक उ ह सड़क पर दो टक आते िदखाई दे
रह ह। आर.सी.एल. गन क कमान सँभालनेवाले ‘सी’ कपनी क कपनी ाटर मा टर हवलदार अ दुल हमीद
सड़क से कवल 30 मीटर क दूरी पर थे और उनक जीप कपास क खेत क बीच खड़ी थी। जैसे ही पहला टक
उनक गोलीबारी क जद म आया, उ ह ने तुरत उसपर हमला बोलकर उसे वह व त कर िदया। कनल जानू ने
बताया, ‘‘हम यह देखकर हरान रह गए िक उसक पीछ आ रह दो टक क चालक अपने टक छोड़कर भाग
िनकले। तब हम पािक तानी सैिनक क उस डर का एहसास आ, िजसक मुतािबक जीिवत जल जाने पर वे अपने
धम क िहसाब से कािफर हो जाते।’’ सुबह 11.30 बजे दूसरा हमला िकया गया। इस बार का हमला टक क दो
टकि़डय ने िकया ( येक टकड़ी म तीन टक), िजनम से एक ने ले टनट जानू क नेतृ ववाली ‘सी’ कपनी पर
हमला िकया तो दूसर ने सड़क क दािहनी ओर तैनात क टन करतार िसंह क नेतृ ववाली ‘बी’ कपनी को िनशाना
बनाया। हमीद ने एक और टक को िनशाना बनाया और आज क िदन का अपना दूसरा टक व त कर िदया।
बाक बचे दो टक क कम उ ह छोड़कर भाग गए। ‘बी’ कपनी क ओर बढ़ रही टकड़ी चुपचाप वापस लौट
गई। दोपहर 2.30 बजे तीसरा हमला आ। इस बार िनशाने पर ‘बी’ कपनी का िठकाना था। लांस नायक ीत िसंह
व ेनेिडयर सुखपाल, जयराम व ीराम ने दो टक को व त कर िदया; जबिक तीसर टक का चालक दल उसे
छोड़कर भाग िनकला। इसक बाद का पूरा िदन शांित से गुजरा, िजसम दु मन क गोलीबारी ने थोड़ी-ब त बाधा
डाली। ेनेिडयस िवजयी रह। उनक सामने नौ टक थे, िजनम से चार को आर.सी.एल. गन ने व त कर िदया और
पाँच का चालक दल उसे छोड़कर भाग िनकला।
उस दोपहर दोन कपनी कमांडर ने य होकर बा दी सुरग िबछाने क गुजा रश क । एडजुटट क टन सुरदर
चौधरी ने एक इजीिनयर कपनी को वहाँ आकर टक-भेदी बा दी सुरग िबछाने को बुला भेजा। इजीिनयर ने शाम 7
बजे काम शु िकया, जो देर रात तक जारी रहा। उ ह ने इसे 4 ेनेिडयस कपिनय क सामनेवाले इलाक म िबछा
िदया। अगले िदन 6 बजे वे अपना काम समा कर वापस लौट आए। थक ए ेनेिडयस सारी रात सो नह पाए
थे। जैसे ही उ ह ने थोड़ा आराम करने का यास िकया, उसी समय सुबह क लगभग 9 बजे उस इलाक पर हवाई
हमला कर रह सैबर जे स क गड़गड़ाहट ने ातःकाल क नीरवता को भंग कर िदया। जवान ने फौरन खंदक म
शरण ली। वे बताते ह, ‘‘म एक पे ोल क खाली िड बे को तिकया बनाकर अपनी खंदक क िनकट लेटा आ था,
तभी मने ऊपर से दो सैबर जे स को िनकलते देखा। म लेट ए ही गोल घूमकर अपनी खंदक म चला गया। जब
वे िवमान चले गए, तब मने देखा िक िजस िड बे को मने अपने िसर क नीचे लगा रखा था, उसम गोिलय से चार
छद हो गए ह। आ यजनक प से मुझे कोई हािन नह प ची।’’
उस िदन ेनेिडयस ने तीन हमल का सामना िकया। टक क तीन ज थे सड़क पर उतर। पहला सुबह 9.30 पर,
दूसरा सुबह 11.30 पर और अंितम दोपहर 2.30 पर। दो टक को अ दुल हमीद ने तो दो अ य को ‘बी’ कपनी क
हवलदार वीर िसंह ने व त कर िदया। िपछली रात िबछाई गई टक-रोधी बा दी सुरग क फटने क आवाज क
साथ ही कछ और टक न हो गए, िज ह पािक तानी छोड़कर भाग गए। सैिनक क एक और रात क ी न द म
गुजरी। वे जानते थे िक अब ज दी ही पािक तानी सेना क पैटन टक क एक पूरी िडवीजन उनपर हमला
करनेवाली ह। लेिकन उ ह अपनी दूसर िव यु क पुरानी आर.सी.एल. राइफल पर पूरा भरोसा था, िज ह ने
इतने अिधक टक को न , िन य व खाली करवाया था, िजतना ब तरबंद गिठत टक से टक क यु म सोचा
जा सकता था।

‘बड़ इमाम मार गए’


10 िदसंबर को सूय क पहली िकरण िनकलने क साथ ही कपनी कमांडर सावधान हो गए। वह इ फ ी हमले क
उ मीद कर रह थे। अपनी खंदक म सभी जवान ि गर पर अंगुली िटकाए तैयार थे। सुबह 8.30 बजे तक कोई
हमला नह आ। तभी उ ह एक बार िफर दु मन क टक क गड़गड़ाहट सुनाई देने लगी। उ ह सड़क पर तीन
पैटन टक आते िदखे। एक टक म य म था तथा बाक दो उसक पीछ दोन ओर चल रह थे। हमीद ने आगेवाले
टक को 180 मीटर क दूरी पर ही देख िलया। जब वह और िनकट आया तो उ ह ने उसे न कर िदया। इसक
साथ ही उ ह ने तुरत अपनी जीप को वहाँ से हटा िलया, िजससे दु मन उनक थित न जान सक। पहले ही क
तरह इस बार भी बाक बचे टक क सैिनक उ ह छोड़कर भाग िनकले। दु मन ने सुबह 9 बजे भीषण गोलाबारी
करनी आरभ कर दी, िजनम से अिधकांश गोले ‘सी’ कपनी क इलाक म िगर। लेिकन उनसे कोई घायल नह आ।
ज द ही एक और ब तरबंद हमला िकया गया। हमीद ने अपना छठा टक व त िकया। जैसे ही उ ह ने सातव टक
को देखा, ठीक उसी समय उसने भी हमीद को देख िलया। िनरतर जारी गोलाबारी म हमीद को जगह बदलने का
समय नह िमला। उ ह ने अपने ाइवर व लोडर को सुरि त थान पर जाने को कहा और उस पैटन टक को
अपनी गन क िनशाने पर ले िलया। उस समय वह भी उनपर नजर बनाए ए था। एक साथ दो धमाक से सारा
वातावरण गूँज उठा। उस टक तथा हमीद क जीप दोन ने एक-दूसर को व त कर िदया। वीर सैिनक वीरगित को
ा ए; लेिकन अभी इस पर दुःख जताने का समय नह था, य िक दु मन क टोही व सहायताथ बटािलयन क
तीन आर.सी.एल. जीप सड़क पर उतर चुक थ । तीन वीर ेनेिडयर —शफ क, नौशाद व सुलेमान ने उ ह देख
िलया। बटािलयन क सबसे शरारती सद य होने क नाते उ ह लाइट मशीनगन क िज मेदारी स पी गई थी। गोली
चलाने क आदेश क ती ा िकए िबना गोली चलाने को उ सुक उन तीन सैिनक ने पहली दो जीप क चालक
दल को मार िगराया, जबिक तीसरा िकसी तरह वापस मुड़कर िनकल भागा। ले टनट जानू उनक चौक पर गए
और उ ह डपटते ए िबना उनक आदेश क गोली न चलाने क चेतावनी दी। तीन ने िसर िहलाकर हामी भर दी।
सुबह 11 बजे दु मन का जनरल ऑिफसर कमांिडग (जी.ओ.सी.) अपने आिटलरी कमांडर ारा चािलत जीप
म उनक ओर बढ़ा। रा ते म उसने अपने टोही व सहायताथ जीप व रिजमटल कमांडर क टक (िजसे अ दुल
हमीद ने व त िकया था) को देखा तो वह उनक ओर बढ़ गया। उसक रोवर जीप पीछ आ रही थी। जैसे ही वे
लाइट मशीन गन वाली चौक पर प चे, ेनेिडयर सुलेमान अपनी खंदक से बाहर िनकलकर खड़ हो गए।
जी.ओ.सी. ने अपनी जीप रोक और उस अकले भारतीय सैिनक को अपने पास बुलाया, िजसे वह गलती से पीछ
छटा कोई सैिनक समझ रहा था। जब सैिनक ने उसक आदेश को अनसुना कर िदया तो वह जीप से उतरकर पैदल
ही अपनी िप तौल टटोलते ए खंदक क ओर आने लगा। तभी शफ क व नौशाद भी उठ खड़ ए और उस
अफसर पर अपनी बंदूक तानकर पूरी उ कठा सिहत पीछ मुड़कर अपने कमांडर क गोली चलाने क आदेश क
ती ा करने लगे। उनक उस खतरनाक थित को भाँपकर ले टनट जानू फौरन िच ाए, ‘‘फायर!’’ और तभी
उस ह ा-ब ा जनरल को गोिलय ने छलनी कर िदया और वह वह िगर पड़ा। आिटलरी कमांडर ने जीप
मोड़कर भागने का यास िकया, लेिकन उसी समय उसक माथे पर एक गोली लगी और वह आगे क ओर िगरकर
टीय रग हील पर ढर हो गया। रोवर जीप तेज गित से िनकल भागी, लेिकन ाइवर क अलावा उसम सवार सभी
सद य गोिलय का िशकार बन गए। कछ ही िमनट बाद जी.ओ.सी. क रोवर से सा रत हो रहा एक संदेश पकड़ा
गया। उसम कहा जा रहा था िक ‘बड़ इमाम मार गए’। पािक तािनय ने गोलाबारी बंद कर दी और िसतंबर क
उस गरम दोपहर म चार ओर चु पी छा गई।
दोपहर 3 बजे अचानक एक बार िफर टक क गड़गड़ाहट सुनाई देने लगी। ेनेिडयस ने िगना िक सड़क पर
आठ पैटन टक चले आ रह ह, िजनम से येक म बीस हिथयारबंद जवान बैठ ह। ले टनट जानू ने इसे इ फ ी
का हमला मानते ए अपने सहायक को ‘रड ओवर रड’ (दु मन क अपने इलाक म वेश करने पर अपनी थित
बताने क िलए सा रत एस.ओ.एस. फायर) भेजने को कहा। उ ह ने बताया, ‘‘हमारी आर.सी.एल. गन म कवल
एक राउड फायर करने लायक गोिलयाँ बची थ ; ‘बी’ कपनी क पास वे भी नह थ । अब हमार पास उन भीमकाय
पैटन टक का मुकाबला करने क िलए कछ नह था। इसिलए हम अपनी खंदक म िछप गए और अपनी आिटलरी
को अपने ही इलाक म गोले बरसाने को कह िदया।’’ उ ह ने सुना िक पािक तानी िच ा रह थे, ‘‘जनरल साहब,
हम आपको लेने आए ह।’’ इसक बाद पािक तानी सैिनक सड़क क दोन ओर फल गए और अपने सैिनक क
र रिजत शव एकि त करक उ ह टक पर लाद िलया। जब वे इस काय को अंजाम दे रह थे, उसी समय भारतीय
तोप ने अपनी काररवाई आरभ कर दी और तेज धमाक क साथ उस इलाक म गोले बरसने लगे। पािक तानी टक
तेजी क साथ मुड़ और ती गित से चले गए। गोले बरसने बंद होने क बाद ेनेिडयर अपनी खंदक से बाहर
िनकले और इलाक का मुआयना करने लगे। जी.ओ.सी. क टार नंबर लेटवाली जीप उ ह सड़क पर खड़ी िमल
गई, िजसम कमांडर का शरीर अभी भी टय रग पर धा पड़ा था। संभव ह िक गोले बरसने से उ प हलचल म
उनक इस पर नजर न पड़ी हो। उसक पास से िमले द तावेज से पता चला िक वह पािक तान क 1 आमड
िडवीजन का आिटलरी ि गेड कमांडर ि गेिडयर ए.आर. शमीम ह। उसे पूर सै य स मान सिहत िडवीजन क
हड ाटर म दफना िदया गया। बाद म जी.ओ.सी. क पहचान मेजर जनरल नािसर अहमद खान क प म ई।
गुमनाम नायक
िजन ेनेिडयस शफ क, नौशाद व सुलेमान को 4 बटािलयन क सबसे शरारती िसपाही माना जाता था, वे उस लड़ाई म नायक क तौर पर उभर। उ ह
कवल 4 ेनेिडयस क इितहास म ही नह , ब क िव भर क सेना म ऐसे तीन पैदल सैिनक क प म जाना जाता ह, िज ह ने लड़ाई क दौरान एक
जनरल को मार िगराया। उ ह इसक िलए कभी कोई पुर कार नह िमला; लेिकन उ ह ने जो िकया वह असाधारण काय था।
इसक बाद और कोई हमले नह ए और असल उ र का यु यह समा हो गया। बाद म 4 ेनेिडयर
रिजमट को असल उ र क ‘बैटल उपािध’ व पंजाब क ‘िथएटर उपािध’ से स मािनत िकया गया। कपनी ाटर
मा टर हवलदार अ दुल हमीद को ‘परम वीर च ’ से नवाजा गया, जबिक ले टनट जानू सिहत नौ अ य सैिनक
को यु म िदखाई गई चंड वीरता क िलए ‘सेना मेडल’ से स मािनत िकया गया।
सफद व म अितिथ
21 िसतंबर को यु -समा क घोषणा क फौरन बाद 4 बटािलयन क जवान अभी भी चीमा क िनकट तैनात थे। एक िदन ले टनट जानू कछ
पािक तानी सैिनक को सफद झंडा िलये अपनी ओर आता देखकर अचरज म पड़ गए। उनक साथ सफद कपड़ पहने एक मिहला थी, जो उनसे िमलना
चाहती थी। तुरत ही सड़क पर करिसयाँ लगाकर एक कामचलाऊ मीिटग थल तैयार कर िदया गया। उस अितिथ मिहला ने ले टनट जानू को रोते ए
बताया िक वे उसी आिटलरी कमांडर क िवधवा ह, जो उनक जवान क हाथ शहीद ए थे। उसने अपने पित का शव उसे स पने क गुजा रश क ।
ले टनट जानू ने शोक कट करते ए उसे बताया िक चूँिक शव को पहले ही उ ािधका रय क पास भेजा जा चुका ह, इसिलए अब वे इस मामले म
कछ नह कर सकते। उ ह ने उस मिहला को बताया िक उसक पित ब त बहादुर सैिनक थे और वे उ ह िव ास िदलाते ह िक उ ह उनक पद क
अनु प पूर उिचत सै य स मान सिहत दफनाया गया ह। वतमान हालात म वे कवल उ ह चाय का एक कप ही ऑफर कर सकते ह। उस मिहला ने पूर
स मान सिहत उनका िनमं ण वीकार िकया। दोन ने चाय पीने का समय मौन रहते ए गुजारा, िजसक बाद उस मिहला ने ले टनट जानू से स मान
सिहत िवदा ली।

9 हॉस
जब यु क बादल मँडराने शु ए, उन िदन 9 हॉस संग र म डरा डाले ए थी। उ ह 4 माउटन िडवीजन का
िह सा बनाते ए तुरत अंबाला क ओर रवाना कर िदया गया। जब कमांडट ले टनट कनल अ ण ीधर वै
(बाद म जनरल वै , ‘महावीर च ’ [बर], अित िविश सेवा मेडल, चीफ ऑफ आम टाफ) क पास जब
अपने जवान क साथ वहाँ से कच करने का आदेश प चा, उस समय वे टट म रह रह थे। 9 हॉस क सै य द ते म
कछ समय पहले वष 1955 म िदए गए शमन-IV टक भी शािमल थे। उन टक म 75-एम.एम. म पूरी तरह से
घूमनेवाली एंटी-टक गन लगी थी, िजस कारण टक गितशील रहने पर गोले नह बरसा सकता था, लेिकन गनर उस
अव था म िनशाना साधकर टक क कते ही सटीक िनशाने पर हार कर देता।
जब पािक तान ने खेमकरण से टर क ओर से हमला िकया तो 9 हॉस को 62 सै य दल और 7 इ फ ी ि गेड
को कवर देने क अलावा दु मन को जब तक हो सक, तब तक वह रोकने क िज मेदारी स पी गई। उनक कड़
ितरोध क कारण ही पािक तान अपनी योजना क मुतािबक सटरलाइन खोलकर खेमकरण-िबखीिवंद माग से भारत
म दािखल नह हो सका। उ ह रा ते म ही रोककर पीछ क ओर बाहर खदेड़ िदया गया, जहाँ उनका सामना 3
किवलरी क सच रयन टक से आ, िज ह ने उ ह पूरी तरह मसलकर रख िदया।
हम 9 हॉस क यह कहानी ले टनट जनरल जे.एम. वोहरा ( रटा.), परम िविश सेवा मेडल, सेना मेडल ने
सुनाई, िज ह ने यु क दौरान एक युवा मेजर क प म ‘ए’ ा न का नेतृ व िकया था।

माच 2015
ले टनट जनरल िजमी वोहरा से िमलने क िलए िनधा रत समय से लगभग आधे घंट पहले म उनक गुड़गाँव थत
माबल क लोरवाले खूबसूरत घर म थी, जहाँ ब त चुनकर ह क नीले व पीले रग क रशमी परदे लगाए गए थे।
हवा म ‘गुरबानी’ क सुखद विन तैर रही थी। तभी सफद बाल वाली लंबी व खूबसूरत ीमती वोहरा वहाँ आई
और कछ देर मेर साथ बैठ । उ ह ने मुझे बताया िक जब उनक पित स 1965 क यु म शािमल होने गए तो वे
अपने माता-िपता क पास चली गई। उ ह ने बताया िक इस दौरान वे अकसर अ य सैिनक क प रवार से िमलने
जात और उ ह ढाढ़स देत िक उनक घर क पु ष ज दी ही सुरि त वापस लौट आएँग।े ‘‘लेिकन सच तो यही ह
िक सभी वापस नह लौट सकते।’’ उ ह ने धीमे से कहा। ‘‘हमने अपने लड़क खोए; कम उ म लड़िकय क
सुहाग उजड़ गए। लेिकन लड़ाई तो ऐसी ही होती ह।’’
दोपहर म ठीक समय पर जनरल साहब ने मुझे अपने थम तल पर बने अ ययन क म बुला िलया। मेर पीछ
उनका िज ासापूण पीकिनज क ा भी चल पड़ा, जो मेरी उप थित पर अपनी तीखी आवाज म नापसंदगी जता
चुका था। म उनक चढ़ने-उतरने म उपयोग होनेवाली चेयरिल ट क पास बनी सीि़ढय क ऊपर चली गई। सीि़ढय
क अंत म वह मेरी ती ा कर रह थे। सफद कमीज व अपनी रिजमट क नीले गुलूबंद म वे बेहद खूबसूरत व
शालीन लग रह थे। वह मुझे अपनी छोटी सी बैठक म ले गए। उ ह ने कहा, ‘‘यह मेरी गुफा ह। मेरी ि स बार म
ह, मेरी बफ ि ज म ह और मेरी िकताब शे फ पर ह।’’ उसक बाद हम समय म पीछ लौटकर खेमकरण क उसी
ग े क खेत म प च गए, जहाँ आज से लगभग पचास वष पूव 9 हॉस क शमन टक खेमकरण-िबखीिवंद माग पर
दौड़ रह थे। भारत-पाक सीमा पर बसा खेमकरण शहर िफरोजपुर क उ र और यास नदी क प मी घाट पर
बसा ह।

3 िसतंबर, 1965; अंबाला


वह िसतंबर क गरम रात थी। कमांिडग ऑिफसर ले टनट कनल ए.एस. वै समेत लगभग सारा रिजमट वह बने
रिजमट क ओपन एयर िथएटर म िफ म देख रहा था। ा न कमांडर मेजर िजमी वोहरा ऑिफसस मेस म बैठ
थे। 9 हॉस को अचानक संग र से अंबाला भेजे जाने तथा 4 माउटन िडवीजन का िह सा बना देने से तथा
वातावरण म कछ तनाव तो था, लेिकन मेजर वोहरा को भारतीय सेना क िकसी योजना क भनक भी नह थी।
आज रात क िलए उ ह कवल एक ही आदेश िदया गया था िक वे टलीफोन क पास ही रह। रात लगभग 9.30
बजे फोन क घंटी बजी। वह रिडयो ऑपरटर का फोन था—‘आपक रिजमट को कल सुबह कच करना होगा।
आपक पहली न सुबह 5 बजे, दूसरी सुबह 8 बजे और तीसरी...’ वह युवा मेजर क न क ओर यान िदए
िबना धारा वाह बोले जा रहा था। मेजर वोहरा एक बार को च क पड़, लेिकन िफर वे स हो उठ। वह अंबाला
कवल अपना बैग लेने आए थे, य िक उ ह एक कोस म शािमल होने अहमदनगर जाना था। ब क, अब लग रहा
था िक उ ह यु म जाने का मौका िमलने वाला ह। उ ह ने अपने अिधकारी ले टनट कनल वै को सूचना दी
और तुरत रिजमट म जाकर टक म गोले भरने का आदेश दे िदया।

4 िसतंबर, 1965; अंबाला


सुबह क 6 बजे थे। टाफ रोड पर ातःकाल सैर करनेवाले लोग ‘ए’ ा न क करीब 14 शमन टक , 9 हॉस
को एक क पीछ एक आता देखकर चिकत रह गए। कोई नह जानता था िक वे कहाँ जा रह ह; लेिकन उस य
को अकसर देखनेवाले थानीय लोग इसे भी सेना क एक और कवायद ही मान रह थे। टक अपने माग पर चलते
ए रलवे टशन प च गए, जहाँ उ ह तुरत पहले से ही ती ा कर रही न पर चढ़ा िदया गया और वह फौरन
वहाँ से िनकल गई। रात भर गोला-बा द भरते रहने क कारण जवान म से िकसी ने कछ नह खाया था। तीसर
दरजे क कपाटमट म बैठ मेजर वोहरा ने गाड से बारबार न रोकने का आ ह िकया, िजससे जवान अपने खाने क
िलए फटाफट कछ बना सक; लेिकन उनक वह माँग अनसुनी कर दी गई।
जनरल साहब याद करते ह, ‘‘जब न इजन बदलने क िलए क , तब उ ेिजत गाड ने मुझे न का गंत य
थान बताया। यह पंजाब क िफरोजपुर िजले का छोटा सा शहर माखू था। हम उसक बीच कह नह कना था।
तब मुझे समझ आया िक िन त ही हमारी पािक तान क साथ जंग होने वाली ह।’’
न क माखू प चने तक अँधेरा छा गया था। घने जंगल म उतरने क बाद जवान ने वहाँ खाना बनाया। अगली
सुबह सभी अफसर को खेमकरण क गे ट हाउस म िबना वरदी आने को कहा गया, िजसे 62 इ फ ी ि गेड क
कमांडर ने संबोिधत िकया। 9 हॉस रिजमट को काय स पा गया िक वे 9 ज मू व क मीर राइफ स क सहायता
लेकर रोही नाले पर बने बाँध पर क जा कर।
अगली सुबह जब टक ने खेमकरण क ओर बढ़ना आरभ िकया तो वे सभी जवान अपनी वरदी म थे। उ ह ने
हमला िकया और वहाँ मौजूद पािक तानी रजस को बंदी बनाते ए बाँध पर क जा कर िलया। 9 ज मू व क मीर
राइफ स का ज था बाँध क ऊपर चढ़ गया। सैिनक ने वहाँ खंदक खोद और दु मन क जवाबी हमले का मुँहतोड़
जवाब देने क िलए सुरि त िठकाने बना िलये। तब 9 हॉस म पहली शहीदी ई। इसक बाद उ ह ने सैकड़ मौत
देख और ज दी ही उनसे पार पाना सीख िलया। 6 िसतंबर क रात जब टक अपने िठकाने पर प चे तो उ ह ने
गाँववािसय को बैलगाि़डय म सवार होकर अपने घर छोड़ते देखा। आम जनता क पास पािक तान क हमला करने
क खबर प च चुक थी, िजससे पूरा गाँव खाली हो गया। अगले िदन जब सैिनक उस भुतहा गाँव क िनगरानी कर
रह थे, उसी समय हवा म तोप क गोल क फटने का वर गूँजने क साथ ही ऊपर से दु मन क िवमान उड़ते
िदखाई देने लगे। शाम 4 बजे 9 ज मू व क मीर को पीछ लौटने का आदेश िदया गया। वह 9 हॉस ने अपने बाई
व दाई ओर से आ रह पािक तान क दो पैटन टक को व त कर िदया। ‘‘उस समय हम पहली बार महसूस आ
िक हमार शमन टक पैटन टक को व त कर सकते ह। अपने सामने उनक टक क जलती िचताएँ देखकर हमारा
हौसला और अिधक बढ़ गया।’’ यह याद करते ए जनरल क आँख चमक उठ ।
8 िसतंबर को 9 हॉस ने अपने टक को ग े क खेत म िछपा िदया और पािक तािनय क उनक जद म आते ही
उन पर धावा बोल िदया। एक पैटन टक को िनशाना बनाने हतु अकसर एक साथ तीन गन चलाई जात । उ ह ने
आठ पािक तानी टक मार िगराए, िजससे सब ओर हष छा गया। उ ह रात को खेमकरण का पुल न करक वापस
लौट जाने क आदेश आ गए। चूँिक 2 फ ड रिजमट (से फ ोपे ड) क आिटलरी यूिनट पहले ही लड़ाई का
सामान पुल क दूसरी ओर प चा चुक थी, उ ह ने इसे वापस लाने हतु कछ समय माँगा। वह छोड़ देने पर दु मन
उसका उपयोग कर सकता था। इसिलए काररवाई को कछ देर क िलए रोक िदया गया, िजसक बाद आिटलरी
यूिनट ने अिधक-से-अिधक यु साम ी समा करने क उ े य से कसूर रलवे टशन को ल य करते ए रात
भर बमबारी जारी रखी। इसक बाद वे गन वापस लाई गई और इजीिनयर ने उस पुल को उड़ा िदया। जब आकाश
म उठती उसक लपट रात क अँधेर को गहर नारगी रग से भर रही थ , उस दौरान सभी सैिनक ने शमन टक
सिहत अपने िठकाने क ओर या ा शु कर दी।
9 हॉस क ‘ए’ व ‘बी’ ा न क शमन टक को पािक तािनय क घुसपैठ का माग अव करने क
िज मेदारी स पी गई। पािक तानी टक क वहाँ प चते ही उ ह बलपूवक मु य सड़क से उस ओर खदेड़ िदया
गया, जहाँ 3 कवलरी क मारक सच रयंस उनक ती ा म थे।
3 कवलरी
1 िसतंबर, 1965 क शाम, जब 3 कवलरी क ‘सी’ ा न क सेकड ले टनट राम काश जोशी (िज ह उनक
रिजमट म ेहपूवक ‘जो’ कहा जाता था) अंबाला कटोनमट म टिनस खेल रह थे तो उ ह वहाँ सभी अफसर को
मेस म एक होने क आदेश िमले। थोड़ी ही देर म कमांडट ले टनट कनल सलीम कालेब (िदवंगत ‘महावीर
च ’ िवजेता मेजर जनरल सलीम कालेब) ने ऑिफसस मेस प चकर अपने जवान को संबोिधत िकया।
उ ह ने कहा, ‘‘पािक तािनय ने ज मू व क मीर म घुसपैठ क ह और हमार धानमं ी ने कहा ह िक भारतीय
सेना अपने तय िकए गए समय व थान पर उनसे मुकाबला कर।’’ 3 कवलरी को 2 वतं आमड ि गेड क
कमांड म काम करना था, िजनका काय XI कोर क इलाक म मौजूद दु मन क टक खतर से िनपटना था। पंजाब
क सुर ा क िज मेदारी XI कोर पर थी। ले टनट कनल कालेब ने उ ह अ यिधक ती गित से या ा क िलए
तैयार रहने को कहा, िजसका अथ था िक अंबाला कटोनमट से सेना क ज थ को ले जानेवाली न अपने गंत य
तक प चने क पूव बीच म कह नह कगी। मेजर सुरश चंदर वढरा क नेतृ व वाली ‘ए’ ा न उसी रात
िनकल गई, जबिक मेजर पी.एस. बेलवालकर क नेतृ ववाली ‘बी’ ा न और मेजर न रदर िसंह संधू क
नेतृ ववाली ‘सी’ ा न ने अगले िदन कच िकया। सभी टकि़डय व टक को अमृतसर से एक टॉप पूव
जंिडयाला गु क िनकट काडिगल म उतार िदया गया।
पािक तान ारा खेमकरण से टर पर हमला करक 4 माउटन िडवीजन को पीछ हटने क िलए मजबूर करने क
यास पर 3 कवलरी को यह िज मेदारी स पी गई िक वे पंजाब े क सुर ा क अलावा दु मन क आगे बढ़ने
क यास को भी अव कर। इस रिजमट का पािक तान क 1 आमड िडवीजन क पैटन टक क साथ टक
यु आ। इस अिभयान म उ ह ने पािक तान क चार यूिनट का सामना िकया, िजनम 4 कवलरी, 24 कवलरी,
6 कवलरी व 5 लांसर शािमल थ । मुझे यह िदलच प कहानी यु क दौरान 3 कवलरी क सेकड ले टनट रह
तथा वतमान म उ क सातव दशक म चल रह ले टनट कनल आर.पी. जोशी ( रटा.) तथा उस समय ‘सी’
ा न क कमांडर रह मेजर संधू क गनर ‘सेना मेडल’ िवजेता रसालदार मेजर (क टन) दयाचंद राठी ( रटा.) ने
सुनाई।

माच 2015
शरद ऋतु क ठडी रात म सतह र वष य सेना मेडल िवजेता रसालदार मेजर (ऑनररी क टन) दयाचंद राठी
( रटा.) गोली लगने से घायल ए अपने पैर म रह-रहकर उठ रह दद क कारण बीच-बीच म च ककर उठ जाते
ह। घु प अँधेर म अपनी आँख बंद करक लेट ए उ ह आज भी दु मन क टक क गड़गड़ाहट तथा आर.सी.एल.
बंदूक क अचूक िनशाना लगाने क आवाज सुनाई देती ह। िचिक सक इसे ‘गनस िडजीज’ कहते ह; लेिकन उनक
िलए अपने िदमाग म गूँज रही ये आवाज उन याद को ताजा कर बीते समय म भारत-पाक सीमा पर बसे कािलया
संगा ा गाँव म प चा देती ह, जहाँ वष 1965 म िसतंबर क शु आत म उनक कपनी ने टक का सामना िकया
था। पलक झपकते ही पचास वष का पुराना समय िफर से लौट आता ह और वे एक बार िफर स ाईस साल क हो
जाते ह। ग े क खेत हवा म लहलहा रह थे। तोप क गोले उनक ऊपर से िनकल रह थे और उनका धूल भरा
सचू रयन टक दो अ य टक क साथ खेत म चाक जैसी तीखी व लंबी घास म िछपे ती ा कर रह थे।
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मने रसालदार मेजर दयाचंद को िद ी से तीन घंट क ाइव पर थत रोहतक से 20 िकलोमीटर दूर उनक
गाँव लखन माजरा म ढढ़ िनकाला। दयाचंद क प नी का कछ माह पूव कसर क कारण िनधन हो गया था। उनक
संतान नह ह, इसिलए वे अकले ही रहते ह। चटक ले लाल रग क आँचल म अपने चेहर को िछपाए लजीली
मुसकान वाली उनक भाई क ब ने िम ी क चू ह पर बेहद मीठी एवं दूध से भरपूर चाय बनाई और िब कट
सिहत हमार आगे पेश कर दी। दयाचंद छड़ी क सहायता से ब त धीमे व सँभलकर चलते ह। उनक अनुसार,
दरअसल उनक पैर जड़ हो चुक ह। भले ही असल उ र क लड़ाई म पािक तान क पैटन टक को िनशाना बनाए
उ ह पचास वष बीत गए ह , लेिकन उ ह ‘सी’ ा नक ा न कमांडर मेजर संधू क नेतृ व म तीन टक
ारा िकए गए मुकाबले का िदन याद करने म अिधक यास नह करना पड़ा। उ ह ने बताया, ‘‘हम चीमा गाँव से
10 िकलोमीटर आगे सुर ा देने क आदेश िदए गए थे। म संधू साहब का गनर था। हमसे कहा गया था िक हम
पािक तान को अपने देश म घुसने से रोकना ह। हमार कमांडट साहब का आदेश था िक जब तक हमारा अंितम
य जीिवत रहता ह, हम दु मन क एक भी टक को वहाँ से नह िनकलने देना ह।’’
ले टनट कनल कालेब को ‘महावीर च ’
17 िसतंबर, 1965 क रात आकाशवाणी ने ले टनट कनल सलीम कालेब को उनक अद य साहस, ढता व धैयपूण नेतृ व ारा
अपने जवान को िनभय होकर लड़ाई करने हतु े रत करने क िलए ‘महावीर च ’ दान करने क घोषणा क गई। माण क तौर पर 10
िसतंबर को ए टक यु का उ ेख िकया गया, िजसम दु मन क 15 टक को व त कर िदया गया, जबिक 9 पर क जा कर िलया
गया।
उ ह आज भी याद ह िक वह बेहद भीषण टक यु था। बड़ी सं या म टक उनक ओर बढ़ चले आ रह थे।
‘‘सबसे पहले हमार टक क चालक साहब िसंह क उसपर नजर पड़ी। उसने मुझे चेतावनी दी िक हमारी दािहनी
ओर एक पैटन टक ह। साहब ने हम फायर करने का आदेश दे िदया। मने फौरन उसे अपनी गन क िनशाने पर
िलया और अपने लोडर राम िसंह से कहा, ‘गन लोड कर दे, भाई।’ और मने गोला दाग िदया।’’ उसक ठीक पीछ
एक और टक था। उसका भी यही ह िकया गया। इस तरह उ ह ने एक क बाद एक चार टक व त कर िदए।
लेिकन दयाचंद वीकार करते ह िक यिद वे यह कह िक वे भयभीत नह थे तो यह झूठ होगा। ‘‘दु मन क टक
एक क बाद आते जा रह थे। मने िचंितत होकर साहब िसंह से कहा, ‘िकतने ह गे भाई?’ उसने एक भी श द बोले
िबना कधे उचका िदए। वह भी िचंितत िदखाई दे रहा था।’’
वह याद करते ह, ‘‘तभी ग े क खेत क बीच से दु मन का एक और टक िनकल आया। उसे भी िनशाना बना
िलया गया। इसक बाद आर.सी.एल. लगी दो जीप को भी उड़ा िदया गया। इसी बीच एक टक-भेदी गन ने
सचू रयन को िनशाना बना िलया, िजससे उसका फाय रग सिकट जाम हो गया। टक क चालक दल ने फौरन
उसका यूज बदला और िकसी तरह दु मन क एक और टक को िनशाना बना िलया; लेिकन तब तक उनपर एक
बार िफर हार हो गया था।’’ दयाचंद बताते ह, ‘‘हमार टक क पिहए क च टट गई, िजससे वह एक ओर
झुक गया तथा एक खड़खड़ाहट क साथ वह क गया। मने सुना िक मेजर साहब हम उसे वह छोड़कर िकसी
सुरि त थान पर चले जाने का आदेश दे रह थे। म व हमारा लोडर िकसी तरह टक से बाहर िनकलने म कामयाब
ए; लेिकन इससे पहले िक चालक साहब िसंह ढ न खोलकर बाहर िनकलने का यास करता, अचानक उसे
गोली लग गई। हमारी आँख क सामने िगर पड़ा और वह ख म हो गया।’’ दयाचंद ने धीमी आवाज म बताया।
‘‘जब म बाहर िनकलने का यास कर रहा था, तभी दु मन ने टक पर मानसूनी बा रश क तरह मशीनगन का
फायर आरभ कर िदया और म िफर से अंदर चला गया। आिखरकार जब गोिलयाँ बरसनी बंद ई, तब मने बाहर
िनकलने का एक और यास िकया। लेिकन मेरी िप तौल क र सी टक म अटक गई और म वह फस गया। उसी
दौरान िकसी मशीनगन क गोिलयाँ मेर दोन पैर म आ लग ।’’ दयाचंद ने कहा िक उ ह लग रहा था िक वे मर
जाएँग,े लेिकन ऐसा नह आ। उ ह ने िकसी तरह खुद को छड़ाया और रगते ए वहाँ प च गए, जहाँ उनक साथी
उनक ती ा कर रह थे। उनक पीछ कछ मिहलाएँ अपना घर लेपने क िलए िम ी खोद रही थ । उ ह ने अपने
पीछ र क लक र तथा पैर से बह रह खून को देखा। लड़ाई का उ माद इतना था िक तब तक उ ह अपने दद
का एहसास नह आ था। उस समय यु क िलए जो भी प याँ मौजूद थ , उ ह से उनक घाव क मरहम-
प ी क गई तथा जवान उ ह कभी ख चकर तो कभी पीठ पर लादकर 7 िकलोमीटर दूर अपनी यूिनट क िठकाने
पर ले आए।
वहाँ प चते ही दयाचंद दद और र क कमी क कारण बेहोश हो गए। उ ह पी.जी.आई., चंडीगढ़ भेज िदया
गया, जहाँ उनक पैर व उनक जीवन को बचाने क िलए सजरी क गई। कछ िदन बाद जब उनक िपता उनसे
िमलने आए, तब भी वे कभी चेतन तो कभी अचेत हो रह थे। वह बताते ह, ‘‘जब भी लोग मुझे देखने आते तो मेर
िपताजी उनसे कहते, ‘जब लड़ाई से बचकर आ गयो ते अब ते बच ही जाएगो’।’’ तीन माह बाद दयाचंद अपनी
बटािलयन म वापस लौट गए। उ ह उनक साहस क िलए ‘सेना मेडल’ से स मािनत िकया गया और वे सेवािनवृ
होने तक सिवस म ही रह।
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इस लड़ाई का आधार रह 3 कवलरी क इितहास से पता चलता ह िक इस यूिनट को दु मन क आगे बढ़ने क
मुख माग को अव करने का काय स पा गया था। 8 िसतंबर को सुबह 11 बजे उनक सचू रयन टक प म
क ओर थत खेमकरण-िबखीिवंद माग क ओर चल िदए। रिजमटल हड ाटर क तौर पर सबसे आगे ‘बी’
ा न चल रही थी, जबिक उससे दो टकड़ी कमवाली ‘सी’ ा न उसक पीछ थी। वह ‘ए’ ा न प ी-
वलतोहा-खेमकरण माग क ओर बढ़ रही थी।
सबसे आगे जा रही ‘बी’ ा न प म म चीमा गाँव तक प चने पर वह क गई, जहाँ उ ह सबसे पहले
मुकाबला करना था। दोपहर को 2.37 बजे गनर चरण िसंह को कछ धुँधली सी आकित िदखाई दी, िजसने
अचानक ही पैटन टक का आकार ले िलया। उ ह ने बुदबुदाते ए छोटी सी ाथना दोहराई और अपनी पसीने से
भीगी, पर ढ उगली से ि गर दबा िदया। दु मन का टक धमाक क साथ आग का गोला बन गया। पहला धमाका
हो चुका था। कछ ही िमनट म एक और पैटन टक को िनशाना बना िलया गया। पैटन टक क अजेय होने क
ित ा वह धूल-धूस रत हो गई और जवान का हौसला आसमान छने लगा।
सेकड ले टनट जोशी क नेतृ ववाली ‘सी’ ा न ने पहली लड़ाई 9 िसतंबर को लड़ी। अब पचह र वष क
हो चुक जोशी याद करते ह िक कसे वे तथा उनक पाँच टक म तगढ़ से 5 िकलोमीटर दूर एक नाले क पास तैनात
थे, जहाँ वे सभी ग े क खेत क बीच िछपे ए थे। वे अपनी दूरबीन व वॉक -टॉक िलये अपने टक क नीचे लेट
ती ा कर रह थे। तभी सवार मातादीन ने उ ह आवाज देकर बुलाया और कहा, ‘‘साहब, दु मन क टक आ गए
ह।’’
उ ह ने कहा, ‘‘हम ऊची जमीन पर थे। हम वहाँ से दु मन का एक टक अपनी ओर आता िदखाई िदया। वह
हमसे लगभग 4 िकलोमीटर दूर था।’’ वे याद करते ह िक उ ह ने तुरत अपने जवान को पुकारते ए कहा, ‘‘मने
उनसे कहा िक हम उन सौभा यशाली लोग म से ह, िज ह अपने देश क िलए लड़ने का मौका िमला ह और इसक
बाद मने ‘गीता’ म से कछ बात सुनाई।’’ इसक बाद सभी जवान खेत से उखाड़ गए ग क बीच िछपाए अपने
टक म चले गए और दु मन क अपने गोलाबारी क जद म आने क ती ा करने लगे।
ले टनट कनल जोशी बताते ह, ‘‘हम पूरी तरह िछपे ए थे, इसिलए म जानता था िक वे हम नह देख सकते;
लेिकन हमार पहला गोला दागते ही उ ह हमारी थित पता चल जाती, इसिलए हमने कवल उ ह अपनी गन क
िनशाने पर ले रखा था।’’ जैसे ही पहला टक हमले क जद म आया, उ ह ने सवार मातादीन को फायर करने का
आदेश दे िदया। जैसे ही उ ह ने पहले टक को आग क गोले म त दील िकया, अ य सचू रयन ने भी गोलीबारी
करनी आरभ कर दी। छह िमनट क भीतर ही पािक तान क छह पैटन टक से लपट उठने लग । ले टनट कनल
जोशी बताते ह िक पहले तो उ ह लगा िक वे कवल 3 टक ह, लेिकन िफर उ ह एहसास आ िक वे दरअसल 6
टक ह। बाद म उ ह ात आ िक पािक तािनय ने 45 टक क पूरी रिजमट क साथ हमला बोला था। 3 कवलरी
क रिजमट इितहास क अनुसार, उस अिभयान म बारह टक व त िकए गए। ले टनट कनल जोशी कोई आँकड़ा
तो नह देते, लेिकन वे कहते ह िक उस िदन टक क वह लड़ाई शाम 4.30 से 7 बजे अथा ढाई घंट तक जारी
रही। ‘‘जब रात ई तो हमार सामनेवाला इलाका िदवाली मेले जैसा लग रहा था—जलते ए टक से उठती नारगी
लपट आकाश को छ रही थ और उनक गोले रॉकट क भाँित ऊपर आकाश क ओर जा रह थे।’’
जब सेकड ले टनट जोशी िवजयी होकर अपने रिजमट हड ाटर लौट तो उस रात उनक कमांिडग अफसर ने
उ ह हरान करते ए गले लगा िलया और उस युवा मेजर क िलए ि क लाने का आदेश िदया। उ ह ने दबी हसी क
साथ कहा, ‘‘मेर िलए वह ण ब त मह वपूण था। ले टनट कनल कालेब इतने स त थे िक उ ह ने हम
अनुशासन म लाने क िलए हमारी ज स क बीच क चु ट को आपस म िसलवा िदया था।’’
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10 िसतंबर को जानकारी िमली िक दु मन मोहमेदपुरा े म टक हमला कर सकता ह, जहाँ ‘ए’ ा न
तैनात थी। चूँिक सभी टक लंबे ग क खेत क बीच म ही थे, इसिलए जवान क िलए अपने व दु मन क टक
म भेद करना मु कल था। ले टनट कनल कालेब इसे बखूबी समझते थे और उ ह ने ा न कमांडर मेजर
वढरा को अंितम प से यह स त सलाह दी िक ‘जो भी ठडा रहते ए इस तनाव को अिधक समय तक झेल
लेगा, जीत उसी क होगी। उ ह पहचानो, उ ह िनशाने पर लो और उ ह मार िगराओ। ई र आपक साथ ह।’
ा न साँस रोक ती ा करने लगी। आिखरकार शाम को लगभग 5.30 बजे पैटन टक िदखाई देने लगे।
ा न कमांडर क गनर सवार धीरपाल िसंह ने मोट तौर पर एक िमनट म 3 पैटन टक को व त कर िदया। 2
अ य पैटन टक को नायब रसालदार जगदेव िसंह क सचू रयन ने न कर िदया। इसक बाद दु मन क टक क
हमले कम होते-होते अंततः समा हो गए। िदन भर क काररवाई क बाद खेत म दु मन क पाँच टक व त ए
पड़ थे।
इसक बाद सभी सचू रयन टक को आदेश िदया गया िक वे अपनी मु य गन क साथ ही अपनी मशीन गन
ारा भी गोलाबारी करना आरभ कर द, िजससे दु मन यह समझ जाए िक 3 कवलरी क थित अभी भी ब त
मजबूत ह। तब तक सचू रयन को पुनः गोले भरने क आव यकता पड़ गई और टक कमांडर ने टॉक भरने क
िलए वहाँ से जाने क अनुमित माँगी। लेिकन ले टनट कनल कालेब ने यह कहते ए इनकार कर िदया िक ‘न तो
कोई अपनी पोिजशन छोड़गा और न ही कोई पीछ हटगा।’ उसक जगह अंतर-संपक टकड़ी क जीप का उपयोग
करक पुनः गोला-बा द भरा गया।
मेजर वढरा ने वहाँ छट एक पैटन टक (बी.ए. नं. 077651) म वेश कर उसक िनमाण िनदश को पढ़ने क
बाद वहाँ उप थत लोग क सामने ही उसे टाट कर िदया। यह देखकर वहाँ खुशी क लहर दौड़ गई। क जे क
इस खबर को रिडयो ारा 4 माउटन िडवीजन तक भी प चाया गया, िजससे सब ओर ज न का माहौल बन गया।
4 माउटन िडवीजन क जी.ओ.सी. मेजर जनरल गुरब श िसंह अपनी कान सुनी बात को देखने क िलए वयं
रिजमट म आए और यह िनणय िलया िक उस ठीक होने क संभावनावाले पैटन टक को चलाकर अपने इलाक म
ले आया जाए। यह भी िनणय िलया गया िक मेजर वढरा उस टक को िदन म हडलाइट जलाकर आगे बढ़ाएँगे।
उनसे यह भी कहा गया िक उस क जे म िलये गए टक क मु य गन दु मन क ओर रह और उसपर सफद रग
का एक झंडा लगा हो। चूँिक वहाँ सफद झंडा नह था, इसिलए एक सफद बिनयान का उपयोग िकया गया। पं ह
िमनट बाद मेजर वढरा सफद झंडा फहराते ए पािक तान क पैटन टक बी.ए. नं. 077651 को गव सिहत चलाकर
3 कवलरी क रिजमटल हड ाटर म ले आए। बाद म क गई एक यापक खोज म खेत क बीच ऐसे और भी
ब त से छोड़ गए टक को खोज िलया गया। उन टक को िन य करने क िज मेदारी कायकारी रसालदार मेजर
जगत िसंह व सेकड ले टनट पी.जे.एस. मेहता को स प दी गई।
ऐसा करना इसिलए आव यक था, य िक संभव था िक कछ पािक तानी टक चालक अभी भी ग े क खेत म
िछपे ए ह तो ये छोड़ ए टक पुनः उनक हाथ लग जाने का डर था। ऐसे िकसी भी यास को नाकाम करने क
िलए िनकट ही थत छोटी सी नहर क िकनार को तोड़ िदया गया, िजससे उस सार इलाक म पानी भर गया।
आकाशवाणी ने अपनी दोपहर क बुलेिटन म क जा िकए गए इन पैटन टक का समाचार सा रत िकया। उस े
म इतने अिधक टक िमले िक ले टनट कनल कालेब को ि गेिडयर कमांडर से िवनती करनी पड़ी िक वे दु मन
क इन टक पर सं या िलखवाने का इतजाम कर, िजससे इनक िगनती का काय आसान हो सक। इसक बाद
दु मन क क जा िकए गए सभी टक क कगूर पर उनक उदू म िलखी वा तिवक म सं या क साथ ही सफद
रग से नंबर िलखे गए।
उसी िदन देर शाम 3 कवलरी को एक और यु ॉफ क प म पािक तान क 4 आमड ि गेड क 8
िसतंबर, 1965 को िलखी साम रक आदेश सं या जी-3548 (कॉपी नं. 3) ा ई। उसम साफ िलखा था िक 4
आमड ि गेड का ल य मु य ांड क रोड पर बने यास नदी क पुल पर क जा करना ह। आज वह आदेश
रिजमटल ऑिफसस मेस म टगा आ ह। ले टनट कनल कालेब क अनुसार यह ‘दु मन का ऐसा बड़ा सपना था,
जो सच नह हो सका।’
23 िसतंबर, 1965 को सुबह 3.30 बजे अंततः गोलाबारी पूरी तरह क गई। असल उ र क रणभूिम म नीरव
शांित छाई थी। यु -िवराम घोिषत हो चुका था।
पैटन नगर : पैटन टक का कि तान
तीय भारत-पाक यु सै य इितहास म तीय-िव यु से लेकर स 1965 क बीच कभी भी ए सबसे बड़ टक यु का सा ी रहा। कहा
जाता ह िक उस भीषण यु म दोन ओर क हजार टक ने िह सा िलया।
समुिचत उ र क समानाथ असल उ र क लड़ाई क सबसे बड़ी ॉफ खेमकरण क िबखीिवंद गाँव म िमली, जहाँ िवजयी भारतीय सेना ने दु मन
ारा छोड़ गए व ित त टक का कतार लगाकर दशन िकया। वष 1965 म वे टन कमान क आम कमांडर ‘वीर च ’ िवजेता ले टनट जनरल
हरब श िसंह ( रटा.) ारा िलिखत पु तक ‘वॉर िड पैचेज’ क अनुसार यु क शु आती तीन िदन म ही पािक तान क 75 टक या तो न कर िदए
गए या उनपर क जा कर िलया गया। इसम 4 कवलरी क टक का वह पूरा बेड़ा भी शािमल ह, िजसक कमांिडग अफसर, बारह अफसर व अ य रक
क ब त से सैिनक ने 11 िसतंबर क सुबह आ मसमपण कर िदया था। भारत क 4 माउटन िडवीजन ारा असल उ र क लड़ाई म क जा िकए गए
उन टक का कछ िदन दशन करने क बाद उ ह भारत क िविभ कटोनमट व सै य िठकान पर यु ॉफ क तौर पर दिशत करने क िलए भेज
िदया गया। कछ रपोट म दिशत िकए गए टक क सं या 60 बताई गई थी, लेिकन 4 ेनेिडयस क ले टनट कनल एच.आर. जानू का कहना ह िक
यु क बाद जब उ ह ने उनक िगनती क तो वे 103 टक थे। ज दी ही थानीय िनवािसय ने उस भूभाग को ‘पैटन नगर’ कहना शु कर िदया। यु
क बाद िफ स िडवीजन ऑफ इिडया ने इस यु भूिम पर एक वृ िच तैयार िकया। जब वे वहाँ कमरा लेकर प चे तो इले कल व मेकिनकल
इजीिनय रग (ई.एम.ई.) कोर लड़ाई म ित त ए दु मन क टक को ख चकर उस भूिम पर ले आए, िजसे ‘पैटन टक का कि तान’ भी कहा जाता
ह। धानमं ी ी लाल बहादुर शा ी ने वहाँ क या ा कर गव सिहत कहा, ‘‘मने तो अपनी िजंदगी म इतनी टटी ई बैलगाि़डयाँ भी नह देख ।’’ पैटन
नगर उन सभी क िलए एक िविश मारक ह, जो असल उ र क लड़ाई म लड़ते ए शहीद ए या िफर से लड़ने क िलए उस रणभूिम क
अ नपरी ा से बच सक।

जन सं ाम
यह ब त असाधारण बात ह िक 9 हॉस, 4 ेनेिडयस, 3 कवलरी व 21 राज थान राइफ स ने पािक तान क पूर
ब तरबंद िडवीजन (350 टक ) को बह र घंट तक सफलतापूवक रोक रखा।
बटािलयन ने यु भूिम म जो वीरता दरशाई, उसक िलए 4 ेनेिडयस को 9 ‘सेना मेडल’ (िजसम 1 ले टनट
कनल जानू को िमला), 2 ‘िविश सेना मेडल’ तथा असल उ र क यु उपािध से नवाजा गया। कपनी ाटर
मा टर हवलदार अ दुल हमीद को भारत क सबसे बड़ वीरता पुर कार मरणोपरांत ‘परम वीर च ’ से स मािनत
िकया गया। सै य इितहासकार टीवन जैलोगा का कहना ह िक पािक तान ने स 1965 क यु म 165 टक को
खो देने क बात वीकार क ह, िजनम से आधे से अिधक असल उ र क लड़ाई क दौरान मार िगराए गए। इस
यु म शािमल िव यात लोग म से एक परवेज मुशरफ ह, जो बाद म सेना मुख व पािक तान क रा पित भी
रह। उस समय मुशरफ 1 आमड िडवीजन आिटलरी क 16 (एस.पी.) फ ड रिजमट क आिटलरी क युवा
ले टनट थे।
पािक तानी आमड िडवीजन का अचानक पैर पीछ ख चकर अपनी टकड़ी को खेमकरण म छोड़कर िसयालकोट
क ओर बढ़ जाने क फसले ने उनक रीढ़ तोड़ डाली।
‘वीर च ’ िवजेता ले टनट जनरल हरब श िसंह ( रटा.) ने अपनी पु तक ‘वॉर िड पैचेज’ म 1965 क यु को
‘जन सं ाम’ क उपमा ठीक ही दी ह। मने िजतने भी सैिनक का सा ा कार िकया, उनम से येक ने माना िक
इस यु म शािमल ब त से जाँबाज वरदीवाले सैिनक म से नह ह। वे पंजाब क जुझा लोग थे। दु मन क भारी
गोलाबारी क बीच युवा िकसान रगते ए सैिनक तक मलमल क कपड़ म लपेटी स जी रखी रोटी, दही से
लबालब भरी टील क बा टयाँ एवं िटिफन बॉ स म चुर मा ा म खीर का साधारण, लेिकन अनमोल भोजन
प चाते। वे लड़ाई लड़ रह जवान क देखरख म जैसा बन पड़ता वैसा योगदान देते। ांसपोटर ने उ ह अपने क
िब कल मु त उपल ध करवाए। लड़क कतार लगाकर गोला-बा द चढ़ाने व उतारने का काय करते। लहराती ई
सफद दाढ़ीवाले वृ सरदार ने सैिनक को अपने घर छोड़ने से यह कहते ए दो-टक मना कर िदया िक वे जहाँ
पैदा ए ह, वह मर जाना पसंद करगे। उ ह ने अपनी सुर ा क कोई परवाह िकए िबना अपनी चारपाइयाँ धूप म
डाल और वहाँ चल रही लड़ाई को ऐसे देखने लगे जैसे कोई टलीिवजन शो देख रह ह ।
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कपनी ाटर मा टर हवलदार अ दुल हमीद ने कपास क लंबी बािलय क बीच अपनी आर.सी.एल. जीप को िछपाकर जगह बदलते ए एक-एक
कर दु मन क छह टक मार िगराए। तभी उ ह ने एक टक को अपनी ओर आते देखा। चूँिक उसने हमीद को देख िलया था, इसिलए उनक पास जगह
बदलने का समय नह था। दोन ने एक-दूसर को अपने िनशाने पर िलया और एक साथ गोला दाग िदया। िजस समय वह टक व त आ, ठीक उसी
समय उसक गोले ने अ दुल हमीद क जीप पर हार िकया। एक जोरदार धमाक क साथ आग व धुआँ फल गया और अगले ही पल वहाँ पूण शांित छा
गई।
कपनी ाटर
मा टर हवलदार अ दुल हमीद
परम वीर च
उ र देश क गाजीपुर िजले क शहर धामूपुर से 4 िकलोमीटर दूर दु ाहपुर रलवे टशन क िनकट एक साधारण
से घर म लगभग अ सी वष क एक कशकाय मिहला रहती ह। उनक सुनने क श लगभग समा हो गई ह।
फ क दुप से अपना िसर ढकनेवाली वह छोट कद क काँपती-सी मिहला लोग क भीड़ म आसानी से भुलाई
जा सकती ह। लेिकन हम उ ह याद रखना होगा, िवशेष प से उन लोग को जो वतं भारत म अपने प रवार क
साथ रह रह ह; य िक यह मिहला उन अ य ब त से लोग म से एक ह, िजसने उस वतं ता क बड़ी क मत
चुकाई ह, िजसका हम आज आनंद ले रह ह।
कपनी ाटर मा टर हवलदार अ दुल हमीद क िवधवा रसूलन बीबी क िलए उस घटना को ठीक पचास वष
हो गए, जब उनक पित अपना हर रग का कनवास का िब तरबंद पीठ पर लादे घर से िनकले और िफर कभी
वापस नह लौट। वह वष था 1965, माह अग त। दु ाहपुर का रलवे टशन, जहाँ से आज उनका पोता जमील
आलम कामकाज क िसलिसले म वाराणसी जाने क िलए लगभग ितिदन सुबह न पकड़ता ह, उस रात कपनी
ाटर मा टर हवलदार अ दुल हमीद ने भी वाराणसी जाने क िलए वह से लोकल न पकड़ी थी। वहाँ से वे
पंजाब प चे, जहाँ उनक बटािलयन 4 ेनेिडयस को खेमकरण से टर म तैनात िकया गया था। उस अँधेरी रात म
एक क बाद एक कई अपशकन ए, िजसक बाद रसूलन ने अपने पित क या ा को िवलंिबत करने का अथक
यास िकया। ‘‘पर ऊ हमार एक नाह सुिनन। हसकर बोलेन िक फौज बुलाई ह, जाय का पड़ी।’ एक गव भरी
उदासी िलये वे हमीद क बार म बताती ह—उनक िलए सेना सबसे पहले थी।
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उस िदन अपने पित को सामान बाँधता देख रसूलन क आँख क आँसू क नह रह थे। वह दूसरी बार यु म
शािमल होने वाले थे। हमीद पूर मनोयोग से उ ह अनदेखा कर रह थे। उ ह ने अपना पतला ग ा उठाया और उसे
मोड़कर िब तरबंद म ख स िलया। उ ह ने उसम तिकया और वे चादर भी रख ल , िज ह रसूलन ने ब त तरीक से
तह िकया था। इसक बाद उ ह ने अपनी वरिदय व जूत सिहत वे मफलर पैक िकया, िजसे रसूलन उनक िलए
कछ समय पहले पड़ोस क गाँव म लगे मेले से लाई थ । यह रखने क बाद उ ह ने अपने गोल लपेट िब तरबंद को
कसकर बाँधने क िलए उसे घुटने क नीचे दबाया और दूसर हाथ से बे ट को ख चकर बाँधते समय अचानक वह
टट गई और िब तरबंद िफर से खुल गया।
यह देख रसूलन ने रोते ए कहा, ‘‘यह अपशकन ह। आप आज मत जाओ।’’ हमीद उनक ओर मुड़ और उ ह
सौ य मुसकान सिहत देखने लगे। उ ह ने कहा, ‘‘म ऐसा नह कर सकता। मुझे बटािलयन वापस लौटने क आदेश
िमले ह। लेिकन मेरी िचंता मत करो, म ठीक र गा। याद करो, म’ 62 क लड़ाई से भी सुरि त वापस लौट आया
था।’’ इसक बाद वे एक बार िफर सामान बाँधने म जुट गए और उसे बाँधने क िलए रसूलन से र सी मँगवा ली।
जमील आलम बताते ह िक इन किथत अपशकन क शु आत शाम से ही हो गई थी। जब हमीद अपने
पड़ोिसय व र तेदार क साथ घर से िनकले तो उ ह छोड़ने टशन जा रह उनक सबसे अ छ िम ब ा िसंह क
साइिकल क चेन टट गई। हमीद का काला क उसी पर लदा था। वहाँ एक लोग म से िकसी क मुँह से सहसा
िनकला िक ये अ छा नह आ। लेिकन हमीद ने इसपर कोई यान नह िदया। जब वे टशन प चे तो पता चला
िक उनक न िनकल गई ह। ब ा ने उनसे कहा िक शायद भगवा नह चाहते िक वे जाएँ। ब ा िसंह ने कहा,
‘‘आज रात क जाओ, कल दूसरी न पकड़ लेना।’’ लेिकन हमीद जाने क िलए ितब थे। उ ह ने अपने िम
को पूरी न तापूवक वापस लौटने और वयं अगली न क ती ा करने क बात कही। इसक साथ ही उ ह ने
अपना क लेटफॉम पर रखा और उसक िनकट बैठ गए। वह िनणय ले चुक थे। उनक िम व प रजन उनक
सुरि त या ा क कामना करते ए अिन छापूवक वापस लौट गए। वह उनक हमीद से अंितम मुलाकात थी।

एक अनुशािसत िसपाही
स 1965 क यु क दौरान हमीद क कपनी कमांडर रह ‘सेना मेडल’ िवजेता ले टनट कनल जानू ( रटा.) उ ह
कम बोलनेवाले सरल व प वादी य क तौर पर याद करते ह। वे कहते ह, ‘‘वे ब त ईमानदार व िन ावा
थे। उ ह ने अपना आर.सी.एल. गन का िश ण म म िलया। उ ह ने बेहतरीन दशन करते ए िश क ेिडग
ा क ।’’ जब 4 ेनेिडयस को यु पर जाने क आदेश िमले तो हमीद को भी अ य सभी क तरह छ याँ
समा कर ज द-से-ज द बटािलयन लौट आने को कहा गया। ‘‘चूँिक वे आर.सी.एल. चलाने म िशि त थे
और हम सैिनक क आव यकता थी, इसिलए उ ह यु क कछ िदन पूव ही ाटर मा टर क दािय व ( टोर व
रसद क देखरख करना) से मु करते ए आर.सी.एल. गन पर तैनात कर िदया गया था।’’
सेना म िनयु से पहले अ दुल हमीद दरजी का काम करते थे। उ ह ने धामूपुर म अपने घर म िसलाई मशीन
लगा रखी थी, िजसपर वह अपने आसपास शोर करते ब क साथ बात करते ए िदन भर अपना काम करते
रहते। उस समय िकसी ने अनुमान भी नह लगाया था िक वे ऐसे खतरनाक टक िव वंसक बन जाएँगे, जो अकले
दम पर यु क प रणाम म इतना बड़ा फर-बदल कर दगे। कनल जानू क मुसकान इस बात क पुि कर देती
ह। उ ह ने कहा, ‘‘सेना म आने क पूव हमार जवान म से कोई पहले धोबी था तो कोई दरजी; लेिकन सै य-
िश ण क बाद वे सभी सैिनक होते ह और हमीद हमार एक ऐसे ही वीर िसपाही थे।’’

8 िसतंबर, खेमकरण से टर
सुबह 9 बजे
कपनी ाटर मा टर हवलदार अ दुल हमीद अपनी आर.सी.एल. गन लगी जीप म सह-चालक सीट पर बैठ थे।
ग े क खेत क िनकट से गुजरते समय उ ह हवा म गड़गड़ाहट क विन सुनाई दी। उ ह ने अपनी जीप को चीमा
गाँव क ओर जानेवाले क े माग क ओर मुड़वा िलया। वे समझ गए िक पािक तान ने अपनी पैटन टक क
रिजमट सिहत हमला बोल िदया ह और वे अि म पोजीशन तक घुस आए ह। तोप क आवाज सुनाई देने क साथ
ही उ ह थोड़ी ही देर म कछ पािक तानी पैटन टक भी िदखाई दे गए, जो ठीक उनक बटािलयन क िदशा म ही
आ रह थे। उ ह ने लंबी घास म िछपकर अपनी गन को उस िदशा म तान िलया और ती ा करने लगे। जैसे ही
टक गोलाबारी क जद म आए, हमीद ने अपने लोडर से गन लोड करने को कहा और उसे दाग िदया। त प ा
वे गोले को बाहर िनकलकर दु मन क पहले टक क ओर बढ़ता देखने लगे। उ ह अपनी दूरबीन उठाते समय ही
धमाका सुनाई दे गया। उनक आँख क सामने टक धू-धूकर जल उठा। हमीद व उनक साथी जवान क स ता
का िठकाना न रहा। वे बरबस कह उठ, ‘‘शाबाश!’’ और इसक साथ ही उनक चेहर पर मुसकान खेल गई।
उ ह ने देखा िक बाक दोन टक क चालक उनम से िनकलकर भाग रह ह। उ ह ने अपने ाइवर को जीप को
रवस करक आगे बढ़ने का आदेश िदया।
सुबह लगभग 11.30 बजे तक उनक बटािलयन पर भीषण बमबारी होती रही। इसक तुरत बाद उ ह वही
प रिचत गड़गड़ाहट सुनाई दी। हमीद ने अपनी दूरबीन िनकालकर देखा। तीन और टक उनक ओर बढ़ चले आ
रह थे। उ ह ने अपनी जीप क ाइवर मोह मद नसीम से जीप को खेत क बीचोबीच ले जाने को कहा, िजससे वह
िबना ि म आए अपने हिथयार तैयार रखते ए ती ा कर सक। उन टक क िनशाने क जद म आते ही उ ह ने
अपने लोडर को इशारा िकया और गोले क ेपण माग को देखने लगे। उसने ठीक ल य पर हार िकया, िजसक
बाद वह टक भी उनक आँख क सामने ही आग क गोले म त दील हो गया; जबिक पािक तानी बाक दो टक
को छोड़कर भाग िनकले। िदन ढलने तक हमीद ने दो टक व त कर िदए थे, जबिक चार टक का चालक दल
उ ह छोड़कर भाग गया। उ ह ने त काल इजीिनयर से िजस ओर से टक आ रह थे, उस इलाक म टक-रोधी
बा दी सुरग िबछाने को कहा। वो उपल ध कम समय म ही बेहतर-से-बेहतर काय करना चाहते थे। यह बात
प थी िक उनक बटािलयन का सामना पािक तानी सेना क ि गेड तर क हमले से था, िजनका मुकाबला करने
क िलए उनक पास कवल आर.सी.एल. गन ही थ । लेिकन इससे िसपािहय को शु आती जीत से िमले हौसले म
कोई कमी नह आई।
अगली सुबह अ दुल हमीद एक बार िफर अपनी आर.सी.एल. गन पर तैनात हो गए। उस िदन बटािलयन पर
पािक तानी सैबर जे स ने भी हमला िकया, लेिकन उससे कछ खास नुकसान नह प चा। उस िदन क अंत तक
उ ह ने तथा उनक टीम ने दो और टक को मार िगराया, जो अपने आप म ब त बड़ी उपल ध थी। उस रात हमीद
शांित से सोए। उनक श त-उ ेख म उनक ारा चार टक को न करने का वणन करते ए उ ह ‘परम वीर
च ’ से स मािनत करने क सं तुित क गई। अगले िदन उ ह ने यु भूिम म उतरकर एक बार िफर तीन और टक
को व त कर िदया; हालाँिक यह घटना उनक श त-उ ेख म रकॉड क तौर पर दज नह हो सक , य िक
वह इसे पहले ही भेजा जा चुका था।
10 िसतंबर को दु मन ने 4 ेनेिडयस पर भारी बमबारी शु कर दी। इसक बाद टक क एक और ज थे ने
हमला कर िदया। वे तीन का समूह बनाकर आए थे। हमीद मोट पेड़-पौध क पीछ छपकर उनक ती ा करने
लगे। पहले टक क िनकट आते ही उ ह ने उसे उड़ा िदया और तुरत अपने ाइवर नसीम को जगह बदलने को कह
िदया। वे जैसे ही वहाँ से हट, उसी समय एक टक क गोले ने ठीक उसी जगह हार िकया, जहाँ वे कछ िमनट
पहले मौजूद थे। इसक बाद वे वीर ेनेिडयर जगह बदलकर एक मोट से बबूल क वृ क पीछ िछप गए, जहाँ से
उ ह ने एक और पैटन टक को अपने िनशाने पर ले िलया। उ ह ने एक और टक को मार िगराया। तब तक एक
बार िफर बमबारी आरभ हो चुक थी। तभी तक टक ने उनक आर.सी.एल. जीप को देख िलया था और वे उनक
ओर मशीनगन से अंधाधुंध फायर करने लगे। हमीद लगातार जगह बदलकर तथा कपास क लंबे पौध क खेत म
अपनी जीप को िछपाकर उ ह चकमा देते रह। तभी एक अ य टक धीमी गित से उनक ओर बढ़ने लगा। चूँिक वे
दोन एक-दूसर को देख चुक थे, इसिलए उ ह वहाँ से हटने का मौका नह िमला। उ ह ने अपने ाइवर व लोडर
को बाहर कद जाने को कहा। नसीम बताते ह, ‘‘हम कपास क खेत म कदकर लुढ़कते ए नाले म चले गए।’
हमीद व दु मन क उस टक दोन ने एक-दूसर क ओर िनशाना साधा और गोला दाग िदया। दोन गोले िनशाने पर
लगे। जोरदार धमाक क साथ चार ओर आग व धुआँ छा गया। जैसे ही टक व त आ, ठीक उसी समय उसक
गोले ने आर.सी.एल. जीप पर हार िकया। हमीद को बाहर कदने का मौका नह िमला। कान फाड़ देनेवाले धमाक
क बाद वहाँ िब कल शांित छा गई। उ ह ने दु मन क कल सात टक व त िकए। यह िकसी भी ब तरबंद टकड़ी
क मता से भी कह अिधक था।
अपनी इस िविश उपल ध, साहस व परा म क िलए कपनी ाटर मा टर हवलदार अ दुल हमीद को
मरणोपरांत ‘परम वीर च ’ से स मािनत िकया गया। उनक बटािलयन को असल उ र क बैटल उपािध व पंजाब
क िथएटर उपािध भी दान क गई। सै य इितहास म ऐसा पहली बार आ था िक िकसी बटािलयन ने कवल
आर.सी.एल. गन क दम पर िकसी आमड िडवीजन का सामना िकया हो।
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अ दुल हमीद का ज म 1 जुलाई, 1933 को उ र देश क गाजीपुर िजले क धामूपुर गाँव म आ। उनका
पा रवा रक घर अब भी वहाँ गे क सुनहरी बािलय क बीच टटा-फटा, लेिकन िब कल खामोश खड़ा ह। वहाँ
अब कोई नह रहता। लेिकन एक समय था, जब वह मकान हसी क खनखनाहट व िसलाई मशीन क आवाज से
गूँजता रहता था। हमीद क िपता मोह मद उ मान दरजी थे और हमीद से जब संभव होता, वे उनक िसलाई-कटाई
म मदद करते। उनक माँ सक ना बेगम हमेशा अपने छह ब क पालन-पोषण म य त रहत , िजनम हमीद समेत
चार लड़क व दो लड़िकयाँ थे। हमीद ने अपनी िश ा क शु आत धामूपुर क ाथिमक िव ालय से क और
उ ह ने जूिनयर हाई कल, देवा से आठव क ा पास क । शु आत से ही उ ह कित से ब त लगाव था। उ ह
क ती, तैराक , िशकार व गटका या तलवारबाजी जैसे खेल िवशेष प से पसंद थे। उनक दादाजी का एक
अखाड़ा था, जहाँ वे अकसर पहलवानी क पाठ सीखते और कभी-कभी वहाँ होनेवाली क तय म भी भाग लेत।े
चौदह वष क उ म उनका रसूलन बीबी से िववाह हो गया, िजनसे उ ह पाँच ब े ए—एक बेटी व चार बेट।
हमीद ब त वािभमानी थे। उनक पौ जमील ने हम हमीद क य व क इस प पर काश डालनेवाली यह
घटना बताई। िनकट क गाँव क जम दार और एक अ छ िनशानेबाज हसीन अहमद ने उस य को इनाम म
बड़ी धनरािश देने क बात कही, जो उस िवशेष प ी को अपना िनशाना बना सक, िजसक िशकार म वह वयं
असफल रह थे। हमीद ने अपने िम ब ा िसंह क बंदूक ली और उस प ी को मार िगराया, लेिकन वह जम दार
क पास पुर कार क रकम माँगने नह गए। उनक थान पर ब ा िसंह चले गए। जब जम दार ने पुर कार लेने क
िलए हमीद क वयं वहाँ आने क बात कही तो उ ह ने यह कहते ए इनकार कर िदया िक ‘भले ही म गरीब ,
लेिकन िकसी क घर कछ माँगने नह जाता।’ अंततः जम दार साहब को पुर कार क वह रािश हमीद क पास ही
भेजनी पड़ी।
जब वे बीस वष क थे तब गाजीपुर म सेना भरती का कप लगा। उ ह ने अपनी कची व िसलाई मशीन एक ओर
फक और दौड़कर वहाँ प च गए। छह फ ट दो इच लंबे होने क अलावा वह पहलवानी व िनशानेबाजी म भी
बेजोड़ थे। उ ह फौरन चुन िलया गया। उ ह सेना क वाराणसी रकरटमट ऑिफस ारा िनयु िकया गया।
नसीराबाद म ेनेिडयस रिजमटल सटर म िश ण क बाद उ ह वष 1955 म 4 ेनेिडयस म तैनात कर िदया गया।
शु आत म उ ह ने राइफल कपनी क साथ काम िकया, त प ा उ ह आर.सी.एल.आर. पलटन म तैनात कर
िदया गया। वे स 1962 क यु म नॉथ-ई ट िटयर ोिवंस क थांग-ला म 7 माउटन ि गेड, 4 माउटन
िडवीजन म भी लड़ थे। उस यु म िनराश होकर लौट। यु -िवराम क घोषणा क बाद उनक यूिनट को अंबाला
जाने क आदेश िमले, जहाँ हमीद को एक एडिमिन शन कपनी म कपनी ाटर मा टर हवलदार क पद पर
िनयु कर िदया गया। जब पािक तान ने वष 1965 म क छ क रण पर हमला िकया, तब 4 ेनेिडयस को आगे
बढ़कर िकसी भी िनकट क आयुध िडपो से अपनी 106 आर.सी.एल. गन ले जाने का आदेश िदया गया। हमीद
इसक अनिधकत िश क थे। सेना क टक-भेदी टकड़ी का कोई कमांडर न होने क कारण उ ह ही टक-भेदी ज थे
का नेतृ व सँभालने को कहा गया। उ ह ने यु क प रणाम म मह वपूण बदलाव िकए। 10 िसतंबर, 1965 को वे
वीरगित को ा ए।
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रसूलन बीबी तो उस पल से िचंितत थ , िजस पल से उनक पित यु क िलए िनकले थे। वो सामा य िदन क
तरह अपना घर का कामकाज करत , लेिकन उनका मन पंजाब क उन ग े क खेत म ही खोया रहता। चूँिक वे
नह जानती थ िक उनक पित को लड़ाई क िलए कहाँ भेजा गया था, इसिलए वह समझ नह पात िक उनक
सुरि त वापसी क िलए कहाँ ाथना कर। उस सुबह उ ह ने रिडयो पर खबर सुनी िक असल उ र क लड़ाई म 4
ेनेिडयस का एक िनडर सैिनक 4 पािक तानी टक को व त करक शहीद हो गया। उनका नाम कपनी ाटर
मा टर हवलदार अ दुल हमीद था। उ ह भारत का सव वीरता पुर कार ‘परम वीर च ’ िदया जाएगा। वे बुजुग
मिहला बताती ह, ‘‘दुःख ब त भया, लेिकन हम इतना सोच ली ही, हमार आदमी चली गीनी पर िकतना नाम कर
गीनी।’’ स 1966 क गणतं िदवस पर रा पित डॉ. सवप ी राधाक णन ारा रसूलन बीबी को ‘परम वीर
च ’ स पा गया।
जमील प रहास म कहते ह, ‘गाजीपुर क कवल दो चीज मश र ह—एक तो अफ म फ टरी और दूसर
दादाजी।’’ उ ह ने मुझे बताया िक ‘छठी क ा क िव ािथय ने मुझे बताया िक उ ह ने अपनी िहदी क पु तक म
वीर अ दुल हमीद क बार म पढ़ा ह।’ जब वे कल म थे, तब उ ह ने भी इसे पढ़ा था। वह कहते ह, ‘‘हम ब त
गव होता था िक वे हमार दादाजी थे। दादाजी तो नह रह, पर आज भी ब े उनक बार म पढ़ते ह। यह कोई छोटी
बात नह ।’’ यह कहते ए उनक ह ठ पर िणक मुसकान आ जाती ह। जब अ दुल हमीद डाक िटकट व आम
कटोनमट म लगी अपनी तसवीर से हमारी ओर देखते ह तो उनक चेहर पर भी हम ऐसी ही मुसकान िदखाई देती
ह।

फटनोट
अ दुल हमीद ारा न िकए गए टक क सं या अ प रही ह। स 1965 क यु म प मी कमान क
आम कमांडर रह ले टनट जनरल हरब श िसंह क ‘वॉर िड पैचेज’ क अनुसार, हमीद को ग े क खेत म
अपनी कपनी क ओर आते 4 टक िदखाई िदए। अपनी जीप को एक टीले क पीछ िछपाए ए उ ह ने 3 टक को
ब त िनकट से मार िगराया। उ ह ने चौथे टक पर भी हार कर िदया था; लेिकन जब 90-एमएम. का एक गोला
उनक जीप से भी आ टकराया तो उनक भी परख े उड़ गए। जबिक कपनी क कमांडर कनल जानू क अनुसार,
व त टक क सं या 7 थी। माना जाता ह िक 9 िसतंबर को कपनी ाटर मा टर अ दुल हमीद को ‘परम वीर
च ’ क सं तुित संबंधी श त उ ेख म उनक एक िदन पूव व त िकए टक का उ ेख िकया गया ह और
उनक बाद क काररवाई रकॉड का िह सा नह बन सक ।
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िफ ौरा क लड़ाई
स 1947 म भारत क िवभाजन क दौरान बारह आमड रिजमट भारत क पास रह , जबिक छह पािक तान क दी
गई। 1965 आने तक दोन देश म से येक क पास एक समान स ह आमड रिजम स थ । धानमं ी
जवाहरलाल नेह क गुटिनरपे ता क नीित क कारण अमे रका को पािक तान से िनकटता बढ़ाने का अवसर
िमल गया। पाक ने अमे रका ारा दी गई सै य व आिथक सहायता को सहष वीकार िकया। इसक
प रणाम व प जहाँ पािक तानी सेना तकनीक तौर पर उ त हो गई, वह भारतीय सेना अभी भी तीय-
िव यु क पुराने हिथयार व संसाधन का उपयोग कर रही थी। आमड रिजमट म भी यही अंतर था। भारत क
कवल चार रिजमट क पास सचू रयन टक थे तथा बाक सब म शमन टक थे, िजनक अमे रका क पैटन व चैफ
टक क सामने कोई िबसात नह थी। पािक तान क पास बेहतरीन लड़ाक िवमान और एम47 व एम48 जैसी
अ याधुिनक गन भी थ । उनक पास हवा म फटनेवाले ऐसे िव फोटक थे, जो िगरने पर नह , ब क अिधक
नुकसान प चाने क िलए जमीन से 45 मीटर ऊपर फटते थे। संसाधन क पैमाने पर कमतर होने क बावजूद
भारतीय सैिनक ने कवल अपने साहस क बल पर पािक तान से घुटने िटकवा िदए। िफ ौरा क लड़ाई इसका
अ छा उदाहरण ह।
स 1965 का यु लड़ रह दोन देश क बीच िसयालकोट से टर से शु आ भीषण टक यु असल उ र
क लड़ाई म अपने
सौज य : इितहास िवभाग, र ा मं ालय
चरम पर प च गया, जहाँ पािक तान क ब तरबंद रिजमट को बड़ा नुकसान प चा। यह लड़ाई 8 िसतंबर को
तब शु ई, जब भारतीय टकि़डय ने सीमा पार करक िफ ौरा से टर पर बड़ा हमला बोल िदया। भारत क
थम आमड िडवीजन ने उस इलाक म अपनी तीन ि गेड क साथ हमला िकया, िजनम थम आमड ि गेड, 43
लॉरीड इ फ ी ि गेड और 1 आिटलरी ि गेड शािमल थ तथा चार ब तरबंद रिजमट—4 हॉस (हडसन हॉस), 17
हॉस (पूना हॉस), 16 कवलरी व 2 लांसस शािमल थ । पािक तान क 6 आमड िडवीजन ने उनका कड़ा ितरोध
िकया। इस लड़ाई म पािक तान ारा िकए गए हवाई हमले का टक द ते पर ब त मामूली जबिक लॉरी एवं
इ फ ी दल को भारी नुकसान प चा। एक िदन क भीषण लड़ाई क बाद पािक तानी टकि़डयाँ सुिनयोिजत वापसी
क तहत चािवंडा क ओर बढ़ने लग , जहाँ यु -िवराम से पहले क अंितम लड़ाई लड़ी गई। िफ ौरा क लड़ाई
म थम आमड िडवीजन ने 51 टक को व त कर िदया, िजनम से स ाईस 4 हॉस ने न िकए। वह इस ि या
म भारत ने 6 टक खोए और 9 अ य को नुकसान प चा।

िसतंबर 1965, सेना का बेस अ पताल, िद ी


स 1965 का यु समा हो चुका था। एक िसख सैिनक अ पताल क बेड पर खून से लथपथ लेटा आ था।
वह इतनी बुरी तरह जला आ था िक उसक घाव क मरहम-प ी करना भी संभव नह था। वह धानमं ी लाल
बहादुर शा ी क वहाँ आने क ती ा कर रहा था। वे येक य से िमलने उसक िब तर पर जा रह थे। उन
िछ ांग, बा दी सुरग क िशकार बने तथा बमवषा व संगीन क हमल म घायल ए वीर सैिनक को देखकर
धानमं ी प तः दुखी थे। जब वे उस िसख अफसर क पास प चे तो उ ह ने यार से उसका िसर सहलाया। उस
सैिनक क आँख से आँसू बह िनकले। धानमं ी ने उससे कहा, ‘‘मेजर, आप दुिनया क े तम सेना म से
एक का िह सा ह। ऐसा करना आपको शोभा नह देता।’’ दद क कारण बोलने म असमथ होने क बावजूद उस
मेजर ने उ र िदया िक ‘‘सर, मेर क का कारण मेर घाव नह ह। म इसिलए दुखी िक म सैिनक होने क नाते
अपने धानमं ी को सै यूट नह कर पा रहा।’’ इस बात से लाल बहादुर शा ी इतना िवत ए िक उ ह ने बाद क
अपने भाषण म कई बार उस अफसर क कथन का उ ेख िकया। उस अफसर ने घाव क चलते कछ िदन बाद
अपना दम तोड़ िदया। वे थे 4 हॉस क ेवो ा न क ‘महावीर च ’ से स मािनत मेजर भूिपंदर िसंह। यह वही
आमड रिजमट ह, िजसे िफ ौरा क लड़ाई म दु मन क 27 टक को व त करने का स मान हािसल ह। 19
िसतंबर को ई सो ेक क लड़ाई म मेजर िसंह क टक पर दु मन क कोबरा िमसाइल क हार से उसम आग लग
गई। तब तक वे दु मन क चार टक व त कर चुक थे। ाइवर मौक पर ही शहीद हो गया, जबिक मेजर िसंह
और उनका गनर वीर िसंह बुरी तरह झुलस गए। वीर िसंह बच गए, लेिकन मेजर िसंह को बचाया नह जा सका।

जून 2015
काली व भेदती सी आँख, लहराती दाढ़ी व उमेठी गई मूँछवाले 4 हॉस क ेवो कपनी क दफदार वीर िसंह का
य व ब त आकषक ह। वह 78 वष क ह तथा होिशयारपुर िजले क दासू तहसील क िचंगार कलाँ गाँव म
रहते ह। वे बताते ह िक गरिमय क महीने म उनक वचा म िचरिमराहट रहती ह। वह सिदय म उ ह ऐसा महसूस
होता ह मानो उनक सार शरीर म हजार सुइयाँ चुभ रही ह । 50 वष बाद आज भी यु क ददनाक याद उनका
पीछा नह छोड़ रह । उ ह ने बताया िक वे इतनी बुरी तरह जल गए थे िक उनका चेहरा भी पहचान म नह आ रहा
था और उनक अिधकांश उगिलयाँ पीछ क ओर मुड़ गई थ । चार महीन क िलए वे पूरी तरह अंधे हो चुक थे,
िजसक बाद धीर-धीर और ब त दद भर उपचार क बाद उनक आँख क रोशनी लौट सक । उनक टक को फाड़
देनेवाली िमसाइल ने उनक कछ ह याँ भी गला दी थ । दद इतना अिधक था िक उससे छटकारा पाने क िलए वे
डॉ टर से खुद को मार देने क गुहार लगा रह थे। लेिकन अब वे इन सबको ब त पीछ छोड़ आए ह।
जब म उनसे िमली, तब उ ह ने सफद करता-पाजामा, नीली पगड़ी व चमड़ क जूितयाँ पहने ए थे। उनका
बायाँ हाथ अभी भी िहल नह पाता, लेिकन इसक बावजूद वे अपने धान क खेत म िबना िकसी किठनाई क टर
चला लेते ह। मुझ जैसे लोग ारा उनसे िफ ौरा क लड़ाई का िज करने पर िसतंबर 1965 क वे िदन उनक
आँख क सामने क ध जाते ह और वे एक बार िफर 28 वष क हो जाते ह, जब वे मेजर भूिपंदर िसंह क हमेशा
खुश रहनेवाले बदजुबान ाइवर थे। वह मुसकराते ए बताते ह, ‘‘हम पर ए िमसाइल हमले क बाद म मदद क
िलए इधर-उधर दौड़ रहा था तो मुझे उठाकर अपने वाहन म ले जानेवाले इ फ ी क जवान मुझे पहचान नह सक,
य िक मेर बाल व वचा बुरी तरह झुलस गए थे। जब मने उनसे पंजाबी म बात क तो वे बोले, ‘ऐ ताँ 4 हॉस दा
वीर िसंह हगा’।’’
आम बोलचाल म दफदार वीर िसंह पंजाबी क श द का खूब उपयोग करते ह। लेिकन अपने ा न कमांडर
भूिपंदर िसंह क बार म बात करते समय उनक आवाज म नरमी आ जाती ह। वे याद करते ह, ‘‘िद ी अ पताल
म जहाँ हम दोन का उपचार चल रहा था, जब मेम साहब उनसे िमलने आई तो उ ह देखकर रोने लग । भूिपंदर
साहब ने उ ह मुझे िदखाते ए कहा, ‘देख उसे, वो मुझसे भी बुरी तरह जला ह; िह मत रख।’ सवार वीर िसंह क
थित मेजर िसंह से भी यादा खराब थी। डॉ टर अं ेजी म बात करते थे, लेिकन उ ह उनक बात समझ आ जाती
थी। ‘‘कहदे सी—मर जाएगा, मर जाएगा—लेिकन भूिपंदर साहब उन लोग को अपने िब तर पर से ही डाँटते ए
कहते, ‘ऐ मेरा गनर सी। तुसी मर जाना, मर जाना कहदे। बोलो, बचा लांगे।’ वे मुझे कहते, ‘वीर िसंह, म तन
ज र घर भेजांगा।’ अगले रिववार 3 अ ूबर, 1965 को मेजर िसंह का देहांत हो गया। वीर िसंह बच गए और
एक वष तक चले उपचार क बाद अपने घर वापस लौट आए। वह दाशिनक अंदाज म कहते ह, ‘‘सब िक मत दा
खेल ह।’’
ि गेिडयर जसबीर िसंह ( रटा.) चौह र वष क ह। स 1965 क दौरान वे ऊचे कद वाले तेईस वष क जवान
थे। वे क टन तथा 4 हॉस (हडसन हॉस) क टोही टकड़ी क ऑिफसर-इन-चाज थे। जहाँ ा न सचू रयन म
चलती वह क टन जसबीर िसंह अपनी जीप म घूमते ए रिजमट क लोकशन, रसद, टकि़डय व अ य चीज का
यान रखते। मुझे िफ ौरा क लड़ाई से अ छी तरह प रिचत करवाने हतु न श पर बनाए गए थल िच तथा
सा ा कार हतु तैयार िकए गए अपने नो स पर िनगाह डालते ए वे कहते ह, ‘‘ब त पुरानी बात हो गई ह।’’ वे
मुझे पूरा धैय रखते ए तथा समय लगाकर यह बता रह थे िक कसे भारतीय सेना ारा पतझड़ क उस मौसम म
लड़ी गई वह लड़ाई सबसे बड़ा टक यु था। उस दौरान उनका ले ेडॉर क ा उनक पैर क पास ही बैठा रहा।

3 िसतंबर, 1965
शाम क समय जब 1 आमड िडवीजन क वाहन जालंधर से पठानकोट जानेवाली सड़क पर आगे बढ़ तो काली
पगड़ी पहने उन जवान को देखकर सड़क क िकनार खड़ लोग ने हाथ िहलाकर ‘जय जवान, जय िकसान’ क
नार लगाते ए सारा वातावरण गुंजायमान कर िदया। वहाँ एक भीड़ म उ साह था। सेना को सीमा क ओर बढ़ता
देख वे ब त स थे। सभी चाहते थे िक पािक तान को क मीर पर चढ़ाई क िलए दंिडत िकया जाए। गाँव क
लोग खुले िदल से सेना क टकि़डय को भोजन व पानी उपल ध करवाते, िजनम से कछ तो ब त िदन से या ा
कर रही थ । 4 हॉस का अि म दल कपनी से कपूरथला म आ िमला। वे सभी 1 आमड ि गेड का िह सा थे, िजसे
उसी दोपहर कच करने का आदेश ा आ था। टोही टकड़ी क मुख क टन जसबीर िसंह क नेतृ ववाला
अि म दल शाम 4 बजे ही िनकल गया था। वह टक व अ य ‘बी’ वाहन (एक व दो टन क क जैसे चार पिहया
वाहन) बाद म मशः रल व सड़क माग ारा प चने वाले थे।
ि गेिडयर जसबीर िसंह याद करते ह, ‘‘सारी िडवीजन जा रही थी, इसिलए उस िदन उससे सड़क पर लंबा
जाम लग गया। हम रात 10 बजे तक पठानकोट प च गए। अगले िदन सुबह हम कठआ और िफर वहाँ से सांबा
जाने को कहा गया, जहाँ हम टक को रखने का िठकाना तैयार करना था।’’ उन लोग को इतनी ज दबाजी म भेजा
गया था िक उनक पास उस जगह का कोई न शा उपल ध नह था। उस े को समझने क िलए क टन जसबीर
िसंह ने ि गेड मेजर क न शे से तुरत एक कामचलाऊ न शा तैयार कर िलया। उस रात उनसे कहा गया िक 4 हॉस
क टक को वहाँ से लगभग 40 िकलोमीटर दूर सरना व मधोपुरा म उतार िदया गया ह और टक ांसपोटर क न
होने क कारण उ ह वयं इ ह ाइव करना होगा। 5 िसतंबर को सुबह 3 बजे क भ य सचू रयन टक ने पं ह क
ज थे म चलना आरभ कर िदया। सुबह क पहली िकरण िनकलने से पहले ही बी-वाहन क क क कपनी प च
गई। तब तक छ य पर गए कमांिडग ऑिफसर (सी.ओ.) ले टनट कनल मदन मोहन िसंह ब शी भी उस थान
पर प च चुक थे। वे चार ओर ई ताजा बुआई को देखकर िचंितत हो गए, य िक उन क चड़वाले खेत म भारी-
भरकम टक क फस जाने क पूरी संभावना थी। ि गेिडयर जसबीर िसंह बताते ह, ‘‘उस थान को टक का
आ य थल बनाने क िलए चुनने पर कमांडट साहब मुझ पर गु सा हो गए। लेिकन उनका गु सा तब शांत हो
गया, जब मने उ ह यह बताया िक इस े क िकसी भी न शे या सूचना क अभाव म मने िजतना हो सका, उतना
बि़ढया थान चुना ह।’’
जवान दो िदन तक वह िटक रह। 7 िसतंबर क शाम को एक शमन रिजमट, 2 लांसस एवं दो सचू रयन रिजमट
तथा 17 हॉस व 16 कवलरी वाली 1 आमड क पूरी रिजमट को पािक तान म वेश करने क आदेश ा ए। 4
हॉस को आव यकता पड़ने पर लड़ाई म उतारने क ि से रजव िडवीजन क तौर पर रखा गया। यह सुनकर
गनर वीर िसंह ने अपने टक कमांडर से कहा, ‘‘साहब, असी ते रजव िवच रह गए।’’ तब मेजर िसंह ने उ र
िदया, ‘‘बारी ताँ पु राँ वाडी वी आ जानी ह। ते आनी वी ऐदाँ ह िक याद करोगे तुसी।’’ 8 िसतंबर क सुबह धावा
बोला गया। सुबह 6 बजे दो मुख रिजमट—17 हॉस व 16 कवलरी क टक सीमा पार कर गए। 16 कवलरी क
चोबरा गाँव प चने तक सब ठीक रहा। उनक वहाँ प चने क फौरन बाद उनपर दु मन क भारी गोलाबारी और
भीषण आर.टी. बमबारी आरभ हो गई। उनक पहली ा न क टक को वह रोक िदया गया। दूसर ा न ने
उ ह पीछ छोड़ते ए उनक पास से िनकलकर हमला करने का यास िकया; लेिकन उनक ा न कमांडर मेजर
एम.आर. शेख क टक को पािक तािनय ने व त कर िदया, िजससे वे वह शहीद हो गए। इससे म क थित
उ प हो गई। तीसरी ा न इस कोलाहल म खो गई और उनक कोई खोज-खबर नह िमल सक । उस समय
4 हॉस को रजव िडवीजन से िनकालकर 16 कवलरी क जगह लेने को कहा गया। ि गेिडयर जसबीर िसंह याद
करते ह, ‘‘हम सुबह करीब 10 बजे चोबरा गाँव क ओर बढ़ने तथा 16 कवलरी को वापस लौटकर पुनः एक
होने क िलए कहा गया।’’ अगले चार िदन तक 4 हॉस उसी इलाक म मोरचाबंदी िकए रही। 10 िसतंबर क शाम
को भारी बा रश शु हो गई, जो टक क िलए अ छी खबर नह थी। इससे भी बुरी बात यह थी िक पािक तान म
सीमा क िनकट प सड़क न होकर कवल घनी झाि़डयाँ व क ी पगडडी ही थ । उसी रात 4 हॉस को राि
भोजन क बाद कोटली ल ा इलाक से हटने क आदेश जारी कर िदए गए। ि गेिडयर जसबीर को याद ह िक कसे
रात का भोजन कवल अँधेरा होने क बाद ही प चाया जा सकता था। ‘‘हम वो पीछ से भेजा जाता। लंगर पाट को
जहाँ भी पानी व सुर ा िमलती वो वह डरा डाल देते। वहाँ वे खाना पकाकर पैक करते। िफर उसे देर रात को
हमार अि म मोरचे पर प चा िदया जाता। टक म बैठ जवान उसे अपने पास रखकर जब भूख लगती तब खा लेत।े
रात क खाने म यादातर दाल, सूखी स जी व पूि़डयाँ होत ; य िक पूि़डयाँ रोटी क तरह सूखत नह तथा अिधक
समय तक खाने लायक रहती ह। इसी तरह ना ता व दोपहर का भोजन भी हम तक प चा िदया जाता। जब हम
तक ताजा भोजन नह प च पाता था तो जवान टक क भीतर ही चाय बनाकर अपने पास रखे शकरपार या ऐसा ही
कोई अ य ना ता कर लेत।े ’

िफ ौरा क लड़ाई
िफ ौरा पर हमला करने क योजना तैयार हो गई थी। आमड ि गेड को 16 कवलरी क साथ दाई ओर कोटली
ल ा क प म से तथा 17 हॉस म य म और 4 हॉस को बाई ओर (पूव क तरफ) से भेजा गया। 4 हॉस क
टकड़ी क िज मेदारी थी िक वे िफ ौरा को उ र-प म व प म क ओर से काटकर वाचोक व सबोक को
अलग कर द, िजससे िफ ौरा क बे पर उ र-प म क ओर से हमला कर रही 43 लॉरीड इ फ ी ि गेड को
मदद िमल सक। 1 आमड ि गेड को 11 िसतंबर को सूय क पहली िकरण क साथ कच करने क बाद ड़क
कलाँ पर क जा करना था, िजसक िज मेदारी 4 हॉस क चाल ा न को स पी गई। त प ा 4 हॉस व 17
हॉस को िफ ौरा को घेर लेना था। अपने ब त से टक खो देनेवाली 16 कवलरी क टकड़ी को दाई ओर क
सुर ा करने क अलावा दु मन ारा िसयालकोट क तरफ क िकए गए िकसी भी हमले को रोकना था।
11 िसतंबर क सुबह ‘सी’ ा न ने ड़क कलाँ गाँव क ओर कच िकया। लेिकन तभी दु मन ने उनपर
भारी बमबारी व हवाई हमले शु कर िदए। ा न कमांडर मेजर सी.बी. देसराज उस गोले से िनकला छरा
लगने से एक आँख गँवा बैठ। लेिकन उ ह ने मैदान छोड़ने से मना कर िदया और पूरी बहादुरी से अपने टक को
ड़क कलाँ पर क जा करने क अपने ल य क पूित हतु आगे बढ़ाया। बाद म पता चला िक उस गाँव म िम ी
क कवल कछ घर ही ह। उसक बाद उ ह वहाँ से हटाया गया और उनक ा न क कमान सेकड ले टनट
ए.क. नेहरा क युवा कध पर आ गई। अब अ फा व ेवो ा न अपने ल य पर धावा बोलने क िलए गाँव क
दोन ओर से आगे बढ़ रही थ । ‘ए’ ा न को यह सुिन त करना था िक चोबरा-गडगोर म मोरचा बाँधे बैठी
दु मन क सभी ताकत बािधत व न कर दी जाएँ। टक से टक क कछ तेज व भीषण मुकाबले ए। सचू रयन
जबरन आगे बढ़ रह थे। उस दौरान दु मन क टक ने िफ ौरा प चने से पहले एक मजबूत ार बना िलया।
उस िदन ा न ने बेहतरीन दशन िकया। उ ह ने आठ पैटन टक तथा आर.सी.एल. यु चार जीप को व त
कर िदया। उ ह ने पािक तान क रीस टकड़ी क कमांिडग अफसर क टन रजा क जीप पर क जा कर िलया। उस
जीप म ब त सार न शे थे, जो उ ह सहज ही ा हो गए।

कमांिडग अफसर क टक पर हार


‘ए’ व ‘बी’ ा न क बीच म रिजमटल हड ाटर था, िजसम कमांिडग अफसर, सेकड-इन-कमांड एवं उनक
एडजुटट क टक थे। कमांिडग अफसर ले टनट कनल ब शी को जब अ य टक िदखाई नह िदए तो उ ह ने यह
सोचकर िक वे पीछ छट गए ह, उन तक प चने क िलए अपनी गित बढ़ा दी। सुबह करीब 10.30 बजे वे क
और अपनी दूरबीन से आसपास का मुआयना करने लगे। उ ह िफ ौरा-िल बे माग साफ िदख रहा था, िजसक
दोन िकनार पर शीशम क लंबे पेड़ क कतार थ । अचानक उ ह एक पेड़ क नीचे 6 पैटन टक िदखाई िदए,
िजनक गन िल बे क ओर थी। वह समझ गए िक अब वे िबना उनक नजर म आए वहाँ से िनकल नह सकते
और उ ह ने िनडर होकर हमला करने का िनणय िलया। इससे पहले िक दु मन कोई काररवाई करता, उ ह ने उनक
दो टक उड़ा िदए। दोन से लपट उठने लग , िजसे देखकर सचू रयन क चालक दल को अपार स ता ई।
दु मन ने फौरन जवाबी काररवाई क और ले टनट कनल ब शी क टक पर गोला दाग िदया। इससे पहले उ ह ने
दो और टक को व त कर िदया। लेिकन दु मन ने भी उनक टक पर हार कर िदया। उ ह ने ती गित से आगे
बढ़ते ए धूल से ढक सड़क को पार िकया और दोन जलते ए पैटन टक से उ प अ यिधक धुएँ क बादल
को चीरते ए सड़क पार प च गए। इस बार िनशाना ठीक उनक टक पर लगा और उसम आग लग गई। उ ह ने
चालक को टक म से मशीन गन िनकालकर बाहर िनकल जाने का आदेश िदया। चालक दल क सभी सद य
दु मन पर अपनी िप तौल से गोिलयाँ बरसाते ए भागकर ग े क खेत म िछप गए। पािक तािनय ने कछ दूर
उनका पीछा िकया और िफर वापस लौट गए।
इस घटना क जाँच करने पर ात आ िक ले टनट कनल ब शी का टक प तः रडार से बाहर चला गया
था, इसिलए 4 हॉस म कोई नह जानता था िक उनक साथ या घट रहा ह। बावजूद इसक मेजर िसंह क कमांड
वाली ‘बी’ ा न योजना क अनुसार कोटली ब गा व दुलमानवाली क ओर आगे बढ़ रही थी, जहाँ उनका
सामना दु मन क एक टक से हो गया। टक से टक क बीच भीषण लड़ाई ई, िजसम पूरा दम लगा िदया गया।
उनक पोजीशन से कछ ही फ ट क दूरी पर काफ नीचे उड़ते जे स तथा रॉकट क फटने क जोरदार कानफो
आवाज आ रही थ । जब ‘बी’ ा न दबाव म आने लगी तो उनक सहायता हतु ‘सी’ ा न उनसे आ
िमली। उ ह ने पािक तान क ब त सार टक व त कर िदए, िजससे दु मन क रीढ़ टट गई। इस खौफनाक
अनुभव क बाद िल बे क ओर से 17 हॉस क टक क सुखद गड़गड़ाहट सुनाई देने लगी। चूँिक दु मन पहले ही
भाग चुका था, इसिलए 17 हॉस को िल बे व िफ ौरा क ओर से आगे बढ़ते समय िकसी ितरोध का सामना
नह करना पड़ा। चार घंट तक लापता रहने क बाद 17 हॉस क सेकड-इन-कमांड क टक ने ले टनट कनल
ब शी तथा उनक चालक दल क सद य को खोज िलया और उ ह साथ लेकर वापस रिजमट लौट गए। ग े क
खेत म जोिखम भर संि अनुभव क बाद ले टनट कनल ब शी को िफर से एक अ य टक क कमांड स प दी
गई।

िफ ौरा क हार
4 हॉस व 17 हॉस क ब तरबंद रिजमट ने िफ ौरा क चार ओर घेरा डाल िलया। वे सुर ा करनेवाल को य त
रखने क अलावा माग बनाने का यास कर रह टक व इ फ ी को भी व त करते रह। अब तक 43 लॉरीड
इ फ ी ि गेड क िफ ौरा पर हमले क जमीन तैयार हो चुक थी। उसम उ ह ने दो बटािलयन का उपयोग िकया
—5 जाट और 5/9 गोरखा राइफ स। 5 जाट ने जैसे ही सुबह 6.45 पर शु आती िबंदु को पार िकया, फौरन ही
उनपर जोरदार हवाई हमला हो गया। िवमान क जाने क बाद दु मन ने भीषण गोलाबारी आरभ कर दी। हवा म
फटनेवाले गोल ने भारी तबाही मचाई। वे जमीन पर िगरने से पहले ही फट जाते, िजससे घायल क सं या
िचंताजनक तर पर प च गई। इससे भी खराब बात यह थी िक इस हमले म बटािलयन क अिधकांश
आर.सी.एल. गन दलदली जमीन म फसकर बेकार हो गई। हालाँिक जाट व गोरखा ने 17 हॉस क ा न
क मदद से हमला करक दबाव बनाना जारी रखा।

5/9 गोरखा राइफ स


अ ल
ै 1965
बेहद िदलच प पु तक ‘मोम स ऑफ मै सीमम डजर’ क लेखक मेजर जनरल काितक गांगुली ( रटा.)
िफलहाल कोलकाता म शांितपूण जीवन िबता रह ह। वे पचह र वष क ह। पचास वष पूव जब वे कलक ा एक
िववाह समारोह म शािमल होने क िलए आए थे, तभी लड़ाई क बादल छाने पर उ ह वापस आने का आदेश िदया
गया। उनक बटािलयन उस व झाँसी म थी। उ ह ने वहाँ जानेवाली सबसे पहली न पकड़ ली। वहाँ प चकर
पता चला िक पलटन पहले ही कच कर गई ह और वहाँ उप थत प रवार क देखरख क िलए मा एक अफसर
मौजूद था। युवा क टन गांगुली उसी रात यु म शािमल होनेवाले जवान व हिथयार से खचाखच भरी िवशेष न
म सवार हो गए। जब उ ह िकसी भी िड बे म बैठने क जगह नह िमली तो वे इजन म जाकर उसक पास बने
टील क प पर बैठ गए। अंततः वे मुछाल गाँव क िनकट तंबू ताने बैठी अपनी बटािलयन तक प च गए और
अपनी एडजुटट क यूटी सँभाल ली। लगभग तीन महीने बीत गए, कछ नह आ। िसपाही अपने टट म रहते और
अपनी शांितकालीन िदनचया का पालन करते ए मंथर गित से अपने काय िनपटाते। जुलाई म वे वहाँ से कच
करक जालंधर क िनकट हमीरा नामक थान पर प च गए, जहाँ पूरी बटािलयन ने खाली पड़ी शराब क एक
भ ी म डरा डाल िलया। िसतंबर माह म 5/9 गोरखा राइफ स क कमांिडग अफसर ले टनट कनल बलदेव िसंह
ेवाल को ि गेड कमांडर क कॉ स म बुलाया गया। वह वहाँ से मुसकराते ए वापस लौट। यु क आदेश
िमल गए थे। मेजर जनरल गांगुली याद करते ह, ‘‘हम पािक तान म वेश करने को कहा गया। कपनी को उसी
रात 8 बजे िनकलना था।’’ ले टनट कनल ेवाल ने यह अ छी खबर सुनाने क िलए सभी अफसर को एकि त
करक उनसे कहा, ‘‘जटलमैन, हम यु म जाना होगा।’’ फौरन ही अगले िदन क िलए खाना बना और पैक कर
िदया गया। जवान ने त काल अपने घर पैसे भेजने शु कर िदए, य िक वे अपने वापस लौटने क समय या
संभावना पर िन त नह थे। एक फितमान भोजन क बाद बटािलयन रात ठीक 8 बजे कच क िलए तैयार हो
गई। वे सेना क वाहन क उस लंबे कािफले म शािमल हो गए, जो पंजाब-ज मू हाईवे पर थित सांबा क ओर जा
रहा था।
ितिबंब
ि गेिडयर जसबीर िसंह ने कहा था िक यु क दौरान चार ओर हमेशा घना कहरा छाया रहता। इसिलए कागज पर जो भी योजना बनाई जाती, वह
जमीन पर कभी नह उतर पाती। िफ ौरा म दोन प क इतने अिधक टक मौजूद थे िक म अपनी चरम अव था पर प च गया था। उ ह ने भारतीय
सेना क िफ ौरा पर क जा कर लेने क बाद का एक मनोरजक िक सा बताया। वे हसते ए बताते ह, ‘‘म अपनी जीप म धूप क अंितम कतर से पहले
सभी चीज दु त कर रहा था, तभी चार ओर ‘टक, टक, टक’ क आवाज आने लग । मने देखा िक पािक तान क चार टक िफ ौरा क ओर बढ़
चले आ रह ह। वहाँ इतने अिधक टक मौजूद थे िक बाहर िनकलने का यास कर रह उन पािक तानी टक पर िकसी क नजर ही नह पड़ी। इससे पहले
िक कोई कछ करता, वे िछपकर सुरि त बाहर िनकल गए।’ और चूँिक उस समय वे जीप म सवार थे, इसिलए वे भी उ ह रोकने क िलए कछ नह कर
सक।

यह यु ह
सुबह तक सांबा प चने क िलए गोरखा रात भर या ा करते रह। उसक बाद वे बाई ओर मुड़ और जंगल म एक
होकर अगले आदेश क ती ा करने लगे। िदन िबना िकसी दुघटना क बीतने लगे। तब 6-7 िसतंबर को उ ह
करीब आधी रात को सीमा पार कर जाने का आदेश िदया गया। योजना यह थी िक यिद ‘बी’ कपनी क एक व तीन
टन वजनी क ग े क खेत को पार नह कर सक तो गोरखा 16 कवलरी क टक म बैठकर पािक तान म वेश
कर जाएँगे। इ फ ी कािफले को आगे बढ़ाने क िलए सीमा पर बनी चौक चारवा पर रात म ही क जा कर लेना
था। अगले िदन सुबह करीब 8 बजे पािक तानी सैबर जेट ने उस े म ग त लगाना आरभ कर िदया। मेजर
जनरल गांगुली ने बताया, ‘‘वे हम पर हर पाँच िमनट म हमला कर रह थे। हमने अपनी सुर ा क िलए वाहन को
पेड़ क नीचे लगा िदया। िवमान क चले जाने क बाद हमने एक बार िफर आगे बढ़ना शु कर िदया।’’ एक
खतरा ग े क खेत म िछपे बैठ मुजािहदीन व पािक तानी टकि़डय से भी था, जो टक को तो िनकल जाने देते,
लेिकन जैसे ही इ फ ी वाहन गुजरते, वे उ ह अपनी ाइपर राइफल का िनशाना बना लेते। वे बताते ह, ‘‘वे इतना
परशान करने लगे िक मने अपनी जीप रोक और अपने दो जवान को लाइट मशीन गन से खेत क ओर गोिलयाँ
चलाते ए उनका पीछा करने को कहा। जब हम उ ह खोजने गए तो वे जगह-जगह आग लगाकर वहाँ से भाग
खड़ ए।’’ गोरखा ने चारवा से थोड़ी दूरी पर एक पेड़ क नीचे कप लगा िलया। अभी खा आपूित उन तक
नह प ची थी, इसिलए कमांिडग अफसर ने उन सबसे अपने चने व गुड़ क आपातकालीन राशन का सेवन करने
को कह िदया।
8 िसतंबर क दोपहर को स 1962 क यु म ‘वीर च ’ से स मािनत 5 जाट एडजुटट 5/9 गोरखा राइफ स
क पेड़ क नीचे बनाए गए हड ाटर म आए। वे जानना चाहते थे िक क टन गांगुली ि गेड तक रपोट कसे प चा
रह ह। क टन गांगुली ने अपनी शट क बटन खोले और उ ह वह नोटपैड िदखा िदया, िजसका वे उपयोग कर रह
थे। उ ह ने बताया िक वे अपनी रपोट अं ेजी म िलखकर देते, िजसे उनका िस नल ऑपरटर कट लेखन म
प रवितत करक रिडयो ऑपरटर को भेज देता, जो इ ह मोस कोड म ि गेड तक प चा देता ह। 5 जाट क एडजुटट
ने कहा िक वे भी ऐसा ही करगे और अपनी बटािलयन क ओर वापस चल िदए। उनक अपनी जीप क ओर बढ़ते
समय वे दोन िजस पेड़ क झुरमुट क नीचे खड़ थे, अचानक उस पर हवाई हमला हो गया। क टन गांगुली ने उस
जाट अफसर को तुरत नजदीक खंदक म िछप जाने को कहा। इससे पहले िक वह वहाँ तक प च पाते, उनक
आँख क सामने ही उस 5 जाट क एडजुटट पर हार हो गया और उसक िसर क िचथड़ उड़ गए। मेजर जनरल
गांगुली कहते ह, ‘‘उसक िसर-िवहीन शरीर क कछ कदम भागने क बाद वह ढर हो जाने क उस भयानक य
को म कभी भूल नह सकता।’’ िवमान क जाने क बाद जवान ने उस युवा अफसर क िनज व शरीर को उठाया
और उसे उसी जीप म रख िदया, िजसम वे आए थे। ाइवर रो रहा था। वह रोते ए कह रहा था, ‘‘म सी.ओ.
साहब को या जवाब दूँगा?’’ आिखरकार वह उस शव को वहाँ से ले गया।

िल बे म वेश
8-9 िसतंबर क रात 5/9 गोरखा राइफ स को िल बे नाम क जगह पर प चने क आदेश िमले, जहाँ से उ ह 5
जाट क साथ िमलकर िडवीजन क ल य िफ ौरा क बे पर हमला करना था। चूँिक टक जुते ए खेत म फस
गए थे, इस कारण कच को योजना क मुतािबक अंजाम नह िदया जा सका था; लेिकन वे आगे बढ़ते रह। रात 8
बजे बा रश शु होने क साथ ही थित और भी खराब हो गई। शी ही खेत म घुटन तक पानी भर गया। वाहन
क पिहए वह क गए। गोरखा नीचे उतर और दाँत िकटिकटाते ए उस क चड़ क बीच से आगे माच करने लगे।
उ ह ने अपनी 7.62 एस.एल.आर. राइफल को अपनी पीठ पर टाँगा और अपनी सात मीिडयम मशीन गन को
कध से ऊपर उठाकर चलने लगे। वे जवान सुबह करीब 3 बजे िल बे क िनकट प च गए। तब तक बा रश क
गई थी। वे जानते थे िक सुबह होते ही हवाई हमले िफर से शु हो जाएँग।े उ ह ने देखा िक िसयालकोट-िफ ौरा-
जफरवाल माग क बाई ओर से आनेवाले जाट अभी तक नह प चे थे और न ही वहाँ टक ही थे। उनक रिडयो
सेट क बैटरी समा हो गई थी। इसिलए या आ ह, यह जानने का उनक पास कोई तरीका नह था। चूँिक
हमला करने का समय तड़क सुबह का था, इसिलए ले टनट कनल ेवाल ने अपने सहायक को ि गेड हड ाटर
यह आदेश लेने क िलए भेजा िक इन प र थितय म उ ह अब या करना होगा। क टन गांगुली ती गित से वापस
लौट। उ ह रा ते म पेड़ क छाया क नीचे बैठ दो ि गेड कमांडर िमले—1 आमड ि गेड क ि गेिडयर क.क.
िसंह और 43 लॉरीड इ फ ी ि गेड क ि गेिडयर एच.एस. िढ । उ ह ने एक वाहन पर उस े का न शा टाँग
रखा था और वे हमले क योजना बना रह थे। क टन गांगुली को पता चला िक जाट टकड़ी कह फस गई ह और
उसे िल बे प चने म थोड़ा व लग जाएगा। 5/9 को आदेश िदए गए िक वे अपने फॉिमग अप लेस
(एफ.यू.पी.) पर प च और अगले आदेश क ती ा कर, जो ि गेड कमांडर वयं उ ह वहाँ आकर बताएँगे।
गांगुली वापस अपनी बटािलयन क ओर लौट गए। 9 िसतंबर को करीब सुबह 11 बजे गोरखा िल बे गाँव म वेश
कर गए। उ ह सड़क पर दु मन क टक क कतार िदखाई दी। ले टनट कनल ेवाल ने गोरखा से कहा िक
सभी कपिनयाँ एक-एक करक सड़क पार कर और ग े क खेत म िछप जाएँ। उनक सीटी बजाते ही वे तेजी से
दौड़कर पार िनकल जाते। इसक बाद वे सब अगले िकनार पर एक ए और अपनी उप थित को िच त करने
क िलए छोटा सा झंडा लगाकर अगले आदेश क ती ा करने लगे। दु मन क टक उनपर गोले दाग रह थे।
उनक िचंता तब और बढ़ गई, जब उ ह ने अपने पीछ इ फ ी को एक होते देखा। जैसे ही वे बाहर िनकले, उसी
समय िफ ौरा को घेरकर खड़ी भारतीय ब तरबंद सेना ने उनम से कछ को मार िगराया।
सुबह करीब 11.30 बजे 43 लॉरीड इ फ ी ि गेड क ि गेड कमांडर ि गेिडयर एच.एस. िढ व ि गेड मेजर
मेजर रिव महाजन 5/9 गोरखा राइफ स क पास प च गए। ि गेड कमांडर ने उनसे कहा िक 5 जाट और फसे
ए टक को वहाँ प चने म व लगेगा, लेिकन हमला टाला नह जा सकता। उ ह ने 5/9 गोरखा राइफ स से
कहा िक वे अपनी सभी कपिनय को फलाकर िफ ौरा क बे पर हमला कर दे। बटािलयन अपने एफ.यू.पी. तक
पैदल गई, जहाँ से िफ ौरा लगभग 730 मीटर दूर था। दोपहर क 2 बज रह थे। गोरखा ने बीते छह िदन से
ग े क अलावा और कछ नह खाया था। अब उनक भूखे पेट गुड़गुड़ाने लगे थे। वे न कवल भूखे थे ब क
उ ह ने काफ समय से पानी भी नह िपया था। जैसे ही उ ह र सी व बा टी सिहत कआँ िदखाई िदया, वे दौड़कर
वहाँ प चे और अपनी बोतल भरने लगे। ठीक उसी समय दु मन ने गोलाबारी आरभ कर दी। पानी िमलने क
उ साह म सैिनक ने यान नह िदया िक गाँव क मसिजद क छत पर बैठ पािक तानी उन पर गोिलयाँ बरसा रह
ह। कछ जवान गोिलयाँ लगने से घायल भी ए। उनक कमांिडग अफसर ले टनट कनल ेवाल ब त नाराज ए।
उ ह ने एक छड़ी उठाई और अपने जवान को पीटते ए वापस खदेड़ने लगे। इसक बाद उ ह ने येक कपनी को
छगल भरने और जवान को उनक यास िछपकर बुझाने क आदेश जारी िकए।
दोपहर 3 बजे गोरखा ने िफ ौरा क बे पर हमला कर िदया। जहाँ ‘सी’ व ‘डी’ कपनी ने िसयालकोट-
जफरवाल माग पर दाई ओर से हमला िकया, वह ‘बी’ कपनी ने बाई ओर से धावा बोला। क टन गांगुली क
कमानवाली ‘ए’ कपनी अपने कमांिडग अफसर सिहत सड़क क साथ-साथ चलती रही। गोरखा अ छी बढ़त
हािसल कर चुक थे। उसी समय दु मन क एकाक टक ने आगे बढ़ती टकड़ी पर गोिलयाँ बरसाते ए उनका
हमला वह रोक िदया। इस वेगपूण गोलाबारी क कारण जवान आगे नह बढ़ पा रह थे। इससे उ ेिजत ले टनट
कनल ेवाल ने क टन गांगुली को इस अनपेि त बाधा को दूर करने का आदेश िदया। क टन गांगुली ने क पना
क िक हमला कर रह टक को अपने ठीक पीछ का कछ िदखाई नह दे रहा होगा, इसिलए वे ग े क खेत म
िछपकर धीमी गित से चलते ए उस टक क पीछ प च गए। वे चुपचाप व थर गित से उसपर चढ़, उसका गुंबज
खोला और उसम एक-एक कर दो ेनेड अंदर डाल िदए। थोड़ी देर बाद जब उ ह ने सावधानीपूवक ढ न खोला
तो धुएँ का एक भभका सा बाहर िनकला। उसक छटने क बाद जब क टन गांगुली उसम िव ए तो उसम एक
अकले पािक तानी सैिनक का िनज व शरीर पड़ा था। वह दफदार था। उ ह ने अकले दम पर पूरी इ फ ी क हमले
को अव करनेवाले उस मृत सैिनक को उसक साहस क िलए सै यूट िकया और उसे हटाकर वे वयं चालक
क करसी पर बैठ गए। वे बताते ह, ‘‘मने सोचा िक म इस टक को अपनी ओर ले जाता , िजससे हम बाद म
इसका उपयोग कर सक; लेिकन वह टाट ही नह आ।’’ तब उ ह समझ आया िक वह वहाँ य खड़ा था। वह
खराब था, इसी कारण अपनी ा न क साथ नह जा सका, िजसे संभवतः चािवंडा क ओर खदेड़ िदया गया था
और जहाँ पािक तानी ितरोध क िलए एक हो रह थे। जब क टन गांगुली टक से बाहर िनकले तो उ ह ने देखा
िक एक भारतीय टक उनक ओर बढ़ रहा ह, िजसपर एक काला पटका व हलमेट पहने िसख अफसर उनक ओर
िप तौल ताने ए ह। उस पैटन टक क जाँच क िलए आए इस सचू रयन ने उ ह दु मन का सैिनक समझ िलया
था। क टन गांगुली क अपना प रचय देने पर उस िसख अफसर ने अपनी बंदूक हटाई और वहाँ से चला गया।
गांगुली स अव था म अपने जवान क पास लौट आए, जहाँ उनक कमांिडग अफसर और हमले क दौरान
अपनी जीप क वायरलेस सेट से उनक ि गेड व िडवीजन से संपक बनाए रखने म मदद देनेवाले ि गेड मेजर ने
उनका शानदार वागत िकया।
दोपहर 4.30 बजे तक िफ ौरा क बे पर क जा हो गया; लेिकन पािक तािनय ने शाम 5 बजे चािवंडा क
ओर से घुसकर तुरत जवाबी हमला कर िदया। गोरखा ने इस हमले का मुँहतोड़ जवाब िदया। ि गेड मेजर ने
टक सहायता क िलए कह िदया। मेजर जनरल गांगुली बताते ह, ‘‘हमने टक क आने तथा उनम पर पर गोलाबारी
क आवाज सुन ली थी; लेिकन िफर भी हम उस थान से हट नह । आधे घंट बाद दु मन क टक व इ फ ी वापस
लौट गए। शाम 5.30 बजे तक जाट भी वहाँ प च गए और उ ह क बे क पूव क ओर तैनात कर िदया गया।
उ ह ने भी सुर ा मक मोरचाबंदी कर ली। अब दोन बटािलयन उस रात को होनेवाले दु मन क जवाबी हमले से
िफ ौरा को सुरि त रखने को पूरी तरह मु तैद थ । उ मीद थी िक यह जवाबी हमला सुबह होने से पहले ही
होगा। साथ ही उ ह यह भी पता था िक यिद वे रात भर उस थान पर क जा बनाए रख सक तो यह इितहास बन
जाएगा। इसक बाद उ ह ने घायल सैिनक को खोजा और उ ह रकवरी टक व जाट ारा लाई गई एंबुलस म
उठा लाए। गोिलय से ल लुहान और बम क छर से घायल जवान को िफ ौरा म बने एक र ट हाउस क बड़
से हॉल म लाया गया। अभी तक डॉ टर, दवाइयाँ व प याँ वहाँ तक नह प ची थ , इसिलए गांगुली ने उन
सैिनक को हर आधे घंट म िब कट क िटन म दूधवाली मीठी चाय बनाकर िपलाने का आदेश िदया। अगले िदन
क सुबह तक पािक तान बाधा प चाने क िलए द ते भेजता रहा, लेिकन अंततः वे सभी वापस लौट गए। लड़ाई
समा हो गई थी। िफ ौरा म दु मन इतनी ज दी हार गया िक श ु प क उ ािधका रय को इसक खबर भी
नह लगी। भारतीय सेना क िफ ौरा पर क जा करने क आधे घंट बाद जब दु मन का एक हलीकॉ टर वहाँ
उतरने का यास कर रहा था तो 17 हॉस क मेजर वीरदर िसंह ने उसे मार िगराया। बाद म पकड़ म आए एक
संदेश म कहा जा रहा था िक ‘बड़ इमाम मार गए ह’। माना गया िक वे 15 इ फ ी िडवीजन या 6 आमड िडवीजन
क जनरल ऑिफसर कमांिडग थे। लड़ाई क अंितम काररवाई तक 5/9 गोरखा राइफ स क 34 जवान शहीद हो
गए तथा 174 घायल ए। 1 आमड िडवीजन क ‘महावीर च ’ िवजेता जनरल कमांिडग अफसर मेजर जनरल
रािजंदर िसंह पैरो दु मन क भारी बमबारी क बावजूद सभी यूिनट क टकि़डय को इस िवजय क िलए य गत
प से बधाई देने आए।

एक िनणया मक िवजय
12 िसतंबर, 1965 को िफ ौरा क टक यु म भारतीय सेना को एक मह वपूण व िनणया मक िवजय हािसल
ई, िजसम पािक तानी सेना को पीछ हटना पड़ा। ‘वीर च ’ से स मािनत ले टनट जनरल हरब श िसंह ने
अपनी पु तक ‘वॉर िड पैचेज’ म कहा ह िक सैिनक ारा आ यजनक प से सटीक गोलाबारी क दशन क
अलावा कशल जूिनयर नेतृ व का भावशाली माण होने क कारण िफ ौरा क लड़ाई का ब तरबंद यु क
इितहास म हमेशा िवशेष थान रहगा।
पािक तानी सेना क पूव मेजर व सै य इितहासकार ए.एच. अमीन क अनुसार, ‘‘भारतीय ने 11 िसतंबर को
15.30 पर िफ ौरा पर क जा कर िलया था। 11 कवलरी (पािक तान) ने ब त अ छी लड़ाई लड़ी, लेिकन 11
िसतंबर क उस लड़ाई म उ ह ने इतने टक खो िदए िक उसक बाद से उनक पूण टक रिजमट क प म काय
करने को अव कर िदया गया।’’ िफ ौरा क लड़ाई म 4 हॉस ने मेजर भूिपंदर िसंह (मरणोपरांत) एवं
ले टनट कनल एम.एम.एस. ब शी क 2 ‘महावीर च ’ समेत 43 ‘वीरता पुर कार’ ा िकए। उ ह िफ ौरा
क बैटल उपािध व पंजाब क िथएटर उपािध भी दान क गई। 17 हॉस क कमांडट ले टनट कनल ए.बी.
तारापोर को मरणोपरांत भारत क उ तम वीरता पुर कार ‘परम वीर च ’ से स मािनत िकया गया। 5/9 गोरखा
राइफ स को िफ ौरा क ‘बैटल उपािध’ दी गई।
पािक तानी इलाक म भारतीय सेना क िनरतर हमल का प रणाम चािवंडा क लड़ाई क प म सामने आया। 22
िसतंबर को संयु रा क सुर ा प रष म दोन देश हतु िबना शत यु -िवराम का ताव सवस मित से पा रत
हो गया। यु समा होने क िदन तक भारत ने पािक तान क लगभग 518 वग िकलोमीटर क इलाक पर क जा
कर िलया था, िजसम िफ ौरा, पागोवाल, महाराजक, गडगौर व बाजा ही क गाँव शािमल थे। ताशकद समझौते
क बाद ये सभी पािक तान को वापस लौटा िदए गए।
आग का गोला
19 िसतंबर को मेजर भूिपंदर िसंह क ेवो ा न को रिजमट क दाएँ िह से को सुरि त करने क िलए िसयालकोट-चािवंडा रलवे लाइन को पार
कर सो ेक क ओर बढ़ने का आदेश िदया गया। रलवे लाइन को पार करते ही उनका सामना दु मन क टक से हो गया और वे भारी गोलाबारी क जद
म आ गए। एक पैटन टक ने मेजर भूिपंदर िसंह क टक पर हार िकया, िजससे उसम आग लग गई। उनक गनर दफदार वीर िसंह याद करते ह, ‘‘अंदर
चार लोग थे, लेिकन हम उन सबको िबना िकसी नुकसान क िनकाल लाए।’’ आग पर िनयं ण करक मेजर एक बार िफर लड़ाई म कद पड़। उनक टक
ने दु मन क चार टक मार िगराए। शाम 5 बजे क आसपास उनक टक पर आग क एक गोले ने हार िकया। वीर िसंह क अनुसार, उ ह ने तब तक वैसा
कभी नह देखा था। उसने टक क गन को फाड़ते ए ाइवर को िजंदा जला िदया। वह अपनी सीट से उठ भी नह सका। मेजर िसंह ने िकसी तरह अपने
लोडर को उस अ न प टक क ऊपर ख चकर िनकाल िलया। लेिकन इस ि या म वे वयं भी बुरी तरह जल गए। आग से वीर िसंह क बाल व वचा
बुरी तरह झुलस गए तथा उनक शरीर पर पहने कपड़ जलकर काले हो गए। उसक देखने क श समा हो गई और शरीर पर कवल अंतव व
हाथ म िपघला आ कड़ा ही लटका था। दोन को वहाँ से िनकालकर इलाज क िलए पहले पठानकोट और बाद म िद ी म सेना क बेस अ पताल
भेजा गया। वीर िसंह क जान बच गई, जबिक मेजर िसंह अपने घाव क चलते वीरगित को ा ए। बाद म 4 हॉस को पता चला िक वह आग का
गोला दरअसल कोबरा िमसाइल थी, जो अपनी अ यिधक गरमी क चलते कवच को भी काट सकती ह। मेजर िसंह को मरणोपरांत ‘महावीर च ’ से
स मािनत िकया गया, जो भारत का दूसरा सबसे बड़ा वीरता पुर कार ह।
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ले टनट कनल आदिशर बुज रजी तारापोर
परम वीर च
िसतंबर 1965
17 हॉस (पूना हॉस) क टक सीमा पार कर गए थे। िफ ौरा क लड़ाई क बाद अब उनक तैनाती पािक तान क
पंजाब ांत क िसयालकोट िजले म क गई थी। अपनी रिजमट म ेहवश ‘आिद’ कह जानेवाले कमांिडग अफसर
ले टनट कनल आदिशर बुज रजी तारापोर ने अपने सेकड-इन-कमांड मेजर िनरजन िसंह चीमा (बाद म ले टनट
जनरल चीमा, रटा.) को एक ओर बुलाया। मेजर चीमा समझ रह थे िक वे यु संबंधी चचा करगे; लेिकन वे
अपने कमांिडग अफसर क बात सुनकर च क उठ। ले टनट कनल तारापोर ने उनसे कहा, ‘‘यिद म लड़ाई म
मारा जाता तो मुझे वह यु भूिम म ही दफना देना। मेरी ाथना क पु तक मेरी माँ को, मेरी सोने क चेन मेरी
प नी को, मेरी अँगूठी मेरी बेटी को और मेरा ेसलेट व पैन मेर बेट को दे देना। और िनरजन, कपया मेर बेट
जै सीस से कहना िक वह भी सेना म शािमल हो।’’ पाँच िदन बाद ले टनट कनल तारापोर दु मन क गोले से
िनकले छर से बुरी तरह घायल होकर वीरगित को ा हो गए।

िफ ौरा पर क जे क दौरान एक गोले से िनकला छरा लगने से ले टनट कनल आदिशर बुज रजी तारापोर क बाँह म गहरा घाव हो गया। उ ह ने
वहाँ से जाने से यह कहते ए मना कर िदया िक वह कवल एक ‘छोटी सी खर च’ ही ह। इसक बाद म भी उ ह ने चािवंडा पर हमले क िज मेदारी
बखूबी िनभाई। इस लड़ाई म उनक टक पर कई हार ए। उनक नेतृ व से ेरणा पाकर उनक रिजमट ने भीषण हमले करते ए दु मन क 60 से भी
अिधक टक व त कर िदए।
कई वष बाद एक मुख अं ेजी दैिनक अखबार को सा ा कार देते समय जनरल चीमा क आ य कट करते
ए कहा िक संभवतः ले टनट कनल तारापोर को, जो अ यिधक धािमक य थे, अपनी मृ यु का पूवाभास हो
गया होगा। 16 िसतंबर, 1965 को िसयालकोट से टर म भारत व पािक तान क बीच ए भीषण टक यु म
ले टनट कनल तारापोर क टक पर दु मन क गोले ने हार कर िदया। िजस व वह टक गुंबद पर खड़ थे, उसी
समय वह फट गया तथा टक म आग लग गई, िजससे उनक व उनक इटलीजस अफसर क मृ यु हो गई। वे
यु भूिम म एक नायक क भाँित वीरगित को ा ए, जो उ ह यार करनेवाले लोग क िलए सदमे से कम नह
था। िपछले यु म चोिटल ई उनक बाई बाँह, िजसक इलाज क िलए उ ह ने मैदान छोड़ने से ढतापूवक मना
कर िदया था, उस समय भी बँधी ई थी। अपने जवान को पािक तान म िव करवाने क बागडोर उ ह ने
बखूबी सँभाली, जहाँ उ ह ने जसूरन व बु र डोगराँडी पर क जा करने म पूणतः सफलता पाई।
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जरीन मािहर बॉयस अब उ क छठ दशक म प च चुक ह। आज से पचास वष पूव उनक िपता ले टनट
कनल आदिशर बुज रजी तारापोर शहीद ए थे, लेिकन उनक याद आज भी उनक मन म ताजा ह। पुणे थत
अपने घर म वे उ ह एक बेहद यार करनेवाले िपता तथा वीर सैिनक क प म याद करती ह। बात करते समय
उनक आवाज म कभी मुसकान खेल जाती तो कभी उदासी क खनक सुनाई देती। वे कहती ह िक इस बात को
कई वष बीत गए, लेिकन लगता ह जैसे कल ही क बात हो। ऐसा पहली बार आ था िक उनक िपता घर वापस
नह लौट और पूरा प रवार िचंता म डब गया। उ ह याद ह, तब वे कवल पं ह वष क थ ।
वह 1964 का जनवरी का महीना था। सूय अ त हो रहा था और बबीना कटोनमट म थत तारापोर क खूबसूरत
घर म बि याँ जल रही थ । डाइिनंग टबल पर घर क एक अितिथ का ज मिदन मनाने क िलए कक मौजूद था;
लेिकन ीमती पे रन तारापोर अभी भी अपने पित क लौटने क ती ा कर रही थ । वे इसिलए िचंितत थ , य िक
उ ह ने आज ज दी आने का वादा िकया था। घर म ब े, जै सीस व जरीन अपने िपता क ती ा म अधीर हो रह
थे।
ीमती तारापोर को उस समय शांित िमली, उ ह जब शाम 7.45 बजे ाइव-वे म गाड़ी क कने क आवाज
आई। वह उनक पित क जीप थी। जब वे बरामदे म उतर तो वे ले टनट कनल तारापोर क पूरी वरदी को क चड़
से सना देखकर दंग रह गई। उनक ाइवर व वायरलेस ऑपरटर भी उसी तरह क चड़ म िलपट ए थे। ब े व
सभी मेहमान उनक चार ओर एक हो गए। तब उ ह ने माफ माँगते ए बताया िक उनक जीप बबीना क बाहर
गुरारी नाले म फस गई थी। उनक वरदी पर िम ी इसिलए थी, य िक जीप को क चड़ से िनकालने म उ ह ने भी
अपने जवान क मदद क थी। उनक मेहमान म से एक य , जो तारापोर क पदवी क चकाच ध से अिभभूत
था, इस बात को सुनकर त ध रह गया। अपनी रिजमट का कमांिडग अफसर पानी म उतरकर अपनी जीप को
ध ा य मारगा? सामा यतः सौ य व िवन रहनेवाले कनल ने यह सुनकर स ती से यु र िदया, ‘‘म चीनी या
नमक का नह बना िक उसम घुल जाऊगा। मेर जवान जो भी कछ करगे, म भी उनक साथ िमलकर वही
क गा।’’

एक ज मजात यो ा
आिद का ज म 18 अग त, 1923 को बंबई म आ। माना जाता ह िक उनका पा रवा रक उपनाम ‘तारापोर’
दरअसल आठ पीढ़ी पहले छ पित िशवाजी ारा बाँट गए मनसब क 100 गाँव म से आिद क पुरख को िमले
एक गाँव ‘तारापोर’ क नाम से आया था। मनसब को वीरता व िन ा क सराहना क िनशानी क तौर पर िदया
जाता था और संयोगवश ये गुण आिद म बचपन से ही थे।
मुझे इसी से जुड़ी ले टनट कनल तारापोर क बचपन क एक छोटी सी कहानी भी ात ई। एक बार जब छह
वष क उ म वे अपनी दस वष य बहन यादगार क साथ िपछले आँगन म खेल रह थे। तभी एक गाय अपनी
र सी तुड़वाकर यादगार क ओर लपक । जैसे ही यादगार डरकर िच ाई, छोट से आिद ने तुरत एक छड़ी उठाई
और गाय क सामने आ खड़ ए तथा उसक नाक पर मारा। वह गाय एकदम से च क और पीछ मुड़कर भाग गई
और दोन ब े िफर से अपने खेल म लग गए। समय क साथ ही िनडरता का उनका यह गुण और भी धारदार हो
गया। उन िदन हदराबाद एक अलग रा य होता था और चूँिक आिद ने पहले से ही कल क बाद ब तरबंद
रिजमट म जाने का मन बना िलया था, इस तरह जनवरी 1942 म उनक 7 हदराबाद इ फ ी म सेकड ले टनट क
तौर पर िनयु हो गई।
तारापोर का पूना हॉस म जाना भी एक संयोग ही था। एक बार जब भारतीय रा य बल क कमांडर-इन-चीफ
मेजर जनरल एल-ए ोस उनक बटािलयन का िनरी ण करने आए थे। ेनेड फकने क एक सामा य िश ण क
दौरान िकसी रग ट िसपाही ने घबराहट म ेनेड को दुघटनावश असुरि त े म फक िदया। अपनी सुर ा क
परवाह िकए िबना तारापोर फौरन कदकर आए, ेनेड को उठाया और दूर फक िदया। जैसे ही उ ह ने ेनेड को
फका, वह कछ ही दूरी पर फट गया, िजससे उसम से उड़कर आए कछ छर उनक छाती म घुस गए; लेिकन
अ य िकसी को कोई हािन नह प ची। मेजर जनरल एल-ए ोस इस युवा अफसर से ब त भािवत ए और
तारापोर क घाव ठीक हो जाने पर उ ह अपने द तर म बुलाकर बधाई दी। तारापोर ने उनसे खुद को ब तरबंद
रिजमट म भेजने का अनुरोध िकया, िजसक बाद मेजर जनरल एल-ए ोस ने उ ह 1 हदराबाद इपी रयल सिवस
लांसस म तैनात कर िदया।
हदराबाद रा य क भारतीय संघ म िवलय क बाद तारापोर को 17 हॉस (पूना हॉस) क ब तरबंद रिजमट म
तैनात कर िदया गया। वहाँ उनक िनयु ‘ए’ ा न म ई, जो मु यतः राजपूत ा न थी। लेिकन गैर-
राजपूत होते ए भी उ ह ने उनक साथ इतने घिन संबंध बनाए िक उ ह प रहास म ‘ए’ ा न क कनल क
अनौपचा रक पदवी दी गई थी; ब क उ ह ने तो ा न क नॉन-कमीशंड अफसर बहादुर िसंह जैसी ऊपर क
ओर उमेठी ई डरावनी मूँछ भी उगानी आरभ कर द । कई वष रिजमट क कमान सँभालने क बाद भी उ ह ने वे
भावशाली मूँछ बनाए रख । वे मजाक म कहते थे िक पूना हॉस का कमांडट तभी कमांडट जैसा लग सकता ह,
जब उसक चेहर पर उमेठी ई मूँछ ह ।
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ले टनट कनल तारापोर क दो गुण ऐसे थे, िजसका अनुभव उनक सभी जवान व अफसर को आ था। वह
था उनका िनडर, यावहा रक व ि याशील कमांिडग अफसर होना। उनक िलए कोई काम छोटा नह था। वे टक
म गोला-बा द लोड करवाने म अकसर अपने िसपािहय क मदद करक उ ह च का देते। आमतौर पर अ य
अफसर ऐसा नह करते थे। 71 वष य सवार नाथू िसंह ( रटा.) उस समय क बात बताते ह, जब रिजमट को हाल
ही म सेचू रयन टक िमले थे। नाथू एक सचू रयन चला रह थे, लेिकन इजन चालू होते समय होनेवाली तेज
घरघराहट क आवाज उ ह परशान कर रही थी। उ ह दूर से देख रह ले टनट कनल तारापोर तुरत उनक पास
प चे और कदकर टक क गुंबद पर चढ़ गए और नाथू से धीमे से कहा, ‘‘ब ा, रस कम करो।’’ वे उन अफसर
म से थे, जो िवदेश म िश ण लेने क बाद अपनी यूिनट म सचू रयन टक लाए थे। उ ह उनसे बेहतर कोई नह
समझ सकता था।

स मान का समय
जब यु क घोषणा ई, उस समय 17 हॉस रिजमट कपूरथला म थी। उनसे सांबा से अगले गाँव प चने को कहा
गया। वहाँ प चने पर उ ह पािक तान क बकािनया गाँव क ओर से सीमा पार करने क आदेश िदए गए। एक रात
पहले बा रश ई थी, िजससे खेत क जमीन दलदली हो गई थी। कल जाते ब े और पानी भरने जाती मिहलाएँ
िम ी क बीच से क चड़ उछालते ए जाते उन टक को देखकर हरान रह गए। पहले तो वे अवाक खड़ देखने
लगे, िफर काली पोशाक पहने खुले गुंबद म खड़ जवान को गलती से पािक तानी समझकर हाथ िहलाने लगे।
कछ लोग उ ह देखकर मुसकराते ए सैिनक को पुकारने लगे तो कछ एक क पीछ एक उन 45 मशीनी रा स
को जाते बेिदली से देखते रह।
पािक तानी गाँव क लोग पहचान नह सक िक वही पूना हॉस क वे भयावह सचू रयन टक ह, िजनक आने क
आशंका थी। ले टनट कनल तारापोर ारा िकसी भी नाग रक को कोई नुकसान न प चाने क स त िनदश िदए
गए थे। वे वायरलेस पर तीखी आवाज म कह रह थे, ‘‘हमारी लड़ाई सेना क साथ ह। हम िकसी भी िनरपराध
पु ष, ी या ब े को छना भी नह ह।’’ सभी जवान ने उ ह सुना था। इसी कारण गाँववाले उ ह गलती से अपने
िम व पािक तानी सैिनक समझ बैठ।
िफ ौरा क लड़ाई
10 िसतंबर को भारतीय टकि़डय क भीषण हमले से िफ ौरा क लड़ाई क शु आत ई। 11 िसतंबर, 1965 को
पूना हॉस को िफ ौरा पर क जे क िलए एक बड़ा ब तरबंद हमला करने का काय स पा गया।
िनणय िलया गया िक िफ ौरा पर पीछ क ओर से अ यािशत हमला िकया जाएगा। उस इलाक म हमले क
िज मेदारी 1 आमड िडवीजन को स पी गई, िजसक चार ब तरबंद रिजमट म से एक पूना हॉस भी थी। दु मन
ारा कोई ितरोध न होने पर टक पािक तान म आगे बढ़ते रह। जनरल अजय िसंह ( रटा.), जो उस समय पूना
हॉस क ‘सी’ ा न क युवा क टन थे, दबी हसी क साथ बताते ह िक ‘‘सुबह 11 बजे हम पर पहला हवाई
हमला आ। तब तक दु मन को पता ही नह था िक हम उनक देश म इतने अंदर तक घुस आए ह।’’ पािक तान
ारा इस अचानक क गई गोलाबारी ने आगे बढ़ रही सेना को च का िदया। इन हवाई हमल म टक से अिधक
नुकसान लॉरी व इ फ ी वाहन को आ। जनरल अजय िसंह याद करते ह, ‘‘हालाँिक ब तरबंद बटािलयन क
िलए यह सं या ब त बड़ी थी। चार ओर कोलाहल मच गया। ब त से जवान, जो अपने टक गुंबद से बाहर
िनकलकर खड़ थे, इस हार से या तो वह ढर हो गए या उ ह गंभीर चोट आई।
पािक तान क पैटन टक का सामना 16 कवलरी व 4 हॉस (हडसन हॉस) क ब तरबंद यूिनट से था। इसी
समय ले टनट कनल तारापोर ने पहल क और थित सँभालने क िलए पूना हॉस भी लड़ाई म कद पड़ी। जैसी
उनक हमेशा से आदत थी, उ ह ने िनदश क ती ा िकए िबना पािक तािनय पर अचानक हमला कर िदया।
वृ जनरल उस धुएँ भरी सुबह को गव से याद करते ए बताते ह, ‘‘और वह हमला िकतना जोरदार था! हमने
पहली ही बार म 13 टक न कर िदए।’’ दो िदन तक चंड यु जारी रहा, िजसम पािक तानी सैिनक को पीछ
हटाते ए चािवंडा तक खदेड़ िदया गया। 11 िसतंबर को िफ ौरा पर भारत का क जा हो गया। पािक तान क
11 कवलरी ने ब त अ छी लड़ाई क ; लेिकन इसम उ ह ने अपने इतने टक खो िदए िक उ ह ने पूण टक रिजमट
क प म काय करना बंद कर िदया। इस अिभयान म ले टनट कनल तारापोर घायल हो गए। उनक बाँह पर लगे
गोले क एक टकड़ से वहाँ बड़ा घाव हो गया। उनक घायल हाथ को गलप ी से लटकाना पड़ा।
िफ ौरा पर क जे क बाद ि गेड कमांडर व जनरल ऑिफसर कमांिडग ने पूना हॉस को वहाँ आकर बधाई दी।
ले टनट कनल तारापोर ने उस काय हतु पुर कार क चचा को यह कहते ए खा रज कर िदया िक उनक रिजमट
ने कवल अपनी यूटी िनभाई ह। उ ह ने अपने घाव को ‘एक खर च मा ’ बताते ए वहाँ से जाने से इनकार कर
िदया; ब क चािवंडा पर हमले क कमान भी उ ह ने अपने हाथ म ले ली।
पाक सेनाएँ चािवंडा म एक होकर अंितम लड़ाई क तैयारी कर रही थ ।

बु र डोगराँडी पर क जा
यह योजना बनाई गई िक 16 िसतंबर क दोपहर को इ फ ी चािवंडा पर धावा बोलेगी और पूना हॉस उसे अपने घेर
म ले लेगी। यह काय ‘सी’ ा न को स पा गया। जनरल अजेय िसंह याद करते ह िक कसे उनक ा नक
टक 9 गढ़वाल क साथ आगे बढ़ रह थे। भारतीय सेना नह जानती थी िक बु र डोगराँडी क उस माग पर
पािक तानी सेना ने अपने 6 टक िछपा रखे ह और वे हमले क िलए तैयार ह। जब ‘सी’ ा न सुरि त िह से से
िनकलकर गाँव पर हमला करने क िलए आगे बढ़ी तो पािक तानी पैटन टक ने उनक दस म से 6 टक वह मार
िगराए। दु मन क टक िछपे ए थे, जबिक पूना हॉस क टक को हमला करने क िलए ग े क खेत से बाहर खुले
म आना ही पड़गा। इससे प र थित तुरत ही भारतीय प क िलए िवपरीत हो गई। क टन अजय िसंह ने ले टनट
कनल तारापोर से वायरलेस पर संपक िकया। ‘‘मने उ ह तुरत सहायक सेना भेजने को कहा, अ यथा हम बु र
डोगराँडी हार सकते थे।’’ ले टनट कनल तारापोर ने उसी समय ‘ए’ ा न को लड़ाई म कदने का आदेश
िदया तथा वयं भी अपने टक म बैठकर चल पड़। पािक तानी पैटन टक 1 िकलोमीटर दूर गाँव म पेड़ क बीच
िछपे थे, इसिलए भारतीय सेना को उनपर हमला करने क िलए उनक उस कवच को भेदना था। यह बेहद
िदलेरीवाला काम था, लेिकन नौ सचू रयन—िजनम से पाँच अजेय िसंह क तीन ‘ए’ ा न और एक कमांिडग
ऑिफसर तारापोर क टक—ने एक साथ हमला बोला और सभी छह पैटन टक को न कर िदया। बु र डोगराँडी
पर क जा हो गया था। पूना हॉस तथा उनक कमांिडग ऑिफसर क िलए यह उ सव मनाने का ण था। इस लड़ाई
म उनक टक पर कई बार हार आ था। उनक नेतृ व से ेरणा लेकर रिजमट ने भीषण हमला िकया और जहाँ
दु मन क छह टक व त िकए, वह उनक नौ टक को कवल हािन प ची।

एक भटका आ गोला
ले टनट कनल तारापोर उस शाम ब त िन ंत थे। बु र डोगराँडी पर क जा करने म िदखाई गई वीरता अब भी
उनक िदमाग म ताजा थी और उ ह अपनी कमान म काम करनेवाले जवान पर ब त गव था। लड़ाई अभी भी जारी
थी; लेिकन वे जानते थे िक पािक तािनय क अपने िबल म घुसने क साथ ही यह ज द ही समा हो जाएगी। वे
अपने टक क गुंबद पर खड़ यु भूिम का नजारा देख रह थे। उनक दाएँ हाथ म चाय का याला था और बायाँ
हाथ अभी भी गलप ी से लटका आ था। वह अपनी दाई ओर खड़ अपने इटिलजस अफसर से हालात पर चचा
कर रह थे। वे अकसर िनदश देने या इलाक का जायजा लेने क िलए इस तरह खुले म िबना िकसी सुर ा क खड़
होते जाते थे। तभी उस दुभा यपूण ण म एक भटका आ गोला आया और उनक टक पर हार कर िदया, िजससे
उसम तुरत आग लग गई। तारापोर व उनका इटिलजस अफसर दोन ही लपट क चपेट म आ गए। उनपर सीधा
हार आ था।
एक टक म लगी आग म फसे गनर को बाहर िनकालते क टन अजय िसंह को जब उनक ऑपरटर ने कमांिडग
ऑिफसर पर हार होने क बात बताई तो वे त ध रह गए। जब वे िकसी तरह उस थान पर प चे तो उ ह ने
देखा िक उनक कमांिडग ऑिफसर क मृत देह डबते सूय क नारगी िकरण क बीच धरती पर रखी ह और उसक
चार ओर उनक सैिनक उदास खड़ ह। जब वीरगित को ा ए ले टनट कनल तारापोर क देह को नम आँख
से उनक घर वापस ले जाया जा रहा था तो पूना हॉस को दो ‘िव टो रया ॉस’ िदलानेवाली िव यात बैटल उपािध
खुशब क नाम वाला उनका न आ टक वह पीछ छट गया। छह िदन तक लगातार चले भीषण टक यु म
िदखाए गए परा म व वीरता क कारण ले टनट कनल आदिशर बुज रजी तारापोर को मरणोपरांत भारतीय सेना क
यु काल क सव वीरता पुर कार ‘परम वीर च ’ से स मािनत िकया गया।
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बक क लड़ाई
पंजाब क प मी सीमा पर िफरोजपुर शहर ह। यहाँ प चने क िलए आपको लुिधयाना से रा ीय राजमाग-71
पर प म क ओर सीधा जाना होगा। इस बेहद खूबसूरत व प सड़क क दोन ओर बोगनिविलया क चमक ले
गुलाबी फल व दूर तक फले हवा से लहलहाती बािलय वाले गे क हर खेत मौजूद ह। दोपहर बाद या ा करने पर
यहाँ पूर रा ते आपक आँख क आगे डबते सूय क नारगी आभा छाई रहगी। प म म पािक तान क ओर
जानेवाले इस माग पर आगे िफरोजपुर कटोनमट म बलुआ प थर से बनी लाल रग क एक इमारत ह, िजसपर
‘बक 10 िसतंबर, 1965’ िलखा ह। इसक पास ही एक पािक तानी पैटन टक खड़ा ह और मील का एक प थर
ह, िजस पर—‘लाहौर 15’ िलखा ह।
इस बक मारक का िनमाण स 1969 म 7 इ फ ी िडवीजन क उन सैिनक क स मान म आ था, िजनक 10
िसतंबर, 1965 को यु भूिम म सव बिलदान क बाद ही लाहौर क प म-पूव म करीब 24 िकलोमीटर दूर
थत पािक तानी शहर बक क ओर जानेवाला रा ता खुला था। यह इस बात क भी याद िदलाता ह िक पाक
ारा छड़ गए 1965 क यु म भारतीय सेनाएँ लाहौर क िकतना िनकट प च गई थ ।
ब त से लोग ने िफरोजपुर का नाम भी नह सुना होगा। यह उन थान म से ह, जो वष 1947 म हमार न शे से
कट गए थे। तब से इसे न कवल भुला िदया गया, ब क इितहास क गत क अलावा अब यह कवल ातःकाल
सड़क िकनार दुकान म बैठकर दूध वाली गरम चाय पीनेवाले वृ सरदार क मृितय म ही शेष ह। हालाँिक
पचास वष पहले इसी िफरोजपुर म तैनात 16 पंजाब, 4 िसख व 9
सौज य : इितहास िवभाग, र ा मं ालय
म ास क यूिनट को अपने क ारा पािक तानी सीमा पर बने अंितम गाँव खालरा प चने क आदेश िमले थे।
उनसे सीमा पार कर बक पर क जा करक इ छोिगल नहर से सीधा ऊपर क ओर जाकर लाहौर क िलए खतरा
बनने को कहा गया था। इस सारी कवायद का ल य पािक तान को भयभीत कर क मीर पर क जे क उसक
योजना से अलग करना था। मुझे लड़ाई क यह अ ुत कहानी बक म लड़नेवाले दो अफसर —16 पंजाब क
कनल मनमोहन िसंह ( रटा.), जो स 1965 म ेवो कपनी क ले टनट मनमोहन िसंह थे और दूसर 4 िसख क
ि गेिडयर कवलजीत िसंह ( रटा.), जो उस समय ड टा कपनी क कमांडर रह ले टनट कवलजीत िसंह ने सुनाई।
अब ये दोन ही ऑिफसर 70 वष से अिधक क ह, लेिकन लड़ाई क समय वे 20 वष क लगभग थे। मने कनल
मनमोहन िसंह को सोलन क िनकट उनक गाँव क एक छोट से लैट म खोज िनकाला; जबिक ि गेिडयर
कवलजीत िसंह ने मेरी ट सी को अपने अनोखे व िश अंदाज म अपने गुड़गाँव क घर का पता बताया। उ ह ने
कहा, ‘‘आपक दाई ओर पाक होगा और आपक बाई ओर सफद रग का एक घर होगा, िजसक बाहर आपको
एक हडसम बंदा खड़ा िदखेगा।’’ वहाँ प चने पर जैसे ही मने बाई ओर देखा तो मुझे वहाँ एक अधपक दाढ़ीवाला
आकषक िसख ऑिफसर मुसकराता आ खड़ा िदखाई िदया। उ ह ने बक पर जीत िदलाने म अपनी कपनी का
नेतृ व करने क अलावा इस िवषय पर दो पु तक भी िलखी ह। यहाँ तुत ह उस महा लड़ाई क वह कहानी, जो
इन दोन साहसी व िनडर सैिनक ने मुझे सुनाई थी।

5 िसतंबर, 1965
िफरोजपुर म िसतंबर क उन गरम िदन क सुबह ठडी होने लगी थ । सुबह ठीक 5 बजे सैिनक अपने क म बैठ
और भूर-हर रग क हवा वाला वह अंतहीन कािफला खालरा क ओर जानेवाली सड़क पर चल िदया। गे क
खेत को पार करते ही उनक कान म िनकट क िकसी मसिजद म हो रही अजान क आवाज आने लगी। कछ
सैिनक चुपचाप सामने क ओर देखते ए अपने उन प रवार क बार म सोच रह थे, िज ह वे पीछ छोड़ आए ह;
वह कछ अ य खेत म काम कर रह िकसान को देखकर हाथ िहलाने लगे। यास व सतलुज निदय क संगम
थल पर बने ह रक पुल पर उ ह ने जलपि य को सूय क रोशनी म अपने पंख सुखाते देखा। वहाँ से उनका
कािफला लाहौर जानेवाली पुरानी सड़क पर मुड़ गया। रात होने तक वे खालरा प च गए। ि गेिडयर कवलजीत
िसंह उन पुराने िदन क याद को ताजा करते ए कहते ह, ‘‘3 िसतंबर को हम चार घंट क नोिटस पर एक अ ात
काय क िलए अ ात थान पर प चने क आदेश िदए गए। यु क बादल मँडरा रह थे और छ ी पर गए जवान
व ऑिफसर को वापस लौटने क प भेजे जा रह थे। हालाँिक जब से हमार जवान ने रिडयो पर खबर सुनी थ , वे
अपने आप ही वापस लौटने लगे थे।’’
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7 इ फ ी िडवीजन ये िजसम 48 इ फ ी ि गेड व 65 इ फ ी ि गेड क अित र शमन टक से सुस त
ब तरबंद यूिनट स ल इिडया हॉस भी शािमल थी, उ ह ने हमले क योजना तैयार कर ली थी। यह रणनीित अपनाई
गई िक 6 िसतंबर क सुबह 4 िसख (65 इ फ ी ि गेड) और 6/8 गोरखा राइफ स (48 इ फ ी ि गेड) सीमा पार
करक पािक तानी सीमा पर बनी बाहरी चौिकय पर क जा कर वहाँ एक सुरि त बेस तैयार कर लगी; त प ा
48 इ फ ी ि गेड बक तक का रा ता साफ कर देगी।
एक रात आराम करने क बाद 6 िसतंबर क सुबह 4 िसख ने योजना क अनुसार काररवाई आरभ कर दी। मेजर
शमशेर िसंह मनहस क नेतृ ववाली अ फा कपनी और मेजर िदलीप िसंह िस ू क नेतृ व म ेवो कपनी ने सड़क
क दाई ओर बनी दो सीमा चौिकय पर क जा कर िलया। उधर सड़क क बाई ओर क चौिकय पर भी 6/8
गोरखा राइफ स का क जा हो गया। पािक तान पर हमला करने क िलए सुरि त मोरचाबंदी तैयार कर ली गई थी।
खालरा व बक क बीचोबीच एक पुराना परनाला िदयारा था, िजसक िनकट इसी नाम का एक गाँव भी था।
पािक तािनय ने िदयारा क सुर ा का पूरा इतजाम कर रखा था। 48 इ फ ी, िजसे उस शाम तक बक कर
क जा करने का काय स पा गया था, िदयारा तक प च तो गई, लेिकन दु मन क भारी बमबारी क चलते उसे
पार नह कर पा रही थी। योजना बनाई गई िक दु मन पर अँधेरा िघरने क बाद हमला िकया जाए। पािक तान इसे
भाँप गया और इससे पहले िक हमला िकया जाता, उ ह ने पुल व त िकया तथा अपनी सुर ा चौिकयाँ खाली क
और रात क अँधेर म गायब हो गए। भारतीय सैिनक पुल से उठ रही नारगी अ न को बगनी आकाश को लीलते
देखते रह गए। कनल मनमोहन िसंह ने मुझसे कछ िहचिकचाहट भरी सराहना क साथ कहा, ‘‘उ ह ने ठीक ही
िकया। उ ह ने सुिन त कर िलया िक हमार टक उस पार न प च सक।’’ अगले िदन इ फ ी ने िदयारा नाला
पार कर िलया। वे बताते ह, ‘‘वहाँ िसफ डढ़ फ ट पानी था, इसिलए हम पानी क बीच से िनकल गए। लेिकन
चूँिक वह नाला लगभग 50 फ ट चौड़ा था, इसिलए हम उसक ारा अपने टक को पार नह ले जा सकते थे।’’
इजीिनयर को बुलाया गया और उ ह ने टक क िलए एक नया पुल बनाने का काय आरभ कर िदया। 4 िसख क
दो कपिनय क मदद से उ ह ने पािक तान ारा िनरतर क जा रही बमबारी क बीच भी अपना काय जारी रखा।
तभी ले टनट कवलजीत िसंह क आँख क सामने ही एक बम ठीक लांस नायक मंगल िसंह पर िगरा, िजससे
उसक चीथड़ उड़ गए। ले टनट िसंह उसक खून व मांस से लथपथ हो गए। उस युवा सैिनक क सम यु क
िवभीिषका य हो गई थी। शाम तक पुल बना िलया गया; लेिकन उसक जाँच म पाया गया िक उसक चौड़ाई
इतनी नह ह िक उस पर से टक गुजर सक। यह ब त हताश करनेवाली बात थी; लेिकन स ल इिडया हॉस क
कमांिडग ऑफ सर ले टनट कनल एस.सी. जोशी न ए पुल पर प चे और अपने जवान से उसम ए ग
को भरने क िलए कहा, िजसक बाद उ ह ने बेधड़क सबसे पहले अपने टक ारा नाले को पार िकया। उनक बाद
अ य टक ने भी यही िकया। 8 िसतंबर क सूय दय क पूव स ल इिडया हॉस क टक िदयारा नाले क दूसरी ओर
प च चुक थे।
खून और लाश
ि गेिडयर कवलजीत िसंह बक पर क जे से अगली सुबह को याद करते ह। सुबह 8.30 बजे वे पािक तान क एक जूिनयर कमीशंड ऑफ सर को
उसक िपलबॉ स म मारने क बाद अपने एडजुटट ले टनट बी.एस. चहल क साथ एक खंदक म थे। उनका गला सूख रहा था। वे बताते ह, ‘‘मने पानी
माँगा तो एक जवान बोतल म पानी ले आया। पहला घूँट भरते ही मुझे उसका वाद कछ अजीब सा लगा। जब मने पानी को देखा तो वह ह का सा लाल
था। जब मने उस जवान से पूछा िक वो यह कहाँ से लाया ह, तो वो हम खंदक क िनकटवाले पोखर पर ले गया। वहाँ चार ओर दु मन क सैिनक क
लाश और मर ए जानवर पड़ थे, िजनम से कछ पानी म भी िगर गए थे। उनक खून से पानी का रग लाल हो गया था। मुझे इतनी तेज यास लगी थी िक
मने उसे वहाँ फकने क पूव अपनी आँख बंद क और दो घूँट पानी पी िलया।’’

हर ओर से सुरि त करना
8 िसतंबर को तड़क ही 4 िसख को सड़क क बाई ओर बने ानाबाद गाँव को खाली कराने क आदेश िमले।
ले टनट कवलजीत िसंह क नेतृ व म ड टा कपनी ने आिटलरी फायर क मदद लेते ए िनभय होकर सामने से
हमला िकया। मेजर शमशेर िसंह मनहस क कमानवाली अ फा कपनी को बका कलाँ गाँव तक क इलाक को
खाली कराने का काय स पा गया। हमलावर कपनी क िनकट आते ही पािक तािनय ने भारी गोलाबारी शु कर दी,
बावजूद इसक उ ह ने ज दी ही गाँव खाली कर वहाँ से अपनी सेना हटा ली। िदन क रोशनी म िकए गए इस
साहसपूण हमले म दु मन क भीषण गोलाबारी म ड टा कपनी का एक जूिनयर कमीशंड ऑिफसर और 4 िसख
क तीन जवान शहीद हो गए, जबिक ब त से अ य घायल ए। 16 पंजाब क टकि़डय को भी भारी बमबारी का
सामना करना पड़ा। कनल मनमोहन िसंह याद करते ह, ‘‘सै य भाषा म हम इसे ‘कापट बॉ बंग’ कहते ह—उ ह ने
उस े क येक इच पर बमबारी क थी। सौभा यवश हमने रात म ही खंदक खोद ली थ । उसम उतरकर हम
अपना िसर नीचे व हौसला ऊपर रखते ए लेट गए तथा अपने आसपास बम फटने क आवाज सुनते रह।’’ अब
यूिनट को बक को बाई व दाई ओर से सुरि त करना था। ये गाँव थे बक जानेवाली सड़क क बाई ओर बसा
बका कलाँ या बड़ा बक तथा उसी सड़क क दाई ओर बसा बाका खुद या छोटा बक । ले टनट कनल बी.क.
स यान क नेतृ व म 9 म ास ने बका कलाँ पर िदन क रोशनी म हमला कर िदया। उस खूनी लड़ाई म उनक 6
जवान खेत रह, लेिकन गाँव पर उनका क जा हो गया। इसक बाद 16 पंजाब ने बाका खुद पर रात क समय
हमला िकया। कनल िसंह याद करते ह, ‘‘इस काम को करने म हम अिधक ितरोध का सामना नह करना पड़ा।
पािक तान का पूरा यान बका कलाँ क सुर ा पर था। बका खुद म कवल थोड़ से ाइपस ही थे, िज ह ने पहले
हमपर गोिलयाँ चलाई और िफर पीछ हट गए। हमने िबना कोई हािन उठाए गाँव पर क जा कर िलया।’’
पािक तानी टकि़डयाँ पीछ हटते ए बक प च गई और उस े म बमबारी शु कर दी। ज दी ही एक बड़ी व
खूनी जंग क शु आत होने वाली थी।

हमले क योजना
9 िसतंबर को गरमी कछ अिधक थी। लेिकन उस झुलसानेवाली गरमी म भी िसख अपने ारा खोदी गई उन भ ी
जैसी खंदक म छपे थे, य िक दु मन उस इलाक म िकसी भी हलचल क ित ब त संवेदनशील था और जरा भी
सि यता िदखने पर वहाँ फौरन बमबारी करने लगता। अपनी तोप क िनशाने क सटीकता बढ़ाने क िलए
पािक तािनय ने अपनी िवमान-भेदी गन म बदलाव कर उ ह जमीन पर िनशाना लगाने लायक बना िलया था। वे
गन ब त मारक िस ई। उनक गोले मारक सटीकता से हार कर रह थे। ि गेिडयर कवलजीत िसंह बताते ह,
‘‘ऊपर से सूरज आग बरसा रहा था, िजससे खंदक म घुटन बढ़ती जा रही थी। हम यास भी ब त लगी थी;
लेिकन हमार सैिनक ने पानी क मामले म अ ुत अनुशासन का दशन िकया। बमबारी क कारण कोई हलचल
नह थी। सौभा यवश, हमार िनकट ही ग े का एक खेत था, िजसम हम पानी का एक छोटा सा तालाब िमल गया,
जहाँ से हमने अपने पीने क िलए पानी भर िलया। रात को खाना भी आ गया; िकसी से खाया गया, िकसी से नह
खाया गया। लगातार दागी जा रही गोिलय क कारण िहलना भी मु कल हो गया था। वो रात 16 पंजाब ने बका
खुद तथा 9 म ास ने बका कलाँ क खंदक म िछपकर और 4 िसख ने सड़क क दाई ओर बनी अपनी भ ी
जैसी खंदक म गुजारी। दु मन क मोरचाबंदी क टोह लेने क िलए एक पे ोिलंग पाट भेजी गई। लेिकन वे वापस
आ गए, य िक पािक तािनय ने दोन सरहद क बीच क अनिधका रक िह से म आग लगा दी थी और टोही द ते
क ह क सी हलचल देखकर भी उनपर गोलाबारी आरभ कर सकते थे।
10 िसतंबर क सुबह 4 िसख क कमांिडग ऑिफसर ले टनट कनल अनंत िसंह को िदयारा क िनकट िनिमत
ि गेड हड ाटर बुलाया गया। ि गेड कमांडर ि गेिडयर लब फ रस उ ह िडवीजन हड ाटर ले गए। वहाँ उनक
मुलाकात 7 इ फ ी क जनरल ऑिफसर कमांिडग मेजर जनरल एच.क. िस बल व कोर कमांडर ले टनट जनरल
जे.एस. िढ से ई। ि गेिडयर कवलजीत िसंह याद करते ए कहते ह, ‘बाद म कनल अनंत िसंह ने मुझे बताया
िक जनरल िढ िडवीजन क मंथर गित से आगे बढ़ने को लेकर ब त नाराज थे। जनरल को लगता था िक हम
ब त धीमी गित से बढ़ रह ह। वो कहने लगे िक चाह कछ भी हो जाए, हम बक चािहए।’’ ले टनट कनल अनंत
िसंह एक जाँबाज सैिनक थे। उ ह ने उस चुनौती को वीकार िकया और वयं हमले क पहल करते ए कोर
कमांडर से कहा, ‘4 िसख आपको बक अव य देगा।’
तुरत ही लड़ाई क योजना तैयार कर ली गई। बक पर दो चरण म हमला करना था। पहले चरण म 4 िसख क
टकड़ी रात म गाँव पर हमला करक उसे अपने क जे म ले लेगी। स ल इिडया हॉस क शमन टक आगे रहते ए
अपनी सभी बि याँ जलाकर अपरपरागत रीित से हमला करगे। सभी हिथयार का िनशाना अपने ल य पर रहगा।
त प ा 4 िसख उनक पीछ से िनकलकर बक पर बलपूवक क जा कर लेगी। उस पर क जे क बाद दूसर
चरण क शु आत होगी। इसम 16 पंजाब क दो कपिनयाँ बक क बीच से गुजरकर इ छोिगल नहर क दोन
िकनार को सुरि त कर लेगी। दोन िकनार पर क जे क बाद तीसरी कपनी नाले पर बना पुल पार कर दु मन क
जवाबी हमले को रोकने क िलए दूसर िकनार पर एक मोरचा बाँध लेगी। इसक बाद कपनी पुल को उड़ा देगी और
140 फ ट चौड़ नाले को पार करक बक प च जाएगी। संभव हो तो वे अपने घायल सािथय को भी अपने साथ
ले जाएँगे।

बक पर हमला
10 िसतंबर क दोपहर का व था। ह क हवा चल रही थी। दु मन क गोलाबारी िफलहाल शांत थी, इसिलए
िसख फौरन अपनी खंदक म से िनकले और तालाब क पानी से अपनी बोतल भरने लगे। कपनी कमांडर एवं
िवशेष लाटन कमांडस वाला ‘ओ’ ुप, िडवीजन हड ाटर से हाल ही म वापस लौट अपने कमांिडग ऑफ सर
को घेर खड़ा था। वह जानना चाहते थे िक या फसला िलया गया ह। ले टनट कनल अनंत िसंह ने उनसे बात
क । उनक आवाज मजबूती व िव ास से भरपूर थी। उ ह ने शु पंजाबी म उस रात िकए जानेवाले साहिसक
हमले क परखा बताई। उ ह ने कहा िक यह उनका सौभा य ह िक वे अपने उन मकान म िफर से लौट सकगे,
िज ह उ ह बँटवार क समय मजबूरन छोड़ना पड़ा था। ‘‘सा ी िक मत ब त चंगी आ। आज मौका िम या वापस
अपने घरउ नू जाण दा। आज हािथयाँ नाल सा ी बरात जाउगी और ऐसी आितशबाजी होएगी क िदवाली भी िपछ
पा जाउगी। बक दुलहन दी तरह ह। तु सी आज दू हा हो। शेरो, तगड़ हो जाओ, आज बक िवहाओनी ह।’’
जवान जाने को लालाियत थे। तय आ िक मेजर शमशेर िसंह मनहस क नेतृ व म अ फा कपनी तथा कायकारी
कपनी कमांडर सूबेदार साधू िसंह क नेतृ व म चाल कपनी बक पर हमला बोलेगी। मीिडयम मशीन गन वाली
‘सी’ कपनी क साथ लाटन कमांडर ले टनट ह र िसंह मशीन गन लेकर जाएँगे। मेजर डी.एस. िस ू क नेतृ व म
ेवो कपनी रजव म रहगी। ले टनट कवलजीत िसंह क नेतृ ववाली ड टा कपनी को एक िविश काय स पा
गया। वे तथा उनक जवान बक से 1.8 िकलोमीटर दूर 16 मील क प थर क पास ती ा करगे। शाम 7.30 बजे
स ल इिडया हॉस क टक उनसे वह आकर िमलगे। टक क पीछ िसिविलयन क ह गे, िजनम लकड़ी क ल
लदे ह गे। ड टा कपनी उन क पर बैठकर टक क साथ ही आगे बढ़गी। उ ह उस नहर को बक से कछ दूर
पहले ही पार करना होगा। ड टा कपनी को अपनी ओर आनेवाली दु मन क िकसी भी गोली का जवाब न देते ए
नाले को तुरत उन लकड़ी क ल से पाट देना ह, िजससे टक उसक पार िनकल सक।
ि गेिडयर कवलजीत िसंह याद करते ह, ‘‘मेर कमांिडग ऑिफसर ने मुझे 100 फ सदी हािन क बावजूद इस
काय को करने क ताक द क । उ ह ने कहा िक दु मन भीषण गोलाबारी करगा; लेिकन आप नहर म तब तक
ल िगराते रहना, जब तक वह पूरी तरह से भर न जाए। इसक बाद आप सड़क क बाएँ िकनार क ओर बढ़
जाना।’’

16 मील, शाम 7.20 बजे


ले टनट कवलजीत िसंह व ड टा कपनी (लगभग 100 से अिधक सैिनक) क 16 मील पर प चने तक अँधेरा िघर
आया था। वे तय समय से 10 िमनट पहले प च गए। उनक राइफल कध पर टगी थ । उनक पीठ पर गोिलय से
लदे भारी थैले थे और उनक बे ट से ेनेड लटक रह थे। वे टक क बेस ी से ती ा कर रह थे। लेिकन रात
वैसी ही शांत व अँधेरी बनी रही। घड़ी क सुइयाँ शाम क 7.50 बजा रही थ । तभी उ ह ने सड़क क दाई ओर
हमलावर कपिनय —अ फा व चाल को तैयार होते देखा। लग रहा था जैसे दु मन को उनक योजना क भनक
लग गई ह, इसिलए वे उस पूर इलाक म लगातार गोलाबारी िकए जा रह थे। जब गोले खतरनाक ढग से जवान क
िनकट फटने लगे तो ले टनट कनल अनंत िसंह ने उ ह बमबारी से बचने क िलए बक क लगभग 180 मीटर
िनकट जाने का आदेश दे िदया। िमनट भी घंट क समान लग रह थे और सैिनक क बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वे
गड़गड़ाहट व खड़खड़ाहट क विन सुनने को उ सुक थे; लेिकन रात 8 बजे तक शमन टक का नामो-िनशान तक
नह था। अंततः ले टनट कनल अनंत िसंह ने िनणय िलया िक वे और अिधक समय तक ती ा नह करगे। उ ह
हमला करना ही था। उ ह िव ास था िक अंततोग वा टक आ ही जाएँग।े उ ह ने आिटलरी से बक पर बमबारी
शु करने को कहा तथा सभी जवान दूर-दूर होकर तेजी से चलने िदए। ‘सारागढ़ी बटािलयन’ क नाम से जानी
जानेवाली 4 िसख अपनी बहादुरी क िलए तब से िव यात ह, जब 12 िसतंबर, 1897 को उनक 21 जवान ने
10,000 से भी अिधक अफगान व ओरकजई कबीले क लोग से मुकाबला िकया। अब पािक तान म शािमल
सारागढ़ी गाँव क उस आ मघाती मोरचाबंदी म येक य अपनी अंितम साँस तक लड़ा, िजसक िलए उ ह उस
समय क सव वीरता पुर कार ‘इिडयन ऑडर ऑफ मे रट’ से स मािनत िकया गया, जो ‘परम वीर च ’ क
समतु य ह। आज िफर वही िसतंबर का महीना ह। एक बार िफर वही साहस िदखाने का समय आ गया था।
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जब ले टनट कवलजीत िसंह एवं उनक जवान 16 मील क िनकट टक क ती ा कर रह थे, उस दौरान
अ फा व चाल कपिनयाँ उन िपलबॉ स पर हमला कर रही थ , िज ह पािक तान ने बक क सुर ा क िलए
बनाया था। उ मीद क मुतािबक बक क सुर ा बेहद कड़ी थी। वह सुर ा िकतनी कड़ी ह, इसका अंदाजा िसख
को आज रात होने वाला था। बक गाँव व इ छोिगल नहर क इलाक म पािक तान क दो कपिनयाँ (तथा एक रीस
व सपोट बटािलयन) तैनात थ । इसक अलावा उ ह ने जहाँ-तहाँ यारह िपलबॉ स भी बना रखे थे। वे िपलबॉ स
बंकर का ही नवीन प थे। वे दरअसल ककरीट व टील क बने मोटी दीवार व छतवाले कमर होते ह। उनक
दीवार म बने छद म से बंदूक ारा गोिलयाँ दागी जा सकती ह। येक िपलबॉ स म कम-से-कम तीन सैिनक
होते ह, िजनक पास एक मीिडयम मशीन गन, एक ह क मशीन गन व एक टन गन होती ह। इन बंकर म भारी
मा ा म गोला-बा द व ेनेड भी होते ह। कनल मनमोहन िसंह बताते ह, ‘‘इन िपलबॉ स पर हमारी 25-प ड क
गन का भी कोई असर नह होता; जबिक टक-भेदी गन उसक ऊपर कवल दरार ही डाल सकती थ ।’’ इन
िपलबॉ स को िन य करने का कवल एक तरीका ह िक अपनी जान क परवाह न करते ए इन िपलबॉ स म
बलपूवक घुस जाना। और 4 िसख क साहसी जवान ने यही िकया। बक से 274 मीटर दूर िम ी क मकान क
बीच आमने-सामने क लड़ाई जारी थी। जवान रगते ए उन िपलबॉ स तक प चते और उनम हाथ से ेने स
फककर उ ह बेकार कर देते। इस हार का िशकार बननेवाले दद से कराहते ए उ ह अपश द कहते। दु मन ने
भयावह तरीक से जंग लड़ी, लेिकन बहादुर िसख पीछ नह हट। पािक तान ने अचानक आिटलरी फायर करनेवाले
जवान को िनशाना बनाया। 45 िमनट क लड़ाई म अब तक 2,500 गोले दागे जा चुक थे, लेिकन िसख ने एक
क बाद एक िपलबॉ स को शांत करते ए दबाव बनाना जारी रखा।
उधर 16 मील पर, जहाँ रात क 8.20 बजे तक भी टक का कोई नामो-िनशान नह था, ले टनट कनल अनंत
िसंह ने अपने एडजुटट क टन एस.एस. दु गल से रिडयो पर बात क । उ ह ने कहा, ‘‘भाईबंद साथ ह या न ह , 4
िसख का येक जवान एक-दूसर का भाईबंद ह।’’ आप उ ह आगे बढ़ने को किहए। ले टनट कवलजीत िसंह भी
उसी सी पर थे। वे जानते थे िक टक को ‘भाईबंद’ का कोड नाम िदया गया ह। उ ह ने बताया, ‘‘दु गल
साहब से बात करने से पहले ही मने आगे बढ़ना शु कर िदया था।’’ बक क साथ चल रही सड़क क बाई ओर
पुिलस टशन था। ड टा कपनी ने उसे अपना िनशाना बना िलया। हमले क 28 िमनट बाद शमन टक वहाँ प च
गए और उ ह ने गोलाबारी शु कर दी। टक टकड़ी को यह मालूम नह था िक हमला पहले ही िकया जा चुका ह
और रात क अँधेर म बक पर क जा रही यह गोलाबारी दरअसल वे अपने ही जवान पर कर रह ह। आशंिकत
ले टनट कवलजीत िसंह तुरत ही नजदीक टक क ओर दौड़ पड़। उनक पीछ उनका िस नलर भी आ रहा था।
तभी एक टक क हमले म उसक बाँह उड़ गई। उ ह ने इ फ ी टक से बात करने क िलए अपनी जीप म टलीफोन
ढढ़ा, लेिकन वह वहाँ नह था। अंततः वे एक टक पर चढ़ गए और उसक गुंबद को अपनी टनगन से ठोकने
लगे। दफदार बाहर िनकलकर आया। ले टनट कवलजीत िसंह ने उसे सड़क क बाई ओर फाय रग करने से मना
िकया, य िक वहाँ लड़ाई चल रही थी। यह संदेश अ य टक तक भी प चा िदया गया, िजसक बाद गोलाबारी को
सड़क क दाई ओर तक ही सीिमत कर िदया गया। ड टा कपनी आगे बढ़ी और पुिलस टशन पर क जा कर
िलया। उ ह उसक सामने ही एक नाला िमला, िजसे बाद म उ ह ने खंदक क तरह उपयोग िकया।
बक क तरफ से िनरतर जारी फाय रग से आगे बढ़ना किठन हो रहा था। अब बटािलयन ने अपने मोटार को
गाँव क ओर मोड़ िदया। आिटलरी ारा हमला करने क साथ ही 4 िसख दु मन क िपलबॉ स म लगी मशीन
गन को य त रखने क िलए अपनी मशीन गन आगे ले गए। इसक बाद यह हमलावर कपनी ‘दागो’ व ‘बढ़ो’ क
रणनीित अपनाते ए धीर-धीर आगे बढ़ने लगी। वे दु मन क गोिलय क परवाह िकए िबना अपने ल य क ओर
बढ़ रह थे। घायल पर यान नह िदया जा रहा था, य िक उस समय हर िमनट क मती था। बक प चने क
अंितम 90 मीटर सबसे किठन रह। हालाँिक िसख को अपनी ओर बढ़ता देख पािक तािनय क हौसले प त हो गए
और अचानक उनका ितरोध धीमा पड़ने लगा। एक घंट क भीषण लड़ाई क बाद अंततः बंदूक शांत हो गई।
बक म अब कवल वाहन व बंकर से उठ रहा धुआँ ही िदखाई दे रहा था। हवा क सनसनाहट म िसख का
यु नाद गूँज उठा, ‘‘बोले सो िनहाल, सत ी अकाल!’’ िजसक ित विन यु भूिम म अपने ही खून म लथपथ
घायल क दद भरी कराह क बीच भी सुनाई दे रही थी। इसक बाद आकाश म दो लेयस दागी गई, िजसे
देखनेवाला हर य आनंद से झूम उठा। यह बक िवजय का संकत था।
एक और बहादुर
बक क लड़ाई 4 िसख क वीरता का माण ह। लेिकन इस यु क बाद एक ऐसी घटना घटी, िजसने यह सािबत कर िदया िक अफसर क
प नयाँ भी कछ कम बहादुर नह होत । वे भले ही यु भूिम म नह गई, लेिकन उ ह ने जो साहस िदखाया वह िकसी भी जवान से कम नह था।
सूबेदार अिजत िसंह को बक क लड़ाई क कारण ‘महावीर च ’ िमला, लेिकन लड़ाई से ठीक पहले 4 िसख म एक और अिजत िसंह को भी
शािमल िकया गया। वे थे सेकड ले टनट अिजत िसंह। िवशेष न ारा िफरोजपुर जाते समय 4 िसख कछ देर क िलए मेरठ म क , िजसे उन िदन
बतौर िसख रिजमट सटर उपयोग िकया जाता था। टशन पर उनक मुलाकात टशन कमांडट एवं कछ युवा अफसर से ई, जो उन भूख से पीि़डत
जवान क िलए दोपहर का भोजन लाए थे। इ ह अफसर म िसख युवक—सेकड ले टनट अिजत िसंह भी थे—िजनक तैनाती 4 िसख म ई थी,
लेिकन उ ह बाद म भेजा जाना था। जब उ ह पता चला िक उनक बटािलयन लड़ाई क िलए जा रही ह तो सेकड ले टनट अिजत ने वयं ही उनक साथ
अभी जाने क इ छा जताई। वे लड़ाई म भाग लेने को ब त उ सुक थे, इसिलए उ ह ने रिजमट सटर को उ ह ज दी-से-ज दी बटािलयन म भेजने को
कहा। ि गेिडयर कवलजीत िसंह ( रटा.) याद करते ह, ‘‘वे 9 िसतंबर को जब हमसे जुड़, उस समय भीषण लड़ाई जारी थी। उ ह चाल कपनी म तैनात
कर िदया गया।’’ चूँिक सभी लोग लड़ाई म उलझे थे, इसिलए युवा अिजत को कोई िज मेदारी नह स पी जा सक । लेिकन वह इतने उ साह म थे िक
उ ह ने जोर िदया िक बटािलयन जहाँ भी जाएगी, वो उसक साथ जाएँगे और उनसे जैसे संभव होगा वैसे ही उसक सहायता करगे। बक पर क जे क
बाद वे बटािलयन क साथ खेमकरण चले गए, जहाँ वे बमबारी म शहीद हो गए। इस कार एक उ साही व अित उ े रत युवा अफसर क संि
क रयर का पटा ेप हो गया। यु बंिदय को वदेश भेजने क बाद जब 4 िसख क अफसर मथुरा प चे तो उनसे एक युवती िमलने आई। वह अिजत
िसंह क बार म जानना चाहती थ । वह उनक प नी थ और गभवती थ । उ ह पहले ही बता िदया गया था िक अिजत बमबारी क दौरान शहीद हो चुक ह
और उ ह वह कड़ा भी िदया जा चुका था, िजसे वे हमेशा पहने रहते थे। लेिकन अिजत क प नी क मन म अभी भी उनक जीिवत होने क एक धुँधली
सी आस बाक थी। ि गेिडयर िसंह याद करते ह, ‘‘जब उनसे यह कहा गया िक यही सच ह तो वे बोल िक 4 िसख म काम करना उनक पित का सपना
था। वो अिधक समय तक ऐसा नह कर सक, लेिकन उसने फसला िकया िक यिद उसक लड़का आ तो वो उसे 4 िसख म ही भेजेगी।’ िनयित को
शायद यही मंजूर था, उसक बेटा ही आ। 8 जून, 1985 को सेकड ले टनट सत ीत िसंह, पु शहीद सेकड ले टनट अिजत िसंह ने अपने िपता क
िनयु क ठीक दो दशक बाद 4 िसख म अपनी पहली पो टग ा क । कनल सत ीत िसंह आज भी सेना म सेवारत ह।

एक दुघटना
उस रात कछ दुघटनाएँ भी ई। ि गेिडयर िसंह याद करते ह िक जैसे ही उनक कपनी ने पुिलस टशन पर क जा
िकया, उ ह अपने पीछ एक जोरदार धमाक क आवाज सुनाई दी। वह बताते ह, ‘‘मने पीछ मुड़कर देखा िक
हमारा एक टक बा दी सुरग पर आने क कारण व त हो गया था। तब हम मालूम आ िक बक छोड़ने से पहले
दु मन क सैिनक ने सड़क क दोन ओर टक-रोधी बा दी सुरग िबछा दी थ । हम उ ह ढकने का समय नह िमला
और पूर रा ते पर बा दी सुरग िदखाई दे रही थ । अँधेरा होने क कारण टक क िलए उनपर चढ़कर व त होने
का खतरा बना आ था। मुझे लगता था िक ब तरबंद दल क सद य कवल अं ेजी बोलते ह, इसिलए म फौरन
अपनी कपनी म िकसी ऐसे य को ढढ़ने लगा, िजसे अं ेजी का कामचलाऊ ान हो। तभी मेरी नजर
बा कटबॉल क लंबे िखलाड़ी हवलदार महदर िसंह पर पड़ी। वह मैि क तक पढ़ा था और टटी-फटी अं ेजी बोल
लेता था। मने उससे कहा िक वह पीछ जाकर टक को सूिचत कर िक बक पर क जा हो गया ह। इसिलए
गोलाबारी करने क कोई ज रत नह ह। मने उससे यह भी चेतावनी देने को कहा िक वे सड़क से नीचे न जाएँ,
य िक वहाँ बा दी सुरग िबछी ई ह।’’ इसक बाद टक आगे नह बढ़। लेिकन कछ ही िमनट ए थे िक एक
आर.सी.एल. जीप तेजी से ले टनट कवलजीत िसंह क ओर आई। वह ठीक उनक सामने तेज आवाज करते ए
क तथा रवस होते ही एक बा दी सुरग पर आ गई और उनक आँख क सामने ही उसम िव फोट हो गया।
उसम स ल इिडया हॉस क ले टनट कनल एस.सी. जोशी सवार थे, जो 4 िसख क जीप म वहाँ क हालात का
जायजा लेने आए थे। वे बाहर कद गए थे, लेिकन उ ह बचाया नह जा सका।
बक पर क जा करने क बाद अ फा व चाल कपिनय को इ छोिगल नहर का पूव िकनारा िदखाई दे रहा था।
िवजय क उ साह म वे उस ओर बढ़ तथा उसक िकनार पर क जा कर िलया। उनक साथ आए ड टा कपनी क
ग ती दल का नेतृ व कर रह सूबेदार मासा िसंह मशीन गन क जद म आने से घायल होकर शहीद हो गए।
पािक तानी बक से भागकर नाले क दूसरी ओर एक हो गए थे और वे वह से भारतीय पर गोिलयाँ बरसा रह थे।
140 फ ट चौड़ी, 30 फ ट गहरी तथा 20 फ ट तक पानी से भरी वह नहर अपने आप म िवकट बाधा थी। उसका
पािक तान क ओर वाला िकनारा 3 फ ट ऊचा था, िजसपर िपलबॉ स बने ए थे। 4 िसख क सैिनक को उस
पु ते क पीछ घूमते टक क कगूर व गन ही िदखाई दे रह थे, जो उनक ओर रह-रहकर भयानक गोलाबारी कर रह
थे।

16 पंजाब क काररवाई
बक पर क जे क बाद अब समय आ गया था, जब 16 पंजाब को लड़ाई म वेश करक उ र िदशा क बचे ए
भाग पर क जा करना था। उ ह ने उन दो िपलबॉ स पर धावा बोला, जहाँ से पािक तानी अभी भी गोिलयाँ चला
रह थे। उनम से एक को िसपाही बलम राम ने िन य िकया, जो पािक तािनय क नजर से बचकर रगते ए उस
िपलबॉ स तक प च गए थे। अपनी जान दाँव पर लगाकर वे खड़ ए और एक मोखले म से गोिलयाँ चला रही
मशीन गन क नली को ती ता से हटाकर वहाँ से एक ेनेड अंदर फक िदया। िपलबॉ स म एक धमाका आ और
िफर उसम शांित छा गई। बलम राम को बाद म ‘वीर च ’ से स मािनत िकया गया और वे हवलदार क पद से
सेवािनवृ ए। दूसर िपलबॉ स को सेकड ले टनट आर. िवजय राजन ने बेकार िकया। वह 20 वष य ऑिफसर
कछ जवान को साथ लेकर बंकर क पीछ िछप गया। जवान ने िपछली तरफ से धमाका करक दरवाजा खोला
और एकदम से अंदर घुस गए तथा पािक तािनय को परा त कर िदया। उ ह ने वहाँ से दो पािक तानी जूिनयर
कमीशंड अफसर व दो सैिनक को िगर तार िकया।
मेजर रणजीत िसंह क नेतृ व म 16 पंजाब क ड टा कपनी ने पुल क उ री भाग पर हमला िकया और नहर का
वह िकनारा सुरि त कर िलया। ले टनट मनमोहन िसंह क नेतृ ववाली ेवो कपनी ने नाले क दि णी िकनार पर
धावा बोला। इसक बाद योजना क अनुसार ले टनट वी.पी. गाबा क नेतृ ववाली अ फा कपनी को दूसर िकनार
पर जाकर एक क ा पुल बनाना था और उनक इस काम को अंजाम देने क बाद इजीिनयर को वह पुल उड़ा देना
था। इसक बाद अ फा कपनी क बचे ए जवान को पानी भरी नहर को र सय क मदद से तैरकर पार करना था
—और यिद संभव आ तो अपने साथ घायल जवान को भी लाना था। लेिकन उसी दोपहर पािक तािनय ने वयं
ही पुल को उड़ा िदया, िजससे 16 पंजाब का काम पूरा हो गया और 16 पंजाब क कमांिडग ऑफ सर ले टनट
कनल जे.एस. भु र ने जीत का संकत दे िदया।
या आप यु से ऊबे नह ?
कनल मनमोहन िसंह इस लड़ाई क एक ब त िदलच प कहानी सुनाते ह। यु -िवराम क घोषणा क बाद संयु रा (यू.एन.) क पयवे क बक
क पयवे ण क िलए आए। 24 िसतंबर क रात जब उ ह ने अपने जवान को दैिनक ग त क िलए भेजा तो उ ह एक पािक तानी दल िमला, िजसका
नेतृ व एक हवलदार कर रहा था। वे यु -िवराम रखा को पार कर गए थे। वे बताते ह, ‘‘अगले िदन सुबह हम सफद झंडा लहराते ए उनक पास गए।
हमने उ ह बताया िक वे हमार े म ह और उ ह तुरत वहाँ से जाना होगा, अ यथा हम मजबूरन उनपर हमला करना होगा।... पािक तानी हवलदार क
चेहर पर हवाइयाँ उड़ने लग । लेिकन उसने कहा िक वह इसम कछ नह कर सकता, य िक उसे यु -िवराम रखा पार करने क आदेश िदए गए ह। मने
उसे कहा िक इसम उसक जान भी जा सकती ह। इसपर उसने कधे उचकाकर जवाब िदया—अगर िक मत म यही िलखा होगा तो यही होगा साहब।’’
शाम क करीब 5 बजे जब ले टनट मनमोहन िसंह उन घुसपैिठय पर 3 इच क मोटार से फायर करने क तैयारी कर रह थे, तभी एक जवान ने उ ह
बताया िक संयु रा क एक पयवे क क जीप को उनक ओर आते देखा गया ह। जब उ ह ने अपने कमांिडग ऑफ सर से अगले कदम क बाबत
पूछा तो उ ह ने कहा िक वे उस पयवे क को िनकट न आने द। वे याद करते ह, ‘‘हमने उनक जीप क आसपास आर.सी.एल. गन से यह यान रखते
ए गोलाबारी क िक वे उ ह लग नह ।’’ संयु रा का वह पयवे क जीप से उतरा और खेत म गायब हो गया। इसक बाद ले टनट मनमोहन िसंह
एवं उनक जवान संतु होकर पुनः पािक तािनय पर मोटार हमला करने क तैयारी म जुट गए। तभी उ ह अपने कधे पर िकसी क थपक का एहसास
आ। वह उ ह संयु रा पयवे क म से एक था। उसने पूछा, ‘क टन साहब, या आप यु से ऊबे नह ह?’ शिमदगी क साथ ले टनट मनमोहन
िसंह ने उसे समझाया िक िकस तरह वह पािक तानी दल भारतीय िह से म घुस आया ह। फाय रग क बाद जब वे जाँच करने प चे तो पािक तानी अपने
े म लौट चुक थे।

एक उ क सै य काररवाई
बक पर क जे को बेहतरीन सै य काररवाई म शुमार िकया जाता ह, िजसे 7 इ फ ी िडवीजन ने पूरी सावधानी व
दूरदिशता सिहत अंजाम िदया। इसम शािमल रह यूिनट म हताहत क बड़ी सं या इस बात क प रचायक ह िक
एक बेहद सुरि त इलाक पर क जा करने क िलए जवान ने िकतना कड़ा संघष िकया था। व तुतः बक एक ऐसा
िकला था, िजसे वचािलत हिथयार व तोप तथा अ य हिथयार ारा सुरि त िकया गया था। सै य इितहासकार
मानते ह िक बक म भारतीय सेना क दशन ने भारत क अ य े म ुिटपूण दशन को पलटते ए बड़ी
ितपूित कर दी।
16 पंजाब ने इस लड़ाई म अपने 21 जवान खोए और 50 घायल ए। उ ह बक क बैटल उपािध दी गई।
स ल इिडया हॉस को लड़ाई क चलते लगभग दो ा न क हािन प ची, िजसम उसने 6 टक खो िदए। सबसे
अिधक हािन 4 िसख को उठानी पड़ी। इसम उनक तीन जूिनयर कमीशंड ऑफ सर सिहत 39 जवान शहीद ए
और 120 क करीब घायल ए, िजनम मेजर मनहस व क टन दु गल भी थे। सूबेदार अिजत िसंह को मरणोपरांत
‘महावीर च ’ तथा मेजर शमशेर िसंह मनहस, नायब सूबेदार अजमेर िसंह व लांस नायक ीतम िसंह
(मरणोपरांत) को ‘वीर च ’ क शौय पुर कार से स मािनत िकया गया, िजससे यूिनट क रॉल ऑफ ऑनर म
वृ ई। 4 िसख को बक क बैटल उपािध एवं पंजाब क िथएटर उपािध से स मािनत िकया गया। दु मन क
नुकसान का अनुमान नह लगाया जा सकता; लेिकन कहा जाता ह िक पािक तान शव से भर तीन क ले गया
था। बक क कमान मेजर राजा अजीज भ ी (कपनी कमांडर अ फा कपनी) क नेतृ व म 17 पंजाब क पलटन
क हाथ म थी, िजसक सहायताथ एक अ य पलटन 12 पंजाब तथा िदयारा से वापस लौटी कछ टकि़डयाँ भी थ ।
रपोट क अनुसार, इ छोिगल नहर क प मी िकनार पर तथा पूव तरफ क पुल वाले इलाक म पािक तान क 17
पंजाब क दो कपिनयाँ तैनात थ । बक क इतनी बहादुरी से र ा करनेवाले मेजर भ ी बक क लड़ाई क दूसरी
ही बमबारी म मार गए। तब वे इ छोिगल नहर क दूसर िकनार से पेड़ क पीछ से भारतीय सैिनक पर गोिलयाँ
बरसा रह थे। उ ह पािक तान क सव वीरता पुर कार ‘िनशान-ए-हदर’ से स मािनत िकया गया।
जब नायक बने यु बंदी
य िप 4 िसख ने बक पर क जा करक अ ुत काय को अंजाम िदया था, लेिकन उनक दबाव सहने क मता क जाँच अभी भी बाक थी। लड़ाई
क अगले िदन 11 िसतंबर को सुबह 9.30 बजे उनक कमांिडग ऑिफसर ले टनट कनल अनंत िसंह को 7 इ फ ी िडवीजन हड ाटर बुलाया गया।
वहाँ ‘वीर च ’ िवजेता सै य कमांडर ले टनट जनरल हरब श िसंह, जो िसख रिजमट क कनल भी थे, ने उ ह खेमकरण क सुर ा का िवशेष काय
स पा। योजना यह थी िक 4 िसख को सेना क क म व टोहा भेजा जाएगा, जहाँ से 12 िसतंबर क सुबह 5 बजे क पूव छोट रा ते से माच करते ए
खंदक का पता लगाते ए दु मन क सीमा म वेश करक खेमकरण-कसूर माग को अव कर दगे। सुबह क पहली िकरण क साथ ही खेमकरण
े म पहले से ही यु कर रही 4 माउटन िडवीजन 9 हॉस क टक क पीछ वा टा-खेमकरण माग पर आगे बढ़ जाएगी। िसख से कहा गया िक 4
माउटन िडवीजन क आगे बढ़ रही टकड़ी एवं टक अगले िदन सुबह 8 बजे उनसे संपक करगे।
बटािलयन म घायल क सं या ब त अिधक थी तथा सैिनक िबना अिधक आराम िकए िपछले करीब सात िदन से िनरतर यु कर रह थे। इसक
बावजूद ले टनट कनल अनंत िसंह ने इस चुनौती को वीकार कर िलया। दु मन क बमबारी क बीच 4 िसख शाम 5 बजे तक बक से िनकल गई।
तीन घंट माच करक वे खालरा प च गए। ि गेिडयर कवलजीत िसंह ( रटा.) बताते ह, ‘‘हम बुरी तरह थक ए और बेहद गंदे थे। हमने कई िदन से
कपड़ नह बदले थे। तालाब का पानी पीने से हमम से ब त क पेट खराब थे; लेिकन इसक बावजूद हाल ही म िमली िवजय क कारण हम िसर ऊचा
रखते ए माच करते रह।’’ बटािलयन ाटर मा टर ले टनट पी.पी.एस. िवक ने यु से थक-माँदे सैिनक क िलए गरमागरम भोजन बनाया और सभी
ने ब त िदन क बाद जी भर क भोजन िकया। त प ा लगभग आधी रात को ले टनट कनल अनंत िसंह ने शांत-िच होकर धैय सिहत कपनी कमांडर
को वहाँ क थित से अवगत कराने क बाद सै य टकि़डय को संबोिधत िकया। उ ह ने कहा, ‘ई र 4 िसख क साथ ह। वे चाहते ह िक सारागढ़ी का
यशगान सारागढ़ी भावना से ही िकया जाए।’ उस िदन उ ह ने अपने जवान से सारागढ़ी क नायक को याद करक िह मत रखते ए बटािलयन को एक
बार िफर वही गौरव िदलाने क ाथना क , िजसपर उनक पलटन ने सहमित जताई।
िसख ने 12 िसतंबर को सुबह 1 बजे वा टोहा से चलना आरभ कर िदया। उस िदन सारागढ़ी िदवस होने से जवान जोश से भर तथा बुरी तरह थक
होने क बावजूद दु मन से ट र लेने को तैयार थे। जवान ने उस े से प रिचत अपने दो साथी जवान क िनदश पर कछ रा ता रलवे लाइन क साथ-
साथ, कछ ग े क खेत म से तो कछ हाथी घास क बीच से पार िकया। टक से सामना होने क आशंका क चलते उ ह ने एहितयाती उपाय क तौर पर
आर.सी.एल. गन भी साथ ले ली थी। हालाँिक इसक भारी बोझ ने उनक गित धीमी कर दी थी। दु मन क कमजोर ितरोधक मता तथा वहाँ टक क
न होने क उ मीद रखते ए ले टनट कनल िसंह ने अंततः गन को वापस भेजने का िनणय िलया, िजससे बटािलयन ती गित से आगे बढ़ सक।
ि गेिडयर िसंह बताते ह, ‘‘हम वहाँ सुबह 5 बजे तक प च जाने को कहा गया था। समय पर प चने क िलए हम व तुतः दौड़ लगानी पड़ी।’’
इस बीच दु मन क एक सै य-दल से उनक मुठभेड़ हो गई, िजसे ती गित से िनपटाकर उ ह ने अपना माच जारी रखा।
सुबह 4 बजे िसख खेमकरण गाँव से 1 िकलोमीटर से भी कम क दूरी पर थे। वहाँ भारी मा ा म दु मन क टक का जमावड़ा देख वे त ध रह गए।
इसी बीच दु मन क ग ती दल को िसख क टोह िमल गई और उनक िवमान ने उस े म बम बरसाना आरभ कर िदया। सुबह 10.30 बजे तक 4
माउटन िडवीजन क पथ- दशक िदखाई न देने पर िसख क सम दु मन क टक का बहादुरी से सामना करने क अलावा और कोई रा ता नह था।
दुभा यवश, दु मन क सं या अिधक होने क कारण वे िघर गए। उनम से कछ सैिनक सुरि त े तक प च गए; जबिक ले टनट कनल अनंत िसंह
एवं ले टनट कवलजीत िसंह सिहत 5 अफसर, 4 जूिनयर कमीशंड ऑिफसस तथा 121 अ य ेिणय क जवान को िगर तार कर िलया गया। 4 िसख
क सहायता क िलए भेजे गए 9 हॉस क ले टनट टी.एस. शेरिगल को उनक तीन टक व त करने क बाद िगर तार कर िलया गया; हालाँिक उ ह ने
िदलेरी से लड़ते ए दु मन क कछ टक अव य न कर िदए।
ये यु बंदी स 1966 क फरवरी माह म वदेश वापस लौट। तब तक 4 िसख का पुनगठन कर उ ह एक बार िफर बक भेज िदया गया था, जहाँ
भारत क त कालीन रा पित डॉ. सवप ी राधाक णन ने वयं आकर बटािलयन को लड़ाई म उनक जीत क िलए बधाई देकर उ ह स मािनत िकया।
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जब सूबेदार अिजत िसंह दु मन क िपलबॉ स पर प चे, उसी समय उनक छाती म मशीनगन से चली गोिलयाँ आ धँस । वे वह िगर पड़। उनक
नजर धुँधली हो रही थी और उनका शरीर उनक िनयं ण से बाहर हो गया था। बावजूद इसक उ ह ने ेनेड िनकाला, लड़खड़ाते ए िपलबॉ स पर खड़
ए, मशीन गन क बेहद गरम नली को हटाया और ेनेड अंदर फक िदया। जैसे ही ेनेड अंदर फटा, वे बुदबुदाए, ‘बोले सो िनहाल, सत ी अकाल।’
सूबेदार अिजत िसंह
महावीर च
6 िसतंबर, 1965
िसख सैिनक ने अपने शरीर का बोझ एक पैर से दूसर पैर पर िकया। वह म यम कद का तगड़ा व मजबूत य
था। उसक वा य क पीछ सेना का िश ण व खेल क मैदान म बहाया गया पसीना था। सूबेदार अिजत िसंह
अपनी बटािलयन क सबसे बेहतरीन हॉक िखलाड़ी थे। उनक गे ए रग क तपी ई वचा िब कल वैसी लगती थी
जैसी अकसर उनक गाँव सुभाना म गे क सुनहरी बािलयाँ होती ह। वे ग े क खेत म िछपे ऊपर बने उस
िपलबॉ स को देख रह थे, जहाँ से उनक जवान पर भयानक गोलीबारी क जा रही थी। उनक भ ह पसीने से भीगी
ई थ और उनक बड़ी व लंबी पलक वाली र म आँख म नैरा य िदखाई दे रहा था। उनक राइफल उनक हाथ
म थी; लेिकन वे जानते थे िक उनक जवान पर मौत बरसा रह उस बंकर क सामने इसक कोई हिसयत नह ह।
वो बंकर क ट व टील क मोटी दीवार तथा छतवाले कमर थे। उसक दीवार म छद बने थे, िजनसे बंदूक क
नली बाहर िनकालकर फायर िकया जाता था। अपनी ओर आती गोिलय को देखकर उ ह ने अंदाजा लगाया िक
वहाँ अंदर कम-से-कम एक मीिडयम और एक लाइट मशीन गन अव य होनी चािहए। साथ ही उ ह घातक
टनगन क विन भी सुनाई दे रही थी। उ ह दु मन िदख नह रह थे, लेिकन उनका अनुमान था िक वहाँ से एक
बार म तीन हिथयार ारा एक साथ गोिलयाँ चलने का अथ था िक उस िपलबॉ स म कम-से-कम तीन
पािक तानी सैिनक अव य मौजूद ह गे। इस िपलबॉ स को िन य करना ही होगा। ेवो कपनी को सीमांत देश
म बनी चौक ‘रख हरिदत िसंह’ पर क जा करने का काय स पा गया। ऐसा करने क िलए अंदर जाकर उन जवान
को मौत क घाट उतारा जाना ज री था। लेिकन कसे? उ ह ने दलील दी, ये सैिनक कह से तो अंदर गए ही ह गे।
शायद पीछ क तरफ हो। उ ह बस एक ही चीज िदख रही थी िक उस आग क दीवार ने उनक जवान का रा ता
रोक रखा ह। उ ह ने पंजाबी म कछ श द बोले और अपनी भ ह से टपक रहा पसीना प छ िलया। उनक कान म
सी.ओ. साहब क श द गूँज रह थे। लड़ाई म शािमल होने क िलए िफरोजपुर से िनकलने क ठीक पहले उ ह ने
अपने जवान से बटािलयन गु ारा साहब म बात क थी। वह ऐसा भावुक भाषण था, िजसने येक जवान क
िदल को छ िलया। ले टनट कनल अनंत िसंह ने कहा, ‘‘हम सौभा यशाली ह िक हम वापस लौटकर उन घर को
िफर से लेने का मौका िमला ह, िजनसे पािक तािनय ने हम जबरन बाहर िनकाल िदया था। हम बिलदान देना
होगा, लेिकन यह बेकार नह जाएगा। हम सफल होकर वापस लौटगे। िह मत रखो, अपने गु को याद करो,
सारागढ़ी क उन नायक को याद करो। जीत हमारी ही होगी।’’
अिजत िसंह ोध-िमि त िनराशा से खौल रह थे। इन िपलबॉ स को शांत िकए िबना बक नह प चा जा
सकता। उनक गहरी व नम आँख म एक छाया तैर गई। उ ह ने अपने उन ोधवश बह आँसु को प छा तथा
वहाँ और अिधक ती ा न करने का िनणय िलया। उ ह ने फसफसाते ए वयं से कहा, ‘वाह गु जी दा खालसा,
वाह गु जी दी फतह।’ उनक साथी हरान होकर देखने लगे िक उ ह ने उस आग क दीवार क बीच से उस बंकर
क ओर रगना शु कर िदया।
कनल बलदेव िसंह चहल ( रटा.) याद करते ह, ‘‘अिजत िसंह हमार सबसे बेहतरीन जूिनयर कमीशंड अफसर
म से एक था।’’ कनल चहल सूबेदार अिजत िसंह को अ छी तरह से जानते थे, य िक वे 4 िसख क िजस हॉक
टीम म खेलते थे, वे उसी क क ान थे। वो हॉक का कशल िखलाड़ी था और उसने िसख रिजमटल सटर क टीम
म कमांड तर तक खेला था। साथ ही वह हमारा एक ऐसा जूिनयर कमीशंड ऑिफसर था (जे.ओ.सी.), जो बेहद
िवन , िश तथा अपने जवान को ब त यार करता था। कनल चहल ने एक िविश हॉक मैच क घटना बताई,
िजसम वे भी खेल रह थे। हमारा मैच ि गेड क साथ था। हम एक गोल से हार रह थे। म यांतर क दौरान मने सभी
जवान को एकि त िकया और उ ह कहा िक हम यह गोल करना ही होगा। यह यूिनट क इ त का सवाल ह।
अिजत िसंह जोश म आ गया। उसने वयं े रत होते ए अ य लड़क को भी े रत िकया और साथ ही िडफडर
होने क बावजूद करो या मरो क भावना सिहत ऐसा खेल िदखाया, िजसे देखकर बाक सब भी जोश म आ गए
और उ ह ने वह गोल कर िदया।
सूबेदार अिजत िसंह ने यु क दौरान बक क लड़ाई म 4 िसख म अपनी उसी भावना का दशन िकया। उ ह ने
बटािलयन क इ त क खाितर अपनी जान दाँव पर लगा दी। उ ह क यास क बदौलत सीमांत चौक ‘रख
हरिदत िसंह’ पर क जा हो सका।
‘बी’ कपनी क व र जे.सी.ओ. सूबेदार गुरदेव िसंह अिजत िसंह को बेहद ेह क साथ ऐसे तर -पसंद य
क प म याद करते ह, जो अपने सामने आनेवाली िकसी भी चुनौती का सामना करने को तैयार था। वे इसका
कारण अिजत क खेल-भावना को मानते ह, जो उ ह कभी हार नह मानने देती। वे जब भी िगरते, तुरत उठकर
िफर आगे चल देते ह। उनक कपनी ने उनक इस गुण को इससे पहले हॉक क मैदान म देखा था और अब वे इसे
बक क रणभूिम पर देख रह थे। सूबेदार गुरदेव िसंह को अिजत िसंह का जो एक और गुण यान ह, वह था
उनका पूरी तरह से िनडर होना। उनक िदलेरी व लड़ाकपन से बटािलयन क युवा लड़क भी साहस से भर जाते।
उनक बहादुरी सं ामक थी, जो कपनी को दु मन का पूरी िदलेरी से सामना करने म मदद देती। उ ह ने अपना
य गत उदाहरण पेश करते ए दरशाया िक एक सैिनक को अपनी बटािलयन व देश क इ त क िलए िकस
तरह लड़ना और मर जाना चािहए।
सूबेदार अिजत िसंह आ यजनक प से िबना चोिटल ए बंकर तक प च गए। वे काँट व प थर से अपने
कपड़ व वचा क फटने क परवाह िकए िबना जमीन क ब त िनकट होकर रग रह थे, इस कारण अिधकांश
गोिलयाँ उनक िसर क ऊपर से िनकल रही थ , िजनक गरमी से उनक पगड़ी झुलस गई। जैसे ही गोली आती, वे
फौरन अपना िसर इतना नीचे कर लेते िक उनक नाक जमीन छने लगती। उनक राइफल बगल म टगी थी तथा
ेने स क बे ट उनक कमर से झूल रही थी। उन ेने स को देखकर उ ह एक िवचार सूझा। िपलबॉ स तक
प चने क बाद वे अपनी जान क परवाह न करते ए अचानक सीधे खड़ हो गए। उसी समय मीिडयम मशीन गन
से दागी गई गोिलयाँ उनक छाती म आ लग , िजससे उनको पीछ क ओर ध ा लगा। वे लड़खड़ाकर िगर गए;
लेिकन एक िखलाड़ी होने क कारण िगरकर िफर से उठना उनक पुरानी आदत थी। उ ह ने अपनी छाती पर हाथ
रखा। वह बेहद गरम व नम थी। उिदत होते सूय क काश म उ ह ने अपने हाथ क ओर देखा। वह खून से सना
आ था। उ ह ने मुँह बनाते ए उसे अपनी पट से साफ कर िलया। दद क लहर अब उनक िदमाग तक प चने
लगी थ । वो जानते थे िक अब उनक पास अिधक समय नह ह। साँस लेने का यास करते ए उ ह ने मुँह से खून
थूका और अंततः एक बार िफर खड़ हो गए। उ ह ने हाथ से टटोलकर अपनी बे ट से ेनेड िनकाल िलया। सब
कछ धुँधला िदखने और शरीर क अपने िनयं ण से बाहर होने क बावजूद उ ह ने अपने मुँह से उसक िपन खोजी।
त प ा उ ह ने बम को मजबूती से पकड़ा और उस िपन को ख चकर िनकाल िलया। िफर वे लड़खड़ाते ए उस
िपलबॉ स क एक दीवार तक प चे और एक मशीनगन क गरम नली को हटाकर वहाँ से वह ेनेड अंदर डाल
िदया। जैसे ही ेनेड अंदर फटा, वे बुदबुदाए, ‘बोले सो िनहाल, सत ी अकाल!’ और वह िगर पड़। जब सूबेदार
अिजत िसंह पछाड़ खाकर धरती पर िगर और उनक आँख बंद हो रही थ तो वातावरण दु मन क भयभीत सैिनक
क चीख-पुकार से गुंजायमान हो गया।
िनशाना बने िपलबॉ स से धुआँ छटने क बाद भी मशीन गन खामोश रह । अिजत क इस चंड साहिसक काय
को देख रह जवान फौरन उनक ओर लपक। उ ह ने लात मारकर िपलबॉ स का दरवाजा खोला और उसपर ह ा
बोल िदया। वहाँ उ ह तीन पािक तानी सैिनक क शव िमले। बटािलयन क सबसे बेहतरीन हॉक िखलाड़ी अिजत
िसंह उस िपलबॉ स क बाहर िमले। उनका ल उस िम ी म समा रहा था, जहाँ से उनक पुरख को अठारह वष
पूव जबरन िनकाल िदया गया था। उनक बंदूक उनक पास ही थी। घाव क चलते वे वीरगित को ा हो गए।
सूबेदार अिजत िसंह ारा दरशाए गए अद य साहस व समपण क िलए उ ह वतं भारत क दूसर सव वीरता
पुर कार ‘महावीर च ’ से स मािनत िकया गया।
‘महावीर च ’ िवजेता सूबेदार अिजत िसंह 4 िसख म ही सेवा देनेवाले लांस हवलदार क उजागर िसंह क पु
थे। उनक माँ का नाम काश कौर था। उनका ज म 1 जनवरी, 1933 को आ। वे जालंधर से 12 िकलोमीटर दूर
थत सुभाना गाँव से थे। सेना म उनका नामांकन 23 मई, 1952 को आ, िजसक बाद उ ह गौरवपूण इितहास
वाले इ फ ी बटािलयन 4 िसख म भेज िदया गया। कछ वष बाद उनक भाई भी इसी बटािलयन म िनयु हो गए।
6 िसतंबर, 1965 को वे बक क लड़ाई म शहीद हो गए। उस समय उनक उ 32 वष थी। वे अपने पीछ प नी
व दो बेिटयाँ छोड़ गए। बक क लड़ाई म शािमल रह उनक भाई को इसिलए ज दी सेवािनवृि दे दी गई, य िक
उनक प रवार म देखरख क िलए कोई पु ष सद य नह बचा था। अब अिजत िसंह क प नी का िनधन हो चुका ह
तथा उनक दोन बेिटयाँ िववािहत ह। उनक भाई अभी भी अपने दो बेट क साथ गाँव म रहते ह।
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डोगराई क लड़ाई
क मीर पर क जा करने क पािक तान क ‘ऑपरशन िज ा टर’ कनाकाम होने तथा पाक अिधकत क मीर म
भारत ारा 8 िकलोमीटर अंदर घुसकर हाजी पीर दर पर क जे क फौरन बाद पािक तान ने 1 िसतंबर, 1965
जवाबी हमले क तैयारी कर ली। इसे ‘ऑपरशन ड लैम’ का नाम िदया गया, िजसका मु य उ े य ज मू व
क मीर क साम रक ि से मह वपूण शहर अखनूर पर क जा करना था। पािक तान ऐसा करक भारतीय
टकि़डय क संपक व रसद का माग काट देना चाहता था। पािक तान ने भारी सं या म सै य-बल तथा भारत क
टक से तकनीक प से बेहतर पैटन टक ारा भारतीय सेना पर अचानक हमला बोलकर उ ह भारी ित
प चाई। भारत ने यु र म तुरत अपनी वायु सेना क मदद ली, िजसक ठीक अगले िदन पािक तानी वायु सेना ने
क मीर व पंजाब थत भारतीय सेना क हवाई अ पर हमला बोल िदया।
इसक बाद भारत ने पािक तान क पंजाब इलाक को रण े बनाने का फसला िकया। इसका उ े य प म
क ओर से हमला करना था, िजससे दु मन को अखनूर अिभयान म जुटी अपनी टकि़डय को पंजाब क र ा क
िलए वापस बुलाना होगा। यह योजना 54 इ फ ी ि गेड ने बनाई, िजसम 15 डोगरा, 13 पंजाब, 14 हॉस क ‘सी’
ा न और 3 जाट यूिनट शािमल थ । यह कदम यु क िदशा पलट सकता था। इस े से अप रिचत होने क
कारण गौण भूिमका िदए जाने क बावजूद ले टनट कनल डसमंड ई. हायड क नेतृ ववाली 3 जाट ने इस यु म
इितहास रच िदया। जबिक सही मायने म वे लोग यु क िलए तैयार भी नह थे। प मी से टर से आई इस
बटािलयन क पास अग त क अंत तक टक-रोधी आर.सी.एल. गन ही नह थी और न ही िपछले चार वष म
बटािलयन म से िकसी ने इस गन को एक भी बार चलाया था। साथ ही यह टकड़ी बटािलयन मोटार व मीिडयम
मशीनगन जैसे हिथयार से भी अप रिचत थी। इन सबसे बढ़कर बटािलयन क पूरी ताकत मौजूद नह थी, िजसम
लगभग 100 लोग (एक राइफल कपनी क बराबर) क कमी थी।
सौज य : इितहास िवभाग, र ा मं ालय
इन सब किमय क बावजूद 6 िसतंबर को सुबह 9 बजे इस बटािलयन ने इ छोिगल नहर क ओर बढ़ना शु
कर िदया (िजसे दोन देश क बीच क वा तिवक सीमा माना जाता था)। नहर क ऊपर थत पुल पर पािक तानी
सेना का क जा था। उ ह ने उन सब थान को न कर िदया, िजनक र ा करना उनक िलए संभव नह था।
इससे लाहौर क ओर जानेवाले सभी माग अव हो गए। नहर क िकनार पर भीषण लड़ाई शु हो गई। 3 जाट
क सभी भारी उपकरण पािक तान क हवाई हमल म व त हो गए, िजससे उनक पास ि गेड हड ाटर से संपक
साधने का कोई तरीका नह बचा। दोपहर 3.15 बजे तक भारतीय सैिनक पर घनघोर हमले व बमबारी होती रही;
लेिकन उ ह ने पूर साहस क साथ पािक तािनय को नहर क पूव िकनार से खदेड़कर, डोगराई शहर पर क जा
करने क िलए आगे बढ़ गए। सुबह 11.10 बजे तक उ ह ने नहर क प मी िकनार पर थत िवशाल बाटापोर
जूता फ टरी को खाली करवा िलया। दुभा यवश, उ ािधका रय को उ ह ा ई इन िवजय क कोई जानकारी
नह थी, इसिलए बटािलयन तक प ची िमत जानका रय क कारण उ ह बाटापोर व डोगराई को छोड़ने क आदेश
दे िदए गए। जाट वहाँ से पीछ हटकर 9 िकलोमीटर दूर संतपुरा आ गए और दु मन क उ ह हटाने क अथक
यास क बावजूद वहाँ खंदक खोद ल । पािक तािनय ने डोगराई को वा तव म एक दुग क श दे दी थी। वहाँ
दु मन क टकि़डय , मोटार व मशीन गन का भारी जमावड़ा था।
21 िसतंबर क रात 3 जाट ने डोगराई पर िफर हमला बोलकर उसपर क जा कर िलया; हालाँिक इस लड़ाई म
दोन प को भारी हािन उठानी पड़ी। यह इ फ ी लड़ाई इतनी बड़ी थी िक इसे आज भी सै य इितहास म वीरगाथा
क तौर पर पढ़ाया जाता ह। डोगराई पर दूसर साहसपूण हमले और िनडरतापूवक क जे क िलए 3 जाट को डोगराई
क बैटल उपािध से नवाजा गया। डोगराई पर पहले िकए गए हमले व क जे क िलए कमांिडग ऑिफसर
(सी.ओ.) ले टनट कनल हायड को ‘महावीर च ’ से स मािनत िकया गया। बटािलयन क अित िविश दशन
का कारण ले टनट कनल हायड क उ क य गत साहस व नेतृ व क असाधारण गुण को माना गया।
मुझे डोगराई क लड़ाई क यह साहिसक कहानी ‘अित िविश सेवा मेडल’ से स मािनत मेजर जनरल बी.आर.
वमा, जो स 1965 म बटािलयन एडजुटट क टन वमा थे तथा उस समय बटािलयन क सेकड-इन-कमांड मेजर
शेखावत और आज क कनल दुजन िसंह शेखावत ( रटा.) ने सुनाई। मेरी िद ी क आम रसच एंड रफरल
हॉ पटल म ि गेिडयर हायडी से उनक अंितम िदन म लंबी बातचीत ई; लेिकन तब मुझे यह ात नह था िक म
कभी डोगराई क लड़ाई पर कछ िलखूँगी या उनका जीवन अब और अिधक शेष नह ह। जब सेना ने मुझे यह
पु तक िलखने को कहा, तब तक ि गेिडयर हायड का देहांत हो चुका था। यहाँ दी गई डोगराई क कहानी का
वणन उन दो वीर सैिनक क ि से िकया जाएगा, जो इस यु म हम इसक कहानी सुनाने क िलए जीिवत बच
सक।

21-22 िसतंबर क रात, 1965


ातःकालीन आकाश म ब त ह क सी चमक िदख रही थी। उिदत होते सूय क उन िकरण ने वृ ाकार म गे क
खेत को कािशत कर िदया। ह क हवा क कारण पक फसल क ऊपर उगी छोटी व सूखी पि य म उ प
ह क सरसराहट क अलावा वहाँ कोई हलचल नह थी। पािक तान क 16 पंजाब (पठान) क सैिनक अपने
क ट क िपलबॉ स म से तनी ई बंदूक एवं धुआँ उगलती मशीन गन सिहत िनगरानी कर रह थे। उ ह उस
अँधेर म भारतीय क मौजूदगी का एहसास था; लेिकन कहाँ, उनक आँख यही तलाश रही थ । इस कारण वे सभी
हाई अलट पर थे। उनक तोप चमक क साथ ांड क रोड पर गोल क बरसात कर रही थ ; य िक उ ह आशा
थी िक भारतीय सेना इसी ओर से हमला करगी। लेिकन पािक तािनय क उ मीद से पर वहाँ से लगभग 700 मीटर
दूर ांड क रोड क मुहाने पर 3 जाट क सैिनक पूरी खामोशी क साथ उ ह देख रह थे। संतपुरा म दो ह त से
डरा डाले बैठी सभी कपिनयाँ 9 िकलोमीटर दूर आरिभक थल (एफ.यू.पी.) पर प च चुक थ । बम क धमाक
व गोिलय क चमक रात को काश से भर रही थी; लेिकन सैिनक अभी भी साए म ही थे। गोिलय क अलावा
वहाँ कवल झ गुर क आवाज तथा तेजी से आगे बढ़ रही चार कपिनय (550 जवान, िजनम से अिधकांश लंबे व
ह -क जाट थे) क जूत क पदचाप ही सुनाई दे रही थी। उन सभी क पास 7.62-बोर क राइफल और 200
राउड गोिलय क अित र बे ट क पाउच म कम-से-कम दो ेनेड अव य थे। येक जवान क पीछ कमर पर
दाई ओर पानी क बोतल तथा बाई ओर संगीन लटक थी। अंितम धावे से पहले अपनी राइफल पर संगीन लगाने
क अलावा उ ह आमने-सामने क लड़ाई होने क भी पूरी उ मीद थी। जनरल वमा याद करते ह, ‘‘उस रात ब त
घना अँधेरा था; लेिकन हम डोगराई को खोजने क िलए रोशनी क ज रत नह थी।’’ वे इसक दो कारण बताते ह।
पहला, संतपुरा क खंदक म िबताए गए िपछले दो ह त म उ ह ने इस इलाक का इतनी बार सै य परी ण िकया
था िक अब उनम से येक सैिनक डोगराई क लगभग हरक झाड़ी से प रिचत था। दूसरा कारण यह िक डोगराई
म इतनी अिधक रोशनी हो रही थी, मानो वहाँ आग लगी ह। उनक ारा बरसाए जा रह अ यिधक गोल तथा
भारतीय प क ओर से उसका जवाब िदए जाने से हम उसक नारगी रग क परखा िदखाई दे रही थी।
रात 1.30 बजे वे अपनी राइफल तानकर तेजी से कदम बढ़ाने लगे। 10 िमनट बाद वे डोगराई म वेश कर गए।
वहाँ पहले ही इतना कोलाहल था िक अब उ ह और शांत रहने क आव यकता नह थी। ती ा कर रह
पािक तािनय क कान म ‘जाट बलवान, जय भगवा ’ का यु नाद गूँज उठा। मशीन गन से ताबड़-तोड़ गोिलयाँ
बरसने लग । लड़ाई शु हो गई थी।

डोगराई क याद
कह-सुने क बात न बोलूँ, गाऊ देखी भाई; तीन जाट क
कथा सुनाऊ, सुन ले मेर भाई;
इ स िसतंबर रात घनेरी, हमला जाट ने मारी, दु मन
म मच गई खलबली, काँप उठी डोगराई।
—कनल हर कमार झा
एक लोकि य ह रयाणवी गीत म िलख इन पं य म डोगराई क लड़ाई को याद िकया गया ह, िजसे स
1965 क यु क सबसे िव यात लड़ाइय म से एक माना जाता ह। उस रात ई आमने-सामने क इस भीषण
लड़ाई म एक घंट क भीतर भारत क 3 जाट क 81 जवान और पािक तान क 16 पंजाब क 300 जवान गंभीर
प से घायल ए।

दो पुराने यो ा से मुलाकात
यु िवषय पर दो िकताब िलखने क दौरान मने जाना िक लड़ाई अपने पीछ िनशान छोड़ जाती ह। ये िकसी सैिनक
क शरीर या िदलो-िदमाग पर भी हो सकते ह और या सबसे बुर हालात म ये ऐसे िनशान भी हो सकते ह, जो अपने
िकसी यार को खो देने क बाद उसक अपन क िदल पर लगे ह ।
मई क उस तपती सुबह मेरी यह मा यता तब और बलवती हो गई, जब मेर िलए मेजर जनरल बी.आर. वमा
( रटा.) ने सुबह क ठीक 10.30 बजे अपने गुड़गाँव थत पेड़ से ढक बँगले का दरवाजा खोला। उनक चाल
तेज थी, लेिकन उसम एक ह क से लचक भी थी। उ ह ने मुझे इसपर यान देते देखा तो धीमे से मुसकरा िदए।
उ ह ने कहा, ‘‘डोगराई क लड़ाई ने मेरी टाँग का डढ़ इच िह सा ले िलया। मुझे दो गोिलयाँ लगी थ ।’’ मने
न तापूवक िसर िहला िदया। मुझे अब इन यु कालीन चोट को देखने क आदत सी हो गई ह। मुझे सैिनक क
इसे गव सिहत वीकार करने तथा इनक साथ जीते देखने क भी आदत हो गई ह। डोगराई क कहानी का यह
आरिभक िह सा मुझे मेजर जनरल वमा ने सुनाया। इस कहानी का दूसरा िह सा (गोली लगने से घायल मेजर
जनरल वमा को वहाँ से हटा िदया गया था। इसिलए जहाँ उ ह ने छोड़ा था, वहाँ से शु करते ए) ‘अित िविश
सेवा मेडल’ से स मािनत कनल दुजन िसंह शेखावत ( रटा.) ने सुनाया, जो उस यु क दौरान बटािलयन क
सेकड-इन-कमांड थे।
कनल शेखावत इस समय 84 वष क ह। वे जयपुर म रहते ह, हालाँिक अब न तो उनक चेहर पर राजपूत जैसी
बड़ी व घनी मूँछ ह, िज ह देखकर दु मन क सैिनक भी कह उठते थे, ‘वहाँ बड़ी मूँछ वाला िहदु तानी मेजर बैठा
ह।’ और न ही उनक मरण-श पहले जैसी रही ह। वो ितिथय व नाम म उलझकर अपनी उ का हवाला देते
ए मुझसे माफ माँगते ह। इसक बावजूद वे मुझे लेने जयपुर रलवे टशन आने पर जोर दे रह थे। बाद म नीबू-
पानी क चु कयाँ लेते ए मुझे अपने ि गेड कमांडर को तंग करने या यु िछड़ने क खबर िमलते ही िमिल ी
से टरी ांच (जहाँ से सेना क अफसर क पो टग होती ह) म अपने सहपाठी क बाँह मरोड़कर उसे उ ह िफर
से उनक बटािलयन म वापस भेजने क िक से सुनाते समय उनक चेहर पर एक मुसकान छा गई।
वे बताते ह, ‘‘मेर िलए यह िवचार असहनीय था िक जब मेरी बटािलयन पंजाब म मुकाबले क िलए जा रही ह,
तब म िसलीगुड़ी म अपनी पो ट पर बैठा र । मने अपने बटािलयन क कमांडर से कहा िक यिद मुझे यु म
लड़ने का मौका नह िदया गया तो मेरी पं ह वष क सिवस बेकार जाएगी। आिखरकार उ ह ने मुझे शुभकामनाएँ
द और मुझे लड़ाई म भेज िदया।’’
कनल शेखावत (जो उस समय 35 वष क मेजर शेखावत थे) ने फौरन अपना टथ श व वरदी बैकपैक म रखी
और पंजाब जानेवाली सबसे पहली न पकड़ ली। इसक बाद उ ह ने एक बस ली, िजसने उ ह उनक गंत य से
आधे रा ते पर छोड़ िदया। इसक बाद उ ह ने हाईवे पर ती ा क तथा वहाँ से गुजर रह क को अँगूठा िदखाकर
िल ट ली और इस तरह मु त म सैर करते ए संतपुरा जा प चे, जहाँ उनक साथी खंदक म डरा डाले ए थे।
उ ह उसी समय सेकड-इन-कमांड क पद पर िनयु कर िदया गया। डोगराई पर ए पहले हमले म शािमन न हो
सकने क बावजूद शेखावत दूसर हमले क ठीक पहले वहाँ प च गए थे।’’

जनरल बी.आर. वमा क कहानी


6 िसतंबर, 1965 का िदन था। रिडयो पर खबर सुनते समय 25 वष य क टन बी.आर. वमा क पेट म बेचैनी भरी
गुड़गुड़ाहट हो रही थी। दो िदन बाद उनका िववाह था, लेिकन अब उ ह नह लग रहा था िक वह हो सकगा। उसे
लेकर वे ब त िचंितत थे। यह उसी लड़क से िववाह का उनका दूसरा यास था। इसक पूव वष क शु आत म
उनका िववाह 15 अ ैल को िन त आ; लेिकन भारत व पाक क बीच बढ़ते तनाव व यु क संभावना को
देखते ए उनक छ ी अचानक र कर दी गई थी। इसक बाद क टन वमा क िववाह क िलए यह दूसरी तारीख
िनकाली गई थी।
रिडयो पर आ रही यह खबर अचानक ही उनक कान म पड़ी िक भारत व पािक तान क बीच यु िछड़ने से
छ ी पर गए सभी सैिनक को उनक यूिनट पर प चने को कहा जा रहा ह। क टन वमा ने अपने माता-िपता व
वधू क प रवारवाल को इस बात क सूचना दी तो वधू प क लोग ज दी से िववाह करने क िवनती करने लगे।
युवा अफसर ने मना कर िदया। वे याद करते ह, ‘‘मने उनसे कहा, अगर म लड़ाई से वापस नह लौटा तो या
होगा? उ ह मेरी बात म तक नजर आया और इसक बाद उ ह ने मुझपर और जोर नह डाला।’’ अगले िदन उ ह ने
पुरानी िद ी रलवे टशन से अमृतसर जानेवाली िवशेष न पकड़ ली। इसक बाद वह तीन टन वजनी क म
बैठकर अपनी बटािलयन क पास खासा प च गए। वहाँ प चकर पता लगा िक उनक बटािलयन पहले ही 6
िसतंबर को अंतररा ीय सीमा पार कर गई ह। अंततः वे उनसे वाघा बॉडर से 3 िकलोमीटर आगे संतपुरा म जा
िमले।

पािक तानी बमबारी से बचना


क टन वमा क यूिनट क जवान ने बाँह फलाकर उनका वागत िकया और ले टनट कनल हायड ने तुरत उ ह
बटािलयन एडजुटट क पद पर िनयु कर िदया। 3 जाट क सैिनक संतपुरा म अपना समय ज द ही होनेवाली
संभािवत लड़ाई क तैयारी म गुजार रह थे। उनम से िकसी क भी िदमाग म डोगराई पर क जे को लेकर कोई संदेह
नह था। वे ऐसा कर चुक थे और पुनः ऐसा कर सकते थे। वे िदन भर तथा रात म भी ग त करक वयं को उस
इलाक और अपने ल य से प रिचत कराते रहते। उ ह ितिदन पािक तान क फौजी ताकत क रोष का सामना
करना पड़ता। उ ह ने उससे भािवत ए िबना उसे अपनी िदनचया म शािमल कर िलया था। मेजर वमा याद करते
ह िक िकस तरह सी.ओ. साहब ने उस ओर यान न देते ए िचंता घटाने क चेतना उ प क थी। ‘‘हम सब
संतपुर म अपनी खोदी खंदक म बैठ रहते। सी.ओ. साहब उसम अपने एक ओर बनी छोटी सी दीवार पर पैर रखे
बैठ रहते। जैसे ही पािक तानी उस इलाक म बमबारी करना आरभ करते, वे अपने हलमेट का प लगाकर खंदक
से बाहर िनकल जाते और दु मन क गोलाबारी क ओर बढ़ने लगते। इस तरह वे अपने जवान को दरशाते िक
इसम भयभीत होने जैसा कछ नह ह। वे कहते, ‘‘मुझे कवल वही गोली मार सकती ह, िजसपर मेरा नाम िलखा
हो। मुझे बाक िकसी से भी डरने क ज रत नह ह।’’ िव सनीय िनडरता क यही भावना टकि़डय म िदखाई
देती और वे भी बमबारी क दौरान पैर पसार लेट रहते। जाट ने 21 िसतंबर से पूव क ह त म लड़ाई क इतनी
गंभीरता से तैयारी क थी िक हमले का मौका आने तक वे मानिसक प से चरम पर थे। उ ह ने इतनी अिधक
ग त और पूव तैयारी कर रखी थी िक डोगराई पर उनक क जे को लेकर िकसी जवान क मन म कोई संदेह नह
था। अंततः लड़ाई का बुलावा आने पर वे आगे बढ़कर इस मु े को समा करने क िलए त पर थे।

योजना
हमले क योजना ले टनट कनल हायड क वभावानुसार प , संि व साहिसक थी। सभी राइफल कपिनय
को एक साथ हमला करने क िलए एफ.यू.पी. पर भेज िदया गया था। उनका ल य प था—डोगराई क िविभ
िह स पर क जा करना। सभी टकि़डय क िलए आदेश प था। अपने अगुआ क पीछ रहो। वे तु ह तु हार ल य
तक ले जाएगा। अपने िलए तुरत फाय रग पोजीशन तैयार करो। िकसी चीज पर जगह बदलकर तब तक हमला मत
करो, जब तक वो वयं नह िहल रही हो।
‘कोई पीछ नह हटगा’
21 िसतंबर क रात अपने जवान को हमले का अंितम आदेश देते ए ले टनट कनल हायडी ने उनसे कवल
दो बात कह —‘एक भी आदमी पीछ नह हटगा।’ और दूसरा—‘िजंदा या मुदा, डोगराई म िमलना ह।’ उ ह ने
लड़ाई से भागनेवाल को अंितम चेतावनी दी। उ ह ने कहा, ‘तुम सबक भाग जाने पर भी म यु भूिम म अकला ही
डटा र गा। जब तुम अपने गाँव प चोगे तो लोग लड़ाई म अपने सी.ओ. का साथ छोड़ देने क िलए तुम पर
थूकगे।’
हमले क रात जवान क भोजन कर लेने क बाद ले टनट कनल हायडी अपने सेकड-इन-कमांड मेजर
शेखावत क साथ एक-एक कर येक खंदक म जवान से िमलने गए। उ ह ने इस लड़ाई से उ ह, उनक प रवार
को तथा उनक बटािलयन को िमलनेवाले गौरव क बात क । उ ह ने कहा, ‘अगर हम आज रात मार भी गए तो
वह एक शानदार मौत होगी। हमारी बटािलयन हमार प रवार का खयाल रखेगी। इसिलए हम िचंितत होने क
आव यकता नह ह।’ इसक बाद उ ह ने उन सबसे वादा िकया िक अगले िदन वे चाह जीिवत रह या मृत, वे उनसे
डोगराई म अव य िमलगे। कनल शेखावत कहते ह, ‘‘इसक बाद लोग जोश से भर उठ।’’ वे इतने उ साह म थे
िक जब ले टनट कनल हायड ने एक जवान से पूछा, ‘कल कहाँ िमलना ह?’ तो उसने उ र िदया, ‘डोगराई म।’
इसपर ले टनट कनल हायड (वे जाट क लहजे म बोलते ए जवान को ‘सुसर’ कहकर बुलाना पसंद करते थे)
ने उससे पूछा, ‘सुसर, अगर सी.ओ. साहब ज मी हो गए तो या करोगे?’ िसपाही ने उ र िदया, ‘सी.ओ. साहब
को उठा कर डोगराई ले जाएँग,े य िक सुसर सी.ओ. साहब क ऑडर साफ ह—‘िजंदा या मुदा डोगराई म िमलना
ह’।’’ इस तरह पूरी तरह संतु होकर वह अगली खंदक क ओर बढ़ जाते।
इसक कछ देर बाद सभी अफसर अपने बंकर क बाहर िडनर करने बैठ गए और टकि़डयाँ एडजुटट क बंकर म
कच क अंितम आदेश क ती ा करने लग । बटािलयन क सबसे युवा अफसर ले टनट जबर िसंह थोड़ परशान
थे। उ ह ने मेजर शेखावत से पूछा, ‘‘सर, आज रात या होगा?’’ मेजर शेखावत ने उ र िदया, ‘‘इस समय हम
चौबीस अफसर एक साथ भोजन कर रह ह। कल हम म से कछ नह ह गे। वे अनुप थत अफसर कौन ह गे, यह
कवल ई र ही जानता ह; लेिकन कबानी िदए िबना कोई जंग नह जीती जा सकती।’ ले टनट जबर िसंह चुपचाप
सुनते रह। वे उस समय नह जानते थे िक कल वहाँ मौजूद न रहनेवाले अफसर म एक वे भी ह गे।
सूरज क अंितम िकरण क साथ ही जवान ने अपने जूते बाँधने शु कर िदए। उ ह ने अपने हलमेट क प
बाँधे और आगे बढ़ने क िलए तैयार हो गए। वे रात 1.30 तक एफ.यू.पी. पर प च गए। उ ह सामने डोगराई िदख
रही थी, जहाँ गोलाबारी क कारण इतना काश था मानो वह दीवाली क रात हो। 54 इ फ ी ने दो चरण म हमला
करने क योजना बनाई। पहले चरण म 13 पंजाब को डोगराई क पूव िह से म दु मन क मोरचाबंदी तोड़कर ांड
क रोड पर 13 मील खोलना था। 13 मील सुरि त हो जाने क बाद दूसर चरण म 3 जाट को डोगराई पर हमला
करक उस पर क जा करना था। 17 िसतंबर को इस हमले क योजना पर िवचार करते समय ले टनट कनल
हायड ने अपने ि गेड कमांडर से कहा था, ‘पहला चरण पूरा न होने पर भी 3 जाट दूसर चरण पर जाएगी और
हमला करगी। पहला चरण वाकई असफल रहा। 13 पंजाब क टकि़डयाँ 13 मील को सुरि त नह कर सक ।
ि गेड कमांडर ने ले टनट कनल हायडी को वायरलेस ारा यह सूचना देते ए 3 जाट का उस रात होनेवाला
हमला रोकने को कहा। उस समय तक एफ.यू.पी. तक प च चुक ले टनट कनल हायड ने ऐसा करने से इनकार
कर िदया। उ ह ने अपने ि गेड कमांडर से कहा िक ‘हम जाएँग;े ब क हम प च चुक ह।’ और इसक बाद वे
अपनी राइफल कपनी म गए और जगमगाते डोगराई पर अंितम धावा बोलने क िलए तैयार हो गए।

हमला
सुबह 1.40 बजे हमला करनेवाली पहली कपनी ड टा ने डोगराई पर ह ा बोल िदया। गोिलयाँ चलने लग ।
उसक दाई ओर चाल कपनी तथा बाई ओर ेवो कपनी थी। सी.ओ. साहब का दल उन दोन क बीच बटािलयन
हड ाटर सिहत अ फा कपनी का िह सा था। सभी कपिनय को अपने ल य पर एक साथ धावा बोलने को कहा
गया था, िजससे दु मन को िति या का मौका भी न िमले। वहाँ प चने क सभी रा त को बा दी सुरग िबछाकर
बािधत कर िदया गया था। सब ओर मशीनगन क गोिलयाँ उड़ती िदख रही थ । वहाँ क अनजानी गिलय व
सड़क पर पािक तान क 16 पंजाब (पठान) क िसपाही अँधेर म िछपकर घात लगाए बैठ थे। वे बीच-बीच म
टट-फट झ पड़ व मकान क िखड़िकय से गोिलयाँ बरसा रह थे।
तभी अचानक दाई ओर ए एक जबरद त धमाक ने जाट को वह रोक िदया। डोगराई क वेश ार पर बने
क ट क िपलबॉ स से एक मशीनगन उन पर ताबड़तोड़ गोिलयाँ बरसाने लगी। उस 180 मीटर क े म कम-
से-कम आठ भारी व ह क ऑटोमैिटक गन तैनात थ । उन घातक बंदूक से िनरतर गोिलयाँ दागी जा रही थ ।
सभी इस हमले से त ध होकर वह क गए। तभी हवा म एक िव ासपूण आदेश तैर गया—‘सब जवान दाई
तरफ से मेर साथ चल, हमला!’ यह थे सेना मेडल से स मािनत व तीन बार रवानगी म उ ेिखत (मशन-इन-
िड पैचेज) सूबेदार पाले राम। उनक आवाज चील से भी तीखी थी। उ ह ने थित को पूरी तरह अपने हाथ म ले
िलया। पीछ कोई आ रहा ह या नह , यह देखे िबना सूबेदार पाले राम ने मशीनगन पर हमला बोल िदया। िबना
िकसी िझझक क दाई ओर वाली चाल कपनी क पलटन उनक पीछ चल दी। थोड़ा िवचार कर क टन किपल
िसंह थापा क नेतृ व वाली ड टा कपनी ने भी हमला बोल िदया। जाट अपनी जान क परवाह िकए िबना गोिलयाँ
चला रही मशीनगन क ओर दौड़ पड़ और उसक पीछ बैठ य को मारकर उसम से िनकल रही चमक को
शांत कर िदया। जो िगर गए, उ ह एक ओर हटा िदया गया, बाक सभी ने हमला जारी रखा।
सूबेदार पाले राम क छाती व पेट म छह गोिलयाँ लग । इसक बावजूद वह अपनी कपनी को साथ लेकर आगे
बढ़ते रह। जवान तब तक लड़ते रह, जब तक उ ह ने बंदूक को शांत नह कर िदया। सूबेदार पाले राम दु मन क
बंकर पर चढ़ गए। उनक साँस उखड़ रही थी, लेिकन आँख अभी भी खुली थ । वे मौत को धता बतानेवाले
अिव सनीय हमले क तरह ही अपनी कहानी सुनाने और लोग को अपने शरीर पर गोिलय क घाव िदखाने क
िलए जीिवत बच गए। बाद म उ ह ‘वीर च ’ से स मािनत िकया गया। लेिकन हर कोई उनक जैसा सौभा यशाली
नह था। इस िस हमले म शािमल 108 लोग म से कवल 27 ही जीिवत बचे। ले टनट कनल हायड ने अपनी
पु तक ‘द बैटल ऑफ डोगराई’ म िलखा—‘यह अिव सनीय आ मण था। िजसने भी इसे देखा ह, उसक िलए
यह सव स मान क बात ह।’
q
क टन वमा अपने सी.ओ. से 18 मीटर पीछ थे। अचानक उ ह अपनी जाँघ म गोली धँसने का एहसास आ। वे
एकदम से जमीन पर िगर पड़। उनक आसपास क सैिनक ने उ ह उठाया और खड़ा करने का यास िकया;
लेिकन वे िफर िगर पड़। तब उ ह अपनी फटी ई पट एवं उसक कपड़ से बह रहा खून िदखाई िदया। उ ह ने वमा
को अपने कधे का सहारा देकर खड़ा िकया और वे लँगड़ाते ए उनक साथ चलने लगे। अभी लड़ाई क शु आत
ही ई थी, इसिलए उ ह ने वमा को घसीटकर पास ही थत एक छोटी सी झ पड़ी म ले गए और उ ह उनक
हिथयार क साथ वह छोड़कर वयं अपने सािथय क साथ हमले म शािमल होने चले गए। वे कवल अपने अद य
साहस क बल पर ही उन बा दी सुरग को पार कर सक। अपनी आँख क सामने अपने िम क शरीर क िचथड़
उड़ते देखने क बावजूद आगे बढ़ते रहना गहन िन ा रखने पर ही संभव ह। उनक नस म बह रहा आवेश उनक
दद से कह अिधक मजबूत था। जवान अपने शरीर पर गोिलयाँ झेलते ए लगातार आगे बढ़ते रहते। वे शरीर म
लेशमा भी श रहने तक अपने हिथयार चलाते रह। वे संगीन से फट अपने पेट को अपने खून से सने हाथ से
थामे ए धीर से जमीन पर ढर हो जाते। उनक िगरते ही उनका थान कोई और ले लेता। यु म शहीद होने क
गौरव से संतु रहते ए वे अपने येय पर अिडग रहते। यह एक लड़ाई थी, िजसे उ ह जीतना ही था। उन सभी क
िदमाग म कवल एक ही िवचार घर िकए था—‘िजंदा या मुदा, डोगराई म िमलना ह।’
लड़ाई सारी रात चलती रही। यह ब त उ ता सिहत िनरतर जारी रही। इ छोिगल नहर का पूव िकनारा अपने
दोन ओर जारी गोिलय क विन तथा दोन ओर क यो ा ारा िकए जा रह तेज यु नाद से गूँज रहा था।
िजस दु मन पर हमला िकया गया था, उनक िजतना नह तो उनसे कम ताकतवर भी नह था और वे एक मजबूत
व सु ढ उपनगर क सुर ा कर रह थे। एक अकली बटािलयन ऐसी बटािलयन का सफाया कर रही थी, िजसे पीछ
से एक अ य बटािलयन से सहायता िमल रही थी। ऐसा शायद ही कभी सुना गया हो। लेिकन उस रात ऐसी ही ब त
सी अिव सनीय कहािनयाँ सामने आई।
q
लगभग 20 वष क उ क ड टा कपनी क युवा क टन किपल िसंह थापा को डोगराई गाँव क उ री व पूव
िकनार पर क जा करने क िज मेदारी स पी गई थी। सूबेदार पाले राम ारा िकए गए हमले म सहायता देते ए
उ ह ने दु मन क मोरचे पर ब त बहादुरी क साथ हमला िकया। आमने-सामने क लड़ाई होने लगी। क टन थापा
ने दु मन क पोजीशन पर ेनेड फका और उसक बाद संगीन क लड़ाई आरभ हो गई। जब वे अपनी बंदूक क
मैगजीन बदलने क िलए बैठ ए थे, उसी समय दो गोिलयाँ उनक हलमेट को छदती ई उनक िसर म आ लग ।
एक शांत, ब त कम बोलनेवाला, शरमीला लेिकन बेहद ढसंक प क टन ने कभी न बोलने क िलए अपनी आँख
बंद कर ल । उ ह मरणोपरांत ‘महावीर च ’ से स मािनत िकया गया।
इसी दौरान अ फा कपनी ने अपना काय अंजाम दे िदया। नविववािहत कपनी कमांडर मेजर आसाराम यागी
खुद को लगी दो गोिलय क परवाह न करते ए जवान का नेतृ व करते रह। उ ह ने दु मन क टक-द ते को
च का िदया। दो टक पर िब कल ठीक हालत म क जा कर िलया गया। कछ ही िदन पहले मेजर शेखावत ने मेजर
यागी क टाँग ख चने क िलए कहा िक सी.ओ. साहब उनसे खुश नह ह, य िक उ ह ने एक रात िबना िकसी
कारण गोलाबारी शु कर दी थी। इससे मेजर यागी कछ याकल हो गए। ‘सर, एक बार समय आने दीिजए,
अ फा कपनी या मेजर यागी से आपक सभी िशकायत दूर हो जाएँगी। हम आपको िनराश नह करगे।’ यह बात
उ ह ने ब त भावुक होकर कही थी। आज उ ह ने इसे सािबत भी कर िदया। घात लगाकर क गई आमने-सामने क
लड़ाई म मेजर यागी ने एक बार िफर घायल होने क बावजूद लड़ना जारी रखा। उ ह ने एक पािक तानी मेजर को
गोली मारी और संगीन भ क दी, िजसक बाद उ ह िनममतापूवक संगीन भ ककर ब त नजदीक से दो बार गोली
मार दी गई। जब वे अपना बुरी तरह फटा आ पेट पकड़कर िगर गए तो हवलदार राम िसंह ने एक बड़ा सा प थर
उठाकर अपने कपनी कमांडर क ह यार का िसर कचल िदया। पलटन कमांडर नायब सूबेदार छोट राम क नेतृ व म
ल य ा कर िलया गया। उ ह ने वयं एक टक न कर िदया। वे एक उ मादी य क तरह टक क ऊपर
चढ़ और उसक भीतर ेनेड डाल िदया, िजससे उसका चालक दल वह मारा गया। उनक बहादुरी से े रत होकर
उनक पलटन ने दु मन क पोजीशन पर ह ा बोला और तीन टक पर क जा कर िलया। ल य- ा क बाद
मेजर यागी को वह एक झ पड़ी म बनाए गए रिजमटल अ पताल म ले जाया गया, जहाँ िचिक सक क टन
एस.जी. िट मार ी ने उनक घाव का ाथिमक उपचार िकया। तब तक मेजर यागी बेहोशी म उतर-उबर रह थे।
जब लड़ाई कछ शांत ई तो क टन वमा को भी उसी झ पड़ी म लाकर जमीन पर मेजर यागी क पास ही िलटा
िदया गया। वहाँ सब तरफ लड़ाई म घायल ए जवान थे। वे जवान, जो गोिलय व संगीन क बाद अब अपने
भा य का सामना करने को तैयार थे। उस रात वहाँ लेट ए क टन वमा व मेजर यागी बाहर चल रही लड़ाई क
आवाज सुनते रह। जब घायल को वहाँ से िनकालने का समय आया तो मेजर यागी ने क टन वमा से कहा, ‘आप
सीिनयर ह, पहले आप जाएँ।’ क टन वमा ने उ ह चुप रहने और वहाँ से जाने का आदेश देते ए उ ह शुभकामनाएँ
भी द । मेजर यागी का ब त सा खून बह चुका था और उ ह बेहद दद हो रहा था। उ ह ने घायल को वहाँ से ले
जा रह मेजर शेखावत से गुजा रश क िक वे उ ह गोली मारकर उ ह इस क से मु िदला द। कनल शेखावत
याद करते ह, ‘‘ यागी का पूरा पेट फट गया था। वो िजंदा था, लेिकन उसे दद ब त था। उसने मुझसे कहा, ‘सर,
म नह बचूँगा। आप ही गोली मार दीिजए। आपक हाथ से मर जाना चाहता ’।’’ मेजर शेखावत, जो मेजर यागी
क पहले कपनी कमांडर भी थे, ने भावुक होकर उ ह उनक बच जाने िव ास िदलाया। वहाँ से सबसे पहले मेजर
यागी को िनकाला गया। मेजर शेखावत व उनक जवान ने उ ह एक वाहक टक पर सुरि त प से र सय से
बाँध िदया। वे बताते ह, ‘‘हम उस टक क आगे दौड़ते ए नंगे हाथ से झाि़डयाँ व कचरा साफ करने लगे। हमने
रा ते म िगर खंभे व तार हटाए तथा धकलते ए उस वाहक टक को मु य सड़क तक ले आए। हम हर क मत पर
मेजर यागी क जान बचाना चाहते थे।’’ इन सार यास क बावजूद मेजर यागी क 25 िसतंबर को मृ यु हो गई।
उ ह मरणोपरांत ‘महावीर च ’ से स मािनत िकया गया; वह नायब सूबेदार छोट राम को ‘वीर च ’ से नवाजा
गया।
उस रात क नायक क सूची ब त लंबी ह। ेवो कपनी क िसपाही बोिहत िसंह सेना क मशीनगन टकड़ी म
तैनात थे। उ ह ने अपनी सुर ा क िचंता न करते ए अपनी कपनी पर ए एक जवाबी हमले को तोड़ने क िलए
अंधाधुंध दौड़ पड़। वे शहीद हो गए। शहर पर क जा करने क बाद भी िसपाही लहना िसंह क कपनी दु मन क
भारी गोलाबारी क बीच फस गई। अनपढ़ व गैर-मह वाकां ी लेिकन भावना से ओत- ोत लहना ने एक लाइट
मशीनगन ली और दु मन क गोलाबारी क बीच खुले म आकर छह पािक तानी सैिनक को मार िगराने क अलावा
चार वाहन भी व त कर िदए। बाद म उ ह ‘वीर च ’ से स मािनत िकया गया। ‘वीर च ’ िवजेता सूबेदार
खजान िसंह एक हमले म िसर पर लगी चोट क बावजूद उसी हालत म अगले हमले म शािमल हो गए। 21 िसतंबर
को वे एक बार िफर घायल ए; लेिकन िफर भी उ ह ने यु -िवराम होने तक लड़ाई छोड़कर जाने से इनकार कर
िदया।
उस रात डोगराई म लगभग हर सैिनक िकसी उ मादी क भाँित लड़ा। जो घायल हो गए, उ ह यु म शािमल न
होने का मलाल रहा। लेिकन उ ह ने भी वहाँ से जाने से इनकार करते ए उन खंदक म रहकर उपचार करवाना
ठीक समझा, जहाँ वे लड़ाई क आवाज सुन सक।
िछटपुट गोलाबारी जारी रहने क बावजूद सुबह 3 बजे तक डोगराई पर क जा हो गया। सुबह 6.15 पर भारतीय
टक वहाँ प चे और उ ह ने नहर क दूसर िकनार पर, जहाँ से पािक तानी जाट पर गोले बरसा रह थे, गोले दागना
शु कर िदया। पािक तान क पीठ टट चुक थी। उसक सैिनक पीछ हट रह थे। भारतीय क डोगराई म उप थित
से िवरोधी प क िजन कपिनय को सहायता नह िमल रही थी, वे िनकल भागने का माग खोजने लग । जो भी
गाँव क बीच से िनकलने का यास करता, छत पर खड़ 3 जाट क ाइपस उ ह अपना िनशाना बना लेत।े लेिकन
कछ उनसे बचकर िनकल गए और उ ह ने तैरकर नहर पार कर ली।
पािक तािनय ने जवाबी हमले का यास िकया। उनक तोप डोगराई पर 23 िसतंबर क सुबह 4 बजे तक िनरतर
गोले बरसाती रह । लेिकन जाट िहले िबना वह डट रह। उ ह ने डोगराई क झ पि़डय म िछपे दु मन को िनकाल
बाहर िकया। िगर तार होनेवाल म 16 पंजाब (पठान) क कमांिडग अफसर ले टनट कनल जे.एफ. गोलवाला,
बै ी कमांडर मेजर तसलीम बेग एवं दो अ य अफसर, पाँच जूिनयर कमीशंड ऑफ सर व अ य पद वाले 108
सैिनक शािमल थे। दु मन क तीन अफसर, पाँच जूिनयर कमीशंड ऑिफसर तथा 380 सैिनक मार गए। दु मन क
तीन टक व तीन आर.सी.एल. गन व त कर दी गई और पाँच जीप तथा दो क पर क जा कर िलया गया।
पािक तान क जवाबी हमले क यास म दु मन क िखलाफ मोटार का उपयोग िकया गया। इ छोिगल नहर पर
लांस नायक ओम काश ने भारत का रा ीय झंडा फहराया। इसे देखने क िलए जीिवत बचनेवाल क िलए वह
ब त गौरवपूण ण था। उनम से अिधकांश क आँख डोगराई पर क जे म अपनी जान करबान करनेवाले सािथय
को याद करक भर आई।
क टन वमा को वहाँ से ले जाने क बारी दोपहर क बाद आई। उ ह अ य घायल क साथ टक जैसे वाहन
टी-16 पर लाद िदया गया। उ ह ने मुझे बताया, ‘‘म एक अ य सैिनक क गोद म बैठकर आया, य िक उसम
िब कल जगह नह थी।’’ ाइवर खेमा राम उन 16 घायल को लेकर संतपुरा थत एडवांस िसंग टशन ले
आए, जहाँ ाथिमक उपचार क बाद उ ह अमृतसर क सै य अ पताल भेजा गया। वहाँ से उ ह बक म चल रही
भयंकर लड़ाई क घायल सैिनक सिहत िवशेष आपातकालीन मेिडकल न ारा जालंधर भेज िदया गया।
क टन वमा को िद ी थत आम बेस हॉ पटल भेज िदया गया, जहाँ से उ ह अंततः 4 मई, 1966 को छ ी
िमल गई। वहाँ से बाहर िनकलते समय उनक एक पैर म लचक थी, जो जीवन भर ऐसी ही रही। जनरल वमा ने
अपनी यारी सी प नी क ओर देखते ए मुझे बताया, ‘‘आिखरकार 21 मई को मेरा िववाह उस लड़क क साथ
हो ही गई, िजसने मेरा एक यु और िववाह क दो िनर त तारीख पर मेरा इतजार िकया था।’’ उ ह ने आगे कहा,
‘‘और यह पूणतया संयोग ही ह िक आज हमार िववाह क उनचासव वषगाँठ पर आप हमार साथ ह।’’ उनक
आँख क चमक ने बीते पचास वष का काल पल भर म समेट िलया और अब वे मेर सामने वही युवा क टन थे,
जो हाल ही म एक भयंकर यु का िह सा रह थे। वह यु , िजसने भले ही उनक दािहनी टाँग का डढ़ इच
िह सा ले िलया हो, लेिकन वह उनक जोश को छ भी नह सका।

बहादुरी का पुर कार


डोगराई को भारतीय सेना क इितहास म अब तक जीती गई सबसे किठन लड़ाइय म से एक माना जाता ह। इसक
शहीद म मेजर आर.डी. व स, क टन क.एस. थापा एवं ले टनट जबर िसंह शािमल ह। इसक अलावा मेजर
आसाराम यागी का भी अपने घाव क कारण अ पताल म िनधन हो गया। बटािलयन को इसम तीन ‘महावीर च ’
ा ए, जो कमांिडग ऑिफसर ले टनट कनल डसमंड यूजीन हायड तथा मरणोपरांत मेजर ए.आर. यागी व
क टन क.एस. थापा को दान िकए गए। बटािलयन को चार ‘वीर च ’, सात ‘सेना मेडल’ व बारह ‘मशन इन
िड पैच’ उपािध से स मािनत िकया गया।
वे टन कमांड क जनरल ऑिफसर कमांिडग-इन-चीफ ले टनट जनरल हरब श िसंह ने यु क बाद
बटािलयन को संबोिधत करते ए कहा, ‘आपने वह महा िवजय ा क ह, जो इससे पहले ब त कम
बटािलयन क िह से म आई ह। सार देश को 3 जाट पर गव ह।’ जवान क चेहर पर मुसकान लाने क िलए बस,
इतना ही काफ था।
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ि गेिडयर डसमंड यूजीन हायड
महावीर च
वष 2013 क गरिमय म मेरा अिधकांश समय िद ी थत आम हॉ पटल रसच ऐंड रफरल क ऑिफसस
वाड म बीता, जहाँ म अपने बीमार िपता से िमलने जाती थी। इस दौरान म अकसर उनक लंबे व गोर ऑिफसर
ममेट का भी अिभवादन करती, जो बेहद ओज वी, िवन व ि िटश लहजे क साथ बात करते। वे थे डोगराई क
लड़ाई क नायक एवं ‘महावीर च ’ से स मािनत ि गेिडयर डसमड यूजीन हायड ( रटा.)। वे स ासी वष क थे।
उनका घातक कसर रोग उनक सभी मह वपूण अंग म फल गया था और उनका िदल िदनोिदन कमजोर होता जा
रहा था। साथ ही उनक शरीर पर बड़-बड़ म से हो गए थे, िजसे वे अपनी पूरी बाँह क कमीज व मोज से ढक
रखते थे। लेिकन िकतने भी दद क बावजूद मने अकसर उस वृ य को िब तर पर बैठकर ‘जॉन ि शम’
पढ़ते या कमर म धीर-धीर टहलते ए अपना काम-काज करते देखा था। एक बार मने उ ह िकसी भी सहायता से
इनकार करते ए उनका छोटा सा सूटकस पैक करते देखा। उ ह उस काम म पूर 40 िमनट लगे। वे धीर से नीचे
झुककर ॉअर से अपने कपड़ िनकालते और िफर सीधे खड़ होकर उ ह अ छी तरह तह करक सूटकस म ठीक
से लगाते जाते। वे अपना यह काय पूर मनोयोग से कर रह थे। वे अपने आसपास उनको नजरअंदाज कर रह लोग
पर कोई यान नह दे रह थे। उस समय मुझे यह नह पता था िक उ ह ‘महावीर च ’ िकसिलए िमला ह। एक बार जब मने

21 िसतंबर क रात जब ले टनट कनल डसमंड यूजीन हायडी ने अपने जवान को हमला करने का अंितम आदेश िदया, उ ह ने उनसे कवल दो ही
बात कह —‘एक भी आदमी पीछ नह हटगा।’ और दूसरा—‘िजंदा या मुदा, डोगराई म िमलना ह।’
उनसे उस िव यात लड़ाई क बार म पूछा, िजसका वे िह सा रह और जो युवा सै य अिधका रय को महा
नेतृ व क उदाहरण क प म सुनाई जाती ह, तो उ ह ने मुझसे कहा िक यिद म वाकई वह कहानी सुनना चाहती
तो मुझे उनक घर कोट ार आना होगा। मने उनसे वहाँ आने का वादा िकया।
मुझे ऐसा करने म दो वष लग गए। इस बीच ि गेिडयर हायड का िनधन हो गया। उनक मृ यु 25 िसतंबर,
2013 को ई। इससे ठीक एक माह पहले उ ह ने अपने सूबेदार मेजर से उ ह गन सै यूट देने क िलए राइफल
तैयार रखने को कहा था। ‘25 िसतंबर को बंदूक क चबर म गोली डाल देना साहब; म जाने वाला ।’ यह बात
उ ह ने अपनी तराशी ई िहदी म कही। अंततः मुझे डोगराई क वह कहानी उन अफसर ने सुनाई, जो उनक साथ
यु म कधे-से-कधा िमलाकर लड़ थे। इसक अलावा उनक बार म मुझे और अिधक जानकारी ि गेिडयर हायड
ारा कोट ार म ब क िलए शु क गई ह रटज एकडमी मुकदी लाल शीला हायड सोसाइटी क बंध
िनदेशक कवर अजय िसंह ( रटा.) से िमली। इस सोसाइटी का नाम ि गेिडयर साहब क िदवंगत धमप नी शीला
हायड एवं उनक िपता मश र गढ़वाली बै र टर व वतं ता सेनानी मुकदी लाल क नाम पर रखा गया था।
गढ़वाल क तलहटी म बसे छोट से शहर कोट ार म जून का महीना था। खो नदी सूखी ई थी (यह हर
गरिमय म गायब हो जाती ह, इसीिलए इसे ‘खो’ कहा जाता ह)। लेिकन आसपास क पहाड़ अभी भी हर थे।
िकसी शांत िदन आप नदी क पार थत िस बली मंिदर क घंिटय क आवाज भी सुन सकते ह, लेिकन आज
बयार नीम क ऊपरी पि य को खड़खड़ाकर िनकल रही ह। आम क पेड़ से सरसराती ई पास ही पक रही
लीिचय को थरथराकर वग य ि गेिडयर हायड क ए टट म बने लॉन म मेर आसपास बैठ बजूका, कॉक ,
डिवल, टीना, िडक तथा िविभ रग, आकार व वंश क ब त से अ य क क पूँछ पर आकर ठहर जाती ह।
कनल िसंह मुझे आइस टी, िब कट तथा बुजुग ि गेिडयर क याद परोसते ए उदारतापूवक बताते ह िक डोगराई
क नायक पशु- ेमी थे और उ ह ने पतालीस आवारा क को गोद ले रखा था। उ ह ने मुझे बताया, ‘‘सर को जब
भी घर क पास कोई भी बीमार क ा िमल जाता तो वे फौरन उसे घर ले आते। लोग अकसर अपने अनचाह िप
को हमारी बाउ ी क इस ओर फक जाते और वे िबना कछ कह उ ह अपना लेत।े ’’
ि गेिडयर हायड क वष 2013 म वचा क कसर क कारण मृ यु हो गई; लेिकन उनक क े व उनक िवरासत
आज भी कायम ह। उ ह ने अपनी 20 एकड़ जमीन और आम क पेड़ वसीयत म मुकदी लाल-शीला हायड
सोसाइटी क नाम कर िदए, िजसे अब ि गेिडयर हायड ारा कई वष पहले अपने ऑिफसस िनंग एकडमी
सिवसेज सेले शन बोड क सा ा कार हतु तैयार िकए गए कोट ार क लड़क कनल िसंह एवं उनक िश ा-
िवशारद प नी पमाला िसंह चलाते ह। िदवंगत बै र टर मुकदी लाल ढलुवाँ छत और लाल ईट क दीवार वाले इस
खूबसूरत घर ‘भारती भवन’ म ही रहा करते थे। अब इस घर को कल का प दे िदया गया ह। ि गेिडयर हायड
ने अपनी जमीन इस दंपती को इस अनुबंध क साथ मु त म दे दी िक वे इस कल को ट क त वावधान म
चलाएँग।े वे कभी कल क कमाई को हाथ नह लगाएँगे और अपनी मृ यु क पूव इस संपि को सोसाइटी क नाम
वसीयत कर जाएँग।े
लोग को अपने त ख यवहार, धारदार भाषण, यं या मक हािजर-जवाबी व अनुशासन क कठोर दबाव से
अकसर भयभीत करनेवाले ि गेिडयर हायड दरअसल मानव- ेमी थे। कनल िसंह मुसकराते ए कहते ह, ‘‘एक
घर म रहने क बाद भी मुझे उनसे िमलने क िलए अपॉइटमट लेना पड़ता था। सुबह 8 बजे का मतलब सुबह क
8.01 नह हो सकते थे।’’ वे िजन लोग से सै ांितक प से सहमत नह होते, उनक ित उनम सहनशीलता ब त
कम थी। वह िजसे पसंद नह करते, उससे अपने संबंध पूरी तरह से समा कर लेत।े वे याद करते ह िक जब
उ ह ने इ फ ी क जगह एयर िडफस को चुना तो ि गेिडयर हायड ने उनसे कई वष तक बात नह क । वे हसते
ए बताते ह, ‘‘उनक नजर म म आसान रा ता लेनेवाला कामचोर था।’’ जब कनल िसंह क ि गेिडयर हायड से
पहली मुलाकात ई, उस समय वे कल जानेवाले लड़क थे। कछ समय बाद जब वे कॉलेज म पढ़ने क िलए
कोट ार लौट तो ि गेिडयर हायड ने उ ह अपनी ऑिफसस िनंग एकडमी क सा ा कार क िलए तैयार िकया।
चयिनत होने क बाद जब वे अकादमी म वेश पर हीला-हवाला करने लगे तो ि गेिडयर हायड एक सूटकस लेकर
उनक घर आए और उ ह अपना सामान पैक करक सेना म भरती होने को कहा। कई वष बाद कनल िसंह ने सेना
से अवकाश लेकर कोट ार म एक कल खोल िलया, जो सेवािनवृ ि गेिडयर का ही ीम ोजे ट था।
ि गेिडयर हायड ने कभी किठनाइय क सामने हार नह मानी। उ ह ने ऐसा न तो डोगराई म िकया और न ही
अपने िनजी जीवन म। िजस भी चीज पर उ ह भरोसा होता, वे उसम अव य मदद देते। वे कोट ार थत भूतपूव
सेनानी संघ क सं थापक अ य थे। शु आत म इसक काय का संचालन उनक घर से ही होता था। उ ह ने संघ
क काय क िलए एक नई मा ित वैन खरीदी और एक ाक को िनयु िकया। वे दोन गाँव-गाँव घूमकर
सेवािनवृ सैिनक को खोजते और उनसे संबंिधत डटा एकि त करते।
ि गेिडयर हायड अपनी जैसी स त छिव दरशाते थे, वा तव म वे भीतर से एक नरम िदल क य थे। इस
बात को समझाने क िलए कनल िसंह एक घटना बताते ह। एक बार ि गेिडयर साहब को डोगराई क लड़ाई म
शहीद ए ‘महावीर च ’ िवजेता वग य मेजर आसाराम यागी क मूित क अनावरण हतु लखनऊ आमंि त िकया
गया। उस समय उनक पास कार नह थी। वे अकसर एक थानीय ट सी ाइवर क गाड़ी िकराए पर लेते और
उसम बैठने क पूव ही उसका पूरा िकराया चुका देने क बाद ाइवर को कछ हजार पए अिधक देकर पूरी या ा
क दौरान उसे अपने एल.ओ. (संपक अिधकारी) क भूिमका भी िनभाने को कहते। इस बार िफर उसी ट सी म
या ा करते ए उ ह ने एक रात सेना क एक मेस म काटी। अगले िदन जाते समय जब उ ह ने मेस का िबल
मँगाया, तो यूिनट ने उनक वहाँ रहने का शु क लेने से इनकार कर िदया। ि गेिडयर ने इसपर अड़ रहने क जगह
यूिनट क वार िवडो फड हतु एक लाख का चेक ह ता रत कर उ ह स प िदया।
िजन काय पर उ ह भरोसा होता, वे उनक ित अितशय उदारता रखते; लेिकन वे अपने िलए बेहद िमत ययी थे।
िदल से वे एक ऐसे सादे वभाव क य थे, जो अिधक सुख-सुिवधा म िव ास नह रखता था। थानीय
लोग को याद ह िक वे अपने क को नहलाने क िलए अपनी जमीन क पास से गुजर रही नहर पर ले जाते। उ ह
अकसर ‘भारती भवन’ क छत पर िबना कमीज पहने दरार को दु त करते या लकड़ी से िनकली क ल को
हथौड़ से ठोकते देखा जाता था। कनल िसंह उनक कार म क गई ि गेिडयर हायड क अंितम िद ी या ा को
याद करते ह। सफदरजंग क िनकट प चने पर उ ह शौचालय जाने क आव यकता महसूस ई। म गाड़ी हयात
होटल ले गया। वहाँ क चमक-दमक देखकर वे कली ब े जैसे अिभभूत हो गए। उ ह ने वहाँ कॉफ पी तथा
थोड़ा कक खाया और मुझसे कहने लगे िक उ ह नह पता था िक भारत म भी इतनी शानदार जगह मौजूद ह।
सेवािनवृि क बाद ि गेिडयर हायड कोट ार म ही रहने लगे। वहाँ अपना िवशालकाय बँगला होने क बावजूद
उ ह ने उसक पीछ बने दो कमरवाले अपाटमट को अपना िनवास- थान बनाया, िजसे उ ह ने ‘हायडन’ यानी हायड
क गुफा का नाम िदया। उ ह ने अपने जीवन का अंितम वष वह अपने क , उनक ारा उपचार क गई मैना
और उन िगलह रय क साथ िबताया, जो उनक आसपास तेजी से दौड़ते ई उनक पास अकसर रहनेवाले रोटी क
टकड़ को ढढ़ने क िलए उनक जेब म चढ़ती-उतरती रहत । जब वे सेना म ि गेड कमांडर थे, तब भी उ ह
अपनी जेब म िगलह रयाँ रखने क िलए जाना जाता था। उ ह ने न तो कभी मोबाइल फोन िलया और न ही कभी
क यूटर का उपयोग िकया। इसक जगह उ ह अपने फिसट टाइपराइटर का उपयोग करना अिधक पसंद था। जहाँ
अिधकांश बड़ी उ क लोग उनक आसपास घबराहट महसूस करते, वह ह रटज एकडमी म आनेवाले ब क
िलए वे अंकल-डी थे। वे उ ह गाना िसखाने क अलावा अपने माउथ ऑगन पर ‘रड रवर वैली’ क धुन भी बजा
कर सुनाते।
‘महावीर च ’ से स मािनत ि गेिडयर डसमंड यूजीन हायड ( रटा.) का ज म यूनाइटड िकगडम क ए सटर म 28
नवंबर, 1926 को आय रश वंश क एं लो-इिडयन प रवार म आ। वे तीन भाई थे। उनक िपता लोहार थे, िज ह
घोड़ क नाल बनाने म महारत हािसल थी। उनक प रवार क पास ब त कम संसाधन थे। संभवतः इसी कारण
उ ह ने आिथक प से स म होने क बाद भी अपने जीवन का उ रा िवलािसता-रिहत ही यतीत िकया। उनक
माँ अकसर िपयानो बजाया करती थ , िजस कारण उनम भी संगीत क ित झान आ। आसनसोल व बगलौर म
सीिनयर कि ज क पढ़ाई करने क बाद 20 जनवरी, 1947 को उ ह ने भारतीय सै य अकादमी, देहरादून म वेश
ले िलया तथा 12 िसतंबर, 1948 को उ ह जाट रिजमट म कमीशंड कर िदया गया।
युवा ले टनट क तौर पर बरली म तैनाती क दौरान उनक अपनी भावी प नी शीला हायड से मुलाकात ई। वे
कोट ार क पौड़ी गढ़वाल म रहनेवाले मश र गढ़वाली बै र टर व वतं ता सेनानी मुकदी लाल क बेटी थ ।
उनक मुलाकात अकसर होती रहत , य िक वे िगरजाघर गायक दल म गाते थे तथा शीला िनयिमत प से चच
आती थ । दोन म ेम आ और स 1955 म उनका िववाह हो गया। 1965 म उनक वीरोिचत व साहसपूण नेतृ व
म भारतीय सेना ने डोगराई व बाटापोर म ऐितहािसक जीत हािसल क । वे ऐसे एकमा सै य अिधकारी ह, िजनका
िव यात पटर एम.एफ. सैन ने यु भूिम म िच बनाया। उसे पो ट को बरली क जाट रिजमटल सटर यूिजयम
म पूर गव सिहत थान िदया गया ह।
उ ह ने अपनी प नी से वादा िकया था िक वे उनक िपता क देखभाल करगे। इसिलए वष 1978 म सेवािनवृि
क प ा वे कोट ार म ही रहने लगे। उ ह ने अपना जीवन गढ़वाल क लोग को समिपत कर िदया और उ ह ने
भूतपूव सैिनक क िवधवा क भलाई क िलए भी अथक प र म िकया। वष 2011 म उ राखंड क मु यमं ी ने
उनक यास क सराहना करते ए उ ह ‘गढ़वाल का गौरव’ पुर कार से स मािनत िकया। अपनी प नी व सुर
से वसीयत म िमली सारी जमीन को ह रटज एकडमी को दान करने क बावजूद उ ह ने कल क ि याकलाप या
कमचा रय क िनयु म कोई दखल नह िदया। नौकरी या अ य अनु ह क कामना से उनक पास आनेवाल से
वे न तापूवक कल क मामल म कछ न कहने क बात बता देते। व तुतः वे अपने आप म रहते थे। सोते समय
अपने िब तर क चार ओर क से िघर और कभी अपने िलए सुबह का ना ता वयं बनाते तथा अपने सेवक
ाइड मोहन को ठीक दोपहर 1 बजे अपना भोजन लगा देने को कहते।
वे ब से खुलकर बात करते। वे उनक ‘अंकल-डी’ बनकर उनक साथ व िबताते, उ ह कहािनयाँ सुनाते
और अपने माउथ ऑगन पर बजाकर गाने िसखाते। कल शु करते समय उनका कवल एक ही कड़ा व असहज
आदेश था िक उनक खराब छिववाले तीन कटखने क क अलावा उनक िकसी भी क े को कभी भी चेन से नह
बाँधा जाएगा। अपने ब को कपस म खुले घूमते क ारा दौड़ाए जाने से भयभीत कछ माता-िपता क
िशकायत क बावजूद वे अपनी बात पर अड़ रह तथा कनल िसंह को खे श द म कह िदया िक ‘मेर क े चेन
से नह बाँधे जाएँगे।’
ि गेिडयर हायड का 87 वष क आयु म िनधन हो गया। वे अपने पीछ तीन पु छोड़ गए—वॉ टर, माइकल व
नॉरमैन। कल िब डग म अभी भी यारह क का समूह िनवास करता ह। उ ह आज भी ायः खुला ही रखा
जाता ह। जब उनक प नी का देहांत आ तो उ ह जाट रिजमट सटर क कि तान म दफनाते समय ही उ ह ने
उनक पास वाली जगह अपने िलए रजव कर ली। आज वे वह पर दफन ह। उ ह एक ऐसे मजबूत व िनडर
अगुआ क तौर पर जाना जाता ह, िजनक जवान उनक साथ कह भी जाने को स तापूवक तैयार हो जाएँगे।
उ ह ने कल क ब क िलए अपने जीवन क आदश से जुड़ा एक गीत रचा—
कदम बढ़ा क चल, सुर िमला क चल,
आँिधय से न तू डगमगा, सच क राह पे चल।
यह गीत हर सुबह कल सभा क समय हवा म तैरता आ आम क उस पेड़ क तले जा प चता ह, जहाँ
कभी ि गेिडयर व ीमती हायड अपने हाथ म खाद क बा टी िलये साथ-साथ घूमते थे। उनक िवरासत सदा
अमर रहगी।
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ताशकद घोषणा-प
यह माना जाता ह िक भारत ने यु क दौरान जो कछ भी जीता वह उन सबको ताशकद घोषणा-प म हार गया।
यह बेहद अ स करनेवाला त य ह िक इतनी किठनाई से जीते गए इलाक को वापस दे िदया गया, िजससे
भारतीय सैिनक का बिलदान यथ चला गया। माना जाता ह िक यिद यु कछ िदन और चलता तो पािक तान का
गोला-बा द समा होने वाला था, िजससे उसक रीढ़ टट जाती। साथ ही इस संघष क दुिनया क अ य रा म
फलने का भी भय था।
उधर पािक तान म भी इसपर भारी असंतोष था। थानीय लोग म यह चा रत िकया गया िक वे यु म जीत
रह ह। इसिलए इस समझौते पर ह ता र होने से वे भी सकते म थे, िजससे देश भर म दंगे व दशन फट पड़।
स 1965 क यु म भारतीय सेना म हताहत क सं या 11,479 (यु -िवराम उ ंघन सिहत) थी, िजनम
2,862 शहीद एवं 8,617 घायल ए। घायल म 436 ऑिफसस, 347 जूिनयर कमीशंड ऑिफसर, 7,768 अ य
पदािधकारी तथा 66 नॉन-कॉ बेटट एनरॉ ड कमचारी थे। पािक तािनय क अनुसार, इस यु म उनक 1,033
नाग रक मार गए। जबिक भारतीय रकॉड क मुतािबक मार गए पािक तािनय क सं या 5,800 थी।
20 िसतंबर, 1965 को सुर ा प रष ने एक ताव पा रत कर भारत व पािक तान को 22 िसतंबर सुबह 7 बजे
जी.एम.टी. (भारतीय समयानुसार दोपहर 12 बजे) से यु -िवराम लागू करने को कहा। इस ताव से दोन ही देश
सहमत नह थे। भारत ने यु -िवराम क
सौज य : इितहास िवभाग, र ा मं ालय
िलए दो शत रख —पािक तान को आ ामकता यागने क घोषणा करनी होगी और िव ास िदलाना होगा िक
वे इसक बाद क मीर म कभी दखलंदाजी नह करगे। उ ह ने दोन ही बात नह मान । पािक तान को आशा थी िक
वह चीन क सहायता तथा क मीर म जनमत-सं ह ारा भारत को हरा सकता ह। दोन म से कछ नह आ।
यु -िवराम क आ ासन क कछ ही घंट बाद पािक तानी वायु सेना ने अमृतसर क बाहरी िह से म थत छराता
पर हमला कर िदया, िजसम 55 नाग रक मार गए। इसक अलावा पािक तान ने संघष जारी रखते ए भारत क
अिधकतम इलाक पर क जा करने का यास िकया। गंभीर वै क दबाव क बाद दोन देश ने अंततः 23 िसतंबर
को भारतीय समयानुसार सुबह 3.30 बजे यु -िवराम क घोषणा कर दी। इसक बावजूद झड़प जारी रह ।
4 जनवरी, 1966 को ‘यूिनयन सोिवयत सोशिल ट रप लक’ ारा ताशकद (अब उ बेिक तान) म एक
स मेलन आयोिजत िकया गया। सोिवयत धानमं ी अले साई कोिशिगन ने भारत क धानमं ी ी लाल बहादुर
शा ी और पािक तानी रा पित मोह मद अ यूब खाँ क बीच म य तता करते ए थायी बंदोब त करने का
यास िकया। दोन देश ने 10 जनवरी, 1966 को एक शांित समझौते पर ह ता र िकए। इसका ल य आपसी
र त को सामा य करना था। इसम सहमित जताई गई िक दोन देश पीछ हटकर अग त से पूव क थित बहाल
करगे, यु बंिदय का आदान- दान करगे, राजनियक व आिथक र ते बहाल करगे तथा दोन देश एक-दूसर क
आंत रक मसल म दखलंदाजी नह करगे।
दोन प ितपूित क तौर पर यु क दौरान क जा िकए गए इलाक को वापस लौटाने पर भी राजी हो गए।
इस यु क दौरान भारत ने पािक तान क 1920 वग िकलोमीटर इलाक पर क जा कर िलया था; जबिक
पािक तान का भारत क 540 वग िकलोमीटर इलाक पर क जा था। भारत को खेमकरण व छब म अपने खोए
इलाक वापस िमल गए; लेिकन इसक िलए उसे िटथवाल, हाजी पीर व कारिगल जैसे साम रक े लौटाने पड़,
िजनपर क जा करने क िलए ब त से जवान ने अपनी जाने दी थ । कमांिडग अफसर को अपने सैिनक को यह
समझाना किठन हो गया िक इतने खून-खराबे क बाद जो े हािसल िकए गए थे, उ ह वापस य लौटाया जा
रहा ह। स 1965 म यूिनट क एडजुटट रह 1 पैरा क कनल जे.एस. िबं ा ( रटा.) याद करते ह िक जब सैिनक
हाजी पीर से िनकल रह थे तो उनक आँख म आँसू भर ए थे। िजस े को उ ह ने इतनी बहादुरी और इस
यास म अपने ब त से सािथय को खोने क बाद हािसल िकया था, उसे खाली करते समय वे ब त िनराश थे।
ताशकद घोषणा-प को दो यु रत देश क बीच सौहादपूण र ता थािपत करने क िदशा म एक बड़ा कदम
माना गया। य िप इससे पािक तान क गु र ा आ मण पर लगाम नह लगी और उनक घुसपैठ जारी रही,
िजसका प रणाम स 1971 म एक और यु क प म सामने आया।
समझौते पर ह ता र करने क कछ घंट बाद 11 जनवरी, 1966 को रात 1.30 बजे धानमं ी लाल बहादुर
शा ी का िदल का दौरा पड़ने से िनधन हो गया। वे उन िवरल धानमंि य म से थे, िज ह ने पूर साहस से भारतीय
सेना को सीमा पार करक पािक तान म अपने ारा चयिनत थान पर हमला करने को कहा था।
ताशकद घोषणा-प ने भारतीय उपमहा ीप म शांित का एक और अवसर िदया। लेिकन वातावरण अिव ास
व श ुता का बन गया था। स 1971 क भारत-पाक यु क जमीन तैयार हो चुक थी।
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