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अध्याय-1

पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान, उत्तर में अफगानिस्तान और चीन का सिकियांग प्रान्त, पूर्व में
भारत और दक्षिण में अरब सागर से घिरा हुआ पाकिस्तान 14 अगस्त 1947 को भारत के विभाजन
के फलस्वरूप एक नवीन राष्ट्र के रूप में उदित हुआ। प्रारम्भ में पूर्वी बंगाल भी इसका एक भाग
था, परन्तु 1971 में वह विद्रोह करके बांग्लादे श के नाम से अलग राज्य बन गया। पश्चिमी
पाकिस्तान का क्षेत्रफल 3,20,236 वर्ग मील था। संयुक्त पाकिस्तान का क्षेत्रफल 51,501 वर्गमील था।
संयक्
ु त पाकिस्तान की जनसंख्या 11 करोड़ थी। पाकिस्तान के विभिन्न भागों में एकता का एकमात्र
महत्वपूर्ण तत्व इस्लाम धर्म है वह प्रादे शिक या धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद पर आधारित नहीं है । यद्यपि
कि सन ् 1947-48 के साम्प्रदायिक दं गों के कारण भारत-पाक सम्बन्ध प्रारम्भ से ही कटु हो गये।
विस्थापित सम्पत्ति, दे शी राज्यों की संवैधानिक स्थिति, नहरी पानी विवाद, सीमा निर्धारण, वित्तीय
और व्यापारिक समायोजन, जन
ू ागढ़, है दराबाद और कश्मीर की संवैधानिक स्थिति तथा कच्छ पर
पाकिस्तान के आक्रमण के प्रश्नों को लेकर दोनों दे शों में गम्भीर विवाद उत्पन्न हो गये। इनमें से
कश्मीर विवाद और नहरी पानी विवाद सबसे अधिक गम्भीर और महत्वपूर्ण थे। 19 दिसम्बर 1980
को विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के मध्य पश्चिमी नदियों के प्रश्न पर सिन्धु
जल-सन्धि के नाम से एक समझौता हो गया। समय ने अन्य विवादों की तीव्रता को कम कर दिया,
परन्तु कश्मीर विवाद आज भी दोनों दे शों के सम्बन्धों में विष घोल रहा है । "

पाकिस्तान को राष्ट्र निर्माण के लिए एक हिमालय एक सदृश कठिन चन


ु ौती का सामना करना पड़ा।
सन ् 1947 के बाद के वर्षों में पाकिस्तान में केवल एक ऐसा संगठन था जिसमें राष्ट्रीय एकता की
भावना थी। राजनीतिक दल धार्मिक समूहों और भाषायी गुटों में बंटे हुए थे। 1948 में राष्ट्रपति और
गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना की मत्ृ यु और 1952 में प्रधानमंत्री लियाकत अली खां की मत्ृ यु
पाकिस्तान के राजनीतिक विकास के लिए गम्भीर आघात थे। उनके बाद उनके प्रधानमंत्री ख्वाजा
नाजीमुदीन अली बोगरा, चौधरी मुहम्मद अली, सुहरावार्दी, फिरोज खां नून एक के बाद एक आये 7
अक्टूबर 1958 को राष्ट्रपति इझाकन्दर गिर्जा ने प्रधान सेनापति जनरल अय्यब
ू खां की सहायता से
एक 'शान्तिपर्ण
ू क्रान्ति' की और मार्शल लॉ लागू कर दिया। इसकन्दर मिर्जा को हटाकर स्वयं
राष्ट्रपति बन गये। सन ् 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद अयूब खां विरोधी तत्व बनने लगे और 25
मार्च 1969 को उन्हें सत्ता छोड़ने पर विवश होना पड़ा। जनरल ए. एम. याहिया खान मख्
ु य मार्शल
लॉ प्रशासक बन गये है
भारत-पाकिस्तान युद्ध सन ् 1972 ई. के पराजय के बाद 20 दिसम्बर 1971 को याहिया खां हट गये
तथा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के जल्फि
ु कार अली भुट्टो 1973 के संविधान के अन्तर्गत मुख्य मार्शल
लॉ प्रशासक और राष्ट्रपति बने। परन्तु सन ् 1977 के निर्वाचनों में बाँधलेबाजी को लेकर पाकिस्तान
में उपद्रव हुए। जुलाई 1977 में सेना ने भुट्टो को उनके पद से हटा दिया जनरल जिला-उल-हक मुख्य
मार्शल लॉ प्रशासक बन गये। सितम्बर 1979 में वे राष्ट्रपति भी बन गये। 17 अगस्त 1988 को
राष्ट्रपति जिया उल हक एक वायुयान दर्घ
ु टना में स्वर्गवासी हो गये। पाकिस्तान में लोकतंत्र की
पर्न
ु स्थापना हुई। 2 दिसम्बर 1988 को बेनजीर भट्ट
ु ो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं। परन्तु 6 अगस्त
1990 को उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। 6 नवम्बर 1990 को नवाज शरीफ को पाकिस्तान के
राष्ट्रपति गल
ु ाम इसहाक खान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ दोनों ने इस्तीफा दे दिया।
सन ् 1993 ई. में नवीन निर्वाचनों के बाद बेनजीर भुट्टो दोबारा प्रधानमंत्री बन गयीं। मूल्यांकन किया
जाय तो पाकिस्तान की विदे श नीति का आधार भारत विरोध रहा है । पाकिस्तान मस्लि
ु म लीग की
हिन्दओ
ु ं के प्रति घण
ृ ा की नीति का फल है । यह भारत के विभाजन n का शिशु है । पाकिस्तान का
धर्म और दस
ू रे धर्म से घण
ृ ा के अतिरिक्त कोई आधार नहीं है इसलिए पाकिस्तान के शासकों के
लिये वह आवश्यक हो गया कि वे न केवल भूमि का बंटवारा करें वरन दिलों का भी बंटवारा करें
पाकिस्तान के स्थायित्व के लिए यह आवश्यक था कि उसके लगे हुए उस भारत राष्ट्र को भूल जायें
जिसमें वे पैदा हुए थे और जहां उनके बाप दादा और सगे सम्बन्धी अभी भी रहते हैं। पाकिस्तान ने
भारत विरोध की नीति अपनायी क्योंकि यदि वह ऐसा नहीं करता तो उसके जन्म का आधार नष्ट
हो जाता। कश्मीर का प्रश्न इस नीति की प्रमुख अभिव्यक्ति है जो दे श पाकिस्तान को कश्मीर
दिलाने में सहायक लगता है उसे मित्र बना लेता है और जो कश्मीर के प्रश्न पर उसका विरोध करता
है तो उसे पाकिस्तान दश्ु मन बनाने लगता है ।

वर्तमान समय में भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों को मधुर बनाने के लिए आम जनता के साथ
दोनों दे शों के राष्ट्रीय नेताओं बुद्धिजीवियों एवं वैज्ञानिकों को तहे दिल से विचार करने व अमल करने
का समय नजदीक आ गया है इस बात से कदापि नकारा नहीं जा सकता कि जबतक भारतीय
उपमहाद्वीप के 'इन दोनों दे शों के बींच मित्रतापर्ण
ू सम्बन्ध स्थापित नहीं होंगे तबतक इस भख
ू ण्ड में
न तो वास्तविक शांति की अपेक्षा की जा सकती है और न ही आम जनता की वास्तविक प्रगति व
मानवीय मल्
ू यों की सरु क्षा पाकिस्तान के मशहूर शायर डा. अहमद फराज ने 1 फरवरी सन ् 1996 ई.
को प्रगति मैदान में 12 वें अर्न्तराष्ट्रीय पुस्तक मेले का उद्घाटन करते हुए कहा या "हमें किताबें
चाहिए वम नहीं।" दोनों दे शों के बीच आपसी संवाद बनाने में किताबें ही सार्थक भमि
ू का निभा सकती
हैं हथियार नहीं इसके साथ-साथ उन्होंने कहा कि कला न केवल व्यक्ति समाज व राष्ट्र के रूप में
हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम बनती है बल्कि हमें यह एहसास भी कराती है कि पूरी मानवता एक
है किताबें शान्ति की अग्रदत
ू होती हैं। बुरी से बरु ी किताबें भी हथियारों से बुरी नहीं हो सकती। पता
नहीं क्यों आपसी विवाद को सुलझाने के लिए सरकारी खजानों का प्रयोग किया जाता है जबकि
आपसी बातचीत से सभी समस्याओं का समाधान पूर्णतः किया जा सकता है । भारत पाकिस्तान के
सम्बन्धों की चर्चा अन्तर्राष्ट्रीय तथा स्त्रावेजिक दृष्टि से सदै व कौतूहल का विषय रही है क्योंकि
दोनों दे शों के सम्बन्धों में इतनी अधिक जटिलताएँ एवं इतनी अधिक कटुताएँ समाहित है कि किसी
भी रूप में सहज और तात्कालिक हाल की कल्पना नहीं की जा सकती है । यह ध्रुव सत्य है कि
जबतक दोनों दे शों के बीच मित्रतापर्ण
ू रिश्ते कायम नहीं होंगे तबतक इस भू-खण्ड पर न तो
वास्तविक शाँति की अपेक्षा की जा सकती है और न ही आम जनता की वास्तविक प्रगति भारतीय
उप महाद्वीप के इन दोनों दे शों के मध्य सम
ु धरु सम्बन्ध दक्षिण एशिया के विकास को नई दिशा दे
सकते हैं अत: दोनों दे शों की मैत्री और आपसी सौहार्द की समस्याओं एवं समाधानों का अध्ययन
मनन एवं चिंतन आज की सामाजिक एवं सामरिक आवश्यकता है ।

विवेचनात्मक दृष्टि से भारत एवं पाकिस्तान के सम्बन्धों की बात को बहुचर्चित किया जाय तो
अगस्त 1947 ई. को भारत को चिर-प्रतीक्षित स्वाधीनता तो मिली किन्तु इसी के साथ उसे दे श के
विभाजन का भारी आघात भी सहन करना पड़ा। इस राष्ट्रीय विभाजन के परिणाम स्वरूप भारत को
प्रत्यक्ष रूप से राजनैतिक, आर्थिक एवं सैनिक आदि अनेक विकट समस्याओं का सामना करना पड़ा।
पाकिस्तान एवं हिन्दस्
ु तान दो स्वतंत्र राज्यों के रूप में बटने के साथ ही अंग्रेजों ने दे श की लगभग
565 रियासतों को भी एक साथ स्वतंत्र कर दिया था। यह अंग्रेजों की एक बहुत सोची समझी चाल
थी कि स्वतंत्र रियासतों को मिलाने की नीति को अपनाकर अपने को स्वयं ही दोनों राष्ट्र खींचातानी
के चक्रव्यूह में फैसा पायेंगे भारत और पाकिस्तान का बंटवारा भी ब्रिटिश शासन के निर्देशन पर
हुआ। ताकि भारत पर पूर्वी तथा पश्चिमी क्षेत्र से पाकिस्तान का दबाव किसी न किसी रूप में बना
रहे । सर्व प्रथम अविभाज्य एवं अखण्ड भारत को एकीकरण की समस्या से जूझना पड़ा क्योंकि
स्वतंत्र रियासतों ने अपनी भाषा, संस्कृत एवं सभ्यता तथा समद
ु ाय के नाम पर अलग अस्तित्व
रखना चाहा। लेकिन सन ् 1950 ई. में संविधान लागू होने पर भारत में चार प्रकार •के राज्यों की
व्यवस्था की गयी थी लेकिन यह व्यवस्था संतोष जनक नहीं थी। फलस्वरूप राज्यों के पर्न
ु गठन का
सिलसिला शुरू हो गया।
•ब्रिटिश इण्डिया के मुस्लिम बाहुल्य और गैर मस्लि
ु म क्षेत्रों के विभाजन के परिणामस्वरूप 14
अगस्त 1947 ई. को पाकिस्तान का विश्व मानचित्र पर उद्भव हुआ, तब से आज तक भारत पाक के
सम्बन्धों पर अनेक उतार चढ़ाव आये वस्तुत: भारत और पाकिस्तान का अतीत शान्ति और सरु क्षा
तथा मानवता को प्राप्त न कर सका। दोनों दे शों को तीन बड़े युद्धों का सामना करना। पढ़ा और कई
छोटे -छोटे संघर्ष भी झेलने पड़े लेकिन अभी तक दोनों दे शों के मध्य आपसी भाईनारा का कोई प्रश्न
नहीं बन पा रहा है ।

नवम्बर 2011 में पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध सुधारने की बात पर जोर दे ते हुए भारत के
विदे श मंत्री एस. एम. कृष्णा ने दोनों दे शों के बीच आपसी विश्वास में सुधार और सकारात्मक माहौल
बनने की बात कही लेकिन वहीं दस
ू री तरफ पाकिस्तानी विदे श मंत्री ने भी कुछ ऐसा ही विचार
जाहिर किया। यही नहीं, मालदीव में दोनों दे शों के प्रधानमंत्री सार्क बैठक के पहले मिले और
मल
ु ाकात पर संतोष जताया, दोनों प्रधानमंत्रियों ने उम्मीद जताई कि अगला दौर बर्बाद कर दिया है
और अब दोनों दे शों को एक नए अध्याय की शुरुआत करनी चाहिए। भारत के विदे श सचिव रं जन
मथाई ने इस मल
ु ाकात के बारे में कहा कि सभी मामलों पर बातचीत हुई। वीजा सरल बनाने ,
आतंकवाद पर अंकुश और व्यापार को बढ़ावा दे ने संबंधी मुद्दों पर दोनों नेताओं ने बात की और
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का रवैया काफी सकारात्मक रही मधाई ने कहा कि प्रधानमंत्री ने मंब
ु ई हमले
के पीड़ितों को न्याय दिलाने की बात भी गिलानी से की। संयुक्त आयोग को, जो 2005 के बाद नहीं
मिला, दोबारा शरू
ु किया जाएगा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यस
ू फ
ु रजा गिलानी ने कहा कि हमने सभी
मुद्दों पर बातचीत की, जिनमें जल संबंधी विवाद, आतंकवाद, व्यापार, सरक्रीक विवाद और सियाचिन
आदि मामले प्रमुख हैं। पाकिस्तान की तरफ से मुंबई हमले के सात दोषियों पर जल्द मुकदमा
चलाने का वायदा किया गया और कहा गया कि पाकिस्तानी न्यायिक आयोग जब भारत जाएगा तो
उसे इस मामले में कार्यवाही के लिए कुछ अहम सबूत मिलेंगे। इस तरह ऐसा माहौल बनाया जा रहा
है , जैसे भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधरने चाले हैं लेकिन क्या सही मायनों में ऐसा है ,
जैसा दोनों दे शों के नेता दिखाने या फिर अपने दे श की जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं
या पाकिस्तान दनि
ु या को दिखाना चाहता है कि यह भारत के साथ संबंध सध
ु ारने की दिशा में
प्रयास कर रहा है । वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों में कोई सुधार नहीं
आया है विदे श मंत्री एस. एम. कृष्णा का कहना है कि पाकिस्तान के प्रति अविश्वास में कमी आई है ।
पता नहीं, वह किस बुनियाद पर यह कह रहे हैं। शायद उनका यह कहना पाकिस्तान द्वारा भारत
को एमएफएन का दर्जा दिए जाने से प्रेरित हो, लेकिन यह कोई आधार तो नहीं हो सकता है ।
यह मुख्यतः एक व्यापारिक मसला है , जिसमें पाकिस्तान के अपने हित हैं. पाकिस्तान में इस पर
काफी विवाद भी हुआ, लेकिन वहां की सरकार ने यह कहते हुए विरोध को दना दिया कि कश्मीर के
मामले में भारत के प्रति पाकिस्तान के रुद्ध में कोई परिवर्तन नहीं होगा। यही नहीं , इस व्यापारिक
मसले के लिए भी पाकिस्तानी सरकार ने सेना से सलाह ली, अब इसे पाकिस्तान के प्रति अविश्वास
बढ़ाने का आधार बताना तो बुद्धिमत्तापूर्ण कदम नहीं माना जा सकता। दस
ू रा आधार पाकिस्तानी
गह
ृ मंत्री रहमान मलिक के उस बयान को बनाया जा सकता है , जिसमें उन्होंने मुंबई हमले के दोषी
अजमल कसाब को फांसी दे ने की बात कही थी। मलिक ने कहा था कि कसाब आतंकवादी है और
उसने सरकारी मदद के बगैर अपनी मर्जी से यह काम किया। उन्होंने कसाब को नन स्टे ट एक्टर
करार दिया था। मलिक के इस बयान का क्या मतलब निकाला जाए ? वह तो साफतौर पर मुंबई
हमले में पाकिस्तान की भूमिका होने से इंकार कर रहे थे , जबकि हमारे पास इस बात के कई सबूत
थे कि मंब
ु ई हमले में आईएसआई का हाथ था। इससे भी पाकिस्तान के प्रति अविश्वास में कमी की
बात नहीं कही जा सकती। तो फिर किस चुनियाद पर कृष्णा कह रहे हैं कि दोनों दे शों के बीच
अविश्वास कम हो रहा है ? क्या पाकिस्तान ने पीओके में चल रहे आतंकी शिविरों के विरुद्ध ऑपरे शन
चलाने का ऐलान किया, क्या पाकिस्तान ने दाऊद इब्राहिम जैसे अपराधियों-माफियाओं को भारत को
सौंपने या अपने यहां से निकाले जाने की बात कही ? जब दोनों दे शों के नेता आपसी रिश्ते सध
ु ारने
की बात कर रहे थे, उसी समय कश्मीर के पुंछ इलाके में घुसपैठ की कोशिश की जा रही थी। ऐसी
ही बात 1999 में की जा रही थी, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने बस से लाहौर की यात्रा की थी। ऐसा
लग रहा था कि दोनों दे शों के बीच सब कुछ ठीक-ठाक होने वाला है , लेकिन वास्तविकता कुछ और
थी जब वाजपेयी पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की कोशिश कर रहे थे तो उसी समय पाकिस्तान
कारगिल युद्ध की पष्ृ ठभूमि तैयार कर रहा था।"

वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा के महज चार महीनों के भीतर कारगिल यद्ध


ु हुआ इतिहास से सबक
लेना चाहिए। पाकिस्तान पर अमेरिका का दबाव है , जिसके चलते वह यह जताने का प्रयास कर रहा
है कि भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए वह तत्पर है , जबकि वास्तविकता कुछ और है । इसलिए
भारत को सावधान रहने की आवश्यकता है , ताकि फिर दोबारा धोखा खाने की नौबत न आए क्योंकि
बड़ी शक्तियों की सदै व यही इच्छा रहती है कि पाकिस्तान जैसे भारत के नादान पड़ोसी को भुलावा
दे करके ही हम अपने सैन्य हथियारों का निर्यात करने में सक्षम हो सकेंगे। पाकिस्तान के मशहूर
शायर डा. अहमद फराज ने 3 फरवरी सन ् 1996 ई. को प्रगति मैदान में 12 वें पुस्तक मेले का
उद्घाटन करते हुए कहा था कि हमें किताबें चाहिए वम नहीं क्योंकि दो दे शों के बीच संवाद बनने के
लिए पुस्तकें ही सार्थक भूमिका अदा कर सकती हैं हथियार कदापि नहीं कर सकता। इसके साथ ही
उन्होंने यह भी कहा था कि कला न केवल व्यक्ति समाज व राष्ट्र के रूप में हमारी अभिव्यक्ति का
माध्यम बनती है बल्कि हमें यह अहसास कराती है कि पूरी मानवता एक है किताबें शान्ति की
अग्रदत
ू हैं बुरी से बुरी किताबें भी हथियारों से बुरी नहीं हो सकती। पता नहीं क्यों आपसी विवाद
सुलझाने के लिए सरकारी खजाने खाली किये जाते है जबकि आपसी बातचीत से सभी समस्याओं का
समाधान किया जा सकता है । अतः अब भारत पाक सम्बन्धों को मधुर बनाने के लिए आम जनता
के साथ दोनों दे शों के राष्ट्र नेताओं, बद्धि
ु जीवियों एवं वैज्ञानिकों को तहे दिल से विचार करने व अमल
करने का समय आ गया है इस बात से कदापि नकारा नहीं जा सकता कि जबतक भारतीय
उपमहाद्वीप के इन दोनों दे शों के बीच मित्रतापर्ण
ू संबंध स्थापित नहीं होंगे तबतक इस भू-खण्ड में
न तो वास्तविक शान्ति की स्थापना की जा सकती है और न ही आम जनता की वास्तविक प्रगति
व मानवीय मल्
ू यों की सरु क्षा में

हिन्दस्
ु तान-पाकिस्तान पड़ोसी मुल्क होने के बावजूद जुदा-जुदा हैं। एक तरफ हिंदस्
ु तान विकास की
ओर अग्रसर है तो दस
ू री ओर पाकिस्तान आतंकवाद, कट्टरवाद, साम्प्रदायिक हिंसा, इस स्मगलरों अवैध
हथियारों की मंडी और धार्मिक हिंसा का केन्द्र बना हुआ है । पूरी दनि
ु या में दोनों दे शों की ईमेज में
जमीन-आसमान का फर्क है । भारत के लिए पड़ोसी दे श पाकिस्तान अपने जन्म के समय से ही
अभिशाप बना हुआ है । भारत को अस्थिर और नेस्तनाबूत करने का प्रयास पाकिस्तान हमेशा से
करता रहा है। उसके मंसब
ू े हिन्दस्
ु तान को इस्लामिक मल्
ु क बनने के भी हैं। भारत को लेकर जिन्ना
से नवाब शरीफ तक की सोच में कोई बदलाव दे खने को नहीं मिलता। पाकिस्तानी हुक्मरान और
सेना दोनों ही भारत के खिलाफजहर उगलते रहते हैं। लड़ने के लिए है पाकिस्तान, हं स कर लेगें
हिन्दस्
ु तान जैसे तमाम जुमले सरहद पार से सुनने को मिल जाते हैं , लेकिन ताज्जुब तो इस बात का
होता है कि हिन्दस्
ु तानी सरकार पाकिस्तान के खिलाफ कोई ठोस फैसला लेने में हिचकिचाती रहती
है । यही वजह है दाऊद इब्राहिम और हाफिज सईद जैसे तमाम आतंकवादी हिन्दस्
ु तान में दहशत
फैलाने के बाद भी पाकिस्तान में सुकून की जिंदगी बसर कर रहे हैं। यही नहीं उन्हें पाक में सिर्फ
इसलिए सम्मान से दे खा जाता है क्योंकि यह लोग भारत में दहशत फैलाने में माहिर हैं। पाकिस्तान
और हिन्दस्
ु तान में कोई समानता नहीं है सिवाय एक के कि दोनों ही मुल्कों में हिन्दओ
ु ं को दोयम
दर्जे का नागरिक बना दिया गया है ।"

पाकिस्तान में हिन्दओ


ु ं पर अत्याचार की खबरें और हिन्दस्
ु तान में हिन्दओ
ु ं के प्रति केन्द्र और राज्य
सरकारों की नकारात्मक सोच ने हिन्दओ
ु ं के सामने एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया है । हिन्द ू हितों
की बात करने को जिस दे श में साम्प्रदायिकता समझा जाता हो, उस दे श के बहुसंख्यक समाज में
निराशा पैदा होना स्वभाविक है । जिस दे श (भारत) का प्रधानमंत्री यह कहे कि दे श के प्राकृतिक
संसाधनों पर मुसलामनों का पहला हक है । उस दे श का भला कौन कर सकता है । यही नहीं
मौकापरस्ती की राजनीति दे श में इतनी हावी हो गई है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पड़ोसी
मुल्क पाकिस्तान में हिन्दओ
ु ं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफमुंह खोलने की भी जुर्र त नहीं कर पाते
हैं।

बंटवारे के समय जो हिन्द ू पाकिस्तान के जनक जिन्ना के बहकावे (पाकिस्तान इस्लामिक दे श नहीं
लोकतांत्रिक दे श बनेगा) में आकर वहां रूक गए थे, उनके पास आन पछताने के अलावा कोई रास्ता
नहीं बचा है । पाकिस्तान में हिन्द ू लड़कियों का जबरदस्ती मुसलमान लड़कों से निकाह करा दे ना,
हिन्दओ
ु ं को अपने धार्मिक क्रिया-कलाप करने की छूट नहीं होना, यहाँ तक कि उन्हें मतदान का
अधिकार नहीं होना यह दर्शाने के लिए काफी है कि पाकिस्तान में हिन्दओ
ु ं के लिए जीवन कितना
कष्टदायक है। कई हिन्दओ
ु ं ने तो इससे छुटकारा पाने के लिए इस्लाम अपनाना ही बेहतर समझा,
लेकिन जिनका जमीर धर्म परिर्वतन के लिए तैयार नहीं हुआ उनके लिए पाकिस्तान नरक से कम
नहीं है । पाकिस्तान में हिन्दओ
ु ं की दर्दु शा का ही नतीजा था कि आजादी के बाद से यहां हिन्दओ
ु ं की
आबादी लगातार घटती जा रही है ।" सिन्ध विधान सभा के अल्पसंख्यक सदस्य पीतांबर कहते हैं कि
पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत में हर महीने 25 से 30 हिन्द ू लड़कियों का निकाह जबरन मुसलमान
यव
ु कों से करा दिया जाता है , नहीं मानने पर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है । पाक को
आजाद हुए 65 वर्ष हो चुके हैं लेकिन वहां की सरकार ने आज तक हिन्द ू मैरिज एक्ट को कानन
ू ी
दर्जा नहीं दिया है । इस कारण पाक में हिन्द ू पति-पत्नी को राष्ट्रीय पहचान पत्र नहीं मिलता। इस
वजह से वह सरकारी सुविधाओं का फायदा नहीं उठा पाते हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मीरपुर
मथेलो की रिंकल कुमारी को अगवा कर जबदस्ती धर्म परिवर्तन करवाकर उसका विवाह एक मुस्लिम
युवक से करा दिया गया। रिंकल ने निकाह कबूल नहीं किया जिंकल ने अदालत का दरवाजा
खटखटाया तो उसकी दलील यह कहकर खारिज कर दी गई कि तुमने कलमा पढ़ लिया है इसलिए
अब तम
ु हिन्द ू नहीं मस्लि
ु म हो। रिंकल अपने हक की लड़ाई लड़ रही है , लेकिन उसकी मदद के लिए
कोई आगे नहीं आ रहा। पाकिस्तानी इस्लाम की परिभाषा अपने हिसाब से गढ़ रहे हैं। एक तरफ
हिन्दस्
ु तान में मस
ु लमानों की सबसे विश्वसनीय संस्था दे वबंद हो नहीं अन्य कई धार्मिक गरू
ु भी
बार-बार यह कहते हैं कि कोई अगर निकाह करने के लिए धर्म परिवर्तन का सहारा लेता है तो उसे
इस्लाम में जायज नहीं ठहराया जा सकता है । वहीं पाकिस्तान में हिन्द ू लड़कियों को निकाह के लिए
जबरन मुसलमान बनाया जा रहा है । भले ही पाकिस्तान मुस्लिम बाहुल्य दे श हो लेकिन हकीकत
यही है कि भारत के मुसलमान पाकिस्तानी मुसलमानों से कहीं ज्यादा तरक्की पसंद हैं। यहां
पाकिस्तान की तरह इस्लाम की मान्यताओं से खिलवाड़ नहीं किया जाता है। अगर कोई ऐसा करने
की कोशिश भी करता है तो एक साथ कई आवाजें विरोध में उठने लगती हैं , जबकि पाकिस्तान में
सेना, आईएसआई और कट्टर मुस्लिम संगठनों के आगे कोई मुंह खोलने की जुर्र त नहीं कर पाता है ।
अध्याय-2
भारत पाकिस्तान के मध्य मौजूदा विवाद
1. कश्मीर विवाद :
अंग्रेजों ने अपनी कूटनीतिक चालों को कार्यान्वित करके अखण्ड भारत को भारत और
पाकिस्तान दो उपनिवेशों में विभाजित कर दिया इन दो उपनिवेशों के अतिरिक्त भारत वर्ष में 585
अन्य दे शी राज्य प्रभुता सम्पन्न थे। लेकिन कश्मीर की स्थिति बढ़ी विचित्र थी। यद्यपि कि यहाँ पर
मस्लि
ु मों की संख्या अधिक होने के बावजद
ू भी यहाँ का शासक हिन्द ू था वैमनस्यता और कूटनति
को प्रमुखता प्रदान करने वाला पाकिस्तान कश्मीर को अपना अभिन्न अंग बनाने के लिए। तत्पर हो
गया। उस समय वहां के राजा हरी सिंह थे। पाकिस्तान एक पत्र प्रेषित करके हरी सिंह को यह
अवगत कराया कि कश्मीर पाकिस्तान का एक अंग है लेकिन राजा हरी सिंह इस बात को सुनने से
इनकार कर दिया। कुछ समय बाद पाकिस्तान ने कश्मीर के क्षेत्रों पर अपने घस
ु पैठियों को तैनात
कर दिया और कश्मीर के राजा हरी सिंह के ऊपर आक्रमण तीव्र गति से कर दिया। जब महाराजा
हरी सिंह को यह लगा कि अब कश्मीर पाकिस्तानियों के कब्जे में हो जायेगा तब उन्होंने भारत
सरकार से सहायता की याचना की। भारत सरकार ने कहा जबतक कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग
नहीं बन जाता तब तक भारतीय शासक सैनिक सहायता नहीं दे सकता। राजा हरी सिंह विवश हो
करके रातोरात एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए यह साबित कर दिया कि आज से कश्मीर
भारत का अविभाज्य अंग है । दस्तावेज पर हस्ताक्षर होने के बाद भारतीय सैनिक तीव्र गति से
कश्मीर के क्षेत्रों में कब्जा किये हुए पाकिस्तानियों पर आक्रमण करके पीछे खदे ड़ दिया। तभी से
पाकिस्तान और भारत के मध्य अभी तक तीन युद्ध तथा कई छोटे -छोटे संघर्ष हो चक
ु े है लेकिन
कश्मीर की समस्या को लेकर वर्तमान समय मे भी भारत और पाकिस्तान के मध्य कटुता और
वैमनस्यता दरू नहीं हो पा रही है जिसके चलते पाकिस्तान भारत पर आतंकवाद के रूप में
नक्सलवाद के रूप में , भाई भतीजावाद के रूप में आक्रमण करता रहता है ?

भारत अपने विभाजन के तीन माह भी परू े नहीं कर पाया था कि कश्मीर राज्य के विवाद को लेकर
पाकिस्तान कश्मीर पर आक्रमण कर दे ता है । इस आक्रमण के पीछे अंग्रेजों की कूटनीतिक चालों की
ही सक्रिय भूमिका रही ब्रिटिश शासक सदै व से ही आपस में फूट डालो और राज्य करो की नीति का
अनुशरण करते रहे । भारत विवश होकर भारत को दो उपनिवेशों में बांटकर स्वतंत्र कर दिया था उस
समय कश्मीर जैसे अनेक मुद्दे अधूरे छोड़ दिये गये ताकि भारत इन्हीं उलझनों से उलझा रहे ।
वास्तव में भारत पाकिस्तान संघर्ष की नींव अंग्रेजों ने इनके जन्म के साथ ही रख दी थी। कश्मीर
का मुद्दा आज भी अवर्णित स्थिति में इसी कारण बना हुआ है जिस आधार पर तथा जिन
परिस्थितियों में भारत का विभाजन हुआ। उहाँने हो भारत और पाकिस्तान को जन्मजात दश्ु मन बना
दिया। कम से कम पाकिस्तान तो यही समझता था और अपना अलग अस्तित्व कायम होने की बढ़ी
से ही उसने अपनी समस्त आन्तरिक और वाह्य नीतियों को भारत पर चोट करने की दृष्टि से
गढ़ना प्रारम्भ किया ?

अध्ययन की सवि
ु धा की दृष्टि से दे खा जाय तो शेख अब्दल्
ु ला शरू
ु से ही अनभ
ु व करते थे कि
कश्मीर का सर्वोत्तम हित भारत संघ के अन्तर्गत स्वायत्ता प्राप्त प्रास्थिति में था। कश्मीर के
महाराजा द्वारा प्रस्तावित विलय को जब भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया तब से वह भारत का
अखण्ड भाग हो गया और भारत में अपने इस भू-प्रदे श की रक्षा हे तु अपने सैनिक दस्ते भेजे और
इस प्रकार प्रथम भारत पाक यद्ध
ु का श्रीगणेश हुआ। भारतीय सेना परू े कश्मीर से , जिनमें पाकिस्तान
अधिकृत कश्मीर भी शामिल है , हमलावरों को खदे ड़ दे ने की स्थिति में थी, किन्तु इस मामले को
संयुक्त राष्ट्रसंघ को सौंप कर आजतक अधर में लटका दिया गया। जिसका लाभ पाकिस्तान आज
तक भी उठाता आ रहा है । फलस्वरूप पाकिस्तान ने अपनी कूटनीतिक भारत को सदै व कार्यान्वित
करता रहा है और अपने नापाक इरादों को उजागर कर कश्मीर की यथा स्थिति समझौते का
उल्लंघन करते हुए उसकी आर्थिक नाकेबंदी कर दी और कश्मीर के अन्दर गिलगित तथा पुंछ के
क्षेत्रों में जनता को भड़काकर महाराजा हरी सिंह के विरुद्ध युद्ध सम्बन्धी कार्यवाही प्रारम्भ कर दी।
पाकिस्तान के जन्मदाता मुहम्मद अली जिन्ना ने जबकि स्वयं 17 जून सन ् 1747 ई. को
स्वीकार किया था कि संवैधानिक तथा विधिक रूरूप से भारतीय रियासतें सर्वश्रेष्ठता की समाधि पर
स्वतंत्र सम्प्रभु राज्य होंगे। वे अपने लिए हिन्दस्
ु तानी संविधान सभा अथवा पाकिस्तानी संविधान
सभा अथवा स्वतंत्र होने का निर्णय कर सकते हैं। इस कार्यवाही के साथ पाकिस्तान एवं कश्मीर का
मासला तेज हो उठा और 3 दिसम्बर 1947 ई. को लगभग पांच हजार प्रशिक्षित तथा कुशल
कबाइलियों व अनियमित पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर की राजधानी श्रीनगर पर विधिवतः
आक्रमणात्मक कार्यवाही शरू
ु कर दी। पाकिस्तान ने जेहाद के नाम पर मस्लि
ु म जनता को महाराजा
हरी सिंह के विरूद्ध गुमराह करने का प्रयास किया जिसमें पाकिस्तान को बड़े स्तर पर सफलता भी
मिली। 21 अक्टूबर 1847 को कबाइली विशाल सेना के एक दस
ू रे दल ने पाकिस्तान की एबटाबाद
छावनी से आकर कश्मीर के गुज्जफराबाद पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर की सेना की दो
बटालियन सेना भी इस अभियान के समय कट्टर पंथी धार्मिक भावना के कारण पाकिस्तानी कबाइली
सेना के साथ हो गयी जिसे कश्मीर का अस्तित्व लगातार खतरे में पड़ता जा रहा था
पाकिस्तान की कबाइली सेना ने डोमेल की ओर बढ़कर बारामूला पर अधिकार करने की एक कूट
योजना बनायी। जब पाकिस्तानी सेना ने दस
ू री ओर बारामूला श्रीनगर में प्रवेश करने का प्रयास
किया तो महाराजा हरी सिंह की सेना तीव्रगति से ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह के दिशा निर्देशन में उनपर
अंकुश लगाते हुए जोरदार आक्रमण कर बचाव करने का प्रयास किया। लेकिन इसके बावजूद भी दो
दिन बाद पाकिस्तानी सेना को बारामूला में प्रवेश पाने में सफलता प्राप्त हो गयौं। भारतीय सेना
द्वारा 8 मई 1947 ई. को पाकिस्तानी सेना तथा कबाइली सेना से बारामल
ू ा को परू ी तरह से मक्
ु त
करा लिया गया। पुंछ के क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना जब सफल नहीं हो सकी तो यह नौशेरा की ओर
बढ़ गयी फलतः 6 फरवरी 1948 ई. को जोरदार संबर्य आरम्भ हो गया अन्ततः भारतीय सेना ने
शत्रु की सेना को आगे बढ़ने से ही नहीं रोका बल्कि 12 अप्रैल 1948 ई. को राजौरी क्षेत्र को भी शत्रु
से छीन लिया। आक्रमण अभियान इस दौरान जोरों पर था क्योंकि पाक सेना अपने गप्ु त अड्डों से
आक्रमण कर रही थी। अगस्त 1949 ई. को भारतीय सेनाओं ने पुंछ, राजौरी, किशनमाटी तथा मेटूर
आदि स्थानों पर अपना वर्चस्व कायम करने में सफल हो गया

इस युद्ध के उपरान्त भारत पाकिस्तान के बीच दरि


ू याँ और बढ़ गयाँ इस युद्ध अभियान के साथ-साथ
राजनयिक प्रयास भी दोनों राष्ट्रों द्वारा जोरों पर रहे किन्तु जब कोई दिशा दिखाई नहीं दी तो
भारतीय प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र संघ के दरवाजे पर दस्तक दी जिसके
फलस्वरूप 21 अप्रैल 1948 को सुरक्षा परिषद की एक बैठक में युद्ध को रोकने तथा स्थिति का सही
अध्ययन करने के लिए पांच सदस्यों का एक आयोग गठित किया गया। फलतः निरन्तर बढ़ते हुए
अन्तर्राष्ट्रीय दवाओं के कारण 1 जनवरी सन ् 1949 ई. को दोनों पक्षों ने कश्मीर समस्या पर यद्ध

विराम समझौता स्वीकार कर लिया। लेकिन इस समझौते के बाद भी पाकिस्तान तब से अबतक कई
यद्ध
ु को अंजाम दे चक
ु ा है । जिससे भारत पाकिस्तान के मध्य कश्मीर विवाद दोनों दे शों को सम्बन्धों
को लगातार तनावपूर्ण बनाये रखने में सबसे आगे है ।

कश्मीर में पाकिस्तान ने अभोषित युद्ध छे ड़ रखा है और आतंकवाद के माध्यम से कश्मीर घाटी को
हड़पने की साजिश कर रहा है। पाकिस्तान की इस साजिश से सारी दनि
ु या पूर्णरूप से परिचित हो
चुकी है । इसी कारण पाकिस्तान को अन्तराष्ट्रीय मंचों से समर्थन नहीं मिल पा रहा है । यहाँ तक कि
इस्लामिक सम्मेलन में जिसपर पाकिस्तान को पुस्तैनी भरोसा था इस्लामाबाद की साजिश के
बेनकाब हो जाने के कारण उसे समर्थन नहीं दिया। अभी तक इसी कारण भारत के अभिन्न अंग
जम्मू कश्मीर को आधा हड़पने के बाद परू ा हड़पने की पाकिस्तानी साजिश सफल नहीं हो पायी और
न भविष्य में ही हो पायेगी। कश्मीर पर पाकिस्तान द्वारा आक्रमण और साजिशें सदै व विरोध को
बढ़ाती रही हैं विगत कुछ वर्षों से भारत सरकार जम्मू कश्मीर में चुनाव करने का विचार कर रहे थे
और उस वर्ष 1996 ई. में चुनाव कराने का निर्णय भी ले लिया पूर्व पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्रीमती
बेनजीर भुट्टो इस स्थिति को अपने लिए अत्यंत ही खतरनाक मान रही थी इसलिए कश्मीरी लोगों के
साथ एकजुटता की शपथ लेने के लिए 5 फरवरी सन ् 1996 ई. को पाकिस्तान में हड़ताल का
आवाहन किया इस हड़ताल में भारत विरोधी नारे ही नहीं लगाये गये बल्कि अन्य षड्यंत्रकारी
गतिविधियों को गति प्रदान करने का प्रयास किया गया। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव सफलता
पर्व
ू क सम्पन्न हो गये जिस कारण से पाकिस्तान की उलझने और ही तीव्र हो गयीं। पाकिस्तान
अभी भी भारत को अहिंसात्मक दृष्टि से दे खना नहीं चाहता लेकिन उसकी कुछ मजबूरियाँ है जिसके
चलते वह भारत को अपनी पैनी निगाहों के सामने झक
ु ता हुआ दे खना चाहता है ।

कश्मीर मसले को लेकर विचारक कुलदीप नैयर ने अपने विचार दे ते हुए स्पष्ट किया है कि मैं नहीं
जानता क्यों प्रधानमंत्री नवाज शरीफ हर दस
ू रे -तीसरे महीने कश्मीर को लेकर वही कसरत दोहराते
रहते हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में यही सवाल उठाया और फिर न्यूयार्क में प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह के साथ हुई बैठक में इसका उल्लेख किया। अब उन्होंने इस मुद्दे को वाशिगंटन में
राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ बातचीत में उठाया है । शायद, उन्होंने उनकी सेवाएं मांगी हैं।
अमेरिका ने अपना मत दोहराया है कि कश्मीर को वह द्विपक्षीय मामला मानता है जिसे दोनों को
आपस में सुलझाना चाहिए। यही बात भारत भी कहता रहा है । पाकिस्तान के इस जोर दे ने से कि
भारत के साथ शांति के लिए कश्मीर मख्
ु य मद्द
ु ा है , किसी समाधान तक पहुंचने का अवसर नहीं
बनने वाला है । दोनों दे श परमाणु शक्ति है , यह टिप्पणी नवाज शरीफ के काम करने के तरीके से
मेल नहीं खाती है । क्या यह धमकी है ? परमाणु हथियार के इस्तेमाल का मतलब होगा पाकिस्तान
और उत्तर भारत का पूरी तरह विनाश एक और अशुभ परिवर्तन इस्लामाबाद के मामले में मैंने
नोटिस किया है कि उसने शिमला समझौते का नाम लेना छोड़ दिया है । पहले के बयानों में कहा
जाता था कि कश्मीर समस्या का हल संयुक्त राष्ट्र और शिमला समझौते के तहत होना चाहिए। उस
समय, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मौखिक तौर पर
कहा था कि वह कोशिश करें गे कि युद्ध विराम की रे खा अंतरराष्ट्रीय सीमा बन जाए। लेकिन वह इस
वायदे से हट गए। वह अपना पूर्वी हिस्सा गंवा चुके दे श को इस प्रस्ताव के लिए राजी नहीं कर
सकते थे। फिर भी पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि कश्मीर के समाधान का रास्ता बातचीत
के अलावा कुछ नहीं है । इसके लिए शिमला समझौता ही सबसे ज्यादा कारगर हो सकता है । सच है
कि शरीफपर दक्षिण पंथियों का दबाब है । लेकिन एक आम पाकिस्तानी ऐसा नहीं महसूस करता
ज्यादा समय नहीं हुआ है जब मैं पाकिस्तान गया था और मैंने एक टै क्सी वाले से पूछा था कि वह
कश्मीर के बारे में क्या सोचता है । उसका जवाब था मझ
ु े फिक्र होती है कि अगली शाम की रोटी
कैसे कमाऊं, न कि कश्मीर की पाकिस्तान के एक विद्वान ने एक बार कहा था कि जिसे वह लड़ाई
के मैदान में जीत नहीं पाए, उसे बातचीत की मेज पर जीतने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

शरीफ का वह प्रस्ताव, जो उन्होंने अपने निर्वासन के समय किया था, अमल में लाने लायक है ।
उन्होंने कहा था कि कश्मीर की समस्या पर बिना रुकावट के साथ बातचीत के लिए दोनों दे शों को
एक कमेटी बनानी चाहिए। ऐसा करने के बाद, दोनों दे शों के बीच व्यापार का दरवाजे खोलने चाहिए।
और दोनों दे शों के जनता के बीच संपर्क के लिए बीसा आसान बना दे ना चाहिए। वास्तव में ,
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को अपने प्रस्ताव को गंभीरता से आगे बढ़ाने में लगना चाहिए। इसी बीच
स्थिरता कायम करने के लिए कश्मीर के मंत्रियों को रोना पैसे दे ती रही है , सेना के रिटायर्ड प्रमुख
जनरल बीके सिंह के इस आरोप में गंभीर मोड़ ले लिया है । जम्मू कश्मीर के स्पीकर ने विधानसभा
में निर्णय दिया है कि कश्मीर के मंत्रियों को पैसे दे ने के आरोप के बारे में जानकारी दे ने के लिए वह
जनरल को सम्मन भेजेंगे। हालांकि, भारत में विलय के समय से ही कश्मीर की स्थिति दे खते
समझते रहने वाले हममें से कुछ लोगों को इससे आश्चर्य नहीं हुआ नई दिल्ली सदै व हर मामले में
दखल दे ती रही है । यहां तक कि शेख अब्दल्
ु ला जैसे लोकप्रिय नेता को भी नई दिल्ली के आदे श पर
चलना पड़ता था। एक बार उन्होंने मुंह खोला कि वह भूखों मरना पसंद करें गे , लेकिन भारत के हुक्म
पर नहीं चलेंगे और उन्हें 12 साल का समय जेल में गज
ु ारना पड़ा।"

वास्तव में , भारतीय संघ में शामिल होने के ठीक बाद वाले वर्षों में राज्य में कोई चन
ु ाव नहीं हुआ।
शेख अब्दल्
ु ला, जो उस समय जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री कहलाते थे, को दिल्ली में तय की गई यह
स्थिति स्वीकार करनी पड़ी। यही परिपाटी शेख अब्दल्
ु ला की गिरफ्तारी के बाद जगह लेने वाले
गुलाम मोहम्मद बक्शी के समय भी जोर-शोर से चलाई जाती रही। कश्मीर का नेतत्ृ व कौन करे गा
यह फैसला दिल्ली में लिया जाता था।

विदे श मंत्रालय विभाग में कश्मीर मामले का एक अलग विभाग था। शायद यह व्यवस्था यह बताने
के लिए की गई थी कि मामला संयुक्त राष्ट्र में लंबित है इसलिए इसे विदे श मंत्रालय ही दे खेगा।
विदे श मंत्रालय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पास था। विभाग को गह
ृ मंत्रालय में तब
स्थानांतरित किया गया जब उत्तर प्रदे श के मुख्यमंत्री रहे बड़े विद्वान गोविंद बल्लभ पंत ने इस
मंत्रालय का भार संभाला। यह विभाग अभी भी गह
ृ मंत्रालय का हिस्सा है। " नेहरू को यह श्रेय जाता
है कि उन्होंने हरिसिंह के इस आग्रह को नहीं स्वीकार किया कि भारतीय संघ में विलय शेख
अब्दल्
ु ला की स्वीकृति के बाद ही किया जाए अब्दल्
ु ला उन दिनों जेल में थे। यह दर्भा
ु ग्यपूर्ण है कि
शेख ने निराशाजनक व्यवहार किया। उन्होंने नई दिल्ली के आदे श पर बनी व्यवस्था को उसी तरह
स्वीकार कर लिया जैसा बत्तख पानी के साथ करते हैं। इसके बाद श्रीनगर में मख्
ु यमंत्रियों ने
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के मुफ्ती मोहम्मद सईद या फारूक अब्दल्
ु ला ने समझ लिया कि श्रीनगर
को अपनी नाव नई दिल्ली में चलने वाली हवाओं के के अनस
ु ार चलानी | यव
ु ा मख्
ु यमंत्री उमर
अब्दल्
ु ला सही शोर मचाते हैं लेकिन यह चाय की प्याली के तूफान से ज्यादा कुछ नहीं है । वह राज्य
की पलि
ु स को मजबत
ू करने का सही काम कर रहे हैं , ताकि वहां तैनात भारतीय सेना का उपयोग
कम से कम हो जाए। लेकिन उन्हें पाकिस्तान सेना गलत साबित कर दे ती है जो मामले को गरम
किए रखती है । यह एक राहत की बात हुई थी कि दोनों दे शों ने लाइन आफ कंट्रोल (नियंत्रण रे खा)
का उल्लंघन नहीं करना तय किया था। लेकिन नियंत्रण रे खा का उल्लंघन बार-बार होता रहा है।
पाकिस्तान इसके लिए जिम्मेदार है क्योंकि गाड़ा आने और दरों के बर्फ से भर जाने के पहले भारत
में घुसपैठ के लिए तहरीक-ए-तालिबान को पाकिस्तान मदद दे रहा है। अगर कश्मीर में बगावत
इस्लामाबाद की नीति का हिस्सा है तो प्रधानमंत्री शरीफ का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बैठक
का क्या मतलब था? दोनों इस बात पर सहमत हुए कि वे 2004 में हुए इस समझौते का आदर
करें गे कि नियंत्रण रे खा का उल्लंघन नहीं हो। दोनों दे शों के मिलिटरी आपरे शंस के डायरे क्टर जनरलों
की बैठक होनी थी सच है कि कोई समय सीमा नहीं तय हुई थी। लेकिन अब तक उन्हें मिल लेना
चाहिए, भले ही यह सिर्फ एक औपचारिकता बन कर रह जाती। राजनीतिक आकाओं को समझना
होगा कि सीमा पर फायरिंग का कोई अर्थ नहीं है । तीन यद्ध
ु ों के बाद पाकिस्तान को यह समझ लेना
चाहिए था कि वह कश्मीर को भारत के हाथों से जबर्दस्ती नहीं छीन सकता।"

दोनों दे शों के बीच मनमुटाव द्वेष और वैमनस्यता कश्मीर मुददा ही है । भारतीय स्वतंत्रता
अधिनियम के अन्तर्गत दे श की रियासतों को भारत अथवा पाकिस्तान के साथ मिलने की स्वतंत्रता
दे दी गयी थी लेकिन इसमें अंग्रेजों का षडयंत्र था उनका विचार था कि कई राजा लोग स्वतंत्र रहना
पसंद करें गे। इसी तरह भारत कई खण्डों में बंट जायेगा। ऐसा होता तो भारत की स्वतंत्रता का कोई
महत्व न रह जाता परन्तु सरदार वल्लभभाई पटे ल के प्रयासों से लगभग 33 रियासतों ने अपनी
भौगोलिक एवं धार्मिक सुविधानुसार भारत व पाकिस्तान में अपने को मिला लिया परन्तु तीन
रियासतें (जूनागढ़, है दराबाद, जम्मू कश्मीर) ने अपने को मिलाने में असमर्थ रहे । जूनागढ़ है दराबाद
को सैनिक कार्यवाही एवं जनमत संग्रह के तहत सरदार वल्लभ भाई पटे ल ने भारत में मिला लिया
परन्तु कश्मीर के मामले में सरदार पटे ल भी कुछ न कर सके। शेख अब्दल्
ु ला को तत्कालीन
प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की मित्रता के कारण बहुत महत्व प्राप्त हो गया और वह स्वतंत्र
कश्मीर का स्वप्न दे खने लगे उधर जम्मू के शासक महाराजा हरी सिंह भी इसे स्वीटजरलैंड की भांति
तटस्थ स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दे खना चाहते थे। ऐसी स्थित में महाराजा हरी सिंह ने भारत और
पाकिस्तान दोनों के साथ अस्थाई समझौता करने का प्रयास किया एवं भारत में विलय के प्रश्न को
आगे टाल दिया। इसी दौरान कश्मीर की वर्तमान समस्या का जन्म हुआ पाकिस्तान ने वहां एक
सैनिक विद्रोह करने का प्रयास किया उसका विचार था कि कश्मीर की मुस्लिम जनता हिन्द ू महाराज
के विरूद्ध हमलावरों का स्वागत करे गी। इस तरह कश्मीर अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान में विलय हो
जायेगा। इस दौरान हरी सिंह ने भारत से सहायता के लिए कहा भारत ने मानवीय दृष्टिकोण से
राज्य विलीनीकरण पर अपना प्रस्ताव रखा जिसमें रियासत की जनता ने भी उसका समर्थन किया।
अन्ततः कश्मीर अक्टूबर 1947 में अपनी सम्प्रभुता की सुरक्षा के लिए भारत गणराज्य में शामिल
हो गया जिसके उपरान्त कश्मीर घाटी में भारतीय सेनाएं अपने कर्तव्यों का निर्वहन तीव्र गति से
प्रारम्भ कर दिया। वर्षो तक इस मामले को लेकर पाकिस्तान से युद्ध चलता रहा जनवरी सन ् 1949
में संयुक्त राष्ट्रसंघ के हस्तक्षेप से युद्ध बन्द हुआ। युद्ध बन्दी के समय कश्मीर का एक तिहाई
हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया उसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर और भारत अधिकृत
कश्मीर के नाम से सम्बोधित करता है इस मामले में बाद में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक प्रस्ताव
पारित किया और सन ् 1950 ई. में अपने पर्यवेक्षक नियक्
ु त किये जो सन ् 1957 तक वहां रहे
लेकिन समस्या का कोई सर्वमान्य हल नहीं निकला।

वास्तव में भारत पाक सम्बन्धों में सझ


ु ाव के बजाय विस्फोटक मुकाम तक पहुंचाने का काम कश्मीर
समस्या ने सदै व से किया है । मल्
ू यांकन की दृष्टि से यदि अवलोकन किया जाय तो भारत
पाकिस्तान सम्बन्धों की सामयिक समस्याओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या कश्मीर विवाद ही
सामने आता है । कश्मीर मसले को अन्तर्राष्ट्रीय रं गत दे ने में पाकिस्तान के लगातार प्रयासों ने दोनों
दे शों के सम्बन्ध चौपट कर दिये है और दोतरफा बातचीत की सम्भावनाओं पर भी पानी फेर दिया
है । पाकिस्तान की ओर से कश्मीर में भाड़े के अफगान छापामारों को भेजने , उग्रवाद को खुल्लम-
खुल्ला बढ़ावा दे ने और अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर में मानवाधिकारों के कथित हनन को लेकर
बखेड़ा करने से तनाव निरन्तर बढ़ता रहा है और सीमा पर लगातार पाकिस्तानी सैनिकों को
गोलाबारी से युद्ध जैसी स्थित बनती जा रही है । इस सम्बन्ध में • बलराज अशोक का मत है कि
कश्मीर के प्रशासन और राजनीतिज्ञों को अपनी ओर करने कश्मीरी नवयुवकों को शस्त्र सज्जित कर
उनसे आतंकवादी गतिविधियों में तेजी लाने, राज्य की मस्लि
ु म आबादी को सरकार के खिलाफ करने
तथा घाटी से गैर मुस्लिमों को बाहर खदे ड़ने वाली योजना में पाकिस्तान को पूरी तरह कामयाबी
मिल चुकी है अब तकसा अन्तिम प्रयास, जो शुरू हो चुका है , इस विद्रोह को अघोषित युद्ध में
बदलने तथा भारतीय सरु क्षा बलों से सीधे टक्कर लेना है । " पाकिस्तान कश्मीर को भारत से अलग-
थलक करने की अपनी कोशिशों के अन्तिम चरण में है और इस अन्तिम चरण के आरम्भिक 6
लक्ष्य निर्धारित किये है जिससे घाटी के मस
ु लमानों को उग्रवादियों के रूप में • समर्थन के लिए
तैयार करना और हिन्दओ
ु ं को घाटी से बाहर खदे ड़ना तथा गुप्तचरी के समस्त स्रोतों को बन्द कर
सरकार को पंगु बना दे ना है एवं प्रशासन को सचिवालय तक सीमित रखना है और सरु क्षा बलों को
यह एहसास कराना कि अब घाटी के लोग उनके खिलाफ हैं तो उनकी तैनाती का अब कोई औचित्य
नहीं बनता, मध्य मार्गीय राजनीतिक नेतत्ृ व को अप्रासांगिक कर दे ना जिससे केन्द्र कोई राजनीतिक
पहल शुरू न कर सके। इसलिए जैसे ही कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया की बात शुरू होती है पाकिस्तान
अपनी हरकतें तेज कर दे ता है और सीमा पर गोलाबारी पर भी उतर आता है । श्रीनगर में हजरतबल
दरगाह पर आतंकवादियों का कब्जा और उसके बाद दरगाह के इर्द-गिर्द डाले गये भारतीय सुरक्षा
बलों के घेरे ने कश्मीर को एकवार फिर से विस्फोटक मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है लेकिन
पाकिस्तान को अपने दष्ु प्रचार में अभी तक सफलता नहीं मिली है यह एक कडुई सत्यता आंखे मूंद
लेना ही होगा।
सरक्रीक:

भारत पाक सम्बन्धी को सामान्य बनाने का एक विवाद गुजरात स्थित कच्छ के रण पर सरक्रीक
सीमा विवाद भी है । भारत और पाकिस्तान के बीच सरकीक का यह विवाद युद्ध स्थल बना हुआ है ।
जो कि वर्ष 1965 से ही दोनों दे शों के बीच बरकरार रहा है । इस विवाद को विराम दे ने के लिए
बातचीत हे तु भारत के सर्वेयर लेफ्टीनेंट जनरल ए. के. आहूजा और पाकिस्तानी रक्षा मंत्रालय के
अतिरिक्त सचिव जमील अख्तर ने पहल अवश्य की किन्तु अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा
सका है । भारतीय पक्ष का कहना है कि सरक्रीक सीमा रे खा को दोनों दे शों के बींच एक काल्पनिक
रे खा माना जाय क्योंकि इस क्षेत्र में लगातार प्यार भांटा के कारण यह सीमा आगे पीछे खिसकती
रहती है । भारत का कहना है कि समद्र
ु ी सीमा रे खा क्रीक के औसतन मध्य में होनी चाहिए। जबकि
पाकिस्तान अधिकतम सीमा क्षेत्र को अपने अधिकार क्षेत्र में रखना चाहता है । इस सन्दर्भ में
पाकिस्तान का तर्क है कि भारत ने सरक्रीक का मामला 1966 के रन ऑफ कक्ष के ट्रिब्यन
ू ल के
समक्ष नहीं उठाया अतः यह मामला पहले ही हल हो चुका है । भारत में यह मामला केवल 1982 ई.
में उठाया था उस समय एक मानचित्र के माध्यम से 1914 के समझौते को अलग तरीके से लागू
करने की मांग की। सरक्रीक का क्षेत्र सिंध को दिया गया था जिसे कच्छ राज्य ने स्वीकार किया था
किन्तु भारत का तर्क है कि कच्छ राज्य की केवल भू क्षेत्रों में ही दिलचस्पी थी। तीन दशक से चले
आ रहे समद्र
ु ी सीमा विवाद का प्रमख
ु कारण स्थित को अपने पक्ष में रखकर दे खना है। ब्रिटिश
सिद्धांत के अनुसार यदि कोई चैनल या नदी नौवहन के योग्य नही है तो परू ा क्षेत्र एक क्षेत्र को मिल
जाना चाहिए। जबकि भारत का कहना है कि सरक्रीक समद्र
ु ी सीमा क्षेत्र नौवहन के योग्य है अतः
दोनों क्षेत्रों के अधिकार एवं कर्तव्य क्षेत्र में ही आता है। जबतक दोनों दे शों के बीच इस समुद्री सीमा
का निर्धारण नहीं होगा तबतक इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधान तेल और प्राकृतिक गैस आदि का
दोहन नहीं किया जा सकता। भारत और पाकिस्तान सन ् 2007 तक इस विवाद को यदि विराम नहीं
दिये होते तो संयुक्त राष्ट्र संघ की अध्यक्षता स्वीकार करनी होती। इस समुद्री विवाद को सुलझाने
के लिए पाकिस्तान तीसरे पक्ष की मध्यस्थता करवाना चाहता है जो कि भारत को स्वीकार नहीं है
अत: इस वार्ता को भी कोई सार्थक सफलतना नहीं मिली।

वर्ष 2012 में नई दिल्ली में सियाचिन मुद्दे पर बेनतीजा रही बातचीत के बाद भारत और पाकिस्तान
को सरक्रीक का सीमा विवाद सल
ु झाने के लिए नई दिल्ली में मिलने की बात चल रही थी। दोनों
दे शों के बीच कामयाबी के सबसे नजदीक खड़े इस मुद्दे पर भारत की कोशिश बातचीत को आगे
बढ़ाने की रही। हालांकि यह आशंकाएं बरकरार हैं कि सियाचिन पर सैन्य कटौती के खिलाफ भारत
के सख्त स्वैये के बाद पाकिस्तान सरक्रीक पर सीधे समाधान से कन्नी काट जाएगा। दोनों मुल्कों
के बीच 18 और 19 जून को भारत के सर्वेयर जनरल और उनके पाकिस्तानी • समकक्ष के बीच होने
वाली बातचीत पहले मई में होनी थी। पाक खेमा इस बात पर जोर दे रहा था कि वह सरक्रीक से
पहले सियाचिन पर बात करना चाहता है । इसीलिए बातचीत का कैलेंडर बदलते हुए 11 और 12 जून
को रावलपिंडी में रक्षा सचिव वार्ता का कार्यक्रम तय हुआ। सत्र
ू ों के मत
ु ाबिक इस बात की आशंकाएं
हैं कि सियाचिन में सैन्य कटौती पर भारत के इन्कार के बाद पाकिस्तानी पक्ष सरक्रीक पर अधिक
सख्त रुख के साथ आए। हालांकि भारतीय खेमा मानता है । कि सरक्रीक मद्द
ु ा समाधान के सबसे
करीब है और इससे भारत के प्रधानमंत्री को पाक दौरे को जमीन तैयार करने में भी मदद मिलेगी 7°
बीते साल इस्लामाबाद में सरक्रीक मुद्दे पर हुई वार्ता में दोनों दे शों ने समाधान के फार्मूले पर
अनौपचारिक पत्रों की अदला-बदली की थी, लिहाजा नई दिल्ली में होने जा रही वार्ता में दोनों पक्ष
समाधान के अपने नजरिये पर एक-दस
ू रे को टटोलने के साथ बात आगे बढ़ाएंगे। सरक्रीक में
सीमांकन को लेकर हुए साझा सर्वेक्षणों में भारत की ओर से भाग लेने वाले हाइड्रोग्राफी विभाग

के सूत्रों का कहना है कि जलीय सीमा को तय करने पर तो सहमति पहले ही बन चुकी थी। लेकिन
पाक खेमा जमीन के सीमांकन को भी शक्ल दे ने पर जोर दे रहा है । सूत्र बताते हैं कि दो दौर के
सर्वेक्षण और नक्शों की अदला-बदली के बाद दोनों खेगे 2007 में ही समुद्र से तट की और 200 में
120 नॉटिकल मील तक सीमा क्षेत्र को चिह्नित करने पर सहमति जता चुके थे। लेकिन कच्छ व
सिंध क्षेत्र में जमीनी सीमा को चिह्नित कैसे किया जाए इस पर मतभेद बरकतार हैं। भारत ने अपने
समाधान फार्मूले को जलराशि के मध्य से बांटने की पेशकश की है , यहीं पाकिस्तान क्लीक के पूरब
से सीमांकन की पैरवी कर रहा है। इससे लगभग परू ा सरक्रीक पाकिस्तानी क्षेत्र में चला जाता है ।"

सरक्रीक पर भारत और पाक के बीच 1924 में हुए जमीनी सीमा निर्धारण को लेकर विवाद है ।
पाकिस्तान 60 मील लंबे इस क्षेत्र के सीमांकन में 1914 के सिंध सरकार और कच्छ के राव महाराज
के बीच हुए बांबे गवर्मेट प्रस्ताव को आधार मानता है । इसमें सरक्रीक को सिंध का हिस्सा बताया
गया था। जबकि भारत का कहना है कि 1925 में स्वीकृत नक्शे में इस क्षेत्र को एक • समुद्री
जलराशि के तौर पर दिखाया गया है । इसीलिए जलराशि के बीच खंभे भी लगाए गए थे वहीं
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को उम्मीद थी कि भारत के साथ सियाचिन और
सरक्रीक से जुड़े मसले जल्द सुलझ जाएंगे और इससे कश्मीर का पुराना मसला हल करने के लिए
दोनों दे शों के बीच एक अच्छा माहौल बनेगा। उन्होंने कहा कि भारत के साथ महत्वपर्ण
ू मद्द
ु े

सुलझाने के लिए उनकी सरकार गोपनीय कूटनीति पर निर्भर नहीं रहे गी

द न्यूज डेली को जरदारी ने बताया कि उन्हें पूरा भरोसा है कि सियाचिन ग्लेशियर पर सैनिकों का
जमावड़ा कम होगा और सरक़ीक सीमा विवाद जल्द ही सुलझा लिया जाएगा। इन दो मसलों के हल
होने से एक विश्वास का माहौल बनेगा और दोनों दे श कश्मीर मसला हल करने के लिए आगे बढ़ें गे।
उन्होंने कहा, कश्मीर से जुड़े सभी संभावित समाधानों पर संबंधित संसदीय समिति में चर्चा की
जाएगी और उसके बाद निर्णायक समाधान को संसद से मंजूरी दी जाएगी। इसी सप्ताह पाकिस्तान
के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले जरदारी ने कहा कि विपक्षी पार्टी पीएमएल-एन के प्रमुख नवाज
शरीफ अवामी नेशनल पार्टी के अध्यक्ष असफंदियर वाली खान, जमायत उलेमा-ए-इस्लाम के अध्यक्ष
मौलाना फजलुर रहमान और एमक्यूएम के नेता अल्ताफ हुसैन कश्मीर मसले पर किसी खास मुकाम
पर पहुंचने वाले बोर्ड में शामिल हुए।

भारत और पाकिस्तान सियाचिन और सरक्रीक विवादों के समाधान के करीब हैं। दोनों दे श सरक्रीक
मुद्दे पर कुछ साझा निष्कर्ष पर पहुंच गए हैं जबकि सियाचिन विवाद सेना की मौजूदगी वाली जगहों
के प्रमाणीकरण के मुद्दे पर अभी लंबित हैं। पाकिस्तान के विदे श मंत्री महमूद कुरै शी ने गुरुवार को
कहा था कि सरकार कश्मीर मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने तथा भारत के साथ शांति प्रक्रिया को लेकर
जल्द ही एक संसदीय समूह बनाएगी। समूह में सभी राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व होगा। कुरै शी
ने कहा था कि इस समूह के जरिए भारत के साथ वार्ता और कश्मीर की स्थिति पर सर्वसम्मति
बनाई जाएगी। जरदारी ने कश्मीर पर किसी अच्छे समाचार का वायदा किया था

सरक्रीक खाडी भारत में गुजरात के कच्छ जिले और पाकिस्तान में सिंध की सीमा के पास आई हुई
है । यहाँ भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा को लेकर विवाद है लेकिन यह विवाद कम ही चर्चा में
आता है । यह विवाद कच्छ के रण में 96 किलोमीटर लंबे मुहाने को लेकर है जो भारत के गुजरात
को पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अलग करता है । सरक्रीक की खाड़ी का विवाद से पुराना रिश्ता रहा
है । ईस्ट इंडिया कम्पनी के सेनापति चार्ल्स नैपियर ने 1842 मे सिंघ जीतने के बाद उस प्रदे श का
प्रशासन मुम्बई राज्य को सौंप दिया था। इसके बाद सिंध में अपना प्रशासन चला रही अंग्रेज सरकार
ने सिंथ और मम्
ु बई प्रांत के बीच के सीमा रे खा खींची थी जो कच्छ के मध्य से गज
ु रती थी इसमें
यह सम्पूर्ण खाडी सिंध प्रांत में दिखाई गई थी। यानि कि कच्छ के मूल प्रदे श से उसे अलग कर
सिंध में जोड़ दिया गया था। दस
ू री तरफ दिल्ली के अंग्रेज सरकार अपने अधिकृत नक्शे में सिंध
और कच्छ के बीच की सीमारे खा को कच्छ के रण तक खींचने के बाद खाडी के प्रदे श के पास
अटका कर दिखाती थी। स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान ने खाड़ी के प्रदे श पर अपना मालिकाना हक
जताया। इसके जवाब में भारत का प्रस्ताव था कि कच्छ के रण से लेकर खाड़ी के मुख तक की एक
सीधी रे खा की सीमा रे खा मान लेना चाहिए। परं तु यह प्रस्ताव पाकिस्तान को मंजरू नहीं था। इस
प्रकार से सिर की खाड़ी का करीब 650 वर्ग किलोमीटर का प्रदे श आज भी विवादित प्रदे श है और इस
प्रदे श से पाकिस्तानी रें जरों द्वारा भारतीय मछुआरों को उठा ले जाने की खबरें आती रहती है ।
सियाचिन के बाद सिरकिक भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ाने वाली एक और सीमारे खा है।
लेकिन यह सियाचिन जितनी चर्चा में नहीं आती है ।
कश्मीर पर खुशखबरी दे ने के बादे के तीन दिन बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी
ने सरक्रीक व सियाचिन मसले के भी जल्द समाधान की उम्मीद जताई है। जरदारी ने इस बात पर
जोर दिया कि सरकार भारत के साथ लंचित मुद्दों को सुलझाने के लिए गुप्त कूटनीति पर निर्भर
नहीं रहे गी। जरदारी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सियाचिन में सैनिकों का जमावड़ा कम होगा
और सरकीक विवाद बहुत जल्द सुलझेगा। उन्होंने कहा कि इन दोनों मुद्दों के समाधान से एक
विश्वास का वातावरण पैदा होगा जिसमें दोनों दे श कश्मीर विवाद पर आगे बढ़ सकते हैं। जरदारी ने
कहा कि कश्मीर मामलों की संसदीय समिति में पहले संभावित सभी समाधानों पर चर्चा होगी और
फिर समाधान को संसद द्वारा स्वीकृति मिलेगी। जरदारी ने कहा कि विपक्षी पीएमएल-एन प्रमख

नवाज शरीफ, अवामी नेशनल पार्टी के अध्यक्ष असफेदयार वली खान, जमायत उलेमा ए इस्लाम
प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान और एमक्यूएम नेता अल्ताफ हुसैन कश्मीर मुद्दे पर किसी खास
मक
ु ाम पर पहुंचने वाले बोर्ड में शामिल होंगे

भारत और पाकिस्तान सियाचिन व सरक्रीक विवादों के समाधान के करीब हैं। दोनों दे श सस्क्रीक मुद्दे
पर कुछ साझा निष्कर्षो पर पहुंच गए हैं। जबकि सियाचिन विवाद सेना की मौजद
ू गी वाली जगहों के
प्रमाणीकरण के मुद्दे पर अभी लंबित है । पाकिस्तान के विदे श मंत्री महमूद कुरै शी ने कहा था कि
सरकार कश्मीर मद्द
ु े पर सर्वसम्मति बनाने तथा भारत के साथ शांति प्रक्रिया को लेकर जल्द ही एक
संसदीय समूह बनाएगी। इस समूह के जरिए भारत के साथ वार्ता और कश्मीर की स्थिति पर
सर्वसम्मति बनाई जाएगी। राष्ट्रपति ने अपने पहले संवाददाता सम्मेलन में कश्मीर पर जल्द किसी
अच्छे समाचार का वादा किया था

सियाचिन का 21 साल परु ाना है विवाद सामरिक रूप से भारत-पाक दोनों के लिए महत्वपर्ण
ू है ।
हिमालय पर्वत के कराकोरम श्रंख
ृ ला के पूर्व में स्थित कराकोरम का सबसे लंबा और विश्व का दस
ू रा
सबसे लंबा ग्लेशियर 70 किमी है । समद्र
ु तल से करीब 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है यहां से
लेह लद्दाख और चीन पर नजर रखने में भारत को मदद मिलती है विश्व का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र
सियाचिन में भारत के दस हजार सैनिक तैनात हैं और इसके रखरखाव पर प्रतिदिन 5 करोड़ रुपये
खर्च आता है । सरक्रीक वास्तव में सरक्रीक जमीन का ऐसा टुकड़ा है जहां कभी पानी रहता है और
कभी नहीं रहा है यह भारत के गुजरात पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है यह दलदली जमीन का
विवाद है जिसकी लंबाई 60 किमी है पानी के कटाव के कारण यह दोनों दे शों के बीच अस्थिर सीमा
है यह दोनों दे शों के मछुआरों के लिए मुसीबत का कारण है इस इलाके का भी सामरिक व आर्थिक
महत्व है । भारत और पाकिस्तान ने दो पक्षीय प्रक्रिया के तहत सरक्रीक सीमा विवाद पर दो दिवसीय
संचिव वार्ता शुरू की जिसमें दोनों दे शों के बींच इस मुद्दे पर चार वर्षों के अन्तराल के बाद बातचीत
शुरू हुई है । आठ सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधि मण्डल का नेतत्ृ व भारत के सर्वेयर जनरल एस.
सुब्बाराव ने किया। जबकि पाकिस्तानी पक्ष का नेतत्ृ व वहां के अतिरिक्त रक्षा सचिव रियर एडमिरल
शाह सोहे ल मसूद ने किया। इस वार्ता के दौरान दोनों पक्षों ने वार्ता को आगे बढ़ाने की बात की
जिसके तहत दोनों ही पक्ष नॉन पेपर्स के असतांतरण पर राजी हो गये। दोनों पक्षों में इसबात पर भी
सहमति व्यक्ति की कि वे आगे भी वार्ता के लिए मिलते रहें गे। नॉन पेपर्स वार्ता के कागज होते हैं
जिनको दो दे श एक दस
ू रे को आदान प्रदान करते हैं जिससे वार्ता को आगे बढ़ाया जा सके। हालांकि
यह जरूरी नहीं है कि दोनों ही पक्ष कागजों के तथ्य को लेकर सहमत हों। दोनों पक्षों ने सस्क्रीक
क्षेत्र में स्थित भारत पाकिस्तान भमि
ू सीमा और दोनों दे शों के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय समद्र
ु ी सीमा के
सीमांकन पर भी बढ़ चढ़कर वार्ता किया।
बहुउद्देशीय परिजयोजनायें :

भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों को सुधारने के लिए जिस नये अध्याय का आरम्भ किया गया है
निःसन्दे ह एक प्रशंसनीय कार्य क्योंकि जबसे भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ तबसे अयतक दोनों
दे शों के बीच कटुटा एवं तनाव का सिलसिला जारी है इस विवाद को समाप्त करने के लिए जो भी
वार्ताएं एवं प्रयास किये गये उन्हें अभी तक व्यावहारिक रूप में विराम नहीं मिला। भारत के साथ
तनाव रखना शायद पाक प्रशासन की नीति एवं नियति बन गयी है यह अमेरिका से इस कार्य के
लिए सतत सहायत भी मिलती रही है । भारत पाक सम्बन्धों की समस्या एवं समाधान कश्मीर का
ही असली मसला साथ ही अनेक सामयिक, सामरिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं राजनयिक समस्याएं
उभरी हैं दोनों दे शों के विवादों को हल करना जितना कठिन है उससे भी कहीं अधिक लाभ दोनों
दे शों को सम्बन्ध सुधारने से मिल सकता है ।

भारत पाक विवादों को निटपाने के लिए चल रही नई दिल्ली में सचिव स्तर की वार्ता हे तु जो प्रमख

मुद्दे शामिल किये गये हैं उनमें सियाचिन विवाद, तुलबुल नौवहन परियोजा, सरक्रीक समुद्री सीमा
विवाद, आतंकवाद एवं मादक पदार्थों की तस्करी समस्या तथा व्यापारिक सहयोग प्रमुख रूप से हैं।
सामरिक समस्याओं का मामला सचिव स्तर पर सुलझ नहीं पाया है और न ही इसपर दोनों दे शों की
आम सहमति बनी है । आतंकवाद को निरुतसाहित करने एवं मादक पदार्थों की तस्करी कर अंकुश
लगाने के लिए पाकिस्तान को एक भारी दबाब उठाना पड़ेगा क्योंकि आतंकवाद एवं तस्करी की जड़ें
वहां की राजनीति में प्रवेश कर चुकी हैं इसके बावजूद इन जटिल समस्याओं के निराकरण हे तु जो
प्रयास किये जा रहे हैं नि:संदेह रूप से सराहनीय हैं।
तुलबुल योजना :

भारत और पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में तुलबुल जहाजरानी परियोजना को लेकर उठे विवाद पर 11
वर्ष बाद आरम्भ हुई वार्ता भी ढ़ीली ही साबित हुई है । क्योंकि पाक की मानसिकता पूरी तरह
पर्वा
ू ग्रहों में जकड़ी हुई है यही कारण है कि तल
ु बल
ु नौवहन परियोजना पर पाकिस्तानी पक्ष ने विसद्ध

रूप से अहं गेबाजी की नीति अपनायी। पाकिस्तानी राजनीतिक व कूटनीतिक स्वार्थ इस साधारण से
विवाद को अनावश्यक रूप से बढ़ाने की श्रेष्ठा में रहते हैं चल
ु बल
ु परियोजना विवाद को विराग दे ने
के लिए भारत के जल संसाधन सचिव जैद हसन तथा पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव शाहिद
हुसैन के बीच चार घंटे बातचीत की किन्तु व्यावहारिक सफलता वास्तव में नहीं मिली। हां। उसे
सैद्धांतिक रूप से दे खें तो इसका परिणाम निकला कि इस विवाद के समुचित समाधान के लिए दोनों
पक्ष एक दस
ू रे की सहूलियत के मुताबिक एकबार पुनः वार्ता करें गे।

यह भी उल्लेखनीय है कि तुलबुल परियोजना के विवाद को लेकर भारत और पाकिस्तान के बींच


1987 से लेकर 1992 तक आठ बार बातचीत की गयी परन्तु यह समस्या भी एक केन्द्रबिन्द ु के
इर्दगिर्द ही घूमती रही है वर्ष 1990 और 1994 के बींच दोनों दे शों के विदे श सचिव स्तर की वार्ता भी
असफल ही रही। कश्मीर से जड़
ु े जल विवाद के कारण पाकिस्तान बड़ी उपापोह की स्थिति में है ।
यदि पाक सरकार इस बात को विराम दे दे ती है तो कश्मीर के मसले को लेकर आखिर अपनी
कट्टरवादी व रूढ़वादी जनता को क्या जबाब दे गी? शायद यही सोचकर एक पग आगे बढ़ाते जैसे ही
थे कि उसी स्थिति में पुनः पाकिस्तान वार्ताकार चापस आ जाते हैं भारत पाकिस्तान सम्बन्धों को
सुधारने की प्रक्रिया जब भी आरम्भ होती है तबही तीसरा पक्ष प्रत्यक्ष या परोक्ष इशारा करके इसको
भड़काने का प्रयास करता है

तुलबुल परियोजना के सम्बन्ध में भारत | 1994 में सिन्धु नदी समझौते के तहत अपना निर्माण
कार्य आरम्भ कर दिया था किन्तु पाकिस्तान में सिन्धु जल सन्धि 1960 के अनुच्छे द 3 पैरा 4 का
उल्लेख करते हुए इसपर आपत्ति जाहिर की है चूंकि पाकिस्तान का भारत के प्रति विश्वास एवं
आस्था का स्पष्ट अभाव है इससे पाकिस्तान को आशंका है कि भारत इस बांध के माध्यम से पानी
का भण्डारण करना चाहता है जिससे पाकिस्तान के लिए यह एक बड़ी समस्या बन सकती है । भारत
ने पाकिस्तान की आपत्ति को स्वीकार करते हुए इस परियोजना पर रॉक लगा दी। भारत का इस
सम्बन्ध में मानना है कि सिन्धु जल सन्धि के तहत ही इस परियोजना का निर्माण करना चाहता
है । भारत ने झेलम नदी के पानी को रोकने के लिए तुलबुल हे तु गांव में बैराज नहीं बनवाया बल्कि
बुल्सर झील तक जहाजरानी सेवा को संचालित रखने के उद्देश्य से ही ऐसा कदम उठाया है ।
पाकिस्तान भारत के इस तर्क से सहमत नहीं है । उनका मानना है कि भारत इस परियोजना के
द्वारा झेलम नदी का पानी अपनी ओर जमा करना चाहता है इनके विरोध स्वरूप ही तुलबुल
परियोजना अधर में लटकी हुई है ।

भारत और पाकिस्तान ने एक बार फिर से तुलबुल परियोजना के मुद्दे को जल्दी व आपसी सहमति
से सुलझाने के लिए हाल में ही चार्ता शुरू कर दिया है दोनों दे शों के बीच में यह बार्ता 1960 की
विंटेज सिन्धु जल सन्धि के दायरे में सम्पन्न हुई दो दिवसीय जल संसाधन सचिव स्तर की वार्ता
के बाद एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया है । इस वक्तव्य में कहा गया कि वार्ता के एक महीने
के अन्दर ही भारत पाकिस्तान को इस प्रोजेक्ट से सम्बन्धित टे क्निकल डेटा उपलब्ध करा दे गा। इस
टे क्निकल डेटा को प्राप्त करने के बाद पाकिस्तान इस गहराई से अध्ययन करे गा कि जल्द से जल्द
अपने विचार भारत तक पहुंचा दे गा। चुलबुल नेवीगेशन प्रोजेक्ट एक नेविगेशन लॉक कम कंट्रोल
स्ट्रक्चर है जो बल
ु र झील के मह
ु ाने पर स्थित है । बल
ु र झील भारत की सबसे बड़ी ताजा जल झील
है और जम्मू व कश्मीर राज्य के बांदीपुर जिले में स्थित है मूल भारतीय योजना के अनुसार बैराज
की कुल लम्बाई 439 फिट (134 मीटर) और चौड़ाई 40 फिट (12. मीटर) निर्धारित की गयी थी इसकी
अधिकतम जल भण्डारण क्षमता 3 लाख एकड फिट जल की निर्धारित की गयी है । इसके निमार्ण का
मख्
ु य उद्देश्य जाड़ों के महीनों के दौरान जब जल काफी कम हो जाता है प्राकृतिक भण्डारण से झील
में इतना कम जल जल छोड़ना था जिससे झील में बारामूला तक पानी के एक न्यन
ू तम स्तर को
बनाये रखा जा सके। इस प्रोजेक्ट की संकल्पना 1980 के दशक में की गयी थी और इसपर निर्माण
कार्य 1984 में शुरू किया गया। भारत और पाकिस्तान के मध्य 1997 के दौरान इस प्रोजेक्ट को
लेकर विवाद खड़ा हो गया। पाकिस्तान की आपत्ति पर उसी वर्ष भारत ने इस परियोजना पर कार्य
बन्द कर दिया लेकिन अब भारत एकबार फिर से इसपर निर्माण कार्य शुरू करना चाहता है। इस
परियोजना के पूरा हो जाने पर झेलम नदी के द्वारा व्यक्तियों व वस्तुओं का आसानी से नौवहन
किया जा सकेगा।

सियाचिन योजना :

भारत पाकिस्तान रिश्तों को जोड़ने के लिए नये अध्याय का आरम्भ तो किया जाता है परन्तु परु ानी
संकीर्ण मानसिकता का परित्याग किये बिना परिणाम प्रतिकूल ही दिखाई दे ता है । भारत और
पाकिस्तान के वींच सियाचिन गलैंशियर जैसे संवदे नशील व विवादास्पद मुद्दे पर बातचीत भी बिना
प्रगति के विफल रही। एक कठिन एवं जटिल सामरिक समस्या के समाधान के लिए भारत के रक्षा
सचिव अजीत कुमार एवं पाकिस्तान के रक्षा सचिव लेफ्टीनेन्ट जनरल इफ्तकार अली खां ने दिल्ली
में महत्वपूर्ण पहल अवश्य की किन्तु व्यवहारिक रूप में 18000 फुट ऊंचे स्थित इस गलेशियर में
तोप एवं मार्टर का हमला दिनचर्या से बनती जा रही है । भारत के लिए सामरिक दृष्टि से अत्यन्त
ही महत्वपूर्ण सीमाक्षेत्र है क्योंकि इस संवेदनशील क्षेत्र से पाक चीन सम्पर्क मार्ग जहां अवरूद्ध हो
जाता है वहां भारत की सरु क्षा के लिए यह सर्वोत्तम सतर्क ता क्षेत्र साबित हो रहा है यही कारण है
कि पाकिस्तानी सेना व शासकों की नापाक निगाहे निरन्तर इसी ओर लगी रहती हैं हमारी सुरक्षा के
लिए इस हिमनद का विशेष महत्व है चंकि
ू सिमाकागड़ी से पाक अधिकृत कश्मीर, करोकारम मार्ग,
चीन के सिक्यांग प्रांत, उजबेकिस्तान, किरतीजिया तथा अफगानिस्तान सहित अनेक क्षेत्रों के सामरिक
ठिकानों पर नजर रखी जा सकती है । इस हिमनद का एक सिरा नब्र
ु ा घाटी के कोने पर तो दस
ू रा
सिरा 23000 फुट ऊंचे इन्दिरा कोल पर है ।

सियाचिन समास्या की शरू


ु आत स्वतंत्रता के साथ ही हो गयी थी क्योंकि कश्मीर के लगभग 86000
वर्गमील क्षेत्र पर पाकिस्तान ने अपना दावा पेश किया था जबकि भारत पाक विभाजन के समय
नियंत्रण रे खा 9842 (98 उत्तरी तथा 42 पर्वी
ू अक्षांस) निर्धारित हुई थी किन्तु पाकिस्तान में इसका
उल्लंघन करते हुए मानचित्र में परिवर्तन करके 10 हजार किलोमीटर भारतीय भूभाग का दावा किया
भारत पाक के बाँध 22 अक्टूबर 1947 से जनवरी 1949 तक चले सीमा संघर्ष को आखिर कराची
समझौते के तहत नियंत्रण रे खा एनजे 9842 को युद्धविराम रे खा स्वीकार किया। इस समझौते के
परिणाम स्वरूप ही संयुक्त राष्ट्रसंघ ने दोनों दे शों के मध्य 650 किमी लम्बी युद्ध विराम रे खा का
परिवेक्षण किया। भारत चीन युद्ध 1962 के दौरान चीन ने कश्मीर के लाख क्षेत्र में 12 हजार वर्ग
किमी क्षेत्र पर अपना अवैध अधिकार जमा लिया। वर्ष 1965 में भारत पाक युद्ध में पाक के नापाक
इरादे को दे खते हुए भारत ने भी कराची समझौते को ताख पर रखते हुए इस क्षेत्र के कुछ भागों पर
अपना अधिकार कर लिया। किन्तु ताशकन्द समझौते के तहत अधिकृत भूभाग को छोड़ दिया।
1971 के भारत पाक यद्ध
ु में भारतीय सैनाओं ने पाक अधिकृत कश्मीर के कुछ क्षेत्रों पर पन
ु ः अपना
अधिकार जमा लिया और इसबार युद्धविराम रे खा को नियंत्रण रे खा का नाम दिया गया। शिमला
समझौता 1972 के तहत भी इस सीमा क्षेत्र का निर्धारण नहीं हो सका। उस समय से लेकर अभी
तक पाकिस्तान इस सामरिक महत्व के क्षेत्र को सैन्य शक्ति के बल पर अपनी परिधि में लाने के
लिए लगातार प्रयास करता जा रहा है । इसका समाधान करने के लिए संयम व परित्याग चाहिए।
फिलहाल पाकिस्तान इस स्थिति में अभी नजर नहीं आ रहा है ।
चिनाव योजना :

सन 1947 में भारतीय स्वाधीनता के बाद से ही भारत व पाकिस्तान के मध्य विवाद व संघर्ष का
केन्द्र बना कश्मीर अपनी भौगोलिक एवं सामरिक विशिष्टताओं के कारण पाकिस्तान द्वारा प्रेरित व
समर्थित आतंकवाद से आहत एवं अशांत है । पाकिस्तान कश्मीर को अपना महाधमनी मानकर किसी
भी कीमत पर इसे हथियाने की कोशिश कर रहा है । भारत पाक विवाद का मुख्य मुद्दा कश्मीर बना
हुआ है वहीं यह समस्या उलझन भरी प्रवत्ति
ृ के फलस्वरूप दक्षिण एशियायी सामरिक परिस्थित को
निरन्तर प्रभावित करती रही है । भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन और पूर्व सोवियत संघ की
सीमाओं को स्पर्श कर रहे इस क्षेत्र में विश्व का सबसे संवदे नशील नोमैन्स केन्द्र स्थित है और तो
और सम्प्रभु अफगानिस्तान को छोड़कर उक्त सभी राष्ट्र नाभकीय • शक्ति सम्पन्न । जम्मू कश्मीर
के विभाजन की योजनाओं पर पिछले कुछ सालों से बात चल रही है । कारगिल युद्ध के दौरान
पाकिस्तान के पर्व
ू विदे श सचिव नियाज नाइक और एक भारतीय पत्रकार भारत के बींच पाकिस्तानी
प्रस्ताव में शामिल चिनाव योजना भारत के जवाबी प्रस्ताव और इसपर पाकिस्तानी प्रतिक्रिया का
आदान प्रदान हुआ था। पाकिस्तानी वार्ताकारों ने अपने अमेरिका मध्यस्थों के मध्य मांग रखी थी
कि कारगिल से हटने के बदले में भारत चिनाब योजना को स्वीकार करे बाद में फरवरी 2000 में
जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मख्
ु यमंत्री फारूख अब्दल्
ु ला और उनके मंत्रमण्डल के प्रमख
ु सदस्यों की
राज्य के विभाजन का विस्तत
ृ खाका तैयार करने वाले अमेरिका में रह रहे उद्योगपति फारूख
कथवारी के साथ बातचीत हुई थी। फारुख अब्दल्
ु ला ने जम्मू कश्मीर के 1953 के दर्जे को बहाल
करने की जो मांग की थी वह भी केएसजी कश्मीर की आंशिक सम्प्रभुता की अवधारणा से ज्यादा
अलग नहीं थी। कथबारी के कश्मीर स्टडीज ग्रुप (केएसजी) ने कश्मीर फारवडी नामक से रिपोर्टों का
एक समूह निकाला था जिसमें कश्मीर के बिना अन्तर्राष्ट्रीय पहचान वाले नये सम्प्रभु दे श का दर्जा
दिलाने की बात की गयी थी। वास्तव में चिनाब योजना डिक्सन योजना का ही एक रूप है डिक्सन
योजना हो या चिनाव योजना मश
ु र्रफ का मामला या हो अन्डोर माडल जो भी समाधान सझ
ु ाये गये
हैं उनमें भारतीय नियंत्रण वाले क्षेत्रों को लेकर रियासतों की बात शामिल है । पाकिस्तान का कुछ भी
दांव पर नहीं है बल्कि उसे जम्मू कश्मीर का कुछ भाग और घाटी के मसले में निर्णायक भमि
ू का
मिलेगी। प्रश्न यह उठता है कि वह यही बातचीत है जो पिछले वाजपेयी सरकार मुशर्रफ के साथ कर
रही थी और मनमोहन सरकार भी इसपर चर्चा की थी। कारगिल यद्ध
ु के दौरान पाकिस्तान के
खिलाफ लड़ने वाले लेफ्टीनेन्ट जनरल विनय शंकर का कहना है कि भारतीय वार्ताकारों के लिए
बातचीत में किसी प्रकार समझौते पर पहुंचना मामले का समाधान ढूंढने से ज्यादा अहम हो गया है ।
अमेरिकी स्वोकृत के लिए राष्ट्रीय हितों को नजरअन्दाज किया जा रहा है । ये दोनों सचमुच चिन्ता
जनक है। वास्तव में कश्मीर समस्या का स्थाई समाधान सम्भव नहीं है क्योंकि पाकिस्तान के इरादे
और गतिविधियां हमेशा ही भारत विरोधी रही हैं। कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए भारत की
अनंततः प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तरीके से निकट भविष्य में युद्ध ही करना होगा। भारत के पास
अर्थव्यवस्था का सामरिक हथियार भी है वह विश्व की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और विश्व
व्यापार की प्रतियोगिता में होड़ और इसे जीतने में सक्षम है और पाकिस्तान ऐसा नहीं कर सकता "
अध्याय-3

भारत में आतंकी गतिविधियां और पाकिस्तान की भमि


ू का

भारत एवं पाकिस्तान के विभाजन से उपजी वैमनस्यता में विश्व के कतिपय दे शों का ध्यान इस
महाद्वीप की तरफ किया। विभाजन के बाद ही पाकिस्तान घस
ु पैठियों के सक्रिय सहयोग से भारतीय
कश्मीर पर अमानुसिक व्यवहार किया है। कश्मीर नरे श कुछ समय तक असमंजस्यता की स्थिति में
रहे किन्तु बाद में उन्होंने इस प्रदे श का भारत में विलय कर दिया। भारतीय सेनाओं के पहुंच जाने
के बाद पाकिस्तानी लुटेरों के पांव उँ खड़ गये ये जान बचाकर भाग खड़े हुए। भारतीय सेनाओं ने
विपरीत अवस्था में कश्मीर के रणक्षेत्र में जौहर दिखाया और पडयंत्रकारियों को कश्मीर से भगा
दिया। आज लगभग पूरा विश्व आतंकवाद की चपेट में है । राज्य के तिवाओं की पूर्ति के लिए जन
की हिंसा और हत्याओं का रास्ता अपनाया जा रहा है । संसार के भौतिक दृष्टि से सम्पन्न दे शों और
हत्याओं का आतंकवाद के रूप में यह प्रवत्ति
ृ और भी ज्यादा पनप रही है । संयुक्त राज्य अमेरिका
के राष्ट्रपति जॉन एफ केमेडी और भारतीय प्रधानमंत्रियों की नश
ृ ंश हत्या संयुक्त राज्य अमेरिका के
हवाई जहाज में बम विस्फोट एवं भारतीय हवाई जहाज का पाकिस्तान में अपहरण आदि घटनाएं
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कुछ उल्लेखनीय उदाहरण है ।'
विगत तीन सदियों में भारत में पंजाब, बिहार, असम, बंगाल, जम्मू कश्मीर आदि कई प्रांतों में
आतंकवादियों ने व्यापक स्तर पर आतंकवाद फैलाया है 10 मार्च 1975 ई. को भारत के भूतपूर्व
न्यायाधीश श्री ए.एन. राय की हत्या का प्रयास किया गया था। पर्व
ू प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी,
श्री राजीव गांधी, भूतपूर्व सेनाध्यक्ष श्री अरूण श्रीधर वैद्य, पंजाब केसरी के सम्पादक ●लाला
जगतनारायण आदि दे श के अनेक गणमान्य व्यक्तियों को आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार
दिया। 10 अगस्त 1986 ई. को आतंकवादियों द्वारा इण्डियन एम 2 लाइंस का एक हवाई जहाज गिरा
दिया गया जिसके फलस्वरूप 229 यात्रियों की मौत हो गयी। सन ् 1995 ई. में . आतंकवादियों द्वारा
गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर विस्फोट किया गया जिसमें काफी जनहानि उठानी पड़ी। सन ्
1997 ई. को फिल्म निर्माता निर्देशक मक
ु े श दग्ु गल की हत्या 29 मार्च को जग्गू में भीषण बम
विस्फोट में 25 लोगों की मत्ृ यु, त्रिपरु ा में जवानों की हत्या, 19 अगस्त 1997 को टी-सीरीज के अमर
गायक गुलशन कुमार की हत्या, 19 नवम्बर 1997 को है दराबाद में एक कार का विस्फोट के दौरान
उड़ जाना, जम्मू आदि आतंकवादी गतिविधियों का कारनामा रहा। जम्मू कश्मीर मुफ्ती मोहम्मद
सईद की सरकार के गठन साथ जम्मू के ऐतिहासिक रघुनाथ मन्दिर व उसके निकट वाली शिव
मन्दिर पर उग्रवादियों ने हमला किया 24 नवम्बर 2002 के इन मन्दिरों को आतंकवादी गतिविधियों
का शिकार होना पड़ा। सन ् 2008 में मुम्बई में घातक आतंकवादी हमला हुआ। 7 सितम्बर 2011 को
दिल्ली उच्च न्यायालय के द्वार पर हुए विस्फोट में 12 लोगों की हत्या हुई और 80 घायल हुए ये
घटनाएं पूर्ण रूप से स्पष्ट संदेश दे ती हैं कि भारत में आतंकवाद का घणि
ृ त सिलसिला निरन्तर
बढ़ता ही जा रहा है। इसके अलावां पाकिस्तान आये दिन किसी न किसी रूप में भारत को
अल्टीमेटम दे ता रहता है वह न तो शांति और चैन से रहे गा और न भारत को रहने दे गा भारत जब-
जब पाकिस्तान से मधुर सम्बन्ध बनाने का प्रयास किया है । तब-तब प्रतिउत्तर में पाकिस्तान पीछे
से छूरा भोंका है। तत्कालीन उदाहरण का उल्लेख किया जाय तो 22 फरवरी 1999 ई. को लाहौर बस
सेवा के उद्घाटन यात्रा में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने अग्रणी भूमिका निभाई,
नवाब शरीफ ने भारतीय प्रधानमंत्री को इस यात्रा के लिए आमंत्रित किया था। दे श के चनि
ु न्दा
ख्याति प्राप्त लोगों को भी साथ ले गये इनमें विदे श सचिव के . रघुनाथा, 11 वें वित्त आयोग के
अध्यक्ष प्रो. एम. खश
ु रो, शायर जावेद अख्तर, फिल्म अभिनेता दे वानन्द, लखनऊ क्रिश्चिन कालेज के
प्रधानाचार्य बेनजामिन प्रताप सिंह, हाकी खिलाडी जफर इकबाल, सीआईआई के अध्यक्ष राजेश शाह,
फिक्की के अध्यक्ष सुधीर जालाना, दक्षेस दे शों चैम्बर ऑफ कामर्स इण्डस्ट्रीज के अध्यक्ष कांति कुमार
पोद्दार, चित्रकार सतीश गुजराल, नत्ृ यांगना मल्लिका साराभाई, क्रिकेट खिलाड़ी कपिलदे व, कीर्ति आजाद,
गायक महे न्द्र कपूर, राज्य सभा सदस्य शत्रह
ु न सिन्हा, पत्रकार कुलदीप नैयर, अरूण शौरी, विजय
कुमार गलहोत्रा, अकाली विधायक आदे श प्रताप सिंह आदि के अतिरिक्त विदे श मंत्री जसवंत सिंह ,
प्रधानमंत्री के कुछ परिजन तथा राजनयिकों को उच्च स्तरीय टीम शामिल थी। आपसी मित्रता की
भावना का संचार करने तथा पारस्परिक सौहार्द, शांति, एवं सह अस्तित्व की नीव डालने के लिए इस
यात्रा को सफलीभूत बनाया गया लेकिन दिल्ली परिवहन निगम की सदा-ए-सरहद नामक बस से जैसे
ही बाघा सीमा को पार करके पाकिस्तान में प्रवेश किया गया वैसे ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाब
शरीफव अन्य लोगों ने भारतीय प्रतिनिधि मण्डल का भव्य स्वागत किया। दोनों प्रधानमंत्रियों ने
बाघा सीमा पर 15 मिनट तक वार्ता की। यात्रा का न केवल भावनात्मक बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी
रहा है । यह यात्रा आपसी सामंजस्यता एवं भाईचारा के लिए किया गया था। दोनों राष्ट्रों में मधुर
सम्बन्ध कायम होने की सम्भावना बनी ही थी कि वर्ष 1999 में कारगिल में घस
ु पैठियों को भेजकर
पुन: पाकिस्तान अपनी शत्रत
ु ापूर्ण मंशा स्पष्ट कर दिया है

भारत पाकिस्तान के वींच आतंकवादी गतिविधियों का मल्


ू यांकन किया जाय तो पाकिस्तान की यह
दोहरी नीति यह स्पष्ट करती है कि पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवाद का कश्मीर की सरजमी
पर सदै व बरकरार रहे गा। तमाम आतंकवादी गतिवधियों के बावजद
ू भारत ने 23 मई 2001 को
आतंकवादियों के विरुद्ध लगे हुए युद्ध विराम को खत्म करने के साथ-साथ पाकिस्तान से वार्ता का
प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव के पहले पाकिस्तान अपनी आर्थिक यदहाली के कारण भारत से बार-बार
वार्ता का प्रस्ताव रख रहा था क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहायता मिलने के शर्त के रूप में उसे
भारत से अपने सम्बन्ध सुधारने का आश्वासन दे ना था। भारत पाकिस्तान के बींच तात्कालिक
शिखर वार्ता से पहले दोनों दे शों के विदे शी मंत्रियों की बैठक बुलाई गयी जिनका काम शिखर वार्ता
के पहले एक ऐसा वातावरण बनना था जिसकी छाया में दोनों दे शों का नेतत्ृ व विश्व को यह अहसास
दिला सके कि भारत पाक वास्तव में सम्बन्ध सध
ु ार करने के इच्छुक हैं। इसके साथ-साथ
पाकिस्तान भारत के गुलायम रवैये के अन्तर्गत आर्थिक लाभ उठाने का भी प्रयासरत था। पाकिस्तान
के नेतत्ृ व से यह भी रणनीति अपनायी गयी थी कि यदि वह भारत को यह मनाने में भी सफल
होता है कि कश्मीर एक विवादास्पद क्षेत्र है तो यह उनकी एक बड़ी कूटनीतिक विजय होगी।
पारस्परिक सहयोग को बढ़ाने के उद्देश्य के अन्तर्गत भी प्रयास जारी था इस प्रयास के द्वारा यह
कोशिश की जा रही है कि भारत पाकिस्तान सम्बन्ध न केवल राजनीतिक स्तर पर सुधरे बल्कि
आम जनता के मध्य भी विश्वास पैदा किया जा सके। इसके लिए आर्थिक व सामाजिक स्तर पर
कुछ बुनियादी प्रगति की आवश्यकता समझी जा रही है । इसी कड़ी के अन्तर्गत एक महत्वाकांक्षी
योजना भारत ईरान के बीच प्रस्तावित 2657 किमी लम्बी गैस पाइप लाइन है जो पाकिस्तान से
गुजरती हुई भारत आयेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत पाक के मध्य सम्बन्धों में सुधार
लाना है तो दोनों दे शों के मध्य कुछ बड़े आर्थिक तथा बुनियादी ढांचे बाली परियोजनाओं को
साझेदारी में शुरू करने की आवश्यकता होगी। गैस पाइप लाइन तथा विद्युत ग्रिड़ों को जोड़ना ऐसी
दो बड़ी परियोजनाएं है जो दोनों दे शों के विकास तथा आपसी विश्वास की ओर ले जा सकती हैं।

कारगिल संघर्ष तथा परमाणु विस्फोटों के बाद इस तरह की परियोजनाओं की आवश्यकता और


अधिक समझी जा रही है। यदि ये परियोजनाएं वास्तव में कार्य करने लगें तो दोनों दे शों को इससे
न केवल आर्थिक सहायता मिलेगी बल्कि इनसे जुड़े तमाग उद्योगों का विकास होगा। जिससे यह
आशा की जा रही है कि दोनों दे शों के मध्य परस्पर सहयोग में वद्धि
ृ होगी जो अन्तोगत्वा हमें शांति
का मार्ग दिखयेगी। इस परियोजना से अकेले पाकिस्तान को लगभग 600 करोड़ डालर का दक्षेस दे शों
चैम्बर ऑफ कामर्स इण्डस्ट्रीज के अध्यक्ष कांति कुमार पोद्दार, चित्रकार सतीश गुजराल, नत्ृ यांगना
मल्लिका साराभाई, क्रिकेट खिलाड़ी कपिलदे व कीर्ति आजाद, गायक महे न्द्र कपरू , राज्य सभा सदस्य
शत्रह
ु न सिन्हा, पत्रकार कुलदीप नैयर, अरूण शौरी, विजय कुमार भलोग अकाली विधायक आदे श प्रताप
सिंह आदि के अतिरिक्त विदे श मंत्री जसवंत सिंह, प्रधानमंत्री के कुछ परिजन तथा राजनयिकों की
उच्च स्तरीय टीम शामिल थी। आपसी मित्रता की भावना का संचार करने तथा पारस्परिक सौहार्द,
शांति, एवं सह अस्तित्व की नीव डालने के लिए इस यात्रा को सफलीभूत बनाया गया लेकिन दिल्ली
परिवहन निगम की सदा-ए-सरहद नामक बस से जैसे ही बाघा सीमा को पार करके पाकिस्तान में
प्रवेश किया गया वैसे ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाब शरीफव अन्य लोगों ने भारतीय प्रतिनिधि
मण्डल का भव्य स्वागत किया। दोनों प्रधानमंत्रियों में बाघा सीमा पर 15 मिनट तक वार्ता की। यात्रा
का न केवल भावनात्मक बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी रहा है । यह यात्रा आपसी सामंजस्यता एवं
भाईचारा के लिए किया गया था। दोनों राष्ट्रों में मधरु सम्बन्ध कायम होने की सम्भावना बनी ही
थी कि वर्ष 1999 में कारगिल में घुसपैठियों को भेजकर पुन: पाकिस्तान अपनी शत्रत
ु ापूर्ण मंशा स्पष्ट
कर दिया।

भारत पाकिस्तान के बींच आतंकवादी गतिविधियों का मूल्यांकन किया जाय तो पाकिस्तान की यह


दोहरी नीति यह स्पष्ट करती है कि पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवाद का कश्मीर की सरजमी
पर सदै व बरकरार रहे गा। तमाम आतंकवादी गतििवधियों के बावजूद भारत ने 23 मई 2001 को
आतंकवादियों के विरूद्ध लगे हुए यद्ध
ु विराम को खत्म करने के साथ-साथ पाकिस्तान से वार्ता का
प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव के पहले पाकिस्तान अपनी आर्थिक बदहाली के कारण भारत से बार-बार
वार्ता का प्रस्ताव रख रहा था क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहायता मिलने के शर्त के रूप में उसे
भारत से अपने सम्बन्ध सुधारने का आश्वासन दे ना था। भारत पाकिस्तान के बींच तात्कालिक
शिखर वार्ता से पहले दोनों दे शों के विदे शी मंत्रियों की बैठक बल
ु ाई गयी जिनका काम शिखर वार्ता
के पहले एक ऐसा वातावरण बनना था जिसकी छाया में दोनों दे शों का नेतत्ृ व विश्व को यह अहसास
दिला सके कि भारत पाक वास्तव में सम्बन्ध सुधार करने के इच्छुक हैं। इसके साथ-साथ
पाकिस्तान भारत के गुलाया रवैये के अन्तर्गत आर्थिक लाभ उठाने का भी प्रयासरत था। पाकिस्तान
के नेतत्ृ व से यह भी रणनीति अपनायी गयी थी कि यदि वह भारत को यह मनाने में भी सफल
होता है कि कश्मीर एक विवादास्पद क्षेत्र है तो यह उनकी एक बड़ी कूटनीतिक विजय होगी।
पारस्परिक सहयोग को बढ़ाने के उद्देश्य के अन्तर्गत भी प्रयास जारी था इस प्रयास के द्वारा यह
कोशिश की जा रही है कि भारत पाकिस्तान सम्बन्ध न केवल राजनीतिक स्तर पर सध
ु रे बल्कि
आम जनता के मध्य भी विश्वास पैदा किया जा सके। इसके लिए आर्थिक व सामाजिक स्तर पर
कुछ बनि
ु यादी प्रगति की आवश्यकता समझी जा रही है । इसी कड़ी के अन्तर्गत एक महत्वाकांक्षी
योजना भारत ईरान के बीच प्रस्तावित 2857 किमी लम्बी गैस पाइप लाइन है जो पाकिस्तान से
गज
ु रती हुई भारत आयेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत पाक के मध्य सम्बन्धों में सध
ु ार
लाना है तो दोनों दे शों के मध्य कुछ बड़े आर्थिक तथा बुनियादी ढांचे बाली परियोजनाओं को
साझेदारी में शुरू करने की आवश्यकता होगी। गैस पाइप लाइन तथा विद्युत ग्रिड़ों को जोड़ना ऐसी
दो बड़ी परियोजनाएं है जो दोनों दे शों के विकास तथा आपसी विश्वास की ओर ले जा सकती हैं।

कारगिल संघर्ष तथा परमाणु विस्फोटों के बाद इस तरह की परियोजनाओं की आवश्यकता और


अधिक समझी जा रही है। यदि ये परियोजनाएं वास्तव में कार्य करने लगें तो दोनों दे शों को इससे
न केवल आर्थिक सहायता मिलेगी बल्कि इनसे जुड़े तमाग उद्योगों का विकास होगा। जिससे -यह
आशा की जा रही है कि दोनों दे शों के मध्य परस्पर सहयोग में वद्धि
ृ होगी जो अन्तोगत्वा हमें शांति
का मार्ग दिखयेगी। इस परियोजना से अकेले पाकिस्तान को लगभग 600 करोड़ डालर का लाभ होता
जो उसे उसके क्षेत्र से गैस पाइप लाइन गुजरने की फीस के रूप में अदा की जाती। आर्थिक लाभ के
साथ-साथ पाकिस्तान को इस परियोजना से कूटनीतिक लाभ भी मिलने की आशा है । पाकिस्तान
अभी कारगिल प्रकरण में अखिल इस्लामिक कट्टरपंथी गट
ु ों को सहायता दे ने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय
स्तर पर तेजी से अलग थलग पड़ता जा रहा था। यदि वह पाइप लाइन को अपने बलूचिस्तान प्रांत
से गज
ु रने की अनम
ु ति दे दे ता तो ईरान व भारत को उसकी समचि
ु त सरु क्षा की गारं टी भी दे ना
पड़ता। लेकिन पाकिस्तान प्रशासन कट्टरपंथियों के शिकंजे में है ।

आगरा में हुई भारत पाक शिखर वार्ता 15-16 जुलाई 2001 में यह आशा की जा रही थी। कि इसके
परिणाम कुछ चौकाने वाले होंगे जिसमें दोनों दे श कई पग एक साथ डालने का प्रयास करें गे। लेकिन
परिणाम चौकाने वाला ही था। भारत यह चाहता था कि आगरा शिखर वार्ता में शिमला समझौते और
लाहौर घोषणा के आधार पर ही फिर से नई शुरुआत होगी। जबतक सीमा पार से आतंकवाद को
रोंका नहीं जाता तबतक कश्मीर का मद्द
ु ा हल नहीं हो सकता। पाकिस्तान चाहता है कि सबसे पहले
कश्मीर की समस्या सुझाया जाये। इस प्रकार यह चार्ता असफल रही। यद्यपि की यह सम्बन्धों को
सध
ु ार की दिशा में महत्वपर्ण
ू कदम अवश्य माना जायेगा। वाजपेयी शासनकाल की समाप्ति पर ऐसा
लगा था कि भारत पाक सम्बन्ध सुधरने की दिशा में जो वार्ता का दौर चल रहा है वह रूक जायेगा
परन्तु पाकिस्तानी राष्ट्रपति स्वयं अपनी बात को उजागिर किये। है अटल बिहारी बाजपेयी के बाद
भारत के प्रधानमंत्री बने डा. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी भारत पाकिस्तान वार्ता जारी रही।
सितम्बर 2004 को न्यूयार्क में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के
बीच जो बातचीत हुई थी उसमें भी मुशर्रफ ने बेहद आशावादी नजरिया अपनाते हुए कश्मीर समस्या
समधान की उम्मीद जतायी थी। इस बातचीत के बाद दोनों नेताओं की ओर से जो संयुक्त बयान
जारी किया गया उसमे भी यह प्रतिबद्धता जाहिर की गयी थी कि दोनों ही दे श कश्मीर मसले का
शान्तिपूर्ण हल तलाशने के लिए प्रयास जारी रखेंगे। न्यूर्याक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व
पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफके बींच जिन तीन मुद्दों पर आपसी सहमति हुई उनमें से एक
प्राकृतिक गैस की प्रस्तावित पाइप लाइन के निमार्ण से सम्बन्धित है । निश्चय ही ग्राकृतिक गैस
पाइप लाइन से सम्बन्धित यह परियोजना भारत पाक सम्बन्धों को नया आयाम दे सकती है । सबसे
महत्वपूर्ण यह है कि यह परियोजना दोनों दे शों के आर्थिक हितों से जुड़ी होगी जो रिश्तों को मजबूती
प्रदान करे गी

भारत पाकिस्तान की द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने के सन्दर्भ में भारत के नागरिकों का एक
वर्ग पाकिस्तान की नीति व नियति को लेकर सशंकित है । लोगों की सोच है कि जिस मुल्क के साथ
कई बार जंग हो चुकी है उसके साथ सम्बन्धों के सुधार में कोई न कोई रोडा अवश्य आयेगा साथ
ही कश्मीर के प्रति पाकिस्तान का नजरिया भारत से मेल नहीं खाता है । शांति वार्ता का परिणाम
चाहे जैसा हो लेकिन भारत पाक के मध्य तनाम शैथिल्यता लाने की अमेरिकी कूटनीति काफी हद
तक सफल होती दिखाई दे रही है । यही स्थित आगे भी चलती रहे गी। यह दाले के साथ नहीं कहा
जा सकता है । प्रश्न यह उठता है कि दोनों दे शों के बीच सम्बन्धों को सध
ु ारने की दिशा में कौन-कौन
से विकल्प हैं जो न केवल भारत के हितों की रक्षा करें बल्कि जनता की इच्छाओं के अनुरूप भी हो
साथ ही पाकिस्तान भी स्वीकार करे । मौजद
ू ा स्थितियों में यही कहा जा सकता है कि दोनों दे शों के
बींच शांति वार्ता का जो दौर चल रहा है वह जारी रहना चाहिए। इससे दोनों दे शों के बीच कटुता कम
होगी साथ ही यह भी आवश्यक है कि पारस्परिक सहयोग का वातावरण तैयार किया जाय जिससे
भारत पाकिस्तान के सम्बन्धों को मधुर बनाया जा सके।

भारत के प्रति पाकिस्तान का दृष्टिकोण सदै व संदेहास्पद रहा है और जब भी भारत में सम्बन्ध
सुधारने के प्रयास एवं पहल किया है तभी पाकिस्तान ने अपने नापाक इरादों का संकेत दे ते हुए
मक
ु दरों का हर सम्भव प्रयास किया है । भारत पाकिस्तान सम्बन्ध की कहानी दो पड़ोसी राष्ट्रों की
विभिन्न धार्मिक सामाजिक एवं आर्थिक विचारधाराओं तथा अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण से राष्ट्रीय हितों
के साथ जुड़ी है । इन्हीं आपसी मतभेदों के कारण कटुता बरकरार है । भारतीय उपमहाद्वीप के इन
दोनों दे शों के मध्य व्याध तनाव व लाभ बढ़ी शक्तियों ने सदै व उठाया है । क्योंकि उनको अपने
हथियारों को विक्री के लिए एक बड़ा बाजार मिल रहा है । पाकिस्तान सदै व भारत विरोधी होवा खड़ा
करके अमेरिका से सैनिक व आर्थिक सहायता प्राप्त करता रहा है । आर्थिक एवं सैनिक सहयता से
धनराशि से अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का संचालन करना उसकी मजबरू ी एवं नियति बन चुकी है ।
इसी कारण वहां के शासक सदै व से ही भारत विरोधी दृष्टिकोण अपनाते रहे हैं। भारत को शिकस्त
दे ना अब पाकिस्तान की राजनीति, विदे शनीति तथा कूटनीति का एक आवश्यक उद्देश्य बन गया है ।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारत में एशिया के लगभग हर जाति व मजहब के लोग आये
और रहे इससे भारत का बुनियादी चरित्र विजातीय बन गया था। इसमें सभी जाति व मजहब के
लोगों ने घुलमिलकर एक सांस्कृतिक एकाच की नई धारा बनायी लेकिन भारत ने सबको स्वीकार
किया। हमारी इस भारतीयता को अंग्रेजों ने कभी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपनी सुविधा के लिए
फूट डालो और राज करो की नीति अपनाया था। चुनाव से लेकर नौकरियों में बहाली तक उन्होंने हमे
जातियों, भाषा, मजहबों में बांटकर हमारी पहचान बतायी परिणामस्वरूप हमारी भारतीयता खंडित हो
गयी। भारत में सबसे पहले अलगाववाद की भावना पनमाने वाले मुस्लिम कालेज के प्रिंसपल मिस्टर
बेक थे और उनका साथ दे ने वाले अलीगढ़ मुस्लिम कालेज के मुसलमान छात्र थे। एक वर्ष बाद
इंगलैण्ड में मस
ु लमानों का सम्मेलन हुआ तो यही भावना उनके मन और मस्तिष्क में उभारी गयी
लंदन की अंजुमनें इस्लामिया की कान्फ्रेंस में भाषण दे ते हुए मिस्टर वेक ने कहा था कि भारत में
हिन्द ू मस्लि
ु म कभी एक नहीं हो सकते क्योंकि इनकी जब
ु ाने , पहनावा, मजहब, हन सहन और थाई
तक कि उनकी सारी चीन्न है इसलिए भारत में मुसलमान अंग्रेजों के साथ कहता प्रसाद को है परना
हिन्दओ
ु ं के साथ रहना उन्हें गवारा नहीं चंकि
ू मिस्टर बैंक लम्बे अर्से तक मस
ु लमानों के बीच
मुलमिलकर यही समझाडी रहे कि किस तरह से भारतीय मुस्लिम को यहाँ की राष्ट्रीय भावना,
राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्रीय समस्या को जानने से भिन्न किया जा सके। बैंक साहय में हिन्दओ
ु ं के
खिलाफ मुसलमानों में नफरत, द्वेष और हिंसा की भावना पैदा करना अपनी जीवनचर्या बना लिया
था और एक प्रकार से थे अपने उद्देश्य में सफल रहे ।

पाकिस्तान द्वारा नाभिकीय हथियारों के निर्माण का कार्यक्रम और उसकी अपनी सुरक्षा


आवश्यकताओं से परे वायव
ु ादित पर्व
ू सचू ना उपकरण, एफ 10 अत्याधनि
ु क विमान, नवीन प्रक्षेपास्त्र
तथा परमाणु उल्ले आदि अत्याधुनिक हथियार व सामाग्री प्राप्त करने के प्रयास भारत के लिए एक
गम्भीर चिंता का विषय है इन सभी कारणों से हमारा सुरक्षा परिवेश गम्भीर रूप से प्रभावित ही नहीं
हुआ है बल्कि अब हमें सीमित संसाधनों को विकास कार्यक्रम से हटाकर रक्षा व्यवस्था पर लगाने के
लिए मजबूर भी होना पड़ रहा है । इसी के तहत ही भारत ने श्रंख
ृ लाबद्ध तरीके से अपने पांच परमाणु
परीक्षण भी किये जाकि पड़ोसियों के बढ़ते परमाणु दबाव को रोका जा सके। पाकिस्तान ने भी भारत
के जवाब के लिए ताबडतरीके से एक से अधिक यानी 0 परमाणु परीक्षण करके एककदम आगे बढ़ने
का प्रयास किया। अब पाकिस्तान अपनी सशस्त्र सेनाओं की संख्या में निरं तर वद्धि
ृ करता जा रहा है
और साथ ही साथ उसका यह प्रयास है कि अत्याधनि
ु क हथियार खरीद कर तथा चीन से प्रीपास्त्र
तकनीकि प्राप्त करें वह इस क्षेत्र में तकनीकी दृष्टि से भी भासा से आगे बढ़ जायें। पाकिस्तान की
अमेरिका एवं चीन के साथ सामरिक मित्रता भारत को सत सर्वक रहने के लिए मजबूर करती है ।
दोनों दे शों मध्य तनाव को कम करने तथा पारस्परिक सम्बन्ध समान बनाये जाने की दिशा में
पाकिस्तान की नकारात्मक कार्यवाही के कारण आजतक कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है ।"

पाकिस्तान की नकारात्मक कार्यवाहियाँ जो प्रमुख रूप से रही हैं। उनमें हैं परमाणु हथियारों का
निर्माण, अपनी सरु क्षा आवश्यकताओं से परे अवाक्स, एफ-16 विमान, एम-11 प्रक्षेपास्त्र जैसे अति
आधुनिक हथियारों का प्राप्त करना, सियाचिन क्षेत्र में आक्रमणात्मक कार्यवाही, भारत में आतंकवादी
तथा उग्रवादी गतिविधियों में हाथ होना और सीमा क्षेत्र का उल्लंघन करना आदि।" स्वतंत्रा के समय
से ही भारत का नक्शा पाकिस्तान की शक्ल से हर बात में उल्टा था। भारत जनतंत्र का समर्थक तो
पाकिस्तान तानाशाही की छत्रछाया में पनपा हम समाजवादी समर्थक तो पाक पंज
ू ीवाद का अनय
ु ायी
रहा और जब भारत गुट निरपेक्षता से जुड़ा तो पाकिस्तान को सैनिक गठबंधन रास आये। यह
विरोधाभाष की जड़ें 50 वर्ष पर्व
ू ही दोनों की जमीन में गढ़ गयी थी। यही जड़े आज बहुत गहरी और
मजबूत हो गयी हैं। जिसका लाभ अमेरिका व चीन उठाने की फिराक में निरन्तर लगे रहते हैं।
पाकिस्तान का दृष्टिकोण भारत के प्रति सैदव से विरोधी रहा है . जिसके कारण ही सम्बन्ध सध
ु ारने
के जो प्रयास अथवा पहल की जाती है उसका परिणाम प्रतिकूल ही प्रमाणित होता रहा है और ऐसी
स्थिति में भविष्य में भी सम्बन्ध समधरु होने की सम्भावना नजर नहीं आती है । आरम्भ से ही
भारत विरोधी दृष्टिकोण अपनाये हुए पाकिस्तान को एक ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है कि
कभी भी स्वप्न में भी एकता और भाईचारा कायम हो ही नहीं सकती। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव सैनिक
एवं कूटयोजनात्मक पहल के अलावां खेलकूद में स्पष्ट झलकती दिखाई दे ती हैं। विश्व क्रिकेट
प्रतियोगिता के श्रंख
ृ ला में भारत पाक का मैच ऐसे दे खा जाता है जैसे दो पड़ोसी राष्ट्रों के बींच लड़ाई
चल रही हो यह सब एक दस
ू रे के प्रति बने दृष्टिकोण का ही परिणाम है तथा इस दृष्टिकोण को
पाक शासक सदै व बनाये रखना चाहते हैं अतः पाक की आम आवाम को अपने अमन चैन के लिए
आगे आकर ही इस दृष्टिकोण को बदलना होगा।

पाकिस्तान के साथ हमारे द्विपक्षीय सम्बन्धों में तनाव का एक बुनियादी कारण पाकिस्तान द्वारा
भारत के विरूद्ध लगातार ऐसी गतिविधियां करना जो कि भारत का विघटन न कर सके और भारत
किसी भी हालत में आता निर्भर रहकर विकास न कर सके। भारत गाक सम्बन्ध में जो भी
द्विपक्षीय समस्याएं व मुद्दे हैं उनके पीछे मूल कारण पाकिस्तान की शक्ति संरचना, शक्ति वितरण,
निरं कुशवादी एवं वाह्य सम्वैधानिक दबाव कायम हैं। माउं ट बेटन और जिन्ना ने पाकिस्तान को एक
राष्ट्र का रूप अपने निहित व्यक्तिगत स्वार्थों के आधार पर दिया। जिसकी सभा आम आवाम आन
भी भुगत रही है । पाकिस्तानी नेताओं ने अपने स्वार्थ और कुर्सी बनी रहे की फिराक में भारत
विरोधी गतिविधियों को सदै व तूल दिया है । आज पाकिस्तान के प्रत्येक शासक को अपने राजनीतिक
आधार को मजबूत बनाये रखने एवं सत्ता में बने रहने के लिए भारत विरोधी पाकिस्तानी
जनसमर्थन सदै व अपने पक्ष में रखना चाहता है । इस प्रकार पाक शासकों को अपना जन समर्थन
जट
ु ाने हे तु सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सैनिक स्तर पर भी भारत विरोधी गतिविधयों को
तेज करना पड़ता है । पाकिस्तान आतंकवादियों एवं पथ
ृ कतावादी उग्रवादियों को निरं तर दिया जाने
वाला सामान तथा अन्य प्रकार की सहायता से भारत के पश्चिमी सीमा क्षेत्र में अपनी षड्यंत्रकारी
गतिविधियां करना रहा है । पाकिस्तान अपने दष्ु प्रचार के माध्यम से कम से कम खर्च के द्वारा
परोक्ष यद्ध
ु तथा कथित मानवाधिकारों के हनन का जिक्र करके कश्मीर को अन्तर्राष्ट्रीय मद्द
ु ा बनाने
के प्रयास में जुटा रहता है । भारत के प्रति पाकिस्तान सदै व ऐसी गतिविधियाँ अपनाता रहा है जिससे
दोनों दे शों में सम्बन्ध सुधारने की सोच भी निरं तर कठिन होती जा रही है। मूल्यांकन की दृष्टि से
यदि दोनों दे शों के बीच पारस्परिक प्रतिस्पर्द्धा को उजागर किया जाय तो वर्तमान परिस्थितियों में
पाकिस्तान द्वारा अपनायी जा रही भारत विरोधी कुछ गतिविधियां निम्न रूपों में सामने उभर कर
सामने आती हैं।"
आतंकवाद को संरक्षण :

पाकिस्तान विगत अनेक वर्षों से भारत के आन्तरिक मामलों में किसी न किसी रूप में हस्तक्षेप
करता रहा है। उसने पंजाब में मुट्ठी भर सिक्यों द्वारा चलाये गये आन्दोलन को प्रारम्भ से ही
समर्थन दिया है । वह खालिस्तान की मांग करने वाले सिरफिरे सिख, उग्रवादियों और आतंकवादियों
को अपने यहां प्रशिक्षण दे ता रहा है । वह उनके हथियार और आर्थिक सहायता दे ता रहा है। वह अपने
सैनिकों को उग्रवादियों के साथ भारतीय सीमा पारकर पंजाब में तोड़फोड़ करने और आतंक फैलाने के
लिए भी लगातार भेजता रहा है भारत सरकार ने इस सम्बन्ध में भलीभांति अवगत करा दिया और
यह सिद्ध भी हो चक
ु ा है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर है तथा विभिन्न
सीमाओं पर उन्हें किस प्रकार पाकिस्तानी सैनिकों के साथ भेजा जाता है । पंजाब, पूर्वोत्तर राज्यों,
कश्मीर और अन्य राज्यों में पकड़े गये सैकड़ो खस
ु पैठियों और पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियों के
द्वारा यह भी पता चला है कि पाकिस्तान भारत की अखंडता और प्रभुसत्ता को खतरे में डालने का
सनि
ु योजित षडयंत्र चल रहा है । कश्मीर में आरम्भ से ही वह आतंकवाद फैलाकर समस्याएं खड़ी कर
रहा है । पाक प्रशिक्षित घुसपैठिये कश्मीर में साम्प्रदायिकता भड़काने के प्रयासों में सैकड़ो बार पकड़े
गये हैं। जबतक पाकिस्तान यह सब हरकतें बन्द नहीं करता तबतक भारत और पाकिस्तान के
सम्बन्धों की दिशा में सामान्यीकरण की प्रक्रिया तेज होना सम्भव नहीं है । हजरतबल दरगाह काण्ड
व बम्बई बस विस्फोट में पाकिस्तान के इरादे सबके सामने खुलकर आ गये थे। इसके बावजूद भी
उसके नापाक इरादे अब भी बरकरार है । कश्मीर का एक पक्षकार होने के बावजूद इस मसले पर
पाकिस्तान की कोई संगठित नीति नहीं है । कम लोग जानते है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की विवादों की
सच
ू ी से जम्मू-कश्मीर को हटा दिया गया है । यह भारत की एक बड़ी जीत है , वहीं पाकिस्तान के
लिए बड़ा झटका है ।
2. शान्ति मैत्रीय सन्धि करने से तालमटोल :

पाकिस्तान के मन में स्थाई रूप से यह विश्वास पैदा करने के लिए कि भारत युद्ध , आक्रमण और
विवाद के स्थान पर शांति व मैत्री पसंद करता है । भारत ने पाकिस्तान के समक्ष शांति मैत्री समन्ध
का एक व्यापक प्रस्ताव रखा किन्तु पाकिस्तान सदै व से इस मुद्दे पर टालमटोल करता रहा है । पाक
अब उस यद्ध
ु वर्जन सन्धि की बात करता है जिसे वह भारत द्वारा पर्व
ू में कई बार पेश किये जाने
के बावजूद ठुकरा चुका है । जब कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई तो उसने भारत विरोधी
गतिविधियां भी तेज कर दी और आवादियों और घस
ु पैठियों को कश्मीर में षडयंत्र करे के लिए
भेजना शुरू कर दिया।

3. सियाचिन ग्लेशियर पर दावा और सैनिक हलचले :

पाकिस्तान की गतिविधियां सैदव से भारत को घेरने व संकट में डालने के लिए तेज रही है । यही
कारण है कि पाकिस्तान सिंचाचिन ग्लेशियर के सम्बन्ध में अपने दावेपर अडिग है । पाकिस्तान इस
सम्बन्ध में भारत की बिल्कुल नहीं सुनना चाहता जबकि उसका दावा बिल्कुल गलत और बेबुनियाद
है । पाकिस्तान सिचाचिन ग्लेशियर सीमा पर सैनिक हलचलें और कार्यवाही कर इसका सैनिक
समधान करना चाहते हैं। भारत को भी विवश होकर जबाबी कार्यवाही करनी पड़ती है । पाक ने
अनाधिकृत रूप से हथियाये गये कश्मीर के काराकोरम क्षेत्र को 1500 वर्गमील क्षेत्र चीन को दे दिया।
इसके जवाब में चीन ने 750 मील का क्षेत्र एम. के. 2 में पाकिस्तान को प्रवेश का अधिकार दे दिया।
काराकोरम मार्ग में पाक चीन के आवागमन को बढ़ाया। ऐसे गतिविधियां भारत को पाक के प्रति
निरं तर चौकन्ना बना रही हैं।
4. कश्मीर को अन्तर्राष्ट्रीय मामला बनाने का प्रयास :

पाकिस्तान एक लम्बी अवधि से कश्मीर के मामले को अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने के निरन्तर
प्रयास में रहा है शिमला समझौते के बाद उसने प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में तथा विश्व
संस्थाओं की बैठक में यह मामला बार-बार उठाया है । भारत व पाकिस्तान के परमाणु परीक्षणों के
बाद नेताओं ने अपनी विरोधी बयानबाजी करके कश्मीर के अन्तर्राष्ट्रीय करण को और हवा दी है ।
भारत पाकिस्तान के आपसी सम्बन्धों के बिगाड की असली वजह यही कश्मीर है । समस्या यह है
कि कणीर को लेकर हम भारतीय जहां पाकिस्तान को नहीं समझ पाते वहीं पाकिस्तानी हमारी
समस्या पर विचार नहीं करते। इसी कारण कश्मीर मुद्दे को हल करने के लिए पश्चिमी दे श मध्यस्ता
की बात करते हैं।

5. पाक द्वारा आधनि


ु क हथियायों से अपनी सेना सुसज्जित करना:

पाकिस्तान अमेरिका, चीन तथा अन्य दे शों से निरन्तर अधिकाधिक आधुनिक एम-11 प्रक्षेपास्त्र, लड़ाकू
विमान, राकेट, जलपोल, पनडुब्बियां, टँ क और तोपें प्राप्त कर रहा है । अमेरिका ने उसे अवाक्स-6 श्रेणी
के 34 विमान दे कर भारत के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है । भारत इससे चिन्तित है और अमेरिका
से इस बात का निरन्तर विरोध भी करता रहा है कि चीन से प्राप्त चम्
ु बकीय छल्ले उसके इरादे बता
रहे हैं। पाकिस्तान द्वारा आवश्यकता से अधिक आधुनिकतम हथियारों को सुलज्जित करने के सत्ता
प्रयास के कारण भारत को भी कुछ सोचना और करना पड़ रहा है । पाकिस्तान की इन गतिविधियों
से भारत का विचिल होना स्वाभाविक हो गया है ।"
6. पाकिस्तान का परोक्ष युद्ध :

पाकिस्तान के शासकों ने दे श की बुनियादी समस्याओं से अपनी जनता का ध्यान हटाने के लिए ही


भारत के साथ प्रत्यक्ष व परोक्ष युद्ध के तरीके सदै व से ही अपनाये हैं। बांग्लादे श के अस्तित्व में आ
जाने से पाकिस्तान भारत के प्रति प्रतिशोध की भावना से भर गया था जो सहज स्वाभाविक एवं
नितांत प्रत्याशित था। इसे बदले की भावना के कारण पंजाब में अनेक सामाजिक राजनैतिक कौमी
और सांस्कृतिक कारणों से पनपे आतंकवाद को बढ़ावा दिया। कश्मीर एवं पंजाब के साथ ही
पुरयोत्तर राज्यों के विरोधी गुटों को आर्थिक एवं भौतिक सहायता प्रदान कर भारत के विरुद्ध
निरन्तर भड़काया है । इन आतंकवादी गतिविधियों के कारण अबतक लगभग 50 हजार से अधिक
भारतीय नागरिक आकस्मिक गाँव के शिकार हुए हैं। पाकिस्तान गुप्तचर एजेंसी आईएसआई द्वारा
प्रशिक्षित आतंकवादी भारत में अप्रत्यक्ष एंव अपोषित युद्ध जारी रखने के प्रयास में जुटे रहते हैं।
कश्मीर में तथाकथित ' जिहाद' को जारी रखने के लिए उसने भलीभांति प्रशिक्षित और घातक
हथियारों से लैस भाड़े के विदे शी सैनिकों की मदद लेनी शुरू दी है । इस प्रकार पाक के परीक्षा युद्ध में
भी विरोधी दीवार को और मजबूत किया है ।
7. पाकिस्तान द्वारा परमाणु परीक्षण -

पाकिस्तान अनेक वर्षों से परमाणु बम बनाने के कार्यक्रम में जुटा था। भारत एवं अन्य दे शों के
कहने के बावजूद भी अमेरिका पाकिस्तान को ऐसा करने से नहीं रोक सका परिणाम स्वरूप 1 मार्च
1987 को पाकिस्तान के प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक डा. अब्दल
ु कादर खान ने कुलदीप नैयर को दी गयी
भें टवार्ता में कहा था कि पाकिस्तान परमाणु ताकत है । परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र कहते थे कि
पाकिस्तान कभी भी परमाणु बम नहीं बना सकता। स्पष्ट है कि पाकिस्तान ने परमाणु बम बना
लिया है तथा इसका परीक्षण मार्च 1988 में कर लिया है । चोरी छिपकर विदे शी मदद और तस्करी
द्वारा परमाणु क्षमता हांसिल करने वाला पाकिस्तान भारत पर पमाणु परीक्षण संधि पर हस्ताक्षर
करने के लिए पहले अपना मद्द
ु ा बनाता है जब भारत ने चीन व पाक की सामरिक साठ-गांठ को
सुरक्षा की दृष्टि से दे खा और अपने परमाणु परीक्षण अन्तर्राष्ट्री नियमों के तहत भूमिगत रूप से
किये गये तो पाकिस्तान में भारत विरोधी मानसिकता का जन
ु न
ू इतना बढ़ा कि पाकिस्तान को
आखिर अपने चोरी छिपे परमाणु बम का खुलकर परीक्षण करना पड़ा। इसके लिए पाक ने भारत पर
यह आरोप लगाया कि भारत में दनि
ु या के परमाणु संतल
ु न की के आपात लगाया है अतः घास की
रोटी खाकर तथा पेट पर पत्थर बांधकर भी इसका जबाब पाक अवश्य दे गा जब बराबरी के हालात
होंगे तभी पाक के हथियारों की भूख कम होगी। किन्तु समझ में नहीं आता कि आखिर ये पाक में
बराबरी की स्थिति कब उत्पन्न होगी।

इसके साथ-साथ पाकिस्तान स्थानीय क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर कुछ ऐसी ओछी हरकते करता
है जिससे उसके प्रति भारत का संदेह निरन्तर बढ़ जाता है । उदाहरण के लिए अमेरिकन नौसैनिक
बेटे को मार्च 1986 से सभी सुविधाएं प्रदान करता, कारगिल में अमेरिका अड्डा स्थापित करवाना,
चीन को भारत के प्रति उषसाना, अरब दे शों में भारत की छवि खराब करने की कोशिश करना,
अफगानिस्तान में हस्तक्षेप, श्रीलंका को भारत के विरुद्ध उकसाना, आतंकवादियों को पनाह दे ना और
मध्य एशिया में सक्रिय होने हे तु उन्हें अपने यहां से विदे शों में जाने और आने दे ना तथा
आवश्यकता से परे प्रक्षेपास्त्रों का परीक्षण व विकास आदि हैं। पाकिस्तान की भारत के प्रति
राजनयिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं सैनिक गतिविधियां लगातार ऐसी रही हैं कि दोनों दे शों के
सम्बन्धों की बात करना अटपटा सा लगता है किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि पहल ही इस और
न की जाय। हर सम्भव प्रयास किये जाने दोनों दे शों के हित में नहीं होंगे बल्कि दक्षिण एशिया की
शांति एवं विकास के भी सूचक सिद्ध होंगे। अतः उपरीक्त स्त्रांतेजिक विश्लेषण से स्पष्ट है कि
पाकिस्तान से अमेरिका के भी स्वार्थ जुड़े हैं जिससे भारत व पाकिस्तान के मध्य तनाव की स्थिति
बरकरार रहे गी क्योंकि अमेरिका जैसा दे श शस्त्र प्रधान दे श है वह बार-बार पाकिस्तान को भड़काता
रहता है । नादान पड़ोसी पाकिस्तान विश्व शक्तियों के भुलाये में आकर भारत' पर आतंकवादी
गतिविधियों करने लगता है जिससे भारत पाकिस्तान मध्य व्यवहारिक कदम कभी सिद्ध नहीं हो
सकता।" भारत पाकिस्तान विवादों को निपटाने के लिए काफी दिनों से चल रही नई दिल्ली में सचिव
स्तर की वार्ता हे तु जो प्रमख
ु मद्द
ु े शामिल किये गये हैं के सम्बन्ध में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री
नवाज शरीफने भारत से बार-बार कहा है कि आपस में बातचीत फिर से शुरू हो। यह नवंबर 2008
के मंब
ु ई हमले के बाद से बंद है । उनके भाई, पाकिस्तान के पंजाब के मख्
ु यमंत्री, शहबाज शरीफने
भारत के पंजाब के दौरे के समय यही भावना व्यक्त की। उन्होंने यही सलाह दी कि विवादों के हल
के लिए दोनों दे श आपसी बातचीत का रास्ता अख्तियार करें क्योंकि युद्ध अब कोई विकल्प नहीं है ।
भारत के विदे श मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी यही कहा है । कि वे बातचीत के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन
उन्होंने एक शर्त जोड़ दी है कि बातचीत की सफलता के लिए इसके लायक माहौल होना चाहिए।
शायद उनके मन में विवाद के वे मुद्दे हैं जो हमारे संबंधों को खट्टा किए हुए हैं। रोष का एक कारण
मुंबई पर हमला है । पाकिस्तान ने इस हमले को अंजाम दे ने वाले को जिस तरह सजा नहीं दी, उससे
यही लगता है कि यह सिर्फ खानापूरी में लगा है । पांच साल के बाद भी मामला अदालत में अपने
शुरुआती दौर में ही है । कई जर्जा का या तो तबादला हो गया या उन्हें छुट्टी पर जाने के लिए कहा
गया।

पाकिस्तान के चीफजस्टिस इफ्तिखार चौधरी, जिन्होंने दे श के संविधान को अक्षरशः लागू करने का


काम बेहतरीन ढं ग से किया, को रिटायर होने के कुछ दिनों पहले इस मामले को खुद से अपने हाथ
में लेना चाहिए था। कई वकील इस सलाह का मखौल उड़ा सकते हैं लेकिन 26/11 के दोषियों को
सजा दे ना दोनों मल्
ु कों के बीच रिश्ते सामान्य करने की पहली शर्त है । भारत को संदेह है कि हाफिज
सईद मुंबई हमले का मास्टर माइंड था लेकिन पाकिस्तान की अदालत ने सबूत नहीं होने की वजह
से उसे छोड़ दिया। वह भारत के खिलाफजिहाद की अपील कर रहा है । यह मजाक की बात लग
सकती है लेकिन सरहद के इस पार बहुत सारे लोगों को यह मानना है कि पाकिस्तान की भारत
विरोधी नीति को बनाने में सईद का भी हाथ है । इसी तरह भारत की यात्रा से लौटने वाले
पाकिस्तानी यहां के प्यार और दरियादिली की बात करते हैं। इसलिए दोष राजनीतिज्ञों और
नौकरशाहों का है जो इस संदेश को नहीं समझ पाते हैं। लगता है दोनों दे शों को दरू रखने में उनका
निहित स्वार्थ हो गया है। मैं दे खता हूँ कि राजनीति और नौकरशाही के वही चेहरे रिटायर हो जाने के
बावजूद, ट्रै क-2 बातचीत में लगे रहते हैं। एक दिन इसी तरह के विचार रखने वाला एक पाकिस्तानी
नौकरशाह प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की उस धमकी के बारे में प्रेस को बता रहा था जिसमें उन्होंने
कहा था कि कश्मीर का गुदा भारत और पाकिस्तान के बीच चौधे युद्ध की शुरुआत कर सकता है ।
नवाज शरीफके कार्यालय ने इसका खंडन किया। लेकिन नक
ु सान तो हो चक
ु ा था। पर्व
ू प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह, वैसे एक परिपक्व राजनीतिज्ञ हैं, ने भी गैर-जिम्मेदार ढं ग से प्रतिक्रिया दी। उन्होंने
कहा, पाकिस्तान उनकी जिंदगी में भारत से कोई यद्ध
ु नहीं जीत सकता। मझ
ु े संदेह है कि उनकी
प्रतिक्रिया आने वाले संसदीय चुनावों का ध्यान में रखकर ताकत दिखाने के लिए दी गई। जो बात
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस पार्टी नहीं समझ पा रही है कि भारतीय जनता पार्टी ने
पाकिस्तान का हाँवा खड़ा करना बंद कर दिया क्योंकि लोग इसे अब गंभीरता से नहीं लेते। पार्टी में
कुछ लोग इतिहास, 1947 में भारत के विभाजन का बोझ अभी दो रहे होंगे। लेकिन अब पाकिस्तान
विरोधी लाइन बिकती नहीं है । पाकिस्तान में एक गलत प्रचार किया जा रहा है कि भारतीय मीडिया
पाकिस्तान की पिटाई में लगारहता है । यह सच नहीं है। लेकिन मैं चाहता हूं कि भारतीय मीडिया में
पाकिस्तान की ज्यादा खबरें हों। लेकिन, आखिर में दोनों दे शों की सरकारें पर ही इसका दोष जाता
है । उन्होंने एक ही न्यूज एजेंसी और एक ही अखवार को बीसा दिया हुआ है । एक टे लविजन चैनल
है जिससे युद्ध जैसा रूख अपना रखा है । लेकिन भारत के करीब 300 चैनल हैं और वे जैसे बाकी
दे शों की खबर दे ते हैं वैसे ही पाकिस्तान की भी मूल्यांकन करें तो दोनों दे श आतंकवादियों से लड़ने
के लिए एक-दस
ू रे से हाथ मिला "सकते हैं। नवाज शरीफने एक ठोस प्रस्ताव दिया है कि दोनों दे शों
को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच आतंकवाद के मुद्दे पर बातचीत को संस्थागत रूप दे ना चाहिए।
आखिरकार जम्मू कश्मीर की सीमा पर लाइन आफ कंट्रोल के सम्मान को बनाए रखने के लिए दोनों
दे शों के डायरे क्टर्स आफ मिलिटरी आपरे शंस (डीजीएमओ) के बीच बैठक तय कर दी गई। यह सही
दिशा में उठाया गया कदम है ?" फिर भी, इस वक्त यह जरूरी है कि दोनों दे शों को एक-दस
ू रे पर
भरोसा करने के लिए प्रेरित किया जाए। नवाज शरीफ ने सही कहा है कि दरू ी बनने का असली
कारण भरोसे में कमी हैं। पाकिस्तान में कई लोग मानते हैं कि कश्मीर केन्द्रीय मुद्दा है । यह एक
लक्षण है , रोग नहीं। अगर हम किसी तरह इस समस्या को सुलझा भी लेते हैं तो कोई दस
ू री समस्या
पैदा हो जाएगी अगर हम एक दस
ू रे पर भरोसा नहीं करते।
दोनों दे शों को इस बात का सही अंदाजा है कि परूमाणिक हथियार कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इसलिए उन्हें शांति के रास्ते से अपने मतभेद दरू कर लेने चाहिए। दोनों दे शों के बीच 1965 के युद्ध
के बाद, ताशकंद से यह नीति अपनायी जाने लगी। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादरु शास्त्री
इस बात पर जोर दे रहे थे कि आपसी समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो। उस समय के मार्शल ला
प्रशासक जनरल मोहम्मद अयूब ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लेख कर दे ने से यह जरूरत
पूरी हो जाएगी। साझा बयान के मसविदे में यही शब्द डाले गए। शास्त्री ने अयूब से यह लिखवाया
कि हथियार का इस्तेमाल किए बगैर इस्लामाबाद ने कहा कि एलओसी का सम्मान करना दोनों दे शों
का दायित्व है । नई दिल्ली की जो प्रतिक्रिया अखबारों में आई उसमें कहा गया हैं कि एलओसी
मिलिटरी का मामला है , राजनीतिक मामला नहीं। अगर यह जवाब पाकिस्तान से आया होता तो बात
समझ में आती हैं क्योंकि वहाँ सेना की बात ज्यादा चलती है । लेकिन लोकतांत्रिक भारत कैसे कह
सकता है कि दोनों दे शों की सेनाएं इस मद्द
ु े को सल
ु झा सकती है ? प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और
प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला में एलओसी निश्चित किया गया। समझौते में जो
लाइन राजनीतिक नेतत्ृ व ने खींची थी उसे जमीन पर उतारा। नई दिल्ली को अपने इस निर्णय पर
फिर से विचार करना चाहिए कि दोनों दे शों को मिलिटरी आपरे शंस (डीजीएमओ) के बीच बैठक तय
कर दी गई। यह सही दिशा में उठाया गया कदम है ." फिर भी, इस वक्त यह जरूरी है कि दोनों दे शों
को एक-दस
ू रे पर भरोसा करने के लिए प्रेरित किया जाए। नवाज शरीफ ने सही कहा है कि दरू ी
बनने का असली कारण भरोसे में कमी है । पाकिस्तान में कई लोग मानते हैं कि कश्मीर केन्द्रीय
मुख है । यह एक लक्षण है , रोग नहीं। अगर हम किसी तरह इस समस्या को सुलझा भी लेते हैं तो
कोई दस
ू री समस्या पैदा हो जाएगी अगर हम एक दस
ू रे पर भरोसा नहीं करते।

दोनों दे शों को इस बात का सही अंदाजा है कि परूमाणिक हथियार कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इसलिए उन्हें शांति के रास्ते से अपने मतभेद दरू कर लेने चाहिए। दोनों दे शों के बीच 1965 के युद्ध
के बाद, ताशकंद से यह नीति अपनायी जाने लगी। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादरु शास्त्री
इस बात पर जोर दे रहे थे कि आपसी समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो उस समय के मार्शल ला
प्रशासक जनरल मोहम्मद अयब
ू ने कहा कि संयक्
ु त राष्ट्र चार्टर का उल्लेख कर दे ने से यह जरूरत
पूरी हो जाएगी। साझा बयान के मसविदे में यही शब्द डाले गए। शास्त्री ने अयूब से यह लिखवाया
कि हथियार का इस्तेमाल किए बगैर इस्लामाबाद ने कहा कि एलओसी का सम्मान करना दोनों दे शों
का दायित्व है । नई दिल्ली की जो प्रतिक्रिया अखबारों में आई उसमें कहा गया हैं कि एलओसी
मिलिटरी का मामला है , राजनीतिक मामला नहीं। अगर यह जवाब पाकिस्तान से आया होता तो बात
समझ में आती हैं क्योंकि वहां सेना की बात ज्यादा चलती है । लेकिन लोकतांत्रिक भारत कैसे कह
सकता है कि दोनों दे शों की सेनाएं इस मुद्दे को सुलझा सकती है ? प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और
प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला में एलओसी निश्चित किया गया। समझौते में जो
लाइन राजनीतिक नेतत्ृ व ने खींची थी उसे जमीन पर उतारा। नई दिल्ली को अपने इस निर्णय पर
फिर से विचार करना चाहिए कि दोनों दे शों को रिश्ते सामान्य करने की ओर आगे बढ़ना चाहिए
परिस्थिति का यही तकाजा है। भारत व • पाकिस्तान सम्बन्ध में आतंकवाद अग्रणी भमि
ू का का
निर्वहन कर रहा है । अभी हाल में सशक्त प्रधानमंत्री नरे न्द्र मोदी ने भारत पाकिस्तान के मध्य
द्विपक्षीय वार्ता की शुरूआत कर अपने राजनीतिक कौशल और वैदेशिक कूटनीतिक सफलता का
परिचय दिया है । सार्क राष्ट्राध्यक्षों के बाहने उन्होंने भारत पाकिस्तान के रिश्तों में खल
ु ी कड़वाहट को
कुछ मीठा हो जाय के फारमूले पर ले जाने की कोशिश की है । अब यह कितना कामयाब होगा यह
वक्त बतायेगा। अभी दोनों दे शों के सम्बन्धों पर टिप्पणी करना सम्भव नहीं है । मोदी ने दे शे के
सत्ता की कमान सम्भालते ही अपनी राजनीतिक कुशाग्रता का परचम लहराया है । मोदी की
कूटनीतिक सफलता मीडिया की सर्खि
ु यां बनी हैं मोदी की सोच भारत को दक्षिण एशिया में सुपर
पावर बनाने की है लेकिन पड़ोसी पाकिस्तान इसमे सबसे बड़ा रोड़ा है । पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी की
तरह बगैर एकीकरण के अगर दोनों दे शों के मध्य सम्बन्ध मधुर होते हैं तो एक बड़ी उपलब्धि होगी
इसके लिए सबसे जरूरी होगा पुराने जख्मों को भुलाकर आगे बढ़ा जाय। लेकिन यह सम्भव नहीं
दिखता है । भारत सार्क दे शों का नेतत्ृ व कर चीन को मात दे कर सीधे अमेरिका को चुनौती दे ने की
रणनीति पर काम कर रहा है । भारत पाकिस्तान को अमेरिका और चीन का सैन्य अड्डा नहीं बनने
दे ना चाहता है अगर ऐसा होता है तो यह भारत के साथ पूरे दक्षिण एशिया के मुल्मों के लिए सबसे
बड़ा खतरा है। अमेरिका और चीन दोनो महाशक्तियाँ हैं वे भारत की शक्ति और कूटनीति को भली
भांति जानते हैं दोनों दे श इस शांति वार्ता को कभी सफल होते नहीं दे ख सकते हैं पाकिस्तान भारत
से अपने रिश्ते कभी सध
ु ारना नहीं चाहता है । उसे डर है कि अगर दक्षिण एशिया में भारत की
कूटनीति सफल हो गयी तो पाकिस्तान हमेशा-हमेशा के लिए भारत का पिछलगू बनकर रह जायेगा।
वह चीन और अमेरिका के हाथों उपयोग होना चाहता है लेकिन भारत के साथ एक बेहतर पड़ोसी की
भूमिका नहीं निभा सकता है । पाक आतंकवाद के जरिये भारत को असुरक्षित रखना चाहता है ।
पाकिस्तानकी लोकतांत्रिक व्यवस्था दिखावे मात्र की है यहां आन्तरिक लोकतंत्र नहीं है जनता की
ओर से चुनी सरकार पर भी सेना आईएएसआई और चरमपंथी हाली हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरे न्द्र
गोदी का आमंत्रण स्वीकारने में पाकिस्तान को कई दिन का वक्त लग गया। पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई के हाथ में पंजाब प्रांत की सत्ता है यह उन्हें सेना प्रमुख
शहबाजखान से शरीफ की भारत यात्रा को लेकर मुलाकात करनी पड़ी जिसके बाद उनका नरे न्द्र मोदी
के शपथ ग्रहण समारोह में आना सम्मय हुआ जबकि भारत में इस तरह का लोकतंत्र नहीं है ।
श्रीलंका के राष्ट्रपति महे न्द्र राजपक्षे के आमंत्रण को लेकर दक्षिणी प्रांत तमिलनाडु में काफी विरोध
हुआ लेकिन इस विरोध का असर मोदी सरकार पर नहीं दिखा।

सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान और श्रीलंका की ओर से जिन मछुआरों को छोड़ा गया. अगर इस


तरह की कूटनीतिक पहल न की जाती क्या उनकी रिहाई सम्भव थी उन मछुआरों के परिवारों को
कितनी खुशी मिली होगी जिनका अपना वर्षों बाद अपने परिवार के अगुवा को से मुलाकात हुई
होगी। यह खुशी राजनीतिक आंखों से नहीं समझी जा सकती है इसके लिए आगे निकलकर सोचने
की जरूरत है। मनमोहन सरकार में पाकिस्तानी सेना की ओर से भारतीय सैनिकों के साथ जिस
तरह की बर्बरता दिखाई गयी उसके बाद दोनों दे शों के बीच सम्बन्ध टूट गये थे लेकिन प्रधानमंत्री
नरे न्द्र मोदी ने इसे पटरी पर लाने का काम किया है । दोनों पड़ोसी दे शों के मध्य नई सब
ु ह का
आगाज हुआ है लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या पाकिस्तान अपनी नीति से बाज आयेगा। भारत
में जब जब नई सरकारें बनी सभी ने दोनों मल्
ु कों के बीच आपसी सम्बन्धों को सध
ु ारने की पहल
की है लेकिन धोखा के सिवाय कुछ हांसिल नहीं हुआ है । क्या इस बार पाकिस्तान की मंशा बदल
सकती है ? नवाज शरीफ ने लाहौर समझौते से आगे बात बढ़ाने की बौत कही है उन्होंने अपनी धरती
से प्रायोजित हो रहे आतंकवाद पर भी लगाम लगाने का सकारात्मक आश्वासन दिया है । मुम्बई
धमाकों के आरोपियों की सन
ु वाई और दाउद के प्रत्यारोपण पर भी बात आगे बढ़ी है ले किन यह सब
एक सपना ही रहे गा या गुल भी खिलेगा ? सुषमा स्वराज के बयान पर गौर किया जाय तो भारत ने
पाकिस्तान से साफ-साफ कह दिया है कि बम धमाकों के मध्य शान्ति वार्ता की आवाज एक दस
ू रे
को नहीं सुनाई दे गी। इसलिए पाकिस्तान की धरती से सबसे पहले प्रायोजित आतंकवाद बन्द होना
चाहिए। भारत जहां पाकिस्तान से चाहता है कि वह आतंकवाद को बढ़ावा दे ना बन्द करे वहीं
पाकिस्तान को लगता है कि बलूचिस्तान में भारत की और से आतंकवाद को खाद पानी दिया जा
रहा है । बंगलादे श बंटवारा भी पाकिस्तान अभी तक नहीं भूल पाया है । कारगिल युद्ध में उसकी करारी
हार ने बहुत हृदयाघात किया है जो आज भी दर्द बनी है और भविष्य में बनी रहे गी। भारत की
विजय को वह कभी नहीं स्वीकार कर सकता जिससे दोनों दे शों के मध्य सम्बन्ध सुधरने की कोशिश
हर बार नाकाम होती है । पाकिस्तान में चन
ु ी हुई सरकारें चाह कर भी दोनों दे शों के मध्य रिश्तों में
नरमाइट नहीं ला सकती हैं क्योंकि वहां की पूरी नियंत्रण प्रणाली सेना आईएएसआई और चरमपंथियों
के हाथ में है । कोई भी चन
ु ी हुई सरकार इन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकती है । पाकिस्तान की धरती
से अपनी योजना को अंजाम दे ने वाले चरमपंथी कभी नहीं चाहते हैं कि दक्षिण एशिया में भारत एक
महशक्ति के रूप में उभरे और दोनों दे शों के रिश्ते आपस में मजबूत हों। अगर ऐसा हो गया तो पूरी
दनि
ु या को आतंकवाद के जरिये अस्थिर करने को उनकी नीति पर पानी फिर जायेगा वे अच्छी तरह
जानते हैं कि आतंकवाद पूरे दनि
ु या की समस्या बनता जा रहा है । अमेरिका, चीन, अफगानिस्तान
और दनि
ु या के दस
ू रे दे श इस समस्या से परे शान हैं खुद पाकिस्तान भी सांप को दध
ू पिलाने का
खामियाजा भुगत रहा है इस स्थिति में आतंकवाद मसले पर उसे कहीं से भी समर्थन मिलता नहीं
दिख रहा। है । चरमपंथी संगठन अफगानिस्तान में भी भारत को मजबत
ू होता नहीं दे खना चाहते हैं
अफगान स्थित भारतीय दत
ू ावास है रात में किये गये आतंकी हमले के पीछे यही कारण है । चरमपंथी
अफगानिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष हामिद करजई की भारत यात्रा को लेकर कतई खश
ु नहीं थे उनकी
सोच है कि अगर भारत से काबुल के सम्बन्ध बेहतर हुए तो हमारे मनसूबों पर पानी फिर जायेगा।
भारत ने जब जब दोस्ती का हाथ बढ़ाया है तब तब पाकिस्तान पीछे से छूरा भोंक दिया है । 1947
से लेकर अबतक दोनों दे शों के मध्य तीन युद्ध और एक संघर्ष हो गया है। भारत में कश्मीर विलय
के दौरान पाकिस्तान ने जबरदस्ती कब्जा कर लिया जिसे आज पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से
जाना चाहता है । 1985 में पाकिस्तानी सैनिक कश्मीर में शादी यदर्दी में घुसपैठ की। 1971 में
पाकिस्तान ने बांगलादे श के बहाने भारत से युद्ध किया। अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में विमान
अपहरण कर कंधार काण्ड को अंजाम दिया जिसमें आतंकी अजहर मसूद का सौदा किया गया। बाद
में कारगिल युद्ध को अंजाम दिया गया। पाकिस्तानी सेना भारतीय सैनिकों को सिर कलम कर आये
दिन कंट्रोल आफ लाइन का उल्लंघन करती है । मीडिया आंकड़ों पर विचार विमर्श करें तो 12011 में
61 और 2012 में 117 पर सीज फायर किया गया। पाकिस्तान की ओर सीमापार से आयी आतंकी
घटनाओं में भारत में अबतक 80 हजार से अधिक लोग जान गंवा चक
ु े हैं। पंजाब में खालिस्तान की
मांग पाकिस्तान से ही बुलंद की गयी थी। 1999 में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने
अटारी से लाहौर तक की बस यात्रा की थी। पाक राष्ट्राध्यक्ष परवेज मश
ु रफ का शाही खैरम कदम
हुआ था लेकिन ठीक उसके बाद कारगिल युद्ध की घिनौनी साजिश रची गयो थी। दाउद पाकिस्तान
में बैठकर भारत को तबाह करने का सपना दे खता है ।

आखिरकार अमेरिका का रक्षा विभाग पें टागन यह मानने को तैयार हो गया है कि पाकिस्तान
सेना की बजाय आतंकवादियों के जरिए भारत से छद्म यद्ध
ु लड़ रहा है । अमेरिकी कांग्रेस के समक्ष
पाकिस्तान का सौ पेजी काला चिट्ठा खोलते हुए कहा कि पाकिस्तान ऐसा इसलिए कर रहा है , क्योंकि
उसकी सेनाएं बेहतर भारतीय सेनाओं से प्रत्यक्ष मक
ु ाबला करने में कमजोर है । लिहाजा पाक आतंकी
संगठनों का लड़ाई में परोक्ष रूप से इस्तेमाल कर रहा है हालांकि भारत के लिए यह खुलासा कोई
नई बात नहीं है , क्योंकि भारत तो पिछले 30 साल से इस छाया युद्ध से सामना कर रहा है । इसकी
शुरूआत पंजाब में पाकिस्तानी शह से शुरू किए गये उग्रवाद से हुई थी। बावजूद अमेरिका का यह
खुलासा इसलिए महत्वपूर्ण है , क्योंकि पाक के चेहरे से नकाब को अमेरिका ने हटाया है , इसलिए
हकीकत को अंतराष्ट्रीय स्तर से दे र सबेर मान्यता मिल जाएगी।

पीवी नरसिंह राव जब दे श के प्रधानमंत्री थे, तब कश्मीर घाटी में तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह की
गलतियों के चलते अलगाववादी कश्मीरी पंडितों को विस्थापित कर चुके थे और पंजाब में खलिस्तानी
उग्रवाद चरम पर था। नरसिंह राव ने सत्ता पर काबिज होने के बाद • आतंकवाद की इस नब्ज को
समझा और पत्रकारों से पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने कहा कि यह आतंकवाद पाकिस्तान द्वारा
प्रायोजित छायायुद्ध है । इसके बाद राव ने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री और सेना को आतंकवाद से
निपटने की खल
ु ी छूट दे कर पंजाब में चल रहे इस छाया यद्ध
ु को जड़ से नेस्तनाबद
ू कर दिया था।
तब से अबतक ढाई दशकों में पंजाब में आतंकवाद सिर नहीं उठा पाया है । पें टांगन द्वारा दस्तावेजी
साक्ष्यों के साथ किया गया यह खल
ु ासा भारत के लिए एक ऐसा अवसर है कि वह इसे कश्मीर मद्द
ु े
पर भुनाकर अंतराष्ट्रीय सहमति हांसिल कर सकता है । क्योंकि पाक कश्मीर में आतंक निर्यात करके
फिलहाल उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की भमि
ू का में है । इसलिए वह इस मद्द
ु े को बार-बार संयक्
ु त
राष्ट्र में उठाकर जम्मू-कश्मीर में जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार का राग अलाप रहा है। जम्मू
कश्मीर के मख्
ु यमंत्री उमर अब्दल्
ु ला खद
ु यह स्वीकार कर रहे हैं कि नरे न्द्र मोदी लहर के चलते
भाजपा मिशन 44 के लक्ष्य को पूरा कर सकती है। इस तथ्य से साफ होता है कि भारत में सरकार
किसी भी दल की रहे वह संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत का पूरा ख्याल रखती है । जबकि पाक
आतंकवादियों को प्रोत्साहित करके भारत में आतंकवाद को विस्तार दे ने का नापाक मंसूबा पाले हुए
है । इस तथ्य की पुष्टि भारतीय खफि
ु या एंजेसियों द्वारा कोलकाता में आतंकी हरकतों का खुलासा
करने से हुई है। इन हरकतों को इतने बड़े पैमाने पर अंजाम दे ने का इरादा था कि भारत सरकार को
7 नवम्बर 2014 को होने वाले नौ सेना दिवस पर आयोजित कार्यक्रमों को संक्षित करना पड़ा।
कश्मीर के परिप्रेक्ष्य में मोदी और उनकी सरकार की क्या रणनीति और दरू दृष्टि है , यह तो अभी
साफ नहीं हुआ है , लेकिन मोदी ने जो सिचाचिन, श्रीनगर लेह और कारगिल की यात्राएं की थी उनसे
इतना जरूर साफ हुआ है कि वे माटी में सामरिक रणनीति के साथ-साथ विकास के बहाने
राजनीतिक अर्जेंडे को भी आगे बढ़ाना चाहते हैं। शायद गोदी इसीलिए लेह एवं कारगिल में सेना की
ताकत बढ़ाने के बजाय, मानवतावादी शक्तियों को मजबत
ू करने की बात कही थी। साथ ही कहा था
कि यदि दनि
ु या की सभी मानवतावादी ताकतें एकजुट हो जाएं तो हिंसा में शामिल लोगों की
मानसिकता बदल सकती है । यदि शान्ति के प्रयासों से कश्मीर या दनि
ु या में शान्ति बहाल होती है
तो इससे अच्छा दस
ू रा कोई उपाय नहीं है ? लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अटल बिहारी
वाजपेयी जब पाकिस्तान में तत्कालीन प्रधानमंत्री परवेज मुशर्रफ से आगरा में शान्ति वार्ता कर रहे
थे, तभी पाक ने कारगिल की दर्ग
ु म पहाड़ियों पर सेना और आतंकवादियों की घुसपैठ कराकर
कारगिल पर अवैध कब्जा कर लिया था। विभाजन के बाद यह सबसे बड़े छद्म युद्ध की पष्टि
ृ भूमि
तैयार थी। जम्मू कश्मीर के बाद आतंकी छाया का यही विस्तार वर्धमान कांड के उजागर होने के
बाद अब पश्चिम बंगाल में दिखाई दे रहा है । मोदी को इस पाठ से सबक लेने की जरूरत है , अन्यथा
वे भी वाजपेयी की तरह छले जाएंगे।

भारत और पाक के बींच मई-जुलाई 1999 में कारगिल युद्ध लड़ा गया था। पाक के लिए यह छद्म या
छाया यद्ध
ु इसलिए था, क्योंकि उसने वास्तविक नियंत्रण रे खा पार कराकर सैनिक और आतंकवादियों
को कारगिल में गोला-बारूद व अन्य घातक हथियारों के साथ तैनात कर दिया था। हालांकि पाक इस
सच्चाई से मक
ु र गया था कि पाक सेना के जवान भी कारगिल में थे पाक ने दावा किया था कि
लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी है । लेकिन बाद में सामने आए युद्ध के दस्तावेजों और पाकिस्तानी
नेताओं के बयानों से साफ हो गया था कि उग्रवादियों के साथ-साथ सेना भी इस छाया यद्ध
ु में
शामिल थी पाकिस्तान को युद्ध विराम संबंधी हरकतों को हम छाया युद्ध की संज्ञा दे कर उसकी
उलाहना भले ही करते रहे , किंतु इसकी कीमत हम इतनी बड़ी तादात में चक
ु ा है कि मात्र उलाहनों से
इसकी पूर्ति होने वाली नहीं है । इस अपरोक्ष युद्ध में हमारे 527 सैनिक शहीद हुए थे और 1383
मायल हुए थे। यह युद्ध 30 हजार भारती सैनिकों और 5000) मुसपैठियों के बीच लड़ा गया था। पाक
घुसपैठिये कारगिल की चोटियों से हमला बोल रहे थे। और हमारे जाबांज सैनिक इन चोटियों को
खाली कराने के लिए नीचे से ऊपर बढ़ रहे थे, इसलिए घुसपैठियों के आसान शिकार होते चले गए।
जाहिर है , इस कथित छाया युद्ध में हमने जो कीमत चुकाई है उसकी भरपाई महज उलाहनाओं अथवा
खुलासों से संभव नहीं है । इसे निर्णायक मुकाम तक पहुंचाना होगा। अमेरिकी रक्षा विभाग ने तो इस
परोक्ष यद्ध
ु का खल
ु ासा अब किया है , लेकिन पाकिस्तान के ही पर्व
ू लेफ्टीनेंट जनरल एवं पाक
गुप्तचर संस्था आईएसआई के अधिकारी शाहिद अजीज बहुत पहले कर चुके है । अजीज ने 'द
नेशनल डेली में एक लेख में कहा था कि 'कारगिल यद्ध
ु में पाक आतंकवादी नहीं, बल्कि उनकी वर्दी
में पाकिस्तानी सेना के नियमित सैनिक लड रहे थे इस लड़ाई का मकसद सियाचीन पर कब्जा
करना था। चंकि
ू यह लड़ाई बिना किसी योजना और अन्तर्राष्ट्रीय हालातों का जायजा लिए बिना लड़ी
गयी थी, इसलिए तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रक ने पूरे मसले को रफादफा कर दिया था। यदि
इस परोक्ष युद्ध की हकीकत सामने आ जाती तो संघर्ष के लिए मुशर्रफ को ही जिम्मेदार ठहराया
जाता। अब जब पें टागन ने यह मान ही लिया है कि भारत और अफगानिस्तान को निशाने पर लेने
के नजरिए से आतंकी संगठन और पाकिस्तान मिलकर काम कर रहे है तो इस परिप्रेक्ष्य में अमेरिका
की भविष्य में पाकिस्तान के खिलाफ क्या भूमिका रहने वाली है ? पाक की यह नापाक मंशा
अफगानिस्तान में अपने प्रभाव में आई कमी को बहाल करना है , वहीं भारत की सेना से मुकाबला
करने के लिए कर रहा है । ये दोनों ही कोशिशें नापाक और अन्तर्राष्ट्रीय नैतिकता के मापदं डों के
विरूद्ध हैं। इसलिए अमेरिका का दायित्व बनता है कि यह भी पाकिस्तान की नकेल कसने में अपनी
जिम्मेदारी निभाएं।
16 दिसंबर 2014 पाकिस्तान के पेशावर शहर में आर्मी के एक स्कूल पर हुआ बर्बर हमला
साफ संकेत है कि मल्
ु क में तालिबान आतंकियों के हौसले परत नहीं हुए हैं। यह न सिर्फ खफि
ु या
एजेंसियों की, बल्कि हुकुमत की भी बड़ी विफलता है। जिस तरह आतंकियों ने स्कूल में घुसकर
अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी और बच्चों को बंधक बनाकर गारा, यह बेहद अफसोसनाक हादसा है ।
हालांकि कुछ समय पहले नार्थ वजीरिस्तान में पाकिस्तानी फौज ने आतंकियों के खिलाफ एक विशेष
ऑपरे शन जब-ए-अर्ज चलाया था, जो अब भी जारी है । मगर पिछले लंबे समय से आतंकियों की
तरफ से कोई आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दी थी। इससे लोगों को लगने लगा था कि तालिबान
आतंकियों के हौसले पस्त हो गए हैं। लेकिन लगता है कि उन्हें तो बस मौके का इंतजार था यह
पहला मौका नहीं है जब आतंकियों ने स्कूलों को निशाना बनाया है । बच्चों, महिलाओं और शिक्षा से
तालिवान आतंकियों को नफरत है मलाला यूसुफजई पर हुए हमले के बारे में तो दनि
ु या भर के लोग
वाकिफ हैं, लेकिन इससे पहले भी स्कूलों को निशाना बनाया गया, हालांकि स्कूल में छुट्टियां होने की
वजह से तब जान-माल का इतना नक
ु सान नहीं हुआ था। खैबर पख्तूनख्वाह और फाटा के इलाके में
अक्सर स्कूलों पर हमले होते रहते हैं। यह ताजा हमला तब हुआ है , जब स्कूलों में इम्तहान चल रहे
हैं और बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल में थे। यह है रानी की बात है कि हमला फौजी स्कूल में हुआ , जहां
भारी सरु क्षा इंतजाम की अपेक्षा की जाती है । लेकिन अफसोस की बात है कि वहां सरु क्षा के पख्
ु ता
इंतजाम नहीं थे। जिस स्कूल पर हमला हुआ है , उसके पीछे एक कब्रिस्तान है और बताया जाता है
कि आतंकी उसी कब्रिस्तान से होकर स्कूल में घुसे।
असल में पाकिस्तान में इस तरह के हमले के लिए मुख्य रूप से पाकिस्तान का राजनीतिक
वर्ग जिम्मेदार है । पाकिस्तान खुद को आतंकवाद से पीड़ित कहता है , लेकिन सच तो यह है कि यहाँ
के हुक्मरानों ने समय-समय पर विभिन्न आतंकी गुटों को पनाह दी है । अगर ऐसा नहीं होता, तो
अफगानिस्तान और अमेरिका ने जब हक्कानी गुट को नेस्तनाबूद करने और उसके आका को सौंपने
के लिए कहा था, तो पाकिस्तान ने ऐसा क्यों नहीं किया ? यहीं नहीं, जिस खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत में
यह हमला हुआ है वहाँ इमरान खान की पार्टी तहरीक ए इंसाफ का शासन है । इस हमले को भले ही
इमरान खान ने बर्बर बताया है , लेकिन वह कहते रहे हैं कि तालिवान के -साथ सरकार को बातचीत
करनी चाहिए। रावाल उठता है कि ऐसे बर्बर झाले करके बड़ी संख्या में बच्चों को मारने वाले गुट से
बातचीत करने का क्या मतलब है ? इमरान खान इन दिनों मुल्क के विभिन्न शहरों को बंद करने का
आह्वान करते फिर रहे हैं। उन्हें इससे फुर्सत नहीं मिलती कि दे खें कि उनकी पार्टी के शासन वाले
प्रांत में क्या हो रहा है । अब वक्त आ गया है कि दक्षिण • एशियाई दे श आतंकवाद के खिलाफ
एकजट
ु हो जाएं और आपस में न सिर्फ खफि
ु या जानकारियाँ साझा करें बल्कि एक-दस
ू रे दे श को
वांछित आतंकियों को भी सौंपें भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते खराब होने के पीछे एक बड़ी
वजह आतंकवाद ही है । भारत हमेशा से आरोप लगाता रहा है कि पाकिस्तान न सिर्फ भारत के
खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा दे ता है , बल्कि मब
ुं ई हमलों के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई भी नहीं
कर रहा है । भारत हाफिज सईद और दाउद इब्राहिम को सौंपने के लिए पाकिस्तान से बार-बार अपील
कर चुका है । दाउद इब्राहिम के बारे में तो नहीं कह सकती कि पाकिस्तान में वह है या नहीं, लेकिन
हाफिज सईद को जरूर पाकिस्तान की अदालत ने मुंबई हमले मामले में बरी कर दिया है । इसमें
कोई शक नहीं कि हाफिज सईद आतंकी है और वह लगातार भारत के खिलाफ जहर उगलता रहा है ।
पाकिस्तानी हुक्मरान ने उस पर अंकुश लगाने के बजाय उसकी रै लियों को सफल बनाने के लिए
स्पेशल ट्रे न चलवाई। किसी आतंकी संगठन की रै ली के लिए सुविधाएं मुहैया कराने का भला क्या
तुक है ?

पाकिस्तानी हुकूमत को लगता है कि ऐसे संगठनों को संरक्षण दे कर वह कश्मीर को हासिल


कर सकता है , लेकिन उन्हें इस वास्तविकता को समझना चाहिए कि कश्मीर की नई पीढ़ी विकास
और तरक्की में भरोसा करती है । उन्हें बंदक
ू ों से नफरत है और वे लोकतंत्र में भरोसा करते हैं।
भारतीय जम्मू-कश्मीर में जो विधानसभा के चुनाव इन दिनों चल रहे हैं , उसमें भारी संख्या में हिस्सा
लेकर कश्मीरियों ने दिखा दिया है कि यह हिंसा और आतंकवाद में भरोसा नहीं करते। पाकिस्तानी
हुकूमत को और भारत के खिलाफ सक्रिम यहाँ के आतंकी संगठनों को इसने सबक लेना चाहिए।
कश्मीर की नई पीढ़ी अब अलगाववादियों और आतंकी संगठनों के झांसे में नहीं आने वाली।
पाकिस्तानी फौज के नए गुखिया राहिल शरीफ ने पद संभालते समय साफ कहा था कि पाकिस्तान
को खतरा बाहर से नहीं, बल्कि मल्
ु क के भीतर से है । यही वजह है कि उन्होंने उत्तरी वजीरिस्तान
के इलाकों में सैन्य ऑपरे शनों को तेजी से आगे बढ़ाया। पर पाकिस्तानी सचा प्रतिष्ठान हमेशा भारत
को अपना दश्ु मन समझता रहा है । इसी का नतीजा है कि दे श आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर विफल
दिख रहा है और यहां आतंकी संगठन जब तब बर्बर वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।

रक्षा मामलों के विशेषज्ञ सी. उदय भास्कर ने का कहना है कि मुझे यह कहते हुए बड़ा अफसोस हो
रहा है कि पाकिस्तान में आज जो कुछ हो रहा है , वह कहीं भारत में भी न होने लगे। दरअसल, जब-
जब किसी भी दे श में धार्मिक उन्माद को राजनीति से जोड़कर दे खा जाने लगता है और आम जनता
को उसी भावना में डुबोकर लोकतंत्र का राग अलापा जाता है , तब तब अनजाने में ऐसी सिरफिरी
ताकतों के लिए हम एक प्लेटफार्म तैयार कर रहे होते हैं , जो कालांतर में तालिबान बनकर हमारी ही
संतानों पर भारी पड़ती हैं। एक स्कूल के इतने सारे बच्चों को मौत के घाट उतार दे ना केवल
पाकिस्तान के लिए नहीं, पूरी दनि
ु या के लिए शर्म की बात हैं। मैं तो कहूंगा कि आज पाकिस्तान में
जो कुछ हो रहा है , वह भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है । क्योंकि भारत में भी आज वही
माहौल बन रहा है , जिसके चलते पाकिस्तान में तहरीक-ए तालिबान या हक्कानी नेटवर्क या लश्कर-
ए-ताइबा का जन्म हुआ हिंदस्
ु तान में लव जिहाद, धर्मांतरण या बंगलरू
ू में आईएस के लिए ट्वीट
करने वाले युवा का पकड़ा जाना कोई बहुत अच्छी बात नहीं है , बल्कि हमें पाकिस्तान में हुई आज
की घटना से नसीहत लेने की जरूरत है कि हम भी कहीं उसी माहौल की तरफ तो आगे नहीं बढ़
रहे ? वैसे भी पाकिस्तान की अगर बात करें तो इमरान खान की पार्टी ने भी चुनावों में इसी
कट्टरपंथ का सहारा लिया था, हमीद गल
ु और ताहिर उल कादरी भी उसी लाइन पर आगे बढ़ते रहे ,
लेकिन इन्होंने जो रास्ता अख्तियार किया वही आज वहां तबाही का रहा है । यह धार्मिक उन्माद
जनता के बीच एक लहर पैदा करता है और यह लहर इंडो-पाक बॉर्डर नहीं पहचानती। यह कभी भी
किसी भी गुल्क पर हमलावर हो सकती है चाहे खुद अपना ही दे श क्यों न हो। ओसामा बिन लादे न
को जब मारा गया तब लोग मझ
ु से कहते थे कि अब वहां कोई ओसामा पैदा नहीं होगा, लेकिन
सच्चाई यह है कि आज पाक में कई ओसामा हैं, जो उसी को तबाह कर रहे हैं। इसी तरह मैं यह
नहीं मानता कि स्कूली बच्चों को तालिबानियों ने पहली बार अपना शिकार बनाया है । स्कूल जा रही
मलाला को मारने की कोशिश के अलावा तालिबान स्वात, वजीरिस्तान और नार्थ-वेस्ट के दर्जनों
स्कूलों को बर्बाद कर चुका है । अलबत्ता, इतनी बड़ी संख्या में पहली बार बच्चे मारे गए हैं। मैं तो
बस यही कहूंगा कि जो भी हो भारत को सतर्क रहने की जरूरत है और यह समझने की भी जरूरत
है कि राजनीति को धर्म से जोड़कर दे खा जाना बंद होना चाहिए।
फिलहाल पाकिस्तान के पेशावर में एक आर्मी पब्लिक स्कूल पर तालिबान के बर्बर हमले ने हमारी
सामूहिक चेतना को झकझोर कर रख दिया है । यह आतंक का सबसे खौफनाक चेहरा है , जिसने
मासूम बच्चों को भी नहीं बख्शा। तालिबान के हथियारबंद आतंकी एक स्कूल में घुसकर में कई घंटे
तक वहशियाना तरीके से बच्चों और स्कूल के कर्मचारियों को निशाना बनाते रहे , जिसमें 120 से
अधिक बच्चों की मौत हो गई। तालिवान ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए इसे पाकिस्तानी फौज
की उसके खिलाफ खैबर पख्तूनख्खा क्षेत्र में की जा रही कार्रवाई का बदला बताया है । पर यह सिर्फ
एक आड़ है । पाकिस्तानी फौज ने यह कार्रवाई इस वर्ष जन
ू में शरू
ु की थी, लेकिन 2007 में अपने
गठन के समय से पाकिस्तान तालिबान अल कायदा और अफगानिस्तानी तालिबान के रास्ते पर
चलता आया है और उसने पाकिस्तान के कई शहरों में आतंकी हमले किए हैं। इसी तालिबान ने दो
वर्ष पर्व
ू मलाला यूसुफजई को भी सिर्फ इसलिए निशाना बनाया था, क्योंकि वह बच्चों के अधिकार
और उनकी पढ़ाई की बात कर रही थी। हालत यह है कि बच्चों के अधिकार के लिए लड़ने वाले
भारतीय कैलाश सत्यार्थी के साथ शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद भी मलाला अपने दे श
नहीं लौट सकी है । इन आतंकियों के लिए बच्चों और महिलाओं में कोई फर्क नहीं है । फिर वह
आईएस हो, बोको हरम हो, अल कायदा हो या फिर तालिबान यह घटना पाकिस्तान के पूरे तंत्र की
नाकामी को भी उजागर करती है , जिसने तालिबान को फलने-फूलने का पूरा मौका दिया है ।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस हमले को राष्ट्रीय आपदा बताया है ले किन इसके साथ ही
हमारे इस पड़ोसी दे श को आतंकवाद के मुद्दे पर आत्ममंथन भी करना चाहिए। वह खुद भी
आतंकवाद से जूझ रहा है लेकिन भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे ने वालों को
संरक्षण भी दे ता आया है । वास्तव में पेशावर में हुए हमले से दो दिन पहले सिडनी में एक सिरफिरे
द्वारा एक कैफे में कुछ लोगों को बंधक बनाने की घटना बताती है कि कैसे आतंकवाद एक वैश्कि
खतरा बन गया है , कि कैसे एक अकेला आतंकी भी करोड़ों लोगों की जान सांसत में डाल सकता है ।
पेशावर की घटना सिर्फ पाकिस्तान के लिए ही नहीं, उन सभी दे शों के लिए सबक होनी चाहिए, जो
जाने अनजाने आतंकियों को पनाह दे ते हैं तालिबान के बर्बर हमले ने हमारी सामूहिक चेतना को
झकझोर कर रख दिया है । यह आतंक का सबसे खौफनाक चेहरा है , जिसने मासम
ू बच्चों को भी नहीं
बख्शा
आलोचनात्मक दृष्टि से मूल्यांकन किया जाय तो इन सब मसलों को दे खते हुए यह सम्भव
नहीं लगता है कि भारत और पाकिस्तान रिश्तों में कुछ ऐतिहासिक होने जा रहा है । लेकिन हमें 'में
अपनी पहल नहीं छोड़नी चाहिए। भारत दनि
ु या का एक शक्तिशाली राष्ट्र है। इसके पास विजन है
सहिष्णुता के साथ समग्रता है । प्रधानमंत्री नरे न्द्र मोदी की ओर से रिश्तों को जो सुधारने की जो
पहल की गयी है वह काबिले तारीफ हैं लेकिन हमें पाकिस्तान पर आंखबन्द कर भरोसा भी नहीं
करना चाहिए। अभी भारत को जल्दबाजी दिखाने की जरूरत भी नहीं है । फिलहाल भारत ने इस
कूटनीतिक पहल से पूरे दक्षिण एशिया में एक साथ चलो का संदेश दिया है अब यह दे खना है कि
इसपर पड़ोसियों की क्या पहल होती है खासतौर पर नादान पाकिस्तान की? फिलहाल दोनों दे शों के
मध्य बहुत कुछ बदलने की उम्मीद नहीं की जा सकती है लेकिन विश्वास बहाली की एक उम्मीद
जगी है हमें इसका इंतजार करना होगा।
अध्याय-4

भारत-पाक सम्बन्धों पर महाशक्तियों का प्रभाव, अमेरिका

और चीन के विशेष सन्दर्भों में

भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद अंग्रेजों ने अपनी कूटनीतिक चालों को कार्यान्वित करके अखण्ड
भारत को भारत एवं पाकिस्तान दो उपनिवेशों में विभाजित कर दिया जिससे बहुत बड़े पैमाने पर
साम्प्रदायिक रक्तपात हुआ इससे भारत और पाकिस्तान दोनों के बींच मनमुटाव और गहरा हो गया
जैसा कि अक्सर घर के बटवारे में होता है । विभाजन के बाद भी विवाद के कई मुद्दे बचे रह गये
जिसमें कश्मीर सबसे आगे था। जिस तरह पाकिस्तानी रजाकारों ने कश्मीर पर जबरन कब्जा करने
की कोशिश की उसकी परिणति युद्ध में ही होनी स्वाभाविक थी। इस प्रकार आरम्भ से ही पाकिस्तान
के साथ भारत के सम्बन्धों का निर्वाह एक पेचीदा गत्ु थी बन गया जिसे साम्प्रदायिक, सामरिक,
आर्थिक और सांस्कृतिक पक्ष आपस में बुरी तरह गुथे हुए हैं। पाकिस्तान के सामने बड़ी समस्या यह
रही कि वह स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी अस्मिता प्रदर्शित करना चाहता है तो धार्मिक व कट्टरपंथी
वाला भारत विरोध ही उसके लिए सबसे आसान रास्ता है । दोनों दे शों के बीच विभाजन का कोई
तर्क संगत आधार नहीं रहा।

भारत-पाक सम्बन्धों में बढ़ते तनाव के लिए निश्चय ही पाकिस्तान के आन्तरिक हालात उत्तरदाई है
पाकिस्तान में सेना और नागरिक सरकार के बीच सम्बन्ध इसका सिर्फ पहलू है । करांची में और
अन्यत्र भी स्थानीय मुसलमानों और मुजाहिरों के बीच वैमनस्यता, साम्प्रदायिक रूप से चुका है और
सर्वनाशक हिंसा का विस्फोट समय-समय पर हुआ है । एक दशक पहले तक पाकिस्तान की राष्ट्रीय
एकता को सिर्फ पख्तून राष्ट्रवाद को चुनौती का सामना करना पड़ रहा था फिर इसमें बलून कबाईली
जुड़े परन्तु आज सिन्धी, पंजाबी, मुजाहिर सभी अलग-अलग पहचान बना चुके हैं। इस कारण से आज
भी भारत को पाकिस्तान से बार-बार चुनौतियाँ मिलती रहती हैं पाकिस्तान कम किस रूप में भारत
पर आक्रमण कर दे यह कह पाना मश्कि
ु ल है । इसके अलाव नादान पड़ोसी पाकिस्तान को बड़ी
शक्तियां जैसे अमेरिका एवं धीन किसी न किसी रूप में सैन्य हथियार और अन्य सहायताएं दे ने का
वादा किये रहते हैं जिससे पाकिस्तान का मनोबल भारत के खिलाफ कड़ा रूख सदै व अपनाये रहता
है ।
भारत-पाक सम्बन्धों पर अमेरिका का प्रभाव :

भारत और अमेरिका दोनो विश्व के बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं यह तर्क दिया जाता है कि भारत सबसे
बड़ा लोकतंत्र है तथा अमेरिका जो सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र है उनको स्वाभाविक मित्र होना चाहिए
था लेकिन 11 सितम्बर 2001 से पूर्व अमेरिका पर आतंकवादी घटना से पहले उतना हो आदर्शन
प्रस्ताव है जितना की भारत की स्वतंत्रता के समय था। भारत और अमेरिका के सम्बन्धों का
युद्धोत्तर ऐतिहासिक राजनीति का एक ऐसा दःु खद प्रसंग है जिसे किसी परम्परागत मुहबरे में
अभिव्यक्त करना कठिन है अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय महत्वों के प्रसंगों पर विचार और व्यवहार मे
मतभेद ही अधिक उजागर हुआ है।

दोनों राष्ट्र स्वतंत्रता और समानता के पक्षधर ही नहीं अपितु लोकतांत्रिक प्रणाली में आस्था
भी रखते हैं बावजूद इसके दोनों दे शों के सम्बन्धों मे मित्रता की चाह, कटुता, तनाव, अलगाव तथा
अविश्वास आदि निरन्तर दे खने को मिलता रहा है । दोनों राष्ट्रों के बीच गुटनिरपेक्षता, साम्यवादी
खतरा, संधिबद्ध व्यवस्था परमाणु अप्रसार उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद, कोरिया, हं गरी, वियतनाम,
कश्मीर पाकिस्तान को सैन्य सहायता, साम्यवादी चीन और खाड़ी संकट, बाग्लादे श मुक्ति अभियान
के दौरान अमेरिका द्वारा पाकिस्तान का पक्ष लेना, हिन्द महासागर को शांति क्षेत्र बनाने,
मानवाधिकार सी.टी.बी.टी. आदि ऐसे अनेकों मसले हैं जिस कारण भारत अमेरिका सम्बन्ध प्रायः
उतार चढ़ाव की प्रक्रिया से गुजरते रहे है। यद्यपि बदलते अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एवं सुरक्षात्मक
परिवेश में भारत अमेरिका के मध्य राजनीतिक सम्बन्ध स्थापित हो जाने के बाद एक नये यग
ु का
आरम्भ तो अवस्य हुआ परन्तु दोनों राष्ट्रों के सम्बन्धों में साम्यवाद एवं उपनिवेशवाद के प्रति गहरा
अन्तर दे खने को मिलता है , क्योंकि जहां अमेरिका साम्यवादी आन्दोलन को द्वितीय विश्व यद्ध
ु के
बाद की सबसे गम्भीर समस्या मानता है वहीं भारत उसके इस विचार से काफी सहमत नहीं रहा
साम्राज्यवादी दे श होने के कारण अमेरिका यरू ोपीय साम्राज्यवाद का खल
ु कर समर्थन करता रहा है
जबकि भारत ने इसका जमकर विरोध किया है । वैसे भी भारत प्रारम्भ से ही घेराव एवं शीतयुद्ध की
राजनीति की भर्त्सना करता रहा है एवं शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व की वकालत करता रहा है जबकि
वहीं दस
ू री ओर अमेरिका रूसी घेराव, सुरक्षा संधि और शक्ति संतुलन का हिमायती रहा है । यद्यपि
दोनों दे शों के शासनाध्यक्ष सम्बन्धों को सुधारने की दिशा में प्रयत्नशील रहे हैं किन्तु उन्हें इसमें
आंशिक सफलता ही मिलती रही है । इसका कारण शीतयुद्धकाल में भारत संयुक्त राज्य अमेरिका का
पिछलग्गू बनने से इनकार करना तथा तीसरे विश्व के दे शों के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष दे शों की
अगुवाई करना रहा है । यही नहीं भारत द्वारा तत्कालीन सोवियत संघ के साथ अपने सम्बन्धों को
विस्थापित कर संयुक्त राज्य अमेरिका की नाराजगी भी झेलनी पड़ी

इसी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप अमेरिका ने भारत के प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को हर सम्भव


सहायता दे कर उसकी पीठ थपथपाई। अलबत्ता 1990-91 के बाद से वैश्विक आर्थिक च राजनीतिक
वातावरण में आये बदलाव से भारत अमेरिका सम्बन्धों में दशकों से जमी बर्फ कुछ पिघलने लगी
और दोनो राष्ट्र एक दस
ू रे के नजदीक आने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। 21 मार्च 1998 को अटल
बिहारी बाजपेयी के नेतत्ृ व में भाजपा के गठबन्धन सरकार केन्द्र में सत्तारूद् हुई तो उन्होंने
अमेरिका को महत्व दे ने तथा सम्बन्धों को सामान्य बनाये रखने का प्रयास किया लेकिन 11 मई
और 13 मई 1998 को अपनी परमाणु नीति में परिवर्तन करते हुए भारत ने पोखरन मे द्वितीय
नाभिकीय भूमिगत परीक्षण किया तो अमेरिका आग बबूला हो गया और भारत की इस सफलता से
खीझ कर बिल क्लींटन ने भारत के खिलाफ आर्थिक सहायता, ॠण व गारं टी, रक्षा एवं प्रौद्योगिकी,
सामरिकी आदि पर 13 मई 1998 को कड़े प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी। इतना ही नहीं
अमेरिका प्रशासन ने इतना तक कह डाला कि सी. टी.बी. टी. पर भारत बिना शर्त हस्ताक्षर कर दे ।
जब भारत ने उक्त सन्धि को भेदभावपूर्ण बताते हुए हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया तो
अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिवन्ध लगा दिया। तत्पश्चात उक्त समस्याओं के निराकरण हे तु
दोनों के बींच 7 बार बर्ताएं हुई पर किसी ठोस नतीजे के बिना समाप्त होती गयीं। 9 वें दौर की वार्ता
दिल्ली में भारतीय विदे श मंत्री जसवंत सिंह और अमेरिकी उप विदे श मंत्री स्ट्रोव टालबोट के बीच
चार दिन (28-31 जनवरी 1999 ) तक चली मंगर किसी खास निश्चित परिणाम पर पहुंचे विना वार्ता
खत्म हो गयी। दोनों ने वार्ता की प्रगति पर संतोष प्रगठ किया और चर्चा जारी रखने के लिए कार्य
योजना बनी। 10 जून 1999 को अमेरिका सीनेट द्वारा भारत तथा पाकिस्तान मे परमाणु परीक्षणों के
विरोध में क्लींटन प्रशासन द्वारा लगाये गये सभी प्रतिबंधों को 5 वर्षों तक स्थगित करने सम्बन्धी
एक संसोधन को पारित कर दिया। इससे साबित हुआ है कि अमेरिकी रूख धीरे -धीरे नरम होता गया
है क्योंकि कारगिल संकट (मई 1999 से जुलाई 1999 तक) में अमेरिकी रूख भारत की ओर रहा।
कारगिल में वह पाकिस्तानियों को दोषी मानता रहा है यही कारण रहा कि बिलक्लॉटन और नवाज
शरीफ के बीच समझौता (6 जुलाई 1999) के तहत पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खुसपैठियों
को 16 जल
ु ाई 1999 तक कारगिल से वापस लौटना पड़ा।

20 जनवरी 2001 के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में सत्तारूढ़ हुए, तो अमेरिकी विदे श नीति ने
समय-समय पर बदलाव झलकने लगा। जब 11 सितम्बर 2001 को आतंकवादी हमलों द्वारा
अमेरिकी विश्व व्यापार संगठन और रक्षा मंत्रालय पें टागन को ध्वस्त कर दिया गया तो भारत पहला
ऐसा दे श था जिसने अपनी प्रारम्भिक प्रतिक्रिया में ही आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिकी अभियान को
सम्पूर्ण समर्थन दे ने की घोषणा कर दी। 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका पर आतंकवादी हमलों के
बाद अमेरिका को सम्पूर्ण सहयोग दे ने की भारत की तुरन्त घोषणा के आलोक में 7 से 10 नवम्बर
ं टन तथा न्यूयक यात्रा हुई जबकि अमेरिका इस
2001 के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की वाशिग
बात को अच्छी तरह जानता है कि कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा दे ने में पाकिस्तान की भूमिका
अत्यंत महत्वपर्ण
ू है। 14 वीं लोकसभा चन
ु ाव के बाद कांग्रेस के नेतत्ृ व में यप
ू ीए की गठबन्धन
सरकार 22 मई 2004 को सतारूढ़ हुई, मनमोहन सिंह ने सुरुआती दौर में जो संकेत दिये उससे स्पष्ट
है कि नई सरकार पर्व
ू वर्ती बाजपेयी सरकार द्वारा शरू
ु किये गये भारत अमेरिका सम्बन्ध और रक्षा
सहयोग को आगे जारी रखेगा। उधर 20 जनवरी 2005 को दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने पर जार्ज बुश
ने अमेरिकी रक्षामंत्री रम्सफील्ड की भारत यात्रा दिसम्बर 2005 काफी महत्वपर्ण
ू रही और मनमोहन
सिंह जी से वार्ता सफल रही और रक्षा समझौती की पष्ठि
ृ भमिू तैयार हो सकी।

2005 को पर्व
ू भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अमेरिकी यात्रा के समय दोनों दे शों के बींच
18 जुलाई 2005 को असैन्य परमाणु सहयोग को लेकर सहमति बनी थी जिसकी परिणति 22
दिसम्बर 2008 तब सामने आयी जब पर्व
ू अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बश
ु "हाइड यन
ू ाइटे ड स्टे ट्स
इण्डिया पीसफुल एटामिक एनर्जी' को आपरे शन एक्ट 2006 पर हस्ताक्षर किये। परिणामस्वरूप भारत
और अमेरिका के बीच हुए असैनिक आणविक सहमति की राह की एक बड़ी बाधा ही पार नहीं हुई
बल्कि दोनों दे शों ने अपनी राजनीतिक साझीदारी को व्यापक बनाते हुए इन वर्षों में द्विपक्षीय
व्यापार बढ़ाकर दग
ु ना करने, दस
ू री हरित क्रान्ति के लिए सहयोग करने और संयुक्त विज्ञान एवं
तकनीकी आयोग गठित करने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय करके अपनी दोस्ती को नये मुकाम पर भी
पहुंचाया। यहां तक यह भी ध्यान दे ने योग्य बात है कि भारत दनि
ु या का पहला दे श है जिसे परमाणु
अप्रसार सन्धि पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद भी इस समझौते तहत परमाणु तकनीकी और
सामाग्री मिल सकेगी। भारत केवल अमेरिका से ही नहीं बल्कि परमाणु आपूर्तिकर्ता दे शों के समूह के
किसी भी दे श से यह तकनीकी और सामाग्री प्राप्त कर सकेगा। वर्तमान में भारत असैनिक तथा
सैनिक परमाणु रिएक्टरों को पथ
ृ क कार्य करने की योजना भी अमेरिका को सौंप चुका है जिसके
तहत 14 रिएक्टरों को असैनिक तथा को सैनिक रिएक्टर माना गया है ?

6 नवम्बर 2010 को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा की व्यापारिक सम्बन्धों में
महत्वपूर्ण माना जा सकता है जिसमें 10 अरब डालर का व्यापारिक समझौता, बोईंग विमान, इलेक्ट्रिक
इंजन एवं 12 वें स्थान पर अमेरिका के स्थान व्यापार सहयोग में भारत का स्थान है । अमेरिकी
प्रशासन के स्वर तथा शैली में बदलाव हुआ है अमेरिका लम्बी उम्मीद लगाये है कि ओबामा की
यात्रा के इस अवसर पर लाभ भारत अमेरिकी रणनीतिज्ञ गठजोड़ को और पख्
ु ता करने के लिए
किया जा सकता है । जिससे अमेरिका द्वारा चीन के जवाब के रूप में भारत को आगे बढ़ाया जाय।
ओबामा पर लिखी गयी किताब 'ब्रिगेड' में लिखा गया है कि ओबामा इससे पहले कभी भारत नहीं
गये मगर उनपर भारतीय संस्कृति और भारतीय विचारधाराओं का गहरा असर पढ़ा है । बराव ओबामा
का यह कहना कि हम अमेरिकी निर्यात को के रोडे कम करने और भारतीय बाजार में अपनी पहुंच
बढ़ाने के रास्ते तलासँगे, अमेरिका भले काई सामनिक समझौता न करे पर हमें बदली स्थिति का
लाभ लेना चाहिए यह समय अमेरिका से अपेक्षा का नहीं बल्कि आगे के लिए एक बेहतर प्लेटफार्म
बनाने का हैं विशेषकर जी-20 के सदस्य दे शों से वह अच्छे और मजबूत सम्बन्ध चाहता है क्योंकि
भारत इस संगठन का महत्वपर्ण
ू सदस्य है इसलिए वह भारत को प्रमख
ु ता दे ना चाहता है इसलिए
कि भारत उभरती हुई शक्ति है । वर्ष 1990 से अमेरिका के साथ भारत का व्यापार 10 गुना बढ़ा है ।
भारतीय कम्पनियों ने अमेरिका में भारी मात्रा में डालर निवेश करना शुरू किया और उसी तरह
अमेरिकी निवेश भी भारत में हुआ है । अमेरिका में करीब 25 लाख भारतीय अमेरिकियों और भारतीय
संख्या में भारतीय छात्रों की मौजूदगी अमेरिका के साथ हमारे सामाजिक सम्बन्ध को मजबूत आधार
प्रदान करती है । अमेरिका ने भारत की पहचान वैश्विक स्थिरता और खाराकर एशियायी दे शों के बीच
सन्तुलन बनाने के लिए अपरिहार्य साथी के रूप में की है। इसलिए अमेरिका ने भारत के साथ लम्बे
सैन्य अभ्यास किये हैं। इसी कारण ओबामा, मनमोहन शिखर वार्ता दोतरफा सम्बन्ध को मजबूत
बनाने की दृष्टि से मददगार साबित होगी। बाराक ओबामा की 6 नवम्बर 2010 की तीन दिवसीय
यात्रा के अन्तिम पड़ाव में भारत यात्रा विशेष रूप से भारतीय संसदीय सम्बोधन की गहराई को
समझना बहुत जरूरी है जिसमें 15 संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद को विस्तार होने पर भारत को
अमेरिका द्वारा परू ा समर्थन किया जायेगा। 2. दोहरी तकनीकी पर मिली राहत से भारत परमाणु
वनवास खत्म हुआ जिसे न्यूक्लियर, सप्लायर्स ग्रुप में भारत को प्रवेश मिलेगा। 3. पाकिस्तान में
आतंकी अड्डे मंजरू नहीं है और मम्
ु बई हमले के दोषियों को सजा मिलनी स्वाभाविक थी। 4.
आउटसोर्सिंग पर अपने रूख में लचीलापन लाते हुए आपसी निवेश को और अधिक बढ़ाया जायेगा।
5. अफगानिस्तान में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकृति मिली है । भारत- अमेरिका द्वारा साधा
बयान में पूर्वी एशिया में सामरिक साझेदारी पर विचार विमर्श साथ ही दोनों दे शों के बीच सामरिक
साझेदारी भी जरूरी है जिससे की दोनों दे शों द्वारा विश्व को नेतत्ृ व दिया जा सके साथ ही आतंकी
नेटवर्क को समाप्त करना और लश्कर-ए-तैएवा समेत अफगानिस्तान-पाक आतंकी अड्डे को समाप्त
करने की बात कही है । साथ ही बाराक ओबामा ने कहा कि अगर मैं गांधी जी के सिद्धांतों को नहीं
अपनाता तो अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं बनता और न ही भारती संसद को सम्बोधित करने का
अवसर ही मिलता। अमेरिका भारत को धोखा नहीं दे गा क्योंकि अमेरिका भविष्य में विश्वास करता
है । क्यों भारत अमेरिका दोनो प्रजातांत्रिक राष्ट्र 21 वीं सदी में विश्व को नेतत्ृ व दें गे। संसद के
संयुक्त सत्र के ओबामा के सम्बोधन से यह साफही गया कि ओबामा की यात्रा और उनके बयान
केवल बातों के स्तर पर नहीं बल्कि याथार्थ के ठोठ धरातल पर आधारित है क्योंकि साझा बयान में
रखा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका ने भारत के साथ अपने रिश्तों को और अधिक गजबत
ू करने
के लिए कदम उठाये हैं इसके लिए दोहरे उपयोग की तकनीकी से रॉक हटाने , न्यूक्लियर सप्लायर्स
समह
ू में भारत की सदस्यता के लिए अमेरिका ने हामी भरी है जो काफी महत्वपर्ण
ू है इससे हमारे
अन्तरिक्ष अभियानों को मजबूती मिलेगी और भारत लम्बी दरू ी मिसाइल बनाने में अधिक सक्षम
बनेगा। इससे दक्षिण एशिया में भारत सामरिक तौर पर अधिक मजबत
ू होगा। दरसल इसके माध्यम
से अमेरिका चीन की भी घेराबन्दी करना चाहता है इसके अलावां परमाणु ऊर्जा और उच्च शिक्षा के
क्षेत्र में दोनों दे शों ने एक दस
ू रे का सहयोग करने की बात कही है। कृषि, दवा और मौसम सम्बन्धी
तकनीकों के आदान प्रसाद से भी भारत को काफी लाभ मिलेगा। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों दे शों
के बीच जो सहमति बनी है वह आने वाले समय में एक नया इतिहास रचेगे?

स्मरणीय है कि पाक-अमेरिका सामरिक रणनीति वार्ता अपने आप मे अनूठी है । ऐसा कोई उदाहरण
नहीं मिलता है जहां सैनिक खफि
ु या तंत्र आतंकी संगठनों को पोषित कर दस
ू रे दे शों के विरुद्ध
इस्तेमाल करें और फिर भी अमेरिका ऐसे दे श के साथ सामरिक और रणनीतिक वार्ता पर 2 अरब
डालर सैन्य सहायता की मांग पर विचार कर रहा है । यहां सामरिक और रणनीति वार्ता साझा उद्देश्यों
पर लक्षित नहीं है बल्कि पाकिस्तानी सेना अमेरिका पर मडराते आतंवादी खतरे और परमाणु
हथियार के भय पर ब्लैकमेल कर अरबों डालर की सहायता राशि अर्जित कर चुका है । यद्यपि मार्च
2010 में आयोजित सामरिक वार्ता के दौरान अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया था कि अमेरिकी सहायता
हांसिल करने से पहले पाकिस्तान को जिहादियों के विरुद्ध कार्यवाही करनी होगी और पाकिस्तान
द्वारा पोषित आतंकवादी संगठन-पाकिस्तानी, तालिबान, अफगान, अलकायदा, लस्करे तैयबा और
अक्कानी नेटवर्क के विरुद्ध कार्यवाही कर अमेरिकी मांग पूरी करें लेकिन स्थिति आज भी ज्यों की
त्यों बनी हुई है। यद्यपि अपने हितों की रक्षा के लिए अमेरिका किस भी दे श को कुछ रियायते दे
यह स्वाभाविक है परन्तु पाकिस्तान की किसी भी भारत विरोध गांग को अगर वह पूरी करता है तो
उसरों भारतीय सरु क्षा प्रभावित होगी और साथ ही भारत अमेरिका सम्बन्धों पर इसका प्रतिकूल
प्रभाव भी पड़ेगा हालांकि अमेरिका ने पाकिस्तान को फिर से यह अवगत कराया है कि भारत उसका
असली दश्ु मन नहीं है बल्कि उसके असली दश्ु मन के आतंकवादी हैं जो उसके अपने दे श में ही फल
फूल रहे हैं अपनी तीन दिवसीय यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आतंकवाद पर
प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि वह 26/11 हमले के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही के
पक्षधर हैं किन्तु वे पहले आतंक को लेकर पाकिस्तान को सीधे-सीधे कठघरे में खड़ा होने से बचें भले
ही भारतीय कूटनीति के कारण उन्होंने भारतीय संसद में पाकिस्तान को आतंकवाद की फैक्ट्री बन्द
करने की नसीहत दी। इससे स्पष्ट होता है कि अमेरिका किस हद तक पाकिस्तान का समर्थक है ।
बराक ओबामा ने अपनी यात्रा के दौरान स्पष्ट किया कि भारत और अमेरिका विश्व में बराबर के
भागीदार हैं इसलिए अमेरिका संयक्
ु त राष्ट्र सरु क्षा परिषद की स्थाई सीट के लिए भारत की दावेदारी
का समर्थन करे गा। भारतीय संसद के ऐतिहासिक केन्द्रीय कक्ष में दोनों सदनों के सदस्यो को
सम्बोधित करते हुए ओबामा ने कहा 'मै पर्न
ु गठित संयक्
ु त राष्ट्र सरु क्षा परिषद में भारत के स्थाई
सदस्य के तौर पर शामिल होने की आशा रखता है । ओबामा ने आगे यह भी कहा कि अमेरिका ऐसी
न्याय संगत और टिकाऊ अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था चाहता है जिसमें संयुक्त राष्ट्र एक कुशल, प्रभावी
विश्वसनीयता और तर्क संगत निकाय के रूप में कार्य करे किन्तु भारत को तबतक स्थाई सदस्यता
नहीं मिल सकती जबतक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार नहीं हो जाता है। सुरक्षा परिषद के
जो पाँच स्थाई सदस्य हैं उनमें से चार का समर्थन भारत को मिल सकता है किन्तु अब नको
अपनाकरना होगा। यहाँ इस ओर भी ध्यान दे ना होगा कि भारत उम्मीदों तब करारा झटका लगा है
जब अमेरिका के उप विदे शमंत्री राबर्ट ब्लैक ने कहा कि यए
ू नएससी की स्थाई सदस्यता के लिए
भारत के दावे पर मुहर लगाया जाना जल्दबाजी होगी क्योंकि अमेरिका का स्पष्ट मत है कि वह
दीर्घकालीन और जटिल प्रक्रिया है । वैसे भी दे खा जाय तो अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने स्पष्ट
कर दिया है कि सुधार में समय लगेगा और यह जटिल प्रक्रिया होगी हम स्थाई और अस्थाई सीटों
की संख्या बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत सरु क्षा परिषद में 1 जनवरी सन ् 2011 को अस्थाई
सदस्य के रूप में शामिल हुआ और अपने दो साल के कार्यकाल के दौरान सुरक्षा प्रक्रिया को गति
प्रधान करने पर बल दिया।

विवेचनात्मक दृष्टि से दे खा जाय तो बराम ओबामा का भारत दौरा अमे रिका के लिए बहुत महत्वपूर्ण
रहा है ओबामा ने जिन उम्मीदों के साथ भारत दौरा शरू
ु किया था उनके परू ा होने की उन्हें आश्वस्त
मिली है ओबामा ने भारत के लिए अपने कई दरवाजे खोले हैं जिनमें रक्षा, अन्तरिक्ष, शिक्षा, कृषि,
दवा, व्यापार और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भारत को अमेरिका से मदद मिलेगी जोकि भारत के
लिए संतोष का विषय ही कहा जा सकता है । यहीं नहीं आतंकवाद के मुद्दे पर ओबामा ने जहां
पाकिस्तान को उचित संदेश दिया वहीं सुरक्षा परिषद में सदस्यता सम्बन्धी भारत को अर्से पुरानी
मांग पर सहमति जताकर अमेरिका ने भारत के लिए ऐसा दरवाजा खोल • दिया जो भारत को विश्व
शक्ति बनने के लिए प्रेरित करे गा। भारत अपने राजनयिक कुशलता से इन स्थितियों का पूरा फायदा
उठा सकता है यहां इसओर भी ध्यान दे ना होगा कि राष्ट्रपति बराक ओबामा की सफल भारत यात्रा
के बाद अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पें टागन के एक शीर्ष अधिकारी ने यहां तक कह डाला कि भारत
अमेरिका का स्वाभाविक मित्र है । इतना ही नहीं अमेरिकी रक्षा विदे श नीति के उपमंत्री 'मिलेश
फलारनाथ' ने भी स्पष्ट कहा डाला कि अमेरिका भारत के साथ समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहायता तथा
आपदा सहायता के क्षेत्र में भी सहयोग करे गा लेकिन दे खना तो अब यह होगा कि अमेरिका इस
सम्बन्ध में कहां तक भारत का समर्थन करता है । यह आने वाले दिनों में ही पता चलेगा अगर
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने किये गये वादों पर खरा उतरते हैं तो यह दोनों
लोकतांत्रित राष्ट्रों के लिए शुभ संकेतों के साथ एक अच्छी पहल होगी

भारत-पाक सम्बन्धों पर चीन का प्रभाव :

भारत-पाक सम्बन्धों पर चीन भी अपनी अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर रहा है । स्वाभाविक रूप से
भारत और चीन हजारों वर्ष पूर्व परु ानी सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं और इस सांस्कृतिक परम्परा को
जीवित रखे हुए हैं इसके अतिरिक्त ये दे श संसार की सबसे बड़ी आबादी वाले दे श हैं। इनमें चीन
कट्टर साम्यवादी रहा है तो भारत गट
ु निरपेक्ष सदियों से दोनों दे शों के बींच आर्थिक और सांस्कृतिक
आदान-प्रदान चलता रहा है । यह सम्बन्ध बहुत घनिष्ठ व व्यापक भले ही न रहे हीं परन्तु इन दोनों
दे शों के बींच सम्भावना और आत्मीयता बनी रही आजादी की लड़ाई के वर्षों में दोनों दे शों के
राष्ट्रवादी नेताओं के बीच संवाद बना रहा चांग काई शेक के साथ नेहरूजी की व्यक्तिगत मित्रता,
और माओ के नेतत्ृ व में लड़ रहे छापामारों को राहत के लिए भेजी गयी कांग्रेस पार्टी की चिकित्सा
टीम इसी के उदाहरण हैं इसे एक बिडम्बना ही समझा जाना चाहिए कि हिन्दी चीनी भाई-भाई वाला
मैत्री का दौर अधिक समय तक नहीं चल सका और खरा उतरते हैं तो यह दोनों लोकतांत्रित राष्ट्रों
के लिए शुभ संकेतों के साथ एक अच्छी पहल होगी

भारत-पाक सम्बन्धों पर चीन का प्रभाव :


भारत-पाक सम्बन्धों पर चीन भी अपनी अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर रहा है । स्वाभाविक रूप से
भारत और चीन हजारों वर्ष पूर्व परु ानी सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं और इस सांस्कृतिक परम्परा को
जीवित रखे हुए हैं इसके अतिरिक्त ये दे श संसार की सबसे बड़ी आबादी वाले दे श हैं। इनमें चीन
कट्टर साम्यवादी रहा है तो भारत गुटनिरपेक्ष सदियों से दोनों दे शों के बींच आर्थिक और सांस्कृतिक
आदान-प्रदान चलता रहा है । यह सम्बन्ध बहुत घनिष्ठ व व्यापक भले ही न रहे हीं परन्तु इन दोनों
दे शों के बींच सम्भावना और आत्मीयता बनी रही आजादी की लड़ाई के वर्षों में दोनों दे शों के
राष्ट्रवादी नेताओं के बीच संवाद बना रहा चांग काई शेक के साथ नेहरूजी की व्यक्तिगत मित्रता,
और माओ के नेतत्ृ व में लड़ रहे छापामारों को राहत के लिए भेजी गयी कांग्रेस पार्टी की चिकित्सा
टीम इसी के उदाहरण हैं इसे एक बिडम्बना ही समझा जाना चाहिए कि हिन्दी चीनी भाई-भाई वाला
मैत्री का दौर अधिक समय तक नहीं चल सका और विश्लेषणात्मक दृष्टि से अवलोकन किया जाये
तो भारत पाक सम्बन्धों में चीन की सामरिक ध्रव
ु ीकरण नीति अपने में अहम भमि
ू का का निवर्तन
कर रही है वास्तव में भौगोलिक कारको तिलांजलि दे कर धार्मिक व वैचारिक टिभमि
ू में द्विराष्ट्र
सिद्धान्त के आधार पर भारत का विभाजन एक ऐसी गारदी है जिसकी छाया से भारत व पाकिस्तान
आज तक न केवल अभिरा है अपितु असुरक्षा व तनाव उनके द्विपक्षीय सम्बन्धों की नियति सी बन
गयी है ।

भारत द्वारा आक्रमण के काल्पनिक भय की तथाकथित आशंका व असरु क्षा से पीड़ित -पाकिस्तान ने
न केवल प्रारम्भिक दिनों से ही भारत विरोधी विदे श नीति का निर्धारण किया अपितु प्रत्येक
सम्भावित श्रोतों से सामरिक सहायता अर्जित कर भारत पर सामरिक श्रेष्ठता स्थापित करने के
किसी भी नैतिक व अनैतिक अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया। अनावश्यक रूप से सीटो य सेंटो
जैसे सैन्य संगठनों सदस्यता तथा अमेरिका व चीन से अत्याधुनिक हथियारों का अनावश्यक संचय
व इस्लामिक वम निर्माण सम्बन्धी उसकी महत्वाकांक्षाओं से इसका सहज हो अनुमान लगाया जा
सकता है । दक्षिण एशिया में आतंकवाद का पोषक पाकिस्तान आज स्वयं अपने ही बुने जाल में ऐसा
उलझ गया है जो उसी अखण्डता च अस्तित्व के लिए ही घातक बनता जा रहा है । पाकिस्तान के
सत्ता प्रतिष्ठान पर सेना का नियंत्रण एवं जनता द्वारा चन
ु ी गयी सरकारों का निरन्तर पतन यह
सिद्ध करता है कि एक सम्प्रभु राष्ट्र के रूप में इसी अस्मिता दांव पर है । अमेरिका व चीन जैसी
विरोधी शक्तियों के मध्य संतल
ु न बनाकर चलने की पाकिस्तानी रणनीति की वास्तविकता धीरे -धीरे
प्रकट होने लगी है तथा आज वह वाहय शक्तियों का उपनिवेश बनकर रह गया है । उसकी रक्षा
विदे श व आन्तरिक सरु क्षा नीतियों के स्वतंत्रता की धरु ी समय समय पर शथिल होती जा रही है ।
भारत-चीन सीमा विवाद का जिक्र होने पर कुछ लोगों के तेवर 1962 के अपराधी" दृढ़ने वाले
होते हैं। अधिकांश आलोचकों को लगता है कि भारत चीन मनमुटाव के घातक विस्फोट की
जिम्मेदारी सिर्फ नेहरू जी की थी। कृष्णा मेनन और सरदार पाणिक्कर जैसे सलाहकार उन्हीं के मित्र
थे। पंचशील का सपना किसने सच समझा था चीनी नेताओं के साथ व्यक्तिगत क्षेत्रों केरुमानी
शिकंजे में फंसकर वर्षों मग्ु ध, संतुष्ठ नेहरू जी के अलावा और कौन रहा था? ऐसे लोगों की संख्या
कम नहीं जो मानते हैं कि भारत चीन विवाद सिर्फ नेहरू जी की भोली भलमंशाहत 'नादानी,
नासमझी या आत्मघाती अहिंसा से उपजा था बल्कि नेहरू जी का अहं कार सीमान्त के मामले में
उनका ब्रिटिश और औपनिवेशिक रवैया तथा कथनी व करनी मे अन्तर दोनों दे शों में अलगाव और
अन्ततः शत्र
ु त ु ा पैदा करने को काफी थे। मैक्सवेल और लार्नकाबिक जैसे लोगो को नेहरू' शांन्ति दत
ू '
नहीं बल्कि मवकार लगते हैं। टकराव का रास्ता मानो उन्होंने चुना था जिसके चलते चीनी मुहतोड़
जवाब दे ने के लिए विवश हो रहे हाँ। यद्यपि शीत यद्ध
ु को प्रारम्भिक परिस्थितियों में पाकिस्तान ने
सन ् 1947 से 1953 की कालावधि में बड़ी कुशलता से अपनी विदे श नीति का संचालन करते हुए
दोनो शक्ति ध्रब
ु ो (अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ) के साथ आदर्श सम्बन्धों की स्थापना पर बल दिया
किन्तु कोई आयुद्ध तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के 'शान्ति के लिए एकता प्रस्ताव पर पश्चिमी दे शों का
पक्ष लेने से उसकी नीतियों की दिशा स्पष्ट हो गयी। पाकिस्तान ऐसा पहला दे श था जिसने सन ्
1950 मे ताईवान से सम्बन्ध विच्छे द करके 21 मई 1951 को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को
मान्यता प्रदान करके यह इच्छा प्रकट की कि यदि वह कश्मीर को ऐन-केन-प्रकारे ण प्राप्त कर लेता
है तो चीन उसका निकटस्थ पड़ोसी हो जायेगा। जहां एकओर चीन ने हिन्दी चीनी भाई-भाई की
भावना के बावजूद पाकिस्तान से मैत्री स्थापित कर मध्य पूर्व के तेल क्षेत्रों तक अपनी पहुंच
सनि
ु श्चित करने की कोशिश की वहीं सन ् 1955 के "बापडुग
ं सम्मेलन में चाऊएन लाई व मो. अली
बोगरा के मध्य सम्पन्न वार्ताओं एवं भारत चीन के • मध्य मैकमोहन रे खा सम्बन्धी विवाद की
पष्ृ ठभमि
ू में चीन-पाक मैत्री को नई ऊर्जा मिली।

फलतः 1962 के भारत चीन युद्ध में पाकिस्तान द्वारा चीन का पक्ष लेकर भारत को आक्रामक राष्ट्र
घोषित करना तथा 21 मार्च 1963 को सम्पन्न पाक-चीन सीमा समझौते से पाकिस्तान ने पाक
अधिकृत कश्मीर का लगभग 5100 वर्ग किमी, भू क्षेत्र चीन को उपहार स्वरूप प्रदान करके द्विपक्षीय
सम्बन्धों में मधरु ता पैदा करने की कोशिश की। सन ् 1965 के भारत-पाक यद्ध
ु के अवसर पर चीन
का पाकिस्तान को दिया गया समर्थन उक्त मैत्री भावना का ही परिणाम था। तदप
ु रान्त बांग्लादे श
मक्ति
ु संघर्ष की पष्ृ ठभमि
ू में चीन-पाक अमेरिका, धरु ी की स्थापना ने उनके मैत्री भावना को
पराकाष्ठा तक पहुंचा दिया जिससे आगे चलकर न केवल यह क्षेत्र उग्रशीत युद्ध की परिधि में आ
गया अपितु नाभकीय रूप को नाभकीय ऊर्जा प्राप्त हुई।

सैन्य समाधात क्षमता को राष्ट्रीय सुरक्षा का मूल आधार मानते हुए पाकिस्तान ने पश्चिमी दे शों एवं
चीन के साथ रक्षा सहयोग हे तु नपे तुले कदम बढ़ाते हुए भारत पर सामरिक श्रेष्ठता हांसिल करने
सम्बन्धी किसी भी अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया। चीनी सहयोग प्राप्त करने हे तु पाकिस्तान ने
न केवल सिक्यांग, ताइवान व तिब्बत प्रश्न पर चीन का प्रत्यक्ष समर्थन दिया अपितु अमेरिका द्वारा
सम्भावित व प्रस्तावित शस्त्र प्रतिबंद्ध के परप्रेक्ष्य में बिना शर्त चीन से शस्त्र आपूर्ति कर
आत्मनिर्भता व आधुनिकीकरण का पथ निष्कंटक बनाने की हर सम्भव चेष ्ा की। सन ् 1966 से
1980 तक पाकिस्तान द्वारा आयातित शस्त्रों के एक तिहाई हिस्से की आपूर्ति चीन द्वारा ही की
गयी है । सिप्री के एक अध्ययन में कहा गया है कि सन ् 1987 से 1991 की कालावधि में चीन ने •
पाकिस्तान को लगभग 1027 मिलियन डालर की शस्त्र आपर्ति
ू तो की ही साथ ही 1990 में दोनों ने
एक 10 वर्षीय सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करके शस्त्र व तकनीकी के साथ-साथ शोध व विकास के
क्षेत्रों में विश्वसनीयता बढ़ाने की महत्वपर्ण
ू कोशिश की।

पाकिस्तान ने चीन के सहयोग से अपने नाथकीय शस्त्र कार्यक्रम को प्रभावशाली बनाने के साथ-साथ
अफगानिस्तान में सोविय हस्तक्षेप से उत्पन्न परिस्थितियों का भरपरू सामरिक राजनीतिक लाभ
उठाया। कहूटा सयंत्र के विकास में चीन ने पाकिस्तान को तो सहयो प्रदान किया ही साथ ही साथ
1996 में दोनों के मध्य सम्पन्न एक समझौते के आधार पर चीन ने नवम्बर 1989 व फरवरी 1990
में दसे दो छोटे नाभकीय रिएक्टर भी उपलब्ध कराये एन.पी.टी. पर हस्ताक्षर के बावजूद चीन द्वारा
पाकिस्तान को (एम-11) प्रक्षेपास्त्रों की आपर्ति
ू एवं सझ
ु ाव मे रिएक्टरों की स्थापना में सक्रिय सहयोग
एक ऐसा विषय है जो निरस्त्रीकरण अभियान की असफलता को रे खांकित करता है। चीन की
नाभकीय प्रसार गतिविधियां भारत की सरु क्षा के साथ गम्भीर चन
ु ौती है । चीन की सह से नामकीय
पाकिस्तान द्वारा उत्तरी कोरिया, सीरिया व ईरान आदि को नाशकीय तकनीक का हस्तांत्रण वैश्विक
सुरक्षा के लिए कदापि शुभ नहीं है ।"

पाक अधिकृत कश्मीर में चीन की बढ़ रही सामरिक गतिविधियाँ भारतीय सुरक्षा के लिए कदापि शुभ
नहीं है । अरुणाचल प्रदे श के बाद कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानकर चीन ने बड़ी दरू दृष्टि से यहां
लगभग अपने 11 हजार सैनिकों को तैनात किया है । गुलाम कश्मीर के गिलगिट व बालूचिस्तान क्षेत्र
में पाकिस्तान द्वारा चीन को वास्तविक नियत्रंण सौपने की जो चाल चली जा रही है उसके गम्भीर
सामरिक, कूटनीतिक निहतार्थ है इस क्षेत्र में धीरे -धीरे अपने नियंत्रण की शिथिल हो रही परिस्थितियों
के कारण यहां पाकिस्तान ने चीन को आमंत्रित किया है तथा इस क्षेत्र में यातायात व संचार प्रणाली
का विकास करके वह पाकिस्तान के बार्डर, पासवी और औरमारा के 9 सैन्य आधारों पर अपनी पहुँच
को सुगम करना चाहता है । न्यूयक टाइम्मा ने टिप्पणी की है कि अम्मान की खाड़ी के पूर्व में
स्थिति इन अड्ढों तक पहुंचने के लिए चीन न केवल रे ल मार्ग का विकास कर रहा है अपितु
ककराकोरम मार्ग को विस्तत
ृ करके वह इस क्षेत्र में त्वरित हस्तक्षेप की पष्ृ ठभूमि तैयार कर रहा है ।
इतना ही नहीं इस क्षेत्र में चीन 22 ऐसी गप्ु त सरु ं गों का निर्माण कर रहा है जहां पाकिस्तानियों का
प्रवेश भी प्रतिबंधित है । सम्भवतः यहाँ वह अपने नाभकीय भण्डारों के साथ ईरान-चीन प्रस्तावित
गैस पाइप लाइन हे तु सरु क्षित मार्ग का पथ प्रशस्त कर रहा है । पाकिस्तान द्वारा चीन को उक्त
सामरिक सुविधाएं दे ने से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि वास्तविक अर्थों में अमेरिका के बजाय चीन
पाक की दोस्ती गहरी है । हिमालयी क्षेत्र में चीन को सामरिक गतिविधियों की गहनता का ही
परिणाम है कि भारत के रक्षा मंत्री ए. के. ऐटनी ने भारतीय सशस्त्र सेनाओं को उत्तरी व पश्चिमी
मोर्चे पर विशेष सर्तकता बनाये रखने की अपील की थी।

उल्लेखनीय है कि भारत की सुरक्षा चिन्ताओं की परवाह किये बिना उसको सामरिक घेरेबन्दी में
सक्रिय चीन पाकिस्तान के माध्य से जम्मू कश्मीर क्षेत्र में घस
ु पैठ करके इस विवादित क्षेत्र में अपनी
सागरिक गतिविधियां निरन्तर तेज कर रहा है विगत वर्षों से चीन द्वारा कश्मीरियों को पेपर, बीजा,
का स्वीकृति तथा 2009 में भारत के उत्तरी कमान के सैन्य अधिकारी लेफ्टीनेन्ट जनरल वी. एस.
जसवाल को वीजा दे ने से मना करने एवं प्रमुख पथ
ृ कतावादी नेता वाईज उमर फारूख को बीजिंग
आने का निमंत्रण दे ने जैसी गतिविधियों से यह पुष्ट है कि चीन भारत विरोधी गतिविधियों में
कितनी रूचि रखता है । भारत व चीन के मध्य ६० मिलियन डालर व्यापार होने के बावजूद चीन
भारत के प्रति दरु ाग्रहपूर्ण कृत्यों से बाज आता नहीं दिखाई दे रहा है । मेरे शत्रु का शत्रु मित्र है के
मूल आधार पर विकसित पाक चीन सम्बन्धों की पष्ृ ठभूमि में यह उल्लिखित है कि आज न केवल
पाकिस्तान चीन का सबसे बड़ा सामरिक भागीदार है अपितु वह भारत के अतिरिक्त पश्चिम व
दक्षिण एशिया के अपने आर्थिक सामरिक नीतियों के संचालन में पाकिस्तान को आधार श्रोत के रूप
में इस्तेमाल कर रहा है। सच तो यह है कि दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव व विकास की गति
पर नियंत्रण हे तु चीन के लिए पाकिस्तान, उत्तरी कोरिया की भमि
ू का का निर्वहन कर रहा है ।
अमेरिका के एफ-16 जैसे युद्धक विमानों से लैस पाकिस्तान की सशस्त्र सेनाओं लगभग 80 प्रतिशत
शस्त्रागार चीन द्वारा उपलब्ध कराये गये हथियारों से समद्ध
ृ है । चीन द्वारा पाकिस्तान की उपलब्ध
कराये गये जे. एफ-17 फइटर्स, टाइप-85 युद्धक टैंक व एफ-22 ब्रिगेड्स इस दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय
है

एशिया की बदल रही धू- राजनैतिक व स्नातेजिक परिस्थितियों पर चीन की पैनी नजर है । शक्ति,
ध्रुव के रूप में उदित हो रहे भारतीय आभा मंडल को शिथिल करने हे तु इस समय चीन अमेरिका व
रूस के साथ स्थापित भारत के पारस्परिक सम्बन्धों के विविध आयामों को धीरे -धीरे निष्क्रिय करने
की कोशिश कर रहा है । उक्त लक्ष्यों की पूर्ति हे तु चीन बड़ी निपुणता के साथ पाकिस्तान के साथ
नामकीय समझौते जिसके अन्तर्गत पाकिस्तान में पांच भूमिकाए नाथकीम रिएक्टरों की स्थापना में
सहयोग करने का वचन दिया है । उदात्त आर्थिक सहयोग, 2000 मिलियन डालर बाद सहायता तथा
लगभग 120 आधारभूत परियोजनाओं में सहयोग करें गे। पाकिस्तान को अमेरिकी प्रभाव से
बन्धनमुक्त कराने की दरू गामी रणनीति पर कार्य कर रहा है । चीन व पाक के मध्य स्थापित हो रहे
उक्त सम्बन्धों से अमेरिका की पाक नीति की सफलता के समक्ष गम्भीर चन
ु ौतियां उत्पन्न होने की
भी प्रबल आशंका है । पाकिस्तान की अखण्डता व अस्तित्व हे तु चीन द्वारा दी जा रही गारं टी एक
ऐसा मनोवैज्ञानिक पक्ष है जो दक्षिण एशिया में न केवल अमेरिकी हितों को प्रभावित करे गा अपितु
भारतीय सुरक्षा चुनौतियां भी निरं तर जटिल होती जायेंगी। पाकिस्तान के माध्यम से चीन द्वारा
उठाये जा रहे उक्त कदमों से न केवल भारत के समक्ष सामरिक घट
ु न की स्थिति उत्पन्न होती जा
रही है अपितु आर्थिक प्रगति कर रहे इस दे श को अपने संसाधनों को अधिकांश हिस्सा सामरिक
तैयारियों पर व्यय हे तु विवश होने से उदयमान महाशक्ति के भारतीय कदम भी शिथिल पड़ सकते
हैं यह परिस्थिति भारत के समक्ष गम्भीर सामरिक आर्थिक असमंजस व विभ्रम पैदा करने वाली है ।

चीन-पाक हिमालयी क्षेत्र में सामरिक सहयोग से उत्पन्न हो रही सामरिक ज्वाला भारतीय सरु क्षा के
समक्ष 21 वीं शताब्दी की विराट चुनौती है क्योंकि अब भारत को चीन व पाकिस्तान के साथ दो
मोचों पर सामरिक मठ
ु भेड़ लेने हे तु तैयारी करना अपरिहार्य होता जा रहा है । स्थलीय यद्ध
ु अध्ययन
के भारतीय सेना सेंटर के निदे शक ब्रिगेडियर गुरमीत कॉल ने यह आशंका प्रकट की है कि भविष्य
में भारत को पर्वतीय क्षेत्रों में चीन व पाक के पथ
ृ क अथवा संयुक्त आक्रमण का सामना करने की
प्रवल आशंका है। ऐसी परिस्थितियों में भारत के उत्तरी अथवा पूर्वी सीमान्त क्षेत्र की सामरिक
संवदे नशीलता का महत्व स्वतः समझा जा सकता है यही कारण है कि भारत ने नई दिल्ली में
सम्पन्न सैन्य कमाण्डरों के एक सम्मेलन में चीन को दीर्घकालिक खतरा मानकर रक्षा व कूटनीतिक
तैयारियों पर विशेष बल दिया है । भारत के पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फर्ताडीन के द्वारा प्रथम स्तर के शत्रु
के रूप में चीन का रे खांकन आज चीन की भारत विरोधी गतिविधियों से पुष्ट होता जा रहा है ।
संवाद के साथ-साथ टकराव की चीनी प्रवत्ति
ृ से पुष्ट है कि भारत को सर्तकता पर्व
ू क उसपर विश्वास
करने के साथ-साथ उसकी यर्थापिता का परीक्षण करते हुए अपनी तैयारियों में जरा सी भी शिथिलता
नहीं आने दे ने चाहिए। हमे पंचशील की आंद में सन ् 1962 में भारत विरुद्ध चीन द्वारा किये गये
कदाचार एवं सीमा विवादों के समाधान में प्रदर्शित अरूचि के साथ-साथ उसके द्वारा भारत की
सामरिक घेराबन्दी के भावी उद्देश्यों को चिन्हित करने में शिथिलता कदापि नहीं आने दे नी चाहिए
अन्यथा सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के प्रयासरत नाभकीय भारत की वैश्विक स्थित बहुत
हास्यास्पद होगी। 15-16 दिसम्बर 2010 में चीनी प्रधानमंत्री तेनजियालाओं की नई दिल्ली यात्रा के
दौरान भारत चीन सीमा विवाद को ऐतिहासिक धरोहर की संज्ञा दे ने तथा आतंकवाद व कश्मीर के
प्रश्न पर भारत का खल
ु ा समर्थन न करने से चीनी इरादों की कलई खल
ु गयी है । अतैव भारतीय
नेतत्ृ व को बड़ी गम्भीरता पूर्वक अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा हे तु अपेक्षित शक्ति सज
ृ न में सक्रिय
रहकर शक्तिपंज
ु के प्रभाव व विस्तार में निन्तर प्रयत्नशील रहना चाहिए। इतना ही नहीं अमेरिका
के साथ सुहृद हो रहे रणनीतिक व आर्थिक सम्बन्धों के व्यामोह में उलझे भारत को यह निरन्तर
चिन्तन मनन करना होगा कि भारत कहीं चीन के विरुद्ध अमेरिकी प्यांदा न बच जाय। इतना ही
नही पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध प्रायोजित आतंकवाद के प्रभावी प्रतिकार हे तु जहां एक ओर
उसे आतंकवाद विरोधी रधियों में तीव्रता लानी होगी वहीं अफगानिस्तान से नाटो सेनाओं के हटने से
उत्पन्न सम्भावित रिकता की पूर्ति हे तु सर्तक चीन के इरादों पर पर भी नजर रखनी चाहिए। अतैव
ऐशिया में संकेन्द्रित होती जा रही शक्तियों की सामरिक-आर्थिक राजनीतिक गतिविधियों से अपने
सुरक्षा व विकास हे तु भारत को परिपक्व राजनयिक कौशल के सामानान्तर वैश्विक शक्ति संतुलन के
भावी आयामों पर पैनी नजर रखनी होगी।
अध्याय-6

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग (दक्षेस) का भारत पाक

सम्बन्धों पर प्रभाव

किसी राष्ट्र की अखण्डता का अहम सिद्धांत लोगों की भावनात्मक एकता पर निर्भर करता है ।
यह भावनात्मक एकता पष्ृ ठभूमि के प्रति उत्कृष्ट प्रेम उसकी संस्कृति राष्ट्र के प्रति बफादारी और
राष्ट्र के अतीत के नायकों के प्रति निष्ठा का आवाहन करके हॉसिल की जा सकती है। इस प्रकार
की संकीर्ण दे शभक्ति का आवाहन ही लोगों का धार्मिता के संकीर्ण दायरे , राजनीति एवं आर्थिक
इत्यादि मामलों से ऊपर उठने की प्रेरणा दे सकता है और दे श किसी भी बाहरी व आन्तरिक
चुनौतियों का सामना करने हे तु राष्ट्रीय एकता के रूप में खड़ा हो सकता है । इसके ठीक विपरीत
लोगों को विभिन्न वर्गों में बांटकर प्रलोभनों तथा राजनीतिक और आर्थिकता को सत्ता में भागीदारी
बनाकर एक संयुक्त मंच पर लाने से अलगाववादी शक्तियों को बल मिलता है । भारत का विभाजन
हिन्द ू मस्लि
ु म विद्वेष, धार्मिक भावना की संकीर्णता और पर्व
ू क राष्ट्रवाद के कारण हुआ। जाति, भाषा,
क्षेत्रीय निष्ठा और संस्कृति की संकीर्णता भी दे श के विभाजन के लिए जिम्मेदार है । कट्टरपंथी
मस्लि
ु म नेताओं के मजहबी उन्माद ने मजहब को राष्ट्र से ऊपर मानकर अपनी संकीर्ण भावना का
परिचय दे ते हुए भारत का विभाजन कर दिया।

आज दक्षिण एशिया के वातावरण अपनी स्वातेजिक स्थिति के कारण कभी शांत तो कभी अशांत
बना रहता है। भारत और पाकिस्तान के बींच निश्चय ही युद्ध का तापमान घटना बढ़ता रहता है और
पाकिस्तान भारत से कश्मीर छोड़ने के लिए आकाश पताल एक करता रहता है वर्ष 1994 में भारत
पाकिस्तान के बीच इस्लामाबाद में विदे श सचिव स्तर की वार्ता के दौरान पाकिस्तान का अडियल
रूख, उसके विदे श मंत्री आसिफ अली अहमद का उज्बेकिस्तान की यात्रा के दौरान दिया गया वक्तव्य
"यदि कश्मीर पर भारत के साथ पाकिस्तान का विवाद समाप्त नहीं हुआ तो दक्षिण एशिया में
परमाणु यद्ध का भारी खतरा है " तथा अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन में का संयुक्त राष्ट्र महासभा
में अपने भाषण के दौरान कश्मीर को विवादारमद घोषित करना फिर अमेरिका विदे श विभाग की
वरिष्ठ अधिकारी सुश्री राबिन राफेल द्वारा काश्मीर के भारत विलय पर प्रश्नचिन्ह लगाने के
अतिरिक्त अमेरिका और पाकिस्तान का उं चाई वाले क्षेत्र में सामूहिक सैन्य अभ्यास यह इंगित करता
है कि जहां पाकिस्तान भारत से आरपार की लड़ाई लड़ने पर आमादा यहाँ अमेरिका भारत को
आर्थिक और रणनीतिक मोर्चे पर मात दे ने की रणनीति पर चल रहा है । एक प्रतिरक्षा रिपोर्ट के
अनुसार परमाणु अस्त्रों का जखीरा और प्रक्षेपास्त्र हमारे दे श की सुरक्षा के लिए गहरी चिन्ता का
विषय बने हुए हैं। इससे यह साफ जाहिर है कि इस उपमहाद्वीप के रणनीतिक समीकरणों में
परमाणु हथियार महत्वपूर्ण हो गये है और भावी युद्ध में इनके इस्तेमाल की आशंका को नजरं दान
नहीं किया जा सकता। अब कुछ समर विशेषज्ञ यह मानने लगे हैं कि युद्ध में टैंक , सैनिकों की
संख्या, लड़ाकू विमानों और पूर्व निर्देशित निशानों पर मार करने वाले अस्त्र शस्त्रों का खास मकसद
नहीं रह गया है । इस महाद्वीप में होने वाली जंग में परमाणु अस्त्रों का प्रयोग सबसे पहले वही दे श
करे गा जो खुद को पिछड़ता हुआ महसूस करे गा तय सैनिक श्रेष्ठता के पैमाने पर बेमानी हो जायेगी।
जिस महत्वपर्ण
ू सवाल का जवाब इस उपमहाद्वीप के रक्षा विशेषज्ञों के पास आज भी नहीं है वह है -
क्या परमाणु हथियारों से लैस होने से युद्ध का खतरा टल जायेगा या युद्ध और नजदीक आ जायेगा
या फिर वो सर्वनाश को बल
ु ावा दे गा। फिलहाल दक्षिण एशिया के स्त्रातेजिक जंगल में भारत की
स्थिति एक सहनशील हाथी जैसी है जबकि पाकिस्तान तें दए
ु के समान है जो हाथी के शरीर को कई
तरफसे जख्मी कर रहा है । उसे विश्वास है कि यदि सभी ने साह किया भी तो वह उसका कुछ नहीं
बिगाड पायेगा क्योंकि उसके दांत अणुशक्ति से लैस है तथा उसके मित्र हाथी के विरोध विरोध में आ
खड़े होंगे। विडम्बना की बात यह है कि जब दनि
ु या के दे श शीत युद्ध के बाद नये सिरे से अपनी
विदे श नीति का निर्धारण कर रहे हैं तो पाकिस्तान अपनी फौजी ताकत को बेतहासा बढ़ाकर अपने
पड़ोस में तबाही का तांडव कर रहा है ?

पाकिस्तान अमेरिकी हितों के विस्तार की जो लड़ाई लड़ता रहा है उसे भारत की सुरक्षा को सीधा
खतरा है । अफगानिस्तान से रूसी फौजों की वापसी के बाद भी भारत के सन्दर्भ में स्थित बहुत
भिन्न नहीं है । पाकिस्तान अमेरिकी हितों की लड़ाई तो हर हाल में जारी रखेगा साथ ही वैसे भी
एशियायी सन्दर्भ में दे खा जाय तो पाकिस्तान का प्रतिरक्षा खर्च सकल उत्पादन का 7 प्रतिशत और
चीन का १० प्रतिशत है । पाकिस्तान में 212 की जनसंख्या पर 1 फौजी, चीन में 450 की जनसंख्या
पर 1 फौजी और भारत में 660 जनसंख्या पर 1 फौजी है ।

भारतीय राष्ट्रपति ने अपने सम्भाषण में कहा था कि पाकिस्तान चुपचाप अपने उन्नति किस्म के
हथियारों की तलाश में लगा है उसके कार्यक्रम के चर्चा होते रहे हैं। रूसी फौजों के अफगानिस्तान
छोड़ दे ने के बाद पाक-अफगान सीमा पर लगी पाकिस्तान की 3 डिवीजन यानी 60 हजार फौजों का
रूख भारत के अलावा और किधर होगा। सऊदी अरब से भी उसके 10 हजार सिपाही वापस आ गये
हैं। दस
ू री तरफ चीन है 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद हमारे यहां 10 पहाड़ी डिवीजने बनाई गयीं
वह भी 15 साल पहले लेकिन उनमें कोई वद्धि
ृ नहीं हुई। उसकी दौर में चीन ने तिब्बत में अपनी
पहाड़ी डिवीजनों को 7 से बढ़ाकर 15 कर दिया। उसकी एक तिहाई मिसाईल की ताकत तिब्बत में ही
केन्द्रित है । क्या सियाचिन को लेकर चीन और पाकिस्तान की दिलचस्पी महज अकादमियत है इन
खतरों को नजरं दाज कैसे किया जा सकता है ।

भारत और पाकिस्तान के बींच सिचाचिन ग्लेशियर को लेकर छिड़े विवाद का मुख्य कारण यह है कि
इस क्षेत्र में सीमा रे खांकन का काम नहीं हो पाया है । सन ् 1948 ई.वी. में भारत पाकिस्तान युद्ध के
बाद 765 सीमापार का रे खांकन किया गया था जिसे युद्ध विराम रे खा कहा जाता है लेकिन यह रे खा
एन. जेनथी हफन बिन्द ु पर आकर खत्म हो जाती है इस बिन्द ु के आगे सीमा रे खा के बारे मे कराची
समझौते और शिमला समझौते में काई चर्चा नहीं है । चूंकि सियाचीन क्षेत्र में रे खांकन का काम नहीं
हुआ है इसी का फायदा उठाकर पाकिस्तान उसे तथाकथित आजाद कश्मीर का उत्तरी हिस्सा बताता
है । पाकिस्तानी नक्शों में आजकल नब
ु रा घाटी और सियाचिन को पाक सम्भाग के रूप में दर्शाया जा
रहा है । सियाचिन ग्लेशियर संसार का दस
ू रा सबसे बड़ा हिमनद है । यह 74 किमी लम्बा है और
जबरा नदी से होकर इन्दिरा कोल तक गया है । वास्तव में पाकिस्तान का इरादा इन्दिरा कोल जीतने
का है । ताकि कारगिल लेह तथा कराकोरम दरों के बींच मुख्य सम्पर्क सूत्र 'पामिक सोसेर कराकोरम
राजमार्ग को अवरूद्ध किया जा सके। पाकिस्तान इस ग्लैशियर को हथियाने का हर सम्भव प्रयास कर
रहा है क्योंकि यह अच्छी तरह समझाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप की क्षत पर स्थित यह
ग्लैशियर जम्मू कश्मीर की सरु क्षा की कंु जी है ।

डिफेंस ऑफ इण्डिया पुस्तक के लेखक तथा मार्के ट विश्वविद्यालय विस्कांसिन के अन्तर्राष्ट्रीय


अध्ययन विभाग के प्रो. डा. राजू थामस का कहना है कि पाकिस्तान के हालात अब बदल गये हैं। डा.
राजू धाम के अनुसार युद्ध की स्थिति में पाकिस्तान को पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफरीका के
इस्लामी दे शों से भी सहायता मिल सकती है । लाख के कारगिल क्षेत्र में गिरफ्तार किये गये स्कर्दू
क्षेत्र के एक पाकिस्तानी जासूस ने इस बात की पष्टि
ु की है कि पाकिस्तान द्वारा प्राचीन श्रीनगर
अस्टोर स्कर्दू-गिलगित व्यापार मार्ग के बिलकुल निकट स्कर्दू के विशाल मैदान में एक परमाणु अड्डे
का निर्माण किया जा रहा है । पर्वतों से घिरा यह मैदान 11 किमी लम्बा और 8 किलोमीटर चौड़ा है
यह कारगिल के सीमांत क्षेत्र से मुश्किल से 20 किमी दरू है । गुरुवर विभाग की एक रिपोर्ट के
मुताबिक चीन और पाकिस्तानी सैनिक विशेषज्ञों ने इस मैदान को • सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया
है । आखिर कभी न कभी तो भारत के सब्र का प्याला भर उठे गा और उसदिन क्या होगा यह आने
वाला समय ही बता सकता है । हां इतना पाकिस्तान को अवश्य याद रखना चाहिए कि 1971 में
भारत पाक युद्ध की शुरूआत भी लाहौर में एक भारीय विमान को आग लगाकर भस्म करने के
पश्चात हुई थी इस यद्ध
ु में पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गये थे और पाकिस्तान को इस युद्ध में भारी
कीमत चुकानी पड़ी थी। कहीं पाकिस्तान अपनी तैयारियों के साथ 1971 वाला पुराना तनावपूर्ण
महौल तो तैयार नहीं कर रहा है इसपर विचार करना परम आवश्यक है । उल्लेखनीय है कि
पाकिस्तान अमेरिकी नौसेना को फारस की खाड़ी में संचालन करने के लिए अपने बन्दरगाहों पर
विशेष सुविधाएं प्रदान कर रहा है । यह सुविधाएं कराची के नजदीक मशरूर नौसैनिक अड्डे से प्रदान
की जा रही हैं।

हिन्द महासागार में महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को दे खते हुए भारत तथा अन्य एशियायी दे शों
के समक्ष नई चुनौती खड़ी हो गयी है । अमेरिका, ब्रिटे न और फ्रांस जैसी महाशक्तियों ने अपने
व्यवहारिक, राजनैतिक और रणनीतिक हितों के लिए इस क्षेत्र में अपने नौसैनिक अड्डे बना रखे हैं
हिन्द महासागर में स्थित डियागोगार्सिया जिसे अमेरिका ने अपना नौसैनिक अड्डा बनाया है भारत
के दक्षिणी किनारे से मात्र 1000 किमी दरू है। यह भारतीय सुरक्षा समेत सभी एशियायी दे शों को
सीधा खतरा उत्पन्न करता है । बाग्लादे श में सेंटमार्टिन द्वीप अमेरिका को नौसैनिक अड्डा बनाने
हे तु दे दिया है । इसी भांति चटगांव बन्दरगाह के दक्षिणी पश्चिमी कोने पर अमेरिका के सातवें बेढे
के लिए एक केन्द्रीय चौकी भी निर्मित की जा रही है । यही नहीं अमेरिका ने सिलहट एवं दीनाजपरु
में दो अनवेषण केन्द्र भी स्थापित किये हैं इन केन्द्रों से एशियाई दे शों की खुफ्यिा जांच का काम
किया जा रहा है । विश्व परिप्रेक्ष्य में दे खा जाय तो रक्षा व्यय में अप्रत्याशित वद्धि
ृ सबसे ज्यादा
अमेरिका में हुई है । उसका तर्क है कि इससे हिन्द महासागर के तटवर्ती दे शों पर इसका प्रभाव
पड़ेगा। हो सकता है कि रूस भी अपनी सैनिक गतिविधियां तेज कर दे जबकि इसकी सम्भावना नहीं
है । जिसके कारण हिन्द महासागर में आणविक युद्ध का खतरा बढ़ रहा है । क्योंकि अमेरिका ने इस
क्षेत्र में रै पिड डिप्लाइमें ट फोर्स का नियोजन किया है । तथा डियागोगार्सिया और उसके समीप
अमेरिकी युद्धपोत आणविक शस्त्रों से लैस फारस की खाड़ी में विद्यमान है । विभिन्न संवाद
समितियों के अनुसार इस क्षेत्र में रूस के 11 जान है जबकि अमेरिका, ब्रिटे न और फ्रांस के युद्धपोतों
की संख्या 42 है । अमेरिका-पाक जासस
ू ी श्रंख
ृ ला नई नहीं है कुछ वर्ष पर्व
ू रूस में जासस
ू ी के लिए
उड़ान भर रहा व गिराया गया यू-2 अमेरिकी जासूसी विमान पाकिस्तान के पेशावर अड्डे से ही उड़ा
था। जैक एंडरसन के अनस
ु ार पाकिस्तान में अमेरिकी अड्डों के लिए दोनों दे शों में करार हुआ है ।
सरगोधा पेशावर व गवादार आदि पाक अड्डों में अमेरिका ने इलेक्ट्रानिक जासूसी अड्डे बनाये हैं।
पिछले कई वर्षों से रूस और अमेरिका के जहाज जापान के सागर मे होक होस्ता सागर में
तथा ओमान की खाड़ी में एक दस
ू रे के जहनों को रास्ते दे ते लेकिन एक दस
ू रे पर गुरति हुए निकल
रहे हैं। कभी-कभी तो दोनों के नौसैनिक "रे ड अलर्ट" की स्थिति में भी आ जाते हैं। अदन की खाड़ी में
रूसी जहाजों के सैनिक अक्सर गुस्से के मूड में रहते हैं। ओमान की खाड़ों के निकट अमेरिका के
जंगी जहाज (किटीहाक) के पीछे अब रूस का क्रूजर (किरोव) लगा रहता है । किरोव के साथ अन्य
जहाज उसकी निगरानी करते रहते हैं। रूस के प्रशांत महासागरीय नौसैनिक बेडे से जापान आशंकित
है और चीन परे शान है । कहा जाता है कि रूस की 52 डिवीजन सेना की सीमा से लगी हुई है । रूस
की प्रशांत महासागरीय शक्ति के बढ़ते दबाव को रोकने के लिए बैंकाक में अमेरिका, जापान, दक्षिण
कोरिया और एशियान संगठन के इण्डोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापरु और थाईलैण्ड के विदे शी
मामलों के विशेषज्ञों का एक सम्मेलन हुआ लेकिन इसका कोई प्रभाव दिखना नहीं नजर आता।
श्रीलंका की जातीय समस्या ने भारत के पड़ोस में एक नाजक
ु और खतरनाक माहौल बना दिया है ।
स्थिति को अनियंत्रित दे खते हुए भारतीय सेना जुलाई 1987 में तमिल उग्रवादियों के शस्त्र समपर्ण
के सिलसिले में जाफना गयी यह समस्या भी नहीं सुलझी और हमारे काफी सैनिक एवं अधिकारी
इस रक्षात्मक लड़ाई में शहीद हुए भारत श्रीलंका समझौता भी अबतक लागू नहीं हो सका।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में कोई किसी का स्थाई मित्र नहीं है । वाग्लादे श की लड़ाई 1971 में
हमने मदद करके यह सीख लिया है कि आज की दनि
ु या में केवल स्वार्थ है और सबकुछ मिथ्या एवं
भ्रामक है । एक ओर श्रीलंका के राष्ट्रपति ने भारत से सहयोग चाहा और जबाब में हमारी सेना वहां
पहुंच गयी और दस
ू री और जयवर्द्धन में अमरीकी यात्रा में विज्ञान और तकनीकि के सहयोग के नाम
जो समझौते किये उनका परिणाम यह हुआ कि विदे शी जहाज और विशेषज्ञ श्रीलंका के इर्द गिर्द में
खोजबीन के काम में लग गये। इस काम में वे उपग्रहों की मदद लेगें। श्रीलंका का समद्र
ु भारत से
पष
ृ क नहीं है । इस तरह श्रीलंका ने भारतीय समुद्र की टोह के लिए विदे शियों को ठीक उसी तरह बैठा
लिया है जिस तरह कालीकट के जामोरिन से प्रतिद्वंदिता के कारण कोचीन के राजा ने
वास्कोडिगामा को शरण दी थी या कैडो के राजा ने पुर्तगालियों को भगाने के नाम पर डर्बी को पूरे
श्रीलंका का मालिक बनने दिया था। यह ऐसी स्थिति है जो सामरिक दृष्टि से भारत के लिए चिन्ता
का विषय है ।

विवेचनात्मक दृष्टि से दे खा जाय तो पाकिस्तान के परमाणु जनक डॉ. अब्दल


ु कादिर खान ने
कुछ वर्षों पूर्व घोषणा की थी कि पाकिस्तान के पास एटमबम है और बाद में सरकारी माध्यमों ने
उसपर गहराई से चिन्तन मनन किया था लेकिन उन्होंने इस बयान से इनकार कर दिया। बम है •
लेकिन नहीं भी है यह है लेकिन उसका परीक्षण नहीं हुआ है या क्या पता चीन के किसी रे गिस्तान
में हुआ हो। इस हिन्द ू द्वैत और दवि
ु धा का उपयोग पाकिस्तान कई वर्षों से बरी कर रहा है । क्योंकि
आखिर सदियों तक वह हिन्दस्
ु तान का हिस्सा था। द्वैत के इस कुहासे के नाम स्पष्ट हैं।
पाकिस्तान चाहता है कि एटम बम होने के लाभ उसे मिलता रहे और यह भी चाहता है कि एटम
बम होने की प्रतिष्ठा उसे मिले लेकिन यह कुहासा इतना गूढ़ है कि भारत के नीति निर्माता भी
भ्रमित हो जाय। क्या भारत अपने रक्षा विकल्पों के बारे में ठीक उस दिन शुरू करे गा जिसदिन
पाकिस्तान के शासनाध्यक्ष दिल्ली को एक शपथ भेजेंगे कि हमने एटम बम बना लिया है ? क्या
जिसदिन विस्फोट होगा उस दिन भारत नोटिस लेना शुरू करे गा? निश्चय ही इतनी मूर्ख किसी भी
दे श की सरकार नहीं हो सकती। लेकिन जाहिर है कि इस मामले में यह यह भी बताना नहीं चाहती
है कि वह कितनी चतुर है । हकीकत तो यह है कि पाकिस्तान के पास परमाणु क्षमता है चाहे वह
अमेरिका से प्राप्त की गयी हो या फिर खद
ु के प्रयासों से प्राप्त की गयी हो। मध्यपर्व
ू के मामलों के
विशेषज्ञ प्रो. रिचर्ड बुलिट ने अपनी पुस्तक द गुल्फस्कैनारियों में इस बात की सम्भावना व्यक्त की
है कि सम्भव है कि आगामी दिनों में पाकिस्तान परमाणु बम का भय दिखाकर और अपनी
सशक्ततम पारस्परिक सेनाओं का सहारा लेकर खाड़ी के तेल कुओं पर अधिकार जमा ले। कुछ ऐसे
भी अमेरिकी विशेषज्ञ है जो यह कहते हैं कि पाकिस्तानी परमाणु बम इजराइल की तरह सोवियत
संघ के विरोध में इस्तेमाल किया जा सकता है । इसलिए एक प्रकार से यह अमेरिकी • स्त्रातेजी के
अनुकूल ही साबित होगा चाहे इसके दरू गामी परिणाम एशिया के लिए किसी भी रूप में प्रकट हों।
यही कारण है कि अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तानी परमाणु बम सम्बन्धी भारतीय आशंकाओं को नजर
अंदाज करने की नीति पर चल रहा है । यदि महात्मा गांधी के अहिंसक प्रतिकार में भारत का भरोसा
है तबतो बात अलग है लेकिन यद्ध
ु की तैयारी के साथ यदि हमें जीना है तो सैनिक जिम्मेदारी की
हद होगी कि पाकिस्तान के पास बम होने के बाद भारत बम न बनाये। इसके सामान्य कारण तो
बिल्कुल स्पष्ट है लेकिन भारत के सन्दर्भ में कुछ विशिष्ट कारण भी हैं। हमें सदै व याद रखना
चाहिए कि जब पोरस झेलम के संग्राम (326 ई.पू.) में हाथी लेकर खड़ा था। तब सिकन्दर ने घोड़ो से
नदी पार कर उसे हरा दिया था। मग
ु ल अपनी लड़ाईयां भारत में इसलिए जीते कि उनके पास घोड़े
ही नहीं बल्कि उत्तम कोटि का तोपखाना भी था और अंग्रेज समुद्र के रास्ते आने में इसलिए सफल
हो गये क्योंकि उनका आना आक्रमण की दिशा को पहले प्रेरित नहीं किया था और जिनकी
आक्रामक सम्भावना के बारे में इस दे श के राजाओं को कोई ज्ञान नहीं था। फिर हमारी परम्परा यह
है कि यदि राजा का हाथी मैदान छोड़कर भागने लगे या ध्वज गिर जाय या कोई और प्रतीकात्मक
पराजय हो जाय तो सेना भी मैदान छोड़कर भागने लगती है । 50 जवाबी हमले करके दश्ु मन को
हराने का धैर्य हम प्रायः नहीं दिखा पाते हैं। निष्कर्ष स्पष्ट रूप से है कि यदि पाकिस्तान कुछ शहरों
पर एटमबम गिराकर हलचल मचा दे तो पारम्परिक युद्ध लड़कर पाकिस्तान को हराने का धैर्य कौन
हिन्दस्
ु तानी रखेगा? भारत की छोड़िये जापान जैसा दे श यह धैर्य नहीं रख पाया जिसका क्रूर धैर्य
1905 से 1045 तक कई बार युद्ध में साबित हुआ। जिसने 1945 ई. के बाद जापान को विश्व का एक
सम्पन्न दे श बना दिया है ।

यह भी जानते हैं कि परमाणु युद्ध या आन्तरिक युद्ध की स्थिति में कोई नहीं बचेगा और मेरी दृष्टि
से इसकी सम्भावना तबतक नहीं उठती जबतक कि किसी दे श का शासक पागल न हो जाय और
जहां तक मेरा मन्तव्य है कि कम से कम दोनों महाशक्तियों के राष्ट्राध्यक्ष होशोहवास में है किन्तु
एक दस
ू रा पक्ष यह भी है कि यदि कम्प्यूटर की गलती से या किसी कमाण्डर की असावधानी से
कोई परमाणु हथियार छूट जाय तो याद रखिये आणविक हथियार में भाग न लेने वाले तटस्थ एवं
तीसरी दनि
ु या के दे श भी उसी प्रकार नष्ट हो जायेंगे जैसे शीत यद्ध
ु की शरू
ु आत करने वाले अणु
शक्ति सम्पन्न दे श विध्वंस होंगे तथा भारत पाकिस्तान, बाग्लादे श, ब्राजील, श्रीलंका या सऊदी अरब
जैसे दे शों का पर्ण
ू विध्वंस उनपर एक अणब
ु म गिराये बिना ही हो जायेगा। प्रथम विश्वयद्ध
ु चार वर्ष
लड़ा गया और दस
ू रा 6 वर्ष यदि तीसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया तो बहुत ही थोडे समय में अति भीषण
विध्वंस के साथ समाप्त हो जायेगा। विश्व आशावान है अतः विकसित विश्व के विचारक तथा शांति
दत
ू हर सम्भव प्रयास कर तनाव घटाने तथा शांति स्थापित करने की पुरजोर कोशिश में लगे हुए है ।
यदि हम बद्ध
ु की सम्भावना पर गौर करें तो सन ् 1914 में प्रथम विश्व यद्ध
ु का प्रारम्भ आस्ट्रिया के
युवराज की हत्या के प्रश्न को लेकर हुआ था। सन ् 1939) ई. में दस
ू रा विश्वयुद्ध पोलैण्ड पर हिटलर
के आक्रमण से उत्पन्न हुआ था। क्या तीसरा विश्वयुद्ध यूरोप में महाशक्तियों द्वारा तैनात प्रक्षेपास्त्रों
से शुरू होगा? यह विचार करने योग्य है । फिलहाल में अमेरिका और रूस द्वारा यूरोप में अपने
प्रक्षेपास्त्रों को हटाये जाने से सम्बन्धित ऐतिहासिक समझौते के हो जाने से यूरोप में तीसरे विश्वयुद्ध
के छिड़ने की सम्भावना कम हो गयी हैं। सागर और अन्तरिक्ष इन दोनों में आज महायुद्ध की
सम्भावनाएं बढ़ती नजर आ रही है । स्थल पर विभिन्न दे शों की सीमाएं स्पष्ट हैं जिनका उल्लंघन
बहुत कम किया जाता है किन्तु महासागरों में प्रादे शिक समद्र
ु से आगे ऐसी कोई सीमाएं नहीं होती
इसलिए भविष्य में समुद्रगामी रणपोत तथा परमाणुविक पनडुब्बियों में टकराव बहुत बढ़ जाने का
खतरा है । इसी प्रकार नई पीढ़ी अति आधनि
ु क एवं असीम विध्यंस क्षमता वाले शस्त्र जैसे हं टर,
किलर तथा लेजर गन जो महाशकियों ने विकसित कर रखे हैं ये कुछ ही मिनटों के अन्दर अन्तरिक्ष
में पहुंच कर सभी भू उपग्रहों को नष्ट कर सकते हैं। यहां तक कि शुभ अन्तमहाद्विपीय प्रक्षेपास्त्र
पथ्
ृ वी पर स्थित लक्ष्य तक पहुंच सके इसके पूर्व ही यह उसे वायु मण्डल में ही समाप्त कर डालेंगे।

दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका : -

दक्षिण एशिया भारत-पाकिस्तान, नेपाल, भट


ू ान, बाग्लादे श, श्रीलंका, मालद्वीप के अतिरिक्त दो और
दे श अफगानिस्तान और वर्मा भी हैं जहां होने वाला कोई भी राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन पूरे
दक्षिण एशिया को किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित करता है । इन दे शों में भारत सबसे अधिक
विकसित है । अतः इस दे श की सरु क्षा सम्बन्धी चुनौतियों से निपटने तथा स्थायित्व लाने का
महत्तम दयित्व भारत के ही कंधों पर है । भारत में अफगानिस्तान में रूसी हस्तक्षेप के मामले में
अपनी सीधी प्रतिक्रिया जाहिर की तथा इसे अनुचित माना हिन्द ु महासागर को युद्ध क्षेत्र न बनने दे ने
के लिए भी भारत की यही कोशिश है और सदै व रही है कि दक्षिण एशिया के दे श हिन्द महासागर
के मसले पर एकजुट हों ताकि इस समस्या का निदान ढूंढा जा सके। और महाशक्तियों के षड़यंत्र
तथा शोषण से इस क्षेत्र को मुक्त रखा जाय। कहने को तो कह जाता है कि महाशक्तियाँ तनाव,
शैथिल्यीकरण के दौरा से गुजर रही है किन्तु चीन की विस्तारवादी नीति तथा पाकिस्तान को दी जा
रही आवश्यकता से अधिक सैन्य सहायता क्या यह स्पष्ट नहीं करती कि महाशक्तियाँ अपने हितों
की पूर्ति के लिए हस्ताक्षेप करने से पीछे हटने को तैयार नहीं है । पड़ोस के दे श श्रीलंका में उत्पन्न
स्थिति से निपटने के लिए भारत में भारतीय शान्ति सेना (आई.पी.के.एफ) को वहां भेजा था। यह
विदित है कि श्रीलंका की सरकार ने 'इलम' (तमिलों के लिए भारत प्रदे श) के दे श तोड़ने के संकट से
उबरने के लिए भारत श्रीलंका समझौते के तहत शांति सेना को आमंत्रित किया था। 60 हजार जवानों
और अफसरों से बनायी गयी शांति सेना लगभग 32 महीने श्रीलंका में रही भारतीय सेना के 1956
जवानों ने श्रीलंका की एकता बनाये रखने के लिए अपना बलिदान किया। 24 मार्च 1990 ई. तक
वेतन भत्ता आदि छोड़कर भारत सरकार का इस अभियान पर 300 करोड़ रूपये से भी ज्यादा खर्च
हुआ जिसमें 35 अधिकारी अपंग हो गये। सातवें , आठवें दशक में चीन की नीति हमेशा पाकिस्तान
एवं बाग्लादे श को एशिया नीति में अपना मोहरा बनाकर भारत को अलग करने की रही है । किन्तु
भारत के प्रयासों से अब घटनाक्रम में बदलाव आ गया है। चीन अमेरिका के एशिया में बढ़ते प्रभाव
को रोकने में संयुक्त दक्षिणी एशिया को महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए दे खना चाहता है । अपनी इस
कल्पना को साकार करने के लिए चीन भारत के साथ सम्बन्धों के क्रमिक सामान्यीकरण को सर्वोच्च
प्राथमिकता दे रहा है । नेपाल के मामले पर भी चीन से जब नेपाल ने सहायता मांगी तो चीन ने उसे
भारत से सम्बन्ध सुधारने की नेक सलाह दी। काश्मीर के मसले पर चीन में दरू दर्शितापूर्ण विवेक का
परिचय दिया। भारत भी चीन से सम्बन्ध सामान्य रखने के लिए कृत संकल्प है किन्तु राष्ट्रीय हितों
की कुर्बानी दे कर कदापि नहीं।

फलतः यह कहा जा सकता है कि आप कितना भी सुरक्षित चलें सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन
करें किन्तु सामने से आने वाला यदि सुरक्षित नहीं चलता है तो उसी सुरक्षा बेकार है । और दो मे से
एक की मौत सुनिश्चित है । ठीक यही हाल भारत और पाकिस्तान का है । दक्षिण एशिया में भारत
तो शान्ति और सुरक्षा के लिए लालायित है किन्तु पाकिस्तान हमेशा इस शांति को तोड़ने के लिए
व्याकुल रहा है । कुछ वर्षों पूर्व पाकिस्तानी समाचार पत्रों ने यह अफवाह फैलायी कि भारत उसके
परमाणु संस्थान को नष्ट करने की योजना बना रहा है पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मो. खान
जुनेजो ने बिना सच्चाई जाने तत्काल में यह घोषणा कर दी कि काहूटा पर आक्रमण पूर्ण युद्ध का
जनक साबित होगा, काहूटा पर आक्रमण करने के बाद हमारे 40- एफ-16 जो विश्व के सर्वाधिक
सशक्त यद्ध
ु क विमान है सेकेंडों में आकाश पर छा जायेंगे और भले ही भारत उनमे से कुछ को मार
गिराने में सफल हो जाय फिर भी अन्तत: खूंखार पाकिस्तानी पायलट सभी भारतीय आणविक
संस्थानों को मलबे के ढे र में बदल दें गे 7

भारत दक्षिण एशिया में स्थायित्व लाने की हर सम्भव कोशिश कर रहा है। भालद्वीप में लोकतंत्रीय
ढं ग से चुनी गयी सरकार को अपदस्थ करने की चन्द भगाडे की कोशिशों को भारतीय सेना ने
त्वरित कार्यवाही के द्वारा नाकाम करके पड़ोसियों को यह विश्वास दिला दिया कि भारतीय सहायता
विश्वसनीय और मजबत
ू है । भट
ू ान और बांग्लादे श में पथ
ृ कतावादी आन्दोलनों की लहर तेज रही है ।
भारत ने नेपाल में बहुदलीय लोकतंत्र का समर्थन किया है यह भी उल्लेखित है कि नेपाल में काफी
खन
ू खराबे के बाद इच्छित लोकतंत्र बहाल हो गया है ।

दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क ) द्वारा दक्षिण एशिया में अर्थ व्यवस्था का तीव्र विकास,
राजनीतिक स्थिति को संतुलित करना तथा सैनिक अस्थिरता से इसे मुक्त रखने की दिशा में किये
जा रहे कृत्य महत्वपूर्ण है । सार्क के माध्यम से भारत का दृष्टिकोण इस क्षेत्र में शांति और
स्थायित्व लाने की दिशा में सराहनीय एवं निष्पक्ष है । यद्यपि दनि
ु या में नेतत
ृ व बदलाव के साथ
शांति की लहर का जो अद्भद
ु रूप दे खने को मिला है उससे शांति को भी बल मिला है किन्तु
पाकिस्तान की काश्मीर व पंजाब के मसले में की जा रही कार्यवाही इस क्षेत्र को अशांति बनने की
एक दोगली साजिश है। भारत को आज आवश्यकता है कि सभी गुट निरपेक्ष राष्ट्रों द्वारा मिलकर
विश्व संसद से बीटो प्रणाली खत्म करे आज यह भी जरूरी है कि तीसरी दनि
ु या को किसी ऐसी
विश्व संस्था से आर्थिक मदद मिले जिसपर रूस अमेरिका व किसी पश्चिमी दे श का राजनीतिक
नियंत्रण न हो। आजतक विश्व राजनीति में जितने भी ध्रुव या शक्तियों का उदय हुआ है उनमें से
किसी ने भी ऐसी बात आज तक नहीं कहीं संयुक्त राष्ट्र विश्व शक्तियों का औजार मात्र बनकर रह
गया है । दस
ू रे महायुद्ध के उपरान्त यूरोप अमेरिकन वर्चस्व के मित्र राष्ट्रों ने दनि
ु या को आपस में
बांट लिया इसके बाद भी उनमें आपस में या यद्ध
ु चलता रहा तथा बाकी दे श रूसी और अमेरिकी
छतरियों की खोज में लगे रहे । तीसरी दनि
ु या को तथा दक्षिण एशिया के राष्ट्रों को अगर पैरों पर
खड़ा होना है तो जरूरी है कि ये गये आकाश तलाशने के बजाय अपनी सामहि
ू क शक्ति को पहचानें

दक्षिण एशिया में परमाणु पवित्रता का वातावरण बनाये रखने के लिए कुछ ठोस कदम उवया जाना
जरूरी है क्योंकि खाड़ी युद्ध से एक सबक मिला है कि काहिरा से होनो लूलु तथा दिल्ली से
इस्लामाबाद की दनि
ु या संगठित हो और सम्पन्न राष्ट्रों का मुह ताकना बन्द करें । हर राष्ट्र की
सम्पन्नता का आधार वहाँ के आर्थिक व प्राकृतिक संसाधन होते है लेकिन भारत का यह दर्भा
ु ग्य है
कि वह सपने दे खता है न्यूयार्क से रास्ता अख्तियार करता है । रूस का और उसके साधन वर्धा के
सपनों और साधन तथा सोच में अगर कोई तारतम्य नहीं होगा तो कोई सफलता नहीं मिल सकती
और भारत इस या उस शक्ति की चाटुकारिता में लगा रहे गा और कभी भी स्वावलम्बी नहीं बन
पायेगा यह याद रखना होगा की राजनीतिक अस्थिरता के दौर में भी हमारे दे श के सपने, साधन और
सोच में तालमेल बैठा पाने में काफी दिक्कतें आयी है फिर भी भारत के पास ऐसी दृष्टि अभी भी है
जिसका उपयोग उसे भविष्य में संकट से उबारने में सहायक सिद्ध होगा।

क्षेत्रीय स्तर पर भारत जहाँ विदे शी मामलों में अपना प्रभाव बढ़ाने में काफी हद तक सफल हुआ है
परन्तु कई पड़ोसी भारत को संदेह की दृष्टि से भी दे खते रहे हैं कई दे शों में स्थानीय सरकारों के
विरोधी ही भारत को संदेश की स्थिति में दे खने लग जाते हैं निश्चित रूप से भारत को कुछ और
अधिक करने की आवश्यकता है । उल्लेखनीय है कि पड़ोसियों से राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए
भारत को अधिक विश्वास अर्जित करने की आवश्यकता है और इसके लिए जरूरी है कि आर्थिक
मामलों में और अधिक आदान-प्रदान बढ़ाने की शुरूआत की जाम सम्पूर्ण विश्व में हो रहे परिवर्तनों
से भारत भी अछूता नहीं रह सकता और इसी विदे श नीति भी आम नियमों का अपवाद नहीं बन
सकती है

बदलते परिप्रेक्ष्य में भारत को अपनी विदे शी नीति में आवश्यक परिवर्तन कर उसे और अधिक
लचीला बनाना होगा। आज की विश्व परिस्थितियाँ आर्थिक विकास और आर्थिक सहयोग के लिए
और अधिक अनुकूल बनती जा रही हैं। विकास की गति अधिक तीव्रगति से बनाने के लिए नई
तकनीक हांसिल करने की आवश्यकता है । भारत के विशाल सुरक्षा परिदृश्य से जुड़ी समस्याओं के
परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना के लिए केन्द्र द्वारा गठित एक उच्च स्तरीय
कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की कि प्रधानमंत्री को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त एक
राष्ट्रीय सलाहकार की नियुक्ति करनी चाहिए। अमेरिका ने जिस तरह ईराक में हथियार दं ध
ू ने के
बहाने हमला किया उसका उद्देश्य किसी से छिपा नहीं है । ईराक के तेल भण्डारों पर अमे रिका की
मजर वर्षों से लगी हुई थी अमेरिका ने भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखकर 2003 में ईराक को
पुनः अपना निशाना बनया अमेरिका की तेल खपत ने भी ईराक को निशाना बनाया है । भविष्य में
अपने उद्देश्यों के पर्ति
ू के लिए अमेरिका किसी भी दे श में किसी भी बहाने घस
ु पैठ कर सकता है ।
पारसपरिक सहयोग और मतभेद मानव स्वभाव एवं व्यवहार अविभाज्य अंग हैं। भारत-पाक सम्बन्धों
में तनाव के कई बनि
ु यादी कारणों में कश्मीर का मद्
ु य सामने उभरकर आता है । भारत का दृढ़
विश्वास है कि शांति और सुरक्षा का वातावरण तभी सम्भव है जब सहमति और सहयोग के
वातावरण को छोटे बड़े राष्ट्र विकसित करने और सुदृढ़ बनाने में अपना योगदान दें । जबतक सभी
दे शों के मध्य आपसी सहयोग और मित्रता के द्वार पूर्णत: नहीं खुलते तबतक हमें प्रत्यनशील रहना
होगा और इसी सिद्धांत के तहत भारत में पड़ोसियों एवं महाशक्तियों से मधु सम्बन्ध बनाये रखने
का यथा सम्भव प्रयास किया है ।
अध्याय 7

अनसल
ु झे विवादों पर द्विपक्षीय वार्ताओं का नया दौर तथा

शान्ति की चाहत

भारत पाकिस्तान के सम्बन्धों को सामान्य बनाने के लिए दोनों दे शों के नेताओं एवं उच्च
अधिकारियों द्वारा समय-समय पर द्विपक्षीय समस्याओं के समाधान हे तु वार्ताओं के अनेक दौर हो
चुके है । दोनों दे शों परमाणु परीक्षण के बाद तनाव तना और अधिक फैला किन्तु अमेरिका के
आर्थिक प्रतिबन्ध और बुनियादी जरूरतों ने एक बार पुनः व्यावहारिक पक्ष को समझने के लिए दोनों
दे शों को मजबत
ू किया है । भारत एवं पाकिस्तान के आजादी के उत्साह को विभाजन एवं विवाद का
दर्द छलनी कर गया। दो राष्ट्र के सिद्धांत ने अखण्ड भारत में साम्प्रदायिक घण
ृ ा की ऐसी विष बो दी
है जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपना असर दिखाती रहती है। 25 वर्षों के अन्दर ही भारतीय
उप महाद्वीप में तीसरे दे श का उदय हुआ और द्विराष्ट्र का सिद्धांत सार्वजनिक रूप से निर्मूल एवं
निरर्थक साबित हुआ। द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को ऐतिहासिक भल
ू से इस अखण्ड भारत का भग
ू ोल
ही नहीं बदला बल्कि दिल और दिमांग में भी दरारें आ गयीं। भारतीय उप महाद्वीप का विभाजन
एक बात थी किन्तु उस बटवारे को आधार मानकर धर्म और साम्प्रदायिकता के नाम पर विघटन
करने की कुटिल चालें आज भी हमारे सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करती रहती हैं। भारत
पाक सम्बन्धों में व्यापारिक दृष्टि से दिल्ली वार्ता के साथ ही आर्थिक आयाम भले ही स्थापित हो
गये है और इसे एक बड़ी उपलब्धि भी कहा जा सकता है । किल्त राजनीतिक एंव सामरिक मामलों
में सैद्धांतिक सहमति शायद सम्भव भी हो जाय लकिन व्यवहारिकता से अभी भी काफी परे हैं।'
भारत और पाक के अनसुलझे विवादों पर द्विपक्षीय वार्ताओं का नया दौर अभी भी जारी है इन दोनों
के सम्बन्धों को सुधारने के लिए जिन नये अध्यायों को आरम्भ किया गया है वह निःसंदेह एक
प्रशंसनीय प्रयास है क्योंकि जबसे भारत पाक विभाजन हुआ तबसे अचतक दोनों दे शों के बींच कटुता
एवं तनाव का सिलसिला जारी है इस विवाद को समाह करने के लिए जो भी वार्ताएं एवं प्रयास किये
गये उन्हें अभी तक व्यावहारिक रूप में विराम नहीं मिला। भारत के साथ: तनाव रखना शायद पाक
प्रशासन की नीति एवं नियति बन गयी है व अमेरिका से इस कार्य के लिए सतत सहायता भी
मिलती रहती है । भारत-पाक सम्बन्धों की समस्या एवं समाधान कश्मीर के चाहत का ही असली
मामला है । इसके साथ ही अनेक सामयिक, सामरिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं राजनयिक समस्याएं
उभरी है दोनों दे शों के विवादों को हल करना जितना अधिक कठिन है उससे भी कहीं अधिक लाभ
दोनों दे शों को सम्बन्ध सुधारने से मिल सकते हैं।

भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों को सुमधुर बनाने के पहले महत्वपूर्ण मुद्दों का हल बढ़ना अधिक
आवश्यक है क्योंकि कुछ ऐसे संवेदनशील मुद्दे ऐसे है जिनके रहते सम्बन्धों की बात करना ही
हास्यास्पद लगता है । यद्यपि भारत और पाकिस्तान की जनता विधिवत जानती है कि दानों दे शों के
बीच मैत्री से इस भारतीय उपमहाद्वीप में सुख शांति विकास एवं प्रगति की लहर दे खी जा सकती है
परन्तु पाकिस्तान स्वयं ऐसी साजिशों का शिकार है जिसे चाहकर भी नहीं कर पाता है । यह तभी
सम्भव होगा जब वहां की जनता जागरूक होकर नेताओं के स्वार्थो कट्टरवार व कठमुल्लावाद के साथ
ही अमेरिका सहित अपने मित्र राष्ट्रों के भारत विरोधी दाबव को पूरी तरह ठं खाड़ फेंके। पाकिस्तान
की जनता यदि इस बात पर गम्भीरता से विचार करके कि पाकिस्तान बनने के बाद सिर्फ क्षणिक
धार्मिक व जातीय एकता के नाम पर यद्ध
ु , घण
ृ ा, द्वेष, शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न, सैनिक शासन व
तानाशाही के आलावां उन्हें सही अर्थों में क्या मिला है । धार्मिक एवं जातीय भावना को भड़का कर
सिफ पाकिस्तानी जनता को ही गम
ु राह नहीं किया गया। है । बल्कि भारतीय कट्टरवादी मस्लि
ु म भी
इनकी चाल में फंस चुके हैं। पाकिस्तानी शासकों में अपनी आम जनता के प्रति उदासीनता सदै व से
रही है । वह शक्तिशाली राष्ट्रों के दबाव में आकर अपनी कुर्सी सरु क्षित बनाये रखने के स्वार्थ में
आकर आवाम को गुमराह करते रहे हैं वे भारत के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के नाम से कतराते
हैं कि भारत की लोकतांत्रिक परम्परा में निहित मैत्री, प्रेम, एकता और शांति के तत्व यदि पाकिस्तान
में प्रवेश कर गये तो उनकी सत्ता छिन्न-भिन्न हो जायेगी

फलस्रप
ू पाकिस्तानी शासन अपनी कुर्सी को सरु क्षित व सलामत रखने के लिए ही भारत से घण
ृ ा बैर
एवं विरोध को सगुफा छोड़कर निरन्तर तनाथ का माहौल बनाये रखना चाहता है । यह अब यहां के
शासकों की नियति बन चक
ु ी है । भारत एवं पाकिस्तान के मध्य निन्तर तनाव रखने एवं सम्बन्ध
सुधरने के विरोधी दोनों ही दे शों में है क्योंकि यदि सम्बन्ध सुधर गये तो बहुत सारे नेताओं की
दक
ू ाने दोनों दे शों में बन्द हो जायेंगी। यही कारण है कि सीमा पर सदै व रायफल व राकेट की
गड़गड़ाहट एवं भयपूर्ण वातावरण बना रहे इसी में वे अपने हित तलाशते हैं। अमरीकी आकाओं के
हाथों में खेलना पाक की पुरानी आदत है इसके साथ ही इस्लामी दे शों की राजनीति के सत्र
ू भी पकड़े
हैं। ऐसी परिस्थित में पाकिस्तान चाहता है कि वह लगातार ऐसी हरकतें करे जिससे भारत उत्तेजित
होकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करे । जिसके आधार पर वह अपने आकाओं की गुहार लगा सके।
पाकिस्तान जानता है कि भारत बातचीत द्वारा मामला सुलझाने का पक्षधर है अत: पाकिस्तान
बातचीत के सारे रास्ते बन्द कर दे ना चाहता है पाकिस्तान का प्रत्येक शासन चाहे व राजनैतिक
अथवा सैनिक रहा हो वह अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए भारत विरोधी बयान बाजी के साथ
ही कूटनीतिक व सामरिक गतिविधियों को खुलकर बढ़ावा दे ता रहा है । भारत • पाकिस्तान सम्बन्धों
की जढ़ में कश्मीर समस्या की बेल इस तरह फैल गयी है कि इसे हटाना या जड़ से खोदना जल्दी
सम्भव नहीं है । भारत पाक विभाजन के साथ ही मोहम्मद अली जिन्ना ने कश्मीर को एक ऐसी
समस्या का रूप दे दिया जिसके कारण भारत एवं पाकिस्तान के शासक कभी सुख चैन के साथ नहीं
बैठ सकते। भारत पाकिस्तान के सम्बन्धों की चादर में इतने अधिक छे द हो चक
ु े हैं कि इसमें जब
एक और पैबन्द लगाया जाता है तो दस
ू री ओर से खींचकर इस प्रकार कर दे ते हैं कि एक और
पैबन्द की जरूरत पड़ती है । ये सिलसिला लगातार जारी है इसलिए सम्बन्धों की चादर में पैबन्द ही
पैबन्द नजर आते हैं और आपसी खींचतान में यह चादर चिपडे बन सकती है । भारत पाक सम्बन्धों
में तनाव की बात आश्चर्यजनक नहीं लगती किन्तु हमें इस बात पर जोर दे ने की जरूरत है कि
दोनों दे शों को जो परे शानियां उठानी पड़ रही है उनको आखिर कम कैसे किया जाय। राजनैतिक स्तर
पर दोनों दे शों के नेता अक्सर इस बात की दह
ु ाई दे ते हैं कि दोनों दे शों के सम्बन्ध सुधरने चाहिए
लेकिन हकीकत में इस दिशा में एक कदम बढ़ाते ही दो कदम पीछे हट जाते हैं। दोनों दे शों के
तनाव में इतनी दरू ी तय कर ली है कि सम्बन्ध के मिलन की बात मजाक लगने लगी है । नई पीढ़ी
के लोग शायद यह भी मानने के लिए तैयार नहीं होंगे कि 1947 ई. के पहले भारत और पाकिस्तान
एक था लेकिन आज भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग उपनिवेश बन चुके हैं?

आखिर वह समय आ ही गया जब भारत व पाकिस्तान के शासकों ने अतीत को भूल को समझते


हुए इस महाद्वीप को एक नया स्वरूप प्रदान करने के लिए नये कदम उठाये हैं। यह संकेत 20
फरवरी 1999 की दिल्ली लाहौर बस यात्रा से मिला है और यह भी एक ऐसे तनावपूर्ण परिवेश में
मिला जब भारत व पाकिस्तान एक दस
ू रे को पछाड़ने की होड़ में लगे हुए थे। परमाणु परीक्षणों के
बाद दोनों दे शों में सैन्य शक्ति को सुदृढ़ बनाने की होड़ सी लगी। अमेरिका सहित पश्चिमी राष्ट्रों ने
परमाणु हथियारों की होड़ लगाने के लिए तथा दक्षिण ऐशिया में शांति व्यवस्था को भंग करने के
लिए भारत पाक को दोषी ठहराते हुए कड़े आर्थिक प्रतिवन्ध लगा दिये और अपनी कूटनीतिक चालों
से इन दे शों को शिकार करने की यहं द योजना बना ली। परमाणु परीक्षणों को लेकर अमेरिका ने
असंयत भाषा का प्रयोग करना ही आरम्भ नहीं किया बल्कि दोनों दे शों को आर्थिक मेरे में घेर कर
घसीटने के भी हर हथकंडे प्रारम्भ कर दिये आखिर बन्दर बांट से बचने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री श्री
अटल बिहारी बाजपेयी ने दिल्ली व लाहौर की बढ़ती कड़वाहट को कम करने के लिए एक साहसिक
एवं सामयिक कदम उठाकर स्वर्णिम इतिहास की व्यवस्था कर दी थी। अपनों को मिलाने वाली बस
यात्रा भले ही बेबसी में चली हो किन्तु पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने स्वयं सरहद का
फाटक खोलकर भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का गर्मजोशी से स्वागत किया वह इस
बात का स्पष्ट प्रमाण है कि उनके दिलों में भी दोस्ती की लहरें हिलोरें दिखाई दे रही थीं। इन सारी
वार्ताओं का अवलोकन करने के बाद यह पूर्णरूप से सामने उजागर होकर आता है कि भारत और
पाकिस्तान के वैमनस्यता का औपचारिक शुभारम्भ एकता में परिवर्तित होगा लेकिन प्रतिस्पर्धा की
होड़ में दोनों में लड़ाई की आशंकाएं पर्ण
ू रूप से उजागर होकर सामने आ खड़ी होती है। अटल बिहारी
बाजपेयी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के मध्य 1999 में दिल्ली बस यात्रा के कार्यों का
जो समाधान निकला वह शीत यद्ध
ु अथवा परोक्ष यद्ध
ु के हिमखंड पिघलते हुए भी दे खे गये किन्तु
दोनों दे शों के बीच विगत 51 वर्षों से जमी विरोधी विचारधारा की नदी का प्रवाह एकदम नहीं मोडा
जा सका। यह प्रयास तो समचि
ु त दिशा नहीं दे सकते परन्तु कट्टर पंथी एवं विरोधी ताकत से
मनसूबों में भारत पाक रिश्तों की मजबूतो अवश्य दे खी जाती है । इसलिए उनको यह जल्दी नहीं
हजम हो पा रहा है कि अपनी उग्रवादी गतिविधियों को जारी रखें। निःसंदेह दिल्ली बस यात्रा का
समाचार सुखद सराहनीय एवं शुभ संकेत का सूचक रहा है और अन्तिम सदी का उपहार रहा है जिसे
संजोये रखने की जरूरत है यह एक मित्रता का प्रतीक है जिसकी शुरूआत हो चुकी है और भारत
पाकिस्तान राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीय स्तर पर एक दस
ू रे से अधिक लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी का कथन है कि राष्ट्रों का इतिहास बदलता है किन्तु भूगील
कभी नहीं बदलता है। यद्यपि कि मित्र एवं शत्रु बदले जा सकते हैं किन्तु पड़ोसी नहीं बदला जा
सकता है दोनों दे शों ने अर्धसदी से अधिक समय आपसी दश्ु मनी में गुजारा है कि अब आपसी
भाईचारे के साथ मिलकर दोनों राष्ट्र अपनी आवाग को एक नया एहसास दें गे ऐसा मेरा पर्ण
ू विश्वास
है " आपसी सहमति के मुद्दों का तार्कि क ढं ग से मूल्यांकन करने पश्चात यह उभर कर सामने आता है
कि भारत और पाकिस्तान के मैत्री सम्बन्धों के लिए जो संवाद प्रक्रिया शरू
ु हुई है इससे तनाव की
बढ़ती खाई की दरू ी को कम हो नहीं किया जा सकेगा बल्कि समय के साथ इसको भर भी दिया
जायेगा। व्यापार के क्षेत्र में निश्चित रूप से नई सम्भावनाएं भी बढ़े गी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था
परमाणु परीक्षण के उपरान्त दै नीय दशा की ओर बढ़ती जा रही है इसलिए इसपर अंकुश लगाने के
लिए दोनों दे शों का हित दोस्ती से ही सम्भव है । शायद अमेरिका ने भी यह दे ख लिया है कि भारत
और पाकिस्तान के विशाल बाजार का लाभ उठाना है तो भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में
तनाव दरू करना होगा। दोनों दे शों के प्रधानमंत्रियों ने उस वक्त के नजाकत को पहचाना और दोस्ती
के हाथ बढ़ाये थे। श्री बाजपेयी ने पाक यात्रा के दौरान लाहौर में स्पष्ट शब्दों में कहा था कि दक्षेस
दे शों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का विकास जरूरी है और पड़ोसी दे शों के साथ दोस्ती जरूरी भी है
और मजबूरी भी है। भारत पाक विवादों को निपटाने के लिये चल रही नई दिल्ली में सचिव स्तर की
वार्ता हे तु जो प्रमुख मुद्दे शामिल किये गये है उनमें सियाचीन विवाद, जुलमुल नौवहन परियोजना,
सरक्रीक समुद्री सीमा विवाद, आतंकवाद एवं मादक पदार्थों की तस्करी समस्या तथा व्यापारिक
सहयोग प्रमुख रूप से हैं सामरिक समस्याओं का मामला सचिव स्तर पर सुलझ नहीं पाया है और न
ही इसपर दोनों दे शों की आम सहमति बनी है । आतंवाद को निरुत्साहित करने एवं मानक पदार्थों की
तश्करी पर अंकुशल लगाने के लिए पाक को एक भारी दबाव उठाना पडेगा क्योंकि आतंवाद एवं
तस्करी की जड़ें वहाँ की राजनीति में प्रवेश कर चक
ु ी हैं , इसके बावजूद इन जटिल समस्याओं के
निराकरण हे तु तो प्रयास किये जा रहे है नि:संदेह रूप से सराहनीय है भारत और पाकिस्तान के बीच
रिश्तों की कड़वाहट दरू करने की कोशिश पिछले छह दशक से जारी है । यदि दोनों दे शों के बीच
मित्रव्रत संबंध बनाए जा सकते हैं तो उसका जरि
ु या सिर्फ क्रिकेट ही हो सकता है। आजादी के दौरान
हुए दं गों ने दोनों दे शों के बीच रिश्तों की ऐसी दरार पैदा कर दी, जिसे भरने की आज तक कोशिश
की जा रही है। अब तक हम इस दरार को भर पाने में नाकाम रहे हैं। मुंबई आतंकवादी हमले के
बाद दोनों दे शों के बीच दरि
ू यों को कम करने का जुरिया फिर से क्रिकेट बन गया है । बीसीसीआई ने
पीसीबी के दोनों दे शों के बीच मैच कराने के प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा दी। भारत और पाकिस्तान
के बीच दिसंबर के आखिरी और जनवरी के पहले सप्ताह में यह श्रख
ं ृ ला आयोजित की जाएगी. इस
दौरान तीन एक दिवसीय और दो टी-20 मैचों खेले गये। एक दिवसीय मैच कोलकाता, चेन्नई और
दिल्ली में आयोजित किए गये, जबकि टी-20 मैच अहमदाबाद और बंगलुरु हुए। बीसीसीआई के इस
फैसले का विरोध पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने किया है गावस्कर का कहना है कि
बीसीसीआई को दोनों दे शों के बीच श्रंख
ृ ला आयोजित करने की जल्दबाज़ी क्यों है , जबकि मंब
ु ई हमलों
की जांच अब भी जारी है और पाकिस्तान इसमें सहयोग नहीं कर रहा है । हाल में पकड़े गए
आतंकवादी अबू जिंदाल ने इस घटना में पाकिस्तानी हाथ होने की बात कुबल
ू की है । इस हालत में
दोनों दे शों के बीच श्रंख
ृ ला का आयोजन करना कितना सही है ? आज़ादी के बाद भारत और
पाकिस्तान के बीच पहली श्रंख
ृ ला 1951-52 में आयोजित की गई थी, तब पाकिस्तान की टीम भारत
के दौरे पर आई थी। भारतीय टीम ने पहली बार पाकिस्तान का दौरा 1954-55 में वीनू मार्के ड की
कप्तानी में किया था। 1961 से 1978 के बीच दोनों दे शों के बीच कोई श्रंख
ृ ला आयोजित नहीं की गई
थी। यह दौर भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी लिहाज से सबसे बुरा माना जाता है । 17 साल
के इस अंतराल में दोनों दे शों के बीच 1965 और 1971 में दो युद्ध हुए। 1976 में खेल संबंध बहाल
हुए, और भारतीय टीम पाकिस्तान के दौरे पर गई। 1978 से 1989 के बीच दोनों दे शों के बीच
लगातार क्रिकेट खेली जाती रही। 1999 में भारतीय टीम पाकिस्तान दौरे पर गई थी। इसी में सचिन
तें दल
ु कर ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया था। 1989-90 में कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं
में बढ़ोत्तरी के बाद 8 साल तक दोनों दे शों के बीच किसी श्रंख
ृ ला का आयोजन नहीं हुआ। 1997 में
पाकिस्तान क्रिकेट टीम इंडिपें डेंस कप में भाग लेने भारत आई थी। इसके बाद 1999 में दोनों दे शों के
बीच संबंध बहाल करने के उद्देश्य से पाकिस्तानी टीम भारत दौरे पर आई थी, तब शिवसेना ने उसका
विरोध करते हुए फिरोजशाह कोटला मैदान की पिच खोद दी थी। तब शिवसेना के विरोध के बावजूद
श्रंख
ृ ला आयोजित की गई थी। तत्पश्चात प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने बस से लाहौर तक यात्रा
की मगर उसके बाद पाकिस्तानी फौज ने कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी, इसके कारण जुलाई 1999
में करगिल में दोनों दे शों के बीच लड़ाई छिड़ गई। इसके बाद दोनों दे शों के बीच संम्बंधों की दरार
और गहरी हो गई। इसके बाद 2003-04 में एक बार फिर दोनों दे शों के बीच संबंध को बहाल करने
के लिए क्रिकेट का सहारा लिया गया। इस बार भारत ने पाकिस्तान का दौरा किया और सौरव
गांगुली की कप्तानी में पहली बार पाकिस्तान की धरती पर टे स्ट सीरीज जीतने में कामयाब हुआ
था, उसके बाद लगातार दोनों दे शों के बीच क्रिकेट श्रंख
ृ ला आयोजित होने लगी, लेकिन 2009 में मुंबई
हमले में पाकिस्तानी आतंकवादियों का हाथ होने की बात सामने आई और फिर दोनों दे शों के बीच
क्रिकेट सीरीज नहीं हुई। आखिरी बार दोनों दे शों के बीच सीरीज 2007 में भारत में खेली गई थी।
2011 के विश्वकप के सेमीफाइनल में खेलने के लिए पाकिस्तानी टीम भारत आई थी। तत्कालीन
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी मनमोहन सिंह के आमंत्रण पर मोहाली मैच दे खने आए
थे। तब से भारत पाकिस्तान के बीच क्रिकेट श्रंख
ृ ला के आयोजन की बात होने लगी थी। भारत
पाकिस्तान के बीच होने वाले मैचों पर पूरी दनि
ु या की नजरें होती हैं। जब भी दोनों मुल्कों के बीच
मक
ु ाबला होता है तब दोनों दे शों में रास्ते सन
ु सान हो जाते हैं . लोग सरहद पार जाकर मैचों का लत्ु फ
उठाते हैं। बल्ले और गें द के बीच का मुकाबला कुछ पल के लिए सभी गिले -शिकवे दरू कर जाता है .
दोनों ही दे श क्रिकेट के रं ग में सराबोर हो जाते हैं। दोनों दे शों में क्रिकेट की मजबत
ू जड़ें और दोनों
के बीच होने वाले कड़े मुकाबले ही हर बार संबंधों के टूटने का सांकेतिक जूरिया बनते हैं। क्रिकेट के
रिश्ते टूटते ही दोनों दे शों के लोगों को दरि
ू यों के बढ़ने का एहसास होने लगता है । लोगों का कहना है
कि हर बार किसी भी घटना के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हो
जाते हैं। मगर खेल संबंधों के स्थापित होने में ज्यादा वक्
ृ त लग जाता है और नक
ु सान हमेशा क्रिकेट
प्रेमियों और क्रिकेट खिलाडियों का होता है । लोगों के बीच राजनयिक संबंधों के पख्
ु ता हो जाने की
पुष्टि भी क्रिकेट के ज़रिए ही होती है । खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के ज़रिए ही दोनों दे शों के
लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़ता है , खिलाडियों और कलाकारों को सरहदों में बांधना ठीक नहीं है ।
लोगों के लोगों के बीच मेल-मिलाप बढ़ने से ही संबंधों की तल्लखी कम होती है । इसे राजनीतिक
बिसात में प्यादे की तरह इस्तेमाल न किया जाए, खेल को अगर खेल ही रहने दिया जाए तो दोनों
दे शों के लिए बेहतर होगा।"

भारत और पाकिस्तान ने बीजा नियमों को आसान बनाने वाले समझौते किये हैं इस समझौते में
पहली बार पर्यटकों को वीजा दे ने की बात शामिल है । नए समझौते के बाद समूह में पर्यटन या तीर्थ
यात्रा करने के लिए एक दस
ू रे के यहां जाने वाले लोगों को वीजा मिलने की राह आसान होगी साथ
ही 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को आगमन पर बीजा की सुविधा दी गई है । इस्लामाबाद में
भारतीय विदे श मंत्री एसएम कृष्णा और पाकिस्तान के गह
ृ मंत्री रहमान मलिक ने इस समझौते पर
हस्ताक्षर किए। ये समझौता 38 साल पुराने उस करार की जगह लेगा जिसमें बीजा के लिए कड़े
नियम मौजूद हैं। नए समझौते से निश्चित समय में बीजा मिलने और दोनों दे शों के लोगों के बीच
आपसी संपर्क बढ़ने का रास्ता साफहोगा। इसके अनस
ु ार आवदे न के अधिकतम 45 दिनों के भीतर
वीजा दे दिया जाएगा। हालांकि गैर-राजनयिक बीजा जारी किए जाने के लिए कोई समय-सीमा
निर्धारत नहीं की गई है। नई बीजा व्यवस्था के तहत कोई व्यक्ति बीजा पर पांच जगहों की यात्रा
कर सकता है। मौजूदा व्यवस्था के तहत तीन ही जगहों पर जाने की अनुमति है । इसके अलावा 65
साल से ज्यादा उम्र के लोगों, 12 साल से कम उम्र के बच्चों और नामी उद्योगपतियों को पलि
ु स
स्टे शन में जाकर रिपोर्ट करने से छूट दी गई है ।

पाकिस्तान की विदे श मंत्री हिना रब्बानी खर ने दोनों दे शों के बीच हुए इस समझौते पर खश
ु ी जताई
और आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने पर जोर दिया। उन्होंने करा, अगर भारत और पाकिस्तान के
रिश्तों को दे खें तो हमने बहुत से मौके गंवाए है ... लेकिन हम पाकिस्तान की तरफ से भरोसा दिलाते
हैं कि हम अब और अवसर नहीं गंवाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि दोनों दे शों को पुरानी बातों को
छोड़ कर आगे बढ़ाना चाहिए। भारतीय विदे श मंत्री एसएम कृष्णा ने कहा कि उन्होंने पाकिस्तानी
नेतत्ृ व को बता दिया है कि भारत पाकिस्तान के साथ बेहतर रिश्ते चाहता है । उन्होंने सभी विवादों
को शान्तिपूर्ण तरीके से सुलझाने पर जोर दिया ताकि आपसी भरोसे के आधार पर मजबूत रिश्ते
कायम किए जा सकें। हालांकि उन्होंने माना कि इसके लिए लंबा सफर तय करना होगा और ये
सफर आसान नहीं है । उन्होंने कहा, आतंकवाद दोनों दे शों के बीच शांति और सुरक्षा के लिए बराबर
खतरा बना हुआ है । दोनों दे शों इससे लड़ने के लिए बचनबद्ध है । उनके मुताबिक पाकिस्तानी नेताओं
ने उनसे भरोसा दिलाया है कि मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार लोगों को जल्द से जल्द कानून के
कठघरे तक लाया जाएगा। कृष्णा ने भारत और पाकिस्तान के बीच सामान्य होते व्यापारिक रिश्तों
पर भी संतोष जताया।

भारत पाक सम्बन्ध सामान्य न होने का मुख्य कारण अन्य समस्याओं के साथ-साथ भारत में
आतंकवादी कार्यवाही है जिसका सम्बन्ध पास्तिान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से है यह बात
प्रमाणित हो चुकी है । कुछ समय पूर्व हरियत नेताओं का एक प्रतिनिधि मण्डल पाक अधिकृत
कश्मीर और पाकिस्तान गया था। इसमें जम्मू कश्मीर, लिब्रेशन फ्रंट के नेताओं यासिर मलिक ने
अपनी उस यात्रा में पाकिस्तान के वर्तमान सूचना मंत्री शेख राशिद अहमद की प्रशंसा में कहा कि
कश्मीर की आजादी की लड़ाई में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी रावलपिंडी के पास उनका बडा
फार्म हाउस है जिसे फ्रीडम हाउस कहा जाता है .80 के दशक में उसमें 3500 जेहादियों को आतंकी
प्रशिक्षण दिया गया। जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के पाकिस्तान अधिक कश्मीर में रह रहे नेता
अमानल्
ु ला खान को हाल में प्रकाशित आत्मकथा में कहा है कि 80 के दशक में कश्मीर में जो
हथियारबन्द जेहादी कार्यवाही शुरू हुई उसे पाकिस्तान के तत्कालीन शासक जनरल जियाटलहक का
परू ा समर्थन प्राप्त था। कश्मीर में तीन लाख से अधिक पंडितों को निकाला जाना निर्दोष लोगों की
हत्या, रघुनाथ मन्दिर, अक्षरधाम मन्दिर और संसद भवन पर आतंकी हमला और 5 जुलाई 2005 को
अयोध्या धाम में राम जन्मभमि
ू परिसर में हमले के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों की लश्कर-ए-
तैयबा की सम्बद्धता की पुष्टि से यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान पिछले कई अरसों से अपने
आतंकवादी ढांचे को नष्ट करने के बजाय उसे बढ़ाने का प्रयास किया है । जेहादी आतंकवादियों में
फिदाइन शब्द खुब प्रचलित है जिसे मजहब कर्तव्य जन्नत जैसी बातों से उन्मादी बनाया जाता है
और साथ ही साथ रूपयों का प्रलोभन दे कर आतंकवादी कार्यवाही करायी जाती है ।

विश्लेषकों का कहना है कि पीएमएल-एन प्रमुख नवाज शरीफ की अगुवाई वाली नई सरकार भारत
और पाकिस्तान के रिश्ते न केवल सध
ु ार सकती है , बल्कि आतंकवाद निरोधक रणनीति भी बेहतर
तरीके से आगे बढ़ा सकती है । यह हम सभी जानते हैं कि वर्ष 1999 में शरीफ ने तत्कालीन
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पाकिस्तान की ऐतिहासिक यात्रा के लिए आमंत्रित किया था।
इसलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अब यह उम्मीद है कि परमाणु संपन्न इन पड़ोसियों के बीच
संबंधों के एक नए दौर का सूत्रपात भविष्य में जरूर होगा। दरअसल, जीत के बाद नवाज शरीफ में
भरोसा दिलाया है कि वह अपनी सरजमीं से भारत में आतंक फैलाने वाली किसी गतिविधि की
इजाजत नहीं दें गे, क्योंकि उन्हें इस बात का भलीभांति एहसास है कि किस तरह से करगिल यद्ध
ु से
उन्होंने अपने हाथ जला लिए थे। इसीलिए अब वह हर कदम क फूंक कर रखेंगे। दरअसल, उनके
बयानों से भी यही लगता है । यहाँ यह बताना जरूरी है कि भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने के
लिए नवाज ने पहल भी शुरू कर दी है । यदि बयानों के इतरों को समझें , तो परवेज मुशर्रफ की
मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। लेकिन स्थिति चाहे जो भी हो, भारत से हाथ मिलाने के लिए नवाज हरसंभव
कोशिश करें गे। शरीफ ने कहा कि हम भारत से रिश्ते बेहवर करने के लिए काम करें गे। हम भारत
के साथ दोस्ती चाहते हैं, इसलिए कारगिल और 26/11 वैसी घटनाओं की इजाजत हम कभी नहीं
दें गे। यह हम सभी जानते और मानते हैं कि आतंकवाद भारत और पाकिस्तान दोनों को नुकसान
पहुंचाता है । उन्होंने कहा कि वह दोनों दे शों के बीच कश्मीर समेत सभी मद्द
ु े सल
ु झाना चाहते हैं।
लाहौर घोषणा पत्र एक अच्छी शुरुआत थी और वह एक बार फिर उस पर अमल करें गे। एक बड़े
कदम के तौर पर उन्होंने भारत को भरोसा दिलाया कि दी तत्वों को नेस्तनाबद
ू करने की हरसंभव
कोशिश की जाएगी। गौरतलब है कि नवाज शरीफ ने वर्ष 1999 में लाहौर घोषणा पत्र में काफी
सफलता प्राप्त की थी। इसके बाद उन्हें निर्वासन झेलना पड़ा था, इसलिए यह बात आगे नहीं बढ़
सकी। जानकार भी कहते और मानते हैं कि शरीफ संबंध सुधारना ती चाहते हैं , लेकिन उन्हें साथ ही
साथ यह भी लगता है कि पाकिस्तान में सेना के वर्चस्व, खुफिया एजेंसी आईएसआई के हस्तक्षेप
और आतंकवादी संगठन तालिबान के कारण दोनों दे शों के बीच बेहतर रिश्ते कायम करने में मुश्किलें
ही मुश्किलें हैं। पाकिस्तान मामलों के जानकार भरत वर्मा मानते हैं कि शरीफ को पाकिस्तान में
लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए उच्चतम न्यायालय का सहारा लेना होगा। एक अन्य जानकार
फिरोज अहमद ने कहा कि यदि शरीफ सेना और आईएसआई पर नियंत्रण रखने में सफल होंगे , तभी
दोनों दे शों के बीच बेहतर संबंध बन पाएंगे। पूर्व राजनयिक राजीव डोगरा का कहना है कि फिलहाल
कश्मीर मुद्दे को एक तरफ रखकर अन्य मुद्दे सुलझाने को तवज्जो दी जाए, तो कश्मीर समस्या
सल
ु झाने में मदद मिल सकती है । हालांकि भारत की भी अपनी कुछ चिंताएं हैं , जिनसे वह नवाज
शरीफ को अवगत कराना चाहे गा. 2010 में तत्कालीन गह
ृ मंत्री पी चिदं बरम ने पाक यात्रा के दौरान
एक सच
ू ी सौंपी थी। भारत पहले उन मद्द
ु ों पर कार्रवाई चाहता है , जो 2008 के आतंकी हमले के
साजिशकर्ताओं पर कार्रवाई से संबधि
ं त हैं।"

हाल ही में कुलदीप नैयर के पत्र व्यवहार पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा है : मैं
एक ऐसे वक्त का इंतजार में हूं जब हिंदस्
ु तान और पाकिस्तान अतीत के बेकार बोझ को फेंक दें गे
और भविष्य पर परू ा ध्यान लगाएंगे गौरवशाली और स्वतंत्र इन दो राष्ट्रों के बीच के रिश्तों को
चुनौतियां नहीं, अवसर तय करें गे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से उनकी मुलाकात भारत के साथ संबंध
सध
ु ारने की उनकी दिली तमन्ना का सबत
ू है । भारत और पाकिस्तान की दश्ु मनी इतनी बदनाम है
कि इसे कम करने की दिशा में होने वाली कोई भी प्रगति राहत दे ती है । दोनों के बीच हुई बैठक से
दो दे शों के बीच की दरू ी कम नहीं हुई हो, लेकिन इसने चुप्पी जरूर तोड़ी है । और यह एक अच्छी
शुरुआत है । संदेह करने वालों को खुश करना कठिन है , विशेषकर उस समय जब नवाज शरीफ ने
मनमोहन सिंह को पाकिस्तान में चल रहे आतंकी शिविरों (जिसकी संख्या 30 है ) के बारे में कोई
आश्वासन नहीं दिया। बैठक आगे की और एक कदम है । दोनों प्रधानमंत्री अपने-अपने घरे लू
विपक्षियों की ओर से भारी दबाव में थे, लेकिन वे अड़े रहे और एक घंटे की मुलाकात की। दोनों को
इस बात के लिए बधाई मिलनी चाहिए कि उन्होंने बैठक रद्द करने के बदले बातचीत को महत्व दिया
नहीं तो शांति की संभावना को धक्का पहुंचता। मैं मुलाकात का विरोध करने वालों का तर्क समझने
में असमर्थ हूँ। क्या और कोई रास्ता है ? दोनों पक्ष बातचीत को टाल सकते हैं लेकिन उन्हें आज या
कल, एक दस
ू रे से मिलना ही होगा। और, इस बैठक का नतीजा सकारात्मक रहा। दोनों ने प्राथमिकता
को चिन्हित किया कि लाइन आफ कंट्रोल (नियंत्रण रे खा) पर मद्ध
ु विराम को मजबत
ू ी से लागू करें गे।
1999 में हुआ मुद्धविराम का समझौता एक दशक तक सफलता से चला। यह दर्भा
ु ग्यपूर्ण है कि
तालिवान जम्मू और कश्मीर में घुस आया और पांच सैनिकों की जान ले ली। अब दोनों प्रधानमंत्रियों
ने अपने-अपने डायरे क्टर जनरल आफ मिलिटरी आपरे शंस (सैनिक कार्रवाई के महानिदे शकों) को
आपस में बैठक करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि युद्धविराम का उल्लंघन नहीं
हो। मिलिटरी आपरे शंस दोनों डायरे क्टर जनरलों को अव्वल तो यह भी पता करना चाहिए कि क्या
यह सच है कि ऐसा पाकिस्तानी सैन्य बल ने नहीं तालिबान ने किया। लेकिन तालिबान ने
पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत में घुसने के लिए कैसे किया? कुछ लोगों की मिलीभगत
तो साफ है ।

तालिबान की समस्या, जिसने व्यवहार में पाकिस्तान के सभी क्षेत्रों को असुरक्षित बना दिया है , से
हमें उचित ढं ग से निबटना होगा। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल परवेज कयानी ने घोषणा की है
कि उत्तरी वजीरिस्तान की स्वात घाटी में सेना बनी रहे गी। साथ ही साथ उन्होंने तालिबान के साथ
बातचीत के मामले को लेकर प्रधानमंत्री नवाज शरीफसे अपना मतभेद जाहिर किया है । उन्हें इस
बात को समझना चाहिए कि तालिबान का मार्गदर्शन करने वाले अल-कायदा के फिर से उभरने से
पूरे क्षेत्र के लिए खतरा पैदा हो गया है । स्थिति और भी खराब हो सकती है । जब अगले साल
पश्चिमी सेना अफगानिस्तान से लौट जाएगी। पश्चिमी सेना के वापस लौटने के बाद हमलों के लिए
नौजवानों की भर्ती करने और उन्हें प्रशिक्षण दे ने का काम अल-कायदा ने अब तक शुरू भी कर दिया
है । अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित, अफगानिस्तान की सेना और पलि
ु स की तालिबान के हमलों को झेलने
की क्षमता को लेकर मुझे शक है । मुझे लगता है कि अल-कायदा की उग्रपंथी विचारधारा के बारे में
पाकिस्तान के लोगों को ठीक तरह से बताया नहीं गया है । उन्हें इसका थोड़ा स्वाद उस समय मिला
जब स्वात घाटी थोड़े समय के लिए तालिबान के कब्जे में चली गयी थी। संगीत की दक
ु ानें बंद कर
दी गई थीं और लड़कियों को शिक्षा दे ने वाले संस्थानों को भी बंद कर दिया गया था।

पर्दा अनिवार्य कर दिया गया और साधारण तौर पर यही उम्मीद की जाती थी कि औरतें घर के
अंदर रहें गी। अभिव्यक्ति की नाममात्र की स्वतंत्रता भी नहीं थी, उदार विचारों का तो सवाल ही नहीं
पैदा होता है । इस क्षेत्र में मदरसा और मस्जिद तालिबान और उसकी कट्टरपंथी विचारधारा पैदा करने
के केंद्र बन गए हैं। मैं यह नहीं समझ पाता हूं कि कुछ मस्लि
ु म दे श उन्हें धन वर्षों दे ते हैं।
बहिष्कृत लीबिया के बारे में कहा जाता है कि वह उन्हें हथियारों की सप्लाई करता था। लगता है
मुस्लिम दे श अरब- वसंत के बारे में भूल गए जब कट्टरपंथियों का मुकाबला करने नौजवान और उदार
विचारों वाले साथ सड़क पर आए। उस समय मस्लि
ु म दे श लोकतंत्र का मंत्र जपने लगे। कट्टरपंथी
छात्रों में विभाजन पैदा करने में सफल हो गए और लोकतंत्र की मांग को हरा दिया। अल-कायदा की
विचारधारा अरब-वसंत की भावना को जिंदा कर सकती है । मैं चाहता था कि प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह और नवाज शरीफ अल-कायदा के पुनजीवित होने के बार में बातचीत करते। मेरी कामना है की
भारत और पाकिस्तान, खास कर पाकिस्तान को इस बारे में सोचना होगा। कि अफगानिस्तान से
पश्चिमी दे शों की सेना की वापसी के बाद किस तरह की शून्यता पैदा होगी। अगर आतंकवाद से
लड़ना उनकी प्राथमिकता है तो अल-कायदा और अत्याचार की इसकी मशीन तालिबान को उनके
एजेंडे पर सबसे ऊपर में होना चाहिए। वास्तव में मुजाहिदीन के रूप में तालिबान पहले से ही भारत
में काम कर रहा है । स्थिति अभी भी नियंत्रण में हैं। लेकिन हिंद ू तालिबान का जन्म लेना भारत के
लिए चिंता का विषय होना चाहिए। मेरी इच्छा है कि दोनों दे श स्थिति की गंभीरता को समझेंगे और
संयुक्त कार्रवाई योजना बनाएंगे। नई दिल्ली को यह अंदाजा लगाने की क्षमता होनी चाहिए कि
इस्लामाबाद अगर तालिबान के मातहत चला जाता है या उनके आदे श पर चलता है तो स्थिति कैसी
होगी। यहां तक की केन्या और नाइजीरिया भी अल कायदा के प्रचंड क्रोध से बच नहीं पाया। उत्तर-
पश्चिम सीमांत प्रदे श (नार्थ वेस्टर्न फ्रांटियर प्रोविंस) की राजधानी पेशावर पिछले सप्ताह तीन बार
निशाने पर रहा जिसमें अमूमन दो सौ लोगों की जानें गईं। पाकिस्तान अभी भी लश्कर-ए-तोयबा के
साथ सख्ती से पेश नहीं आ रहा है । इसके मखि
ु या सरकार के नियंत्रण वाले गद्दाफी स्टे डियम में
प्रार्थना सभा की अगआ
ु ई करते हैं और भारत के खिलाफ लोगों को भड़काते हैं। मनमोहन सिंह ने
जब नवाज शरीफसे मंब
ु ई पर 26/11 के हमलों के लिए जिम्मेदार आंतकवादियों के खिलाफ कार्रवाई
के बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा कि पाकिस्तान न्यायिक आयोग के दौरे के बाद उनके
खिलाफ चल रहे मुकदमों में तेजी आएगी। इस तरह की पष्ृ ठभूमि के मद्देनजर गुजरात के मुख्यमंत्री
का एक बयान अनुचित था। उन्होंने एक पाकिस्तानी टे लीविजन एंकर की उस शरारतपूर्ण टिप्पणी
पर भरोसा किया जिसमें नवाज शरीफने मनमोहन सिंह की तुलना दे हाती औरत से की है। जैसा कि
बाद में सामने आया कि ऐसी कोई टिप्पणी नहीं हुई थी। दे श का प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखने
वाली मोदी को इस बारे में सावधान रहना चाहिए कि वह क्या बोल रहे हैं? लेकिन वह तो लोगों को
भड़काने के काम में उलझ जाते हैं। फिलहाल कुछ लोग यह समझाते हैं कि कब्जे वाले भाग को
पाकिस्तान को सौंप दे ने से समस्या का समाधान हो जायेगा। जो अलगाववादी हैं वे पाकिस्तान के
हस्तक बनकर काम कर रहे हैं और अब्दल्
ु ला परिवार स्वतंत्र दे श के रूप में वहां खानदानी राज
चलाना चाहता है । 1947 के पहले से ही सक्रिय शेख मोहम्मद अब्दल्
ु ला की पीठ पर अमेरिका का
हाथ रहा है और आज भी है क्योंकि उसे गिलगिट पर अपना कब्जा चाहिए था जहाँ से वह सोवियत
यूनियन और चीन दोनों की निगरानी और तेल भंडार युक्त दे शों पर कब्जा कर सकने की क्षमता
रखता था। अब भी उसकी निगाह गिलगिट पर है जो पाकिस्तान के कब्जे वाले भाग में है इसलिए
नियंत्रण रे खा को स्थायी सीमा मान लेने से उसके हस्तक ही नहीं भारत सरकार भी अमेरिका पर
आर्थिक व्यवस्था की निर्भरता के कारण विवश है
भारत सरकार ने पांच सैनिकों की हत्या के बाद तात्कालिक रुख में पाकिस्तान को दोष दे ने से बचने का
प्रयास किया लेकिन संसद और जनभावना का संज्ञान लेने के बाद उसे विवश होना पड़ा। इसलिए हम यह कह
सकते हैं कि कश्मीर अभी तक दिल्ली में बैठी सरकार की बज
ु दिली का परिणाम है । हमारी सेना एक दिन में न
केवल घुसपैठियों को समाप्त कर सकती है बल्कि पाकिस्तान द्वारा कब्जाये भाग को मक्
ु त भी करा सकने की

क्षमता रखती है। संविधान की धारा 370 जिसका अब कोई औचित्य नहीं रह गया है , वहां के मख्
ु यमंत्री उमर
अब्दल्
ु ला को स्वतंत्रता दिवस पर कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है जैसी अभिव्यक्ति करने का साहस प्रदान करती है
और अलगाववादियों के आह्वान पर बंद या अब शुक्रवार की नमाज के समय सुरक्षा के लिए तैनात सीमा सुरक्षा
बल के जवान पर पथराव का भी साहस उभारती है । किश्तवाड़ का दं गा कश्मीर घाटी के बाद अब कुपवाड़ा से जम्मू
को हिन्द ू विहीन करने की शुरूआत है। इसलिए उनका सरकार पर दबाव है कि वे ग्राम सुरक्षा समितियों को भंग
कर दें । लक्ष्य एक लेकिन रास्ते अलग अलग से जम्मू कश्मीर के लोग ऊब चुके हैं। अलबत्ता दिल्ली सरकार इन
तत्वों पर जिस प्रकार की नरमी दिखा रही है वहीं उनके हौसले बढ़ाने का कारण बन गया है । इसलिए कश्मीर

समस्या का हल न तो जम्मू कश्मीर में है न भारत -पाक वार्ता में न संयुक्त राष्ट्र संघ में जिसने कह दिया है अब

यह विषय उसके विचाराधीन नहीं है , बल्कि उसका हल दिल्ली सरकार के साहस में निहित है । दर्भा
ु ग्य से इस
समय की दिल्ली सरकार इस मामले में सबसे अधिक अमेरिका के दबाव में है ।
पाकिस्तान के तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नवाज शरीफ ने भारत के साथ प्रगाढ़ता की अभिव्यक्ति करते ही हमारे

दे श के परोपजीवी जो अपने को बुद्धिजीवी होने का दावा करते हैं, एकदम से मुखरित हो गए। समाचार पत्रों,

टे लीविजन पर मुखरित होने के साथ-साथ गोष्ठियां भी चालू हो गई। सब भूलकर पाकिस्तान के साथ मधुर सम्बन्ध

बनाने की कवि-कवि का ऐसा • कोलाहल मचाया कि हमारे पांच सैनिकों की हत्या की घटना को छिपाने के लिए
पहला सरकारी बयान ऐसा आया मानो इसमें पाकिस्तान का कोई हाथ न हो। जनमत के दबाव से सरकार को
असलियत बयान करने के लिए मजबूर होना पड़ा हमारे दे श के सौभाग्य से पहले तो पाकिस्तान ने मित्र दे श का
दर्जा दे ने से इंकार कर दिया और पाकिस्तानी संसद में संपूर्ण कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करने का प्रस्ताव
पारित कर दिया। भारतीय संसद ने न सिर्फ रक्षा मंत्री एके एंटोनी को सच्चा बयान दे ने के लिए बाध्य किया अपितु
एक बार फिर पाक अधिकृत सहित सम्पूर्ण कश्मीर हमारा का प्रस्ताव दोहराया। सेना को औचित्य के आधार पर

कार्यवाही करने की छूट दे नी पड़ी। पाकिस्तान के प्रति सरकार का रवैया 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण से
स्पष्ट हो जाता है जिसमें उस दे श को केवल एक पंक्ति भर का स्थान मिला है । पहली बार लाल किले से किसी
प्रधानमंत्री ने उसे अपनी हरकतों से बाज आने की चेतावनी तक नहीं दी। नवाज शरीफ की शराफत का तो पर्दाफाश
हो ही गया है लेकिन भारत का कदम शर्मल शेख के समान अभी भी कमजोर दिखाई पड़ रहा है । जहाँ मनमोहन
सिंह ने पाकिस्तान के साथ संयुक्त वक्तव्य में न केवल आतंकवाद की उपेक्षा की बल्कि यह स्वीकार किया कि

भारत भी बलचि ु पैठिए भेज रहा है। यह बात 1948 में कबाइलों के भेष में कश्मीर पर हमले के समय
ू स्तान में घस
जितमी सच थी उतनी आज भी है कि पाकिस्तान की भारत संबंधी नीति का नियंत्रण यहाँ की सेना और

आईएसआई के हाथ में है जैसी उस समय थी।"

भारत पाकिस्तान के सम्बन्धों को लेकर नये ट्रै क पर नरे न्द्र मोदी की सरकार भी शान्ति बार्ता शुरू कर
अपने राजनैतिक कौशल और वैदेशिक कूटनीतिक सफलता का परिचय दिया है। लेकिन पाकिस्तान संघर्ष विराम का
लगातार उल्लंघन करते हुए जम्मू में नियंत्रण रे खा पर गोलाबारी कर रहा है। भारत की तरफ से सचिव स्तर की
वार्ता रद्द किये जाने के बाद भी पाक अपनी करतत
ू ों से अपना घिनौना चेहरा पूरी दनि
ु या के सामने उजागर कर रहा
है । पाकिस्तान के अन्दर नवाज शरीफ सरकार के सामने भी संकट है जो कश्मीर को ढाल बनाकर पाकिस्तान
एकबार फिर अपना वर्षों पुराना फिर वही राग अलाप रहा है जिसमें कश्मीर को केन्द्र में लाकर हमेशा से नयी
परस्थिति सामने लायी जा रही है । सीमापार पर अपनी बर्बर कार्यवाही से जहां पाक तमाम आन्तर्राष्ट्रीय कानूनों की
धज्जियां उड़ाने से बेपरवाह नजर आता हैं वहीं कश्मीर को केन्द्र में रखकर वह भारत से बातचीत का राग दोहराता
रहा है। लेकिन बीते दिनों प्रधानमंत्री नरे न्द्र मोदी ने जिस तरीके से विदे श सचिवों की बातचीत को बन्द करने का
फैसला किया और लाहौर एवं शिमला के ट्रै क पर अपनी नमो एक्सप्रेस बढ़ाई है उसने कई सवालों को भी खड़ा
किया है । क्या नरे न्द्र मोदी पहली बार नेहरू की नीतियों के आगे विवश न होते हुए खुद अपनी बनायी नीतियों तले
पूरी दनि
ु या के सामने पाकिस्तान के असल चेहरे को बेनकाब करने में जुट गये हैं। यहविचारणीय है। सीमापार हो
रही इस कार्यवाही ने हमें यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। अब पाकिस्तान के साथ किस मुह से हम दोस्ती

का हाथ बढ़ायें। पाकिस्तान से दोस्ती का आधार क्या हो ? क्या अब समय आ गया है कि पाकिस्तान के सारे

रिश्ते तोड़ लिये जाय? लगातार होते हमलों से भारत का धैर्य अब जवाब दे रहा है । सीमापार उल्लंघन के जरिये
भारत में उनमाद फैलाने की कोशिश हो रही है । हकीकत तो यह है कि कश्मीर के दौर में भी पाकिस्तान ने भारत
के साथ गलत सलक
ू किया था। हमारे पर्व
ू प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी रिश्तों में गर्मजोशी लाने लाहौर बस से
गये लेकिन मियां मुशर्रफ कारगिल की पटकथा तैयार करने में लगे रहे इस काम में उनको पाकिस्तान की सेना का
पूरा सहयोग मिला। इस बार की कहानी भी पिछले बार से जुदा नहीं है । ताहिर उल कादरी और इमरान की रे ड
जोन में फेंकी गयी गुगली ने पहली बार मियाँ नवाज के संकट को जहां बढ़ाया है वहीं इसके चलते पहली बार
आईएसआई पाकिस्तान के आन्तरिक और वाहय मामलों में अपना सिक्का मजबत
ू कर रही है पाक सेना भारत के
साथ रिश्तों को सुधारने के बजाय बिगाड़ना ही चाहती है । पास के सियासी संकट पर नजर रख रहे अन्तर्राष्ट्रीय
जानकारों का मानना है कि इस कार्यवाही में सेना का पाक के सैनिकों को परू ा समर्थन मिल रहा है। पाक में
सरकार तो नाम मात्र की है वहां चलती सेना की है। कट्टरपंथियों की बड़ी जमात यहां ऐसी है जो भारत के साथ
सम्बन्ध सुधरता नहीं दे खना चाहते। ऐसे में नरे न्द्र मोदी ने हुरियत नेताओं को भाव न दे कर कश्मीर को लेकर एक
नई लकीर अपने प्रधानमंत्रित्य के कार्यकाल में खींचने की कोशिश जारी किये हुए हैं। अब समय आ गया है हम
पाकिस्तान के साथ अपने सम्बन्धों को किस प्रकार कामयाबी के रास्ते पर लाकर खड़ा करने में सिद्धहस्त होते हैं।
भारतीय सेना में घुसपैठ की कार्यवाहियां पाकिस्तान की सेना द्वारा जारी है क्योंकि पाकिस्तान का पूरा ध्यान अपने
अन्दरूनी झगड़ी और तालिबान में लगा रहा है। उसे लगता है अगर ऐसा ही जारी रहा तो आने वाले दिनों में
कश्मीर उसके हाथ से निकल जायेगा। अतः ऐसे हालातों में वह अब लश्कर और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों
को पीओके में भारत के खिलाफ एक बड़ी जंग लड़ने के लिए उकसा रहा है । इसमें कई कट्टरपंथी संगठन मदद भी
कर रहे हैं। पाकिस्तान की राजनीति का वास्तविक स्वरूप किसी से छिपा नहीं है पाकिस्तान यह एहसास भी कर

रहा है . कि समय रहते वह भारत के खिलाफ जंग शुरू नहीं की तो कश्मीर का मुद्दा ठण्डा पड़ जायेगा अतः वह
भारतीय सेनाओं को अपने निशाने पर लेकर कट्टरपंथियों के पुरानी लीक पर चल निकला है । प्रधानमंत्री नरे न्द्र मोदी
का मंतव्य है कि पाक के साथ भारत को अब किसी तरह को नरमी नहीं बरतनी चाहिए और कूटनीति के जरिये
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके खिलाफ माहौल। बनाना चाहिए। इस समय पाकिस्तान को लगभग तीन अरब से ज्यादा
की सालाना इमदाद अमेरिका के सहारे मिल रही है जिससे पाकिस्तान के अर्थव्यवस्था की हालत कुछ सध
ु र चक
ु ी।
है । पाकिस्तान में आर्थिक विकास दर जहां लगातार घट रही है वहीं आतंक के माहौल के चलते कोई नया निवेश
नहीं हो पा रहा है । घरे लू गैस से लेकर तेल की बढ़ी कीमतों ने संकट बढ़ाया है । तो वहीं ताहिर उल कादरी और
इमरान ने नवाज के नाक में दम कर रखा है । आजतक हमने पाक के हर मामले का जबाब बगानबाजी से ही दिया

है । भारत सरकार धैर्य, संयम की दहु ाई दे कर हर •बार लोगों के सामने सम्बन्ध सुधारने की बात दोहराती रहती है
इसी नरमी रुख से पाक का दस्
ु हास काफी बढ़ गया है उसकी नीतियां अब पाक के साथ भारत के भविष्य को न
केवल तय कर सकती है बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय मोर्चे पर यह मामला उसकी कूटनीति के आधार पर दनि
ु या तक पहुंच
सकता है ।15

सैन्य विचारक कुलदीप नैयर द्वारा कहा गया है कि भारत की आजादी या हिंदओ
ु ं और मस
ु लमानों का धर्म के

आधार पर विस्थापन अब 57 साल परु ाना पड़ चुका है में 14 अगस्त को सियालकोट शहर में अपना घर छोड़ने

की याद करता हूं क्योंकि उसी दिन पाकिस्तान के नए राष्ट्र ने गैर-मुसलमानों को स्वीकार करने से उसी तरह मना
कर दिया था जिस तरह पूर्वी पंजाब अपने यहां किसी मुसलमान को नहीं दे खना चाहता था। मैंने जवाहरलाल नेहरू

का नियति से मिलन वाला प्रसिद्ध भाषण पाकिस्तान में ही सुना था , अपने शहर सियालकोट में । लेकिन मैंने 17

सितम्बर, यानि आजादी के 32 दिन बार सरहद पार किया। तब तक हत्या और लूट का तांडव कम हो चुका था।

मैंने हिंदओ ु लमानों को वास्तव में आपस में लड़ते -झगड़ते नहीं दे खा। लेकिन मैंने दर्द भरे चेहरे , औरतों
ु ं और मस

और मर्दों को अपनी छोटी-मोटी चीजों से भरी गठरियाँ माथे पर उठाए और उनके पीछे डर से सहमे बच्चों को जाते

दे खा हिंद ू और मुसलमान, दोनों अपने चूल्हा चक्की, घर-बार, दोस्त और पड़ोसियों को छोड़कर आए थे। दोनों
समुदाय को इतिहास की यातना ने तोड़ दिया था। दोनों रिफ्यूजी थे विभाजन का दःु ख शब्दों में बयान करना

मुश्किल है । लेकिन इसे हिंद ू और मुसलमान का सवाल बना दे ना इसका राजनीतिकरण होगा। दं गों ने 10 लाख

लोगों की जानें ली और दो करोड़ हिन्द,ू सिख और मुसलमानों को अपनी जड़ों से उखाड़ दिया। पाकिस्तान के कुछ
एकतरफा विचार रखने वाले पट्टियां लगाकर दं गों को मस
ु लमानों पर अत्यचार के रूप में पेश करना चाहते हैं।
दर्भा
ु ग्य से यह हिंदओ
ु ं के खिलाफ नफरत बढ़ाएगा जो पाकिस्तान में उतना ही सहने को मजबूर थे जितना भारत में
मुसलमान निर्मम हत्या की कहानियों के बावजूद मुसलमानों द्वारा हिंदओ
ु ं को और हिंदओ
ु ं द्वारा मुसलमानों की
रक्षा करने की बहादरु ी और साहस दिखाने के उदाहरण भी भारत में हैं। भारत के एक मशहूर बुद्धिजीवी आशीष नंदी

के एक शोध के अनुसार दोनों समुदाय के लोगों के विपरीत समुदाय के 50 प्रतिशत लोगों को क्रूरता का शिकार

ू रे की हत्या क्यों की ? इससे ज्यादा बेकार कोशिश कुछ


होने से बचाया। सदियों से साथ रहने वाले लोगों ने एक दस
नहीं होगी कि यह ढूंढा जाए कि उपमहाद्यीप के विभाजन के लिए कौन जिम्मेदार था। करीब छह दशकों तक फैली
घटनाओं के क्रम को ध्यान में रखने पर यह एक सिर्फ किताबी कोशिश हो होगी। लेकिन इतना साफ है कि चालीस
के दशक की शुरुआत में हिंदओ
ु ं और मुसलमानों के बीच मतभेद इतना बढ़ गया था कि विभाजन जैसा कुछ करने
के अलावा कोई उपाय नहीं बचा था। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना यह सिद्ध करने में लगे रहे कि
हिंद ू और मुसलमान दो राष्ट्र हैं और यह बात दोनों को एक दस
ू रे से लगातार दरू करती गई।

जो लोग अभी भी विभाजन को लेकर अफसोस करते हैं उनसे में इतना ही कह सकता हूं कि अंग्रेज उपमहाद्वीप को

इकट्ठा रख सकते थे अगर 1942 में वे इस समय ज्यादा अधिकार दे ने को तैयार होते जब सर स्टै फर्ड क्रिप्स भारत
जनता की आकांक्षाओं का समाधान करने की सीमित जिम्मेदारी के साथ भारत आए थे। कांग्रेस पार्टी भी यह कह

सकती थी अगर उसने 1946 में कैबिनेट मिशन के इन प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया होता कि तीन विषयों -विदे श

विभाग, रक्षा और संचार केंद्र के पास होता और चार राज्यों के क्षेत्रों में जोड़ दिया जाता। इतिहास के ये दोनों अगर
मख्
ु य रूप से काल्पनिक और ज्यादातर अवास्तविक हैं। विभाजन किसी ग्रीक दख
ु ांत कथा की तरह है । सभी को
पता था कि क्या होने वाला है । इसके बावजूद इसे रोकने के लिए वे कुछ नहीं कर सकते थे। दे श का माहौल इतना
दषि
ू त हो चुका था कि नरसंहार और पलायन जिस तरह सामने आया उससे बचा नहीं जा सकता था। कायदे आजम
मोहम्मद अली जिन्ना, जो उपाधि महात्मा गांधी ने उन्हें दी थी, का 11 अगस्त 1947 को दिया गया भाषण था-

ु तानी, और धर्म का राजनीति से कोई संबंध नहीं है। लेकिन यह संकीर्ण


आप या तो पाकिस्तानी है या हिंदस्
भावनाओं को शांत नहीं कर सका। इसे और रोज किया गया ताकि पाकिस्तान के संविधान को उचित ठहराया जा
सके। दे श में धर्माधों का मढ
ू इसी से समझा जा सकता है कि उन्होंने जिन्ना के भाषण को ही दबा दिया।

क्या विभाजन के मुसलमानों को उद्देश्य पूरा हुआ ? मुझे नहीं पता उस दे श की यात्रा के दौरान मैंने लोगों को कहते

सुना कि वे खुश हैं कि चलो, एक जगह तो है जहाँ वे हिंदओ


ु ं के प्रभाव से या हिंदओ
ु ं के आक्रमण से सुरक्षित

महसूस कर सकते हैं। लेकिन मैं समझता हूँ. मुसलमानों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है । वे आज तीन दे शों-

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादे श में घंटे हैं। कल्पना कीजिए उनकी संख्या , उनका वोट, अविभाजित उपमहाद्वीप
में कितना असर करता। ये कुल आबादी के एक तिहाई होते

सीमा पर इन पट्टियों से दोनों दे शों के बीच दरू ी हो बढ़े गी। एक -दस


ू रे पर दोप लगाने के बदले बेहतर यही होता कि

दश्ु मनी और नफरत, जो बंटवारे का नतीजा है , से निबटने की कोशिश की जाती। इसने दोनों दे शों को बेचैन कर

रखा है । मैं वाषा-अमत


ृ सर सीमा से निराश होकर लौटा हूं, इसलिए नहीं कि वहां सूर्यास्त के परे ड के समय सैनिक

रीति में कमी आई है बल्कि नई तरह की राक्षसी प्रवत्ति


ृ वहां उभर आई है । पाकिस्तान के अधिकारियों ने वहां 10
पट्टियां लगा दी हैं जिनके बोर्ड पर यह लिखा है कि विभाजन के समय किसी तरह हिंदओ
ु ं और सिखों ने मुसलमानों
को लूटा। इन स्तंभों को इस तरह प्रदर्शित किया जा रहा है कि वे सिर्फ भारत की ओर से हो दिखाई दे ते हैं।

पाकिस्तान की तरफ से वे दिखाई नहीं दे ते क्योंकि इसके पीछे बड़े-बड़े बोर्ड हैं। जो दर्शाया गया है वह आक्रमक है
और अपने उद्देश्यों में दष्ु टतापूर्ण उन्हें पिछले दो महीनों के दरम्यान वहां लगाया गया है । शायद भारत में शांति के

स्वर को पाकिस्तान में भी ताकत मिलने लगी है और पिछले साल करीब 50 लोग सरहद पर, जीरो प्वांबट,
मोमबत्ती जलाने लिए आए आजादी के साठ साल बाद। और यह भी कि जो स्तंभ सरहद पर लगे हैं वे तथ्यों को
तोड़ मरोड़ कर पेस रहे हैं। जिस तरह की वारदातें बताई गई हैं। ये दोनों तरफ हुए थे। पाकिस्तान में हिंद ू और

सिख इसके शिकार हुए और भारत में मुसलमान। नए बने दोनों दे शों में एक ही तरह का शर्मनक नजारा था , न तो
क्रूरता में कोई कमी भी और में करूणा में औरत और बच्चे इसके शिकार थे। अगर कोई मुझ से कहे कि हिंद ु धर्म
ज्यादा उदार है या इस्लाम ज्यादा मोहब्बत पैदा करती है तो मैं इस राय से अपना मतभेद प्रकट करना चाहूंगा।
मैंने दोनों ही धर्म मानने वालों का धर्म के नाम पर हत्या करते दे खा है । वे हर हर महादे व या अली का नारा
लगाकर एक दस
ू रे के शरीर में तलवार या भाले घुसेड़ रहे थे। उस समय लिखी गई कुछ किताबों में तत्कालीन
घटनाओं को ब्योरा दिया गया है । रामानंद सागर की प्रसिद्ध किताब और इंसान जाग उठा और प्रसिद्ध उर्दू लेखक

कृष्णचंदर की पेशावर- एक्सप्रेस इसका व्योरा दे ती है कि कब आदमी के भीतर का शैतान जाग उठता है और इंसान
मर जाता है । सआदत हसन मंटो की उर्दू लघु कथाएं भी हैं जो बताती है कि दोनों समुदायों में अपराध और क्रूरता
कितना नीचे तक पहुंच गई थी।

भारत और पाकिस्तान दोनों दे शों के मध्य सम्बन्ध तभी मधुर होंगे और शान्ति की चाहत तभी सफलीभूत मनी
जायेगी जब पाकिस्तान ईमानदारी के साथ सीमापार के आतंकवादियों को प्रशिक्षण एवं समर्थन दे ना बन्द कर दे गा
पाकिस्तान की सदै व एक ही आस्था है भारत को तोड़ना इस मकसद के लिए यह अपने को इस्लाम समर्थित दे श
मानता है और भारत को दारूल हर्ब अर्थात ऐसा मल्
ु क जिसे तबाह करना अल्लाह द्वारा तय फर्ज है उसे इस
भावना का परित्याग करना होगा तथा कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियां समाप्त करनी होंगी। दोनों दे शों को यह
समझ लेना। चाहिए कि एक दस
ू रे का विरोध करके अपने हितों की रक्षा नहीं कर सकते तथा भारत अपने पड़ोसी
राष्ट्र पाकिस्तान की उपेक्षा करके इस क्षेत्र की बड़ी शक्ति नहीं बन सकता। पाकिस्तान भारत के साथ शांति
स्थापित करके अनेक उपलब्धियां हांसिल कर सकता है । भारत सभी धर्मों का सम्मान करता है ऐसे समय में
शान्ति की स्थापना हेतु किये गये उपाय दोनों दे शों के लिए सार्थक परिणाम होंगे। यदि दोनों दे श वार्ताओं को
गम्भीरता से लेकर अमल करना प्रारम्भ कर दें तो भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में अमन चैन के एक
अद्वितीय अध्याय का आरम्भ हो जायेगा।
अध्याय 9

निष्कर्ष एवं सझ
ु ाव

21 वीं शताब्दी में भारत एवं पाकिस्तान के सम्बन्धों का विश्लेषण किया जाय तो स्पष्ट हो जाता है कि दोनों के
सम्बन्धों में सुधार कम तनाव अधिक रहा है अब हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि दोनों राष्ट्रों के मध्य सकारात्मक
सुधार की सम्भावनाएं भी नजर नहीं आती जबकि इन दोनों दे शों की जनता व दक्षिण एशिया के सुरक्षा का
सर्वाधिक महत्वपर्ण
ू प्रश्न बन गया है । इसका अर्थ यह नहीं लिया जाना चाहिए कि हम निराशावादी सोच रखते हैं।
पाकिस्तान द्वारा भारत विरोधी अभियान लगातार चलाना उसकी स्थाई नियति बन चुकी है। कश्मीर के मामले को
अन्तर्राष्ट्रीय मंचो पर लाकर भारत पर आरोप लगाने की रणनीति पाकिस्तान ने अपनायी किन्तु भारतीय
राजनयिकों की कूटनीति के आगे उन्हें अपने घुटने टे कने पड़े। इस मसले को अनेक बार संयक्
ु त राष्ट्र संघ की आम
सभा में और जिनेवा में तथा मानवाधिकार में उठाया गया और हर बार ही अन्तर्राष्ट्रीय मंचो पर पाक की करारी
हार हुई इससे इस समस्या का दष्ु प्रचार ही होता है । इस्लामी संगठन के दे शों ने शुरू में भले ही पाकिस्तानी प्रस्ताव
के सन्दर्भ में हीलाहवाली की नीति अपनाई हो लेकिन अन्त में उसे ही समर्थन दे कर उन्होंने भारत का सिरदर्द ही
बढ़ाया है । इसके साथ ही हमारी अस्मष्ट एवं ढुलमुल नीति ने भी जहाँ पाक का हौसला बढ़ाया है वहीं इसी ने
हमारी विदे श नीति को कमजोर भी किया है । इस प्रकार भारत -पाक सम्बन्धों के सन्दर्भ में कुछ बातें स्पष्ट है ।
जिनके रहते सुमधुर सम्बन्धों की परिकल्पना करना कठिन है । लगातार तनावपूर्ण स्थिति और अमेरिका और चीन
के सामरिक हित इसके साथ इतने जुड़ गये हैं कि यदि अब पाकिस्तान भारत के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाना भी
चाहे तो उसके लिए अमेरिका एवं अपने अन्य मित्र राष्ट्रों के दबाव से तथा आशंका के कारण अच्छे सम्बन्ध बनाना
तो दरू सोचना भी कठिन है । भारत विरोधी कार्यवाही करना उसकी स्त्रातेजिक एवं कटूंनीतिक आवश्यकता बन गयी
है जिसके आधार पर यह अपने कार्यों को कार्यान्वित करता रहता है ।

खुशहाल, अमन और तरक्की पंसद पड़ोस हर दे श की जरूरत रहा है। इतिहास गवाह है कि जिनके पड़ोसी में ये सारी
खूबियां रही है उन्होंने न केवल समद्धि
ृ के नए कीर्तिमान स्थापित किए है बल्कि सौहार्द और भाईचारे की मिसाल
कायम की है। आधुनिक यग
ु में विदे श नीति की आधारशिला ऐसे पड़ोसी को तलाशने और बनाने पर टिकी है । सभी
जानते हैं कि पड़ोसी को मनमाफिक चन
ु ा नहीं जा सकता लिहाजा हमें उसे अपने अनरू
ु प बनाने और उसकी पसंद
की तरह बनने की हर संभव कोशिश करनी होती है । इन्हीं गुणों वाले पड़ोसी को पाने के लिए पाकिस्तान के अच्छे
सम्बन्धों की खातिर शुरू से ही हम अपना बहुत कुछ दांव पर लगाते चले आ रहे है । अपनी फितरत के अनुसार
विश्वासघात से दे ता चला आ रहा है । बड़े भाई के दायित्व को निभाने की नेक मंशा के साथ हम उसकी हर
कारगुजारियों को माफ करके आगे बढ़ने की सोचते रहे है । शायद हर चीज की हद होती है । अब हमारा भी धैर्य
जबाब दे चक
ु ा है। भारत के लाख मना करने के बावजद
ू दोनों दे शों के विदे श सचिव वार्ता के ठीक पहले पाकिस्तान
ने कश्मीरी अलगावादियों से बातचीत करके द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन किया। लिहाजा वार्ता को रद्द करके
पाकिस्तान को कड़ा संदेश दे ने के सिवाय भारत के पास कोई चारा नहीं बचा। भारतीय संदर्भ में पुरानी कहावत है
कि 'विनय न मानत जलधि जड़' विदश नीति और कूटनीति के कई जानकार भारत के इस कड़े दकम को सही
ठहरा रहे है । उनका मानना है कि पाकिस्तान की नीयत को दे खते हुए भारत का परं परागत नरम और लचीला रवैया
उचित नहीं है । कड़ा कदम उठाना तर्क संगत है , लेकिन अंततः विचार तो बड़े भाई को ही करना होता है । यद्ध
ु किसी
समस्या का हल नहीं होते और ऐसा भी नहीं किया जा सकता कि हर लिहाज से भारत के प्रतिकृति वाले पड़ोसी
दे श से कोई संबंध ही न रखे जाएं। ऐसे में जब दोनों दे शों की आवाम रिश्तों में बेहतरी की पक्षधर है । बड़ी बड़ी
समस्याओं का समाधान बातचीत के माध्यम से ही संभव हो सका है। लिहाजा पाकिस्तान को भी साफ नीयत और
स्पष्ट मंशा के साथ आगे बढ़ना होगा। ऐसे में घरे लू और वाह्य मोर्चों पर एक समान संकट से घिरे पड़ोसी से रिश्ते
बहाल करने की जुगत निकालना आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है। पाकिस्तान से वार्ता को रद्द करना भारत की
भी घरे लू मजबरू ी है। कम लोग जानते हैं कि संयक् ू ी से जम्मू -कश्मीर को हटा दिया
ु त राष्ट्र संघ की विवादों की सच
गया है। यह भारत की एक बड़ी जीत है , यहीं पाकिस्तान के लिए बढ़ा झटका। हालांकि पाकिस्तान इससे अन्जान
होने का बहाना करता है और वैश्विक समुदाय को इस मसले में हस्तक्षेप करने के लिए कहता रहता है । हालांकि 7
फरवरी 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के कार्यालय ने स्पष्ट तौर पर यह स्वीकार किया है कि इस
मसले में उनकी बहुत सीमित भूमिका है। उन्होंने दोहराते हुए कहा है कि यदि हमारी जरूरत भी होगी तो इसके
लिए दोनों तरफ से अनुरोध होनी चाहिए। द्विपक्षीय रूप से ही संयुक्त राष्ट्र इस मसले में दखल कर सकता है ।
भारत शरू
ु से ही ऐसी किसी तीसरे पक्ष की भमि
ू का को खारिज करता आया है ।

भारत पाकिस्तान को यह संदेश दे ने में सफल रहा है कि एक साथ भारत और भारत विरोधी अलगाववादियों से खेल
नहीं खेला जा सकता है । घरे लू मोर्चे पर अभी शरीफ की हालत पतली है । भ्रष्टाचार, खराब वित्तीय प्रबंधन और कई
सारे अन्य कारणों से उनके खिलाक लोग आंदोलित हैं। अगस्त 2014 में भारत-पाकिस्तान संबंधों के बीज हो कुछ
भी हुआ है , कम से कम उससे पाकिस्तान को यह कड़ा संदेश गया है कि भारत सरकार द्वारा कमजोर और नरम
रूख अख्तियार करने वाला दौर खत्म हो गया है। ज्यादा विस्तत
ृ रूप में इस घटना को एक नए नज़रिए से दे खा
जा सकता है । इस कदम से भारत एक ही झटके में तुष्टीकरण के उस दौर को खत्म कर दिया है जिसके चलते
घरे लू मोर्चे पर बेहाल पाकिस्तानी नेताओं को हम अपनाते रहे हैं। मोदी के बयान में भी यह झलकता है । भारत के
खिलाफ पाकिस्तान के छद्म युद्ध की भर्तसना करने वाले इस बयान से स्पष्ट है कि भारतीय सीमा के भीतर
अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ाने में सक्रिय पाकिस्तान से बातचीज नहीं हो सकती। सन 2013 में जब नवाज
शरीफ सत्ता में आए थे तो उन्होंने भारत से बेहतर संबंधों की बात कही थी। व्यापक विरोध के बावजद
ू उन्होंने
भारत को एमएफएन दर्जा दिए जाने की पहल की थी। आज उनकी विफलता पाकिस्तान के उन नेताओं के लिए
एक इशारा होगी जो भारत के साथ गर्मजोशी भरे रिश्तों को दे खना पसंद करते है । इससे कहीं न कहीं उनके मन में
यह ख्याल आएगा कि अगर भारत के साथ सम्बन्धों को आगे बढ़ाना है तो अलगावादियों के साथ संबंधों की
बेहतरी के लिए ऐसी स्थिति में भारत को सीधे पाकिस्तानी सेना से बातचीत के क्रम में आगे बढ़ाना चाहिए जो
इस्लामाबाद की भारत नीति को तय करती है । उल्लेखनीय है कि परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान दोनों दे श
कश्मीर पर एक तरह से बहुत आगे बढ़ चक
ु े थे। लिहाजा रावलपिंडी स्थित सेना मख्
ु यालय से बातचीत भारत को
बेहतर फायदा पहुंचा सकती है । अब यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान को लेकर मोदी सरकार की नीति ज्याद से ज्यादा
वास्तविकता की जमीन और सौदे बाजी पर केन्द्रित होगी। बातचीत में समय गंवाने का उपक्रम नहीं होगा। इसके
लिए जरूरी है कि भारत सरकार पाकिस्तान को लेकर अपने चिर परिचित रूख में तब्दीली करे । पाकिस्तानी
उच्चायक्
ु त द्वारा अलगाववादी नेताओं से न मिलने सम्बन्धी भारत की हुबमठदल
ू ी यह सर्वविदित तथ्य बताती है
कि ये पाकिस्तान की चुनी सरकार की बात न मानकर पाकिस्तानी सेना के इशारों पर नाच रहे हैं। यह इस तथ्य
का स्पष्ट द्योतक है। कि सत्ता पर नवाज शरीफ की पकड़ कमजोर हो रही है और उनका भविष्य अनिश्चित है ।
नवाज शरीफ को चुनाव जितवाने में पाकिस्तान के जितने उग्रवादी और आतंकी संगठन हैं, सबका सहयोग होने की
स्पष्ट जानकारी के बावजूद भारत उनसे सद्भाव की क्यों उम्मीद लगाये बैद है , यह किसके दबाब से नवाज शरीफसे

ू रे शरीफ कई बार से बन रहे हैं . इन


बातचीत करना चाहता है । जबकि पंजाब प्रांत की सरकार जिसके मुख्यमंत्री दस
आतंकी संगठनों को अनद
ु ान दे ती है। यह भी एक अहम मद्द
ु ा है। दबाव डालने वाली तो अब बस एक ही ताकत बची
है . अमेरिका। जिसकी खरबों डालर सहायता से मालामाल होकर पाकिस्तानी हुक्मरान सत्ता से हटने या हटाये जाने
पर यदि फांसी से बच निकले हैं तो विदे शों में ऐश करते रहते हैं। एक साथ विरोधाभास है । जो हिन्द ू विभाजन के
समय जम्मू या कश्मीर में आकर बस गए वे भारत के नागरिक तो हैं लेकिन कश्मीर के नागरिक नहीं बन पाए हैं।
उन्हें लोकसभा चुनाव में मत दे ने का अधिकार है विधानसभा या स्थानीय निकायों में नहीं लेकिन जो आतंकवाद का
प्रशिक्षण लेने पाकिस्तान या उसके कब्जे वाले कश्मीर में गए हैं , कई हमलों तक में शामिल रहे हैं, भारत सरकार ने
कश्मीर सरकार का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है जिसमें घर वापसी करने वालों को पन
ु र्वास योजना के अंतर्गत
सभी पुरानी संपत्ति लौटाने की ही नहीं बल्कि पुनर्वास के लिए सहायता दे ने का प्रावधान है । इस पन
ु र्वास योजना
का लाभ भी आतंकवादी ही उठा रहे हैं जो नेपाल के रास्ते भारत आकर कुछ समय बिताने के बाद वापिस लौट
जाते हैं। इस योजना की शुरूआत उमर अब्दल्
ु ला ने पाकिस्तान की यात्रा के बाद की है।

किश्तवाड़ का दं गा क्यों हुआ? हिन्दओ


ु ं को वहां से भगाने के लिए। घाटी में हिन्दओ
ु ं के पन
ु र्वास के लिए जो एक
कमरे के आवास बनाये गए हैं उनमें जो आठ दस परिवार चले गए थे। उन्हें भी मार पीटकर भयभीत किया जा रहा
है । कश्मीर में हिन्द ू अल्पसंख्यक हैं लेकिन भारत सरकार उन्हें वह सुविधा और सुरक्षा नहीं दे रही है जो दे श भर
में अल्पसंख्यकों को दी जा रही है। क्यों? कुछ बुद्धिमान लोगों की यह अभिव्यक्ति भी बड़ी विचित्र लगती है कि
क्योंकि भारत में बांग्लादे श को अलग करा दिया , इसीलिए उसका बदला लेने के लिए पाकिस्तान कश्मीर को भारत
से अलग करने पर तुला है। ऐसे लोगों की मनोवत्ति
ृ समझने के लिए राज्य सभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल
बिहारी वाजपेयी की एक चट
ु की का स्मरण हो आता है। एक सांसद ने पाकिस्तान के संदर्भ में सरकार से टिप्पणी
मांगी थी। प्रधानमंत्री जब उत्तर दे रहे थे तो कई सदस्यों में कह सवाल करने वाले सदस्य सदन में तो हैं ही नहीं।
वाजपेयी ने त्वरित टिप्पणी की पाकिस्तान गए होंगे ? सदस्यों ने ठहाके लगाये और जिनके बारे में यह टिप्पणी थी
वे जानकारी मिलने के बाद भी चुप्पी ही साधे रहे क्यों ? इन भारतीय तत्वों पर क्या नियंत्रण किया जा रहा है ?
उन्हें तो सरकारी पर्दी की थाली परोसी जा रही है ।
कश्मीर की स्थिति का अध्ययन कर सुझाव दे ने के लिए भारत सरकार ने जो त्रिसदस्यीय समिति बनाई
थी उसने भी कश्मीर की विशिष्ट स्थिति का हवाला दे ते हुए बहुत कुछ यही संस्तति
ु की है जो उमर अब्दल्
ु ला मांग
रहे हैं। एक और तथ्य समझ से परे है। जब कभी पाकिस्तान का कोई राजनयिक भारत आता है हमारी सरकार
कश्मीर के पथ
ृ कतावादियों सैयद शाह गिलानी या उमर फारूख जैसे लोगों को जो कश्मीर को भारत का अंग नहीं
मानते उनसे मिलने की खुली छूट दे दे ते है। उन्हें पाकिस्तान भी जाने दे ते हैं और वहां से धन प्राप्त करने के

ू मिलने पर भी कोई कार्यवाही नहीं करते। जम्मू कश्मीर की अलग पहचान क्यों ? जो संविधान परू ी
प्रमाणिक सबत
तरह से दे श भर में लागू है। उसी की शपथ लेकर जब जम्मू कश्मीर में भी मंत्रिमंडल बनता है तो उसको पूर्णत :
लागू करने में संकोच कैसा ? भारतीय संविधान को हमने सेक्युलर कहा है , तो किसी राज्य को विशेषाधिकार क्यों?

ृ कता की गारं टी के लिए धारा 370 का समावेश किया गया। यह धारा तो जवाहर लाल
क्यों संविधान में उसकी पथ
नेहरू द्वारा कश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र संघ के सुपुर्द करने से भी खतरनाक है। हमारी कश्मीर सम्बन्धी कोई
नीति ही नहीं। कुछ लोग दलील दे ते हैं कि जो हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है , उसी को नियंत्रण रे खा के बजाय
विभाजन रे खा मानकर मामला खत्म किया जाये। क्या पाकिस्तान सरकार ने कभी संकेत दिया है कि ऐसा मान
लेने पर उसकी भारत विरोधी गतिविधियां खत्म हो जाएगी। उसके स्वभाव को दे खते हुए तो ऐसा नहीं लगता है।
यदि संपूर्ण कश्मीर भी उसे दे दिया जाये तो वह दहशतगर्दी से बाज नहीं आयेगी। वह नकली नोट का भारत में
और चलन बढ़ाएगा तथा आतंकवादी घटनाओं की भरमार हो जाएगी। हम जब तक 'सठे साठ्यम समाचरे त' की
नीति नहीं अपनायेंगे पाकिस्तान का अभियान बंद नहीं होगा और घाटी को पाकिस्तान में मिलाने या स्वतंत्र दे श
बनाने का अभियान जारी रहे गा। कश्मीर के मसले के संदर्भ में इस समय रफी अहमद किदवई की जरूरत है
जिन्होंने शेख अब्दल्
ु ला के बागी तेवर पर उन्हें जेल भेजकर लगाम लगाई थी और भारतीय संविधान की तमाम
धाराएं लागू करायी गुलाम नबी आजाद ने सलमान खुर्शीद या केआर रहमान की तरह कभी भी सांप्रदायिक
अभिव्यक्ति नहीं की है । वे जम्मू कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री भी रहे हैं। भारत सरकार में स्वास्थ्य
मंत्री हैं क्या वे रफी अहमद किदवई का किरदार निभायेंगे। वे निभा नहीं सकते हैं। जहां तक पाकिस्तान का सवाल
है उसके किसी आश्वासन पर भरोसा नहीं किया जा सकता उसे तो 1905 और 1971 के समान सबक सिखाकर ही
हम शांत कर सकते हैं। साथ ही उमर अब्दल्
ु ला की नकेल भी कसने की जरूरत है। यदि हमने ऐसा नहीं किया तो
उनको षडकोणीय नीति भारत को तबाह कर दे गी।

मूल्यांकन की दृष्टि से अध्ययन किया जाय तो भारत-पाक सम्बन्धों को बनाने के पहले संवेदनशील मुद्दों को हल
करना आवश्यक होगा। यद्यपि भारत एवं पाकिस्तान की जनता खूब अच्छी तरह जानती है कि दोनों दे शों की मैत्री
से इस भारतीय उपमहाद्वीप में सुख शांति, विकास एवं प्रगति की लहर दे खी जा सकती है किन्तु पाकिस्तान स्वयं
ऐसी साजिशों का शिकार है जिसे चाह कर भी नहीं कर पाता। यह तभी सम्भव होगा जब यहां की जनता जागरूक
होकर नेताओं के स्वार्थो कट्टरवाद व कठमुल्लाबाद के साथ ही अमेरिका सहित अपने मित्र राष्ट्रों के भारत विरोधी
दबाव को पूरी तरह से उखाड़ फेंके। पाकिस्तान की आम जनता यदि इस बात पर गम्भीरता से विचार करे कि
पाकिस्तान बनने के बाद सिर्फ क्षणिक धार्मिक व जातीय एकता के नाम पर युद्ध. घण
ृ ा, द्वेष, शोषण, अत्याचार,
उत्पीड़न, सैनिक शासन व तानाशाही के अलावा उन्हें सही अर्थों में क्या मिला है। धार्मिक एवं जातीय भावना को
भड़काकर सिर्फ पाकिस्तानी जनता को हो गुमराह नहीं किया गया है बल्कि भारतीय कट्टरवादी मुस्लिम भी इनकी
चाल में फंस चक
ु े हैं।

पाकिस्तान का प्रतीक शासक चाहे व राजनैतिक अथवा सैनिक रहा हो वह अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए
भारत विरोधी बयानबाजी के साथ ही कूटनीतिक व सामरिक गतिविधियों को खुलकर बढ़ावा दे ता रहा है। भारत-पाक
सम्बन्धों की जड़ में कश्मीर समस्या के बैल इस तरह फैलायी गयी है कि इसे हटाना जड़ से खोदना जल्दी सम्भव
नहीं है । इस प्रकार विवेचनात्मक अध्ययन किया जाय तो विश्व के मानचित्र को दे खने के उपरान्त यह स्पष्ट हो
जाता है कि भारत और पाक को भू स्त्रातेजिक स्थिति अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों दे शों का सामाजिक ,
राजनीतिक बांचा अलग-अलग प्रकार का बना हुआ है जो कि समस्त एशिया महाद्वीप के प्रतिरक्षा पर्यावरण को
प्रभावित करता है। दोनों दे शों में मित्रता यदि हो जाय तो भारतीय उपमहाद्वीप में अमन च शांति के साथ विकास
एवं प्रगति का एक नया दौरा शुरू हो जायेगा। भारत -पाक सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण
है क्योंकि सामान्य रूप से दोनों दे शों की स्थितियां, चीन, अफगानिस्तान, रूस को प्रभारित करती हैं। भारत-पाक
सम्बन्धों से दक्षिण एशिया का शक्ति संतल
ु न एवं अमेरिका का आधार ही बदल सकता है। विशेष रूप से चीन के
द्वारा शस्त्रों का निर्यात पाकिस्तान को एक और मजबूत बना रहा है तो दस
ू री तरफ भारत की सुरक्षा के लिए
प्रश्नचिन्ह अंकित कर रहा है । जैसा कि चीन ने पाकिस्तान को एम-11 प्रक्षेपास्त्र व पांच हजार चुम्बकीय छल्ले
प्रमाणु कार्यक्रम के लिए चोरी छिपे दे कर किया। जहां तक भारत गुटनिरपेक्षता का प्रबल समर्थक है वहीं पाकिस्तान
मुस्लिम कट्टरतावाद का घोर अनुयायी है । इस्लामिक दे शों के संगठन से अपनी नीतियों का निर्धारण करता है तथा
समय-समय पर सैनिक शासन या तानाशाही के रूप में पाक की भूमिका भी गुटनिरपेक्षता के विरुद्ध रही है ।
सोवियत संघ के विघटन और जर्मनी का एकीकरण हो जाने से सम्पर्ण
ू विश्व का रक्षा परिवेश प्रभावित हुआ जिसके
कारण नये शीत युद्ध की शुरूआत हो जाने से इसका प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप पर विशेष रूप से पढ़ रहा है । चीन
सोवियत संघ के कारण आयी रिक्तता को पूरा करने के प्रयास में आगे बढ़ रहा है ।

दोनों दे शों के सम्बन्धों में साम्यवादी राष्ट्र चीन की भूमिका विचारणीय है क्योंकि इसकी सैनिक एवं कूटनीतिक
गतिविधियों का प्रभाव भारत व पाक सम्बन्धों पर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से पड़ता है । दोनों दे शों के सम्बन्धों में
वर्तमान परिस्थितियों में कश्मीर का मद्द
ु ा अत्यन्त संवेदनशील है । इसका हल मल
ू तः द्विपक्षीय वार्ता के द्वारा
किया जाना चाहिए न कि अन्य राष्ट्रों की मध्यस्ता के आधर पर धर्म और जाति के जहर को फैलाने से पहले रोका
जाना चाहिए जो आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है । भारत व पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध रूपी पौधा पनपाने के
लिए शासकों को अपने स्वार्थ रूपी बकरियों को मजबूती से बांधना होगा अन्यथा यह चूक्ष बनना तो दरू इसका
नरम तना भी नहीं बचेगा जिसका परिणाम घातक होगा। पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति का लाभ अनुरुति सम्पन्न
राष्ट्र उठाने का प्रयास कर रहे हैं और यदि ऐसा होता है तो उन दे शों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव भारत
के ऊपर ही पड़ेगा।

फलस्वरूप भारत पाकिस्तान सम्बन्धों में सुधार लाने के लिए सर्वप्रथम उस द्विराष्ट्र सिद्धांत पर ही चोट करनी
चाहिए जो भारत विभाजन का कारण था। इसके साथ ही सम्बन्धों के सामान्यीकरण पर विशेष रूप से बल दिया
जाना चाहिए और दोनों ओर से सही भावना से पहल की जानी चाहिए। कश्मीर में आतंकवादी गतिविधयों को
समाप्त करने में पाक को अपना महत्वपर्ण
ू योगदान दे ना चाहिए व क्षणिक राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के बाजाय
मानवीय मूल्यों को सुरक्षा हेतु दरू गामी पहल करनी चाहिए। पाकिस्तान को भारत के प्रति अपनी दरु ं भावना पूर्ण
नीति को छोड़ दे ना चाहिए और अतीत की नीतियों को भुलाकर नये सिरे से पहल एवं यातचीत शुरू की जानी
चाहिए। कश्मीर समस्या को सबसे पहले हल किया जाय अन्यथा सब प्रयास एक साथ विफल हो जाते हैं क्योंकि
भारत पाक सम्बन्धों में पाकिस्तानी दृष्टिकोण सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू है। पाकिस्तान जबतक कश्मीर के भारत
में विलय को स्वीकार नहीं करता और कश्मीर की आकांक्षा को बनाये रखेगा तबतक स्थाई शांति एवं सम
ु धरु
सम्बन्धों की बात व्यवहारिक दृष्टि से सम्भव नहीं होगा। दोनों दे श स्थाई शांति की प्रबल इच्छा के साथ आगे आयें
और सैनिक संघर्ष एवं भीतरघात की समाप्ति पर जोर दें इसके साथ ही एक अच्छा पड़ोसी बनकर एक नई पहल
वहे दिल से करें । अब दोनों दे श परमाणु शक्ति सम्पन्न वाले दे श बन गये हैं अतः दोनों के पास जो परमाणु क्षमता
है उसे बयानबाजी करके उलझाने का कोई लाभ नहीं है अगर परमाणु युद्ध दोनों दे शों में छिड़ जाता है तो भीषण
तबाही का साधारणतया अनुमान लगाना भी कठिन होगा। परमाणु बम के प्रयोग से किसी को भी विजय नहीं
मिलेगी परन्तु विनाश का वातावरण अवश्य ही दोनों की अपने आगीश में से लेगा अतः संयम एवं धैर्य के साथ
समस्याओं का निदान हितकर होगा। भारत व पाकिस्तान द्वारा परमाणु परीक्षणों के बाद राजनीति में एक
काल्पनिक आदर्शवाद दोन दे शों की जनता को दे ने की कोशिश की है क्योंकि दोनों दे शों के शासकों को भले ही
परमाणु बम से उत्पन्न होने वाले मानवीय संकट का अभास न हो किन्तु में अवश्य पता था कि इसके बाद पहले
से ही संकट में पढ़े अर्थशास्त्र का भूगोल ही बदल जायेगा। अत : अर्थशास्त्र के आधार को मज चूत बनाकर ही भूगोल
की सम्भावना दोनों के हित में होगा भारत-पाक सम्बन्ध तभी सुधर सकते हैं जब दोनों दे शों के राजनीतिज्ञों में
वास्तविक सध
ु ार की इच्छाशक्ति विकसित होगी इसके अलावा भारत एवं पाकिस्तान के शासक परमाणु विस्फोट के
घातक प्रभावों के यथार्थ को समझें और भारत-पाक सम्बन्ध की सम्भावनाओं को सीमा से बाहर से जाने के लिए
समय पर हो रोके। परमाणु परीक्षण हमें जश्न मनाने के लिए नहीं बल्कि गम्भीरता से विचार करने के लिए इंगित
कर रहा है ।

भारत में जबसे मोदी प्रधान मंत्री बने हैं तब से भारत पाकिस्तान के बीच समझौतों में अलग तरह का दृष्टिकोण
नजर आ रहा है क्योंकि वर्ष 2014 में जिस प्रकार पाकिस्तान लगातार सीमा पर गोलाबारी कर रहा है उसपर अगर
कोई दस
ू री सरकार होती तो स्वाभाविक रूप से सीमा पर पाकिस्तानी गोलीबारी पर उसका रुख अलग रहा होता
मनमोहन सिंह की सरकार तनाव को बढ़ने से रोकने का अधिक प्रयास करती नरें द्र मोदी सरकार की प्रतिक्रिया
उससे अलग रही प्रधानमंत्री श्री मोदी की छवि के अनुरूप ही। इनमें से कौनसा तरीका सही है और कौनसा गलत ?
कहना मुश्किल है । शायद संप्रग सरकार का सुलह-सफाई वाला रुख भी सीमा पर तनी बंदक
ू ों को शांत कर दे ता। वह
ू ें सिर्फ शांत नहीं हैं बल्कि पाकिस्तान को बार-बार
पहले भी ऐसा करता रहा है । लेकिन इस बार लगता है कि बंदक
संघर्षविराम करने की कीमत का भी अहसास हुआ है। अगली बार सीमा की शांति भंग करने से पहले वह ठिठककर
सोचेगा लाख में चीन की घुसपैठ से निपटने में नरें द्र मोदी सरकार की तरफ से अपनाई गई रणनीति कमोबेश उसी
तरह की बी जैसी कि संप्रग शासन के दौरान अपनाई जाती थी। चीनी तैनाती के जवाब में लगभग समान मात्रा में
भारतीय सैनिकों की तैनाती और फ्लैग मीटिंगों तथा राजनैतिक संवाद के जरिए तनाव घटाने की कोशिश।
अलबत्ता, पाकिस्तान के संदर्भ में मोदी सरकार का नया रूप दे खने को मिला। हो सकता है इसके पीछे महाराष्ट्र
और हरियाणा के चन ू का निभाई हो, जहाँ श्री मोदी के विरोधी उनकी 56 इंच की छाती पर सवाल
ु ावों ने भी कोई भमि
उठाने लगे थे। हो सकता है , भारत के कड़े रुख के पीछे राजनैतिक कारण रहे हों , जैसा कि पाकिस्तान सरकार और
वहाँ के मीडिया द्वारा आकलन किया जा रहा है । लेकिन यह भी हो सकता है कि पाकिस्तान के संदर्भ में नरें द्र
मोदी सरकार का नजरिया सचमच
ु पहले की सरकारों की तल
ु ना में अधिक आक्रामक और कम लचीला हो।

पाकिस्तान के संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी और उसके सामाजिक सैद्धांतिक सांस्कृतिक वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ की नीति शुरू से स्पष्ट रही है । वह नीति है। किसी भी गलत हरकत का प्रभावी जवाब दे ने , बल्कि
एक कदम आगे बढ़कर कदम उठाने की रणनीति। हालांकि यह रणनीति हर बार सफल ही हुई हो , ऐसा यकीनी तौर
पर नहीं कहा जा सकता। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भी राजग की सरकार ने राष्ट्रीय
सरु क्षा के मद्द
ु ों पर ठोस और आक्रामक रणनीति की छाप छोड़ी थी कारगिल में हमने पाकिस्तान को मैदान छोड़ने
पर मजबूर कर सैन्य गौरव हासिल किया। लेकिन संसद पर हमले के बाद प्रतिक्रियास्वरूप सीमा पर एक साल तक
फौज तैनात करने के बावजूद हम पाकिस्तान को झुकाने में नाकाम रहे । दोनों दे शों की फौजें आमने -सामने डटी रहीं
और भारी आर्थिक कीमत चुकाकर भी न पाकिस्तान पीछे हटा और न हम अंततः सुलह-सफाई और राजनय के
माध्यम से हम तनाव की पराकाष्ठा के दौर से वापस लौटे । जाहिर है , कठोरता की नीति कामयाबी की गारं टी नहीं
है । शांति की नीति भी कामयाबी की गारं टी नहीं दे ती, विशेषकर तब जब भारत की अखंडता और अमन-चैन को भंग
करने में चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वियों की दृष्टि हो। ऐसे में सरकार चाहे कोई भी हो , हमारी सरु क्षा
संबंधी रणनीति संतुलित होनी चाहिए जरूरत पड़ने पर बेहद कठोरता से प्रहार करने की इच्छा शक्ति हो , लेकिन
परिस्थितियों की मांग होने पर शांति को अपनाने में आपत्ति नहीं।

भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ मौजूदा टकराव सैन्य और राजनैतिक विश्लेषण को मांग करता है । पाकिस्तानी
सेना और शासकों की ओर से सीमा पर संघर्षविराम के उल्लंघन की प्रवत्ति
ृ अनेक परिस्थितियों में दे खी गई है ।
पाकिस्तान में आंतरिक समस्याएं पैदा होने पर सीमा को गर्म कर दिया जाता है। भारत की ओर से जवाबी फायरिंग
होने पर मीडिया में भारतीय चुनौती को बढ़ा -चढ़ाकर पेश किया जाता है और पाकिस्तानी एकजुटता का मुद्दा यहाँ
की आंतरिक अशांति, आर्थिक संकट, राजनैतिक अस्थिरता आदि पर हावी हो जाता है। यह पाकिस्तानी शासकों के
हित में है। फायरिंग का एक कोण जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के प्रसार के पाकिस्तानी सेना और इंटर सर्विसेज
इंटेलीजेंस के मकसद से जुड़ता है । कश्मीर में आतंकवादियों का नया जत्था भेजने से पहले भारतीय सीमा सुरक्षा
तंत्र का ध्यान हटाने के लिए पाकिस्तानी रें जर्स की तरफ से कवर फायरिंग की जाती है । फायरिंग की आड़ में
आतंकवादियों के दल कश्मीर में घस
ु पैठ कर जाते हैं। सो यह पाकिस्तानी सेना की आतंकवाद प्रसारक रणनीति का
हिस्सा भी है। फिर पाक फौज अपने आपको प्रासंगिक बनाए रखने और कश्मीर मुद्दे को जिंदा बनाए रखने के लिए
भी संघर्षविराम का मार्ग अपनाती है। जहाँ पाकिस्तान की तरफ से कहा जा रहा है कि इस बार फायरिंग की पहल
भारत ने की, भारतीय पक्ष का आकलन भिन्न है । भारतीय खुफिया एजेंसियों की खबर है कि पाकिस्तानी सेना ने
विस्फोटक किस्म के घरे लू हालात से ध्यान हटाने के लिए सीमा पर संघर्षविराम का उल्लंघन करना शुरू किया।
कहा जा रहा है कि एक मकसद भारत को नई सरकार के रुख को आजमाना भी था कि वह किस हद तक जा
सकती है । हालांकि में इस आकलन से सहमत नहीं हूँ। कोई भी सेना या सरकार सिर्फ दस
ू रे दे श को आजमाने लिए
आग में हाथ जलाना नहीं चाहे गी, खासकर तब जब कि दोनों दे शों के बीच छोटी सी बात के बड़कर बढ़े टकराव का
रूप ले लेने का इतिहास मौजूद है। इतना जरूर है कि गोलीबारी की शुरूआत पाकिस्तान की तरफ से ही हुई लेकिन
जल्दी ही वहाँ की सेना को अपनी भूल का अहसास हो गया, खासकर तब जब भारत ने गोलीबारी का जवाब भारी
गोलीबारी से दिया। हालत यहाँ तक पहुँची कि पाकिस्तानी जनरलों को फेस -सेवर के रूप में फायरिंग रोकने का कोई
उचित बहाना तक नहीं मिला। बहरहाल, जब हालात काबू से बाहर निकलने जा रहे हो तो हाथ पीछे खींच लेने जरूरी
हैं। इस बार के संघर्षविराम उल्लंघनों ने पाकिस्तान को जिस तरह उसकी सैन्य , राजनैतिक और नैविक कमजोरी का
अहसास दिलाया, वह साफ दिखाई दे रहा है । वरना ऐसा कब होता है जब सीमा पर फायरिंग से कोई इतना
आतंकित हो जाए कि अपने परमाणु हथियारों की बात करने लगे , जैसा कि पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने किया
पाकिस्तान ने इस मामले में फिर संयक्
ु त राष्ट्र को • शामिल करने की नाकाम कोशिश की और अब अप्रासंगिक हो
चक
ु े संयक्
ु त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समह
ू की सीमा के मआ
ु यने के लिए बल
ु ाए जाने की मांग की। यह सब उसकी
हताशा और कमजोरी को प्रकट करता है। भारत सरकार ने इस कमजोरी को तुरंत भाँप लिया जो प्रधानमंत्री नरें द्र
मोदी, रक्षा मंत्री अरुण जेटली और गह
ृ मंत्री राजनाथ सिंह के बयानों से झांकते आत्मविश्वास से प्रकट होता है ।

इस बात में शायद ही किसी को संदेह हो कि राजग सरकार ने इस मामले में पिछली सरकार से भिन्न रवैया
अपनाया है । केंद्र सरकार की तरफ से यह स्पष्ट कर दिया गया था कि सीमा पर तैनात टुकड़ियों के पास
पाकिस्तानी हरकतों का आवश्यकतानस
ु ार जवाब दे ने की परू ी आजादी है । यह एक बड़ा संदेश है और पिछली सरकार
की नीति से अलग है जब सेना और सीमा सुरक्षा बल में दबे-छिपे इस बात पर निराशा जताई जाती थी कि उन्हें
हर प्रतिक्रिया के लिए राजनैतिक नेतत्ृ व के निर्देशों पर निर्भर रहना पड़ता है । पाकिस्तानियों के हाथों भारतीय
सैनिकों के सिर काट ले जाए जाने की घटना इसकी एक मिसाल है , जब भारतीय सेना की तरफ से तुरंत बदले की
कार्रवाई करने में काफी समय लिया गया। बहरहाल, इस बार स्थितियाँ अलग थीं। सीमा पर तैनात टुकड़ियों को
निर्देश था कि पाकिस्तान की तरफ से होने वाली फायरिंग का उसी दिशा में , उसी शैली में , अधिक परिमाण में जवाब
दिया जाए। रक्षा मंत्री का बयान इस रुख को स्पष्ट करता था जिन्होंने कहा कि भारत की ओर से दिया जाने वाला
जवाव प्रभावी होगा। भारत के रुख में एक बड़ा बदलाव यह था कि इस बार हम फ्लैग मीटिंगों में समय बर्बाद
करने के लिए तैयार नहीं थे। जब शुरूआत उधर से हुई है तो रोकना भी उन्हीं को है भारत की तरफ से यह संदेश
स्पष्ट था। केंद्र से निर्देश था कि पाकिस्तान की तरफ से आने वाले फ्लैग मीटिंगों के आग्रह पर ध्यान नहीं दिया
जाए। सरकार का रूख यकीनन अलग है । पाकिस्तान को अपनी रणनीतियों और नजरिए का दोबारा आकलन करना
होगा। उसे भारत में चल रही मनःस्थिति का अनम
ु ान हो गया है। क्या सीमा पर संघर्ष विराम के उल्लंपन की
घटनाएं बंद हो जाएंगी ? कहना मुश्किल है । हो सकता है कि पाकिस्तान ने रणनीतिक वापसी की हो और कुछ
समाह या महीनों के बाद वह ज्यादा ताकत और मजबूती के साथ सामने आए। भारत अति -आत्मविश्वास का
जोखिम मोल नहीं ले सकता। उसे सतर्क बने रहना होगा और अपनी तरफ से पूरी तैयारी रखनी होगी चुनौती चाहे
उत्तर से आए था पश्चिम से , हमारा जवाब प्रभावी ही होना चाहिए। यहाँ प्रभावी का अर्थ सिर्फ सैन्य अर्थों में नहीं
लिया जाए, उसमें राजनैतिक और राजनयिक पहलू भी समाहित हैं।

उपरोक्त आधार पर स्पष्ट होता है कि दोनों दे शों के मध्य जो भी राजनैतिक, सैनिक एवं आर्थिक समस्याएं है
उनका समाधान द्विपक्षीय वार्ता के आधार पर किया जाना चाहिए जिससे कि दोनों दे श मिलकर एक क्षेत्रीय शक्ति
के रूप में आपसी पहचान बना सकें और जो भी धार्मिक एवं सामाजिक विषमताएं हैं उनका हल निकाल सकें। यही
नहीं जो भी प्रस्ताव पास किये जाय उसको दोनो दे श अपना हित समझ कर अपने कर्तव्यों का गहराई से पालन
करने में योगदान दें तभी शांति और सरु क्षा को सफलीभत
ू बनाया जा सकता है ।

विवेचनात्मक दृष्टि से कहा जा सकता है कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद की समाप्ती के साथ ही भारतीय उप महाद्वीप
में एक नये संघर्ष की शुरूआत हुई जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में शांति शब्द ही लुभप्राय हो गया। सन ् 1948,
1985 एवं 1971 के प्रत्यक्ष युद्धों एवं सन ् 1999 को कारगिल संघर्ष इसके उदाहरण हैं भारत पाकिस्तान सम्बन्धों की
विशेषता यह रही है कि वे कभी सुधरते नजर आते हैं तो कभी बिगड़ते और कभी-कभी तो शून्यता में चले जाते हैं
सीमाओं पर सदै व तनाव की स्थित बनी रहती है । यद्ध
ु जैसी स्थिति होने के बावजद
ू दोनों दे शों के मध्य वार्तालाप
का सिलसिला कभी भी पूरी तरह नहीं टूटता किन्तु दोनों के सम्बन्धों में क्षणिकभर भी सुधार नहीं आ पाता
जिसका मुख्य कारण कश्मीर समस्या है । चूंकि दोनों ही दे श परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं इसलिए यद्ध
ु के चरमोत्कर्ष
पर पहुंचने के पूर्व ही वार्ताओं का कार्यक्रम प्रारम्भ हो जाता है । वास्तव में कारण चाहे जो भी हो दोनों दे शों के
मध्य बिगड़ते सम्बन्धों को सुधारने की दिशा में कारगर प्रयासों की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता
है । क्योंकि अपनी सुरक्षा से चिन्तित दोनों ही दे श सिद्धांततः किसी बड़े युद्ध को आत्मसात करने की स्थिति में
बिलकुल नहीं हैं। इसलिए आज भारत पाक दोनों को ही आवश्यकता है भरोसा कायम करने वाले उचित तत्वों की
ऐसा नहीं है कि दोनों दे शों में अबतक इस दिशा में कुछ नहीं किया है बल्कि वह सम्बन्धों को सुमधुर करने लिए
चर्चा परिचर्चा में सदै व रहता है । लेकिन सम्बन्ध गहराई से अपनत्व में नहीं बदल पाता है। इसी सन्दर्भ में कुछ
तत्व निम्नलिखित है जो भारत पाक के मध्य भरोसा कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं जैसे

1- कश्मीर में यथास्थिति रखने के समझौते हे तु काम करना।

2- भारतीय और पाकिस्तानी सैन्य निवेशकों के मध्य नियमिति बैठकें करना। 3- कश्मीर घाटी में होने वाले चुनाव
में और पारदर्शिता ला दे ना ताकि घाटी में पाकिस्तान की जनपद संग्रह की मांग की औपचारिकता ही न रहे ।

4- सरक्रीक और सियाचीन क्षेत्र में दोनों दे शों के द्वारा जारी गतिविधियों को रोंकना।

5- भारत द्वारा प्रस्तावित यद्ध


ु न करने की सन्धि को अमल में लाना तथा परमाणु संयन्त्र पर औपचारिक समझौता
करना।
6- पाकिस्तान सीमापार से अधिकृत कश्मीर में चलाये जा रहे आतंकवादी शिविरों को समाप्त करें तथा आतंकवादियों
को धन मुहैया कराने वाले दोपियों के खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाही करें । 7- आर्थिक उदारवाद को लागू करते हुए एक
मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना हेतु ईमानदार कोशिश

की जानी चाहिए।

8- नियंत्रण रे खा को वास्तविक नियंत्रण रे खा के रूप में स्वीकारने हे तु जनमत तैयार करना | 9- पाकिस्तान को
भारत प्रति अपनी दर्भा
ु वनापूर्ण नीति को छोड़ दे ना चाहिए और अतीत की नीतियों को भुलाकर नये सिये से पहल
एवं बातचीत शुरू की जानी चाहिए। 10- कश्मीर समस्या के समाधान के लिए भारत को पाकिस्तान व कश्मीरियों
दोनों से बात करनी

चाहिए तथा पाकिस्तान को पाक नियति से आगे आना चाहिए व उग्रवादियों को किसी भी स्थिति में समर्थन व
सहयोग न दिया जाय।

11- अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारत विरोधी नीति का परित्याग करना चाहिए व आपसी बातचीत के द्वारा

ही समस्या का समाधान खोजा जाय। दस


ू रे दे शों के दबाव से बचा जाय।

12- भारत पाक सम्बन्ध तभी सुधर सकते हैं जब दोनों दे श के राजनीतिज्ञों में वास्तविक सुधार की इच्छाशक्ति
विकसित होगी। इस और सार्थक पहल भी करें ।

13- स्थायी शान्ति की प्रबल इच्छा के साथ दानों दे श आगे आयें और सैनिक संघर्ष एवं भितरघात

की समाप्ती पर जोर दिया जाय। इसके साथ ही एक अच्छा पड़ोसी बनकर एक नई पहल तहे दिल से की जाय।।

14- भारत व पाकिस्तान दोनों को एक दस


ू रे के सन्दर्भ में घटिया बयानबाजी से बचना होगा। क्योंकि इससे ही
संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न होती है अतः स्वच्छ इच्छाशक्ति के आधार पर काम लेना होगा।

15- परमाणु परीक्षणों के पश्चात पाकिस्तान का काल्पनिक भय अब समाप्त हो गया है। अतः बराबरी एवं प्रतिस्पर्धा
की मंशा हथियारों की होड की बजाय मानवीय मूल्यों की सुरक्षा के लिए विकास व विनाश की बहस को राजनीतिक
मुद्दा बनाने की बजाय राष्ट्रहित के कार्यों पर अधिक ध्यान दे ने की महती आवश्यकता है ।

16- भारत पाकिस्तान सम्बन्धों को सुधारने के लिए सर्व प्रथम उस द्वि राष्ट्र सिद्धांत पर ही चोट करनी चाहिए जो
भारत विभाजन का कारण था। इसके साथ ही सम्बन्धों के सामान्यीकरण पर विशेष रूप से बल दिया जाना चाहिए
और दोनों ओर से सही भावना से पहल की जानी चाहिए। 17- मीडिया सम्बन्धी आदान प्रदान शरू
ु किया जाय। वहां
के अखबार एवं पत्र पत्रिकाओं को यहां आने दिया जाय। इसके साथ ही गायक एवं कालाकारों की पूरी तरह छूट दी
जाय। अगर दोनों राष्ट्रों के मध्य यह सम्भव हो जाय तो सम्बन्धों में व्यास कटुता को एक हद तक कम किया जा
सकता है ।

18- अब दोनों दे श परमाणु शक्ति सम्पन्न वाले दे श बन गये हैं अतः दोनों के पास जो परमाणु क्षमता है उसे
बयानबाजी करके उछालने का कोई लाभ नहीं है। इसलिए संयम एवं धैर्य के साथ समस्याओं का निदान हितकर
होगा।
19- आतंकवाद की गतिविधियों पर अंकुश लागाकर ही दोनों दे शों के हितों की परिकल्पना की जा सकती है ।
20- भारत एवं पाकिस्तान के शासक परमाणु विस्फोट के घातक प्रभावों के यथार्थ को समझें और भारत पाक
सम्बन्ध की सम्भावनाओं को भी सीमा से बाहर से जाने के लिए समय पर ही रोके। परमाणु परीक्षण हमें जश्न
मनाने के लिए नहीं बल्कि गम्भीरता से विचार करने की तरफ इंगित कर रहे हैं।

यदि दोनों दे श भरोसा करने वाले उक्त तत्वों पर चर्चा करके प्राप्त उपायों पर ईमानदारी से अमल करें तो दोनों ही
दे शों के मध्य सौहार्दपूर्ण समन्धों की स्थापना सम्भव हो सकेगी। वर्तमान में जम्मू कश्मीर की मूल समस्या वहां
पर जारी आतंकवाद है । भारत पाक सम्बन्धों को मधरु बनाने के पहले इन मद्द
ु ों पर गहराई से चिन्तन मनन और
पालन करना होगा। यद्यपि की भारत एवं पाकिस्तान की जनता खूब अच्छी तरह जानती है कि दोनों दे शों की मैत्री
से इस भारतीय उपमहाद्वीप में सुख शांति, विकास एवं प्रगति की सहर दे खी जा सकती है किन्तु पाकिस्तान स्वयं
ऐसी साजिशों का शिकार है जिसे चाहकर भी नहीं कर पाता। यह सभी सम्भव होगा जब वहाँ की जनता जागरूक
होकर नेताओं के स्वार्थी, कट्टरवाद व कठमुल्लाबाद के साथ ही अमेरिका सहित। अपने मित्र राष्ट्रों के भारत विरोधी
दवाओं को उखाड़ फेंके। पाकिस्तान की जनता यदि इस बात पर गम्भीरता से विचार करे कि पाकिस्तान बनने के

ु , घण
बाद सिर्फ क्षणिक धार्मिक व जातीय एकता के नाम पर यद्ध ृ ा, द्वेष, शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न, सौनिक शासन च
तानाशाही के अलावा उन्हें सही अर्थों में क्या मिला है । धार्मिक एवं जातीय भावना को भड़काकर सिर्फ पाकिस्तानी
जनता को ही गुमराह नहीं किया गया है बल्कि भारतीय कट्टरवादी मुस्लिम भी इस भयानक घटना का शिकार हो
चुके हैं। पाकिस्तानी शासकों में अपनी आम जनता के प्रति उदासीनता सैदव से रही है वह शक्तिशाली राष्ट्रों के
दबाव में आकर अपनी कुर्सी सुरक्षित बनाये रखने के स्वार्थ में आवास को गुमराह करते रहे हैं। ये भारत के साथ
सम्बन्ध स्थापित करने के नाम से कतराते हैं कि भारत की लोकतांत्रिक परम्परा में निहित मैत्री , प्रेम, एकता और
शांति के तत्व यदि पाक में प्रवेश कर गये तो उनकी सत्ता छिन जायेगी। भारत एवं पाकिस्तान के मध्य निरं तर
तनाव रखने एवं सम्बन्ध सुधरने के विरोधी दोनों ही दे शों में हैं क्योंकि यदि सम्बन्ध सुधर गये तो बहुत सारे
नेताओं की दक
ु ाने दोनों दे शों में बन्द हो जायेंगी। पाकिस्तान का प्रत्येक शासक चाहे व राजनैतिक अव सैनिक रहा
हो वह अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए भारत विरोधी बयानबाजी के साथ हो कूटनीतिक व सामरिक
गतिविधियों को खुलकर बढ़ावा दे ता रहा है। भारत पाक सम्बन्धों की जड़ में कश्मीर समस्या की बेल इस तरह
फैलाई गयी है कि इसे हटाना या जड़ से खोदना जल्दी सम्भव नहीं है । भारत पाक विभाजन के साथ ही मोहम्मद
अली जिन्ना ने कश्मीर को एक ऐसी समस्या का रूप दे दिया जिसके कारण भारत एवं पाक शासक कभी सुख चैन
के साथ नहीं बैठ सकते।
सन्दर्भ सूची

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भारत की अजेय नौसेना

भरत सिंह

: माटी के लिए भारत-पाक एवं भारत चीन यद्ध


समसामयिक पत्र एवं पत्रिकाएँ

समाचार पत्र

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