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Ankit, Darsh Political
Ankit, Darsh Political
घोषणापत्र
हम, ,दर्श और अंकित, यह घोषणा करते हैं कि प्रस्तत ु परियोजना कार्य
हमारे द्वारा निषपक्ष रहते हुए किया गया है । स्वनिर्मित प्रश्नावली का उपयोग किया
गया है ।
दर्श और अंकित
आभार
सर्वपर्थम हम आभार व्यक्त करते हैं अपनी राजनीतिक विज्ञान की विषय
अध्यापिका, सश्रु ी मंजू का, जिन्होंने अपना महत्त्वपर्ण
ू समय निकालकर इस
परियोजना-कार्य को परू ा कराने में महत्त्वपर्ण
ू योगदान दिया। साथ ही हम आभारी हैं
उन उत्तरदाताओं के प्रति भी जिन्होंने अपने समय का एक छोडा भाग प्रश्नावली को हल
करने में दिया।
दर्श और अंकित
क्रम संख्या शीर्षक
1 घोषणापत्र
2 परिचय
3 उद्दे श्य/कथन
4 अध्ययन की आवश्यकता
5 परिकल्पना
6 साहित्य की समीक्षा
7 साक्ष्य की प्रस्तथ ु ी
8 कार्यविधि
9 प्रश्नावली
10 आँकड़ों का संग्रहण
11 सामग्री विश्लेषण और वर्तमान परिदृश्य
में प्रासंगिकता
12 निशकर्ष
13 सीमाएं
14 ग्रंथ सच ू ी
15 सम्पर्ण ू प्रस्तत
ु ीकरण
परिचय
15 अगस्त, 1947 को जब हमारा मल् ु कआजाद हुआ था तो इसके
सामने राष्ट्र निर्माण की 3 बड़ी चन
ु ौतियां थी-
१. एकता और अखंडता को बनाए रखने की चन ु ौती: एकता और
अखंडता को बनाए रखने की चन ु ौती पहली और सबसे बड़ी चन ु ौती थी
क्योंकि यहां पर अलग-अलग बोली बोलने वाले लोग रहते थे, वह
अलग-अलग धर्मों को मानने वाले थे और उनकी संस्कृति भी एक नहीं
थी। ऐसे में लोग आशंका जता रहे थे कि इतनी विविधताओं से भरा कोई
दे श ज्यादा दिनों तक एकजटु कैसे रह सकता है । 14-15 अगस्त को लोगों
ने दे श का विभाजन दे खा था और उनके मन में डर बैठ गया था। उस
समय यह भी नहीं पता था कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता को कैसे हासिल
किया जाए।
२. लोकतंत्र को कायम करने की चन ु ौती: आजादी प्राप्त होने से पर्व
ू इस बात पर तो
सहमति बन गई थी कि आजादी के बाद दे श का शासन लोकतांत्रिक सरकार के जरिए
चलाया जाएगा। सरकार सबके भले के लिए काम करने के लिए प्रतिबद्ध थी। अब,
जबकि दे श आजाद हो चक ु ा था, तो इन सपनों को साकार करने का वक्त आ गया था।
३. विकास की चन ु ौती: विकास की चन
ु ौती भी एक बड़ी चन
ु ौती थी। सबसे पहले तो यह
तय करना था कि विकास का ऐसा कौन सा रास्ता अपनाया जाए जिससे सभी तबकों
का भला हो सके ना कि कुछ ही तबकों का। संविधान के तहत सबके साथ समानता का
बर्ताव किए जाने का जिक्र किया जा चकु ा था।
इन सब चन ु ौतियों से पार पा पाना आसान नहीं था क्योंकि इस राष्ट्र को उस तरह
आजादी नहीं मिली जिस तरह अन्य राष्ट्रों को मिली थी। आजादी के साथ ही लोगों ने
दे श का बंटवारा भी दे खा था। बटवारा बहुत ही हिंसक और त्रासदी से भरा हुआ था।
लोगों को विस्थापन का सामना करना पड़ा था और धर्मनिरपेक्ष भारत की धारणा टूटती
दिखाई दे रही थी। कुछ लोगों को तो यह भी नहीं पता था कि अब उनकी मातभ ृ मि
ू
भारत है या पाकिस्तान क्योंकि रातों-रात ऐसा भयानक बंटवारा हुआ था कि जो कल
तक लोगों का गांव या घर हुआ करता था आज वही पर वह लोग अजनबी बन गए थे।
जिन पड़ोसी और रिश्तेदारों के साथ मित्रता पर्व
ू क रहते थे आज वही जान लेने पर उतर
आए थे। कुछ ऐसे भी लोग थे जो ना तो भारत के अंदर रह सके और ना ही पाकिस्तान
के अंदर। वह एक दे श की सीमा को पार करके दस ू रे दे श में जाते इससे पहले ही उनकी
हत्या कर दी गई। जगह-जगह ऐसी हिंसा हुई कि मानवता को तार-तार कर दे ने वाली
वारदातों को अंजाम दीया गया।
विभाजन के समय दो-दो पाकिस्तान बनाने पड़े थे क्योंकि ऐसे कोई इलाके थे ही नहीं
जहां मस
ु लमान बहुतायत में हूं। ऐसे दो इलाके थे लेकिन एक इलाका पर्व
ू में था और
एक पश्चिम में । लेकिन उन इलाकों में भी अन्य धर्मों के लोगों की एक बड़ी संख्या
निवास करती थी। लेकिन फिर भी जल्दबाजी में दो-दो पाकिस्तान बना दिए गए।
ऐसे में शरणार्थियों की समस्या एक बड़ी समस्या बनकर उभरी क्योंकि हर मस्लि
ु म
बहुल इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी हो ऐसा नहीं था। सीमांत गांधीवादी के रूप
में प्रसिद्ध नेता खान अब्दल
ु गफ्फार खान ऐसे ही लोगों में एक थे
इन्हीं समस्याओं से जड़ ु ी हुई एक और समस्या अल्पसंख्यकों की भी थी। सीमा के
दोनों तरफ अल्पसंख्यक रहते थे। जो इलाके पाकिस्तान में चले गए हैं वहाँ लाखों की
संख्या में हिंद ू रहते थे। ठीक इसी तरह बंगाल और पंजाब के इलाकों में मस
ु लमान
आबादी रहती थी। इस कठिनाई से उभरने के लिए किसी के पास कोई योजना नहीं थी।
रजवाड़ों के विलय की समस्या एक बड़ी समस्या थी। ब्रिटिश इंडिया ब्रिटिश प्रभत्ु व वाले
भारतीय प्रांत और दे शी रजवाड़े दो हिस्सों में बटा हुआ था। रजवाड़ों पर राजा शासन
करते थे। आजादी के तरु ं त पहले अंग्रेजी शासन ने यह घोषणा कर दी कि भारत पर
ब्रिटिश प्रभत्ु व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश अधीनता से आजाद हो जाएंगे। उस समय
रजवाड़ों की संख्या 565 थी इसलिए इसका मतलब यह था कि 565 अलग-अलग दे श
स्वतंत्र बनने के लिए आजाद हैं। अंग्रेजों ने रजवाड़ों से कहा कि वह चाहे तो भारत या
पाकिस्तान में शामिल हो जाएं और अगर ना चाहे तो फिर अपना स्वतंत्र अस्तित्व
बनाए रखें। यह अपने आप में बड़ी गंभीर समस्या थी और इसे अखंड भारत के
अस्तित्व पर खतरा पैदा हो रहा था। समस्या ने जल्दी ही अपने तेवर दिखाने शरू ु किए
और पहले त्वर्णकोर के राजा ने और फिर अगले दिन है दराबाद के निजाम ने अपने
राज्य को आजाद रखने की घोषणा कर दी। भोपाल के शासक भी संविधान सभा में
शामिल नहीं होना चाहते थे। एक बात तो तय थी कि अगर इन रजवाड़ों काबिल है
भारत के साथ ना किया गया तो लोकतंत्र का भविष्य अंधकार में डूब जाएगा।
सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कड़ा रुख अपनाया और सरदार पटे ल को
इन रजवाड़ों के शासक को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। सरदार पटे ल ने इस कार्य
में ऐतिहासिक भमि ू का निभाई और अधिकतर रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल
होने के लिए राजी कर लिया। उनके लिए यह काम आसान नहीं था परं तु इसके लिए
उन्होंने बड़ी ही चतरु ाई दिखाई। कुछ राज्य ऐसे थे जो भारतीय संघ में शामिल होना
चाहते थे। जो लोग इसके लिए तैयार नहीं रहे उन लोगों के प्रति सरकार ने लचीलापन
अपनाया और मवह कुछ इलाकों को स्वायत्तता दे ने के लिए तैयार हो गई।
जम्म-ू कश्मीर के विलय के लिए उसने इस तरह की रणनीति अपनाई थी।
अधिकतर रजवाड़े तो शांतिपर्ण
ू बातचीत से ही मान गए और 15 अगस्त 1947 से
पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गए। जनू ागढ़, कश्मीर और मणिपरु जैसे रजवाड़ों
को शामिल करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
लेकिन फिर भी कोई ना कोई यक्ति
ु अपनाई गई मसलन जब है दराबाद के निजाम ने
लोगों के खिलाफ एक अर्ध सैनिक बल को रवाना कर दिया तो 1948 के सितंबर में
भारतीय सेना निजाम के सैनिकों पर काबू पाने के लिए है दराबाद पहुंच गई। हार के बाद
निजाम को आत्मसमर्पण करना पड़ा और है दराबाद भारत में शामिल हो गया। मणिपरु
की विधानसभा में भारत के विलय पर गहरे मतभेद थे। भारत सरकार ने महाराजा पर
दबाव डाला कि वे भारतीय संघ में शामिल होने के समझौते पर हस्ताक्षर कर दें और
सरकार को इसमें सफलता मिली। मणिपरु में इस्पात का विरोध तो हुआ पर वह भारत
में खद
ु को शामिल करने से रोक नहीं सका। विरोध का असर आज तक दिखाई दे ता है ।
स्वतंत्रता से पर्व ू ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने घोषणा कर दी थी कि राज्यों का
पनु र्गठन भाषा के आधार पर होगा। लेकिन जब दे श को आजादी मिली तो अंतरिम
सरकार अपने वादे से मक ु र गई। लोगों ने कांग्रेस को अपना वादा याद दिलाया और
कहा कि अब तो दे श स्वतंत्र हो चक ु ा है और आपकी सरकार है , इसलिए आप अपने वादे
को परू ा करो। लेकिन सरकार ने बताया कि भाषा के आधार पर प्रांत बनने पर
अव्यवस्था फैल सकती है और दे श के टूटने का खतरा पैदा हो सकता है । इसलिए
केंद्रीय नेतत्ृ व ने इस मसले को स्थगित करने का फैसला किया लेकिन केंद्रीय नेतत्ृ व के
इस फैसले को स्थानीय नेताओं और लोगों ने चन ु ौती दे दी। परु ाने मद्रास प्रांत के तेलग
ु ु
भाषी क्षेत्रों में विरोध भड़क गया। यह लोग विशाल आंध्र आंदोलन करके मद्रास प्रांत के
तेलग ु ु भाषी इलाकों को अलग करके आंध्र प्रदे श नाम का एक नया राज्य बनाना चाहते
थे। जब केंद्र सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो आंदोलन ने जोर पकड़ लिया और
कांग्रेस के नेता और दिग्गज गांधीवादी, पोट्टी श्रीरामल,ू अनिश्चितकालीन भख ू
हड़ताल पर बैठ गए। 56 दिनों की भख ू हड़ताल के बाद उनकी मत्ृ यु हो गई। अब तो
आव्यवस्था फैल गई और जगह-जगह हिंसक घटनाएं हो गई। लोग सड़कों पर निकल
आए और पलि ु स फायरिंग में बहुत-से लोग मारे गए। आखिरकार 1952 के दिसंबर
महीने में प्रधानमंत्री ने आंध्रप्रदे श नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा कर दी
इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पन
ु र्गठन आयोग
बनाया। इस आयोग को राज्यों के सीमांकन के मामले को सल ु झाने का जिम्मा सौंपा
गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहआँ बोली
जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। उसकी रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने
1956 में राज्य पन
ु र्गठन अधिनियम पास कर दिया।
राज्यों के बंटवारे का काम अभी समाप्त नहीं हुआ था। 1960 में महाराष्ट्र और
गज ु रात राज्य बनाए गए। गज ु राती और मराठी भाषा बोलने वाले लोगों को एक अलग
पहचान दे ने के लिए यह कदम उठाया गया। पंजाब में भी हिंदी भाषी और पंजाबी भाषी
दो समद ु ाय थे। पंजाब के लोग स्वतंत्र पंजाब की मांग करने लगे लेकिन उनकी मांग को
1956 में नहीं माना गया। लेकिन 1966 में पंजाबी भाषी इलाके को पंजाब राज्य का
दर्जा दिया गया और पंजाब से अलग करके हरियाणा और हिमाचल प्रदे श नाम के दो
राज्य बना दिए गए। 1972 में एक बार फिर पर्वो ू त्तर में राज्यों के पन
ु र्गठन का प्रयास
हुआ। असम से अलग करके 1972 में मेघालय बनाया गया। इसी साल मणिपरु और
त्रिपरु ा भी अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आ गए। मिजोरम और अरुणाचल प्रदे श
1987 में वजद ू में आए थे। नागालैंड 1963 में ही राज्य बन गया था।
राज्य का पन ु र्गठन सिर्फ भाषा के आधार पर हुआ हो ऐसा नहीं है । बाद में बहुत से क्षेत्रों
ने संस्कृति और विकास के मामले में क्षेत्रीय असंतल
ु न के सवाल उठाकर अलग राज्य
बनाने की मांग की। इन मांगों को मद्दे नजर रखकर उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़
को 2000 में राज्य का दर्जा दे दिया गया। वर्ष 2014 में जन
ू महीने की 2 तारीख को
तेलगं ाना के रूप में एक नया राज्य अस्तित्व में आया।
अभी भी दे श के अनेक हिस्सों में छोटे -छोटे अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर
आंदोलन चल रहे हैं। महाराष्ट्र में विदर्भ, पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में राज्य बनाने
के ऐसे आंदोलन चल रहे हैं।
राष्ट्र निर्माण की तीनों चन
ु ौतियों को परू ा करना अभी बाकी है । दे श भले ही तेज गति से
आर्थिक विकास कर पा रहा हो परं तु अभी भी भख ु मरी और गरीबी मिटाने में उसके
आंकड़े अच्छी नहीं है । वह कश्मीर की समस्या को अभी तक अपने अंजाम तक नहीं
पहुंचा पाया है । विभिन्न राज्यों की सीमाओं को लेकर पर्वो
ू त्तर भारत में समय-समय पर
आए दिन हिंसक घटनाएं दे खने को मिलती रहती है । विभिन्न राज्यों के बीच पानी को
लेकर बंटवारे की समस्याएं दरू होती जा रही हैं। पिछले कुछ सालों में एकता और
अखंडता को गहरी चोट लगी है क्योंकि बड़ी संख्या में धार्मिक दं गे और धार्मिक भेदभाव
को बढ़ाने वाली घटनाएं हुई है । बहुत कुछ हो गया है पर बहुत कुछ अभी होना बाकी है ।
।
उद्दे श्य/कथन
इस परियोजना कार्य का उद्दे श्य-
1. राष्ट्र निर्माण की समस्त घटनाओं का अध्ययन करना
2. राष्ट्र निर्माण की कारणों पर अध्ययन करना।
3. राष्ट्र निर्माण की चन ु ौतियों का अध्ययन करना।
4. राष्ट्र निर्माण के प्रभावों का अध्ययन करना।
5. राष्ट्र निर्माण की चन ु ौतियों के समाधान का अध्ययन करना।
अध्ययन करने की आवश्यकता
“राष्ट्र निर्माण की समस्त घटनाओं का सही एवं सटीक अध्ययन
करना”
परिकल्पना
विद्यार्थी राष्ट्र निर्माण की चन
ु ौतियों के प्रति जागरूक हैं।
साहित्य की समीक्षा
हमारे द्वारा परियोजना कार्य परू ा करने के लिए उपयोग की गयी
पस्
ु तकों के नाम-
एन।सी।ई।आर।टी कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपस्
ु तक (स्वतंत्र भारत में
राजनीति)
साक्षय की प्रस्तत
ु ी
यह परियोजना कार्य दे हरादन ू स्थित आदर्श विद्यालय में किया गया है । इस
परियोजना कार्य में कक्षा 09 से कक्षा 12 तक के 100 विद्यार्थियों में से 20
विद्यार्थियों का चयन प्रतिदर्श के रूप में किया गया है । इस परियोजना कार्य में
हमारे द्वारा स्वनिर्मित व संरचित प्रश्नावली का प्रयोग किया गया है
कार्यविधी
राष्ट्र निर्माण की चन
ु ौतियाँ वर्तमान परिदृश्य में भी उतनी
ही प्रासंगिक हैं जितनी की ऐतिहासिक परिदृश्य में थी क्योंकि विकास के विषय में
भारत आज भी बहुत ज्यादा पीछे है । राज्यों के मामले भी पर्ण
ू तः हल नहीं हो पाए हैं,
जो हमें कश्मीर समस्या के रूप में समय-समय पर वर्तमान में भी नजर आते हैं।
लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी संकट गहराता रहता है । इन ऐतिहासिक समस्याओं को
मध्य नजर रखते हुए आज भी यह प्रासंगिक है ।
निश्कर्ष
इस परियोजना कार्य में हमने राष्ट्र निर्माण की चन
ु ौतियों
के संबन्ध में जानने का प्रयास किया। इसमें हमने समझा है कि जब भारत 15 अगस्त,
1947 को स्वतंत्र हुआ, तो अंग्रेज उसकी क्या दशा करके गये थे। किस तरह भारत के
सरदार पटे ल आदि नेताओं ने राष्ट्र हित को स्रवोपरि रखकर एक अखंड भारत बनाने के
लिए विशेष साम-दाम, दं ड-भेद वाली नीति का सखती से पालन किया। हमने जाना कि
कुछ रियासतें किस तरह अखंड भारत के लिए बाधा उतपन्न कर सकती थीं परन्तु
भारत के नेताओं ने सज ू बझ ू का परिचय दे ते हुए उन चनु ौतियों को शीघ्र ही समाप्त
किया।
हमने इस परियोजना कार्य में विभाजन रूपी घाव
को स्पर्श करने का प्रयत्न भी किया। हमने जाना कि विभाजन की त्रासदी कितनी
हानिकारक थी और किस तरह लोगों को 14 अगस्त की रात तक यह पता ही नहीं था
कि हम भारत के नागरिक हैं या पाकिस्तान के। और जिसका परिणाम हमें नर संहार के
रूप में भगु तना पड़ा। इस विषय में हमने कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों के बीच
संरचित प्रश्नावली के माध्यम से सर्वेक्षण किया और यह जाना कि विद्यार्थी इस विषय
में जागरूक हैं और वे इसका महत्त्व जानते हैं। हमने राष्टर निरमाण की उन तीन मख् ु य
चन ु ौतियों को भी समझने की कोशिश की जो उस समय दे श के सामने उत्पन्न हुई थीं।
इस विषय का हमने वर्तमान परिदृश्य में भी अध्ययन किया और यह पाया कि अखंड
भारत आज भी कहीं-न-कहीं उन तीन मख् ु य चन ु ौतियों से जझू ता रहता है तथा हमने
यह निष्कर्ष निकाला कि यह राष्ट्र कठिन चन ु ौतियों से गजु रकर एक समद् ृ ध तथा
समप्रभु भारत बन पाया है । परन्तु आज भी विकास के विषय में हम काफी पीछे हैं,
जिस पर तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है ।
सीमाएं
इस परियोजनाकार्य को करते समय हमारी सीमाएं निम्नलिखित थीं:
1. परियोजना कार्य को केवल दृष्टिबाधित छात्र-छात्राओं तक ही सीमित रखा गया
है .
2. केवल कक्षा 9 से कक्षा 12 तक के छात्र-छात्राओं का चन ु ाव प्रतिदर्श के रूप में
किया गया है .
3. केवल दे हरादन ू स्थित दृष्टिबाधित विद्यालय के छात्र-छात्राओं को ही प्रतिदर्श
के रूप में चन
ु ा गया है .
4. परियोजनाकार्य को सिर्फ लिखित सामग्री तक ही सीमित रखा गया है , चित्रों या
पाईचार्ट का इस्तेमाल नहीं किया गया है .
ग्रंथ सच
ू ी
इस परियोजना कार्य को परू ा करने के लिए कक्षा 12 की
राजनीति विज्ञान की पस्
ु तक स्वतंत्र भारत में राजनीति का उपयोग किया गया है ।
ज्ञानद
ु य।काम से भी सामग्री ली गयी है ।
सम्पर्ण
ू प्रस्तत
ु ीकरण
प्रस्तत
ु परियोजना कार्य का उद्दे श्य राष्ट्र निर्माण की
चन
ु ौतियों के संबन्ध में अध्ययन करना । इसमें हमने कई संदर्भ लिये जैसे NCERT की
कक्षा 12 की राजनीति की पस् ु तक स्वतंत्र भारत में राजनीती। राम मनोहर लोहिया की
किताब विभाजन के अपराधी और गग ू ल की वेबसाइट ज्ञानद ु य।काम तथा दृष्टि
आई।ए।एस। जैसी अन्य संदर्भ लिये। इसमें हमारे उद्दे श्य निम्नलिखित थे-
1. राष्ट्र निर्माण की समस्त घटनाओं का अध्ययन करना
2. राष्ट्र निर्माण की कारणों पर अध्ययन करना।
3. राष्ट्र निर्माण की चन ु ौतियों का अध्ययन करना।
4. राष्ट्र निर्माण के प्रभावों का अध्ययन करना।
5. राष्ट्र निर्माण की चन ु ौतियों के समाधान का अध्ययन करना।
इन उद्दे श्यों को मद्दे नजर रखते हुए इस संबन्ध में
विद्यार्थियों की जागरूकता तथा जानकारी के विषय में
जानना चाहा। इस विषय में हमने विद्यार्थियों से प्रश्न
किये। उनके द्वारा दिये गये उत्तरों से हमें ज्ञात हुआ कि
इसके महत्त्व तथा कारण तथा प्रभाव तथा चन ु ौतियों के
विषय में वे काफी कुछ जानते थे। इस प्रकार हमारी
परिकल्पना सही सिद्ध हुई।