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महोदय, र ने अपने भाषण में राजभाषा आयोग की

रिपोर्ट के संबंध में कहा है कि हम सदस्दयों की


राय लेकर भाषा संबंधी कोई नीति घोषित करें गें ।
मैं समझता हूँ कि भाषा का प्रश्न इतना जटिल
नहीं था जितना कि उसको बना दिया गया है ।
इस जटिलता को ने में जहाँ उन लोगों का हाथ है
जो सरकार में नहीं हैं वहाँ इसमें भारत सरकार की
भी बड़ी जिम्मेदारी है । मझ
ु े वह दिन याद है जब
मैं छोटा था और दे श गल
ु ाम था । उस वक्त
महात्मा गांधी हिंदी के संबंध में चर्चा करते थे और
उनकी कृपा के फलस्वरूप और उनके प्रयास के
फलस्वरूप सभी प्रांतों में हिंदी की सभाएँ खोली
गई और वहाँ हिंदी का प्रचार किया गया । उस
समय हम अंग्रेजों के गुलाम थे और अंग्रेजों ने ही
हमारी राजभाषा अंग्रेजी घोषित कर रखी थी । तब
हम अंग्रेजी से दरू थे, और हिंदी के निकट थे ।
लेकिन आज जब हमारी अपनी सरकार है , अपना
शासन है , हम हिंदी से दरू होते चले जा रहे हैं ।
एक समय था जब दे श में हिंदीं के संबंध में एक
मत था । जब दे श स्वतंत्र हुआ उस समय हिंदी के
संबंध में घोषणा हो जानी चाहिए थी । लेकिन उस
समय सरकार चप
ु हो गई ।

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