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'ललकार' पत्रिका में प्रकात्रित लेख (कुछ के त्रिन्दी अनुवाद और कुछ पंजाबी में)

िररयाणा में पंजाबी लोग और पज


ं ाबी मातभ
ृ ाषा का मसला
• पावेल
ललकार ⚫ 16-31 अक्टूबर 2019
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के “हिन्दी-हिन्द-ू हिन्दस्ु तान” के साम्प्रदाहयक ऐजण्डे को आगे बढाते िुए अहित
शाि ने हिन्दी को िल्कु ़ की एक भाषा के तौर पर स्थाहपत करने का ब्यान हदया हजसके बाद इसका काफी
हवरोध िुआ खासकर दहिणी भारत और पंजाब िें। पर हिर भी बडे स्तर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के
साथ सरु िें सरु हिलाते िुए हिन्दी भाषा को भारत जैसे बिुराष्ट्रीय िल्कु ़ िें थोपे जाने को जायज़ ठिराते
भांहत-भांहत के तकक हदये गये। हकसी भाषा को ज़बदकस्ती थोपे जाने के कारण एक ़ौि का क्या िश्र िोता
िै, इसे लेकर अगर हकसी के िन िें कोई भ्रि िै तो वि िररयाणा के पंजाबी भाषाई इला़़ों िें एक नज़र
िार आयें जिााँ हपछले 53 वषों से हिन्दी थोपी जा रिी िै, सारे भ्रि दरू िो जायेंगे। 2011 की जनगणना के
अनसु ार िररयाणा िें त़रीबन 10 फीसदी लोग़ों की िातृभाषा पंजाबी िै पर असल िें पंजाबी बोलने वाले
लोग़ों की सख्ं या किीं ज़्यादा िै। कुछ िाहिर पजं ाबी बोलने वाले लोग़ों की आबादी 30 फीसदी के
आसपास बताते िैं। क्य़ोंहक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आयक सिाहजय़ों के रभाव िें और िररयाणा की
राजनीहतक पाहटकय़ों के साम्प्रदाहयक एजण्डे के कारण ग्रािीण और शिरी हिन्दू आबादी अपनी िातृभाषा
हिन्दी िी हलखवाती िै। भले िी वे अपनी दक ु ाऩों पर राशन पंजाबी िें िी बेचते िैं, व्यापार पंजाबी िें िी
करते िैं, घऱों िें, सिाज िें व्यविार करते िुए पंजाबी िी बोलते िैं, पंजाबी गीत़ों पर िी नाचते िैं पर जनगणना
के सिय अपनी िातृभाषा हिन्दी हलखवाते िैं। 2011 की जनगणना के अनसु ार पजं ाब के साथ लगते
िररयाणा के हज़ल़ों हसरसा िें त़रीबन 75 फीसदी, ितेिाबाद िें 45 फीसदी, जीन्द िें 10 फीसदी, कै थल
िें 15 फीसदी, करनाल िें 15 फीसदी, कुरुिेत्र िें 20 फीसदी, अंबाला िें 15 फीसदी, यिनु ानगर िें 10
फीसदी पंजाबी बोलने वाली आबादी रिती िै जिााँ स्कूल़ों िें हशिा का िाध्यि और दफ़्तरी कािकाज की
भाषा हिन्दी िै, हजसके कारण इस इला़े िें रिने वाली पंजाबी आबादी के बौहिक सांस्कृ हतक हवकास
को बडा ऩ ु सान पिुचाँ ा िै।
भाषा के मसले पर िररयाणा में रिने वाले पंजात्रबयों की मुत्रककलें:
अपने जन्ि से लेकर बच्चा अपने आसपास के िािौल िें से अपनी िातृभाषा के शब्द सीखता िै। खेलते
सिय, अपने पररवार और सिाज के साथ सिय हबताते सिय वि अपनी िातृभाषा िें िी व्यविार करता
िै और अपनी िातृभाषा के साथ उसके गिरे अिसास जडु जाते िैं। स्कूल जाने से पिले बच्चा जो कुछ
सीखता िै, उसकी हजतनी भी जानकारी िोती िै वि उसने िातृभाषा िें िी िाहसल की और संभाली िोती
िै। िररयाणा के पंजाबी बोलने वाले इला़़ों िें जिााँ तक सबकुछ पंजाबी िें िी िोता िै पर स्कूल िें पैर
रखते िी बच्च़ों को हिन्दी के साथ लोिा लेना पडता िै। जो बच्चे ने अभी तक िाहसल करके अपनी
िातृभाषा िें संभाला िोता िै उससे वि सब छीन हलया जाता िै और एक अनजान भाषा उस पर थोप दी
जाती िै। बच्चे को पजं ाबी की वणकिाला हसखाने से पिले हिन्दी और अग्रं ेज़ी की वणकिाला हसखायी जाती
िै इससे बडा ज़ल्कु ि और क्या िो सकता िै? िातृभाषा पंजाबी को हशिा का िाध्यि न बनाये जाने के नतीजे
के तौर पर छात्ऱों को आने वाली िहु ककल़ों के कारण जो भारी िानहसक उत्पीडन झेलना पडता िै, उसके
बिुत सारे भक्ु तभोगी पंजाबी बोलने वाले इला़़ों िें हिल जायेंगे। जब हकसी और भाषा को स्कूली हशिा
का िाध्यि बनाये जाने से नींव िी सिी निीं हटकी तो अगला काि सािाहजक-राकृ हतक पररघटनाओ ं की
सिझ सक ं ल्कप का हनिाकण करना भी सिी ढगं से निीं िोता। हजसके कारण पजं ाबी बोलते इन इला़़ों की
कई पीहढय़ों का हचन्तन नकारात्िक रूप से रभाहवत िुआ िै। जो लोग सिी ढंग से हचन्तन निीं कर सकते
वे अच्छे भहवष्ट्य के सपने कै से ले सकते िैं और अपने सपऩों को साकार करने के हलए लडाई कै से लड
सकते िैं। ि़ी़त तो यि िै हक हिन्दी भाषा थोपे जाने से िररयाणा के इन पंजाबी बोलते इला़़ों से उनके
सपने भी छीन हलये गये िैं क्य़ोंहक िातृभाषा पंजाबी को हशिा का िाध्यि न बनाये जाने के कारण उनका
हवकास सिी ढगं से निीं िुआ। िररयाणा के पजं ाहबय़ों का स्कूल िें पजं ाबी से सािना िोता भी िै तो छठी
किा िें, वि भी एक वैकहल्कपक हवषय के तौर पर। इस इला़े की िातृभाषा छीनकर उनके अिसास छीन
हलये गये िैं, अतीत से काट हदया गया िै। यि हबल्ककुल वैसे िी िै जैसे एक ़ौि दसू री ़ौि पर ़ब्ज़ा
करके अपना वचकस्व स्थाहपत करने के हलए उसके साधन छीनकर उसे साधऩों से हविीन कर दे।
पर यिााँ यि बात भी साफ कर देना लाहज़िी िै हक 53 वषों से हिन्दी थोपे जाने के बाद भी यिााँ के लोग
हिन्दी निीं सीख सके । यिााँ के लोग़ों की िातृभाषा भी छीन ली गयी और जो थोपी गयी वि भी ढगं से निीं
सीख सके , कोई और भाषा सिी ढंग से सीखना तो दरू की बात िै। िातृभाषा पंजाबी के जगि हिन्दी को
हशिा का िाध्यि बनाये जाने से बिुत-सी भाषाई हवकृ हतयााँ आयी िैं। यिााँ के लोग हिन्दी-पंजाबी के बिुत-
से शब्द़ों का उच्चारण सिी से निीं कर पाते, शब्दावली सिी निीं िै, अपनी बात किने के हलए सिी शब्द़ों
का चनु ाव निीं कर सकते, शब्द़ों को सिी हलखना तो दरू की बात िै। व्याकरण िें ग़लहतयााँ आि बात िै।
पजं ाबी िाध्यि िें पढे िेरे िाता घर िें अक्सर िेरे बोलने के दौरान शब्द उच्चारण िें ग़लहतयााँ हनकालते
रिते िैं। इस पंजाबी इला़े िें हिन्दी िें लगे बोडों की िास्यास्पद ग़लहतयााँ आपको आि िी हदख जायेंगी।
अब आप आसानी से अन्दाज़ा लगा सकते िैं हक ऐसी पीढी अपनी हशिा पूरी करके सिाज िें व्याविार
िें उतरती िै तो उसकी क्या िालत िोती िोगी। क्य़ोंहक आगे भी दफ़्तरी कािकाज से लेकर िर हकसी जगि
की भाषा हिन्दी या अंग्रेज़ी िी िै।
िररयाणा में रिने वाले पज
ं ात्रबयों के साथ भाषाई आधार पर िोती बेइन्साफी की ऐत्रतिात्रसक
पृष्ठभूत्रम:
1966 िें पंजाब का भाषाई आधार पर हिर से हवभाजन िुआ तो इस हवभाजन का आधार भी भाषाई न
िोकर साम्प्रदाहयक िो गया। राजनीहतक जोड-तोड के कारण बिुत सारे अब के पंजाब के साथ लगते
पजं ाबी बोलते इला़े िररयाणा िें शाहिल कर हलये गये। अलग पजं ाब बनाने के हलए िोचाक लगाने वाले
अकाली दल ने भी जानकारी िोते िुए भी इन पंजाबी बोलते इला़़ों पर दावा निीं जताया। दरअसल
1966 का हवभाजन हज़ल़ों के हिसाब से िुआ था। जो हज़ल़ों की बिुसख्ं या की भाषा थी, उसे उस हिसाब
से पंजाब या िररयाणा िें हिला हदया गया। िररयाणा के हज़ला हसरसा (जोहक 1975 िें हज़ला बना) और
हज़ला ितेिाबाद (जोहक 1997 िें हज़ला बना) 1966 के हवभाजन के सिय हज़ला हिसार का हिस्सा थे।
उस सिय के हिसाब हज़ले िें आधी से ज़्यादा आबादी पंजाबी बोलती थी, भारत सरकार बागडी को
पंजाबी की उपभाषा िानती िै। अगर हजनकी िातृभाषा बागडी िै उन्िें भी पंजाबी के दायरे िें रखें तो उस
सिय के हिसार हज़ले िें पंजाबी भाषाई आबादी तीन-चौथाई से बढ जाती िै, पर हिर भी उसे िररयाणा िें
हिलाया गया। अकाहलय़ों ने भी इस पर हवरोध ज़ाहिर निीं हकया क्य़ोंहक हज़ला हिसार की बिुसंख्या हिन्दू
थी और अकाहलय़ों को राजनीहत जोड-तोड के इधर-उधर िो जाने का डर था। उस सिय का हज़ला करनाल
जोहक आज के हज़ले कुरुिेत्र, कै थल आहद को हिलाकर बनता था उसका हवभाजन भी हज़ला हिसार की
तरि िी िुई थी। पर िैरानी की बात िै हक उस सिय का पेपसू का इला़ा (हजसिें आज के हज़ला संगरूर,
जीन्द आहद पडते िैं) िख्ु या तौर पर पजं ाबी बोलता था और करनाल व हिसार हज़ले को िररयाणा िें
शाहिल हकये जाने के आधार पर पेपसू का पूरा इला़ा पंजाब का हिस्सा बनता था पर इसे पंजाब और
िररयाणा के दरहियान दो हिस्स़ों (पंजाब िें संगरूर और िररयाणा िें जीन्द) िें हवभाहजत कर हदया गया।
या तो करनाल और हिसार के हलए भी यिी पैिाना अपनाया जा सकता था या हिर सिी ढंग से देखा जाये
तो ये हज़ले पंजाब का हिस्सा बनते थे पर भारतीय िुक्िरान पंजाब राज्य को कि से कि इला़े तक सीहित
कर देना चािते थे। भारतीय िुक्िराऩों की घहटया चाल़ों और अकाहलय़ों के राजनीहतक जोड-तोड के कारण
पंजाबी बोलता बडा इला़ा िररयाणा का हिस्सा बना हदया गया जिााँ से हिन्दी थोपे जाने का हसलहसला
शरूु िुआ और बदस्तरू जारी िै।
िुकूमतों का पंजाबी भाषा के प्रत्रत दुकमनाना रवैया:
िररयाणा राज्य बनने के बाद पानी के िसले सिेत अन्य कई िसल़ों पर िररयाणा सरकार का पंजाब सरकार
के साथ टकराव बढ गया। राजनीहतक फायदा लेने के हलए और िररयाणा के हित़ों का खदु को बडा रिक
हसि करने के हलए िररयाणा के राजनीहतक नेताओ ं के दरहियान एक दसू रे से ज़्यादा से ज़्यादा पंजाहबय़ों
के रहत लोग़ों िें नफरत भडकाने का ि़ ु ाबला शरू
ु िो गया। पंजाहबय़ों के रहत नफरत भडकाने का नतीजा
पंजाबी भाषा के रहत नफरत िें भी हनकला और 1967 िें स्कूल़ों िें हशिा के हलए दसू री भाषा कौनसी
पढाई जाये, का सवाल आया तो उस सिय के िख्ु यित्रं ी बंसीलाल ने किा पंजाबी को छोडकर और कोई
भी भाषा चलेगी। तो स्कूल़ों िें हशिा के हलए तेलगु ू को दसू री भाषा बना हदया गया और 100 अध्यापक
दहिणी भारत से िंगवाये गये जो तेलगु ू पढायें। जबहक िररयाणा िें एक भी ऐसा पररवार निीं था जो तेलगु ू
भाषी िो। िररयाणवी के बाद पंजाबी िी वि भाषा थी जो िररयाणा िें सबसे ज़्यादा बोली जाती थी। पर
िुक्िराऩों का पंजाबी भाषा के रहत दकु िनी वाला रवैया िी था हजसने पंजाबी को दसू री भाषा बनने से रोके
रखा। हिर 1969 िें िररयाणा का भाषाई ऐक्ट बनाया गया तो इसिें तेलगु ू का कोई हज़क्र निीं था और
दसू री आहधकाररक भाषा के तौर पर इस हिर दकु िनाना रवैये के कारण पंजाबी को न चनु ते िुए तहिल को
दसू री भाषा के तौर पर चनु ा गया क्य़ोंहक दहिणी भारत िें हिन्दी हवरोधी लिर चल रिी थी और भारतीय
िुक्िरान एक ़ौि की िातृभाषा को पैऱों तले रौंदते िुए तहिल को दसू री भाषा के तौर पर चनु कर छद्म
“़ौिी एकता” का संदेश देना चािते थे। ि़ी़त िें यि भारतीय िुक्िराऩों की हिन्दी स्थाहपत करने की
घहटया चाल के हसवा और कुछ निीं था।
िररयाणा की राजनीहतक पाहटकय़ों के नेता बंसी लाल, भजन लाल, देवी लाल आहद पंजाहबय़ों के रहत
िररयाणा के लोग़ों िें नफरत भडकाते आये िैं। िररयाणा िें रिने वाली पजं ाबी आबादी का बडा हिस्सा
ग़ैर-हसक्ख िै हजनिें एक हिस्सा गााँव़ों-शिऱों िें व्यापार, दक
ु ानदारी आहद पेश़ों िें लगा िुआ िै। इन
राजनीहतक नेताओ,ं खासकर देवी लाल ने ग्रािीण िेत्र िें हकसान आबादी की लािबन्दी पंजाबी ़ौि के
रहत नफरत भडकाते िुए पंजाहबय़ों को हकसाऩों की बदिाली का कारण बताया। 2016 िें जाट आरिण
को लेकर गााँव़ों के हकसाऩों ने दहलत़ों के साथ-साथ पंजाहबय़ों की दक ु ाऩों को भी बडे स्तर पर हनशाना
बनाया था और पजं ाहबय़ों के रहत यि नफरत हपछले 53 वषों के दरहियान कई बार भडकी िै। इसी दकु िनी
वाले रवैये के कारण 40 वषक तहिल िररयाणा की दसू री आहधकाररक भाषा बनी रिी जबहक एक भी पररवार
तहिल बोलने वाला िररयाणा िें निीं था। इस दौरान बिुत बार पंजाबी भाषा को दसू री भाषा का दजाक देने
की िााँग उठी और यि िााँग धधक जाने पर िुक्िराऩों को यि िसला वोट़ों का बनता हदखा और हिर 40
वषों बाद 2009 िें बडी िजबरू ी िें पंजाबी भाषा को दसू री भाषा का दजाक दे हदया गया पर इसिें बिुत-सी
खाहियााँ िैं। इन खाहिय़ों के कारण पजं ाबी को हदया गया दसू री भाषा का दजाक न हदये बराबर िी िै। आज
भी िररयाणा की ज़्यादातर यहू नवहसकहटय़ों िें पंजाबी हवभाग निीं िैं और हजन दो यहू नवहसकहटय़ों (कुरुिेत्र
और हसरसा िें) िें लड-झगडकर पंजाबी हवभाग बनवाये गये िैं विााँ 2 या 3 से ज़्यादा अध्यापक निीं िैं।
पंजाबी का ऐसा िी िाल िररयाणा के सरकारी स्कूल़ों िें िै।
क्या त्रिन्दी को िररयाणा की मुख्य भाषा बनाना सिी िै?
िररयाणा की िख्ु य भाषा िररयाणवी िै। भारतीय सरकार इसे हिन्दी की उप-भाषा िानती िै। 2011 की
जनगणना िें तकरीबन एक करोड लोग़ों ने इसे अपनी िातृभाषा बताया िै। िररयाणा िें बोलने के लिज़े के
अनसु ार देसवाली, बांगरू, अिीरवती, बागडी, िेवाती आहद भाषाएाँ िैं। सबसे िशिूर लिज़ा देसवाली िै
जो िख्ु य तौर पर सोनीपत, रोितक आहद हज़ल़ों सिेत इससे सटे िुए इला़़ों िें बोला जाता िै। बांगरू
जीन्द हज़ले िें बोली जाती िै जो हकसी सिय पेपसू का हिस्सा था। बागडी हसरसा, ितेिाबाद, हिसार और
हभवानी िें बोली जाती िै। बागडी को भारत सरकार ने पजं ाबी की उप-भाषा िाना िै। अिीरवती िहिदं रगड,
रे वाडी िें बोली जाती िै। सबसे िख्ु य बात यि िै हक हकसी भी हिसाब से इन भाषाओ ं को हिन्दी की उप-
भाषा निीं िाना जा सकता। इसके पीछे कोई ठोस कारण निीं िैं, हसवाए इसके हक भारतीय िुक्िरान ज़्यादा
से ज़्यादा िेत्र को हिन्दी भाषाई िेत्र बताना चािते थे। कुछ हवद्वान िररयाणवी को ब्रज भाषा के नज़दीक
बताते िैं हजसे ज़बदकस्ती हिन्दी भाषाई लोग़ों की सख्ं या को ज़्यादा हदखाने के हलए हिन्दी की उपभाषा पिले
िी िाना जा चक ु ा िै, कुछ हवद्वान इसे पंजाबी के नज़दीक बताते िैं। पर हिन्दी के नज़दीक बताने के पीछे
कोई ठोस कारण निीं िैं। भारत की और कई भाषाओ ं सिेत अपनी अलग हलहप न िोने पर िररयाणवी को
भी ज़बदकस्ती हिन्दी के साथ tow कर हदया गया।
दसू री बात यि हक 2011 की जनगणना िें एक करोड से ज़्यादा लोग़ों ने हिन्दी को अपनी िातृभाषा बताया
िै, जो ि़ी़त से दरू िै। आर.एस.एस. और आयकसिाहजय़ों के रभाव और पंजाहबय़ों के रहत नफरत ने
हिन्दओु ं को अपनी िातृभाषा हिन्दी हलखवाने की रेरणा दी। अपनी िातृभाषा हिन्दी हलखवाने वाल़ों का
बडा हिस्सा पजं ाबी और हिर िररयाणवी बोलने वाला िै। वैसे िररयाणा के हवशि ु ग्रािीण इला़़ों िें हिन्दी
ज़्यादातर लोग़ों की सिझ से बािर िै। कुल-हिलाकर किा जा सकता िै हक हिन्दी िररयाणा राज्य की िख्ु य
भाषा निीं बहल्कक ज़बदकस्ती थोपी गयी िै।
िररयाणा राज्य के पंजाबी भाषी लोगों की ठोस मााँगें:
पिली िााँग तो यिी बनती िै हक पंजाबी बोलते इला़़ों िें स्कूल़ों िें हशिा का िाध्यि पंजाबी िो और
दफ़्तरी कािकाज की भाषा भी पजं ाबी िो। जब लोग़ों की भाषा िी पजं ाबी िै तो हकसी दसू री भाषा िें हशिा
देने का कोई ितलब निीं रि जाता। स्कूल़ों-कॉलेज़ों िें अध्यापक-रोिे सर हिन्दी िें पढाते और छात्र हिन्दी
िें पढते िैं पर अलग िटते िी कण्टीन पर बैठकर अध्यापक-रोिे सर-छात्र सभी पंजाबी िें बातें कर रिे िोते
िैं। अब िररयाणा िें चनु ाव़ों के रचार अहभयान चल रिे िैं और सारे राजनीहतक नेता, देवी लाल के पररवार
के भी, पंजाबी भाषाई इला़़ों िें पंजाबी िें िी वोट िााँग रिे िैं। लोग पंजाबी गीत़ों पर नाचते िैं, इस इला़े
िें सबसे ज़्यादा पजं ाबी हफल्किें िी चलती िैं, सबकुछ पजं ाबी िें िोता िै तो हिन्दी को िाध्यि बनाने िें क्या
तक ु िै। अगली िााँग यि बनती िै हक दसू री भाषा बनाये जाने के बाद जो भी ़ाननू ी खाहियााँ िैं उन्िें दरू
हकया जाये और कॉलेज़ों-यहू नवहसकहटय़ों िें पंजाबी हवभाग खोले जायें। सरकारी स्कूल़ों-कॉलेज़ों िें पंजाबी
के अध्यापक़ों की भती की जाये। अहन्ति बात यि िै हक इस सब का बुहनयादी कारण 1966 का अन्यायपणू क
हवभाजन िै, इसहलए भाषाई आधार पर इला़़ों का सिी ढंग से हवभाजन िो।

भाषाई उत्पीड़न, क़ौमी उत्पीड़न का ित्रथयार •सख


ु देव सतं नगर
ललकार ⚫ 16-31 अक्टूबर 2019
हपछले हदऩों भारत के गृि िंत्री ने ‘हिन्दी हदवस’ के िौ़े पर ऐलान हकया हक ििारा अगर हिशन ‘एक
़ौि एक भाषा’ िै। इससे पिले हिन्दी-हिन्द-ू हिन्दस्ु तान और ‘एक देश, एक हवधान और एक रधान’ के
शोशे काफी सिय से छोडे जा रिे िैं। दहिणी भारत के राज्य़ों िें गृि िंत्री के बयान का तीखा हवरोध िुआ।
लेखक़ों, पत्रकाऱों, साहित्यकाऱों, िातृभाषा रेहिय़ों और राजनीहतक नेताओ ं ने सख़्त शब्द़ों िें इसका हवरोध
हकया। िैरानी और शिक की बात िै हक पजं ाबी के राजनीहतक दायऱों ने इस बेिद गंभीर िसले पर िौन धारण
करे रखा। पर पंजाब िें, ‘हिन्दी हदवस’ िनाने वाले कायकक्रि की रधानगी कर रिे एक लेखक िुक्िचन्द
राजपाल की उपहस्थहत िें, कुछ वक्ताओ ं द्वारा पजं ाबी को गाली-गलौच और लडाई-झगडे की भाषा बताने
और पंजाबी के लेखक़ों द्वारा इस पर हवरोध दजक करवाने पर बात बढ गयी। िुक्िचन्द राजपाल की धिकी
भरे अन्दाज़ िें किी गयी बात, हिन्दू राष्ट्र के झण्डा बरदाऱों के सरु िें सरु हिलाती नज़र आती थी। पंजाब
के लेखक़ों-साहित्यकाऱों-बुहिजीहवय़ों और िातृभाषा रेहिय़ों ने इस धिकी को एक गंभीर चनु ौती के तौर
पर हलया। हबल्ककुल इस बेिद संवेदनशील और भावक ु िािौल िें, पंजाबी के नािवर गायक गुरदास िान
ने, फासीवाहदय़ों का पि लेते िुए, गृिित्रं ी के , हिन्दी भाषा को ़ौिी भाषा के तौर पर थोपे जाने के बयान
की तरफदारी कर दी। गरु दास िान के बयान ने न हसफक इन रहसि और िक ं ारे िुए लोग़ों के बौहिक
हदवाहलयेपन को िी रकट हकया बहल्कक खाते-पीते और हसस्टि द्वारा अनक ु ू ल कर हलये गये िध्य वगीय
बहु िजीहवय़ों के आि िेिनतकश लोग़ों से अलगाव और िुक्िराऩों के साथ िौ़ारस्त सम्प्बन्ध को भी
उजागर कर हदया। िुक्िचन्द राजपाल ने तो हदखावे के हलए िाफी भी िााँग ली, पर गरु दास िान ने तो लोग़ों
की भावनाओ ं को भी िित्व देना ज़रूरी निीं सिझा। बेशक ये लोग अपनी कला के ज़ररये, आि लोग़ों
की भावनाओ ं और जज़्बात़ों का किाया िुआ िी खाते िैं। लोग़ों की हज़न्दगी से जडु ी गंभीर सिस्याओ ं के
साथ इनकी कला का कोई वास्ता निीं िोता। कला कला के हलए के हसिान्त को िानने वाले ये भद्रपरुु ष,
िुक्िराऩों की सरपरस्ती िें सरु हित ििससू करते िैं।
िमारा समय और भाषा का सवाल :-
ि़ी़त यि िै हक िि फासीवाद के दौर से गज़ु र रिे िैं। भगवाकरण की िहु िि के तित, हसलहसलेवार कई
तरि के नारे सािने आ रिे िैं। भीड द्वारा अल्कपसंख्यक़ों, खासकर िस्ु लिाऩों और दहलत़ों के ़ाहतल़ों को
सज़ाएाँ देने की जगि, संघ पररवार और उसकी सरकार, ़ाहतल़ों को िी सम्प्िाहनत कर रिी िै। उल्कटा ़त्ल
िोने वाल़ों के पररवार पर ि़ ु दिे दजक हकये जाते िैं। बलात्कार जैसे हघनौनी करततू ़ों करने वाले शरे आि
बचाये जाते िैं। पर बलात्कार की हशकार िोने वाली बे़सरू लडहकय़ों पर ि़ ु दिे दजक िोते िैं और उनके
पररवाऱों और ररकतेदाऱों को जान से िाथ धोने पडते िैं। फासीदवाद के एजण्डे के तित िोने वाले ़त्ल और
दिशत िै लाने के िािल़ों िें, धीरे -धीरे गनु ाि करने वाल़ों के ि़
ु दिे किज़ोर करके , उनके बरी िोने का
रास्ता साफ हकया जा रिा िै। ज़ल्कु ि के हशकार लोग़ों और उनके पररवाऱों पर झूठे ि़ ु दि़ों का हशकंजा
कसा जा रिा िै। इससे भी आगे बढते िुए, अब देश की 49 नािवर िहस्तय़ों पर देशद्रोि का ि़ ु दिा दजक
हकया गया िै। उनका ़सरू यि िै हक उन्ि़ोंने देश िें बढ रिे िजिू ी ़त्ल़ों की घटनाओ ं पर हचन्ता रकट
करते िुए रधानित्रं ी को एक हचट्ठी हलखी िै। इन िख्ु य शहख्सयत़ों िें हफल्कि जगत की िशिूर िहस्तयााँ,
इहतिासकार, साहित्यकार, पत्रकार और बहु िजीवी शाहिल िैं। यि अलग बात िै हक भारत िें हवरोध की
शानदार परंपरा को ़ायि रखते िुए, 185 और रहसि िहस्तय़ों ने, सरकार के इस दिनकारी कारनािे का
हवरोध करते िुए, रधानिंत्री को एक और हचट्ठी हलख दी िै। िज़दरू वगक और आि िेिनतकश आबादी
इस िािौल की सबसे बडी भक्ु तभोगी िै। चािे ये बातें, ििारे लेख का हवषय निीं िैं, हिर भी खास बात
यि िै हक अल्कपसंख्यक, दहलत, जनवादी अहधकाऱों के हलए लड रिे लोग और अपने िक़ों के हलए जझू
रिी राष्ट्रीयताएाँ िुक्िराऩों के हनशाने पर िैं। इन्िीं हदऩों भाषा के सवाल पर शरू
ु िुई बिस को भी, इसी रसंग
िें सिझा जा सकता िै।
भारत में क़ौमी भाषा और सरकारी भाषा की वैधात्रनक त्रथथत्रत :-
ििारे हवधान हनिाकताओ ं ने भाषा के सवाल पर भारत की जहटल हस्थहत के िद्देनज़र, हकसी भी भाषा को
़ौिी भाषा के तौर पर िान्यता निीं दी। भारत एक बिु-़ौिी और बिु-भाषाई देश िै। िालांहक राष्ट्रीय
िहु क्त सघं षक के दौरान, पाँजू ीवाद की हचन्तन-धारा िें, यि धारणा भी रचहलत थी हक राष्ट्रीय िहु क्त
आन्दोलन के दौरान पैदा िुई लोग़ों की बेहिसाल एकता के नतीजे के तौर पर, भारतीय ़ौि का संकल्कप
उभर सकता िै। भारतीय पाँजू ीवाद के बडे हसिान्तकार ििात्िा गााँधी जैसे भी, एक भारतीय ़ौि की एक
़ौिी भाषा के तौर पर, हिन्दी के रचार-रसार के हलए काि करते थे। ये बहु िजीवी भारत की भाषाई
हवहभन्नता और बिु-़ौिी स्वरूप की ि़ी़त को नज़रअन्दाज़ करते थे। हिर भी संहवधान बनाते वक़्त,
ठोस बहिरिख ु ी पररहस्थहतय़ों के दबाव िें, हकसी भी एक भाषा को ़ौिी भाषा के तौर पर िान्यता निीं दी
गयी। उपहनवेशवादी दौर िें सरकारी कािकाज अंग्रेज़ी िें िोता था। 1950 िें संहवधान लागू करते वक़्त
फै सला िुआ हक सरकारी कािकाज अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिन्दी िें भी िोगा। इस तरि 2 दफ़्तरी भाषाओ ं
को िान्यता हिली। इसके साथ यि भी किा गया हक 15 साल़ों बाद, ज़्यादा काि हिन्दी िें करने और धीरे -
धीरे अंग्रेज़ी को कि करने पर ज़ोर हदया जायेगा। पर 1965 िें जब अंग्रेज़ी की जगि सारे देश िें हिन्दी को
दफ़्तरी भाषा के तौर पर लागू करने की बात चली, तो दहिण भारतीय राज्य़ों िें ज़ोरदार हवरोध िुआ,
खासकर तहिलनाडू िें। उस सिय के रधानिंत्री लाल बिादरु शास्त्री ने, संसद का ऐिरजेंसी सेशन बल ु ाकर
अंग्रेज़ी को भी हिन्दी के साथ िी दफ़्तरी भाषा के तौर पर जारी रखने का रस्ताव पास करवाया। हिर 22
िेत्रीय भाषाओ ं को भी दफ़्तरी भाषाओ ं का दजाक हदया गया। के न्द्र सरकार के काि़ों िें अंग्रेज़ी और हिन्दी
और राज्य अपनी िज़ी के ितु ाहब़ सचू ी िें दजक 22 िेत्रीय भाषाओ ं िें से, हकसी को भी दफ़्तरी भाषा के
तौर पर इस्तेिाल कर सकते थे। एक बात हबल्ककुल स्पष्ट िै हक ़ाननू के अनसु ार भारत की कोई भी ़ौिी
भाषा निीं िै। हिन्दी और अंग्रेज़ी दफ़्तरी भाषाएाँ िैं जो सम्प्पकक भाषा की भहू िका भी अदा करती िैं। भारत
का बिु-राष्ट्रीय स्वरूप िोने के कारण, एक भाषा को ़ौिी भाषा के तौर पर थोपा जाना शायद सम्प्भव निीं
था।
भाषा का मानव जीवन में थथान :-
लाख़ों साल पिले िनष्ट्ु य की पशु जगत से अलग िोने की पररघटना घटी। चार पैऱों वाले पछ ंू िीन बदं र के
अगले पैर आज़ार िुए, सीधा िोकर चलने और िाथ़ों के इस्तेिाल ने, ििारे इस पुरखे को श्रि के अिल के
सिथक बनाया। लाख़ों साल़ों िें ििारे इस बंदर जैसे परु खे ने श्रि के अिल से िनष्ट्ु य बनने तक का सफर परू ा
हकया। श्रि एक ऐसी कारक वाई थी हजससे िाथ़ों द्वारा रारहम्प्भक औज़ाऱों का इस्तेिाल करते िुए, रकृ हत को
अपनी ज़रूरत के हलए बदलते िुए, रारहम्प्भक उत्पादन करते िुए, ििारा यि परु खा िनष्ट्ु य का रूप िाहसल
करता िै। श्रि एक उद्देकयपूणक और सािहू िक कारक वाई िै, हजसिें एक-दसू रे से सम्प्पकक और तालिेल की
ज़रूरत िें से िी भाषा का जन्ि िुआ। श्रि के अिल के दौरान पैदा िुई भाषा िें, श्रि के सगं ीत भी अहभव्यक्त
िुआ। िनष्ट्ु य की उत्पहि और उसके हवकास के बचपन िें भाषा िें काव्य लय रभावी िोती थी। भाषा या
बोली और कहवता का जन्ि श्रि की कारक वाई के अिल का हिस्सा िी था। आगे चलकर अिूहतककरण की
हक्रया से गज़ु रते िुए, ििारी बोहलय़ों और भाषाओ ं ने आज वाला रूप हलया। हपछली सदी िें िोने वाले
ििान सिाजवादी रयोग के दौरान, सोहवयत संघ िें भाषा के सम्प्बन्ध िें बिुत संजीदा और बेिद ज़रूरी
बिस-िबु ािसा िुआ। दहु नया के अन्य हिस्स़ों िें भी भाषा के सम्प्बन्ध िें अध्ययन िुए िैं। िोटे तौर पर इन
गंभीर अध्ययऩों का हनचोड यि िै हक भाषा एक सािाहजक पररघटना िै, जो सिाज के ज़ररये कायकशील
िोती िै। इसकी उत्पहि और हवकास, सिाज की उत्पहि और हवकास के साथ-साथ िोता िै। भाषा के
हवकास के हनयि, सिाज के हवकास के इहतिास को सिझने से सिझे जा सकते िैं। ये इन लोग़ों के इहतिास
से सम्प्बहन्धत िैं, हजनकी भाषा का िि अध्ययन करते िैं, जो इसके सृजनकताक िैं। इस तरि भाषा न हसफक
सम्प्पकक का साधन िै बहल्कक हकसी भी भाषाई सििू के इहतिास और सस्ं कृ हत की वािक भी िै, सिाज के
संघषक और हवकास का औज़ार िै।
मातृभाषा का जीवन में मित्व :-
िानव सिाज, अनेक़ों भाषाओ ं या बोहलय़ों की हवहभन्नता से भरपरू , एक शानदार ससं ार िै। पर िानव
सिाज िज़ाऱों साल़ों से वगों िें हवभाहजत िोने के कारण, िर युग (दास व्यवस्था, सािन्तवाद और पाँजू ीवाद)
िें िेिनतकश लोग, ज़ल्कु िी शोषक वगों की लटू और ज़ल्कु ि का हशकार रिे िैं। िानव सिाज दिन ज़ल्कु ि के
हखलाफ संघषक करने वाले लोग़ों का सिाज भी िै। इन संघषों के दौरान िी खासकर पाँजू ीवादी दौर िें, और
कई सवाल़ों के साथ-साथ, भाषा का सवाल भी एक िित्वपणू क िद्दु े के तौर पर उभरता िै। इस िोचे पर
उत्पीडक राज्य और ़ौिें, उत्पीहडत ़ौि़ों को दबाने के हलए भाषा का िहथयार भी इस्तेिाल करना शरू ु
करती िैं। खासकर उपहनवेशवादी दौर िें संघषक कर रिे लोग़ों को किज़ोर करने और शोषक वगक का वैचाररक
वचकस्व ़ायि करने के हलए, उत्पीहडत वगों को िीनता का अिसास करवाने के हलए उनकी भाषाओ ं को
दबाने और अधीनगी की हस्थहत अपनाने को िजबरू करने का इहतिास रिा िै। इस संघषक के दौरान िी
िातृभाषा के िित्व और ििारे जीवन िें इसके स्थान के बारे िें चेतना की बात चलती िै। के न्या के िशिूर
लेखक और भाषा-वैज्ञाहनक न्गगू ी वा थ्य़ोंगो हलखते िैं हक भाषा न हसफक सम्प्पकक बहल्कक इहतिास, िल्कू य-
िान्यताओ ं और सौन्दयकबोध का ज़खीरा भी िोती िै। ऐहतिाहसक अनुभव और सािहू िक याद का भण्डार
िोती िै। भाषा िनष्ट्ु य की स्व-पिचान का िाध्यि भी िोती िै। ़ौि़ों और देश़ों को दबाने के हलए हसफक
बन्द़ ू िी काि निीं करती, इसके परू क के तौर पर हवचाऱों की ता़त की ज़रूरत पडती िै। न्गगू ी हलखते
िं हक अगर आपको संसार की सारी भाषाएाँ भी आती िैं और आपको आपकी िातृभाषा और अपनी
सस्ं कृ हत की भाषा निीं आती तो इसी को गल
ु ािी किते िैं। िातृभाषा, स्व को पररभाहषत करने का औज़ार
िै।
भाषाई उत्पीड़न बनाम जनवाद :-
औपहनवेहशक दौर िें भारत िें भाषाई नीहत बनाने वाले, अंग्रेज़ उपहनवेशवाहदय़ों के भाषा िाहिर िैकाले ने
किा था हक िि भारत िें ऐसी आबादी तैयार करना चािते िैं, हजसका रूप भारतीय िो पर िानहसक तौर
पर अंग्रेज़ ि़ों। भारत िें औपहनवेहशक िुकूित को िज़बतू करने के हलए, यि हशिा नीहत ‘बााँट़ों और राज
करो’ की नीहत िें बेिद िददगार थी। सिाज िें भाषा के आधार पर दजाकबन्दी करना आसान था। शासक़ों
द्वारा थोपी िुई भाषा बोलने वाल़ों और अपनी िातृभाषा िें बोलने वाल़ों िें। िेिनतकश लोग़ों िें भी
अनजान भाषा थोपने से बौहिक हवकास रोकना आसान िो जाता िै। कोई व्यहक्त अपनी िातृभाषा िें
सोचता और सपने लेता िै, भहवष्ट्य की योजनाएाँ बनाता िै। िातृभाषा से कटने का ितलब िै अपने इहतिास
और हवरासत से टूट जाना। िक ु ािी िलू हनवासी रे डइहं डयऩों के हलए यरू ोप से आये अिेररहकय़ों का नारा
था ‘इहं डयऩों को िारो, आदहिय़ों को बचाओ’। इसका ितलब था उन्िें उनकी भाषा और संस्कृ हत से
ििरूि कर दो। अपनी रारहम्प्भक हशिा िातृभाषा िें न देने वाली हशिा नीहत का ितलब िै, करोड़ों
िेिनतकश लोग़ों के बच्च़ों को हशिा और उनकी हवरासत से ििरूि करना। इस तरि िि देखते िैं हक
उपहनवेशवाद का दौर, भाषाई उत्पीडन का दौर भी था। हजसिें अधीन ़ौि़ों को अपनी भाषाओ ं के िलने-
िूलने और हवकास के जनवादी िक से ििरूि रखा जाता था। ससं ार िें सािन्तवाद के नष्ट िोने के दौर िें,
यरू ोप िें आधहु नक ़ौिी राज्य अहस्तत्व िें आये, हजनका एक साझा भगू ौहलक इला़ा और एक साझा
भाषा थी; आगे चलकर परू बी यरू ोप और रूस िें पाँजू ीवाद का हवकास क्लाहसकीय ढगं से निीं िुआ। बिु-
़ौिी पाँजू ीवादी राज्य अहस्तत्व िें आये। इन राज्य़ों िें ़ौिी झगडे-फसाद आ िी रिते थे। यिााँ सवाल
खडा िुआ हक एक बिु-़ौिी राज्य िें, ़ौिी ितभेद़ों खासकर भाषा के सवाल का िल कै से िो?
ऐहतिाहसक अनभु व ने हसि हकया िै हक हसफक जनवाद और िक ु हम्प्िल जनवाद िी इन िसल़ों का िल िै।
हकसी ़ौि या भाषा का कोई हवशेष िक निीं िोना चाहिए। आहथकक लेनदेन की ज़रूरत़ों िें से, बिु-भाषाई
िल्कु ़़ों िें, पणू क जनवाद के आधार पर सबसे योग्य और ज़रूरत परू ी करने वाली भाषा या भाषाएाँ सम्प्पकक
भाषा के तौर पर हवकहसत िो सकती िैं। हकसी एक भाषा का उत्पीडन, हनहकचत रूप िें यि साहबत करता
िै हक शासक वगक अपने लुटेरे िन्सबू ़ों के कारण, भाषा के िािले िें जनवाद का त्याग करती िैं। भाषा के
सवाल पर शाहन्त के वल िक ु हम्प्िल जनवाद से िी सम्प्भव िै।
भारत में भाषाई उत्पीड़न क़ौमी उत्पीड़न का ित्रथयार :-
भारत के िौजदू ा फासीवादी दौर िें अधं राष्ट्रवाद और साम्प्रदाहयकता को सिाधारी पाटी िवा दे रिी िै।
देश के बिु-़ौिी स्वरूप को नज़रअन्दाज़ करके हिन्दू राष्ट्र के नाि पर यि भ्रि पैदा हकया जा रिा िै। ‘एक
़ौि एक भाषा’ का नारा इस बडे एजण्डे का िी हिस्सा िै। एक ़ौि से इनका ितलब हिन्दू ़ौि िै। कोई
भी भाषा एक दसू री की दकु िन निीं िोती िै। ज़्यादा से ज़्यादा भाषाओ ं की जानकारी और अलग-अलग
भाषाई सििू ़ों का आपस िें िेलजोल, एक रगहतशील पररघटना िोती िै। घहटया ़ौिवादी रुख से, एक
भाषा को दसू री भाषा के दकु िन के तौर पर पेश करना या अपने से अलग भाषा बोलने वाल़ों पर ििल़ों की
वकालत करना, यि दभु ाकग्यपणू क पररघटना िै। फासीवाद के अाँधेरे दौर िें, अल्कपसख्ं यक सििू या धिक, दबायी
जा रिी ़ौि़ों की िहु क्त का संघषक और देश के िेिनतकश लोग़ों की िहु क्त का संघषक एक-दसू रे के परू क
िैं। इस सिय भाषा के िहथयार से हकया जाने वाला ििला रत्यि रूप िें िेत्रीय भाषाओ ं और संस्कृ हत पर
ििला िै। पर अरत्यि रूप िें, यि देश के करोड़ों िज़दरू ़ों और िेिनतकश लोग़ों की एकता पर ििला भी
िै। जिााँ तक भारत िें अलग-अलग राष्ट्रीयताओ ं के जनवादी िक़ों की लडाई का सवाल िै, भाषा का
सवाल सबसे िित्वपणू क िै। इसके अलावा, दफ़्तरी कािकाज िातृभाषा िें िो, िक ु ािी राकृ हतक स्रोत़ों के
इस्तेिाल का िक, स्वास्थ्य सहु वधाओ ं और रोज़गार जैसी अनेक़ों िााँग़ों सिेत एक लम्प्बी सचू ी बन जाती
िै। ये िसले हकसी भी ़ौि या राष्ट्रीयता की सारी आबादी के िसले तो िैं िी, पर ये िज़दरू ़ों और िेिनतकश
आबादी के हलए भी बेिद अिि िैं, खासकर भाषा या िातृभाषा का सवाल। िेिनतकश लोग़ों िें अनजान
भाषा थोपने से, बौहिक हवकास रोकना आसान िो जाता िै। व्यहक्त अपने इहतिास और हवरासत से टूट
जाता िै। सिय िााँग करता िै हक एक राष्ट्र एक भाषा के नारे के तित हकये जाने वाले फासीवादी ििले का
दृढतापवू कक िकु ाबला हकया जाये। सारी बोहलय़ों और भाषाओ ं की बराबरी के हलए, हकसी एक भाषा के
हलए हवशेष िक़ों का हवरोध जनवाद की लडाई की एक अिि िााँग िै।

समाजवादी सोत्रवयत यत्रू नयन में भाषा का सवाल • गुरप्रीत


ललकार ⚫ 16-31 अक्टूबर 2019
़रीब एक सदी पिले 7 नवम्प्बर 1917 को बोल्कशेहवक पाटी के नेतत्ृ व िें रूस िें क्राहन्त ऐसा लाल परचि
लिराया हक जो सहदय़ों से शोषण, ज़ल्कु ि और अन्याय िें हपस रिी िानवता के हलए नयी सबु ि जैसा था।
इस रथि सिाजवादी राज्य ने िनष्ट्ु य द्वारा िनष्ट्ु य के शोषण के खात्िे पर िोिर लगा दी। इस शोषण के
खात्िे का ितलब हसफक आहथकक शोषण या ग़रीबी, कंगाली का खात्िा निीं था बहल्कक इसने िर तरि के
सािाहजक, राजनीहतक, लैंहगक, ़ौिी शोषण और उत्पीडन का भी अन्त हकया। आज भाषा के सवाल
को सम्प्बोहधत िोते िुए यि देखना बडा हदलचस्प व हशिारद िै हक हजस रूस को “़ौि़ों की जेल” किा
जाता था वि रूस सिाजवादी दौर िें इन सवाल़ों को कै से सम्प्बोहधत िुआ? इसके अनभु व़ों से आज कुछ
सीखा जा सकता िै? और पाँजू ीवादी पनु स्थाकपना के बाद विााँ भाषा के सवाल का क्या िुआ?
रूस भी भारत की तरि एक बिु-़ौिी िल्कु ़ था। क्राहन्त से पिले ज़ारशािी रूस पोलैंड और हिनलैंड पर
़ाहबज़ था और इनके अलावा ़रीब 40 से अहधक ़ौिें रूस के भीतर ़ौिी उत्पीडन और ज़ल्कु ि की
हशकार थीं। यि ़ौिी उत्पीडन आहथककता, भाषा, संस्कृ हत, आवाजािी पर रोक जैसे कई रूप़ों िें था।
लेहनन और स्ताहलन िर तरि के ़ौिी ज़ल्कु ि का हवरोध करते िुए इसिें भाषाई ज़ुल्कि को भी अिि स्थान
देते थे। स्ताहलन के अनसु ार ़ौिी उत्पीडन “िज़दरू वगक की बौहिक ता़त़ों के हवकास को रोकता िै।
तातार और यिूदी िज़दरू वगक के बौहिक हवकास की कल्कपना निीं की जा सकती अगर उन्िें सभाओ,ं
भाषण़ों िें अपनी भाषा का उपयोग निीं करने हदया जाता और उनके स्कूल बन्द हकये जाते िैं।” इसहलए
वि ़ौि़ों के आत्िहनणकय की िााँग का ज़ोरदार सिथकन करते थे ताहक वे ़ौिें अलग िोकर इस ़ौिी ज़ल्कु ि
से िक्ु त िो जायें। बिु-़ौिी िल्कु ़ िें ़ौि़ों की िहु क्त का दसू रा रास्ता पणू क जनवाद को बिाल करना िै
हजसिें ़ौिें अपनी इच्छा से हकसी संघ िें शाहिल ि़ों और हकसी भी तरि का ़ौिी उत्पीडन, भेदभाव न
िो बहल्कक सभी ़ौि़ों का हवकास हकया जाये। क्राहन्त के बाद सिाजवादी सोहवयत यहू नयन ने ़ौि़ों के
आत्िहनणकय के अहधकार पर पिरा हदया हजसके तित पोलैंड और हिनलैंड अलग िो गये और बा़ी ़ौिें
अपनी इच्छा से सोहवयत गणराज्य िें शाहिल िो गयीं। 1922 िें ‘सोहवयत सिाजवादी गणराज्य़ों का संघ’
की स्थापना िुई। स्थापना के सिय इसिें 4 गणराज्य थे और धीर-धीरे इनकी संख्या 15 तक पिुचाँ गयी।
़ौिी उत्पीडन को खत्ि करते िुए सोहवयत सिाजवाद ने कै से सभी ़ौि़ों और उनकी भाषाओ ं का हवकास
हकया यि अपने आप िें हिसाल िै। सिाजवादी भाषा नीहत का के न्द्रीय नक्ु ता यि था हक रूसी भाषा सिेत
कोई भी भाषा लाहज़िी सरकारी भाषा निीं बनायी जानी चाहिए बहल्कक सभी ़ौि़ों की भाषाओ ं का हवकास
िोना चाहिए क्य़ोंहक इससे िी वे ़ौिें सभी िेत्ऱों िें हवकास कर सकती िैं। यि नीहत भी कट्टरपंहथय़ों और
उदारपंहथय़ों को िराकर स्थाहपत िुई थी जो लाहज़िी रूसी भाषा की बात करते थे या सभी ़ौि़ों की अपनी
पिचान, अपनी संस्कृ हत के हवकास की जगि एक सोहवयत ़ौि बनाने की वकालत करते थे। सोहवयत
गणराज्य िें 100 से अहधक भाषाएाँ थीं। कोई ़ौि चािे हकतनी भी छोटी थी, उसके ़ौिी और भाषाई
हित़ों की ज़ोरदार ढगं से हिफाज़त की गयी। िाचक 1921 िें बोल्कशेहवक पाटी की 10वीं काग्रं ेस ़ौि़ों के
िसले पर इन फै सल़ों पर ज़ोर देती िै:
1. ़ौि़ों को उनके अपने ़ौिी चररत्र और जीवनशैली के अनसु ार सोहवयत गणराज्य िें हवकहसत
और िज़बतू करना।
2. न्यायपाहलका, रशासन, आहथककता और सरकारी संस्थाओ ं को स्थानीय भाषाओ ं िें हवकहसत
और िज़बतू करना और उनिें स्थानीय लोग़ों को भती करना जो स्थानीय लोग़ों की जीवनशैली व
िानहसक संरचना को सिझते ि़ों।
3. रेस, स्कूल़ों, हथयेटर, क्लब़ों और सांस्कृ हतक संस्थाओ ं को स्थानीय भाषाओ ं िें हवकहसत और
िज़बतू करना।
4. स्कूल़ों िें स्थानीय भाषाओ ं िें आि और तकनीकी पेशेवर कोसों का सघन तानाबाना खडा करना
और उसे हवकहसत करना।
1920 िें सोहवयत यहू नयन ने अपनी भाषा नीहत बनायी। इस भाषा नीहत का अिि काि उन भाषाओ ं के
हलए हलहपय़ों, अिर और शब्दकोश घडना था हजनकी अभी तक कोई हलहप निीं थी। इसके साथ िी भाषा
वैज्ञाहनक़ों ने हजन भाषाओ ं की हलहपय़ों िें खाहियााँ थीं उन्िें भी सश
ं ोहधत करने का काि हकया। सभी
भाषाओ ं को छापेखाने और आधहु नक ज्ञान-हवज्ञान के स्तर तक हवकहसत करने के हलए नये अिर, शब्द,
हनयि घडने आहद का काि हकया गया। इससे इन भाषाओ ं को हशिा, कला, साहित्य, अखबाऱों और
सरकारी कािकाज की भाषा बनाना आसान िो गया और उनके हवकास का रास्ता साफ िुआ। ़रीब 40
भाषाओ ं को हलहपयााँ ििु ैया करवायी गयीं और दजकऩों अन्य की हलहपय़ों, अिऱों, शब्द़ों िें आवकयक
सधु ार करके उन्िें उस सिय के ज्ञान, हवज्ञान के हलए उपयक्ु त बनाया गया।
इसके साथ िी अलग-अलग उप-भाषाओ ं की िानक रािाहणक भाषा घडने का भी काि हकया गया ताहक
भाषा आसान और अहधक सिथक बने। इसी का नतीजा था हक 1924 िें सोहवयत यहू नयन िें 25 भाषाओ ं
िें पाठ्य पस्ु तकें तैयार की गयीं। 1934 तक 104 भाषाओ ं िें पाठ्य पस्ु तकें तैयार की जा रिी थीं। दाहग़स्तान,
उजवेहकस्तान, यक ू रे न की कोई एक ़ौिी भाषा घोहषत करने के स्थान पर विााँ की ़ौि़ों और उनकी
भाषाओ ं के अनसु ार उजबेहकस्तान िें 22, यक ू रे न िें 17 और दाहग़स्तान िें 20 भाषाओ ं िें हशिा करवायी
जाती थी। सभी ़ौि़ों के हलए रारहम्प्भक हशिा से लेकर िर स्तर तक की उच्च हशिा उनकी अपनी
िातृभाषा िें िोती थी। यि िै स्ताहलन के यगु का सिाजवादी जनवाद।
इस तरि लोग़ों को उनकी िातृभाषाओ ं िें हशिा देने से न हसफक सोहवयत यहू नयन ने हपछडे देश िें से
हनरिरता को परू ी तरि खत्ि हकया बहल्कक िातृभाषा िें हशिा हदये जाने के कारण उन ़ौि़ों का बौहिक
हवकास भी िुआ और उनिें से अनेक़ों वैज्ञाहनक, हवद्वान, साहित्यकार पैदा िुए। हपछडे पिाडी इला़े की
छोटी-सी ़ौि दाहग़स्तान के रसूल ििज़ातोव और उनकी रचना ‘िेरा दाहग़स्तान’ को आज कौन निीं
जानता?
जैसे-जैसे आहथकक, सािाहजक जीवन की तरक़़्ी िोती रिी उसके साथ िी भाषाओ ं का हवकास भी िो रिा
था और भाषाओ ं का यि हवकास साथ िी इन ़ौि़ों के आहथकक, सािाहजक और सांस्कृ हतक हवकास को
भी और रोत्साहित कर रिा था। इतनी बडी आबादी वाले सोहवयत यहू नयन की कोई भी सरकार या छद्म
राष्ट्र भाषा निीं थी बहल्कक के न्द्रीय स्तर पर सभी सरकारी फरिान सभी ़ौि़ों की भाषाओ ं िें िी जारी हकये
जाते थे।
जिााँ सभी ़ौि़ों को इतनी बराबरी हिल रिी थी, सभी ़ौि़ों की अपनी संस्कृ हत, भाषा का हवकास िो रिा
था, उससे सोहवयत यूहनयन की अखण्डता को कोई खतरा निीं िुआ बहल्कक यि अहधक एकजटु िो रिा
था। जिााँ एक तरफ बोल्कशेहवक पाटी हकसी भी भाषा को लाहज़िी सरकारी भाषा बनाने के हखलाफ थी,
विीं वि इस बात से भी सचेत थी हक आहथकक जीवन की गहतहवहधय़ों, लेन-देन, सािाहजक जीवन के
व्यविार िें अलग-अलग ़ौि़ों की भाषाएाँ भी एक-दसू रे के रास्ते िें आती िैं और इस रहक्रया िें लोग
स्वतः अपने हलए हकसी सम्प्पकक भाषा या व्यविाररक सम्प्बन्ध़ों की भाषा ़ायि कर लेते िैं, उसे सीखते िैं।
सिाजवादी हनिाकण िें अहधक खल ु ेपन, आवाजािी और रवास से िर तरि की पाबहन्दयााँ खत्ि िोने,
रोज़गार की अहनहकचतता खत्ि िोने के कारण ़ौि़ों का आपसी घुलना-हिलना काफी बढ गया हजसिें से
लोग कई भाषाएाँ सीख रिे थे। इस रहक्रया िें स्वतः रूसी भाषा सीखने का रुझान बढ रिा था क्य़ोंहक यि
पिले िी बडे इला़े िें िै ली िुई थी और साहित्य, ज्ञान आहद के पि से अिीर भाषा थी। सभी ़ौि़ों की
पणू क सििती से िाचक 1938 िें रूसी भाषा को सैकण्डरी स्तर पर लाहज़िी हवषय के तौर पर पढाना शरू ु
हकया गया। इसहलए रूसी को लाहज़िी हवषय बनाया जाना हकसी उत्पीडन का हिस्सा निीं था। इसका
सबतू यि भी िै हक 1956 तक हकसी भी भाषा को बोलने, पढने, उपयोग करने वाल़ों की संख्या कि निीं
िुई। 1957 तक एक भी भाषा हशिा के िाध्यि या सरकारी कािकाज की भाषा से बािर निीं िुई।
ऐसा इसहलए सम्प्भव िुआ क्य़ोंहक सिाजवाद ने हनजी स्वाहित्व का अन्त कर हदया और उत्पादन के सभी
साधन और राज्यभाग िज़दरू ़ों, िेिनतकश़ों के िाथ िें आ गया। इससे िनु ाफाखोरी, श्रि और साधऩों का
शोषण आहद खत्ि िो गया और हवकास का ितलब िनु ाफा किाने के स्थान पर िनष्ट्ु य़ों का हवकास बन
गया। इसहलए हकसी ़ौि को दबाये जाने या उससे भेदभाव करने का आधार िी खत्ि िो गया और ़ौि़ों
की हवहभन्नता सिाजवादी सोहवयत यूहनयन का श्रृगं ार बन गयी। पाँजू ीवादी हसस्टि के अदं र भी ़ौिी
िसला एक िद तक िल िो सकता िै, पर यि तभी सम्प्भव िै अगर ऐहतिाहसक तौर पर ़ौिें आत्िहनणकय
से हकसी बिु-़ौिी देश िें शाहिल ि़ों। ऐसी िालत िें भी ़ौि़ों के भीतर का टकराव, भेदभाव या साम्राज्य
द्वारा देश़ों की लटू -खसोट परू ी तरि खत्ि निीं िो सकती। आज के भारत िें तो यि भी लगभग असम्प्भव
रतीत िोता िै क्य़ोंहक 1947 िें भारत की राज्यसिा पर ़ाहबज़ िुए पाँजू ीपहत वगक ने यिााँ ़ौि़ों को ज़बरन
“एक राष्ट्र” बनाने की कोहशश की, हजसे आजकल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ “हिन्दू राष्ट्र” बनाना चािता
िै।
पाँज
ू ीवादी पनु थथाापना के बाद?
1953 िें स्ताहलन की िृत्यु िो गयी। इसके साथ िी सिाजवाद को आगे या पीछे ले जाने के हलए चल रिे
ता़त़ों के तौल िें रहतगािी ता़त़ों का पलडा भारी िो गया जो 1956 िें ख्रकु चेव के रूप िें सािने आयीं।
1956 िें सोहवयत यहू नयन की कम्प्यहु नस्ट पाटी पर ख्रकु चेव गटु के ़ाहबज़ िोने से यिााँ पाँजू ीवादी पुनस्थाकपना
िो गयी। अथाकत हिर से िनष्ट्ु य के स्थान पर िनु ाफाखोरी रधान बनना शुरू िो गयी, सािहू िक हित़ों के
स्थान पर हनजी हित रभावी िो गये। नये हसरे से रकट िो रिे शोषण वाले ये वगक सम्प्बन्ध ़ौिी भेदभाव के
रूप िें भी रकट िोने शरू
ु िो गये।
1958-59 िें हशिा सधु ाऱों की 19वीं धारा के तित िातृभाषाओ ं को िी लाहज़िी तौर पर हशिा का िाध्यि
बनाये रखने को खत्ि कर हदया गया और िाता-हपता को यि अहधकार हदया गया हक वे अपने बच्चे के
हलए हशिा के िाध्यि की भाषा का चनु ाव करें । कारे हलन िें तो इस सिय िी रूसी को िी हशिा, सरकारी
काि का िाध्यि बना हदया गया। अन्य कुछ हिस्स़ों िें 5वीं किा के बाद रूसी भाषा की पढाई लाहज़िी
कर दी गयी।
इसके साथ िी अहधक और कि सिथक भाषाओ ं की ग़ैर-वैज्ञाहनक गणना िोने लगी। कुछ भाषाओ ं को
खात्िे की तरफ धके लना शरू ु िो गया। भाषाओ ं की दजाकबन्दी िोने लगी। इस दजाकबन्दी िें सोहवयत
गणराज्य के हलए िित्व वाली भाषाओ ं (हजसिें रूसी भाषा को शीषक पर रखा गया), स्वायि गणराज्य के
हलए िित्वपणू क भाषाओ,ं स्वायि इला़़ों के हलए िित्वपणू क भाषाओ ं और स्वायि हज़ल़ों के हलए
िित्वपणू क भाषाओ ं के रूप िें भाषाओ ं की दजाकबन्दी शरू
ु िुई, अथाकत उन्िें अहधक या कि ज़रूरी घोहषत
करना शुरू हकया गया। इस तरि के िालात पैदा हकये गये हक लोग अपने बच्च़ों को रूसी िाध्यि िें पढाने
के हलए िजबरू िुए। ख्रकु चेव ने रूसी को “दसू री िातृभाषा” किकर रचार हकया जबहक ऐसी कोई चीज़
निीं िोती।
ब्रेजनेव के दौर (1964 से 1982) िें यि नीहत और आगे बढी। पिले से अलग अथों िें “सोहवयत लोग़ों”
के संकल्कप पर ज़ोर हदया गया जो नयी “सोहवयत ़ौि” के नागररक िैं। इसिें ़ौि़ों की अपनी पिचाऩों
को दसू रे दजे पर धके ल हदया गया। हबल्ककुल उसी तरि जैसे भारत िें ़ौि़ों को कुचलकर “एक राष्ट्र एक
भाषा” का नारा हदया जा रिा िै। 1977 िें इस हखताब को संहवधान की रस्तावना िें शाहिल कर हलया
गया। यि स्ताहलन के दौर के ‘अतं वकस्तु के तौर पर अंतरराष्ट्रीय और रूप िें ़ौिी सस्ं कृ हत’ के संकल्कप के
हबल्ककुल हवपरीत था। हजसका अथक थी हक सभी ़ौि़ों का अपना इहतिास, संस्कृ हत और अपना रूप िै
हजसके बावजदू उनिें शोषण, उत्पीडन के हखलाफ संघषक और िज़दरू वगक के नेतत्ृ व िें सिाजवादी हनिाकण
का साझापन भी िै। इन ़ौि़ों के अलग रूप़ों के हवकास से िी िज़दरू वगक की साझा संस्कृ हत का हवकास
िोना िै।
स्ताहलन के बाद ग़ैर-रूसी इला़़ों िें अपनी िातृभाषा िें पढने वाले छात्ऱों की सख्ं या कि िोती गयी।
1960 के दौर िें स्कूल़ों िें रूसी के अलावा के वल 47 अन्य भाषाएाँ िी हशिा का िाध्यि रि गयीं और
1982 िें हसफक 17 अन्य भाषाओ ं िें िी स्कूल थे। 1982 िें 32 भाषाएाँ िी स्कूली स्तर पर पढाई जाती थीं
और 12 भाषाएाँ तो चौथी किा से आगे पढाई िी निीं जाती थीं। तवु ा और याकूहतया राष्ट्रीयताओ ं िें हसफक
8 वषक तक िी िातृभाषा पढाई जाती थी।
इससे आगे के और ़दि़ों के और हवस्तार िें जाना ज़रूरी निीं िै। बस यि सिझने की आवकयकता िै हक
1956 की संशोधनवादी िुकूित ने जो रास्ता पकडा, आगे का सिय उसी तरफ और ढलान का था। यि
़ौि़ों के आपसी भाईचारे , बराबरी वाले सिाजवादी सोहवयत गणराज्य की जगि ज़ारशािी रूस वाला
रास्ता था हजसिें रूसी ़ौि दसू री ़ौि़ों पर उत्पीडन और उनके साथ भेदभाव की िालत िें पिुचाँ गयी
थी। इसहलए इन ़ौि़ों के दरहियान दसू री बढती गयी और लाहज़िी नतीजे के तौर पर 1991 िें सोहवयत
यहू नयन टूट गया और अनेक़ों देश इससे अलग िो गये।
ससं ारभर का इहतिास यि हदखाता िै हक औपहनवेहशक िल्कु ़़ों ने दसू रे िल्कु ़़ों, ़ौि़ों को गल
ु ाि बनाते
सिय भाषा के िित्व को पिचाना हक उनकी भाषा छीन लेने से और हशिा, ज्ञान, हवज्ञान और सरकारी
कािकाज के हलए उनकी भाषा की जगि अपनी भाषा थोपने से उन ़ौि़ों को िानहसक रूप से गल ु ाि
बनाया जा सकता िै। दसू री तरफ कम्प्यहु नस्ट आन्दोलन ने भी िानवीय हचन्तन और शहख्सयत के हलए
भाषा के िित्व को पिचानते िुए िर िनष्ट्ु य को हशिा के िाध्यि से लेकर सभी तरि के सरकारी, रशासहनक
कािकाज के हलए िातृभाषा को न हसफक लाहज़िी हकया बहल्कक आवकयकता के अनसु ार भाषाओ ं के हलए
हलहपयााँ और अिर घडने, नये शब्द तैयार करने और उन्िें आधहु नक ज्ञान, हवज्ञान के हलए अहधक उपयक्ु त
बनाने और उनिें कला, साहित्य और हवज्ञान के हवकास पर ज़ोर हदया गया। बिु-़ौिी भारत
उपहनवेशवाहदय़ों के रास्ते पर िी चल रिा िै, ििें इसी रास्ते पर चलते रिना िै या ििें सिाजवादी सोहवयत
यहू नयन जैसी ़ौि़ों और भाषाओ ं की आज़ादी, खश ु िाली चाहिए, यि ििें सोचना िै।

ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅੰ ਕ ਵਕਉਂ? •ਸੰ ਪਾਦਕੀ


ਲਲਕਾਰ ⚫ 16-31 ਅਕਤੂਬਰ 2019

‘ਲਲਕਾਰ’ ਦਾ ਇਹ ਅੰ ਕ ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਵਿਸ਼ੇਸ ਅੰ ਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਿੱ ਚ ਤੁਹਾਡੇ ਹਿੱ ਥਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਹਾਜ਼ਰ ਹੈ।

ਭਾਸ਼ਾ ਨਾਲ਼ ਮਨੁਿੱਖ ਦਾ ਸਬੰ ਧ ਯੁਿੱ ਗਾਂ ਤੋਂ ਹੀ ਹੈ। ਮੂੰ ਹ ਰਾਹੀਂ ਵਗਣੀਆਂ-ਵਮਿੱ ਥੀਆਂ ਅਿਾਜਾਂ ਕਿੱ ਢਣ

ਿਾਲ਼ਾ ਮਨੁਿੱਖ ਦਾ ਪੂਰਿਜ ਜਦੋਂ ਪਸ਼ੂ ਜਗਤ ਤੋਂ ਿਿੱ ਖ ਹੋ ਕੇ ਜਦੋਂ ਦੋ ਪੈਰਾਂ ’ਤੇ ਤੁਰਨ ਲਿੱਗਾ ਤਾਂ

ਵਿਹਲੇ ਹੋਏ ਹਿੱ ਥਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਅੰ ਗੂਠਾ ਸੰ ਦਾਂ ਨੂੰ ਿਧੇਰੇ ਮਜਬੂਤੀ ਨਾਲ਼ ਫੜਨ ਲਈ ਸਾਵਧਆ ਵਗਆ।
ਇਹਨਾਂ ਹਿੱ ਥਾਂ ਨਾਲ਼ ਮਨੁਿੱਖ ਨੇ ਵਕਰਤ ਕਰਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਵਦਿੱ ਤੀ, ਇਸ ਵਕਰਤ ਲਈ ਸੰ ਦ ਬਣਾਉਣੇ

ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਵਦਿੱ ਤੇ। ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੀ ਸਵਹਜ ਵਬਰਤੀ ਨਾਲ਼ੋਂ ਇਹ ਵਕਰਤ ਇਸ ਗਿੱ ਲੋਂ ਅਿੱ ਡਰੀ ਸੀ ਵਕ ਇਹ

ਇਿੱ ਕ ਉਦੇਸ਼ਬਿੱ ਧ, ਪਵਹਲਾਂ ਵਿਉਂਤੀ ਹੋਈ ਸਰਗਰਮੀ ਸੀ। ਇਸ ਵਿਉਂਤਬੰ ਦੀ ਵਿਿੱ ਚ ਦੂਜੇ ਮਨੁਿੱਖਾਂ

ਨਾਲ਼ ਸੰ ਚਾਰ ਪਸ਼ੂਆਂ ਿਾਲ਼ੀਆਂ ਕੁਿੱ ਝ ਅਿਾਜਾਂ ਨਾਲ਼ ਨਹੀਂ ਸੀ ਸਰ ਸਕਦਾ। ਇਸ ਵਿਉਂਤਬੰ ਦੀ

ਲਈ ਮਨੁਿੱਖ ਦੀਆਂ ਵਦਮਾਗੀ ਸਮਰਿੱ ਥਾਿਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਣ ਲਿੱਗਾ ਤੇ ਵਦਮਾਗ ਵਸਰਫ ਭਾਸ਼ਾ ’ਚ

ਹੀ ਸੋਚ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇੰ ਝ ਭਾਸ਼ਾ ਤੇ ਵਦਮਾਗੀ ਸਮਰਿੱ ਥਾ ਇਿੱ ਕ-ਦੂਜੇ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕਰਦੀਆਂ

ਤੁਰਦੀਆਂ ਗਈਆਂ। ਇਸੇ ਰਿਾਨੀ ’ਚ ਖੁਿੱ ਲਹੀਆਂ ਅਿੱ ਖਾਂ ਨਾਲ਼ ਮਨੁਿੱਖ ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਸੁਹਿੱਪਣ ਨੂੰ ਦੇਖ

ਕੇ ਕੀਵਲਆ ਵਗਆ, ਵਕਰਤ ’ਚ ਲਿੱਗਦੇ ਜ਼ੋਰ ਸੰ ਦਾਂ ਤੇ ਮੂੰ ਹਾਂ ’ਚੋਂ ਵਨਿੱਕਲੀਆਂ ਅਿਾਜ਼ਾਂ ਜਦੋਂ ਸੰ ਗੀਤ
ਬਣ ਗਈਆਂ ਤਾਂ ਇਸ ਸੰ ਗੀਤ ਨੂੰ ਮੋਢਾ ਦੇਣ ਲਈ ਵਦਲ ਦੀਆਂ ਤਰਬਾਂ ਨਾਲ਼ ਭਰੇ ਗੀਤ ਰਚੇ

ਗਏ ਤੇ ਇਹਨਾਂ ਵਦਲ ਦੀਆਂ ਤਰਬਾਂ ਨਾਲ਼ ਮਨੁਿੱਖਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਕੰ ਮ-ਕਾਜੀ ਵਰਸ਼ਵਤਆਂ ਤੋਂ ਅਿੱ ਗੇ ਿਧਕੇ

ਕਈ ਭਾਿਨਾਮਕ ਵਰਸ਼ਤੇ ਜੁੜ ਗਏ। ਅਤੇ ਇਹ ਸਭ ਭਾਸ਼ਾ ਤੋਂ ਵਬਨਾਂ ਤਾਂ ਵਬਲਕੁਲ ਿੀ ਸੰ ਭਿ
ਨਹੀਂ ਸੀ। ਇੰ ਝ ਭਾਸ਼ਾ ਵਸਰਫ ਸੰ ਚਾਰ ਦਾ ਹੀ ਸਾਧਨ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਮਨੁਿੱਖ ਦੀ ਸਮਾਵਜਕ ਜਿੱ ਦੋ-

ਜਵਹਦ ਦਾ ਅੰ ਗ ਤੇ ਨਤੀਜਾ ਹੈ, ਇਹ ਮਨੁਿੱਖ ਦੇ ਵਦਲ (ਸੰ ਿੇਦਨਾਿਾਂ) ਤੇ ਵਦਮਾਗ (ਬੌਵਧਕਤਾ)

ਦੀ ਜੀਿਨਦਾਤੀ ਰੂਹ ਹੈ। ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀ ਭਾਸ਼ਾ ਤੋਂ ਟੁਿੱ ਟੇ ਮਨੁਿੱਖ ਦਾ ਬੌਵਧਕ ਤੇ ਭਾਿਨਾਤਮਕ
ਜੀਿਨ ਿੀ ਖੋਖਲਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਵਸਰਫ ਮੰ ਡੀ ਦੇ ਕੰ ਮ ਆਉਣ ਿਾਲ਼ਾ ਮਸ਼ੀਨੀ ਪੁਰਜਾ

ਬਣਕੇ ਰਵਹ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਇੰ ਝ ਭਾਿੇਂ ਭਾਸ਼ਾ ਨਾਲ਼ ਮਨੁਿੱਖ ਦਾ ਨਾਤਾ ਬੜਾ ਪੁਰਾਣਾ ਹੈ, ਪਰ ਭਾਸ਼ਾਈ ਪਛਾਣ ਤੇ ਭਾਸ਼ਾਈ

ਦਾਬਾ ਇਸ ਲੰਮੇ ਇਵਤਹਾਸ ਵਿਿੱ ਚ ਅਜੇ ਨਿਾਂ ਿਰਤਾਰਾ ਹੈ। ਜਦੋਂ ਆਧੁਵਨਕ ਸਰਮਾਏਦਾਰਾ ਯੁਿੱ ਗ
ਦੀ ਸ਼ੁਰਆ
ੂ ਤ ਨਾਲ਼ ਮੰ ਡੀਆਂ ਦੀ ਲੋ ੜ ਪਈ ਤਾਂ ਇਸ ਲੋ ੜ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਸਾਂਝੇ ਕੌ ਮੀ ਜਜ਼ਬੇ, ਕੌ ਮੀ ਪਛਾਣਾਂ
ਪੈਦਾ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋਈਆਂ ਤੇ ਇਹਨਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾ ਅਵਹਮ ਸੀ ਵਕਉਂਵਕ ਭਾਸ਼ਾ ਨਾਲ਼ ਹੀ ਇਿੱ ਕ

ਮੰ ਡੀ ’ਚ ਵਿਚਵਰਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਲੋ ਕਾਂ ਨਾਲ਼ ਕੋਈ ਸਾਂਝ ਮਵਹਸੂਸ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ।

ਇਹਨਾਂ ਮੰ ਡੀਆਂ ਦੀ ਸੁਰਿੱਵਖਆ ਲਈ ਕੌ ਮੀ ਰਾਜ ਬਣੇ। ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਇਿੱ ਕ-ਦੂਜੇ ਦੀਆਂ ਮੰ ਡੀਆਂ ’ਤੇ

ਕਬਜੇ ਲਈ ਬਸਤੀਿਾਦ ਦੀ ਨੀਤੀ ਿੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ। ਦੂਜੀਆਂ ਕੌ ਮਾਂ ਦੀਆਂ ਮੰ ਡੀਆਂ ਅਤੇ ਫੇਰ ਇਿੱ ਕ

ਦੌਰ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਵਕਰਤ ਸ਼ਕਤੀ ਤੇ ਸਾਧਨਾਂ ’ਤੇ ਕਬਜਾ ਕਰਨ ਲਈ ਉਹਨਾਂ ਕੌ ਮਾਂ

ਨੂੰ ਅਧੀਨ ਬਣਾਉਣਾ ਿੀ ਜਰੂਰੀ ਸੀ। ਇਹ ਅਧੀਨਗੀ ਤਾਕਤ ਤੇ ਹਵਥਆਰਾਂ ਨਾਲ਼ੋਂ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ

ਮਾਨਵਸਕ ਤੌਰ ’ਤੇ ਗੁਲਾਮ ਬਣਾ ਕੇ ਹੀ ਿਧੇਰੇ ਮਜਬੂਤ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ। ਕੌ ਮਾਂ ਨੂੰ ਗੁਲਾਮ

ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਜਰੂਰੀ ਸੀ ਵਕ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਕੁਦਰਤ ਤੇ ਸਮਾਵਜਕ ਜਿੱ ਦੋ-ਜਵਹਦਾਂ ਦੇ

ਵਿਰਸੇ ਨਾਲ਼ੋਂ ਤੋਵੜਆ ਜਾਿੇ ਤੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਇਵਤਹਾਸ ਦੀ ਹਿਾ ’ਚ ਲਟਕੀਆਂ ਮਵਹਸੂਸ

ਕਰਨ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਸ ਮਾਨਵਸਕ ਗੁਲਾਮੀ ਲਈ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਖੋਹਣਾ, ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰਨਾ ਸਭ ਤੋਂ
ਅਵਹਮ ਸੀ ਵਕਉਂਵਕ ਭਾਸ਼ਾ ਹੀ ਕੌ ਮਾਂ ਦੀ ਯਾਦਸ਼ਕਤੀ ਹੁੰ ਦੀਆਂ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਜੁਝਾਰੂ ਵਿਰਸੇ

ਦੀਆਂ ਿਾਹਕ ਹੁੰ ਦੀਆਂ ਹਨ। ਕੌ ਮਾਂ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਖੋਹ ਕੇ ਬਸਤੀਿਾਦੀਆਂ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀਆਂ
ਜੜਹਾਂ ਤੋਂ ਹੀ ਨਹੀਂ ਤੋਵੜਆ ਸਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਦਿੱ ਤੀ ਤੇ ਇਸ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਆਪਣਾ

ਨਜ਼ਰੀਆ ਿੀ ਵਦਿੱ ਤਾ। ਇਸ ਨਜ਼ਰੀਏ ਵਿਿੱ ਚ ਬਸਤੀਿਾਦੀਆਂ ਦੀ ਸਿੱ ਵਭਆਤਾ, ਭਾਸ਼ਾ, ਜੀਿਨ ਜਾਂਚ ਨੂੰ

ਖੁਸ਼ਹਾਲ, ਅਮੀਰ ਤੇ ਮਾਣਯੋਗ ਵਕਹਾ ਵਗਆ ਤੇ ਗੁਲਾਮ ਕੌ ਮਾਂ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ, ਵਿਰਸੇ, ਜੀਿਨ-ਜਾਂਚ ਨੂੰ

ਕੰ ਗਾਲ, ਹੀਣੀਆਂ ਦਿੱ ਸਣਾ ਿੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸੀ।


ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਕੀਨੀਆ ਦਾ ਗੂਗੀ ਦਿੱ ਸਦਾ ਹੈ ਵਕ ਅੰ ਗਰੇਜਾਂ ਦੇ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਆਪਣੀ ਭਾਸ਼ਾ ਬੋਲਣ

’ਤੇ ਕੂੜਦ
ੇ ਾਨ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਕਾਗਜ਼ ਕਿੱ ਢ ਕੇ ਿਾਰੀ-ਿਾਰੀ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਮੂੰ ਹ ਵਿਿੱ ਚ ਤੁੰ ਵਿ੍ਹਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਤਾਂ

ਜੋ ਉਹ ਆਪਣੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਬੋਲਣ ਵਿਿੱ ਚ ਿੀ ਸ਼ਰਮ ਮਵਹਸੂਸ ਕਰਨ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ

ਲਾਰਡ ਮੈਕਾਲੇ ਦੀ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਨੀਤੀ ਦਾ ਮਕਸਦ ਮਾਨਵਸਕ ਪਿੱ ਖੋਂ ਅੰ ਗਰੇਜ ਤੇ ਰੰ ਗ-ਰੂਪ ਪਿੱ ਖੋਂ

ਭਾਰਤੀ ਨਸਲ ਵਤਆਰ ਕਰਨਾ ਸੀ ਤੇ ਇਸ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਢਾਂਚੇ ਵਿਿੱ ਚ ਪੜਹਨ-ਵਲਖਣ ਿਾਲ਼ੇ ਬਹੁਤੇ
ਭਾਰਤੀ ਿੀ ਅੰ ਗਰੇਜਾਂ ਦੇ ਗੁਲਾਮ ਬਣੇ ਰਹੇ ਤੇ ਕਦੇ ਭਾਰਤੀ ਕੌ ਮਾਂ ਦੇ ਜਬਰ, ਜੁਲਮ ਵਖਲਾਫ

ਜੁਝਾਰੂ ਵਿਰਸੇ ਦੇ ਿਾਹਕ ਨਾ ਬਣ ਸਕੇ।

1947 ਵਿਿੱ ਚ ਬਰਤਾਨਿੀ ਗੁਲਾਮੀ ਤੋਂ ਅਜ਼ਾਦ ਹੋਏ ਭਾਰਤੀ ਹਾਕਮਾਂ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਅੰ ਗਰੇਜ ਭਗਤੀ ਨਾ ਗਈ

ਸਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਿੀ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਿਿੱ ਖ-ਿਿੱ ਖ ਕੌ ਮੀਅਤਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਬਰੀ “ਇਿੱ ਕ ਵਹੰ ਦੁਸਤਾਨੀ ਕੌ ਮ” ਵਿਿੱ ਚ

ਬੰ ਨਣ ਦੇ ਉਪਰਾਲੇ ਕੀਤੇ। ਇਸ ਨਾਲ ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ ਦੂਹਰੀ ਭਾਸ਼ਾਈ ਗੁਲਾਮੀ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੋਈ।
ਇਸ ਗੁਲਾਮੀ ਵਿਿੱ ਚ ਇਿੱ ਕ ਤਾਂ ਵਿਰਸੇ ਵਿਿੱ ਚ ਵਮਲੀ ਅੰ ਗਰੇਜੀ ਦੀ ਗੁਲਾਮੀ ਸੀ ਜੋ ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ

ਕੋਈ ਕੌ ਮੀ, ਭੁਗੋਵਲਕ ਜੜਹਾਂ ਨਾ ਹੋਣ ਦੇ ਬਾਿਜੂਦ ਅਿੱ ਜ ਿੀ ਵਸਿੱ ਵਖਆ, ਸਰਕਾਰੀ ਕੰ ਮ-ਕਾਜ, ਰੁਜਗਾਰ

ਤੇ ਅਖੌਤੀ ਵਿਦਿਤਾ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਬਣੀ ਬੈਠੀ ਹੈ। ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਕੌ ਮੀਅਤਾਂ ਉੱਪਰ ਦੂਜੀ ਗੁਲਾਮੀ
ਵਹੰ ਦੀ ਦੀ ਥੋਪੀ ਗਈ ਵਜਸ ਵਪਿੱ ਛੇ ਮਾਨਵਸਕਤਾ ਇਹ ਸੀ ਵਕ ਇਸਦੀਆਂ ਜੜਹਾਂ ਇਿੱ ਥੇ ਹੋਣ ਕਾਰਨ

ਇਹ ‘ਇਿੱ ਕ ਵਹੰ ਦੁਸਤਾਨੀ ਕੌ ਮ’ ਵਸਰਜੇਗੀ। ਇਸ ਦੂਹਰੀ ਭਾਸ਼ਾਈ ਗੁਲਾਮੀ ਕਾਰਨ ਇਿੱ ਥੋਂ ਦੀਆਂ

ਕੌ ਮੀਅਤਾਂ, ਲੋ ਕਾਂ ਦੀ ਬੌਵਧਕਤਾ, ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਦਾ ਕੀ ਹਸ਼ਰ ਹੋਇਆ ਹੈ ਉਹ ਇਸ ਅੰ ਕ ਦੇ ਿਿੱ ਖ-ਿਿੱ ਖ

ਲੇ ਖਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਤੁਹਾਡੀ ਨਜ਼ਰ ਹੈ।

ਵਹੰ ਦੀ ਅਿੱ ਜ ਭਾਸ਼ਾਈ ਗਲਬੇ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਬਣ ਚੁਿੱ ਕੀ ਹੈ। ਰਾਜਸਥਾਨ, ਹਵਰਆਣਾ, ਵਹਮਾਚਲ, ਉੱਤਰਾਖੰ ਡ,

ਉੱਤਰ ਪਰਦੇਸ਼, ਵਬਹਾਰ, ਛਿੱ ਤੀਸਗੜਹ, ਮਿੱ ਧ ਪਰਦਸ਼


ੇ ਵਜਹੇ ਿਿੱ ਡੇ ਵਹਿੱ ਸੇ ਦੀਆਂ ਅਨੇਕਾਂ ਸਥਾਨਕ ਮਾਂ-

ਬੋਲੀਆਂ ਨੂੰ ਅਿੱ ਜ ਵਹੰ ਦੀ ਵਨਗਲ ਗਈ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਰਾਜਸਥਾਨੀ ਤੇ ਭੋਜਪੁਰੀ ਆਪਣੀ

ਮਾਨਤਾ ਲਈ ਸੰ ਘਰਸ਼ ਕਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਬਾਕੀਆਂ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਬਹੁਤੀਆਂ ਅਜੇ ਿੀ ਵਿਿੱ ਚ-ਵਿਚਾਲੇ

ਲਟਕੀਆਂ ਪਈਆਂ ਹਨ। ਪਰ ਇਸ ਦਾਬੇ ਦੀ ਨੀਤੀ ਵਿਿੱ ਚ ਵਹੰ ਦੀ ਦਾ ਿੀ ਕੋਈ ਭਵਿਿੱ ਖ ਨਹੀਂ ਹੈ।
ਅਖੌਤੀ ਵਹੰ ਦੀ ਪਿੱ ਟੀ ਦੇ ਿਿੱ ਡੇ ਵਹਿੱ ਸੇ ਵਿਿੱ ਚ ਲੋ ਕ ਆਮ ਜੀਿਨ ਵਿਿੱ ਚ ਅਜੇ ਿੀ ਆਪਣੀਆਂ ਸਥਾਨਕ

ਬੋਲੀਆਂ ਨਾਲ਼ੋਂ ਨਹੀਂ ਟੁਿੱ ਟੇ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਟੁਿੱ ਟਣਗੇ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਸੰ ਸਵਿ੍ਰਤ ਨਾਲ਼ ਵਸ਼ੰ ਗਾਰੀ ਵਜਹੜੀ
ਵਹੰ ਦੀ ਅਿੱ ਜ ਸਰਕਾਰੀ ਬੋਲੀ ਬਣੀ ਵਫਰਦੀ ਹੈ ਉਸਦੀਆਂ ਆਪਣੀਆਂ ਿੀ ਕੋਈ ਭੂਗੋਵਲਕ, ਕੌ ਮੀ
ਜੜਹਾਂ ਨਹੀਂ ਲਿੱਗ ਸਕੀਆਂ। ਵਜਹੜੀ ਕੋਈ ਅਸਲੋਂ ਮਾੜੀ-ਮੋਟੀ ਵਹੰ ਦੀ ਪਿੱ ਟੀ ਹੈ ਿੀ ਉੱਥੇ ਅੰ ਗਰੇਜੀ

ਇਸਨੂੰ ਵਨਗਲ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਲੋ ਕਾਂ ਦੇ ਵਕਸੇ ਿਿੱ ਡੇ ਵਹਿੱ ਸੇ ਦੀ ਵਹੰ ਦੀ ਨਾਲ਼ ਕੋਈ ਕੌ ਮੀ

ਅਪਣਿੱ ਤ ਿਾਲ਼ੀ ਸਾਂਝ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਇੰ ਝ ਵਹੰ ਦੀ ਖੁਦ ਇਿੱ ਕ ਨਪੀੜਨ ਿਾਲ਼ੀ ਪੀੜਤ ਭਾਸ਼ਾ ਬਣੀ ਹੋਈ

ਹੈ।

ਭਾਰਤ ਅਸਲੋਂ ਇਿੱ ਕ ਬਹੁ-ਕੌ ਮੀ ਮੁਲਕ ਹੈ। ਕੌ ਮੀਅਤਾਂ ਤੇ ਬੋਲੀਆਂ ਦੀ ਿੰ ਨ-ਸੁਿੰਨਤਾ ਇਸਦਾ

ਵਸ਼ੰ ਗਾਰ ਹਨ ਜੋ ਇਸਨੂੰ ਇਿੱ ਕ ਰੰ ਗਲਾ ਗੁਲਦਸਤਾ ਬਣਾਉਂਦੇ ਹਨ। ਪਰ ਇਿੱ ਥੇ ਸਭ ਬੋਲੀਆਂ ਦਾ
ਵਿਕਾਸ ਕਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਸੰ ਘੀ ਘੁਿੱ ਟਣ ਦੀ ਕੋਵਸ਼ਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ ਜੋ ਅਿੱ ਜ ਭਾਰਤ ਦੇ

ਬੌਵਧਕ, ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰਕ ਪਛੜੇਿੇਂ ਦਾ ਇਿੱ ਕ ਕਾਰਨ ਿੀ ਹੈ। ਇਸਦੀ ਥਾਂ ਇਸ ਬਹੁ-ਕੌ ਮੀ ਮੁਲਕ
ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸਿਾਲ ਨੂੰ ਵਕਿੇਂ ਹਿੱ ਲ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਉਸਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਚੰ ਗੀ ਉਦਾਹਰਣ
ਸਮਾਜਿਾਦੀ ਸੋਿੀਅਤ ਯੂਨੀਅਨ ਦੀ ਹੈ ਵਜਿੱ ਥੇ ਸਭ ਕੌ ਮਾਂ ਦੀਆਂ ਬੋਲੀਆਂ ਨੂੰ ਨਾ ਵਸਰਫ ਬਚਾਇਆ
ਵਗਆ ਸਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਕਸਤ ਕਰਕੇ ਵਿਿੱ ਵਦਆ, ਵਗਆਨ, ਵਿਵਗਆਨ, ਕਲਾ, ਸਾਵਹਤ ਤੇ ਸਰਕਾਰੀ

ਕੰ ਮ-ਕਾਜ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਬਣਾਇਆ ਵਗਆ ਵਜਸ ਨਾਲ਼ ਨਾ ਵਸਰਫ ਸਭ ਕੌ ਮਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ

ਸਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਸਾਂਝ ਿੀ ਮਜਬੂਤ ਹੋਈ। ਇਹ ਇਵਤਹਾਸ ਿੀ ਿਿੱ ਖਰੇ ਲੇ ਖ ਵਿਿੱ ਚ ਵਿਸਥਾਰ ਨਾਲ਼

ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਵਗਆ ਹੈ।

ਇਸ ਕਰਕੇ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਵਸਰਫ ਸੰ ਚਾਰ ਦਾ ਸਾਧਨ ਮੰ ਨਣ ਦੀ ਗਲਤੀ ਵਤਆਗ ਦੇਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ

ਤੇ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸਿਾਲ ਨੂੰ ਗੰ ਭੀਰਤਾ ਨਾਲ਼ ਵਿਚਾਰੇ ਜਾਣ ਦੀ ਲੋ ੜ ਹੈ। ਬੇਸ਼ਿੱਕ ਇਨਕਲਾਬੀ ਲਵਹਰ

ਦਾ ਮੁਿੱ ਖ ਵਨਸ਼ਾਨਾ ਜਮਾਤੀ ਲੁਿੱਟ ਦਾ ਖਾਤਮਾ ਕਰਨਾ ਹੈ। ਪਰ ਕੌ ਮੀ, ਵਲੰਗਕ, ਜਾਤਪਾਤੀ, ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰ
ਆਵਦ ਸਭ ਵਿਤਕਰੇ ਸਭ ਇਸ ਜਮਾਤੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਅੰ ਗ ਹਨ ਤੇ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਖਤਮ ਕਰਨਾ,
ਅਿੱ ਜ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਿੱ ਚ ਇਹਨਾਂ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਸਿਾਲਾਂ ਨੂੰ ਸਹੀ ਢੰ ਗ ਨਾਲ ਸੰ ਬੋਵਧਤ ਹੋਣਾ ਿੀ ਇਨਕਲਾਬੀ
ਲਵਹਰ ਦੀ ਅਵਹਮ ਵਜ਼ੰ ਮੇਿਾਰੀ ਹੈ ਤੇ ਇਹਨਾਂ ਪਰਤੀ ਸਹੀ ਨੀਤੀ ਤੋਂ ਵਬਨਾਂ ਕੋਈ ਇਨਕਲਾਬੀ

ਤਬਦੀਲੀ ਿੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ। ਜਮਾਤੀ ਲੁਿੱਟ ਦੇ ਖਾਤਮੇ ਦੀ ਇਸ ਇਨਕਲਾਬੀ ਜੰ ਗ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾ

ਇਿੱ ਕ ਹਵਥਆਰ ਹੈ। ਲੁਟੇਰੀਆਂ ਜਮਾਤਾਂ ਤੇ ਪੀੜਤ ਜਮਾਤਾਂ ਇਸ ਹਵਥਆਰ ਪਰਤੀ ਿਿੱ ਖੋ-ਿਿੱ ਖਰਾ

ਰੁਖ ਰਿੱ ਖਦੀਆਂ ਹਨ। ਪਰ.ੋ ਵਕਸ਼ਨ ਵਸੰ ਘ ਦੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ’ਚ, “ਬੋਲੀ ਨਾਲ਼ ਬੋਲੀ ਬੋਲਣ ਿਾਵਲ਼ਆਂ ਦੇ

ਹਿੱ ਡ ਰਚੇ ਹੁੰ ਦੇ ਹਨ। ਬੋਲੀ ਵਿਿੱ ਚ ਪਵੜਹਆ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਇਵਤਹਾਸ, ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਇਵਤਹਾਸਕ ਅਨੁਭਿ

ਹੁੰ ਦਾ ਹੈ। ਬੋਲੀ ਇਵਤਹਾਸ ਵਿਿੱ ਚ ਕੀਤੀਆਂ ਸਭ ਜਿੱ ਦੋ-ਜਵਹਦਾਂ ਦੀ ਮਨੁਿੱਖੀ ਮਨ ਉੱਤੇ ਲਿੱਗੀ ਛਾਪ
ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਜੁਿੱ ਸਾ ਬਣਾਈ ਬੈਠਾ ਸਾਜ ਹੁੰ ਦੀ ਹੈ ਵਜਸ ਦੀ ਸੁਰ ਨੂੰ ਛੇਵੜਆਂ ਬੋਲਣ ਿਾਵਲ਼ਆਂ ਦੇ
ਸਾਰੇ ਇਵਤਹਾਸ ਦਾ ਅਨੁਭਿ ਬੋਲਦਾ ਹੈ। ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਆਂਦਰਾਂ ਕੂਕਦੀਆਂ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਦੇ

ਇਵਤਹਾਸ ਤੇ ਕੌ ਮੀ ਆਚਰਨ ਨੂੰ ਅਮਲ ਦੀ ਜ਼ੁਬਾਨ ਵਮਲ਼ਦੀ ਹੈ। ਲਫਜ ਵਿਿੱ ਚ ਤਾਕਤ ਹੈ। ਇਹ

ਤਲਿਾਰ ਦੀ ਧਾਰ ਿਾਂਗ ਕਿੱ ਟਦਾ ਹੈ। ਸਿਾਲ ਇਹ ਹੈ ਵਕ ਇਸ ਤਾਕਤ ਨੇ ਅਜ਼ਾਦੀ ਵਲਆਉਣ
ਿਾਵਲ਼ਆਂ ਦੇ ਹਿੱ ਥ ਵਿਿੱ ਚ ਹੋਣਾ ਹੈ ਵਜਸਦੇ ਆਸਰੇ ਵਢਿੱ ਡ ਧੋਈਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਕੂੜ ਦੀ ਪਾਲ ਨੂੰ ਕਿੱ ਟਣਾ

ਹੈ ਜਾਂ ਵਕ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਹਿੱ ਥ ਵਿਿੱ ਚ ਹੋਣਾ ਹੈ ਵਜਹਨਾਂ ਨੇ ਗੁਲਾਮੀ ਦਾ ਜਾਲ ਹੋਰ ਪਿੱ ਕਾ ਕਰਨਾ ਹੈ।”

ਇਸ ਤਰਾਂ ਲੁਟੇਰੀਆਂ ਜਮਾਤਾਂ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਹਵਥਆਰ ਨੂੰ ਲੋ ਕਾਂ ਦੀ ਮਾਨਵਸਕ ਗੁਲਾਮੀ ਨੂੰ ਮਜਬੂਤ
ਕਰਨ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਬੇੜੀਆਂ ਵਿਿੱ ਚ ਜਕੜੀ ਰਿੱ ਖਣ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਸੰ ਘਰਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਖੋਖਲਾ ਕਰਨ ਲਈ
ਿਰਤਦੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਪੀੜਤ ਜਮਾਤਾਂ ਨੇ ਇਸ ਹਵਥਆਰ ਰਾਹੀਂ ਵਿਰਸੇ ਦੀਆਂ ਜੁਝਾਰੂ, ਰਚਣੇਈ

ਪਰੰ ਪਰਾਿਾਂ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰਿੱ ਖਦੇ ਹੋਏ ਇਸ ਗੁਲਾਮੀ ਦਾ ਅੰ ਤ ਕਰਨਾ ਹੁੰ ਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਸ
ਹਵਥਆਰ ਨੂੰ ਲੁਟੇਰੀਆਂ ਜਮਾਤਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਤੋਂ ਬਚਾਉਣਾ, ਇਸਨੂੰ ਮਜਬੂਤ ਕਰਨਾ ਿੀ ਇਸ

ਜਮਾਤੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਇਿੱ ਕ ਅੰ ਗ ਹੈ।

ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾ ਪਰਤੀ ਚੇਤਨਾ ਬਹੁਤ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੈ। ਅੰ ਗਰੇਜੀ, ਵਹੰ ਦੀ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ, ਵਿਦਿਤਾ
ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਬਣਾ ਕੇ ਲੋ ਕਾਂ ਦਾ ਰੁਝਾਨ ਇਹਨਾਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਿਿੱ ਲ ਕੀਤਾ ਜਾ ਵਰਹਾ ਹੈ ਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ
ਲੋ ਕ ਬੋਲੀਆਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਨੂੰ ਰੋਕ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕੰ ਗਾਲੀ, ਜਹਾਲਤ ਦੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਬਣਾ ਕੇ ਲੋ ਕਾਂ

ਦਾ ਇਹਨਾਂ ਤੋਂ ਮੁਿੱ ਖ ਮੋੜਨ ਦੀਆਂ ਕੋਵਸ਼ਸ਼ਾਂ ਬਰਕਰਾਰ ਹਨ। ਅਿੱ ਜ ਦੇ ਫਾਸੀਿਾਦੀ ਦੌਰ ਵਿਿੱ ਚ ਵਹੰ ਦੂ

ਰਾਸ਼ਟਰ ਦੀ ਵਹੰ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਿੱ ਚ ਇਹ ਹਮਲਾ ਹੋਰ ਤੇਜ ਿੀ ਹੋ ਵਰਹਾ ਹੈ। ਪਰ ਕੌ ਮਾਂ ਦੇ

ਜ਼ਜ਼ਵਬਆਂ ਦੀ ਤਾਕਤ ਦੇਖੋ ਵਕ ‘ਵਹੰ ਦੀ, ਵਹੰ ਦੂ, ਵਹੰ ਦੁਸਤਾਨ’ ਕਵਹਣ ਿਾਲ਼ੀ ਭਾਜਪਾ ਦੇ ਕਰਨਾਟਕਾ
ਦੇ ਮੁਿੱ ਖ ਮੰ ਤਰੀ ਨੂੰ ਿੀ ਅਵਮਤ ਸ਼ਾਹ ਦੇ ਵਹੰ ਦੀ ਨੂੰ ਪੂਰੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਵਬਆਨ
ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਰਾਜਸਥਾਨ ਵਿਿੱ ਚ ਇਿੱ ਕ ਸੰ ਸਦ ਮੈਂਬਰ ਨੂੰ ਸੰ ਸਦ ਵਿਿੱ ਚ ਰਾਜਸਥਾਨੀ

ਵਿਿੱ ਚ ਸਹੁੰ ਚੁਿੱ ਕਣ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾਈ ਦਾਬੇ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਲੋ ਕਾਂ ਦੀ ਤਾਕਤ
ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੋਢਾ ਬਣ ਜਾਿੇ ਤਾਂ ਨਤੀਵਜਆਂ ਦਾ ਵਕਆਸ ਹੀ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ

ਹੈ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਮਾਂ-ਬੋਲੀਆਂ ਦੇ ਮਹਿੱ ਤਿ, ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਵਸਆਸਤ ਤੇ ਜਮਾਤੀ ਜਿੱ ਦੋ-ਜਵਹਦ ਵਿਿੱ ਚ

ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਮਸਲੇ ’ਤੇ ਲੋ ਕਾਂ ਨੂੰ ਵਸਿੱ ਵਖਅਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਸਭ ਕੌ ਮਾਂ ਦੀਆਂ ਬੋਲੀਆਂ ਲਈ ਬਰਾਬਰ

ਦਰਜੇ, ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਤੇ ਸਰਕਾਰੀ, ਪਰਸ਼ਾਸ਼ਵਨਕ ਕੰ ਮ-ਕਾਜ ਸਭ ਕੌ ਮੀਅਤਾਂ ਲਈ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ


ਆਪਣੀਆਂ ਬੋਲੀਆਂ ਲਾਗੂ ਕਰਿਾਉਣ ਤੇ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ, ਵਹੰ ਦੀ ਦੇ ਦਾਬੇ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦੇ ਰੂਪ ਵਜਹੀਆਂ

ਠੋਸ ਮੰ ਗਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਿੱ ਚ ਇਿੱ ਕ ਲੋ ਕ ਲਵਹਰ ਖੜਹੀ ਕਰਨ ਦੀ ਲੋ ੜ ਹੈ। ਇਸ ਨਾਲ਼ ਹੀ ਭਾਰਤ
ਦੀ ਭਾਸ਼ਾਈ ਿੰ ਨ-ਸੁਿੰਨਤਾ ਕਾਇਮ ਰਹੇਗੀ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋਿੇਗੀ ਤੇ ਇਸ ਨਾਲ਼ ਹੀ ਲੋ ਕ ਆਪਣੀ
ਮੁਕਤੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਰ ਿਧੇਰੇ ਵਸ਼ਿੱ ਦਤ ਨਾਲ਼ ਲੜ ਸਕਣਗੇ ਤੇ ਆਪਣੀ ਮੁਕਤੀ ਦੇ ਸੁਪਵਨਆਂ ਨੂੰ

ਅਮਲੀ ਜਾਮਾ ਪਵਹਨਾ ਸਕਣਗੇ।

ਅਜ਼ਾਦੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ ਿਿੱ ਡੀ ਵਿਣਤੀ

ਵਿਿੱ ਚ ਖੇਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦਾ ਖਤਮ ਹੋਣਾ - ਅਖੌਤੀ


ਸਭ ਤੋਂ ਿਿੱ ਡੀ ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਦੀ ਪੋਲ ਖੋਲਦ
ਹ ੇ ਕੁਝ
ਤਿੱ ਥ •ਅਮਨ ਸੰ ਤਨਿਰ
ਲਲਕਾਰ ⚫ 16-31 ਅਕਤੂਬਰ 2019

ਨਿੀਂ ਵਸਵਖਆ ਨੀਤੀ ਦੇ ਖਰੜੇ ਵਿਿੱ ਚ ਵਹੰ ਦੀ ਨੂੰ ਪੂਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਿੱ ਚ ਜਬਰਦਸਤੀ ਥੋਪੇ ਜਾਣ ਅਤੇ
ਅਵਮਤ ਸ਼ਾਹ ਦੇ ਵਦਿੱ ਤੇ ਵਬਆਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲੋ ਕਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਮਸਲਾ ਇਕ ਫਾਰ ਵਫਰ ਭਖ

ਵਗਆ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਿਿੱ ਖ ਿਿੱ ਖ ਵਹਿੱ ਵਸਆਂ ਵਿਿੱ ਚ ਇਸ ਵਖਲਾਫ਼ ਰੋਹ ਿੇਖਣ ਨੂੰ ਵਮਲ਼ ਵਰਹਾ ਹੈ।

ਹਾਕਮਾਂ ਿਿੱ ਲੋਂ ਭਾਸ਼ਾਈ ਜਬਰ ਦੀ ਇਹ ਕੋਈ ਪਵਹਲੀ ਘਟਨਾ ਨਹੀਂ ਹੈ।

ਅਜ਼ਾਦੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਹੁਣ ਤਿੱ ਕ ਦੇ ਇਵਤਹਾਸ ’ਤੇ ਜੇਕਰ ਨਜ਼ਰ ਮਾਰੀਏ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਿੇਖਦੇ ਹਾਂ ਵਕ

ਵਕਸ ਤਰਾਂ ਭਾਰਤੀ ਹਕੂਮਤ ਨੇ ਸੈਂਕੜੇ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱ ਵਬਆ ਅਤੇ ਖਤਮ ਕਰ ਵਦਿੱ ਤਾ। ‘ਿਡੋਦਰਾ

ਅਧਾਰਤ ਭਾਸ਼ਾ ਖੋਜ ਅਤੇ ਪਰਕਾਸ਼ਨ ਕੇਂਦਰ’ ਨੇਂ ਆਪਣੇ 2 ਸਾਲ ਲੰਮੇ ਸਰਿੇਖਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇਹ
ਖੁਲਾਸਾ ਕੀਤਾ ਵਕ ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ 1961 ਤਿੱ ਕ 1100 ਬੋਲੀਆਂ ਸਨ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਵਿਿੱ ਚੋਂ 220 ਦੇ ਕਰੀਬ

ਅਲੋ ਪ ਹੋ ਗਈਆਂ ਹਨ। ਭਾਰਤ ਕੋਈ ਇਿੱ ਕ ਕੌ ਮ ਨਾਂ ਹੋ ਕੇ ਿਿੱ ਖੋ ਿਿੱ ਖ ਕੌ ਮੀਅਤਾਂ ਦਾ ਇਿੱ ਕ ਸਮੂਹ

ਹੈ, ਪਰ ਭਾਰਤੀ ਹਾਕਮਾਂ ਦੀ ‘ਭਾਰਤ ਇਿੱ ਕ ਕੌ ਮ’ ਦੇ ਸੰ ਕਲਪ ਤਵਹਤ, ਿਿੱ ਖ-ਿਿੱ ਖ ਪਛਾਣਾਂ ਨੂੰ ਖਤਮ
ਕਰਨ ਜਾਂ ਰੋਲਣ ਦੀ ਨੀਤੀ ਰਹੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਇਸੇ ਨੀਤੀ ਦਾ ਨਤੀਜਾ ਵਕ ਅਨੇਕਾਂ

ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਮਰ ਗਈਆਂ ਹਨ ਤੇ ਅਨੇਕਾਂ ਹੀ ਮਰਨ ਕੰ ਢੇ ਹਨ। ਅਜ਼ਾਦੀ ਿੇਲੇ ਤੋਂ ਹੀ (ਅਤੇ ਇਸ

ਤੋਂ ਿੀ ਪਵਹਲਾਂ) ‘ਇਿੱ ਕ ਕੌ ਮੀ-ਭਾਸ਼ਾ’ ਦੇ ਮਸਲੇ ’ਤੇ ਤਣਾ-ਤਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ ਸੀ। ਪੂਰੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ

ਇਿੱ ਕ ਸਾਂਝੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸਿਾਲ ’ਤੇ ਸਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਵਿਿੱ ਚ ਹੋਈਆਂ ਬਵਹਸਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਵਜਿੱ ਥੇ ਇਿੱ ਕ ਪਾਸੇ

ਵਹੰ ਦੁਸਤਾਨੀ (ਉਰਦੂ ਅਤੇ ਵਹੰ ਦੀ ਇਕ ਤਰਾਂ ਨਾਲ਼ ਇਸ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਹੀ ਵਨਿੱਕਲੀਆਂ ਹਨ ) ਨੂੰ ਰਾਸ਼ਟਰ

ਭਾਸ਼ਾ ਿਜੋਂ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਜਾ ਵਰਹਾ ਸੀ, ਪਰ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਭਾਰਤ-ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਦੀ ਿੰ ਡ ਤੋਂ ਬਾਅਦ
ਇਕਦਮ ਵਹੰ ਦੀ ਨੂੰ ਰਾਸ਼ਟਰ ਭਾਸ਼ਾ ਿਜੋਂ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਲਿੱਗਾ ਵਜਸਦੀ ਵਮਸਾਲ 13 ਸਤੰ ਬਰ
1949 ਨੂੰ ਸਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਵਿਿੱ ਚ ਧੁਲੇਕਰ ਿਿੱ ਲੋਂ ਵਦਿੱ ਤੇ ਵਬਆਨ ਵਿਿੱ ਚ ਵਮਲ਼ਦੀ ਹੈ ਵਜਸ ਵਿਿੱ ਚ ਉਹਨੇ

ਵਕਹਾ ਵਕ- “ਮੈਂ ਕਵਹੰ ਦਾ ਹਾਂ ਵਕ ਇਹ (ਵਹੰ ਦੀ) ਦਫ਼ਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਹੈ ਅਤੇ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਹੈ।

ਤੁਸੀਂ ਇਸ ਨੂੰ ਨਕਾਰ ਸਕਦੇ ਹੋ। ਤੁਸੀਂ ਵਕਸੇ ਹੋਰ ਰਾਸ਼ਟਰ ਨਾਲ਼ ਸਬੰ ਧ ਰਿੱ ਖਦੇ ਹੋਿੋਗੇ ਪਰ

ਮੇਰਾ ਸਬੰ ਧ ਭਾਰਤੀ ਕੌ ਮ ਨਾਲ਼, ਵਹੰ ਦੀ ਕੌ ਮ, ਵਹੰ ਦੂ ਕੌ ਮ ਅਤੇ ਵਹੰ ਦੁਸਤਾਨੀ ਕੌ ਮ ਨਾਲ ਹੈ। ਮੈਂ ਨਹੀਂ

ਜਾਣਦਾ ਤੁਸੀਂ ਵਕਓਂ ਕਵਹੰ ਦੇ ਹੋ ਵਕ ਇਹ ਕੌ ਮੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨਹੀਂ ਹੈ। ” (ਸਰੋਤ- The Quint- Hindi,

Hindustani, English- A history of India’s Language Politics)।


ਸੋ ਉਸ ਿੇਲੇ ਤੋਂ ਹੀ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਮੰ ਸ਼ੇ ਸਮਝੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ। ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਨਾਲ਼ ਹੀ ਉਸੇ ਸਮੇਂ

ਅਵਜਹੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਿੀ ਹੋ ਵਰਹਾ ਸੀ। ਦਿੱ ਖਣੀ ਸੂਵਬਆਂ ਦੇ ਪਰਵਤਵਨਧੀਆਂ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਰਾਮਾਵਲੰਗਮ
ਚੇਟੀਅਰ ਨੇ ਸਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਮਦਰਾਸ ਿਿੱ ਲੋਂ ਪਰਤੀਵਨਧਤਾ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਸਤੰ ਬਰ 1949

ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਇਸ ਵਖਲਾਫ਼ ਆਪਣਾ ਵਿਰੋਧ ਦਰਜ਼ ਕਰਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਵਕਹਾ- “ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਅਵਜਹੀਆਂ
ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਹਨ ਜੋ ਬਹੁਤ ਉੱਨਤ ਹਨ ਅਤੇ ਵਹੰ ਦੀ ਨਾਲ਼ੋਂ ਵਕਤੇ ਵਜ਼ਆਦਾ ਸਾਵਹਤ ਉਹਨਾਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ

ਵਿਿੱ ਚ ਮੌਜੂਦ ਹੈ। ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਵਹੰ ਦੀ ਨੂੰ ਸਿੀਕਾਰਣ ਜਾ ਰਹੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਇਸ ਕਾਰਨ ਨਹੀਂ ਵਕ
ਇਹ ਵਬਹਤਰ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਵਸਰਫ ਇਸ ਲਈ ਵਕ ਇਸ ਦੇ ਬੋਲਣ ਿਾਵਲ਼ਆਂ ਦੀ ਵਗਣਤੀ ਵਜ਼ਆਦਾ

ਹੈ।”

ਇਸ ਸਭ ਦੇ ਨਤੀਜ਼ੇ ਿਜੋਂ ਸਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਵਿਿੱ ਚ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਵਲਆ ਵਗਆ ਵਕ- “ਦੇਿਨਾਗਰੀ

ਵਲਿੱਪੀ ਵਿਿੱ ਚ ਵਲਖੀ ਵਹੰ ਦੀ ਭਾਰਤੀ ਸੰ ਘ ਦੀ ਦਫ਼ਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਹੋਿੇਗੀ। ਦਫਤਰੀ ਨਾ ਵਕ ਕੌ ਮੀ।
ਅਤੇ ਅਗਲੇ ਪੰ ਦਰਾਂ ਸਾਲਾਂ ਲਈ, ਗੈਰ ਵਹੰ ਦੀ ਰਾਜਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਇਸ ਤਬਦੀਲੀ ਨੂੰ ਵਨਰਵਿਘਨ ਲਾਗੂ

ਕਰਨ ਲਈ, ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਨੂੰ ਿੀ ਦਫ਼ਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਿਜੋਂ ਿਰਵਤਆ ਜਾਿੇਗਾ। ਵਜਸ ਦੀ ਅੰ ਤਮ ਤਰੀਕ

26 ਜਨਿਰੀ 1965 ਸੀ।” (ਸਰੋਤ- ਉਪਰੋਕਤ)। ਇਸ ਵਿਿੱ ਚ ਇਹ ਗਿੱ ਲ ਵਧਆਨ ਦੇਣ ਯੋਗ ਹੈ ਵਕ

‘ਵਹੰ ਦੀ ਦਫ਼ਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਹੋਿੇਗੀ ਨਾ ਵਕ ਕੌ ਮੀ। ’

ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1965 ਆਉਂਵਦਆਂ-ਆਉਂਵਦਆਂ ਕੌ ਮੀ-ਭਾਸ਼ਾ ’ਤੇ ਬਵਹਸ, ਵਹੰ ਦੀ ਨੂੰ ਥੋਪੇ ਜਾਣ ਵਿਰੁਿੱ ਧ

ਘੋਲ ਵਿਿੱ ਚ ਤਬਦੀਲ ਹੋ ਗਈ, ਤਵਮਲਨਾਡੂ ਵਿਿੱ ਚ ਇਸ ਵਖਲਾਫ਼ ਹੜਤਾਲਾਂ-ਆਤਮਦਾਹ ਆਵਦ ਦੇ


ਰੂਪ ਵਿਿੱ ਚ ਿਿੱ ਡੀ ਵਗਣਤੀ ਵਿਿੱ ਚ ਵਿਰੋਧ ਪਰਦਰਸ਼ਨ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ ਅਤੇ ਓਥੋਂ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਿਿੱ ਲੋਂ 26

ਜਨਿਰੀ 1965 ਨੂੰ ‘ਸੋਗ ਦਾ ਵਦਨ’ ਐਲਾਵਨਆ ਵਗਆ। ਲੋ ਕ ਰੋਹ ਦੇ ਦਬਾਅ ਹੇਠ ਉਸ ਿੇਲੇ ਦੇ

ਪਰਧਾਨ ਮੰ ਤਰੀ ਲਾਲ ਬਹਾਦੁਰ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਨੂੰ ਇਹ ਮੰ ਨਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋਣਾ ਵਪਆ ਵਕ (1.)
ਸਾਰੇ ਸੂਬੇ ਆਪਣੀ ਮਰਜੀ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਲਾਗੂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ਜਾਂ ਵਫਰ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰਿੱ ਖ
ਸਕਦੇ ਹਨ, (2.) ਅੰ ਤਰ ਸੂਬਾਈ ਸਬੰ ਧ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਜਾਂ ਖੇਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ
ਅਨੁਿਾਦ ਕਰਕੇ ਸਥਾਪਤ ਕੀਤੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ, (3.) ਗੈਰ ਵਹੰ ਦੀ ਸੂਬੇ ਕੇਂਦਰ ਨਾਲ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ

ਵਿਿੱ ਚ ਪਿੱ ਤਰ-ਵਿਹਾਰ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ, (4.) ਕੇਂਦਰ ਿਿੱ ਲੋਂ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦੀ ਿਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਿੇਗੀ ਅਤੇ

(5.) ਵਸਿਲ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਪਰੀਵਖਆ ਵਸਰਫ ਵਹੰ ਦੀ ਦੀ ਬਜਾਏ ਅੰ ਗਰਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਿੀ ਰਿੱ ਖੀ ਜਾਿੇਗੀ। ਅਤੇ
ਪੂਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਮਸਲੇ ’ਤੇ ਅਜੇ ਤਿੱ ਕ ਇਹੋ ਸਵਥਤੀ ਬਹਾਲ ਹੈ। ਕੋਈ ਕੌ ਮੀ/ਰਾਸ਼ਟਰੀ

ਭਾਸ਼ਾ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਵਸਰਫ ਦੋ ਦਫਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਹਨ- ਅੰ ਗਰੇੇੇੇੇਜ਼ੀ ਅਤੇ ਵਹੰ ਦੀ।

ਪਰ ਇਸ ਸਭ ਦੇ ਬਾਿਜੂਦ ‘ਭਾਰਤ ਇਿੱ ਕ ਕੌ ਮ’ ਦੀ ਨੀਤੀ ਤੇ ਅਡੋਲ ਰਵਹੰ ਦੇ ਹੋਏ, ਭਾਰਤੀ


ਹਾਕਮਾਂ ਨੇਂ ਨਾਂ ਤਾ ਖੇਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਬਚਾਉਣ ਵਿਿੱ ਚ ਅਤੇ ਨਾਂ ਹੀ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਿੱ ਚ

ਕੋਈ ਰੁਚੀ ਵਿਖਾਈ। ਯੂਨੈਸਕੋ ਦੇ ਮੁਤਾਬਕ ਜੇਕਰ ਵਕਸੇ ਿੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਬੋਲ਼ਣ ਿਾਵਲ਼ਆਂ ਦੀ

ਵਗਣਤੀ 10,000 ਤੋਂ ਘਿੱ ਟ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਦੇ ਖਤਮ ਹੋ ਜਾਣ ਦਾ ਖਤਰਾ ਮੌਜੂਦ ਹੈ। ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ
1971 ਦੀ ਮਰਦਮਸ਼ੁਮਾਰੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ, ਸਰਕਾਰਾਂ ਨੇ 10,000 ਤੋਂ ਘਿੱ ਟ ਲੋ ਕਾਂ ਦੁਆਰਾ ਬੋਲੀਆਂ ਜਾਣ

ਿਾਲ਼ੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਅਵਧਕਾਰਤ ਸੂਚੀ ਵਿਿੱ ਚ ਨਾਂ ਰਿੱ ਖਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਲਈ ਯੂਨੈਸਕੋ
ਤਾਂ ਵਫਰ ਿੀ ਅਵਜਹੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਖਤਮ ਹੋਣ ਕੰ ਢੇ ਦੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਿਜੋਂ ਿੇਖਦਾ ਹੈ ਪਰ

ਭਾਰਤੀ ਹੁਕਮਰਾਨ ਤਾਂ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਵਜ਼ਕਰ ਕਰਨ ਯੋਗ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦੇ ਰਹੇ।

ਪੀਪਲਜ਼ ਵਲੰਗੁਇਸਵਟਕ ਸਰਿੇ ਆਫ ਇੰ ਡੀਆ ਦੇ ਸਰਿੇਖਣ ਮੁਤਾਬਕ ‘ਗਣੇਸ਼ ਡੇਿੀ’ ਦੀ ਖੋਜ ਦੇ


ਨਤੀਜੇ ਿਜੋਂ ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ 780 ਤੋਂ ਿਿੱ ਧ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਬੋਲੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਵਜਹਨਾਂ ਵਿਿੱ ਚੋਂ 600 ਅਲੋ ਪ

ਹੋਣ ਕੰ ਢੇ ਹਨ। ਉਸ ਮੁਤਾਬਕ ਵਪਛਲੇ 60 ਸਾਲਾਂ ਵਿਿੱ ਚ 250 ਦੇ ਕਰੀਬ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਤਾਂ ਪਵਹਲਾਂ ਹੀ

ਖਤਮ ਹੋ ਚੁਿੱ ਕੀਆਂ ਹਨ। ਪਰ 1991 ਅਤੇ 2001 ਦੀ ਮਰਦਮਸ਼ੁਮਾਰੀ ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੀ

ਵਗਣਤੀ 122 ਤੋਂ ਿਿੱ ਧ ਨਹੀਂ ਦਿੱ ਸਦੀ। ਇਸ ਲਈ ਬਾਕੀ ਸਾਰੀਆਂ ਖਤਰੇ ਵਿਿੱ ਚ ਹਨ।

ਵਕਸੇ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਮਹਿੱ ਤਿ ਵਸਰਫ ਉਸਦੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਵਗਣਤੀ ਜਾਂ ਵਿਆਕਰਣ ਤੋਂ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ
ਉਸ ਦੇ ਲੋ ਕਾਂ ਦੇ ਆਪਣੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਸੋਚਣ ਸਮਝਣ ਦੇ ਵਿਲਿੱਖਣ ਢੰ ਗ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ

ਰਿਾਇਤਾਂ/ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰ ਨੂੰ ਪਰਗਟਾਉਣ ਦੀ ਯੋਗਤਾ ਕਰਕੇ ਹੁੰ ਦਾ ਹੈ। ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਜਾਣਦੇ ਹਾਂ ਵਕ
ਇਿੱ ਕ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਮਰਨ ਨਾਲ਼ ਇਕਿੱ ਲੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨਹੀਂ ਉਸ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਲੋ ਕਾਂ ਦਾ ਦੁਨੀਆਂ ਨੂੰ ਿੇਖਣ ਦਾ,

ਸੋਚਣ ਦਾ ਇਿੱ ਕ ਭਵਰਆ ਪੂਰਾ ਢੰ ਗ ਹੀ ਮਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਅਵਹਸਾਸ, ਉਹਨਾਂ ਦਾ

ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰ ਸਭ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਹੀ ਮਰ ਜਾਂਦੇ ਹਨ।

ਰਾਜਸਥਾਨ ਦੀਆਂ ਵਤੰ ਨ ਖੇਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਧਾਤੀ, ਥਾਲੀ, ਅਤੇ ਧਾਰਿਾੜੀ ਅਲੋ ਪ ਹੋਣ ਕੰ ਢੇ ਹਨ।
ਕਈ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਵਹੰ ਦੀ ਦੀਆਂ ਉਪਬੋਲੀਆਂ ਬਣਾ ਕੇ ਖਤਮ ਕਰਨ ਦੇ ਯਤਨ ਕੀਤੇ ਗਏ, ਜਦਵਕ

ਜਰੂਰਤ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਵਲਿੱਪੀਆਂ ਆਵਦ ਮੁਹਿੱਈਆ ਕਰਾ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸੰ ਭਾਲਣ ਦੀ ਸੀ।
ਅਤੇ ਗਿੱ ਲ ਇਥੇ ਹੀ ਰੁਕੀ ਹੋਈ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਵਹੰ ਦੀ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਦਾ ਸਿਾਲ ਵਸਰਫ ਵਹੰ ਦੀ ਭਾਸ਼ੀ
ਅਤੇ ਗੈਰ ਵਹੰ ਦੀ ਭਾਸ਼ੀ ਲੋ ਕਾਂ ਦਾ ਹੀ ਮਸਲਾ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਫਾਸੀਿਾਦੀ ਹਕੂਮਤ ਿਿੱ ਲੋਂ ਇਸ ਨੂੰ ਵਫਰਕੂ

ਅਧਾਰ ’ਤੇ ਲੋ ਕਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਧਰੁਿੀਕਰਣ ਦੇ ਇਿੱ ਕ ਹਵਥਆਰ ਿਜੋਂ ਿਰਤਦੇ ਹੋਏ ਵਹੰ ਦੂ ਕੌ ਮਿਾਦੀ

ਅਜੰ ਡੇ ਨੂੰ ਖਾਦਪਾਣੀ ਵਦਿੱ ਤਾ ਜਾ ਵਰਹਾ ਹੈ। ਪੰ ਜਾਬ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਭਾਗ ਿਿੱ ਲੋਂ ਕਰਿਾਏ ਪਰੋਗਰਾਮ
ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਹੁਕਮ ਚੰ ਦ ਰਾਜਪਾਲ ਿਰਵਗਆਂ ਦੇ ਵਹੰ ਦੀ ਨੂੰ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਥੋਪਣ ਦੇ ਵਬਆਨਾਂ ਵਿਿੱ ਚ

ਤਾਂ ਸਰੇਆਮ ਮੌਜੂਦਾ ਸਰਕਾਰਾਂ ਦੇ ਵਹੰ ਦੂਿਾਦੀ ਅਜੰ ਡੇ ਦਾ ਝਲਕਾਰਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਨਿੀਂ ਵਸਿੱ ਵਖਆ
ਨੀਤੀ ਦੇ ਖਰੜੇ ਵਿਿੱ ਚ ਵਜਸ ਤਰਾਂ ਨਾਲ਼ ਵਹੰ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਸਾਵਰਆਂ ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਥੋਵਪਆ
ਵਗਆ ਹੈ, ਇਹ ਦਰਸਾਉਂਦਾ ਹੈ ਵਕ ਵਹੰ ਦੂ ਰਾਸ਼ਟਰ ਦੇ ਅਜੰ ਡੇ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਖਾਤਰ ਇਹ ਸੰ ਘੀ
ਫਾਸੀਿਾਦੀ ਭਾਸ਼ਾਈ ਜਬਰ ਦੀ ਕੋਈ ਿੀ ਹਿੱ ਦ ਪਾਰ ਕਰਨ ਲਿੱਵਗਆਂ ਕੋਈ ਵਹਚਵਕਚਾਹਟ ਤਿੱ ਕ
ਮਵਹਸੂਸ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ, ਇਹ ਿਿੱ ਖਰੀ ਗਿੱ ਲ ਹੈ ਵਕ ਥਿੱ ਲੇ ਲੋ ਕ ਰੋਹ ਨੂੰ ਿੇਖਵਦਆਂ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਆਕਾਿਾਂ

ਤਿੱ ਕ ਨੂੰ ਉੱਤੇ ਿਕਤੀ ਤੌਰ ’ਤੇ ਆਪਣੇ ਵਬਆਨ ਕਈ ਿਾਰ ਿਾਪਸ ਲੈ ਣੇ ਪੈਂਦੇ ਹਨ।

ਅਵਜਹੇ ਭਾਸ਼ਾਈ ਜਬਰ ਦਾ ਟਾਕਰਾ ਕਰਨ ਲਈ ਇਿੱ ਕ ਵਿਆਪਕ ਜਮਹੂਰੀ ਜਨਤਕ ਲਵਹਰ ਖੜਹੀ

ਕਰਨਾ ਅਿੱ ਜ ਸਮੇਂ ਦੀ ਅਣਸਰਦੀ ਲੋ ੜ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਚਾਹੇ ਪੰ ਜਾਬ ਦੇ ਲੋ ਕ ਹੋਣ ਜਾਂ ਦਿੱ ਖਣੀ
ਭਾਰਤ ਦੇ ਸੂਬੇ, ਹਰ ਜਗਹਾ ਸਾਨੂੰ ਲੋ ਕਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰਕ ਮੁਵਹੰ ਮਾਂ ਰਾਹੀਂ, ਅਤੇ ਜੁਝਾਰੂ ਜਨਤਕ
ਜਮਹੂਰੀ ਘੋਲਾਂ ਆਵਦ ਰਾਹੀਂ, ਭਾਰਤੀ ਹਾਕਮਾਂ ਦੀਆਂ ਕੋਝੀਆਂ ਚਾਲਾਂ ਨੂੰ ਅਸਫਲ ਕਰਦੇ ਹੋਏ,

ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਬਚਾਉਣ ਦੇ ਸਿਾਲ ਨਾਲ਼ ਵਸਿੱ ਝਣਾ ਹੋਿੇਗਾ।


ਪੰ ਜਾਬੀ ਰਾਜ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ 1967 ਦੀ ਥੋਥੀ
ਦਾਅਿੇਦਾਰੀ ਤੇ ਹਕੀਕਤਾਂ •ਵ ੰ ਦਰਪਾਲ
ਲਲਕਾਰ ⚫ 16-31 ਅਕਤੂਬਰ 2019

ਪੰ ਜਾਬੀ ਸੂਬੇ ਦੀ 1966 ਵਿਿੱ ਚ ਹੋਈ ਮੁੜ-ਸਥਾਪਨਾ ਨੂੰ ਪੰ ਜਾਹ ਿਵਰਆਂ ਤੋਂ ਵਜ਼ਆਦੇ ਬੀਤ ਚੁਿੱ ਕੇ

ਹਨ। ਸਾਂਝੇ ਪੰ ਜਾਬ (ਹਵਰਆਣਾ, ਵਹਮਾਚਲ ਦੇ ਅਿੱ ਡ ਹੋਣ ਤੋਂ ਪਵਹਲਾਂ ਿਾਲ਼ੇ ਪੰ ਜਾਬ) ਵਿਿੱ ਚ ਪਵਹਲਾ
ਰਾਜ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ 1960 ਵਿਿੱ ਚ ਬਵਣਆ, ਵਜਸਨੂੰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਸੂਬੇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਪੰ ਜਾਬੀ

ਰਾਜ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ 1967 ਰਾਹੀਂ ਰਿੱ ਦ ਕਰ ਵਦਿੱ ਤਾ ਵਗਆ। 1967 ਵਿਿੱ ਚ ਪੰ ਜਾਬ ਰਾਜ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ
ਬਣਨ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ 1969, 1982 ਤੇ 2008 ਦੇ ਿਵਰਆਂ ਵਿਿੱ ਚ ਮੂਲ ਐਕਟ ਵਿਿੱ ਚ ਤਰਮੀਮਾਂ ਕੀਤੀਆਂ

ਗਈਆਂ। ਸਾਲ 2008 ਵਿਿੱ ਚ ਐਕਟ ਵਿਿੱ ਚ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਕਰਕੇ ਐਕਟ ਨੂੰ ਪੰ ਜਾਬ ਰਾਜ ਭਾਸ਼ਾ

(ਤਰਮੀਮ) ਐਕਟ 2008 ਦਾ ਨਾਂ ਵਦਿੱ ਤਾ ਵਗਆ। ਇਹਦੇ ਸਮੇਤ ਸੂਬੇ ਅੰ ਦਰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਪਰਸੰਗ
ਵਿਿੱ ਚ ਪੰ ਜਾਬੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਐਕਟ 2008 ਿੀ ਿੇਲੇ ਦੀ ਸੂਬਾ ਸਰਕਾਰ ਿਿੱ ਲੋਂ ਪਾਸ ਕੀਤਾ

ਵਗਆ ਸੀ। ਪਰ ਇਹ ਸਾਰੇ ਕਨੂੰਨ ਅਿੱ ਜ ਵਸਰਫ ਕਾਗਜੀ ਕਿਾਇਦਾਂ ਬਣੇ ਵਿਖਾਈ ਵਦੰ ਦੇ ਹਨ।
ਇਹਨਾਂ ਕਨੂੰਨਾਂ ਦੀ ਹੋਂਦ ਦੇ ਬਾਿਜੂਦ ਪੰ ਜਾਬੀ ਬੋਲੀ ਦਾ ਵਨਰਾਦਰ ਸੂਬੇ ਦੇ ਸਕੂਲਾਂ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਿਖ

ਿਖ ਅਦਾਵਰਆਂ (ਭਾਿੇਂ ਉਹ ਵਨਜੀ ਹੋਣ ਭਾਿੇਂ ਸਰਕਾਰੀ) ਵਿਿੱ ਚ ਜਿੱ ਗ ਜਾਹਰ ਹੈ। ਤਾਂ ਇਹ ਐਕਟ
ਇਸ ਿੇਲੇ ਵਸਰਫ ਸੂਬਾ ਸਰਕਾਰਾਂ ਦੇ ਪੰ ਜਾਬੀ ਜ਼ੁਬਾਨ ਪਰਤੀ ਝੂਠੇ ਹੇਜ ਦੀ ਹਾਮੀ ਭਰਦੇ ਹਨ ਤੇ

ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਮਸਲੇ ਉੱਤੇ ਝੂਠੇ ਰੋਣੇ-ਧੋਣੇ ਵਿਿੱ ਚ ਹਾਕਮਾਂ ਦੀਆਂ ਅਿੱ ਖਾਂ ਪੂੰ ਝਣ ਦਾ ਸਾਧਨ ਮਾਤਰ ਬਣੇ

ਪਰਤੀਤ ਹੁੰ ਦੇ ਹਨ। ਵਕਉਂਵਕ ਅਿੱ ਜ ਪੰ ਜਾਬੀ ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਨੂੰ ਸੂਬੇ ਪੰ ਜਾਬ ਅੰ ਦਰ ਬੇਗਾਨੀ ਕਰਨ ਦੇ

ਹੁਕਮ ਵਕਤੋਂ ਬਾਹਰੋਂ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਸੂਬੇ ਦੇ ਤਖਤਾਂ ’ਤੇ ਬੈਠੇ ਹੁਕਮਰਾਨ ਚਾੜਹ ਰਹੇ ਹਨ- ਵਕਿੇਂ ਤੇ

ਵਕਉਂ ਇਹਦੀ ਚਰਚਾ ਅਿੱ ਗੇ ਕਰਾਂਗੇ। ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਇਹਨਾਂ ਐਕਟਾਂ-ਕਨੂੰਨਾਂ ਦੀ ਅਮਲੀ ਮਾਨਤਾ

ਅਿੱ ਜ ਵਸਫਰ ਹੈ। ਇਸ ਵਲਖਤ ਰਾਹੀਂ ਅਸੀਂ ਪੰ ਜਾਬੀ ਰਾਜ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ ਦੇ ਕੁਿੱ ਝ ਮਹਿੱ ਤਿਪੂਰਨ
ਨੁਕਵਤਆਂ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰਵਦਆਂ ਇਹਦੇ ਥੋਥੇ ਦਾਅਵਿਆਂ ਤੇ ਮੂੰ ਹ ਵਚੜਹਾਉਂਦੀਆਂ ਹਕੀਕਤਾਂ ਦੇ

ਰੂਬਰੂ ਹੋਣ ਦੀ ਕੋਵਸ਼ਸ਼ ਕਰਾਂਗੇ।

ਪੰ ਜਾਬ ਰਾਜ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ 1967 ਦੇ ਮੁਤਾਬਕ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ (ਗੁਰਮੁਖੀ ਵਲਿੱਪੀ) ਨੂੰ ਪੰ ਜਾਬ ਸੂਬੇ

ਦੀ ਦਫਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਦਰਜਾ ਵਦਿੱ ਤਾ ਵਗਆ। ਪਰ ਤਰਾਸਦੀ ਇਹ ਹੈ ਵਕ ਪੰ ਜਾਬੀ ਵਿਕਾਸ ਦਾ


ਦਾਅਿਾ ਕਰਨ ਿਾਲਾ ਇਹ ਐਕਟ ਹਾਲੇ ਤਿੱ ਕ ਿੀ ਅਵਧਕਾਰਤ ਪੰ ਜਾਬੀ ਤਰਜਮਾ ਪਰਕਾਵਸ਼ਤ ਨਹੀਂ

ਕੀਤਾ ਵਗਆ। ਇਸ ਐਕਟ ਦੀ ਧਾਰਾ 3-ਏ ਦੇ ਮੁਤਾਬਕ ਪੰ ਜਾਬ ਅਤੇ ਹਵਰਆਣਾ ਉੱਚ ਅਦਾਲਤ
ਅਧੀਨ ਪੰ ਜਾਬ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਦੀਿਾਨੀ ਅਤੇ ਫੌਜਦਾਰੀ ਅਦਾਲਤਾਂ, ਸਾਰੀਆਂ ਮਾਲੀ ਅਦਾਲਤਾਂ
ਅਤੇ ਵਿ੍ਰਵਬਊਨਲਾਂ ਅਤੇ ਪੰ ਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਿਿੱ ਲੋਂ ਜਥੇਬੰਦ ਕੀਤੀਆਂ ਹੋਰ ਸਾਰੀਆਂ ਅਦਾਲਤਂ ਜਾਂ

ਵਿ੍ਰਵਬਊਨਲਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਦਫਤਰੀ ਕੰ ਮ-ਕਾਜ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਕੀਤਾ ਜਾਿੇਗਾ। ਪਰ ਇਹ ਐਕਟ

ਦੇ ਪਾਸ ਹੋਣ ਦੇ ਲਗਭਗ ਅਿੱ ਧੀ ਸਦੀ ਮਗਰੋਂ ਿੀ ਇਸ ਧਾਰਾ ਦੀ ਅਮਲਦਾਰੀ ਵਸਫਰ ਹੈ। ਇਸਦਾ
ਇਿੱ ਕ ਕਾਰਨ ਇਿੱ ਕ ਪਾਸੇ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ ਵਿਚਲੀਆਂ ਤਰੁਿੱ ਟੀਆਂ ਹਨ ਵਕ ਵਜਥੇ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਦਫਤਰੀ

ਕੰ ਮਕਾਜ ਨੂੰ ਪਵਰਭਾਵਸ਼ਤ ਹੀ ਨਹੀੰ ਕੀਤਾ ਵਗਆ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਸ ਚੋਰ ਮੋਰੀ ਅਧੀਨ ਅਦਾਲਤੀ

ਕੰ ਮ ਕਾਰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਹੋਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਹੁੰ ਦਾ ਹੈ। ਅਦਾਲਤੀ ਫੈਸਲੇ ,

ਅਪੀਲਾਂ, ਨੋਟੀਵਫਕੇਸ਼ਨਾਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸਬੰ ਧਤ ਕਾਗਜ-ਪਿੱ ਤਰ ਆਵਦ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਵਮਲਦੇ

ਹਨ।

ਪੰ ਜਾਬ ਹਵਰਆਣਾ ਉੱਚ ਅਦਾਲਤ ਦਾ ਪੂਰੇ ਦਾ ਪੂਰਾ ਕੰ ਮ ਅੰ ਗਰੇਜੀ ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਹੁੰ ਦਾ ਹੈ। ਇਸ
ਵਿਿੱ ਚ ਫਵਰਆਦੀ ਮੂਕ ਦਰਸ਼ਕ ਬਣੇ ਝਾਕਦੇ ਰਵਹੰ ਦੇ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਤਾਂ ਜਿੱ ਜ ਦੀ ਸਮਝ

ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਿਕੀਲਾਂ ਦੀ ਆਪਸੀ ਵਜਰਾਹ ਦੀ। ਜਦਵਕ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦਾ ਕੰ ਮਕਾਰ ਪੰ ਜਾਬੀ

ਭਾਸ਼ਾ ’ਚ ਕਰਨ ਦਾ ਅੰ ਸ਼ ਐਕਟ ਵਿਿੱ ਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਐਕਟ ਦੀ ਇਸ ਧਾਰਾ ਵਿਿੱ ਚ
ਦਫਤਰੀ ਕੰ ਮਕਾਜ ਸ਼ਬਦ ਨੂੰ ਕੁਿੱ ਲ ਕੰ ਮਕਾਜ ਵਿਿੱ ਚ ਬਦਵਲਆ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਅਦਾਲਤਾਂ

ਦਾ ਕੁਿੱ ਲ ਕੰ ਮਕਾਰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ।

ਇਸਤੋਂ ਵਬਨਾਂ ਇਿੱ ਕ ਹੋਰ ਨੁਕਤਾ ਜੋ ਵਿਚਾਰਨ ਿਾਲਾ ਹੈ ਵਕ ਅਦਾਲਾਤਾਂ ਖੇਤਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਛਪੇ
ਉਹਨਾਂ ਕਨੂੰਨਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਮਾਨਤਾ ਵਦੰ ਦੀਆਂ ਹਨ, ਵਜਹਨਾਂ ਦਾ ਸੂਬੇ ਦੇ ਰਾਜਪਾਲ ਤੋਂ ਮਾਨਤਾ ਪਰਾਪਤ

ਤਰਜ਼ਮਾ ਸਰਕਾਰੀ ਗਜਟ ਵਿਿੱ ਚ ਛਾਵਪਆ ਹੋਇਆ ਹੋਿ।ੇ ਇਸੇ ਿਾਸਤੇ ਪੰ ਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਿਿੱ ਲੋਂ
1969 ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ ਵਿਿੱ ਚ ਧਾਰਾ 6- ਏ ਦਾ ਿਾਧਾ ਤਰਮੀਮ ਕਰਕੇ ਇਸਦਾ ਇੰ ਤਜ਼ਾਮ ਕੀਤਾ

ਵਗਆ। ਅਵਜਹਾ ਕਨੂੰਨ ਬਣਨ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਿੀ ਇਸਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਹੋਈ। ਕੇਂਦਰ ਤੇ ਸੂਬਾ
ਸਰਕਾਰਾਂ ਿਿੱ ਲ਼ੋਂ ਪਾਸ ਕੀਤੇ ਕਨੂੰਨ, ਐਕਟ, ਹੁਕਮਾਂ ਦਾ ਕਦੇ ਿੀ ਪੰ ਜਾਬੀ ਤਰਜਮਾ ਨਹੀਂ ਕਰਿਾਇਆ

ਵਗਆ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਅਿੱ ਜ ਕਨੂੰਨਾਂ ਦੀ ਵਿਆਵਖਆ ਜੇ ਕੋਈ ਚਾਹਿੇ ਤਾਂ ਿੀ ਪੰ ਜਾਬੀ ’ਚ ਨਹੀਂ

ਪੜਹ ਸਕਦਾ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੰ ਗ ਬਣਦੀ ਹੈ ਵਕ ਧਾਰਾ 6-ਏ ਅਧੀਨ ਨੋਟੀਵਫਕੇਸ਼ਨ ਜਾਰੀ ਕਰਕੇ

ਇਹਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਿਾਇਆ ਜਾਿੇ।

ਐਕਟ ਦੀ ਧਾਰਾ 3-ਬੀ ਮੁਤਾਬਕ ਪੰ ਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਦਫਤਰਾਂ, ਸਰਕਾਰੀ ਖੇਤਰ ਦੇ
ਅਦਾਵਰਆਂ, ਬੋਰਡਾਂ ਅਤੇ ਸਥਾਨਕ ਅਦਾਵਰਆਂ ਅਤੇ ਸੂਬੇ ਦੇ ਸਕੂਲਾਂ, ਕਾਲਜਾਂ ਅਤੇ ਯੂਨੀਿਰਵਸਟੀਆਂ

ਦੇ ਦਫਤਰਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਸਾਰਾ ਕੰ ਮ-ਕਾਰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਕੀਤਾ ਜਾਿੇਗਾ। ਇਸ ਧਾਰਾ ਵਿਿੱ ਚ
ਪਵਹਲਾ ਨੁਕਸ ਤਾਂ ਇਹੀ ਹੈ ਵਕ ਇਸ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਵਨਿੱਜੀ ਸਕੂਲਾਂ, ਅਦਾਵਰਆਂ, ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਨੂੰ ਵਬਲਕੁਲ ਹੀ

ਬਾਹਰ ਛਿੱ ਡ ਵਦਿੱ ਤਾ ਵਗਆ, ਵਜਿੱ ਥੇ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਵਜ਼ਆਦਾ ਦੁਰਕਾਵਰਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਦੂਜਾ ਉਪਰੋਕਤ ਵਜੰ ਨਾ ਕੁ ਧਾਰਾ ਵਿਿੱ ਚ ਦਰਜ ਹੈ, ਉਹਦੇ ਿੀ ਲਾਗੂ ਹੋਣ ਦਾ ਫੀਸਦ ਬਹੁਤ ਵਨਗੂਣਾ

ਹੈ। ਇਸੇ ਐਕਟ ਦੀ ਧਾਰਾ ਅਧੀਨ ਪੰ ਜਾਬ ਦਾ ਕੋਈ ਿੀ ਸ਼ਵਹਰੀ ਆਪਣੇ ਵਕਸੇ ਮਵਹਕਮੇ, ਅਫ਼ਸਰ
ਜਾਂ ਦਫ਼ਤਰ ਨਾਲ਼ ਰਾਬਤਾ ਕਰਨ ਲਈ ਵਲਖਤੀ ਜਾਂ ਮੌਵਖਕ ਸੂਬੇ ਵਿਿੱ ਚ ਬੋਲੀਆਂ ਜਾਣ ਿਾਲ਼ੀ
ਕੋਈ ਿੀ ਭਾਸ਼ਾ ਿਰਤ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਉਸਨੂੰ ਵਕਸੇ ਖਾਸ ਇਿੱ ਕ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਰਾਬਤਾ ਕਰਨ ਜਾਂ ਬੇਨਤੀ

ਪਿੱ ਤਰ ਦੇਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ। ਐਕਟ ਦੀ ਇਸ ਧਾਰਾ ਦੀ ਅਮਲਦਾਰੀ ਿੀ

ਦੂਵਜਆਂ ਿਾਂਗੂ ਵਸਫਰ ਹੈ। ਆਮ ਤੌਰ ’ਤੇ ਮਵਹਕਵਮਆਂ ਦੇ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਅੰ ਦਰ ਵਕਸੇ ਇਿੱ ਕ ਭਾਸ਼ਾ

ਖਾਸ ਤੌਰ ’ਤੇ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਬੇਨਤੀ ਪਿੱ ਤਰ ਜਾਂ ਹੋਰ ਵਕਸਮ ਦਾ ਰਾਬਤਾ ਕਰਨ ਲਈ ਵਕਹਾ

ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ ਦੀ ਧਾਰਾ 3-ਸੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪੰ ਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਚਲਾ ਕੰ ਮਕਾਰ ਵਿਿੱ ਚੋਂ

ਵਸਰਫ ਵਚਿੱ ਠੀ ਪਿੱ ਤਰ ਨੂੰ ਹੀ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਕਰਨ ਦੀ ਗਿੱ ਲ ਕਹੀ ਗਈ ਹੈ। ਜਦਵਕ
ਸਰਕਾਰੀ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੇ ਕੁਿੱ ਲ ਕੰ ਮ ਦਾ ਘੇਰਾ ਵਚਿੱ ਠੀ ਪਿੱ ਤਰ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਵਕਤੇ ਵਜ਼ਆਦਾ ਹੁੰ ਦਾ ਹੈ।

ਐਕਟ ਦੀ ਇਸ ਤਰੁਿੱ ਟੀ ਕਰਕੇ ਇਸ ਧਾਰਾ ਦੀ ਅਮਲਦਾਰੀ ਸੂਬੇ ’ਚੋਂ ਬਹੁਤੀ ਹਿੱ ਦ ਤਾਈ ਂ ਗਾਇਬ

ਹੈ। ਵਕਉਂਵਕ ਸਰਕਾਰੀ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਿੀ ਕਚਵਹਰੀਆਂ ਿਰਗੀ ਹੈ ਵਜਿੱ ਥੇ ਸਾਰਾ ਕੰ ਮਕਾਰ
ਪੰ ਜਾਬੀ ਦੀ ਥਾਿੇਂ ਅੰ ਗਰੇਜੀ ਵਿਿੱ ਚ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪੰ ਜਾਬ ਦੀ ਬਹੁਵਗਣਤੀ ਿਸੋਂ ਵਜਹੜੀ

ਅੰ ਗਰੇਜੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਉਹ ਇਸੇ ਸਮਿੱ ਵਸਆ ਕਰਕੇ ਸਰਕਾਰੀ ਦਫਤਰਾਂ ਵਿਿੱ ਚ
ਰੁਲਦੀ ਰਵਹੰ ਦੀ ਹੈ ਜਾਂ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਬੰ ਧਤ ਅਦਾਵਰਆਂ ਨਾਲ਼ ਵਕਸੇ ਵਕਸਮ ਦਾ ਸਹੀ ਰਾਬਤਾ

ਨਹੀਂ ਬਣਦਾ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਵਜਿੱ ਥੇ ਇਿੱ ਕ ਪਾਸੇ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ ਦੀ ਧਾਰਾ ਨੂੰ ਸੋਧਕੇ ਸਰਕਾਰੀ ਦਫਤਰਾਂ
ਦਾ ਹਰ ਤਰਾਂ ਦਾ ਕੰ ਮਕਾਜ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਲਾਜਮੀ ਕਰਨ ਦੀ ਮੰ ਗ ਬਣਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਨਾਲ਼

ਹੀ ਇਸ ਧਾਰਾ ਦੀ ਅਮਲਦਾਰੀ ਯਕੀਨੀ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਠੋਸ ਕਦਮ ਚੁਿੱ ਕਣ ਦੀ ਿੀ ਲੋ ੜ ਹੈ।

ਡਾਇਰੈਕਟਰ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਭਾਗ ਜਾਂ ਉਸਦੇ ਅਧੀਨ ਅਤੇ ਇਸ ਮੰ ਤਿ, ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਅਮਲਦਾਰੀ
ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨ ਲਈ, ਿਿੱ ਲੋਂ ਨਾਮਜ਼ਦ ਕੀਤੇ ਗਏ ਅਫਸਰਾਂ ਕੋਲ਼ ਇਹ ਇਸ ਐਕਟ ਦੀਆਂ
ਧਾਰਾਿਾਂ 3-ਏ ਅਤੇ 3-ਬੀ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਦੀ ਜਾਂਚ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨ ਿਾਸਤੇ ਸੂਬਾ ਸਰਕਾਰ ਦੇ
ਸਰਕਾਰੀ ਦਫ਼ਤਰਾਂ, ਜਨਤਕ ਅਦਾਵਰਆਂ, ਬੋਰਡਾਂ, ਕਾਰਪੋਰੇਸ਼ਨਾਂ ਅਤੇ ਸਕੂਲਾਂ, ਕਾਲਜਾਂ ਅਤੇ

ਯੂਨੀਿਰਵਸਟੀਆਂ ਆਵਦ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨ ਦਾ ਹਿੱ ਕ ਹੋਿੇਗਾ। ਸੂਬਾ ਪਿੱ ਧਰੀ ਅਵਧਕਾਰਤ

ਕਮੇਟੀ ਨੂੰ ਇਸ ਐਕਟ ਦੀਆਂ ਧਾਰਾਿਾਂ ’ਤੇ ਅਮਲ ਕਰਿਾਉਣ ਵਹਤ ਵਜ਼ਲਹਾ ਪਿੱ ਧਰੀ ਅਵਧਕਾਰਤ

ਕਮੇਟੀ ਨੂੰ ਵਜਿੇਂ ਉਹ ਠੀਕ ਸਮਝੇ ਵਨਰਦੇਸ਼ ਜਾਰੀ ਕਰਨ ਦਾ ਹਿੱ ਕ ਹੋਿਗ
ੇ ਾ। ਪਰ ਇਸ ਐਕਟ
ਦੀ ਇਸ ਧਾਰਾ ਅਧੀਨ ਡਾਇਰੈਕਟਰ ਵਸਰਫ ਪੰ ਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਹੀ ਪੜਤਾਲ
ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਉੱਚ ਅਦਾਲਤ ਅਧੀਨ ਕੰ ਮ ਕਰਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ, ਵਨਿੱਜੀ ਖੇਤਰ ਦੇ ਅਦਾਵਰਆਂ
ਵਜਿੇਂ ਸਕੂਲਾਂ, ਕਾਲਜਾਂ ਤੇ ਹੋਰ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਜਾਂਚ ਪੜਤਾਲ ਤੋਂ ਪੂਰੀ ਤਰਾਂ ਬਰੀ ਕੀਤਾ

ਹੋਇਆ ਹੈ। ਜਦਵਕ ਆਪਾਂ ਿੇਵਖਆ ਹੈ ਵਕ ਇਸ ਐਕਟ ਦੀ ਨਾਫੁਰਮਾਨੀ ਵਜੰ ਨੀ ਸਰਕਾਰੀ ਦਫ਼ਤਰਾਂ
ਵਿਿੱ ਚ ਹੁੰ ਦੀ ਹੈ ਉਸਤੋਂ ਵਕਤੇ ਵਜਆਦਾ ਇਹ ਵਨਿੱਜੀ ਖੇਤਰ ਦੇ ਅਦਾਵਰਆਂ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਹੁੰ ਦੀ ਹੈ,

ਵਜਿੱ ਥੇ ਪੰ ਜਾਬੀ ਬੋਲਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਤਰਾਂ ਮਨਾਹੀ ਹੁੰ ਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਅਦਲਾਤਾਂ ਸਮੇਤ ਸੂਬੇ
ਅੰ ਦਰਲੇ ਵਨਿੱਜੀ ਖੇਤਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਅਦਾਵਰਆਂ ਨੂੰ ਜਾਂਚ ਪੜਤਾਲ ਦੇ ਘੇਰੇ ਵਿਿੱ ਚ ਵਲਆਕੇ ਪੜਤਾਲ

ਦਸਵਤਆਂ ਨੂੰ ਹਕੀਕੀ ਤੌਰ ’ਤੇ ਹਰਕਤ ਵਿਿੱ ਚ ਵਲਆਉਣ ਦੀ ਲੋ ੜ ਹੈ। ਵਕਉਂਵਕ ਅਿੱ ਜ ਤਿੱ ਕ ਸੂਬਾ
ਪਿੱ ਧਰੀ ਅਵਧਕਾਰਤ ਕਮੇਟੀ ਦੀ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਪਰਤੀ ਕੋਈ ਸਰਗਰਮੀ ਸੁਣੀ ਹੋਿ,ੇ ਅਵਜਹਾ ਨਹੀਂ

ਹੈ। ਸਗੋਂ ਲੋ ਕ ਤਾਂ ਇਸ ਗਿੱ ਲ ਤੋਂ ਿੀ ਬੇਖ਼ਬਰ ਹਨ ਵਕ ਕੋਈ ਅਵਜਹੀ ਕਮੇਟੀ ਦੀ ਹੋਂਦ ਹੈ ਿੀ
ਜਾਂ ਨਹੀਂ। ਇਸਤੋਂ ਵਬਨਾਂ ਸੂਬਾ ਪਿੱ ਧਰੀ ਪੜਤਾਲ ਕਮੇਟੀ ਵਿਿੱ ਚ ਿੀ ਅਫਸਰਸ਼ਾਹੀ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ

ਹੈ, ਇਹ ਿੀ ਇਿੱ ਕ ਕਾਰਨ ਹੈ ਵਕ ਇਹ ਕਮੇਟੀਆਂ ਵਚਿੱ ਟਾ ਹਾਥੀ ਬਣ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸਦੀ


ਬਜਾਏ ਜਨਤਕ ਨੁਮਾਇੰ ਵਦਆਂ ਅਧਾਵਰਤ ਲੋ ਕ ਪਿੱ ਖੀ ਬੁਿੱ ਧੀਜੀਿੀਆਂ, ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਵਗਆਨੀਆਂ ਦੀਆਂ
ਕਮੇਟੀਆਂ ਹੋਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ, ਵਜਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸੂਬੇ ਅੰ ਦਰ ਕੰ ਮ ਕਰਦੇ ਕੁਿੱ ਲ ਅਦਾਵਰਆਂ ਵਿਿੱ ਚ

ਪੜਤਾਲ ਕਰਨ ਦਾ ਹਿੱ ਕ ਹੋਿੇ।

ਐਕਟ ਦੀ ਧਾਰਾ 8(ਸ) ਮੁਤਾਬਕ ਜੇ ਕੋਈ ਅਵਧਕਾਰੀ ਜਾਂ ਕਰਮਚਾਰੀ ਇਸ ਐਕਟ ਦੀਆਂ ਧਾਰਾਿਾਂ

ਜਾਂ ਇਹਨਾਂ ਤਵਹਤ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ ਨੋਵਟਵਫਕੇਸ਼ਨਾਂ ਦੀ ਿਾਰ-ਿਾਰ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ

ਪੰ ਜਾਬ ਵਸਿਲ ਸੇਿਾਿਾਂ (ਦੰ ਡ ਤੇ ਅਪੀਲ) ਵਨਯਮ 1970 ਦੇ ਤਵਹਤ ਕਾਰਿਾਈ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਦਾ

ਭਾਗੀ ਬਣੇਗਾ। ਪਰ ਕਨੂੰਨੀ ਮਾਹਰਾਂ ਦਾ ਮੰ ਨਣਾ ਹੈ ਵਕ ਇਸ ਐਕਟ ਵਿਿੱ ਚ ਸ਼ਬਦ ਿਾਰ-ਿਾਰ ਨੂੰ

ਵਬਲਕੁਲ ਿੀ ਸਪਿੱ ਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ। ਵਕ ਵਕੰ ਨੇ ਿਾਰ ਉਲੰਘਣ ਕਰਨ ਤੇ ਉਹ ਸਜਾ ਦਾ ਭਾਗੀ

ਬਣੇਗਾ। ਨਾਲ਼ ਹੀ ਇਸ ਧਾਰਾ ਦਾ ਅਮਲ ਹੁਣ ਤਿੱ ਕ ਅਸੀਂ ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਵਕਤੇ ਹੁੰ ਵਦਆ ਵਕਸੇ ਨੇ

ਿੇਵਖਆ ਹੋਿ,ੇ ਸਾਨੂੰ ਇਸ ਗਿੱ ਲ ਦੀ ਕੋਈ ਇਤਲਾਹ ਨਹੀਂ। ਹਾਂ ਰੋਜਾਨਾ ਵਿਚਰਦੇ ਿਾਰ-ਿਾਰ ਇਸ

ਧਾਰਾ ਦਾ ਉਲੰਘਣ ਹੁੰ ਵਦਆਂ ਜਰੂਰ ਿੇਖਦੇ ਹਾਂ। ਸਰਕਾਰੀ ਦਫਤਰਾਂ, ਸਕੂਲਾਂ, ਕਾਲਜਾਂ,

ਯੂਨੀਿਰਵਸਟੀਆਂ, ਸਰਕਾਰੀ ਤੇ ਵਨਿੱਜੀ ਅਦਾਵਰਆਂ ਵਿਿੱ ਚ। ਪਰ ਐਕਟ ਦੀ ਇਹ ਧਾਰਾ ਲਿੱਕੜ ਦਾ

ਮੁੰ ਡਾ ਹੈ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਅਿੱ ਜ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਪਰਮ


ੇ ੀਆਂ ਦੀ ਇਹ ਮੰ ਗ ਬਣਦੀ ਹੈ ਵਕ ਇਸ ਧਾਰਾ ਤਵਹਤ

ਉਲੰਘਣ ਕਰਨ ਿਾਵਲ਼ਆਂ ਨੂੰ ਿਾਰ-ਿਾਰ ਗਲਤੀ ਦਾ ਮੌਕਾ ਵਦਿੱ ਤੇ ਵਬਨਾਂ ਪਵਹਲੀ ਿਾਰ ਹੀ ਸਜਾ

ਵਦਿੱ ਤੀ ਜਾਿੇ ਤੇ ਨਾਲ਼ ਹੀ ਇਸਦੀ ਅਮਲਦਾਰੀ ਿੀ ਯਕੀਨੀ ਬਣਾਈ ਜਾਿੇ ਤੇ ਹੁੰ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾਂ ’ਤੇ

ਠੋਸ ਕਾਰਿਾਈ ਕੀਤੀ ਜਾਿੇ।

ਐਕਟ ਵਿਿੱ ਚ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਵਕਸੇ ਤਰਾਂ ਦੇ ਫੰ ਡਾਂ ਦੀ ਉਪਲਿੱਭਧ ਕਰਿਾਉਣ ਦੀ

ਵਜ਼ੰ ਮੇਿਾਰੀ ਦਾ ਿੀ ਵਜਕਰ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਇਸ ਕਮੀ ਕਰਕੇ ਵਕਸੇ ਿੇਲੇ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਵਿਕਾਸ
ਿਾਸਤੇ ਬਣੀਆਂ ਸੰ ਸਥਾਿਾਂ ਅਿੱ ਜ ਜਾਂ ਤਾਂ ਮੁਿੱ ਢਲੀਆਂ ਲੋ ੜਾਂ ਿਜੋਂ ਹੀ ਤਰਸ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਜਾਂ ਵਫਰ

ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਦੋਖੀਆਂ ਿਜੋਂ ਪੇਸ਼ ਆ ਰਹੀਆਂ ਹਨ।

ਐਕਟ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਪਾਸ ਹੋਏ ਪੰ ਜਾਬੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਐਕਟ 2008 ਤਵਹਤ ਧਾਰਾ 3-
ਏ ਅਤੇ 3-ਬੀ ਸੂਬੇ ਪੰ ਜਾਬ ਅੰ ਦਰ ਪਵਹਲੀ ਤੋਂ ਦਸਿੀਂ ਵਿਿੱ ਚ ਪੜਹਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਲਈ
ਪੰ ਜਾਬੀ ਇਿੱ ਕ ਲਾਜਮੀ ਵਿਸ਼ੇ ਿਜੋਂ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਪਰਾਪਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਹੋਰ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਅਤੇ ਇਹਨਾਂ ਨਾਲ਼
ਜੁੜੇ ਪਰਸੰਗਕ ਮਸਵਲਆਂ ਦਾ ਇੰ ਤਜਾਮ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਐਕਟ ਨੂੰ ਅਕਾਦਵਮਕ ਸਾਲ 1 ਅਪਰੈਲ,

2009 ਤੋਂ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਜਾਰੀ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਇਹ ਐਕਟ ਸਾਫ ਸਾਫ ਕਵਹੰ ਦਾ ਹੈ ਵਕ

ਅਕਾਦਵਮਕ ਿਰੇੇ੍ਹ 2009-10 ਤੋਂ ਸੂਬੇ ਵਿਚਲੇ ਸਾਰੇ ਸਕੂਲਾਂ (ਸਣੇ ਵਨਿੱਜੀ ਖੇਤਰ ਦੇ ਸਕੂਲ) ਵਿਿੱ ਚ

ਪਵਹਲੀ ਜਮਾਤ ਤੋਂ ਦਸਿੀਂ ਜਮਾਤ ਤਿੱ ਕ ਪੰ ਜਾਬੀ ਇਿੱ ਕ ਲਾਜਮੀ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਤੌਰ ’ਤੇ ਪੜਹਾਈ ਜਾਿੇ।

ਕੋਈ ਸੰ ਸਥਾ ਜਾਂ ਬੋਰਡ ਨੂੰ ਉਨੇ ਵਚਰ ਤਿੱ ਕ ਦਸਿੀਂ ਜਮਾਤ ਪਾਸ ਕਰਨ ਦਾ ਪਰਮਾਣ-ਪਿੱ ਤਰ ਜਾਰੀ
ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕੇਗੀ, ਵਜੰ ਨੇ ਵਚਰ ਤਿੱ ਕ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਨੇ ਦਸਿੀਂ ਜਮਾਤ ਦਾ ਪੰ ਜਾਬੀ ਵਿਸ਼ੇ ਦਾ

ਇਮਵਤਹਾਨ ਪਾਸ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ। ਐਕਟ ਵਿਿੱ ਚ ਵਹੰ ਦੀ ਨੂੰ ਅਿੱ ਠਿੀਂ ਜਮਾਤ ਤੋਂ ਵਿਸ਼ੇ ਿਜੋਂ ਪੜਹਾਉਣ
ਦੀ ਗਿੱ ਲ਼ ਕਹੀ ਗਈ ਹੈ ਅਤੇ ਪਰ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦੀ ਪੜਹਾਈ ਸਬੰ ਧੀ ਵਲਵਖਆ ਹੈ ਵਕ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦੀ

ਪੜਾਈ ਕਰਿਾਉਣ ’ਤੇ ਵਕਸੇ ਸਕੂਲ ’ਤੇ ਕੋਈ ਰੋਕ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਅੰ ਗਰੇਜੀ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇ ਿਜੋਂ ਜਾਂ ਮਾਵਧਅਮ

ਿਜੋਂ ਪੜਾਉਣ ਦਾ ਵਜ਼ਕਰ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਜੋ ਐਕਟ ਦੀ ਗੰ ਭੀਰ ਤਰੁਿੱ ਟੀ ਹੈ। ਅਿੱ ਜ ਆਪਣੇ ਆਸੇ-ਪਾਸੇ
ਝਾਤ ਮਾਰੀਏ ਪੰ ਜਾਬ ਵਿਿੱ ਚ ਖੁੰ ਭਾਂ ਿਾਂਗੂ ਉੱਗੇ ਵਨਿੱਜੀ ਕਾਨਿੈਂਟ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਇਹਨਾਂ ਧਾਰਾਿਾਂ ਦੀ

ਸ਼ਰੇੇ੍ਹਆਮ ਉਲੰਘਣ ਿੇਖਣ ਨੂੰ ਵਮਲ਼ਦੀ ਹੈ। ਸੀ.ਬੀ.ਐਸ.ਈ ਅਤੇ ਆਈ.ਸੀ.ਐਸ.ਈ ਬੋਰਡਾਂ ਦੇ
ਇਹ ਸਕੂਲ ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਦਸਿੀਂ ਤਿੱ ਕ ਪੰ ਜਾਬੀ ਲਾਜ਼ਮੀ ਵਿਸ਼ੇ ਿਜੋਂ ਪੜਹਾਉਣਾ ਤਾਂ ਦੂਰ ਦੀ

ਗਿੱ ਲ਼ ਰਹੀ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਆਮ ਬੋਲਚਾਲ ਵਿਿੱ ਚ ਿੀ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਗਿੱ ਲ਼ ਨਹੀਂ ਕਰਨ ਵਦੰ ਦੇ।

ਪੰ ਜਾਬੀ ਬੋਲਦੇ ਜੇ ਬਿੱ ਚੇ ਸੁਣ ਿੀ ਜਾਣ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਜੁਰਮਾਨੇ ਲਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਵਨਿੱਕੇ-ਵਨਿੱਕੇ

ਬਾਲਾਂ ਨੂੰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਤੋਂ ਦੂਰ ਕਰਕੇ ਧਿੱ ਕੇ ਨਾਲ਼ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦੀ ਜੰ ਮਣ-ਘੁਿੱ ਟੀ ਵਪਆਈ ਜਾਂਦੀ

ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਸਕੂਲਾਂ ’ਤੇ ਅਿੱ ਜ ਤਿੱ ਕ ਸਰਕਾਰ-ਪਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਨੇ ਕਨੂੰਨੀ ਡੰ ਗੋਰੀ ਿਰਤਕੇ ਵਕਸੇ ਵਕਸਮ

ਦੀ ਕੋਈ ਕਾਰਿਾਈ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ। ਸਗੋਂ ਇਹਨਾਂ ਤਾਂ ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਿੀ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਦਾ

ਮਾਵਧਅਮ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਪੰ ਜਾਬੀ ਦੀ ਬਜਾਏ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਬਨਾਉਣ ਦੇ ਹੁਕਮ ਚਾੜੇ ਹਨ। ਪੰ ਜਾਬ
ਸਰਕਾਰ ਿਿੱ ਲੋਂ ਸੂਬੇ ਦੇ ਕਈ ਸਕੂਲਾਂ ਨੂੰ ਅਖੌਤੀ ਸਮੇਂ ਦੇ ਹਾਣ ਦੇ ਕਰਨ ਲਈ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਨੂੰ

ਮਾਵਧਅਮ ਿਜੋਂ ਪੜਹਾਉਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਵਦਿੱ ਤਾ ਵਗਆ ਹੈ। ਜੋ ਸ਼ਰੇੇ੍ਹਆਮ ਪੰ ਜਾਬੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ
ਐਕਟ 2008 ਦੀ ਧਾਰਾ 3 ਦਾ ਉਲੰਘਣ ਹੈ ਤੇ ਪੰ ਜਾਬ ਦੇ ਲੋ ਕਾਂ ਨਾਲ਼, ਭਵਿਿੱ ਖ ਦੀਆਂ ਪੀੜੀਆਂ ਨਾਲ਼

ਧਿੱ ਕਾ ਹੈ। ਭਾਿੇਂ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ ਦਾ ਉਲੰਘਣ ਕਰਨ ਿਾਲ਼ੇ ਸਕੂਲਾਂ ਲਈ 25,000 ਤੋਂ ਇਿੱ ਕ ਲਿੱਖ ਤਿੱ ਕ
ਜੁਰਮਾਨੇ ਦਾ ਇੰ ਤਜਾਮ ਹੈ ਤੇ ਇਿੱ ਥੋਂ ਤਿੱ ਕ ਵਕ ਸਕੂਲ ਦੀ ਮਾਨਤਾ ਰਿੱ ਦ ਕਰਨ ਦਾ ਿੀ ਇੰ ਤਜਾਮ

ਹੈ। ਪਰ ਿੇਲੇ ਦੇ ਹਾਕਮ ਤੇ ਪਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਨੇ ਇਸ ਮਸਲੇ ਿੰ ਨੀਂ ਅਿੱ ਖਾਂ ਮੀਚੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ। ਜਦੋਂ
ਆਸੇ-ਪਾਸੇ ਝਾਤ ਮਾਰਕੇ ਿੇਖੀਏ ਤਾਂ ਤੁਸੀਂ ਇਹ ਗਿੱ ਲ ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੀ ਹੋਣੀ, ਜਦੋਂ ਵਕਸੇ ਸਕੂਲ

ਨੂੰ ਉਲੰਘਣ ਕਰਨ ’ਤੇ ਜੁਰਮਾਨਾ ਲਾਇਆ ਜਾਂ ਮਾਨਤਾ ਰਿੱ ਦ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੋਿੇ।

ਹੋਣਾ ਤਾਂ ਇਹ ਚਾਹੀਦਾ ਸੀ ਵਕ 1967 ਦੇ ਐਕਟ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਲਗਾਤਾਰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਵਿਕਸਤ

ਕਰਨ ਦੇ ਉਪਰਾਲੇ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ। ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ ਦੀਆਂ ਧਾਰਾਿਾਂ ਨੂੰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਵਿਕਾਸ

ਲਈ ਹੋਰ ਵਿਕਸਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ। ਸਮੁਿੱ ਚੀ ਵਸਿੱ ਵਖਆ, ਪਾਠ ਪੁਸਤਕਾਂ ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਪੰ ਜਾਬੀ

ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਉਪਲਿੱਭਧ ਕਰਿਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ। ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਰੁਜਗਾਰ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਿਜੋਂ

ਵਿਕਸਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ। ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ ਐਲਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਵਕ ਅਦਾਲਤੀ, ਦਫ਼ਤਰੀ ਕੰ ਮਕਾਰ

ਪੰ ਜਾਬੀ ’ਚ ਹੋਣ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਕਨੂੰਨਾਂ ਦਾ ਪੰ ਜਾਬੀ ’ਚ ਤਰਜਮਾ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਪਾਠ
ਪੁਸਤਕਾਂ ਦਾ ਪੰ ਜਾਬੀ ਤਰਜਮਾ ਛਪਦਾ ਤਾਂ ਇਸ ਨਾਲ਼ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਅਨੁਿਾਦਕਾਂ, ਛਾਪਕਾਂ

ਤੇ ਹੋਰ ਕਈ ਤਰਾਂ ਦੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇ ਬੂਹੇ ਿੀ ਖੁਿੱ ਲਹਦੇ। ਪਰ ਹਾਕਮਾਂ ਨੇ ਅਵਜਹਾ ਕਰਨ ਦੀ ਬਜਾਏ
ਇਿੱ ਕ ਪਾਸੇ ਆਿਦੇ ਹੀ ਬਣਾਏ ਕਨੂੰਨਾਂ ਨੂੰ ਵਛਿੱ ਕੇ ਟੰ ਵਗਆ ਹੈ ਤਾਂ ਦੁਜੇ ਪਾਸੇ ਓਪਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ

ਸਾਡੇ ਵਸਰਾਂ ’ਤੇ ਥੋਪਕੇ ਸਾਡੀ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਪੰ ਜਾਬੀ ਨੂੰ ਘਿੱ ਟ ਸਮਰਿੱ ਥਾ ਿਾਲੀ ਬੋਲੀ ਸਾਬਤ ਕਰਨ

’ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਲਾਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ਤੇ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ-ਵਹੰ ਦੀ ਅਣਸਰਦੀ ਲੋ ੜ ਿਜੋਂ ਪੇਸ਼ ਕਰਕੇ ਪੰ ਜਾਬੀਆਂ

ਨਾਲ਼ ਧਰੋਹ ਕਮਾਇਆ ਹੈ।

ਇਸ ਕਰਕੇ ਪੰ ਜਾਬ ਰਾਜ ਭਾਸ਼ਾ ਐਕਟ 1967 ਤੇ ਇਸ ਸਬੰ ਧੀ ਹੋਰ ਐਕਟਾਂ ਦੀ ਅਮਲਦਾਰੀ ਦਾ

ਮਾਮਲਾ ਇਿੱ ਕ ਕਾਣੀ ਤੇ ਉੱਤੋਂ ਕਣ ਪੈ ਵਗਆ ਿਾਲ਼ਾ ਬਵਣਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਅਿੱ ਜ ਦੀ ਹਾਲਤ ਵਿਿੱ ਚ
ਸੂਬੇ ਅੰ ਦਰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਲਾਗੂ ਕਰਿਾਉਣ ਦਾ ਮਸਲਾ ਵਜਿੱ ਥੇ ਇਿੱ ਕ ਪਾਸੇ ਕਨੂੰਨੀ ਪੇਚਾਂ ਦਾ

ਮਸਲਾ ਬਣਦਾ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਨਾਲ਼-ਨਾਲ਼ ਇਸਦੀ ਸਖਤੀ ਨਾਲ਼ ਅਮਲਦਾਰੀ ਦਾ ਮਸਲਾ ਿੀ ਬਣਦਾ ਹੈ
ਅਤੇ ਵਪਛਲੇ ਲੰਮੇ ਿਕਫੇ ਨੇ ਇਹ ਵਿਖਾ ਵਦਿੱ ਤਾ ਹੈ ਵਕ ਇਸ ਲਈ ਰਾਜਗਿੱ ਦੀਆਂ ਭੋਗਣ ਿਾਲ਼ੇ

ਹਾਕਮਾਂ ਤੋਂ ਵਕਸੇ ਿੀ ਤਰਾਂ ਕੋਈ ਆਸ ਨਹੀਂ ਰਿੱ ਖੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਸਵਮਆਂ ਵਿਿੱ ਚ ਇਹ

ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਦੇ ਕਪੂਤ ਬਣਕੇ ਵਨਿੱਤਰੇ ਹਨ। ਵਕਉਂਵਕ ਇਹ ਲੋ ਕਾਂ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਤੋਂ ਡਰਦੇ ਹਨ, ਜੋ

ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਇਸਦੇ ਖਾੜਕੂ ਇਵਤਹਾਸ ਨਾਲ਼ ਜੋੜੇਗੀ। ਜੋ ਇਵਤਹਾਸ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਈ ਲਾਲੋ ਆਂ ਤੇ ਮਲਕ

ਭਾਗੋਆਂ ਦਾ ਫਰਕ ਦਿੱ ਸਦੀ ਹੈ। ਮਨੁਿੱਖੀ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ, ਅਜ਼ਾਦੀ ਤੇ ਹਿੱ ਕਾਂ ਲਈ ਜੂਝਣ ਿਾਲ਼ੇ

ਸੂਰਵਮਆਂ-ਘੁਲਾਟੀਆਂ ਗਦਰੀ ਬਾਵਬਆਂ, ਭਗਤ-ਸਰਾਵਭਆਂ ਨਾਲ਼ ਸਾਂਝ ਪਿਾਉਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਐਸੀ ਸਾਂਝ

ਤੋਂ ਹੀ ਇਹ ਡਰਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਭਾਸ਼ਾ ਪਰਤੀ ਹਾਕਮਾਂ ਦੀ ਬੇਰੁਖੀ ਕੋਈ ਅਚਨਚੇਤੀ ਗਿੱ ਲ਼
ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਸੋਚੀ ਸਮਝੀ ਸਾਵਜਸ਼ ਹੈ ਤੇ ਲੋ ਕਾਂ ਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨਾਲ਼ੋਂ ਤੋੜਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ
ਸਮੁਿੱ ਚੇ ਇਵਤਹਾਸ, ਿਰਤਮਾਨ ਤੇ ਭਵਿਿੱ ਖ ਦੇ ਸੁਨਵਹਰੀ ਸੁਪਵਨਆਂ ਨਾਲ਼ੋਂ ਤੋੜ ਦੇਣ ਦੀ ਕੋਝੀ ਚਾਲ

ਹੈ। ਇਸ ਮਾਮਲੇ ਵਿਿੱ ਚ ਪੰ ਜਾਬ ਅਤੇ ਵਹੰ ਦੀ-ਵਹੰ ਦੂ-ਵਹੰ ਦੁਸਤਾਨ ਦੇ ਏਜੰ ਡੇ ਤਵਹਤ ਇਿੱ ਕ ਰਾਸ਼ਟਰ
ਇਿੱ ਕ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਗਿੱ ਲ਼ ਕਰਨ ਿਾਲ਼ੇ ਕੇਂਦਰ ਦੇ ਹਾਕਮਾਂ ਦੀ ਸਾਂਝੀ ਜੋਟੀ ਹੈ, ਵਜਸ ਵਿਰੁਿੱ ਧ ਵਨਿੱਤਰਣਾ

ਸਮੇਂ ਦਾ ਕਾਜ ਬਣਦਾ ਹੈ।

ਬੰ ਿਲਾ ਭਾਸ਼ਾ ਪਰਮ


ੇ ੀਆਂ ਦਾ ਸੰ ਘਰਸ਼ ਤੇ ਕੌਮਾਂਤਰੀ

ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਵਦਹਾੜਾ •ਮਾਨਿ


ਲਲਕਾਰ ⚫ 16-31 ਅਕਤੂਬਰ 2019

ਸੰ ਸਾਰ ਭਰ ਵਿਿੱ ਚ 21 ਫ਼ਰਿਰੀ ਕੌ ਮਾਂਤਰੀ ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਵਦਹਾੜੇ ਿਜੋਂ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਵਦਨ
ਦਾ ਇਵਤਹਾਸ ਸਾਡੇ ਗੁਆਂਢੀ ਮੁਲਕ ਦੇ ਭਾਸ਼ਾ ਪਰੇਮੀਆਂ ਦੇ ਜੁਝਾਰੂ ਘੋਲਹ ਨਾਲ਼ ਜੁਵੜਆ ਹੋਇਆ

ਹੈ। 1952 ਵਿਿੱ ਚ 21 ਫ਼ਰਿਰੀ ਦੇ ਵਦਨ ਹੀ ਅਿੱ ਜ ਦੇ ਬੰ ਗਲਾਦੇਸ਼ (ਉਸ ਿੇਲੇ ਦੇ ਪੂਰਬੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ)
ਵਿਿੱ ਚ ਬੰ ਗਲਾ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰੀ ਦਰਜਾ ਦਿਾਉਣ ਖ਼ਾਤਰ ਚਿੱ ਲ ਰਹੇ ਸੰ ਘਰਸ਼ ਨੇ ਆਪਣੀ ਵਸਖ਼ਰ

ਛੂਹੀ ਸੀ। ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਦੀ ਪੁਲਸ ਿਿੱ ਲੋਂ ਇਸ ਸੰ ਘਰਸ਼ ਦੀ ਅਗਿਾਈ ਕਰਦੇ ਵਕੰ ਨੇ ਹੀ ਨੌਜਿਾਨਾਂ,
ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ, ਬੁਿੱ ਧੀਜੀਿੀਆਂ ਤੇ ਆਮ ਲੋ ਕਾਂ ਉੱਪਰ ਕਵਹਰ ਢਾਵਹਆ ਵਗਆ, ਅੰ ਨੇਹ ਤਸ਼ਿੱ ਦਦ ਕੀਤੇ

ਗਏ, ਜੇਲਹੀਂ ਡਿੱ ਵਕਆ ਵਗਆ ਤੇ ਵਨਿੱਤ-ਨਿੇਂ ਢੰ ਗ ਇਸ ਸੰ ਘਰਸ਼ ਨੂੰ ਦਬਾਉਣ ਦੇ ਿਰਤੇ ਗਏ ਪਰ
ਬੰ ਗਲਾ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਇਹ ਘੋਲਹ ਅਗਾਂਹ ਿਧਦਾ ਬੰ ਗਲਾਦੇਸ਼ ਦੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ

ਤੋਂ ਅਜ਼ਾਦੀ ਤਿੱ ਕ ਨੇਪਰੇ ਚਵੜਹਆ। ਫ਼ੇਰ 1999 ਵਿਿੱ ਚ ਬੰ ਗਲਾਦੇਸ਼ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਿਿੱ ਲੋਂ ਪਵਹਲਕਦਮੀ

ਕੀਤੇ ਜਾਣ ’ਤੇ 21 ਫ਼ਰਿਰੀ ਨੂੰ ਕੌ ਮਾਂਤਰੀ ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਵਦਹਾੜੇ ਿਜੋਂ ਮਾਨਤਾ ਵਦਿੱ ਤੀ ਗਈ।

1947 ਵਿਿੱ ਚ ਜਦ ਇਹ ਪੂਰਾ ਵਖਿੱ ਤਾ ਵਫਰਕੂ ਲੀਹਾਂ ’ਤੇ ਿੰ ਵਡਆ ਵਗਆ ਤਾਂ ਭਾਰਤ ਤੇ ਪਾਵਕਸਤਾਨ

ਦੋ ਮੁਲਕ ਬਣੇ। ਿੰ ਡ ਦਾ ਕਵਹਰ ਪੰ ਜਾਬ ਤੇ ਬੰ ਗਾਲ ਦੇ ਲੋ ਕਾਂ ’ਤੇ ਟੁਿੱ ਵਟਆ। ਧਾਰਵਮਕ ਲੀਹਾਂ

’ਤੇ ਬਣੇ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਨੇ ਲੋ ਕ ਭਾਿਨਾਿਾਂ ਨੂੰ ਵਛਿੱ ਕੇ ਟੰ ਗਵਦਆਂ ਉਰਦੂ ਨੂੰ ਓਥੋਂ ਦੀ ਕੌ ਮੀ ਬੋਲੀ
ਦਾ ਦਰਜਾ ਦੇ ਵਦਿੱ ਤਾ ਜਦਵਕ ਉਰਦੂ ਨੂੰ ਬੋਲਣ ਿਾਲ਼ੇ ਮੂਲ ਲੋ ਕ ਨਾ ਤਾਂ ਪਿੱ ਛਮੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਦੇ

ਸਥਾਨਕ ਿਸਨੀਕ ਸਨ ਤੇ ਨਾ ਪੂਰਬੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ (ਮਗਰੋਂ ਬੰ ਗਲਾਦੇਸ਼) ਦੇ ਿਾਸੀ ਸਨ। ਇਹ

ਮੁਿੱ ਖ ਤੌਰ ’ਤੇ ਯੂ.ਪੀ, ਵਬਹਾਰ ਤੋਂ ਵਹਜਰਤ ਕਰਕੇ ਪਿੱ ਛਮੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਗਏ ਘਿੱ ਟਵਗਣਤੀ ਲੋ ਕਾਂ

ਦੀ ਬੋਲੀ ਸੀ। ਵਜਹੜੇ ਵਖਿੱ ਤੇ ਵਿਿੱ ਚ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਬਣਾਇਆ ਵਗਆ ਓਥੋਂ ਦੇ ਲੋ ਕਾਂ ਦੀਆਂ ਆਪਦੀਆਂ

ਬੋਲੀਆਂ ਪੰ ਜਾਬੀ, ਪਸ਼ਤੋ, ਕਸ਼ਮੀਰੀ, ਵਸੰ ਧੀ, ਬਲੋ ਚੀ, ਬੰ ਗਲਾ, ਆਵਦ ਸਨ। ਪਰ ਧਿੱ ਕੇ ਨਾਲ਼ ਮੁਲਕ ਨੂੰ

ਇਕਿੱ ਠਾ ਕਰਨ ਲਈ ਇਿੱ ਕ ਓਪਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਲੋ ਕਾਂ ’ਤੇ ਥੋਪੀ ਗਈ।

ਉਸ ਿੇਲੇ ਨਿੇਂ ਬਣੇ ਮੁਲਕ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਦੀ ਕੁਿੱ ਲ ਿਸੋਂ 7 ਕਰੋੜ ਦੇ ਲਗਭਗ ਸੀ ਵਜਸ ਵਿਿੱ ਚੋਂ 4.5

ਕਰੋੜ ਤਾਂ ਅਜੋਕੇ ਬੰ ਗਲਾਦੇਸ਼ (ਪੂਰਬੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ) ਵਿਿੱ ਚ ਰਵਹੰ ਦੇ ਸਨ ਤੇ ਬੰ ਗਲਾ ਭਾਸ਼ਾ ਬੋਲਦੇ
ਸਨ ਜਦਵਕ ਛੋਟਾ ਵਹਿੱ ਸਾ ਢਾਈ ਕਰੋੜ, ਇਹ ਪਿੱ ਛਮੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਵਿਿੱ ਚ ਰਵਹੰ ਦਾ ਸੀ ਵਜਸ ਦੀਆਂ

ਆਪੋ-ਆਪਣੀਆਂ ਅਿੱ ਡ-ਅਿੱ ਡ ਬੋਲੀਆਂ ਸਨ। 1947 ਦੀ ਿੰ ਡ ਤੋਂ ਤੁਰੰਤ ਮਗਰੋਂ ਕਰਾਚੀ ਵਿਖੇ ਇਿੱ ਕ
ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਸੰ ਮੇਲਨ ਦੌਰਾਨ ਇਹ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਵਗਆ ਵਕ ਨਿੇਂ “ਅਜ਼ਾਦ” ਹੋਏ ਮੁਲਕ ਪਾਵਕਸਤਾਨ
ਦੀ ਬੋਲੀ ਅਿੱ ਗੇ ਤੋਂ ਉਰਦੂ ਹੋਿੇਗੀ ਤੇ ਸਮੁਿੱ ਚੇ ਕਾਰ-ਵਿਹਾਰ, ਮੀਡੀਆ ਤੇ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਇਸੇ ਨੂੰ

ਮਾਨਤਾ ਹੋਿੇਗੀ। ਬੰ ਗਾਲੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਸਰਕਾਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਿਜੋਂ ਦਰਜਾ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਵਦਿੱ ਤਾ ਵਗਆ ਤੇ

ਇਸ ਨੂੰ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਿੀ ਹਟਾ ਵਦਿੱ ਤਾ ਵਗਆ। ਇਸ ਤਾਨਾਸ਼ਾਹ ਫ਼ੈਸਲੇ ਦੇ ਵਸਿੱ ਟੇ ਿਜੋਂ ਬੰ ਗਲਾ

ਭਾਸ਼ੀ ਪੂਰਬੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਵਿਿੱ ਚ ਰੋਹ-ਮੁਜਹਾਰੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ। ਸੰ ਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਲੋ ਕਾਂ ’ਤੇ ਪਾਵਕਸਤਾਨ

ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਿਿੱ ਲੋਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਿੰ ਡਣ ਦੇ ਠਿੱਪੇ ਲਾਏ ਗਏ। ਪਿੱ ਛਮੀ ਤੇ ਪੂਰਬੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ

ਦੋਹਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਿੇਂ ਮੁਸਲਮਾਨ ਅਬਾਦੀ ਹੀ ਭਾਰੂ ਿਸਦੀ ਸੀ ਪਰ ਫ਼ੇਰ ਿੀ ਇਹ ਇਿੱ ਕ-ਦੂਜੇ ਤੋਂ

ਬੋਲੀ ਤੇ ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰ ਪਿੱ ਖੋਂ ਬਹੁਤ ਦੂਰ ਸੀ।

ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਿਿੱ ਲੋਂ ਉਰਦੂ ਥੋਪੇ ਜਾਣ ਨੂੰ ਪੂਰਬੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਦੇ ਸੰ ਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਲੋ ਕਾਂ
ਨੇ ਵਸਰਫ਼ ਭਾਸ਼ਾ ਨਾਲ਼ ਜੋੜਕੇ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਇਸ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਬੰ ਗਾਲੀ ਪਛਾਣ ਤੇ ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰ

ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਝੀ ਨੀਤੀ ਿਜੋਂ ਸਮਵਝਆ। ਇਸੇ ਲਈ ਬੰ ਗਲਾ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਸੰ ਘਰਸ਼ ਅਿੱ ਗੇ

ਚਿੱ ਲਕੇ ਬੰ ਗਲਾਦੇਸ਼ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਮੰ ਗ ਵਿਿੱ ਚ ਿੀ ਬਦਲ ਵਗਆ। ਬੰ ਗਲਾ ਭਾਸ਼ਾ ਲਾਗੂ ਕਰਾਉਣ
ਲਈ ਬਣੀ ਐਕਸ਼ਨ ਕਮੇਟੀ ਿਿੱ ਲੋਂ ਜਦ 21 ਫ਼ਰਿਰੀ 1952 ਨੂੰ ਸਮੁਿੱ ਚੇ ਪੂਰਬੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਵਿਿੱ ਚ
ਹੜਤਾਲਾਂ ਦਾ ਸਿੱ ਦਾ ਵਦਿੱ ਤਾ ਵਗਆ ਤਾਂ ਪੁਲਸ ਪਰਸ਼ਾਸਨ ਨੇ ਧਰਨੇ ਰੋਕਣ ਲਈ ਧਾਰਾ 144 ਢਾਕਾ

ਸ਼ਵਹਰ ਤੇ ਹੋਰਾਂ ਥਾਂਿਾਂ ’ਤੇ ਮੜਹ ਵਦਿੱ ਤੀ। 21 ਫ਼ਰਿਰੀ ਦੇ ਵਦਨ ਢਾਕਾ ਯੂਨੀਿਰਵਸਟੀ ਇਸ ਸਮੁਿੱ ਚੇ

ਸੰ ਘਰਸ਼ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਬਣੀ ਜਦ ਸਿੇਰ ਤੋਂ ਹੀ ਏਥੇ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਇਕਿੱ ਠੇ ਹੋਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ। ਪਰ
ਪੁਲਸ ਿਿੱ ਲੋਂ ਸ਼ਾਂਤਮਈ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾ ਕਰ ਰਹੇ ਕਈ ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਧਾਰਾ 144 ਤੋੜਨ ਦਾ ਹਿਾਲਾ
ਦੇ ਕੇ ਵਿ੍ਰਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਵਲਆ ਵਗਆ ਵਜਸ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਵਿਿੱ ਚ ਭੜਕੇ ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਵਿਧਾਨ
ਸਭਾ ਨੂੰ ਜਾਣ ਿਾਲ਼ਾ ਰਾਹ ਰੋਕਣ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਜੋ ਓਥੋਂ ਲੰਘਣ ਿਾਲ਼ੇ ਵਸਆਸਤਦਾਨਾਂ

ਨੂੰ ਇਸ ਮਸਲੇ ’ਤੇ ਫ਼ੌਰੀ ਫ਼ੈਸਲਾ ਲੈ ਣ ਲਈ ਆਵਖਆ ਜਾ ਸਕੇ। ਪਰ ਜਦ ਲੋ ਕਾਂ ਨੇ ਵਿਧਾਨ


ਸਭਾ ਿਿੱ ਲ ਿਧਣ ਦੀ ਕੋਵਸ਼ਸ਼ ਕੀਤੀ ਤਾਂ ਪੁਲਸ ਿਿੱ ਲੋਂ ਅੰ ਨੇਹ ਿਾਹ ਗੋਲੀ ਚਲਾਈ ਗਈ ਵਜਸ ਵਿਿੱ ਚ

ਚਾਰ ਵਿਵਦਆਰਥੀ – ਅਬਦੁਸ ਸਾਲਮ, ਰਫ਼ੀਕਉਦੀਨ ਅਵਹਮਦ, ਸੋਵਫਊਰ ਰਵਹਮਾਨ ਤੇ ਅਬਦੁਲ

ਜਿੱ ਬਾਰ – ਥਾਈ ਂ ਮਾਰੇ ਗਏ। ਇਹਨਾਂ ਮਾਰੇ ਵਗਆਂ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਿੱ ਚ ਸਮੁਿੱ ਚੇ ਪੂਰਬੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ
ਅੰ ਦਰ ਰੋਹ ਫ਼ੈਲ ਵਗਆ ਵਜਹੜਾ ਨੇੜ ਭਵਿਿੱ ਖ ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਪੂਰਬੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ

ਮੰ ਗ ਦਾ ਅਧਾਰ ਬਵਣਆ। ਚਾਰੇ ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਦਾ ਦਰਜ ਵਦਿੱ ਤਾ ਵਗਆ ਤੇ 21

ਫ਼ਰਿਰੀ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਦਹਾੜਾ ਮਨਾਉਣ ਦਾ ਲੋ ਕ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਵਗਆ। ਵਕਉਂਵਕ ਬੰ ਗਾਲੀ ਭਾਸ਼ਾ
ਦੀ ਇਸ ਲਵਹਰ ਦਾ ਮਕਸਦ ਸਾਰੀਆਂ ਅਣਗੌਲੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਿਿੱ ਲ ਵਧਆਨ ਦਿਾਉਣਾ

ਸੀ ਇਸ ਲਈ 21 ਫ਼ਰਿਰੀ ਦੇ ਵਦਹਾੜੇ ਨੂੰ ਕੌ ਮਾਂਤਰੀ ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਵਦਹਾੜਾ ਐਲਾਵਨਆ ਵਗਆ।

ਸਮੁਿੱ ਚੀ ਿੀਹਿੀਂ ਸਦੀ ਵਿਿੱ ਚ ਤੇ ਅਿੱ ਜ ਿੀ ਲੋ ਟੂ ਹਾਕਮਾਂ ਿਿੱ ਲੋਂ ਲੋ ਕ ਬੋਲੀਆਂ ਨੂੰ ਦਬਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ

ਅਪਣਾਈ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਵਜਿੱ ਥੇ-ਵਜਿੱ ਥੇ ਿੀ ਬਸਤੀਿਾਦੀ ਹਾਕਮ ਗਏ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਸਥਾਨਕ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ

ਨੂੰ ਦਬਾਇਆ। ਇਕਿੱ ਲੇ ਆਸਟਰੇਲੀਆ ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਯੂਰਪੀ ਲੋ ਕਾਂ ਦੇ ਆਉਣ ਮਗਰੋਂ ਸੌ ਤੋਂ ਿਿੱ ਧ

ਕਬਾਇਲੀ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਵਦਿੱ ਤਾ ਵਗਆ। ਇਹੀ ਨੀਤੀ ਸਾਡੇ ਏਥੇ ਿੀ ਅਪਣਾਈ ਗਈ।

ਅਿੱ ਜ ਦੀ ਕੇਂਦਰ ਦੀ ਮੋਦੀ ਸਰਕਾਰ ਿੀ ਜਦੋਂ ‘ਇਿੱ ਕ ਦੇਸ਼-ਇਿੱ ਕ ਭਾਸ਼ਾ’ ਦੀ ਗਿੱ ਲ ਕਰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ

ਉਸ ਦਾ ਮਕਸਦ ਸਾਰੀਆਂ ਮਾਂ-ਬੋਲੀਆਂ ਨੂੰ ਜਬਰੀ ਖ਼ਤਮ ਕਰਕੇ ਇਿੱ ਕੋ ਬੋਲੀ ਵਹੰ ਦੀ ਥੋਪਣਾ ਹੁੰ ਦਾ

ਹੈ। ਅਿੱ ਜ ਿੀ ਸੰ ਸਾਰ ਦੀ ਕੁਿੱ ਲ ਅਬਾਦੀ ਦਾ 40 ਫ਼ੀਸਦੀ ਲੋ ਕ ਅਵਜਹੇ ਹਨ ਵਜਹਨਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਭਾਸ਼ਾ

ਵਿਿੱ ਚ ਪੜਹਨ ਦਾ ਮੌਕਾ ਨਹੀਂ ਵਦਿੱ ਤਾ ਜਾਂਦਾ ਵਜਹੜੀ ਭਾਸ਼ਾ ਉਹ ਆਪਣੇ ਘਰ ਵਿਿੱ ਚ ਬੋਲਦੇ ਹਨ।

ਇਹ ਧਿੱ ਕਾ ਨਹੀਂ ਵਨਰੀ-ਪੂਰੀ ਸਰਕਾਰੀ ਨਸਲਕੁਸ਼ੀ ਹੈ। ਪੰ ਜਾਬ ਵਿਿੱ ਚ ਿੀ ਕੇਂਦਰੀ ਵਿਦਾਲਯਾ,

ਨਿੋਵਦਆ ਤੇ ਖੁੰ ਭਾਂ ਿਾਂਗੂੰ ਥਾਂ-ਥਾਂ ਖੁਿੱ ਲਹੇ ਕਾਨਿੈਂਟ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਪੰ ਜਾਬੀ ਪੜਹਨ ਤੇ ਬੋਲਣ ’ਤੇ ਰੋਕਾਂ

ਲਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਭਾਰੀ ਜੁਰਮਾਨੇ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਇਹ ਭਾਸ਼ਾਈ ਅਧਾਰ ’ਤੇ ਬਣੇ ਸੂਬੇ
ਦੇ ਲੋ ਕਾਂ ਨਾਲ਼ ਸਰਾਸਰ ਧਰੋਹ ਹੈ ਵਜਹੜਾ ਏਥੋਂ ਦੀਆਂ ਤੇ ਵਦਿੱ ਲੀ ਦੀਆਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਕਮਾ ਰਹੀਆਂ

ਹਨ। ਇਸ ਧਿੱ ਕੇ ਵਖ਼ਲਾਫ਼ ਅਿੱ ਜ ਸਾਨੂੰ ਿੀ ਬੰ ਗਲਾ ਭਾਸ਼ਾ ਪਰਮ


ੇ ੀਆਂ ਦੇ ਉਸ ਜੁਝਾਰੂ ਸੰ ਘਰਸ਼ ਤੋਂ
ਪਰੇਰਨਾ ਲੈ ਣੀ ਬਣਦੀ ਹੈ ਵਜਸ ਨੇ ਇਸ ਵਖਿੱ ਤੇ ਦਾ ਇਵਤਹਾਸ ਤੇ ਨਕਸ਼ਾ ਤਿੱ ਕ ਬਦਲਕੇ ਰਿੱ ਖ ਵਦਿੱ ਤਾ

ਸੀ।

ਵਿਵਿਆਨ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ ਪੜਹਾਉਣ ਲਈ ਮਾਤ-ਭਾਸ਼ਾ


ਦਾ ਮਹਿੱ ਤਿ •ਿਰੁਣ ਕੁਮਾਰ
ਲਲਕਾਰ ⚫ 16-31 ਅਕਤੂਬਰ 2019
ਵਿਵਗਆਨ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਦੀ ਪੜਹਾਈ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਆਮ ਲੋ ਕਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਇਹ ਧਾਰਨਾ ਹੈ ਵਕ ਵਿਵਗਆਨ ਦੀ
ਪੜਹਾਈ ਕਰਨ ਿਾਲ਼ੇ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਅਤੇ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਾਉਣ ਿਾਲ਼ੇ ਅਵਧਆਪਕ ਦੋਨਾਂ ਦਾ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ
ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਚੰ ਗਾ ਵਗਆਨ ਹੋਣਾ ਲਾਜ਼ਮੀ ਹੈ ਤੇ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਭਾਸ਼ਾ ਹੀ ਉਹ ਮਾਵਧਅਮ ਹੈ ਵਜਸ

ਦੁਆਰਾ ਕੋਈ ਵਿਵਗਆਨ ਵਸਿੱ ਖ ਜਾਂ ਵਸਖਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਮੈਂ ਇਿੱ ਕ ਵਿਵਗਆਨ ਦਾ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਿੀ
ਹਾਂ ਤੇ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਾਉਣ ਦਾ ਿੀ ਮੇਰਾ ਤਜ਼ਰਬਾ ਵਰਹਾ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਵਿਿੱ ਚ ਖਾਸ ਗਿੱ ਲ ਇਹ ਹੈ
ਵਕ ਮੈਂ ਆਪ ਇਿੱ ਕ ਪੰ ਜਾਬੀ ਮਾਵਧਅਮ ਦੇ ਸਕੂਲ ਵਿਿੱ ਚ ਦਸਿੀਂ ਤਿੱ ਕ ਦੀ ਪੜਹਾਈ ਕੀਤੀ ਹੈ ਤੇ

ੂ ਤੀ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਆਪਣੀ ਮਾਤ-ਭਾਸ਼ਾ ਪੰ ੇੰਜਾਬੀ ਵਿਿੱ ਚ ਹਾਸਲ ਕੀਤੀ ਹੈ।


ਵਿਵਗਆਨ ਦੀ ਸ਼ੁਰਆ

ਮੇਰੀ ਵਲਖਤ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਾਉਣ ਲਈ ਮਾਤ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਮਹਿੱ ਤਿ ਬਾਰੇ ਹੈ ਪਰ ਇਸਨੂੰ

ਵਸਰਫ਼ ਪੜਹਾਉਣ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਨ ਬਾਰੇ ਿੀ ਸਮਵਝਆ ਜਾਿੇ। ਵਿਵਗਆਨ ਦੀ
ਪੜਹਾਈ ਨਾਲ਼ ਮੇਰਾ 2002 ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 2018 ਦੇ ਸਾਲ ਤਿੱ ਕ ਜੋ ਤਜ਼ਰਬਾ ਵਰਹਾ ਹੈ ਉਸ ਵਿਿੱ ਚ ਮੇਰੇ ਦੋ

ਤਰਾਂ ਦੇ ਤਜ਼ਰਬੇ ਹਨ। ਪਵਹਲਾ ਤਾਂ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਦੇ ਤੌਰ ’ਤੇ ਅਤੇ ਦੂਜਾ ਅਵਧਆਪਕ ਦੇ ਤੌਰ

’ਤੇ ਕੰ ਮ ਕਰਦੇ ਹੋਏ। ਮੈਂ ਆਪ ਇਿੱ ਕ ਪੰ ਜਾਬੀ ਮਾਵਧਅਮ ਦੇ ਸਕੂਲ ’ਚ ਦਸਿੀਂ ਪਾਸ ਕੀਤੀ ਅਤੇ
ਜਦੋਂ ਵਿਵਗਆਨ ਨੂੰ ਮੁਿੱ ਖ ਵਿਸ਼ੇ ਿਜੋਂ ਚੁਵਣਆ ਤਾਂ ਮੈਨੰ ੂ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਨਾ

ਵਪਆ। ਉਦੋਂ ਮੈਨੰ ੂ ਫ਼ੀਵਜ਼ਕਸ (ਭੌਵਤਕ ਵਿਵਗਆਨ), ਕੈਵਮਸਟਰੀ (ਰਸਾਇਣਕ ਵਿਵਗਆਨ) ਅਤੇ

ਬਾਇਓਲੋ ਜੀ (ਜੀਿ ਵਿਵਗਆਨ) ਦਾ ਿੀ ਫਰਕ ਨਹੀਂ ਸੀ ਪਤਾ। ਸ਼ੁਰੂ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਿੱ ਚ ਬਹੁਤ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ
ਆਈਆਂ ਵਕਉਂਵਕ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦਾ ਏਨਾ ਪਰਭਾਿ ਵਰਹਾ ਵਕ ਅਵਧਆਪਕ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਪੜਹਾਉਂਦੇ
ਸੀ ਤੇ ਇਿੱ ਕ ਅਣਐਲਾਵਨਆ ਵਜਹਾ ਅਸਰ ਰਵਹੰ ਦਾ ਸੀ ਵਕ ਜੇ ਕੋਈ ਸਿਾਲ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਨੇ

ਪੁਿੱ ਛਣਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਸਿਾਲ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ’ਚ ਪੁਿੱ ਵਛਆ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਮਹੌਲ ਹੀ ਇਿੱ ਦਾਂ ਦਾ ਸੀ

ਵਕ ਪੰ ਜਾਬੀ ਬੋਲਣ ’ਤੇ ਹੀ ਇਹ ਸਮਝ ਵਲਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਵਕ ਇਹ ਸਿਾਲ ਕੋਈ ਬਹੁਤ

ਮਹਿੱ ਤਿਪੂਰਣ ਨਹੀਂ।

ਸਾਰੇ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਐਨੇ ਖ਼ੁਸ਼ਵਕਸਮਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰ ਦੇ ਪਰ ਮੈਨੰ ੂ ਕੁਿੱ ਝ ਿਧੀਆ ਅਵਧਆਪਕ ਵਮਲ਼ੇ

ਵਜਨਹਾਂ ਨੇ ਮੇਰਾ ਹੌਸਲਾ ਿਧਾਇਆ ਤੇ ਮੈਂ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ-ਪੰ ਜਾਬੀ ਦੇ ਸ਼ਬਦ-ਕੋਸ਼ਾਂ ਸਹਾਰੇ ਵਕਤਾਬਾਂ

ਪੜਹਦਾ-ਪੜਹਦਾ ਵਿਵਗਆਨ ਵਿਿੱ ਚ ਆਪਣੀ ਵਦਲਚਸਪੀ ਨੂੰ ਵਜਉਂਦਾ ਰਿੱ ਖ ਸਵਕਆ ਤੇ ਆਪਣੀ

ਪੜਹਾਈ ਜਾਰੀ ਰਿੱ ਖ ਸਵਕਆ। ਬਹੁਤ ਸਾਰੀ ਬੇਲੋੜੀ ਵਮਹਨਤ ਵਸਰਫ਼ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਇਸ ਮਸਲੇ ਨੂੰ

ਹਿੱ ਲ ਕਰਨ ’ਤੇ ਲਾਉਣੀ ਪਈ। ਇਸੇ ਲਈ ਇਿੱ ਕ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਹੁੰ ਦੇ ਹੋਏ ਹੀ ਇਿੱ ਕ ਪੰ ਜਾਬੀ
ਮਾਵਧਅਮ ’ਤੇ ਆਏ ਬਿੱ ਚੇ ਲਈ ਵਿਵਗਆਨ ਦੀ ਪੜਹਾਈ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਜੋ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ

ਉਨਹਾਂ ਨਾਲ਼ ਮੇਰਾ ਿਾਹ ਪੈ ਚੁਵਕਆ ਸੀ।

ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਇਹ ਮਸਲਾ ਉਦੋਂ ਿੀ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਜਦੋਂ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ। ਹੁਣ
ਮੈਂ ਇਿੱ ਕ ਅਵਧਆਪਕ ਸੀ ਸੋ ਵਿਵਗਆਨ ਬਾਰੇ ਗਿੱ ਲ ਬਾਤ ਕਰਵਦਆਂ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਚੋਣ ਦਾ ਹਿੱ ਕ
ਮੈਨੰ ੂ ਪਰਾਪਤ ਸੀ ਤੇ ਮੈਂ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਾਉਣ ਲਈ ਉਸੇ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਿਰਵਤਆ ਵਜਸ ਵਿਿੱ ਚ ਮੈਂ ਆਪਣੇ

ਘਰ ਤੇ ਆਪਣੇ ਦੋਸਤਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਗਿੱ ਲਬਾਤ ਕਰਦਾ ਸੀ। ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਵਗਆਨ ਬਾਰੇ ਅਤੇ ਵਿਵਗਆਨ ਦੀ
ਪੜਹਾਈ ਕਰਾਉਣ ਲਈ ਵਕਸੇ ਖਾਸ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਚੋਣ ਨਾਲ਼ ਪੈਂਦੇ ਪਰਭਾਿ ਬਾਰੇ ਮੈਨੰ ੂ ਕੋਈ ਿੀ ਰਸਮੀ

ਵਗਆਨ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਮੈਂ ਵਸਰਫ਼ ਸਵਹਜ ਸੁਭਾਅ ਹੀ ਆਪਣੀ ਸਹੂਲਤ ਦੇ ਵਹਸਾਬ ਨਾਲ਼ ਬਿੱ ਵਚਆਂ
ਵਿਿੱ ਚ ਪੰ ਜਾਬੀ ਹੀ ਬੋਲਦਾ ਸੀ ਤੇ ਵਿਵਗਆਨ ਦੇ ਵਿਵਸ਼ਆਂ ਬਾਰੇ ਿੀ ਪੰ ਜਾਬੀ ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਖੁਿੱ ਲਹੀ ਗਿੱ ਲ

ਬਾਤ ਹੁੰ ਦੀ ਸੀ।

2012 ਵਿਿੱ ਚ ਨੌਜਿਾਨ ਭਾਰਤ ਸਭਾ ਿਿੱ ਲੋਂ ਆਯੋਵਜਤ ਇਿੱ ਕ ਵਿਚਾਰ ਗੋਸ਼ਟੀ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਵਗਆਨੀ

ਡਾ. ਜੋਗਾ ਵਸੰ ਘ ਨੂੰ ਸੁਣਨ ਤੇ ਪੜਹਨ ਦਾ ਮੌਕਾ ਵਮਵਲ਼ਆ, ਗੋਸ਼ਠੀ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ ਸੀ “ਮਾਤ-ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ

ਮਹਿੱ ਤਿ”। ਉਦੋਂ ਇਹ ਗਿੱ ਲ ਸਮਝ ਆਈ ਵਕ ਇਹ ਮਸਲਾ ਮੇਰਾ ਵਨਿੱਜੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਇਿੱ ਕ ਸਮਾਜਕ
ਮਸਲਾ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਮਸਲੇ ਤੇ ਸਿੱ ਚਾਈ ਨੂੰ ਜਾਨਣਾ ਤੇ ਆਮ ਲੋ ਕਾਂ ਨੂੰ ਜਾਗਰੁਕ ਕਰਨਾ ਬਹੁਤ

ਜਰੂਰੀ ਹੈ। ਇਿੱ ਕ ਅਰਧ-ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲ ਵਿਿੱ ਚ ਮੈਂ ਭੌਵਤਕ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਾਉਣ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਵਜਿੱ ਥੇ

ਪੰ ਜਾਬ ਦੇ ਿਿੱ ਖ-ਿਿੱ ਖ ਵਜ਼ਵਿ੍ਹਆਂ ਤੋਂ ਬਿੱ ਚੇ ਆ ਕੇ ਹੋਸਟਲ ’ਚ ਰਵਹੰ ਦੇ ਸੀ ਤੇ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਭੌਵਤਕ

ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਦੇ ਸੀ। 90 ਫੀਸਦੀ ਤੋਂ ਵਜ਼ਆਦਾ ਬਿੱ ਚੇ ਉੱਥੇ ਵਪੰ ਡਾਂ ਦੇ ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲਾਂ ਤੋਂ ਆਉਂਦੇ

ਹਨ। ਮੈਨੰ ੂ ਹਰ ਸਾਲ ਇਨਹ ਾਂ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਨੂੰ ਪੜਹਾਉਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਵਮਲ਼ਦਾ ਹੀ ਸੀ ਤੇ ਮੈਂ ਸਚੇਤਨ

ਤੌਰ ’ਤੇ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਮਸਲੇ ’ਤੇ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਵਿਿੱ ਚ ਖੁਿੱ ਲਹੀ ਗਿੱ ਲਬਾਤ ਜਾਰੀ ਰਿੱ ਖੀ। ਹਰ ਤਰਾਂ ਦੇ ਵਪਛੋਕੜ
ਤੋਂ ਆਏ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਨਾਲ਼ ਕੰ ਮ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਮਸਲੇ ਤੇ ਇਿੱ ਕ ਆਮ ਰਾਇ ਬਣਾਉਣ ਲਈ

ਮੈਨੰ ੂ ਿਧੀਆ ਮੌਕਾ ਤੇ ਮਾਹੌਲ ਵਮਵਲ਼ਆ। ਮੈਂ ਅਕਸਰ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਤੋਂ ਵਚਿੱ ਠੀਆਂ ਵਲਖਿਾਂਦਾ ਵਰਹਾ ਵਕ

ਉਹ ਜੋ ਿੀ ਮਵਹਸੂਸ ਕਰਨ ਪੜਹਾਈ ਬਾਰੇ ਮੈਨੰ ੂ ਵਚਿੱ ਠੀ ਵਿਿੱ ਚ ਵਲਖ ਕੇ ਦੇ ਸਕਦੇ ਹਨ। ਕੁਿੱ ਝ
ਵਚਿੱ ਠੀਆਂ ਮੈਂ ਹਜੇ ਿੀ ਸੰ ਭਾਲ਼ ਕੇ ਰਿੱ ਖੀਆਂ ਹਨ ਵਜਨਹਾਂ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਕੁਿੱ ਝ ਸਤਰਾਂ ਇਿੱ ਥੇ ਉਸੇ ਤਰਾਂ ਪੇਸ਼

ਕਰ ਵਰਹਾ ਹਾਂ :

ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਦੀ ਵਚਿੱ ਠੀ 1:
“ਸਰ ਜੀ, ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਸਾਇੰ ਸ ਪੰ ਜਾਬੀ ਮਾਵਧਅਮ ’ਚੋਂ ਛਿੱ ਡ ਕੇ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਪੜਹੀ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ
ਕਾਪੀ ਦੇਖ ਕੇ ਇਹ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਪਤਾ ਲਿੱਗਦਾ ਵਕ ਵਫਵਜ਼ਕਸ ਦੀ ਕਾਪੀ ਵਕਹੜੀ ਆ ਤੇ

ਕੈਵਮਸਟਰੀ ਦੀ ਵਕਹੜੀ ਆ। ਸਾਨੂੰ ਇਿੱ ਕ ਪੇਜ ਪੜਹਨ ਨੂੰ ਡੇਢ ਘੰ ਟਾ ਲਿੱਗ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਪਰ ਸਾਨੂੰ

ਵਫਰ ਿੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਪਤਾ ਲਿੱਗਦਾ ਵਕ ਅਸੀਂ ਕੀ ਪੜਹ ਰਹੇ ਹਾਂ। ਸਾਰੇ ਕਵਹੰ ਦੇ ਹਨ ਵਕ ਵਕਸੇ ਦਾ
ਵਦਮਾਗ ਘਿੱ ਟ ਿਿੱ ਧ ਨਹੀਂ ਹੁੰ ਦਾ ਪਰ ਡੇਢ ਘੰ ਟਾ ਇਿੱ ਕ ਪੇਜ ਪੜਹਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਾਨੂੰ ਮਵਹਸੂਸ ਹੁੰ ਦਾ

ਸੀ ਵਕ ਸਾਡਾ ਵਦਮਾਗ ਘਿੱ ਟ ਹੈ। ”

ਇਸ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਦੀ ਵਚਿੱ ਠੀ ਦਿੱ ਸ ਰਹੀ ਹੈ ਵਕ ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲਾਂ ਦੇ ਬਹੁਵਗਣਤੀ ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ

ਦੇ ਆਤਮ ਵਿਸ਼ਿਾਸ ਦਾ ਕੀ ਹਾਲ ਹੁੰ ਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਉਹ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਦੇ ਹਨ।

ਇਸ ਸਕੂਲ ਵਿਿੱ ਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਵਫਵਜ਼ਕਸ/ਕੈਵਮਸਟਰੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵਿਵਗਆਨ

ਦੇ ਵਿਵਸ਼ਆਂ ਵਿਿੱ ਚ ਰੀ-ਅਪੀਅਰ ਆਉਂਦੀ ਰਹੀ ਸੀ ਪਰ 2012 ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਪੰ ਜਾਬੀ ਵਿਿੱ ਚ
ਹੀ ਪੜਹਾਉਂਦਾ ਵਰਹਾ ਤਾਂ ਅਿੱ ਜ ਤਿੱ ਕ ਵਕਸੇ ਿੀ ਸਾਲ ਇਿੱ ਕ ਿੀ ਬਿੱ ਚਾ ਭੌਵਤਕ ਵਿਵਗਆਨ ਵਿਿੱ ਚ ਫੇਲਹ
ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਵਕਉਂਵਕ ਵਿਵਗਆਨ ਵਿਿੱ ਚ ਵਦਲਚਸਪੀ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਵਕਸੇ

ਤਰਾਂ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਭਾਸ਼ਾ ’ਚ ਿੀ ਵਿਵਗਆਨ ਦਾ ਪੇਪਰ ਦੇ ਕੇ ਸੌਖ ਨਾਲ਼ ਿਧੀਆ ਨੰਬਰ ਲੈ ਕੇ

ਪਾਸ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਸੀ।

ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਾਉਣ ਨਾਲ਼ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਦੇ ਵਸਰਫ ਆਤਮ ਵਿਸ਼ਿਾਸ ਦਾ ਹੀ
ਹਰਜਾ ਨਹੀਂ ਹੋ ਵਰਹਾ ਸਗੋਂ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਦਾ ਵਿਵਗਆਨ ਤੇ ਵਿਵਗਆਨਕ ਤਿੱ ਥਾਂ ਤੋਂ ਵਿਸ਼ਿਾਸ ਿੀ
ਉੱਠਦਾ ਜਾ ਵਰਹਾ ਹੈ ਜੋ ਵਕ ਭਾਰਤ ਿਰਗੇ ਪਿੱ ਛੜੇ ਦੇਸ਼ਾਂ, ਵਜਿੱ ਥੇ ਜਾਦੂ ਟੂਣਾ, ਿਵਹਮ ਭਰਮ ਦੀ

ਗੁੜਹਤੀ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਨੂੰ ਵਮਲ਼ੀ ਹੋਈ ਹੁੰ ਦੀ ਹੈ, ਲਈ ਬਹੁਤ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਵਸਿੱ ਟੇ ਕਿੱ ਢੇਗਾ।

ਇਿੱ ਕ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਦੀ ਵਚਿੱ ਠੀ ਦੀਆਂ ਕੁਿੱ ਝ ਸਿੱ ਤਰਾਂ ਇਸ ਸੰ ਦਰਭ ’ਚ ਪੜਹਨਯੋਗ ਹਨ।

ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਦੀ ਵਚਿੱ ਠੀ 2:

“ਸਰ, ਸਾਨੂੰ ਅਿੱ ਜ ਤਿੱ ਕ ਕੈਵਮਸਟਰੀ ’ਤੇ ਯਕੀਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰ ਦਾ ਵਕ ਇਹ ਸਭ ਕੁਝ ਅਸਲ ’ਚ ਹੁੰ ਦਾ

ਿੀ ਹੈ ਵਕ ਗਿੱ ਪਾਂ ਹੀ ਰੋੜ੍ਰਦੇ ਨੇ। ਸਾਇੰ ਵਟਸਟ ਦੀਆਂ ਫੋਟਆ


ੋ ਂ ਦੇਖ ਕੇ ਗੁਿੱ ਸਾ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਵਕ

ਆਪ ਤਾਂ ਮਰ ਵਗਆ ਸਾਨੂੰ ਫਸਾ ਵਗਆ। ਜਦੋਂ ਕੁਿੱ ਝ ਸਮਝ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ ਤਾਂ ਟੀਚਰ ਤੋਂ ਪੁਿੱ ਛਣ

ਤੋਂ ਸ਼ਰਮ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਮਨ ਕਰਦਾ ਵਕ ਵਕਤਾਬਾਂ ਨੂੰ ਅਿੱ ਗ ਲਾ ਦਈਏ।”


ਇਹ ਵਚਿੱ ਠੀਆਂ ਸਾਨੂੰ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਦੇ ਕਾਫੀ ਨੇੜੇ ਲੈ ਆਈਆਂ ਤੇ ਖੁਿੱ ਲਹ ਕੇ ਗਿੱ ਲਬਾਤ ਕਰਵਦਆਂ ਸਮਝ
ਆਇਆ ਵਕ ਬਿੱ ਚੇ ਬਹੁਤ ਵਸਆਣੇ ਨੇ ਤੇ ਉਹ ਇਸ ਸਮਿੱ ਵਸਆ ਨੂੰ ਅਵਧਆਪਕਾਂ ਨਾਲ਼ੋਂ ਵਕਤੇ

ਵਜ਼ਆਦਾ ਗੰ ਭੀਰਤਾ ਨਾਲ਼ ਲੈਂ ਦੇ ਨੇ। ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਰਿੱ ਟਾ ਲਿਾ ਲਿਾ ਕੇ ਅਸੀਂ ਵਿਵਗਆਨ ਦਾ

ਭਲਾ ਨਹੀਂ ਕਰ ਰਹੇ ਸਗੋਂ ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਦੇ ਵਦਲਾਂ ’ਚ ਇਸ ਵਿਸ਼ੇ ਲਈ ਡਰ ਅਤੇ ਨਫ਼ਰਤ

ਪੈਦਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹਾਂ। ਜਦੋਂ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਆਪਣੇ ਵਸਲੇ ਬਸ ਦੀਆਂ ਵਕਤਾਬਾਂ ਪੜਹਨ ਲਈ ਹੀ
ਸੰ ਘਰਸ਼ ਕਰਦੇ ਰਵਹ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਉਹ ਵਿਵਗਆਨ ਬਾਰੇ ਤੇ ਵਿਵਗਆਨ ਦੇ ਇਵਤਹਾਸ ਬਾਰੇ

ਕੀ ਪੜਹ ਸਕਣਗੇ ਤੇ ਅਸੀਂ ਉਨਹਾਂ ਤੋਂ ਵਿਵਗਆਨੀ ਬਣ ਜਾਣ ਦੀ ਉਮੀਦ ਵਕਿੇਂ ਰਿੱ ਖ ਸਕਾਂਗੇ। ਬਿੱ ਚੇ
ਜਦੋਂ ਵਿਵਗਆਨ ਦੀ ਹਰ ਵਕਤਾਬ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਪੜਹਦੇ ਨੇ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਇਹ ਯਕੀਨ ਹੁੰ ਦਾ

ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਵਕ ਸਾਰੀਆਂ ਖੋਜਾਂ ਅੰ ਗਰੇਜਾਂ ਨੇ ਹੀ ਕੀਤੀਆਂ ਹਨ। ਅੰ ਗਰੇਜ਼ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਹੀ ਖੋਜਾਂ

ਕਰਕੇ ਚਲੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਅਸੀਂ ਪੰ ਜਾਬੀ ਲੋ ਕ ਉਨਹਾਂ ਦੀਆਂ ਖੋਜਾਂ ਦਾ ਰਿੱ ਟਾ ਲਾਉਂਦੇ ਹਾਂ। ਬਿੱ ਚੇ

ਵਿਵਗਆਨ ਨੂੰ ਵਿਵਗਆਨ ਹੀ ਨਹੀਂ ਮੰ ਨ ਪਾਉਂਦੇ। ਉਹ ਵਿਵਗਆਨ ਨੂੰ ਭਾਸ਼ਾ ਤੋਂ ਿਿੱ ਖਰਾ ਨਹੀਂ

ਸਮਝ ਪਾਉਂਦੇ। ਵਕਉਂਵਕ ਮਾਤ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਵਿਵਗਆਨ ਦੀ ਉੱਚ-ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਦਾ ਉਨਹਾਂ ਨੂੰ ਕੋਈ

ਭਵਿਿੱ ਖ ਿੀ ਨਜ਼ਰ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ।

ਇਹ ਬਹੁਤ ਵਭਆਨਕ ਹਾਲਤ ਹੈ ਤੇ ਤਰਾਸਦੀ ਉਦੋਂ ਹੁੰ ਦੀ ਹੈ ਜਦੋਂ ਮਾਤ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਵਿਵਗਆਨ
ਪੜਹਾਉਣ ਦੀ ਿਕਾਲਤ ਕਰਨ ਿਾਲ਼ੇ ਅਵਧਆਪਕਾਂ ਨੂੰ ਪਿੱ ਛਵੜਆ ਹੋਇਆ ਜਾਂ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ

ਵਿਰੋਧੀ ਸਮਝ ਵਲਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਲੋ ਕਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਇਸ ਸਿੱ ਚ ਨੂੰ ਸਹੀ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ਼ ਲੈ ਕੇ

ਜਾਣਾ ਹੋਿੇਗਾ।

ਕੁਿੱ ਝ ਲੋ ਕਾਂ ਦਾ ਇਹ ਿੀ ਮੰ ਨਣਾ ਹੈ ਵਕ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਵਿਵਗਆਨ ਦੀ ਪੜਹਾਈ ਕਰਦੇ ਹੋਏ
ਸਮਿੱ ਵਸਆ ਵਸਰਫ਼ ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲਾਂ ਤੇ ਪੰ ਜਾਬੀ ਮਾਵਧਅਮ ਤੋਂ ਆਏ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਆਉਂਦੀ ਹੈ
ਤੇ ਇਸ ਗਿੱ ਲ ਵਿਿੱ ਚ ਯਕੀਨ ਰਿੱ ਖਣ ਿਾਲ਼ੇ ਲੋ ਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਵਭਆਨਕ ਗਲਤ ਫਵਹਮੀ ਦਾ ਵਸ਼ਕਾਰ

ਹਨ। ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਸਕੂਲਾਂ ਦੇ ਬਿੱ ਚੇ ਿੀ ਭੌਵਤਕ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਨ ਲਈ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਤੇ

ਉਨਹਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਉਹ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਿੀ ਸ਼ਾਵਮਲ ਹਨ ਵਜਨਹਾਂ ਨੂੰ ਸੀ.ਬੀ.ਐਿੱਸ.ਸੀ. ਬੋਰਡ ਦੀ ਦਸਿੀਂ

ਪਰੀਵਖਆ ’ਚ ਸੀ.ਜੀ.ਪੀ. 10 ਅੰ ਕ ਪਰਾਪਤ ਹੋਈ ਸੀ ਤੇ ਮੈਂ ਦੇਵਖਆ ਵਕ ਨਾ ਤਾਂ ਬਹੁਵਗਣਤੀ


ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਸਕੂਲਾਂ ਦੇ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਨੂੰ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਉਹ ਵਿਵਗਆਨ ਨੂੰ ਵਿਵਗਆਨ

ਦੀ ਤਰਾਂ ਲੈਂ ਦੇ ਹਨ। ਬਿੱ ਸ ਇਹ ਹੈ ਵਕ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਮਾਵਧਅਮ ਤੋਂ ਆਏ ਬਿੱ ਚੇ ਰਿੱ ਟਾ ਲਾਉਣ ਦੇ

ਪਵਹਲਾਂ ਤੋਂ ਹੀ ਆਦੀ ਹੁੰ ਦੇ ਹਨ। ਪਰ ਮੂਲ ਰੂਪ ਵਿਿੱ ਚ ਵਕਸੇ ਿੀ ਵਪਛੋਕੜ ਤੋਂ ਆਏ ਬਿੱ ਚੇ ਲਈ
ਵਿਵਗਆਨ ਦਾ ਮਤਲਬ ਵਸਰਫ ਇਮਵਤਹਾਨ ਪਾਸ ਕਰਨ ਤਿੱ ਕ ਹੋ ਵਨਿੱਬੜਦਾ ਹੈ। ਅਸੀਂ ਰਿੱ ਟੇਬਾਜ਼
ਅਵਧਆਪਕਾਂ ਦੀ ਿੀ ਇਿੱ ਕ ਪੀੜਹੀ ਵਤਆਰ ਕਰ ਚੁਿੱ ਕੇ ਹਾਂ ਵਜਨਹਾਂ ਕੋਲ ਵਡਗਰੀਆਂ ਿੀ ਨੇ, ਅਵਧਆਪਕ
ਹੋਣ ਲਈ ਲੋ ੜੀਂਦੇ ਸਾਰੇ ਸਰਟੀਵਫਕੇਟ ਿੀ ਨੇ ਪਰ ਉਹ ਵਿਵਗਆਨ ਦੇ ਵਕਤੇ ਨੇੜੇ ਿੀ ਨਹੀਂ

ਲਿੱਗਦੇ।

ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਮਾਵਧਅਮ ’ਚ ਵਿਵਗਆਨ ਦਾ ਰਿੱ ਟਾ ਲਾ ਕੇ ਪੈਦਾ ਹੋਈ ਅਵਧਆਪਕਾਂ ਦੀ ਇਹ ਪੀੜਹੀ

ਵਿਵਗਆਨਕ ਨਜ਼ਰੀਏ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਦੂਰ ਹੈ ਤੇ ਅੰ ਧਵਿਸ਼ਿਾਸ, ਜੋਵਤਸ਼, ਿਾਸਤੂ, ਭੂਤਾਂ-ਪਰਤ


ੇ ਾਂ ਦੀਆਂ

ਕਹਾਣੀਆਂ ’ਚ ਯਕੀਨ ਰਿੱ ਖਦੀ ਹੈ। ਮੈਂ ਇਸਦਾ ਇਿੱ ਕ ਬਹੁਤ ਿਿੱ ਡਾ ਕਾਰਨ ਵਿਵਗਆਨ ਦੀ ਪੜਹਾਈ

ਦੇ ਢੰ ਗ ਤਰੀਵਕਆਂ ਤੋਂ ਇਲਾਿਾ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਿੀ ਮੰ ਨਦਾ ਹਾਂ। ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਹੀ
ਸੁਆਲ ਹੁੰ ਦੇ ਹਨ ਜੋ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਅਵਧਆਪਕ ਨੂੰ ਉਹ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ਤੇ ਖੁਿੱ ਲਹੀ ਗਿੱ ਲਬਾਤ ਨਾਲ਼

ਅਵਧਆਪਕ ਉਨਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱ ਚ ਦਾ ਘੇਰਾ ਿਿੱ ਡਾ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ।

ਪਰ ਹੁੰ ਦਾ ਇੰ ਝ ਹੈ ਵਕ ਪੰ ਜਾਬੀ ਬੋਲਣ ਦੀ ਜੋ ਸ਼ਰਮ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ’ਤੇ ਥੋਪੀ ਗਈ ਹੈ ਉਸ ਕਰਕੇ


ਵਿਵਗਆਨ ਿੀ ਬਿੱ ਵਚਆਂ ਲਈ ਬਸ ਇਿੱ ਕ ਜਮਾਤ ਪਾਸ ਕਰਕੇ ਅਗਲੀ ਜਮਾਤ ਵਿਿੱ ਚ ਬੈਠਣ ਲਈ

ਇਿੱ ਕ ਲਾਜ਼ਮੀ ਵਿਸ਼ੇ ਤੋਂ ਇਲਾਿਾ ਕੁਿੱ ਝ ਨਹੀਂ ਰਵਹ ਵਗਆ ਹੈ। ਵਿਵਗਆਨ ਨੂੰ ਚੋਣਿੇਂ ਵਿਸ਼ੇ ਿਜੋਂ
ਪੜਹਨ ਿਾਲ਼ੇ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਅਤੇ ਵਿਵਗਆਨ ਤੋਂ ਵਬਨਹਾਂ ਆਰਟਸ ਅਤੇ ਕਾਮਰਸ ਪੜਹਨ ਿਾਲ਼ੇ

ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਦੇ ਵਿਵਗਆਨਕ ਨਜ਼ਰੀਏ ਦਾ ਵਮਆਰ ਬਰਾਬਰ ਹੀ ਹੈ।

ਬਿੱ ਚੇ ਪੰ ਜਾਬੀ ਵਿਿੱ ਚ ਸਾਰੀ ਗਿੱ ਲ ਸਮਝ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਪਰ ਜਦੋਂ ਵਿਵਗਆਨ ਦੇ ਵਨਯਮ ਤੇ ਅਰਥ

ਪੇਪਰ ਵਿਿੱ ਚ ਵਲਖਣੇ ਹੁੰ ਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਗਲਤੀਆਂ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਿੱ ਚ ਵਲਖਣ ਲਈ
ਇਿੱ ਕ ਿਿੱ ਖਰੀ ਤੇ ਬੇਲੋੜੀ ਵਮਹਨਤ ਉਨਹਾਂ ਤੇ ਥੋਪਣੀ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਬਿੱ ਚੇ ਵਿਵਗਆਨ ਦੀਆਂ ਧਾਰਨਾਿਾਂ

ਨੂੰ ਆਤਮਸਾਤ ਕਰਨ ਦੀ ਬਜਾਏ ਪੇਪਰ ਪਾਸ ਕਰਨ ਤੇ ਸਾਰੀ ਊਰਜਾ ਲਾ ਵਦੰ ਦੇ ਹਨ। ਮੈਂ
ਆਪਣਾ ਿੀ ਵਜਕਰ ਕਰ ਲੈਂ ਦਾ ਹਾਂ ਵਕ ਮੈਨੰ ੂ ਭਾਿੇਂ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਪਰ ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਆਪ ਵਕਸੇ

ਵਿਸ਼ੇ ਤੇ ਯੂ-ਵਟਊਬ ਤੋਂ ਵਕਸੇ ਵਿਸ਼ੇ ’ਤੇ ਿੀਡੀਓ ਲੈ ਕਚਰ ਸੁਣਦਾ ਹਾਂ ਤਾਂ ਵਜਹੜੇ ਲੈ ਕਚਰ ਪੰ ਜਾਬੀ
ਜਾਂ ਵਹੰ ਦੀ ਚ ਹੋਣ ਉਹ ਬਹੁਤ ਅਸਾਨੀ ਨਾਲ਼ ਸਮਝ ਪੈ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਪਰ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦੇ ਲੈ ਕਚਰ

ਨੂੰ ਰੋਕ-ਰੋਕ ਕੇ ਤੇ ਮੁੜ ਿਾਰ-ਿਾਰ ਸੁਣ ਕੇ ਨਾਲ਼-ਨਾਲ਼ ਵਲਖਣ ’ਤੇ ਸਮਝਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ।
ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਹਾਲ ਹੁੰ ਦਾ ਹੋਿੇਗਾ?

ਲਾਜ਼ਮੀ ਅੰ ਿਰੇਜ਼ੀ ਬਾਰੇ ਕੁਿੱ ਝ ਿਿੱ ਲਾਂ


ਇਸ ਬਾਰੇ ਿੀ ਮੈਂ ਇਿੱ ਕ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਦਾ ਹੀ ਪਿੱ ਖ ਰਿੱ ਖ ਕੇ ਆਪਣੀ ਗਿੱ ਲ ਪੂਰੀ ਕਰਾਂਗਾ।
ਵਗਆਰਿੀਂ ਜਮਾਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕੋਈ ਿੀ ਉਚੇਰੀ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਲਈ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਇਿੱ ਕ ਪੇਪਰ
ਪਾਸ ਕਰਨਾ ਲਾਜ਼ਮੀ ਕੀਤਾ ਵਗਆ ਹੈ ਤੇ ਬਹੁਤੇ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਵਜਨਹਾਂ ਦੀ ਮਾਤ ਭਾਸ਼ਾ ਪੰ ਜਾਬੀ

ਹੈ, ਉਹ ਲਾਜ਼ਮੀ ਪੰ ਜਾਬੀ ਦਾ ਪੇਪਰ ਪਾਸ ਕਰਕੇ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ੇ (ਵਿਵਗਆਨ ਤੋਂ ਇਲਾਿਾ) ਿੀ ਪਾਸ

ਕਰ ਲੈਂ ਦੇ ਹਨ ਜੋ ਵਕ ਪੰ ਜਾਬੀ ਵਿਿੱ ਚ ਸੰ ਭਿ ਹਨ। ਇਵਤਹਾਸ, ਵਸਆਸਤ, ਅਰਥ ਸ਼ਾਸਤਰ, ਸਮਾਜ

ਸ਼ਾਸਤਰ, ਆਵਦ ਵਿਸ਼ੇ ਪੰ ਜਾਬੀ ਵਿਿੱ ਚ ਪੜਹ ਸਕਦੇ ਹਨ ਵਿਵਦਆਰਥੀ। ਪਰ ਇਹ ਬਿੱ ਚੇ ਲਾਜ਼ਮੀ

ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਪਾਸ ਨਾ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਅਗਲੀ ਜਮਾਤ ਵਿਿੱ ਚ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦੇ। ਮੈਂ ਇਿੱ ਦਾਂ ਦੇ ਕਈ
ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਜਾਣਦਾ ਹਾਂ ਜੋ ਵਗਆਰਿੀਂ ਤੇ ਬਾਰਿੀਂ ਜਮਾਤ ਵਿਿੱ ਚ ਲਾਜ਼ਮੀ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦਾ
ਵਿਸ਼ਾ ਪਾਸ ਨਾ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਉਸੇ ਜਮਾਤ ਵਿਿੱ ਚ ਦੋ ਜਾਂ ਚਾਰ ਸਾਲ ਬਰਬਾਦ ਕਰਕੇ ਮਜ਼ਬੂਰੀ

’ਚ ਪੜਹਾਈ ਹੀ ਛਿੱ ਡ ਗਏ ਜਦਵਕ ਉਹ ਬਾਕੀ ਸਾਰੇ ਵਿਵਸ਼ਆਂ ’ਚ ਪਾਸ ਸਨ। ਹੁਣ ਆਪਾਂ ਦੇਖੀਏ

ਵਕ ਜੇ ਲਾਜ਼ਮੀ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦੀ ਤਲਿਾਰ ਨਾ ਲਟਕਦੀ ਹੁੰ ਦੀ ਤਾਂ ਇਹ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਬੀ.ਏ. ਵਿਿੱ ਚ


ਇਵਤਹਾਸ, ਭੂਗੋਲ, ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ, ਰਾਜਨੀਤੀ ਤਾਂ ਪੜਹ ਗਏ ਹੁੰ ਦੇ ਪਰ ਲਾਜ਼ਮੀ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦੇ

ਵਨਯਮ ਕਰਕੇ ਇਹ ਵਿਵਦਆਰਥੀ ਹੋਰ ਵਿਵਸ਼ਆਂ ਨੂੰ ਿੀ ਨਹੀਂ ਪੜਹ ਸਕੇ। ਭਾਰਤ ਿਰਗਾ ਦੇਸ਼
ਵਜਿੱ ਥੇ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਪਰਬੰਧ ਦਾ ਪਵਹਲਾਂ ਹੀ ਮਾੜਾ ਹਾਲ ਹੈ, ਵਜਿੱ ਥੋਂ ਬਹੁਤ ਘਿੱ ਟ ਬਿੱ ਚੇ ਹੀ ਸਕੂਲ ਕਾਲਜਾਂ
ਤਿੱ ਕ ਪਹੁੰ ਚ ਰਹੇ ਨੇ ਉੱਥੇ ਲਾਜ਼ਮੀ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕਾਲਜ ਤਿੱ ਕ ਪਹੁੰ ਚਣ ਤੋਂ ਰੋਕਣ ਦਾ ਕੰ ਮ

ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ।

ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਨਾਲ਼ ਮੇਰਾ ਕੋਈ ਵਿਰੋਧ ਨਹੀਂ, ਮੈਨੰ ੂ ਿੀ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਆਉਂਦੀ ਹੈ, ਪਰ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ
ਲਾਜ਼ਮੀ ਹੋਣ ਅਤੇ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਹਨ ਲਈ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦਾ ਮਾਵਧਅਮ ਲਾਜ਼ਮੀ ਹੋਣਾ ਸਮਾਜ ਨੂੰ

ਅਨਪੜਹ ਤੇ ਪਿੱ ਛਵੜਆ ਹੀ ਰਿੱ ਖੇਗਾ ਵਜਸਦੇ ਸਾਡੇ ਸਾਹਮਣੇ ਨਤੀਜੇ ਆ ਿੀ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਸ ਕਰਕੇ
ਮੈਂ ਵਿਵਗਆਨ ਪੜਾਉਣ ਲਈ ਥੋਪੇ ਗਏ ਲਾਜ਼ਮੀ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਮਾਵਧਅਮ ਅਤੇ ਹੋਰ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੇ

ਵਿਵਦਆਰਥੀਆਂ ’ਤੇ ਥੋਵਪਆ ਵਗਆ ਲਾਜ਼ਮੀ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਤੇ ਉਮੀਦ
ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਵਕ ਵਿਵਗਆਨ ਤੇ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਜੁੜੇ ਹੋਏ ਤੇ ਸਮਾਜ ਲਈ ਵਫਕਰਮੰ ਦ ਲੋ ਕਾਂ

ਦਾ ਏਕਾ ਕਾਇਮ ਕਰਕੇ ਅਸੀਂ ਇਸ ਮਸਲੇ ’ਤੇ ਵਕਸੇ ਅਗਾਂਹਿਧੂ ਵਦਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚ ਪੈਰ ਪੁਿੱ ਟਦੇ ਰਹਾਂਗੇ।
ਭਾਰਤੀ ਸਰਕਾਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਿੰ ਡ ਦਾ ਲੇ ਖਾ-ਜੋਖਾ

•ਜੋਿਾ ਵਸੰ ਘ (ਡਾ.)


ਲਲਕਾਰ ⚫ 16-31 ਅਕਤੂਬਰ 2019

0. ਸਾਰ-ਤਿੱ ਤ: ਭਾਰਤ ਦੇ ਵਸਆਸੀ ਗਠਨ ਵਿਿੱ ਚ ਵਸਧਾਂਤਕ ਪਿੱ ਧਰ ’ਤੇ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਪਰਮਖ ੁਿੱ ਅਧਾਰ

ਮੰ ਵਨਆ ਵਗਆ ਹੈ ਪਰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਵਿਿੱ ਚ ਇੰ ਝ ਨਹੀਂ ਹੋ ਵਰਹਾ। ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਅਤੇ
ਪਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਆਵਦ ਨਾਲ਼ ਵਸਿੱ ਧਾ ਸਬੰ ਧ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਭਾਸ਼ਾ ਬਾਰੇ ਕੀਤੇ ਵਨਰਵਣਆਂ ਦੇ ਡੂਘੇ ਵਸਿੱ ਟੇ

ਵਨਿੱਕਲਦੇ ਹਨ। ਭਾਰਤੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਿਿੱ ਲੋਂ ਭਾਰਤ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੀ ਿੰ ਡ ਬੜੀ

ਅਣਵਿਵਗਆਨਕ ਅਤੇ ਮੰ ਦ ਭਾਿਨਾ ਤੋਂ ਪਰੇਵਰਤ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸ ਪਰਚੇ ਵਿਿੱ ਚ ਇਸ


ਅਣਵਿਵਗਆਨਕਤਾ ਦੇ ਸਬੂਤ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ ਅਤੇ ਇਸ ਭਾਸ਼ਾਈ ਿੰ ਡ, ਭਾਸ਼ਾਈ ਅਮਲ ਦੇ

ਭਾਰਤ ਲਈ ਮਾੜੇ ਵਸਿੱ ਵਟਆਂ ਿਿੱ ਲ ਸੰ ਕੇਤ ਕੀਤਾ ਵਗਆ ਹੈ।

1. ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੀ ਵਗਣਤੀ: 1961 ਦੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ 1652 ਵਨਿੇਕਲੀਆਂ

ਮਾਤ ਬੋਲੀਆਂ (mother tongues) ਵਨਸਚਤ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ। 1991 ਦੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਅਨੁਸਾਰ

ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ 216 ਮਾਤ ਬੋਲੀਆਂ ਤੇ 114 ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ (languages) ਹਨ। ਪਰ 2001 ਦੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ

ਅਨੁਸਾਰ ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ 234 ਮਾਤ ਬੋਲੀਆਂ ਅਤੇ 114 ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਹਨ। ਮਾਤ ਬੋਲੀ ਅਤੇ ਭਾਸ਼ਾ

ਵਿਚਕਾਰ ਿਖਰੇਿੇਂ ਦਾ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਦਾ ਅਧਾਰ ਸਪਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਵਕਉਂਵਕ ਭਾਸ਼ਾ

ਵਿਵਗਆਨਕ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਦੇ mother tongue ਅਤੇ language ਸ਼ਬਦ ਸਮਾਨਅਰਥੀ ਹਨ।

ਜੇ ਇਸ ਗਿੱ ਲ ਨੂੰ ਇਿੱ ਕ ਪਾਸੇ ਿੀ ਰਿੱ ਖ ਦਈਏ ਤਾਂ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਿਿੱ ਖ-ਿਿੱ ਖ ਸਾਲਾਂ ਦੇ
ਅੰ ਕੜੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਵਿਿੱ ਚ ਸਬੂਤ ਹਨ ਵਕ ਭਾਰਤੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਭਾਰਤ ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ
ਦੀ ਸਵਥਤੀ ਬਾਰੇ ਜਾਂ ਤਾਂ ਸਪਿੱ ਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਹੈ ਤੇ ਜਾਂ ਵਫਰ ਵਨਰਣੇ ਇਮਾਨਦਾਰੀ ਨਾਲ਼ ਨਹੀਂ ਕਰ

ਵਰਹਾ। ਮੇਰੀ ਰਾਇ ਹੈ ਵਕ ਵਪਛਲੇ ਰਾ ਕਾਰਨ ਿਿੱ ਧ ਹੈ।

2. ਭਾਸ਼ਾ-ਉਪਭਾਸ਼ਾ ਿੰ ਡ ਦਾ ਅਧਾਰ: ਭਾਸ਼ਾ-ਉਪਭਾਸ਼ਾ ਿੰ ਡ ਦਾ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਵਗਆਨਕ ਅਧਾਰ ਆਪਸੀ

ਬੋਧ (mutual intelligibility) ਹੈ। ਮਤਲਬ ਇਹ ਵਕ ਜੇ ਦੋ ਬੋਲੀ ਰੂਪਾਂ ਦੇ ਬੁਲਾਰੇ ਵਬਨਾਂ ਵਕਸੇ

ਵਸਖਲਾਈ ਦੇ ਇਿੱ ਕ-ਦੂਜੇ ਦੇ ਬੋਲੀ ਰੂਪਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝ ਸਕਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਉਹ ਬੋਲੀ ਰੂਪ ਇਿੱ ਕ ਹੀ

ਭਾਸ਼ਾ ਦੀਆਂ ਉਪਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਹੁੰ ਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਅਧਾਰ ‘ਤੇ ਪਰਖੀਏ ਤਾਂ ਭਾਰਤੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ
ਨੇ ਕੁਝ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਵਕਸੇ ਦੂਜੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀਆਂ ਉਪਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਅਤੇ ਕੁਝ ਉਪਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ

ਐਲਾਵਨਆਂ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਹੇਠਾਂ ਵਿਚਾਰੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਵਮਸਾਲਾਂ ਇਸ ਤਿੱ ਥ ਦਾ ਸਬੂਤ ਪੇਸ਼

ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ।

“ਰਾਤ ਦੀ ਬੁਿੱ ਕਲੀ ’ਚ ਸੁਿੱ ਤੀ ਦੀ ਕੰ ਞਕਾ ਦੀ ਅਿੱ ਖ ਖੁਿੱ ਲਹੀ

ਕਿੱ ਛ-ਕੋਲ ਅਸ਼ਕੇਂ ਕੂਤੈ ਅਤਰੈ ਦੀ ਸ਼ੀਸ਼ੀ ਡੁਿੱ ਲੀ

ਕੰ ਞਕਾ ਨੇ ਮਾਊ ਗੀ ਪੁਿੱ ਛੇਆ…

ਮਾਂ, ਏਹ ਕੇਹ ਝੁਿੱ ਲੇ ਆ ਜੇ ਰਾਤ ਉੱਡੀ ਮੈਹਕੀ ।”

ਉਪਰਲੀਆਂ ਸਤਰਾਂ ਇਿੱ ਕ ਡੋਗਰੀ ਕਵਿਤਾ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਹਨ, ਵਜਸ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਵਨਿੇਕਲੀ

ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਦਰਜਾ ਵਦਿੱ ਤਾ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਕੋਈ ਿੀ ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ੀ ਇਹਨਾਂ ਸਤਰਾਂ ਨੂੰ ਸਵਹਜੇ ਹੀ

ਪੰ ਜਾਬੀ ਦੀ ਵਕਸੇ ਉਪਭਾਸ਼ਾ ਦੀਆਂ ਸਤਰਾਂ ਮੰ ਨੇਗਾ।

ਇਸ ਅਧਾਰ ’ਤੇ ਹੁਣ ਕੁਝ ਹੋਰ ਬੋਲੀ ਰੁਪਾਂ ਨੂੰ ਿੇਖਦੇ ਹਾਂ।

“ਅਜ ਹਮਾਵਰ ਯਾ ਪਰਾਚੀਨ ਅਰ ਸਵਮਰਥ ਭਾਸਾ ਹਰਚਵਣ ਚ ਵਕਲੈ ਵਕ ਹਮ ਅਪੜੀ ਭਾਸਾ ਪਰਯੋਗ

ਵਨ ਕਰਣਾ ਛਾਂ। ਹਮਾਵਰ ਨੈ ਵਛਿਾਂਕ ਈ ਂ ਭਾਸਾਯੈਂ ਛਿਡਨ ਲਗੀਂ ਚ। ਜੁ ਆਜ ਹਮ ਅਪੜੀ ਭਾਸਾ

ਬਚੌਣੌਅ ਪਰਯਾਸ ਵਨ ਕਰਲਾ ਤ ਭੋਲ ਈ ਂ ਲੁਪਤ ਹਿੇ ਜਾਣ। ਯੇ ਪੇਜਾਅ ਮਾਧਯਮਨ ਗੜਹਿਵਲ

ਭਾਸਾ ਕੁ ਪਰਚਾਰ-ਪਰਸਾਰ ਕਰਲਾ ਅਰ ਯਖ ਅਪੜੀ ਭਾਸਾਮਾ ਬਚਯੌਲਾ। ਜੈ ਭਾਰਤ, ਜੈ

ੇ ।”
ਉੱਤਰਾਖੰ ਡ, ਜੈ ਗੜਹਦਸ
ਇਹ ਸਤਰਾਂ ਗੜਹਿਾਲੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਿੱ ਚੋਂ ਹਨ, ਵਜਸ ਨੂੰ ਭਾਰਤੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਨੇ ਵਹੰ ਦੀ ਦੀ

ਉਪਭਾਸ਼ਾ ਐਲਾਵਨਆਂ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਪਰ ਕੋਈ ਿੀ ਵਹੰ ਦੀ ਬੁਲਾਰਾ ਗੜਹਿਾਲੀ ਨੂੰ ਏਨੀ ਸਫਲਤਾ

ਨਾਲ਼ ਨਹੀਂ ਸਮਝ ਸਕਦਾ ਵਜੰ ਨੀ ਸਫਲਤਾ ਨਾਲ਼ ਪੰ ਜਾਬੀ ਬੁਲਾਰਾ ਡੋਗਰੀ ਨੂੰ ਸਮਝ ਲੈਂ ਦਾ ਹੈ।

ਸੋ ਸਾਫ ਹੈ ਵਕ ਭਾਰਤੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਭਾਸ਼ਾ-ਉਪਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਵਨਖੇੜਾ ਵਿਵਗਆਨਕ ਅਧਾਰਾਂ

’ਤੇ ਨਹੀਂ ਕਰ ਵਰਹਾ। ਭਾਰਤੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਵਨਰਵਣਆਂ ਨੂੰ ਪਰਖਣ ਲਈ ਇਿੱ ਕ ਹੋਰ

ਵਮਸਾਲ ’ਤੇ ਝਾਤੀ ਮਾਰਦੇ ਹਾਂ।

“ਆਪਾਂ ਨੈ ਭੀ ਆਪਣੀ ਭਾਸ਼ਾ ਰੈ ਮਾਨ-ਸਨਮਾਨ ਿਾਸਤੈ ਲਾਰੈ ਨੀਂ ਰੈਿਣੋ ਹੈ। ਆਜ ਰੋ ਔਖਾਂਣੋਮਾ

ਕੈਿਤਾਂ ਮੂੰ ਡੋ ਭਰੀਜੈ। ਥਾਂ ਖੁਦ ਸਮਝਦਾਰ ਹੌ, ਮਤਲਬ ਬਤਾਿਣ ਰੀ ਕੋਈ ਜਰੂਰਤ ਤੋ ਹੈ ਕੋਨੀ

ਪਣ ਇਤੌ ਜਰੂਰ ਬੋਲੂ ਕੈ, ਮਾਂ, ਮਯੜਭੋਮ ਅਰ ਮਯੜਭਾਸਾ ਰੌ ਦਰਜੌ ਸੁਰਗ ਸੂੰ ਈ ਂ ਉਚੌ ਹੁਿ।ੈ ”

ਇਹ ਰਾਜਸਥਾਨੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਨਮੂਨਾ ਹੈ। ਜੇ ਇਸ ਦੀ ਵਕਸੇ ਭਾਸ਼ਾ ਨਾਲ ਨੇੜਤਾ ਿੇਖਣੀ ਹੋਿੇ ਤਾਂ
ਵਬਨਾਂ ਵਕਸੇ ਸ਼ਿੱ ਕ ਦੇ ਵਕਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਵਕ ਇਹ ਟਕਸਾਲੀ ਵਹੰ ਦੀ ਨਾਲ਼ੋਂ ਪੰ ਜਾਬੀ ਦੇ ਿਿੱ ਧ ਨੇੜੇ

ਹੈ। ਪਰ ਸਰਕਾਰੀ ਤੌਰ ’ਤੇ ਰਾਜਸਥਾਨੀ ਨੂੰ ਵਹੰ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਉਪਭਾਸ਼ਾ ਐਲਾਵਨਆ ਵਗਆ ਹੈ।

ਜਰੂਰੀ ਹੈ ਵਕ ਰਾਜਸਥਾਨੀ ਨੂੰ ਿਿੱ ਖਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਐਲਾਵਨਆਂ ਜਾਿੇ।

ਇਿੱ ਥੇ ਇਹ ਿੀ ਵਧਆਨਯੋਗ ਹੈ ਵਕ ਭੁਗੌਵਲਕ ਤੌਰ ’ਤੇ ਗੜਹਿਾਲੀ ਅਤੇ ਰਾਜਸਥਾਨੀ ਇਲਾਕੇ

ਟਕਸਾਲੀ ਵਹੰ ਦੀ (ਖੜੀ ਬੋਲੀ) ਦੇ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਲਿੱਗਦੇ ਇਲਾਕੇ ਹਨ, ਪਰ ਵਫਰ ਿੀ ਇਹਨਾਂ

ਵਿਚਕਾਰ ਏਨੀ ਭਾਸ਼ਾਈ ਵਿਿੱ ਥ ਹੈ ਵਕ ਇਹ ਿਿੱ ਖਰੀਆਂ-ਿਿੱ ਖਰੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਹਨ। ਜੋ ਇਲਾਕੇ ਖੜੀ
ਬੋਲੀ ਦੇ ਇਲਾਕੇ ਤੋਂ ਗੜਹਿਾਲੀ ਅਤੇ ਰਾਜਸਥਾਨੀ ਭਾਸ਼ੀ ਇਲਾਵਕਆਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਿਧੇਰੇ ਦੂਰ

ਹਨ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਵਹੰ ਦੀ ਤੋਂ ਭਾਸ਼ਾਈ ਵਿਿੱ ਥ ਦਾ ਅੰ ਦਾਜਾ ਸਵਹਜੇ ਹੀ ਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਪਰ

ਵਫਰ ਿੀ ਭਾਰਤੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਨੇ ਅਿਧੀ, ਬਘੇਲੀ, ਭੋਜਪੁਰੀ, ਛਿੱ ਤੀਸਗੜਹੀ, ਮਗਾਹੀ ਅਤੇ
ਪਿਾਰੀ ਵਜਹੀਆਂ ਿਿੱ ਡੀ ਵਗਣਤੀ ਿਾਲ਼ੀਆਂ ਵਨਿੇਕਲੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਿੀ ਵਹੰ ਦੀ ਦੀਆਂ ਉਪਭਾਸ਼ਾਿਾਂ

ਐਲਾਵਨਆਂ ਹੋਇਆ ਹੈ।

3. ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੀ ਿਾਧਾ ਦਰ: ਇਿੱ ਕ ਹੋਰ ਅੰ ਕੜਾ ਵਜਹੜਾ ਭਾਰਤੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਦੀ ਉਲਝਾਈ

ਤਾਣੀ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਵਿਿੱ ਚ ਮਦਦ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ਉਹ ਹੈ ਭਾਰਤੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਦੇ


ਅੰ ਕਵੜਆਂ ਅਨੁਸਾਰ ਿਿੱ ਖ-ਿਿੱ ਖ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੀ ਦਹਾਕਾਿਾਰ ਿਾਧਾ ਦਰ। ਹੇਠਲੀਆਂ ਸਾਰਣੀਆਂ ਕੁਝ

ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੀ ਭਾਰਤੀ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ ਅਨੁਸਾਰ ਦਹਾਕਾਿਾਰ ਿਾਧਾ ਦਰ ਦਰਸਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ।

ਸਾਰਣੀ-ਓ: ਅਨੁਸੂਵਚਤ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੀ ਦਹਾਕਾਿਾਰ ਪਰਤੀਸ਼ਤ ਿਾਧਾ ਦਰ

ਭਾਸ਼ਾ 1971-81 1981-91 1991-2001 ਕੁਿੱ ਲ ਬੁਲਾਰੇ (2001)


ਬੰ ਗਲਾ 14.25 35.67 19.79 8,33,69,769
ਕੰ ਨੜ 18.36 27.46 15.79 3,79,24,211
ਕੋਂਕਨੀ 4.09 12.13 41.37 24,89,015
ਮੈਵਥਲੀ 22.71 3.25 56.81 1,21,79,122
ਮਨੀਪੁਰੀ 13.86 40.91 15.47 14,66,705

ਨੇਪਾਲੀ -4.17 52.62 38.29 28,71,749


ਪੰ ਜਾਬੀ 39.00 19.21 24.48 2,91,02,477
ਸੰ ਸਵਿ੍ਰਤ 176.00 714.54 -71.58 14,135
ਤੇਲੁਗੂ 13.11 30.41 12.10 7,40,02,856

ਸਾਰਣੀ- ਅ: ਿੈਰ-ਅਨੁਸੂਵਚਤ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੀ ਦਹਾਕਾਿਾਰ ਪਰਤੀਸ਼ਤ ਿਾਧਾ ਦਰ

ਭਾਸ਼ਾ 1971-81 1981-91 1991-2001 ਕੁਿੱ ਲ ਬੁਲਾਰੇ (2001)

ਭੀਲੀ/ਭੀਲੋ ੜੀ 26.30 29.79 71.97 95,82,957


ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ 5.66 -11.78 26.79 2,26,449
ਗਾਰੋ 1.50 61.68 31.65 8,89,449
ਗੋਂਡੀ 13.33 11.06 27.72 27,13,790
ਹੋ 4.25 21.18 9.85 10,42,724
ਖੰ ਡੇਸ਼ੀ 383.05 -19.98 113.13 20,75,258
ਖਾਸੀ 31.28 45.07 23.71 11,28,575
ਕੁਰੁਖ 7.93 6.97 22.77 17,51,489

ਮੁੰ ਡਾਰੀ -3.70 15.97 23.22 10,61,352


ਤੁਲੁ 22.34 9.53 10.98 17,22,768
ਉੱਪਰਲੀਆਂ ਸਾਰਣੀਆਂ ’ਤੇ ਸਰਸਰੀ ਝਾਤ ਹੀ ਦਿੱ ਸ ਦੇਂਦੀ ਹੈ ਵਕ ਇਹਨਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਦਰਸਾਈਆਂ

ਗਈਆਂ ਬਹੁਤੀਆਂ ਿਾਧਾ ਦਰਾਂ ਅਸਲੀਅਤ ਤੋਂ ਵਕੰ ਨੀਆਂ ਦੂਰ ਹਨ। ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਬਾਦੀ ਦੀ

ਦਹਾਕਾਿਾਰ ਿਾਧਾ ਦਰ ਲਗਭਗ 20 ਪਰਤੀਸ਼ਤ ਪਰਤੀ ਦਹਾਕਾ ਹੈ। ਵਕਸੇ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਇਸ ਤੋਂ ਬਹੁਤੀ

ਿਿੱ ਧ ਜਾਂ ਘਿੱ ਟ ਿਾਧਾ ਦਰ ਅਸਲੀਅਤ ਤੋਂ ਪਰੇ ਹੀ ਹੋਿੇਗੀ। ਸੋ ਸਾਫ ਹੈ ਵਕ ਜਨ-ਗਣਨਾ ਵਿਭਾਗ

ਦੇ ਭਾਸ਼ਾਈ ਲੇ ਖੇ-ਜੋਖੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਸਲੀ ਸਵਥਤੀ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਦੂਰ ਹਨ।

4. 8ਿੀਂ ਸੂਚੀ ਦਾ ਅਧਾਰ: ਵਪਿੱ ਛੇ ਵਦਿੱ ਤੀਆਂ ਸਾਰਣੀਆਂ ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਭਾਰਤੀ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਬਾਰੇ

ਰਾਜਸੀ ਵਨਰਵਣਆਂ ਦੀ ਵਸਧਾਂਤਹੀਣਤਾ ਨੂੰ ਿੀ ਸਾਹਮਣੇ ਵਲਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ। 2001 ਵਿਿੱ ਚ ਭਾਰਤ

ਵਿਿੱ ਚ ਵਸਰਫ 2,26,449 ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੇ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਵਲਖਾਇਆ ਹੈ। ਪਰ

ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਦੇ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿਿੱ ਚ ਧੌਂਸ ਜਮਾਈ ਬੈਠੀ ਹੈ। 14,135 ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਬੁਲਾਵਰਆਂ ਿਾਲ਼ੀ
ਸੰ ਸਵਿ੍ਰਤ ਅਨੁਸੂਵਚਤ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ ਪਰ 95,82,957 ਿਾਲ਼ੀ ਭੀਲੀ, 27,13,790 ਿਾਲ਼ੀ
ਗੋਂਡੀ, 20,75,258 ਿਾਲ਼ੀ ਖੰ ਡੇਸ਼ੀ, 17,51,489 ਿਾਲੀ ਕੁਰਖ
ੁ , 10,61,352 ਿਾਲ਼ੀ ਮੁੰ ਡਾਲੀ, 17,22,768 ਿਾਲ਼ੀ ਤੁਲੁ

ਅਤੇ ਇਿੇਂ ਹੀ ਕਈ ਹੋਰਨਾਂ ਦਾ ਕੋਈ ਿਾਲੀ-ਿਾਰਸ ਨਹੀਂ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦਮ ਤੋੜ

ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਕਮਾਲ ਦੀ ਗਿੱ ਲ ਤਾਂ ਇਹ ਹੈ ਵਕ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ 8ਿੀਂ ਸੂਚੀ ਵਿਿੱ ਚ ਨਾ ਹੋ ਕੇ ਿੀ ਭਾਰਤ
ਦੀ ਮਾਲਕ ਬਣੀ ਬੈਠੀ ਹੈ ਪਰ 8ਿੀਂ ਸੂਚੀ ਵਿਿੱ ਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਦੇ ਬਾਿਜੂਦ ਿੀ ਸੰ ਥਾਲੀ ਨੂੰ ਕੋਈ

ਸਰਕਾਰੀ ਰੁਤਬਾ ਹਾਸਲ ਨਹੀਂ ਹੈ।

5. ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਭਾਸ਼ਾ: ਭਾਰਤੀ ਸੰ ਵਿਧਾਨ 8ਿੀਂ ਸੂਚੀ ਵਿਿੱ ਚ ਸ਼ਾਮਲ 22 ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ

ਦਾ ਨਾਂ ਦੇਂਦਾ ਹੈ। ਪਰ ਇਹਨਾਂ 22 ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਵਕਉਂ ਮੰ ਵਨਆ ਜਾਿੇ,

ਦੂਜੀਆਂ ਨੂੰ ਵਕਉਂ ਨਹੀਂ! ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਹੀ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ

ਹਨ। ਹੋਰ ਤਾਂ ਹੋਰ, 22 ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਸੰ ਵਿਧਾਨਕ ਤੌਰ ’ਤੇ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਰੁਤਬਾ ਹਾਸਲ ਹੋਣ ਦੇ
ਬਾਿਜੂਦ ਿੀ ਮੌਜਦ
ੂ ਾ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਨੇਤਾ ਹਰ ਚੌਥੇ ਵਦਨ ਸ਼ਰਾਰਤਪੂਰਨ ਢੰ ਗ

ਨਾਲ਼ ਵਸਰਫ ਵਹੰ ਦੀ ਨੂੰ ਹੀ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਕਵਹੰ ਦਾ ਰਵਹੰ ਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਖੇਡ ਬੜੀ ਖਤਰਨਾਕ

ਹੈ।

6. ਕੁਝ ਵਭਆਨਕ ਵਸਿੱ ਟੇ: ਭਾਰਤੀ ਰਾਜਸੀ ਜੀਿਨ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿਾਲ ਭਾਸ਼ਾ ਨਾਲ਼ ਜੁੜੇ ਹੋਏ

ਹਨ। ਇਸ ਵਿਿੱ ਚ ਇਿੱ ਕ ਸਿਾਲ ਭਾਰਤ ਦਾ ਰਾਜਸੀ ਗਠਨ ਹੈ। ਜੇ ਵਕਸੇ ਭਾਸ਼ਾ ਨੁੰ ਕੋਈ ਸਰਕਾਰੀ
ਦਰਜਾ ਹਾਸਲ ਨਹੀਂ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਵਕਸੇ ਤਰਹਾਂ ਦੀ ਰਾਜਸੀ ਸਰਪਰਸਤੀ ਹਾਸਲ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ
ਤੇ ਉਹ ਭਾਸ਼ਾ ਭਾਸ਼ਾਈ ਿਰਤੋਂ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਹੁੰ ਦੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਦਾ ਨਤੀਜ਼ਾ ਉਸ

ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਵਨਸ਼ਚਤ ਰੂਪ ਵਿਿੱ ਚ ਸਮਾਪਤੀ ਹੈ। ਇਸੇ ਕਾਰਣ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ 196 ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਯੂਨੇਸਕੋ

ਦੀ ਸਮਾਪਤੀ ਦੇ ਖਤਰੇ ਿਾਲ਼ੀ ਸੂਚੀ ਵਿਿੱ ਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ। ਸਰਕਾਰੀ ਸਰਪਰਸਤੀ ਵਕਿੇਂ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ
ਜੀਿਨ ਦੇ ਸਕਦੀ ਹੈ ਇਸ ਦੀ ਵਮਸਾਲ ਖਾਸੀ ਭਾਸ਼ਾ ਹੈ ਜੋ ਪਵਹਲਾਂ ਸਮਾਪਤ ਹੋਣ ਦੇ ਕੰ ਢੇ ਸੀ,
ਪਰ ਮਣੀਪੁਰ ਸਰਕਾਰ ਿਿੱ ਲੋਂ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਪੜਹਾਈ ਜਾਣੀ ਅਰੰ ਭ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਯੂਨੈਸਕੋ ਨੇ

ਇਸ ਨੂੰ ਸਮਾਪਤੀ ਦੇ ਖਤਰੇ ਿਾਲ਼ੀ ਸੂਚੀ ’ਚੋਂ ਕਿੱ ਢ ਵਲਆ ਹੈ।

ਵਕਸੇ ਭਾਸ਼ਾ ਨੁੰ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਦਰਜਾ ਨਾ ਦੇਣ ਨਾਲ਼ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਭਾਸ਼ਾਈ ਖੇਤਰ ਵਿਿੱ ਚ ਵਕਸੇ ਹੋਰ
ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਧੌਂਸ ਨਾਲ ਵਸਿੱ ਵਖਆ, ਪਰਸ਼ਾਸਨ, ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰ ਆਵਦ ਵਿਿੱ ਚ ਿਿੱ ਡੇ ਨੁਕਸਾਨ

ਹੁੰ ਦੇ ਹਨ। ਲਗਭਗ ਸਾਰਾ ਭਾਰਤ ਹੀ ਇਹ ਿਿੱ ਡੇ ਨੁਕਸਾਨ ਭੁਗਤ ਵਰਹਾ ਹੈ। ਇਹ ਸਵਥਤੀ
ਉਹਨਾਂ ਇਲਾਵਕਆਂ ਵਿਿੱ ਚ ਿਧੇਰੇ ਵਭਆਨਕ ਹੈ ਵਜਨਹਾਂ ਇਲਾਵਕਆਂ ਦੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਵਸਿੱ ਵਖਆ

ਅਤੇ ਪਰਸ਼ਾਸਨ ਆਵਦ ਵਿਿੱ ਚ ਕੋਈ ਥਾਂ ਹਾਸਲ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਵਮਸਾਲ ਲਈ ਉੱਤਰਾਖੰ ਡ, ਛਿੱ ਤੀਸਗੜਹ,
ਵਬਹਾਰ, ਝਾਰਖੰ ਡ, ਰਾਜਸਥਾਨ ਆਵਦ ਵਿਿੱ ਚ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਅਤੇ ਪਰਸ਼ਾਸਨ ਵਿਿੱ ਚ ਵਹੰ ਦੀ ੳੇੁੇਥ
ਿੱ ੋਂ ਦੀਆਂ

ਮਾਤ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੀ ਥਾਂ ਮਿੱ ਲੀ ਬੈਠੀ ਹੈ। ਕੋਈ ਹੈਰਾਨੀ ਨਹੀਂ ਵਕ ਇਹ ਹੀ ਉਹ ਇਲਾਕੇ ਹਨ ਜੋ

ਵਸਿੱ ਵਖਆ/ਸਾਖਰਤਾ ਪਿੱ ਖੋਂ ਹੀ ਨਹੀਂ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਹਰ ਪਿੱ ਖ ਤੋਂ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਿੱ ਛੜੇ ਇਲਾਕੇ

ਹਨ। ਇਿੇਂ ਹੀ ਜੰ ਮੂ ਅਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਿਿੱ ਚ ਕਸ਼ਮੀਰੀ, ਡੋਗਰੀ, ਅਤੇ ਪੰ ਜਾਬੀ (ਪੁਣਛੀ) ਉੱਤੇ ਉਰਦੂ

ਦੀ ਧੌਂਸ ਨੂੰ ਿੇਵਖਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਅਵਜਹੀ ਸਵਥਤੀ ਭਾਰਤ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਇਲਾਵਕਆਂ ਦੀ ਹੈ।

ੇ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਪਰ ਵਫਰ ਿੀ ਲਗਭਗ ਹਰ ਪਰਦੇਸ਼


ਭਾਰਤ ਦਾ ਕੋਈ ਿੀ ਪਰਦੇਸ਼ ਇਿੱ ਕ-ਭਾਸ਼ੀ ਪਰਦਸ਼

ਵਿਿੱ ਚ ਅੰ ਗਰੇਜ਼ੀ ਨੂੰ ਛਿੱ ਡ ਕੇ ਵਸਰਫ ਇਿੱ ਕ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਹੀ ਸਰਕਾਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਦਰਜਾ ਹਾਸਲ ਹੈ।

ੇ ਵਿਿੱ ਚ ਰਵਹ ਰਹੀਆਂ ਘਿੱ ਟ-ਵਗਣਤੀਆਂ ਨਾਲ਼ ਿਿੱ ਡੀ ਿਧੀਕੀ ਹੈ। ਭਾਰਤ ਦੇ
ਇਹ ਉਸ ਪਰਦਸ਼

ਸੰ ਵਿਧਾਨ ਦੀਆਂ 347 ਤੇ 350-ਏ ਧਾਰਾਿਾਂ ਸਪਸ਼ਟ ਰੂਪ ਵਿਿੱ ਚ ਵਕਸੇ ਪਰਦਸ਼
ੇ ਦੀਆਂ ਘਿੱ ਟ-ਵਗਣਤੀ

ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰੀ ਰੁਤਬਾ ਵਦਿੱ ਤੇ ਜਾਣ ਦਾ ਹਿੱ ਕ ਦੇਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਪਰ ਪਰਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਸਰਕਾਰਾਂ

ਇਸ ਪਰਤੀ ਵਬਲਕੁਲ ਹੀ ਸੰ ਜੀਦਾ ਨਹੀਂ ਹਨ। ਇਸ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਿਜੋਂ ਵਸਿੱ ਵਖਆ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਿੱ ਚ

ਿਿੱ ਡੇ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਿਿੱ ਡੀਆਂ ਪਰਸ਼ਾਸਨੀ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪੈ ਵਰਹਾ ਹੈ।

ਿਿੱ ਡੇ ਸੂਵਬਆਂ ਦੀ ਤਾਂ ਇਹ ਹਾਲਤ ਹੈ ਵਕ ਸਰਕਾਰੀ ਕੰ ਮ-ਕਾਜ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਪਰਦਸ਼


ੇ ਦੇ ਵਕਸੇ
ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਿੀ ਮਾਤ ਭਾਸ਼ਾ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਅਵਜਹੀ ਸਵਥਤੀ ਵਿਿੱ ਚ ਪਰਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਸੁਚਾਰੂ ਹੋਣ ਦੀ

ਕਲਪਨਾ ਕਰਨਾ ਸ਼ੇਖ ਵਚਿੱ ਲੀ ਦੇ ਸੁਪਵਨਆਂ ਤੋਂ ਿੀ ਪਰੇ ਦੀ ਗਿੱ ਲ ਹੈ।

8. ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਸਿਾਲ ਤੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਏਕਤਾ: ਭਾਰਤ ਇਿੱ ਕ ਬਹੁਕੌਮੀ ਦੇਸ਼ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਕੌ ਮਾਂ ਦੀਆਂ

ਆਪਣੀਆਂ-ਆਪਣੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਹਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ-ਆਪਣੇ ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰ। ਭਾਰਤ ਦੀ ਏਕਤਾ ਭਾਰਤ


ਦੀਆਂ ਸਮਾਜੀ, ਭਾਸ਼ਾਈ, ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰੀ ਤੇ ਵਸਆਸੀ ਹਕੀਕਤਾਂ ਨੂੰ ਅਿੱ ਖੋਂ ਪਰੋਖੇ ਕਰ ਕੇ ਕਾਇਮ

ਨਹੀਂ ਰਿੱ ਖੀ ਜਾ ਸਕਦੀ। ਇਹ ਉਹਨਾਂ ਹਕੀਕਤਾਂ ਨੂੰ ਤਸਲੀਮ ਕਰਕੇ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਨੀਂਹ ‘ਤੇ

ਢੁਿੱ ਕਿਾਂ ਵਸਆਸੀ ਅਤੇ ਪਰਸ਼ਾਸਨੀ ਢਾਂਚਾ ਉਸਾਰ ਕੇ ਹੀ ਕਾਇਮ ਰਿੱ ਖੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਭਾਰਤ
ਵਿਚਲੇ ਵਸਆਸੀ ਢਾਂਚੇ ਦਾ ਰੂਪ ਜੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਭਾਸ਼ਾਈ ਢਾਂਚੇ ਦਾ ਅਨੁਸਾਰੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰ ਦਾ ਤਾਂ

ਵਸਆਸੀ ਸਵਥਰਤਾ ਕਾਇਮ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ। ਪਰ ਬਹੁਤੇ ਭਾਰਤੀ ਨੀਤੀਕਾਰਾਂ ਦੇ ਮਨ ਵਿਿੱ ਚ


ਇਹ ਬੈਠਾ ਲਿੱਗਦਾ ਹੈ ਵਕ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਛੇੜਨ ਨਾਲ਼ ਭਾਰਤ ਦੀ ਏਕਤਾ ਨੂੰ ਖਤਰਾ

ਹੋਿੇਗਾ। ਇਹ ਇਿੱ ਕ ਿਵਹਮ ਹੈ। ਗਿੱ ਲ ਸਗੋਂ ਇਸ ਦੇ ਉਲਟ ਹੈ। ਜੇ ਇਹ ਮਾਮਲੇ ਨਾ ਨਵਜਿੱ ਠੇ ਗਏ

ਤਾਂ ਵਫਰ ਭਾਰਤ ਦੀ ਏਕਤਾ ਨੂੰ ਖਤਰਾ ਜ਼ਰੂਰ ਹੈ। ਏਥੇ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਦੀ ਵਮਸਾਲ ਲਈ ਜਾ

ਸਕਦੀ ਹੈ। ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਵਿਿੱ ਚ ਪੰ ਜਾਬੀ ਖੇਤਰ ਦਾ ਤਾਕਤ ਦੇ ਹਰ ਕੇਂਦਰ ਵਿਿੱ ਚ ਹੁਣ ਤਿੱ ਕ

ਦਬਦਬਾ ਵਰਹਾ ਹੈ। ਪਰ ਫੇਰ ਿੀ ਪਾਵਕਸਤਾਨੀ ਪੰ ਜਾਬ ਵਿਿੱ ਚ ਪੰ ਜਾਬੀ ਵਕਸੇ ਸਕੂਲ ਵਿਿੱ ਚ

ਪੜਹਾਉਣੀ ਤਾਂ ਦੂਰ ਦੀ ਗਿੱ ਲ, ਪੰ ਜਾਬ ਅਸੰ ਬਲੀ ਵਿਿੱ ਚ ਿੀ ਇਸ ਦੀ ਿਰਤੋਂ ’ਤੇ ਮਨਾਹੀ ਹੈ, ਜਦੋਂ

ਵਕ ਅਸੰ ਬਲੀ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮੈਂਬਰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਹਨ। ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਣ ਪਾਵਕਸਤਾਨੀ ਵਸਆਸੀ ਤੇ ਭਾਸ਼ਾਈ

ਨੀਤੀਕਾਰਾਂ ਦੀ ਪੁਿੱ ਠੀ ਮਿੱ ਤ ਹੈ। ਉਹ ਇਹ ਸੋਚਦੇ ਹਨ ਵਕ ਪੰ ਜਾਬੀ ਨੂੰ ਹਿੱ ਲਾ-ਸ਼ੇਰੀ ਦੇਣ ਨਾਲ਼

ਦੂਜੇ ਸੂਵਬਆਂ ਵਿਿੱ ਚ ਆਪਣੀ-ਆਪਣੀ ਭਾਸ਼ਾ ਲਈ ਵਸਆਸੀ ਮੰ ਗਾਂ ਉੱਠਣਗੀਆਂ। ਨਤੀਜਾ ਇਹ ਹੋ


ਵਰਹਾ ਹੈ ਵਕ ਦੂਜੇ ਸੂਵਬਆਂ ਿਾਲ਼ੇ ਆਪਣੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਦੀ ਕਦਰ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਪਰ ਪੰ ਜਾਬੀ

ਭਾਸ਼ਾ ਤੇ ਸਦਾਚਾਰ ਦਾ ਪੰ ਜਾਬੀਆਂ ਹਿੱ ਥੋਂ ਹੀ ਘਾਣ ਹੋ ਵਰਹਾ ਹੈ। ਵਮਸਾਲ ਲਈ, ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਵਿਿੱ ਚ
ਕੋਈ 37 ਹਜ਼ਾਰ ਦੇ ਕਰੀਬ ਵਸੰ ਧੀ ਭਾਸ਼ਾ ਮਾਵਧਅਮ ਿਾਲ਼ੇ ਸਕੂਲ ਹਨ ਤੇ 12 ਹਜ਼ਾਰ ਦੇ ਕਰੀਬ

ਪਸ਼ਤੋ ਮਾਵਧਅਮ ਿਾਲ਼ੇ । ਪਰ ਪੰ ਜਾਬੀ ਇਿੱ ਕ ਵਿਸ਼ੇ ਿਜੋਂ ਿੀ ਇਿੱ ਕ ਿੀ ਸਕੂਲ ਵਿਿੱ ਚ ਨਹੀਂ ਪੜਹਾਈ

ਜਾ ਰਹੀ। ਪੰ ਜਾਬ ਅਸੰ ਬਲੀ ਦੀ ਗਿੱ ਲ ਤਾਂ ਉੱਤੇ ਕੀਤੀ ਹੀ ਗਈ ਹੈ। ਵਪਛਲੀਆਂ ਪਾਵਕ ਚੋਣਾਂ

ਵਿਿੱ ਚ ਿੋਟਾਂ ਲਗਭਗ ਪੂਰੀ ਤਰਾਂ ਕੌ ਮੀਅਤ ਦੇ ਅਧਾਰ ’ਤੇ ਪਈਆਂ ਹਨ। ਹਰ ਸੂਬੇ ਵਿਿੱ ਚ ਉਸ

ਸੂਬੇ ਦੀ ਕੌ ਮੀਅਤ ਦੀ ਨੁਮਾਇੰ ਦਗੀ ਕਰਨ ਿਾਲ਼ਾ ਦਲ ਹੀ ਵਜਿੱ ਵਤਆ ਹੈ। ਪਾਵਕ ਪੰ ਜਾਬੀਆਂ ਨੇ
ਪੰ ਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾਂ ਤੇ ਸਦਾਚਾਰ ਦਾ ਘਾਣ ਜ਼ਰੂਰ ਕਰ ਵਲਆ ਹੈ, ਪਰ ਇਸ ਨਾਲ਼ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਦੇ
ਪੰ ਜਾਬ ਤੋਂ ਇਲਾਿਾ ਦੂਜੇ ਸੂਵਬਆਂ ਵਿਿੱ ਚ ਕੌ ਮੀਅਤ ਦੇ ਅਵਹਸਾਸ ਵਿਿੱ ਚ ਿੀ ਕੋਈ ਨਰਮੀ ਨਹੀਂ

ਆਈ। ਸੋ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਮਾਮਵਲਆਂ ਨੂੰ ਨਾ ਛੇੜਨ ਨਾਲ਼ ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਵਿਿੱ ਚ ਕੌ ਮੀਅਤਾਂ ਦੀਆਂ ਕੌ ਮੀ
ਭਾਿਨਾਿਾਂ ਵਿਿੱ ਚ ਕਮੀ ਨਹੀਂ ਆਈ, ਸਗੋਂ ਇਸ ਨਾਲ਼ ਕੌ ਮੀਅਤਾਂ ਵਿਚਲੀਆਂ ਦੂਰੀਆਂ ਿਧੀਆਂ ਹੀ

ਹਨ। ਇਹ ਤਾਂ ਸਭ ਜਾਣਦੇ ਹੀ ਹਨ ਵਕ ਬੰ ਗਲਾਦੇਸ਼ ਦੇ ਿਿੱ ਖ ਹੋ ਜਾਣ ਦਾ ਿਿੱ ਡਾ ਕਾਰਣ

ਪਾਵਕਸਤਾਨ ਦੇ ਹਾਕਮਾਂ ਿਿੱ ਲੋਂ ਬੰ ਗਲਾ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਮਾਨਤਾ ਨਾ ਦੇਣਾ ਸੀ।

ਉੱਪਰਲੀ ਵਿਚਾਰ-ਚਰਚਾ ਤੋਂ ਇਹ ਵਸਿੱ ਟਾ ਕਿੱ ਵਢਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਵਕ ਅਜ਼ਾਦੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਿੀ
ਭਾਰਤੀ ਹਕੂਮਤਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਬਹੁਭਾਸ਼ਾਈ, ਬਹੁਸਿੱਵਭਆਚਾਰਕ ਅਤੇ ਬਹੁਕੌਮੀ ਹੋਣ ਦੀ ਹਕੀਕਤ

ਨੂੰ ਭਾਰਤੀ ਰਾਜ ਪਰਬੰਧ ਅਤੇ ਨੀਤੀਆਂ ਦਾ ਚੰ ਗੀ ਤਰਾਂ ਅਧਾਰ ਨਹੀਂ ਬਣਾਇਆ। ਇਸ ਅਣਗਵਹਲੀ,

ਸਗੋਂ ਮਾੜੀ ਨੀਤੀ ਅਤੇ ਨੀਤ, ਦਾ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਮੁਿੱ ਲ ਵਸਿੱ ਵਖਆ, ਵਗਆਨ-ਵਿਵਗਆਨ ਅਤੇ
ਅਰਥਚਾਰੇ ਵਿਿੱ ਚ ਪਿੱ ਛੜੇਪਨ ਅਤੇ ਆਪਣੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਿਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱ ਵਭਆਚਾਰਾਂ ਦੇ ਦੇਸ਼ ਵਨਕਾਲੇ ਦੇ

ਰੂਪ ਵਿਿੱ ਚ ਦੇਣਾ ਪੈ ਵਰਹਾ ਹੈ। ਲੋ ੜ ਹੈ ਵਕ ਭਾਰਤੀ ਰਾਜ ਇਸ ਹਕੀਕਤ ਨੂੰ ਪਛਾਣੇ ਅਤੇ ਭਾਸ਼ਾਈ

ਸਿਾਲਾਂ ਨੂੰ ਠੀਕ ਢੰ ਗ ਨਾਲ਼ ਸਮੇਂ ਵਸਰ ਨਵਜਿੱ ਠੇ। ਨਹੀਂ ਤਾਂ, ਵਜਿੇਂ ਮੈ ਆਪਣੇ ਇਿੱ ਕ ਪਵਹਲੇ ਲੇ ਖ
ਵਿਿੱ ਚ ਿੀ ਵਲਵਖਆ ਸੀ, ‘ਸਵਥਤੀਆਂ ਏਨੀਆਂ ਵਭਆਨਕ ਿੀ ਹੋ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ ਵਜੰ ਨੀਆਂ ਅਿੱ ਜ

ਵਕਆਸ ਕਰਨਾ ਿੀ ਔਖਾ ਹੈ’।

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