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Hhss 108
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पिछले अध्यायों में हम निम्नलिखित का अध्ययन कर चक ु े हैं— चित्र 1 - भारत छोड़ो आदं ोलन के दौरान
प्रदर्शनकारियों पर आँसू गैस के गोले
भारतीय भक् ू षेत्र पर अग्ं रेज़ों का कब्ज़ा और रियासतों का अधिग्रहण छोड़ती पलु िस।
नए काननू ों और प्रशासकीय संस्थाओ ं की शरुु आत
किसानों और आदिवासियों की जि़दं गी में बदलाव
उन्नीसवीं सदी में आए शैक्षणिक बदलाव
महिलाओ ं की स्थिति से सबं ंधित वाद-विवाद
जाति व्यवस्था को चनु ौतियाँ
सामाजिक एवं धार्मिक सधा ु र
1857 का विद्रोह और उसके बाद की स्थिति
हस्तकलाओ ं का पतन और उद्योगों का विकास
इन मद्ु दों के बारे में आपने जो कुछ पढ़ा, उसके आधार पर क्या आपको
ऐसा लगता है कि भारत के लोग ब्रिटिश शासन से असतं ष्ु ट थे? यदि हाँ तो
विभिन्न समहू और वर्ग क्यों असंतष्ु ट थे?
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चित्र 7 - वह परिसर जहाँ जनरल डायर रॉलट सत्याग्रह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ पहला अखिल भारतीय संघर्ष
ने लोगों की सभा पर गोलियाँ चलाई थीं। था हालाँकि यह मोटे तौर पर शहरों तक ही सीमित था। अप्रैल 1919 में परू े
बाद के इस चित्र में लोग दीवार पर बने देश में जगह-जगह जल
गोलियों के निशानों की तरफ़ इशारा कर
ु सू निकाले गए और हड़तालों का आयोजन किया
रहे हैं। गया। सरकार ने इन आदं ोलनों को कुचलने के लिए दमनकारी रास्ता अपनाया।
बैसाखी (13 अप्रैल) के दिन अमृतसर में जनरल डायर द्वारा जलियाँवाला बाग
नाइटहुड - ब्रिटिश राजा/रानी की में किया गया हत्याकांड इसी दमन का हिस्सा था। इस जनसहं ार पर रवीन्द्रनाथ
तरफ़ से किसी व्यक्ति की अप्रतिम टैगोर ने अपनी पीड़ा और गसु ्सा जताते हुए नाइटहुड की उपाधि वापस लौटा दी।
व्यक्तिगत सफलताओ ं या जनसेवा रॉलट सत्याग्रह के दौरान लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ हिदं ओु ं
के लिए दी जाने वाली उपाधि। और मसु लमानों के बीच गहरी एकता बनाए रखने के लिए प्रयास किए।
98 हमारे अतीत–III
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1922–1929 की घटनाएँ
महात्मा गांधी हिसं क आदं ोलनों के विरुद्ध थे। इसी कारण फ़रवरी 1922 में
जब किसानों की एक भीड़ ने चौरी-चौरा पलि ु स थाने पर हमला कर उसे जला
दिया तो गांधीजी ने अचानक असहयोग आदं ोलन वापस ले लिया। उस दिन
22 पलि ु स वाले मारे गये। किसान इसलिए बेकाबू हो गए थे क्योंकि पलि ु स ने
उनके शांतिपर्णू जल ु सू पर गोली चला दी थी।
असहयोग आदं ोलन ख़त्म होने के बाद गांधीजी के अनयाय ु ी ग्रामीण
इलाकों में रचनात्मक कार्य शरू ु करने पर ज़ोर देने लगे। चितरंजन दास और
मोतीलाल नेहरू जैसे अन्य नेताओ ं की दलील थी कि पार्टी को परिषद् चना ु वों
में हिस्सा लेना चाहिए और परिषदों के माध्यम से सरकारी नीतियों को प्रभावित
करना चाहिए। बीस के दशक के मध्य में गाँवों में किए गए व्यापक सामाजिक
कार्यों की बदौलत गांधीवादियों को अपना जनाधार फै लाने में काफ़ी मदद
मिली। 1930 में शरू ु किए गए सविनय अवज्ञा आदं ोलन के लिए यह जनाधार
काफ़ी उपयोगी साबित हुआ।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिदं ओ ु ं के सगं ठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक सघं
(आरएसएस) की स्थापना बीस के दशक के मध्य की दो महत्त्वपर्णू घटनाएँ थीं। चित्र 9 - चितरंजन दास।
भारत के भविष्य को लेकर इन पार्टियों की सोच में गहरा फ़र्क रहा है। अपने स्वतंत्रता आदं ोलन में चितरंजन दास एक
अध्यापकों की सहायता से उनके विचारों के बारे में पता लगाएँ। उसी दौरान मखु ्य नेता थे। वह पर्वी
ू बंगाल में वकील
थे। असहयोग आदं ोलन में वह काफ़ी
क्रांतिकारी राष्ट्रवादी भगत सिहं भी सक्रिय थे। इस दशक के आख़िर में कांग्रेस सक्रिय रहे।
बोस और आईएनए
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