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ाऄध्याय 1: राष्ट्र वनमाा ण और एकीकरण: प्रक्रिया और चु नौवतयाां

(Nation Building and Consolidation: Process and Challenges)

1.1 पररचय (Introduction)

े ी साम्राज्य का ाऄांत हो गया तथा भारत ने स्ितांत्रता प्राप्त की।


15 ाऄगस्त 1947 को भारत में ाऄांग्रज
हािाांक्रक यह स्ितांत्रता देश के विभाजन की कीमत पर प्राप्त हुाइ थी। निजात राष्ट्र का एक बहुत बड़ा
वहस्सा साम्प्रदावयक दांगों की चपेट में था। दो नए देशों की सीमाओं के ाअर-पार विशाि जनसमूह का
पिायन हो रहा था। भोजन एिां ाऄन्य ाअिश्यक सामवग्रयों का ाऄभाि हो रहा था और प्रशासवनक तांत्र
के टू ट कर समाप्त हो जाने का खतरा मांडरा रहा था।
यह भौगोविक रूप से विस्तृत और विविधता से पररपूणा विशाि देश था। समाज सक्रदयों के वपछड़ेपन,

द्वेष, पूिााग्रह, ाऄसमानता और वनरक्षरता से पीवड़त था। औपवनिेवशक शासन और ाईद्योगों के सक्रदयों के
ाईत्पीड़न के बाद ाअर्थथक क्षेत्र में गरीबी थी और कृ वष की दशा ाऄच्छी नहीं थी। ाआस समय भारत के
सम्मुख तात्काविक समस्याएाँ वनम्नविवखत थीं-
 देशी ररयासतों का वििय एिां क्षेत्रीय और प्रशासवनक एकीकरण
 विभाजन के साथ चि रहे साम्प्रदावयक दांगों पर वनयांत्रण
 पाक्रकस्तान से ाअये साठ िाख शरणार्थथयों का पुनिाास
 साम्प्रदावयक वगरोहों से मुसिामानों की सुरक्षा
 पाक्रकस्तान के साथ युद्ध से बचाि और कम्युवनस्ट विद्रोहों पर वनयांत्रण
साथ ही कु छ मध्यकाविक काया भी थे जैसे - सांविधान का वनमााण, प्रवतवनवधमूिक जनिाद और

नागररक स्ितांत्रता पर ाअधाररत राजनीवतक व्यिस्था का वनमााण, कें द्र और राज्यों में ाईत्तरदायी और
प्रवतवनवधत्ि व्यिस्था पर ाअधाररत सरकारों की स्थापना के विए चुनािों का ाअयोजन एिां ाअमूि भूवम
सुधार के माध्यम से ाऄधा सामांती कृ वष व्यिस्था का ाईन्मूिन।
ाआसके ाऄवतररि निगरठत स्ितांत्र सरकार का दीघाकािीन कायाभार था राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन एिां
राष्ट्र का सुदढ़ृ ीकरण, राष्ट्र की रचना प्रक्रिया को ाअगे बढ़ाना, तीव्र स्ितांत्र ाअर्थथक विकास को प्रोत्साहन,

जनता की ाऄसीम दररद्रता का वनिारण और ाईसके विए वनयोजन प्रक्रिया का ाअरम्भ, शतावधदयों के

सामावजक ाऄन्याओं, ाऄसमानताओं और शोषण का ाईन्मूिन एिां ाऄांतताः एक ऐसी विदेश नीवत का
विकास जो भारत की स्ितांत्रता की रक्षा कर सके एिां शावन्त को बढ़ािा दे सके ।
ाआन चुनौवतयों के कारण काइ पयािेक्षकों ने भारत के विघटन की भविष्प्यिाणी की, विशेष रूप से जब
ाईन्होंने िोकतांत्र के विकास के विए जरूरी वस्थवतयों के न होने के बािजूद सरकार की िोकताांवत्रक
व्यिस्था को ाऄपनाया। हािाांक्रक स्ितांत्र भारत ने जब ाऄपने निवनमााण का शुभारम्भ क्रकया तो ाईसके
पास मात्र समस्याएाँ ही नहीं थी ाऄवपतु शवि भी थी। सबसे बड़ी शवि थी ाईच्च क्षमता और ाअदशा िािे
समर्थपत महान नेताओं की मजबूत पांवि। ाआस समय का नेतृत्ि भारत के सामावजक और ाअर्थथक
रूपाांतरण तथा समाज और राजनीवत के जनिादीकरण के प्रवत पूणाताः समर्थपत था। नेहरु और ाऄन्य नेता
मानते थे क्रक देश के विकास और प्रशासन के विए राष्ट्रीय ाअम सहमवत का वनमााण ाअिश्यक था। ाआसके
े पाटी वजसकी जनता पर
ाऄवतररि देश का प्राकृ वतक सांसाधन और यहााँ के पररिमी िोग तथा काांग्रस
गहरी पकड़ और व्यापक समथान था। ाआस प्रकार ाआन शवियों ने राष्ट्र वनमााण की प्रक्रिया में महत्िपूणा
िक्ष्यों को प्राप्त करने का ाऄिसर प्रदान क्रकया।
1.2. विभाजन और ाआसके बाद

स्ितांत्रता की खुवशयााँ विभाजन की त्रासदी भी ाऄपने साथ िेकर ाअाइ थी। ाआसके पररणामस्िरूप बड़े
पैमाने पर साांप्रदावयक हहसा और विस्थापन हुाअ। ाआस प्रकार, प्रारम्भ में ही एकता और सामावजक
एकजुटता को औपवनिेवशक शासन द्वारा छोड़ी गाइ विरासत द्वारा चुनौती दी गाइ।

विभाजन के समय विस्थापन का एक दृश्य

1.2.1 विरासत और विभाजन के मु द्दे : सीमाएां , विस्थापन और पु न िाा स

ाअजादी में पाक्रकस्तान भारत के साथ था। ाआस प्रकार, विरटश भारत के 'विभाजन' के कारण, दो राष्ट्र
राज्य ाऄवस्तत्ि में ाअए। पाक्रकस्तान विरटश शासन द्वारा ाईत्पन्न की गाइ साांप्रदावयक राजनीवत का
चरमोत्कषा था, वजसका मुवस्िम िीग द्वारा "वद्वराष्ट्र वसद्धाांत" के रूप में समथान क्रकया गया था।
1940 के दशक की ाईग्र पररवस्थवतयों और काइ ाऄन्य राजनीवतक घटनाओं के कारण राजनीवतक स्तर
पर काइ बदिाि ाअए। काांग्रेस और मुवस्िम िीग के बीच राजनीवतक प्रवतस्पधाा तथा विरटश सरकार की
भूवमका जैसी काइ ाऄन्य बातों के कारण पाक्रकस्तान के वनमााण की माांग मान िी गाइ।

1.2.2. सीमा रे खा

ाऄब एक बहुत ही महत्िपूणा काया सीमाओं का सीमाांकन था। मााईां टबेटन की तीन जून की योजना के
फिस्िरूप विरटश न्यायिादी सर वसररि रे डवलिफ की ाऄध्यक्षता में दो सीमा ाअयोग वनयुि क्रकए गए-
एक बांगाि और एक पांजाब के विए। ाआसका काया एक सुवनवित समय सीमा में वहन्दू तथा मुवस्िम
बहुसांख्या िािे परन्तु सांिग्न प्रदेशों ाऄथिा ग्रामों का मानवचत्रों पर वनधाारण करना था। जनसाँख्या के
साथ-साथ ाऄन्य तत्िों जैसे सांचार के साधन, नक्रदयों तथा पहाड़ों ाअक्रद को भी ध्यान में रखना था। ाआस
काया के विए 6 सप्ताह का समय वनधााररत क्रकया गया था। ाअयोग में चार ाऄन्य सदस्य भी थे िेक्रकन
काांग्रेस और मुवस्िम िीग के बीच गवतरोध था। 17 ाऄगस्त, 1947 को रे डवलिफ महोदय ने ाऄपने
वनणाय की घोषणा की।

1.2.3. रे डवलिफ वनणा य के वनवहताथा

ाआस वनणाय में धार्थमक बहुसांख्या के वसद्धाांत का पािन करने का वनणाय विया गया, वजसका ाऄथा था क्रक
ऐसे क्षेत्र जहााँ मुसिमान बहुसांख्या में हैं िहााँ पाक्रकस्तान के क्षेत्र का वनमााण क्रकया जाएगा। शेष
जनसाँख्या को भारत के साथ ही रहना था।
धार्थमक बहुसांख्या के वसद्धाांत ने ाऄत्यवधक करठन पररवस्थवतयों को जन्म क्रदया:
 विरटश भारत में कोाइ भी ऐसा क्षेत्र नहीं था जहााँ मुसिमान बहुसांख्यक हों। भारत के पविम और
पूिी वहस्से ही दो ऐसे क्षेत्र थे जहााँ मुवस्िम जनसाँख्या का ाऄवत सांकेंद्रण था। ाआसविए, यह वनणाय

विया गया क्रक नए देश पाक्रकस्तान में दो क्षेत्र होंगे, पहिा पविमी पाक्रकस्तान और दूसरा पूिी
पाक्रकस्तान।
 सभी मुसिमान पाक्रकस्तान में सवम्मवित होने के पक्ष में नहीं थे। सीमान्त गाांधी, खान ाऄधदुि

गफ्फार खान, जो पविमोत्तर सीमा प्राांत के वनर्थििाद नेता थे, ने ‘वद्वराष्ट्र वसद्धाांत’ का दृढ़ विरोध
क्रकया। खान ाऄधदुि गफ्फार खान ने सीवमत मतावधकारों के प्रािधान के कारण जनमत सांग्रह का
बवहष्प्कार क्रकया, ाआसविए मैदान में बची एकमात्र प्रवतयोगी, मुवस्िम िीग स्िताः विजयी हो गाइ

और ाऄांतताः पविमोत्तर सीमा प्राांत (NWFP) का पाक्रकस्तान के साथ वििय कर क्रदया गया।

 विरटश भारत के मुवस्िम बहुसांख्यक दो प्राांतों, पांजाब और बांगाि के एक बड़े क्षेत्र पर गैर-मुवस्िम
ाअबादी भी बहुसांख्या में थी। ाऄांतताः यह वनणाय विया गया क्रक वजिा या यहाां तक क्रक ाआससे वनचिे
प्रशासवनक स्तर पर धार्थमक बहुसांख्या के ाअधार पर ाआन दो प्राांतों का विभाजन क्रकया जाएगा। ाआन
दो प्राांतों के विभाजन ने विभाजन को एक कटु ाऄनुभि बना क्रदया।
 ाऄांवतम गांभीर बात यह थी क्रक सीमा के दोनों ओर ाअबादी का एक बड़ा वहस्सा ऐसा था वजसे
"ाऄलपसांख्यक" कहा जा सकता था। जो क्षेत्र ाऄब पाक्रकस्तान में हैं िहााँ िाखों की सांख्या में वहन्दू
और वसख ाअबादी थी। ठीक ाआसी तरह पांजाब और बांगाि के भारतीय भू-भाग में भी िाखों की
सांख्या में मुसिमान ाअबादी थी। सक्रदयों से ाअबाद रहे ाईसी जमीन पर ये विदेशी बन गए थे। दोनों
तरफ के ाऄलपसांख्यक भय के िातािरण में रहते थे और विभाजन के दौरान िू र हहसा से ाऄपने
जीिन की रक्षा के विए ाआन्होंने ाऄपने घरों को छोड़ क्रदया था।

1.2.4. ाआस वनणा य की सीमा

 न्यायमूर्थत रे डवलिफ को भारत के बारे में कोाइ पूिा ज्ञान नहीं था।
 काया के विए ाईनके पास कोाइ विशेष ज्ञान भी नहीं था।
 ाईनके पास सिाहकार और विशेषज्ञों का ाऄभाि था।
 ाआस वनणाय के विए 6 सप्ताह की समय सीमा तय की गाइ थी।

1.2.5. विभाजन के पररणाम

िषा 1947 में, बड़े पैमाने पर एक जगह की ाअबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुाइ थी। ाअबादी का

यह स्थानान्तरण ाअकवस्मक, ाऄवनयोवजत और त्रासदी से भरा था। मानि ाआवतहास के ाऄब तक ज्ञात
सबसे बड़े स्थानान्तरणों में से यह एक था।
 सीमा के दोनों ओर िू र हत्याएां, ाऄत्याचार और बिात्कार हुए।

 िाहौर, ाऄमृतसर और किकत्ता (ाऄब कोिकाता) जैसे शहर "साांप्रदावयक ाऄखाड़े" में बदि गए।

 काइ घटनाएाँ ऐसी भी हुईं वजनमें 'पररिार के सम्मान' को सांरवक्षत रखने के विए मवहिाओं को
ाऄपने ही पररिार के सदस्यों द्वारा मार क्रदया गया था।
 मवहिाओं को जबरन वििाह करना पड़ा और धमा पररितान करना पड़ा।
 वित्तीय सम्पदा के साथ-साथ सरकारी ाऄवधकाररयों के टेबि, कु र्थसयों और यहााँ तक क्रक पुविस के
िाद्ययांत्रों तक का बांटिारा हुाअ था।
 ऐसा ाऄनुमान क्रकया जाता है क्रक विभाजन के कारण 80 िाख िोगों को ाऄपना घर-बार छोड़कर
सीमा पार जाना पड़ा।
 विभाजन के समय हुाइ हहसा में पाांच से दस िाख िोगों ने ाऄपनी जान गाँिााइ।

1.2.6. राहत और पु न िाा स

भारत सरकार पाक्रकस्तान से ाअये िगभग साठ िाख शरणार्थथयों के पुनिाास और ाईन्हें राहत प्रदान
करने में सफि रही थी।
 शरणार्थथयों के देख-रे ख के विए राहत और पुनिाास विभाग की स्थापना की गाइ थी।
 बम्बाइ के कोििाड़ा और कु रुक्षेत्र में शरणाथी वशविर स्थावपत क्रकए गए थे।
 भारत सरकार द्वारा यह वनदेवशत क्रकया गया था क्रक पविम पांजाब से ाअने िािे वहन्दू और वसख
शरणार्थथयों को कु रुक्षेत्र के शरणाथी वशविर में रखा जाए। एक खुिे मैदान पर तम्बुओं का विशाि
शहर स्थावपत हो गया था।
 कु रुक्षेत्र पविम पांजाब से ाअने िािे शरणार्थथयों के विए स्थावपत िगभग 200 वशविरों में से सबसे
ां ाइ में पाांच शरणाथी वशविर बनाए गए थे।
बड़ा था। हसध क्षेत्र से ाअने िािे शरणार्थथयों के विए मुब
कु छ शरणाथी सत्ता-हस्ताांतरण की तारीख से पहिे ही पहुाँच गए थे; ाआनमें मुख्य रूप से िे व्यिसायी थे
वजन्होंने ाऄपनी सांपवत्तयों को पहिे ही बेच क्रदया और क्रफर स्थानाांतररत हो गए। हािाांक्रक, एक विशाि
जनसाँख्या 15 ाऄगस्त 1947 के बाद ाअाइ, वजनके शरीर पर बहुत ही कम कपड़े थे। ये िो क्रकसान थे जो
'ाअवखरी पि तक िहााँ रुके रहे और यह चाहते थे क्रक यक्रद ाईन्हें सम्मानजनक जीिन का ाअश्वासन क्रदया
जाए तो िे पाक्रकस्तान में रह सकते हैं'। िेक्रकन, वसतांबर और ाऄलटू बर में जब पांजाब में हहसा बहुत बढ़
गाइ तो ाईन्हें ाऄपना यह विचार त्यागना पड़ा। हहदू और वसख िोग सड़क, रे ि, समुद्र मागा द्वारा या
पैदि ही भारत चिे गए।
शरणार्थथयों को स्थायी घर और ाईत्पादक कायों की ाअिश्यकता थी। शरणार्थथयों को स्थायी रूप से
रहने के विए भूवम की ाअिश्यकता थी। भारत से पाक्रकस्तान की तरफ भी एक बड़ा प्रिास हुाअ। ाआस
प्रकार, पांजाब के पूिी वहस्से में मुसिमानों द्वारा खािी की गाइ भूवम पर शरणार्थथयों को पुनस्थाावपत
करने का प्रयास क्रकया गया। यक्रद ाआवतहास में जनसांख्या का स्थानाांतरण 'सबसे बड़ा जन प्रिास' रहा है
तो ाऄब 'दुवनया में सबसे बड़ा पुनिाास ाऄवभयान' प्रारम्भ हुाअ था।
 जहााँ पविम पांजाब में हहदुओं और वसखों द्वारा 2.7 वमवियन हेलटेयर भूवम छोड़ी गाइ थी िहीं पूिी

पांजाब में मुसिमानों ने के िि 1.9 वमवियन हेलटेयर भूवम ही छोड़े।


 पविमी क्षेत्रों में ाईन्नत मृदा सांसाधन था और हसचााइ के पयााप्त साधन भी ाईपिधध थे।
ाअरां भ में, शरणाथी क्रकसानों के प्रत्येक पररिार को चार हेलटेयर भूवम ाअिांरटत की गाइ थी और यह
ध्यान नहीं रखा गया क्रक पाक्रकस्तान में ाईनके पास क्रकतनी भूवम थी। बीज और ाईपकरण खरीदने के
विए ाऊण क्रदए गए। जब ाआन ाऄस्थायी भू-खांडों पर खेती शुरू हुाइ तो स्थायी ाअिांटन के विए ाअिेदन
ाअमांवत्रत क्रकए गए।
प्रत्येक पररिार को ाआस बात का साक्ष्य प्रस्तुत करने को कहा गया क्रक ाईन्होंने पूिा में क्रकतनी भूवम छोड़ी
थी। 10 माचा 1948 से ाअिेदन विए गए; एक महीने के भीतर, ाअधा िाख से ज्यादा दािों को दजा

क्रकया गया। ाआन दािों को खुिी सभा में सत्यावपत क्रकया गया, वजसमें एक ही गाांि के ाऄन्य प्रिासी भी
शावमि होते थे। चूांक्रक प्रत्येक दािे को सरकारी ाऄवधकारी द्वारा पढ़ा गया था ाऄताः ाऄसेंबिी ने ाआसे
मांजरू ी दे दी या सांशोवधत क्रकया या ाऄस्िीकार कर क्रदया।
ाऄनुमानताः काइ शरणार्थथयों द्वारा प्रस्तुत दािों को पहिी ही नज़र में ाऄवतशयोविपूणा पाया गया।
हािाांक्रक, प्रत्येक झूठे दािों के विए ाईन्हें दवडडत क्रकया गया, कभी ाईनको ाअिांरटत भूवम को कम कर
क्रदया गया तो कभी ाईन्हें कारािास के रूप में भी दवडडत क्रकया गया। ाआसने वनिारक के रूप में काया
क्रकया; क्रफर भी, ाआस प्रक्रिया के साथ वनकटता से जुड़े एक ाऄवधकारी ने ाऄनुमान िगाया क्रक ाआस तरह के

कु ि मामिों में िगभग 25 प्रवतशत तक की िृवद्ध हुाइ थी। दािों को ाआकट्ठा करने, एकत्र करने, सत्यावपत
करने और काया करने के विए जुिुांडुर (ाअधुवनक जािांधर) में एक पुनिाास सवचिािय स्थावपत क्रकया
गया था।
भारतीय वसविि सेिा के सरदार तरिोक हसह ने पुनिाास क्रियाओं का नेतृत्ि क्रकया। ये पुनिाास विभाग
के महावनदेशक थे। िांदन स्कू ि ऑफ ाआकोनॉवमलस से स्नातक, तरिोक हसह ने ाऄपने ाऄकादवमक
प्रवशक्षण के ाऄनुभि को ाऄच्छी तरह से प्रयोग क्रकया। ाआनके निीन विचारों ने शरणार्थथयों के पुनिाास को
सफि बनाया।
ाआस प्रकार पुनिाास के काया को पूरा करने में समय िगा और 1951 तक, पविम पाक्रकस्तान के
शरणार्थथयों के पुनिाास की समस्या को पूरी तरह से सुिझा विया गया था।
पूिी बांगाि से ाअने िािे शरणार्थथयों के पुनिाास की समस्या ाआसविए ज्यादा गांभीर थी लयोंक्रक िहााँ से
वहन्दुओं का ाअना काइ िषों तक चिता रहा।

1.2.7. विभाजन से परे : ाअां त ररक एकीकरण की चु नौवतयाां

विभाजन के ाआस सबसे बुरे स्िप्न से वनपटने के बाद, भारतीय नेतृत्ि ने भारत को एकीकृ त करने और
ाऄपने ाअांतररक मामिों की देखभाि करने का प्रयास क्रकया।

1.2.7.1. एकीकरण की योजना

1947 के बाद क्रकए जाने िािे राष्ट्रीय एकीकरण की व्यापक रणनीवत में शावमि थे:

 क्षेत्रीय एकीकरण,
 राजनीवतक और सांस्थागत सांसाधनों का सांघटन
 ाअर्थथक विकास और
 सामावजक न्याय को बढ़ािा देने िािी नीवतयों को ाऄपनाना, ाऄसमानताओं को समाप्त कर ाऄिसरों
की समता प्रदान करना।
राहत वशविर का एक दृश्य

1.3. ररयासतों का एकीकरण (Integration of Princely States)

विरटश भारत दो वहस्सों में बांटा था। एक वहस्से में विरटश प्रभुत्ि िािे भारतीय प्राांत थे तो दूसरे वहस्से
में देशी ररयासतें। विरटश प्रभुत्ि िािे भारतीय प्राांतों पर विरटश सरकार का सीधा वनयांत्रण था। दूसरी
तरफ छोटे-बड़े ाअकार के कु छ और राज्य थे वजन्हें ‘देशी ररयासतें’ या ‘रजिाड़ा’ कहा जाता था। देशी
ररयासतों पर राजाओं का शासन था। ाआन राजाओं ने विरटश राज की ाऄधीनता या कहें क्रक सिोच्च सत्ता
स्िीकार कर रखी थी और ाआसके ाऄांतगात िे ाऄपने राज्य के घरे िू मामिों का शासन चिाते थे।
विभाजन के बाद भारत एिां देशी ररयासतों को एक प्रशासन के ाऄांतगात िाना प्रायाः राजनीवतक नेतृत्ि
के सामने सबसे महत्िपूणा कायाभार था। औपवनिेवशक भारत में, िगभग ाआसका 40% भू-भाग छोटे
और बड़े ऐसे 565 ररयासतों द्वारा वघरा था वजस पर शासन करने िािे राजाओं को ‘विरटश
पारामााईां टसी’ (विरटश सिोच्चता) के ाऄांतगात विवभन्न प्रकार की स्िायत्तता प्राप्त थी। विरटश शासन ाईन्हें
ाऄपनी जनता से बचाने के साथ-साथ बाहरी ाअिमणों से तब तक बचाती थी जब तक िे ाऄांग्रेजों की
बात मानते रहे।
जैसे ही विरटश सरकार भारत से िापस जाने के विए तैयार होने िगी, िैसे ही 565 ररयासतों में से
काआयों ने ाअजादी के सपने देखने शुरू कर क्रदए। ाईन्होंने यह दािा क्रकया क्रक ाआन दो निजात राज्यों
ाऄथाात भारत और पाक्रकस्तान को पारामााईां टसी हस्ताांतररत नहीं क्रकया जा सकता। 20 फरिरी, 1947
को तत्कािीन विरटश प्रधानमांत्री लिीमेंट एटिी की ाआस घोषणा ने ाईनकी महत्िाकाांक्षाओं को और बढ़ा
क्रदया क्रक "सम्राट की सरकार पारामााईां टसी के ाऄांतगात ाऄपनी शवियों और कताव्यों को विरटश भारत की
क्रकसी सरकार को सौंपने का ाआरादा नहीं रखती है"।
राष्ट्रिादी ाअन्दोिन िम्बे समय से यह मानता ाअ रहा था क्रक राजनीवतक सत्ता पर ाऄवधकार ाईसके
राजा का नहीं बवलक जनता का होता है और ररयासतों की जनता भी भारत राष्ट्र का ाऄवभन्न ाऄांग है।
ाऄताः राष्ट्रिादी नेताओं ने सभी ररयासतों के ाअजादी के ाआन दािों को ठु करा क्रदया और कहा क्रक देशी
ररयासतों के सामने ाअज़ादी का कोाइ विकलप नहीं है – ाईनके पास मात्र यही विकलप है क्रक ाऄपनी
क्षेत्रीय वस्थवत की वनकटता और ाआसकी जनता की ाआच्छाओं के ाऄनुरूप िे या तो भारत में शावमि हो
सकते हैं या पाक्रकस्तान में।
बहुत कु शिता और दक्षतापूणा राजनवयकता के साथ प्रिोभन और दबाि का प्रयोग करते हुए सरदार
पटेि सैकड़ों ररयासतों का भारतीय सांघ में वििय कराने में सफि हुए। कु छ ररयासतों ने ाऄप्रैि 1947
की सांविधान सभा में शावमि होकर समझदारी और यथाथाता के साथ प्रायाः कु छ हद तक देशभवि
क्रदखााइ, परन्तु ाऄवधकाांश राजा ाआससे ाऄिग रहे। त्रािणकोर, भोपाि और हैदराबाद के ररयासतों ने
सािाजवनक रूप से यह घोवषत क्रकया क्रक िे स्ितांत्र दजे (independent status) का दािा पेश करना
चाहते हैं।
27 जून, 1947 को सरदार पटेि ने नि वनर्थमत ररयासत विभाग का ाऄवतररि कायाभार ाआसके सवचि
िी.पी. मेनन के साथ सांभाि विया।
देशी ररयासतों के प्रवत सरकार के दृविकोण से तीन बातें सामने ाअती हैं:
 ाऄवधकतर देशी ररयासतों के िोग भारतीय सांघ में शावमि होना चाहते थे।
 भारत सरकार का रुख िचीिा था और िह कु छ ाआिाकों को स्िायत्तता देने के विए तैयार थी।
सरकार ने विवभन्नताओं को सम्मान देने तथा विवभन्न क्षेत्र की माांगों को सांतुि करने के विए यह
रुख ाऄपनाया था।
 विभाजन की पृष्ठभूवम में विवभन्न क्षेत्रों के सीमाांकन के प्रश्न पर खींचतान जोर पकड़ रही थी और
ऐसे में देश की क्षेत्रीय ाऄखांडता-एकता का सिाि सबसे ज्यादा महत्िपूणा हो ाईठा था।
ां िा ाअयोवजत की जहाां ाईन्होंने भारत के नए सांविधान को तैयार करने
पटेि ने िांच पार्टटयों की एक िृख
े की मदद करने के विए देशी ररयासतों से ाअने िािे मेहमान राजाओं से ाऄनुरोध क्रकया। पटेि
में काांग्रस
का पहिा कदम था ाईन राजाओं से, वजनके क्षेत्र भारत के ाऄांदर पड़ते थे, यह ाऄपीि करना क्रक िे तीन
विषयों पर भारतीय सांघ को स्िीकृ वत प्रदान करें वजनसे पूरे देश का वहत जुड़ा हुाअ है। ये विषय थे-
ां , सेना और सांचार। ाईन्होंने दबे तौर पर यह धमकी भी दी क्रक िे ररयासत की बेकाबू हो रही
विदेश सांबध
जनता को वनयांवत्रत करने में मदद के विए समथा नहीं हो पायेंगे तथा 15 ाऄगस्त 1947 के बाद सरकार
की शतें और कड़ी होती जाएांगी।
पटेि का ाऄगिा कदम मााईां टबेटन को भारत के समथान के विए मनाना था। मााईां टबेटन द्वारा 25 जुिााइ
को चैंबर ऑफ हप्रसेस के समक्ष क्रदए गए भाषण ने ाऄांतताः राजाओं को राजी कर विया।
वनम्नविवखत कु छ राज्य ऐसे भी थे वजन्होंने वििय पत्र हस्ताक्षर करने में ाअनाकानी की:
 त्रािणकोर- यहााँ के राजा वचवतरा वतरुनि थे, परन्तु िास्तविक शासक दीिान सी. पी.
रामास्िामी ाऄय्यर था। सी. पी. ाऄय्यर पर हुए एक ाअिमण के बाद त्रािणकोर के महाराजा ने
सरकार से कहा क्रक िे वििय के विए तैयार हैं।
 जोधपुर- सीमा के वनकट होने के कारण ाआसका वििय एक गांभीर मुद्दा था। युिा राजा को भी
िुभाया जा रहा था िेक्रकन पटेि के भारी दबाि कारण, ाऄांतताः ाईन्होंने ‘ाआां स्ूमेंट ऑफ़ एलसेशन’ पर
हस्ताक्षर कर क्रदए।
 भोपाि- यहााँ पर मुख्य रूप से हहदू ाअबादी रहती थी। यहााँ के शासक हबीबुलिाह खान को वजन्ना
का समथान प्राप्त था। भोपाि के शासक के वखिाफ एक विद्रोह हुाअ। ाईन्हें पटेि और ाअम जनता के
दबाि का सामना करना पड़ा और ाऄांतताः ाईन्होंने ‘ाआां स्ूमेंट ऑफ़ एलसेशन’ पर हस्ताक्षर कर क्रदए।
शाांवतपूणा बातचीत के जररए िगभग सभी ररयासतें वजनकी सीमाएां ाअजाद भारत की नाइ सीमाओं
से वमिती थी, 15 ाऄगस्त 1947 से पहिे ही भारतीय सांघ में शावमि हो गए। जूनागढ़, जम्मू और
कश्मीर तथा हैदराबाद को छोड़कर ाऄवधकाांश ररयासतों ने भारतीय सांघ में ाऄपने वििय के एक
सहमवत पत्र पर हस्ताक्षर कर क्रदए। ाआस सहमवत पत्र को ‘ाआां स्ूमेंट ऑफ़ एलसेशन’ कहा जाता है।
ाआस पर हस्ताक्षर का ाऄथा था क्रक ररयासतें भारतीय सांघ का ाऄांग बनने के विए सहमत हैं।
जूनागढ़, जम्मू और कश्मीर, हैदराबाद तथा मवणपुर की ररयासतों का वििय बाक्रकयों की तुिना में
थोडा करठन सावबत हुाअ।
1.3.1. जू नागढ़

जूनागढ़ सौराष्ट्र के तट पर एक छोटी सी ररयासत थी जो चारों ओर से भारतीय भू-भाग से वघरी हुाइ


थी। ाआसविए पाक्रकस्तान के साथ ाईसका कोाइ भौगोविक सामीप्य नहीं था। क्रफर भी ाआसके निाब
मोहधबत खान ने 15 ाऄगस्त 1947 को ाऄपने राज्य का वििय पाक्रकस्तान के साथ घोवषत कर क्रदया।
हािाांक्रक राज्य की जनता जो सिाावधक वहन्दू थी, भारत में शावमि होने की ाआच्छु क थी।
नेहरु और पटेि मानते थे क्रक ाआस सन्दभा में वनणाायक स्िर जनता का होना चावहए और ाआसका वनणाय
जनमत सांग्रह के ाअधार पर होना चावहए। राज्य की जनता ने एक जनाांदोिन सांगरठत क्रकया और निाब
को भागने के विए मजबूर कर क्रदया तथा समि दास गाांधी के नेतृत्ि में ाअररज-ए-हुकु मत ाऄथाात् एक
ाऄस्थााइ सरकार का गठन क्रकया। जूनागढ़ के दीिान, शाह निाज भुट्टो, जो बाद में ज्यादा प्रवसद्ध
जुवलफकार ाऄिी भुट्टो के वपता थे, ने ाऄब भारत सरकार को हस्तक्षेप करने के विए ाअमांवत्रत करने का
वनणाय विया। ाआसके बाद भारतीय सेना राज्य में प्रिेश कर गाइ। ाऄांतताः 20 फरिरी 1948 को ररयासत
के ाऄन्दर एक जनमत सांग्रह करिाया गया जो व्यापक रूप से भारत के साथ वििय के पक्ष में गया।

1.3.2. कश्मीर

1947 से पहिे कश्मीर में राजशाही थी। ाआसके वहन्दू शासक हरर हसह भारत में शावमि नहीं होना
चाहते थे। ाईन्होंने ाऄपने स्ितांत्र राज्य के विए भारत और पाक्रकस्तान के साथ समझौता करने की
कोवशश की। पाक्रकस्तानी नेता सोचते थे क्रक कश्मीर,
पाक्रकस्तान से सम्बद्ध है लयोंक्रक राज्य की ज्यादातर
ाअबादी मुवस्िम है। यहााँ के िोग वस्थवत को ाऄिग
नजररये से देखते थे। िे ाऄपने को कश्मीरी सबसे पहिे और
बाकी कु छ बाद में मानते थे। राज्य में नेशनि काांफ्ेंस के
शेख ाऄधदुलिा के नेतृत्ि में जन ाअन्दोिन चिा। शेख
ाऄधदुलिा चाहते थे क्रक महाराजा पद छोड़ें परन्तु िे ाआसके
पाक्रकस्तान में शावमि होने के वखिाफ थे। नेशनि काांफ्ेंस
एक धमावनरपेक्ष सांगठन था और ाआसका काांग्रेस के साथ
काफी समय तक गठबांधन रहा। ाऄधदुलिा ने डोगरा िांश
को सत्ता छोड़कर ाआसे िोगों को सौंपने के विए कहा।
महाराजा हरर हसह 15 ाऄगस्त को हरर हसह ने दोनों देशों
के साथ यथावस्थवत समझौते (standstill agreement) की पेशकश की वजसमें िोगों और िस्तुओं के
स्ितांत्र ाअिागमन की भी ाऄनुमवत शावमि थी। पाक्रकस्तान ने ाआस समझौते पर हस्ताक्षर कर क्रदए
िेक्रकन भारत ने ाआस पर हस्ताक्षर नहीं क्रकया और प्रतीक्षा करना ाईवचत समझा। पाक्रकस्तान ाऄधीर हो
गया और यथावस्थवत समझौते का ाईलिांघन करना शुरू कर क्रदया। तब कश्मीर के प्रधानमांत्री मेहर चांद
महाजन ने विरटश सरकार से ाअर्थथक नाके बांदी और यथावस्थवत समझौते का ाईलिांघन करने की
वशकायत की। महाराजा की सेनाओं द्वारा पुांछ की मुवस्िम ाअबादी के वखिाफ ाऄत्याचारों की ररपोटा ने
शासक के विरूद्ध नागररक ाऄशाांवत को और बढ़ािा क्रदया।
22 ाऄलटू बर को ाअवधकाररक रूप से पाक्रकस्तानी सैवनक ाऄफसरों के नेतृत्ि में काइ पठान कवबिााइयों ने
कश्मीर की सीमा का ाऄवतिमण क्रकया और तेजी से कश्मीर की राजधानी िीनगर की तरफ बढ़ने िगे।
महाराज की ाऄकु शि सेना ाअिमणकारी सेनाओं के सामने कहीं ठहर नहीं सकी। घबराकर 24 ाऄलटू बर
को महाराज ने भारत से सैवनक सहायता की ाऄपीि की। गिनार जनरि मााईन्टबेटन ने यह रे खाांक्रकत
क्रकया क्रक ाऄांतरााष्ट्रीय कानूनों के तहत भारत ाऄपनी सेनाएां कश्मीर में तभी भेज सकता है जबक्रक राज्य
का औपचाररक रूप से भारत में वििय हो चुका हो। िी. पी. मेनन कश्मीर गए और 26 ाऄलटू बर को
महाराज ने कश्मीर को भारत में वििय कर शेख ाऄधदुलिा को ररयासत के प्रशासन का प्रमुख बनाने को
तैयार हो गए।
27 ाऄलटू बर की सुबह िगभग 100 भारतीय विमानों में भरकर सैवनक और हवथयार िीनगर पहुांचाए
गए और युद्ध की चुनौती स्िीकार की गाइ। पाक्रकस्तानी सेना ने मुख्य घाटी के क्षेत्रों को छोड़ क्रदया परन्तु
े कों ने पाक्रकस्तानी
वगिवगत और बाविस्तान पर ाऄपना कधज़ा बनाए रखा। नेशनि काांफ्ेंस के स्ियांसि
घुसपैरठयों को बाहर वनकािने के विए भारतीय सेना के साथ वमिकर काम क्रकया। शेख ाऄधदुलिा
प्रधानमांत्री बन गए। निांबर 1947 में मााईां टबेटन शाांवत वमशन पर िाहौर गए। वजन्ना के साथ बैठक हुाइ
िेक्रकन कोाइ समझौता नहीं क्रकया जा सका। वजन्ना ने कहा क्रक कश्मीर का वििय धोखाधड़ी और हहसा
पर ाअधाररत है। नेहरू ने हरर हसह को पत्र विखा क्रक िह कश्मीर के विए ाऄांवतम समाधान चाहते हैं।
1 जनिरी 1948 को भारत ने कश्मीर मुद्दे को सांयुि राष्ट्र के समक्ष िाने का वनणाय विया:
 यह िॉडा मााईां टबेटन की सिाह पर ाअधाररत था।
 रामचांद्र गुहा ने ाआसके ाऄांतर्थनवहत तका को समझाया है: “चूांक्रक कश्मीर का भारत में वििय हो गया

था, ाऄताः भारत चाहता था क्रक सांयुि राष्ट्र ाआसके ाईत्तरी वहस्सों को खािी करिाने में मदद करे , जो

ाआसके ाऄनुसार पाक्रकस्तान समथाक गुट के गैर-क़ानूनी कधज़े में चिा गया था।”

सुरक्षा पररषद में ाआस मुद्दे को 'कश्मीर प्रश्न' से 'भारत-पाक्रकस्तान वििाद’ में बदि क्रदया गया। भारत
ाऄपना पक्ष रखने में पाक्रकस्तान की तुिना में कम प्रभािशािी रहा। जफरुलिा खान एक जन्मजात ििा
थे। ये सांयुि राष्ट्र सांघ के प्रवतवनवधयों को यह भरोसा क्रदिाने में कामयाब रहे क्रक कश्मीर पर हमिा
ाईत्तर भारत में हुए साम्प्रदावयक हमिों का नतीजा था। यह मुसिमानों द्वारा ाऄपने तकिीफों के प्रवत
स्िाभाविक प्रवतक्रिया थी।
नेहरु कश्मीर मुद्दे को सुरक्षा पररषद् में िे जाने के ाऄपने वनणाय पर बाद में बहुत पछताए लयोंक्रक सुरक्षा
पररषद पाक्रकस्तान के ाऄवतिमण पर ध्यान देने के बजाए विटेन और ाऄमेररका के वनदेशों पर पाक्रकस्तान
की तरफदारी करने िगा।
21 ाऄप्रैि 1948 को सुरक्षा पररषद के सांकलप 47 ने भारत और पाक्रकस्तान के बीच युद्ध विराम िागू

क्रकया। 31 क्रदसम्बर 1948 को युद्ध विराम स्िीकार कर विया गया जो ाऄब तक िागू है। 1951 में
राज्य के विए एक सांविधान तैयार करने के ाईद्देश्य से सांविधान सभा की बैठक िीनगर में हुाइ। ाआसने
1954 में वििय को मांजरू ी दे दी।

1951 में सांयुि राष्ट्र ने एक प्रस्ताि पास क्रकया वजसमें पाक ाऄवधकृ त कश्मीर (POK) से पाक्रकस्तान की
सेनाओं को िापस हटा विए जाने के बाद सांयुि राष्ट्र की देखरे ख में एक जनमत सांग्रह का प्राविधान था।
यह प्रस्ताि भी विफि हो गया लयोंक्रक पाक्रकस्तान ने ाअज के तथाकवथत ाअज़ाद कश्मीर से ाऄपनी
सेनाओं को िापस बुिाने से ाआनकार कर क्रदया।

1.3.3. है द राबाद

ा या भारतीय क्षेत्र से वघरा हुाअ, हैदराबाद देशी ररयासतों में से सबसे बड़ा राज्य था। ाआसके शासक,
पूणत

"वनजाम" ने एक स्ितांत्र वस्थवत का दािा क्रकया। िह चाहता था क्रक हैदराबाद ररयासत को ाअज़ाद

ररयासत का दजाा क्रदया जाए। निांबर 1947 में वनजाम ने भारत के साथ यथावस्थवत बहाि रखने का
एक समझौता क्रकया। यह समझौता एक साि के विए था। पटेि ाईस पर कोाइ वनणाय थोपने की
जलदबाजी में वबिकु ि नहीं थे लयोंक्रक मााईां टबेटन वनजाम के साथ क्रकसी समझौते की मध्यस्थता करने
के विए ाईत्सुक बैठा हुाअ था।
हािाांक्रक पाक्रकस्तान द्वारा प्रोत्सावहत क्रकए जाने के बाद भी वनजाम ाऄांग्रेजों से डोवमवनयन स्टेटस प्राप्त
करने में ाऄसफि रहा था। ाऄताः िह भारत सरकार के साथ समझौतों में िगा हुाअ था। भारत सरकार ने
निम्बर 1947 का यथावस्थवत समझौता ाआस ाअशा के साथ क्रकया था क्रक जब तक सांवध िाताा जारी
रहेगी, वनजाम ाऄपने ररयासत में एक प्रवतवनवधमूिक सरकार प्रस्तुत करे गा वजसमें बाद में वििय
ाअसान हो जायेगा। कश्मीर को िेकर भारत और पाक्रकस्तान के बीच तनािों को देखते हुए वनजाम
सांवधिातााओं को िांबा खींचकर ाआस बीच ाऄपनी सैवनक शवि को बढ़ाना चाहता था ताक्रक भारत से िह
ाऄपनी सांप्रभुता मनिाने के विए दबाि डाि सके ।
ाआसी बीच राज्य में तीन ाऄन्य राजनीवतक घटनाएां हुईं-
 ाऄवधकाररयों के सहयोग से एक ाईग्रिादी मुवस्िम साम्प्रदावयक सांगठन मजविस-ए-ाआत्तेहाद-ाईि-
मुसिमीन (Majlis-e-Ittehad-ul Muslimeen: MIM) ने ाऄपने नए नेता कावसम ररजिी के
नेतृत्ि में ‘रजाकार’ नामक ाऄद्धासवै नक सांगठन को गरठत क्रकया, वजन्होंने वनजाम के विरुद्ध सांघषारत
जनता पर ाऄत्याचार करना शुरू कर क्रदया। MIM ने भारत के साथ एकीकरण के बजाए एक
मुवस्िम डोवमवनयन की स्थापना की िकाित की।
 े
7 ाऄगस्त 1947 को वनजाम से िोकताांत्रीकरण की माांग को िेकर हैदराबाद ररयासत काांग्रस
(Hyderabad state Congress) ने एक शविशािी सत्याग्रह ाअांदोिन प्रारां भ कर क्रदया। ाआस
िोकवप्रय ाअांदोिन के विए वनजाम की प्रवतक्रिया दमन की थी। रजाकारों के ाअिमणों और
प्रशासवनक तांत्र द्वारा ाऄत्याचारों के फिस्िरूप हज़ारों िोग ाऄपनी ररयासत को छोड़कर भारतीय
क्षेत्रों में बने ाऄस्थााइ कै म्पों में शरण िेने िगे। तब ररयासत काांग्रेस के नेतृत्ि में ाअन्दोिन ने
हवथयार ाईठा विया।
 1946 के ाईत्तराधा में कम्युवनस्टों के नेतृत्ि में एक शविशािी क्रकसान सांघषा ररयासत के तेिांगाना
क्षेत्र में विकवसत हुाअ। यह ाअांदोिन, जो 1946 के ाऄांत तक राजकीय दमन की भयानकता के
कारण क्षीण हो गया था, ाऄब क्रफर से क्रकसान दिमों द्वारा जनता पर रजाकारों के हमिे के विरुद्ध
सुरक्षा सांगरठत करने के कारण जीिांत हो गया। ाआन क्रकसान दिमों ने बड़े ज़मींदारों पर हमिा
क्रकया और ाईनकी ज़मीनों को क्रकसानों और भूवमहीनों के बीच बााँट क्रदया।
वनजाम के साथ सांवध-िाताा के िांबा हखचने के कारण जून 1948 तक सरदार पटेि ाऄधीर हो गए।
ाईन्होंने नेहरू को विखा क्रक “ाऄब वनजाम को यह बताने का समय ाअ गया है क्रक हमें वबना शता वििय
की स्िीकृ वत और एक ाईत्तरदायी सरकार के गठन से कम कु छ भी स्िीकाया नहीं है।” तब भी वनजाम
सरकार और रजाकारों के ाईकसािे के बािजूद भारत काइ महीनों तक ाऄपना हाथ बाांधे बैठा रहा। परन्तु
वनज़ाम ाऄपना हाथ पीछे खींचता रहा और ज्यादा से ज्यादा हवथयार ाअयात करता रहा। रज़ाकारों का
ाऄत्याचार भी बढ़ता रहा। ाऄांतताः 13 वसतांबर 1948 को भारतीय सेना हैदराबाद में प्रिेश कर गाइ। ाआस
पुविस ऑपरे शन का कोड नाम “ऑपरे शन पोिो” था।
तीन क्रदनों के बाद वनजाम ने ाअत्मसमपाण कर क्रदया और ाऄांतताः निांबर 1948 में भारतीय सांघ में
वििय को स्िीकार कर विया। भारत सरकार ने ाईन्हें राज्य के औपचाररक शासक या राजप्रमुख के रूप
में बनाए रखा और 5 वमवियन रुपये के प्रीिी पसा के साथ ही ाईसे ाऄपनी विशाि सांपवत्त का ज्यादातर
भाग ाऄपने पास रखने की ाऄनुमवत दे दी गाइ।
हैदराबाद के ाऄवधग्रहण के बाद भारतीय सांघ में देशी ररयासतों के वििय का करठन काया पूणा हो गया।
ाआसका महत्ि ाआस तथ्य में भी वनवहत है क्रक हैदराबाद में भारतीय धमावनरपेक्षता की जीत हुाइ लयोंक्रक न
के िि हैदराबाद के मुसिमान बड़ी सांख्या में वनजाम विरोधी सांघषों में शावमि हुए बवलक पूरे देश के
मुसिमानों ने सरकार की वििय नीवत और कारा िााइ का समथान क्रकया वजससे वनजाम और पाक्रकस्तान
के नेता भी ाअियाचक्रकत रह गए।
ऑपरे शन पोिो का एक दृश्य (13 वसतांबर 1948) सरदार िलिभ भााइ पटेि

1.3.4. मवणपु र

ाअज़ादी के कु छ क्रदन पहिे मवणपुर के महाराजा बोधचांद्र हसह ने भारत सरकार के साथ ाआस ाअश्वासन
पर ाऄपनी ररयासत के वििय के एक सहमवत पत्र पर हस्ताक्षर क्रकया था क्रक मवणपुर की ाअांतररक
स्िायत्तता बनाए रखी जाएगी।
जनमत के दबाि में, महाराजा ने जून 1948 में मवणपुर में चुनाि ाअयोवजत क्रकए और ाआस चुनाि के
फिस्िरूप ररयासत में सांिैधावनक राजतांत्र कायम हुाअ। मवणपुर भारत का पहिा भाग है जहााँ
सािाभौवमक ियस्क मतावधकार के वसद्धाांत को ाऄपनाकर चुनाि सम्पन्न हुए थे।
मवणपुर के भारत में वििय के प्रश्न पर कु छ गहरे मतभेद थे। मवणपुर की काांग्रेस चाहती थी क्रक ाआस
ररयासत को भारत में वमिा क्रदया जाए जबक्रक ाऄन्य राजनीवतक दिों ने ाआस विचार का विरोध क्रकया।
मवणपुर की िोकवप्रय वनिाावचत विधान सभा से परामशा क्रकए वबना, भारत सरकार ने वसतांबर 1949
में महाराज पर दबाि डािा क्रक िे भारतीय सांघ में शावमि होने के समझौते पर हस्ताक्षर कर दें।
मवणपुर में ाआस कदम को िेकर िोगों में िोध और नाराजगी के भाि पैदा हुए।

1.3.5. ाऄन्य राज्य

देशी ररयासतों का भारतीय राष्ट्र में पूणा वििय का दूसरा और ाऄवधक करठन चरण क्रदसम्बर 1947 में
प्रारम्भ हुाअ। पटेि ने काफी शीघ्रता से सक्रिय होकर एक िषा के ाऄन्दर ही ाआस काया को भी पूरा कर
विया। छोटी ररयासतों को या तो पड़ोसी राज्यों के साथ वमिा क्रदया गया या क्रफर ाईन्हें ाअपस में
वमिाकर कें द्र शावसत प्रदेशों में बदि क्रदया गया। बहुत बड़ी सांख्या में ररयासतों को पाांच नए समूहों में
वमिाया गया। ये थे: मध्य भारत, राजस्थान, परटयािा और पूिी पांजाब राज्य सांघ [PEPSU], सौराष्ट्र
एिां त्रािणकोर-कोचीन। मैसूर, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर ाऄपने मूि रूप में ही सांघ के ाऄिग राज्य
बने रहे।
ाऄपनी शवि और सत्ता का ाअत्मसमपाण करने के बदिे प्रमुख ररयासत के शासकों को कर मुि प्रीिी
पसा ाऄनांत काि के विए दे दी गाइ। शासकों को गद्दी पर ाईत्तरावधकार के साथ-साथ कु छ ाऄन्य
विशेषावधकारों जैसे ाऄपनी पदिी, ाऄपना वनजी झांडा तथा विशेष समारोहों पर बन्दूक सिामी िेने का
ाऄवधकार क्रदया गया था।

1.3.6. फ्ाां सीसी और पु ता गािी बवस्तयााँ

देशी ररयासतों के एकीकरण के बाद भी दो मुख्य समस्याएां ाऄब भी विद्यमान थीं। ये थीं- भारत के पूिी
और पविमी समुद्र तटों पर पाांवडचेरी और गोिा के ाअस-पास फै िी हुाइ फ्ाांसीसी और पुतग ा ािी
स्िावमत्ि िािी बवस्तयााँ। एक िांबी सांवध िाताा के बाद पाांवडचेरी और ाऄन्य फ्ाांसीसी ाअवधपत्यों को
1954 में भारत को सौंप क्रदया गया।
परन्तु पुतागािी ाऄपने क्षेत्रों को सौंपने के विए तैयार नहीं थे। ाआसके नाटो सहयोवगयों ने पुतागाि की
वस्थवत का समथान क्रकया जबक्रक भारत सरकार शाांवतपूणा ाईपायों से सीमा वििाद को सुि झाने की नीवत
का समथान कर रही थी। गोिा की जनता ने पुतागािी वनयांत्रण से ाअज़ादी के विए एक ाअन्दोिन
प्रारम्भ कर क्रदया। परन्तु ाआस ाअन्दोिन के साथ-साथ भारत से सत्याग्रह के विए जाने िािे सत्याग्रवहयों
को भी बहुत कठोर तरीके से कु चि क्रदया गया। ाऄांतताः पुतागाि के वखिाफ जनमत तैयार होने के बाद
नेहरु ने 17 क्रदसम्बर, 1961 की रात गोिा में भारतीय सेना को प्रिेश करने का ाअदेश क्रदया। भारतीय
सैवनकों ने “ऑपरे शन विजय” के तहत गोिा में प्रिेश क्रकया परन्तु पुतागािी ाऄवधकाररयों ने वबना क्रकसी
युद्ध के तुरांत ाअत्मसमपाण कर क्रदया। ाआस प्रकार भारत का क्षेत्रीय और राजनीवतक एकीकरण का काया
पूरा हुाअ हािाांक्रक ाआस काया को पूरा करने में 14 िषा से ाऄवधक समय िगा।

1.4. जनजातीय एकीकरण

राष्ट्र के ाऄन्दर जनजातीय िोगों का एकीकरण और ाईन्हें मुख्य धारा में िाने का काया काफी करठन था,
मुख्य रूप से ाआसविए लयोंक्रक जनजातीय िोग देश के विवभन्न भागों में ाऄिग-ाऄिग पररवस्थवतयों में रह
रहे थे, िे ाऄिग- ाऄिग भाषाएाँ बोिते थे और ाईनकी ाऄपनी-ाऄपनी सांस्कृ वतयाां थीं।
 जनजातीय ाअबादी पूरे भारत में फै िी हुाइ थी, परन्तु ाआनका सबसे ज्यादा सांकेंद्रण मध्य प्रदेश,
वबहार, ाईड़ीसा, पूिोत्तर भारत, पविम बांगाि, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में है। पूिोत्तर
राज्यों को छोड़कर बाकी सभी जगह ये वजन राज्यों में रह रहे थे िहााँ िे ाऄलपसांख्यक थे। ज्यादातर
पहाड़ों और जांगिों में रहने िािी ये जनजावतयााँ औपवनिेवशक काि में ाऄपेक्षाकृ त ाऄिगाि में
जीिन व्यतीत करती थीं। ाईनकी परां परा, ाअदतें, सांस्कृ वत और जीिन शैिी ाऄपने गैर-जनजातीय
पड़ोवसयों की तुिना में वबिकु ि ाऄिग थी।
 देश के ाऄवधकाांश वहस्सों में औपवनिेवशक काि के दौरान जनजातीय िोग एक मूिभूत पररितान
की प्रक्रिया से गुजर रहे थे। ाईनके समाज में बाज़ार की शवियों के प्रिेश के कारण ाईनका ाअपेवक्षक
ाऄिगाि समाप्त हो रहा था और ाईन्हें विरटश और देशी ररयासतों के प्रशासन का वहस्सा बनाया जा
रहा था। बड़ी सांख्या में महाजन, व्यापारी, मािगुजार और काइ प्रकार के वबचौविए एिां छोटे
ाऄवधकारी जनजातीय क्षेत्रों का ाऄवतिमण करने िगे। ाआन िोगों ने जनजावतयों को औपवनिेवशक
ाऄथाव्यिस्था के चि के ाऄन्दर खींचकर ाईनके पारां पररक जीिन शैिी का ाऄांत कर क्रदया। िे
ाऄवधकावधक क़ज़ा के वशकार होते चिे गए और ाऄपनी जमीन बाहरी िोगों के हाथों खोते चिे गए।
 भारत के काइ वहस्सों में मैदानों से ाअने िािे क्रकसानों की जमीन की भूख ने जांगिों को नि कर
क्रदया वजससे जनजावतयों की पारां पररक जीविका के साधन वछन गए। जांगि को सुरवक्षत रखकर
ाईसका व्यापाररक दोहन करने के विए औपवनिेवशक शासन विशाि जांगि क्षेत्रों को िन कानून के
तहत िे ाअया वजसमें झूम खेती पर रोक िगााइ गाइ थी और जनजावतयों द्वारा जांगि एिां जांगि
ाईत्पादों के ाईपभोग पर कड़े प्रवतबन्ध िगाए गए थे।
 भूवम के नुकसान, क़ज़ा का बोझ, वबचौवियों के शोषण, िन तथा िन ाईत्पाद तक पहुाँच से रोक तथा
पुविस, िन ाऄवधकारी और ाऄन्य सरकारी ाऄवधकाररयों द्वारा शोषण एिां ाईत्पीड़न ने ाईन्नीसिीं एिां
बीसिीं शताधदी में ाऄनेक जनजातीय विद्रोहों को जन्म क्रदया। ाईदाहरणस्िरुप- सांथाि और मुांडा
विद्रोह।

1.4.1. भारत की जनजातीय नीवत का मू ि

 जिाहरिाि नेहरू के नेतृत्ि में भारत सरकार ने जनजातीय िोगों को भारतीय समाज में एकीकृ त
करने की नीवत का पक्ष विया। सरकार ाईनकी विवशि सांस्कृ वत और पहचान को ाऄक्षुडण रखते हुए
भी ाईन्हें भारत का ाऄवभन्न ाऄांग बना िेने की समथाक थी।
 जनजावतयों के प्रवत सरकार के दृविकोण को ाअकार देने में प्रधानमांत्री नेहरू का मुख्य रूप से
प्रभाि रहा। नेहरु जनजातीय िोगों के बहुमुखी सामावजक और ाअर्थथक विकास के पक्षधर थे।
विशेष रूप से सांचार, ाअधुवनक स्िास्थ्य सुविधाओं, कृ वष और वशक्षा के क्षेत्र पर ाईनका विशेष
ध्यान था।
 नेहरू ने सोचा क्रक भारतीय राष्ट्रिाद जनजातीय िोगों की विवशिता को समायोवजत करने में
सक्षम था। 1920 के दशक में गाांधी जी ने जनजातीय क्षेत्रों में ाअिमों की स्थापना और रचनात्मक
कायों को प्रोत्सावहत करना प्रारम्भ कर क्रदया था।
 िेररएर एवलिन (विरटश मानिविज्ञानी) की सहायता से नेहरू ने सरकारी नीवतयों की कु छ व्यापक
मागादशाक वसद्धाांतों की स्थापना की वजसे "जनजातीय पांचशीि" कहा जाता था। ये वनम्नविवखत हैं-
 जनजातीय िोगों को ाऄपनी बुवद्ध और चेतना के ाऄनुरूप विकास करने देना चावहए, बाहर से कोाइ
दबाि या जबरदस्ती नहीं की जानी चावहए। ाईनकी पारां पररक किा और सांस्कृ वत को हर तरह से
प्रोत्सावहत करना चावहए।
 भूवम और िन पर जनजातीय ाऄवधकारों का सम्मान क्रकया जाना चावहए।
 प्रशासन की वजम्मेदारी स्ियां जनजातीय िोगों को देनी चावहए ाआसविए प्रशासकों की भती ाईन्हीं
िोगों के बीच से कर ाईन्हें प्रवशवक्षत क्रकया जाना चावहए। प्रारम्भ में यक्रद ाअिश्यक हो तो कु छ
तकनीकी कर्थमयों को बाहर से भेजा जाएगा। जनजातीय क्षेत्रों में बाहरी िोगों का ाऄवधक हस्तक्षेप
नहीं होना चावहए।
 जनजातीय क्षेत्रों पर ाऄवत प्रशासन नहीं होना चावहए और यह प्रयास होना चावहए क्रक ाईन पर
प्रशासन और ाईनका विकास जनजातीय सामावजक और साांस्कृ वतक विचारों एिां सांस्थाओं के
माध्यम से ही ज्यादा हो।
 जनजातीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के विए हर प्रकार से सांभि समथान देना चावहए। पररणामों
का ाअांकिन ाअांकड़ों या खचा क्रकए गए धन की रावश के ाअधार पर नहीं क्रकया जाना चावहए, बवलक
ाआसमें शावमि मानि चररत्र की गुणित्ता के ाअधार पर क्रकया जाना चावहए।
सरकार की नीवत को ाअकार देने के विए, सांविधान में भी प्राविधान क्रकया गया था।
 ाऄनुच्छेद 46 के ाऄांतगात - राज्य को यह वनदेश क्रदया गया है क्रक “राज्य जनजातीय िोगों के
शैक्षवणक और ाअर्थथक विकास को प्रोत्साहन देने तथा सभी प्रकार के शोषण एिां सामावजक ाऄन्याय
से ाईनकी रक्षा करने के विए विशेष कानूनों का प्राविधान करे गा।

1.4.2. नीवत का ाअिोचनात्मक मू लयाां क न और ाआसके प्रभाि

सांिैधावनक सुरक्षा ाईपायों और कें द्र और राज्य सरकारों के प्रयासों के बािजूद दुभााग्य से ाऄभी भी तक
जनजातीय िोगों के विकास और कलयाण की गवत काफी धीमी, यहााँ तक क्रक ाऄसांतोषजनक रही है।
पूिोत्तर भारत को छोड़कर शेष सभी जगह के जनजातीय िोग ाऄभी भी गरीब, कजा से िदे हुए,
भूवमहीन और प्रायाः बेरोजगार रहते हैं। काइ बार कें द्र और राज्य सरकार की जनजातीय नीवतयों में भी
काफी ाऄांतर देखा जा सकता है लयोंक्रक राज्य सरकारें काइ मामिों में जनजातीय वहतों के प्रवत बहुत
ाईदासीन पााइ गईं हैं। विशेष रूप से कें द्र और यहााँ तक क्रक राज्य सरकारों द्वारा स्ियां घोवषत
सकारात्मक नीवतयों और कायािमों को प्रशासवनक रूप से िागू करने में ाऄवनयवमतता बरती गाइ है।
 प्रायाः जनजातीय कलयाण के विए ाअिांरटत धनरावश को या तो खचा ही नहीं क्रकया जाता या तो
खचा का कोाइ िक्ष्य ही पूरा नहीं होता। जनजातीय ाईत्थान के विए बनने िािी योजनाओं को गित
या ाऄवनयोवजत तरीके से िागू क्रकया जाता है। जनजातीय वहतों की एक प्रमुख रक्षक ‘जनजातीय

सिाहकार पररषद्’ कभी ठीक तरीके से काया नहीं कर पााइ है।


 जनजातीय विभागों में कायारत ाऄवधकारी न तो पूरी तरह प्रवशवक्षत होते हैं और न ही िे ाऄपने
काया के विए मानवसक रूप से तैयार रहते हैं। ाऄवधकाांश ाऄवधकारी तो जनजातीय िोगों के वखिाफ
पूिााग्रह रखते हैं।
 जनजातीय िोगों को न्याय वमिने में एक दूसरी सबसे बड़ी बाधा कानून और न्याय व्यिस्था से
ाईनका ाऄपररवचत होना भी है।
 कानून होने के बािजूद जनजावतयों की जमीन से बेदखिी ाऄभी भी जारी है। बाहरी िोगों को
जमीन हस्ताांतररत करने से रोकने के विए बने कानून का िगातार ाईलिांघन होता रहा है।
 काइ क्षेत्रों में खानों के विस्तार और ाईद्योगों की तेजी से स्थापना के कारण, जनजातीय िोगों की
वस्थवत में भारी वगरािट ाअयी है। जांगि की िस्तुओं पर जनजावतयों के पारां पररक ाऄवधकारों का
िगातार हनन होता रहा है।
 जमीन से बेदखिी, जांगिों के नाश और िनसांपदा तक पहुाँच समाप्त हो जाने के कारण जनजातीय
िोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है।
 जनजातीय िोगों में वशक्षा के प्रसार की गवत भी वनराशाजनक रूप से मांद रही है।
 िन ाऄवधकाररयों द्वारा क्रकए जाने िािे शोषण और ाऄवधकाररयों के ाऄसांतोषजनक दृविकोण ने भी
समस्या को बढ़ािा क्रदया है।

1.4.3. राज्य द्वारा की गाइ पहि के कारण सकारात्मक विकास

यक्रद समग्र रूप से देखा जाए तो 1947 के बाद से जनजातीय क्षेत्रों में कु छ सकारात्मक विकास भी हुए
हैं। जनजातीय ाऄवधकारों और वहतों की रक्षा के विए िैधावनक प्राविधान, जनजातीय कलयाण विभाग
की गवतविवधयों, पांचायती राज, साक्षरता और वशक्षा के प्रसार, ाईच्च वशक्षा के सांस्थानों और सरकारी
नौकररयों और बार-बार होने िािे चुनािों ने जनजातीय िोगों में चेतना जागृत की है। ाईनका
ाअत्मविश्वास बढ़ा है और कम से कम ाईनके ाऄन्दर विकवसत मध्यम और बुवद्धजीिी िगों की राजनीवतक
भागीदारी पहिे से काफी ाऄवधक हो गाइ है। ाआन सांिैधावनक राजनीवतक प्रक्रियाओं के ाऄन्दर िे ाऄपने
विए ज्यादा से ज्यादा सक्रिय राजनीवतक भूवमका की माांग करने िगे हैं।
विवभन्न राजनीवतक ढााँचे और सांस्थाएां ाऄवधक से ाऄवधक प्रवतवनवधत्ि प्राप्त करते जा रहे हैं। ाआन सब से
ाऄवधक िे राष्ट्रीय ाअर्थथक विकास में ाऄपने विए और ाऄवधक वहस्सा माांग रहे हैं। विकास के ाऄभाि और
कलयाण योजनाओं की ाऄसफिताओं से वनराश और सामावजक-ाअर्थथक शोषण के जारी रहने से क्षुधध
होकर देश के विवभन्न वहस्सों में जनजातीय िोग िगातार सांगरठत होकर ाईग्र विरोध ाअन्दोिनों में
सवम्मवित हो रहे हैं। ाआनमें से कु छ विरोध ाअन्दोिनों में हहसा का रास्ता ाऄपनाया गया है वजसको
सरकार द्वारा कठोर कारा िााइ कर समाप्त करने का प्रयास क्रकया जा रहा है।

1.5. भाषा का मु द्दा

स्ितांत्रता के बाद के पहिे 20 िषों में सबसे बड़ा विभाजनकारी मुद्दा भाषा की समस्या थी। िोगों को
ाऄपनी भाषा से प्रेम होता है और ाईनकी सांस्कृ वत भी भाषा से जुड़ी होती है पररणामस्िरूप प्रत्येक
समाज में यह एक मजबूत शवि सावबत हुाइ है।
भाषााइ विविधता के ाअधार पर ाईत्पन्न राष्ट्रीय एकता के सांकटों ने दो प्रमुख चुनौवतयााँ प्रस्तुत कीं:
 सांघ की राजभाषा पर वििाद
 भाषााइ ाअधारों पर राज्यों का पुनगाठन

1.5.1. सां घ की राजभाषा

 भाषा के मुद्दे पर ाअन्दोिन ने हहदी विरोध का स्िरुप ाऄपनाकर एक विकराि रूप धारण कर
विया और देश के हहदी भाषी और गैर-हहदी भाषी प्रदेशों के बीच टकराि की वस्थवत पैदा होने
िगी। यह स्पि कर देना ाईवचत है क्रक यह वििाद एक राष्ट्रीय भाषा के चुनाि को िेकर नहीं था
लयोंक्रक यह विचार क्रक भारतीय राष्ट्रीय ाऄवस्मता के विए एक राष्ट्रीय भाषा ाऄवनिाया है, बड़े पैमाने
पर देश के धमावनरपेक्ष नेतृत्ि द्वारा बहुमत से खाररज कर क्रदया गया था।
 राष्ट्रीय भाषा के मुद्दे का समाधान तो सांविधान वनमााताओं द्वारा सभी प्रमुख भाषाओं को ‘भारत
की भाषाएां’ ाऄथिा भारत की राष्ट्रीय भाषाएाँ मानकर सुिझा विया गया।
 गाांधी जी ाआस बात से सहमत थे क्रक स्ितांत्र भारत में ाअम जनता की प्रवतभा और ाईनकी सांस्कृ वत
कभी भी एक विदेशी भाषा के माध्यम से नहीं व्यि हो सकती।
 जैसे ही राजभाषा के प्रश्न पर बहस का प्रारम्भ हुाअ, तीव्र मतभेद पैदा हो गए और यह काफी
मुवश्कि समस्या सावबत होने िगी। मुख्य रूप से ाआसविए क्रक प्रारम्भ से ही ाआस मुद्दे का ाऄत्यवधक
राजनीवतकरण हो चुका था।
 गाांधी और नेहरु दोनों वहन्दुस्तानी को ही समथान देते थे वजसे देिनागरी या ाईदूा में विखा जाए
यद्यवप काइ हहदी समथाक ाआससे ाऄसहमत थे। क्रफर भी िे गाांधी और नेहरु की बात क्रकसी हद तक
मानने को तैयार हो गए। ाऄांग्रजे ी से हहदी में स्थानान्तरण के विए समय सीमा के वनधाारण के मुद्दे ने
हहदी और गैर-हहदी क्षेत्रों के बीच एक मतभेद ाईत्पन्न कर क्रदया। हहदी प्रदेशों के प्रििा तत्काि ही
हहदी ाऄपनाने की िकाित कर रहे थे जबक्रक गैर-हहदी भाषी प्रदेशों के प्रििा यक्रद हमेशा के विए
न भी सही तो काफी िम्बे समय तक के विए ाऄांग्रज े ी को बनाये रखने के पक्ष में तका दे रहे थे।
 े ी
नेहरू हहदी को राजभाषा बनाने के पक्ष में तो थे, िेक्रकन िे ाऄवतररि राजभाषा के रूप में ाऄांग्रज
के भी वहमायती थे।
 सांविधान ने यह प्रािधान क्रकया क्रक देिनागरी विवप में विखी वहन्दी ाऄांतरााष्ट्रीय ाऄांकों के साथ
े ी का सभी सरकारी कामकाजों के विए 1965 तक ाईपयोग क्रकया
भारत की राजभाषा होगी। ाऄांग्रज
जाएगा, ाआसके बाद ाआसका स्थान वहन्दी िे िेगी। वहन्दी को काइ चरणों में िागू क्रकया जाएगा।
े ी के साथ मात्र कु छ ाईद्देश्यों के विए प्रयोग क्रकया जाएगा और क्रफर 1965 के
प्रारम्भ में ाआसे ाऄांग्रज
बाद ाआसे एक मात्र सरकारी भाषा बना क्रदया जाएगा। हािाांक्रक सांसद को 1965 के बाद भी वनर्ददि
े ी के प्रयोग की ाऄिवध बढ़ा देने की शवि दी गाइ थी।
प्रयोजनों के विए ाऄांग्रज
 सांविधान ने सरकार को यह वजम्मेदारी दी क्रक िह हहदी के प्रसार और विकास के विए काया करे
तथा एक ाअयोग एिां एक सांसदीय सांयुि सवमवत की वनयुवि का प्रािधान भी क्रकया जाए जो ाआस
सन्दभा में हुाइ प्रगवत की समीक्षा प्रस्तुत करती रहे।
 राज्यों के विधानमांडि राज्य स्तर पर ाऄपनी राजभाषा का वनणाय करें गे हािाांक्रक सांघ की
राजभाषा कें द्र एिां राज्यों तथा राज्यों और राज्यों के बीच सांचार की भाषा के रूप में काया करे गी।
 1955 में सांिैधावनक प्रािधान के ाऄनुरूप बनी राजभाषा ाअयोग की ररपोटा 1956 में प्रस्तुत की
े ी की जगह वहन्दी
गाइ, वजसमें यह सिाह दी गाइ थी क्रक धीरे -धीरे सभी सरकारी विभागों में ाऄांग्रज
ाऄभी से िागू करने की कोवशश की जानी चावहए ताक्रक 1965 तक वहन्दी पूणत े ी का स्थान
ा ाः ाऄांग्रज
िे िे। ाअयोग में पविम बांगाि और तवमिनाडु के सदस्यों ने ाऄपनी ाऄसहमवत दजा की और
ाअयोग के सदस्यों पर वहन्दी का पक्षपात करने का ाअरोप िगाया।
 सांविधान में विवहत प्राविधानों के ाऄनुरूप सांसद की एक ‘विशेष सांयुि सवमवत’ ने ाआस ाअयोग के
ररपोटा पर पुनर्थिचार क्रकया। ाआस सांयुि सवमवत की सांस्तुवतयों को िागू करने के विए राष्ट्रपवत ने
ाऄप्रैि 1960 में एक ाअदेश जारी क्रकया वजसके ाऄनुसार 1965 के बाद वहन्दी मुख्य राजभाषा
े ी सहायक राजभाषा के रूप में वबना क्रकसी प्रवतबन्ध के बनी रहेगी।
होगी परन्तु ाऄांग्रज
 राष्ट्रपवत के वनदेशों के ाऄनुरूप कें द्र सरकार ने वहन्दी को प्रोत्सावहत करने के विए काइ कदम ाईठाये।
ाआनमें के न्द्रीय हहदी वनदेशािय की स्थापना, विवभन्न क्षेत्रों में हहदी ाऄनुिाद या वहन्दी की स्तरीय
कृ वतयों का प्रकाशन, के न्द्रीय कमाचाररयों के विए ाऄवनिाया वहन्दी प्रवशक्षण, क़ानून की सभी प्रमुख
पुस्तकों का वहन्दी ाऄनुिाद एिां न्यायाियों में ाईनके ाईपयोग को प्रोत्साहन सवम्मवित था।
 1959 में नेहरू ने सांसद में क्रदए गए ाऄपने ििव्य में ाऄपने गैर-वहन्दी भाषी िोगों के भय को शाांत
े ी
करने के विए ाअश्वासन क्रदया क्रक जब तक िोगों को ाआसकी ाअिश्यकता है तब तक ाऄांग्रज
िैकवलपक भाषा के रूप में जारी रहेगी। ाआस ाअधार पर 1963 में एक राजभाषा ाऄवधवनयम पाररत
े ी के ाईपयोग पर एक वनवित
क्रकया गया था। ाआस ाऄवधवनयम का ाईद्देश्य, सांविधान द्वारा ाऄांग्रज
वतवथ ाऄथाात् 1965 के बाद िगे प्रवतबांध को समाप्त करना था।
 परन्तु यह ाईद्देश्य पूरी तरह सफि नहीं हो पाया लयोंक्रक ऐसा ाअश्वासन स्पि रूप से ाऄवधवनयम में
शावमि नहीं क्रकया गया था। गैर-वहन्दी भाषी समूह के िोगों ने ाऄवधवनयम में ‘रहेगा’ के बदिे ‘रह
सकता है’ शधद के प्रयोग की ाअिोचना की। ाऄताः गैर-वहन्दी भाषी समूह के िोगों ने ाआसे िैधावनक
गारां टी नहीं माना।
 नेहरु की मृत्यु के बाद शास्त्री गैर-वहन्दी भाषी समूहों के विचारों के प्रवत पयााप्त सांिेदना नहीं क्रदखा
पाए। गैर-वहन्दी भाषी क्षेत्रों, मुख्य रूप से तवमिनाडु में भय की मानवसकता बढ़ती चिी गाइ और
एक सशि वहन्दी विरोधी ाअन्दोिन विकवसत होता चिा गया। छात्रों ने ाआस ाअन्दोिन में विशेष
रूप से भाग विया। ाआन्हें डर था क्रक ाऄवखि भारतीय नौकररयों में वहन्दी भाषी िोग ाईन्हें पीछे कर
देंगे। काइ तवमि नियुिकों ने राजभाषा नीवत के विरुद्ध ाअत्मदाह कर विया, ाआनमें चार छात्र भी
शावमि थे। दो तवमि मांत्री सी. सुिमडयम और ाऄिगेसन ने मांवत्रमांडि से ाआस्तीफा दे क्रदया।
ाअांदोिन दो महीने तक चिता रहा और ाआस दौरान पुविस गोिीबारी में 60 िोगों की मौत हो
गाइ।
 1967 में ाआां क्रदरा गाांधी सरकार ने 1963 के राजभाषा ाऄवधवनयम में सांशोधन क्रकया।

1.5.2. सां शोवधत ाऄवधवनयम की विशे ष ताएां

 ाआस ाऄवधवनयम ने 1959 में नेहरू द्वारा क्रदए गए ाअश्वासन को स्पि एिां ठोस कानूनी स्िरुप प्रदान
क्रकया। ाआसमें प्राविधान क्रकया गया था क्रक हहदी के ाऄवतररि सहायक भाषा के रूप में कें द्र सरकार
के काम-काज एिां कें द्र तथा गैर-वहन्दी भाषी राज्यों के बीच सांिाद के विए ाऄांग्रेजी तब तक प्रयोग
में िााइ जायेगी जब तक क्रक गैर-हहदी राज्य ाआसे चाहें।
 ाआस प्रकार हमेशा के विए वद्वभाषााइ नीवत स्िीकार कर िी गाइ।
 सांघ िोक सेिा ाअयोग की परीक्षाएां वहन्दी और ाऄांग्रजे ी के ाऄवतररि क्षेत्रीय भाषाओं में सांगरठत की
े ी का ाऄवतररि ज्ञान होना चावहए।
जाएांगी परन्तु यह शता होगी क्रक ाईम्मीदिारों को हहदी या ाऄांग्रज
 राज्यों को वत्रभाषा फामूािा िागू करना था वजसके तहत गैर-हहदी राज्यों में मातृभाषा, वहन्दी और
ाऄांग्रेजी ाऄथिा कोाइ ाऄन्य राष्ट्रीय भाषा स्कू िों में पढाया जाना था और वहन्दी भाषी प्रदेशों में गैर-
वहन्दी भाषा, विशेषकर दवक्षण भारतीय भाषा की वशक्षा ाऄवनिाया की जानी थी।
 भारत सरकार ने भाषा के प्रश्न पर जुिााइ 1967 में एक और महत्िपूणा कदम ाईठाया। 1966 की
वशक्षा ाअयोग की ररपोटा के ाअधार पर यह घोवषत क्रकया गया क्रक ाऄांतताः विश्वविद्यािय स्तर पर
सभी विषयों के विए वशक्षा का माध्यम भारतीय भाषाओं को बनाया जाएगा और ाआस रूपाांतरण
के विए समय सीमा प्रत्येक विश्वविद्यािय ाऄपनी सुविधानुसार तय करे गा।

1.5.3. भाषााइ ाअधारों पर राज्यों का पु न गा ठ न

स्ितांत्रता के पिात् ही देश के सामने भाषा के ाअधार पर राज्यों के पुनगाठन का प्रश्न खड़ा हो गया। यह
राष्ट्र की एकता और ाईसके एकीकरण का एक महत्िपूणा पक्ष था। विरटश शासन द्वारा भारत का जो
प्रशासवनक विभाजन क्रकया गया था, िह भाषााइ या साांस्कृ वतक समानता के ाअधार पर नहीं िरन्
साम्रावज्यक विस्तार ि ाईपवनिेशिादी ाअिश्यकताओं के पररप्रेक्ष्य में क्रकया गया था। ाआन्होंने भारतीय
प्रदेश की जो सीमायें बनााइ थीं िह ाऄस्िाभाविक और ाऄतार्दकक थी। ाआसविए ाऄवधकतर राज्य बहुभाषी
एिां बहुसांस्कृ वत युि थे।
भाषााइ ाअधार पर राज्यों के पुनगाठन के मुद्दे पर विचार करने के विए सांविधान सभा ने 1948 ाइ. में
एस. के . धर के नेतृत्ि में भाषााइ राज्य ाअयोग की वनयुवि की। एस. के . धर ाअयोग ने यद्यवप भाषााइ
ाअधार पर राज्यों के पुनगाठन की िोकवप्रय माांग की ाईपवस्थवत को स्िीकारा परन्तु विद्यमान
पररवस्थवतयों में राष्ट्र के रूप में भारत के विकास पर जोर क्रदया ि ाआस माांग को क्रफिहाि नहीं
स्िीकारने की सांस्तुवत की। परन्तु ाआससे विवभन्न भाषा-भावषयों, विशेषकर दवक्षण भारतीय क्षेत्र के
िोगों को सांतुवि नहीं वमिी।
पोट्टी िीरामुिू

े ने क्रदसम्बर, 1948 ाइ. में पुनाः एक


भाषााइ ाअधार पर राज्यों के पुनगाठन के मुद्दे पर तत्पिात काांग्रस
सवमवत वनयुि की, वजसे ाआसके सदस्यों जिाहरिाि नेहरू, िलिभभााइ पटेि ि पट्टावभ सीतारमैया के
नामों के प्रथमाक्षर के ाअधार पर जे.िी.पी. सवमवत कहा गया। जे.िी.पी. सवमवत ने भी राष्ट्र की एकता,
सुरक्षा ि ाअर्थथक वस्थवत को ध्यान में रखकर भाषााइ ाअधार पर राज्यों के पुनगाठन के विरुद्ध वसफाररशें
की लयोंक्रक ऐसा पुनगाठन राष्ट्र के एकीकरण की क्रदशा में बाधा पहुांचाता। परन्तु काांग्रेस ने भाषााइ ाअधार
पर राज्यों के पुनगाठन की सम्भािना को खाररज नहीं क्रकया। बवलक ऐसी कोाइ माांग ाऄनिरत जारी रहने
ि ाईस प्रदेश के ाऄन्य भाषााइ समूह द्वारा भी ाईससे सहमत होने पर भाषा पर ाअधाररत नए राज्यों की
स्थापना की सम्भािना भी व्यि की।
1950 ाइ. में पृथक राज्य के मुद्दे पर मद्रास के पूिा मुख्यमन्त्री टी. प्रकाशम के काांग्रेस से ाआस्तीफा देने एिां
1951 ाइ. में स्थानीय नेता सीताराम की भूख हड़ताि ने भी ाआस मुद्दे को बि क्रदया। परन्तु 19 ाऄलटू बर,
1952 ाइ. को मद्रास में पोट्टी िीरामुिू ने ाअमरण ाऄनशन शुरू कर क्रदया एिां 15 क्रदसम्बर, 1952 को
ाऄनशन के दौरान ही ाईनकी मृत्यु हो गाइ। ाआस कारण पूरे ाअन्ध्र क्षेत्र में तीन क्रदनों तक िगातार दांगे ,
प्रदशान, हहसा और हड़तािें चिती रहीं। सरकार तुरांत झुक गाइ और ाअन्ध्र राज्य के माांग को स्िीकार
कर विया गया। 1 ाऄलटू बर, 1953 को ाअवधकाररक रूप से ाअन्ध्र प्रदेश भाषााइ ाअधार पर भारत का
पहिा पुनगारठत राज्य बना। ाआसी के साथ, तवमि भाषी राज्य के रूप में तवमिनाडु ाऄवस्तत्ि में ाअया
हािाांक्रक यह नामकरण 1969 में हुाअ।
ाअन्ध्र प्रदेश के गठन के बाद ाऄन्य भाषााइ समूहों के द्वारा भी पृथक राज्य की माांग का ाअन्दोिन स्िर
पकड़ने िगा। ाआन माांगों को देखते हुए सरकार ने 1953 में एक ाऄन्य राज्य पुनगाठन ाअयोग की वनयुवि
की वजसके तीनों सदस्य फजि ाऄिी, के . एम. पवणिर एिां हृदयनाथ कुां जरू गैर-काांग्रेसी थे। ाअयोग ने
ाऄलटू बर, 1955 में ाऄपनी ररपोटा दी। ररपोटा की मुख्य बातें वनम्नविवखत हैं-
1. भाषााइ ाअधार, प्रशासवनक सुविधा ि समानता के दृविकोण से राज्यों के पुनगाठन के विए एक
ाऄत्यन्त महत्िपूणा कारक है। परन्तु यह एकमात्र कारक नहीं है। प्रशासवनक ि ाअर्थथक कारकों के
साथ-साथ ाऄन्य पक्षों पर भी समुवचत ध्यान क्रदया जाना चावहए। ये ाऄन्य पक्ष राष्ट्र की एकता ि
ाऄखडडता तथा सुरक्षा की ओर ाआां वगत करते थे।
2. दवक्षण की चार प्रमुख भाषाओं तेिुगू, तवमि, कन्नड़ ि मियािम के ाअधार पर क्षेत्र का पुनगाठन
क्रकया जाए। वजिा ि तालिुकों का ाऄिग-ाऄिग भाषाएां बोिने िािों के बहुमत के ाअधार पर
पुनगाठन क्रकया जाए।
3. ाईत्तर भारत में भी ाआस तरह राज्यों का पुनगाठन क्रकया जाए और विशाि वहन्दी प्रदेश में से चार
राज्य ाईत्तर प्रदेश, वबहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान वनकािे जाएां। पूरब के प्रदेशों में मामूिी
फे रबदि की सांस्तुवत की गाइ।
4. ाऄिग वसलख प्रान्त का गठन ाईवचत नहीं माना गया और न ही बम्बाइ प्रान्त को भाषााइ ाअधार पर
बाांटने की स्िीकृ वत दी गाइ। ाऄिबत्ता, ाअयोग ने मराठी भाषी दूरिती वजिों को वमिाकर एक
विदभा प्रान्त गरठत करने की सांस्तुवत की।
5. ाअयोग ने ाऄसम ि वबहार से पृथक कर ाअक्रदिासी राज्य बनाने की माांगों का विरोध क्रकया।
ाअयोग की ररपोटा को मामूिी सांशोधनों के साथ िागू क्रकया गया। ाआसके तहत सां सद ने निम्बर, 1956
ाइ. में राज्य पुनगाठन ाऄवधवनयम बनाया, वजसमें 14 राज्यों ि 6 सांघ शावसत प्रदेशों का वनमााण क्रकया
गया। ाआस ाऄवधवनयम की ाऄन्य प्रमुख बातें वनम्नविवखत थीं-
1. हैदराबाद ररयासत का तेिांगाना प्रदेश ाअन्ध्र प्रदेश राज्य में वमिा क्रदया गया।
2. एक नए राज्य के रि का वनमााण हुाअ जो त्रािणकोर-कोचीन क्षेत्र में पुराने मद्रास प्रेसीडेंसी के
मािाबार वजिे को वमिाकर बनाया गया।
3. बम्बाइ, मद्रास, हैदराबाद ि कु गा के कु छ कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को मैसरू ररयासत में वमिा क्रदया गया।
4. बम्बाइ राज्य का विस्तार कर ाईसमें कच्छ ि सौराष्ट्र की ररयासतों के साथ-साथ हैदराबाद ररयासत
के मराठी भाषी ाआिाकों को शावमि कर विया गया। ाआसमें मराठी भाषी नागपुर वडिीजन को भी
सवम्मवित क्रकया गया।
ाआस ाऄवधवनयम के द्वारा वनम्नविवखत राज्य एिां सांघ शावसत प्रदेश बनाए गएाः
1. ाअन्ध्र प्रदेश
2. ाऄसम
3. वबहार- कु छ क्षेत्रों का ाऄन्तरण पविम बांगाि में क्रकया गया।
4. बम्बाइ- ाईपयुाि क्षेत्रों को जोड़ा गया जबक्रक राज्य के दवक्षणतम वजिों को मैसरू को क्रदया गया।
1960 ाइ. में महाराष्ट्र ि गुजरात में विभाजन।
5. जम्मू एिां कश्मीर
6. के रि
7. मध्य प्रदेश- यह मध्य भारत, हिध्य प्रदेश ि भोपाि राज्य को वमिाकर बना जबक्रक मराठी भाषी
नागपुर वडिीजन बम्बाइ प्रान्त में सवम्मवित क्रकया गया।
8. मैसरू - ाआसमें कु गा वजिे के ाऄवतररि दवक्षण बम्बाइ के कन्नड़ भाषी क्षेत्र ि पविमी हैदराबाद के
कन्नड़ भाषी क्षेत्र भी शावमि करके क्षेत्र विस्तार क्रकया गया। 1973 ाइ. में मैसूर का नाम बदिकर
‘कनााटक’ कर क्रदया गया।
9. ाईड़ीसा
10. मद्रास- पूिािती मद्रास ररयासत से मािाबार क्षेत्र वनकािकर के रि में सवम्मवित कर क्रदया गया।
त्रािणकोर-कोचीन से दवक्षण वजिा कन्याकु मारी वनकािकर मद्रास में सवम्मवित कर क्रदया गया।
1964 में मद्रास का नाम बदिकर तवमिनाडु कर क्रदया गया।
11. पांजाब- परटयािा ि पूिी पांजाब राज्य सांघ का वििय कर क्षेत्र विस्तार क्रकया गया।
12. राजस्थान- ाऄजमेर का वििय ि बम्बाइ एिां मध्य भारत के राज्यों से कु छ क्षेत्र शावमि कर क्षेत्र
विस्तार क्रकया गया।
13. ाईत्तर प्रदेश
14. पविम बांगाि।
यद्यवप राज्य पुनगाठन ाअयोग ने वसफा तीन सांघ शावसत प्रदेशों की सांस्तुवत की थी, राज्य पुनगाठन
ाऄवधवनयम, 1956 द्वारा वनम्नविवखत 6 सांघ शावसत क्षेत्र बनाए गएाः-
1. ाऄांडमान ि वनकोबार द्वीप समूह
2. क्रदलिी
3. वहमाचि प्रदेश
4. िक्षद्वीप, वमवनकॉय ि ाऄमीनीदीि द्वीपसमूह- यह मद्रास राज्य से ाऄिग करके बनाया गया था।
ाआसका नाम बदिकर 1973 ाइ. में िक्षद्वीप कर क्रदया गया।
5. मवणपुर
6. वत्रपुरा।

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