Professional Documents
Culture Documents
संघर्ष से स्वतंत्रता तक
संघर्ष से स्वतंत्रता तक
पात्र परिचय
माधव का जन्म सन 1900 में एक निम्न वर्ग के परिवार में हुआ।उसे बचपन से ही निम्न वर्ग का होने
के कारण कई यातनाएं सहनी पड़ी और बचपन से ही पढ़ाई में रुचि होने के बावजूद शिक्षा ग्रहण
नहीं करने दिया गया।एक बार अंग्रेजों ने माधव के गांव पर एक क्रांतिकारी को पकड़ने के लिए
हमला कर दिया और कई मासूमो को मौत के घाट उतार दिया जिसमें माधव का पूरा परिवार भी
था।उसे अपने परिवार के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट में प्रवेश नही करने दिया गया क्योंकि
उस समय उच्च जाति के लोगो का दाह संस्कार किया जा रहा था।माधव अब अनाथ हो चुका था
था और उसकी मनोदशा दयनीय हो गयी थी।पर वह संभला,उसके मन मे समाज के खिलाफ क्रोध
और अंग्रेजो के खिलाफ आक्रोश था।इस वजह से उसने क्रांतिकारी बनने की ठानी और क्रांतिकारी
बना।
सन 1918 में वह महात्मा गांधी के वय्यक्तित्व से प्रभावित हुआ और दिल्ली आकर गांधी जी के
लिए एक कार्यकर्ता के तौर पर कार्य करने लगा।सन् 1919 में हुआ खिलाफत आंदोलन और
सन्1920 में हुये असहयोग आंदोलन में उसने अंग्रेजो के खिलाफ लोगो को जागरूक किया और
एकत्रित किया ।उसने दे श की आजादी के लिए हुए आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया और अपना
योगसन दिया।उसे कई बार जेल जाना पड़ा लेकिन उसने अंग्रेजो के सभी अत्याचार सहे।
1932 में हुआ पूना पैक्ट और फिर गांधी जी के लगातार कुछ वर्ष दलितों के हित में कार्य करने के
बाद माधव को लगा की अब दलितों की स्तिथि में सुधार आएगा पर यह सुधार ज्यादा दिनों तक
नही चल पाया।
सन् 1942 में हुए ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के बाद अंग्रेजो की जड़े भारत मे कमजोर पड़ने लगी
और अंग्रेजो ने भारत को 15 अगस्त 1947 को आज़ादी दे दी पर ‘बटवारे’ की कीमत पर।
बटवारें के बाद एक नया राष्ट्र बना ‘पाकिस्तान’ और पाकिस्तान में हिंदुओं का नर संहार होने लगा
,माधव भी उन्ही हिन्दुओ में से एक था जिसे मौत के घाट उतार दिया गया ।जिसने अपनी पूरी
जिंदगी दे श की आजादी के लिए न्योछावर कर दी वह आजाद भारत मे दो दिन भी जीवित नही रह
सका और शाहिद हुआ भी तो एक साम्प्रदायिक लड़ाई में!
ये उन हजारों क्रान्तिकारियो की कहानी है,जिन्हें इतिहास में तो जगह नही मिली पर उनका सारा
जीवन दे श को समर्पित था।
सन् 1900 में लाहौर के एक छोटे से गांव में दलितों के घर जन्म एक नन्हा सा बालक,माँ-बाप
उसकी प्यारी सी किलकारी पर मोहित हो गए और उसका नाम रखा ‘माधव’।
माधव के पिता एक छोटे किसान थे जिनका नाम रामलाल था और माता का नाम था पार्वती जो घर
का काम-काज संभालती थी।माधव के परिवार में उसके चाचा-चाची भी थे जो माधव से बड़ा प्यार
करते थे।माधव के पिता रामलाल और चाचा श्यामलाल दिनभर अपने खेत मे काम करते थे और
खेत मे काम न होने पर बड़े किसानो के खेतों में मजदूरी किया करते थे।उसकी माता जमींदार के
घर गोबर साफ किया करती थी।पर परिवार की इतनी मेहनत के बाद भी घर चलाने में मुश्किल
आती थी।कारण था अंग्रेजो द्वारा वसूल किया जाने वाला भारी लगान और अत्याचार।सबकुछ
मिला-जुलाकर कह सकते हैं कि उनकी माली हालत कुछ ठीक नही थी।एक छोटे झोंपड़े में सारा
परिवार रहा करता था।
उस वक्त सामाजिक व्यवस्था भी ठीक नहीं थी ,सारी ताकत उच्च जाति के हाथों में थी।निम्न जाति
के लोगो के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था।माधव या उसकी जाति के लोगों को अछु त
माना जाता था।उन्हें छू ना भी पाप माना जाता था।यहाँ तक कि उन्हें कुँए से पानी नहीं निकलने
दिया जाता था ,उनसे बेगार करवाया जाता था,लोगों के मल-मूत्र साफ करवाये जाते थे और बदले
में उन्हें जूठन खाने को भी सौभाग्य से नसीब होता था।उनकी जाति के बच्चों को स्कूलों या शिक्षण
संस्थानों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी।कई बार इन चीजों के शिकार माधव और उसके परिवार
वाले भी हुए थे।
बचपन मे माधव एक होनहार लड़का था पर जाति निम्न होने के कारण उसे शिक्षण संस्थानो में नहीं
पढ़ने दिया गया।इस वजह से माधव का ज्यादातर समय गांव की धूल-मिट्टी में दोस्तों के साथ खेलते
हुए बीतता था और बाकी समय वह अपनी माँ के साथ बिताता था और माँ के कामों में सहायता
करता था।उसे अपनी माँ से बड़ा लगाव था साथ हि साथ माँ को भी अपने पुत्र से काफी लगाव था।
जब माधव हँसता तो उसकी माँ भी हँसती और जब माधव रोता तो उसकी माँ भी रोती।
एक बार का किस्सा है जब माधव दस वर्ष का था और मैदान में खेल रहा था तब अंग्रेजों ने किसी
निर्दोष व्यक्ति पर गोली चला दी।यह दे खकर माधव बहुत घबरा गया और भाग के घर जाकर माँ के
आंचल में छिपकर रोने लगा और माधव को रोता दे ख उसकी माँ भी रोने लगी और दोनों बहुत रोयें।
यह एक 12 वर्ष के बच्चे के लिये बहुत बड़ा सदमा था।अब वह अनाथ हो चुका था ,इस दुनिया मे
उनका कोई नही बचा था।उस छोटे से बच्चे के दिल पर क्या गुजर रही होगी यह शब्दों में बयां कर
पाना नामुमकिन हैं।परिवार को खोने के इस सदमें से उसे बहुत आघात पहुंचा होगा।उसके परिवार
के दाह-संस्कार के लिए उसे शमशान में प्रवेश नहीं करने दिया गया क्योंकि उस समय ऊँची जाति
के लोगो का दाह-संस्कार किया जा रहा था।माधव का दोष बस इतना था कि वह निम्न जाति का
था।क्या ये सही था?क्या उसके अंदर भावनाएं नही थीं??
इसलिए अंग्रेजो ने सबसे पहला कानून बनाया ‘सेन्ट्रल एक्सरसाइज ड्यूटी एक्ट’ और टै क्स तय
किया 350% मतलब 100 रुपये के उत्पाद पर 350 रुपये एक्साइज ड्यूटी दे ना होगा।फिर अंग्रेजो
ने सेल्स टै क्स लगाया और वो भी तय किया गया 120% मतलब 100 रुपये का माल बेचो तो 120
रुपये सी.एस.टी. दो।इनकम टै क्स लगाया वो भी 97%मतलब सौ रुपये कमाया तो 97 रुपये
सरकार को दो।इसी तरह अंग्रेजो ने 23 तरह के टै क्स लगाए और भारत को खूब लूटा।आकड़ो के
अनुसार 1840 से 1947 तक टै क्स लगाकर अंग्रेजों ने लगभग 300 लाख करोड़ रुपया लूटा। भारत
मे जो गरीबी आयी थी वह अंग्रेजो की लूट के वजह से आई थी।विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी
33% से घटकर 3.9% हो गयी थी।हमारे कारखाने बंद हो गए थे ।लोगों ने खेतों में काम करना बंद
कर दिया था,हमारे मजदूर बेरोजगार हो गए थे।लगभग 4.5 करोड़ लोग भारत में एक सदी में भूख
से मरे थे।हमारे दे श पर राज करने के लिए अंग्रेजो ने 34735 कानून बनाये थे।
माधव को धीरे-धीरे भारत की स्तिथि-परिस्थिति अच्छी तरह से समझ आने लगी।उसने यह समझ
लिया कि अंग्रेज इस सोने की चिड़िया के पर नोच रहे हैं।उसने दे खा कि अंग्रेज भारतीयों को शिक्षा
से दूर करते जा रहे हैं ताकि वे भारतीयों पर लंबे समय तक राज कर सके ।इसलिए उसने ठाना की
वह पढ़े गा।उसने बड़ी मुश्किल से अपने राज्य के राजा से छात्रवृत्ति प्राप्त की जिससे उसने अपनी
पढ़ाई पूरी की।
उस समय तक भारत मे महात्मा गांधी का आगमन हो चुका था।उन्होंने चंपारण में किसानों की
मुक्ति और 1917 में अहमदाबाद के मिल मजदूरों के वेतन को बढ़ाने की मांग के किये आंदोलन कर
दिया था।इन सब कामों के कारण महात्मा गांधी का नाम भारत मे प्रचलित हो चुका था और भारत
के लाखों युवाओं की तरह माधव भी गांधी जी की विचारधारा से प्रभावित था ।
इसलिए वह अपना गांव छोड़कर दिल्ली आ गया।गांधी जी उस वक्त दिल्ली में ही थे।वह महात्मा
गांधी के लिए एक कार्यकर्ता के तौर पर काम करने लगा और जगह-जगह जाकर लोगों को
जागरूक करने लगा ताकि वे भी स्वत्रंता के हर संग्राम में भाग ले सके।अब माधव के जीवन का
सिर्फ एक ही मकसद था “भारत की आजादी”।चूँकि वह पढ़ा लिखा था इसलिए उसने पत्रिकायें
लिखना शुरू किया।उसकी पत्रिकाओं को कुछ लोगों के एकत्रित होने पर जोर से पढ़ा जाता कि
अनपढ़ भी सुनकर दे श की स्थिति का अनुमान लगा सके।उसने गांव-गांव घूमकर लोगो मे
जागरूकता पैदा की और अपना पूरा योगदान दिया।
सन् 1919 में भारतीय मुसलमानों में अंग्रेजो के खिलाफ बहुत आक्रोश पैदा हो गया था इसकी
वजह थी तुर्की में खलीफा पद की समाप्ति।खलीफा मुसलमानो का धार्मिक व राजनैतिक नेता हुआ
करता था जिसे मुसलमान पूजते थे।हालाँकि तुर्की में ख़लिफा पद की समाप्ति से भारत पर कोई
सीधा असर नही पड़ा था मगर मुसलमानों को लगा कि यह इस्लाम धर्म को ब्रिटिशर्स की चुनौती है।
इस समय पूरी दुनिया के मुसलमानों ने आंदोलन किये थे।भारत मे आंदोलन के लिए मार्च 1919 में
बम्बई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया।मोहम्मद अली और शौकत अली बंधुओं समेत
कई नेताओं ने इस मुद्दे पर पूर्ण क्रान्ति की संभावना तलासने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा
शुरू कर दी।सिंतबर 1920 में हुए काँग्रेस के कोलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने दूसरे नेताओं
को इस बात पर मन लिया कि खिलाफत आंदोलन का समर्थन करना चाहिए और स्वराज के लिये
एक असहयोग आंदोलन चलाना चाहिये।महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन करने को
इसलिए कहा क्योंकि उन्हें लगा कि हिन्दू-मुस्लिम को एक करने का यह सुनहरा मौका हैं और वह
यह बात जानते थे कि अगर हिन्दू मुस्लिम एक होकर अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठायेंगे तो अंग्रेज
क्या कोई भी विदे शी भारत पर शासन नही कर पायेगा।
उन्होंने असहयोग और खिलाफत आंदोलन दोनो एक समानांतर चलाया।भारत के लाखों युवाओ
की तरह माधव ने भी इन आंदोलनों में पूरे जोश के साथ भाग लिया।अंग्रेजो ने इस आंदोलन को
दबाने की बहुत कोशिश की।कई जगहों पर हमले किये।इन्ही हमलो में से एक हमला 13 अप्रैल
,1919 को जलियावाला बाग में हुआ था जो भारतीय इतिहास के कुछ काले दिनों में से एक है।इस
हमले में सैकड़ों लोगों को अंग्रेजों ने बेरहमी से मार डाला था।पर इस हमले ने भारत के गुस्से की
आग में घी का काम किया और भारत के सभी क्रान्तिकारियो का गुस्सा भड़क उठा।कई सरकारी
दफ्तरों को आग लगा दिया गया।भारतीयों ने सैकड़ों अंग्रेजों की जान ले ली थी।भारतीय आंदोलनों
में एक तेजी सी आ गयी थी पर इसी बीच खिलाफत आंदोलन बुरी तरह से असफल हो गया और
जनवरी 1921 में समाप्त हो गया ।वर्ष 1924 में कमाल पाशा की सरकार द्वारा खलीफा पद पूरी
तरह से समाप्त कर दिया गया।
खिलाफत आंदोलन के साथ-साथ चल रहे असहयोग आंदोलन जिसके अंतर्गत महात्मा गांधी ने
पूरे दे श से अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग की अपील की थी,वह इस दौर में जोर पकड़ चुका था।
लेकिन महात्मा गांधी मार्च 1922 में इसे बंद कर दिया ,इसके पीछे की वजह थी 4 फरवरी 1922 में
हुई घटना ,इस दिन हुआ चौरा-चौरी कांड। आंदोलन रोक दे ने के बाद 10 मार्च 1922 को उन्हें
राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और 6 साल की सजा सुनाई गई।
महात्मा गांधी के इस फैसले से भारत के कई लोग नाराज थे ।उनमें से एक माधव भी था पर उसे
महात्मा गांधी पर भरोसा था कि वो दे श को जरूर आजादी दिलायेंगे।पर सभी को ऐसा विश्वास नही
था।इस वक्त भारत के कई गरम मिजाज युवाओ ने अंग्रेजो पर हमले करके उनकी जान ले ली।इसी
समय भारत के कई गरम दलिए स्वतंत्रता सेनानियों के उदय हुआ जिनमे से एक चंद्रशेखर आज़ाद
थे।
वर्ष 1923 में चित्तरंजन दास तथा पंडित ने स्वराज पार्टी की स्थापना कि ।माधव ने कार्यकर्ता के
तौर पर यहाँ काम किया।केन्द्रीय धारा सभा मे 145 स्थानों में से 45 स्थान स्वराज दल के
प्रतिनिधियों ने प्राप्त किये थे ,उन प्रतिनिधियों में से एक माधव भी था।उसने कुछ वर्षों तक स्वराज
पार्टी के लिये अपनी पूरी ऊर्जा से काम किया।छोटे -छोटे योगदान ही सही पर भारत के युवा
स्वतंत्रता में अपना योगदान दे रहे थे।उन दिनों युवाओ में जोश और अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश
दोनों की ही कमी नही थी।
वर्ष 1924 में 12 जनवरी को महात्मा गांधी को जेल से आंतों के ऑपरेशन के लिए रिहा कर
दिया गया।इस घटना से भारतीयों में उत्साह और हर्ष का महौल जग गया था पर महात्मा गांधी ने
जेल से छू टते ही कोई बड़ा आंदोलन नही शुरू किया क्योंकि वह अच्छे मौके का इंतजार कर रहे थे।
दूसरी तरफ गरम दल के कुछ क्रान्तिकारियो ने ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध छे ड़ने की इच्छा
से हथियार खरीदने के लिए ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूटने की योजना बनाई।इस घटना का
नेतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खा और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे लोगों ने किया था। इस
घटना को 1 अगस्त 1925 को सफलता पूर्वक अंजाम दे दिया गया और इस घटना को हम इतिहास
में "काकोरी कांड" के नाम से जानते है।कुछ समय पश्चात अंग्रेजो ने ट्रे न से खजाना लूटने के आरोप
में चार लोगों को फाँसी और 16 अन्य क्रांतिकारियों को कम से कम चार वर्ष की सजा से लेकर
अधिकतम काला पानी की सजा सुनाई।
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद भारतीयों का अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष
थम से गया था।वह 5 वर्ष बाद 8 नवंबर 1927 को भारत के संविधान सुधारों के अध्धयन के लिए
ब्रिटे न में साइमन कमीशन/आयोग के गठन के बाद फिर से शुरू हो गया।अंग्रेजी अधिकारी
वाइसरॉय लार्ड इरविन ने महात्मा गांधी को दिल्ली बुलाकर यह सूचना दी कि भारत मे वैधानिक
सुधार लाने के लिए एक रिपोर्ट तैयार की जा रही हैं,जिसके लिए एक कमीशन बनाया गया है
जिसके अध्य्क्ष सर जॉन साइमन होंगे। पर इस कमीशन में सारे अंग्रेज थे,महात्मा गांधी को यह
भारत का अपमान लगा।वर्ष 1927 के मद्रास अधिवेशन में साइमन कमीशन के बहिष्कार और पूर्ण
स्वराज के संकल्प ने स्वतंत्रता संग्राम को धार प्रदान की।एक ऐसी धार जिसने अंग्रेजी हुकूमत की
नींव को खोखला कर दिया ।भारतीयों के संघर्ष में ठहराव खत्म हुआ और भारतीयों ने फिर एकजुट
हो कर आवाज उठायी। 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन बम्बई के बंदरगाह पर उतरा।इस दिन
पूरे दे श मे हड़ताल मनाई गई और 'साइमन गो बैक' के नारे गूंज उठे ।
यह कमीशन जब लाहौर पहुँचा तो वहाँ की जनता ने लाला लाजपत राय के नेतृत्व में काले झंडे
दिखाए और साइमन गो बैक के नारे लगाए।यह दे ख कर अंग्रेजो ने पुलिस को लाठी चार्ज का
आदे श दिया।पुलिस ने सैकड़ों लोगों को लाठी से मारा,लाला लाजपत राय की तो मृत्यु भी हो गयी।
कई युवाओं की तरह माधव ने भी बहुत मार खाई।उसका एक पैर और एक हाथ टू ट गया पर बड़ी
मुश्किल से उसकी जान बचा ली गयी।कई लोगो की यही स्तिथि थी।भारतीयों ने आखिरकार 1930
तक साइमन कमीशन को दे श से भगा दिया।यह एक राष्ट्र के तौर पर भारत की एक बड़ी जीत थी।
महात्मा गांधी को दे श के लोगो मे इस वक्त एकता दिखी।इसलिए उन्होंने वर्ष 1930 में सविनय
अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की जिसका प्रारंभ प्रशिद्ध दांडी मार्च से हुआ। 12 मार्च को सवेरे
6:30 बजे महात्मा गांधी साबरमती आश्रम से अपने 78 स्वयंसेवको के साथ दांडी यात्रा के लिए
निकल पड़े थे।सवयंसेवको में से एक माधव भी था जो आश्वस्थ होने के बावजूद 241 मील लंबी
दांडी यात्रा पर निकला था।उसके इस जज्बे के पीछे दो कारण थे पहला गांधी जी के प्रति उसका
विश्वास और दूसरा दे श को आजाद दे खने का उसका सपना। 6 अप्रैल को दांडी पहुचने तक यह
कारवाँ हजारों का हो चला था।गांधी जी ने समुद्र के पास जाकर नमक बनाया और नमक कानून
तोडा।यह दे ख पुलिस ने गुस्से में भिड़ पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी,जिसमे 2 सवयंसेवक मैरे
गए जबकि 320 लोग घायल हुए।पर लोगों ने हार नही मानी और कोई पीछे नहीं हटा।मजबूरन
पुलिस ने महात्मा गांधी,माधव समेत कुछ अन्य लोगो को गिरफ्तार किया।
पहली बार माधव महात्मा गांधी से जेल में मिला।उसने जाना कि वो दे श के बारे में कैसे सोंचते
हैं। वह उनके वय्यक्तित्व के परिचित हुआ तब उसके दिल गांधी जी के लिए सम्मान और भी बढ़
गया।
दूसरी तरफ जेल के बाहर इस आंदोलन ने पूरे दे श के सभी लोगो का ध्यान आकर्षित किया था।
लोगों के दबाव में आकर आखिरकार अंग्रेजो को महात्मा गांधी समेत सभी को 1931 में जेल से
रिहा करना पड़ा।लार्ड इरविन ने महात्मा गांधी से बैठकर बात करना ही उचित समझा और दोनों ने
अपनी बातें औऱ कुछ शर्तें रखी।दोंनो के बीच 5 मार्च 1931 को एक समझौता हुआ जिसे इतिहास
गांधी-इरविन समझौते के नाम से जानता है।महात्मा गांधी ने शर्त रखी थी कि हिंसा के आरोपियों
को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बन्दियों को रिहा कर दिया जाए,समुन्द्र के किनारे भारतीयों को
नमक बनाने का अधिकार दिया जाए,भारतीय शराब और विदे शी कपड़ों की दुकानों के सामने
धरना दे सकते है,आंदोलन के दौरान जप्त संपत्ति वापस की जाए और आंदोलन के दौरान त्यागपत्र
दे ने वालों को दुबारा नौकरी दी जाए।
वही इरविन ने शर्त रखी कि सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थागित कर जाए,कांग्रेस द्वितीय गोलमेज
सम्मेलन में भाग लेगी और गांधी जी पुलिस की ज्यादतियों की जाँच की मांग छोड़ दें गे।
यह समझौता भारतीये दृष्टिकोण से इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इतिहास में पहली बार ब्रिटिश
सरकार ने भारतीयों के साथ समानता के स्तर पर समझौता किया।
'पूना पैक्ट' के बाद महात्मा गांधी ने दलितों की स्थिति में सुधार लाने के लिए कई कार्य
किये।8 मई 1933 को दलितों के साथ दुर्व्यवहार के कारण 3 सप्ताह का उपवास रखा। 11
फववरी 1933 को 'हरिजन' नामक एक साप्ताहिक पत्रिका छपवानी शुरू की।उन्होंने दलितों
को 'हरिजन' कहा जिसका अर्थ होता है जिसका हरि अलावा और कोई न हो।उन्होंने दलितों को
सम्मान दिलाने के लिए कई दलितों के घर गए उनके संग खाना खाया,दूसरों के मल मूत्र साफ
किये ताकि यह दिखा सके कि कोई भी कम छोटा या बड़ा नही होता। यहाँ तक की उन्होंने 17
नवंबर 1934 को 'हरिजन उत्थान योजना' शुरू की और 17 सितंबर को यह घोषणा कर दी कि
वह 1 अक्टू बर से राजनीति छोड़ दें गे और खुद को गावो के विकाश ,हरिजनों को सेवाएं प्रदान
करने और शिक्षण व्यवस्था की जड़ मजबूत बनाने के कार्य मे संलग्न कर दें गे।गांधी जी का
हरिजनों के प्रति इतना त्याग और अपनापन दे खकर उनके महान स्वभाव का अंदाजा लगाया
जा सकता हैं।उन्होंने हरिजनों के लिए अपनी ज़िंदगी के कई महत्वपूर्ण साल खर्च किये। वह
कहीं न कहीं दे श को एक सूत्र में पिरोने के सपने को साकार करने के लिए लोगों में समानता का
भाव उत्तपन्न करना चाहते थे।माधव को अपना बचपन का सपना पूरा होते नजर आ रहा था।
उसे लग रहा था कि अब दलितों के अच्छे दिन आने वाले है और उस समय सुधार आया भी था
मगर यह लंबे समय तक नही टिक सका। हमारे समाज को इनसे सीखने की आवश्यकता है कि
जाति में कुछ नही रखा इंसान की पहचान उसके कर्म से होती हैं।
इसी बीच जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया और महात्मा गांधी के
कांग्रेस में न होने के कारण कुछ वर्षों तक दे श मे कोई बड़ा आंदोलन नही हो सका।
1 सितंबर 1939 को द्वितीय विश्वयुद्ध शुरुआत जर्मनी के तानाशाह हिटलर के कारण हुआ।
दे खते-दे खते ही विश्व के ज्यादातर दे श अपने फायदे के लिए इस युद्ध में कूद पड़ा।ब्रिटे न मित्र
राष्ट्रों के पक्ष से युद्ध लड़ रहा था।युद्ध में अपने सैन्य बल को बढ़ाने के लिये उसे भारत की
सहायता की जरूरत थी।इसलिय ब्रिटे न द्वारा भारत का सक्रिय सहयोग पाने के लिए
युद्धकालीन मंत्रीमंडल के एक सदस्य 'स्टैं फॉर्ड क्रीप्स' की अध्यक्षता में एक टीम मार्च 1942 में
भारत भेजी गयीं, जिसका मुख्य उद्दे श्य भारत के राजनीतिक गतिरोध को दूर करना था।
हालाँकि इस मिशन का वास्तविक उद्दे श्य युद्ध मे भारतीयों को सहयोग दे ने के लिए फुसलाना
था।ब्रिटिश सेना कमजोर पड़ती जा रही थी तो दूसरी ओर जापान की सेना रंगून पहुँच चुकी थी
और भारत पर हर पल आक्रमण का भय बढ़ता जा रहा था।इन परिस्थितियों में भारत ने शर्त
रखी कि वह मित्र राष्ट्रों का समर्थन दे ने को तभी तैयार होंगे जब भारत को ठोस उत्तरदायी
शासन का त्वरित हस्तांतरण कर दिया जाये और युद्धोपरांत भारत को पूर्ण आजादी दे ने का
वचन दिया जाये।पर 'क्रीप्स मिशन' हमें निराशा हाथ आयी क्योकि उन्होंने यह शर्त मानने से
अस्वीकार कर दिया था।
जिस दौरान कांग्रेस के नेता जेल में थे,उसी समय जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के उनके साथी
अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने में लगे थे।इन्हीं सालों में लीग को पंजाब और सिंध में अपनी पहचान
बनाने का मौका मिला जहाँ अभी तक उसका ख़ास वजूद नहीं था जबकि अंग्रेज इस समय
भारतीयों का दमन कर रहे थे ।उन्होंने कई लोगो को मौत की नींद सुला दिया और लाखों को
घायल किया।इतनी ज्यादतियों के बाद भी अंग्रेजो को 'भारत छोड़ो' आंदोलन को रोकने में 1
वर्ष से भी अधिक का समय लगा। 1943 में दुर्भाग्यवश यह आंदोलन विफल हो गया।इसका
मुख्य कारण था सुनियोजित तैयारी का न होना और सरकार का कठोर दमन चक्र।
सन 1944 में विश्व युद्ध ब्रिटे न की जीत के साथ खत्म हुआ और तब भारत मे महात्मा गांधी
समेत अन्य नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारतीय जानते थे कि ब्रिटिश सरकार कमजोर पड़ गई है ,इसलिए
ब्रिटिशर्स को भारत में बहुत विरोध सहना पड़ रहा था।इस वक्त महात्मा गांधी ने भी ‘करो या
मरो’का नारा दिया।अंग्रेजो के पास अब भारत में शासन चलाने के लिए धन भी नही बचा था
और भारत मे शासन करना दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा था।इसलिए उन्होंने भारत को
आजादी दे ने का फैसला किया।भारत के हाथों में सत्ता के हस्तांतरण को लेकर विचार किया
जाने लगा ।इसी कड़ी में सन 1945 में गवर्नर जनरल लार्ड वेवेल ने 4 जून को एक योजना
प्रस्तावित की जिसे 'वेवेल योजना' के नाम से जाना जाता हैं। इस योजना की कई विशेषतायें थी
जैसे कांग्रेस के नेता जो जेल में बंद थे,उन्हें रिहा करने की बात कही गयी और नए संविधान का
निर्माण करने की छू ट भारतीयों को प्रदान की गई।
भारत अब अपनी स्वतंत्रता की ओर अग्रसर था।पर तेजी से बढ़ते मुस्लिम लीग के प्रभाव के
कारण एक नये राष्ट्र 'पाकिस्तान' को बनाने की मांग तेज हो गयी। अंग्रेजों ने इस पर आग में घी
डालने का काम किया और भारत के बटवारे को तय कर दिया।
हिंदुस्तान-पाकिस्तान बंटवारे का दर्द लाखो लोगो ने भूकता ।पाकिस्तान से रेलों में भरकर
हिंदुओं की लाशें भेजी जाने लगी तो हिंदुओं ने मुसलमानों को मारकर उनकी लाशो को
पाकिस्तान भेजना शुरू कर दिया।पूरे दे श मे भयंकर रक्तपात हुआ और दे श हिन्दू-मुस्लिम की
सम्प्रदायिक लड़ाई की आग में जल रहा था।माधव का घर पाकिस्तान में था जो अब पाकिस्तान
का हिस्सा था इसलिए मुस्लिमों ने माधव के हिन्दू होने के कारण उसे मौत के घाट उतार दिया
और उसे हिंदुस्तान भेज दिया।उसे अंतिम संस्कार के लिए एक चिता भी नसीब नही हुई।जिस
क्रांतिकारी ने अपना सर्वस्व दे श की आजादी के लिये न्योछावर कर दिया उसे ऐसी मौत कतई
शोभा नही दे ती।जिसने बिना मौत के भय के आजादी के लिए हुए हर आंदोलन में भाग लिया
वह आजाद भारत मे दो दिन भी जीवित न रह सका।वह जिन दे शवासियों के लिए लड़ा उसे
उन्ही दे शवासियों ने मार डाला।
ये उन हजारो क्रान्तिकारियो की कहानी है जो हमें याद नही पर आज हमारी आजादी कारण
है।
हमें सीख लेनी लड़ाई में कुछ नहीं रखा,इससे सिर्फ विनाश होता है और यह शपथ लेनी चाहिये
कि भारत को फिर से मिलकर शिखर तक पहुँचाना हैं।