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बिरसा मुंडा
बिरसा मुंडा
बिरसा मुड
ं ा का जन्म 1875 के दशक में छोटा नागपु र में मुं डा परिवार में हुआ था । मुं डा एक जनजातीय समूह था जो
छोटा नागपु र पठार में निवास करते थे । बिरसा जी 1900 में आदिवासी लोगो को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर
लिया गया और उन्हें 2 साल की सजा हो गई । और अं ततः 9 जून 1900 मे अं गर् े जो द्वारा उन्हें एक धीमा जहर दे ने
के कारण उनकी मौत हो गई।
मुंडा विद्रोह
मुं डा जनजातियों ने 18 वीं सदी से ले कर 20 वीं सदी तक कई बार अं गर् े जी सरकार और भारतीय शासकों, जमींदारों के
खिलाफ विद्रोह किये । बिरसा मुं डा के ने तृत्व में 19 वीं सदी के आखिरी दशक में किया गया मुं डा विद्रोह उन्नीसवीं
सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनजातीय आं दोलनों में से एक है ।[1] इसे उलगु लान(महान हलचल) नाम से भी जाना
जाता है । मुं डा विद्रोह झारखण्ड का सबसे बड़ा और अं तिम रक्ताप्लावित जनजातीय विप्लव था, जिसमे हजारों की
सं ख्या में मुं डा आदिवासी शहीद हुए।[2] मशहरू समाजशास्त्री और मानव विज्ञानी कुमार सु रेश सिं ह ने बिरसा मुं डा के
ने तृत्व में हुए इस आं दोलन पर 'बिरसा मुं डा और उनका आं दोलन' नाम से बडी महत्वपूर्ण पु स्तक लिखी है ।[3]