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छोटी सी उम्र।

खिलौने से खेलने और काट के घोड़े पर बैठने की उम्र।

लेकिन इसे छोटी उम्र में कोई तलवारों को अपना दोस्त बना लें और घोड़ों को
अपना साथी तो आप क्या कहेंगे? देश की आजादी के सपने देखने लगे और
महाराज शिवाजी के रास्ते पर चलने की बातें करें तो आप उसे क्या कहेंगे? एक
सच्चा देश प्रेमी।

पर अगर मैं कहूँ की ऐसा सोचने और ऐसा सपने देखने वाली एक लड़की थी,
1012 साल की लड़की छोटी सी लड़की जो आगे चलकर देश की ऐसी पहली
शासिका बनी जिसने ब्रिटिश हुकू मत को चुनौती दी।

उनके विरुद्ध लड़ाई लड़ी और बहुत बहादुरी से लड़ाई लड़ी।

बात हो रही है द क्वीन ऑफ झांसी रानी लक्ष्मीबाई की जिन पर सुभद्राकु मारी


चौहान ने लिखी कविता और कहा खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी
तो छोटी उम्र बडी जिंदगी के आज के एपिसोड में बात इन्हीं की और बात करने
के लिए हमेशा की तरह हमारे साथ है।
रेहान फ़ज़ल।

सन 1877 में 16 साल के रबीना टैगोर ने लक्ष्मीबाई पर 1,00,000 लिखा


था झांसी रन।

इसमें उन्होंने बताया था कि वो युवा थी, 20 साल से गोसाल ऊपर सुंदर थी


और शक्तिशाली और सबसे बढ़कर इरादे की बहुत पक्की थी।

कु छ सालों बाद विनायक दामोदर सावरकर ने इन्हीं शब्दों में रानी का गुणगान
किया था।

20 के दशक में सुभद्रा कु मारी चौहान ने रानी लक्ष्मीबाई पर एक लंबी कविता


लिखी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली राजनीति 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने
आजाद हिंद फौज की एक रेजिमेंट का नाम झांसी की रानी रेजिमेंट रखा था।

बोस रानी को भारतीय वीरता का।


सबसे बड़ा उदाहरण मानती थी और उनकी तुलना फ्रांस की जो नो ऑफ आग
से करते थे।

नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लिखा था, 1857 की लड़ाई में सबसे
ज्यादा नाम कमाया था रानी लक्ष्मी बाई।

रेहान जी लक्ष्मीबाई की छोटी सी जिंदगी रही और इस छोटी सी जिंदगी से जुड़ा


एक किस्सा भी आपने श्रोताओं को सुनाया।

काशी में जन्मी और बचपन में नाम रखा गया मणिकर्णिका, लेकिन आगे चलकर
रानी लक्ष्मीबाई कै से बनी, बचपन कै से गुजरा और क्या क्या शौक रहे देखिये
मणिकर्णिका जैसा आपने बताया इनका नाम था और इनके पिता होते थे मोरोपंत।

और ये जो पेशवा के भाई थे उनके ये एडवाइजर होते थे।

बहुत कम उम्र में इनकी माता का देहांत हो गया और 1849 में इनकी शादी हुई
है व झांसी के राजा के साथ गंगाधर राव के साथ शादी हुई है।

और दिलचस्प बात।
आपको ये बताए कि जब भी शादी हुई तो इनके जो पिता हैं इनके साथ आए और
इनके जो इनकी जो पहली पत्नी थी।

गंगाधर राव की 1842 में उनका निधन हो गया था और उनकी कोई संतान नहीं
थी और इनकी बड़ी अजीब सी आदत थी इनको।

महिलाओं की तरह बिहेव करना था, होता था, अक्सर घर की छत पर चले जाते
थे और वहाँ पर पुरुषों के कपड़े उतारकर औरतों के कपड़े पहन लेते थे, चूड़ियां
पहन लेते थे, बल्कि पास एक भी पहन लेते थे तो ये इनके जब कोई संतान नहीं
पैदा हुई और यह भी बीमार हो गए।

तो उन्होंने एक पुत्र।

को एडॉप्ट करने की का जतन किया और उनका नाम था दामोदर राव और


बकायदा जो अडॉप्शन हुआ उसके लिए उन्होंने वहाँ पर जो अंग्रेज पॉलिटिकल
ऑफिसर थे, मेजर इलनेस और कै प्टन मार्टिन इन दोनों को बुलाया ताकि ये
सनद रहे कि।
के सामने इनको अडॉप्ट किया गया है।

तो इसी के बाद जैसे आप ने बताया कि अडॉप्शन हुआ और मृत्यु हुई महाराज


की झांसी के तब और लॉर्ड डलहौजी जो उस वक्त भारत के गवर्नर जनरल थे, वो
एक कानून लेकर आते हैं।

कानून है।

डॉक्टर न फ्लै प्स और इसी के सहारे झांसी को एक तरीके से कब्जा करने की


कोशिश।

से कोशिश के रूप में इसे देखा गया है।

इस कानून में क्या था? देखिये दल हो जी सबसे यंगेस्ट गवर्नर जनरल थी भारत
के और उस जमाने में ये प्रथा थी कि जब किसी राजा के कोई संतान नहीं होती
थी तो वो किसी को अडॉप्ट कर लेता था तो इसको टैकल करने के लिए इन्होंने
डॉक्टर इन ऑफ बनाया।
उन्होंने कहा कि आप अडॉप्ट नहीं कर सकते किसी को और इसी के सहारे कई
राज्यों को ब्रिटिश राज्य में मिलाया गया।

उसमें लोअर बर्मा शामिल था, अवध शामिल था, पंजाब शामिल था, उदयपुर
शामिल था तो इस तरह और यही सिद्धांत इन्होंने झांसी पर भी कहा और रानी ने
अपील की इसके लिए कि भाई लेकिन उस अपील को ठु करा दिया गया और जॉन
लॉन्ग होते थे।

एक वकील रानी नून वकील को किया और यह मेरठ में एक अखबार निकालते


थे।

मुफस्सिल सखबार का नाम था।

ये ऑस्ट्रेलिया इन थे और इन्होंने एक मुकदमा जीता था।

इसी तरह का ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ तो रानी ने इनको खासतौर से बुलाया


और उन्होंने अपील की और उसका लॉन्ग ने बाद में एक किताब लिखी और
उसमें उन्होंने रानी का वर्णन किया।
रानी अंग्रेजों के सामने और दूसरे लोगों के सामने पर्दे में रहती थी।

तो यह बताते हैं अपनी किताब में लिखते हैं कि।

पर्दे में बात हो रही थी पर्दे को उस तरफ रानी बैठी थीं, इधर ये बैठे थे अचानक
उनके बेटे ने।

दामोदर ने वो परदा हटा दिया और इन्होंने रानी की झलक देख ली तो यह बताते


हैं कि गोल चेहरा था उनका और गोरी नहीं थी ना काली थी यानी सांवले रंग की
थी सफे द रंग की।

उन्होंने साड़ी पहन रखी थी और सिर्फ कान में एक बंदा था या बाली, उसे आप
पहले वो था और इन दोनों के बीच बहुत लंबी मंत्रणा हुई।

शांत 6:00 बजे बैठे और सुबह 2:00 बजे तक ये लोग बातें करते रहे और
फिर उन्होंने अपील की रानी के बिहाफ पर और उसमें हवाला दिया गया है।

अंग्रेजों के साथ जो संधि हुई थी 1812 में 1824 में आठ और 1842 में एक
किसान इनको राज़ करने का अधिकार होगा।
इनके वारिसों को भी लेकिन हुआ नहीं।

उन्होंने उस अपील को ठु करा दिया।

और रानी ने एक महीने कांग्रेस माना, फिर मांगा की भाई हमें एक महीने की छू ट


दी जाए।

उनको राजमहल से निकालकर रानीमहल एक हवेली थी, वहाँ पर शिफ्ट कर


दिया गया।

कई समझौते हुए, समझौते भी हुए और अंग्रेजी हुकू मत एक तरीके से वहाँ शासन


करने लगा।

लेकिन फिर आता है साल 1857।

भारतीय स्वतंत्रता स्वतंत्रता संग्राम का पहला कहें कि पहला संग्राम था ये पहली


क्रांति और शुरुआत मेरठ से हुई।
लेकिन झांसी तक कै से पहुंचा लक्ष्मीबाई कै न? जैसे ही ये शुरुआत हुई पूरे उत्तर
भारत में इस तरह से विद्रोह की लहर फै ल गई और उस समय जो झांसी में।

रीसन पोस्टेड थीं।

अंग्रेज़ों को पूरी तरह से ज्यादातर लोग उसमें भारतीय थे।

भारतीय लोग भारतीय सिपाही जो अंग्रेजों के लिए लड़ रहे थे उन्होंने विद्रोह कर


दिया।

उन्होंने वहाँ जो चीन थी वहाँ पर पहले हमला किया और जेल में जीतने भी कै दी
थे।

उन सब को उन्होंने छोड़ा दिया वहाँ इस तरह का।

अफरातफरी फै ली की जितनी भी अंग्रेज थे, करीब दो 250 अंग्रेज पुरुष महिला


और बच्चे थे।
उन्होंने किले में जाकर शरण लिए, अपनी जान बचाने के लिए और रानी से
अपील की कि भाई हमारी सुरक्षा कीजिए, लेकिन तीन दिनों बाद एक एक अंग्रेज
व्यक्ति को।

मार दिया गया।

विद्रोहियों ने उन्हें जान से मार दिया।

उसमें पुरुष भी शामिल थे।

बच्चे भी थे और अंग्रेजों ने बाद में आरोप लगाया कि इसमें रानी का हाथ था,
जबकि बाद में इस तरह के सबूत मिले कि रानी कै से कोई लेना देना नहीं था और
जैसे ही ये सब हुआ रानी।

ने वहाँ पर तैयारी शुरू कर दी।

हथियार बनने लगे, वापस अपने महल में चली गई और उनका पूरा जो जो
अपीयरेंस था वो पूरी तरह से चेंज हो गया।
पहले जैसे वो साड़ी पहनती थी तो फिर अब वो।

तलवार रचने लगी, पिस्टल रखने लगी और पुरुषों के बेस में एक तरह से आ
गई।

उनके कमरबंध से पिस्टल लटकती रहती थी और चांदी की सोने की तलवार भी


लटकती रहती थी।

तो इस तरह से एक माहौल बना अंग्रेजों के खिलाफ़ और फिर जब अंग्रेजों ने


किलाबंदी कर ली।

तो रानी लक्ष्मीबाई कै से? उस किले से निकली हुई कहानी को अंग्रेजों से ज्यादा


सबसे ज्यादा लड़ना पड़ा? उनके पड़ोस की राजपुर छा छा ने उनके ऊपर हमला
कर दिया और किले को चारों तरफ से घेर लिया और बड़ी मुश्किल से इन्होंने।

पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और फिर जनरल ह्यूज रॉस होते थे बल्कि ह्यूज
रोज़ उनका नाम था।
उनको जिम्मेदारी दी गई कि रानी को टैकल करने के लिए झांसी को घेर लिया
गया और उन्होंने £18 की तोप के गोलों का इस्तेमाल किया।

किले को तोड़ने के लिए तो प्रत्यक्षदर्शी।

कहते है की रानी अपने घोड़े पर सवार होकर पूरा इन्सपेक्शन पर निकलती थी।

किले पर लोगों का मनोबल बढ़ाती थी, उनको देखा जाता था नेतृत्व करते हुए
और दो ब्रिटिश सैनिक थे 3 अप्रैल।

1858 को किले में घुसने में सफल हो गए।

उसी रात रानी ने जितनी भी उनके बचे हुए जो क्लोसेस्ट से फै साल आर थे


उनको जमा किया और उन्होंने फै सला किया कि वो किले से बाहर निकलेंगी।

एक सुनहरे घोड़े पर सवार और हाथ में तलवार लिए।

और 200 बार उनके साथ वो किले से बाहर निकलने में कामयाब हो गई और


अगले कु छ हफ्ते उन्होंने एक तरह से लिटरल्ली सड़कों पर बिताए क्योंकि किले को
उन्होंने छोड़ दिया था और इसी तरह और कर्मी बेइंतहा गर्मी पड़ रही थी, बल्कि
लोग।

क्या बताते हैं कि इतनी गर्मी थी कि हाथी जो इस्तेमाल हो रही थी, लड़ाई में
हाथियों के आंसू निकल रहे थे।

गर्मी की वजह से और फिर रानी और उनके सैनिक किसी तरह काल्पी पहुंचे
और कालपी में वहाँ पर मौजूद थे और राहुल साहब।

नाना साहब के भतीजे वो भी मौजूद थे तो एक तरह से फिर अंग्रेजों से इनकी


लड़ाई हुई कालपी में।

लेकिन कालपी में ये जो कं बाइन होर्स इस थे इनको हार का सामना करना पड़ा
और विष्णु भट्ट गोडसे एक ऑथर हुए हैं।

उन्होंने वर्णन दिया है कि उन्होंने उस समय रानी को देखा था।

और वो बिलकु ल जीस तरह से।


पठान कपड़े पहनते हैं, उस तरह के कपड़े पहने होती है, बहुत थकी हुई दिखाई
दे रही थी और गंदे कपड़े उन्होंने घने थे, बहुत तनाव में थी।

ये वर्णन मिलता है और फिर वहाँ से कालपी से ये लोग बच के निकले हैं और


काल भी से आके फिर ग्वालियर आए।

और ग्वालियर में सिंधिया थे।

उनके किले पर इन्होंने कब्जा किया है।

इन सबने मिलकर और वहाँ के जो महाराजा थे जयाजीराव सिंधिया, वो वहाँ से


भागकर फिर अंग्रेजों की शरण में चले गए।

वहाँ आग्रा और वहाँ पर फिर।

रानी को एक बहुत ही बेशकीमती मोती का हार जो कि उनकी ट्रेजरी में था वो


उनको दिया गया और फिर किले से हटकर फिर वो फू लबाग आ गई।

फू लबाग एक जगह थी और फिर इसके बाद फिर रॉस को दोबारा भेजा गया।
क्रोस।

आए।

उनके पीछे पीछे दो उसको की लगाया गया था और फिर वो जो लड़ाई हुई है


जिसके बाद बहुत बहुत मशहूर लड़ाई इसमें रानी ने जो पीर था दिखाई है, उसके
अभी तक मैं उसी पर आने वाली थी।

रेहान जी आखिरी लड़ाई जिसमें कहें तो वीरगति को प्राप्त हुई।

33 साल की उम्र थी और वो आखिरी लड़ाई कै से थे? देखिये कै प्टन रॉड्रि क


ब्रिक्स को।

जिम्मेदारी दी गई कि वो आगे बढ़े और रानी पर हमला करे और जब भी लेकिन


जब भी वो आगे बढ़ती थी, रानी की जो सैनिक थे उनको चारों तरफ से घेर लेते
थे।

बहुत उनके लिए उनके पास नहीं पहुंचने देते थे।


अचानक जनरल रोज़ जिनको जो पूरा जिम्मेदारी दी गई थी।

हूँ।

इनटू की एक टुकड़ी के साथ उसमें प्रवेश करते हैं और उन ऑटो को रिज़र्व में
रखा गया था।

ऊं ट पहले लड़ाई में शामिल नहीं थे और रानी के जो सिपाही थे वो भाग नहीं रहे
थे लेकिन धीरे धीरे उनकी संख्या कम हो रही थी।

वो नोट किया जा रहा था कि पहले 100 थे फिर 50 रह गए फिर 25 रह गए।

और वहाँ पर हिंदी सिस्टर एक ऑथर हुए हैं।

उन्होंने पूरा वर्णन किया है कि रानी चिल्लाई है, पूरी ताकत से कि मेरे पीछे आओ
और 15 घुड़सवार उनके पीछे दौड़ कर गए हैं और फिर ये जो ब्रिक्स है इन्होंने
उनको पहचानना है और कहा कि वो रहीं रानी, वो है झांसी की रानी और सब
लोग।
उनके पीछे दौड़ के कोटे सराय जो जगह है वहाँ पर ये लड़ाई हुई है और
अचानक रानी को लगा कि उनकी चेस्ट में दर्द हो रहा है।

एक सिपाही ने बिल्कु ल बगल में उनके पीछे से आकर उनकी पीठ में संगीन भोंक
की थी और रानी को जैसे ही पता चला वो पलट के उन्होंने तलवार से वार किया
और उस सैनिक को वही खत्म कर दिया और फिर वो आगे बढ़ीं।

चोट मामूली थी।

चोट इतनी ज्यादा नहीं थी लेकिन खून बहुत बह रहा था उस चोट से और फिर
घोड़े पर सवार थी सामने एक छोटा सा एक पानी की जगह आई और रानी ने
सोचा कि वह घोड़ा उसको पार कर दिया जाएगा लेकिन घोड़ा आगे टस से मस
ही नहीं हुआ।

इतनी ज़ोर से उन्होंने ई लगाने की कोशिश की।

क्यों? बिल्कु ल।
घोड़े की गर्दन पर आ गई ऑलमोस्ट और तभी उनको किसी ने उनको भाई
तरफ उनके कमर के पानी तरफ उनको चोट लगी।

उनको राइफल से गोली मारी गई और उनके हाथ से तब तक तलवार छू ट चुकी


थी।

और।

एक अंग्रेज सिपाही का बिल्कु ल उनके बगल में पहुँचकर उनके सिर पर वार किया
है।

बिल्कु ल सिर के बीचोबीच वो तलवार लगी।

रानी जमीन पर भी थी और जमीन पर गिरने के बाद अंग्रेज पास नहीं आए।

लेकिन रानी के एक सैनिक ने उनको गोदी में उठाया और वहाँ नज़दीक में।

एक मंदिर था पर बात लेकर गए और बहुत एक तरह से ऑलमोस्ट एक आंख से


तुम आंधी हो गई थी, इतनी ज़ोर से उनको चोट लगी थी वो खून पूरा उनका चेहरे
पर वो था वहाँ पर एक पुजारी ने उनको गंगा जल पिलाया और मतलब डिस थी
कहने की कोशिश कर रही थी।

कु छ मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे।

उन तब उनके ये थी कि दामोदर का ध्यान रखना जो उनका बेटा था और जो


प्रत्यक्षदर्शी है।

बाद में ये काउंट आया है कि उन्होंने अपना मोती का हार जो होने दिया गया था
वो निकालने की कोशिश की देने की की भाई इससे इस पैसे से दामोदर ख्याल
रखा जाए तो फिर आपकी शब्द थे कि मेरा शव अंग्रेजों के हाथ में नहीं पड़ना
चाहिए और वहीं पर उसी समय उनके उन्होंने आखिरी सांस ली तो वहाँ जीतने
भी लोग मौजूद थे।

पास की लकड़ियों को जोड़कर वहाँ पर उनके शव को रखकर उसमें आग लगा


दी।

बाहर टेम्पल के आहाती में लड़ाई हो रही है।


किसी ने चिल्लाकर कहा कि रानी अंदर है अंदर की तो जब ब्रिक्स अंदर है तो
वहाँ चारों तरफ धुआं था और उनका उनका जो शिकार हो चुका था।

शव उदास संस्कार तू तो नहीं कहा जा सकता मतलब बहुत जल्दबाजी में लकड़ी
जमा करके शव।

में आग लगाई गई थी तो उसने बूट से आग बुझाने की कोशिश की।

और फिर।

इस तरह से रानी का अंत हुआ और बहुत बाद में उनके बेटे बच गए।

दामोदर जिन को बचाने की बात थी 19, 1860 में जाकर उन्होंने आत्मसमर्पण
किया।

अंग्रेजों के सामने और 59 साल तक वह जीवित रहे।

दामोदर 59 साल तक जीवित रहे और जब।


व निकास अरबाज हुआ।

33 साल सिर्फ 33 साल थी उनकी और उसके बाद टोपे जो उनके साथी थे,
उनको भी गिरफ्तार कर लिया गया और शिवपुरी के पास उनको फांसी पर लटका
दिया।

अंग्रेजों ने तो इस एपिसोड को यही पर देते हैं विराम, अगले एपिसोड में आप से


फिर होगी मुलाकात।

तब तक मुझे और रिहान फसल को दे इजाजत नमस्कार नमस्कार।

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