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Munshi Premchand
Munshi Premchand
प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं , का जन्म वाराणसी से चार मील दरू लमही
गाँव में हुआ था। ।उनकी शिक्षा का आरं भ उर्दू, फ़ारसी पढ़ने से हुआ और
रोज़गार का पढ़ाने से। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा के पास करने के बाद वह
एक स्थानिक पाठशाला में अध्यापक नियुक्त हो गए। 1910 में वह इंटर
और 1919 में बी.ए. के पास करने के बाद स्कूलों के डिप्टी सब-इंस्पेक्टर
नियक्
ु त हुए।उनकी प्रसिद्ध हिंदी रचनायें हैं ; उपन्यास: सेवासदन, प्रेमाश्रम,
निर्मला, रं गभमि
ू , गबन, गोदान ; कहानी संग्रह: नमक का दरोग़ा, प्रेम
पचीसी, सोज़े वतन, प्रेम तीर्थ, पाँच फूल, सप्त सुमन ; बालसाहित्य: कुत्ते
की कहानी, जंगल की कहानियाँ आदि। १९०६ से १९३६ के बीच लिखा गया
प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है ।
इसमें उस दौर के समाजसध
ु ार आंदोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी
आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है । उनमें दहे ज, अनमेल
विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता,
स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण
मिलता है ।
रात भीग चुकी थी। मैं बरामदे में खडा था। सामने अमीनुददौला पार्क नीदं में डूबा खड़ा
था। सिर्फ एक औरत एक तकियादार वेचं पर बैठी हुंई थी। पार्क के बाहर सड़क के
किनारे एक फकीर खड़ा राहगीरो को दआ
ु एं दे रहा था। खुदा और रसूल का वास्ता……
राम और भगवान का वास्ता….. इस अंधे पर रहम करो ।
यह क्या रहस्य है ? उसके जानने के कूतूहल से अधीर होकर मै नीचे आया ओर फेकीर
के पास खड़ा हो गया।
वह कई गलियों मे होती हुई एक टूटे –फूटे गिरे -पडे मकान के दरवाजे पर रुकी, ताला
खोला और अन्दर चली गयी।
रातभर मेरा जी उसी तरफ लगा रहा। एकदम तड़के मै फिर उस गली में जा पहुचा ।
मालूम हुआ वह एक अनाथ विधवा है ।
मैने दरवाजे पर जाकर पुकारा – दे वी, मैं तुम्हारे दर्शन करने आया हूँ। औरत बहार
निकल आयी। ग़रीबी और बेकसी की जिन्दा तस्वीर मैने हिचकते हुए कहा- रात आपने
फकीर को………………
सोज़े-वतन मश
ुं ी प्रेमचंद