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जन्म : 31 जुलाई 1880

जन्म स्थान : लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदे श |


व्यवसाय : अध्यापक, ले खक, पत्रकार |

ववधा : कहानी और उपन्यास |

उल्लेखनीय कायय : गोदान, कममभूमम, रं गभूमम, सेवासदन,


मनममला और मानसरोवर |

मृत्यु : 8 अक्टू बर 1936 (उम्र 56) वाराणसी,

उत्तर प्रदे श |

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जीवन परिचय:

धनपत िाय श्रीवास्तव (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टू बर 1936) जो मुंशी प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं ,

वो महन्दी और उदू म के सवाम मिक लोकमप्रय उपन्यासकार, कहानीकार एवं मवचारक थे। उन्ोंने सेवासदन,

प्रेमाश्रम, रं गभूमम, मनममला, गबन, कममभूमम, गोदान आमद लगभग डे ढ़ दजमन उपन्यास तथा कफन, पूस की

रात, पंच परमेश्वर, बडे घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आमद तीन सौ से अमिक कहामनयााँ मलखीं।

उनमें से अमिकां श महन्दी तथा उदू म दोनों भाषाओं में

प्रकामशत हुईं। उन्ोंने अपने दौर की सभी प्रमुख

उदू म और महन्दी पमत्रकाओं जमाना, सरस्वती, मािुरी,

मयाम दा, चााँ द, सुिा आमद में मलखा। उन्ोंने महन्दी

समाचार पत्र जागरण तथा सामहत्यिक पमत्रका हं स

का संपादन और प्रकाशन भी मकया। इसके मलए

उन्ोंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पडा। प्रेमचंद मफल्ों की पटकथा मलखने

मुंबई आए और लगभग तीन वषम तक रहे । जीवन के अंमतम मदनों तक वे सामहि सृजन में लगे रहे । महाजनी

सभ्यता उनका अंमतम मनबन्ध, सामहि का उद्दे श्य अत्यिम व्याख्यान, कफन अत्यिम कहानी, गोदान अत्यिम

पूणम उपन्यास तथा मंगलसू त्र अत्यिम अपूणम उपन्यास माना जाता है ।

1906 से 1936 के बीच मलखा गया प्रेमचंद का सामहि इन तीस वषों का सामामजक सां स्कृमतक

दस्तावेज है । इसमें उस दौर के समाजसुिार आन्दोलनों, स्वािीनता संग्राम तथा प्रगमतवादी आन्दोलनों के

सामामजक प्रभावों का स्पष्ट मचत्रण है । उनमें दहे ज, अनमेल मववाह, परािीनता, लगान, छूआछूत, जामत भेद,

मविवा मववाह, आिुमनकता, स्त्री-पुरुष समानता, आमद उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का मचत्रण ममलता

है । आदशोन्मुख यथाथमवाद उनके सामहि की मुख्य मवशेषता है । महन्दी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में

1918 से 1936 तक के कालखण्ड को 'प्रेमचंद युग' कहा जाता है ।

उनकी जन् म एक कायस्थ पररवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी दे वी तथा मपता का

नाम मुंशी अजायबिाय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तमवक नाम धनपत िाय श्रीवास्तव था।

प्रेमचंद (प्रेमचन्द) की आरत्यिक मशक्षा फारसी में हुई। प्रेमचंद के माता-मपता के सम्बन्ध में राममवलास शमाम

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मलखते हैं मक- "जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वगमवास हो गया। जब पन्द्रह वषम के हुए तब

उनका मववाह कर मदया गया और सोलह वषम के होने पर उनके मपता का भी दे हाि हो गया।"

इसके कारण उनका प्रारत्यिक जीवन संघषममय रहा। प्रेमचंद के जीवन का सामहि से क्या संबंि है
इस बात की पुमष्ट राममवलास शमाम के इस कथन से होती है मक- "सौतेली मााँ का व्यवहार, बचपन में शादी,

पण्डे -पुरोमहत का कममकाण्ड, मकसानों और क्लकों का दु खी जीवन-यह सब प्रेमचंद ने सोलह साल की उम्र
में ही दे ख मलया था। इसीमलए उनके ये अनुभव एक जबदम स्त सचाई मलए हुए उनके कथा-सामहि में झलक

उठे थे।" उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुमच थी। 13 वर्य की उम्र में ही उन् होंने मतमलस्म-ए-होशरुबा
पढ़ मलया और उन्ोंने उदू म के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', ममर्ाम हादी रुस्वा और मौलाना शरर के

उपन् यासों से पररचय प्राप्त कर मलया। उनका पहला मववाह पंद्रह साल की उम्र में हुआ। 1906 में उनका
दू सरा मववाह मशवरानी दे वी से हुआ जो बाल-मविवा थीं। वे सुमशमक्षत ममहला थीं मजन्ोंने कुछ कहामनयााँ और

प्रेमचंद घर में शीषमक पुस्तक भी मलखी। उनकी तीन सिाने हुईं-श्रीपत राय, अमृत राय और कमला दे वी
श्रीवास्तव। 1898 में मैमटि क की परीक्षा उत्तीणम करने के बाद वे एक स्थानीय मवद्यालय में मशक्षक मनयुक्त हो

गए। नौकरी के साथ ही उन्ोंने पढ़ाई जारी रखी। उनकी मशक्षा के सन्दभम में राममवलास शमाम मलखते हैं मक-
"1910 में अंग्रेर्ी, दशमन, फारसी और इमतहास लेकर इण्टर मकया और 1919 में अंग्रेजी, फारसी और

इमतहास लेकर बी. ए. मकया।" 1919 में बी.ए. पास करने के बाद वे मशक्षा मवभाग के इं स्पेक्टर पद पर मनयुक्त
हुए।

1921 ई. में असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गााँ िी के सरकारी नौकरी छोडने के आह्वान पर

स्कूल इं स्पेक्टर पद से 23 जून को िागपत्र दे मदया। इसके बाद उन्ोंने लेखन को अपना व्यवसाय बना

मलया। मयाम दा, मािुरी आमद पमत्रकाओं में वे संपादक पद पर कायमरत रहे । इसी दौरान उन्ोंने प्रवासीलाल के

साथ ममलकर सरस्वती प्रेस भी खरीदा तथा हं स और जागरण मनकाला। प्रेस उनके मलए व्यावसामयक रूप से

लाभप्रद मसद्ध नहीं हुआ। 1933 ई. में अपने ऋण को पटाने के मलए उन्ोंने मोहनलाल भवनानी के मसनेटोन

कम्पनी में कहानी लेखक के रूप में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर मलया। मफल् नगरी प्रेमचंद को रास

नहीं आई। वे एक वषम का अनुबन्ध भी पूरा नहीं कर सके और दो महीने का वेतन छोडकर बनारस लौट

आए। उनका स्वास्थ्य मनरिर मबगडता गया। लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टू बि 1936 को उनका वनधन हो

गया।

***

[3]
जन्म : 23 मसतम्बर 1908
जन्म स्थान : मसमररया घाट बेगूसराय मजला, मबहार |

व्यवसाय : कमव, ले खक |

ववधा : गद्य और पद्य |

उल्लेखनीय कायय : कुरुक्षेत्र, रत्यिरथी, उवमशी, हुं कार,

संस्कृमत के चार अध्याय, परशु राम

की प्रतीक्षा, हाहाकार

मृत्यु : 24 अप्रैल 1974 (उम्र 65)


मद्रास, तममलनाडु |

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जीवन परिचय:

िामधािी वसंह 'वदनकि' ' (23 मसतम्बर 1908 - 24 अप्रैल 1974) महन्दी के एक प्रमुख लेखक, कमव

व मनबन्धकार थे। वे आिुमनक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कमव के रूप में स्थामपत हैं । राष्टिवाद अथवा राष्टिीयता

को इनके काव्य की मूल-भूमम मानते हुए इन्े 'युग-चारण' व

'काल के चारण' की संज्ञा दी गई है ।

'मदनकर' स्वतन्त्रता पूवम एक मवद्रोही कमव के रूप में

स्थामपत हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्टिकमव' के नाम से जाने

गये। वे छायावादोत्तर कमवयों की पहली पीढ़ी के कमव थे। एक ओर उनकी कमवताओ में ओज, मवद्रोह,

आक्रोश और क्रात्यि की पुकार है तो दू सरी ओर कोमल शंगाररक भावनाओं की अमभव्यत्यक्त है । इन्ीं दो

प्रवृमत्तयों का चरम उत्कषम हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उवमशी नामक कृमतयों में ममलता है । 'मदनकर' जी का

जन्म 24 वसतंबि 1908 को मबहार के बेगूसराय मजले के मसमररया गााँ व में हुआ था। उन्ोंने पटना

मवश्वमवद्यालय से इमतहास राजनीमत मवज्ञान में बीए मकया। उन्ोंने संस्कृत, बां ग्ला, अंग्रेजी और उदू म का

गहन अध्ययन मकया था। बी. ए. की परीक्षा उत्तीणम करने के बाद वे एक मवद्यालय में अध्यापक हो गये।

1934 से 1947 तक मबहार सरकार की सेवा में सब-रमजस्टार और प्रचार मवभाग के उपमनदे शक

पदों पर कायम मकया। 1950 से 1952 तक लंगट मसंह कालेज मुजफ्फरपुर में महन्दी के मवभागाध्यक्ष रहे ,

भागलपुर मवश्वमवद्यालय के उपकुलपमत के पद पर 1963 से 1965 के बीच कायम मकया और उसके बाद

भारत सरकार के महन्दी सलाहकार बने।

उन्ें पद्म मवभूषण की उपामि से भी अलंकृत मकया गया। उनकी पुस्तक संस्कृमत के चार अध्याय

के मलये सामहि अकादमी पुरस्कार तथा उवमशी के मलये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान मकया गया।

अपनी लेखनी के माध्यम से वह सदा अमर रहें गे।

द्वापर युग की ऐमतहामसक घटना महाभारत पर आिाररत उनके प्रबन्ध काव्य कुरुक्षेत्र को मवश्व के

100 सवमश्रेष्ठ काव्यों में 74 वााँ स्थान मदया गया। 1947 में दे श स्वािीन हुआ और वह मबहार मवश्वमवद्यालय

में महन्दी के प्रध्यापक व मवभागाध्यक्ष मनयुक्त होकर मुर्फ़्फ़रपुर पहुाँ चे। 1952 में जब भारत की प्रथम

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संसद का मनमाम ण हुआ, तो उन्ें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह मदल्ली आ गए। मदनकर 12 वषम

तक संसद-सदस्य रहे , बाद में उन्ें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर मवश्वमवद्यालय का कुलपमत

मनयुक्त मकया गया। लेमकन अगले ही वषम भारत सरकार ने उन्ें 1965 से 1971 ई. तक अपना महन्दी

सलाहकार मनयुक्त मकया और वह मफर मदल्ली लौट आए। मफर तो ज्वार उमरा और रे णुका, हुं कार,

रसवंती और द्वं द्वगीत रचे गए। रे णुका और हुं कार की कुछ रचनाऐं यहााँ -वहााँ प्रकाश में आईं और अग्रेर्

प्रशासकों को समझते दे र न लगी मक वे एक ग़लत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं और मदनकर

की फाइल तैयार होने लगी, बात-बात पर कैमफयत तलब होती और चेतावमनयााँ ममला करतीं। चार वषम में

बाईस बार उनका तबादला मकया गया।

रामिारी मसंह मदनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे , लेमकन जब बात दे श के महत-अमहत

की आती थी तो वह बेबाक मटप्पणी करने से कतराते नहीं

थे। रामिारी मसंह मदनकर ने ये तीन पंत्यक्तयां पंमडत

जवाहरलाल नेहरू के त्यखलाफ संसद में सुनाई थी, मजससे

दे श में भूचाल मच गया था। मदलचस्प बात यह है मक

राज्यसभा सदस्य के तौर पर मदनकर का चुनाव पंमडत नेहरु ने ही मकया था, इसके बावजूद नेहरू की

नीमतयों की मुखालफत करने से वे नहीं चूके।

1962 में चीन से हार के बाद संसद में मदनकर ने इस कमवता का पाठ मकया मजससे तत्कालीन

प्रिानमंत्री नेहरू का मसर झुक गया था. यह घटना आज भी भारतीय राजनीती के इमतहास की चुमनंदा

क्रां मतकारी घटनाओं में से एक है | इसी प्रकार एक बार तो उन्ोंने भरी राज्यसभा में नेहरू की ओर

इशारा करते हए कहा- "क्या आपने महं दी को राष्टिभाषा इसमलए बनाया है , तामक सोलह करोड

महं दीभामषयों को रोज अपशब्द सुनाए जा सकें?" यह सुनकर नेहरू समहत सभा में बैठे सभी लोगसन्न रह

गए थे। मकस्सा 20 जून 1962 का है । उस मदन मदनकर राज्यसभा में खडे हुए और महं दी के अपमान को

लेकर बहुत सख्त स्वर में बोले।

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जन्म : मवक्रमी संवत 1455 (सन 1398 ई ०)

जन्म स्थान : वाराणसी, (हाल में उत्तर प्रदे श, भारत) |


व्यवसाय : कमव |
ववधा : दोहे |

उल्लेखनीय कायय : कबीर बीजक, सुखमनिन, होली अगम,


शब्द, वसंत, साखी और रक्त |

मृत्यु : मवक्रमी संवत 1559 (सन 1494 ई ०)


वाराणसी, (हाल में उत्तर प्रदे श, भारत) |

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जीवन परिचय:

कबीर दास का जन्म 1398 ई० में हुआ था। कबीर दास के जन्म के संबंि में लोगों द्वारा अनेक प्रकार

की बातें कही जाती हैं कुछ लोगों का कहना है मक वह जगत गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीवाम द से काशी

की एक मविवा ब्राह्मणी के गभम से उत्पन्न हुए थे| ब्राह्मणी उस

नवजात मशशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आई।

उसे वहां से एक नीरू नाम का जुलाहा अपने घर लेकर

आया और उसी ने उनका पालन पोषण मकया। बाद में इस

बालक को कबीर कहा जाने लगा। कुछ लोगों का कहना है मक

वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्ें महं दू िमम की बातें मालूम हुई एक

मदन, रात के समय कबीर दास पंचगंगा घाट की सीमढ़यों पर मगर पडे । रामानंद जी, गंगा स्नान करने के मलए

सीमढ़यों से उतर रहे थे मक तभी अचानक उनका पैर कबीर के शरीर पर पड गया उनके मुख से तत्काल

राम-राम शब्द मनकल पडा उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मंत्र मान मलया और रामानंद जी को अपना गुरु

स्वीकार कर मलया। कुछ कबीरपंथीयों का यह मानना है मक कबीर दास का जन्म काशी में लहरतारा तालाब

में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ था।

कबीि दास का जन्म स्थान औि वशक्षा |

कबीर दास का जन्म मगहर, काशी में हुआ था। कबीर दास ने अपनी रचना में भी वहां का उल्लेख मकया है :

“पमहले दरसन मगहर पायो पुमन काशी बसे आई” अथाम त काशी में रहने से पहले उन्ोंने मगहर दे खा था

और मगहर आजकल वाराणसी के मनकट ही है और वहां कबीर का मकबरा भी है । कबीर दास जब िीरे -

िीरे बडे होने लगे तो उन्ें इस बात का आभास हुआ मक वह ज्यादा पढ़े -मलखे नहीं हैं वह अपनी अवस्था के

बालकों से एकदम मभन्न थे। मदरसे भेजने लायक सािन उनके माता—मपता के पास नहीं थे। मजसे हर मदन

भोजन के मलए ही मचंता रहती हो, उस मपता के मन में कबीर को पढ़ाने का मवचार भी कहा से आए। यही

कारण है मक वह मकताबी मवद्या प्राप्त ना कर सके।

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कबीि दास का वैवावहक जीवन |

कबीर दास का मववाह वनखेडी बैरागी की पामलता कन्या ‘लोई’ के साथ हुआ। कबीर दास की कमाल

और कमाली नामक दो संतानें भी थी जबमक कबीर को कबीर पंथ में बाल ब्रह्मचारी माना जाता है इस पंथ

के अनुसार कमाल उसका मशष्य था और कमाली तथा लोई उनकी मशष्या थी। लोई शब्द का प्रयोग कबीर

ने एक जगह कंबल के रूप में भी मकया है कबीर की पत्नी और संतान दोनों थे। आरं भ से ही कबीर महं दू भाव

की उपासना की ओर आकमषमत हो रहे थे अतः उन मदनों जब रामानंद जी की बडी िूम थी। अवश्य वे उनके

सत्संग में भी सत्यिमलत होते रहे होंगे। लेमकन आगे चलकर कबीर के राम, रामानंद के राम से मभन्न हो गए

और उनके प्रवृमत्त मनगुमण उपासना की और दृढ़ हुई। संत शब्द संस्कृत सत् प्रथमा का बहुवचन रूप है

मजसका अथम होता है सज्जन और िामममक व्यत्यक्त। महं दी में सािु पुरुषों के मलए यह शब्द व्यवहार में आया।

कबीर, सूरदास, गोस्वामी तु लसीदास, आमद पुराने कमवयों ने इन शब्द का व्यवहार सािु और परोपकारी पुरुष

के अथम में मकया है और उसके लक्षण भी मदए हैं । यह आवश्यक नहीं है मक संत उसे ही कहा जाए जो मनगुमण

ब्रह्म का उपासक हो। इसके अंतगमत लोगमंगलमविायी में सभी सत्पुरुष आ जाते हैं , मकंतु कुछ सामहिकारों

ने मनगुमणी भक्तों को ही संत की उपामि दे दी और अब यह शब्द उसी वगम में चल पडा है ।

कबीि दास की मृत्यु |

कबीर दास ने काशी के मनकट मगहर में अपने प्राण िाग मदए। ऐसी मान्यता है मक मृिु के बाद उनके शव

को लेकर भी मववाद उत्पन्न हो गया था महं दू कहते हैं मक उनका अंमतम संस्कार महं दू रीमत से होना चामहए

और मुत्यिम कहते थे मक मुत्यिम रीमत से। इसी मववाद के चलते जब उनके शव से चादर हट गई तब लोगों

ने वहां फूलों का ढे र पडा दे खा और बाद में वहां से आिे फुल महं दुओं ने उठाया और आिे फूल मुसलमानों

ने। मुसलमानों ने मुत्यिम रीमत से और महं दुओं ने महं दू रीती से उन फूलों का अंमतम संस्कार मकया। मगहर में

कबीर की समामि है उनके जन्म की तरह ही उनकी मृिु मतमथ एवं घटना को भी लेकर मतभेद है । मकंतु

अमिकतर मवद्वान उनकी मृिु संवत् 1575 मवक्रमी (सन 1518 ई०) को मानते हैं , लेमकन बाद में कुछ

इमतहासकार उनकी मृिु को 1448 को मानते हैं ।

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पयायविण:
पृथ्वी पर त्यस्थत जैव तथा अजैव पदाथों के सहसम्बन्ध को
पयाम वरण कहा जाता है । अथाम त् हमारे चारों ओर के वायु

मंडल, जल, ममट्टी, जंगल, पेड - पौिों, पशु पमक्षयों और सूक्ष्म

जीवाणुओं के वलय को पयाम वरण कहा जाता है ।

पयायविण संतुलन:
जैमवक तथा अजैमवक पदाथों के बीच संतुलन को
पयाम वरण संतुलन कहा जाता है । आजकल पयाम वरण

प्रदू षण के कारण यह संतुलन मबगड रहा है ।

पयायविण प्रदू र्ण:


जल, थल, वायु, िवमन और कां मत में अवां मछत - एवं हामनकारक पदाथों की अमिकता को प्रदू षण कहते
हैं ।

पयायविण संतुलन के वबगड़ने / पयायविण प्रदू र्ण के कािक:


 नमदयों को रोककर मवशाल बााँ ि बनाना ।
 लाखों एकड जंगलों का काटा जाना ।

 कोयला, पेटिोल तथा िातुओं के मलये जमीन को बेरहमी से काटा जाना ।


 बडे -बडे कारखानों का मनमाम ण ।

 शहरों का मवस्तार ।
 बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप उसके मलये आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाना ।

 ऊजाम के मलये कोयला तथा अन्य इं िनों को जलाना ।


 आवागमन के सािनों में इस्तेमाल मकये जाने वाले पेटिोमलयम पदाथों के जलने से मनकलने

वाली गैसें।
 अनेक उद्योगों, बसों, कारों, टि े नों आमद की ध्वमन ।
 घर के रे मडयो, टी.वी. मवद् यु त् कां मत और सडकों की मवद् युत् कां मत।

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प्रदू र्ण से नष्ट:
 मनुष्य ही नहीं, जीव जंतु रोग के मशकार होंगे।

 प्रकृमत के सुन्दर दृश्य मवकृत और मछन्न मभन्न हो जाते हैं ।


 प्रकृमत की खाद्यश्रृंखला, नाइटि ोजन चक्र तथा काबमनडाइआक्साइड चक्र और

आक्सीजन चक्रों के सामान्य प्रमक्रयाओं में बािा पडती है । इससे कई प्रदे शों में सूखा
होता है । कुछ प्रदे शों में बाढ होती है ।

 सुन्दर भवनों की भव्यता समाप्त होने लगती है ।


 पेड पौिों और जीव-जिुओं पर घातक प्रभाव पडते हैं ।

प्रदू र्ण के प्रकाि:


प्रदू र्ण के कई प्रकाि हैं -

1. वायु प्रदू षण
2. जल प्रदू षण
3. भूमम प्रदू षण
4. ध्वमन प्रदू षण और,
5. कां मत प्रदू षण ।

1. वायु प्रदू र्ण:


सलफर डाइआक्साइड, मनलंमबत िुआाँ, नाइटि ोजन के आक्साइड, काबमन मोनो आकसाइड आमद

की मात्रा मदन-ब-मदन बढ़ती जा रही है । संसार में हर वषम लगभग 2009 करोड टन काबमनडाई-आक्साइड
उत्पन्न होती है । यमद इस गैस के उत्पादन पर रोक न लगाई गई तो अगले सौ वषों में पृथ्वी की सतह का

तापमान 3-9 मडग्री बढ़ जाएगा। इससे जलवायु गमम हो


जाएगी । इस तापमान वृत्यद्ध से संभवतः ध्रुवीय बफम मपघलने

लगे और समुद्रों में जल का स्तर बढ़ जाये। इसका पाररणाम


यह होता है मक िरती के अनेक मनचले स्तर के क्षेत्रों में बाढ़

आ जाएगी और समुद्र के टापू डूब जायेंगे । इस प्रकार इसका


अंमतम पररणाम होगा अनेक सभ्यताओं का मवनाश ।

कुछ लोगों का कहना है मक िुआाँ और िूल जो हम


वायुमंडल में भेज रहे हैं , उसके कारण सूरज की गमी िरती तक कम पहुाँ च जाती है । इसका पररणाम
[12]
यह हो सकता है मक समस्त संसार का तापमान कम हो जाये और मफर से िरती पर एक नया महमयुग

आ जाये ।

2. जल प्रदू र्ण:
अनेक नहरों तथा नमदयों के पानी में मानव

द्वारा पैदा की गयी गंदगी, साबुन युक्त जल,


औद्योमगक अवमशष्ट पदाथम आमद ममलकर जल

को प्रदू मषत बना रहे हैं । एक परीक्षण से पता चला


है मक मवश्व में 10% नमदयााँ बुरी तरह प्रदू मषत हो

चुकी हैं और तीसरे मवश्व के दे शों के पेय जल में


हामनकारक बैक्टीररया की मात्रा बहुत अमिक है ।

इस प्रदू षण के कारण भूमध्य सागर का चमचमाता नीला रं ग भूरा होता जा रहा है । उसके मकनारों पर
बोतलों और कागजों के सडते हुए कूडे के ढे र लगे हुए हैं |

3. भूवम प्रदू र्ण:

रासायमनक खाद, मक्रमम नाशक पदाथों आमद के

कारण भूमम प्रदू षण होता है । घरों से बाहर फेंके


जानेवाले कूडा कचरा से भी भूमम प्रदू षण होता

है ।

4. ध्ववन प्रदू र्ण या कोलाहल जवनत प्रदू र्ण:

बहुमंमजली इमारतों में हुए रोमडयो की आवाजे,

कारखानों में पैदा होने वाले शोरे , गामडयों के


बजते इं जनों और भोंपुओं की आवाजें आमद से

ध्वमन प्रदू षण या कोलाहल जमनत प्रदू षण होता


है । इससे शारीररक और मानमसक तनाव पैदा

होता है ।

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5. कांवत प्रदू र्ण:
अमिक कां मतवाले बल्ों का उपयोग, अंतररक्ष
परीक्षण, अंतररक्ष यानों के अमिक प्रभाव से

कां मत प्रदू षण हो रहा है ।

प्रदू र्ण के कुछ उदाहिण:


आज प्रदू षण की समस्या केवल भारत में ही नहीं, सारे मवश्व में है ।

 मदसंबर 3, 1984 को भोपाल में यूमनयन काबाम इड


कम्पनी से मवषैली गैसों के मनकलने के कारण कुछ ही

घंटों में तीन हजार लोग मर गये। जो मरने से बचे ,


उनकी पररत्यस्थमत आज तक नहीं सुिरी ।

 रूस के युक्रेन प्रां त में चेरनोबेल अणु मवद् युत् केन्द्र है । सन्
1986 में उससे मनकले रोमडयेशन के प्रभाव से मकतने ही लोग मर

गये। उससे गमभममणयों पर ही नहीं, गभमस्थ मशशुओं पर भी बुरा प्रभाव


पडा है ।

आज गंगा का जल उतना शुद्ध नहीं है , मजतना शुद्ध एक शताब्दी के पूवम था इसके दो कारण हैं -

1) अनेक कारखानों के मवष पदाथम उसके पानी में ममलाये जाते हैं ।

2) आिी जली लाशें उसमें फेंकी जाती हैं ।

इसमलये कुछ प्रां तों के गंगा जल में नहाने से चमम रोग आते हैं | है दराबाद की कई नमदयों का पानी भी
पीने योग्य नहीं है । मदसंबर 2004 में जो सुनामी आया, उसका मुख्य कारण पयाम वरण- संतुलन का

[14]
मबगडना था। उससे हजारों लोग मारे गये। करोडों की संपमत्त का नाश हुआ । मत्स्य -संपमत्त के नाश का

अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। सारे मवश्व के दे शों से सुनामी से पीमडत लोगों केमलये सहायता ममली;
मकिु उससे उन्ें राहत पूणमतः नहीं ममली।

यह खेद की बात है मक ताजमहल का सौन्दयम पयाम वरण प्रदू षण से - मबगडता जा रहा है । ताजमहल के

सौन्दयम को दे खने दे श-मवदे श के लोग हर वषम लाखों की संख्या में आते रहते हैं । आजकल यह आरोप
सुनने में आता है मक ताजमहल का सफेद रं ग पीला पडा रहा है । इसका मुख्य कारण पयाम वरण- प्रदू षण

है । ताजमहल यमुना नदी के मकनारे मनमममत है । उसके आसपास के फैक्टररयों से मनकलनेवाला कलुमषत
जल यमुना में ममल जाता है । इसमलये वहााँ की वायु भी कलुमषत रहती है । इसमलये ताजमहल की सफेदी

पीली पड रही है ।

प्रदू र्ण के वनवािणोपाय:


प्रदू र्ण के कई वनवािणोपाय हैं -
 बढती हुई जनसख्या को मनयंमत्रत करना है ।
 जंगलों को काटना यथा संभव रोकना है । जंगलों के मवस्तार को - बढाना है । सडकों के

मकनारे पेडों को रोपना है । घर के पास पेड-


पौिों को लगाना है ।

 कारखानों में मेकामनकल सेंमटि प्यूज, वेंचुरी


सक्रब्बर, एलक्टोस्टामटम क प्रेमसमपटे टर जैसे

सािनों का उपयोग करना है ।


 ऐसे यां मत्रक मविानों को अमल में लाना हैं ,

मजनसे वायु प्रदू षण और ध्वमन प्रदू षण कम होता है ।


 रासायमनक पदाथों से जल को गंदा नहीं करना चामहए।

 नामदयों या तालाबों में कपडे िोना, बतमन साफ करना आमद नहीं करना चामहए।
 सडकों पर इस्तेमाल मकये जानेवाले लाउड स्पीकरों पर मनयंत्रण लगाना है |

उपसंहाि:
यमद सरकार तथा जनता प्रदू षण को रोकने पर अमिक श्रद्धा नही लेगी तो यह िरती मनकट भमवव्य में ही
प्रामणयो के रहने योग्य नहीं रह पायेगी ।

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