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िवषय सूची

1. ...अब या होगा?

2. आजादी

3. आसमानी सौगात

4. इस तरह आ िहसाब बराबर

5. एक खरीदारी ऐसी भी

6. ...और उस दन मं णा नह ई

7. कपड़ क ित ा

8. ‘कु छ नह ’ क अदायगी

9. िखलाने वाला ‘वो’

10. गदहे क खरीद

11. चाबी क खोज

12. चैपाये का च र

13. जादूगर मु ला नसी ीन

14. जाँबाज मु ला नसी ीन

15. जीव पर दया का उपदेश

16. जेब क यास

17. ठीक है, आ जाओ

18. तलवार के बदले गदहा


19. तस ली भरे कदम

20. ...दौलत ब शो ऐ खुदा!

21. नया िश य

22. नहले पर दहला


ईमानदारी
महाराज कृ णदेव राय कभी-कभी अपने दरबार म इतने सहज हो जाते थे क उ ह देखकर
कोई कह नह सकता था क वे एक कु शल शासक, कु शल राजनीित और अनुशासनि य
शासक ह। िजस दन महाराज म सहजता दखती, उस दन आम सभासद भी म ती मं◌े
आ जाते। सभा भवन म हँसी, ठठोली, बहस, बतरस सब कु छ होता।

तेनाली राम एकमा ऐसा सभासद था जो यह समझता था क महाराज का अचानक


सहज हो जाना और सभासद को इस तरह ढील देना भी उनक शासन-नीित का िह सा
है। इससे महाराज अपने सभासद क मूल वृि य को समझने का यास करते ह।
सभासद म खुलापन आते ही थोड़ी-ब त उ छृ ंखलता भी आ जाती थी िजसे उस दन
महाराज य मानते थे ले कन उ छृ ंखल होने वाले सभासद के ित उनका वहार बाद
म बदल जाता था। वे ऐसे सभासद से कड़ाई से पेश आते और आदेशा मक होकर छोटी
पंि य म बात करते।

एक दन तेनाली राम थोड़ी देर से सभाभवन म पहँ◌ुचा। उस समय एक सभासद कोई


मनोरं जक घटना सुना रहा था। उसक बात समा होने पर सभी सभासद हँस पड़े।
महाराज भी खूब हँस।े चूँ क तेनाली राम ने पहले कही गई बात नह सुनी थ इसिलए वह
नह हँसा। अपने आसन पर ग भीर बना बैठा रहा। महाराज ने उसे देखा और महसूस
कया क सबके हँसने मं◌े तेनाली राम साथ नह दे रहा है। महाराज को यह बात बुरी
लगी मगर उ ह ने उस समय तेनाली राम से कु छ नह कहा।

न जाने कै से सभासद के बीच दान-पु य, धम-कम और ईमानदारी पर बहस होने लगी।

एक सभासद ने कहा, ‘‘महाराज! मेरे िवचार से धनवान लोग गरीब क तुलना म


अिधक ईमानदार होते ह। वे वयं साधन-स प होते ह। आव यकता क येक व तु उ ह
उपल ध होती है इसिलए छोटी-छोटी चीज के िलए उनका ईमान नह डोलता। वे दान-
पु य करते ह इसिलए उनम धा मक भावना भी िव मान रहती है जब क गरीब का
ईमान ज दी ही डोल जाता है।’’

तेनाली राम, जो अब तक चुप था, इस सभासद क बात सुनने के बाद अपने आसन से
उठा और बोला, ‘‘महाराज! म माननीय सभासद के इस कथन से सहमत नह हँ◌ू। मेरा
िव ास है क गरीब आदमी अिधक धमभी होता है। वह भगवान से डरता है, इसिलए
वह गलत काम करने से बचता है। ई र का भय गरीब को इतना अिधक होता है क
उसका ईमान इसी भय के कारण डोलता नह । धनवान म ई र का भय इस तरह का नह
होता। उसके दान-पु य म भी लौ कक ित ा क चाह छु पी रहती है क लोग उसे
ऐ यशाली और परोपकारी के प म वीकार कर।’’

तेनाली राम क ग भीर वाणी थोड़ी देर तक सभाभवन म अनुगँ◌ूज उ प करती रही।
तेनाली राम के चुप होते ही महाराज ने कहा, ‘‘तेनाली राम! तुम एक मूल बात भूल रहे
हो, ईमानदारी एक मानवीय गुण है जो कसी म भी हो सकता है। इसम धनवान और
िनधन क कोई बात ही नह है।’’

तेनाली राम ने कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे ह महाराज! बस, म यह कह रहा था क गरीब
के संघष क उ मा ईमानदारी क ऊ मा के सम प होती है। इसी ऊ मा के कारण गरीब
म उिचत-अनुिचत का यान रखने क वृि िवकिसत हो जाती है।“

‘‘तो, तुम फर वही कह रहे हो क गरीब म ईमानदारी होती है और धनवान, वैभव-


स प लोग म अपे ाकृ त इसका अभाव रहता है?’’ महाराज ने पूछा।

‘‘जी हाँ ीमान-यही कहना चाहता हँ◌ू म।’’ तेनाली राम ने िनभ क होकर कहा।

महाराज वयं वैभव-स प थे इसिलए तेनाली राम क बात उ ह ने ि गत तर पर


ले ल और तेनाली राम से कहा, ‘‘तु ह मािणत करना पड़ेगा तेनाली राम!’’

‘‘मुझे वीकार है महाराज!’’ तेनाली राम ने संि -सा उ र दया।

सभा म जो सहजता थी, इस ग भीर चचा के कारण समा हो गई। महाराज ने उसी
समय सभा िवस जत कर दी और तेनाली राम को रोककर शेष सभासद को जाने दया।

लौट रहे सभासद म इसी बात क चचा हो रही थी क आज महाराज तेनाली राम से
नाराज हो गए... क महाराज से तेनाली राम को मँ◌ुह नह लगाना चािहए... क अब आया
है ऊँट पहाड़ के नीचे! अथात् िजतने मँ◌ुह, उतनी बात!

सभासद के जाने के बाद महाराज ने तेनाली राम से पूछा, ‘‘तेनाली राम, तुम कतने
दन म िस कर सकोगे क धनवान क अपे ा गरीब आदमी अिधक ईमानदार होता
है?’’

‘‘महाराज! मुझे सौ-सौ वणमु ा क दो थैिलयाँ और दो सुर ा हरी दान कर। म


यह बात दो दन अथात आज और कल म मािणत कर दँ◌ूगा क धनवान लोग म धन-
लोलुपता होती है जो उ ह ईमानदार नह रहने देती जब क गरीब म धन-लोलुपता नह
होती!’’ तेनाली राम ने कहा।

महाराज तेनाली राम के इस उ र से भीतर ही भीतर ितलिमला गए। मगर उ ह ने कु छ


कहा नह । उ ह ने तेनाली राम को दो थैिलय म वणमु ाएँ और दो हरी उपल ध करा
दए।

तेनाली राम उ ह लेकर राजभवन से बाहर राजमाग क ओर, महाराज क आ ा लेकर,


चल पड़ा। महाराज से चलते समय उसने कहा, ‘‘महाराज, आप मुझे शुभकामना द क कल
शाम तक म माण सिहत अपनी बात िस कर सकँ ◌ू।’’

तेनाली राम ने दोन ह रय को ापारी वेश म अपने घर आने का िनदश दया और


वयं अपने घर चला गया। वह अपने साथ वणमु ा क थैिलयाँ भी लेता गया। ऐसे
अवसर पर तेनाली राम ब त सजग हो जाया करता था। उसके र -र म सजगता
उ प हो जाती थी यानीे वह सह ने धारी बन जाता था। लोग उसके इसी गुण के कारण
ही उसे ‘च ु वा’ और ‘ ाच ’ु आ द िवशेषण से स बोिधत कया करते थे।

उसके घर पहँचने के थोड़ी देर बाद ही दोन हरी ापा रय के बाने म उसके घर
पहँ◌ुच।े तेनाली राम उ ह लेकर िवजयनगर के बाजार म चला आया और देर तक इधर-
उधर टहलता रहा। वापसी के समय उसने दोन ह रय को एक-एक वणमु ा क
थैली थमा दी और एक को एक धनी ापारी के आगे चलते ए थैली कह सुनसान इलाके
म िगराकर चले जाने को कहा। उसने हरी को उस धनी आदमी को भी दखा दया िजस
धनी आदमी के आगे उसे चलना था। स भवतः तेनाली राम उस धनी आदमी को
पहचानता था और जानता भी था क वह कहाँ रहता है। पुनः दूसरे हरी को एक गरीब
आदमी के आगे-आगे जाने का उसने िनदश दया और हरी को बता दया क उस गरीब
आदमी का ग त या है। इस हरी को भी तेनाली राम ने सुनसान थान पर थैली इस
तरह िगराने को कहा िजसे वह गरीब आदमी देख ले...।

अपनी ूह-रचना तैयार कर लेने के बाद उसने दोन ह रय को यह िनदश भी दया


क वे दोन थैिलयाँ िगरा देने के बाद तेजी से आगे जाएँ और कह छु प जाएँ। जब उनका
‘िशकार’ राह म िगरी थैली लेकर बढ़े तब वे उनका पीछा कर और देख क वे थैली का या
करते ह!

अपने ारा दए गए िनदश से तेनाली राम स तु था। उसे िव ास था क आज रात म


ही उसे वांिछत माण ा हो जाएगा। दोन ह रय को िवदा करने के बाद तेनाली राम
अपने घर लौट आया।

दूसरे दन, सुबह ही दोन हरी तेनाली राम के घर पर पहँ◌ुच गए। वह उस समय
दरबार जाने के िलए तैयार हो रहा था। उसने ह रय से पूछा, ‘‘ या समाचार लाए
हो?’’
एक हरी ने तेनाली राम से कहा, ‘‘ ीमान, म आपके िनदश पर िजस ि के पीछे
गया था उसका नाम िग रधारी लाल है। उसक बाजार म सोने-चाँदी के जेवर क दुकान
है। ब त पैसेवाला आदमी है वह।’’

अभी उसक बात पूरी नह ई थी क तेनाली राम ने उसे टोक दया, ‘‘अरे भाई! मने
तु ह कसी के पीछे नही भेजा था-आगे भेजा था। ठीक से सारी बात बताओ।’’

‘‘ मा करना ीमान! भूल हो गई!“ हरी ने कहा और कल शाम को घ टत घटना


बताने लगा, ‘‘ ीमान! जब म उस आदमी, मेरा मतलब है क िग रधारी लाल के आगे-
आगे चलते ए कद ब पेड़ के पास पहँ◌ुचा तो मुझे राह पूरी तरह खाली दखी। सुनसान
रा ते पर दो ही मुसा फर थे-म और वह। म उससे मा चार कदम क दूरी पर था। मौका
देखकर मने कमर म ख सी ई वणमु ा क थैली िगरा दी और सामा य चाल से आगे
बढ़ता रहा, मानो मुझे थैली िगरने का भान ही नह है। कु ल चार कदम चलकर मने अपनी
गरदन पीछे क ओर ह के से घुमाई तो पाया, वह ि नीचे िगरी थैली उठा रहा था।
मने अपनी गित बढ़ा दी। थैली उठाने के बाद वह थोड़ी धीमी गित से चलने लगा। म तेज
चलता आ राह म आए एक पेड़ क ओट लेकर खड़ा होकर उसक ती ा करने लगा। जब
वह उस पेड़ से थोड़ा आगे िनकल गया तब म भी पेड़ क ओट से बाहर िनकलकर उसका
पीछा करने लगा। वह आदमी ह दी बाजार के िनकट बसे कु लीन के मुह ले मं◌े बने
गुलाबी मकान म रहता है। उसके घर क बाहरी दीवार पर उसका नाम खुदा आ है-
िग रधारी लाल। मने घर के चार ओर छोड़ी गई खुली जमीन का लाभ िलया और एक
कमरे क खुली िखड़क से अ दर झाँका तो पाया क िग रधारी लाल थैली से वणमु ाएँ
िनकालकर िगन रहा है। उसने मु ाएँ िगनकर उ ह थैली म रखा और आसमान क ओर
हाथ जोड़े कु छ देर तक खड़ा रहा फर वणमु ा क थैली को कमरे म लगी ितजोरी म
रखा। तभी एक वृ ि उस कमरे म आया और पूछा, ‘ या बात है िग रधारी? तुमने
हाथ-पाँव भी नह धोए और कमरे म चले आए? तु हारा वा य तो ठीक है?’ ितउ र म
उसने या कहा, म नह सुन पाया।“

तेनाली राम ने उस हरी क पीठ थपथपाई और दूसरे हरी क ओर देखकर पूछा,


‘‘तु हारा समाचार!’’

उस हरी ने कहा, ‘‘ ीमान, म िजस ि के पीछे गया था वह ब त गरीब और


ईमानदार आदमी है। ह दी बाजार के पि म म बसे मछु आर क ब ती म रहता है। जब म
उसके आगे चलते ए एक थान पर थैली िगराकर आगे बढ़ा तब उसने आवाज
लगाई-‘अरे भाई साहब! आपक थैली!’ मने उसक आवाज अनसुनी कर दी और तेजी से
आगे बढ़ने लगा और वह हाथ म थैली िलये लगभग दौड़ता आ, ‘भाई साहब, भाई साहब’
पुकारता रहा। अभी वह दो-चार कदम ही दौड़ पाया था क उसके पाँव म कसी चीज से
ठोकर लगी और वह िगर पड़ा। उसके हाथ से थैली िछटक गई और उसम से वणमु ाएँ
िनकलकर सड़क पर िबखर ग । तब तक म सड़क के पास के एक ग े म जाकर छु प गया।
थोड़ी देर बाद वह आदमी हाथ म थैली िलये, इधर-उधर देखता आ तेज कदम से जाता
दखा। स भवतः वह मुझे ही तलाश रहा था। म थोड़ी देर के बाद उस गली से िनकला और
उससे कु छ दूरी बनाकर चलने लगा। जब वह ि अपने घर पहँ◌ुच गया तब चटाई पर
बैठकर उसने वणमु ाएँ िगन । उसने एक कपड़े के टु कड़े म थैली बाँधकर अपने हाथ म ले
ली और उसने कह जाने के िलए िनकल गया। मने समझा क ज र वह वणमु ा को
छु पाने के िलए जा रहा होगा ले कन वह अपने घर से सीधे रा य कोषागार पहँ◌ुचा और
सौ वणमु ाआं◌े क वह थैली वहाँ जमा कराकर पचा कटवाया। उसके बाद वह अपने घर
चला आया। रा य कोषागार म उसने पच पर अपना नाम रामानुजम् िलखवाया है।

तेनाली राम ने उस हरी क भी पीठ थपथपाई और उ ह सीधे राजभवन पहँ◌ुचने का


िनदश देकर भोजन के िलए अपने घर के भीतर चला गया।

”महाराज! आपको अब अिधक ती ा नह करनी पड़ेगी! आप कृ पा कर रा य कोषागार


से यह पता कराएँ क राजमाग म पड़ी सौ-सौ वणमु ा क दो थैिलयाँ या कसी को
िमली ह? और रा य कोषागार म य द इस तरह क थैिलयाँ जमा कराई गई ह तो जमा
करानेवाला कौन था?“

‘‘अरे !“ महाराज चक पड़े। ” या बात हो गई तेनाली राम! तुम शेष सभासद के आने क
ती ा भी नह करना चाहते?“ उ ह ने तेनाली राम से कहा।

”महाराज!“ तेनाली राम ने िवन ता से कहा, ‘‘िजन दो ह रय क सेवाएँ मने ली थ ,


वे दोन रात भर जगे रहे ह। म उनक सेवाएँ वापस करने के उ े य से ही सभा शु होने के
समय से पहले पहँ◌ुच गया हँ◌ू। कल जो पहेली सुलझाने का िज मा आपने मुझे स पा था
उसके िलए ‘ माण’ ा कर लेने के उ े य से म स य आ हँ◌।ू कृ पया वांिछत सूचनाएँ
मँगाने म मेरा सहयोग कर। य द आप िनदश दगे तो सूचना अितशी ा हो जाएगी।
और सभासद के आने पर इन दोन ह रय को मुि िमल सके गी ये दोन हरी मेरे शोध
के माण भी ह और य दश भी।“

महाराज कृ णदेव राय समझ चुके थे क तेनाली राम ने गरीबी और ईमानदारी का


स ब ध थािपत करने का कोई सू अव य पा िलया है।

उ ह ने रा य कोषागार से सूचना मँगाई। सूचना प मं◌े िलखा गया था क रामानुजम्


नाम के एक ि ने सौ वणमु ा क एक थैली रा य कोषागार म कल म य राि से
पूव जमा कराई है। यह थैली उसे राजमाग से ह दी बाजार जानेवाली राह पर िमली थी।
रामानुजम् ह दी बाजार के पास मछेर क ब ती म रहता है और मधुमि खय के छ े से
मधु िनकालने का काय करता है।

महाराज ने सूचना-प का अवलोकन कर उसे तेनाली राम को स प दया।


जब सभा भवन म सभी सभासद पहँ◌ुच गए तब तेनाली राम ने कहना आर भ कया,
‘‘महाराज! आपके िनदश पर कल मने एक योग कया और योग का प रणाम मुझे आज
िमल गया। यह सूचना-प , जो रा य कोषागार से मँगाया गया है, वह एक गरीब ि के
ईमानदार होने का माण-प है। यह सूचना-प बताता है क गरीब आदमी धन-लोलुप
नह होता है।’’ फर तेनाली राम ने सिव तार अपनी योजना के या वयन क कथा सभा
भवन म सुनाई। माण के प म दोन ह रय को तुत कया।

दोन ह रय ने सभासद को स पूण घटना क जानकारी दी।

महाराज ने िसपािहय को भेजकर सेठ िग रधारी लाल को पकड़वाकर मँगवाया। पहले


तो सेठ इस घटना को ही गलत बताता रहा ले कन जब तेनाली राम ने उससे कहा क सौ
वणमु ा से भरी थैली तुमने अपने कमरे क दीवार म लगी ितजोरी म रखी है तब वह
सेठ टू ट गया और अपना अपराध वीकार कर िलया।

महाराज ने िसपािहय को भेजकर वणमु ाएँ मँगा ल और उसे रा य कोषागार को


स प दया गया। सेठ िग रधारी लाल को महाराज ने जेल िभजवा दया। गरीब रामानुजम्
को दरबार म बुलाकर सौ वणमु ाएँ उसक ईमानदारी के पुर कार व प दान क ।
इसके बाद महाराज ने तेनाली को अपने गले से लगा िलया और कहा, ”सचमुच तेनाली
राम! तु हारी मेधा का कोई दूसरा उदाहरण मने कह नह देखा।“
वण मूषक पुर कार
महाराज कृ णदेव राय अपने दरबार के सभी सभासद को िवशेष मह व देते थे क तु फर
भी सभासद को ायः ऐसा लगा करता था क महाराज तेनाली राम पर अिधक कृ पालु ह
और उसे ऐसा मौका दे दया करते ह क वह शेष सभी सभासद पर भारी पड़ता है।
इसिलए आम सभासद ऐसे अवसर क तलाश म रहते थे िजसम तेनाली राम का मजाक
उड़ाया जा सके ।

एक दन महाराज का दरबार लगा आ था। आम दन क तरह ही रा यसभा क


कारवाई चल रही थी। तभी महाराज ने एक अजीब सी ग ध उठती महसूस क । उ ह ने
सभासद से पूछा, ‘‘ या उ ह कोई दुग ध महसूस हो रही है?"

सभी सभासद ने िबना सतकता से दुग ध अनुभव करने क कोिशश कए ही कहा, ‘‘नह
महाराज!’’

ले कन तेनाली राम अपने आस-पास क हवा को महसूस करता आ बोला, ‘‘हाँ,


महाराज! ऐसी ग ध मरे चूहे के शरीर म सड़न उ प होने के कारण पैदा होती है। लगता
है, कह आस-पास ही कोई चूहा मरा पड़ा है।’’

महाराज ने सेवक से अिवल ब चूहे क खोज करने के िलए कहा।

थोड़ी ही देर म एक सेवक ने मरा चूहा ढँ◌ूढ़ िनकाला और उसे लेकर महाराज के पास
चला आया।

महाराज सेवक पर नाराज हो गए। उ ह ने कहा, ‘‘ठीक है! तुमने इसे खोज िनकाला
मगर इसे यहाँ लाने क आव यकता या थी? कह फक आते, फर मुझे आकर सूचना दे
देते! म इस चूहे का या क ँ गा?’’

सेवक डर से थरथर काँपने लगा।

तभी एक दरबारी ने कहा, ‘‘महाराज, आप चाह तो चूहा इस दरबार के सबसे िव ान


सभासद तेनाली राम को भट कर सकते ह। आपने उसे तरह-तरह के उपहार दए ह, आज
मरा चूहा ही सही!’’

उस दरबारी क बात पर सभी सभासद ही-ही-ही-ही करने लगे। बोलनेवाला सभासद


इस दरबार म मसखरा सभासद माना जाता था इसिलए महाराज ने उसक बात अनसुनी
कर द । मगर तेनाली राम इस सभासद क बात म छु पे कटा से ितलिमला गया और
त काल अपनी ित या करते ए कहा, ‘‘माननीय सभासद! य द महाराज ने मुझे
यह चूहा उपहार म दया तो म इसे आदर के साथ हण क ँ गा। ऐसे भी चूहा िवक प का
तीक है। भगवान गणपित का वाहन ऐसे ही नह बन गया है।’’

महाराज तेनाली राम के ितवाद पर मु कु रा उठे और बोले, ‘‘मरे चूहे का तुम या


करोगे?’’

‘‘य द आपने मुझे यह चूहा भं◌ेट कया तब म यह समझँ◌ूगा क आप मेरी बुि क


परी ा लेना चाहते ह और यह परी ा देने के िलए म इस चूहे से ापार क ँ गा
महाराज!’’ तेनाली राम ने कहा।

‘‘मरे चूहे से ापार? यह तुम कै से कर सकते हो तेनाली राम?’’ महाराज ने पूछा।

‘‘महाराज! संसार क येक व तु का कोई-न-कोई उपयोग है। कोई भी व तु थ नह


है। म इस मरे चूहे को कसी सपेरे को बेच आउँ गा और उससे गुड़ खरीद लँ◌ूगा। इन दन
गम का मौसम है। म उस गुड़ को पानी म िमलाकर मीठा पानी बेचँ◌ूगा। मीठा पानी
बेचने से जो पैसे िमलगे उससे चना खरीदूग
ँ ा और चना बेचकर, चना से बने पकवान, स ू,
गुड़चना आ द बेचकर अ छा पैसा कमाउँ गा और उन पैस से कोई बड़ा रोजगार आर भ
क ँ गा।’’ तेनाली राम ने कहा।

महाराज तेनाली राम क बात सुनकर ब त स ए और सभासद से कहा, ‘‘तेनाली


राम क यही तकबुि उसे तेनाली राम बनाती है। ऐसी तकबुि आम इनसान म ायः
दुलभ है। हम इस बात का गव है क हमारे दरबार म तेनाली राम जैसा बुि मान सभासद
है। म आज इसके उ र से इतना स तु हँ◌ू क इसके िलए ‘ वण मूषक’ पुर कार क
घोषणा करता हँ◌ू तथा रा य के कोषा य को आदेश देता हँ◌ू क तेनाली राम को
पुर कृ त करने के िलए पाँच तोले सोने का चूहा बनवाकर दरबार को यथाशी स पे!’’

महाराज के इस आदेश का पालन आ।

उस दन दरबार म महाराज ने तेनाली राम को सोने का चूहा पुर कार म देकर उसे
अपने गले से लगा िलया।

तेनाली राम के आलोचक को महाराज क ओर से दया गया यह एक करारा जवाब था।


मह वाकां ी युवा तप वी
िवजयनगर म येक वष कोई-न-कोई उ सव-समारोह आ द आ करता था। महाराज
कृ णदेव राय उ सव- ेमी ही नह , अ या म- ेमी भी थे। उनका मानना था क
आ याि मक होने का अथ यह नह है क आप धा मक कमकांड म उलझ जाएँ। ये कमकांड
तो मनु य को िवचार क संक णता क ओर ले जाते ह। यह करो, ऐसे करो बतानेवाले
कमकांड िनषेध और वजना पर आधा रत ह यां◌े क ये यह भी बताते ह क वह न करो,
वैसा न करो। ायः महाराज अपने िच तन क चचा तेनाली राम से करते रहते थे। एक
उ सव के अवसर पर महाराज ने स होकर एक तप वी को िवजयनगर म कु टया बनाने
के िलए भूिम एवं अ य सुिवधाएँ दे द । तेनाली राम ने महाराज के इस वहार पर अपनी
शंका जताई, ‘‘महाराज! मुझे तो यह युवा तप वी कह से भी पहँ◌ुचा आ ाणी नह
लगा और न ही इसम पांिड य क वैसी खरता है िजससे यह दूसर का मागदशन कर
सके । फर आपने यह उदारता य दखाई?’’

‘‘देखो तेनाली राम! म िवजयनगर का राजा हँ◌ू और इससे इतर भी मेरा एक िनज व है।
म वयं आ याि मक िच तक हँ◌।ू िवजयनगर मं◌े हर वष आयोिजत होनेवाले समारोह
का उ े य ही है लोग को जोड़ना। इन समारोह के समय ऐसे अनेक काय म होते ह
िजनम भाग लेकर या देख-सुनकर लोग क दिमत इ छा क पू त हो जाती है। इसिलए
िवजयनगर के िनवािसय म तु ह स तोष और उ लास क कमी नह दखेगी। यही है मेरे
शासन क सफलता का पहला सोपान।...मेरे पास जब यह युवक पहँ◌ुचा तब मुझे यह
िव ास हो गया क यह युवक मह वाकां ी है, अ यथा सामा य साधु-स त क तरह यह
कसी के ार पर भी जा सकता था। जब इसने मुझसे िवयजनगर म कु टया बनाने क
सुिवधा माँगी, तो मेरे सामने यह बात साफ हो गई क यह युवक कसी दूसरे रा य से
आया है। इस कार एक राजा के सम वह एक शरणागत क तरह था, तो उसे कु टया
बनाने क सुिवधा देकर मने राजधमानुकूल काय कया है। रही उसके िस नह होने क
बात तो मुझे िव ास है क वह िसि तो ा कर ही लेगा, य क मह वाकां ी ि
वांिछत को ा करके ही दम लेता है।’’ महाराज ने कहा।

महाराज क तकसंगत बात सुनकर तेनाली राम मौन हो गया।

धीरे -धीरे समय बीतता रहा। महाराज उस युवक को भूल गए। दो रा य महो सव बीत
गए। उस युवक ने महाराज के दशन नह कए।

तीसरे रा य महो सव के ार भ मं◌े ही वह युवक महाराज के पास पहँ◌ुचा। उसके मुख


से िव ा का तेज कट हो रहा था। वह दूर से ही तेज वी तीत हो रहा था। युवक ने
महाराज के समीप आकर कहा, ‘‘महाराज! मने सभी धम थ का अ ययन कर िलया है।
म सभी शा का ाता हो गया हँ◌ू। आप मुझे अपना गु बना ल!’’

महाराज ने युवक क ओर मु कु राते ए देखा और बोले, ‘‘युवक! यह ठीक है क तुमने


सभी शा पढ़ िलये ह मगर मेरा गु बनने के िलए इतना ही काफ नह है। अब तो तु ह
अपने अ ययन पर िच तन करना चािहए। ...मुझे ऐसा आभास हो रहा है क तुमम अभी
भी कोई कमी है िजसके कारण म अभी तु ह अपना गु नह बना सकता।’’

महाराज क बात सुनकर वह युवक वापस लौट गया।

तेनाली राम उस समय वह था। उसने महाराज और युवक क बात सुनी थ । उसने कहा,
‘‘महाराज! आपने ठीक ही कहा था क युवक ब त मह वाकां ी है। सो े य साधना कर
रहा है, यह भी उसके मह वाकां ी होने का संकेत है...और देिखए उसक मह वाकां ा क
पराका ा-वह आपका गु बनना चाहता है। इसका अथ तो यही है क वह िवजयनगर का
राजगु बनने क अभी सा से यहाँ आया है।“

‘‘तुम ठीक समझे तेनाली राम!’’ महाराज ने उ र दया।

और बात वह समा हो गई।

महाराज अपनी सामा य दनचया म लग गए। वही रोज दरबार का काम-काज देखना
और कभी-कभी जा का दुख-सुख जानने के िलए िवजयनगर के मण पर िनकल जाना-
यही थी उनक सामा य दनचया।

वष बीतते देर नह लगी। महाराज अपने अ यास के अनु प ही वा षक समारोह क


तैया रय क वयं समी ा करते। कौन-कौन से काय म आयोिजत ह गे, कहाँ रं गमंच
बनेगा, पनसाला कहाँ लगेगी और भोजनालय कहाँ बनेगा; जा को इस वष के समारोह के
समय रा य क ओर से िमलनेवाले भोजन के िलए या- या पके गा-यानी छोटी से छोटी
बात के िलए भी महाराज वयं िनदश दे रहे थे। तेनाली राम हमेशा क तरह उनके साथ
था।

हष लास के साथ िवजयनगर का वा षको सव आर भ आ। इस वा षको सव के


आर भ म वह युवा तप वी महाराज के पास आया ले कन इस बार उसने महाराज से गु
बनाने को नह कहा। महो सव के अवसर पर उसने महाराज को शुभकामनाएँ द तथा
महाराज से कहा, ‘‘महो सव के समय रास-रं ग-मनोरं जन के साथ ही उ ह कोई धा मक
अनु ान कराना चािहए।’’

महाराज ने तेनाली राम क ओर देखा।


तेनाली राम ने महाराज का भाव समझा और युवा तप वी से कहा, ‘‘ भु! सभी धम एक
सी ही बात करते ह। इसिलए संशय है क कौन-सा धा मक अनु ान कया जाए और जब
तक संशय है तब तक कोई अनु ान हो ही नह सकता य क संशययु मन से धम क
बात स भव नह ह।’’

युवा तप वी ने कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे ह।’’

तेनाली राम ने उस युवा तप वी से िवन ता के साथ कहा, ‘‘ भु! ऐसा तीत होता है क
आपने िच तन काय तो पूरी िन ा से कया है, अब आप िन ापूवक मनन काय म लग तब
ही आपक साधना पूण होगी।’’

वह युवक वहाँ से चला गया। महाराज महो सव का आन द उठाने म लगे और तेनाली


राम सखा भाव से उनके साथ रमा रहा।

इसके बाद कई वष तक युवा तप वी महो सव के समय महाराज से िमलने नह आया।

एक बार िवजयनगर म जब महाराज और तेनाली राम वा षक महो सव के िलए


काय म तय करने बैठे तो बात ही बात म उ ह उस युवा तप वी का मरण हो आया।
उ ह ने तेनाली राम से पूछा, ‘‘कई वष तीत हो गए, मेरा गु बनने क इ छा से
िवजयनगर म कु टया बनाकर तप या म लगा वह युवक आया नह ...कु छ अता-पता है
उसका?’’

तेनाली राम ने त परता से उ र दया, ‘‘शी ही सूिचत क ँ गा महाराज!’’

इसके बाद तेनाली राम ने उस युवा तप वी के स दभ म सूचनाएँ एकि त करवा ।


सूचना थी क वह युवा तप वी अब कु टया से िनकलता ही नह । कभी-कभी कसी- कसी
को दख जाता है। वह न तो पूजा- अनु ान करता दखाई देता है और न कसी से कोई
याचना करने जाता है। िपछले वष जब अितवृि के कारण गाँव के गाँव पानी म डू ब गए थे
तब इस युवा तप वी ने पीि़डत लोग को बचाने और उनके िलए सुिवधाएँ जुटाने म अपना
जी-जान लगा दया था।

तेनाली राम ने महाराज को युवा तप वी के स दभ म िमली सम त सूचनाएँ द और


कहा, ‘‘लगता है, महाराज! यह युवा तप वी िस हो चुका है।’’

महाराज कु छ बोले नह । महो सव आर भ आ। राजा के साथ जा के मेल से उ मुि


और आन द का एक सुखद और आ लादकारी वातावरण बना। िवजयनगर क खुशहाली
के इसी सू को मरण रखने के िलए महाराज इस महो सव का आयोजन कराते थे।
महो सव के समापन के बाद महाराज ने तेनाली राम से कहा, ‘‘तेनाली राम, चलो, जरा
उस युवा तप वी से िमल आएँ।’’

महाराज और तेनाली राम वयं चलकर युवा तप वी क कु टया म गए। युवा तप वी ने


उ ह देखकर अपने हाथ जोड़ िलये और कहा, ‘‘ध यभा य! हमारे गु जन पधारे !’

महाराज िवि मत से रह गए युवक क बात सुनकर। उ ह ने कहा, ‘‘ भु, यह आप या


कह रहे ह? म तो यह समझता हँ◌ू क अब आप िस हो चुके ह इसिलए आपसे दी ा लेने
क इ छा से आपके पास आया था।’’

युवक ने ग भीरता से कहा, ‘‘महाराज! आप मेरे आ यदाता ह। िपता तु य और


आदरणीय और तेनाली राम मेरे गु ह-उ ह ने मुझे मनन करने क सीख दी थी और म
उनके िनदश पर ही मन म डू ब गया। तब मने जाना क संसार म ऐसा कोई नह िजसम
ान का सागर न हो...चाहने पर कोई भी इस ान-सागर म गोते लगा सकता है।“ उस
युवक ने तेनाली राम के चरण छु ए और तेनाली राम ने उसे अपने गले से लगा िलया।
खेत का उपदेश
महाराज कृ णदेव राय अपने ि य सभासद तेनाली राम के साथ ायः िवजयनगर के मण
के िलए िनकल जाते थे। जा का दुख-दद जानने का उ ह अपना यह तरीका ब त पस द
था। इस तरह के मण से जहाँ वे अपने रा य क सम त सूचना से िभ रहते थे, वह
अपने रा य के िविभ े के लोग के मनोभाव से भी प रिचत होते थे। तेनाली राम
को वे इस तरह क या ा के समय हमेशा साथ रखते थे। उसका एकमा ा कारण यह था
क तेनाली राम उनके मनोभाव को आसानी से समझ लेता था और ि थित देखकर उसके
अनुकूल आचरण करना जानता था।

एक बार िवजयनगर म अ छी बा रश ई। समय पर अ छी वषा हो जाने से फसल भी


ब त अ छी ई िजससे िवजयनगर के कृ षक म काफ खुशी थी।

महाराज तेनाली राम के साथ देश क या ा पर थे। वे एक गाँव से दूसरे गाँव जाते और
ामीण क वा तिवक दशा से अवगत होकर आगे बढ़ जाते। वे तेनाली राम के साथ ही
कसी गाँव म पड़ाव डालकर रात िबताते और सुबह होते ही आगे बढ़ जाते। यह िसलिसला
काफ समय से चल रहा था। एक दन महाराज तेनाली राम के साथ एक गाँव से गुजर रहे
थे। रा ते म धान के एक खेत म एक कसान उ लिसत भाव म बैठा आ िमल गया।
महाराज ने उसके पास जाकर कहा, ‘‘भगवान क कृ पा से इस बार फसल ब त अ छी ई
है-है न!’’

उस कसान ने महाराज और तेनाली राम को सामा य राहगीर समझा और ब त दप के


साथ उ र दया, ‘‘अरे भाई! इसम भगवान क कृ पा जैसी कोई बात नह है। खेत म कु छ
भी भगवान क कृ पा से नह उगता है। उगता है अ छे बीज, खाद, संचाई और िनराई के
कारण। अभी जो यह लहलहाता आ खेत देख रहे हो, वह मेरी मेहनत के कारण है,
भगवान क कृ पा के कारण नह । मने कड़ी धूप म इस खेत म कु दाल चलाया, कड़ी मेहनत
कर िम ी तैयार क , बा रश म भीग-भीगकर बुआई क , लगातार सतक रहा, समय पर
संचाई क , रात म जगकर फसल क रखवाली क । तब जाकर यह खेत इस तरह
लहलहाया है। यह मेरी लगातार मेहनत का प रणाम है। जो भी मेहनत करे गा, खेत उसके
िलए अ छी पैदावार देगा ही। यही िनयम है। न तो यह भा य का खेल है और न ही
ई रीय चम कार!’’

तेनाली राम ने कसान को इस तरह अितिव ास म बोलते सुना तब कसान से कहा,


‘‘हाँ, तुम ठीक कहते हो, मेहनत करनेवाल को ही उसका अ छा फल भी ा होता है।’’
इतना कहकर उसने महाराज को आगे बढ़ने का संकेत कया।
दोन अपने ग त क ओर बढ़ने लगे।

इस घटना के कु छ वष बाद िवजयनगर अनावृि का िशकार हो गया। बरसात के मौसम


म भी आसमान म बादल के दशन दुलभ हो गए। सूय क सीधी करण से धरती म दरार
पड़ने लग । िवजयनगर क जा ािह- ािह करने लगी। मवेिशय के िलए चारे का अभाव
हो गया। चारा नह िमलने के कारण मवेशी मरने लगे।

पूव म िवजयनगर क ऐसी हालत कभी ई हो, ऐसा महाराज क मृित म नह था।
उ ह ने एक दन तेनाली राम से जा का दुख-सुख जानने के िलए िवजयनगर मण का
काय म तैयार करने के िलए कहा।

तेनाली राम ने महाराज के खु फया िवभाग से िवजयनगर के ऐसे इलाक का न शा


तैयार करवा िलया जहाँ अनावृि के कारण भुखमरी क नौबत आ चुक थी। कसान
पलायन करने को बा य हो गए थे। मवेशी मर रहे थे।

न शा िमल जाने पर तेनाली राम ने गाँव क ाथिमकताएँ तय क क कहाँ पहले जाना


चािहए और कहाँ बाद म। फर महाराज और तेनाली राम का िवजयनगर मण का
अिभयान शु हो गया। महाराज कृ णदेव राय ब त सू मता से यह जानकारी जुटा रहे थे
क कस गाँव म कतने कसान रहते ह और अनावृि के कारण उ ह कतना नुकसान
उठाना पड़ रहा है।

वैसे रा य का खु फया िवभाग अपने तर पर पूरे रा य क बदहाली के स ब ध म


मह वपूण त य जुटाने म लगा था और रा य का संचाई िवभाग उन स भावना क
तलाश म था िजससे अनावृि के बावजूद रा य म कृ िष क पहल क जा सके ।

महाराज ने रा य के अ भंडार के ार अनावृि के िशकार कृ षक के सहायताथ खुलवा


दए थे। मगर इतना ही काफ नह था। इसिलए वे वयं गाँव क वा तिवक ि थित का
मू यांकन करने के िलए िनकले थे।

या ा आर भ करने के एक स ाह बाद ही महाराज उस गाँव म थे जहाँ का एक कसान


कभी उनसे बोला था, ‘कृ िष उ पाद उसके म का प रणाम है, ई रीय कृ पा का नह ।’ उस
गाँव म वेश के साथ ही उ ह वह घटना याद हो आई।

संयोग क बात थी क तेनाली राम को वह कसान खेत क मेड़ पर बैठा दख गया।


कसान उदास था और उसके खेत म भी दूर तक कोई फसल नह दख रही थी। उसके पास
पहँ◌ुचने के बाद तेनाली राम ने महाराज को कने का संकेत कया और खुद उस कसान
के पास पहँ◌ुचकर पूछा, ” या बात है भाई! ब त उदास दख रहे हो?’’
उस कसान ने ल बी साँस ली और बोला, ‘‘ या कहँ◌ू भाई, सब क मत का खेल है।
कभी इस खेत म फसल लहलहाती थ । इस साल उपरवाले ने ऐसा कहर बरपा कया है क
खेत म डाले गए बीज सूरज क तिपश से भुन गए। खाद बरबाद हो गई। इस बार य द
बा रश नह ई तब बीज-खाद क क मत भी जेब से भरनी होगी।’’

तेनाली राम ने उसे दलासा देते ए कहा, ‘‘अजीब बाजीगर है यह ऊपरवाला भी! कभी
देता है तो कभी ले भी लेता है।’’

तेनाली राम क बात सुनकर कसान ने उसक ओर देखा। उसे तेनाली राम का चेहरा
पहचाना-सा लगा। फर उसे तेनाली राम से इसी मौसम म कु छ वष पहले ई मुलाकात
क याद हो आई। उसने तेनाली राम से पूछा, ‘‘आप मेरा दुख जानना चाहते ह, तो कटा
य कर रहे ह? आपक बात से ऐसा लग रहा है मानो आप जले पर नमक िछड़कने आए
ह। आपक बात मुझे सा वना नह दे रही ह और न ही ढाढस बँधा रही ह!’’

तेनाली राम ने उिचत अवसर देखते ए कहा, ‘‘ब धु, तु ह मरण होगा जब हम लोग
िपछली बार तुमसे यह पर िमले थे तब तुमने यह मानने से इनकार कर दया था क
अ छी फसल होना भगवान क कृ पा है बि क अितिव ास से कहा था क अ छी फसल
मेरी मेहनत का प रणाम है।...अब जब फसल बरबाद हो गई है तब इसके िलए तुम
भगवान पर दोष मढ़ रहे हो! यह उिचत नह है। अ छे प रणाम का ेय खुद को देना और
बुरे प रणाम के िलए भगवान को दोषी बताना उिचत नह है। इसी खेत क फसल से मुझे
तो यही िश ा िमली है क अ छे प रणाम के िलए भगवान क कृ पा और प र म दोन क
आव यकता होती है।’’

कसान अवाक् होकर तेनाली राम का मँ◌ुह देखता रह गया।

महाराज ने तेनाली राम क पीठ थपथपाई और दोन आगे बढ़ गए।


म और वाद
एक बार महाराज कृ णदेव राय तेनाली राम के साथ घोडे़ पर सवार होकर िशकार के
िलए िवजयनगर के िनकटवत जंगल म गए। दोन ने इ छा भर िशकार कया और वापसी
के िलए घोड़ा घुमा िलया। ले कन थोड़ी ही देर के बाद उ ह समझ म आ गया क वे राह
भटक गए ह। दोन भटकते-भटकते थककर चूर हो चुके थे। घोड़े पसीने से लथपथ थे। सूय
दि ण-पि म के कोण तक पहँ◌ुचने ही वाला था। महाराज यह सब देखकर हताश हो रहे
थे। उ ह ने तेनाली राम से कहा, ‘‘अब या होगा तेनाली राम! आिखर हम लोग कब तक
जंगल म भटकते रहगे? हमारे घोड़े भी थक चुके ह, उ ह भी िव ाम चािहए। िजस तरह
यास के मारे हमारा गला सूख रहा है, उसी तरह इन घोड़ को भी यास लगी होगी।
देखते नह , कस तरह हाँफ रहे ह घोड़े!’’

‘‘महाराज! धैय के अलावा और कोई उपाय नह है। अ छा है क हम एक ही दशा म


आगे बढ़ते रह।’’ तेनाली राम ने कहा।

दोन के घोड़े दौड़ते रहे।

थोड़ी देर के बाद तेनाली राम ने महाराज से खुश होते ए कहा, ‘‘महाराज! सामने
देिखए। पेड़ पर बगुल का झुंड बैठा आ है।’’

‘‘तो इसम खुश होने क या बात है? तुम तो ऐसे खुश हो रहे हो तेनाली राम मानो
िवजयनगर वापसी क राह िमल गई हो!’’ महाराज ने तेनाली राम से कहा। ‘‘

जी हाँ, महाराज! बगुल के दखने से यह स भावना भी दखने लगी है क शी ही हम


नगर वापसी क राह बतानेवाला कोई-न-कोई िमल जाएगा। खाने के िलए कु छ िमले न
िमले, पीने के िलए पानी अव य िमल जाएगा।’’ तेनाली राम ने कहा।

‘‘यह तुम कस आधार पर कह रहे हो?’’ महाराज ने पूछा।

‘‘महाराज, बगुल के आधार पर।’’ तेनाली राम ने उ र दया।

‘‘ या मतलब?’’ महाराज ने पूछा।

‘‘मतलब यह महाराज क बगुल के झुंड का यहाँ होना यह संकेत दे रहा है क आस-पास


ही कोई नदी बह रही है।’’ तेनाली राम ने कहा।
महाराज खुश होते ए बोले, ‘‘अरे , मेरे यान म तो यह बात ही नह आई थी! तुम ठीक
कह रहे हो तेनाली राम! ऐसा हो सकता है।’’

थोड़ी दूर घोड़ा और दौड़ा तब तेनाली राम ने भूिम पर बडे़ प वाली लताएँ िबछी ई
देख । इन लता के कु छ प पर जानवर के खुर और पंज के क चड़ सने िनशान थे।
इनम से कु छ िनशान क े थे तो कु छ सूखे यानी गीली िम ीवाले िनशान और सूखी
िम ीवाले िनशान।

तेनाली राम ने महाराज को उन िनशान को दखाते ए कहा, ‘‘महाराज, घोड़े को उस


ओर ले चल िजधर से पंज और खुर के िनशान आते दखाई पड़ रहे ह।’’ ऐसा कहते ए
तेनाली राम ने वयं अपना घोड़ा मोड़ िलया।

महाराज समझ नह पाए क तेनाली राम कन िनशान क बात कर रहा है। वे थक चुके
थे और पसीने से लथपथ हो चुके थे। उ ह बोलने क इ छा नह ई इसिलए उ ह ने
चुपचाप घोडे़ को तेनाली राम के घोड़े के पीछे लगा दया।

थोड़ी ही दूरी पर उ ह एक नदी दखाई पड़ी। दोन ने नदी क धारा म हाथ-मँ◌ुह धोए।
फर जी भर के पानी पीया। जब उनक यास बुझ गई तब वे अपने घोड़ को ले आए।
दोनां◌े घोड़ ने भी पानी पीया।

महाराज ने तेनाली राम से कहा, ‘‘तेनाली राम, म कामना करता हँ◌ू क दूसरी
स भावना भी सच सािबत हो जाए।’’

‘‘जी हाँ, महाराज, नदी है तो आस-पास कोई ब ती भी होगी। पहले थोड़ा िव ाम कर ल


फर देखते ह क आगे या है।’’ इतना कहकर तेनाली राम ने दोन घोड़ को ऐसे थान
पर ले जाकर बाँध दया जहाँ हरी घास दूर तक भूिम पर आ छा दत थी। उसने घोड़ को
वह छोड़ दया और वयं महाराज के पास आ गया। उसने महाराज से कहा, ‘‘महाराज!
आइए, नदी के कनारे बालू पर हम लोग थोड़ी देर लेट ल। थोड़े िव ाम के बाद सोचगे क
अब या करना है और कधर जाना है।’’

महाराज थके ए तो थे ही, उ ह ने बालू पर लेटते ए कहा, ‘‘ले कन तेनाली राम! थोड़ी
ही देर म शाम हो जाएगी। ऊपर से, यह नदी का कनारा है। कभी भी कोई जंगली जानवर
इधर पानी पीने के िलए आ सकता है।“

महाराज के पास ही तेनाली राम लेट गया और कहा, ‘‘महाराज, जंगली ज तु से भय


क आव यकता नह । इस समय य द कोई भी जीव इधर आया तो िव ास क िजए क वह
िशकार करके अपना पेट भर चुका होगा। वैसे भी मनु य से सभी भी जानवर वयं भयभीत
रहते ह इसिलए भयरिहत होकर हम लोग थोड़ी देर िव ाम कर।’’
अभी उन लोग को िव ाम के िलए लेटे कु छ समय ही बीता था क एक ौढ़ मिहला
हाथ म घड़ा िलये नदी से पानी लेने के िलए आई। उसने घड़े को पानी म डु बोया तो उसम
जाते पानी क ‘गड-गड’ विन से महाराज और तेनाली राम दोन का यान उस ओर
गया। उन दोन ने नदी क ओर देखा और स हो गए। महाराज ने स होते ए
तेनाली राम से कहा, ‘‘तेनाली राम! तु हारा दूसरा अनुमान भी सच सािबत आ। चलो,
मिहला से पता कर िवजयनगर जाने का रा ता।’’

दोन मिहला के पास पहँच।े मिहला ने उ ह देखते ही समझ िलया क ये दोन राजसी
ि व के वामी ह। अव य इनम से कोई राजा है। ऐसा सोचकर उसने दोन को
नम कार कया और पूछने लगी, ‘‘राह भटक गए हो राजन?’’ महाराज

उस मिहला क शालीनता से ब त भािवत ए और मिहला से कहा, ‘‘हाँ माता! हम


दोन राह भूल गए ह। जंगल म भटकते-भटकते थक गए ह और भूखे ह।’’

मिहला ने उनसे कहा, ‘‘कोई बात नह , अब तुम दोन मेरे साथ मेरी झ पड़ी म चलो।
झ पड़ी म जो कु छ है उससे अपनी भूख िमटाओ। घोड़ को ले चलकर झ पड़ी के पास बाँध
देना। घोड़ के चारे क व था भी म कर दँ◌ूगी। सुबह जहाँ कह भी जाना है, चले
जाना। पल-दो पल म अब सूरज डू ब जाएगा। रात हो जाएगी। और जंगल म रात को
अनजान राह पर भटकना खतरे से खाली नह । कहते ह क भी ज तु क शि राि म
कई गुना बढ़ जाती है।’’

महाराज और तेनाली राम के सम उस मिहला का ताव वीकार कर लेने के अलावा


कोई चारा नह था इसिलए वे दोन उस मिहला के साथ उसक झ पड़ी म चले गए।

मिहला क झ पड़ी जंगल म बसे एक छोटे गाँव म थी। पाँच-छः प रवार वाले इस गाँव
म प ह-बीस लोग ही रहते थे। वन-प और िशकार पर उनका जीवन आधा रत था।

महाराज और तेनाली राम दोन ही भूख से बेहाल थे। मिहला ने उ ह गुड़ और चने के
उपयोग से बनाया गया पेठा दया। महाराज को यह पेठा ब त वा द लगा।

दूसरे दन सुबह मिहला ने उन दोन को िवजयनगर क राह दखा दी और वे दोन


िवजयनगर चले आए।

फर सब कु छ सामा य हो गया। महाराज और तेनाली राम िनयिमत राजभवन जाते।


वहाँ दोन म बातचीत होती।

एक दन महाराज ने तेनाली राम से कहा, ‘‘तेनाली राम! मुझे वह पेठा खाने क बड़ी
इ छा है। कह से चने-गुड़ के पेठे क व था करो।’’
तेनाली राम ने िवजयनगर क एक दुकान से महाराज के िलए पेठा मँगवा दया।

मगर महाराज को इस पेठे म वह वाद नह िमला।

दूसरे दन महाराज ने तेनाली राम को बताया क कल जो पेठा खाया, उसम वह बात ही


नह थी जो उस जंगलवाली मिहला के पेठे म थी।

तेनाली राम ने कसी दूसरी दुकान से महाराज के िलए पेठा मँगा दया मगर महाराज
को उससे भी स तुि नह िमली।

इस कार महाराज को बारी-बारी से िवजयनगर क सभी दुकान के पेठे िखलाए गए


मगर महाराज को उस मिहला क झ पड़ी म िमले पेठे का वाद नह िमला।

अ ततः एक दन तेनाली राम ने महाराज से जंगल म उस मिहला से िमलने चलने के


िलए कहा। महाराज सहष तैयार हो गए।

दूसरे दन सुबह दोन जंगल म उस मिहला क झ पड़ी क ओर चल दए। मिहला क


झ पड़ी तक पहँ◌ुचते-पहँ◌ुचते दोन थककर चूर हो गए। उ ह भूख भी जोर क लगी थी।

मिहला क झ पड़ी म जब वे दोन प च ँ े तब मिहला उ ह देखकर ब त स ई। उसने


उन दोन को बैठने के िलए चटाई िबछा दी। पीने के िलए पानी दया।

महाराज ने मिहला से कहा, ‘‘माँ, मुझे चना-गुड़ का पेठा िखलाओ। तु हारे हाथ का पेठा
खाने के िलए ही म यहाँ आया हँ◌।ू ’’

महाराज क अपनापन-भरी बात सुनकर मिहला ब त स ई। उसने तुर त महाराज


के िलए पेठा बनाया।

इस बीच तेनाली राम ने मिहला को बता दया था क चना-गुड़ का यह पेठा महाराज


को कतना पस द है और कै से िवजयनगर क हर दुकान का पेठा खाने के बाद भी महाराज
को उसके हाथ से बने पेठे का वाद नह िमला और वे पेठा खाने जंगल म आ गए।

पेठा बनाकर मिहला ने महाराज और तेनाली राम के िलए परोस दया। महाराज ने पेठा
खाने पर पायादृवही वाद! वही िमठास! वे पेठे के वाद म खो से गए। जी भर के पेठा
खाया और मिहला के पेठे क खूब शंसा क ।

मिहला ने पेठे के वाद का रह य खोलते ए कहा, ‘‘राजन! जब तुम पहली बार पेठा
खाए थे, उस दन भी तु ह खूब जोर क भूख लगी थी। जंगल म भटकने के कारण
मजिनत थकन से तुम ला त से थे। शरीर से खूब पसीना बह चुका था। इस कार
तु हारे शरीर के रग-रग को नई उजा के िलए आहार क आव यकता थी और आज भी
तु हारी ि थित उस दन जैसी ही है। सच है क यह पेठा भी वैसा ही पेठा है जैसा
िवजयनगर क दुकान म िमलता है। दरअसल बात यह है क जब भी म करने के बाद
भूख लगती है तब भोजन करने पर उसका वाद अि तीय लगता है।’’

दरअसल बात यह है क मिहला क बात से महाराज और तेनाली राम ब त स तु ए।


महाराज ने मिहला को ढेर सारा धन उपहार म दया और वहाँ से िवजयनगर वापस आ
गए।
खुल आँख महाराज क
महाराज कृ णदेव राय कभी-कभी तेनाली राम को साथ लेकर िवजयनगर क जा का
दुख-सुख जानने के उ े य से मण के िलए िनकल जाते थे। ऐसे मण के समय दोन आम
नाग रक जैसे प रधान म रहते थे।

एक दन महाराज ने कहा, ‘‘तेनाली राम! राज-काज क समरसता से बड़ी ऊब हो रही


है। य न हम लोग दो-चार दन के िलए कह मण के िलए िनकल जाएँ? इससे
समरसता भी दूर होगी और हम लोग अपनी जा क वा तिवक ि थितय को भी समझ
पाएँगे।’’

तेनाली राम भला महाराज क बात का या िवरोध करता! वह तुर त तैयार हो गया।
काय म तय हो गया। उस दन तेनाली राम या ा क तैयारी के िलए अपने घर चला
गया। दूसरे दन या ा आर भ होनी थी इसिलए तेनाली राम ने आनन-फानन म अपनी
तैया रयाँ पूरी कर ल । उसने थैले म कु छ कपड़े रखे। जेब म कु छ मु ाएँ रख । जूत को
साफ कया। घोड़े को नहला-धुलाकर उसक मािलश क । हो गई उसक तैयारी पूरी। ऐसे
भी वह महाराज के साथ जा रहा था इसिलए राह य आ द क िच ता उसे नह करनी
थी फर भी उसने कु छ पैसे अपने साथ रख िलये थे। यह सोचकर क पता नह कब पैस
क आव यकता पड़ जाए। तेनाली राम का मानना था क पैस का कोई िवक प नह
होता। पैस का काम पैसे से ही पूरा हो सकता है।

दूसरे दन वह महाराज के साथ रा य- मण के िलए िनकल पड़ा। यानी उन दोन क


या ा ार भ हो गई। या ा के दौरान महाराज तेनाली राम से ायः कु छ बात कया करते
थे। उनक बात म कई कार क िज ासाएँ आ करती थ । इस बार या ा का पहला
पड़ाव एक नगर क धमशाला म था। महाराज ने धमशाला पहँ◌ुचकर ान कया और
व ा बदले। फर तेनाली राम के साथ पैदल ही नगर मण के िलए िनकले। उ ह यह
देखकर स ता ई क उनके रा य का यह नगर खुशहाल था। बाजार म काश था।
अिधकांश दुकान म तोरण ार लगे ए थे। एक थान पर महाराज ने भीड़ देखी तो
तेनाली राम के साथ वे यह देखने के िलए उस थान पर गए क भीड़ य लगी ई है। उस
थान पर पहँ◌ुचकर महाराज ने देखा क एक धना ि गरीब के बीच अनाज और
पैसे बाँट रहा है। महाराज उस ि क दानशीलता से ब त भािवत ए और तेनाली
राम से कहा, ‘‘तेनाली राम! ऐसे दानी और पु या मा लोग से ही धरती टक ई है। देखो
इस दानी को, कतनी एका ता से यह गरीब को दान दे रहा है!’’

महाराज इतना ही बोल पाए थे क दानकता के पास खडे़ दो पगड़ीधारी लठै त ने नारा
बुल द कया, ‘‘...बोलो यानी च द सेठ क ...’’

दान लेने के िलए खड़े लोग ने आवाज लगाई, ”जय!’’

इस जयकार क गँ◌ूज के साथ ही महाराज तेनाली राम का हाथ पकड़कर पुनः धमशाला
क दशा म चल पडे़।

महाराज चाहते थे क तेनाली राम दान पर भी कु छ बोले। िजस तरह लोग ने उस सेठ के
िलए जयकार कया था, उससे महाराज के मन म भी इ छा हो गई थी क कभी वे भी
गरीब क ब ती म जाएँगे और उनक सहायता के िलए अ और दान करगे तब लोग
उनके िलए भी ऐसे ही जयघोष करगे। स ा हमेशा ऐसे ही छोटे लोभन से उ प जय के
मद म डू बी रहती है। महाराज क इस चाह म भी स ा का वही मद काम कर रहा था।

महाराज ारा पूछे जाने पर भी तेनाली राम ने सेठ के दान के संग म कु छ भी नह


कहा।

महाराज ु ध हो उठे और तेनाली राम से िचढ़कर कहा, ‘‘तुम कै से मनु य हो? एक


मने तुमसे कई बार पूछा ले कन तुम मौन साधे रहे! आिखर य ?’’

‘‘महाराज! म एक ऐसा मनु य हँ◌ू िजसका अपनी देह और मन पर पूण अिधकार है।’’
तेनाली राम ने कहा। ‘‘यह है आपके अभी-अभी पूछे गए का उ र।“

‘‘ या मतलब?’’ महाराज ने कहा, ‘‘ य उलझी ई बात कर रहे हो? जो कु छ कहना है,


साफ-साफ कहो।’’

”मेरे कहने का मतलब है क िजस कार कु हार घड़े को बनाता है, नािवक नौकाएँ
चलाता है, धनुधारी शरस धान करता है, गायक गीत गाता है, वादक वा यं ा बजाता है,
उसी कार ानी ि वयं पर शासन करता है। म ान-या ा का या ाी हँ◌ू इसिलए
वयं पर शासन करने का अ यास करता हँ◌।ू उिचत अवसर आने पर ही म आपके पूव
का उ र दँ◌ूगा।’’

जब तक ये बात हो रही थ तब तक धमशाला आ गया था। महाराज तेनाली राम के


उ र से स तु नह थे और अपने क उपे ा के कारण कु िपत भी हो उठे थे इसिलए
िव ाम के िलए अपने क म चले गए।

जाड़े क रात थी। कड़ाके क ठं ड पड़ रही थी। तेनाली राम ने म य राि म महाराज के
कमरे का ार खटखटाया। महाराज ने ार खोला तो दरवाजे पर तेनाली राम को देखकर
सा य कया, ‘‘ या आ तेनाली राम! इतनी रात गए तुमने ार य खटखटाया?’’
‘‘महाराज, बड़ी कृ पा होगी य द आप व बदल ल और इस समय नगर मण के िलए
चल। शाम को या दन को जो नगर दखता है वह नगर का एक प है। नगर का
वा तिवक प तो रात को ही दखता है।’’ तेनाली राम ने कहा।

महाराज मान गए और तैयार होकर तेनाली राम के साथ धमशाला से बाहर आ गए।

दोन पैदल चलते ए बाजार क ओर आ गए। शाम को इस बाजार म कतनी चहल-


पहल थी! महाराज सोच रहे थे- कतना भ और स प दख रहा था बाजार! अभी कस
तरह स ाटे म पड़ा है! मानो यहाँ कभी मनु य के पाँव ही न पड़े ह ! दुकान के आगे काश
के थान पर अँधेरा था। वे दोन चलते रहे। एक थान पर उ ह ने देखा, एक बेसहारा
आदमी एक दुकान के पाय क ओट म ठठु र कर लेटा आ है। ठं ड से बचाव के िलए उसके
पास क बल नह था। वे लोग धीमी चाल से उस ि क ओर बढ़ने लगे। तभी उ ह ने
देखा-िवरोधी दशा से एक ि क बल ओढ़े चला आ रहा था। उसक भी -ि उस ि
पर पड़ी और वह तुर त उसके पास गया और अपना क बल उतारकर धीरे से उसने उस
ि को ओढ़ा दया और वयं िबना क बल के ही तेज कदम से वहाँ से चला गया। उसने
उस ि पर क बल डालते समय इतनी सतकता िनभाई क उस ि क न द न टू टे।
महाराज यह - य देखकर चम कृ त हो उठे ।

तेनाली राम ने कहा, ‘‘महाराज! ऐसे ही लोग के कारण धरती टक ई है। असल दान
तो यही है। बाक दान के नाम पर जो कु छ भी होता है वह शि त पाने का यास है,
उप म है, ापार है...और कु छ भी नह ।’’

महाराज मन-ही-मन लािन से भर उठे क उनके मन म भी गरीब को कु छ दान करके


अपना जयघोष सुनने क इ छा उ प ई थी। उ ह ने तेनाली राम को गले लगाते ए
कहा, ‘‘तेनाली राम! तुमने मेरी आँख खोल द !’’
माँ क पहचान
तेनाली राम िवल ण बुि का था। वह िवपरीत प रि थितय म भी अपना धैय बनाए
रखता था। उसम ऐसे अनेक गुण थे जो उसे आम िव ान से अलग करते थे। उसक इन
मता के कारण ही महाराज कृ णदेव राय उसे ऐसे उलझनपूण काय भी स प दया
करते थे िजसका हल आम सभासद के पास नह आ करता था।

एक बार महाराज एक नवजात िशशु को लेकर ब त परे शान हो उठे । आ यह क


राज ासाद के िनकट मि दर का पुजारी सुबह एक नवजात को अपनी गोद म उठाए
महाराज के पास पहँ◌ुचा और ब े को महाराज को स पते ए बताया, ‘‘महाराज! आज
सुबह जब म मि दर क सफाई कर रहा था तब यह नवजात बालक मुझे मि दर क
सीि़ढय के पास पड़ा आ िमला। स भवतः रात भर यह बालक वह पड़ा आ था िजसके
कारण ठं डी हवा के झ क ने बालक को अ व थ कर दया। मने सबसे पहले ई के फाहे से
इस ब े को दूध िपलाया फर आँच के पास बैठकर इस ब े के शरीर को सका िजसके बाद
बालक क ि थित म सुधार आया। महाराज! म बाल चारी हँ◌ू और मि दर म ईश-
व दना म लगा रहता हँ◌ू। मुझे अपनी ही सुध नह रहती। ऐसे म म इस बालक का लालन-
पालन कै से क ँ गा? आप इस रा य के महाराज ह। िवजयनगर का हर ाणी आप पर
िनभर है। यहाँ के येक छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, ी -पु ष और बालक-बािलका क
सुर ा क िज मेदारी, राजा होने के नाते, आपक है। ऐसा सोचकर म यह बालक आपके
पास लेकर आया हँ◌ू और इसे आपको स प रहा हँ◌ू। आप इसके लालन-पालन क व था
कर। वैसे महाराज, मेरी सलाह है क आप इस बालक क माता क तलाश कराएँ और इसे
उसको ही स प य क एक माँ से अिधक अ छी परव रश कसी भी िशशु क कोई दूसरा
नह कर सकता। यह बात मनु य ही नह अिपतु सम त जीव के िलए मा य है।’’

महाराज उस पंिडत क अका बात सुनकर कु छ भी बोलने क ि थित म नह थे


इसिलए उ ह ने उस ब े को अपनी गोद म ले िलया।

पंिडत बालक स पने के बाद महाराज से िवदा लेकर मि दर चला आया।

बालक को अपनी गोद म लेकर महाराज कु छ देर तक असमंजस क ि थित म रहे। उनके
मन म बार-बार यह िवचार उ प हो रहा था क य द इस िशशु को उसक माँ क गोद
िमल जाए तो इससे अ छी और कोई बात नह होगी।

महाराज कृ णदेव राय धुन के प े थे। उ ह ने मन म ठान िलया क वे इस ब े को उसक


माँ क गोद म ही स पं◌ेग।े ले कन कै से? यह सवाल उनके अ तमन मं◌े बार-बार उमड़-
घुमड़ रहा था। मन म उठ रहे सवाल के बवंडर से अ भािवत महाराज ब े को गोद म
लेकर महल चले आए और उस ब े को अपनी महारानी क गोद म डालते ए कहा,
‘‘महारानी, इस ब े क माँ क तलाश क जाएगी। जब तक इसक माँ नह िमल जाती
तब तक आप ही इसके लालन-पालन का कत िनबाह।“ इसके बाद उ ह ने महारानी को
वह पूरा वृ ा त सुना दया जो क ब ा िमलने के स ब ध म मि दर का पुजारी उ ह सुना
गया था।

महारानी को बालक थमाकर महाराज राजभवन पहँ◌ुचे और हरी को भेजकर


अिवल ब तेनाली राम को बुलावा भेजा।

तेनाली राम अचानक महाराज ारा बुलाए जाने से थोड़ा उ िे लत आ और अिवल ब


उनसे िमलने के िलए राजभवन पहँ◌ुच गया।

राजभवन पहँचकर तेनाली राम ने देखा, महाराज राजभवन म बेचैनी से टहल रहे ह।
तेनाली राम ने महाराज के सामने पहँ◌ुचकर औपचा रक अिभवादन कया ले कन
महाराज ने िबना औपचा रकता के तेनाली राम का हाथ थाम िलया और एक िम क
तरह टहलते ए राजभवन के पा व म बने बगीचे म चले आए। तेनाली राम के आने के
बाद महाराज थोड़े आ त अव य ए क अब उस ब े को उसक माँ तक पहँ◌ुचाने क
व था हो जाएगी। उ ह ने बाग म टहलते ए पुजारी ारा उस िशशु को लाए जाने और
िशशु को महारानी को स पे जाने तक क कहानी तेनाली राम को सुना दी।

तेनाली राम महाराज के मन के उ ल


े न को तो समझ ही रहा था, एक राजा होने के नाते
उस बालक के ित उनके दािय व को भी समझ रहा था।

अ ततः महाराज ने कहा, ‘‘तेनाली राम! म चाहता हँ◌ू क इस ब े क माँ क खोज क


जाए और ऐसी व था क जाए क वह मिहला अपने ब े का लालन-पालन करे । मुझे
लगता है क कसी मिहला ने अपनी गरीबी के कारण इस ब े को भगवान के मि दर म
छोड़ा। भगवान के मि दर म आ थावान, धा मक वृि य के लोग जाते ह। ब े को मि दर
म छोड़ते समय उस मिहला के मन म यही िवचार रहा होगा क कोई धमा मा इस ब े को
अपना लेगा और इसका लालन-पालन करे गा। वह अपने ब े को िनि त प से
सं कारवान बनाने क कामना रखती होगी इसिलए ही उसे मि दर के ार पर छोड़कर
चली गई।’’ माहराज यह सब कहते ए भावुक हो उठे और आगे कहा, ‘‘तेनाली राम! मेरा
मन कहता है क इस ब े को इसक माँ अव य िमलेगी।’’

तेनाली राम महाराज क मनःि थित समझ रहा था। उसने महाराज से कहा, ‘‘य द
आपका मन कहता है तो महारानी को उस बालक को पालने दीिजए और जब उसक माँ
आ जाए तब उसे वह बालक स प दीिजए।’’
‘‘तुम भी या बात करते हो तेनाली राम! तब या ब त िवल ब न हो जाएगा? फर
महारानी क गोद म पलने के बाद यह बालक कसी अ य मिहला को माँ का स मान दे
पाएगा? नह , ऐसा करना उिचत नह होगा।’’ महाराज ने कहा।

तेनाली राम को महाराज क बात ठीक लग और उसने महाराज क इ छा जानने के


िलए पूछा, ‘‘ फर उिचत या होगा महाराज?’’

‘‘उिचत यह होगा क हम इस ब े क माँ को तलाश कर।’’ महाराज ने कहा।...थोड़ी देर


चुप रहने के बाद महाराज ने फर कहा, ‘‘और म चाहता हँ◌ू क उस ब े क माँ क खोज
क िज मेदारी तुम वीकार करो।’’

यह बात हालाँ क तेनाली राम पहले समझ चुका था ले कन महाराज के मँ◌ुह से सुन लेने
के बाद उसने कहा, ‘‘जैसी महाराज क आ ा।’’ थोड़ी देर तक तेनाली राम चुपचाप
महाराज के साथ टहलता रहा और फर बोला, ‘‘महाराज, य द म इस ब े क माँ क
खोज क ँ गा तो यह भी चाहँ◌ूगा क इससे स बि धत व था भी म ही क ँ ।’’

‘‘हाँ! तु ह पूरी छू ट है। जो चाहो करो।’’ महाराज ने कहा।

‘‘तो महाराज, मेरी पहली िवनती है क उस बालक को राजभवन म एक पालने पर


रखवा द और उसक देखभाल वहाँ हो सके इसके िलए एक दासी वहाँ िनयु करवा द। म
जानता हँ◌ू क महारानी जी ब े क अ छी देखभाल कर रही ह गी ले कन ब े क माँ क
खोज के िलए ब े को महल से राजभवन म लाया जाना आव यक है।’’ तेनाली राम ने
कहा।

महाराज ने तेनाली राम को आ त कया, ‘‘ऐसी व था करा दी जाएगी।“

पुनः तेनाली राम ने महाराज से कहा, ‘‘महाराज! पूरे िवजयनगर म यह मुनादी करा दी
जाए क कल रात नगर के एक मि दर म एक बालक िमला है। लालन-पालन के िलए उसे
महाराज कृ णदेव राय अपने साथ ले गए ह। ब े को उ ह ने अपना आधा रा य देने का
मन बना िलया है। इसके स ब ध म कोई भी वैधािनक घोषणा करने से पूव महाराज इस
ब े क माँ से िमलना चाहते ह ता क वे उसक मदद कर सक। महाराज को िव ास है क
कसी मजबूरी म ही कसी ने अपने िजगर के टु कड़े को वयं से अलग कर भगवान के ार
पर छोड़ दया होगा।’’

महाराज ने इसक भी वीकृ ित दे दी।

दोपहर का समय था। महाराज कृ णदेव राय का दरबार लगा आ था। सभा क
कारवाई चल रही थी। महाराज से एक सभासद िवजयनगर के पूव भाग मं◌े संचाई क
व था कराने का आ ह कर रहा था य क बरसात के दन म िवजयनगर के पूव भाग
म अपे ाकृ त कम बा रश ई थी िजससे कसान म हताशा क ि थित थी। वे आशं कत थे
क य द संचाई क व था समय रहते नह क गई तो खेत म लगी फसल बरबाद हो
जाएँगी और य द ऐसा आ तो रा य म खा ा संकट उ प हो जाएगा। अभी यह बहस
जारी थी तभी एक हरी एक मिहला के साथ सभा भवन म आया। तेनाली राम उ ह देखते
ही समझ गया क अव य उसके कहने के अनुसार मुनादी करा दी गई है िजसके कारण यह
मिहला अपने ब े को लेने राजभवन म आई है।

तेनाली राम क आशा के अनु प ही मिहला ने महाराज के सम अपना ितवेदन


तुत कया, ‘‘वह उस ब े क माँ है जो महाराज को मि दर म िमला है।“

ब ा पालने म महाराज के पास ही रखा गया था। महाराज ने मिहला से कहा, ”आओ
और आकर देख लो क यही ब ा तु हारा है?’’

मिहला महाराज के आसन के पास गई। पालने म सोए ब े को भली कार देखा। उसे
गोद म लेकर उसे अपने सीने से िचपटा िलया और िबलखती ई बोली, ‘‘जी हाँ, महाराज!
यह ब ा मेरा है। के वल इसके शरीर पर जो व ा ह, वे मेरे नह ह। ब े का बाप नशेड़ी है।
हमेशा नशे म धु रहता है। कमाता-धमाता नह है। म अपनी तंगहाली से आिजज आ गई
तब इस ब े को मि दर म भगवान के भरोसे छोड़ आई। अभी मने सुना क आप इस ब े
को आधा रा य देनेवाले ह तब म भागी-भागी यहाँ आ गई। आप यह न सोच महाराज क
म कसी लोभ म यहाँ आई। मुझे कु छ भी नह चािहए। आप इस ब े क अ छी परव रश
कराएँ, यही मेरे िलए ब त है।’’ इतना कहकर उस मिहला ने ब े को पालने म रख दया
और वह सुबक-सुबककर रोने लगी।

अभी उसका दन चल ही रहा था क हरी एक अ य मिहला को साथ िलए आया और


वह मिहला जो अभी-अभी महाराज के सामने तुत ई, दूसरी िबलखती ई मिहला पर
यान दए िबना ही बोली, ‘‘महाराज, मुझ अबला पर दया क िजए! म अपनी गरीबी से
तंग आकर अपने िजगर के टु कड़े से अलग ई।

वह अचानक पालने के पास पहँची और ब े को गोद म उठाकर उसे अपने सीने से


लगाकर बेतहाशा चूमने लगी। उसके हाव-भाव से भी यही कट हो रहा था क वही उस
ब े क वा तिवक माँ है।

महाराज सिहत सभी सभासद असमंजस क ि थत म थे क आिखर इन दोन मिहला


म से ब े क असली माँ कौन है?

तभी तेनाली राम ने अपने आसन से उठकर मिहला से पूछा, ‘‘ठीक-ठीक बताओ, इस
ब े क माँ कौन है?’’
दोन मिहला के मँह से हठात् िनकला, ‘‘म!’’

तेनाली राम ने िबना उनक ओर देखे जोर से कहा, ‘‘ हरी! ब े को तलवार से दो टु कड़े
कर दो और इन दोन मिहला को ब े का एक-एक टु कड़ा दे दो। झमेला ही ख म! सुबह
से इस ब े के कारण राजभवन का कामकाज भािवत हो रहा है।’’ तेनाली राम के वर
म खीज और ोध का िमला-जुला सि म ण था।

तेनाली राम का यह आदेश सुनते ही पहली मिहला के मँ◌ुह से अचानक जोर क चीख
िनकली, ‘‘नह !’’ और वह अपने थान से उठकर दो-तीन छलाँग म ही तेनाली राम के
पास पहँचकर उसके पाँव से िलपटकर िवलाप करने लगी, ‘‘कृ पा क िजए! ऐसा अनथ मत
क िजए! आप यह ब ा उसी मिहला को दे दीिजए! वही उसक असली माँ है। म तो लोभी
हँ◌।ू ब े को आधा रा य िमलने के लालच म यहाँ चली आई। म उसक माँ नह हँ◌ू, मुझे
जो सजा देना चाह, दे ल मगर ब े को कु छ न कर।’’

इस मिहला का यह आचरण देखकर तेनाली राम अपने िन कष पर पहँ◌ुच चुका था।


उसने ह रय को बुलाकर दूसरी मिहला को िगर तार कर लेने का िनदश दया और अपने
पैर से िलपटी मिहला को ेहपूवक उठाया और कहा, ‘‘चुप हो जाओ माँ! तेरे लाल को
कु छ नह होगा। उसका बाल भी बाँका न होगा। चुप हो जाओ!’’

मिहला खड़ी ई और अपने आँसू प छे ले कन उसक िहच कयाँ बँधी ई थ और रह-


रहकर सुबक उठती थी।

तेनाली राम ने िगर तार क गई मिहला से जाकर पूछताछ क । शी ही वह मिहला टू ट


गई। उसने वीकार कर िलया क वह ब े को आधा रा य िमलने क घोषणा सुनकर
लालच म आ गई और उसी लोभ म पड़कर उसक माँ होने का दावा कर बैठी।

उस मिहला क गरीबी और िववशता के बारे म जानकर तेनाली राम को उस पर दया


आ गई और उसने उसे मु करा दया। इसके बाद तेनाली राम पहली मिहला को साथ
लेकर महाराज के पास गया और कहा, ‘‘महाराज! यही है इस ब े क असली माँ। जो
अपने ब े को काटे जाने क धमक से उ िे लत हो गई और इस बात से भी मुकर गई क
वह उसक माँ है। इसम इसका यही वाथ था क ब े को कु छ न हो। वह सुरि त रहे।“

महाराज ने मिहला क वा तिवक ि थित का अनुमान लगा िलया और ब े सिहत उसक


परव रश क व था रा य क ओर से करा दी।
लौह दंड के फू ल
िवजयनगर म अमन-चैन था। महाराज कृ णदेव राय क लोकि यता आकाश छू रही थी।
उ ह जापालक, यायि य और धैयवान शासक माना जा रहा था। अपने रा य म ही नह
बि क पड़ोसी रा य म भी उ ह कृ पालु और उदार शासक कहा जाने लगा था। उनक
लोकि यता के पीछे तेनाली राम क बुि क बड़ी भूिमका थी। तेनाली राम उनके काय
को कु छ ऐसा प दे देता था क लोग को महाराज क वाथिसि म भी उदारता और
यायि यता क झलक िमलने लगती थी।

कु छ दन पहले ही, जब महाराज अपने रा य के िवकास क परे खा तय करने के िलए


मण कर रहे थे तब तेनाली राम क बुि के कारण उनके का फले ने िबना कु छ दए जा
से भोजन भी ा कया और गुणगान भी, मानो महाराज और उनका का फला जाजन
से भोजन ा कर उन पर उपकार कर रहे ह ! रा य मण के समय म महाराज जहाँ कह
भी गए वहाँ जाजन ने उनका गमजोशी से वागत कया। यह सब तेनाली राम क
कु शा बुि का ही प रणाम था।

ले कन तेनाली राम ने रा य मण के बाद से महाराज म कु छ िविच से प रवतन देखे।


पहले तो उसे लगा क यह उसका म है क तु महाराज क भंिगमा म हो रहे बदलाव
पर अनायास ही उसक दृि पड़ती और उसे लगता क महाराज म दप का समावेश हो
रहा है। वे कु छ बोलते तो तेनाली राम को लगता क यह महाराज नह , महाराज का
अिभमान बोल रहा है। इसके बाद अपने वभाव के अनु प तेनाली राम महाराज क
येक चे ा और अिभ ि पर गौर करने लगा। ब त सू मता से अ ययन करने पर
महाराज के बारे म उसक प धारणा बनी क अभी हाल के दन म महाराज जब रा य
मण के िलए िनकले थे तो जगह-जगह उ ह जो अितशय स मान िमला इससे उनके
ग रमा-बोध का िव तार हो गया। अनायास स मान से मनु य म गव का भाव आता ही है।
महाराज म यह गव बोध बढ़कर घमंड म प रणत हो गया है। तेनाली राम को िच ता ई
क महाराज का घमंड य द और बढ़ा तो रा य म उनक जापालक वाली छिव को ित
पहँ◌ुचेगी। मगर महाराज के ब त िनकट होते ए भी उसके और महाराज के बीच मयादा
क एक ीण-सी रे खा भी थी। वह उस रे खा का उ लंघन करना नह चाहता था। इसिलए,
महाराज को वह सीधे यह नह कह सकता था क ‘महाराज, आप घमंडी हो गए ह। जा
के बीच लोकि य बने रहने के िलए आपका मृद ु वहार आव यक है।’

वाभािवक प से तेनाली राम दन-रात इसी उधेड़बुन म लगा रहता था क कोई


उपाय सूझे तो वह महाराज को उनके बदल रहे वभाव के ित सचेत कर दे।
एक दन महाराज घोड़े पर सवार होकर राजभवन से बाहर िनकले तथा एक पगडंडी पर
सरपट घोड़ा दौड़ाते ए आगे बढ़े। यह पगडंडी आगे तेनाली राम के आवास क ओर जाती
थी। तेनाली राम उसी पगडंडी से राजभवन क ओर जा रहा था। महाराज को उस पगडंडी
से आते देखकर तेनाली राम चक पड़ा। इतनी सुबह, महाराज राजमाग छोड़कर इस
पगडंडी से भला कहाँ जा रहे ह? यह अपने मि त क म िलये तेनाली राम पगडंडी के
कनारे के खेत म खड़ा होकर महाराज क ती ा करने लगा। उसके मन म शंका उठ रही
थी क पास म ही गरीब क ब ती है और इन गरीब ने महाराज को कभी देखा होगा, यह
आव यक नह है। इस ब ती के लोग दन भर दूर-दराज म प र म करते ह और रात गए
अपने घर लौटते ह तो नशे म होते ह। स ती म दरा और मांस इनक कमजोरी है। इनक
दनचया और रहन-सहन दोन ही इस बात क स भावना पैदा नह होने देते क ये
महाराज को जान। प र म ही इनका महाराज है। ये अपने प र म के ारा अपने दुख से
पार पाते ह इसिलए इ ह कसी क परवाह भी नह होती क वह कोई फक र है या राजा!
अपने काम से मतलब रखनेवाले इन लोगां◌े क बात म अजीब-सी त खी है। ये िबना
लाग-लपेट के बात करते ह। और कर भी य नह ? काम िमला तो कया। पैसा कमाया तो
खाया, पीया और मौज कया। काम नह िमला तो भूखे ही सो गए। न कसी से िलया, न
दया। ऐसी जीवन-शैली म औपचा रकता का थान ही कहाँ है? तेनाली राम अभी यह
सोच ही रहा था क एक मिहला ब ती क राह से एक ब े क उँ गली थामे आई और उसी
पगडंडी पर चलने लगी िजस पर महाराज घोड़ा दौड़ाते ए आ रहे थे। मिहला के िनकट
आने पर उ ह ने ककश वर म कहा, ‘‘अरे ! ह ! रा ता छोड़।’’ उनके मँ◌ुह से यह पंि
ख म भी नह हो पाई थी क महाराज का घोड़ा मिहला और ब े के इतने िनकट से गुजरा
क घोड़े के पा व भाग से मिहला को ध ा लगा और वह झटके से ब े समेत िगर पड़ी।
महाराज ने पीेछे घूमकर देखा और घोड़ा धीमा कर बोले, ‘‘तू बहरी है या? म चीखकर
तु ह राह से हटने के िलए कह रहा था!...तू बहरी ही नह , अ धी भी है... तु ह दखा नह
क म आ रहा हँ◌ू। बीच राह पर चलने म तुझे मजा आ रहा था?“

महाराज के तेवर देखकर तेनाली राम अपने थान से दौड़ा आ आया और उसने मिहला
को उठाया। मिहला और उसके ब ,े दोन को चोट लगी थी। मिहला क नाक से खून टपक
रहा था और ब े का घुटना िछल गया था। उनक ि थित देखने के बाद भी महाराज न तो
घोड़े से उतरे और न ही उस मिहला को डाँटना ब द कया। तेनाली राम को देखकर थोड़े
संयत ज र ए और सामा य वर म तेनाली राम से कहा, ‘‘तेनाली राम! यह मिहला
अस य है, इसे राह म चलना भी नह आता। बीच सड़क पर ब े का हाथ पकड़कर टहलती
ई जा रही थी...।“

तेनाली राम कु छ कहता इससे पहले मिहला ने महाराज को टोका, ‘‘अरे काहे झूठ
बोलता है...तू तो घोड़े को उस डाकू क तरह भगाता आ रहा था, जैसे उसके पीछे
िसपािहय का दल पड़ा आ हो!“
महाराज के िलए यह ट पणी अस थी। अपने पूरे जीवन म उ ह ने ऐसा संवाद नह
सुना था। वे आग-बबूला हो उठे और चीखे, ‘‘तू अ धी और बहरी दोन है। तुझे घोड़े क
टाप नह सुनाई दी? तुझे नह दखा क म आ रहा हँ◌ू...?’’ ‘‘अरे , तू या भगवान है?
तुझसे तेज फू टती है क उसक चध से म जानती क भगवान आ रहे ह या क मेरी पीठ म
आँख है क म देखती क एक अ धा घोड़े पर सवार भागा आ रहा है और म राह छोड़
देती?’’

तेनाली राम ने बीच म ह त ेप कया, ‘‘जाने दे माँ! अब जो होना था, आ।’’ और


महाराज क ओर मँ◌ुह करते ए तेनाली राम ने महाराज से कहा, ‘‘आप भी अपने ग त
क ओर थान कर महाराज! म जरा इस ब े को वै जी से दखलाकर, इ ह घर पहँ◌ुचा
आउँ ।’’ इसके बाद तेनाली राम ने ब े को गोद म ले िलया और िबना महाराज क ओर देखे
उस मिहला से कहा, ‘‘आओ माँ! जरा वै जी के पास चलो।“

मिहला महाराज को मन-ही-मन कोसती ई तेनाली राम के साथ चलने लगी। महाराज
तेनाली राम क ओर िव मय से देखते रह गए। िबना कसी अिभवादन के तेनाली राम
वहाँ से मिहला और ब े के साथ चला गया।

उस दन पगडंडी से गुजरकर महाराज राजमाग पर आए और राजमाग से ही राजभवन


पहँच।े उनका मन ोभ से भरा आ था। एक तो जीवन म ऐसी बात उ ह ने कभी नह
सुनी थ जैसी बात उ ह एक मिहला सुना गई थी िजसके शरीर पर ढंग के व ा भी नह
थे। दूसरी यह क तेनाली राम जैसा सभासद जो वष से उनक सेवा म है, उस मिहला का
दु यवहार देखने के बाद भी उसी मिहला के साथ जा खड़ा आ! उनके मन म ोध का
वार उठ रहा था...यह तेनाली राम जो मेरे कारण पूरे रा य म स मािनत है, दूसरे रा य
म भी िजसक िव ा क चचा होती है, वह भूल गया क म उसका अ दाता हँ◌ू। मेरे
कारण ही उसे स मान अ जत करने का अवसर िमला। मने उसे अपने रा य का िवदूषक
नह बनाया होता तो...तो...तो वह कह भाड़ झ क रहा होता और वह
मिहला...चांडािलन! म उसक धृ ता का ऐसा दंड दँ◌ूगा क उसे तो या, उसके खानदान
के कसी भी सद य को कह पनाह नह िमलेगी। महाराज का आ ोश बढ़ता ही जा रहा
था।

सच भी है क जब स ामद चढ़ता है तब मनु य उिचत-अनुिचत का यान नह रख


पाता। उसका व व मह वपूण हो जाता है और सव प र हो जाती है उसक इ छा।

मानव-मन क गित तेनाली राम अ छी तरह समझता था इसिलए महाराज कृ णदेव


राय म आए प रवतन को भी वह जान-समझ रहा था। उसे बस इतनी िच ता सता रही
थी क महाराज क भूल का अहसास वह उ ह कै से कराए। आज जब वह उस मिहला को
सहारा देने के िलए उ त आ उस समय भी उसक इ छा महाराज को अपनी भूल के
ित सचेत करना था। मगर ऐसा नह आ। महाराज तेजी से घोड़ा दौड़ाते ए वहाँ से
चले गए।

तेनाली राम ने समझ िलया क महाराज वहाँ से आवेश म गए ह और उसे मालूम था क


महाराज का आवेश ज दी जाता नह है। तेनाली राम ने उस मिहला और ब े को वै से
दखलाकर उ ह िवदा कया और राजभवन जाने क बजाय अपने घर लौट आया। ब त
देर तक िच तन-मनन करने के बाद वह एक िन कष पर पहँचा और अपने िन कष के
अनु प कु छ करने के िलए स य आ। उसने एक योजना का ा प भोजप पर तैयार
कया। ा प तैयार हो जाने के बाद उसने उसे फर से देखा, मनन कया। इसके बाद उसने
कपड़े बदले। घोड़ा िनकाला और िवजयनगर से बाहर िनकलकर सु दर घाटी पहँचा।

सु दर घाटी एक ऐसा रा य था जहाँ के कलाकार को दूर-दूर तक िसि ा थी।


तेनाली राम ने वहाँ एक िस ना सं था के संचालक से भट क तथा उसे अपनी
योजना समझाई फर उसे कु छ मु ाएँ भट करते ए कहा क काय म के बाद आपके सभी
कलाकार को मेरी ओर से िवशेष पुर कार भी िमलेगा और यह पुर कार यादगार भी
होगा और पा र िमक भी।

दो दन के बाद ही िवजयनगर म नववष महो सव होना था। महाराज ने हर वष क


तरह इस वष भी वयं अपनी देखरे ख म सारी तैया रयाँ करवाई थ । उ ह कई थल पर
तेनाली राम क आव यकता महसूस ई। तेनाली राम उस दन से ही लापता था िजस
दन महाराज के घोड़े क चपेट मे आकर एक मिहला और उसका ब ा चो टल हो गया
था। पहले तो महाराज को तेनाली राम के इस तरह गायब होने से ब त ोध आया ले कन
जब उसके गायब ए दो दन हो गए तब उ ह भी अपनी भूल का अहसास होने लगा।
उ ह ने मन-ही-मन वीकार कया क उस दन उनका आचरण न तो भ जन जैसा था और
न ही शासकोिचत। उस मिहला के साथ उ ह ने जो वहार कया, वह अहंकारजिनत
आचरण ही कहा जाएगा। ऐसा िवचार कर महाराज ने तेनाली राम को बुलाने के िलए
सेवक को भेजा।

सेवक ने लौटकर सूचना दी क तेनाली राम दो दन पहले घोड़े से कह गए ह तथा अभी


तक नह लौटे ह। उनके घर म उनके इस तरह िबना कसी सूचना के कह चले जाने को
लेकर प रजन िचि तत ह।

यह सूचना िमलने पर महाराज और िचि तत हो गए।

उसी दन महाराज के पास दो कलाकार आए। उ ह ने महाराज से बताया क वे सु दर


घाटी से आए ह। ह रयाली से भरे अपने रा य के कलाकार का एक काय म िवजयनगर के
नववष महो सव के खुले मंच पर करना चाहते ह। महाराज को उन कलाकार ने बताया
क उनका काय म पीि़डत मानवता क सेवा का स देश देगा।
महाराज ने उ ह वीकृ ित दान कर दी य क यह खुला मंच था ही रा य के बाहर से
आए अपने-अपने े के महान कलाकार के िलए या ऐसे कलाकार के िलए जो अपनी
कला के मा यम से समाज को कोई स देश देने का संक प लेते ह ।

अ ततः िवजयनगर का नववष महो सव ार भ हो गया। ऐसा स भवतः वष बाद आ


जब महो सव म तेनाली राम शािमल नह आ। ऐसे सभासद, जो तेनाली राम क िव ा
से ई या करते थे, वे भी उसक अनुपि थित का कारण जानने को उ सुक थे तथा जो उसके
शंसक थे, वे भी। महाराज क िववशता थी क वे तेनाली राम के स दभ म कु छ कर नह
सकते थे...बस, उ ह ने अपने खु फया तं को उसके बारे म पता करने का िनदश दे दया
था।

महो सव थल पर खुला मंच का काय म ार भ आ। जब सु दर घाटी के कलाकार


का काय म आर भ आ तब उसके संचालक ने एक पंि क घोषणा क , ‘ कसी को
पितत या कमजोर समझकर उसक उपे ा मत करो य क ये वैसे लोग ह जो अभी उठे
नह ह।’

रं गमंच से पदा हटने पर सबके सामने ह रयािलय से सजा एक दृ य आया। ‘सु दर घाटी
का यह सौ दय इसक ह रयाली और सु दर फू ल- पि य के कारण है।’ दृ य के साथ यह
पा व विन सुनाई पड़ी। पा व विन म आगे सुना गया, ‘सु दर घाटी म बसनेवाले
कलाकार स पूण धरा को ह रयाली से आ छा दत करना चाहते ह...उनक चाहत क
पिव ाता का प रणाम ही है क वहाँ लौह दंड के सहारे तप या करनेवाले ऋिष को अपनी
तप या क पूणता का भान तब होता है जब उसके तप के भाव से उसके लौह दंड पर भी
फू ल-प े उग आते ह। सु दर घाटी के कलाकार का दय इतना कोमल और िन पाप है क
उसके भाव से वहाँ पिव ाता का ढ ग िन भावी हो जाता है।’

पा व विन के साथ ही मंच पर एक ऋिष को लौह दंड के सहारे तप या करते दखाया


गया और विन भाव से यह दशाया गया क ब त वष गुजर गए और ऋिष के लौह दंड
म पु प िखल गए, हरी-भरी पि याँ आ ग । तभी वहाँ एक राजा हाथ म लौह दंड िलये
आया और संक प िलयादृ‘िजस तरह ये मह ष कठोर तप करके अपना जीवन साथक कर
रहे ह, उसी तरह म भी कठोर तप करके अपना जीवन साथक क ँ गा।’ और वह राजा उसी
मह ष के पास लौह दंड गाड़कर तप या करने लगा। इसके बाद मंच पर तूफान और
घनघोर वषा का दृ य पैदा आ। राजा और ऋिष इस ाकृ ितक आपदा से बेखबर, तप या
म लीन रहे। उसके बाद मंच पर अचानक एक दीन-हीन ि काँपता आ आया। वह
वषा से भीगा आ, कमजोर और बीमार था। वह ऋिष के पास जाकर िगड़िगड़ाया क वे
उसे कह िसर छु पाने क जगह बता द। ऋिष अपनी तप या म लीन रहा और जब वह
ि ऋिष को झकझोरकर उससे िसर छु पाने क जगह बताने के िलए िगड़िगड़ाया तो
मह ष ने उसे ध ा देकर परे ठे ल दया और फर अपनी तप या म लीन हो गया। फर वह
ि तप या म लीन राजा के पास गया और राजा के पास जाकर िगड़िगड़ाया। राजा ने
अपनी आँख खोल द और उस ि क दीन-हीन दशा देखकर तप या से उठ खड़ा आ।
राजा ने उस ि को गोद म उठाया और बा रश म भीगते ए उसे पास क एक कु टया
म ले गया। वहाँ उसने कु छ औषधीय पौध के प े तोडे़ और उसका अक िनकालकर उस
ि को िपलाया िजससे वह ि व थ हो गया। इसके बाद राजा अपने तप थल पर
आया और प ासन क मु ा म आ गया। दशक ने यह देखकर तािलयाँ बजा क राजा के
लौह दंड म हरे प े और गुलाबी फू ल िखलने लगे तथा ऋिष के लौह दंड के फू ल-प े मुरझा
गए। फर पा व विन गँ◌ूजी, ‘राजा जा-पालक होता है। जो राजा अपनी गरीब जा
क सहायता को त पर रहता है, उसे उसका पु य तप या के फल के समान ही िमलता है।’’

स देश से भरी इस छोटी-सी ना टका को महाराज कृ णदेव राय ने भी देखा तथा उसम
िनिहत स देश से भािवत ए। उ हां◌न े े उस मंच के अ य काय म को भी देखा ले कन
सु दर घाटी के कलाकार के दल के ारा तुत काय म को भूल नह पाए।

िनणायक-मंडल ने जब सु दर घाटी के काय म म िनिहत स देश को े माना और


सु दर घाटी के दल को िवजेता घोिषत कया तब महाराज ने भी तािलयाँ बजा ।

पुर कार िवतरण के दौरान महाराज ने जो संि व दया उसम उ ह ने तेनाली


राम को याद करते ए कहा ”सु दर घाटी के कलाकार क तरह ही तेनाली राम पीि़डत
मानवता क सेवा करने क आव यकता समझते रहे।“ फर महाराज ने कहा, ”तेनाली
राम हमारे दरबार के िवदूषक ही नह , मेरे अन य िम ह। आज वे यहाँ होते तो इस लघु
ना टका को देखकर उ ह स ता होती...मगर मेरी ही एक भूल...।“

महाराज क पंि पूरी नह हो पाई थी क कलाकार के दल के बीच से एक ि ,


ऋिष क दाढ़ी अपने चेहरे से उतारता आ रं गमंच पर पहँ◌ुच गया, ‘‘बस, महाराज, आगे
क पंि मुझे कहने द!’’ कहता वह ि जब महाराज के पास पहँ◌ुच गया तब महाराज
के मँ◌ुह से हष विन िनकली, ”तेनाली राम! कहाँ चले गए थे?“ उ ह ने तेनाली राम को
अपनी भुजा म ले िलया।

...और तेनाली राम ने पंि पूरी क , ”हाँ, एक भूल ने मुझम छु पे कलाकार को मंच पर
आने का अवसर दया।“

महाराज ने ग द होकर अपने गले से मोितय क माला उतारी और तेनाली राम के गले
म डाल दी।

इसके बाद िवजयनगर के महाराज कृ णदेव राय अपनी जा के ित और उदार हो गए।


गरीब के उ थान के िलए उनके रा य म कई काय म आर भ ए िजससे िवजयनगर का
यशोगान दूसरे रा य तक भी पहँ◌ुचा।
तेनाली राम का याय
महाराज कृ णदेव राय अपने सभासद के साथ अपने राजदरबार म बैठे थे। कसी िवषय
पर बहस चल रही थी। महाराज गौर से सभासद के िवचार सुन रहे थे। इसी बीच एक
गरीब ि फ रयादी के प म दरबार म उपि थत आ और महाराज के सम हाथ
जोड़कर खड़ा हो गया।

महाराज ने उसक तरफ देखा तो वह िससकते ए बोला, ‘‘महाराज! फ रयादी हँ◌।ू


आपके पास अपनी फ रयाद लेकर आया हँ◌ू।’’

महाराज ने उससे कहा, ‘‘बोलो! तु हारी या फ रयाद है और तुम या चाहते हो?’’

‘‘महाराज! म गड़ रया हँ◌।ू भेड़-बक रयाँ पालना मेरा पु तैनी ध धा है। मेरे प रवार
का भरण-पोषण इ ह भेड़-बक रय से होता है। मेरे पड़ोस म एक ि प े मकान म
रहता है। वह साधन-स प होते ए भी मुझसे ई या रखता है। इसी ई या के कारण उसने
मेरी झ पड़ी से सटाकर अपनी जमीन म ऊची दीवार खड़ी करवा ली क मेरी बक रयाँ
उसके अहाते म चरने न जा सक। कल तेज बा रश म उसक वह दीवार ढह गई और दीवार
के मलवे म दबकर मेरी दस बक रयाँ मर ग । मुझ गरीब को इससे ब त हािन ई है
िजसक भरपाई होनी चािहए, नह तो मेरा प रवार चलाना क ठन हो जाएगा।’’

महाराज कु छ बोलते, उससे पहले ही तेनाली राम ने कहा, ‘‘इस घटना म तो नुकसान क
भरपाई उसे करनी चािहए िजसक दीवार िगरी है।’’

‘‘जी हाँ, महाराज! मुझे याय िमल जाए। इसी आशा म म हाथ जोड़े खड़ा हँ◌ू।’’
फ रयादी ने कहा।

महाराज ने तेनाली राम से कहा, ‘‘तेनाली राम! इस फ रयादी क था-कथा सुनकर


तुम जो भी उिचत हो, करो।’’

‘‘जैसी आ ा महाराज!“

तेनाली राम ने कहा और हरी को भेजकर उसने फ रयादी के पड़ोसी को दरबार म


बुलवा िलया। तेनाली राम ने फ रयादी के पड़ोसी से कहा, ‘‘तु हारे मकान क दीवार
ढहने से इस ि क दस बक रयाँ मर ग । इसको ई इस अ यािशत ित क भरपाई
तो तु ह करनी होगी।“
उस ि ने तेनाली राम के आगे अपने हाथ जोड़ िलये और कहा, “आपका आदेश िसर
आँख पर, ले कन ीमान, आप इतना तो िवचार कर क दीवार मने बनाई नह , बनवाई
है! दीवार िगरने से मुझे भी तो ित ई है। मेरी ितपू त कौन करे गा? दीवार िगरने का
कारण तो अपया गारे से ट का जोड़ा जाना ही होगा। इसिलए दीवार िगरने के िलए म
नह , उसे बनानेवाला दोषी है।”

तेनाली राम ने उस ि से कहा, ‘‘तुम ठीक कहते हो। दीवार िगरने से तु ह भी ित


ई है और इसके िलए भी वह कारीगर िज मेदार है िजसने दीवार बनाई है।’’ तेनाली राम
ने आदेश दया क दरबार म कारीगर को बुलाया जाए।

थोड़ी ही देर म दो िसपाही कारीगर को भी दरबार म पकड़कर ले आए।

तेनाली राम ने उस कारीगर को दीवार िगरने क घटना बताई और कहा, ‘‘दीवार िगरने
से ई ित क भरपाई उसे ही करनी होगी।’’

तब कारीगर ने कहा, ‘‘दीवार िगरने क घटना के िलए वह िज मेदार नह है। असल म


गारा बनाते समय िभ ती ने िजस मशक से पानी डाला, उस मशक क माप सही नह थी
िजसके कारण अिधक पानी पड़ने से गारा गीला हो गया और दीवार कमजोर बनी।’’

दरबार म फर िभ ती को भी बुलाया गया। िभ ती पर जब दीवार िगरने का दोष मढ़ा


गया तब िभ ती रो पड़ा। उसने रोते-रोते कहा, ‘‘महाराज! मुझ पर अ याय न हो! मशक
तो मने बनाई नह । जो मशक मने माँगी, इसे बनाने और बेचनेवाले ने मुझे यह मशक देकर
झूठ बोला क िजस माप क मशक मने माँगी थी उसने उसी माप क मशक मुझे बेची है
और मुझे यह मशक इसी ि ने बेची थी िजसक बक रयाँ दीवार ढहने से मरी ह।“

तेनाली राम ने फ रयादी क ओर देखा। फ रयादी हाथ जोड़े बोला, ‘‘जी हाँ। मशक मने
ही बेची थी। मुझे मा कर द।’’

तेनाली राम ने उससे कहा, ‘‘भिव य म झूठ बोलकर सामान मत बेचना , जाओ, घर
जाओ।’’

फ रयादी अपना-सा मँ◌ुह लेकर अपने घर लौट आया।


कारगर तरक ब
तेनाली राम अपनी मेधा के बूते िवजयनगर के दरबार का सबसे लोकि य सभासद बन
चुका था। एक साधारण िवदूषक ने इतनी तर कर ली थी क उसके सहकम सभासद
उससे ई या करने लगे थे। तेनाली राम को कसी चीज का अभाव नह था। ायः दरबार म
महाराज उसक बात से स होकर उसे कु छ-न-कु छ देते रहते थे। सहक मय क ई या
का यही कारण था।

एक दन दरबार म इस बात क चचा आर भ हो गई क कोई कसी को कतनी बार मूख


बना सकता है-एक बार, दो बार या बार-बार?

अिधकांश सभासद क राय थी क कोई भी ि कसी को एक बार तो मूख बना


सकता है, बार-बार नह । इस चचा म सभी सभासद बढ़-चढ़कर भाग ले रहे थे मगर
तेनाली राम इस चचा के ित उदासीन था और चुपचाप अपने आसन पर बैठा आ था।
महाराज कृ णदेव राय वयं इस चचा म िच ले रहे थे। अचानक उनका यान इस बात
क ओर गया क तेनाली राम इस चचा म भाग नह ले रहा है तथा उदासीन भाव से अपने
आसन पर इस तरह बैठा आ है मानो इस चचा का कोई अथ ही न हो!

सारा दरबार एकमत हो गया क कोई भी ि कसी को एक बार ही मूख बना सकता
है। वयं महाराज ने यह बात िन कष के प म कही। मगर तेनाली राम तब भी शा त
रहा। शेष सभासद महाराज क हाँ म हाँ िमलाते रहे। जब महाराज ने देखा क इस चचा
के िन कष तक पहँ◌ुचने के बाद भी तेनाली राम शा त है तब उ ह ने पूछा, ” या बात है
तेनाली राम! तुम चुप य हो? या तुम नह मानते क कोई भी कसी को एक बार ही
मूख बना सकता है?“

तेनाली राम कु छ बोलता, उससे पहले ही सारे सभासद हँस पड़े और उनम से एक ने
कटा कया, ‘‘महाराज, तेनाली राम िव ान ह और वे हम सबको एक बार म मूख बना
सकते ह, ऐसे म वे हमारी बात से सहमत य ह गे?“

महाराज हँसते ए पूछ बैठे, ‘‘ या सचमुच ऐसा है तेनाली राम? तुम एक बार म हम
सबको मूख बना सकते हो?’’

तेनाली राम ने िवन तापूवक कहा, ‘‘महाराज! म ऐसा कोई दावा कै से कर सकता हँ◌?ू
आप अ दाता ह। आप वामी ह और म सेवक हँ◌।ू हाँ, इतना अव य है क अभी जो कु छ
कहा गया है, उससे म सहमत नह हँ◌ू।’’
तभी एक सभासद ने कहा, ‘‘महाराज, दरबार के िन कष को नह मानने का अथ यही है
क तेनाली राम मानते ह क एक आदमी एक ही साथ हम सबको मूख बना सकता है।’’

तेनाली राम को अब गु सा आने लगा था। उसने महसूस कया क दरबार के सभी
सभासद आज उसे िनशाना बनाकर घेर रहे ह और उसने जो नह कहा है, वही वीकार
करवाना चाहते ह। वह असल म इस तरह क थ क चचा म पड़ना नह चाहता था
िजसके कारण मौन था।

महाराज उसक चु पी तोड़ना चाहते थे इसिलए उ ह ने तेनाली राम से सीधा सवाल


कया, ‘‘तो तेनाली राम! तुम यह मानते हो क एक आदमी एक बार म पूरी सभा को मूख
बना सकता है।’’

अब तक तेनाली राम मन-ही-मन कु छ िवचार कर चुका था। उसने आसन से उठकर कहा,
‘‘अपराध मा हो महाराज! ऐसा हो सकता है।’’

”ठीक है!“ महाराज ने कहा, ‘‘हम ती ा रहेगी। पर मरण रखना क ऐसे यास के
समय तुम अके ले पड़ जाओगे और मेरे साथ सारे सभासद ह गे! सोचो, तब भी या तुम
हम सबको एक साथ मूख बना दोगे?’’

‘‘जी हाँ महाराज!’’ िवन ता से तेनाली राम ने कहा।

सारे सभासद तेनाली राम के इस उ र से स रह गए। उ ह तेनाली राम के इस उ र


का अनुमान ही नह था। उ ह लगा क तेनाली राम अपनी औकात भूल गया है। महाराज
उसके इस उ र से अव य नाराज ह गे। तेनाली राम क अब खैर नह ।

दूसरी तरफ महाराज सोच रहे थे क तेनाली राम म िवशेष यो यताएँ ह। वह याद कर
रहा है क महाराज सिहत सारे सभासद को एक बार म ही मूख बनाया जा सकता है तो
उसके इस साहसपूण उ र का आधार अव य होगा। तेनाली राम जैसा ि कभी यूँही
अपना मान रखने के िलए कु छ नह बोलता। यह देखना रोचक होगा क कस कार वह
एक साथ सभी सभासद को मूख बनाता है।

उस दन बात आई-गई हो गई। दूसरे दन से महाराज के दरबार म सामा य दन क


तरह ही काम-काज होने लगा। सभासद और महाराज तेनाली राम क बात को भूल गए।

एक दन तेनाली राम अपनी खाट झाड़ रहा था। घर म सफाई हो रही थी। खाट झाड़ने
पर खाट से कु छ खटमल िगरे । खटमल को देखकर तेनाली राम के मि त क म एक िवचार
क ध गया और उसने उनम से मोटे-मोटे खटमल को एकि त कर एक छोटी िडिबया म
ब द कर िलया।
रसोई से वह एक छोटी खरल, मूसली और एक छोटी िचमटी उठा लाया। इन सारी
चीज को उसने एक थैली म रख िलया। उसके ह ठ पर एक िविच मु कान तैर रही थी
और आँख म एक िवशेष चमक थी।

दूसरे दन तेनाली राम अपने िनयत समय से पहले िब तर से उठ गया और शी ता से


ान- यान करके राजदरबार क ओर चल पड़ा। िजस समय वह राजदरबार पहँ◌ुचा, उस
समय वहाँ कोई नह आया था। उसने थैली से िडिबया िनकाली और उसका ढ न खोलकर
उसम रखे खटमल महाराज के आसन पर उलट दए। फर उसने िडिबया देखी। सारे
खटमल महाराज के संहासन पर उड़ेले जा चुके थे और िडिबया खाली थी। इसके बाद
तेनाली राम अपने आसन पर जा बैठा।

धीरे -धीरे सभासद आने लगे। दरबार भरने लगा। थोड़ी देर बाद दरबार के सारे आसन
भर गए। महाराज भी आए और सभा क कारवाई शु हो गई।

सभा क कारवाई अभी थोड़ी देर ही चली थी क महाराज को एक खटमल ने काट


िलया। महाराज ने पहलू बदला। थोड़ी राहत महसूस क क फर खटमल ने उ ह काट
िलया। थोड़ी ही देर म महाराज बेचैन हो उठे । खटमल के काटने से वे परे शान थे। उ ह ने
चीखकर ोध-भरे वर म पूछा, ‘‘मेरे आसन पर खटमल कहाँ से आ गए?’’

एक सभासद ने कहा, ‘‘महाराज! खटमल तो कह से भी आ जाते ह और आ गए तो िजस


खाट-ख टया म पनाह लेते ह, उसे छोड़ते भी नह । मानव र ही इनका आहार होता है
इसिलए ये ऐसी ही जगह पर बसेरा बनाते ह जहाँ मनु य बैठता है या सोता है।’’

”आपम से कोई इन खटमल से बचने का उपाय जानता हो तो कु छ करे ।“

सभासद मौन हो गए। थोड़ी देर तक आपस म धीमे-धीमे बात करने के बाद एक सभासद
ने कहा, ‘‘ संहासन पर गरम पानी उड़ेलने से थोड़ी राहत िमल सकती है।’’

महाराज खटमल के काटने से परे शान हो उठे थे िजसके कारण उ ह ने आवेश म कहा,
‘‘राहत नह , छु टकारा चािहए। थायी िनदान बताएँ।’’

सभासद को मानो साँप सँ◌ूघ गया। अब कह से फु सफु साहट भी नह उभर रही थी।

सबको मौन देखकर तेनाली राम अपने आसन से उठा, ‘‘महाराज! मेरे पास इस सम या
से मुि का एक रामबाण िनदान है िजसे आजमाया जाए तो खटमल से मुि िमल
जाएगी। एक लगनशील ि मेरे इस रामबाण िनदान से करोड़ खटमल को मार सकता
है।“
सभासद तेनाली राम क बात सुनकर चक पड़े।

महाराज ने तेनाली राम क ओर अिव ास से देखा और पूछा, ‘‘ या ऐसा हो सकता है


तेनाली राम?’’

”जी हाँ, महाराज! मेरे इस रामबाण तरक ब को आजमाकर देख। मेरी बात गलत
सािबत हो जाए तो म एक भी वणमु ाएँ दंड के प म राजकोष म जमा कराने का वचन
देता हँ◌।ू “

महाराज ने कहा, ”ठीक है तेनाली राम! तुम अपनी तरक ब आजमाकर दखा दो!“

”ले कन महाराज! य द मेरी तरक ब ठीक िनकली तब मुझे या िमलेगा?“ तेनाली राम
ने पूछा।

महाराज ने तेनाली राम क ओर देखते ए कहा, “म और इस दरबार के सारे सभासद


िमलकर तु ह एक भी वणमु ाएँ दगे।”

अब तेनाली राम महाराज के आसन के पास गया और आसन को थोड़ा उठाकर झटके से
छोड़ा। एक-दो खटमल झटके के कारण आसन से िगरे ।

तेनाली राम ने अपनी थैली से िचमटी िनकाली और एक खटमल को पकड़कर खरल म


डाला और मूसली से उसे कु चल दया। फर कहा, ‘‘महाराज! यही है वह रामबाण
तरक ब।“ आप चाह तो इस तरह पकड़कर करोड़ खटमल को मारकर उनसे छु टकारा पा
सकते ह।“

”अरे , यह तो ठगी है!“ महाराज ने च कत होकर कहा।

तेनाली राम ने िवन तापूवक कहा, “महाराज! मने इस भरी सभा म जो बात कही,
उसका अ रशः योग कया और िजस रामबाण िविध का दशन कया उसे कोई गलत
सािबत नह कर सकता। इसिलए म शत जीत चुका हँ◌।ू आगे आपक इ छा!”

महाराज ने वीकार कर िलया क तेनाली राम शत जीत चुका है तथा उसे त काल
राजकोष से एक भी वणमु ाएँ देने का िनदश देते ए उ ह ने रा य कोषागार के धान से
कहा, ”सभासद के मािसक वेतन से इसक आधी रािश ा कर ली जाए। सभी सभासद
के वेतन से समान रािश काटी जाए, य ?“ उ ह ने सभासद क ओर, उनक सहमित
जानने के िलए कया।

सभी सभासद ने कहा, ‘‘ठीक है महाराज! हम वीकार है।’’


इसके बाद पुनः अपने आसन से तेनाली राम उठा और उँ चे वर म कहा, ”महाराज!
धृ ता मा कर। कु छ दन पूव इसी सभा म मुझसे मािणत करने के िलए कहा गया था
क एक आदमी महाराज सिहत पूरी सभा को मूख बना सकता है। इसी शत को आज मने
सािबत कया है। मुझे इन एक भी वणमु ा क कोई आव यकता नह है। कृ पया अपना
िनदश वापस ले ल।“

फर वह महाराज के आसन के पास गया और महाराज से थोड़ी देर के िलए आसन


छोड़ने का अनुरोध कया।

महाराज समझ गए क तेनाली राम आसन से खटमल का सफाया करने के िलए


उपि थत आ है।

तेनाली राम जानता था क खटमल थोड़ी देर पहले ही आसन पर रखे गए ह इसिलए
अभी वे अपने छु पने का थान नह बना पाए ह गे। उसने आसन पटक-पटककर खटमल
को उससे िनकाला और उ ह कु चलकर मार डाला।

महाराज ने भरी सभा म तेनाली राम क मानिसक मता क सराहना क , और वह एक


बार फर सभासद पर भारी पड़ा।
पंिडत का आशीष
महाराज कृ णदेव राय धम म आ था रखते थे और समय-समय पर तीथ थल का मण
कर वहाँ के देवालय म पूजा-अचना करते थे।

एक बार महाराज िवड़ रा य के तीथ थल का मण करने गए। वहाँ एक देवालय म


उ ह एक तेज वी पुजारी के दशन ए। वह पुजारी कांड पंिडत थे। सम त शा के
ाता। महाराज उनसे बात कर ब त स तु ए। उनके मन के अनेक संशय का िनवारण
भी इस बातचीत म हो गया। महाराज पुजारी के पास से संशय मु होकर उठे और ब त
िवन भाव से पुजारी को कभी िवजयनगर आने का योता दया।

पुजारी राजा कृ णदेव राय के वहार से ब त स ए और महाराज को आ त


कया क जब कभी भी उिचत अवसर आएगा, वह िवजयनगर अव य आएँगे।

इस घटना के कु छ वष बाद एक दन महाराज अपने दरबार म बैठे थे। सभा क कारवाई


चल रही थी। तभी महाराज के सामने ारपाल उपि थत आ और बोला, ‘‘महाराज!
िवड़ रा य से एक ि पुं धारी ा ण आया आ है और आपसे िमलने क अनुमित
चाहता है।’’

महाराज को अपनीे िवड़-या ा का मरण हो आया। उ ह मरण हो गया क वहाँ एक


पुजारी से उ ह ने िवजयनगर आने का आ ह कया था। मृित म यह बात क धते ही
महाराज अपने संहासन से उठ खड़े ए और अपने आसन के पास एक और आसन लगाए
जाने का िनदश देते ए त पर हो गए। उ ह ने ारपाल को उस ा ण को आदरसिहत
राजदरबार म लाने का िनदश दया।

पुजारी जब राजसभा म आए तब सभी सभासद ने अपने आसन से उठकर उनका


वागत कया। महाराज ने पुजारी के चरण छु ए और उ ह अपने आसन के समीप रखे गए
आसन पर बैठाया। महाराज के आ ह पर पुजारी ने सभासद को सफलता के सू बताए।
पुजारी क बात सुनकर सभासद भी आ ला दत ए। अपना उपदेश समा कर पुजारी ने
महाराज से कहा, ‘‘राजन्, अब मुझे चलना चािहए। म देवालय म देव दशन के िलए
िनकला हँ◌ू। मुझे मरण था क मने आपको आ ासन दया था क उिचत अवसर पर म
िवजयनगर आउँ गा। इसिलए आपके पास आया और अपना वचन पूरा कया।’’

महाराज कृ णदेव राय ने िवनयपूवक ि पुं धारी पुजारी को रोक िलया। महाराज ने
पुजारी से कहा क िवजयनगर म भी अनेक िस मि दर ह, वहाँ भी पुजारी चाह तो देव
दशन कर सकते ह।

महाराज के अनुरोध पर पुजारी एक स ाह तक िवजयनगर म अितिथ के प म रहे।


महाराज ने उनक सेवा म अपना दो घोड़ वाला रथ और सारथी तुत कर दया था
िजसके कारण पुजारी ने महाराज कृ णदेव राय के रा य के सभी मि दर का दशन कया
और अ त म राजमहल के प रसर म बने मि दर म देव दशन के िलए पधारे ।

मि दर का िनमाण ब मू य ेत तर से कराया गया था क तु पुजारी ने उसम


वा तुदोष देखा तथा अपने िनदशन म उस वा तुदोष को यथाशी दूर कराने का ताव
दया। महाराज पहले से ही पुजारी से भािवत थे इसिलए जब मि दर का वा तुदोष दूर
कराने क बात उठी तब उ ह ने सहजता से उसे वीकार कर िलया। अ ततः वह दन भी
आ गया जब पुजारी जी को िवदा होना था। िवदाई से पूव महाराज ने राजभवन म
ि पुं धारी पुजारी के अिभन दन का काय म आयोिजत कया िजसम तेनाली राम सिहत
सभी सभासद को उपि थत रहने का िवशेष िनदश महाराज ने दया था।

ि पुं धारी पुजारी के ित उपकृ त भाव म महाराज ने सभासद को स बोिधत कया


और अपने अिभन दन के बाद ि पुं धारी पुजारी ने भी सभासद को अपना काय
एका िच और सम पत भाव से करने का उपदेश दया।

महाराज ने राजकोष से ि पुं धारी पुजारी को पाँच सौ वणमु ाएँ दि णा के पम


अ पत क ।

इस आदर-अनु ान के बाद िवदा होते समय पुजारी ने ब त स होकर महाराज को


आशीष दया, ‘‘महाराज, आपके पाँव म खुजली होती रहे और आपके सभासद लगातार
िच तातुर रह।’’

पुजारी का यह आशीवाद सुनकर महाराज कृ णदेव राय मानो आसमान से िगरे । सभी
सभासद भौच े रह गए। पुजारी म द-म द मु कु राते ए राजभवन से बाहर जाने लगे।
उ ह वणमु ा के साथ इस तरह बाहर जाता देखकर एक सभासद उ हो उठा और
राजभवन क मयादा का उ लंघन करते ए चीख उठा, ‘‘अबे ओ ढ गी! तू हम और
हमारे महाराज को अिभश कर इस तरह नह जा सकता। ठहर!’’

उसक ककश चीख से महाराज क त ा भंग ई। वे यह नह समझ पाए थे क इतनी


आवभगत और भरपूर दि णा के बाद भी ि पुं धारी पुजारी ने उ ह शाप य दया? वे
चँ◌ू क उन पुजारी म आ था रखते थे इसिलए उ नह ए क तु वे उनके साथ अपने
वहार क मन-ही-मन मीमांसा करते रहे क ि पं◌ु धारी ने उ ह या कहा और य
कहा।
तभी ि पुं धारी पुजारी ने मु कु राते ए कोमल वर म कहा, ‘‘महाराज, आपने पहली
भट म बताया था क आपके दरबार म ानी और िविभ िवधा म पारं गत सभासद ह।
इसिलए मने यह आशीवाद दया है। संशय म न रहो और मुझे जाने दो।’’

ि पुं धारी पुजारी क राह रोकने के िलए उ त सभासद को तभी तेनाली राम ने कहा,
‘‘पुजारी जी के माग म कोई अवरोध उ प न करो। उनके आशीष को समझो और उ ह
जाने दो!’’

तेनाली राम के ऐसा कहने पर सभासद पुजारी क राह से हट गया और पुजारी


राजभवन से िवदा हो गए।

पुजारी जी क बात सुनकर महाराज िख हो चुके थे इसिलए वे भी िबना कोई


औपचा रकता िनभाए राजभवन से बाहर चले गए। सभा िवस जत हो गई।

राजभवन से सबके चले जाने के बाद तेनाली राम भी भारी कदम से अपने घर क ओर
चल पड़ा। आज ि पुं धारी पुजारी के बचाव के िलए आगे आने के कारण सभी सभासद
क दृि म उसने अपने िलए आ ोश देखा था। महाराज ने भी राजभवन से जाते समय उसे
उपे ा-भरी आँख से देखा था। तेनाली राम समझ चुका था क पुजारी जी का बचाव करने
के कारण सभी उस पर कु िपत ह। मन-ही-मन पूरे घटना म पर िवचार करता आ तेनाली
राम अपने घर पहँ◌ुचा और अनमने ढंग से हाथ-पाँव धोकर अपनी घरे लू दनचया म लग
गया। सुबह तक वह मानिसक प से राजभवन म अपने उपर सभासद के स भािवत
हार और महाराज के कोप-िनवारण के िलए तैयार हो चुका था।

आम दन क तरह ही तेनाली राम फु ि लत भाव से अपने आसन पर बैठा। महाराज के


आने पर सभा क कारवाई शु ई। एक सभासद ने कल राजदरबार म ि पं◌ु धारी
पुजारी के आशीष क पंि याँ सुनाते ए कहा, ‘‘महाराज! म िवनयपूवक आ ह कर रहा
हँ◌ू क माननीय सभासद तेनाली राम कृ पापूवक प कर क इन शापभरी पंि य को
उ ह ने आशीष क सं ा देकर उस ि पुं धारी ढ गी का बचाव य कया?’’

महाराज ने भी त काल कहा, ‘‘हाँ, तेनाली राम! प करो क पुजारी जी क बात का


तुमने या सार िनकाला था क सबको शाप लगनेवाली बात तु ह आशीष लग !’’
महाराज ग भीर थे। उ ह ने कहा, ‘‘वैसे वह पुजारी जी ब त िव पु ष ह-हो सकता है,
उनक बात का कोई गूढ़ाथ हो!’’

महाराज का आदेश िमलते ही तेनाली राम ने कहा, ‘‘महाराज! पुजारी जी क बात का


कोई गूढ़ाथ नह है। उ ह ने एक सभासद के िवरोध पर यह कहा था क आपने उनसे कहा
था क आपक सभा म िव सभासद ह। उ ह ने जाते-जाते सभासद को यह बात सुनाकर
उ ह मानिसक प से सजग होने को कहा। पंिडत जी ने अपने आशीवचन म यही तो कहा
था क महाराज, आपके पाँव म खुजली होती रहे। इससे उनका ता पय यह था क आप
लगातार घूम-घूमकर अपनी जा का सुख-दुख जानते रह। उनके आशीष के अि तम अंश
का यह भाव है क आपके सभासद लगातार िच तातुर रह। इसका अथ भी साफ है। िजस
रा य का राजा वयं जा के स पक म रहेगा, इससे उसके रा य म कह भी कोई कदाचार
या अनाचार क घटना घटेगी तो उसका ान सीधे महाराज को होगा। इससे हर े के
सभासद हमेशा डरे रहगे क कह भी कोई गलत बात होगी तो उसका पता महाराज को
हो जाएगा। वे महाराज क स यता के कारण डरे भी रहगे और िच तातुर भी। उ ह
हमेशा यह िच ता सताती रहेगी क कै से उनका काय िनद ष हो। इस तरह िच तातुर
सभासद और स य महाराज के कारण िवजयनगर क गित होगी। यही उस पुजारी जी
के आशीष का आशय है, महाराज!’’

पुजारी जी के आशीष क यह ा या सुनकर महाराज स तु हो गए। सभासद ने


तेनाली राम क मीमांसा का करतल विन से वागत कया और उस सभासद का मँ◌ुह
लटक गया िजसने महाराज का कृ पाभाजन बनने के िलए पुजारी जी क राह रोक थी।
ब भाषािवद् और तेनाली राम
महाराज कृ णदेव राय िव ा- ेमी थे। वयं वा याय करते और वा याियय क
सराहना भी करते। उनके दरबार म ायः िविभ रा य के िव ान आते और अपनी
िव ा का दशन कर उनसे उपहार आ द ा करते। िव ान को समा-त करते समय
महाराज को आ त रक स ता होती।

एक बार महाराज कृ णदेव राय के दरबार म एक ऐसा भाषािवद् पहँ◌ुचा जो भाषा के


िवकास पर िवशेष अ ययन कर चुका था तथा वयं छः-सात भाषाएँ मातृभाषा क तरह
बोल सकता था।

उसने महाराज के स मुख उपि थत होकर कहा, “महाराज! म इस देश म बोली


जानेवाली ायः सम त बोिलय और भाषा का ाता हँ◌ू और अनेक भाषा पर मेरा
मातृभाषा क तरह अिधकार है। आपको मेरी बात पर िव ास हो जाए, इसके िलए
आपके सामने म यही बात िविभ भाषा म दुहराता हँ◌ू। पहले तिमल म!“ और वह
फराटेदार तिमल म वही बात बोलने लगा।

सभी सभासद चम कृ त से उसे देखने लगे।

“अब तेलगू”!...और तेलगू म भी वह बड़ी सहजता से बोल गया वही बात!

सभासद को उसके इस भाषा- ान पर घोर िव मय आ। महाराज भी उस िव ान के


भाषा- ान पर च कत थे और वह बोले जा रहा था।

कभी क ड़, कभी उि़डया, कभी मराठी तो कभी गुजराती। महाराज ने वीकार कर


िलया क इस िव ान के पास अ भुत साम य है। सभासद उसक सराहना के िलए तािलयाँ
बजाने लगे।

इसके बाद उस िव ान ने महाराज से कहा, ‘‘महाराज! अब आपके सभासद इस देश के


कसी भी े म बोली जानेवाली कसी भी बोली म, कसी भी भाषा म बात कर सकते
ह। म उनक बात का जवाब उनके ारा बोली गई भाषा म ही दँ◌ूगा।“

महाराज ने सभासद को िव ान से बात करने का संकेत कर दया। इसके बाद तो सभा


म रह-रहकर िविभ बोिलय म उस िव ान से बात होती रह और वह सभासद ारा
बोली जानेवाली भाषा म ही जवाब देता। महाराज, तेनाली राम और सभासद सभी उस
िव ान के इस गुण क सराहना कर रहे थे। सभा भवन म एक िभ क म का माहौल था।
इसी सराहना और उ लास के वर के बीच उस िव ान ने सभासद क ओर देखते ए
महाराज से कहा, ‘‘महाराज! अब मेरी एक चुनौती है- सभाभवन म उपि थत कसी भी
सभासद को या सभी सभासद को क इनम से कोई भी य द मेरी मातृभाषा बता दे तब म
उसको एक भी वणमु ाएँ दँ◌ॅूगा। य द कोई भी ऐसा न कर सके तब आप मुझे एक भी
वणमु ाएँ देकर िवदा करगे!’’

सभासद के बीच स ाटा छा गया।

महाराज भी मुि कल म थे। वे भी नह समझ पाए क यह िव ान आिखर कहाँ का


रहनेवाला हो सकता है और कौन-सी भाषा इसक मातृभाषा हो सकती है।

उ ह ने तेनाली राम क ओर देखा।

तेनाली राम भी शा त था। उसके चेहरे पर कोई भाव नह था।

उस िव ान ने सभी के उपर भरपूर -ि डाली और बोला, ‘‘महाराज! म सभी क सुिवधा


के िलए बारी-बारी से िविभ भाषा म बोल रहा हँ◌ू ता क यह अनुमान लगाना आसान
हो जाए क मेरी मूल मातृभाषा कौन-सी है।’’

उस िव ान के बोल लेने के बाद सभाभवन म ऐसा स ाटा छा गया क मानो वहाँ कोई
हो ही नह ।

महाराज ने फर तेनाली राम क ओर देखा।

तेनाली राम ने महाराज से कहा, ‘‘महाराज! म इस िव ान क मातृभाषा बता दँ◌ूगा


मगर इ ह एक दन के िलए,...नह ! एक रात के िलए मेरा अितिथ बनकर रहना होगा।’’

महाराज ने कहा, ‘‘ य , तेनाली राम, अभी ही य नह बताते?’’

‘‘बस, यँ◌ू ही महाराज! मेरी इ छा है क माँ सर वती के इस वरद-पु ा क सेवा का


अवसर मुझे ा हो।’’ तेनाली राम ने कहा।

िव ान ि स मान का भूखा होता है। स मान िमलने से उसके अहंकार को स तुि


िमलती है। इस िव ान को तेनाली राम का ताव पस द आया। उसने महाराज से कहा,
‘‘महाराज! म यह आित य हण करने के िलए त पर ।ँ ले कन शत है क य द ये मेरी
मातृभाषा नह बता पाए तो इ ह एक भी वणमु ाएँ मुझे इन सभी सभासद के सम ही
देनी पड़ेगी।’’

तेनाली राम ने कहा, ‘‘महाराज! मुझे इन जैसे िव ान के साहचय और साि य के िलए


इनक यह शत वीकार है।’’

फर तेनाली राम उस िव ान के साथ अपने घर आ गया। उस दन क सभा िवस जत हो


गई।

तेनाली राम के घर पर उ सव जैसा माहौल था। उसके सगे-स ब धी, इ -िम सभी
बुलाए गए थे। शाम ढल चुक थी। तेनाली राम के ार पर कई मशाल जलाकर काश
कया गया था। तेनाली राम ने अपने पड़ोिसय को भी सूिचत कया था क उसके घर एक
ऐसा िव ान आया आ है िजससे वे चाहे िजस बोली या भाषा म बात कर, वह उ ह उसी
बोली म उ र देगा। देर रात तक तेनाली राम के दरवाजे पर लोग का मजमा लगा रहा।

िव ान जब थककर चूर हो चुका तब तेनाली राम ने लोग को िवदा कया। उसने िव ान


को खूब मीठे पकवान िखलाए िजसके कारण िव ान को न द आने लगी। तेनाली राम ने
उसके सोने क व था अलग कमरे म कराई। जब िव ान सो गया तब तेनाली राम ने एक
सेवक को एक बतन म गरम पानी दया और कहा, ‘‘तुम जाओ और जाकर उस सोए ए
अितिथ के एक पाँव पर यह गरम पानी उड़ेल आओ। इसके बाद जो कु छ भी होगा, उससे म
िनपट लँ◌ूगा।’’

सेवक डरता आ िव ान वाले कमरे म गया। थोड़ी ही देर म िव ान क चीख और क ड़


म उसके बोलने क आवाज सुनकर तेनाली राम उसके कमरे म पहँ◌ुचकर िव ान से पूछा,
” या आ?’’

िव ान उस समय घबराया आ था। िव ान ने तेनाली राम से कहा, ‘‘तु हारे सेवक ने


मेरे उ$पर गरम पानी डाल दया।’’

यह सुनकर तेनाली राम ने चीखकर अपने सेवक को आवाज लगाई, ‘‘राम लंगम्, इधर
आओ! सुनो, हमारे माननीय अितिथ या कह रहे ह!’’

राम लंगम् ने कहा, ‘‘ वामी, म आपक दवा के िलए गरम पानी लेकर आ रहा था। हाथ
म गरम पानी लेकर जब म दवा लेने के िलए इस कमरे म आया तो मेरा पाँव पलंग के पाये
से टकरा गया और कटोरे से थोड़ा पानी छलककर इनके पाँव पर िगर गया िजसके कारण
ये जग गए और म इनके ोध से बचने के िलए डरकर बाहर भाग गया।’’

तेनाली राम ने हाथ जोड़कर अितिथ से मा-याचना क और उसके पाँव को ठं डे पानी से


धोकर उस पर आलू के गूदे का लेप लगाया िजससे अितिथ क जलन शा त हो गई और वह
शाि त से सो गया।

दूसरे दन तेनाली राम अपने िव ान अितिथ के साथ महाराज कृ णदेव राय के दरबार म
उपि थत आ।

महाराज और सभी सभासद मानो उनक ही ती ा कर रहे थे। तेनाली राम और


िव ान अितिथ ारा आसन हण कर लेने के बाद महाराज ने सभा क कारवाई शु
कराई।

िव ान ने उठकर कहा, ‘‘महाराज! मने तेनाली राम क शत पूरी कर दी है। अब आप


तेनाली राम को कह क शत के अनुसार वे मेरी मातृभाषा बताएँ या मुझे एक भी
वणमु ाएँ देकर िवदा कर।’’

महाराज ने तेनाली राम से पूछा, ‘‘ य तेनाली राम, तुम अब बताओगे क अितिथ क


मातृभाषा या है?’’

‘‘जी हाँ, महाराज! हमारे अितिथ क मातृभाषा ‘क ड़’ है।’’

यह सुनना था क वह िव ान अपने आसन से उठकर आ य से तेनाली राम को देखने


लगा फर उसने हाथ जोड़कर वीकार कर िलया, ”मेरी मातृभाषा क ड़ ही है।“ उसने
यह भी कहा, ‘‘महाराज! मने आपके दरबार क शंसा तेनाली राम के कारण ही सुनी थी।
मुझे एक भी वणमु ाएँ इन जैसे ितभा-स प ि को भट करते ए हा दक स ता
होगी।’’ यह कहते ए उसने तेनाली राम को एक भी वणमु ाएँ स पने क त परता
दखाई।

सभाक तािलय क गड़गड़ाहट से गँ◌ूज उठा क तु तेनाली राम ने यह कहते ए यह


धन लेने से मना कर दया क िव ान उनका अितिथ है। अितिथ का स मान करना हमारी
पर परा है। अितिथ से कु छ ा करने क लालसा हम नह होती!

सभाक म बैठे सभी ि तेनाली राम के इस इनकार से ह भ रह गए। वह िव ान


तेनाली राम से इतना भािवत आ क अपने ाता होने के अहंकार से मु होकर तेनाली
राम के चरण छू िलये तथा कहने लगा, ‘‘तेनाली राम! आप जैसे ि से िमलकर मेरा
जीवन ध य हो गया। म जीवनपय त आपक ितभा और अितिथ-स मान क भावना को
नह भूल पाउँ गा।’’ ऐसा कहकर िव ान महाराज कृ णदेव राय के दरबार से बाहर आ
गया।

उसके जाने के बाद महाराज ने तेनाली राम से यह जानना चाहा क उसने कै से जाना क
उस िव ान क मातृभाषा क ड़ ही है?

तेनाली राम ने हँसते ए महाराज को रात क घटना सुना दी तथा कहा, ”महाराज!
आदमी चाहे िजतनी भी भाषा का ाता हो, वह अचानक िमली पीड़ा क उ ेरणा से
अपनी मातृभाषा म ही चीखेगा। मने इसी सू के सहारे यह जान िलया क िव ान क
मातृभाषा क ड़ है।“
पाँच गध वाला सौदागर
एक बार महाराज कृ णदेव राय और तेनाली राम साथ-साथ पड़ोसी रा य के एक शहर
सौरभ नगर मण करने के िलए गए। दोन सौदागर के वेश म थे। उन दन यह आम
चलन था क राजा-महाराजा जीवन और जगत म हो रहे प रवतन को जानने के िलए
समय-समय पर ऐसे ही वेश बदलकर घूमने के िलए िनकल जाया करते थे।

सौरभ नगर म ये दोन एक धमशाला म ठहरे । इस धमशाला म और ब त से सौदागर


ठहरे ए थे। महाराज उ सुकता से उन सौदागर को अपने कमरे से िनहार रहे थे।

तेनाली राम ने उ ह इस तरह उ सुक देखा तो पूछा, ‘‘ या बात है महाराज, इस तरह


आप हर आने-जानेवाल को य देख रहे ह? यह तो धमशाला है। यहाँ इसी तरह लोग
आते-जाते रहगे। इनम कोई अ छा सौदागर होगा तो कोई बुरा। कोई बेशक मती चीज
बेचनेवाला होगा तो कोई बात बेचकर पैसे कमाता होगा।’’

महाराज कृ णदेव राय ने मु कु राते ए कहा, ‘‘नह तेनाली राम! म हर आने-जानेवाले


को नह देख रहा। म तो सामने के कमरे म ठहरे उस अजीबो-गरीब प रधानवाले सौदागर
को देख रहा हँ◌ू जो अपने साथ पाँच गध को भी अपने कमरे म रखे ए है और उ ह यार
से सहला रहा है। मने अब से पहले कमरे म पालतू कु ,े िबि लयाँ, खरगोश, तोते, कबूतर
आ द तो देखे थे मगर कसी को अपने कमरे म गधा रखते नह देखा था। इस कारण ही मुझे
उ सुकता हो रही है क अपने साथ कमरे म गध को रखनेवाला यह सौदागर कौन है तथा
कस चीज के सौदे के िलए यहाँ ठहरा है...।’’

“तो इसम कौन-सी बड़ी बात है महाराज! हम लोग बाहर िनकलगे तो यह बात आसानी
से पता लग जाएगी।”

महाराज और तेनाली राम दोन ही थोड़ी देर के बाद बाजार जाने के िलए अपने-अपने
कमर से बाहर िनकले। दोन जब धमशाला के मु य ार के पास पहँ◌ुचे तो तेनाली राम
ने महाराज से कहा, ‘‘महाराज! तिनक ठह रए।’’

महाराज ने तेनाली राम क ओर सूचक -ि से देखा तो तेनाली राम ने कहा, ‘‘आइए


महाराज, धमशाला के व थापक का क मु य ार के पास ही है। जरा चिलए, उस
सौदागर के बारे म पता चल जाएगा क वह कौन है, कहाँ से आया है और कस चीज का
सौदा करता है!’’
‘‘धमशाला के रोजनामचे म ये सूचनाएँ गलत भी तो दज हो सकती ह, जैसे मेरे और
तु हारे बारे म यह सूचना दज है क हम दोन जवाहरात क खरीद के िलए सौरभ नगर
आए ह।’’ महाराज ने पूछा।

‘‘जी हाँ, महाराज! पर इसक स भावना ब त ीण है।’’ तेनाली राम ने उ र दया।

‘‘वह कै से?’’ महाराज ने पूछा।

‘‘वह ऐसे महाराज क आसपास, मेरा मतलब है क सौरभ नगर के आसपास दूसरा
रा य के वल िवजयनगर ही है। इस तरह छ वेश म कसी दूर थ रा य का राजा यहाँ
आए, उसका कारण भी तो होना चािहए। स ित इस तरह का कोई कारण नह दखता।
सौरभ नगर क शासन णाली ने मु ापार क नीित अपनाई है। इस रा य का अपना
कोई अथ- ोत ही नह है। पयटन के िलए बाहर से जो लोग यहाँ आते ह, उनसे ही यहाँ
का राज व चलता है।...दूसरे रा य से लोग यहाँ आते रह इसिलए ही इस रा य म ‘मु
ापार णाली’ अपनाई गई है। यही कारण है क यहाँ िविभ रा य के सौदागर िबना
कसी रोक-टोक के आते ह।’’

महाराज ने तेनाली राम क ओर शंसा-भरी -ि से देखते ए सोचा क तेनाली राम


इसीिलए तो मह वपूण है क वह हर बात को सू मता से समझता है। महाराज तेनाली
राम के साथ धमशाला के व थापक के क म गए। तेनाली राम ने व थापक क ओर
देखते ए पूछा, ”वह गधेवाला सौदागर?“

‘‘कौन...वह जो क धार से आता है?’’ व थापक ने पूछा।

असल म तेनाली राम के पूछने का ढंग ही ऐसा था क व थापक को महसूस आ क


उसका उस सौदागर से पूव का स ब ध है। व थापक ने तेनाली राम से कहा, ‘‘आप
सामने के गिलयारे से सीधे चले जाएँ। अि तम दा तरफ के कमरे म वह िमल जाएगा।“

‘‘इस बार वह या लाया है?’’

तेनाली राम क ओर व थापक ने आ य से देखा, फर कहा, ‘‘वही पाँच गधे! अरे


भाई, बात बेचनेवाला और या लाएगा?’’

तेनाली राम ने जब यह सुना तब महाराज से कहा, ”चल, उससे िमल ही ल।’’

असल मे व थापक क बात सुनकर तेनाली राम क उ सुकता उस गधेवाले सौदागर के


ित बढ़ गई थी।

चलते-चलते तेनाली राम ने व थापक से पूछा, ‘‘आप उसके गध को भी कमरे म रहने


देते हो?’’

व थापक ने हँसते ए कहा, ‘‘गधा मत कहो! उसका एक गधा दो आदमी के बराबर है


हमारे िलए। सौदागर एक कमरे म रहता है मगर यारह कमर का कराया चुकाता है।’’

तेनाली राम क उ सुकता और बढ़ गई। वह महाराज के साथ सौदागर के कमरे क ओर


चल पड़ा।

महाराज क भी दलच पी उस सौदागर के ित हो आई थी।

तेनाली राम ने क धारवाले सौदागर के कमरे के सामने पहँ◌ुचकर ार खटखटाया। वैसे


कमरे का दरवाजा खुला आ था और सौदागर अपने गध को सहला रहा था। उसने
दरवाजे क तरफ देखा तो दो सौदागर को दरवाजे पर खड़ा पाया। क तु िबना कोई
ित या जताए वह फर अपने गध को सहलाने लगा।

तेनाली राम और महाराज च कत रह गए क इस सौदागर ने उ ह कु छ कहा नह । फर


तेनाली राम ने ही पहल क और पूछा, ”आ जाउँ ?’’

”तु हारी मज ।’’ सौदागर गधे को सहलाते ए बोला। उसक आँख गधे पर इस तरह
टक थ मानो वह गधा न हो, दुिनया क कोई नायाब व तु हो!

तेनाली राम और महाराज दोन कमरे म वेश कर गए ले कन उसने उ ह बैठने को नह


कहा और गधे को उसी तरह सहलाता रहा मानो वह संसार का सबसे मह वपूण काम कर
रहा हो।

तेनाली राम और महाराज पास क दीवार के सहारे कमरे म िबछी चटाई पर बैठ गए।

सौदागर ने अपने पाँच गध म से दो गध को कमरे म लगी दो खँ◌ू टय से बाँध दया।


उसके तीन गधे खुले रहे।

पहली बार सौदागर ने उन दोन क ओर ब त म े से देखा। लगभग उसी -ि से िजस -


ि से वह अपने गध को देख रहा था। फर उ ह मु कु राता आ देखता रहा। कु छ बोला
नह ।

महाराज ने फर चु पी तोड़ी, “सुना, क धार से आते हो?”

सौदागर ने उनके पर यान नह दया और महाराज के सामने हाथ फै ला दया।


बोला, ‘‘म उ र देने के पैसे लेता हँ◌ू। िनकालो पाँच वणमु ाएँ फर बात करो। य द
तु हारा साथी भी कु छ जानना चाहे तो उसके भी पाँच वणमु ाएँ?’’
“तुम या बताओगे?”

वह सौदागर उसी तरह मु कु राता आ उन दोन को मौन देखता रहा। उसके चेहरे पर
िनि तता थी और हाथ उसी तरह वणमु ाएँ लेने के िलए बढ़े ए थे।

महाराज ने अपनी जेब से वणमु ा क थैली िनकाली और उसम से दस के थान पर


यारह वणमु ाएँ िगनकर सौदागर के हाथ म रख दी।

सौदागर ने एक वणमु ा अपनी हथेली से िनकालकर त खी के साथ महाराज के हाथ


पर धर दी, ‘‘सु तान ब शीश नह लेता, देता है, यान रखना! म मन का बाादशाह हँ◌।ू ’’

पहली बार महाराज को अपने जीवन म ऐसा ि िमला था िजसक आवाज म ऐसा
भाव था क उनका ि व उससे आ छा दत हो गया। उ ह ने मन-ही-मन सोचा-तो
इसका नाम सु तान है! फर मन म शंका ई, कह यह क धार का सु तान तो नह ?...नह ,
नह , अगर ऐसा होता तो यह वयं को ‘मन का बादशाह’ नह कहता। चाहे जो हो,
आदमी है दलच प।

‘‘सुना, बात बेचते हो?’’ महाराज ने पूछा।

सौदागर ने फर अपनी हथेली आगे बढ़ाई और कहा, ‘‘ ित एक वणमु ा! एक


ि पाँच के वल!’’

महाराज ने एक वणमु ा उसक हथेली पर रख दी। सु तान फर मु कु राया। महाराज


कृ णदेव राय इस अजीब सौदागर के अ दाज के कायल तथा उसके ि व और वहार
से स मोिहत से हो गए। तेनाली राम चुपचाप उस ि को देखता रहा।

“सुना, तुम क धार से आए हो। हम लोग तु हारे सामनेवाले कमरे म ठहरे ह। तु हारे
कमरे म गध को देखकर तुमसे िमलने क इ छा ई। हम लोग कु छ दन और कगे। तुम
कब तक कोगे?”

सु तान ने अपनी हथेली फर बढ़ा दी और महाराज को देखते ए मु कु राता रहा।

महाराज ने एक वणमु ा उसक हथेली पर फर से रख दी।

“जब तक तुम दोन क तरह तीन और उ सुक सौदागर न आ जाएँ तब तक!’’

महाराज ने उसक हथेली पर एक वणमु ा रखते ए पूछा, ‘‘तुमने अपने साथ इन गध


को य रखा है?’’
सु तान मु कु राया, ‘‘यही मेरे अ दाता ह!’’

महाराज ने पूछा, ‘‘कै से?“ और एक वणमु ा सु तान क हथेली पर रख दी।

‘‘जो आता है वह इन गध के बारे म ही बात करता है।’’ सु तान ने मु कु राते ए कहा।

महाराज ने एक वणमु ा और उसक हथेली पर रखी और पूछा, ‘‘इन गध म ऐसी या


िवशेषता है?’’

“आज का इनसान िजन सू म तरं ग को वहार म लाता है वह सब कु छ!”

‘‘जैसे?’’ पूछते ए महाराज ने एक वणमु ा बढ़ाई मगर सु तान ने अपना हाथ वापस
ख च िलया और महाराज के सामने पाँच वणमु ाएँ िगनकर अपनी जेब म रख ल ।

महाराज समझ गए, अब सौदागर सु तान बात नह करे गा। तब उ ह ने तेनाली राम क
ओर देखा।

तेनाली राम ने सौदागर क हथेली पर पहली वणमु ा रखते ए कहा, ‘‘पहले गधे पर
या लदा है?’’

‘‘राजा-महाराजा के उपयोग म आनेवाला अ याचार!’’ सुलतान ने उ र दया।

‘‘दूसरे गधे पर?’’ तेनाली राम ने सु तान क हथेली पर एक वणमु ा और रखी।

‘‘पंिडत और िव ान के काम आनेवाला अहंकार!’’ सु तान ने उ र म कहा।

तीसरी वणमु ा हथेली पर रखते ए तेनाली राम ने पूछा, ‘‘और तीसरे गधे पर?’’

सु तान ने उ र दया, ‘‘धनवान के काम आनेवाला ई या भाव!’’

चैथी मु ा सु तान क ओर बढ़ाते ए तेनाली राम ने पूछा, ‘‘चैथे पर?’’

‘‘अिधकांश के उपयोग म आनेवाली बेईमानी।’’

तेनाली राम मु कु राया और एक वणमु ा पुनः सु तान क हथेली पर रखते ए कहा,


‘‘और पाँचव गधे पर?’’

‘‘औरत के काम आनेवाला छल, कपट और पंच।’’


तेनाली राम और महाराज उठकर उस सौदागर के कमरे से बाहर िनकल आए। दोन
एक-दूसरे क तरफ देखकर मु कु राए।

महाराज ने कहा, ‘‘मूख बन गए।’’

तेनाली राम ने कहा, ‘‘अरे नह महाराज! वा तव म यह सौदागर बात का धनी है और


खड़ी बात करता है। उसने अपने वहार से समझा दया था क वह अपने ाहक को
गधा समझता है। उसने दो गध को खँ◌ूटे से बाँधकर बता दया क हम दोन उसके
स मोहन म बँध चुके ह। गध को अ दाता बताकर उसने बात और साफ कर दी। उसने
यह भी ठीक कहा क जो भी आता है, गध से जुड़े ही करता है। युग क वृि य को
उसने सू म तरं ग बताया। उसक बात साफ थ और स ी थ । क धार से यहाँ आने के बाद
वह के वल पाँच िज ासु से बात कर लौट जाता है और इन पाँच से उसे इतनी
वणमु ाएँ ा हो जाती ह क उसका गुजारा चल जाता है।’’

‘‘...ले कन यह तो ठगी है!’’ महाराज ने कहा।

‘‘ठगी या महाराज? छ वेश म घूमना ठगी से कम है या?“ तेनाली राम ने मु कु राते


ए पूछा और फर कहा, ‘‘मुझे तो इस ि से िमलकर स ता ई, जो बात बेच रहा है
और मुझ जैस को और सजग होने के िलए े रत कर रहा है।’’

महाराज चुप हो गए।

तेनाली राम मु कु राते ए सोचने लगा-इस दुिनया म बुि का उपयोग करनेवाले िनराले
लोग भी ह।
ि , प रवेश और प रधान
िवजयनगर के महाराज कृ णदेव राय संहासन पर िवराजमान थे। सभा म तक-िवतक चल
रहा था। सभासद अपनी-अपनी बुि और वा पटु ता से यह मािणत करने म लगे थे क
ि मह वपूण है य क वह सृि क िविश रचना है। कृ ित म एक से बढ़कर एक
ज तु ह। कोई ब त छोटा तो कोई ब त िवशाल। कोई अके ला िवचरण करता है तो कोई
समूह म। कोई इतना शि शाली है क बड़ा पेड़ उखाड़ डालता है। कसी को पेट भरने के
िलए सरस का एक दाना काफ है और कसी को अपना पेट भरने के िलए कसी बड़े
जानवर का िशकार करना पड़ता है। इतनी िविच तापूण सृि म एक मनु य ही है िजसने
अपनी बुि से इन सह ो को ट के जीव क कृ ित को समझा है और उनसे लाभ लेने क
कला म पारं गत आ है। हं जानवर शेर को भी उसने अपनी मेधा के बूते पालतू बना
िलया है। वह हाथी जैसे िवशालकाय जीव पर सवारी करता है।

बात ि क मता से होते ए उसके आचार- वहार पर उतर आई। तक-िवतक का


दौर जारी रहा। महाराज कृ णदेव राय अपने आसन पर बैठे अपने सभासद क वा पटु ता
और उनके ान का आन द उठा रहे थे। महाराज का एक सभासद अपने आसन पर िन ल
भाव मं◌े बैठा था। उसे देखकर ऐसा नह लगता था क वह सभा म चल रही चचा के दौर
म कोई िच रखता हो। महाराज कृ णदेव राय उसक ओर कई बार देख चुके थे। उसक
िन ल ता बनी ई थी। महाराज ने सोचा-शायद वह कसी अ य िवषय पर िवचार कर
रहा है। उ ह ने उसे टोका नह । सभा म अब सभासद कु छ और बुल दी से बोलने लगे थे।

एक सभासद ने कहा, ‘‘कु छ लोग म म जीते ह क अ छा व ा पहन लेने से ही उ ह


स मान िमलने लगेगा। सच तो यह है क ि को स मान उसके बा आवरण के कारण
नह , अिपतु आ त रक गुण के कारण िमलता है।’’

बोलनेवाले सभासद के ह ठ पर ऐसा कहते समय ं य-भरी मु कान तैर गई और उसने


व --ि से सभा म बैठे उस सभासद क ओर देखा जो िन ल भाव म सभा म बैठा था
और अब तक कु छ बोला नह था।

तभी एक दूसरे सभासद ने पूवव ा क हाँ म हाँ िमलाई और कहने लगा, ‘‘ठीक कहते हो
भाई! इन दन यह वृि देखने म आ रही है क कु छ लोग ललाट पर च दन लगाकर
पंिडत या ानी होने का वाँग करते ह। उनका वाँग भले ही कु छ लोग को िमत कर दे
ले कन ान क परख रखनेवाल क -ि से उनक वा तिवकता छु पी नह रह सकती।
ानी जानते ह क ितलक लगा लेने मा ा से कोई पंिडत नह हो जाता। पांिड य के िलए
ितलक क आव यकता ही या है? पांिड य तो अ ययन और मनन क वाभािवक
प रणित है।’’ उसने भी उस सभासद क ओर कटा भरी -ि से देखा।

उसे ऐसा करते महाराज कृ ण च राय ने देख िलया और वे भाँप गए क सभा म इस


समय जो िवमश हो रहा है उसके के म उनका वह सभासद है जो अब तक मौन बैठा है-
िन ल और िन प द-सा, मानो इन बात म कोई सार ही न हो! महाराज अपने इस
सभासद क यो यता के कायल थे। वे जानते थे क अ ययन और यो यता क उसम कोई
कमी नह है। उ ह अपने इस सभासद का मौन खल रहा था। वे चाहते थे क वह बोले और
ि के बा आवरण और आ त रक गुण पर अपने िवचार करे । मगर वह सभासद
था क कसी भी कटा पर यान नह दे रहा था और न कसी के तक पर अपनी कोई
ित या ही कट होने दे रहा था।

महाराज से रहा नह गया। उ ह ने अपने उस सभासद क ओर देखा और उसे टोका, तुम


मौन य हो? तुम भी अपने िवचार करो। सभा म इतनी देर से चचा का दौर चल
रहा है-तुम भी तो बताओ क व ा तो के वल तन ढँकने के िलए अपेि त है, फर य कु छ
लोग बा स ा पर अनाप-शनाप य करते ह? असली सौ दय तो मन का सौ दय है,
फर य व ा-आभूषण-अलंकरण पर इतना यान दया जाता है?“

उस सभासद ने अपने आसन से उठकर महाराज के सामने हाथ जोड़ िलये। यह सभासद
कोई और नह , गुंटूर िजले के गलीपाडु ाम से िवजयनगर आया कृ ण वामी तेनाली राम
मुदिलयार था िजसे हाल म ही महाराज ने अपना सभासद बनाया था।

महाराज को अिभवादन करने के बाद तेनाली राम ने कहा, ‘‘महाराज, मुझे मा कर! म
इस सभा मं◌े चल रहे िवचार-िवमश को ग भीर नह मानता। म िव ासपूवक कह सकता
हँ◌ू क इन बात का न तो कोई अथ है और न ही ये बात कसी िन कष तक पहँ◌ुच सकती
ह। मेरी इस धारणा के ित आम सहमित भी नह हो सकती य क ायः सभी सभासद
क राय है क व ा का योजन मा ा तन ढँकना होना चािहए...जब क म ऐसा नह
मानता। सभा म अभी जो भी बात हो रही ह, उसका योजन, मुझे नह लगता क कसी
िन कष पर पहँ◌ुचना है। मुझे तो लगता है क ये बात के वल बात के िलए हो रही ह
िजससे सभा का समय कट जाए। मुझे इस तरह क बात म कोई िच नह है, महाराज!
िजसके कारण म मौन हँ◌ू।“

महाराज को तेनाली राम से इस तरह के उ र क याशा नह थी िजसके कारण वे


िवि मत हो गए मगर उ ह लगा क उसने जो कु छ भी कहा है वह सच है, फर भी उनक
उ सुकता बनी रही क आिखर इस िवषय म तेनाली राम वयं या सोचता है। इसिलए
उ ह ने तेनाली राम से कहा, ‘‘नह , तेनाली राम, यँ◌ू टालने से काम नह चलेगा।
तु ह अपनी राय करनी ही चािहए। इतने लोग ने इस संग म सभा के सम अपनी
राय रखी और तुमसे सबक यही अपे ा होनी चािहए क तुम भी अपनी सोच से सभा को
अवगत कराओगे।’’
”जो आ ा महाराज!“ तेनाली राम ने िवन तापूवक कहा और एक भरपूर -ि सभासद
पर डाली।

सभा म थोड़ी देर के िलए स ाटा-सा छा गया। फर खुसुर-फु सुर क आवाज उभरने
लग । तेनाली राम सभा म अपने आसन के पास खड़ा था। माथे पर रे शमी साफा बाँधे
आिभजा य प रधान म सजे तेनाली राम को देखकर सभासद क फु सफु साहट तेज हो रही
थ । उनम से कु छ सभासद ख -ख करके हँस भी रहे थे।

महाराज ने भी सभासद क फु सफु साहट और दबी-दबी-सी हँसी को सुना और वे समझ


गए क सभासद तेनाली राम के व ा आ द को ल य करके हँस रहे ह।

”महाराज!“ तेनाली राम ने ग भीर वर म कहना आर भ कया, ‘‘प रवेश और


प रि थित के अनुकूल प रधान पहनना नीित अनुकूल है। समाज म उिचत थान ा
करने के िलए उिचत प रधान का उपयोग करना वहारशा ा का ारि भक उपदेश है।
ि के आ त रक गुण का ान तो तब होता है जब उसे बोलने का अवसर ा हो क तु
व ा तो दूर से ही बतला देता है क उसे धारण करनेवाला ि कस उिचत आसन का
अिधकारी है।’’

‘‘...तो तुम कहना चाहते हो क ि के आ त रक गुण क अपे ा उसका बा


प रधान अिधक मह वपूण है?’’ महाराज ने कया और सभासद ही-ही करते ए हँसने
लगे।

हँसनेवाले सभासद इस बात पर स थे क महाराज कृ णदेव राय के म तेनाली


राम के िवचार से असहमित के संकेत थे।

तेनाली राम उसी सहजता से बोल पड़ा, ‘‘नह , महाराज! म तो यह कह रहा हँ◌ू क
प रधान के अभाव म ि के आ त रक गुण क पहचान नह हो पाती और ि को
उपेि त होना पड़ता है।’’

महाराज ने िव मय-भरी -ि से तेनाली राम को देखा। सभासद ने शोर करते ए


तेनाली राम क ट पणी से असहमित जताई। महाराज ने थोड़ी देर तक चु पी साधे रखी
फर धीरे से पूछा, ‘‘तेनाली राम! सारे सभासद, लगता है, तु हारी राय से सहमत नह ह।
या अब भी तुम अपनी ट पणी पर -ढ़ हो?’’

‘‘जी हाँ, महाराज! मने जो भी कहा, उसम मेरा कु छ भी नह , यह आष वचन है और


शा त है, िचर तन है। यह हर युग म ऐसा ही था, है और रहेगा।’’ तेनाली राम ने कहा।

‘‘तुम इसे मािणत कर सकते हो?’’ महाराज ने पूछा।


‘‘उिचत अवसर पर।’’ तेनाली राम ने उ र दया।

उस दन सभा उसी समय िवस जत हो गई। सभासद म एक िवशेष कार क खुशी थी।
उ ह िव ास हो गया था क महाराज तेनाली राम के उ र से सहमत नह ह। ये सभासद
तेनाली राम के ित ई या का भाव रखते थे य क वह ायः ब मू य प रधान पहनकर
सभा म आया करता था। िव ान तो वह था ही। सभा म उसक ट पिणयाँ सबसे िभ और
सटीक आ करती थ िजसक ायः महाराज सराहना करते थे। यही कारण था क
सभासद म तेनाली राम के ित ई या का भाव था।

इस घटना के कु छ दन बाद िवजयनगर म एक समारोह का आयोजन हो रहा था।


महाराज कृ णदेव राय के िपता के ज म दवस पर ितवष आयोिजत होनेवाला यह
समारोह इस बार िवशेष उ लास के साथ मनाया जा रहा था य क यह वष महाराज
कृ णदेव राय के िपता क शतवा षक ज मो सव का वष था। महाराज वयं समारोह क
तैया रय पर -ि रख रहे थे। राजभवन को इस अवसर पर िवशेष प से सजाया गया
था। आमोद- मोद के िलए िविवध काय म चल रहे थे। िवजयनगर के स ा त प रवार
को महाराज ने भोजन का आमं ण दया था। कु छ पड़ोसी राजा को भी राजनियक
स ब ध -ढ़ करने के उ े य से महाराज ने िनमं ण भेजा था।

तेनाली राम सिहत सभी सभासद को महाराज कृ णदेव राय ने विलिखत आमं ाण-
प भेजकर ज मो सव समारोह के बाद अपने साथ राि का भोजन करने का योता दया
था। सभासद को राजभवन के ार पर पु पमाला पहनाकर सस मान भोजन क तक
पहँ◌ुचाने क िवशेष व था क गई थी। रं ग-िबरं गे प रधान म सजी-धजी प रचा रकाएँ
इधर-उधर मँडरा रही थ । शाम ढल चुक थी। शरद पू णमा क चाँदनी का उजास फै ला
आ था। राजभवन क बिगया म लगी रजनीग धा क भीनी-भीनी सुग ध से वातावरण
मह-मह कर रहा था। तभी राजभवन के ार पर एक िविच ा-सा शोर उभरने लगा। हरी
एक िभखमंगे को राजभवन के ार से ध ा देकर दूर भगाने म लगे थे और वह िभखमंगा
स-श ि चीख-चीखकर बोल रहा था, ‘‘मुझे मत भगाओ। मुझे राजभवन के भोजन क
तक पहँ◌ुचा दो। म िभखमंगा नह हँ◌ू। म महाराज का आमंि त अितिथ हँ◌।ू मुझे िनरा-त
मत करो। म पंिडत हँ◌ू। का शा ा का ाता हँ◌ू। मेरे साथ उिचत वहार करो।’’

शोर सुनकर महाराज वयं राजभवन से बाहर आए और उचटती-सी -ि उस ि पर


डाली तथा ह रय से कहा, ‘‘इस आदमी को थोड़ा भोजन देकर यहाँ से दूर भगाओ।
अितिथय के आने का समय हो रहा है।’’

शोर करनेवाले ि ने महाराज क ओर देखा और मु कु राया। चाँदनी के उजास म


महाराज को उसक मु कान पहचानी-सी लगी। मगर महाराज आयोजन क हड़बड़ी म थे
इसिलए उस ि पर अिधक यान नह दया और राजभवन म चले गए। हरी उस
ि को भगाते, उससे पहले ही वह ि िबना कु छ बोले वहाँ से चला गया। थोड़ी ही
देर म महाराज के आमंि त अितिथय का आगमन होने लगा। एक से बढ़कर एक प रधान
म सजे-धजे लोग के आने का म थोड़ी देर तक जारी रहा फर थम सा गया। राजभवन के
भोजन-क मं◌े लोग क सज-धज देखकर ऐसा लगता था मानो कु बेर के क म देवता
क जमघट लगी हो!

महाराज वयं अितिथय को आसन हण करने के िलए उनके िलए िनधा रत आसन क
ओर इं िगत कर रहे थे। सभी आसन भर चुके थे, मा ा तेनाली राम का आसन र था।
महाराज बार-बार उस र आसन क ओर देखते और फर वेश ार क ओर उनक -ि
जाती। मन-ही-मन महाराज को तेनाली राम क अनुपि थित उ ेिजत कर रही थी। वे
सोच रहे थे- कतना ढीठ है यह तेनाली राम! उसे यह ान है क भोजन कसके साि य म
करना है फर भी वह िनधा रत समय पर नह आया। ले कन मन म उठते आ ोश को पी
जाने के अलावा महाराज कर भी या सकते थे। वहाँ उपि थत सभासद को तेनाली राम
क अनुपि थित से उसके िव आग उगलने का अवसर िमल गया। वे आपस म तेनाली
राम क अनुपि थित का मजाक उड़ाने लगे। कोई कहता-तेनाली राम अपनी पगड़ी क तह
सजाने म लगा होगा, तो कोई कहता-अरे भाई, तेनाली राम अपनी रे शमी धोती का फटा
कसने म लगा होगा। फटा कस ले, तो आएगा...और इस तरह क बात ख म भी नह हो
पात क सभी ही-ही, ही-ही करने लग जाते।

अ ततः तेनाली राम ने भोजन-क म वेश कया। सचमुच, ब त आकषक प रधान म


सजा-धजा था तेनाली राम। महाराज ने उसक ओर आ ेय -ि से देखा मगर कु छ कहा
नह । -ि मा ा से ही उ ह ने तेनाली राम के ित अपना आ ोश अिभ कर दया। बडे़
और साम यवान लोग प रि थित िवशेष म अपनी आंिगक भंिगमा से ही अपने
मनोभावां◌े को करते ह। महाराज के मनोभाव को समझते ए तेनाली राम ने
महाराज के सामने हाथ जोड़ िलये और कहा, ‘‘महाराज! मा कर। यहाँ समय पर
उपि थत नह हो पाया।’’

महाराज आ ोश म तो थे ही, तेनाली राम का अनुनय सुनकर उनक उ ज


े ना शा त न
रह सक और ं योि म कट ई, ‘‘हाँ, देख रहा हँ◌ू, आपका कु ता ब त चमक रहा
है।’’

महाराज क ं योि सुनकर सारे अितिथ-सभासद ठठाकर हँस पड़े। तेनाली राम ने
इसी ठहाके के बीच अपना आसन हण कया। तेनाली राम क ओर महाराज ने देखा तो
उसे अितशय ग भीर पाया। महाराज सोचने लगे क तेनाली राम के ित उ ह
ं योि य का वहार नह करना चािहए था। या पता, कस प रि थित म था वह!
िबना जाने-समझे इस तरह का वहार कसी राजा के िलए कदािप शोभनीय नह है। यह
तो उ छृ ंखलता है। हो सकता है क तेनाली राम कसी संकट म पड़ गया हो िजसके कारण
वह समय पर नह पहँ◌ुच पाया।
अभी महाराज ऐसा सोच ही रहे थे क उनक आँख म िव मय के भाव गहरा गए।
उ ह ने देखा क भोजन थल पर तेनाली राम के वल धोती पहने, नंगे बदन बैठा आ है
और उसक पगड़ी, कु ता, फतूहा, गमछा, अंगव ाम् भोजन क थाली के चतु दक् रखे ए
ह। सभासद तेनाली राम क ओर देख-देखकर मु कु रा रहे ह और आँख ही आँखां◌े म
बितया रहे ह क तेनाली राम का िसर फर गया है।

भोजन परोसा जा चुका था। तेनाली राम क ओर सारे सभासद देख रहे थे। तेनाली राम
ने भोजन का एक िनवाला उठाया और कु त पर रखते ए कहा, ‘‘कु ता! तू खा।’’ फर
पगड़ी पर एक िनवाला रखा और कहा, ‘‘पगड़ी! तू खा।’’ अंगव ाम् पर एक िनवाला
रखा और कहा, ‘‘अंगव ाम्! तू खा।’’

तेनाली राम का यह कृ य महाराज क समझ म नह आया तब उ ह ने तेनाली राम को


घूरते ए कहा, ‘‘तेनाली राम! तु ह हो या गया है? भोजन के साथ तुम यह या कर रहे
हो? अपने व ा तुमने य उतार दये?“

एक सभासद ने कहा, ‘‘तेनाली राम का िसर फर गया है।’’

दूसरे उसक हाँ म हाँ िमलाने लगे और कहने लगे, ‘‘कह कु ता भी भोजन करता है। यह
बावलापन नह तो और या है?“

तेनाली राम उनक बात को अनसुनी करते ए अपने काम म लगा रहा-कु ता! तू खा।
अँगरखा! तू खा। अंगव ाम्! तू खा। पगड़ी! तू खा।“

महाराज से रहा नह गया। उ ह ने टोका, ‘‘बावले मत बनो तेनाली राम। भोजन करो।
तु ह यहाँ भोजन के िलए बुलाया गया है।“

तेनाली राम ने महाराज क ओर देखा फर अ य अितिथय क ओर, फर कहा,


‘‘महाराज! िजसे राजभवन म भोजन के िलए वेश िमला, उसी को तो िखला रहा हँ◌ू!’’

”भोजन के िलए तो तु ह आमं ाण दया गया था, इसिलए भोजन के िलए वेश तु ह ही
िमला है। तुम भोजन करो! एक तो िवल ब से आए हो, अब और िवल ब न करो।“
महाराज ने कहा।

‘‘म िवल ब से नह आया महाराज! म तो यहाँ सबसे पहले आया था। िवल ब से तो यह
पगड़ी, कु ता आ द प रधान पधारे ह!’’

‘‘उलझी बात मत करो, तेनाली राम! कहो, जो कु छ भी कहना है मगर साफ-साफ!’’


महाराज ने कहा।
तेनाली राम ने कहना शु कया, ‘‘महाराज! म तो शाम ढलते ही यहाँ पहँ◌ुच गया था।
मने ये प रधान नह पहने थे। साधारण कपड़ म देखकर मुझे ह रय ने ार पर ही रोक
िलया। म उ ह समझाता रहा क म पंिडत हँ◌,ू म का शा ाी हँ◌,ू म यहाँ का आदरणीय
आमंि त अितिथ हँ◌ू मगर उ ह ने मेरी एक न सुनी। शोर सुनकर आप वयं वहाँ आए
मगर मेरी पुकार सुनने क आव यकता आपने नह समझी और मुझे भोजन देकर ार से
ही भगा देने का िनदश देकर लौट आए...।“

महाराज को स या क घटना क मृित हो आई।

तेनाली राम ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘...और महाराज, मुझे यहाँ आना ही था इसिलए
म अपने घर गया और ये व ा धारण कए, फर म यहाँ आया।“

महाराज कृ णदेव राय अचरज म डू बे तेनाली राम क बात सुन रहे थे। तभी एक
सभासद ने कहा, ‘‘तेनाली राम! आप जैसे बुि मान ि से ऐसी आशा नह क जा
सकती क वह ऐसी भूल करे गा। आप राजभवन म आमंि त थे। राजभवन क अपनी एक
मयादा है। राजभवन म य द आप फक र जैसे व म आएँगे तब भला कौन हरी आपको
राजा का अितिथ वीकार करे गा? आपके साथ जो कु छ भी आ, उसके िलए दोषी आप
ह।’’

तेनाली राम ने मु कु राते ए कहा, ‘‘जी हाँ, आप ठीक कह रहे ह। प रवेश और


प रि थित का यान रखते ए प रधान का उपयोग अव य करना चािहए। यही तो मने
राजसभा म कु छ दन पहले कहा था- मरण कर महाराज!“ तेनाली राम ने महाराज से
सीधा संवाद कया। ”आपको अव य मरण होगा क तब प रधान के थान पर ि के
आ त रक गुण को मह वपूण बताते ए मुझे अपने िवचार म संशोधन के िलए े रत
कया गया था...।’’

महाराज ने तेनाली राम को गले से लगाते ए कहा, ‘‘तुम ठीक कह रहे थे, तेनाली
राम...उस दन भी!’’
वण- पंडां◌े क पहेली
‘‘पृ वी का कण-कण हर ण एक नई रचना करने म िनम है। वायु सतत सन-सन-सन
कर सृि म म ती का संचार करती रहती है। सूय उ दत होकर संसार को उजास से भरता
है और गितशील होने के िलए ऊ मा दान करता है। न दयाँ कल-कल, छल-छल के िननाद
के साथ बहती ई िजधर से िनकलती ह उधर धरती मं◌े बीज अंकु रत करने क शि
भरती जाती ह।. ..इनम से कोई अपने काय का न तो मू य माँगता है और न कभी कसी से
कसी तरह क बाधा या अड़चन आने क बात कहकर थोड़ा िव ाम करने क इ छा
करता है। काय क िनर तरता ही जीवन क सफलता क कुं जी है।’’

महाराज कृ णदेव राय अपने सभासद के साथ बैठे ए थे। दरबार लगा आ था। तेनाली
राम अपने आसन के पास खड़ा होकर बोल रहा था। उसक बात समा होते ही कृ णदेव
राय ने अपने आसन से उठकर तािलयाँ बजा और तेनाली राम को गले से लगा िलया।

उस समय दरबार म ‘जीवन म सफल होने के उपाय’ िवषय पर स भाषण हो रहा था।
कई दरबारी आए और बोले। बड़ी-बड़ी शा ीय बात होती रह । अि तम व ा के प म
तेनाली राम ने ब त कम श द म अपनी बात दरबार म रख और महाराज ने उसे िवजेता
घोिषत कर दया।

िवजयनगर के दरबार म इससे पहले भी ऐसे कई अवसर आ चुके थे जब तेनाली राम क


बुि क सराहना महाराज ने मु कं ठ से क थी। दरबा रय म तेनाली राम क मेधा क
चचा होने लगी थी मगर कु छ सभासद का िवचार था क तेनाली राम म कोई पांिड य
नह है बि क वह एक सामा य-सा इनसान है इसिलए वे उसक शंसा करने के थान पर
अवसर िवशेष पर आलोचना करने लगते थे। मीन-मेख िनकालते ए तेनाली राम क
िवशेषता को वीकार करने के थान पर उसम दोष िनकालते। ि थित ऐसी बनती जा
रही थी क िवजयनगर के महाराज क सभा म तेनाली राम से ई या करनेवाले सभासद
का एक वग तैयार होता जा रहा था िजसका एकमा काम यह था क जब भी अवसर
िमले, महाराज के सामने तेनाली राम क िशकायत क जाए।

अपने िव ई यावश हो रहे इस तरह के काय का ान तेनाली राम को था क तु वह


इसे सहज मानवीय वृि के प म लेता था तथा कसी भी सभासद के िवरोधी आचरण
पर उ ेिजत नह होता था।

एक बार िवजयनगर के महामं ी के घर पर पौ ा ज मने के अवसर पर एक भोज का


आयोजन आ। वष क ती ा और म त के बाद अपने पौ के ज म से महामं ाी क
खुिशय का ठकाना नह था। उ ह ने भोज का इतना भ आयोजन कया था क उसक
तुलना िवजयनगर म ए कसी भी अ य भोज से नह क जा सकती। रसोई तैयार करने के
िलए िविभ पड़ोसी रा य से िविश रसोइए बुलाए गए थे। उनके बनाए ंजन क
सुग ध से महामं ाी के आवास से दूर-दूर तक का वातावरण महमहा उठा। इस भोज म
महामं ी ने महाराज कृ णदेव राय और िवजयनगर के सभी सभासद को भी आमंि त
कया था।

भोजन करने के बाद महाराज ने महामं ाी से पौ का मुँह दखाने को कहा। महाराज के


साथ सभी सभासद नवजात िशशु को देखने के िलए महल के अ तःक म गए।

ब ा एक सु दर से खटोले पर रखा गया था। छः दन क वय का िशशु ायः सोया


रहता है। महाराज जब िशशु के पालने के पास गए तब उ ह ने महामं ाी से कहा,
‘‘महामं ाी जी! इस बात का यान रखा जाए क बालक क न द म कोई वधान न पड़े।
नवजात िशशु िजतनी चैन क न द सोएगा, उसका शारी रक एवं मानिसक िवकास उतने
ही अ छे ढंग से होगा।’’

पास खड़े एक अ य सभासद ने महाराज क हाँ म हाँ िमलाते ए कहा, ‘‘जी हाँ,
महामं ाी जी! ऐसे भी िशशु क न द म दो ही कारण से वधान उ प होता है-पहला
यह क िशशु को भूख लगती है और दूसरा यह क वह िब तर गीला करता है। य द आपक
ब सतक रहे, िशशु को समय पर दूध िपलाती रहे और िब तर गीला होते ही उसके
अधोव ा बदल दे तो िशशु क न द म कोई अड़चन नह आएगी।’’

महामं ाी इन लोग क बात मु कु राते ए सुनते रहे।

इसी बीच वहाँ तेनाली राम पहँ◌ुचा और पालने पर झुककर ब े को देखने लगा। पालने
म सोया िशशु कु नमुनाया फर जगकर अपने हाथ-पैर उछालने लगा। उसे देखकर तेनाली
राम ने महामं ाी से कहा, ‘‘यह बालक तेज वी है और आगे चलकर यह अपनी तेजि वता
से नए क तमान थािपत करे गा। इसक क त क गँ◌ूज दूर-दूर तक फै लेगी।“

महामं ी ने एक मु ध -ि उस िशशु पर डाली और फर महाराज एवं सभासद को िवदा


करने के िलए उनके साथ ार तक आए।

महाराज और सभासद जब राजभवन क ओर चलने को उ त ए तभी एक सभासद ने


ं या मक वर म महाराज से कहा, ‘‘देखा महाराज, तेनाली राम कस तरह महामं ी
को भािवत कर रहा था! आप ही सोिचए महाराज क भला एक नवजात को देखकर यह
कै से कहा जा सकता है क वह भिव य म या करे गा? तेनाली राम ने तो महामं ाी जी के
पौ ा को ऐसा तेज वी बता दया िजसक क त क गँ◌ूज दूर-दूर तक सुनी जाएगी!’’
महाराज के कान खड़े हो गए इस सभासद क बात सुनकर। महाराज भी सोचने लगे क
ज र तेनाली राम ने महामं ाी को खुश करने के िलए यह बात कही है...तो या तेनाली
राम महामं ाी के साथ साँठ-गाँठ कर कसी कारनामे को अंजाम देने के च र म है? या
तेनाली राम कु छ ऐसा कर सकता है िजससे िवजयनगर क स ा पर आँच आए...?
महाराज के मन म तरह-तरह क आशंकाएँ पैदा होने लग । जरा सी बात पर महाराज के
मन म उ प ई इस आशंका ने महाराज को बेचैन कर दया। ठीक ही कहा गया है क
स ा का वभाव स देह करना भी है। महाराज ने मन-ही-मन तय कर िलया क जब तक वे
तेनाली राम क आ त रक भावना को समझ नह लेते तब तक चैन से नह बैठगे और न
ही तेनाली राम पर िव ास ही करगे। कट प से महाराज ने अपना वहार पूववत्
रखा।

इस घटना के कु छ दन तीत हो जाने के बाद एक स या महाराज कृ णदेव राय अपनी


फु लवारी म तेनाली राम के साथ टहल रहे थे। टहलते-टहलते महाराज ने अचानक तेनाली
राम से पूछा, ‘‘तेनाली राम! उस दन तुमने कस आधार पर महामं ी से कहा क उनका
पौ ा ब त तेज वी होगा?’’

तेनाली राम ने हँसकर कहा, ‘‘अरे वो बात!...बस, ऐसे ही महाराज! मेरी -ि बालक के
गितशील पैर पर पड़ी। उसके पैर क सश लययु गितशीलता से मुझे लड़के क सुगढ़
मानिसक संरचना का अनुमान आ और बरबस ही वह बात मेरे मँ◌ुह से िनकल गई।“

महाराज मौन हो गए ले कन उनका दय अभी भी आशं कत था। थोड़ी देर के बाद


उ ह ने तेनाली राम को िवदा कया और वयं महल म चले गए।

इस घटना के भी कई दन गुजर गए। तेनाली राम के मन म कोई बात थी ही नह । वह


अपनी सहज, वाभािवक शैली म सभा म आता। सभा क कारवाई म भाग लेता और लौट
जाता।

एक दन महाराज कृ णदेव राय क सभा म एक ि आया और महाराज के सामने


एक ब सा रखकर बोला, ‘‘महाराज! म च ावती नगर का एक ापारी हँ◌।ू मेरा नाम
सोमद है। मुझे ापार म घाटा लगा है। मेरा सारा धन समा हो चुका है। बस, मेरे पास
वण-िन मत दो गोले शेष ह।’’ इतना कहकर उस ापारी ने वह ब सा खोल दया।

सभासद क आँख यह देखकर िव मय से फै ल ग क ब से म गद क आकृ ित के दो


वण- पंड रखे ए ह।

उस ापारी ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘महाराज! इन दो वण- पंड म से एक वण-


पंड ठोस है और दूसरा खोखला है। आपके दरबार म म इन वण पंड को एक थान पर
लटका दँ◌ूगा, जहाँ इसे आपके सभी सभासद देख सकं ◌े। य द आपके दरबार का कोई
सभासद िबना इन पंड के िनकट आए, िबना इन पंड को छु ए यह बता देगा क इनम से
कौन-सा पंड ठोस है अथवा कौन-सा पंड खोखला है तो म उसे ये दोन पंड मु त म देकर
चला जाऊगा और य द यहाँ उपि थत कोई भी ि ऐसा नह कर सके गा तब आपको
मुझे इन दोन वण- पंड के वजन के बराबर वण दान करना होगा।’’

महाराज ने इस िविच ताव को सुनने के बाद सभासद क ओर उनका म त जानने


के उ े य से देखा।

तभी एक सभासद ने अपने आसन से उठकर कहा, ‘‘महाराज! ापारी सोमद का


ताव वीकार कर लेने म कोई बुराई नह है। आपको मरण होगा क हमारे बीच ऐसे
िव ान भी ह जो एक िशशु को देखकर अभी से उसक क त पताका िव म लहराने का
दावा कर सकते ह...यह तो साधारण से वण- पंड क पहेली है। इसे भी यहाँ आसानी से
हल करने क यो यता उनम अव य होगी।’’

यह वही सभासद था िजसने तेनाली राम के िव महाराज के मन म आशंका के बीज


बोए थे।

सभाक म बैठा तेनाली राम उस सभासद क बात सुनकर चैक ा हो गया। वह समझ
गया क महाराज ने कु छ दन पूव उससे महामं ी के पौ के ित क गई भिव यवाणी के
बारे म य पूछा था। ज र इसी ने महाराज के कान भरे थे और आज भी यह महाराज को
मेरे िव भड़का रहा है। तेनाली राम ने त ण ही अपने मन म संक प ले िलया क चाहे
जो हो, वह इस चुनौती को वीकार करे गा।

महाराज को भी तेनाली राम क बात याद हो आ । उ ह ने इसे कट नह होने दया


और ापारी से कहा, ‘‘ ापारी सोमद , आप आज हमारी अितिथशाला म िव ाम कर।
कल जब सभा लगेगी तब आपके ताव पर िवचार कया जाएगा।’’

ापारी को महाराज ने अितिथशाला म भेज दया। सभा िवस जत होने के बाद


महाराज ने तेनाली राम को बुलाकर कहा, ‘‘तेनाली राम! तु ह अब इस ापारी क शत
के अनुसार उसक पहेली को हल करना होगा। ऐसा नह होने पर रा य क बड़ी बदनामी
होगी। इसिलए आज रात भर सोच-िवचार लो। कल सभा क कारवाई शु होते ही तु ह
वण- पंड क पहेली हल करनी होगी।’’

‘‘जैसी आ ा महाराज!’’ तेनाली राम ने संि सा उ र दया और अपने घर लौट


आया। उसे वण- पंड को लेकर कोई तनाव नह था।

दूसरी ओर सभा म तेनाली राम से ई या रखनेवाले सभासद म इस बात क खूब चचा


हो रही थी क तेनाली राम आज फँ स ही गया। वण- पंड क पहेली हल करने के िलए
अब यह तय है क महाराज उससे ही कहगे। यह पहेली हल होनेवाली होती तो वह
ापारी इतना सोना दाँव पर नह लगाता! अब आएगा आन द! तेनाली राम क िव ा
क कलई इस बार खुलनी तय है। बड़ा ानी बना फरता है...।’’

दूसरे दन िनयत समय पर िवजयनगर के राज ासाद म सभासद एकि त ए। ापारी


सोमद भी आया। महाराज भी पधारे । तेनाली राम का कह पता न था। महाराज मन-
ही-मन बेचैन हो उठे । आशं कत और संशययु मन से महाराज िवचार कर रहे थे क कह
पहेली हल न होने के भय से तेनाली राम आया ही नह तो वे या करगे? अभी ऊहापोह के
बादल छँटे नह थे। सभासद म भी बेचैनी थी।

ापारी सोमद ने महाराज से पूछा, ‘‘महाराज! ‘ वण- पंड क सम या का हल?’

महाराज ने उ र दया, ‘‘तिनक ती ा करो।’’

ापारी अपने आसन पर बैठ गया। सभाक म फु सफु साहट तेज हो ग । महाराज
असमंजस म थे और संहासन पर बैठे बार-बार पहलू बदल रहे थे क अचानक उनक दृि
सभा म वेश कर रहे तेनाली राम पर पड़ गई और उ ह ने राहत क साँस ली।

जब तेनाली राम अपनी जगह पर बैठ गया तो महाराज ने ापारी सोमद से कहा,
‘‘सोमद ! अब तुम अपनी सम या सभासद के बीच रखो।’’

सोमद ने पुनः दोनां◌े वण- पंड के बारे म अपनी बात सभा म दुहरा द ।

महाराज ने सभा म घोषणा क , ‘‘इस सम या के समाधान के िलए य द कोई सभासद


वयं आगे आना चाहता हो तो आए अ यथा इस सम या का समाधान तेज वी तेनाली
राम करगे।’’ महाराज ने तेनाली राम के नाम के साथ ‘तेज वी’ िवशेषण जान-बूझकर
जोड़ा था।

एक भी सभासद सम या के समाधान के िलए नह आया तब महाराज ने तेनाली राम से


कहा, ‘‘तेनाली राम! आगे आओ और ापारी सोमद ारा बताई गई सम या को हल
करो!’’

‘‘महाराज! ापारी सोमद से कह क वे वण- पंड को अपनी इ छा के अनुसार जहाँ


चाह लटका द। म उनक सम या का समाधान करने के िलए तुत हँ◌ू।’’

महाराज ने सोमद को वण- पंड को कह लटकाने का िनदश दया।

ापारी सोमद ने उन वण- पंड को महाराज और सभासद के आसन के म य के


खुले थान म, दीवार पर दो क ल ठोककर अलगनी जैसी संरचना एक र सी के सहारे
तैयार कर ली तथा उस अलगनी म उसने दोन वण- पंड (िजनके िसर पर सोने का ही
चेन लगा था) को लटका दया और तेनाली राम क ओर देखकर कहा, ‘‘अब आपक बारी
है, तेनाली राम जी।’’

तेनाली राम ने अपने आसन से िबना िहले-डु ले कहा, ‘‘महाराज! एक बार फर सभासद
और ापारी से पूछ ल क कोई भी सभासद चाहे तो ापारी के का उ र दे दे।
ापारी चाहे तो अपना ताव वापस ले ले। म सबको पुन वचार का एक अवसर देना
चाहता हँ◌ू।’’

तेनाली राम क बात सुनकर सभासद को लगा क तेनाली राम वण- पंड क पहेली
हल करने म असमथ है और वह कसी तरह अपना पंड छु ड़ाना चाहता है। सभा म
फु सफु साहट उभर और शा त हो ग ।

ापारी ने घोषणा क , “वह अपने ताव क वापसी नह चाहता है।”

अ ततः तेनाली राम ने अपने आसन पर बैठे-बैठे ही उँ $चे वर म कहा, ‘‘महाराज!


आपक बा भुजा क ओर टँगा वण- पंड ठोस है और दा भुजा क ओर टँगा वण- पंड
खोखला है।’’

तेनाली राम का वर इतना तेज था क उसे सभी सभासद ने सुना।

ापारी सोमद के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लग । फर भी उसने तेनाली राम से कहा,


”यह दाएँ-बाएँ कहने से सम या का सही हल नह हो सकता। आप ठोस पंड के पास
पहँ◌ुचकर बताएँ क यह ठोस है।’’

तेनाली राम त परता से अपने आसन से उठा और महाराज के बा तरफ के पंड के पास
पहँ◌ुचकर कहा, ‘‘महाराज! यह वण- पंड ठोस है।’’

‘‘ य , ापारी सोमद । तेनाली राम का हल सही है?’’ महाराज कृ णदेव राय ने पूछा।

‘‘जी हाँ, महाराज!’’ ऐसा कहकर ापारी ने दोन वण- पंड उतारे और उसे मंजूषा म
रखकर महाराज को स प दया, ‘‘महाराज! अब इन वण- पंड पर मेरा कोई अिधकार
नह है।’’

महाराज ने वण- पंड वाली मंजूषा थामते ए कहा, ‘‘हाँ, अब इन वण- पंड पर
तेनाली राम का अिधकार है।’’

ापारी सोमद भारी कदम से महाराज क सभा से चला गया और महाराज ने


तेनाली राम को वण- पंड वाली मंजूषा स पते ए कहा, ‘‘यह तु हारी मेधा का पुर कार
है। इसका उपयोग अपनी और वजन-प रजन क भलाई के िलए करना।’’

सभा िवस जत होने के प ात् महाराज कृ णदेव राय ने तेनाली राम से पूछा, ‘‘तेनाली
राम! तुमने पंड का रह य कै से सुलझा िलया? दोन पंड िबलकु ल एक जैसे थे, फर उ ह
छु ए िबना तुमने कै से जान िलया क इनम से ठोस कौन है और कौन-सा पंड खोखला है?’’

तेनाली राम ने हँसते ए कहा, ‘‘इसम कोई रह य सुलझाने जैसी बात नह है महाराज!
खोखला पंड ह का होता है और ठोस पंड भारी। पृ वी क गु वाकषण शि हर व तु
को अपनी ओर ख चती है। अलगनी पर चेन से लटकाए गए दोन पंड को मने ग भीरता
से देखा। ठोस पंड को लटकानेवाले चेन म तनाव अिधक था तथा र सी के उस भाग म
खंचाव भी अिधक था िजस भाग म ठोस वण- पंड लटकाया गया था। इस ख्ंि◌ाचाव के
कारण ठोस पंड थोड़ा नीचे आ गया था। खोखला पंड थोड़ा ऊपर था और उसे
लटकानेवाली जंजीर म वैसा तनाव भी नह था जैसा क ठोस पंड लटकानेवाली जंजीर म
था।’’

उस दन महाराज ने फर तेनाली राम को अपने आ लंगन म ले िलया और बोले,


‘‘तेनाली राम! तुम सचमुच बुि मान हो।’’
िम क पहचान
महाराज कृ णदेव राय आमोद ि य ि थे। उ लास के सामा य अवसर पर भी
महाराज उ सव मनाते थे। उनके इस वभाव के कारण िवजयनगरवासी स रहा करते
थे। कहा भी गया है- जैसा राजा, वैसी जा।

एक बार, नव वष के शुभागमन पर महाराज कृ णदेव राय ने अपने िम को बुलावा


भेजा। महाराज क इ छा थी क इस बार नववष समारोहपूवक मनाया जाए। समारोह म
उ ह ने पड़ोसी रा य के नरे श को भी आमं ण भेजा। नववष के अवसर पर होनेवाले
समारोह म रा य भर के कलाकार को अपनी कला के दशन का अवसर देने का िन य
कर महाराज ने वैसी व था भी करवा ली।

समारोह के िलए अितिथय का आना ार भ हो गया। पड़ोसी रा य के दो नरे श


समारोह के दो दन पहले ही पहँ◌ुच चुके थे। महाराज ने इन दोन नरे श को अितिथशाला
म नह ठहराया बि क उन दोन नरे श के िलए राजमहल के ही दो क को सजाया गया
था। दोन नरे श उ ह क म ठहरे थे। इनम से एक नरे श का नाम था- सेनिजत तथा
दूसरे का नाम था- व बा ! महाराज कृ णदेव राय का बचपन इन दोन के साथ तीत
आ था। गु कु ल के दन म महाराज कृ णदेव राय के साथ ही इन दोन ने िश ा हण
क थी। एक ही गु कु ल, एक ही गु ।

अितिथ- ेमी होने के कारण महाराज कृ णदेव राय ऐसे भी अपने महल म आनेवाल का
खूब स कार कया करते थे। अब जब उनके दो बाल-सखा पधारे ह तो उनके वागत-
स कार म कोई कमी कै से रह सकती थी! महाराज लगातार अपने इन दोन अितिथय के
पास ही बने रहते। कभी िम के साथ चैसर खेलते तो कभी घुड़सवारी के िलए िनकल
जाते।

दो दन ऐसे ही बीत गए। नववष समारोह का दन आ गया। िपछले दो दन तक अपने


िम क आवभगत म लगे रहने के कारण महाराज को इस बात का कोई ान नह था क
मु य समारोह क या तैया रयाँ ई ह और या बाक ह। ऐसा पहले कभी नह आ था
क महाराज मु य आयोजन के स दभ म वयं कोई िच न दखाएँ।

महाराज के िविश सभासद भी महाराज के इस आचरण से अचि भत थे। िजस दन


नववष का मु य समारोह आयोिजत होनेवाला था, उस दन ातःकाल म महाराज के
मु य सभासद और िव सनीय माने जानेवाले लोग ने िमलकर तय कया क आज वे
लोग महाराज से िमलने महल म जाएँगे तथा महाराज से आ ह करगे क वे समारोह क
तैया रयाँ देख ल।

सुबह महाराज अभी िब तर से उठे ही थे क उ ह हरी ने सूचना दी क महाराज से


िमलने के िलए सभासद का िविश मंडल आया आ है। महाराज ने हरी को िनदश
दया क वह उन लोग को बाहरी क म बैठाए और ती ा करने के िलए कहे।

थोड़ी ही देर के बाद महाराज कृ णदेव राय अपने कपडे़ बदलकर वहाँ पहँ◌ुच गए जहाँ
उनक ती ा म सभासद बैठे ए थे। इन सभासद म तेनाली राम भी था।

महाराज को सभी सभासद ने समारोह क तैया रय के िवषय म जानका रयाँ द और


उ ह समारोह थल पर चलने को कहा।

अभी महाराज अपने सभासद क बात का कोई उ र भी नह दे पाए थे क महाराज के


भवन म आित य ा कर रहे उनके िम ा सेनिजत ने क म वेश कया।

एक ऐसे क म जहाँ कोई राजा अपने िविश सभासद के साथ िवचार-िवमश या


मं ाण कर रहा हो वहाँ इस कार िबना सूचना दए वेश कर जाना अिश ता समझी
जाती थी। सभासद चक पड़े और सूचक दृि से सेनिजत क ओर देखने लगे।

महाराज ने भाँप िलया क क म इस तरह सेनिजत का आना सभासद को पस द नह


आया। इसे उनके रा य म, वयं उनके महल म अिश ता माना जाता है। ले कन सेनिजत
को वे कु छ कह भी नह सकते थे। बात िबगड़े नह इसिलए उ ह ने मुखर होते ए कहा,
‘‘आओ भाई सेनिजत, अपना आसन सँभालो। ये लोग मेरे िविश सलाहकार ह और आज
नववष समारोह के काय म तय करने पधारे ह।“ थोड़ी देर चुप रहने के बाद महाराज ने
अपने सभासद से कहा, ‘‘और ये ह- सेनिजत! क लंग के महाराजा। मेरे गु -भाई और
बाल-सखा।’’

तेनाली राम ने देखा क सेनिजत क चाल म एक दप है। महाराज ारा प रचय दए


जाने पर जब सभासद ने उसका अिभवादन कया तो सेनिजत ने अपनी गदन अकड़ा ली
और उसे हलका-सा िहलाकर अिभवादन वीकार कया। तेनाली राम ने उसक मु ा
देखकर मन-ही-मन कहा-अरे ! यह तो बड़ा द भी है।

सेनिजत ने सभासद क उपे ा करते ए महाराज कृ णदेव राय से पूछा, ‘‘अरे


कृ णदेव! यह सुबह-सुबह दरबार लगाकर य बैठ गए? समारोह क तैयारी देखना कब से
राजा का काय हो गया? या तु हारे रा य म ऐसे यो यजन का अभाव है जो समारोह
क तैयारी कर सक?’’

महाराज कृ णदेव राय ने झपते ए अपने सभासद से कहा, ‘‘आप लोग स म ह। जो भी


आव यक लगे, कर ल। हम लोग समारोह देखने के िलए पहँ◌ुचं◌ेगे।’’

महाराज क झप को तेनाली राम ने भाँप िलया। वह समझ गया क सभासद के सम


सेनिजत का यह वहार महाराज को भी अनुकूल नह लगा। मन-ही-मन तेनाली राम ने
सेनिजत के आचरण क समी ा क और इस िन कष पर पहँ◌ुचा क यह ि भले ही
राजा हो मगर है अिश । इसे सामा य लोक- वहार क भी समझ नह है।

अ ततः महाराज के िबना ही सभी सभासद उठकर समारोह- थल क ओर थान कर


गए। िजस समय वे लोग क से बाहर जा रहे थे उसी समय सेनिजत ने सभासद को
स बोिधत करते ए कहा, ‘‘कु छ काय तुम लोग वयं कर िलया करो। आयोजन क
व था करना या उसका िनरी ण करना राजा का काय नह होता।’’

सेनिजत ारा आदेशा मक वर म कही गई यह बात कसी भी सभासद को पस द नह


आई। वष से वे महाराज कृ णदेव राय क सेवा म ह। कभी भी महाराज ने उनसे इस शैली
म बात नह क । वे सभी मन-ही-मन सेनिजत को कोसते ए क से बाहर हो गए।
नववष का रं गारं ग काय म शु हो चुका था। एक के बाद एक मंच पर कलाकार आते,
अपनी कला का दशन करते और लौट जाते। पहले बाल कलाकार को कला दशन का
अवसर दया गया, फर पु ष कलाकार को और अ त म मिहला कलाकार को। मिहला
कलाकार म एक से बढ़कर एक नृ यांगनाएँ मंच पर आती रह । नृ य तुत कर जाती
रह ।

तेनाली राम ने देखा क दशक क अगली पाँत म महाराज के साथ बैठा सेनिजत
मिहला कलाकार क ओर ब त ही लोलुप -ि से देख रहा है। उसक -ि म िछपे अ ील
भाव को पहचानकर मन-ही-मन तेनाली राम ु ध हो उठा क महाराज ऐसे ि को
अपना बाल-सखा कहते नह अघाते मगर तेनाली राम अपने थान पर बने रहने के िलए
बा य था। इस अिश ि को दंिडत करने का अिधकार तो उसे कतई नह था। मगर
सेनिजत के ित उसके मन म िवतृ णा का भाव अव य गहरा गया था।

म य राि तक समारोह चलता रहा। समारोह के समापन के बाद महाराज अपने िम


के साथ भवन म चले गए।

सभासद को घोर िव मय आ क महाराज ने अ य अितिथय से यह भी नह पूछा क


उ ह समारोह म आन द आया या नह । ‘शुभ राि ’ कहने क औपचा रकता भी उ ह ने
नह िनभाई। तेनाली राम को महाराज के वहार म आया यह प रवतन पस द नह
आया। महाराज कृ णदेव के दरबार म उसक हैिसयत मा एक िवदूषक क थी। वह संशय
म था क महाराज को उनके आचरण म उ प हो रहे दोष के ित कै से सचेत करे ।

नववष का समारोह स प हो चुका था। अितिथ वापस लौट चुके थे। क तु महाराज
राजकाज क सामा य दनचया म भाग नह ले रहे थे। कु छ आव यक होता तो स बि धत
कमचारी को राजभवन म बुलाकर ही िनदश दे देते और फर अपने दोन िम के साथ या
तो चैसर खेलने म त हो जाते या िशकार करने िनकल जाते।

एक दन उ ह ने कसी कायवश तेनाली राम को राजभवन म बुलवाया। जो िनदश देना


था, दए। जो बात करनी थ , क । अवसर देखकर तेनाली राम ने महाराज से कहा,
‘‘महाराज, बादल य द बरसना ब द कर दे तो धरती उवर नह रहती। हवा य द बहना
ब द कर दे, सूय य द चमकना ब द कर दे तब कृ ित का िवनाश अव य भावी है। हवा,
बादल, सूरज िजस तरह अपने कत म सतत िनम रहते ह उसी तरह जापालक राजा
को भी अपने कत म लगा रहना चािहए!’’

महाराज कृ णदेव राय चके । उ ह ने तेनाली राम क ओर सूचक -ि से देखा। कसी


राजा के इस तरह देखने का अथ होता है- अव य भावी दंड! मगर तेनाली राम के चेहरे
पर रं चमा ा भी भय नह था।

महाराज ने कु िपत वर म पूछा, ‘‘तु हारे कहने का आशय या है, तेनाली राम?’’

”महाराज! आप अ दाता ह। मेरी िवनती है क आप मेरे और िवजयनगरवािसय के


अ दाता बने रह।“

महाराज कृ णदेव राय क तनी भृकु टय का तनाव तेनाली राम का उ र सुनकर थोड़ा
कम आ क तु तेनाली राम के कथन के िनिहताथ को समझते ए वे उ िे लत हो गए थे।
उ ह ने आवेश-भरे वर म पूछा, ‘‘तु ह या लगता है, म अपने कत का िनवाह नह
कर रहा? राजकाज म त रहना मा ही मेरी दनचया होनी चािहए? मेरे दो अिभ
िम वष बाद िमले ह...मेरा उनके ित भी तो कु छ कत है!’’

तेनाली राम ने उनक ओर िव मय-भरी दृि से देखा और अनायास उसके मँ◌ुह से


िनकला, ‘‘अिभ िम ?’’

“ य , तु ह कोई स देह है?” महाराज ने पूछा।

तेनाली राम मौन उनक ओर देखता रहा।

‘‘बोलो तेनाली राम, बोलते य नह ? बताओ क ये दोन मेरे िम ा ह या नह ? फर


इनके ित मेरा कोई दािय व है या नह ?“

‘‘िम ?’’ तेनाली राम ने महाराज क ओर फर से ा मक दृि डाली।

तेनाली राम क ा मक -ि से महाराज िवचिलत हो गए और संशययु वाणी म


तेनाली राम से पूछने लगे, ‘‘बताओ तेनाली राम! या ये दोन मेरे िम नह ह? या तु ह
इनक िम ता पर स देह है? या बात है, िबना डर के बोलो। तु हारे मन म इनके ित
या धारणा है?’’

महाराज के वर म िज ासा थी। महाराज के बदले वर को सुनकर तेनाली राम के मन


म िवचार उ प आ क स ा कतने आड बर से अपना दपपूण चेहरा बनाए रखती है
क तु सच का एक झ का उसे जड़ से िहला देता है। यही महाराज कृ णदेव राय अभी दो
ण पहले अपनी िम ता क बखान करते ए अपने िम के ित अपने कत का उ लेख
कर रहे थे और अब वही महाराज कृ णदेव राय संशययु मन से पूछ रहे ह, ‘ या वे िम ा
नह ह?’ तेनाली राम ने ि थित अनुकूल पाते ए उसका लाभ उठाया और बोला,
‘‘महाराज! िम -अिम क पहचान मने नह क है क तु य द आप चाह तो वह भी कर
सकता हँ◌।ू ’’

‘‘हाँ, तेनाली राम! म चाहता हँ◌ू क तुम मुझे बताओ क इन दोन म से मेरा स ा िम
कौन हं◌?ै ’’ महाराज ने कहा। ‘‘तो ठीक है महाराज!’’ तेनाली राम ने िव ास-भरी -ि से
महाराज क आँख म झाँकते ए कहा, ‘‘आज राि िव ाम म राजभवन म कर सकँ ◌ू,
ऐसी व था करा द। मेरे ठहरने का ब ध अपने इन दोन िम के क के आसपास करा
द।’’

महाराज मान गए।

शाम को तेनाली राम आया तो उसे महाराज के िम सेनिजत और व बा के क के


सामने के एक क म ठहरा दया गया। तेनाली राम के राजभवन म ठहरने क सूचना
गोपनीय रखी गई।

महाराज कृ णदेव राय वयं एक बार तेनाली राम के क मं◌े आए। उ ह ने तेनाली राम
से कहा, ‘‘कु छ चािहए तो बताओ।’’

‘‘नह महाराज, मुझे कु छ नह चािहए। बस, आप इतना कर क अपने िम के क म


ही राि का भोजन भेज। भोजन म ऐसे पकवान ह िजनम अ छी सुग ध हो। सु वादु
पकवान से भरे थाल जब आप अपने िम के क म िभजवा द तब तुर त यह समाचार
फै ला द क आपका वा य अचानक ब त खराब हो गया है। बाक बात हम लोग बाद म
करगे।’’ तेनाली राम ने कहा।

‘‘ले कन इससे होगा या?’’ महाराज ने पूछा।

‘‘यही तो देखना है महाराज!’’ तेनाली राम ने कहा।


‘‘तु हारी बात मुझे समझ म नह आ रही ह तेनाली राम!’’ महाराज ने िज ासा-भरे
वरां◌े म कहा।

‘‘सुबह तक ती ा कर महाराज!’’ तेनाली राम ने महाराज को यह कहते ए आ त


कया।

राि के भोजन का समय था। राजभवन म अितिथ के प म रह रहे सेनिजत और


व बा के क म भोजन लाकर रखा गया था। भोजन से भूख जगानेवाली सुग ध उठ रही
थी िजससे आसपास का वातावरण महमहा उठा था। सेनिजत और व बा अभी भोजन
करने के िलए उ त ए ही थे क दो हरी दौड़ते ए आए और बोले, ‘‘महाराज का
वा य ब त खराब है। राजवै उनक शु ूषा मं◌े लगे ह मगर उनक ि थित खराब
होती ही जा रही है।’’

यह सूचना देकर दोन हरी लौट गए। व बा त काल भोजन क थाल से उठ गए और


अपना हाथ अंगव ाम् से प छते ए महाराज के क क ओर दौड़ पड़े, जब क सेनिजत
ने जी-भर के भोजन कया और थोड़ी देर लेटने के बाद वह महाराज के क क ओर गया।

तेनाली राम ने दोन के जाने के बाद उनके क म जाकर भोजन क थाल म भोजन क
ि थित देखी। सेनिजत क थाल र हो चुक थी जब क व बा क थाल म भोजन य
का य था। एक िनवाला तैयार था, जैसे उसे हाथ म उठाकर फर से थाल म रख दया
गया हो!

सुबह तक राजवै भवन म रहे। सूय दय से पहले ही महाराज व थ हो गए।

तेनाली राम महाराज के क म उ हं◌े देखने के बहाने पहँ◌ुचा।

उसे देखकर महाराज ने पूछा, ‘‘ य तेनाली राम! आज मेरे का उ र तो दे दोगे?’’

‘‘आज नह , अभी महाराज!’’ तेनाली राम ने मु कु राते ए कहा।

‘‘हाँ, बताओ तेनाली राम, मेरा िम इन दोन म से कौन है? या दोन ही ह? या दोन म
से कोई नह , संशयमु होकर बताओ।’’ महाराज ने पुनः तेनाली राम से पूछा।

तेनाली राम ने महाराज क ओर देखते ए कहा, ‘‘महाराज! आपका स ा िम ा


व बा है, सेनिजत नह ।“ फर तेनाली राम ने महाराज के अ व थ होने के बाद क
घटना बता दी क िम ा का वा य खराब होने क सूचना से उ िे लत होकर कस तरह
व बा भोजन छोड़कर महाराज के शयन क क ओर दौड़ पड़ा और सेनिजत ने कस
तरह भोजन करने के बाद िव ाम कया और तब अपने क से िनकला।
तेनाली राम से पूरा वृ ा त जानने के बाद महाराज ने उसे अपने गले से लगा िलया और
कहा, ‘‘भिव य म भी तुम मेरे आचरण पर दृि रखना। य द कभी म कत िवमुख होता
दखँ◌ू तो इस बात क ओर मेरा यान आकृ करने के िलए जो भी उिचत जान पड़े,
करना।’’

उस दन से ही महाराज कृ णदेव राय पहले क भाँित दरबार म जाने लगे। महाराज को


स य और सजग देखकर सभासद म भी उ साह पैदा हो गया और िवजयनगर म पैदा ई
उदासीनता समा हो गई।
िन यानबे का च र
एक दन महाराज कृ णदेव राय अपने दरबार म बैठे लोगां◌े क फ रयाद सुन रहे थे।
उनके पास उस दन एक िविच सम या लेकर एक फ रयादी आया।

फ रयादी ने अपनी सम या महाराज के सामने इस कार रखी, ‘‘महाराज! म एक गरीब


आदमी हँ◌।ू मेरे पास एक मकान है िजसम दो कमरे ह। एक कमरे म म रहता हँ◌ू तथा
दूसरे कमरे म एक कराएदार। मेरा कराएदार एक मोची है जो दन-भर बाजार म लोग
के जूत क मर मत करता है और रात को घर आकर घंट पूजा करता है।’’

महाराज चकराए, ”अरे , यह तो अ छी बात है। तब तो मोची भला आदमी है। ऐसे
आदमी से तु ह या परे शानी है?“

”हाँ, महाराज, वह भला आदमी है। मुझे समय पर कराया अदा करता है। कसी बात क
कभी िझक-िझक, िखच-िखच उसने मेरे साथ नह क है। रोज सुबह जगकर ान- यान
करने के बाद ही वह अपने काम के िलए िनकलता है।“ फ रयादी ने कहा।

”तो फर परे शानी या है?“ महाराज ने पूछा।

‘‘महाराज! शाम को जब मोची पूजा करता है तब वह हाथ म ढोलक लेकर उसे पीटते
ए जोर-जोर से भजन गाता है। उसके भजन गाने से भी मुझे कोई िशकायत नह है।
िशकायत है उसक ढोल से, िजसक धमक से म घंट परे शान रहता हँ◌ू और सो नह
पाता।’’ फ रयादी ने कहा।

महाराज को फ रयादी क वा तिवक परे शानी का अनुमान लग गया। थोड़ी देर मौन
रहने के बाद उ ह ने तेनाली राम से पूछा, ‘‘ य तेनाली राम! इस फ रयादी का दुख-दद
दूर करने का तो एकमा ा उपाय यही है क इसका कमरा खाली करा दया जाए।’’

‘‘नह महाराज!“ तेनाली राम ने कहा, ”इस तरह के समाधान से तो मोची ही नह ,


फ रयादी भी परे शान हो उठे गा।’’

‘‘वह कै से?’’ महाराज ने पूछा।

”महाराज! फ रयादी ने साफ-साफ कहा है क वह गरीब आदमी है। दो कमर के मकान


का एक कमरा कराए पर देने से यह बात साफ हो जाती है क उसे पैस क ज रत है
तभी वह एक कमरा कराए पर देने के िलए िववश आ है।’’
‘‘हाँ! तुम ठीक कह रहे हो। फर या समाधान है?’’ महाराज ने पूछा।

‘‘महाराज! य द यह फ रयादी िन यानबे पए खच करने के िलए तैयार हो जाए तो म


उसे सम या से मु करा दँ◌ूगा।’’ तेनाली राम ने कहा।

महाराज ने पूछा, ‘‘फ रयादी! या तुम िन यानबे पए खच करने क ि थित म हो?’’

‘‘य द सम या से मुि िमल जाए तो म िन यानबे या, सौ पए भी खच कर सकता


हँ◌।ू ’’ फ रयादी ने कहा।

‘‘नह , के वल िन यानबे पए।’’ इस बार यह बात तेनाली राम ने कही।

‘‘जी हाँ, ीमान! म िन यानबे पए खच कर सकता ।ँ ’’ फ रयादी ने कहा।

”तो ठीक है, जाओ और िन यानबे पए िगनकर एक मखमल क थैली म डाल दो। और
िजस समय मोची कमरे म नह हो, उस समय उसके कमरे म वह थैली डाल दो। ऐसा करने
के एक स ाह बाद आकर महाराज को उसके भजन का हाल बताना। अब जाओ, और
जाकर वही करो जो मने तु ह बताया है।’’ तेनाली राम ने कहा।

फ रयादी महाराज के दरबार से ब त आशं कत मन से लौटा। उसे िव ास नह हो रहा


था क यह उसक सम या का कोई समाधान है। वह मन-ही-मन सोचता जा रहा था,
‘आज के जमाने म गरीब क कौन सुनता है क राजा-महाराजा सुनगे! खैर, चलो! यहाँ
आए तो िन यानबे के च र म पड़े। न आते तो अ छा था।’’

अपने घर पहँ◌ुचकर फ रयादी ने मखमल क थैली म िन यानबे पए िगनकर डाले और


मोची के कमरे म फक आया। उसे इसका कोई प रणाम िमलने क आशा नह थी।

दूसरी तरफ महाराज भी तेनाली राम क सलाह से सहमत नह थे। उ ह ने तेनाली राम
से पूछा, ‘‘तेनाली राम! तुमने उस फ रयादी को िन यानबे पए क थैली मोची के कमरे म
फकने क सलाह तो दे दी ले कन इससे या होगा, मुझे बताओ।’’

‘‘महाराज! इससे मोची िन यानबे के च र म पड़ जाएगा।’’ तेनाली राम ने हँसते ए


कहा।

‘‘िन यानबे के च र म?’’ महाराज ने चककर फर पूछा।

‘‘यह िन यानबे का च र या है? मुझे खुलकर बताओ। साफ-साफ।’’

‘‘महाराज, यह मोची कसी के पास काम नह करता। यह अपनी दुकान लगाता है।
मतलब यह आ क इस मोची म भी पैसेवाला बनने क लालसा है। अब जब उसे मखमल
क थैली म िन यानबे पए िमलगे तब वह उ ह खच करने क कतई नह सोचेगा। वह
सबसे पहले उस थैली म अपने एक पए िमलाकर उ हं सौ पए म बदलेगा। इसके बाद
वह इन सौ पय को दो सौ पय म, दो सौ पय को पाँच सौ पय म, पाँच सौ पय
को हजार पय म बदलने के िलए लालाियत हो उठे गा। महाराज! अब मोची को
िन यानबे के च र से मुि नह िमलनेवाली।’’ तेनाली राम ने िव ासपूवक कहा।

‘‘मगर तु हारी बात मान भी ले तो फ रयादी क सम या का हल कहाँ आ? तुमने तो


मोची को िन यानबे के च र म डालने का इ तजाम भर कया है।’’ महाराज क संशययु
वाणी फू टी।

‘‘बस, सात दन तक धैय रख महाराज!’’ तेनाली राम ने महाराज से अनुनयपूवक कहा।

महाराज मौन हो गए। ले कन उनके मन म तेनाली राम क इस िविच सलाह का


प रणाम जानने क उ सुकता बनी रही।

ठीक सातव दन वह फ रयादी दरबार म उपि थत आ। उसके चेहरे पर स ता के


भाव थे। जैसे ही उसे अवसर िमला, वह महाराज के सामने आया और मु कु राते ए अपने
दोन हाथ जोड़ िलये।

महाराज ने फ रयादी से पूछा, ‘‘ या हाल है फ रयादी? तु हारी सम या बनी ई है


या...।’’

फ रयादी ने त परता से उ र दया, ‘‘महाराज! अब कोई सम या नह है।’’

‘‘अरे ! यह चम कार कै से आ?’’ महाराज ने िव मय से पूछा।

‘‘महाराज! िजस दन मने मोची के कमरे म थैली फक , उस रात मोची ने थोड़ी देर तक
भजन गाया। उसके दूसरे दन भी थोड़ी देर तक भजन गाया। ले कन उसके बाद से वह
रोज रात को जूते गाँठने के काम म लगा रहता है। बाजार से लौटने के बाद भगवान के
सामने दीप जलाकर णाम करता है और अपने काम म लग जाता है।...महाराज, मुझे अब
उससे कोई िशकायत नह है। म रोज रात को चैन क न द सोता हँ◌।ू “

महाराज ने देखा, तेनाली राम म द-म द मु कु रा रहा था।


फिलय क िश ा
एक बार िवजयनगर के स ाट महाराज कृ णदेव राय क इ छा ई क वे अपने रा य का
मण कर और अपनी जा के दुख-सुख को वयं अपनी आँख से देख ता क उ ह अपने
रा य के िवकास क योजना बनाते समय उन ज री बात का यान रह सके िजनका
अभाव अभी उनक जा अनुभव कर रही है। उ ह ने अपनी इ छा तेनाली राम को बताई।

तेनाली राम ने महाराज क बात यानपूवक सुन । उसे महाराज क बात अ छी लग ।


उसने महाराज से कहा, ‘‘महाराज! ब त उ म िवचार है। िजतनी ज दी हो सके , रा य-
मण का काय म बना ल।’’

‘‘ठीक है। काय म बन जाएगा। मगर मेरी इ छा है क रा य- मण के दौरान तुम मेरे


साथ रहो।’’ महाराज ने कहा।

तेनाली राम ने त काल उ र दया, ‘‘आपक इ छा मेरे िलए सव प र है महाराज! आप


आदेश कर-म आपको हर ण उपल ध िमलँ◌ूगा।’’

ज दी ही महाराज के रा य- मण का काय म बन गया। महाराज ने अपने साथ कु छ


चुिन दे एवं िवशेष प से िशि त िसपािहय का द ता रखा और तेनाली राम के साथ
घोड़े पर सवार होकर रा य- मण के िलए िनकल पडे़।

पहले दन ही संयोग ऐसा रहा क राह म कोई बाजार नह िमला। घोडे़ थक कर चूर थे।
महाराज भी थकान का अनुभव कर रहे थे। उ ह ने तेनाली राम से कहा, ‘‘मुझे लगता है
क अब शाम ढलने को है। हम यह कह अ छी जगह देखकर पड़ाव डालना होगा। भूख
और यास से सभी बेहाल ह। भोजन क व था भी करनी पड़ेगी।’’

तेनाली राम ने महाराज से कहा, ‘‘महाराज! मुझे लग रहा है क दा तरफ नजदीक म


ही कोई नदी हम िमल सकती है...आप भी अनुभव कर सकते ह क दा तरफ से जो हवा
आ रही है, उसम शीतलता है। यह शीतलता नमी के कारण ही हो सकती है।’’

महाराज ने तेनाली राम क बात सुनकर दा तरफ अपने घोड़े को घुमाया और थोड़ी दूर
तक म थर गित से उसे दौड़ाया। इसके बाद उ ह भी लगा क तेनाली राम के अनुमान म
स यता है और उ ह ने साथ चल रहे द ते को उसी दशा म चलने का संकेत कर दया।

थोड़ी देर म ही वे लोग नदी के कनारे पहँ◌ुच गए।


महाराज के िनदश पर नदी कनारे त बू गाड़े गए। घोड़ को ले जाकर िसपािहय ने नदी
म पानी िपलाया।

महाराज अपने त बू म िव ाम क मु ा म लेट गए और तेनाली राम से कहा, ‘‘तेनाली


राम! अब भोजन का भी ब ध हो जाना चािहए।“ ऐसा कहते समय वे अपने आस-पास
नजर दौड़ाते रहे। थोड़ी दूरी पर उ ह एक खेत दखा िजसम मटर क फिलयाँ ही फिलयाँ
दूर तक दखाई दे रही थ । महाराज ने तेनाली राम से कहा, ‘‘ य न आज हम लोग इ ह
फिलय का आहार कर?’’

‘‘िवचार तो अ छा है महाराज!’’ तेनाली राम ने संि -सा उ र दया।

महाराज ने कु छ िसपािहय को बुलवाया और उनसे कहा, ‘‘आज फिलय का आहार तुम


लोग को कै सा लगेगा?’’

‘‘महाराज! इस िबयाबान म जो कु छ भी िमल जाए, वही उ म आहार है।“ एक


िसपाही ने िह मत करके कहा।

‘‘तो जाओ सामने, खेत म फिलयाँ तैयार ह, तोड़कर कु छ हम दोन के िलए लाओ और
तुम लोग भी खाओ। घोड़े तो मैदान म घास चर ही रहे ह गे।“

‘‘जैसी आ ा महाराज!’’ कहकर िसपाही मुड़ने ही जा रहा था क तेनाली राम ने


ह त ेप कया, ”ठहरो!“ फर महाराज क ओर देखते ए बोला, ‘‘महाराज! म तो इस
तरह फिलयाँ हण नह क ँ गा। आप इस रा य के राजा अव य ह क तु इस खेत के
मािलक नह ह। इस खेत का मािलक तो वही कसान होगा िजसने इस खेत म फिलयाँ
उगाई ह। इसे अपने पसीने से स चा है। िबना उसक आ ा के इस खेत क एक फली भी
तोड़ना अपराध है। और यह के वल अपराध ही नह है अिपतु राजधम के िव चरण है
जो क एक राजा को शोभा नह देता।’’

महाराज को तेनाली राम क बात उिचत लगी। उ ह ने िसपाही को िनदश दया,


‘‘जाओ! इस खेत के वामी का पता लगाकर उससे आ ा लो। य द वह िमल जाए तो उससे
कहना-इस रा य के राजा ने उसके खेत क फिलयाँ मँगाई ह।’’

िसपाही जब उस खेत के मािलक का पता लगाते ए उसके पास पहँ◌ुचा तो िसपाही को


देखकर खेत का मािलक घबरा गया। क तु जब उसे यह पता चला क महाराज वयं उसके
खेत के पास िव ाम कर रहे ह और अपनी भूख िमटाने के िलए खेत से थोड़ी फिलयाँ तोड़ने
क आ ा चाहते ह तब उसके आ य का ठकाना न रहा। स ता से उसका दय भर
गया। मन-ही-मन वह िवजयनगर के महाराज कृ णदेव राय के ित ा से भर
गया-‘ कतने महान ह महाराज! वयं राजा ह मगर मुझ जैसे गरीब कसान क मेहनत का
स मान करते ह। वे चाह तो पूरे खेत क फिलयाँ तोड़ ल, कौन रोक सकता है उ ह मगर
उ ह ने ऐसा नह कया...’ और इसी तरह क अनेक बात सोचता आ वह दौड़ पड़ा उधर
िजधर महाराज के िव ाम के िलए त बू गाड़ा गया था।

महाराज के पास पहँ◌ुचकर वह कसान सा ांग दंडवत् क मु ा म आया तथा महाराज


से कहा, ‘‘महाराज! जापालक! आपको देखकर मेरे नयन तृ ए। यह रा य आपका, यह
खेत आपका, आप जापालक, म आपक जा। मुझसे आ ा लेने क कोई आव यकता
आपको नह थी मगर फर भी आपने एक गरीब कसान के म का जो मह व दया है
उसके कारण स दय तक पृ वी पर आपक यायि यता क मृित रहेगी।’’ इसके बाद वह
कसान खुद िसपािहय के साथ खेत म गया और फिलयाँ तोड़कर महाराज के सम
ापूवक तुत कया और फर महाराज से आ ा लेकर गाँव लौट गया।

पुनः थोड़ी देर के बाद वह आया। उसके साथ गाँव के कु छ लोग थे जो अपने साथ तरह-
तरह के पकवान लाए थे-महाराज के िलए और महाराज के अनुचर के िलए।

इतने स मान क क पना महाराज ने नह क थी। तेनाली राम यह सब देखकर मु कु रा


रहा था।

दूसरे दन जब महाराज वहाँ से अगले पड़ाव के िलए कू च करने लगे तब तेनाली राम का
घोड़ा उनके घोड़े के साथ-साथ चल रहा था। महाराज कृ णदेव राय ने तेनाली राम से
कहा, ‘‘तेनाली राम! तु हारे कारण कल रात अ छा भोजन ा आ। अब आगे देख या
होता है!’’

तेनाली राम ने कहा, ‘‘आगे भी अ छा ही होगा...और महाराज! इस गाँव के लोग वष


आपका गुणगान करगे और आपक यायि यता एवं ईमानदारी क कथाएँ कहगे जब क
आप जानते ह क आपने इनका िलया ही है, दया कु छ नह !’’
मृदभ
ु ािषता
महाराज कृ णदेव राय वृ हो चले थे। उनका वंश उन दन ब त तापी समझा जाता
था। वयं कृ णदेव राय क क त दूर-दूर तक फै ली ई थी। िवजयनगर क जा अपने
महाराज के ित अगाध ा रखती थी। महाराज कृ णदेव राय ने भी जीवनपय त अपनी
जा क भलाई के िलए काय कया था। जगह-जगह याऊ बनवाए, कु एँ खुदवाए, नहर
खुदवा । तीज- योहार के अवसर पर जा के बीच आव यक व तुएँ बँटवा । ऐसा
जापालक उस काल म कोई दूसरा राजा नह था। ले कन इतनी याित और स मान
अ जत करने के बाद भी महाराज कृ णदेव राय दुखी थे। ि थित ऐसी थी क वे अपना दुख
कसी से भी नह कर पाते थे। महाराज का दुख अपने जामाता (दामाद) के कारण
था। उ ह ने अपनी पु ी का िववाह ब त धूमधाम से कया था। िववाह से पूव उ ह ने
अपने जामाता के िवषय म पूरी जानकारी खु फया िवभाग से कराई थी। उनका जामाता
ब त िशि त था। शा का अ ययन कया था उसने और अ पवय म ही शा ाी क
उपािध ा कर ली थी। अ ा-श ा संचालन क कला म वह मािहर था। घुड़सवारी म
वैसे ही पारं गत। शरीर से बलवान। स र ा। इतने गुण के बाद भी उनके कसी भी
स ब धी को उनका जामाता ि य नह लगा। िववाह के कु छ दन के बाद ही उनक पु ाी
दुखी रहने लगी। अपनी पु ी के दुखी रहने के बारे म जब महाराज को जानकारी िमली तो
वे बेचैन हो उठे और िवजयनगर म एक राजसी महो सव आयोिजत कर अपनी पु ी और
जामाता को इस अवसर पर िवजयनगर आने का आमं ण दया।

िनयत ितिथ को महाराज कृ णदेव राय के आमं ण पर उनके बेटी- दामाद िवजयनगर
पहँ◌ुच।े महो सव तो उ ह बुलाने का बहाना था। महाराज ने बेटी-दामाद के आगमन के
बाद महो सव को मरणीय बनाने के िलए रा य भर के कलाकार को जुटाया। आन द क
मानो हर ओर वृि हो रही थी। महाराज ने ब त ग भीरता से अपने दामाद के काय-
कलाप का अ ययन भी कया। उ ह अपने दामाद म कोई कमी दखाई नह दी। महो सव
के समापन के बाद उ ह ने अपनी पु ाी से पीि़डत रहने का कारण जानना चाहा तब पु ाी
ने बताया क वह अपने पित के कटु वचन से आहत होती है। ऐसे तो उसके ित उसके पित
का वहार ठीक है मगर वह कड़वा सच बोलने का अ यासी है। उसके इस अ यास के
कारण उससे सभी घबराते ह।

महाराज को पु ी क पीड़ा का कारण समझ मं◌े आ गया।

दूसरे दन महाराज ने अपने दामाद को ेहपूवक बुलाकर अपने पास िबठाया और कहा,
‘‘पु ा! अब म वृ हो चला हँ◌ू। राज-काज सँभालते ए वष बीत चुके ह। म चाहता हँ◌ू
क तुम इसी तरह महीने-दो महीने के िलए आ जाया करो ता क इस रा य के बारे म भी
तु ह आव यक ान हो जाए।’’

महाराज क बात सुनकर उनके दामाद ने ब त ही िन व भाव से कहा, ‘‘ सुर जी!


वृ तो सभी होते ह। जो ज मा है वह हमेशा िशशु तो नह रहेगा...बड़ा होगा और अपना
दािय व सँभालेगा और एक दन वृ भी होगा और मरे गा भी। इसम ऐसी कोई बात नह
है क आप अपने दािय व के िनवाह के िलए मुझसे सहयोग क अपे ा रख। मेरी अपनी
दनचया और अपने दािय व ह।’’

अपने दामाद क बात सुनकर महाराज अचरज म पड़ गए। उ ह िव ास हो गया क


उनक पु ाी ठीक ही कह रही थी। मन-ही-मन िचि तत रहते ए उ ह ने दामाद से थोड़ी
देर तक सामा य औपचा रकता क बात क और फर उससे िव ाम करने को कहकर वयं
अपने क म चले गए। उनक ाकु लता बढ़ चली थी। उ ह समझ म नह आ रहा था क
वे अपनी पु ाी क सम या का समाधान कर तो कै से कर। वे अपनी पु ाी को ब त यार
करते थे इसिलए उसक परे शानी से और भी परे शान हो उठे थे। महाराज का मन कह भी
नह लग रहा था। दरबार म भी उनका वही हाल रहा। मन म अवसाद हो तो कह भी,
कु छ भी अ छा नह लगता है।

तेनाली राम महाराज क मनःि थित का अनुमान लगा चुका था। महाराज कस कार
क िच ता म हो सकते ह - इस बात का अनुमान वह नह लगा पाया था। दरबार स प
होने के बाद जब सारे सभासद लौट गए तब तेनाली राम ने महाराज के पास जाकर उनसे
उनक बेचैनी का कारण पूछा।

अब तक तेनाली राम महाराज का अ तरं ग हो चुका था। दरबार म उसक हैिसयत भले
ही िवदूषक क थी क तु अब वह महाराज का अन य सलाहकार भी बन चुका था।
महाराज ने तेनाली राम को अपनी पु ी क था-कथा और दामाद क कटु वाणी के बारे
म पूरी बात बता द । इससे महाराज का मन हलका आ। उ ह िव ास था क सम या
उिचत ि तक पहँ◌ुच गई है और अब उसका समाधान भी सहजता से हो जाएगा।

तेनाली राम ने महाराज को दलासा दया क ज दी ही सब कु छ ठीक हो जाएगा, और


महाराज से िवदा लेकर अपने घर लौट आया।

महाराज दरबार म बैठे थे। दरबार क कारवाई स प हो चुक थी। सभी सभासद जा
चुके थे। हरीगण इस बात क ती ा म थे क महाराज िव ाम के िलए भवन जाएँ तब
वे भी दरबार का ार ब द कर अपने घरां◌े क ओर थान कर।

महाराज अपने संहासन पर बैठे िवचार कर रहे थे। तीन दन हो गए तेनाली राम से
पु ी और जामाता के स दभ म बात कए। मगर अब तक तेनाली राम ने कु छ कया नह ।
महाराज िवचारम भी थे और उदास भी य क उ ह कोई दूसरा उपाय भी समझ म नह
आ रहा था। आज सुबह ही ई एक घटना से महाराज क िच ता बढ़ गई थी। सुबह कोई
काम करते समय उनक पु ी क हथेली म काँटा चुभ गया िजसक पीड़ा से वह चीख पड़ी।
चीख इतनी तेज थी क महाराज अपने क से बाहर िनकल आए क तु पु ी के पास ही
एक आसन पर िवराजमान उनका दामाद अपने थान से िहला भी नह और आसन पर
बैठे-बैठे ही बोला, ‘‘चीखने से काँटा नह िनकलेगा। असावधान रहकर कु छ भी करोगी तो
ऐसे ही प रणाम सामने आएँग।े भिव य म सावधान रहना सीखो। सुना नह है-सतकता
गई, दुघटना ई।“

उनक पु ाी ने अपनी हथेली से काँटा िनकालने का यास करते ए कहा, ‘‘ कतने


संवेदनहीन हो तुम!’’

‘‘मने कु छ भी अ यथा नह कहा। तुम असावधान थ इसिलए काँटा चुभा। इसम


संवेदनहीनता कहाँ से आ गई! दद तु ह हो रहा है। उसके प रणाम व प तु ह कसी क
शाि त भंग करने का अिधकार तो नह िमल गया। भिव य म कु छ भी करो तो सावधान
होकर।’’ महाराज के दामाद ने कहा।

महाराज ने देखा, उनक पु ाी िससकते ए अपनी हथेली से काँटा िनकालने का यास


कर रही है और उनका दामाद अपने थान पर बैठा एक पु तक पढ़ रहा है। उ ह ने उन
दोन के बीच ए संवाद को भी सुना था। उनक िच ता का कारण भी यही था। महाराज
को समझ मं◌े नह आ रहा था क अपने दामाद को लोक- वहार का ान कै से द। बात
उसने ठीक कही थ । उसक नसीहत भी समयानुकूल थी। मगर उसका वहार ि थित
िवशेष के अनु प नह था।

अपने संहासन पर बैठे महाराज के मन मं◌े ऊहापोह के बादल मँडरा रहे थे। महाराज
अपनी पु ाी से ब त यार करते थे इसिलए वे चाहते थे क उसके पित को सीधे कु छ कहे
िबना ही लोक- वहार क िश ा दी जाए। मगर कै से? यही बात महाराज क समझ म
नह आ रही थी। महाराज को बार-बार तेनाली राम का मरण हो रहा था। मन म तरह-
तरह क आशंकाएँ उठ रही थ । एक शंका यह भी थी क कह तेनाली राम उनक सम या
ही न िव मृत कर बैठा हो। जब मन मं◌े शंका उठती है तो ा के पा के ित भी अ ा
का भाव उ प हो जाता है। महाराज के साथ भी ऐसा ही आ। उ ह ने त काल ह रय
को बुलाकर िनदश दया क तेनाली राम जहाँ कह भी ह , उ ह अिवल ब महल म मेरे
सम उपि थत होने क सूचना दो।

राि के थम हर म तेनाली राम महाराज के िनदशानुसार उनके महल म उपि थत


था। वह अपने साथ एक थैला भी लेकर आया था। महाराज ने जब तेनाली राम को देखा
तो उनके दय क शंका का वतः िनवारण हो गया। उ ह ने तेनाली राम को अपने पास
बैठाया और सुबह क घटना उसे सुना दी।
सब कु छ सुनने के बाद तेनाली राम ने महाराज से कहा, ‘‘महाराज! जो हो गया, उसके
िलए प ा ाप नह । असल म आपके जामाता पु तक म ही रमे रहे ह। उ ह बा जगत
क ावहा रकता का बोध नह है िजसके कारण वे वैसी बात भी कह देते ह जो लोक-
वहार के अनुकूल नह । ले कन िव ास कर, यह सम या अब एक-दो दन क मेहमान
है। अब तक म इसी सम या के समाधान के िलए अपने ढंग से यास करता रहा हँ◌ू। कल
शाम को आप जामाता के साथ हमारे घर पधार। अभी तो थोड़ी देर के िलए उ ह बुलवाएँ
ता क म वयं उ ह आमं ाण दे दँ◌ू।“

महाराज को तेनाली राम पर िव ास था। इसिलए वयं जाकर वे अपने दामाद को लेकर
अपने क मं◌े आए, जहाँ तेनाली राम उनक ती ा कर रहा था।

महाराज ने अपने दामाद का प रचय तेनाली राम से कराया।

तेनाली राम ने महाराज के दामाद को अपने गले से लगाया। फर अपने झोले म हाथ
डालकर एक छोटा-सा फल िनकाला बोला, ”हम लोग के यहाँ क पर परा है क जब हम
दामाद से पहली बार िमलते ह तो उसे अपने हाथ से फल िखलाते ह।“

उसके अनुरोध पर महाराज के दामाद ने मँ◌ुह खोला और तेनाली राम ने वह फल उसके


मँ◌ुह म डाल दया। फल कड़वा था। महाराज का दामाद उसे थूकना चाह रहा था मगर
तेनाली राम ने उसे ऐसा करने से रोक दया। अ ततः दामाद को वह फल िनगलना पड़ा।
फल िनगलने पर कड़वेपन के कारण उसका मँ◌ुह िवकृ त सा हो उठा िजसे देखकर तेनाली
राम ने कहा, ‘‘अरे ! तुम अपने इस सु दर मँ◌ुह को िवकृ त य कर रहे हो...देखो, सामने
आईने म कै सा लग रहा है तु हारा चेहरा!’’

दामाद ने कहा, ‘‘इतना कड़वा फल िखलाया आपने तो उसका भाव चेहरे पर पडे़गा
ही।’’

तेनाली राम ने कहा, ‘‘अरे पु ा! कड़वा-मीठा का स ब ध तो जीभ से है। उसका चेहरे


पर भला असर य होगा? खैर, जाने दो। अब यह फल खाओ।“ इस बार तेनाली राम ने
एक दूसरा रसदार छोटा फल दामाद के मँ◌ुह म डाल दया।

दामाद का चेहरा फल मँ◌ुह म रखते ही िखल गया।

तेनाली राम ने कहा, ‘‘यह फल कै सा है?’’

‘‘अ छा!’’ दामाद ने उ र दया।

इसके बाद तेनाली राम ने महाराज और उनके दामाद को अपने घर आने का आमं ाण
दया।

दूसरे दन तेनाली राम अपने आवास पर इन लोग क आवभगत म लगा आ था, उसी
समय उसके दरवाजे पर एक वृ मिहला अपने पौ के साथ आकर खड़ी हो गई। उसके
पौ ने ऊची आवाज म पुकारा, ‘‘अरे ! इस घर म कौन रहता है...बाहर आओ।’’

पौ क आवाज ब त ककश थी। तभी सभी ने सुना, बुि़ढया अपने पौ ा को समझा रही
थीदृ‘इस तरह कसी को आवाज दोगे तो उसक ित या भी वैसी ही होगी और तु ह भी
जवाब िमलेगा-बाहर िनकलो। ठहरो! देखो! अब म बुलाती हँ◌ू-कोई है बेटा...जरा बाहर
आना...इस िववश बुि़ढया क बात तो सुनते जाना...।’

त काल तेनाली राम बाहर िनकला। उसने बुि़ढया क बात सुनी फर दोन को क मं◌े
लाकर बैठाया तथा उनके िलए सु वादु भोजन मँगवाकर परोस दया।

बु ढया और उसके पौ ा ने भोजन कया। तृ ए। तब तेनाली राम ने बुि़ढया से कहा,


‘‘माँ! तेरा पोता ब त ककश वर म कड़वी बात बोलता है।’’

‘‘हाँ, बेटा! मगर समझ जाएगा। अभी इसने दुिनया नह देखी है। वही दखाने ले जा रही
हँ◌।ू मने आज इसे यही समझाया है क कड़वे और मीठे का बोध सीधे जीभ को होता है।
कड़वे का वाद िवर करता है जब क मीठे से तृि िमलती है। ऐसी ही ि थित वाणी क
है। वाणी का स ब ध भी िज ना से है। मँ◌ुह से िनकली बोली वयं पर नह , दूसर पर
असर करती है। मीठा बोलोगे तो मीठी ित या होगी और कड़वा बोलोगे तो कड़वी।’’
वृ ा ने कहा।

तेनाली राम ने वृ ा को िवदा कया। महाराज समझ चुके थे क यह एक सो े य


ायोिजत दृ य था िजसका योजन उनके दामाद को बोध देना था। फर भोजन आ द
करने के बाद जब महाराज तेनाली राम के आवास से िवदा ए तब तेनाली राम ने उनके
जामाता को ढेर उपहार देकर िवदा कया।

रा ते भर महाराज मौन रहे। वे देखना चाहते थे क तेनाली राम के यास का या असर


आ है। महल पहँ◌ुचकर उ ह सुखद आ य आ जब उनके दामाद ने िवन तापूवक पूछा,
‘‘मेरे िलए या िनदश है?’’

फू ले न समाते ए महाराज ने उसे िव ाम करने जाने क आ ा दे दी।

दूसरे दन उनक पु ी ने आकर महाराज से बताया क उसका पित इस तरह बदल चुका
है क अब क पना भी नह क जा सकती क कभी वह अ ावहा रक भी रहा होगा। उसने
िव नल होकर पूछा, ‘‘मगर िपता ी, यह चम कार आ कै से?’’
महाराज ने मु कु राते ए कहा, ‘‘एक कड़वे फल से!’’
स ीप नवखंड
िवजयनगर-महाराज कृ णदेव राय का सा ा य । धन-धा य से प रपूण इस रा य क
समृि क चचा दूर-दूर तक होने लगी। िवजयनगर के वैभव ने पड़ोसी राजा को च कत
कर रखा था। सभी जानना चाहते थे क िवजयनगर क समृि और वैभव का रह य या
है।

िवजयनगर के पास ही ‘स ीप नवखंड’ नाम का एक वैभवशाली रा य था। मा यता थी


क ाचीन काल म िवजयनगर के पा व से एक वेगवती नदी गुजरती थी िजसके बीच म,
जगह-जगह पर पाषाण-खंड उभरे ए थे। काला तर म नदी का पानी कम होने लगा और
ये पाषाण खंड ीप के प म कट होने लगे। एक समय ऐसा भी आया जब यह नदी सूख
गई और वहाँ िनजन थल कट हो गया। नदी के सूखते-सूखते कट ए ीप क सं या
सात थी इसिलए उस िनजन थान को ‘स ीप’ के नाम से स बोिधत कया जाने लगा।
नदी के सूखने या लु हो जाने के बाद कट ई धरती को ‘नवखंड’ क सं ा दी गई। इस
कार इस िनजन थल को ‘स ीप नवखंड’ कहा जाने लगा।

‘स ीप नवखंड’ एक ऐसा थान था जहाँ च ान अिधक थ । इसिलए खेती पर िनभर


मनु य को यह िनजन थल अपनी ओर आक षत नह कर पाता था क तु नदी के िवलु
होने के कारण कट ई धरती म अ भुत उवरा शि थी। कु छ ही व ष म ‘स ीप
नवखंड’ क धरती ह रयाली से ढँक गई। िविभ कार क वन पितयाँ वहाँ उग आई थ ।
शी ता से बढ़नेवाले पौध ने ज दी ही पेड़ का प ले िलया। वन पितय म फू ल और फल
लगने लगे। पेड़ पर िचि़डय ने पनाह लेना आर भ कर दया। यह इस नवखंड क वह
अव था थी जब उधर से गुजरनेवाले याि य को यह िनजन वन थल अपनी ाकृ ितक
स पदा क ओर आक षत करने लगा।

धीरे -धीरे वहाँ लोग आकर बसने लगे। ‘स ीप नवखंड’ नाम से िस यह थल अब


मनु य के रहने यो य बनाया जाने लगा। च ान तरासी ग । समतल भूिम पर िबछे घास-
फू स क जगह धान क ह रयाली छाने लगी। गे ,ँ म ा, वार, बाजरा जैसे मानवोपयोगी
अनाज उगाए जाने लगे। झाड़-झंखाड़ के थान पर फलदार वृ के पौधे लगाए जाने लगे।
इस तरह ‘स ीप नवखंड’ क धरती अपने ाकृ ितक ऐ य से ओत- ोत हो गई। वहाँ
बसनेवाले लोग कसी एक ा त के नह थे। िविभ ा त से आकर बसे लोग के साथ
कोई वंशावली नह थी। कोई ‘वंश-वृ ’ नह था। वे सबके सब अपना अतीत छोड़ आए थे।
वंश-बंधु से दूर थे। इसिलए इस ‘स ीप नवखंड’ म एक िमि त सं कृ ित का अ युदय
आ। पर पर सहयोग क सं कृ ित! साहचय क सं कृ ित! समु य ा करने के िलए सतत
कमशील रहने क सं कृ ित!
जहाँ एक-दूसरे क गित- गित का यान रखनेवाले लोग बसते ह वहाँ वैभव वयं कट
होता है। ऐसा ही आ ‘स ीप नवखंड’ म। वहाँ फल- फू ल और अनाज का चुर उ पादन
होने लगा। ‘स ीप नवखंड’ से फल- सि जयाँ और अनाज पड़ोसी रा य के लोग
खरीदकर ले जाने लगे। इस तरह ‘स ीप खंड’ म ापा रक-संरचना’ भी तैयार होने
लगी। पर पर सहयोग पर िनभर वहाँ के िनवािसय ने अपने िलए एक शासन णाली भी
िवकिसत कर ली। इस तरह ‘स ीप नवखंड’ ने एक रा य का प अि तयार कर िलया।

चँ◌ू क िवजयनगर के पास ही बसा आ था यह स ीप नवखंड इसिलए वहाँ क


ापार णाली और शासन णाली दोन पर िवजयनगर का भाव था। िवजयनगर के
िशि पय ारा िन मत िविवध साम ी ‘स ीप नवखंड’ को भेजी जाती और बदले म
वहाँ से साग-स जी, फल और अनाज िवजयनगर के िलए आता। महाराज कृ णदेव राय के
पूवज के समय से ही यह िविनमय-पर परागत चल रही थी। महाराज कृ णदेव राय के
समय म स ीप नवखंड लोक-सम थत महाराज थे िविच भानु! महाराज िविच भानु
म ऐ य क िल सा अिधक थी। उ ह ने अपने रा य क सीमा को सुरि त करने के िलए
सै य-दल का गठन कया। उनसे पूव िजस कसी का शासन स ीप नवखंड रा य पर आ,
उसने रा य के ापा रक स ब ध को सुदढ़ृ बनाने का ही काम कया था। कसी भी रा य
से आनेवाले याि य को रा य म वेश क खुली सुिवधा थी। िविच भानु ने शासन
सँभालते ही कई तरह क िनषेधा ा जारी क । उसके स ा म आते ही रा य म वेश
करनेवाले ापा रय से वािणि यक शु ल क वसूली अिनवाय कर दी गई। ‘स ीप
नवखंड’ म वािणि यक वेश पर शु क लगाए जाने के प रणाम व प कई पड़ोसी रा य
से उसके राजनियक- स ब ध सामा य नह रह गए। महाराज िविच भानु क धन-िल सा
बढ़ती गई। उसने अपनी जा से भी िविभ मद म शु क लेने का चलन आर भ कया।

महाराज िविच भानु के इन कदम से ‘स ीप नवखंड’ क जा म ोभ उ प होने


लगा। जा क ित या से बेपरवाह महाराज िविच ा भानु अपनी ही गित से बढ़ रहा
था। उसने अपने सै य बल क थापना के बाद एक गु चर संगठन क आव यकता भी
महसूस क और शी ही उसके रा य म पहली बार ‘गु चर संगठन’ क संरचना तैयार हो
गई। उसका दप बढ़ रहा था। वह गु चर संगठन से िमलनेवाली सूचना के आधार पर
अपनी नीितयाँ िनधा रत करने लगा। ‘स ीप नवखंड’ म पहली बार ऐसा आ जब राजा
और जा के बीच सीधे संवाद क राह ब द हो गई। पहले स ीप नवखंड का राजा कसी
भी काय के आर भ से पहले जा क राय लेना आव यक समझता था। िविच भानु के
शासनकाल म जा-राजा संवाद क प रपाटी का पटापे हो गया।

अपनी ही धुन म म महाराज िविच भानु अब अपने सै य बल और गु चर संगठन के


बूते वे छाचारी होने लगा। वह जहाँ कह भी जाता उसके आसपास चुिन दा लड़ाक का
सश ा द ता उसक सुर ा के िलए तैनात रहता। ‘स ीप नवखंड’ क जा पर
अ याचार बढ़ने लगा। शु क वसूली के कारण रा य म राज व क वृि अव य हो रही थी
क तु जा सुखी नह थी। िनषेधा ा के कारण ‘स ीप नवखंड’ म ापा रय का आना-
जाना कम होने लगा। पड़ोसी रा य म जहाँ कह भरे स ीप-नवखंड से वनोपज का
िनयात होता था वहाँ अब स ीप नवखंड के ापा रय का मह व कम होने लगा।
गु चर संगठन से रा य क लगातार कम होती साख क सूचना िमलने पर महाराज
िविच भानु को समझ म नह आया क उसके रा य के ित पड़ोसी रा य के वहार म
आए प रवतन का कारण या है। उसने मन-ही-मन तय कर िलया क वह इस प रवतन
का कारण जानने के िलए पड़ोसी रा य म अपने गु चर का एक सव ण द ता भेजेगा।
यह द ता अ य बात के अलावा यह भी पता करे गा क वहाँ बसे सभी रा य म सबसे
लोकि य शासक कौन है तथा सबसे वैभव-स प रा य कौन-सा है? अपने इस िनणय तक
प चँ ने म महाराज िविच भानु ने अपने मंि य , दरबा रय अथवा जाजन से कोई
सलाह लेने क आव यकता भी नह महसूस क । अपनी सनक म वह गु सूचनाएँ ा
करता रहा।

‘सव ण द ता’ तैयार करने के मंसूबे को अमली जामा पहनाने के िलए उसने अपने
गु चर को बुलाया और उनसे बातचीत करते ए कु छ गु चर को पड़ोसी रा य के
आ त रक सव ण के िलए भेज दया। इन गु चर को िनदश िमला क वे स ब रा य म
जाएँ और वहाँ सामा य नाग रक क तरह रहकर यह जानने का य कर क वहाँ क
जा और राजा के बीच कै सा स ब ध है। या उस रा य क जा खुशहाल है? या जा के
बीच राजा लोकि य है? ऐसे ही अनेक का उ र जानने के िलए गु चर के सव ण
द ते के सद य आस-पास के रा य म वेश कर गए। उ ह अिधकतम छः माह क अविध म
अपना सव ण काय पूरा कर लेने का िनदश िमला था।

छः माह क अविध पूण ई। ‘स ीप नवखंड’ के गु चर पड़ोसी रा य से लौटे।


महाराज िविच भानु को गु चर ने एक क गई सूचनाएँ स प । इन सूचना के
अ ययन से उसे ात आ क पड़ोसी रा य िवजयनगर सबसे वैभवशाली रा य है। वहाँ
क जा खुशहाल है और वहाँ के राजा महाराज कृ णदेव राय अपने रा य म तो सवािधक
लोकि य ह ही, आस-पास के रा य म उनके जैसा लोकि य राजा कोई नह है।

सव ण द ते से िमली सूचना के िन कष से महाराज िविच भानु आहत आ। इन


सूचना से उसके अिभमान को ठे स प च
ँ ी थी। अब उन पर यह जानने क सनक सवार हो
गई क िवजयनगर म ऐसा या है िजससे वहाँ के लोग खुशहाल ह?

सव ण द ता एक बार फर स य हो उठा। कु छ दन म ही महाराज िविच भानु को


सव ण द ते का सव ण-िन कष ा आ क िवजयनगर के लोग प र मी ह। ायः
येक घर म रोजगार का कोई न कोई पर परागत साधन है। वहाँ कपड़े बुननेवाल का
गाँव है तो िम ी के बतन बनानेवाल का गाँव भी। लोहे का काम करनेवाल का गाँव है तो
सोना और चाँदी का काम करनेवाल का भी। पूरे िवजयनगर म कु टीर और लघु उ ोग
का जाल िबछा आ है। खेत-खिलहान म काम करनेवाले लोग के पास भी कोई न कोई
पार प रक ध धा अव य है। िवजयनगर के सभी गाँव म एक सा य यह भी है क वहाँ के
येक प रवार के पास दुधा पशु उपल ध ह। गाय, भं◌ैस, बकरी हर प रवार म है
इसिलए दूध, दही, घी, म खन आ द क ब तायत है। िवजयनगर के महाराज कृ णदेव
राय के पास भी एक समृ गोशाला है। दु ध-उ पाद को िवजयनगर के वैभव का मु य
आधार माना जाता है। दु ध-उ पाद क चुरता और उपल यता से ही िवजयनगर के
िनवासी -पु -त दु त ह। वहाँ ऐसे लोग क कमी नह है जो हािथय से भी ट र लेने
क साम य रखते ह।

महाराज िविच भानु ने जब सव ण दल का यह िन कष सुना तब िचि तत हो उठा।


उसने तो वयं को ही सबसे साम यवान राजा मान िलया था। सव ण दल से िवजयनगर
के महाराज कृ णदेव राय के बारे म उसे जो जानका रयाँ िमल उससे वह उ िे लत हो
उठा। वयं को सबसे तापी मानने का दंभ पालनेवाले कभी भी अपने आगे कसी अ य क
शंसा वीकार नह कर पाते ह। महाराज िविच भानु का भी यही हाल था। उसम िवज
यनगर क समृि के ित ई या का भाव जा त् आ। ई या म पड़े सामा य मनु य क
तरह वह भी ितल-ितल कर जलने लगा। अ ततः उसने अपने गु चर संगठन को िनदश
दया क संगठन के सद य कोई ऐसी तरक ब अपनाएँ िजससे िवजयनगर के लोग अपनी
गाय को शी ता से बेचने का िनणय लेने के िलए बा य हो जाएँ।

और इस कार ‘स ीप नवखंड’ का गु चर संगठन पड़ोसी रा य िवजयनगर म स य


हो गया।

एक दन महाराज कृ णदेव राय अपने दरबार म बैठे ए थे। आम दन क तरह दरबार


म काम-काज चल रहा था। दरबार म चचा चल रही थी क िवजयनगर के गाँव म इन
दन एक ही चचा चल रही है क कोई भीषण सं ामक रोग से आस-पास के रा य म
मवेशी मर रहे ह। आम तौर पर यह रोग -पु गाय पर तेजी से असर डालता है। बैल
और बछड़ पर कम। ामीण इस सं ामक रोग के बारे म सुनकर आतं कत हो उठे ह क
कह इस रोग से भािवत होकर उनक गाय न मर जाएँ!

महाराज कृ णदेव राय के कान म जब यह बात पड़ी तो उ ह ने सं ामक रोग क चचा


करनेवाले दरबारी को टोक दया, ‘‘सुकेतु! फर से बोलना, गाय को कौन-सा रोग लग
रहा है? ामीण म कै सा आतंक ह?’’

महाराज कृ णदेव राय म अपनी जा के ित संवेदनशीलता थी इसिलए जा से जुड़ी


छोटी-से-छोटी बात पर वे यान देते थे। उनके टोकते ही उनका दरबारी सुकेतु अपने थान
से उठा और बोला, ‘‘महाराज! मेरे गाँव के लोग डरे ए ह क उनक गाय को कोई छू त
का रोग नह लग जाए! पूरे गाँव म इन दन इस बात क चचा हो रही है क एक रोग
ब त तेजी से फै ल रहा है। इस रोग के भाव म आने के बाद गाय तुर त मर जाती है। और
िजस गाँव म इस रोग से एक गाय मरती है तो फर उस गाँव म ताबड़तोड़ गाय के मरने
का िसलिसला आर भ हो जाता है। यह िविच रोग आम तौर पर पूण व थ गाय पर ही
अपना भाव तेजी से डालता है!’’

‘‘...तो तुम यह कहना चाहते हो क तु हारे गाँव म गाय क महामारी फै ल गई है?’’


महाराज कृ णदेव राय ने पूछा।

‘‘जी हाँ, महाराज!“ सुकेतु ने उ र दया।

महाराज ने इशारा करके सुकेतु को बैठ जाने का संकेत कया। सुकेतु अपने आसन पर बैठ
गया।

इसके तुर त बाद एक अ य दरबारी ने कहा, ‘‘महाराज! इस तरह क चचा मेरे गाँव म
भी हो रही है।’’

पुनः कु छ अ य दरबा रय ने भी समान सूचना महाराज को दी। उस समय दरबार म


तेनाली राम भी उपि थत था। दरबार म हो रही चचा से महाराज कृ णदेव राय
िचि तत हो उठे । महाराज के चेहरे पर िच ता क रे खाएँ देखकर तेनाली राम स य आ।
अपने आसन से उठकर उसने सभासद से पूछा, ‘‘ य भाइयो, आपम से और कसी ने
गाय क महामारी के बारे म सुना है?’’

कई वर उभरे , ‘‘मने! मने! मने!’’

तेनाली राम ने फर एक सवाल कया, ”ब धुओ! या आपम से कसी ने महामारी से


कह गाय को मरते देखा है?’’

दरबार म स ाटा छा गया। कसी ने तेनाली राम के इस का सकारा मक उ र नह


दया। तेनाली राम क मुखमु ा ग भीर हो गई। उस दन दरबार के समापन तक महाराज
और तेनाली राम दोन ग भीर बने रहे। महाराज िचि तत थे क उनके रा य के मवेिशय
पर कसी अनजाने सं ामक रोग का खतरा मँडरा रहा है...और तेनाली राम इस घटना म
कसी ष ं ा क स भावना पर िवचार कर रहा था।

दरबार के समापन के बाद जब सभी सभासद लौट गए तब महाराज कृ णदेव राय ने


तेनाली राम से पूछा, ‘‘तेनाली राम! या तुमने कभी ऐसे रोग के बारे म सुना है िजसका
कोप के वल व थ और -पु गाय पर ही होता हो? इतनी अव था हो जाने के बाद
भी मने पहले ऐसी महामारी के बारे म नह सुना!...तुमने सुना हो तो बताओ!...यह एक
ग भीर सम या है और इस सम या को सुलझाना मेरा कत है! राज-धम है!’’

महाराज क बात सुनकर तेनाली राम ने कहा, ‘‘नह महाराज! इससे पहले मने कभी
इस तरह क कसी महामारी के बारे म नह सुना है ले कन आप िच ता नह कर, शी ही
स ाई सामने आ जाएगी। य द कोई रोग है तो उसका िनदान राजवै िनकाल ही लगे...’’

‘‘...और हम हाथ पर हाथ धरे तब तक बैठे रह?’’ महाराज कृ णदेव राय ने कु िपत वर
म पूछा।

‘‘नह महाराज! मुझ पर भरोसा कर। म स य हो चुका ।ँ तब ही मने िनवेदन कया है


क शी ही स ाई सामने आ जाएगी। अभी म इससे अिधक कु छ भी कहने क ि थित म
नह ।ँ ’’ तेनाली राम ने िवन ता के साथ महाराज कृ णदेव राय से कहा।

तेनाली राम का उ र सुनकर महाराज मौन हो गए। वह उनसे आ ा लेकर अपने घर


वापस आ गया। वह िचि तत था। पता नह य , उसका दमाग यह वीकार नह कर पा
रहा था क कोई ऐसा रोग भी होता है जो के वल व थ गाय को अपनी चपेट म लेकर
पल म उसे मार डालता है ..ऐसा तो सपदंश म भी नह होता!

दूसरे दन महाराज कृ णदेव राय का दरबार लगा आ था। सभी सभासद अपने आसन
पर िवराजमान थे। महाराज कु छ िवल ब से आए। दरबार म चचा चल रही थी क
िवजयनगर के कु छ गाँव म मवेिशय के ापारी घूम रहे ह और ामीण ब त कम मू य
लेकर उनसे गाय बेच रहे ह। महाराज कृ णदेव राय तक जब यह बात प चँ ी तब उ ह ने
प ा ाप क मु ा म कहा, ”आह! अब यही होना था...।’’ िववश से महाराज कृ णदेव राय
ने तेनाली राम के आसन क ओर देखा। आसन र था। तेनाली राम दरबार म उपि थत
नह था। महाराज को एक कचोट-सी ई। वे इस समय तेनाली राम क आव यकता
ती ता से महसूस कर रहे थे।

दरबार म कामकाज चल रहा था। महाराज कृ णदेव राय बार-बार तेनाली राम के
आसन क ओर देख रहे थे। आसन र था। उस दन दरबार के समापन तक तेनाली राम
नह आया। दूसरे दन दरबार म तेनाली राम सश ा बल के जवान के साथ दरबार म
उपि थत आ। सश ा बल के जवान ने पाँच अजनिबय को रि सय म जकड़कर
महाराज के सामने तुत कया।

महाराज कृ णदेव राय को जब कु छ भी समझ म नह आया तब पूछा, “यह सब या है


तेनाली राम?”

तेनाली राम ने उ र दया, “महाराज!” यह सब एक बड़े ष ं का छोटा-सा िह सा है।


कृ पया इन िगर तार लोग को कारागार म डालने का आदेश द। इन लोग पर आरोप है
क ये भोले-भाले ामीण को झाँसा देकर उनक गाय ब त कम मू य पर खरीद रहे थे।
इस काम म एक बड़ा िगरोह काम कर रहा है। ये लोग उसी िगरोह के सद य हो सकते ह।“
थोड़ी देर क चु पी के बाद तेनाली राम ने कहा, ”महाराज! शेष बात याियक या के
समय हो जाएँगी। इन लोग को कारागार म डालने का िनदश द। इनसे बरामद ई गाय
को रा य क गोशाला म रखने क व था करा द। भिव य म गाय इन बदमाश के
अपराध का सा य बनगी। इन गाय के वा तिवक वािमय का नाम-पता आ द सुर ा
अिधकारी क पंजी म है। शेष बात म बाद म क ँ गा। अभी मुझे कु छ िवशेष काय करने ह
जो रा य-िहत म परम आव यक है इसिलए मुझे अनुमित द!”

महाराज कृ णदेव राय कोई ित या कर पाते, उससे पूव ही तेनाली राम मुड़कर
तेजी से दरबार के बाहर चला गया। दरबार म थोड़ी देर तक स ाटा छाया रहा। र सी म
बँधे लोग के आत वर से यह स ाटा टू टा, “महाराज! दुहाई हो महाराज! दुहाई!”

महाराज कृ णदेव राय ने पूछा, “ या कहना चाहते हो?’’

“महाराज, हम लोग पड़ोसी रा य के ‘स ीप नवखंड’ के मवेशी ापारी ह। आपके


रा य म आकर हम पहली बार मवेशी खरीद रहे थे क हम िगर तार कर िलया गया।
महाराज, हमने कोई अपराध नह कया है। हम ामीण ारा बताए गए मू य पर ही
उनसे उनक गाय खरीद रहे थे क हम पकड़ िलया गया और हमसे खरीदी गई गाय छीन
ली ग ! महाराज, याय कर!’’

महाराज कु छ कहते क महामं ाी ने अपने आसन से उठकर कया, ‘‘तुम स ीप


नवखंड के मवेशी ापारी हमारे रा य म मवेिशय के ापार के िलए कै से आ गए?
तु हारे रा य म तो ापा रय के वेश पर शु क िलया जाता है... फर दूसरे रा य के
समान सुिवधा तुम िनःशु क कै से ा कर सकते हो?’’

“...महाशय! आपके रा य म िविध-स मत दृि से कसी भी तरह के वेश शु क का


िनधारण नह आ है...य द होता तो हम वह वैधािनक शु क अव य चुकाते।’’

महाराज कृ णदेव राय को उस ि का उ र कसी रा य के सामा य नाग रक का


उ र नह लगा। उ ह ने महामं ी को मौन हो जाने का संकेत कया और सुर ा अिधकारी
को िनदश दया, ‘‘िगर तार लोग को कारागार म डाल दया जाए। तेनाली राम क
उपि थित म ही उनके अपराध अथवा दंड के बारे म कोई चचा होगी।’’

तीन दन के बाद महाराज कृ णदेव राय के दरबार म एक िविच दृ य देखने को िमला।


भरे दरबार म पाँच मिहला और पाँच पु ष को सुर ाक मय ने उपि थत कया। इन
सबके हाथ पीछे क ओर बँधे थे। महाराज के सामने उपि थत होते ही ये लोग दुहाई-दुहाई
िच लाने लगे। मिहलाएँ िवलाप करने लग । उनके िबलखने से पूरा दरबार ह भ रह
गया। महाराज कृ णदेव राय के दरबार म इससे पहले कभी भी ऐसा दृ य उपि थत नह
आ था। महाराज कु छ कहते या फर दरबा रय से कोई ित या उभरती, उससे पहले
ही तेनाली राम ने दरबार म वेश कया और अपने आसन पर बैठ गया।
महाराज कृ णदेव राय ने जब तेनाली राम क ओर देखा तो पाया क वह कसी गहन
िच ता म डू बा है।

महाराज कृ णदेव राय ने तेनाली राम को िच ता म डू बे देखकर पूछा, ‘‘ या बात है


तेनाली राम! आज कु छ िचि तत मु ा म हो? तीन दन तक यहाँ आए ही नह ...कोई
सूचना भी नह दी...’’

‘‘महाराज!’’ बीच म ही बोलते ए तेनाली राम ने कहा, ”अभी तो आप इन पाँच


जोड़ां◌े को अिवल ब कारागार म भेज द! इन लोग पर ामीण के बीच अफवाह
फै लाकर उ ह आतं कत करने का आरोप है। इनके अफवाह फै लाने के यास का पया
सा य मेरे पास है। मने इ ह इस काय म संल पाया है। शेष बात म बाद म क ँ गा।’’

महाराज कृ णदेव राय ने तेनाली राम के ग भीर भाव को भाँपते ए समझ िलया क
कोई ऐसी बात अव य है जो वह अ य दरबा रय के सम नह कहना चाहता है। महाराज
के िनदश पर पाँच जोड़ को कारागार म डाल दया गया।

महाराज कृ णदेव राय ने अिवल ब सभा िवस जत कर दी। फर तेनाली राम से कहा,
‘‘अब कहो तेनाली राम! कहाँ रहे तीन दन? या करते रहे?...और इतने ग भीर य
हो?’’

‘‘महाराज, िच ता क बात है। िवजयनगर म अराजकता फै लाने का यास हो रहा है।


अभी-अभी िजन जोड़ को कारागार म भेजा गया है वे सभी पड़ोसी रा य ‘स ीप
नवखंड’ के रहनेवाले ह। इससे पहले जो लोग मवेिशय क खरीद-िब के मामले म पकड़े
गए थे, वे लोग भी उसी रा य के रहनेवाले ह। महाराज! मने जो सूचनाएँ एकि त क ह
उनम सबसे िच ता क बात यह है क ‘स ीप नवखंड’ का राजा िविच भानु ब त ही
मह वाकां ी है और अपनी धन-लोलुपता के कारण उसने अपने रा य म िविवध शु क का
ावधान कया है िजससे उसक जा ा त है। इसम हमारे िलए यह सूचना सतक
करनेवाली है क पड़ोसी रा य ‘स ीप नवखंड’ म तेज गित से सश ा सेना का िवकास
हो रहा है। िवजयनगर के सीमा त े म ‘स नवखंड’ के सैिनक क गितिविधयाँ बढ़
रही ह। ऐसा तीत होता है क ‘स ीप नवखंड’ के सैिनक कसी साम रक तैयारी म ह,
इसिलए महाराज! मेरी सलाह है क सेनापित को आप ि थितय क सूचना दे द और उ ह
िनदश दे द क िवजयनगर क सीमा पर सै य चैकसी बढ़ा दी जाए। मह वाकां ी, धन-
लोलुप िविच भानु कब हमारी सीमा का अित मण करने को उ सुक हो जाए, कहा
नह जा सकता।’’ यह सब कहते समय तेनाली राम के चेहरे पर अपूव ग भीरता छाई ई
थी। उसक आँख म ऐसे दूर ा भाव थे िज ह देखकर यह सोचा भी नह जा सकता था
क तेनाली राम िवजयनगर के दरबार म एक िवदूषक मा है िजसका काम महाराज
कृ णदेव राय को हँसाना है, समय-समय पर दरबा रय को अपने चुटीले-हा य योग से
फु ि लत करना है।
महाराज कृ णदेव राय अभी तक तेनाली राम क बात ग भीरता से सुन रहे थे। उ ह ने
अपनी चु पी तोड़ते ए तेनाली राम से पूछा, ‘‘तेनाली राम! आिखर तुम इस ग भीर
िन कष पर कै से प च
ँ ?े ’’

‘‘महाराज!“ तेनाली राम ने उ र दया, ‘‘मने अपने िव त अनुचर को उस दन ही


‘स ीप नवखंड’ भेज दया था िजस दन मवेिशय को कम मू य पर खरीदने के यास म
कु छ लोग पकड़े गए थे। मेरे िव त अनुचर म िशि त गु चर जैसी साम य है। उ ह ने
‘स ीप नवखंड’ से सूचनाएँ एकि त क । इन सूचना से यह प हो गया क
िवजयनगर म ‘स दीप नवखंड’ के भे दए स य ह। महाराज! आप एक काय और
अिवल ब कर क िजतने भी लोग मेरे अनुरोध पर कारागार म डाले गए ह, उनसे कड़ाई से
पूछताछ कराएँ। अभी कई मह वपूण त य सामने आ जाएँगे!’’

महाराज कृ णदेव राय को तेनाली राम क यह सलाह पस द आ गई। उ ह ने तेनाली


राम से कहा, ‘‘ठीक है, तेनाली राम! अब कल बात ह गी! तुम अब अपना काय करो और
म अपना काय क ँ गा!“

तेनाली राम महाराज कृ णदेव राय का अिभवादन करके दरबार से लौट गया।

महाराज कृ णदेव राय से िमलने म य राि म सुर ा अिधकारी और कारागार


अिधकारी आए। गु मं णा क म बात होती रह । कारागार अिधकारी और सुर ा
अिधकारी को िवदा करने के बाद बाद महाराज कृ णदेव राय ने सुर ा हरी को एक
अित र घोड़े के साथ तेनाली राम के घर जाकर उ ह यथाशी बुला लाने के िलए कहा।

थोड़ी ही देर म सुर ा- हरी के साथ घोड़े पर सवार तेनाली राम वहाँ प च
ँ गया। उ ह
अिवल ब महाराज के ‘गु मं णा क ’ म वेश िमल गया।

महाराज कृ णदेव राय अपने आसन पर िवराजमान थे। उनक आँख लाल थ । रात भर
जगने क थकान के ल ण उनके चेहरे पर िवराजमान थे। तेनाली राम क ओर थक --ि
डालते ए उ ह ने उसे बैठने का संकेत कया। तेनाली राम एक आसन पर जैसे ही बैठा,
महाराज कृ णदेव अपने आसन से उठ खड़े ए और धीरे -धीरे चलते ए तेनाली राम के
पास आ गए फर तेनाली राम के क ध पर हाथ रखकर कहा, ‘‘तेनाली राम! तु हारा
अनुमान सही था। तु हारे ारा पकडे़ गए लोग ‘स ीप नवखंड’ रा य के गु चर संगठन
के सद य ह। वे पाँच जोड़े िवजयनगर के गाँव म यह अफवाह फै ला रहे थे क पड़ोसी
रा य म मवेिशय क महामारी फै ली है और इस माहमारी म व थ गाय ही मर रही ह।
इस अफवाह का उ े य यह था क लोग इस अफवाह से घबरा जाएँ और कम क मत म
अपनी गाय को बेचने के िलए तैयार हो जाएँ। मवेशी ापा रय का दल भी यहाँ स ीप
नवखंड के गु चर संगठन ने ही भेजा था। तु हारी यह सूचना भी सही है क िवजयनगर के
सीमा े ा म ‘स ीप नवखंड’ क सै य गितिविधयाँ िच ताजनक प से बढ़ गई ह। अब
मुझे परामश दो क हम या करना चािहए। िवजयनगर के इितहास म यु का अि त व
नह है। हमारी जा युयु सु नह है। हम शाि ति य ह क तु हम अपनी अि मता क र ा
करना भी जानते ह।’’

महाराज कृ णदेव राय क ग भीर और िच ता-बोिझल वाणी ने तेनाली राम को उ िे लत


कर दया। महाराज कृ णदेव राय का इतना स त वर उसने कभी नह सुना था। थोड़ी
चु पी के बाद सहज वर म तेनाली राम ने कहा, ‘‘महाराज! आप स ीप नवखंड के
महाराज िविच भानु को एक ितवाद प भेज िजसम कहा गया हो क ‘स ीप नवखंड
के ऐसे सभी गु चर िगर तार कर िलये गए ह जो िवजयनगर म अराजक गितिविधय म
संल थे। इन लोग पर कड़ी कारवाई होगी। य द ‘स रीप नवखंड’ के गु चर क
गितिविधयाँ नह रोक ग तो हम िववश होकर अपनी सुर ा के िलए कोई भी कदम
उठाने के िलए बा य ह गे। ऐसे म पड़ोसी रा य होने क मयादा का यान रखना हमारे
िलए आव यक नह रह जाएगा।’ प ा म यह स देश भी होना चािहए क ‘िवजयनगर के
सीमा तक पर चल रही स ीप नवखंड के सैिनक क गितिविधयाँ अिवल ब रोक जाएँ
अ यथा हम भी अपनी शि और साम य का दशन करने के िलए बा य होना पड़ेगा।’ ’’
इस बातचीत के बाद तेनाली राम घर लौट आया।

महाराज कृ णदेव राय का प जब स ीप नवखंड के राजा महाराज िविच भानु के


पास प चँ ा तब वह ोध से काँप उठा। उसे अपने बा बल और सै य संगठन पर ब त
घमंड था। ोधावेग म उसने िवजयनगर के महाराज के प वाहक दूत से कहा, ‘‘जाओ!
महाराज कृ णदेव राय को कहो क हमारे गु चर को अिवल ब कारागार से मु कर द
अ यथा प रणाम भुगतने के िलए तैयार रह। हम उ ह तीन दन का समय दे रहे ह। तीन
दन म हमारे आदमी हम तक नह प च ँ े तो प रणाम इतना भयंकर होगा क उसे
िवजयनगर क पीि़ढयाँ मरण करगी!’’

दूत ने लौटकर महाराज कृ णदेव राय को सारी बात बता । गु चर को छोड़ने का कोई
कारण नह था क तु यह महाराज कृ णदेव राय के िलए अिनणय क भी घड़ी
थी...िवजयनगर पर यु के काले अवसादकारी बादल मँडरा रहे थे।

ऐसी घड़ी म तेनाली राम ने महाराज कृ णदेव राय से कहा, “महाराज! आप इस संशय
म न पड़ क िवजयनगर के इितहास म यु कभी नह आ! जो कभी अतीत म नह आ
वह भिव य म नह होगा, ऐसा मानकर अिनणय म रहना उिचत नह । संशयमु होकर
सीमा क र ा का िनदश अपने सश ा सै य बल को द।”

तीन दन बीते। िवजयनगर क सीमा पर भीषण सं ाम मच गया। इस घनघोर यु म


स ीप नवखंड के राजा िविच भानु को वयं महाराज कृ णदेव राय ने परािजत कर
ब दी बना िलया।
यु ो माद के थमने के बाद िवजयनगर म एक िवजयो सव का आयोजन आ। इस
आयोजन म तेनाली राम एक ि पुं धारी ा ण के वेश म उपि थत आ। िवजयो लास म
िवजयनगर क जा भी शािमल थी।

महाराज कृ णदेव राय ने ‘स ीप नवखंड’ के बंदी राजा िविच भानु को भी उिचत


आसन देकर बैठाया।

यह समारोह सै य बल के उ साहव न के िलए था-इसिलए आयोजन म सेना के जवान


ारा िविवध सै य कला का दशन आ है। इस बीच ही एक पारदश पा म पानी
लेकर तेनाली राम मंच पर आया और बोला, “बंधुओ, यह जलपा ा िवजयनगर है।
िवजयनगर के िनवासी इसम भरे पानी क तरह ह िज ह कोई भी खंिडत नह कर सकता।
पानी िनकालो-थोड़ा-सा इस पा ा से...देखो इसम कोई ग ा नह पड़ेगा-पानी समानता म
बँटेगा- और यह पड़ोसी रा य स ीप नवखंड हमारे िलए इस पुि़डया क तरह है...”

तेनाली राम ने अपना दूसरा हाथ ऊपर उठाकर लोग को दखाया। उसक उँ गिलय म
एक पुि़डया दबी थी। तेनाली राम ने उस पुि़डया को पानी म डाल दया। पा का पानी
लाल हो उठा ले कन पुि़डया पानी म गल गई!... लोग हँसने लगे।

तेनाली राम ने फर लोग से पूछा, “समझे कु छ?”

भीड़ से समवेत वर उभरा, “िमट गया सत ीप नवखंड का अि त व!”

तभी स ीप नवखंड का महाराज िविच भानु अपने आसन से उठा और महाराज


कृ णदेव राय के स मुख घुटने के बल खड़ा होकर हाथ जोड़कर बोला, ‘‘महाराज! मेरे
अपराध मा कर!“ और इसके बाद उसके गले से कोई बोल नह फू टा।

महाराज कृ णदेव राय ने िविच भानु का क धा पकड़कर उठाया...उसी समय तेनाली


राम ने कहा, “और आर भ आ नया सह-अि त व!”

िवजयनगर क जा क तािलय क अनुगूँज के बीच महाराज कृ णदेव राय स ीप


नवखंड के राजा िविच भानु को मा कर अपने गले से लगा रहे थे।
वैभव क वा तिवकता
स ीप नवखंड रा य के राजा िविच भानु क यु -िपपासा शा त हो चुक थी।
िवजयनगर के साथ यु म उसे पराजय का मुँह देखना पड़ा था। उसक मा-याचना को
िवजयनगर के राजा महाराज कृ णदेव राय ने िजस स दयता से िलया था उसे देखकर
िविच भानु िवि मत रह गया था। महाराज कृ णदेव राय क उदारता से उसे यह बोध
आ था क कसी भी शासक के िलए अिभमान और अहंकार उिचत नह है। परा मी होने
का यह कदािप अथ नह है क बल- योग से अकारण कसी क अि मता पर चोट प च ँ ाई
जाए। इस पराजय के बाद वह ि थरिच से अपनी जा क भलाई के का य म लग गया।
सै य सामि य पर होनेवाला य अब कु एँ खुदवाने, तालाब बनवाने आ द का य पर
होने लगा। वह अपने रा य के ाम को राजधानी से जोड़ने के उप म म सड़कं ◌े बनवाने
लगा। िवजयनगर म उसने देखा था क वहाँ क जा अपने राजा, महाराज कृ णदेव राय
से कस तरह जुड़ी ई है-महाराज कृ णदेव राय उ सव के समय अपने जाजन से
आ मीयता से बात करते थे और जा के व र जन को तो वे नाम लेकर बुलाते थे...यह
ि थित दशाती थी क महाराज कृ णदेव राय सीधे अपनी जा के स पक म ह। इस िन कष
पर प च ँ ने के बाद महाराज िविच भानु ने अपना सुर ा घेरा िशिथल कया। अब वह
जा के िलए भी उपल ध था। स ाह के सात दन म एक दन ऐसा भी था िजस दन कोई
भी आदमी उससे सीधा स पक साध सकता था। अपना सरोकार बता सकता था। अनुनय-
िवनय कर सकता था।

इस तरह िविच ा भानु अपनी जा के बीच लोकि य होने लगा और एक दन ऐसा भी


आया जब उसे लगा क रा य क र ा के नाम पर थ ही ब त य करना पड़ता है।
सीमा क सुर ा पर लगे सैिनक क सं या कम होनी चािहए। इस िन कष पर प चँ ते ही
महाराज िविच भानु ने सैिनक को सीमा से बुलाकर उ ह िविवध उ ोग-ध ध म
लगाना आर भ कर दया। महाराज िविच भानु म आए इस प रवतन से जा खुश थी।
कु छ ही समय म िमि त सं कृ ितय वाला यह रा य फर से खुशहाल हो गया।

दूसरी ओर स ीप खंड के साथ ए यु का ितकू ल भाव िवजयनगर के राजा


महाराज कृ णदेव राय पर आ। वे इस बात से उ िे लत थे क िवजयनगर को यु का
सहारा लेना पड़ा। अतीत म उनके पूवज ारा जो नह कया गया, वह उ ह ने कया।
उफ! यह अनथ भी तो रा य-िल सा के कारण ही करना पड़ा! महाराज कृ णदेव राय का
मन अवस हो गया। एक िविच ा सी िवरि के वशीभूत होकर वे कु छ अनमने से रहने
लगे। कभी दरबार म जाते, कभी नह जाते, कभी बोलते, कभी मौन हो जाते।

तेनाली राम महाराज कृ णदेव राय म आए प रवतन का भान िमलते ही महाराज क


दनचया म िच लेने लगा। उसने दो-तीन दन मं◌े ही जान िलया क महाराज कृ णदेव
राय रात को भी अपने शयनक म बेचैनी से टहलते रहते ह और दन म भी उन दे-से
कसी िवचार म िल महाराज कृ णदेव राय क भंिगमा ऐसी थी क कोई इ ह कु छ कह
नह पाता था। तेनाली राम भी उिचत अवसर क ती ा म मौन था।

समय बीत रहा था। महाराज कृ णदेव राय क अिनयिमतता और िशिथलता बढ़ती जा
रही थी।

एक रात अचानक अपने शयनक म चहल-कदमी करते ए महाराज कृ णदेव राय एक


िन कष पर प च ँ े और फर उ ह ने एक ल बी साँस ली। साँस छोड़ते समय उनका सारा
तनाव जाता रहा। उस रात महाराज कृ णदेव राय गहरी न द म सोए। सुबह िब तर
छोड़ने के बाद उ ह ने महामं ी को बुलवाया। महामं ी के उपि थत होने पर वे महामं ी
के साथ मं णा क म चले गए। उ ह ने महामं ी से कहा, ”महामं ी जी! अपने रा य पर
पड़ोसी रा य स ीप नवखंड ने मा ा इसिलए आ मण करने का साहस कया क वह
हम कमजोर समझ रहा था। स ाई यह है क हमारी साम रक साम य अपने कसी भी
पड़ोसी रा य से लोहा लेने के यो य है। कोई भी रा य हमारा सामना नह कर सकता। म
इस िन कष पर प च ँ ा ँ क िवजयनगर क खुशहाली से पड़ोसी रा य म ई या का भाव
ज म ले रहा है। इसी ई या के कारण स ीप नवखंड क सेना ने हम पर आ मण कया।
भिव य म ऐसा न हो, इसके िलए हम अपने ऐ य और सै य बल का दशन करने क
आव यकता है। हम युयु सु नह ह क तु पड़ोसी रा य कोई यु क िवचार से े रत होकर
हमारे रा य क ओर न देख, इसक व था करना अिनवाय है।“

महामं ी महाराज कृ णदेव राय क भंिगमा देखकर कु छ बोलने का साहस नह कर


पाए। उस दन ही िवजयनगर के राजभवन के सामने के सावजिनक मैदान म अ याधुिनक
सुिवधा वाले िवलास-तालाब का िनमाण काय आर भ हो गया। उस दन ही राजभवन
के पा व के खुले थान पर मनोरम ड़ा- थल का िनमाण-काय आर भ आ और उस
दन ही राजभवन के दूसरे पा व म रं गशाला का िनमाण-काय आर भ कराया गया। इस
तरह के आिभजा य िनमाण क अ य कई योजनाएँ राजधानी म आर भ हो चुक थ ।
िवजयनगर क जा को भूलकर महाराज कृ णदेव राय वयं इन िनमाण-का य को देखने
म िच लेने लगे। उनक तता इस तरह बढ़ गई क वे अपनी जा क ओर देखने का
अवकाश िनकाल पाने म पूरी तरह असमथ हो गए। तेनाली राम महाराज क गितिविधय
से बेचैन हो उठा मगर चाहकर भी वह महाराज से िमल नह पाया। महाराज क दनचया
उनक वे छाचा रता क सनद बन गई थी।

तेनाली राम समझ रहा था क महाराज क गितिविधय पर अंकुश नह लगाया जाएगा


तो िवजयनगर क जा म अराजकता फै लते देर नह लगेगी। उसक िच ता थी क या
होगा उस रा य का िजसके राजा के पास जा क देखभाल के िलए अवकाश नह हो?
महाराज कृ णदेव राय क इस अित र तता के समय महामं ाी राज-काज का
संचालन कर रहे थे इसिलए दरबार म तेनाली राम क भूिमका सीिमत रह गई थी।

महाराज कृ णदेव राय क इस अित र तता के समय िवजयनगर म िवजयादशमी


का योहार मनाया जाना था। येक वष िवजयादशमी पर िवजयनगर म ‘िवजयो सव’
मनाने क पर परा थी। इस िवजयो सव म रा य के कोने-कोने से कलाकार आते थे और
अपनी कला का दशन करके महाराज कृ णदेव राय से पुर कार ा करते थे। इन
कलाकार को पुर कार व प महाराज से इतना धन अव य ा हो जाता था िजससे वे
साल भर अपना गुजर-बसर कर सक। इस िवजयो सव म भाग लेने के िलए कलाकार वष
भर अपनी कला का अ यास करते। कसी मौिलक कला क तुित के िलए य पूवक
अपनी साधना म जुटे रहते। िवजयो सव क ती ा िवजयनगर के जाजन को भी रहता
था जो दूर-दूर से यह िवजयो सव देखने के िलए वष म एक बार राजधानी अव य आया
करते थे। िवजयो सव के समय िवजयनगर क राजधानी क सड़क जन सैलाब म डू ब सी
जाती थ । नवराि के थम दन से आर भ होनेवाला यह िवजयो सव दशहरा क रात को
आर भ पुर कार िवतरण समारोह के साथ स प होता था।

िवजयनगर क जा िवजयो सव क ती ा म थी क इसी बीच िवजयनगर के गाँव म


महाराज के आदेश पर डु गी िपटवाई गई और यह स देश सा रत कया गया क इस बार
िवजयो सव पर राजधानी म नविन मत रं गशाला म िवजयनगर क सेना के जवान का
शौय दशन होगा। िवजयनगर का येक िनवासी अपने सुर ा- ह रय के शौय दशन
का आन द उठाने के िलए अव य आए।

तेनाली राम को भी इस स देश- सारण क सूचना िमली। इस सूचना के बाद तेनाली


राम ने कई बार महाराज कृ णदेव राय से िमलने का यास कया मगर उसे यास म
सफलता नह िमली। अ ततः उसने साधु का प धारण कर िलया और गे वा व ा
पहनकर राजभवन के सामने एक वृ के नीचे क बल िबछाकर यान क मु ा म बैठ गया।
राजमाग से गुजरनेवाले लोग ा से कु छ चढ़ावा दान करते िजससे तेनाली राम क
ुधा-तृि हो जाती। इस तरह कई दन बीत गए। एक दन महाराज कृ णदेव राय अपने
घोड़े पर सवार होकर िनकले ही थे क राजभवन के मु य ार पर ही उ ह एक ग भीर
आवाज सुनाई पड़ी, ” क जाओ राजन!’’

महाराज कृ णदेव राय ने घोड़े क लगाम ख च ली। सामने देखा तो वृ के तने के पास
बैठा साधु उ ह इशारे से अपनी ओर आने के िलए े रत कर रहा था। महाराज घोड़े से
उतर गए और साधु के पास प च ँ कर िवन ता से हाथ जोड़कर पूछा, ” या आ ा है
महाराज?“

”म तु छ ाणी आ ा देने का िव ासी नह । म तो तु ह सचेत करना चाहता ँ क तुम


अपनी जा क खुशहाली क आशा म िजस माग पर जा रहे हो, वह तु ह अ तहीन भटकन
क ओर ले जानेवाला है। रा य के वैभव का दशन तु हारे खजाने को रीता छोड़ा देगा
और तु ह अपनी जा के अस तोष का कोप झेलना पड़ेगा। तुम िजस गित से
वे छाचा रता के माग पर बढ़ रहे हो, उसी गित और ती ता के साथ िवनाश अपना
िवकराल मुँह खोले तु हारी ओर बढ़ रहा है मगर त हारी आँख पर आ म दशन क
िल सा क प ी पड़ी ई है जो तु ह...“

अभी साधुवेशी तेनाली राम क बात पूरी भी नह हो पाई थ क महाराज कृ णदेव राय
ने घबराकर पूछा, ”महाराज! आप यह या बोल रहे ह? म तो अपनी जा क सुर ा और
सुिवधा के िनिम ही अनवरत यास कर रहा ।ँ मेरा येक पल अपनी जा क भलाई
के िच तन म ही तीत हो रहा है!“

”महाराज...“ बीच म ही साधु बने तेनाली राम ने हाथ उठाकर महाराज कृ णदेव राय
को चुप रहने का संकेत दया और ग भीर वर म कहा, ”तुम जो कु छ भी कह रहे हो
राजन! वह आ म ाघा है। वा तिवकता यह है क तु ह अपनी जा क सही अव था का
ान नह है। तुमने कै से समझ िलया क राज ासाद के चतु दक् वैभव का दशन करके
तुम अपनी जा क भलाई कर रहे हो? या तुम जानते हो क तु हारे रा य म ऐसे लोग
भी ह। जो पेड़ के प े खाकर अपनी ुधा-तृि करते ह? उन साधनहीन बल- ीण लोग
क वेदना का ान कभी तु ह आ है?“

महाराज कृ णदेव राय असमंजस-भरी दृि से इस साधु को देख रहे थे। उनसे कहते नह
बना। साधुवेशी तेनाली राम ने कहा, ”मेरी बात िम या नह ह राजन! चाहो तो मुझे अपने
घोड़े पर बैठा लो और मेरे संग चलो। म तु ह दखलाऊँगा क तु हारे रा य क स पदा का
उपयोग कहाँ होना चािहए, कै से होना चािहए!“

महाराज कृ णदेव राय सं कारवश साधुवेशी तेनाली राम क बात म आ गए और


उ ह ने साधु समझकर उसे अपने घोड़े पर बैठा िलया।

राजधानी से बाहर िनकलने के माग पर घोड़ा सरपट दौड़ने लगा। कु छ घंट के बाद वे
दोन राजधानी के बाहर एक ऐसे थान पर थे जहाँ से वन का िसलिसला आर भ होता
था। ह रयाली से आ छा दत इस थान पर ऊँची-नीची पहाि़डय क तलहटी म कु छ पण
कु टीर बने ए थे िजनम अधनंगे लोग रहते थे। साधुवेशी तेनाली राम ने उन पण कु टीर
क ओर इं िगत कर महाराज कृ णदेव राय से कहा, ‘‘राजन! यह देखो, तु हारे वैभवशाली
रा य क जा का ऐसा हाल भी है।...अब यह भी िवचार करो क अभी तुम िजस माग पर
सरपट भाग रहे हो उससे तु हारी इस जा क या भलाई होगी!’’

महाराज कृ णदेव राय के िलए यह दृ य अप रिचत था। वे वहाँ के लोग को देखकर


िव मय म पड़ गए थे। साधुवेशी तेनाली राम ने उनसे फर कहा, ”चलो राजन! तु ह
तु हारे रा य क एक और वा तिवकता दखला दू।ँ “
महाराज कृ णदेव राय पसीने से तरबतर थे। यह पसीना उनके शरीर से इस अ यािशत
दृ य के कारण िनकल रहा था। यह मजिनत वेद नह था। कं कत िवमूढ़ से महाराज ने
घोड़े को एड़ लगाई। घोड़ा सरपट भागने लगा। एक थान िवशेष पर

साधुवेशी तेनाली राम ने महाराज कृ णदेव राय को कने का संकेत कया। महाराज ने
घोड़े क लगाम ख च ली और घोड़े से उतर गए। साधुवेशी तेनाली राम भी घोड़े से उतर
आया और महाराज से कहा, ‘‘राजन! घोड़े को यहाँ िव ाम करने के िलए छोड़ दो और मेरे
साथ आओ। अब कु छ दूर हम पैदल चलना होगा,“ यह कहते ए साधुवेशी तेनाली राम
एक दशा म चल पड़ा।

िववश थे महाराज कृ णदेव राय! साधु के साथ चलने के िसवा कोई चारा उनके पास
नह था मगर वे आशं कत थे क न जाने यह साधु उ ह कहाँ ले जा रहा है य क िजस
दशा म वह साधुवेशी तेनाली राम बढ़ रहा था उस दशा म कह कोई सड़क नह थी, न
कोई ऐसी पगडंडी क िजससे पता चले क यहाँ से कसी मानव-ब ती क ओर जाया जा
सकता है!

थोड़ी दूरी दोन ने मौन रहकर पूरी क । फर पेड़ क झुरमुट म कु छ झ पि़डयाँ दखने
लग । महाराज कृ णदेव राय आ त हो गए क वे कसी मानव-ब ती के ही िनकट ह।

एक झ पड़ी के िनकट प च
ँ कर साधुवेशी तेनाली राम ने आवाज दी, ”माँ!“

झ पड़ी के भीतर से एक ला त मिहला का वर उभरा, ‘‘आती .ँ ..बेटा!...कौन है


तू... ार पर... कसे पुकार रहा है? यहाँ तो कोई आता नह कभी भी...आवाज देन!े ’’

कु छ ही देर म झ पड़ी के ार पर एक वृ मिहला आकर खड़ी हो गई और कहा,


‘‘बोल... या कहना है? कौन हो तुम? या चािहए तु ह?’’

साधुवेशी तेनाली राम ने अपने कं धे से लटके कमंडल से कु छ फल िनकालकर उस वृ ा


को दया और कहा, ‘‘यही देने आया था, ‘‘माँ!’’

वृ ा च कत दृि से साधुवेशी तेनाली राम और उसके साथ राजसी प रध् ◌ाान म खड़े
महाराज कृ णदेव राय को देख रही थी और साधुवेशी तेनाली राम महाराज कृ णदेव राय
से म द वर म कह रहा था, ‘‘देखो राजन! यह वृ ा भी तु हारे वैभवशाली िवजयनगर
क जा है। इसके ित भी तु हारा कु छ कत है।... अब चलो! मने वृथा ही तु ह क नह
दया। अब सूरज ढलने से पहले तु ह तु हारे राजभवन के ार तक प च
ँ ाना मेरा कत है।
यहाँ के माग तु हारे िलए अप रिचत से ह...कह भटक न जाओ...’’

महाराज कृ णदेव राय के िलए वह वृ ा और वहाँ का स पूण प रवेश पूरी तरह


अप रिचत था। उनक क पना म भी कभी यह बात नह आई थी क उनके रा य म भी
ऐसी वृ ा रहती है। ऐसी िववश और अक पनीय ि थित म भी लोग साँसं◌े ले सकते ह,
यह अब तक उनके अनुभव े ा म नह आया था।

साधुवेशी तेनाली राम ने महाराज कृ णदेव राय के साथ चलते ए अपनी बात जारी
रख । उसने महाराज से कहा, ‘‘राजन! यह वृ ा कु रोगी है और अपने प रजन ारा
बिह कृ त है। गाँववाल ने इस वृ ा के ाम वेश को व जत कर दया है क कह इस वृ ा
के स पक म आने से कोई अ य इस गिलत रोग का िशकार हो जाए। ऐसी अनेक
वा तिवकता से प रिचत होने के बाद ही तुम अपने रा य क स पदा का सही उपयोग
करने के यो य बन सकोगे!’’

बात करते ए दोन घोड़े के पास आ चुके थे। तभी साधुवेशी तेनाली राम ने पूछा, ‘‘ य
राजन! अपने रा य क इन वा तिवकता से प रिचत होने के बाद तु ह कै सा लग रहा है?
या तुम समझ पा रहे हो क रा य क स पदा का उपयोग कै से और कहाँ होना चािहए?’’

महाराज कृ णदेव राय से रहा नह गया। वे अपने वैभव- दशन के िनणय के कारण
लि त थे और अपने रा य के पीि़डत जन को देखकर िवत हो उठे थे। प ा ाप-भरे
वर म उ ह ने कहा, ‘‘महाराज! आपने मुझे जाजन को देखने क नवीन दृि दी है। म
आपका ऋणी ।ँ ’’ ऐसा कहकर वे िवनीत भाव से साधुवेशी तेनाली राम के पैर पर िगर
पड़े, ‘‘मुझे मा कर महाराज! म अहंकार के वशीभूत होकर दप भरा िनणय ले बैठा।’’

साधुवेशी तेनाली राम ने महाराज को क धा पकड़कर उठाया और अपने वा तव क वर


म बोल पड़ा, ‘‘अरे ...अरे महाराज! ऐसा न कर! म तो आपका सेवक तेनाली राम ।ँ ’’ ऐसा
कहते ए तेनाली राम ने अपने जटाजूट और दाढ़ी-मूँछ उतारकर अपना वा तिवक चेहरा
महाराज कृ णदेव राय को दखा दया।

महाराज ने उसे गले लगाते ए कहा, ‘‘तुमने मेरी आँख खोल द , तेनाली राम!’’

फर, दोन घोड़े पर सवार होकर राजधानी लौट आए।

िवजयनगर के राज ासाद म दूसरे दन से सब कु छ सामा य हो गया। महाराज कृ णदेव


राय िनयिमत दरबार लगाने लगे। उस वष िवजयनगर म पहले से भी अिधक उमंग म
िवजयो सव मनाया गया। िवजयो सव म सैिनक क शौयकला के दशन का काय म
र कर दया गया और पहले क भाँित ही सां कृ ितक काय म क धूम रही।
मै ी स देश
एक दन महाराज कृ णदेव राय अपने दरबार म बैठे-बैठे ान-मीमांसा के िलए यह चचा
छेड़ बैठे क मनु य का सबसे बड़ा सौभा य और सबसे बड़ा दुभा य या है।

महाराज कृ णदेव राय को उनके दरबारी ब त दन के बाद अपनी वाभािवक मु ा म


देख रहे थे। पड़ोसी रा य ‘स ीप नवखंड’ के साथ यु होने के बाद से दरबार म कसी ने
महाराज कृ णदेव राय को मु कु राते नह देखा था। इसिलए जब महाराज ने यह चचा
छेड़ी तो दरबारी इस चचा म उ साहपूवक भाग लेने लगे।

एक दरबारी ने कहा, ‘‘महाराज! मनु य क इ छा क पू त सबसे बड़ा सौभा य है


और यास के बाद भी कामना क पू त नह हो पाना सबसे बड़ा दुभा य!’’

एक अ य दरबारी ने कहा, ”महाराज! अपनी भूल को समझकर अपने आचरण म सुधार


करना सौभा य है और अपनी भूल को समझे िबना गितशील रहना दुभा य है।’’

महाराज कृ णदेव राय ब त देर तक इसी तरह क बात म लगे रहे। उनके दरबार म
िव ान क कमी तो थी नह इसिलए सौभा य और दुभा य पर अनेक िवचार कट ए।
महाराज अपने सभासद क वा पटु ता और िवचार से कई बार भािवत और पुल कत
ए। उ ह लगा क इस चचा के म म ऐसी वाणी भी कट हो रही है िजसका उपयोग
भिव य म भी कया जा सकता है। उ ह ने महामं ी से कहा, ‘‘आप व ा के कथन के
सार एक थान पर िलिपब करते रह। म एका त म पुनः इस चचा पर िवचार करना
चा गँ ा।’’

महाराज के िनदश पर महामं ाी सभासद के िवचार िलिपब करने म लग गए। उस


समय महाराज कृ णदेव राय का एक ऐसा दरबारी अपने िवचार कर रहा था जो एक
खर व ा था। इस सभासद का नाम था-सुबा ।

सुबा के िवचार म प ता थी और वाणी म संयम। वह ग भीर था और भावशाली


भी। उसने कहा, ”महाराज! भूल को समझने क आव यकता सौभा य और दुभा य क
चचा के बीच एक िव ान िम ने क है। मेरी समझ से या, बस, या होती है। ण
िवशेष म उसका घ टत होना मानो अिनवायता है। जैसे सूरज िनकलता है। हवा चलती है।
सूरज ढलता है। वायु वाह मु होती है। ये याएँ ण िवशेष क मह ा ह। फर भूल
या और सुधार या? मनु य तो आर भ से ही भूल करने का आदी है। जब से इस पृ वी पर
मनु य अनुभव अ जत कर बौि क ाणी बना है तब से ही स भवतः यह ि थित है क वह
अपने िलए धरती तो सुरि त चाहता है क तु उसक दृि टँगी रहती है वग पर! वह
अपनी हर या को वग- ाि का साधन बना लेना चाहता है। मनु य क यह वृि
सौभा य भी है और दुभा य भी। सौभा य इसिलए क वग क कामना उसे कसी से भी
ऐसा वहार करने से रोकती है जो लोक-दृि म अनुिचत है और दुभा य इसिलए क
वग क कामना म वह अपनी इि छत या पर िववेक से अंकुश भी लगाता रहता है।
इस तरह उसक याएँ व फू त और आ म े रत नह रहपात । लोक- चलन के आचार-
वहार और िवचार के अंकुश नह होते तब जो याएँ होत उससे मनु य जो स तुि
ा करता वह सामािजक वजना से िघरकर क गई या से िभ होती।’’

सुबा के िवचार प तो थे क तु दशन बोिझल भी। महाराज कु छ समय तक िवचार-


म मु ा म बैठे रहे, फर उ ह ने तेनाली राम क ओर देखा। वह सभासद क बात
िचपूवक सुन रहा था। मगर अब तक कु छ बोला नह था और न ही उसम इस स दभ म
कु छ बोलने क उ सुकता ही थी।

महाराज कृ णदेव राय ने तेनाली राम को मौन देखकर कहा,“ य तेनाली राम! तुम कु छ
नह बोल रहे हो? तुम भी तो कु छ कहो!”

तेनाली राम के ह ठ पर एक हलक सी ि मत क रे खा कट ई फर तेनाली राम ने


कहा, ‘‘महाराज! हमारे िम ने जो िव तापूण बात कही ह, उनसे म सहमत ।ँ इसिलए
बीच म कु छ भी बोलना मने उिचत नह समझा-यही है मेरे मौन का कारण। जहाँ तक मूल
क बात है तो म भी क ग ँ ा क मनु य का सबसे बड़ा सौभा य अथवा सबसे बड़ा
दुभा य एक ही बात म है। वह बात यह है क मनु य को कृ ित के अ य जीव क तरह
कोई सुिनि त वभाव नह िमला है। मनु य को छोड़कर ायः येक जीव-ज तु, क ट-
पतंग, पंछी-पौधे, सभी एक िनि त वभाव के साथ ज म लेते ह। मनु य को छोड़कर अ य
सभी ाणी, चाहे वे ज तु ह या वन पित, एक िनि त वभाव के वशीभूत जीवन-यापन
करते ह। इस तरह उनके वभाव को ठोस कहा जा सकता है मगर मनु य का कोई िनि त
वभाव नह है इसिलए मनु य का वभाव ठोस नह , तरल है। वह जब चाहे पा ता के
अनु प बदल सकता है। प रि थितय से भािवत होकर बदल सकता है या कह क वह
कै सा भी हो सकता है। उसे जैसा चाह वैसा ढाला जा सकता है।

“मनु य के वभाव का सरल होना सौभा य है, य क इसम प रवतन- शीलता है। कु छ
भी हो जाने क वतं ाता है। क तु यह दुभा य भी है य क मनु य को वयं के िनमाण म
अनेक भूल से साबका पड़ता है। भूल करना उसक िनयित होती है।”

सभा म इस तरह क चचाएँ चल ही रही थ क इसी बीच महाराज कृ णदेव राय को


सूचना िमली क द ली के स ाट बादशाह बाबर का दूत महाराज से िमलने क इ छा
रखता है। महाराज ने उस दूत को अपने दरबार म आदरपूवक लाए जाने और उिचत
आसन पर बैठाए जाने का िनदश दे दया। उ ह सभा थल पर हो रही चचा म कई तक
संगत और मन को भा जानेवाली बात सुनने को िमली थ इसिलए वे तेनाली राम क
तकसंगत बात िच से सुनने म लगे रहे।

दूत को दरबार म लाकर उिचत थान पर बैठा दया गया।

तेनाली राम क चचा जारी रही। वह अपनी रौ म बोल रहा था, ‘‘महाराज! मा यता है
क अनुभव ा करना े कम है क तु महाराज, जीवन का अनुभव ही तो जीवन क
सहज इ छा पर सीमा रे खाएँ ख चने लगता है क ऐसा जीवन ठीक है और वैसा जीवन
ठीक नह है। वा तिवकता यह है क अनुभव से प रप ि वृ हो चुका होता है और
ब त सारी वाभािवक या के िलए उसके पास शि नह बची रहती। इसिलए ऐसा
बल ीण मानक दूसर के िलए िनषेध और वजनाएँ और आरोिपत करने लगता है क ऐसा
करना उिचत है अथवा वैसा करना अनुिचत है जब क मेरी दृि म जीवन क वाभािवक
वृि य के िलए िनषेध-रे खा ख चने जैसी हंसक या कोई दूसरी नह हो सकती।...
महाराज, इस हंसा से पूरा समाज, पूरा देश, स पूण मानव समुदाय िल है। मनु य जीवन
जीने क कामना म यासरत रह नह पाता है और जीवन भोगने क कामना म हंसक
होता जाता है। जंगल म शेर, बाघ, तदुआ, चीता आ द हं ज तु कहे जाते ह मगर ये
व तुतः हंसा नह करते। भोजन के िलए वे ाकृ ितक प से जो यास कर सकते ह वही
करते ह इसिलए उनके भोजन करने क ाकृ ितक या को हंसा नह कह सकते क तु
स ा के मद म जब कोई शासक कसी दूसरे रा य पर आ मण करता है तब यह हंसक
घटना हो जाती है। आम तौर पर ऐसी घटना म ऐसे लोग या ऐसे रा संल होते ह
िजनके पास साधन क अिधकता होती है। ऐसे ही मनु य रा जीवन जीने क या को
छोड़कर जीवन भोगने क िल सा क ओर े रत होते ह। जैसे-अभी कु छ दन पहले ही
हमारे पड़ोसी रा य ‘स ीप नवखंड’ ने हम पर आ मण कर दया था क तु सबल सेना
और चुर साधन होते ए भी ‘स ीप नवखंड’ के राजा को परािजत होना पड़ा। उसके
राजा को हमने ब दी बनाया। कारण या था? या हम अितमानव ह? ब त बलशाली ह?
नह ! ऐसा मानने का हमारे पास कोई कारण नह है। महाराज! स ी बात यह है क
िवजयनगर के लोग अनवरत जीवन जीने के िलए यासरत रहते ह। िवजयनगर के राजा
को भी इसके िलए अपनी जा क तरह ही यास करना पड़ता है। हमारे पास थोड़ा है
और थोड़ा चािहए वाली ि थित बनी रहती है। इसिलए िवजयनगर क जा म िजजीिवषा
है। हमारे सश ा बल के जवान भी हमारी जा क स तान ह इसिलए उनम भी
िजजीिवषा है। यही उ कट िजजीिवषा अ ततः हमारी जीत का कारण बनी। हमम युयु सा
नह थी। यु क इ छा नह थी फर भी हम जीते। क तु स ीप नवखंड के राजा युयु सु
थे। यु क इ छा उनम थी। उनक सेना यु के िलए त पर और आ ामक थी फर भी वे
हार गए। महाराज, हमारी जीत और उनक हार म भी मेरी हंसा क ा या ही काम
कर रही है। स ीप नवखंड के राजा ने और वहाँ क सेना ने इतना वैभव एकि त कर
िलया है क उ ह जीवन जीने क जगह जीवन भोगने क वृि े रत करने लगी है। इसी
वृि के कारण वे हंसा के िलए े रत ए। हम जीवन जीने क वृि के अधीन ह
इसिलए हंसा से े रत नह ह। जीवन को भोगने क चाह िजस दन पनपेगी, हम भी वैसे
हो जा सकते ह।“

तेनाली राम क बात से सभाक म बैठा बाबर का दूत ब त भािवत आ। उसने


सभाक म खड़े होकर तािलयाँ बजा ।

महाराज कृ णदेव राय का यान अचानक दूत क ओर गया। उनक त ा भंग ई और


कत -बोध के वशीभूत होकर उ ह ने दूत से िवजय- नगर आने का कारण पूछा।

दूत ने बादशाह बाबर का एक स देश पढ़कर महाराज कृ णदेव राय को सुनाया। इस प


का आशय था क बादशाह बाबर ने िवजयनगर को अपने िम रा य म सि मिलत होने का
आमं ण भेजा है तथा उ हं◌े िव ास है क उनका यह आमं ण वीकार कया जाएगा।

महाराज कृ णदेव राय ने दूत को एक मृितिच भट कर अपने दरबार म स मािनत


कया तथा उसे अितिथशाला म िव ाम करने के िलए भेज दया। सभा िवस जत करने के
बाद महामं ी और तेनाली राम को साथ लेकर मं णा क म चले गए। तीन के बीच
िवचार-िवमश के बाद यह िनणय िलया गया क कल दूत को इस स देश के साथ िवदा कर
दया जाए क ‘हम इस आमं ण के िलए आभारी ह-शी ही हम अपने दूत के मा यम से
अपने िनणय से अवगत कराएँग।े ’

दूसरे दन दूत िवजयनगर से द ली के िलए रवाना हो गया। इसके बाद फर महाराज


कृ णदेव राय अपने महामं ी के साथ मं णा करने बैठ गए। इस चचा म तय आ क
बादशाह बाबर का ताव वीकार नह करने का कोई कारण नह है। िवजयनगर का
इितहास सा ी है क सुदरू अतीत से यह एक ऐसा रा य रहा है जो ‘न का से दो ती, न
का से बैर’ क नीित पर अमल करता रहा है। िम ता स देश तो औपचा रकता है। इस
स देश का एक अथ तो यह है क भिव य म न हम आपक राह म आएँगे और न आप
हमारा कह िवरोध करगे। एक-दूसरे के ित पर पर सहयोग क भावना ही तो इस
आमं ण म िनिहत है इसिलए इसे वीकार कर लेना उिचत है।

इस िन कष पर प च ँ ने के बाद महाराज कृ णदेव राय ने महामं ी को िवदा कया और


हरी को भेजकर तेनाली राम को अिवल ब राजमहल आकर उनसे िमलने को कहलवाया।

िजस समय तेनाली राम ने राजमहल म वेश कया उस समय शाम ढल चुक थी।
आसमान पर अँधेरे का सुरमई चादर िबछ चुका था िजन पर िसतारे टम टमाने लगे थे।
राजमहल के ह रय को स भवतः महाराज कृ णदेव राय ने पहले से ही िनदश दे रखा था
क जब तेनाली राम आए, उसे अिवल ब उनके क तक प च ँ ा दया जाए। क म
महाराज िवचारम मु ा म टहल रहे थे।
ह रय ने तेनाली राम को आदरपूवक महाराज के क तक प च ँ ा दया। तेनाली राम
को देखकर महाराज ने कहा, ‘‘आओ तेनाली राम! आज तु ह म एक मह वपूण काम स प
रहा ।ँ यह एक ऐसा काम है िजसके िलए अितिव सनीय ि क आव यकता है। यह
कहने क आव यकता नह क मेरे िलए तुम कतने िव सनीय हो।’’

तेनाली राम के ह ठ पर उस समय म द-हास उभर आया था। उसने महाराज से कहा,
‘‘महाराज! आप आ ा द! आपके िव ास को म जीते-जी ठे स नह प च
ँ ने दूग
ँ ा।...’’

महाराज कृ णदेव राय ने वण-मु ा क एक थैली तेनाली राम को स पते ए कहा,


‘‘तेनाली राम! कल सुबह तुम िवजयनगर के दूत बनकर बादशाह बाबर को हमारी ओर से
िम रा य बनने क वीकृ ित का स देश देने द ली थान करो। घुड़साल से अपनी
पस द का घोड़ा लेकर तुम थान करो और यथाशी द ली प च ँ कर बादशाह बाबर को
हमारा स देश दो। उ ह तुम ही हमारी बात सही ढंग से समझा सकते हो इसिलए तु हं◌े
यह काय स प रहा ।ँ ’’

“ जो आ ा महाराज!”तेनाली राम ने कहा और महाराज से आ ा लेकर अपने घर लौटा।

दूसरे दन सुबह द ली के िलए उसक या ा आर भ हो गई। यह उन दन क बात है


जब िवजयनगर से द ली क या ा ब त आसान नह थी। सड़क आज क तरह न तो
आबाद थ और न ही द ली क राह म कह िव ाम करने क कोई सावजिनक व था
थी। याि य को अपने वहार-कौशल और बुि -चातुय से ही आ य ा करना होता
था। तेनाली राम कु शा बुि तो था ही इसिलए उसे माग म कसी तरह के संकट का
सामना करना नह पड़ा। द ली प च ँ कर वह सीधे बाबर के दरबार म उपि थत आ।

बाबर को जब सूचना िमली क िवजयनगर के महाराज कृ णदेव राय का एक दूत


द ली-दरबार म बादशाह के स मुख उपि थत होने का आदेश चाहता है तो बाबर ने
तेनाली राम को यथाशी दरबार म उनके सम उपि थत कए जाने का िनदश दया।

तेनाली राम को बाबर के स मुख उपि थत कया गया। बाबर ने तेनाली राम को पारखी
दृि से देखा। िवजयनगर से लौटकर बाबर के दूत ने तेनाली राम क तकसंगत बात का
िववरण दया था। बाबर ने तेनाली राम को ऊपर से नीचे तक ग भीर दृि से देखा और
कहा, ”दूत! आज तुम िव ाम करो। दि ण से उ र क दूरी तय करने म तुम थक गए होगे।
कल सुबह दरबार म उपि थत होकर अपना ‘स देश’ देना।“

बाबर के संकेत पर बारशाह के दो हरी तेनाली राम को अितिथशाला क ओर ले गए।

तेनाली राम के िवदा होते ही बाबर ने उस दरबारी को बुलाया िजसे दूत बनाकर
िवजयनगर भेजा गया था। बाबर ने उस दरबारी से पूछा, “शराफत अली, बताओ, इस
श स को पहचानते हो जो िवजयनगर के महाराज का दूत बनकर आया है?”

दरबारी शराफत अली ने बादशाह के सामने अदब से झुकते ए कहा, “जहाँपनाह! यह


श स तेनाली राम है। िवजयनगर के राजदरबार म यह है तो िवदूषक क तु इसके बुि -
बल का लोहा सभी मानते ह। मने इस श स क तकरीर के बारे म आपको जानकारी दी
थी। मने कसी राजदरबारी के मुँह से कभी, कह भी इतनी तकसंगत बात नह सुनी थ ।
ब त बुि मान है यह श स!”

“ !ँ ” बाबर ने एक ल बी क ं ार भरी फर कहा, ‘‘कल हो जाएगी इसके बुि -बल क


परी ा भी। कल दरबार म म इससे इसके महाराज का स देश सुनूँगा। मुझे िव ास है क
िम ता- ताव क सूचना ही िवजयनगर से आई है। इसके बाद म इस िवदूषक से कु छ
चुटकु ले सुनाने के िलए क ग
ँ ा। हाँ, तुम ऐसा करो क आज ही सभी दरबा रय को कह दो
क कल जब तेनाली राम दरबार म चुटकु ले सुनाए तो कोई न तो ताली बजाए और न ही
हँस;े या कोई तकपूण बात कहे तब भी कोई नह हँसे या न वाह-वाह करे !”

बादशाह का आदेश था। दरबा रय म आनन-फानन म सा रत हो गया।

दूसरे दन द ली दरबार म उपि थत होकर तेनाली राम ने महाराज कृ णदेव राय का


स देश बादशाह बाबर को दया क द ली दरबार के िम ा रा य म शािमल होने से हम
गव क अनुभूित हो रही है।

बादशाह बाबर ने वयं ताली बजाकर इस स देश का वागत कया। बादशाह को ताली
बजाता देखकर दरबा रय ने भी तािलयाँ बजा । फर बादशाह बाबर ने तेनाली राम को
अपने पास ही एक आसन देकर बैठाया और अपना प रचय द ली दरबार के दरबा रय
को देने के िलए कहा।

तेनाली राम ने बादशाह बाबर के िनदश पर अपने प रचय म दरबा रय को बताया,


”अभी तो म िवजयनगर के दूत क हैिसयत से द ली दरबार म उपि थत आ ,ँ वैसे
िवजयनगर के महाराज के दरबार म म िवदूषक ँ और मेरा नाम तेनाली राम है।“ अपना
नाम बताने के बाद तेनाली राम ने कहा, ‘‘ब धुओ, म अपने महाराज कृ णदेव राय का यह
स देश लेकर आया ँ क अब िवजयनगर द ली दरबार का िम रा य है। इसिलए हम
िमल-जुलकर एक-दूसरे के सुख-दुख म हाथ बँटाना चािहए और इसके िलए हम त पर
रहना चािहए क य द हमम से एक क म हो तो दूसरा उसका क कम करने के यास म
वतः जुट जाए। पर पर सहयोग क भावना से ही तो िवकास का पथ श त होता है।’’

द ली दरबार के कसी भी दरबारी ने तेनाली राम के इस कथन पर कोई ताली नह


बजाई। बादशाह बाबर ने जान-बूझकर ऐसी मु ा बना ली मानो उसने तेनाली राम क
बात सुनी ही नह हो। एक दरबारी ने चुटक ली, ‘‘आपने अ छी िश ा दी है, तेनाली राम
जी!’’

तेनाली राम के िलए यह ं य-बुझी पंि अ यािशत थी। िबना उ ेिजत ए तेनाली
राम ने कहा, ‘‘मने तो िसफ अपने महाराज के म त क सूचना दी है! सूचना देने का
काम िश ा नह है। िश ा से तो ान िमलता है। सूचना और ान म ब त अ तर है।
सूचना हमेशा बाहर से िमलती है और ान हमेशा हमारे अ दर से आता है।’’

बादशाह बाबर ने मन-ही-मन तेनाली राम क शंसा क क तु वह मौन साधे रहादृयह


सोचकर क देख अब यह तेनाली राम और या कहता है। मगर तेनाली राम ने दरबार का
ख समझते ए मौन साध िलया।

दूसरे दन जब वह द ली दरबार म आया तब उससे चुटकु ले सुनाने क माँग क गई।


तेनाली राम ने कु छ चुटकु ले सुनाए मगर दरबार का कोई भी आदमी उसके चुटकु ल पर
नह हँसा। तेनाली राम दो-चार चुटकु ले सुनाकर बादशाह बाबर क आ ा लेकर
अितिथशाला म लौट आया। उसके मि त क म कु छ चल रहा था। इस घटना के बाद
तेनाली राम दो दन तक द ली दरबार नह गया। उसने द ली मण के बहाने बाबर
क दनचया का अ ययन कया। इस अ ययन म तेनाली राम ने पाया क बादशाह बाबर
ित दन शाम को दरबार से िनकलने के बाद यमुना नदी के कनारे टहलने के िलए जाते ह
तथा राह म िमलनेवाले गरीब-लाचार लोग को एक-दो वण-मु ा भट करते जाते ह।
इसके बाद तेनाली राम ने एक योजना बना ली और द ली बाजार से कु छ साम ी
खरीदकर अितिथशाला लौट आया।

शाम का समय था। अपने दरबार से िनकलकर बादशाह बाबर अपने एक खास मं ाी के
साथ बात करते ए यमुना तट क ओर जा रहा था। राजमाग के कनारे एक वयोवृ
ि को उसने जमीन खोदकर कोई बीज गाड़ते देखा। बाबर के िलए यह दृ य
अचरजकारी था। एक तो माग का कनारा िजससे इस वृ का कोई लेना-देना नह फर
भला य वह यहाँ पर कोई बीज लगाएगा? उ सुकतावश बाबर उस वृ के पास प च ँ
गया। उसके साथ उसका मं ी भी था।

वृ के पास प च
ँ कर बाबर ने पूछा, ‘‘बाबा! तुम यहाँ या कर रहे हो?’’

अपने काम म म वह वृ बोला, ‘‘जहाँपनाह! म यहाँ फलदार वृ के बीज लगा रहा



ँ क
ृ टहल, आम आ द के बीज! कु छ ही व ष म यह थान पेड़ के झुरमुट से आ छा दत
हो जाएगा िजससे राह चलते लोग को छाया िमल जाएगी। ये पेड़ वष म एक बार फल से
भी लद जाएँगे िजससे राहगीर क ुधापू त होगी।’’

वृ के उ र से बाबर चक पड़ा। बाबर ने वृ से पूछा, ‘‘मगर बाबा! इससे तुमको या


हािसल होगा? जब तक इन बीज से पौधे िनकलकर फलदार वृ म त दील ह गे तब तक
या तुम जीिवत रहोगे? इन पेड़ का एक फल भी या तु ह नसीब होगा?’’

वृ ने हँसकर जवाब दया, ‘‘जहाँपनाह! अब तक तो म अपने पूवज के लगाए पेड़ से


फल खाता रहा ।ँ म जो बीज लगा रहा ँ उसके फल का आन द आनेवाली पीढ़ी लेगी। म
स तु ँ क म अपनी िपछली पीढ़ी का ऋण उतार रहा ।ँ ’’

बाबर इस उ र से ब त स ए और वणमु ा क एक थैली उस वृ को भट कर


दी।

बादशाह से वणमु ा क थैली भट म िमलने से वृ आनि दत होकर बोल


उठा, ‘‘जहाँपनाह! आप सचमुच महान ह। लोग को तो वृ बड़े होकर ही फल दान
करते ह क तु आपने तो बीज उगने से पहले ही मुझे फल दान कर दया!’’

वृ को आनि दत देखकर बाबर स आ और वहाँ से आगे बढ़ गया।

दूसरे दन द ली दरबार म वही वृ बाबर के सम उपि थत आ। बाबर ने उससे


पूछा, ‘‘ य , या बात है बाबा? यहाँ य आए हो?’’

‘‘अपने िसर से यह बोझ उतारने आया -ँ जहाँपनाह, आपके दरबार म!“ यह कहते ए
वृ ने अपने िसर से बाल और गाल पर चढ़ी दाढ़ी उतारकर क धे से लटके झोले म डाल
ली और हाथ म रखी थैली बाबर क ओर बढ़ाते ए कहा, ‘‘जहाँपनाह! अब वह वृ ही
नह है-जो इस इनाम का हकदार था!’’

बाबर ने अपने सामने दो पल म बदले वृ के चेहरे को देखकर पहचाना, ”अरे ! यह तो


तेनाली राम है!“ बाबर ने ताली बजाते ए कहा, ‘‘मान गए तेनाली राम...तुमने मुझे
आनेवाली पीढ़ी के िलए कु छ कर जाने क नसीहत दी है। इस थैली के तुम ही हकदार हो।
इसे अपने पास रखो।’’

इसके बाद बाबर ने अपने दरबा रय को बीती शाम क घटना सुनाकर तेनाली राम के
फन क तारीफ क । द ली दरबार एकबारगी तािलय क गड़गड़ाहट से गूँज उठा।

थोड़ी देर के बाद बादशाह बाबर ने तेनाली राम से कहा, ‘‘मने तु हारी िव ता क चचा
सुनी है-मेरे दरबा रय को कोई पैगाम दो क ये तु ह याद रख।’’

तेनाली राम ने अपने थान से िबना िहले कहा, ‘‘यह व था ‘हाँ’, कहने के िसवा कु छ
और कहने क इजाजत नह देती। पर परागत प से व था ‘हाँ’ कहना िसखलाने का
ही काम करती है। म भी ‘हाँ’ कह रहा ँ और आपक आ ा मानकर बोल रहा ।ँ ...पुरानी
सारी व थाएँ भी हाँ कहना ही िसखलाती रही ह। इन ‘हाँ’ कहनेवाल के कारण ही
समाज क व थाएँ चलती रह िबना कसी प रवतन के ।...ले कन यह ‘हाँ’ कहना
यथाि थित बनाए रखना ही है। समाज का िवकास या व था म सुधार हाँ कहनेवाले क
ज रत होती है। दुिनया म कह भी यथाि थित म प रवतन ‘न’ कहनेवाल के कारण आ
है। िजसने आ मा के गहरे तक से नकार का वर उभारा है वही िवकास का कारण बने हं◌।ै
इसिलए मेरे िम ो, सहज वीकार क जड़ता से िनकलकर िवकास क दहलीज पर कदम
रखना सीखो और अनुिचत को नकारकर उिचत अवसर पर तािलयाँ भी बजा िलया
करो...’’

बाबर के दरबार म एक बार फर तािलय क गूँज उभरी। बाबर ने तेनाली राम को


अनेक तरह के उपहार देकर द ली से िवदा कया।

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