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Sandeh+ans+ +
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कक्षा- 10
पाठ- संदेह
लेखक- जयशंकर प्रसाद
शीर्षक की सार्षकता
जयशींकर प्रसाद द्वारा ललखखत कहानी का शीर्षक 'सींदेह' सट क एवीं साथषक है। रामननहाल इस कहानी
का प्रमुख पात्र है। वह श्यामा के घर में रह रहा है। उसके पास मनोरमा के पत्र आये हैं कक वह उसकी
मदद करने के ललए उसके पास आ जाये। लेककन यहााँ रामननहाल के हाथ में श्यामा जो कक एक ववधवा
है का चचत्र है। इससे रामननहाल को और श्यामा को भी सींदेह होता है कक वह उससे प्रेम करता है।
दस
ू रे उसकी मल
ु ाकात पहले मनोरमा से हो चक
ु ी है और वह मन ह मन उसे प्रेम करने लगा है। अब
मनोरमा ने उसे उसकी मदद करने के ललए अपने पास बुलाया है। उसे सींदेह है कक क्या मनोरमा उसे
प्रेम करती है। श्यामा अपना िोटो लेकर रामननहाल से कहती है-"अरे यह तो मेर ह है, तो क्या तम
ु
मुझसे प्रेम मन करने का लडकपन करते हो ? अच्छी िााँसी लगी है तुमको। मनोरमा तुमको प्यार
करती है और तुम मुझको। मन के ववनोद के ललए अच्छा साधन जुटाया है ।" इससे स्त्पष्ट होता है कक
दोनों तरि से उसे सींदेह है।
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चररत्र-चचत्रण
रामननहाल - रामननहाल एक सुन्दर, स्त्वस्त्थ, ननडर और परोपकार युवक है। वह श्यामा, जो कक एक
ववधवा है , घर में रहता है। वह उससे प्रेम करने लगा है इसललए उसकी िोटो उसके पास है। पर वह
इस सींदेह से नघरा है कक क्या श्यामा भी उससे प्यार करती है ?
वह एक सुन्दर वववाठहता युवती मनोरमा की तरि आकृष्ट हो जाता है और उसके पत्र जब उसके पास
मदद के ललए आते हैं तो वह उसके पास जाने को तैयार हो जाता है। वह साहसी है। वह महत्वाकाींक्षी
भी है। वह स्त्वयीं स्त्वीकार करता है -"मैं जब से सींसार को जानने लगा, तभी से मैं गह
ृ ह न था। मेरा
सन्दक
ू और ये थोडा-सा सामान, जो मेरे उत्तराचधकार का अींश था, अपनी पीि पर लादे हुए घूमता था।"
" मेर महत्वाकाींक्षा और मेरे उन्ननतशील ववचार मुझे बराबर दौडाते रहे । मैं अपनी कुशलता से अपने
भाग्य को धोखा दे ता रहा।"
श्यामा -श्यामा सुन्दर युवती है पर वह एक ववधवा है। रामननहाल उसी के घर में रहता है। रामननहाल
उससे प्रेम करने लगा है, लेककन वह उसे रामननहाल का सींदेह मानती है। वह परोपकार करने वाल और
सींसार के ननयमों को जानने वाल अनुमनशीला है। वह रामननहाल से स्त्नेह करती है तथा उसका भला
चाहती है। रामननहाल उसके स्त्नेह को प्रेम समझने लगता है।
मनोरमा - वह एक सुन्दर वववाठहता युवती है। उसके पनत का नाम मोहन बाबू है। वह थोडी अटपट
बात करता है इसललए ब्रजककशोर (मोहन बाबू के नजद क के ररश्तेदार) उसे पागल करार दे ना चाहते हैं।
मनोरमा और मोहन बाबू को रामननहाल नाव में बबिाकर घुमाने ले जाता है। मनोरमा का अच्छा
व्यवहार और मधरु स्त्पशष रामननहाल को इस सींदेह में डाल दे ता है कक वह उससे प्यार करने लगी है।
प्रश्नोत्तर
बण्डल तो रख ददया, पर दस
ू रा बडा-सा ललफाफा खोल ही डाला। एक चचत्र उसके हार् में र्ा और आँखों
में आँसू र्े।
संदेह- जयशंकर प्रसाद
(i) कौन अपना सामान बााँधने में लगा था ? कमरे का दृश्य कैसा था ।
(ii) ककशोर ने ककसे बुलाया और क्यों ?
(iii) श्यामा और ननहाल की क्या वाताषलाप हुई ?
(iv) अपने बारे में रामननहाल ने क्या बताया ?
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उत्तर-
(i) रामननहाल अपना बबखरा सामान बााँधने में लगा था। जींगले से धूप आकर छोटे से शीशे पर पड रह
थी। वह छोटा-सा दपषण बद्
ु ध की सन्
ु दर प्रनतमा को प्रकाश अपषण कर रहा था। प्रनतमा का शान्त
गम्भीर मुख प्रसन्न ठदखाई दे रहा था।
(ii) ककशोर ने श्यामा भाभी को बुलाया क्योंकक उसने राम ननहाल बाबू को रोते हुए दे खा। रामननहाल
ववस्त्मत
ृ सा रो रहा था।
(iii) श्यामा ने ननहाल से पूछा - "ननहाल बाबू क्या बात है ? कुछ सुनाँू भी तुम क्यों जाने के समय ऐसे
दुःु खी हो रहे हो ? क्या हम लोगों से कुछ अपराध हुआ ?" रामननहाल ने बताया कक उनसे कोई अपराध
नह ीं हुआ है। वह तो अपनी भूल का प्रायश्श्चत कर रहा है, यद्यवप यह ढीं ग िीक नह ीं है, पर मन नह ीं
मानता।
(iv) रामननहाल ने श्यामा को बताया कक भारत के लभन्न-लभन्न प्रदे शों में , छोटा-मोटा व्यवसाय, नौकर
और पेट पालने की सुववधाओीं को खोजता हुआ वह उसके यहााँ पहुाँचा है। यहााँ आकर उसे श्यामा का घर
अपने घर जैसा लगा। ये थोडा-सा सामान ह उसके उत्तराचधकार का अींश है।
" यही तो मेरा और तुम्हारा मतभेद है। जीवन के लघुदीप को अनन्त की धारा में बहा दे ने का यह
संकेत है। आह ! ककतनी सुन्दर कल्पना ।'
(i) यह कथन ककसका है और ककससे तथा ककस सन्दभष में कहा गया है ?
(ii) वक्ता और श्रोता इस समय कहााँ पर है ?
(iii) वक्ता ने अपने हृदय की वेदना को क्या कहकर प्रकट ककया ?
(iv) श्रोता ने क्या कहकर उसे चुप कराया ?
उत्तर-
(i) यह कथन मोहन बाबू का है। उनकी पत्नी मनोरमा ने गींगा में छोटे -छोटे द पकों को बहते हुए
दे खकर उन्हें गींगा की पूजा समझा, पर मोहन बाबू ने द पदान का अथष बताया कक ये द प हमारे जीवन
के लघुद प हैं जो ईश्वर की अनन्त सत्ता में ववल न होना चाहते हैं।
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(ii) वक्ता मोहन बाबू और श्रोता मनोरमा जो उनकी पत्नी हैं, इस समय नाव में बैिकर गींगा की सैर
कर रहे हैं। उन दोनों को सैर कराने रामननहाल लाये हैं। शाम का सुन्दर और सुहावना समय है। गींगा
में जलते- तैरते हुए द प अत्यन्त सन्
ु दर लग रहे हैं।
(iii) मोहन बाबू ने अपने व्यचथत हृदय से यह कहा कक लोगों ने उसे पागल समझ ललया है। सींसार के
ववश्वासघात ने उसे ववक्षक्षप्त बना ठदया है। ककसी ने उसके मानलसक ववप्लवों में उसकी सहायता नह ीं
की। उसे अकपट प्यार की आवश्यकता है जो उसे उसके जीवन में कभी नह ीं लमला।