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मित्त्वपूर्ण हिदे श:
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HINDI PROJECT
(Literature & Language)
हवभाग - अ
पुस्तक परीक्षर् - िया रास्ता (उपन्यास)
हवभाग - ब
व्याकरर्
1 लििंग पररवतडन
2 भाववाचक सिंज्ञा
3 वचन पररवतडन
4 लवशेर्ण
5 पयाड यवाची (समानाथी) शब्द
6 लवपरीताथडक (लविोम) शब्द
7 मुहावरे
हवभाग - अ
पुस्तक परीक्षर्
िया रास्ता
(उपन्यास)
1. उपन्यासकार का पररचय
सुषमा अग्रवाल
िया रास्ता
मीनू की बचपन से ही पढ़ाई में रुलच थी। वह सदै व कक्षा में प्रथम आती थी। एम.ए.
की परीक्षा भी उसने प्रथम श्रेणी में ही पास की थी। वह लसिाई, बुनाई, कढ़ाई, खाना
बनाना तथा पेंलटिं ग आलद कामोिं में भी लनपुण थी। पर शादी के लिए जब उसे कोई िड़का
दे खने आता तो कद-काठी में पतिी, छोटी-सी दीखने वािी तथा सााँ विी होने के कारण
वह मीनू को अस्वीकार कर दे ता था।
मायाराम जी जब अपने पुत्र अलमत के ररश्ते के लिए पत्नी सलहत उसे दे खने आए
तो अलमत के हृदय में मीनू का भोिा-भािा चेहरा समा गया।
मायाराम जी जब अपने घर पहाँ चे तो उन्ोिंने दे खा लक मेरठ शहर के एक धनी
व्यखि उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्ोिंने अपनी बेटी सररता के ररश्ते के साथ-साथ शादी
में पााँ च िाख रुपए खचड करने का प्रस्ताव रखा।
मायाराम जी दहे ज लवरोधी थे, परिं तु उनकी पत्नी ने पााँ च िाख की बात सुनते ही
अपने पलत को लववश कर लदया लक वे लकसी भी तरह मीनू का ररश्ता अस्वीकार कर दें ।
मायाराम जी ने दयाराम जी को पत्र लिखकर उनकी छोटी बेटी आशा का हाथ मााँ गा।
दयाराम जी जब मेरठ गए तो वहााँ पर उन्ें पता चिा लक मायाराम जी ने अलमत
का ररश्ता धनीमि जी की बेटी सररता से पक्का कर लिया है । घर पहाँ चने पर दयाराम
जी का उदास चेहरा दे खकर तथा वास्तलवकता जानने पर सब का हृदय मायाराम जी के
पररवार के प्रलत घृणा से भर गया।
मीनू के अन्दर एक हीन भावना घर कर गई। शायद वह लववाह के योग्य नहीिं है
यह सोचकर उसने लनश्चय लकया लक वह लववाह नहीिं करे गी। उसने लववाह का सपना
दे खना ही छोड़ लदया। उसने वकीि बनने का दृढ़ लनश्चय लकया तालक अपने पााँ व पर खड़े
होकर वह इतना पैसा कमा सके लक लजससे वह समाज में लसर ऊाँचा करके रह सके।
दयाराम जी ने भी मीनू के मन में उभरी िगन को दे खकर उसे वकाित करने की आज्ञा
दे दी। मााँ ने भी उसे सीने से िगा कर आशीवाड द लदया। मीनू नए रास्ते की तिाश में
लनकि पड़ी।
मीनू ने मेरठ में वकाित में दाखखिा िे लिया। माता-लपता के आशीवाड द से उसने
पहिी, दू सरी और अिंलतम परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीणड की और लफर मेरठ में ही
वकाित करने िगी। आठ महीनोिं में ही मीनू ने वकाित में अपनी धाक जमा िी। उसकी
आवाज में जोश था, काम करने में उत्साह था। उसकी प्रलतभा के चचे चारोिं ओर फैि गए
थे। उसकी रोबीिी आवाज ने सबके मन को मोह लिया था।
धनीमि जी अपनी बेटी सररता को दहे ज में फ्लैट अवश्य दे ना चाहते थे लकिंतु
मायाराम जी तथा उनकी पत्नी यह नहीिं चाहते थे लक उनका पुत्र उनसे अिग रहे । इस
बात को िेकर मायाराम जी ने धनीमि जी की बेटी सररता का ररश्ता अस्वीकार कर
लदया। अलमत ने उसके बाद शादी के लिए कोई और िड़की दे खने का प्रयास ही नहीिं
लकया।
वकाित की अिंलतम वर्ड की परीक्षा का अिंलतम पेपर दे ने के बाद मीनू अपनी
सहपाठी माया के प्रस्ताव पर उसके साथ लपक्चर दे खने चिी जाती है । वहााँ से आने पर
अपनी पुरानी सहे िी नीलिमा से मीनू को पता चिता है लक अलमत के कार का एक्सीर्ें ट
हो गया है , उसकी हाित बहत नाजुक है । मीनू अलमत को लमिने मेलर्कि कॉिेज में
जाती है । अलमत अपनी व्यथा-कथा मीनू को बताता है । अलमत को आत्मग्लालन महसूस
होती है । मीनू के हृदय से उसके प्रलत घृणा के भाव समाप्त हो जाते हैं ।
अिंत में मायाराम जी दयाराम जी से क्षमा याचना करते हए अलमत का ररश्ता
मीनू से कर दे ने की प्राथडना करते हैं । दयाराम जी अपनी पुत्री मीनू से बात कर उसकी
राय जानना चाहते हैं । मीनू के अपनी मााँ से यह कहने पर लक जैसा वे उलचत समझे वैसा
ही करें , उसके माता-लपता चैन की स ाँस िेते हैं । शादी की लतलथ लनलश्चत हो जाती है ।
मीनू दु ल्हन बनकर अपने पलत अलमत के साथ ससुराि चिी जाती है ।
3.पात्र पररचय
मुख्य पात्रा-मीिू
दयाराम जी की बड़ी बेटी मीनू उपन्यास की मुख्य पात्रा है । कुशाग्र बुखि, मेधावी
छात्रा मीनू पहिी कक्षा से एम. ए. तक तथा वकाित की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीणड
करती है । इसके अलतररि वह गृह कायों में भी लनपुण है । िेलकन बार-बार िड़के वािोिं
की ओर से अस्वीकृलत हो जाने पर हीन भावना से ग्रलसत हो जाती है तथा शादी न करने
का लनश्चय करती है । वह वकाित पढ़ने का क्रािं लतकारी लनणडय िेते हए स्वावििंबी बनने
का प्रयास करती है ।
दृढ़ता और साहस की प्रलतमूलतड, योग्य तथा होनहार, महत्वाकािं क्षी मीनू बचपन में
ही वकीि बनने का सपना सिंजोती है । वह लमिनसार है । थोड़े ही समय में मेरठ में हॉस्टि
की सभी िड़लकयोिं से घुिलमि जाती है । अपनी सहे िी माया को दु खी दे खकर उसका
मन बहिाने के लिए चुटकुिे सुनाती है ।
मीनू मात्र आठ महीने में वकाित में धाक जमाती है । दे खने में साधारण मीनू में
अदम्य साहस था।
अलमत की एक्सीर्ें ट से हई दशा दे खकर भावलवभोर होकर उसके नेत्रोिं में आाँ सू
आ जाते हैं । जब उसे पता चिता है लक मायाराम जी अपनी गिती पर शलमिंदा है और
अलमत ने भी भूि का प्रायलश्चत करने के लिए आज तक लववाह नहीिं लकया है , तो माता-
लपता के सुझाव पर उससे लववाह करने के लिए राजी हो जाती है ।
अपालहज मनोहर को दे खकर मीनू का मन पसीज जाता है । वह अपनी शादी के
खचे में कटौती करके पााँ च हज़ार रुपयोिं से उसे पान की दु कान खुिवा दे ती है ।
मीनू अपने दृढ़ सिंकल्प, आत्मलवश्वास और साहस का पररचय दे कर एक प्रलसि
वकीि के रूप में ख्यालत अलजडत करती है ।
5.उपन्यास का उद्दे श्य
‘नया रास्ता’ उपन्यास का मुख्य उद्दे श्य लनराशा तथा हतोत्सालहत युवलतयोिं में
आशा का सिंचार कराना है । दहे ज के कारण बहत सी िड़लकयााँ लनराश होकर अपने
प्राण दे दे ती हैं । उपन्यास में िेखखका ‘सुर्मा अग्रवाि जी’ ने दहे ज प्रथा का भी लवरोध
लकया है । िेखखका यह भी बताना चाहती है लक युवलतयोिं को पढ़ाई के साथ-साथ लसिाई,
बुनाई, कढ़ाई, पाक किा तथा सिंगीत और नृत्य जैसी किाओिं में भी पारिं गत होना चालहए।
यह सब उनके अपने हाथ में है । यह आवश्यक नहीिं लक व्यखि शारीररक रूप से सुिंदर
हो। सुिंदरता के अनेक पहिू होते हैं । शारीररक सुिंदरता थोड़ी दे र के लिए आकलर्डत कर
िेती है िेलकन गुणोिं की सुिंदरता का प्रभाव स्थायी होता है । इसलिए तो अनेक युवक
कुशि एविं योग्य िड़की से लववाह करना चाहते हैं क्ोिंलक प्रत्येक व्यखि न तो धन का
िािची होता है और न ही सौिंदयड का। साधारण रूप-रिं ग वािी मीनू के गुणोिं की सुिंदरता
के कारण ही अलमत लववाह के लिए उसकी प्रतीक्षा करता है । अन्यथा वह लकसी अन्य
िड़की से लववाह कर सकता था। अतः हम कह सकते हैं लक िेखखका अपने उद्दे श्य में
पूरी तरह सफि हई है ।
6.उपन्यास के शीषणक की सार्णकता
व्याकरर्
1.हलींग पररवतणि
पुल्लींग स्त्रीहलींग
(उदा.) दे व दे वी
एकवचि बहुवचि
शब्द हवशेषर्
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.