Professional Documents
Culture Documents
04 - Ananya - Hindi Project
04 - Ananya - Hindi Project
नै तक मूल्य
अनन्या राव
दसवीं - बी (X - B)
अनुक्रमांक: ४
Podar International
Senior Secondary School – ISC, NERUL
Certificate
Student Name ______Ananya_Rao______
Class ___X___ Division ___B___ Roll. No. __04__
Examination No. _____________ School ___Podar_International_School___
This is to certify that the project work written in the journal has
been performed by the student satisfactorily.
Vijaylaxmi Singh
१ अनुक्रम णका
Ms
Internal Examiner
२ आभारोिक्त
Date:
३ बात अठन्नी की
४ काकी
Ms
५ महायज्ञ का पुरस्कार
External Examiner
Date:
६ नेताजी का चश्मा
७ बड़े घर बेटी
९ भेड़े और भे ड़ए
१० दो कलाकार
मैं अपनी अध्या पका का सहृदय धन्यवाद करना चाहती हू ँ क उन्होंने इतनी
शक्षाप्रद प रयोजना बनाने का प्रदान कया। प रयोजना से मुझे समाज को
आधु नकता की और अग्रसर करने मली और नै तक मूल्यों के वषय में बहु त कुछ
सीखने को मला। मैं अपने माता पता का भी हा दर्थ क धन्यवाद करना चाहूं गी
क्यों क उनकी सहायता यह प रयोजना बनाना सफल न हो पता। मैं भ वष्य में भी
ऐसी शक्षाप्रद प रयोजना बनाने की आशा करती हू ँ।
- अनन्या राओ
बात अठन्नी की
सार:
रसीला इंजी नयर बाबू जगत संह के यहाँ नौकर था।
गाँव में उसके बूढ़े पता, पत्नी, एक लड़की और दो
लड़के थे, िजनका भार भी उसी के कंधो पर था। उसकी
तनख्वा से घरवालों का गुज़ारा ठीक से न चल पता था।
बार-बार प्राथर्थना करने पर भी इंजी नयर साहब ने उसकी तनख्वा नहीं बढ़ाई। शेख
सलीमुद्दीन िज़ला मिजस्ट्रे ट थे,जो इंजी नयर साहब के पड़ोस में रहते थे। उनके
चौकीदार रमज़ान और रसीला में बहु त मैत्री थी। एक दन रमज़ान ने रसीला को
बहु त उदास दे खा। पूछने पर पता चला की रसीला के बच्चे बीमार है , पर घर में रुपया
नहीं है । मा लक से पेशगी मांगने पर उन्होंने साफ़ इंकार कर दया था। रमज़ान ने
उससे कुछ रुपये दे दए। रसीला के बच्चे फर स्वस्थ हो गए। उसने
रमज़ान का रण चूका दया। केवल आठ आने शेष रह गए।
सार
एक दन जगत संह कमरे में अपने कसी काम के लए कसी से पांच सौ रुपये की रश्वत ले रहे थे
िजसे रसीला ने सुन लया। इंजी नयर साहब ने उससे पांच रुपये की मठाई लेने भेजा। रसीला ने
साढ़े चार रुपये की मठाई खरीदी और आठ आने बचा कर
रमज़ान का कज़र्थ चूका दया। मठाई दे ख कर इंजी नयर
साहब को कुछ शक हु आ। उन्हें लगा के वह मठाई पांच रुपये
की नहीं है । उन्होंने रसीला को धमकाया और हलवाई के
सामने ले जाने की बात कही। रसीला ने अपना अपराध मान
लया और क्षमा करने की प्राथर्थना की। इंजी नयर साहब ने उसे
खूब पीटा और पु लस के हवाले कर दया। उन्होंने पु लस के
सपाही के हाथ में पांच रुपये का नोट थमते हु ए कहा की
रसीला से सब कुछ मनवा लेना। दुसरे दन उसे कचहरी में पेश कया गया। उसने कचहरी में भी
अपना अपराध स्वीकार कर लया था। माफ़ करने की प्राथर्थना की, मगर मिजस्ट्रे ट शेख
सलीमुद्दीन ने उसे छे महीने की सजा का हु क्म सुना दया। फैसला सुनकर रमज़ान की आँखों में
खून उतर आया। उसने कहा की यह इंसाफ नहीं अंधेर है क्युकी बात केवल अठ न की थी और
इंजी नयर साहब पांच सौ रुपये की रश्वत लेते थे।
नै तक मूल्य
सार:
श्यामू नाम के एक बालक अपने प रवार साथ रहता था। वह अपनी माँ को काकी
नाम से बुलाता था। श्यामू की माँ भू म पर सो रही है । उसके
ऊपर एक कपड़ा ढका हु आ है तथा घर के लोग रो रहे है और
उसे घेर कर बैठे है । वास्तव में उसकी माँ की मृत्यु हो चुकी
थी। जब लोग उसकी माँ के शव को शमशान ले जाने लगे, तो
श्यामू ने बहु त उपद्रव मचाया। उसने पूछा की वो लोग उसकी
माँ को कहा के जा रहे है ? लोगो ने बहु त क ठनाई से उसे वहा
से हटाया। श्यामू को वश्वास दलाया गया की उसकी काकी
उसके मामा के यहाँ गयी है , पर थोड़े दन बाद उसको अस लयत का पता चल गया
की उसकी माँ ऊपर राम के यहाँ गयी है ।
सार
सार:
एक धनी सेठ थे। वह स्वभाव से अत्यंत वनम्र, उदार और धमर्थपरायण व्यिक्त था। कोई साधु संत उसके
द्वार से खाली वापस नहीं लौटता था। वह अत्यंत दानी था। जो भी
उसके सामने हाथ फैलता था, उसे दान अवश्य मलता था।
उसकी पत्नी भी अत्यंत दयालु व परोपकारी थी। अकस्मात ् दन
फरे और सेठ को गरीबी का मुख दे खना पड़ा। नौबत ऐसी आ
गयी क भूखे मरने की हालत हो गयी। उन दनों एक प्रथा
प्रच लत थी। यज्ञ के पुण्य का क्रय - वक्रय कया जाता था। सेठ - सेठानी ने नणर्थय लया की यज्ञ के फल
को बेच कर कुछ धन प्राप्त कया जाए ता क कुछ गरीबी दूर हो जाए। सेठ के यहाँ से दस - बारह कोस की
दूरी पर कंु दनपुर क़स्बा था। वहां एक धन्ना सेठ रहते थे। ऐसी मान्यता थी की उनकी
पत्नी को दै वी शिक्त प्राप्त है और वह भूत - भ वष्य की बात भी जान लेती थी।
सार
मुसीबत से घरे सेठ - सेठानी ने कंु दनपुर जाकर उनको यज्ञ का पुण्य बेचने का नणर्थय लया।
सेठानी पड़ोस के घर से आटा मांग चार रो टयां बनाकर
सेठ को दे दी। सेठ तड़के उठे और कंु दनपुर की और
चल पड़े। गमर्मी के दन थे। रस्ते में एक बाग़ दे खकर
उन्होंने सोचा के वश्राम कर थोड़ा भोजन भी कर लें। सेठ
ने जैसे ही अपनी रो टयां नकली थो उसके सामने एक
म रयल सा कुत्तिा नज़र आया। सेठ को दया आयी और
उन्होंने एक-एक करके अपनी सारी रो टयां कुत्तिे को खला दी। स्वयं पानी पीकर कंु दनपुर
पहुं चे तो धन्ना सेठ कहा की अगर आप आज का कया महायज्ञ को बेचने
को तैयार है तो हम उसे खरीद लेंगे अन्यथा नहीं।
सार
सेठ जी समझे नहीं के वे कस महायज्ञ की वचार में कह रहे थे। धन्ना सेठ की पत्नी
ने कहा के उन्होंने आज जो पुण्य कया है वो बहु त बड़ा
महायज्ञ है । सेठ जी उसे महायज्ञ नहीं मानते थे, तो
उन्होंने उसे नहीं बेचा और खाली हाथ लौट आये।
अगले दन सेठ जी को अपने घर की दहलीज़ के
नीचे गदा हु आ खज़ाना मला। उसने जो म रयल कुत्तिे
को अपनी रोटी क हल्यै थी, वह खजाना उस महायज्ञ का पुरस्कार था। ईश्वर भी
उन्ही की सहायता करता है जो गरीब, दुखी और असहाय की सहायता करता है ।
हमारे अच्छे कमर्थ कभी व्यथर्थ नहीं जाते है । हमें हमेशा अच्छे कमर्थ करते
रहना चा हए तभी जीवन सफल होगा।
नै तक मूल्य
सार:
हालदार साहब को हर पंद्रहवें दन कंपनी के काम से एक कस्बे से गुजरना पड़ता
था। कस्बा बहु त बड़ा नहीं था। ले कन उसमें एक लड़कों का स्कूल, एक लड़ कयों
का स्कूल, एक कारखाना, दो ओपन एयर सनेमाघर और एक नगरपा लका भी थी।
अब नगरपा लका थी, तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी। इसी नगरपा लका के
कसी उत्साही बोडर्थ या प्रशास नक अ धकारी ने एक बार मुख्य बाजाार के मुख्य
चैराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र स की एक संगमरमर की प्र तमा लगवा दी। अच्छी मू तर्थ
की लागत अनुमान और उपल ध बजट से कहीं दा हो रही थी। अंत में कस्बे के
इकलौते हाई स्कूल के ड्राइंग मास्टर को मू तर्थ बनाने का काम सौंपा गया। मू तर्थ
सुंदर थी। केवल एक चीज की कसर थी। नेताजी की आँख पर चश्मा नहीं था।
एक सचमुच के चश्मे का चैड़ा काला फ्रेम मू तर्थ को पहना दया गया था। हालदार साहब ने पहली बार मू तर्थ को
दे खा तो सोचा - वाह भई! यह आइ डया भी ठीक है । मू तर्थ पत्थर की, ले कन चश्मा रयल।
दूसरी बार हालदार साहब कस्बे से गुजरे तो मू तर्थ पर तार के फ्रेम वाला गोल चश्मा था।
तीसरी बार फर नया चश्मा था।
सार
इस बार वे पान वाले से पूछ ही बैठे क नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है । पान वाले ने बताया क कैप्टन
चश्मेवाला ऐसा करता है । हालदार साहब समझ गए क चश्मेवाले को नेताजी की मू तर्थ बना चश्मे के बुरी लगती
होगी, इस लए अपने उपल ध फ्रेमों में से एक को वह नेताजी की मू तर्थ पर फट कर दे ता
होगा। जब कसी ग्राहक को वैसा ही फ्रेम चा हए होता है जैसा क मू तर्थ पर लगा
है , तो कैप्टन वह फ्रेम मू तर्थ से उतारकर ग्राहक को दे ता है और मू तर्थ पर नया फ्रेम
लगा दे ता है । कसी कारणवश मू तर्थ के लए ओ रजनल चश्मा बना ही न था।
हालदार साहब ने पान वाले से जानना चाहा क कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी
है या आजाद हंद फौज का भूतपूवर्थ सपाही? उसने बताया क वह लँ गड़ा क्या
फौज में जाएगा। यह तो उसका पागलपन है । हालदार साहब को पानवाले द्वारा
एक दे शभक्त का मजााक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। केप्टन चश्मेवाले की
दुकान नहीं थी, वह फेरी लगाकर चश्मे बेचता था। दो साल के भीतर हालदार
साहब ने नेताजी की मू तर्थ पर कई तरह के चश्मे लगे दे खे। एक बार जब हालदार
साहब कस्बे से गुजरे , तो मू तर्थ पर कोई चश्मा नहीं था। पूछने पर पता चला क
कैप्टन मर गया। उन्हें बहु त दुख हु आ। पंद्रह दन बाद कस्बे से गुजरे , तो सोचा
क वहाँ नहीं रुकेंगे, पान भी नहीं खाएँगे, मू तर्थ की ओर दे खेंगे भी नहीं। ले कन आदत
से मजबूर चैराहा आते ही आँखें मू तर्थ की ओर उठ गईं। वे जीप से उतरे और मू तर्थ के
सामने जाकर खड़े हो गए। मू तर्थ की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा था,
जैसा बच्चे बना लेते हैं। यह दे खकर हालदार साहब की आँखें भर आईं।
नै तक मूल्य
सार:
भीड़ में खोया आदमी लीलाधर शमार्थ पवर्थतीय द्वारा लखा गया नबंध है | इस नबंध में लेखक ने आज के समय की एक
महत्वपूणर्थ बढ़ती समस्या जनसंख्या के बारे में बताया है | इस नबंध में लेखक
ने पाठकों को बताया हैं क दे श की बढती जनसंख्या बहु त बड़ी चंता का
वषय है |लेखकने नबंध के माध्यम से इस कडवी सच्चाई को दखाना है क
जहां एक ओर दे श की जनसंख्या बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर संसाधन घटते
जा रहे हैं | जनसंख्या के बढ़ने से मुख्य रूप से नम्न ल खत समस्याएँ पैदा
होती हैं - नयम, व्यवस्था और अनुशासन का पालन न होना |
यातायात की व्यवस्था ठीक न होना | रोज़गार की कमी होना, आवास की कमी
होना, भोजन की कमी ,स्वास्थ्य एवं च कत्सा सु वधाओं की कमी | उपभोक्ता
सेवाओं की कमी होना | कचहरी, दफ्तर, अस्पताल, स्टे शन आ द पर समय, शिक्त और धन का अपव्यय | इस प्रकार हम
दे खते हैं क लेखक वत्तिर्थमान समय की इस बड़ी समस्या को बाबू श्यामलाकान्त तथा उनके प रवार के जीवन के माध्यम से
प्रस्तुत करके बताने की को शश कर रहे है बढ़ती समस्या जनसंख्या के कारण आरक्षण
मलना बहु त मुिश्कल है |
नै तक मूल्य
इस कहानी का सीख राष्ट्र कतर्थव्य और बढ़ते जनसँख्या की समस्या का बोध होना है । बढ़ती हु ई
जनसँख्या के प्र त जनता के मन में जागरूकता लाने के लए इस नबंध की रचना की गयी है ।
लेखक ने, बढ़ती हु ई जनसँख्या से उत्पन्न होने वाले संकटों और
समस्याओं की और लेखक का ध्यान आक षर्थत करवाया है , घरों,
दफ्तरों, स्टे शनों आ द का उदहारण दे कर यह समझाया है की
बढ़ती हु ई आबादी के लए अ धक आवास, अन्य तथा रोजगार
अवसर चा हए परं तु दुभार्थग्य से हमारे दे श में साधन सी मत है ।
लेखक जनसँख्या को सी मत करने के लए प रवार को सी मत
करने का संदेश दे ने में पूणत
र्थ ाः सफल हु आ है ।
भेड़ और भे ड़ये
सार:
रसीवन प्रदे श में भेड़ो की संख्या अ धक थी। उन्होंने सोचा क अब उनका हो जाएगा। वे अपने
प्र त न धत्व द्वारा नयम कानून बनवाऐंगे िजससे की कोई भी जीवधारी
कसी अन्य जीव को न मारे । उधर दूसरी तरफ भे ड़ये यह सोच रहे थे की
अब उन पर संकट आने वाला है क्यूं क उनकी संख्या काम थी। भेड़ो की
संख्या अ धक होने पंचायत में उन्ही का बहु मत होगा। य द बहु मत से भेड़े
यह कानून बनवा दे गी क कोई पशु कसी को न मरे , न खाये, थो उनका
क्या होगा? वे क्या खाएंगे, भे ड़ये थो भूके मर जाएंगे। एक बूढ़े सयार को
भे ड़ये की चंता का कारन समाज गया। उसने भे ड़ये को बहु मत में आने
दखाया। उसने भे ड़ये को बदलकर कया। बूढ़े सयार ने तीन सयारो की सहायता से भे ड़ये प्रचार
कया। तीनो रें ज हु ए थे - पीला,नीला,हरा। इन तीनो बूढ़े सयार ने सभी भेड़ो को वश्वास दलाया की
भे ड़ये परमात्मा के रूप है , त्यागी है , ,दयावान है । यह सुनकर भेड़ो ने भे ड़यों की सकार्थर बना दी। बहु मत
पाने के बाद भे ड़ये ने भेड़ों क भलाई के लए पहला कानून बनाया “हर भे ड़ये को
सवेरे नाश्ते में भेद का एक मुलायम बच्चा दया जाए,दोपहर को भोजन में एक
पूरी भेद और शाम को आधी भेद दी जाए।”
नै तक मूल्य
सार:
रसीप्रस्तुत कहानी में दो प्रमुख पात्र है - अरुणा और चत्रा। दोनों ही घ नष्ट मत्र थे। दोनों पढ़ने
अपने अपने घर से दूर एक हॉस्टल में रहते थे। अरुणा की रु च
समाज सेवा में थी । वह नधर्थन तथा बेसहारे बच्चो को खुले
मैदान में पद्ध त थी। चत्रा एक चत्रकार थी। वह अमीर बाप
की इकलौती बेटी थी तथा उनकी अनुम त से वह आगे पड़ने के
लए वदे श जाने वाली थी। एक बार बहु त तेज बा रश कारण
बाढ़ आ गयी थी। तीन दनों तक वषार्थ होती रही। बाढ़ कारण
पी ड़तों की दशा बगड़ती जा रही थी। अरुणा बढ़ के पी ड़तों की सहायता के लए कुछ दन चली
गयी थी। जब वह लौटी तो वह बहु त कमज़ोर हो गयी थी। इधर चत्रा हॉस्टल छोड़ कर वदे श जाने
की तैयारी कर रही थी। चत्रा को हॉस्टल शानदार वदाई मली। जाने से पहले वह सबसे मली, पर
अरुणा नहीं आयी। चत्रा ने जाने से पहले गगर्थ स्टोर के पेड़ के नीचे बैठी मृत
बखरीं तथा उसके रोते बच्चो का स्केच बनाकर ले आयी।
सार
वदे श जाकर चत्रा बहु त बड़ा नाम हु आ। भखा रन तथा उसके अनात बच्चों वाले
चत्र के कारण ही वह मशहू र हु ई। यह चत्रा ने
चत्रा को प्रथम पुरस्कार दलाया था। पहले वषर्थ
तो अरुणा व्यवहार नय मत चला, पर काम होते
होते एकदम गया। तीन साल बाद चत्रा भारत
लौटी। उसने अपने चत्रों का प्रदशर्थन दल्ली में
आयोिजत कया। उधर चत्रा अरुणा से मली। अरुणा के साथ दो बच्चे भी थे। बच्चों
के बारे में पूछने पर अरुणा कहा की यह बच्चे भखा रन वाले तस्वीर पर बने बच्चे
ही है । अरुणा ने भखा रन के दो अनाथ बच्चों को गोद ले लया था।
यह सुनकर चत्रा की आँखें फटी की फटी रह गयी।
नै तक मूल्य