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2021-2022

ह िं दी प्रकल्प
नैहिक मूल्य

सार्थक मगंती
कक्षा : दसवीं – बी (X-B)
अनुक्रमां क : 34
X
Podar International
Senior Secondary School – ISC, NERUL
Certificate
Student Name Sarthak Maganty

Class 10 Division B Roll no 34

Examination No School Podar Internationa School ICSE Nerul

This is to certify that the project work written in the journal has been performed by the
student satisfactorily.

Date 18/8/21 Grade

Vijay Laxmi

External Examiner Internal Examiner

School Seal Principal Sign


अनुक्रमहिका

क्रमािंक हिषय
1
आभारोक्ति

2
काकी

3
नेताजी का चश्मा

4
बात अठन्नी की

5
महायज्ञ का पुरस्कार

6
बडे घर की बेटी

7
अपना अपना भाग्य

8
जामुन का पेड

9
भेडे और भेडडए
10
सन्दभथ पुस्तकें व स्रोत

आभारोक्ति
मैं अपनी अध्याहपका हिमिी हिजयलक्ष्मी जी
का सहृदय धन्यिाद करना चा िा हूँ हक
उन्हिंने मुझे इिनी हिक्षाप्रद पररयहजना
बनाने का य अिसर प्रदान हकया । इस
पररयहजना से मुझे समाज कह आधुहनकिा
की ओर अग्रसर करने की प्रेरना हमली और
नैहिक मूल्यहिं के हिषय में बहुि कुछ सीखने
कह हमला ।
मैं अपने मािा और हपिा का भी ाहदि॔ क
धन्यिाद करना चाहूँ गा क्हिंहक उनकी
स ायिा के हबना य पररयहजना बनाना
सफल न ह पािा । मैं भहिष्य में भी ऐसी
हिक्षाप्रद पररयहजना बनाने की आिा करिा
हूँ ।
धन्यिाद,
Internal examiner:
External examiner:
काकी

प्रसतुत कहानी में डसयारामशरण गुप्त ने बच्ों के


चंचल स्वभाव को दशाथ ते हए एक बालक के अपने
मााँ के प्रडत प्रम को प्रकट डकया है । श्यामू अपनी
काकी उमा के मर जाने के बाद बहुत रोया र्ा।
आस-पास के बच्ों से उसे पता चलता है की उसकी
काकी भगवान राम के पास चली गयी र्ी।
पतंग को दे खने के बाद उसके मन में ख्याल आता है
की वो पतंग पर अपनी काकी का नाम डलखकर
उडाना चाहता है और उसे राम के पास भेजना
चाहता है । इस डलए वो अपने काका के पास जाकर
पतंग मां गता है । दु खी डवश्वेश्वर श्यामू को वचन दे कर
चला जाता है । इं तज़ार करने के बाद भी डवश्वेश्वर
पतंग नहीं मंगवाता। इस डलए श्यामू काका के जेब
से पैसे चोरी करके पतंग खरीदता है । भोला के कहने
से वह मोटी रस्सी खरीदने के डलए डिर से चोरी
करता है । जब पतंग को उडने का बन्दोबस्त हो
जाता है तो काका आकर भोला से पूछते हैं की
उनकी जेब से डकसने पैसे चु राए । भोला सच्
बताता है । काका श्यामू को दो चमाट मरते हैं और
पतंग िाड दे ते हैं । जब भोला बताता है की श्यामू
इस पतंग के द्वारा काकी को राम के यहााँ से नीचे
लाना चाहता है ,यह सुनकर डवश्वेस्वर हतबुक्ति हो
कर वहीं खडेे़ रह जाते हैं ।

मूल्य - बालकों का हृदय बहुत कोमल, भावुक तर्ा


संवेदनशील होता है । वे मातृ -डवयोग की पीडा को
सहन नहीं कर सकते।
नेिाजी का चश्मा
नेताजी का चश्मा कहानी में लेखक स्वयं प्रकाश जी
बताते हैं डक एक कस्बे के मुख्य चौराहे पर नेताजी
की एक संगमरमर की मूडतथ लगी हुई र्ी। परन्तु उस
पर संगमरमर का चश्मा नहीं र्ा। हालदार साहब
डकसी काम से हर पन्द्रहवें डदन उस कस्बे से गुजरते
र्े। वे दे खते र्े डक हर बार नेताजी की आाँ खों पर
एक नया चश्मा लगा होता र्ा । एक बार उन्ोंने पान
वाले से इसके बारे में पूछा तो उसने उन्ें बताया डक
वहां कैप्टन नाम का एक बूढ़ा, लंगडा आदमी है ।
वही नेताजी की मूडतथ को बदल बदल कर चश्मा
पहनाता रहता है । इस प्रकार कािी समय बीत
गया, एक बार जब वे गए तो उन्ोंने दे खा डक नेताजी
की मूडतथ पर चश्मा नहीं र्ा। लोगों से पूछने पर उन्ें
पता चला डक कैप्टन की मृत्यु हो गयी र्ी। अगली बार
जब वे वहां गए तो उन्ोंने दे खा डक उनके चेहरे पर
एक सरकंडे से बना चश्मा लगा हुआ र्ा । यह
दे खकर उन्ें बहुत दु ुःख हुआ ।

मूल्य - लेखक ने दे शवाडसयों को राष्ट्र प्रेम एवं


दे शभक्ति की भावना मजबूत बनाए रखने के सार्-
सार् शहीदों का सम्मान करने का भी संदेश डदया है
बाि अठन्नी की
इस कहानी का मुख्य पात्र रसीला , एक इं जीडनयर
जगतबाबू के घर मात्र दस रुपया की माडसक
तनख्वा पर नौकरी करता र्ा। रसीला के बच्े , पत्नी
और डपता गााँ व मे रहते है डजनका पालन पोषण
रसीला के भेजे गए पैसों से होता र्ा। इं जीडनयर साब
के घर के पडोस मे ही मडजस्ट्र े ट शेख साहब का घर
र्ा। शेख साहब के घर का नौकर रमजान और
रसीला मे अडछ डमत्रता र्ी। एक बार रसीला के बच्े
की तबीयत खराब हो जाती है और गााँ व मदद भेजने
के डलए उसके पास रुपए नहीं होते । तभी रमजान
उसे पााँ च रूपय दे ता है । रसीला उन पााँ च रूपय मे
से साढ़े चार रूपय तो चुका दे ता है । रसीला के मन
मे पाप आ जाता है और वह हलवाई से साढ़े चार
रूपय की डमठाई खरीदता है और अठन्नी बचाकर ,
रमजान का कजथ अदा कर दे ता है । रसीला की चोरी
पकडी जाती है । इं जीडनयर साब रसीला को बहुत
मारते है और पुडलस के हवाले
कर दे ते है । मामला मडजस्ट्र े ट शेख साब के पास
पहुं चता है और रसीला को 6 महीने की सजा हो
जाती ।

मूल्य - लेखक ने यह संदेश डदया है की माडलक को


अपने नौकरों की छोटी भूलों को माफ़ कर दे ना
चाडहए। अतुः इस कहानी द्वारा सामाडजक डवषमता
को दू र करने का संदेश डदया गया है ।
म ायज्ञ का पुरस्कार
एक धनी सेठ र्ा । वह स्वभाव से अत्यंत डवनमथ ,
उदार , धमथपरायण और दानी व्यक्ति र्ा ।कोई साधू
संत उसके द्वार से खाली वापस नहीं लौटता र्ा ।
अकस्मात डदन डिरे और सेठ को गरीबी का मुख
दे खना पडा। नौबत ऐसी आ गयी की भूखों मरने की
हालत हो गयी। उन डदनों एक प्रर्ा प्रचडलत र्ी । यज्ञ
के पुण्य का क्रय – डवक्रय डकया जाता र्ा । सेठ –
सेठानी ने डनणथय डलया की यज्ञ के िल को बेच कर
कुछ धन प्राप्त डकया जाए ताडक गरीबी कुछ दू र हो
।सेठ के यहााँ से दस – बारह कोस की दू री पर
कुन्दनपुर नामक क़स्बे में एक धन्ना सेठ रहते र्े
।ऐसी मान्यता र्ी की उनकी पत्नी को दै वी शक्ति
प्राप्त है । सेठ तडके उठे और कुन्दनपुर की ओर
चल पडे । रास्ते में एक बाग़ दे खकर उन्ोंने सोचा
की डवश्राम कर र्ोडा भोजन भी कर लें। सेठ ने जैसे
ही अपनी रोडटयााँ डनकाली तो उसके सामने एक
मररयल सा कुत्ता नज़र आया। सेठ को दया आई
और उन्ोंने एक – एक करके अपनी सारी रोडटयााँ
कुत्ते को क्तखला दी । सेठ जी अपने महायज्ञ को बेचने
को तैयार नहीं हुए वह खाली हार् लौट आये ।अगले
डदन ही सेठजी को अपने घर की दहलीज़ के नीचे
गडा हुआ खज़ाना डमला ।

मूल्य - इस कहानी से हमें सदै व भलाई एवं


परोपकारी के कायथ करके अपने जीवन को सार्थक
बनाने की डशक्षा डमलती है ।
बडे घर की बेटी
कहानी की मुख्य पात्र आनंदी है जो भूपडसंह की
बेटी है , जो एक ररयासत के ताल्लुकेदार र्े। आनंदी
का डववाह गौरीपुर के जमींदार बेनी माधव डसंह के
बडे बेटे श्रीकंठ से होता है । एक डदन लाल डबहारी
डसंह का अपनी भाभी आनंदी से खाने में घी न डालने
की वजह से डववाद हो जाता है और वह आनंदी के
मायके को लेकर व्यंग कस्ता है । आनं दी नाराज
होकर कोपभवन चली जाती है और अपने पडत से
दे वर की डशकायत करती है । उसका पडत श्रीकंठ
क्रोडधत होकर अपने भाई का मुंह ना दे खने की
कसम खाता है । इन सब बातों से दु खी लाल डबहारी
जाने लगता है । जाते -जाते लालडबहारी अपनी भाभी
आनंदी से क्षमा मां गता है । यह दे ख कर उसकी
भाभी आनंदी का डदल डपघल जाता है और वो अपने
दे वर लालडबहारी को क्षमा कर दे ती है ।
मूल्य - मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा रडचत कहानी से हमें
यह डशक्षा डमलती है की हमें बात का बतंगड न बना
कर आपसी समझदारी से डबगडती पररक्तथर्डत को
सामान्य करने का प्रयत्न करना चाडहये ।
अपना-अपना भाग्य
लेखक अपने डमत्र के सार् नैनीताल में संध्या के समय
बहुत दे र तक डनरुद्दे श्य घूमने के बाद एक बेंच पर बैठे
र्े डक दू र कोहरे के बीच से उन्ें एक काली-सी मूडतथ
आती प्रतीत होती है । पास आने पर उन्ें एक लडका
डदखाई दे ता है ।
दोनों को आश्चयथ होता है डक इतनी ठं ड में यह बालक
बाहर क्या कर रहा है । वे उससे तरह-तरह के प्रश्न करते
हैं ।
लडका जवाब दे ता है डक वह बेरोजगार है और डकसी भी
थर्ान पर सो सकता है ।दोस्त पूछता है डक उसका काम
क्या है ? लडका कहता है डक वह अपनी घर की गरीबी
और भुखमरी से तंग आकर अपने एक सार्ी के सार्
यहााँ भाग आया र्ा। यहााँ आने पर उसे और उसके सार्ी
को एक दु कान में काम के बदले में एक रूपया और
झूठा खाना डमलता र्ा। पर वह बताता है डक माडलक के
मारने पर उसका सार्ी मर गया और माडलक ने उसे
काम से डनकाल डदया ।
डमत्र और लेखक उसे एक वकील के पास ले जाते हैं और
उन्ें घरे लू सहायता के रूप में रखने के डलए कहते हैं ।
वकील कहते हैं डक पहाडी लोग बहुत कुख्यात हैं और
मना कर दे ते हैं लडके को रखने से।लेखक और दोस्त
घर चले जाते हैं । लडका वहीं बिीली आकाश के नीचे
रहता है ।
अगले डदन सुबह खबर आती है डक एक १० वषथ के बच्े
की ठं ड के कारण मौत हो जाती है । प्रकृडत की चाल
दे खों मानो दु डनया की बेहयाई ढाँ कने के डलए प्रकृडत ने
शव के डलए सफ़ेद और ठं डे कफ़न का प्रबंध कर डदया
र्ा। यही है सबका अपना-अपना भाग्य।
मूल्य - इस कहानी द्वारा यह सीख डमलती है की हमें
अपने व्यक्तिगत स्वार्ों से ऊपर उठकर समाज के
डनचले तबके की ओर नैडतकता, परोपकार और
सामाडजक डजम्मेदारी का डनवाथ ह करना चाडहए न की
अपना-अपना भाग्य कहकर डजम्मेदारी से मुि होने का
प्रयास करना चाडहए।
जामुन का पेड
रात में चले तेज आाँ धी के कारण जामुन का पेड
सडचवालय के लॉन में डगर गया, डजसके नीचे एक
आदमी दब गया र्ा। माली ने दे खा तो यह बात
उसने चपरासी को बताई। धीरे -धीरे यह बात पूरे
सडचवालय में फ़ैल गई। सभी जामुन के पेड के डगरने
पर दु ुःख जता रहे र्े , लेडकन दबे हुए आदमी के बारे
कोई नहीं सोच रहा र्ा। कुछ मनचले क्लकों ने
कानून की परवाह डकए डबना डनश्चय डकया डक पेड
काटकर आदमी को डनकाल डलया जाए। लेडकन
सुपररं टें डेंट ने बताया डक मामला कृडष डवभाग का है ,
इसडलए पेड को वे काट नहीं सकते। इस प्रकार
मामला व्यापार डवभाग से कृडष डवभाग तक पहुाँ च
जाता है । कृडष डवभाग वाले मामले को हॉटीकल्चर
डवभाग को सौंप दे ते हैं क्योंडक जामुन का पेड
िलदार र्ा। तभी सबको पता चलता है डक दबा
हुआ व्यक्ति शायर है । इस खबर के िैलते ही लोगों
की भीड बढ़ने लगी और मामला कल्चरल डवभाग में
भेज डदया जाता है । दबा हुआ आदमी ददथ से पीडडत
र्ा और अपने डनकाले जाने के िैसले के इं तजार में
र्ा। फ़ॉरे स्ट् डवभाग के लोग पेड काटने ही वाले र्े ,
तभी पता चला डक जामुन का पेड पीटोडनया राज्य के
प्रधानमन्त्री ने लगाया र्ा और इसे काटने से दो
राज्यों के संबंध डबगड जाते। इसडलए आदे श को
रोक डदया गया। प्रधानमं त्री दौरे से वापस आए तो
उन्ोंने इस मामले की अंतराथ ष्ट्रीय डजम्मेदारी स्वयं
ली। इस प्रकार पेड काटने की अनुमडत डमल गई।
लेडकन तब तक बहुत दे र हो चुकी र्ी। दबा हुआ
आदमी मर चुका र्ा और उसकी जीवन की िाइल
बंद हो चुकी र्ी। इस प्रकार, सरकारी आदे श और
उसकी संवेदनहीनता के आगे एक व्यक्ति अपने
जीवन-संघषथ में हार गया र्ा।
मूल्य - यह कहानी सरकारी दफ़्तरों तर्ा डवभागों
पर करारा व्यंग करते हुए हमें यह सन्दे श दे ती है की
सरकारी काम काज में अन्यावाश्यक डवस्तार डकया
जाता है ,जो की आम आदमी की समस्याओं को हल
करने के डलए न होकर उन्ें और ज्यादा परे शान
करने के डलए तर्ा कष्ट् पहुचाने के डलए है । अतुः
सरकारी व्यवथर्ा बोझ बन गयी है ।
भेडें और भेहडए
वन प्रदे श में भेडों की संख्या अडधक र्ी । उन्ोंने
सोचा डक अब उनका भय दू र हो जाएगा । अपने
प्रडतडनडधत्व द्वारा डनयम - कानून बनवाएं गी डजससे
की कोई भी जीवधारी डकसी अन्य जीव को न मारे ।
उधर दू सरी तरि भेडडये यह सोचकर दु खी हो रहे र्े
की अब उन पर संकट आने वाला है क्योंडक उनकी
संख्या कम र्ी । भेडों संख्या अडधक होने के कारण
पंचायत में उन्ी का बहुमत होगा । यडद बहुमत से
भेडें यह कानून बनवा दें गी डक कोई पशु डकसी को
न मारे ,न खाए तो उनका क्या होगा ? वे क्या खायेंगे
,भेडडये तो भूखें मर जायेंगे । एक बूढ़े डसयार को
भेडडये की डचंता का कारण समझ में आ गया ।
उसने भेडडये को बहुमत में आने का मागथ डदखाया ।
बूढ़े डसयार ने अपनी बुक्तिमत्ता का उपयोग करते हुए
तीन रं गें हुए डसयारों का प्रयोग करके भेडडयों के
समर्थन में जनमत तैयार डकया और इस तरह बूढ़े
डसयार ने बडी ही चालाकी से भोली भेडों को बरगला
डदया । बूढ़े डसयार की बातों में िाँसकर भेडों को
लगा डक भेडडया अब संत बन चुका है यडद वह चुनाव
जीतता है तो वह भेडों के डहतों के डलए कायथ करे गा।
उन्ें लगने लगा डक भेडडयों से बढ़कर उनका कोई
डहत-डचंतक और डहत रक्षक नहीं है ।
चुनाव जीतने के बाद भेडडयों ने पहला कानून यह
बनाया डक रोज सुबह नाश्ते में उन्ें भेड का मुलायम
बच्ा खाने को डदया जाए, दोपहर के भोजन में एक
पूरी भेड तर्ा शाम को स्वास्थ्य के ख्याल से कम
खाना चाडहए, इसडलए आधी भेड दी जाए।

मूल्य - इस कहानी का साफ़ उद्दे श्य यह है डक


समाज के लोगों को सचेत करना जो भेड की तरह
चलते हैं और राह चलते भेडडए के डशकार हो जाते
हैं । डजसे डसिथ अपना िायदा डदखता है ।
सन्दभभ पुस्तकें ि िहि

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