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1.

बात अठन्नी की कहानी का उद्दे श्य -


बात अठन्नी की कहानी के माध्यम से लेखक भ्रष्ट तथा अमीर वर्ग पर व्यंग्य
करना चाहते है | आज के यग ु मे मानवता खत्म सी होती जा रही| गरीबों पर
अत्याचार किए जा रहे हैं | रसीला जैसे गरीब लोगों को कम वेतन दे कर अधिक
काम करवाया जाता है | मालिक हजारों रुपयों की रिश्वत लेते हैं,लेकिन गरीब को
मामलू ी से अपराध के लिए कठोर दं ड दिया जाता है | न्याय की कुर्सी पर बैठने
वाले भी भ्रष्ट हैं| न्याय करने वाले रिश्वत लेते हैं लेकिन रसीला जैसे गरीब
व्यक्ति को अठन्नी की चोरी के लिए छह महीने की सज़ा सन ु ाई जाती है | समाज
के इस दोहरी सोच पर लेखक व्यंग्य करते हैं|

2. शीर्षक-
इस कहानी का शीर्षक ‘बात अठन्नी की’ पर्ण ू रूप से सार्थक है ,क्योंकि सम्पर्ण

कहानी अठन्नी के इर्द-गिर्द ही घम ू ती है | रसीला कई दिनों से रमजान को अठन्नी
का कर्ज नहीं चक ु ा पा रहा था| रसीला का मालिक बाबू जगत सिंह एक व्यक्ति से
पाँच सौ रुपये की रिश्वत लेता है | रसीला ,जो ईमानदार था उसके मन में भी
लालच पैदा हो जाता है | पाँच रुपये की मिठाई लाने जाता है , उसमें से अठन्नी
चरु ा लेता है | अठन्नी रमजान को चक ु ा दे ता है | अठन्नी की चोरी के लिए बाबू
जगत सिंह खब ू मारता-पीटता है ,घसीटते हुए पलि ु स थाने ले जाता है , अठन्नी के
लिए सिपाही से पिटवाता है तथा उसी अठन्नी के रसीला को छह महीने की सज़ा
सन ु ाई जाती है | अठन्नी ही कहानी का केंद्र है ,इसलिए शीर्षक बात अठन्नी की
सार्थक है |
3.
संदेश - इस कहानी से संदेश मिलता है कि मनष्ु य में मानवता के भाव अवश्य
होने चाहिए| जिस व्यक्ति से जो काम करवाया जाता है ,उसका उचित मल् ू य
अवश्य दे ना चाहिए| मामल ू ी सी गलती के लिए कठोर दं ड नहीं दे ना चाहिए| दस ू रों
को दं ड दे ने से पहले खद ु की कमियों की ओर भी ध्यान दे ना चाहिए , जैसे बाबू
जगत सिंह और शेख सलीमद् ु दीन स्वयं हजारों रुपये की रिश्वत लेते हैं और
मामल ू ी अठन्नी की चोरी के लिए रसीला को मारा पीटा जाता है , छह महीने की
सजा सन ु ाई जाती है |

2 काकी
1. कहानी का उद्दे श्य -
काकी कहानी के माध्यम से लेखक एक बालक के मनोविज्ञान और उसकी मां के
प्रति प्रेम को दिखाना से बालपन की सरलता, भावकु ता, संवेदनशीलता व अबोधता को
पाठकों के समक्ष चित्रित करना है | बच्चे भावक
ु होते हैं| उनकी भावनाओ को
समझना चाहिए| बच्चे कल्पनाशील होते हैं| उनकी कल्पना और भावनाओं को
समझना चाहिए | बच्चों को कभी भी किसी गलती के लिए दं ड न दे कर उसकी
गलती का कारण ढूँढना चाहिए | बच्चे मासम ू और नासमझ होते हैं , वे अच्छाई
और बरु ाई में अंतर नहीं समझ पाते हैं, उन्हें समझाना बड़ों की जिम्मेदारी होती
है | यही स्पष्ट करना इस कहानी का उद्दे श्य है |
2. शीर्षक -
इस कहानी का शीर्षक काकी पर्ण ू रूप से सार्थक है क्योंकि सम्पर्ण ू कहानी काकी
के इर्द-गिर्द घम ू ती है | काकी की मत्ृ यु के बाद से बालक उदास रहने लगा| काकी
को राम के घर से लाने के लिए पिता की कोट से पैसे निकालकर पतंग और डोर
मँगवाता है | पतंग काकी के पास ही जाए इसके लिए पतंग पर काकी लिखवाता
है | काकी को राम के घर से लाने के लिए अनेक प्रयास करता है | कहानी के अंत
में बालक के पिता को सच्चाई का पता चलता है कि काकी के लिए उसने कोट से
पैसे चरु ाए है तो वह हतबद् ु धि हो जाता है | सम्पर्ण
ू कहानी का केंद्र काकी ही है
इसलिए शीर्षक सार्थक है |
3. महायज्ञ का परु स्कार -
1 उद्दे श्य - प्रस्ततु कहानी के माध्यम से लेखक बताना चाहते हैं मानवता ही
सबसे बड़ा धर्म है | निस्वार्थ भाव से किया गया नेक कार्य ही सच्चा महायज्ञ होता
है | हमें इंसानों के प्रति ही नहीं बल्कि पश-ु पक्षी या हर प्राणी के प्रति दया भावना
रखनी चाहिए| लेखक यह भी बताना चाहते हैं कि मनष्ु य को विकट से विकट
परिस्थितियों में भी अपने धर्म और कर्त्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए , जैसे सेठ
अपने कर्त्तव्य और धर्म का साथ नहीं छोड़ता है |अच्छे कर्मों का परिणाम हमेशा
अच्छा ही होता है |
2. शीर्षक - इस कहानी का शीर्षक ‘महायज्ञ का परु स्कार’ पर्ण ू रूप से सार्थक है
क्योंकि सम्पर्ण ू कहानी महायज्ञ के इर्द- गिर्द ही घम ू ती है |सेठ स्वयं भखू े रहकर
निस्वार्थ भाव से अपनी चारों की चारों रोटियाँ भख ू े कुत्ते को खिला दी | यश और
नाम कमाने के लिए किया गया यज्ञ सच्चा यज्ञ नहीं होता है | सेठानी भी इसी
कार्य को महायज्ञ मानती है तथा मँह ू माँगी कीमत दे ने के लिए तैयार थी,लेकिन
सेठ भख ू े को भोजन दे ना अपना कर्त्तव्य मानते हैं| धन्ना सेठ की पत्नी महायज्ञ
का अर्थ समझती थी इसलिए वह महायज्ञ खरीदना चाहती थी| कहानी के अंत में
सेठ को महायज्ञ का परु स्कार मिलता है | कहानी का केंद्र महायज्ञ का परु स्कार ही
है , इसलिए शीर्षक उचित है |
4. नेताजी का चश्मा -
1 कहानी का उद्दे श्य - ‘नेताजी का चश्मा’ कहानी के माध्यम से लेखक
दे शभक्ति की भावना पैदा करना चाहते है | आजकल दे शभक्ति की भावना खत्म
होती जा रही है | लेखक कहना चाहते हैं कि जिन दे शभक्तों ने अपने दे श के लिए
जवानी ,जिंदगी, और गह ृ स्थी बलिदान कर दी, लोग उन्हें भी भल ू गए हैं| आज
दे श भक्ति या तो किसी में दिखाई नहीं दे ती अगर किसी में दे शभक्ति है तो लोग
उनका मज़ाक उड़ाते हैं, जैसे कैप्टन चशमेवाले की दे शभक्ति का मजाक उड़ाया
जाता है |
2 शीर्षक-
कहानी का शीर्षक नेताजी का चश्मा पर्ण ू रूप से सार्थक है क्योंकि सम्पर्णू कहानी
नेताजी के चश्मे के इर्द-गिर्द ही घमू ती है | मर्ति
ू संगमरमर की थी और चश्मा
रियल था| मर्ति ू बनाने वाला चश्मा बनाना भल ू गया| हाल्दार साहब बड़ा चकित
हो जाता है कि नेताजी जी जैसे महान व्यक्ति का भला कोई चश्मा बनाना कैसे
भल ू सकता है ? कैप्टन चश्मे वाले को बड़ा असहज महसस ू होता है ,इसलिए
नेताजी की मर्ति ू पर रियल चश्मा लगा दे ता है | कहानी के अंत मे एक बालक
सरकंडे का चश्मा चढ़ा दे ता है | इस प्रकार से सम्पर्ण ू कहानी में चश्मा ही केंद्र रहा
है ,इसलिए कहानी का शीर्षक उचित है |
5. अपना-अपना भाग्य -
1 उद्दे श्य - अपना-अपना भाग्य कहानी के माध्यम से लेखक बताना चाहते है
कि संसार में भाग्य का बहुत महत्व है | पहाड़ी बालक जैसे व्यक्ति बड़े अभागे है
कि खेलने -कूदने ,पढ़ने-लिखने की उम्र में काम करने के लिए मजबरू हो जाते हैं
और भाग्य के मारे ठं ड मे ठिठुर कर मर जाते हैं , दस ू री तरफ लेखक और उसके
मित्र जैसे व्यक्ति हैं कि भाग्य के कारण आराम की जिंदगी जीते हैं| लेखक यह
भी बताना चाहते है कि उस पहाड़ी बालक जैसे अभागे इंसानों की मदद करना
हमारा कर्तव्य है | गरीब भी एक मनष्ु य है ,उसे संसार में जीवन जीने का
अधिकार है | ऐसे लोगों का सहारा बनना चाहिए | कहीं ऐसा न हो जाए कि आपकी
की थोड़ी सी लापरवाही से और नासमझी से किसी व्यक्ति की जान न चली जाए |
2 शीर्षक-
प्रस्ततु कहानी का शीर्षक ‘अपना-अपना भाग्य पर्ण ू रूप से उचित है क्योंकि
सम्पर्ण ू कहानी अपने-अपने भाग्य के इर्द-गिर्द ही घम ू ती है | पहाड़ी बालक का
भाग्य ही था कि एक ऐसे परिवार में जन्म लिया जहाँ गरीबी और भख ू थी| भाग्य
के कारण ही पढ़ने-लिखने और खेलने -कूदने की उम्र मे बालक को काम करने के
लिए मजबरू होना पड़ा | बालक भाग्य का मारा ही था कि काम करने की इच्छा
होते हुए भी काम नहीं मिलता है | भाग्य के कारण ही बालक ठं ड के मारे ठिठुर कर
मर गया| इस कहानी का केंद्र बिन्द ु अपना-अपना भाग्य ही है |
6 बड़े घर की बेटी -
उद्दे श्य - प्रस्तत
ु कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी के द्वारा लेखक प्रेमचंद बड़े घर
की बेटी के गुणों से परिचित करवाते हैं, किसी बड़े घर में जन्म लेने वाली लड़की
बड़े घर की बेटी नहीं है बल्कि बड़े संस्कारों मे पली -बढ़ी लड़की ही बड़े घर की बेटी
है | जिस लड़की में अपार सहन शक्ति , क्षमाशीलता, प्रेम , सरलता , त्याग और
परिवार को जोड़कर रखने की भावना हो वही लड़की बड़े घर की बेटी है | प्रस्तत ु
कहानी में आनंदी एक रियासत के तालक ु े दार की बेटी होते हुए भी एक साधारण
और दे हाती परिवार में ऐसे ढाल लेती है जैसे जीवन में उसने कभी सख ु सवि
ु धाएं
दे खी ही न हो| खड़ाऊ से मार खाकर भी लालबिहरी को माफ कर दे ती है | दोनों
भाइयों को गले मिलवाने का कार्य भी आनदी ही करती है | यही बताना ही इस
कहानी का उद्दे श्य है |
2 शीर्षक - इस कहानी का शीर्षक ‘बड़े घर की बेटी’ परू ी तरह से उचित है क्योंकि
सम्पर्णू कहानी बड़े घर की बेटी के इर्द-गिर्द ही घम ू ती है | आनंदी बड़े घर की बेटी
थी | रियासत के तालक ु े दार की बेटी थी| हाथी ,घोड़े,नौकर -चाकर और महल जैसे
घर में रहने वाली लड़की दे हाती परिवार में स्वयं को ऐसे ढाल लेना जैसे जीवन मे
सख ु -सविु धाएँ दे खी ही न हो यह एक बड़े घर की बेटी के ही संस्कार है | परिवार को
जोड़ना , क्षमा कर दे ना, मार खाकर भी लाल बिहारी को माफ़ कर दे ना , ऐसे
संस्कार बड़े घर की बेटी में ही होते है |
3 संयक् ु त परिवार के टूटने के कारण-
आज के यग ु में संयक्ु त परिवार प्रथा टूटती जा रही है , इसके अनीक कारण है |
अच्छे संस्कारों की कमी होने के कारण आजकल संयक् ु त परिवार में रहने में
अरुचि बढ़ती जा रही है | नौकरी -पेशे के लिए घर छोड़कर जाना पड़ता है | लोग
शहरों की ओर पलायन कर रहे है हैं| संयक् ु त परिवार में कुछ लोग कमाते हैं बाकी
के लोग घर बैठे रहते हैं ,जिसके कारण कलह बढ़ने लगती है और परिवार टूट
जाते हैं|
7 संदेह -
उद्दे श्य -

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