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Motivation Novel
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बु दधि
सदियों पहले की बात है । राजा सूर्यसे न प्रतापगढ़ का राजा था।
राजा की इकलौती सं तान उसकी पु त्री भानु मति थी। वह अत्यं त सुं दर थी।
भानु मति के विवाह योग्य होने पर राजा को पु त्री के लिए एक योग्य वर की तलाश
थी।
् मान वर खोजना चाहता था जो उसकी पु त्री से विवाह के
राजा एक ऐसा बु दधि
पश्चात उसके राज्य को भी सं भाल सके।
राजा ने ऐलान किया कि जो कोई भी राजकुमारी से विवाह करना चाहता है वह
सं सार की सबसे मूलयवान वस्तु ले कर आए।
अने क राजकुमार कई मु लयमान वस्तु एं ले कर राजा के समक्ष उपस्थित होते रहते थे
किन्तु राजा ने सबको नकार दिया। राजा को यकीन था कि एक दिन कोई न कोई
योग्य यु वक इस शर्त को जरूर पूरा करे गा।
एक दिन उसी राजा के राज्य के एक गां व के किसान के पु त्र रघु को राजा के इस शर्त
के बारे में पता लगा।
रघु बहुत बु दधि् मान था। उसने विवे कपूर्ण तरिके से सोचा और फिर एक दिन तीन
वस्तु एं ले कर राजा के दरबार में हाजिर हो गया।
राजा से अनु मति पाकर वह बोला - मैं दुनिया की तीन सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु एं लाया
हँ ।ू
मे रे हाथ में यह मिट् टी है जो हमें अन्न दे ती है , यह जल है जो अमूल्य है और इसके
बिना जीवन सं भव नहीं है तीसरी वस्तु पु स्तक है ।
पु स्तकें ज्ञान का आधार होती हैं और ज्ञान के बिना सृ ष्टि का सं चालन असं भव है ।
् मता से राजा प्रभावित हुआ और उसने भानु मति का विवाह उससे
रघु की बु दधि
करके उसे राज्य का योग्य उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
् , विवे क और ज्ञान से कठिन से कठिन प्रश्नों का हल निकल
सार यह है कि बु दधि
जाता है ।
झठ
ू बोलकर भी पाया सच बोलने का पु ण्य
एक किसान की फसल पाले ने बर्बाद कर दी।
उसके घर में अन्न का एक दाना भी नहीं बचा। गां व में ऐसा कोई नहीं था, जो
किसान की सहायता करे ।
किसान सोच्त्र रहा कि वह क्या करे ?
जब कोई उपाय नहीं सूझा तो वह एक रात जमींदार के बाड़े में जाकर उसकी एक
गाय चु रा लाया।
जब सु बह हुई तो उसने गाय का दध ू दह
ू कर अपने बच्चों को भरपे ट पिलाया। उधर
जमींदार के नौकरों को जब पता चला कि किसान ने जमींदार की गाय चु राई है तो
उन्होंने जमींदार से शिकायत की।
जमींदार ने पं चायत में किसान को बु लाया। पांचों ने किसान से पूछा - यह गाय तु म
कहाँ से लाए ?
किसान ने उत्तर दिया - इसे मैं मे ले से खरीदकर लाया हँ ।ू
पं चों ने बहुत घु मा-फिरकर सवाल किया, किन्तु किसान इसी उत्तर पर अडिग रहा।
फिर पं चों ने जमींदार से पूछा क्या यह गया आपका ही है ?
जमींदार ने किसान की और दे खा तो किसान ने अपनी आँ खे नीची कर ली।
तब जमींदार ने किसान ने कहा - पं चों मु झसे भूल हुई। यह गाय मे री नहीं हैं ।
पं चों ने किसान को दोषमु क्त कर दिया। घर पहुंचने पर जमींदार के नौकरों ने झठ
ू का
बोलने का कारण पूछा तो जमींदार बोला - उस किसान की नजरों में उसका दर्द
झलक रहा था।
मैं उसकी विवशता समझ गया। यदि मैं सच बोलता तो उसे सजा हो जाती।
इसलिए मैं ने झठ
ू बोलकर एक परिवार को और सं कटग्रस्त होने से बचा लिया।
इतने में किसान जमींदार की गाय ले कर उसके घर पहुंच गया और जमींदार के पै रों में
गिरकर माफ़ी मां गने लगा। जमींदार ने उसे गले से लगाकर माफ़ कर दिया और
उसकी आर्थिक सहायता की।
वस्तु तः किसी के भले के लिए बोला गया झठ
ू पूर्णतः धार्मिक है , क्योंकि सं कटग्रस्त
की सहायत के लिए साधना की पवित्रता नहीं, बल्कि साध्य की सात्विकता दे खि
जाती है ।
एकता और समझदारी
ऊँचे आकाश में सफेद कबूतरों की एक टोली उड़कर जा रही थी।
बहुत दरू जाना था उन्हें । लं बा रास्ता था। सु बह से उड़ते -उड़ते थकान होने लगी थी।
सूरज ते जी से चमक रहा था। कबूतरों को भूख लगने लगी थी। तभी उन्होंने दे खा कि
नीचे जमीन पर चावल के बहुत से दाने पड़े थे ।
ू रे से कहा, चलो भाई, थोड़ी दे र रुककर कुछ खा लिया जाए। फिर
कबूतरों ने एक-दस
आगे जाएँ गे। एक बु जुर्ग कबूतर ने चारों ओर दे खा। वहाँ दरू -दरू तक कोई घर या
मनु ष्य दिखाई नहीं दे रहा था। फिर चावल के ये दाने यहाँ कहाँ से आए ?
बु जुर्ग कबूतर ने बाकी कबूतरों को समझाया, मु झे लगता है कि यहाँ कुछ गड़बड़ है ।
तु म लोग नीचे मत उतरो।
ले किन किसी ने भी उसकी बात नहीं सु नी। सभी कबूतर ते जी से उतरे दाना चु गने
लगे ।
इतने बढ़िया दाने बहुत दिनों के बाद खाने को मिले थे ।
वे बहुत खु श थे । जब सभी ने भरपे ट खा लिया तो बोले चलो भाई, अब आगे चला
जाए। ले किन यह क्या ? जब उन्होंने उड़ने की कोशिश की तो उड़ ही नहीं पाए।
दोनों के साथ-साथ वहाँ एक चिड़ीमार का जाल भी था, जिसमें उनके पाँ व फँस गए
थे । उन्हें अपनी गलती पर पछतावा हुआ।
बूढ़ा कबूतर पे ड़ पर बै ठकर सब दे ख रहा था। उसने जब अपने साथियों को मु सीबत
में दे खा तो फौरन उड़ा और चारो ओर दे खा।
दरू उसे चिड़ीमार आता दिखाई दिया।
वह फौरन लौटा और अपने साथियों को बताया। सब वहाँ से निकलने का उपाय
सोचने लगे ।
तब बूढ़े कबूतर ने कहा, दोस्तों, एकता में बड़ी शक्ति होती है । सब एक साथ उड़ोगे
तो जाल तु म्हें रोक नहीं पाएगा।
उसने गिना - एक दो तीन। ........ उड़ो .....
सारे कबूतरों ने एक साथ जोर लगाया और जाल उनके साथ उठने लगा। जब तक
चिड़ीमार वहाँ पहुँचा, तब तक जाल काफी ऊपर उठ चूका था। वह दे खता ही रह
गया और कबूतर जाल ले कर उड़ गए। बूढ़ा कबूतर सबसे आगे उड़ रहा था।
काफी दे र उड़ने के बाद वे नीचे उतरे । वहाँ कबूतरों के दोस्त चूहे रहते थे । चूहों ने
अपने ते ज दातों से जाल काट दिया।
इस तरह बूढ़े कबूतर की समझदारी और साथ मिलकर काम करने से सभी कबूतर बच
गए।
अन्धी का बे टा
एक औरत थी जो अं धी थी जिसके कारण उसके बे टे को स्कू ल में बच्चे चिढाते थे की
अं धी का बे टा आ गया।
हर बात पर उसे ये शब्द सु नने को मिलता था कि "अन्धी का बे टा" इसलिए वो
अपनी माँ से चिडता था ❗
उसे कही भी अपने साथ ले कर जाने में हिचकता था उसे नापसं द करता था।
उसकी माँ ने उसे पढ़ाया और उसे इस लायक बना दिया की वो अपने पै रो पर खड़ा
हो सके ले किन जब वो बड़ा आदमी बन गया तो अपनी माँ को छोड़ अलग रहने
लगा।
एक दिन एक बूढी औरत उसके घर आई और गार्ड से बोली मु झे तु म्हारे साहब से
मिलना है जब गार्ड ने अपने मालिक से बोल तो मालिक ने कहा कि बोल दो मै अभी
घर पर नही हँ ।ू
गार्ड ने जब बु ढिया से बोला कि वो अभी नही है । तो वो वहा से चली गयी।
थोड़ी दे र बाद जब लड़का अपनी कार से ऑफिस के लिए जा रहा होता है ।
तो दे खता है कि सामने बहुत भीड़ लगी है ।
और जानने के लिए कि वहाँ क्यों भीड़ लगी है वह वहा गया तो दे खा उसकी माँ वहा
मरी पड़ी थी।
उसने दे खा की उसकी मु ट्ठी में कुछ है ।
उसने जब मु ट्ठी खोली तो दे खा की एक ले टर जिसमें यह लिखा था कि बे टा जब तू
छोटा था तो खे लते वक़्त ते री आँ ख में सरिया धं स गयी थी और तू अँ धा हो गया था
तो मैं ने तु म्हे अपनी आँ खे दे दी थी।
इतना पढ़ कर लड़का जोर-जोर से रोने लगा।
उसकी माँ उसके पास नही आ सकती थी। दोस्तों वक़्त रहते ही लोगो की वै ल्यू
करना सीखो।
माँ -बाप का कर्ज हम कभी नही चूका सकते ।
हमारी प्यास का अंदाज़ भी अलग है दोस्तों, कभी समंदर को ठु करा दे ते है , तो कभी
आंस ू तक पी जाते है ।
मु झे परमात्मा दिखा दो
एक बार अकबर ने बीरबल से कहा - मु झे परमात्मा दिखा दो । राजा का हुक्म था ।
बीरबल बहुत परे शान था कि परमात्मा को कैसे राजा को दिखाये ।
इसी विचार को ले कर बीरबल छुट् टी पर चला गया और उदास रहने लगा ।
एक दिन परिवार में चर्चा हुई, उदासी का कारण पूछा गया तो बीरबल ने बता दिया
कि राजा ईश्वर के दर्शन करना चाहते हैं ।
बीरबल का बे टा बोला - कल सु बह मु झे आप साथ ले जायें । मैं अपने आप राजा को
ू ा।
दर्शन करा दं ग
ू रे दिन सु बह बीरबल और लड़का दरबार में पहुँचे और राजा को कहा मे रा लड़का
दस
आपके प्रश्न के उत्तर का समाधान करे गा ।
राजा ने सोचा यह लड़का क्या समाधान करे गा ?
लड़का बोला - इस वक्त मैं आपका गु रु हँ ू , मु झे उचित स्थान दिया जाये ।
राजा ने सोचा बात तो ठीक कह रहा है ।
मैं ने तो प्रश्न किया है , समाधान करने वाला गु रु समान होता है ।
राजा ने लड़के के लिए अपने साथ थोड़ा ऊँचा स्थान दिया ।
ू का कटोरा मं गाओ । राजा ने दध
लड़का बोला महाराज - एक दध ू का कटोरा मं गाया
।
ू में घी है । राजा बोला - हाँ है ।
लड़का बोला - महाराज इस दध
लड़का बोला - पहले मु झे आप उसका दर्शन कराओ ।
राजा बोला - तू मु र्ख है ।
घी के दर्शन ऐसे थोड़े होते हैं ।
ू को गर्म करना पड़ता है फिर उसकी दही जमाना पड़ता है । फिर उसको
पहले दध
मघानी में रिड़का जाता है ।
फिर मक्खन निकलता है फिर उसे गर्म-गर्म कढाई में डाला जाता है । फिर उसकी
मै ल निकाली जाती है ।
तब जाकर घी के दर्शन होते हैं । ऐसे ही थोड़े दर्शन होते हैं ।
लड़का बोला - यही उत्तर है आपके प्रश्न का पहले इन्सान को तपना पड़ता है ।
फिर उसको जमना पड़ता है । फिर उसको साधना करनी पड़ती है । फिर उसको ज्ञान
की अग्नि में तपना होता है ।
फिर उस ईश्वर के दर्शन होते हैं ।
अकबर समझ गया और बोला - तू वाकई ही मे रा गु रु है ।
ईश्वर को जानने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है ।
वै से हर आत्मा में ईश्वर का अं श है और उसी को ईश्वर का रूप समझना चाहिए
तभी सु ख की प्राप्ति होती है ।
यह भी सं सार का एक नियम है ।
सीख
अपनी कमियों को छुपाना कितना सामान्य है पर उनका सामना करे तो सारे संकट
गायब हो जाते हैं ।
बात उन दिनों की है जब स्नातक में पढ़ता था
इं टर में कम प्राप्तांक आने के कारण मे रा नामांकन वाणिज्य महाविद्यालय, पटना
जिसमें कि रे गु लर कोर्स होता है , नहीं हो पाया था।
इसी वजह से मैं ने पटना विश्व विद्यालय के दरू स्थ शिक्षा माध्यम से स्नातक में
नामांकन करा लिया।
ू रे को
परन्तु मु झे यह कहने में बहुत ही झें प महसूस होती थी, इसलिए मैं अक्सर दस
कहा करता था कि मैं वाणिज्य महाविद्यालय में पढ़ता हँ ।ू
एक बार की बात है , मैं बगल के बैं क में खाता खु लवाने के लिए गया था।
वहां बातचीत के क् रम में बैं क मै नेजर ने मु झसे पूछ लिया, बाबू, तु म कहाँ पढ़ते हो ?
आदतन मैं ने कह दिया कि वाणिज्य महविद्यालय-द्वितीय वर्ष।
फिर उन्होंने मु झसे पूछा कि अभी वहां के प्रिं सिपल कौन हैं ?
अब तो मे रे पास कोई जवाब ही नहीं था। परन्तु अपने हाव-भाव को छुपाते हुए मैं ने
ू रा सवाल
कह दिया कि पता नहीं सर क्योंकि मैं ज्यादा नहीं जाता हँ ।ू तब उन्होंने दस
दाग दिया कि अकाउन्टें स कौन पढ़ाते हैं ?
अब तो मैं निरुत्तर हो गया क्योंकि इसका गलत उत्तर दे ते साथ ही मे री चोरी पकड़ी
जाती। मैं बगल-बगल दे खने लगा। सं भवतः उनकों वाकया समझते दे र नहीं लगी ।
उन्होंने कहा, ऐसे हो ही नहीं सकता कि कोई विद्यार्थी यह नहीं जाने की उसके
कॉले ज का प्रिं सिपल कौन है चाहे वह कितना ही कम क्यों न कॉले ज जाता हो।
मैं भी वाणिज्य महाविद्यालय का स्टू डेंट रहा हँ ू इसलिए जिज्ञासावश पूछ लिया था।
मैं ने बहुत ही लज्जित होकर पूरी सच्ची कहानी कह डाली।
तब उन्होंने समझाया कम नं बर आने के कारण कॉले ज में एडमिशन न हो पाना गलत
नहीं है परन्तु झठ
ू बोलना तो निहायत ही गलत है ।
तु म्हारा कम नं बर आने के कारण एडमीशन नहीं हो पाया, मगर तु म अभी से कोशिश
करोगे तो निश्चित ही तु म अच्छा मु काम पा जाओगे ।
परन्तु इसके लिए तु म्हें अपनी कमजोरी को छिपाना नहीं चाहिए बल्कि उसको एक
आधार मानकर बड़ी मजबूती से अपनी मं जिल को पाने के लिए कोशिश करनी
चाहिए।
बैं क मै नेजर की वह सीख हमे शा के लिए मे रे मन मस्तिष्क में अं कित हो गई।
निरं तर प्रयास से आज मैं सराकरी से वा में हँ ।ू
घर किसका ?
अक्सर हम सामने वाले से कर्तव्य या जिम्मे दारी की उम्मीदें करते हैं । क्या उसी
जिम्मे दारी और कर्तव्य का पालन खुद करते हैं ?
मु झे इं ग्लिश ऑनर्स की परीक्षा के लिए मधु बनी सें टर मिला था। मैं परीक्षा दे ने के
लिए अपनी चचे री बहन गु ड़ी के यहाँ रुकी थी।
मैं अपनी पढ़ाई कर रही थी, तभी मैं ने सु ना गु ड़ी अपनी कामवाली बाई को सु ना रही
थी, दे ख सोफे पर कितनी धूल जमी है ,
उधर टे बल के नीचे कितना कचरा पड़ा है , कांच पर कितने दाग लगे हैं , कैसी सफाई
करती है । घर को अपना समझकर काम किया कर।
अगले दिन बाई नहीं आयी, तो गु ड़ी बोली कि कल आएगी, तो सफाई कर ले गी।
ू रे दिन मालूम पड़ा कि बाई आज भी नहीं, कल आएगी तो गु ड़ी ने बस सामने -
दस
सामने से यूँ ही झाड़ू मार दी कि मैं क्यों करूं।
कल बाई आएगी तो सब अच्छे से करें गी ही न। वह क्या करे गी नहीं तो आकर !
मैं सोच में पड़ गई कि घर किसका है , बहन का या बाई का ? सफाई की जिम्मे दारी
ज्यादा किसकी है ? बहन अपने घर को किसका समझ रही है ?
एक ईमानदार लड़का
एक गां व में एक लड़का रहता था।
उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।
उसके मन में विचार आया किसी बड़े शहर में जाकर वह नौकरी करे ।
वह कलकत्ता गया और नौकरी ढूंढने लगा।
बहुत खोज के बाद उसे एक से ठ के घर में नौकरी मिल गयी।
नौकरी छे ह अने रोज़ की थी।
काम था से ठ को रोज़ 6 घं टे अख़बार और किताब पढ़कर सु नाना लड़के को नौकरी
की ज़रूरत थी तो उसने वह नौकरी स्वीकार कर ली।
एक दिन की बात है लड़के को दुकान के कोने में 100-100 के 8 नोट पड़े मिले ।
उसने चु पचाप उन्हें अख़बार और किताबो से ढक दिया।
ू रे दिन रुपयों की खोजबीन हुई। लड़का सु बह जब दुकान पर आया तो उससे पूछा
दस
गया।
लड़के ने तु रं त ही प्रसनन्ता से रूपये निकालकर ग्राहक को दे दिए।
वह बहुत ही खु श हुआ। लड़के के ईमानदारी से सबको बहुत प्रसनन्ता हुई।
से ठ भी लड़के से बहुत खु श हुआ। से ठ ने लड़के को पु रस्कार दे ना चाहा तो लड़के ने
ले ने से मना कर दिया।
लड़के ने कहा से ठ जी में आगे पढ़ना चाहता हु। पर पै सो के आभाव ने पढ़ नहीं पा
रहा। आप कुछ सहयता कर दें ।
से ठ ने लड़के की पढ़ाई का प्रवन्ध कर दिया। लड़का बहुत मे हनत से पढता गया।
यही लड़का आगे चलकर बहुत बढ़ा सहित्यकार बना। इसका नाम था – राम नरे श
त्रिपाठी। हिं दी साहित्य में इनका बहुत बढ़ा योगदान है ।
ईमानदार मनु ष्य ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है ।
अं गुलिमार की कहानी
एक बार गौतम बु द्ध कोसला के जं गलो से गु जर रहे थे
तभी उन्होंने सु ना की इन जं गलो में कोई व्यक्ति इतना दुष्ट है वह लोगो की
उँगलियाँ काटकर उनकी माला बनाकर पहनता है ।
उसने 100 लोगो की ऊँगली पहनने का प्रण लिया है ।
गौतम बु द्धा को बहुत अफ़सोस हुआ की यह व्यक्ति अपने जीवन को कैसे बिगड़ रहा
है ।
उन्होंने उससे मिलने का निश्चय किया और जहाँ वह रहता था वहां जाने लगे ।
अं गुलिमार गौतम बु द्ध को आता हुआ दे कर चिल्लाया की लौट जाओ वर्णा में तु म्हे
मारकर तम्हारी ऊँगली अपनी माला में पहन लूंगा।
पर गौतम बु द्ध को उस पर बहुत करुणा थी की ये कैसे भी ये काम छोड़ दे की सं तो
का स्वभाव होता है की उनके ह्रदय में सबके प्रति करुणा होती है की सबका जीवन
सवाँरे।
गौतम बु द्ध अं गुलिमार की तरफ चलते गए अं गुलिमार को बड़ा आश्चर्य हुआ की
लोग मु झसे दरू भागते हैं ।
ये मे रे मना करने पर भी मे रे पास आ रहे हैं ।
इन्हे मु झसे डर भी नहीं लग रहा तभी अं गुलिमार से गौतम बु द्ध ने कहा की तु म मु झे
मारना चाहते हो तो मार दे ना पर पहले मे रे एक सवाल का जवाव दो
सामने पे ड़ लगा है उसकी एक डं डी तोड़ लाओ अनु गलीमर सामने से पे ड़ की डं डी
थोड़ लाया तभी गौतम बु द्ध ने कहा अब इस डं डी को पे ड़ में जोड़ आओ।
अं गुलिमार ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है गौतम बु द्ध ने कहा कोशिश करो हो
जाएगा।
अनु गीमार ने कोशिश की पर डं डी पे ड़ से नहीं जु डी।
तभी गौतम बु द्ध ने उसे समझाया की तु म पे ड़ से जै से डं डी तोड़ तो सकते हो पर
जोड़ नहीं सकते ।
इसी तरह तु म आदमियों को मार तो सकते हो पर उन्हें जिन्दा नहीं कर सकते ।
अनु गलीमर का इस वचन का बहुत प्रभाव पड़ा और उसने लोगो को मारना छोड़
दिया और गौतम बु द्ध का शिष्य बन गया।