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1.

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत
सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे । दख ु ी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी
अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तम् ु हारी राजधानी के बीचो बीच जो परु ाना सख ू ा
कंु आ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक बाल्टी दधू उस क ु एं में डाला जाये तो अगली
ही सबु ह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा। राजा ने तरु न्त ही परू े राज्य में यह
घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दध ू डाला
जाना अनिवार्य है ।

अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दध ू डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजस ू
बढ़िु या ने सोंचा कि सारे लोग तो कंु ए में दध
ू डालेंगे अगर मै अकेली एक बाल्टी पानी डाल दं ू तो किसी को क्या पता
चलेगा। इसी विचार से उस कंजस ू बढ़िु या ने रात में चप
ु चाप एक बाल्टी पानी कंु ए में डाल दिया। अगले दिन जब
सब ु ह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब
कंु ए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने दे खा कि सारा कंु आ पानी से भरा हुआ है । दध ू की एक बदंू
भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दरू नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं।

दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बढ़ि ु या के मन में आया था वही विचार परू े राज्य के लोगों के
मन में आ गया और किसी ने भी कंु ए में दध
ू नहीं डाला।

मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है । जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत
सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि
कोई न कोई तो कर ही दे गा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम
दस ू रों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो परू े दे श में बर ऐसा बदलाव ला सकते
हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है ।

2.बहुत समय पहले की बात है , सद ु रू दक्षिण में किसी प्रतापी राजा का राज्य था. राजा के तीन पत्र ु थे, एक दिन
राजा के मन में आया कि पत्र ु ों  को कुछ ऐसी शिक्षा दी जाये कि समय आने पर वो राज-काज सम्भाल सकें.
इसी विचार के साथ राजा ने सभी पत्र ु ों को दरबार में बल
ु ाया और बोला, “ पत्र
ु ों, हमारे राज्य में नाशपाती का कोई
वक्ष
ृ नहीं है , मैं चाहता हू ँ तमु सब चार-चार महीने क े अंतराल पर इस वक्ष
ृ की तलाश में जाओ और पता लगाओ कि
वो कैसा होता है ?” राजा की आज्ञा पा कर तीनो पत्र ु बारी-बारी से गए और वापस लौट आये .

सभी पत्र
ु ों के लौट आने पर राजा ने पन
ु ः सभी को दरबार में बल
ु ाया और उस पेड़ के बारे में बताने को कहा।

पहला पत्र
ु बोला, “ पिताजी वह पेड़ तो बिलकुल टे ढ़ा – मेढ़ा, और सख
ू ा हुआ था .”

“ नहीं -नहीं वो तो बिलकुल हरा –भरा था, लेकिन शायद उसमे कुछ कमी थी क्योंकि उसपर एक भी फल नहीं लगा
था .”, दस
ु रे पत्र
ु ने पहले को बीच में ही रोकते हुए कहा .

फिर तीसरा पत्रु बोला, “ भैया, लगता है आप भी कोई गलत पेड़ दे ख आये क्योंकि मैंने सचमच
ु नाशपाती का पेड़
दे खा, वो बहुत ही शानदार था और फलों से लदा पड़ा था .”

और तीनो पत्र ु अपनी -अपनी बात को लेकर आपस में विवाद करने लगे कि तभी राजा अपने सिंघासन से उठे और
बोले, “ पत्र
ु ों, तम्
ु हे आपस में बहस करने की कोई आवश्यकता नहीं है , दरअसल तम
ु तीनो ही वक्ष
ृ का सही वर्णन कर
रहे हो . मैंने जानबझ ू कर तम्
ु हे अलग- अलग मौसम में वक्ष
ृ खोजने भेजा था और तमु ने जो दे खा वो उस मौसम के
अनस ु ार था.

मैं चाहता हूँ कि इस अनभ


ु व के आधार पर तम
ु तीन बातों को गाँठ बाँध लो :

पहली, किसी चीज के बारे में सही और पर्ण


ू जानकारी चाहिए तो तम्
ु हे उसे लम्बे समय तक दे खना-परखना चाहिए .
फिर चाहे वो कोई विषय हो,वस्तु हो या फिर कोई व्यक्ति ही क्यों न हो ।

दस
ू री, हर मौसम एक सा नहीं होता, जिस प्रकार वक्ष
ृ मौसम के अनस ु ार सख
ू ता, हरा-भरा या फलों से लदा रहता है
उसी प्रकार मनष
ु य के जीवन में भी उतार चढाव आते रहते हैं, अतः अगर तम ु कभी भी बरु े दौर से गज
ु र रहे हो तो
अपनी हिम्मत और धैर्य बनाये रखो, समय अवश्य बदलता है ।

और तीसरी बात, अपनी बात को ही सही मान कर उस पर अड़े मत रहो, अपना दिमाग खोलो, और दस ू रों के विचारों
को भी जानो। यह संसार ज्ञान से भरा पड़ा है , चाह कर भी तम ु अकेले सारा ज्ञान अर्जित नहीं कर सकते, इसलिए
भ्रम की स्थिति में किसी ज्ञानी व्यक्ति से सलाह लेने में संकोच मत करो। “

3.एक बार एक राजा शिकार के उद्दे श्य से अपने काफिले के साथ किसी जंगल से गज ु र रहा था. दरू -दरू तक शिकार
नजर नहीं आ रहा था, वे धीरे धीरे घनघोर जंगल में प्रवेश करते गए. अभी कुछ ही दरू गए थे की उन्हें कुछ डाकुओं
के छिपने की जगह दिखाई दी. जैसे ही वे उसके पास पहुचें कि पास के पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा –

पकड़ो पकड़ो एक राजा आ रहा है इसके पास बहुत सारा सामान है लट


ू ो लट
ू ो जल्दी आओ जल्दी आओ.

तोते की आवाज सन ु कर सभी डाकू राजा की और दौड़ पड़े. डाकुओ को अपनी और आते दे ख कर राजा और उसके
सैनिक दौड़ कर भाग खड़े हुए. भागते-भागते कोसो दरू निकल गए. सामने एक बड़ा सा पेड़ दिखाई दिया. कुछ दे र
सस्
ु ताने के लिए उस पेड़ के पास चले गए , जैसे ही पेड़ के पास पहुचे कि उस पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा –

आओ राजन हमारे साधु महात्मा की कुटी में आपका स्वागत है . अन्दर आइये पानी पीजिये और विश्राम कर
लीजिये.

तोते की इस बात को सन ु कर राजा है रत में पड़ गया , और सोचने लगा की एक ही जाति के दो प्राणियों का व्यवहार
इतना अलग-अलग कैसे हो सकता है . राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह तोते की बात मानकर अन्दर साधु
की कुटिया की ओर चला गया, साधु महात्मा को प्रणाम कर उनके समीप बैठ गया और अपनी सारी कहानी सन ु ाई.
और फिर धीरे से पछ
ू ा, “ऋषिवर इन दोनों तोतों के व्यवहार में आखिर इतना अंतर क्यों है .”

साधु महात्मा धैर्य से सारी बातें सन


ु ी और बोले ,” ये कुछ नहीं राजन बस संगति का असर है . डाकुओं के साथ रहकर
तोता भी डाकुओं की तरह व्यवहार करने लगा है और उनकी ही भाषा बोलने लगा है . अर्थात जो जिस वातावरण में
रहता है वह वैसा ही बन जाता है कहने का तात्पर्य यह है कि मर्ख ू भी विद्वानों के साथ रहकर विद्वान बन जाता है
और अगर विद्वान भी मर्खों ू के संगत में रहता है तो उसके अन्दर भी मर्ख ू ता आ जाती है . इसिलिय हमें संगति
सोच समझ कर करनी चाहिए.”

4.Raja Bhoj Ki Kahani / राजा भोज और व्यापारी


यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि जैसा भाव हमारे मन मेे होता है वैसा ही भाव सामने वाले के मन में आता है । इस
सबंध में एक ऐतिहासिक घटना सन ु ी जाती है जो इस प्रकार है -

Raja Bhoj Ki Kahani राजा भोज की कहानी कहते हैं कि एक बार राजा भोज की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश
किया। राजा ने उसे दे खा तो दे खते ही उनके मन में आया कि इस व्यापारी का सबकुछ छीन लिया जाना चाहिए।
व्यापारी के जाने के बाद राजा ने सोचा –

मै प्रजा को हमेशा न्याय दे ता हूं। आज मेेरे मन में यह अन्याय पर्ण


ू भाव क्यों आ गया कि व्यापारी की संपत्ति छीन
ली जाये?

उसने अपने मंत्री से सवाल किया मंत्री ने कहा, “इसका सही जवाब कुछ दिन बाद दे पाउं गा, राजा ने मंत्री की बात
स्वीकार कर ली। मंत्री विलक्षण बद्ु धि का था वह इधर-उधर के सोच-विचार में सयम न खोकर सीधा व्यापारी से
मिलने पहूंचा। व्यापारी से दोस्ती करके उसने व्यापारी से पछ
ू ा, “तम
ु इतने चिंतित और दख
ु ी क्या हो? तम ु तो भारी
मन
ु ाफे वाला चंदन का व्यापार करते हो।”

व्यापारी बोला, “धारा नगरी सहित मैं कई नगरों में चंदन की गाडीयां भरे फिर रहा हूं, पर चंदन इस बार चन्दन की
बिक्री ही नहीं हुई! बहुत सारा धन इसमें फंसा पडा है । अब नक
ु सान से बच पाने का कोई उपाय नहीं है ।

व्यापारी की बातें सन
ु मंत्री ने पछ
ू ा, “क्या अब कोई भी रास्ता नही बचा है ?”

व्यापारी हं स कर कहने लगा अगर राजा भोज की मत्ृ यु हो जाये तो उनके दाह-संस्कार के लिए सारा चंदन बिक
सकता है ।

मंत्री को राजा का उत्तर दे ने की सामग्री मिल चक


ु ी थी। अगले दिन मंत्री ने व्यापारी से कहा कि, तम
ु प्रतिदिन राजा
का भोजन पकाने के लिए एक मन (40 kg) चंदन दे दिया करो और नगद पैसे उसी समय ले लिया करो। व्यापारी
मंत्री के आदे श को सनु कर बड़ा खश ु हुूआ। वह अब मन ही मन राजा की लंबी उम्र होने की कामना करने लगा।

एक दिन राज-सभा चल रही थी। व्यापारी दोबारा राजा को वहां दिखाई दे गया। तो राजा सोचने लगा यह कितना
आकर्षक व्यक्ति है इसे क्या परु स्कार दिया जाये?

राजा ने मंत्री को बलु ाया और पछ ू ा, “मंत्रीवर, यह व्यापारी जब पहली बार आया था तब मैंने तम
ु से कुछ पछ
ू ा था,
उसका उत्तर तम ु ने अभी तक नहीं दिया। खैर, आज जब मैंने इसे दे खा तो मेरे मन का भाव बदल गया! पता नहीं
आज मैं इसपर खश ु क्यों हो रहा हूँ और इसे इनाम दे ना चाहता हूँ!

मंत्री को तो जैसे इसी क्षण की प्रतीक्षा थी। उसने समझाया-

महाराज! दोनों ही प्रश्नों का उत्तर आज दे रहा हूं। जब यह पहले आया था तब अपनी चन्दन की लकड़ियों का ढे र
बेंचने के लिए आपकी मत्ृ यु के बारे में सोच रहा था। लेकिन अब यह रोज आपके भोजन के लिए एक मन लकड़ियाँ
दे ता है इसलिए अब ये आपके लम्बे जीवन की कामना करता है । यही कारण है कि पहले आप इसे दण्डित करना
चाहते थे और अब इनाम दे ना चाहते हैं।

मित्रों, अपनी जैसी भावना होती है वैसा ही प्रतिबिंब दस


ू रे के मन पर पड़ने लगता है । जैसे हम होते है वैसे ही
परिस्थितियां हमारी ओर आकर्षित होती हैं। हमारी जैसी सोच होगी वैसे ही लोग हमें मिलेंगे। यहीं इस जगत का
नियम है – हम जैसा बोते हैं वैसा काटते हैं…हम जैसा दस ू रों के लिए मन में भाव रखते हैं वैसा ही भाव दस
ू रों के
मन में हमारे प्रति हो जाता है !

अतः इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि हमेशा औरों के प्रति सकारात्मक भाव रखें।
5.एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था, किन्तु गंभीर बीमारी के चलते अल्प आयु में
ही उसकी मत्ृ यु हो गयी। अपने पीछे वह अपनी पत्नी और बेटा छोड़ गया। जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा-

“बेटा, मरने से पहले तम्ु हारे पिताजी ये  पत्थर छोड़ गए थे, तम ु इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमत का पता
लगा, ध्यान रहे कि तम्ु हे के वल कीमत पता करनी है , इसे बे च ना नहीं है ।”

यव
ु क पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली।” अम्मा, तम
ु इस  पत्थर के
बदले मझ
ु े क्या दे सकती हो ?”, यव
ु क ने पछ
ू ा।

“दे ना ही है तो दो गाजरों के बदले मझ


ु े ये दे दो… तौलने के काम आएगा।” सब्जी वाली बोली।

यव
ु क आगे बढ़ गया। इस बार वो एक दक
ु ानदार के पास गया और उससे पत्थर की कीमत जानना चाही। दक
ु ानदार
बोला-
“इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे सकता हूँ… दे ना हो तो दो नहीं तो आगे बढ़ जाओ।”

यव ु क इस बार एक सन ु ार के पास गया। सन ु ार ने पत्थर के बदले 20 हज़ार दे ने की बात की। फिर वह हीरे की एक
प्रतिष्ठित दकु ान पर गया वहां उसे पत्थर क े बदले 1 लाख रूपये का प्रस्ताव मिला और अंत में यवु क शहर के सबसे
बड़े हीरा विशेषज्ञ के पास पहुंचा और बोला-

“श्रीमान, कृपया इस पत्थर की कीमत बताने का कष्ट करें ।”

विशेषज्ञ ने ध्यान से पत्थर का निरीक्षण किया और आश्चर्य से यव


ु क की तरफ दे खते हुए बोला-

“यह तो एक अमल्
ू य हीरा है , करोड़ों रूपये दे कर भी ऐसा हीरा मिलना मश्कि
ु ल है ।”

………

मित्रों, यदि हम गहराई से सोचें तो ऐसा ही मल्


ू यवान हमारा मानव जीवन भी है । यह अलग बात है कि हममें से
बहुत से लोग इसकी कीमत नहीं जानते और सब्जी बेचने वाली महिला की तरह इसे मामल ू ी समझा तच्ु छ कामो में
लगा दे ते हैं।

आइये हम प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें इस मल्


ू यवान जीवन को समझने की सद्बद्
ु धि दे और हम हीरे के विशेषज्ञ की
तरह इस जीवन का मल् ू य आंक सकें।

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