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* महाभारत कथा सार *

25. धौ� ऋिष �ारा अ�ातवास हेतु पांडवों को उपदे श

पाण्डव� ने सभी ब्राह्मण� व धौम्य ऋ�ष से अ�ातवास


क� अनुम�त व आशीवार्द मांगा �क हम� पुन: आप लोग� क�
सेवा व राष्ट्रखड़ा करने क� शिक्त प्राप्त हो। धौम्य ऋ�ष ने
कहा �क हम� �दख रहा है �क आपको पहले से अ�धक बड़ा
राज्य प्राप्त होगा। अ�ातवास म� �कसी का भी साथ रहना
उ�चत नह�ं ह� अतः हम भी आ�ा लेते ह�। एक वषर् बाद �मल�गे
राजन।
बनवास समाप्त हुआ और अ�ातवास प्रारम्भ हुआ।
इसके �लये पाण्डव� ने दरू जाकर एक बैठक क� िजसमे सभी
पांडव, द्रौपद� व धौम्य ऋ�ष थे। सभी ने �वराटनगर म� जाकर
�नवास करने का �वचार �कया। वे धमार्त्मा राजा ह�, उन्ह� प�रचय
दे ना नह�ं है , एक वषर् �बताय�गे। धमर्राज ने कहा �क म� ब्राह्मण
का वेश बना कर जाऊंगा, नाम रखूंगा कंक। उनक� सभा म�
मन बहलाने के �लये अच्छ� अच्छ� बात� सुनाता रहूंगा। भीम ने
रसोईया का काम पसन्द �कया। अजन ुर् ने कहा �क मुझे एक
वषर् क� नपंस
ु कता का श्राप �मला है, ले�कन संगीत� (गायक,
वादक, नतर्क) भी हूँ, अत: म� संगीत �सखाने का कायर् करूंगा।
नकुल ने कहा �क म� एक ग्रं�थक का नाम ग्रहण कर, महाराज
के घोड़� के प्र�श�ण का काम करूँगा। सहदे व ने कहा �क इस
वषर् के �लये मेरा नाम तंतीपाल होगा और गौशाला को मेरे गौ
�व�ान का �ान प्रदान करूंगा, गंध �व�ान से गौ माता का
बाझपन दरू करुं गा। घी के द�पक व गौशाला क� गंध का अद्भत

चमत्कार है । गाय दध
ू पीने के �लये है, वह दे वता है । द्रौपद�

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* महाभारत कथा सार *

ने स�दयर्-�वशेष� (beautician) का कायर् �लया। महाराज �वराट


क� पित्न व उनके प�रवार के �लये करूंगी। इससे स्वयं का
संर�ण भी होगा।
धौम्य मह�षर् के उपदे श : राजमहल म� कैसे रहा जाय,
धौम्य मह�षर् ने उपदे श �दया, जब�क वे जानते ह� �क वे सभी
राजा रहे ह�, ले�कन अच्छ� बात� क� पन
ु राव�ृ त होना आवश्यक
है , आत्मसंर�ण के �लये। अच्छे उपदे श बार-2 सुनने चा�हये।
बुद्�ध म� पुन: मल�नता आती रहती है । कथा बराबर सुनते रहना
चा�हये। स्वामीजी बताते ह� �क गीता प्रवचन करते 60 वषर् बीत
गये, �फर भी एकांत म� बैठकर ध्यान करने पर कुछ नया ह�
अथर् आता रहता है । हमारे ग्रन्थ इतने गहन ह�। बार-2 सुनने
से भी, पता नह�ं कौन सी बात कब िक्लक कर जाये और हमारा
जीवन बदल जाये। अच्छ� बात� पन
ु : सुनना व सुनाना चा�हये।
वन म� रहने वाले धौम्य मह�षर् पाण्डव� को राजमहल म�
कैसे रहना चा�हये, महत्वपण
ू र् उपदे श बता रहे ह�।
1. राजमहल एक अत्यन्त महत्वपण
ू र् स्थान होता है । इसका
प्रभाव बहुत होता है और इसम� दोष भी बहुत होते ह�।
प्रभाव का उपयोग करना चा�हये व साथ म� दोष� से बचना
चा�हये इस�लये इन बात� का ध्यान रखना। शौचाचार,
�शष्टाचार, सदाचार व सा�ात्कार। एक वषर् तक इन �नयम�
का पालन करने से आपका अ�ातवास का समय आसानी
से पूरा हो जायेगा।
2. कह�ं भी �कसी के कमरे म� �बना अनम
ु �त प्रवेश नह�ं करना।
यह �नयम सवर्ग्राहय है ।

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* महाभारत कथा सार *

3. राजमहल के धन से सावधान रहना। परमात्मा क� चेतना


सब जगह है ।
4. उसी आसन पर बैठना िजस पर बैठने से आपको कोई
“उठो” नह�ं कहे गा।
5. �बना अनुम�त राजमहल के वाहन का उपयोग न करना।
6. �बना अनम
ु �त राजा को सलाह मत दे ना। अपना �ानोपदे श
�बना पूछे न कह� ।
7. राजमहल क� सार� सेवा, अपना मुँह बन्द करके ह� करना।
8. राजमहल क� म�हलाओं से कभी मेलजोल नह�ं बढ़ाना, उनसे
अन्तर रखना ह� अच्छा है।
9. छोटा से छोटा काम भी राजा क� जानकार� के �बना मत
करना। पछ
ू ने और बताने क� आदत अवश्य डाले।
10. कभी भी घूसखोर� मत करना और राजा को सदै व राजा
मानना।
11. काम म� कभी प्रमाद मत करना। समय पर करना व अपने
कायर् का अहं कार मत �दखाना। जो राजा को �प्रय हो, वह�
काम करना चा�हये। अपना व्यवहार इसी प्रकार करना।
12. राजा के समीप बैठना नह�ं। अन्तर रखना। चलने के
दौरान दरू � रख�।
13. राजा के सामने जाते समय आंख�, दांत, मुँख, पोशाक स्वच्छ
रखना। अनावश्यक वातार् न करना, मयार्दा रखना, हास्य
नह�ं करना।
14. राजा के गण
ु � को उनके सामने व पीछे भी कहते रहना
चा�हये।
15. डयूट� पर सदै व सजग व चेहरा िस्मत हास्य के साथ हो।

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* महाभारत कथा सार *

16. व्यिक्तगत रूप से स्वयं को बलवान रखना चा�हये।


17. छाया के समान सेवा करने क� इच्छा अन्त:करण म� रखना।
18. राजा के �नणर्य को प्रभा�वत करने वाले कोई भी वाक्य मुहं
से नह�ं �नकलने चा�हये- जैसे म� कर लूंगा कोई कायर्,
जब�क राजा ने वह कायर् �कसी ओर को बता रखा है।
19. राजा के सामने अपनी पा�रवा�रक समस्याओं क� चचार् नह�ं
करना।
20. राजा के समान अपना वेश (पोशाक) कभी नह�ं रखना।
21. राजमहल म� �व�भन्न चचार्एं चलती रहती ह�। आपके मुख
से वह चचार् बाहर नह�ं जानी चा�हये।
22. कभी राजा प्रसन्न होकर आपको अलंकार दे ता है , उसे ग्रहण
करना चा�हये व कभी उसके सामने उन अलंकार� को पहन
कर जाना चा�हये, इससे राजा प्रसन्न होता है ।
ये सब बाते कहकर धौम्य ऋ�ष ने पाण्डव� को �वदा
�कया, उनक� समद्
ृ �ध के �लये एक य� �कया। पाण्डव� ने
मह�षर् को प्रणाम �कया और �वराटनगर क� ओर चले। वे इस
राजमहल म� वषर् तक एक अ�ात वास म� रहे ।
ये उपदे श हम सभी के �लए उपयोगी ह�। हम सबको
प�रवार म� बच्च� को �सखाना चा�हये। गीता प�रवार क� एक
पुस्तक है – ‘क्या कर� , कैसे कर� ’। �श�ा क्रम से होनी चा�हये।
महाभारत एक ऐसा ग्रन्थ है जो छोट� से छोट� बात से लेकर
बड़ी से बड़ी बात तक आपको सब समझा दे ता है । यह सभी के
�लए एक वैिश्वक पाठ्यक्रम है । (It is a Global Course for
all).

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