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्वामी पेरियाि औि उनकी स्ची िामायण

लेखक

सुमेध जरवाल

DIPLOMA & DEGREE IN CHEMICAL ENGG. , MA , LLB , PGD - SHE

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एक मधुि ननवेदन

भाित मं समय समय पि बुत से महापुुष उ्पन ुए हं , उनमं ्वामी पेरियाि भी एक महान नवभूनत थे । जज्हंने दे श
की एकता औि अख्डता के ललए महान कायय नकया । दे श मं फैली कुिीनतयं को ममटाने के ललए उ्हंने जीवन भि
सतत संघषय नकया औि वे अपने संघषय मं सफल भी ुए । भाित दे श मं कुिीनतयं को उ्पन किने वाले अलील
रामणी रंथ ही िहे हं । ऐसे रंथं की आंतरिक सामरी को उजागि किके उ्हंने रामणी यव्था मं खलल मचा ददया

। रामणी रंथं को अलील , का्पननक औि मनगढ़ं त रमाणणत कि ददया । उनके ऐसे लेखन को दे श के उ्चतम
्यायालय ने भी रमाणं के आधाि पि मोहि लगा दी थी । उनके वािा ललखी गई स्ची िामायण दे श मं उपस्थत सभी

िामायणं के त्यं के आधाि पि ललखी गई है , जजसमं कुछ भी अस्य नही है । जब स्ची िामायण जैसे रंथं के

मा्यम से रामणी लोगं की असललयत सामने लाई जाती है , तो वे नतलममलाने लगते हं ।

िामायण एक का्पननक औि भाितीय लोगं को नीचा ददखाने के ललए ललखी गई एक मनगढ़ं त कथा है । जजसका कोई
भी रमाणणक आधाि नही है । िामायण के चरिरं मं ऐसा कुछ भी नही है नक उनकी आिाधना की जाये । िामायण के
लेखक औि चरिर सभी धूतय औि मूखय िहे हं । जजनकी भाितीय लोगं को ऐसे अलील रंथं के मा्यम से दद्रममत
किने की औि अपने का्पननक भगवानं के मनगढ़ं त चम्कािं के मा्यम से गुलाम बनाये िखने की घदटया सोच िही

है , जजससे वे ननक्मे बन कि भाितीय लोगं की मेहनत पि गुलछिे उड़ाते िहं औि भाितीय लोगं का शोषण किते
िहं औि रामणी लोग उननत के मागय पि अरसि होते िहं । दे श की एकता अख्डता औि मनु्य जानत के नहत के
ललए िामायण मं ऐसा कुछ भी नही है नक उसका अनुसिण नकया जाये । ्वामी पेरियाि औि उनकी स्ची िामायण

पु्तक को ्वामी पेरियाि के त्यं के आधाि पि नवञानी तकं के आधाि पि एक नये लसिे से सुससजजत नकया है ,
जोनक रामणी रंथं के पाख्डं को उजागि किने के ललए ननतांत आव्यक हं । ये पु्तक रामणी लोगं को आि्भ

मं कड़वी लगेगी , पि्तु वे लोग दे श नहत औि स्पूणय भाितीय समाज के नहत के स्बंध मं सोचंगे तो ये ही पु्तक
उनको मधु अकय की तिह मीठी लगेगी । दे श से पाख्ड औि अंधनववास को ममटा कि दे श मं हि मनु्य की सुख शांनत
के ललए नवञान की सतत अनवचल धािा का नवचिण किने के ललए ये पु्तक बुत ही खिी उतिेगी । भाितीय मनु्यं मं

जानत , धमय , पाख्ड , अंधनववास औि का्पननक भगवानं के जो मनोनवकाि भिे ुए हं , उनसे छु टकािा ममलेगा ।

ध्यवाद

सुमेध जरवाल

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नवषय सूची

क.सं. नवषय का नाम पृठ सं्या

1. ्वामी पेरियाि औि उनका संघषय

2. कथा की भूममका

3. िाम की ज्म भूमम की स्यता

4. िाम ज्म की गु्थी

5. अयो्याकांड

6. सीताहिण

7. नकष्क्धाका्ड

8. सुंदिका्ड

9. लंकाका्ड

10. उतिका्ड

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1. ्वामी पेरियाि औि उनका संघषय

भाित का इनतहास बुत ही उताि चढ़ाव वाला िहा है । भाित की मूल सं्कृनत बुत ही उतम थी । भाित की मूल
सं्कृनत को खस्डत किने के ललए कई नवदे शी सं्कृनतयाँ समय समय पि भाित मं आती औि जाती िही हं औि
भाितीय मूल सं्कृनत को खस्डत किती िही हं । भाितीय मूल सं्कृनत को सबसे अमधक नुकसान नवदे शी आयय
सं्कृनत ने पुंचाया है । इसके साथ साथ मुगल औि अंरेजी सं्कृनत ने भी भाित की मूल सं्कृनत को नुकसान
पुंचाया है । भाितीय मूल सं्कृनत की िषा के ललए समय समय पि भाित दे श मं महान नवभूनत उ्पन होती िही हं ।

वायिस ूपी रामणी यव्था को समा्त किके बुध की समता , ममता औि मानवतावादी महान सं्कृनत को

्थानपत किने के ललए बुत सी महान नवभूनतयं ने महान कायय नकये हं , उनमं ्वामी पेरियाि भी एक थे । उनका ज्म

17 लसत्बि 1879 को पणिमी तममलनाडु के इिोड मं एक स्पन पि्पिावादी नह्ू यव्था मानने वाले परिवाि मं

ुआ था । उनका पूिा नाम इिोड वंकट नायकि िामा्वामी था । जज्हं पेरियाि (तममल मं अथय - स्माननत यलि )

नाम से भी जाना जाता था । 1885 मं उ्हंने एक ्थानीय राथममक नवयालय मं दाखखला ललया । पि्तु कोई पाँच
साल से कम की औपचारिक लशषा ममलने के बाद ही उ्हं अपने नपता के यवसाय से जुड़ना पड़ा । उनके घि पि
भजन तथा उपदे शं का लसल लसला चलता ही िहता था । बचपन मं ही वे इन उपदे शं मं कही बातं की रमाणणकता पि
सवाल उठाते िहते थे । नह्ू महाकायं तथा पुिाणं मं कही बातं की पि्पि नविोधी तथा बेतुकी बातं का मखौल भी

वे उड़ाते िहते थे । बाल नववाह , दे वदासी रथा , नवधवा पुनरविवाह के नवुध अवधािणा , स्रयं तथा दललतं के

शोषण के पूणय नविोधी थे । उ्हंने नह्ू वणय यव्था का भी बनह्काि नकया । 19 वषय की उर मं उनकी शादी

नग्मल नाम की 13 वषय की लड़की से ुई । उ्हंने अपनी प्नी को भी अपने नवचािं से ओत रोत नकया ।

1904 मं पेरियाि ने एक रामण , जजसका नक उनके नपता बुत आदि किते थे , के भाई को नगि्ताि नकया जा सके
्यायालय के अमधकारियं की मदद की । इसके ललए उनके नपता ने उ्हं लोगं के सामने पीटा । इसके कािण कुछ
ददनं के ललए पेरियाि को घि छोड़ना पड़ा । पेरियाि काशी चले गए । वहां ननशु्क भोज मं जाने की इ्छा होने के बाद
उ्हं पता चला नक यह लसफय रामणं के ललए था । रामण नही होने के कािण उ्हं इस बात का बुत ुःख ुआ औि
उ्हंने रामणवादी यव्था के नविोध की ठान ली । वे अपने शहि के नगिपाललका के रमुख बन गए । चकवतर

िाजगोपालाचािी के अनुिोध पि 1919 मं उ्हंने कांरस


े की सद्यता ली । इसके कुछ ददनं के भीति ही वे तममलनाडु
इकाई के रमुख भी बन गए । केिल के कांरस
े नेतां के ननवेदन पि उ्हंने वाईकॉम आंदोलन का नेतृ्व भी ्वीकाि
नकया जो मज्दिं की ओि जाने वाली सड़कं पि दललतं के चलने की मनाही को हटाने के ललए संघषय ित था । उनकी
प्नी तथा दो्तं ने भी इस आंदोलन मं उनका साथ ददया । युवां के ललए कांरेस वािा संचाललत रलशषण लशनवि मं

एक रामण रलशषक वािा गैि - रामण छारं के रनत भेदभाव बितते दे ख उनके मन मं कांरेस के रनत नविलि आ गई

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। उ्हंने कांरेस के नेतां के समष दललतं तथा पीमड़तं के ललए आिषण का र्ताव भी िखा , जजसे मंजूिी नही

ममल सकी । अंततः उ्हंने कांरेस छोड़ दी । दललतं के अमधकाि के ललए 1925 मं उ्हंने एक आंदोलन भी चलाया ।

सोनवयत ूस के दौिे पि जाने पि उ्हं सा्यवाद की सफलता ने बुत रभानवत नकया । नफि इ्हंने जष्टस पाटी ,

जजसकी ्थापना कुछ गैि रामणं ने की थी , का नेतृ्व संभाला । बाद मं जष्टस पाटी का नाम बदलकि रनवड़

कड़गम कि ददया गया । 1937 मं िाजाजी वािा तममलनाडु मं आिोनपत हहिदी के अननवायय लशषण का उ्हंने घोि
नविोध नकया औि बुत लोकनरय ुए । उ्हंने अपने को सता की िाजनीनत से अलग िखा तथा आजीवन दललतं तथा

स्रयं की दशा सुधािने के ललए रयास नकया औि वे 24 लसत्बि 1973 को परिननवायण को रा्त ुए ।

भंडीहाि गडरिया जानत मं पैदा महान कांनतकािी , समाज सुधािक , नपछड़ं के ललए आिषण की मांग किने वाले ,

नह्ू धमय के पाखंड एवं अतारकिक पि्पिां के रबल नविोधी , ईवि की सता को लसिे से ़ारिज किने वाले ई. ्ही.

पेरियाि िामा्वामी नायकि की जयंती 17 लसत्बि को पूिे दे श मं बड़े धूमधाम से मनाई जाती है । पेरियाि के
िाजनैनतक एवं सामाजजक चचितन की नंव गैि रामणवाद एवं गैि कांरेसी सोच से नवकलसत ुई । अपने बचपन से ही
पेरियाि रामणवाद का लशकाि िहे । उ्हं उनके सवणय समाज के लशषक के घि मं नगलास से मुह
ं लगाकि पानी पीने
की मनाही थी औि अगि वह नकसी गैि जानत के ब्चे के साथ खेलते थे तो बालक पेरियाि को अपने घि मं माि पड़ती
थी । इन सब चीजं से तंग आकि पेरियाि बचपन मं ही वािाणसी भाग गए। पिंतु वहां जाकि उ्हं रामणवाद के
वीभ्स ूप का पुनः अवलोकन किना पड़ा । बालक पेरियाि ने जब अपनी भूख ममटाने के ललए वािाणसी की एक
गली मं पु्य कमाने हेतु चलने वाले ननःशु्क भोजनालय मं जब भोजन किने का रयास नकया तो वहां के दिबान ने
उ्हं यह कह कि भगा ददया नक यह भोजनालय केवल रामणं के ललए ही हं औि तब भूखे बालक पेरियाि को पेट
भिने के ललए जूठी पतलं से खाना खाना पड़ा औि इसके ललए भी उ्हं पतलं के पास मंडिाते ुए कुतं से युध
किना पड़ा। यह सब घटनाएं बालक पेरियाि के कोमल ृदय पि गहिा असि कि गई औि उ्हंने अपनी तारकिक बुजध
के बल पि रामणी यव्था का ऐसा जनाजा ननकाला नक आज रामणी यव्था को समा्त किके वहां के लोग
भेदभाव िनहत भाईचािे से िह िहे हं । पेरियाि ्वामी जी ने सामाजजक समानता पि बल ददया । मनु्मृनत को जलाया
तथा रामणं के नबना नववाह सं्काि किवाये । जानत भेद को ममटाने के ललए कई आंदोलन नकये ।

रामण आपको भगवान के नाम पि मूखय बना कि अ्धनववाव मं ननठा िखने के ललए तैयाि किता है औि ्वयं
आिामदायक जीवन जीता है । तु्हे अछू त कहकि हनिदा किता है । दे वता की राथयना किने के ललए दलाली किता है ।
मं इस दलाली की हनिदा किता ूँ औि आपको भी सावधान किता ूँ नक ऐसे रामणं का नववास मत किो । उन
दे वतां को नट कि दो जो तु्हं शूर अनतशूर कहं । उन पुिाणं औि इनतहास को ्व्त कि दो । जो दे वता को शलि
रदान किते हं । उस दे वता की पूजा किो जो वा्तव मं दयालु भला औि बौधग्य है । रामणं के पैिं मं ्यं नगिना ।

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्या ये मज्दि हं ? ्या ये ्यौहाि हं ? नही । ये सब कुछ भी नही हं । हमं बुजधमान यलि की तिह यवहाि किना

चानहए , यही राथयना का साि है । अगि दे वता ही हमं नन्न जानत बनाने का मूलकािण है , तो ऐसे दे वता को नट कि

दो , अगि धमय है तो इसे मत मानो । अगि मनु्मृनत , गीता या अ्य कोई पुिाण आदद हं तो इनको जला कि िाख कि

दो । अगि ये मज्दि , तालाब या ्यौहाि हं तो इनका बनह्काि कि दो । अंत मं हमािे िाजनीनतञ ऐसा किते हं तो
इसका खुले ूप मं पदायफाश किो ।

संसाि का अवलोकन किने पि पता चलता है नक भाित जजतने धमय औि मत मता्ति कहं भी नही हं । बस्क इतने
धमाय्तिण ूसिी जगह कही भी नही ुए हं । इसका मूल कािण भाितीयं का ननिषि औि गुलामी रवृष्व के कािण

उनका धारमिक शोषण किना आसान है । आयं ने हमािे ऊपि अपना धमय थोप कि असंगत , ननिथयक औि
अनववसनीय बातं मं हमं फंसाया । अब हमं इ्हं छोड़कि ऐसा धमय रहण कि लेना चानहए जो मानवता की भलाई मं
सहायक लसध हो । रामणं ने हमं शा्रं औि पुिाणं की सहायता से गुलाम बनाया है औि अपनी स्थनत मजबूत

किने के ललए मज्दि , ईवि औि दे वी दे वतां की िचना की , सभी मनु्य समान ूप से पैदा ुए हं तो नफि अकेले
रामण ऊँच व अ्य को नीच कैसे ठहिाया जा सकता है । संसाि के सभी धमय अ्छे समाज की िचना के ललए मागय

दशयन किते हं , पि्तु नह्ू धमय अथायत आयय सं्कृनत अथायत वैददक सं्कृनत अथायत सनातन सं्कृनत मं हम यह अंति

पाते हं नक यह धमय एकता औि मैरी के ललए नही है । ऊँची - ऊँची लाट नकसने बनाई ? मज्दि नकसने बनाये औि

उनकी चोटी पि सुनहिी पित नकसने चढ़ाई ? ्या रामणं ने इन मज्दिं , तालाबं या अ्य पिोपकािी सं्थां के

ललए एक ुपया भी दान ददया ? रामणं ने अपना पेट भिने हेतु गुण , कमय , ञान औि शलि के नबना ही दे वतां की

िचना किके औि ्वयं भू दे वता बनकि हंसी मजाक का नवषय बना ददया है । सभी मानव एक हं , हमं भेदभाव िनहत
समाज चानहए । हम नकसी को रचललत सामाजजक भेदभाव के कािण अलग नही कि सकते हं । हमािे दे श को

आजादी तभी ममल गई समझना चानहए , जब रामीण लोग दे वता , अधमय , जानत औि अ्धनववास से छु टकािा पा
जायंगे । आज नवदे शी लोग ूसिे रहं पि स्दे श औि अंतरिष यान भेज िहे हं औि हम रामणं के वािा राधं मं

पिलोक मं बसे अपने पूवयजं को चावल औि खीि भेज िहे हं । ्या ये ही बुजधमानी है ? रामणं से मेिी यह नवनती है
नक अगि आप हमािे साथ ममलकि नही िहना चाहते हं तो आप भले ही जहनुम मं जाएँ । कम से कम हमािी एकता के
िा्ते मं मुसीबतं खड़ी किने से तो ूि जाओ ।

रामण सदै व ही उ्च एवं रेठ बने िहने का दावा कैसे कि सकता है ? समय बदल गया है । उ्हं नीचे आना होगा ।

तभी वे आदि से िह पाएंगे , नही तो एक ददन उ्हं बलपूवयक औि दे शाचाि के अनुसाि ठीक होना होगा ।

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पेरियाि का सामाजजक एवं िाजनैनतक चचितन बुजन समाज के ललए ्यं आव्यक है औि उसकी जड़ं कहां से आती

है , यह सब बुजन आंदोलनकारियं को जानना आव्यक है । बुजन आंदोलन के ललए यह आज भी उतना ही


जूिी है जजतना कल था । पेरियाि के िाजनैनतक एवं सामाजजक चचितन की नंव गैि रामणवाद एवं गैि कांरेसी सोच

से नवकलसत ुई । अपने जवानी के ददनं मं सन् 1924 मं जब पेरियाि तममलनाडु कांरेस के अ्यष बने तो उ्हं

कांरेसी रामणं के रामणवाद ने औि ुखी नकया । यहां 1924 मं केिला के वै्यूम स्यारह का जजक किना

आव्यक है । ्यंनक इस स्यारह के मागय मं उ्हं मोहनदास किमचंद गांधी एवं रामण कांरेलसयं से सीधे -सीधे

जूझना पड़ा । याद िहे नक 1924 का वै्यूम स्यारह शूरं एवं अछू त जानतयं के वै्यूम मं बने मंददि के चािो ओि
बनी सड़क पि चलने के हक के ललए था । आंदोलन लंबा चला औि इस दौिान पेरियाि को कई बाि जेल जाना पड़ा ।
पेरियाि जब जेल मं होते थे तो उनकी प्नी एवं उनकी बहन उस आंदोलन का नेतृ्व किती थं । एक तिह पेरियाि ने
अपने पूिे परिवाि को बुजन आंदोलन मं लगा ललया था । अंत मं पेरियाि के आंदोलन के पिात यह सड़क शूरं एवं
अ्पृ्यं के ललए खोल दी गई । पिंतु कांरेलसयं एवं इनतहासकािं ने इस आंदोलन का सािा रेय मोहनदास किमचंद

गांधी को दे ददया । यह बात तो दबी िहती पिंतु 34 साल बाद 1958 मं पेरियाि ने इस आंदोलन का सािा हाल अपने

मुंह से सुनाया, तब जाकि सच सामने आया । जब कहं ये बात पता चली नक वै्यूम स्यारह का नेतृ्व तो पेरियाि ने

नकया था । इसी कड़ी मं पेरियाि को कांरेलसयं के रामणवाद का पता दो औि बातं से चला । 1925 मं जब
कांरेलसयं ने लशषा के ललए गुुकुल योजना शुू की तो यह योजना सभी वगं के ब्चं के ललए समान लशषा के ललए
थी । पिंतु कांरेस के रामण नेतां ने रामण छारं के ललए अलग यव्था की औि अ्पृ्य जानतयं के छारं के
ललए अलग । यहां तक की रामण छारं को भोजन मं शुध घी के पकवान ददए जाते थे औि शूर औि अ्पृ्य छारं
को चावल का माड़ । पेरियाि ने इस पषपात पि घोि आपलत की ।

भंडीहाि गडरिया जानत मं पैदा महान कांनतकािी , समाज सुधािक , नपछड़ं के ललए आिषण की मांग किने वाले ,

नह्ू धमय के पाखंड एवं अतारकिक पि्पिां के रबल नविोधी , ईवि की सता को लसिे से ़ारिज किने वाले ई. ्ही.

पेरियाि िामा्वामी नायकि साहब ने न केवल "स्ची िामायण"के जरिये िाम के यथाथय से आम जन मानस को ूबू

किाया विन उ्हंने कांरेस के 1920 के नतुनेलवेली , 1921 तंजौि , 1922 नतुपुि , 1923 सलेम , 1924

नतुअनामलाई औि 1925 के कांचीपुिम अमधवेशनं मं जातीय रनतननमध्व दे ने के ललए क्युनल रिरजंटेशन का


लसधांत पेश नकया था। लशषा औि िोजगाि के षेर मं अरामण वगय को जनसं्या के अनुपात मं रनतननमध्व ददलाने
हेतु ्थान सुिणषत किने के ललए पेश नकये जाने वाले र्तां से कांरस
े मं खलबली मच गयी थी । इस र्ताव का

नविोध आयंगि , संथानम , सी. िाघवाचायय , वी. वी. एस. अ्यि , एन. एस. वाधयचािी , चकवतर िाजगोपालाचािी एवं

गाँधी जी तक ने नकया । 1925 के कांचीपुिम स्मेलन से अपमाननत कि नपछड़ं के इस मसीहा को बाहि कि ददया

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गया । पेरियाि साहब ने इस र्ताव को माने वगैि ममलने वाले ्विाज को "रामण िाज" कहा था । आज पेरियाि

नायकि की ही वजह से ही तममलनाडु के हाईकोटय मं 60% से जयादा जज ओबीसी , एससी औि एसटी समुदाय के हं

उति भाित के लोगं का साषा्काि पेरियाि से पहली बाि 1968 मं ललई ससिह यादव वािा ललखी गई ‘स्ची
िामायण’ की चाभी से होता है । ललई ससिह यादव वािा यह पु्तक ललखने पि काफी नववाद ुआ औि हाईकोटय मं
मुकदमा तक चला । इस मुकदमे को ललई ससिह यादव ने जीता औि इस तिह उसके बाद पु्तक से रनतबंध हटा । यहां

तक की हाईकोटय ने सिकाि को ललई ससिह यादव को हजायना दे ने के ललए भी कहा । तद्उपिांत 1978 के पिात

मा्यवि कांशीिाम ने उति भाितीयं को ही नहं ई .वी. िामा्वामी पेरियाि को बामसेफ के मा्यम से एक समाज

सुधािक के ूप मं बुजन समाज (अनुसूमचत जानत, नपछड़ी जानत एवं कंनवटे ड माइनॉरिटी) के बीच मं ्थानपत नकया
। अपनी भोली भाली सामा्य जनता को समझाने के ललए मा्यवि उनको ‘दाढ़ी वाला बाबा’ कह कि बुलाते थे ।

पेरियाि मा्यवि कांशीिाम वािा ्थानपत पांच समाज सुधािकं यथा , नािायणा गुु , जोनतिाव फुले , छरपनत शाूजी

महािाज , ई.वी.िामा्वामी नाइकि पेरियाि एवं बाबासाहेब अंबेडकि मं से एक थे । मा्यवि ने 1980 मं अपनी
मालसक अंरेजी पनरका अरे्ड इंमडयन के एक पूिे अंक को यह कह कि पेरियाि को समरपित नकया नक उ्हंने अपना
सािा जीवन से्फ िे्पे्ट मूवमंट के ललए लगाया था। पनरका का कवि भी पेरियाि की त्वीि का था।

2. कथा की भूममका

स्ची िामायण ्वामी पेरियाि वािा िामायण के चरिरं के आधाि पि ललखी गई है । िामायण के रमाणं के आधाि पि
स्ची िामायण को उ्चतम ्यायालय ने मा्यता रदान की है । यदद हम िामायण का नन्पष औि ग्भीि ूप से

अ्ययन किं तो हम इस नन्कषय पि पुँचंगे नक लंका िाजय की नवजय वा्तव मं अस्य की स्य पि , अस्यता की

स्यता पि , कूिता की दयालुता पि , अलशटता की लशटता पि , ुटता की सजजनता पि औि मयायदाहीनता की

मयायदा पि नवजय की एक ुखांत कहानी है । आज भी उति भाित के संकीणय , अूिदशर , ूदढ़वादी औि धमांध लोग
भाित के ननवालसयं को मचढ़ाने औि अपमाननत किने के उदे ्य से भूतकाल की उस ुभाय्यपूणय औि मनगढ़ं त लंका
नवजय की ूनषत ्मृनत को बनाये िखने के ललए र्येक वषय िावण के पुतले का दहन दशमी के ददन किते हं औि उस
ददन को नवजय दशमी का नाम दे कि ़ुशी मनाते हं जोनक भाितीय मूलवालसयं की आ्था औि भावना पि रनतघात है

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। जजसके नवुध माननीय ्यायालय मं ऐसे लोगं के नवुध भाितीय संनवधान के अनु्छे द - 19 (2) के अधीन िोक

लगाई जा सकती है औि भाितीय द्ड संनहता की धािा- 153A , 295A के अधीन वाद लाया जा सकता है ।

्वामी पेरियाि ने भाितीय मूलवासी रनवड़ं को उनकी अस्मता का ञान किाने के ललए रामणी िाषसी यव्था औि
उनके ूदढ़वाद के नवुध एक सशि आंदोलन खड़ा कि ददया जो पूणयतः सफल िहा । रामणं के साम्तवाद को
उखाड़ फंक रनवड़ शासन की ्थापना साकाि हो उठी । आज भी तममलनाडु मं रनवड़ं की सिकाि ्थानपत है ।
िामायण औि महाभाित नवदे शी आयं वािा छल कपट से बढ़ा चढ़ाकि गढ़ी गई कथाएँ हं । जजनके मा्यम से नवदे शी
आयय सं्कृनत के लोग अलशणषत भाितीय मूलवासी लोगं को लुभाकि मूखय बनाते िहते हं । उनके स्मान औि गौिव
की भावना को ठे स पुंचाते हं । उनके नववेक मं मनोनवकाि उ्पन किते हं औि उनकी मानवता पि आधारित सं्कृनत

पि कुठािाघात किते हं । भाितीय एकता औि अख्डता को ूनषत किते हं , जो कृ्य दे श रोह औि भाितीय
संनवधान की अवहेलना के अधीन आते हं ।

िामायण औि महाभाित आयं अथायत रामणं वािा छल कपट से बढ़ा चढ़ाकि गढ़ी गई कथाएँ हं। इन दो कथां के

नायक कमशः िाम औि कृ्ण हं , जो आयय समुदाय के हं औि अंततः साधािण रेणी के पुुष हं । ये कथाएँ धूतयता के

साथ थोपी गई हं । पुिाणं मं जजन घटनां के घदटत होने के बािे मं कहा गया हं , वे सभी अ्यमधक अस्य औि
बबयितापूणय हं । इनमं ऐसा कुछ भी नही है जो लोगं के ललए उपयोगी हो औि इससे कुछ सीखा जा सके एवं उसके
अनुसाि आचिण नकया जा सके । ये नैनतकता िनहत हं । ्पट ूप से ये का्पननक हं। ये का्पननक कथाएँ इसललए

ललखी गई हं तानक रामणं को ूसिं की नजिं मं ऊँचा ददखाया जा सके , मनहलां को वश मं किके उ्हं ऐसी

यव्था का आणरत बनाया जा सके , उसके अवांमछत अस्त्व को शावत अथायत अमि बनाया जा सके ।

ये मौललक कथाएँ सं्कृत भाषा मं ललखी गई हं । वे इन कथां को वेदं के नाम से पुकािते हं । इनको वे ईविीय

शा्र बताते हं । इस सफेद झूठ वािा वे अपने मह्व को बढ़ाते हं , जबनक वा्तव मं उनमं कोई गुण नही हं । इनके
मा्यम से भाितीय जनता को धोखा ददया जाता है । इन कथां के बुत मह्वपूणय औि पनवर होने के बािे मं यापक
रचाि नकया जाता है औि इ्हं ्कूल ्ति से ही लोगं के िि मं भिा जाता है । मौललक िामायण मं कुछ भी रशंसा

किने यो्य नही है , कुछ भी ईविीय नही है । कुछ सीखा जाये औि उसका पालन नकया जाए , इसमं ऐसा कुछ भी

नही है , जो तकय के सामने दटक पाए । हमािे लोग अपने नेर खोलं औि ्वयं दे खं नक आयं अथायत रामणं की कथाएँ
ढंग हं औि खोखली हं । इनके मा्यम से ्वयं को रेठ बताते हं औि ूसिं को नीच बताते हं ।

िामायण एक स्य कथा नही हो सकती । शंकिाचायय , अनेक नववानं तथा धमायचायं ने भी यही नवचाि यि नकया है

। ूसिे , वा्मीनक ने ्वयं कहा है नक िाम न ही ईवि था औि न ही उसमं कोई ईविीय शलि थी । इस दे श मं रामण

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नह्ू िामायण को एक पनवर कथा मानते हं औि उसमं वरणित नवलशट यलियं के रनत रधा िखते हं । ऐसा ्यं है ?

इसका कािण है रामणं वािा रभावशाली रचाि औि गैि - रामणं मं बुजध औि ्व - स्मान की कमी । रनवड़ं के
नवुध औि अमधक घृणा उ्पन किने के नवचाि से इसकी िचना ुई औि यह घृणा कंडा पुिाण मं रदरशित घृणा से
अमधक है । कंडा पुिाण की िचना िामायण से बुत पहले ुई थी औि यह केवल एक यलि वािा ललखी गई थी ।
िामायण बुत पहले के काल मं अलग अलग समय पि अनेक यलियं वािा ललखी गई है । जजनके वािा िाम औि
सीता को बुत घदटया चरिर वाला ददखाया गया है ।

िामायण की घटनां का नव्तृत नवविण , अिेनबयन नाइट् स , शे्सनपयि एवं मदनाकम िाजन वािा ललखखत
कहाननयं तथा पंचत्र औि अ्य का्पननक कहाननयं के समान ददया गया है । इसललए यह ननियपूवयक कहा जा
सकता है नक िामायण एक स्ची कहानी नही है । कोई कह सकता है नक दे व्व तथा ईवि की दै वी शलि अनूठे त्यं

वािा ही रभावी हो सकती है । नक्तु कोई भी यह ्पट दे ख सकता है नक इनमं वरणित त्य आधािहीन , अनाव्यक
तथा बुजधहीन हं औि इस कथा मं इस बात पि लोगं का ्यान आकरषित नकया गया है नक कथा का नायक िाम मनु्य
के ूप मं ्वगय से अवतरित ईवि है । नक्तु लेखक वा्मीनक यह मचनरत किता है नक िाम नवचाि औि यवहाि से ुट

था , वह झूठ , नववासघात , छल कपट , धूतयता , ननदय यता , लोभ , ह्या , नशेबाजी , मांसभषण , छु पकि ननदोष पि

तीि चलाने वाला , ुटं का साथी , नामदय आदद का साकाि ूप था । िाम के नवचाि दे श नहत औि भाितीय जनता के

नहत मं ुट रकृनत के थे । िाम ने रामणी यव्था को ्थानपत किने के ललए भाितीय समाज की एकता को मछन -
णभन किके भाितीय मानवता वाली यव्था को खस्डत कि ददया औि पूिा भाितीय समाज जानतपांनत औि ऊँचनीच
मं नवभाजजत हो कि कमजोि हो गया । िाम का यवहाि शूरं औि ्री जानत के ललए ुट रकृनत का था । िामायण मं
हि जगह भाितीय मूलवालसयं औि स्रयं को नीचा ददखाकि अपमाननत नकया है । िाम नामदी का भी साकाि ूप था

। सीता िाम के साथ 25 वषय तक िही , पि्तु िाम की नपुंसकता के कािण सीता माँ नही बन सकी । हम यह नही कह

सकते हं नक सीता मं माँ बनने की षमता नही थी । सीता िावण के साथ 3 महीने िहने के उपिांत ही गभयवती हो गई थी

। िाम धूतयता का भी साकाि ूप था । महा ऋनष श्बूक जो भाितीय नपछड़े लोगं को ञान की लशषा दे ता था , उस

महान ऋनष की ह्या किके िाम ने बड़ी धूतयता का कायय नकया । िाम नववासघाती भी था , उसने ननदोष बाली पि

छु पकि तीि चला कि औि उसकी ह्या किके नामदी का कायय नकया था । िाम झूठ का भी साकाि ूप था , उसने
सुुपनखा से झूठ बोला था नक ल्मण शादी शुदा नही है औि इस झूठ के कािण लाखं लोगं को िाम िावण युध के

कािण अपनी जान गंवानी पड़ी थी । िाम नशेबाजी औि माँस भषण का भी साकाि ूप था , जोनक लगभग सभी
िामायणं से रमाणणत है । िाम ुटं का साथ दे ने वाला एक साकाि ूप था । सुरीव औि नवभीषण ने अपने भाइयं से
िाजगदी छीनने की ुटता की औि िाम ने ऐसे दोटं का साथ दे कि अपना साकाि ूप दरशित नकया । िाम लोभ का भी

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साकाि ूप था । उसने अयो्या की िाजगदी के लोभ मं अपनी माँ औि अपने नपता को ्या ्या अपश्द नही कहे ।
िाम ने अपनी प्नी सीता औि अपने ब्चं के साथ ननदय यता का यवहाि नकया । जजससे िाम ननदय यता के साकाि ूप
रमाणणत होते हं । यह ्पट ददखाई दे ता है नक िाम अथवा उससे स्बंमधत कहानी औि ्वभाव मं कुछ भी दै वीय नही
है औि वह औसत दजे से बुत नीचा है । वह अनुसिण किने यो्य नही है ।

यह कथा न ही धारमिक है औि न ही बुजधसंगत है । दे वतां ने चाि मुख वाले रमा से लशकायत की नक िाषस उनके
वािा दी जाने वाली बलल को लूट लेते हं । रमा अपने नपता नव्णु के पास पुंचा । नव्णु ने पृ्वी पि अवताि लेने का

ननिय नकया औि िाम के ूप मं ज्म लेकि िाषसं के िाजा िावण का वध कि ददया ( बालका्ड 15 वां अ्याय )
यही कथा का उगम है । पृ्वी पि आने पि नव्णु को अनेक पिेशाननयं औि कपटं का सामना किना पड़ा । इसका

कािण आयं के पनवर पुिाण मं वरणित है , जजसके अनुसाि नव्णु ने अपने पूवय ज्म मं अनेक अनैनतक एवं घृणणत कमय
नकये । मुननयं तथा ऋनषयं के साथ नकये गए ुययवहाि के कािण नव्णु को उनके वािा राप ददए गए औि उस

अपिाध के द्ड के ूप मं उसे पृ्वी पि ज्म रहण किना पड़ा । यह राप ्यं ददए गए ? ्यंनक नव्णु ने नबननु
मुनन की प्नी की ह्या किने का घोि पाप नकया । उसने अनैनतक औि छल कपट से जल्धि असुि की प्नी का

सती्व नट कि डाला । उसने ददन के उजाले मं खुले आम उस ्री के साथ बला्काि नकया , जो स्भवतः ददखाई दे
िहा था । पुिाणं मं ऐसी अनेक मूखयतापूणय कथाएँ पाई जाती हं । अब अपने नववेक से सोचं नक दे वता कौन हं औि

असुि कौन हं । नकस रकाि ईवि होते ुए भी वह नव्णु कामुकता , चोिी , ह्या औि घृणणत कृ्यं एवं मनोनवकािं

का दास हो गया ? ्या ऐसे अभर कृ्यं मं संल्न पुुष ईवि समझे जाने के यो्य हं ? ्या ननदोष पशुं का कूिता

से वध नकया जाना औि शिाब के साथ उनका मांस गले मं उतािना औि मंरोचािण किना ही यञ की परिभाषा है ? इन

सब कृ्यं से ्या ईवि रसन होता है ? ्या ऐसे कृ्यं से दे वतां , यञकताय औि यञ आयोजकं को उ्चति पदवी

रदान किनी चानहए ? ्या ऐसे लोगं को दान के ूप पारिरममक भी दे ना चानहए ? ्या ऐसी ननदय यता को िोकना

गलत है जो मूक राणणयं के साथ की जाती है ? ्या ईवि के ललए यह ठीक है नक वह ऐसे दयाहीन वमधकं को दे वता

समझे औि सहानुभूनत िखते ुए इन यञं को िोकने वालं को िाषस कहे ? लशणषत लोगं को इन बातं पि ग्भीिता
से नवचाि किना चानहए ।

वतयमान मं पशुं के साथ कूिता औि नशे का यसन किने को लोगं तथा सिकाि वािा अपिाध समझा जाता है , जो
द्डनीय औि कािावास यो्य है । ्या िावण के समय मं भी इन अपिाधं को िोका जाना ्याय संगत तथा उमचत नही

था ? ्या िावण का यह कतयय नही था नक वह कानून बनाकि िाजय मं मददिा का सेवन औि पशुं के साथ आयं

वािा नकये जाने वाले कूि यवहाि को ननषेध किे ? िावण ने आयं वािा यञ के नाम पि नकये जा िहे पशु वध औि

मददिा सेवन जैसे कूि कृ्यं पि रनतब्ध लगाया था ? आयय लोगं वािा िावण के लगाये गए इस रनतब्ध को ्व्त

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किने के ललए का्पननक ईवि ूपी िाम का रयोग नकया औि िाम को ईविीय अवताि घोनषत नकया जजससे भाितीय
लोग जो उनके इस यसन का नविोध किते थे उनका नवनाश नकया जा सके । िाम ने आयं के इस यसन का पूणयूपेण
समथयन नकया जजससे आयय लोग यञं के नाम से ननदोष पशुं की ह्या किते िहं औि मददिा का सेवन किके
अ्यासी किते िहं । यदद हम इन नवषयं पि नवचाि किं तो हम पायंगे नक िामायण असंगनतयाँ औि बेतुकेपन से भिी
पड़ी है ।

3. िाम की ज्म भूमम की स्यता

जजतनी भी स्यता नवकलसत ुई हं , वे नददयं औि घने जंगलं के नकनािे ही नवकलसत ुई हं । उस समय मनु्य खाने
औि पीने के ललये राकृनतक ्रोतं पि ननभयि िहता था । गंधवं का गांधाि दे श ससिधु घाटी स्यता मं ससिधु नदी के दोनं

नकनािं पि नवकलसत ुआ था । गंधवं के गांधाि की पुनट ऋ्वेद , िामायण एवं महाभाित से होती है । दशिथ वािा

नकये गए अवमेघ यञ मं उनकी ससुिाल ससिधु घाटी के कई िाजां का वणयन आया है । ( वा्मीनक िामायण )।
वा्मीनक िामायण का लेखन औि िामायण की घटना का वृता्त ससिध घाटी की स्यता के बाद का रमाणणत होता है ।

भित ने अपने नाना केकयिाज अखपनत के आम्रण औि उनकी सहायता से ग्धवं के दे श गांधाि को जीता | इससे
लसध होता है नक अयो्या नगिी भी ससिधुघाटी स्यता के आस पास ही थी । महाभाित युध के बाद पिीणषत के

वंशजं ने कुछ पीदढ़यं तक वहां अमधकाि बनाये िखा | महाभाित की घटना भी ससिध घाटी के बाद की है । ससिधु

स्यता के लोग नागवंशी भी कहलाते थे , इसललए जनमेजय ने अपना नागयञ भी वहं नकया था | ऐसा वा्मीनक

िामायण की पृठ सं्या - 1016 सगय - 101 उतिका्ड मं ललखा है । इससे रमाणणत है नक वतयमान अयो्या िाम की
ज्म भूमम नही है ।

वा्मीनक िामायण मं बुध को नास्तक कह कि उ्हं मािने की बात ललखी गई है । िाजा आंभी , च्रगु्त मौयय ,

नब्ुसाि , सराट अशोक , कनन्क इ्यादद का अमधकाि तषलशला अथायत ससिधु घाटी पि बना िहा | हमािे दे श का

नाम भाितवषय िहा है औि भाितवषय मं 16 महाजनपद िहे हं , जजनमं अयो्या का नाम अंनकत नही है । इससे लसध
होता है नक उस समय भी अयो्या नही थी । यदद अयो्या िाम की ज्म भूमम िही होती तो ससिध घाटी की तिह
अयो्या मं भी िाम के रमाण ममलते। अभी तक अयो्या मं ऐसा कोई भी रमाण नही ममला है ।

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इ्वाकु वंश के सम्त िाजां ने कनपलव्तु पि िाजय नकया है । इ्वाकु वंश की उ्पलत कनपलव्तु की है औि
कनपलव्तु को ही जनत्र होने के कािण अयो्या कहा गया है । इ्वाकु िाजां की भाषा पाली िही है औि िाम की

भाषा सं्कृत िही है , इसललए िाम इ्वाकु वंश के नही थे । भाितवषय मं आम लोगं की जानकािी के ललए जजतने भी

राचीन लशलालेख हं , उन पि पाली भाषा ही है , सं्कृत नही । इसका ता्पयय है नक िाम की भाितीय लोगं के साथ

वातायलाप का्पननक है । िाम का भाित मं ऐसा कोई भी लशलालेख नही है , जजसमं िाम ने भाितीय जनता को सं्कृत
भाषा मं कोई संदेश ददया हो । इसका मतलब है नक िामायण के सभी पार का्पननक हं । आयं वािा भाितीय लोगं
को गुलाम बनाये िखने के ललए ऐसे का्पननक कायं की िचना भगवानं के नाम पि सं्कृत मं की गई । अपने दे श मं

नह्दी भाषा की उ्पलत 1200 वषय पूवय नही थी । यदद िामायण के पार नह्दी बोलते थे तो िामायण की घटना 1200
वषय से अमधक की नही है । इसका ता्पयय है नक िाम औि अयो्या का पाँच लाख वषय पूवय कोई अस्त्व नही था । उि

वातायलाप से पुनट होती है नक मनु्य की उपस्थनत भाित मं 74 हजाि वषय से ही है औि वह 10 हजाि वषय पूवय तक

नंगा िहता था , इसललए 5 लाख वषय पूवय िाम का अस्त्व बताना एक पाख्ड है । 7 हजाि वषय पूवय ससिध स्यता के

अनतरिि भाितवषय मं कोई भी स्यता नवकलसत नही ुई थी , इसललये 5 लाख वषय पूवय अयो्या का अस्त्व बताना
एक पाख्ड है ।

नवदे शी आयं का मचरण वेदं मं नकया गया है । वतयमान मं यह रमाणणत हो चुका है नक आयय लोग यूिोपीय मूल के थे ,
जोनक नवचिण किते ुए म्य एलशया मं आये औि म्य एलशया से उनका आगमन भाित की तिफ ुआ । आयय लोग
ल्बे कद औि गौि वणय के थे । उनकी भाषा सं्कृत औि चिवाहं की अलील सं्कृनत थी । ये लोग भाितीयं की

अपेषा युध मं अमधक पािंगत थे , जोनक आयं औि अनायं के वेदं मं वरणित संघषय से रमाणणत होता है । भाितीय

लोग कद मं छोटे एवं काले िंग के थे , जोनक कृनष के कायय मं कुशल थे औि उनकी भाषा रनवड़ थी । आयं का िहन

सहन घुम्कड़ एवं पशुपालन था । ठं डे ्थलं मं िहने के कािण ये लोग मांस - मददिा का ही रयोग किते थे । ठ्डे
दे शं मं आज भी गौ मांस एवं मददिा का ही रयोग शत रनतशत नकया जाता है । उन ठं डे दे शं मं कोई भी यलि नबना
मांसाहाि के जज्दा नही िह सकता है । राचीन काल मं भाित को छोड़ कि संसाि के सभी दे शं मं गौ मांस का ही
भषण नकया जाता था औि भाित मं आयं के आने के बाद गौ मांस का भषण नकया जाने लगा औि आज भी नकया
जाता है । आयय लोगं का िहन सहन घुम्कड़ होने के कािण वे अपने पालतू पशुं का ही मांस खाकि जीवन यापन

किते थे । राचीन काल मं जहां गाय मांस को भूना जाता था, वेदं मं उसका नाम यञ के नाम से जाना जाने लगा ।
भाितीय लोगं वािा आयं की इस रथा का नविोध नकया जाता था तो उनको धमय नविोधी घोनषत किके िाषस या दै ्य
के नाम से अपमाननत नकया जाता था ।

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वेद , िामायण एवं महाभाित काल मं भी ऐसी घटनां की कोई कमी नही थी । कुछ लोग वृता्त दे ते हं नक उन

युगं मं नािी का बुत ही मान - स्मान था । जबनक सम्त धारमिक र्थं से एक ही बात रमाणणत होती है नक उन
कालं मं नािी ऋनष मुननयं की हवस का लशकाि िही हं । ऋ्वेद के अनुसाि िाजा हरििंर के नपता नरशंकु ने एक
नवनववानहता प्नी का अपहिण कि उसके साथ यणभचाि नकया । िाजा इंर के पुिोनहत वृह्पनत की प्नी तािा

को वन्पनतयं का ्वामी वनमंरी चंर भगा ले गया था औि उसके साथ यणभचाि नकया , जजससे बुध नामक पुर

उ्पन ुआ । वही पृठ - 193 (भागवत पुिाण) से ्पट है नक ्वायंभुव अथायत रमा के मन मं अपनी अवला औि
मोहक पुरी वाच के रनत कामुकता जगी औि उसके साथ यणभचाि नकया । मुननयं औि उनके पुरं ने अपने नपता

के कुकमय पि उ्हं फटकािा , तुमने ऐसा नकया जो तुमसे पहले नकसी ने नही नकया , न तु्हािे बाद कोई ऐसा किेगा

। ्या तु्हं अपनी पुरी से नवषयभोग किना चानहए था ? अपने उ्माद को ्या तुम िोक नही सकते थे ? संसाि के
तु्हािे जैसे गौिवशाली यलि के ललए यह रशंसनीय नही है ।

यञं मं जहाँ एक ओि भयंकि ह्या कांड होता था , वहाँ वा्तव मं एक रकाि का उ्सव बन जाता था । भुने ुए
मांस के अलावा मादक पदाथय भी होते थे । लगभग र्येक यञ के बाद जुआ खेला जाता था औि सबसे असाधािण

बात यह थी नक इसके साथ - साथ खुले मं संभोग भी होता था । इस रकाि यञ अ्याशी के अडे बन गए थे ।

इस रकाि कोई भी युग िहा हो अथायत कोई भी काल िहा हो , हि काल मं नािी पुुष की हवस का लशकाि िही है ।

चाहे वह पुुष कोई भी योनन का िहा हो , चाहे िाजा हो , चाहे दे वता िहा हो , चाहे ऋनष - मुनन िहा हो ।

4. िाम ज्म की गु्थी

िामायण के रथम अ्याय बालका्ड मं ललखा है नक अयो्या के िाजा दशिथ पुर राष्त के ललए यञ की तैयारियां कि

िहा था । भेड़ , पशु घोड़े , पषी , सपय जैसे राणी उस यञ मं आुनत के ललए तैयाि िखे गए थे । नकतना भयंकि लगता
है नक नपता बनने की अपेषा किने वाले एक यलि के नहत के ललए इतने सािे जीवं का वध नकया जाये । ्या कोई

ईवि ऐसा होता है जो एक यलि को पुर दे ने के ललए यञ अष्न मं बलल के ललए अननगनत राणी भेट चढ़वाये ? ्या

दे वता ऐसी ह्यां से रसन होते थे ? कहा जाता है नक इन दे वतां का एक िाजा था , जो दे वे्र कहलाता है । यह

कथा उसके ननदय यता , घृणणत औि नववेकहीन कृ्यं का वणयन आयं की सं्कृनत औि स्यता का परिचय दे ती है । यञ

की कहानी ्या है ? िाजा दशिथ की पस्नयं मं से एक कौश्या ने एक वाि से यञ के ललए अरपित घोड़े की गदय न

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काट डाली औि सािी िात उस मृत घोड़े से ललपट कि पड़ी िही (बालका्ड अ्याय 14 ) । यदद उनका दै वी ्वभाव

ऐसा है तो हम उनसे मानवीय ्वभाव की क्पना कैसे कि सकते हं ?

कुदी अिासु रेस से रकालशत पु्तक गगन सूययम पु्तक मं यञ शा्रं मं वरणित यञं के स्ब्ध मं नवविण इस रकाि
ददया है नक िाजा दशिथ ने ददन के उदय होने पि अपनी रथम प्नी कौश्या को अ्य दो पस्नयं सुममरा औि कैकेयी
के साथ यञ किने के ललए तीन पुजारियं अथायत ऋनषयं को भंट नकया औि शु्क रदान नकया । उन पुजारियं ने
अपनी पाशनवक काम नपपासा पूिी किने के पिात इन स्रयं को िाजा को वापस संप ददया औि िाजा ने कोई आपलत

नही की ( बालका्ड अ्याय 14) । इसके पिात वे स्रयां गभयवती हो गं । मनमथनाथ दाताि अपने अंरेजी अनुवाद

मं ललखते हं नक होथ , अवियु औि युकधा नाम के इन तीन पुजारियं ने यह रदशयन नकया । यदद हम ग्भीिता से

नवचाि किं तो यह नब्कुल ्पट हो जाता है नक यञ की रनकया लशशुं के ज्म मं सहायक नही हो सकती , बस्क
उन पुजारियं वािा ही िाननयां गभयवती की गई । इस बात की पुनट इस सबूत से होती है नक उस समय जब यह यञ

नकया गया , तब दशिथ की आयु साठ हजाि वषय थी औि उसकी साठ हजाि पस्नयां थं । ऐसा क्ब कनव के अनुसाि

है , नक्तु वा्मीनक के अनुसाि उसकी तीन सौ पचास िाननयां थं । इससे यह ्पट है नक दशिथ एक जजयि वृध था
औि मार कामुकता लेनपत अस्थ पंजि मार था । ये तीन पस्नयां ल्बे समय से बाँझ थं । उ्हं ्या एक जजयि
नपुंसक औि लड़खड़ाते वृध के ललए जीवन की सं्या की वेला मं यञ वािा गभयधािण किा पाना स्भव था ।

िाजा दशिथ वािा तीनं स्रयां एक एक पुिोनहत को संप दी गई , जज्हंने अपनी ूमच औि इ्छा के अनुसाि ल्बे
समय तक उनके साथ पूिी तिह स्भोग नकया औि तब उ्हं िाजा को लौटा ददया औि इस काम के ललए उन पुिोनहतं

को पारिरममक भी रा्त ुआ । कौन कह सकता है नक दशिथ उन स्रयं के गभय का कािण था ? ययनप िाम ,

ल्मण , भित औि शरु्न वा्तव मं उन पुिोनहतं से पैदा ुए थे , दशिथ से नहं , नफि भी आयय धमय वािा इसकी
हनिदा नही की जाती । शा्रं मं ददया गया है नक यदद एक रामण ्री का ब्चा नहं है तो वह कुछ शतं के साथ अ्य

पुुषं से ब्चे पैदा किवा सकती है । महाभाित मं इसके समथयन मं एक औि आयय कथा दे खी जा सकती है , जजसके
अनुसाि नबना यञ का रदशयन नकये ुए अनेक नवधवा स्रयां गुुकुल के यास के साथ अवैध स्ब्ध बनाकि माताएं
बन गई थं । धृतिार तथा पा्डव इसी रेणी के उ्पाद थे । ऐसे अनेक अवैध पैदाइशं का नवविण महाभाित मं
ममलता है ।

सीता के ही ज्म को लं । उसकी माता ने नकसी अंजान पनत की सहायता से सीता को पैदा नकया औि नफि उसे एक

वन मं फंक ददया । वा्मीनक ने ललखा है नक सीता ने ्वयं कहा था नक जैसे ही मेिा ज्म ुआ , मुझे वन की धूल मं
फंक ददया गया । िाजा जनक को मं पड़ी ममली औि उ्हंने मेिा पालन पोषण नकया । जब मं यौवन को रा्त ुई तब

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मेिे ज्म से जुड़े कलंक के कािण कोई भी िाजकुमाि मुझसे नववाह किने के ललए तैयाि नही था । िाजा जनक ने सीता
के ललए एक यो्य पनत खोज पाने मं असफल होने पि अपने ममर नववाममर से स्पकय नकया नक वह सीता के ललए एक
यो्य वि पाने के ललए उसकी सहायता किं । ऋनष नववाममर पाँच वषय से कम आयु वाले िाम को लेकि आये औि
प्चीस वषय की सीता के साथ उसका नववाह कि ददया औि सीता ने अपनी से कम आयु वि के ललए एक श्द भी नही
कहा ।

आयय पुिाणं को पढ़कि यह अजीब सा लगता है नक अनेक मामलं मं स्रयं का गभय ूसिे पुुषं से ठहिा था । इन

त्यं से यह ्पट है नक यञ को लशशु के ज्म से कुछ लेना दे ना नही है बस्क इसका उदे ्य मददिा पान किना , मांस
खाना औि िंगिेललयां वािा आपस मं मनोिंजन किना है ।

पाँच वषरय िाम वािा ताड़का का वध किने , ्वयं को कहं मछपा लेने औि छः वषय मं नववाह किने की घटनां के
साथ िाम के जीवन का इनतहास आि्भ होता है । िाम एक साधािण यलि से भी नन्न कोदट का था । उसने न केवल
स्रयं की मयायदा के साथ छे ड़खानी की है विन् अनेक स्रयं की ह्या भी की है । उसने नबना तकयसंगत कािण के एक
वृष के पीछे मछपकि कायि की तिह बाली की ह्या कि दी जब बाली ूसिे यलि के साथ युधित था । िामायण की

पूिी कथा मं कहं भी यह ददखाने के ललए कुछ नही है नक िाम एक बुजधमान यलि था । रामणं ने गैि - रामणं के
साथ धोखा नकया है औि अपनी ्वाथय लसजध के ललए उनकी अञानता औि स्थनत का शोषण नकया है । नफि आज की
वैञाननक जारनत के समय मं भी वे वही चाल चल िहे हं ।

जजस धनुष को िाम ने तोडा वह लशव का था । वह धनुष पहले ही टू टा ुआ था । माता के अनुसाि जब िाम ने धनुष
तोडा था तब वह पाँच वषय का था उसके नपता के अनुसाि उसकी आयु दस वषय थी । वा्मीनक िामायण के अनुसाि
िाम कोई ईमानदाि यलि नही था । अमेरिका वासी औने मैनन की िामायण िाम को लशकागोयी डाकू के ्वभाव वाला
औि सीता को िावण वािा ्वे्छा से अपहिण किवा लेने वाली एक म्द बुजध लड़की बताती है ।

5. अयो्याकांड

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कैकेयी से नववाह किते समय दशिथ ने उसे वचन ददया था नक उससे उ्पन पुर को अयो्या का िाजा बनाया जायेगा।
इससे स्बंमधत कथाएँ बताती हं नक नववाह के समय यथाथय मं िाजय कैकेयी के अधीन कि ददया गया औि दशिथ
केवल मार उसके रनतननमध के ूप मं शासन चलाता था । िाम औि उसकी माता कौश्या दशिथ के इस र्ताव से
बेखबि नही थे । वृध िाजा ने िाम को खुलकि अपनी िाय दी थी नक भित का अपने नाना के घि चला जाना िाम के
िाजयाणभषेक के ललए एक शुभ अवसि था । इस कािण भित को दस वषय तक जानबूझ कि उसके नाना के घि मं िखा
था । दशिथ ने अपनी पूवय योजना के अनुसाि िाम को िाजा बनाने के ललए भित को उसके मामा के घि भेज ददया ।
अचानक एक ददन पूवय कैकेयी के पूछे नबना जनता मं घोषणा किके दशिथ ने ूसिे ददन िाम के िाजयाणभषेक की

तैयारियां कि दं । मंरीगण , महरषि वलशठ , अ्य गुुजन तथा ्वयं िाम यह पूणय ूप से जानते थे नक भित ही िाज
ससिहासन का उतिामधकािी था । इस पि भी उ्हंने कपटपूवयक िाम के िाजयाणभषेक के ललए अपनी ्वीकृनत दे दी ।
कैकेयी ने यह भांपकि ुटता के साथ हठ नकया नक उसके पुर को ही िाजा बनाया जाये औि उसकी सुिषा सुननणित
किने के ललए िाम को वनवास ददया जाये । उसे मनाने के ललए दशिथ उसके पैिं पि नगि गया औि उससे याचना किते

ुए कहने लगा , मं तु्हािी इ्छानुसाि कोई भी जघ्य कृ्य किने को तैयाि ूँ , नक्तु तुम िाम को वन मं भेजने का
हठ मत किो । कैकेयी औि मंथिा के उमचत औि ्यायसंगत कृ्य के पष मं पयाय्त कािण औि तकय नवयमान हं । इन
सभी पि नवचाि नकये नबना उनको कोसना औि उनके नवुध अननगनत आिोप लगाना अनुमचत औि अरासंनगक है ।

िाम इस त्य से अवगत था नक यथाथय मं नववाह के समय सम्त िाजय कैकेयी को संप ददया गया था । उसने ्वयं

भित को ऐसा कहा था । अयो्या का्ड , अ्याय 107 । उसने उन सभी युलियं को मौन िहकि ्वीकाि नकया ,
जज्हं उसके नपता ने भित की अनुपस्थनत मं उसके िाजयससिहासन के ललए िचा था । वह पूिे समय तक ्वयं मं शंकालु

िहा नक ्या समािोह सफल हो पायेगा अथवा नवफल िहेगा । जब दशिथ ने घोषणा की , िाजय तु्हािे ललए नही है ।

तुम अव्य ही वन को जाओ , तब वह मन ही मन शोक कि िहा था । अयो्या का्ड , अ्याय 19 । उसने शोक

किते ुए अपनी माता से कहा , यह मेिे भा्य मं ललखा है नक मं िाजय से वंमचत िूँ , िाजकुमाि के यो्य सम्त सुखं
को औि ्वाददट मांस के पकवानं को ्याग कि वन को जाऊँ औि वहाँ स्जी औि फल खाऊँ । अयो्या का्ड

अ्याय 20 । भािी मन से उसने अपनी प्नी औि माता को कहा , वह िाजय जो मेिा अपना होने जा िहा था , वह मेिे

हाथं से ननकल गया । अयो्या का्ड अ्याय 20 94 । वह ल्मण के पास गया औि अपने नपता दशिथ को

अपिाधी रवृलत का बताते ुए बोला , ्या कोई मूखय भी ऐसे यलि को वन मं भेजेगा जो सदा उसकी इ्छा का पालन

किता आया हो ? अयो्या का्ड अ्याय 53 । िाम ने सीता को िानी बनाने के ललए उसके साथ नववाह नकया नक्तु
िाजशी पि्पिा के अनुसाि अपनी कामवासना की तृष्त के ललए उसने अनेक नववाह नकये । मनमथ नाथ दाताि कहते

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हं नक िाम की पस्नयां अपने दासं के साथ िहकि आन्द मनाया किती थं । उसी रकाि भित की प्नी औि कैकेयी
की पुरवधु शोक मं डू ब गई ।

िाम के रनत कैकेयी का ्नेह स्दे ह से पिे था , नक्तु िाम सदा उसके रनत कपटपूणय औि धूतय िहा । िाम सदा कैकेयी

के रनत ईमानदाि औि ्नेहपूणय िहने का ददखावा किता िहा , नक्तु अंत मं उसके ऊपि दोषािोपण नकया , कैकेयी

एक ुट ्री है । कैकेयी के मन मं ुभायवना नहं थी , तब भी िाम ने आिोप लगाया नक कैकेयी मेिी माता के साथ
ुययवहाि किेगी । वह मेिे नपता की ह्या कि सकती है । इस रकाि िाम ने कैकेयी पि धृठता से आिोप लगाए ।

अयो्या का्ड अ्याय 31 53 ।

ल्मण के चरिर मं कुछ भी असाधािण नही था औि उसे छोटे अवताि की पदवी रदान की गई । भित को िाजा के
पद से वंमचत किने के षयंर मं ल्मण का हाथ था । िाम को िाज ससिहासन पि बैठाने के ललए ल्मण कुछ भी किने
के ललए तन मन से जुट गया । ल्मण ने अपने नपता दशिथ पि अपश्दं की बौछाि कि दी । उसने दशिथ को धूतय
कहा । ल्मण ने सुझाव िखा नक उसके नपता को कािावास मं डाला जाये । ल्मण ने नवचाि रकट नकया नक उसके
नपता का वध कि ददया जाना चानहए । ल्मण ने यहां तक कहा नक नपता की ह्या किना मनु के अनुसाि धमय है ।
ल्मण ने कहा नक मं भित औि उसके सालथयं का समूल नाश कि ूं गा । यह ईवि की इ्छा थी नक मं िाज ससिहासन
नही रा्त कि पाया । इस रकाि िाम ने ठ्डी साँस भिी । यह दे खकि ल्मण ने िाम की आलोचना किते ुए कहा
नक केवल कायि औि मूखय ईवि की इ्छा के बािे मं बात किते हं । ल्मण ने चुनौती दे ते ुए कहा नक मं दशिथ औि
कैकेयी को वन मं खदे ड़ कि िाम को िाजससिहासन पि बैठाऊंगा । ल्मण ने िाम से कहा नक यदद तुम अपने
िाजयाणभषेक के ललए मन नही बना पाये हो तो मं िाजससिहासन को छीनकि शासन कूँगा ।

दे श को छोड़कि वन की ओि जाते ुए ल्मण ने कहा नक ध्य है वह पुुष जो वे्यां से सजाई गई अयो्या पि


शासन किता है । वन मं ल्मण भित की तिफ गुिायते ुए बोला नक मं इसे अभी माि डालूँगा । मं भित से अपनी
शरुता का बदला लेने जा िहा ूँ जजसने िाजससिहासन को हड़प ललया है ।

िाम ने वन मं ल्मण को कहा , ्यंनक हमािे नपता वृध औि ुबयल हो गए हं औि हम वन मं आ गए हं , भित औि

उसकी प्नी नबना नविोध के आन्द पूवयक शासन कि िहे हंगे । यह उसके अंदि की नीचता , िाजससिहासन पि
अमधकाि किने की मह्वाकांषा औि ई्याय को रकट किता है । उसने अपने नपता को मूखय औि बुजधहीन कहा । यदद
मं कोमधत हो जाऊँ तो मं अकेला अपने सम्त शरुं को पिा्त कि िाजा बन सकता ूँ । नक्तु मं ऐसा रजा के
कािण नही कि िहा ूँ । इस रकाि िाम ने ्याय औि स्य के नवुध अपमान यि नकया ।

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6. सीताहिण

लंका मं ुए युध के ललए ्वयं िाम दोषी थे । यदद िाम की आँखं के सामने उनका भाई ल्मण उस ननदोष युवती
सुुपनखा की नाक काटकि उसको नवकृत न किता तो िावण वािा सीता का हिण नही नकया जाता औि लंका का

युध नही होता , जजसमं छल कपट , लसधांतहीनता औि अनैनतकता से लड़ी गई लड़ाई मं उस काल के रेठ योधां
को अपने राण गंवाने पड़े । एक ओि लंका की ओि से युध मं वीिगनत को रा्त शूिवीिं के नाम उजागि नकये गए ।
ूसिी ओि िाम की ओि से युध मं मािे गए योधां के नाम पि उस पष वािा पदाय डाल ददया गया । नकस रकाि फूट

डालकि भाई को भाई के नवुध , पुर को नपता के नवुध खड़ा नकया गया । आज भी वही कि िहे हं । ननदोष स्रयं
का वध नकया गया औि अ्याचाि किते समय सीता को भी नही छोड़ा गया । गायं के मांस का भषण किने वाले
नवदे शी आयय औि ऋनष मुनन यञं मं ननदोष पशुं की बलल के नाम पि ह्या किते थे । ऐसे हहिसक यञं को िोकने का

दयालु , अहहिसक औि सदाचािी भाितीय मूल के लोग नविोध किते थे औि पशुं की िषा के ललए अपने राणं की
बलल भी दे कि पशुं के ह्या का्ड को िोकते थे तो नवदे शी आयय सं्कृनत के घृणणत लोग उनके नवुध घृणा उ्पन
किते थे औि उनको िाषस के नाम से पुकािते थे ।

आखखि उस ननदोष सुुपनखा का ऐसा कौनसा अपिाध था जजसके ललए उसको इतना भयानक द्ड ददया गया ? यह

एक नवचािणीय रन है । िाम , ल्मण तथा सीता जजस वन मं आकि ठहिे थे , उस वन मं सुुपनखा का भी वास था ।
ऐसा नही था नक वह अचानक िाम के सामने आकि रकट हो गई हो । वह उन तीनं से समय समय पि भंट किती
िहती थी । तभी उसे परिचय रा्त ुआ था नक िाम िाजा दशिथ के पुर थे औि सीता उनकी प्नी तथा ल्मण भाई

था । सुुपनखा एक बुजधमान युवती थी । वह नख (ना़ून) से लसि तक संदयय से भिपूि थी । इसललए उस ूपसी को


सुुपनखा कहा जाता था । वह त्य से भली भांनत परिमचत थी नक िाजघिानं मं एक से अमधक पस्नयां िखने की
रथा थी । वह िाम से रेम किने लगी । एक ददन उसने िाम के समष नववाह का र्ताव िख ददया जो पि्पिायुि था ।
िाम ने र्ताव की ग्भीिता को नही समझा औि न ही सुुपनखा को समझाया नक वह उससे नववाह किने का नवचाि

्याग दे । उस मयायदापुुष ने मयायदा को ताक मं िखकि , नववाह र्ताव को एक उपहास बना डाला औि झूठ बोलते

ुए कहा नक ल्मण अनववानहत है , अतः वह उसके साथ नववाह कि ले। तब सुुपनखा ल्मण के पास गई । पुनः
िाम के पास गई । इस रकाि दोनं भाई सुुपनखा को गंद की भांनत एक ूसिे के बीच नचाते िहे । अंत मं जब

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सुुपनखा ल्मण के पास पुंची तो ल्मण ने रेम रदशयन का अणभनय किते ुए उसे अपने ननकट बुलाया । ननकट
आने पि उसने सुुपनखा को अपने बाुपाश मं जकड़ ललया। िाम मूक दशयक बने यह सब दे ख िहे थे । तभी ल्मण ने
पीछे से कटाि ननकाली औि धोखे से न केवल सुुपनखा की नाक ही काट डाली बस्क उसके मुख को कटाि के वािं
से नवकृत कि ददया । भयभीत सुुपनखा चीखती ुई जान बचाने के ललए भागी । िाम औि ल्मण खखलखखलाकि हंस

पड़े । यही थी िाम औि ल्मण की सं्कृनत , स्यता एवं आचिण । कोई नगिे से नगिा यलि ऐसा अभर एवं कूि
यवहाि किने के बािे मं कभी सोच भी नही सकता । इस रकाि िाम औि ल्मण ने मूखयता का परिचय दे ते ुए युध
की चचिगािी सुलगा दी ।

िामिाजय मं नािी का स्मान नही था । नािी के साथ एक दासी औि नौकिानी जैसा नीचता का अनुमचत यवहाि नकया

जाता था । िाम ने स्रयं की नाक , कान, छाती आदद काटकि उ्हं नवकृत औि नवकलांग बना ददया औि उनको
यातना दी । िाम ने अनेक स्रयं का वध नकया । िाम ने अनेक अवसिं पि स्रयं से झूठ बोला । िाम ने यह कहकि
स्रयं को अपमाननत नकया नक स्रयं पि नववास नही नकया जाना चानहए औि प्नी को कोई भेद नही बताना चानहए
। िाम सदा स्रयं के साथ अनुमचत काम वासना का आन्द उठाना चाहता था । िाम ने अनाव्यक अनेक जीवं का
वध किके उनका भषण नकया ।

यदद िाम बाबा साहेब डॉ अ्बेडकि जैसा बुजधमान होता तो िामिाजय मं नारियं के स्मान के ललए कानून बनाता ।
लेनकन िाम औि ल्मण की मूखयता उि कितूतं से रमाणणत होती है । यदद बाबा साहेब िाम िाजय मं होते तो िाम औि

ल्मण को भाितीय द्ड संनहता की धािा 376 के अधीन बला्काि के जु्म मं कम से कम 7 वषय की सजा से
दस्डत नकया जाता । लेनकन िामिाजय नवदे शी आयय सं्कृनत का िाजय था । जजसमं भाितीय मूलवालसयं औि स्रयं
को नीच समझ कि उनके साथ पशुं जैसा अ्याचाि नकया जाता था ।

तुलसीकृत िामायण मं गो्वामी तुलसीदास ने साफ साफ कहा है नक नािी मं आठ अवगुण सदै व िहते हं -

साहस , अनृत , चपलता , माया ।

भय , अवििेक , असौच , अदाया ।।

अथायत - उसमं साहस , चपलता , झूठापन , माया , भय , अनववेक , अपनवरता औि कठोिता खूब भिी िहती है ,

चाहे कोई भी नािी ्यं न होवे ?

राखिअ नारर जदवप उर माहं ।

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जुबनी सा्र नृपवत बस नाहं ।।

अथायत - ्री को चाहे ृदय से लगाकि िखो , तो भी ्री , शा्र औि िाजा नकसी के वश मं नही िहतं ।

काम रोध लोभादद मद , रबल मोह कै धारर ।

वतन मह अवत दाुण ुिद , माया ूपी नारर ।।

(अि्यका्ड 76)

अथायत - काम , कोध , लोभ , मद आदद रबल मोह की धािायं हं , उनमं अ्यंत कदठन ुःख दे ने वाली माया
ूनपणी ्री है ।

सुि चाहहहं मूढ़ न धममरता ।

मवत थोरर कठोरर न कोमलता ।।

(उतिका्ड - 161/1)

अथायत - ्री धमय मं तो नववास किती नही , नक्तु सुख चाहती हं , उनमं बुजध अमधक नही होती , वे कठोि होती हं

, उनमं कोमलता नही होती ।

वबधधु न नारर ृदय गवत जानी ।

सकल कपट अध अिगुन िानी ।।

(अयो्याका्ड -1,62-2)

अथायत - ्री के ृदय की गनत को नवधाता भी नही जान सकता , ्री का ृदय सभी तिह के कपट , पाप औि
अवगुणं की खान होता है ।

सहज अपािवन नारर पवत सेित सुभ गवत लहं ।

(अि्यका्ड -9)

अथायत - ्री ्वभाव से ही अपनवर है , पनत की सेवा किने से ही उसे सगनत रा्त होती है ।

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राता वपता पुर उरगारी ।

पुुष मनोहर वनरित नारी ।।

होई विकल सक मनवह न रोकी ।

जजधम रवबमवन रि रविवह वबलोकी ।।

(अि्यका्ड - 28- 4)

अथायत - हे गुड़ ! ्री मनोहि पुुष को दे खते ही , वह चाहे भाई हो , नपता हो या पुर ही ्यं न हो , नवकल हो

जाती है औि अपने मन को िोक नही सकती है , जैसे सूयय को दे खकि सूययकांत मणण नपघल जाती है , वैसे ही सुंदि
पुुष को दे ख कि ्री नपघल जाती है ।

महािृवि चलल फुदट वकआरी ।

जजधम सुतंर भए वबगरवह नारी ।।

(अि्यका्ड - 16-4)

अथायत - भािी वषाय होने पि ्यारियां इस तिह फूट चलं , जजस तिह ्वतंर हो जाने पि स्रयां नबगड़ जाती हं ।

इसी रकाि मनु्मृनत मं कहा गया है नक ्री कुंवािी िहती है तो नपता िषा किता है , युवती होने पि पनत िषा किता

है , बुढ़ापे मं पुर िषा किता है । वह नकसी भी अव्था मं ्वतंरता की अमधकािी नही होती है । इसललए िामायण
जैसे धारमिक र्थं ने नािी को एक मघनौनी व्तु से अमधक नही समझा है । िामायण काल मं नारियं पि बुत

अमधक अ्याचाि ुए हं । जब ्वयं िाम नारियं पि अ्याचाि किने से नही ुकते थे , तो उनके अधीन्थ नारियं

का स्मान ्यं किने लगे ? नकसी नववान ने ललखा है नक पुिातनवादी एवं पुिोनहत स्रयं के सबसे बड़े शरु िहे हं
औि स्रयां उनकी सबसे बड़ी ममर । नक्तु रन तो यह है नक ्या रगनत औि नवञान के इस युग मं भी हम ऐसी

मानवता नविोधी मा्यतां को केवल इसललए मानते िहंगे नक वे नकतने राचीन काल से रचललत िही हं ?

घायल सुुपनखा अपने भाई लंका के िाजा िावण के पास पुंची औि सािा वृता्त कह सुनाया । िावण का खून
खौलना ्वाभानवक था । िावण ने मामा मािीच को नहिण बनाकि भेजा था । वन मं जब िाम नहिण का पीछा कि िहा

था औि जब वह मृ्यु की पीड़ा से मच्ला पड़ा , तब सीता ने ल्मण से नवनय की नक वह िाम की सहायता के ललए

दौड़कि जाये । ल्मण ने उति ददया , मेिे भाई पि कोई नवपलत नही आ सकती । इस पि सीता कुध हो उठी औि

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कहने लगी , ्या तुम िाम की मृ्यु हो जाने पि मेिा शील भंग किने की इ्छा िखते हो ? ्या तुम केवल इसी उदे ्य

से वन मं आए हो ? मं जानती ूँ नक तुम औि भित मेिी इजजत लूटना चाहते हो । सीता के इस रकाि के मछछोिेपन

पि कुध होकि ल्मण चल ददया , उसने उसे नीच औि लजजाहीन एवं मान - मयायदा िनहत बताया । लगता है जैसे नक

पहले ही यव्था की गई थी , तुि्त स्यासी के वेष मं िावण रकट ुआ । गु्से मं िावण जब सीता को उठाने गया था

औि उसने बताया नक वह िावण है औि िाषसं का िाजा है । उस समय सीता ने िावण को नापस्द नकया था , नक्तु

सीता ने ृदय से िावण का ्वागत तब नकया । जब िावण ने अपनी ओि से सीता के नेरं , द्त - पंलियं , मुख तथा
जंघा के संदयय का बखान किना आि्भ नकया औि उसके वष्थल की तुलना ताड के फल के साथ की । जैसे जैसे मं

तु्हािे शिीि के इन अंगं को ननहािता ूँ , मेिा भावावेश अननयंनरत हो जाता है । तु्हािा संदयय मेिे ृदय पि रहाि

किता है , जैसे नदी की लहिं तट पि रहाि किती है । इस रकाि वह सीता के शिीि के अंग अंग का वणयन किता िहा ।

यदद सीता यथाथय मं पनतरता ्री थी , महान चरिरवान थी , जजसका कभी अनुकिण कि सकं , तब उसे ्या किना

चानहए था ? ्या कोई यलि हमािी स्रयं को ऐसे रट औि नीच ढं ग से स्बोमधत कि सकता है ? यदद वह ऐसा किे

तब ्या वह बच सकता है ? नक्तु सीता ने ्या नकया ? िावण के मुख से अपने संदयय का वणयन सुनकि वह ्वयं को
खो बैठी औि उसने िावण को भोजन खखलाया ।

िावण को भोजन किाने के बाद उसने बताया नक वह िाजा जनक की पुरी औि िाम की प्नी है । उसने अपनी
वा्तनवक आयु की जगह झूठी आयु बताई । उसने कहा नक जब वह वन मं आई औि उस समय जब वह िावण के

साथ बात कि िही थी , उसकी आयु 13 वषय की थी । तब उसने बताया नक वह नववाह के बाद अयो्या मं 12 वषं से

िह िही थी । वह नफि बोली नक जब वह वन मं आई तब उसकी आयु 18 वषय थी । यह कैसी समंज्याता है ? वह

नववाह के बाद 12 वषय अयो्या मं िही । उसके अनुसाि वय्क होने के बाद वह अपने नपता के पास अनववानहत क्या
के ूप मं ल्बे समय तक िही । नक्तु िावण की उपस्थनत मं जो गणना उसने र्तुत की उसके अनुसाि उसका

नववाह 6 वषय की आयु मं ुआ । इसको मान लं तो ्या वह शीर ही वय्कता रा्त कि अनेक वषं तक अपने नपता

के घि मं िही ? उसने इस रकाि बकवास ्यं की ? अपनी अमधक आयु को मछपाने के ललए उसने ऐसा नकया । तब

सामा्य तौि पि उसकी आयु 45 वषय से अमधक होगी । वय्क होने के बाद वह अनेक वषं तक अनववानहत िही ,

अतः नववाह के समय वह बीस वषय की िही होगी । 12 वषय अयो्या मं औि 13 वषय वन मं औि नववाह के समय आयु

20 वषय इसललए आयु 45 वषय ुई । ल्मण ने इसकी पुनट की थी । उसने कहा था नक सीता अमधक आयु की थी औि

उसका पेट फ़ूला ुआ था । उसने यह कब कहा ? सुुपनखा िाम से रेम किती थी औि उसके साथ नववाह किना
चाहती थी । िाम ने कहा नक वह पहले से नववानहत था औि वह ल्मण के पास जाए जो कंवािा था । इसके अनुसाि
वह ल्मण के पास गई । नक्तु ल्मण ने इस आधाि पि नववाह अ्वीकाि कि ददया नक वह दास था औि उसने पुनः

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सुुपनखा को यह कहते ुए िाम के पास भेज ददया नक िाम की प्नी अमधक आयु की बढ़े ुए पेट की ्री है । कुछ

भी हो , जैसा नक कथा बताती है , सीता अमधक आयु की थी जब िावण उससे ममला ।

जब िावण उसे गोद मं बैठाकि ले जा िहा था , तब वह आधी न्न थी औि उसने ्वयं आधे शिीि का ऊपिी भाग

खोला ुआ था । िावण ने सीता के वष्थल औि जंघा की रशंसा की , तो सीता ने िावण का ्वागत नकया । जैसे ही
सीता िावण के महल मं उतिी उसका िावण के रनत रेम औि भी बढ़ गया । िावण ने सीता से कहा नक आओ हम
ममलकि आन्द उठायं नक्तु सीता अपने नेरं को ब्द किके लससनकयाँ लेने लगी । सीता ने उति ददया नक तुम अपनी
इ्छानुसाि इस शिीि का आलंगन किने के ललए ्वतंर हो । मेिे ललए इसकी िषा किना आव्यक नही है । मुझ पि
कलंक नही लगना चानहए नक मंने गलती की है ।

अपनी बनहन के रनत अपमान , ननदय यता औि पाणवक यवहाि से उ्पन उतेजना को सहन न कि पाने के कािण ,
िावण रनतनकया ्वूप सीता का हिण किके उसे लंका ले गया । उसने लंका मं लाकि न तो सीता की नाक काटी औि
न ही उसके चेहिे को नवकृत नकया । िावण ने अपनी भतीजी के संिषण मं नािी स्मान के साथ अशोक वादटका के
िमणीय वाताविण मं सीता के िहने की यव्था किवाई । उसको यह काययवाई न तो सीता के रनत रेम औि न ही ूसिे
यलि की प्नी को अपमाननत किने के उदे ्य का रनतफल थी ।

वा्मीनक ने कहा नक अ्यमधक उतेजजत नकये जाने पि भी , संयत न हो पाने वाले कोध के िहते ुए भी औि अद्य

उतेजना होने पि भी , िावण ने बदले की भावना से सीता के कान , वष तथा नाक नवकृत किने के बािे मं सोचा तक

नहं , जबनक िाम औि ल्मण वािा सूपनखा के साथ ्या ्या नही नकया गया ।

हनुमान ने ्वयं यह कहा था नक िावण के महल मं सम्त स्रयं ने ्वे्छा से उसकी पस्नयां बनना ्वीकाि नकया ।
उसने नकसी भी ्री का उसकी इ्छा के नबना अथवा जबिन ्पशय तक नही नकया ।

िावण दे वतां एवं ऋनषयं से घृणा किता था । ऐसा ्यं था ? ्यंनक वे यञ के नाम पि पनवर अष्न को भंट चढ़ाने
के ललए ननदोष एवं मूक ननिीह पशुं का ननदय यता से वध किते थे । इसके अनतरिि औि अ्य नकसी कािण से िावण
उनसे घृणा नही किता था । वा्मीनक ने ्वयं कहा था नक िावण एक अ्छा पुुष था । वह उदाि ृदय औि सुंदि था ।

नक्तु वह रामण की कटु आलोचना किता था , जब वह उनको यञ किते औि सुिापान किते ुए दे खता था ।

वा्तव मं अमधक आयु की होने पि भी सीता ने अपनी वा्तनवक आयु ्यं मछपाई , जबनक िावण ने हंसकि उसके

अंग अंग की रसंशा की । इस पि जिा नवचाि किं । ्या एक पनतरता औि दै वी ्री की यही कथा है ? तब ्या ुआ

? उसने भेद खोला नक वह िावण था औि उससे अनुिोध नकया नक वह उसके साथ लंका चले । सीता ने अ्वीकाि कि
ददया । अब उसने एक हाथ से उसे बालं से पकड़ा औि ूसिा हाथ उसकी जंघा पि िखकि उसे ऊपि उठा ललया औि

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उसे अपनी जंघा पि बैठाकि वह उसे हि ले गया । वह मच्लाई । लेनकन यह स्य नही है । ्यंनक िावण को दो राप
ममले थे । पहला था नक यदद उसने ्री की ्वीकृनत के नबना उसका ्पशय नकया तो उसका शिीि भ्म हो जायेगा औि

ूसिा राप था नक उसका लसि हजािं टु कड़ं मं कटकि नबखि जायेगा । ऐसे रापं के िहते , यदद सीता को ले जाते
समय कोई शािीरिक स्पकय होता तब िावण का लसि औि शिीि भ्म होकि िाख बन जाता । नक्तु उसके साथ ऐसा
कुछ नही ुआ । वह लंका मं सुिणषत पुँच गया औि सीता को महल मं घुमाया । वहाँ भी उसे कुछ नही ुआ । तब

इसका ्या अथय है ? ऐसा कोई भी रमाण उपल्ध नही है जो यह लसध कि सके नक िावण सीता को जबिन हि ले

गया था । िावण सीता को जबिन हि कि भी नही ले जा सकता था , ्यंनक सीता इतनी शलिशाली थी नक वह
लशवजी के धनुष को घि की सफाई के वि एक कोने से उठाकि ूसिे कोने मं िख दे ती थी औि िावण इतना कमजोि

था नक वह लशवजी के धनुष के नीचे दबी अपनी ऊँगली को भी मुस्कल से ननकाल पाया था . इसललए इतनी
शलिशाली सीता का इतने कमजोि िावण वािा जबिद्ती अपहिण किना नामुमनकन है । मेिे इस नन्कषय पि

ूदढ़वादी कोध से भड़क सकते हं , नक्तु मं अपने नवचाि बदलने वाला नही ूँ ।

िावण जब लंका मं सीता के साथ था , तब उसने कहा नक हे सीता ! तुम लजजा न किो । हमािा ममलन दै वी यव्था है

। सम्त ऋनषगण इसका ्वागत किते हं । सीता ने उति ददया , तुम मेिे शिीि का अपनी ूमच अनुसाि उपयोग किो ।
मं अपने शिीि की पिवाह नही किती ।

आगे िामायण मं कहं भी ऐसा नही ममलता नक उसके लेखक ने सीता को एक पनतरता ्री अथवा नानयका अथवा
बुजधमान ्री अथवा एक ऐसी ्री जो अपने सती्व को सुिणषत िखने की इ्छु क ्री बताया है । यह सुनकि उसका

रेठ रतीत होगा नक वह अष्न कु्ड मं रनवट हो गई , नक्तु इसमं कोई आियय नही है ्यंनक हम आज भी मज्दि -

समािोहं मं वे्यां तक को अष्न पि चलते दे खते हं । न केवल वे्याएं ही ऐसा किती हं , विन् ुट औि बदमाश
लोग आज भी अष्न पि चलते हं । यदद हम ग्भीिता से वा्मीनक िामायण का अ्ययन किते हं तो पाते हं नक सीता
उस समय गभयवती थी ।

7. नकष्क्धाका्ड

सीता के हिण के बाद िाम औि ल्मण नवलाप किते ुए वन वन भटकने लगे । अपनी वीिता की शेखी बखािने वाले

वे दोनं योधा अपने शौयय को भूल गए । िोते - मच्लाते कायिं की तिह जटायु के पास पुँचे । उस समय जटायु

मिणासन अव्था मं था । वा्मीनक िामायण के अि्यका्ड के 68 वं सगय के लोक 32 , 33 से नवददत है नक

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बलशाली तथा यश्वी िाम ने जटायु की तृष्त के ललए ल्मण के साथ वन मं जाकि खूब मोटे - मोटे औि बड़े - बड़े
मृगं को मािा औि उनका मांस ननकाला तथा उस मांस के नप्ड बनाकि उस नप्ड को ददवंगत जटायु पषी की तृष्त

के ललए कुश की हरियाली पि नबखेि ददया । यही बात आ्या्म िामायण के आि्य िा. सगय 8 मं इस रकाि कही गई

है नक लोक 38 , 39 से नवददत है नक िाम ने जटायु का दाह किने के ललए ल्मण के साथ ्नान नकया । मृग मािकि
टु कड़े कि हरियाली पि नबखेि ददए तानक सब पषी खाएं औि जटायु तृ्त हो जाएँ ।

साधािण मनु्य की तिह िोते नबलखते दोनं भाई वानि जानत तथा अ्य जनजानतयं की शिण मं जाकि सहायता के
ललए गुहाि लगाने लगे । दोनं वनवासी भाई जब शबिी के आरम मं पुँचे तो शबिी ने दोनं भाइयं का ्वागत फल
फूलं से नकया । रामणी लोगं वािा रचाि नकया जाता है नक िाम ने शबिी के स्मान मं झूठे बेि खाये थे औि शबिी के
अपमान मं ल्मण ने शबिी के झूठे बेि फंके थे । इस मा्यम से रामणी लोग यह बताते हं नक तुम लोग नीच वणय के हं

, नफि भी हम तु्हािी नीच औकात ददखाने के साथ साथ कुछ स्मान भी किते हं । ये लोग इस रकाि की नीच औि

घदटया सोच के मा्यम से शूर लोगं मं मनोनवकाि उ्पन किते िहते हं , जजससे शूर लोग हमािे चिण ्पशय वाले बने
िहं औि हमािी गुलामी से इंकाि न किं । रामणी लोगं की शूर लोगं को नीचा ददखाने के ललए ये मन गढ़ं त बातं हं ।
नकसी भी िामायण मं ऐसा नही ललखा है नक िाम ने शबिी के झूठे बेि खाये थे । िाम औि तुलसीदास ने शबिी के

मा्यम से यह कहलवाया है नक मं नीच जानत की ूँ औि नािी जानत भी नीच से नीच औि अपनवर होती है , उससे भी
मं नीच ूँ । इस रकाि िाम औि तुलसीदास ने शबिी के मा्यम से नािी जानत औि शूरं अथायत भाितीय लोगं का

अपमान नकया है , जोनक िाम औि तुलसीदास की नीच औि घदटया सोच को दशायता है ।

िाम ने नकष्क्धा पवयत पि जाकि सुरीव के साथ ममरता कि ली यह जानते ुए नक वह धोखेवाज है औि उसने अपने
भाई की ह्या किवाने तथा िाजससिहासन पि क्जा किने के नवचाि से उसके साथ स्पकय बनाया था । बाली के
नववासघाती भाई सुरीव के ललए उसने छु पकि पीछे से वाि किके बाली की ह्या कि दी । यही िाम जो आमने सामने

बाली के साथ युध किने का साहस नही कि पाया , अञानी लोग उसको वीि योधा के ूप मं अणभवादन किते हं औि
रामण लोग बुत जोि शोि से उसकी रशंसा किते हं ।

बाली का वध किते ुए अपने कृ्य को ्यायसंगत बताते ुए िाम ने अपनी सफाई मं बाली को कहा , नि - पशुं के
स्ब्ध मं धमय का पालन किना आव्यक नही है औि उसने इस आधाि पि बाली का वध कि ददया नक बाली ने
नववेकपूणय आचिण नही नकया जो उसे किना चानहए था । बाली पि लगाए गए आिोपं का बाली से ्पटीकिण मांगने

का रयास नकये नबना , िाम ने बाली का वध कि ददया औि ्वाथर सुरीव की बातं पि पूिी तिह से नववास कि ललया ।

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अपनी ्वाथय लसजध के ललए िाम ्वयं उस सुरीव के सामने झुक गया जो अयो्य औि नववासघाती था औि कहा नक

मुझे ्वीकाि किो , मुझ पि दया किो ।

बाली अपने भाई का वध नही किना चाहता था । सुरीव ने अपने भाई बाली के साथ अनाव्यक झगड़ा कि ललया ।
बाली ्वभाव से अहहिसक था । अतः उसमं कोई दोष नही था । अपनी प्नी को वचन दे कि नक वह अपने भाई का वध

नही किेगा , वह युध के ललए उतिा । बाली एक धैययवान औि शलिशाली पुुष था । वह बुत ही ईमानदाि औि
्यायनरय पुुष था । खुले औि आमने सामने के युध मं उसे कोई पिाजजत किने का साहस नही कि सकता था । वह
अनेक महापुुषं का नरय ममर था । उसने गलती से िाम को ईमानदाि पुुष समझा । बाली की मृ्यु पि सुरीव उसके
सगुणं के बािे मं बोला नक मं ऐसे रेठ भाई को खोने के बाद जीनवत नही िूंगा । मं अष्न मं कूद कि राण ्याग ूं गा ।
ऐसे रेठ पुुष का वध किने पि िाम ने सफाई दे ते ुए कहा नक हहिसक पशु को मािने मं धमय के ननयमं का पालन

किना आव्यक नही है । ्या बाली एक हहिसक पशु था ?

8. सुंदिका्ड

जब हनुमान सीता की खोज मं ननकले , उस िा्ते मं भाित औि रीलंका के म्य समुर की चौड़ाई लगभग 40 नकमी

थी , जबनक तुलसीदास अपनी िामायण मं भाित औि रीलंका के बीच सौ योजन अथायत चाि सौ कोस अथायत 1200
नकमी की चौड़ाई बता कि अपने आपको मूखय औि महान झूठा सानबत किते हं । हकितु तुलसीदास ने िामायण मं

भयंकि ही सफेद झूठ औि पाख्ड भिी बातं ललखी हं , ननजरव व्तुं को पंखं के साथ उड़ने की , ननजरव व्तुं

औि पशु - पणषयं को मनु्यं से बात किने की , पानी को मनु्य से बात किने की , पवयत को समुर के कहने पि समुर

से ननकलने की औि हनुमान का स्मान किके समुर मं पुनः डू बने की मनगढ़ं त औि सफेद झूठी बातं ललखी हं , जोनक
नकसी भी समझदाि यलि के गले मं नही उतिती हं । तुलसीदास अपनी िामायण मं ललखते हं नक उस समुर मं सौ सौ

योजन के बुत नवशाल मगि , घमड़याल , म्छ औि सपय थे । तुलसीदास के ऐसे सफेद झूठ को नकसी भी यलि को

पचाना नामुमनकन है । भाित औि रीलंका के म्य 40 नकमी की जगह मं सौ योजन अथायत चाि सौ कोस अथायत

1200 नकमी के नवशाल शिीि वाले जीव - ज्तु होना अस्भव है । इससे लसध होता है नक तुलसीदास ने भंग के नशे
मं भाितीय लोगं को मनगढ़ं त कहाननयं मं उलझाने के ललए एक का्पननक औि मूखयता भिी बातं की एक झूठी

बकवास ललखी है , जजसका समाज के ललए कोई भी औमच्य नही है । ऐसी सफेद झूठं से तुलसीदास ने मूखयतापूणय
औि ददमाग के ददवाललयेपन की मानलसकता का परिचय ददया है ।

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वा्मीनक िामायण के सु्दिका्ड 36 वां सगय लोक 41 से नवददत है नक जब हनुमान सीता के पास अशोक वादटका

मं पुंचे तो उ्हंने िाम के नवयोग के स्ब्ध मं सीता को इस रकाि कहा नक िाम आजकल नवयोग मं न मांस खाते हं ,
न ही शिाब पी िहे हं । इसका ता्पयय यह ुआ नक िाम ने सीता के नवयोग मं मांस खाना औि शिाब पीना ब्द कि
ददया था अथायत िाम मांस औि शिाब भषी थे । जबनक रामणी लोग रचारित किते हं नक िाम माँस औि शिाब का

सेवन नही किते थे , जोनक रामणी लोगं का एक सफेद झूठ है । इसके साथ रामणी लोगं का ये भी सफेद झूठ है
नक हनुमान ने लंका दहन नकया था । रामणी लोगं ने झूठ औि पाख्ड का जाल नबछाकि भाितीय लोगं को साथयक
जीवन नही जीने ददया । इन लोगं ने झूठ औि पाख्ड के नाम पि भाित के अलशणषत औि आ्थावादी लशणषत लोगं

को अभी तक खूब मूखय बनाया है । ये लोग िावण की सोने की लंका की , हनुमान के उड़ने की , िामसेतु इ्यादद की
मनगढ़ं त कहाननयं से भाितीय लोगं को रममत किते िहे हं । ये भाितीय लोगं को अख्ड नववास ददलाते हं नक सोने

की लंका को हनुमान ने जला ददया था । जबनक सोना एक कीमती औि ठोस धातु है , आभूषण बनाने के ललए जजसे

हजािं मडरी तापकम पि रनवत किते हं । सोने से आभूषण बनाने के ललए सोने को लगभग 1064 मडरी संटीरेट के

तापकम पि नपघलाया जाता है । सोना 1064 मडरी संटीरेट पि नपघल कि रनवत स्थनत मं आता है औि ठ्डा होने
पि पुनः ठोस ूप मं आता है । रामणी लोगं का मत है नक लंका का ननमायण लशवजी ने लाखं वषय पूवय किाया था ।

जबनक सोने की खोज को 5 हजाि वषय औि रीलंका मं मनु्य की उपस्थनत को 34000 वषय ही ुए हं तो सोने की

लंका का ननमायण लाखं वषय पूवय नकसके ललए किाया था औि वहाँ पि लाखं वषय पूवय कोई मनु्य जानत ही नही थी , तो

उसका ननमायण कैसे ुआ ? 5000 वषय पूवय कोई सोने की खान तो थी नही । कुछ नददयं की िेता को छान कि उसमं से

जो सोने के कण ननकलते थे , उनको प्थि से पीट कि आभूषण बनाते थे । उस समय सोने ननकालने की न तो कोई
तकनीक थी औि न ही कोई खान थी तो सोने की लंका के ललए लाखं वषय पूवय हजािं टन सोना कहाँ से आया ।

लेनकन िाम के काययकाल को कुछ लोग 10000 वषय बताते हं तो 10 हजाि वषय पूवय लंका का ननमायण लशवजी ने नकया
होगा । एक तिफ रामणी लोग लशवजी को सृनट किता मानते हं औि सृनट की िचना अिबं वषय पूवय ुई थी तो लशवजी

10 हजाि वषय पूवय सोने की लंका का ननमायण कैसे कि सकते हं ? यदद लशवजी के पास हजािं टन सोना होता तो
लशवजी सोने का महल यदद बनाते तो रीलंका के ्थान पि भाित मं बनाते । ्यंनक लशवजी भाित के लोगं के शुभ

चचितक थे । िाम ने लंका मं पुँचने के ललए िामसेतु पुल का ननमायण किवाया था , तब िाम लंका मं पुँचे थे । लशवजी ने

लंका जाने के ललए कोई भी पुल का ननमायण नही किवाया था , तो लशवजी का लंका मं पुंचना अस्भव था । जब

लशवजी का लंका मं पुंचना अस्भव था , तो सोने की लंका का ननमायण भी अस्भव था । इस रकाि लशवजी वािा
सोने की लंका का ननमायण एक पाख्ड है ।

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रामणी र्थ औि उनके लोग िावण औि कु्भकणय के शिीि को पहाड़ जैसा बताते हं । यदद उनके शिीि पहाड़
जैसे थे तो उनकी लंका का आकि पहाड़ से भी नव्तृत होगा । उस पहाड़ समान सोने की लंका के ननमायण मं

किोड़ं टन सोना लगा होगा । इतना सोना उस समय कहाँ से आया , जबनक इतना सोना तो पूिे संसाि मं आज भी
नही है औि उस समय सोने की कोई खोज भी नही थी । इससे पुनट होती है नक रीलंका मं सोने की लंका का होना
एक पाख्ड है । रामणी लोग कहते हं नक हनुमान ने सोने की लंका का दहन नकया था । सोने के नपघलने का

तापकम लगभग 1064 मडरी संटीरेट औि जलने का तापकम लगभग 2970 मडरी है । हनुमान की पूँछ मं आग
लगाने के ललए कपड़े रयोग नकये गए । नकसी कपड़े को जला कि सोने के पास ले जा कि ्या सोना जलने लगेगा

? एक अष्न कु्ड मं एक ब्दि को डाला जाये औि ब्दि के वजन के बिाबि सोने के टु कड़े को डाला जाये तो

उसमं केवल ब्दि जलेगा , सोना नही जलेगा । राणणयं का शिीि अमधकति पानी से बना होता है जोनक 100

मडरी के ऊपि वा्प मं परिवरतित होने लगता है औि सोना एक धातु है जो 2970 मडरी के तापकम पि गैस मं

परिवरतित होता है । हनुमान की पूँछ मं आग लगाने से हनुमान ही जलेगा , सोने की लंका पि कोई भी रभाव नही
पड़ेगा । हनुमान वािा सोने की लंका नही जलने के कािण उसका अस्त्व लंका मं होना चानहए । अभी तक पूिे
रीलंका मं सोने की लंका का कोई भी अस्त्व नही ममला है । यदद सोने की लंका रीलंका के लोगं को रा्त हो
जाती तो ुननया मं सबसे मालदाि रीलंका के लोग ही होते ।

यदद सोने की लंका मं हनुमान वािा आग लगती तो सोने का तापकम लगभग 3000 मडरी होता औि उससे सोने

की ऑ्साइड गैस वायुम्डल मं ममलती औि वायुम्डल मं ऑ्सीजन की मारा समा्त हो जाती । 3000 मडरी
तापकम के वाताविण मं कोई राणी जीनवत नही िह सकता था । सोने की गैस भािी होती है ऑ्सीजन गैस ह्की
होती है । इसललए सोने की वास्पत गैस वायुम्डल मं नीचे िहेगी । ऑ्सीजन ऊपि िहेगी । मनु्य की वसन
नकया मं सोने की गैस जायेगी । सोने की भाप से मनु्य सैकंडं मं नपघल कि िाख मं परिवरतित हो जायेगा औि वहाँ
उपस्थत सभी लोग मि जायंगे । पि्तु लंका दहन के समय नकसी रीलंका के िाषस को मिते ुए नही बताया है ।
रामणी लोगं का ये पाख्ड अनपढ़ औि आ्थावादी पढ़े ललखे मूखय लोगं तक ही चल सकता है । बुध औि भीम
के नवञानी लोगं पि नही चल सकता ।

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9. लंकाका्ड

िावण से युध किके सीता को वानपस लाने के ललए िाम का पुल बनाने का ननणयय एक मनगढ़ं त कथा है । िाम की

सेना मं हनुमान थे , िामायण के कथानुसाि जो उड़ कि लंका जा सकते थे । िीछ औि वानि नही उड सकते थे।

नक्तु हनुमान अपने आकाि को नकतना भी छोटा औि बड़ा कि सकते थे , जैसे सुिसा के मुंह से ननकलने के ललए

छोटे हो गये थे औि सूयय को मुंह मं लेते समय सूयय से भी बडे। िामादल की सेना जयादा से जयादा 5 हजाि से जयादा
नही होगी । जब हनुमान सूिज को ननगल सकते हं औि पहाड़ं को उठा सकते हं तो हनुमान को िामादल की चीटं
के बिाबि सेना को लंका तक पुंचाने मं ्या दद्कत थी । िामादल की स्पूणय सेना हनुमान की पीठ पि सवाि हो
जाती औि हनुमान पूिी सेना को उड़ कि लंका पुंचा दे ते । समुर पि पुल बनाने की जूित ही नही थी । ूसिा

उपाय ये था नक भाित औि रीलंका के बीच समुर की चौड़ाई मार 40 नकमी है , हनुमान अपना ूप थोडा सा बढ़ा

कि लेट जाते औि पूिी सेना उनकी पीठ से ननकल जाती । हनुमान बुत ही बल , बुजध औि नवया से पूणय थे तो

हनुमान ने िाम की सेना को लंका मं पुंचाने के ललए अपनी बल , बुजध औि नवया का रयोग किके िाम के कलेश

औि नवकाि ूि ्यं नही नकये । जो हनुमान अपने माललक िाम के ुःख ूि नही कि सकता , वह आम जनता के

ुःख ूि कैसे कि सकता है ? यदद हनुमान िाम की सम्या को हल कि दे ते तो िाम को समुर से अनुनय नवनय नही
किनी पड़ती औि पुल बनाने की मेहनत भी नही किनी पड़ती । इससे ये ही रमाणणत होता है नक हनुमान न तो उड़

सकते थे औि न ही उनके पास कोई बल , बुजध औि नवया थी । यह नब्कुल स्य है नक बल , बुजध औि नवया के

नाम पि हनुमान ूपी पाख्ड फैलाया ुआ है । अपने दे श मं 1200 वषय पूवय नह्दी भाषा ललखना औि पढ़ना

कोई नही जानता था । हहिदी भाषा का उगम ही 8 वं शता्दी मं ुआ था । भालू , बंदिं के वंशज वतयमान मं नह्दी
न तो पढ़ सकते है औि न ही ललख सकते हं । यदद िाम के समय मं भालू औि बंदि ललख औि पढ़ सकते थे तो

आज उनकी संतान पढ़ने ललखने मं मनु्य से आगे होती । भालू , बंदिं को नह्दी लसखाने बाला िाम के काल मं
कोई लशषक होता तो वह मनु्यं को भी नह्दी लसखा सकता था औि िाम के समय से ही अपने दे श मं नह्दी होती

। इनतहासकािं ने सबूतं के साथ ललखा है नक नह्दी ललनप 8 वं शता्दी से ही आि्भ ुई है , इसललए िामायण
ही गलत है । जब िामायण गलत है तो प्थिं पि िाम नाम की नह्दी ललनप ललखना भी एक पाख्ड है । अब

बताइये नक समुर पि पुल बनाते समय भालू औि वानि प्थिं पि "िाम" नाम ललख सकते थे । िाम का नाम ललखे

प्थिं को पानी पि तैिाना लोगं को मूखय बनाने के ललए एक पाख्ड है । हवा भिी बॉल को पानी पि डालते हं ,

तो वह पानी पि तैिती िहेगी , जब तक उसके अंदि वायु है । यदद पानी पि तैिने वाला प्थिं का ऐसा कोई पुल

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होता तो आज भी वह पानी पि तैिता । इससे लसध होता है नक िामसेतु का ननमायण औि हनुमान का उड़ना दोनं
पाख्ड है ।

ल्मण शलि के रसंग मं तुलसीदास ने ललखा है नक ल्मण को शलि लगने के उपिांत मेघनाथ के समान सौ

किोड़ योधा उ्हं उठा िहे थे , पि्तु उनसे वे नही उठे । मूखय तुलसीदास को इतनी बड़ी ग्पं ललखते ुए शमय नही
आई । ऐसे मूखय की कुछ महान मूखय लोग िात औि ददन पूजा औि स्मान दे कि दे श को काल के गाल मं धकेल िहे

हं । दे श के बड़े बड़े लोग जब मूखय तुलसीदास के ऐसे महामूखय लश्यं से मागयदशयन लंगे , तो दे श को गतय मं जाने से

कोई भी नही िोक सकता । तुलसीदास ने ये भी गणना नही की , नक जब ल्मण को एक किोड़ लोग उठाएंगे , तो
उन लोगं को ल्मण को उठाते वि खड़ा होने के ललए नकतनी जगह की आव्यकता होगी औि ल्मण के शिीि
की ल्बाई नकतनी होगी । ल्मण के शिीि को दायं औि बाएं दोनं तिफ खड़े होकि एक किोड़ मं से पचास

पचास लाख साधािण लोग दोनं तिफ से उठाते हं तो उनको खड़ा होने के ललए कम से कम 75 लाख फुट जमीन

की आव्यकता होगी अथायत 25 लाख मीटि अथायत 2500 नकमी तक की जगह की आव्यकता होगी । यदद

ल्मण की ल्बाई 2500 नकमी थी , तो ल्मण के पैि रीलंका मं औि लसि नहमालय पवयत पि होना चानहए । जब

ल्मण का लसि नहमालय पवयत पि था , तो ल्मण नहमालय पवयत से हाथ बढ़ाकि दवा का सेवन कि लेता औि
हनुमान को दवाई के ललए नहमालय पवयत उठाने की आव्यकता नही होती । इस रकाि की महान ग्पं तुलसीदास
वािा िामायण मं ललखी गई हं ।

रामणी लोग हनुमान को बल , बुजध औि नवया का भ्डाि मानते हं , पि्तु हनुमान सबसे मूखय था । जब रीलंका

के हकीम ने उसको नहमालय से संजीवनी ्यूटी नामक दवाई लाने के ललए कहा था , पि्तु हनुमान इतना मूखय था
नक जिा सी दवाई के ललए नहमालय पवयत को ही उठा लाया । हनुमान से बुजधमान तो आज के लोग हं । डॉ्टि
दवाई ललखता है तो पूिी ुकान को न उठाकि ललखी ुई दवाई को ही लाते हं । जब उस समय के जानवि प्थिं
पि िाम नाम हहिदी मं ललख सकते थे औि पवयत बातं कि सकते थे तो हनुमान एक कागज पि हकीम से दवाई
ललखवा कि ले जाते औि उस कागज को नहमालय को बता दे ते तो नहमालय अपने ्वयं के उठने के ्थान पि मंगाई

गई ्यूटी को ही हनुमान को दे दे ते , पि्तु हनुमान मं कोई बुजध ही नही थी , इसललए एक मूखय की तिह नहमालय

पवयत को उठाकि लाया था , इससे पुनट होती है नक हनुमान एक बुजधहीन जानवि था । यदद हनुमान मं बल होता

तो िाम को लंका मं पुँचने के ललए पुल की आव्यकता ही नही होती , वह िामादल को अपनी पीठ पि बैठाकि
एक सैक्ड मं लंका मं पुंचा दे ता । िावण भी तो भाित मं नबना पुल के आता जाता था । िामायण मं ऐसा कहं
भी नही ललखा है नक हनुमान ने नकसी से लशषा रा्त की थी । इस रकाि पुनट होती है नक हनुमान बल औि नवया

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से ्वयं ही हीन था , तो वह ूसिं को बल औि नवया कैसे दे सकता है । इस रकाि तुलसीदास सनहत स्पूणय
िामादल मूखं की फ़ौज थी ।

बंगाली िामायण के लंकावताि सुत मं यह ललखा है नक िावण एक रनवड़ िाजा था जो बौध ध्म मं दीणषत हो गया था
औि वह ्लैटो औि सुकिात जैसा दाशयननक था । बौध सानह्य मं िावण की अ्यमधक रशंसा नकये जाने के कािण
रामणं तथा पस्डतं ने अपनी िामायण गढ़ कि िावण का चरिर हनन किके उसे ऐसे तु्छ एवं घृणणत ूप मं र्तुत
नकया । अपनी िामायण मं कीतायवास कहते हं नक िावण ने दे श मं ्याि औि उपकाि के साथ शासन नकया ।

िणभूमम मं मृ्यु के समय िावण ने िाम को अपने पास बुलाकि उसके कानं मं कहा नक िाम तुमने कपट औि
धोखेबाजी के साथ युध लड़ा था । इसरकाि हम कीतयवासन की िामायण मं पाते हं नक िावण ने स्य औि ्याय का
उपदे श ददया था ।

नवभीषण ने अपने भाई की ह्या किवा कि लंका का िाजा बनने की लोलुपता से रेरित होकि अपने ही परिवाि के शरु
िाम के समष समपयण कि ददया । जब िाम औि ल्मण मेघनाथ से पिाजजत होकि नगि पड़े तो नवभीषण नवलाप किके
कहने लगा नक िाजय को गंवाकि मं मुसीबत मं पड़ गया ूँ । नवभीषण का खून उस समय ्यं नही खौला जबनक

उसकी बनहन तथा अ्य स्ब्धी स्रयं की नाक , कान , छानतयाँ औि बाल काट कि उनका अंगभंग नकया गया औि
उ्हं अपमाननत नकया गया । कुछ की तो ह्या कि दी गई । वह इन घटनां पि याकुल नही ुआ ।

अनेक भयानक पाप कमय किने वाले पापी िाम को ईमानदाि , ्यायनरय औि वीि योधा बताना तथा अपने ही भाई

िावण को जजसने ब्दी बनाई गई सीता के साथ स्मानपूणय यवहाि नकया , उसे शिािती बताना ये सब उसके वािा
अपने ही भाई के साथ धोखा किके लंका पि क्जा किने का उसका गूढ़ उदे ्य दशायता है । यह उसकी ्वाथयलसजध

औि नीच मानलसकता के अनतरिि औि ्या हो सकता है ? िावण एक नववान यलि , एक महान संत, महाञानी ,

अपनी रजा औि स्बंमधयं का दयालु िषक , एक वीि योधा , एक शलिशाली यलि , एक उदािमन सैननक , एक

पनवर यलि , स्यक मागय धािक औि अनेक विदानं का रा्तकताय बौध णभषु था । नवभीषण ने अपने भाई िावण
की सावयभौममकता के रनत ई्यायलु होकि उसके साथ नववासघात नकया औि उसकी मृ्यु का कािण बना । िावण की
मृ्यु के तुि्त बाद नफि भी नवभीषण रातृ्व भावना से भिकि उसके शव पि नगिकि नवलाप किके िोने लगा । िावण
के रनत रधांजलल अरपित किते ुए औि उसके सगुणं का वणयन किते ुए नवभीषण ने कहा । तुम ्याय किने मं कभी
नवफल नही ुए । तुमने महापुुषं का सदा स्मान नकया ।

रामणी लोग मनगढ़ं त कहाननयं से भाित के आ्थावादी लोगं को खूब मूखय बनाते हं । कभी िाम के नाम पि

दीपावली की मनगढ़ं त कहानी िचते हं , कभी शबिी के िाम वािा झूठे बेि खाने का पाख्ड िचते हं , कभी सोने

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की लंका का पाख्ड िच कि लोगं को मूखय बनाते हं । नकसी भी िामायण मं नही ललखा है नक िाम दीपावली के
ददन वन से वानपस आये थे । नकसी भी िामायण मं नही ललखा है नक िाम ने शबिी के झूठे बेि खाये थे ।

रामणी लोग िाम का ज्म चैर माह मं नवमं को मनाते हं । वनवास के समय िाम की आयु 17 वषय की थी । िाम
वनवास के समय कौश्या ने िाम से कहा नक बेटा तेिे ज्म से आजतक इन सतिह वषं मं कैकेयी से मंने बुत

ुःख झेले हं , यदद तुम न होते तो मं मि जाती (वा्मीनक िामायण) । िाम को चौदह वषय का वनवास ुआ था औि
चौदह वषय के बाद अपने ज्म ददन चैर नवमं के बाद ही वन से वानपस लौटे थे । पंचवटी से सीता का अपहिण

वनवास के 13 वषय बाद औि वन से आने से एक वषय पूवय ुआ था । जब सीता िावण के साथ जा िही थी , तब

सीता ने िावण को कहा था नक मुझे वन मं िहते 13 वषय हो गए हं । ऐसा वा्मीनक िामायण मं ललखा है । सीता का
अपहिण चैर महीने के बाद री्म ऋतु मं ुआ था । जब िाम औि ल्मण सीता की खोज किते ुए सुरीव के पास

पुँचे तो उस समय री्म ऋतु का समय था । यह तुलसीकृत िामायण मं नकष्क्धाका्ड के पृठ सं्या - 597

पि ललखा है । तुलसीदास ने ललखा है - गत रीषम बिषा रितु आई । िनहुँ ननकट सैल पि छाई ।। अथायत - हे सुरीव

! री्म ऋतु बीतकि वषाय ऋतु आ गयी । अतः मं पास के पवयत पि ही िूँगा । हनुमान सीता की खोज मं अ्टू बि

अथायत कारतिक महीने के आि्भ मं लंका गया था । तुलसीकृत िामायण के नकष्क्धाका्ड के पृठ सं्या - 602

पि साफ साफ ललखा है नक- बिषा गत ननमयल रितु आई । सुमध न तात सीता की पाई ।। अथायत - हे ल्मण ! वषाय

ऋतु बीत गई , ननमयल शिद ऋतु आ गयी , पि्तु अभी तक सुरीव ने सीता की खबि की कोई यव्था नही की है ।
सीता की खोज मं हनुमान कारतिक माह की शिद पूरणिमा को लंका मं पुंचा था । ऐसा वा्मीनक िामायण के पृठ

सं्या - 527 सु्दिका्ड ूसिा सगय के लोक - 57 मं ललखा है । हनुमान सीता की खोज खबि लेकि एक महीने

बाद आधे आणवन मं वानपस लौटा था अथायत 15 नव्बि के आस पास । यह तुलसीकृत िामायण के पृठ - 605 पि

चौपाई 4 मं ललखा है । िामायण के अनुसाि िाम िावण युध 6 महीने चला था । िाम चैर महीने के बाद वन से
वानपस लौटे थे । उस समय बुत गमर थी । जब िाम अयो्या वानपस लौट िहे थे तो भित ने मजूिं को आदे श
ददया था नक स्पूणय िा्ते औि उसकी आस पास की जमीन पि बफय के समान ठ्डा पानी मछड़क कि भूमम को

नब्कुल ठ्डा कि दो । ऐसा आदे श वा्मीनक िामायण के पृठ सं्या - 873 युधका्ड के लोक 7 मं है । उस
िा्ते से िाम को अयो्या पैदल लाते समय छाते की भी आव्यकता ुई थी । जब िाम पैदल पैदल अयो्या आ

िहे थे , तब कुछ नौकि िाम के ऊपि सफेद िंग का छाता लेकि चल िहे थे औि कुछ हाथ के पंखे से हवा किते ुए

चल िहे थे । ऐसा वणयन वा्मीनक िामायण के युधका्ड के पृठ सं्या - 873 के लोक 19 मं है । इसका ता्पयय

है नक िाम वैशाख अथायत मई महीने मं वानपस आये थे । जब िाम अयो्या वानपस आये , तब गगन मं इतनी धूल
छा गई नक गगन से धूल की वषाय होने लगी । इससे लसध होता है नक उस समय री्म ऋतु थी । ऐसा वा्मीनक

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िामायण के युधका्ड के पृठ सं्या 874 के लोक 29 मं ललखा है । री्म ऋतु के आि्भ मं सभी वृष फल

फूलं से लदे िहते हं । जब िाम की सेना िाम के साथ अयो्या की तिफ बढ़ िही थी , उस समय सभी मीठे फलदाि

वृष फल फलं से आ्छाददत थे । ऐसा वा्मीनक िामायण के युधका्ड मं पृठ सं्या - 874 के लोक सं्या -

26 मं ललखा है । इन सभी कथनं से पुनट होती है नक जब िाम अयो्या वानपस आये , उस समय वैशाख का
महीना था । जब िाम वैशाख मं आये तो दशहिा औि दीपावली का ्यौहाि िावण नवजय औि िाम के वन से वानपस
आने की ़ुशी मं मनाया जाना तारकिक ूप से गलत है । जबनक स्यता यह है नक रामणी लोग बौध लोगं के
्याहािं को खस्डत किने के ललए ऐसी मनगढ़ं त औि का्पननक कहाननयं की िचना किते हं । महान सराट

अशोक ने हहिसा को ्याग कि अहहिसा की दीषा दशहिे के ददन रहण की थी , उसी ददन से दशहिा पवय नवजय

दशमं के ूप मं मनाया जाने लगा , तथागत बुध ने उपदे श के ूप मं 84 हजाि गाथाएं गायी थी , उन गाथां को

स्यक ूप दे ने के ललए सराट अशोक ने पूिे दे श मं 84 हजाि ्तूप बनवाये थे । कारतिक की अमाव्या की िात

दे श के सम्त 84 हजाि ्तूपं पि एक ही समय पि सभी बौध णभषुं वािा दीपदान नकया था । इसी रकाि बौध
के ्यौहािं को खस्डत किने के ललए बाबा साहेब अ्बेडकि के महापरिननवायण ददवस के ददन मस्जद नगिाकि

शौयय ददवस मनाने लगे हं , बाबा की जयंती ददवस को खस्डत किने के ललए 14 अरैल को सुिषा ददवस के ूप मं
आि्भ कि ददया है । इस रकाि बौधं के ्यौहािं को खस्डत किने के ललए रामणी लोगं की सददयं से गहिी
चाल िही है ।

िामलीला का नाटक खेलकि औि दशहिा पवय के अवसि पि िावण का पुतला फूंककि घृणा का वाताविण उ्पन
नकया जाता है । यदद िाम ल्मण सृश कोई कूि यलि तु्हािी बहन की नाक काटकि उसका अंग भंग कि दे तो

तुम ्या किोगे ? ्या तुम कोमधत नही हंगे ? ्या तुम उस अपिाधी को िाम ल्मण के समान मानकि उसकी

आिती उतािोगे औि उसकी पूजा किोगे ? ्या तुम उस नाक काटने वाले को मयायदा पुुषोतम स्बोमधत किके

उसके रनत रधा किोगे ? ्या तुम अपनी उ्पीमड़त बहन को िाषसणी कहकि उसका नति्काि किोगे ? यदद नही

, तो इस वे ष एवं घृणा भिी मघनौनी िामलीला के समािोह मं उस नववान औि सदाचािी िावण का पुतला फूंकने की

रथा का जोिदाि नविोध किके उसे बंद किवाने के ललए आगे बढ़ो । सम्त भाितीय लोगं के बीच पि्पि रेम ,

सौहार , समता , मैरी औि ब्धुता की भावना नवकलसत किके िारीय एकता एवं अख्डता को औि अमधक सुृढ़
किने मं सहायक बनो । अपने नववेक की आवाज को सुनो ।

िावण नवजय के बाद िाम ने कहा नक हे सीता ! िावण ने नबना शील भंग नकये ुए तु्हं कैसे छोड़ ददया होगा ? सीता ने

उति ददया नक यह स्य है , नक्तु मं ्या कि सकती थी ? मं केवल एक ुबयल नािी ूँ । मेिा शिीि उसके क्जे मं था

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, मंने इ्छा से कोई गलत काम नही नकया। खैि , मेिा ृदय तो तु्हािे साथ था । यही ईवि को मंजूि था । सीता ने
केवल इतना ही कहा । नक्तु उसने जोि दे कि नही कहा नक िावण ने मेिा शील भंग नही नकया था ।

िाम सदा से सीता के चरिर के बािे मं स्दे ह िखता था । उसने सीता को कहा नक वह अपनी पनवरता लसध किने के
ललए अष्न मं कूदकि नफि बाहि ननकल आए । ययनप िाम वािा ननधायरित पिीषण के अनुसाि सीता ने वैसा ही नकया
औि सीता की अष्न पिीषा समा्त होने पि भी सीता की पनवरता के बािे मं स्दे ह की चचाय र्येक के होठं पि थी ।
सीता की अष्न पिीषा के उपिांत िाम उसे अयो्या ले गया औि शासन किने लगा ।

एक ददन िाम के भाई की प्नी कुमकुवावती उसके पास आई औि बोली जयेठ ! सीता को आप ्वयं से अमधक ्याि
किते हं । मेिे साथ चलं औि दे ख लं नक यथाथय मं आपको सीता नकतना ्याि किती है । अब तक सीता उस िावण को

नही भुला पाई है । हाथ के पंखे पि िावण का मचर बनाकि उसे अपनी छाती पि लगाकि , वह नेर ब्द किके आपके
नव्ति पि पड़ी ्यान म्न हो िावण के गौिव पि आनज्दत हो िही है । िाम अपनी साली कु्कुवावली के साथ सीता
के कष मं गया । उसने दे खा नक पंखे पि बने िावण के मचर को छाती पि दबाये ुए सीता सो िही थी । च्रावती की

पु्तक बंगाली िामायण के 199 - 200 पृठं मं यह ललखा है । िावण का मचर बनाने पि सीता िाम वािा िंगे हाथं
पकड़ी गई ।

वा्मीनक िामायण के उतिका्ड 42 वां सगय लोक 18- 21 से नवददत है नक िाम ने अशोक वननका अथायत अंत :पुि
के नवहाि यो्य उपवन मं रवेश नकया औि फूलं से सुशोणभत कुश के आसन पि बैठ गए । काकु््य के वंश मं पैदा
िाजा िामचंर ने सीता को हाथ पकड़ कि पनवर मैिेय नामक शिाब नपलाई जैसे इंर अपनी प्नी शची को नपलाते हं ।
नौकिं ने अनेक रकाि के उतमोतम रकाि के पके ुए मांस व फल भी िामच्र जी के आगे भोजन के ललए िख ददए

। तब नाँच - गाने मं रवीण वै्याएँ अथायत अ्सिाएं , नाग क्याएं , नकनरियां , ूपवती औि गुणवती स्रयां शिाब के
नशे मं धुत होकि नाचने लगं । मन को िमाने वाले िामच्र मन को हिने वाली िमणणयं को हि रकाि से स्तुट िखते
थे ।

10. उतिका्ड

अपने शासन के आि्भ से एक मास बाद एक ददन िाम औि सीता पु्प उयान मं बैठे थे औि रेममयं के ूप मं आन्द

मना िहे थे , तब िाम का सीता के पेट पि ्यान गया जो उभिा ुआ था । तुि्त िाम ने सीता से पूछा नक तु्हािा पेट

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्यं उभिा है ? यह सुनकि िाम अ्यमधक चचिता औि ुःख मं वहाँ से चला गया । उसने सीता को वन मं भेजने का
नवचाि बना ललया । तुि्त िाम ने अपने भाई ल्मण को बुलवाया औि कहा नक वह अगले ददन रातः काल सीता को
वन मं ले जाये औि उसे वहं छोड़ आए । आञानुसाि ूसिे ददन रातःकाल सीता को ल्मण वन मं ले गया औि उसे
वहं छोड़ ददया । वहं ल्मण ने िाम की आलोचना की नक उसने लोगं की नन्दा्मक बातं से बचने के ललए सीता को
महल से नन्कालसत कि ददया । ल्मण के ये कठोि वचन सुनकि सीता को बुत अमधक ुःख ुआ । वह मूरछित
होकि पृ्वी पि नगि पड़ी । दो घड़ी उपिांत होश आने पि सीता ने ल्मण को उति ददया नक िाम की आलोचना नकया

जाना उमचत नही है , ्यंनक वह पाँच मास से गभयवती है औि इसके ललए उसके कमय ही उतिदायी हं । उसने ल्मण
को अपना पेट भी ददखाया । इसललए हम यह अनुमान नही कि सकते हं नक वे सभी स्रयां जो अष्न पि चलती हं वे
सभी पनतरता हं या ईविीय शलि वाली हं । अतः सीता एक साधािण ्री थी । उसमं एक पनतरता ्री के कोई भी
गुण मौजूद नही थे ।

वन मं सीता ने दो पुरो को ज्म ददया । वा्मीनक ने बलपूवयक सीता के पनवर होने की बात िाम से कही , तब भी िाम

ने उस पि नववास नही नकया । जब अंत मं िाम ने सीता को शपथ लेने को कहा , तब सीता ने अ्वीकाि कि ददया
औि सीता को भूमम की खाई मं कूदकि राण गंवाने पड़े ।

िामायण के अनुसाि िाम एक अयो्य पुुष औि सीता एक शील भंग ुई ्री है । इसे लसध किने के ललए अनेक
सामा्य ृटा्तं मं से एक यह है नक िाम ने अपनी गभयवती प्नी सीता को वन मं अकेले छु ड़वा ददया । यह एक

भयानक ननदय यता है । सीता के स्ब्ध मं मेिा कहना है नक वह नैनतक ूप से पनवर नही थी , ्यंनक उसकी िावण
के साथ अवैय घननठता थी । यदद िाम के कृ्य को ्याय संगत ्वीकाि नकया जाता है तो सभी के वािा यह भी
्वीकाि नकया जाना चानहए नक सीता के गभय का कािण िावण था । यदद रनतवाद नकया जाता है नक सीता ने कोई

अपिाध नही नकया औि उसने िाम के मा्यम से गभय धािण नकया , तब यह ्वीकाि नकया जाना चानहए नक ननदोष
सीता को गभायव्था मं वन को भेजने का िाम का कृ्य नीचतापूणय औि अमानवीय था । वा्मीनक िामायण के ग्भीि
अ्ययन से यह ्पट है नक सीता का गभय िाम से नही था ।

वा्मीनक िामायण के उतिका्ड के सगय 74 से सगय 76 तक श्बूक ऋनष की कथा को नव्ताि पूवयक ददया गया है ।

ऋनष श्बूक नपछड़े वगय के एक महान स्त थे , वे नपछड़े वगय के लोगं को ञान एवं लशषा दे ते थे , लेनकन िामिाजय मं
भाितीय मूलवासी बुजनं को लशषा एवं ञान रा्त किने का अमधकाि नही था । इसललए भाितीय मूल के ऋनष
श्बूक का िाम ने नृसंश ूप से वध कि ददया । इस रकाि नवदे शी आयय सं्कृनत के िाषसं ने भाितीय मूलवालसयं को
ञानहीन एवं लशषाहीन कि ददया । नवदे शी िाषसं ने भाितीय मूलवासी बुजनं के बीच इस कायय को धमय कायय के ूप
मं रचारित नकया

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िामायण कालीन आहाि यव्था का नव्तृत मचरण वा्मीनक िामायण मं नकया गया है । िामायण काल मं कृनष के

अभाव मं िाजा - महािाजा , रजा , ऋनष - महरषि सभी लोग मांस का भषण किते थे । वा्मीनक िामायण से तो यह

भी रकट होता है नक ्वयं िाम औि सीता जज्हं रामणवादी लोग भगवान औि जगत जननी कहते हं , मांस खाते थे
औि मांस के साथ शिाब भी पीते थे । यह ्वाभानवक भी है ्यंनक िाम एक षनरय िाजा थे । ऐसे आहाि मं उनको
कोई दोष नही था । लेनकन वतयमान मं रामणवादी लोग उनको षनरय न मान कि रृंग ऋनष के कािण रामण स्तान
मानते हं औि रचारित किते हं नक िाम शिाब औि मांस का सेवन नही किते थे । पि्तु िामायण काल मं आयय लोग
पशु मांस औि शिाब का सेवन किते थे औि पशुं की ह्यां भी किते थे । उस काल मं अमीि िाजा महािाजा औि

पुिोनहत लोग गाय औि बैल का मांस खाते थे , जबनक गिीब लोग भेड़ बकिी का मांस खाते थे । िाम के माता नपता
कौश्या औि दशिथ ने तो अपने हाथ से पशु घोड़े को काट कि बलल पि चढ़ाया था । जजसका स्पूणय रसंग वा्मीनक
िामायण मं नव्ताि पूवयक ददया गया है ।

दद्ली से 15 अग्त 1954 मं रकालशत पनरका कािवां मं चिि्स इन िामायण शीषयक से छपा डॉ o एस. एन. यास
का लेख ।

1. नकथईसुिा - उबाली गई रनकया से बनाई गई मददिा को यह नाम ददया गया है ।

2. मेिय - मसालं से बनाई गई । इसे सुिा (मददिा) भी कहते हं ।

3. म्या - नशीली मददिा ।

4. म्धा - यह साधािण मादक पदाथय मं नशे की मारा कम किके बनाई गई मददिा ।

5. सुिाबनाम - यह नकथई सुिा से णभन है । नकथई सुिा कृनरम तिीकं से बनाई जाती है । केवल पुिाणं मं इसका
अमधक वणयन आता है ।

6. ससिधू - यह गुड़ के सीिे के अवशेष से बनाई जाती है ।

7. वुणी - उन ददनं रयोग मं आने वाली मददिां मं यह सबसे अमधक नशे वाली मददिा थी । इसे पीते ही यलि के
पैि लड़खडा जाते थे ।

वा्मीनक िामायण के कथानुसाि ये था िाम का असली चेहिा जो हमेशा मांस शिाब औि अ्यासी मं डू बा िहता था ।
जनता के सुख ुःख से उसका कोई ता्लुक नही था । यदद रामणवाद को कोई चोट पुंचती तो िामच्र वािा उसका

ननवािण अव्य नकया जाता था । लेनकन 95 रनतशत भाितीयं पि हो िहे अ्याचाि से िाम को कोई भी लेना दे ना नही
था । ्यंनक िाम को अ्यासी के सभी साधन रामण ही उपल्ध किाते थे । रामण ही उनके मंरी होते थे । रामणं

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के पाख्ड ने िाम के ुिरिर को सवोपरि चरिर बना ददया औि उस चरिर के आधाि पि उनकी ुकानदािी आज भी
चल िही है । लोग अ्धनववास अथायत रामणं के पाख्ड को स्य मान कि आज भी उसकी पूजा कि िहे हं । ्या
ऐसे अ्यासी औि भाितीय मूल के लोगं की ह्या किने वाले हैवान की पूजा किनी चानहए । जजसकी हैवाननयत के
कािण महरषि श्बूक की ह्या ुई थी । नािी की नाक काट कि नािी की इजजत को ताि ताि नकया । ननदोषं की ह्या
किके पाप कमय नकया । सीता को दे श ननकाला दे कि नािी के साथ अ्याय नकया औि िावण जैसे स्य औि चरिरवान

भाितीय िाजा की ह्या किके पापकमय नकया । िाम की रामणवादी नीनत के कािण 95 रनतशत भाितीय अलशणषत

औि धनहीन िहे औि रामणवादी अ्याचािं से आहत होते िहे। इसललए िामिाजय 95 रनतशत भाितीयं के ललए

अशुभ था । िामिाजय लसफय 5 रनतशत रामणवादी लोगं के ललए शुभ था । आज भी वे उसी िामिाजय को लाना चाहते

हं जजससे लसफय 5 रनतशत लोग ननक्मे बन कि सुखी िहे औि 95 रनतशत भाितीय लोगं का हि ्ति पि शोषण होता

िहे । ्या ऐसा मनु्य पूजनीय हो सकता है । जो मार 5 रनतशत लोगं के स्मान के ललए 95 रनतशत लोगं को ुःख

के गतय मं डालता है । िामिाजय मं रामणं पि कोई अ्याचाि नही हो िहे थे , जो भी अ्याचाि हो िहे थे , वे 95

रनतशत भाितीय मूल के लोगं पि हो िहे थे , िाम 5 रनतशत रामणं को सवयरेठ ददखाने के ललए 95 रनतशत

भाितीयं को नन्न रकाि से अपमाननत किते हं -

सुनु ग्धवय कहाँ मं तोही । मोनह न सोहाइ रमकुल रोही ।।

िामचरित मानस के पृठ सं्या 571 पि िाम ने कहा नक हे ग्धवय ! सुनो , मं तु्हं कहता ूँ , रामण कुल से रोह
किने वाला मुझे नही सुहाता । िाम वािा समाज मं फूट डालने वाले ऐसे उपदे श भी भाितीय समाज को शोभा नही

दे ते है । िाम को केवल रामण कुल से रोह किने वाले ही नही सुहाते हं , शेष भाितीय समाज से रोह किने वालं से

िाम को कोई लेना दे ना नही है । इससे लसध होता है नक िाम केवल रामणं के शुभ चचितक थे , शेष भाितीय समाज

के ु्मन थे । वगय भेद फैलाने वाला ऐसा मनु्य भगवान कैसे हो सकता है । भगवान तो वह होता है , जो हि मनु्य
को समान ृनट से दे खता है । हि मनु्य को सुख शाष्त के ललए मागय दशयन किता है । िाम औि तुलसीदास के ऐसे
उपदे शं के कािण भाितीय मूलवासी समाज पि हजािं वषं से अ्याचाि होते िहे । ्यंनक तथाकलथत ऐसे धमय
रंथं एवं भगवानं ने भाितीय मूल समाज को ढोल औि पशुं के समतु्य समझ कि उनका अनादि एवं अपमान

ही नकया है , जजससे भाितीय मूलवासी समाज की एकता सददयं से मछन- णभन िही है ।

िामायण केवल एक मनगढ़ं त नक्सा है औि ईवि की कहानी नही है जैसा नक सामा्य लोग मानते हं । यह एक त्य है
जजसे अनेक लोगं ने ्वीकाि नकया है । गांधी ने ्वयं जोि दे कि कहा नक मेिा िाम िामायण का िाम नही है ।

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माननीय कललयुग क्ब ने घोनषत नकया है नक िामायण ईविीय कथा नही है । नकसी भी पुिाण का ऐनतहालसक आधाि
नही है औि न ही वे लोगं को ्याय नैनतकता की लशषा दे ने मं सषम हं औि वे केवल का्पननक हं ।

आचिण औि चरिर की रेठता के बािे मं जो नन्कषय ननकाले गए हं , वे वा्मीनक िामायण तथा रामणं वािा नकये गए
िामायण के अनुवादं पि पूणयूप से आधारित हं । इससे हमािे पाठक अनुभव किंगे नक उ्हंने अब तक िामायण के

उन पारं के बािे मं जो िाय बनाई ुई थी , वह पूणयतः गलत है ।

संषेप मं इसे ्पट किते ुए कहना है नक िामायण के वे लोग जो ्पटवादी औि ्यायसंगत नवचािं वाले थे , उनका
दिजा घटाकि उ्हं अयो्य बताया गया । ूसिी ओि बेईमान औि नववासघाती बदमाशं का दजाय बढ़ाकि उ्हं

अ्यामधक ईमानदाि , दै वी औि पूजयनीय त्वं के ूप मं दशायया गया । इस पु्तक का यही उदे ्य है नक दे श की


एकता औि अख्डता के ललए ऐसे रामक नवचािं को समा्त नकया जाए औि उनमं नववास िखने के मस्त्क को
रभानवत नकया जाए नक एक बहूनपया नकसी रकाि से भी सजजन पुुष नही कहा जा सकता ।

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On 22/04/2018
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