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हरिहि काका

पाठ का साि

कथाकार मिमथलेश्वर ने हररहर काका कहानी के बहाने ग्रािीण पाररवाररक जीवन िें ही नहीं, हिारी आस्था के प्रतीक धिमस्थानों और
धिमध्वजा-धारकों िें जो स्वाथम-लोलुपता घर करती जा रही है, उसे उजागर मकया है। हररहर काका एक वृद्ध और मनिःसंतान व्यमि हैं, वैसे
उनका भरा-पूरा पररवार है। गााँव के लोग कुिागम पर न चलें। यह सीख देने के मलए एक ठाकुरबारी भी है लेमकन हररहर काका की मवडंबना
देमखए मक ये दोनों उनके मलए काल और मवकराल बन जाते हैं। न तो पररवार को हररहर काका की मिक्र है, न िठाधीश को। दोनों उन्हें सख ु
नहीं दख ु देने िें, उनका महत नहीं, अमहत करने िें ही िगन रहते हैं। दोनों का लक्ष्य एक ही है, हररहर काका की ज़िीन हमथयाना। इसके मलए
उन्हें चाहे हररहर काका के साथ छल, बल, कल का प्रयोग भी क्यों न करना पड़े। पाररवाररक संबंधों िें भ्रातृभाव को बेदखल कर पााँव पसारती
स्वाथम-मलप्सा और धिम की आड़ िें िलने -िूलने का अवसर पा रही महसावृमि को बेनकाब करती यह कहानी आज के ग्रािीण ही नहीं, शहरी
जीवन के यथाथम मचत्र को भी उजागर करती है।

पाठ का सार

मिमथलेश्वर द्वारा मलखी कहानी ‘हररहर काका’ ग्रािीण पररवेश िें रहने वाले एक वृद्ध व्यमि की कहानी है, मजसने अपना संपूणम जीवन
सादगी िें व्यतीत मकया है, पर जीवन के अंमति पड़ाव पर वह बेबसी और लाचारी का मशकार हो गया है। उसके सगे-संबंधी सब स्वाथी
होकर अपनी स्वाथम-मसमद्ध िें लगे हुए हैं।

लेखक हररहर काका की मज़दगी से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है। वह उनका सम्िान करता है। वह उनके व्यवहार एवं मवचारों के कारण
उनिें श्रद्धा रखता है। हररहर काका उसे बहुत दल ु ार मकया करते थे। वह उसे कंधे पर बैठाकर घुिाया करते थे। उसे अत्यमधक प्यार करते
थे। बड़ा होने पर वह उनके दोस्त भी बन गए। परंतु अब हररहर काका जीवन के अंमति पड़ाव से गुशर रहे हैं। उन्होंने बातचीत बंद कर दी
है। वे शांत बैठे रहते हैं। लेखक के नुसार उनके मपछले जीवन को जानना अत्यंत आवश्यक है। वे लेखक के गााँव के ही रहने वाले हैं।
लेखक का गााँव कस्बाई शहर आरा से चालीस मकलोिीटर की दरू ी पर है। हसन बाशार बस स्टैंड के पास है। गााँव की कुल आबादी ढाई-
तीन हज़ार है। गााँव िें ठाकुर जी का मवशाल िंमदर है। इसकी स्थापना के मवषय िें स्पष्ट मववरण नहीं मिलता। यह िंमदर गााँव वालों के
मलए बहुत िहत्वपणू म है। उनका िानना है मक यहााँ िााँगी गई हर िन्नत शरूर परू ी होती है। ठाकुरबारी के पास कािी ज़िीन है। पहले
हररहर काका मनयमित रूप से ठाकुरबारी जाते थे, परंतु पररमस्थमतवश अब उन्होंने यहााँ आना बंद कर मदया।

हररहर काका के चार भाई हैं। सभी मववामहत हैं। उनके बच्चे भी बड़े हैं। हररहर काका मनिःसंतान हैं। वे अपने भाइयों के पररवार के साथ ही
रहते हैं। हररहर काका के पास कुल साठ बीघे खेत हैं। प्रत्येक भाई के महस्से 15 बीघे खेत हैं। पररवार के लोग खेती-बाड़ी पर ही मनभमर
हैं। भाइयों ने अपनी पमत्नयों को हररहर काका की अच्छी प्रकार सेवा करने के मलए कहा है। कुछ सिय तक तो वे भली-भााँमत उनकी
सेवा करती रहीं, परंतु बाद िें न कर सकीं। एक सिय ऐसा आया जब घर िें कोई उन्हें पानी देने वाला भी नहीं था। बचा हअुाा भोजन
उनकी थाली िें परासेा जाने लगा। उस मदन उनकी सहनशमि सिाप्त हो गई, जब हररहर काका के भतीजे का मित्र शहर से गााँव आया।
उसके मलए तरह-तरह के स्वामदष्ट व्यंजन बनाए गए। काका ने सोचा मक उन्हें भी स्वामदष्ट व्यंजन खाने को मिलेंगे, परतुं ऐसा नहीं हअुाा।
उनको वही रूखा-सूखा भोजन परोसा गया। हररहर काका आग बबूला हो गए। उन्होंने थाली उठाकर आाँगन िें िें क दी आरै बहुओ ं को
खरी-खोटी सुनाने लगे। ठाकुरबारी के पुजारी उस सिय िंमदर के कायम के मलए दालान िें ही उपमस्थत थे। उन्होंने िंमदर पहुचाँ कर इस घटना
की सूचना िहतं को दी। िहतं ने इसे शुभ संकेत सिझा और सारे लोग हररहर काका के घर की तरि मनकल पड़े। िहतं काका को
सिझाकर ठावि ु रबारी ले आए। उन्होंने संसार की मनदा शुरू कर दी और दमु नया को स्वाथी कहने लगे तथा ईश्वर की िमहिा का गुणगान
करने लगे। िहतं ने हररहर काका को सिझाया मक अपनी ज़िीन िमं दर के नाि मलख दो मजससे तुम्हें बैकुठ की प्रामप्त होगी तथा लोग तुम्हें
हिेशा याद करें गे। हररहर काका उनकी बातें ध्यान से सुनते रहे। वे दमु वधा िें पड़ गए। अब उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।
िहतं ने ठाकुरबारी िें ही उनके रहने तथा खाने-पीने की उमचत व्यवस्था करवा दी। जैसे ही इस घटना की सचू ना उनके भाइयों को लगी,
वैसे ही वे उन्हें िनाने के मलए मिर ठाकुरबारी पहुचाँ े। पर वे उन्हें घर वापस लाने िें सिल न हो सके । पर अगले ही मदन वे ठाकुरबारी
पहुचाँ े और काका के पााँव पकड़कर रोने लगे। उनसे अपने दव्र्ु यवहार के मलए िािीा़ िााँगने लगे। हररहर काका का मदल पसीज गया। वे घर
वापस आ गए। अब काका की बहुत सेवा होने लगी। उन्हें मजस मकसी वस्तु की इच्छा होती तो आवाज़ लगा देते और वस्तु उन्हें तुरंत
मिल जाती। गााँव िें काका की चचाम होने लगी। घर के सदस्य ज़िीन अपने नाि मलखवाने का प्रयत्न करने लगे, परंतु हररहर काका के
सिक्ष अनेक ऐसे उदाहरण थे मजन्होंने जीते-जी अपनी ज़िीन अपने ररश्तेदारों के नाि मलख दी थी और बाद िें पछताते रहे। िहतं भी
िौका देखते ही उनके पास आ जाते आरै उन्हें सिझाते रहते। पर काका के कान पर जाँू न रें गती। कुछ सिय बाद िहतं जी की मचताएाँ
बढ़ने लगीं। वे इस कायम का उपाय सोचने लगे। एक मदन योजना बनाकर िहतं ने अपने आदमियों को भाला, गंड़ासा और बंदक ू से लैस
करके काका का अपहरण करवा मदया। हररहर काका के भाइयों एवं गााँव के लोगों को जब खबर लगी, तब वे ठाकुरबारी जा पहुचाँ े।
उन्होंने िंमदर का दरवाज़ा खल ु वाने का प्रयत्न मकया, पर वे असिल रहे। तब उन्होंने पमु लस को बल ु ा मलया। िंमदर के अदं र िहतं एवं
उसके आदमियों ने काका से ज़बरदस्ती कुछ सादे कागज़ों पर अाँगठू े के मनशान ले मलए। काका िहतं के इस रूप को देखकर हैरान हो
गए। पुमलस ने बहुत िुमश्कल से िंमदर का दरवाज़ा खुलवाया, परंतु उन्हें अंदर कोई हलचल मदखाई नहीं दी। तभी एक किरे से धक्का
िारने की आवाज़ आई। पमु लस ने ताला तोड़कर देखा तो काका रमस्सयों से बाँधे मिले। उनके िाँुह िें कपड़ा ठूाँ सा हुआ था। उन्हें बंधन से
िुि करवाकर उनके भाई उन्हें घर ले गए। अब उनका बहुत ध्यान रखा जाने लगा। दो-तीन लोग रात िें उन्हें घेर कर सोते थे। जब वे गााँव
िें जाते तब भी हमथयारों से लैस दो-तीन व्यमि उनके साथ जाते थे। उन पर मिर से दबाव डाला जाने लगा मक वे अपनी ज़िीन अपने
भाइयों के नाि कर दें। जब एक मदन उनकी सहनशमि ने जवाब दे मदया तब उन्होंने भी भयानक रूप धारण कर मलया। उन्होंने काका को
धिकाते हुए कहा मक सीधे तरीके से तिु हिारे नाि शिीन कर दो, नहीं तो िार कर यहीं घर िें ही गाड़ देंगे और गााँव वालों को पता भी
नहीं चलेगा। हररहर काका ने जब साि इनकार कर मदया तो उनके भाइयों ने उन्हें िारना शुरू कर मदया। हररहर काका अपनी रक्षा के मलए
मचल्लाने लगे। भाइयों ने उनके िुाँह िें कपड़ा ठूाँ स मदया। उनके मचल्लाने की आवाज़ सुनकर गााँव वाले इकट्ठा होने लगे। िहतं तक भी
खबर पहुचाँ गई। वह पुमलस लेकर वहााँ आ पहुचाँ ा। पुमलस ने काका को बंधनिुि करवाकर उनका बयान मलया। काका ने बताया मक िेरे
भाइयों ने ज़बरदस्ती इन कागज़ों पर िेरे अाँगठू े के मनशान मलए हैं। उनकी दशा देखकर िालूि हो रहा था मक उनकी मपटाई हुई है।
अब हररहर काका ने पुमलस से सुरक्षा की िााँग की। अब वे घर से अलग रह रहे हैं। उन्होंने अपनी सेवा के मलए एक नौकर रख मलया।
दो-चार पमु लसकिी उन्हें सरु क्षा दे रहे हैं और उनके पैसे पर िौज कर रहे हैं। एक नेताजी ने उनके सिक्ष प्रस्ताव रखा मक वे ज़िीन पर
‘उच्च मवद्यालय’ खोल दें, पर काका ने इनकार कर मदया। गााँव िें अिवाहों का बाज़ार गिम हो रहा है। लोग सोचते हैं मक काका की
िृत्यु के बाद िहतं साधुओ ं एवं संतों को बुलाकर ज़िीन पर कब्जा कर लेगा। अब काका गूाँगेपन का मशकार हो गए हैं। वे ररि आाँखों से
आकाश की ओर ताकते रहते हैं।

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