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परी भागते भागते जाकर एक अंधेरे गली में पहुंि जाती है रास्ते में िह
ददनु के साथ उसकी मल
ु ाकात होती है ददनु पलु लस के प्रहार से घायल था
उसको लेकर आशाददप मेस छोड था है सहायता करने के कारि ददनु भी
परी को अपने आशादीप रमेस में रखना िाहता है पद्मापानी को परी पर
बबनत हुई बात को बताता है पद्मापानी ने ददनु और परी की शादी करिा
दे ए।
दरु ं त अभिलास
दे शभर में असंतोष र्ैल रहा था दे शिासी धीरज खो रहे थे। प्रथम विश्ि
युद्ध के बाद भारत को स्ितंत्रता लमलेगी उसकी उम्मीद अकास का कुसुम
में तब्दील हो गई थी। गांधी जी के नेतत्ृ ि में स्िदे शी आंदोलन और
असहयोग आंदोलन आरं भ हुआ था और लोगों को एक प्रज्िललत दीप की
तरह आलोक प्रदान करता था। भारतीयों के मन में अंग्रेजी शासन के प्रनत
वितष्ृ िा हो गई थी। पराधीनता क्या है उसे िह समझ गए थे। जनता तो
फर्र िोरा िोरी हत्याकांि के बाद सन 1922 में गांधी जी ने असहयोग
आंदोलन स्थचगत रखने की शपथ ली थी । साइमन कमीशन के समझौते
में भारत के स्िराज्य पाने का सपना था कोलकाता कांग्रस
े अचधिेशन में
सन 1920 में गांधीजी की उपजस्थत ना थी फक भारत को स्िाधीन ने
स्ितंत्रता संविधान स्ितंत्रता पि
ू व स्िराज्य अथिा संपि
ू व स्ितंत्रता के ललए
एक बडे पैमाने पर सरकार के लाहौर में भारतीय राष्रीय कराया गया
कराया गया भारतीय राष्रीय कांग्रेस ने 30 जनिरी को भारत के स्ितंत्रता
ददिस के रूप में गांधी जी ने आंदोलन का शुभारं भ फकया समुद्र के खाएंगे
भारतीय लोग समुद्र के पानी से नमक आएंगे िह कर नहीं दें गे दे श भर
में मािव 12 तारीख से अप्रैल 6 तारीख 1930 को लिि सत्याग्रह आरं भ
इस सत्याग्रह में छोटे से बडे सभी उम्र के और विलभन्न जानत धमव उम्र
के विलभन्नता के बािजूद सभी भारतीय योग ददएसत्याग्रह में को समाप्त
हो के नाम से नालमत फकया गया समुद्र जजलों में लिि सत्याग्रह के ललए
व्यापक व्यिस्था की गई आंदोलन आंदोलन स्ितंत्रता संग्राम को एक नया
मोड ददया था। नमक बनाने के ललए आ गया है इिड
ू ी से ही नमक बनाना
आरं भ फकया गया पिन सत्याग्रह में पद्मपाणि और उनके नंद िािा और
जजसका नाम है नंदफकशोर और उनके कुछ और पानी के कुछ साचथयों ने
सत्याग्रह के ललए लिि सत्याग्रह के ललए गए और िहां से लिि मार के
कुछ पोनतया लादकर गांि लौट रहे थे फक पलु लस को खबर लग गई और
पुललस ने जाकर उनसे लिि को लाने के साथ-साथ उन पर प्रहार फकया
जजस जजससे लाल िािा पर मार पडने से िहिािा । िूडी से लिि मार
के पद्मापानी और कुछ साचथयों के साथ उनके िािा नंदफकशोर लौट रहे
थे नमो के पि
ू व पत
ु लीघर के जंगल में उन को पलु लस ने पकड ललया है
आते टाइम में गाना गाते थे जानतयों कबीर दास की रिी हुई पंजक्त गया
सब कुछ खत्म हो गया भाई यह नीनत शासन िलेगा नहीं यह लिि
सागर भरा विधाता का ददया सारा उसे मारकर खाने का हक हमारा नहीं
हमारा नहीं इस पंजक्त से अपना अपना तो की भाग दे श में जो दे श के
नागररकों की अपने दे श पर जो अचधकार है िह ददखता है इसमें अपना
हक है िह जताते हैं। पलु लस के हाथ से पकड जाने के नाते नंद िािा पर
ज्यादा वपटाई हुई िह बस को होने के नाते उनकी तबीयत बबगड जाता है
और फर्र घर आने के बाद उनका मत्ृ यु हो जाती है मत्ृ यु के समय िह
कहते हैं अंनतम शब्द िद्
ृ धािस्था को ददखाया गया है जजसमें एक नंदफकशोर
के जररए एक ियस्क व्यजक्त की मानलसकता को व्यक्त करते हैं लेखक
ि उनके अंनतम सप्ताह पद्मापानी की ओर तेरी शादी दे ख नहीं पाया इधर
स्िराज्य भी नहीं आया इस प्रकार से उनकी जस्थनत उनकी जो आशा थी
ननराशा में बदल जाती है अपि
ू ाांक लमलती है िहां से पलु लस ने जब जेल
ले जाते हैं पद्मापानी को और उनके साचथयों को तब प्रशासन व्यिस्था
का ििवन हुआ है उपन्यास कैसे प्रशासन सरकारी कायावलय में व्यिस्थाएं
जेल में कैसे खाना ददल्ली के मॉल जैसा है और िहां का जस्थनत रहने के
ललए लायक नहीं है मच्छरों का है और अत्यािार पर सरकारी कायावलय
जो जेल अंदर दलदल अंधेरी और गली जैसे जगह थी जहां सूयव की रोशनी
नहीं थी एक और लशकार बदबू बबखर हुई थी दटकारी िारों ओर जजतनी
मजक्खयां थी उनमें भी मच्छर और अन्य णखलाडी 4 और दब
ु ला लग रहा
था और नानी को लगा जैसे उनके सांस रुक जाएगी सालों से यहां की
गंदगी मानो उिाई नहीं गई थी अंदर जगह-जगह कूडे के ढे र से यह सोि
रहे थे फक हमारे तरर् से भी अचधक सार्-सुथरे होते हैं नहाने की जगह
मानि नरक कंु ि था शौिालय के बाद तो सोिना है िीक है नहीं सोिना
है िीक है हर बार िहां से लौटते िक्त िरना पानी को लगता था मानो
िह कर दें गे क्या अच्छे हो जाएंगे रात की बदहाली तो इससे भी अचधक
बदतर थी मच्छरों के मारे नींद नहीं आती और आंखें लग जाती थी तो
खटमल काटते थे खाने के नाम पर भीगे बदबद
ू ार िािल का भात और
उस पर हल्दी का पानी जैसे दाल राजनीनतक बंदी और अपराचधयों में कोई
पािकों नहीं था सही एक जगह झूि ददए जाते थे सब एक जगह पूछ ददए
जाते थे खाने की िीज है या बबल्ली का मॉल अत्यािार णखला दे ता था
लिि सत्याग्रह के बाद प्रतापगढ़ गई थी लिि सत्याग्रह के बाद सरकार
और सत्याग्रह के बीि तथा बढ़ गई थी सत्य गलमवयों को चगरफ्तार कर
जेल ले गए लेते िक्त रास्ते में जल सत्याग्रह ननशा के कारि पानी
मांगती है तो पलु लस िाले ने पैसा र्ेंकते हैं ऊपर जजस पर गांि है उसी
के ऊपर होते हैं इतने बेरहमी से मारने के बाद पानी तक नहीं दे ते हैं तभी
भी सत्याग्रह में अदहंसा मागव पर ही रहते हैं पुललस की ननमवम प्रहार के
मैरी एक कंु िारी लडकी थी। बिपन से ही उसकी वपता माता का मूनतव
हो गई थी अच्छा स्िास््य िह दे श या राज्य गढ़ जात से आई है उसके
दादा ईसाई बन गए िह अपने दादा की इच्छा से आिम में रहकर पढ़ाई
करने के ललए आया है उसका इच्छा है फक िह के पढ़ाई खत्म करने के
बाद खुद बच्िों को पडेगी।
ददिाकर कटक से गांि िले जाते हैं िहां जाने के बाद अपने पर बीती
हुई बात की याद उनको ज्यादा आती है , बिपन की शरारत उनके स्कूल
के ददन बिपन के छोटे -छोटे घटनाओं को याद करते हुए खब
ू रोते हैं।
जंगल में िले जाते बीि जंगल के बीि कुछ पलु लसिालों ने मस्ती कर
रहे थे िहां पर उनको भूख लगने से खाना मांगते ददिाकर ने पैसा दे कर
खाना खाते है और पुललस िालों के मौज में शालमल हुए पुललस िाले नशे
में मस्त होने के नाते जब सो जाते हैं तब ददिाकर ने उनके बंदक
ू िरु ा
कर िहां से भाग जाता है जंगल में जाते समय एक अंधी बदु ढ़या धोबा
नमा से उसका पररिय होता है उसके घर में एक ददन रहता है फर्र अगले
ददन सुबह िहां से िह अपने राहों में िले जाते हैं जंगल में समस्याओं को
झेलना िहां जीि जंतओ
ु ं के साथ रात गज
ु ारना उसमें मनष्ु य की
मानलसकता तथा उसमें भाई को यहां ददखाए हैं। स्िराज्य के ललए ददबाकर
ने दहंसात्मक पथ को अपनाए हैं । उपन्यासकार ने यहां प्रकृनत और मानि
की तादात्म्य ता को ददखाएं हैं। प्रकृनतक सौंदयव का ििवन है ।
ददिाकर अपने राहों में िलते िलते कुछ कामरे ि सेना से मुलाकात होता
है उन्होंने ददिाकर को लेकर अपने सरदार से लमलाते हैं। लोगों ने अदहंसा
आंदोलन से त्रस्त होकर कोलकाता िले गए थे और िहीं पर मजु क्त संग्राम
में योग्य ददए और उनका जीिन जंगल में बबतता है एक संत्रास्िादी की
तरह उनका जीिन शैली होता है जंगल में रहकर िह अपना संग्राम िलाते
हैं िहीं से रास्ता ननकल कर िह अपना लक्ष्य स्थल में पहुंिने की कोलशश
करते हैं उनका जीिन बहुत ददव नाक होता है महीने महीने तक जंगल मैं
रहते हैं जंगल के एक सीहोरा पेड को पेड के नीिे एक बस अष्टमूनतव
रखकर उसमें लसंदरू का लेप लगाए थे उसी को िह मंत्रों के द्िारा पूजा
करते हैं अपने मणु खया को िह गरु
ु दे ि बल
ु ाते हैं कामरे ि के जो गरु
ु दे ि थे
उनका नाम था सरु ं जंदास ि काला तो पढ़ने कोलकाता गए थे िहां पर
पढ़ाई छोडकर कम्युननस्ट पाटी में योग ददए बार-बार पुललस के धरपकड
हे तु कोलकाता छोडकर कुछ ददन हुए हुए यहां िहां घूम रहे हैं उसी बीि
नौजिान को इकट्िा करके अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध लडाई करने के ललए
प्रेररत फकया करते हैं और उनको यद्
ु ध के विविध सहे ली लसखाते हैं प्रलशक्षि
दे ने के ललए िह ब्राह्मिी नदी के फकनारे एक लशविर खुले थे वपछले साल
बाढ़ के कारि नष्ट हो जाता है । जंगली जीिन बबताते हैं जंगल से लशकार
करके खाते हैं और पेड के ऊपर कुदटया बनाकर रहते हैं। ददिाकर जंगल
में रहते समान दे िी नामक लडकी से मल
ु ाकात होती है जोफक कामरे ि के
पोशाक पहनी थी उसकी भाई कोलकाता में कम रे ट पाटी में ज्िाइन फकया
है वपछले बार जब घर आया था तो अपनी बहन को लेने की बात कही
थी पर बहुत ददनों तक िह ना आने से उनके घर पर पुललस की हमला
के कारि वपता माता के साथ िह जंगल में भाग जाते हैं और जंगल में
ही िह अकेला पड जाती है और उसके वपता उससे अलग हो जाते हैं
ददिाकर उसको साथ में रखता रहने से साथ साथ रहने से ददिाकर और
दे िी में प्यार उमडता है फर्र ददिाकर ने एक कामरे ि दोस्तों के घर लेकर
दे िी को रखता है रखती है िहां पर भी दे िी सुरक्षक्षत नहीं रहती उस पर
िह कामरे ि के एक ििेरा भाई ने उससे जबरदस्ती करता है िहां से
ददिाकर दे िी को लेकर िले आते है । ददिाकर और गरु
ु दे ि और उनके
सहयोगी ने लमलकर एक योजना बनाते हैं लशिराबत्र के ददन मंददर में
रात को पुललस स्टे शन पर हमला करके िहां से बंदक
ू और तोप िुराने की
योजना बनाए महादे ि उिने के समय पलु लस स्टे शन के मख्
ु य िहां पर
नहीं रहने का सि
ू ना उनके पास था परं तु उस ददन पलु लस के मख्
ु य
कमविारी ने अपने पररिार को लेकर मंददर आए थे और कुछ काम से
स्टे शन में रुक गए परं तु यह खबर ददिाकर को नहीं था महादे ि के उिने
के समय जब िह पलु लस स्टे शन पर हमला फकए तो बंधु को तो लाते
समय पकड जाते हैं पलु लस और ददिाकर और गरु
ु दे ि आमने सामने से
लडते हैं गुरुदे ि पर गोली लगता है गुरुदे ि ने ददिाकर को िहां से भाग
जाने की ननदे श दे ते हैं दोनों कुछ दे र तक जाते फर्र पुललस ने जब ज्यादा
हमला करते हैं तो ददिाकर अननच्छा से िहां से गरु
ु दे ि को छोडकर दरू
िला जाता है । ददिाकर दे िी को लेकर फर्र कटक पद में पानी के पास
आते हैं बहुत ददनों के बाद दोनों लमत्रों में लमलन एक अद्भत
ु पररदृश्य
ददखता है ।
विषाद और हषष
पद्मापाणि मां को दे खने गांि जाते हैं मा की अंनतम अिस्था में जाकर
मां के पास बैिते हैं थोडी दे र
मां की इशारे पर बात करते फर्र अंनतम सांस छोड दती है । दरू
होकर िॉक्टर होकर अपनी मां की इलाज अच्छे से नहीं कर पाए और
उसकी रोग को अच्छे से पहिान नही पाने के कारि िह अपने आप को
कोसते हैं। पद्मापाणि सोि रहे हैं पहले नंद िािा लिि सत्याग्रह में
मत्ृ यु फर्र अपनी बच्िी जो जन्म होने से पहले पलु लस की मार से
सदहद हो गया अंत में मां की मत्ृ यु एक के बाद एक दख
ु उनके जीिन
में लगातार बनी रहती है।
संग्राम में शहीद हुए ओडिशा के कुछ प्रमुख नेताओं के बारे में ििवन
करते हुए उपन्यासकार सभ
ु ाष िंद्र बोस के बारे में कहते हैं फक िह कैसे
संग्राम में जेल गए थे और फर्र लौटने के बाद कभी उडीसा नहीं आए
कहां गए उसका कोई पता ही नहीं लमला गांधीजी और सुभाष िंद्र बोस के
नीनत एक दस
ू रे से बबल्कुल भी था दोनों फीसदी दे श भक्त थे और दे श
की आजादी के ललए अपने खन
ू की अंनतम बंद
ू बंद
ू अपवि करने के ललए
कसम खाई खाए थे उनकी जीिन ियाव भी िैसे ही थी लेफकन उनके मागव
अलग था गांधीजी का मागव था अदहंसा और सत्याग्रह िाहे जजतनी बाधा
आए पर सुभाष बोस की नीनत थी सशस्त्र विप्लि उनके बानी थी ।
स्िाधीनता तम्
ु हारा जन्म लसद्ध अचधकार है आजादी कोई दे ता नहीं उसे
छीन ना पढ़ता है विनती लमनती करके अधीनता नहीं लमलती संघषव करके
आना पडता है ।और दररद्रता के बीि अंग्रेजों के विरोध संग्रामकरने के
ललए मैं तुम्हें आदे श दे ता हूं जो सत्ता अलािा में तुम्हें और कुछ दे नहीं
पाऊंगा लेफकन मैं िादा करता हूं अंत में हम विजई होंगे आजादी प्राप्त
करें गे।
जनता उत्तेजजत होकर दहंसात्मक विद्रोह करने लगे 1942 अगस्त महीना
दहना भर सारा दे श जलने लगा कहीं थाने जला ददए हैं जनता तो कहीं
टे लीग्रार् दारुिा उखाड ददए हैं शराब की दक
ु ान जला ददए तो कहीं पलु लस
के र्ौजजयों के साथ ही झपट ललए हैं। 1943-1944 मैं मामला ज्यादा
बबगड गया था द्वितीय विश्ि युद्ध होनेका सूिना लमल रही थी । संग्राम
के बीि भी पद्मापानी ने अपने कतवव्य को नहीं भूले हैं मरीजों के इलाज
भी करते हैं अपने पररिार के ख्याल भी रखते हैं। इस बीि बद्दी दो दो
बार गभव नष्ट होने के बाद फर्र मां बनने िाली थी। सन ् 1947 अगस्त
14 तारीख रात को प्रसि िेदना आरं भ हो जाती है उस समय दे श में
हाहाकार मि रहा था लोग इधर-उधर हो रहे थे रास्ते में लोगों का भीड
था जहां ररक्शा या गाडी जाना संभि नहीं था अंत में पद्मपणि ननराश
होकर अपने बच्िे को खद
ु जन्म कराए। उसकी नाम ददए स्िाधीना, नाना
नरोत्तम खश
ु ी से बोल उिे स्िाधीन भारत की स्िाधीन कन्या’। निजात
लशशु पररिार में रोशनी लाई और साथ साथ स्मपूिव दे श 1947 अगस्त
15 दे श स्िाधीनता लाभ फकया।
उपन्यास के मख्
ु य परु
ु ष पत्र जो उपन्यास के नायक है पद्मापानी 24
िषीय युिक खूब संस्कृनत संपन्न और संस्कार िेतना के कहां है िॉक्टरी
की पढ़ाई भी पत्ता मैं कदटंग करके जेल जाने के बाद पढ़ाई छोड ददए थे
। उनका शपथ था यदद शादी करें गे तो बाल विधिा कन्या से ही करें गे
,जैसे िाहो िैसे ही रहो !उनके वििाह ब्राम्हि घराने के बाल विधिा कन्या
पदी से ही होता है। पदी फक जीिन उज्जिल होने के साथ उनके भी
इच्छा पूनतव होती है। समाज को एक उदाहरि दे ते हैं।
बाढ़ में ददनु अपनी पत्नी गुरुिार को खोने के बाद पद्मनपाणि के साथ
कटक िला जाता है । एक अनपढ़ और गांि के गिार होने के नाते भी
स्िाधीनता संग्राम में अपना फकरदार ननभाता है पद्मापाणि के बताए हुए
हर बात को मानता है पद्मापानी कहने से चिट्िी को लेकर जनता तक
पहुंिता है उसमें सात लसंह के बल 10 लोगों को मारने की ताकत है
अदहंसा मागव पर आंदोलन करने हे तु िह पुललस के प्रहार सहकर घर लौटता
है । स्िाधीनता संग्राम के विविध आंदोलन में जो नक्शा बनाया जाता है
, फकसी भी सि
ू नाएं को फकसी संग्रामी या जनता तक पहुंिाने के कायों
में ददनु का मुख्य भूलमका रहा है । उसने दे श की स्ितंत्रता के ललए
अपने जीिन को उत्सगव कर ददया था उसको ना पुललस के मार का भय
का िर था ना ही रात के घने अंधेरे का अपने कमव में िह सदै ि ऑडिक
रहता था।
संशोधर फकसानों की समस्या कटक कांग्रेस ऑफर्स में अिगत कराने से
उसको गांि के राजाओं के खुफर्या और पुललस लमलकर मरमत दं ि प्रहार
करते हैं जजससे िह अपने हाथ से पीडडत होकर कुछ ददन में गुजर जाता
है । पटािारा प्रनत आिाज उिाने से उसको दबेि ददया गया है ।
लमत्रों में सामाजजक संबंध बहुत गहराई होता है । नरोत्तम अपने दोस्तों की
परामशव से ही अपने लडकी के ललए एक उत्तम पात्र ढूंढ पाते हैं। पद्मापानी
ददिाकर विश्िनाथ तीनों लमत्रों और कुछ सत्याग्रह लमलकर आशादीप मेष
में रहते हैं अंग्रेज सरकार के विरुद्ध मोिाव तैयार करते थे। समाज में कुछ
कुसंस्कार, अंधविश्िास, जानत प्रथा आदद का प्रिलन पररिारों मैं सामाजजक
दायरा प्रस्तत
ु कर दे ती है जानत प्रथा के कारि विश्िनाथ और बबनोददनी
की शादी नहीं हो पाती है। पछता को मंददर प्रिेश का ननषेध एक सामाजजक
व्यिस्था बना ददए थे।
ददन्नू को बाढ़ ग्रस्त पररिेश से उधार करके पद्मापाणि अपने जलने हूं
बबन्नू को
दे खकर उससे अपने ििेरे भाई का पररिय दे ते हुए आशादीप में रखते
हैं। हैं साथ में सन
ु ें उसकी पररिय ििेरा भाई दे कर उसे जनेऊ दे कर अपने
पास रखते हैं।
राष्ट्र राज्य के प्रतत उत्तरदातयत्ि का तनिाषहन
पद्मापाणि अपने िॉक्टरी पढ़ाई छोड कर स्िाधीनता संग्राम में योग
दे ते हैं गांधीजी के अदहंसा नीनत के उपासक थे । अदहंसा आंदोलन ,लिि
सत्याग्रह, अइन अमान्य आंदोलन , असहयोग आंदोलन विविध सत्याग्रह
आंदोलन में योग दे ए। । जेल से आने के बाद फर्र िह िॉक्टर की पढ़ाई
शुरू करते हैं। कटक आशादीप मेस में रहकर उन्होंने जनता को स्िाधीनता
संग्राम के ललए जागरूक करते थे। मरीजों का इलाज अभी करते थे।
उत्कलमणि गोपाबंधु जो प्राकृनतक आपदा से प्रभावित लोगों के ललए
दे िता माने जाते हैं उनके दे हांत खबर पद्मापाणि को दहला दे ता है । तो
गोपाबंधु दास के सपनों को पूिव करने के ललए शपथ लेते हैं। बासुदेिपुर
में बंद टूटने के बजे अद्भुत पूिव बाढ़ िारों तरर् र्ैल जाती है । पद्मापानी
और कुछ उनके लमत्र लमलकर उन ग्राम िालसयों को पानी के घरों से उधर
करने के साथ खाद्य पदाथव भी दे ते हैं । ददनक
ु ो एक पेड से उधार करके
लाते हैं तब से ददनु उनके पास कटक में ही रहता है। राजाओं के विरुद्ध
जाने कभी फकसी का हाथ काट ददया जाता है तो फकसी को सूली पर िढ़ा
ददया जाता था जैसे िक्रधर बहरा का हाथ काट ददया गया था बाद में उसे
शलु ल पर िढ़ा ददए थे।उस समय संशोधर अपनी जान की परिाह ना कर
के कोटक कांग्रेस ऑफर्स में फकसानों की समस्या तथा गांि में अंग्रेज
शासकों और राजाओं का शोषि के विरुद्ध सूिना ददए थे।
ददिाकर राष्र के प्रनत अपना उत्तर दानयत्ि ननभाते हुए अंत में दहंसात्मक
विद्रोह कामरे ि पाटी में जोग दे ते हैं । गांधी जी के आव्हान से सत्याग्रही
के साथ साधारि जनता की भीड इस पररदृश्य से तत्कालीन समय में
अंग्रेज शासकों के विरुद्ध जनता के आक्रोश ददखाई दे ता है । जब सारे
जनता लिि सत्याग्रह में आगे बढ़ते हैं पुललस ने विदे हपुर समुद्र के
फकनारे जनता को घेर लेते हैं तब कुछ जनता जजसे पद्मापानी नंद फकशोर
आदद िहां से छूट कर आगे बढ़ते हैं नमक का पत
ु ली साथ में रखकर िह
बोल उडते हैं जातीय कवि नंद फकशोर दास की पंजक्तयां उनके मुख में
उच्िररत हो जाता है
इससे अंग्रेज सत्ता के प्रनत जनता की आक्रोश पूिव विद्रोह दे खने को लमलता
है कैसे विदे लशयों ने काटकर जनता पर अपना शासन िलाते हैं उस से
त्रस्त होकर जनता अपने अलभव्यजक्त को कविता के माध्यम से व्यक्त
करते हैं।
स्िाधीनता पि
ू व समाज में कुछ कुसंस्कार का आिंबर पण्
ु य
पालन फकया जाता था जैसे बाल विभाग विधिा व्रत का पालन आदद ।
बिपन में बच्िी से उसके बिपन छीन ललया जाता था ।लडकी इसमें
ज्यादा प्रभावित थी छोटी उम्र में उसकी शादी कर दे ते हैं जि छोटी उम्र
में उसकी पनत गज
ु र जाती है तो उसको जबरदस्त विधिा व्रत पालने के
ललए समाज मजबरू कर दे ती है यह व्रत के ननयम अनस
ु ार उसे एकादशी
के ददन ननजवला उपिास करनी पडती है , जीिन भर उसे सर्ेद धोती
पहनने पडती और उसे मुंिन करिा पडती है इस प्रकार धमव के नाम से
अत्यािार और प्रताडना का लशकार होकर नरोतम िौधरी की बहन है
तालाब में कूद कर जान दे दे ती है।
स्िाधीनता पि
ू व समाज में नारी की जस्थनत बहुत दयनीय थी।
स्िाधीनता संग्रामीयों लि
ु छुप के संगिन बैिाना आंदोलन में योग
दे ना विविध आंदोलन के योगदान के कारि बार-बार जेल जाना पडता
है कुछ दहंसात्मक विद्रोह करते हैं कुछ अदहंसा विद्रोह करते हैं दोनों की
जीिन संघषव ददवनाक है।
वििाह पि
ू व में माला की मातत्ृ ि को चगराने नहीं दे ती है एक नत
ू न संस्कार
की सजृ ष्ट करती है।
सरकारी तंत्र में इतने सारे ननयम बनाते हैं परं तु खुद के सरकारी
व्यिस्था के कायावलय की बदहाली उनको ददखाई नहीं दे ता है जेल की
अव्यिस्था जजसके कारि कई सारे कैदी राजनीनतज्ञ विविध रोग ग्रस्त
होकर प्राि िला जाता है । ददिाकर और पद्मपाणि जजस जेल में रहते हैं
िहां पर राजनैनतक को और गरीबों को एक साथ रखा जाता है उनके ललए
अलग व्यिस्था नहीं है जेल का पररदृश्य ऐसे बदतर है फक िहां पर सूयव
फकरि ही नहीं पडता है और िहां पर जैसे किरा का ढे र बबखरा हुआ है
खाने के नाम पर लसर्व भात और हल्दी के पानी जैसी दाल नहाने का
स्थान जैसे नकव कंु ि था ।िारों तरर् मच्छर और मजक्खयों का घर था।
िहां सत्याग्रहयो ने बार-बार रहने से उनको रफ्तारलोत होता है ।
दहमालय में मझ
ु े यह अजीब उपलजब्ध लमली है विशाल पिवत निश्य उचित
कृष्िा संदीप लसंह ननमवल हिा अजीब और अलग-अलग पष्ु पलता आदद के
घने जंगल विविध पशु पक्षक्षयों का योगदान और अपने स्कूल के समपवि
कर दे ती है संसार और सामान्य सन्यासी के बीि बहुत ज्यादा पाठ्य होता
है ऐसा मेरा विश्िास है उनके जीिन एक है और मध्यम मागव
उपन्यास की मख्
ु य पात्र पद्मापानी उपन्यास के आराम से अंत तक उनमें
लशिा भाग दे खने को लमलता है कोलकाता में िॉक्टरी पढ़ाई करने के समय
गांधी जी के आदशव अनुप्राणित होकर उद्दे श्य स्िाधीनता संग्राम में योग
दे ने के कारि जेल जाते हैं तो उनको कलेश्िरी कॉलेज से ननकाला दे जाता
है पढ़ाई बीि में रुक जाती है फर्र जेल से लौटने के बाद िह अपने कतवव्य
से अचधक रहते हैं िॉक्टरी पढ़ाई करने के साथ-साथ साधना का संग्राम के
विविध आंदोलन में जो बैिे थे और मरीजों का भी इलाज करते थे फक
पढ़ाई के बाद िह अपने सेिा में रहे शतक प्राजप्त हुई और उन्होंने अपने
कतवव्यों पर सदै ि बनी रहे हैं पररिार के प्रनत उनके कतवव्य और दे श के
प्रनत उनकी दे श प्रेम दोनों को िह बनाए रखें उन्होंने अपने पररिार के
साथ दे श को दे श के प्रनत अपने कतवव्य पूिव रूप से अदा फकए हैं।
तत
ृ ीय अध्याय तत
ृ ीय
भािो को संद
ु र ढं ग से प्रस्तत
ु करने का प्रमख
ु साधन भाषा है जजस
सादहत्यकार के पास जजतना अचधक समद्
ृ ध भाषा भंिार होगा िह उतनी
ही सहजता तथा मालमवकता से अपने भािों को व्यक्त कर पाएगा। उपन्यास
में जो अजय सर ने फकए हैं।
मेरी िल
ु बल
ु ी चिडडया को पके केले के बहाने फकसी ने िग ललया मेरी मां
रानी..।
कला पक्ष
इस उपन्यास की कला पक्षक्षयों विविधता से पि
ु ेहै। इस उपन्यास में उन्होंने
चित्रात्मक भाषा प्रतीकात्मक भाषा तथा अनेक कलात्मक पक्षक्षयों के
आधार पर उपन्यास में प्रस्तुत फकए हैं
चचत्रात्मक शैली
नरोत्तम िौधरी के बेटी पदी की विधिा व्रत रखने पर आयोजजत वििारों
मंिली में जब भरी सभा में बोल दे ते हैं मेरी बेटी विधिा व्रत नहीं पालन
करे गी तब सभी सज्जन ने िहां से उि कर िले जाते हैं नरोत्तम िैसे ही
अकेला आंगन के बीि खडे रहते हैं जैसे
िणषनात्मक शैली
दे िी मंददर में काम करने िाली नीनत जब अस्िस्थता के कारि काम में
नहीं जा पाती है तब पूरी अपनी मां ने दी फक कायव संपन्न करने के ललए
मंददर में जाती है उस पर जनादव न की भी नजर पडती है तो उसको मंददर
के काम करने के साथ शाम को अपने कुटीर में आने के ललए बोलता है
जब परी कुटीर के अन्दर जाती है जनादव न के नजर दे ख कर िर गई
संिादत्मक
संिाद आत्मक भाषा से कथािस्तु आगे बढ़ती है । फकसी से पात्रों की
पररिय स्पष्ट हो जाती है कथािस्तु को स्पष्ट रूप से स्थावपत करती है ।
नंदफकशोर के मत्ृ यु के पहले िह पद्मापानी को कहते हैं_ तेरी शादी दे ख
नहीं पाया इधर स्िराज भी नहीं आया। संिाद के माध्यम से घटना को
दशावया गया है ।
ऐसे संिाद आत्मक भाषा शैली द्िारा उपन्यास को आगे लेते हुए उसकी
मूल उद्दे श्य को स्पष्ट फकए हैं ।
भाषा शास्त्रीय जहां अपने कायव में भाषा में व्याकरि के ननयमों का आिय
लेता है िही एक उपन्यासकार मनष्ु य की मल
ू प्रिवृ त्तयों और अनभ
ु नू तयों
के प्रसंग अनक
ु ू ल पररिनतवत करके भाषा के रूप में संशोधन करके उसे
विकलसत करता है यह पररितवन पािक का मूल भाि ग्रहि करने में मदद
करता है एक अच्छी रिना में कृनत कार के भाि भाषा एिं शैली तीनों का
समचु ित सामान्य होना आिश्यक है । इस उपन्यास में भाि भाषा और
शैली का सामान्य महत्ि उपन्यास को ज्यादा यथाथव बना ददया है ।
तनष्ट्कषष:
उपन्यास की सर्लता में भाषा शैली का विशेष योगदान रहता है । अंत
इस विषय में रिनाकार ज्यादा सजग रहता है । पारलमता जी की भाषा
मधुर है और उनका हर सादहजत्यक कृनत की भाषाएं स्तर पर एक दस
ू रे
से लभन्न है लेणखका के गिन वििार अलभव्यजक्त में कहीं कहीं भाषा को
सरल तो कहीं जदटल बना ददये हैं। उनकी अलभव्यजक्त पक्षा में निीन
प्रभाि के दृजष्टकोि ददखाई दे ता है उपन्यास पढ़ने पर ना केिल वििारों
की गंभीरता प्रकट होती है मरि छात्रों को छात्रों के मन में मरते हुए 4
िररत्र प्रस्तुत करने िले आते हैं अंत कहा जा सकता है पारलमता जी की
भािाअनुसार तथा वििारों के शैललयों के प्रयोग से कथानक में उद्दे श्य
प्राजप्त को स्पष्ट बना ददया है ।
िूभमका
उपन्यास एक ऐसी सादहजत्यक विधा है जजसमें घटनाओं का ििवन सूक्ष्म
रूप से फकया जाता है। घटना िक्र को पढ़ते ही पािक के मन में घटना
की छवि चिबत्रत हो जाती है । उपन्यास को पढ़ते ही ऐसा लगता है फक
िह घटना सामने घदटत हो रही है । अलभप्रेत काल उपन्यास में ओडिशा के
साथ संपूिव भारत की पराधीनता की जस्थनत को लेणखका ने अनत मालमवक
ढं ग से चिबत्रत फकया है । जनता में सरर्रोशी की तमन्ना कैसे भयािह
आंदोलन का रुप लेता है जैसे लसपाही विद्रोह सन 1857 में बक्सी जगबंधु
के नेतत्ृ ि से ,आईन अमान्य आंदोलन ,लिि सत्याग्रह सन 1930 को
राष्र के मुख्य नायक महात्मा गांधी जी के आह्िान से हुआ था। यह
आंदोलन लसर्व नमक के ललए नहीं था बजल्क नमक के साथ साथ शराब
अर्ीम विक्री को रोकना, विदे शी िीजों को नकारना सरकार से तथा राजाओं
के द्िारा जनता पर 64 प्रकार के कर न दे ने के ललए हुआ था । समाज
में जीने के ललए फकतनी सामाजजक समस्याओं के साथ जुझना पडता है ।
बाल वििाह ,बाल विधिा, व्रत, गौना प्रथा, नारी पर हो रही दष्ु कमव, नारी
त्रास, घट
ु न को अत्यचधक करुिा के साथ इस उपन्यास के नारी पात्र जैसे
नरोत्तम की बहन हेम जो विधिा व्रत की पालन से त्रस्त होकर खुदखुशी
करती है , नेनत परी आचथवक जस्थनत से कमजोर हे तु गुजारे के ललए समाज
के प्रनतजष्ित व्यजक्त का लशकार होते हैं। राजा तथा अंग्रेज शासक के
विरुद्ध संशोधर जाने से उसकी पत्नी को पलु लस की बलात्कार ,माला जैसी
छोटी बच्िी को दष्ु कमव आदद एसे नघनोनी घटना ज्यादा हो रहा था।
उपन्यास की नानयका पदी से बाल विधिा की पुनविविाह आरं भ हुआ
था।पररिार से दे श तक व्यजक्त की जजम्मेदारी उच्ि आकांक्षाओं की पूनतव
नायक पद्मपािी से दे खने को लमलता है। विदे शी शासक की दमन लीला,
जनता के राष्र राज्य के प्रनत उत्तरदानयत्ि, स्िाधीनता संग्रामी और
सत्याग्रहीओ की जीिन संघषव, समाज संस्कृनत ननमावि में नारी पुरुष की
भूलमका जैसे इसमें ददिाकर , पद्मापानी विश्िनाथ सुररं जन दास,दे िी ,
पद्मलया, ददनू, विनोददनी ,परी, धोबी मां जो अंधी थी, आदद पात्रों की
भलू मका जो कामरे ि पाटी तथा सत्याग्रही स्िराज्य की पररकल्पना
स्िाधीनता प्राप्त करने के ललए गांधीजी के दोनों नीनत अदहंसा और
सत्याग्रह को लेकर आगे िलना जनजीिन पर विश्ियुद्ध का जो प्रभाि ,
मनष्ु य और प्रकृनत के तादात्म्यता, सेिा मनोभाि समाज कल्याि आदी
विविध पारीदृस्य को लेणखका ने उपन्यास के विविध पात्र के माध्यम से
उजागर फकए हैं । समाज की विविध समस्याएं को उदघाटन करते हुए
उसकी समाधान की राह ददखाए हैं।
स्िाधीनता संग्राम में योग्य संग्राम एिं को पुललस ननमवल वपटाई कर रहा
था और उज्जैन में लेकर रख दे ते थे जेल की भी व्यिस्था अच्छी नहीं थी
जहां पर सय
ू व फकरि तक नहीं पडता था और अंधेरे गली जैसे था बच्िा
का ढे र िहां पर बबखरा हुआ था उस उस स्थान पर रहने से बार-बार
स्िाधीनता संग्रामी विविध रोग से आक्रांत होते थे जेल के अजस्तत्ि कर
पररिेश में रहने से कामरे ि पाटी की नेत्री विनोददनी की मूनतव हो जाती है ।
ऐसे अदहंसा नीनत की आंदोलन से परे शान होकर कटक छोड कर िले जाते
हैं जाकर कमेंट पाटी में योग दे कर दहंसात्मक आंदोलन आरं भ करते हैं
तभी भी उनके जीिन में शांनत नहीं लमलती क्योंफक कामरे ि पाटी की मुख्य
सुरंजन दास एक बार पकड जाने से उनको भी पुललस ने मार दे ते हैं। इस
प्रकार विविध समस्या से परे शान होकर ददिाकर अंत में दहमालय िले
जाते हैं प्रकृनत के साथ तादात्म्य स्थावपत करके रहते हैं ।
पुरुष पात्र
नरोत्तम चौधरी
हदिाकर
संशोधर
हदनु
सरु ं िन दास
कामरे ि पाटी के मुख्य नायक था। सभी उसे गुरुदे ि नाम से बुलाते थे।
पुललस स्टे शन में हमला करने के नाते पुललस की गोली से मत्ृ यु िरि
करते हैं।
नारी पात्र
पदमालया
उपन्यास की नानयका है। बिपन में बाल वििाह हुआ था। विधिा व्रत
जैसे कुसंस्कार उसी से ही हट आती है।विधिाओं की पन
ु विविाह उसी से
प्रिललत होती है । अपने पढ़ाई के साथ स्िाधीनता संग्राम में अपने पनत
को मदद करती है ।माला की घटनाओं से िह नारी नेत्री बन जाती है ।
विनोहदनी
नेतत
विधारा असहाय नारी थी दे िी मंददर में झाडू पोछा करके अपना जीविका
ननिावह कर रही थी जनादवन की शोषि का लशकार होती है उसको जनादव न
शारीररक मानलसक दोनों तरर् से शोषि करता था। ि अपने जस्थनत के
कारि सब कुछ िुपिाप स सह जाती थी।
परी
नेनत की बेटी थी मेथी की तबीयत खराब होने से िह मंददर में काम करती
है जनादव न उससे भी नहीं छोटी मां के इलाज की आशा ददखाकर उसको
भी अपनी लालसा का लशकार बनाता है । मां की तबीयत के खराब के
कारि 1 ददन मंददर में नहीं जा पाता है तो जनादव न आकर नीनत की गला
दबाकर मारने की कोलशश करता है तब नेती को बिाने के ललए िह
जनादव न पर िाकू घुसा दे ती ।
माला
विधिा बोडिांग स्कूल में पढ़ने िाली एक लडकी थी। गडजात की थी। माता-
वपता नहीं थे, दादाजी ईसाई बन गए तब दादाजी लाकर यही स्कूल में
उसको छोड ददए थे पढ़ाई करने के ललए िह अपने दादाजी की इच्छा से
यहां पढ़ाई करती है और पढ़ाई के खत्म होने के बाद लशक्षक बनने की
उम्मीद रखी है।
धोबा मां
अंधी िद्
ृ धा है । प्रौढ़ािस्था के अंनतम जस्थनत में है । भंगा कुडडया बनाकर
रहती है अपने पत्र
ु स्िाधीनता संग्रामी लौटने की आशा में िहीं पर िह
अपना जीिन व्यतीत करती है ।एक बार ददिाकर को अपनी झोपडी में
आिम दद था।