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द्वितीय अध्याय

अभिप्रेत काल उपन्यास की कथािस्तु


कथावस्तु उपन्यास का प्राण होता है और उसकी चेतना उपन्यास में स्पंदित
रहती है। अभिप्रेत काल उपन्यास में उडीसा के स्वाधीनता संग्राम की स्थितत
तथा तात्काललक समाज के सामाजजक, राजनीततक, आर्थिक, सांस्कृततक
समस्याओं का मार्मिक लचत्रण है। इस उपन्यास का मुख्य पात्र 24 वर्षीय
युवक पद्मापानी है। उसका िूममका उपन्यास के आरंि से अंत तक रहा है ।
उपन्यास का प्रारंि एक पररवार से होती है उस पररवार के मुख्य है नरोत्तम
चौधरी उनकी बेटी का नाम है पिी या पद्मालया छोटी उम्र में ही तववाह कर
दिया गया था । गैना होने से पहले 9 साल की उम्र में थी तो उसके पतत का
िे हांत हो जाती है । ब्राह्मण घराने की तवधवा होने के नाते तवधवा व्रत
पालने के ललए मजबूर तकया जाता है परंतु नरोत्तम चौधरी संस्कार लचत
व्यस्थतत है, लिभित िास्त्रज्ञ थे ,इसललए वह विधिा व्रत पालने के ललए बेटी
को मना कर िे ते हैं।१९३० में बेटी की पुनर्विवाह करवाने का तनष्पभत्त लेते हैं
जो तक तत्कालीन ब्राह्मण समाज का पूणण तवरोध था। ऐसे संस्कारचित्त
पदक्षेप के नाते गांव के मुख्य कमला चाचा ने आग पानी बंि कर िे ते हैं।
बच्चे स्कूल में िी पढाई नहीं कर पाते हैं,तथा तवतवध समस्याओं का लिकार
बन जाता है तिर िी अपने उच्चआकांिा के िल पर कटक बैरागी ममश्रा जी
से संयोग िापना करने से उस संस्कृतत संपन्न और संस्कारलचत लडका ममलता
है जजसका नाम पद्मपाभण (पदु)है।

डॉतटरी की पढाई कर तपकेटटिग करके जेल जाने के कारण


उन्हें कॉलेज से तनकाल दिया गया था। तब से पद्मापानी( पदु)कटक में
आिािीप मेर्ष में रहने लगे और समाज के तवभिन्न समस्याओं की समाधान करने
का प्रयास करते हैं। िह िेि स्वतंत्रता के ललए तवतवध संगठनों सिा सम्मेलन
में योग िे ने लगे। पदु और पदि के तववाह कटक में तवश्वनाथ के घर पर होता
है। तववाह उत्सव में पदु के माता-तपता योग नहीं िे ते हैं परंतु उसके कुछ
स्वाधीनता संग्रामी ममत्रों जैसे तवश्वनाथ और तवनोदिनी िाममल होते हैं। कुछ दिन
कटक में रहते हैं वहीं पद्मापाभण का साथ िे ती है पद्मालया। रूदढवािी समाज
में संस्कार लाने की प्रिेष्टा कैसे ररश्ते में िरार पैिा करती है उसका स्पष्ट
उिाहरण दे खते हैं जब पद्मपाणि को उनके तपता घर में प्रवेि करने नहीं
दिए घर के पास ही झोंपडी िे ते हैं। तिर ४ दिन बाि पद्मापानी कटक चले जाते
हैं । सास नैनीनखी के जररए बहू का खयाल रखती है। नया नाम लक्ष्मी िे ती
है । पदु बचपन से ही जीि स्विाव का था तपता के जररए महात्मा गांधी जी
के संस्पिण में आया था। गांधीजीके अहहिसा नीतत से अनुप्राभणत था पद्मापानी।
प्रमुख पात्रों में से एक है दिवाकर, उस पर बचपन से ही माता-तपता
का साया उठ गया था एक ही िाई था संिोधन और उसकी पत्नी जो दिवाकर
को अपने पुत्र जैसे प्यार करते थे । कतनका राज अंग्रेजों के साथ ममलकर
तकसानों को िोर्षण कर रहे थे यहां तक तक अकाल के समय में िी कर असूल
कर रहे थे 64 प्रकार के कर लागू तकए थे ।इससे तकसानों त्रस्त होकर तवतवध
मंदिर और जंगलों में सिा तकए और कतनका राजा के क्रूर िासन और अत्याचार
की खबर कटक कांग्रेस ऑतिस में िे ने को तनश्चय तकए। राजा के खुतिया हर
वतत जनता पर नजर रखते थे जब उन्हें पता चलता है तक संिोधन ने जनता
की समस्या को लेकर कांग्रेस ऑतिस गया था तो 1 दिन रात को अचानक
संिोधन के घर पर आक्रमण होता है आक्रमण पुललस और राजा की खुतिया
ममलकर करते हैं संिोधर को पीटते हैं और उसकी पत्नी को बलात्कार करते हैं
दिवाकर छोटा था छु प जाने के कारण बच जाता है गांव में िी बवंडर मच
गया था। लोग डर के मारे जंगल की ओर िाग िाग जाते थे स्वाधीनता पूवण
समाज में नाररयों का स्थितत ििण नाक था ।कुछ िी घटना हो उसमें नारी को ही
प्रतातडत होनी पढती थी। दिवाकर लछपकर सारे दृश्य िे ख रहा था जब घर से
अत्याचारी चले गए तब वह तनकलकर िाई के पास आया दिखा िाई रतत से
सना हुआ है उनको बचाने के ललए जंगल को ले जाता है जंगल में एक अद्भुत
दृश्य दिखता है की बललया चाचा के छोटी बहू रो रही है उसकी छोटी बच्ची
को लसयार ने खा ललया है। जब घर आता िे खता है उसके िािी कुएं में
कूिकर जान गवा दिए हैं उस समय समाज में नारी की स्थितत बहुत ििण नाक
थी। संिोधन पर ज्यािा प्रहार होने के कारण वह पिाघात में पीतडत होकर
कुछ दिन में स्वगण लसधार जाते है। दिवाकर उनके अंततम तक्रया कमण करने के
बाि गांव छोड कर कटक चले जाते हैं। िाई की इच्छा थी दिवाकर इंजीतनयररिग
करके एक अच्छा इंजीतनयर बनेगा पर उनका सपना आधे में रह जाता है।
दिवाकर पढाई छोड कर स्वाधीनता संग्राम में योग िे ते हैं। स्वाधीनता स्वाधीनता
संग्रामी उनको ट्रेन में जेल लेते समय दिवाकर और पद्मापाभण का मुलाकात
होता है। जेल से लौटने पर िोनों साथ में कटक के आिािीप मेस में रहते हैं।
िे ि को स्वतंत्र करने के ललए अंग्रेजों के तवरोध योजना बना रहे थे और साधारण
जनता को उजागर कर रहे थे।
तीसरा स्वाधीनता संग्रामी तवश्वनाथ है जो एक प्रलसद्ध चमडा व्यापारी के
पुत्र हैं। तवश्वनाथ और पद्मपाभण के िोस्ती पहले से था जब से तवश्वनाथ अपने
िािा जी के साथ कटक तथा पूरी घूमने आए थेत तब उन्हें मातृिूमम की लगाव
लग गई उनका घर कटक िेख बाजार में था इन दिनों से वह कोलकाता नहीं
गए कटक में रहने लगे और स्वाधीनता संग्राम में अपना िूममका अिा करने
लगे तब से तीनों ममत्रों तवश्वनाथ पद्मपाभण दिवाकर जगन्नाथ प्रसाि हाथ में रख
के संकल्प लेते हैं अपना अंततम सांसे तक िे ि को स्वतंत्र करने के ललए वह
लडेंगे।

एक दिन िाम को 3 ममत्र ममलकर िे ि के बारे में बात करने के बाि


अपना दुख ििण व्यतत करते हुए पद्मापाभण अपने और अपने पररवार की संपकण
में बारे में बताते हैं और दिबाकर ने अपने िाई के बारे में बताता है पर िािी
के बारे में वह बता नहीं सकता है तवश्वनाथ जो है वह अपने पररवार के साथ
अपने प्रेमीका तवनोदिनी के बारे में बताती है तक वह ब्राह्मण होने के नाते
तवश्वनाथ के पररवार में उसको ग्रहण नहीं करना चाहते हैं तबनोदिनी एक लडकी
होकर िी िािी में था संग्राम में से ललया था इसललए वह बार-बार उसे जेल
जाना पडा जेल की दुराविा से उसकी तबीयत ज्यािा तबगड उसको पीललया
रोग अकरांत हो गया और उसे बीमारी लगी और इलाज के अिाव के कारण
अंत में उसकी मृत्यु हो जाती है तवश्वनाथ तबनोदिनी को चाहती थी पर उसके
सपना अधूरा रह जाता है इससे तत्कालीन समय की छु आछू त िेििाव दिखता
है।
पद्मापाभण नंि चाचा ने अपने िमे की बीमारी तक इलाज के ललए कटक
आए हैं ।पदु के साथ बैठकर िे ि तविे ि के बारे में बात करते हुए जयी राजगुरु
के साथ बतसी जगबंधु के िे ि प्रेम िे ििस्थतत को कहते हैं और ओतडिा
स्वाधीनता संग्राम में उनका योगिान तया रहा है । ओतडिा में पहले 1817
अंग्रेजों के तवरुद्ध खुरिा में तवद्रोह आरंि हुआ था। ओतडिा में लसपाही तवद्रोह
1857 में खुिाण में आरंि हुआ जो अंग्रेजों के प्रतत िारत में से प्रथम तवद्रोह
था। पाइका तवद्रोह बतसी जगबंधु के ललए थे। उस समय महात्मा गांधी जी ने
तवभिन्न िानों पर सिा सम्मेलन करके जनता को स्वतंत्रता की ओर उन्मुख कर
रहे थे। बाढ के ियंकर रूप का वणणन है जो हर साल आकर बहुत सारी धन
जीवन को नष्ट करता है बासुिेवपुर गांव में बाढ आने के नाते दिनुऔर गुरुवारी
पानी के स्रोत में बह जाते हैं गुरुवारी पानी के स्रोत में कहीं खो जाती है और
दिनु ने एक वृिों के डाल पकडकर बच जाता है वहीं पेड पर उसको 3 दिन
तक रहना पडता है 2 या 3 पुरुर्षों के ऊंचाई की जल होने के नाते दिनु बाहर
नहीं तनकल पता है िूख के कारण वह 2 दिन से मरा हुआ कौवा को जजससे
बिबू तनकल रहा है उसको खाता है यहां पर िूख मनुष्य को तकस हि तक
ले जाता है उसका मार्मिक लचत्रण है। उत्कलमभण गोपाबंधु िास के िे हांत के
खबर सुन के बाि में पद्मापाभण और उनके िोस्त तवचललत हो गए और बाढ
ग्रस्त गांव को उधार करने के ललए तैयारी की वहां जाकर खाद्य सामग्री िे ने के
साथ-साथ ज़ल में बंिी कुछ लोगों को उद्धार तकए दिनु को पेड से उतारे उस
दिन से दिनु पद्मापाभण के साथ कटक में आकर रहने लगे यहां पर उसका
पररचय बिला कर अपने चचेरे िाई का पररचय दिए।
स्िाधीनता पि
ू व उडीसा के अनेक स्थान पर शोषि अत्यािार
बहुत ज्यादा मात्रा में हो रहा था यहां तक मंददर में भी भगिान के नाम
से ब्राह्मिों ने लूटते थे । जनादव न नाम के पुरोदहत ननराचित और गरीब
मदहला नेती जजसको िह अपने मंददर में काम करने के ललए रखती है
उसके साथ नाजायज संबंध बनाती है काम के बदले पररिलमक बहुत कम
था लसर्व दो िक्त की खाना ही थी । इस प्रकार प्रनतजष्ित व्यजक्तयों ने
असहाय नारी को इस तरह शारीररक मानलसक शोषि करते थे। नेती
गांि की मदहला थी जजसके पनत राजा के सेिक था उसकी मत्ृ यु के बाद
िह ननराचित हो गई उसकी एक लडकी परी थी जो 9 साल की थी
खूबसूरत परी जैसे ही थी दोनों जीने के ललए जीविका ढूंढते हैं पर ऐसे
व्यजक्त के पास जाकर िह अपना सिवस्ि खो दे ती है आचथवक जस्थनत ही
मनष्ु य के जीिन को पररिनतवत करता है । नेती की तबीयत ज्यादा बबगडने
से उसकी काम उसकी बेटी परी करने जाती है मंददर में झाडू पोछा लगाती
है उसको भी जनादवन ने अपने िासना का लशकार बनता है नेती को
मेडिकल लेने और दिा दे ने की बात करते हुए परी को आशा ददखाकर
अपने पैर दबाने के ललए बल
ु ाकर उसके साथ जबरदस्ती भी करता है । परी
िप
ु रहती है अपनी मां के खानतर पर एक ददन जब परी मां की तबीयत
ज्यादा बबगडने से काम में नहीं जा पाती है तो जनादव न गुस्से में आकर
नेनत को लात मारने के साथ फर्र गला दबाकर मार दे ने की कोलशश करता
है तब परी ने अपनी मां को बिाने के ललए सब्जी काटते हुए एक- िाकू
से जनादवन पर िार करती है और इससे जनादव न चगर जाता है परी मां
के ननदे श िहां से भाग जाती है एक असहाय नारी की जस्थनत समाज में
क्या होती है यह परी और नेती की जस्थनत से स्पष्ट झलकती है ।

परी भागते भागते जाकर एक अंधेरे गली में पहुंि जाती है रास्ते में िह
ददनु के साथ उसकी मल
ु ाकात होती है ददनु पलु लस के प्रहार से घायल था
उसको लेकर आशाददप मेस छोड था है सहायता करने के कारि ददनु भी
परी को अपने आशादीप रमेस में रखना िाहता है पद्मापानी को परी पर
बबनत हुई बात को बताता है पद्मापानी ने ददनु और परी की शादी करिा
दे ए।

दरु ं त अभिलास

दे शभर में असंतोष र्ैल रहा था दे शिासी धीरज खो रहे थे। प्रथम विश्ि
युद्ध के बाद भारत को स्ितंत्रता लमलेगी उसकी उम्मीद अकास का कुसुम
में तब्दील हो गई थी। गांधी जी के नेतत्ृ ि में स्िदे शी आंदोलन और
असहयोग आंदोलन आरं भ हुआ था और लोगों को एक प्रज्िललत दीप की
तरह आलोक प्रदान करता था। भारतीयों के मन में अंग्रेजी शासन के प्रनत
वितष्ृ िा हो गई थी। पराधीनता क्या है उसे िह समझ गए थे। जनता तो
फर्र िोरा िोरी हत्याकांि के बाद सन 1922 में गांधी जी ने असहयोग
आंदोलन स्थचगत रखने की शपथ ली थी । साइमन कमीशन के समझौते
में भारत के स्िराज्य पाने का सपना था कोलकाता कांग्रस
े अचधिेशन में
सन 1920 में गांधीजी की उपजस्थत ना थी फक भारत को स्िाधीन ने
स्ितंत्रता संविधान स्ितंत्रता पि
ू व स्िराज्य अथिा संपि
ू व स्ितंत्रता के ललए
एक बडे पैमाने पर सरकार के लाहौर में भारतीय राष्रीय कराया गया
कराया गया भारतीय राष्रीय कांग्रेस ने 30 जनिरी को भारत के स्ितंत्रता
ददिस के रूप में गांधी जी ने आंदोलन का शुभारं भ फकया समुद्र के खाएंगे
भारतीय लोग समुद्र के पानी से नमक आएंगे िह कर नहीं दें गे दे श भर
में मािव 12 तारीख से अप्रैल 6 तारीख 1930 को लिि सत्याग्रह आरं भ
इस सत्याग्रह में छोटे से बडे सभी उम्र के और विलभन्न जानत धमव उम्र
के विलभन्नता के बािजूद सभी भारतीय योग ददएसत्याग्रह में को समाप्त
हो के नाम से नालमत फकया गया समुद्र जजलों में लिि सत्याग्रह के ललए
व्यापक व्यिस्था की गई आंदोलन आंदोलन स्ितंत्रता संग्राम को एक नया
मोड ददया था। नमक बनाने के ललए आ गया है इिड
ू ी से ही नमक बनाना
आरं भ फकया गया पिन सत्याग्रह में पद्मपाणि और उनके नंद िािा और
जजसका नाम है नंदफकशोर और उनके कुछ और पानी के कुछ साचथयों ने
सत्याग्रह के ललए लिि सत्याग्रह के ललए गए और िहां से लिि मार के
कुछ पोनतया लादकर गांि लौट रहे थे फक पलु लस को खबर लग गई और
पुललस ने जाकर उनसे लिि को लाने के साथ-साथ उन पर प्रहार फकया
जजस जजससे लाल िािा पर मार पडने से िहिािा । िूडी से लिि मार
के पद्मापानी और कुछ साचथयों के साथ उनके िािा नंदफकशोर लौट रहे
थे नमो के पि
ू व पत
ु लीघर के जंगल में उन को पलु लस ने पकड ललया है
आते टाइम में गाना गाते थे जानतयों कबीर दास की रिी हुई पंजक्त गया
सब कुछ खत्म हो गया भाई यह नीनत शासन िलेगा नहीं यह लिि
सागर भरा विधाता का ददया सारा उसे मारकर खाने का हक हमारा नहीं
हमारा नहीं इस पंजक्त से अपना अपना तो की भाग दे श में जो दे श के
नागररकों की अपने दे श पर जो अचधकार है िह ददखता है इसमें अपना
हक है िह जताते हैं। पलु लस के हाथ से पकड जाने के नाते नंद िािा पर
ज्यादा वपटाई हुई िह बस को होने के नाते उनकी तबीयत बबगड जाता है
और फर्र घर आने के बाद उनका मत्ृ यु हो जाती है मत्ृ यु के समय िह
कहते हैं अंनतम शब्द िद्
ृ धािस्था को ददखाया गया है जजसमें एक नंदफकशोर
के जररए एक ियस्क व्यजक्त की मानलसकता को व्यक्त करते हैं लेखक
ि उनके अंनतम सप्ताह पद्मापानी की ओर तेरी शादी दे ख नहीं पाया इधर
स्िराज्य भी नहीं आया इस प्रकार से उनकी जस्थनत उनकी जो आशा थी
ननराशा में बदल जाती है अपि
ू ाांक लमलती है िहां से पलु लस ने जब जेल
ले जाते हैं पद्मापानी को और उनके साचथयों को तब प्रशासन व्यिस्था
का ििवन हुआ है उपन्यास कैसे प्रशासन सरकारी कायावलय में व्यिस्थाएं
जेल में कैसे खाना ददल्ली के मॉल जैसा है और िहां का जस्थनत रहने के
ललए लायक नहीं है मच्छरों का है और अत्यािार पर सरकारी कायावलय
जो जेल अंदर दलदल अंधेरी और गली जैसे जगह थी जहां सूयव की रोशनी
नहीं थी एक और लशकार बदबू बबखर हुई थी दटकारी िारों ओर जजतनी
मजक्खयां थी उनमें भी मच्छर और अन्य णखलाडी 4 और दब
ु ला लग रहा
था और नानी को लगा जैसे उनके सांस रुक जाएगी सालों से यहां की
गंदगी मानो उिाई नहीं गई थी अंदर जगह-जगह कूडे के ढे र से यह सोि
रहे थे फक हमारे तरर् से भी अचधक सार्-सुथरे होते हैं नहाने की जगह
मानि नरक कंु ि था शौिालय के बाद तो सोिना है िीक है नहीं सोिना
है िीक है हर बार िहां से लौटते िक्त िरना पानी को लगता था मानो
िह कर दें गे क्या अच्छे हो जाएंगे रात की बदहाली तो इससे भी अचधक
बदतर थी मच्छरों के मारे नींद नहीं आती और आंखें लग जाती थी तो
खटमल काटते थे खाने के नाम पर भीगे बदबद
ू ार िािल का भात और
उस पर हल्दी का पानी जैसे दाल राजनीनतक बंदी और अपराचधयों में कोई
पािकों नहीं था सही एक जगह झूि ददए जाते थे सब एक जगह पूछ ददए
जाते थे खाने की िीज है या बबल्ली का मॉल अत्यािार णखला दे ता था
लिि सत्याग्रह के बाद प्रतापगढ़ गई थी लिि सत्याग्रह के बाद सरकार
और सत्याग्रह के बीि तथा बढ़ गई थी सत्य गलमवयों को चगरफ्तार कर
जेल ले गए लेते िक्त रास्ते में जल सत्याग्रह ननशा के कारि पानी
मांगती है तो पलु लस िाले ने पैसा र्ेंकते हैं ऊपर जजस पर गांि है उसी
के ऊपर होते हैं इतने बेरहमी से मारने के बाद पानी तक नहीं दे ते हैं तभी
भी सत्याग्रह में अदहंसा मागव पर ही रहते हैं पुललस की ननमवम प्रहार के

पुललस िाले ने ननमवलता से लादियां रोने िंिा से ग्रहों को इतना


आरं भ फकया फर्र भी ददिाकर और पद में पानी ने कुछ भी नहीं गए प्रहार
को सहने लगे सहते हुए िह लसर्व उनके मंह
ु में ननकल रहा था भारत
माता की जय महात्मा गांधी की जय ।

“ मुझे जजतना मारना हो मार

दे श हे तु जजसका जान ननछािर

उससे बात का क्या िर”

जातीय कवि बीरफकशोर दास की कविता इन पंजक्तयों को गुनगुना कर


ददिाकर ने सारी प्रहार को सहे ललयां एक दस
ू रों के हुए ददिाकर और
पद्मापाणि में मार खाते हुए एक दस
ू रे के मंह
ु ताकते हुए इतना बोल रहे
थे बोल रहा था भारत माता की जय और दस
ू रा महात्मा गांधी की जय।
इस बार बार सत्याग्रह में योग दे ने के कारि पद्मापाणि ददिाकर और
विश्िनाथ को जेल जाना पडता है और फर्र आने के बाद िह अपने कमव
में ललप्त रहते हैं एिम उनकी अंनतम आशा स्ितंत्रता प्राजप्त थी।

पाररिाररक जीिन के बारे में फर्र िह कहते हैं फक बहुत ददनों के


बाद जब िह गांि से कटक आए तो पदी को गांि में छोड कर आए थे।
उसकी उच्ि लशक्षा के ललए उसे कटक लाए और विधिा बोडिांग स्कूल में
उसका नाम ललखाए हैं। उच्ि लशक्षा प्राजप्त के िह बहुत खुश थी और
अपने पढ़ाई के साथ-साथ पद्मपाणि का भी ख्याल रखती है । विधिा
बोडिांग स्कूल में उसके साथ और भी कुछ लडफकयां रहती है जो कुछ कुछ
बाल विधिा है कुछ कंु िारी लडफकयां भी है जैसे मैरी, माला।

मैरी एक कंु िारी लडकी थी। बिपन से ही उसकी वपता माता का मूनतव
हो गई थी अच्छा स्िास््य िह दे श या राज्य गढ़ जात से आई है उसके
दादा ईसाई बन गए िह अपने दादा की इच्छा से आिम में रहकर पढ़ाई
करने के ललए आया है उसका इच्छा है फक िह के पढ़ाई खत्म करने के
बाद खुद बच्िों को पडेगी।

माला का नाम मालती ब्राह्मि घर की विधिा लडकी है। दे खने में िह


बहुत संद
ु र लेफकन कमजोर ददल की है। अपने भैया के पास रहते हुए एक
ददन रात को कुछ लोगों ने घर के सामने से उसे उिाकर तालाब के फकनारे
लेकर उसके साथ जबरदस्ती फकया। भाई भाभी ने उसे उस ददन से घर में
नहीं रहने ददया और आिम भेज ददया। पनत के जाने के बाद िह उस को
न्याय ददलाने के ललए अपने स्कूल के इंिाजव दीदी के साथ बात करती है ।
पनत भी एक नारी नेत्री बन जाता है ।

तीनों लमत्रों ने स्ितंत्रता आंदोलन में एक ही मागव अपनाएं थे।गांधी


जी द्िारा दशावए गए नीनत जो अदहंसा और सत्याग्रह ही था। उनके मन
में जब जब आंदोलन बढ़ता गया तब तक संकाय उत्पन्न होने लगी। क्या
होगा स्ितंत्रता लमलेगी या नहीं कब तक और ऐसे संग्राम िलता रहे गा।
विश्िनाथ कोलकाता में विनोद की तबीयत खराब होने के नाते रह जाते
हैं। यहां स्ितंत्र उत्तर प्रदे श गिन समारोह में योग नहीं दे पाते हैं पर दग
ु ाव
पज
ू ा से पहले कटक आ जाते हैं। यह तीनों लमत्र लमलकर दे श के विलभन्न
समस्याओं के बारे में बातिीत करते हैं, अंग्रेजों के विरोध मोिाव तैयार
करते हैं। एक ददन अिानक विश्िनाथ को कोलकाता जाना पडा और िहां
से जब लौटे िहीं पर संग्राम में उनका मत्ृ यु हो जाता है । उनके हौसले की
चिट्िी 1 साल के बाद पद्मपाणि को लमलता है। िह टूट जाते हैं,
पद्मापाणि बहुत ददन तक सदमे में रहते हैं।

जीिन शायद ऐसा ही है समय के साथ साथ जीिन थोडा-थोडा करके


त्याग कर जाएगा मनष्ु य को। प्रेम स्नेह िद्धा सब सार् होता जाएगा।
हो सकता है समय समय में रूपांतररत होगा दस
ू रों के रूप में दस
ू रे फकसी
आधार में।

ददिाकर और पद्मापाणि कुछ दे र तक बात करते हैं और फर्र ददिाकर


कहते हैं तम्
ु हारा और मेरा पत्र
ु अलग है पदमा तम
ु गांधीजी के नीनत में
सत्याग्रह में विश्िास रखते हो और स्िराज्य पाने की उम्मीद कर के बैिे
हो तम्
ु हारा उम्मीद को सर्ल कराने को ही मैं तम्
ु हें छोडकर जा रहा हूं
ऐसे बैिे बैिे प्रतीक्षा करना है मेरे ललए संभि नहीं है ।ददिाकर धीरे से
िला गया। विश्ि युद्ध के पररिाम जनता को बहुत भारी पडा साधारि
जनता विश्ि यद्
ु ध में योग दे ने के कारि उनकी आचथवक जस्थनत भयािह
दद
ु व शा ग्रस्त हो गई।

विश्ि युद्ध के प्रभाि भारत पर ज्यादा पिा युद्ध का नतीजा लसर्व


विभीवषका मत्ृ यु रक्तपात शोक के अलािा और कुछ नहीं है युद्ध में ना
कोई जीता है और ना ही कोई हारता है अंत में लसर्व ननराशा आक्रोश
दख
ु ही दख
ु रह जाता है।

ददिाकर कटक से गांि िले जाते हैं िहां जाने के बाद अपने पर बीती
हुई बात की याद उनको ज्यादा आती है , बिपन की शरारत उनके स्कूल
के ददन बिपन के छोटे -छोटे घटनाओं को याद करते हुए खब
ू रोते हैं।
जंगल में िले जाते बीि जंगल के बीि कुछ पलु लसिालों ने मस्ती कर
रहे थे िहां पर उनको भूख लगने से खाना मांगते ददिाकर ने पैसा दे कर
खाना खाते है और पुललस िालों के मौज में शालमल हुए पुललस िाले नशे
में मस्त होने के नाते जब सो जाते हैं तब ददिाकर ने उनके बंदक
ू िरु ा
कर िहां से भाग जाता है जंगल में जाते समय एक अंधी बदु ढ़या धोबा
नमा से उसका पररिय होता है उसके घर में एक ददन रहता है फर्र अगले
ददन सुबह िहां से िह अपने राहों में िले जाते हैं जंगल में समस्याओं को
झेलना िहां जीि जंतओ
ु ं के साथ रात गज
ु ारना उसमें मनष्ु य की
मानलसकता तथा उसमें भाई को यहां ददखाए हैं। स्िराज्य के ललए ददबाकर
ने दहंसात्मक पथ को अपनाए हैं । उपन्यासकार ने यहां प्रकृनत और मानि
की तादात्म्य ता को ददखाएं हैं। प्रकृनतक सौंदयव का ििवन है ।

ददिाकर अपने राहों में िलते िलते कुछ कामरे ि सेना से मुलाकात होता
है उन्होंने ददिाकर को लेकर अपने सरदार से लमलाते हैं। लोगों ने अदहंसा
आंदोलन से त्रस्त होकर कोलकाता िले गए थे और िहीं पर मजु क्त संग्राम
में योग्य ददए और उनका जीिन जंगल में बबतता है एक संत्रास्िादी की
तरह उनका जीिन शैली होता है जंगल में रहकर िह अपना संग्राम िलाते
हैं िहीं से रास्ता ननकल कर िह अपना लक्ष्य स्थल में पहुंिने की कोलशश
करते हैं उनका जीिन बहुत ददव नाक होता है महीने महीने तक जंगल मैं
रहते हैं जंगल के एक सीहोरा पेड को पेड के नीिे एक बस अष्टमूनतव
रखकर उसमें लसंदरू का लेप लगाए थे उसी को िह मंत्रों के द्िारा पूजा
करते हैं अपने मणु खया को िह गरु
ु दे ि बल
ु ाते हैं कामरे ि के जो गरु
ु दे ि थे
उनका नाम था सरु ं जंदास ि काला तो पढ़ने कोलकाता गए थे िहां पर
पढ़ाई छोडकर कम्युननस्ट पाटी में योग ददए बार-बार पुललस के धरपकड
हे तु कोलकाता छोडकर कुछ ददन हुए हुए यहां िहां घूम रहे हैं उसी बीि
नौजिान को इकट्िा करके अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध लडाई करने के ललए
प्रेररत फकया करते हैं और उनको यद्
ु ध के विविध सहे ली लसखाते हैं प्रलशक्षि
दे ने के ललए िह ब्राह्मिी नदी के फकनारे एक लशविर खुले थे वपछले साल
बाढ़ के कारि नष्ट हो जाता है । जंगली जीिन बबताते हैं जंगल से लशकार
करके खाते हैं और पेड के ऊपर कुदटया बनाकर रहते हैं। ददिाकर जंगल
में रहते समान दे िी नामक लडकी से मल
ु ाकात होती है जोफक कामरे ि के
पोशाक पहनी थी उसकी भाई कोलकाता में कम रे ट पाटी में ज्िाइन फकया
है वपछले बार जब घर आया था तो अपनी बहन को लेने की बात कही
थी पर बहुत ददनों तक िह ना आने से उनके घर पर पुललस की हमला
के कारि वपता माता के साथ िह जंगल में भाग जाते हैं और जंगल में
ही िह अकेला पड जाती है और उसके वपता उससे अलग हो जाते हैं
ददिाकर उसको साथ में रखता रहने से साथ साथ रहने से ददिाकर और
दे िी में प्यार उमडता है फर्र ददिाकर ने एक कामरे ि दोस्तों के घर लेकर
दे िी को रखता है रखती है िहां पर भी दे िी सुरक्षक्षत नहीं रहती उस पर
िह कामरे ि के एक ििेरा भाई ने उससे जबरदस्ती करता है िहां से
ददिाकर दे िी को लेकर िले आते है । ददिाकर और गरु
ु दे ि और उनके
सहयोगी ने लमलकर एक योजना बनाते हैं लशिराबत्र के ददन मंददर में
रात को पुललस स्टे शन पर हमला करके िहां से बंदक
ू और तोप िुराने की
योजना बनाए महादे ि उिने के समय पलु लस स्टे शन के मख्
ु य िहां पर
नहीं रहने का सि
ू ना उनके पास था परं तु उस ददन पलु लस के मख्
ु य
कमविारी ने अपने पररिार को लेकर मंददर आए थे और कुछ काम से
स्टे शन में रुक गए परं तु यह खबर ददिाकर को नहीं था महादे ि के उिने
के समय जब िह पलु लस स्टे शन पर हमला फकए तो बंधु को तो लाते
समय पकड जाते हैं पलु लस और ददिाकर और गरु
ु दे ि आमने सामने से
लडते हैं गुरुदे ि पर गोली लगता है गुरुदे ि ने ददिाकर को िहां से भाग
जाने की ननदे श दे ते हैं दोनों कुछ दे र तक जाते फर्र पुललस ने जब ज्यादा
हमला करते हैं तो ददिाकर अननच्छा से िहां से गरु
ु दे ि को छोडकर दरू
िला जाता है । ददिाकर दे िी को लेकर फर्र कटक पद में पानी के पास
आते हैं बहुत ददनों के बाद दोनों लमत्रों में लमलन एक अद्भत
ु पररदृश्य
ददखता है ।

विषाद और हषष

पद्मापाणि और पद्मालया की ग्रस्त जीिन का चित्रि है पदी अपने


पढ़ाई के साथ-साथ पद्द ू को स्ितंत्रता संग्राम में मदद करती है पद्मापानी
स्ितंत्रता संग्राम में लोग को उजागर करने के साथ-साथ मरीजों का इलाज
भी करता है। पद्दी पहली बार मां बनने जा रही है पर िह बच्िी होने
के नाते उसको इस अिस्था की कुछ भनक नहीं लगती पर पद्मापानी
िॉक्टर होने के नाते उसके स्िभाि से अंदाज लगाते हैं फर्र अपने आप
को दोषी मानते हैं परं तु पनत ने बहुत खुश होती है । अपने मां-बाप को
खबर दे ती है मातत्ृ ि एक अद्भत
ु और अलग अनभ
ु ि है खद
ु अपने ही
भीतर से एक शरीर को जीिन दे ने जा रही इसे सोिकर विजस्मत से
अलभभूत हो जाती है पगली कभी-कभी विव्रतभी हो जाती है इतनी बडी
बात संभि हो सकेगी सोिकर आश्ियव होती है । कुछ ददन बाद गांि से
खबर लेकर अवपतु कटक आता है की मां की तबीयत बहुत खराब है
वपताजी बोले हैं बैिने की जगह से उि कर आ जाने के ललए भैया को
कहां है पनत से पूछता है वपतु उसकी छोटा दे िर पदी ने बोली िह गांि
की तरर् गए हैं । भाभी और दे िर दोनों साथ में पद्मापानी सम्मेलन
की ओर िलते हैं िहां पहुंिने से ही पहले रास्ते में जनता और पलु लस की
दं गा मैं र्स जाते हैं िहां पर पुललस की दमनकारी रूप पदी को हत
िफकत कर दे ती है। परु
ु ष मदहला सभी पर पलु लस का मार पडता है हटात
दो पुललस िाले ने लािी उिाई और ऐसे प्रहार फकया लोगों को इस दृश्य
को दे खकर प दी की आंखें मूंद गई एक मदहला की िीख सुनाई दी फर्र
धआ
ु ंधार पलु लस िाले थे और दस
ू री तरर् दे खा फक िह अकेली खडी है
थोडा इधर उधर हो गई और पास में नहीं है वपतु पलु लस की और दे खते-
दे खते फकसी ने जोर से धक्का मारा परी नीिे चगर पडी नीिे चगरा उसने
लसर पर बुट प्रहार अनुभि फकया चगरने के थोडी दे र बाद उसे पता िला
फक उसका पेट के ननिले दहस्से में जलन हो रहा है मानो फकसी ने िलता
अंगार िभ
ु े ददया हो या जोर से कुतर रहा पद्दी की आंखें मंद
ू गई और
इतनी गमी में और भी गमव कुछ चगली िीजें बह आई उनके टखने के
जोड तक । उसने पैर में ऊपर गरमाहट को महसूस फकया। अिेत होने
से पहले उसे दे ख गया एक संद
ु र कमल के र्ूल को कोई पैरों में रौंदकर
थैंक्स रहा है और पैरों से कुिल रहा है। यहां एक गभविती मां की बच्िा
होने की अनुभि ददखाई दे ती है ।

पद्मापाणि मां को दे खने गांि जाते हैं मा की अंनतम अिस्था में जाकर
मां के पास बैिते हैं थोडी दे र

मां की इशारे पर बात करते फर्र अंनतम सांस छोड दती है । दरू
होकर िॉक्टर होकर अपनी मां की इलाज अच्छे से नहीं कर पाए और
उसकी रोग को अच्छे से पहिान नही पाने के कारि िह अपने आप को
कोसते हैं। पद्मापाणि सोि रहे हैं पहले नंद िािा लिि सत्याग्रह में
मत्ृ यु फर्र अपनी बच्िी जो जन्म होने से पहले पलु लस की मार से
सदहद हो गया अंत में मां की मत्ृ यु एक के बाद एक दख
ु उनके जीिन
में लगातार बनी रहती है।

संग्राम में शहीद हुए ओडिशा के कुछ प्रमुख नेताओं के बारे में ििवन
करते हुए उपन्यासकार सभ
ु ाष िंद्र बोस के बारे में कहते हैं फक िह कैसे
संग्राम में जेल गए थे और फर्र लौटने के बाद कभी उडीसा नहीं आए
कहां गए उसका कोई पता ही नहीं लमला गांधीजी और सुभाष िंद्र बोस के
नीनत एक दस
ू रे से बबल्कुल भी था दोनों फीसदी दे श भक्त थे और दे श
की आजादी के ललए अपने खन
ू की अंनतम बंद
ू बंद
ू अपवि करने के ललए
कसम खाई खाए थे उनकी जीिन ियाव भी िैसे ही थी लेफकन उनके मागव
अलग था गांधीजी का मागव था अदहंसा और सत्याग्रह िाहे जजतनी बाधा
आए पर सुभाष बोस की नीनत थी सशस्त्र विप्लि उनके बानी थी ।

स्िाधीनता तम्
ु हारा जन्म लसद्ध अचधकार है आजादी कोई दे ता नहीं उसे
छीन ना पढ़ता है विनती लमनती करके अधीनता नहीं लमलती संघषव करके
आना पडता है ।और दररद्रता के बीि अंग्रेजों के विरोध संग्रामकरने के
ललए मैं तुम्हें आदे श दे ता हूं जो सत्ता अलािा में तुम्हें और कुछ दे नहीं
पाऊंगा लेफकन मैं िादा करता हूं अंत में हम विजई होंगे आजादी प्राप्त
करें गे।

गांधीजी का लक्ष्य भी िहीं था हम विजई होंगे स्िाधीनता लाभ करें गे


लेफकन बबना रक्तपात से और असहयोग के बदले पर अदहंसा के बल पर
। िे जानते आप जैसा दाररद्र्य दहंसात्मक यद्
ु ध में अंग्रेजो से हार जाएगा
पररिाम लसर्व यही होगा फक आम भारतीय फक जीिन हनी होगी हो सकता
है अंग्रेज और कडा सासन िलाएगा और भारतीयों को भी पक फकतदास
बनाकर रखेगा कौन जाने कैसे सशस्त्र विप्लि के बाद हो सकता है जो
सकोि साल तक पराधीनता के घने अंधेरे में भारतीयों को सड सि मरना
पड जाए!

गांधीजी के आभार आहान से व्यजक्तगत असहयोग शरू


ु हो गया
विलभन्न नेताओं को चगरफ्तार फकया जा रहा था विलभन्न स्थानों पर
आंदोलन जारी था । जानत धमव ििव ननरिी ननलभव शेष में हर िगव के लोग
आंदोलन में शालमल थे ।

करो या मरो, छोडो… ितदु दव कग गंज


ू रहा था।

जनता उत्तेजजत होकर दहंसात्मक विद्रोह करने लगे 1942 अगस्त महीना
दहना भर सारा दे श जलने लगा कहीं थाने जला ददए हैं जनता तो कहीं
टे लीग्रार् दारुिा उखाड ददए हैं शराब की दक
ु ान जला ददए तो कहीं पलु लस
के र्ौजजयों के साथ ही झपट ललए हैं। 1943-1944 मैं मामला ज्यादा
बबगड गया था द्वितीय विश्ि युद्ध होनेका सूिना लमल रही थी । संग्राम
के बीि भी पद्मापानी ने अपने कतवव्य को नहीं भूले हैं मरीजों के इलाज
भी करते हैं अपने पररिार के ख्याल भी रखते हैं। इस बीि बद्दी दो दो
बार गभव नष्ट होने के बाद फर्र मां बनने िाली थी। सन ् 1947 अगस्त
14 तारीख रात को प्रसि िेदना आरं भ हो जाती है उस समय दे श में
हाहाकार मि रहा था लोग इधर-उधर हो रहे थे रास्ते में लोगों का भीड
था जहां ररक्शा या गाडी जाना संभि नहीं था अंत में पद्मपणि ननराश
होकर अपने बच्िे को खद
ु जन्म कराए। उसकी नाम ददए स्िाधीना, नाना
नरोत्तम खश
ु ी से बोल उिे स्िाधीन भारत की स्िाधीन कन्या’। निजात
लशशु पररिार में रोशनी लाई और साथ साथ स्मपूिव दे श 1947 अगस्त
15 दे श स्िाधीनता लाभ फकया।

उपन्यास में कुछ सामाजजक समस्याओं को चित्रि के साथ उसके ननदान


का भी ििवन है।

उपन्यास में कुछ मुख्य और गौरि पत्रों के माध्यम से उनके पररिार


के प्रनत उनकी जजम्मेदारी और दे श के प्रनत कतवव्य को उपन्यासकार ने
ददखाए हैं। इस उपन्यास में स्िाधीनता पि
ू व उडीसा जस्थनत स्िाधीनता
संग्राम के दौर की जस्थनत उससे स्िाधीनता संग्रामीयो की भलू मकाएं कुछ
मुख्य और गुि पत्रों के माध्यम से उनके पररिार के प्रनत उनकी जजम्मेदारी
और दे श के प्रनत कतवव्य को यहां उपन्यासकार ने मालमवक ढं ग से चित्रि
फकए हैं।
अभिप्रेत काल में राष्ट्रीय चेतना का विविध पररदृश्य
स्िाधीनता संग्राम के दौर में कुछ समाज सुधारक जैसे ईश्िर िंद्र
विद्यासागर प्रणित आदशव से अनुप्राणित होकर कुछ लशक्षक्षत सभ्य
व्यजक्तयों ने बाल वििाह , अनमेल वििाह , बाल विधिा व्रत गौना प्रथा
आदद को विरोध करते थे ।कटक में िी बैरागी लमिा ने बाल वििाह,
विधिाओं के पुनविविाह के पुरोधा बने थे। खुद अपने बेटी की भी पुनविविाह
करिाए थे। उपन्यास की नानयका पदमालया की भी बाल वििाह हुई थी
गौना होने से पहले 9 साल की उम्र में ही उसके पनत का मत्ृ यु हो जाता
है । उसे बाल विधिा व्रत पालने के ललए मजबरू फकया जाता है परं तु
उसके वपता नरोत्तमिौधरी शास्त्रज्ञ होने के नाते मनुष्यता के श्लोक
बताते हुए कहते हैं फक शास्त्रों में ललखा है ‘स्िामी सग लाभ न करने
िाली कन्या को िैधव्य नहीं लगता है ' तो मेरी बेटी विदा व्रत पालन नहीं
करे गी। 30 जन
ू 1930 में नरोत्तम िौधरी ने अपने बेटी की पन
ु विविाह
करने की ननष्पवत्त ललए जो फक तत्कालीन ब्राम्हि शासन के विरोध था
उनकी ऐसी संस्कार चित्त वििार ' मानो संक्रांनत के िंद्रहीन आकाश में
भोर का तारा उग गया था’।

उपन्यास के मख्
ु य परु
ु ष पत्र जो उपन्यास के नायक है पद्मापानी 24
िषीय युिक खूब संस्कृनत संपन्न और संस्कार िेतना के कहां है िॉक्टरी
की पढ़ाई भी पत्ता मैं कदटंग करके जेल जाने के बाद पढ़ाई छोड ददए थे
। उनका शपथ था यदद शादी करें गे तो बाल विधिा कन्या से ही करें गे
,जैसे िाहो िैसे ही रहो !उनके वििाह ब्राम्हि घराने के बाल विधिा कन्या
पदी से ही होता है। पदी फक जीिन उज्जिल होने के साथ उनके भी
इच्छा पूनतव होती है। समाज को एक उदाहरि दे ते हैं।

वििाह के बाद पत्नी को अपने समक्ष के अचधकार दे ने के साथ ही उसकी


बीि में रुकी पढ़ाई को पि
ू व करने के ललए विद्यालय (विधिा बोडिांग
स्कूल) में नाम ललख आते हैं। पराधीन समाज में नारी लशक्षा के प्रनत
जनता के ध्यानाकषवि फकए हैं ।पद्मापानी खुद िॉक्टरी पढ़ाई करना
आरं भ करते हैं साथ ही उडीसा के विविध स्िाधीनता संग्राम कथा आंदोलन
में योग दे ते हैं। जनता को उनके हक और अचधकार की मांग के ललए
उजागर करते हैं।

बाढ़ में ददनु अपनी पत्नी गुरुिार को खोने के बाद पद्मनपाणि के साथ
कटक िला जाता है । एक अनपढ़ और गांि के गिार होने के नाते भी
स्िाधीनता संग्राम में अपना फकरदार ननभाता है पद्मापाणि के बताए हुए
हर बात को मानता है पद्मापानी कहने से चिट्िी को लेकर जनता तक
पहुंिता है उसमें सात लसंह के बल 10 लोगों को मारने की ताकत है
अदहंसा मागव पर आंदोलन करने हे तु िह पुललस के प्रहार सहकर घर लौटता
है । स्िाधीनता संग्राम के विविध आंदोलन में जो नक्शा बनाया जाता है
, फकसी भी सि
ू नाएं को फकसी संग्रामी या जनता तक पहुंिाने के कायों
में ददनु का मुख्य भूलमका रहा है । उसने दे श की स्ितंत्रता के ललए
अपने जीिन को उत्सगव कर ददया था उसको ना पुललस के मार का भय
का िर था ना ही रात के घने अंधेरे का अपने कमव में िह सदै ि ऑडिक
रहता था।
संशोधर फकसानों की समस्या कटक कांग्रेस ऑफर्स में अिगत कराने से
उसको गांि के राजाओं के खुफर्या और पुललस लमलकर मरमत दं ि प्रहार
करते हैं जजससे िह अपने हाथ से पीडडत होकर कुछ ददन में गुजर जाता
है । पटािारा प्रनत आिाज उिाने से उसको दबेि ददया गया है ।

ददिाकर जो गांि में पलु लस और राजाओं के अत्यािार से त्रस्त अपने भाई


भाभी को खोने के बाद कटक िलाता है । पद्मापाणि के साथ लमलकर
गांधीजी के अदहंसा नीनत से विविध आंदोलन मैं शालमल होते हैं। सन1930
अप्रैल 6 को लिि सत्याग्रह में योग ददए थे। उनके जीिन का लक्ष्य था
दे श से विदे शी शासकों के शासन को हटाना स्िाधीनता प्राजप्त जजस कारि
अपने भाई की सपन इंजीननयररंग नहीं कर पाते हैं। प्रथम विश्ि युद्ध
के बाद समाज के जस्थनत गांधीजी के अदहंसा नीती से पस्त होकर कामरे ि
पाटी में शालमल होते है और जंगल में महीने मदहने भर रहकर अंग्रेज
शासक के प्रनत मोिाव तैयार करते थे। जंगल में खोई हुई दे िी को अपने
पास आिय दे ते हैं।

पद्मापाणि ददिाकर के साथ बहुत सारे स्िाधीनता संग्रामीयों को जेल


लेते समय रे ल में पलु लस के अत्यािार बहुत ददव नाक था वपटाई करके रक्त
ननकाल दे ते थे और पानी मांगने पर जि पेशाब र्ेंके ददिाकर के साथ
और एक शादी सत्याग्रह क्रोचधत हो जाते हैं और पुललस से हाथापाई करने
उिते हैं परं तु अदहंसा नीनत के माध्यम आंदोलन करने हे तु पद्मापानी के
इशारे से िह िप
ु रहते हैं। जेल की बदहाली बहुत ितर था। सत्याग्रही
बार बार जेल जाने से उनका तबीयत बबगड जाता था। नारी सत्याग्रही
कामरे ि पाटी की नारी नेत्री विनोददनी बार-बार जेल जाने से जेल के
अस्िस्थ करो पररिेश से रहने पर उसे रक्ताल्पता रोग लगती है । इस
रोग में ही उसकी दे हांत हो जाती है ।

पद्मालया कटक में पढ़ाई करने के साथ-साथ अपने पनत को स्िाधीनता


संग्राम में मदद भी करती है ।विधिा बोडिांग स्कूल में जब उन्हें माला की
पेट से होने का खबर लमलती है तो िह दोस्तों को इकट्िा करके स्कूल
के मुख्य दीदी से बात करने के साथ-साथ उस बच्िे को रखने की
ननष्पवत्त लेती है तब िह एक नारी नेत्री के भलू मका अदा करती है । छोटी
सी उम्र से ही उसमें राष्रीय िेतना कूट-कूट कर भरी ददखाई दे ती है ।

विश्िनाथ एक संभ्ांत पररिार के लडका है जो कोलकाता में िकालत पढ़ाई


करता था मातभ
ृ ूलम के प्रनत प्रेम और राष्रीय िेतना से उद्धत
ृ होकर िह
अपना पढ़ाई छोडकर स्िाधीनता संग्राम में योग ् दे ता है । घर छोडकर िह
आशादीप मैि में सत्याग्रह इनके साथ रहता है बार बार जेल जाता है ।

राष्रीय िेतना का भाि उम्र का ख्याल नहीं रखता है फकसी भी उम्र के


व्यजक्त में राष्रीय िेतना दे खने को लमलता है िाहे िह लशशु हो या बुद्धू
हो । इसका संपि
ू व झलक ईिड
ू ी से दांिी यात्रा जो लिि सत्याग्रह था
उससे दे खने को लमला है कैसे बच्िों से आरं भ कर के आिारा बद्
ु धू विनीता
ने लिि सत्याग्रह में योग्य ददए थे । पद्मापानी के नंद िािा िद्
ृ धा
अिस्था में ही लिि सत्याग्रह में योग थे। पर पुललस के प्रहार से उनका
दे हांत होता है । उपन्यास के आराम से अंत तक की विविध पररदृश्य में
राष्रीय िेतना पि
ू व रूप में चिबत्रत है ।
पाररिाररक सामाजिक संबंधों की दायरा

कुछ व्यजक्त को लेकर पररिार होता है और कुछ पररिार को लेकर


समाज । पाररिाररक सामाजजक संबंध में कुछ घटना के िजह से ही
दरार पडता है अपने अपनों से दरू ी बरतते हैं। नरोत्तम िौधरी अपने बेटी
को विधिा व्रत रखने नहीं दे ते हैं । यह तत्कालीन ब्राह्मि समाज के
विरोध था इसललए अपने पररिार और गांि के मणु खया कमला िािा सदहत
कुछ गांि के बुजुगव ने उसे गांि से आग पानी बंद कर दे ते हैं उसके खेत
में हल नहीं जोती जाती है। उसके बच्िों को स्कूल में बैिने नहीं दे ते हैं
उससे हर तरह से गांि की कायव से दरू ी रखते हैं। उसके भाइयों ने उससे
अलग हो जाते हैं।

पद्मापानी की संकल्प शादी लसर्व बाल विधिा कन्या से करें गे जब पदी


से वििाह करते हैं तो उनके वपता माता उनको साथ नहीं दे ते हैं। वििाह
भी दोस्त विश्िनाथ के घर पर होता है , उनके वििाह में उनके कुछ
स्िाधीनता संग्रामीयो ने योग दे ते हैं । शादी के बाद घर जाने से भी उन्हें
घर में प्रिेश करने नहीं दे ते हैं। पद्मापानी िॉक्टरी पढ़ाई छोड कर
स्िाधीनता संग्राम में योग दे ना उनके वपता को पसंद नहीं था ।

लमत्रों में सामाजजक संबंध बहुत गहराई होता है । नरोत्तम अपने दोस्तों की
परामशव से ही अपने लडकी के ललए एक उत्तम पात्र ढूंढ पाते हैं। पद्मापानी
ददिाकर विश्िनाथ तीनों लमत्रों और कुछ सत्याग्रह लमलकर आशादीप मेष
में रहते हैं अंग्रेज सरकार के विरुद्ध मोिाव तैयार करते थे। समाज में कुछ
कुसंस्कार, अंधविश्िास, जानत प्रथा आदद का प्रिलन पररिारों मैं सामाजजक
दायरा प्रस्तत
ु कर दे ती है जानत प्रथा के कारि विश्िनाथ और बबनोददनी
की शादी नहीं हो पाती है। पछता को मंददर प्रिेश का ननषेध एक सामाजजक
व्यिस्था बना ददए थे।

ददिाकर कटक से गांि आने के बाद कामरे ि पाटी योग दे ने जा रहे थे


जंगल में बद्
ु ध मदहला से मल
ु ाकात होता होती है होता है उनके घर पर
एक ददन वििाम लेते हैं और अपने बंधु को छुपाते हैं दोनों में माता पत्र

फकसने बढ़ जाती है अनजान होकर भी िह ददिाकर को अपने पुत्र जैसे
प्रेम करती है। ददिाकर कुछ कामरे ि के दोस्त और मुख्य नेता के साथ
पलु लस स्टे शन में हमला करने के बाद जि पकडे जाते हैं तो उनके मणु खया
अपनों को जोणखम में िालकर ददिाकर को िहां से भगा दे ते है ।

ददन्नू को बाढ़ ग्रस्त पररिेश से उधार करके पद्मापाणि अपने जलने हूं
बबन्नू को

दे खकर उससे अपने ििेरे भाई का पररिय दे ते हुए आशादीप में रखते
हैं। हैं साथ में सन
ु ें उसकी पररिय ििेरा भाई दे कर उसे जनेऊ दे कर अपने
पास रखते हैं।
राष्ट्र राज्य के प्रतत उत्तरदातयत्ि का तनिाषहन
पद्मापाणि अपने िॉक्टरी पढ़ाई छोड कर स्िाधीनता संग्राम में योग
दे ते हैं गांधीजी के अदहंसा नीनत के उपासक थे । अदहंसा आंदोलन ,लिि
सत्याग्रह, अइन अमान्य आंदोलन , असहयोग आंदोलन विविध सत्याग्रह
आंदोलन में योग दे ए। । जेल से आने के बाद फर्र िह िॉक्टर की पढ़ाई
शुरू करते हैं। कटक आशादीप मेस में रहकर उन्होंने जनता को स्िाधीनता
संग्राम के ललए जागरूक करते थे। मरीजों का इलाज अभी करते थे।
उत्कलमणि गोपाबंधु जो प्राकृनतक आपदा से प्रभावित लोगों के ललए
दे िता माने जाते हैं उनके दे हांत खबर पद्मापाणि को दहला दे ता है । तो
गोपाबंधु दास के सपनों को पूिव करने के ललए शपथ लेते हैं। बासुदेिपुर
में बंद टूटने के बजे अद्भुत पूिव बाढ़ िारों तरर् र्ैल जाती है । पद्मापानी
और कुछ उनके लमत्र लमलकर उन ग्राम िालसयों को पानी के घरों से उधर
करने के साथ खाद्य पदाथव भी दे ते हैं । ददनक
ु ो एक पेड से उधार करके
लाते हैं तब से ददनु उनके पास कटक में ही रहता है। राजाओं के विरुद्ध
जाने कभी फकसी का हाथ काट ददया जाता है तो फकसी को सूली पर िढ़ा
ददया जाता था जैसे िक्रधर बहरा का हाथ काट ददया गया था बाद में उसे
शलु ल पर िढ़ा ददए थे।उस समय संशोधर अपनी जान की परिाह ना कर
के कोटक कांग्रेस ऑफर्स में फकसानों की समस्या तथा गांि में अंग्रेज
शासकों और राजाओं का शोषि के विरुद्ध सूिना ददए थे।

ददिाकर राष्र के प्रनत अपना उत्तर दानयत्ि ननभाते हुए अंत में दहंसात्मक
विद्रोह कामरे ि पाटी में जोग दे ते हैं । गांधी जी के आव्हान से सत्याग्रही
के साथ साधारि जनता की भीड इस पररदृश्य से तत्कालीन समय में
अंग्रेज शासकों के विरुद्ध जनता के आक्रोश ददखाई दे ता है । जब सारे
जनता लिि सत्याग्रह में आगे बढ़ते हैं पुललस ने विदे हपुर समुद्र के
फकनारे जनता को घेर लेते हैं तब कुछ जनता जजसे पद्मापानी नंद फकशोर
आदद िहां से छूट कर आगे बढ़ते हैं नमक का पत
ु ली साथ में रखकर िह
बोल उडते हैं जातीय कवि नंद फकशोर दास की पंजक्तयां उनके मुख में
उच्िररत हो जाता है

“गया सब कुछ खत्म हो गया भाई !

यह अनीनत शासन िलेगा नहीं!

लिि सागर भरा, विधाता का ददया सारा

उसे मारकर खाने का हक, हमारा नहीं, हमारा नहीं।“

इससे अंग्रेज सत्ता के प्रनत जनता की आक्रोश पूिव विद्रोह दे खने को लमलता
है कैसे विदे लशयों ने काटकर जनता पर अपना शासन िलाते हैं उस से
त्रस्त होकर जनता अपने अलभव्यजक्त को कविता के माध्यम से व्यक्त
करते हैं।

राष्र राज्य के प्रनत पुरुषों की ही उत्तरदानयत्ि नहीं थी उनमें नाररयों के


ललए योगदान दे खने को लमलती है जैसे पदमालया अपने स्कूल की सहे ली
माला के ललए आिाज उिाती है उसको और उसके बच्िे को समाज में
हक दे ने के ललए िह स्कूल की मख्
ु य दीदी से बात करती है एक नारी नेत्र
की तरह। बबनोददनी ब्राह्मि कन्या होने के नाते िीनगर संग्राम में योग
दे ती है िह कामरे ि पाटी के मुख्य नारी नेत्री थी। कामरे ि पाटी के प्रिार
पत्र छपिा ना सही जगह उन्हें पहुंिाना िलमक सिवहारा और फकसान
फकसान को गप्ु त सभा को आमंबत्रत करना भाषि दे ना और उन्हें एकजट

करने हे तु प्रिार पत्र आददबांटने जजसे काम का दानयत्ि मुख्य तो विनोद
ननभाती थी। इस प्रकार उपन्यास के अनेक नारी और पुरुष पात्रों ने राष्र
राज्य के प्रनत अपना उत्तरदानयत्ि ननभाए हैं ।

िीिन संघषष के विविध आयाम


जीिन का नाम ही संघषव है संघषव से ही मनुष्य जीिन िलता है विविध
प्रकार के समस्याओं के साथ संघषव करके िह जीिन में आगे बढ़ता है
िाहे िह पाररिाररक आचथवक सामाजजक या राजनैनतक आदद।

इस उपन्यास में स्िाधीनता संग्रामीयो की तथा असहाय नारी,


ननम्न जाती के लोगों केजीिन संघषव को बहुत मालमवक ढं ग से ललखा गया
है । ददिाकर फक वपता माता को भगिान बिपन से ही उनसे छीन ललए
थे। िह अपने भाई और भाभी के सहारे जीता था भैया संशोधर अंग्रेजी
तथा राजाओं के शासन व्यिस्था के विरोध जाने से उन पर ननमवम वपटाई
होता है प्रहार से कुछ ददन पक्षाघात में पीडडत होकर मत्ृ यु िरिकरते
हैं भाभी दष्ु कमव के लशकार होकर कुएं में कूदकर अपना जान दे दे ते हैं।
ददिाकर के ऊपर छाया नाम का िीज उि जाता है उसकी यह ददव नाक
पररजस्थनत को िह फकसी को बता भी नहीं सकता है भले ही िह भाई के
बारे में पद्मापानी विश्िनाथ को बता दे ता है पर भाभी के बारे में अंत
तक फकसी को कुछ बता भी नहीं सकता है ।

नेती की पनत राजा के दरबार में राजा के सेिक था पर उन्हें कुछ


कारििश राजा ने मत्ृ यद
ु ं ि दे दे ते हैं पनत की मत्ृ यु के बाद ननराचित होकर
जीविका के ललए 9 साल की लडकी को साथ लेकर भटकती रहती है गांि
की एक नरी नामक दे िर को अपने ललए जीविका ढूंढने को कहती है तो
नरी कटक के दे िी मंददर में उसे झाडू पोछा कायव में ननयुक्त करने के
ललए ले जाती है । िहां पर मंददर के परु ोदहत जनादव न से लमलाता है
।जनादव न पहले तो इंकार कर दे ता है बाद में उसकी रूप और सौंदयव की
प्यासा बनकर उसको कमव में रखता है परं तु उसको उसके पररिम के
अनुसार पाररिलमक लसर्व दो िक्त की खाना दे ता है उसको शारीररक
मानलसक शोषि करता है । नती अपने और अपनी बेटी की गज
ु रान के
ललए जनादवन के हर अत्यािार को सहती है । ऐसे ददव नाक जीिन संघषव
उसके अंनतम सांसे तक रहती है यह मनुष्य को फकस जस्थनत में ले जाती
है उसका अनूिा चित्र ददखता है । ना िाहते हुए भी नारी अपने जीिन
कसौटी में पीसकर गलत रास्ता में िलती है ।

स्िाधीनता पि
ू व समाज में कुछ कुसंस्कार का आिंबर पण्
ु य
पालन फकया जाता था जैसे बाल विभाग विधिा व्रत का पालन आदद ।
बिपन में बच्िी से उसके बिपन छीन ललया जाता था ।लडकी इसमें
ज्यादा प्रभावित थी छोटी उम्र में उसकी शादी कर दे ते हैं जि छोटी उम्र
में उसकी पनत गज
ु र जाती है तो उसको जबरदस्त विधिा व्रत पालने के
ललए समाज मजबरू कर दे ती है यह व्रत के ननयम अनस
ु ार उसे एकादशी
के ददन ननजवला उपिास करनी पडती है , जीिन भर उसे सर्ेद धोती
पहनने पडती और उसे मुंिन करिा पडती है इस प्रकार धमव के नाम से
अत्यािार और प्रताडना का लशकार होकर नरोतम िौधरी की बहन है
तालाब में कूद कर जान दे दे ती है।

ददनु और गुरुिारी उनकी एक बच्िी 3 साल की थी जो रोग ग्रस्त


होकर चिफकत्सा के अभाि से अभाि से मर जाती है एक ही संतान वपता
माता से बबछड जाती है उन माता-वपता की जो ददव नाक जस्थनत समाज में
एक ननजीि प्रािी जैसे हो जाती है । बाढ़ आने पर गरु
ु िारी भी बाढ़ के
जल से लीन हो जाती है चगन्नू की जीिन एक बोणझल हताशा ननराशा से
भर जाता है तब िह सारे ररश्ते नाते छोड कर कटक िला जाता है ।

स्िाधीनता पि
ू व समाज में नारी की जस्थनत बहुत दयनीय थी।

स्िाधीनता संग्रामीयों लि
ु छुप के संगिन बैिाना आंदोलन में योग
दे ना विविध आंदोलन के योगदान के कारि बार-बार जेल जाना पडता
है कुछ दहंसात्मक विद्रोह करते हैं कुछ अदहंसा विद्रोह करते हैं दोनों की
जीिन संघषव ददवनाक है।

स्िाधीनता संग्राम में महान मानिों की योगदान जैसे जय राजगरु



और लसपाही विद्रोह के अचधनायक बक्सी जगाबंधु , पद्मापाणि महान
मानिों की दे श प ् दे श प्रेम उनकी िीरता और स्िाधीनता प्राजप्त के ललए
उनके जीिन संघषव का अविस्मरिीय छाप छोड ददए हैं।
कामरे ि पाटी के सदस्यों कामरे ि के मख्
ु य नेता सरु रं जन दास साथ उनके
कुछ लशष्य और ददिाकर , कामरे ि के नेत्री विनोददनी आदद महीने महीने
तक जंगल में रहते हैं । न जंगल के जानिरों की िर था ना ही धूप और
न बरसात की उन पर कुछ प्रभाि था ।ऐसी ददव नाक जस्थनत में जी कर
आंदोलन कर रहे थे। सभी स्िाधीनता सत्याग्रदहयों को बार-बार पलु लस
के प्रहार पडता है और उन्हें जेल ले जाते हैं जेल की जस्थनत बहुत बदतर
थी जेल में सूयव की रोशनी नहीं पडती थी और जेल के अंदर किरा का
ढे र था मच्छर मजक्खयां ने िहां से घर बना ददए थे िारों और िारों
ओरकूडा कूडा किरा का ढे र था।

िह सांस रुक जाती थी जैसे मानो साल भर की किरे पडा है उिाया


गया नहीं गया है । नहाने के जगह मानि नरक कंु ि था खाने के िीज
खाने के नाम पर भी बदबद
ू ार िािल का भात और उस पर हल्दी का पानी
जैसी दाल दे ते थे। राजनीनतक बंदी और अपराचधयों में कोई अंतर नहीं
थाएक । पुललसअपनी मजी से वपटाई करता था। ऐसे ददव नाक संघषवपूिव
जीिन स्िाधीनता संग्रामी ने बबता रहे थे।

समाज संस्कृनत ननमावि में स्त्री की भलू मका


सजृ ष्ट का ननमावि नारी से ही होती है । इस उपन्यास में नारी पात्री र्द्दी
से एक नूतन संस्कृनत परं परा का ननमावि होती है । ब्राह्मि घराने के
विधिा कन्या पद्दी की वपता नरोत्तम िौधरी शास्त्रों में िणिवत श्लोक '
मनुसंदहता' को उदाहरि दे ते कहे की उस में ललखा है स्िामी संग लाभ न
करने िाली कन्या को िैधव्य नहीं लगती । बाल विधिा होने के नाते
उन्होंने अपनी पत्र
ु ी पद्दी की पन
ु विविाह करिाते हैं। कटक में िी िैराग्य
लमिा जी के सहायता से जो तत्कालीन समाज में बाल विधिाओं के
पुनविविाह के पुरोधा थे ।

र्द्दी अपने विधिा बोडिांग स्कूल की एक सहपािी माला की


दरु ािस्था को जानने के बाद उसके प्रनत हुई अन्याय के विरोध लडनी
िाहती है। माला के पेट में रही बच्िे को उसी विधिा बोडिांग स्कूल में ही
रखने की ननष्पवत्त लेती है स्कूल के कुछ दोस्तों को इकट्िा करके इस
बात पर बात करते हुए िह स्कूल के मख्
ु य दीदी से जाकर बात करती है
और माला को िहीं रहने की और उसकी बच्िी का जन्म िहीं पर होने
और िही दोनों को रहने की मांगा बोडिांग स्कूल के मुख्य दीदी से करती
है ।

वििाह पि
ू व में माला की मातत्ृ ि को चगराने नहीं दे ती है एक नत
ू न संस्कार
की सजृ ष्ट करती है।

नेनत और उसकी बेटी परी पर जनादव न का शोषि अत्यािार बहुत


ज्यादा था जब नीनत की तबीयत ज्यादा बबगड जाने से परी मां को छोडकर
काम में नहीं जाती है । जनादव न गस्
ु से से आकर रोग ग्रस्त नेनत को लात
मारने के साथ-साथ उसके गला दबाने की कोलशश करता है तब परी
अपने मां को बिाने के ललए सब्जी काटते हुए िाकू से जनादव न पर िार
करती है ।जब शोषि और अत्यािार का घडा पूिव हो जाता है तो अंत
ऐसा ही होता है।
जनादव न के पत्नी एक भारतीय नारी की भलू मका अदा करती है अपने पनत
के ननिवय को साथ दे ती है भले ही उसे बहुत सारी तकलीर् या सहनी
पडती है पर अंत में उनकी आशा पूनतव होती है पदी की पुनविविाह होती
है ।

स्ितंत्रता आंदोलन में दे िी और विनोददनी की भलू मका अनन्या रहा है


समाज के ललए िह अपनी जान को ननछािर कर ददया थे।

क्ांततकारी विचार दृजष्ट्ि तानाशाही व्यिस्था


उपन्यास के आरं भ से अंत तक क्रांनत का ही चित्रि दे खने को लमलती
है क्योंफक इस उपन्यास में उडीसा के स्ितंत्रता आन्दोलन तथा तत्कालीन
समाज में सामाजजक समस्याएं सत्याग्रदहयों की जीिन शैली उनकी
आंदोलन में योगदान और उनके पाररिाररक जीिन और आंदोलन में उनकी
भलू मका का ििवन है। व्यजक्त अपने दानयत्ि पररिार और दे श के प्रनत कैसे
ननभाती है यहां उपन्यास में ददखाई दे ती है ।

कननका राजा अंग्रेजों से लमलकर फकसानों पर 64 प्रकार के कर लगाते हैं।


यहां तक अकाल के सामान भी कर में कोई ररयासत नहीं दे ते थे। जमीन
बंजर पढ़ने पर भी फकसानों से कार िसूल करते थे। फकसानों को लग रहा
था फक मानो िारों ओर से दबाए जा रहे हैं और घुट घुट कर मर ना ही
अंतर था। िह लमलजुलकर राजाओं को अपने दरु ािस्था को अिगत कराएं
परं तु राजा ने उनकी कोई बात नहीं सन
ु ी उनको कर िसूल करना ही था।
शोषि और अत्यािार की जस्थनत में जन असंतोष बढ़ने के कारि जनता
ने विविध मंददर जंगलों में राजा लसपाही को नछप कर संगिन करते थे
उसमें शालमल लशक्षक्षत बुद्चधमान व्यजक्त िक्रधर बहरा था इस खबर राजा
को पता िलने से राजा ने उसे मत्ृ युदंि दे दे ते हैं उसके बाद जनाक्रोश
ज्यादा बढ़ जाता है जनता क्रोचधत होकर कटक कांग्रेस ऑफर्स में अपने
पर हो रहा जल्
ु म के बारे में अिगत कराते है ।

जनता पर प्रशासन तथा पुललस का ज्यादा अत्यािार था कुछ भी


घटना होती थी तो गांि में पुललस और राजाओं के कुछ सैननक आकर
सभी को मारपीट करते थे और संद
ु र कन्या को अपनी िासना का लशकार
बनाते थे ऐसे समाज के दरु ािस्था थी फक लडफकयों को बाहर ननकलने के
ललए िर लगता था हर रोज ऐसे घटना होती थी राजाओं की खुफर्या और
पुललस ओं के कुछ कमविाररयों ने आकर जनता को मारपीट करते थे।

बक्सी जगबंधु के नेतत्ृ ि से 1857 को लसपाही विद्रोह आरं भ हुआ


था जो समि
ू े भारत में अंग्रेज के विरुद्ध प्रथम जनता विद्रोह था इससे
जनता बहुत उचित हुए थे। गांधी जी के नेतत्ृ ि में स्िदे शी आंदोलन
असहयोग आंदोलन आरं भ हुआ था बीि में िोरा िोरी हत्याकांि के बाद
सन 1920 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को स्थचगत रखने के ललए
घोषिा फकए थे। उनका उम्मीद था साइमन कमीशन के समझौते में भारत
को स्िराज लमल जाएगा । गांधी जी ने कोलकाता कांग्रेस अचधिेशन में
मांग रहे थे फक पूिव स्िराज अथिा स्ितंत्रता न दे ने से आईन अमान्य
आंदोलन आरं भ होगा। अंग्रेजों को 1 साल की समाचध पर अंग्रेजों अमान्य
करने के हे तु आईना अमान्य आंदोलन आरं भ हुआ इस आंदोलन में कौि
अनु कौि से जनता शालमल हुए थे। प्रथम पयावय में लिि कानन
ू भंग
करने की योजना हुई नमक का कर नहीं दें गे और दे श भर में भारत के
लोग समुद्र के पानी से नमक खाएंगे नमक अंग्रेजी सरकार से नहीं खरीदें गे
अथिा कर नहीं दें गे यह समद्र
ु का फकनारा हमारा है हम नमक बनाएंगे
खाएंगे फर्र नीनत बनाई । दे श भर में उसे ‘लिि सत्याग्रह ' के नाम से
नालमत फकया गया। लिि सत्याग्रह में ने दे श को स्ितंत्रता संग्राम को
एक नया मोड ददया जानत धमव और उम्र की लभन्नता के बािजूद भारतीयों
को एकजट
ु कर ललया था इस आंदोलन में परु
ु षों से आरं भ करके स्त्री
बच्िों से आराम कर के विरुद्ध तक सभी शालमल थे। यह सत्याग्रह का
यात्रा इंिोली से दांिी तक हुआ था इसके मुख्य नेतत्ृ ि महात्मा गांधी ललए
थे और सभी सत्याग्रही के साथ साधारि जनता के भीड अंग्रेज शासन
के प्रत्यय विरोधाभास को झलकता है । लसर्व लिि सत्याग्रह में नमक
मारना ही उनका उद्दे श्य नहीं था । नमक तो सबको िादहए धनी िगव
को और गरीब को नमक ना हो तो जजंदगी ही ना िले और इसके साथ
ही शराब अर्ीम की बबक्री रोकना विदे शी िस्त्र जला दे ना विदे शी सामग्री
को नकारना सरकार को कर न दे ना कुल लमलाकर गांधीजी का मानना
है फक दे श के सभी लोग एकजट
ु होंगे और कोई नैनतक दब
ु ल
व नहीं रखेंगे
इस माध्यम से जनता खुद अपने हक की मांग करें ग।े

क्रांनतकारी वििार दृजष्ट पद्मपाणि ददिाकर विश्िनाथ ददनु


परी पदी ददिाकर विनोददनी नंदफकशोर नरोत्तम िौधरी कामरे ि के नेता
सरु जंदास पात्रों में दे खने को लमलता है ।
तत्कालीन समाज में अंग्रेजों और राजाओं के तानाशाही व्यिस्था से जनता
त्रस्त हो गए थे उन्होंने अपनी मजी से विविध प्रकार के कर लगान िसूल
कर रहे थे और विविध प्रकार शासन ननयम बनाकर साधारि जनता
फकसान िलमक िगव को शोषि कर रहे थे। तत्कालीन ब्राह्मि समाज के
एक अनि
ू ा ननयम प्रिललत था बाल विधिा की व्रत जजससे बाल विधिा
कन्या को शोषि फकया जाता था विविध ननयम उस पर लगा कर उसके
जीिन को और पीडा से धकेल दे ते थे। ब्राह्मि समाज खुद बनाई हुई
रीनत ररिाज से खद
ु व्यचथत हो गई थी जजसके विरोध नरोत्तम िौधरी ने
अपनी आिाज उिाई थी। स्िाधीनता पि
ू व समाज में िगव और ििव व्यिस्था
में बहुत सारे रीनत ररिाज को आिंबर पूिव पालन करते थे। जानत प्रथा
छुआछूत के भेदभाि आदद बहुत प्रिललत था। तत्कालीन तानाशाही व्यिस्था
ने ही इस प्रकार के कुसंस्कार को जन्म ददया था।

सरकारी तंत्र तथा मठाधीशों की हठधभमषता


स्िाधीनता पूिव समाज में सरकारी तंत्र सांसोंको की अनुकूल था। सरकारी
तंत्र एक िदटया था संभ्ांत िगव के ललए कुछ और था और ननम्न िगव के
ललए कुछ और था ।अपने तथा अपने पद के सुरक्षा के अनुसार तंत्रों का
ननमावि करते थे। साधारि जनता फकसान मजदरू ननम्न िगव के लोगों ऐसे
एक िदटया तंत्र से शोवषत हो रहे थे।

सरकारी तंत्र के अनुसार स्िाधीनता सग्रामीिों को बबना दोष से मूनतवमंत


प्रहार फकया जाता है आंदोलनकारी के साथ साधारि जनता को भी जेल
ले जाते थे। पलु लस घटना की स्थान पर जजस जनता को भी पाता आता
है उसको लेकर जेल में रख दे ता है और अपने दहसाब से उस पर जल्
ु म
करता है । सरकारी तंत्र मैं सरकार लसर्व प्रनतष्रुनत ददखाते हैं ।जनता को
फकसी भी कदिनाइयों से ऊबातें नहीं है । ददन ि ददन ज्यादा ननयम लगाकर
उसको और ही बदहाली में धखेल दे ते हैं। धनी िगव प्रनतजष्ित व्यजक्त की
जस्थनत समाज में ददन में ददन सध
ु ार आता था िह ददन िो ददन आगे
बढ़ते थे उनके आचथवक जस्थनत सुधार हो जा रहा था। संभ्ांत और प्रनत
िगव ज्यादा समद्
ृ ध उन्ननत करते थे से िगव में िले जाते हैं जो ननम्न
िगव है गरीब िगव के लोग ददन-ब-ददन गरीबों की िरम सीमा पर पहुंि
जाते थेउच्ि िगव की राह उि ् ददखाई दे ते हैं परं तु सरकारी कायावलय का
फकसी भी उन्ननत नहीं हुआ है घसीट ले जाते थे जेल में रख दे ते थे ्।

पुललस ने आंदोलनकारी सत्याग्रही को जल लेते समय अपने अपने इच्छा


से उन पर लािी िलाता है फकसी का हाथ तोड दे ता है तो फकसी के पांि
तो तोड दे ता है और शरीर को खन
ू से सना दे ता है ।

सरकारी तंत्र में इतने सारे ननयम बनाते हैं परं तु खुद के सरकारी
व्यिस्था के कायावलय की बदहाली उनको ददखाई नहीं दे ता है जेल की
अव्यिस्था जजसके कारि कई सारे कैदी राजनीनतज्ञ विविध रोग ग्रस्त
होकर प्राि िला जाता है । ददिाकर और पद्मपाणि जजस जेल में रहते हैं
िहां पर राजनैनतक को और गरीबों को एक साथ रखा जाता है उनके ललए
अलग व्यिस्था नहीं है जेल का पररदृश्य ऐसे बदतर है फक िहां पर सूयव
फकरि ही नहीं पडता है और िहां पर जैसे किरा का ढे र बबखरा हुआ है
खाने के नाम पर लसर्व भात और हल्दी के पानी जैसी दाल नहाने का
स्थान जैसे नकव कंु ि था ।िारों तरर् मच्छर और मजक्खयों का घर था।
िहां सत्याग्रहयो ने बार-बार रहने से उनको रफ्तारलोत होता है ।

मंददर मिो में भगिान का नाम स्मरि फकया जाता है । धालमवक


लोग रहते हैं परं तु धालमवक आिरि में धालमवक पाखंडियों का भी कमी
नहीं है ।इस उपन्यास में ब्राम्हि जनादव न एसी दायरे में आता है जो
ननराचित नीनत को अपनी मंददर में दे िी मां के कायों के ललए रखती है
परं तु रात को उसको अपनी पैर दबाने के ललए बुलाकर उसके साथ
नाजायज संबंध रखता है िह ननराचित गरीब होने के नाते मजबरू रहती
है ऐसे मिाधीश का दबदबा तत्कालीन समाज में िलता था अपने नाम
के खानतर तथा अपने पदिी को सामने रखते हुए विविध प्रकार के शोषि
कर रहे थे। नारी की यौन शोषि से आरं भ करके शारीररक मानलसक
शोषि कर रहे थे। यहां तक जनादव न पंिा ने अपनी मानिीता को खौ
दे ते हैं एक अपनी बेटी के उम्र की लडकी (परी )को भी नहीं छोडते हैं
उसको अपनी कामनाओं के लशकार बना दे ते हैं।

विश्िनाथ अपने दादाजी के साथ पूरी मंददर घूमने आए थे ।


जगन्नाथ दशवन करने से पहले भक्तों को प्रदक्षक्षिा करनी पडती थी इस
व्यिस्था को विश्िनाथ ने नहीं मानते हैं। उनकी मौत था ईश्िर तो सबका
है उनके दशवन के ललए इतना पैसों की क्या जरूरत परं तु तत्कालीन सेिकों
ने बबना प्रदक्षक्षिा लेते जगन्नाथ दशवन नहीं कराने दे ते हैं भक्तों को
यह एक कट्टरपंथी व्यिस्था थी ।
पद्मापाणि परु ी जगन्नाथ मंददर को प्रिेश करने से पहले गरुड स्तंभ के
पास खडे होकर सोिते हैं। जगत के नाते जगन्नाथ में जनजीिन के
लसरमोर लेफकन उन मनुष्य के ललए ओडडया होने पर भी कविश ननजश्ित
और तम
ु लोग क्या इंसान नहीं है क्या जगन्नाथ उनके आराध्य दे िता
नहीं है िह लोग लसर्व साल में एक बार अपने प्राि के दे िताओं को दे खने
आते हैं और 9 ददनों में नहीं इस व्यिस्था को लेकर उनके मन में बहुत
बडा असंतोष था यह ननयम कौन बनाया है । स्िाधीनता पूिव दे श के
सरकारी तंत्र की ऐसे व्यिस्था थी तथा विविध प्रकार धमव के नाम पर
शोषि फकया जाता था धमव के नाम पर पाखंिी उनकी कमी नहीं था।

हहंद स्िराज्य की पररकल्पना अहहंसा का मार्ष


दहंदी स्िराज्य यानी दहंदओ
ु ं की स्िराज्य। स्िराज्य का शाजब्दक अथव है
‘स्िशासन 'यह शब्द स्िाधीनता की मांग पर बल दे ता था । स्िराज्य का
अथव केिल राजनीनतक स्तर पर विदे शी शासन से स्िाधीनता प्राप्त करना
नहीं है बजल्क सांस्कृनतक नैनतक स्िाधीनता का वििार भी इसमें ननदहत
है यह राष्र ननमावि में परस्पर सहयोग मेल लमला पर बल दे ता है । शासन
के स्तर पर यह सच्िे लोकतंत्र का पयावय है । पराधीन समाज में हर
व्यजक्त स्ितंत्र होने के ललए तडपता था।

पदी और पद्मापाणि की पररकल्पना था। दे श स्ितंत्र होने से सभी


को समान अचधकार लमलेगी। सरकार के तरर् से सभी प्रकार के सुविधा
जनता को प्राप्त होगी। लशक्षात परीषर बढ़े गी और समाज में नारी लशक्षा
को महत्त्ि लमलेगी। लडफकयां पढ़ाई कर पाएंगे नौकरी करें गे। सनमान के
साथ जजएंगे । समाज में प्रिललत विविध प्रकार की कुसंस्कार को हटा
ददया जाएगा विधिा कोई होती तो उसका पुनविविाह होगा उन पर कोई
प्रनतबंध नहीं रहें गा। लडफकयों पर कोई प्रनतबंध नहीं रहे गी समाज में नारी
और परु
ु ष की रहे गी घर घर में बबजली बत्ती जले ही पीने के ललए पानी
नल की व्यिस्था हो जाएगी नददयों पर ढे र सारे र्ूल बनेंगे और रे लगाडडयों
की सुविधा हो जाएगी ढे र सारी अस्पताल खुलेंगे स्कूल और कॉलेज की
सुविधा लमलेगी बीमाररयों के ललए खुलेगा लोग सभी पडेंगे और नौकरी
करें गे सबके हाथ में अच्छी खासी रकम होगी जहां जहां राजा राजिाडे हैं
िह सब बंद होंगे राजा लोग आम आदमी की जजंदगी बबताएंगे फकसानों
को ऐसे सारी सुविधाएं लमलेगी लोग आम आदमी की जजंदगी बबताएंगे
खेती करने के ललए सरकार उन्हें हर प्रकार के संसाधन उपलब्ध कराएंगे।
सभी लोगों को अपनी इच्छा अनस
ु ार जीने का मौका लमलेगा सभी आजाद
होंगे जो भी हो सब खश
ु होंगे ।

स्िाधीनता संग्राम के मुख्य नायक जानतर वपता महात्मा गांधी


थे उनका मुख्य नीनत था अदहंसा और सत्याग्रह । पद्मापाणि के ललए
गांधीजी फकसी दे िता से कम नहीं थे। उनकी ही नीनत से अनप्र
ु ाणित होकर
आंदोलन करते है। ददिाकर विश्िनाथ दे िी विनोददनी नंदफकशोर आदद
पत्रों ने अदहंसा नीनत से स्ितंत्रता संग्राम में आगे बढ़ते हैं। विविध प्रकार
आंदोलन संगिनों में योग दे ने के कारि उन्हें पुललस पकड कर ले जाता
था। पलु लस के प्रहार को िुपिाप सेह जाते थे। लिि सत्याग्रह में रास्ते
में सत्याग्रह क्यों को जब पलु लस घेर लेता है तब पद्मापानी ने नहीं जाने
फक िह पुललस थे तो िह एक-एक करके सब लािी उिाते हैं जजसने के
ललए जंगल के रास्ता है उन्हें पता नहीं िलता फक कौन आ रहे हैं लसर्व
आिाज सुना है फक रुक जाओ तो जाकर पद्मपाणि जॉन के साथ िौथे
एक-एक व्यजक्त िार िार व्यजक्त का मक
ु ाबला करने के काबबल थे उन्होंने
हाथ में खडे हो गए पद्लमनी पकडकर उिाई तो नजर पडी सामने िाला
पलु लस िाला है तो िह नीिे र्ेंक दे ते हैं महात्मा गांधी के साथ-साथ अपने
दोस्तों को दे ते हैं फक सभी ने अपना र्ेंक दें क्योंफक उनका उनका महात्मा
गांधी के दे श का भविष्य अच्छी तरह से जानते हुए तो इसको उनका लािी
उिाकर मक
ु ाबला करने की जस्थनत को को दरू करके िो कहते हैं हम
सत्याग्रही हैं हम आपके साथ यद्
ु ध करने नहीं आएंगे पलु लस से कहते हैं
कृपया हमें अपने ननददव ष्ट को छोड दीजजए पानी में स्पष्ट रूप से पुललस
ऑफर्सर पुललस कहते हैं यूट्यूब करोगे अंग्रेजी सरकार के पुललस र्ोजजया
हमारे साथ युद्ध करोगे दहम्मत तो कम नहीं है और फकस शासन में
सय
ू ावस्त नहीं होता जानते हो या नहीं जल्दी नमक की पोटली र्ेंक दो
िरना अपना इष्ट स्मरि करो पुललस िाला जोर से चिल्लाकर बोला तब
िह सब सत्याग्रह नीिे र्ेंक दे ते हैं हमारी जान भले ही िले जाए हम
दहंसा का आिरि नहीं करें गे मरें गे पर हारें गे नहीं यह नमक कभी नहीं
दें गे जय महात्मा गांधी पर में पानी में दोनों हाथ बढ़ाएं ददए उनके साचथयों
ने अपने-अपने र्ेंक दें और उनका हाथ पकड कर एक एक बार एक कतार
में खडे हो गए उनके पीछे नंदफकशोर थे परं तु पुललस ने फकसी को भी नहीं
छोडा सभी को ननमवल रूप में वपटाई की और सभी के हाथ से नमक छीन
कर उनको जेल ले गया वपटाई करते समय सभी की हाहाकार चित्रकार के
साथ-साथ महात्मा गांधी की जड और सर माता की सुनाई दे रहा था
अद्भत
ु अनभ
ु ि से सरािगी अभत
ू पि
ू व घटना था पलु लस की इस मांग को
लेकर पुललस को दे ख कर दे ता है इंसान नहीं है उनसे स्पष्ट झलकता फक
उस समय में मागव में जाते समय ददव खाते थे। अदहंसा का मागव अपनाकर
आंदोलनकारी नेम सत्याग्रह ने पहले संग्राम आरं भ फकए थ भारत माता
की जय।

साधारण िनिीिन पर विश्ियुद्ध का प्रिाि


स्ितंत्रता संग्राम के दौर में जनता जब पराधीनता की बडी में जकड
गई थी शालीनता प्राजप्त के ललए हाहाकार मि रहा था तो विविध प्रकार
के समस्त जनता को झेलना पडता था विविध प्रकार के प्राकृनतक विभाजन
कर मानि की अत्यािार का समापन होना पडता था तत्कालीन समाज
की सामाजजक पररजस्थनत ऐसा था जजससे िह भी दे श के थे विदे शी शासक
होने के नाते उनका विलभन्न प्रकार का जुलूस जनता के फकसान से आरं भ
करके मजदरू िलमक िगव को झेलना पडता था उससे अलग नहीं रहता
बबछडता भी नहीं जीिन शायद ऐसा ही है एक जगह का जो धीरे -धीरे
करके खत्म होता जाएगा जीिन शायद ऐसा ही है समय के साथ साथ
जीिन थोडा-थोडा करके टाइप कर जाएगा मनुष्य को अपने विश्ि युद्ध
में फकसान से आरं भ करके समय और खेतों की जनता ने शालमल हुए थे
इसीललए िह अपने कमव से विरोध थे जजसे फकसान अपने कृवष कायों को
छोडकर युद्ध में ही कमव रथ रहा तो साल भर में कुछ र्सल लगाने से
संचित खाद्य पदाथव धीरे -धीरे खत्म होने लगा अकाल और भुखमरी का
प्रताडना िलना पडा और िारों तरर् हाहाकार मि गई खाने के ललए लोग
तरसने लगे विविध पाफकस्तान में यद्
ु ध के कारि घर संपि
ू व रूप पर
ननजश्ित हो गया िहां से जनजीिन को तब पता नहीं रहा और ना ही उस
स्थान का नाम भी विश्ि युद्ध का प्रारूप जनता पर बहुत भारी पडा विशेष
प्रजामंिल आंदोलन कम्यनु नस्ट पाटी के कायव सत्याग्रह इन सब के
सजम्मललत प्रभाि से सरगम सरगम राजनीनतक िातािरि में क्या कुछ
करने को ढूंढ ढूंढ संकल्प हुए िूब रहे थे उन्होंने जो अगले ददन उन्हें रोक
नहीं पाया विश्ि युद्ध के कारि विलभन्न प्रकार के ररश्ते में भी दरार
पडना विश्ि यद्
ु ध और भारत का उसमें योगदान की घोषिा उनके मन
में थोडा संसार ले आया था क्या स्िराज्य पद मख
ु ी सकता जा रहा है गोरे
बबररया भारतिालसयों का क्या दोष है इस युद्ध में लोग जानते हैं फक
युद्ध क्यों हो रहा है और ना ही युद्ध की हार जीत में उनका कोई र्ायदा
है दहटलर जमवनी इनके नाम नहीं सन
ु े होंगे अचधकांश भारतीयों ने घमंि
िाले के यद्
ु ध में आप पालन िाले इस यद्
ु ध में भारत की भलू मका क्या
थी क्यों हम अंग्रेजों की मदद करें गे इस युद्ध में हमारा नहीं है लेफकन
लसर्व शौक के अलािा और क्या है फकसके ललए करें गे फकसके साथ में
अचधक होते जाएंगे में योगदान करने िाले आदमी की यद्
ु ध के प्रभाि से
बि नहीं सकते अगर इतना कष्ट भोगना है ऐसे जीिन दान करना है तो
फर्र अपने दे श की आजादी के ललए यद्
ु ध क्यों नहीं करें गे और रक्तपात
ही होना है तो िह अपने दे श के ललए होना िादहए और मोबाइल रहा था
हिा की ददशा की भारतीय उद्योग गांधी जी ने विश्िासघात करते हुए
मेहता ऐसी 1% प्रनतष्रनु त क्या पानी में लकीर की तरह नहीं है फकस प्रकार
दौडता और अिस्थी िजन और शजक्त इस प्रस्ताि में पहली बार गांधीजी
के र्ैसला पर पद्मापानी जी का संदेह हुआ था समय ऐसा सामान्य अिसर
भी नहीं दे ता घटी हुई घटनाओं को दस
ू री प्रकार से घटाने के ललए जैसे
स्ितंत्रता लाभ होने के बाद लगा फक आरं भ से पहले ही सबकुछ का अंत
हो गया । यद्
ु ध के समय समाज की आचथवक जस्थनत दहल गया था। यादि
यद्
ु ध का समय है कुछ भी नहीं है दक
ु ानों में जरूरत मत
ु ाबबक इस साल
आईने में उपलब्ध नहीं है। दिा की तो बात दरू रखता वपपासु निरा
कैवपटल हजारे जी विरोचधयों को गैस लगाकर जला रहा है मानि जानत
के प्रनत इससे बढ़कर दख
ु द आधाररत और क्या हो सकता है ।

नि तनमाषण तथा नित्थान की ओर बढ़ते कदम


समाज में नि ननमावि के ललए तथा उसमें ननयनत बुराइयों को पररितवन
करने के ललए कालांतर में एक-एक करके और नेक महानुभािों का जन्म
हुआ है उन्हें के पथ ननदे श से नि ननमावि की राहों में जनता िलने लगे
थे और पररितवन भी समाज में हुआ जैसे महात्मा गांधी सभ
ु ाष बोस उन्हें
के उत्कलमणि गोपाबंधु दास जय राजगुरु बक्सी जगाबंधु आदद मोहन
भगिान की व्यजक्तत्ि से तथा उनकी नीनत से जनता प्रभावित होकर
पराधीनता जैसे मूनतवमत
ं बीडी को बीडी से अपने आप को मुक्त फकए हैं
जो उनके जीिन में जनता के जीिन में एक है विराट निननमावि था एक
आगे बढ़ने के ललए प्रेरिा इन्हें मनीवषयों के द्िारा ही आगे आगे के बढ़ने
के कुछ बढ़ने का कदम उन्होंने उिाए थे और कदम का अंनतम राह भी
आरं भ से अंत तक उन्हीं के ननदे श से ही िले हैं जजसके कारि सर्लता
की िरम सीमा पर आज िह खडे हैं।
जनता हमेशा जस्थनत से पहले िप
ु िाप मख
ु ररत होता है बाद में
िह अपनी असललयत को ददखाता है भारत सेना भारत जैसे दे श में ऐसा
निजागरि हो सकता है िह अंग्रेजों को पता नहीं था िह सारी सब की
कल्पना से बाहर था जनता अपने सहने की सीमा पार कर गई थी इसललए
िारों और असंतोष और विद्रोह की आग सी लग रही थी फकसी को मालम

नहीं था फक आगे क्या होगा सि में क्या हो सकता है असम का आता है
मन में उडीसा के विलभन्न इलाकों में भी क्या कुछ हो रहा था जाना
मजु श्कल है लेफकन हर इंसान में एक नया मानि ददखने लगता था यह
स्ितंत्रता के अंदर एक व्यजक्त हर व्यजक्त का व्यजक्तगत बन गया इकट्िा
होकर और नि ननमावि के ललए जो शादी में था प्राजप्त की उमंग हर उम्र
के व्यजक्त में दे खने को लमलता है उनके मन के आक्रोश ही बता दे ता है
उनकी जस्थनत को उनकी अंदर छुपी मोह मोह को इस उपन्यास में पहली
बार जो सस
ु ंस्कार प्रिललत था की विधिा बाल विधिा लडकी को विधिा
औरत पालना होगी परं तु उपन्यास के पात्रों नरोत्तम िौधरी इस बाल विधिा
औरत को अपने बहन पालते हुए दे खे थे ऐसे करके पूरी थी जजसके कारि
उनकी बहन खद
ु कुशी कर लेती है जब उनकी बेटी पद्दी को इस अिस्था
में गज
ु ारना पडता है पडती है तो िह उस ननलमवत प्रथा को हटा कर एक
नूतन नि ननमावि की ढे र पकडते हैं विधिा वििाह को उन्होंने प्रनतष्िा
करते हैं उनसे पहले कटक में बैरागी लमिा ने बाल विधिाओं के पुनविविाह
पन
ु विविाह के परु ोधा बने थे उन्होंने बाल विधिा पुनविविाह कराएं अपने ही
बाल विधिा कन्या का पन
ु विविाह करिाए थे नरोत्तम िौधरी ने उन्हें की
प्रभाि से उन्हें की संस्कृत से आकर अपने बेटे के ललए पुनविविाह की
पन
ु विविाह बेटी को कराते हैं समाज में के नया नि ननमावि करते हैं
पद्लमनी उपन्यास की मुख्य पात्र है जो पराधीन समाज में अपने पत्नी
को पनत की समाचध कार समा कक्षा के अचधकार दे ती है दे ता है साथ ही
छुट्टी हुई पढ़ाई को पन
ु र बार उसको बोडिांग स्कूल में भती करके पढ़ाता
है नारी लशक्षा के प्रनत दया दृजष्ट पहले पद्मापानी से होता है जजसके
कारि उसकी पत्नी पढ़ाई करती है जनता की ऐसी नि ननमावि की दृजष्ट
ने उन्हें सर्लता की िरम सीमा पर ले जाती है अंत में बराबर अंग्रेजों के
मक
ु ाबला कर के अंत में िह शरीर में तालाब करते हैं जैसे सा ददन होता
है जनता स्ितंत्र होता हुआ

सौंदयाषन्मुख अिी चचंतन तथा सेिा मनोिाि


प्रकृनत के बीि मनुष्य को जो शांनत लमलती है िह समाज की और कोई
जगह तथा फकसी भी व्यिस्था में या कोई संस्था में नहीं लमलती प्रकृनत
के अंदर जीने का सख
ु ईश्िर के साथ तादात्म्यता के समान हैं । इस
उपन्यास के मुख्य पात्रों में से एक है ददिाकर जो अपने जीिन की प्रारं लभक
अिस्था से ही विविध प्रकार शोषि का लशकार हुआ है । बिपन से ही
माता वपता को खो ददया था । उसका एकमात्र सहारा भाई और भाभी
ही थे भाई संशोधर अंग्रेज और राजा विरुद्ध जाने से उनका मत्ृ यु होता
है । ऐसे ददवनाक जस्थनत में ददिाकर गांि छोडकर कटक िले जाते हैं िहां
पर पद्मापानी और विश्िनाथ के साथ लमलकर स्िाधीनता संग्राम के
विविध आंदोलन मैं योग दे ते है । स्िाधीनता संग्राम में मुख्य नीनत गांधी
जी की अपनाकरसभी सत्याग्रह ने कायव कर रहे थे पर ऐसे में जनता को
ज्यादा शोषि का लशकार होना पडा जस्थनत में कोई पररितवन नहीं हुआ
बहुत ददनों तक तो ददिाकर में ऐसे ददवनाक जस्थनत जनता के से घुट घुट
जीने की जस्थनत से परे शान होकर अंग्रेज शासन से विरत होकर उनको
उनके उनके साथी विश्िनाथ की सहे ली विनोददनी की मत्ृ यु हो जाती है
बार-बार जेल जाने से उसे और स्िस्थ होकर पररिेश में रहने पर मत्ृ यु हो
जाने से ऐसे उनके साथ साथ और भी कुछ आदलमयों की अंग्रेजों के प्रहार
से कांग्रेस सरकार की तरर् से जब मत्ृ यु हो जाती है तो ददिाकर से अस्त-
व्यस्त हो बढ़ते हैं जस्थनत में कोई सध
ु ार नहीं आता है और जनता शोषि
शोषि पर शोवषत शोवषत होते होते जा रहे हैं ऐसी जस्थनत में िह नीनत
को नीनत से तालाब कर पाने की उम्मीद खो दे ते हैं और दहंसात्मक दल
में शालमल होने के ललए जंगल में कामरे ि पाटी से लमल जाते हैं और पाटी
के जररए कुछ ददन काम करते हैं उनकी ददव नाक जीिन जीते हैं कामरे ि
पाटी के नेता मख्
ु य जो रं जन सरु ं जन के अधीन रहकर अंग्रेजों के विरुद्ध
विरुद्ध मोिाव लडते हैं और समाज में शांनत स्थापना की शांनत स्थापना
के ललए विविध पदक लेते हैं एक ददन जब िह पुललस के पुललस स्टे शन
में अपने गरु
ु के साथ आक्रमि करते हैं िहां पर तो पर बंदक
ू लाते तभी
पकड जाने से गरु
ु ने उनको भेज कर खद
ु र्ंस जाते हैं और गरु
ु की मत्ृ यु
फर्र उनके जीिन में और एक और एक और एक दख
ु दे ता है ऐसे हताशा
और ननराशा होकर अंत में िह सब कुछ छोड कर कहीं लापता हो जाते हैं
और बाद में िह पद में पानी को चिट्िी भेजते हैं फक मैं दहमालय िला
आया हूं ऐसे सामाजजक जस्थनत से समाज की जस्थनत से त्रस्त होकर हो
गए हैं िहीं फक अपने को िाल ददया है ददिाकर अपने ज्ञानी प्रकट करते
हैं फक जीिन और ननयनत की ज्िाला से मैं ऐसा व्यजक्त व्यस्त हो गया
था फक दै नंददन जीिन यापन में मेरे ललए एक प्रकार से और स्िाहा हो
गया जजस ननष्िा और उमेश से मैंने दस
ू रों के साथ दहंसा का युद्ध का
रास्ता अपना ललया था िह मझ
ु े ननरथवक अनभ
ु ि हुआ विनोददनी की
मनू तवयों मझ
ु े गहरे अिसाद के अंदर धकेल ददया था मेरे सामने दो विकल्प
थे अपने जीिन को समाप्त करो या जीिन यापन को समाज को त्याग
करो मेरे अंदर जैसे फकसी ने कहा फक अभी बहुत कुछ उपलजब्ध बाकी है
जीिन और मत्ृ यु के कुछ हद तक ननकट पर होना है मैंने कलकत्ता छोड
छोडा और ऋवषकेश के ललए गाडी पकडी मेरी दहमालय मझ
ु े लगा िहीं पर
ही मेरे ललए शांनत है मेरे सारे प्रश्नों के उत्तर मौजूद है दहमालय के कार्ी
जगह है जहां पर और शांनत पररिार से चगरा जंगल बीि-बीि में बर्व के
टुकडे पानी का अकाल है जजसे झील कहा जाता है उसी स्थान को मैं
अपने साधना का स्थान बना ललया था फर्र भी मैंने अपने आप से हम
खूंखार जानिरों से िरते क्यों हैं जीिन के ललए जीिन को लेकर चिंता
नहीं है मौत का िर नहीं है तो फर्र तमाम प्रािों तो बंधु हो सकते हैं
तमाम प्रािी तो बंधु हो सकते हैं िही तम
ु विश्िास नहीं करोगे पढ़ना है
बबल्कुल पास में लेफकन मेरा कोई नक
ु सान नहीं फकया है ननमवल जल
संस्थान

पहाड के नीिे गंगा जी बह रहे हैं अत्यंत ननमवल और उस शीतल जल


शांनत और ध्यान के ललए मझ
ु े यह स्थान सबसे प्रकृत प्रतीत हुआ मेरे
साथ अन्य तीन सन्यासी और कोई लसस्टम पर रहते हैं गंगा स्नान ध्यान
तपवि पाथवना यहां पर मेरे प्रमुख कारि है जजस ददन मैंने खबर पाया फर्र
से वित्तीय विश्ियद्
ु ध हो रहा है जजसमें विश्ि के अनेक दे शों में होगी और
उसके बारे में आश्ियव होता है इसके ललए यदद संभि हो तो दे ना िादहए

अदहंसा सत्याग्रह के ललए गांधीजी की ध्रुि ननष्पवत्त स्िराज्य प्राजप्त के


ललए उनकी अटल प्रनतज्ञा उनकी दरू दृजष्ट सभ
ु ाष िंद्र बोस का मजु क्तसंग्राम
और उनके अनय
ु ानययों का विप्लि द्वितीय विश्ि यद्
ु ध के बाद भारतीय
सेना का असंतोष और आसन विद्रोह इस सारी िीजें ने अंग्रेजों को भारत
छोडने के ललए मजबूर कर ददया िषों की प्रतीक्षा जनता हमें प्राप्त हुई ।

दहमालय में मझ
ु े यह अजीब उपलजब्ध लमली है विशाल पिवत निश्य उचित
कृष्िा संदीप लसंह ननमवल हिा अजीब और अलग-अलग पष्ु पलता आदद के
घने जंगल विविध पशु पक्षक्षयों का योगदान और अपने स्कूल के समपवि
कर दे ती है संसार और सामान्य सन्यासी के बीि बहुत ज्यादा पाठ्य होता
है ऐसा मेरा विश्िास है उनके जीिन एक है और मध्यम मागव

उपन्यास की मख्
ु य पात्र पद्मापानी उपन्यास के आराम से अंत तक उनमें
लशिा भाग दे खने को लमलता है कोलकाता में िॉक्टरी पढ़ाई करने के समय
गांधी जी के आदशव अनुप्राणित होकर उद्दे श्य स्िाधीनता संग्राम में योग
दे ने के कारि जेल जाते हैं तो उनको कलेश्िरी कॉलेज से ननकाला दे जाता
है पढ़ाई बीि में रुक जाती है फर्र जेल से लौटने के बाद िह अपने कतवव्य
से अचधक रहते हैं िॉक्टरी पढ़ाई करने के साथ-साथ साधना का संग्राम के
विविध आंदोलन में जो बैिे थे और मरीजों का भी इलाज करते थे फक
पढ़ाई के बाद िह अपने सेिा में रहे शतक प्राजप्त हुई और उन्होंने अपने
कतवव्यों पर सदै ि बनी रहे हैं पररिार के प्रनत उनके कतवव्य और दे श के
प्रनत उनकी दे श प्रेम दोनों को िह बनाए रखें उन्होंने अपने पररिार के
साथ दे श को दे श के प्रनत अपने कतवव्य पूिव रूप से अदा फकए हैं।

तत
ृ ीय अध्याय तत
ृ ीय

अलभप्रेत काल की भाषा शैली और संिादत्मक विशेषताएं


अनुभूत विषय िस्तु को अलभव्यजक्त की सुंदर लेजा से प्रभािपूिव बनाने
िाले तरीका को हम शैली कहते हैं। साइली अलभव्यजक्त की विशेष प्रिाली
है जजसके द्िारा कोई रिनाकार अपने कृनत को आकषवक रामयिीय और
प्रभािपूिव बनाता है। लेखककी शैली ही उसककी व्यजक्तत्ि को उजागर
करती है ।

पारलमता सप्पथी जी की भाषा का अपना अलग अनोखा अंदाज है ।घटनाओं


की अलभव्यजक्त कथानक में अत्यचधक र्ैला है । पारमीता सतपनत जी की
भाषा शैली में अत्यचधक विविधता व्याप्त है ।लेणखका अपने विलशष्ट भाषा
शैली को लेकर कार्ी िचिवत रही है। अलभप्रेत काल उपन्यास उडडया
उपन्यास है उसको िॉ अजय कुमार पटना दहंदी में अनि
ु ाद फकए हैं।
लेखक ने दहंदी भाषा में बहुत ही सरल ढं ग से उपन्यास को प्रस्तत
ु फकए
हैं। लेखक ने अपने मौललक कृनत तथा अनुिाददत कुती के जररए दहंदी
सादहत्य जगत में अपना एक अनोखा स्थान बनाए हैं ।

भािो को संद
ु र ढं ग से प्रस्तत
ु करने का प्रमख
ु साधन भाषा है जजस
सादहत्यकार के पास जजतना अचधक समद्
ृ ध भाषा भंिार होगा िह उतनी
ही सहजता तथा मालमवकता से अपने भािों को व्यक्त कर पाएगा। उपन्यास
में जो अजय सर ने फकए हैं।

भाषा में भाि पक्ष


कहा जाता है फक कलाकार जजतनी चिंतनशील भािक
ु होगा उनके कुती
उतनी ही उत्कृष्ट कोदट की होगी ।लेणखका ने अलभप्रेत काल उपन्यास मे
पराधीनता के बेडी से बंदी जनता के आक्रोश के साथ स्िाधीनता संग्रामीयो
की ददव नाक जीिन संघषव ,समाज में प्रिललत अंधविश्िास और कुसंस्कार
से पीडडत नारी की क्षभ , विविध आंदोलन के बाद स्िाधीनता प्राजप्त की
उल्लास प्राकृनतक सौंदयव का ििवन तथा व्यजक्त में अंतननवदहत राष्रीय
िेतना के भाि को लेणखका अपनी जीिन अनुभूनत तथा सहानुभूनत के
माध्यम से अपना भाि को व्यक्त फकए हैं लेणखका ने ददिाकर और
पद्मापाणि पलु लस के प्रहार के समय जानतय कवि फकशोर दास के कविता
की एक पंजक्त के माध्यम से सत्याग्रदहयों की राष्रीय िेतना के भाि को
उजागर फकए हैं
‘मझ
ु े जजतना मारना हो मार

दे श हतू जजसका जान ननछािर

उसे बेंत का क्या

इस उपन्यास में पद्दी की माता अपने आशा के विपरीत यानी बद्


ु चध को
ससुराल भेजने से पहले उसके पनत का मूनतव हो जाने का खबर पाती है
तब उसके मां सोिती है

मेरी िल
ु बल
ु ी चिडडया को पके केले के बहाने फकसी ने िग ललया मेरी मां
रानी..।

यहां एक बेटी एक बेटी की दरु ािस्था को दे खकर मां की मन भाि को


व्यक्त फकए हैं ।

कला पक्ष
इस उपन्यास की कला पक्षक्षयों विविधता से पि
ु ेहै। इस उपन्यास में उन्होंने
चित्रात्मक भाषा प्रतीकात्मक भाषा तथा अनेक कलात्मक पक्षक्षयों के
आधार पर उपन्यास में प्रस्तुत फकए हैं

चचत्रात्मक शैली
नरोत्तम िौधरी के बेटी पदी की विधिा व्रत रखने पर आयोजजत वििारों
मंिली में जब भरी सभा में बोल दे ते हैं मेरी बेटी विधिा व्रत नहीं पालन
करे गी तब सभी सज्जन ने िहां से उि कर िले जाते हैं नरोत्तम िैसे ही
अकेला आंगन के बीि खडे रहते हैं जैसे

संक्रांनत के िंद्रहीन आकाश में भोर का तारा उग आया।‘

िणषनात्मक शैली
दे िी मंददर में काम करने िाली नीनत जब अस्िस्थता के कारि काम में
नहीं जा पाती है तब पूरी अपनी मां ने दी फक कायव संपन्न करने के ललए
मंददर में जाती है उस पर जनादव न की भी नजर पडती है तो उसको मंददर
के काम करने के साथ शाम को अपने कुटीर में आने के ललए बोलता है
जब परी कुटीर के अन्दर जाती है जनादव न के नजर दे ख कर िर गई

जनादव न की नजर िैसे ही था जैसे भुनी हुई मछली पर एक जंगली बबल्ली


का नजर रहता है। परी पर जनादव न का नजर िैसे ही था जनादव न की
आंखें बबल्ली की आंखें जैसे जल रहा था परी मुडकर दरिाजा खेल कर
बाहर जाने की कोलशश करते ही जनादवन के पंजे का दबाि अपने कंधे पर
महसूस ..। इससे उस पररजस्थनत का चित्र आंखों के सामने झलक जाती
है ।

संिादत्मक
संिाद आत्मक भाषा से कथािस्तु आगे बढ़ती है । फकसी से पात्रों की
पररिय स्पष्ट हो जाती है कथािस्तु को स्पष्ट रूप से स्थावपत करती है ।
नंदफकशोर के मत्ृ यु के पहले िह पद्मापानी को कहते हैं_ तेरी शादी दे ख
नहीं पाया इधर स्िराज भी नहीं आया। संिाद के माध्यम से घटना को
दशावया गया है ।

संशोधनकी पत्नी को जब पुललस िालों ने दे खते हैं तो दोनों पुललस िाले


िातावलाप करते हुए एक दस
ू रे को कहता है - क्या माल है !

इस उजक्त िह स्त्री के सौंदयव पर अक्षम करते हैं।

दे िी की भाई कामरे ि पाटी में योग ददया है ।दे िी से कहता है के मरना है


तो मरें गे पर उन्हें दे श से हटाकर रहें गे एक बूंद खून से करोडों संग्राम
में पैदा होंगे।

ऐसे संिाद आत्मक भाषा शैली द्िारा उपन्यास को आगे लेते हुए उसकी
मूल उद्दे श्य को स्पष्ट फकए हैं ।

भाषा शास्त्रीय जहां अपने कायव में भाषा में व्याकरि के ननयमों का आिय
लेता है िही एक उपन्यासकार मनष्ु य की मल
ू प्रिवृ त्तयों और अनभ
ु नू तयों
के प्रसंग अनक
ु ू ल पररिनतवत करके भाषा के रूप में संशोधन करके उसे
विकलसत करता है यह पररितवन पािक का मूल भाि ग्रहि करने में मदद
करता है एक अच्छी रिना में कृनत कार के भाि भाषा एिं शैली तीनों का
समचु ित सामान्य होना आिश्यक है । इस उपन्यास में भाि भाषा और
शैली का सामान्य महत्ि उपन्यास को ज्यादा यथाथव बना ददया है ।
तनष्ट्कषष:
उपन्यास की सर्लता में भाषा शैली का विशेष योगदान रहता है । अंत
इस विषय में रिनाकार ज्यादा सजग रहता है । पारलमता जी की भाषा
मधुर है और उनका हर सादहजत्यक कृनत की भाषाएं स्तर पर एक दस
ू रे
से लभन्न है लेणखका के गिन वििार अलभव्यजक्त में कहीं कहीं भाषा को
सरल तो कहीं जदटल बना ददये हैं। उनकी अलभव्यजक्त पक्षा में निीन
प्रभाि के दृजष्टकोि ददखाई दे ता है उपन्यास पढ़ने पर ना केिल वििारों
की गंभीरता प्रकट होती है मरि छात्रों को छात्रों के मन में मरते हुए 4
िररत्र प्रस्तुत करने िले आते हैं अंत कहा जा सकता है पारलमता जी की
भािाअनुसार तथा वििारों के शैललयों के प्रयोग से कथानक में उद्दे श्य
प्राजप्त को स्पष्ट बना ददया है ।
िूभमका
उपन्यास एक ऐसी सादहजत्यक विधा है जजसमें घटनाओं का ििवन सूक्ष्म
रूप से फकया जाता है। घटना िक्र को पढ़ते ही पािक के मन में घटना
की छवि चिबत्रत हो जाती है । उपन्यास को पढ़ते ही ऐसा लगता है फक
िह घटना सामने घदटत हो रही है । अलभप्रेत काल उपन्यास में ओडिशा के
साथ संपूिव भारत की पराधीनता की जस्थनत को लेणखका ने अनत मालमवक
ढं ग से चिबत्रत फकया है । जनता में सरर्रोशी की तमन्ना कैसे भयािह
आंदोलन का रुप लेता है जैसे लसपाही विद्रोह सन 1857 में बक्सी जगबंधु
के नेतत्ृ ि से ,आईन अमान्य आंदोलन ,लिि सत्याग्रह सन 1930 को
राष्र के मुख्य नायक महात्मा गांधी जी के आह्िान से हुआ था। यह
आंदोलन लसर्व नमक के ललए नहीं था बजल्क नमक के साथ साथ शराब
अर्ीम विक्री को रोकना, विदे शी िीजों को नकारना सरकार से तथा राजाओं
के द्िारा जनता पर 64 प्रकार के कर न दे ने के ललए हुआ था । समाज
में जीने के ललए फकतनी सामाजजक समस्याओं के साथ जुझना पडता है ।
बाल वििाह ,बाल विधिा, व्रत, गौना प्रथा, नारी पर हो रही दष्ु कमव, नारी
त्रास, घट
ु न को अत्यचधक करुिा के साथ इस उपन्यास के नारी पात्र जैसे
नरोत्तम की बहन हेम जो विधिा व्रत की पालन से त्रस्त होकर खुदखुशी
करती है , नेनत परी आचथवक जस्थनत से कमजोर हे तु गुजारे के ललए समाज
के प्रनतजष्ित व्यजक्त का लशकार होते हैं। राजा तथा अंग्रेज शासक के
विरुद्ध संशोधर जाने से उसकी पत्नी को पलु लस की बलात्कार ,माला जैसी
छोटी बच्िी को दष्ु कमव आदद एसे नघनोनी घटना ज्यादा हो रहा था।
उपन्यास की नानयका पदी से बाल विधिा की पुनविविाह आरं भ हुआ
था।पररिार से दे श तक व्यजक्त की जजम्मेदारी उच्ि आकांक्षाओं की पूनतव
नायक पद्मपािी से दे खने को लमलता है। विदे शी शासक की दमन लीला,
जनता के राष्र राज्य के प्रनत उत्तरदानयत्ि, स्िाधीनता संग्रामी और
सत्याग्रहीओ की जीिन संघषव, समाज संस्कृनत ननमावि में नारी पुरुष की
भूलमका जैसे इसमें ददिाकर , पद्मापानी विश्िनाथ सुररं जन दास,दे िी ,
पद्मलया, ददनू, विनोददनी ,परी, धोबी मां जो अंधी थी, आदद पात्रों की
भलू मका जो कामरे ि पाटी तथा सत्याग्रही स्िराज्य की पररकल्पना
स्िाधीनता प्राप्त करने के ललए गांधीजी के दोनों नीनत अदहंसा और
सत्याग्रह को लेकर आगे िलना जनजीिन पर विश्ियुद्ध का जो प्रभाि ,
मनष्ु य और प्रकृनत के तादात्म्यता, सेिा मनोभाि समाज कल्याि आदी
विविध पारीदृस्य को लेणखका ने उपन्यास के विविध पात्र के माध्यम से
उजागर फकए हैं । समाज की विविध समस्याएं को उदघाटन करते हुए
उसकी समाधान की राह ददखाए हैं।

इस उपन्यास में ओडिशा की स्िाधीनता संग्राम की दौर


की जस्थनत को तथा संग्रालमयों की जीिन संघषव के साथ साथ तत्कालीन
समय के शासन की अव्यिस्था को ददखाएं हैं साथ ही लोगों पर हो रहे
अत्यािार और शोषि को अनत मालमवक ढं ग से ििवन फकए हैं। पद्मपाणि
की कन्या स्िाधीना की जन्म सन 1947 अगस्त 14 रात को हुआ था।सन
1947 अगस्त 15 को दे श स्िाधीनता प्राजप्त की। इस प्रकार उपन्यास की
अंत सुखद घटना के साथ हुआ है ।
उपसंहार

उडडया सादहत्य के आधुननक कथाकार पारलमता शतपथी जी केिल ओडडया


सादहत्य ही नहीं अंग्रेजी सादहत्य जगत में भी एक प्रनतजष्ित लेणखका हैं।
उनकी कृनतयों का ज्यादातर विविध भाषाओं में अनुिाद फकया जा रहा है ।
‘अलभप्रेत काल' उपन्यास नामक उनकी ओडडया कृनत को ,दहंदी सादहत्य
जगत के प्रलसद्ध लेखक िॉ अजय पटनायक अनुिाद फकए हैं। इस उपन्यास
में लेणखका की मल
ू कृनत के अनरू
ु प लेखक ने परू ी लशद्दत से उसको दहंदी
में सहज और सरल भाषा के द्िारा अनि
ु ाद फकया है । उपन्यास के आरं भ
एक पररिार से होताजेल। पररिार के मख्
ु य हैं नरोत्तम िौधरी। उनकी बेटी
पद्दी की बालवििाह हुई थी पर गौने से पूिव ही उसके पनत का दे हांत हो
जाने से उसे विधिा की तरह जीने के ललए समाज बाध्य करता है । परं तु
उसके वपता इस प्रथा को नकारते हुए अपनी बेटी का पुनविविाह कराते हैं।
पद्मपाणि से पदमालया की शादी हो जाती है । पद्मापाणि कोलकाता में
िॉक्टरी की पढ़ाई करने के साथ वपकेदटंग में योग दे ने के कारि उन्हें
कॉलेज से ननकाल ददया जाता है । जेल से आने के बाद फर्र िह पढ़ाई
करके अपने सेिा कायव आरं भ कर दे ते हैं। गांधी जी के सत्य अदहंसा
सत्याग्रह नीनत से अनुप्राणित होकर विविध आंदोलन सत्याग्रह में योग
दे ते थे। इसी कारि उनके पररिार में उनके वपता उनसे नाराज थे फर्र
बाल विधिा से शादी करने के कारि उनके माता-वपता उन्हें घर में प्रिेश
ननषेध कर दे ते हैं। समाज सध
ु ार से पाररिाररक संबंधों पर दरार पड गई
है । ससरकारी अव्यिस्था, अंग्रेजी शासन, राजा के अत्यािार के विरुद्ध
आिाज उिाने से उसको दबोि ददया जाता है । उसकी पत्नी दष्ु कमव की
लशकार होने से कुएं में कूदकर अपनी जान दे दे ती है। संशोधर का भाई
ददिाकर तब से कटक िला आता है । यहां पदमापाणि के साथ आशादीप
मेस में रहकर स्िाधीनता संग्राम के विविध आंदोलन में शालमल होते हैं।
गांधीजी के नीनत अदहंसा और सत्याग्रह से अनुप्राणित होकर तीनों लमत्रों
पद्मपाणि विश्िनाथ, ददिाकर शासन के विरुद्ध मोिाव तैयार करते हैं।
समाज के विविध सामाजजक कायों में ननयुक्त रहते हैं बाढ़ से ग्रस्त अंिल
में जाकर जनता को उधार करने के साथ खाद्य सामग्री दे ते हैं। ददनु को
पानी के उधार के थे । आशादीप मेस में उन्हीं के साथ रहकर उनको
स्िाधीनता संग्राम में मदद करता है । बबना गांि की एक गिार लडका होने
से भी िह स्िाधीनता संग्राम में ता को उत्सादहत करने के ललए पद में
प्रािी से प्रेररत चिट्िी लेकर दे ता है विविध आंदोलन में जोग दे ता है ।

नेतीने नाम की एक असहाय मदहला जजनके पनत राजा के दरबार


में काम करता था कुछ कारििश राजा उसे मत्ृ यद
ु ं ि दे दे ते हैं। उसकी
छोटी सी बेटी है परी उसको लेकर के ललए व्यस्त था तो अपने गांि की
एक एक दे िर नरी के परामशव से िह कटक के एक दे िी मंददर में जाकर
झाडू पोछा करके गुजारा करती है । पर मंददर के पूजारी जनादव न पंिा उस
पर शारीररक मानलसक अत्यािार करता है । पररिम के बदले उससे
पाररिलमक दो िक्त की खाना ही दे ता है ।
ऐसी कुछ घटनाओं के माध्यम से उपन्यासकार ने पराधीन उडीसा
की जस्थनत को उजागर फकए हैं। उस समय समाज में विविध प्रकार की
शोषि हो रहा था राजाओं ने अंग्रेजों के साथ लमलकर 64 प्रकार के कर
िसल
ू कर रहे थे। अकाल के समय पर भी फकसानों पर ररहाती नहीं
था। राष्रीय िेतना से अनप्र
ु ाणित जनता जीिन संघषव बहुत दयनीय था

स्िाधीनता संग्राम में योग्य संग्राम एिं को पुललस ननमवल वपटाई कर रहा
था और उज्जैन में लेकर रख दे ते थे जेल की भी व्यिस्था अच्छी नहीं थी
जहां पर सय
ू व फकरि तक नहीं पडता था और अंधेरे गली जैसे था बच्िा
का ढे र िहां पर बबखरा हुआ था उस उस स्थान पर रहने से बार-बार
स्िाधीनता संग्रामी विविध रोग से आक्रांत होते थे जेल के अजस्तत्ि कर
पररिेश में रहने से कामरे ि पाटी की नेत्री विनोददनी की मूनतव हो जाती है ।
ऐसे अदहंसा नीनत की आंदोलन से परे शान होकर कटक छोड कर िले जाते
हैं जाकर कमेंट पाटी में योग दे कर दहंसात्मक आंदोलन आरं भ करते हैं
तभी भी उनके जीिन में शांनत नहीं लमलती क्योंफक कामरे ि पाटी की मुख्य
सुरंजन दास एक बार पकड जाने से उनको भी पुललस ने मार दे ते हैं। इस
प्रकार विविध समस्या से परे शान होकर ददिाकर अंत में दहमालय िले
जाते हैं प्रकृनत के साथ तादात्म्य स्थावपत करके रहते हैं ।

पद्मापाणि अपने पररिार के साथ दे श के प्रनत अपने कतवव्य अच्छे


से ननभाते हैं। पररिार की जजम्मेदारी लेते हुए मरीजों का इलाज करते हैं।
िह विलभन्न प्रकार के संग्राम में योग दे ते हैं। उनकी पत्नी पद्दी को भी
उन्होंने पढ़ाने के ललए बोडिांग स्कूल में नाम ललखा दे ते हैं। इस प्रकार नारी
लशक्षा पर जोर ददया गया है। इसमें विच्छे द का प्रभाि जनता पर ज्यादा
होने से जनता खाने के ललए दर बदर भटकते हैं। क्योंफक युद्ध में फकसानों
के शालमल होने से र्सल नहीं उगा पाते हैं। संचित र्सल कुछ ददनों में
खत्म हो जाने से फकसान भी मजदरू बन जात। ऐसी दयनीय जस्थनत में
गज
ु रते हुए सत्याग्रही तथा जनता के अक्लांत पररिम के उपरांत दे श
1947अगस्त 15 को स्िाधीन हुआ। उपन्यास में स्िाधीनता संग्राम के
दौर की समाज की आचथवक, सामाजजक, राजनीनतक और सांस्कृनतक
जस्थनतयों को उजागर करते हुए विविध समस्याओं को समेटने के साथ
समाधान की राह ददखाए हैं।
पात्र पररचय

पुरुष पात्र

पद्मापाणि 24 िषीय ब्राम्हि घर के संस्कृनत संपन्न और संस्कार िेतना


से संपन्न लडका है । िह कोलकाता में िॉक्टरी की पढ़ाई करता था पर
वपकेदटंग करके जेल जाने से कॉलेज से ननकाल ददया जाता है । जेल से
आने के बाद फर्र अपना पढ़ाई शुरू करता है । िह उपन्यास का मुख्य
नायक है । उपन्यास आरं भ से अंत तक उसी के इदव -चगदव घूमता है । िह
एक प्रमख
ु यूिा स्िाधीनता संग्रामी है ।

नरोत्तम चौधरी

गांि के लशक्षक्षत तथा शास्त्रज्ञ थे। संस्कारचित व्यजक्त है । िौधरी पहला


वपता है जो अपनी विधिा बेटी का पुनविविाह फकया था। उसने विधिा व्रत
जैसे कुसंस्कार पर आिाज उिाए थे।

हदिाकर

बिपन से वपता माता स्िगव लसधार गए थे। भाई संशोधर और भाभी के


साथ रहता था। भाई का लक्ष्य था उसे इंजीननयररंग पढ़ाना पर भाई के
मौत के बाद िह कटक िला जाता है । िहां आशादीप मेष में रहकर सत्य
और अदहंसा नीनत से अनुप्राणित होकर सत्याग्रह करता है । फर्र अदहंसा
मागव के नीनत से असंतोष होकर कामरे ि पाटी में योग दे ता है । िहां पर
भी शांनत से नहीं रह पाने के कारि अंत में दहमालय िला जाता है ।
विश्िनाथ

कोलकाता के एक प्रख्यात व्यापारी का पुत्र है । घर कटक सेख बाजार में


है । िकालत की पढ़ाई करते थे। एक बार नानाजी के साथ परू ी घम
ू ने आए
थे उसके बाद और कोलकाता नहीं लौटे । मातभ
ृ लू म से लगाि होने के कारि
िह कटक में रहते हैं। पद्मापानी से दोस्ती हो जाती है पद्मापानी ददिाकर
विश्िनाथ लमलकर स्िाधीनता संग्राम में अपना महत्िपूिव भूलमका अदा
करते हैं। उनकी प्रेलमका विनोददनी थी ।

संशोधर

फकसानों का मुख्य था। संशोधर राजा और अंग्रेजों के विरोध फकसानी


समस्या लेकर कांग्रस
े ऑफर्स जाने के कारि पुललस प्रहार से पक्षाघात में
पीडडत होकर मत्ृ यु िरि करता है । ददिाकर का बडा भाई था।

हदनु

बासुदेिपुर गांि का व्यजक्त था। दे खने में सािला रं ग का हट्टा कट्टा


व्यजक्त उसमें सात लसंह का बल था। एक साथ 10 बैल को उिाने की
ताकत रखता था। उसकी 3 साल की बेटी इलाज के अभाि से मर जाती
है । बाढ़ के कारि उसकी पत्नी गरु
ु िारी जलस्रोत में बह जाती है । स्िाधीनता
संग्राम में द्मापानी, ददिाकर, विश्िनाथ के साथ लमलकर उनके संदेश को
गांि के घर घर में दे ना और संगिनों के बीि की सूिना का आदान प्रदान
करना है ।
िनादष न पंडा

कटक दे िी मंददर की पूजा था। असहाय नारी पर अत्यािार और यौन


शोषि करता था पररिम के बदले लोगों को बहुत कम पाररिलमक दे ता
था। प्रनतजष्ित व्यजक्त की नकाब के पीछे नघनौनी कायव करता था।

सरु ं िन दास

कामरे ि पाटी के मुख्य नायक था। सभी उसे गुरुदे ि नाम से बुलाते थे।
पुललस स्टे शन में हमला करने के नाते पुललस की गोली से मत्ृ यु िरि
करते हैं।

नारी पात्र

पदमालया

उपन्यास की नानयका है। बिपन में बाल वििाह हुआ था। विधिा व्रत
जैसे कुसंस्कार उसी से ही हट आती है।विधिाओं की पन
ु विविाह उसी से
प्रिललत होती है । अपने पढ़ाई के साथ स्िाधीनता संग्राम में अपने पनत
को मदद करती है ।माला की घटनाओं से िह नारी नेत्री बन जाती है ।

विनोहदनी

कामरे ि पाटी की मख्


ु य नारी नेत्री थी। पाटी की प्रिार पत्र छपाना उसको
सही जगह पहुंिाना , फकसान और सिवहारा को गोपनीय सभाओं में
आमंबत्रत करना ।भाषि दे ना और उन्हें एकजुट करने हे तु पत्र बांटना
विविध स्थान में जाकर जनता को उत्सादहत करना उसका मुख्य कायव
था। बार-बार जेल जाने से उसे रक्ताल्पता आक्रांत होकर मत्ृ यु िरि
करती है ।

नेतत

विधारा असहाय नारी थी दे िी मंददर में झाडू पोछा करके अपना जीविका
ननिावह कर रही थी जनादवन की शोषि का लशकार होती है उसको जनादव न
शारीररक मानलसक दोनों तरर् से शोषि करता था। ि अपने जस्थनत के
कारि सब कुछ िुपिाप स सह जाती थी।

परी

नेनत की बेटी थी मेथी की तबीयत खराब होने से िह मंददर में काम करती
है जनादव न उससे भी नहीं छोटी मां के इलाज की आशा ददखाकर उसको
भी अपनी लालसा का लशकार बनाता है । मां की तबीयत के खराब के
कारि 1 ददन मंददर में नहीं जा पाता है तो जनादव न आकर नीनत की गला
दबाकर मारने की कोलशश करता है तब नेती को बिाने के ललए िह
जनादव न पर िाकू घुसा दे ती ।

माला

घर की नाबाललक लडकी है बिपन से माता-वपता गज


ु र गए हैं । भाई के
पास रहती थी। फकसी दरू भत
ू दष्ु कमव करता है । िह लडकी है पर मां बनने
िाली थी। बच्िा उसके पेट में था। विधिा बोडिांग स्कूल में पढ़ने गई थी।
मोरी

विधिा बोडिांग स्कूल में पढ़ने िाली एक लडकी थी। गडजात की थी। माता-
वपता नहीं थे, दादाजी ईसाई बन गए तब दादाजी लाकर यही स्कूल में
उसको छोड ददए थे पढ़ाई करने के ललए िह अपने दादाजी की इच्छा से
यहां पढ़ाई करती है और पढ़ाई के खत्म होने के बाद लशक्षक बनने की
उम्मीद रखी है।

धोबा मां

अंधी िद्
ृ धा है । प्रौढ़ािस्था के अंनतम जस्थनत में है । भंगा कुडडया बनाकर
रहती है अपने पत्र
ु स्िाधीनता संग्रामी लौटने की आशा में िहीं पर िह
अपना जीिन व्यतीत करती है ।एक बार ददिाकर को अपनी झोपडी में
आिम दद था।

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