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नात्सीवाद और हिटलर का उदय अध्याय 3.

1945 के वसंत में हे लमु ट नामक 11 वर्षीय जममन लड़का बिस्तर में लेटे कुछ सोच रहा था। तभी उसे अपने माता-
बपता की दिी-दिी सी आवाजें सुनाई दीं। हे लमुट कान लगा कर उनकी िातचीत सु नने की कोबिि करने लगा। वे
गंभीर स्वर में बकसी मुद्दे पर िहस कर रहे थे। हे लमुट के बपता एक जाने -माने बचबकत्सक थे। उस वक्त वे अपनी
पत्नी से इस िारे में िात कर रहे थे बक क्या उन्हें पूरे पररवार को खत्म कर दे ना चाबहए या अकेले आत्महत्या कर
लेनी चाबहए। उन्हें अपना भबवष्य सु रबित बदखाई नहीं दे रहा था। वे घिराहट भरे स्वर में कह रहे थे, अि बमत्र राष्ट्र
भी हमारे साथ वै सा ही िताम व करें गे जैसा हमने अपाबहजों और यहूबदयों के साथ बकया था।; अगले बदन वे हे लमुट
को लेकर िाग में घू मने गए। यह आखखरी मौका था जि हे लमु ट अपने बपता के साथ िाग में गया। दोनों ने िच्ों के
पुराने गीत गाए और खूि सारा वक्त खेलते-कूदते बिताया। कुछ समय िाद हे लमु ट के बपता ने अपने दफ्रतर में
खुद को गोली मार ली। हे लमु ट की यादों में वह िण अभी भी बजंदा है जि उसके बपता की खून में सनी वदी को
घर के अलाव में ही जला बदया गया था। हे लमु ट ने जो कुछ सुना था और जो कुछ हुआ, उससे उसके बदलोबदमाग
पर इतना गहरा सदमा पहुुँ चा बक अगले नौ साल तक वह घर में एक कौर भी नहीं खा पाया। उसे यही डर सताता
रहा बक कहीं उसकी माुँ उसे भी जहर न दे दे ।
हे लमुट को िायद समझ में न आया हो लेबकन हकीकत यह है बक उसके बपता ‘नात्सी’ थे। वे
एडॉल्फ़ बहटलर के कट्टर समथमक थे। आप में से कई िच्े नाखत्सयों और उनके नेता बहटलर के
िारे में जानते होंगे। आपको िायद पता होगा बक बहटलर जममनी को दु बनया का सिसे ताकतवर
दे ि िनाने को कबटिद्ध था। वह पूरे यूरोप को जीत लेना चाहता था। आपने यह भी सुना होगा बक
उसने यहूबदयों को मरवाया था। लेबकन नात्सीवाद बस़म इन इक्का-दु क्का घटनाओं का नाम नहीं
है । यह दु बनया और राजनीबत के िारे में एक सं पूणम व्यवस्था, बवचारों की एक पूरी सं रचना का
नाम है । आइए, समझने की कोबिि करें बक नात्सीवाद का मतलि क्या था। इस बसलबसले में
सिसे पहले हम यह दे खेंगे बक हे लमुट के बपता ने आत्महत्या क्यों की थी; वे बकस चीज से डरे हुए
थे।
मई 1945 में जममनी ने बमत्र राष्ट्रों के सामने समपमण कर बदया। बहटलर को अंदाजा हो चुका था
बक अि उसकी लड़ाई का क्या हश्र होने वाला है । इसबलए, बहटलर और उसके प्रचार मंत्री
ग्योिल्स ने िबलमन के एक िं कर में पूरे पररवार के साथ अप्रै ल में ही आत्महत्या कर ली थी। युद्ध
खत्म होने के िाद न्यूरेम्बगम में एक अं तराम ष्ट्रीय सैबनक अदालत स्थाबपत की गई। इस अदालत को
िां बत के बवरुद्ध बकए गए अपराधों, मानवता के खखला़ बकए गए अपराधों और युद्ध अपराधों के
बलए नात्सी युद्धिंबदयों पर मुकदमा चलाने का बजम्मा सौंपा गया था। युद्ध के दौरान जममनी के
व्यवहार, खासतौर से इं साबनयत के खखला़ बकए गए उसके अपराधों की वजह से कई गंभीर
नैबतक सवाल खड़े हुए और उसके कृत्यों की दु बनया भर में बनंदा की गई। ये कृत्य क्या थे?
दू सरे बवश्वयुद्ध के साए में जममनी ने जनसंहार िुरू कर बदया बजसके तहत यूरोप में रहने वाले कुछ खास
नस्ल के लोगों को सामूबहक रूप से मारा जाने लगा। इस युद्ध में मारे गए लोगों में 60 लाख यहूदी, 2
लाख बजप्सी और 10 लाख पोलैंड के नागररक थे। साथ ही मानबसक व िारीररक रूप से अपंग घोबर्षत
बकए गए 70,000 जममन नागररक भी मार डाले गए। इनके अलावा न जाने बकतने ही राजनीबतक
बवरोबधयों को भी मौत की नींद सुला बदया गया। इतनी िड़ी तादाद में लोगों को मारने के बलए और्षबवत्स
जैसे कत्लखाने िनाए गए जहाुँ जहरीली गैस से हजारों लोगों को एक साथ मौत के घाट उतार बदया जाता
था। न्यूरेम्बगम अदालत ने केवल 11 मुख्य नाखत्सयों को ही मौत की सजा दी। िाकी आरोबपयों में से िहुतों
को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। सजा तो बमली लेबकन नाखत्सयों को जो सजा दी गई वह उनकी ििमरता
और उनके जुल्ों के मुकािले िहुत छोटी थी। असल में, बमत्र राष्ट्र पराबजत जममनी पर इस िार वैसा
कठोर दं ड नहीं थोपना चाहते थे बजस तरह का दं ड पहले बवश्वयुद्ध के िाद जममनी पर थोपा गया था।
िहुत सारे लोगों का मानना था बक पहले बवश्वयुद्ध के आखखर में जमम नी के लोग बजस तरह
के अनुभव से गुजरे उसने भी नात्सी जममनी के उदय में योगदान बदया था। यह अनुभव क्या
था?
1 वाइमर गणराज्य का जन्म
िीसवीं िताब्दी के िुरुआती सालों में जममनी एक ताकतवर साम्राज्य था। उसने ऑखरर याई
साम्राज्य के साथ बमलकर बमत्र राष्ट्रों (इं ग्लैंड, फ़्ां स और रूस) के खखला़ पहला बवश्वयुद्ध
(1914-1918) लड़ा था। दु बनया की सभी िड़ी िखक्तयाुँ यह सोच कर इस युद्ध में कूद पड़ी थीं
बक उन्हें जल्दी ही बवजय बमल जाएगी। सभी को बकसी न बकसी ़ायदे की उम्मीद थी। उन्हें
अंदाजा नहीं था बक यह युद्ध इतना लंिा खखं च जाएगा और पूरे यूरोप को आबथम क दृबष्ट् से बनचोड़
कर रख दे गा। फ़्ां स आरै िेखियम पर कब्ज़ा करके जममनी ने िुरुआत में सफलताएुँ हाबसल कीं
लेबकन 1917 में जि अमेररका भी बमत्र राष्ट्रों में िाबमल हो गया तो इस खे मे को का़ी ताकत
बमली और आखखरकार, नवंिर 1918 में उन्होंने केंद्रीय िखक्तयों को हराने के िाद जममनी को भी
घुटने टे कने पर मजिूर कर बदया।
साम्राज्यवादी जममनी की पराजय और सम्राट के पदत्याग ने वहाुँ की संसदीय पाबटम यों को
जममन राजनीबतक व्यवस्था को एक नए साुँ चे में ढालने का अच्छा मौका उपलब्ध कराया।
इसी बसलबसले में वाइमर में एक राष्ट्रीय सभा की िैठक िुलाई गई और संघीय आधार पर
एक लोकतां बत्रक संबवधान पाररत बकया गया। नई व्यवस्था में जममन संसद यानी
राइखराग के बलए जनप्रबतबनबधयों का चुनाव बकया जाने लगा। प्रबतबनबधयों के बनवाम चन के
बलए औरतों सबहत सभी वयस्क नागररकों को समान और सावमभौबमक मताबधकार प्रदान
बकया गया।
लेबकन यह नया गणराज्य खुद जममनी के ही िहुत सारे लोगों को रास नहीं आ रहा था। इसकी एक वजह
तो यही थी बक पहले बवश्वयुद्ध में जममनी की पराजय के िाद बवजयी दे िों ने उस पर िहुत कठोर ितें थोप
दी थीं। बमत्र राष्ट्रों के साथ वसाम य (Versailles) में हुई िां बत-संबध जममनी की जनता के बलए िहुत कठोर
और अपमानजनक थी। इस संबध की वजह से जममनी को अपने सारे उपबनवेि, तकरीिन 10 प्रबतित
आिादी, 13 प्रबतित भूभाग, 75 प्रबतित लौह भंडार और 26 प्रबतित कोयला भंडार फ़्ां स, पोलैंड,
डे नमाकम और बलथुआबनया के हवाले करने पड़े । जममनी की रही-सही ताकत खत्म करने के बलए बमत्र
राष्ट्रों ने उसकी सेना भी भंग कर दी। युद्ध अपराधिोध अनुच्छेद (War Guilt Clause) के तहत युद्ध के
कारण हुई सारी तिाही के बलए जममनी को बजम्मेदार ठहराया गया। इसके एवज में उस पर छः अरि पौंड
का जुमाम ना लगाया गया। खबनज संसाधनों वाले राईनलैंड पर भी िीस के दिक में ज्यादातर बमत्र राष्ट्रों का
ही कब्ज़ा रहा। िहुत सारे जममनों ने न केवल इस हार के बलए िखि वसाम य में हुए इस अपमान के बलए
भी वाइमर गणराज्य को ही बजम्मेदार ठहराया।
1-1 युद्ध का असर
इस युद्ध ने पूरे महाद्वीप को मनोवैज्ञाबनक और आबथम क, दोनों ही स्तरों पर तोड़ कर रख बदया।
यूरोप कल तक कजम दे ने वालों का महाद्वीप कहलाता था जो युद्ध खत्म होते-होते कजमदारों का
महाद्वीप िन गया। बवडं िना यह थी बक पुराने साम्राज्य द्वारा बकए गए अपराधों का हजाम ना
नवजात वाइमर गणराज्य से वसूल बकया जा रहा था। इस गणराज्य को युद्ध में पराजय के
अपराधिोध और राष्ट्रीय अपमान का िोझ तो ढोना ही पड़ा, हजाम ना चुकाने की वजह से आबथमक
स्तर पर भी वह अपंग हो चुका था। वाइमर गणराज्य के बहमायबतयों में मु ख्य रूप से समाजवादी,
कैथबलक और डे मोक्रैट खे मे के लोग थे। रूबढवादी/पुरातनपंथी राष्ट्रवादी बमथकों की आड़ में
उन्हें तरह-तरह के हमलों का बनिाना िनाया जाने लगा। ‘नवंिर के अपराधी’ कहकर उनका
खु लेआम मजाक उड़ाया गया। इस मनोदिा का तीस के दिक के िुरुआती राजनीबतक
घटनाक्रम पर गहरा असर पड़ा।
पहले महायुद्ध ने यूरोपीय समाज और राजनीबतक व्यवस्था पर अपनी गहरी छाप छोड़ दी थी। बसपाबहयों
को आम नागररकों के मुकािले ज़्यादा सम्मान बदया जाने लगा। राजनेता और प्रचारक इस िात पर जोर
दे ने लगे बक पुरुर्षों को आक्रामक, ताकतवर और मदाम ना गुणों वाला होना चाबहए। मीबडया में खंदकों की
बजंदगी का मबहमामंडन बकया जा रहा था। लेबकन सच्ाई यह थी बक बसपाही इन खंदकों में िड़ी दयनीय
बजंदगी जी रहे थे। वे लािों को खाने वाले चूहों से बघरे रहते। वे जहरीली गैस और दु श्मनों की गोलािारी
का िहादु री से सामना करते हुए भी अपने साबथयों को पल-पल मरते दे खते थे। सावम जबनक जीवन में
आक्रामक ़ौजी प्रचार और राष्ट्रीय सम्मान व प्रबतष्ठा की चाह के सामने िाकी सारी चीजें गौण हो गईं
जिबक हाल ही में सत्ता में आए रूबढवादी तानािाहों को व्यापक जनसमथमन बमलने लगा। उस वक्त
लोकतंत्र एक नया और िहुत नाजुक बवचार था जो दोनों महायुद्धों के िीच पूरे यूरोप में फैली अखस्थरता
का सामना नहीं कर सकता था।
1-2 राजनीहतक रै हिकलवाद (आमूल पररवततनवाद) और आहथतक संकट
बजस समय वाइमर गणराज्य की स्थापना हुई उसी समय रूस में हुई िोल्फिेबवक क्रां बत की तजम पर जममनी
में भी स्पाटम बकर लीग अपने क्रां बतकारी बवद्रोह की योजनाओं को अंजाम दे ने लगी। िहुत सारे िहरों में
मजदू रों और नाबवकों की सोबवयतें िनाई गईं। िबलमन के राजनीबतक माहौल में सोबवयत बकस्म की िासन
व्यवस्था की बहमायत के नारे गुँजू रही थे इसीबलए समाजवाबदयों, डे मोक्रैट् स और कैथबलक गुटों ने
वाइमर में एकठा होकर इस प्रकार की िासन व्यवस्था के बवरोध में एक लोकतां बत्रक गणराज्य की
स्थापना का ़ैसला बलया। और आखखरकार वाइमर गणराज्य ने पुराने सैबनकों के फ़्ी कोर नामक
संगठन की मदद से इस बवद्रोह को कुचल बदया। इस पूरे घटनाक्रम के िाद स्पाटम बकरों ने जममनी में
कम्युबनर पाटी की नींव डाली। इसके िाद कम्युबनर (साम्यवादी) और समाजवादी एक-दू सरे के कट्टर
दु श्मन हो गए और बहटलर के खखला़ कभी भी साझा मोचाम नहीं खोल सके। क्रां बतकारी और उग्र
राष्ट्रवादी, दोनों ही खेमे रै बडकल समाधानों के बलए आवाजें उठाने लगे।
राजनीबतक रै बडकलवादी बवचारों को 1923 के आबथमक संकट से और िल बमला। जमम नी
ने पहला बवश्वयुद्ध मोटे तौर पर कजम लेकर लड़ा था। और युद्ध के िाद तो उसे स्वणम मुद्रा
में हजाम ना भी भरना पड़ा। इस दोहरे िोझ से जममनी के स्वणम भंडार लगभग समाप्त होने
की खस्थबत में पहुुँ च गए थे। आखखरकार 1923 में जममनी ने कजम और हजाम ना चुकाने से
इनकार कर बदया। इसके जवाि में फ्ां सीसी ने जममनी के मुख्य औद्योबगक इलाके रूर पर
कब्जा कर बलया। यह जममनी के बविाल कोयला भंडारों वाला इलाका था। जममनी ने फ्ांस
के बवरुद्ध बनखिय प्रबतरोध के रूप में िड़े पैमाने पर कागजी मु द्रा छापना िुरू कर
बदया।
जममन सरकार ने इतने िड़े पैमाने पर मुद्रा छाप दी बक उसकी मुद्रा माकम का मूल्य तेजी से बगरने
लगा। अप्रैल में एक अमेररकी डॉलर की कीमत 24,000 माकम के िरािर थी जो जुलाई में
3,53,000 माकम, अगस्त में 46,21,000 माकम तथा बदसं िर में 9,88,60,000 माकम हो गई। इस
तरह एक डॉलर में खरिों माकम बमलने लगे। जै से-जैसे माकम की कीमत बगरती गई, जरूरी चीजों
की कीमतें आसमान छूने लगीं। रे खाबचत्रें में जममन नागररकों को पावरोटी खरीदने के बलए
िैलगाड़ी में नोट भरकर ले जाते हुए बदखाया जाने लगा। जमनम समाज बदु नया भर में हमददी का
पात्र िन कर रह गया। इस सं कट को िाद में अबत-मुद्रास्फीबत का नाम बदया गया। जि कीमतें
िेबहसाि िढ़ जाती हैं तो उस खस्थबत को अबत-मुद्रास्फीबत का नाम बदया जाता है ।
जममनी को इस संकट से बनकालने के बलए अमेररकी सरकार ने हस्तिे प बकया। इसके
बलए अमेररका ने डॉव्स योजना िनाई। इस योजना में जममनी के आबथमक संकट को दू र
करने के बलए हजाम ने की ितों को दोिारा तय बकया गया।
1-3 मंदी के साल
सन् 1924 से 1928 तक जममनी में कुछ खस्थरता रही। लेबकन यह खस्थरता मानो रे त के ढे र पर
खड़ी थी। जममन बनवेि और औद्योबगक गबतबवबधयों में सुधार मुख्यतः अमेररका से बलए गए
अल्पकाबलक कजों पर आबश्रत था। जि 1929 में वॉल रर ीट एक्सचेंज (िेयर िाजार) धरािायी
हो गया तो जममनी को बमल रही यह मदद भी रातों-रात िंद हो गई। कीमतों में बगरावट की
आिंका को दे खते हुए लोग धड़ाधड़ अपने िेयर िेचने लगे। 24 अक्तूिर को केवल एक बदन में
1-3 करोड़ िेयर िेच बदए गए। यह आबथम क महामंदी की िु रुआत थी। 1929 से 1932 तक के
अगले तीन सालों में अमेररका की राष्ट्रीय आय केवल आधी रह गई। ़ैखरर याुँ िं द हो गई थीं,
बनयाम त बगरता जा रहा था, बकसानों की हालत खराि थी और सटे िाज़ िाजार से पैसा खींचते जा
रहे थे। अमेररकी अथमव्यवस्था में आई इस मंदी का असर दु बनया भर में महसूस बकया गया।
इस मंदी का सिसे िुरा प्रभाव जममन अथमव्यवस्था पर पड़ा। 1932 में जममनी का
औद्योबगक उत्पादन 1929 के मुकािले केवल 40 प्रबतित रह गया था। मजदू र या तो
िेरोजगार होते जा रहे थे या उनके वेतन का़ी बगर चुके थे। िेरोजगारों की संख्या 60
लाख तक जा पहुुँ ची। जममनी की सड़कों पर ऐसे लोग िड़ी तादाद में बदखाई दे ने लगे जो-
‘मैं कोई भी काम करने को तैयार हूुँ ’-बलखी तख्ती गले में लटकाये खड़े रहते थे। िेरोजगार
नौजवान या तो ताि खेलते पाए जाते थे, नुक्कड़ों पर झुंड लगाए रहते थे या बफर रोजगार
दफ्तरों के िाहर लंिी-लंिी कतार में खड़े पाए जाते थे। जैसे-जैसे रोजगार खत्म हो रहे थे,
युवा वगम आपराबधक गबतबवबधयों में बलप्त होता जा रहा था। चारों तऱ गहरी हतािा का
माहौल था।
आबथम क सं कट ने लोगों में गहरी िे चैनी और डर पैदा कर बदया था। जैसे-जैसे मुद्रा का अवमूल्यन
होता जा रहा था; मध्यवगम, खासतौर से वेतनभोगी कममचारी और पेंिनधाररयों की िचत भी
बसकुड़ती जा रही थी। कारोिार ठप्प हो जाने से छोटे -मोटे व्यवसायी, स्वरोजगार में लगे लोग
और खु दरा व्यापाररयों की हालत भी खराि होती जा रही थी। समाज के इन तिकों को
सवमहाराकरण का भय सता रहा था। उन्हें डर था बक अगर यही ढराम रहा तो वे भी एक बदन
मजदू र िनकर रह जाएुँ गे या हो सकता है बक उनके पास कोई रोजगार ही न रह जाए। अि
बस़म संगबठत मजदू र ही थे बजनकी बहम्मत टू टी नहीं थी। लेबकन िेरोजगारो की िढ़ती ़ाजै
उनकी माले - भाव िमता को भी चोट पहुुँ चा रही थी। िड़े व्यवसाय संकट बकसानों का एक िहतु
िडा वगम कृबर्ष उत्पादों की कीमतों में िेबहसाि बगरावट की वजह से परे िान था। युवाओं को
अपना भबवष्य अंधकारमय बदखाई दे रहा था। अपने िच्ों का पेट भर पाने में असफल औरतों के
बदल भी डूि रहे थे।
राजनीबतक स्तर पर वाइमर गणराज्य एक नाजुक दौर से गुजर रहा था। वाइमर संबवधान में कुछ ऐसी
कबमयाुँ थीं बजनकी वजह से गणराज्य कभी भी अखस्थरता और तानािाही का बिकार िन सकता था।
इनमें से एक कमी आनुपाबतक प्रबतबनबधत्व से संिंबधत थी। इस प्रावधान की वजह से बकसी एक पाटी को
िहुमत बमलना लगभग नामुमबकन िन गया था। हर िार गठिंधन सरकार सत्ता में आ रही थी। दू सरी
समस्या अनुच्छेद 48 की वजह से थी बजसमें राष्ट्रपबत को आपातकाल लागू करने, नागररक अबधकार रद्द
करने और अध्यादे िों के जररए िासन चलाने का अबधकार बदया गया था। अपने छोटे से जीवन काल में
वाइमर गणराज्य का िासन 20 मंबत्रमंडलों के हाथों में रहा और उनकी औसत अवबध 239 बदन से
ज़्यादा नहीं रही। इस दौरान अनुच्छेद 48 का भी जमकर इस्तेमाल बकया गया। पर इन सारे नुस्ों के
िावजूद संकट दू र नहीं हो पाया। लोकतां बत्रक संसदीय व्यवस्था में लोगों का बवश्वास खत्म होने लगा
क्योंबक वह उनके बलए कोई समाधान नहीं खोज पा रही थी।
2 हिटलर का उदय
अथमव्यवस्था, राजनीबत और समाज में गहराते जा रहे इस सं कट ने बहटलर के सत्ता में पहुुँ चने का
रास्ता सा़ कर बदया। 1889 में ऑखरर या में जन्मे बहटलर की युवावस्था िेहद गरीिी में गुजरी
थी। रोजी-रोटी का कोई जररया न होने के कारण पहले बवश्वयुद्ध की िुरुआत में उसने भी अपना
नाम ़ौजी भती के बलए बलखवा बदया था। भती के िाद उसने अबग्रम मोचे पर संदेिवाहक का
काम बकया, कॉपोरल िना और िहादु री के बलए उसने कुछ तमगे भी हाबसल बकए। जममन सेना
की पराजय ने तो उसे बहला बदया था, लेबकन वसाम य की संबध ने तो उसे आग-ििू ला ही कर बदया।
1919 में उसने जममन वकमसम पाटी नामक एक छोटे -से समूह की सदस्यता ले ली। धीरे -धीरे उसने
इस सं गठन पर अपना बनयंत्रण कायम कर बलया और उसे नैिनल सोिबलर पाटी का नया नाम
बदया। इसी पाटी को िाद में नात्सी पाटी के नाम से जाना गया।
1923 में ही बहटलर ने िवेररया पर कब्जा करने, िबलमन पर चढ़ाई करने और सत्ता पर कब्जा करने की
योजना िना ली थी। इन दु स्साहबसक योजनाओं में वह असफल रहा। उसे बगरफ्तार कर बलया गया। उस
पर दे िद्रोह का मुकदमा भी चला लेबकन कुछ समय िाद उसे ररहा कर बदया गया। नात्सी राजनीबतक
खेमा 1930 के दिक के िुरुआती सालों तक जनता को िड़े पैमाने पर अपनी तऱ आकबर्षमत नहीं कर
पाया। लेबकन महामंदी के दौरान नात्सीवाद ने एक जन आं दोलन का रूप ग्रहण कर बलया। जैसा बक हम
पहले दे ख चुके हैं , 1929 के िाद िैंक बदवाबलया हो चुके थे, काम-धंधे िंद होते जा रहे थे, मजदू र
िेरोजगार हो रहे थे और मध्यवगम को लाचारी और भुखमरी का डर सता रहा था। नात्सी प्रोपेगैंडा में लोगों
को एक िेहतर भबवष्य की उम्मीद बदखाई दे ती थी। 1929 में नात्सी पाटी को जममन संसद-राइखराग- के
बलए हुए चुनावों में महज 2-6 ़ीसदी वोट बमले थे। 1932 तक आते-आते यह दे ि की सिसे िड़ी पाटी
िन चुकी थी और उसे 37 ़ीसदी वोट बमले।
बहटलर जिदम स्त वक्ता था। उसका जोि और उसके िब्द लोगों को बहलाकर रख दे ते थे।
वह अपने भार्षणों में एक िखक्तिाली राष्ट्र की स्थापना, वसाम य संबध में हुई नाइं सा़ी के
प्रबतिोध और जममन समाज को खोई हुई प्रबतष्ठा वापस बदलाने का आश्वासन दे ता था।
उसका वादा था बक वह िेरोजगारों को रोजगार और नौजवानों को एक सुरबित भबवष्य
दे गा। उसने आश्वासन बदया बक वह दे ि को बवदे िी प्रभाव से मुक्त कराएगा और तमाम
बवदे िी ‘साबजिों’ का मुुँहतोड़ जवाि दे गा।
बहटलर ने राजनीबत की एक नई िैली रची थी। वह लोगों को गोलिंद करने के बलए
आडं िर और प्रदिमन की अहबमयत समझता था। बहटलर के प्रबत भारी समथमन दिाम ने और
लोगों में परस्पर एकता का भाव पैदा करने के बलए नाखत्सयों ने िड़ी-िड़ी रै बलयाुँ और
जनसभाएुँ आयोबजत कीं। स्वखस्तक छपे लाल झंडे, नात्सी सैल्यूट और भार्षणों के िाद
खास अंदाज में ताबलयों की गड़गड़ाहट-ये सारी चीजें िखक्त प्रदिमन का बहस्सा थीं।
नाखत्सयों ने अपने धूआुँधार प्रचार के जररए बहटलर को एक मसीहा, एक रिक, एक ऐसे
व्यखक्त के रूप में पेि बकया, बजसने मानो जनता को तिाही से उिारने के बलए ही अवतार
बलया था। एक ऐसे समाज को यह छबव िेहद आकर्षमक बदखाई दे ती थी बजसकी प्रबतष्ठा
और गवम का अहसास चकनाचूर हो चुका था और जो एक भीर्षण आबथमक एवं राजनीबतक
संकट से गुजर रहा था।
2-1 लोकतंत्र का ध्वंस
30 जनवरी 1933 को राष्ट्रपबत बहं डनिगम ने बहटलर को चां सलर का पद-भार संभालने का न्यौता बदया। यह
मंबत्रमंडल में सिसे िखक्तिाली पद था। ति तक नात्सी पाटी रूबढवाबदयों को भी अपने उद्दे श्ों से जोड़ चुकी थी।
सत्ता हाबसल करने के िाद बहटलर ने लोकतां बत्रक िासन की सं रचना और संस्थानों को भंग करना िुरू कर
बदया। फरवरी माह में जममन संसद भवन में हुए रहस्यमय अबिकां ड से उसका रास्ता और आसान हो गया। 28
फरवरी 1933 को जारी बकए गए अबि अध्यादे ि (़ायर बडक्री) के जररए अबभव्यखक्त, प्रेस एवं सभा करने की
आजादी जैसे नागररक अबधकारों को अबनबितकाल के बलए बनलंबित कर बदया गया। वाइमर संबवधान में इन
अबधकारों को का़ी महत्त्वपू णम स्थान प्राप्त था। इसके िाद बहटलर ने अपने कट्टर ित्रु-कम्युबनरों-पर बनिाना
साधा। ज्यादातर कम्युबनरों को रातों-रात कंसन्टे िन कैंपों में िं द कर बदया गया। कम्युबनरों का ििमर दमन बकया
गया। लगभग पाुँ च लाख की आिादी वाले ड्युस्सलडाफम िहर में बगरफ्तार बकए गए लोगों की िची-खुची 6,808
़ाइलों में से 1,440 बस़म कम्युबनरों की थीं। नाखत्सयों ने बस़म कम्युबनरों का ही स़ाया नहीं बकया। नात्सी
िासन ने कुल 52 बकस्म के लोगों को अपने दमन का बनिाना िनाया था।
3 माचम 1933 को प्रबसद्ध बविेर्षाबधकार अबधबनयम (इनेिबलंग ऐर) पाररत बकया गया।
इस कानून के जररए जममनी में िाकायदा तानािाही स्थाबपत कर दी गई। इस कानून ने
बहटलर को संसद को हाबिए पर धकेलने और केवल अध्यादे िों के जररए िासन चलाने
का बनरं कुि अबधकार प्रदान कर बदया। नात्सी पाटी और उससे जुड़े संगठनों के अलावा
सभी राजनीबतक पाबटम यों और टर े ड यूबनयनों पर पािंदी लगा दी गई। अथमव्यवस्था, मीबडया,
सेना और न्यायपाबलका पर राज्य का पूरा बनयंत्रण स्थाबपत हो गया।
पूरे समाज को नाखत्सयों के बहसाि से बनयंबत्रत और व्यवखस्थत करने के बलए बविेर्ष बनगरानी और
सुरिा दस्ते गबठत बकए गए। पहले से मौजूद हरी वदीधारी पुबलस और रॉमम टर न्न्पसम (एसए) के
अलावा गेस्तापो (गुप्तचर राज्य पुबलस), एसएस (अपराध बनयंत्रण पुबलस) और सुरिा सेवा
(एसडी) का भी गठन बकया गया। इन नवगबठत दस्तों को िेबहसाि असंवैधाबनक अबधकार बदए
गए और इन्हीं की वजह से नात्सी राज्य को एक खूं खार आपराबधक राज्य की छबव प्राप्त हुई।
गेस्तापो के यंत्रणा गृहों में बकसी को भी िंद बकया जा सकता था। ये नए दस्ते बकसी को भी
यातना गृहों में भेज सकते थे, बकसी को भी बिना कानूनी कारम वाई के दे ि बनकाला बदया जा
सकता था या बगरफ्तार बकया जा सकता था। दं ड की आिं का से मुक्त पुबलस िलों ने बनरं कुि
और बनरपेि िासन का अबधकार प्राप्त कर बलया था।
2-2 पुनहनतमातण
बहटलर ने अथमव्यवस्था को पटरी पर लाने की बजम्मेदारी अथमिास्त्री ह्यालमार िाख़्त को
सौंपी। िाख़्त ने सिसे पहले सरकारी पैसे से चलाए जाने वाले रोजगार संवधमन कायमक्रम
के जररए सौ ़ीसदी उत्पादन और सौ ़ीसदी रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय
बकया। मिहूर जममन सुपर हाइवे और जनता की
कार-़ॉक्सवैगन-इस पररयोजना की दे न थी।
बवदे ि नीबत के मोचे पर भी बहटलर को ़ौरन कामयाबियाुँ बमलीं। 1933 में उसने ‘लीग
ऑफ़ नेशंस’ से पल्ला झाड़ बलया। 1936 में राईनलैंड पर दोिारा कब्ज़ा बकया और एक
जन, एक साम्राज्य, एक नेता के नारे की आड़ में 1938 में ऑखरर या को जममनी में बमला
बलया। इसके िाद उसने चेकोस्लोवाबकया के कब्ज़े वाले जममनभार्षी सुडेंटनलैंड प्रां त पर
कब्जा बकया और बफर पूरे चेकोस्लोवाबकया को हड़प बलया। इस दौरान उसे इं ग्लैंड का
भी खामोि समथमन बमल रहा था क्योंबक इं ग्लैंड की नजर में वसाम य की संबध के नाम पर
जममनी के साथ िड़ी नाइं सा़ी हुई थी। घरे लू और बवदे िी मोचे पर जल्दी-जल्दी बमली इन
कामयाबियों से ऐसा लगा बक दे ि की बनयबत अि पलटने वाली है ।
लेबकन बहटलर यहीं नहीं रुका। िाख़्त ने बहटलर को सलाह दी थी बक सेना और हबथयारों पर जयादा पैसे
खचम न बकया जाए कयोंबक सरकारी िजट अभी भी घाटे में ही चल रहा था। लेबकन नात्सी जममनी में
एहबतयात पसंद लोगों के बलए कोई जगह नहीं थी। िाख़्त को उनके पद से हटा बदया गया। बहटलर ने
आबथमक संकट से बनकलने के बलए युद्ध का बवकल्प चुना। वह राष्ट्रीय सीमाओं का बवस्तार करते हुए
ज़्यादा से ज़्यादा संसाधन एकठा करना चाहता था। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए बसतंिर 1939 में
उसने पोलैंड पर हमला कर बदया। इसकी वजह से फ़्ां स और इं ग्लैंड के साथ भी उसका युद्ध िुरू हो
गया। बसतंिर 1940 में जममनी ने इटली और जापान के साथ एक बत्रपिीय संबध पर हस्तािर बकए। इस
संबध से अंतराम ष्ट्रीय समुदाय में बहटलर का दावा आरै मज़िूत हो गया। यूरोप के ज्यादातर दे िो में नात्सी
जममनी का समथनम करने वाली कठपुतली सरकारें बिठा दी गईं। 1940 के अंत में बहटलर अपनी ताकत
के बिखर पर था।
अि बहटलर ने अपना सारा ध्यान पूवी यूरोप को जीतने के दीघमकाबलक सपने पर केंबद्रत कर
बदया। वह जममन जनता के बलए सं साधन और रहने की जगह (Living Space) का इं तजाम
करना चाहता था। जून 1941 में उसने सोबवयत संघ पर हमला बकया। यह बहटलर की एक
ऐबतहाबसक िेवकू़ी थी। इस आक्रमण से जमम न पबिमी मोचाम बिबटि वायुसैबनकों के िमिारी
की चपेट में आ गया जिबक पूवी मोचे पर सोबवयत सेनाएुँ जममनों को नाकों चने चिवा रही थीं।
सोबवयत लाल सेना ने स्ताबलनग्राद में जममन सेना को घुटने टे कने पर मजिूर कर बदया। सोबवयत
लाल सै बनकों ने पीछे हटते जममन बसपाबहयों का आखखर तक पीछा बकया और अतं में वे िबलनम के
िीचोंिीच जा पहुं चे। इस घटनाक्रम ने अगली आधी सदी के बलए समू चे पूवी यूरोप पर सोबवयत
वचमस्व स्थाबपत कर बदया।
अमेररका इस युद्ध में फुँसने से लगातार िचता रहा। अमेररका पहले बवश्वयुद्ध की वजह से
पैदा हुई आबथमक समस्याओं को दोिारा नहीं झेलना चाहता था। लेबकन वह लंिे समय तक
युद्ध से दू र भी नहीं रह सकता था। पूरि में जापान की ताकत फैलती जा रही थी। उसने
फ़्ेंच-इं डो-चाइना पर कब्जा कर बलया था और प्रिां त महासागर में अमेररकी नौसैबनक
बठकानों पर हमले की पूरी योजना िना ली थी। जि जापान ने बहटलर को समथमन बदया
और पलम हािमर पर अमेररकी बठकानों को िमिारी का बनिाना िनाया तो अमेररका भी
दू सरे बवश्वयुद्ध में कूद पड़ा। यह युद्ध मई 1945 में बहटलर की पराजय और जापान के
बहरोबिमा िहर पर अमेररकी परमाणु िम बगराने के साथ खत्म हुआ।
दू सरे बवश्वयुद्ध के इस संबिप्त ब्यौरे के िाद अि हम एक िार बफर हे लमुट और उसके
बपता की कहानी पर वापस लौटते हैं । यह युद्ध के दौरान नात्सी जुल्ों की कहानी है ।
3 नात्सत्सयों का हवश्व दृहिकोण
नाखत्सयों ने जो अपराध बकए वे खास तरह की मूल्य- मान्यताओं, एक खास तरह के
व्यवहार से संिंबधत थे।
नात्सी बवचारधारा बहटलर के बवश्व दृबष्ट्कोण का पयाम यवाची थी। इस बवश्व दृबष्ट्कोण में सभी समाजों को िरािरी का हक नहीं था, वे नस्ली
आधार पर या तो िेहतर थे या कमतर थे। इस नजररये में ब्लॉन्ड, नीली आुँ खों वाले, नॉबडम क जममन आयम सिसे ऊपरी और यहूदी सिसे
बनचली पायदान पर आते थे । यहूबदयों को नस्ल बवरोधी, यानी आयों का कट्टर ित्रु माना जाता था। िाकी तमाम समाजों को उनके िाहरी रं ग-
रूप के बहसाि से जममन आयों और यहूबदयों के िीच में रखा गया था। बहटलर की नस्ली सोच चाल्सम डाबवमन और हिमटम स्पेंसर जैसे बवचारकों
के बसद्धां तों पर आधाररत थी। डाबवमन प्रकृबत बवज्ञानी थे बजन्होंने बवकास और प्राकृबतक चयन की अवधारणा के जररए पौधों और पिुओं की
उत्पबत्त की व्याख्या का प्रयास बकया था। िाद में हिमटम स्पेंसर ने ‘अबत जीबवता का बसद्धां त’ (सरवाइवल ऑ़ द ब़टे र) - जो सिसे योग्य है
वही बजंदा िचेगा-यह बवचार बदया। इस बवचार का मतलि यह था बक जो प्रजाबतयाुँ िदलती हुई वातावरणीय पररखस्थबतयों के अनुसार खुद
को ढाल सकती हैं वही पृथ्वी पर बजं दा रहती हैं । यहाुँ हमें इस िात का ध्यान रखना चाबहए बक डाबवमन ने चयन के बसद्धां त को एक बविुद्ध
प्राकृबतक प्रबक्रया कहा था और उसमें इं सानी हस्तिे प की वकालत कभी नहीं की। लेबकन नस्लवादी बवचारकों और राजनेताओं ने पराबजत
समाजों पर अपने साम्राज्यवादी िासन को सही ठहराने के बलए डाबवमन के बवचारों का सहारा बलया। नाखत्सयों की दलील िहुत सरल थी: जो
नस्ल सिसे ताकतवर है वह बजंदा रहे गी; कमजोर नस्लें खत्म हो जाएुँ गी। आयम नस्ल सवमश्रेष्ठ है । उसे अपनी िुद्धता िनाए रखनी है , ताकत
हाबसल करनी है और दु बनया पर वचमस्व कायम करना है ।
बहटलर की बवचारधारा का दू सरा पहलू लेिेन्ड्डाउम या जीवन-पररबध की
भू-राजनीबतक अवधारणा से संिंबधत था। वह मानता था बक अपने लोगों को िसाने के बलए
ज्यादा से ज्यादा इलाकों पर कब्जा करना जरूरी है । इससे मातृ दे ि का िेत्रफल भी
िढ़े गा और नए इलाकों में जाकर िसने वालों को अपने जन्मस्थान के साथ गहरे संिंध
िनाए रखने में मुखिल भी पेि नहीं आएगी। बहटलर की नजर में इस तरह जममन राष्ट्र के
बलए संसाधन और िेबहसाि िखक्त इकट्ठा की जा सकती थी।
पूरि में बहटलर जममन सीमाओं को और फैलाना चाहता था ताबक सारे जममनों को
भौगोबलक दृबष्ट् से एक ही जगह इकट्ठा बकया जा सके। पोलैंड इस धारणा की पहली
प्रयोगिाला िना।
3-1 नस्लवादी राज्य की स्थापना
सत्ता में पहुुँ चते ही नाखत्सयों ने ‘िुद्ध’ जममनों के बवबिष्ट् नस्ली समुदाय की स्थापना के सपने को
लागू करना िुरू कर बदया। सिसे पहले उन्होंने बवस्ताररत जममन साम्राज्य में मौजूद उन समाजों
या नस्लों को खत्म करना िुरू बकया बजन्हें वे ‘अवां बछत’ मानते थे। नात्सी ‘िुद्ध और स्वस्थ
नॉबडम क आयों’ का समाज िनाना चाहते थे। उनकी नजर में केवल ऐसे लोग ही ‘वां बछत’ थे।
केवल ये ही लोग थे बजन्हें तरक्की और वंि-बवस्तार के योग्य माना जा सकता था। िाकी सि
‘अवां बछत’ थे। इसका मतलि यह बनकला बक ऐसे जममनों को भी बजंदा रहने का कोई हक नहीं है
बजन्हें नात्सी अिुद्ध या असामान्य मानते थे। यूथनेबजया (दया मृत्यु) कायमक्रम के तहत िाकी
नात्सी अ़सरों के साथ-साथ हे लमुट के बपता ने भी असंख्य ऐसे जममनों को मौत के घाट उतारा
था बजन्हें वह मानबसक या िारीररक रूप से अयोग्य मानते थे।
केवल यहूदी ही नहीं थे बजन्हें ‘अवां बछतों’ की श्रेणी में रखा गया था। इनके अलावा भी कई
नस्लें थीं जो इसी बनयबत के बलए अबभिप्त थीं। जममनी में रहने वाले बजखप्सयों और अश्वेतों
की पहले तो जममन नागररकता छीन ली गई और िाद में उन्हें मार बदया गया। रूसी और
पोबलि मूल के लोगों को भी मनुष्य से कमतर माना गया। जि जममनी ने पोलैंड और रूस
के कुछ बहस्सों पर कब्जा कर बलया तो स्थानीय लोगों को भयानक पररखस्थबतयों में गुलामों
की तरह काम पर झोंक बदया गया। उन्हें इं सानी िताम व के लायक नहीं माना जाता था।
उनमें से िहुत सारे िेबहसाि काम के िोझ और भूख से ही मर गए।
नात्सी जममनी में सिसे िुरा हाल यहूबदयों का हुआ। यहूबदयों के प्रबत नाखत्सयों की दु श्मनी का एक आधार यहूबदयों के
प्रबत ईसाई धमम में मौजूद परं परागत घृणा भी थी। ईसाइयों का आरोप था बक ईसा मसीह को यहूबदयों ने ही मारा था।
ईसाइयों की नजर में यहूदी आदतन हत्यारे और सूदखोर थे। मध्यकाल तक यहूबदयों को जमीन का माबलक िनने की
मनाही थी। ये लोग मुख्य रूप से व्यापार और धन उधार दे ने का धंधा करके अपना गुजारा चलाते थे। वे िाकी समाज से
अलग िखस्तयों में रहते थे बजन्हें घेटो (Ghettoes) यानी दड़िा कहा जाता था। नस्ल-संहार के जररए ईसाई िार-िार
उनका स़ाया करते रहते थे। उनके खखला़ जि-ति संगबठत बहं सा की जाती थी और उन्हें उनकी िखस्तयों से खदे ड़
बदया जाता था। लेबकन ईसाइयत ने उन्हें िचने का एक रास्ता बफर भी बदया हुआ था। यह धमम पररवतमन का रास्ता था।
आधुबनक काल में िहुत सारे यहूबदयों ने ईसाई धमम अपना बलया और जानते-िू झते हुए जममन संस्कृबत में ढल गए।
लेबकन यहूबदयों के प्रबत बहटलर की घृणा तो नस्ल के छद्म वैज्ञाबनक बसद्धां तों पर आधाररत थी। इस ऩरत में ‘यहूदी
समस्या’ का हल धमाां तरण से नहीं बनकल सकता था। बहटलर की ‘दृबष्ट्’ में इस समस्या का बस़म एक ही हल था -
यहूबदयों को पूरी तरह खत्म कर बदया जाए।
सन् 1933 से 1938 तक नाखत्सयों ने यहूबदयों को तरह-तरह से आतंबकत बकया, उन्हें
दररद्र कर आजीबवका के साधनों से हीन कर बदया और उन्हें िेर्ष समाज से अलग-थलग
कर डाला। यहूदी दे ि छोड़कर जाने लगे। 1939-45 के दू सरे दौर में यहूबदयों को कुछ
खास इलाकों में इकट्ठा करने और अंततः पोलैंड में िनाए गए गैस चें िरों में ले जाकर मार
दे ने की रणनीबत अपनाई गई।
3-2 नस्ली कल्पनालोक (यूटोहपया)
युद्ध के साए में नात्सी अपने काबतलाना, नस्लवादी कल्पनालोक या आदिम बवश्व के बनमाम ण में लग गए। जनसंहार और युद्ध
एक ही बसक्के के दो पहलू िन गए। पराबजत पोलैंड को पूरी तरह तहस-नहस कर बदया गया। उत्तर-पबिमी पोलैंड का
ज़्यादातर बहस्सा जममनी में बमला बलया गया। पोलैंड के लोगों को अपने घर और माल-असिाि छोड़कर भागने के बलए मजिूर
बकया गया ताबक जममनी के कब्जे वाले यूरोप में रहने वाले जममनों को वहाुँ लाकर िसाया जा सके। इसके िाद पोलैंडवाबसयों
को मवेबियों की तरह खदे ड़ कर जनरल गवनममेंट नामक दू सरे बहस्से में पहुुँ चा बदया गया। जममन साम्राज्य में मौजूद तमाम
अवां बछत तत्त्वों को जनरल गवनममेंट नामक इसी इलाके में लाकर रखा जाता था। पोलैंड के िुखद्धजीबवयों को िड़े पैमाने पर
मौत के घाट उतारा गया। यह पूरे पोलैंड के समाज को िौखद्धक और आध्याखत्मक स्तर पर गुलाम िना लेने की चाल थी। आयम
जैसे लगने वाले पोलैंड के िच्ों को उनके माुँ -िाप से छीन कर जाुँ च के बलए ‘नस्ल बविेर्षज्ञों’ के पास पहुुँ चा बदया गया। अगर
वे नस्ली जाुँ च में कामयाि हो जाते तो उन्हें जममन पररवारों में पाला जाता और अगर ऐसा नहीं होता तो उन्हें अनाथाश्रमों में डाल
बदया जाता जहाुँ उनमें से ज्यादातर मर जाते थे। जनरल गवनममेंट में कुछ बविालतम घेटो और गैस चेंिर भी थे इसबलए यहाुँ
यहूबदयों को िड़े पैमाने पर मारा जाता था।
मौत का हसलहसला
पहला चरण: िबहष्कार: 1933-39

हमारे िीच तुम्हें नागररकों की तरह रहने का कोई हक नहीं।

न्यूरेम्बगम नागररकता अबधकार, बसतंिर 1935:

1- जममन या उससे संिंबधत रक्त वाले व्यखक्त ही जममन नागररक होंगे और उन्हें जममन

साम्राज्य का संरिण बमलेगा।

2- यहूबदयों और जममनों के िीच बववाह पर पािंदी।

3- यहूबदयों और जममनों के िीच बववाहे तर संिंधों को अपराध घोबर्षत कर बदया गया।

4- यहूबदयों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर पािंदी लगा दी गई।


अन्य कानूनी उपाय:

 यहूदी व्यवसायों का िबहष्कार।

 सरकारी सेवाओं से बनकाला जाना।

 यहूबदयों की संपबत्त की जब्ती और बिक्री।

इसके अलावा नवंिर 1938 के एक जनसंहार में यहूबदयों की संपबत्तयों को तहस-नहस


बकया गया, लूटा गया, उनके घरों पर हमले हुए, यहूदी प्राथतनाघर (Synagogues) जला
बदए गए और उन्हें बगरफ् तार बकया गया। इस घटना को ‘नाइट ऑफ़ ब्रोकन ग्लास’ के
नाम से याद बकया जाता है ।
दू सरा चरण: दड़िािंदी (Ghettoization) 1940- 44

तुम्हें हमारे िीच रहने का कोई हक नहीं।

बसतंिर 1941 से सभी यहूबदयों को हुक्म बदया गया बक वह डे बवड का पीला बसतारा अपनी छाती
पर लगा कर रखें गे। उनके पासपोटम , तमाम कानूनी दस्तावेजों और घरों के िाहर भी यह पहचान
बचह्न छाप बदया गया। जममनी में उन्हें यहूदी मकानों में और पूवी िेत्र के लोद् ज एवं वॉरसा जै सी
घेटो िखस्तयों में कष्ट्पूणम और दररद्रता की खस्थबत में रखा जाता था। ये िेहद बपछड़े और बनधम न
इलाके थे। घेटो में दाखखल होने से पहले यहूबदयों को अपनी सारी संपबत्त छोड़ दे ने के बलए
मजिूर बकया गया। कुछ ही समय में घेटो िखस्तयों में वंचना, भुखमरी, गं दगी और िीमाररयों का
साम्राज्य व्याप्त हो गया।
तीसरा चरण: सवतनाश: 1941 के बाद

तुम्हें जीने का अबधकार नहीं।

समूचे यूरोप के यहूदी मकानों, यातना गृहों और घेटो िखस्तयों में रहने वाले यहूबदयों को
मालगाबडयों में भर-भर कर मौत के कारखानों में लाया जाने लगा। पोलैंड तथा अन्य पूवी
इलाकों में , मुख्य रूप से िेलजेक, और्षबवत्स, सोिीिोर, त्रेिबलंका, चेल्फनो, तथा मायदानेक
में उन्हें गैस चेंिरों में झोंक बदया गया। औद्योबगक और वैज्ञाबनक तकनीकों के सहारे िहुत
सारे लोगों को पलक झपकते मौत के घाट उतार बदया गया।
4 नात्सी जमतनी में युवाओं की त्सस्थहत
युवाओं में बहटलर की बदलचस्पी जुनून की हद तक पहुुँ च चुकी थी। उसका मानना था बक
एक िखक्तिाली नात्सी समाज की स्थापना के बलए िच्ों को नात्सी बवचारधारा की घुट्टी
बपलाना िहुत जरूरी है । इसके बलए स्कूल के भीतर और िाहर, दोनों जगह िच्ों पर पूरा
बनयंत्रण आवश्क था।
नात्सीवाद के दौरान स्कूलों में क्या हो रहा था? तमाम स्कूलों में स़ाए और िुद्धीकरण
की मुबहम चलाई गई। यहूदी या ‘राजनीबतक रूप से अबवश्वसनीय’ बदखाई दे ने वाले
बििकों को पहले नौकरी से हटाया गया और िाद में मौत के घाट उतार बदया गया। िच्ों
को अलग-अलग बिठाया जाने लगा। जममन और यहूदी िच्े एक साथ न तो िैठ सकते थे
और न खेल-कूद सकते थे। िाद में ‘अवां बछत िच्ों’ को यानी यहूबदयों, बजखप्सयों के िच्ों
और बवकलां ग िच्ों को स्कूलों से बनकाल बदया गया। चालीस के दिक में तो उन्हें भी गैस
चेंिरों में झोंक बदया गया।
‘अच्छे जममन’ िच्ों को नात्सी बििा प्रबक्रया से गुजरना पड़ता था। यह बवचारधारात्मक प्रबििण
की एक लं िी प्रबक्रया थी। स्कूली पाठ्यपुस्तकों को नए बसरे से बलखा गया। नस्ल के िारे में
प्रचाररत नात्सी बवचारों को सही ठहराने के बलए नस्ल बवज्ञान के नाम से एक नया बवर्षय
पाठ्यक्रम में िाबमल बकया गया। और तो और, गबणत की किाओं में भी यहूबदयों की एक खास
छबव गढ़ने की कोबिि की जाती थी। िच्ों को बसखाया गया बक वे व़ादार व आज्ञाकारी िनें,
यहूबदयों से ऩरत और बहटलर की पूजा करें । खे ल-कूद के जररए भी िच्ों में बहं सा और
आक्रामकता की भावना पैदा की जाती थी। बहटलर का मानना था बक मुक्केिाजी का प्रबििण
िच्ों को ़ौलादी बदल वाला, ताकतवर और मदाम ना िना सकता है ।
जममन िच्ों और युवाओं को ‘राष्ट्रीय समाजवाद की भावना’ से लैस करने की बजम्मेदारी
युवा संगठनों को सौंपी गई। 10 साल की उम्र के िच्ों को युंग़ोक में दाखखल करा बदया
जाता था। 14 साल की उम्र में सभी लड़कों को नाखत्सयों के युवा संगठन-बहटलर यूथ-की
सदस्यता लेनी पड़ती थी। इस संगठन में वे युद्ध की उपासना, आक्रामकता व बहं सा,
लोकतंत्र की बनंदा और यहूबदयों, कम्युबनरों, बजखप्सयों व अन्य ‘अवां बछतों’ से घृणा का
सिक सीखते थे। गहन बवचारधारात्मक और िारीररक प्रबििण के िाद लगभग 18 साल
की उम्र में वे लेिर सबवमस (श्रम सेवा) में िाबमल हो जाते थे। इसके िाद उन्हें सेना में काम
करना पड़ता था और बकसी नात्सी संगठन की सदस्यता लेनी पड़ती थी।
नात्सी यूथ लीग का गठन 1922 में हुआ था। चार साल िाद उसे बहटलर यूथ का नया नाम
बदया गया। 1933 तक आते -आते इस संगठन में 12-5 लाख से ज़्यादा िच्े थे। युवा
आं दोलन को नात्सीवाद के तहत एकजुट करने के बलए िाकी सभी युवा सं गठनों को पहले
भंग कर बदया गया और िाद में उन पर प्रबतिंध लगा बदया गया।
4-1 मातृत्व की नात्सी सोच
नात्सी जममनी में प्रत्येक िच्े को िार-िार यह िताया जाता था बक औरतें िुबनयादी तौर पर
मदों से बभन्न होती हैं । उन्हें समझाया जाता था बक औरत-मदम के बलए समान अबधकारों का
संघर्षम गलत है । यह समाज को नष्ट् कर दे गा। इसी आधार पर लड़कों को आक्रामक,
मदाम ना और पत्थरबदल होना बसखाया जाता था जिबक लड़बकयों को यह कहा जाता था बक
उनका ़जम एक अच्छी माुँ िनना और िुद्ध आयम रक्त वाले िच्ों को जन्म दे ना और
उनका पालन-पोर्षण करना है । नस्ल की िुद्धता िनाए रखने , यहूबदयों से दू र रहने, घर
संभालने और िच्ों को नात्सी मूल्य-मान्यताओं की बििा दे ने का दाबयत्व उन्हें ही सौंपा
गया था। आयम संस्कृबत और नस्ल की ध्वजवाहक वही थीं।
1933 में बहटलर ने कहा था: ‘मेरे राज्य की सिसे महत्त्वपूणम नागररक माुँ है ।’ लेबकन नात्सी
जममनी में सारी माताओं के साथ भी एक जैसा िताम व नहीं होता था। जो औरतें नस्ली तौर पर
अवां बछत िच्ों को जन्म दे ती थीं उन्हें दं बडत बकया जाता था जिबक नस्ली तौर पर वां बछत बदखने
वाले िच्ों को जन्म दे ने वाली माताओं को इनाम बदए जाते थे। ऐसी माताओं को अस्पताल में
बविेर्ष सुबवधाएुँ दी जाती थीं, दु कानों में उन्हें ज़्यादा छूट बमलती थी और बथयेटर व रे लगाड़ी के
बटकट उन्हें सस्ते में बमलते थे। बहटलर ने खू ि सारे िच्ों को जन्म दे ने वाली माताओं के बलए वैसे
ही तमगे दे ने का इं तजाम बकया था बजस तरह के तमगे बसपाबहयों को बदए जाते थे। चार िच्े पैदा
करने वाली माुँ को काुँ से का, छः िच्े पैदा करने वाली माुँ को चाुँ दी का और आठ या उससे
ज़्यादा िच्े पैदा करने वाली माुँ को सोने का तमगा बदया जाता था।
बनधाम ररत आचार संबहता का उल्लंघन करने वाली ‘आयम’ औरतों की सावमजबनक रूप से
बनंदा की जाती थी और उन्हें कड़ा दं ड बदया जाता था। िहुत सारी औरतों को गंजा करके,
मुुँह पर काबलख पोत कर और उनके गले में तख्ती लटका कर पूरे िहर में घुमाया जाता
था। उनके गले में लटकी तख्ती पर बलखा होता था - ‘मैंने राष्ट्र के सम्मान को मबलन बकया
है ।’ इस आपराबधक कृत्य के बलए िहुत सारी औरतों को न केवल जेल की सजा दी गई
िखि उनसे तमाम नागररक सम्मान और उनके पबत व पररवार भी छीन बलए गए।
4-2 प्रचार की कला
नात्सी िासन ने भार्षा और मीबडया का िड़ी होबियारी से इस्तेमाल बकया और उसका जिदम स्त
़ायदा उठाया। उन्होंने अपने तौर-तरीकों को ियान करने के बलए जो िब्द ईजाद बकए थे वे न
केवल भ्रामक िखि बदल दहला दे ने वाले िब्द थे। नाखत्सयों ने अपने अबधकृत दस्तावेजों में
‘हत्या’ या ‘मौत’ जैसे िब्दों का कभी इस्तेमाल नहीं बकया। सामूबहक हत्याओं को बविेर्ष व्यवहार,
अंबतम समाधान (यहूबदयों के संदभम में), यूथनेबजया (बवकलां गों के बलए), चयन और संक्रमण-
मुखक्त आबद िब्दों से व्यक्त बकया जाता था। ‘इवैक्युएिन’ (खाली कराना) का आिय था लोगों
को गैस चें िरों में ले जाना। क्या आपको मालूम है बक गैस चेंिरों को क्या कहा जाता था? उन्हें
‘संक्रमण मुखक्त-िेत्र’ कहा जाता था। गैस चें िर स्नानघर जै से बदखाई दे ते थे और उनमें नकली
़व्वारे भी लगे होते थे।
िासन के बलए समथमन हाबसल करने और नात्सी बवश्व दृबष्ट्कोण को फैलाने के बलए मीबडया का िहुत सोच-समझ कर इस्तेमाल
बकया गया। नात्सी बवचारों को फैलाने के बलए तस्वीरों, बप ़ल्ों, रे बडयो, पोररों, आकर्षमक नारों और इश्तहारी पचों का खूि
सहारा बलया जाता था। पोररों में जममनों के ‘दु श्मनों’ की रटी-रटाई छबवयाुँ बदखाई जाती थीं, उनका मजाक उड़ाया जाता था,
उन्हें अपमाबनत बकया जाता था, उन्हें िैतान के रूप में पेि बकया जाता था। समाजवाबदयों और उदारवाबदयों को कमजोर
और पथभ्रष्ट् तत्त्वों के रूप में प्रस्तुत बकया जाता था। उन्हें बवदे िी एजेंट कहकर िदनाम बकया जाता था। प्रचार बफल्ों में
यहूबदयों के प्रबत ऩरत फैलाने पर जोर बदया जाता था। ‘द एटनमल ज्यू’ (अिय यहूदी) इस सूची की सिसे कुख्यात ब़ल् थी।
परं पराबप्रय यहूबदयों को खास तरह की छबवयों में पेि बकया जाता था। उन्हें दाढ़ी िढ़ाए और काफ्तान (चोगा) पहने बदखाया
जाता था, जिबक वास्तव में जममन यहूबदयों और िाकी जममनों के िीच कोई ़कम करना असंभव था क्योंबक दोनों समुदाय एक-
दू सरे में का़ी घुले-बमले हुए थे। उन्हें केंचुआ, चूहा और कीड़ा जैसे िब्दों से संिोबधत बकया जाता था। उनकी चाल-ढाल की
तुलना कुतरने वाले छछुं दरी जीवों से की जाती थी। नात्सीवाद ने लोगों के बदलोबदमाग पर गहरा असर डाला, उनकी भावनाओं
को भड़का कर उनके गुस्से और ऩरत को ‘अवां बछतों’ पर केंबद्रत कर बदया। इसी अबभयान से नात्सीवाद का सामाबजक
आधार पैदा हुआ।
नाखत्सयों ने आिादी के सभी बहस्सों को आकबर्षमत करने के बलए प्रयास बकए। पूरे समाज
को अपनी तऱ आकबर्षमत करने के बलए उन्होंने लोगों को इस िात का अहसास कराया
बक उनकी समस्याओं को बस़म नात्सी ही हल कर सकते हैं ।
आम जनता और मानवता के त्सिलाफ़ अपराध
नात्सीवाद पर आम लोगों की प्रहतहिया क्या रिी?

िहुत सारे लोग नात्सी िब्दाडं िर और धुआुँधार प्रचार का बिकार हो गए। वे दु बनया को
नात्सी नजरों से दे खने लगे और अपनी भावनाओं को नात्सी िब्दावली में ही व्यक्त करने
लगे। बकसी यहूदी से आमना-सामना हो जाने पर उन्हें अपने भीतर गहरी ऩरत और
गुस्से का अहसास होता था। उन्होंने न केवल यहूबदयों के घरों के िाहर बनिान लगा बदए
िखि बजन पड़ोबसयों पर िक था उनके िारे में पुबलस को भी सूबचत कर बदया। उन्हें
पक्का बवश्वास था बक नात्सीवाद ही दे ि को तरक्की के रास्ते पर लेकर जाएगा; यही
व्यवस्था सिका कल्याण करे गी।
लेबकन जमम नी का हर व्यखक्त नात्सी नही था। िहुत सारे लोगों ने पुबलस दमन और मौत की
आिंका के िावजूद नात्सीवाद का जमकर बवरोध बकया। लेबकन जममन आिादी का एक िहुत
िड़ा बहस्सा इस पूरे घटनाक्रम का मूक दिमक और उदासीन सािी िना हुआ था। लोग कोई
बवरोधी कदम उठाने, अपना मतभेद व्यक्त करने, नात्सीवाद का बवरोध करने से डरते थे। वे
अपने बदल की िात कहने की िजाय आुँ ख फेर कर चल दे ना ज्यादा िेहतर मानते थे। पादरी
नीम्योलर ने नाखत्सयों का लगातार बवरोध बकया। उन्होंने पाया बक नात्सी साम्राज्य में जममनी पर
बजस तरह के बनममम और संगबठत ज़ु ल् बकए जा रहे है उनका जममनी की आम जनता बिरोध नही
कर पाती थी। जनता एक अजीि-सी खमोिी में डूिी हुई थी। गेरापों की दहितनाक कायम िैली
आरै कुतृत्यों पर बनिाना साधते हुए इस खामोिी के िारे में उन्होंने िड़े मममस्पिी ढं ग से बलखा
है :
‘पहले वे कम्युबनरों को ढूुँढ़ते आए,

मैं कम्युबनर नहीं था

इसबलए मैंने कुछ नहीं कहा।

बफर वे सोिल डे मोक्रैट् स को ढूुँढ़ते आए,

मैं सोिल डे मोक्रैट नहीं था

इसबलए चु प रहा।

इसके िाद वे टर े ड यू बनयन वालों को ढूुँढ़ते आए,

पर मैं टर े ड यू बनयन में नहीं था।

आरै बफर वे यहूबदओं को ढूढ़ते आए,

लेबकन मैं यहूदी नहीं था-इसबलए मैंने कुछ नहीं बकया।

बफर, अं त में जि वह मेरे बलए आए

तो वहाुँ कोई नहीं िचा था जो मेरे साथ खड़ा हो सके।’


नात्सी जममनी में यहूदी क्या महसूस करते थे यह एक बििुल अलग कहानी है । िालमट िेराट ने
अपनी डायरी में लोगों के सपनों को चोरी-बछपे दजम बकया था। िाद में उन्होंने अपनी इस डायरी
को पुस्तक के रूप में प्रकाबित बकया। पढ़ने वालों को झकझोर कर रख दे ने वाली इस बकताि
का नाम है थडम राइख ऑ़ डरीम्स। िालमटे ने इस बकताि में िताया है बक एक समय के िाद
बकस तरह खु द यहूदी भी अपने िारे में नाखत्सयों द्वारा फैलाई जा रही रूढ़ छबवयों पर यकीन
करने लगे थे । अपने सपनों में उन्हें भी अपनी नाक आगे से मुड़ी हुई, िाल व आुँ खें काली आरै
यहूबदओं जैसी िक्ल-सूरत व चाल-ढाल बदखने लगी थी। नात्सी प्रेस में यहूबदयों की जो छबवयाुँ
और तस्वीरें छपती थीं, वे बदन-रात यहूबदयों का पीछा कर रही थीं। ये छबवयाुँ सपनों में भी उनका
पीछा नहीं छोड़ती थीं। िहुत सारे यहूदी गैस चेंिर में पहुुँ चने से पहले ही दम तोड़ गए।
5-1 मिाध्वंस (िोलोकॉस्ट) के बारे में जानकाररयााँ
नात्सी तौर-तरीकों की जानकारी नात्सी िासन के आखखरी सालों में ररस-ररस कर जममनी से िाहर जाने लगी थी। लेबकन, वहाुँ
बकतना भीर्षण रक्तपात और ििमर दमन हुआ था, इसका असली अंदाजा तो दु बनया को युद्ध खत्म होने और जममनी के हार
जाने के िाद ही लग पाया। जममन समाज तो मलिे में दिे एक पराबजत राष्ट्र के रूप में अपनी दु दमिा से दु खी था ही, लेबकन
यहूदी भी चाहते थे बक दु बनया उन भीर्षण अत्याचारों और पीड़ाओं को याद रखे जो उन्होंने नात्सी कत्लेआम में झेली थीं। इन्हीं
कत्लेआमों को महाध्वंस (होलोकॉर) भी कहा जाता है । जि दमनचक्र अपने बिखर पर था उन्हीं बदनों एक यहूदी टोले में
रहने वाले एक आदमी ने अपने साथी से कहा था बक वह युद्ध के िाद बसप फर् आधा घंटा और जीना चाहता है । िायद वह
दु बनया को यह िता कर जाना चाहता था बक नात्सी जममनी में क्या-क्या हो रहा था। जो कुछ हुआ उसकी गवाही दे ने और जो
भी दस्तावेज हाथ आए उन्हें िचाए रखने की यह अदम्य चाह घेटो और कैंपों में नारकीय जीवन भोगने वालों में िहुत गहरे तौर
पर दे खी जा सकती है । उनमें से िहुतों ने डायररयाुँ बलखीं, नोटिुक बलखीं और दस्तावेजों के संग्रह िनाए। लेबकन, इसके
बवपरीत, जि यह बदखाई दे ने लगा बक अि युद्ध में नाखत्सयों की पराजय तय ही है तो नात्सी नेतृत्व ने दफ् तरों में मौजूद तमाम
सिूतों को नष्ट् करने के बलए अपने कममचाररयों को पेटरोल िाुँ टना िुरू कर बदया।
दु बनया के िहुत सारे बहस्सों में स्मृबत लेखों, साबहत्य, वृत्तबचत्रें , िायरी, स्मारकों और
संग्रहालयों में इस महाध्वंस का इबतहास और स्मृबत आज भी बजंदा है । ये सारी चीजें उन
लोगों के बलए एक श्रद्धां जबल हैं बजन्होंने उन स्याह बदनों में भी प्रबतरोध का साहस बदखाया।
उन लोगों के बलए भी ये सारी िातें िममनाक यादगार हैं बजन्होंने ये जुल् ढाए और उनके
बलए चेतावनी की आवाजें हैं जो खामोिी से सि कुछ दे खते रहे ।

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