You are on page 1of 11

11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

    

हमारे बारे में भारत विचार राजनीति समाज विज्ञान दुनिया वीडियो

सपोर्ट द वायर

हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा


जहां हिंदी लेखकों ने विभाजन पर बार-बार लिखा, हिंदी कवि इस पर तटस्थ बने रहे. कइयों
ने आज़ादी मिलने के जश्न की कविताएं तो लिखीं, लेकिन देश बं टने के पीड़ादायी अनुभव
पर उनकी चुप्पी बनी रही.
कु लदीप कु मार · 15/08/2019 · भारत / विशेष / समाज

 FA C E B O O K  MESSENGER  TWITTER  PINTEREST  LINKEDIN  W H AT S A P P  REDDIT  EMAIL

पाकिस्तानी इतिहासकर आयेशा जलाल के शब्दों में अगर


भारतीय उपमहाद्वीप के बं टवारे को समझें तो ये ‘20वीं सदी में
दक्षिण एशिया में हुई प्रमुख घटना थी.’ ये एक निर्णायक क्षण
था, जिसने दुनिया के इस क्षेत्र में रहने वालों की ज़िंदगियों को
आकार दिया और अब भी दे रहा है. विभाजन 20वीं सदी की
सबसे विध्वं सकारी घटनाओं में से एक है क्योंकि इतिहास में 

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 1/11
11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

किसी भी समय इतनी बड़ी सं ख्या में मानव आबादी का


सरहदों के पार ऐसा विस्थापन नहीं हुआ, न ही लोगों को ऐसे
दुखों का सामना करना पड़ा जिनके बारे में उन्होंने कभी सोचा
भी नहीं था.

इस बारे में कोई निश्चित आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है पर ऐसा


माना जाता है कि तकरीबन डेढ़ करोड़ लोग अपनी जड़ों से
उजड़ गए, महिला, पुरुष और बच्चों सहित करीब 10 से 20
लाख लोग मारे गए. हज़ारों-सैंकड़ों लोगों को शरीर के घावों के
साथ भावनात्मक ठेस भी मिलीं, जिनसे वे कभी उबर नहीं
पाए.

इस घटना ने विस्थापित मानव आबादी की बर्बरता के सबसे


आदिम रूप को निकालकर रख दिया. विभाजन ने के वल
उपमहाद्वीप के टुकड़े नहीं किए, बल्कि जिस समावेशी सं स्कृ ति
को पाने में सदियां लगी थीं, उसके टुकड़े-टुकड़े करते हुए लोगों
के दिलों में भी खाई बना दी. इन बचे हुए लोगों के लिए
विभाजन कोई घटना नहीं है बल्कि एक सं घर्ष है, जो अब तक
जारी है.

हिंदी साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर कृ ष्णा सोबती का विभाजन


की पृष्ठभूमि पर लिखा हुआ उपन्यास ‘गुजरात पाकिस्तान से
गुजरात हिंदुस्तान’ आत्मकथात्मक शैली में है. इस उपन्यास में
उनकी अपनी ज़िंदगी के वो अनुभव दर्ज हैं, जो उन्हें विभाजन
के बाद एक ‘रिफ्यूजी’ के रूप में दिल्ली आने से लेकर सिरोही
(गुजरात) के राजपरिवार के इकलौते वारिस की गवर्नेस बनने
के दौरान हुए.

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 2/11
11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

उपन्यास की शुरुआत दो नक्शों से होती है, जो विभाजन के


पहले और बाद के हिंदुस्तान को दिखाते हैं. इसके बाद एक
लं बा, मर्मभेदी आत्मभाषण है, जिसमें असीम दर्द, दुख और
पीड़ा दर्ज है.

सोबती, इन घटनाओं, जिनकी तुलना के वल होलोकॉस्ट से की


जा सकती है, की चश्मदीद रही थीं. अपनी अनूठी शैली में
उन्होंने अपने अनुभव की गहराई से उन सालों के सार को
बताने की कोशिश की. उन जैसे लाखों लोगों को एक आज़ाद
देश बनने की खुशी अपने घर, ज़िंदगी, इज्ज़त, मान और खुद
को खोने की कीमत पर मिली.

सोबती ने बताया, ‘उस वक़्त घर पागलखाने में तब्दील हो गए


थे.’ फिर उन्होंने विभाजन के समय मायूस हो चुके सिकं दर
लाल के इन शब्दों को दोहराया, ‘जिन्ना ने अपने इस्लामी घोड़े
खुले छोड़ दिए और गांधी और जवाहर उनके मुकाबले के लिए
पोरस के हाथी ले आए.’

जहां एक तरफ अधिकतर उपन्यास इस डिसक्लेमर के साथ


शुरू होते हैं कि सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं, लेकिन ये
उपन्यास एक अनोखे दावे से शुरू होता है कि इस उपन्यास के
सभी पात्र और घटनाएं सच और ऐतिहासिक हैं. यहां कृ ष्णा
सोबती और उनके सं रक्षण में सिरोही राजपरिवार की गद्दी
सं भालने के लिए गोद लिए गए बच्चे तेज सिंह के किरदारों के
अपनी जड़ों से बिछड़ने को लेकर एक अनोखी समानता है.

ये वो समय था जब देश की सभी रियासतों और रजवाड़ों से


उनके शाही पद और कु छ विशेषाधिकार छोड़कर सारी
शक्तियां और धन ले लिया गया था. उनमें भी अपनी जड़ से 

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 3/11
11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

उजड़ जाने और खो जाने की एक भावना थी- वे अपने महलों


के अंदर ही एक अलग तरह के ‘रिफ्यूजी’ बनकर रह गए थे.
शाही परिवार में एक गवर्नेस की भूमिका ने कृ ष्णा सोबती को
इन महलों के अंदर की अलग-थलग ज़िंदगी और महल के
मुलाज़िमों की साज़िशों की सच्चाई से रूबरू करवाया.

जब विभाजन के बाद एक के बाद एक ख़तरनाक घटनाएं हो


रही थीं, पूरे उपमहाद्वीप में सांप्रदायिक हिंसा की आग फै ली हुई
थी, हिंदुस्तान और नए बने पाकिस्तान के बीच लाशों से भरी
ट्रेनें आ-जा रही थीं, तब 12 अक्टूबर 1947 से 12 नवं बर 1947
के बीच सच्चिदानं द हीरानं द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने ‘शरणार्थी’
शीर्षक से कविताओं की एक श्रृं खला लिखी थी.

इस समय तक उन्होंने ‘शेखर-एक जीवनी’ जैसा उपन्यास


लिखकर अपनी छवि एक ऐसे युवा लेखक की बना ली थी,
जिसमें हिंदी साहित्य की दुनिया भविष्य की सं भावनाएं देख
रही थी. शेखर एक जीवनी ने हिंदी साहित्य जगत को अपनी
प्रतिभा और सर्वथा नई व ताजगी भरी लेखन शैली से चकित
कर दिया था.

यह भी प्रतीकात्मक ही था कि 11 भागों की इस श्रृं खला की


अधिकतर कवितायें अलग-अलग रेलवे स्टेशनों के प्लेटफॉर्म
या प्रतीक्षालयों में लिखी गई थीं- पहली कविता इलाहाबाद
रेलवे स्टेशन पर लिखी गई थी, वहीं आखिरी आधी रात के
किसी समय मुरादाबाद के रेलवे स्टेशन पर. ये हिंदी साहित्य के
आलोचकों की इस ग़लती को भी दिखाती हैं कि कै से किसी
महत्वपूर्ण कवि द्वारा विभाजन के बाद उसके आस-पास हो रही
घटनाओं पर कविताओं के रूप में दर्ज हुई प्रतिक्रियाओं को
ज़्यादातर आलोचकों द्वारा नज़रअंदाज़ कर दिया गया. 

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 4/11
11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

शरणार्थियों की भीड़ से भरी ट्रेन (फोटो: विकीमीडिया)

अज्ञेय की नज़र में देश मानो मिर्गी के दौरे सरीखी पीड़ा से जूझ
रहा था. इस श्रृं खला की छठी कविता को ‘समानांतर सांप’ का
नाम दिया गया है, जो सात भागों में बं टी हुई है. ये
सांप्रदायिकता के दो लं बे सांपों के बारे में है, जिन्होंने हिंदुस्तान
के लोगों को अपनी ज़द में ले लिया है और अब दूर-दूर तक
अपना ज़हर फै ला रहे हैं. लोगों की आंखों में नफ़रत है, दुश्मनी
की फसल पक चुकी है.

वे अपनी ज़िंदगी बचाने के लिए भाग रहे हैं क्योंकि ‘रुकें गे तो


मरेंगे’. श्रृं खला की एक कविता में तो धार्मिक प्रतिष्ठानों पर भी
बेहद कड़वी टिप्पणी की गई है. किसी घटना पर एक कवि की
त्वरित प्रतिक्रियाओं को आज की तारीख में पढ़ना एक अनोखा
अनुभव है.

वामपं थी लेखक यशपाल, जो अंग्रेजों के ख़िलाफ़ क्रांतिकारी


आंदोलन में भगत सिंह और सुखदेव के करीबी थे, ने विभाजन
के दंश और विध्वं स पर ‘झूठा सच’ लिखा था. इस उपन्यास
का पहला हिस्सा 1958 में ‘वतन और देश’ के नाम से आया 

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 5/11
11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

और इसके दो साल बाद इसके दूसरे हिस्से ‘देश का भविष्य’


को छापा गया. कृ ष्णा सोबती के उपन्यास के उलट इसमें
लिखा गया था कि प्रधानमं त्री सहित इसके किरदार और
घटनाएं काल्पनिक हैं.

उपन्यास के पहले हिस्से में जगह लाहौर है, वहीं दूसरे हिस्से में
विभाजन के बाद का दिल्ली है. इस उपन्यास की तुलना
अक्सर टॉलस्टॉय के ‘वॉर एं ड पीस’ से होती है, साहित्यिक
योग्यता की वजह से नहीं बल्कि विभाजन के पूर्व और पश्चात
के बखूबी चित्रण के कारण. साल 2010 में यशपाल के बेटे
आनं द ने इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था, जिसे ‘दिस इज़
नॉट डैट डॉन’ (This is not that Dawn) का नाम दिया
गया. ये सं दर्भ फै ज़ अहमद फै ज़ की मशहूर लाइन ‘वो इंतज़ार
था जिसका ये वो सहर तो नहीं’ से लिया गया था.

झूठा सच: यशपाल/लोकभारती प्रकाशन

इस उपन्यास में 1942 से 1957 तक के सालों और इस दौरान


हुई राजनीतिक और ऐतिहासिक प्रक्रियाओं, जो विभाजन के
रूप में परिणत हुईं, को बारीकी से दर्ज किया गया था. इस

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 6/11
11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

उपन्यास में बं टवारे के वक़्त हुए कत्लेआम, बलात्कार,


लूटपाट, आगजनी, दोनों ओर के लोगों के पलायन और रातों-
रात अपने ही देश में शरणार्थी बन जाने के दर्द का बेहद प्रभावी
वर्णन किया गया है. उपन्यास का दूसरा हिस्सा कहानी को
1947 के बाद के हिंदुस्तान में ले आता है, जहां राजनीतिक
आदर्शवाद जल्द ही राजनीतिक अवसरवाद और भ्रष्टाचार में
बदल गया था. बं टवारे के साहित्यिक चित्रण की बात करें तो,
न हिंदी और न ही उर्दू में ‘झूठा सच’ सरीखी कोई और रचना
मिलती है.

भीष्म साहनी ने विभाजन के कई सालों


बाद ‘तमस’ लिखा. 1970 में जलगांव,
महद और भिवं डी में हुए सांप्रदायिक दंगों
के बाद साहनी वहां गए थे, जिसके बाद
उन्हें इसे लिखने की प्रेरणा मिली. तमस
सांप्रदायिक हिंसा पैदा करने के विभिन्न
पहलू उजागर करता है.
ष्म साहनी/
प्रकाशन

उपन्यास के पहले पाठ में निम्न स्तर का


एक सरकारी मुलाज़िम मुराद अली एक ब्रिटिश अधिकारी के
लिए सुअर मार के लाने के लिए नत्थू को पैसे देता है. अगले
दिन नत्थू को वही मरा हुआ सुअर मस्जिद की सीढ़ियों पर पड़ा
मिलता है… और इस तरह सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के लिए
पूरी पटकथा तैयार है.

वैसे अशांति या दंगा फै लाने के लिए मं दिर में गोमांस और


मस्जिद में सुअर का मांस फें कने का तरीका आज भी चलन से
बाहर नहीं गया है और जब-तब दंगा भड़काने वालों के लिए
मददगार साबित होता रहता है. 

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 7/11
11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

दंगों के बाद के भिवं डी ने साहनी के बचपन के दिनों की


रावलपिंडी (पाकिस्तान) में बीती यादें ताज़ा कर दी थीं. ये
उपन्यास 1972 में प्रकाशित हुआ था और फिर भीष्म साहनी
के नाम से ऐसा जुड़ गया कि उनके द्वारा लिखी गई ‘मय्यादास
की माड़ी’ जैसी रचनाओं पर भारी पड़ गया. साहित्यिक योग्यता
के पैमाने पर देखें तो मय्यादास की माड़ी तमस से बेहतर है.

1980 के आखिरी दशक में जब तमस धारावाहिक के रूप में


टेलीविज़न तक पहुंचा तब आरएसएस और इससे सं बद्ध
सं गठनों ने दूरदर्शन पर इसके प्रसारण का कड़ा विरोध किया.
तब आज की तरह प्राइवेट चैनल नहीं थे. सं घ के विरोध के
बाद इसे भाजपा के दिग्गज के आर मलकानी को सहमति के
लिए दिखाया गया और यहीं से राजनीतिक सेंसरशिप की एक
ग़लत प्रथा की शुरुआत हुई. तमस ने दिखाया कि कै से
काल्पनिक डर, अफवाहें और असुरक्षा की गहरी भावना किसी
एक समुदाय के लोगों को दूसरे समुदाय के लोगों से डरने और
नफ़रत करने के लिए उकसाते हैं और इन सबके बीच उनके
अंदर की इंसानियत कहीं खो जाती है.

इसी तरह राही मासूम रज़ा का मशहूर उपन्यास ‘आधा गांव’


भी विभाजन के दंश पर लिखा गया है. पर झूठा सच और
तमस के बिल्कु ल उलट आधा सच की घटनाएं पूर्वी उत्तर प्रदेश
के एक गांव में घटती हैं, जहां भोले-भले गांववाले सांप्रदायिक
बहकावे में आ जाते हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से करीब
से जुड़े रहे राही ने आधा गांव में बताया है कि कै से गाजीपुर के
गं गौली गांव के ग्रामीण एएमयू के छात्रों की जोशीली दलीलों
से प्रभावित हुए, जिसने गांव के समावेशी सामाजिक और
सांस्कृ तिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करके रख दिया.

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 8/11
11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

1966 में प्रकाशित हुए आधा गांव ने उस समय बड़ी खलबली


पैदा कर दी थी क्योंकि इसके ग्रामीण किरदार भदेस आम
बोलचाल के लहज़े में बात कर रहे थे, जिसमें अधिकतर
गालियां थीं. ये उपन्यास हर उस व्यक्ति को पढ़ना चाहिए जो
समझना चाहता है कि कै से कु छ ही सालों के अंदर मुस्लिम
मानसिकता इतनी बदल गई कि बं टवारे को टाला नहीं जा
सका.

कितने पाकिस्तान : कमलेश्वर /राजपाल प्रकाशन, आधा गांव: राही मासूम रज़ा/राजकमल
प्रकाशन

कृ ष्णा सोबती के उपन्यास के अलावा विभाजन के बारे में


लिखा गया नवीनतम उपन्यास कमलेश्वर का ‘कितने
पाकिस्तान’ है. कमलेश्वर ने इसे 1990 में लिखना शुरू किया
था और ये 2000 में प्रकाशित हुआ. पढ़ने वाले को कु र्तुलएन
हैदर के ‘आग का दरिया’ की याद दिलाता प्रयोग के बतौर
लिखा गया ये उपन्यास तात्कालिक अतीत के साथ बं टवारे की
ऐतिहासिक जड़ें भी तलाशने की कोशिश करता है. हालांकि

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 9/11
11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

इसमें बताई गई घटनाएं उस समय की नहीं है, पर उन पर


विभाजन की छाया साफ तौर पर देखी जा सकती है.

जहां हिंदी लेखकों ने विभाजन पर बार-बार लिखा, हिंदी कवि


इस बारे में ज़्यादातर तटस्थ ही बने रहे. कइयों ने आज़ादी
मिलने पर जश्न मनाती कवितायें तो लिखीं, लेकिन देश के बं टने
के पीड़ादायी अनुभव पर उनकी चुप्पी बनी रही.

(कु लदीप कु मार वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

 FA C E B O O K  MESSENGER  TWITTER  PINTEREST  LINKEDIN  W H AT S A P P  REDDIT  EMAIL

Free & Independent Journalism Contribute Now

अन्य ख़बरें

17/11/2023 17/11/2023 17/11/2023


17/11/2023
कोर्ट के हरियाणा में निजी 7 लाख छात्र प्रभावित, कांग्रेस ने प्रधानमं त्री मोदी पर
अमेरिकी पत्रकारों ने
क्षेत्र में स्थानीयों को 75% सरकार ग़ैर-मान्यता वाले चुनावी राज्य राजस्थान में
इज़रायल द्वारा गाज़ा में
आरक्षण का क़ानून रद्द करने मदरसों को मान्यता दे: यूपी नफ़रत भरा भाषण देने का
पत्रकारों की हत्या की निंदा
समेत अन्य ख़बरें मदरसा बोर्ड अध्यक्ष आरोप लगाया
की

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 10/11
11/18/23, 11:48 AM हिंदी साहित्य ने विभाजन को कै से देखा

  

© 2023 - ALL RIGHTS RESERVED.

https://thewirehindi.com/15941/partition-indian-literature/ 11/11

You might also like