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'भारत दु ददशा' में नायक और नाययका की चेतना की समीक्षा

पररचय: 'भारत दु ददशा' एक प्रमुख यिन्दी काव्य ग्रंथ िै यिसे रवींद्रनाथ टै गोर ने यिखा था। यि ग्रंथ उनके सायित्यिक
यात्रा का मित्वपूर्द यिस्सा िै और भारतीय समाि और संस्कृयत के यवकास को दशाद ने का प्रयास करता िै । इस ग्रंथ
में, नायक और नाययका के चररत्रों की चेतना को व्यक्त करने का प्रयास यकया गया िै , और इसके माध्यम से समाि में
िागरूकता और सच्चे धमद की तिाश की गई िै । इस िेख में, िम 'भारत दु ददशा' में नायक और नाययका की चेतना
की समीक्षा करें गे और उनके चररत्रों के मित्वपूर्द पििुओं पर गौर करें गे।

नायक और नाययका के चररत्र: 'भारत दु ददशा' में, नायक और नाययका व्यत्यक्तगत और सामायिक स्तर पर दोनों
मित्वपूर्द चररत्र िैं । इन दोनों के माध्यम से, टै गोर िी ने भारतीय समाि की सामायिक दु ददशा को दशाद ने का प्रयास
यकया िै ।

नायक (सतीनाथ): नायक का नाम 'सतीनाथ' िै , और वि ग्रंथ के प्रमुख कयव िैं । सतीनाथ एक समझदार और
सुयवचारशीि युवक िै , िो अपने समाि की दु ददशा को समझता िै और उसके सुधार के यिए संघर्द करता िै । उनका
काव्य रचना के प्रयत गिरा प्यार िोता िै , और वि अपने कयवताओं के माध्यम से समाि को िागरूक करने की
कोयशश करते िैं । वे अपने काव्य के माध्यम से दु ददशा का यववेचन करते िैं और समाि को सिी यदशा में िाने के यिए
प्रेररत करते िैं ।

सतीनाथ का चररत्र व्यत्यक्तगत स्तर पर भी मित्वपूर्द िै । वे अपने िीवन में संघर्द करते िैं , और उनकी कयवताओं में
िमें उनके आत्मा की खोि यमिती िै । उनके चररत्र की चेतना िमें यि यसखाती िै यक िमें अपने िीवन के मित्वपूर्द
मुद्ों पर यवचार करना चायिए और उन्हें सुधारने के यिए प्रयास करना चायिए।

नाययका (कानना): नाययका का नाम 'कानना' िै , और वि सतीनाथ की पत्नी िै । कानना भी एक प्रयतयित कयवत्री िै
और अपने काव्य के माध्यम से समाि को सिी यदशा में िाने के यिए प्रेररत करती िै। उनके काव्य में स्त्री के
अयधकारों और स्वतंत्रता के मित्व का बखूबी यिक्र यकया गया िै । कानना के चररत्र में िमें स्त्री शत्यक्त की मित्वपूर्द
भूयमका का प्रतीत िोता िै।

कानना का चररत्र एक माता की भूयमका में भी मित्वपूर्द िै । वे अपने पुत्र के साथ मातृत्व का सुंदर अयभव्यत्यक्त करती
िैं और उसे सिी यदशा में पिने के यिए प्रेररत करती िैं। कानना के चररत्र से िमें मातृभावना का मित्व और मातृत्व
की मित्वपूर्द भूयमका का संदेश यमिता िै।

नायक और नाययका की चेतना का प्रसार: 'भारत दु ददशा' में नायक और नाययका की चेतना का प्रसार कयवता के
माध्यम से िोता िै । सतीनाथ और कानना दोनों अपने कयवताओं के माध्यम से अपने यवचारों, भावनाओं, और दृयिकोर्
को व्यक्त करते िैं, और इसके माध्यम से समाि को िागरूक करने का प्रयास करते िैं ।

1. समाि में दु ददशा का यववेचन: सतीनाथ और कानना दोनों अपने काव्य में समाि में मौिूद दु ददशा का यववेचन
करते िैं। वे उस समय की अवस्था, समस्याओं, और आपातकाि को खुि के व्यक्त करते िैं तायक िोग
उनके काव्य के माध्यम से उन दु ददशाओं को समझ सकें और सुधारने के यिए कदम उठा सकें।
2. स्वतंत्रता और अयधकारों की मित्वपूर्द भूयमका: कानना अपने काव्य में स्त्री के स्वतंत्रता और अयधकारों की
मित्वपूर्द भूयमका को बताती िैं। वे स्त्री के प्रयत समाि की धायमदकता और सामायिक प्रयतिा के त्यखिाफ
खुिकर उत्कृि यवचार व्यक्त करती िैं और स्त्री के अयधकारों की रक्षा करती िैं ।
3. संवाद और सिमयत: 'भारत दु ददशा' में नायक और नाययका के बीच संवाद और सिमयत का मित्वपूर्द
भूयमका िोता िै । वे एक-दू सरे के यवचारों को समझते िैं और उनके बीच सिमयत और समथदन का माध्यम
बनते िैं । इससे उनके यवचार और संदेश भारतीय समाि में प्रसाररत िोते िैं ।
4. व्यत्यक्तगत चेतना और व्यत्यक्तगत संघर्द: सतीनाथ और कानना के चररत्र व्यत्यक्तगत स्तर पर अपने व्यत्यक्तगत
संघर्द को भी दशादते िैं । वे अपने आत्मा की खोि करते िैं और अपने यवचारों को व्यक्त करने के यिए संघर्द
करते िैं। इससे व्यत्यक्तगत चेतना के मित्व का संदेश यमिता िै यक िमें अपने आत्मा को समझने और
सुधारने का प्रयास करना चायिए।
नायक और नाययका के चररत्रों के माध्यम से 'भारत दु ददशा' में समाि की सामायिक दु ददशा का यववेचन यकया िाता िै
और समाि को सुधारने के यिए प्रेररत यकया िाता िै । इन दोनों के चररत्रों की चेतना िमें यि बताती िै यक िमें अपने
यवचारों को व्यक्त करने के यिए संघर्द करना चायिए और समाि में सुधारने के यिए िमारी यिम्मेदारी िै ।

नायक और नाययका के चररत्रों का यवश्लेर्र्:

1. सतीनाथ (नायक): सतीनाथ एक प्रमुख कयव िै िो अपने काव्य के माध्यम से समाि को िागरूक करने का
काम करते िैं। उनका चररत्र गिरा और यवचारशीि िै। वे समाि की समस्याओं को समझने की कोयशश
करते िैं और उन्हें सुधारने के यिए कयवताओं के माध्यम से अपने यवचार व्यक्त करते िैं । सतीनाथ के चररत्र
में अपने यवचारों को व्यक्त करने की मित्वपूर्द भूयमका िोती िै । उनका चररत्र िमें यि यसखाता िै यक िमें
समाि में सुधारने के यिए अपने यवचारों को सायित्यिक रूप में व्यक्त करने की कयवता का माध्यम बना
सकते िैं ।
2. कानना (नाययका): कानना भी एक प्रमुख कयवत्री िै और उनका चररत्र स्त्री के अयधकारों और स्वतंत्रता की
मित्वपूर्द भूयमका को दशाद ता िै। उनके काव्य में स्त्री की मातृत्व और स्त्री के अयधकारों की मित्वपूर्द
भूयमका िोती िै । कानना के चररत्र से िमें यि यसखने को यमिता िै यक स्त्री के अयधकारों की सुरक्षा और
समथदन करने का काम समाि के सभी व्यत्यक्तयों को करना चायिए।

नायक और नाययका के चररत्रों का आपसी संबंध: सतीनाथ और कानना के चररत्र ग्रंथ में एक-दू सरे के साथ गिरे
संबंधों का प्रतीक दे ते िैं । उनका प्यार और समथदन एक-दू सरे के काव्य को और भी मित्वपूर्द बनाता िै । इन दोनों के
संबंध समाि के यवचारों और मूल्ों को प्रकट करते िैं और समाि को सुधारने के यिए उनकी साथी यात्रा को दशादते
िैं ।

नायक और नाययका के चररत्रों का संघर्द: सतीनाथ और कानना के चररत्र अपने िीवन में यवयभन्न प्रकार के संघर्ों का
सामना करते िैं । वे अपने संघर्ों को सामायिक दु ददशा के समाधान के यिए उपयोग करते िैं और अपने काव्य के
माध्यम से दु ददशा का यववेचन करते िैं ।

नायक और नाययका के चररत्रों की चेतना का मित्व: सतीनाथ और कानना के चररत्रों की चेतना ग्रंथ के मित्वपूर्द
यिस्सा िै । उनकी चेतना के माध्यम से िमें समाि की दु ददशा का समझने का मौका यमिता िै और समाि को सुधारने
के यिए प्रेररत यकया िाता िै । इन दोनों के चररत्रों की चेतना िमें यि याद यदिाती िै यक िमें अपने आत्मा की खोि
करने की आवश्यकता िै और समाि की सुधारने में भागीदारी करनी चायिए।

समापन: 'भारत दु ददशा' में नायक और नाययका के चररत्र ग्रंथ के मित्वपूर्द यिस्से िैं िो समाि की सामायिक दु ददशा
को दशाद ने और सुधारने का प्रयास करते िैं । सतीनाथ और कानना के चररत्र व्यत्यक्तगत स्तर पर भी मित्वपूर्द िैं , और
उनकी चेतना िमें यि यसखाती िै यक िमें अपने यवचारों को व्यक्त करने के यिए संघर्द करना चायिए। इन चररत्रों के
माध्यम से 'भारत दु ददशा' ग्रंथ के प्रसार को समझने और समाि की सुधारने के यिए िमारी यिम्मेदारी को समझाने का
प्रयास यकया गया िै।

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