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आधु निक भारतीय भाषा न िं दी गद्य : उद्भव और नवकास (न िं दी-ग)

अध्ययि-सामग्ीीः इकाई (1-4)

अिु क्रम

इकाई-1

1. ह िं दी गद्य: उद्भव और हवकास

2. ह िं दी गद्य के हवहिन्न रूप िं का पररचय

3. आत्मकथा, यात्रा साह त्य, रे खाहचत्र, व्यिं ग्य, सिंस्मरण

इकाई-2

1. द बैल िं की कथा (प्रेमचिं द)

2. ब ादु र (अमरकान्त)

इकाई-3

1. साह त्य जनसमू के हृदय का हवकास ै (बालकृष्ण िट्ट)

2. सच्ची वीरता (अध्यापक पूणण हसिं )

3. गेहूँ बनाम गुलाब (रामवृक्ष बेनीपुरी)

इकाई – 4

1. घीसा (म ादे वी वमाण )

2. वापसी (हवष्णु प्रिाकर)

3. गिंगा स्नान करने चल गे ? (हवश्वनाथ हत्रपाठी)

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पररपाटी की कहवता का अवसान रािरीय एविं समाज सुधार िावना की कहवता का उदय हआ। उन्ह न
िं े

कहवय िं का एक ऐसा मिं िल तै यार हकया, हजन्ह न


िं े अपनी रचनाओिं के माध्यम से नवयुग की चे तना क
अहिव्यखि प्रदान की। िारतें दुयुगीन साह त्य की हवशेर्ताएिं हनम्नहलखखत ै

(1) रािरप्रेम का िाव

(2) जनवादी हवचारधारा

(3) ास्य- व्यिं ग्य की प्रधानता

(4) प्राकृहत- वणणन

(5) गद्य एविं उनकी अन्य हवधाओिं का हवकास

(6) छिं द-हवधान की नवीनता

(7) िारतीय सिंस्कृहत का गौरवगान

(1) राष्टरप्रेम का भाव :

प्रथम स्वतिं त्रता सिंग्राम के पररणामस्वरुप िारतवाहसय िं में स ई हई आत्मशखि के जागरण के साथ ी

राजनीहतक अहधकार िं के प्रहत लालसा बढ़ी, हजससे उनमें रािरीयता के िाव का उदय ना स्वािाहवक था।

इसका प्रिाव इस युग की रचनाओिं पर िी पडा। इस युग के रचनाकार िं की रचनाओिं में दे शिखि का स्वर
हवशेर् रूप से गुिंजायमान

(2) ििवादी नवचारधारा:

िारतें दु युग का साह त्य पुराने ढािं चे से सिंतुि न ीिं ै वे उनमें बदलाव कर य सुधार कर उसमें नयापन

लाने का प्रयास हकये ै इस काल का साह त्य केवल राजनीहतक स्वाधीनता का साह त्य ना कर मनुष्य
की एकता, समानता और िाईचारे का िी साह त्य ै ।

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(3) ास्य- व्यिंग्य की प्रधािता :

इस य ग में प्राय: सिी रचनाकार िं की रचनाओिं में ास्य- व्यिं ग्य का पुट हमलता ै । अिंधहवश्वास ,िं रूहढ़य ,िं

छु आछूत, अिंग्रेजी शासन, पाश्चात्य सभ्यता के अिंधानुकरण आहद पर व्यिं ग्य करने के हलए इन रचनाकार िं ने
हवर्य एविं शैली के नए-नए प्रय ग हकए ज इनकी रचनाओिं में लहक्षत ै

(4) प्राकृनत- वणभि:

इस य ग के अहधकािं श कहवय िं ने अपने काव्य में प्रकृहत क हवर्य के रूप में ग्र ण हकया ै । उनके

प्राकृहतकवणणन में श्रृिंगाररक िावनाओिं की प्रधानता ै । िारतें दु की 'बसिंत ली',अिंहबकादत्त व्यास की


पावन पचासा तथा प्रेमधन की 'मयिंक मह ला' आहद इसी क हट की रचनाएिं ैं।

(5) गद्य एविं उिकी अन्य नवधाओिं का नवकास:

िारतें दु युग की सबसे म त्वपूणण दे न ै गद्य व उसके अन्य हवधाओिं का हवकास। इस युग में पद्य के साथ

गद्य हवधा प्रय ग में आयी हजससे मानव के बौखद्धक हचिं तन का िी हवकास हआ। क ानी, नाटक ,आल चना
आहद हवधाओिं के हवकास की पृििू हम का िी य ी य ग र ा ै ।

(6) छिं द-नवधाि की िवीिता:

िारतें दु ने जातीय सिंगीत का गािं व िं में प्रचार के हलए ग्राम्य छिं द -िं कजरी, ठु मरी, लावनी, क रवा तथा चै ती

आहद क अपनाने पर ज र हदया। कहवत्त सवैया ,द ा जैसे परिं परागत छिं द िं के साथ-साथ इनका िी
जमकर प्रय ग हकया गया।

(7) भारतीय सिंस्कृनत का गौरवगाि:

िारतीय सभ्यता और सिंस्कृहत की अपेक्षा पहश्चमी सभ्यता और सिंस्कृहत क उच्च बताने वाल िं के हवरुद्ध
व्यिं ग्य और ास्यपूणण रचनाएिं हलखी गयीिं। िारत के गौरवमय अतीत क िी कहवता का हवर्य बनाया गया।

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