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समाि उसे दीवाना क्यों नहीं स्वीकाि किता। वह दीवानों का रूप धािर् किके संसाि में घूमता िहता है ।
उसके िीवन में िो मस्ती शेष िह गई है , उसे लिए वह घम
ू ता िहता है । इस मस्ती को सन
ु कि सािा
संसाि झूम उठता है । कवव के गीतों की मस्ती सुनकि िोग प्रेम में झुक िाते हैं तर्ा आनंद से झूमने
िगते हैं। मस्ती के संदेश को िेकि कवव संसाि में घम
ू ता है जिसे िोग गीत समझने की भूि कि बैठते
हैं।
ववशेष-
ववशेष-
वयाख्या:-कवव प्रकृनत के माध्यम से उदाहिर् दे ता है फक धचड़डयाूँ भी ददन ढिने पि चंचि हो उठती हैं।
वे शीघ्रानतशीघ्र अपने घोंसिों में पहुूँचना चाहती हैं। उवहें ध्यान आता है फक उनके बच्चे भोिन आदद की
आशा में घोंसिों से बाहि झाूँक िहे होंगे। यह ध्यान आते ही उनके पंखों में तेिी आ िाती है औि वे
िल्दी-िल्दी अपने घोंसिों में पहुूँच िाना चाहती हैं।
ववशेष-
1. उक्त कावयांश में कवव कह िहा है फक वात्सल्य भाव की वयग्रता सभी प्राणर्यों में पाई िाती है ।
2. पक्षियों के बच्चों द्वािा घोंसिों से झाूँका िाना गनत एवं दृश्य बबंब उपजस्र्त किता है ।
3. भाषा सिि, सहि औि भावानुकूि है , जिसमें खडी बोिी का प्रयोग है ।
ववशेष:-
1. एकांकी िीवन बबताने वािे वयजक्त की मनोदशा का वास्तववक धचत्रर् फकया गया है ।
2. सिि, सहि औि भावानुकूि खडी बोिी का प्रयोग है ।
3. तत्सम-प्रधान शब्दाविी है जिसमें अलभवयजक्त की सििता है ।
प्रश्न 1:- मैं औि, औि िग औि कहाूँ का नाता- पंजक्त में ‘औि’ शब्द की ववशेषता बताइए।
प्रश्न 2:- शीति वार्ी में आग’- के होने का क्या अलभप्राय हैं?
प्रश्न 3:- बच्चे फकस बात की आशा में नीडों से झाूँक िहे होंगे?
प्रश्न 4:- ददन िल्दी-िल्दी ढिता हैं- की आवनृ त से कववता की फकस ववशेषता का पता चिता हैं?
प्रश्न(2):- िहाूँ पि दाना िहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं-कवव ने ऐसा क्यों कहा होगा ?
उत्ति:– नादान यानी मूखथ वयजक्त सांसारिक मायािाि में उिझ िाता है । मनुष्य इस मायािाि को
ननिर्थक मानते हुए भी इसी के चक्कि में फूँसा िहता है । संसाि असत्य है । मनुष्य इसे सत्य मानने की
नादानी कि बैठता है औि मोि के िक्ष्य को भि ू कि संग्रहववृ त्त में पड िाता है । इसके ववपिीत, कुछ ज्ञानी
िोग भी समाि में िहते हैं िो मोि के िक्ष्य को नहीं भूिते। अर्ाथत संसाि में हि तिह के िोग िहते हैं।