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कक्षा दसवी

ववषय –ह द
िं ी

सिंकवित परीक्षा – 1

उच्च स्तरीय (कठिन) प्रश्नोतरी

पाि – 1 सूरदास के पद

प्रश्न 1- गोवपयों द्वारा उद्धव को भाग्यवान क ने से क्या व्यिंग्य वनव त ै ?

उत्तर- गोवपयों के अनुसार कृ ष्ण के वनकट र कर प्रेम के म त्व तथा ववयोग की पीड़ा को समझ
न पाना उद्धव का दुभााग्य ै | िेककन वो विष्टाचार वि उद्धव को व्यिंग्य ककया क्योंकक वो श्री
कृ ष्ण के पास र कर भी वो उनके प्रेम से विंवचत थे |

प्रश्न 2- गोवपयों के अनुसार राजा का धमा क्या ै ?

उतर – गोवपयों के अनुसार राजा का धमा प्रजा की रक्षा करना, उन् ें न ीं सताना, उनकी र
दुुःख–सुख में काम आना , िेककन श्री कृ ष्ण जी ऐसा न करके राज धमा को न ीं वनभा र े ै |

पाि – 3 सवैया ,कववत

प्रश्न 1- कवव ने श्री ब्रज दूल् ा ककसके विए प्रयुक्त ककया ै ? और उन् ें सिंसार रुपी मिंकदर का
दीपक क्योोँ क ा ै ?

उतर - क्योंकक व सिंसार रुपी मिंकदर में दीपक के समान | ैं वजस प्रकार दीपक सारे सिंसार को
प्रकावित करता ै उसी प्रकार श्री कृ ष्ण जी मनुष्य के जीवन में अन्धकार को दूर करते ैं |

प्रश्न 2- चािंदनी रात की सुन्दरता को कवव ने ककन ककन रूपों में देखा ै ?

उतर 1- प्राकृ वतक स्फठटक की वििाओं से बना मिंकदर |

2- द ी का समुद्र |

3-नावयका के रूप में तारों से सजाया गया |

4- अम्बर रुपी दपाण |

पाि – 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 1- कवव अपनी आत्मकथा क्योोँ न ीं विखना चा ता ?

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उतर 1- आत्मकथा विखते समय कवव को अपने अतीत का र पन्ना खोिना ोगा क्योंकक िोग
दूसरों के दुुःख को देखकर उप ास उड़ाते ै कवव उनसे बचना चा ता ै |

2- आत्मकथा विखने से कवव को धोखा देने वािे वमत्रों के बारे में बताना ोगा |

3- प्रेवमका के साथ वबताये हुए पि को सबके सामने सावाजावनक करने ोंगे |

पाि – 5 उत्सा , अट न ीं र ी ै

प्रश्न 1- कववता का िीषाक “उत्सा ” क्योोँ रखा गया ै ?

उतर - बादि कवव वनरािा का वप्रय ववषय ै , बदि एक और पीवड़त प्यासे िोंगो की इच्छा
पूरी करता ै दूसरी और क्रावन्त की चेतना जगाता ै बादिों के मन में उत्सा उत्पन्न ोता ै
, इसविए कवव ने कववता का िीषाक उत्सा रखा ै |

प्रश्न 2- कवव की आोँख फागुन की सुन्दरता से क्योोँ न ीं ट र ी ै ?

उतर - फागुन में प्रकृ वत में सौन्दया आ जाता ै चारों और ठरयािी ी ठरयािी कदखाई देती ै
इसविए व फागुन के म ीने में नजरे टा न ीं पता ै |

पाि – 6 य दन्तुठरत मुस्कान और फसि

प्रश्न 1- बच्चे की मुस्कान और बड़े व्यवक्त की मुस्कान में क्या अिंतर ै ?

उतर - बच्चे की मुस्कान बहुत भोिी और छि कपट रव त ोती ै | िेककन बड़े व्यवक्त की
मुस्कान में कदखावटीपन और स्वाथा ोता |ै कभी कभी बड़े व्यवक्तयों की मुस्कान व्यिंग्य से भरी
ो सकती ै | बच्चा मुस्कान में भेद भाव न ीं करता िेककन बड़े व्यवक्त की मुस्कान में भेद
भाव ोता ै |

प्रश्न 2- कववता में फसि उपजाने के विए आवश्यक तत्वों की बात क ी गई ै वे आवश्यक तत्व
कौन कौन से ै ?

उतर - कववता में फसि उगने में आवश्यक तत्व ै | नकदयों का जि ,अनेक प्रकार की वमटटी,
सूया की ककरणें , वा , पानी , िाखों –करोड़ों ाथों का स्पिा और पठरश्रम |

गद्य भाग

पाि - 1 नेताजी का चश्मा

प्रश्न 1- मूर्ता पर सरकिं डे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता ै ?

उतर - मूर्ता पर सरकिं डे का चश्मा उम्मीद जगाता ै कक मारी आने वािी पीढ़ी में देि
प्रेम की भावना अभी जीववत | ै इस देि के वनमााण में िोग अपने- अपने तरीके से योगदान
देते ै | देि भक्त कै प्टन मर कर भी सब के बीच में वजन्दा ै |

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प्रश्न 2- जब तक ािदार सा ब ने कै प्टन को साक्षात् देखा न ीं था तब तक उनके मानस


पटि पर उसका कौनसा वचत्र र ा ोगा ?

उतर – जब तक ािदार सा ब ने कै प्टन को देखा न ीं था, तब तक में य ी सोचती ोंगी,


कक कै प्टन सेना का भूतपूवा ठरटायर कै प्टन ोगा | सभी नेता जी के प्रवत उनके मन में श्रद्धा
थी |

पाि - 2 - बाि गोवबन भगत

प्रश्न 1- बािगोवबन की पुत्र वधु उन् ें अके िे क्योोँ न ीं छोड़ना चा ती थी ?

उतर – पुत्र की मृत्यु के बाद भगत जी अके िे पड़ गए थे उन् ें िगता था, कक उनकी सेवा
करने वािा कोई भी न ीं ै उन् ें हचिंता थी कक उनका खाना कौन बनाएगा , दवाई कौन देगा
|

प्रश्न 2- आपकी दृवष्ट में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा पर क्या कारण र े ोंगे ?

उतर – भगत जी सिंत कबीर की भवक्त भावना , सरि और सादगी भरी वजन्दगी से बहुत
प्रभाववत थे, इन् ी कारणों से कबीर के प्रवत श्रद्धा भाव ग रे ोते चिे गए | कबीर उनके सा ब
बन गए ै |

पाि 3 - िखनवी अिंदाज

प्रश्न 1- िेखक को नवाब सा ब के ककन भागों से म सूस हुआ कक वे उनसे बातचीत करने के
विए जरा भी उत्सुक न ीं ै ?

उतर 1 -िेखक के अचानक वडब्बे में प्रवेि करने से|

2- खीरे जैसे अपदाथा वस्तु खाने से|

प्रश्न 2- क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप ो सकता ै ?

उतर - जी ाोँ सनक का सकारात्मक रूप ो सकता ै | जब भी कोई काया समाज


कल्याण के विए ककया जाए या देि का नव वनमााण काया सनकी िोग ी कर सकते ै |

पाि 4 – मानवीय करुणा की कदव्य चमक

प्रश्न 1- िेखक ने फादर बुल्के को मानवीय करुणा की कदव्य चमक क्यो क ा ै ?

उतर 1- उनका कदि र ककसी के विए करुणा के सागर से भरा हुआ था |

2- उनमें अपनेपन की भावना थी |

3- बड़े से बड़े दुुःख में व ौंसिा देकर जादू भर देते थे |

प्रश्न 2- आपके ववचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्योोँ बनाया था ?

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उतर - मारे ववचार से फादर बुल्के भारत इसविए आये थे, क्योंकक उनको भारत तथा भारत
की सिंस्कृ वत से बहुत प्यार था |

2 - उन् ें ह द
िं ी भाषा से बहुत प्यार था |

3- उन् ें िगता तथा कक भारत में र कर भी वो म ान काया कर सकते ै |

व्याकरण

रस

ास्य रस – ककसी व्यवक्त या पदाथा को साधारण से वभन्न वववचत्र रूप में देख कर जब पािक,
श्रोता के मन में ास्य का बोध ोता ै उसे ास्य रस क ते ै | इसका स्थायी भाव ास् ै
:-

उदा रण – एक कबूतर देख ाथ ने पूछा क ाोँ अपर ै ?

उसने क ा अपर कै सा ? व उड़ गया समर ै |

करुण रस – ककसी वप्रय पात्र के िम्बे ववयोग की पीड़ा या उसके न र ने पर ोने वािे किेि
को िोक क ते ै | य करुण रस ै | इसका स्थायी भाव िोक ै |

उदा रण- व आता दो टूक किेजे के करता , पछताता

पेट पीि दोनों वमिकर ै एक , चि र ा िुकुठटया टेक ,

रौद्र रस – ककसी ित्रु, ववपक्षी, अव तकारी, बुरा बचाने वािों की चेष्टाओं को देख कर
अपने अपमान, अव त, हनिंदा का जो भाव मन में जगता ै उसे रौद्र रस क ते ै उसका स्थायी
भाव क्रौध ै |

उदा रण- माथे िखन कु ठटि भई भै े

रद पट फरकत नयन ठरसौ े |

वीर रस :- वीर रस का स्थायी भाव उत्सा ै ित्रु , दीन याचक इसके अिंतगात आते ै |

उदा रण- रघुवर का आदेि िे युदथा वे सजने िगे |

भयानक रस :- इसका स्थायी भाव भय ै ककसी डरावनी वस्तु या व्यवक्त को देखने से


व्याकु िता या भय का अनुभव ोता ै |

उदा रण- एक और अजगरव िवख एक ओर मृगराय |

ववकि बटो ी बीच ी पयो मूछाा खाय ||

वीभत्स रस :- इसका स्थायी भाव घृणा ै घृणा उत्पन्न करने वािी गन्दी , दुगान्धपूणा, भद्दी,
अरुवच कर ,वस्तुओं को देखकर इस रस की उत्पवत्त ोती ै |

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उदा रण- दारुण दृश्य ! रुवधर के छीटें

अवस्थ खिंड की माया ||

अद्भुत रस :- इसका स्थायी भाव ववस्मय ै ककसी आश्चया जनक असाधारण वस्तु को देख कर
इस रस की उत्पवत्त ोती ै |

उदा रण- अवखि भुवन चर – अचर ,सब , ठरमुख में िवख मातु |

चककत भई गद –गद वचन , ववकसत दृग पुिकातु

िृिंगार रस

जब नायक और नावयका में एक आश्रय तथा दूसरा आिम्बन ो अथवा प्राकृ वतक उपादान , कोई कृ वत अथवा
ककसी का गायन-वादन आििंबन ो और दिाक, पािक या श्रोता आश्रय ो और वे ववभाव, सम्बवन्धत अनुभाव और
सिंचारीभाव से पठरपुष्ट ों, व ाोँ रवत नामक स्थायीभाव सकक्रय ो जाता ,ै रवत के सकक्रय ोने से िृिंगार रस की
उत्पवत्त ोती ।ै
श्रृिंगार रस:-श्रृिंगार
श्रृिंगार रस के दो भेद ोते ैं -
(क) सिंयोग श्रृगिं ार (ख) ववयोग श्रृिंगार ।
(क) सिंयोग श्रृग िं ार - ज ाोँ आििंबन और आश्रय के बीच परस्पर मेि-वमिाप और प्रेमपूणा वातावरण ो , व ाोँ
सिंयोग श्रृिंगार ोता ै ।

जैसे

ये रे िमी जुल्फें , ये िरबती आोँखे

इन् ें देख कर जी र े ै सभी |

------------------------------------------

वाच्य

पठरभाषा :- वाच्य का िावब्दक अथा ै बोिने योग्य |

वजसके द्वारा कोई व्यवक्त अपनी ककसी बात के हबिंद ु को प्रमुखता से स्पष्ट करता ै वाच्य क िाता
ै वाच्य इस बात को प्रकट करता ै कोई ककसी कथ्य हबिंद ु को अवधक म त्व दे र ा ै |

1)कतृावाच्य:- वजस वाक्य में करता वाच्य हबिंद ु ों उसे कतृावाच्य क ते ै |

जैसे :- राम खाना खाता ै |

2)कमा वाच्य :- वजस वाक्य में कमा वाच्य हबिंद ु ों उसे कमावाच्य क ते ै |

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जैसे :- राम के द्वारा खाना खाया जाता ै |

1)भाव वाच्य :- वजस वाक्य में भाव वाच्य हबिंद ु ों उसे भाव वाच्य क ते ै
|

जैसे :- राम से खाना खा चुका ै |

-----------------------------------------

सार िेखन:- सार िेखन के आवश्यक वनदेि

1)सार िेखन में ककसी गद्यािंि में वनव त मुख्य ववचारों को अपने िब्दों में विखना |

2) सार िेखन मूि गद्यािंि के तीसरे भाग में ोना चाव ए |

3) इसमें िीषाक आवश्यक विखना चाव ए |

4)िीषाक में वजतने कम से कम िब्द ो उतना ी िीषाक क ा जा सकता ै |

कृ वतका पूरक पुस्तक


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6 - tulapkj dk lk/ku yksdrU=k dk lqn`<+ LrEHk gSA


- lapkj ds lk/kuksa dk iz;ksx lekt ds fgr esa gksA
- l`tukRed izo`fÙk fodflr gksukA

7 - nksuks vk;kstuksa esa 'kgj dks l¡okjk x;kA


- nksukas vk;kstuksa esa /ku dk vR;f/kd mi;ksxA
- fons'kh esgekuksa dk lEekuA

8 - lekpkj i=k dk dk;Z lwpuk nsuk gSA


- fojks/k vU; rjhdksa ls Hkh fd;k tk ldrk gSA
- fojks/k dh izo`fÙk fo/oald u gksA

9 - lg;ksx ,oa lkSgknZ iw.kZ O;ogkjA


- lEeku nsukA
- gekjk O;ogkj gekjh laLd`fr dk niZ.kA
- tSlk O;ogkj ge vius fy, pkgrs gSaA

10 - le; dh egÙkk u le>ukA


- ek=k dkxt+h dk;Zokgh gksukA
- Hkz"Vkpkj dk cksy ckykA

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