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रस एवं उसके प्रकार

रस का शाब्दिक अर्थ है – सार या आनंद

परिभाषा- किसी रचना को पढ़ने, सुनने तथा किसी नाटक को देखने पर


पाठक या श्रोता को जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं |

काव्य से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं |


रस के अंग
• रस के चार अंग होते हैं –

स्थायी भाव विभाव अनुभाव संचारी भाव


या

व्यभिचारी भाव

आलंबन उद्दीपन 4 33
9 रस
9स्थायीभाव
रस के 9 प्रकार
स्थायी भाव
• जो भाव मनुष्य के हृदय में चिरकाल तक स्थिर रहते हैं अर्थात स्थायी
रूप से रहते हैं और समय आने पर जागृत होते हैं उसे स्थायी भाव कहते
हैं |

• प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है | इस प्रकार से नौ रस हैं


प्रत्येक का एक स्थायी भाव है –

• कु छ विद्वान वात्सल्य रस को 10 वां प्रकार मानते हैं |


क्र. रस का नाम स्थायी भाव टिपण्णी

1.
रति नायक-नायिका प्रेम
श्रंग
ृ ार रस
2
हास वाणी या अंगों के विकार से उत्पन्न हं सी,
हास्य रस
उल्लास
3
शोक वियोग /हानि के कारण उत्पन्न दख

करुण रस
4
क्रोध दया,दान, वीरता आदि प्रकट करने के कारण
रौद्र रस
उत्पन्न आनंद
5 विनाश करने में समर्थ या वस्तु को देखकर उत्पन्न व्याकु लता
भयानक रस भय
6 जुगुप्सा / घृणा घिनौने पदार्थ को देखकर ग्लानि
वीभत्स रस
7
उत्साह वीरता पूर्ण कार्य के कारण उत्पन्न भाव
वीर रस
8
अनोखी वस्त/ु घटना को दे ख/सन
ु कर चकित
ु रस आश्चर्य
अदभत
शृंगार रस--रति
इसके दो भेद हैं – 1- संयोग शृंगार 2- वियोग शृंगार
संयोग शृंगार- जहाँ पर नायक- नायिका के बीच मिलन का भाव दिखया जाता है वहां संयोग शृंगार रस
होता है |
उदाहरण-
1-एक जंगल है तेरी आँखों में जहाँ मैं राह भूल जाता हूँ |
तू किसी रेल सी गुजरती है, मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ |

2-कहत , नटत , रीझत, खीझत,मिलत, खिलत,लजियात।


भरै भौन में करत है , नैनन ही सों बाता। । ”

3- क्षितिज अटारी गदरायी, दामिनी दमकी,


क्षमां करो गांठ खुल गई अब भरम की
बाँध टू टा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के |
वियोग शृंगार- जहां नायक-नायिका में परस्पर उत्कट प्रेमहोनेके बाद भी उनका मिलन नहीं हो पाता।
इसके अंतर्गत विरह से व्यथित नायक-नायिका के मनोभावों को व्यक्त किया जाता है-
उदहारण- 1-“मधुबन तुम कत रहत हरे ,
विरह वियोग श्याम – सुंदर के ठाड़े क्यों न जरें। ”

2- मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया |


आलिंगन में आते-आते मुसुकु राकर जो भाग गया |

3- अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही |


अब इन जोग संदेसनी सुनि-सुनि,बिरहिनी बिरह दही |
हास्य रस- हास
• वाणी, वेशभूषा, विकृ त आकार के कारण मन में हास्य भाव उत्पन्न होता है |
उदहारण-
1- यदि पढ़ने की बात कही तो पोथी फाड़ जला दूंगा | कलम तोड़,दवात फोड़ स्याही
तुझे पिला दूंगा |

2-पैसा पाने का तुझे बतलाता हूँ प्लान |


कर्ज लेकर बैंक से हो जा अंतर्धान||

3- लाला की लाली यों बोली, सारा खाना ये चर जायेंगे |


जो बच्चे भूखे बैठे हैं वे क्या पंडितजी को खायेंगे
करुण रस-शोक
• किसी प्रिय व्यक्ति के चिर विरह, बंधु विनाश या प्रिय व्यक्ति की मृत्यु से जो दुःख या शोक उत्पन्न
होता है |

उदहारण-1- ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आँख में भर लो पानी


जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कु र्बानी |

2-अभी तो मुकु ट बंधा था माथ


हुए कल ही हल्दी के हाथ |
हाय! रुक गया यहीं संसार,
बना सिंदूर अंगार |

3-दुःख ही जीवन की कथा रही


क्या कहूं आज जो कही नहीं |
रौद्र रस- क्रोध
• अनुचित कार्यों, शत्रु या विरोधी के अनुचित चेष्टाओं के कारण मन में क्रोध भाव का उत्पन्न होना |

उदहारण-1-श्री कृ ष्ण के वचंन सुन अर्जुन क्रोध से जलने लगे


सब शोक अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे |

2- सुनहूँ राम जेहि सिवधनु तोरा| सहसबाहु सम सो रिपु मोरा ||


सो बिलगाऊ बिहाई समाजा | न त मारे जैहहिं सब राजा ||

3-“हरि ने भीषण हुंकार किया,


अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कु पित होकर बोले-
जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
‘हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।’
वीर रस – उत्साह
• शत्रु के उत्कर्ष को मिटाने,धर्म का, दीनो का उद्धार करने में जो उत्साह कर्म क्षेत्र में प्रवृत्त करता है, वह
वीर रस कहलाता है उदहारण-1-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँ चा रहे हमारा |
सदा शक्तिबरसाने वाला,वीरों को हरसाने वाला |
मातृभूमि का तनमन सारा, झंडा ऊँ चा रहे हमारा |

2-बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी |


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी |

3-वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं


वह खून कहो किस मतलब का जो आ सके देश के काम नहीं
वह खून कहो किस मतलब का जिसमें जीवन न रवानी है
जो परवश होकर बहता है वह खून नहीं है पानी है |
अद्भुत रस- आश्चर्य /विस्मय
• चकित कर देने वाली घटना या दृश्य का चित्रण हो वहाँ अद्भुत रस होता है |
उदहारण-1-
बिनु पद चले,सुने बिनु काना |
कर बिनु कर्म करे विधि नाना ||
आनन् रहित सकल रस भोगी
बिनु बानी बकता बड़ जोगी ||

2-आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा उतरे कै से पार |


राणा ने सोंचा इस पार,तब तक चेतक था उस पार ||

3- देख यशोदा शिशु के मुख में सकल विश्व की माया |


क्षण भर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया ||
भयानक रस – भय
भयानक घटना,दृश्य को देखने या सुनने पर जब मन में भय का संचार होता है |
उदाहरण-1
अजगरों से भरे जंगल,अगम गति से परे जंगल
शेर वाले बाघ वाले गरज और दहाड़ वाले
कं प से कनकने जंगल,सतपुड़ा के घने जंगल |

2-एक और अजगरहि लखि , एक ओर मृगराय।


विकल बटोही बीच ही परयो मूर्छा खाय |

3-उधर गरजती सिन्धु लहरियाँ, कु टिल काल के जालों सी |


चली आ रहीं फे न उगलती,फन फै लाये व्यालों सी ||
वीभत्स रस- जुगुप्सा /घृणा
• जहाँ घिनौने पदार्थ को देखकर ग्लानि हो |
उदहारण –
1-सिर पै बैठ्यो काग , आंख दोउ खात निकारत।
खींचत जिभहि स्यार , अतिहि आनंद उर धारत।|

2-आँखे निकाल उड़ जाते,क्षण भर उड़ कर आ जाते |


शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला- चुभलाकर खाते ||

3-कई गलियों के बीच


कई नालों के पार
कू ड़ेकरकट के ढेरों के बाद, बदबू से फटते जाते
इस टोले के अन्दर,जख्म से फटे हुए हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ |
शांत रस – निर्वेद
संसार के प्रति उदासीनता का भाव व्यक्त होता है|भक्ति संबंधी रचनाओं में शांत रस होता है |
• उदहारण
1-दया कर दान विद्या का हमें परमात्मा देना ,
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना |

2-मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै|


जैसे उड़ी जहाज को पंछी फिरि जहाज को आवै ||

3-पानी के रा बुदबुदा अस मानुस की जात |


देखत ही छिप जायेगा ज्यों तारागण परभात |
वात्सल्य रस-संतान प्रेम
अपने से छोटे के प्रति स्नेह भाव का चित्रण होने पर वात्सल्य
रसहोता है | इसमें माता पिता का संतान के प्रति स्नेह प्रदर्शित होता है
उदहारण –
1-उठो लाल अब आँखे खोलो
पानी लाई हूँ मुँह धो लो |

2-यशोदा हरि पालने झुलावै,


हलरावै, दुलरावै, मल्हावै, जोई सोई कछु गावै|

3-देखते तुम इधर कनखी मार


और होतीं जब आँखे चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुस्कान
मुझे लगती बड़ी ही छबिमान ||
धन्यवाद

संजू दांगी

प्रशिक्षित स्नातक अध्यापक (हिंदी)

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