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रस

PASSION/ SENTIMENT)

योजना एवं निर्मांण


विजेन्द्र माहिच (प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक)
कें द्रीय विद्यालय एम ई जी एवं के न्द्र, बेंगलुरू
रस
लौकिक दृष्टि से किसी भी फल-फू ल,सब्जी और
खाद्य-पदार्थ का निचोड़ या मुख्य अंश ही रस कहलाता
है,
जिसका जिह्वा से पान करके उसकी अनुभूति की जा सकती है।
लौकिक दृष्टि से रस षटरस होते हैं-खट्टा, मीठा, तीखा, कड़वा,
कसैला और नमकीन

खट्ठा
-
मीठा
कड़वा

तीखा

नमकीन

कसैला
साहित्यिक रस
साहित्यिक दृष्टि से आनंद ही रस है

• पाठक, श्रोता और दर्शक को साहित्य के पढ़ने,सुनने और देखने से


जो रसानुभूति होती है वह रस कहलाता है। साहित्यिक रस का सीधा
संबंध हृदय और मन होता है इसीलिए संस्कृ त काव्यशास्त्र में रस को
काव्य की आत्मा माना गया है।
रस के सूत्र
नाट्यशास्त्र के आचार्य भरतमुनि ने रस
की परिभाषा देते हुए कहा है-

विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पति
विभाव, अनुभाव,व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की
निष्पति होती है।
रस की निष्पति
विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी आदि के संयोग से रस तभी प्राप्त होता है जब
पाठक, श्रोता या दर्शक के मन में स्थित स्थायी भाव उन्हें ग्रहण करने के
लिए पूरी तरह तत्पर हों।
अत: रस को समझने के लिए पहले स्थायी भाव को समझना आवश्यक
है।
रस के अवयव
रस के चार अवयव होते हैं-

1. स्थायी भाव
2- विभाव
3- अनुभाव 4-
संचारी/ व्यभिचारी भाव
स्थायी भाव:
प्रत्येक मनुष्य के चित्त में नौ स्थायी भाव वासना रूप में विराजमान
होते हैं। ये सुषुप्त अवस्था में सदा विद्यमान रहती हैं। जब इनके सम्मुख
रस की सामाग्री प्रकट होती है तो ये क्रियाशील हो उठते हैं।

मनुष्य के हृदय में स्थित ये नौ स्थायी भाव ही रस की सामाग्री से


संयोग करके रस-रूप में परिणत हो जाते हैं। अत: भावों से ही रस बनते
हैं।
स्थाई भाव
भाव रस भाव रस

शोक करूण रति श्रृंगार


क्रोध रौद्र उत्साह वीर
घृणा भीभत्स हँसी हास्य
विस्मय अद्भुत
वैराग्य शांत भय भयानक
विभाव
विभाव स्थायी भावों को आस्वाद योग्य बनाते हैं। ये रस की उत्पत्ति में आधारभूत माने
जाते हैं।
विभाव

आलंबन विभाव उद्दीपन विभाव


आलंबन

भावों का उद्गम जिस मुख्य भाव या वस्तु के कारण हो वह काव्य का आलंबन कहा जाता है।
आलंबन के अंतर्गत आते हैं विषय और आश्रय।

साहित्य शास्त्र में इस विषय को आलंबन विभाव अथवा 'आलंबन' कहते हैं।

जिस पात्र के प्रति किसी पात्र के भाव जागृत होते हैं वह विषय है। 

जिस पात्र में भाव जागृत होते हैं वह आश्रय कहलाता है।
उद्दीपन विभाव
स्थायी भाव को जाग्रत रखने में सहायक कारण उद्दीपन विभाव कहलाते हैं।

वीर रस के स्थायी भाव उत्साह के लिए सामने खड़ा हुआ


शत्रु आलंबन विभाव है। शत्रु के साथ सेना, युद्ध के बाजे और
शत्रु की दर्पोक्तियां, गर्जना-तर्जना, शस्त्र संचालन आदि
उद्दीपन विभाव हैं।
अनुभाव

अनुभाव
अनुभाव

रति, हास, शोक आदि स्थायी भावों को प्रकाशित या व्यक्त करने वाली आश्रय की चेष्टाएं अनुभाव कहलाती
हैं।

ये चेष्टाएं भाव-जागृति के उपरांत आश्रय में उत्पन्न होती हैं इसलिए इन्हें अनुभाव कहते हैं, अर्थात
जो भावों का अनुगमन करे वह अनुभाव कहलाता है।

• अनुभाव पांच प्रकार के होते हैं-- 1. कायिक 2. वाचिक 3. मानसिक 4. सात्विक


5. आहार्य।
संचारी भाव 
जाग्रत स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए कु छ समय के लिए जगकर लुप्त हो जाने वाले भाव
संचारी या व्यभिचारी भाव कहलाते है। जैसे वन में शेर को देखकर भयभीत व्यक्ति को ध्यान
आ जाये कि आठ दिन पूर्व शेर ने एक व्यक्ति को मार दिया था। यह स्मृति संचारी भाव
होगा।

निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, देन्य, चिंता, मोह, स्मृति, घृति, ब्रीडा, चपलता,
हर्ष, आवेग, जड़ता, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अमर्ष, अविहित्था,
उग्रता, मति, व्याधि, उन्माद, मरण, वितर्क )
अद्भुत
भयानक
शांत
बीभत्स
करुण रौद्र
श्रृंगार
स्त्री –पुरुष का परस्पर अनुराग ।
संयोग श्रृंगार
जहाँ काव्य में नायक-नायिका का
मिलन होता है। उनके बीच रति या प्रेम
भावना प्रबल होती है तो वहाँ शृंगार
रस होता है। इसे रसराज कहा जाता
है।

“राम को रूप निहारत जानकी कं गन के नग में परछाँही।


याति सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही पल तारत नांही”
स्पष्टीकरण

स्थाई भाव : रति


संचारी भाव : हर्ष,औत्सुक्य
आलंबन नायक या प्रिय व्यक्ति
आश्रय नायिका या प्रिया
अनुभाव लजाना,मधुर आलाप,आलिंगन आदि

उद्दीपन : प्रेममय उक्ति,वन-उपवन,नदी किनारा


बतरस लालच लाल की, मुरली धरि लुकाय। 
सौंह करे, भौंहनि हँसै, दैन कहै, नटि जाय।

बिहारी
वियोग श्रृंगार

प्रेम में नायक-नायिका के परस्पर बिछु ड़ने की अनुभूति से वियोग


रस की अभिव्यक्ति होती है।
स्पष्टीकरण

स्थाई भाव : रति


संचारी भाव : उग्रता ,संत्रास
आलंबन प्रिय का वियोग
आश्रय गोपियाँ
अनुभाव अश्रु
उद्दीपन : पावस ॠतु,
मधुरा की स्मॄतियाँ
वियोग
कोटि जतन कौ करो,
तन की तपन न जाय.
जो लौ भीगे चीर लौं
रहै न लपटाय
बिहारीलाल
,
जहाँ विलक्षण स्थितियों,विकृ त रूप,
वेषभूषा, आकार आदि को देखकर हँसी
का पोषण हो तो वहाँ पर हास्य रस होता
है
स्पष्टीकरण
स्थाई भाव : हास
संचारी भाव : हर्ष,चपलता,उत्सुकता,मति
आलंबन विचित्र स्थिति,आकार,वेशभूषा
आश्रय हँसनेवाला पात्र,और दर्शक
पेट क्स्स खिलना,दाँतों का निकलना,चेहरे का खिलना आदि
अनुभाव

उद्दीपन : हास्यास्पद स्थितियाँ,चेष्टाएँ


: सीस पर हँसे भुजनि भुजंग हँसे।
हास ही को दंगा भयौ नंगा के विवाह में
रिश्वत का पक्ष लेकर वे बोले...
रिश्वत लेना अन्याय नहीं हैं
वरन यह तो हमारी
“अन्य आय” है !
जहाँ अति उके कारण कु छ कर
गुजरने की भावना का
विभाव,अनुभावों और सचारी भावों
से परिपुष्टि होती है। वहाँ वीर रस
की अभिव्यक्ति होती है|
स्पष्टीकरण

स्थाई भाव : उत्साह


संचारी भाव : गर्व,हर्ष,रोमांच,आवेग आदि
आलंबन शत्रु,दीन ,संघर्ष
आश्रय नायक,उत्साही व्यक्ति,कवि
अनुभाव गर्वपूर्ण वचन,आक्रमण
उद्दीपन : सेना,युद्ध काकोलाहल,शत्रु कि हरकतें,
वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का,
आ सके देश के कम नहीं ।
वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें जीवन न रवानी हो।
जो परवश होकर बहता हो,
वह खून नहीं है, पानी है।
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। 
सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो। 
तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं॥
रौद्र
जहाँ क्रोध और प्रतिशोध का भाव
विविध अनुभवों ,विभावों और
संचारियों के योग से परिपुष्ट होता
है वहाँ रोद्र रस की अभिव्यक्ति
होती है ।
स्पष्टीकरण
स्थाई भाव : क्रोध
संचारी भाव : उग्रता,अमर्ष,गर्व,चपलता,श्रम
आलंबन अपराधी या दुष्ट विरोधी
आश्रय क्रु द्ध व्यक्ति
अनुभाव आँखें लाल होना,ललकारना,सस्त्र उठाना

विरोधी का कटु वचन,अपमान या विरोधी कार्य


उद्दीपन :
हरि  ने  भीषण  हुँकार किया, 
अपना स्वरूप विस्तार किया, 
डगमग डगमग दिग्गज डोले, 
भगवान  कु पित हो कर  बोले

टकरायेंगे     नक्षत्र   निखर, 


फन   शेषनाग  का  डोलेगा, 
विकराल काल मुंह खोलेगा।
अद्भुत
किसी असाधारण वस्तु को देखकर
हमारे हृदय में जो आश्चर्य का भाव
होता है उसी से अद्भुत रस का संचार
होता है ।
स्पष्टीकरण

स्थाई भाव : विस्मय


संचारी भाव : हर्ष,वितर्क ,औत्सुक्य चपलता ,आवेग

आलंबन अद्भुत वस्तु या विचित्र दृश्य,

आश्रय विस्मित व्यक्ति


अनुभाव रोमांच,स्तंभ,गद्गद होना
उद्दीपन : आश्चर्यजनक वस्तुओं का वर्णन,वस्तु की विलक्षणता
देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल
विश्व की माया
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी
कोमल काया
अखिल भुवन चर अचर सब,
हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गद्गद वचन,
विकसित दृग पुलकातु॥
भयानक
जहाँ किसी घटना,प्राणी, या दृश्य
को देखकर मन में भय या
आक्रांत की भावना पैदा हो तो
वहाँ भयानक रस होता है
स्पष्टीकरण
स्थाई भाव : भय
संचारी भाव : शंका,चिंता,त्रास,दैन्य आदि

आलंबन भयप्रद स्थान अथवा वस्तु,

आश्रय भयभीत व्यक्ति


अनुभाव भागना,मूर्छित होना,कं प,रोमांच

उद्दीपन : निर्जनता,भयंकर दृश्य,शत्रु की भयकारी चेष्टाएँ


एक ओर अजगरहिं लखि ,
एक ओर मृगराय ।
विकल बटोही बीच ही ,
पर्यो मूर्झा खाय ।
उधर गरजती सिंधु लहरियाँ
कु टिल काल के जालों सी। 
चली आ रहीं फे न उगलती
फन फै लाये व्यालों – सी॥

(जयशंकर प्रसाद)
वीभत्स रस
घृणित वस्तुओं और दृश्य को
देखकर या सुनकर मन में जो
घृणा का भाव पैदा होता है
उसे वीभत्स रस कहते हैं |
सिर पर बैठी काग आँख दौ खात निकास ।
खींचत जिभ स्यार अतिहि आनंद उर भारत।
गिद्ध जाँख कौ खोदि खोदि के माँस उदरत।
श्वान आंगुरिन काटि काटि के खात बिदरत।
स्पष्टीकरण
स्थाई भाव : शोक
संचारी भाव : ग्लानि,मोह.स्मृति,चिंता,दैन्य
आलंबन मृत प्रिय या दीन व्यक्तिया जर्जर स्थिति
आश्रय शोकातुर व्यक्ति
अनुभाव रुदन ,प्रलाप,चीत्कार,स्थंभित होना,

हानि करनेवाला,पूर्व स्मृतियाँ,प्रिय व्यक्ति के गुण वचन आदि का स्मरण


उद्दीपन :
किसी प्रिय व्यक्ति या वस्तु की हानि से
हृदय में उत्पन्न हुए क्ले श की भावना से
शोक या करुणा का संचार होता है तो
वहाँ पर करुण रस होता है
स्पष्टीकरण
स्थाई भाव : शोक
संचारी भाव : ग्लानि,मोह.स्मृति,चिंता,दैन्य
आलंबन मृत प्रिय या दीन व्यक्तिया जर्जर स्थिति
आश्रय शोकातुर व्यक्ति
अनुभाव रुदन ,प्रलाप,चीत्कार,स्थंभित होना,

हानि करनेवाला,पूर्व स्मृतियाँ,प्रिय व्यक्ति के गुण वचन आदि का स्मरण


उद्दीपन :
अपनी तुतली भाषा में ,
वह सिसक-सिसकर बोली
जलती थी भूख तृषा की ,
उसके अंतर में होली ।
हा!सही न जाती मुझसे ,
आज भूख की ज्वाला ।
कल से ही प्यास लगी है,
हो रहा हृदय मतवाला ।
शांत
संसार की नश्वरता prmaa
%maa ko $p ka
&ana haonao sao
ica%t kao
imalanaovaalaI
SaaMit ko vaNa-
na sao pazk yaa
स्पष्टीकरण
स्थाई भाव : निर्वेद(वैराग्य)
संचारी भाव : धृति,हर्ष,ग्लानि आदि
आलंबन संसार की असारता,प्रभु-चिंतन

आश्रय भक्त व्यक्ति


अनुभाव अलौकिक प्रसन्नता,अश्रु बहाना,आँखें मूँदना

उद्दीपन : सत्संग,तीर्थाटन,धर्मशास्त्र
राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे। 
घोर भव नीर- निधि, नाम निज नाव रे
वात्सल्य रस

स्पष्टीकरण
स्थाई भाव : बाल रति
संचारी भाव : हर्ष ,मेद ,चपलता
आलंबन बालक का मोहक रूप
आश्रय माता पिता या पाठक
अनुभाव गले लगाना ,बाँहें फै लाना
उद्दीपन : बालक की स्वाभाविक चेष्टाएँ
जसुमति मन अभिलाष करै।

कब मेरो लाल घुटुरुवनि रैंगे,


कब धरनी पग द्वेक धरै।
कब द्वै दाँत दूध कै देखौं,
कब तोतैं मुख बचन झरैं।
कब नन्दहिं बाबा कहि बोले,
कब जननी कहिं मोहिं ररै।
भक्ति रस
स्पष्टीकरण
स्थाई भाव : भक्ति
संचारी भाव : निर्वेद,धृति
आलंबन ईश्वर की महिमा
आश्रय भक्त
अनुभाव शांत मन लीनता
उद्दीपन : प्रभु मूर्ति
भक्ति रस

जहाँ ईश्वर प्रेम का भाव


रस के अवयवों से परिपुष्ट
होकर रस रूप में व्यक्त
होता है -
अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई

एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास


एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास
धन्यवाद

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