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रस
कक्षा – दसव ीं
तैयारकताा व प्रस्तत
ु कताा
आजाद ससींह
के०वव० सेक्टर-31 चींड गढ़
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स्र्ाय भाव-
• प्रत्येक मनुटय के हृदय(चचत) में स्र्ाय भाव ववद्यमान रहते
हैं| जब इनके सामने रस की सामग्र प्रकट होत है तभ ये
कियार् ल हो उठते हैं|जजस तरह दध ू दही (खटास)के योग से
दही बन जाता है |
• रस भाव रस भाव
१.श्रींग
र ार रतत २. व र उत्साह
३.करुण र्ोक ४.हास्य हँस
५.रौद्र िोध/ ६.भयानक भय
७.व भत्स घणर ा/जग
ु प्ु सा ८.अद्भतु ववस्मय
९.र्ाींत वैराग्य
१०. भगवदरतत भजक्त
११.सींततत रतत -वात्सल्य
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सींचारी भाव/व्यसभचारी भाव–
सींचारी भाव –ये भाव प्रत्येक मनटु य के मन में उठने –चगरने
वाले मनोभाव हैं|ये स्र्ाय न होकर क्षणणक होते हैं ये ककस
न ककस स्र्ाय भाव के सींग सार् बनकर उनके सार्
ववचरण करते हैं|आचायों ने इनकी सींख्या 33 बताई है |जैसे –
तनवेद, आवेग, मोह, गवा, हर्ा, लज्जा, चचींता, ग्लातन ,उन्माद,
तनद्रा, र्ींका, मतत, स्मतर त, जड़ता, स्वपन, व्याचध, आलस्य आहद |
ववभाव- स्र्ाय भाव जाग्रत करने के कारकों(कारण)को
ववभाव कहते हैं| ये दो प्रकार के होतें हैं |
क.आलम्बन -वह जजसे दे ख कर भाव जाग्रत होते हैं|
ख.आश्रय भाव- जजसके हृदय में जाग्रत होते हैं |
करटण को दे खकर राधा के हृदय में प्रेम उत्पन्न हुआ |
यहाँ ‘करटण’ आलम्बन और ‘राधा’ आश्रय|
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करटण को दे खकर राधा के हृदय में प्रेम
उत्पन्न हुआ |
एकाींत स्र्ान,मनोरम
स्र्ल,श्रींगार
अनभ
ु ाव
एक दस
ू रे की ओर दे खना ,शर्ााना ,र्स्
ु कराना
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उद्दीपन ववभाव- जो पररजस्र्ततयाँ सहायक के
रूप में आलम्बन ववभाव को पण ू ा पररपक्वता की
और ले जात हैं|उसे उद्दीपन ववभाव कहते हैं
|जैसे स्र्ान का तनजान होना, दृश्य,वस्तु आहद|