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ववाह सं कार

ब त ही सुंदर श द म ह ववाह क व ध को
समझाया गया है जसमे सफ क यादान अथात् क या
के दान श द से मै सहमत नही ँ, ववाह का व ह अथ
व+वाह य न उ रदा य व का ांसफर है तो इसका सही
नाम क या अथवा वर का ववाह ही उ म है

इस लेख को व कफ़ाइ करने क आव यकता हो सकती है ता क


यह व कपी डया के गुणव ा मानक पर खरा उतरLearn
सके। more
कृपया जोड़कर, या लेख का
वतमान समय के ह ववाह का य

ह धम म स ह थ क , प रवार नमाण क ज मेदारी


उठाने के यो य शारी रक, मान सक प रप वता आ जाने
पर युवक-युव तय का ववाह सं कार कराया जाता है।
भारतीय सं कृ त के अनुसार ववाह कोई शारी रक या
सामा जक अनुब ध मा नह ह, यहाँ दा प य को एक
े आ या मक साधना का भी प दया गया है।
इस लए कहा गया है 'ध यो गृह था मः'। स ह थ ही
समाज को अनुकूल व था एवं वकास म सहायक
होने के साथ े नई पीढ़ बनाने का भी काय करते ह।
वह अपने संसाधन से चय, वान थ एवं स यास
आ म के साधक को वां छत सहयोग दे ते रहते ह। ऐसे
स ह थ बनाने के लए ववाह को ढ़य -कुरी तय से
मु कराकर े सं कार के प म पुनः त त
करना आव क है। युग नमाण के अ तगत ववाह
सं कार के पा रवा रक एवं सामू हक योग सफल और
उपयोगी स ए ह।

सं कार योजन

ववाह दो आ मा का प व ब धन है। दो ाणी अपने


अलग-अलग अ त व को समा त कर एक स म लत
इकाई का नमाण करते ह। ी और पु ष दोन म
परमा मा ने कुछ वशेषताएँ और कुछ अपूणताएँ दे रखी
ह। ववाह स मलन से एक- सरे क अपूणता क
अपनी वशेषता से पूण करते ह, इससे सम
व का नमाण होता है। इस लए ववाह को
सामा यतया मानव जीवन क एक आव यकता माना
गया है। एक- सरे को अपनी यो यता और भावना
का लाभ प ँचाते ए गाड़ी म लगे ए दो प हय क
तरह ग त-पथ पर अ सर होते जाना ववाह का उ े य
है। वासना का दा प य-जीवन म अ य त तु छ और गौण
थान है, धानतः दो आ मा के मलने से उ प होने
वाली उस महती श का नमाण करना है, जो दोन के
लौ कक एवं आ या मक जीवन के वकास म सहायक
स हो सके।

ववाह का व प
आज ववाह वासना- धान बनते चले जा रहे ह। रंग,
प एवं वेष- व यास के आकषण को प त-प न के
चुनाव म धानता द जाने लगी है, यह वृ ब त ही
भा यपूण है। य द लोग इसी तरह सोचते रहे, तो
दा प य-जीवन शरीर धान रहने से एक कार के वैध-
भचार का ही प धारण कर लेगा। पा ा य जैसी
थ त भारत म भी आ जायेगी। शारी रक आकषण क
यूना धकता का अवसर सामने आने पर ववाह ज द -
ज द टू टते-बनते रहगे। अभी प नी का चुनाव शारी रक
आकषण का यान म रखकर कये जाने क था चली
है, थोड़े ही दन म इसक त या प त के चुनाव म
भी सामने आयेगी। तब असु दर प तय को कोई प नी
पस द न करेगी और उ ह दा प य सुख से वं चत ही
रहना पड़ेगा।

समय रहते इस बढ़ती ई वृ को रोका जाना चा हए


और शारी रक आकषण क उपे ा कर स ण तथा
स ावना को ही ववाह का आधार पूवकाल क तरह
बने रहने दे ना चा हए। शरीर का नह आ मा का सौ दयर्
दे खा जाए और साथी म जो कमी है, उसे ेम, स ह णुता,
आ मीयता एवं व ास क छाया म जतना स भव हो
सके, सुधारना चा हए, जो सुधार न हो सके, उसे बना
अस तोष लाये सहन करना चा हए। इस री त-नी त पर
दा प य जीवन क सफलता नभर है। अतएव प त-
पतनी को एक- सरे से आकषण लाभ मलने क बात न
सोचकर एक- सरे के त आ म-समपण करने और
स म लत श उ प करने, उसके जीवन वकास क
स भावनाएँ उ प करने क बात सोचनी चा हए। चुनाव
करते समय तक साथी को पस द करने न करने क छू ट
है। जो कुछ दे खना, ढूँ ढ़ना, परखना हो, वह काय ववाह
से पूव ही समा त कर लेना चा हए। जब ववाह हो गया,
तो फर यह कहने क गुंजाइश नह रहती क भूल हो
गई, इस लए साथी क उपे ा क जाए। जस कार के
भी गुण-दोष यु साथी के साथ ववाह ब धन म बँध,
उसे अपनी ओर से क पालन समझकर पूरा करना
ही एक मा माग रह जाता है। इसी के लए ववाह
सं कार का आयोजन कया जाता है। समाज के
स ात य क , गु जन क , कुटु बी-स ब धय
क , दे वता क उप थ त इसी लए इस धमानु ान के
अवसर पर आव यक मानी जाती है क दोन म से कोई
इस क -ब धन क उपे ा करे, तो उसे रोक और
ता ड़त कर।

प त-पतनी इन स ात य के स मुख अपने


न यक, त ा-ब धन क घोषणा करते ह। यह
त ा समारोह ही ववाह सं कार है। इस अवसर पर
दोन क ही यह भावनाएँ गहराई तक अपने मन म
जमानी चा हए क वे पृथक् य क स ा समा त
कर एक करण क आ मीयता म वक सत होते ह। कोई
कसी पर न तो कूमत जमायेगा और न अपने अधीन-
वशवत रखकर अपने लाभ या अहंकार क पू त करना
चाहेगा। वरन् वह करेगा, जससे साथी को सु वधा
मलती हो। दोन अपनी इ छा आव कता को गौण और
साथी क आव यकता को मु य मानकर सेवा और
सहायता का भाव रखगे, उदारता एवं स ह णुता बरतगे,
तभी गृह थी का रथ ठ क तरह आगे बढ़े गा। इस त य
को दोन भली कार दयंगम कर ल और इसी री त-
नी त को आजीवन अपनाये रहने का त धारण कर,
इसी योजन के लए यह पु य-सं कार आयो जत कया
जाता है। इस बात को दोन भली कार समझ ल और
स चे मन से वीकार कर ल, तो ही ववाह-ब धन म
बँध। ववाह सं कार आर भ करने से पूव या ववाह वेद
पर बठाकर दोन को यह त य भली कार समझा दया
जाए और उनक सहम त माँगी जाए। य द दोन इन
आदश को अपनाये रहने क हा दक सहम त- वीकृ त
द, तो ही ववाह सं कार आगे बढ़ाया जाए।

वशेष व था
ववाह सं कार म दे व पूजन, य आ द से स ब धत
सभी व थाएँ पहले से बनाकर रखनी चा हए।
सामू हक ववाह हो, तो येक जोड़े के हसाब से
येक वेद पर आव यक साम ी रहनी चा हए,
कमका ड ठ क से होते चल, इसके लए येक वेद पर
एक-एक जानकार भी नयु करना चा हए। एक
ही ववाह है, तो आचाय वयं ही दे ख-रेख रख सकते ह।
सामा य व था के साथ जन व तु क ज रत
वशेष कमका ड म पड़ती है, उन पर ार भ म
डाल लेनी चा हए। उसके सू इस कार ह।

वर स कार के लए साम ी के साथ एक थाली रहे, ता क


हाथ, पैर धोने क या म जल फैले नह । मधुपक पान
के बाद हाथ धुलाकर उसे हटा दया जाए। य ोपवीत के
लए पीला रंगा आ य ोपवीत एक जोड़ा रखा जाए।
ववाह घोषणा के लए वर-वधू प क पूरी जानकारी
पहले से ही नोट कर ली जाए। व ोपहार तथा
पु पोपहार के व एवं मालाएँ तैयार रह। क यादान म
हाथ पीले करने क ह द , गु तदान के लए गुँथा आ
आटा (लगभग एक पाव) रख। थब धन के लए
ह द , पु प, अ त, वा और ह । शलारोहण के
लए प थर क शला या समतल प थर का एक टु कड़ा
रखा जाए। हवन साम ी के अ त र लाजा (धान क
खील) रखनी चा हए। वर-वधू के पद ालन के लए
परात या थाली रखे जाए। पहले से वातावरण ऐसा
बनाना चा हए क सं कार के समय वर और क या प
के अ धक से अ धक प रजन, नेही उप थत रह।
सबके भाव संयोग से कमका ड के उ े य म रचना मक
सहयोग मलता है। इसके लए गत और सामू हक
दोन ही ढं ग से आ ह कए जा सकते ह। ववाह के पूव
य ोपवीत सं कार हो चुकता है। अ ववा हत को एक
य ोपवीत तथा ववा हत को जोड़ा पहनाने का नयम
है। य द य ोपवीत न आ हो, तो नया य ोपवीत और
हो गया हो, तो एक के थान पर जोड़ा पहनाने का
सं कार व धवत् कया जाना चा हए। अ छा हो क
जस शुभ दन को ववाह-सं कार होना है, उस दन
ातःकाल य ोपवीत धारण का म व थत ढं ग से
करा दया जाए। ववाह-सं कार के लए सजे ए वर के
व आ द उतरवाकर य ोपवीत पहनाना अटपटा-सा
लगता है। इस लए उसको पहले ही पूरा कर लया जाए।
य द वह स भव न हो, तो वागत के बाद य ोपवीत
धारण करा दया जाता है। उसे व पर ही पहना दे ना
चा हए, जो सं कार के बाद अ दर कर लया जाता है।
जहाँ पा रवा रक तर के पर परागत ववाह आयोजन
म मु य सं कार से पूव ारचार ( ार पूजा) क र म
होती है, वहाँ य द हो-ह ला के वातावरण को सं कार के
उपयु बनाना स भव लगे, तो वागत तथा व एवं
पु पोपहार वाले करण उस समय भी पूरे कराये जा
सकते ह वशेष आसन पर बठाकर वर का स कार
कया जाए। फर क या को बुलाकर पर पर व और
पु पोपहार स प कराये जाएँ। पर परागत ढं ग से दये
जाने वाले अ भन दन-प आ द भी उसी अवसर पर
दये जा सकते ह। इसके कमका ड का संकेत आगे
कया गया है। पा रवा रक तर पर स पनन कये जाने
वाले ववाह सं कार के समय कई बार वर-क या प
वाले क ह लौ कक री तय के लए आ ह करते ह।
य द ऐसा आ ह है, तो पहले से नोट कर लेना-समझ
लेना चा हए। पा रवा रक तर पर ववाह- करण म
वरे छा, तलक (शाद प क करना), ह र ा लेपन
(ह द चढ़ाना) तथा ारपूजन आ द के आ ह उभरते
ह। उ ह सं ेप म दया जा रहा है, ता क समयानुसार
उनका नवाह कया जा सके।

वर-वरण ( तलक)
ववाह से पूव ' तलक' का सं त वधान इस कार है-

वर पूवा भमुख तथा तलक करने वाले ( पता, भाई


आ द) प मा भमुख बैठकर न नकृ य स प कर-
मंगलाचरण, षट् कम, तलक, कलावा, कलशपूजन,
गु व दना, गौरी-गणेश पूजन, सवदे व नम कार,
व तवाचन आ द इसके बाद क यादाता वर का
यथो चत वागत-स कार (पैर धुलाना, आचमन कराना
तथा ह द से तलक करके अ त लगाना) कर।
त परा त 'वर' को दान क जाने वाली सम त साम ी
(थाल-थान, फल-फूल, -व ा द) क यादाता हाथ म
लेकर संक प म बोलते ए वर को दान कर द-

ॐ व णु व णु व णुः ीम गवतो
महापु ष य व णोरा या वतमान य,
अ ी णो तीये पराधे
ी ेतवाराहक पे, वैव वतम व तरे,
भूल के, ज बू पे, भारतवषे ,
भरतख डे, आयाव कदे शा तगते,
.......... े े, .......... व मा दे
.......... संव सरे .......... मासानां
मासो मेमासे .......... मासे ..........
प े .......... तथौ .......... वासरे
.......... गो ो प ः ............
(क यादाता) नामाऽहं ...............
(क या-नाम) ना या क यायाः
(भ ग याः) क र यमाण उ ाहकम ण
ए भवरण ैः ...............( वर का
गो ) गो ो प ं ...............( वर का
नाम) नामानं वरं क यादानाथ
वरपूजनपूवकं वामहं वृणे, त म कं
यथाश भा डा न , व ा ण,
फल म ा ा न ा ण च...............
(वर का नाम) वराय समपय।

त प ात् मा ाथना, नम कार, वसजन तथा शा त


पाठ करते ए काय म समा त कर।

ह र ालेपन
ववाह से पूव वर-क या के ायः ह द चढ़ाने का
चलन है, उसका सं त वधान इस कार है-
सव थम षट् कम, तलक, कलावा, कलशपूजन,
गु व दना, गौरी-गणेश पूजन, सवदे वनम कार,
व तवाचन कर। त प ात् न न मं बोलते ए वर/
क या क हथेली- अंग-अवयव म (लोकरी त के
अनुसार) ह र ालेपन कर-

ॐ का डात् का डा रोह ती, प षः


प ष प र। एवा नो वेर् तनु, सह ेण
शतेन च॥ -१३.२०

इसके बाद वर के दा हने हाथ म तथा क या के बाय हाथ


म र ा सू कंकण (पीले व ू ,
म कौड़ी, लोहे क अँगठ
पीली सरस , पीला अ त आ द बाँधकर बनाया गया।)
न न ल खत म से पहनाएँ-

ॐ यदाब न दा ायणा , हर य
शतानीकाय , सुमन यमानाः।
त मऽआब ना म शतशारदाय ,
आयु मांजरद यथासम्॥ -३४.५२

त प ात् मा ाथना, नम कार, वसजन, शा तपाठ के


साथ काय म पूण कर।

ार पूजा
ववाह हेतु बारात जब ार पर आती है, तो सव थम
'वर' का वागत-स कार कया जाता है, जसका म इस
कार है- 'वर' के ार पर आते ही आरती क था हो,
तो क या क माता आरती कर ल। त प ात् 'वर' और
क यादाता पर पर अ भमुख बैठकर षट् कम, कलावा,
तलक, कलशपूजन, गु व दना, गौरी-गणेश पूजन,
सवदे वनम कार, व तवाचन कर। इसके बाद
क यादाता वर स कार के सभी कृ य आसन, अ य, पा ,
आचमन, मधुपक आ द ( ववाह सं कार से) स प
कराएँ। त प ात्

ॐ ग ध ारां राधषा........... (पृ० .....) से तलक


लगाएँ तथा

ॐअ मीमद त ...... (पृ० ....) से अ त लगाएँ।

मा यापण एवं कुछ 'वर' को दान करना हो, तो


नन थम से स प करा द-

मा यापण म -

ॐ मंगलं भगवान व णुः ............ (पृ०...)

दान म -

ॐ हर यगभः समव ता े ......... (पृ०...)


त प ात् मा ाथना, नम कार, दे व वसजन एवं
शा तपाठ कर।

ववाह सं कार का वशेष कमका ड


ववाह वेद पर वर और क या दोन को बुलाया जाए,
वेश के साथ मंगलाचरण 'भ ं कणे भः.......' म
बोलते ए उन पर पु पा त डाले जाएँ। क या दाय ओर
तथा वर बाय ओर बैठे। क यादान करने वाले तनध
क या के पता, भाई जो भी ह , उ ह प नी स हत क या
क ओर बठाया जाए। प नी दा हने और प त बाय ओर
बैठ। सभी के सामने आचमनी, पंचपा आ द उपकरण
ह । प व ीकरण, आचमन, शखा-व दन, ाणायाम,
यास, पृ वी-पूजन आ द षट् कम स प करा लये जाएँ।
वर-स कार- (अलग से ार पूजा म वर स कार कृ य हो
चुका हो, तो बारा करने क आव यकता नह है।)
अतथ प म आये ए वर का स कार कया जाए।
(१) आसन (२) पा (३) अ यर् (४) आचमन (५) नैवे
आ द नधा रत म से सम पत कए जाएँ।

दशा और ेरणा वर का अ त थ के नाते स कार कया


जाता है। गृह था म म गृहल मी का मह व सवोप र
होता है। उसे लेने वर एवं उसके हतैषी प रजन क या के
पता के पास चल कर आते ह। े उ े य से
स ावनापूवक आये अ त थय का वागत करना क या
प का क हो जाता है। दोन प को अपने-अपने
इन स ाव को जा त् रखना चा हए।

वर का अथ होता है- े , वीकार करने यो य।


क या-प वर को अपनी क या के अनु प े
मानकर ही स ब ध वीकार कर, उसी भाव से
े भाव रखते ए स कार कर और भगवान से
ाथना कर क यह भाव सदा बनाये रखने म
सहायता कर।
वर प स मान पाकर नरथक अहं न बढ़ाएँ। जन
मानवीय गुण के कारण े मानकर वर का स कार
करने क व था ऋ षय ने बनाई है, उन शालीनता,
ज मेदारी, आ मीयता, सहका रता जैसे गुण को
इतना जीव त बनाकर रख क क या प क सहज
ा उसके त उमड़ती ही रहे। ऐसा स भव हो, तो
पा रवा रक स ब ध म दे वोपम नेह-मधुरता का
संचार अव य होगा।
इन द भाव के लए सबसे अ धक घातक है,
संक ण वाथपरक लेन-दे न का आ ह। दहेज, चढ़ावा
आ द के नाम पर य द एक- सरे पर दबाव डाले जाते
ह, तो स ाव तो समा त हो ही जाती है, े ष और
तशोध के भाव उभर आते ह। वर-वधू के सुखद
भ व य को यान म रखकर ऐसे अ य संग को
वष मानकर उनसे सवथा र रहना चा हए। यान
रख क स कार म थूल उपचार को नह दयगत
भाव को धान माना जाता है। उ ह के साथ
नधा रत म पूरा कया-कराया जाए। या और
भावना- वागतक ार् हाथ म अ त लेकर भावना
कर क वर क े तम वृ य का अचन कर रहे
ह। दे व-श याँ उ ह बढ़ाने-बनाये रखने म सहयोग
कर।

ननम बोल- ॐ साधु भवान् आ ताम्। अच य यामो


भव तम्। -पार०गृ० १.३1४

वर दा हने हाथ म अ त वीकार करते ए भावना कर


क वागतक ार् क ा पाते रहने के यो य व
बनाये रखने का उ रदा य व वीकार कर रहे ह। बोल-
'ॐ अचय।' आसन- वागतक ार् आसन या उसका
तीक (कुश या पु प आ द) हाथ म लेकर न न म
बोल। भावना कर क वर को े ता का आधार- तर
ा त हो। हमारे नेह म उसका थान बने। ॐ व रो,
व रो, व रः तगृ ताम्। -पार०गृ०सू० १.३.६ वर
क या के पता के हाथ से व र (कुश या पु प आ द)
लेकर कह- ॐ तगृ ा म। - पार०गृ०सू० १.३.७ उसे
बछाकर बैठ जाए, इस या के साथ न न म बोला
जाए- ॐ व मोर्ऽ म समानानामु ता मव सूयर्ः।
इम तम भ त ा म, यो मा क ा भदास त॥ -
पार०गृ०सू० १.३.८ पा - वागतक ार् पैर धोने के लए
छोटे पा म जल ल। भावना कर क ऋ षय के आदश
के अनु प स ह थ बनने क दशा म बढ़ने वाले पैर
पूजनीय ह। क यादाता कह- ॐ पा ं, पा ं, पा ं,
तगृ ताम्। - पार०गृ०सू०१.३.६ वर कह- ॐ
तगृ ा म। - पार०गृ०सू०१.३.७ भावना कर क
आदश क दशा म चरण बढ़ाने क उमंग इ दे व बनाये
रख। पद ालन क या के साथ यह म बोला
जाए। ॐ वराजो दोहोऽ स, वराजो दोहमशीय म य,
पा ायै वराजो दोहः। - पार०गृ०सू० १.३.१२

अ य- वागतक ार् च दन यु सुग धत जल पा म


लेकर भावना करे क स पु षाथर् म लगने का सं कार
वर के हाथ म जा त् करने हेतु अ यर् दे रहे ह।
क यादाता कहे- ॐ अघ , अघ , अघः तगृ ताम्। -
पार०गृ०सू०१.३.६

जल पा वीकार करते ए वर कहे- ॐ तगृ ा म। -


पार०गृ०सू०१.३.७ भावना कर क सुग धत जल
स पु षाथ के सं कार दे रहा है। जल से हाथ धोएँ।
या के साथ न न म बोला जाए।

ॐ आपः थ यु मा भः, सवा कामानवा वा न। ॐ समु ं


वः हणो म, वां यो नम भग छत। अ र ाअ माकं
वीरा, मा परासे च म पयः। - पार०गृ०सू० १.३.१३-१४
आचमन- वागतक ार् आचमन के लए जल पा
तुत कर। भावना कर क वर- े अ त थ का मुख
उ वल रहे, उसक वाणी उसका व तदनु प
बने। क यादाता कहे- ॐ आचमनीयम्, आचमीयनम्,
आचमीनयम्, तगृ ताम्॥ ॐ तगृ ा म। (वर कहे)
-पार०गृ०सू० १.३.६ भावना कर क मन, बु और
अ तःकरण तक यह भाव बठाने का यास कर रहे ह।
तीन बार आचमन कर। यह म बोला जाए। ॐ
आमागन् यशसा, स सृज वचसा। तं मा कु यं
जानाम धप त, पशूनाम र तनूनाम्। - पार०गृ०सू०
१.३.१५

नैवे - एक पा म ध, दही, शकरा (मधु) और


तुलसीदल डाल कर रख। वागतक ा वह पा हाथ म
ल। भावना कर क वर क े ता बनाये रखने यो य
सा वक, सुसं कारी और वा यवधक आहार उ ह
सतत ा त होता रहे। क यादाता कहे- ॐ मधुपकोर्,
मधुपकोर्, मधुपकः तगृ ताम्। - पार०गृ०सू० १.३.६
वर पा वीकार करते ए कहे- ॐ तगृ ा म। वर
मधुपक का पान करे। भावना कर क अभ य के
कुसं कार से बचने, स पदाथ से सुसं कार अ जत
करते रहने का उ रदा य व वीकार रहे ह। पान करते
समय यह म बोला जाए। ॐ य मधुनो मध ं परम
पम ा म्। तेनाहं मधुनो मध ेन परमेण,
पेणा ा ेन परमो मध ोऽ ादोऽसा न।- पार०गृ०सू०
१.३.२०

त प ात् जल से वर हाथ-मुख धोए। व छ होकर अगले


म के लए बैठे। इसके बाद च दन धारण कराएँ। य द
य ोपवीत धारण पहले नह कराया गया है, तो
य ोपवीत करण के आधार पर सं ेप म उसे स प
कराया जाए। इसके बाद मशः कलशपूजन, नम कार,
षोडशोपचार पूजन, व तवाचन, र ा वधान आ द
सामा य म करा लए जाएँ। र ा- वधान के बाद
सं कार का वशेष करण चालू कया जाए।

ववाह घोषणा
ववाह घोषणा क एक छोट -सी सं कृत भाषा क
श दावली है, जसम वर-क या के गो पता- पतामह
आ द का उ लेख और घोषणा है क यह दोन अब
ववाह स ब ध म आब होते ह। इनका साहचय धम-
संगत जन साधारण क जानकारी म घो षत कया आ
माना जाए। बना घोषणा के गुपचुप चलने वाले दा प य
तर के ेम स ब ध, नै तक, धा मक एवं कानूनी से
अवांछनीय माने गये ह। जनके बीच दा प य स ब ध
हो, उसक घोषणा सवसाधारण के सम क जानी
चा हए। समाज क जानकारी से जो छपाया जा रहा हो,
वही भचार है। घोषणापूवक ववाह स ब ध म
आब होकर वर-क या धम पर परा का पालन करते ह।

व त ीम दन दन चरणकमल भ सद्
व ा
वनीत नजकु लकमलक लका काशनैकभा
कार सदाचार स च र स कुल स त ा
ग र य .........गो य ........ महोदय य
पौ ः .......... महोदय य पौ ..........
महोदय य पु ः॥ ....... महोदय य पौ ी,
........ महोदय य पौ ी .........महोदय य
पु ी यतपा णः शरणं प े। व त
संवादे षूभयोवृ वरक ययो रंजी वनौ
भूया ताम्।
मंगला क
ववाह घोषणा के बाद, स वर मंगला क म बोल
जाएँ। इन म म सभी े श य से मंगलमय
वातावरण, मंगलमय भ व य के नमाण क ाथना क
जाती है। पाठ के समय सभी लोग भावनापूवक वर-वधू
के लए मंगल कामना करते रह। एक वयं सेवक उनके
ऊपर पु प क वषा करता रहे।

ॐम पंकज व रो ह रहरौ,
वायुमह ोऽनलः। च ो भा कर व पाल
व ण, ता धपा द हाः। नो नलकूबरौ
सुरगजः, च ताम णः कौ तुभः, वामी
श धर लांगलधरः , कुव तु वो मंगलम्॥
१॥
गंगा गोम तगोप तगणप तः ,
गो व दगोवधन , गीता गोमयगोरजौ
ग रसुता , गंगाधरो गौतमः। गाय ी ग डो
गदाधरगया , ग भीरगोदावरी ,
ग धव हगोपगोकु लधराः, कुव तु वो
मंगलम्॥२॥

ने ाणां तयं मह पशुपतेः अ ने तु पाद यं,


त णुपद यं भुवने, यातं च
राम यम्। गंगावाहपथ यं सु वमलं, वेद यं
ा णम्, सं यानां तयं जैर भमतं ,
कुव तु वो मंगलम्॥३॥

बा मी कः सनकः सन दनमु नः,


ासोव स ो भृगुः,
जाबा लजमद नर जनकौ , गग ऽ गरा
गौतमः। मा धाता भरतो नृप सगरो, ध यो
दलीपो नलः, पु यो धमसुतो यया तन षौ ,
कुव तु वो मंगलम्॥४॥

गौरी ीकुलदे वता च सुभगा,


ू ुपणा शवाः , सा व ी च सर वती च
क स
सुर भः, स य ता धती। वाहा जा बवती
च मभ गनी , ः व व वं सनी , वेला
चा बु नधेः समीनमकरा , कुव तु वो मंगलम्॥
५॥

गंगा स धु सर वती च यमुना, गोदावरी


नमदा, कावेरी सरयू महे तनया, चम वती
वे दका। श ा वे वती महासुरनद , याता
च या ग डक , पूणाः पु यजलैः
समु स हताः , कुव तु वो मंगलम्॥६॥

ल मीः कौ तुभपा रजातकसुरा ,


धवतर मा, गावः काम घाः
सुरे रगजो , र भा ददे वांगनाः। अ ः
स तमुखः सुधा ह रधनुः, शंखो वषं चा बुधे,
रतनानी त चतुदश त दनं, कुव तु वो
मंगलम्॥७॥

ा वेदप तः शवः पशुप तः, सूयोर् हाणां


प तः, शु ो दे वप तनल नरप तः, क द
सेनाप तः। व णुय प तयमः पतृप तः ,
ताराप त मा, इ येते पतय सुपणस हताः ,
कुव तु वो मंगलम्॥८॥
पर पर उपहार
वर प क ओर से क या को और क या प क ओर
से वर का व -आभूषण भट कये जाने क पर परा है।
यह काय ानु प पहले ही हो जाता है। वर-वधू उ ह
पहनाकर ही सं कार म बैठते ह। यहाँ तीक प से
पीले प े एक- सरे को भट कये जाएँ। यही थ
ब धन के भी काम आ जाते ह। आभूषण प हनाना हो,
ू या मंगलसू जैसे शुभ- च
तो अँगठ तक ही सी मत
रहना चा हए। दोन प भावना कर क एक- सरे का
स मान बढ़ाने, उ ह अलंकृत करने का उ रदा यतव
समझने और नभाने के लए संक पत हो रहे ह। नीचे
लखे म के साथ पर पर उपहार दये जाएँ।
ॐ प रधा यै यशोधा यै , द घायु वाय
जरद र म। शतं च जीवा म शरदः,
पु चीराय पोषम भ सं य ये। -
पार०गृ०सू० २.६.२०

पु पोहार (मा यापण) वर-वधू एक- सरे को अपने


अनु प वीकार करते ए, पु प मालाएँ अ पत करते ह।
दय से वरण करते ह। भावना कर क दे व श य और
स पु ष के आशीवाद से वे पर पर एक सरे के गले के
हार बनकर रहगे। म ो चार के साथ पहले क या वर
को फर वर-क या को माला प हनाएँ।

ॐ यशसा मा ावापृ थवी , यशसे ा


बृह पती। यशो भग मा वदद्, यशो मा
तप ताम्। - पार०गृ०सू० २.६.२१,
मा०गृ०सू० १.९.२७

ह तपीतकरण
श ा एवं ेरणा

क यादान करने वाले क या के हाथ म ह द लगाते ह।


ह र ा मंगलसूचक है। अब तक बा लका के प म यह
लड़क रही। अब यह गृहल मी का उ रदा य व वहन
करेगी, इस लए उसके हाथ को पीतवण-मंगलमय
बनाया जाता है। उसके माता- पता ने लाड़- यार से
पाला, उसके हाथ म कोई कठोर क नह स पा।
अब उसे अपने हाथ को नव- नमाण के अनेक
उ रदा य व सँभालने को तैयार करना है, अतएव उ ह
पीतवण मांग लक-ल मी का तीक-सृजना मक होना
चा हए। पीले हाथ करते ए क या प रवार के लोग उस
बा लका को यही मौन श ण दे ते ह क उसे आगे सृजन
श के प म कट होना है और इसके लए इन
कोमल हाथ को अ धक उ रदायी, मजबूत और
मांग लक बनाना है।

या और भावना

क या दोन हथे लयाँ सामने कर दे । क यादाता गीली


ह द उस पर म के साथ मल। भावना कर क दे व
सा य म इन हाथ को वाथपरता के कुसं कार से
मु कराते ए याग परमाथ के सं कार जा त् कये जा
रहे ह।

ॐ अ ह रव भोगैः पये त बाहं◌ु, याया हे त


प रबाधमानः। ह त नो व ा वयुना न
व ान्, पुमान् पुमा सं प रपातु व तः।
-२९.५१

श ा एवं ेरणा

क यादान

क यादान : पता अपनी क या का हाथ वर के हाथ म दे ता है।

क यादान का अथ

क यादान का अथ है, अ भभावक के उ रदा य व का


वर के ऊपर, ससुराल वाल के ऊपर थाना तरण होना।
अब तक माता- पता क या के भरण-पोषण, वकास,
सुर ा, सुख-शा त, आन द-उ लास आ द का बंध
करते थे, अब वह ब ध वर और उसके कुटु बय को
करना होगा। क या नये घर म जाकर वरानेपन का
अनुभव न करने पाये, उसे नेह, सहयोग, स ाव क
कमी अनुभव न हो, इसका पूरा यान रखना होगा।
क यादान वीकार करते समय-पा ण हण क
ज मेदारी वीकार करते समय, वर तथा उसके
अ भभावक को यह बात भली कार अनुभव कर लेनी
चा हए क उ ह उस उ रदा य व को पूरी ज मेदारी के
साथ नबाहना है। क यादान का अथ यह नह क जस
कार कोई स प , कसी को बेची या दान कर द
जाती है, उसी कार लड़क को भी एक स प
समझकर कसी न कसी को चाहे जो उपयोग करने के
लए दे दया है। हर मनु य क एक वत स ा एवं
थ त है। कोई मनु य कसी मनु य को बेच या दान नह
कर सकता। फर चाहे वह पता ही य न हो। के
वत अ त व एवं अ धकार से इनकार नह कया जा
सकता, न उसे चुनौती द जा सकती है। लड़क हो या
लड़का अ भभावक को यह अ धकार नह क वे उ ह
बेच या दान कर। ऐसा करना तो ब चे के वत
व के त य को ही झुठलाना हो जाएगा।

ववाह उभयप ीय समझौता है, जसे वर और वधू दोन


ही पूरी ईमानदारी और न ा के साथ नवाह कर सफल
बनाते ह। य द कोई कसी को खरीद या बेची स प
के प म दे ख और उस पर पशु जैसा वा म व
अनुभव कर या वहार कर, तो यह मानवता के मूलभूत
अ धकार का हनन करना ही होगा। क यादान का यह
ता पय कदा प नह , उसका योजन इतना ही है क
क या के अ भभावक बा लका के जीवन को
सु व थत, सु वक सत एवं सुख-शा तमय बनाने क
ज मेदारी को वर तथा उसके अ भभावक पर छोड़ते ह,
जसे उ ह मनोयोगपूवक नबाहना चा हए। पराये घर म
प ँचने पर क ची उ क अनुभवहीन भावुक बा लका
को अखरने वाली मनोदशा म होकर गुजरना पड़ता है।
इस लए इस आर भक स धवेला म तो वशेष प से
वर प वाल को यह यास करना चा हए क हर
से वधू को अ धक नेह, सहयोग मलता रहे। क या प
वाल को भी यह नह सोच लेना चा हए क लड़क के
पीले हाथ कर दये, क यादान हो गया, अब तो उ ह कुछ
भी करना या सोचना नह है। उ ह भी लड़क के भ व य
को उ वल बनाने म योगदान दे ते रहना है। या और
भावना- क या के हाथ ह द से पीले करके माता- पता
अपने हाथ म क या के हाथ, गु तदान का धन और पु प
रखकर संक प बोलते ह और उन हाथ को वर के हाथ
म स प दे ते ह। वह इन हाथ को गंभीरता और ज मेदारी
के साथ अपने हाथ को पकड़कर वीकार- शरोधाय
करता है। भावना कर क क या वर को स पते ए उसके
अ भभावक अपने सम अ धकार को स पते ह। क या
के कुल गो अब पतृ पर परा से नह , प त पर परा के
अनुसार ह गे। क या को यह भावना मक पु षाथ करने
तथा प त को उसे वीकार करने या नभाने क श
दे वश याँ दान कर रही ह। इस भावना के साथ
क यादान का संक प बोला जाए। संक प पूरा होने पर
संक पक ार् क या के हाथ वर के हाथ म स प द।

अ े त.........नामाहं.........ना नीम् इमां


क यां/भ गन सु नातां यथाश अलंकृतां,
ग धा द - अ चता, व युग छ ां , जाप त
दै व यां, शतगुणीकृत, यो त ोम -अ तरा -
शतफल- ा तकामोऽहं ......... ना ने,
व णु पणे वराय, भरण-पोषण-
आ छादन -पालनाद नां , वक य
उ रदा य व-भारम्, अ खलं अ तव
पतनी वेन, तु यं अहं स ददे । वर उ ह
वीकार करते ए कह- ॐ व त।

गु तदान

क यादान के समय कुछ अंशदान दे ने क था है। आटे


क लोई म छपाकर कुछ धन क यादान के समय दया
जाता है। दहेज का यही व प है। ब ची के घर से वदा
होते समय उसके अ भभावक कसी आव यकता के
समय काम आने के लए उपहार व प कुछ धन दे ते ह,
पर होता वह गु त ही है। अ भभावक और क या के बीच
का यह नजी उपहार है। सर को इसके स ब ध म
जानने या पूछने क कोई आव यकता नह । दहेज के
प म या दया जाना चा हए, इस स ब ध म ससुराल
वाल को कहने या पूछने का कोई अ धकार नह । न
उसके दशन क आव यकता है, य क गरीब-अमीर
अपनी थ त के अनुसार जो दे , वह चचा का वषय नह
बनना चा हए, उसके साथ न दा- शंसा नह जुड़नी
चा हए। एक- सरे का अनुकरण करने लग, तप ा
पर उतर आएँ, तो इससे अनथ ही होगा। क या-प पर
अनु चत दबाव पड़ेगा और वर-प अ धक न मलने पर
अ स होने क धृ ता करने लगेगा। इस लए क यादान
के साथ कुछ धनदान का वधान तो है, पर रदशी
ऋ षय ने लोग क वाथपरता एवं ता क स भावना
को यान म रखते ए यह नयम बना दया है क जो
कुछ भी दहेज दया जाए, वह सवथा गु त हो, उस पर
कसी को चचा करने का अ धकार न हो।

आटे म साधारणतया एक पया इस दहेज तीक के


लए पया त है। यह धातु का लया जाए और आटे के
गोले के भीतर छपाकर रखा जाए।

गोदान
दशा ेरणा

गौ प व ता और परमाथ परायणता क तीक है। क या


प वर को ऐसा दान द, जो उ ह प व ता और परमाथ
क ेरणा दे ने वाला हो। स भव हो, तो क यादान के
अवसर पर गाय दान म द जा सकती है। वह क या के व
उसके प रवार के लोग के वा य क से उपयु
भी है। आज क थ त म य द गौ दे ना या लेना
असु वधाजनक हो, तो उसके लए कुछ धन दे कर गोदान
क प रपाट को जी वत रखा जा सकता है। या और
भावना- क यादान करने वाले हाथ म साम ी ल। भावना
कर क वर-क या के भावी जीवन को सुखी समु त
बनाने के लए ापूवक े दान कर रहे ह।
म ो चार के साथ साम ी वर के हाथ म द।

ॐ माता ाणां हता वसूनां,


वसा द यानाममृत य ना भः। नु वोचं
च कतुषे जनाय मा, गामनागाम द त
व ध ॥ -ऋ०८.१०.१.१५, पार०गृ०सू०
१.३.२७

मयादाकरण
दशा और ेरणा

क यादान-गोदान के बाद क यादाता वर से सत् पु ष


और दे व श य क सा ी म मयादा क वन अपील
करता है। वर उसे वीकार करता है। क या का
उ रदा य व वर को स पा गया है। ऋ षय ारा
नधा रत अनुशासन वशेष ल य के लए ह। अ धकार
पाकर उस मयादा को भुलकर मनमाना आचरण न
कया जाए। धम, अथ और काम क दशा म ऋ ष
णीत मयादा का उ लंघन अ धकार के नशे म न कया
जाए। यह नवेदन कया जाता है, जसे वर
स तापूवक वीकार करता है।

या और भावना

क यादान करने वाले अपने हाथ म जल, पु प, अ त ल।


भावना कर क वर को मयादा स प रहे ह। वर मयादा
वीकार कर, उसके पालन के लए दे व श य के
सहयोग क कामना करे।

ॐ गौर क या ममां पू य!
यथाश वभू षताम्। गो ाय शमण तु यं,
द ां दे व समा य॥ धम याचरणं स यक् ,
यतामनया सह। धमेर् चाथेर् च कामे च,
य वं ना तचरे वभ ॥ वर कह- ना तचरा म।

पा ण हण
दशा एवं ेरणा

वर ारा मयादा वीकारो के बाद क या अपना हाथ


वर के हाथ म स पे और वर अपना हाथ क या के हाथ म
स प दे । इस कार दोन एक सरे का पा ण हण करते
ह। यह या हाथ से हाथ मलाने जैसी होती है। मान
एक सरे को पकड़कर सहारा दे रहे ह । क यादान क
तरह यह वर-दान क या तो नह होती, फर भी उस
अवसर पर वर क भावना भी ठ क वैसी होनी चा हए,
जैसी क क या को अपना हाथ स पते समय होती है।
वर भी यह अनुभव कर क उसने अपने व का
अपनी इ छा, आकां ा एवं ग त व धय के संचालन का
के इस वधू को बना दया और अपना हाथ भी स प
दया। दोन एक सरे को आगे बढ़ाने के लए एक सरे
का हाथ जब भावनापूवक समाज के स मुख पकड़ ल,
तो समझना चा हए क ववाह का योजन पूरा हो गया।

या और भावना

नीचे लखे म के साथ क या अपना हाथ वर क ओर


बढ़ाये, वर उसे अँगठ
ू ा स हत (सम प से) पकड़ ले।
भावना कर क द वातावरण म पर पर म ता के
भाव स हत एक- सरे के उ रदा य व वीकार कर रहे
ह।

ॐ◌े यदै ष मनसा रं, दशोऽ नुपवमानो वा।


हर यपणोर् वै कणर्ः, स वा म मनसां
करोतु असौ॥ - पार०गृ०सू० १.४.१५

थब धन
दशा और ेरणा

वर-वधू ारा पा ण हण एक करण के बाद समाज ारा


दोन को एक गाँठ म बाँध दया जाता है। प े के छोर
बाँधने का अथ है-दोन के शरीर और मन से एक संयु
इकाई के प म एक नई स ा का आ वभाव होना। अब
दोन एक- सरे के साथ पूरी तरह बँधे ए ह।
थब धन म धन, पु प, वा, ह र ा और अ त यह
पाँच चीज भी बाँधते ह। पैसा इस लए रखा जाता है क
धन पर कसी एक का अ धकार नह रहेगा। जो कमाई
या स प होगी, उस पर दोन क सहम त से योजना
एवं व था बनेगी। वा का अथ है- कभी नजीव न
होने वाली ेम भावना। वा का जीवन त व न नह
होता, सूख जाने पर भी वह पानी डालने पर हरी हो
जाती है। इसी कार दोन के मन म एक- सरे के लए
अज ेम और आ मीयता बनी रहे। च -चकोर क
तरह एक- सरे पर अपने को यौछावर करते रह। अपना
क कम और साथी का क बढ़कर मान, अपने सुख
क अपे ा साथी के सुख का अ धक यान रख। अपना
आ त रक ेम एक- सरे पर उड़ेलते रह। ह र ा का अथ
है- आरो य, एक- सरे के शारी रक, मान सक वा य
को सु वक सत करने का यतन कर। ऐसा वहार न
कर, जससे साथी का वा य खराब होता हो या
मान सक उ े ग पैदा होता हो। अ त, सामू हक-
सामा जक व वध- वध उ रदा य व का मरण कराता
है। कुटु ब म कतने ही होते ह। उन सबका
समु चत यान रखना, सभी को सँभालना संयु प त-
प नी का परम पावन क है। ऐसा न हो क एक-
सरे को तो ेम कर, पर प रवार के लोग क उपे ा
करने लग। इसी कार प रवार से बाहर भी जन मानस
के सेवा क ज मेदारी हर भावनाशील मनु य पर रहती
है। ऐसा न हो क दो म से कोई कसी को अपने
गत वाथ सहयोग तक ही सी मत कर ले, उसे
समाज सेवा क सु वधा न दे । इस दशा म लगने वाले
समय व धन का वरोध करे। अ त इसी का संकेत
करता है क आप दोन एक- सरे के लए ही नह बने ह,
वरन् समाजसेवा का त एवं उ रदा य व भी आप लोग
के थब धन म एक मह वपूणर् ल य के पम
व मान है। पु प का अथ है, हँसते- खलते रहना। एक-
सरे को सुग धत बनाने के लए यश फैलाने और
शंसा करने के लए त पर रह। कोई कसी का सरे के
आगे न तो अपमान करे और न तर कार। इस कार
वा, पु प, ह र ा, अ त और पैसा इन पाँच को रखकर
दोन का थब धन कया जाता है और यह आशा क
जाती है क वे जन ल य के साथ आपस म बँधे ह, उ ह
आजीवन नर तर मरण रखे रहगे।

या और भावना-

थब धन, आचायर् या त न ध या कोई मा य


कर। प े के छोर एक साथ करके उसम मंगल-
रखकर गाँठ बाँध द जाए। भावना क जाए क मंगल
के मंगल सं कार स हत दे वश य के समथन
तथा ने हय क स ावना के संयु भाव से दोन इस
कार जुड़ रहे ह, जो सदा जुड़े रहकर एक- सरे क
जीवन ल य या ा म पूरक बनकर चलगे-

ॐ समंज तु व ेदेवाः, समापो दया न नौ।


सं मात र ा सं धाता, समुदे ी दधातु नौ॥ -
ऋ०१०.८५.४७, पार०गृ०सू० १.४.१४
वर-वधू क त ाएँ
दशा और ेरणा

कसी भी मह वपूण पद हण के साथ शपथ हण


समारोह भी अ नवाय प से जुड़ा रहता है। क यादान,
पा ण हण एवं थ-ब धन हो जाने के साथ वर-वधू
ारा और समाज ारा दा प य सू म बँधने क
वीकारो हो जाती है। इसके बाद अ न एवं दे व-
श य क सा ी म दोन को एक संयु इकाई के प
म ढालने का म चलता है। इस बीच उ ह अपने क
धम का मह व भली कार समझना और उसके पालन
का संक प लेना चा हए। इस दशा म पहली ज मेदारी
वर क होती है। अ तु, पहले वर तथा बाद म वधू को
त ाएँ कराई जाती ह।

या और भावना-
वर-वधू वयं त ाएँ पढ़, य द स भव न हो, तो आचाय
एक-एक करके त ाएँ ा या स हत समझाएँ।

वर क त ाएँ

धमप न म ल वैव, ेकं जीवनामावयोः। अ ार भ


यतो म वम्, अ ा गनी त घो षता ॥१॥ आज से
धमप नी को अ ा गनी घो षत करते ए, उसके साथ
अपने व को मलाकर एक नये जीवन क सृ
करता ँ। अपने शरीर के अंग क तरह धमपतनी का
यान रखूँगा।

वीकरो म सुखेन वां, गृहल मीमह ततः। म य वा


वधा या म, सुकाया ण वया सह॥२॥ स तापूवक
गृहल मी का महान अ धकार स पता ँ और जीवन के
नधारण म उनके परामश को मह व ँ गा।
प- वा य- वभावा तु, गुणदोषाद न् सवतः। रोगा ान-
वकारां , तव व मृ य चेतसः॥३॥ प, वा य,
वभावगत गुण दोष एवं अ ानज नत वकार को च
म नह रखूँगा, उनके कारण अस तोष नह
क ँ गा। नेहपूवक सुधारने या सहन करते ए
आ मीयता बनाये रखूँगा।

सहचरो भ व या म, पूण नहः दा यते। स यता मम


न ा च, य याधारं भ व य त॥४॥ प नी का म बनकर
र ँगा और पूरा-पूरा नेह दे ता र ँगा। इस वचन का
पालन पूरी न ा और स य के आधार पर क ँ गा।

यथा प व च ेन, पा त य वया धृतम्। तथैव


पाल य या म, पतनी तमहं ुवम्॥५॥ प नी के लए
जस कार प त त क मयादा कही गयी है, उसी ढ़ता
से वयं पतनी त धम का पालन क ँ गा। च तन और
आचरण दोन से ही पर नारी से वासना मक स ब ध
नह जोडू ँगा।

गृह याथ व थायां, म य वा वया सह। संचालनं


क र या म, गृह थो चत-जीवनम्॥६॥ गृह व था म
धम-प नी को धानता ँ गा। आमदनी और खच का
म उसक सहम त से करने क गृह थो चत
जीवनचयार् अपनाऊँग।

समृ -सुख-शा तीनां, र णाय तथा तव। व थां वै


क र या म, वश वैभवा द भ॥७॥ धमप नी क सुख-
शा त तथा ग त-सुर ा क व था करने म अपनी
श और साधन आ द को पूरी ईमानदारी से लगाता
र ँगा।

यतनशीलो भ व या म, स मागर्ंसे वतुं सदा। आवयोः


मतभेदां , दोषा संशो य शा ततः॥८॥ अपनी ओर से
मधुर भाषण और े वहार बनाये रखने का पूरा-पूरा
यतन क ँ गा। मतभेद और भूल का सुधार शा त के
साथ क ँ गा। कसी के सामने पतनी को लां छत-
तर कृत नह क ँ गा।

भव यामसमथाया, वमुखायांच कम ण। व ासं


सहयोगंच, मम ा य स वं सदा॥९॥ प नी के असमथ
या अपने क से वमुख हो जाने पर भी अपने
सहयोग और क पालन म र ी भर भी कमी न
रखूँगा।

क या क त ाएँ

वजीवनं मेल य वा, भवतः खलु जीवने। भू वा


चाधार्ं गनी न यं, नव या म गृहे सदा॥१॥ अपने
जीवन को प त के साथ संयु करके नये जीवन क
सृ क ँ गी। इस कार घर म हमेशा स चे अथ म
अ ा गनी बनकर र ँगी।

श तापूवक सवैर्ः, प रवारजनैः सह। औदायेण


वधा या म, वहारं च कोमलम्॥२॥ प त के प रवार
के प रजन को एक ही शरीर के अंग मानकर सभी के
साथ श ता बरतूँगी, उदारतापूवक सेवा क ँ गी, मधुर
वहार क ँ गी।

य वाल यं क र या म, गृहकायेर् प र मम्। भतुहषर्ं


ह ा या म, वीयामेव स ताम्॥३॥ आल य को
छोड़कर प र मपूवक गृह काय क ँ गी। इस कार प त
क ग त और जीवन वकास म समु चत योगदान
क ँ गी।

या पाल य या म, धमर्ं पा त तं परम्।


सवदवानुकू येन, प युरादे शपा लका॥४॥ प त त धम
का पालन क ँ गी, प त के त ा-भाव बनाये
रखकर सदै व उनके अनूकूल र ँगी। कपट- राव न
क ँ गी, नदे श के अ वल ब पालन का अ यास
क ँ गी।

सु ूषणपरा व छा, मधुर- यभा षणी। तजाने


भ व या म, सततं सुखदा यनी॥५॥ सेवा, व छता तथा
यभाषण का अ यास बनाये रखूँगी। ई या, कुढ़न
आ द दोष से बचूँगी और सदा स ता दे ने वाली
बनकर र ँगी।

मत येन गाह य-संचालने ह न यदा। य त ये च


सो साहं, तवाहमनुगा मनी॥६॥ मत यी बनकर
फजूलखच से बचूँगी। प त के असमथ हो जाने पर भी
गृह थ के अनुशासन का पालन क ँ गी।
दे व व पो नारीणां, भ ार् भव त मानवः। म वे त वां
भ ज या म, नयता जीवनाव धम्॥७॥ नारी के लए
प त, दे व व प होता है- यह मानकर मतभेद भुलाकर,
सेवा करते ए जीवन भर स य र ँगी, कभी भी प त
का अपमान न क ँ गी।

पू या तव पतरो ये, या परमा ह मे। सेवया


तोष य या म, ता सदा वनयेन च॥८॥ जो प त के पू य
और ा पा ह, उ ह सेवा ारा और वनय ारा सदै व
स तु रखूँगी।

वकासाय सुसं कारैः, सू ैः स ावव भः।


प रवारसद यानां, कौशलं वकसा यहम्॥९॥ प रवार के
सद य म सुसं कार के वकास तथा उ ह स ावना के
सू म बाँधे रहने का कौशल अपने अ दर वक सत
क ँ गी।
ाय त होम
दशा एवं ेरणा

गाय ी म क आ त के प ात् पाँच आ तयाँ


ाय त होम क अ त र प से द जाती है। वर और
क या दोन के हाथ म हवन साम ी द जाती है।
ाय त होम क आ तयाँ दे ते समय यह भावना दोन
के मन म आनी चा हए क दा प य जीवन म बाधक जो
भी कुसं कार अब तक मन म रहे ह , उन सब को वाहा
कया जा रहा है। कसी से गृह थ के आदश के
उ लंघन करने क कोई भूल ई हो, तो उसे अब एक
व जैसी बात समझकर व मरण कर दया जाए। इस
कार क भूल के कारण कोई कसी को न तो दोष दे , न
स दे ह क से दे खे। इसी कार कोई अ य नशेबाजी
जैसा सन रहा हो या वभाव म कठोरता,
वाथपरता, अहंकार जैसी कोई ु ट रही हो, तो उसका
याग कर दया जाए। साथ ही, उन भूल का ाय त
करते ए भ व य म कोई ऐसी भूल न करने का संक प
भी करना है, जो दा प य जीवन क ग त म बाधा
उ प करे।

या और भावना

वर-वधू हवन साम ी से आ त कर। भावना कर क


ाय त आ त के साथ पूव कृ य क धुलाई हो रही
है। वाहा के साथ आ त डाल, इदं न मम के साथ हाथ
जोड़कर नम कार कर

ॐ वं नो अ ने व ण य व ान्, दे व य हेडो
अव या ससी ाः। य ज ो व तमः
शोशुचानो , व ा े षा स मुमु य मत्
वाहा। इदम नीव णा यां इदं न मम॥
-२१.३ ॐ स वं नो अ नेऽवमो भवोती,
ने द ो अ या ऽ उषसो ु ौ। अव य व नो
व ण रराणो, वी ह मृडीक सुहवो न ऽ ए ध
वाहा। इदम नीव णा यां इदं न मम॥
-२१.४ ॐ अया ा नेऽ य , न भश तपा ,
स य म वमयाऽ अ स। अया नो य ं
वहा यया , नो धे ह भेषज वाहा। इदम नये
अयसे इदं न मम। -का० ौ०सू० २५.१.११
ॐ ये ते शतं व ण ये सह ं, य याः पाशा
वतता महा तः, ते भनोर्ऽअ स वतोत
व णुः, व े मुंच तु म तः वकार्ः वाहा।
इदं व णायस व े व णवे व े यो दे वे यो
म द् यः वके य इदं न मम। -का० ौ०
सू० २५.१.११ ॐ उ मं व ण
पाशम मदवाधमं , वम यम थाय। अथा
वयमा द य ते तवानागसो, अ दतये याम
वाहा। इदं व णाया द याया दतये च इदं न
मम। -१२.१२

शलारोहण
दशा एवं ेरणा

शलारोहण के ारा प थर पर पैर रखते ए त ा


करते ह क जस कार अंगद ने अपना पैर जमा दया
था, उसी तरह हम प थर क लक र क तरह अपना पैर
उ रदा य व को नबाहने के लए जमाते ह। यह
धमकृ य खेल- खलौने क तरह नह कया जा रहा,
जसे एक मखौल समझकर तोड़ा जाता रहे, वरन् यह
त ाएँ प थर क लक र क तरह अ मट बनी रहगी, ये
च ान क तरह अटू ट एवं चर थाई रखी जायगी।

या और भावना

म बोलने के साथ वर-वधू अपने दा हने पैर को शला


पर रख, भावना कर क उ रदा य व के नवाह करने
तथा बाधा को पार करने क श हमारे संक प और
दे व अनु ह से मल रही है। ॐ आरोहेमम मानम् अ मेव
वं थरा भव। अ भ त पृत यतोऽ, वबाध व
पृतनायतः॥ पार०गृ०सू० १.७.१

लाजाहोम एवं प र मा (भाँवर)


ाय त आ त के बाद लाजाहोम और य ा न क
प र मा (भाँवर) का मला-जुला म चलता है।
लाजाहोम के लए क या का भाई एक थाली म खील
(भुना आ धान) लेकर पीछे खड़ा हो। एक मु खील
अपनी ब हन को दे । क या उसे वर को स प दे । वर उसे
आ तम के साथ हवन कर दे । इस कार तीन बार
कया जाए। क या तीन बार भाई के ारा दये ए
खील को अपने प त को दे , वह तीन बार हवन म अपण
कर दे । लाजाहोम म भाई के घर से अ (खील के प
म) ब हन को मलता है, उसे वह अपने प त को स प
दे ती है। कहती है बेशक मेरे गत उपयोग के लए
पता के घर से मुझे कुछ मला है, पर उसे म छपाकर
अलग से नह रखती, आपको स पती ँ।अलगाव या
छपाव का भाव कोई मन म न आए, इस लए जस
कार प त कुछ कमाई करता है, तो प नी को स पता है,
उसी कार प नी भी अपनी उपल धय को प त के
हाथ म स पती है। प त सोचता है, हम लोग हाथ-पैर से
जो कमायगे, उसी से अपना काम चलायगे, कसी के
उदारतापूवक दये ए अनुदान को बना म कये
खाकर य हम कसी के ऋणी बन। इस लए प त उस
लाजा को अपने खाने के लए नह रख लेता, वरन् य
म होम दे ता है। जन क याण के लए उस पदाथ को
वायुभूत बनाकर संसार के वायुम डल म बखेर दे ता है।
इस या म यहाँ महान मानवीय आदश स हत है क
मु त का माल या तो वीकार ही न कया जाय या मले
भी तो उसे लोक हत म खच कर दया जाए। लोग
अपनी-अपनी नज क पसीने क कमाई पर ही गुजर-
बसर कर। मृतक भोज के पीछे भी यही आदशवा दता
थी क पता के ारा उ रा धकार म मले ए धन को
लड़के अपने काम म नह लेते थे, वरन् समाजसेवी
ा ण के नवाह म या अ य पु यकाय म खच कर
डालते थे। यही दहेज के स ब ध म भी ठ क है। पता के
गृह से उदारतापूवक मला, सो उनक भावना सराहनीय
है, पर आपक भी तो कुछ भावना होनी चा हए। मु त
का माल खाते ए कसी कमाऊ मनु य का गैरत आना
वाभा वक है। उसका यह सोचना ठ क ही है क बना
प र म का धन, वह भी दान क उदार भावना से दया
आ उसे पचेगा नह , इस लए उपहार को जन मंगल के
कायर् म, परमाथ य म आ त कर दे ना ही उ चत है।
इसी उ े य से प नी के भाई के ारा दये गये लाजा को
वह य काय म लगा दे ता है। दहेज का ठ क उपयोग
यही है, था भी है क ववाह के अवसर पर वर प क
ओर से ब त सा दान-पु य कया जाता है। अ छा हो जो
कुछ मले, वह सबको ही दान कर दे । ववाह के समय
ही नह , अ य अवसर पर भी य द कभी कसी से कुछ
ऐसा ही बना प र म का उपहार मले, तो उसके
स ब ध म एक नी त रहनी चा हए क मु त का माल
खाकर हम परलोक के ऋणी न बनगे, वरन् ऐसे अनुदान
को परमाथ म लगाकर उस उदार पर परा को अपने म न
रोककर आगे जन क याण के लए बढ़ा दगे। कहाँ
भारतीय सं कृ त क उदार भावना और कहाँ आज के
धन लोलुप ारा क या प क आँत नोच डालने वाली
दहेज क पैशा चक माँग, दोन म जमीन-आसमान का
अंतर है। जसने अपने दय का, आ मा का टु कड़ा
क या दे द , उनके त वर प का रोम-रोम कृत होना
चा हए और यह सोचना चा हए क इस अलौ कक
उपहार के बदले म कस कार अपनी ा-स ावना
कर। यह न होकर उ टे जब क या प को दबा
आ समझ कर उसे तरह-तरह से सताने और चूसने क
योजना बनाई जाती है, तो यही समझना चा हए क
भारतीय पर पराएँ ब कुल उ ट हो गय । धम के थान
पर अधम, दे व व के थान पर असुरता का सा ा य छा
गया। लाजाहोम वतमान काल क ु मा यता को
ध कारता है और दहेज के स ब ध म सही कोण
अपनाने क ेरणा दे ता है।

प र मा
अ न क प त-पतनी प र मा कर। बाय से दाय क
ओर चल। पहली चार प र मा म क या आगे रहे
और वर पीछे । चार प र मा हो जाने पर लड़का आगे हो
जाए और लड़क पीछे । प र मा के समय प र मा
म बोला जाए तथा हर प र मा पूरी होने पर एक-एक
आ त वर-वधू गाय ी म से करते चल, इसका
ता पयर् है- घर-प रवार के काय म लड़क का नेतृ व
रहेगा, उसके परामश को मह व दया जाएगा, वर उसका
अनुसरण करेगा, य क उन काम का नारी को अनुभव
अ धक होता है। बाहर के काय म वर नेतृ व करता है
और नारी उसका अनुसरण करती है, य क
ावसा यक े म वर का अनुभव अ धक होता है।
जसम जस दशा क जानकारी कम हो, सरे म उसक
जानकारी बढ़ाकर अपने समतु य बनाने म यतनशील
रह। भावना े म नारी आगे ह, कम े म पु ष। दोन
प अपने-अपने थान पर मह वपूण ह। कुल मलाकर
नारी का वच व, पद, गौरव एवं वजन बड़ा बैठता है।
इस लए उसे चार प र मा करने और नर को तीन
प र मा करने का अवसर दया जाता है। गौरव के
चुनाव के ४ वोट क या को और ३ वोट वर को मलते ह।
इस लए सदा नर से पहला थान नारी को मला है।
सीताराम, राधे याम, ल मीनारायण, उमामहेश आ द
यु म म पहले नारी का नाम है, पीछे नर का।

या और भावना

लाजा होम और प र मा का मला-जुला म चलता है।


शलारोहण के बाद वर-वधू खड़े-खड़े गाय ी म से
एक आ त सम पत कर। अब म के साथ प र मा
कर। वधू आगे, वर पीछे चल। एक प र मा पूरी होने पर
लाजाहोम क एक आ त कर। आ त करके सरी
प र मा पहले क तरह म बोलते ए कर। इसी
कार लाजाहोम क सरी आ त करके तीसरी
प र मा तथा तीसरी आ त करके चौथी प र मा कर।
इसके बाद गाय ी म क आ त दे ते ए तीन
प र माएँ वर को आगे करके प र मा म बोलते ए
कराई जाएँ। आ त के साथ भावना कर क बाहर
य ीय ऊजा तथा अंतःकरण म य ीय भावना ती तर हो
रही है। प र मा के साथ भावना कर क य ीय
अनुशासन को के मानकर, य ा न को सा ी करके
आदश दा प य के नवाह का संक प कर रहे ह।

लाजाहोम

ॐ अयमणं दे वं क या अ नमय त। स नोऽअयमा दे वः


ेतो मुंचतु, मा पतेः वाहा। इदम् अय ण अ नये इदं न
मम॥ ॐ इयं नायुप ूते लाजा नावप तका।
आयु मान तु म प तरेध तां, ातयो मम वाहा। इदम्
अ नये इदं न मम॥ ॐ इमाँ लाजानावपा य नौ,
समृ करणं तव। मम तु यं च संवननं,
तद नरनुम यता मय वाहा। इदं अ नये इदं न मम॥ -
पार०गृ०सू० १.६.२ ॥ प र मा म ॥ ॐ तु यम ने
पयवह सूयार्ं वहतु ना सह। पुनः प त यो जायां दा,
अ ने जया सह॥ -ऋ०१०.८५.३८, पार०गृ०सू० १.७.३

स तपद
दशा और ेरणा भाँवर फर लेने के उपरा त स तपद
क जाती है। सात बार वर-वधू साथ-साथ कदम से
कदम मलाकर फौजी सै नक क तरह आगे बढ़ते ह।
सात चावल क ढे री या कलावा बँधे ए सकोरे रख दये
जाते ह, इन ल य- च को पैर लगाते ए दोन एक-
एक कदम आगे बढ़ते ह, क जाते ह और फर अगला
कदम बढ़ाते ह। इस कार सात कदम बढ़ाये जाते ह।
येक कदम के साथ एक-एक म बोला जाता है।
पहला कदम अ के लए, सरा बल के लए, तीसरा
धन के लए, चौथा सुख के लए, पाँचवाँ प रवार के
लए, छठवाँ ऋतुचया के लए और सातवाँ म ता के
लए उठाया जाता है। ववाह होने के उपरा त प त-
पतनी को मलकर सात काय म अपनाने पड़ते ह।
उनम दोन का उ चत और याय संगत योगदान रहे,
इसक परेखा स तपद म नधा रत क गयी है।

थम कदम अ वृ के लए है। आहार वा यवधक


हो, घर म चटोरेपन को कोई थान न मले। रसोई म जो
बने, वह ऐसा हो क वा य र ा का योजन पूरा करे,
भले ही वह वा द न हो। अ का उ पादन, अ क
र ा, अ का स पयोग जो कर सकता है, वही सफल
गृह थ है। अ धक पका लेना, जूठन छोड़ना, बतन खुले
रखकर अ क चूह से बबाद कराना, मचर्-मसालो
क भरमार उसे तमोगुणी बना दे ना, व छता का यान न
रखना, आ द बात से आहार पर ब त खच करते ए भी
वा य न होता है, इस लए दा प य जीवन का
उ रदा य व यह है क आहार क सा वकता का
समु चत यान रखा जाए।

सरा कदम शारी रक और मान सक बल क वृ के


लए है। ायाम, प र म, उ चत एवं नय मत आहार-
वहार से शरीर का बल थर रहता है। अ ययन एवं
वचार- वमश से मनोबल बढ़ता है। जन यतन से
दोन कार के बल बढ, दोन अ धक समथ, व थ एवं
सश बन-उसका उपाय सोचते रहना चा हए।

तीसरा कदम धन क वृ के लए है। अथ व था


बजट बनाकर चलाई जाए। अप य म कानी कौड़ी भी
न न होने पाए। उ चत काय म कंजूसी न क जाए-
फैशन, सन, शेखीखोरी आ द के लए पैसा खच न
करके उसे पा रवा रक उ त के लए सँभालकर,
बचाकर रखा जाए। उपाजन के लए प त-प नी दोन ही
यतन कर। पु ष बाहर जाकर कृ ष, वसाय, नौकरी
आ द करते ह, तो याँ सलाई, धुलाई, सफाई आ द
करके इस तरह क कमाई करती ह। उपाजन पर जतना
यान रखा जाता है, खच क मयादा का भी वैसा ही
यान रखते ए घर क अथ व था सँभाले रहना
दा प य जीवन का अ नवाय क है।

चौथा कदम सुख क वृ के लए है। व ाम,


मनोरंजन, वनोद, हास-प रहास का ऐसा वातावरण रखा
जाए क गरीबी म भी अमीरी का आन द मले। दोन
स च रह। मु कराने क आदत डाल, हँसते-हँसाते
ज दगी काट। च को हलका रख, 'स तोषी सदा
सुखी' क नी त अपनाएँ।
पाँचवाँ कदम प रवार पालन का है। छोटे बड़े सभी के
साथ समु चत वहार रखा जाए। आ त पशु एवं
नौकर को भी प रवार माना जाए, इस सभी आ त क
समु चत दे खभाल, सुर ा, उ त एवं सुख-शा त के
लए सदा सोचने और करने म लापरवाही न बरती जाए।

छठा कदम ऋतुचया का है। स तानो पादन एक


वाभा वक वृ है, इस लए दा प य जीवन म उसका
भी एक थान है, पर उस स ब ध म मयादा का पूरी
कठोरता एवं सतकता से पालन कया जाए, य क
असंयम के कारण दोन के वा य का सवनाश होने क
आशंका रहती है, गृह थ म रहकर भी चय का
समु चत पालन कया जाए। दोन एक सरे का भी
सहयोगी म क से दे ख, कामुकता के सवनाशी
संग को जतना स भव हो, र रखा जाए। स तान
उ प करने से पूव हजार बार वचार कर क अपनी
थ त स तान को सुसं कृत बनाने यो य है या नह । उस
मयादा म स तान उ प करने क ज मेदारी वहन कर।

सातवाँ कदम म ता को थर रखने एवं बढ़ाने के लए


है। दोन इस बात पर बारीक से वचार करते रह क
उनक ओर से कोई ु ट तो नह बरती जा रही है,
जसके कारण साथी को या असंतु होने का
अवसर आए। सरा प कुछ भूल भी कर रहा हो, तो
उसका उ र कठोरता, ककशता से नह , वरन् स जनता,
स दयता के साथ दया जाना चा हए, ता क उस
महानता से दबकर साथी को वतः ही सुधरने क
अ तः ेरणा मले। बाहर के लोग के साथ, के साथ
ता क नी त कसी हद तक अपनाई जा सकती है,
पर आ मीयजन का दय जीतने के लए उदारता, सेवा,
सौज य, मा जैसे श क काम म लाये जाने चा हए।
स तपद म सात कदम बढ़ाते ए इन सात सू को
दयंगम करना पड़ता है। इन आदश और स ा त को
य द प त-प नी ारा अपना लया जाए और उसी माग
पर चलने के लए कदम से कदम बढ़ाते ए अ सर होने
क ठान ली जाए, तो दा प य जीवन क सफलता म
कोई स दे ह ही नह रह जाता।

या और भावना वर-वधू खड़े ह । येक कदम बढ़ाने


से पहले दे व श य क सा ी का म बोला जाता है,
उस समय वर-वधू हाथ जोड़कर यान कर। उसके बाद
चरण बढ़ाने का म बोलने पर पहले दायाँ कदम
बढ़ाएँ। इसी कार एक-एक करके सात कदम बढ़ाये
जाएँ। भावना क जाए क योजनाब - ग तशील
जीवन के लए दे व सा ी म संक पत हो रहे ह, संक प
और दे व अनु ह का संयु लाभ जीवन भर मलता
रहेगा।
(१) अ वृ के लए पहली सा ी- ॐ एको
व णुजग सवर्ं, ा तं येन चराचरम्। दये य ततो
य य, त य सा ी द यताम्॥ पहला चरण- ॐ इष
एकपद भव सा मामनु ता भव। व णु वानयतु पु ान्
व दावहै, ब ँ ते स तु जरद यः॥१॥

(२) बल वृ के लए सरी सा ी- ॐ जीवा मा


परमा मा च, पृ वी आकाशमेव च। सूयच योम य,
त य सा ी द यताम्॥२॥ सरी चरण- ॐ ऊजेर्
पद भव सा मामनु ता भव। व णु वानयतु पु ान्
व दावहै, ब ँ ते स तु जरद यः॥२॥

(३) धन वृ के लए तीसरी सा ी- ॐ गुणा


दे वा , श ः स परायणाः। लोक ये स यायाः,
त य सा ी द यताम्। तीसरा चरण- ॐ राय पोषाय
पद भव सा मामनु ता भव। व णु वानयतु पु ान्
व दावहै, ब ँ ते स तु जरद यः॥३॥

(४) सुख वृ के लए चौथी सा ी- ॐ चतुम◌र्ुख ततो


ा, च वारो वेदसंभवाः। चतुयुगाः वत त, तेषां सा ी
द यताम्। चौथा चरण- ॐ मायो भवाय चतु पद भव
सा मामनु ता भव। व णु वानयतु पु ान् व दावहै,
ब ँ ते स तु जरद यः॥४॥

(५) जा पालन के लए पाँचवी सा ी- ॐ पंचमे


पंचभूतानां, पंच ाणैः परायणाः। त दशनपु यानां,
सा णः ाणपंचधाः॥ पाँचवाँ चरण- ॐ जा यां
पंचपद भव सा मामनु ता भव। व णु वानयतु पु ान्
व दावहै, ब ँ ते स तु जरद यः॥५॥

(६) ऋतु वहार के लए छठव सा ी- ॐ ष े तु


षड् ऋतूणां च, ष मुखः वा मका तकः। ष सा य
जाय ते, का तकया सा णः॥ छठवाँ चरण- ॐ
ऋतु यः षट् पद भव सा मामनु ता भव।
व णु वानयतु पु ान् व दावहै, ब ँ ते स तु जरद यः॥
६॥

(७) म ता वृ के लए सातव सा ी- ॐ स तमे


सागरा ैव, स त पाः सपवताः। येषां स त षपतनीनां,
तेषामादशसा णः॥ सातवाँ चरण- ॐ सखे स तपद
भव सा मामनु ता भव। व णु वानयतु पु ान् व दावहै,
ब ँ ते स तु जरद यः॥७॥ -पार०गृ०सू० १.८.१-२,
आ०गृ०सू० १.७.१९

आसन प रवतन
स तपद के प ात् आसन प रवतन करते ह। तब तक
वधू दा हनी ओर थी अथात् बाहरी जैसी थ त म
थी। अब स तपद होने तक क त ा म आब हो
जाने के उपरा त वह घर वाली अपनी आ मीय बन
जाती है, इस लए उसे बाय ओर बैठाया जाता है। बाय
से दाय लखने का म है। बायाँ थम और दा हना
तीय माना जाता है। स तपद के बाद अब प नी को
मुखता ा त हो गयी। ल मी-नारायण्, उमा-महेश,
सीता-राम, राधे- याम आ द नाम म प नी को थम,
प त को तीय थान ा त है। दा हनी ओर से वधू का
बाय ओर आना, अ धकार ह तांतरण है। बाय ओर के
बाद पतनी गृह थ जीवन क मुख सू धार बनती है।
ॐ इह गावो नषीद तु, इहा ा इह पू षाः। इहो
सह द णो य , इह पूषा नषीदतु॥ -पा०गृ०सू०
१.८.१०

पाद ालन
आसन प रवतन के बाद गृह था म के साधक के पम
वर-वधू का स मान पाद ालन करके कया जाता है।
क या प क ओर त न ध व प कोई द प त या
अकेले पाद ालन करे। पाद ालीन करने
वाल का प व ीकरण- सचन कया जाए। हाथ म ह द ,
वार्, थाली म जल लेकर ालन कर। थम म के
साथ तीन बार वर-वधू के पैर पखार, फर सरे म के
साथ यथा ा भट द। ॐ या ते प त नी जा नी
पशु नी, गृह नी यशो नी न दता, तनूजार न
ततऽएनांकरो म, सा जीयर् वां मया सह॥ -पार०गृ०सू०
१.११ ॐ णा शालां न मतां, क व भ न मतां मताम्।
इ ा नी र तां शालाममृतौ सो यं सदः॥ -अथवर्०
९.३.१९

ुव-सूय यान
ुव थर तारा है। अ य सब तारागण ग तशील रहते ह,
पर ुव अपने न त थान पर ही थर रहता है। अ य
तारे उसक प र मा करते ह। ुव दशन का अथ है-
दोन अपने-अपने परम प व क पर उसी तरह ढ़
रहगे, जैसे क ुव तारा थर है। कुछ कारण उ प होने
पर भी इस आदश से वच लत न होने क त ा को
नभाया जाए, त को पाला जाए और संक प को पूरा
कया जाए। ुव थर च रहने क ओर, अपने
क पर ढ़ रहने क ेरणा दे ता है। इसी कार सूय
क अपनी खरता, तेज वता, मह ा सदा थर रहती
है। वह अपने नधा रत पथ्◌ा पर ही चलता है, यही हम
करना चा हए। यही भावना प त-प नी कर।

सूय यान ( दन म)

ॐ त च ुदेव हतं पुर ता छु मु चरत्। प येम शरदः


शतं, जीवेम शरदः शतं, शृणुयाम शरदः शतं, वाम
शरदः शतमद नाः, याम शरदः शतं, भूय शरदः
शतात्। -३६.२४

ुव यान (रात म) ॐ ुवम स ुवं वा प या म, ुवै ध


पो ये म य। म ं वादात् बृह प तमयाप या, जावती
संजीव शरदः शतम्। -पार०गृ०सू० १.८.१९

शपथ आ ासन
प त-प नी एक सरे के सर पर हाथ रखकर समाज के
सामने शपथ लेते ह, एक आ ासन दे कर अ तम त ा
करते ह क वे न संदेह न त प से एक- सरे को
आजीवन ईमानदार, न ावान् और वफादार रहने का
व ास दलाते ह। पछले दन पु ष का वहार
य के साथ छली-कपट और व ासघा तय जैसा
रहा है। प, यौवन के लोभ म कुछ दन मीठ बात करते
ह, पीछे ू रता एवं ता पर उतर आते ह। पग-पग पर
उ ह सताते और तर कृत करते ह। त ा को
तोड़कर आ थक एवं चा र क उ छृ ं खलता बरतते ह
और प नी क इ छा क परवाह नह करते। समाज म
ऐसी घटनाएँ कम घ टत नह होत । ऐसी दशा म ये
त ाएँ औपचा रकता मा रह जाने क आशंका हो
सकती है। स तान न होने पर लड़ कयाँ होने पर लोग
सरा ववाह करने पर उता हो जाते ह। प त सर पर
हाथ रखकर कसम खाता है क सरे रा मा क
ेणी म उसे न गना जाए। इस कार प नी भी अपनी
न ा के बारे म प त को इस शपथ- त ा ारा व ास
दलाती है।

ॐ मम ते ते दयं दधा म, मम च मनु च ं ते अ तु।


मम वाचमेकमना जुष व, जाप त ् वा नयुन ु म म्।
- पार०गृ०सू०१.८.८ ॥ सुमंगली- स रदान॥ म के
साथ वर अँगठ
ू से वधू क माँग म स र तीन बार
लगाए। भावना कर क म वधू के सौभा य को बढ़ाने
वाला स होऊँ- ॐ सुमंगली रयं वधू रमा समेत
प यत। सौभा यम यै द वा याथा तं वपरेतन। सुभगा
ी सा व याा तव सौभा यं भवतु। -पार०गृ०सू० १.८.९

मंगल तलक
वधू वर को मंगल तलक करे। भावना करे क प त का
स मान करते ए गौरव को बढ़ाने वाली स होऊ ॐ
व तये वायुमुप वामहै, सोमं व त भुवन य य प तः।
बृह प त सवगणं व तये, व तयऽ आ द यासो भव तु
नः॥ -ऋ० ५.५१.१२

इसके प ात् व कृत होम, पूणा त, वसोधारा,


आरती, घृत-अव ाण, भ म धारण, मा ाथना आ द
कृ य स प कर।
अ भषेक सचन वर-क या को बठाकर कलश का जल
लेकर उनका सचन कया जाए। भावना क जाए क
जो सुसं कार बोये गये ह, उ ह द जल से स चत
कया जा रहा है। सबके स ाव से उनका वकास होगा
और सफलता-कुशलता के क याण द सुफल उनम
लगगे। पु प वषा के प म सभी अपनी शुभकामनाएँ-
आ शीवाद दान कर- गणप तः ग रजा वृषभ वजः,
ष मुखो न द मुख डम डमा। मनुज-माल- शूल-
मृग वचः, त दनं कुशलं वरक ययोः॥१॥ र वशशी-
कुज इ -जग प तः, भृगज
ु -भानुज- स धुज-केतवः।
उडु गणा- त थ-योग च राशयः, त दनं कुशलं
वरक ययोः॥२॥ व ण-इ कुबेर- ताशनाः, यम-
समीरण-वारण-कं◌ुजराः। सुरगणाः सुरा महीधराः,
त दनं कुशलं वरक ययोः॥३॥ सुरसरी-र वन द न-
गोमती, सरयुताम प सागर-घघरा। कनकयाम य-
ग ड क-नमदा, त दनं कुशलं वरक ययोः॥४॥
ह रपुरी-मथुरा च वे णका, बद र- व णु-बटे र-
कौशला। मय-गयाम प-ददर- ारका, त दनं कुशलं
वरक ययोः॥५॥ भृगम
ु ु न पुल त च अं गरा,
क पलव तु-अग य च नारदः। गु वस्◌ा -सनातन-
जै मनी, त दनं कुशलं वरक ययोः॥६॥ ऋ वेदोऽथ
यजुवेदः, सामवेदो थवणः। र तु चतुरो वेदा,
याव च दवाकरौ॥

इसके बाद वसजन और आशीवचन के पु प दान कर


कृ य समा त कया जाए।

ववाह के कार
1. ववाह

दोनो प क सहम त से समान वग के सुयो वर से


क या का ववाह न त कर दे ना ' ववाह' कहलाता
है। सामा यतः इस ववाह के बाद क या को
आभूषणयु करके वदा कया जाता है। आज का
" व था ववाह" ' ववाह' का ही प है।

2. दै व ववाह

कसी सेवा काय ( वशेषतः धा मक अनु ान) के मू य


के प अपनी क या को दान म दे दे ना 'दै व ववाह'
कहलाता है।

3. आश ववाह

क या-प वाल को क या का मू य दे कर (सामा यतः


गौदान करके) क या से ववाह कर लेना 'अश ववाह'
कहलाता है।

4. जाप य ववाह
क या क सहम त के बना उसका ववाह अ भजा य
वग के वर से कर दे ना ' जाप य ववाह' कहलाता है।

5. गंधव ववाह

प रवार वाल क सहम त के बना वर और क या का


बना कसी री त- रवाज के आपस म ववाह कर लेना
'गंधव ववाह' कहलाता है। यंत ने शकु तला से 'गंधव
ववाह' कया था। उनके पु भरत के नाम से ही हमारे
दे श का नाम "भारतवष" बना।

6. असुर ववाह

क या को खरीद कर (आ थक प से) ववाह कर लेना


'असुर ववाह' कहलाता है।

7. रा स ववाह
क या क सहम त के बना उसका अपहरण करके
जबरद ती ववाह कर लेना 'रा स ववाह' कहलाता है।

8. पैशाच ववाह

क या क मदहोशी (गहन न ा, मान सक बलता


आ द) का लाभ उठा कर उससे शारी रक स बंध बना
लेना और उससे ववाह करना 'पैशाच ववाह' कहलाता
है।

इ ह भी दे ख

बाहरी क ड़याँ
गाय ी शां तकुंज क ओर से
"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title= ववाह_सं कार&oldid=4229047" से लया गया

Last edited 5 months ago by an anonymous user

साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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